HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 8 यह सबसे कठिन समय नहीं

Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 8 यह सबसे कठिन समय नहीं Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 8 यह सबसे कठिन समय नहीं

HBSE 8th Class Hindi यह सबसे कठिन समय नहीं Textbook Questions and Answers

पाठ से

प्रश्न 1.
“यह कठिन समय नहीं है” यह बताने के लिए कविता में कौन-कौन से तर्क प्रस्तुत किए गए है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘यह कठिन समय नहीं है’ बताने के लिए कविता में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए गए हैं

  • चिड़िया की चोंच में अभी भी तिनका दबा है।
  • चिड़िया की उड़ान में कोई बाधा नहीं है।
  • स्टेशन पर रेलगाड़ियों का आवागमन जारी है।
  • लोग एक-दूसरे की प्रतीक्षा करते हैं।
  • लोगों को दूसरों की कुशलता की चिंता रहती है।
  • बूढी नानी अभी बच्चों को कहानियाँ सुनाती है।

प्रश्न 2.
चिड़िया चोंच में तिनका दबाकर उड़ने की तैयारी में क्यों है ? वह तिनकों का क्या करती होगी ? लिखिए।
उत्तर :
चिड़िया चोंच में तिनका दबाकर उड़ने की तैयारी में इसलिए है ताकि वह उस तिनके को अपने घोंसले तक ले जा सके। वह उस तिनके से अपने घोंसले को मजबूत करती होगी।

HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 8 यह सबसे कठिन समय नहीं

प्रश्न 3.
कविता में कई बार ‘अभी भी’ का प्रयोग करके बातें रखी गई हैं। ‘अभी भी’ का प्रयोग करते हुए तीन वाक्य बनाइए और देखिए उनमें लगातार, निरंतर, बिना रुके चलने वाले किसी कार्य का भाव निकल रहा है या नहीं ?
उत्तर :
‘अभी भी’ के प्रयोग वाले वाक्य :
1. अभी भी वर्षा हो रही है।
2. मैं अभी भी पुस्तकें पढ़ता हूँ।
3. पुलिस अभी भी लोगों के चालान करती है।

  • इन तीनों वाक्यों में लगातार, बिना रुके चलने वाले कार्य का भाव निकल रहा है।

प्रश्न 4.
“नहीं” और “अभी भी” को एक साथ प्रयोग करके तीन वाक्य लिखिए और देखिए ‘नहीं’ ‘अभी भी’ के पीछे कौन-कौन से भाव छिपे हो सकते
उत्तर :
1. नहीं, अभी भी मैं तुम्हें हरा सकता हूँ।
2. नहीं, अभी भी आतंक का वातावरण बना हुआ है।
3. नहीं, अभी भी तुम सच नहीं बोल रहे हो।

  • ‘नहीं’ के पीछे किसी बात को नकारने के तथा ‘अभी भी’ के पीछे निरंतरता के भाव छिपे हुए हैं।

कविता से आगे

प्रश्न 1.
घर के बड़े-बूढों द्वारा बच्चों को सुनाई जाने वाली किसी ऐसी कथा की जानकारी प्राप्त कीजिए जिसके आखिरी हिस्से में कठिन परिस्थितियों से जीतने का संदेश हो।
उत्तर :
विद्यार्थी ऐसी कथा की जानकारी प्राप्त करें।

प्रश्न 2.
आप जब भी घर से स्कूल जाते हैं कोई आपकी प्रतीक्षा कर रहा होता है। सूरज डूबने का समय भी आपको खेल के मैदान से घर लौट चलने की सूचना देता है कि घर में कोई आपकी प्रतीक्षा कर रहा है-प्रवीक्षा करने वाले व्यक्ति के विषय में आप क्या सोचते हैं ? अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
सूरज डूबने के समय घर पर हमारी माँ हमारी प्रतीक्षा कर रही होती है। समय पर न लौटने पर वह परेशान हो जाती है। वह हमारी शुभचिंतिका होती है। उसका प्यार दिखावटी नहीं होता। माँ की इच्छा होती है कि उसकी संतान दिन छिपने से पहले घर सकुशल लौट आए।

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अनुमान और कल्पना

अंतरिक्ष के पार की दुनिया से क्या सचमुच कोई बस आती है जिससे खतरों के बाद भी बचे हुए लोगों की खबर मिलती है ? आपकी राय में यह झूठ है या सच ? यदि झूठ है तो कविता में ऐसा क्यों लिखा गया ? अनुमान लगाइए यदि सच लगता है तो किसी अंतरिक्ष संबंधी विज्ञान कथा के आधार पर कल्पना कीजिए वह बस कैसी होगी, वे बचे हुए लोग खतरों से क्यों घिर गए होंगे? इस संदर्भ को लेकर कोई कथा बना सकें तो बनाइए।
उत्तर :
हम जानते हैं कि यह सब झूठ है। यह सब कल्पना पर आधारित है। कविता में ऐसा इसलिए लिखा गया है ताकि कुछ फैंटेसी बनी रहे। कई काल्पनिक बातें हमें आनंद देती हैं। वैसी ही बात अंतरिक्ष के पार की दुनिया के बारे में है।

केवल पढ़ने के लिए

पहाड़ से ऊँचा आदमी तीन सौ साठ फीट लंबा और तीस फीट चौड़ा पहाड़ काटने के लिए कितना वक्त लग सकता है? निश्चित ही टेक्नोलॉजी के इस युग में इस सवाल का जवाब इस बात पर निर्भर करेगा कि आप पहाड का सीना चीरने के लिए किस मशीन का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन अगर यह पूछा जाए कि इसी काम को एक ही शख्स को अंजाम देना हो तो कितना ‘वक्त लगेगा?

शायद यह चकरा देनेवाला सवाल होगा लेकिन बिहार के गया जिले के गेलौर गाँव में एक मजदूर परिवार में जन्मे एक शख्स ने इसका जवाब अपने बाजुओं और अपनी मेहनत से दिया। पहाड़ को हिला देनेवाले उन दशरथ मांझी ने राजधानी दिल्ली में 2007 में अंतिम सांस ली। उनका जन्म 1934 में हुआ था।

वर्ष 1966 की किसी अलसुबह जब छेनी-हथौड़ा लेकर दशरथ माँझी अपने गांव के पास स्थित पहाड़ के पास पहुंचे तो बहुत कम लोगों को इस बात का पता था कि इस शख्स ने अपने दिल में क्या ठान लिया है। मजदूरी और कभी-कभार इधर-उधर काम करने वाले राहगीरों के लिए ही नहीं, गाँव के लोगों के लिए भी वह एक हँसी के पात्र बन गए थे।

जीवन संगिनी फागुनी देवी का समय पर इलाज न करा पाने से उसे खो चुके दशरथ मांझी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। धुन के पक्के दशरथ की अथक मेहनत बाईस साल बाद तब रंग लाई, जब उस पहाड़ से एक रास्ता दूसरे गाँव तक निकल आया।

आखिर ऐसी क्या बात हुई कि दशरथ को पहाड़ चीरने की धुन सवार हुई। दरअसल पहाड़ को जब तक चीरा नहीं गया था, तब तक दशरथ के गाँव से सबसे नजदीकी वजीरगंज अस्पताल 90 किलोमीटर पड़ता था। दशरथ की पत्नी की तबीयत खराब होने पर उसे वहाँ ले जाने के दौरान ही उसने दम तोड़ दिया था। उन्हें लगा कि पहाड़ से कोई रास्ता होता तो मैं अपनी पत्नी को वक्त पर अस्पताल ले जाता और उसका इलाज करा पाता। सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की एक कविता है: ‘दुख तुम्हें क्या तोड़ेगा तुम-दुख को तोड़ दो। बस अपनी आँखें औरों के सपनों से जोड़ दो।’

जिंदगी का तीसवाँ वसंत पार कर चुके दशरथ मांझी ने शायद शेष गाँव के निवासियों के मन में दबी इस छोटी-सी । हसरत को अपनी जिंदगी का मिशन बना डाला और अपनी पत्नी की असामयिक मौत से उपजे प्रचंड दुख को एक नयी संकल्प शक्ति में तब्दील कर दिया। पाँच-छह साल तक दशरथ अकेले ही मेहनत करते रहे। धीरे-धीरे और लोग भी जुड़ा चले गए। वहाँ एक दानपात्र भी रखा गया था, जिसमें लोग चंदा डाल देते थे। कई लोग अपने घर से अनाज भी देते थे।

आज की तारीख में आप कह सकते हैं कि गेलौर से वजीरगंज जाने की अस्सी किलोमीटर की दूरी को 13 किलोमीटर ला देने वाला यह रास्ता एक श्रमिक के प्यार की निशानी है। एक अंग्रेज पत्रकार ने लिखा : ‘पूअरमैंस ताजमहल’।

कुछ साल पहले एक पत्रकार उनसे मिलने गया, तब एक फक्कड़ कबीरपंथी की तरह यायावरी कर रहे दशरथ मांझी ने उन्हें अपनी एक प्रिय कहानी सुनाई थी जो उस चिड़िया के बारे में थी जिसका घोंसला समुद्र बहाकर ले गया था। कहानी उस चिड़िया की प्रचंड जिजीविषा और संकल्प को बयां कर रही थी, जिसके तहत समुद्र द्वारा घोंसला न लौटाने पर चिड़िया ने अकेले ही समंदर का सुखा देने को संकल्प लिया। शुरुआत में उसे पागल करार देने वाली बाकी चिड़ियाँ भी उसके साथ जुड़ गई और फिर विष्णु का वाहन गरुड़ भी इन कोशिशों का हिस्सा बन गया।

फिर बीच-बचाव करने के लिए खुद विष्णु को आना पड़ा जिन्होंने समुद्र को धमकाया कि अगर उसने चिड़िया का घोंसला नहीं लौटाया तो पलभर में उसे सुखा दिया जाएगा। तब पत्रकार ने जब उनसे पूछा कि कहानी की चिड़िया क्या आप ही हैं। इसके जवाब में आँखों में शरारत भरी मुस्कान लिए दशरथ मांझी ने बात टाल दी थी।

पिछले कुछ सालों से दशरथ माँझी कबीरपंथी साधु बन गए थे और यायावर बने हुए थे, लेकिन कबीर का उनका स्वीकार महज ऊपरी नहीं था। उनके विचारों में भी कबीर जैसी प्रखरता थी। गरीब और मेहनतकशों का ईश्वर पूजा में उलझे रहना और तमाम अंधश्रद्धाओं को शिकार होना उन्हें कचोटता था। वे कहते थे कि जिंदगी भर फाकाकशी करते रहे आदमी की मौत के बाद मृत्युभोज में क्यों अच्छे-अच्छे पकवान खिलाए जाते हैं. इसके लिए लोग कर्जा क्यों लेते हैं?

दशरथ मांझी हमारे बीच नहीं हैं लेकिन क्या वे हमें उन मिथकीय पात्रों की याद दिलाते प्रतीत नहीं होते, जैसे पात्र हमें पुराणों में मिलते हैं, फिर वह चाहे प्रोमेथियस हो या भगीरथ। ऐसी शख्यिसतें, जो मनुष्य की उद्दाम जिजीविषा को प्रतिबिंबित कर रही होती हैं और अपनी कोशिशों से प्रकृति की दानव शक्तियों और इंसानियत के दुश्मनों से लड़ रही होती हैं।

अपने जीवन का फलसफा बयान करते हुए उन्होंने एक पत्रकार को शायद इसलिए बताया था कि पहाड़ मुझे उतना ऊँचा कभी नहीं लगा, जितना लोग बताते हैं। मनुष्य से ज्यादा ऊंचा कोई नहीं होता।

HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 8 यह सबसे कठिन समय नहीं

यह सबसे कठिन समय नहीं काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. नहीं, यह सबसे कठिन समय नहीं !
अभी भी दबा है चिड़िया की
चोंच में तिनका
और वह उड़ने की तैयारी में है !
अभी भी झरती हुई पत्ती
थामने को बैठा है हाथ एक
अभी भी भीड़ है स्टेशन पर
अभी भी एक रेलगाड़ी जाती है गंतव्य तक,
जहाँ कोई कर रहा होगा प्रतीक्षा

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘वसंत भाग-3’ में संकलित कविता ‘यह सबसे कठिन समय नहीं’ से अवतरित है। इसकी रचयिता जया जादवानी हैं।

व्याख्या :
कवयित्री आशावादी है। वह वर्तमान समय को कोसती नहीं है। उसके अनुसार आज का समय सबसे कठिन समय नहीं है। कठिन समय वह होता है जब पशु-पक्षियों तक को आश्रय का अभाव हो जाता है। अभी तक चिड़ियों की चोंच में तिनका मौजूद है अर्थात् उसे भोजन और आश्रय मिल रहा है। चिड़िया स्वच्छंदता पूर्वक विचरण करने को भी तत्पर है। हाथ पेड़-पौधों से झरती पत्तियों को थामने को तैयार रहता है। स्टेशन पर होने वाली भीड़ में कोई कमी नहीं है। वहाँ रेलगाड़ियों का आना-जाना निरंतर होता रहता है। रेलगाड़ी को जहाँ तक जाना होता है, वह वहाँ तक जाती है और उसकी प्रतीक्षा करने वाले लोग भी मौजूद हैं।

ये सभी बातें इस बात का सबूत हैं कि जीवन अपनी रफ्तार से चल रहा है। इसे सबसे कठिन समय तो नहीं कहा जा सकता।

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2. अभी भी कहता है कोई किसी को
जल्दी आ जाओ कि अब
सूरज डूबने का वक्त हो गया
अभी कहा जाता है
उस कथा का आखिरी हिस्सा
जो बूढ़ी नानी सुना रही सदियों से
दुनिया के तमाम बच्चों को
अभी आती है एक बस
अंतरिक्ष के पार की दुनिया से
लाएगी बचे हुए लोगों की खबर!
नहीं, यह सबसे कठिन समय नहीं।

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्यांश जया जादवानी की कविता ‘यह सबसे कठिन समय नहीं है’ से अवतरित है। कवयित्री आशावादी है।

व्याख्या :
कवयित्री का कहना है कि आज के समय को सबसे कठिन समय नहीं कहा जा सकता। अभी भी लोगों के दिलों में एक-दूसरे के लिए प्रेम और चिंता की भावना विद्यमान है। अभी भी हमारे शुभचिंतक चाहते हैं कि हम सूरज छिपने से पहले घर पहुंच जाएँ। रात को देर होने पर उन्हें बेचैनी होती है।

बूढ़ी नानी अभी भी बच्चों को अपनी सदियों पुरानी कहानी सुनाकर खुश कर देती है। बच्चों को अंतरिक्ष पार से आने वाली परी की प्रतीक्षा रहती है। वे उस पार के बच्चों के बारे में जानना चाहते हैं। जब तक लोगों का आपस में इतना प्यार और लगाव बना हुआ है तब तक भला इस दौर को कठिन समय कैसे कहा जा सकता है। हमें आशा का दामन नहीं छोड़ना चाहिए।

HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 8 यह सबसे कठिन समय नहीं

यह सबसे कठिन समय नहीं Summary in Hindi

यह सबसे कठिन समय नहींकविता का सार

प्रस्तुत कविता जया जादवानी द्वारा रचित है। कवयित्री का कहना है कि अभी निराशा की कोई बात नहीं है। आज का समय सबसे कठिन समय नहीं है। अभी भी आशा के कई चिह्न शेष हैं। अभी भी चिड़िया की चोंच में तिनका है अर्थात् उसे आश्रय प्राप्त है और वह उड़ने को भी तैयार है। पेड़ से झरती पत्ती को थामने वाला कोई मौजूद है। रेलवे स्टेशनों पर चहल-पहल अभी भी बरकरार है। रेलगाड़ी अपने निश्चित स्थल तक जाती है।

अभी तक लोग अपने आगंतुकों की प्रतीक्षा करते हैं। लोग अपनों की चिंता करने वाले अभी भी मौजूद हैं। सूरज छिपने से पहले अपनों को लोग घर के अंदर देखना चाहते हैं। अभी भी बूढ़ी नानी छोटे बच्चों को कहानी-किस्से सुनाती हैं। अभी भी बच्चों को अंतरिक्ष पार की दुनिया लुभाती है। इन सबका होना यह सिद्ध करता है कि आज भी सबसे कठिन समय नहीं आया है। जीवन की आशा अभी भी मौजूद है।

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