HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 समानता

Haryana State Board HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 समानता Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 समानता

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समानता के कोई तीन लक्षण लिखें।
उत्तर:

  • विशेष सुविधाओं का अभाव।
  • इसमें सभी को विकास के समुचित या पर्याप्त अवसर दिए जाते हैं।
  • प्रत्येक व्यक्ति की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती है।

प्रश्न 2.
नागरिक असमानता का क्या अर्थ है?
उत्तर:
नागरिक असमानता को कानूनी असमानता भी कहा जाता है। इसमें नागरिकों को अधिकार समान रूप से प्राप्त नहीं होते। इसमें सभी लोगों को जीवन, स्वतंत्रता, परिवार और धर्म आदि से संबंधित अधिकार असुरक्षित होते हैं। अधिकार प्रदान करते समय नागरिकों में रंग, जाति, धर्म या लिंग के आधार पर भेदभाव किया जाता है।

प्रश्न 3.
सामाजिक असमानता का क्या अर्थ है?
उत्तर:
सामाजिक असमानता का अर्थ है कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति को समान नहीं समझा जाता। समाज में रंग, जाति, धर्म, भाषा, वर्ण आदि के आधार पर भेदभाव किया जाता है।

प्रश्न 4.
राजनीतिक असमानता का क्या अर्थ है?
उत्तर:
राजनीतिक असमानता का अर्थ है कि नागरिकों को राजनीतिक अधिकार प्रदान करते समय विभिन्न आधारों पर भेदभाव किया जाना अर्थात वोट का अधिकार, चुने जाने का अधिकार, सरकारी पद प्राप्त करने का अधिकार ये सभी नागरिकों को भेदभाव के आधार पर प्राप्त कराए जाते हैं।

प्रश्न 5.
आर्थिक असमानता का क्या अर्थ है?
उत्तर:
आर्थिक असमानता में साधनों के वितरण की असमान स्थिति होती है। समाज में आर्थिक आधार पर भेदभाव किया जाता है। आर्थिक असमानता में प्रत्येक व्यक्ति को जीवन-यापन के समान व उचित अवसर प्राप्त नहीं होते। आर्थिक असमानता की स्थिति देश के लिए स्वास्थ्यवर्धक नहीं होती। यह समाज को दो वर्गों में विभाजित कर देती है।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 समानता

प्रश्न 6.
समानता के महत्त्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
आधुनिक युग में समानता का मनुष्य के जीवन में विशेष महत्त्व है। स्वतंत्रता की प्राप्ति की तरह मनुष्य में समानता की प्राप्ति की इच्छा सदा रही है। बिना समानता के व्यक्ति को स्वतंत्रता प्राप्त नहीं हो सकती। समानता लोकतंत्र की आधारशिला है। समानता के बिना सामाजिक न्याय की स्थापना नहीं हो सकती। समानता का महत्त्व इस बात में निहित है कि किसी मनुष्य के साथ जाति, धर्म, रंग, लिंग, धन आदि के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए।

प्रश्न 7.
किन्हीं दो विचारधाराओं के नाम लिखिए जो स्वतंत्रता तथा समानता को परस्पर विरोधी मानती हैं।
उत्तर:
स्वतंत्रता तथा समानता को परस्पर विरोधी मानने वाली दो विचारधाराएँ निम्नलिखित हैं

  • व्यक्तिवादी विचारधारा तथा
  • अराजकतावादी विचारधारा।

प्रश्न 8.
सभी व्यक्ति समान पैदा होते हैं। इस कथन को स्पष्ट करें।
उत्तर:
कुछ विद्वानों का मत है कि प्रकृति ने सभी व्यक्तियों को समान पैदा किया है और इसीलिए समाज की सुविधाएँ सभी को समान रूप से मिलनी चाहिएँ। प्राकृतिक रूप से सभी व्यक्ति समान हैं और सभी के साथ एक-सा व्यवहार होना चाहिए।

प्रश्न 9.
‘अवसर की समानता’ से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘अवसर की समानता’ समानता के सभी रूपों से जुड़ी हुई है। सामाजिक समानता में सभी को उन्नति व प्रगति के समान अवसर प्राप्त होने चाहिएँ। इसी तरह आर्थिक समानता में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आजीविका कमाने व अपनी आधारभूत आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए समान अवसर प्राप्त होने चाहिएँ।।

प्रश्न 10.
‘कानून के समक्ष समानता’ के सिद्धांत की व्याख्या करें। अथवा ‘कानून के समक्ष समानता’ का क्या अभिप्राय हैं?
उत्तर:
कानून के समक्ष समानता का अर्थ है कि सब पर एक से कानून लागू हों और कानून की दृष्टि में सब समान हों, कोई छोटा-बड़ा न हो, जाति, वंश, रंग व लिंग आदि के आधार पर कानून भेदभाव न करता हो अर्थात बड़े-से-बड़ा अधिकारी व छोटे-से-छोटे कर्मचारी कानून के सामने समान है। देश में सभी के लिए एक-सा कानून लागू होता है।

प्रश्न 11.
समानता की कोई दो परिभाषाएँ लिखें।
उत्तर:

  • स्टीफेंसन के अनुसार, “समानता से अभिप्राय मानव विकास के नियमित आवश्यक उपकरणों का समान विभाजन है।”
  • लास्की के अनुसार, “समानता का अर्थ प्रत्येक व्यक्ति को अपनी शक्तियों के यथासंभव प्रयोग के समान अवसर प्रदान करने के प्रयास करना है।”

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समानता से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
साधारण शब्दों में समानता का यह अर्थ लिया जाता है कि सभी व्यक्ति समान हैं, सभी के साथ समान व्यवहार होना चाहिए और सभी को समान वेतन मिलना चाहिए, परंतु समानता का यह अर्थ ठीक नहीं है कि किसी को विशेषाधिकार नहीं मिलने चाहिएँ और सभी को उन्नति के समान अवसर मिलने चाहिएँ। समाज के अंदर सभी व्यक्तियों को उन्नति के लिए समान अधिकार प्राप्त होने चाहिएँ। समानता के मुख्य प्रकार हैं-

  • प्राकृतिक समानता,
  • नागरिक समानता,
  • राजनीतिक समानता,
  • सामाजिक समानता,
  • आर्थिक समानता।

प्रश्न 2.
समानता की कोई पाँच विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
समानता की पाँच विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति सभी नागरिकों की मूल आवश्यकताएँ पूरी होनी चाहिएँ।।

2. विशेष अधिकारों का अभाव-प्रत्येक व्यक्ति को आजीविका के साधन उपलब्ध होने चाहिएँ और प्रत्येक व्यक्ति को अपने काम के लिए उचित मज़दूरी मिलनी चाहिए। किसी व्यक्ति का शोषण नहीं होना चाहिए।

3. आर्थिक न्याय आर्थिक न्याय का यह भी अर्थ है कि विशेष परिस्थितियों में राजकीय सहायता प्राप्त करने का अधिकार हो। बुढ़ापे, बेरोज़गारी तथा असमर्थता में राज्य सामाजिक एवं आर्थिक संरक्षण प्रदान करे।

4. प्राकृतिक असमानताओं की समाप्ति-स्त्रियों और पुरुषों को समान काम के लिए समान वेतन मिलना चाहिए।

5. उत्पादन के साधनों पर नियंत्रण-संपत्ति और उत्पादन के साधनों पर नियंत्रण के संबंध में विद्वानों में मतभेद पाया जाता है।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 समानता

प्रश्न 3.
समानता के पाँच रूपों का वर्णन करें।
उत्तर:
समानता के पाँच रूप निम्नलिखित हैं
1. प्राकृतिक समानता इसका अर्थ है कि प्रकृति ने सभी व्यक्तियों को समान बनाया है, इसलिए सभी व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार होना चाहिए।
2. नागरिक समानता या कानूनी समानता इसका अर्थ है कि सभी व्यक्तियों को समान अधिकार प्राप्त हों और सभी व्यक्ति कानून के समक्ष समान हों।
3. सामाजिक समानता-इसका अर्थ है कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समाज में समान समझा जाना चाहिए।
4. राजनीतिक समानता इसका अर्थ है कि नागरिकों को राजनीतिक अधिकार समान रूप से मिलने चाहिएँ।
5. आर्थिक समानता आर्थिक समानता का अर्थ है कि समाज में सभी व्यक्तियों को आर्थिक विकास के समान अवसर प्राप्त हों तथा अमीर और गरीब का अंतर नहीं होना चाहिए।

प्रश्न 4.
‘नागरिक समानता, स्वतंत्रता की एक आवश्यक दशा के रूप में’, पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
नागरिक समानता का अर्थ है कि सभी व्यक्तियों को समान अधिकार प्राप्त हों अर्थात कानून के सामने सभी व्यक्ति समान हों। धर्म, जाति, रंग, लिंग आदि के आधार पर नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के समान अधिकार प्राप्त होने चाहिएँ। नागरिक समानता स्वतंत्रता की एक आवश्यक शर्त है। बिना नागरिक समानता के नागरिक स्वतंत्रता का आनंद नहीं उठा सकते, इसलिए सभी लोकतंत्रीय राज्यों में कानून के समक्ष सभी नागरिकों को समान समझा जाता है और सभी को कानून का समान संरक्षण प्राप्त होता है।

प्रश्न 5.
‘स्वतंत्रता व समानता एक-दूसरे के विरोधी नहीं, पूरक हैं।’ व्याख्या करें। अथवा क्या स्वतंत्रता और समानता परस्पर विरोधी हैं? अथवा स्वतंत्रता और समानता में क्या संबंध है?
उत्तर:
स्वतंत्रता तथा समानता में गहरा संबंध है। अधिकांश आधुनिक विचारकों के अनुसार स्वतंत्रता तथा समानता परस्पर विरोधी न होकर एक-दूसरे के सहयोगी हैं। समानता के अभाव में स्वतंत्रता व्यर्थ है। आर०एच० टोनी ने ठीक ही कहा है, “समानता स्वतंत्रता की विरोधी न होकर इसके लिए आवश्यक है।” आधुनिक लोकतंत्रात्मक राज्य मनुष्य की स्वतंत्रता के लिए आर्थिक तथा सामाजिक समानता स्थापित करने का प्रयास करते हैं।

आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतंत्रता निरर्थक है। जिस देश में नागरिकों को आर्थिक समानता प्राप्त नहीं होती, वहाँ नागरिक अपनी राजनीतिक स्वतंत्रता का प्रयोग नहीं कर पाते। भारत में राजनीतिक स्वतंत्रता तो है, परंतु आर्थिक समानता नहीं है। गरीब, बेकार एवं अनपढ़ व्यक्ति के लिए स्वतंत्रता का कोई महत्त्व नहीं है। एक गरीब व्यक्ति अपना वोट बेच सकता है और चुनाव लड़ने की तो वह सोच भी नहीं सकता। अतः स्वतंत्रता के लिए समानता का होना अनिवार्य है।

प्रश्न 6.
समानता के महत्त्व पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
समानता का मनुष्य के जीवन में विशेष महत्त्व है। स्वतंत्रता की प्राप्ति की तरह मनुष्य में समानता की प्राप्ति की इच्छा सदा रही है। स्वतंत्रता के लिए समानता का होना आवश्यक है। समानता तथा स्वतंत्रता प्रजातंत्र के दो महत्त्वपूर्ण स्तंभ हैं। समानता का महत्त्व इस तथ्य में निहित है कि नागरिकों के बीच जाति, धर्म, भाषा, वंश, रंग, लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।

सामाजिक न्याय और सामाजिक स्वतंत्रता के लिए समानता का होना आवश्यक है। वास्तव में समानता न्याय की पोषक है। कानून की दृष्टि में सभी को समान समझा जाता है। भारत के संविधान में मौलिक अधिकारों के अनुच्छेद में समानता का अधिकार लिखा गया है।

प्रश्न 7.
“आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता व्यर्थ है।” व्याख्या करें।
उत्तर:
राजनीति शास्त्र में आर्थिक समानता और राजनीतिक स्वतंत्रता बहुत महत्त्वपूर्ण अवधारणाएं हैं। राजनीतिक स्वतंत्रता का अर्थ है कि लोगों को विभिन्न राजनीतिक अधिकार प्रदान करना। राजनीतिक अधिकारों में चुनाव का अधिकार व वोट का अधिकार हैं। राजनीतिक स्वतंत्रताएं प्रजातंत्र का आधार हैं, लेकिन केवल राजनीतिक स्वतंत्रताओं से ही प्रजातंत्र के लक्ष्यों को पूरी तरह से प्राप्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह साधारणतया देखा गया है कि धनाढ्य व्यक्तियों का ही राजनीति पर अधिकार होता वे ही चुनाव लड़ते हैं।

वे ही पैसे के ज़ोर पर वोटों को खरीदते हैं। गरीब व्यक्ति चुनाव लड़ने की बात तो सोच ही नहीं सकता। उसे दो वक्त की रोटी की चिंता सताए रहती है। चुनाव लड़ने के लिए धन चाहिए, जिसकी वह व्यवस्था नही कर सकता। अतः समाज में आर्थिक विषमता को दूर किया जाना चाहिए। जहां आर्थिक विषमता होगी, वहाँ राजनीतिक स्वतंत्रता सुरक्षित नहीं रह सकती।

इस संबंध में प्रो० लास्की ने ठीक ही कहा है, “राजनीतिक समानता तब तक कदापि वास्तविक नहीं हो सकती, जब तक उसके साथ आर्थिक समानता न हो।” अंत में कहा जा सकता है कि आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतंत्रता केवल मात्र ढोंग, दिखावा और मिथ्या है।

प्रश्न 8.
आर्थिक असमानता का अर्थ एवं कारण बताएं।
उत्तर:
आर्थिक असमानता का अर्थ है-आर्थिक क्षेत्र में असमानता। यह अमीर तथा गरीब के बीच का अंतर होता है। आर्थिक असमानता में लोकतंत्र कमज़ोर पड़ता है क्योंकि गरीब व्यक्तियों को चुनाव में खड़े होने तथा अपने प्रतिनिधि चुनकर भेजने का अवसर नहीं मिलता। सरकार पर अमीरों का अधिकार रहता है और वे अपने वर्ग के हितों को सुरक्षित रखने के लिए कार्य करते हैं। निर्धन व्यक्ति तो कई बार अपना मत बेचने पर भी मज़बूर हो जाते हैं। प्रेस पर भी धनी वर्ग का ही नियंत्रण रहता है। आर्थिक असमानता के कारण भारतीय समाज निम्नलिखित आधारों पर आर्थिक असमानता का शिकार है

(1) समाज में दो वर्ग हैं-अमीर और गरीब। अमीर वर्ग संख्या में बहुत कम है, लेकिन समाज की अधिकतर संपत्ति पर उसका कब्जा है। गरीब वर्ग समाज का बहुत बड़ा भाग है जिसके पास संपत्ति नहीं है। इस कारण अमीर वर्ग गरीबों का शोषण करने में सफल हो रहा है।

(2) आर्थिक विकास का लाभ समाज के गरीब वर्ग को नहीं पहुंचा है, जिसके कारण गरीब और अधिक गरीब हो गया है तथा अमीर और अधिक अमीर हुआ है।

(3) अनियंत्रित महंगाई के कारण मध्यम वर्ग भी बदल चुका है। वस्तुओं की बढ़ती कीमतों के कारण साधारण जनता बहुत कठिनाई का सामना कर रही है।

(4) ग्रामीण लोगों का एक बड़ा भाग आज भी ऋण के बोझ के नीचे दबा हुआ है और बंधुआ मज दूरों जैसा जीवन व्यतीत करता है। भूमिहीन श्रमिकों को आज भी जीवन की न्यूनतम आवश्यकताएं भी उपलब्ध नहीं होती।

(5) अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जन-जातियों को दी गई सुविधाओं का लाभ केवल कुछ परिवारों तक ही सीमित रहा है। इन जातियों के लिए आरक्षित किए गए बहुत से पद अब भी खाली पड़े हैं।

प्रश्न 9.
राजनीतिक समानता तथा आर्थिक समानता में संबंधों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मानता तथा आर्थिक समानता में घनिष्ठ संबंध है। वास्तव में राजनीतिक समानता की स्थापना करने के लिए आर्थिक समानता की स्थापना करना बहुत आवश्यक है। उदारवादी राजनीतिक समानता को महत्त्व देते हैं, जबकि मार्क्सवादी आर्थिक समानता पर अधिक बल देते हैं। परंतु वास्तव में यह दोनों एक-दूसरे के विरोधी न होकर एक-दूसरे के पूरक हैं।

राजनीतिक समानता की स्थापना के लिए यह आवश्यक है कि समाज में आर्थिक विषमताएं कम से कम हों और सभी की मौलिक आर्थिक आवश्यकताएं पूरी हों। एक भूखे तथा गरीब व्यक्ति के लिए आर्थिक समानता व्यर्थ है क्योंकि वह न तो चुनाव लड़ सकता है और न ही स्वतंत्रतापूर्वक अपने मत का प्रयोग कर सकता है।

सरकारी पद (नौकरी) प्राप्त करने के लिए उच्च शिक्षा की आवश्यकता होती है, परंतु एक निर्धन व्यक्ति के पास इसके लिए धन नहीं होता और उसके बच्चे इससे वंचित रह जाते हैं। अतः राजनीतिक समानता की वास्तविक स्थापना के लिए आर्थिक समानता का होना आवश्यक होता है। अतः दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं और दोनों में घनिष्ठ संबंध हैं।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समानता से आपका क्या अभिप्राय है? समानता की प्रमुख विशेषताओं/लक्षणों का वर्णन कीजिए। अथवा समानता की परिभाषा करके इसके अर्थ का विस्तृत विवेचन कीजिए।
उत्तर:
समानता का अर्थ स्वतंत्रता की तरह समानता की अवधारणा का अपना महत्त्व है। समानता को भी लोकतंत्र का आधार माना गया है। समानता के बिना लोकतंत्र को सफल नहीं बनाया जा सकता और न ही व्यक्ति के विकास को संभव बनाया जा सकता है। समानता के महत्त्व को प्राचीन काल से ही विचारकों ने स्वीकार किया है, किंतु यह एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण अवधारणा के रूप में 18वीं शताब्दी में ही सामने आई। सामाजिक व आर्थिक विषमताओं के कारण पैदा हुई यह धारणा आज राजनीति विज्ञान के अध्ययन-क्षेत्र में एक प्रमुख स्थान रखती है। समानता की अवधारणा को विश्वव्यापी और प्रभावशाली बनाने का श्रेय समाजवादियों को ही जाता है।

समानता का गलत अर्थ:
साधारण रूप से समानता का यह अर्थ लिया जाता है कि सब मनुष्य समान हैं, सभी के साथ एक-सा व्यवहार हो और सभी की आमदनी भी एक-सी होनी चाहिए। इस अर्थ के समर्थक मनुष्य की प्राकृतिक समानता पर बल देते हैं कि मनुष्य समान ही पैदा होते हैं और प्रकृति ने उन्हें समान रहने के लिए पैदा किया है, परंतु यह कहना ठीक नहीं है। प्रकृति ने सभी मनुष्यों को समान नहीं बनाया है। एक व्यक्ति दूसरे से शक्ल-सूरत तथा शरीर के विस्तार में समान नहीं है। मनुष्य किसी फैक्ट्री में बना एक उच्चकोटि का माल नहीं है। साथ ही उसकी प्राकृतिक शक्तियों में भी अंतर है। इसलिए यह धारणा गलत है।

समानता का सही अर्थ:
समानता का अर्थ हम प्राकृतिक समानता से नहीं रखते। प्रकृति ने तो हमें असमान ही बनाया है। समानता का अर्थ हम सामाजिक और सांसारिक भावना के रूप में करते हैं। मनुष्य मात्र में कुछ मौलिक समानताएं पाई जाती हैं, परंतु सामाजिक व्यवस्था ने उन समानताओं को स्थान नहीं दिया। प्राचीन काल से ही समाज में इतनी विषमता चली आ रही है कि मनुष्य, मनुष्य के अत्याचारों तथा शोषण से कराह उठा है। राजनीतिक जागृति के साथ-साथ इस असमानता के विरुद्ध भी मानव ने विद्रोह किया है।

शारीरिक समानता और असमानता तो प्राकृतिक है, किंतु समाज में फैली असमानता प्राकृतिक नहीं है। वह मनुष्य द्वारा ही स्थापित की गई है। इस सामाजिक असमानता को दूर कर समानता स्थापित करने की बात पर विचार तथा व्यवहार किया जाने लगा है। समानता की महत्ता को ध्यान में रखते हुए डॉ० आशीर्वादम ने कहा है, “फ्रांस के क्रांतिकारी न तो पागल थे और न मूर्ख, जब उन्होंने स्वतंत्रता और भ्रातृत्व का नारा लगाया था, अर्थात स्वतंत्रता और समानता साथ-साथ चलती है।”

समानता का वास्तविक अर्थ सामाजिक और आर्थिक समानता से है। परंतु इसका यह तात्पर्य नहीं कि सभी मनुष्यों की समान आय हो तथा उनमें छोटे-बड़े, शिक्षित-अशिक्षित, बुद्धिमान-मूर्ख, योग्य-अयोग्य का भेदभाव न किया जाए। प्रकृति ने भी सभी मनुष्यों को शारीरिक बनावट, बुद्धि, रुचि और योग्यता में एक जैसा नहीं बनाया। जब तक यह अंतर रहेगा, तब तक यह बिल्कुल असंभव है कि सभी लोगों को बराबर बनाया जा सके। समानता की परिभाषाएँ समानता के सही अर्थ को समझने के लिए उसकी विभिन्न परिभाषाओं का अध्ययन आवश्यक है, जो निम्नलिखित हैं

1. प्रो० लास्की:
के शब्दों में, “समानता का यह अर्थ है कि प्रत्येक के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाए अथवा प्रत्येक व्यक्ति को समान वेतन दिया जाए। यदि ईंट ढोने वाले का वेतन एक प्रसिद्ध गणितज्ञ या वैज्ञानिक के बराबर कर दिया गया तो इससे समाज का उद्देश्य ही नष्ट हो जाएगा। इसलिए समानता का यह अर्थ है कि कोई विशेष अधिकार वाला वर्ग न रहे और सबको उन्नति के समान अवसर प्राप्त हों।”

2. जे०ए० कोरी:
के अनुसार, “समानता का विचार इस बात पर बल देता हैं कि सभी मनुष्य राजनीतिक रूप में समान होते हैं, राजनीतिक जीवन में समान रूप से भाग लेने, अपने मताधिकार का प्रयोग करने, निर्वाचित होने एवं कोई भी पद ग्रहण करने के लिए सभी नागरिक समान रूप से अधिकारी होते हैं।”

3. बार्कर:
के अनुसार, “समानता का यह अर्थ है कि अधिकारों के रूप में जो सुविधाएँ मुझे उपलब्ध हैं वैसे ही और उतनी ही सुविधाएं दूसरों को भी उपलब्ध हों तथा दूसरों को जो अधिकार प्रदान किए गए हैं, वे मुझे अवश्य दिए जाएं।”

4. अप्पादोराय:
का कथन है, “यह कहना कि सब मनुष्य समान हैं, ऐसे ही गलत है जैसे कि यह कहना कि पृथ्वी समतल है।”

5. टॉनी:
के मतानुसार, “सबके लिए व्यवस्था की समानता विभिन्न आवश्यकताओं को एक ही प्रकार से संसाधित कर (या समझकर) प्राप्त नहीं की जा सकती है, बल्कि आवश्यकताओं के अनुरूप विभिन्न प्रकारों से उन्हें पूरा करने के लिए एक समान ध्यान देकर प्राप्त की जा सकती है।” समानता की विशेषताएँ/लक्षण-समानता की निम्नलिखित विशेषताएँ लक्षण स्पष्ट होते हैं।

1. विशेष सुविधाओं का अभाव:
लास्की के अनुसार समानता का पहला अर्थ होता है-विशेष सुविधाओं का अभाव, अर्थात उनके कहने का तात्पर्य यह है कि जाति, वंश, रंग, भाषा, धर्म, संपत्ति आदि के आधार पर राज्य में किसी भी व्यक्ति को विशेष सुविधाएँ नहीं मिलनी चाहिएँ। सभी के साथ समान व्यवहार करना चाहिए। जहां तक प्रजातंत्र राज्य का प्रश्न है, इसमें सभी को समान मताधिकार मिलने चाहिएँ। सभी व्यक्ति प्रशासन के कार्य में भाग ले सकते हैं। किसी भी व्यक्ति को विशेष सुविधा प्राप्त नहीं होनी चाहिए।

2. सभी को पर्याप्त अवसर:
लास्की के अनुसार समानता का दूसरा अर्थ यह होता है कि सभी व्यक्तियों को विकास के लिए समुचित या पर्याप्त अवसर दिया जाए अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति को यह सुविधा मिलनी चाहिए कि वह अपने गुणों का विकास समुचित रूप से कर सके। उसके आंतरिक गुणों के विकास में किसी प्रकार का रोड़ा न अटकाया जाए। उसे उसके व्यक्तित्व के विकास के लिए समुचित अवसर मिलना चाहिए। महान दार्शनिक एवं विद्वान व्यक्ति मध्यम पैदा होते हैं। अगर उन्हें राज्य की ओर से समुचित अवसर न दिया जाए तो शायद ही वे अपनी प्रतिभा का विकास कर सकते हैं।

3. प्राकृतिक असमानताओं की समाप्ति:
समानता की तृतीय विशेषता यह है कि समाज में प्राकृतिक असमानताओं को नष्ट किया जाता है। यदि समाज में प्राकृतिक असमानताएं रहेंगी तो समानता के अधिकार : का कोई लाभ नहीं है।

4. मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति:
समानता का चौथा अर्थ यह है कि प्रत्येक व्यक्ति की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति अवश्य होनी चाहिए अर्थात सभी को समान भोजन, वस्त्र, आवास एवं सम्पत्ति नहीं दी जा सकती है। लेकिन उनकी मौलिक आवश्यकताओं-भोजन, वस्त्र, आवास, चिकित्सा एवं शिक्षा की पूर्ति अवश्य होनी चाहिए। उसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि समाज में मनुष्य की जीवनयापन की मूल आवश्यकताओं की पूर्ति अवश्य रूप से होनी चाहिए।

लास्की (Laski) ने भी कहा है, “समानता का अर्थ एक-सा व्यवहार करना नहीं है, इसका तो आग्रह इस बात पर निर्भर : है कि मनुष्यों को सुख का समान अधिकार होना चाहिए, उनके इस अधिकार में किसी प्रकार का आधारभूत अंतर स्वीकार नहीं किया जा सकता है।”

5. तर्क के आधार पर भेदभाव:
यद्यपि समानता का अर्थ विशेषाधिकारों का अभाव है तथापि समाज में तर्क के आधार पर कुछ लोगों को विशेष सुविधाएं प्रदान कराई जा सकती हैं; जैसे पिछड़े वर्ग, अपंग स्त्रियों, रोगी तथा दिव्यांग को समाज में कुछ विशेष सुविधाएं प्राप्त कराई जाती हैं। इस व्यवस्था को कानून के सामने संरक्षण कहते हैं। ये विशेष सुविधाएं ऐसे लोगों को समाज में उन्नति व विकास करने में सहायता प्रदान करती हैं।

निष्कर्ष:
समानता का सही अर्थ यह है कि राज्य और समाज में विशेष सुविधाओं का अंत होना चाहिए और सभी को अपने-अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए पर्याप्त अवसर मिलना चाहिए। अवसर की समानता ही सच्ची समानता है। जाति, वंश, रंग, संपत्ति, भाषा, धर्म आदि के आधार पर किसी भी व्यक्ति को विशेष सुविधाएं नहीं मिलनी चाहिएँ। लास्की के अनुसार समानता के लिए निम्नलिखित बातें होनी चाहिएँ

  • सभी को पर्याप्त अवसर,
  • सभी की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति,
  • विशेष सुविधाओं का अंत।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 समानता

प्रश्न 2.
समानता के विभिन्न रूपों का वर्णन कीजिए।
अथवा
सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक समानता की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
समानता का अर्थ जानने के बाद हमारे लिए यह आवश्यक हो जाता है कि हम समानता के विभिन्न रूपों का अध्ययन करें। भिन्न-भिन्न लेखक समानता के प्रकारों को भिन्न-भिन्न संख्या और नाम देते हैं, जैसे बार्कर दो प्रकार की समानता मानता है- वैधानिक तथा सामाजिक। प्रो० लास्की के अनुसार समानता राजनीतिक तथा आर्थिक दो प्रकार की होती है। ब्राइस चार प्रकार की समानता मानता है-

  • नागरिक समानता,
  • सामाजिक समानता,
  • राजनीतिक समानता तथा
  • प्राकृतिक समानता।

आजकल समानता पांच प्रकार की मानी जाती है; जैसे

  • प्राकृतिक समानता,
  • नागरिक समानता,
  • सामाजिक समानता,
  • राजनीतिक समानता तथा
  • आर्थिक समानता।

उपर्युक्त समानताओं का विस्तारपूर्वक वर्णन नीचे दिया गया है

1. प्राकृतिक समानता:
कुछ लोगों का विचार है कि सभी लोग जन्म से ही समान हैं। वे संसार में दिखाई देने वाली सभी असमानताओं को मानवकृत मानते हैं। प्राकृतिक समानता की अवधारणा को 1789 की फ्रांस की मानव अधिकारों की घोषणा में माना गया है और 1776 ई० की अमेरिका की स्वतंत्रता घोषणा में भी माना गया है। परंतु ऐसा विचार गलत है, क्योंकि लोगों में काफी असमानताएं हैं जो जन्म से ही होती हैं और उनका समाप्त करना भी असंभव है।

दो भाई भी आपस में बराबर नहीं होते। सभी लोगों में शरीर और दिमाग से संबंधित परस्पर असमानता है। वास्तव में जन्म से ही बच्चों में शारीरिक और मानसिक असमानता होती है जिसे दूर करना संभव नहीं है। इसलिए यह कहना गलत है कि प्रकृति मनुष्यों को जन्म से समानता प्रदान करती है।

2. नागरिक समानता:
नागरिक समानता का अर्थ है कि नागरिक अधिकार सब लोगों के लिए समान हों। सब लोगों के लिए जीवन, स्वतंत्रता, परिवार और धर्म आदि से संबंधित अधिकार पूरी तरह से सुरक्षित हों। किसी भी व्यक्ति के साथ रंग, जाति, धर्म या लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। यदि किसी राज्य में किसी भी आधार पर कुछ भेदभाव किया जाता है तो वहाँ पूर्ण नागरिक समानता नहीं कही जा सकती।

नागरिक समानता में यह भी शामिल है कि सब लोग कानून के सामने बराबर (Equal before Law) हों। प्रधानमंत्री से लेकर साधारण नागरिक तक सभी के ऊपर एक ही कानून लागू हो। सरकारी कर्मचारियों के लिए भी अलग कानून न हों। किसी भी व्यक्ति को बिना कानून तोड़े कोई दंड न दिया. जाए। इसे कई बार वैधानिक समानता भी कहा जाता है।

3. सामाजिक समानता:
सामाजिक समानता का अर्थ है कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समाज में समान समझा जाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति समाज का बराबर अंग है और सभी को समान सुविधाएं प्राप्त होनी चाहिएँ। किसी व्यक्ति से धर्म, जाति, लिंग, धन आदि के आधार पर भेदभाव न हो। भारत में जाति-पाति के आधार पर भेद किया जाता था। भारत सरकार ने कानून द्वारा छुआछूत को समाप्त कर दिया है। दक्षिण अफ्रीका में कुछ समय पहले रंग के आधार पर भेदभाव किया जाता था, जिसे 1991 में एक कानून पास करके समाप्त कर दिया गया है।

अब वहाँ सामाजिक समानता पाई जाती है। अमेरिका में भी काले और गोरे लोगों में भेद किया जाता रहा है। वहाँ पर काले लोगों के साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया जाता लेकिन पिछले कुछ वर्षों से कानून द्वारा इस भेदभाव को समाप्त करने का प्रयत्न किया जा रहा है। इस प्रयास में सरकार को काफी सफलता भी मिली है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि सामाजिक समानता की स्थापना केवल कानून बनाकर ही नहीं की जा सकती, बल्कि इसके लिए लोगों को शिक्षित करके उनके दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना होगा अर्थात लोगों के सामाजिक, धार्मिक व जातिगत दृष्टिकोण में परिवर्तन करना आवश्यक है।

4. राजनीतिक समानता:
राजनीतिक समानता का अर्थ है कि जो लोग संविधान और कानून की दृष्टि से योग्य हैं, उन्हें समान राजनीतिक अधिकार प्रदान किए जाएं। संविधान या कानून के द्वारा जो लोग इन अधिकारों से वंचित किए जाएं, वे किसी भेदभाव के आधार पर वंचित न किए जाएं। सभी प्रौढ़ लोगों को मताधिकार प्राप्त होना चाहिए और किसी विशेष आयु से ऊपर सब लोगों को चुनाव लड़ने का अधिकार हो। राजनीतिक समानता में समान स्वतंत्रताएं (भाषण, प्रैस और संगठन से संबंधित) और सरकार की आलोचना करने का अधिकार भी शामिल है।

इन अधिकारों पर कोई ऐसे प्रतिबंध नहीं होने चाहिएँ, जिनसे धर्म, रंग, जाति या लिंग आदि के आधार पर किसी के साथ पक्षपात हो, जैसे पाकिस्तान में कोई गैर-मुसलमान वहाँ का राष्ट्रपति नहीं बन सकता। इसी तरह कई देशों में स्त्रियों को राजनीतिक अधिकारों से वंचित किया गया है, जैसे स्विट्ज़रलैंड में पहले नीतिक अधिकार प्राप्त नहीं थे। अभी कुछ वर्ष पहले ही वहाँ स्त्रियों को ये अधिकार दिए गए। कुछ मुस्लिम देशों में अब भी महिलाओं को राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं हैं। यह राजनीतिक समानता के विरुद्ध है।

5. आर्थिक समानता:
आर्थिक समानता का तात्पर्य है कि लोगों में आर्थिक भेद न हों। इसका यह अर्थ नहीं कि लोगों की आमदनी व खर्च के आंकड़े समान हों, परंतु इसका उद्देश्य समाज में पाई जाने वाली धन और आय की असमानताओं को दूर करना है। आर्थिक समानता के सिद्धांत की मांग है कि समाज के सभी सदस्यों को जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त साधन प्राप्त होने चाहिएँ अर्थात सभी लोगों को कम-से-कम आवश्यक भोजन, वस्त्र और निवास-स्थान मिलना चाहिए, क्योंकि ये अच्छे जीवन की मूल आवश्यकताएं हैं।

सबकी प्रारम्भिक आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद ही किसी के लिए विलास-सामग्री की बात सोची जाए। लास्की का कथन है, “मुझे अपने लिए केक पकाने का कोई अधिकार नहीं है, जबकि मेरा पड़ोसी उसी अधिकार को रखते हुए भी भूखा सो रहा है।”सबको काम पाने तथा मजदूरी का उचित फल पाने का अधिकार हो। आर्थिक समानता इस बात पर जोर देती है कि किसी के पास भी अपने लिए जरूरत से अधिक धन नहीं होना चाहिए, जबकि दूसरे भूखे मर रहे हों।

इस प्रकार आर्थिक समानता समाजवादी आदर्श स्थापित करना चाहती है जिसमें देश की संपत्ति का न्यायपूर्ण और ठीक-ठीक वितरण हो, जिनमें आर्थिक शोषण न हो और जिसमें समाज को हानि पहुंचाकर धन एकत्रित करने का मौका न दिया जाए। वास्तव में जब तक आर्थिक समानता नहीं होगी, तब तक नागरिक, राजनीतिक और सामाजिक समानता स्थापित नहीं हो सकती।

निष्कर्ष: समानता के उपरोक्त रूपों का अध्ययन करने के पश्चात ऐसा मालूम पड़ता है कि सभी रूप अपने-अपने स्थान पर महत्त्वपूर्ण हैं। अकेले में कोई समानता लाभकारी नहीं है। आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक या सामाजिक समानता स्थापित नहीं की जा सकती। ऐसे ही राजनीतिक समानता के बिना आर्थिक या नागरिक समानता स्थापित नहीं की जा सकती। अतः समाज में सभी प्रकार की समानताओं का होना आवश्यक है। व्यक्ति का विकास भी सभी समानताओं पर निर्भर करता है।

प्रश्न 3.
समानता और स्वतंत्रता में क्या संबंध है? अथवा राजनीतिक समानता और आर्थिक समानता के आपसी संबंधों का वर्णन करें। क्या स्वतंत्रता और समानता एक-दूसरे के विरोधी हैं? अथवा राजनीतिक स्वतंत्रता तथा आर्थिक समानता में संबंध बताएं।
उत्तर:
समानता और स्वतंत्रता लोकतंत्र के मूल तत्त्व हैं। व्यक्ति के विकास के लिए स्वतंत्रता तथा समानता का विशेष महत्त्व है। बिना स्वतंत्रता और समानता के मनुष्य अपना विकास नहीं कर सकता, परंतु स्वतंत्रता और समानता के संबंध पर विद्वान एकमत नहीं हैं। कुछ विचारकों का मत है कि स्वतंत्रता तथा समानता परस्पर विरोधी हैं, जबकि कुछ विचारकों के अनुसार स्वतंत्रता तथा समानता में गहरा संबंध है और स्वतंत्रता की प्राप्ति के बिना समानता नहीं की जा सकती अर्थात एक के बिना दूसरे का कोई महत्त्व नहीं है।

स्वतंत्रता तथा समानता परस्पर विरोधी हैं:
कुछ विचारकों के अनुसार स्वतंत्रता तथा समानता परस्पर विरोधी हैं और एक ही समय पर दोनों की प्राप्ति नहीं की जा सकती। टॉक्विल तथा लॉर्ड एक्टन इस विचारधारा के मुख्य समर्थक हैं। इन विद्वानों के मतानुसार जहां स्वतंत्रता है, वहाँ समानता नहीं हो सकती और जहां समानता है, वहाँ स्वतंत्रता नहीं हो सकती। अन्य शब्दों में यह कहा जा सकता है कि यदि समाज में आर्थिक समानता स्थापित कर दी. गई तो स्वतंत्रता समाप्त हो जाएगी, क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपनी योग्यता के आधार पर धन नहीं कमा सकेगा। इन विचारकों ने निम्नलिखित आधारों पर स्वतंत्रता तथा समानता को विरोधी माना है

1. सभी मनुष्य समान नहीं हैं:
इन विचारकों के अनुसार असमानता प्रकृति की देन है। कुछ व्यक्ति जन्म से ही शक्तिशाली होते हैं तथा कुछ कमजोर। कुछ व्यक्ति जन्म से ही बुद्धिमान होते हैं और कुछ मूर्ख। अतः मनुष्य में असमानताएं प्रकृति की देन हैं और इन असमानताओं के होते हुए सभी व्यक्तियों को समान समझना अन्यायपूर्ण और अनैतिक है।

2. आर्थिक स्वतंत्रता और समानता परस्पर विरोधी हैं:
व्यक्तिवादी सिद्धांत के अनुसार स्वतंत्रता तथा समानता को परस्पर विरोधी माना जाता है। व्यक्तिवादी सिद्धांत के अनुसार मनुष्य को आर्थिक क्षेत्र में पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए तथा आर्थिक क्षेत्र में स्वतंत्र प्रतियोगिता होनी चाहिए। यदि स्वतंत्र प्रतियोगिता को अपनाया जाए तो कुछ व्यक्ति अमीर हो जाएंगे, जिससे आर्थिक असमानता बढ़ेगी और यदि आर्थिक समानता की स्थापना की जाए तो व्यक्ति का स्वतंत्र व्यापार का अधिकार समाप्त हो जाता है। आर्थिक समानता तथा स्वतंत्रता परस्पर विरोधी हैं और एक समय पर दोनों की स्थापना नहीं की जा सकती।

3. समान स्वतंत्रता का सिद्धांत अनैतिक है:
सभी व्यक्तियों की मूल योग्यताएं समान नहीं होती। इसलिए सबको समान अधिकार अथवा स्वतंत्रता प्रदान करना अनैतिक और अन्यायपूर्ण है।

4. प्रगति में बाधक (Resists the Progress) यदि स्वतंत्रता के सिद्धांत को समानता के आधार पर लागू किया जाए तो इससे व्यक्ति तथा समाज को समान रूप दे दिए जाते हैं जिससे योग्य तथा अयोग्य व्यक्ति में अंतर करना कठिन हो जाता है। इससे योग्य व्यक्ति को अपनी योग्यता दिखाने का अवसर नहीं मिलता।

स्वतंत्रता और समानता परस्पर विरोधी नहीं हैं स्वतंत्रता और समानता के संबंधों के विषय में दूसरा दृष्टिकोण व्यक्त किया गया है कि यह दोनों एक दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं। जिन विचारकों ने स्वतंत्रता को समानता का विरोधी माना है, वास्तविकता में उन्होंने स्वतंत्रता का सही अर्थ नहीं लिया है। यदि वे स्वतंत्रता को सही अर्थ में लें तो स्वतंत्रता और समानता का संबंध स्पष्ट हो जाएगा कि ये दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।

जो विचारक स्वतंत्रता तथा समानता को परस्पर विरोधी न मानकर एक-दूसरे का पूरक मानते हैं और इनका आपस में घनिष्ठ संबंध बतलाते हैं, उनमें प्रसिद्ध हैं रूसो, प्रो० आर०एच० टॉनी व प्रो० पोलार्ड। रूसो (Rousseau) के अनुसार, “बिना स्वतंत्रता के समानता जीवित नहीं रह सकती।” प्रो० आर०एच० टॉनी (Prof. R.H. Tony) के अनुसार, “समानता की प्रचुर मात्रा स्वतंत्रता की विरोधी नहीं, वरन इसके लिए अत्यंत आवश्यक है।” प्रो० पोलार्ड (Prof. Pollard) के अनुसार, “स्वतंत्रता की समस्या का केवल एक ही समाधान है और वह है समानता।” ऊपरलिखित विचारक अपने पक्ष में निम्नलिखित तर्क देते हैं

1. स्वतंत्रता और समानता का विकास एक साथ हुआ है:
स्वतंत्रता और समानता का संबंध जन्म से है। जब निरंकुशता और असमानता के विरुद्ध मानव ने आवाज उठाई और क्रांतियां हुईं, तो स्वतंत्रता और समानता के सिद्धांतों का जन्म हुआ। इस प्रकार इन दोनों में रक्त-संबंध है।

2. दोनों प्रजातंत्र के आधारभूत सिद्धांत हैं:
स्वतंत्रता और समानता का विकास प्रजातंत्र के साथ हुआ है। प्रजातंत्र के दोनों मूल सिद्धांत हैं। दोनों के बिना प्रजातंत्र की स्थापना नहीं की जा सकती।

3. दोनों के रूप समान हैं:
स्वतंत्रता और समानता के प्रकार एक ही हैं और उनके अर्थों में भी कोई विशेष अंतर नहीं है। प्राकृतिक स्वतंत्रता तथा प्राकृतिक समानता का अर्थ प्रकृति द्वारा प्रदान की गई स्वतंत्रता अथवा समानता है। नागरिक स्वतंत्रता का अर्थ समान नागरिक अधिकारों की प्राप्ति है। इसी प्रकार दोनों के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक इत्यादि रूप हैं।

4. दोनों के उद्देश्य समान हैं:
दोनों का एक ही उद्देश्य है और वह है व्यक्ति के विकास के लिए सुविधाएं प्रदान करना, ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास कर सके। एक के बिना दूसरे का उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता। स्वतंत्रता के बिना समानता असंभव है और समानता के बिना स्वतंत्रता का कोई मूल्य नहीं है। आशीर्वादम (Ashirvatham) ने दोनों में घनिष्ठ संबंध बताया है।

उसने लिखा है, “फ्रांस के क्रांतिकारियों ने जब स्वतंत्रता, समानता तथा भाई-चारे को अपने युद्ध का नारा बताया तो वे न पागल थे और न ही मूर्ख।” इस प्रकार स्पष्ट है कि समानता तथा स्वतंत्रता में गहरा संबंध है।

5. आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतंत्रता संभव नहीं है:
समानता और स्वतंत्रता में घनिष्ठ संबंध ही नहीं है बल्कि आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता को प्राप्त नहीं किया जा सकता। आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता एक धोखा व कपट मात्र है, क्योंकि गरीब व्यक्ति अपनी राजनीतिक स्वतंत्रताओं का भोग कर ही नहीं सकता। उसके लिए राजनीतिक स्वतंत्रताओं का कोई मूल्य नहीं है।

जैसा कि हॉब्सन ने ठीक ही कहा है, “भूखे व्यक्ति के लिए स्वतंत्रता का क्या लाभ है? वह स्वतंत्रता को न खा सकता है और न पी सकता है।” अतः जिस समाज में गरीबी है, वहाँ राजनीतिक स्वतंत्रता हो ही नहीं सकती।

निष्कर्ष:
स्वतंत्रता और समानता के आपसी संबंधों का अध्ययन करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि ये दोनों एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं, बल्कि एक-दूसरे के सहायक हैं। जो विद्वान इन दोनों को विरोधी मानते हैं, उन्होंने समानता व स्वतंत्रता को सही अर्थों में नहीं लिया है। यदि इन दोनों को सकारात्मक अर्थों में लिया जाए तो ये एक-दूसरे के पूरक हैं। समानता के बिना स्वतंत्रता और स्वतंत्रता के बिना समानता अधूरी है। ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 समानता

प्रश्न 4.
आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता व्यर्थ है।
अथवा
आर्थिक समानता व राजनीतिक स्वतंत्रता में संबंध बताएँ।
अथवा
“आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतंत्रता एक धोखा मात्र है।” इस कथन की व्याख्या करें।
उत्तर:
राजनीतिक स्वतंत्रता और आर्थिक समानता को प्रजातंत्र का आधार माना गया है। प्रजातंत्र को सफल बनाने के लिए इन दोनों स्वतंत्रताओं में आपसी संबंध होना आवश्यक है। इस संदर्भ में लास्की ने ठीक ही कहा है, “आर्थिक समानता की अनुपस्थिति में राजनीतिक स्वतंत्रता एक धोखा है।” लास्की के इस कथन में काफी सच्चाई है, क्योंकि गरीब व्यक्ति के लिए राजनीतिक स्वतंत्रता का कोई महत्त्व नहीं है।

गरीब व्यक्ति मताधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता। वह चुनाव नहीं लड़ सकता है अर्थात निर्धन व्यक्ति राजनीतिक स्वतंत्रताओं का आनंद नहीं उठा सकता। राजनीतिक स्वतंत्रता व आर्थिक समानता के परस्पर संबंधों को देखने से पहले राजनीतिक स्वतंत्रता एवं आर्थिक समानता के अर्थों को जानना आवश्यक है।

राजनीतिक स्वतंत्रता का अर्थ:
राजनीतिक स्वतंत्रता का तात्पर्य है कि राज्य के कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेना। व्यक्ति को इसमें अपने नागरिक अधिकारों का प्रयोग करने की स्वतंत्रता होती है। व्यक्ति अपने विवेकपूर्ण निर्णय का राजनीतिक क्षेत्र में प्रयोग कर सकता है। उसे अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार होता है और निर्वाचित होने का भी अधिकार प्राप्त होता है। इस प्रकार राजनीतिक स्वतंत्रता शासन कार्यों में भाग लेने और शासन-व्यवस्था को प्रभावित करने की शक्ति का नाम है।

आर्थिक समानता का अर्थ:
आर्थिक समानता का साधारण शब्दों में अर्थ है कि समाज में आर्थिक असमानता को दूर किया जाए। इसका अर्थ यह नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति की आय और संपत्ति समान हो। इसका अर्थ यह है कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आजीविका कमाने व अपनी आधारभूत आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए समान अवसर प्राप्त होने चाहिएँ। आर्थिक समानता के लिए निम्नलिखित बातों का होना आवश्यक है

  • समान अवसरों की प्राप्ति,
  • समान कार्य के लिए समान वेतन,
  • आर्थिक समानता को कम किया जाए,
  • आर्थिक शोषण को समाप्त करना,
  • स्वामी और सेवक की व्यवस्था को समाप्त करना आदि।

इन दोनों के संबंधों के बारे में हॉब्सन ने ठीक कहा है, “एक भूखे मर रहे व्यक्ति के लिए स्वतंत्रता का क्या लाभ है? वह स्वतंत्रता को न खा सकता है और न पी सकता है।” श्री जी०डी० एच० कोल ने भी ठीक ही कहा है, “राजनीतिक स्वतंत्रता आर्थिक समानता के बिना एक ढोंग है।” अतः स्पष्टता के लिए इन दोनों के संबंधों को निम्नलिखित ढंग से प्रस्तुत किया जा सकता है

1. निर्धन व्यक्ति के लिए मताधिकार का कोई महत्त्व नहीं है:
राजनीतिक स्वतंत्रताओं में वोट का अधिकार सबसे महत्त्वपूर्ण है लेकिन निर्धन व्यक्ति के लिए इसका कोई महत्त्व नहीं है, क्योंकि वह न तो इसको खा सकता है और न पी सकता है। निर्धन व्यक्ति हमेशा अपनी आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने में लगा रहता है। निर्धन व्यक्ति को वोट का अधिकार देना एक वास्तविक वस्तु की बजाए उसकी परछाई मात्र है। यदि निर्धन व्यक्ति को मताधिकार व मजदूरी में से किसी एक का चुनाव करना पड़े तो वह मजदूरी को ही चुनेगा। अतः गरीब व्यक्ति के लिए मताधिकार का कोई महत्त्व नहीं है।

2. निर्धन व्यक्ति द्वारा मताधिकार का दुरुपयोग:
व्यक्ति की आर्थिक स्थिति उसकी राजनीतिक स्वतंत्रता को प्रभावित करती है। निर्धन व्यक्ति अपने मताधिकार का दुरुपयोग कर सकता है। वह लोभ में आकर अपने मताधिकार को बेच देता है। वास्तविकता में इसके लिए निर्धन व्यक्ति की आर्थिक स्थिति उत्तरदायी है जो उसे अपने पवित्र अधिकार, मताधिकार को बेचने के लिए मजबूर कर देती है। वह मताधिकार के बदले में प्राप्त धन से अपने परिवार की भूख मिटा सकता है। अतः स्पष्ट है कि आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता संभव नहीं है।

3. निर्धन व्यक्ति मताधिकार का प्रयोग नहीं करते:
राजनीतिक स्वतंत्रताओं का प्रयोग व्यक्ति के बुद्धि के स्तर पर निर्भर करता है अर्थात् व्यक्ति का शिक्षित व जागरूक होना आवश्यक है। निर्धनता व्यक्ति के शिक्षित होने के रास्ते में बाधा बनती है। अशिक्षित व्यक्ति न तो राजनीतिक समस्या पाता है और न ही उनका समाधान निकाल सकता है। अशिक्षित होने से व्यक्ति अपने मताधिकार का ठीक प्रयोग नहीं कर सकता और सही नेता का चुनाव भी नहीं कर सकता। अतः स्पष्ट है कि निर्धन व्यक्ति अशिक्षित रह जाते हैं तथा चालाक राजनीतिज्ञ साधारण व्यक्तियों का राजनीतिक रूप से शोषण करते हैं।

निर्धन व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता :
लोकतंत्रीय राज्यों में प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के चुनाव लड़ने का अधिकार प्राप्त है। परंतु यह अधिकार नाममात्र का है, क्योंकि आधुनिक युग में चुनाव लड़ने के लिए लाखों रुपयों की आवश्यकता होती है जो निर्धन व्यक्ति के पास नहीं होते। वास्तविकता यह है कि निर्धन व्यक्ति धन के अभाव में चुनाव लड़ने की सोच भी नहीं सकता। वह बड़े-बड़े धनिकों या पूंजीपतियों का चुनाव में मुकाबला कैसे कर सकता है? अतः स्पष्ट है कि राजनीतिक स्वतंत्रता निर्धन के लिए मात्र एक दिखावा है।

5. निर्धन व्यक्ति उच्च पद प्राप्त नहीं कर सकता:
निर्धन व्यक्ति या श्रमिक वर्ग अशिक्षित होता है और उसके पास इतने साधन नहीं होते हैं कि वह अपने बच्चों को शिक्षित करके उन्हें उच्च पद प्राप्त करने के योग्य बना सके। उसे अपनी रोजी-रोटी कमाने से ही फुरसत नहीं मिलती, इसलिए वह राजनीति में भाग नहीं ले सकता और न ही उच्च पदों को प्राप्त कर सकता है।

6. राजनीतिक दलों पर पूंजीपतियों का नियंत्रण:
राजनीतिक स्वतंत्रता में राजनीतिक दलों का अध्ययन आता है और लोकतंत्र के लिए राजनीतिक दलों का होना अनिवार्य भी है। आज की राजनीति राजनीतिक दलों पर निर्भर करती है। राजनीतिक दल ही सरकार का निर्माण करते हैं। राजनीतिक दलों को अपना काम चलाने के लिए धन चाहिए। उन्हें यह धन पूंजीपतियों से मिलता है। पूंजीपतियों का राजनीतिक दलों पर प्रभुत्व होता है।

वे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक दलों को प्रभावित करते हैं। पूंजीपतियों द्वारा समर्थित राजनीतिक दल सत्ता में आने के बाद पूंजीपतियों के ही गुणगान करते हैं। अतः निर्धन लोगों की राजनीतिक स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है। इस संबंध में किसी लेखक ने ठीक ही कहा है कि धनवान व्यक्ति कानून पर शासन करते हैं और कानून निर्धन व्यक्ति को पीसता है।

7. प्रेस धनी व्यक्ति का साधन है :
प्रेस राजनीतिक स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए अनिवार्य है। प्रैस ही सरकार के कार्यों की आलोचना करती है। प्रैस द्वारा ही लोगों की समस्याओं को सरकार तक पहुंचाया जा सकता है, लेकिन प्रैस पर पूंजीपतियों का नियंत्रण होता है। प्रैस गरीब व्यक्तियों की समस्याओं को न तो छापती है और न ही सरकार का उनकी ओर ध्यान जाता है। अतः अमीर व्यक्ति ही प्रैस का प्रयोग करते हैं। प्रैस उनको ही लाभ पहुंचाती है। अतः राजनीतिक स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए जिस प्रकार से स्वतंत्र प्रैस की आवश्यकता होती है, वह उसके अनुसार नहीं होती।

8. इतिहास इसका समर्थन करता है :
इतिहास इस बात का समर्थन करता है कि आर्थिक असमानता के रहते राजनीतिक स्वतंत्रता स्थापित नहीं हो सकती। पूंजीपति श्रमिकों का न केवल आर्थिक आधार पर बल्कि राजनीतिक आधार पर भी उनका शोषण करते हैं। यह निश्चित है कि श्रमिक पूंजीपतियों की दया पर निर्भर करते हैं और उनके राजनीतिक अधिकार भी पूंजीपतियों के हाथों में ही चले जाते हैं।

निष्कर्ष:
उपरोक्त तर्कों के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि राजनीतिक स्वतंत्रता और आर्थिक समानता में गहरा संबंध है। लास्की का यह कहना कि आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतंत्रता एक ढोंग है, बिल्कुल सच है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि राजनीतिक स्वतंत्रता को वास्तविक बनाने के लिए आर्थिक समानता का होना अनिवार्य है इसलिए वास्तविक प्रजातंत्र का अस्तित्व केवल वही हो सकता है, जहां आर्थिक प्रजातंत्र है।

वस्तु निष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दिए गए विकल्पों में से उचित विकल्प छाँटकर लिखें

1. अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम एवं फ्रांस की राज्य क्रांति में स्वतंत्रता, समानता एवं भातृत्व का नारा देने वाले विचारक निम्नलिखित में से हैं
(A) जेफरसन
(B) जॉन लॉक एवं रूसो
(C) वाल्टेयर
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

2. समानता की अवधारणा को विकसित एवं प्रेरित करने में निम्नलिखित में से किस कारक का योगदान रहा है?
(A) साम्राज्यवाद
(B) सामंतवाद
(C) पूंजीवाद
(D) उपर्युक्त तीनों
उत्तर:
(D) उपर्युक्त तीनों

3. समानता की अवधारणा के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?
(A) सभी को समान वेतन
(B) विशेषाधिकारों का अभाव
(C) सभी को समान गुजारा-भत्ता
(D) सबके साथ समान व्यवहार
उत्तर:
(B) विशेषाधिकारों का अभाव

4. समानता का लक्षण निम्नलिखित में से है
(A) सभी को पर्याप्त अवसर देना
(B) सभी को मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति
(C) समाज में विशेष सुविधाओं का अंत
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

5. समाज में नागरिकों के अधिकारों का लोगों को समान रूप से प्राप्त न होना कौन-सी असमानता का रूप है?
(A) सामाजिक असमानता
(B) प्राकृतिक असमानता
(C) नागरिक असमानता
(D) संवैधानिक असमानता
उत्तर:
(C) नागरिक असमानता

6. स्वतंत्रता एवं समानता को परस्पर विरोधी मानने वाला विचारक निम्नलिखित में से हैं
(A) डी० टॉकविल
(B) लार्ड एक्टन
(C) डी० टॉकविल एवं लार्ड एक्टल
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) डी० टॉकविल एवं लार्ड एक्टन

7. स्वतंत्रता एवं समानता को एक-दूसरे के संपूरक मानने वाले विद्वान निम्नलिखित में से हैं
(A) रूसो
(B) प्रो० पोलार्ड
(C) प्रो०आर०एच०टोनी
(D) उपर्युक्त तीनों
उत्तर:
(D) उपर्युक्त तीनों

8. “फ्रांस के क्रांतिकारियों ने जब स्वतंत्रता, समानता तथा भाई-चारे को अपने युद्ध का नारा बनाया तो वे न पागल थे और न ही मूर्ख।” यह कथन निम्नलिखित में से है
(A) हॉब्सन
(B) आशीर्वादम
(C) लार्ड एक्टन
(D) सी०ई०एम० जोड
उत्तर:
(B) आशीर्वादम

9. आर्थिक समानता का लक्षण निम्नलिखित में से नहीं है
(A) समान कार्य के लिए समान वेतन
(B) आर्थिक शोषण को समाप्त करना
(C) समान अवसरों की प्राप्ति होना
(D) कानून के समक्ष समानता
उत्तर:
(D) कानून के समक्ष समानता

निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर एक शब्द में दें

1. किस प्रकार की समानता में सभी नागरिकों को शासन में भाग लेने का समान अधिकार प्राप्त होता है?
उत्तर:
राजनीतिक समानता में।।

HBSE 11th Class Political Science Important Questions Chapter 3 समानता

2. समाज में जाति, रंग, धर्म, भाषा, वर्ण एवं जन्म के आधार पर भेदभाव होना कौन-सी असमानता का रूप है?
उत्तर:
सामाजिक असमानता का।

3. “भूखे व्यक्ति के लिए स्वतंत्रता का क्या लाभ है? वह स्वतंत्रता को न खा सकता है और न पी सकता है।” यह कथन किस विद्वान का है?
उत्तर:
हॉब्सन का।

रिक्त स्थान भरें

1. पुरुष एवं स्त्रियों में भेदभाव करना ……………. असमानता का रूप कहलाता है।
उत्तर:
लैंगिक

2. जन्म के आधार पर सभी मनुष्यों को समान मानने वाली समानता …………….. कहलाती है।
उत्तर:
प्राकृतिक समानता

3. “राजनीतिक स्वतंत्रता आर्थिक समानता के बिना एक ढोंग है।” यह कथन एक ढाग है।” यह कथन …………….. का है।
उत्तर:
जी०डी०एच० कोल

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