Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 12 सुदामा चरित Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 12 सुदामा चरित
HBSE 8th Class Hindi सुदामा चरित Textbook Questions and Answers
कविता से
प्रश्न 1.
सुदामा की वीनवशा वेखकर श्रीकृष्ण की क्या मनोदशा हुई? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
जब श्रीकृष्ण ने अपने बालसखा सुदामा को दीनदशा में देखा तो वे व्याकुल हो गए। सुदामा के पैरों में काँटों के जाल लगे हुए थे। कृष्ण अपने मित्र की दुर्दशा देखकर रोने लगे। उनकी आँखों से इतने आँसू निकले कि सुदामा के पैर धुल गए।
प्रश्न 2.
“पानी परात को हाथ छुऔ नहि, नैनन के जल सों पग योए।” पंक्ति में वर्णित भाव का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
अतिथि के चरण धोने के लिए पानी मँगाया जाता है। सुदामा के पैर भी धूल में सने थे तथा उनमें काँटे लगे थे। उन्हें धोने के लिए परात में पानी मैंगवाया गया। कृष्णा अपने मित्र की धुरी दशा को देखकर इतने व्याकुल हुए कि उनकी आँखों से आंसू निकल आए। वे इतने भावुक हो गए कि उनकी अश्रुधारा ने ही सुदामा के चरणों को धो दिया। उन्होंने परात के पानी को हुआ तक नहीं। इसकी आवश्यकता ही नहीं रह गई थी।
प्रश्न 3.
“चोरी की बान में हौ जू प्रवीने।”
(क) उपर्युक्त पंक्ति कौन, किससे कह रहा है?
(ख) इस कथम की पृष्ठभूमि स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस उपालंभ (शिकायत) के पीछे कौन-सी पौराणिक कथा है?
उत्तर:
(क) उपर्युक्त पंक्ति कृष्ण सुदामा से कह रहे हैं।
(ख) सुदामा की पत्नी ने कृष्ण को मेंट के लिए थोड़े से चावल भिजवाए थे। सुदामा संकोचवश उन्हें कृष्ण को दे नहीं पा रहे थे। कृष्ण इसे चोरी की प्रवृत्ति बता रहे थे।
(ग) इस उपालंभ के पीछे यह पौराणिक कथा है कृष्ण और सुदामा गुरु संदीपन के आश्रम में पढ़ते थे। जब वे लकड़ी एकत्रित करने के लिए वन में जाते थे तब गुरुमाता उन्हें खाने के लिए चने देती थीं। सुदामा चालाकी से कृष्ण के हिस्से के चने भी स्वयं खा जाते थे। कृष्ण उसी चोरी की प्रवृत्ति की ओर संकेत कर रहे हैं।
प्रश्न 4.
द्वारका से खाली हाथ लौटते समय सुदामा मार्ग में क्या-क्या सोचते जा रहे थे? वह कृष्ण के व्यवहार से क्यों खीझ रहे बे? सुदामा के मन की बुविधा को अपने शब्दों में प्रकट कीजिए।
उत्तर:
द्वारका से खाली हाथ लौटते समय सुदामा मार्ग में यह सोचते जा रहे थे
1. क्या कृष्ण का प्रसन्ता प्रकट करना, उठकर मिलना, आदर देना, यह सब दिखावटी था ?
2. अरे, यह कृष्ण मुझे क्या देता, वह तो कभी स्वयं घर-घर दही माँगता फिरता था।
3. मैं तो आ ही नहीं रहा था, यह तो उसने (पत्नी ने) जबरदस्ती भेजा। अब धन एकत्र कर ले। सुदामा कृष्ण के व्यवहार से इसलिए खीझ रहे थे क्योंकि उन्होंने विदा करते समय कुछ भी नहीं दिया था। सुदामा को लग रहा था कि उनका आना व्यर्थ ही गया। वे माँगे हुए चावल भी हाथ से निकल गए अर्थात् जो अपनी जेब में था, वह भी गवा आए।
प्रश्न 5.
अपने गाँव लौटकर जब सुदामा अपनी झोंपड़ी नहीं खोज पाए तो उनके मन में क्या-क्या विचार आए? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब सुदामा द्वारका से अपने गाँव लौटे तो वहाँ वे अपनी झोंपड़ी नहीं खोज पाए, क्योंकि उसके स्थान पर कृष्ण के कारीगरों ने भव्य भवन बना दिया था। सुदामा के मन में यह ख्याल आया कि कहीं भूलकर वे पुनः द्वारका ही तो नहीं आ गए हैं।
प्रश्न 6.
निर्धनता के बाद मिलनेवाली संपन्नता का चित्रण कविता की अंतिम पंक्तियों में वर्णित है। उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
कविता की अंतिम चार पंक्तियों में मृदामा की निर्धनता के बाद मिली संपन्नता का चित्रण हुआ है। पहले तो सुदामा के पास घास-फूस की टूटी-सी झोपड़ी थी और अब कृष्ण की कृपा से स्वर्ण-महल रहने को मिल गए।
सुदामा पहले नंगे पैर रहते थे. अब द्वार पर हाथी खाई रहते हैं।
पहले कठोर भूमि पर सोना पड़ता था, अब बिस्तर प्राप्त है।
निर्धनता के दिनों में खाने के लिए समां चावल तक नहीं मिलते थे अब खाने को मेवे मिल हैं।
कविता से आगे
1. द्रुपद और द्रोणाचार्य भी सहपाठी थे इनकी मित्रता और शत्रुता की कथा महाभारत से खोजकर सुदामा के कथानक से तुलना कीजिए।
उत्तर:
दुपद और द्रोणाचार्य भी सहपाठी व द्रुपद राजा पर द्रोणाचार्य गरीब ही बने रहे।
2. उच्च पद पर पहुँचकर या अधिक समृल होकर व्यक्ति अपने निर्धन माता-पिता, भाई-बशुओं से नज़र ५. जे लग जाता है, ऐसे लोगों के लिए ‘सुदामा चारत’ कैसी चुनौती खड़ी करता है ? लिखिए।
उत्तर:
ऐसे लोगों के लिए ‘सुदामा चरित’ बहुत बड़ी चुनौती खड़ा करता है। हमें धन-दौलत पाकर अपने निर्धन माता-पिता या भाई-बंधुओं को भुला नहीं देना चाहिए। हमें उनका सम्मान करना चाहिए तथा आर्थिक मदद करनी चाहिए।
अनुमान और कल्पना
1. अनुमान कीजिए यदि आपका कोई अभिन्न मित्र आपसे बहुत वर्षों बाद मिलने आए तो आप को कैसा अनुभव होगा?
उत्तर:
यदि हमारा कोई अभिन्न मित्र हमसे मिलने बहुत वर्षों बाद आए तो हमें बहुत प्रसन्नता होगी। हम उससे बड़े उत्साहपूर्वक मिलेंगे, उसका आदर-सत्कार करेंगे। उसे अपने साथ ठहरने का निमंत्रण देंगे। विदा के समय उसे उपहार भी देंगे। शीघ्र ही पुन: मिलने को वचन भी देंगे।
2. कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति।
विपति कसौटी जे कसे तेई साँचे मीत।।
इस दोहे में रहीम ने सच्चे मित्र की पहचान बताई है। इस दोहे से ‘सुदामा चरित’ की समानता किस प्रकार दिखती है, लिखिए।
उत्तर:
इस दोहे में बताया गया है कि धन-दौलत के लिए तो अनेक लोग मित्र बन जाते हैं पर जो विपत्ति की कसौटी पर खरा उतरता है, वही मच्चा मित्र होता है। ‘सुदामा चरित’ में कृष्ण सुदामा की विपत्ति के समय मदद करके मित्रता की कसौटी पर खरे उतरते हैं।
भाषा की बात
“पानी परात को हाथ छुयो नहि, नैनन के जल सो पग धोए”
उत्तर:
ऊपर लिखी गई पंक्ति को ध्यान से पदिए। इसमें बात को बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर चित्रित किया गया है। जब किसी बात को इतना बड़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है तो वहाँ पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है। आप भी कविता में से एक अतिशयोक्ति अलंकार का उदाहरण छौटए।
कविता से अतिशयोक्ति अलंकार का एक उदाहरण :
कै वह टूटी-सी छानी हुती, कहँ कंचन के अब धाम सुहावत
एक अन्य उदाहरण:
हनुमान की पूँछ में लगन न पाई आग। लंका सिगरी जल गई, गए निसाचर भाग।।
कुछ करने को
1. इस कविता को एकांकी में बदलिए और उसका अभिनय कीजिए।
2. कविता में के उचित सस्वर वाचन का अभ्यास कीजिए।
3. ‘मित्रता’ संबंधी दोहों का संकलन कीजिए।
उत्तर:
ये तीनों काम विद्यार्थी स्वयं करें।
HBSE 8th Class Hindi सुदामा चरित Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
‘पानी परात को हाथ छुयो नहि, नैनन के जल सों पग धोए’ पंक्ति में कृष्ण की किन चारित्रिक विशेषताओं को उजागर किया गया है?
उत्तर:
इस पंक्ति में कृष्ण की करुणा भावना, परदुखकारता तथा भावुक दशा को उजागर किया गया है। कृष्ण अपने बाल सखा की दुर्दशा को सहन नहीं कर पाए थे। वे उनकी दशा के लिए स्वयं को भी दोषी मान रहे थे।
प्रश्न 2.
अपने गाँव लौटने पर सुदामा के भ्रमित होने का कारण क्या था?
उत्तर:
जब सुदामा अपने गाँव से गए थे तब वहाँ उनकी टूटी-फूटी झोपड़ी खड़ी थी, पर जब वे द्वारका से लौटे तो उन्हें वह झोपड़ी कहीं भी दिखाई नहीं दी। उसके स्थान पर विशाल महल खड़ा था। पूरे गाँव की दशा बदली हुई थी। इस स्थिति को देखकर सुदामा को भ्रम हुआ कि वह कहीं मार्ग भूलकर पुन: द्वारका ही तो नहीं आ गया है क्योंकि वहाँ तो द्वारका जैसा ही दृश्य उपस्थित
प्रश्न 3.
सुदामा ने कभी श्रीकृष्ण को दया का सागर कहा है तो कभी उनके प्रति खीझ का भाव प्रकट किया है। इन दो भिन्न प्रतिक्रियाओं के पीछे क्या कारण था?
उत्तर:
जब कृष्ण ने सुदामा का भाव-विहल होकर स्वागत किया था तब सुदामा को लगा था कि श्रीकृष्ण तो दया के सागर लेकिन जब कृष्ण ने सुदामा को खाली हाथ ही विदा कर दिया तब उनके मन में कृष्ण के प्रति खीझ का भाव उत्पन्न हो गया।
प्रश्न 4.
सुदामा श्रीकृष्ण को पोटली क्यों नहीं दे रहे था?
उत्तर:
उस पोटली में केवल एक मुट्ठी चावल बँधे थे। अपने धनी मित्र कृष्ण को यह तुच्छ भेंट देने में सुदामा को बहुत संकोच हो रहा था। यही कारण था कि उन्होंने पोटली को बगल में दबा रखा था. पर कृष्ण की नज़र उस पर पड़ ही गई।
सुदामा चरित काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या
1. सीस पगा न झगा तन में, प्रभु! जाने को आहि बसै केहि ग्रामा।
योती फटी-सी लटी दुपटी, अरु पाँय उपानह को नहिं सामा।।
द्वार खड़ो द्विज दुर्बल एक, रह्यो चकिसो वसुधा अभिरामा।
पूछत दीनदयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा।।
शब्दार्थ :
सीस – सिर (Head), पगा – पगड़ी (Turban), झगा – कुरता (Kurta), तन – शरीर (Body), ग्रामा = गाँव (Willage), पाय = पैर (Feet), उपानह – जूती (Shoes), द्वार = दरवाजा (Door), द्विज – ब्राह्मण (Brahmin), दुर्बल = कमजोर (Weak), चकिसी – हैरान-सा (Surprised), वसुधा = धरती (Earth), अभिरामा – सुंदर (Beautiful).
प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश नरोत्तमदास द्वारा रचित काव्य ‘सुदामा चरित’ से अवतरित है। श्रीकृष्ण के बचपन के मित्र सुदामा अपनी पत्नी के आग्रह पर कुछ आर्थिक सहायता पाने की आशा में उनकी नगरी द्वारका पैदल जा पहुंचे। वे उनके महल के सम्मुख खड़े थे, तब द्वारपाल ने महल के अंदर जाकर श्रीकृष्ण को बताया
व्याख्या:
हे प्रभु! बाहर महल के द्वार पर एक गरीब-सा व्यक्ति खड़ा हुआ है। उसके सिर पर न तो पगड़ी है और न शरीर पर कोई कुर्ता है। पता नहीं वह किस गाँव से चलकर यहाँ तक आया है। उसने फटी-सी छोटी-सी धोती पहन रखी है, उसके पैरों में जूतियां तक नहीं हैं। दरवाजे पर खड़ा वह गरीब कमजोर-सा ब्राह्मण हैरान होकर पृथ्वी और महल के सौंदर्य को निहार रहा है। वह चकित सी अवस्था में है। वह दीनदयाल अर्थात् आपका निवास स्थान पूछ रहा है और अपना नाम सुदामा बता रहा है।
इस प्रकार द्वारपाल ने सुदामा की दीन दशा का यथार्थं अंकन कृष्ण के सम्मुख कर दिया।
विशेष :
- सुदामा की निर्धनावस्था का ज्ञान होता है।
- चित्रात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।
- ‘द्विज दुर्बल’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
- ब्रजभाषा का प्रयोग है।
- सवैया छंद अपनाया गया है।
2. ऐसे बेहाल बिवाइन सों, पग कंटक जाल लगे पुनि जोए।
हाय! महादुख पायो सखा, तुम आए इतै न कितै दिन खोए।
देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिकै करुनानिधि रोए।
पानी परात को हाथ छुयो नहि, नैनन के जल सा पग धोए।
शब्दार्थ :
बेहाल – बुरहाल (Bad condition), पग – पैर (Feet), कंटक – काँटे (Thorns), सखा – मित्र (Friend), दीन बसा – बुरी दशा (Bad condition), नैनन – आँखों (Eyes).
प्रसंग:
प्रस्तुत सवैया नरोत्तमदास द्वारा रचित ‘सुदामा चरित’ से अवतरित है। जब कृष्ण को पता चला कि द्वार पर उनके बचपन के सखा सुदामा खड़े हैं तब वे दौड़े गए और उन्हें आदर सहित अंदर लिवा लाए। कृष्ण अपने मित्र सुदामा की दुर्दशा देखकर बहुत दुखी हुए।
व्याख्या:
श्रीकृष्ण ने सुदामा के पैरों की ओर नजर डाली तो देखा कि उनके पैरों में काँटों के जाल लगे हुए हैं। सुदामा नंगे पैर थे। उनके पैरों में बिवाइयाँ फटी हुई थीं। उनका हाल बेहाल था। कृष्ण ने अत्यंत व्याकुल होकर कहा-हे मित्र! तुमने इतना महादुख पाया। तुम इतने दिन तक यहाँ क्यों नहीं चले आए। क्यों इतना कष्ट भोगते रहे? सुदामा की बुरी हालत देखकर करुणा के निधान श्रीकृष्ण रोने लगे। उन्होंने सुदामा के पैरों को धोने के लिए परात में पानी मँगाया, पर उस पानी को उन्होंने छुआ तक नहीं। अपने नेत्रों से बहने वाले आँसुओं के जल से ही उन्होंने मित्र सुदामा के पैर धो दिए, अर्थात् कृष्ण की आँखों से निकली अश्रुधारा से मित्र सुदामा के पैर धुल गए।
विशेष :
- कृष्ण के करुणानिधान रूप का वर्णन हुआ है।
- अनेक स्थलों पर अनुप्रास अलंकार की छटा है। जैसे बेहाल विवाइन, दीन दसा, करुना करिकै करुनानिधि, पानी परात आदि में।
- अंतिम पंक्ति में अतिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग है क्योंकि बात को बढ़ा-चढ़ा कर कहा गया है।
- ब्रज भाषा का प्रयोग है।
- सवैया छंद है।
- मार्मिकता का समावेश है।
3. कछु भाभी हमको दियो, सो तुम काहे न देता
चाँपि पोटरी काँख में, रहे कहो केहि हेतु॥
आगे चना गुरुमातु दए ते, लए तुम चाबि हमें नहिं दीने।
स्याम कयो मुसकाय सुवामा सों, “चोरी की बान में हौ जू प्रवीने॥
पोटरि काँख में चाँपि रहे तुम, खोलत नाहिं सुधा रस भीने।
पाछिलि बानि अजौ न तजो तुम, तैसई भाभी के तंदुल कीन्हें।”
शब्दार्थ :
कछु = कुछ (Something), काहे – क्यों (Why), चापि – दबाकर (To hide), कांख = बगल (Armpit), बान – भादत (Tendency), प्रवीने – प्रवीण, कुशल (Expert). सुधारस – अमृतरस (Nectar), पाछिलि – पिछली (PreviOus), बानि – आदत (Habit), तंदुल – चावल (Rice).
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि नरोत्तमदास द्वारा रचित काव्य ‘सुदामा चरित’ से अवतरित हैं। कृष्ण के मित्र सुदामा द्वारका जा पहुंचते हैं। वहाँ कृष्ण उनका काफी सम्मान करते हैं। वे मित्र को अपने बराबर बिठाते हैं। इसके पश्चात् कृष्ण हँसी-ठिठोली के मूड में आ जाते हैं।
व्याख्या:
कृष्ण सुदामा से पूछते हैं-हमारी भाभी ने हमारे लिए जो उपहार भिजवाया है, उसे तुम मुझे देते क्यों नहीं हो? उपहार की पोटली को तुम बगल में दबाए हुए हो। भला तुम ऐसा क्यों कर रहे हो?
कृष्ण अपने मित्र सुदामा को संदीपन गुरु के आश्रम की बात का स्मरण कराते हुए कहते हैं कि जब हम-तुम साथ-साथ पढ़ते थे, तब भी गुरुमाता ने हम दोनों के लिए चने चबाने को दिए थे। तुम सारे चने स्वयं चबा गए थे और मुझे मेरे हिस्से के चने भी नहीं दिए थे। कृष्ण ने मुस्कराकर कहा कि लगता है कि चोरी की तुम्हारी पुरानी आदत अभी तक नहीं गई है, तुम इस कला में प्रवीण हो। तुम अभी-भी चावलों की पोटली को बगल में अपने लिए ही दबा रहे हो। अमृत से सने इन चावलों को खोलते क्यों नहीं हो? तुम्हारी पिछली आदत अभी तक गई नहीं है। तुम भाभी के भेजे चावलों के साथ भी वैसा ही व्यवहार कर रहे हो।
विशेष :
- इन पंक्तियों में कृष्ण की हास्य-वृत्ति और सुदामा का संकोच अभिव्यक्त हो रहा है।
- ब्रजभाषा का प्रयोग है।
4. वह पुलकनि, वह उठि मिलनि, वह आवर की बात।
वह पठवनि गोपाल की, कछू न जानी जात।।
कहा भयो जो अब भयो हरि को राज-समाज।
घर-घर कर ओड़त फिरे, तनक वही के काज।
हाँ आवत नहीं हुतौ, वाही पठयो डेलि॥
अब कहिहाँ समुझाय कै, बहु धन घरौ सकेलि।।
शब्दार्थ :
पुलकनि = प्रसन्नता (Happiness), आदर – सम्मान (Respect), पठवनि – विदाई (Departure), कर ओड़त फिरे – हाथ फैलाता फिरता था (To beg), तनक – थोड़ा (Small), काज – लिए (For), बहुधन घरो सकेलि = इकट्ठा करो, संभालकर रखो।
प्रसंग:
प्रस्तुत काव्य-पक्तियाँ नरोत्तमदास द्वारा रचित काव्य ‘सुदामा-चरित’ से अवतरित हैं। कृष्ण ने सुदामा का आदर-सत्कार तो बहुत किया, पर विदाई के समय खाली हाथ ही लौटा दिया। सुदामा कृष्ण के इस व्यवहार से खिन्न थे। वे रास्ते में सोचते जा रहे थे:
व्याख्या:
जब मैं कृष्ण के यहाँ पहुंचा था तब तो उन्होंने बड़ी प्रसन्नता दिखाई थी, वे उठकर गले मिले थे और मुझे बहुत आदर दिया था। पर विदाई के अवसर पर इस तरह खाली हाथ भिजवाने की बात कुछ समझ नहीं आती। वास्तव में कृष्ण ने सुदामा को उनके दो मुद्री चावल खाते ही दो लोकों की संपदा दे डाली थी जिससे सुदामा बिल्कुल अनजान थे।
सुदामा कृष्ण के बचपन का स्मरण करके सोचते हैं कि यह वही कृष्ण है जो थोड़े से दही माँगने के लिए घर-घर हाथ फैलाता फिरता था, मला वह मुझे क्या देगा? मैं तो पहले ही इस माखनचोर को जानता था पर उसकी पत्नी ने ही जिद करके भेजा था। अब जाकर उससे कहूँगा बहुत धन मिल गया है अब इसे संभालकर रखो। वास्तव में सुदामा बहुत खिन्न थे क्योंकि वे यहाँ आना नहीं चाहते थे। अब हालत यह थी कि जो चावल वे माँग कर लाए थे वह भी कृष्ण ने ले लिए थे। बदले में खाली हाथ वापसी हुई।
विशेष:
- सुदामा की खीझ प्रकट हुई है। वे कृष्ण के प्रेम के वास्तविक रूप को समझ नहीं पाए।
- ‘घर-घर’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
- ‘धन धरौ’ में अनुप्रास अलंकार है।
- अजभाषा का प्रयोग है।
5. वैसोई राज समाज बने, गज-बाजि घने मन संभ्रम छायो।
कैधों पर्यो कहूँ मारग भूलि, कि फेरि के मैं अब द्वारका आयो॥
भौन बिलोकिबे को मन लोचत, सोचत ही सब गाँव मझायो।
पूँछत पाँडे फिरे सब सों पर, झोपरी को कहूँ खोज न पायो।
शब्दार्थ :
वैसोई – वैसा ही (Like that), गज = हाथी (Elephant), बाजि – घोड़ा (Horse), संभ्रम – शंका, घबराहट (Doubt), कैयो – या तो, अथवा (Or), मारग – मार्ग, रास्ता (Path), भौन = भवन (Palace), बिलोकिबे को – देखने को (To see), लोचत – लालायित (Very eager), गाँव मझायो – गाँव भर छान मारा (Wandered in Village), झोंपरी = झोपड़ी (Hut)
प्रसंग:
प्रस्तुत सवैया कवि नरोत्तमदास द्वारा रचित काव्य ‘सुदामा चरित’ से अवतरित है। अपने मित्र कृष्ण से भेंट करके सुदामा खाली हाथ अपने गाँव-घर लौट आते हैं। कृष्ण ने प्रत्यक्षतः तो सुदामा को कुछ नहीं दिया पर वास्तव में उन्होंने सुदामा का अपार संपदा दे दी थी जिसे देखकर सुदामा चकरा गए।
व्याख्या:
सुदामा ने अपने गांव में जाकर देखा कि वहाँ द्वारका जैसा ही ठाठ-बाट है, वैसा ही राज-समाज है। वहाँ उसी प्रकार के हाथी-घोड़े थे, जैसे द्वारका में थे। इससे उनके मन में भ्रम छा गया। सुदामा को लग रहा था कि वे भूलकर फिर से द्वारका ही लौट आए हैं। वे शायद रास्ता भूल गए हैं। वहाँ भी द्वारका जैसे भव्य महल बने हुए थे। सुदामा के मन में उन भवनों को देखने का तालच आ रहा था। यही सोचकर वह गाँव के बीच में चला गया। वहाँ जाकर सुदामा पांडे ने सभी से पूछा पर वे अपनी झोपड़ी को खोज नहीं पाए।
वास्तव में उनकी झोंपड़ी के स्थान पर श्रीकृष्ण के प्रताप से भव्य महल दिखाई दे रहे थे। उनका पूरा गाँव ही अलौकिक आभा से चकाचौंध हो रहा था, जिनके कारण सुदामा भ्रमित हो रहे थे। श्रीकृष्ण ने उनकी अप्रत्यक्ष रूप से सहायता की थी।
विशेष:
- सच्चा मित्र गुप्त रूप से सहायता करता है और कृष्ण ने भी ऐसा ही किया था।
- ब्रजभाषा का प्रयोग है।
- सवैया छंद अपनाया गया है।
6. के वह टूटी-सी छानी हती, कह कंचन के अब धाम सुहावत।
के पग में पनही न हती, कहँ लै गजराजहु ठाढ़े महावत।
भूमि कठोर पै रात कटै, कह कोमल सेज पर नींद न आवत।
कै जुरतों नहिं कोदो-सवाँ, कहँ प्रभु के परताप ते दाख न भावत॥
शब्दार्थ :
छानी – टूटा-फूटा छप्पर (Hut). कंचन – सोना (Gold), धाम – बड़ा घर (Big house), पग – पैर (Feet), पनही – जूती (Shoes), गजराजहु = हाथी (Elephant), कोदो-सवाँ – सस्ते चावल (Rice), परताप = प्रताप (Kind), दाख = मुनक्का, किशमिश (Dry Fruit).
प्रसंग:
प्रस्तुत सवैया नरोत्तमदास द्वारा रचित काव्य ‘सुदामा चरित’ से लिया गया है। कृष्ण की कृपा से सुदामा की गरीबी मिट गई। अब उन्हें खाने-पीने, रहने की सुविधाएं भरपूर मात्रा में प्राप्त होने लगी। उनकी परिवर्तित दशा का वर्णन इस सवैये में हुआ है।
व्याख्या:
कवि बताता है कि कहाँ तो सुदामा के पास टूटी-फूटी-सी फूस की झोपड़ी थी और कहाँ अब स्वर्ण-महल सुशोभित हो रहे हैं। पहले तो सुदामा के पैरों में जूतियां तक नहीं होती थीं और कहाँ अब उनके महल के द्वार पर महावत के साथ हाथी खड़े रहते हैं अर्थात् सवारी के साधन उपलब्ध हैं, पैदल चलना ही नहीं पड़ता।
पहले कठोर धरती पर रात काटनी पड़ती थी, कहाँ अब सुकोमल सेज पर नींद नहीं आती है कहाँ पहले तो यह हालत थी कि उन्हें खाने के लिए घटियां किस्म के चावल भी उपलब्ध नहीं थे और कहाँ अब प्रभु के प्रताप से उन्हें खाने को दाख (किशमिश-मुनक्का) उपलब्ध हैं। फिर भी वे अच्छे नहीं लगते।
विशेष:
- कृष्ण की कृपा से सुदामा की दशा में चमत्कारी परिवर्तन लक्षित होता है।
- ब्रजभाषा का प्रयोग है।
सुदामा चरित Summary in Hindi
सुदामा चरित पाठ का सार
‘सुदामा चरित’ नरोत्तमदास द्वारा रचित अत्यंत प्रसिद्ध काव्य है। श्रीकृष्ण और सुदामा संदीपन गुरु के आश्रम में सहपाठी रहे थे। कृष्ण तो आगे चलकर द्वारकाधीश बन गए, पर सुदामा की आर्थिक दशा अत्यंत खराब रही। यहाँ तक कि उन्हें खाने-पीने की चीतों तक का अभाव झेलना पड़ रहा था। इस विपन्नावस्था से उबरने के लिए सुदामा की पत्नी ने कहा कि जाकर अपने मित्र कृष्ण से मदद क्यों नहीं मांगते? सुदामा को भारी संकोच हो रहा था, पर पत्नी के बहुत आग्रह पर वे तैयार हो गए। पत्नी ने भेंट स्वरूप कृष्ण को देने के लिए कुछ चावल पोटली में बाँधकर दे दिए।
सुदामा पैदल चलते-चलते द्वारका तक जा पहुँचे। उनके नंगे पैरों में काँटे लगे थे। पहनने को पूरे वस्त्र तक न थे। जब द्वार पर उन्होंने कृष्ण (दीनदयाल) का धाम पूछा तो द्वारपाल को बहुत आश्चर्य हुआ। द्वारपाल ने उसे गरीब, ब्राह्मण की दीन दशा का वर्णन कृष्ण के सम्मुख कर कहा और बताया कि वह अपना नाम सुदामा बता रहा है। यह सुनते ही कृष्ण सारा कामकाज छोड़कर सुदामा को लेने जा पहुंचे। वे सुदामा की दुर्दशा देखकर अत्यंत व्याकुल हुए। उन्होंने अपने अश्रुजल से उनके पैरों को धोकर स्वागत-सम्मान किया।
फिर वे हंसी-ठिठोली की मुद्रा में आ गए और पूछने लगे कि भाभी ने जो भेंट मेरे लिए भिजवाई है, उसे तुम देते क्यों नहीं हो। उसे अभी तक तुमने बगल में ही दबा रखा है। लगता है अभी तक तुम्हारी बचपन की चोरी की आदत गई नहीं है। तब भी तुम गुरुमाता द्वारा दिए गए मेरे हिस्से के चने भी चबा जाते थे।
सुदामा काफी समय तक द्वारका में ठहरने के बाद अपने घर लौटे तो कृष्ण ने प्रत्यक्ष रूप से उन्हें कुछ नहीं दिया। इस दशा से सुदामा खीझ रहे थे। उन्हें लगता था कि यह कृष्ण तो कभी थोड़ा-सा दही पाने के लिए हाथ फैलाया करता था, भला यह मुझे क्या देगा?
गाँव-घर लौटकर सुदामा आश्चर्यचकित हो गए। कृष्ण ने उनके पूरे गाँव तथा उनके घर की दशा परिवर्तित कर दी थी। अब तो वहाँ भी द्वारका जैसा वैभव झलकता था। यह सब काम कृष्ण ने गुप्त रीति से किया था। पहले तो सुदामा को कुछ भ्रम हुआ पर शीघ्र ही वे नई जिंदगी में रम गए। अब उन्हें राजसी ठाठ भोगने को मिल रहे थे, गरीबी का कहीं नामोनिशान तक न था।