Class 8

HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 6 भगवान के डाकिये

Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 6 भगवान के डाकिये Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 6 भगवान के डाकिये

HBSE 8th Class Hindi भगवान के डाकिये Textbook Questions and Answers

कविता से

प्रश्न 1.
कवि ने पक्षी और बावल को भगवान के डाकिए क्यों बताया है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि ने पक्षी और बादल को भगवान के डाकिए इसलिए बताया है क्योंकि वे भगवान के संदेश को हम तक लाते हैं।

प्रश्न 2.
पक्षी और बादल द्वारा लाई गई चिट्ठियों को कौन-कौन पढ़ पाते हैं ? सोचकर लिखिए।
उत्तर :
पक्षी और बादल द्वारा लाई गई चिट्ठियों को पेड़-पौधे, पानी और पहाड पढ़ पाते हैं।

प्रश्न 3.
किन पंक्तियों का भाव है:
(क) पक्षी और बादल प्रेम, सद्भाव और एकता का संदेश एक देश से दूसरे देश को भेजते हैं।
उत्तर :
पक्षी और बादल एक-दूसरे देश में जा-जाकर वहाँ प्रेम. सदभाव और एकता की भावना का प्रसार करते हैं।

(ख) प्रकृति देश-देश में भेदभाव नहीं करती। एक देश से उठा बादल दूसरे वेश में बरस जाता है।
उत्तर :
प्रकृति किसी भी देश से पक्षपात नहीं करती। एक देश में जब भाप उठकर बादल का रूप ले लेती है तब वह दूसरे देश में जाकर वर्षा रूप में बरस जाती है।

HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 6 भगवान के डाकिये

प्रश्न 4.
पक्षी और बादल की चिट्ठियों में पेड़-पौधे, पानी और पहाड़ क्या पढ़ पाते हैं ?
उत्तर :
पक्षी और बादल की चिट्ठियों में पेड़-पौधे, पानी और पहाड़ भगवान के भेजे संदेश को पढ़ पाते हैं।

प्रश्न 5.
‘एक देश की धरती दूसरे देश को सुगंध भेजती है’-कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस कथन का आशय है कि एक देश अपने प्रेम-प्यार के संदेश को पक्षियों के पंखों के माध्यम से दूसरे देश को भेजता है।

पाठ से आगे

प्रश्न 1.
पक्षियों और बादल की चिट्ठियों के आवान-प्रदान को आप किस दृष्टि से देख सकते हैं?
उत्तर :
पक्षियों और बादल की चिट्ठियों के आदान-प्रदान को हम प्रेम-प्यार और आपसी सद्भाव की दृष्टि से देख सकते हैं।

प्रश्न 2.
आज विश्व में कहीं भी संवाद भेजने और पाने का एक बड़ा साधन इंटरनेट है। पक्षी और बावल की चिड्डियों की तुलना इंटरनेट से करते हुए दस पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर :
आज विश्व में कहीं भी संवाद भेजने और पाने का एक बड़ा साधन है-इंटरनेट।
पक्षी और बादल की चिट्ठियाँ हमें भली प्रकार समझ नहीं आती, पर पेड़. पौधे, पानी, पहाड़ उन्हें भली प्रकार समझ पाते हैं।
इंटरनेट सूचनाओं का एक विस्तृत जाल है। इसमें बहुत कुछ समाया हुआ है। इंटरनेट के माध्यम से संसार की किसी भी सूचना को तुरंत प्राप्त किया जा सकता है। इसे सभी समझ सकते हैं।

प्रश्न 3.
हमारे जीवन में डाकिए की भूमिका पर दस बाक्य लिखिए।
उत्तर :
हमारे जीवन में डाकिए की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। आज भी डाकिया दूर-दराज बसे गाँवों तक हमारे पत्र एवं मनीआर्डर पहुंचाता है।

  • डाकिया ग्रामीण जन-जीवन का एक सम्मानित सदस्य माना जाता है।
  • डाकिया कम वेतन पाकर भी अपना काम अत्यंत परिश्रम एवं लगन के साथ संपन्न करता है।
  • डाकिया का महत्त्व अभी भी बना हुआ है, भले ही अब कंप्यूटर और ई-मेल का जमाना आ गया है।
  • डाकिया से हमारा व्यक्तिगत सम्पर्क होता है। (अन्य वाक्य विद्यार्थी स्वयं लिखें।)

अनुमान और कल्पना

डाकिया, इंटरनेट के वल्ड वाइड वेब (डब्ल्यू डब्ल्यू, डब्ल्यू. www) तथा पक्षी और बादल-इन तीनों संवाववाहकों के विषय में अपनी कल्पना से एक लेख तैयार कीजिए। “चिट्ठियों की अनूठी दुनिया ” पाठ का सहयोग ले सकते हैं।
उत्तर :
इस प्रकार का लेख विद्यार्थी अपनी कल्पना से स्वयं तैयार करें। इसके लिए पिछला पाठ भी पढ़ें।

  • इंटरनेट में विश्व भर की जानकारी भर दी गई है।

HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 6 भगवान के डाकिये

भगवान के डाकिये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. पक्षी और बादल,
ये भगवान के डाकिए हैं,
जो एक महादेश से
दूसरे महादेश को जाते हैं।
हम तो समझ नहीं पाते हैं
मगर उनकी लाई चिट्ठियों पेड़,
पौधे, पानी और पहाड़ बाँचते हैं।

शब्दार्थ : महावेश – विशाल देश, महाद्वीप (continents), बाँचते हैं – पढ़ते हैं (Reads)।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘वसंत भाग-3’ में संकलित कविता ‘भगवान के डाकिए’ से अवतरित हैं। इसके रचयिता राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं। कवि पक्षी और बाटानों को भगवान के डाकिए बताता है।

व्याख्या :
कवि का कहना है कि पक्षी और बादल भगवान के संदेश को हम तक पहुंचाने वाले डाकिए हैं। ये किसी देश की सीमा से बँधकर नहीं रहते। ये तो एक बड़े देश (महाद्वीप) से दूसरे महादेश (महाद्वीप) तक चले जाते हैं। हम सामान्यजन तो उनकी लाई चिट्ठियों को नहीं समझ पाते हैं, पर उन्हें पेड़, पौधे, पानी और पहाड़ भली प्रकार पढ़ लेते हैं। प्रकृति के ये विविध उपादान पक्षी और बादल से प्रभावित होते हैं। इन्हें उनकी भाषा समझ आ जाती है।

विशेष :

  1. प्रकृति को संदेशवाहक के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
  2. पेड़, पौधे, पानी, पहाड़ में ‘च’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।

2. हम तो केवल यह आँकते हैं
कि एक देश की धरती
दूसरे देश को सुगंध भेजती है।
और वह सौरभ हवा में तैरते हुए
पक्षियों की पाँखों पर तिरता है।
और एक देश का भाप
दूसरे देश में पानी
बनकर गिरता है।

शब्दार्थ : आँकते हैं – अनुमान करते हैं (to guess), सौरभ – सुगंध, खुशबू (fragrant), पाँख – पंख (feathers), दूसरे देश को सुगंध भेजती है = प्रेम-प्यार का संदेश भेजती है (message of love)|

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्यांश रामधारी सिंह दिनकर की कविता ‘भगवान के डाकिए’ से अवतरित है। इस कविता में कवि ने पक्षी और बादल को भगवान के डाकिए बताया है।

व्याख्या :
कवि कहता है कि हम पक्षी और बादल के संदेश को भले ही न पढ़ पाते हों, पर इतना अनुमान अवश्य लगा लेते हैं कि एक देश की धरती दूसरे देश के लोगों को प्रेम-प्यार का संदेश भेजती रहती है। पक्षी और बादल प्रेम, सद्भाव और एकता का संदेश एक देश से दूसरे देश को भेजते रहते हैं। ऐसा लगता है कि हवा में उड़ते हुए पक्षियों के पंखों पर प्रेम-प्यार की सुगंध तैरकर दूसरे देश तक पहुँच जाती है। प्रकृति भी किसी देश के साथ भेदभाव नहीं करती। वह भौगोलिक बंधनों को भी स्वीकार नहीं करती। यही कारण है कि एक देश में उठा बादल दूसरे देश में जाकर बरस जाता है। वर्षा देश-सीमा का बंधन नहीं मानती।।

विशेष :

  1. कवि प्रकृति के निष्पक्ष रूप का वर्णन करता
  2. ‘पक्षियों की पाँखों पर’ में अनुप्रास अलंकार की छटा

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भगवान के डाकिये Summary in Hindi

भगवान के डाकिये कवि-परिचय

जीवन-परिचय :
श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म सन् 1908 ई. में बिहार राज्य के मुंगेर जिले के सिमरिया घाट नामक ग्राम के एक साधारण किसान परिवार में हुआ। स्थानीय पाठशाला में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत पटना कॉलेज से सन् 1932 ई. में बी. ए. (इतिहास में प्रतिष्ठा, Hons, in History) की परीक्षा उत्तीर्ण की। कुछ दिन अध्यापन कार्य किया। सन् 1947 से 1950 ई. तक उन्होंने जन-संपर्क विभाग में निदेशक के पद पर कार्य किया।

3फिर कुछ समय तक लंगर सिंह कॉलेज में हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे। सन् 1952 में आपको राज्य सभा का सदस्य मनोनीत किया गया। सन् 1964 ई. में भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुए परन्तु सन् 1965 में त्यागपत्र देने पर आपको केंद्रीय सरकार का हिंदी सलाहकार नियुक्त किया गया। भारत सरकार ने दिनकर जी को उनकी उल्लेखनीय सेवाओं के लिए ‘पद्मभूषण’ उपाधि से सम्मानित किया। उन्हें ‘संस्कृति के चार अध्याय’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा ‘उर्वशी’ पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। 19 मई सन् 1974 ई. को दिनकर जी का देहांत हो गया।

रचनाएँ :
दिनकर जी की प्रमुख गद्य रचनाएँ हैं-संस्कृति के चार अध्याय, रेती के फूल, मिट्टी की ओर, अर्द्ध नारीश्वर, शुद्ध कविता की खोज, उजली आग, साहित्यमुखी काव्य की भूमिका, लोकदेव नेहरू, देश विदेश आदि।

काव्य-रचनाएँ : रेणुका, हुंकार, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, सामधेनी, उर्वशी, रसवंती, परशुराम की प्रतीक्षा, हारे को हरिनाम।

साहित्यिक विशेषताएँ :
यद्यपि दिनकर जी की ख्याति का आधार काव्य है तथापि गद्य पर भी उन्हें समान अधिकार प्राप्त था। वे आशावादी कवि थे। उनके काव्य में राष्ट्रीयता एवं भारतीय संस्कृति के स्वर मुखरित हुए हैं। उनकी प्रारंभिक कविताएँ छायावादी हैं। बाद में उन्होंने मनुष्य को समाज में अग्रसर होने की प्रेरणा देने वाले साहित्य की रचना की। दिनकर जी ने साहित्य, समाज, संस्कृति, राजनीति तथा अन्य समसामयिक विषयों पर मर्मस्पर्शी तथा विचारोत्तेजक लेख लिखे। उन निबंधों में राष्ट्रीयता की स्पष्ट झलक है। वे गाँधी विचारधारा तथा मानवतावादी दृष्टिकोण से भी अभिप्रेरित हैं।

भगवान के डाकिये कविता का सार

कवि पक्षी और बादल को भगवान के डाकिए बताता है। जिस प्रकार डाकिए संदेश लाने का काम करते हैं उसी प्रकार पक्षी और बादल भगवान का संदेश हम तक लाते हैं। उनकं लाए संदेश को हम भले ही न समझ पाएँ पर पेड़, पौधे, पानी और पहाड़ उसे भली प्रकार पढ़-समझ लेते हैं। हम तो उल इतना भर आँकते हैं कि एक देश की धरती दूसरे देश को खुशबू भेजती है। पक्षियों के पंखों पर संगध तैरती है। एक देश का भाप दूसरे देश में पानी बनकर गिरता है। प्रकृति के लिए सीमाओं का बंधन नहीं होता।

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HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 5 चिट्ठियों की अनूठी दुनिया

Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 5 चिट्ठियों की अनूठी दुनिया Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 5 चिट्ठियों की अनूठी दुनिया

HBSE 8th Class Hindi चिट्ठियों की अनूठी दुनिया Textbook Questions and Answers

पाठ से

प्रश्न 1.
पत्र जैसा संतोष फोन या एस एम एस का संदेश क्यों नहीं दे सकता?
उत्तर:
पत्र में हम अपने हृदय के भावों को स्पष्ट रूप में अभिव्यक्त कर सकते हैं जबकि फोन या एस एम एस में बात संक्षेप में ही कही जाती है। पत्र लिखकर ही पूरी संतुष्टि मिलती है। पत्र में आत्मीयता की भावना समाई रहती है जबकि फोन या एस एम एस केवल कामकाजी बात करते हैं। पत्रों को सहेजकर रखा जा सकता है जबकि फोन या एस एम एस को नहीं।

प्रश्न 2.
पत्र को खत, कागद, उत्तरम, जाबू, लेख, काडिद, पाती, चिट्ठी इत्यादि कहा जाता है। इन शब्दों से संबंधित भाषाओं के नाम बताइए।
उत्तर:

शब्दसंबंधित भाषा
खतउर्दू
कागदकन्नड़
उत्तरम, जाबू, लेखतेलुगु
काडिदतमिल
पाती, चिट्ठी हिंदो पत्रसंस्कृत

प्रश्न 3.
पत्र-लेखन की कला के विकास के लिए क्या-क्या प्रयास हुए? लिखिए।
उत्तर:
पत्र-लेखन की कला के विकास के लिए निम्नलिखित प्रयास हुए:

  • पत्र-संस्कृति विकसित करने के लिए स्कूली पाठ्यक्रमों
  • में पत्र-लेखन का विषय शामिल किया गया।
  • विश्व डाक संघ की ओर से 16 वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों के लिए पत्र-लेखन प्रतियोगिताओं का सिलसिला 1972 ई. से शुरू किया गया।

HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 5 चिट्ठियों की अनूठी दुनिया

प्रश्न 4.
पत्र धरोहर हो सकते हैं, लेकिन एस एम एस क्यों नहीं? तर्क सहित अपना विचार लिखिए।
उत्तर:
पत्र प्रेरणा देते हैं अतः लोग उन्हें धरोहर की तरह सहेजकर रखते हैं। पत्र चूँकि लिखित रूप में होते हैं अत: सहेजकर रखे जा सकते हैं। पर एस एम एस को सहेजकर नहीं रखा जाता। इनमें केवल कामकाज की बात होती है। इसे लोग जल्दी ही भूल जाते हैं। भला आप कितने संदेशों को सहेजकर रख सकते हैं। तमाम महान हस्तियों की यादगार तो इनके लिखे पत्रों में होती है अत: उनके लिखे पत्र धरोहर हो सकते हैं।

प्रश्न 5.
क्या चिद्वियों की जगह कभी फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन तथा मोबाइल ले सकते हैं?
उत्तर:
फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन तथा मोबाइल कभी भी चिट्ठियों की जगह नहीं ले सकते। ये सब संचार के आधुनिक साधन अवश्य हैं। इनसे व्यावसायिक कामकाज तो चलाया जा सकता है, पर इनमें पत्रों के गुण नहीं आ सकते। पत्र से आत्मीयता का जो बोध होता है वह इनमें नहीं आ सकता। लोग पत्रों को संभालकर रखते हैं. पर फैक्स, ई-मेल या टेलीफोन और मोबाइल के संदेश अपनी सूचना देकर अर्थहीन हो जाते हैं। पत्रों के संकलन साहित्य का रूप भी ले लेते हैं।

पाठ से आगे

प्रश्न 1.
किसी को बिना टिकट सादे लिफाफे पर सही पता लिखकर पत्र बैरंग भेजने पर कौन-सी कठिनाई आ सकती है? पता कीजिए।
उत्तर:
सही पता लिखने पर पत्र अपने ठिकाने पर तो पहुँच जाएगा पर संबंधित व्यक्ति को तभी मिलेगा जब वह डाक टिकट तथा जुर्माने का भुगतान करेगा। अतः लिफाफे पर उणि डाक टिकट अवश्य लगानी चाहिए।

प्रश्न 2.
पिन कोड भी संख्याओं में लिखा गया एक पता है, कैसे?
उत्तर:
पिन कोड से उस क्षेत्र का पता चल जाता है जहाँ पत्र भेजा गया है।
पहले अंकों में शहर का संकेत है, फिर उस क्षेत्र, नगर या कॉलोनी का पता होता है। जैसे 110059 पिन कोड है।
1100 दिल्ली का संकेत है।
59 पश्चिमी दिल्ली के जनकपुरी- क्षेत्र का कोड है।
पिन कोड संख्याओं में लिखा पता भले ही हो, पर यह पूरा पता नहीं है। इससे किसी निश्चित मकान या व्यक्ति तक नहीं पहुँचाया जा सकता। पिन कोड से पत्र की छंटाई में सुविधा अवश्य
होती है। इससे पत्र जल्दी पहुँचता है।

प्रश्न 3.
ऐसा क्यों होता था कि महात्मा गाँधी को दुनिया भर से पत्र ‘महात्मा गाँधी-इंडिया’ पता लिखकर आते थे?
उत्तर:
ऐसा इसलिए होता था क्योंकि उन दिनों महात्मा गाँधी सर्वाधिक लोकप्रिय एवं चर्चित व्यक्ति थे। वे कहाँ होंगे,
इसका पता सभी को रहता था। अतः पत्र कहीं से आया हो, उन तक पहुंच जाता था। यह उनकी लोकप्रियता का पर्याय था।

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अनुमान और कल्पना

1. रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता ‘भगवान के डाकिए’ आपकी पाठ्यपुस्तक में है। उसके आधार पर पक्षी और बादल को डाकिए की भाँति मानकर अपनी कल्पना से लेख लिखिए।
उत्तर:
पक्षी और बादल डाकिए का काम करते हैं। डाकिया वह होता है जो किसी का संदेश किसी तक पहुंचाए। पक्षी और बादल भी प्रकृति का संदेश दूसरों तक पहुँचाते हैं। इनके लाए पत्र भले ही आम आदमी की समझ में न आते हों पर उनके संदेश जिनके लिए होते हैं, वे उन्हें शीघ्र समझ लेते हैं। पक्षी और बादल प्रकृति के संदेश वाहक हैं।

2. संस्कृत साहित्य के महाकवि कालिदास ने बादल को संवादवाहक बनाकर ‘मेघदूत’ नाम का काव्य लिखा है। ‘मेघदूत’ के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
संस्कृत के महान कवि कलिदास ने बादल को संवादवाहक बनाकर ‘मेघदूत’ नामक काव्य रचा था।
उस काव्य में बताया गया है कि धनपति कुबेर ने यक्ष को निर्वासन को दंड दिया था। तब यक्ष ने अपनी प्रिया के पास बादल को संदेश वाहक बनाकर अपना संदेश भिजवाया था।

3. पक्षी को संदेशवाहक बनाकर अनेक कविताएँ एवं गीत लिखे गए हैं। एक गीत है-जा-जा रे कागा विदेशवा, मेरे पिया से कहियो संदेशवा। इस तरह के तीन गीतों का संग्रह कीजिए। प्रशिक्षित पक्षी के गले में पत्र बांधकर निर्धारित स्थान तक पत्र भेजने का उल्लेख मिलता है। मान लीजिए आपको एक पक्षी को संदेश वाहक बनाकर का भेजना हो तो आप वह पत्र किसे भेजना चाहेंगे और उसमें क्या लिखना चाहेंगे?
उत्तर:
पक्षियों को और विशेषकर कबूत को अपना संदेशवाहक । बनाकर भेजने की परंपरा प्राचीन काल में रही है। पत्र को उसके गले में बाँध दिया जाता था और वह निर्धारित स्थान तक पत्र पहुँचा देता था।

4. केवल पढ़ने के लिए दी गई रामदरश मिश्र की कविता ‘चिट्ठियाँ’ को ध्यानपूर्वक पढ़िए और विचार कीजिए क्या यह कविता केवल लेटर बॉक्स में पड़ी निर्धारित पते पर जाने के लिए तैयार चिट्ठियों के बारे में है? या रेल के डब्बे बैठी सवारी भी उन्हीं चिट्ठियों की तरह हैं जिनके पास उनके गंतव्य तक की टिकट है पत्र के पते की तरह? और क्या विद्यालय भी एक लेटर बाक्स की भाँति नहीं है जहाँ से उत्तीर्ण होकर विद्यार्थी अनेक क्षेत्रों में चले जाते हैं? अपनी कल्पना को पंख लगाइए और मुक्त मन से इस विषय में विचार-विमर्श कीजिए।
उत्तर:
रामदरथ मिश्र की कविता
चिट्ठियाँ
लेटरबक्स में पड़ी चिट्ठियाँ
अनंत सुख-दुख वाली अनंत चिट्ठियाँ
लेकिन कोई किसी से नहीं बोलती
सभी अकेले-अकेले
अपनी मंजिल पर पहुंचने का इंतजार करती हैं।
कैसा है यह एक साथ होना
दूसरे के साथ हँसना न रोना
क्या हम भी
लेटरबक्स की चिट्ठियाँ हो गए हैं।
(विद्यार्थी अपने मन के विचार लिखें।)

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भाषा की बात

1. किसी प्रयोजन विशेष से संबंधित शब्दों के साथ पत्र शब्द जोड़ने से कुछ शब्द बनते हैं जैसे-प्रशस्ति पत्र, समाचार पत्र। – आप ना पत्र के योग से बनने वाले दस शब्द लिखिए
उत्तर:
व्यापारिक पत्र – चेतावनी पत्र
साहित्यिक पत्र – प्रेरक पत्र
स्मरण पत्र – प्रेम पत्र
घरेलू पत्र – सरकारी पत्र
शोक पत्र – शिकायती पत्र

2. ‘व्यापारिक’ शब्द व्यापार शब्द के साथ ‘इक’ प्रत्यय के. योग से बना है। इक प्रत्यय के योग से बनने वाले शब्दों को अपनी पाठ्यपुस्तक से खोजकर लिखिए।
उत्तर:
पारिवारिक, सामाजिक, नैतिक, धार्मिक, राजनीतिक।

3. दो स्वरों के मेल से होने वाले परिवर्तन को स्वर संधि कहते हैं; जैसे-रवीन्द्र – रवि + इन्द्र। इस संधि में इ+ ई हुई है। इसे दीर्घ संधि कहते हैं। दीर्घ स्वर संधि के और उदाहरण खोजकर लिखिए। मुख्य रूप से स्वर संधियाँ चार प्रकार की मानी गई हैं-दीर्घ, गुण, वृद्धि और यण।
हस्व या दीर्घ अ, इ, उ के बाद हस्व या दीर्घ अ, इ, उ, आ आए तो ये आपस में मिलकर क्रमशः दीर्घ आ, ई, ऊ हो जाते हैं, इसी कारण इस संधि को दीर्ध संधि कहते हैं। जैसे-संग्रह + आलय – संग्रहालय, महा + आत्मा – महात्मा।
इस प्रकार के कम-से-कम दस उदाहरण खोजकर लिखिए और अपनी शिक्षिका/शिक्षक को दिखाइए।
उत्तर:
उदाहरण:
1. दीर्घ संधि:
ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, से परे क्रमशः ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ आ जाएँ तो दोनों मिलकर क्रमशः आ, ई, ऊ हो जाते हैं
(क) अ + अ = आ
परम + अणु – परमाणु
वेद + अत – वेदांत।
मत + अनुसार = मतानुसार
धर्म + अर्थ – धर्मार्थ।

अ + आ = आ
हिम + आलय = हिमालय
रत्न + आकर = रत्नाकर।
धन + आदेश = धनादेश
परम +. आत्मा = परमात्मा।

आ + अ = आ
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
दीक्षा + अंत = दीक्षांत।
परीक्षा + अर्थी = परीक्षार्थी
रेखा + अंकित – रेखांकित।

आ + आ + आ
विद्या + आलय = विद्यालय
कारा + आवास = कारावास।
मदिरा + आलय = मदिरालय
दया + आनंद = दयानन्द।

(ख) इ + इ = ई
रवि + इन्द्र – रवीन्द्र
अभि + इष्ट = अभीष्ट।
कपि + इन्द्र = कपींद्र
अति + इव = अतीव।

इ + ई = ई
गिरि + ईश = गिरीश
कपि + ईश्वर = कपीश्वर।
हरि + ईश = हरीश
फणि + ईश्वर = फणीश्वर।

ई + इ = ई
मही + इन्द्र = महीन्द्र
नदी + इन्द्र = नदीन्द्र।

ई + ई = ई
मही + ईश = महीश
रजनी + ईश – रजनीश।

(ग) उ + उ = ऊ
लघु + उत्तर = लघूत्तर
गुरु + उपदेश = गुरूपदेश।
सु + उक्ति = सूक्ति
अनु + उदित = अनूदित।

उ + ऊ = ऊ
लघु + ऊर्मि = लघुर्मि
सिन्धु + ऊर्मि = सिन्धूमि।

ऊ + उ = ऊ
वधू + उत्सव = वधूत्सव।

ऊ + ऊ = ऊ
वधू + ऊर्मि = वधूर्मि।

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2. गुण संधि: ‘अ’ और ‘आ’ से परे यदि हस्व या दीर्घ ‘इ’. ‘उ’ या ‘ऋ’ आएँ तो वे क्रमशः ‘ए’, ‘ओ’ और ‘अर्’ हो जाते हैं-
(क) अ + इ = ए
नर + इंद्र – नरेंद्र।
भारत + इंदु – भारतेंदु।

अ + ई = ए
गण + ईश = गणेश।
परम + ईश्वर = परमेश्वर।

आ + इ = ए
महा + इंद्र – महेंद्र।
यथा + इष्ट = यथेष्ट।

आ + ई = ए
रमा + ईश = रमेश।
राका + ईश = राकेश।

(ख) अ + उ = ओ
सूर्य + उदय = सूर्योदय।
पर + उपकार – परोपकार।

अ + ऊ = ओ
नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा।

आ + उ = ओ
महा + उत्सव = महोत्सव।

आ + ऊ = ओ
महा + मा = महोमि।

(ग) अ + ऋ = अर्
देव + ऋषि = देवर्षि।
सप्त + ऋषि = सप्तर्षि।

आ + ऋ = अर्
महा + ऋषि = महर्षि।

3. वृद्धि संधि: ‘अ’ या ‘आ’ से परे ‘ए’ या ‘ऐ’ हों तो दोनों को मिलाकर ‘ऐ’ तथा ‘औ’ या ‘औ’ हों तो उन्हें मिलाकर ‘औ’ हो जाता है।
अ + ए = ऐ → एक + एक = एकैक।
आ + ए = ऐ → सदा + एव = सदैव।
अ + ऐ = ऐ → मत + ऐक्य = मतैक्य।
आ + ऐ = ऐ → महा + ऐश्वर – महैश्वर्य।
अ + ओ = औ → जल + ओध = जलौध।
आ + ओ = औ → महा + औध = महौधा
अ + औ = औ → वन + औषध = वनौषध।
आ + औ = औ → महा + औषध = महौषधा

4. यण संधि: ह्रस्व या दीर्घ ‘इ’, ‘उ’, ‘ऋ’ से परे भिन्न जाति का कोई स्वर आ जाए तो इ-ई को ‘य’, उ-3 को ‘व’ और ‘ऋ’ को ‘र’ हो जाता है।
इ + अ = य
अति + अधिक = अत्यधिक।
अति + अंत – अत्यंत।

इ + आ = या
इति + आदि = इत्यादि।
अति + आचार – अत्याचार।

इ + उ = यु
प्रति + उत्तर = प्रत्युत्तर।
उपरि + उक्त = उपर्युक्त।

उ + अ = व → मनु + अंतर = मन्वन्तर।
उ + आ = वा → सु + आगत = स्वागत।
उ + ए = वे → अनु + एषण – अन्वेषण।
ऊ + आ = वा → वधू + आगमन = वध्वागमन।
ऋ + अ = र → पितृ + अनुमति = पित्रनुमति।
ऋ + आ = रा → पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा।

HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 5 चिट्ठियों की अनूठी दुनिया

HBSE 8th Class Hindi चिट्ठियों की अनूठी दुनिया Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
पत्रों की दुनिया कैसी है? साहित्य एवं मानव-सभ्यता के विकास में पत्रों’ की क्या। भूमिका है?
उत्तर:
पत्रों की दुनिया भी अजीबो-गरीब है और उसकी उपयोगिता हमेशा से बनी रही है। पत्र जो काम कर सकते हैं, वह संचार का आधुनिकतम साधन नहीं कर सकता है। पत्र जैसा संतोष फोन या एसएमएस का संदेश कहाँ दे सकता है। पत्र एक नया सिलसिला शुरू करते हैं और राजनीति, साहित्य तथा कला के क्षेत्रों में तमाम विवाद और नयी घटनाओं की जड़ भी पत्र ही – होते हैं। दुनिया का तमाम साहित्य पत्रों पर केंद्रित है और मानव सभ्यता के विकास में इन पत्रों ने अनूठी भूमिका निभाई है।

प्रश्न 2.
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1953 में क्या कहा था? पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर:
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सन् 1953 में सही ही कहा था कि-‘हजारों सालों तक संचार का साधन केवल हरकारे (रनर्स) या फिर तेज घोड़े रहे हैं। उसके बाद पहिए आए। पर रेलवे और तार से भारी बदलाव आया। तार ने रेलों से भी तेज गति से संवाद पहुँचाने का सिलसिला शुरू किया। अब टेलीफोन, वायरलस और आगे रेडार-दुनिया बदल रहा है।’

प्रश्न 3.
महात्मा गाँधी के पास पत्र कैसे पहुँचते थे? वे उन पत्रों का जवाब कैसे देते थे? लोग उनके लिखे पत्रों का क्या करते थे?
उत्तर:
महात्मा गाँधी के पास दुनिया भर से तमाम पत्र केवल महात्मा गाँधी-इंडिया लिखे आते थे और वे जहाँ भी रहते थे, वहाँ तक पहुँच जाते थे। आजादी के आंदोलन के कई अन्य दिग्गज हस्तियों के साथ भी ऐसा ही था। गाँधीजी के पास देश दुनिया से बड़ी संख्या में पत्र पहुँचते थे, पर पत्रों का जवाब देने के मामले में उनका कोई जोड़ नहीं था।

कहा जाता है कि जैसे ही उन्हें पत्र मिलता था, उसी समय वे उसका जवाब भी लिख देते थे। अपने हाथों से ही ज्यादातर पत्रों का जवाब देते थे। पत्र भेजने वाले लोग उन पत्रों को किसी प्रशस्तिपत्र से कम नहीं मानते हैं और कई लोगों ने तो पत्रों को फ्रेम करा कर रख लिया है। यह है पत्रों का जादू। यही नहीं, पत्रों के आधार पर ही कई भाषाओं में जाने कितनी किताबें लिखी जा चुकी हैं।

चिट्ठियों की अनूठी दुनिया गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. पिछली शताब्दी में पत्र लेखन ने एक कला का रूप ले लिया। डाक व्यवस्था के सुधार के साथ पत्रों को सही दिशा देने के लिए विशेष प्रयास किए गए। पत्र संस्कृति विकसित करने के लिए स्कूली पाठ्यक्रमों में पत्र लेखन का विषय भी शामिल किया गया। भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में ये प्रयास चले और विश्व डाक संघ ने अपनी ओर से काफी प्रयास किए।

विश्व डाक संघ की ओर से 16 वर्ष से कम आयु वर्ग बच्चों के लिए पत्र लेखन प्रतियोगिताएँ आयोजित करने का सिलसिला सन् 1972 से शुरू किया गया। यह सही है कि खास तौर पर बड़े शहरों और महानगरों में संचार साधनों के तेज विकास तथा अन्य कारणों से पत्रों की आवाजाही प्रभावित हुई है, पर देहाती दुनिया आज भी चिड़ियों से ही चल रही है। फैक्स, ईमेल, टेलीफोन तथा मोबाइल ने चिनियाँ की तेजी को रोका है, पर व्यापारिक डाक की संख्या लगातार बढ़ रही है।
प्रश्न:
1. पत्र लिखने ने पिछली शताब्दी में क्या रूप ले लिया है?
2. पत्र-संस्कृति के विकास के लिए क्या प्रयास किया गया?
3. विश्व डाक संघ ने क्या प्रयास किया?
4. समाचार भेजने के लिए क्या-क्या साधन प्रयोग किए जा रहे हैं?
उत्तर:
1. पिछली शताब्दी में पत्र लिखने ने एक कला का रूप ले लिया है।
2. पत्र-संस्कृति के विकास के लिए स्कूली पाठ्यक्रमों में पत्र लेखन को एक विषय के रूप में शामिल किया गया है।
3. विश्व डाक संघ द्वारा 16 वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों के लिए पत्र-लेखन प्रतियोगिताओं का आयोजन 1972 से शुरू किया गया है।
4. समाचार भेजने के लिए फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन तथा मोबाइल आदि माध्यमों का प्रयोग किया जा रहा है।

HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 5 चिट्ठियों की अनूठी दुनिया

2. पत्र व्यवहार की परंपरा भारत में बहुत पुरानी है। पर इसका असली विकास आजादी के बाद ही हुआ है। तमाम सरकारी विभागों की तुलना में सबसे ज्यादा गुडविल डाक विभाग की ही है। इसकी एक खास वजह यह भी है कि यह लोगों को जोड़ने का काम करता है। घर-घर तक इसकी पहुँच है।

संचार के तमाम उन्नत साधनों के बाद भी चिट्ठी-पत्री की हैसियत बरकरार है। शहरी इलाकों में आलीशान हवेलियाँ हों या फिर झोपड़पट्टियों में रह रहे लोग, दुर्गम जंगलों से घिरे गाँव हों या फिर बर्फबारी के बीच जी रहे पहाड़ों के लोग, समुद्र तट पर रह रहे मछुआरे हों या फिर रेगिस्तान की ढाँढियों में रह रहे लोग, आज भी खतों का ही सबसे बेसब्री से इंतजार होता है। एक दो नहीं, करोंड़ों लोग खतों और अन्य सेवाओं के लिए रोज भारतीय डाकघरों के दरवाजों तक पहुँचते हैं और इसकी बहु आयामी भूमिका नजर आ रही है। दूर देहात में लाखों गरीब घरों में चूल्हे मनीआर्डर अर्थव्यवस्था से ही जलते हैं। गाँवों या गरीब बस्तियों में चिट्ठी या मनीआर्डर लेकर पहुंचने वाला डांकिया देवदूत के रूप में देखा जाता है।
प्रश्न:
1. भारत में पत्र-यवहार की परंपरा कैसी है?
2. सबसे ज्यादा गुडविल किस सरकारी विभाग की है? इसका कारण क्या है?
3. कौन खतों का बेसब्री से इंतजार करते हैं?
4. गाँवों में डाकिया को किस रूप से देखा जाता है और क्यों? और क्यों?
उत्तर:
1. भारत में पत्र-व्यवहार की परंपरा बहुत पुरानी है। हाँ, इसका विकास आजादी के बाद ज्यादा हुआ है।
2. सारे सरकारी विभागों में डाक विभाग की गुडविल सबसे ज्यादा है। इसका कारण यह है कि यह पत्रों द्वारा लोगों को जोड़ने का काम करता है।
3. देश के सभी भागों में लोग खतों का बेसब्री से इंतजार. करते हैं, भले ही वह आलीशान हवेलियों में रहते हों अथवा पहाड़ों पर रहते हों या समुद्र तट के मछुआरे हों अथवा रेगिस्तानी या बर्फीले क्षेत्रों में रहने वाले लोग हों।
4. गाँवों में डाकिया को देवदूत के रूप में देखा जाता है क्योंकि उसके द्वारा लाए मनीआर्डर के रुपयों से ही उनके घरों के चूल्हे जलते हैं।

चिट्ठियों की अनूठी दुनिया Summary in Hindi

चिट्ठियों की अनूठी दुनिया पाठ का सार

पत्रों की दुनिया बड़ी ही अनोखी है। पत्र जो काम कर सकते हैं वह काम संचार का कोई भी साधन नहीं कर सकता। पत्र लिखने . और पढ़ने से बड़ा संतोष मिलता है। अनेक घटनाओं और विवादों की जड़ में पत्र ही होते हैं। मानव-सभ्यता के विकास में पत्रों ने अनूठी भूमिका निभाई है। पत्रों को विविध भाषाओं में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है, जैसे उर्दू में खत, संस्कृत में पत्र, कन्नड में कागद, तेलगु मे उत्तरम, तमिल मे कब्दि कहा जाता है। पत्र लिखना भी एक कला है। दुनिया में रोजाना करोड़ों पत्र इधर से उधर जाते हैं।

पिछली शताब्दी में पत्र लिखने ने एक कला का रूप ले लिया। पत्र-लेखन को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया गया। विश्व डाकसंघ की ओर से 16 वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों के लिए पत्र-लेखन प्रतियोगिताओं के आयोजन का सिलसिला 1972 में शुरू हुआ। आजकल फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन तथा मोबाइल के प्रयोग ने चिट्ठियों की तेजी को भले ही रोका है, पर व्यापारिक डाक लगातार बढ़ रही है। अब भी लोग पत्रों का बेसब्री से इंतजार करते हैं।

आज देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अपने पुरखों की चिट्ठियों को सहेज और सँजोकर रख रहे हैं। बड़े-बड़े लेखक, पत्रकार, उद्यमी, कवि, प्रशासक, संन्यासी या किसान की पत्र रचनाएँ अनुसंधान का विषय हैं। पंडित नेहरू ने अपनी पुत्री इंदिरा गाँधी को भी पत्र लिखे थे। हम पत्रों को तो सहेजकर रख लेते हैं, पर एस एम एस संदेशों को जल्दी ही भूल जाते हैं। महात्मा गाँधी द्वारा लिखे गए पत्र बहुत बड़ी धरोहर के रूप में सुरक्षित हैं। दुनिया के संग्रहालयों में जानी-मानी हस्तियों के पत्रों के अनूठे संकलन हैं। ये पत्र देश, काल और समाज को जानने-समझने का असली पैमाना हैं।

महात्मा गाँधी के पास दुनिया भर से पत्र आते थे। पते के रूप में उन पर केवल महात्मा गाँधी-इंडिया लिखा होता था और वे जहाँ भी होते वहीं पहुँच जाते थे। गाँधीजी के पास दुनिया भर से बड़ी संख्या में पत्र पहुँचते थे। वे उनका जवाब भी भिजवाते थे। वे अपने हाथों से ही अधिकांश पत्रों का जवाब लिखते थे। लिखते-लिखते जब उनका दाहिना हाथ दर्द करने लगता था तब वे बाएँ हाथ से लिखने में जुट जाते थे। पत्र पाने वाले लोग गाँधीजी के पत्रों को प्रशस्तिपत्र से कम नहीं मानते थे। कई लोगों ने तो उन पत्रों को फ्रेम करा लिया था। यह उनके पत्रों को जादू ही तो था। पत्र किसी दस्तावेज से कम नहीं होते। पत्रों से संबंधित कई पुस्तकें मिल जाती हैं। पत्रों के संकलन का काम डाक मंगलमूर्ति ने किया है। पत्रों में प्रेमचंद, नेहरू जी, गाँधी जी तथा रवीन्द्रनाथ टैगोर के पत्र बहत प्रेरक हैं। महात्मा गाँधी और रवीन्द्रनाथ टैगोर के मध्य 1915 से 1941 तक जो पत्राचार हुआ. उनसे नए-नए तथ्यों तथा उनकी मनोदशा का लेखा-जोखा मिलता है।

पत्र-व्यवहार की परंपरा भारत में बहुत पुरानी है। पर इसका असली विकास आजादी के बाद ही हुआ। डाक विभाग की पहुंच घर-घर तक है। आज भी लोग खतों का बेसब्री से इंतजार करते हैं। दूर देहात में लाखों गरीब घरों में चूल्हे मनीआर्डर की अर्थव्यवस्था से ही जलते हैं। गाँवों में आज भी डाकिया देवदूत के रूप में देखा जाता है।

HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 5 चिट्ठियों की अनूठी दुनिया

चिट्ठियों की अनूठी दुनिया शब्दार्थ

उपयोगिता = लाभदायी (use), आधुनिकतम = नवीनतम (modern), केंद्रित = टिके होना (centred), तलाशना = ढूंढना (10 search), अहमियत = महत्त्व (importance), प्रयास – कोशिश (Efforts), विकसित = फली-फूली (Developed), व्यापारिक = व्यापार संबंधी (related to bursiness), बेसनी = सन के बिना (restless), मिसाल = उदाहरण (example), पुरखे = पूर्वज (ancestors), संकलन = संग्रह (collection), दिग्गज – बड़ी (Big. great), हस्ती = व्यक्तित्व (personalities), प्रशस्तिपत्र = गुणगान गाने वाला पत्र (letter of praive), दस्तावेज = जरूरी कागज (documents), तथ्यों = सच्चाइयों (facts), मनोदशा = मन की दशा (position of mind), गुडविल = नेकनामी (goodwill), हैसियत = दशा (status), बहुआयामी = अनेक रूपों वाला (malti dimensional), देवदूत = फरिश्ता (angel).

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HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 4 दीवानों की हस्ती

Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 4 दीवानों की हस्ती Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 4 दीवानों की हस्ती

HBSE 8th Class Hindi दीवानों की हस्ती Textbook Questions and Answers

कविता से

प्रश्न 1.
कवि ने अपने आने को ‘उल्लास’ और जाने को ‘आँसू बनकर बह जाना’ क्यों कहा है?
उत्तर:
कवि अपने आने को उल्लास इसलिए कहता है क्योंकि किसी भी नए स्थान पर बड़े उत्साह के साथ जाता है। वहाँ जाकर उसे प्रसन्नता होती है। पर जब वह उस स्थान को छोड़कर आगे जाता है तब उसे दु:ख होता है। विदाई के क्षणों में उसकी आँखों से आँसू बह निकलते हैं।

प्रश्न 2.
भिखमंगों की दुनिया में बेरोक प्यार लुटाने वाला कवि ऐसा क्यों कहता है कि वह अपने हृदय पर असफलता का एक निशान भार की तरह लेकर जा रहा है? क्या वह निराश है या प्रसन्न है?
उत्तर:
कवि इस दुनिया को भिखमंगों की दुनिया बताता है। यह दुनिया केवल लेना जानती है, देना नहीं। कवि दुनिया के लोगों को अपना समझकर उन पर अपना प्यार लुटाता है, पर उसे बदले में वैसा प्यार नहीं मिलता। अतः वह अपने हृदय पर असफलता का भार लेकर जा रहा है। कवि निराश है।

प्रश्न 3.
कविता में ऐसी कौन-सी बात है जो आपको सबसे अच्छी लगी?
उत्तर:
कविता में हमें कवि का जीवन के प्रति दृष्टिकोण अच्छा लगा। ऐसा दृष्टिकोण रखने वाला व्यक्ति ही सुखी रह सकता है।

कविता से आगे

प्रश्न 1.
जीवन में मस्ती होनी चाहिए, लेकिन कब मस्ती हानिकारक भी हो सकती है? सहपाठियों के बीच चर्चा कीजिए।
उत्तर:
‘जीवन में मस्ती’ विषय पर विद्यार्थी अपने सहपाठियों के मध्य चर्चा करें। दोनों पक्षों पर विचार करें।

HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 4 दीवानों की हस्ती

अनुमान और कल्पना

1. एक पंक्ति में कवि ने यह कहकर अपने अस्तित्व को नकारा है कि “हम दीवानों की क्या हस्ती है आज यहाँ, कल वहाँ चले।” दूसरी पंक्ति में उसने यह कहकर अपने अस्तित्व को महत्त्व दिया है कि “मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले।” यह फाकामस्ती का उदाहरण है। अभाव में भी खुश रहना फाकामस्ती कही जाती है। कविता में इस प्रकार की अन्य पंक्तियाँ भी हैं, उन्हें ध्यानपूर्वक पढ़िए और अनुमान लगाइए कि कविता में परस्पर विरोधी बातें क्यों की गई हैं?
→ अन्य विरोधी बातों वाली काव्य-पंक्तियाँ
आए बनकर उल्लास अभी,
आँसू बनकर बह चले अभी।
(उल्लास भी आँसू भी)
हम भिखमंगों की दुनिया में,
स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले।
हम एक निसानी-सी उर पर
ले असफलता का भार चले।
(प्यार लुटाना-असफलता का भार)

भाषा की बात

संतुष्टि के लिए कवि ने ‘छककर’, “जी भरकर’ और ‘खुलकर’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया है। इसी भाव को व्यक्त करने वाले कुछ और शब्द सोचकर लिखिए, जैसे-हँसकर, गाकर।

  • पढ़कर – खिलकर
  • सुनकर – तृप्त होकर

HBSE 8th Class Hindi दीवानों की हस्ती Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
इस कविता में प्रयुक्त ‘दीवाना’ शब्द के निम्नलिखित अर्थों में सर्वोपयुक्तं अर्थ को चुनिए:
(क) पागल
(ख) लगनशील
(ग) आवारा
(घ) मनमौजी।
उत्तर:
मनमौजी।

प्रश्न 2.
कवि ने इस कविता में दीवानों की क्या विशेषताएँ बताईं?
उत्तर:
कवि ने इस कविता में बताया है कि दीवाने मनमौजी स्वभाव के होते हैं। वे एक जगह टिककर नहीं बैठते। वे लोगों के सुख-दुख के साथी होते हैं। विशेषकर गरीबों के लिए अपना प्यार लुटाते हैं। दीवाने मान-अपमान, भलाई-बुराई, अपने-पराए की भावना से ऊपर उठे होते हैं। वे किसी दूसरे के बनाए बंधन में बंधकर रहना नहीं जानते। वे किसी को बद्दुआ नहीं देते। सब को समान दृष्टि से देखते हैं।

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प्रश्न 3.
इस कविता में जीवन के प्रति कौन-सा दृष्टिकोण झलकता है?
उत्तर:
इस कविता में जीवन को पूरी मस्ती के साथ जीने का दृष्टिकोण झलकता है। हमें स्वच्छंद जीवन जीना चाहिए। किसी के बंधन में बंधकर जीना ठीक नहीं है। गरीबों के प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए। किसी के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित भाव कविता की किन पंक्तियों में व्यक्त हुए हैं?
1. हम बंधनों में रहकर भी आजाद रहने लगे।
2. हमने संसार को कुछ दिया और संसार से कुछ लिया भी।
3. हम मन में असफलता के बोझ को वहन करते चले।
उत्तर:
कविता की निम्नलिखित पंक्तियों में ये भाव व्यक्त हुए हैं:
1. हम स्वयं बंधे थे, और स्वयं हम अपने बंधन तोड़ चले
2. जग से उसका कुछ लिए चले, – जग को अपना कुछ दिए चले।
3. ले एक निशानी सी उर पर, ले असफलता का भार चले।

प्रश्न 5.
इस कविता से आपको क्या प्रेरणा मिलती
उत्तर:
इस कविता में हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हमें मनमौजी प्रवृत्ति का होना चाहिए। हमें बंधनों में बंधकर नहीं रहना चाहिए। स्वच्छंद जीवन जीना हमारा लक्ष्य होना चाहिए। लोगों के दीवानों की हस्ती [वसंत-भाग-3] सुख-दुःख में साझीदार होने की प्रेरणा भी हमें इस कविता से मिलती है।

प्रश्न 6.
सारी कविता पढ़कर कवि की किस मनःस्थिति का बोध होता है?
(क) वैराग्य की
(ख) संतोष की
(ग) जीवन से भागने की
(घ) सुख-दुख में समान भाव से मस्त रहने की।
उत्तर:
सारी कविता पढ़कर कवि की “सुख-दुःख में समान भाव से मस्त रहने की” पुनः स्थिति का बोध होता है।

प्रश्न 7.
दीवाने टिककर क्यों नहीं बैठते?
उत्तर:
दीवानों का जीवन स्वच्छंद होता है। वे जहाँ-तहाँ घूमते रहते हैं। एक जगह टिकने में वे बंधनों का अनुभव करते हैं। किसी के बंधन स्वीकार नहीं कर सकते। वे कभी यहाँ तो कभी वहाँ जा पहुँचते हैं।

प्रश्न 8.
इस कविता का प्रतिपाद्य लिखो।
उत्तर:
‘दीवानों की हस्ती’ शीर्षक कविता का प्रतिसाद्य है कि हमें सुख-दुःख में समान भाव, से मस्त बने रहना चाहिए। मनमौजी जीवन आनंद से परिपूर्ण होता , सी में जीवन का सच्चा रूप झलकता है। हमें सभी प्रकार के भदों से ऊपर उठकर जीवन बिताना चाहिए। सामाजिकता का बोध भी हमारे अंदर बमा रहना चाहिए। त्याग और परोपकार की भावना अपनानी चाहिए। आजादी और गतिशीलता जीवन में आवश्यक है। संसार की स्वार्थ भावना से हमें कभी दुःखी नहीं होना चाहिए। सभी को अपना प्यार बाँटना चाहिए। बंधनों में बंधकर नहीं रहना चाहिए।

दीवानों की हस्ती Summary in Hindi

दीवानों की हस्तीपाठ का सार

जीवन-परिचय : भगवतीचरण वर्मा का जन्म 30 अगस्त 1903 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के शफीपुर ग्राम में हुआ था। पाँच वर्ष की उम्र में ही पिता का देहान्त हो जाने के कारण छोटी उम्र में ही इनके कंधे पर परिवार का भार आ गया। जीवन संघर्ष में जूझते हुए इन्होंने बी.एल.एल.बी. की शिक्षा प्राप्त की और कानपुर में वकालत करने लगे। लेकिन वकालत में इनका दिल न लगा

और ये अधिकांश समय साहित्य-सृजन को देने लगे। आठवीं कक्षा में पढ़ते समय इनकी पहली कविता ‘प्रताप’ में छपी थी। वकालत करते समय तक ये कवि के रूप में विख्यात हो गए थे। कविता से प्रारंभ करके इन्होंने कहानी, उपन्यास, निबन्ध, नाटक आदि बहुत कुछ लिखा।

जीविका के लिए उन्होंने रेडियो स्टेशनों में नौकरी की, सिनेमा के लिए कहानियाँ और संवाद लिखे, पत्रों का संपादन एवं प्रकाशन किया। काफी समय तक ये संसद सदस्य भी रहे। इनका देहान्त 1980 में दिल्ली में हुआ।

रचनाएँ : भगवती जी के कहानी संग्रह इस प्रकार हैं : ‘दो बाँके’, ‘इन्स्टालमेंट’, ‘राख और चिनगारी’। ‘मोर्चा बन्दी’ नाम से चित्रलेखा, सामर्थ्य और सीमा, रेखा, सबहि बचावत राम गुसाईं, प्रश्न और मरीचिका, पतन, भूले बिसरे चित्र। ‘चित्रलेखा’ उपन्यास पर बनी फिल्म बड़ी प्रसिद्ध हुई थी। इन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिल चुका है।

आपने कविताएँ, रेडियो रूपक तथा नाटक भी लिखे हैं। इनकी जिन काव्य-कृतियों ने ख्याति पाई है, इनमें प्रमुख हैं-‘मधुकण’, ‘मानव’, ‘प्रेम संगीत’।

HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 4 दीवानों की हस्ती

विशेषताएँ : वर्मा जी छायावादोत्तर काल के कवि हैं, अतः उनके काव्य पर छायावादी संस्कारों की स्पष्ट छाया है। परंतु वर्मा जी की विशिष्टता इस बात में है कि इन्होंने छायावाद के कल्पना अतिरेक और वायवीय सूक्ष्मता के विरुद्ध ऐसी कविताएँ दीं, जिनका संबंध पृथ्वी के ठोस जीवन से है और जो मर्म को छूती हैं, मात्र चमत्कृत नहीं करतीं। इन कविताओं में कोमलता है, कामना की मोहिनी है, सौन्दर्य की लालसा है। परन्तु इन अलबेले भावों को इस प्रकार व्यक्त किया गया है कि वे तत्काल चेतना को मुग्ध कर देते हैं।

आधुनिक कवि होने के कारण वर्मा जी समाजवादी विचारधारा से अछूते नहीं रहे, परंतु उनमें कम्युनिस्ट कट्टरता और भावावेश नहीं है, उनमें भी मानव और समाज के दलित वर्गों के प्रति सहानुभूति उपलब्ध होती है और इस भाव को. इन्होंने अपनी कई मार्मिक कविताओं में व्यक्त किया है। परंतु यह मनोदृष्टि उतनी समाजवाद की आभारी नहीं, जितनी गाँधीवाद की। उनकी कविताएँ ‘ भैसा गाड़ी’, ‘ट्राम’, ‘राजा साहिब का वायुयान’ अपने परिवेश पर यथार्थ-निष्ठ दृष्टि डालती हैं व वह मनोमुद्रा कई बार बेधक व्यंग्य से भरी कविताओं को भी जन्म देती है।

दीवानों की हस्ती कविता का सार

“दीवानों की हस्ती’ शीर्षक कविता में भगवतीचरण वर्मा ने बताया है कि दीवाने कभी किसी बंधन को स्वीकार नहीं करते। वे एक जगह टिककर नहीं रहते। वे कभी यहाँ तो कभी दूसरी जगह पहुंच जाते हैं। संसार के लोगों के मध्य सुख-दुख को बाँटते चलते हैं। गरीबों के मध्य अपना प्यार लुटाते चलते हैं। उनका जीवन मान-अपमान की भावना से परे होता है। वे तो हँस-हंस कर आगे बढ़ते चले जाते हैं। उन्हें अच्छे मतों की परवाह भी नहीं होती। सब लोग उनके अपने होते हैं। दीवाने अपने बनाए बंधनों में बंधे होते हैं, जिन्हें वे जब चाहे तोड़ देते हैं। उनका जीवन पूरी तरह अपना होता है।

दीवानों की हस्ती काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. हम दीवानों की क्या हस्ती,
हैं आज यहाँ कल वहाँ चले,
मस्ती का आलम साथ चला,
हम धूल उड़ाते जहाँ चले।
आए बनकर उल्लास अभी,
आँसू बनकर बह चले अभी,
सब कहते ही रह गए, अरे,
तुम कैसे आए, कहाँ चले?

शब्दार्थ : दीवानों = मस्त रहने वाला (Carefree), मस्ती का आलम = मस्ती से भरा संसार (World with joy), उल्लास = खुशी (Joy), आँसू बनकर बह गए – दुःख के आँसू बहने लगे।

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश भगवंतीचरण वर्मा द्वारा रचित कविता ‘दीवानों की हस्ती’ से उद्धत है। मनमौजी स्वभाव वाले, निश्चित रहने वाले व्यक्ति जहाँ भी जाते हैं, मस्तियाँ उनके साथ रहती हैं। इसी बात का वर्णन करते हुए कवि कहता है:

व्याख्या : हम मन-मौजी मनुष्यों की कोई हस्ती नहीं है। कोई खास विशेषता या योग्यता भी नहीं है। बस, अपनी मस्ती ही हमारा सब-कुछ है। जब मौज आयी, कहीं भी चल दिए। आज अगर यहाँ हैं, तो कल किसी दूसरे स्थान पर जा सकते हैं। हमारी विशेषता केवल इतनी ही है कि हम अपने पाँवों से धूल उड़ाते हुए जहाँ कहीं भी चले जाते हैं, मस्ती का एक संसार, अपने मनमौजीपन का एक निश्चिंत वातावरण हमारे साथ रहा करता है।

हम मस्तों के जीवन में अभी-अभी आनंद और खुशी का भाव है। अगले क्षण वही आनंद आँसू बनकर बहता हुआ भी दिखाई देता है, अर्थात् पल में आनन्द-में मुस्कराना, पल में किसी दुःख से रो देना, इस प्रकार कोई भी भाव स्थिर नही रह पाता। लोग पूछते रह जाते हैं कि तुम लोग कहाँ से आ रहे हो, किधर जा रहे हो, पर हमारे पास इसका कोई उत्तर नहीं होता।

भाव यह है कि निश्चिंत रहना, अपने मन की मौज के अनुसार कार्य करना ही सच्चे मस्तों का जीवन है, उनकी हस्ती का परिचय है।

काव्य-सौंदर्य:

  • धूल उड़ाता चलना’ एक मुहावरा है, जिसका अर्थ होता है धूम मचाते हुए जाना।
  • कवि के अनुसार जन्म-मृत्यु, आने-जाने, सुख-दुःख का अपना एक क्रम है।
  • मनमौजी लोगों की प्रकृति का सुदर परिचय मिलता है।

HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 4 दीवानों की हस्ती

2. किस ओर चले ? मत यह पूछो,
चलना है, बस इसलिए चले,
जग से उसका कुछ लिए चले,
जग को अपना कुछ दिए चले।
दो बात कही, दो बात सुनी,
कुछ हँसे और फिर कुछ रोए।
छककर सुख-दुख के घूटों को,
हम एक भाव से पिए चले।

शब्दार्थ : जग = संसार (World), छककर = तृप्त होकर (Satisfied)

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ भगवतीचरण वर्मा की कविता ‘दीवानों की हस्ती’ से अवतरित हैं। इनमें कवि बताता है कि मनमौजी और निश्चिंत रहने वालों का जीवन के प्रति अलग दृष्टिकोण रहता है। वे हर दशा का भोग जी भरकर करते हैं। इन भावों को स्पष्ट करते हुए कवि कहता है:

व्याख्या : हम लोग किस ओर जा रहे हैं, यह पता नहीं। बस इतना जानते हैं कि हमें चलते रहना है, हँसते-रोते चलतें जाने का नाम ही जीवन है, अतः हमेशा चलते रहते हैं। सारे संसार से ताने सुनते हैं। बदले में संसार को अपनी मस्ती का दान देते हैं। इस प्रकार हर हाल में चलना, यही हमारे जीवन का क्रम है। मन की मौज में आकर हम लोग दुनियावालों से दो बातें कह लेते हैं। बदले में उनकी बातें चुपचाप सुन भी लेते हैं। बात अच्छी लगी तो जी-भर हँस भी लेते हैं। बात बुरी लगी तो संसार के बुरे व्यवहार पर रो लेते हैं। इस प्रकार जीवन में चाहे सुख आए, चाहे दुःख आए, दोनों के घुट हम खूब जी भरकर एक ही भाव से पी लेते हैं। इसी में हमारी मस्ती है। भाव यह है कि सुख-दुःख, आशा-निराशा में एक सा रह पाना सरल काम नहीं है। कोई मनमौजी स्वभाव वाला व्यक्ति ही ऐसा कर सकता है। सुख-दुख को समान रूप से स्वीकार करते हैं।

विशेष:

  • दीवानों की सामाजिकता की भावना अभिव्यक्त
  • जीवन में सुख और दुख दोनों का महत्त्व स्वीकारा गया है।
  • सरल एवं प्रवाहपूर्ण भाषा का प्रयोग किया गया है।

3. हम भिखमंगों की दुनिया में,
स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले,
हम एक निशानी-सी उर पर,
ले असफलता का भार चले।

शब्दार्थ : भिखमंगों = भिखारियों (Beggars), स्वच्छंद = मुक्त (Free), उर = हृदय (Heart), असफलता = हार (Defeat), मान = आदर (Respect), अपमान = बेइज्जती (Insult)।

प्रसंग : ‘दीवानों की हस्ती’ शीर्षक कविता की इन पंक्तियों में बताया गया है कि मनमौजी स्वभाव वालों की दुनिया अलग होती है। हार या जीत, प्रत्येक दशा में मनमौजी लोग प्रसन्न रहते हैं, इस भाव को प्रकट करते हुए कवि कह रहा है।

व्याख्या : यह दुनिया भिखारियों जैसी है। वह केवल लेना ही जानती है, देना नहीं। अतः हम इसको समझकर भी अपना प्यार सबके लिए स्वतंत्रतापूर्वक लुटाते हैं। बदले में कुछ भी न चाहकर अपने रास्ते पर चल देते हैं। हाँ, हम अपने जैसा मस्तमौला दुनिया को नहीं बना पाए, इस असफलता का भार हमारे मन पर अवश्य रह जाता है। फिर भी अपनी हार की चिंता न करके हम अपने रास्ते पर निश्चिंत बढ़ जाते हैं।  कवि का भाव यह है कि हर हाल में प्रसन्न रहना और अपने दिमाग पर बोझ न पड़ने देना चाहिए। यही मस्ती का वास्तविक जीवन है।

काव्य-सौन्दर्य : दुनिया स्वार्थी है। स्वार्थ ही ईर्ष्या-द्वेष तथा विषाद का कारण है। दीवाने स्वार्थ से ऊपर उठ चुके हैं। उनके अनुकरण करने पर जीवन प्रेममय बन जाएगा। मान-अपमान की विशेष चिंता नहीं करनी चाहिए। ‘एक निशानी-सी उर पर’ में उपमा अलंकार है। ‘प्राणों की बाजी हार चले’ मुहावरे का भी सुंदर प्रयोग हुआ है।

4. अब अपना और पराया क्या ?
आबाद रहें रुकने वाले।
हम स्वयं बँधे थे, और स्वयं
हम अपने बंधन तोड़ चले।

शब्दार्थ : नतमस्तक = सिर झुकाना (To blow head), अभिशाप = बुराई (Bad), वरदान = आशीर्वाद (Blessing), दृगों = आँखों (Eyes)।

प्रसंग : मस्त लोग अपने को दुःख देने वालों को भी शाप .. नहीं देते, इन भावों को प्रकट करते हुए कवि कह रहा है :

व्याख्या : दुनिया ने हमारे साथ भला व्यवहार किया या बुरा व्यवहार किया, हम लोग उनको याद नहीं रखते। सभी को समान मानकर एक ही भाव से भुला देते हैं। इस प्रकार अपना मस्ती-भरा जीवन बिताने के बाद, अब यहाँ. से (इस दुनिया से) जाने के समय हमारे लिए अपने-पराए का कोई भेद-भाव नहीं रह गया। हमारी तो यही शुभकामना है- हमारे … पीछे यहाँ रहने वाले हमेशा आबाद रहें, प्रसन्न रहें। हमने संसार के बंधनों में अपने-आपको खुद ही बाँधा था। आज खुद ही उन बंधनों को तोड़कर जा रहे हैं।

भाव यह है कि हम मनमौजी जीवों के लिए किसी बात का कोई बंधन नहीं। हम चाहते हैं कि दुनिया हमारी तरह ही मस्ती से जीवन काट ले।

विशेष:

  • दीवाने ‘भला-बुरा’ और ‘अपना-पराया’ के भेद-भाव से ऊपर उठ जाते हैं। संसार में . राग-विराग, ईर्ष्या-द्वेष की भावना सदा से रही है। इसे मिटाया नहीं जा सकता।
  • सरल एवं प्रवाहमयी भाषा-शैली का अनुसरण किया गया है।

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HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 3 बस की यात्रा

Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 3 बस की यात्रा Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 3 बस की यात्रा

HBSE 8th Class Hindi बस की यात्रा Textbook Questions and Answers

कारण बताएँ

प्रश्न 1.
“मैंने उस कंपनी के हिस्सेदार की तरफ पहली बार श्रद्धाभाव से देखा।”
लेखक के मन में हिस्सेदार साहब के लिए श्रद्धा क्यों जग गई ?
उत्तर:
लेखक के मन में बस कंपनी के हिस्सेदार साहब के लिए श्रद्धा इसलिए जाग गई कि वह इतनी खटारा बस को चलाने का साहस जुटा रहा था। कंपनी का हिस्सेदार अपनी पुरानी बस की खूब तारीफ कर रहा था। ऐसे व्यक्ति के प्रति श्रद्धा भाव ही उमड़ता है।

प्रश्न 2.
“लोगों ने सलाह दी कि समझदार आदमी इस शाम वाली बस से सफर नहीं करते।”
लोगों ने यह सलाह क्यों दी?
उत्तर:
लोगों ने लेखक को यह सलाह इसलिए दी क्योंकि इस बस का कोई भरोसा नहीं है कि यह कब और कहाँ रुक जाए, शाम बीतते ही रात हो जाती है और रात रास्ते में कहाँ बितानी पड़ जाए। कुछ पता नहीं रहता। उनके अनुसार यह बस डाकिन की तरह है।

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प्रश्न 3.
“ऐसा जैसे सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के भीतर बैठे हैं।”
लेखक को ऐसा क्यों लगा ?
उत्तर:
जब बस का इंजन स्टार्ट हुआ तब सारी बस झनझनाने लगी। लेखक को ऐसा प्रतीत हुआ कि पूरी बस ही इंजन है। मानो वह बस के भीतर न बैठकर इंजन के भीतर बैठा हुआ हो।

प्रश्न 4.
“गजब हो गया। ऐसी बस अपने आप चलती है।”
लेखक को यह सुनकर हैरानी क्यों हुई ?
उत्तर:
लेखक ने बस की बुरी हालत देखकर बस-कंपनी के हिस्सेदार से पूछा था कि क्या यह बस चलती भी है। तब उसने उत्तर दिया था कि हाँ, यह बस भली प्रकार चलती है और अपने आप चलती है। यह सुनकर लेखक को हैरानी हुई कि इतनी जर्जर बस बिना धक्का दिए अपने आप चलती है।

प्रश्न 5.
“मैं हर पेड़ को अपना दुश्मन समझ रहा था।”
लेखक पेड़ों को दुश्मन क्यों समझ रहा था?
उत्तर:
लेखक को पेड़ों से डर इसलिए लग रहा था कि कहीं उसकी बस किसी पेड़ से टकरा न जाए। एक पेड़ के निकल जाने पर वह दसरे पेड़ का इंतजार करता कि बस कहीं इस पेड़ से न टकरा जाए। उसे हर पेड़ अपना दुश्मन लग रहा था।

पाठ से आगे

प्रश्न 1.
‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ किसके नेतृत्व में, किस उद्देश्य से तथा कब हुआ था? इतिहास की उपलब्धत पुस्तकों के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
सविनय अवज्ञा आंदोलन महात्मा गाँधी के नेतृत्व में 1930 में अंग्रेजी सरकार से असहयोग करने तथा स्वराज पारित के लिए किया गया था।

प्रश्न 2.
सविनय अवज्ञा का उपयोग व्यंग्यकार ने किस रूप में किया है? लिखिए।
उत्तर:
सविनय अवज्ञा आंदोलन 1930 में सरकारी आदेशों का पालन न करने के लिए किया गया था। इसमें अंग्रेजी सरकार के साथ सहयोग न करने की भावना थी। 12 मार्च 1930 को इसी कड़ी में दांडी मार्च किया गया। नमक कानून 1930 में तोड़ा गया। लेखक ने इसका उपयोग इस संदर्भ में किया है कि आंदोलन के दौरान जिस प्रकार अंग्रेजों के दमन पूर्वक कार्यों से भारतीय जनता झकी नहीं विनम्रपूर्वक अपने संघर्ष में बढ़ी रही उसी प्रकार यह बस भी अपने खटारा और टूटी-फूटी होने के बावजूद चल ही रही है या कहें कि चलाई जा रही है। बस का ढाँचा जवाब दे रहा था, किंतु वह चल ही रही थी।

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प्रश्न 3.
आप अपनी किसी यात्रा के खट्टे-मीठे अनुभवों को याद करते हुए एक लेख लिखिए।
उत्तर:
कुछ समय पूर्व की बात है चाचा जी के बुलावे पर मैं और मेरा मित्र रोहित ऊधमपुर जाने के लिए तैयार हुए। तैयारी अचानक बन गई अतः आरक्षण की व्यवस्था नहीं हो पाई। सामान्य डिब्बे से ही सफर करना पड़ा। यह विचार बना कि गाड़ी से पठानकोट तक चला जाए। उसके बाद सांबा तक बस द्वारा व वहाँ से उधमपुर। अधिक सामान की आवश्यकता नहीं थी अतः एक बैग लेकर दिल्ली जंक्शन के प्लेटफार्म नं. 11 की ओर रुख किया। T.V. स्क्रीन से पता चला कि गाड़ी प्लेटफार्म पर पहुँचने वाली है। हमने टिकट लिए। खुले पैसे की कमी से 6 रुपए का नुकसान उठाना पड़ा। गाड़ी प्लेटफार्म पर लग चुकी थी। हम पुल से नीचे उतरकर जनरल डिब्बे की ओर चल पड़े। बोतल का पानी रास्ते में ही समाप्त हो चुका था।

अतः यह तय हुआ कि रोहित पानी ले आए। ठंडे पानी की मशीन पर लगर खाने जैसी भीड़ हो रही थी। जैसे तैसे पानी भरकर डिब्बे में सवार हो गए। यह देखकर हम खुश थे कि अधिक भीड़ नहीं थी। लेकिन हमारी यह खुशी पश्चिम बंगाल के मार्क्सवादी शासन (कुशासन) की तरह स्थायी नहीं थी। पता चला कि हाथों में झंडे, डंडे तथा जेब पर बिल्ले लगाए किसान यूनियन के लोग इसी डिब्बे पर नजरे गड़ाए लपके आ रहे थे। महिलाओं, पुरुषों और बच्चों ने थोड़ी ही देर में डिब्बे को रैली स्थल में बदल दिया। हालत यह थी कि अब हम चाहकर बाहर भी नहीं जा सकते थे। शाहरूख खान के ‘छैयाँ-छैयाँ’ वाले गाने के स्मरण ने मन को कुछ-कुछ राहत दी।

मन बहलाना

अनुमान कीजिए यदि बस जीवित प्राणी होती, वह बोल सकती तो वह अपनी बुरी हालत और भारी बोझ के कष्ट को किन शब्दों में व्यक्त करती? लिखिए।
मैं एक बहुत पुरानी और बूढी बस हूँ। मेरी हालत जर्जर हो चुकी है। अब मैं लंबी यात्रा करने लायक नहीं रह गई हूँ। मैं तो थोड़ा-बहुत टहल ही सकती हूँ। मुझ पर सवारियों का बोझ मत लादो। मैं तुम्हारा बोझ सहन नहीं कर सकती। मैं इस बोझ से दबकर दम तोड़ दूंगी। अब तो मैं एक वृद्धा की तरह हूँ। तुम्हें तो मेरा सम्मान करना चाहिए। तुम मेरे कष्टों को बढ़ाओ मत। अब मुझे चलने में तकलीफ होती है। अब मैं आराम करना चाहती हूँ। मुझे चैन से रहने दो।

भाषा की बात

1. बस, वश, बस तीन शब्द हैं-इनमें बस सवारी के अर्थ में, वश अधीनता के अर्थ में और बस पर्याप्त (काफी) के अर्थ में प्रयुक्त होता है जैसे- बस से चलना होगा। मेरे वश में नहीं है। अब बस करो।
उपर्युक्त वाक्य के समान तीनों शब्दों से युक्त आप भी दो-दो वाक्य बनाइए।
बस : 1. यह बस बहुत सुविधाजनक है।
2. मेरठ से बस का सफर दो घंटे का है।

वश : 1. इस स्थिति पर मेरा वश नहीं है।
2. यह काम सरकार के वश में ही है।

बस : 1. तुम्हें बस झगड़ना ही आता है।
2. बस मैं नहीं जा सकता।

2. “हम पाँच मित्रों ने तय किया कि शाम चार बजे की बस से चलें। पन्ना से इसी कंपनी की बस सतना के लिए घंटे भर बाद मिलती है।” ने, की, से आदि शब्द वाक्य के दो शब्दों के बीच संबंध स्थापित कर रहे हैं। ऐसे शब्दों को कारक कहते हैं। इसी तरह जब दो वाक्यों को एक साथ जोड़ना होता है ‘कि’ का प्रयोग होता है।

कहानी में से दोनों प्रकार के चार वाक्यों को चुनिए।
→ बस को देखा तो श्रद्धा उमड़ पड़ी।

  • हमें बेटों की तरह प्यार से गोद में लेकर चलेगी।
  • मालूम हुआ कि पेट्रोल की टंकी में छेद हो गया है
  • झील दिखती तो सोचता कि इसमें बस गोता लगा जाएगी।

3. “हम फौरन खिड़की से दूर सरक गए। चाँदनी में रास्ता टटोलकर वह रेंग रही थी।” ‘सरकना’ और ‘रेंगना’ जैसी क्रिया दो प्रकार की गति बताती है। ऐसी कुछ और क्रियाएँ एकत्र कीजिए जो गति के लिए प्रयुक्त होती हैं, जैसे-घूमना इत्यादि। उन्हें वाक्यों में प्रयोग कीजिए।

  • पकड़ना – हमने गाड़ी पकड़नी चाही।
  • धड़कना – दिल तेजी से धड़क रहा था।

4. “काँच बहुत कम बचे थे। जो बचे थे, उनसे हमें बचना था।”
इस वाक्य में ‘बच’ शब्द को दो तरह से प्रयोग किया गया है। एक ‘शेष’ के अर्थ में और दूसरा सुरक्षा के अर्थ में।
नीचे दिए गए शब्दों को वाक्यों में प्रयोग करके देखो। ध्यान रहे, एक ही शब्द वाक्य में दो बार आना चाहिए, और शब्दों के अर्थ में कुछ बदलाव होना चाहिए।
(क) जल
(ख) फल
(ग) हार।
जल : नदियों का जल पवित्र होता है।
वह आग से जल गया।

फल : फल खाना स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।
अच्छे काम का अच्छा फल मिलता है।

हार : गले का हार सुंदर है।
हम मैच हार गए।

5. भाषा की दृष्टि से देखें तो हमारी बोलचाल में प्रचलित अंग्रेजी शब्द फर्स्ट क्लास में दो शब्द हैं-फर्स्ट और क्लास। क्लास का विशेषण है फर्स्ट। चूँकि फर्स्ट संख्या है, फर्स्ट क्लास संख्यावाचक विशेषण का उदाहरण है। महान आदमी में किसी आदमी की विशेषता है महान। यह गुणवाचक विशेषण है। संख्यावाचक विशेषण और गुणवाचक विशेषण के उदाहरण खोजकर लिखिए।
चतुर व्यक्ति, सुंदर स्त्री, सच्चा आदमी। – गुणवाचक विशेषण
तीसरा आदमी, चार अमरूद। संख्यावाचक विशेषण

बस की यात्रा Summary in Hindi

बस की यात्रा पाठ का सार

लेखक और उसके मित्रों ने तय किया कि वे शाम चार बजे की बस से पन्ना जाएँगे। वहाँ से इसी कंपनी की बस सतना के लिए एक घंटे बाद मिलती है जो जबलपुर की ट्रेन मिला (पकड़ा) देती है। दो लोगों को सुबह काम पर हाजिर होना था अतः यह रास्ता अपनाना ठीक समझा गया। यद्यपि समझदार लोगों ने शाम की बस से सफर करने को मना किया था, पर वे माने नहीं। बस बहुत बूढी अर्थात् पुरानी थी। उन लोगों को लगा कि यह बस तो पूजा के योग्य है क्योंकि इसकी दशा वृद्धा स्त्री के समान थी। बस कंपनी के हिस्सेदार ने बताया कि यह बस भली प्रकार चलती है। डॉक्टर मित्र ने कहा कि यह बस अनुभवी है और हमें बेटों की तरह गोद में लेकर चलेगी। लेखक को विदा करने आए लोगों ने ऐसा भाव प्रकट किया कि मानो वे उन्हें अंतिम विदा दे रहे हों।

खैर बस का इंजन स्टार्ट हो गया। बस के अधिकांश शीशे टूटे हुए थे। उन लोगों को लगा कि इंजन उनकी सीट के नीचे है। वैसे बस के सभी हिस्से एक-दूसरे से असहयोग कर रहे थे। एकाएक बस रुक गई। पता चला पेट्रोल की टंकी में छेद हो गया है। बस का ड्राइवर बाल्टी में पेट्रोल निकाल कर उसे नली से इंजन में पहुँचाने लगा। लेखक को अब बस के किसी हिस्से का भरोसा नहीं था। उसे डर लगने लगा कि बस किसी पेड़ से टकरा जाएगी। बस फिर रुक गई। उसका इंजन खोलकर ठीक किया गया तो वह बहुत धीमी रफ्तार से चलने लगी। बस पुलिया पर पहुंची ही थी उसका एक टायर फट गया। वह तो बस की स्पीड कम थी अन्यथा वह नाले में जा गिरती। लेखक बस को श्रद्धाभाव से देखने लगा। काफी देर में एक पुराना घिसा हुआ टायर लगाया गया तब वह कहीं चली। लेखक ने समय पर पन्ना पहुँचने की उम्मीद छोड़ दी थी। अब तो हँसी-मजाक चालू हो गया।

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बस की यात्रा शब्दार्थ

तय = निश्चित (Fix), वयोवृद्ध = आयु से बूढ़े (Old person), वृद्धावस्था = वृद्ध अवस्था = बुढ़ापा (Old age), विश्वसनीय = विश्वास (भरोसा) करने लायक (Faithful), अंतिम = आखिरी (Last), निमित्त = बहाना (Cause), स्टार्ट = चालू (Start),रंक = गरीब (Poor), असहयोग = अ+असहयोग = सहयोग न करना (Non co-operation), सविनय = स+विनय = विनयपूर्वक (Respectfully), अवज्ञा = आज्ञा न मानना (Not obey order), ब्रेक फेल = ब्रेकों का काम न करना (Brake fail), दृश्य = नजारा (Scene), इत्तफाक = संयोग (By chance), अंत्येष्टि = अंतिम संस्कार (Last ceremony), उत्सर्ग = बलिदान (Sacrifice), बेताबी = बेचैनी (Restlessness).।

बस की यात्रा गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. बस को देखा तो श्रद्धा उमड़ पड़ी। खूब वयोवृद्ध थी। सदियों के अनुभव के निशान लिए हुए थी। लोग इसलिए इससे सफर नहीं करना चाहते कि वृद्धावस्था में इसे कष्ट होगा। यह बस पूजा के योग्य थी। उस पर सवार कैसे हुआ जा
प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘वसंत. भाग-3’ में संकलित पाठ ‘बस की यात्रा’ से अवतरित है। यह पाठ हास्य-व्यंग्य में रचा गया है। इसके लेखक हैं प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई।।

व्याख्या : इस गद्यांश में लेखक ने बस की जीर्ण-शीर्ण दशा पर व्यंग्य किया है। बस बहुत पुरानी थी। इस बस को देखकर वृद्ध स्त्री का दृश्य सामने आ रहा था। इस बस को देखकर लेखक के पान में श्रद्धा भावना उत्पन्न हुई। यह बस बहुत बूढ़ी अर्थात् पुरानी (कबाड़) थी। इसकी हालत देखकर लगता था कि यह सदियों का अनुभव अपने अंदर समेटे हुए है। जिस प्रकार कोई नूढी स्त्री अनुभवी होती है, वही दशा इस बस की थी। लेखक व्यंग्य करते हुए कहता है कि लोग इसमें सफर करने से इसलिए कतराते थे कि बुढ़ापे में चलते समय इसे कष्ट होगा। वृद्ध व्यक्ति तो पूजा करने के योग्य होता है अतः इस पुरानी बस की भी पूजा ही की जानी चाहिए। भला इस पर सवारी कैसे की जा सकती है।

यहाँ व्यंग्य यह है कि बस की हालत इतनी जर्जर थी कि वह सामान्य ढंग से चल ही नहीं सकती थी। उसकी हालत खस्ता थी।

2. बस सचमुच चल पड़ी और हमें लगा कि यह गाँधीजी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलनों के वक्त अवश्य जवान रही होगी। उसे ट्रेनिंग मिल चुकी थी। हर हिस्सा दूसरे से असहयोग कर रहा था। पूरी बस सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौर से गुजर रही थी। सीट का बॉडी से असहयोग चल रहा था। कभी लगता सीट बॉडी को छोड़कर आगे निकल गई है। कभी लगता कि सीट को छोड़कर बॉडी आगे भागी जा रही है। आठ-दस मील चलने पर सारे भेदभाव मिट गए। यह समझ में नही आता था कि सीट पर हम बैठे हैं या सीट हम पर बैठी है।

प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचना ‘बस की यात्रा’ से लिया गया है। लेखक पुरानी बस में यात्रा के अनुभव को व्यंग्यात्मक शैली में प्रस्तुत करता है।

व्याख्या : लेखक और उसके मित्र पुरानी खटारा बस में सवार हो गए। बस का चलना कठिन लग रहा था, पर वह बस चल ही पड़ी। लेखक को लगा कि यह बस उस समय जरूर जवान रही होगी जब महात्मा गाँधी का असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलन चल रहा था। (व्यंग्य यह है कि बस की खस्ता हालत को देखकर लेखक ने इसे असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय बताया अर्थात् बस बहुत पुरानी थी) मानो इसे इस प्रकार की पूरी ट्रेनिंग मिल चुकी थी। बस भलीभाँति जानती थी। कि किस प्रकार असहयोग किया जाता है। बस का हर कल-पुर्जा एक दूसरे से असहयोग कर रहा था अर्थात् उनमें कोई तालमेल न था। बस की सीटें बस की बॉडी से अलग हो रही थीं। कभी सीट बस की बॉडी से आगे निकल जाती थी तो कभी बॉडी सीट को पीछे छोड़कर आगे चली जाती थी। यह आँख-मिचौली का खेल 8-10 मील तक चलता रहा। फिर सारे अंतर मिट गए। लेखक की समझ में यह नहीं आ रहा था कि वह सीट पर बैठा है अथवा सीट उसके ऊपर चढ़ी है।

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HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 2 लाख की चूड़ियाँ

Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 2 लाख की चूड़ियाँ Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 2 लाख की चूड़ियाँ

HBSE 8th Class Hindi लाख की चूड़ियाँ Textbook Questions and Answers

कहानी से

प्रश्न 1.
बचपन में लेखक अपने मामा के गाँव चाव से क्यों जाता था और बदलू को ‘बदलू मामा’ न कहकर ‘बदलू काका’ क्यों कहता था? ..
उत्तर:
बचपन में लेखक अपने मामा के गाँव बड़े चाव के साथ जाता था। उसके चाव का कारण यह था कि वहाँ उसे ढेर सारी लाख की रंग-बिरंगी गोलियाँ मिलती थीं। ये गोलियाँ उसका मन मोह लेती थीं। बदलू लेखक के मामा के गाँव का था अतः उसे उसको ‘बदलू मामा’ कहना चाहिए था, पर वह ‘बदलू मामा’ न कहकर ‘बदलू काका’ कहता था। इसका कारण यह था कि गाँव के सभी बच्चे उसे ‘बदलू काका’ ही कहा करते थे। लेखक भी उनकी देखा-देखी उसे ‘बदलू काका’ ही कहता था।

प्रश्न 2.
वस्तु विनिमय क्या है? विनिमय की प्रचलित पद्धति क्या है?
उत्तर:
‘वस्तु विनिमय’ में एक वस्तु को दूसरी वस्तु देकर लिया जाता था। वस्तु के लिए पैसे नहीं लिए जाते थे। वस्तु के बदले वस्तु ली-दी जाती थी। लोग अनाज देकर चूड़ियाँ ले लेते थे।

HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 2 लाख की चूड़ियाँ

प्रश्न 3.
“मशीनी युग ने कितने हाथ काट दिए हैं।’-पंक्ति में लेखक ने किस व्यथा की ओर संकेत किया है?
उत्तर:
इस पंक्ति में लेखक ने इस व्यथा की ओर संकेत किया है कि मशीनों के आगमन के साथ कारीगरों के हाथों से काम-धंधा छिन गया। मानो उनके हाथ ही कट गए हों। मशीनों ने लोगों को बेरोजगार बना दिया। .

प्रश्न 4.
बदलू के मन में ऐसी कौन-सी व्यथा थी, जो लेखक से छिपी न रह सकी?
उत्तर:
बदलू के मन में इस बात की व्यथा की मशीनी युग के प्रभावस्वरूप उस जैसे अनेक कारीगरों को बेरोजगारी और उपेक्षा का शिकार होना पड़ा है। अब लोग कारीगरी की कद्र न करके दिखावटी चमक पर अधिक ध्यान देते हैं। ।

प्रश्न 5.
मशीनी युग से बदलू के जीवन में क्या बदलाव आया?
उत्तर:
मशीनी युग से बदलू के जीवन में यह बदलाव आया कि वह बेरोजगार हो गया। काम न करने से उसका शरीर भी ढल गया, उसके हाथों-माथे पर नसें उभर आईं। अब वह बीमार रहने लगा।

कहानी से आगे

प्रश्न 1.
आपने मेले-बाजार आदि में हाथ से बनी चीजों को बिकते देखा होगा। आपके मन में किसी चीज को बनाने की कला को सीखने की इच्छा हुई हो और आपने कोई कारीगरी सीखने का प्रयास किया हो तो उसके विषय में लिखिए।
उत्तर:
मैंने मेले-बाजार में तरह-तरह की रंग-बिरंगी काँच के छोटे-छोटे बीकरों में रखी मोमबत्तियाँ बिकती देखीं। मेरे मन में भी यह इच्छा उत्पन्न हुई कि मैं भी इनको बनाने की कला सीखू। मैंने हस्तशिल्प कार्यशाला में एक सप्ताह का प्रशिक्षण लिया। अब मैं स्वयं इस प्रकार की कलात्मक मोमबत्तियाँ आसानी से बना लेता हूँ। मैं इनकी बिक्री करके कुछ धन भी कमा लेता हूँ।

प्रश्न 2.
लाख की वस्तुओं का निर्माण भारत के किन-किन राज्यों में होता है? लाख से चूड़ियों के अतिरिक्त क्या-क्या चीजें बनती हैं? ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
लाख की वस्तुओं का निर्माण राजस्थान में सबसे अधिक होता है। यह काम गुजरात में भी होता है क्योंकि यह राज्य राजस्थान से सटा हुआ है। – लाख से चूड़ियाँ बनती हैं। – लाख से खिलौने बनते हैं।

अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1.
घर में मेहमान आने पर आप उसका अतिथि-सत्कार कैसे करेंगे?
उत्तर:
घर में मेहमान आने पर हम उन्हें आदर सहित बिठाएँगे।

  • उनके आने पर प्रसन्नता प्रकट करेंगे।
  • उन्हें पीने के लिए चाय, कॉफी, लस्सी या शर्बत देंगे।
  • बाद में उन्हें खाना खिलाएँगे।
  • उनके साथ प्रेमपूर्वक बातचीत करेंगे।

प्रश्न 2.
आपको अपनी छुट्टियों में किसके घर जाना सबसे अच्छा लगता है? वहाँ की दिनचर्या लिखिए। अलग कैसे होती है?
उत्तर:
हमें छुट्टियों में अपने नाना-नानी के घर जाना सबसे अच्छा लगता है, क्योंकि वे हमें बहुत प्यार करते हैं। वहाँ की दिनचर्या बहुत ही मस्ती भरी होती है। वहाँ हमें स्कूल जाने की चिंता नहीं होती। अतः हम वहाँ देर तक सोते हैं और धूप निकल आने पर उठते हैं। वहाँ हम आस-पास के बच्चों के साथ घूमने जाते हैं। घर पर हमें नाश्ता भी बड़ा मजेदार मिलता है। नाश्ता करके हम खेलने निकल जाते हैं। दोपहर का खाना काफी देर से होता है। घर के आँगन में खेलते-कूदते और मस्ती करते हैं। इस प्रकार दिन भर मौज-मस्ती चलती रहती है।

प्रश्न 3.
मशीनी युग में अनेक परिवर्तन आए दिन होते रहते हैं। आप अपने आस-पास से इस प्रकार के किसी परिवर्तन का उदाहरण चुनिए और उसके बारे में लिखिए।
उत्तर:
मशीनी युग में अनेक परिवर्तन आए दिन होते रहते हैं। हमारे आस-पास भी इस प्रकार के परिवर्तन होते रहते हैं। पहले हमारे घर के पास कई स्त्रियाँ दाल पीसने का काम करती थीं। वे बड़ी-बड़ी सिलों पर पत्थर के बट्टों से दाल पीसकर कुछ रुपए कमा लेती थीं। प्रायः हलवाई उनसे दाल पिसवाते थे। अब दाल पीसने की मशीनें आ गई हैं। अब वही काम मशीन थोड़ी ही देर में कर देती है। इससे उनका काम छिन गया है।

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प्रश्न 4.
बाजार में बिकने वाले सामानों की डिज़ाइनों में हमेशा परिवर्तन होता रहता है। आप इन परिवर्तनों को किस प्रकार देखते हैं। आपस में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
बाजार में अनेक प्रकार के सामान बिकते हैं। इनमें खाने-पीने के सामानों के अतिरिक्त पहनने-ओढ़ने के कपड़े भी होते हैं। मनोरंजन के भी बहुत सामान बाजार में मिलते हैं। इन सामानों में डिजाइनों में हमेशा परिवर्तन आता रहता है, विशेषकर कपड़ों के डिजाइनों में।

प्रश्न 5.
हमारे खान-पान, रहन-सहन और कपड़ों में भी बदलाव आ रहा है। इस बदलाव के पक्ष-विपक्ष में बातचीत कीजिए और बातचीत के आधार पर लेख तैयार कीजिए।
उत्तर:
आज के युग में हमारे खान-पान, रहन-सहन तथा कपड़ों में अनेक प्रकार के बदलाव आ रहे हैं। इस बदलाव के पक्षविपक्ष में बड़े लोगों से बातचीत करने पर यह कहा जा सकता है: बदलाव प्रकृति का नियम है। हर युग में बदलाव आता रहा है और आता रहेगा। इस बदलाव को कोई रोक नहीं सकता। यद्यपि बड़े लोग इसे देर से स्वीकार करते हैं, पर युवा पीढ़ी इसे तुरंत अपना लेती है। बड़े लोग इसे फैशन का नाम दे देते हैं तथा प्रारंभ में इसका विरोध करते हैं, पर कुछ समय बीत जाने के उपरांत वे भी इसे स्वीकार कर लेते हैं।

भाषा की बात

1. ‘बदलू को किसी बात से चिढ़ थी तो काँच की चूड़ियों से’ और बदलू स्वयं कहता है।-“जो सुंदरता काँच की चूड़ियों में होती है लाख में कहाँ संभव है?” ये पंक्तियाँ बदलू की दो प्रकार की मनोदशाओं को सामने लाती हैं। दूसरी पंक्ति में उसके मन की पीड़ा है। इसमें व्यंग्य भी है। हारे हुए मन.से, या दुखी मन से अथवा व्यंग्य में बोले गए वाक्यों के अर्थ सामान्य नहीं होते। कुछ व्यंग्य वाक्यों को ध्यानपूर्वक समझकर एकत्र कीजिए और उनके भीतरी अर्थ की व्याख्या करके लिखिए।

‘वहाँ की औरतें अपने मरद का हाथ पकड़कर सड़कों पर घूमती भी हैं और फिर उनकी कलाइयाँ नाजुक होती हैं। लाख की चूड़ियाँ पहनें तो मोच न आ जाए।’
→ इस कथन में शहरी स्त्रियों पर व्यंग्य किया गया है। शहर की औरतों को बेशर्म बताया गया है क्योंकि वे सड़कों पर अपने मर्द (पति) का हाथ पकड़कर घूमती हैं।

→ दूसरा व्यंग्य उनकी कलाई की नाजुकता पर किया गया है कि वे लाख की चूड़ियों का बोझ झेल ही नहीं सकती।

→ ‘आजकल सब काम मशीन से होता है। जो सुंदरता काँच की चूड़ियों में होती है, लाख में कहाँ संभव है?

→ बदलू मशीनी युग पर व्यंग्य करता है। मशीनों ने लोगों को बेरोजगार बना दिया। लोग सुंदरता के पीछे भागते हैं, मजबूती की परवाह किसे है।

2. बदलू कहानी में दृष्टि से पात्र है और भाषा की बात (व्याकरण) की दृष्टि से संज्ञा है। किसी भी व्यक्ति, स्थान, वस्तु, विचार अथवा भाव को संज्ञा कहते हैं। संज्ञा को तीन भेदों में बांटा गया है –
(क) व्यक्तिवाचक संज्ञा जैसे-शहर, गाँव, पतली-मोटी, गोल, चिकना इत्यादि

(ख) जातिवाचक संज्ञा जैसे–चरित्र, स्वभाव, वजन, आकार आदि द्वारा जानी जाने वाली संज्ञा।

(ग) भाववाचक संज्ञा, जैसे–सुंदरता, नाजुक, प्रसन्नता इत्यादि जिसमें कोई व्यक्ति नहीं है और न आकार, वचन परंतु उसका अनुभव होता है। पाठ से तीनों प्रकार की संज्ञाएँ चुनकर लिखिए।

  • व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ – रज्जो, बदलू
  • जातिवाचक संज्ञाएँ – चूड़ियाँ, स्त्रियाँ, काँच, सड़क, काका, मशीन, चारपाई, गोली।
  • भाववाचक संज्ञाएँ – पढ़ाई, सुंदरता, व्यथा
  • गाँव की बोली के शब्द : मरद (मर्द), लला (लाल), बखत (वक्त), मचिया (खाट), पियाज (प्याज), तमाखू (तंबाकू) आदि।

3. गाँव की बोली में कई शब्दों के उच्चारण बदल जाते हैं। कहानी में बदलू बक्त (समय) को बखत, उम्र (वय/आयु) को उमर कहता है। इस तरह के अन्य शब्दों को खोजिए जिनके रूप में परिवर्तन हुआ हो, अर्थ में नहीं।
विद्यार्थी स्वयं करों

HBSE 8th Class Hindi लाख की चूड़ियाँ Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
बदलू कौन था? उसका व्यवसाय क्या था?
उत्तर:
बदलू मनिहार था। चूड़ियाँ बनाना उसका पैतृक पेशा था और वास्तव में वह बहुत ही सुंदर चूड़ियाँ बनाता था। उसकी बनाई हुई चूड़ियों की खपत भी बहुत. थी। उस गाँव में तो सभी स्त्रियाँ उसकी बनाई हुई चूड़ियाँ पहनती ही थीं आस-पास के गाँवों के लोग भी उससे चूड़ियाँ ले जाते थे परंतु वह कभी भी चूड़ियों को पैसों से बेचता न था। उसका अभी तक वस्तु-विनिमय का तरीका था और लोग अनाज के बदले उससे चूड़ियाँ ले जाते थे। बदलू स्वभाव से बहुत सीधा था। कभी भी उसे किसी से झगड़ते नहीं देखा गया।

प्रश्न 2.
जब कई वर्ष बाद लेखक बदलू से मिलने गया तब उसने क्या शिकायत की?
उत्तर:
बदलू ने लेखक को बताया कि उसका काम तो कई साल से बंद है। उसकी बनाई हुई चूड़ियाँ कोई पूछे तब तो। गाँव-गाँव में काँच का प्रचार हो गया है। वह कुछ देर चुप रहा, फिर बोला, मशीन युग है न यह, लला! आजकल सब काम मशीन से होता है। खेत भी मशीन से जोते जाते हैं और फिर जो सुंदरता काँच की चूड़ियों में होती है, लाख में कहाँ संभव है?

HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 2 लाख की चूड़ियाँ

प्रश्न 3.
बदलू लेखक को मलाई क्यों नहीं खिला पाया?
उत्तर:
पहले बदलू के पास एक गाय थी। वह उसके दूध की मलाई लेखक को खिलाया करता था। अब वह गाय बिक चुकी थी क्योंकि बदलू के पास उसको खिलाने को कुछ नहीं था अतः अब मलाई होती ही न थी।

लाख की चूड़ियाँ गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. वैसे तो मेरे मामा के गाँव का होने के कारण मुझे बदलू को ‘बदलू मामा’ कहना चाहिए था परंतु मैं उसे ‘बदलू मामा’ न कहकर बदलू काका कहा करता था जैसा कि गाँव के सभी बच्चे उसे कहा करते थे। बदलू का मकान कुछ ऊँचे पर बना था। मकान के सामने बड़ा-सा सहन था जिसमें एक पुराना नीम का वृक्ष लगा था। उसी के नीचे बैठकर बदलू अपना काम किया करता था। बगल में भट्ठी दहकती रहती जिसमें वह लाख पिघलाया करता।

सामने एक लकड़ी की चौखट पड़ी रहती जिस पर लाख के मुलायम होने पर वह उसे सलाख के समान पतला करके चूड़ी का आकार देता। पास में चार-छह विभिन्न आकार की बेलननुमा मुंगेरियाँ रखो रहतीं जो आगे से कुछ पतली और पीछे से मोटी होतीं। लाख की चूड़ी का आकार देकर वह उन्हें मुंगेरियों पर चढ़ाकर गोल और चिकना बनाता और तब एक-एक कर पूरे हाथ की चूड़ियाँ बना चुकने के पश्चात वह उन पर रंग करता।
प्रश्न:
1. लेखक को बदलू को किस संबोधन से पुकारना चाहिए था पर वह किस संबोधन से पुकारता था और क्यों?
2. बदलू का मकान कैसा था?
3. बदलू अपना काम कहाँ करता था?
4. वह अपना काम कैसे करता था?
5. वह किससे चूड़ी बनाता था तथा कैसे?
उत्तर:
1. लेखक को बदलू को ‘मामा’ से संबोधित करना चाहिए था क्योंकि वह उसके मामा के गाँव से था, पर वह उसे ‘बदलू काका’ कहकर संबोधित करता था क्योंकि गाँव के सभी बच्चे उसे ‘बदलू काका’ ही कहते थे।
2. बदलू का मकान कुछ ऊँचाई पर बना था। उसके मकान के सामने बड़ा सा आँगन था और उसमें नीम का पेड़ लगा हुआ था।
3. बदलू नीम के पेड़ के नीचे बैठकर अपना काम करता था।
4. वह दहकती भट्ठी पर लाख पिघलाता रहता था। वह लाख को मुलायम करके चूड़ी का आकार देता। इसके लिए वह विभिन्न आकार की मुंगरियों पर चढ़ाकर गोल करता था?
5. वह लाख से चूड़ी बनाता था। इसके बाद वह चूड़ियों पर रंग करता था।

2. मैं बहुधा हर गर्मी की छुट्टी में अपने मामा के यहाँ चला जाता और एक-आध महीने वहाँ रहकर स्कूल खुलने के समय तक वापस आ जाता। परंतु दो-तीन बार ही मैं अपने मामा के यहाँ गया होऊँगा। जब मेरे पिता की एक दूर के शहर में बदली हो गई और एक लंबी अवधि तक मैं अपने मामा के गाँव न जा सका। तब लगभग आठ-दस वर्षों के बाद जब मैं वहाँ गया तो इतना बड़ा हो चुका था कि लाख की गोलियों में मेरी रूचि नहीं रह गई थी। अत: गाँव में होते हुए भी कई दिनों तक मुझे बदलू का ध्यान न आया।

इस बीच मैंने देखा कि गाँव में लगभग सभी स्त्रियाँ काँच की चूड़ियाँ पहने हैं। विरले ही हाथों में मैंने लाख की चूड़ियाँ देखीं। तब एक दिन सहसा मुझे बदलू का ध्यान हो आया। बात यह हुई कि बरसात में मेरे मामा की छोटी लड़की आँगन में फिसलकर गिर पड़ी और उसके हाथ की काँच की चूड़ी टूटकर उसकी कलाई में घुस गई और उससे खून बहने लगा। मेरे मामा उस समय घर पर न थे। मुझे ही उसकी मरहम-पट्टी करनी पड़ी। तभी सहसा मुझे बदलू का ध्यान हो आया और मैंने सोचा कि उससे मिल आऊँ। अतः शाम को मैं घूमते-घूमते उसके घर चला गया। बदलू वहीं चबूतरे पर नीम के नीचे एक खाट पर लेटा था।
प्रश्न:
1. लेखक काफी समय तक मामा के गाँव क्यों नहीं जा सका?
2. वहाँ जाकर लेखक ने स्त्रियों में क्या परिवर्तन देखा?
3. लेखक को बदलू की याद कैसे आई?
4. लेखक को बदलू कहाँ मिला?
उत्तर:
1. लेखक के पिता की बदली किसी दूर के शहर में हो गई थी। इसी कारण वह 8-10 वर्षों तक मामा के गाँव नहीं जा सका।
2. लंबे समय के बाद जब लेखक मामा के गाँव गया तो उसने देखा कि अब वहाँ की अधिकांश स्त्रियाँ लाख की चूड़ियों के स्थान पर काँच की चूड़ियाँ पहने हुए हैं। किसी-किसी स्त्री ने ही लाख की चूड़ी पहन रखी थी।
3. लेखक की मामा की छोटी लड़की के हाथ की काँच की चूड़ी टूटकर उसकी कलाई में घुस गई थी और खून बहने लगा था। उस समय उसके मामा घर पर नहीं थे और लेखक को ही उसकी मरहम-पट्टी करनी पड़ी थी। तभी उसे बदलू की याद हो आई।
4. जब लेखक बदलू से मिलने उसके घर गया तब वह उसे | चबूतरे पर नीम के पेड़ के नीचे एक खाट पर लेटा हुआ मिला।

लाख की चूड़ियाँ Summary in Hindi

लाख की चूड़ियाँ पाठ का सार

लेखक को सारे गाँव में बदलू सबसे अच्छा लगता था क्योंकि वह उसे लाख की सुंदर-सुंदर गोलियाँ बनाकर देता था। लेखक उसे ‘बदलू काका’ कहा करता था। बदलू काका नीम के पेड़ के नीचे बैठकर दहकती भट्ठी पर लाख पिघला कर उसे चूड़ी का आकार देता था। वह बेलननुमा मुँगेरियों पर लाख को चढ़ाकर उसे चूड़ियों का आकार देता था और बाद में उन पर रंग करता था। वह बीच-बीच में हुक्का पीता रहता था। वह बचपन में लेखक को ‘लला’ कहता था और एक मचिया पर बिठाता था। वहीं लेखक उसे चूड़ियाँ बनाते देखता रहता था। बदलू मनिहार था। चूड़ियाँ बनाना उसका पैतृक पेशा था। गाँव की सभी स्त्रियाँ उसी की बनाई चूड़ियाँ पहनती थीं। बदलू स्वभाव से बहुत सीधा था। विवाह के अवसर पर उसकी चूड़ियों का मूल्य बढ़ जाता था। वह काँच की चूड़ियों से चिढ़ता था।

वह लेखक से बचपन में उसकी पढ़ाई के बारे में पूछता रहता था। कभी-कभी बदलू उसकी अच्छी खातिर भी करता था। बदलू उसके लिए लाख की एक-दो गोलियाँ बना देता था। बदलू लेखक के मामा के गाँव में रहता था। लेखक के पिता की बदली दूर के शहर में हो गई थी। अतः वह लंबे समय तक मामा के गाँव न जा सका। जब वह गाँव गया तो उसने गाँव की लगभग सभी स्त्रियों को काँच की चूड़ियाँ पहने देखा। एक शाम को वह बदलू से मिला तो सहसा उसने लेखक को पहचाना नहीं। फिर लेखक ने अपना नाम जनार्दन बताकर गोलियों की बात याद दिलाई, लेकिन वह फिर भी चुप रहा। बदलू ने उसे बताया कि अब उसका लाख की चूड़ियाँ बनाने का काम कई साल से बंद है क्योंकि अब उसकी बनाई चूड़ियों की पूछ नहीं होती। सभी को काँच की सुंदर चूड़ियाँ चाहिए। अब तक बदलू का शरीर भी ढल चुका था। उसे बुरी तरह खाँसी आ रही थी। उसके मन में व्यथा छिपी थी, जिसे लेखक ने भाँप लिया।

लेखक ने विषय बदलने के लिए पूछा-काका, अब की आम की फसल कैसी है? उसने जवाब दिया-अच्छी है और यह कहकर उसके लिए अपनी बेटी से कहकर आम मँगवाए। फिर लेखक ने गाय के बारे में पूछा तो वह बोला-गाय को दो साल पहले बेच दिया, कहाँ से खिलाता उसे? तभी उसकी बेटी रज्जो एक डलिया में ढेर से आम ले आई। बेटी ने चार-पाँच सिंदूरी आम छाँटकर उसे दे दिए। लेखक ने देखा कि रज्जो की गोरी-गोरी कलाइयों पर लाख की चूड़ियाँ फब रही थीं। बदलू बोला-यही आखिरी जोड़ा बनाया था, जमींदार साहब की बेटी के लिए। वे दस आने दे रहे थे, बदलू ने वह जोड़ा नहीं दिया और कह दिया-शहर से ले आओ। लेखक को यह सुनकर प्रसन्नता हुई कि बदलू ने हारकर भी हार नहीं मानी। उसका व्यक्तित्व टूटने वाला नहीं था।

HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 2 लाख की चूड़ियाँ

लाख की चूड़ियाँ शब्दार्थ

विभिन्न = तरह-तरह की (Different), पैतृक = पिता का (Paternal), विनिमय = बदल-बदल (Exchange), नाजुक = कोमल (Tender), विरले = कोई-कोई (not common), स्मृति पटल = मस्तिष्क में याद (Memory), अतीत = पुराना समय (old period), व्यथा = मन की तकलीफ (Agony)।

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HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 1 ध्वनि

Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 1 ध्वनि Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 1 ध्वनि

HBSE 8th Class Hindi ध्वनि Textbook Questions and Answers

कहानी से

प्रश्न 1.
कवि को ऐसा विश्वास क्यों है कि उसका अंत अभी नहीं होगा?
उत्तर:
कवि को ऐसा विश्वांस इसलिए है कि अभी उसके जीवन में काफी उत्साह और ऊर्जा है। वह युवा पीढ़ी को आलस्य की दशा से उबारना चाहता है। अभी उसे का काम करना है। वह स्वयं को काम के सर्वथा उपयुक्त माना है।

प्रश्न 2.
फूलों को अनंत तक विकसित करने के लिए कवि कौन-कौन-सा प्रयास करता है?
उत्तर:
फूलों को अनंत तक विकसित करने के लिए कवि उन्हें कलियों की स्थिति से निकालकर खिले फूल बनाना चाहता है। वह कलियों पर वासंती स्पर्श का हाथ फेरकर खिला देगा। वह युवकों को काव्य-प्रेरणा से अनंत का द्वारं दिखा देमा।

HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 1 ध्वनि

प्रश्न 3.
कवि पुष्पों की तन्द्रा और आलस्य दूर हटाने के लिए क्या करना चाहता है?
उत्तर:
कवि पुष्पों की तन्द्रा (नींद) और आलस्य को दूर | हटाने के लिए उन पर हाथ फेरेगा और उनको खिला देगा। जो काम वसंत करता है, वही काम कवि भी करेगा। कलियाँ आलस्य में पड़े युवकों की प्रतीक हैं। वह उनके आलस्य को दूर भगा देगा।

कविता से आगे

प्रश्न 1.
वसंत को ऋतुराज क्यों कहा जाता है? आपस में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
वसंत को ऋतुराज कहा जाता है क्योंकि यह सभी ऋतुओं का राजा है। वसंत को सर्वश्रेष्ठ ऋतु माना जाता है। इस ऋतु में प्रकृति पूरे यौवन पर होती है। इस ऋतु में उसकी छटा देखते ही बनती है। यह ऋतु मुर्दो में भी जान डाल देती है। यह ऋतु सभी को अच्छी लगती है।

प्रश्न 2.
वसंत ऋतु में आने वाले त्योहारों के विषय में जानकारी एकत्र कीजिए और किसी एक त्योहार पर निबंध लिखिए।
उत्तर:
वसंत ऋतु में आने वाले त्योहार – वसंत पंचमी : वसंत पंचमी पर सर्दी घटने लगती है। लोग पीले वस्त्र पहनते हैं तथा पीली वस्तुएँ खाते हैं। बागों में बहार चरम सीमा पर होती है।

महाशिवरात्रि : भगवान शंकर की पूजा-अर्जना की जाती है। यज्ञ तथा मेलों आदि का आयोजन होता है।

होली : यह फागुन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। यह मस्ती भरा त्योहार है। यह रंगों का त्योहार है। भारत विभिन्न ऋतुओं का देश है। वसंत को ऋतुराज की संज्ञा दी जाती है। रंगों का त्योहार होली ऋतुराज वसंत के आने का सूचक है। शीत ऋतु के उपरांत वसंत में प्रकृति अनगिनत रंगों के फूलों से सज जाती है। सर्वत्र प्रकृति के रंग-बिरंगे का ही साम्राज्य होता है। रंग-बिरंगे पुष्प एवं सरसों के पीले पुष्पों को देखकर मन प्रसन्न हो जाता है

और मस्ती में झूम उठता है। इस रंग-बिरंगे वसंत में ही होली का शुभागमन होता है। होली का त्योहार प्रति वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली का त्योहार दो दिन तक प्रमुख रूप से मनाया जाता है। पूर्णिमा की रात्रि को होलिका दहन होता है। लोग रात को अपने घरों में ही होली जलाते हैं तथा रबी की फसल की जौ और गेहूँ आदि की बालियाँ भूनते हैं। परस्पर भूने अन्न के दानों का आदान-प्रदान करते हुए अभिवादन करते हैं। अगले दिन प्रातः से ही सभी आबाल वृद्ध एक-दूसरे को अबीर-गुलाल लगाते हैं। एक दूसरे के गले मिलते हैं। सभी भेद-भाव भुलाकर रंग डालते हैं। लोगों के चेहरे और कपड़े रंग-बिरंगे हो जाते हैं। लोग मस्ती में गाते, बजाते, नाचते हैं। इस प्रकार होली पारस्परिक प्रेम और सौहार्द का परिचायक है।

रंगों के पर्व होली का पौराणिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से भी विशेष महत्त्व हैं। एक पौराणिक आख्यान के अनुसार हिरण्यकश्यप नामक दैत्यराज था। वह अत्यंत अत्याचारी एवं क्रूर था। उसने भक्त स्वभाव के अपने पुत्र प्रह्लाद पर अनेक अत्याचार किए। हिरण्यकश्यप चाहता था कि प्रह्लाद अपने पिता को ही भगवान् माने। इसलिए वह ईश्वर भक्त प्रहलाद से सदैव कुद्ध रहता था। अनेक अत्याचारों के असफल होने पर उसने एक अंतिम उपाय किया। हिरण्यकश्यप की एक होलिका नाम की बहन थी जिसे आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। उसने होलिका के सहयोग से प्रहलाद को जलाने की बात सोची। वह फाल्गुन मास की पूर्णिमा को प्रह्लाद की गोद में लेकर आग में बैठ गई। भगवान् की कृपा से होलिका तो जल गई परंतु प्रहलाद सकुशल बच गया। कहते हैं कि तभी से इस दिन होलिका का दहन किया जाता है। एक ऐसी भी मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने तीसरा नेत्र खोलकर कामदेव को भस्म किया था। अतः यह पर्व मदन-दहन पर्व बन गया।

रंगों का त्योहार होली हमें पारस्परिक प्रेम एवं सौहार्द का संदेश देता है। इस दिन शत्रु भी अपनी शत्रुता भूलकर मित्र बन जाते हैं, परंतु कुछ लोग अपनी विकृत मानसिकता का प्रयोग होली में करते हैं। वे शराब पीकर ऊद्यम मचाते हैं, कई बार प्रदूषित रंगों से आँखों एवं चमड़ी के रोग हो जाते हैं। उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। हमें शालीनता के साथ गुलाल लगाकर प्रेमपूर्वक होली खेलनी चाहिए ताकि समाज में स्नेह एवं प्रेम का सौहार्द बढ़े।

प्रश्न 3.
“ऋतु परिवर्तन का जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है”-इस कथन की पुष्टि आप किन-किन बातों से कर सकते हैं? लिखिए।
उत्तर:
लोगों के जीवन पर ऋतु-परिवर्तन का बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है। शीत ऋतु में हम काँपते रहते हैं तो वसंत ऋतु का आगमन हमें मस्ती एवं उल्लास से भर देता है। फिर ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है। धरती तपने लगती है। पसीना छूटता है। लोग वर्षा की कामना करते हैं। वर्षा ऋतु जीवन में उल्लास लेकर आती है। अन्न उपजाने के लिए वर्षा ऋतु की बड़ी आवश्यकता होती है। इस प्रकार सभी ऋतुओं से लोगों का जीवन प्रभावित होता है।

अनुमान और कल्पना

1. कविता की निम्नलिखित पंक्तियाँ पढ़कर बताइए कि इनमें किस ऋतु का वर्णन है?
फूटे हैं आमों में बौर
भौंर वन-वन टूटे हैं।
होली मची ठौर-ठौर
सभी बंधन छूटे हैं।

कविता की इन पंक्तियों में वसंत ऋत का वर्णन है। वसंत में ही होली का त्योहार आता है। आमों के बौर भी इसी ऋतु में फूटते हैं।

2. स्वप्न भरे कोमल-कोमल हाथों को अलसाई कलियों पर फेरते हुए कवि कलियों को प्रभात के आने का संदेश देता है, उन्हें जगाना चाहता है और खुशी-खुशी अपने जीवन के अमृत से उन्हें सींचकर हरा-भरा करना चाहता है। फूलों-पौधों के लिए आप क्या-क्या करना चाहेंगे?
हम फूल-पौधों के लिए ये काम करना चाहेंगे:

  • उन्हें पानी से सीचेंगे।
  • उनमें समय-समय पर खाद डालना चाहेंगे।
  • फूलों को पूरी तरह खिलने देंगे। उनको तोड़ेंगे नहीं।

3. कवि अपनी कविता में एक कल्पनाशील कार्य की बात बता रहा है। अनुमान कीजिए और लिखिए कि उसके बताए कार्यों का और किन-किन संदों से संबंध जुड़ सकता है? जैसे नन्हे-मुन्ने बालक को माँ जगा रही हो…
माँ अपने नन्हें-नन्हें बालक को जगाती है। उस पर प्यार भरा हाथ फेरती है।
→ माली भी पौधों पर अपना प्यार भरा हाथ फेरता है, उन्हें सींचता है, उनका विकास करता है।

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भाषा की बात

1. ‘हरे-भरे’, ‘पुष्प-पुष्प’ में एक शब्द की एक ही अर्थ में पुनरावृत्ति हुई है। कविता के ‘हरे-हरे ये पात’ वाक्यांश में ‘हरे-हरे’ शब्द युग्म पत्तों के लिए विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुए हैं। यहाँ पात शब्द बहुवचन में प्रयुक्त है। ऐसा प्रयोग भी होता है, जब कर्ता या विशेष्य एकवचन में हो और कर्म या क्रिया या विशेषण बहुवचन में; जैसे-वह लंबी-चौड़ी बातें करने लगा। कविता में एक ही शब्द का एक से अधिक अर्थों में प्रयोग होता है-तीन बेर खाती है तीन बेर खाती है।” जो तीन बार खाती थी वह तीन बेर खाने लगी है। एक शब्द ‘बेर’ का दो अर्थ में प्रयोग करने से वाक्य में चमत्कार आ गया। इसे यमक अलंकार कहा जाता है।

कभी-कभी उच्चारण की समानता से शब्दों की पुनरावृत्ति का आभास होता है। जबकि दोनों दो प्रकार के शब्द होते हैं, जैसे-मन का मनका।

ऐसे वाक्यों को एकत्र कीजिए जिनमें एक ही शब्द की पुनरावृत्ति हो। ऐसे प्रयोगों को ध्यान से देखिए और निम्नलिखित पुनरावृत शब्दों का वाक्य में प्रयोग कीजिए-बातों-बातों में, रह-रहकर, लाल-लाल, सुबह-सुबह, रातों-रात, घड़ी-घड़ी।।

काली घटा का घमंड घटा (घटा बादल की घटा, कम हुआ)

  • माँ का लाल गुस्से में लाल हो गया।
  • रात में घड़ी प्रातःकालीन घड़ी की ओर जा रही थी।
  • कनक कनक तै सौ गुनी मादकता अधिकाय।

2. ‘कोमल गात, मृदुल वसंत, हरे-हरे ये पात’:
विशेषण जिस संज्ञा (या सर्वनाम) की विशेषता बताता है, उसे विशेष्य कहते हैं। ऊपर दिए गए वाक्यांशों में गात, वसंत और पात शब्द विशेष्य हैं, क्योंकि इनकी विशेषता (विशेषण) क्रमशः कोमल, मृदुल और हरे-हरे शब्द बता रहे हैं।

हिंदी विशेषणों के सामान्यतया चार प्रकार माने गए हैं – गुणवाचक विशेषण, परिमाणवाचक विशेषण, संख्यावाचक विशेषण और सार्वनामिक विशेषण।

  • गुणवाचक विशेषण – सुंदर बालक, लंबी मेज
  • परिमाणवाचक विशेषण – दो किलो चीनी, थोड़ा चावल
  • संख्यावाचक विशेषण – चार केले, पाँचवाँ बालक
  • सार्वनामिक विशेषण – वह घर, यह बोतल

कविता से आगे

1. वसंत पर अनेक सुंदर कविताएँ हैं। कुछ कविताओं का संकलन तैयार कीजिए।

2. शब्दकोश में ‘वसंत’ शब्द का अर्थ देखिए। शब्दकोश में शब्दों के अर्थों के अतिरिक्त बहुत-सी अलग तरह की जानकारियाँ भी मिल सकती हैं। उन्हें अपनी कॉपी में लिखिए।

वसंत पर कविताएँ:
ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवि पद्ममाकर ने अपने शब्दों में वसंत की शोभा का वर्णन करते हुए कहा है –
कूलन में केलिन में कछारन में
कंजन में क्यारिन में कलित कलीन किलकत है।
कहै पद्ममाकर पराग हूँ मैं, पोन हूँ मैं
पानन में, पीकन में, पलाशन पगंत है।
कछार में, दिशा में, दूनी में, देश-देशन में
बनन में, बागन में बगरयो वसंत है।
श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने तो वसंत की समृद्धता और ऐश्वर्यता की तुलना मठ के प्रधान महंत से की है :
आए महंत वसंत
मखमल के झले पड़े हाथी-सा टीला
बैठे किंशुक छत्र लगा बाँध पाग पीला
चँवर सदृश डोल रहे सरसों के सर अनंत
आए महंत वसंत।

शब्दकोश में वसंत के अर्थ:

  • छह ऋतुओं में से एक ऋतु जो चैत्र-वैशाख में आती है
  • कामदेव का सहचर
  • अतिसार
  • एक वृत्त
  • एक राग।

ध्वनि Summary in Hindi

ध्वनि कवि-परिचय

प्रश्न: सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला’ का जीवन एवं साहित्य का परिचय दीजिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय : निराला जी का जन्म सन् 1897 ई. में बंगाल के महिषादल राज्य में मेदिनीपुर नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता श्री रामसहाय त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के निवासी थे और आजीविका के लिए महिषादल (बंगाल) चले गये थे। निराला की आरंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। इन्होंने संस्कृत, बंगला और अंग्रेजी का अध्ययन घर पर ही किया। उनकी साहित्य के अतिरिक्त-दर्शनशास्त्र व संगीत के प्रति रुचि थी। इनकी विचारधारा पर स्वामी रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद का गहरा प्रभाव पड़ा। अपने निराले व्यक्तित्व के कारण ये हिंदी साहित्य जगत में ‘निराला’ उपनाम से प्रसिद्ध हुए।

रचनाएँ : ‘परिमल’, ‘अनामिका’, ‘गीतिका’, ‘अपरा’, ‘नये पत्ते’, ‘राम की शक्ति-पूजा’, ‘तुलसीदास’ (काव्य) अलका’, ‘निरुपमा’, ‘चोटी की पकड़’ (उपन्यास) ‘लिली’, ‘सखी’, ‘चतुरी चमार’ (कहानी संग्रह) प्रबंध की प्रतिमा’, ‘प्रबंध पद्म’ (निबंध : संग्रह) ‘रवींद्र-कविता-कानन’, ‘पतन और पल्लव’ (आलोचना) ‘समन्वय’, ‘मतवाला’, ‘सुधा’ (पत्रिका) आदि।

साहित्यगत विशेषताएँ : यद्यपि निराला हिंदी-साहित्य में कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं तथापि वे गद्य पर समान अधिकार रखते हैं। उनकी बहुमुखी प्रतिभा के दर्शन उनकी काव्य रचनाओं एवं उपन्यास, कहानी, निबंध, रेखाचित्र और आलोचना के क्षेत्र में दिखाई देते हैं। पत्र-संपादक के क्षेत्र में भी लौह-लेखनी ने प्रसिद्धि पाई। उनकी आरंभिक कविताओं में छायावाद के दर्शन होते हैं। इसके अतिरिक्त उनकी गणना उच्च कोटि के रहस्यवादी और प्रगतिवादी कवियों में की जाती है। उन्होंने शृंगार, प्रेम, प्रकृति सौंदर्य, राष्ट्र-प्रेम आदि विषयों पर काव्य रचना की। उनके साहित्य में जहाँ दलित समाज के प्रति सहानुभूति का भाव है, वहाँ शोक शोषक वर्ग पर कटु व्यंग्य है।

भाषा-शैली : निराला ने काव्य की पुरानी परंपराओं को त्याग कर काव्य-शैली को नई दिशा प्रदान की। हिंदी काव्य में ‘स्वच्छंद-छंद’ निराला जी की देन है। निराला की कविताओं में संगीतात्मकता है। यद्यपि उनके साहित्य की भाषा तत्सम प्रधान है, तथापि उनकी प्रगतिवादी रचनाएँ बोलचाल की भाषा में हैं।

ध्वनि कविता का सार

इस कविता में कवि निराला कहते हैं कि अभी उनका अंत नहीं होने वाला है। जो आलोचक यह कह रहे थे कि अब निराला के कवि-जीवन का अंत होने वाला है कवि उनको इस कविता के माध्यम से करारा उत्तर देता है। कवि कहता है कि अभी तो उसके कवि-जीवन का उत्कर्ष हुआ है। उसके जीवन में वसंत की बहार आई हुई है। वह अपनी कविताओं के माध्यम से निद्रामग्न युवा पीढ़ी को आशा का संदेश देकर जागृत करेगा। वह एक-एक फूल अर्थात् एक-एक युवक से आलस्य को दूर भगा देगा और उनके जीवन में अमृत सींच देगा। वह उनको स्वर्ग जैसे सुखों का द्वार दिखा देगा। अभी उसे बहुत कुछ करना है। अभी उसका अंत नहीं आया है।

HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 1 ध्वनि

ध्वनि काव्याशों की सप्रसंग व्याख्या

1. अभी न होगा मेरा अंत
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसंत
अभी न होगा मेरा अंत।
हरे-हरे ये पात,
डालियाँ, कलियाँ, कोमल गात।
मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर।

शब्दार्थ : मृदुल – कोमल सुखद (Tender), वन = जंगल, बगीचा, जीवन (Garden), अंत = समाप्ति (End), पात – पत्ते (Leaves), गात – शरीर (Body), निद्रित = नींद में (Drowsy), प्रत्यूष = प्रातःकालीन समय (time of early morning), मनोहर = सुंदर (Beautiful), कर * हाथ (Hands)।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित कविता ‘ध्वनि’ से अवतरित है। इसमें कवि अपने कवि जीवन के उत्कर्ष काल का वर्णन करता है।

व्याख्या : कवि आलोचकों को उत्तर देते हुए कहता है कि अभी मेरे कवि-जीवन का अंत नहीं होने वाला है। अभी-अभी तो मेरे जीवन में वसंत की बहार आई है अर्थात् मेरे कवि-जीवन का उत्कर्ष हुआ है। कवि के वन में अर्थात् जीवन में कोमल वसंत का आगमन अभी ही हुआ है। अतः अभी उसका अंत नहीं होने वाला। – अभी उसका शरीरं यौवन की मस्ती से भरपूर है। कवि अपने कोमल हाथों को इन कलियों पर फेरकर उनमें एक प्रात:कालीन सवेरे को जागृत कर देगा। कवि के कहने का भाव यह है कि जो युवक नींद में पड़े हुए हैं, वह उनको प्रेरित करके उनमें नए उत्कर्ष के स्वप्न जगा देगा। वह उनका आलस्य दूर या गलथा उनमें उत्साह का संचार कर देगा।

विशेष :
1. ‘अभी-अभी’, ‘हरे-हरे’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
2. ‘कलियाँ कोमल’ में अनुप्रास अलंकार है।

2. पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नव जीवन का अमृत सहर्ष सींच दूंगा मैं,
द्वार दिखा दूंगा फिर उनको।
हैं मेरे वे जहाँ अनंत
अभी न होगा मेरा अंत।

शब्दार्थ : पुष्प – फूल (Flower), तंद्रालस = आलस्य (Laziness sleepness), नव = नया (New), सहर्ष = खुशी के साथ (withjoy), द्वार = दरवाजा (Door), अनंत = जिसका अंत न हो (Endless)।

प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित कविता ‘ध्वनि’ से अवतरित है। इसमें कवि अपने कवि-कर्म का परिचय देते हुए कहता है :

व्याख्या : कवि कहता है कि मैं एक-एक फूल से आलस्य . को खींच लूँगा अर्थात् आलस्य में पड़े प्रत्येक युवक के मन से आलस्य की भावना को दूर कर दूंगा और उनके मन में नए जीवन का अमृत प्रसन्नतापूर्वक भर दूंगा। (वसंत भी यही काम करता है। वह लोगों में नव जीवन का संचार करता है।)

कवि युवा वर्ग के मन से आलस्य, निराशा की भावना को दूर करके उनको अमरता का द्वार दिखा देगा। कवि के जीवन में अभी वसंत आया ही है। अतः उसका अभी अंत नहीं होने वाला है।

विशेष:
1. ‘पुष्प-पुष्प’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
2. ‘सहर्ष सींच’ में अनुप्रास अलंकार है।
3. खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।

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HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 15 प्रहेलिकाः

Haryana State Board HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 15 प्रहेलिकाः Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 15 प्रहेलिकाः

अभ्यासः

प्रश्न 1.
श्लोकांशेषु रिक्तस्थानानि पूरयत-
(क) सीमन्तिनीषु का _________ राजा ___________ गुणोत्तमः?
(ख) कं सञ्जघान _________ का _________ गङ्गा?
(ग) के _________ कं _________ न बाधते शीतम्।
(घ) वृक्षाग्रवासी न च _________, _________ न च शूलपाणिः।
उत्तरम्:
(क) सीमन्तिनीषु का शान्ता? राजा कोऽभूत् गुणोत्तमः?
(ख) कं सञ्जघान कृष्णः? का शीतलवाहिनी गङ्गा?
(ग) के दारपोषणरता:? कं बलवन्तं न बाधते शीतम्?
(घ) वृक्षाग्रवासी न च पक्षिराजः, त्रिनेत्रधारी न च शूलपाणिः।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 15 प्रहेलिकाः

प्रश्न 2.
श्लोकाशान् योजयत-

कि कुर्यात् कातरो युद्धेअत्रैवोक्तं न बुध्यते।
विद्वद्भिः का सदा वन्ध्यातक्रं शक्रस्य दुर्लभम्।
कं स्ज्जघान कृष्णःमृगात् सिह: पलाथते।
कथं विष्णुपदं प्रोक्तंकाशींतलवाहिनी गड़ा।

उत्तरम्:

कि कुर्यात् कातरो युद्धेमृगात् सिह: पलाथते।
विद्वद्भिः का सदा वन्ध्याअत्रैवोक्तं न बुध्यते।
कं स्ज्जघान कृष्णःकाशींतलवाहिनी गड़ा।
कथं विष्णुपदं प्रोक्तंतक्रं शक्रस्य दुर्लभम्।

प्रश्न 3.
उपयुक्तकथनानां समक्षम् ‘आम’ अनुपयुक्तकथनानां समक्ष ‘न’ इति लिखत-
उपयुक्तकथनानां समक्षम् ‘आम’ अनुपयुक्तकथनाना समक्ष ‘न’ इति लिखत-
यथा – सिंहः करिणां कुलं हन्ति। [आम]
(क) कातरो युद्धे युद्ध्यते।
(ख) कस्तूरी मृगात् जायते।
(ग) मृगात् सिंहः पलायते।
(घ) कंस: जघान कृष्णम्।
(ङ) तक शक्रस्य दुर्लभम्।
(च) जयन्तः कृष्णस्य पुत्रः।
उत्तरम्:
(क) कातरो युद्धे युध्यते। [न]
(ख) कस्तूरी मृगात् जायते। [आम]
(ग) मृगात् सिंहः पलायते। [न]
(घ) कंसः जघान कृष्णम्। [न]
(ङ) तक्रं शक्रस्य दुर्लभम्। [आम]
(च) जयन्तः कृष्णस्य पुत्रः। [न]

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 15 प्रहेलिकाः

प्रश्न 4.
अधोलिखितानां पदानां लिङ्ग विभक्तिं वचनञ्च लिखत-
HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 15 प्रहेलिकाः - 1
उत्तरम्:
HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 15 प्रहेलिकाः - 2

प्रश्न 5.
कोष्ठकान्तर्गतानां पदानामुपयुक्तविभक्तिप्रयोगेन अनुच्छेदं पूरयत-
एकः काकः __________ (आकाश) डयमानः आसीत्। तृषार्तः सः __________ (जल) अन्वेषणं करोति। तदा सः __________ (घट) अल्पं __________ (जल) पश्यति। सः __________ (उपल) आनीय __________ (घट) पातयति। जलं __________ (घट) उपरि आगच्छति। __________ (काक) सानन्दं जलं पीत्वा तृप्यति।
उत्तरम्:
एकः काकः आकाशे (आकाश) डयमानः आसीत्। तृषार्तः सः जलस्य (जल) अन्वेषणं करोति। तदा सः घटे (घट) अल्पं जलं (जल) पश्यति। सः उपलान् (उपल) आनीय घटे (घट) पातयति। जलं घटे (घट) उपरि आगच्छति। काकः (काक) सानन्दं जलं पीत्वा तृप्यति।

योग्यता-विस्तारः

प्रस्तुत पाठ में दी गयी पहेलियों के अतिरिक्त कुछ अन्य पहेलियाँ अधोलिखित हैं। उन्हें पढ़कर स्वयं समझने की कोशिश करें और ज्ञानवर्धन करें यदि न समझ पायें तो उत्तर देखें।

(क) चक्री त्रिशूली न हरो न विष्णुः।
महान् बलिष्ठो न च भीमसेनः।
स्वच्छन्दगामी न च नारदोऽपि
सीतावियोगी न च रामचन्द्रः।।

(ख) न तस्यादिर्न तस्यान्तः मध्ये यस्तस्य तिष्ठति।
तवाप्यस्ति ममाप्यस्ति यदि जानासि तद्वद॥

(ग) अपदो दूरगामी च साक्षरो न च पण्डितः।
अमुखः स्फुटवक्ता च यो जानाति स पण्डितः।
उत्तर:
(क) वृषभः
(ख) नयनम्
(ग) पत्रम्

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 15 प्रहेलिकाः

मूलपाठः

कस्तूरी जायते कस्मात्?
को हन्ति करिणां कुलम्?
किं कुर्यात् कातरो युद्ध?
मृगात् सिंहः पलायते ॥1॥

सीमन्तिनीषु का शान्ता?
राजा कोऽभूत् गुणोत्तमः?
विद्वद्भिः का सदा वन्द्या?
अत्रैवोक्तं न बुध्यते ॥2॥

कं सञ्जधान कृष्णः?
का शीतलवाहिनी गङ्गा?
के दारपोषणरताः?
के बलवन्तं न बाधते शीतम् ॥3॥

वृक्षाग्रवासी न च पक्षिराजः
त्रिनेत्रधारौ न च शूलपाणिः।
त्वग्वस्त्रधारी न च सिद्धयोगी
जलं च विचन्न घटो न मेघ: ॥4॥

भोजनान्ते च किं पेयम्?
जयन्तः कस्य वै सुतः?
कथं विष्णुपदं प्रोक्तम्?
तक्र शक्रस्य दुर्लभम् ॥5॥

अन्वयः
1. कस्तूरी कस्मात् जायते?
करिणां कुलं कः हन्ति?
कातरः युद्ध किं कुर्यात्?
मृगात् सिंहः पलायते।

2. सीमन्तिनीषु का शान्ता?
क: गुणोत्तमः राजा अभूत?
विद्वद्भिः सदा का वन्द्या?

3. कृष्णः क सञ्जधान?
का शीतलवाहिनी गङ्गा?
के दारपोषणरताः?
शीतं कं बलवन्तं न बाधते?

4. वृक्षाग्रवासी पक्षिराज: च ना
त्रिनेत्रधारी (किन्तु) शूलपाणिः च न।
त्वग्वस्त्रधारी (परन्तु) सिद्धयोगी च न।
जलं च बिभ्रत् न घटः न (च) मेघः।

5. भोजनान्ते कि पेयम्?
जयन्तः कस्य वै सुतः?
विष्णुपदं कथं प्रोक्तम्?
तक्र शक्रस्य दुर्लभम्।

सन्धिविच्छेदः
कोहन्ति = कः + हन्ति।
कातरो युद्धे = कातरः + युद्धे।
कोऽभूत = कः + अभूत् (को + अभूत्)।
गुणोत्तमः = गुण + उत्तमः।
अत्रैवोक्तम् = अत्र + एव + उक्तम्।
वृक्षाग्रवासी = वृक्ष + अग्रवासी।
बिभ्रन्न = ब्रिभत् + न।
भोजनान्ते = भोजन + अन्ते।
प्रोक्तम् = प्र + उक्तम्।

पदार्थबोध:
हन्ति = मारता/ती है (मारयति)।
करिणाम् = हाथियों के (गजानाम्)।
कातरः = कायर (भीत:)।
सीमन्तिनीषु = नारियों में (नारीषु, महिलासु)।
अभूत् = हुआ (अजायत)।
बुध्यते = जाना जाता है (ज्ञायते)।
सञ्जधान = मारा (अमारयत्, अहन्)।
कसञ्जधान् = कंस को मारा (कंसममारयत्)।
शीतलवाहिनी = शीतलधारा वाली (शैत्यवाहिनी)।
काशीतलवाहिनी = काशी की भूमि पर बहने वाली (वाराणसीतलवाहिनी)।
दारपोषणरताः = पत्नी के पोषण में लीन (पत्नीपोषणलीनाः)।
केदारपोषणरताः = खेत के कार्य में संलग्न (क्षेत्रकार्यरताः)।
बलवन्तम् = बलवान् को (शक्तिमन्तम्)।
कम्बलवन्तम् = कम्बल वाले को (कम्बलवस्त्रधारिणम्)।
बाधते = बाधित करता है (सीदति)।
वृक्षाग्रवासी = पेड़ों पर रहने वाला (तरुवासी)।
पक्षिराजः = पक्षियों का राजा (गरुड़) (वैनतेयः)।
त्रिनेत्रधारी = तीन नेत्रों वाला (शिव) (नारिकेलः, शिवः)।
शूलपाणिः = त्रिशूलधारी (शंकरः, शूली)।
त्वम् = त्वचा, छाल (वल्कलः)।
बिभ्रत् = भरा हुआ (परिपूर्णः)।
विष्णुपदम् = मोक्ष (मोक्षः)।
तक्रम् = छाछ, मठा (घृतशेषः)।
शक्रस्य = इन्द्र का (इन्द्रस्य)।
दुर्लभम् = कठिन (कठिनम्)।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 15 प्रहेलिकाः

प्रहेलिकानामुत्तरान्वेषणाय सङ्केताः
प्रथमा प्रहेलिका – अन्तिम चरणे क्रमशः त्रयाणां प्रश्नानां त्रिभिः पदैः उत्तरं दत्तम्।

द्वितीया प्रहेलिका – प्रथम-द्वितीय-तृतीय चरणेषु प्रथमस्य वर्णस्य अन्तिमवर्णेन संयोगात् उत्तरं प्राप्यते।

तृतीया प्रहेलिका – प्रत्येकं चरणे प्रथमद्वितीययोः प्रथमत्रयाणां वा वर्णानां संयोगात् तस्मिन् चरणे प्रस्तुतस्य प्रश्नस्य उत्तरं प्राप्यते।

चतुर्थप्रहेलिकायाः उत्तरम् – नारिकेलफलम्।

पञ्चमप्रहेलिकायाः उत्तरम् – प्रथम-प्रहेलिकावत्।

पहेलियों का उत्तर खोजने के संकेत
पहली पहेली – अन्तिम चरण (चौथी पंक्ति) में ऊपर के तीनों प्रश्नों के उत्तर क्रमश: तीन शब्दों में दिए गए हैं।

दूसरी पहेली – प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय (तीनों) चरणों के पहले तथा अन्तिम वर्ण का मिलान करने से उत्तर मिलता है।

तीसरी पहेली – प्रत्येक चरण में पहले दोनों या पहले तीनों वर्गों को मिलाने से उसका उत्तर मिलता है।

चौथी पहेली का उत्तर नारियल।

पाँचवीं पहेली का उत्तर – पहली पहेली के समान।

सरलार्थः
1. कस्तूरी किससे उत्पन्न होती है?
कौन मारता है हाथियों के कुल को?
कायर युद्ध में क्या करता है?
‘हरिण से’, ‘शेर’, ‘भाग जाता है।’
(ये तीनों ही क्रमशः उत्तर हैं।)

2. (i) नारियों में कौन शान्त है? (सीता)
(ii) गुणों में उत्तम राजा कौन हुआ है? (राम)
(ii) विद्वानों द्वारा सदा कौन पूजी जाती है? (विद्या)
इन्हीं में कहा गया है, पता नहीं चल रहा है।

3. कृष्ण ने किसे मारा? (कंस को)
शीतलधारा वाली गंगा कहाँ है? (काशी में)
स्त्री के पोषण में कौन लगे रहते हैं? (किसान)
किस बलवान् को सर्दी नहीं लगती? (कम्बल वाले को)

4. वृक्ष पर रहता है लेकिन पक्षिराज (गरुड़) नहीं है।
तीन नेत्रों वाला है, लेकिन शिव नहीं है।
छाल के वस्त्र पहनता है लेकिन योगी नहीं है।
जल से भरा हुआ है फिर भी न घड़ा है और न बादल।
उत्तर है- नारियल।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 15 प्रहेलिकाः

5. भोजन के अन्त में क्या पीना चाहिए? (छाछ)
जयन्त किसका पुत्र था? (इन्द्र का)
मोक्ष कैसा कहा गया है? (दुर्लभ)
मट्ठा दुर्लभ है इन्द्र के लिए।

प्रहेलिकाः Summary

प्रहेलिकाः पाठ-परिचयः

मनोरञ्जनहीन व हास्यविहीन जीवन को नरक माना जा सकता है। पहेलियाँ मनोरञ्जन की प्राचीन विधा हैं। ये प्रायः विश्व की सारी भाषाओं में उपलब्ध हैं। संस्कृत के कवियों ने इस परम्परा को अत्यन्त समृद्ध किया है। पहेलियाँ जहाँ हमें आनन्द देती हैं, वहीं समझ-बूझ की हमारी मानसिक व बौद्धिक प्रक्रिया को अधिक तेज बनाती हैं। इस पाठ में संस्कृत प्रहेलिका (पहेली) बूझने की परम्परा के कुछ रोचक उदाहरण प्रस्तुत किए गए हैं। रोचकपूर्ण ढंग से ज्ञानवर्धन करने के लिए पहेलियाँ उत्तम साधन हैं।

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HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः

Haryana State Board HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः

अभ्यासः

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत-
(क) सूर्यः कस्यां दिशायाम् उदेति?
उत्तरम्:
पूर्वदिशायाम्

(ख) आर्यभटस्य वेधशाला कुत्र आसीत्?
उत्तरम्:
पाटलिपुत्रे

(ग) महान् गणितज्ञ: ज्योतिर्विच्च कः अस्ति?
उत्तरम्:
आर्यभटः

(घ) आर्यभटेन कः ग्रन्थः रचितः?
उत्तरम्:
आर्यभटीयम्

(ङ) अस्माकं प्रथमोपग्रहस्य नाम किम् अस्ति?
उत्तरम्:
आर्यभटम्।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः

प्रश्न 2.
सन्धिविच्छेदं कुरुत-
ग्रन्थोऽयम् – ______ + _________
सूर्याचलः – ______ + _________
तथैव – ______ + _________
कालातिगामिनी – ______ + _________
प्रथमोपग्रहस्य – ______ + _________
उत्तरम्:
ग्रन्थोऽयम् – ग्रन्थः + अयम्
सूर्याचलः – सूर्य + अचलः
तथैव – तथा + एव
कालातिगामिनी – काल + अतिगामिनी
प्रथमोपग्रहस्य – प्रथम + उपग्रहस्य

प्रश्न 3.
अधोलिखितपदानां विपरीतार्थकपदानि लिखत-
उदयः – __________
अचल: – __________
अन्धकारः – __________
स्थिरः – __________
समादरः – __________
उत्तरम्:
उदयः – अस्तः
अचल: – चलः
अन्धकारः – प्रकाशः
स्थिरः – अस्थिरः
समादरः – निरादरः

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः

प्रश्न 4.
अधोलिखितानि पदानि आधृत्य वाक्यानि रचयत-
साम्प्रतम् – _______________
निकषा – _______________
परितः – _______________
उपविष्टः – _______________
कर्मभूमिः – _______________
वैज्ञानिक: – _______________
उत्तरम्:
साम्प्रतम् – (अब) साम्प्रतं क्रीडनीयम्।
निकषा – (निकट) गृह निकषा मन्दिरम् अस्ति।
परितः – (चारों ओर) विद्यालय परितः वृक्षाः सन्ति।
उपविष्टः – (बैठा हुआ) सः उपविष्टः पठति।
कर्मभूमिः – (कर्मभूमि) पठनमेव में कर्मभूमिः।
वैज्ञानिक: – (वैज्ञानिक) अहं वैज्ञानिकः भवितुम् इच्छामि।

प्रश्न 5.
मञ्जूषातः पदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत-
नौकाम्, पृथिवी, तदा, चला, अस्तं
(क) सूर्यः पूर्वदिशायाम् उदेति पश्चिमदिशि च __________ गच्छति।
(ख) सूर्यः अचलः पृथिवी च __________।
(ग) __________ स्वकीये अक्षे घूर्णति।
(घ) यदा पृथिव्याः छायापातेन चन्द्रस्य प्रकाशः अवरुध्यते __________ चन्द्रग्रहणं भवति।
(ङ) नौकायाम् उपविष्टः मानवः __________ स्थिरामनुभवति।
उत्तरम्:
(क) अस्तं
(ख) चला
(ग) पृथिवी
(घ) तदा
(ङ) नौकाम्

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः

प्रश्न 6.
उदाहरणानुसारं पदपरिचयं ददत-
HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः -1
उत्तरम्:
HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः -2

प्रश्न 7.
‘मति’ शब्दस्य रूपाणि पूरयत-
HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः -3
उत्तरम्:
HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः -4

योग्यता-विस्तारः

आर्यभट को अश्मकाचार्य नाम से भी जाना जाता है। यही कारण है कि इनके जन्मस्थान के विषय में विवाद है। कोई इन्हें पाटलिपुत्र का कहते हैं तो कोई महाराष्ट्र का।

आर्यभट ने दशमलव पद्धति का प्रयोग करते हुए π (पाई) का मान निर्धारित किया। उन्होंने दशमलव के बाद के चार अंकों तक π के मान को निकाला। उनकी दृष्टि में π का मान है 3.1416। आधुनिक गणित में π का मान, दशमलव के बाद सात अंकों तक जाना जा सका है, तदनुसार π = 3.14169261

भारतीयज्योतिषशास्त्र- वैदिक युग में यज्ञ के काल अर्थात् शुभ मुहूर्त के ज्ञान के लिए ज्योतिषशास्त्र का उद्भव हुआ। कालान्तर में इसके अन्तर्गत ग्रहों का संचार, वर्ष, मास, पक्ष, वार, तिथि, घंटा आदि पर गहन विचार किया जाने लगा। लगध, आर्यभट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य, बालगंगाधर तिलक, रामानुजन् आदि हमारे देश के प्रमुख ज्योतिषशास्त्री हैं। आर्यभटीयम्, सौरसिद्धान्तः, बृहत्संहिता, लीलावती, पञ्चसिद्धान्तिका आदि ज्योतिष के प्रमुख संस्कृत ग्रन्थ हैं।

आर्यभटीयम्- आर्यभट ने 499 ई. में इस ग्रन्थ की रचना की थी। यह ग्रन्थ 20 आर्याछन्दों में निबद्ध है। इसमें ग्रहों की गणना के लिए कलि संवत् (499 ई.में 3600 कलि संवत्) को निश्चित किया गया है।

गणितज्योतिष- संख्या के द्वारा जहाँ काल की गणना हो, वह गणितज्योतिष है। ज्योतिषशास्त्र की तीन विधाओं यथा-सिद्धान्त, फलित एवं गणित में यह सर्वाधिक प्रमुख है।

फलितज्योतिष- इसके अन्तर्गत ग्रह नक्षत्रों आदि की स्थिति के आधार पर भाग्य, कर्म आदि का विवेचन किया जाता है।

वेधशाला- ग्रह, नक्षत्र आदि की गति, स्थिति की. जानकारी जहाँ गणना तथा यान्त्रिक विधि के आधार पर ली जाये वह वेध शाला है। यथा-जन्तर-मन्तर।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः

मूलपाठः

पूर्वदिशायाम् उदेति सूर्यः पश्चिमदिशायां च अस्तं गच्छति इति दृश्यते हि लोके। परं न अनेन अवबोध्यमस्ति यत्सूर्यो गतिशील इति। सूर्योऽचल: पृथिवी च चला या स्वकीये अक्षे घूर्णति इति साम्प्रतं सुस्थापितः सिद्धान्तः। सिद्धान्तोऽयं प्राथम्येन येन प्रवर्तितः, स आसीत् महान् गणितज्ञः ज्योतिर्विच्च आर्यभटः।

पृथिवी स्थिरा वर्तते इति परम्परया प्रचलिता रूढिः तेन प्रत्यादिष्टा। तेन उदाहृतं यद् गतिशीलायां नौकायाम् उपविष्टः मानवः नौकां स्थिरामनुभवति, अन्यान् च पदार्थान् गतिशीलान् अवगच्छति। एवमेव गतिशीलायां पृथिव्याम् अवस्थितः मानवः पृथिवीं स्थिरामनुभवति सूर्यादिग्रहान् च गतिशीलान् वेत्ति।

476 तमे ख्रिस्ताब्दे (षट्सप्तत्यधिकचतुःशततमे वर्षे) आर्यभटः जन्म लब्धवानिति तेनैव विरचिते ‘आर्यभटीयम्’ इत्यस्मिन् ग्रन्थे उल्लिखितम्। ग्रन्थोऽयं तेन त्रयोविंशतितमे वयसि विरचितः। ऐतिहासिकस्त्रोतोभिः ज्ञायते यत् पाटलिपुत्र निकषा आर्यभटस्य वेधशाला आसीत्। अनेन इदम् अनुमीयते यत् तस्य कर्मभूमिः पाटलिपुत्रमेव आसीत्।

आर्यभटस्य योगदानं गणितज्योतिषा सम्बद्धं वर्तते यत्र संख्यानाम् आकलनं महत्त्वम् आदधाति। आर्यभटः फलितज्योतिषशास्त्रे न विश्वसिति स्म। गाणितीयपद्धत्या कृतप आकलनमाधृत्य एव तेन प्रतिपादितं यद् ग्रहणे राहु-केतुनामको, दानवौ नास्ति कारणम्। तत्र तु सूर्यचन्द्रपृथिवी इति त्रीणि एव कारणानि। सूर्य परितः भ्रमन्त्याः पृथिव्याः, चन्द्रस्य परिक्रमापथेन संयोगाद् ग्रहणं भवति। यदा पृथिव्याः छायापातेन चन्द्रस्य प्रकाशः अवरुध्यते तदा चन्द्रग्रहणं भवति। तथैव पृथ्वीसूर्ययोः मध्ये समागतस्य चन्द्रस्य छायापातेन सूर्यग्रहणं दृश्यते।

समाजे नूतनानां विचाराणां स्वीकारे प्रायः सामान्यजनाः काठिन्यमनुभवन्ति। भारतीयज्योतिःशास्त्रे तथैव आर्यभटस्यापि विरोधः अभवत्। तस्य सिद्धान्ताः उपेक्षिताः। स पण्डितम्मन्यानाम् उपहासपात्रं जातः। पुनरपि तस्य दृष्टि: कालातिगामिनी दृष्टा। आधुनिकैः वैज्ञानिकैः तस्मिन्, तस्य च सिद्धान्ते समादरः प्रकटितः। अस्मादेव कारणाद् अस्माकं प्रथमोपग्रहस्य नाम आर्यभट इति कृतम्।

वस्तुतः भारतीयायाः गणितपरम्परायाः अथ च विज्ञानपरम्परायाः असौ एकः शिखरपुरुषः आसीत्।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः

सन्धिविच्छेद:
सूर्यो गतिशील इति = सूर्यः + गतिशीलः + इति।
सूर्योऽचलः = सूर्य+ + अचल:।
सिद्धान्तोऽयम् = सिद्धान्तः + अयम्।
ज्योतिर्विच्च = ज्योतिः + विद् + च।
प्रत्याविष्य = प्रति + आदिष्य।
ख्रिस्ताब्दे = ख्रिस्त + अब्दे।
सप्तत्यधिक = सप्तति + अधिक।
तेनैव = तेन + एव।
इत्यस्मिन् = इति + अस्मिन्।
उल्लिखितम् = उत् + लिखितम्।
ग्रन्थोऽयम् = ग्रन्थः + अयम्।
नास्ति = न + अस्ति।
तथैव = तथा + एव।
आर्यभटस्यापि = आर्यभटस्य + अपि।
पुनरपि = पुनः + अपि।

संयोगः
अवबोध्यमस्ति = अवबोध्यम् + अस्ति।
स्थिरामनुर्भवति = स्थिराष्य + अनुभवति।
एवमेव = एवम् + एव।
लब्धवानिति = लब्धवान् + इति।
पाटलिपुत्रमेव = पाटलिपुत्रम् + एव।
आकलनमाधृत्य = आकलनम् + आधृत्य।
समागतस्य = सम् + आगतस्य।
काठिन्यमनुभवन्ति = काठिन्यम् + अनुभवन्ति।
समादरः = सम् + आदरः।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः

पदार्थबोध:
उदेति = उदित होता है (उद्गच्छति, चकास्ति)।
लोके = संसार में (संसारे, जगति)।
अवबोध्यम् = जानने योग्य (ज्ञातव्यम्, ज्ञानीयम्)।
अचलः = गतिहीन, स्थिर (स्थिर:)।
चला = अस्थिर, गतिशील (गतिशीला, अस्थिरा)।
स्वकीये = अपने (आत्मीये)।
अक्षे = धुरी पर (ध्रुवके)।
घूर्णति = घूमती है (घूर्णनं करोति)।
सुस्थापितः = भली-भाँति स्थापित (सम्यक् स्थापितः)।
प्राथम्येन = प्राथमिकता से (प्राथमिकतया)।
ज्योतिविद् = ज्योतिषी (ज्योतिष्क:)।
रूढ़िः = प्रथा, परम्परा।
प्रत्यादिष्टा = खण्डन किया (खण्डितवान्)।
ख्रिस्ताब्दे = ईस्वी में (ईस्वीये)।
षट्सप्ततिः = छिहत्तर (षडधिकसप्ततिः)।
वयसि = आयु में (आयौ)।
निकषा = निकट (समीपे)।
वेधशाला = ग्रह-नक्षत्रों को जानने की प्रयोगशाला (ग्रह-ज्ञानशाला)।
आकलनम् = गणना।
आदधाति = रखता है (धारयति)।
भ्रमन्त्याः = घूमने वाली की (घूर्णन्त्याः )।
छायातपेन = छाया पड़ने से (छायावशात्)।
अवरुध्यते = रुक जाता है (अवबाध्यते)।
अपरत्र = दूसरी ओर (अन्यत्र)।
अवस्थितः = स्थित (स्थितः)।
उपेक्षिताः = नहीं माने गए (तिरस्कृताः)।
पण्डितम्मन्यानाम् = स्वयं को अधिक विद्वान् मानने वालों की (विद्वन्मन्यानाम्)।
कालातिगामिनी = समय को लाँघने वाली (कालजयिनी)।
प्रकटितः = प्रकट किया (प्रदर्शितः)।
असौ = वह (स:)।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः

सरलार्थ:
सूर्य पूर्व दिशा में उदित होता है और पश्चिम दिशा में अस्त हो जाता है, यह देखा जाता है संसार में। परन्तु इससे यह नहीं समझना चाहिए कि सूर्य गतिशील है, ऐसा। सूर्य स्थिर है और पृथ्वी गतिशीला है जो अपने अक्ष (धुरी) पर घूमती है यह सिद्धान्त अब पूरी तरह स्थापित है। यह सिद्धान्त सबसे पहले जिसने स्थापित किया वे थे-महान् गणितज्ञ और ज्योतिषी ‘आर्यभट’। ‘पृथ्वी स्थिर है’ इस परम्परा वाली प्रथा को उन्होंने नकार दिया। उन्होंने उदाहरण दिया कि ‘गतिशील नौका में बैठा हुआ व्यक्ति नौका के स्थिर होने का अनुभव करता है और दूसरे पदार्थों को गतिशील समझता है।’ इसी प्रकार गतिशीला पृथ्वी में स्थित मानव पृथ्वी को स्थिर समझता है और सूर्यादि ग्रहों को गतिशील जानता है।

476 ई. सन् में आर्यभट ने जन्म लिया यह उनके द्वारा रचित ‘आर्यभटीयम्’ नामक ग्रन्थ में लिखित है। यह ग्रन्थ उन्होंने तेईसवें (23वें) वर्ष में रचा। ऐतिहासिक स्रोतों से ज्ञात होता है कि पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) के निकट आर्यभट की वेधशाला थी। इससे यह अनुमान किया जाता है कि उनकी कर्मभूमि पाटलिपुत्र ही थी।

आर्यभट का योगदान गणित-ज्योतिष से सम्बन्धित है, जहाँ संख्याओं का आंकलन (गणना) महत्त्व रखता है। आर्यभट फलित ज्योतिष शास्त्र में विश्वास नहीं करते थे। गणितीय पद्धति से किए गए आंकलन को ही आधार मानकर उन्होंने प्रतिपादित किया कि ग्रहण में राहु व केतु राक्षस कारण नहीं है। इसमें सूर्य, चन्द्र और पृथ्वी ये तीन ही कारण हैं। सूर्य के चारों ओर घूमती हुई पृथ्वी के व चन्द्रमा के परिक्रमा पथ से संयोग होने के कारण ग्रहण होता है। जब पृथ्वी की छाया पड़ने से चन्द्रमा का प्रकाश रुक जाता है, तब चन्द्रग्रहण होता है। वैसे ही पृथ्वी और सूर्य के बीच आए हुए चन्द्रमा की छाया पड़ने से सूर्यग्रहण दिखाई देता है।

समाज में नए विचारों को अपनाने में प्रायः सामान्य लोग कठिनाई का अनुभव करते हैं। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में उसी प्रकार आर्यभट का विरोध भी हुआ। उसके सिद्धान्तों की उपेक्षा की गई। वे स्वयं को विद्वान् मानने वाले लोगों में उपहास के पात्र बने। फिर भी उनकी दृष्टि काल को लाँघने वाली थी। आधनिक वैज्ञानिकों के द्वारा उनमें व उनके सिद्धान्तों में आदर प्रकट किया गया है। इसी कारण से हमारे प्रथम उपग्रह का नाम ‘आर्यभट’ रखा गया।

वास्तव में ये भारतीय गणित-परम्परा तथा विज्ञान-परम्परा के शिखर (श्रेष्ठ) पुरुष थे।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 आर्यभटः

आर्यभटः Summary

आर्यभटः पाठ-परिचयः

ज्ञान-विज्ञान की सुदीर्घ परम्परा भारतवर्ष की अमूल्य निधि है। इस परम्परा को प्रबुद्ध मनीषियों ने सम्पोषित किया। आर्यभट इन्हीं मनीषियों में अग्रगण्य थे। दशमलव पद्धति आदि के प्रारम्भिक प्रयोक्ता आर्यभट ने गणित को नयी दिशा दी। इन्हें एवं इनके सिद्धान्तों को तत्कालीन रूढ़िवादियों का विरोध झेलना पड़ा। वस्तुतः गणित को विज्ञान बनाने वाले तथा गणितीय गणना पद्धति के द्वारा आकाशीय पिण्डों (नक्षत्रों) की गति का प्रवर्तन करने वाले ये प्रथम आचार्य थे। आचार्य आर्यभट के इसी वैदुष्य का उद्घाटन प्रस्तुत पाठ में है। अधिक जानकारी के लिए योग्यता-विस्तार: द्रष्टव्य है।

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HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः

Haryana State Board HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः

अभ्यासः

प्रश्न 1.
अधोलिखिताना प्रश्नानाम् एकपदेन उत्तराणि लिखत-
(क) इयं धरा कैः स्वर्णवद् भाति?
उत्तरम्:
शस्यैः

(ख) भारतस्वर्णभूमिः कुत्र राजते?
उत्तरम्:
क्षिती

(ग) इयं केषां महाशक्तिभिः पूरिता?
उत्तरम्:
अणूनाम्

(घ) इयं भूः कस्मिन् युतानाम् अस्ति?
उत्तरम्:
प्रबन्धे

(ङ) अत्र किं सदैव सुपूर्णमस्ति?
उत्तरम्:
खाद्यान्नभाण्डम्।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः

प्रश्न 2.
समानार्थकपदानि पाठात् चित्वा लिखत-
(क) पृथिव्याम् ________। (क्षितौ / पर्वतेषु / त्रिलोक्याम्)
(ख) सुशोभते ________। (लिखते / भाति / पिबति)
(ग) बुद्धिमताम् ________। (पर्वणाम् / उत्सवानाम् / विपश्चिज्जनानाम्)
(घ) मयूराणाम् ________। (शिखीनाम् / शुकानाम् / पिकानाम्)
(ङ) अनेकेषाम् ________। (जनानाम् / वैज्ञानिकानाम् / बहूनाम्)
उत्तरम्:
(क) क्षिती
(ख) भाति
(ग) विपश्चिज्जानाम्
(घ) शिखीनाम्
(ङ) बहूनाम्।

प्रश्न 3.
श्लोकांशमेलनं कृत्वा लिखत-
(क) त्रिशूलाग्निनागैः पृथिव्यास्त्रघोरैः – नदीनां जलं यत्र पीयूषतुल्यम्
(ख) सदा पर्वणामुत्सवानां धरेयम् – जगद्वन्दनीया च भू:देवगेया
(ग) वने दिग्गजानां तथा केसरीणाम् – क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः
(घ) सुपूर्ण सदैवास्ति खाद्यान्नभाण्डम् – अणूनां महाशक्तिभिः पूरितेयम्
(ङ) इयं वीरभोग्या तथा कर्मसेव्या – तटीनामियं वर्तते भूधराणाम्
उत्तरम्:
(क) त्रिशूलाग्निागैः पृथिव्यास्त्रधौरेः – अणूनां महाशक्तिभिः पूरितेयम्।
(ख) सदा पर्वणामुत्सवानां धरेयम् – क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः
(ग) वने दिग्गजानां तथा केसरीणाम् – तटीनामियं वर्तते भूधराणाम्
(घ) सुपूर्ण पीयूषतुल्यम् खाद्यान्नभाण्डम् – नदीनां जलं यत्र पीयूषतुल्यम्
(ङ) इयं वीरभोग्या तथा कर्मसेव्या – जगद्वन्दनीया च भूः देवगेया

प्रश्न 4.
चित्रं दृष्ट्वा (पाठात्) उपयुक्तपदानि गृहीत्वा वाक्यपूर्ति कुरुत-
HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः - 1
(क) अस्मिन् चित्रे एका _________ वहति।
(ख) नदी ___________ नि:सरति।
(ग) नद्याः जलं ________ भवति।
(घ) ________ शस्यसेचनं भवति।
(ङ) भारतः ________ भूमिः अस्ति।
उत्तरम्:
(क) नदी
(ख) पर्वतात्
(ग) पीयूषतुल्यं
(घ) नद्याः जलेन

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः

प्रश्न 5.
चित्राणि दृष्ट्वा (मञ्जूषातः) उपयुक्तपदानि गृहीत्वा वाक्यपूर्ति कुरुत-
HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः - 2
(क) अस्मिन् चित्रे एका __________ दृश्यन्ते।
(ख) एतेषाम् अस्त्राणां __________ युद्धे भवति।
(ग) भारतः एतादृशानां __________ प्रयोगेण विकतिसदेशः मन्यते।
(घ) अत्र परमाणुशक्तिप्रयोगः अपि __________।
(छ) आधुनिकैः अस्त्रैः __________ अस्मान् शत्रुभ्यः रक्षन्ति।
(च) __________ सहायतया बहूनि कार्याणि भवन्ति।
उत्तरम्:
(क) अस्त्राणि
(ख) प्रयोगः
(ग) अस्त्राणाम्
(घ) भवति
(छ) सैनिकाः
(च) उपग्रहाणाम्।

प्रश्न 6(अ).
चित्रं दृष्ट्वा संस्कृते पञ्चवाक्यानि लिखत।
HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः - 3
उत्तरम्:
(क) इदं दीपावली-महोत्सवस्य चित्रम् अस्ति।
(ख) चित्रे एक सुन्दर विशाल च भवनमस्ति।
(ग) भवनस्य आंगने जनाः सन्ति।
(घ) जनाः नार्यः च दीपान प्रज्वालयन्ति।
(ङ) इदं पर्व सम्पूर्ण भारते-अन्यत्र च मानयन्ति।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः

प्रश्न 6(आ).
चित्रं दृष्ट्वा संस्कृते पञ्चवाक्यानि लिखत।
HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः - 4
उत्तरम्:
(क) इदं रक्षाबंधन पर्व इत्यस्य चित्रं वर्तते।
(ख) रक्षाबंधन राष्ट्रियां पर्व अस्ति।
(ग) अस्मिन भगिनी भ्रातुः हस्ते रक्षासूत्रं बन्धति।
(घ) प्राता भगिन्याः सुरक्षायाः आश्वासनं ददाति।
(ङ) इदं पर्व भगिनीभ्रातो; महत् पर्व वर्तते।

प्रश्न 7.
अत्र चित्रं दृष्ट्वा संस्कृतभाषया पञ्चवाक्येषु प्रकृतेः वर्णनं कुरुत।
HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः - 5
उत्तरम्:
(क) अस्मिन् चित्रे एकं वनं दृश्यते।
(ख) वने महान्तो वृक्षाः विलसन्ति।
(ग) वृक्षाः फलच्छायाप्रदायकाः भवन्ति।
(घ) वृक्षः काष्ठानि प्राप्यन्ते।
(ङ) वनेन पर्यावरण संरक्ष्यते।

योग्यता-विस्तारः

प्राचीन काल में भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था, इसी भाव को ग्रहण कर कवि ने प्रस्तुत पाठ में भारतभूमि की प्रशंसा करते हुए कहा है कि आज भी यह भूमि विश्व में स्वर्णभूमि बनकर ही सुशोभित हो रही है।

कवि कहते हैं कि आज हम विकसित देशों की परम्परा में अगग्रण्य होकर मिसाइलों का निर्माण कर रहे हैं, परमाणु शक्ति का प्रयोग कर रहे हैं। इसी के साथ ही साथ हम ‘उत्सवप्रियाः खलु मानवाः नामक उक्ति को चरितार्थ भी कर रहे हैं कि ‘अनेकता में एकता है हिंद की विशेषता’ इसी आधार पर कवि के उद्गार हैं कि बहतु मतावलम्बियों के भारत में होने पर भी यहाँ ज्ञानियों, वैज्ञानिकों और विद्वानों की कोई कमी नहीं है। इस धरा ने सम्पूर्ण विश्व को शिल्पकार, इंजीनियर, चिकित्सक, प्रबंधक, अभिनेता, अभिनेत्री और कवि प्रदान किए हैं। इसकी प्राकृतिक सुषमा अद्भुत है। इस तरह इन पद्यों में कवि ने भारत के सर्वाधिक महत्त्व को उजागर करने का प्रयास किया है।

पाठ में पर्वो और उत्सवों की चर्चा की गई है ये समानार्थक होते हुए भी भिन्न हैं। पर्व एक निश्चित तिथि पर ही मनाए जाते हैं, जैसे – होली, दीपावली, स्वतन्त्रता दिवस, गणतंत्र दिवस इत्यादि। परन्तु उत्सव व्यक्ति विशेष के उद्गार एवं आहाद के द्योतक हैं। किसी के घर सतानोत्पत्ति उत्सव का रूप ग्रहण कर लेती है तो किसी को सेवाकार्य में प्रोन्नति प्राप्त कर लेना, यहाँ तक कि बिछुड़े हुए बंधु-बांधवों से अचानक मिलना भी किसी उत्सव से कम नहीं होता है।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः

मूलपाठः

सुपूर्ण सदैववास्ति खाद्यान्नभाण्डं नदीनां जलं यत्र पीयूषतुल्यम।
इयं स्वर्णवद् भाति शस्यैधरेयं क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः ॥1॥

त्रिशुलाग्निनागैः पृथिव्यस्वघोरैः अणूनां महाशक्तिभिः पूरितेयम्।
सदा राष्ट्ररक्षारतानां धरेयम् क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः ॥2॥

इय वीरभोग्या तथा कर्मसेव्या जगद्वन्दनीया च भूः देवगेया।
सदा पर्वणामुत्सवानां धरेयं क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः ॥3॥

इदं ज्ञानिना चैव वैज्ञानिकानां विपश्चिज्जनानामियं संस्कृतानाम्।
बहूनां मतानां जनानां धरेयं क्षितौ राजतै भारतस्वर्णभूमिः ॥4॥

इयं शिल्पिनां यन्त्रविद्याधराणां भिषक्शास्त्रिणां भूः प्रबन्धे युतानाम्।
नटानां नटीना कवीनां धरेयं क्षितौ राजतै भारतस्वर्णभूमिः ॥5॥

वने दिग्गजानां तथा केशरीणां तटीनामियं वर्तते भूधराणाम्।
शिखीनां शुकानां पिकानां धरेयं क्षितौ राजतै भारतस्वर्णभूमिः ॥6॥

अन्वयः
1. इयम् धरा खाद्यान्नभाण्डम् सुपूर्णम् अस्ति यत्र नदीनाम् जलम् पीयूषतुल्यम् (अस्ति), इयम् शस्यैः स्वर्णवत भाति, इयम् भारतस्वर्णभूमिः क्षितौ रजते।

2. इयम् घोरै-त्रिशूल-अग्नि-नागैः पृथिवी अस्त्रैः राष्ट्ररक्षारतानाम् अणूनाम् महाशक्तिभिः पूरिता (अस्ति), इयम् भारतस्वर्णभूमिः सदा क्षितौ राजतै।

3. इयम् वीरभोग्या कर्मसेव्या तथा जगत वन्दनीया देवगेयाः च भूः (अस्ति), पर्वणामुत्सवानाम् इयम् भारतस्वर्णभूमिः क्षिती राजते।

4. इयम् धरा संस्कृतानाम् विपश्चिज्जनानाम् ज्ञानिनाम् वैज्ञानिकानाम् च एव, इयम् बहूनाम मतानाम जनानाम् भारतस्वर्णभूमि क्षितौ राजते।

5. इयम् धरा नटानाम् नटीनाम् कवीनाम् शिल्पिनाम् यन्त्रविद्या-धराणाम् भिशक्शास्त्रिणाम् भूः प्रबन्धे युतानाम् इयम् भारतस्वर्णभूमिः क्षितौ राजते।

6. इयम् धरा वने दिग्गजानाम् केसरीणाम् तथा भूधराणाम् तटिनाम् शिखीनाम् शुकानाम् पिकानाम् इयम् भारतस्वर्णभूमिः क्षितौ राजते।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः

सन्धिविच्छेदः
खाद्यान्न = खाद्य + अन्न।
शस्यैधरेयम् = शस्यैः + धरा + इयम्।
त्रिशूलाग्नि = त्रिशूल + अग्नि।
पृथिव्यस्वघोरै = पृथिवी + अस्त्रघोरै।
पूरितेयम् = पूरिता + इयम्।
धरेयम् = धर + इयम्।
विपश्चिज्जनानामियम् = विपश्चित + जनानाम् + इयम्।
दिग्गजानाम् = दिक् + गजानाम्।

संयोग:
पर्वणामुत्सवानाम् = पर्वणाम् + उत्सवानाम्।
तटीनामियम् = तटीनाम् + इयम्।

पदार्थबोध:
भाण्डम् = भण्डार (प्रचुरता)।
पीयूषतुल्यम् = अमृत समान (सुधातुल्यम्)।
स्वर्णवन = सोने जैसा (काञ्चनमिव)।
भाति = सुशोभित हो रही है (शोभते)।
क्षिती – पृथ्वी पर (धरायाम्)।
धरेयम् – यह धरती (इयं वसुधा)।
राजते = सुशोभित है (सुशोभते)।
त्रिशूलाग्निनागैः = त्रिशूल-अग्नि-नाग-पृथ्वी-आकाश पाँच मिसाइलों के नाम हैं (एतानि महास्त्राणि सन्ति)।
पर्वणामुत्सवानाम् = पूर्वो और उत्सवों की (शुभ-अवसराणाम्)।
विपश्चिज्जनानाम् = विद्वानों की (विदुषाम्)।
यन्त्रविद्याधराणाम् = यन्त्र विद्या जानने वालों की (यन्त्रविद्या जानताानाम् जानानम)।
प्रबंधे युतानाम् = प्रबंधकों की (प्रबन्धकानाम्)।
भूधराणाम् = पहाड़ों की (पर्वतानाम्)।
नटीनाम् = नदियों की (नदीनाम्)।
केसरीणाम् = शेरों की (सिंहानाम्)।
दिग्गजानाम् = हाथियों की (हस्तीनाम्)।
शिखीनाम् = मोरों की (मयूराणाम्।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः

सरलार्थ-
1. यह धरती खाद्यान्न भण्डारों से परिपूर्ण है, जहाँ की नदियों का पानी अमृत के समान है, सोने के समान चमक वाली यह भारतभूमि धरती पर राज करती है, सुशोभित है।

2. यह स्वर्णभूमि भारत भूमि देश रक्षा में लगे त्रिशूल, अग्नि, नाग, पृथ्वी और आकाश मिसाइलों व परमाणु शक्तियों से संपन्न है, ऐसी यह धरती संपूर्ण पृथ्वी पर राज करती है।

3. यह वीर भोग्या व कर्मसेव्या है, जगत् वन्दनीय है, इसका (यशोगान) देवता भी करते हैं। ऐसी भारत स्वर्ण भूमि अनेक पर्वो उत्सवों की भूमि सदा धरती पर राज करती है।

4. यह धरती संस्कृत विद्वानों, ज्ञानियों, वैज्ञानिकों की भूमि है। अनेक धर्मावलम्बी लोगों की यह भारत स्वर्णभूमि संपूर्ण विश्व पर राज करती है।

5. यह धरती कवियों अभिनेता-अभिनेत्रियों, डॉक्टर-इंजीनियरों, शिल्पियों, मशीन के जानकारों, भूमि प्रबंधकों की भूमि है। यह भारत स्वर्णभूमि संपूर्ण धरती पर सदा विराजती है।

6. यह वसुंधरा जंगल में हाथियों, सिंहों, नदियों, पर्वतों की भूमि है। मोर, तोते, कोयल आदि से शोभित यह भारतभूमि सदा पृथ्वी पर शोभित है।

भावार्थ-
पाठ का केंद्रीय भाव भारत की चहुंमुखी प्रगति का वर्णन करता है।

क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः Summary

क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः पाठ-परिचयः

संस्कृत के मूर्धन्य विज्ञान कवि कृष्णचन्द्र त्रिपाठी की रचना से संकलित श्लोकों में देश के गौरव का गुणगान, यशोगान किया गया। अनाज, कला, प्रौद्योगिकी, वन संपदा, सामरिक शक्ति, परमाणु-शक्ति सम्पन्नता का वर्णन किया गया है। छात्र इन श्लोकों को गाएँ और देश की ताकत का अनुभव करें, इसलिए यह संकलन किया गया है।

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