HBSE 8th Class Hindi रचना निबंध-लेखन

Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Hindi Rachana Nibandh-Lekhan निबंध-लेखन Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Hindi Rachana निबंध-लेखन

1. मेरा प्रिय मित्र

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज में रहकर परस्पर संबंधों का निर्वाह करता है। मनुष्य के जीवन में अनगिनत परिचित होते हैं। प्रायः परिचितों के संबंध स्वार्थों पर आधारित होते हैं। इन परिचितों में एक परिचित मित्र भी होता है। संसार में सच्चे मित्र अल्प मात्रा में ही मिलते हैं। सच्चा मित्र अपने मित्र के दोषों को दूर करता है, उसके लिए हितकारी योजनाएं बनाता है, गोपनीय को छिपाता है तथा उसके गुणों को समाज के समक्ष प्रकट करता है। आपत्ति में सहायता करता है और दुख में साथ नहीं छोड़ता। इस प्रकार एक आदर्श सच्चा मित्र सबसे बड़ा संबंधी होता है।

निपुण मेरा सहपाठी है और प्रिय मित्र है। वह कक्षा का सबसे व्यवहार कुशल और बुद्धिमान छात्र है। प्रत्येक वर्ष वह कक्षा में प्रथम स्थान पर रहता है। विद्यालय के प्रधानाचार्य एवं सभी शिक्षक उसके गुणों की प्रशंसा करते हैं। उसके मुखमंडल पर सदैव मुस्कान दिखाई देती है। कक्षा का सबसे मेधावी छात्र होने पर भी उसे घमंड नहीं है। अन्य छात्रों की सहायता करने में उसे अपार खुशी मिलती है। निपुण सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी बढ़-चढ़ कर भाग लेता है।

इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस पर उसने ऐसा ओजस्वी भाषण दिया कि सभी लोग उसका भाषण सुनकर मंत्रमुग्ध हो गए। उसे विद्यालय के सर्वोत्तम वक्ता का पुरस्कार दिया गया। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ-साथ वह खेलों में भी रुचि लेता है। वह विद्यालय की क्रिकेट टीम का कैप्टन है। वह अध्ययन के प्रति जितना गंभीर है, उतना ही हँसमुख भी है। उसके चुटकुले और हँसी की फुलझड़ियाँ सुनकर सभी लोट-पोट हो जाते हैं। वह कभी किसी की शिकायत नहीं करता बल्कि अपने साथियों को गलतियाँ सुधारने की बात कहता है। अपने साथियों की अच्छाइयों की हृदय से सराहना करता है। यदि किसी कारणवश वह एक दिन भी नहीं आता तो सभी को उसका अभाव खटकता है।

में सौभाग्यशाली हूँ कि मुझे निपुण जैसे सच्चा एवं आदर्श मित्र मिला है। मैं चाहता हूँ कि हमारी मित्रता सदैव बनी रहे। उसके पिता एक कॉलेज में प्राध्यापक हैं। पारिवारिक संस्कारों का निपुण पर पूर्ण प्रभाव है। हम सभी का वह प्रेरणा-स्रोत है। कितना अच्छा होता ! यदि मेरे सभी मित्र निपुण जैसे होते। सच्चा मित्र विपत्ति में भी साथ नहीं छोड़ता, यह गुण निपुण में सदैव दिखाई देता है। किसी ने ठीक ही कहा है –
“विपत्ति कसौटी जे कसे, तेई साँचे मीत।”

HBSE 8th Class Hindi रचना निबंध-लेखन

2. स्वतंत्रता दिवस

गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है-पराधीन सपनेह सख नाहीं। पराधीनता में स्वप्न में भी सुख नहीं है। स्वतंत्रता तो पशु-पक्षियों को भी प्रिय है। जब कोई राष्ट्र परतंत्र हो जाता है तो उसके निवासियों के लिए वह परतंत्रता अभिशाप बन जाती है। भारत जैसा महान् राष्ट्र भी सैकड़ों वर्ष तक पराधीन रहा और आपसी फूट के कारण पराधीनता के अभिशाप को सहन करता रहा। देशवासियों की एकता और शक्ति के कारण भारत 15 अगस्त 1947 को पराधीनता से मुक्त हुआ। यह दिवस भारत में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है।

स्वतंत्रता दिवस भारतवर्ष का राष्ट्रीय पर्व है। सभी भारतवासी संपूर्ण देश में 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाते हैं। सभी राज्यों की राजधानियों एवं महानगरों में इस दिवस पर विशेष आयोजन होते हैं। सभी राज्य सरकारें इस दिन राज्य के निवासियों के लिए कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा करती हैं। इस दिन देश के सभी भागों में राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है। सरकारी भवनों को सजाया जाता है। इस समारोह में देश के सभी लोग सम्मिलित होते हैं। भारत के बाहर रहने वाले भारतीय भी इस दिवस को विदेशों में रहकर मनाते हैं। इस प्रकार स्वतंत्रता दिवस हमारा महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय पर्व है।

स्वतंत्रता दिवस समारोह का विशेष आयोजन भारत की राजधानी दिल्ली में होता है। इस दिन दिल्ली के स्कल एवं कॉलेजों में अवकाश होता है ताकि सभी लोग स्वतंत्रता दिवस समारोह में सम्मिलित हों। दिल्ली में ऐतिहासिक लाल किले के प्राचीर पर प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है। राष्ट्रीय ध्वज को 21 तोपों की सलामी दी जाती है। ध्वजारोहण के उपरांत प्रधानमंत्री राष्ट्र को संबोधित करते हैं।

राष्ट्र के नाम प्रसारण में वे राष्ट्र को संपन्न बनाने तथा राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने का आह्वान करते हैं। भाषण के उपरांत वे ‘जयहिंद’ का जयघोष करते हैं जिसे सुनकर श्रोता एवं दर्शकगण जयहिंद का अनुकरण करते हुए सभी दिशाओं को गुंजायमान कर देते हैं। इस दिन अनेक स्थानों पर राष्ट्रीय कवि सम्मेलन एवं मुशायरों का आयोजन होता है। इस दिन देश के लिए प्राणोत्सर्ग करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धा-सुमन अर्पित किए जाते हैं तथा उनके त्याग एवं बलिदान का स्मरण किया जाता है।

स्वतंत्रता दिवस एक प्रेरक राष्ट्रीय पर्व है। यह हमें राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने की प्रेरणा देता है। हमें अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए तथा वैमनस्य से दूर रहना चाहिए। हमें ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिससे हमारी स्वतंत्रता एवं राष्ट्रीय एकता को ठेस पहुंचे।

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3. गणतंत्र दिवस

भारतवर्ष पर्वो का देश है। यहाँ अनेक सामाजिक, धार्मिक एवं राष्ट्रीय पर्व मनाए जाते हैं। राष्ट्रीय पर्यों में गणतंत्र दिवस एक महत्त्वपूर्ण पर्व है। इसे सभी भारतीय हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। यह राष्ट्रीय पर्व प्रति वर्ष 26 जनवरी के दिन मनाया जाता है। इसी दिन भारत का संविधान सन् 1950 में लागू हुआ था, तभी से इसे हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं।

26 जनवरी का दिन भारतवर्ष में ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इसी दिन सन् 1930 में रावी नदी के तट पर पं. जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य प्राप्ति का संकल्प लिया गया था। इस महत्त्वपूर्ण दिवस को ही संविधान लागू किया गया तथा इसी दिन 1950 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में शपथ दिलाई गई।

गणतंत्र दिवस का राष्ट्रीय पर्व संपूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाता है। देश के सभी राज्यों की राजधानियों में, नगरों में, गाँवों में यह पर्व उल्लास के साथ मनाया जाता है। जो भारतीय विदेशों में रहते हैं, वे वहाँ ही गणतंत्र दिवस का पर्व मनाते हैं। गणतंत्र दिवस पर्व का मुख्य आयोजन भारत की राजधानी दिल्ली में होता है। इस दिन दिल्ली की शोभा देखते ही बनती है।

26 जनवरी को प्रति वर्ष प्रातः भारत के राष्ट्रपति शाही बग्घी में बैठकर विजय चौक आते हैं। वहाँ भारत के प्रधानमंत्री एवं तीनों सेनाओं के अध्यक्ष उनका स्वागत करते हैं। विजय चौक और राजपथ पर अपार जनसमूह इस उत्सव की शोभा देखने के लिए एकत्रित होता है। राष्ट्रीय ध्वजारोहण के उपरांत तीन सेनाओं द्वारा सलामी का कार्यक्रम होता है। इस दिन भारतीय सेनाओं के आधुनिक शस्त्र-अस्त्रों का प्रदर्शन होता है।

अनेक राज्यों की मनमोहक झांकियाँ प्रदर्शित होती हैं। अनेक अपनी कला प्रदर्शित करते हैं। इस अवसर पर वीर और साहसी बच्चों की झाँकी भी निकलती है। समारोह का ऑतिम चरण बहुत ही आनंददायक होता है। भारतीय वायुसेना के विमान आकाश में अपने कौशल दिखाते हैं तथा आकाश में तिरंगा झंडा बनता है। इस दिन सरकारी भवनों पर रोशनी देखने योग्य होती है।

गणतंत्र दिवस का पर्व हमें राष्ट्रीयता की प्रेरणा देता है। यह दिवस हमें उन शहीदों एवं स्वतंत्रता सेनानियों की याद दिलाता है जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए हँसते-हँसते अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। यह दिवस हमें प्रेरणा देता है कि हम अपने स्वार्थों को भुलाकर, राष्ट्रनिर्माण के कार्य में जुट जाएँ तथा संविधान के अनुकूल आचरण करें तभी इस राष्ट्रीय पर्व की सार्थकता सिद्ध
होगी।

4. दीपों का पर्व-दीपावली

हमारा देश अनेक धर्म, संप्रदायों, जातियों का अद्भुत संगम है। यहाँ के निवासी अपने विश्वास एवं रुचियों के अनुसार अपने-अपने त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। दीपावली भी भारतीयों द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्त्वपूर्ण पर्व है। दीपावली दो शब्दों से मिलकर बना है – दीप+अवली अर्थात् दीपों की पंक्ति। इस दिन दीप जलाने का विशेष महत्त्व है, इसलिए इस दिन प्रकाश पर्व है।

दीपावली का पर्व प्रति वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। अगर देखा जाए तो दीपावली कई पर्वो का समूह है। दीपावली से पूर्व छोटी दीपावली और उससे पूर्व धनतेरस का पर्व होता है। दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पूजा तथा उसके अगले दिन भाईदूज का त्योहार होता है।

इस प्रकार दीपावली के समय सप्ताह पर्यंत हर्षोल्लास का वातावरण बना रहता है। दीपावली को रात्रि में लक्ष्मी पूजन किया जाता है, दीपक या विद्युत दीप जलाकर रोशनी की जाती है। बच्चे आतिशबाजी चलाकर प्रसन्न होते हैं। लक्ष्मी पूजन के उपरांत व्यापारीगण अपने नए बही-खाते प्रारंभ करते हैं।

दीपावली के कई दिन पहले ही लक्ष्मी के आगमन के लिए तैयारी प्रारम्भ हो जाती है। लोग अपने घरों की सफाई करते हैं। उन्हें यथा संभव सजाते हैं। सफाई एवं शुद्धता के वातावरण में जब दीपकों का प्रकाश किया जाता है तो अमावस्या की काली रात्रि भी पूर्णिमा में परिवर्तित हो जाती है। बाजारों में दुकानों की सजावट देखते ही बनती है। इस अवसर पर लोग अपने इष्टमित्रों के यहाँ मिष्ठान्न एवं उपहार प्रदान करके प्रेम एवं सौहार्द बढ़ाते हैं।

दीपावली का पौराणिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से भी विशेष महत्त्व है। एक मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान् श्रीराम लंका के राजा रावण को मारकर सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस लौटे थे। उनके अयोध्या वापस आने की खुशी में अयोध्यावासियों ने दीपकों की पंक्तियाँ जलाकर प्रकाश किया। तभी से इस दिन दीपकों की पंक्तियाँ जलाने का महत्त्व है। इसी दिन सिक्खों के छठे गुरु गोविंद सिंह की बंधन-मुक्ति हुई थी। आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानंद, जैन तीर्थकर महावीर स्वामी ने भी इसी दिन निर्वाण प्राप्त किया था।

प्रकाश पर्व दीपावली हमें जीवन भर हर्षोल्लास से रहने की प्रेरणा देती है। हमारे जीवन में सदैव ज्ञान का प्रकाश जगमगाता रहे, परन्तु इस प्रकाश पर्व के दिन कुछ लोग जुआ खेलते हैं, यह कानूनी अपराध है। कभी-कभी आतिशबाजी से आग लगने की दुर्घटनाएं हो जाती हैं। आतिशबाजी से वायु-प्रदूषण तथा ध्वनि-प्रदूषण फैलता है। अतः आतिशबाजी का विरोध करके प्रदूषण रहित दीपावली मनाना ही दीपावली की पवित्रता का परिचायक है।

HBSE 8th Class Hindi रचना निबंध-लेखन

5. रंगों का त्योहार-होली

भारत विभिन्न ऋतुओं का देश है। वसंत को ऋतुराज की संज्ञा दी जाती है। रंगों का त्योहार होली ऋतुराज वसंत के आने का सूचक है। शीत ऋतु के उपरांत वसंत में प्रकति अनगिनत रंगों के फलों से सज जाती है। सर्वत्र प्रकृति के रंग-बिरंगे सौन्दर्य का ही साम्राज्य होता है। रंग-बिरंगे पुष्प एवं सरसों के पीले पुष्यों को देखकर मन प्रसन्न हो जाता है और मस्ती से झूम उठता है। इस रंग-बिरंगे वसंत में ही होली का शुभागमन होता है।

होली का त्योहार प्रति वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली का त्योहार दो दिन तक प्रमुख रूप से मनाया जाता है। पूर्णिमा की रात्रि को होलिका दहन होता है। लोग रात को अपने घरों में भी होली जलाते हैं तथा रबी की फसल की जौ और गेहूँ आदि की बालियाँ भूनते हैं।

परस्पर भूने अन्न के दानों का आदान-प्रदान करते हुए अभिवादन करते हैं। अगले दिन प्रातः से ही सभी आबाल वृद्ध एक-दूसरे को अबीर-गुलाल लगाते हैं। एक दूसरे के गले मिलते हैं। सभी भेद-भाव भुलाकर रंग डालते हैं। लोगों के चेहरे और कपड़े रंग-बिरंगे हो जाते हैं। लोग मस्ती में गाते, बजाते, नाचते हैं। इस प्रकार होली पारस्परिक प्रेम और सौहार्द का परिचायक है।

रंगों के पर्व होली का पौराणिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से भी विशेष महत्व है। एक पौराणिक आख्यान के अनुसार हिरण्यकश्यप नामक दैत्यराज था। वह अत्यंत अत्याचारी एवं क्रूर था। उसने भक्त स्वभाव के अपने पुत्र प्रह्लाद पर अनेक अत्याचार किए। हिरण्यकश्यप चाहता था कि प्रह्लाद अपने पिता को ही भगवान् माने। इसलिए वह ईश्वर भक्त प्रह्लाद से सदैव क्रुद्ध रहता था। अनेक अत्याचारों के असफल होने पर उसने एक अंतिम उपाय किया।

हिरण्यकश्यप की एक होलिका नाम की बहन थी जिसे आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। उसने होलिका के सहयोग से प्रहलाद को जलाने की बात सोची। वह फाल्गुन मास की पूर्णिमा को प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई। भगवान् की कृपा से होलिका तो जल गई परंतु प्रह्लाद सकुशल बच गया। कहते हैं कि तभी से इस दिन होलिका का दहन किया जाता है। एक.ऐसी भी मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने तीसरा नेत्र खोलकर कामदेव को भस्म किया था। अतः यह पर्व मदन-दहन पर्व बन गया।

रंगों का त्योहार होली हमें पारस्परिक प्रेम एवं सौहार्द का संदेश देता है। इस दिन शत्रु भी अपनी शत्रुता भूलकर मित्र बन जाते हैं, परन्तु कुछ लोग अपनी विकृत मानसिकता का प्रयोग होली में करते हैं। वे शराब पीकर ऊधम मचाते हैं, कई बार प्रदूषित रंगों से आँखों एवं चमड़ी के रोग हो जाते हैं। उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। हमें शालीनता के साथ गुलाल लगाकर प्रेमपूर्वक होली खेलनी चाहिए ताकि समाज में स्नेह एवं प्रेम का सौहार्द बढ़े।

HBSE 7th Class Hindi रचना निबंध-लेखन

6. रक्षाबंधन

भारत पर्वो का देश है। यहाँ वर्ष भर अनेक धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक पर्व मनाए जाते हैं। सभी भारतीय अपने पर्वो को असीम हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। इन पवों में रक्षाबंधन एक पवित्र और प्रसिद्ध पर्व है। यह पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, इसलिए इसे श्रावणी भी कहा जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को रक्षासूत्र अर्थात् राखियाँ बाँधती हैं, इसलिए ।यह पर्व रक्षा बंधन के नाम से विशेष प्रसिद्ध है।

रक्षाबंधन से काफी समय पूर्व ही बाजार में रंग-बिरंगी राखियों की दुकानें सज जाती हैं। भाइयों के दूर होने पर बहनें डाक द्वारा अपनी राखियाँ भेजती हैं। पास रहने वाली बहनें अपने भाई के यहाँ स्वयं जाकर राखी बांधती हैं तथा भाई के लिए मंगल कामनाएँ करती हैं। रक्षाबंधन के उपरान्त भाई अपनी बहनों को यथाशक्ति उपहार प्रदान करते हैं तथा बहन की रक्षा का उत्तरदायित्व लेते हैं। कई भाइयों की बहनें नहीं होती तो वे किसी को धर्म-बहन बनाकर रक्षाबंधन करवाते हैं और उसे बहन का प्रेम एवं सम्मान प्रदान करते हैं।

रक्षाबंधन केवल भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक पर्व नहीं है अपितु ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी यह पर्व महत्त्वपूर्ण है। यह ऐतिहासिक सत्य है कि राखी का सम्मान केवल हिंदू ही नहीं अपितु मुसलमान भी करते हैं। रानी कर्मवती ने हुमायूँ के लिए राखी भेजी थी और राखी का सम्मान करते हुए हुमायूँ ने गुजरात के बादशाह बहादुरशाह से चित्तौड़ की रक्षा की थी। रक्षाबंधन के विषय में यह कथा भी प्रचलित है कि राजा बलि से विष्णु ने वामन का रूप धारण करके तीन पग पृथ्वी की याचना की थी।

राजा बलि ने घमंड के साथ इसे देना स्वीकार कर लिया। बाद में विष्णु ने विराट रूप धारण करके पहले पग में पृथ्वी और दूसरे में आकाश तथा तीसरे में बलि के शरीर को ही नाप दिया था। कहा जाता है कि तभी से ब्राह्मण अपने यजमानों के यहाँ रक्षाबंधन करते हैं। इसी संदर्भ में देव और दानवों के युद्ध का उल्लेख भी आता है कि देवताओं की विजय की कामना करते हुए बहनों ने राखी बाँधी थी जिसके परिणाम स्वरूप देवताओं की विजय हुई।

आज के अर्थ प्रधान युग में रक्षाबंधन पर्व की सांस्कृतिक भावना लुप्त होती जा रही है। आज की अधिकांश बहनें राखी को धनप्राप्ति का माध्यम समझती हैं। भाई-बहन का पवित्र प्रेम रक्षा बंधन का आधार है। स्वार्थों के कारण पवित्र संबंधों में भी कटुता आ जाती है। हमें अपने स्वार्थों को त्यागकर पवित्र स्नेह भावना के साथ रक्षाबंधन का पर्व मनाना चाहिए। हमें बाहरी दिखावे को त्यागकर सादगी के साथ सांस्कृतिक पवित्रता की रक्षा करते हुए रक्षाबंधन का पर्व मनाना चाहिए, तभी इस पावन पर्व की सार्थकता है।

HBSE 8th Class Hindi रचना निबंध-लेखन

7. पोंगल

भारत धार्मिक और आध्यात्मिक देश है। भारत के कई पर्व ऐसे हैं जिनकी नींव में मुख्य रूप से धर्म और आध्यात्मिक भावनाएं मिलती हैं। पोंगल में जो कृत्य होते हैं, उनसे यही विदित होता है कि पोंगल एक महान् आध्यात्मिक पर्व है। यह तमिलनाडु का प्रमुख पर्व है। वहाँ इस त्योहार को बहुत धूमधाम से मनाते हैं।

पोंगल पर्व प्राचीन काल से ही मनाया जा रहा है। इसके मूल में दो भावनाएँ काम करती हैं- एक कृषि संबंधी और दूसरी आध्यात्म संबंधी। भारत कृषि प्रधान देश है। कृषि के आधार बैल और गाएँ हैं। पोंगल के दिन तमिलनाडु के लोग बैलों और गायों की पूजा करके अपनी राष्ट्रीय श्रद्धा व्यक्त करते हैं।

पोंगल उनकी आध्यात्मिक भावना का भी प्रतीक है। पोंगल के दिन तमिलनाडु के लोग गाय के दूध के उफान को अधिक महत्त्व देते हैं। वे दूध के उफान से यह तात्पर्य निकालते हैं कि जिस प्रकार दूध का उफान शुद्ध और शुभ है, उसी प्रकार मेरा मन और अन्त:करण भी शुद्ध और उज्ज्वल होना चाहिए। वे मन की शुद्धता के लिए सूर्य देवता से प्रार्थना करते हैं।

पोंगल प्रति वर्ष पौष मास के प्रारंभ में मनाया जाता है। जिन दिनों भारत में संक्रान्ति पर खिचड़ी का पर्व मनाया जाता है, उन्हीं दिनों तमिलनाडु के लोग पोंगल मनाते हैं। यह पोंगल एक दिन नहीं, पूरे तीन दिन तक मनाया जाता है। तमिलनाडु राज्य के हर घर में लोग सबसे अधिक धूमधाम से पोंगल को ही मनाते हैं।

अगहन के महीने में जब धानों में सुनहली बालें लग जाती हैं, तब लोगों का चित्त पोंगल की याद से पुलकित हो जाता है। ये पोंगल की तैयारी में जुट जाते हैं। पोही के दूसरे दिन अर्थात् पौष कृष्ण प्रतिपदा को पोंगल की धूम मच जाती है। सब लोग शक्ति के अनुसार नई-नई चीजें खरीदते हैं।

पहले दिन तो नई फसल के नए चावलों को पकाकर खाया जाता है। आंध्र में इस दिन रंगोली से घरों को सजाया जाता है। इस दिन को ‘मोंगि पोंगल’ कहते हैं। इस दिन बड़ा आनंद आता है। बच्चे उबले हुए चावलों के चारों ओर जुट जाते हैं और घंटियाँ बजा-बजा कर चिल्लाते हैं- “पोंगलो पोंगल, पोंगलो-पोंगला” सब लोग ध्यान से देखते हैं कि सबसे पहले पतीली में किस ओर का पानी उबलता है इस प्रकार लोग भविष्य पढ़ते हैं। जब भोजन तैयार हो जाता है तो सूर्य की पूजा की जाती है। इस दिन गन्ना चूसना आवश्यक समझा जाता है।

तीसरे दिन ‘मटू पोंगल’ मनाया जाता है। मटू का अर्थ है – पशु। यह दिन बैलों के दिन के रूप में मनाया जाता है। बैल हमारे बहुत काम आते हैं। वे हमारे खेत जोतते हैं, चावल और ईख उगाते हैं। तीसरे दिन वे बैलों की पूजा करते हैं। उन्हें कुमकुम लगाते हैं, कौड़ियों की मालाएँ और घटियाँ पहनाते हैं। कहीं-कहीं बैलगाड़ियों की दौड़ भी होती है।

तमिलनाडु और आंध्र में इसके मनाने में थोड़ा अंतर है। आंध्र में स्त्रियाँ निर्मोत्रत अतिथियों पर अबीर-गुलाल छिड़कती हैं। वे गुड-मिले तिल, बेर और रूमाल देती हैं। अय्यंगार वैष्णवों के यहाँ इस दिन घी-मिली खिचड़ी खाई जाती है। पोंगल यद्यपि तमिलनाडु और आंध्र का पर्व है, पर उसके भीतर जो भावना काम करती है, उसे दृष्टि में रखकर पोंगल को भारत का सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पर्व कहा जा सकता है।

HBSE 8th Class Hindi रचना निबंध-लेखन

8. ओणम

हमारे देश के प्रत्येक भाग में कोई न कोई त्योहार प्रमुख रूप से अवश्य मनाया जाता है। ओणम केरल का प्रमुख त्योहार है।

ओणम के विषय में एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में महाबलि नामक एक राजा केरल में राज्य करता था। वह अपनी प्रजा से बहुत प्यार करता था। उसके राज्य में केरल धन-धान्य और सुख-शांति से पूर्ण था। प्रजा अपने राजा को भगवान् मानकर पूजती थी। महाबलि अपनी दानशीलता के लिए प्रसिद्ध था। देवताओं से महाबलि की लोकप्रियता देखी न गई। इंद्र की प्रार्थना पर विष्णु ने महाबलि को राज्य से हटाने की योजना बनाई।

भगवान् वामन का अवतार धारण कर महाबलि के पास गए। वे ब्राह्मण के वेश में थे। महाबलि के पास जाकर तीन पग भूमि तपस्या करने के लिए दान में मांगी। दानी बलि ने बिना सोचे-समझे उसे इसकी अनुमति दे दी। तब वामन ने विराट् रूप धारण कर दो पगों में ही भूलोक और स्वर्गलोक दोनों नाप लिए। तीसरा पग रखने के लिए जगह ही न बची। महाबलि ने

अपना वचन पूरा करने के लिए अपना सिर विष्णु के सम्मुख कर दिया। विष्णु ने महाबलि को पाताल लोक में रहने के लिए कहा। पाताल जाते समय उन्होंने भगवान् से प्रार्थना की कि उसे वर्ष में एक बार अपनी प्रजा के सुख-दुःख देखने का अवसर दिया जाए। भगवान् ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। केरल निवासी अपने राजा के आगमन के उपलक्ष्य में ओणम के रूप में अपने हृदय की प्रसन्नता बिखेरते हैं।

ऐसा माना जाता है कि श्रावण मास के श्रवण नक्षत्र में, जिसे मलयालम में ‘ओणम’ नक्षत्र कहते हैं, प्रति वर्ष महाबलि अपनी प्रजा का हाल देखने आते हैं। यही कारण है कि केरलवासी उस -दिन अपने उल्लास का ऐसा दृश्य उपस्थित करते हैं, जिससे महाबलि अपनी प्रजा को सुखी देखकर संतुष्ट हो सकें। इस पर्व पर विष्णु के साथ महाबलि की पूजा का भी विधान है।

ओणम उत्सव की रंगीनियों में केरल का जीवन नाचता-सा मालूम होता है। ओणम के दिनों में धनाढ्यों के भंडार गरीबों के लिए खुल जाते हैं। ओणम के अवसर पर केरल के सुमधुर गीत, मोह नृत्य-नाटिकाएँ, सुरुचिपूर्ण शृंगार, कलाप्रियता, हाथियों के जलूस, मंदिरों के देवोत्सव सभी अपने चरम उत्कर्ष पर होते हैं।

ओणम के दिनों में केरल के बालक-बालिकाएँ नहा-धोकर और नए वस्त्र पहनकर, हाथों में टोकरियाँ लिए फूल तोड़ने निकल ।पड़ते हैं। गृहणियाँ इन फूलों से घर के आँगन में कलात्मक रंगोली ।बनाती हैं। रंगोली के बीच में विष्णु और महाबलि की मूर्तियों की स्थापना होती है। लोग फूल, अक्षत, नैवेद्य, रोली, सुपारी, लौंग और नारियल चढ़ाकर उनकी पूजा-अर्चना करते हैं।

इस उत्सव पर नावों की प्रतियोगिता होती है। सभी वर्ग के लोग इस नौकोत्सव में बड़े उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं। यों तो यह नौका प्रतियोगिता अनेक स्थानों पर होती है, पर एरणाकुलम और कोचीन के बीच में स्थित वेपनाटु कायल झील में जो प्रतियोगिता होती है, वह अपने ढंग की अनूठी होती है। ये नावें विविध आकार प्रकार की होती हैं और खूब सजी होती हैं। ऐसा लगता है, मानो नावों पर स्वर्ग उतर आया हो।

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9. ईद

त्योहारों का हमारे जीवन में विशेष महत्त्व है। त्योहारों के मनाने से हमारा जीवन नीरस होने से बचा रहता है। प्रकृति ने तो अपनी विविधता का प्रबंध कर ही रखा है, पर समाज ने भी, जीवन में ताजगी बनाए रखने के लिए पर्व एवं त्योहारों का चक्र बना रखा है। इससे सामाजिक जीवन में विशेष चहल-पहल आ जाती है।

हमारे अधिकांश त्योहारों का संबंध धर्म के साथ जुड़ा हुआ है। हिन्दुओं में होली, दीपावली, दशहरा आदि का विशेष महत्त्व है तो ईसाईयों में क्रिसमस का मुख्य स्थान है। मुसलमानों में जो त्योहार मनाए जाते हैं, उनमें ईद सर्वाधिक महत्त्व का त्योहार है। यह त्योहार सपी मुसलमानों को परोपकार एवं भाईचारे का संदेश देता है।

ईद से पूर्व रमजान का महीना होता है। मुसलमान इस पूरे महीने भर रोजे रखते हैं। वे अपना सारा समय ईश्वर आराधना में व्यतीत करते हैं। बुरे कार्यों के प्रति सतर्क रहते हैं। इस मास में वे शरीर और मन पर बड़ा अंकुश रखते हैं। दिन में खाना तो दूर पानी तक पीना वर्जित होता है।

रोजे खत्म होने के बाद ईद आती है। इसे ‘ईद-उल-फितर’ कहते हैं। ईद’ शब्द का अर्थ है – लौटना और ‘फितर’ शब्द का अर्थ है – खाना-पीना। मुसलमान भाई एक मास तक रोजा (व्रत) रखने के बाद ईद के दिन खाना-पीना शुरू करते हैं। ईद के दिन घरों में हर प्रकार से उल्लास मनाया जाता है। इस दिन घर में भाँति-भांति की मीठी सेवइयाँ पकती हैं और उन्हें लोगों में प्रसन्नतापूर्वक बाँटा जाता है। इसी कारण इस त्योहार को मीठी ईद भी कहते हैं।

ईद के दिन मुसलमान सूरज निकलने के बाद नमाज पढ़ते हैं। वे ईश्वर को धन्यवाद देते हैं कि उसकी मेहरबानी से वे रमजान का व्रत रखने में सफल हो गए। वे अपने अपराधों के लिए खुदा से क्षमा याचना भी करते हैं। इस दिन वे गरीबों को खूब दान देते हैं। ईद के दिन संसार की मस्जिदों में खूब भीड़ होती है। उस दिन की सामूहिक नमाज का दृश्य देखने योग्य होता है। हजारों लोग पंक्तियों में खड़े होकर और बैठकर नमाज पढ़ते हैं। नमाज के बाद वे एक-दूसरे के गले मिलते हैं। सभी धर्म वाले उन्हें ‘ईद मुबारक’ कहकर गले मिलते हैं। ईद का त्योहार प्रेम और सद्भावना का

त्योहार है। इसे सब धर्मों के लोगों को मिल-जुल कर मनाना चाहिए। इस दिन मुसलमान वर्ष भर का वैर-भाव भुलाकर एक-दूसरे ।को गले लगाते हैं। सभी धर्म वाले उन्हें ‘ईद मुबारक’ कहकर गले ।मिलते हैं। ईद का त्योहार प्रेम और सद्भावना का त्योहार है। इसे ।सब धर्मों के लोगों को मिल-जुलकर मनाना चाहिए। इस दिन ।मुसलमान वर्ष भर का वैर-भाव भुलाकर एक-दूसरे को गले लगाते हैं। यह त्योहार सभी के लिए प्रसन्नता का संदेश लाता है।

बच्चों में विशेष उत्साह देखने को मिलता है। इस अवसर पर उनके लिए नए कपड़े सिलवाए जाते हैं। ईदगाह के पास मेलों का आयोजन किया जाता है। इस दिन सब अपनी चिंताएँ भूलकर प्रसन्नता के सागर में डूब जाते हैं। हम सब भारतीयों को ईद का त्योहार आपस में मिल-जुलकर मनाना चाहिए। इससे साम्प्रदायिक सद्भाव बढ़ता है और राष्ट्रीय एकता की भावना मजबूत होती है।

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10. क्रिसमस

क्रिसमस का त्योहार सारे विश्व में अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता है। यह ईसाइयों का प्रमुख त्योहार है। यह प्रति वर्ष 25 दिसंबर को मनाया जाता है। क्रिसमस का त्योहार नव वर्ष तक चलता है।

यह दिन महात्मा ईसा मसीह के जन्म दिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। आज से लगभग 2000 ई.पू. महात्मा ईसा का जन्म बेथलेहम नामक स्थान पर हुआ था। यह स्थान भूमध्य सागर के पश्चिमी तट के निकट फिलिस्तीन में है। तब यहाँ यहूदी लोग रहते थे लेकिन देश रोम साम्राज्य के अधीन था। ईसा के माता-पिता (मेरी-जांसफ) को जनगणना कराने के लिए बेथलेहम जाना पड़ा। वे रात बिताने के लिए एक अस्तबल में ठहरे।

उसी रात मेरी ने एक बालक को जन्म दिया। इस बालक का नाम जीसस रखा गया। यही बालक आगे चलकर ईसा मसीह के नाम से प्रसिद्ध हुआ। ईसा मसीह ने लोगों को प्रेम एवं भाई-चारे का संदेश दिया। उन्होंने अपने धर्म की नींव प्रेम और क्षमा पर रखी।

ईसा मसीह के अनुयायी उनका जन्म दिन प्रति वर्ष क्रिसमस के रूप में अत्यंत उल्लासपूर्वक मनाते हैं। कई दिन पहले से गिरजाघरों को सजाना प्रारंभ कर दिया जाता है। बाजारों में खूब चहल-पहल रहती है। लोग अपने प्रियजनों के लिए सुन्दर उपहार खरीदते हैं। इस अवसर पर ‘ग्रीटिंग कार्ड’ भेजने की भी प्रथा है। बच्चों और स्त्री-पुरुषों को नए-नए वस्त्र पहनने का शौक होता है। घरों को भी खूब सजाया जाता है। घर के एक कोने में ‘क्रिसमस ट्री’ बनाया जाता है। एक बूढ़ा व्यक्ति सांताक्लाज बच्चों के लिए मिठाइयाँ एवं उपहार लेकर आता है।

अर्ध रात्रि के समय चर्च की घंटियाँ बज उठती हैं। सभी लोग हर्ष एवं उल्लास से झूम उठते हैं। केक काटकर ईसा मसीह का जन्म दिन मनाया जाता है। चर्च में प्रार्थना की जाती है। बच्चों को खाने के लिए केक और मिठाइयाँ मिलती हैं। उनकी खुशी देखते के अनुयायी मिल-जुलकर मनाते हैं। इससे एकता की भावना बढ़ती है। इस दिन हमें ईसामसीह के उपदेशों का स्मरण कर उन पर चलने का प्रण करना चाहिए।

वस्तुतः क्रिमस मनाने का मूल उद्देश्य महान संत ईसामसीह का पावन स्मरण है, जो दया, प्रेम, क्षमा और धैर्य के अवतार थे। संसार में ईसामसीह के दिव्य संदेश से हर व्यक्ति को विश्व शांति की प्रेरणा प्राप्त होती है।

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11. राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी

महात्मा गांधी उन महान् आत्माओं में से एक हैं जिन्होंने अपने नि:स्वार्थ कार्यों से विश्व में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया। गांधी जी का जीवन भारतीय इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ है। वे भारतीय स्वतन्त्रता के अग्रदूत थे। उन्होंने सत्य और अहिंसा का मार्ग अपनाकर ब्रिटिश शासन की नींव को हिलाकर रख दिया था। उन्हें सारा संसार महात्मा गांधी के नाम से जानता है। भारतवासी श्रद्धा वश उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ और प्यार से ‘बापू’ कहते हैं।

गांधी जी का जन्म 2 अक्तूबर, 1869 ई. को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ। इनके बचपन का नाम मोहन दास था और इनके पिता का नाम कर्मचन्द था। अत: इनका पूरा नाम मोहन दास कर्मचन्द गाँधी था। उनके पिता राजकोट के दीवान थे। भारत में प्रारम्भिक शिक्षा पूरी करने के उपरांत इन्हें बैरिस्टरी पढ़ने के लिए इंग्लैण्ड भेजा गया। गाँधी जी ने इंग्लैंड में सादा जीवन बिताया। वे विलायत से वकालत की डिग्री लेकर भारत लौटे। इन्होंने मुंबई में प्रैक्टिस शुरू कर दी।

वे झूठे मुकदमें नहीं लेते थे, अतः उनके पास कम मुकदमे आते थे। एक बार एक मुकदर्म के सिलसिले में इन्हें दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहाँ उन्होंने गोरों द्वारा भारतीयों के अमानवीय व्यवहार को स्वयं देखा। इससे उनके हृदय को गहरा आघात पहुंचा। यहीं उन्होंने सबसे पहले सत्याग्रह का सफल प्रयोग किया।

सन् 1915 ई. में गांधी जी भारत लौट आए। उन्होंने भारतीयों को अंग्रेजों के विरुद्ध संगठित किया। सन् 1919 ई. के ‘जलियांवाला बाग हत्याकांड’ का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। सन् 1920 ई. में उन्होंने ‘असहयोग आन्दोलन’ छेड़ दिया। इसी कड़ी में उन्होंने 1930 का प्रसिद्ध ‘नमक सत्याग्रह’ किया। सन् 1942 ई. में गांधी जी ने ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा देकर संघर्ष का बिगुल बजा दिया। गांधी जी को अनेकों बार जेल की यात्रा करनी पड़ी।

अन्तत: 15 अगस्त, 1947 ई. को भारत स्वतंत्र हो गया। भारत विभाजन के परिणामस्वरूप सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, अतः शांति स्थापित करने के लिए उन्हें अनशन करना पड़ा। 30 जनवरी, 1948 ई. को प्रार्थना सभा में नाथूराम गोड्से ने उन्हें गोली मारकर इस संसार से विदा कर दिया। गांधी जी के मुख से अंतिम शब्द ‘हे राम’ निकले। इस प्रकार वे ऋषियों की परंपरा में जा मिले।

गांधी जी सत्य और अहिंसा के पुजारी थे। वे सत्य को ईश्वर मानते थे। उनकी अहिंसा दुर्बल व्यक्ति की अहिंसा न थी। उनके पीछे आत्मिक बल था। वे अन्याय और अत्याचार के सामने कभी नहीं झुके। वे साध्य और साधन दोनों की पवित्रता पर बल देते थे।

गांधी जी सब मनुष्यों को एक समान मानते थे। धर्म, संप्रदाय, रंग आदि के आधार पर होने वाले भेदभाव को वे कलंक मानते थे। उन्होंने समाज-सुधार के अनेक कार्य किए। हरिजनोद्धार उनका प्रमुख आंदोलन था। उन्होंने हरिजनों को समाज में प्रतिष्ठा दिलवाई। स्त्री-शिक्षा के वे सबसे बड़े हिमायती थे। उन्होंने बाल-विवाह, सती प्रथा, पर्दा प्रथा आदि का डटकर विरोध किया। उन्होंने समाज में महिलाओं को बराबरी का दरजा प्रदान किया।

भारतवासियों के हृदयों में गांधी जी के प्रति असीम श्रद्धा भावना है। उनका नाम अत्यंत आदर के साथ लिया जाता है। उनकी मृत्यु पर पं. नेहरू ने कहा था – “हमारी जिंदगी में जो ज्योति थी, वह बुझ गई और अब चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा है।”

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12. नेताजी सुभाषचंद्र बोस

देश के स्वाधीनता आंदोलन के महान सेनानियों में नेताजी सुभाषचंद्र बोस का नाम अत्यंत गर्व के साथ लिया जाता है। इस महान् पुरुष का व्यक्तित्व प्रारंभ से ही ओजस्वी और वीरतापूर्ण रहा। अन्याय और अत्याचार को सहन करना उनके स्वभाव के विरुद्ध था। देश को आजाद कराने के लिए वे किसी भी कुर्बानी को बड़ा नहीं मानते थे। 1857 के बाद पहली बार भारतीयों की सेना को संगठित करके देश से विदेशी सत्ता को समूल उखाड़ फेंकने का प्रयत्न उसी वीर ने किया। उनका ‘जयहिंद’ का नारा देश के कोटि-कोटि कंठों में गूंजने लगा।

सुभाषचंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 ई. को उड़ीसा ।के कटक नगर में हुआ। वे बचपन से ही बहुत मेधावी थे। उन्होंने कोलकाता विश्वविदयालय से बी.ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। पिता की इच्छा का सम्मान करके उन्होंने इंग्लैंड से ।आई.सी.एस. की परीक्षा सम्मानपूर्वक उत्तीर्ण तो कर ली, पर ।अंग्रेजों की नौकरी करना स्वीकार नहीं किया।

सभाष बाब ने स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़ने का निश्चय किया। उन्होंने देशबंधु चितरंजनदास को अपना राजनीतिक गुरु ।बनाया। ‘प्रिंस ऑफ वेल्स’ के स्वागत समारोह का बहिष्कार ।करने में उन्होंने अपनी अद्भुत संगठन क्षमता का परिचय दिया।

सुभाषचंद्र क्रांतिकारियों के निरंतर संपर्क में रहे। उन्हें 1938 और 1939 में कांग्रेस का अध्यक्ष भी चुना गया। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 1941 में वे अंग्रेजों की आँखों में धूल झोंककर भारत से बाहर निकल गए। उन्होंने जर्मनी में हिटलर से भेंट की। वे सिंगापुर चले गए। वहाँ पहुंचकर भारतीय सैनिकों को जापानियों के कब्जे से मुक्त कराया और आजाद हिंद फौज’ का गठन किया। भारत के स्वाधीनता संग्राम के लिए किए गए प्रयत्नों में ‘आजाद हिंद फौज’ का नाम विशेष उल्लेखनीय है। इस फौज के गठन की विधिवत् घोषणा 5 जुलाई, 1942 को की गई।

सुभाष बाबू की इस आजाद हिंद फौज ने ब्रिटिश सैनिकों के विरुद्ध अनेक मोर्चा पर युद्ध किया। युद्ध में विजय प्राप्त करती हुई यह सेना वर्मा की ओर से कई जगह भारत की सीमाओं के अंदर पहुँच गई; जहाँ तिरंगा झंडा गाड़कर आजादी घोषित कर दी गई। सुभाष बोस ने कहा था – “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।” अनेक स्थानों पर इस फोज की जीत होने लगी। 1945 में युद्ध का पासा पलटने लगा और मित्र राष्ट्रों की विजय होने लगी। जगह-जगह अंग्रेजों को विजय मिलने से आजाद हिंद फौज को पीछे हटना पड़ा।

भारतमाता और उसकी संतानों को आजाद कराने के लिए सुभाषचंद्र बोस ने जीवन के अंतिम सांस तक अपने युद्ध को जारी रखा। स्वतंत्रता आंदोलन में उनका योगदान सराहनीय रहा। इसे भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित किया गया है। 1997 में उनकी जन्म शताब्दी अत्यंत समारोहपूर्वक मनाई गई। उनका अमर बलिदान भारतीय स्वातंत्र्य-संघर्ष के इतिहास में सदा आदर के साथ याद किया जाता रहेगा।

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13. वसंत ऋतु

भारत त्रातुओं का देश है। यहाँ वर्षा, शरद, हेमंत, शीत, वसंत और ग्रीष्म छः ऋतुएं होती हैं। इन सभी ऋतुओं में वसंत ऋतु का सर्वाधिक महत्त्व है, इसीलिए वसंत को ‘ऋतुराज’ कहा जाता है। वसंत ऋतु का आगमन शीत ऋतु के उपरांत होता है। पौराणिक मतानुसार वसंत को कामदेव का पुत्र बताया जाता है। वसंत के आगमन पर प्रकृति अपनी सज-धज के साथ उसका स्वागत करती है। वसंत ऋतु में प्रकृति की नैसर्गिक सुंदरता अपने उत्कर्ष पर होती वसंत का प्रारंभ मधुमास से होता है।

वसंत का स्वागत करने के लिए पेड़-पौधे अपने पुराने पत्तों रूपी वस्त्रों को त्यागकर नए पत्ते धारण कर लेते हैं। सभी ओर वन और उपवन नए रूप में दिखाई देने लगते हैं। प्रकृति में सर्वत्र हरीतिमा का साम्राज्य होता है। रंग-बिरंगे फूलों पर भ्रमरों की गुंजार मन मोहक लगती है। रंग-बिरंगी तितलियाँ फूलों पर लहराने लगती हैं। खेतों में सरसों के फूल लहराने लगते हैं। वसंत ऋतु में आम के वृक्षों पर मंजरी आ जाती है, उसकी सुगंध से सभी वन-उपवन महकने लगते हैं।

वसंत ऋतु की छटा को देखकर जड़-चेतन सभी के मन में उल्लास छा जाता है। कवि अपनी नई-नई कल्पनाएँ करते हैं। कवियों ने अपनी कल्पना एवं अनुभूतियों से वसंत की अनेक प्रकार से महिमा गाई है। श्री सर्वेश्वरदयाल सक्सेना ने तो वसंत को महन्त का रूपक दे दिया :
“आए महतं वसंत।
मखमल के झूल पड़े, हाथी-सा टोला,
बैठे किशुक छत्र लगा बाँध पाग पीला,
चंवर सदृश डोल रहे सरसों के सर अनंत।”
कवि भावुक हृदय होते हैं और वसंत ऋतु उनकी प्रसुप्त भावनाओं को जगा देती है।

वसंत ऋतु में वसंत पंचमी को वसंतोत्सव मनाया जाता है। वसंत पंचमी को ही ज्ञान की देवी सरस्वती का जन्मोत्सव भी मनाया जाता है। रंगों का पर्व होली भी वसंत ऋतु का मस्ती से भरा पर्व है। इस दिन सभी लोग अपनी भेद-भावना भुलाकर परस्पर होली खेलते हैं और मानवीय एकता का परिचय देते हैं। वसंत ऋतु केवल भारत में ही नहीं संसार में सभी को आनंद देती है। इसलिए वसंत संसार की सबसे प्रिय ऋतु है। इस ऋतु में न अधिक सरदी होती है और न अधिक गरमी होती है। ऐसे समशीतोष्ण समय में प्रकृति सज-धज के साथ अपना सौंदर्य दिखाती है और सभी को अपने सौंदर्य से मोह लेती है।

वसंत ऋतु हमारे जीवन में नई प्रेरणा देती है। मनुष्यों को भी वसंत ऋतु से प्रेरणा लेकर अपने जीवन में आनंद भरना चाहिए और अपने जीवन को सुखमय बनाने के लिए प्रयत्नशील हो जाना चाहिए। इसी में वसंत ऋतु की सच्ची सार्थकता है।

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14. वर्षा ऋतु

भारत में छः ऋतुएँ होती हैं – वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, – हेमंत और शिशिर। वर्षा ऋतु श्रावण और भाद्र (जुलाई-अगस्त) के महीने में रहती है। भारत में इस ऋतु का बहुत महत्त्व है। इसी ऋतु में जल-वृष्टि होती है। इसी वर्षा पर हमारे देश की कृषि निर्भर है। ग्रीष्म ऋतु की तपन के पश्चात् वर्षा का आगमन बड़ा सुखकर प्रतीत होता है।

जून मास में पृथ्वी तवे के समान जलने लगती है। कवि श्रीधर पाठक जेठ मास की गरमी की भीषणता का चित्रण करते हुए लिखते हैं :
‘जेठ के दारुण आतप से,
तप के जगती-तल जावै जला’
इसके पश्चात् हम आकाश की ओर देखने लग जाते हैं। सहसा उमड़ते-घुमड़ते मेघों को देखकर हमारा हृदय उल्लास से भर जाता है।

वर्षा-ऋतु का सौंदर्य इतना मनोहारी होता है कि अनेक कवियों ने उत्साह के साथ इसका वर्णन किया है। ‘रामचरितमानस’ में गोस्वामी तुलसीदास वर्षा का वर्णन इन शब्दों में करते हैं :
वर्षाकाल मेघ नभ छाए। गरजत लागत परम सुहाए।
दामिनि दमक रही घन माहीं खल की प्रीति जथा थिर नाही
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र वर्षा-वर्णन इस प्रकार करते हैं :
कूर्क लगी कोइलें कदंबन पै बैठि फेरि,
धोए-धोए पात हिलि-हिलि सरसै लगे।
फेरि झूमि-झूमि बरषा की ऋतु आई फेरि,
बादर निगोरे झुकि-झुकि बरसै लगे।

वर्षा के आरंभ होते ही कृषि-कार्य आरंभ हो जाता है। गाँवों में नया जीवन जाग उठता है। भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहाँ की अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। वर्षा न होने पर सर्वत्र त्राहि-त्राहि मच जाती है। किसान बादलों को पुकारता है-
“ओ धरती के वीर,
तुझे बुलाता कृषक अधीर।”

वर्षा ऋतु में कभी मूसलाधार वृष्टि हुआ करती है। ऐसी स्थिति में चारों ओर जल ही जल दिखाई देता है। नदियाँ, तालाब, झीलें आदि सब जल से उमड़ने लगते हैं। बच्चे आनंदमग्न होकर जल-क्रीड़ा करते हैं। वर्षा में दादुर शोर मचाते हैं, मयूर नृत्य करते हैं और कोयलें कूकने लगती हैं।

हमारा पूरा जीवन वर्षा पर ही आधारित है। वर्षा ऋतु में हम अनेक त्योहार मनाते हैं। इनमें रक्षाबंधन और जन्माष्टमी प्रमुख हैं। स्वतंत्रता दिवस भी इसी ऋतु में आता है। वर्षा ऋतु का उल्लास ग्रामीण युवतियों के झूला-झूलने, गीत गाने आदि में झलकता है। यह ऋतु हमें जीवन के सौंदर्य और कर्म की प्रेरणा देती है।

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15. दिल्ली के दर्शनीय स्थल

दिल्ली भारतवर्ष की राजधानी है। देश के बड़े नगरों में इसकी गणना की जाती है। दिल्ली का ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष महत्त्व है। सबसे पहले महाभारत काल में दिल्ली को पांडवों ने इन्द्रप्रस्थ के रूप में बसाया था। चिड़ियाघर के पास पांडवों का किला पुराने किले के नाम से प्रसिद्ध है। पृथ्वीराज चौहान, मुगल शासक, अंग्रेजी शासकों का भी दिल्ली पर आधिपत्य रहा। 15 अगस्त, 1947 से दिल्ली स्वतंत्र राष्ट्र भारत की राजधानी है। ऐतिहासिक, धार्मिक स्थानों के कारण दिल्ली दर्शनीय है।।

दिल्ली में अनेक दर्शनीय स्थल हैं, जिन्हें देखने के लिए प्रतिदिन हजारों देशी-विदेशी दर्शक आते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख निम्न हैं:
लाल किला :
मुगल काल का प्रतीक लाल पत्थर से बना विशाल प्राचीर वाला लाल किला यमुना नदी के किनारे स्थित है। प्रति वर्ष स्वतंत्रता दिवस को लाल किले के प्राचीर पर राष्ट्रीय ध्वजारोहण होता है तथा प्रधानमंत्री राष्ट्र को संबोधित करते हैं। लाल किले में दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास सुंदर भवन हैं। लाल किला वास्तुकला का अप्रतिम उदाहरण है।

जामा मस्जिद :
जामा मस्जिद भी मुगल कालीन वास्तुकला का अप्रतिम नमूना है। लाल किले के सामने स्थित इस मस्जिद में हजारों लोग एक साथ नमाज पढ़ सकते हैं।

पुराना किला :
चिड़ियाघर के पास पुराना किला स्थित है। कहा जाता है कि इसे पांडवों ने बनवाया था। इसके पीछे भैरो का प्राचीन मंदिर है।

इंडिया गेट :
स्वाधीनता संग्राम के शहीदों की स्मृति में बना इंडिया गेट दिल्ली का महत्त्वपूर्ण दर्शनीय स्थान है। यहाँ विजय चौक से गणतंत्र दिवस की परेड प्रारंभ होती है। यहाँ पर लोग भ्रमण के साथ नौका-विहार का आनंद भी लेते हैं।

कुतुब मीनार : महरौली स्थित कुतुब मीनार एक सुंदर पर्यटन स्थल है। इसके पास चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का बनवाया हुआ लौह स्तंभ भी है। इस पर जंग नहीं लगता। इसे देखकर आज के वैज्ञानिक भी आश्चर्यचकित हैं।

चिड़ियाघर : पुराने किले के समीप विशाल चिड़ियाघर है। यहाँ बड़े क्षेत्रफल में अनेक देशी-विदेशी पशु-पक्षी रहते हैं। इन चित्र-विचित्र जीवों को देखकर सभी आबाल वृद्ध आनन्दित होते हैं।

इनके अतिरिक्त दिल्ली के दर्शनीय स्थानों में कनॉट प्लेस, चाँदनी चौक प्रमुख हैं जहाँ लोग मौजमस्ती के साथ खरीदारी करते हैं। कनाट प्लेस में पालिका बाजार भी देखने योग्य है। प्रगति मैदान में प्रति वर्ष अन्तरराष्ट्रीय व्यापार मेला लगता है, जहाँ अनेक देशी-विदेशी व्यापारी एवं दर्शक आते हैं।

गुरुद्वारा शीशगंज, गुरुद्वारा रकाबगंज, लोटस टेम्पल, श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर, छतरपुर मंदिर भी दर्शनीय स्थल हैं जहाँ हजारों भक्त श्रद्धा के साथ जाते हैं। राजघाट, शांति वन, विजय घाट, शक्ति स्थल, राष्ट्रीय नेताओं की समाधियाँ हैं जहाँ हजारों लोग प्रतिदिन श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। राष्ट्रपति भवन, संसद् भवन आदि भी महत्त्वपूर्ण दर्शनीय स्थल हैं।

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16. हमारा देश भारत सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।’

कवि इकबाल की यह पंक्ति प्रत्येक भारतवासी के मन में गौरव का संचार कर देती है। भारत विश्व का प्राचीनतम देश है। प्राचीन काल में भी यहाँ संस्कृति और सभ्यता सर्वोच्च शिखर पर थी। ज्ञान के स्रोत वेदों का प्रादुर्भाव इसी धरती पर हुआ। अपने ज्ञान एवं सांस्कृतिक उच्चादशों के कारण भारत विश्वगुरु की संज्ञा से अभिहित था। दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा। अपने आदर्श एवं आध्यात्मिक मूल्यों के कारण भारत की संस्कृति एवं सभ्यता आज भी विद्यमान है।

भारत भौगोलिक दृष्टि से विश्व के उत्तर पूर्वी गोलार्ध में स्थित है। भूमध्य रेखा के समीप स्थित होने के कारण यहाँ समशीतोष्ण जलवायु पाई जाती है। भारत के उत्तर में हिमालय जैसा विशाल पर्वत है तो दक्षिण में हिंद महासागर इसके पद प्रक्षालन करता है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा पश्चिम में अरब सागर है। तीन ओर से समुद्र से घिरा होने के कारण यहाँ सम जलवायु पाई जाती है। यहाँ विभिन्न ऋतुएं होने के कारण अनेक धन-धान्य पाए जाते हैं।

भारत में लोहा, कोयला, अभ्रक, ताँबा आदि खनिजों के विशाल भंडार हैं। भारत के उत्तर में ठण्डी जलवायु पाई जाती है तो दक्षिण में सम जलवायु पाई जाती है। भारत के पश्चिमी तट पर भारी वर्षा होती है तो राजस्थान वर्षारहित क्षेत्र में सूखा रह जाता है। यहाँ गंगा, यमुना, गोमती, ब्रह्मपुत्र, कृष्णा, कावेरी आदि नदियाँ अपना अमृतमय जल देकर भारत को सौंचती हैं। अनेक धर्म, संप्रदाय, जाति, भाषा, प्रांतों के लोग यहाँ रहते हैं। इसी विशेषता पर संसार को आश्चर्य है – अनेकता में एकता, भारत की विशेषता।

प्राचीन काल से ही भारत अपने ज्ञान, संस्कृति, व्यापार आदि के लिए प्रसिद्ध रहा है। आज भी हमने बहुमुखी उन्नति की है। हमने पृथ्वी, अग्नि, नाग, त्रिशूल आदि के सफल परीक्षण किए हैं और सिद्ध किया है कि वैज्ञानिक प्रगति में हम किसी देश से पीछे नहीं हैं। जहाँ पहले हम छोटी-मोटी चीजें भी विदेशों से मंगाते थे, वहाँ आज हम बड़ी-बड़ी मशीनें निर्यात करते हैं।

भारत राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, नानक, मीरा, तुलसी, विवेकानन्द, दयानन्द सरस्वती, गांधी जैसे महापुरुषों की भूमि है। हम सभी धर्मों का सम्मान करते हुए आपस में प्रेमपूर्वक रहें। देश की अखंडता एवं एकता के लिए यदि आवश्यक हो तो हम अपने प्राणों की बाजी भी लगा दें। यही मेरा और मेरे सपनों का भारत है। यही मेरी मातृभूमि है जिस पर हम अपना सर्वस्व बलिदान कर सकते हैं:
“ऐसी मातृभूमि है मेरी स्वर्गलोक से भी प्यारी, इसके पद कमलों पर मेरा तन, मन, धन सब बलिहारी।”

17. मेरा जीवन लक्ष्य

मानव की प्रवृत्ति है कि वह अपने जीवन में कुछ न कुछ बनने के स्वप्न देखता है। अपने सपनों को साकार करने के लिए वह निरंतर परिश्रम करता है। इस प्रक्रिया में कुछ स्वज तो स्वप्न ही रह जाते हैं किंतु कुछ स्वप्न साकार भी हो जाते हैं। जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मनुष्य में अदम्य उत्साह, दृढ़ निश्चय, कठोर परिश्रम के गुण तीनों चाहिए। मैं एक विद्यार्थी हूँ और मेरी जीवन यात्रा काफी लंबी है। मैंने अपने जीवन में एक सफल डॉक्टर बनने का स्वप्न देखा है।

मैं डॉक्टर क्यों बनना चाहता हूँ ? इसके पीछे कई कारण हैं। मैंने प्रायः देखा है कि डॉक्टर का व्यवसाय आजकल सेवा-भाव से दूर होता जा रहा है। यह व्यवसाय केवल आर्थिक लाभ के लिए किया जा रहा है। मानवता की सेवा इसमें कहीं नहीं दिखाई देती है। डॉक्टर लोग निर्धन, दीन, हीन रोगियों से भी अपार धनराशि वसूल करना चाहते हैं। धन के अभाव में इस व्यवसाय से निराश लोग या तो इलाज न होने से मर जाते हैं या कहीं छोटे-मोटे झोला डॉक्टरों के चंगुल में फंस जाते हैं।

भारत के गांवों की दशा तो और भी दयनीय है। प्रायः गाँवों में अनुभवी डॉक्टर नहीं हैं। यदि पास के नगरों में हैं भी तो वे ग्रामीण एवं निर्धनों का शोषण करते हैं। इस शोषण से परेशान ग्रामीण जनता इलाज से वंचित रह जाती है और अनेक व्यक्ति काल कवलित हो जाते हैं। इन जानकर मेरे हृदय में अपार वेदनाभूति होती है। मैं चाहता हूँ कि में एक सच्चा चिकित्सक बनकर मानवता की सच्ची सेवा करूँ। इसलिए मैंने सोचा है कि भविष्य में मैं चिकित्सक बनना चाहूँगा तथा ग्रामीण क्षेत्र में रहकर गरीबों की सच्ची सेवा करूंगा।

अपने जीवन लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मैं अभी से परिश्रम पूर्वक और दृढ़ निश्चय होकर पढ़ रहा हूँ। मैं जानता हूँ कि डॉक्टर बनने के लिए बहुत परिश्रम करना पड़ता है और कंपटीशन पास करके एम.बी.बी.एस. में प्रवेश लेना भी आसान नहीं है। मैं निराशावादी नहीं हूँ इसलिए कठोर परिश्रम कर रहा हूँ।

ईश्वर की कृपा एवं गुरुजनों का आशीर्वाद मुझे सदैव प्रेरित करते रहते हैं। उनकी कृपा से यदि मेरा डॉक्टर बनने का स्वप्न पूरा हो गया तो मैं गाँव में जाकर अपना क्लीनिक खोलूँगा। गरीब लोगों की नि:शुल्क चिकित्सा करूंगा। कम से कम लाभ कमाकर मानवता की सच्ची सेवा करूँगा।

अपने सेवा-भाव से लोगों में डाक्टरों के प्रति विश्वास पैदा करूँगा तथा प्रयास करूंगा कि मेरे गाँव का कोई भी रोगी शहर को चिकित्सा के लिए न जाए। चिकित्सा के लिए आवश्यक आधुनिक उपकरणों की अपने चिकित्सालय में व्यवस्था करूँगा तथा अनुभवी विशेषज्ञ डॉक्टरों की भी व्यवस्था करूँगा। ईश्वर से प्रार्थना है कि वह मुझे ऐसी शक्ति प्रदान करे कि मैं गांव के लोगों की सच्ची सेवा डॉक्टर बनकर कर सकूँ और रोगियों को नवजीवन प्रदान कर सकूँ।

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18. प्रदूषण – एक समस्या

प्रकृति एवं मनुष्य का अटूट संबंध है। प्रकृति ने मानव के सुखी समृद्ध जीवन के लिए अनगिनत सुविधाएँ प्रदान की हैं। मनुष्य का सुखी जीवन संतुलित प्राकृतिक पर्यावरण पर निर्भर करता है। मानव की बढ़ती जनसंख्या के कारण प्राकृतिक संतुलन असंतुलित हो रहा है। मनुष्य की बढ़ती हुई आवश्यकताएँ प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ रही हैं। पर्यावरण में दूषित तत्त्वों की मात्रा आवश्यकता से बढ़ जाती है और आवश्यक तत्वों की कमी हो जाती है तो पर्यावरण प्राणियों के लिए हानिकारक हो जाता है। अतः पर्यावरण का असंतुलन ही दूसरे अर्थ में प्रदूषण है।

आधुनिक मानव सभ्यता की बढ़ती आवश्यकताओं के कारण प्राकृतिक संतुलन बदल रहा है तथा प्रदूषण बढ़ रहा है। मानव की आवासीय, आयोगिक नगरीकरण, कृषि उत्पादन बढ़ाने की समस्याओं ने प्रकृति संतुलन को बिगाड़कर प्रदूषण को बढ़ाया है। यातायात साधनों ने भी प्रदूषण बढ़ाने में सहयोग किया है। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से वातावरण में ऑक्सीजन की कमी और कार्बन डाइ-आक्साइड की वृद्धि हो गई है। इसी प्रकार कूड़ा-करकट इधर-उधर फेंकने से जल, वायु, भूमि प्रदूषण को बढ़ावा मिला।

जोर से संगीत सुनने, हॉर्न बजाने से ध्वनि प्रदूषण बढ़ा। इस प्रकार किसी भी प्रकार के प्रदूषण को बढ़ाने में कहीं न कहीं मनुष्य का ही हाथ रहा है। अपने सुखी जीवन के लिए इस प्रदूषण से मुक्ति पानी होगी। नहीं तो आज के प्रदूषित वातावरण में हम अपनी मृत्यु को स्वयं ही निमंत्रण दे रहे हैं। हमें इसका निराकरण अवश्य सोचना चाहिए।

जल सभी प्राणियों एवं पेड़-पौधों के लिए जीवनदायक तत्त्व है। इसमें अनेक कार्बनिक, अकार्बनिक खनिज तत्त्व एवं गैसें घुली होती हैं। ये तत्त्व जब असंतुलित मात्रा में जल में घुल जाते हैं तो जल प्रदूषित होकर हानिकारक हो जाता है। गंगा जैसी पवित्र नदी भी प्रदूषण मुक्त नहीं है। प्रदूषित जल से हैजा, टाइफाइड, पीलिया, आंत्रशोथ आदि रोगों को बढ़ावा मिलता है।

वायुमंडल में भी आवश्यक गैसें एक निश्चित अनुपात में मिश्रित हैं, परन्तु वायुमंडल में यदि ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाए और कार्बन डाइ-आक्साइड, सल्फर डाइ-आक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड की मात्रा बढ़ जाए तो वायु प्रदूषण बढ़ने लगता है। पैट्रोल और डीजल का धुआँ वायु प्रदूषण को फैलाता है, अतः इन ईंधनों के स्थान पर सी.एन. जी. के प्रयोग को बढ़ाया जा रहा है। भारत में सामान्य परिस्थिति में 33 प्रतिशत वन होने आवश्यक हैं परंतु इनकी प्रतिशतता केवल 19 प्रतिशत है। अत: वायु प्रदूषण की वृद्धि हो रही है। इसी प्रकार ध्वनि एवं भूमि प्रदूषण भी हमारे लिए हानिकारक हैं।

प्रदूषण की वृद्धि के लिए मुख्य रूप से मानव ही उत्तरदायी है। अत: इसका निराकरण भी उसे ही सोचना होगा। सबसे पहले उसे गंभीर रूप से अपने मानसिक प्रदूषण को हटाना होगा। व्यक्ति किसी भी प्रकार के प्रदूषण की चिन्ता ही नहीं करता। इसलिए गंभीर होकर हमें यातायात के प्रदूषण को रोकना होगा, वृक्षारोपण बढ़ाकर वन संवर्धन करना होगा, ऊंची आवाज वाले वाहनों पर रोक लगानी होगी, पेयजल को शुद्ध करना होगा, रासायनिक विस्फोट को रोकना होगा तथा अन्य उपाय करके मानव जीवन को प्रदूषण मुक्त बनाना होगा तभी मानव जीवन सुखमय हो सकता है।

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19. व्यायाम के लाभ

‘पहला सुख निरोगी काया’ उक्ति के अनुसार स्वस्थ शरीर मानव का सर्वोत्तम सुख है। यदि हमारा शरीर और मन दोनों स्वस्थ हैं तो सारे संसार के सुखों को भोगा जा सकता है, किन्तु शारीरिक या मानसिक अस्वस्थता से हमारा मानव जीवन भी अभिशाप बन जाता है। यदि हमारा शरीर स्वस्थ है तो स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क भी निवास करता है।

आज के प्रदूषित वातावरण में हमारे शरीर का स्वस्थ होना बहुत आवश्यक है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए प्रातः कालीन सैर तथा व्यायाम आवश्यक तत्त्व हैं। व्यायाम करने से हमारा शरीर चुस्त, फुर्तीला रहता है, अतः व्यायाम हमारे लिए बहुत लाभदायक है।

शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अनेक प्रकार के व्यायाम किए जा सकते हैं : प्रातः कालीन भ्रमण करना, दौड़ लगाना, विभिन्न प्रकार के खेल खेलना, पानी में तैरना, योगासन करना आदि। व्यायाम करते समय व्यक्ति को अपनी अवस्था एवं शारीरिक क्षमता का ध्यान रखकर व्यायाम का चुनाव करना चाहिए। किसी व्यायाम विशेषज्ञ के परामर्श से ही व्यायाम करना चाहिए। हमें ऐसे व्यायाम नहीं करने चाहिए जिन्हें हमारा शरीर स्वीकार न करता हो।

हर आयु वर्ग के लोगों को हल्के-फुल्के व्यायाम अवश्य ही करने चाहिए। विद्यार्थी जीवन में युवावस्था वाले व्यायाम करने चाहिए। इस आयु वर्ग में व्यायाम अति आवश्यक एवं उपयोगी होता है। युवावस्था में ही शरीर की आधारशिला बनती है। यदि युवावस्था में जीवन आलस्य में बिताया तो सारी उम्र का रोना रहेगा।

जो युवक या विद्यार्थी व्यायाम नहीं करते या खेल कूद में भाग नहीं लेते, उनका शरीर बेडौल हो जाता है, स्वास्थ्य बिगड़ जाता है, आँखें कमजोर हो जाती हैं। ऐसे लोग थोड़ा परिश्रम करने से थक जाते हैं और किसी भी कार्य में रुचि नहीं रहती। अत: मानव-जीवन में व्यायाम करना आवश्यक है।

व्यायाम प्रायः खुली और ताजी हवा में करना चाहिए। व्यायाम करते समय शरीर हल्का और पेट साफ होना चाहिए। प्रात:काल का समय तथा पार्क उपवन आदि का स्थान व्यायाम के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। भोजन के बाद व्यायाम नहीं करना चाहिए। अनुचित ढंग से किया गया व्यायाम लाभ की अपेक्षा हानि करता है। अच्छे परिणाम के लिए किसी योग्य व्यायाम प्रशिक्षक के निर्देशन में व्यायाम करना चाहिए।

व्यायाम हमारे शरीर को स्वस्थ और चुस्त बनाता है। व्यायाम से शारीरिक शक्ति बढ़ती है, रक्त का संचार होता है, पाचन शक्ति ठीक रहती है, शरीर पर मोटापा हावी नहीं होता, आलस्य दूर होता है और वृद्धावस्था का आक्रमण भी शीघ्र नहीं होता है। व्यायाम से हमारी आयु भी बढ़ जाती है। इस दृष्टि से बचपन से ही व्यायाम की आदत डालनी चाहिए। स्वस्थ शरीर के बारे में ठीक ही कहा गया है – ‘शरीरमायं खलु धर्म साधनम्।’

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20. आदर्श विद्यार्थी

विद्यार्थी का अर्थ होता है- विद्या ग्रहण करने वाला। (विद्या + अधी)। विद्यार्थी जीवन मनुष्य का सबसे सुन्दर, महत्त्वपूर्ण भाग कहा जा सकता है। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने जीवन को चार भागों में बाँटा था- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। इन चारों में ब्रह्मचर्य आश्रम को हम जीवन की नींव कह सकते हैं। यही काल विद्यार्थी जीवन है। यह वह काल है जब मनुष्य सांसारिक चिन्ताओं और कष्टों से परे रहकर विद्या प्राप्ति में अपना ध्यान लगाता है।

आदर्श विद्यार्थी प्रातः काल उठकर शौच आदि से निवृत्त होकर घूमने जाता है। वह खुले स्थान में व्यायाम भी करता है। वहाँ से लौटकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनता है। ठीक समय पर विद्यालय पहुँचता है। वह सभी अध्यापकों का आदर करता है और पढ़ाई में ध्यान लगाता है।

परन्तु यह सब होने मात्र से ही कोई विद्यार्थी आदर्श नहीं बन जाता। विद्यार्जन और सतर्कता आदर्श विद्यार्थी के गुण हैं। केवल पाठ्य-पुस्तकों पर आश्रित रहने से ही विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास नहीं होता। आदर्श विद्यार्थी पाठ्यक्रम से बाहर की पुस्तकें एवं पत्र-पत्रिकाएँ भी पढ़ता है। इससे उसका ज्ञान बढ़ता है। वह कूप-मंडूकता के दोष से बच जाता है।

आदर्श विद्यार्थी स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहता है। मन और मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए शरीर का स्वस्थ होना आवश्यक है। आदर्श विद्यार्थी नियमित रूप से व्यायाम करता है। वह काम के समय काम करता है और खेल के समय खेलता है।

आदर्श विद्यार्थी ‘सादा जीवन उच्च विचार’ में विश्वास रखता है। वह कभी फैशन के चक्कर में नहीं पड़ता। वह सदाचार और स्वावलंबन के आदर्श को अपने जीवन में उतारता है। आदर्श विद्यार्थी के गुण बताते हुए चाणक्य ने कहा है :
“काक चेष्टा बको ध्यान, स्वान निद्रा तथैव च।
अल्पाहारी गृहत्यागी विद्यार्थी एते पंच लक्षणम्॥”
अर्थात् विद्यार्थी को कौए के समान चेष्टाशील, बगुले के समान ध्यानरत, कुत्ते के समान सावधानं और कम निद्रा लेने वाला, कम खाने वाला तथा घर को त्याग कर विद्या लेने वाला होना चाहिए।

आदर्श विद्यार्थी समाज के प्रति अपने कर्तव्य का पालन करने में कभी पीछे नहीं रहता। वह निर्बलों की सहायता करता है। वह किसी भी प्रकार की तोड़-फोड़ से दूर रहता है। उसका दृष्टिकोण रचनात्मक होता है। वह अनुशासनप्रिय होता है। उसका व्यवहार प्रशंसनीय होता है। वह सब के साथ सहयोगात्मक दृष्टिकोण अपनाता है। छात्र जीवन साधना का जीवन है। वर्तमान समय में साधना का अभाव दिखाई देता है। बिना परिश्रम कुछ नहीं मिलता। आदर्श विद्यार्थी बनने के लिए कठोर साधना करनी पड़ती है। संस्कृत में कहा गया है :
“सुखार्थी त्यजेत विद्याम्, विद्यार्थी त्यजेत सुखम्।
सुखार्थिनः कुतो विद्या, विद्यार्थिनः कुतो सुखम्॥”

विद्यार्थी को विनम्र, अनुशासनप्रिय, जिज्ञासु, संयमी आदि गुणों से सम्पन्न होना चाहिए। विद्या हमें विनम्रता का पाठ पढ़ाती है- “विद्या ददाति विनयम”।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि आदर्श विद्यार्थी मानवीय गुणों से युक्त एवं संयमित जीवन बिताने वाला होता है।

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21. विद्यालय का वार्षिकोत्सव

वार्षिकोत्सव का अर्थ है – सालाना जलसा। प्रत्येक विद्यालय का यह सबसे बड़ा उत्सव होता है। हमारे विद्यालय का वार्षिकोत्सव प्रति वर्ष बैसाखी के दिन मनाया जाता है।

बैसाखी से पंद्रह दिन पहले ही हमने बड़े उत्साह से तैयारी आरंभ कर दी। हमारे कला अध्यापक जी सब की सम्मति से उत्सव के इंचार्ज बनाए गए। वे संगीत में बहुत कुशल हैं। नाटक का अभिनय कराना भी इन्हें खूब आता है। इन्होंने विद्यार्थियों को अलग-अलग कविताएं कंठस्थ करने के लिए कहा। एक विद्यार्थी को देशभक्ति का मधुर गीत स्मरण करने की आज्ञा दी। छ: विद्यार्थियों को लेकर एक एकांकी नाटक की तैयारी शुरू करवा दी। इसके अतिरिक्त इन्होंने विद्यालय के कमरों को चित्रों तथा आदर्श वाक्यों से सजाना शुरू करवा दिया।

दिल्ली के उपराज्यपाल महोदय ने हमारे विद्यालय के प्राचार्य की प्रार्थना पर उत्सव का अध्यक्ष बनना स्वीकार कर लिया। बैसाखी के दिन प्रात:काल ही विद्यार्थी सफेद कमीज ओर खाकी पैंट पहने दल-के-दल स्कूल की ओर चल पड़े। स्कूल की ओर आती हर सड़क पर विद्यार्थी ही दिखाई देते थे। स्कूल में खूब सफाई की गई थी। फूलों के गमलों से मागों को सजाया गया था। स्कूल के मुख्य द्वार पर स्कूल का बैंड बज रहा था। पी.टी.आई. छात्रों की कतारें बनवाने लगे। प्राचार्य महोदय ने अध्यापकों में अलग-अलग काम बाँट दिया।

ठीक आठ बजे अध्यक्ष महोदय की कार आ पहुँची। प्राचार्य जी ने अध्यापकों सहित आगे बढ़कर उनका स्वागत किया। उन्हें फूल-माला पहनाई। इसी समय स्कूल का बैंड गूंज उठा। अध्यक्ष के आने से पूर्व ही शिक्षाधिकारी महोदय भी आ गए थे।

सर्वप्रथम व्यायाम का प्रदर्शन हुआ। इसमें सभी विद्यार्थी शामिल थे। सभी को एक साथ काम करते देखकर अध्यक्ष जी बहुत प्रसन्न हुए। इसके बाद अध्यक्ष महोदय मंच पर पधारे। विद्यार्थियों ने ताली बजाकर उनका अभिनंदन किया। पंडाल में सभी विद्यार्थी एक ओर बैठ गए। दूसरी ओर अभिभावकगण बैठे थे।

प्राचार्य जी ने अध्यक्ष महोदय का परिचय कराया और उनके विद्या-प्रेम की प्रशंसा की। फिर उन्हें फूल माला पहनाई। इसके पश्चात् विद्यालय प्रगति की रिपोर्ट पढ़ी गई। अब सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करने की घोषणा की गई। सर्वप्रथम विद्यार्थियों ने मिलकर ईश्वर-भक्ति की कविता बोली। इसके बाद नाटक आरम्भ हुआ। नाटक के बाद एक गीत हुआ। कव्वाली ने तो समा ही बाँध दिया। यह कार्यक्रम एक घंटे तक चला।

इसके अनंतर अध्यक्ष महोदय ने विद्यार्थियों को पुरस्कार दिए। स्वच्छता, उपस्थिति, पढ़ाई और खेलों में उत्तम छात्रों को पुरस्कार दिए गए। मुझे भी एक पुरस्कार प्राप्त हुआ। अध्यक्ष महोदय ने स्कूल के प्रबंध की सराहना की। उन्होंने विद्या का महत्त्व बतलाया। फिर देश-भक्ति की कविता गाई। तदनंतर प्राचार्य जी ने अध्यक्ष का धन्यवाद किया और समारोह समाप्त हुआ।

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22. विज्ञान वरदान है या अभिशाप

‘विज्ञान’ का शाब्दिक अर्थ है – विशेष या विश्लेषित ज्ञान। मानव आदिकाल से नए-नए आविष्कार करता आया है और उनके बल पर उसने अपना जीवन सजाया-संवारा है। आज हम जिस युग में साँस ले रहे हैं, वह विज्ञान का युग है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विज्ञान की उपलब्धियों को देखा जा सकता है। विज्ञान के विभिन्न आविष्कारों ने मानव-जीवन को पहले की तुलना में अधिक सुखद एवं सुरक्षित बना दिया है। विज्ञान ने मानव-जीवन को पूरी तरह से बदल दिया है।

यह सर्वमान्य तथ्य है कि विज्ञान ने मानव को बहुत अधिक सुख-सुविधाएँ प्रदान की हैं। इस प्रकार वह हमारे जीवन में वरदान बनकर आया है। दैनिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विज्ञान का प्रभाव परिलक्षित होता है। विद्युत के आविष्कार ने मनुष्य के जीवन में प्रकाश लाने के साथ-साथ उसे अनेक उपकरणों को चलाने के लिए शक्ति प्रदान की है। अब हम घर बैठे-बैठे शिमला की ठंडी हवा खा सकते हैं और सरदियों में भी मकान को गरम रख सकते हैं। हमारे टी.वी., फ्रिज, कूलर, गीजर आदि उपकरण भी बिजली से ही चलते हैं।

विज्ञान ने हमें यातायात के द्रुतगामी साधन उपलब्ध कराए हैं। अब मानव अधिक आरामदायक रेलगाड़ियों में यात्रा कर सकता है। यदि उसे बहुत जल्दी हो तो वह वायुयान का सहारा ले सकता है। अब तो जेट-युग का जमाना है। जलयान विदेशी माल ढोने का सस्ता एवं सुलभ साधन है। हजारों किलोमीटर दूर बैठे व्यक्ति से हम टेलीफोन पर बातचीत कर सकते हैं। इससे व्यापारिक क्रिया-कलापों को घर बैठे काफी सहायता मिलती है।

मनोरंजन के क्षेत्र में तो विज्ञान ने अनेक चमत्कारी साधन प्रस्तुत किए हैं। टेलीविजन के माध्यम से ज्ञान और मनोरंजन का अद्भुत कार्य हो रहा है। वी.सी.आर. की सहायता से किसी भी कार्यक्रम को रिकार्ड करके पुनः देखा जा सकता है। संगीत के नित्य नए उपकरण बाजार में आ रहे हैं। रेडियो और टेपरिकार्डर तो अब काफी पुराने हो चुके हैं।

चिकित्सा के क्षेत्र में भी विज्ञान ने काफी प्रगति की है। आज मानव के हृदय और मस्तिष्क की शल्य चिकित्सा संभव हो गई है। अब अनेक जानलेवा बीमारियों पर काबू पा लिया गया है। चिकित्सा विज्ञान ने अंधों को आंखें दी हैं और बहरों को कान। नित्य नई औषधियों का आविष्कार हो रहा है।

परन्तु आज मानव के सामने एक ज्वलंत प्रश्न उठ खड़ा हो गया है कि विज्ञान के नित्य नए आविष्कारों के कारण बदली हुई स्थिति उसके लिए वरदान होगी या अभिशाप? मानव एक ओर तो विज्ञान का उपयोग अपने हित में कर रहा है, वहीं दूसरी ओर भयंकर अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण कर मानव जाति को भस्मीभूत कर देने की तैयारी भी कर रहा है। विज्ञान अनेक संहारक बमों का आविष्कार कर रहा है।

आज छोटे और कम शक्तिशाली देश इस परमाणु शक्ति से त्रस्त हैं। आज मानव जाति संहार के चौराहे पर खड़ी है। हमें शीघ्र ही इससे बचाव का कोई निर्णय लेना होगा। विज्ञान को अभिशाप होने से बचाने के लिए हथियारों की होड़ समाप्त करनी होगी। इस प्रकार विज्ञान अभिशाप कहलाने के कलंक से बच जाएगा।

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23. परिश्रम का महत्त्व

संसार में सफलता प्राप्त करने का महत्त्वपूर्ण साधन श्रम है। श्रम करके हम जीवन की ऊँची से-ऊँची आकांक्षा को पूरी कर सकते हैं। परिश्रम से सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त की जा सकती हैं। यह संसार कर्मक्षेत्र है, अतः कर्म करना ही हम सबका धर्म है। किसी भी कार्य में हमें सफलता तभी प्राप्त होती है, जब हम परिश्रम करते हैं।

श्रम ही जीवन को गति प्रदान करता है। यदि हम श्रम की उपेक्षा करते हैं, तो हमारे जीवन की गति ही रुक जाती है। अकर्मण्यता निराशा को जन्म देती है। परिश्रम करने वाले व्यक्ति भाग्यवादी नहीं होते। कर्मवीर की विशेषताएं बताते हुए हरिऔध जी ने लिखा है –
“देखकर बाधा विविध बहुविघ्न घबराते नहीं,
रह भरोसे भाग्य के दुःख भोग पछताते नहीं।”
श्रम करने वाला व्यक्ति पुरुषार्थ करने में विश्वास रखता है।

ऐसा व्यक्ति इस बात को भली-भांति जानता है कि केवल इच्छा मात्र से सफलता नहीं मिल सकती। संस्कृत में कहा भी गया है –
“उद्यमे न ही सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।”

संसार में प्रत्येक क्षेत्र में संघर्ष करके अपना मार्ग स्वयं बनाना पड़ता है। कवि जगदीश गुप्त ने लिखा भी है –
“सच है महज संघर्ष ही।।
संघर्ष से हटकर जिए तो क्या जिए, हम या कि तुम,
जो नत हुआ वह मृत हुआ, ज्यों चूत से झरकर कुसुम।”

परिश्रम करने से मनुष्य को सबसे बड़ा लाभ यह हैं, उसे आत्मिक शांति प्राप्त होती है, उसका हृदय पवित्र होता है, उसके संकल्पों में दिव्यता आती है, उसे सच्चे ईश्वर की प्राप्ति होती है। जीवन की उन्नति के लिए मनुष्य क्या काम नहीं करता, यहां तक कि बुरे से बुरे काम को भी तैयार हो जाता है, परंतु यदि वह सफलता रूपी ताले की कुंजी परिश्रम को अपने हाथ में ले ले तो सफलता उस मनस्वी के चरणों को चूमने लगती है।

वह उत्तरोत्तर उन्नति और समृद्धि के शिखर पर चढ़ता हुआ जाता है। भारतवर्ष की दासता और पतन का भी कारण यही था कि यहाँ के निवासी अकर्मण्य हो गए थे, परिश्रम करना उन्होंने भुला दिया था। यदि आज भी हम अकर्मण्य और आलसी बने रहे, तो प्राप्त की हुई स्वतंत्रता फिर खो देंगे। आज कठिन साधना की जरूरत है।

परिश्रम से मनुष्य को यश और धन दोनों ही प्राप्त होते हैं। परिश्रम से मनुष्य धनोपार्जन भी करता है। जहां तक यश का संबंध है, वह परिश्रमी व्यक्ति को जीवित रहते हुए भी मिलता है और मृत्यु से अनंतर भी। जीवित रहते हुए समाज में व्यक्ति उसका मान करते हैं, उसकी कीर्ति उसकी जाति और नगर में गाई जाती है। मृत्यु के पश्चात् वह एक आदर्श छोड़ जाता है, जिस पर चलकर भावी सन्तति अपना पथ प्रशस्त करती है।

लोग उसकी यशोगाथा से अपना और अपने बच्चे का मार्ग निर्धारण करते हैं। महामना मालवीय, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, महाकवि कालिदास, छत्रपति शिवाजी आदि महापुरुषों का गुणगान करके हम भी अपना मार्ग निश्चित करते हैं। इतिहास साक्षी है कि इन लोगों ने अपने जीवन में कितना श्रम किया और कितने संघर्ष किए, जिसके फलस्वरूप उन्नति के शिखर पर पहुंचे।

परिश्रम के अभाव में व्यक्ति का जीवन निरर्थक है। परिश्रम, मानव की उन्नति का सोपान है। परिश्रम के द्वारा ही व्यक्ति अपने भाग्य का स्वयं निर्माण करता है। अत: परिश्रम ही जीवन का सार एवं आभूषण है। अत: व्यक्ति को आलस्य त्यागकर कठोर परिश्रम को ही अपने जीवन का उद्देश्य बनाना चाहिए।

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24. पुस्तकालय का महत्त्व

हमारे जीवन में पुस्तकों का बड़ा महत्त्व है। जिस प्रकार शरीर की पुष्टि एवं स्वास्थ्य के लिए भोजन की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार मस्तिष्क की पुष्टता के लिए पुस्तकों की आवश्यकता होती है। पुस्तके ज्ञान का भण्डार हैं। बड़े-बड़े विद्वान अपना अधिकांश समय पुस्तकं पढ़कर ही व्यतीत करते हैं।

पुस्तकालय शब्द ‘पुस्तक + आलय’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ हे पुस्तकों का घर। पुस्तकालय बनाने की प्रथा अत्यंत प्राचीन काल से है। नालंदा एवं तक्षशिला विश्वविद्यालय के पुस्तकालय अत्यंत भव्य एवं विश्व विख्यात थे। राजा महाराजाओं, ब्रिटिश शासकों आदि को भी पुस्तकालयों की स्थापना का शौक रहा है।

सरकारी एवं गैर सरकारी दोनों क्षेत्रों में पुस्तकालय खोले जा रहे हैं। अनेक धार्मिक एवं सामाजिक संस्थाएँ पुस्तकालयों की स्थापना करती हैं। प्रायः सभी विद्यालयों, कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों में पुस्तकालय हैं। निर्धन छात्रों की मदद के लिए ‘बुक-बैंकों’ की भी स्थापना की गई है। चलते-फिरते पुस्तकालय भी जनता की सेवा कर रहे हैं।

पुस्तकालय में हमें अनेक प्रकार की पुस्तकें पढ़ने को मिलती हैं। प्रायः सभी विषयों की पुस्तकें अच्छे पुस्तकालयों में मिल जाती हैं। ज्ञानवर्धक एवं मनोरंजक दोनों प्रकार की पुस्तकें यहाँ मिल जाती हैं। विज्ञान-संबंधी, धार्मिक, पाठ्यक्रम संबंधी लेखकों, ज्योतिष संबंधी आदि पुस्तकें यहाँ उपलब्ध होती हैं।

मनोरंजक पुस्तकों में उपन्यास, नाटक, कहानियां आदि साहित्यिक पुस्तकें मिल जाती हैं। अच्छे-से-अच्छे कवियों, लेखकों, वैज्ञानिकों, दार्शनिकों की पुस्तकें पुस्तकालयों में होती हैं। जो पुस्तके बाजार में सहज उपलब्ध न हों अथवा अत्यधिक महंगी हों उन्हें आसानी से पुस्तकालय में पाया जा सकता है। संदर्भ-ग्रंथ तो पुस्तकालय में ही उपलब्ध होते हैं।

पुस्तकालय का सदुपयोग करना चाहिए। पुस्तकालय के नियमों का पालन करना हमारा कर्तव्य है। हमारे प्रत्येक व्यवहार में अनुशासन होना चाहिए। हमें अन्य पाठकों की सुविधा का भी ध्यान रखना चाहिए। पुस्तकालय में शांति बनाए रखना नितांत आवश्यक है। पुस्तकालय निर्धन वर्ग के छात्रों के लिए तो वरदान स्वरूप हैं।

इसके साथ-साथ शोध कार्य में लगे विद्यार्थियों के लिए पुस्तकालय का बहुत महत्त्व है। . पुस्तकालय स्थापना का कार्य केवल सरकार का ही नहीं मानना चाहिए। समाज के विभिन्न वर्गों को भी इस कार्य में पर्याप्त रुचि लेनी चाहिए। उन्हें अपने-अपने क्षेत्रों में पुस्तकालय स्थापित करने चाहिए। इससे जहाँ पाठकों को लाभ पहुँचता है, वहीं लेखकों का भी उत्साहवर्धन होता है। यह एक पावन कार्य है। इससे समाज प्रबुद्ध बनता है।

पुस्तकालयाध्यक्ष पुस्तकालय का प्राण होता है। उसमें पाठकों की रुचि जानने की क्षमता होनी चाहिए। पुस्तकालय में पस्तकों को शीर्षक, लेखक का नाम, क्रम संख्या आदि में वर्गीकृत करके रखना चाहिए। नई पुस्तकों का परिचय पाठकों को उपलब्ध कराना चाहिए। अधिक से अधिक पुस्तकें पाठकों को जारी की जानी चाहिए। काम से बचने की प्रवृत्ति नहीं होनी चाहिए।

विद्यालय में पुस्तकालय का विशेष महत्त्व है। पुस्तकालय के बिना विद्यालय की वह स्थिति होती है जो औषधियों के बिना चिकित्सालय की। पुस्तकालय ज्ञान-पिपासा शान्त करने का केन्द्र है। हमें इसका पूरा उपयोग करना चाहिए।

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25. बढ़ती जनसंख्या : एक विकराल समस्या

भारत एक विशाल देश है। विशाल देश में अनेक समस्याओं का होना स्वाभाविक है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से हमारा देश अनेक प्रकार की समस्याओं से जूझ रहा है जिनमें अशिक्षा, बेरोजगारी, सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार, गरीबी आदि समस्याएँ प्रमुख हैं। इन सभी समस्याओं की जननी है – तेजी से बढ़ती हुई भारत की जनसंख्या। उपर्युक्त सभी समस्याओं में विकराल और भयंकर समस्या बढ़ती जनसंख्या की है जो नियंत्रण करने के उपरांत भी सुरसा के मुँह की भाँति बढ़ती ही जा रही है।

बढ़ती जनसंख्या ने अनेक समस्याओं को जन्म दिया है- रोटी, कपड़ा, मकान की कमी, बेरोजगारी, निरक्षरता, कृषि एवं उद्योगों के उत्पादनों में कमी आदि। हम जितना अधिक उन्नति करते हैं या विकास करते हैं जनसंख्या उसके अनुपात से कहीं अधिक बढ़ जाती है। बढ़ती जनसंख्या के समक्ष हमारा विकास बहुत कम रह जाता है और विकास कार्य दिखाई नहीं देते। बढ़ती जनसंख्या के समक्ष सभी सरकारी प्रयास असफल दिखाई देते हैं।

कृषि उत्पादन और औद्योगिक विकास बढ़ती समस्या के सामने नगण्य सिद्ध हो रहे हैं। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण की अति आवश्यकता है। जनसंख्या की वृद्धि एक स्वाभाविक प्रक्रिया है परंतु स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत इसमें अपार वृद्धि हुई। प्रति 35 वर्षों में भारत की जनसंख्या दुगुनी हो जाती है। अब तो जनसंख्या के आँकड़े 108 करोड़ की संख्या को भी पार कर गए हैं।

जनसंख्या की विकराल वृद्धि के प्रमुख कारण हैं – निरक्षरता, गरीबी, स्त्रियों के विवाह की औसत आयु में कमी, परिवार नियोजन साधनों का न अपनाना तथा स्वास्थ्य सेवाओं का विकास। हमें जनसंख्या वृद्धि को रोकना होगा। भारतीय समाज से लड़के के महत्त्व और पुत्री की उपेक्षा के अंधविश्वास को दूर करना होगा।

पुत्र की कामना में भारतीय परिवारों में पुत्रियों की संख्या अधिक हो जाती है जो भारत की जनसंख्या को और भी बढ़ाती है। स्वास्थ्य सेवाओं में प्रगति के कारण शिशु मृत्युदर में भी कमी आई है। भारत के अधिकांश निवासी स्त्री के उपभोग को मनोरंजन का एकमात्र साधन समझते हैं इसलिए भी जनसंख्या बढ़ती रहती है।

जनसंख्या वृद्धि ने हर क्षेत्र को प्रभावित किया है और देश को विकसित नहीं होने दिया है, अत: इस बढ़ती जनसंख्या पर अंकुश लगाना अति आवश्यक है। इस समस्या के कारण देश की आर्थिक व्यवस्था भी चरमरा उठी है। इसलिए हमें छोटे परिवार के महत्त्व को समझना होगा। दो संतान की अपेक्षा एक संतान के महत्त्व को समझना होगा तथा ‘हम दो हमारा एक’ के नारे को सार्थक सिद्ध करना होगा। परिवार नियोजन के साधन अपनाने होंगे।

लड़के का मोह छोड़ना होगा तथा आगामी भविष्य में अनेक संतानों की उत्पत्ति पर प्रतिबंध लगाना होगा, तभी हम जनसंख्या विस्फोट को रोक सकते हैं। इस दिशा में धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक संगठनों को आगे आकर देश विकास में सहायता करनी होगी, तभी हमारे विकास कार्यक्रम सफल सिद्ध होंगे। 26. भारत गणराज्य के बारहवें राष्ट्रपति डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम डॉ. अब्दुल कलाम देश के उन व्यक्तियों में से एक हैं जिनका नाम लेते ही आँखों के सामने हिन्दुस्तान का नक्शा उभर कर सामने आ जाता है। डॉ. कलाम ‘मिसाइलमैन’ नाम से सारे देश में लोकप्रिय हैं।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बाद वे दूसरे ऐसे राष्ट्रपति हैं जिनका किसी राजनीतिक पार्टी से लेना-देना नहीं है। महान वैज्ञानिक डॉ. अब्दुल कलाम ने 25 जुलाई, 2002 को भारत गणराज्य का सर्वोच्च पद, राष्ट्रपति के रूप में, ग्रहण किया। यह दिन भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित करने के योग्य डॉ. अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को तमिलनाडु राज्य के रामेश्वरम् कस्बे में एक मध्यवर्गीय तमिल परिवार में हुआ।

आपके पिता श्री जैनुलाबदीन सामान्य रूप से पढ़े-लिखे थे और कोई धनी व्यक्ति नहीं थे। आपकी माँ आशियम्मा एक आदर्श महिला थी। डॉ. कलाम अपने बचपन के बारे में लिखते हैं- “मैं प्राय: अपनी माँ के साथ ही रसोई में नीचे बैठकर खाना खाया करता था। वे मेरे सामने केले का पत्ता विछाती और फिर उस पर चावल एवं सुगंधित, स्वादिष्ट साँभर देती, साथ में घर का बना आचार और नारियल की ताजा चटनी भी होती।”

कलाम साहब का बचपन आर्थिक संकटों से जूझते हुए बीता। उनकी पूरी शिक्षा उनके गृह राज्य तमिलनाडु में ही हुई। वे उच्च शिक्षा के लिए कभी विदेश नहीं गए। प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद आपको घर छोड़ना पड़ा क्योंकि रामेश्वरम् में हायर सेकेण्डरी स्कूल न था। वे रामनाथपुरम के श्वार्ट्ज हाई स्कूल में भरती हुए और हायर सेकेण्डरी परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। आगे की पढ़ाई के लिए वे त्रिचुरापल्ली के सेंट जोसफ कॉलेज में भरती हुए।

बी० एस. सी. प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के आगे पढ़ाई जारी रखने के लिए आपने ट्यूशन पढ़ाए और ‘हिन्दू’ पत्रिका में विज्ञान संबधी लेख लिखे। उन्होंने एयरोनॉटिक इंजीनियरिंग में डिप्लोमा हासिल किया। पढ़ाई खत्म करके वे कैरियर की शुरूआत करने की दुविधा में फंस गए। उन्होंने विदेश जाकर धन कमाने की अपेक्षा देश-सेवा करने का निश्चय किया और 1958 में ‘रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन’ से जुड़ गए। उनकी नियुक्ति हैदराबाद केन्द्र में हुई। पाँच सालों तक वे यहाँ महत्त्वपूर्ण अनुसंधानों में सहायक रहे। 1980 तक उन्होंने यह काम किया। अपने लम्बे सेवा काल में उन्होंने देश को अंतरिक्ष विज्ञान में चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया।

1980 में जब समेकित नियंत्रित प्रक्षेपास्त्र विकास कार्यक्रम’ चलाया गया तो इसका भार डॉ. कलाम को ही सौंपा गया। उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा अंतरिक्ष अनुसंधान में बिताया है। इसके अलाववा परमाणु क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। मई 1998 में पोखरण में किए गए परमाणु विस्फोट उन्हीं के नेतृत्व में किये गए। उन्होंने ‘अग्नि’ मिसाइल का सफल परीक्षण किया। मिसाइल के क्षेत्र में उनकी प्रतिभा का लोहा पूरी दुनिया मानती है।

डॉकलाम दृढ़ इच्छाशक्ति वाले व्यक्ति हैं। वे भारत को विकसित देश बनाने का सपना पाले हुए हैं। उनका कहना है कि- “हमारा देश एक अरब लोगों का देश है। इसलिए हमें व्यापक दृष्टि से सोचना चाहिए। हमारे युवकों को सपने देखने चाहिए। सपनों को विचारों में बदलना चाहिए। विचारों को कार्यवाही के जरिए हकीकत में बदलना चाहिए।”

डॉ. कलाम तीसरे ऐसे वैज्ञानिक हैं जिन्हे ‘भारत रत्न’ जैसे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से अलंकृत किया गया है। उन्हें 1981 में पद्मविभूषण और 1990 में पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है। उन पर भारत को गर्व है।

डॉ अब्दुल कलाम में अहंकार छू तक नहीं गया है। वे एक भावुक व्यक्ति हैं। कविताएँ लिखना, वीणा बजाना और बच्चों का संग उन्हें बहुत प्रिय है। वे ‘सादा जीवन उच्च विचार’ में विश्वास रखते हैं। उन्होंने राष्ट्रपति पद की शपथ लेते समय दिए गए भाषण में प्रसिद्ध संत कबीरदास की इस पंक्ति का उल्लेख किया- ‘काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।’ उनके शपथ-ग्रहण समारोह में बड़ी संख्या में देश के स्कूलों के छात्र-छात्राएँ सम्मिलित हुए। कलाम साहब का व्यक्तित्व अत्यंत प्रेरणादायक है। उनका जीवन तपस्या भरा रहा है। वे अपनी उपलब्धियों का श्रेय अपने शिक्षकों और पथ-प्रदर्शकों को देते हैं।

ईश्वर उन्हें दीर्घायु करे ताकि वे भारत को प्रगतिशील बनाने के सपने को साकार कर सके।

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27. दिल्ली मेट्रो : मेरी मेट्रो

24 दिसंबर, 2002 को दिल्ली निवासियों का एक सुखद सपना पूरा हुआ। इस दिन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा दिल्ली की पहली मेट्रो ट्रेन को हरी झंडी दिखाकर राजधानी की बहुप्रतीक्षित परियोजना की शुरुआत की गई। यह पहली मेट्रो रेल शाहदरा से तीसहजारी के मध्य दौड़ेगी। इस रूट पर चलने वाली चार कोचों वाली पहली ट्रेन दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन को इस साल के अगस्त में ही उपलब्ध हो गई थी। सितंबर से नवंबर तक लगातार इन कोचों को आवश्यक व कड़े सुरक्षा परीक्षणों से गुजारा गया।

दिल्ली की बढ़ती जनसंख्या, चरमराती सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था और प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए दिल्ली में मेट्रो रेल सेवा का परिचालन आवश्यक हो गया था। केन्द्र सरकार और दिल्ली सरकार ने संयुक्त रूप से 1995 में DMRC (Delhi Mass Rapid Transport System) का पंजीकरण कराया और अगस्त 1996 में सरकार ने 62.5 कि.मी. लंबाई योजना को स्वीकृति प्रदान कर दी।

दिल्ली मेट्रो सभी प्रकार की सुविधाओं से सम्पन्न है। यह मेट्रो विश्व की एक आधुनिक सेवा है और यह हमें सिंगापुर और हाँगकाँग तुल्य सुविधाओं का एहसास कराती है। यह समस्त प्रणाली स्वचालित है। यात्रियों की सुविधा के मद्देनजर सभी भूमिगत स्टेशनों पर उचित वातानुकूलन व सुरंगों में जरूरी वेंटीलेशन किया गया है।

सभी स्टेशनों को आधुनिक सुविधाओं से लैस किया गया है। घड़ियाँ तथा ट्रेनों के आवागमन की जानकारी के लिए सार्वजनिक उद्घोषणा प्रणाली तथा सी.सी.टी.वी. की व्यवस्था की गई है। स्टेशनों पर ऑप्टिकल फाइबर लाइन द्वारा दूरसंचार प्रणाली का प्रबंध किया गया है।

इन केबलों में ध्वनि व डाटा प्रेषण की क्षमता है। विभिन्न काउंटरों पर यात्रियों के लिए स्मार्ट कार्ड उपलब्ध रहेंगे। प्रवेश व निकास के लिए माइक्रोप्रोसेसर नियंत्रित स्वचालित दरवाजे बनाए गए हैं। अपंग यात्रियों के लिए लिफ्ट जैसी विशेष व्यवस्था की गई है। व्यस्ततम समय में प्रति तीन मिनट के अंतराल पर ट्रेनों को चलाए जाने के लिए अपनी तरह की अनोखी सतत स्वचालित ट्रेन सिग्नलिंग प्रणाली की व्यवस्था की गई है।

इस प्रणाली के प्रयोग से मेट्रो कॉरीडोर में प्रति दो मिनट के अंतराल पर ट्रेनें चलाई जा सकती हैं। मेट्रो कॉरीडोर में एक दिशा में प्रति घंटे 60,000 यात्रियों की वहन-क्षमता है। विशेष सुरक्षा प्रबंधों में ड्रेस गार्ड, फ्लोर प्लेट, हैंड रेल स्पीड डिटेक्शन डिवाइस तथा स्टेप मिसिंग डिवाइस शामिल हैं। ये इंतजाम यात्रियों की सुरक्षा व सुविधाजनक आवागमन के लिए हैं। विकलांग लोगों की सुविधा व सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उन्नत तकनीक युक्त कुल 48 ऐलीवेटरों (लिफ्ट) का प्रबंध किया गया है।

विश्वसनीयता तथा सुरक्षा बनाए रखने के लिए आधुनिक संचार व ट्रेन नियंत्रण प्रणाली लगाई गई है। देश में पहली बार मेट्रो के टिकट व यात्री नियंत्रण के लिए स्वचालित किराया संग्रहण का इंतजाम किया गया है। मेट्रो स्टेशन पर प्रवेश व निकास के लिए स्मार्ट कार्ड से नियंत्रित ऑटोमैटिक दरवाजे लगाये गए हैं।

स्मार्ट कार्ड : एक नवीनीकरण कार्ड है, जिसका बार-बार प्रयोग हो सकता है। ये कार्ड 100, 200 और 500 रुपयों के हैं। इन कार्डो की वैधता एक साल है अर्थात् हर समय टिकट खरीदने के झंझट से मुक्ति। इसके अतिरिक्त तीन दिन की असीमित यात्रा के लिए 50 और 150 रु. के कार्ड खरीदे जा सकते हैं। इसके अलावा यात्रा के लिए सिंगल टोकन भी उपलब्ध हैं। किराया स्वचालित रूप से टिकेटिंग मशीन को कार्ड दिखाने से कटता है। आप अपनी बकाया राशि की जानकारी भी ले सकते हैं। कार्ड में प्रवेश-निकास प्रक्रिया का उपयोग होता है।

टोकन :
एक तरफ की यात्रा (नीला टोकन) तथा वापसी यात्रा के लिए (लाल टोकन) मान्य है। मेट्रो रेल परिसर में रेस्टोरेंट, स्नैक प्वांइट, रिफ्रेशमेंट स्टॉल, न्यूज़पेपर स्टैंड, किताबों के स्टॉल, दवा की दुकानें, ए.टी.एम. और संचार केन्द्र भी होंगे। नशा करने वाले, विध्वंसक कार्यवाही करने वाले, अभद्र व्यवहार और अप्रिय भाषा का प्रयोग करने वालों पर 500 रु. का जुर्माना लगाया सकता है।

खतरनाक हथियार लेकर मेट्रो में यात्रा करने पर चार साल की सजा हो सकती है और 5,000 रु. जुर्माना लग सकता है। ट्रेन की छत पर सफर करने पर यात्रियों को 50 रुपए जुर्माना देना पड़ेगा और ऐसा करने पर एक माह की सजा भी हो सकती है। मेट्रो रेल की किसी भी संपत्ति को क्षति पहुंचाने पर दो महीने की सजा हो सकती है और 250 रु. जुर्माना भी हो सकता है।

दिल्ली मेट्रो रेल हमें सड़क यातायात और भीड़-भाड़ से बचाकर आराम से मौजल तक पहुँचाने में सक्षम है। विद्युत चालित होने के कारण प्रदूषण रहित है। इसकी इलेक्ट्रॉनिक सीढ़ियाँ विकलांगों को ऊंचे प्लेटफार्म तक पहुंचाने में सहायता करती हैं। शाहदरा से तीसहजारी तक की यात्रा केवल 13 मिनट में पूरी हो जाती है। इसका किराया भी कम और वाजिब है। इस ट्रेन के स्वचालित दरवाजे हैं, जिनके बंद हुए बिना ट्रेन नहीं चलती। वातानुकूलित डिब्बे में 350 से अधिक यात्री सुविधाजनक ढंग से यात्रा कर सकते हैं। इस ट्रेन के डिब्बे खरोंच और झटकों से रहित हैं।

यह मेट्रो अत्यंत आरामदायक सुविधाओं से भरपूर है। यह दिल्ली के यातायात के परिवेश को क्रांतिकारी रूप से बदल देगी। ये मेट्रो सेवा दुनिया की आधुनिक सेवा है। विश्वस्तरीय मेट्रो प्रोजेक्ट रिकार्ड समय में शुरु हो गया है और आशा की जाती है कि इसके शेष रूट समय अवधि में चालू हो जाएंगे। इससे हम कम समय में अपने गंतव्य तक पहुंच सकेंगे। यह यात्रा अधिक सुखद एवं है।

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28. कंप्यूटर : आज की जरूरत अथवा
कंप्यूटर : विज्ञान का अद्भुत वरदान

इक्कीसवीं सदी कंप्यूटर की है। इसका विकास बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में हो गया था, लेकिन इसके प्रयोग की नई-नई दिशाएँ इक्कीसवीं सदी में खुलती जा रही हैं। वर्तमान युग को कंप्यूटर युग’ कहें तो कोई अतिशयोक्ति न होगी।

कंप्यूटर विज्ञान का अत्यधिक विकसित बुद्धिमान यंत्र है। इसके पास ऐसा मशीनी मस्तिष्क है जो लाखों, करोड़ों गणनाएँ पलक झपकते ही कर देता है। पहले इन गणनाओं को करने के लिए सैकड़ों-हजारों मुनीम, लेखपाल दिन-रात परिश्रम करते रहते थे, फिर भी गलतियाँ हो जाती थीं। अब यह यंत्र सेकेंड में बटन दबाते ही निर्दोष गणना प्रस्तुत कर देता है। बैंक का पूरा खाता बटन दबाते ही परदे पर आ जाता है।

दूसरा बटन दबाते ही खाते या बिल की प्रति टाइप होकर आपके हाथों में पहुंच जाती है। कार्यालय का सारा रिकार्ड क्षण भर में सामने आ जाता है। अब न रजिस्टर ढूँढ़ने की आवश्यकता रह गई है और न पन्ना खोलकर एंट्री करने की। सारा काम साफ-सुथरे अक्षरों में मिनटों में हो जाता है।

आप रेलवे बुकिंग केन्द्र पर जाएँ। पहले वहाँ लंबी-लंबी लाइनें लगती थीं। सुबह से शाम हो जाती थी सीट आरक्षित कराने में अब कंप्यूटर की कृपा से यह काम मिनटों में हो जाता है। आप कंप्यूटर की सहायता से देश की किसी भी कंप्यूटर खिड़की से कहीं का भी टिकट खरीद सकते हैं तथा अग्रिम सीट आरक्षित करा सकते हैं। इंटरनेट की सहायता से पूरे रेलवे केंद्र आपस में जुड़ गए हैं। इसी प्रकार हवाई जहाज की सीटें बुक कराई जा सकती मुद्रण के क्षेत्र में कंप्यूटर की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण हो गई है। पहले एक-एक अक्षर को जोड़कर सारी सामग्री कंपोज़ की जाती थी।

गलती होने पर साँचा खोलना पड़ता था। अब इस सारे झंझट से मुक्ति कंप्यूटर ने दिला दी है। अब तो एक बटन दबाते ही अक्षरों को मनचाहे आकार एवं रूप में ढाला जा सकता है। कभी भी मोटाई घटाई-बढ़ाई जा सकती है। अब चित्र भी कंप्यूटर की सहायता से बनाए जा सकते हैं। अब पुस्तक प्रकाशन इतना कलात्मक एवं विविधतापूर्ण हो गया है कि पुरानी मशीनें तो अब बाबा आदम के जमाने की लगती हैं। कंप्यूटर द्वारा प्रकाशित पुस्तके आकर्षक होती हैं।

संचार के क्षेत्र में कंप्यूटर ने क्रांति ही उपस्थित कर दी है। फैक्स, पेजिंग, मोबाइल के बाद इंटरनेट, चैट, सर्फिग आदि ने मानो सारे संसार को आपके कमरे में कैद कर दिया हो। सूचना तकनीक का विकास दिन-प्रतिदिन नए रूप में हो रहा है। ‘ई-मेल’ सेवा भी बहुत उपयोगी सिद्ध हो रही है। आप अपने कंप्यूटर पर विश्व भर की किसी संस्था अथवा उत्पाद की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। आप विश्व के किसी भी कोने के समाचार-पत्र और पुस्तक पढ़ सकते हैं। अपनी लिखित सामग्री कहीं भी भेजी जा सकती है।

रक्षा के उन्नत उपकरणों में कंप्यूटर प्रणाली अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुई। भारत ने कंप्यूटर की सहायता से ही अपनी परमाणु क्षमता का विकास किया है। कंप्यूटर की सहायता से हजारों कि. मी. दूर शत्रु पर वार किया जा सकता है। संवेदनशील राडार हो अथवा कृत्रिम उपग्रह सभी में कंप्यूटर प्रणाली की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। कंप्यूटर ने घरेलू उपकरणों में स्वचालित प्रणाली विकसित कर दी है।

स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी कंप्यूटर की सेवाएँ बहुत उपयोगी हैं। इसकी सहायता से बीमारी की जाँच और रोगी का रिकॉर्ड रखने में सहायता मिलती है। आप अपने रोग के बारे में विदेशी डॉक्टर से परामर्श ले सकते हैं। यह सब काम कंप्यूटर कर देता है। कंप्यूटर मनोरंजन के क्षेत्र में भी बच्चों को लुभा रहा है। इस पर तरह-तरह के खेल खेले जा सकते हैं।

निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि कंप्यूटर वर्तमान युग की आवश्यकता बन गया है। सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में भारत ने बहुत प्रगति की है। कंप्यूटर धन एवं समय की बचत कराने में बेजोड़ हैं।

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