HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास

HBSE 12th Class Sociology औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
अपने आसपास वाले किसी भी व्यवसाय को चुनिए-और इसका वर्णन निम्नलिखित पंक्तियों में कीजिए-
(क) कार्य शक्ति का सामाजिक संघटन-जाति, लिंग, आयु, क्षेत्र;
(ख) मज़दूर प्रक्रिया-काम किस तरह किया जाता है;
(ग) वेतन एवं अन्य सुविधाएँ;
(घ) कार्यवस्था-सुरक्षा, आराम का समय, कार्य के घंटे इत्यादि।
अथवा
ईंटें बनाने के, बीड़ी रोल करने के, सॉफ्टवेयर इंजीनियर या खदान के काम जो बॉक्स में वर्णित किए गए हैं के कामगारों के सामाजिक संघटन का वर्णन कीजिए। कार्यावस्थाएँ कैसी हैं और उपलब्ध सुविधाएँ कैसी हैं? मधु जैसी लड़कियाँ अपने काम के बारे में क्या सोचती हैं?
उत्तर:
मैंने अध्यापन व्यवसाय का चुनाव किया है।
(i) कार्यशक्ति का सामाजिक संघटन-जिस स्कूल में मैं पढ़ाता हूँ वहां पर सभी जातियों तथा दोनों लिंगों के लोग कार्य करते हैं। स्त्री-पुरुष इकठे मिलकर कार्य करते हैं तथा जाति से संबंधित कोई भेदभाव नहीं किया जाता है। वृद्ध युवा इत्यादि सभी इकट्ठे मिलकर कार्य करते हैं। वृद्ध अध्यापक युवा अध्यापकों को दिशा दिखाते हैं ताकि वह ठीक ढंग से पढ़ा सकें।

(ii) मज़दूर प्रक्रिया-सवेरे सभी अध्यापक स्कूल जाते हैं। सभी को अपनी-अपनी क्लास, टाईम टेबल के बारे में पता होता है। सभी समय तथा पीरियड के अनुसार अपनी-अपनी कक्षाएं लेते हैं। विद्यार्थियों तथा अध्यापकों को दूर-दराज के क्षेत्रों से लाने के लिए स्कूल की बसें भी चलती हैं। अध्यापकों को उनकी योग्यता तथा अनुभव के अनुसार ही परिश्रम दिया जाता है।

(iii) आराम का समय-अध्यापकों को पढ़ाने के पीरियडों के बीच आराम भी दिया जाता है ताकि वह अधिक थक न जाएं।

(iv) कार्य के घंटे-स्कूल में अध्यापकों को लगभग 7 घंटे बिताने पड़ते हैं तथा बच्चों को पढ़ाना पड़ता है।
अथवा
इस प्रश्न का उत्तर विद्यार्थी स्वयं दें।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास

प्रश्न 2.
उदारीकरण ने रोज़गार के प्रतिमानों को किस प्रकार प्रभावित किया है?
उत्तर:
हमारा देश एक कषि प्रधान देश है। उदारीकरण के कारण अधिक-से-अधिक लोग सेवा क्षेत्र जैसे कि दुकानों, बैंक, आई.टी., उद्योग, होटल्स तथा और सेवाओं के क्षेत्रों में आ रहे हैं। इससे नगरों में मौजूद मध्यवर्ग की संख्या भी बढ़ रही है। शहरों में मौजूद मध्यवर्ग के साथ उन मूल्यों की भी बढ़ौतरी हो रही है जो हमें टी.वी. सीरियलों तथा फिल्मों में दिखाई देते हैं। परन्तु हमें यह दिखाई देता है कि देश में काफ़ी कम लोगों के पास सुरक्षित रोजगार हैं तथा जिनके पास है वह भी अनुबंधित श्रमिकों के कारण असुरक्षित हो रहे हैं।

अब तक सरकारी नौकरियां ही अधिकतर लोगों के कल्याण करने का बड़ा रास्ता थी परंतु अब वह भी कम होती जा रही हैं। कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुसार विश्वव्यापी उदारीकरण तथा निजीकरण के साथ व्यक्तियों की आय के बीच असमानताएँ भी बढ़ती जा रही हैं। इसके साथ-साथ बड़े-बड़े उद्योगों में सुरक्षित रोज़गार के मौके कम होते जा रहे हैं।

सरकार बड़े-बड़े उद्योग लगवाने के लिए किसानों की भूमि अधिग्रहण कर रही है। यह उद्योग उस क्षेत्र के लोगों को रोजगार नहीं देते क्योंकि उद्योगों के लिए पेशेवर तथा सिलाई प्राप्त कामगारों की आवश्यकता होती है बल्कि यह तो वहाँ पर हरेक प्रकार का जबरदस्त प्रदूषण फैलाते हैं।

बहुत से किसानों, जिनमें से मुख्य आदिवासी हैं, ने जमीन की कम कीमत देने का विरोध किया है। इन्हें मजबूरी में दिहाड़ीदार मज़दूर बनना पड़ा तथा इन्हें बड़े उद्योगों के फुटपाथ पर कार्य करते हुए देखा जा सकता है। इस प्रकार उदारीकरण ने रोज़गार के प्रतिमानों को कई प्रकार से प्रभावित किया है।

औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास HBSE 12th Class Sociology Notes

→ यह अध्याय मुख्यतः हमें औद्योगीकरण तथा उदारीकरण के प्रभावों के बारे में बता रहा है कि किस प्रकार औद्योगीकरण ने हमारे समाज को प्रभावित किया है। यह अध्याय हमें यह भी बताता है कि किस प्रकार प्रौदयोगिकी में होने वाले परिवर्तनों से उदयोगों तथा सामाजिक संबंधों में परिवर्तन आते हैं।

→ औद्योगीकरण एक ऐसी धारणा है जिसमें मशीनों का सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान है। बड़े-बड़े उद्योगों में क मशीनों तथा श्रम विभाजन की सहायता से कार्य किया जाता है। हरेक श्रमिक एक छोटा सा पुर्जा बनाता है तथा वह मुख्य उत्पाद को देख तक नहीं पाता है।

→ सन् 2000 में भारत के लगभग 60% लोग प्राथमिक क्षेत्र, 17% द्वितीयक क्षेत्र तथा 23% लोग तृतीयक क्षेत्र के कार्यों से जुड़े हुए थे। इस समय में कृषि कार्यों के हिस्से में काफ़ी तेजी से कमी आयी तथा औद्योगिक क्षेत्र से जुड़ने वाले लोग तेज़ी से बढ़ गए।

→ भारत में स्वतंत्रता से पहले औद्योगिक प्रगति न के बराबर थी। चाहे स्वतंत्रता के बाद सरकार ने उद्योगों की तरफ विशेष ध्यान दिया परंतु इतनी तेज़ी से उद्योग विकसित न हो पाए। परंतु 1990 के दशक में सरकार ने उदारीकरण की नीति को अपनाया जिससे लाइसेंस नीति को खत्म किया गया। इसके बाद भारत में उद्योग तेजी से विकसित हुए।

→ 1991 के बाद सरकार ने विनिवेश की नीति अपनायी जिसमें सार्वजनिक कंपनियों को निजी उद्योगों को बेचा गया। निजी कंपनियों ने अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए कर्मचारियों की छंटनी शुरू की। यह छंटनी केवल भारत में ही नहीं बल्कि संपूर्ण संसार में ही हो रही है।

→ आजकल उद्योगों में कर्मचारियों को पक्के तौर पर नहीं बल्कि ठेके या संविदा के अनुसार रखा जाता है। कर्मचारी को निश्चित समय के लिए निश्चित तनखाह पर रखा जाता है। अगर उसका कार्य अच्छा हो तो ठेका आगे बढ़ा दिया जाता है नहीं तो नौकरी से निकाल दिया जाता है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास

→ आजकल उद्योगों में मैनेजर रखे हुए होते हैं जिनका मुख्य कार्य है कामगारों को नियंत्रित रखना तथा उनसे अधिक काम करवाना। उनके कार्य के घंटों में वृद्धि कर दी जाती है तथा कार्य को संगठित रूप से करवाकर उत्पादन भी बढ़ा लिया जाता है। उद्योगों में श्रमिकों से काफ़ी अधिक काम लिया जाता है तथा विश्राम का काफ़ी कम समय दिया जाता है। रोज़ाना इतना अधिक कार्य करते-करते श्रमिक इतना थक जाते हैं कि 40 वर्ष की आयु तक पहुँचते पहुँचते वह निढाल हो जाते हैं।

→ उद्योगों में कार्य करने की अवस्थाएं शोषण से भरपूर होती हैं। उदाहरण के तौर पर कोयले की खानों में कार्य करने के स्पष्ट नियम बनाए गए हैं परंतु ठेकेदार इनका पालन नहीं करते। दुर्घटना के समय किसी को मुआवजा नहीं दिया जाता तथा गड्ढ़ों को भरा नहीं जाता।

→ घरों पर किया जाने वाला कार्य आर्थिकी का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है जो महिलाओं तथा बच्चों द्वारा किया जाता है। उन्हें कच्चा माल पर पीस के हिसाब से दे दिया जाता है तथा उनसे प्रत्येक पीस के हिसाब से उत्पादित माल ले लिया जाता है तथा पैसे दे दिए जाते हैं।

→ बहुत बार काम की बुरी दशाओं के कारण श्रमिक हड़ताल भी कर देते हैं। वे काम पर नहीं जाते हैं, तालाबंदी हो जाती है तथा बिना वेतन के कामगारों के लिए रहना मुश्किल हो जाता है।

→ औद्योगीकरण-देश में उद्योगों के बढ़ने की प्रक्रिया।

→ मिश्रित आर्थिक नीति-वह आर्थिक नीति जिसमें कुछ क्षेत्र सरकार के लिए आरक्षित होते हैं तथा कुछ निजी क्षेत्रों के लिए खुले होते हैं।

→ उदारीकरण-वह प्रक्रिया जिसमें विदेशी फर्मों को देश में निवेश करने के लिए प्रोत्सहित किया जाता है।

→ विनिवेश-सार्वजनिक कंपनियों के शेयर्स को निजी क्षेत्र की कंपनियों को बेचने की प्रक्रिया।

→ विस्थापति-वह लोग जिन्हें अपनी भूमि से बेदखल कर कहीं और बसाने का प्रयास किया जाता है।

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