HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

HBSE 12th Class Political Science शीतयुद्ध का दौर Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
शीतयुद्ध के बारे में निम्नलिखित में कौन-सा कथन ग़लत है ?
(क) यह संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और उनके साथी देशों के बीच की एक प्रतिस्पर्धा थी।
(ख) यह महाशक्तियों के बीच विचारधाराओं को लेकर एक युद्ध था।
(ग) शीतयुद्ध ने हथियारों की होड़ शुरू की।
(घ) अमेरिका और सोवियत संघ सीधे युद्ध में शामिल थे।
उत्तर:
(घ) अमेरिका और सोवियत संघ सीधे युद्ध में शामिल थे।

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन-सा कथन गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के उद्देश्यों पर प्रकाश नहीं डालता ?
(क) उपनिवेशवाद से मुक्त हुए देशों को स्वतन्त्र नीति अपनाने में समर्थ बनाना।
(ख) किसी भी सैन्य संगठन में शामिल होने से इन्कार करना।
(ग) वैश्विक मामलों में तटस्थता की नीति अपनाना।
(घ) वैश्विक आर्थिक असमानता की समाप्ति पर ध्यान केन्द्रित करना।
उत्तर:
(ग) वैश्विक मामलों में तटस्थता की नीति अपनाना।

प्रश्न 3.
नीचे महाशक्तियों द्वारा बनाए सैन्य संगठनों की विशेषता बताने वाले कुछ कथन दिए गए हैं। प्रत्येक कथन के सामने सही या ग़लत का चिन्ह लगाएँ।
(क) गठबंधन के सदस्य देशों को अपने भू-क्षेत्र में महाशक्तियों के सैन्य अड्डे के लिए स्थान देना ज़रूरी था।
(ख) सदस्य देशों को विचारधारा और रणनीति दोनों स्तरों पर महाशक्ति का समर्थन करना था।
(ग) जब कोई राष्ट्र किसी एक सदस्य-देश पर आक्रमण करता था तो इसे सभी सदस्य देशों पर आक्रमण समझा जाता था।
(घ) महाशक्तियां सभी सदस्य देशों को अपने परमाणु हथियार विकसित करने में मदद करती थीं।
उत्तर:
(क) सही,
(ख) सही,
(ग) सही,
(घ) ग़लत।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 4.
नीचे कुछ देशों की एक सूची दी गई है। प्रत्येक के सामने लिखें कि वह शीतयुद्ध के दौरान किस गुट से जुड़ा था ?
(क) पोलैण्ड
(ख) फ्रांस
(ग) जापान
(घ) नाइजीरिया
(ङ) उत्तरी कोरिया
(च) श्रीलंका।
उत्तर:
(क) पोलैण्ड – साम्यवादी गुट (सोवियत संघ)
(ख) फ्रांस – पूंजीवादी गुट (संयुक्त राज्य अमेरिका)
(ग) जापान – पूंजीवादी गुट (संयुक्त राज्य अमेरिका)
(घ) नाइजीरिया – गुटनिरपेक्ष में
(ङ) उत्तरी कोरिया – साम्यवादी गुट (सोवियत संघ)
(च) श्रीलंका – गुटनिरपेक्ष में।

प्रश्न 5.
शीतयुद्ध से हथियारों की होड़ और हथियारों पर नियन्त्रण-ये दोनों ही प्रक्रियाएं पैदा हुईं। इन दोनों प्रक्रियाओं के क्या कारण थे ?
उत्तर:
शीतयुद्ध से हथियारों की होड़ और हथियारों पर नियन्त्रण ये दोनों प्रक्रियाएं ही पैदा हुई थीं। शीतयुद्ध से हथियारों की होड़ से अभिप्राय यह है कि पूंजीवादी गुट एवं साम्यवादी गुट, दोनों ही एक-दूसरे पर अधिक प्रभाव रखने के लिए अपने-अपने हथियारों के भण्डार बढ़ाने लगे, जिससे विश्व में हथियारों की होड़ शुरू हो गई।

दूसरी तरफ हथियारों पर नियन्त्रण से अभिप्राय यह है कि दोनों गुट यह अनुभव करते थे कि यदि दोनों गुटों में आमने-सामने युद्ध होता है, तो दोनों गुटों को ही अत्यधिक हानि होगी और दोनों में से कोई भी विजेता बनकर नहीं उभर पाएगा, क्योंकि दोनों ही गुटों के पास परमाणु बम थे। इसी कारण शीतयुद्ध के दौरान हथियारों में कमी करने के लिए एवं हथियारों की मारक क्षमता कम करने के लिए हथियारों पर नियन्त्रण की प्रक्रिया भी पैदा हुई।

प्रश्न 6.
महाशक्तियां छोटे देशों के साथ सैन्य गठबन्धन क्यों रखती थीं ? तीन कारण बताइए।
अथवा
गठबन्धन क्यों बनाए जाते हैं ?
उत्तर:
महाशक्तियां निम्न कारणों से छोटे देशों के साथ सैन्य गठबन्धन रखती थीं

  • महाशक्तियां छोटे देशों के साथ सैन्य गठबन्धन इसलिए करती थीं, ताकि इन देशों से वे अपने हथियार और सेना का संचालन कर सकें।
  • महाशक्तियां छोटे देशों में सैनिक ठिकाने बनाकर दुश्मन देश की जासूसी करते थे।
  • छोटे देश सैन्य गठबन्धन के अन्तर्गत आने वाले सैनिकों को अपने खर्चे पर अपने देश में रखते थे, जिससे महाशक्तियों पर आर्थिक दबाव कम पड़ता था।

प्रश्न 7.
कभी-कभी कहा जाता है कि शीतयुद्ध सीधे तौर पर शक्ति के लिए संघर्ष था और इसका विचारधारा से कोई सम्बन्ध नहीं था। क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? अपने उत्तर के समर्थन में एक उदाहरण दें।
उत्तर:
शीतयुद्ध के विषय में यह कहा जाता है कि इसका विचारधारा से अधिक सम्बन्ध नहीं था, बल्कि शीतयुद्ध शक्ति के लिए संघर्ष था। परन्तु इस कथन से सहमत नहीं हुआ जा सकता, क्योंकि दोनों ही गुटों में विचारधारा का अत्यधिक प्रभाव था। पूंजीवादी विचारधारा के लगभग सभी देश अमेरिका के गुट में शामिल थे, जबकि साम्यवादी विचारधारा वाले सभी देश सोवियत संघ के गुट में शामिल थे। विपरीत विचारधाराओं वाले देशों में निरन्तर आशंका, संदेह एवं भय पाया जाता था। परन्तु 1991 में सोवियत संघ के विघटन से एक विचारधारा का पतन हो गया और इसके साथ ही शीत युद्ध भी समाप्त हो गया।

प्रश्न 8.
शीतयुद्ध के दौरान भारत की अमेरिका और सोवियत संघ के प्रति विदेश नीति क्या थी ? क्या आप मानते हैं कि इस नीति ने भारत के हितों को आगे बढ़ाया ?
उत्तर:
शीतयुद्ध के दौरान भारत ने अपने आपको दोनों गुटों से अलग रखा तथा द्वितीय स्तर पर भारत ने नव स्वतन्त्रता प्राप्त देशों का किसी भी गुट में जाने का विरोध किया। भारत ने गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाई। भारत ने सदैव दोनों गुटों में पैदा हुए मतभेदों को कम करने के लिए प्रयास किया, जिसके कारण ये मतभेद व्यापक युद्ध का रूप धारण न कर सके।

भारत की अमेरिका के प्रति विदेश नीति: भारत और अमेरिका में बहुत मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध कभी नहीं रहे। अच्छे सम्बन्ध न होने का महत्त्वपूर्ण कारण अमेरिका का पाकिस्तान के प्रति रवैया है। अमेरिका ने कश्मीर के मामले पर सदा पाकिस्तान का समर्थन किया और पाकिस्तान को सैनिक सहायता भी दी तथा पाकिस्तान ने 1965 और 1971 के युद्ध में अमेरिकी हथियारों का प्रयोग किया। बंगला देश के मामले पर अमेरिका ने भारत के विरुद्ध सातवां समुद्री बेड़ा भेजने की कोशिश की। 1981 में अमेरिका ने भारत की भावनाओं की परवाह न करते हुए पाकिस्तान को आधुनिकतम हथियार दिए।

2 जून, 1985 में प्रधानमन्त्री राजीव गांधी अमेरिका गए तो सम्बन्ध में थोड़ा-थोड़ा बहुत सुधार हुआ। जनवरी 1989 में जार्ज बुश अमेरिका के राष्ट्रपति बने, परन्तु राष्ट्रपति बुश की नीतियों में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया। प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव ने अमेरिका के साथ सम्बन्ध सुधारने का प्रयास किया, परन्तु आज भी परमाणु अप्रसार सन्धि पर भारत और अमेरिका के बीच मतभेद बने हुए हैं। G7 के टोकियो सम्मेलन में बिल क्लिटन ने रूस पर दबाव डाला कि वह भारत को क्रोयोजेनिक इंजन प्रणाली न बेचे।

भारत की सोवियत संघ के प्रति विदेश नीति-भारत के सोवियत संघ के साथ आरम्भ में अवश्य तनावपूर्ण सम्बन्ध रहे हैं, परन्तु जैसे-जैसे भारत की गुट-निरपेक्षता की नीति स्पष्ट होती गई, वैसे-वैसे दोनों देश एक-दूसरे के समीप आते गए। 1960 के बाद विशेषकर भारत और सोवियत संघ के सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण रहे हैं। 9 अगस्त, 1971 को भारत और सोवियत संघ के बीच शान्ति मैत्री और सहयोग की सन्धि हुई। ये सन्धि 20 वर्षीय थी। दोनों देशों के नेताओं की एक-दूसरे देश की यात्राओं से दोनों देशों के गहरे सम्बन्ध स्थापित हुए हैं। दोनों देशों के बीच आर्थिक व वैज्ञानिक सहयोग बढ़ाने व सांस्कृतिक सम्बन्ध बढ़ाने के लिए कई समझौते हुए। 9 अगस्त, 1991 को 20 वर्षीय सन्धि 15 वर्ष के लिए और बढ़ा दी गई।

परन्तु 1991 के अन्त में सोवियत संघ का बड़ा तेजी से विघटन हो गया। सोवियत संघ के गणराज्यों ने अपनी-अपनी स्वतन्त्रता घोषित कर दी और देखते-देखते ही सोवियत संघ का एक राष्ट्र के रूप में अन्त , हो गया। भारत ने सोवियत संघ के स्वतन्त्र गणराज्यों से सम्बन्ध स्थापित किए और रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने भारत के प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव को विश्वास दिलाया कि रूस के भारत के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बने रहेंगे। भारत के रूस के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध हैं।

प्रश्न 9.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन को तीसरी दुनिया के देशों ने तीसरे विकल्प के रूप में समझा। जब शीतयुद्ध अपने शिखर पर था तब इस विकल्प ने तीसरी दुनिया के देशों के विकास में कैसे मदद पहुंचाई ?
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध के समय जब शीतयुद्ध चरम सीमा पर था, तब विश्व में एक नई धारणा ने जन्म लिया, जिसे गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के नाम से जाना जाता है। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में अधिकांशतया विकासशील एवं नव स्वतन्त्रता प्राप्त देश शामिल थे। इन देशों ने गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का विकल्प इसलिए चुना क्योंकि वे अपने-अपने देश का स्वतन्त्रतापूर्वक राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक विकास करना चाहते थे।

यदि वे किसी एक गुट में शामिल हो जाते तो वे अपने देश का स्वतन्त्रतापूर्वक विकास नहीं कर सकते थे, परन्तु गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का सदस्य बन कर उन्होंने दोनों गुटों से आर्थिक मदद स्वीकार करके अपने देश के विकास को आगे बढ़ाया। यदि एक गुट किसी विकासशील या नव स्वतन्त्रता प्राप्त देश को दबाने का प्रयास करता था, तो दूसरा गुट उसकी रक्षा के लिए आ जाता था तथा उसे प्रत्येक तरह की मदद प्रदान करता था, इसलिए ये देश अपना विकास बिना किसी रोक-टोक के कर सकते थे।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 10.
‘गुट-निरपेक्ष आन्दोलन अब अप्रासंगिक हो गया है। आप इस कथन के बारे में क्या सोचते हैं ? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत करें।
उत्तर:
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन 1961 में नव-स्वतन्त्र राष्ट्रों को महाशक्तियों के प्रभाव से बचाने के लिए आरम्भ हुआ। इस आन्दोलन का उद्देश्य शक्ति गुटों से दूर रहकर अपने देश की अलग पहचान एवं अस्तित्व बनाए रखना था। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का आरम्भ शीत-युद्ध काल में हुआ। परन्तु अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं। शीत युद्ध समाप्त हो चुका है। अमेरिका-रूस अब तनाव नहीं मैत्री चाहते हैं। वर्तमान समय में शक्ति गुट समाप्त हो चुके हैं और अमेरिका ही एक महाशक्ति देश रह गया है। संसार एक-ध्रुवीय हो चुका है। ऐसे बदले परिवेश में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के अस्तित्व पर प्रश्न उठाए जा रहे हैं।

आलोचकों का मत है कि जब विश्व में गुटबन्दियां हो रही हैं तो फिर गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का क्या औचित्य रह गया है ? जब शीत युद्ध समाप्त हो चुका है तो निर्गुट आन्दोलन की भी क्या आवश्यकता है ? कर्नल गद्दाफी ने इस आन्दोलन को अन्तर्राष्ट्रीय भ्रम का मजाकिया आन्दोलन कहा था। फ

रवरी, 1992 में गुट निरपेक्ष आन्दोलन के विदेश मन्त्रियों के सम्मेलन में मित्र ने कहा था कि सोवियत संघ के विघटन, सोवियत गुट तथा शीत युद्ध की समाप्ति के बाद गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिकता समाप्त हो गई है। अतः इसे समाप्त कर देना चाहिए। परन्तु उपरोक्त विवरण के आधार पर न तो यह कहना उचित होगा कि गुट-निरपेक्ष आन्दोलन अप्रासंगिक हो गया और न ही यह कि इसे समाप्त कर देना चाहिए। वर्तमान परिस्थितियों में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का औचित्य निम्नलिखित रूप से देखा जा सकता है

(1) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन विकासशील देशों के सम्मान एवं प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

(2) निशस्त्रीकरण, विश्व शान्ति एवं मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए गुट-निरपेक्ष आन्दोलन आज भी प्रासंगिक है।

(3) नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थ-व्यवस्था की स्थापना के लिए गुट-निरपेक्ष आन्दोलन आवश्यक है।

(4) संयुक्त राष्ट्र संघ को अमेरिका के प्रभुत्व से मुक्त करवाने के लिए भी इसका औचित्य है।

(5) उन्नत एवं विकासशील देशों में सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए गुट-निरपेक्ष आन्दोलन आवश्यक है।

(6) अशिक्षा, बेरोज़गारी, आर्थिक समानता जैसी समस्याओं के समूल नाश के लिए गुट-निरपेक्ष आन्दोलन आवश्यक है।

(7) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का लोकतान्त्रिक स्वरूप इसकी सार्थकता को प्रकट करता है।

(8) गुट-निरपेक्ष देशों की एकजुटता ही इन देशों के हितों की रक्षा कर सकती है।

(9) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में लगातार बढ़ती सदस्य संख्या इसके महत्त्व एवं प्रासंगिकता को दर्शाती है। आज गुट निरपेक्ष देशों की संख्या 25 से बढ़कर 120 हो गई है अगर आज इस आन्दोलन का कोई औचित्य नहीं रह गया है या कोई देश इसे समाप्त करने की मांग कर रहा है तो फिर इसकी सदस्य संख्या बढ़ क्यों रही है। इसकी बढ़ रही सदस्य संख्या इसकी सार्थकता, महत्त्व एवं इसकी ज़रूरत को दर्शाती है।

(10) गुट-निरपेक्ष देशों का आज भी इस आन्दोलन के सिद्धान्तों में विश्वास एवं इसकी प्रतिनिष्ठा इसके महत्त्व को बनाए हुए है।
अत: यह कहना कि वर्तमान एक ध्रुवीय विश्व में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन अप्रासंगिक हो गया है एवं इसे समाप्त कर देना चाहिए, बिल्कुल अनुचित होगा।

शीतयुद्ध का दौर HBSE 12th Class Political Science Notes

→ शीतयद्ध की शरुआत दूसरे विश्व-युद्ध के बाद हई।
→ शीतयुद्ध का अर्थ है, अमेरिकी एवं सोवियत गुट के बीच व्याप्त कटु सम्बन्ध जो तनाव, भय तथा ईर्ष्या पर आधारित थे।
→ शीतयुद्ध के दौरान दोनों गुट विश्व पर अपना प्रभाव जमाने के लिए प्रयत्नशील रहे।
→ अमेरिका ने 1949 में नाटो की स्थापना की।
→ सोवियत संघ ने नाटो के उत्तर में 1955 में वारसा पैक्ट की स्थापना की।
→ अमेरिका ने सीटो तथा सैन्टो जैसे संगठन भी बनाए।
→ भारत जैसे विकासशील देशों ने शीतयुद्ध से अलग रहने के लिए गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की स्थापना की।
→ विकासशील देशों ने दोनों गुटों से अलग रहने के लिए नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की स्थापना पर बल दिया।
→ गुट-निरपेक्ष आन्दोलन तथा नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था दो ध्रुवीय विश्व के लिए चुनौती के रूप में सामने आए।
→ शीतयुद्ध के दौरान भारत ने विकासशील देशों को दोनों गुटों से अलग रहने के लिए प्रेरित किया।

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