HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 18 टोपी

Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 18 टोपी Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 18 टोपी

HBSE 8th Class Hindi टोपी Textbook Questions and Answers

कहानी से

प्रश्न 1.
गवरइया और गवरा के बीच किस बात पर बहस हुई और गवरइया को अपनी इच्छा पूरी करने का अवसर कैसे मिला?
उत्तर:
गवरइया और गवरा के बीच आदमी के कपड़े पहनने को लेकर बहस हो रही थी। गवरइया को आदमी द्वारा रंग-बिरंगे कपड़े पहनना अच्छा लग रहा था जबकि गवरा का कहना था कि कपड़ा पहन लेने के बाद आदमी और बदसूरत लगने लगता है। उसका यह भी कहना था कि कपड़े पहन लेने के बाद आदमी की कुदरती खूबसूरती ढंक जाती है।

गवरइया का मन टोपी पहनने को करता था। एक दिन घूरे पर चुगते-चुगते उसे रुई का एक फाहा मिल गया। इसी से उसकी टोपी बनने की इच्छा पूरी होने का अवसर मिल गया।

प्रश्न 2.
गवरइया और गवरे की बहस के तर्कों को एकत्र करें और उन्हें संवाद के रूप में लिखें।
उत्तर:
गवरइया – आदमी को देखते हो? कैसे रंग-बिरंगे कपड़े पहनता है। कितना फबता है उन पर कपड़ा।
गवरा – खाक फबता है! कपड़ा पहन लेने के बाद बाद तो आदमी और बदसूरत लगने लगता है।
गवरइया – लगता है आज तुम लटजीरा चुग आए हो?
गवरा – कपड़ा पहन लेने से आदमी की कुदरती खूबसूरती ढंक जाती है।
गवरइया – कपड़े केवल अच्छा लगने के लिए ही नहीं, मौसम की मार से बचने के लिए भी पहनता है आदमी।
गवरा – कपड़ा पहनते ही पहनने वाले की औकात पता चल जाती है। आदमी-आदमी की हैसियत में भेद हो जाता है।
गवरइया – मेरा मन भी टोपी पहनने का करता है।
गवरा – टोपी तू पाएगी कहाँ से?टोपी तो आदमी का राजा पहनता है। मेरी मान तू इस , चक्कर में पड़ ही मत।

HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 18 टोपी

प्रश्न 3.
टोपी बनवाने के लिए गवरइया किस किस के पास गई? टोपी बनने तक के एक-एक कार्य को लिखें।
उत्तर:
टोपी बनवाने के लिए गवरइया सबसे पहले धुनिया के पास गई। उससे रुई धुनवा कर वह उसे लेकर कोरी के पास जा पहुंची। उसे कोरी से कतवा लिया। कते सूत को लेकर वह बुनकर के पास गई। उस कते सूत से उसने बुनकर से कपड़ा बुनवाया। कपड़े को लेकर वह दर्जी के पास गई। उसने उस कपड़े से दो सुंदर सी टोपियाँ सिल दीं। एक टोपी अपने पास रखकर दूसरी टोपी गवरइया को दे दी। इस प्रकार गवरइया की टोपी तैयार हो गई।

प्रश्न 4.
गवरइया की टोपी पर दर्जी ने पाँच फुदने क्यों -जड़ दिए?
उत्तर:
गवरइया की टोपी पर दर्जी ने खुश होकर अपनी ओर से पाँच फुदने भी जड़ दिए। इससे टोपी बहुत सुंदर लगने लगी।

लेख से आगे

1. किसी कारीगर से बातचीत कीजिए और परिश्रम का उचित मूल्य नहीं मिलने पर उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी? ज्ञात कीजिए और लिखिए।
उत्तर:
यदि कारीगर को उसके परिश्रम का उचित मूल्य न मिले तो वह बेमन से काम करता है। यदि वह मोची को जूते की. मरम्मत का उचित मूल्य नहीं देंगे तो जूते में कोई-न-कोई कमी उभर आती है और वह पैर में चुभती रहती है। कारीगर को काम का पूरा पैसा मिलना ही चाहिए तभी वह फुर्ती के साथ काम करता है।

2. गवरइया की इच्छा पूर्ति का क्रम घूरे पर रुई के मिल जाने से प्रारंभ होता है। उसके बाद वह क्रमशः एक-एक कर कई कारीगरों के पास जाती है और उसकी टोपी तैयार होती है। आप भी अपनी कोई इच्छा चुन लीजिए। उसकी पूर्ति के लिए योजना और कार्य-विवरण तैयार कीजिए।
उत्तर:
मेरे मन में भी एक इच्छा उत्पन्न हुई कि मैं घर के बने पकौड़े खाऊँ।
इसके लिए मैं सब्जीवाले के पास गया। उससे गोभी और आलू खरीदकर लाया। घर में तेल था पर बेसन नहीं था। दुकानदार से बेसन खरीदकर लाया। अब मैंने गोभी-आलू को भली प्रकार धोकर साफ किया और सही आकार में काटा।

इतना काम हो जाने पर मैंने माँ को पुकारा और पकौड़े बनाने का अनुरोध किया। माँ ने गैस जलाकर कढ़ाई में तेल चढ़ा दिया। बेसन का घोल बनाकर आलू-गोभी मिला दिए। उसने मेरे और अपने लिए खूब मात्रा में पकौड़े तल लिए। अब मेरी इच्छा पूरी हुई।

3. गवरइया के स्वभाव से यह प्रमाणित होता है कि कार्य की सफलता के लिए उत्साह आवश्यक है। सफलता के लिए उत्साह की आवश्यकता क्यों पड़ती है, तर्क सहित लिखिए।
उत्तर:
किसी भी काम में सफलता के लिए उत्साह की बहुत आवश्यकता होती है। बिना उत्साह के कोई काम सफल नहीं होता। उत्साह से मन में काम के प्रति चाव पैदा होता है। उत्साह ही हमें कार्य में प्रवृत्त करता है। उत्साह से ही हमें ऊर्जा प्राप्त होती है। उत्साह के अभाव में निराशा उत्पन्न हो जाती है।

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अनुमान और कल्पना

1. टोपी पहनकर गवरइया राजा को दिखाने क्यों पहुँची जबकि उसकी बहस गवरा से हुई और वह गवरा के मुंह से अपनी बड़ाई सुन चुकी थी। लेकिन राजा से उसकी कोई बहस हुई ही नहीं थी। फिर भी वह राजा को चुनौती देने को पहुँची। कारण का अनुमान लगाइए।
उत्तर:
गवरइया को तो राजा को नीचा दिखाना था। गवरा ने कहा था कि टोपी तो आदमियों का राजा पहनता है। टोपी उछलते देर नहीं लगती। यही कारण था कि वह फुदनेदार टोपी पहनकर वह राजा से मुकाबला करते उसके महल के कंगूरे पर जा पहुंची। वह यह जताना चाहती थी कि उसकी टोपी राजा की टोपी से बेहतर है। वह राजा पर यह व्यंग्य भी करना चाहती थी कि कारीगरों से बेगार कराना ठीक नहीं है।

2. यदि राजा के राज्य के सभी कारीगर अपने-अपने श्रम का उचित मूल्य प्राप्त कर रहे होते तब गवरइया के साथ उन कारीगरों का व्यवहार कैसा होता?
उत्तर:
यदि राजा के राज्य के सभी कारीगर अपने-अपने श्रम का उचित मूल्य प्राप्त कर रहे होते तो तब गवरइया अपनी सुंदर टोपी दिखाकर राजा को चिढ़ाने नहीं जाती। कारीगर भी अपने श्रम का उचित मूल्य पाकर राजा का काम भी पूरा मन लगाकर करते। तब राजा को किसी प्रकार की शिकायत करने का मौका नहीं आता।

3. चारों कारीगर राजा के लिए काम कर रहे थे। एक रजाई बना रहा था। दूसरा अचकन के लिए सूत कात रहा था। तीसरा बागा बुन रहा था चौथा राजा की सातवीं रानी की दसवीं संतान के लिए झब्बे सिल रहा था। उन चारों ने राजा का काम रोककर गवरड्या का काम क्यों किया?
उत्तर:
यद्यपि चारों कारीगर राजा के लिए विभिन्न कार्य कर रहे थे, पर उन सभी ने राजा का काम रोककर पहले गवरइया का काम किया।

इसका कारण यह था कि राजा का काम बेगार था। उससे उन्हें कुछ नहीं मिलने वाला था। जब गवरइया के काम करने पर प्रत्येक को उसका आधा हिस्सा मिला। इतना पाकर सभी उत्साहित हो गए।

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लेख से आगे

1. गाँव की बोली में कई शब्दों का उच्चारण अलग होता है। उनकी वर्तनी भी बदल जाती है। जैसे गवरड्या गौरैया का ग्रामीण उच्चारण है। उच्चारण के अनुसार इस शब्द की वर्तनी लिखी गई है। कुंदना, फुलगेंदा का बदला हुआ रूप है। कहानी में अनेक शब्द हैं जो ग्रामीण उच्चारण में लिखे गए हैं, जैसे-मुलुक-मुल्क, खमा-क्षमा, मजूरी-मजदूरी, मल्लार-मल्हार इत्यादि। आप क्षेत्रीय या गाँव की बोली में उपयोग होने वाले कुछ ऐसे शब्दों को खोजिए और उनका मूल रूप लिखिए, जैसे-टेम-टाइम, टेसन/टिसन-स्टेशन।
उत्तर:
सिरापा – सिर से पाँव तक
अपन – अपना
गफश – गफ्स
इत्ते – इतने
चाम – चमड़ा
पखने – पंख
जुरती – जुटना
पाखी – पक्षी.
हुलस – उल्लास
टहलुओं – सेवकों

2. मुहावरों के प्रयोग से भाषा आकर्षक बनती है। मुहावरे वाक्य के अंग होकर प्रयुक्त होते हैं। इनका अक्षरशः अर्थ नहीं बल्कि लाक्षणिक अर्थ लिया जाता है। पाठ में अनेक मुहावरे आए हैं। टोपी को लेकर तीन मुहावरे हैं; जैसे-कितनों को टोपी पहनानी पड़ती है। शेष मुहावरों को खोजिए और उनका अर्थ ज्ञात करने का प्रयास कीजिए।
उत्तर:
1. आँखों में चमक आना = अंदर की खुशी झलकना। नौकरी मिलते ही राकेश की आँखों में चमक आ गई।
2. ओझल हो जाना = गायब हो जाना। सिपाही को देखते ही चोर आँखों से ओझल हो गया।
3. टोपी उछलना = बेइज्जती होना। भरी सभा में मेरी टोपी उछल गई और तुम चुप रहे।
4. लगुए-भगुए होना = साथ चलकर लाभ उठाने वाले। तुम इन लगुए-भगुओं से बचकर रहना वरना बहुत किरकिरी हो जाएगी।
5. माथे का पसीना पोंछना – घबराहट दिखाई देना। वह इतना घबरा गया है कि माथे का पसीना पोछ रहा है।
6. ठंडी ह भरना = पछताना। मुझे नौकरी छोड़कर ठंडी आह भरनी पड़ रही है।
7. राग अलापना – अपनी बात कहते रहना। तुम एक ही राग अलापते जा रहे हो, कुछ मेरी भी सुनो।
8. आँख में उँगली डालकर देखना – साफ-साफ देखना। यह स्थिति आँख में उँगली डालकर देखने से ही पता चलेगी।

HBSE 8th Class Hindi टोपी Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
धुनिया कैसा था?उसकी दशा कैसी थी? उसने गवरइया को क्या कहकर भगाना चाहा?
उत्तर:
धुनिया बेचारा बूढ़ा था। जाड़े का मौसम था। उसकी दशा खराब थी। उसके तन पर वर्षों पुरानी तार-तार हो चुकी एक मिर्जई पड़ी हुई थी। वह काँपते हुए बोला, “तू जाती है कि नहीं! देखती नहीं, अभी मुझे राजा जी के लिए रजाई बनानी है। एक तो यहाँ का राजा ऐसा है जो चाम का दाम चलाता है। ऊपर से तू आ गई फोकट की रुई धुनवाने।” यह कहकर उसने गवरइया को भगाना चाहा।

प्रश्न 2.
कोरी की अवस्था कैसी थी?उसने क्या कहकर गवरड्या का काम करने से मना कर दिया?
उत्तर:
कोरी की कमर झुकी हुई थी। उसने बदन पर धन्जी-धजी हो चुका एक धुस्सा डाल रखा था। वह बड़ी अनिच्छा से बोला, “तुम लोग यहाँ से भागते हो कि नहीं। देखते नहीं, अभी मुझे राजा जी के अचकन के लिए सूत कातने हैं। मुझे फुर्सत नहीं है मुफ्त में मल्लार गाने की।” यह कहकर उसने गवरइया का काम करने से मना कर दिया।

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प्रश्न 3.
बुनकर ने क्या बहाना बनाया था?
उत्तर:
बुनकर बहाना बनाते हुए बोला-“हटते हो कि नहीं यहाँ से! देखते नहीं, अभी मुझे राजा जी के लिए बागा बुनना है। अभी थोड़ी देर बाद ही राजा जी के कारिंदे हाजिर हो जाएंगे। साव करे भाव तो चबाव करे चाकर।” इतना कहकर बुनकर अपने काम में मशगूल हो गया।

प्रश्न 4.
वर्जी ने गवरइया का काम किस प्रकार किया?
उत्तर:
दर्जी मुंहमांगी मजूरी मिलने पर टोपी बनाने को तैयार हो गया। ‘कच्च-कच्च’ उसकी कैंची चल उठी और चूहे की तरह ‘सरं-सरं’ उसकी सूई कपड़े के भीतर-बाहर होने लगी। बड़े मनोयोग से उसने दो टोपियाँ सिल दीं। खुश होकर दर्जी ने अपनी ओर से एक टोपी पर पाँच {दने भी जड़ दिए। कँदनेवाली टोपी पहनकर तो गवरइया जैसे आगे में न रही। डेढ़ टाँगों पर ही लगी नाचने, फुदक-फुदककर लगी गवरा को दिखाने, “देख मेरी टोपी सबसे निराली…पाँच फुदनेवाली।”

प्रश्न 5.
जब गवरइया महल के कंगूरे पर बैठी तब राजा क्या करवा रहा था?
उत्तर:
उस वक्त राजा अपने चौबारे पर टहलुओं से खुली धूप में फुलेल की मालिश करवा रहा था। राजा उस वक्त अधनंगा बदन और नंगे सिर था। एक टहलुआ सिर पर चंपी कर रहा था, तो दूसरा हाथ-पाँव की उँगलियाँ फोड़ रहा था, तो तीसरा पीठ पर मुक्की मार रहा था तो चौथा पिंडली पर गुदी काढ़ रहा था।

प्रश्न 6.
इस कहानी से क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर:
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है

  • यदि उत्साहपूर्वक कोई काम किया जाए तो उसमें अवश्य सफलता मिलती है।
  • किसी से अपना काम बेगार में नहीं करवाना चाहिए। पूरी मजदूरी चुकानी चाहिए।

टोपी गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. “कपड़े पहन लेने के बाद आदमी की कुदरती खूबसूरती बँक जो जाती है।” गवरा बोला, “अब तू ही सोच! अभी तो तेरी सुघड़ काया का एक-एक कटाव मेरे सामने है, रोंवें-0वें की रंगत मेरी आँखों में चमक रही है। अब अगर तू मानुस की तरह खुद को सरापा ढंक ले तो तेरी सारी खूबसूरती ओझल हो जाएगी कि नहीं?”
“कपड़े केवल अच्छा लगने के लिए नहीं, गवरइया बोली, “मौसम की मार से बचने के लिए भी पहनता है आदमी।”
प्रश्न:
1. बातचीत किस-किसके मध्य हो रही है?
2. गवरा ने कपड़े न पहनने के पक्ष में क्या-क्या तर्क दिए?
3. गवरइया ने कपड़े पहनने के पक्ष में क्या कहा?
उत्तर:
1. यह बातचीत गवरइया और गवरा के बीच हो रही है।
2. गवरा कपड़े पहनने न पहनने के पक्ष में ये तर्क देता है

  • इससे कुदरती सुंदरता ढंक जाती है।
  • इससे सुघड़ काया दिखाई नहीं देती।

3. गवरइया कपड़े पहनने के पक्ष में यह कहती है कि कपड़े केवल अच्छा लगने के लिए ही नहीं पहने जाते, अपितु इनको पहनकर आदमी मौसम की मार से भी बच जाता है।

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2. “टोपी तू पाएगी कहाँ से?” गवरा बोला, “टोपी तो आदमियों का राजा पहनता है। जानती है, एक टोपी के लिए कितनों का टाट उलट जाता है। जरा-सी चूक हुई नहीं कि टोपी उछलते देर नहीं लगती। अपनी टोपी सलामत रहे, – इसी फिकर में कितनों को टोपी पहनानी पड़ती है। ..मेरी मान तो तू इस चक्कर में पड़ ही मत।”

गवरा था तनिक समझदार, इसलिए शक्की। जबकि गवरइया थी जिद्दी और धुन की पक्की। ठान लिया सो ठान लिया, उसको ही जीवन का लक्ष्य मान लिया। कहा गया है-जहाँ चाह, वहीं राह। मामूल के मुताबिक अगले दिन दोनों घूरे पर चुगने निकले। चुगते-चुगते उसे रुई का एक फाहा मिला। “मिल गया… मिल गया… मिल गया…” गवरइया मारे खुशी के घूरे पर लोटने लगी।
प्रश्न:
1. गवरइया ने क्या इच्छा प्रकट की थी?
2. गवरा ने क्या कहकर गवरइया को हतोत्साहित किया?
3. गवरा और गवरइया के स्वभाव में क्या अंतर था?
4. गवरइया की इच्छा की पूर्ति का क्या साधन मिल गया?
उत्तर:
1. गवरइया ने टोपी पहनने की इच्छा प्रकट की थी।
2. गवरा ने यह कहकर गवरइया को टोपी पहनने के प्रति हतोत्साहित किया

  • टोपी तो आदमियों का राजा ही पहनता है।
  • टोपी के लिए कितनों का टाट उल्ट जाता है।
  • टोपी बड़ी जल्दी उछल जाती है।
  • टोपी के लिए दूसरों की खुशामद करनी पड़ती है।

3. गवरा समझदार और शक्की था जबकि गवरइया जिद्दी और धुन की पक्की थी।
4. एक दिन गवरइया को घूरे पर चुगते-चुगते रुई का फाहा मिल गया। इसी रुई के फाहे से उसकी टोपी बन गई।

टोपी Summary in Hindi

टोपी पाठ का सार

एक गवरइया (गौरैया) और एक गवरा (नर गौरैया) थे। दोनों एक-दूसरे को बहुत चाहते थे। एक दिन दोनों में मनुष्य के द्वारा कपड़े पहनने पर बहस छिड़ गई। गवइया कपड़ों को सुंदरता और मौसम की मार से बचने का साधन मानती थी जबकि गवरा इसका विरोध कर रहा था। उसके अनुसार कपड़ों से सुघड़ काया दिखाई नहीं देती और मौसम की मार को झेलने की ताकत भी चली जाती है। गवरइया को आदमी के सिर की टोपी भा गई। उसने टोपी पाने की जिद ठान ली। अगले दिन गवरइया को रुई का फाहा मिल गया तो वह खुश हो उठी। यह उसे टोपी का जुगाड़ प्रतीत हुआ। वह रुई का फाहा लेकर एक धुनाई के पास चली गई और रुई के फाते का धुनने की प्रार्थना करने लगी।

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धुनिया ने कहा कि उसे राजा के लिए रजाई बनानी है, मैं मुफ्त में रुई नहीं धुनता। इस पर गवरइया ने कहा कि तुम रुई का आधा हिस्सा ले लेना। यह प्रस्ताव सुनकर धुनिया तुरंत तैयार हो गया। उसने रुई धुन दी तथा आधी रुई ले ली। फिर गवरा-गवरइया एक कोरी के पास धुनी रुई से सूत कतवाने के लिए गए। उसने भी राजा की अचकन के लिए सूत कातने की बात कही। गवरइया ने उसे भी उसे आधा सूत अपने पास रख लेने का प्रस्ताव दिया। वह भी मान गया।

उसने काफी महीन और लच्छेदार सूत कात दिया। इसी शर्त पर उन्होंने बुनकर कपड़ा भी बुनवा लिया। उसने भी आधा कपड़ा अपने पास रख लिया। अब गवरइया कपड़े को लेकर दर्जी के पास पहुँची। दर्जी ने पहले तो कहा कि वह राजा के नवजात बेटे के छब्बे सिलने में व्यस्त है, पर गवरइया ने उसे भी एक टोपी अपने पास रखने का लालच दिया। उसने मन से दो टोपियाँ सिल दी। खुश होकर उसने एक टोपी पर पाँच फुदने भी जड़ दिए। टोपी पहनकर गवरइया नाचने-फुदकने लगी।

अब अपनी टोपी की शान राजा को दिखाने चल दी। वह राजा के महल के कंगूरे पर जा बैठी, उस समय राजा अपने सेवकों से मालिश करवा रहा था। वह नंगे सिर था। गवरइया कंगूरे पर से ही चिल्लाई-“मेरे सिर पर टोपी, राजा के सिर पर टोपी नहीं…..” यह सुनकर राजा ने दोनों हाथों से सिर को ढंक लिया।

उसकी आज्ञा पर एक सिपाही ने गुलेल से गवरइया की टोपी नीचे गिरा दी। टोपी की खूबसूरती देखकर राजा दंग रह गया। अब वह इस टोपी के बनाने वाले की खोज में जुट गया। दर्जी, कोरी, धुनिया सभी को बुलाया गया। धुनिया ने कारण बताते हुए कहा कि गवरइया ने जिस-जिससे काम करवाया, आधा हिस्सा दिया। आपके यहाँ से कुछ भी नहीं मिलता। तमाम बेगार करवाने, सख्ती से लगान वसूलने के बावजूद राजा का खजाना खाली ही रहता था। राजा ने कहा-गवरइया की टोपी को वापस कर दो। गवरइया टोपी पहनकर चली गई। उसने राजा को डरपोक बताया।

टोपी शब्दार्थ

भिनसार – प्रात:काल, सवेरा (morning)। खोते – घोंसले (nest)। झुटपुटा – सवेरे या शाम का समय जब प्रकाश इतना कम हो कि कोई चीज साफ दिखाई न दे, वह समय जब कुछ-कुछ अँधेरा और कुछ-कुछ उजाला हो। लटजीरा = चिचड़ा, एक पौधा (Dimlight aplant)। सरापा – सिर से पाँव तक पहना जाने वाला वस्त्र (Total Cover cloths)। सकत – शक्ति, सामर्थ्य (power)। लफड़ा – उलझन, झंझट (Trouble)। फकत – केवल (only)। अपनः – अपना (own)। फिकर – चिंता, फिक्र (worry)। मत नहीं। मामूल – वह बात जो रोज की जाए, हमेशा की तरह (Daily) कपड़ा बुनते हुए जुलाहे जिससे बाने का सूत फेंकते हैं (Ainstrument)। गफश = गफ्स, घना बुना हुआ। दबीज – मोटा, मजबूर: (hick)। बेगार = बिना मजदूरी का काम (Labour without payment)। मूजी = दृष्ट (Cruelhi फँदने – सत, ऊन आदि का फल या गुच्छा (Cotton)। हुलस – उल्लास, खुशी (Happiness)। इत्ते-सारे – इतने सारे (Too much)। टहलुआ नौकर (servant)। फुलेल = खुशबूदार तेल (scented)। (वनेदार – गुच्छेदार (flowery)। फवगुद्दी = एक छोटी चिड़िया, गौरैया (A bird)। घूरे – कूड़े-करकट का ढेर। चिहाकर = चौंककर, चकित होकर (surprised)। मनुहार = मनाना (flattery)। चाम • त्वचा, चमड़ा (skin)। फोकट = मूल्यरहित, मुफ्त (Free)। उजरत – मजदूरी, मेहनत का बदला, पारिश्रमिक। मल्लार – मल्हार, संगीत का एक राग (a song)। मुलुक – मुल्क, देश (country)। लगुए-भगुए = पीछे चलने वाला (follower), मेल-जोल का व्यक्ति। मशगूल = व्यस्त (busy)। सेंत-मेंत का काम = वह काम जिसके लिए कुछ देना न पड़ा हो (without profit). बिना लाभा पखने – पंख (feather)। खमा – क्षमा (forgiveness)। नायाब – बहुमूल्य, बेशकीमती (valuable)। हुनरमंद. कुशल, गुणी कारीगर (expert)। मानिंद = जैसा, अनुरूप, सरीखा। नफासत = सज्जा, सजा-सँवरा (beautiful)। जुरती – जुटना, एकत्र होना, प्राप्त होना (collected)। पाखी – पक्षी, चिड़िया (bird)। लशकरी – पलटन, सेना (force)। लवाजिमा – यात्रा आदि में साथ रहने वाला सामान। नगीना – सुंदर (beautiful)। अकबकाना = भौंचक्का होना, घबराना (surprised)।

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