HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Important Questions Chapter 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न में से कौन-सा कथन सत्य है?
(A) भारत में अनेक जनजातियां हैं
(B) भारतीय समाज अनेक जातियों में विभाजित है
(C) भारत में विभिन्न धर्म और संप्रदाय हैं
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 2.
चक्रवर्ती नरेश बनने के लिए किस भारतीय शासक ने भारत के राजनीतिक एकीकरण का प्रयास किया था?
(A) चंद्रगुप्त मौर्य ने
(B) सम्राट अशोक ने
(C) हर्षवर्धन ने
(D) उपर्युक्त सभी ने।
उत्तर:
चंद्रगुप्त मौर्य ने।

प्रश्न 3.
केंद्र और राज्यों के बीच, अतिरिक्त सहायक सरकारी भाषा कौन-सी है?
(A) अंग्रेजी
(B) हिंदी
(C) राज्य-विशेष की भाषा
(D) उर्दू
उत्तर:
अंग्रेजी।

प्रश्न 4.
भारतीयों ने किस आधार पर विविधता बनाए रखी है?
(A) भाषा की विविधता के आधार पर
(B) व्यवहार की विविधता के आधार पर
(C) मूल्यों, आदर्शों व संस्कारों की विविधता के आधार पर
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 5.
भारतीय एकीकरण में बाधक कारक कौन-से हैं?
(A) अनेक भाषाएँ
(B) जातीय भिन्नताएं।
(C) धार्मिक विभिन्नताएं
(D) भाषावाद, धर्मवाद, जातिवाद इत्यादि।
उत्तर:
भाषावाद, धर्मवाद, जातिवाद इत्यादि।

प्रश्न 6.
वर्तमान राजनेताओं के कारण भारत में
(A) सामुदायिक सद्भाव बढ़ा है
(B) धार्मिक सद्भाव कम हुआ है
(C) जातीय सद्भाव बढ़ा है
(D) जातीय वैमनस्य कम हुआ है।
उत्तर:
धार्मिक सद्भाव कम हुआ है।

प्रश्न 7.
भारतीय समाज में किसे धार्मिक संस्कार माना जाता है?
(A) विवाह
(B) परिवार
(C) दहेज
(D) जाति प्रथा।
उत्तर:
विवाह।

प्रश्न 8.
राष्ट्रीय एकता को कैसे स्थापित किया जा सकता है?
(A) धर्म से जुड़े संगठनों पर प्रतिबंध लगाकर
(B) सारे देश की शिक्षा का एक ही पाठ्यक्रम बनाकर
(C) जातिवाद को खत्म करके
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
उपरोक्त सभी।

प्रश्न 9.
सन 2001 में हरियाणा की साक्षरता दर कितनी थी?
(A) 58%
(B) 63%
(C) 68%
(D) 73%
उत्तर:
68%

प्रश्न 10.
त्रि-दिवसीय राष्ट्रीय एकीकरण कांफ्रेंस का दिल्ली में आयोजन कब किया गया?
(A) सितंबर 28, 1961
(B) नवंबर 1960
(C) 1965
(D) 1962
उत्तर:
सितंबर 28, 1961.

प्रश्न 11.
वेद और पुराण कौन-सी भाषा में लिखे गये हैं?
(A) संस्कृत
(B) अवधी
(C) भोजपुरी
(D) उर्दू।
उत्तर:
संस्कृत।

प्रश्न 12.
हिंदू धर्म के चार धाम (मठ) किसने स्थापित किये थे?
(A) स्वामी दयानंद
(B) गांधी जी
(C) श्री शंकराचार्य
(D) ज० ला० नेहरू।
उत्तर:
श्री शंकराचार्य।

प्रश्न 13.
इनमें से कौन-सा समूह भारत में अल्पसंख्यक है?
(A) मुस्लिम
(B) सिक्ख
(C) पारसी
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 14.
मुसलमानों में सुधार आंदोलन किसने चलाया था?
(A) मोहम्मद अली
(B) जिन्नाह
(C) सर सैय्यद अहमद खान
(D) रहमत अली।
उत्तर:
सर सैय्यद अहमद खान।

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प्रश्न 15.
हमारे देश में सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समूह कौन-सा है?
(A) पारसी
(B) सिक्ख
(C) मुसलमान
(D) जैन।
उत्तर:
मुसलमान।

प्रश्न 16.
संविधान के किस अनुच्छेद के अनुसार धार्मिक तथा भाषायी अल्पसंख्यकों को शिक्षण संस्थाएं स्थापित करने तथा उनका प्रशासन करने का अधिकार है?
(A) अनुच्छेद 22
(B) अनुच्छेद 25
(C) अनुच्छेद 27
(D) अनुच्छेद 30
उत्तर:
अनुच्छेद 30

प्रश्न 17.
अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना कब हुई थी?
(A) 1980
(B) 1975
(C) 1976
(D) 1978
उत्तर:
1978

प्रश्न 18.
हमारे देश में अल्पसंख्यकों को किस समस्या का सामना करना पड़ता है?
(A) कम शिक्षा
(B) योग्य नेतृत्व की कमी
(C) असुरक्षा की भावना
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
उपरोक्त सभी।

प्रश्न 19.
भारत के प्राचीनतम निवासी कौन हैं?
(A) जनजातियां
(B) आर्य
(C) सिक्ख
(D) मुस्लिम।
उत्तर:
जनजातियां।

प्रश्न 20.
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में भारतीय समाज को हम कितने कालों में विभाजित कर सकते हैं?
(A) 6
(B) 7
(C) 3
(D) 4
उत्तर:
6

प्रश्न 21.
निम्न में से कौन-सा स्थान धार्मिक स्थान नहीं है?
(A) अमृतसर
(B) अजमेर शरीफ
(C) वैष्णों देवी
(D) ताजमहल।
उत्तर:
ताजमहल।

प्रश्न 22.
भारत को धर्म-निष्पक्षता किसने प्रदान की है?
(A) राज्य
(B) सरकार
(C) जनता
(D) संविधान।
उत्तर:
संविधान।

प्रश्न 23.
उस देश को क्या कहते हैं जो किसी विशेष धर्म का नहीं बल्कि सभी धर्मों का सम्मान करता है?
(A) कल्याणकारी राज्य
(B) धर्म-निष्पक्ष
(C) लोकतांत्रिक
(D) तानाशाही।
उत्तर:
धर्म-निष्पक्ष।

प्रश्न 24.
इनमें से कौन-सा धर्म-निष्पक्षता का आवश्यक तत्त्व है?
(A) धार्मिक कट्टरवाद का बढ़ना
(B) धार्मिक गतिविधियों का बढ़ना
(C) धार्मिक कट्टरवाद का खात्मा
(D) धार्मिक गतिविधियां का खात्मा।
उत्तर:
धार्मिक कट्टरवाद का खात्मा।

प्रश्न 25.
इनमें से कौन-सा धर्म-निष्पक्षता का मख्य आधार है?
(A) धर्म
(B) तार्किकता तथा विज्ञान
(C) धार्मिक कट्टरवाद
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
तार्किकता तथा विज्ञान।

प्रश्न 26.
किसने कहा था कि धर्म निष्पक्षता का अर्थ है सभी धर्मों का सम्मान तथा असमानता?
(A) गाँधी
(B) नेहरू
(C) मौलाना अबुल कलाम
(D) सरदार पटेल।
उत्तर:
गांधी।

प्रश्न 27.
इस्लाम ने हमारे समाज को किस प्रकार प्रभावित किया है?
(A) हमारे समाज में पर्दा प्रथा आयी
(B) जाति व्यवस्था की पाबंदियां अधिक कठोर हो गईं
(C) विवाह से संबंधित पाबंदियां और कठोर हो गईं
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 28.
धर्म-निष्पक्षता को अपनाने का क्या कारण है?
(A) कम होते धार्मिक संस्थान
(B) आधुनिक शिक्षा
(C) पश्चिमी संस्कृति को अपनाना
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 29.
धर्म-निष्पक्षता ने किस प्रकार हमारे देश के सामाजिक जीवन को प्रभावित किया है?
(A) पवित्रता तथा अपवित्रता के संकल्पों में परिवर्तन
(B) परिवार की संस्था में परिवर्तन
(C) ग्रामीण समुदाय में बहुत से परिवर्तन आए हैं
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 30.
परिवार की संस्था में धर्म-निष्पक्षता के कारण किस प्रकार के परिवर्तन आए हैं?
(A) संयुक्त परिवारों का टूटना
(B) एकांकी परिवारों का बढ़ना
(C) परिवार में बड़ों का कम होता नियंत्रण
(D) a + b + c
उत्तर:
a + b + c

प्रश्न 31.
धर्म-निष्पक्षता के कारण ग्रामीण समुदाय में किस प्रकार का परिवर्तन आया है?
(A) चुनी हुई पंचायतों का सामने आना
(B) समृद्धि पर आधारित सम्मान
(C) अंतर्जातीय विवाहों का बढ़ना
(D) a + b + c
उत्तर:
a + b + c

प्रश्न 32.
भारत में इस्लाम का प्रभाव पड़ना कब शुरू हुआ?
(A) 13वीं शताब्दी
(B) 14वीं शताब्दी
(C) 15वीं शताब्दी
(D) 16वीं शताब्दी।
उत्तर:
13वीं शताब्दी।

प्रश्न 33.
निम्नलिखित में से कौन-सा अल्पसंख्यक नहीं है?
(A) मुसलमान
(B) क्षत्रिय
(C) सिक्ख।
उत्तर:
क्षत्रिय।

प्रश्न 34.
हरियाणा में निम्नलिखित में से कौन-सा धार्मिक समुदाय अल्पसंख्यक नहीं है?
(A) ईसाई
(B) सिख
(C) हिंदू
(D) मुस्लिम।
उत्तर:
हिंदू।

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प्रश्न 35.
निम्नलिखित में से किसका गठन शहरी क्षेत्रों में नहीं किया जाता है?
(A) ग्राम सभा
(B) ग्राम पंचायत
(C) ब्लाक समिति
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 36.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना किस वर्ष हुई?
(A) 1757
(B) 1857
(C) 1885
(D) 1985
उत्तर:
1885

प्रश्न 37.
पंचायती राज संस्थाओं की निम्नोक्त में से कौन-सी इकाई का गठन जिला स्तर पर किया गया है?
(A) ग्राम सभा
(B) ग्राम पंचायत
(C) खंड समिति
(D) जिला परिषद्।
उत्तर:
जिला परिषद्।

प्रश्न 38.
भारत में निम्नलिखित में से कौन धार्मिक अल्पसंख्यक नहीं हैं?
(A) सिख
(B) ईसाई
(C) जैन
(D) हिंदू।
उत्तर:
हिंदू।

प्रश्न 39.
निम्नोक्त में से कौन-सी भारतीय एकता के लिए चुनौती नहीं है?
(A) संप्रदायवाद
(B) जातिवाद
(C) भाषावाद
(D) राष्ट्रवाद।
उत्तर:
राष्ट्रवाद।

प्रश्न 40.
निम्नलिखित में से धार्मिक संप्रदाय भारत में अल्पसंख्यक है?
(A) मुस्लिम
(B) सिख
(C) ईसाई
(D) इनमें से सभी।
उत्तर:
इनमें से सभी।

प्रश्न 41.
संप्रदायवाद का संबंध निम्नलिखित में से किससे हैं?
(A) जाति से
(B) धर्म से
(C) भाषा से
(D) क्षेत्र से।
उत्तर:
धर्म से।

प्रश्न 42.
भारत में सबसे ज्यादा जनजातीय लोग किस प्रदेश में निवास करते हैं?
(A) पंजाब में
(B) हरियाणा में
(C) मध्य प्रदेश में
(D) दिल्ली में।
उत्तर:
मध्य प्रदेश में।

प्रश्न 43.
भारत की राजकीय भाषा क्या है?
(A) हिंदी
(B) उर्दू
(C) पंजाबी
(D) मराठी।
उत्तर:
हिंदी।

प्रश्न 44.
वर्तमान समय में भारत में कुल कितने राज्य हैं?
(A) 20
(B) 25
(C) 30
(D) 28
उत्तर:
28

प्रश्न 45.
इस्लाम धर्म के प्रवर्तक कौन हैं?
(A) गुरु नानक देव जी
(B) हज़रत मुहम्मद
(C) गौतम बुद्ध
(D) महावीर।
उत्तर:
हज़रत मुहम्मद।

प्रश्न 46.
राज्य कौन-सी संस्था है?
(A) राजनीतिक
(B) सामाजिक
(C) धार्मिक
(D) सांस्कृतिक।
उत्तर:
धार्मिक।

प्रश्न 47.
‘वॉट इज सेक्युलरिज्म’ नामक पुस्तक किसने लिखी है?
(A) राजीव भार्गव
(B) मैक्स वैबर
(C) डेविड मिल्लर
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
राजीव भार्गव।

प्रश्न 48.
‘स्त्री-पुरुष तुलना’ नामक पुस्तक किसने लिखी?
(A) ताराबाई शिंदे
(B) गोबिंद रानाडे
(C) सावित्री बाई फूले
(D) राजा राम मोहन राय।
उत्तर:
ताराबाई शिंदे।

प्रश्न 49.
भारत में जैन धर्म में लोगों की प्रतिशतता क्या है?
(A) 1.9%
(B) 0.8%
(C) 2.3%
(D) 0.4%
उत्तर:
0.4%.

प्रश्न 50.
पुरुषों और स्त्रियों के बीच असमानता का क्या कारण है?
(A) प्राकृतिक
(B) सामाजिक
(C) जैविक
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
सामाजिक।

प्रश्न 51.
इनमें से कौन-सी चुनौती भारत में विविधता के कारण उत्पन्न हुई है?
(A) क्षेत्रीयता
(B) जातीयता
(C) सांप्रदायिकता
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
उपरोक्त सभी।

प्रश्न 52.
इंडिया गेट स्थित है :
(A) मुंबई में
(B) आगरा में
(C) कोलकता में
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
इनमें से कोई नहीं।

प्रश्न 53.
निम्न में से किस सिद्धांत के अनुसार किसी क्षेत्र विशेष में लोगों के समूह को स्वतंत्रता एवं सम्प्रभुता प्राप्त होती है?
(A) समाजवादी
(B) राष्ट्रवादी
(C) भौतिकवादी
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
राष्ट्रवादी।

प्रश्न 54.
सामाजिक संसाधनों तक असमान पहुँच कहलाती है :
(A) सामाजिक विषमता
(B) आर्थिक विषमता
(C) राजनीतिक विषमता
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
सामाजिक विषमता।

प्रश्न 55.
इनमें से भारतीय उपमहाद्वीप की किस विशेषता से विद्वान् आकर्षित हुए हैं?
(A) संयुक्त परिवार
(B) जाति
(C) एकल परिवार
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में कितने प्रमुख धर्म पाए जाते हैं तथा यहाँ पाया जाने वाला प्रमुख धर्म कौन-सा है?
उत्तर:
भारत में सात प्रमुख धर्म पाए जाते हैं तथा यहाँ पर पाया जाने वाला प्रमुख धर्म हिंदू धर्म है।

प्रश्न 2.
भारत में कितनी प्रमुख भाषाएँ बोली जाती हैं तथा यहाँ कितने प्रतिशत लोगों की मातृभाषा हिंदी है?
उत्तर:
भारत में 22 प्रमुख भाषाएँ बोली जाती हैं तथा यहाँ पर 40% लोगों की मातृभाषा हिंदी है।

प्रश्न 3.
भारत में कौन-से राज्यों का जनसंख्या घनत्व सबसे अधिक तथा सबसे कम है?
उत्तर:
पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व है तथा सबसे कम घनत्व अरुणाचल प्रदेश में है।

प्रश्न 4.
भारत में कितने प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों तथा नगरीय क्षेत्रों में रहती है?
उत्तर:
भारत में 66% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में तथा 34% जनसंख्या नगरीय क्षेत्रों में रहती है।

प्रश्न 5.
भारतीय संविधान में कितनी भाषाओं को मान्यता प्राप्त है तथा हिंदी के बाद कौन-सी भाषा सबसे अधिक प्रयुक्त होती है?
उत्तर:
भारतीय संविधान में 22 भाषाओं को मान्यता प्राप्त है तथा हिंदी के बाद सबसे अधिक प्रयुक्त होने वाली भाषा बांग्ला है।

प्रश्न 6.
भारत में सबसे कम प्रचलित धर्म कौन-सा है तथा किस राज्य में बौद्ध धर्म सबसे अधिक प्रचलित है?
उत्तर:
भारत में सबसे कम प्रचलित धर्म पारसी धर्म है तथा महाराष्ट्र में बौद्ध धर्म सबसे अधिक प्रचलित है।

प्रश्न 7.
2001 में भारत का जनसंख्या घनत्व कितना था तथा भारत में 1000 पुरुषों के पीछे कितनी महिलाएं हैं?
उत्तर:
2001 में भारत का जनसंख्या घनत्व 324 था तथा भारत में 1000 पुरुषों के पीछे 927 महिलाएं हैं।

प्रश्न 8.
भारत के किन राज्यों में सबसे कम तथा सबसे अधिक जनसंख्या है?
उत्तर:
सिक्किम राज्य में सबसे कम तथा उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक जनसंख्या है।

प्रश्न 9.
इस्लाम धर्म के संस्थापक कौन थे तथा इस्लाम धर्म की धार्मिक पुस्तक कौन-सी है?
उत्तर:
इस्लाम धर्म के संस्थापक मोहम्मद साहब थे तथा कुरान इस्लाम धर्म की धार्मिक पुस्तक है।

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प्रश्न 10.
सिक्ख धर्म के संस्थापक कौन थे तथा सिक्ख धर्म की धार्मिक पुस्तक का नाम बताएं।
उत्तर:
गुरु नानक देव जी सिक्ख धर्म के संस्थापक थे तथा सिक्ख धर्म की धार्मिक पुस्तक गुरु ग्रंथ साहिब है।

प्रश्न 11.
बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म के संस्थापक कौन थे?
उत्तर:
गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म के संस्थापक थे तथा महावीर जैन जैन धर्म के संस्थापक थे।

प्रश्न 12.
हिंदी भाषा को संविधान में मान्यता कब प्राप्त हुई थी तथा भारत के कितने राज्यों की राजकीय भाषा हिंदी
उत्तर:
14 सितंबर, 1949 को हिंदी भाषा को संविधान ने मान्यता प्रदान की तथा भारत के 6 राज्यों की राजकीय भाषा हिंदी है।

प्रश्न 13.
किस राज्य में पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं सबसे अधिक तथा किस राज्य में सबसे कम हैं?
उत्तर:
केरल में पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं सबसे अधिक तथा हरियाणा में सबसे कम हैं।

प्रश्न 14.
अब तक कितनी लोकसभाएं गठित हो चुकी हैं तथा लोकसभा के कितने सदस्य हो सकते हैं?
उत्तर:
अब तक 14 लोकसभाएं गठित हो चुकी हैं तथा लोकसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 550 हो सकती है।

प्रश्न 15.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जीवन का अंतिम लक्ष्य …………….. है।
उत्तर:
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना है।

प्रश्न 16.
कोंकण तथा मालाबार किसे कहते हैं?
उत्तर:
भारत में समुद्री तट के उत्तरी भाग को कोंकण कहते हैं तथा समुद्री तट के दक्षिणी भाग को मालाबार कहा जाता है।

प्रश्न 17.
इंडो यूरोपियन तथा प्राविड़ियन भाषा परिवार भारत के किन क्षेत्रों में पाए जाते हैं?
उत्तर:
इंडो यूरोपियन भाषाएं उत्तर भारत में तथा द्राविड़ियन भाषा परिवार दक्षिण भारत में पाए जाते हैं।

प्रश्न 18.
भारत में सबसे उपजाऊ मैदान कौन-सा है तथा भारत में मरुस्थल कहाँ पर है?
उत्तर:
भारत में सबसे उपजाऊ मैदान सिंधु-गंगा का मैदान है तथा भारत में मरुस्थल राजस्थान में है।

प्रश्न 19.
उत्तर भारत तथा दक्षिण भारत में कौन-से धाम है?
उत्तर:
बद्रीनाथ-केदारनाथ धाम उत्तर भारत में है तथा रामेश्वरम दक्षिणी भारत में है।

प्रश्न 20.
पूर्वी भारत तथा पश्चिमी भारत में कौन-से धाम हैं?
उत्तर:
जगन्नाथपुरी पूर्वी भारत का धाम है तथा द्वारिकापुरी पश्चिमी भारत का धाम है।

प्रश्न 21.
क्षेत्रवाद का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जब लोग अपने क्षेत्र को प्यार करते हैं तथा दूसरे क्षेत्रों से नफरत करते हैं तो उसे क्षेत्रवाद कहा जाता है।

प्रश्न 22.
भारत में पुरुषों तथा महिलाओं की साक्षरता दर कितनी है?
उत्तर:
भारत में पुरुषों की साक्षरता दर 82% है तथा महिलाओं की साक्षरता दर 65% है।

प्रश्न 23.
भारत में राष्ट्रीय एकता में कौन-सी रुकावटें हैं?
उत्तर:
जातिवाद, सांप्रदायिकता, आर्थिक असमानता इत्यादि ऐसे कारक हैं जो राष्ट्रीय एकता के रास्ते में रुकावटें है।

प्रश्न 24.
देश में राष्ट्रीय एकता को कैसे स्थापित किया जा सकता है?
उत्तर:
देश के धर्म से जुड़े संगठनों पर प्रतिबंध लगाकर, सारे देश में शिक्षा का एक ही पाठ्यक्रम बनाकर तथा जातिवाद को खत्म करके देश में राष्ट्रीय एकता को स्थापित किया जा सकता है।

प्रश्न 25.
भारत में साक्षरता दर ………………. है।
उत्तर:
भारत में साक्षरता दर 74.04% है।

प्रश्न 26.
क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का संसार में कौन-सा स्थान है?
उत्तर:
क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का संसार में सातवां स्थान है।

प्रश्न 27.
भारत के ………………. राज्य की साक्षरता दर सबसे अधिक है।
उत्तर:
भारत के केरल राज्य की साक्षरता दर सबसे अधिक है।

प्रश्न 28.
भारत में प्रचलित चार वेदों के नाम बताएं।
उत्तर:
भारत में प्रचलित चार वेदों के नाम हैं-ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद तथा सामवेद।

प्रश्न 29.
भारत का सबसे प्राचीन वेद कौन-सा है?
उत्तर:
ऋग्वेद भारत का सबसे प्राचीन वेद है।

प्रश्न 30.
भारत में जनगणना ………………… वर्षों के बाद होती है।
उत्तर:
भारत में जनगणना दस वर्षों के बाद होती है।

प्रश्न 31.
भारतीय संविधान कब लागू हुआ था?
उत्तर:
भारतीय संविधान 26 जनवरी, 1950 को लाग हुआ था।

प्रश्न 32.
भारत सरकार का औपचारिक मुखिया कौन होता है?
उत्तर:
भारत सरकार का औपचारिक मुखिया राष्ट्रपति होता है।

प्रश्न 33.
भारतीय समाज को कितने कालों में विभाजित किया जा सकता है?
उत्तर:
भारतीय समाज को चार कालों में विभाजित किया जा सकता है।

प्रश्न 34.
किस लिपि को सभी भारतीय भाषाओं की जननी कहते हैं?
उत्तर:
ब्रह्मी लिपि।

प्रश्न 35.
वर्तमान में भारत में कितने राज्य तथा केंद्र शासित प्रदेश हैं?
उत्तर:
भारत में 29 राज्य तथा सात केंद्र शासित प्रदेश हैं।

प्रश्न 36.
भारत का सबसे ऊँचा पर्वत कौन-सा है?
उत्तर:
हिमालय पर्वत।

प्रश्न 37.
भौगोलिक दृष्टि से भारत को कितने भागों में बांटा जा सकता है?
उत्तर:
भौगोलिक दृष्टि से भारत को पाँच भागों में बांटा जा सकता है।

प्रश्न 38.
धर्म शास्त्रों के अनुसार जीवन में ………………. आश्रम होते हैं।
उत्तर:
धर्म शास्त्रों के अनुसार जीवन में चार आश्रम होते हैं।

प्रश्न 39.
चार आश्रमों के नाम बताएं।
उत्तर:
चार आश्रम हैं-ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम तथा संन्यास आश्रम।

प्रश्न 40.
भारतीय समाज का प्राचीनकाल कब से कब तक चला था?
उत्तर:
3000 ई० पू० से 700 ई० पू० तक।

प्रश्न 41.
धार्मिक बहुलतावाद का क्या अर्थ है?
उत्तर:
अगर किसी स्थान पर कई धर्मों को मानने वाले लोग रहते हों तो इसे धार्मिक बहुलतावाद का नाम दिया जाता है।

प्रश्न 42.
परसंस्कृति ग्रहण किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब लोग अपनी संस्कृति को खोए बिना दूसरी संस्कृति के तत्त्वों को ग्रहण करते हैं तो उसे परसंस्कृति ग्रहण कहते हैं।

प्रश्न 43.
विभिन्नता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जब किसी चीज़ में बहुत-से प्रकार मिलें तो उसे विभिन्नता कहते हैं।

प्रश्न 44.
युग्मन का क्या अर्थ है?
उत्तर:
वह प्रक्रिया जिससे समाज के अलग-अलग अंग इकट्ठे होते हैं उसे युग्मन कहते हैं।

प्रश्न 45.
हरियाणा की साक्षरता दर कितनी है?
उत्तर:
हरियाणा की साक्षरता दर 68% है।

प्रश्न 46.
पश्चिमी तट मैदान के उत्तरी भाग को क्या कहते हैं?
उत्तर:
पश्चिमी तट मैदान के उत्तरी भाग को कोंकण कहते हैं।

प्रश्न 47.
जैनियों के कितने तीर्थंकर हुए हैं?
उत्तर:
जैनियों के चौबीस तीर्थंकर हुए हैं-प्रथम ऋषभदेव से लेकर चौबीसवें वर्धमान महावीर तक।

प्रश्न 48.
भारत की सभी भाषाओं को कितने भाषा परिवारों में बांटा जा सकता है?
उत्तर:
भारत की सभी भाषाओं को मुख्यता छ: भाषा परिवारों में बांटा जा सकता है।

प्रश्न 49.
भारत का सबसे प्रमुख भाषा परिवार कौन-सा है?
उत्तर:
भारत का सबसे प्रमुख भाषा परिवार इंडो-आर्यन भाषा परिवार है।

प्रश्न 50.
………………. भाषा को देववाणी भी कहा जाता है।
उत्तर:
संस्कृत भाषा को देववाणी भी कहा जाता है।

प्रश्न 51.
किस भारतीय सम्राट् ने चक्रवर्ती नरेश बनने के लिए भारत के राजनीतिक एकीकरण का प्रयास किया था?
उत्तर:
चंद्रगुप्त मौर्य ने।

प्रश्न 52.
संस्कृतियों के सात्मीकरण का क्या अर्थ है?
उत्तर:
संस्कृतियों के एकीकरण को संस्कृतियों के सात्मीकरण का नाम दिया जाता है।

प्रश्न 53.
अल्पसंख्यक का अर्थ बताएं।
अथवा
अल्पसंख्यक से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जब समाज में जनसंख्या में कुछ लोगों का प्रतिनिधित्व कम होता है तो उसे अल्पसंख्यक कहते हैं।

प्रश्न 54.
भारत का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समूह कौन-सा है?
अथवा
भारत में अल्पसंख्यकों में सर्वाधिक जनसंख्या किसकी है?
उत्तर:
मुस्लिम समुदाय।

प्रश्न 55.
भारत में कौन-सा समुदाय अल्पसंख्यक नहीं है?
उत्तर:
हिंदू समुदाय।

प्रश्न 56.
भारत में कुछ अल्पसंख्यक समुदायों के नाम बताएं।
उत्तर:
मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, पारसी, बौद्ध, जैनी इत्यादि समुदाय भारत में अल्पसंख्यक हैं।

प्रश्न 57.
भारत के किस राज्य में सबसे अधिक मुसलमान रहते हैं?
उत्तर:
उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक मुसलमान रहते हैं।

प्रश्न 58.
भारत के किन राज्यों में सबसे अधिक सिक्ख तथा ईसाई रहते हैं?
उत्तर:
पंजाब में सबसे अधिक सिक्ख तथा केरल में सबसे अधिक ईसाई रहते हैं।

प्रश्न 59.
भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री किस समुदाय से संबंध रखते हैं?
उत्तर:
भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिंदू समुदाय से संबंधित हैं।

प्रश्न 60.
भारत की राष्ट्र भाषा कौन-सी है?
उत्तर:
हिंदी।

प्रश्न 61.
भारत में कौन-सी भाषा सबसे अधिक बोली जाती है?
उत्तर:
हिंदी भाषा भारत में सबसे अधिक बोली जाती है।

प्रश्न 62.
भारत में अल्पसंख्यक आयोग ……………… में बना था।
उत्तर:
भारत में अल्पसंख्यक आयोग 1978 में बना था।

प्रश्न 63.
मुस्लिम लीग की स्थापना ………………….. में हुई थी।
उत्तर:
मुस्लिम लीग की स्थापना सन् 1906 में हुई थी।

प्रश्न 64.
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का दोबारा गठन कब हुआ था?
उत्तर:
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का दोबारा गठन सन् 2000 में हुआ था।

प्रश्न 65.
भारत की कुल जनसंख्या का कितने प्रतिशत लोग हिंदू तथा मुस्लिम हैं?
उत्तर:
भारत की कुल जनसंख्या का 79.5% लोग हिंदू तथा 13.6% लोग मुसलमान हैं।

प्रश्न 66.
भारत में कितने प्रतिशत ईसाई तथा सिक्ख रहते हैं?
अथवा
भारतीय समुदाय में ईसाई समुदाय की प्रतिशतता क्या है?
उत्तर:
भारत में 2.4% ईसाई तथा 1.7% सिक्ख रहते हैं।

प्रश्न 67.
सिक्ख धर्म की स्थापना …………….. ने की थी।
उत्तर:
सिक्ख धर्म की स्थापना गरु नानक देव जी ने की थी।

प्रश्न 68.
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के कितने सदस्य होते हैं?
उत्तर:
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के सात सदस्य होते हैं।

प्रश्न 69.
शिरोमणि गुरद्वारा प्रबंधक कमेटी का गठन किस दशक में हुआ था?
उत्तर:
1920 वाले दशक में।

प्रश्न 70.
सिक्खों के गुरुद्वारों को महंतों के कब्जे से छुड़ाने के लिए किस धार्मिक संस्था का गठन हुआ था?
उत्तर:
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ

प्रश्न 71.
सिक्ख शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर:
सिक्ख शब्द का अर्थ है शिष्य।

प्रश्न 72.
भारत में मिलने वाले मुख्य धर्म कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
भारत में इस समय सात प्रकार के धर्म मुख्य रूप से पाए जाते हैं। हिंदू (79.8%), मुसलमान (13.6%), इसाई (2.4%), सिक्ख (1.7%), बौद्ध (0.8%), जैन (0.4%), पारसी तथा अन्य जनजातीय धर्म (0.4%)।

प्रश्न 73.
भारत में कौन-कौन सी प्रमुख भाषाएं बोली जाती हैं?
उत्तर:
भारत में मुख्य रूप से 22 भाषाएं बोली जाती हैं-

  • हिंदी
  • पंजाबी
  • मराठी
  • कोंकणी
  • तमिल
  • तेलुगू
  • कन्नड़
  • कश्मीरी
  • मलयालम
  • संस्कृत
  • गुजराती
  • बंगला
  • उड़िया
  • उर्दू
  • सिंधी
  • नेपाली
  • मणिपुरी
  • असमी
  • डोगरी
  • संथाली
  • मैथिली
  • बोडो भाषा।

प्रश्न 74.
विभिन्नता में एकता से क्या अर्थ है?
उत्तर:
विभिन्नता में एकता से हमारा अर्थ है बहुत सारी विभिन्नता होते हुए भी सभी आपस में एकजुट हैं। जैसे हमारे देश में कई प्रकार के धर्म, संस्कृतियाँ, प्रजातियाँ पाई जाती हैं पर फिर भी यह सब एक-दूसरे के साथ बंधे हुए हैं। भारत की विभिन्नताओं में जो एकता है वह कहीं और देखने को नहीं मिल सकती।

प्रश्न 75.
भारत को कई प्रजातियों का घर क्यों कहते हैं?
उत्तर:
भारत को कई प्रजातियों का घर इसलिए कहते हैं क्योंकि यहाँ पर कई प्रकार की प्रजातियां रहती हैं। शुरू में भारत में द्रविड़ रहते थे। फिर यहाँ पर आर्य लोग आए। फिर भारत पर कई प्रकार की प्रजातियों ने आक्रमण किया और यहाँ पर बस गए। धीरे-धीरे ये सभी प्रजातियाँ यहाँ के समाज में समा कर उसका अंग बन गईं। इस तरह अगर भारत को प्रजातियों का अजायबघर भी कहा जाए तो इसमें अतिशयोक्ति नहीं होगी।

प्रश्न 76.
धार्मिक बहुलतावाद क्या होता है?
उत्तर:
अगर किसी जगह पर कई प्रकार के धर्मों को मानने वाले लोग रहते हों तो उसे धार्मिक बहुलतावाद कहते हैं। भारत एक धार्मिक बहुलतावाद वाला देश है क्योंकि इसमें कई प्रकार के धर्मों के लोग एक साथ मिलकर एक ही जगह पर रहते हैं।

प्रश्न 77.
क्षेत्रीय विभिन्नता प्राचीन संस्कृति को कैसे बचाती है?
उत्तर:
यह ठीक है कि क्षेत्रीय विभिन्नता प्राचीन संस्कृति को बचाती है। अगर सारे देश की संस्कृति एक-सी हो जाए तो अलग-अलग संस्कृतियों की महत्ता ही खत्म हो जाएगी। अलग-अलग क्षेत्रों में हम अलग-अलग प्रकार के पहनावे, रहने-सहने के ढंग, खाने के तरीके देख सकते हैं तथा उससे यह जान सकते हैं कि वह किस प्रदेश का रहने वाला है। इससे संस्कृति भी महफूज रह जाती है।

प्रश्न 78.
क्षेत्रवाद (Regionalism) क्या होता है?
अथवा
क्षेत्रवाद को परिभाषित करें।
अथवा
क्षेत्रवाद का अर्थ बताएं।
अथवा
क्षेत्रवाद किसे कहते हैं?
अथवा
क्षेत्रवाद क्या है?
उत्तर:
जब कोई अपने क्षेत्र को प्यार करने लगे और दूसरे क्षेत्रों से नफ़रत करने लगे तो उल्ले क्षेत्रवाद कहते हैं। अपने क्षेत्र के लोगों को बढावा देना भी क्षेत्रवाद का एक रूप है। इसमें दूसरे क्षेत्र के लोगों को विदेशी समझा जाता है। उदाहरण के तौर पर पंजाब में बिहारी को विदेशी समझा जाता है।

प्रश्न 79.
क्षेत्रवाद को कैसे दूर किया जा सकता है?
उत्तर:

  • कानून की सहायता से
  • यातायात तथा संचार के साधनों को बढ़ाकर
  • यात्राओं को बढ़ावा देकर
  • भारत की एक ही भाषा का विकास करके
  • राष्ट्रीय एकता में कार्यक्रम बनाकर
  • सांस्कृतिक सम्मेलन करवाकर इत्यादि।

प्रश्न 80.
क्षेत्रीयता राष्ट्रीय एकता में किस तरह रुकावट बनती है?
उत्तर:
क्षेत्रीयता में अपने क्षेत्र को प्राथमिकता दी जाती है तथा दूसरे क्षेत्र को विदेशी समझा जाता है। दूसरे क्षेत्र के व्यक्ति से घृणा की जाती है। इस तरह क्षेत्रीयता से आपसी समानता तथा भाई-चारे की भावना खत्म हो जाती है। इसमें मानवतावाद न होकर क्षेत्रवाद की भावना पनपती है जोकि भारत जैसे देश की एकता में एक बहुत बड़ी रुकावट है।

प्रश्न 81.
भारत की एकता को कैसे स्थाई रखा जा सकता है?
उत्तर:
भारत की एकता को स्थाई रखने का एक उपाय है क्षेत्रवाद की भावना से ऊपर उठ कर राष्ट्रीय भावना को अपनाना। अगर हम अपने क्षेत्र की परवाह और हितों का ध्यान रखेंगे तो देश की एकता टूट जाएगी पर अगर हम अपने हितों को त्याग कर देश के हितों के बारे में सोचेंगे तथा उसके लिए काम करेंगे तो देश की एकता को स्थाई रखा जा सकता है।

प्रश्न 82.
भारत की भौगोलिक विभिन्नता के बारे में कुछ बताएं।
उत्तर:
भारत में भौगोलिक विभिन्नता पाई जाती है। उत्तर भारत में बर्फ से ढके हिमालय पर्वत हैं। दक्षिण में पठार है। भारत तीन तरफ से सागर से घिरा हुआ है। यहाँ मरुस्थल (राजस्थान) भी है तथा यहाँ संसार के उपजाऊ प्रदेशों में से एक गंगा का मैदान भी है। कई क्षेत्रों में बहुत कम वर्षा (राजस्थान) होती है तथा कई स्थानों (मेघालय) में सबसे ज्यादा वर्षा होती है। कई क्षेत्रों में घनी जनसंख्या है तथा कई क्षेत्रों में बहुत कम जनसंख्या है।

प्रश्न 83.
भारत में खाने-पीने में किस प्रकार की विभिन्नता मिलती है?
उत्तर:
भारत में खाने-पीने में भी विभिन्नता पाई जाती है। उत्तर भारत में गेहूँ के साथ सब्जियाँ तथा दालें खाई जाती हैं। दक्षिण भारत में चावल का अधिक सेवन होता है। तटीय क्षेत्रों में चावल के साथ मछली का ज्यादा सेवन होता है। हरेक क्षेत्र में अपने अलग-अलग खाना पकाने तथा खाना खाने के ढंग हैं।

प्रश्न 84.
राष्ट्रीय एकता में भाषा का महत्त्व बताओ।
उत्तर:
अगर किसी देश में राष्ट्रीय एकता को बरकरार रखना है तो उसमें भाषा का बहुत बड़ा महत्त्व है। एक भाषा होने से अलग-अलग प्रदेशों के लोग आपस में बात कर सकते हैं, एक-दूसरे से अपने विचार बाँट सकते हैं जिससे उनके मन की बात बाहर आ सकती है जिससे वह क्षेत्रीयता की भावना से ऊपर उठकर राष्ट्र के बारे में सोचने लगते हैं। इस तरह राष्ट्रीय एकता में भाषा का काफ़ी महत्त्व होता है।

प्रश्न 85.
राष्ट्रीय एकीकरण में कौन-कौन सी रुकावटें होती हैं?
उत्तर:
राष्ट्रीय एकीकरण में जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, सांप्रदायिकता, आतंकवाद, इत्यादि के साथ-साथ हड़तालें, जातीय दंगे प्रमुख रुकावटें होती हैं।

प्रश्न 86.
राष्ट्रीय एकीकरण कैसे किया जा सकता है?
उत्तर:
राष्ट्रीय एकीकरण के लिए ज़रूरी है अपने निजी हितों को छोड़कर देश के हितों की तरफ ध्यान देना। अगर सभी लोग, राजनीतिक दल, जातियां, धार्मिक संस्थाएं अपने-अपने हित छोड़कर राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर काम करें तो यह हो सकता है। वोट की राजनीति से ऊपर उठ कर देश की समस्याओं तथा एकीकरण के बारे में सोचना चाहिए।

प्रश्न 87.
भारत में धार्मिक विभिन्नता के दुष्परिणाम कौन-से हो सकते हैं?
उत्तर:

  • धार्मिक कट्टरवादिता
  • विभिन्न धर्मों का विरोध
  • सामाजिक असंतुलन एवं विघटन
  • प्रगति में रुकावट
  • धर्म परिवर्तन
  • राष्ट्रीय एकता में बाधक
  • हिंसा को बढ़ावा
  • सांप्रदायिकता।

प्रश्न 88.
भारत की इंडो आर्यन भाषा परिवार तथा द्रविड़ भाषा परिवार के बारे में बताओ।
उत्तर:
इंडो आर्यन भाषाएं आर्यों के भारत आने के साथ आईं। यह सबसे बड़ा भाषायी समूह है। हिंदी, पंजाबी, बंगाली, गुजराती, मराठी, असामी, उड़िया, उर्दू, संस्कृत, कश्मीरी, सिंधी, पहाड़ी, राजस्थानी, बिहारी इस समूह की प्रमुख भाषाएं हैं। इस तरह संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त 22 भाषाओं में से दक्षिण भारत की चार भाषाएं द्रविड़ भाषायी हैं बाकी इंडो आर्यन हैं।

प्रश्न 89.
भारत की भाषाओं को कितने भागों में बाँटा गया हैं?
उत्तर:
भारत की भाषाओं को चार भागों में बांटा गया है

  • इंडो यूरोपियन जिसमें उत्तर भारतीय भाषाएं आती हैं।
  • द्रविड़ भाषा परिवार जिसमें मध्य तथा दक्षिण भारत की भाषाएँ आती हैं।
  • आस्ट्रिक भाषा परिवार जिसमें अंडमान निकोबार की भाषाएं आती हैं।
  • चीनी तिब्बती भाषा परिवार जिसमें हिमालय की ढालों पर रहने वाले लोग आते हैं।

प्रश्न 90.
भारत के किन-किन क्षेत्रों में एकता पाई जाती है?
उत्तर:

  • संस्कृतियों में एकता
  • धार्मिक एकता
  • भौगोलिक एकता
  • भाषायी एकता
  • सामाजिक एकता
  • कला के संबंध में एकता।

प्रश्न 91.
कर्मफल क्या होता है?
उत्तर:
कर्म का मतलब होता है काम। कर्म का भारतीय संस्कृति में काफ़ी महत्त्व है। भारतीय शास्त्रों में यह लिखा है कि व्यक्ति का जन्म उसके पिछले जन्म में किए कर्मों पर निर्भर करता है। अगर आपने अच्छे कर्म किए हैं तो आपका जन्म अच्छे परिवार में होगा तथा यह भी हो सकता है कि आपको जन्म मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाए। अगर आपके कर्म बुरे हैं तो आपको अपने अगले जीवन में दुःख देखने पड़ेंगे तथा हो सकता है कि आपको मुक्ति भी न मिले। इसी को कर्मफल कहते हैं। कर्मों के अनुसार ही मनुष्य को अगला जन्म प्राप्त होता है।

प्रश्न 92.
सांप्रदायिकता का अर्थ बताएँ।
अथवा
संप्रदायवाद को परिभाषित करें।
अथवा
संप्रदायवाद क्या हैं?
अथवा
सांप्रदायिकता क्या है?
उत्तर:
सांप्रदायिकता और कुछ नहीं बल्कि एक विचारधारा है जो जनता में एक धर्म के धार्मिक विचारों का प्रचार करने का प्रयास करता है तथा यह धार्मिक विचार और धार्मिक समूहों के धार्मिक विचारों के बिल्कुल ही विपरीत होते हैं। यह एक विचारधारा है जो यह कहती है कि एक धर्म के सदस्य एक समुदाय के सदस्य हैं तथा अलग-अलग धर्मों के सदस्य एक समुदाय का निर्माण नहीं कर सकते।

प्रश्न 93.
संविधान के निर्माता भारत को एक धर्म-निरपेक्ष राज्य क्यों बनाना चाहते थे?
उत्तर:
संविधान के निर्माता भारत को एक धर्म-निरपेक्ष राज्य बनाना चाहते थे क्योंकि उन्हें सांप्रदायिकता का भय था। भारत में बहुत-से धर्म पाए जाते हैं तथा वह चाहते थे कि किसी भी धर्म को दूसरे धर्म से अधिक महत्त्व न दिया जाए। सभी धर्मों को समान महत्त्व दिया जाए ताकि समाज में सांप्रदायिक दंगे न भड़कें।

प्रश्न 94.
जाति-प्रथा का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जाति प्रथा समाज में विभाजन की एक व्यवस्था है जिसमें खाने-पीने, रहने, पेशे, सामाजिक रिश्तों से संबंधित नियम दिए गए हैं। जाति प्रथा में चार मुख्य जातियां पाई जाती हैं तथा व्यक्ति को उसके जन्म के आधार पर जाति प्राप्त होती हैं। व्यक्ति योग्यता होते हुए भी अपनी जाति को बदल नहीं सकता है।

प्रश्न 95.
जातिवाद का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जब राजनेता चुनावी लाभ के लिए जातिगत चेतना का लाभ उठाने का प्रयास करते हैं तो इस प्रक्रिया को जातिवाद कहा जाता है। जाति के नेता जाति से संबंधित चेतना को जगाते हैं ताकि उनकी जाति के लोग उन्हें वोट दें। यह जातिवाद है।

प्रश्न 96.
जातिवाद के हमारे समाज पर पड़ने वाले दो प्रभाव बताएं।
उत्तर:

  • जातिवाद को बढ़ावा देना धर्म निरपेक्षता तथा धर्म-निरपेक्ष समाज के विकास में सबसे बड़ा बाधक है।
  • जातिवाद राष्ट्रीय एकता को कमज़ोर करता है क्योंकि यह अलग-अलग जातियों में जाति से संबंधित चेतना को जागृत करता है।

प्रश्न 97.
जाति प्रथा को कैसे ख़त्म किया जा सकता है?
उत्तर:

  • जाति प्रथा से संबंधित कानूनों को ठीक ढंग से लागू करके जाति प्रथा को ख़त्म किया जा सकता है।
  • राजनेताओं को जातिगत राजनीति करनी बंद कर देनी चाहिए।
  • राजनीति में जातिवाद का प्रयोग करने वालों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही होनी चाहिए।
  • अलग-अलग जातियों के बीच अंतर्जातीय विवाह को अधिक-से-अधिक प्रोत्साहित करना चाहिए।

प्रश्न 98.
प्रदत्त पहचान से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जो पहचान व्यक्ति को उसकी योग्यता से नहीं बल्कि जन्म से प्राप्त होती है उसे प्रदत्त पहचान कहते हैं। इसमें संबंधित व्यक्तियों की पसंद या नापसंद शामिल नहीं होती। इस प्रकार की पहचान व्यक्ति को अपने परिवार जाति अथवा समुदाय से प्राप्त होती है।

प्रश्न 99.
राष्ट्र क्या है? इसकी एक परिभाषा दीजिए।
अथवा
राष्ट्र किसे कहते हैं?
अथवा
राज्य को पारिभाषित करें।
अथवा
राष्ट्र की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
सरल शब्दों में राष्ट्र एक प्रकार का बड़े स्तर का समुदाय ही होता है, यह कई समुदायों से मिलकर बना एक समुदाय है। राष्ट्र के सदस्य एक ही राजनीतिक सामूहिकता का हिस्सा बनने की इच्छा रखते हैं। मैक्स वैबर के अनुसार, “राष्ट्र एक ऐसा निकाय होता है जो एक विशेष क्षेत्र में विधि सम्मत एकाधिकार का सफलतापूर्ण दावा करता है।

प्रश्न 100.
विशेषाधिकार अल्पसंख्यक कौन होते हैं?
उत्तर:
हरेक देश में कुछ धार्मिक, भाषायी अथवा किसी और आधार के समूह होते हैं जिन्हें अल्पसंख्यक कहा जाता है। इस प्रकार जब किसी अल्पसंख्यक समूह के साथ कोई विशेषक जोड़ दिया जाता है तो उसे विशेषाधिकार प्राप्त अल्पसंख्यक कहते हैं।

प्रश्न 101.
अल्पसंख्यक का समाजशास्त्रीय अर्थ बताइए।
अथवा
धार्मिक अल्पसंख्यक से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
अल्पसंख्यक शब्द का समाज शास्त्रीय अर्थ यह है कि अल्पसंख्यक वर्ग के सदस्य एक सामूहिकता निर्मित करते हैं अर्थात् उनमें अपने समूह के प्रति एकात्मता, एकजुटता तथा उससे संबंधित होने की प्रबल भावना होती है। यह भावना हानि या असुविधा से जुड़ी होती है क्योंकि पूर्वाग्रह तथा भेदभाव का शिकार होने का अनुभव साधारणतया अपने समूह के प्रतिनिष्ठा और दिलचस्पी की भावनाओं को बढ़ाता है।

प्रश्न 102.
73वें संवैधानिक संशोधन दुवारा – – – के लिए पंचायती राज संस्थाओं में 33% सीटें आरक्षित की गई।
उत्तर:
73वें संवैधानिक संशोधन द्वारा महिलाओं के लिए पंचायती राज संस्थाओं में 33% सीटें आरक्षित की गईं।

प्रश्न 103.
श्रीमद्भागवत् गीता किसने लिखी?
उत्तर:
श्रीमद्भागवत् गीता महर्षि वेद व्यास ने लिखी थी।

प्रश्न 104.
गुरु ग्रंथ साहिब किस समुदाय की धार्मिक पुस्तक है?
उत्तर:
गुरु ग्रंथ साहिब सिख समुदाय की धार्मिक पुस्तक है।

प्रश्न 105.
बौद्ध धर्म के संस्थापक कौन थे?
उत्तर:
गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म के संस्थापक थे।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ

प्रश्न 106.
ऋग्वेद किस धर्म की धार्मिक पुस्तक है?
उत्तर:
ऋग्वेद हिंदू धर्म की धार्मिक पुस्तक है।

प्रश्न 107.
जैनों के 24वें तीर्थंकर का क्या नाम है?
उत्तर:
जैनों के 24वें तीर्थंकर का नाम महावीर हैं।

प्रश्न 108.
भारत की राजकीय भाषा कौन-सी है?
उत्तर:
हिंदी भारत की राजकीय भाषा है।

प्रश्न 109.
विश्व की प्राचीनतम पुस्तक का क्या नाम है?
उत्तर:
ऋग्वेद विश्व की प्राचीनतम पुस्तक है।

प्रश्न 110.
सिखों के दसवें गुरु कौन थे?
उत्तर:
गुरु गोबिंद सिंह सिखों के दसवें गुरु थे।

प्रश्न 111.
– – – रामकृष्ण मिशन के संस्थापक हैं?
उत्तर:
स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण मिशन के संस्थापक हैं।

प्रश्न 112.
सिख धर्म के पहले गुरु कौन थे?
उत्तर:
गुरु नानक देव जी सिख धर्म के पहले गुरु थे।

प्रश्न 113.
हिंदुओं की किसी एक धार्मिक पुस्तक का नाम बताइए।
उत्तर:
रामायण हिंदुओं की धार्मिक पुस्तक है।

प्रश्न 114.
स्वामी दयानंद ने सन् 1875 में …………………. समाज की स्थापना की।
उत्तर:
स्वामी दयानंद ने सन् 1875 में आर्य समाज की स्थापना की।

प्रश्न 115.
भारत के किसी एक धार्मिक अल्पसंख्यक का नाम बताइए।
उत्तर:
इसाई भारत में धार्मिक अल्पसंख्यक हैं।

प्रश्न 116.
हिंदू भारत में धार्मिक अल्पसंख्यक हैं या बहुसंख्यक?
उत्तर:
हिंदू भारत में धार्मिक बहुसंख्यक हैं।

प्रश्न 117.
दिल्लीवासी होना जातिवाद/क्षेत्रवाद/भाषावाद/संप्रदायवाद में किसको दर्शाता है?
उत्तर:
दिल्लीवासी होना क्षेत्रवाद को दर्शाता है।

प्रश्न 118.
संप्रदायवाद, क्षेत्रवाद तथा वैज्ञानिक सोच में से कौन-सी भारत के प्रगति में बाधा नहीं हैं?
उत्तर:
वैज्ञानिक सोच भारत की प्रगति में बाधा नहीं है।

प्रश्न 119.
सूचना का अधिकार अधिनियम कब पास हुआ?
उत्तर:
सूचना का अधिकार अधिनियम सन् 2005 में पास हुआ।

प्रश्न 120.
भारत में ………………….. राज्य हैं।
उत्तर:
भारत में 29 राज्य हैं।

प्रश्न 121.
भाषायी राज्य भारतीय एकता को मज़बूत करने में सहायता देते हैं। (सत्य या असत्य)।
उत्तर:
भाषायी राज्य भारतीय एकता को मजबूत करने में सहायता देते हैं-सत्य।

प्रश्न 122.
ब्रह्म समाज की स्थापना किस वर्ष में हुई थी?
उत्तर:
ब्रह्म समाज की स्थापना सन् 1829 में हुई थी।

प्रश्न 123.
आत्मसात्करणवादी नीतियाँ भारत को जोड़ने में मदद करती हैं। (सत्य या असत्य)।
उत्तर:
आत्मसात्करणवादी नीतियाँ भारत को जोड़ने में मदद करती हैं-सत्य।

प्रश्न 124.
भारत का संविधान कब पारित किया गया था?
उत्तर:
संविधान सभा ने संविधान को 26 नवंबर, 1949 को पारित कर दिया था परन्तु यह 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था।

प्रश्न 125.
भारतीय राष्ट्र राज्य में कितनी भाषाएं व बोलियाँ बोली जाती हैं?
उत्तर:
भारतीय राष्ट्र राज्य में 1652 भाषाएं व बोलियाँ बोली जाती हैं।।

प्रश्न 126.
क्या भारतीयों ने अंग्रेज़ी भाषा में उत्कृष्ट साहित्यिक रचनाएँ की हैं? (हाँ/नहीं)
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 127.
‘इंडिया गेट’ एक दरगाह है। (सही/गलत)
उत्तर:
गलत।

प्रश्न 128.
नववर्ष का त्योहार ‘पोंगल’ केरल में मनाया जाता हैं। (सही/गलत)
उत्तर:
गलत।

प्रश्न 129.
भारत को अंग्रेज़ी माध्यम में शिक्षा की सुविधा ब्रिटिश शासन की देन नहीं है। (सही/गलत)
उत्तर:
गलत।

प्रश्न 130.
महिलाओं को पारिवारिक संपत्ति में बराबर की हिस्सेदारी दिलाने में कौन सहायता करता है?
उत्तर:
कानून इस कार्य में सहायता करता है।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में कौन-कौन सी विभिन्नताएं पाई जाती हैं?
उत्तर:
भारत की भौगोलिक विभिन्नता की वजह से भारत में कई प्रकार की विभिन्नताएं पाई जाती हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है-
1. खाने-पीने की विभिन्नता-भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में खाने-पीने में बहुत विभिन्नता पाई जाती हैं। उत्तर भारत में लोग गेहूं का ज्यादा प्रयोग करते हैं। दक्षिण भारत तथा तटीय प्रदेशों में चावल का सेवन काफ़ी ज्यादा है। कई राज्यों में पानी की बहुतायत है तथा कहीं पानी की बहुत कमी है। कई प्रदेशों में सर्दी बहुत ज्यादा है इसलिए वहाँ गर्म कपड़े पहने जाते हैं तथा कई प्रदेश गर्म हैं या तटीय प्रदेशों में ऊनी वस्त्रों की ज़रूरत नहीं पड़ती। इस तरह खाने-पीने तथा कपड़े डालने में विभिन्नता है।

2. सामाजिक विभिन्नता-भारत के अलग-अलग राज्यों के समाजों में भी विभिन्नता पाई जाती है। हर क्षेत्र में बसने वाले लोगों के रीति-रिवाज, रहने के तरीके, धर्म, धर्म के संस्कार इत्यादि सभी कुछ अलग-अलग हैं। हर जगह अलग-अलग तरह से तथा अलग-अलग भगवानों की पूजा होती है। उनके धर्म अलग होने की वजह से रीति-रिवाज भी अलग-अलग हैं।

3. शारीरिक लक्षणों की विभिन्नता- भौगोलिक विभिन्नता की वजह से यहाँ के लोगों में विभिन्नता भी पाई जाती है। मैदानी क्षेत्रों के लोग लंबे चौड़े तथा रंग में साफ होते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में लोग नाटे पर चौड़े होते हैं तथा रंग भी सफेद होता है। दक्षिण भारतीय लोग भूमध्य रेखा में निकट रहते हैं इसलिए उनका रंग काला या सांवला होता हैं।

4. जनसंख्या में विभिन्नता-भारत में जनसंख्या में भी काफ़ी विभिन्नता है। जहाँ कई राज्य जैसे पंजाब, हरियाणा काफ़ी घनी आबादी वाले क्षेत्र हैं वहीं राजस्थान, मेघालय जैसे प्रदेशों में जनसंख्या काफी कम है।

प्रश्न 2.
एकता की भावना को धर्म कैसे कम करता है?
उत्तर:
धर्म को हम एक सामाजिक नियंत्रण के साधन के रूप में देखते हैं पर फिर भी इसकी करनी और कथनी में अंतर है। आजकल धर्म का प्रयोग राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए होता है। धर्म को कई प्रकार से एकता की भावना को कम करने के लिए प्रयोग किया जाता है जैसे-

  • कई धार्मिक संगठन अपने धर्म के लोगों को अपनी तरफ करने के लिए उनकी भावनाओं को भड़काते हैं जिससे लोगों की एकता कम होती है।
  • जो शिक्षण संस्थाएं किसी धर्म से संबंधित होती हैं वह अपने धर्म का ज्यादा प्रचार करते हैं तथा और धर्मों को ऊपर नहीं आने देते।
  • नेता लोग वोट प्राप्त करने के लिए लोगों को भड़काते हैं तथा अपनी राजनीति करते हैं जिससे लोग धर्म के नाम पर एक-दूसरे के साथ लड़ते रहते हैं।
  • कई जातियों ने राजनीतिक दलों में अपने समूह बना लिए जो अपनी जाति या धर्म के लिए काम करते हैं जिससे एकता कम होती है।

प्रश्न 3.
भारत की सांस्कृतिक विविधता के बारे में बताएं।
उत्तर:
भारत में कई प्रकार की जातियां तथा धर्मों के लोग रहते हैं जिस कारण से उनकी भाषा, खान-पान, रहन-सहन, परंपराएं, रीति-रिवाज इत्यादि अलग-अलग हैं। हर किसी के विवाह के तरीके, जीवन प्रणाली इत्यादि भी अलग-अलग हैं। हर धर्म के धार्मिक ग्रंथ अलग-अलग हैं तथा उनको सभी अपने माथे से लगाते हैं।

जिस प्रदेश में चले जाओ वहाँ का नृत्य अलग-अलग है। वास्तुकला, चित्रकला में भी विविधता देखने को मिल जाती है। हर जाति या धर्म के अलग-अलग त्योहार, मेले इत्यादि हैं। सांस्कृतिक एकता में व्यापारियों, कथाकारों, कलाकारों इत्यादि का भी योगदान रहा है। इस तरह यह सभी सांस्कृतिक चीजें अलग-अलग होते हुए भी भारत में एकता बनाए रखती हैं।

प्रश्न 4.
भारतीय समाज की रूप-रेखा के बारे में बताएं।
उत्तर:
भारतीय समाज को निम्नलिखित आधारों पर समझा जा सकता है-
1. वर्गों में विभाजन-पुराने समय में भारतीय समाज जातियों में बँटा हुआ था पर आजकल यह जाति के स्थान पर वर्गों में बँट गया है। व्यक्ति के वर्ग की स्थिति उसकी सामाजिक स्थिति पर निर्भर करती है। शिक्षा, पैसे इत्यादि की वजह से अलग-अलग वर्गों का निर्माण हो रहा है।

2. धर्म-निरपेक्षता-पुराने समय में राजा महाराजाओं के समय में धर्म को काफ़ी महत्त्व प्राप्त था। राजा का जो धर्म होता था उसकी ही समाज में प्रधानता होती थी पर आजकल धर्म की जगह धर्म-निरपेक्षता ने ले ली है। व्यक्ति अन्य धर्मों को मानने वालों से नफ़रत नहीं बल्कि प्यार से रहता है। हर कोई किसी भी धर्म को मानने तथा उसके रीति-रिवाजों को मानने को स्वतंत्र है। समाज या राज्य का कोई धर्म नहीं है। भारतीय समाज में धर्म-निरपेक्षता देखी जा सकती है।

3. प्रजातंत्र-आज का भारतीय समाज प्रजातंत्र पर आधारित है। पुराने समय में समाज असमानता पर आधारित था पर आजकल समाज में समानता का बोलबाला है। देश की व्यवस्था चुनावों तथा प्रजातंत्र पर आधारित है। इसमें प्रजातंत्र के मूल्यों को बढ़ावा मिलता है। इसमें किसी से भेदभाव नहीं होता तथा किसी को उच्च या निम्न नहीं समझा जाता है।

प्रश्न 5.
आश्रम व्यवस्था के बारे में बताएं।
उत्तर:
हिंदू समाज की रीढ़ का नाम है-आश्रम व्यवस्था। आश्रम शब्द श्रम शब्द से बना है जिसका अर्थ है प्रयत्न करना। आश्रम का शाब्दिक अर्थ है जीवन यात्रा का पड़ाव। जीवन को चार भागों में बाँटा गया है। इसलिए व्यक्ति को एक पड़ाव खत्म करके दूसरे में जाने के लिए खुद को तैयार करना होता है। यह पड़ाव या आश्रम है। हमें चार आश्रम दिए गए हैं-
1. ब्रह्मचर्य आश्रम-मनुष्य की औसत आयु 100 वर्ष मानी गई है तथा हर आश्रम 25 वर्ष का माना गया है। पहले 25 वर्ष ब्रह्मचर्य आश्रम के माने गए हैं। इसमें व्यक्ति ब्रह्म के अनुसार जीवन व्यतीत करता है। वह विद्यार्थी बन कर अपने गुरु के आश्रम में रह कर हर प्रकार की शिक्षा ग्रहण करता है तथा गुरु उसे अगले जीवन के लिए तैयार करता है।

2. गृहस्थ आश्रम-पहला आश्रम तथा विद्या खत्म करने के बाद व्यक्ति गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करता है। यह 26-50वर्ष तक चलता है। इसमें व्यक्ति विवाह करवाता है, संतान उत्पन्न करता है, अपना परिवार बनाता है,जीवन यापन करता है, पैसा कमाता है तथा दान देकर लोगों की सेवा करता है। इसमें व्यक्ति अपनी इच्छाओं की पूर्ति करता है।

3. वानप्रस्थ आश्रम-यह तीसरा आश्रम है जोकि 51-75 वर्ष तक चलता है। जब व्यक्ति इस उम्र में आ जाता है तो वह अपना सब कुछ अपने बच्चों को सौंपकर भगवान् की भक्ति के लिए जंगलों में चला जाता है। इसमें व्यक्ति घर की चिंता छोड़कर मोक्ष प्राप्त करने में ध्यान लगाता है। जरूरत पड़ने पर वह अपने बच्चों को सलाह भी दे सकता है।

4. संन्यास आश्रम-75 साल से मृत्यु तक संन्यास आश्रम चलता है। इसमें व्यक्ति हर किसी चीज़ का त्याग कर देता है तथा मोक्ष प्राप्ति के लिए भगवान की तरफ ध्यान लगा देता है। वह जंगलों में रहता है, कंद मूल खाता है तथा मोक्ष के लिए वहीं भक्ति करता रहता है तथा मृत्यु तक वहीं रहता है।

प्रश्न 6.
जाति व्यवस्था की कोई चार विशेषताएं बताएं।
उत्तर:

  • जाति की सदस्यता जन्म के आधार द्वारा
  • जाति में सामाजिक संबंधों पर प्रतिबंध होते हैं।
  • जाति में खाने-पीने के बारे में प्रतिबंध होते हैं।
  • जाति में अपना कार्य पैतृक आधार पर मिलता है।
  • जाति एक अंतर-वैवाहिक समूह है, विवाह संबंधी बंदिशें हैं।
  • जाति में समाज अलग-अलग हिस्सों में विभाजित होता है।
  • जाति प्रणाली एक निश्चित पदक्रम है।

प्रश्न 7.
जाति चेतनता क्या है?
उत्तर:
जाति व्यवस्था की यह सबसे बड़ी त्रुटि थी कि उसमें कोई भी व्यक्ति अपनी जाति के प्रति ज़्यादा सचेत नहीं होता था और यह कमी हर व्यवस्था में भी पाई जाती थी। क्योंकि इस व्यवस्था में व्यक्ति की स्थिति उसकी जाति के आधार पर निश्चित होती इसलिए व्यक्तिगत तौर पर उतना जागरूक ही नहीं होता।

जब कि उसकी स्थिति एवं पहचान उनके जन्म के अनुसार ही होनी है, तो उसे पता होता था कि उसे कौन-कौन से कार्य और कैसे करने हैं। यदि कोई व्यक्ति उच्च जाति में जन्म ले लेता है तो उसे पता होता था कि उसके क्या कर्तव्य हैं, यदि उसका जन्म निम्न जाति में हो जाता था, तो उसे पता ही होता था कि उसे सारे समाज की सेवा करनी है और इस स्वाभाविक। प्रक्रिया में दखल-अंदाज़ी नहीं करता था और उसी को दैवी कारण मानकर अपना जीवन-यापन करता जाता था।

प्रश्न 8.
जाति सामाजिक एकता में रुकावट है। कैसे?
उत्तर:
इस व्यवस्था से क्योंकि समाज का विभाजन कई भागों में हो जाता है, इसलिए सामाजिक संतुलन बिगड़ जाता है। इस व्यवस्था में हर जाति के अपने नियम एवं प्रतिबंध होते हैं। इस तरह से अपनी जाति के अलावा दूसरी जाति से कोई ज्यादा लगाव नहीं होता, क्यों जो उन्हें पता होता है कि उन्हें नियमों के अनुसार आचरण करना होता है। इस प्रथा में हमेशा उच्च वर्ग, निम्न वर्ग के लोगों का शोषण करते हैं।

इस प्रकार से जाति भेद होने के कारण एक दूसरे के प्रति नफरत की भावना भी उजागर हो जाती है। इस तरह से यह भेदभाव समाज की एकता में बाधक बन जाता है और इस व्यवस्था की यह कमी थी, कोई व्यक्ति अपनी योग्यता के आधार पर भी अपनी जाति को बदल नहीं सकता, सामाजिक ढांचे का संतुलन बिगड़ जाता है और यही समाज की उन्नति में बाधक बन जाती है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ

प्रश्न 9.
सांप्रदायिक राजनीति का क्या अर्थ है?
उत्तर:
सांप्रदायिक राजनीति का अर्थ है राजनीति में धर्म का प्रयोग तथा इसमें कहा जाता है कि एक धर्म धर्म से श्रेष्ठ है। इसमें एक धर्म दूसरे धार्मिक समूह से बिल्कुल ही विपरीत होता है तथा उनकी माँगें भी एक-दूसरे से विरुद्ध होती हैं। सांप्रदायिक राजनीति का एक ही आधार होता है कि धर्म के आधार पर समुदायों का निर्माण भी हो सकता है।

यह कहता है कि एक धर्म के लोग एक ही समुदाय से संबंधित होते हैं तथा उनके विचार भी एक जैसे ही होते हैं। यह सांप्रदायिक राजनीति यह भी कहती है कि अलग-अलग धर्मों के अनुयायी एक समुदाय का निर्माण नहीं कर सकते। अपने घटिया दृष्टिकोण से सांप्रदायिक राजनीति यह कहती है कि अलग-अलग धर्मों के लोग एक समान नहीं होते तथा एक विशेष क्षेत्र में मिल-जुल कर नहीं रह सकते।

प्रश्न 10.
‘सांप्रदायिकता का विचार बहुत खतरनाक है।’ टिप्पणी करें।
उत्तर:
सांप्रदायिकता का मूल विचार है कि एक विशेष धर्म का और धर्मों की कीमत पर उत्थान। यह एक विचारधारा है जो यह कहती है कि एक धर्म के सदस्य एक समुदाय के सदस्य हैं तथा अलग-अलग धर्मों के सदस्य एक समुदाय का निर्माण नहीं कर सकते। भारत जैसे देश में, जहां कई धर्म रहते हैं, सांप्रदायिकता बहुत ही ख़तरनाक है। क्योंकि-

  • राजनीतिक नेता अधिक-से-अधिक मत प्राप्त करने के लिए धर्म का प्रयोग करते हैं तथा इससे समाज का धर्म के अनुसार सामाजिक विभाजन हो जाता है।
  • सांप्रदायिकता में, एक धर्म की मांगें दूसरे धर्मों की मांगों से बिल्कुल ही विपरीत होती हैं जिस कारण अलग अलग धर्मों के अनुयायियों में तनाव तथा अविश्वास उत्पन्न हो जाता है।
  • सांप्रदायिकता यह कहती है कि एक विशेष धर्म और धर्मों से श्रेष्ठ है जिस कारण सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता है।

प्रश्न 11.
जाति व्यवस्था के राजनीति में प्रयोग करने की क्या हानियां हैं?
उत्तर:
जाति व्यवस्था उनके लिए काफ़ी लाभदायक है जो इसका प्रयोग राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए करते हैं, परंतु साधारणतया इसकी कई हानियां अथवा नकारात्मक प्रभाव हैं जोकि निम्नलिखित हैं

  • अगर जाति व्यवस्था को राजनीति में प्रयोग किया जाए तो राजनीतिक दल अलग-अलग जातियों में बँट जाएंगे जिससे अलग-अलग जातियों में संघर्ष बढ़ जाता है।
  • राजनीतिक दलों तथा अलग-अलग जातियों में विभाजन से जातीय संघर्ष बढ़ जाता है।
  • अलग-अलग जातियों के नेता एक-दूसरे के विरुद्ध प्रचार करते हैं जिससे अलग-अलग जातियों में तनाव बढ़ जाता है। इससे हमारा ध्यान और महत्त्वपूर्ण मुद्दों जैसे कि निर्धनता, बेरोजगारी, शिक्षा इत्यादि से हट जाता है।

प्रश्न 12.
सांप्रदायिकता के क्या आधार हैं?
उत्तर:
सांप्रदायिकता एक विचारधारा है जो जनता में एक ही धर्म के धार्मिक विचारों को फैलाती है तथा यह विचार और धार्मिक समूहों के विचारों से बिल्कुल ही विपरीत होते हैं। इसके मुख्य आधार हैं-

  • यह विचारधारा कहती है कि अलग-अलग धर्मों के लोग एक ही समुदाय से संबंधित नहीं होते।
  • यह विचारधारा कहती है कि एक ही धर्म के लोग एक ही समुदाय से संबंधित होते हैं तथा उनके मौलिक हित भी एक जैसे ही होते हैं।
  • यह विचारधारा कहती है कि अलग-अलग धर्मों के लोगों में कोई भी समानता नहीं होती है। उनके हित निश्चित तौर पर अलग-अलग होते हैं।

प्रश्न 13.
जाति व्यवस्था की वर्तमान स्थिति क्या है?
उत्तर:
यह ठीक है कि सरकार और समाज द्वारा जाति प्रथा के प्रभाव को कम करने के लिए बहुत-से कदम उठाए गए, परंतु फिर भी हम इसके प्रभाव को महसूस कर सकते हैं। लोग अभी भी अपने बच्चों का विवाह अपनी ही जाति में करना पसंद करते हैं। हम अभी भी देश की प्राचीन जाति व्यवस्था का प्रभाव महसूस कर सकते हैं।

अस्पृश्यता अभी भी ख़त्म नहीं हुई है। यह अभी भी चल रही है। निम्न जातियों के लोग अभी भी अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं जिस कारण वह और समाज से पिछड़े हुए हैं। उच्च जातियों के लोगों का अभी भी देश की राजनीति और समाज पर गहरा प्रभाव है। यह ठीक है कि जाति प्रथा का प्रभाव पहले से कम फिर भी हम कह सकते हैं कि देश में जाति प्रथा व्याप्त है।

प्रश्न 14.
लोकतांत्रिक व्यवस्था में जाति व्यवस्था हानिकारक है। क्यों?
उत्तर:
लोकतांत्रिक व्यवस्था में जात-पात का संकल्प हानिकारक है क्योंकि-

  • असल में यह संकल्प लोकतंत्र के मूल नियमों-स्वतंत्रता, समानता तथा भाईचारे के विरुद्ध है।
  • यह संकल्प वोट बैंक की राजनीति को बढ़ावा देता है तथा इस कारण ही अलग-अलग जातियों के नेताओं ने आर्थिक मुद्दों को पीछे धकेल दिया है।
  • यह संकल्प जाति के हितों को बढ़ावा देता है तथा राष्ट्रीय एकता के विरुद्ध है।
  • यह संकल्प एक ही जाति के हितों को महत्त्व देता है जिस कारण और जातियों के हितों की अनदेखी हो जाती है।

प्रश्न 15.
भारत में सांप्रदायिकता के अलग-अलग कारणों का वर्णन करें।
अथवा
संप्रदायवाद की समस्या के कारण क्या हैं? बताइये।
अथवा
भारत में सांप्रदायिकता के प्रमुख कारण क्या हैं?
अथवा
भारत में साम्प्रदायिकता के मुख्य कारण कौन-से हैं?
उत्तर:
सांप्रदायिकता और कुछ नहीं बल्कि एक विचारधारा है जो लोगों में एक ही धर्म के धार्मिक विचारों को बढ़ावा देती है तथा यह विचार और धार्मिक समूहों के धार्मिक विचारों से बिल्कुल ही विपरीत होते हैं। इसके मुख्य कारण इस प्रकार हैं-
(i) सबसे पहले ब्रिटिश लोगों ने भारत में सांप्रदायिकता को बढ़ावा दिया। वह भारत पर राज्य करना चाहते थे जिस कारण उन्होंने भारत में ‘बांटो तथा राज्य करो’ की नीति प्रयोग की। उनकी इस नीति ने भारत में सांप्रदायिकता के बीज बो दिए।

(ii) राजनीतिक दल भी इसके लिए उत्तरदायी है। हरेक राजनीतिक दल अपना वोट बचाना चाहता है। इसलिए ही वह एक विशेष धर्म की भावनाओं को भड़का देते हैं तथा इसका परिणाम देश में सांप्रदायिक दंगों के रूप में सामने आता है।

(iii) हमारे राजनेता भी सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने के लिए उत्तरदायी हैं। वह चुनाव जीतने के लिए अपने धर्म के लोगों की भावनाओं को भड़काते हैं तथा इससे सांप्रदायिकता बढ़ जाती है।

(iv) ब्रिटिश लोगों ने कांग्रेस का मुकाबला करने के लिए मुसलमानों को बढ़ावा दिया। यहां तक कि मुस्लिम लीग भी बना दी गई। उनकी मुस्लिमों को बढ़ावा देने की नीति ने देश में सांप्रदायिकता के बीज बो दिए।

प्रश्न 16.
‘भारतीय राजनीति से जाति व्यवस्था को अलग नहीं किया जा सकता।’ इस कथन की व्याख्या करें।
उत्तर:
यह ठीक है कि भारतीय राजनीति से जाति व्यवस्था को अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि यह भारतीय राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह कथन ठीक है क्योंकि-
(i) हमारे देश में निम्न जातियों के हितों की रक्षा के लिए बहुत-से राजनीतिक दल आगे आए। इन निम्न जातियों के नेताओं को मंत्री पद भी दिए गए ताकि वे जातियां उन दलों के प्रति वफादार रहें।

(ii) देश में कुछ दबाव समूह ऐसे भी हैं जो विशेष जातियों से संबंधित होते हैं। वे सरकार पर अपनी मांगें मनवाने के लिए दबाव डालते हैं। ये राजनीतिक दलों के टिकटों के वितरण के समय महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं तथा चुनाव के समय तो और भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये अपनी ही जाति के नेता के पक्ष में चुनाव प्रचार भी करते हैं।

(iii) अनुसूचित जातियों को शैक्षिक संस्थाओं तथा सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया गया है। यहां तक कि राजनीतिक दल भी उन्हें और आरक्षण दिलाने का प्रयास करते हैं ताकि उनकी वफ़ादारी को जीता जा सके।

इस प्रकार इस व्याख्या को देख कर हम कह सकते हैं कि जाति व्यवस्था को भारतीय राजनीति से अलग नहीं किया जा सकता। यह हमारी राजनीतिक व्यवस्था का एक अभिन्न अंग है।

प्रश्न 17.
स्वतंत्रता के बाद भारत की भाषा नीति पर विचार करें।
उत्तर:
(i) भाषायी राज्यों का गठन-स्वतंत्रता के बाद राज्यों के पुनर्गठन की मांग उठी तथा सरकार ने एक कमीशन की सिफ़ारिशें मंजूर कर ली कि राज्यों का भाषायी आधार पर पुनर्गठन किया जाए। इसलिए ही कई राज्यों का भाषायी आधार पर गठन किया गया जैसे कि आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु इत्यादि। इससे भारतीय राज्यों में एकता बढ़ी है तथा अलग-अलग राज्यों में तनाव की संभावना कम हुई है।

(ii) भाषा से संबंधित नीति-भारत एक बहुभाषायी देश है जहाँ पर लोग बहुत-सी भाषाएँ बोलते हैं। चाहे हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है परंतु फिर भी भारतीय संविधान में 22 भाषाएँ दी गई हैं। हरेक राज्य अपनी भाषा तथा संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए स्वतंत्र है। अगर कोई व्यक्ति केंद्र सरकार की कोई परीक्षा दे रहा है तो वह किसी भी दी गई भाषा में परीक्षा दे सकता है।

राज्यों की अपनी ही भाषा होती है। चाहे 1965 में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग बंद कर दिया गया परंतु राज्यों ने माँग की कि इसे चालू रखा जाए। केंद्र सरकार ने भी ऐसा ही किया। इस प्रकार संघीय सरकार की भाषा से संबंधित नीति ने भारत को जोड़ने में सहायता की तथा यहाँ पर श्रीलंका जैसी स्थिति पैदा होने के अवसर काफ़ी हद तक ख़त्म कर दिए।

प्रश्न 18.
क्षेत्रवाद को कैसे कम किया जा सकता है?
अथवा
क्षेत्रवाद को दूर करने के लिए दो सुझाव दीजिए।
उत्तर:

  • सरकार को हरेक क्षेत्र, हरेक राज्य को समान तथा उस क्षेत्र की मांगों के अनुसार अनुदान तथा सहायता देनी चाहिए ताकि उनमें असंतोष न फैले।
  • किसी विशेष क्षेत्र को और क्षेत्रों के ऊपर अधिक महत्त्व न दिया जाए ताकि और क्षेत्रों के लोगों में हीनता की भावना न आए।
  • देश में शिक्षा की दर बढ़ानी चाहिए तथा उन्हें उच्च शिक्षा लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि लोग पढ़-लिख कर क्षेत्रवाद की भावना से ऊपर उठ कर देश के हितों के लिए कार्य करें।
  • देश में अधिक-से-अधिक रोज़गार के साधन उपलब्ध करवाए जाने चाहिए ताकि लोगों का ध्यान इस ओर न जाए।

प्रश्न 19.
प्रदत्त पहचानों तथा सामुदायिक भावना की तीन विशेषताएं बताएं।
उत्तर:

  • लोग प्रदत्त पहचानों तथा सामुदायिक भावना से काफ़ी गहरे रूप से जुड़े होते हैं। यह हमारी दुनिया को सार्थकता प्रदान करते हैं तथा हमें एक पहचान प्रदान करते हैं कि हम कौन हैं।
  • प्रदत्त पहचाने तथा सामुदायिक भावनाएँ सर्वव्यापक होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति की एक मातृ-भूमि होती है। एक मातृ-भाषा होती है, उनका एक परिवार होता है तथा निष्ठा भी होती है।
  • हम सभी अपनी अपनी प्रदत्त पहचानों के प्रति समान रूप से प्रतिबद्ध तथा वफादार होते हैं। चाहे हरेक की प्रदत्त पहचानों में कुछ अंतर होता है। परंतु फिर भी प्रतिबद्धता की संभावना लगभग अधिकांश लोगों में पाई जाती हैं।
  • प्रदत्त पहचान संबंधी द्वंद्व या विवाद की स्थिति में परस्पर सम्मत सच्चाई के किसी भाव को स्थापित करना बहुत कठिन होता है।

प्रश्न 20.
भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है। कैसे?
उत्तर:
यह सच है कि भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है। संविधान में यह घोषणा की गई है कि भारत एक धर्म निरपेक्ष राज्य होगा। परंतु धर्म, भाषा तथा अन्य कारकों को सार्वजनिक क्षेत्र में पूर्णतया निष्कासित नहीं किया गया है। सच तो यह है कि इन समुदायों को व्यक्त रूप से मान्यता दी गई है। अंतर्राष्ट्रीय मानकों की दृष्टि से अल्पसंख्यक धर्मों को अत्यंत प्रबल संवैधानिक सुरक्षा प्रदान की गई है।

संविधान ने हरेक धर्म को उसकी संस्कृति को बचा कर रखने, उसके प्रचार प्रसार करने की आज्ञा दी है। हरेक व्यक्ति को कोई भी धर्म मानने तथा अपनाने की आज्ञा दी गई है। संविधान में यह भी कहा गया है कि सभी धर्म कानून की दृष्टि में समान हैं तथा किसी भी धर्म के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा। सरकार तथा राज्य का कोई धर्म नहीं होगा। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारत एक धर्म निरपेक्ष राज्य है।

प्रश्न 21.
सिक्खों में सुधार आंदोलन कैसे तथा कब चले?
उत्तर:
सिक्ख धर्म की स्थापना गुरु नानक देव जी ने की थी। 19वीं शताब्दी आते-आते सिक्ख धर्म में काफ़ी बुराइयां आ चुकी थीं। गुरुद्वारों पर महंतों का कब्जा था तथा उन्होंने गुरुद्वारों को अपनी अय्याशी का अड्डा बनाया हुआ था। इन महंतों के ऊपर अंग्रेज़ों का हाथ था। सबसे पहले 1880 के दशक में सिंह सभा की स्थापना हुई तथा इन की स्थापना कई जगहों पर हुई। इन का मुख्य उद्देश्य सिक्खों को ईसाई बनने से रोकना, सिक्खों को अपने धर्म पर टिके रहना तथा सिक्ख धर्म का प्रचार करना था।

इसके बाद 1920 वाले दशक में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की स्थापना हुई ताकि गुरुद्वारों को महंतों के चंगुल से छुड़ाया जा सके। बहुत संघर्ष के बाद इनको सफलता मिल गई। उसके बाद यह कमेटी सिक्खों में सुधार तथा धर्म प्रचार का कार्य करती आयी है।

प्रश्न 22.
सिक्ख धर्म की विशेषताएं बताओ।
उत्तर:
सिक्ख शब्द का अर्थ है शिष्य या चेला। इसका मतलब है कि जो भी कोई सिक्ख बनेगा वह अपने गुरु की आज्ञा तथा सीख का पालन करेगा। इस तरह सिक्खों में दस गुरुओं से सिक्ख धर्म का विकास हुआ। इनका पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब है जिनमें गुरुओं की बाणी दर्ज है। सिक्ख धर्म के अनुसार ईश्वर एक है तथा उसी में आस्था रखनी चाहिए, सारे लोग ईश्वर की नज़र में समान हैं इसलिए हमें ऊँच-नीच की भावना को त्याग देना चाहिए। हमें मानव तथा मानवता से प्रेम करना चाहिए, अगर गुरु या ईश्वर को पाना है तो हमें भक्ति का मार्ग अपनाना चाहिए तथा सांसारिक जीवन में रहते हुए ही भक्ति भी करनी चाहिए।

प्रश्न 23.
मुसलमानों में सुधार आंदोलन किस ने तथा कब चलाया?
उत्तर:
मुसलमानों में सुधार आंदोलन चलाने वाले व्यक्ति का नाम था सर सैय्यद अहमद खान। उन्होंने 1857 में बाद देखा कि किस तरह अंग्रेज़ मुसलमानों को दबा रहे हैं। उन्होंने मुसलमानों से अंग्रेजों का वफ़ादार बनने की अपील की ताकि अंग्रेज़ मुसलमानों को ऊपर उठाने के कार्य कर सकें। वह मुसलमानों को एक मंच पर लाए तथा उन्होंने मुसलमानों को अंग्रेजों के विरुद्ध न जाने के लिए कहा। उन्होंने कई स्कूल कॉलेज खोले जिनमें अलीगढ़ कॉलेज सबसे प्रसिद्ध हुआ।

उन्होंने औरतों की शिक्षा पर जोर दिया। उन्होंने पर्दा प्रथा तथा तीन बार कहने पर तलाक हो जाने का विरोध किया ताकि मुस्लिम महिलाओं को ऊपर उठाया जा सके। उन्होंने कई अनाथ आश्रमों की स्थापना भी की। इसके अलावा अहमदिया आंदोलन भी चला जिसने इस्लाम धर्म में सुधार करने का बीड़ा उठाया। खान अब्दुल गफ्फार खान ने भी N.W.F.P. में मुसलमानों के उद्धार के लिए काफ़ी काम किया।

प्रश्न 24.
देश में एकता कायम रखने में अल्पसंख्यक क्या भूमिका निभा सकते हैं?
उत्तर:

  • अल्पसंख्यक को पढ़ना-लिखना चाहिए ताकि वे अपने आपको धर्म-जाति जैसी चीजों से ऊपर उठा सकें।
  • हिंदू तथा मुसलमानों में लगातार मेल-जोल बढ़ते रहना चाहिए ताकि सांप्रदायिक दंगे न हो।
  • मुसलमानों को ज्यादा शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए ताकि वे आर्थिक तौर पर सुदृढ़ हो सकें तथा दंगों के बारे में न सोचें।
  • सरकार को अल्पसंख्यकों को हर प्रकार की सुरक्षा देनी चाहिए ताकि वे अपने आपको सुरक्षित महसूस करके देश की एकता के लिए काम करें।

प्रश्न 25.
अल्पसंख्यकों को किस प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है?
उत्तर:

  • यूं तो हमारे देश में धार्मिक आधार पर कोई भेदभाव नहीं है पर फिर भी अल्पसंख्यक यह महसूस करते हैं कि उनके साथ धर्म के आधार पर भेदभाव होता है जिस वजह से वह हमेशा असुरक्षा की भावना में जीते हैं।
  • अल्पसंख्यकों में शिक्षा का बहुत ज्यादा अभाव है। भारत के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समूह मुसलमानों में साक्षरता दर सबसे कम है। शिक्षा न होना कई और समस्याओं जैसे बेरोज़गारी, गरीबी इत्यादि को जन्म देती है।
  • सांस्कृतिक पृथक्कता की वजह से अल्पसंख्यक समूह अपने आपको और समूहों से अलग रखने का प्रयास करते हैं जिस वजह से वह मुख्य धारा से दूर हो जाते हैं।
  • आर्थिक तौर पर भी अल्पसंख्यक गरीब हैं क्योंकि साक्षरता दर कम होने की वजह से उनको अच्छा काम जिसमें ज्यादा पैसा ही मिल नहीं पाता तथा वह गरीब रह जाते हैं।

प्रश्न 26.
अल्पसंख्यक आयोग के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
सन् 1978 में अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की गई थी। इसका एक अध्यक्ष तथा एक सदस्य होता है जोकि अल्पसंख्यक समूह से ही होता है। आयोग अल्पसंख्यकों की शिकायतों को सुनता है, अल्पसंख्यकों की स्थिति का समय-समय पर मूल्यांकन करता है। उनमें सदस्यों के कल्याण के लिए सरकार के सामने सुझाव पेश करता है। भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए भी एक भिन्न आयोग होता है। 1993 में अल्पसंख्यक आयोग की जगह राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की गई थी।

प्रश्न 27.
सूचना के अधिकार में नागरिकों को क्या अधिकार दिए हैं?
उत्तर:
सूचना के अधिकार में नागरिकों को अधिकार हैं-

  • किसी भी सूचना के लिए अनुरोध करने
  • दस्तावेजों की प्रतिलिपियाँ लेने
  • दस्तावेज़ों, कार्यों और अभिलेखों का निरीक्षण करने
  • कार्य की सामग्रियों के प्रमाणित नमूने लेने का अधिकार है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राचीन भारत में एकता के कौन-कौन से तत्त्व थे?
उत्तर:
भारत का समाज बहुत प्राचीन है। इतिहासकारों के अनुसार यह 3000 ईसा पूर्व से शुरू होकर 700 ई० तक चला। इस तरह यह लगभग 3700 साल तक चला तथा इन सैंकड़ों सालों के दौरान भारतीय संस्कृति ने बहुत तरक्की की। इसी समय के दौरान भारतीय समाज की मूल परंपराएं विकसित हुईं। इसी समय भारतीय सामाजिक संगठन के आधारों तथा परंपराओं का भी विकास हुआ। वर्ण व्यवस्था, आश्रम व्यवस्था, जाति व्यवस्था इत्यादि आधारशिलाएं इसी समय दौरान पैदा हुईं तथा धर्म, कर्म, पुरुषार्थ, पुनर्जन्म इत्यादि विचारधाराएं भी इस समय आगे आईं।

चाहे प्राचीन काल के आधारों और विचारधाराओं तथा आज के आधारों तथा विचारधाराओं में काफ़ी परिवर्तन आ चुके हैं पर फिर भी भारतीय समाज में किसी-न-किसी तरह इन संस्थाओं का महत्त्व देखने को मिल जाता है। इनकी वजह से ही कई प्रकार की विभिन्नताओं के होते हुए भी भारत में एकता नज़र आती है। इस तरह प्राचीन भारत में एकता के निम्नलिखित तत्त्व थे-
1. ग्रामीण समाज-प्राचीन भारत ग्रामीण समाज पर आधारित था। जीवन पद्धति ग्रामीण हुआ करती थी। लोगों का मुख्य कार्य कृषि हुआ करता था। काफ़ी ज्यादा लोग कृषि या कृषि से संबंधित कार्यों में लगे रहते थे। जजमानी व्यवस्था प्रचलित थी। धोबी, चर्मकार, लोहार इत्यादि लोग सेवा देने का काम करते थे। इनको सेवक कहते थे। बड़े बड़े ज़मींदार सेवा के बदले पैसा या फसल में से हिस्सा दे देते थे। यह जजमानी व्यवस्था पीढ़ी दर पीढ़ी चलती थी। इस सबसे ग्रामीण समाज में एकता बनी रहती थी। नगरों में बनियों का ज्यादा महत्त्व था पर साथ ही साथ ब्राह्मणों इत्यादि का भी काफ़ी महत्त्व हुआ करता था। यह सभी एक-दूसरे से जुड़े हुआ करते थे जिससे समाज में एकता रहती थी।

2. संस्थाएं-समाज की कई संस्थाओं में गतिशीलता देखने को मिल जाती थी। परंपरागत सांस्कृतिक संस्थाओं में से नियुक्तियाँ होती थीं। शिक्षा के विद्यापीठ हुआ करते थे और बहुत सारी संस्थाएं हुआ करती थीं जो कि भारत में एकता का आधार हुआ करती थीं। ये संस्थाएं भारत में एकता का कारण बनती थीं।

3. भाषा-सभी भाषाओं की जननी ब्रह्म लिपि रहती है। हमारे सारे पुराने धार्मिक ग्रंथ जैसा कि वेद, पुराण इत्यादि सभी संस्कृत भाषा में लिखे हुए हैं। संस्कृत भाषा को पूरे भारत में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। इस को देववाणी भी कहते हैं क्योंकि यह कहा जाता है कि देवता की भी यही भाषा है।

4. आश्रम व्यवस्था- भारतीय समाज में एकता का सबसे बड़ा आधार हमारी संस्थाएं जैसे आश्रम व्यवस्था रही है। हमारे जीवन के लिए चार आश्रमों की व्यवस्था की गई है जैसे ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास। व्यक्ति को इन्हीं चार आश्रमों के अनुसार जीवन व्यतीत करना होता था तथा इनके नियम भी धार्मिक ग्रंथों में मिलते थे। यह आश्रम व्यवस्था पूरे भारत में प्रचलित थी क्योंकि हर व्यक्ति का अंतिम लक्ष्य है मोक्ष प्राप्त करना जिसके लिए सभी इसका पालन करते थे। इस तरह यह व्यवस्था भी प्राचीन भारत में एकता का आधार हुआ करती थी।

5. पुरुषार्थ-जीवन के चार प्रमुख लक्ष्य होते हैं जिन्हें पुरुषार्थ कहते हैं। यह है धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष। शुरू में सिर्फ ब्राह्मण हुआ करते थे। पर धीरे-धीरे और वर्ण जैसे क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र सभी का अंतिम लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति या मोक्ष प्राप्त करना होता था तथा सभी को इन पुरुषार्थों के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करना होता था। धर्म का योग अपनाते हुए, अर्थ कमाते हुए, समाज को बढ़ाते हुए मोक्ष को प्राप्त करना ही व्यक्ति का लक्ष्य है। सभी इन की पालना करते थे। इस तरह यह भी एकता का एक तत्त्व था।

6. कर्मफल-कर्मफल का अर्थ होता है काम। कर्म का भारतीय संस्कृति में काफ़ी महत्त्व है। व्यक्ति का अगला जन्म उसके पिछले जन्म में किए गए कर्मों पर निर्भर है। अगर अच्छे कर्म किए हैं तो जन्म अच्छी जगह पर होगा नहीं तो बुरी जगह पर। यह भी हो सकता है कि अच्छे कर्मों की वजह से आपको जीवन मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाए। इसी को कर्म फल कहते हैं। यह भी प्राचीन भारतीय समाज में एकता का एक तत्त्व था।

7. तीर्थ स्थान-प्राचीन भारत में तीर्थ स्थान भी एकता का एक कारण हुआ करते थे। चाहे ब्राह्मण हो या क्षत्रिय या वैश्य सभी हिंदुओं के तीर्थ स्थान एक हुआ करते थे। सभी को एकता के सूत्र में बाँधने में तीर्थ स्थानों का काफ़ी महत्त्व हुआ करता था। मेलों, उत्सवों, पर्वो पर सभी इकट्ठे हुआ करते थे। तीर्थ स्थानों पर विभिन्न जातियों के लोग आया करते थे, संस्कृति का आदान-प्रदान हुआ करता था।

इस तरह वह एकता के सूत्र में बँध जाते थे। काशी, कुरुक्षेत्र, हरिद्वार, रामेश्वरम्, वाराणसी, प्रयाग, चारों धाम प्रमुख तीर्थ स्थान हुआ करते थे। इस तरह इन सभी कारणों को देख कर हम कह सकते हैं कि प्राचीन भारत में काफ़ी एकता हुआ करती थी तथा उस एकता के बहुत-से कारण हुआ करते थे जिनका वर्णन ऊपर किया गया है।

प्रश्न 2.
भारतीय समाज में विभिन्नता में एकता का वर्णन करो।
उत्तर:
भारत की सांस्कृतिक धरोहर इसके बहुजातीय, बहुधर्मी और बहुप्रजातीय समूहों की देन है। इस देश में जहाँ पर सोलह सौ से ज्यादा मातृभाषाएं अथवा बोलियां हैं और तीन हजार से ज्यादा जातियों में समाज का विभाजन हुआ है। उनके विश्वास, मान्यताएं, आदर्श और मूल्यों में काफ़ी भिन्नताएं हैं। इन भिन्नताओं के बाद भी इस देश में एकता दिखाई देती है। इन विविधताओं के बाद भी यह देश एकता के सूत्र में बंधा है इसके विभिन्न कारण हैं, उन्हें हम निम्न आधार पर देखेंगे-
1. भौगोलिक कारक (Geographical Factors)-भौगोलिक दृष्टि से भारत एक भिन्नताओं एवं विविधताओं का देश है। देश के उत्तर में विश्व की सबसे ऊँची पर्वत श्रेणी हिमालय है। सिंधु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र भारत में बहुत बड़े मैदानी क्षेत्र का निर्माण करते हैं। भारत में विश्व के सर्वाधिक वर्षा वाले क्षेत्र जैसे-गारो, खासी, मेघालय, पालमपुर आदि पाए जाते हैं तथा बहुत शुष्क मरुस्थल जैसे-थार भी पाए जाते हैं। यहाँ बहुत-से उपजाऊ क्षेत्रों के होने के साथ-साथ बंजर क्षेत्र भी हैं। पूरे वर्ष बर्फ से ढके क्षेत्र, शुष्क, मरुस्थलीय क्षेत्र भी पाए जाते हैं। कई बहुत घनी जनसंख्या क्षेत्र जैसे-उत्तर प्रदेश और कई निम्न घनत्व वाले क्षेत्र जैसे-सिक्किम भारत में हैं।

2. सामाजिक कारक (Social Factors)-सामाजिक भिन्नताओं में समाज की मूलभूत संस्था विवाह के भिन्न भिन्न स्वरूप देखने को मिलते हैं। कई जातियों में भ्रातृक बहुपति विवाह तो मुसलमानों में बहुपत्नी विवाह की प्रथा पाई जाती है। संयुक्त परिवार तथा एकाकी परिवार भी सामाजिक विविधता को दर्शाते हैं। कुछ ऐसे समूह हैं जिनके सदस्यों में ‘हम की भावना’ पाई जाती है जैसे परिवार, नातेदारी, पड़ोस आदि और कई ऐसे भी समूह हैं जिनकी सदस्यता सैंकड़ों, लाखों में है।

जैसे नगरीय समुदाय, राजनीतिक दल, औद्योगिक केंद्र। शहरी समुदायों में वर्षों पड़ोस में रहने के बावजूद एक दूसरे को नहीं पहचानते जबकि गांवों में पड़ोसी से संबंधित प्रत्येक पहलू का ध्यान एवं ज्ञान होता है। भारतीय समाज जातीय आधार पर भी हज़ारों समूहों में बंटा है परंतु इन विविधताओं के बावजूद भी समाज में विभिन्न आधारों पर एकता पाई जाती है।

भारत में विवाह एवं संयुक्त परिवार मुख्य परिवार व्यवस्थाएँ हैं। लेकिन अधिकांश स्थानांतरित व्यक्ति अपने परिवार व अन्य सदस्यों से त्यौहारों, उत्सवों पर मिलते हैं। राष्ट्रीय पर्यों तथा सामाजिक पर्यों को देश भर में मनाया जाना अपने आप में एकता का प्रतीक है।

3. धार्मिक कारक (Religious Factors)-भारत में हिंदू, बौद्ध, जैन, सिक्ख, मुस्लिम धर्म के लोग वैदिक एवं महाकाव्य काल से ही रह रहे हैं। फिर मुग़लों के पतन के पश्चात् अंग्रेजों के भारत आगमन के कारण इसाई धर्म भी भारतीय समाज का अभिन्न अंग बन गया। हिंदू तीन हजार से अधिक जातियों, मुसलमान 94 जातियों में बँटे हैं। इसी तरह इसाइयों में प्रोटेस्टेंट एवं कैथोलिक, बौद्ध धर्म में हीनयान एवं महायान, जैनों में पीतांबर एवं श्वेतांबर संप्रदाय हैं।

परंतु विभिन्न धार्मिक समूहों में कई बार दंगे भी भड़क उठते हैं। जैसे-27 फरवरी, 2002 में गुजरात में ‘गोधरा कांड’ देश की धार्मिक विविधता के अकार्य हैं। इन सबके बावजूद भी भारत की धार्मिक विविधता में भी आंतरिक एकता पाई जाती है। कहने को तो हिंदू, बौद्ध, जैन एवं सिक्ख चार अलग-अलग धर्म हैं परंतु यह सभी धर्म हिंदू धर्म से ही निकले हैं।

भारतीय मुसलमानों का भी काफ़ी भारतीयकरण हुआ है। भारत में इसाइयों की संख्या भले ही अधिक लगती हो परंतु इसाई मिशनरियों ने भारी संख्या में हिंदुओं को ईसाई बनाया है परंतु धर्म परिवर्तन से उनके विश्वासों एवं मूल्य-आदर्शों में परिवर्तन नहीं हुआ है। होली, दिवाली, दशहरा, ईद, गुरुपर्व, क्रिसमिस, गुडफ्राई-डे सभी भारतीय हर्षोल्लास से मनाते हैं।

4. जातीय कारक (Caste Factors)-प्रायः सभी धर्मों के अनुयायी अनेक जातियों एवं उपजातियों में बँटे हुए हैं। वैदिक काल से प्रारंभ हए कर्म एवं गण के आधार पर चार वर्ण अंतःवर्ण (Intra-Varna) से हजारों जातियों में परिवर्तित हो गए। अहीर जाति में 1700 तथा ब्राह्मणों की 639 की उपजातियां थीं। वर्तमान समय में 3000 जातियां पाई जाती हैं। केवल हिंदुओं में ही नहीं बल्कि मुसलमानों में भी 94 जातियाँ पाई जाती हैं।

बौद्धों में हीनयान-महायान, जैनों में श्वेतांबर-पीतांबर, ईसाइयों में प्रोटेस्टैंट तथा कैथोलिक संप्रदाय भी हिंदुओं की जातियों की तरह ही विभाजित हैं। प्रत्येक जाति के अपने-अपने विश्वास, मान्यताएं एवं महापुरुष रहे हैं। स्वतंत्रोपरांत सरकार द्वारा जातीय समूह को चार श्रेणियों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़े वर्गों तथा सामान्य (general) श्रेणी में वर्गीकृत कर दिया गया है।

पिछड़े वर्ग एवं जातियों के विभिन्न संस्थाओं में आरक्षण के कारण जातीय स्तरीकरण काफ़ी कम हुआ है। विभिन्न जातियों के सदस्यों द्वारा बसों-गाड़ियों में एक साथ सफर करने, शैक्षणिक संस्थाओं में इकट्ठे शिक्षा ग्रहण करने एवं सरकारी कार्यालयों तथा औदयोगिक केंद्रों में इकट्ठे काम करने से जातीय बंधनों में शिथिलता आई है।

5. जनजातीय कारक (Tribal Factor)-देश के पहाड़ों, जंगलों तथा दुर्गम क्षेत्रों में सैंकड़ों जनजातीय समूह निवास करते हैं। भारतीय संविधान में ही 560 जनजातियों का उल्लेख किया गया है जोकि देश में जनजातीय विविधता का परिचायक है। जैसे-गौंड, भील, मुंडा, नागा आदि। जनजाति अपनी पहचान बनाने हेतु आंदोलन का सहारा भी लेती हैं।

नवंबर, 2000 में झारखंड, छत्तीसगढ़, उत्तरांचल तथा स्वतंत्रता के बाद में मिज़ोरम, नागालैंड, मेघालय आदि प्रदेशों का निर्माण जनजातीय संघर्ष एवं आंदोलनों का प्रतिफल है। जनजातीय विविधता के कारण खतरा तब पैदा होता है जब वह अलग होने के लिए आंदोलन का रास्ता अपनाती हैं।

तीय विविधता में भी एकता का निवास है। लगभग 90% जनजातीय सदस्यों का हिंदकरण हो गया है। ये लोग हिंदू देवी-देवताओं की आराधना करते हैं। इतनी बड़ी आबादी द्वारा जनजातियों द्वारा हिंदू धर्म के विश्वासों तथा अनुष्ठानों का अनुकरण करना जनजातीय विभिन्नता में एकता को दर्शाता है।

6. भाषायी कारक (Linguistic Factors)-भारत एक बहुभाषी समाज है और भारतीय संविधान में 14 भाषाओं को मान्यता प्रदान की है। कुछ सालों पश्चात् सिंधी, नेपाली, कोंकणी और मणिपुरी को संविधान में संम्मिलित कर लिया गया। हिंदी को राष्ट्रीय या राजकीय भाषा, अंग्रेज़ी को संपर्क भाषा के रूप में मान्यता मिली। भाषा के आधार पर भारतीय समाज कितना विभाजित है इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि सन् 1953 में तमिलनाडु से अलग कर तेलगू भाषी आंध्र प्रदेश की स्थापना की गई थी।

दक्षिण भारत के लोग हिंदी भाषा को अपनाने के समर्थ में नहीं हैं। परंतु इतनी विविधता के बावजूद भाषाई एकता पाई जाती है। देश के अधिकांश लोग हिंदी बोलते, पढ़ते, लिखते व समझते हैं। दक्षिण भारत में मुख्यतः द्रविड़ भाषाओं (तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम) और उत्तरी व पश्चिमी भारत में इंडो आर्यन भाषाओं का प्रयोग होता है। भारत में शिक्षा प्रचार प्रसार के कारण ही यह संभव हुआ है कि देश के सभी लोग हिंदी या अंग्रेजी में आपस में विचार-विमर्श कर सकते हैं।

7. सजातीय कारक (Ethnic Factors)-भारतीय समाज को यदि प्रजातियों का अजायबघर कहा जाए तो यह गलत नहीं होगा। भारतीय समाज बहुजनीय (Polygenetico) है। यह कई प्रजातियों का मिश्रण है। भारत में मुख्य तौर पर छः प्रजातियों-प्रोटो ऑस्ट्रेलायड, द्रविड़ (मैडिट्रेनियन), नीग्रिटो, मंगोलायड, नौर्डिक आर्य तथा ब्राची सेफाल के लक्षण पाए जाते हैं परंतु श्वेत एवं अश्वेतों के बीच अफ्रीका एवं अमेरिका आदि देशों की तरह भारतीय प्रजातियों में संघर्ष नहीं पाए जाते हैं। वास्तव में विभिन्न प्रजातियों के सदस्य अंतः प्रजातीय विवाह तथा सांस्कृतिक रूप से इस प्रकार घुल-मिल गए हैं कि उनकी पूर्णतः अलग प्रजाति के रूप में पहचान करना कठिन है।

8. सांस्कृतिक कारक (Cultural Factors)-लोकरीतियों, प्रथाओं, आदर्शों, मूल्यों, नियमों, विश्वासों, भाषाओं तथा साहित्य आदि सभी में सांस्कृतिक आधार पर काफ़ी भिन्नताएं पाई जाती हैं। विभिन्न नृत्यों जैसे हिमाचल में नाटी, पंजाब में भांगड़ा एवं गिद्दा, तमिलनाडु में भरतनाट्यम, कर्नाटक में कत्थक आदि में भी विविधता पाई जाती है।

विभिन्न धर्मों में, मेलों में, त्योहारों में, उत्सवों को मनाने के आधार पर भी भारत में विभिन्नताएँ पाई जाती हैं। दक्षिण भारत में पोंगल, गणेश चतुर्थी आदि और उत्तर भारत में दीवाली, लोहड़ी, भूमर आदि बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं। इसी प्रकार वेशभूषा के आधार पर दक्षिण भारत में लुंगी, राजस्थान में धोती-कुर्ता व सिर पर साफा, पंजाब में सलवार-कुर्ता आदि पहनने का प्रचलन है।

इस प्रकार भारतीय संस्कृति बहुरंगी माला की तरह है। वास्तव में भारतीय समाज में विदेशियों के (अंग्रेज़ों) आगमन पर अपने सांस्कृतिक तत्त्वों का भारतीयकरण करके अपनाया। लेकिन सहिष्णुता, शिष्टाचार, भारतीयता में आस्था एवं विश्वास ऐसे सांस्कृतिक तत्त्व हैं जो पूरे देश में साझे रूप में देखने को मिलते हैं। हमारे वेद, पुराण, ग्रंथ, उपनिषद् आदि भी पूरे देश को एक सूत्र में पिरोते हैं।

9. कलाएँ, साहित्य एवं शिक्षा (Arts, Literature and Eduction)-भारतीय समाज में कलाओं के आधार पर नृत्य, संगीत, मूर्तिकला, चित्रकला आदि में काफ़ी भिन्नताएँ पाई जाती हैं। नृत्यों में कथकली, गिद्दा, भांगड़ा, गरबा, कुची पुड़ी इत्यादि नाम उल्लेखनीय हैं। अलग-अलग भाषाओं में लोकगीत, कीर्तन, भजन, गज़ल, टप्पा आदि विभिन्नता दर्शाते हैं। संस्कृत, अंग्रेज़ी, उर्दू, हिंदी, बंगाली, मराठी आदि उदाहरण साहित्यिक क्षेत्र में विविधता दर्शाते हैं।

साक्षरता के आधार पर या शैक्षणिक आधार पर प्रकांड पंडित, प्राध्यापक, डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक आदि व्यावसायिक तथा दूसरी तरफ निरक्षर, अज्ञानी लोग शैक्षणिक विविधता दर्शाते हैं। इन विविधताओं के बावजूद कलाओं, साहित्य एवं शिक्षाओं में एकता झलकती है। कालिदास का संस्कृत में, टैगोर का बंगाली में, राधाकृष्णन का अंग्रेज़ी में साहित्य भारतवासियों के लिए उत्तम उदाहरण हैं।

10. भावनात्मक कारक (Emotional Factors)-भावनात्मक विविधता में लोगों की निष्ठा जातीय, धार्मिक, भाषायी, क्षेत्रीय तथा सामुदायिक आदि आधारों पर बँटी हुई है। भारतीय व्यक्ति अपने आप को भारतीय कहने की अपेक्षा, बंगाली, मराठी, पंजाबी, हिमाचली, राजपूत, पारसी, ब्राह्मण आदि कहने में ज्यादा गौरव महसूस करता है। वह स्वयं को सबसे पहले जाति, धर्म, क्षेत्र आदि से संबंधित मानता है और इसके उपरांत ही भारत का नागरिक समझता है।

भारत दो सौ सालों के उपरांत गुलामी की जंजीरें तोड़कर आज़ाद हुआ और स्वतंत्रता की स्वर्ण जयंती मना पाया क्योंकि देशवासियों में भावनात्मक एकता पाई जाती रही है। विशेष परिस्थितियों में जैसे युद्ध के समय, खेल अवसरों पर, प्राकृतिक त्रासदियों (जैसे सुनामी) के समय भारतीयों में देशभक्ति, देशप्रेम, आत्म-समर्पण, बलिदान, त्याग, राष्ट्रवादिता तथा भारतीयता की भावना स्पष्ट दिखाई देती है। कारगिल संघर्ष के दौरान भारतीयों में अभूतपूर्व भावनात्मक एकता देखने को मिली जब देशवासियों ने तन-मन-धन से अपने देश के हितों की रक्षा, एकता व अखंडता के लिए सेवा व समर्पण भाव दिखाया। क्रिकेट जैसे खेलों में भी समाज में भावनात्मक एकता दृष्टिगोचर होती है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ

प्रश्न 3.
भारत में धार्मिक विविधता के कौन-से कारक हैं?
उत्तर:
धर्म में विविधता दो प्रकार की है-

  • आंतर धार्मिक विविधता (Intra-religious diversity)
  • अंतः धार्मिक विविधता (Inter-religious diversity)

1. आंतर धार्मिक विविधता (Intra-religious Diversity)-भारत के विभिन्न धर्मों (हिंदू, इस्लाम, ईसाई, सिक्ख, जैन, बौदध) में अनेकता के अनेक कारक विदयमान हैं। हिंदू धर्म में आर्य समाज, ब्रहम समाज, शैव, शाक्त, वैष्णव, वाम पंथी, कृष्ण भक्त, हनुमान भक्त, पेड़-पौधों की, पशुओं आदि की पूजा करने वाले लोग हैं। जातीय संस्तरण में ब्राह्मण सबसे उच्च स्थान पर थे। हिंदू धर्म में उच्च जातियों के लोगों को पवित्र और निम्न जातियों के लोगों को निम्न और अपवित्र माना जाता था।

निम्न जातियों को पूजा-पाठ, हवन-यज्ञ आदि करने पर रोक है। कई वेदों, उपनिषदों, मनुस्मृति में उल्लेख है किं ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण, क्षत्रिय भुजाओं से, वैश्य टांगों से तथा निम्न जातियां पैरों से पैदा हुए थे जिसके कारण जातीय आधार पर अस्पृश्यता पाई जाती थी। इस्लाम धर्म में शिया और सुन्नी, इसाई धर्म में प्रोटेस्टेंट एवं कैथोलिक संप्रदाय पाए जाते हैं। इसी प्रकार सिक्ख धर्म में नामधारी, अकाली, निरंकारी, सेवापंथी आदि संप्रदाय पाए जाते हैं। बौद्ध धर्म में हीनयान तथा महायान और जैनों में श्वेतांबर तथा पीतांबर प्रमुख संप्रदाय हैं।

2. अंतःधार्मिक भिन्नता (Inter-Religious Diversity) भारतीय समाज में हिंदू, मुसलमान, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन तथा पारसी आदि प्रमुख धर्मों के अनुयायी पाए जाते हैं। इन धर्मों में विविधता एवं अनेकता अग्रलिखित आधारों पर पाई जाती है-
(i) अलग भगवान् (Different Gods)-प्रत्येक धर्म के अपने-अपने इष्ट देवता हैं जैसे हिंदुओं मे ब्रह्मा, विष्णु, महेश, शक्ति, कृष्ण, राम आदि, मुसलमानों में हज़रत मुहम्मद, ईसाइयों में ईसा मसीह, सिक्खों के गुरु नान लेकर गुरु गोबिंद तक दस गुरु, बौदधों के महात्मा बुद्ध; जैनों के चौबीस तीर्थंकर-प्रथम ऋषभदेव से लेकर चौबीसवें वर्धमान महावीर तथा पारसियों जरथस्त्र ईश्वर, भगवान एवं धार्मिक गुरु माने जाते हैं।

(ii) धार्मिक ग्रंथ (Religious Books)-धार्मिक पुस्तकों में हिंदुओं में वेद, पुराण, उपनिषद, रामायण, महाभारत, श्रीमद्भगवत गीता आदि धार्मिक पुस्तकें हैं। इसी प्रकार ईसाइयों में बाइबल, मुस्लिमों में कुरान, सिक्खों में गुरु ग्रंथ साहिब तथा पारसियों में अवेस्तां पवित्र धार्मिक पुस्तकें हैं।

(iii) एकैश्वरवाद तथा बहुदेववाद (Monotheism and Polythesism)-ईश्वरों की संख्या पर आधारित हिंदुओं में ब्रह्मा, विष्णु, शिव, राम, कृष्ण, नरसिंह, शक्ति आदि विभिन्न भगवान् के रूपों की पूजा की जाती है। सिक्खों में दस गुरु, मुस्लिमों में अल्ला आदि। लेकिन सिक्ख, ईसाई, मुसलमान तथा पारसी एक ईश्वर में विश्वास रखते हैं। बौद्ध धर्म के लोग ईश्वर के अस्तित्व संबंधी कोई टिप्पणी नहीं करते जबकि जैन धर्म के अनुयायी ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते।

(iv) मूर्ति-पूजा (Idol Worship)-मूर्ति-पूजा के आधार पर हिंदू अपने सभी देवताओं की परिकल्पना एक निश्चित आकार की मूर्ति के रूप में करते हैं, परंतु ईसाई एवं मुसलमान मूर्ति-पूजा का कड़ा विरोध करते हैं।

(v) धार्मिक विश्वासों में विविधता (Diversity in Religious Beliefs)-विश्वासों के आधार पर हिंदू पुनर्जन्म, आत्मा की अनश्वरता, पाप-पुण्य तथा धार्मिक अनुष्ठानों में विश्वास रखते हैं। परंतु मुस्लिम पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करते। ईसाइयों का मानना है कि ईसा मसीह ईश्वर के पुत्र एवं दूत हैं। इसी प्रकार सिक्ख कर्मकांडों का विरोध करते हैं। गुरु नानक देव जी ने हिंदुओं के अनुष्ठानों का कड़ा विरोध किया है। बौद्ध पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं परंतु जैन धर्म के अनुयायी इस बात में विश्वास नहीं करते कि ईश्वर है। उनके अनुसार शरीर को कठोर कष्ट दिया जाना चाहिए।

(vi) पारस्परिक विरोधी (Mutually Opposing) भारतीय धर्मों के अनेक तत्त्व अन्य धर्मों का विरोध करते हैं या फिर अन्य धार्मिक मान्यताओं से विपरीत हैं। हिंदू धार्मिक मान्यतानुसार ब्राह्मण सभी जातियों में सर्वोच्च हैं। हिंदू पशु-पक्षियों की पूजा करते हैं, चढ़ते सूर्य को जल चढ़ाते हैं, मूर्तिपूजा करते हैं और पुनर्जन्म में भी विश्वास रखते हैं। मुसलमान व ईसाई मूर्ति पूजा के विरुद्ध हैं। बौद्ध, सिख एवं जैन ब्राह्मणों की सर्वोच्च स्थिति के कट्टर विरोधी हैं तथा हिंदू धार्मिक अनुष्ठानों एवं कर्मकांडों का विरोध करते हैं।

इन सबसे सिद्ध होता है कि धार्मिक विश्वासों में भिन्नता, अनेकता एवं पारस्परिक धार्मिक विरोधाभास पाए जाते हैं। कई बातों में एक धर्म विश्वास करता है तो दूसरा अविश्वास।

प्रश्न 4.
भारत में धार्मिक एकता के कारण बताओ।
उत्तर:
भारत में पाए जाने वाले विभिन्न धर्मों में आंतरिक एकता पाई जाती है जिनका वर्णन निम्नलिखित है-
1. एक हिंदू धर्म में आंतरिक एकता (Internal Unity in Hinduism) यद्यपि हिंदू धर्म के लोग विभिन्न देवी-देवताओं, असंख्य समाजों को, विभिन्न संप्रदायों में, विश्वासों में बँटे हुए हैं तथापि हिंदू धर्म में आंतरिक एकता पाई जाती है। ब्रह्मा, विष्णु, शिव, त्रिदेव के रूप हैं, विष्णु अवतार-राम, कृष्ण, नरसिंह, वाराह आदि एक ही रूप हैं और एक ही ईश्वर है।

वास्तव में हिंदू धर्म बहुत व्यापक धर्म है और वृहद् अवधारणा हैं। यह केवल पवित्र वस्तुओं में, अनुष्ठानों में विश्वास करने तक ही सीमित नहीं है। इसमें समाज द्वारा मान्यता प्राप्त मूल्यों एवं आदर्शों की अनुपालना भी शामिल है जैसे बड़ों का आदर करना, छोटों को प्यार करना, ज़रूरतमंदों की सहायता करना आदि। अतः हिंदू धर्म में विविधताओं में एकता की अनूठी व्यवस्था है।

2. भारतीय मूल के धर्मों में एकता (Unity among Religions of Indian Origin)-हिंदू, बौद्ध, जैन तथा सिक्ख धर्मों में ऐतिहासिक कारणों तथा व्यावहारिक कारणों से एकता के अनेक तत्त्व विद्यमान हैं। बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध स्वयं एक हिंदू क्षत्रिय थे। जैन धर्म के तीर्थंकर (चौबीसवें) महावीर जैन भी क्षत्रिय थे।

सिक्ख धर्म के संस्थापक गरु नानक जी ने हिंद धर्म के लोगों के कारण ही सिक्ख धर्म को स्थापित किया था। परंत इन सभी ने हिंदू धर्म में प्रचलित आडंबरों का विरोध किया। हिंदू एवं सिख धर्म में मौलिक एकता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि असंख्य हिंदू अपने एक पुत्र को हिंदू तथा दूसरे को सिक्ख बनाते हैं। हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act) सभी धर्मों के अनुयायियों पर समान रूप से लागू होते हैं।

3. भारतीय एवं गैर-भारतीय मल के धर्मों में एकता (Unity between Religions of Indian and Non-Indian Orisin)-हिंद. बौदध, सिक्ख एवं जैन भारतीय मल के धर्म हैं। परंत इस्लाम, ईसाई तथा पारसी गैर-भारतीय मल के धर्म हैं। हिंदू तथा विदेशी मूल के धर्मों में कई समानताएँ पाई जाती हैं। पारसी धर्म के लोग हिंदुओं की तरह उपनयन अथवा जनेऊ संस्कार करते हैं। उनमें यज्ञ, हवन, आहुतियों, आचमन, दान तथा अनेक हिंदुओं के अनुष्ठानों का प्रचलन है।

वे पित्रों का श्राद्ध भी करते हैं। कई भारतीय ईसाइयों एवं निम्न वर्ग के लोगों ने जातीय स्थिति से छुटकारा पाने हेतु धर्म परिवर्तन भी किया और कई लोग धर्मांतरण के कारण हिंदुओं से ईसाई भी बने लेकिन व्यवहार में मूल धर्म, धार्मिक ग्रंथों, मूल्यों, देवी-देवताओं में उनकी आस्था बनी रही। भारतीय मुसलमानों का भी काफ़ी भारतीयकरण हुआ है। अतः भारत में धर्मों की आपस में एकता के काफ़ी तत्त्व विद्यमान हैं।

4. धार्मिक त्योहारों एवं राष्ट्रीय पर्यों को मिलकर मनाना (To celebrate Religious and National festivals together)-देश के विभिन्न धार्मिक समुदायों के धार्मिक त्योहार-दीवाली, दशहरा, जन्माष्टमी, राम नवमी, महाशिवरात्रि, ईद-उल-जुहा, ईद-उल-फितर, क्रिसमिस, गुड फ्राइडे, गुरु नानक जन्म दिवस और राष्ट्रीय त्योहार जैसे गणतंत्र दिवस, गांधी जयंती, स्वतंत्रता और राष्ट्रीय त्योहार जैसे गणतंत्र दिवस, गांधी जयंती, स्वतंत्रता दिवस आदि आपस में मिल-जुल कर, खुशियों से मनाते हैं। पूरा भारतवर्ष इन त्योहारों को मनाने हेतु बढ़-चढ़ कर भाग लेता है।

5. धर्म-निरपेक्षवाद एवं समतावाद (Secularism and Equalitarianism)-भारत एक धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र है। सभी धर्मों के अनुयायी अपने-अपने धर्म के विकास एवं प्रचार के लिए स्वतंत्र हैं। सभी धर्मों को समान मौलिक अधिकार दिए गए हैं। संविधान में हर धर्म के हितों की रक्षा हेतु कई प्रावधान भी प्रदान किए गए हैं। संविधान में अनुच्छेद 25 से 28 द्वारा धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार दिए गए हैं। इस अनुच्छेद के अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को स्वीकार कर उसका प्रचार प्रसार कर सकता है। आयोग संविधान में धार्मिक अल्पसंख्यकों संबंधी प्रावधानों का मूल्यांकन करता है तथा उन्हें लागू करवाने हेतु यथोचित कदम भी उठाता है।

प्रश्न 5.
कौन-से भाषायी कारकों की वजह से भारत में विविधता पाई जाती है?
उत्तर:
भाषा अपनी बात कहने का अथवा अपना पक्ष रखने का प्रमख साधन है। यह प्रथम सांस्का संस्कृति की प्रमुख वाहक है। भाषा विचारों के आदान-प्रदान की मूलाधार है परंतु यह एक बहुत ही जटिल व्यवस्था स और अमेरिका के भाषाविदों के अनुसार विश्व में कुल 2796 भाषाएं बोली जाती हैं जिनमें से 1200 भाषाएँ अमरीकी एवं भारतीय जन-जातियों के लोग बोलते हैं। मंदारिन (Mandarin) भाषा विश्व की सबसे अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है।

उसके बाद अंग्रेजी और तृतीय स्थान पर हिंदी सर्वाधिक व्यक्तियों द्वारा बोली जाने वाली भाषाएँ हैं। भारत में राष्ट्रीय, स्थानीय और प्रांतीय स्तर पर भिन्न-भिन्न भाषाएं बोली जाती हैं। भारतीय समाज में बोली जाने वाली भाषाओं के आँकड़ों के मुताबिक भारत में कुल मातृ भाषाएँ 16 52 हैं। इनमें से केवल 22 भाषाओं को ही संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त है। देश में बोली जाने वाली कुल 826 भाषाओं में से 723 भारतीय मूल की तथा 103 विदेशी मूल अथवा गैर-भारतीय भाषाएँ हैं।

प्रमुख भाषाओं के नाम (Names of Main Languages)
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। उनमें से प्रमुख भाषाओं के नाम अग्रलिखित सारणी में दिए गए हैं-
HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ 1
संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त भाषाएँ (Languages Recognised by Constitution)-भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में भाषाओं की सूची दी गई है। पहले मान्यता प्राप्त भाषाओं की संख्या 1 4 थी परंतु 1992 में संविधान में तबदीली के तहत इन भाषाओं की संख्या बढ़कर 18 हो गई। देवनागरी लिपि (Devanagri script) में हिंदी को 14 सितंबर, 1949 को राजकीय भाषा (official language) के रूप में अपनाया गया। 2003 में आठवीं अनुसूची में संशोधन करके चार अन्य भाषाओं को मान्यता दी गई।

गैर-सवैधानिक मान्यता प्राप्त प्रमुख भाषाएँ (Non-Constitutionally Recognised Major Languages) भारतीय संविधान में मान्यता प्राप्त भाषाओं के अलावा तालिका में निर्दिष्ट तेरह भाषाएँ पाँच लाख या इससे अधिक लोगों द्वारा बोली जाती हैं। इनमें से हिमाचल प्रदेश में बोली जाने वाली पहाड़ी भाषा प्रमुख है। एक-से लोग मंडयाली तथा सिरमारी हि० प्र० के क्रमशः मंडी व सिरमौर जिले में बोलते हैं। 673 अन्य भारतीय भाषाएँ तथा 10 3 गैर–भारतीय भाषाएँ अपेक्षाकृत कम लोगों द्वारा बोली जाती हैं।

भारत के भाषा परिवार (Indian Language Families)-भारत की सभी भाषाओं को मुख्य रूप से छः भाषा परिवारों में बाँटा जा सकता है

  • नीग्रोइट (Negroid)
  • ऑस्ट्रिक (Austric)
  • चीनी-तिब्बती (Sino-Tibetan)
  • द्रविड़ (Dravadian)
  • इंडो-आर्यन (Indo-Aryan)
  • अन्य भाषा परिवार (Other Language Families)

इन छः भाषा परिवारों में भी भारत में बोली जाने वाली अधिकांश भाषाएँ दो भाषा परिवारों से संबंधित है जिनका वर्णन निम्नलिखित ह-
1. इंडो-आर्यन भाषा परिवार (Indo-Aryan Language Family)-आर्यों के आगमन के साथ इंडो-आर्यन भाषाओं का आगमन हुआ। यह एक ऐसा भाषाई समूह है जो देश की कुल आबादी का तीन-चौथाई हिस्सा घेरे हुए है।
इस समूह की प्रमुख भाषाएँ-

  • हिंदी
  • पंजाबी
  • बंगाली
  • गुजराती
  • मराठी
  • असमी
  • उड़िया
  • उर्दू
  • संस्कृत
  • कश्मीरी
  • सिंधी
  • पहाड़ी
  • राजस्थानी तथा
  • भोजपुरी।

इनसे स्पष्ट है कि संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त 22 भाषाओं में से दक्षिण की चार भाषाओं को छोड़कर सभी इंडो-आर्यन भाषा परिवार से संबंधित हैं।

2. द्रविड़ भाषा परिवार (Dravid Language Family) तमिल, तेलुगू, कन्नड़ एवं मलयालम प्रमुख द्रविड़ भाषाएँ हैं।
प्रमुख भाषाओं की भारत में स्थिति (Position of Major Languages in India)-हिंदी भाषा सबसे अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है। यह भाषा करीब 30% लोगों द्वारा बोली जाती है जो लगभग 24.78 करोड़ लोगों का समूह है। इसके बाद तेलगू भाषा, फिर बंगला भाषा और मराठी का चौथे पर स्थान है। भोजपुरी एवं राजस्थानी ही ऐसी दो भाषाएँ हैं जो 3 करोड़ से अधिक व्यक्तियों द्वारा बोली जाती हैं परंतु इन भाषाओं को संविधान से मान्यता प्राप्त नहीं है।

भारत की प्रमुख भाषाओं की विभिन्न राज्यों में स्थिति (Position of different languages in Indian States) हिंदी भाषा छः प्रदेशों की राजकीय भाषा है-हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश दिल्ली दि। हिंदी के अतिरिक्त विभिन्न राज्यों की राजकीय भाषा को निम्नलिखित सारिणी में दर्शाया जा सकता है-

राज्यराजकीय भाषा
1. असमअसमी
2. पशिचमी बंगालबंगाली
3. गुजरातगुजराती
4. महाराष्ट्रमराठी
5. उड़ीसाउड़िया
6. पंजाबपंजाबी
7. जम्मू-कश्मीरउर्दू
8. तमिलनाडुतमिल
9. आंध्र प्रदेशतेलुगू
10. कर्नाटककन्नड़
11. केरलमलयालम

इसके अतिरिक्त असम में आसामी भाषा लगभग 57% लोग बोलते हैं, कर्नाटक में कन्नड़ 65% जनसंख्या बोलती है, 55% जम्मू-कश्मीर के लोग कश्मीरी बोलते हैं, जबकि उर्दू यहाँ की राजकीय भाषा है। अंग्रेजी भाषा भारत की संपर्क भाषा है परंतु राजकीय भाषा नहीं। यह भाषा संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त भाषाओं में से नहीं है।

प्रश्न 6.
किस तरह भारत में भाषाई विविधता में एकता पाई जाती है?
उत्तर:
भाषाई विविधता में एकता विद्यमान है और इस तथ्य को प्रमाणित करने के लिए इसे निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत स्पष्ट किया गया है-
1. हिंदी एवं भाषाई एकता (Hindi and Liguistic Unity)-ग्यारहवीं शताब्दी में हिंदी भाषा की नींव रखी गई। साहित्यकारों ने अपनी लेखनी के माध्यम से इसे काफ़ी समृद्ध किया। तुलसीदास, कबीर, सूरदास, तिलक, दयानंद, बंकिमचंद्र चैटर्जी तथा महात्मा गांधी आदि ने हिंदी में साहित्य लिखकर इसे काफ़ी लोकप्रियता दी है। इस भाषा को हमारी भारतीय जनसंख्या का सबसे बड़ा हिस्सा समझता, बोलता एवं लिखता है। अपने घरों में टी०वी० मनोरंजन का साधन हिंदी ही प्रयोग करता है। यह सरल और आम बोलचाल की भाषा है।

14 सितंबर, 1949 के दिन हिंदी भाषा को संविधान से मान्यता प्राप्त हुई। छः राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में हिंदी को राजकीय भाषा घोषित किया गया। पूरे भारत में लोग हिंदी बोलते, समझते हैं और अहिंदी भाषा प्रदेशों में भी इसका काफ़ी प्रचलन है। देश की प्रथम पत्रिका का प्रकाशन हिंदी में ही हुआ था। हालांकि हिंदी पूर्णतः राष्ट्रीय भाषा नहीं बन पाई है। मगर यह देश की सामान्य भाषा अथवा लोक भाषा है।

2. इंडो-आर्यन भाषा परिवार एवं भाषाई एकता (Indo-Aryan Language Family and Linguistic Unity) इंडो-आर्यन भाषा परिवार भारतीय समाज का सबसे बड़ा भाषाई समूह है। हिंदी, पंजाबी, कश्मीरी, पहाड़ी, संस्कृत आदि इस भाषा समूह के अंतर्गत आते हैं। काफ़ी शब्द ऐसे हैं जो बिल्कुल कम परिवर्तन के साथ उसी रूप में प्रचलित हैं।

जैसे-माता को पंजाबी, हिमाचली, बंगाली, आसामी आदि सभी भाषाओं में ‘माँ’ बोला जाता है। उसी प्रकार ‘पानी’ को भी इन सभी भाषाओं में ‘पानी’ ही कहा जाता है। इसीलिए इन भाषाओं को समझना कठिन नहीं है। इन भाषाओं में शायद ही ऐसे कोई तकनीकी शब्द हों जो किसी की समझ में न आते हों।

वास्तव में भारत के छोटे जनजातीय समूहों में ही देश की अधिकांश भाषाएँ प्रचलित हैं। ये भाषाएँ भाषाई दर्शाती हैं, परंतु विभिन्न भाषाओं में आंतरिक एकता पाई जाती है। भाषाई विविधता एक समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न अंग है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ

प्रश्न 7.
धर्म-निरपेक्षता क्या होती है? धर्म-निरपेक्षता के क्या कारण हैं?
अथवा
धर्म-निरपेक्षवाद से आपका क्या अभिप्राय है?
अथवा
धर्म-निरपेक्षवाद क्या है?
अथवा
‘धर्म-निरपेक्षवाद’ पर संक्षिप्त नोट लिखें।
अथवा
धर्म निरपेक्षता से आप क्या समझते हैं? इसका विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
धर्म-निरपेक्षता का अर्थ (Meaning of Secularism) भारतीय समाज 20वीं शताब्दी से ही पवित्र समाज (Sacred Society) से एक धर्म निरपेक्ष (Secular Society) में परिवर्तित हो रहा है। इस शताब्दी के अनेक विद्वानों, विचारकों एवं राजनीतिज्ञों ने यह महसूस किया कि धर्म-निरपेक्षता के आधार पर ही विभिन्न धर्मों का देश भारत संगठित रह पाया है। धर्म-निरपेक्षता के आधार पर राज्य के सभी धार्मिक समूहों व धार्मिक विश्वासों को एक समान माना जाता है।

निरपेक्षता का अर्थ समानता या तटस्थता से है। राज्य सभी धर्मों को समानता की दृष्टि से देखता है तथा किसी के साथ भी धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता है। धर्म-निरपेक्षता ऐसी नीति या सिद्धांत है, जिसके अंतर्गत लोगों को किसी विशेष धर्म को मानने या पालन करने के लिए बाध्य नहीं किया जाता है।

धर्म निरपेक्षीकरण का अर्थ (Meaning of Secularization)-धर्म निरपेक्षीकरण को उस सामाजिक एवं सांस्कतिक प्रक्रिया के रूप में समझा जा सकता है जिनके दवारा धार्मिक एवं परंपरागत व्यवहारों में धीरे-धीरे तार्किकता या वैज्ञानिकता का समावेश होता जाता है। अनेक विद्वानों ने धर्म निरपेक्षीकरण को अग्रलिखित परिभाषाओं से परिभाषित किया है

डॉ० एम० एन० श्रीनिवास (Dr. M.N. Srinivas) के शब्दों में, “धर्म निरपेक्षीकरण या लौकिकीकरण शब्द का यह अर्थ है कि जो कुछ पहले धार्मिक माना जाता था, वह अब वैसा नहीं माना जा रहा है, इसका अर्थ विभेदीकरण की प्रक्रिया से भी है जो कि समाज के विभिन्न पहलुओं, आर्थिक, राजनीतिक, कानूनी और नैतिक के एक-दूसरे से अधिक पृथक् होने से दृष्टिगोचर होती है।” डॉ० राधा कृष्णन (Dr. Radha Krishnan) के अनुसार, “लौकिकीकरण या धर्म निरपेक्षीकरण, धार्मिक निरपेक्षता व धार्मिक सह-अस्तित्ववाद है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर धर्म-निरपेक्षीकरण एक सांस्कृतिक एवं सामाजिक प्रक्रिया है, जिसमें मानव के व्यवहार की व्याख्या धर्म के आधार पर नहीं, अपितु तार्किक आधार पर की गई है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत धर्म का प्रभाव कम हो जाता है तथा घटनाओं को कार्य-कारण संबंधों के आधार पर समझा जाता है।

आत्मगतता व भावुकता (Subjectivity and Emotionality) का स्थान वस्तुनिष्ठता (Objectivity) एवं वैज्ञानिकता ने ले ली है। अतः धर्म-निरपेक्षीकरण की प्रक्रिया में, धार्मिकता का ह्रास, बुद्धिवाद के महत्त्व, विभेदीकरण, वैज्ञानिकता, वस्तुनिष्ठता तथा व्यक्ति को किसी भी धर्म या धार्मिक सोपान की सदस्यता प्राप्त करने की स्वतंत्रता व अधिकार होता है।

धर्म निरपेक्षीकरण के कारण (Factor of Secularization)-धर्म-निरपेक्षीकरण से भारतीय समाज में सामाजिक एवं सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टिकोणों में काफ़ी परिवर्तन किये गये हैं। इन क्षेत्रों में प्रभाव को देखने से पहले उन कारणों को जानना ज़रूरी है जिन्होंने धर्म निरपेक्षीकरण को संभव बनाया है। धर्म-निरपेक्षीकरण के विकास के निम्नोक्त कारक हैं-

1. धार्मिक संगठनों में कमी (Lack of Religious Organisations) धार्मिक निरपेक्षीकरण की प्रक्रिया का विकास धार्मिक संगठनों का अभाव भी रहा है। भारतीय समाज में अनेक धर्मों के संप्रदाय पाए जाते हैं। इन संप्रदायों में हिंदू धर्म ही एक ऐसा संप्रदाय है जिनके अनेक मत पाये जाते हैं। बाकी धर्मों जैसे सिक्ख, ईसाई, मुस्लिम, इन सभी में एक ही मत व संप्रदाय होता है। इसी कारण ये लोग अपने संप्रदाय के प्रति काफ़ी कट्टर विचारधारा के होते हैं।

इसके विपरीत हिंदू धर्म में अनेक मतों के कारण कोई अच्छा संगठन नहीं है। एक हिंदू दूसरे हिंदू की धार्मिक आधार पर निंदा या आलोचना करता है। इस सबका प्रभाव हिंदू धर्म पर पड़ा। एक ओर तो लोग ब्राह्मणों के अत्याचारों एवं शोषण से दुःखी होकर हिंदू धर्म को अपनाया दूसरी ओर पढ़े-लिखे हिंदू इस धार्मिक कट्टरता से दूर होते चले गये। ये लोग हिंदू धर्म में पाये जाने वाले विश्वासों, अंधविश्वासों, कर्मकांडों, आदर्शों व मूल्य का विरोध कर रहे हैं। भारतीय समाज में ये सभी कारण धर्म निरपेक्षीकरण की प्रक्रिया में सहयोग देते आ रहे हैं।

2. भारतीय संस्कृति (Indian Culture)-भारतीय संस्कृति का अपने आप ही निरपेक्षीकरण हो रहा है क्योंकि भारतवर्ष एक धर्म निरपेक्ष (Secular Republic) गणराज्य है। एक धर्म निरपेक्ष राज्य होने के कारण अनेक धम जातियों के संप्रदाय एक-दूसरे के नज़दीक आते रहते हैं तथा एक-दूसरे संप्रदाय की अच्छाइयां व बुराइयों का भी ज्ञान अर्जित करते रहते हैं तथा उनका मूल्यांकन करते रहते हैं। इसके अतिरिक्त पाश्चात्य संस्कृति ने भी धर्म निरपेक्षीकरण के आधार पर परिवर्तनों में अहम् भूमिका निभाई है।

3. यातायात एवं संचार (Transportation and Communications)-यातायात व संचार की सुविधाओं में उन्नति होने से समाज में गतिशीलता को बढ़ावा मिला है। इन्हीं साधनों की वजह से नये-नये नगरों, व्यवसायों व उदयोगों का भी विकास हुआ। इन विभिन्न साधनों के द्वारा विभिन्न प्रकार के धर्म, जाति, प्रदेश व देश के लोग एक दूसरे के संपर्क में आते हैं। संपर्क में आने से ही आपसी विचारों का आदान-प्रदान हुआ। इससे विभिन्न धर्मों की तार्किक आलोचना की प्रवृत्ति को भी बढ़ावा मिला। इससे पवित्र-अपवित एवं छुआछूत के विचारों में कमी आई। ये सभी तत्त्व धर्म-निरपेक्षीकरण के विकास को प्रोत्साहित करते हैं।

4. पाश्चात्य संस्कृति (Western Culture)-भारतीय संस्कृति के ऊपर भी पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। पाश्चात्य संस्कृति ने भारतीय जीवन के सभी पहलओं पर प्रभाव डाला है। यहां के धर्म, कला, साहित्य, सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक जीवन में कई परिवर्तनों को पाश्चात्य संस्कृति के संदर्भ में समझा जा सकता है। वास्तव में धर्म-निरपेक्षीकरण की प्रक्रिया के विकास में पाश्चात्य संस्कृति का ही मूल रूप से सहयोग रहा है।

5. आधुनिक शिक्षा (Modern Education) वर्तमान समय की शिक्षा पद्धति ने भी धर्म-निरपेक्षीकरण की प्रक्रिया के विकास में सर्वोपरि भूमिका निभाई है। भारतवर्ष में आधुनिक शिक्षा पद्धति पाश्चात्य शिक्षा का ही रूप है। शिक्षा पद्धति में पाश्चात्य मूल्यों के विकास के साथ भारतीय मूल्यों में भी परिवर्तन हुआ। इसका प्रभाव सबसे अधिक धार्मिक विश्वासों व मूल्यों पर पड़ा आधुनिक शिक्षित व्यक्ति केवल मात्र धर्म के आधार पर अंध-विश्वासों, नियमों या बंधनों को नहीं अपनाता।

मूल्यांकन के पश्चात् ही अपने आपको उन बंधनों से बांधता है। वर्तमान शिक्षा पद्धति ने व्यक्ति की सोच को व्यावहारिकता व वैज्ञानिकता के आधार पर विकसित किया है। इसके साथ ही स्त्री शिक्षा को भी बढ़ावा मिला है। शिक्षा पद्धति में आये हुए परिवर्तनों के कारण ही भारतीय समाज में लिप्त कई बुराइयों जैसे-छुआछूत, अस्पृश्यता की भावना, जातीय आधार, उच्च शिक्षा आदि में कमी आई है। सहशिक्षा (Co-education) को भी अवसर दिया जाता है।

6. नगरीयकरण (Urbanization)-नगरीयकरण ने धर्म निरपेक्षीकरण में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। शहरों व नगरों में ही धर्म निरपेक्षवाद सबसे अधिक विकसित हुआ। नगरों में ऐसे वह सब साधन मौजूद होते हैं, जैसे विकसित यातायात व संचार की सुविधाएं, उच्च शिक्षा, भौतिकवाद, तार्किकतावाद या विवेकवाद, व्यक्तिवादिता, फैशन, पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव इत्यादि जो मिलकर धर्म-निरपेक्षीकरण की प्रक्रिया का विकास करते हैं।

प्रश्न 8.
धर्म निरपेक्षता के भारतीय सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर:
भारतीय सामाजिक और सांस्कृतिक, जीवन पर धर्म निरपेक्षता के प्रभाव (Impact of Secularization on Indian Social and Cultural Life)-डॉ० एम० एन० श्रीनिवास ने अपनी सुप्रसिद्ध कृति Social change in Modern India में धर्म-निरपेक्षीकरण के भारतीय सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन पर पड़े अनेक प्रभावों एवं परिणामस्वरूप होने वाले परिवर्तनों का सविस्तार उल्लेख किया जिसका वर्णन निम्नवत् है-
1. पवित्रता एवं अपवित्रता की धारणा में परिवर्तन (Change in the Concept of Purity and Pollution)-धर्म निरपेक्षीकरण के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में पवित्रता एवं अपवित्रता की धारणा काफ़ी परिवर्तित हुई है। इसके प्रभाव के कारण, जाति, व्यवसाय, खान-पान, विवाह, पूजा-अर्चना, संबंधी अनेक धारणाओं में धर्म का प्रभाव कम हुआ है तथा अपवित्रता संबंधी कट्टर विचारों में भी कमी आई है। विभिन्न जातियों के व्यक्ति आपस में इकट्ठे होकर रेल, बस आदि में यात्रा करते हैं।

मिलकर रैस्टोरैंट या रेस्तरां आदि में खाते-पीते हैं। एक जाति दूसरी जाति के व्यवसाय को अपना रही है। निम्न जाति के व्यक्ति उच्च जाति के व्यवसायों को अपना रहे हैं जिससे उनकी सामाजिक स्थिति भी पहले से बेहतर हुई है। संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के आधार पर भी निम्न जातियों ने उच्च जाति की उच्च जीवन-शैली को अपनाया है।

वर्तमान समय में परंपरागत पवित्रता एवं अपवित्रता संबंधी विचारधारा में परिवर्तन हुआ है। अब लोग किसी भी चीज़ को तार्किकता व स्वास्थ्य नियमों के आधार पर स्वीकार या अस्वीकार करने लगे हैं। इन सब तथ्यों के आधार पर स्पष्ट है कि धर्म निरपेक्षीकरण ने भारतीयों की विचारधारा में अनेक आधारों पर परिवर्तन किये।

2. जीवन चक्र एवं संस्कार में परिवर्तन (Change in Life Cycle and Rituals)-संस्कार हिंदू धर्म का मूल हैं। भारतीय समाज में मुख्यतः हिंदू धर्म में प्रत्येक कार्य का आरंभ संस्कारों के आधार पर ही होता है। हिंदू धर्म के अंतर्गत जब एक बच्चा अपनी मां के गर्भ में आता है, तभी ही गर्भदान संस्कार पूरा कर दिया जाता है तथा इसके पश्चात् समय-समय पर दूसरे संस्कार जैसे-चौल, नामकरण, उपनयन (जनेऊ संस्कार), समावर्तन, विवाह आदि किए जाते हैं। जब व्यक्ति अपना शरीर त्याग देता है तो भी अंतिम संस्कार (अंत्येष्टि) किया जाता है अर्थात् हिंदू समाज की नींव संस्कारों के बीच ही गड़ी हुई है।

वर्तमान समय में बढ़ते धर्म निरपेक्षीकरण के बढ़ते प्रभाव के कारण इन संस्कारों का संक्षिप्तिकरण हो रहा है। कुछ एक संस्कारों को ही पूरा किया जाता है तथा अन्य संस्कार जैसे-नामकरण, चौथ एवं उपाकर्म इत्यादि को पूरा नहीं किया जाता। ब्राह्मणों एवं उच्च जातियों में विधवा का मुंडन संस्कार किया जाता था जो अब लगभग न के बराबर है।

इसके साथ ही कुछ एक संस्कारों को एक साथ ही मिला दिया गया है; जैसे-उपनयन संस्कार विवाह के आरंभ में ही संपन्न करवा दिया जाता है। वर्तमान समय में दैनिक जीवन के कर्मकांड जैसे-स्नान, पूजा, अर्चना, वेद, पाठ, भजन-कीर्तन इत्यादि के लिये भी व्यक्ति नाम मात्र समय देता है। ये सब परिवर्तन बढ़ते धार्मिक निरपेक्षीकरण के कारण ही हैं।

3. परिवार में परिवर्तन (Change in Family)-भारतीय समाज में संयुक्त परिवार (Joint family) पारिवारिक व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण रूप है। सामाजिक जीवन में परिवार एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक संस्था माना जाता है। कृषि मुख्य व्यवसाय होने के कारण भारतीय समाज में संयुक्त परिवार व्यवस्था को ही उचित व्यवस्था माना जाता था। परिवार में सभी सदस्य मिलकर साझे रूप से ज़मीन पर खेती करते तथा साझे रूप से ही अपनी आवश्यकता पूर्ति के लिये अपनी आय का खर्च करते थे।

संयुक्त परिवार में संपूर्ण पारिवारिक सदस्य सामान्य हित के लिये कार्य करते थे। संयुक्त परिवार में एक साथ तीन या अधिक पीढ़ियों के सदस्य इकट्ठे घर (एक) में ही रहते थे। वर्तमान में बदलती परिस्थितियों के अनुसार संयुक्त परिवार में भी परिवर्तन हुआ। आज संयुक्त परिवारों का विघटन हो रहा है। इनकी जगह एकांगी परिवार विकसित हो रहे हैं।

संयुक्त परिवारों में जो कार्य पारिवारिक सदस्य मिल-जुल कर एक-दूसरे के सहयोग से पूरा करते थे, आज वही कार्य अनेक दूसरी समितियों व संस्थाओं को हस्तांतरित हो रहे हैं। वर्तमान समय में परिवार के वरिष्ठ सदस्यों के विचारों को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता।

इसके साथ अब बड़े-बूढ़े भी अपनी विचारधारा को नयी पीढ़ी के साथ परिवर्तित कर रहे हैं। परिवारों में जिन त्योहारों को धार्मिकता के आधार पर परंपरागत रूप से मनाया जाता था। उन त्योहारों को धार्मिक तथा सामाजिक अवसर अधिक माना जाता है। इन सब आधारों पर स्पष्ट हो जाता है कि पारिवारिक संस्था को धर्म-निरपेक्षीकरण ने पूर्णतः प्रभावित किया है।

4. ग्रामीण समुदाय में परिवर्तन (Change in Rural Community)-धर्म-निरपेक्षीकरण का प्रभाव नगरों के साथ-साथ ग्रामीण समुदाय में भी देखने को मिलता है। ग्रामीण समुदायों में जातीय पंचायतों के स्थान पर निर्वाचित पंचायतों का विकास हो रहा है। जहां पर भी ये जातीय पंचायतें अगर हैं भी तो वहां पर ये धार्मिक लक्ष्यों के आधार पर नहीं बल्कि राजनैतिक उद्देश्यों को लेकर संगठित की गई हैं। ग्रामीण समाज में प्रतिष्ठा व सम्मान जातीय या धार्मिकता के आधार पर होता था, वहां अब धन व संपत्ति के आधार पर होने लगा है।

वर्तमान समय में निम्न जातियों के व्यक्तियों को भी धन के आधार पर उच्च जाति के व्यक्तियों से अधिक सम्मान दिया जाने लगा है। ग्रामीण समाजों पर परिवार व विवाह संबंधों में भी धम-निरपेक्षीकरण के परिणामस्वरूप अंतर्विवाह (Intercaste-marriage) का प्रचलन बढ़ा है। ग्रामों में धार्मिक उत्सव को धार्मिकता के आधार पर कम तथा सामाजिक उत्सवों के रूप में अधिक मनाया जाने लगा है।

उपर्युक्त विवरण के आधार पर यह बात स्पष्ट हो जाती है कि धर्म-निरपेक्षीकरण की प्रक्रिया ने भारतीय समाज के सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन को मूल रूप से प्रभावित किया है। इस प्रक्रिया ने एक और नये सांस्कृतिक मूल्यों के विकास में योगदान दिया है तो दूसरी ओर भारतीय प्रथागत अथवा परंपरागत मूल्यों, आदर्शों को भी विघटित करने में अपनी भूमिका निभाई है।

प्रश्न 9.
भारतीय समाज पर जातिवाद का क्या प्रभाव पड़ा? जातिवाद को कैसे समाप्त किया जा सकता है?
अथवा
जातिवाद की समस्या को दूर करने के लिए सुझाव दीजिए।
उत्तर:
भारतीय समाज पर जातिवाद के प्रभाव:

  • जातिवाद के कारण भारतीय समाज हज़ारों जातियों तथा उप-जातियों में विभाजित हो गया जिनके अपने ही नियम, परिमाप थे।
  • जातिवाद के कारण भारतीय समाज को स्थिरता प्राप्त हुई तथा समाज बाहरी हमलों के कारण खिन्न-भिन्न होने से बच गया।
  • मध्य काल में भारतीय समाज पर अनेकों आक्रमणकारियों ने आक्रमण किए। जातिवाद के कारण भारतीय समाज की संस्कृति न केवल सुरक्षित रही बल्कि इसने विदेशी संस्कृतियों का भी आत्मसात कर लिया।
  • जाति प्रथा ने अपने आपको विदेशी प्रभाव से बचाने के लिए अलग-अलग जातियों पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगा दिए ताकि उनकी संस्कृति के प्रभाव से समाज को बचाया जा सके।
  • आधुनिक समय में जातिवाद के कारण उच्च तथा निम्न जातियों में द्वेष बढ़ गया है। निम्न जातियों को सरकार द्वारा कई सुविधाएं प्राप्त हैं जिस कारण उच्च जातियों को उनसे ईर्ष्या होने लगी है तथा उनमें ईर्ष्या बढ़ गई है।
  • निम्न जातियों को सरकार द्वारा जातिवाद के कारण ही हरेक स्थान पर आरक्षण प्राप्त हुआ है जिस कारण उनकी सामाजिक स्थिति ऊँची हो रही है।
  • जातिवाद के कारण अलग-अलग जातियों के नेता अपनी नेतागिरी चमकाने के लिए जातीय भावनाओं को भड़काते हैं ताकि अपनी जाति के लोगों की वोटें प्राप्त की जा सकें। इस कारण जातीय दवेष बढ़ रहा है।

जातिवाद को समाप्त करने के उपाय:

  • सभी राजनीतिक दलों को चाहिए कि वह जातिवाद का प्रयोग चुनावों में न करें ताकि जातिगत द्वेष बढ़ने की बजाए कम हो सके।
  • लोगों को अच्छी शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए ताकि वह जातिगत भावना से ऊपर उठ कर ठीक नेता का चुनाव कर सकें जो उनके विकास की बातें करे न कि अपनी नेतागिरी चमकाने की।
  • सरकारी कानूनों को ठीक ढंग से लागू करना चाहिए ताकि जातिगत भावनाओं को भड़काने वालों को कठोर दंड दिया जा सके।
  • अगर सरकार जातीय आधार पर कोई वित्तीय सहायता प्रदान करती है तो उसे तत्काल ही समाप्त कर देना चाहिए।
  • जनता भी इसमें अच्छी भूमिका निभा सकती है। जनता स्वयं ही ऐसे नेताओं तथा भावनाओं का बहिष्कार कर सकती है जो जातिवाद का प्रयोग करते हों।

प्रश्न 12.
भारतीय समाज में अल्पसंख्यकों का वर्णन करें।
अथवा
भारत के विभिन्न धार्मिक समूहों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
अगर किसी देश में अल्पसंख्यक सबसे ज्यादा हैं तो वह है भारत। भारत की लगभग 18% जनसंख्या अल्पसंख्यक है जो कि जनसंख्या के मुकाबले काफ़ी ज्यादा है। इनका वर्णन निम्नलिखित है-

राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक (Minorities at National Level)-भारतीय समाज में लगभग छः धार्मिक अल्पसंख्यक तथा सैकड़ों भाषाई अल्पसंख्यक समूह हैं। इन दोनों का वर्णन निम्नलिखित है-
1. धार्मिक अल्पसंख्यक (Religious Minorities)-भारत में धर्म के आधार पर शेष बाकी धर्म अल्पसंख्यक हैं क्योंकि और धर्मों की जनसंख्या के मुकाबले हिंदुओं की जनसंख्या काफ़ी ज्यादा है। निम्नलिखित तालिका से यह स्पष्ट हो जाएगा-

2011 में (प्रतिशत)
(a)हिंदू79.5 %
(b)मुस्लिम13.4 %
(c)ईसाई2.4 %
(d)सिक्ष2.1 %
(e)बौद्ध0.8 %
(f)जैन0.4 %
(g)पारसी तथा अन्य0.4 %

इस तालिका से हमें यह पता चलता है कि-

  • भारत में हिंदुओं को छोड़कर बाकी और धर्म अल्पसंख्यक है।
  • सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समूह मुस्लिम समुदाय है।
  • ईसाई दूसरे तथा सिक्ख तीसरे स्थान पर आते हैं।
  • बौद्ध, पारसी तथा जैन ऐसे अल्पसंख्यक समूह हैं जिनकी जनसंख्या हरेक की एक करोड़ से भी कम है।
  • मुस्लिम, पारसी तथा ईसाई विदेशी मूल में अल्पसंख्यक हैं तथा सिक्ख, बौद्ध तथा जैन भारतीय मूल के अल्पसंख्यक हैं।
  • पिछले आंकड़ों से पता चलता है कि ईसाइयों की जनसंख्या लगातार कम हो रही है।
  • हिंदू बहुसंख्यक हैं जो कि कुल जनसंख्या का 82% हैं।
  • हिंदुओं की जनसंख्या प्रतिशत में भी कमी हो रही है।

2. भाषाई अल्पसंख्यक (Linguistic Minorities)-भारतीय समाज में सैंकड़ों भाषाई अल्पसंख्यक समूह हैं क्योंकि यह कहा जाता है कि हर 12 कोस के बाद भाषा बदल जाती है। भारत में सबसे ज्यादा हिंदी बोली जाती है। प्रमुख भारतीय भाषाओं में से 2 करोड़ से ज्यादा किसी भाषा को बोलने वालों की सारणी निम्नलिखित है-

क्रमांकभाषाबोलने वालों की संख्या (करोड़ों में)
(a)हिंदी24.78
(b)तेलुगू7.20
(c)बंगला7.17
(d)मराठी6.62
(e)तमिल6.06
(f)उर्दू4.61
(g)गुजराती4.13
(h)मलयालम3.53
(i)कन्नड़3.47
(j)उड़िया3.17

इस तरह हमारे संविधान में कुछ भाषाओं का जिक्र है जिनको मान्यता प्राप्त है। वे हैं-आसामी, बांग्ला, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, मलयालम, मराठी, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, तमिल, तेलुगू, उर्दू, नेपाली, मणिपुरी, कोंकणी तथा डोगरी, संथाली, बोडो, मैथिली, सिंधी। ऊपर दी हुई तालिका में से निम्नलिखित बातें स्पष्ट होती हैं-

  • देश में सबसे ज्यादा हिंदी भाषा बोली जाती है।
  • 30% लोग हिंदी बोलते हैं।
  • तेलुगू, बंगला, मराठी तथा तमिल सबसे बड़े भाषाई अल्पसंख्यक समूह हैं।
  • भारत में 826 भाषाएं बोली जाती हैं।
  • भारतीय संविधान ने 22 भाषाओं को मान्यता दी है।
  • भारत में 700 से अधिक भारतीय मूल की भाषाओं को बोलने वाले अल्पसंख्यक समूह हैं।
  • देश में 100 से ज्यादा विदेशी मूल के भाषाएं बोलने वाले अल्पसंख्यक समूह हैं।

इस तरह हम देख सकते हैं कि भारत में बहुसंख्यक समूह हिंदू समुदाय का है तथा भाषा भी सबसे ज्यादा हिंदी ही बोली जाती है। बाकी सब धार्मिक तथा भाषाई समूह अल्पसंख्यक हैं।

प्रश्न 13.
अल्पसंख्यकों के उत्थान के लिए क्या संवैधानिक प्रावधान किए गए हैं?
अथवा
धार्मिक अल्पसंख्यकों के संरक्षण के लिए क्या-क्या कदम उठाए गए हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अल्पसंख्यकों को देश की मुख्य या राष्ट्रीय धारा से जोड़ने के लिए अनेक संवैधानिक प्रावधान तथा सरकारी प्रयास किए गए हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है-
(i) सभी भारतीयों को धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान के भेद के बिना समान मौलिक अधिकार प्राप्त हैं। अनुच्छेद 14 से 18 द्वारा सभी भारतीयों को समानता का अधिकार दिया गया है तथा धर्म, जाति, भाषा इत्यादि के आधार पर किसी भी व्यक्ति से कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता।

(ii) अनुच्छेद 25 से 28 के अंतर्गत सभी भारतीय नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है। अनुच्छेद 25 के अनुसार व्यक्ति किसी भी धर्म को अपना सकता है तथा धर्म प्रचार कर सकता है।

(iii) अनुच्छेद 29 तथा 30 के अनुसार सभी भारतीयों को शोषण के विरुद्ध अधिकार प्राप्त है। अनुच्छेद 29 के तहत कोई भी धर्म के आधार पर भेदभाव के बिना किसी भी शिक्षण संस्थान में प्रवेश पा सकता है तथा अपनी भाषा, लिपि तथा संस्कृति को बनाए रख सकता है।

(iv) अनुच्छेद 30 के अनुसार धार्मिक तथा भाषाई अल्पसंख्यकों को अपनी शिक्षा संस्थाएं स्थापित करने का अधिकार प्राप्त है। इसके अलावा भारत को धर्म निरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है। इसलिए राज्य का न तो अपना धर्म है तथा किसी भी धार्मिक समूह को राज्य का सरंक्षण प्राप्त नहीं है।

(v) अनुच्छेद 300 के अनुसार राज्य भी शिक्षण संस्था को सहायता देते समय किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करेगा।

(vi) अनुच्छेद 350 के अनुसार देश के अल्पसंख्यकों में बच्चों को प्राथमिक शिक्षा उनकी मातृ भाषा में दी जाए।

इसके अलावा एक अल्पसंख्यक आयोग का 1978 में गठन किया गया जिसका एक अध्यक्ष तथा एक सदस्य होता है जोकि अल्पसंख्यक समूह से ही होता है। आयोग अल्पसंख्यकों की शिकायतों को सुनता है, उनकी स्थिति का समय-समय पर मूल्यांकन करता है। उनके सदस्यों की समस्याओं के समाधान के लिए सरकार को सुझाव पेश करता है। भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए भी एक भिन्न आयोग है जोकि उनकी शिकायतों, समस्याओं तथा उनसे संबंधित मुददों का अध्ययन करता है। 1993 में अल्पसंख्यक आयोग की जगह राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया गया है। इसके बाद सन् 2000 में इसका फिर पुनर्गठन किया गया। इसके कार्य हैं

  • अल्संख्यकों के लिए संरक्षणों की क्रियाशीलता का मूल्यांकन करना।
  • सभी संरक्षण क लागू तथा अधिक कारगर बनाने के लिए सुझाव देना।
  • अल्पसंख्यकों को सुरक्षा तथा अधिकारों से वंचित किए जाने संबंधी शिकायतों को सुनना।
  • इनके साथ होने वाले भेदभाव के प्रश्न संबंधी अध्ययन तथा शोध कार्य करना।
  • अल्पसंख्यकों के लिए सही वैधानिक तथा कल्याणकारी कदमों के लिए सुझाव देना।
  • सरकार को समय-समय पर रिपोर्ट देना।

इस तरह अल्पसंख्यकों के लिए संवैधानिक प्रावधान किए गए हैं ताकि वह बहुसंख्यकों के साथ इकट्ठे रह सकें तथा अपने आपको असुरक्षित महसूस न करें।

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