Class 12

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा

HBSE 12th Class Political Science समकालीन विश्व में सरक्षा Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पदों को उनके अर्थ से मिलाएँ
(i) विश्वास बहाली के उपाय (कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेजर्स –CBMs) – (क) कुछ खास हथियारों के इस्तेमाल से परहेज़
(ii) अस्त्र-नियन्त्रण – (ख) राष्ट्रों के बीच सुरक्षा-मामलों पर सूचनाओं के आदान-प्रदान की नियमित प्रक्रिया
(iii) गठबन्धन – (ग) सैन्य हमले की स्थिति से निबटने अथवा उसके अपरोध के लिए कुछ राष्ट्रों का आपस में मेल करना।
(iv) निःशस्त्रीकरण – (घ) हथियारों के निर्माण अथवा उनको हासिल करने पर अंकुश।
उत्तर:
(i) विश्वास बहाली के उपाय (कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेजर्स -CBMs) – (ख) राष्ट्रों के बीच सुरक्षा मामलों पर सूचनाओं के आदान प्रदान की नियमित प्रक्रिया।
(ii) अस्त्र-नियन्त्रण – (घ) हथियारों के निर्माण अथवा उनको हासिल करने पर अंकुश
(iii) गठबन्धन – (ग) सैन्य हमले की स्थिति से निबटने अथवा उसके अपरोध के लिए कुछ राष्ट्रों का आपस में मेल करना।
(iv) नि:शस्त्रीकरण – (क) कुछ खास हथियारों के इस्तेमाल से परहेज़।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से किसको आप सुरक्षा का परम्परागत सरोकार/सुरक्षा का अपारम्परिक सरोकार/ खतरे की स्थिति नहीं का दर्जा देंगे
(क) चिकेनगुनिया/डेंगी बुखार का प्रसार
(ख) पड़ोसी देश से कामगारों की आमद
(ग) पड़ोसी राज्य से कामगारों की आमद
(घ) अपने इलाके को राष्ट्र बनाने की माँग करने वाले समूह का उदय
(ङ) अपने इलाके को अधिक स्वायत्तता दिए जाने की माँग करने वाले समूह का उदय।
(च) देश की सशस्त्र सेना को आलोचनात्मक नज़र से देखने वाला अखबार।
उत्तर:
(क) अपारम्परिक सरोकार
(ख) पारम्परिक सरोकार
(ग) खतरे की स्थिति नहीं
(घ) अपारम्परिक सरोकार
(ङ) खतरे की स्थिति नहीं
(च) पारम्परिक सरोकार।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा

प्रश्न 3.
परम्परागत और अपारम्परिक सुरक्षा में क्या अन्तर है ? गठबन्धनों का निर्माण करना और उनको बनाये रखना इनमें से किस कोटि में आता है ?
अथवा
सुरक्षा की पारम्परिक और अपारम्परिक अवधारणा में कोई चार अंतर बताइये।
अथवा
सुरक्षा की पारम्परिक और अपारम्परिक अवधारणाओं में कोई चार अन्तर लिखिए।
उत्तर:
परम्परागत और अपारम्परिक सुरक्षा में निम्नलिखित अन्तर पाए जाते हैं

पारम्परिक सुरक्षाअपारम्परिक सुरक्षा
(1) पारम्परिक सुरक्षा की धारणा का सम्बन्ध मुख्य रूप से बाहरी खतरों से होता है।(1) अपारम्परिक सुरक्षा की धारणा में केवल बाहरी खतरा ही नहीं, बल्कि अन्य खतरनाक खतरों एवं घटनाओं को भी शामिल किया जाता है।
(2) पारम्परिक सुरक्षा की धारणा में एक देश को दूसरे देश के सैन्य खतरे की चिन्ता रहती है।(2) अपारम्परिक सुरक्षा की धारणा में एक देश को केवल दूसरे देश के सैन्य खतरे की चिन्ता ही नहीं रहती बल्कि अन्य स्रोतों से होने वाले खतरों की भी चिन्ता रहती है।
(3) पारम्परिक सुरक्षा की धारणा में एक देश की सेना व नागरिकों को दूसरे देश की सेना से खतरा होता है।(3) अपारम्परिक सुरक्षा की धारणा में देश के नागरिकों को विदेशी सेना के साथ-साथ देश की सरकारों के हाथों से भी बचाना आवश्यक होता है।
(4) पारम्परिक सुरक्षा की धारणा में खतरे का स्रोत विदेशी राष्ट्र या देश होता है।(4) अपारम्परिक सुरक्षा की धारणा में खतरे का स्रोत विदेशी राष्ट्र के साथ-साथ कोई अन्य भी हो सकता है।
(5) पारम्परिक सुरक्षा की धारणा में बाहरी आक्रमण के समय एक राष्ट्र तीन उपायों से उससे छुटकारा पा सकता है-

(क) आत्मसमर्पण करके

(ख) आक्रमणकारी राष्ट्र की बातें मानकर तथा

(ग) आक्रमणकारी राष्ट्र को युद्ध में हराकर।

(5) अपारम्परिक सुरक्षा की धारण्णा में एक राष्ट्र प्राकृतिक आपदाओं, आतंकवाद तथा महामारियों को समाप्त करके लोगों को सुरक्षा प्रदान कर सकता है।

गठबन्धन निर्माण एवं उसको बनाये रखना: गठबन्धन का निर्माण एवं उसको बनाये रखना, पारम्परिक सुरक्षा की धारणा की कोटि में आता है।

प्रश्न 4.
तीसरी दनिया के देशों और विकसित देशों की जनता के सामने मौजद खतरों में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
तीसरी दुनिया के देशों और विकसित देशों की जनता के सामने पैदा होने वाले खतरों में पहला अन्तर यह है, कि जहां विकसित देशों के लोगों को केवल बाहरी खतरे की आशंका रहती है, परन्तु तीसरी दुनिया के देशों को आन्तरिक व बाहरी दोनों प्रकार के खतरों का सामना करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त तीसरी दुनिया के लोगों को पर्यावरण असन्तुलन के कारण विकसित देशों की जनता के मुकाबले अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

प्रश्न 5.
आतंकवाद सुरक्षा के लिए परम्परागत खतरे की श्रेणी में आता है या अपरम्परागत ?
उत्तर:
अपरम्परागत सुरक्षा।

प्रश्न 6.
सुरक्षा के परम्परागत परिप्रेक्ष्य में बताएँ कि अगर किसी राष्ट्र पर खतरा मण्डरा रहा हो तो उसके सामने क्या विकल्प होते हैं ?
उत्तर:

  • शत्रु देश के सामने आत्मसमर्पण कर देना।
  • शत्रु देश को युद्ध से होने वाले खतरों एवं हानि से डरना।
  • शत्रु देश के साथ युद्ध करके, उसे पराजित करना।

प्रश्न 7.
‘शक्ति-सन्तुलन’ क्या है ? कोई देश इसे कैसे कायम करता है ?
उत्तर:
शक्ति सन्तुलन का अर्थ-शक्ति सन्तुलन का अर्थ है कि किसी भी देश को इतना सबल नहीं बनने दिया जाए कि वह दूसरों की सुरक्षा के लिए खतरा बन जाए। शक्ति सन्तुलन के अन्तर्गत विभिन्न राष्ट्र अपने आपसी शक्ति सम्बन्धों को बिना किसी बड़ी शक्ति के हस्तक्षेप के स्वतन्त्रतापूर्वक संचालित करते हैं। इस प्रकार यह एक विकेन्द्रित व्यवस्था है, जिसमें शक्ति तथा नीतियां निर्माणक इकाइयों के हाथों में ही रखी जाती हैं।

1. सिडनी बी० फे० के अनुसार, “शक्ति सन्तुलन सभी राष्ट्रों में इस प्रकार की व्यवस्था है, कि उनमें से किसी भी सदस्य को इतना सबल बनने से रोका जाए, कि वह अपनी इच्छा को दूसरों पर न लाद सके।”न्थो के अनसार, “शक्ति सन्तलन अन्तर्राष्टीय सम्बन्धों में सामान्य सामाजिक सिद्धान्त की अभिव्यक्ति है।” शक्ति सन्तुलन बनाये रखने के उपाय-एक देश निम्नलिखित उपाय करके शक्ति सन्तुलन को कायम रख सकता है

(1) शक्ति सन्तुलन बनाने के लिए एक साधारण तरीका गठजोड़ एवं प्रति गठजोड़ है। यह प्रणाली बहुत पुरानी है। इसका उद्देश्य होता है, किसी राष्ट्र की शक्ति बढ़ाना। छोटे और मध्यम राज्य इस प्रणाली द्वारा अपना अस्तित्व बनाए रखते हैं।

(2) शक्ति सन्तुलन बनाये रखने का एक तरीका शस्त्रीकरण एवं निःशस्त्रीकरण है। शक्ति सन्तुलन बनाये रखने के लिए विभिन्न राज्यों ने समय-समय पर शस्त्रीकरण एवं नि:शस्त्रीकरण पर जोर दिया है।

(3) शक्ति सन्तुलन बनाए रखने के लिए क्षतिपूर्ति भी एक महत्त्वपूर्ण साधन है। क्षतिपूर्ति का अर्थ यह है, कि एक राज्य को उतना वापिस देना, जितना उससे लिया गया है, ताकि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शक्ति सन्तुलन बना रहे।

(4) बफर राज्य के माध्यम से शत्रु राज्यों को दूर रखकर युद्ध को रोका जा सकता है।

(5) किसी राज्य में हस्तक्षेप करके अथवा अहस्तक्षेप द्वारा भी शक्ति सन्तुलन स्थापित किया जा सकता है।

(6) विरोधियों को बांटना और उनमें से किसी को तटस्थ बना देना और किसी को मित्र बना लेना भी सन्तुलन बनाए रखने का एक तरीका है।

(7) सन्तुलनधारी द्वारा भी सन्तुलन बनाया जा सकता है, जैसे कि वर्तमान समय में अमेरिका विभिन्न राज्यों के बीच एक सन्तुलन की भूमिका निभा रहा है।

प्रश्न 8.
सैन्य गठबन्धन के क्या उद्देश्य होते हैं ? किसी ऐसे सैन्य गठबन्धन का नाम बताएँ जो अभी मौजूद है। इस गठबन्धन के उद्देश्य भी बताएँ।
उत्तर:
सैन्य गठबन्धन का उद्देश्य विरोधी देश के सैन्य हमले को रोकना अथवा उससे अपनी रक्षा करना होता है। सैन्य गठबन्धन बनाकर एक विशेष क्षेत्र में शक्ति सन्तुलन बनाये रखने का प्रयास किया जाता है। वर्तमान समय में नाटो नाम का एक सैन्य गठबन्धन कायम है। नाटो के मुख्य उद्देश्य हैं

  • यूरोप पर हमले के समय अवरोध की भूमिका निभाना।
  • सैन्य एवं आर्थिक विकास के अपने कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने के लिए यूरोपीय देशों को सुरक्षा छतरी प्रदान करना।
  • भूतपूर्व सोवियत संघ के साथ होने वाले सम्भावित युद्ध के लिए यूरोप एवं अमेरिका के लोगों को मानसिक तौर पर तैयार रखना।

प्रश्न 9.
पर्यावरण के तेज़ नुकसान से देशों की सुरक्षा को गम्भीर खतरा पैदा हो गया है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? अपने तर्कों की पुष्टि करें।
उत्तर:
विश्व स्तर पर पर्यावरण तेजी से खराब हो रहा है। पर्यावरण खराब होने से निस्संदेह मानव जाति को खतरा उत्पन्न हो गया, ग्लोबल वार्मिंग से हिमखण्ड पिघलने लगे हैं, जिसके कारण मालद्वीप तथा बांग्लादेश जैसे देश तथा भारत के मुम्बई जैसे शहरों के पानी में डूबने की आशंका पैदा हो गई है। पर्यावरण खराब होने से वातावरण में कई तरह की बीमारियां फैल गई हैं, जिसके कारण व्यक्तियों के स्वास्थ्य में गिरावट आ रही है।

प्रश्न 10.
देशों के सामने फिलहाल जो खतरे मौजूद हैं उनमें परमाण्विक हथियार का सुरक्षा अथवा अपरोध के लिए बड़ा सीमित उपयोग रह गया है। इस कथन का विस्तार करें।
उत्तर:
विश्व में जिन देशों ने परमाणु हथियार प्राप्त कर रखे हैं, उनका यह तर्क है कि उन्होंने शत्रु देश के आक्रमण से बचने तथा शक्ति सन्तुलन कायम रखने के लिए इनका निर्माण किया है, परन्तु वर्तमान समय में इन हथियारों के होते हुए भी एक देश की सुरक्षा की पूर्ण गारंटी नहीं दी जा सकती। उदाहरण के लिए आतंकवाद तथा पर्यावरण के खराब होने से वातावरण में जो बीमारियाँ फैल रही हैं, उन पर परमाणु हथियारों के उपयोग का कोई औचित्य नहीं है। इसीलिए यह कहा जाता है, कि वर्तमान समय में जो खतरे उत्पन्न हुए हैं, उनमें परमाण्विक हथियार का सुरक्षा अथवा अपरोध के लिए बड़ा सीमित उपयोग रह गया है।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा

प्रश्न 11.
भारतीय परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए किस, किस्म की सुरक्षा को वरीयता दी जानी चाहिए पारम्परिक या अपारम्परिक ? अपने तर्क की पुष्टि में आप कौन-से उदाहरण देंगे ?
उत्तर:
भारतीय परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए भारत को पारम्परिक एवं अपारम्परिक दोनों प्रकार की सुरक्षा को वरीयता देनी चाहिए। क्योंकि भारत सैनिक दृष्टि से भी सुरक्षित नहीं है, एवं अपारम्परिक ढंग से भी सुरक्षित नहीं है। भारत के दो पड़ोसी देशों के पास परमाणु हथियार हैं, तथा उन्होंने भारत पर आक्रमण भी किया है। अत: भारत को पारम्परिक सुरक्षा की वरीयता देना आवश्यक है। इसके साथ-साथ अपारम्परिक सुरक्षा की दृष्टि से भारत में कई समस्याएं हैं, जिसके कारण भारत को अपारम्परिक सुरक्षा को भी वरीयता देनी चाहिए।

प्रश्न 12.
नीचे दिए गए कार्टून को समझें। कार्टून में युद्ध और आतंकवाद का जो सम्बन्ध दिखाया गया है उसके पक्ष या विपक्ष में एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
युद्ध और आतंकवाद का गहरा सम्बन्ध है और पिछले कुछ वर्षों में जो युद्ध लड़े गए हैं उनका प्रमुख कारण आतंकवाद ही था। उदाहरण के लिए 2001 में आतंकवाद के कारण ही अमेरिका ने अफ़गानिस्तान में युद्ध लड़ा। दिसम्बर, 2001 में भारतीय संसद् पर हुए आतंकवादी हमले के कारण भारत एवं पाकिस्तान में युद्ध की स्थिति बन गई थी।

समकालीन विश्व में सरक्षा HBSE 12th Class Political Science Notes

→ वर्तमान समय में मानव सुरक्षा के खतरे बढ़ गए हैं।
→ सुरक्षा का आधारभूत अर्थ है-खतरे से स्वतन्त्रता।
→ राष्ट्रीय सुरक्षा की धारणा को सुरक्षा की पारम्परिक धारणा माना जाता है।
→ 11 सितम्बर, 2001 को अमेरिका पर आतंकवादी हमला हुआ।
→ मानव सुरक्षा देश की आन्तरिक शान्ति एवं कानून व्यवस्था पर भी निर्भर करती है।
→ सुरक्षा के नाम पर कई देशों ने परमाणु हथियारों का निर्माण किया है।
→ सुरक्षा के नाम पर ही निःशस्त्रीकरण की मांग की जाती है।
→ विश्व में ग़रीबी एक महत्त्वपूर्ण समस्या बनी हुई है।
→ विश्व के सभी लोगों को पर्याप्त मात्रा में शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिल पातीं।
→ विकासशील देशों के अधिकांश लोग विकसित देशों में जाकर रहने की इच्छा रखते हैं, जिससे प्रायः मानवाधिकार की समस्याएं पैदा होती हैं।
→ भारत ने अपनी सुरक्षा के लिए पर्याप्त कदम उठाए हैं।
→ भारत ने सदैव नि:शस्त्रीकरण का समर्थन किया है।

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HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 6 अंतर्राष्ट्रीय संगठन

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 6 अंतर्राष्ट्रीय संगठन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Solutions Chapter 6 अंतर्राष्ट्रीय संगठन

HBSE 12th Class Political Science अंतर्राष्ट्रीय संगठन Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निषेधाधिकार (वीटो) के बारे में नीचे कुछ कथन दिए गए हैं। इनमें प्रत्येक के आगे सही या गलत का चिह्न लगाएँ।
(क) सुरक्षा-परिषद् के सिर्फ स्थायी सदस्यों को ‘वीटो’ का अधिकार है।
(ख) यह एक तरह की नकारात्मक शक्ति है।
(ग) सुरक्षा परिषद् के फैसलों से असन्तुष्ट होने पर महासचिव ‘वीटो’ का प्रयोग करता है।
(घ) एक ‘वीटो से भी सुरक्षा परिषद् का प्रस्ताव नामंजूर हो सकता है।
उत्तर:
(क) सही,
(ख) सही,
(ग) गलत,
(घ) सही।

प्रश्न 2.
संयुक्त राष्ट्र संघ के कामकाज के बारे में नीचे कुछ कथन दिए गए हैं। इनमें से प्रत्येक के सामने सही या गलत का चिह्न लगाएँ।।
(क) सुरक्षा और शान्ति से जुड़े सभी मसलों का निपटारा सुरक्षा परिषद में होता है।
(ख) मानवतावादी नीतियों का क्रियान्वयन विश्व भर में फैली मुख्य शाखाओं तथा एजेंसियों के मार्फत होता है।
(ग) सुरक्षा के किसी मसले पर पाँचों स्थायी सदस्य देशों का सहमत होना। उसके बारे में लिए गए फैसले के क्रियान्वयन के लिए जरूरी है।
(घ) संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के सभी सदस्य संयुक्त राष्ट्र संघ के बाकी प्रमुख अंगों और विशेष एजेंसियों के स्वतः सदस्य हो जाते हैं।
उत्तर:
(क) सही,
(ख) सही,
(ग) सही,
(घ) गलत।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 6 अंतर्राष्ट्रीय संगठन

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सा तथ्य सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता के प्रस्ताव को ज्यादा वज़नदार बनाता है ?
(क) परमाणु क्षमता
(ख) भारत संयुक्त राष्ट्र संघ के जन्म से ही उसका सदस्य है।
(ग) भारत एशिया में है।
(घ) भारत की बढ़ती हुई आर्थिक ताकत और स्थिर राजनीतिक व्यवस्था।
उत्तर:
(घ) भारत की बढ़ती हुई आर्थिक ताकत और स्थिर राजनीतिक व्यवस्था।

प्रश्न 4.
परमाणु प्रौद्योगिकी के शान्तिपूर्ण उपयोग और उसकी सुरक्षा से संबद्ध संयुक्त राष्ट्र संघ की एजेंसी का नाम है
(क) संयुक्त राष्ट्र संघ निःशस्त्रीकरण समिति
(ख) अन्तर्राष्ट्रीय आण्विक ऊर्जा एजेंसी
(ग) संयुक्त राष्ट्रसंघ अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा समिति
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) अन्तर्राष्ट्रीय आण्विक ऊर्जा एजेंसी

प्रश्न 5.
विश्व व्यापार संगठन निम्नलिखित में से किस संगठन का उत्तराधिकारी है ?
(क) जनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड एंड टैरिफ
(ख) जनरल एरेंजमेंट ऑन ट्रेड एंड टैरिफ
(ग) विश्व स्वास्थ्य संगठन
(घ) संयुक्त राष्ट्र संघ विकास कार्यक्रम।
उत्तर:
(क) जनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड एंड टैरिफ

प्रश्न 6.
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
(क) संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य उद्देश्य . ……………….
(ख) संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे जाना-पहचाना पद ………………… का है।
(ग) संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् में ……………….. स्थायी और …………… अस्थायी सदस्य हैं।
(घ) ……………. संयुक्त राष्ट्र संघ के वर्तमान महासचिव है।
(ङ) मानवाधिकारों की रक्षा में सक्रिय दो स्वयंसेवी संगठन ……………….. और ……………….. हैं।
उत्तर:
(क) संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य उद्देश्य शान्ति स्थापना है।
(ख) संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे जाना-पहचाना पद महासचिव का है।
(ग) संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् में 5 स्थायी और 10 अस्थायी सदस्य हैं।
(घ) श्री एन्टोनियो गुटेरस संयुक्त राष्ट्र संघ के वर्तमान महासचिव हैं।
(ङ) मानवाधिकारों की रक्षा में सक्रिय दो स्वयंसेवी संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यमन राइट्स वॉच हैं।

प्रश्न 7.
संयुक्त राष्ट्रसंघ की मुख्य शाखाओं और एजेंसियों का सुमेल उनके काम से करें
1. आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् – (क) वैश्विक वित्त-व्यवस्था की देख-रेख।
2. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय – (ख) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा का संरक्षण।
3. अन्तर्राष्ट्रीय आण्विक ऊर्जा एजेंसी – (ग) सदस्य देशों के आर्थिक और सामाजिक कल्याण की चिन्ता।
4. सुरक्षा परिषद् – (घ) परमाणु प्रौद्योगिकी का शान्तिपूर्ण उपयोग और सुरक्षा।
5. संयुक्त राष्ट्र संघ शरणार्थी उच्चायोग – (ङ) सदस्य देशों के बीच मौजूद विवादों का निपटारा।
6. विश्व व्यापार संगठन – (च) आपात्काल में आश्रय तथा चिकित्सीय सहायता मुहैया करना।
7. अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष – (छ) वैश्विक मामलों पर बहस-मुबाहिसा।
8. आम सभा – (ज) संयुक्त राष्ट्र संघ के मामलों पर समायोजन और प्रशासन।
9. विश्व स्वास्थ्य संगठन – (झ) सबके लिए स्वास्थ्य।
10. सचिवालय – (ब) सदस्य देशों के बीच मुक्त व्यापार की राह आसान बनाना।
उत्तर:
1. आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् – (ग) सदस्य देशों के आर्थिक और सामाजिक कल्याण की चिन्ता।
2. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय – (ङ) सदस्य देशों के बीच मौजूद विवादों का निपटारा।
3. अन्तर्राष्ट्रीय आण्विक ऊर्जा एजेंसी – (घ) परमाणु प्रौद्योगिकी का शान्तिपूर्ण उपयोग और सुरक्षा।
4. सुरक्षा परिषद् – (ख) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा का संरक्षण।
5. संयुक्त राष्ट्र-संघ शरणार्थी – (च) आपात्काल में आश्रय तथा चिकित्सीय सहायता मुहैया उच्चायोग करना।
6. विश्व व्यापार संगठन – (ब) सदस्य देशों के बीच मुक्त व्यापार की राह आसान बनाना।
7. अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष – (क) वैश्विक वित्त-व्यवस्था की देख-रेख।
8. आम सभा – (छ) वैश्विक मामलों पर बहस-मुबाहिसा।
9. विश्व स्वास्थ्य संगठन – (झ) सबके लिए स्वास्थ्य।
10. सचिवालय – (ज) संयुक्त राष्ट्र संघ के मामलों पर समायोजन और प्रशासन।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 6 अंतर्राष्ट्रीय संगठन

प्रश्न 8.
सुरक्षा परिषद् के कार्य क्या हैं ?
उत्तर:
सुरक्षा परिषद् के निम्नलिखित कार्य हैं
(1) सुरक्षा परिषद् किसी ऐसे मामले पर तुरन्त विचार कर सकती है, जिससे अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा के भंग होने का भय हो।

(2) सुरक्षा-परिषद् आक्रामक कार्यवाहियों, विश्व शान्ति के लिए खतरे की सम्भावनाओं और शान्ति भंग किए जाने वाले कार्यों के विषय में कार्यवाही कर सकता है।

(3) सुरक्षा परिषद् प्रादेशिक समस्याएं सुलझाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

(4) चार्टर के अनुच्छेद 83 के अनुसार सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के सम्बन्ध में संयुक्त राष्ट्र ने जो दायित्व ग्रहण किए हैं, उन्हें निभाने की ज़िम्मेदारी सुरक्षा परिषद् की है।

(5) सुरक्षा-परिषद् को विशिष्ट प्रदेशों की निगरानी का अधिकार प्रदान किया गया है।

(6) चार्टर के अनुच्छेद 4 के अनुसार नए सदस्यों को महासभा सुरक्षा परिषद् की सिफारिश से ही संयुक्त खण्ड का सदस्य बनाती हैं।

(7) चार्टर के अनुच्छेद 6 के अनुसार यदि कोई सदस्य चार्टर के सिद्धान्तों की बार-बार अवहेलना करता है, तो सुरक्षा परिषद् की सिफ़ारिश पर महासभा उस सदस्य राष्ट्र को सदस्यता से निष्कासित कर सकती है।

(8) सुरक्षा परिषद् की सिफ़ारिश के आधार पर ही महासभा न्यायालय के न्यायाधीशों का चुनाव करती है। महासचिव भी सुरक्षा परिषद् की सिफारिश पर ही महासभा के द्वारा नियुक्त किया जाता है।

(9) सुरक्षा परिषद् चार्टर के संशोधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

प्रश्न 9.
भारत के नागरिक के रूप में सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता के पक्ष का समर्थन आप कैसे करेंगे ? अपने प्रस्ताव का औचित्य सिद्ध करें। .
अथवा
संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता की दावेदारी के पक्ष में तर्क दीजिये।
उत्तर:
भारत को निम्नलिखित आधार पर सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यता प्राप्त होनी चाहिए

  • भारत विश्व का सर्वाधिक आबादी वाला दूसरा देश है। भारत में कुल जनसंख्या का 1/5 भाग निवास करता है।
  • भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा की गई प्रायः सभी पहलकदमियों में भारत ने सक्रिय रूप से भाग लिया है।
  • भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के झण्डे के नीचे कई देशों में शान्ति स्थापना के लिए अपनी सेनाएं भेजी हैं।
  • भारत में विश्व में तेजी से उभरती एक आर्थिक शक्ति है।
  • भारत ने नियमित तौर पर संयुक्त राष्ट्र संघ के बजट में अपना योगदान दिया है।
  • भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी अंगों में दी गई अपनी भूमिका को प्रभावशाली ढंग से निभाया है।

प्रश्न 10.
संयुक्त राष्ट्र संघ के ढाँचे को बदलने के लिए सुझाए गए उपायों के क्रियान्वयन में आ रही कठिनाइयों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ के ढांचे को बदलने के लिए सुझाए गए उपायों के क्रियान्वयन में निःसन्देह समस्याएं आ रही हैं। उदाहरण के लिए सबसे बड़ी समस्या यह आ रही है कि किस मापदण्ड के आधार पर सुरक्षा परिषद् की स्थायी एवं अस्थायी सदस्यता बढ़ाई जाए। यदि हम मानवाधिकार के अच्छे रिकॉर्ड के आधार पर सुरक्षा परिषद् की सदस्यता बढ़ाते हैं, तो ऐसे देशों की संख्या बहुत अधिक है, जिनका मानवाधिकार रिकार्ड बहुत अच्छा है, अतः सभी को सुरक्षा परिषद् की सदस्यता नहीं दी जा सकती।

एक समस्या यह है कि सदस्य देशों को भौगोलिक आधार पर प्रतिनिधित्व दिया जाए या किसी अन्य आधार पर। यदि हम आर्थिक आधार पर सुरक्षा परिषद् की सदस्य संख्या बढ़ाते हैं, तो विकासशील देशों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिलता है। कुछ विद्वानों का विचार है कि पांच स्थायी सदस्यों की वीटो की शक्ति समाप्त कर देनी चाहिए, परन्तु ऐसे किसी प्रस्ताव पर स्थायी देश सहमत नहीं होंगे। इस प्रकार की समस्याएं संयुक्त राष्ट्र के सुधारों में बाधाएं उत्पन्न कर रही हैं।

प्रश्न 11.
हालांकि संयुक्त राष्ट्र संघ युद्ध और इससे उत्पन्न विपदा को रोकने में नाकामयाब रहा है लेकिन विभिन्न देश अभी भी इसे बनाए रखना चाहते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ को एक अपरिहार्य संगठन मानने के क्या
कारण हैं ?
अथवा
अन्तर्राष्ट्रीय संगठन के रूप में संयुक्त राष्ट्र संघ क्यों आवश्यक है ? कारण बताइए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ को विभिन्न देश निम्नलिखित कारणों से बनाये रखना चाहते हैं
1. विश्व शान्ति में सहायक- अन्तर्राष्ट्रीय संगठन विश्वशांति की स्थापना में सहायक होते हैं।

2. राजनीतिक उपलब्धियां-संयुक्त राष्ट्र ने अनेक अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को हल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनमें से कुछ विवाद इस प्रकार हैं-रूस-ईरान विवाद, यूनान विवाद, सीरिया और लेबनान की समस्या, इण्डोनेशिया की समस्या कोर्फ़ चैनल विवाद, कोरिया समस्या, स्वेज़ नहर की समस्या, कांगो समस्या, यमन विवाद, कुवैत-ईराक विवाद आदि।

3. निःशस्त्रीकरण-संयुक्त राष्ट्र ने नि:शस्त्रीकरण के लिए अनेक प्रयास किए हैं और आज भी कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने निःशस्त्रीकरण के लिए अनेक सम्मेलनों का आयोजन किया है।

4. अन्तरिक्ष का मानव कल्याण के लिए प्रयोग-संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों के फलस्वरूप ही महासभा में एक प्रस्ताव पारित किया गया कि बाहरी अन्तरिक्ष का प्रयोग केवल शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए होगा।

5. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग-संयुक्त राष्ट्र ने विश्व के देशों को एक ऐसा मंच प्रदान किया है जहां अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं पर विचार-विमर्श होता है। संयुक्त राष्ट्र ने विभिन्न देशों के बीच राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, वैज्ञानिक आदि अनेक क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा दिया है।

6. अन्य उपलब्धियां-संयुक्त राष्ट्र ने सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, वैज्ञानिक इत्यादि और-राजनीतिक क्षेत्रों में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

प्रश्न 12.
संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार का अर्थ है सुरक्षा परिषद् के ढाँचे में बदलाव। इस कथन का सत्यापन करें।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार का अर्थ है सुरक्षा परिषद् के ढांचे में बदलाव अर्थात् सुरक्षा परिषद् में ही अधिकांश सुधारों की बात की जाती है, क्योंकि संयुक्त राष्ट्रसंघ के अन्य अंगों जैसे महासभा में सभी सदस्य राज्यों को समान अधिकार प्राप्त हैं, परन्तु सुरक्षा परिषद् में सभी राज्यों को समान अधिकार प्राप्त नहीं हैं, बल्कि पांच स्थाई देशों को सर्वाधिक शक्तियां प्राप्त हैं। अतः सुरक्षा परिषद् में बदलाव को ही संयुक्त राष्ट्र में सुधार के रूप में पुकार लिया जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय संगठन HBSE 12th Class Political Science Notes

→ संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व का सबसे महत्त्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है।
→ संयुक्त राष्ट्र संघ की वर्तमान सदस्य संख्या 193 है। इसकी स्थापना 1945 में की गई।
→ संयुक्त राष्ट्र संघ के वर्तमान महासचिव पुर्तगाल के श्री एन्टोनियो गुटेरस हैं।
→ संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य उद्देश्य युद्धों को रोकना एवं विश्व शान्ति की स्थापना करना है।
→ अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष संयुक्त राष्ट्र संघ का एक महत्त्वपूर्ण अभिकरण है।
→ 1990 के दशक से संयुक्त राष्ट्र संघ में पुनर्गठन की मांग जोर पकड़ती रही है।
→ महासभा एवं सुरक्षा परिषद् में सर्वाधिक सुधारों की मांग की जा रही है।
→ भारत सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता का एक मज़बूत उम्मीदवार है।
→ विश्व व्यापार संगठन की स्थापना 1995 में हुई।
→ अन्तर्राष्ट्रीय आण्विक ऊर्जा एजेंसी संयुक्त राष्ट्र संघ का एक महत्त्वपूर्ण अभिकरण है।
→ अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर रैडक्रास सोसाइटी, एमनेस्टी इंटरनेशनल तथा ह्यूमन राइट्स जैसे गैर-सरकारी संगठन (N.G.O.) भी काम कर रहे हैं।
→ गैर-सरकारी संगठनों में लोकतन्त्र एवं उत्तरदायित्व का अभाव होता है।

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HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Solutions Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

HBSE 12th Class Political Science समकालीन दक्षिण एशिया Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
देशों की पहचान करें
(क) राजतन्त्र, लोकतन्त्र-समर्थक समूहों और अतिवादियों के बीच संघर्ष के कारण राजनीतिक अस्थिरता का वातावरण बना।
(ख) चारों तरफ भूमि से घिरा देश।
(ग) दक्षिण एशिया का वह देश जिसने सबसे पहले अपनी अर्थव्यवस्था का उदारीकरण किया।
(घ) सेना और लोकतन्त्र-समर्थक समूहों के बीच संघर्ष में सेना ने लोकतन्त्र के ऊपर बाजी मारी
(ङ) दक्षिण एशिया के केन्द्र में अवस्थित। इन देशों की सीमाएँ दक्षिण एशिया के अधिकांश देशों से मिलती हैं।
(च) पहले इस द्वीप में शासन की बागडोर सुल्तान के हाथ में थी। अब यह एक गणतन्त्र है।
(छ) ग्रामीण क्षेत्र में छोटी बचत और सहकारी ऋण की व्यवस्था के कारण इस देश को गरीबी कम करने में मदद मिली है।
(ज) एक हिमालयी देश जहाँ संवैधानिक राजतन्त्र है। यह देश भी हर तरफ से भूमि से घिरा है।
उत्तर:
(क) नेपाल,
(ख) नेपाल,
(ग) श्रीलंका,
(घ) पाकिस्तान,
(ङ) भारत,
(च) मालद्वीप,
(छ) बांग्लादेश,
(ज) भूटान।

प्रश्न 2.
दक्षिण एशिया के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन ग़लत है ?
(क) दक्षिण एशिया में सिर्फ एक तरह की राजनीतिक प्रणाली चलती है।
(ख) बांग्लादेश और भारत ने नदी-जल की हिस्सेदारी के बारे में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
(ग) ‘साफ्टा’ पर हस्ताक्षर इस्लामाबाद के 12वें सार्क-सम्मेलन में हुए।
(घ) दक्षिण एशिया की राजनीति में चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
उत्तर:
(क) दक्षिण एशिया में सिर्फ एक तरह की राजनीतिक प्रणाली चलती है।

प्रश्न 3.
पाकिस्तान के लोकतन्त्रीकरण में कौन-कौन सी कठिनाइयाँ हैं ?
उत्तर:
पाकिस्तान में सैनिक हस्तक्षेप, कट्टरतावाद, आतंकवाद, धर्मगुरु एवं भूस्वामी अभिजनों के सामाजिक प्रभाव ने लोकतन्त्र के मार्ग में कठिनाइयां पैदा की हैं। पाकिस्तान में विशेषकर सैनिक तानाशाही ने लोकतन्त्र के मार्ग में सर्वाधिक रुकावटें पैदा की हैं। पाकिस्तान और भारत के कड़वाहट भरे सम्बन्धों की आड़ में पाकिस्तानी सेना ने सदैव पाकिस्तान में अपना दबदबा बनाये रखा तथा किसी भी निर्वाचित सरकार को ठीक ढंग से काम नहीं करने दिया।

प्रश्न 4.
नेपाल के लोग अपने देश में लोकतन्त्र को बहाल करने में कैसे सफल हुए ?
उत्तर:
नेपाल में समय-समय पर लोकतन्त्र के मार्ग में कठिनाइयां आती रही हैं, 2002 में नेपाल के राजा ज्ञानेन्द्र ने प्रतिनिधि सभा को भंग करके शासन की बागडोर अपने हाथ में ले ली जिससे नेपाल में लोकतन्त्र का संकट पैदा हो गया। इसके विरोध में नेपाल में व्यापक आन्दोलन हुए। राजा ज्ञानेन्द्र ने फरवरी, 2005 में देश में आपात्काल की घोषणा कर दी। लोगों की स्वतन्त्रता को समाप्त करके नेताओं को नजरबन्द कर दिया गया। इसके विरोध में राजनीतिक दलों ने अपना आन्दोलन और तेज़ कर दिया।

अप्रैल, 2006 में सात राजनीतिक दलों ने 19 दिनों तक नेपाल नरेश के विरुद्ध जोरदार आन्दोलन चलाया, जिसमें 21 लोग मारे गए तथा लगभग 5000 लोग घायल हो गए। धीरे-धीरे नेपाल नरेश पर बाहरी दबाव भी पड़ना शुरू हो गया। अन्ततः अप्रैल, 2006 में नेपाल नरेश को आपात्काल की घोषणा वापस लेनी पड़ी।

संसद् को पुनः बहाल करना पड़ा तथा गिरिजा प्रसाद कोइराला को देश का प्रधानमन्त्री नियुक्त किया। नेपाल के सांत राजनीतिक दलों ने मिलकर नये संविधान की रचना की तथा 28 मई, 2008 को पिछले 240 वर्षों से चले आ रहे राजतन्त्र को सदैव के लिए समाप्त कर दिया। 15 अगस्त, 2008 को संविधान सभा में प्रधानमन्त्री के निर्वाचन के लिए चुनाव हुआ।

इस चुनाव में सी० पी० एन० (एम०) के नेता पुष्प कमल दहल ‘प्रचण्ड’ प्रधानमन्त्री चुने गए। प्रचण्ड राजशाही समाप्त होने के पश्चात् नेपाल के प्रधानमन्त्री बने। परन्तु मई, 2009 में प्रचण्ड ने त्यागपत्र दे दिया तथा उनके स्थान पर सी०पी० एन०-यू० एम० एल० गठबन्धन ने माधव कुमार को नेपाल का प्रधानमन्त्री बनाया।

परंतु माओवादियों के विरोध के कारण माधव कुमार नेपाल को जून, 2010 में अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा। नेपाल में नवम्बर, 2013 में लोकतान्त्रिक ढंग से चुनाव हुए। इन चुनावों के परिणामों के आधार पर नेपाली कांग्रेस पार्टी के नेता श्री सुशील कोइराला नेपाल के प्रधानमन्त्री बने। 20 सितम्बर, 2015 को नेपाल में नया संविधान लागू किया गया। यद्यपि वर्तमान समय में नेपाल में लोकतान्त्रिक व्यवस्था बहाल हुई है, परन्तु इसे लम्बे समय तक बनाये रखने की आवश्यकता है।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

प्रश्न 5.
श्रीलंका के जातीय-संघर्ष में किनकी भूमिका प्रमुख है ?
अथवा
श्रीलंका में जातीय संघर्ष पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
श्रीलंका की जनसंख्या का लगभग 18% भाग भारतीय मूल के तमिल हैं, जो श्रीलंका के उत्तरी और पूर्वी प्रान्तों में बसे हुए हैं। श्रीलंका की स्वतन्त्रता के बाद बहुसंख्यक सिंहलियों ने धर्म और भाषा के आधार पर एक नए राज्य के निर्माण के प्रयास शुरू कर दिए जिसका स्वाभाविक रूप से तमिलों ने विरोध किया। श्रीलंका सरकार ने सिंहलियों के लिए नौकरियों तथा शिक्षण संस्थाओं आदि में सुविधाओं की व्यवस्था की जबकि तमिलों को इससे वंचित रखा। सरकार की तमिलों के प्रति भेदभाव तथा उपेक्षा की नीति ने तमिलों को संगठित किया।

1983 में तमिल उग्रवादियों ने तमिल लिबरेशन टाइगर्स नामक संगठन बनाया। इस संगठन ने हिंसात्मक कार्यवाहियां प्रारम्भ कर दी और सरकार से सीधे संघर्ष की ठान ली। 1991 में चुनाव प्रचार के दौरान तमिल उग्रवादियों ने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी की हत्या कर दी। धीरे-धीरे श्रीलंका में जातीय संघर्ष तेज़ होने लगा और विस्फोटक तथा व्यापक हत्याएं की जाने लगीं।

भारत और श्रीलंका में इस जातीय संघर्ष के लिए काफ़ी प्रयास किए गए लेकिन सफलता प्राप्त नहीं हुई। सितम्बर, 2002 में नार्वे की मध्यस्थता से श्रीलंका में जातीय संघर्ष समाप्त करने के प्रयास प्रारम्भ किए गए। इससे श्रीलंका में दो दशक से चला आ रहा खूनी संघर्ष समाप्त होने की आशा जगी है। जनवरी- फरवरी, 2009 में श्रीलंका की सेना ने लिट्टे के विरुद्ध ज़बरदस्त सैनिक अभियान चलाकर लिट्टे का लगभग सफाया कर दिया तथा मई, 2009 में लिट्टे प्रमुख प्रभाकरण भी मारा गया।

प्रश्न 6.
भारत और पाकिस्तान के बीच हाल में क्या समझौते हुए ?
उत्तर:

  • 2004 में श्रीनगर-मुज्जफराबाद के बीच बस सेवा की शुरुआत पर दोनों देशों में सहमति बनी।
  • भारत-पाक ने परस्पर आर्थिक समझौते किये।
  • भारत-पाक ने साहित्य, कला एवं संस्कृति तथा खिलाड़ियों को वीजा देने के लिए आपस में समझौता किया।
  • भारत-पाक युद्ध के खतरे को कम करने के लिए परस्पर विश्वास बहाली के उपायों पर सहमत हुए हैं।

प्रश्न 7.
ऐसे दो मसलों के नाम बताएँ जिन पर भारत-बांग्लादेश के बीच आपसी सहयोग है और इसी तरह दो ऐसे मसलों के नाम बताएँ जिन पर असहमति है।
उत्तर:
1. सहयोग के मुद्दे
(क) भारत-बांग्लादेश ने दिसम्बर, 1996 में फरक्का गंगा जल बंटवारे पर समझौता किया।
(ख) आतंकवाद-भारत-बांग्लादेश आतंकवाद के मुद्दे पर सदैव एक रहे हैं।

2. असहयोग के मुद्दे
(क) चकमा शरणार्थी-भारत-बांग्लादेश के बीच असहयोग का एक मुद्दा चकमा शरणार्थी है।
(ख) भारत विरोधी गतिविधियां-बांग्लादेश में समय-समय पर भारत विरोधी गतिविधियां होती रहती हैं।

प्रश्न 8.
दक्षिण एशिया में द्विपक्षीय सम्बन्धों को बाहरी शक्तियां कैसे प्रभावित करती हैं ?
उत्तर:
दक्षिण एशिया में सदैव विश्व के महत्त्वपूर्ण देशों ने अपने प्रभाव को जमाने का प्रयास किया है। कालान्तर में फ्रांस, हालैण्ड तथा इंग्लैण्ड ने दक्षिण एशिया में कई वर्षों तक शासन किया। वर्तमान समय में अमेरिका एवं चीन दक्षिण एशिया में द्वि-पक्षीय सम्बन्धों को प्रभावित कर रहे हैं। उदाहरण के लिए पाकिस्तान के कहने पर अमेरिका ने सदैव भारत-पाक सम्बन्धों को ठीक करने के लिए अपनी इच्छा जताई है।

परन्तु भारत ने इसे कभी स्वीकार नहीं किया। इसी तरह चीन भी पाकिस्तान के साथ महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध बनाए हुए तथा समय-समय पर दक्षिण एशिया के देशों के परस्पर सम्बन्धों को प्रभावित करने का प्रयास करता है, परन्तु भारत ने इस प्रकार के प्रयास को अधिक महत्त्व नहीं दिया।

प्रश्न 9.
दक्षिण एशिया के देशों के बीच आर्थिक सहयोग की राह तैयार करने में दक्षेस (सार्क) की भूमिका और सीमाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। दक्षिण एशिया की बेहतरी में ‘दक्षेस’ (सार्क) ज्यादा बड़ी भूमिका निभा सके, इसके लिए आप क्या सुझाव देंगे ?
उत्तर:
आज के तकनीकी यग में कोई देश आपसी सहयोग के बिना उन्नति नहीं कर सकता। विश्व के लगभग सभी राष्ट्र आर्थिक उन्नति के लिए एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं। इसी आपसी सहयोग को बनाने एवं बढ़ाने के विचार से दक्षिण एशिया के सात देशों ने दक्षेस की स्थापना की। सार्क ने दक्षिण एशिया के सदस्य राष्ट्रों की आर्थिक उन्नति में महत्त्वपूर्ण भूमिका अभिनीत की है।

आर्थिक सहयोग को बढ़ाने के लिए 1995 में सार्क देशों ने साफ्टा को लागू किया। इस सहयोग को और अधिक बढ़ाने के लिए सार्क के 12वें शिखर सम्मेलन में साफ्टा को वर्ष 2006 से लागू करने की अनुमति दे दी है। आर्थिक क्षेत्र में सहयोग का महत्त्व-सार्क देशों द्वारा अपनाए गए आर्थिक सहयोग कार्यक्रम का महत्त्व निम्नलिखित है

  • दक्षिण एशियाई देशों द्वारा आर्थिक रूप से एक-दूसरे से सहयोग के कारण इस क्षेत्र के लोगों के जीवन स्तर में भारी सुधार आया है।
  • इसने आर्थिक विकास को गति प्रदान की है।
  • आर्थिक सहयोग के चलते सदस्य राष्ट्रों द्वारा एक-दूसरे पर से विभिन्न प्रकार के कर हटाने से व्यापार को बढ़ावा मिला है।
  • दक्षिण एशियाई देशों की अर्थव्यवस्था में सुधार आया है।
  • आर्थिक क्षेत्र में सहयोग से सार्क देशों के सम्बन्धों में अधिक मज़बूती आई है।

सार्क सीमाएं:

  • सार्क की सफलता में सदैव भारत-पाक के कटु सम्बन्ध रुकावट पैदा करते हैं।
  • सार्क के सदस्य देश भारत जैसे बड़े देश पर पूर्ण विश्वास नहीं रख पा रहे हैं।
  • सार्क के अधिकांश देशों में आन्तरिक अशान्ति एवं अस्थिरता इसके मार्ग में रुकावट है।
  • सार्क देशों में अधिक मात्रा में अनपढ़ता, बेरोज़गारी तथा भूखमरी पाई जाती है, जोकि इसकी सफलता में बाधा पैदा करती है।

सार्क की सफलता के लिए सुझाव:

  • भारत-पाक को अपने सम्बन्धों को सार्क से दूर रखना चाहिए।
  • सार्क देशों को भारत पर विश्वास करना चाहिए।
  • सार्क की सफलता के लिए सार्क देशों में शान्ति एवं स्थिरता आवश्यक है।
  • सार्क देशों को जल्द से जल्द इस क्षेत्र से अनपढता, बेरोज़गारी तथा भूखमरी को दूर करना होगा।

प्रश्न 10.
दक्षिण एशिया के देश एक-दूसरे पर अविश्वास करते हैं। इससे अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर यह क्षेत्र एकजुट होकर अपना प्रभाव नहीं जमा पाता। इस कथन की पुष्टि में कोई भी दो उदाहरण दें और दक्षिण एशिया को मजबूत बनाने के लिए उपाय सुझाएँ।
उत्तर:
दक्षिण एशिया के देश एक-दूसरे पर विश्वास नहीं करते जिसके कारण अन्तर्राष्ट्रीय मंचों में ये देश एक सुर में नहीं बोल पाते। उदाहरण के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत-पाक के विचार सदैव एक-दूसरे के विपरीत होते हैं। दूसरी ओर सार्क के अन्य सदस्य देशों को यह डर लगा रहता है कि, भारत कहीं बड़े होने का दबाव हम पर न बनाए। परन्तु यदि हम चाहते हैं कि दक्षिण एशिया के देश मज़बूत बनें, तो इन्हें सबसे पहले आपस में विश्वास करना होगा तथा परस्पर विवादों को दूर करना होगा।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 5 समकालीन दक्षिण एशिया

प्रश्न 11.
दक्षिण एशिया के देश भारत को एक बाहबली समझते हैं जो इस क्षेत्र के छोटे देशों पर अपना दबदबा जमाना चाहता है और उनके अन्दरूनी मामलों में दखल देता है। इन देशों की ऐसी सोच के लिए कौन कौन सी बातें ज़िम्मेदार हैं ?
उत्तर:
दक्षिण एशिया के छोटे देश भारत जैसे बड़े देश से डरते हैं, इन देशों के डरने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं

  • भारत दक्षिण एशिया की सर्वाधिक शक्तिशाली परमाणु एवं सैनिक शक्ति है।
  • भारत विश्व की बड़ी तेज़ी से उभरती आर्थिक व्यवस्था है।
  • भारत एक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है।

समकालीन दक्षिण एशिया HBSE 12th Class Political Science Notes

→ विश्व राजनीति में दक्षिण एशिया को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
→ दक्षिण एशिया में भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान तथा मालद्वीप शामिल हैं।
→ दक्षिण एशिया के 7 देशों ने क्षेत्र में आर्थिक विकास के लिए 1985 में सार्क की स्थापना की।
→ सार्क के 14वें सम्मेलन में अफगानिस्तान को सार्क का आठवां सदस्य बनाया गया।
→ पाकिस्तान में लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं पर सदैव सैनिक तानाशाही हावी रही है।
→ नेपाल में 2015 में नया लोकतान्त्रिक संविधान लागू किया गया।
→ श्रीलंका की सबसे महत्त्वपूर्ण समस्या जातीय संघर्ष है।
→ भारत में सदैव लोकतान्त्रिक संस्थाओं ने उचित ढंग से कार्य किया है।
→ आर्थिक वैश्वीकरण का दक्षिण एशिया पर सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
→ सार्क देशों में राजनीतिक उथल-पुथल एवं भारत-पाक के बीच हुए युद्धों ने इस क्षेत्र के आर्थिक विकास में बाधा पहुँचाई है।
→ क्षेत्र में आर्थिक विकास के लिए सभी देशों को अपने मतभेद भुलाकर परस्पर सहयोग से कार्य करना होगा।

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HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

HBSE 12th Class Political Science सत्ता के वैकल्पिक केंद्र Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
तिथि के हिसाब से इन सबको क्रम दें
(क) विश्व व्यापार संगठन में चीन का प्रवेश
(ख) यूरोपीय आर्थिक समुदाय की स्थापना
(ग) यूरोपीय संघ की स्थापना
(घ) आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना।
उत्तर:
(क) यूरोपीय आर्थिक समुदाय की स्थापना
(ख) आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना
(ग) यूरोपीय संघ की स्थापना
(घ) विश्व व्यापार संगठन में चीन का प्रवेश।

प्रश्न 2.
‘आसियान वे’ या आसियान शैली क्या है ?
(क) आसियान के सदस्य देशों की जीवन शैली है।
(ख) आसियान सदस्यों के अनौपचारिक और सहयोगपूर्ण कामकाज का स्वरूप है।
(ग) आसियान सदस्यों की रक्षा नीति है।
(घ) सभी आसियान सदस्य देशों को जोड़ने वाली सड़क है।
उत्तर:
(ख) आसियान सदस्यों के अनौपचारिक और सहयोगपूर्ण कामकाज का स्वरूप है।

प्रश्न 3.
इनमें से किसने ‘खुले द्वार’ की नीति अपनाई ?
(क) चीन
(ख) यूरोपीय संघ
(ग) जापान
(घ) अमेरिका।
उत्तर:
(क) चीन

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

प्रश्न 4.
खाली स्थान भरें
(क) 1962 में भारत और चीन के बीच ……….. और …………… को लेकर सीमावर्ती लड़ाई हुई थी।
(ख) आसियान क्षेत्रीय मंच के कामों में …………….. और …………….. करना शामिल है।
(ग) चीन ने 1972 में …………….. के साथ दोतरफा सम्बन्ध शुरू करके अपना एकांतवास समाप्त किया।
(घ) ……………… योजना के प्रभाव से 1948 में यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना हुई।
(ङ) …………. आसियान का एक स्तम्भ है, जो इसके सदस्य देशों की सुरक्षा के मामले देखता है।
उत्तर:
(क) 1962 में भारत और चीन के बीच अरुणाचल प्रदेश के कुछ इलाकों और लद्दाख के अक्साई चिन क्षेत्र को लेकर सीमावर्ती लड़ाई हुई थी।
(ख) आसियान क्षेत्रीय मंच के कामों में आर्थिक विकास को तेज़ करना और सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास प्राप्त करना शामिल है।
(ग) चीन ने 1972 में अमेरिका के साथ दोतरफा सम्बन्ध शुरू करके अपना एकांतवास समाप्त किया।
(घ) मार्शल योजना के प्रभाव से 1948 में यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना हुई।
(ङ) आसियान सुरक्षा समुदाय आसियान का एक स्तम्भ है जो इसके सदस्य देशों की सुरक्षा के मामले देखता है।

प्रश्न 5.
क्षेत्रीय संगठनों को बनाने के उद्देश्य क्या हैं ?
उत्तर:
क्षेत्रीय संगठनों को बनाने के निम्नलिखित उद्देश्य हैं

  • क्षेत्रीय देशों के लोगों का कल्याण और जीवन में गुणात्मकता लाना।
  • क्षेत्र में आर्थिक वृद्धि, सामाजिक प्रगति एवं सांस्कृतिक विकास लाना ।
  • सामूहिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना।
  • अन्य देशों के साथ सहयोग करना।
  • आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों में आपसी सहयोग को बढ़ावा देना।
  • एक-दूसरे की समस्याओं के लिए आपसी विश्वास, समझबूझ व सहृदयता विकसित करना।
  • अन्य क्षेत्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग करना।

प्रश्न 6.
भौगोलिक निकटता का क्षेत्रीय संगठनों के गठन पर क्या असर होता है ?
उत्तर:
भौगोलिक निकटता का क्षेत्रीय संगठनों के गठन पर सकारात्मक असर पड़ता है। भौगोलिक निकटता के कारण उस क्षेत्र के देशों की कई समस्याएं, धर्म, रीति-रिवाज तथा भाषाएं समान होती हैं, जिसके कारण एक क्षेत्रीय संगठन के निर्माण में मदद मिलती है। क्षेत्रीय संगठनों से सम्बन्धित देशों में परस्पर सहयोग एवं संगठन की भावना पैदा होती है। क्षेत्रीय संगठनों के कारण सम्बन्धित देशों में शत्रुता एवं युद्ध की भावना न होकर बन्धुत्व एवं शान्ति की भावना पैदा होती है।

प्रश्न 7.
आसियान विजन 2020 की मुख्य-मुख्य बातें क्या हैं ?
उत्तर:
आसियान विजन 2020 की मुख्य बातें इस प्रकार हैं
(1) आसियान विजन 2020 में अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में आसियान की एक बहिर्मुखी भूमिका को प्रमुखता दी गई

(2) हनोई कार्य योजना के तहत क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण, व्यापारिक उदारीकरण तथा वित्तीय सहयोग की वृद्धि के लिए विभिन्न उपाय निर्धारित किये गये हैं।

(3) आसियान विजन 2020 के तहत एक आसियान सुरक्षा समुदाय, एक आसियान आर्थिक समुदाय तथा एक आसियान सामाजिक एवं सांस्कृतिक समुदाय बनाने की संकल्पना की गई है।

प्रश्न 8.
आसियान समुदाय के मुख्य स्तंभों और उनके उद्देश्यों के बारे में बताएं।
उत्तर:
आसियान समुदाय के तीन मुख्य स्तंभ हैं-आसियान सुरक्षा समुदाय, आसियान आर्थिक समुदाय और आसियान सामाजिक-सांस्कृतिक समुदाय।
1. आसियान सुरक्षा समुदाय-यह समुदाय आसियान देशों के बीच होने वाले टकरावों को दूर करता है।

2. आसियान आर्थिक समुदाय-आसियान आर्थिक समुदाय आसियान देशों का साझा बाज़ार और उत्पादन आधार तथा क्षेत्र में सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है।

3. आसियान सामाजिक-सांस्कृतिक समुदाय-यह समुदाय आसियान देशों के बीच सामाजिक एवं सांस्कृतिक सम्बन्धों को बढ़ावा देता है।

प्रश्न 9.
आज की चीनी अर्थव्यवस्था नियन्त्रित अर्थव्यवस्था से किस तरह अलग है ?
उत्तर:
आज की चीनी अर्थव्यवस्था नियन्त्रित अर्थव्यवस्था से पूरी तरह अलग है। चीनी अर्थव्यवस्था की नीति विदेशी पूंजी और प्रौद्योगिकी के निवेश से उच्चतर उत्पादकता को प्राप्त करना है। चीन ने वर्तमान समय में बाजारोन्मुख अर्थव्यवस्था को अपनाया है, चीन ने ‘शॉक थेरेपी’ की अपेक्षा चरणबद्ध ढंग से अपनी अर्थव्यवस्था को बाज़ारोन्मुख बनाया। चीन ने 1982 में कृषि एवं 1998 में उद्योगों का निजीकरण किया। आर्थिक विकास के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना की गई। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं, कि वर्तमान चीनी अर्थव्यवस्था 1950 की चीनी अर्थव्यवस्था की अपेक्षा अधिक खुलापन लिये हुए है।

प्रश्न 10.
किस तरह यूरोपीय देशों ने युद्ध के बाद की अपनी परेशानियां सुलझाई ? संक्षेप में उन कदमों की चर्चा करें जिनसे होते हुए यूरोपीय संघ की स्थापना हुई।
उत्तर:
यूरोपीय देशों ने दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात् आपसी बातचीत, सहयोग एवं परस्पर विश्वासों के आधार पर अपनी परेशानियों को दूर किया। यूरोपीय देशों ने अपने आर्थिक विकास के लिए 1948 में मार्शल योजना के अधीन यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना की। राजनीतिक सहयोग के लिए यूरोपीय देशों ने 1949 में यूरोपीय परिषद् की स्थापना की। 1957 में इन देशों ने यूरोपीय आर्थिक समुदाय (EEC) की स्थापना की। सन् 1985 में यूरोपीय देशों ने शांगेन सन्धि करके यूरोपीय देशों के बीच सीमा नियन्त्रण को समाप्त कर दिया। 1990 में यूरोपीय देशों के प्रयासों से जर्मनी का एकीकरण हुआ। 1992 में यूरोपीय देशों ने मास्ट्रिस्ट सन्धि पर हस्ताक्षर करके यूरोपीय संघ की स्थापना की।

प्रश्न 11.
यूरोपीय संघ को क्या चीजें एक प्रभावी क्षेत्रीय संगठन बनाती हैं ?
उत्तर:
यूरोपीय संघ यूरोपीय देशों का एक क्षेत्रीय संगठन है। यूरोपीय संघ का अपना झण्डा, गान, स्थापना दिवस तथा मुद्रा है, जो इसे शक्तिशाली स्थिति प्रदान करते हैं। यूरोपीय संघ का विश्व राजनीति में आर्थिक, राजनैतिक, कूटनीतिक तथा सैनिक महत्त्व बहुत अधिक है। यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। फ्रांस संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य हैं तथा इनके पास परमाणु हथियार भी हैं। यूरोपीय संघ के पास विश्व की दूसरी सबसे बड़ी सेना है। ये सभी तत्त्व यूरोपीय संघ को एक प्रभावशाली संगठन बनाने में मदद प्रदान करते हैं।

प्रश्न 12.
चीन और भारत की उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मौजूदा एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था को चुनौती दे सकने की क्षमता है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? अपने तर्कों से अपने विचारों की पुष्टि करें।
उत्तर:
भारत एवं चीन विश्व की उभरती हुई दो आर्थिक व्यवस्थाएं हैं। वर्तमान समय में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को दोनों देश प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। इसलिए समय-समय पर यह कहा जाता है कि चीन एवं भारत अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका को चनौती देने की स्थिति में है। चीन संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है, इसके पास परमाणु शक्ति है। चीन के पास विश्व की सबसे बड़ी सेना है। इसके साथ चीन बड़ी तेजी से अपनी अर्थव्यवस्था को विश्व स्तरीय बना रहा है।

जहां तक भारत का प्रश्न है, तो कुछ समीक्षक भारत को आने वाले समय की महाशक्ति के रूप में देख रहे हैं। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है। भारत ने संचार, तकनीक, विज्ञान एवं सूचना के क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में किसी भी देश से अधिक उन्नति की है। भारत के पास एक शक्तिशाली सेना है, तथा भारत एक परमाणु सम्पन्न ज़िम्मेदार राष्ट्र है। अमेरिका ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की भूमिका को देखते हुए ही भारत के साथ असैनिक परमाणु क्षमता समझौता किया है। अतः कहा जा सकता है कि आने वाले समय में चीन एवं भारत एकपक्षीय विश्व को चुनौती दे सकते हैं।

प्रश्न 13.
मुल्कों की शान्ति और समृद्धि क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों को बनाने और मजबूत करने पर टिकी है। इस कथन की पुष्टि करें।
उत्तर:
लोगों के सर्वांगीण विकास के लिए विश्व में शान्ति एवं व्यवस्था का होना आवश्यक है। इसके साथ-साथ प्रत्येक देश का आर्थिक विकास होना भी आवश्यक है। इन दोनों शर्तों को क्षेत्रीय आर्थिक संगठन बनाकर पूरा किया जा सकता है। इसीलिए कहा जाता है, कि विश्व शान्ति एवं समृद्धि के लिए क्षेत्रीय आर्थिक संगठन आवश्यक है। अतः अधिकांश महाद्वीपों में क्षेत्रीय आर्थिक संगठन बने हुए हैं, जैसे यूरोप में यूरोपीय संघ, एशिया में आसियान तथा सार्क। ये संगठन सम्बन्धित देशों के आर्थिक विकास को अधिक बढ़ावा देने तथा इन्हें युद्ध से दूर रखते हैं, ताकि क्षेत्र एवं विश्व में शान्ति बने रहे।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

प्रश्न 14.
भारत और चीन के बीच विवाद के मामलों की पहचान करें और बताएं कि वृहत्तर सहयोग के लिए इन्हें कैसे निपटाया जा सकता है ? अपने सुझाव भी दीजिए।
उत्तर:
भारत तथा चीन दो पड़ोसी देश हैं। दोनों देशों के मध्य ऐसे बहुत-से मुद्दे हैं, जो दोनों देशों के सम्बन्धों में तनाव भी पैदा करते हैं।

1. सीमा विवाद-भारत-चीन के मध्य सर्वाधिक तनावपूर्ण मुद्दा सीमा विवाद है। 1962 को भारत-चीन युद्ध के समय चीन ने बहुत-से भारतीय क्षेत्र पर अधिकार कर लिया है, जिसे आज भी चीन अपने क्षेत्र में बताता है।

2. मैकमोहन रेखा-मैकमोहन रेखा ऐसी रेखा है जो भारत तथा चीन के क्षेत्र की सीमा निश्चित करती है। यह रेखा 1914 ई० में भारत-चीन तथा तिब्बत के प्रतिनिधियों के एक सम्मेलन द्वारा निश्चित की गई थी। 1956 तक चीन ने कभी भी मैकमोहन रेखा को स्वीकार करने से स्पष्ट इन्कार नहीं किया था, किन्तु 1956 के पश्चात् चीन ने इस सीमा रेखा सम्बन्धी अपनी आपत्ति को प्रकट करना आरम्भ कर दिया था।

3. चीन का पाकिस्तान को हथियारों की आपूर्ति करना-चीन ने सदैव पाकिस्तान को हथियारों की आपूर्ति की है, जिनका प्रयोग पाकिस्तान भारत के विरुद्ध करता है। इसके लिए भारत ने कई बार चीन से अपना विरोध जताया है।

4. भारत द्वारा दलाईलामा को समर्थन देना-चीन को सदैव इस बात पर आपत्ति रही है, कि भारत दलाईलामा का समर्थन करता है। भारत एवं चीन के वृहत्तर सहयोग के लिए सर्वप्रथम अपने सीमा विवाद को सुलझाना चाहिए, दोनों देशों को इस प्रकार का रास्ता निकालना चाहिए जो दोनों देशों को मंजूर हो, चीन को मैकमोहन रेखा के विषय में भारत से सहयोग करना चाहिए।

चीन द्वारा पाकिस्तान को की गई हथियारों की आपूर्ति भारत-चीन सम्बन्धों में तनाव पैदा करती है। अत: चीन को पाकिस्तान को हथियारों की आपूर्ति के समय सतर्क रहने की आवश्यकता है। दलाईलामा के विषय पर भी दोनों देशों की बातचीत द्वारा एक सर्वमान्य उपाय निकालना चाहिए। इन सभी उपायों द्वारा ही इस क्षेत्र का विकास हो सकता है।

सत्ता के वैकल्पिक केंद्र HBSE 12th Class Political Science Notes

→ अमेरिका के मुकाबले सत्ता के कुछ विकल्प विश्व स्तर पर उभर रहे हैं।
→ सत्ता के विकल्पों में यूरोपीय संघ, आसियान, चीन तथा भारत शामिल हैं।
→ यूरोपीय संघ की स्थापना 1992 में हुई।
→ जनवरी, 2002 में यूरोप के 12 देशों ने यूरो मुद्रा की शुरुआत की।
→ यूरोपीय संघ विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
→ आसियान दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों का एक क्षेत्रीय संगठन है।
→ आसियान की स्थापना 1967 में की गई।
→ 1996 में भारत को आसियान में पूर्ण वार्ताकार का दर्जा प्राप्त हुआ।
→ 1970 के दशक से चीन विश्व स्तर पर आर्थिक शक्ति के रूप में उभरा है।
→ 1972 में चीन ने अमेरिका के साथ अपने सम्बन्ध बनाने शुरू किये।
→ 1973 में चीनी प्रधानमन्त्री चाऊ एन-लाई ने आधुनिकीकरण के चार प्रस्ताव दिये।
→ 1978 में चीन में आर्थिक सुधारों और खुले द्वार (Open Door) की नीति की घोषणा की गई।
→ 1982 में चीन ने कृषि का निजीकरण किया।
→ 1998 में चीन ने उद्योगों का निजीकरण किया।
→ भारत 1990 के दशक में तेज़ी से आर्थिक ताकत के रूप में उभरा है।
→ अमेरिका ने भारत के सम्बन्धों को महत्त्वपूर्ण माना है।
→ भारत-चीन के आर्थिक सम्बन्ध अच्छे हैं।
→ जून 2016 में इंग्लैण्ड में हुए जनमत संग्रह के अन्तर्गत इंग्लैण्ड ने यूरोपीय संघ (BREXIT) से अलग होने का निर्णय किया।

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HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Solutions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

HBSE 12th Class Political Science समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
वर्चस्व के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन ग़लत है ?
(क) इसका अर्थ किसी एक देश की अगुवाई या प्राबल्य है।
(ख) इस शब्द का इस्तेमाल प्राचीन यूनान में एथेंस की प्रधानता को चिह्नित करने के लिए किया जाता था।
(ग) वर्चस्वशील देश की सैन्य शक्ति अजेय होती है।
(घ) वर्चस्व की स्थिति नियत होती है।
जिसने एक बार वर्चस्व कायम कर लिया उसने हमेशा के लिए वर्चस्व कायम कर लिया।
उत्तर:
(घ) वर्चस्व की स्थिति नियत होती है।

प्रश्न 2.
समकालीन विश्व-व्यवस्था के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन ग़लत है ?
(क) ऐसी कोई विश्व-सरकार मौजूद नहीं जो देशों के व्यवहार पर अंकुश रख सके।
(ख) अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में अमेरिका की चलती है।
(ग) विभिन्न देश एक-दूसरे पर बल प्रयोग कर रहे हैं।
(घ) जो देश अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करते हैं उन्हें संयुक्त राष्ट्र कठोर दंड देता है।
उत्तर:
(क) ऐसी कोई विश्व-सरकार मौजूद नहीं जो देशों के व्यवहार पर अंकुश रख सके।

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प्रश्न 3.
‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ (इराकी मुक्ति अभियान ) के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है ?
(क) इराक पर हमला करने के इच्छुक अमरीकी अगुवाई वाले गठबन्धन में 40 से ज्यादा देश शामिल हुए।
(ख) इराक पर हमले का कारण बताते हुए कहा गया कि यह हमला इराक को सामूहिक संहार के हथियार बनाने से रोकने के लिए किया जा रहा है।
(ग) इस कार्रवाई से पहले संयुक्त राष्ट्र की अनुमति ले ली गई थी।
(घ) अमेरिकी नेतृत्व वाले गठबन्धन को इराकी सेना से तगड़ी चुनौती नहीं मिली।
उत्तर:
(ग) इस कार्रवाई से पहले संयुक्त राष्ट्र की अनुमति ले ली गई थी।

प्रश्न 4.
इस अध्याय में वर्चस्व के तीन अर्थ बताए गए हैं। प्रत्येक का एक-एक उदाहरण बतायें। ये उदाहरण इस अध्याय में बताए गए उदाहरणों से अलग होने चाहिए।
उत्तर:
इस अध्याय में वर्चस्व के तीन अर्थ-सैन्य शक्ति में वर्चस्व. ढांचागत ताकत के अर्थ में वर्चस्व तथा सांस्कृतिक अर्थ में वर्चस्व बताए गए हैं। इन तीनों वर्चस्व के निम्नलिखित उदाहरण दिये जा सकते हैं

  • अफ़गानिस्तान में अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप के कारण लोगों का जीवन पूरी तरह सुरक्षित नहीं है।
  • आधुनिक विश्व के लोग इंटरनेट के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, जोकि अमेरिका के ढांचागत वर्चस्व का एक उदाहरण है।
  • टेलीविज़न के माध्यम से हम अधिकांश वे कार्यक्रम एवं फिल्में ही देखते हैं, जिन्हें अमेरिका में या उनके लोगों द्वारा तैयार किया गया होता है। यह अमेरिका के सांस्कृतिक वर्चस्व का उदाहरण है।

प्रश्न 5.
उन तीन बातों का जिक्र करें जिनसे साबित होता है कि शीत युद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिकी प्रभुत्व का स्वभाव बदला है और शीत युद्ध के वर्षों के अमेरिकी प्रभुत्व की तुलना में यह अलग है।
उत्तर:

  • शीत युद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिका ने सम्पूर्ण विश्व पर अपना प्रभाव जमाया हुआ है।
  • शीत युद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिका ने विश्व के सभी महत्त्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों पर भी अपना दबदबा कायम किया है।
  • शीत युद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिका ने अफ़गानिस्तान, ईरान तथा इराक जैसे देशों में सैनिक हस्तक्षेप बढा दिया है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में मेल बैठायें
(i) ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच – (क) तालिबान और अल-कायदा के खिलाफ जंग
(i) ऑपरेशन इंड्यूरिंग फ्रीडम – (ख) इराक पर हमले के इच्छुक देशों का गठबन्धन
(iii) ऑपरेशन डेजर्ट स्टार्म – (ग) सूडान पर मिसाइल से हमला
(iv) ऑपरेशन इराकी फ्रीडम – (घ) प्रथम खाड़ी युद्ध।
उत्तर:
(i) ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच – (ग) सूडान पर मिसाइल से हमला
(ii) ऑपरेशन इंड्यूरिंग फ्रीडम – (क) तालिबान और अल-कायदा के खिलाफ जंग
(iii) ऑपरेशन डेजर्ट स्टार्म – (घ) प्रथम खाड़ी युद्ध
(iv) ऑपरेशन इराकी फ्रीडम – (ख) इराक पर हमले के इच्छुक देशों का गठबन्धन।

प्रश्न 7.
अमेरिकी वर्चस्व की राह में कौन-से व्यवधान हैं ? क्या आप जानते हैं इनमें से कौन-सा व्यवधान आगामी दिनों में सबसे महत्त्वपूर्ण साबित होगा ?
उत्तर:
इसके लिए अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों में (निबन्धात्मक प्रश्न) प्रश्न नं० 8 देखें।

प्रश्न 8.
भारत-अमेरिका समझौते से सम्बन्धित बहस के तीन अंश इस अध्याय में दिए गए हैं। इन्हें पढ़ें और किसी एक अंश को आधार मानकर पूरा भाषण तैयार करें जिसमें भारत-अमेरिकी सम्बन्ध के बारे में किसी एक रुख का समर्थन किया गया हो।
उत्तर:
शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् विश्व राजनीति में बहुत महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आए हैं। सोवियत संघ के विघटन से विश्व दो ध्रुवीय की अपेक्षा एक ध्रुवीय हो गया है और विश्व राजनीति अमेरिका के इर्द-गिर्द होकर ही चलती है। ऐसे में भारत के राष्ट्रीय हितों के लिए यही अच्छा रहेगा कि वह आने वाले समय में अमेरिका से सम्बन्ध अच्छे रखकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अधिक-से-अधिक लाभ उठाए।

भारत ने हाल के कुछ वर्षों में अमेरिका से कुछ ऐसे सन्धि या समझौते किये हैं, जिनसे दोनों के सम्बन्धों में लगातार सुधार हुआ है। उदाहरण के लिए 2006 में अमेरिका एवं भारत के बीच किये गए असैनिक परमाणु समझौते ने दोनों को और अधिक नज़दीक ला दिया है।

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प्रश्न 9.
“यदि बड़े और संसाधन सम्पन्न देश अमेरिकी वर्चस्व का प्रतिकार नहीं कर सकते तो यह मानना अव्यावहारिक है कि अपेक्षाकृत छोटी और कमज़ोर राज्येतर संस्थाएँ अमेरिकी वर्चस्व का कोई प्रतिरोध कर पाएंगी।” इस कथन की जाँच करें और अपनी राय बताएं।
उत्तर:
अमेरिकी वर्चस्व को यदि बड़े देश चुनौती नहीं दे सकते तो छोटे देशों से इस प्रकार की उम्मीद करना व्यर्थ है, क्योंकि छोटे एवं विकासशील देश आर्थिक, तकनीकी तथा सैनिक क्षेत्र में अमेरिका के सामने कहीं नहीं ठहरते।

समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व HBSE 12th Class Political Science Notes

→ शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् विश्व एक ध्रुवीय बन गया।
→ समकालीन विश्व में अमेरिका का वर्चस्व कायम है।
→ सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् अमेरिका विश्व की एकमात्र महाशक्ति रह गया।
→ अमेरिका ने अपने वर्चस्व को बनाये रखने के लिए कई सैन्य अभियान चलाये।
→ 1990-1991 में अमेरिका एवं उसके सहयोगियों ने इराक पर हमला किया।
→ इराक पर किये गए हमले को ‘ऑपरेशन डेजर्ट स्टार्म’ नाम दिया गया।
→ 9/11 को अमेरिका पर जबरदस्त आतंकवादी हमला हुआ।
→ अमेरिका ने 9/11 के हमले के जवाब में अफगानिस्तान में तालिबान एवं अलकायदा के विरुद्ध युद्ध छेड़ा।
→ अफ़गानिस्तान युद्ध को ‘ऑपरेशन एन्ड्यूरिंग फ्रीडम’ का नाम दिया।
→ मार्च, 2003 में अमेरिका ने व्यापक विनाश के हथियार रखने का आरोप लगाकर इराक पर हमला किया।
→ इराक हमले को ‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ का नाम दिया गया।
→ अमेरिका की आर्थिक वर्चस्वता को जापान, चीन एवं भारत जैसे देश चुनौती दे रहे हैं।
→ अमेरिका की प्रजातन्त्रात्मक विचारधारा की वर्चस्वता को आतंकी संगठन अपनी आतंकवादी विचारधारा से चुनौती दे रहे हैं।
→ शीत युद्ध के पश्चात् अमेरिका एवं भारत ने अपने सम्बन्धों को परस्पर बेहतर बनाया है।

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HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Solutions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

HBSE 12th Class Political Science दो ध्रुवीयता का अंत Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
सोवियत अर्थव्यवस्था की प्रकृति के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन ग़लत है ?
(क) सोवियत अर्थव्यवस्था में समाजवाद प्रभावी विचारधारा थी।
(ख) उत्पादन के साधनों पर राज्य का स्वामित्व/नियन्त्रण होना।
(ग) जनता को आर्थिक आजादी थी।
(घ) अर्थव्यवस्था के हर पहलू का नियोजन और नियंत्रण राज्य करता था।
उत्तर:
(ग) जनता को आर्थिक आजादी थी।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित को कालक्रमानुसार सजाएँ
(क) अफ़गान – संकट
(ख) बर्लिन – दीवार का गिरना
(ग) सोवियत संघ का विघटन
(घ) रूसी क्रान्ति।
उत्तर:
(क) रूसी क्रान्ति।
(ख) अफ़गान – संकट।
(ग) बर्लिन – दीवार का गिरना।
(घ) सोवियत संघ का विघटन।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में कौन-सा सोवियत संघ के विघटन का परिणाम नहीं है ?
(क) संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच विचारधारात्मक लड़ाई का अन्त
(ख) स्वतन्त्र राज्यों के राष्ट्रकुल (सी० आई० एस०) का जन्म
(ग) विश्व-व्यवस्था के शक्ति-सन्तुलन में बदलाव
(घ) मध्यपूर्व में संकट।
उत्तर:
(घ) मध्यपूर्व में संकट।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में मेल बैठाएं
(1) मिखाइल गोर्बाचेव – (क) सोवियत संघ का उत्तराधिकारी
(2) शॉक थेरेपी – (ख) सैन्य समझौता
(3) रूस – (ग) सुधारों की शुरुआत
(4) बोरिस येल्तसिन – (घ) आर्थिक मॉडल
(5) वारसा
(ङ) रूस के राष्ट्रपति।
उत्तर:
(1) मिखाइल गोर्बाचेव – (ग) सुधारों की शुरुआत
(2) शॉक थेरेपी – (घ) आर्थिक मॉडल
(3) रूस – (क) सोवियत संघ का उत्तराधिकारी
(4) बोरिस येल्तसिन – (ङ) रूस के राष्ट्रपति
(5) वारसा – (ख) सैन्य समझौता।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

प्रश्न 5.
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
(क) सोवियत राजनीतिक प्रणाली …………. की विचारधारा पर आधारित थी।
(ख) सोवियत संघ द्वारा बनाया गया सैन्य संगठन ………… था।
(ग) ……….. पार्टी का सोवियत राजनीतिक व्यवस्था पर दबदबा था।
(घ) ……….. ने 1985 में सोवियत संघ में सुधारों की शुरुआत की।
(ङ) ……….. का गिरना शीत युद्ध के अंत का प्रतीक था।
उत्तर:
(क) सोवियत राजनीतिक प्रणाली समाजवाद की विचारधारा पर आधारित थी।
(ख) सोवियत संघ द्वारा बनाया गया सैन्य गठबन्धन वारसा पैक्ट था।
(ग) साम्यवादी (कम्युनिस्ट) पार्टी का सोवियत राजनीतिक व्यवस्था पर दबदबा था।
(घ) मिखाइल गोर्बाचोव ने 1985 में सोवियत संघ में सुधारों की शुरुआत की।
(ङ) बर्लिन दीवार का गिरना शीत युद्ध के अंत का प्रतीक था।

प्रश्न 6.
सोवियत अर्थव्यवस्था को किसी पूँजीवादी देश जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका की अर्थव्यवस्था से अलग करने वाली किन्हीं तीन विशेषताओं का ज़िक्र करें।
उत्तर:

  • सोवियत अर्थव्यवस्था समाजवादी अर्थव्यवस्था पर आधारित थी।
  • सोवियत अर्थव्यवस्था योजनाबद्ध और राज्य के नियन्त्रण में थी।
  • सोवियत अर्थव्यवस्था में भूमि और अन्य उत्पादक सम्पदाओं पर राज्य का ही स्वामित्व एवं नियन्त्रण था।

प्रश्न 7.
किन बातों के कारण गोर्बाचेव सोवियत संघ में सुधार के लिए बाध्य हुए ?
अथवा
कोई चार कारण लिखिये, जिसके कारण तत्कालिक राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव सोवियत संघ में सुधार करने के लिए बाध्य हुए।
उत्तर:
गोर्बाचेव निम्नलिखित कारणों से सोवियत संघ में सुधार के लिए बाध्य हुए

  • पश्चिमी देशों में सूचना एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन हो रहे थे, जिसके कारण गोर्बाचेव के लिए सोवियत संघ में आर्थिक सुधार करने आवश्यक हो गए।
  • गोर्बाचेव पश्चिमी देशों के साथ सम्बन्धों को सामान्य बनाने एवं सोवियत संघ को लोकतान्त्रिक रूप देने के लिए सुधारों के लिए बाध्य हुए।
  • सोवियत संघ के नागरिकों की प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाने के लिए गोर्बाचेव सुधारों के लिए बाध्य हुए।
  • उपभोक्ताओं को वस्तुओं की कमी होने लगी। 1970 के दशक के अंत तक सोवियत अर्थव्यवस्था लड़खड़ाने लगी।

प्रश्न 8.
भारत जैसे देशों के लिए सोवियत संघ के विघटन के क्या परिणाम हुए ?
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन से विश्व राजनीति में बहुत महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। सोवियत संघ के विघटन के बाद विश्व में केवल अमेरिका ही एकमात्र महाशक्ति रह गया। इसी कारण इसने भारत जैसे विकासशील देशों को सभी प्रकार से प्रभावित करना शुरू कर दिया। भारत जैसे अन्य विकासशील देशों की भी यह मजबूरी थी, कि वे अपने विकास के लिए अमेरिका के साथ चलें।

सोवियत संघ के विघटन से अमेरिका का विकासशील देशों जैसे अफ़गानिस्तान, ईरान एवं इराक में अनावश्यक हस्तक्षेप बढ़ गया। विश्व के महत्त्वपूर्ण संगठनों पर अमेरिकी प्रभुत्व कायम हो गया, जिससे भारत जैसे देशों को इनसे मदद लेने के लिए परोक्ष रूप से अमेरिकन नीतियों का ही समर्थन करना पड़ा।

प्रश्न 9.
शॉक थेरेपी क्या थी ? क्या साम्यवाद से पूंजीवाद की तरफ संक्रमण का यह सबसे बेहतर तरीका था ?
अथवा
“शॉक थेरेपी’ से आपका क्या अभिप्राय है? इसके मुख्य सिद्धान्त लिखें।
उत्तर:
सोवियत संघ के पतन के बाद रूस, पूर्वी यूरोप तथा मध्य एशिया के देशों में साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर संक्रमण के लिए एक विशेष मॉडल अपनाया गया, जिसे शॉक थेरेपी (आघात पहुँचाकर उपचार करना) कहा जाता है। विश्व बैंक एवं अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा इस प्रकार के मॉडल को अपनाया गया।

‘शॉक थेरेपी’ में निजी.स्वामित्व, राज्य की सम्पदा के निजीकरण और व्यावसायिक स्वामित्व के ढांचे को अपनाना, पूंजीवादी पद्धति से कृषि, करना तथा मुक्त व्यापार को पूर्ण रूप से अपनाना शामिल है। वित्तीय खुलेपन तथा मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयतां भी.महत्त्वपूर्ण मानी गई। परन्तु साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर संक्रमण के लिए यह बेहतर तरीका नहीं था क्योंकि पूंजीवाद सुधार तुरन्त.किये जाने की अपेक्षा धीरे-धीरे किये जाने चाहिए थे। एकदम से ही सभी प्रकार के परिवर्तनों को लोगों पर लादकर उन्हें आघात देना उचित नहीं था।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत

प्रश्न 10.
निम्नलिखित कथन के पक्ष या विपक्ष में एक लेख लिखें-“दूसरी दुनिया के विघटन के.बाद भारत को अपनी विदेश नीति बदलनी चाहिए और रूस जैसे परम्परागत मित्र की जगह संयुक्त राज्य अमेरिका से दोस्ती करने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।”
उत्तर:
दूसरी दुनिया के विघटन के बाद भी भारत को अपनी विदेश नीति बदलने की आवश्यकता नहीं है। भारत को अपने परम्परागत एवं विश्वसनीय मित्र रूस से सदैव अच्छे सम्बन्ध बनाये रखने चाहिए, क्योंकि रूस सदैव भारत की अपेक्षाओं पर खरा उतरा है, परन्तु अमेरिका के विषय में यह बात पूर्ण रूप से नहीं कही जा सकती, कि वह आगे चलकर भी भारत का साथ देगा, अतः आवश्यकता इस बात की है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार अमेरिका से सम्बन्ध बनाए तथा रूस के साथ पहले की तरह ही अच्छे सम्बन्ध बनाए रखे।

दो ध्रुवीयता का अंत HBSE 12th Class Political Science Notes

→ शीत युद्ध के दौरान विश्व दो गुटों-अमेरिका एवं सोवियत संघ में बंटा हुआ था, इसीलिए इसे द्वि-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था कहा जाता है।
→ 1989 में जर्मनी की दीवार गिराकर पश्चिमी एवं पूर्वी जर्मनी का एकीकरण कर दिया गया।
→ सोवियत संघ में साम्यवादी पार्टी शासन की धुरी थी।
→ 1980 के दशक में मिखाइल गोर्बाचेव सोवियत संघ के राष्ट्रपति बने।
→ मिखाइल गोर्बाचेव ने पैट्राइस्का तथा ग्लासनोस्त के नाम से सोवियत संघ में आर्थिक सुधार लागू किए।
→ गोर्बाचेव के आर्थिक सुधारों एवं विश्व में बदलती परिस्थितियों ने सोवियत संघ में असर दिखाना शुरू किया। सोवियत गणराज्य ने सोवियत संघ से अलग होने की मांग करनी शुरू कर दी।
→ 1991 में सोवियत संघ का पतन हो गया तथा 15 अन्य गणराज्य विश्व परिदृश्य पर उभर कर सामने आए।
→ सोवियत संघ के पतन के बाद साम्यवादी देशों में आर्थिक विकास के लिए शॉक थेरेपी को अपनाया गया, जिसके परिणाम अच्छे नहीं रहे।
→ भारत के सम्बन्ध रूस से शुरुआत से ही बहुत अच्छे रहे हैं।
→ भारत ने अन्य उत्तर-साम्यवादी देशों से भी अच्छे सम्बन्ध बनाए हुए हैं

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HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

HBSE 12th Class Political Science शीतयुद्ध का दौर Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
शीतयुद्ध के बारे में निम्नलिखित में कौन-सा कथन ग़लत है ?
(क) यह संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और उनके साथी देशों के बीच की एक प्रतिस्पर्धा थी।
(ख) यह महाशक्तियों के बीच विचारधाराओं को लेकर एक युद्ध था।
(ग) शीतयुद्ध ने हथियारों की होड़ शुरू की।
(घ) अमेरिका और सोवियत संघ सीधे युद्ध में शामिल थे।
उत्तर:
(घ) अमेरिका और सोवियत संघ सीधे युद्ध में शामिल थे।

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन-सा कथन गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के उद्देश्यों पर प्रकाश नहीं डालता ?
(क) उपनिवेशवाद से मुक्त हुए देशों को स्वतन्त्र नीति अपनाने में समर्थ बनाना।
(ख) किसी भी सैन्य संगठन में शामिल होने से इन्कार करना।
(ग) वैश्विक मामलों में तटस्थता की नीति अपनाना।
(घ) वैश्विक आर्थिक असमानता की समाप्ति पर ध्यान केन्द्रित करना।
उत्तर:
(ग) वैश्विक मामलों में तटस्थता की नीति अपनाना।

प्रश्न 3.
नीचे महाशक्तियों द्वारा बनाए सैन्य संगठनों की विशेषता बताने वाले कुछ कथन दिए गए हैं। प्रत्येक कथन के सामने सही या ग़लत का चिन्ह लगाएँ।
(क) गठबंधन के सदस्य देशों को अपने भू-क्षेत्र में महाशक्तियों के सैन्य अड्डे के लिए स्थान देना ज़रूरी था।
(ख) सदस्य देशों को विचारधारा और रणनीति दोनों स्तरों पर महाशक्ति का समर्थन करना था।
(ग) जब कोई राष्ट्र किसी एक सदस्य-देश पर आक्रमण करता था तो इसे सभी सदस्य देशों पर आक्रमण समझा जाता था।
(घ) महाशक्तियां सभी सदस्य देशों को अपने परमाणु हथियार विकसित करने में मदद करती थीं।
उत्तर:
(क) सही,
(ख) सही,
(ग) सही,
(घ) ग़लत।

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प्रश्न 4.
नीचे कुछ देशों की एक सूची दी गई है। प्रत्येक के सामने लिखें कि वह शीतयुद्ध के दौरान किस गुट से जुड़ा था ?
(क) पोलैण्ड
(ख) फ्रांस
(ग) जापान
(घ) नाइजीरिया
(ङ) उत्तरी कोरिया
(च) श्रीलंका।
उत्तर:
(क) पोलैण्ड – साम्यवादी गुट (सोवियत संघ)
(ख) फ्रांस – पूंजीवादी गुट (संयुक्त राज्य अमेरिका)
(ग) जापान – पूंजीवादी गुट (संयुक्त राज्य अमेरिका)
(घ) नाइजीरिया – गुटनिरपेक्ष में
(ङ) उत्तरी कोरिया – साम्यवादी गुट (सोवियत संघ)
(च) श्रीलंका – गुटनिरपेक्ष में।

प्रश्न 5.
शीतयुद्ध से हथियारों की होड़ और हथियारों पर नियन्त्रण-ये दोनों ही प्रक्रियाएं पैदा हुईं। इन दोनों प्रक्रियाओं के क्या कारण थे ?
उत्तर:
शीतयुद्ध से हथियारों की होड़ और हथियारों पर नियन्त्रण ये दोनों प्रक्रियाएं ही पैदा हुई थीं। शीतयुद्ध से हथियारों की होड़ से अभिप्राय यह है कि पूंजीवादी गुट एवं साम्यवादी गुट, दोनों ही एक-दूसरे पर अधिक प्रभाव रखने के लिए अपने-अपने हथियारों के भण्डार बढ़ाने लगे, जिससे विश्व में हथियारों की होड़ शुरू हो गई।

दूसरी तरफ हथियारों पर नियन्त्रण से अभिप्राय यह है कि दोनों गुट यह अनुभव करते थे कि यदि दोनों गुटों में आमने-सामने युद्ध होता है, तो दोनों गुटों को ही अत्यधिक हानि होगी और दोनों में से कोई भी विजेता बनकर नहीं उभर पाएगा, क्योंकि दोनों ही गुटों के पास परमाणु बम थे। इसी कारण शीतयुद्ध के दौरान हथियारों में कमी करने के लिए एवं हथियारों की मारक क्षमता कम करने के लिए हथियारों पर नियन्त्रण की प्रक्रिया भी पैदा हुई।

प्रश्न 6.
महाशक्तियां छोटे देशों के साथ सैन्य गठबन्धन क्यों रखती थीं ? तीन कारण बताइए।
अथवा
गठबन्धन क्यों बनाए जाते हैं ?
उत्तर:
महाशक्तियां निम्न कारणों से छोटे देशों के साथ सैन्य गठबन्धन रखती थीं

  • महाशक्तियां छोटे देशों के साथ सैन्य गठबन्धन इसलिए करती थीं, ताकि इन देशों से वे अपने हथियार और सेना का संचालन कर सकें।
  • महाशक्तियां छोटे देशों में सैनिक ठिकाने बनाकर दुश्मन देश की जासूसी करते थे।
  • छोटे देश सैन्य गठबन्धन के अन्तर्गत आने वाले सैनिकों को अपने खर्चे पर अपने देश में रखते थे, जिससे महाशक्तियों पर आर्थिक दबाव कम पड़ता था।

प्रश्न 7.
कभी-कभी कहा जाता है कि शीतयुद्ध सीधे तौर पर शक्ति के लिए संघर्ष था और इसका विचारधारा से कोई सम्बन्ध नहीं था। क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? अपने उत्तर के समर्थन में एक उदाहरण दें।
उत्तर:
शीतयुद्ध के विषय में यह कहा जाता है कि इसका विचारधारा से अधिक सम्बन्ध नहीं था, बल्कि शीतयुद्ध शक्ति के लिए संघर्ष था। परन्तु इस कथन से सहमत नहीं हुआ जा सकता, क्योंकि दोनों ही गुटों में विचारधारा का अत्यधिक प्रभाव था। पूंजीवादी विचारधारा के लगभग सभी देश अमेरिका के गुट में शामिल थे, जबकि साम्यवादी विचारधारा वाले सभी देश सोवियत संघ के गुट में शामिल थे। विपरीत विचारधाराओं वाले देशों में निरन्तर आशंका, संदेह एवं भय पाया जाता था। परन्तु 1991 में सोवियत संघ के विघटन से एक विचारधारा का पतन हो गया और इसके साथ ही शीत युद्ध भी समाप्त हो गया।

प्रश्न 8.
शीतयुद्ध के दौरान भारत की अमेरिका और सोवियत संघ के प्रति विदेश नीति क्या थी ? क्या आप मानते हैं कि इस नीति ने भारत के हितों को आगे बढ़ाया ?
उत्तर:
शीतयुद्ध के दौरान भारत ने अपने आपको दोनों गुटों से अलग रखा तथा द्वितीय स्तर पर भारत ने नव स्वतन्त्रता प्राप्त देशों का किसी भी गुट में जाने का विरोध किया। भारत ने गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाई। भारत ने सदैव दोनों गुटों में पैदा हुए मतभेदों को कम करने के लिए प्रयास किया, जिसके कारण ये मतभेद व्यापक युद्ध का रूप धारण न कर सके।

भारत की अमेरिका के प्रति विदेश नीति: भारत और अमेरिका में बहुत मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध कभी नहीं रहे। अच्छे सम्बन्ध न होने का महत्त्वपूर्ण कारण अमेरिका का पाकिस्तान के प्रति रवैया है। अमेरिका ने कश्मीर के मामले पर सदा पाकिस्तान का समर्थन किया और पाकिस्तान को सैनिक सहायता भी दी तथा पाकिस्तान ने 1965 और 1971 के युद्ध में अमेरिकी हथियारों का प्रयोग किया। बंगला देश के मामले पर अमेरिका ने भारत के विरुद्ध सातवां समुद्री बेड़ा भेजने की कोशिश की। 1981 में अमेरिका ने भारत की भावनाओं की परवाह न करते हुए पाकिस्तान को आधुनिकतम हथियार दिए।

2 जून, 1985 में प्रधानमन्त्री राजीव गांधी अमेरिका गए तो सम्बन्ध में थोड़ा-थोड़ा बहुत सुधार हुआ। जनवरी 1989 में जार्ज बुश अमेरिका के राष्ट्रपति बने, परन्तु राष्ट्रपति बुश की नीतियों में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया। प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव ने अमेरिका के साथ सम्बन्ध सुधारने का प्रयास किया, परन्तु आज भी परमाणु अप्रसार सन्धि पर भारत और अमेरिका के बीच मतभेद बने हुए हैं। G7 के टोकियो सम्मेलन में बिल क्लिटन ने रूस पर दबाव डाला कि वह भारत को क्रोयोजेनिक इंजन प्रणाली न बेचे।

भारत की सोवियत संघ के प्रति विदेश नीति-भारत के सोवियत संघ के साथ आरम्भ में अवश्य तनावपूर्ण सम्बन्ध रहे हैं, परन्तु जैसे-जैसे भारत की गुट-निरपेक्षता की नीति स्पष्ट होती गई, वैसे-वैसे दोनों देश एक-दूसरे के समीप आते गए। 1960 के बाद विशेषकर भारत और सोवियत संघ के सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण रहे हैं। 9 अगस्त, 1971 को भारत और सोवियत संघ के बीच शान्ति मैत्री और सहयोग की सन्धि हुई। ये सन्धि 20 वर्षीय थी। दोनों देशों के नेताओं की एक-दूसरे देश की यात्राओं से दोनों देशों के गहरे सम्बन्ध स्थापित हुए हैं। दोनों देशों के बीच आर्थिक व वैज्ञानिक सहयोग बढ़ाने व सांस्कृतिक सम्बन्ध बढ़ाने के लिए कई समझौते हुए। 9 अगस्त, 1991 को 20 वर्षीय सन्धि 15 वर्ष के लिए और बढ़ा दी गई।

परन्तु 1991 के अन्त में सोवियत संघ का बड़ा तेजी से विघटन हो गया। सोवियत संघ के गणराज्यों ने अपनी-अपनी स्वतन्त्रता घोषित कर दी और देखते-देखते ही सोवियत संघ का एक राष्ट्र के रूप में अन्त , हो गया। भारत ने सोवियत संघ के स्वतन्त्र गणराज्यों से सम्बन्ध स्थापित किए और रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने भारत के प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव को विश्वास दिलाया कि रूस के भारत के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बने रहेंगे। भारत के रूस के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध हैं।

प्रश्न 9.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन को तीसरी दुनिया के देशों ने तीसरे विकल्प के रूप में समझा। जब शीतयुद्ध अपने शिखर पर था तब इस विकल्प ने तीसरी दुनिया के देशों के विकास में कैसे मदद पहुंचाई ?
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध के समय जब शीतयुद्ध चरम सीमा पर था, तब विश्व में एक नई धारणा ने जन्म लिया, जिसे गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के नाम से जाना जाता है। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में अधिकांशतया विकासशील एवं नव स्वतन्त्रता प्राप्त देश शामिल थे। इन देशों ने गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का विकल्प इसलिए चुना क्योंकि वे अपने-अपने देश का स्वतन्त्रतापूर्वक राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक विकास करना चाहते थे।

यदि वे किसी एक गुट में शामिल हो जाते तो वे अपने देश का स्वतन्त्रतापूर्वक विकास नहीं कर सकते थे, परन्तु गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का सदस्य बन कर उन्होंने दोनों गुटों से आर्थिक मदद स्वीकार करके अपने देश के विकास को आगे बढ़ाया। यदि एक गुट किसी विकासशील या नव स्वतन्त्रता प्राप्त देश को दबाने का प्रयास करता था, तो दूसरा गुट उसकी रक्षा के लिए आ जाता था तथा उसे प्रत्येक तरह की मदद प्रदान करता था, इसलिए ये देश अपना विकास बिना किसी रोक-टोक के कर सकते थे।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 10.
‘गुट-निरपेक्ष आन्दोलन अब अप्रासंगिक हो गया है। आप इस कथन के बारे में क्या सोचते हैं ? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत करें।
उत्तर:
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन 1961 में नव-स्वतन्त्र राष्ट्रों को महाशक्तियों के प्रभाव से बचाने के लिए आरम्भ हुआ। इस आन्दोलन का उद्देश्य शक्ति गुटों से दूर रहकर अपने देश की अलग पहचान एवं अस्तित्व बनाए रखना था। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का आरम्भ शीत-युद्ध काल में हुआ। परन्तु अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं। शीत युद्ध समाप्त हो चुका है। अमेरिका-रूस अब तनाव नहीं मैत्री चाहते हैं। वर्तमान समय में शक्ति गुट समाप्त हो चुके हैं और अमेरिका ही एक महाशक्ति देश रह गया है। संसार एक-ध्रुवीय हो चुका है। ऐसे बदले परिवेश में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के अस्तित्व पर प्रश्न उठाए जा रहे हैं।

आलोचकों का मत है कि जब विश्व में गुटबन्दियां हो रही हैं तो फिर गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का क्या औचित्य रह गया है ? जब शीत युद्ध समाप्त हो चुका है तो निर्गुट आन्दोलन की भी क्या आवश्यकता है ? कर्नल गद्दाफी ने इस आन्दोलन को अन्तर्राष्ट्रीय भ्रम का मजाकिया आन्दोलन कहा था। फ

रवरी, 1992 में गुट निरपेक्ष आन्दोलन के विदेश मन्त्रियों के सम्मेलन में मित्र ने कहा था कि सोवियत संघ के विघटन, सोवियत गुट तथा शीत युद्ध की समाप्ति के बाद गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिकता समाप्त हो गई है। अतः इसे समाप्त कर देना चाहिए। परन्तु उपरोक्त विवरण के आधार पर न तो यह कहना उचित होगा कि गुट-निरपेक्ष आन्दोलन अप्रासंगिक हो गया और न ही यह कि इसे समाप्त कर देना चाहिए। वर्तमान परिस्थितियों में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का औचित्य निम्नलिखित रूप से देखा जा सकता है

(1) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन विकासशील देशों के सम्मान एवं प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

(2) निशस्त्रीकरण, विश्व शान्ति एवं मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए गुट-निरपेक्ष आन्दोलन आज भी प्रासंगिक है।

(3) नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थ-व्यवस्था की स्थापना के लिए गुट-निरपेक्ष आन्दोलन आवश्यक है।

(4) संयुक्त राष्ट्र संघ को अमेरिका के प्रभुत्व से मुक्त करवाने के लिए भी इसका औचित्य है।

(5) उन्नत एवं विकासशील देशों में सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए गुट-निरपेक्ष आन्दोलन आवश्यक है।

(6) अशिक्षा, बेरोज़गारी, आर्थिक समानता जैसी समस्याओं के समूल नाश के लिए गुट-निरपेक्ष आन्दोलन आवश्यक है।

(7) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का लोकतान्त्रिक स्वरूप इसकी सार्थकता को प्रकट करता है।

(8) गुट-निरपेक्ष देशों की एकजुटता ही इन देशों के हितों की रक्षा कर सकती है।

(9) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में लगातार बढ़ती सदस्य संख्या इसके महत्त्व एवं प्रासंगिकता को दर्शाती है। आज गुट निरपेक्ष देशों की संख्या 25 से बढ़कर 120 हो गई है अगर आज इस आन्दोलन का कोई औचित्य नहीं रह गया है या कोई देश इसे समाप्त करने की मांग कर रहा है तो फिर इसकी सदस्य संख्या बढ़ क्यों रही है। इसकी बढ़ रही सदस्य संख्या इसकी सार्थकता, महत्त्व एवं इसकी ज़रूरत को दर्शाती है।

(10) गुट-निरपेक्ष देशों का आज भी इस आन्दोलन के सिद्धान्तों में विश्वास एवं इसकी प्रतिनिष्ठा इसके महत्त्व को बनाए हुए है।
अत: यह कहना कि वर्तमान एक ध्रुवीय विश्व में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन अप्रासंगिक हो गया है एवं इसे समाप्त कर देना चाहिए, बिल्कुल अनुचित होगा।

शीतयुद्ध का दौर HBSE 12th Class Political Science Notes

→ शीतयद्ध की शरुआत दूसरे विश्व-युद्ध के बाद हई।
→ शीतयुद्ध का अर्थ है, अमेरिकी एवं सोवियत गुट के बीच व्याप्त कटु सम्बन्ध जो तनाव, भय तथा ईर्ष्या पर आधारित थे।
→ शीतयुद्ध के दौरान दोनों गुट विश्व पर अपना प्रभाव जमाने के लिए प्रयत्नशील रहे।
→ अमेरिका ने 1949 में नाटो की स्थापना की।
→ सोवियत संघ ने नाटो के उत्तर में 1955 में वारसा पैक्ट की स्थापना की।
→ अमेरिका ने सीटो तथा सैन्टो जैसे संगठन भी बनाए।
→ भारत जैसे विकासशील देशों ने शीतयुद्ध से अलग रहने के लिए गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की स्थापना की।
→ विकासशील देशों ने दोनों गुटों से अलग रहने के लिए नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की स्थापना पर बल दिया।
→ गुट-निरपेक्ष आन्दोलन तथा नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था दो ध्रुवीय विश्व के लिए चुनौती के रूप में सामने आए।
→ शीतयुद्ध के दौरान भारत ने विकासशील देशों को दोनों गुटों से अलग रहने के लिए प्रेरित किया।

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HBSE Haryana Board 12th Class English Supplementary Reader Vistas

HBSE Class 12 English Reading Comprehension

HBSE Class 12 English Grammar

HBSE Class 12 English Composition

HBSE 12th Class English Question Paper Design

Class: 12th
Subject: English (Core)
Paper: Annual or Supplementary
Marks: 80
Time: 3 Hrs.

1. Weightage to Objectives:

ObjectiveKUASTotal
Percentage of Marks48.7523.75207.5100
Marks391916680

2. Weightage to Form of Questions:

Forms of QuestionsESAVSAOTotal
No. of Questions5754 (part-wise)21
Marks Allotted2521102480
Estimated Time70561836180

3. Weightage to Content:

Units/Sub-UnitsMarks
1. Section – A (Reading Skills)
Unseen Passages with internal choice (300 words) having MCQ
4
2. Note-Making (300 words) Title-1, Notes-45
3. Section – B (Grammar and Writing Skills)
Attempt any two from each of the five subparts
(Narration, articles, modals, voice, and tenses with internal choice) (2 × 5)
10
4. Attempt any two (Notice, Advertisement, and Posters) (2 × 3)6
5. Attempt any one (Paragraphs, Reports) (1 × 5)5
6. Letter writing (1 × 5)5
7. Section – C (Main Reader ‘Flamingo’)
Prose (a) One passage for comprehension with internal choice (1 × 5)
(b) One Essay type question (1 × 5)
(c) Five short answer type questions (2 × 5)
20
8. Poetry (a) One stanza with internal choice (1 × 5)
(b) Two questions short answer type questions with internal choice (2 × 3)
11
9. Section – D (Vistas supplementary Reader)
(a) One Essay type question with internal choice (1 × 5)
(b) Three short answer type questions with internal choice (3 × 3)
14
Total80

4. Scheme of Sections: A, B, C, D

5. Scheme of Options: Internal Choice in Long Answer Questions i.e. Essay Type in two questions.

6. Difficulty level:
Difficult: 10% marks
Average: 50% marks
Easy: 40% marks

Abbreviations: K (Knowledge of elements of language), C (Comprehension), E (Expression), A (Appreciation), S (Skill), E (Essay Type), SA (Short Answer Type), VSA (Very Short Answer Type), O (Objective Type)

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HBSE 12th Class Sociology Important Questions and Answers

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HBSE 12th Class Sociology Important Questions in Hindi Medium

HBSE 12th Class Sociology Important Questions: भारतीय समाज

HBSE 12th Class Sociology Important Questions: भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास

HBSE 12th Class Sociology Important Questions in English Medium

HBSE 12th Class Sociology Important Questions: Indian Society

  • Chapter 1 Introducing Indian Society Important Questions
  • Chapter 2 The Demographic Structure of the Indian Society Important Questions
  • Chapter 3 Social Institutions: Continuity and Change Important Questions
  • Chapter 4 The Market as a Social Institution Important Questions
  • Chapter 5 Patterns of Social Inequality and Exclusion Important Questions
  • Chapter 6 The Challenges of Cultural Diversity Important Questions
  • Chapter 7 Suggestions for Project Work Important Questions

HBSE 12th Class Sociology Important Questions: Social Change and Development in India

  • Chapter 1 Structural Change Important Questions
  • Chapter 2 Cultural Change Important Questions
  • Chapter 3 The Story of Indian Democracy Important Questions
  • Chapter 4 Change and Development in Rural Society Important Questions
  • Chapter 5 Change and Development in Industrial Society Important Questions
  • Chapter 6 Globalisation and Social Change Important Questions
  • Chapter 7 Mass Media and Communications Important Questions
  • Chapter 8 Social Movements Important Questions

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HBSE 12th Class Sociology Solutions Haryana Board

Haryana Board HBSE 12th Class Sociology Solutions

HBSE 12th Class Sociology Solutions in Hindi Medium

HBSE 12th Class Sociology Part 1 Indian Society (भारतीय समाज भाग-1)

HBSE 12th Class Sociology Part 2 Social Change and Development in India (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास भाग-2)

HBSE 12th Class Sociology Solutions in English Medium

HBSE 12th Class Sociology Part 1 Indian Society

  • Chapter 1 Introducing Indian Society
  • Chapter 2 The Demographic Structure of the Indian Society
  • Chapter 3 Social Institutions: Continuity and Change
  • Chapter 4 The Market as a Social Institution
  • Chapter 5 Patterns of Social Inequality and Exclusion
  • Chapter 6 The Challenges of Cultural Diversity
  • Chapter 7 Suggestions for Project Work

HBSE 12th Class Sociology Part 2 Social Change and Development in India

  • Chapter 1 Structural Change
  • Chapter 2 Cultural Change
  • Chapter 3 The Story of Indian Democracy
  • Chapter 4 Change and Development in Rural Society
  • Chapter 5 Change and Development in Industrial Society
  • Chapter 6 Globalisation and Social Change
  • Chapter 7 Mass Media and Communications
  • Chapter 8 Social Movements

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