HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 5 चिट्ठियों की अनूठी दुनिया

Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 5 चिट्ठियों की अनूठी दुनिया Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 5 चिट्ठियों की अनूठी दुनिया

HBSE 8th Class Hindi चिट्ठियों की अनूठी दुनिया Textbook Questions and Answers

पाठ से

प्रश्न 1.
पत्र जैसा संतोष फोन या एस एम एस का संदेश क्यों नहीं दे सकता?
उत्तर:
पत्र में हम अपने हृदय के भावों को स्पष्ट रूप में अभिव्यक्त कर सकते हैं जबकि फोन या एस एम एस में बात संक्षेप में ही कही जाती है। पत्र लिखकर ही पूरी संतुष्टि मिलती है। पत्र में आत्मीयता की भावना समाई रहती है जबकि फोन या एस एम एस केवल कामकाजी बात करते हैं। पत्रों को सहेजकर रखा जा सकता है जबकि फोन या एस एम एस को नहीं।

प्रश्न 2.
पत्र को खत, कागद, उत्तरम, जाबू, लेख, काडिद, पाती, चिट्ठी इत्यादि कहा जाता है। इन शब्दों से संबंधित भाषाओं के नाम बताइए।
उत्तर:

शब्द संबंधित भाषा
खत उर्दू
कागद कन्नड़
उत्तरम, जाबू, लेख तेलुगु
काडिद तमिल
पाती, चिट्ठी हिंदो पत्र संस्कृत

प्रश्न 3.
पत्र-लेखन की कला के विकास के लिए क्या-क्या प्रयास हुए? लिखिए।
उत्तर:
पत्र-लेखन की कला के विकास के लिए निम्नलिखित प्रयास हुए:

  • पत्र-संस्कृति विकसित करने के लिए स्कूली पाठ्यक्रमों
  • में पत्र-लेखन का विषय शामिल किया गया।
  • विश्व डाक संघ की ओर से 16 वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों के लिए पत्र-लेखन प्रतियोगिताओं का सिलसिला 1972 ई. से शुरू किया गया।

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प्रश्न 4.
पत्र धरोहर हो सकते हैं, लेकिन एस एम एस क्यों नहीं? तर्क सहित अपना विचार लिखिए।
उत्तर:
पत्र प्रेरणा देते हैं अतः लोग उन्हें धरोहर की तरह सहेजकर रखते हैं। पत्र चूँकि लिखित रूप में होते हैं अत: सहेजकर रखे जा सकते हैं। पर एस एम एस को सहेजकर नहीं रखा जाता। इनमें केवल कामकाज की बात होती है। इसे लोग जल्दी ही भूल जाते हैं। भला आप कितने संदेशों को सहेजकर रख सकते हैं। तमाम महान हस्तियों की यादगार तो इनके लिखे पत्रों में होती है अत: उनके लिखे पत्र धरोहर हो सकते हैं।

प्रश्न 5.
क्या चिद्वियों की जगह कभी फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन तथा मोबाइल ले सकते हैं?
उत्तर:
फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन तथा मोबाइल कभी भी चिट्ठियों की जगह नहीं ले सकते। ये सब संचार के आधुनिक साधन अवश्य हैं। इनसे व्यावसायिक कामकाज तो चलाया जा सकता है, पर इनमें पत्रों के गुण नहीं आ सकते। पत्र से आत्मीयता का जो बोध होता है वह इनमें नहीं आ सकता। लोग पत्रों को संभालकर रखते हैं. पर फैक्स, ई-मेल या टेलीफोन और मोबाइल के संदेश अपनी सूचना देकर अर्थहीन हो जाते हैं। पत्रों के संकलन साहित्य का रूप भी ले लेते हैं।

पाठ से आगे

प्रश्न 1.
किसी को बिना टिकट सादे लिफाफे पर सही पता लिखकर पत्र बैरंग भेजने पर कौन-सी कठिनाई आ सकती है? पता कीजिए।
उत्तर:
सही पता लिखने पर पत्र अपने ठिकाने पर तो पहुँच जाएगा पर संबंधित व्यक्ति को तभी मिलेगा जब वह डाक टिकट तथा जुर्माने का भुगतान करेगा। अतः लिफाफे पर उणि डाक टिकट अवश्य लगानी चाहिए।

प्रश्न 2.
पिन कोड भी संख्याओं में लिखा गया एक पता है, कैसे?
उत्तर:
पिन कोड से उस क्षेत्र का पता चल जाता है जहाँ पत्र भेजा गया है।
पहले अंकों में शहर का संकेत है, फिर उस क्षेत्र, नगर या कॉलोनी का पता होता है। जैसे 110059 पिन कोड है।
1100 दिल्ली का संकेत है।
59 पश्चिमी दिल्ली के जनकपुरी- क्षेत्र का कोड है।
पिन कोड संख्याओं में लिखा पता भले ही हो, पर यह पूरा पता नहीं है। इससे किसी निश्चित मकान या व्यक्ति तक नहीं पहुँचाया जा सकता। पिन कोड से पत्र की छंटाई में सुविधा अवश्य
होती है। इससे पत्र जल्दी पहुँचता है।

प्रश्न 3.
ऐसा क्यों होता था कि महात्मा गाँधी को दुनिया भर से पत्र ‘महात्मा गाँधी-इंडिया’ पता लिखकर आते थे?
उत्तर:
ऐसा इसलिए होता था क्योंकि उन दिनों महात्मा गाँधी सर्वाधिक लोकप्रिय एवं चर्चित व्यक्ति थे। वे कहाँ होंगे,
इसका पता सभी को रहता था। अतः पत्र कहीं से आया हो, उन तक पहुंच जाता था। यह उनकी लोकप्रियता का पर्याय था।

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अनुमान और कल्पना

1. रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता ‘भगवान के डाकिए’ आपकी पाठ्यपुस्तक में है। उसके आधार पर पक्षी और बादल को डाकिए की भाँति मानकर अपनी कल्पना से लेख लिखिए।
उत्तर:
पक्षी और बादल डाकिए का काम करते हैं। डाकिया वह होता है जो किसी का संदेश किसी तक पहुंचाए। पक्षी और बादल भी प्रकृति का संदेश दूसरों तक पहुँचाते हैं। इनके लाए पत्र भले ही आम आदमी की समझ में न आते हों पर उनके संदेश जिनके लिए होते हैं, वे उन्हें शीघ्र समझ लेते हैं। पक्षी और बादल प्रकृति के संदेश वाहक हैं।

2. संस्कृत साहित्य के महाकवि कालिदास ने बादल को संवादवाहक बनाकर ‘मेघदूत’ नाम का काव्य लिखा है। ‘मेघदूत’ के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
संस्कृत के महान कवि कलिदास ने बादल को संवादवाहक बनाकर ‘मेघदूत’ नामक काव्य रचा था।
उस काव्य में बताया गया है कि धनपति कुबेर ने यक्ष को निर्वासन को दंड दिया था। तब यक्ष ने अपनी प्रिया के पास बादल को संदेश वाहक बनाकर अपना संदेश भिजवाया था।

3. पक्षी को संदेशवाहक बनाकर अनेक कविताएँ एवं गीत लिखे गए हैं। एक गीत है-जा-जा रे कागा विदेशवा, मेरे पिया से कहियो संदेशवा। इस तरह के तीन गीतों का संग्रह कीजिए। प्रशिक्षित पक्षी के गले में पत्र बांधकर निर्धारित स्थान तक पत्र भेजने का उल्लेख मिलता है। मान लीजिए आपको एक पक्षी को संदेश वाहक बनाकर का भेजना हो तो आप वह पत्र किसे भेजना चाहेंगे और उसमें क्या लिखना चाहेंगे?
उत्तर:
पक्षियों को और विशेषकर कबूत को अपना संदेशवाहक । बनाकर भेजने की परंपरा प्राचीन काल में रही है। पत्र को उसके गले में बाँध दिया जाता था और वह निर्धारित स्थान तक पत्र पहुँचा देता था।

4. केवल पढ़ने के लिए दी गई रामदरश मिश्र की कविता ‘चिट्ठियाँ’ को ध्यानपूर्वक पढ़िए और विचार कीजिए क्या यह कविता केवल लेटर बॉक्स में पड़ी निर्धारित पते पर जाने के लिए तैयार चिट्ठियों के बारे में है? या रेल के डब्बे बैठी सवारी भी उन्हीं चिट्ठियों की तरह हैं जिनके पास उनके गंतव्य तक की टिकट है पत्र के पते की तरह? और क्या विद्यालय भी एक लेटर बाक्स की भाँति नहीं है जहाँ से उत्तीर्ण होकर विद्यार्थी अनेक क्षेत्रों में चले जाते हैं? अपनी कल्पना को पंख लगाइए और मुक्त मन से इस विषय में विचार-विमर्श कीजिए।
उत्तर:
रामदरथ मिश्र की कविता
चिट्ठियाँ
लेटरबक्स में पड़ी चिट्ठियाँ
अनंत सुख-दुख वाली अनंत चिट्ठियाँ
लेकिन कोई किसी से नहीं बोलती
सभी अकेले-अकेले
अपनी मंजिल पर पहुंचने का इंतजार करती हैं।
कैसा है यह एक साथ होना
दूसरे के साथ हँसना न रोना
क्या हम भी
लेटरबक्स की चिट्ठियाँ हो गए हैं।
(विद्यार्थी अपने मन के विचार लिखें।)

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भाषा की बात

1. किसी प्रयोजन विशेष से संबंधित शब्दों के साथ पत्र शब्द जोड़ने से कुछ शब्द बनते हैं जैसे-प्रशस्ति पत्र, समाचार पत्र। – आप ना पत्र के योग से बनने वाले दस शब्द लिखिए
उत्तर:
व्यापारिक पत्र – चेतावनी पत्र
साहित्यिक पत्र – प्रेरक पत्र
स्मरण पत्र – प्रेम पत्र
घरेलू पत्र – सरकारी पत्र
शोक पत्र – शिकायती पत्र

2. ‘व्यापारिक’ शब्द व्यापार शब्द के साथ ‘इक’ प्रत्यय के. योग से बना है। इक प्रत्यय के योग से बनने वाले शब्दों को अपनी पाठ्यपुस्तक से खोजकर लिखिए।
उत्तर:
पारिवारिक, सामाजिक, नैतिक, धार्मिक, राजनीतिक।

3. दो स्वरों के मेल से होने वाले परिवर्तन को स्वर संधि कहते हैं; जैसे-रवीन्द्र – रवि + इन्द्र। इस संधि में इ+ ई हुई है। इसे दीर्घ संधि कहते हैं। दीर्घ स्वर संधि के और उदाहरण खोजकर लिखिए। मुख्य रूप से स्वर संधियाँ चार प्रकार की मानी गई हैं-दीर्घ, गुण, वृद्धि और यण।
हस्व या दीर्घ अ, इ, उ के बाद हस्व या दीर्घ अ, इ, उ, आ आए तो ये आपस में मिलकर क्रमशः दीर्घ आ, ई, ऊ हो जाते हैं, इसी कारण इस संधि को दीर्ध संधि कहते हैं। जैसे-संग्रह + आलय – संग्रहालय, महा + आत्मा – महात्मा।
इस प्रकार के कम-से-कम दस उदाहरण खोजकर लिखिए और अपनी शिक्षिका/शिक्षक को दिखाइए।
उत्तर:
उदाहरण:
1. दीर्घ संधि:
ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, से परे क्रमशः ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ आ जाएँ तो दोनों मिलकर क्रमशः आ, ई, ऊ हो जाते हैं
(क) अ + अ = आ
परम + अणु – परमाणु
वेद + अत – वेदांत।
मत + अनुसार = मतानुसार
धर्म + अर्थ – धर्मार्थ।

अ + आ = आ
हिम + आलय = हिमालय
रत्न + आकर = रत्नाकर।
धन + आदेश = धनादेश
परम +. आत्मा = परमात्मा।

आ + अ = आ
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
दीक्षा + अंत = दीक्षांत।
परीक्षा + अर्थी = परीक्षार्थी
रेखा + अंकित – रेखांकित।

आ + आ + आ
विद्या + आलय = विद्यालय
कारा + आवास = कारावास।
मदिरा + आलय = मदिरालय
दया + आनंद = दयानन्द।

(ख) इ + इ = ई
रवि + इन्द्र – रवीन्द्र
अभि + इष्ट = अभीष्ट।
कपि + इन्द्र = कपींद्र
अति + इव = अतीव।

इ + ई = ई
गिरि + ईश = गिरीश
कपि + ईश्वर = कपीश्वर।
हरि + ईश = हरीश
फणि + ईश्वर = फणीश्वर।

ई + इ = ई
मही + इन्द्र = महीन्द्र
नदी + इन्द्र = नदीन्द्र।

ई + ई = ई
मही + ईश = महीश
रजनी + ईश – रजनीश।

(ग) उ + उ = ऊ
लघु + उत्तर = लघूत्तर
गुरु + उपदेश = गुरूपदेश।
सु + उक्ति = सूक्ति
अनु + उदित = अनूदित।

उ + ऊ = ऊ
लघु + ऊर्मि = लघुर्मि
सिन्धु + ऊर्मि = सिन्धूमि।

ऊ + उ = ऊ
वधू + उत्सव = वधूत्सव।

ऊ + ऊ = ऊ
वधू + ऊर्मि = वधूर्मि।

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2. गुण संधि: ‘अ’ और ‘आ’ से परे यदि हस्व या दीर्घ ‘इ’. ‘उ’ या ‘ऋ’ आएँ तो वे क्रमशः ‘ए’, ‘ओ’ और ‘अर्’ हो जाते हैं-
(क) अ + इ = ए
नर + इंद्र – नरेंद्र।
भारत + इंदु – भारतेंदु।

अ + ई = ए
गण + ईश = गणेश।
परम + ईश्वर = परमेश्वर।

आ + इ = ए
महा + इंद्र – महेंद्र।
यथा + इष्ट = यथेष्ट।

आ + ई = ए
रमा + ईश = रमेश।
राका + ईश = राकेश।

(ख) अ + उ = ओ
सूर्य + उदय = सूर्योदय।
पर + उपकार – परोपकार।

अ + ऊ = ओ
नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा।

आ + उ = ओ
महा + उत्सव = महोत्सव।

आ + ऊ = ओ
महा + मा = महोमि।

(ग) अ + ऋ = अर्
देव + ऋषि = देवर्षि।
सप्त + ऋषि = सप्तर्षि।

आ + ऋ = अर्
महा + ऋषि = महर्षि।

3. वृद्धि संधि: ‘अ’ या ‘आ’ से परे ‘ए’ या ‘ऐ’ हों तो दोनों को मिलाकर ‘ऐ’ तथा ‘औ’ या ‘औ’ हों तो उन्हें मिलाकर ‘औ’ हो जाता है।
अ + ए = ऐ → एक + एक = एकैक।
आ + ए = ऐ → सदा + एव = सदैव।
अ + ऐ = ऐ → मत + ऐक्य = मतैक्य।
आ + ऐ = ऐ → महा + ऐश्वर – महैश्वर्य।
अ + ओ = औ → जल + ओध = जलौध।
आ + ओ = औ → महा + औध = महौधा
अ + औ = औ → वन + औषध = वनौषध।
आ + औ = औ → महा + औषध = महौषधा

4. यण संधि: ह्रस्व या दीर्घ ‘इ’, ‘उ’, ‘ऋ’ से परे भिन्न जाति का कोई स्वर आ जाए तो इ-ई को ‘य’, उ-3 को ‘व’ और ‘ऋ’ को ‘र’ हो जाता है।
इ + अ = य
अति + अधिक = अत्यधिक।
अति + अंत – अत्यंत।

इ + आ = या
इति + आदि = इत्यादि।
अति + आचार – अत्याचार।

इ + उ = यु
प्रति + उत्तर = प्रत्युत्तर।
उपरि + उक्त = उपर्युक्त।

उ + अ = व → मनु + अंतर = मन्वन्तर।
उ + आ = वा → सु + आगत = स्वागत।
उ + ए = वे → अनु + एषण – अन्वेषण।
ऊ + आ = वा → वधू + आगमन = वध्वागमन।
ऋ + अ = र → पितृ + अनुमति = पित्रनुमति।
ऋ + आ = रा → पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा।

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HBSE 8th Class Hindi चिट्ठियों की अनूठी दुनिया Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
पत्रों की दुनिया कैसी है? साहित्य एवं मानव-सभ्यता के विकास में पत्रों’ की क्या। भूमिका है?
उत्तर:
पत्रों की दुनिया भी अजीबो-गरीब है और उसकी उपयोगिता हमेशा से बनी रही है। पत्र जो काम कर सकते हैं, वह संचार का आधुनिकतम साधन नहीं कर सकता है। पत्र जैसा संतोष फोन या एसएमएस का संदेश कहाँ दे सकता है। पत्र एक नया सिलसिला शुरू करते हैं और राजनीति, साहित्य तथा कला के क्षेत्रों में तमाम विवाद और नयी घटनाओं की जड़ भी पत्र ही – होते हैं। दुनिया का तमाम साहित्य पत्रों पर केंद्रित है और मानव सभ्यता के विकास में इन पत्रों ने अनूठी भूमिका निभाई है।

प्रश्न 2.
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1953 में क्या कहा था? पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर:
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सन् 1953 में सही ही कहा था कि-‘हजारों सालों तक संचार का साधन केवल हरकारे (रनर्स) या फिर तेज घोड़े रहे हैं। उसके बाद पहिए आए। पर रेलवे और तार से भारी बदलाव आया। तार ने रेलों से भी तेज गति से संवाद पहुँचाने का सिलसिला शुरू किया। अब टेलीफोन, वायरलस और आगे रेडार-दुनिया बदल रहा है।’

प्रश्न 3.
महात्मा गाँधी के पास पत्र कैसे पहुँचते थे? वे उन पत्रों का जवाब कैसे देते थे? लोग उनके लिखे पत्रों का क्या करते थे?
उत्तर:
महात्मा गाँधी के पास दुनिया भर से तमाम पत्र केवल महात्मा गाँधी-इंडिया लिखे आते थे और वे जहाँ भी रहते थे, वहाँ तक पहुँच जाते थे। आजादी के आंदोलन के कई अन्य दिग्गज हस्तियों के साथ भी ऐसा ही था। गाँधीजी के पास देश दुनिया से बड़ी संख्या में पत्र पहुँचते थे, पर पत्रों का जवाब देने के मामले में उनका कोई जोड़ नहीं था।

कहा जाता है कि जैसे ही उन्हें पत्र मिलता था, उसी समय वे उसका जवाब भी लिख देते थे। अपने हाथों से ही ज्यादातर पत्रों का जवाब देते थे। पत्र भेजने वाले लोग उन पत्रों को किसी प्रशस्तिपत्र से कम नहीं मानते हैं और कई लोगों ने तो पत्रों को फ्रेम करा कर रख लिया है। यह है पत्रों का जादू। यही नहीं, पत्रों के आधार पर ही कई भाषाओं में जाने कितनी किताबें लिखी जा चुकी हैं।

चिट्ठियों की अनूठी दुनिया गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. पिछली शताब्दी में पत्र लेखन ने एक कला का रूप ले लिया। डाक व्यवस्था के सुधार के साथ पत्रों को सही दिशा देने के लिए विशेष प्रयास किए गए। पत्र संस्कृति विकसित करने के लिए स्कूली पाठ्यक्रमों में पत्र लेखन का विषय भी शामिल किया गया। भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में ये प्रयास चले और विश्व डाक संघ ने अपनी ओर से काफी प्रयास किए।

विश्व डाक संघ की ओर से 16 वर्ष से कम आयु वर्ग बच्चों के लिए पत्र लेखन प्रतियोगिताएँ आयोजित करने का सिलसिला सन् 1972 से शुरू किया गया। यह सही है कि खास तौर पर बड़े शहरों और महानगरों में संचार साधनों के तेज विकास तथा अन्य कारणों से पत्रों की आवाजाही प्रभावित हुई है, पर देहाती दुनिया आज भी चिड़ियों से ही चल रही है। फैक्स, ईमेल, टेलीफोन तथा मोबाइल ने चिनियाँ की तेजी को रोका है, पर व्यापारिक डाक की संख्या लगातार बढ़ रही है।
प्रश्न:
1. पत्र लिखने ने पिछली शताब्दी में क्या रूप ले लिया है?
2. पत्र-संस्कृति के विकास के लिए क्या प्रयास किया गया?
3. विश्व डाक संघ ने क्या प्रयास किया?
4. समाचार भेजने के लिए क्या-क्या साधन प्रयोग किए जा रहे हैं?
उत्तर:
1. पिछली शताब्दी में पत्र लिखने ने एक कला का रूप ले लिया है।
2. पत्र-संस्कृति के विकास के लिए स्कूली पाठ्यक्रमों में पत्र लेखन को एक विषय के रूप में शामिल किया गया है।
3. विश्व डाक संघ द्वारा 16 वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों के लिए पत्र-लेखन प्रतियोगिताओं का आयोजन 1972 से शुरू किया गया है।
4. समाचार भेजने के लिए फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन तथा मोबाइल आदि माध्यमों का प्रयोग किया जा रहा है।

HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 5 चिट्ठियों की अनूठी दुनिया

2. पत्र व्यवहार की परंपरा भारत में बहुत पुरानी है। पर इसका असली विकास आजादी के बाद ही हुआ है। तमाम सरकारी विभागों की तुलना में सबसे ज्यादा गुडविल डाक विभाग की ही है। इसकी एक खास वजह यह भी है कि यह लोगों को जोड़ने का काम करता है। घर-घर तक इसकी पहुँच है।

संचार के तमाम उन्नत साधनों के बाद भी चिट्ठी-पत्री की हैसियत बरकरार है। शहरी इलाकों में आलीशान हवेलियाँ हों या फिर झोपड़पट्टियों में रह रहे लोग, दुर्गम जंगलों से घिरे गाँव हों या फिर बर्फबारी के बीच जी रहे पहाड़ों के लोग, समुद्र तट पर रह रहे मछुआरे हों या फिर रेगिस्तान की ढाँढियों में रह रहे लोग, आज भी खतों का ही सबसे बेसब्री से इंतजार होता है। एक दो नहीं, करोंड़ों लोग खतों और अन्य सेवाओं के लिए रोज भारतीय डाकघरों के दरवाजों तक पहुँचते हैं और इसकी बहु आयामी भूमिका नजर आ रही है। दूर देहात में लाखों गरीब घरों में चूल्हे मनीआर्डर अर्थव्यवस्था से ही जलते हैं। गाँवों या गरीब बस्तियों में चिट्ठी या मनीआर्डर लेकर पहुंचने वाला डांकिया देवदूत के रूप में देखा जाता है।
प्रश्न:
1. भारत में पत्र-यवहार की परंपरा कैसी है?
2. सबसे ज्यादा गुडविल किस सरकारी विभाग की है? इसका कारण क्या है?
3. कौन खतों का बेसब्री से इंतजार करते हैं?
4. गाँवों में डाकिया को किस रूप से देखा जाता है और क्यों? और क्यों?
उत्तर:
1. भारत में पत्र-व्यवहार की परंपरा बहुत पुरानी है। हाँ, इसका विकास आजादी के बाद ज्यादा हुआ है।
2. सारे सरकारी विभागों में डाक विभाग की गुडविल सबसे ज्यादा है। इसका कारण यह है कि यह पत्रों द्वारा लोगों को जोड़ने का काम करता है।
3. देश के सभी भागों में लोग खतों का बेसब्री से इंतजार. करते हैं, भले ही वह आलीशान हवेलियों में रहते हों अथवा पहाड़ों पर रहते हों या समुद्र तट के मछुआरे हों अथवा रेगिस्तानी या बर्फीले क्षेत्रों में रहने वाले लोग हों।
4. गाँवों में डाकिया को देवदूत के रूप में देखा जाता है क्योंकि उसके द्वारा लाए मनीआर्डर के रुपयों से ही उनके घरों के चूल्हे जलते हैं।

चिट्ठियों की अनूठी दुनिया Summary in Hindi

चिट्ठियों की अनूठी दुनिया पाठ का सार

पत्रों की दुनिया बड़ी ही अनोखी है। पत्र जो काम कर सकते हैं वह काम संचार का कोई भी साधन नहीं कर सकता। पत्र लिखने . और पढ़ने से बड़ा संतोष मिलता है। अनेक घटनाओं और विवादों की जड़ में पत्र ही होते हैं। मानव-सभ्यता के विकास में पत्रों ने अनूठी भूमिका निभाई है। पत्रों को विविध भाषाओं में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है, जैसे उर्दू में खत, संस्कृत में पत्र, कन्नड में कागद, तेलगु मे उत्तरम, तमिल मे कब्दि कहा जाता है। पत्र लिखना भी एक कला है। दुनिया में रोजाना करोड़ों पत्र इधर से उधर जाते हैं।

पिछली शताब्दी में पत्र लिखने ने एक कला का रूप ले लिया। पत्र-लेखन को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया गया। विश्व डाकसंघ की ओर से 16 वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों के लिए पत्र-लेखन प्रतियोगिताओं के आयोजन का सिलसिला 1972 में शुरू हुआ। आजकल फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन तथा मोबाइल के प्रयोग ने चिट्ठियों की तेजी को भले ही रोका है, पर व्यापारिक डाक लगातार बढ़ रही है। अब भी लोग पत्रों का बेसब्री से इंतजार करते हैं।

आज देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अपने पुरखों की चिट्ठियों को सहेज और सँजोकर रख रहे हैं। बड़े-बड़े लेखक, पत्रकार, उद्यमी, कवि, प्रशासक, संन्यासी या किसान की पत्र रचनाएँ अनुसंधान का विषय हैं। पंडित नेहरू ने अपनी पुत्री इंदिरा गाँधी को भी पत्र लिखे थे। हम पत्रों को तो सहेजकर रख लेते हैं, पर एस एम एस संदेशों को जल्दी ही भूल जाते हैं। महात्मा गाँधी द्वारा लिखे गए पत्र बहुत बड़ी धरोहर के रूप में सुरक्षित हैं। दुनिया के संग्रहालयों में जानी-मानी हस्तियों के पत्रों के अनूठे संकलन हैं। ये पत्र देश, काल और समाज को जानने-समझने का असली पैमाना हैं।

महात्मा गाँधी के पास दुनिया भर से पत्र आते थे। पते के रूप में उन पर केवल महात्मा गाँधी-इंडिया लिखा होता था और वे जहाँ भी होते वहीं पहुँच जाते थे। गाँधीजी के पास दुनिया भर से बड़ी संख्या में पत्र पहुँचते थे। वे उनका जवाब भी भिजवाते थे। वे अपने हाथों से ही अधिकांश पत्रों का जवाब लिखते थे। लिखते-लिखते जब उनका दाहिना हाथ दर्द करने लगता था तब वे बाएँ हाथ से लिखने में जुट जाते थे। पत्र पाने वाले लोग गाँधीजी के पत्रों को प्रशस्तिपत्र से कम नहीं मानते थे। कई लोगों ने तो उन पत्रों को फ्रेम करा लिया था। यह उनके पत्रों को जादू ही तो था। पत्र किसी दस्तावेज से कम नहीं होते। पत्रों से संबंधित कई पुस्तकें मिल जाती हैं। पत्रों के संकलन का काम डाक मंगलमूर्ति ने किया है। पत्रों में प्रेमचंद, नेहरू जी, गाँधी जी तथा रवीन्द्रनाथ टैगोर के पत्र बहत प्रेरक हैं। महात्मा गाँधी और रवीन्द्रनाथ टैगोर के मध्य 1915 से 1941 तक जो पत्राचार हुआ. उनसे नए-नए तथ्यों तथा उनकी मनोदशा का लेखा-जोखा मिलता है।

पत्र-व्यवहार की परंपरा भारत में बहुत पुरानी है। पर इसका असली विकास आजादी के बाद ही हुआ। डाक विभाग की पहुंच घर-घर तक है। आज भी लोग खतों का बेसब्री से इंतजार करते हैं। दूर देहात में लाखों गरीब घरों में चूल्हे मनीआर्डर की अर्थव्यवस्था से ही जलते हैं। गाँवों में आज भी डाकिया देवदूत के रूप में देखा जाता है।

HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 5 चिट्ठियों की अनूठी दुनिया

चिट्ठियों की अनूठी दुनिया शब्दार्थ

उपयोगिता = लाभदायी (use), आधुनिकतम = नवीनतम (modern), केंद्रित = टिके होना (centred), तलाशना = ढूंढना (10 search), अहमियत = महत्त्व (importance), प्रयास – कोशिश (Efforts), विकसित = फली-फूली (Developed), व्यापारिक = व्यापार संबंधी (related to bursiness), बेसनी = सन के बिना (restless), मिसाल = उदाहरण (example), पुरखे = पूर्वज (ancestors), संकलन = संग्रह (collection), दिग्गज – बड़ी (Big. great), हस्ती = व्यक्तित्व (personalities), प्रशस्तिपत्र = गुणगान गाने वाला पत्र (letter of praive), दस्तावेज = जरूरी कागज (documents), तथ्यों = सच्चाइयों (facts), मनोदशा = मन की दशा (position of mind), गुडविल = नेकनामी (goodwill), हैसियत = दशा (status), बहुआयामी = अनेक रूपों वाला (malti dimensional), देवदूत = फरिश्ता (angel).

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