Class 12

HBSE 12th Class Political Science Important Questions and Answers

Haryana Board HBSE 12th Class Political Science Important Questions and Answers

HBSE 12th Class Political Science Important Questions in Hindi Medium

HBSE 12th Class Political Science Important Questions: समकालीन विश्व राजनीति

HBSE 12th Class Political Science Important Questions: समकालीन विश्व राजनीति

HBSE 12th Class Political Science Important Questions in English Medium

HBSE 12th Class Political Science Important Questions: Contemporary World Politics

  • Chapter 1 The Cold War Era Important Questions
  • Chapter 2 The End of Bipolarity Important Questions
  • Chapter 3 US Hegemony in World Politics Important Questions
  • Chapter 4 Alternative Centres of Power Important Questions
  • Chapter 5 Contemporary South Asia Important Questions
  • Chapter 6 International Organisations Important Questions
  • Chapter 7 Security in the Contemporary World Important Questions
  • Chapter 8 Environment and Natural Resources Important Questions
  • Chapter 9 Globalisation Important Questions

HBSE 12th Class Political Science Important Questions: Politics in India since Independence

  • Chapter 1 Challenges of Nation Building Important Questions
  • Chapter 2 Era of One-party Dominance Important Questions
  • Chapter 3 Politics of Planned Development Important Questions
  • Chapter 4 India’s External Relations Important Questions
  • Chapter 5 Challenges to and Restoration of the Congress System Important Questions
  • Chapter 6 The Crisis of Democratic Order Important Questions
  • Chapter 7 Rise of Popular Movements Important Questions
  • Chapter 8 Regional Aspirations Important Questions
  • Chapter 9 Recent Developments in Indian Politics Important Questions

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HBSE 12th Class Political Science Solutions Haryana Board

Haryana Board HBSE 12th Class Political Science Solutions

HBSE 12th Class Political Science Solutions in Hindi Medium

HBSE 12th Class Political Science Part 1 Contemporary World Politics (समकालीन विश्व राजनीति भाग-1)

HBSE 12th Class Political Science Part 2 Contemporary World Politics (समकालीन विश्व राजनीति भाग-2)

HBSE 12th Class Political Science Solutions in English Medium

HBSE 12th Class Political Science Part 1 Contemporary World Politics

  • Chapter 1 The Cold War Era
  • Chapter 2 The End of Bipolarity
  • Chapter 3 US Hegemony in World Politics
  • Chapter 4 Alternative Centres of Power
  • Chapter 5 Contemporary South Asia
  • Chapter 6 International Organisations
  • Chapter 7 Security in the Contemporary World
  • Chapter 8 Environment and Natural Resources
  • Chapter 9 Globalisation

HBSE 12th Class Political Science Part 2 Politics in India since Independence

  • Chapter 1 Challenges of Nation Building
  • Chapter 2 Era of One-party Dominance
  • Chapter 3 Politics of Planned Development
  • Chapter 4 India’s External Relations
  • Chapter 5 Challenges to and Restoration of the Congress System
  • Chapter 6 The Crisis of Democratic Order
  • Chapter 7 Rise of Popular Movements
  • Chapter 8 Regional Aspirations
  • Chapter 9 Recent Developments in Indian Politics

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HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है?
(A) खुली अर्थव्यवस्था में विश्व के अन्य राष्ट्रों से आयात-निर्यात होता है
(B) विश्व की अधिकांश अर्थव्यवस्थाएँ खुली अर्थव्यवस्थाएँ हैं
(C) विश्व की अधिकांश अर्थव्यवस्थाएँ बंद अर्थव्यवस्थाएँ हैं
(D) खुली अर्थव्यवस्था में अन्य राष्ट्रों के साथ वित्तीय परिसंपत्तियों में भी व्यापार होता है
उत्तर:
(C) विश्व की अधिकांश अर्थव्यवस्थाएँ बंद अर्थव्यवस्थाएँ हैं

2. भुगतान शेष से अभिप्राय है
(A) निर्यात तथा आयात के दृश्य मदों में अंतर
(B) निर्यात तथा आयात के अदृश्य मदों में अंतर
(C) स्वर्ण के बाहरी तथा आंतरिक प्रवाह में अंतरं
(D) एक देश के निवासियों तथा दूसरे देश के निवासियों में किए गए आर्थिक सौदों का क्रमबद्ध लेखा
उत्तर:
(D) एक देश के निवासियों तथा दूसरे देश के निवासियों में किए गए आर्थिक सौदों का क्रमबद्ध लेखा

3. व्यापार शेष से अभिप्राय है
(A) वस्तुओं के निर्यात तथा आयात में अंतर
(B) सेवाओं के निर्यात तथा आयात में अंतर
(C) पूँजी के निर्यात तथा आयात में अंतर
(D) उपर्युक्त में से कोई भी नहीं
उत्तर:
(A) वस्तुओं के निर्यात तथा आयात में अंतर

4. भुगतान शेष में शामिल होते हैं-
(A) दृश्य मदें
(B) अदृश्य मदें
(C) पूँजी हस्तांतरण
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

5. व्यापार शेष में निम्नलिखित में से किसको शामिल नहीं किया जाता?
(A) सेवाओं के आयात-निर्यात को
(B) देशों के बीच ब्याज तथा लाभांश के भुगतान को
(C) पर्यटकों द्वारा व्यय को
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

6. भुगतान शेष के चालू खाते में निम्नलिखित में से कौन-से सौदे रिकॉर्ड किए जाते हैं?
(A) वस्तुओं तथा सेवाओं के आयात और निर्यात
(B) एक देश से दूसरे देश को एक-पक्षीय हस्तांतरण
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

7. भुगतान शेष के एक-पक्षीय हस्तांतरण-
(A) एक देश से दूसरे देश को एक-तरफा किए जाते हैं.
(B) इनका व्यावसायिक लेन-देन से कोई संबंध नहीं होता
(C) इनमें प्राप्तियों के बदले में कोई भुगतान नहीं किए जाते; जैसे-उपहार
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

8. भुगतान शेष के पूँजी खाते की मुख्य मदें निम्नलिखित में से कौन-सी हैं?
(A) विदेशी निवेश
(B) ऋण
(C) बैंकिंग पूँजी लेन-देन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

9. वे सभी पूँजीगत सौदे जिनके कारण विदेशी विनिमय का प्रवाह देश से बाहर को जाता है, उन्हें भुगतान शेष के पूँजी खाते में किन मदों में लिखा जाता है?
(A) धनात्मक मदों में
(B) ऋणात्मक मदों में
(C) शून्य मदों में
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) ऋणात्मक मदों में

10. निर्यात-आयात के मूल्य के अंतर को कहते हैं-
(A) व्यापार शेष
(B) भुगतान शेष
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) व्यापार शेष

11. केवल दृश्य मदों को शामिल किया जाता है-
(A) व्यापार शेष में
(B) भुगतान शेष में
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) व्यापार शेष में

12. व्यापार शेष
(A) भुगतान शेष + शुद्ध अदृश्य मदें
(B) भुगतान शेष – शुद्ध अदृश्य मदें
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) भुगतान शेष – शुद्ध अदृश्य मदें

13. स्वायत्त (Autonomous) मदें उन सौदों से संबंधित होती हैं जिनका-
(A) निर्धारण लाभ को ध्यान में रखकर किया जाता है
(B) संबंध भुगतान शेष की स्थिति से नहीं होता
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

14. समायोजक (Accommodating) मदें भुगतान शेष के खाते की वे मदें हैं जिनका
(A) निर्धारण लाभ को ध्यान में रखकर नहीं किया जाता
(B) संबंध देश के भुगतान शेष की धनात्मक अथवा ऋणात्मक स्थिति से होता है
(C) उद्देश्य भुगतान शेष की समानता स्थापित कराना होता है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

15. भुगतान शेष सदैव होता है
(A) प्रतिकूल
(B) संतुलित
(C) अनुकूल
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) संतुलित

16. व्यापार शेष की तुलना में भुगतान शेष है
(A) अधिक व्यापक
(B) कम व्यापक
(C) व्यापक भी तथा नहीं भी
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) अधिक व्यापक

17. भुगतान शेष के असंतुलन से अभिप्राय है-
(A) बचत वाला भुगतान शेष
(B) घाटे वाला भुगतान शेष
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

18. भुगतान शेष का घाटे वाला असंतुलन तब होता है जब-
(A) प्राप्तियों तथा भुगतानों का शुद्ध शेष ऋणात्मक (-) है
(B) प्राप्तियों तथा भुगतानों का शुद्ध शेष धनात्मक (+) है
(C) प्राप्तियों तथा भुगतानों का शुद्ध शेष बराबर (=) है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं ।
उत्तर:
(A) प्राप्तियों तथा भुगतानों का शुद्ध शेष ऋणात्मक (-) है

19. ब्रेटन वुड्स व्यवस्था किस वर्ष से प्रारंभ हुई?
(A) 1944 से
(B) 1960 से
(C) 1994 से
(D) 1947 से
उत्तर:
(A) 1944 से

20. यदि व्यापार शेष (-) 600 करोड़ रुपए है और निर्यात का मूल्य 500 करोड़ रुपए है तो आयात का मूल्य होगा
(A) -1,300 करोड़ रुपए
(B) 300 करोड़ रुपए
(C) 1,100 करोड़ रुपए
(D) 1,200 करोड़ रुपए
उत्तर:
(C) 1,100 करोड़ रुपए

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21. विनिमय दर से अभिप्राय अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाज़ार में एक करेंसी की अन्य करेंसियों के रूप में-
(A) कीमत से है
(B) विनिमय के अनुपात से है
(C) (A) और (B) दोनों
(D) वस्तु विनिमय से है
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

22. वर्तमान में विनिमय दरों के किस रूप को अपनाया जाता है?
(A) स्थिर विनिमय दरों के
(B) नम्य (लोचशील) विनिमय दरों के
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) नम्य (लोचशील) विनिमय दरों के

23. स्थिर विनिमय प्रणाली के अंतर्गत विनिमय दर का निर्धारण करेंसी की एक इकाई में निहित निम्नलिखित में से किसके आधार पर किया जाता है?
(A) चाँदी की मात्रा
(B) सोने की मात्रा
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) सोने की मात्रा

24. टकसाली दर से अभिप्राय है-
(A) समान क्रय-शक्ति
(B) दो करेंसियों में स्वर्ण का भार
(C) विदेशी करेंसी की माँग तथा पूर्ति
(D) दो देशों में कीमत स्तर
उत्तर:
(B) दो करेंसियों में स्वर्ण का भार

25. विनिमय दर की समंजनीय प्रणाली (या ब्रेटन वुडस प्रणाली) के अनुसार-
(A) विभिन्न करेंसियों को एक करेंसी (अमेरिकी डॉलर) के साथ संबंधित कर दिया गया
(B) अमेरिकी डॉलर का एक निश्चित कीमत पर स्वर्ण मूल्य निर्धारित कर दिया गया
(C) दो करेंसियों के बीच समता उनमें पाई जाने वाली स्वर्ण की मात्रा द्वारा निर्धारित की जाती थी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

26. वर्तमान समय में एक देश की मुद्रा की विभिन्न देशों की मुद्राओं के बीच विनिमय दर-
(A) एक ही होगी
(B) अलग-अलग होगी.
(C) निश्चित होगी
(D) अनिश्चित होगी
उत्तर:
(B) अलग-अलग होगी

27. निम्नलिखित में से स्थिर विनिमय प्रणाली का कौन-सा लाभ नहीं है?
(A) अस्थिरता
(B) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा
(C) स्थिरता
(D) समष्टिगत नीतियों में समन्वय
उत्तर:
(A) अस्थिरता

28. स्थिर विनिमय प्रणाली का निम्नलिखित में से कौन-सा दोष नहीं है?
(A) विशाल अंतर्राष्ट्रीय निधि की आवश्यकता
(B) पूँजी का असीमित आवागमन
(C) जोखिम पूँजी का निरुत्साहित होना
(D) साधनों के आबंटन में कठोरता
उत्तर:
(B) पूँजी का असीमित आवागमन

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

29. नम्य(लोचशील) वह दर है जिसका निर्धारण-
(A) मुद्रा में निहित सोने की मात्रा द्वारा होता है
(B) विभिन्न मुद्राओं की पूर्ति तथा माँग द्वारा होता है
(C) एक करेंसी के टकसाली मूल्य द्वारा होता है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) विभिन्न मुद्राओं की पूर्ति तथा माँग द्वारा होता है

30. जिस विनिमय दर पर विदेशी मुद्रा की माँग उसकी पूर्ति के बराबर हो जाए तो उसे कहते हैं-
(A) विनिमय की समानता दर
(B) विनिमय की असंतुलन दर
(C) संतुलन दर
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) संतुलन दर

31. विदेशी विनिमय की माँग निम्नलिखित में से किस उद्देश्य के लिए की जाती है?
(A) अंतर्राष्ट्रीय ऋणों का भुगतान करने के लिए
(B) शेष विश्व में निवेश करने के लिए
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

32. विदेशी मुद्रा की माँग तथा विनिमय दर में क्या संबंध पाया जाता है?
(A) विपरीत
(B) प्रत्यक्ष
(C) कोई संबंध नहीं
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) विपरीत

33. विदेशी विनिमय की पूर्ति तथा विनिमय दर में क्या संबंध पाया जाता है?
(A) विपरीत
(B) प्रत्यक्ष
(C) बहुत निकट
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) प्रत्यक्ष

34. नम्य विनिमय दर प्रणाली का निम्नलिखित में से कौन-सा दोष नहीं है?
(A) अस्थिरता
(B) समष्टिगत नीतियों के समन्वय में कठिनाई
(C) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में स्थिरता
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में स्थिरता

35. विदेशी विनिमय बाज़ार वह बाज़ार है जिसमें संसार के विभिन्न देशों की राष्ट्रीय करेंसियों को-
(A) बेचा जाता है
(B) खरीदा जाता है
(C) बेचा अथवा खरीदा जाता है
(D) विनिमय नहीं होता
उत्तर:
(C) बेचा अथवा खरीदा जाता है।

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36. हाजिर (चालू) बाज़ार का अर्थ उस बाज़ार से है जिसमें-
(A) केवल चालू या हाजिर लेन-देन किया जाता है
(B) किसी भविष्य में किसी तिथि पर लेन-देन किया है
(C) तात्कालिक विनिमय दर का निर्धारण होता है
(D) (A) और (C) दोनों
उत्तर:
(D) (A) और (C) दोनों

37. वर्तमान समय में विनिमय दर का निर्धारण होता है-
(A) IMF ART
(B) IBRD द्वारा
(C) WTO GRI
(D) विदेशी मुद्रा बाज़ार में विदेशी मुद्रा की माँग और पूर्ति द्वारा
उत्तर:
(D) विदेशी मुद्रा बाज़ार में विदेशी मुद्रा की माँग और पूर्ति द्वारा

38. विनिमय दर का निर्धारण होता है-
(A) विदेशी मुद्रा की माँग से
(B) विदेशी तथा देशी मुद्रा की माँग से
(C) विदेशी तथा देशी मुद्रा की माँग व पूर्ति से
(D) विदेशी मुद्रा की माँग तथा पूर्ति से
उत्तर:
(D) विदेशी मुद्रा की माँग तथा पूर्ति से

39. स्वतंत्र विनिमय बाज़ार में जब पूर्ति यथास्थिर रहते हुए विदेशी मुद्रा की माँग बढ़ जाती है तो विनिमय दर में ……………. होती है और जब माँग यथास्थिर रहे परंतु पूर्ति बढ़ जाए तो विनिमय दर में …………. हो जाती है।
(A) कमी, शून्य
(B) वृद्धि, कमी
(C) वृद्धि, शून्य
(D) वृद्धि, वृद्धि
उत्तर:
(B) वृद्धि, कमी

40. नम्य (लोचपूर्ण) विनिमय प्रणाली में विनिमय दर निर्धारित होती है-
(A) देश के मौद्रिक प्राधिकरण (Authority) द्वारा
(B) स्वर्ण कीमत द्वारा
(C) विदेशी विनिमय बाज़ार की माँग-पूर्ति शक्ति द्वारा
(D) विनिमय मूल्यांतर द्वारा
उत्तर:
(C) विदेशी विनिमय बाज़ार की माँग-पूर्ति शक्ति द्वारा

41. देश में मुद्रास्फीति बढ़ने पर विनिमय दर-
(A) देश के विपक्ष में हो जाती है
(B) देश के पक्ष में हो जाती है
(C) अप्रभावित रहती है।
(D) उपर्युक्त सभी दशाएँ संभव हैं
उत्तर:
(A) देश के विपक्ष में हो जाती है

42. नम्य विनिमय दर प्रणाली में इंग्लैंड के पौंड की अमेरिका में माँग बढ़ती है, तब-
(A) डॉलर का मूल्यह्रास (Depreciation) होगा
(B) पौंड का मूल्यह्रास होगा
(C) डॉलर की मूल्यवृद्धि (Appreciation) होगी
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) डॉलर का मूल्यह्रास (Depreciation) होगा

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

43. विनिमय दर यदि 3 डॉलर = 1 पौंड से बदल कर 2 डॉलर = 1 पौंड हो जाती हे तब इसका अर्थ है-
(A) डॉलर का मूल्यह्रास
(B) डॉलर की मूल्यवृद्धि
(C) पौंड की मूल्यवृद्धि
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) डॉलर की मूल्यवृद्धि

44. यदि किसी देश में किसी समय स्टोरियों द्वारा विदेशी मुद्रा को अधिक मात्रा में खरीदा जाता है, तब उस देश में विनिमय दर-
(A) घटती है
(B) बढ़ती है
(C) स्थिर बनी रहती है
(D) उपर्युक्त सभी असत्य
उत्तर:
(B) बढ़ती है

45. देश में विस्तारवादी मौद्रिक नीति देश में विनिमय दर को-
(A) घटाती है
(B) बढ़ाती है
(C) अप्रभावित रखती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) घटाती है

46. नम्य (लोचपूर्ण) विनिमय दर के लिए कौन-सा कथन सत्य नहीं है?
(A) विनिमय दर परिवर्तनशील होती है
(B) इस दर पर सरकार का नियंत्रण रहता है
(C) इसमें माँग और पूर्ति की शक्तियों के फलस्वरूप परिवर्तन होता है
(D) उपर्युक्त सभी सत्य
उत्तर:
(B) इस दर पर सरकार का नियंत्रण रहता है

47. विनिमय दर का निर्धारण माँग व पूर्ति से होता है, इस संदर्भ में किसी देश के अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में माँग किससे निर्धारित होती है? (A) उस देश के आयात से
(B) उस देश द्वारा लिए गए ऋणों से
(C) उस देश के निर्यातों से
(D) उस देश की राष्ट्रीय आय से
उत्तर:
(C) उस देश के निर्यातों से

48. नम्य (लोचदार) विनिमय दर नीति-
(A) माँग के नियम पर आधारित है
(B) पूर्ति के नियम पर आधारित है
(C) (A) और (B) दोनों पर आधारित है
(D) उपर्युक्त में से किसी पर भी आधारित नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों पर आधारित है।

49. स्वर्णमान में विनिमय दर का निर्धारण किया जाता था-
(A) टकसाली समता सिद्धांत द्वारा
(B) क्रय-शक्ति समता सिद्धांत द्वारा
(C) (A) और (B) दोनों द्वारा
(D) उपर्युक्त में से किसी के द्वारा नहीं
उत्तर:
(A) टकसाली समता सिद्धांत द्वारा

50. वर्तमान में विनिमय दर का निर्धारण टकसाली समता सिद्धांत द्वारा महत्त्वहीन हो गया है क्योंकि-
(A) वर्तमान में किसी भी देश ने स्वर्णमान नहीं अपना रखा है
(B) वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय पटल पर स्वर्ण आयात-निर्यात पर प्रतिबंध लगे हुए हैं
(C) वर्तमान में सभी देशों ने अपरिवर्तनीय पत्र मुद्रामान अपना रखा है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

51. स्वर्णमान वाले देशों की मुद्राओं की विनिमय दरों के उच्चावचन की सीमाएँ निर्धारित होती हैं-
(A) उनके स्वर्ण के मूल्यों के बीच
(B) स्वर्ण निर्यात तथा आयात मूल्यों के बीच
(C) रजत तथा स्वर्ण की मात्रा पर
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) स्वर्ण निर्यात तथा आयात मूल्यों के बीच

52. क्रय-शक्ति समता सिद्धांत के अनुसार विनिमय दर किस देश के पक्ष में होगी यदि पाँच वर्ष में A देश का सूचकांक 150 और B देश का सूचकांक 200 हो जाए।
(A) ‘A’ देश के
(B) ‘B’ देश के
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से किसी के नहीं
उत्तर:
(A) ‘A’ देश के

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53. विनिमय दर को निम्नलिखित प्रक्रिया द्वारा बाज़ार के सभी भागों में समान बनाया जा सकता है-
(A) सट्टे (Specutation) द्वारा
(B) विनिमय की मध्यस्थता (Arbitrage) द्वारा
(C) विदेशी मुद्रा की माँग एवं पूर्ति द्वारा
(D) ब्याज मध्यस्थता द्वारा
उत्तर:
(C) विदेशी मुद्रा की माँग एवं पूर्ति द्वारा

54. हाजिर दर (Spot Rate) एवं अग्रिम दर (Forward Rate) के बीच निम्न में से कौन-सी क्रिया होती है?
(A) सट्टा
(B) द्वैद्य रक्षण
(C) मध्यस्थता
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

55. वायदा बाज़ार वह बाज़ार है जिसमें-
(A) भविष्य में पूरा होने वाला लेन-देन का कारोबार होता है
(B) यह भविष्य की विनिमय दर को परिभाषित करता है
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

56. यदि 50 रुपए 2 डॉलर खरीदने के लिए आवश्यक हैं तो विनिमय दर है-
(A) 50 रुपए = 2 डॉलर
(B) 25 रुपए = 1 डॉलर
(C) 20 रुपए = 1 डॉलर
(D) 100 रुपए = 4 डॉलर
उत्तर:
(B) 25 रुपए = 1 डॉलर

57. नम्य (Flexible) विनिमय दर व्यवस्था का लाभ है-
(A) आर्थिक उथल-पुथल से बचाव
(B) विदेशी मुद्राओं को रिज़र्व रखने की जरूरत नहीं
(C) अंतर्राष्ट्रीय सौदों में जोखिम और अनिश्चितता
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं

58. स्थिर विनिमय दर व्यवस्था का लाभ है-
(A) आर्थिक उथल-पुथल से बचाव
(B) विदेशी मुद्राओं को रिज़र्व रखने की जरूरत नहीं
(C) अंतर्राष्ट्रीय सौदों में जोखिम और अनिश्चितता
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) आर्थिक उथल-पुथल से बचाव

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. एक देश के निवासियों तथा दूसरे देश के निवासियों में किए गए आर्थिक सौदों का क्रमबद्ध लेखा ………………….. कहलाता है। (भुगतान शेष/व्यापार शेष)
उत्तर:
भुगतान शेष

2. वस्तुओं के निर्यात तथा आयात में अंतर ………………… कहलाता है। (भुगतान शेष/व्यापार शेष)
उत्तर:
व्यापार शेष

3. भुगतान शेष सदैव होता है। (असंतुलित/संतुलित)
उत्तर:
संतुलित

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4. व्यापार शेष की तुलना में भुगतान शेष ………………… होता है। (अधिक व्यापक/कम व्यापक)
उत्तर:
अधिक व्यापक

5. यदि विदेशी मुद्रा बाज़ार में लेन-देन दैनिक प्रकृति का है तो वह ………………… बाज़ार कहलाता है। (हाजिर/कारक)
उत्तर:
हाजिर

6. नम्य विनिमय दर में विनिमय दर का निर्धारण ………………….. माँग तथा पूर्ति की शक्तियों द्वारा होता है। (बाज़ार/कारक)
उत्तर:
बाज़ार

C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत

  1. नम्य विनिमय दर पर सरकार का नियंत्रण होता है।
  2. व्यापार-शेष और भुगतान-शेष में अंतर पाया जाता है।
  3. भुगतान-शेष एक आर्थिक बैरोमीटर है जिसकी सहायता से किसी देश की अन्तर्राष्ट्रीय भुगतानों की स्थिति का अनुमान लगाया जाता है।
  4. व्यापार-शेष को दृश्य वस्तुओं का सन्तुलन भी कहा जाता है।
  5. भुगतान-शेष व्यापार-शेष से विस्तृत धारणा है।
  6. वास्तविक विनिमय दर, स्थिर कीमतों पर आधारित विनिमय दर होती है।
  7. किसी मुद्रा की औसत सापेक्ष क्षमता का माप, वास्तविक प्रभावी विनिमय दर कहलाती है।
  8. विश्व की अधिकांश अर्थव्यवस्थाएँ बंद अर्थव्यवस्थाएँ हैं।
  9. स्थिर विनिमय दर प्रणाली में विनिमय की दर सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है।
  10. सेयर्स के अनुसार मुद्राओं के आपसी मूल्यों को विदेशी विनिमय दर कहते हैं।

उत्तर:

  1. गलत
  2. सही
  3. सही
  4. सही
  5. सही
  6. सही
  7. गलत
  8. गलत
  9. सही
  10. सही

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक बंद अर्थव्यवस्था क्या है?
उत्तर:
एक बंद अर्थव्यवस्था से अभिप्राय उस अर्थव्यवस्था से है जिसका अन्य देशों के साथ कोई आर्थिक संबंध नहीं होता।

प्रश्न 2.
एक खुली अर्थव्यवस्था क्या है?
उत्तर:
एक खुली अर्थव्यवस्था से अभिप्राय उस अर्थव्यवस्था से है जिसके अन्य देशों के साथ आर्थिक संबंध होते हैं।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 3.
एक अर्थव्यवस्था के खुलेपन की मात्रा को कैसे मापा जाता है?
उत्तर:
सकल घरेलू उत्पाद में कुल विदेशी व्यापार के अनुपात के रूप में एक अर्थव्यवस्था के खुलेपन की मात्रा को मापा जाता है।

प्रश्न 4.
भुगतान शेष (BOP) क्या है?
उत्तर:
भुगतान शेष (Balance of Payment) देश के शेष विश्व से आर्थिक लेन-देन के फलस्वरूप समस्त अंतर्राष्ट्रीय भुगतानों और प्राप्तियों का अंतर है।

प्रश्न 5.
व्यापार शेष का क्या अर्थ है?
उत्तर:
व्यापार शेष से अभिप्राय किसी देश के केवल वस्तुओं या दृश्य मदों के आयात और निर्यात के अंतर से है।

प्रश्न 6.
भुगतान शेष (अदायगी संतुलन) खाते का क्या अर्थ है?
उत्तर:
भुगतान शेष (अदायगी संतुलन) खाते से अभिप्राय शेष विश्व के साथ किसी दिए हुए वित्तीय वर्ष में आर्थिक लेन-देनों के व्यवस्थित रिकॉर्ड से है।

प्रश्न 7.
भुगतान शेष के चालू व पूँजी खातों के मुख्य घटक बताएँ।
उत्तर:
भुगतान शेष के चालू खाते के घटक हैं-(i) वस्तुओं का आयात-निर्यात, (ii) सेवाओं का आयात-निर्यात और (ii) एक-पक्षीय हस्तांतरण।
भुगतान शेष के पूँजी खाते के घटक हैं-(i) निजी लेन-देन, (ii) सरकारी लेन-देन, (iii) प्रत्यक्ष निवेश और (iv) पत्राधार निवेश।

प्रश्न 8.
भुगतान शेष के पूँजी खाते का क्या अर्थ है?
उत्तर:
भुगतान शेष का पूँजी खाता वह खाता है जिसमें एक देश के निवासियों द्वारा शेष विश्व से पूँजीगत परिसंपत्तियों तथा दायित्वों के आदान-प्रदानों का लेखा किया जाता है।

प्रश्न 9.
एक देश के भुगतान शेष खाते में क्या दर्ज किया जाता है?
उत्तर:
एक देश के भुगतान शेष खाते में एक देश के अन्य देशों के साथ किए गए वस्तुओं, सेवाओं और परिसंपत्तियों के लेन-देन दर्ज किए जाते हैं।

प्रश्न 10.
भुगतान शेष में घाटे (Deficit) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भुगतान शेष में घाटे से अभिप्राय यह है कि समस्त प्राप्तियों और भुगतानों का शुद्ध शेष ऋणात्मक (-) होता है।

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प्रश्न 11.
भुगतान शेष में आधिक्य (Surplus) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भुगतान शेष में आधिक्य से अभिप्राय यह है कि सभी प्राप्तियों और भुगतानों का शुद्ध शेष धनात्मक (+) होता है।

प्रश्न 12.
समायोजक (Accommodating) और स्वायत्त (स्वप्रेरित) (Autonomous) मदों से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
समायोजक मदों का अभिप्राय उन लेन-देनों से है जो भुगतान शेष (BOP) में किन्हीं अन्य गतिवधियों के कारण करने जरूरी हो जाते हैं; जैसे सरकार द्वारा वित्तीयन।

स्वायत्त (स्वप्रेरित) मदों से अभिप्राय उन अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक लेन-देनों (Transactions) से है जो अधिकतम लाभ कमाने जैसे उद्देश्यों से प्रेरित होते हैं।

प्रश्न 13.
विदेशी मुद्रा बाज़ार क्या है?
उत्तर:
विदेशी मुद्रा बाज़ार वह बाज़ार है जिसमें विभिन्न देशों की मुद्राओं को परस्पर बेचा व खरीदा जाता है।

प्रश्न 14.
विनिमय बाज़ार में संतुलन कहाँ होगा?
उत्तर:
विनिमय बाज़ार में संतुलन वहाँ होगा जहाँ विदेशी मुद्रा का माँग वक्र विदेशी मुद्रा के पूर्ति वक्र को काटता है।

प्रश्न 15.
विदेशी मुद्रा की माँग के दो स्रोत बताइए।
उत्तर:

  1. विदेशों में उपहार भेजने के लिए
  2. विदेशों से वस्तुओं और सेवाओं का क्रय।

प्रश्न 16.
विदेशी मुद्रा की पूर्ति के दो स्रोत बताइए।
उत्तर:

  1. निर्यात
  2. विदेशी निवेश।

प्रश्न 17.
विनिमय की दर में वृद्धि का क्या अर्थ है?
उत्तर:
विनिमय की दर में वृद्धि का अर्थ यह है कि विदेशी मुद्रा की एक इकाई के लिए अपने देश की पहले से अधिक मुद्रा देनी होगी।

प्रश्न 18.
आंतरिक मुद्रा के मूल्यहास से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आंतरिक मुद्रा के मूल्यह्रास से अभिप्राय देशीय मुद्रा इकाइयों में विदेशी मुद्राओं की कीमत में वृद्धि से है। दूसरे शब्दों में, आंतरिक मुद्रा के ह्रास से अभिप्राय देश की मुद्रा के मूल्य में कमी से है।।

प्रश्न 19.
मुद्रा अधिमूल्यन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मुद्रा अधिमूल्यन से अभिप्राय देशी मुद्रा की इकाइयों में विदेशी मुद्रा की कीमत में कमी से है।

प्रश्न 20.
एक देश में विनिमय दर की कौन-सी दो व्यवस्थाएँ हो सकती हैं?
उत्तर:

  1. स्थिर विनिमय दर व्यवस्था
  2. नम्य (लोचदार) विनिमय दर व्यवस्था।

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प्रश्न 21.
स्थिर विनिमय दर व्यवस्था से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
स्थिर विनिमय दर व्यवस्था से अभिप्राय उस व्यवस्था से है जिसमें सभी विनिमय (लेन-देन) सरकार द्वारा घोषित की गई दर पर होते हैं। इस विनिमय दर में बहुत मामूली उतार-चढ़ाव मान्य होते हैं।

प्रश्न 22.
समंजनीय सीमाबंध व्यवस्था (Adjustable Peg System) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
समंजनीय सीमाबंध व्यवस्था से अभिप्राय एक देश द्वारा अपनी मुद्रा की विनिमय दर को किसी अन्य देश की मुद्रा की इकाइयों में नियत करने से है। इस नियत दर में किन्हीं विशेष परिस्थितियों में ही परिवर्तन किया जाता है।

प्रश्न 23.
नम्य (Flexible) विनिमय दर व्यवस्था से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
नम्य विनिमय दर व्यवस्था से अभिप्राय उस व्यवस्था से है जिसमें विनिमय दर का निर्धारण विदेशी मुद्रा बाज़ार में माँग और आपूर्ति द्वारा होता है। इस व्यवस्था में सरकारी हस्तक्षेप नहीं होता। इसे लचीली विनिमय दर भी कहते है।

प्रश्न 24.
विस्तृत सीमापट्टी व्यवस्था से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विस्तृत सीमापट्टी व्यवस्था से अभिप्राय उस व्यवस्था से है जिसमें प्रत्येक सदस्य देश को उसकी घोषित विनिमय दर से 10% तक उतार-चढ़ाव करने की स्वतंत्रता होती है।

प्रश्न 25.
प्रबंधित तिरती व्यवस्था (Managed Floating System) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रबंधित तिरती व्यवस्था से अभिप्राय उस व्यवस्था से है जिसमें मौद्रिक अधिकारी ऐच्छिक आधार पर विनिमय दर निर्धारण में हस्तक्षेप कर सकते हैं।

प्रश्न 26.
विदेशी मुद्रा का हाजिर बाज़ार (Spot Market) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विदेशी मुद्रा के हाजिर बाज़ार से अभिप्राय उस मुद्रा बाज़ार से है जिसमें तुरंत होने वाले लेन-देन के लिए विदेशी मुद्रा की दर निर्धारित की जाती है।

प्रश्न 27.
विदेशी मुद्रा का वायदा बाज़ार (Forward Market) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विदेशी मुद्रा के वायदा बाज़ार से अभिप्राय उस मुद्रा बाज़ार से है जिसमें भविष्य में किसी तिथि पर होने वाले लेन-देन के लिए विदेशी मुद्रा की दर निर्धारित की जाती है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक बंद अर्थव्यवस्था की तुलना में एक खुली अर्थव्यवस्था के क्या लाभ हैं? अथवा ‘एक खुली अर्थव्यवस्था में चयन की अधिक स्वतंत्रता होती है।’ समझाइए।
उत्तर:
यह कहना उचित है कि एक बंद अर्थव्यवस्था की तुलना में एक खुली अर्थव्यवस्था में लोगों को चयन की अधिक स्वतंत्रता होती है, जिसे निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है-(i) उपभोक्ताओं और फर्मों को घरेलू एवं विदेशी वस्तुओं के बीच चयन का अवसर मिलता है, (i) निवेशकों को घरेलू व विदेशी परिसंपत्तियों के बीच चयन का अवसर मिलता है, (iii) फर्मों को उत्पादन के स्थान का चयन करने और श्रमिकों को कहाँ काम देने, यह चयन की स्वतंत्रता होती है।

प्रश्न 2.
भुगतान शेष लेखांकन किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर:
भुगतान शेष खाते में सभी लेन-देन को दोहरी लेखा प्रणाली के आधार पर लिखा जाता है। प्रत्येक लेन-देन को दो प्रविष्टियों के रूप में लिखा जाता है- एक पक्ष ‘नाम’ और दूसरा पक्ष ‘जमा’। इन दोनों प्रविष्टियों का आकार समान होता है, जिसके कारण ‘जमा’ पक्ष की प्रविष्टियों का योगफल सदा ‘नाम’ पक्ष की प्रविष्टियों के योग के बराबर रहता है। उदाहरण के लिए, जब किसी अन्य देश से भुगतान प्राप्त होता है तो यह क्रेडिट सौदा है और जब किसी अन्य देश को भुगतान किया जाता है तो यह डेबिट सौदा है। भुगतान शेष खाते के लेन-देन को हम निम्नलिखित पाँच प्रमुख श्रेणियों में वर्गीकृत करते हैं-

  • वस्तुएँ और सेवाएँ खाता
  • एक-पक्षीय हस्तांतरण खाता
  • दीर्घकालिक पूँजी खाता|
  • अल्पकालिक निजी पूँजी खाता
  • अल्पकालिक सरकारी पूँजी खाता।

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प्रश्न 3.
पूँजी खाते के संघटकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पूँजी खाते के संघटक निम्नलिखित हैं-

  1. निजी लेन-देन-इस लेन-देन से व्यक्तियों, व्यवसायों और गैर-सरकारी निकायों द्वारा निजी रूप से धारित परिसंपत्तियाँ और दायित्व प्रभावित होते हैं।
  2. सरकारी लेन-देन सरकारी लेन-देन सरकार और उसकी संस्थाओं की परिसंपत्तियों और दायित्वों को प्रभावित करते हैं।
  3. प्रत्यक्ष निवेश-प्रत्यक्ष निवेश किसी परिसंपत्ति को खरीदकर उस पर अपना नियंत्रण स्थापित करता है।
  4. पत्राधार निवेश-पत्राधार निवेश (Perfect Investment) परिसंपत्तियों के क्रेता को उन पर नियंत्रण प्रदान नहीं करता। सरकार को विदेशी बैंकों द्वारा ऋण दिया जाना इस वर्ग में आता है।

प्रश्न 4.
भुगतान शेष से क्या अभिप्राय है? भुगतान शेष, व्यापार शेष से किस प्रकार विस्तृत अवधारणा है? अथवा व्यापार शेष तथा भुगतान शेष में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भुगतान शेष का अर्थ-मोटे रूप में, भुगतान शेष एक लेखा वर्ष में एक देश के समस्त अंतर्राष्ट्रीय भुगतानों और प्राप्तियों का अंतर है। भुगतान शेष लेखा एक देश का अन्य देशों के साथ एक वर्ष में किए गए समस्त आर्थिक सौदों का एक क्रमबद्ध लेखा है। इसमें दृश्य मदें (वस्तुएँ), अदृश्य मदें (गैर-साधन सेवाएँ) एक-पक्षीय हस्तांतरण और पूँजीगत लेन-देन शामिल होते हैं। भौतिक वस्तुओं (जैसे मशीनरी, चाय) का आयात-निर्यात दृश्य मदें हैं, क्योंकि वे दिखाई देती हैं जबकि सेवाएँ (जैसे जहाज़रानी, बीमा आदि) अदृश्य मदें हैं, क्योंकि वे राष्ट्रीय सीमा को पार करते दिखाई नहीं देती हैं। पुनः भुगतान शेष खाता दोहरी लेखांकन प्रणाली के अनुसार लिखा जाता है जिससे भुगतान और प्राप्तियाँ सदा बराबर रहती हैं। दूसरे शब्दों में, भुगतान शेष, तकनीकी दृष्टि से सदा संतुलन में रहता है।

व्यापार शेष और भुगतान शेष में अंतर-भुगतान शेष, व्यापार शेष की तुलना में एक व्यापक व विस्तृत अवधारणा है क्योंकि व्यापार शेष, भुगतान शेष के चार घटकों में से केवल एक घटक (दृश्य मदों के आयात-निर्यात का अंतर) है। यह दोनों के बीच अंतर से स्पष्ट है

व्यापार शेषभुगतान शेष
1. व्यापार शेष में केवल दृश्य मदें (वस्तुएँ) शामिल होती हैं।1. भुगतान शेष में दृश्य मदें (वस्तुएँ) और अदृश्य मदें (सेवाएँ) दोनों शामिल होती हैं।
2. इसमें पूँजीगत लेन-देन शामिल नहीं होते।2. इसमें पूँजीगत लेन-देन शामिल होते हैं।
3. यह भुगतान शेष के चालू खाते का एक भाग है।3. यह संपूर्ण चालू खाते और पूँजी खाते का भाग है।
4. यह अनुकूल, प्रतिकूल या संतुलित हो सकता है।4. यह लेखांकन दृष्टि से सदा संतुलित रहता है।
5. इसके घाटे को भुगतान शेष की मदों से पूरा किया जा सकता है।5. इसके घाटे को व्यापार शेष द्वारा पूरा नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 5.
स्थिर विनिमय दर के किन्हीं चार लाभों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्थिर विनिमय दर के लाभ निम्नलिखित हैं:
(i) स्थिर विनिमय दर विदेशी व्यापार को सविधाजनक बनाती है क्योंकि उनसे व्यापार में आने वाली वस्तुओं की कीमतों का सही अनुमान लगाया जा सकता है।

(ii) स्थिर विनिमय दर व्यवस्था में कोई अनिश्चितता नहीं होती और न ही कोई जोखिम होता है। इस प्रकार स्थिर विनिमय दर व्यवस्थित तथा अबाध रूप से दीर्घकालीन पूँजी प्रवाहों को प्रोत्साहन देती है।

(iii) स्थिर विनिमय दर प्रणाली एक प्रतिबंध का काम करती है और सरकार पर यह अनुशासन लगाती है कि वे देश के भीतर उत्तरदायित्वपूर्ण वित्तीय नीतियों का पालन करे।

(iv) स्थिर विनिमय दर प्रणाली के अंतर्गत सट्टेबाजी समाप्त हो जाती है क्योंकि सट्टेबाजी का विनिमय दर पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।

प्रश्न 6.
व्यापार शेष (Balance of Trade) और चालू खाता शेष (Balance of CurrentAccount) में भेद कीजिए।
उत्तर:
व्यापार शेष केवल दृश्य मदों (वस्तुओं) के निर्यात मूल्य और आयात मूल्य का अंतर है। दूसरे शब्दों में, व्यापार शेष में केवल दृश्य मदों को शामिल किया जाता है। इसके विपरीत चालू खाता शेष में दृश्य मदें, अदृश्य मदें (सेवाएँ) और एक-पक्षीय हस्तांतरण के आयात-निर्यात का ब्यौरा दिया होता है। इस प्रकार व्यापार शेष, चालू खाता शेष का एक भाग है। स्पष्टतः व्यापार शेष की तुलना में ‘चालू खाता शेष’ एक विस्तृत अवधारणा है।

प्रश्न 7.
विदेशी मुद्रा दर का क्या अर्थ है? तीन कारण दीजिए कि क्यों लोग विदेशी मुद्रा प्राप्त करना चाहते हैं?
उत्तर:
विदेशी मुद्रा दर से अभिप्राय उस दर से है जिस पर एक देश की मुद्रा को अन्य देश की मुद्रा की इकाइयों में बदला जा सकता है। निम्नलिखित कारणों के लिए लोग विदेशी मुद्रा प्राप्त करना चाहते हैं-

  • अन्य देशों से वस्तुओं और सेवाओं को क्रय करने के लिए
  • विदेशों को उपहार भेजने के लिए
  • किसी अन्य देश में वित्तीय परिसंपत्तियाँ खरीदने के लिए
  • विदेशी मुद्राओं के मूल्यमान को लेकर व्यावसायिक दृष्टि से सट्टेबाजी के लिए।

प्रश्न 8.
भुगतान शेष तथा राष्ट्रीय आय लेखों के बीच संबंध की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भुगतान शेष अंतर्राष्ट्रीय प्राप्तियों और भुगतानों से संबंधित होता है। इसलिए भुगतान शेष राष्ट्रीय आय को प्रभावित करते हैं। एक अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन पर समस्त व्यय में घरेलू क्षेत्र के उपभोक्ताओं, निवेशकों तथा सरकार के व्यय के साथ ही विदेशियों द्वारा उक्त देश से आयात पर व्यय को जोड़ा जाता है। अर्थात्
Y = C + I + G + X
इस प्रकार सृजित आय का प्रयोग उपभोग, बचत और कर भुगतान में होता है। विदेशों से आयात पर व्यय (M) भी इसी में से किया जाता है। अर्थात्
Y = C + S + T + M
राष्ट्रीय आय लेखांकन सिद्धांत के अनुसार सृजित आय का मान प्रयोग की गई आय के समान होगा। अर्थात्
Y = C+ I + G + x
= C + S + T + M
I + G + x = S + T + M
इनमें I, G, X आय के चक्रीय प्रवाह में भरण (Injections) हैं और S, T, M क्षरण (Leakages) हैं। इसलिए संतुलन में प्रयोजित भरणों (Planned Injections) का योग, प्रायोजित क्षरणों (Planned Leakages) के योग के बराबर होगा। यही राष्ट्रीय आय और भुगतान शेष में संबंध है।

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प्रश्न 9.
विदेशी मुद्रा दर क्या है? विदेशी मुद्रा की कीमत कम होने से इसकी माँग क्यों बढ़ती है?
उत्तर:
विदेशी मुद्रा दर से अभिप्राय उस दर से है जिस पर एक देश की मुद्रा का दूसरे देश की मुद्रा से विनिमय किया जाता है। विदेशी मुद्रा की माँग के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं

  • अन्य देशों से वस्तुओं और सेवाओं को क्रय करने के लिए।
  • विदेशों को उपहार भेजने के लिए।
  • किसी अन्य देश में वित्तीय परिसंपत्तियाँ खरीदने के लिए।
  • विदेशी मुद्राओं के मूल्यमान को लेकर व्यावसायिक दृष्टि से सट्टेबाजी के लिए।

विदेशी मुद्रा बाज़ार में भी माँग का नियम लागू होता है और विदेशी मुद्रा का माँग वक्र ऊपर से नीचे दाईं ओर गिरता हुआ होता है। जब विदेशी मुद्रा की कीमत कम होती है तो विदेशी मुद्रा की माँग बढ़ती है।

प्रश्न 10.
विदेशी विनिमय बाज़ार से क्या अभिप्राय है? इसके मुख्य कार्य लिखें।
उत्तर:
विदेशी विनिमय बाज़ार से अभिप्राय उस बाज़ार से है जिसमें विभिन्न देशों की मुद्राओं को परस्पर बेचा व खरीदा जाता है। विदेशी विनिमय बाज़ार निम्नलिखित तीन कार्य करता है

  • हस्तांतरण कार्य-विदेशी विनिमय बाज़ार देशों के बीच क्रय-शक्ति का हस्तांतरण करता है।
  • साख कार्य-विदेशी विनिमय बाज़ार विदेशी व्यापार के लिए साख स्रोत का प्रावधान करता है।
  • जोखिम पूर्वोपाय कार्य-विदेशी विनिमय बाज़ार विदेशी विनिमय जोखिम से बचाव करता है।

प्रश्न 11.
विदेशी विनिमय की बाज़ार दर का निर्धारण कैसे होता है? एक रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
विदेशी विनिमय की बाज़ार दर का निर्धारण मुद्रा बाज़ार में संतुलन द्वारा होता है। विदेशी मुद्रा बाज़ार में संतुलन उस बिंदु पर निर्धारित होता है जहाँ विदेशी मुद्रा का माँग वक्र और मुद्रा का पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हों। विदेशी मुद्रा का माँग वक्र ऊपर से नीचे दाईं ओर गिरता हुआ होता है, जबकि विदेशी मुद्रा का पूर्ति वक्र नीचे से ऊपर दाईं ओर उठता हुआ होता है। विदेशी मुद्रा बाज़ार में संतुलन को संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था समष्टि अर्थशास्त्र 1

संलग्न रेखाचित्र में माँग वक्र और पूर्ति वक्र एक-दूसरे को E बिंदु पर काटते विदेशी मुद्रा की माँग और पूर्ति । हैं जहाँ संतुलन विनिमय दर OP है और संतुलन विदेशी मुद्रा की मात्रा OQ है।

प्रश्न 12.
स्थिर विनिमय और नम्य विनिमय दरों में भेद समझाइए।
उत्तर:
स्थिर विनिमय दर से अभिप्राय उस विनिमय दर से है जिसमें सभी विनिमय (लेन-देन) सरकार या मौद्रिक अधिकारी द्वारा घोषित की गई दरों पर होते हैं। नम्य विनिमय दर से अभिप्राय उस विनिमय दर से है जो विदेशी मुद्रा की माँग और पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। इस प्रकार स्थिर विनिमय दर में मौद्रिक अधिकारी का हस्तक्षेप आवश्यक है, जबकि नम्य विनिमय दर की दशा में मौद्रिक अधिकारी का हस्तक्षेप नहीं होता। पूर्ण रूप से स्थिर विनिमय दर को अव्यावहारिक माना जाता है, इसलिए यह प्रचलित नहीं है। सामान्यतया नम्य विनिमय दर को ही व्यावहारिक माना जाता है।

प्रश्न 13.
नम्य विनिमय दर प्रणाली के किन्हीं चार लाभों (गुणों) का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नम्य विनिमय दर प्रणाली के लाभ निम्नलिखित हैं-

  1. नम्य विनिमय दर प्रणाली के अंतर्गत केंद्रीय बैंक को विदेशी मुद्राओं के भंडार बनाए रखने की आवश्यकता नहीं होती।
  2. यह व्यापार तथा पूँजी के आवागमन के प्रति अवरोधों की समाप्ति में सहायक है।
  3. यह संसाधनों का कुशलतम आबंटन करती है जिससे अर्थव्यवस्था की कशलता में वृद्धि होती है।
  4. नम्य विनिमय दर की व्यवस्था सरल है। विनिमय दर अपने आप स्वतंत्र रूप से बदलती रहती है तथा माँग और पूर्ति में समानता लाती है।

प्रश्न 14.
विस्तृत सीमापट्टी व्यवस्था को समझाइए।
उत्तर:
विस्तृत सीमापट्टी व्यवस्था स्थिर विनिमय दर व्यवस्था (प्रणाली) और नम्य विनिमय दर व्यवस्था का मिश्रण है। विस्तृत सीमापट्टी व्यवस्था के अंतर्गत प्रत्येक सदस्य देशों को यह छूट होती है कि वह अपनी घोषित विनिमय दर से 10 प्रतिशत तक उतार-चढ़ाव कर सकता है। इस छूट का मुख्य उद्देश्य भुगतानों में आसानी से समायोजन करना है। उदाहरण के लिए, यदि किसी देश को भुगतान शेष के घाटों का सामना करना पड़ रहा है तो वह 10 प्रतिशत तक अपनी मुद्रा की दर कम करके इस समस्या से निपट सकता है।

प्रश्न 15.
चलित सीमाबंध व्यवस्था को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
चलित सीमाबंध व्यवस्था स्थिर विनिमय दर व्यवस्था और नम्य विनिमय दर व्यवस्था का मिश्रण है। चलित सीमाबंध व्यवस्था के अनुसार विभिन्न करेंसियों की विनिमय दर में लघु सीमा तक किंतु समय-समय पर नियमित रूप से परिवर्तन की छूट होती है। चलित सीमाबंध के अंतर्गत प्रत्येक सदस्य देश को यह छूट होती है कि वह अपनी घोषित विनिमय दर से केवल एक प्रतिशत तक ही उतार-चढ़ाव कर सकता है। वास्तव में यह लघु समायोजन है, किंतु इसे समय-समय पर दोहराया जा सकता है। समायोजन का आकार तथा बारंबारता इस बात पर निर्भर करते हैं कि समायोजन करने वाले देश के पास विदेशी मुद्रा के भंडार कितने हैं।

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प्रश्न 16.
समायोजक (Accommodating) मदों और स्वप्रेरित (Autonomous) मदों की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
भुगतान शेष खाते से संबंधित मदों के लिए अर्थशास्त्री विभिन्न शब्दों का प्रयोग करते हैं जैसे-स्वायत्त (स्वप्रेरित), समायोजक, रेखा के ऊपर, रेखा के नीचे आदि। इनकी संक्षिप्त जानकारी नीचे दी गई है।

स्वायत्त या स्वप्रेरित मदें-भुगतान शेष में प्रयोग किए गए स्वायत्त अथवा स्वप्रेरित (Autonomous items) शब्द से अभिप्राय उन अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक लेन-देनों (Transactions) से है जो अधिकतम लाभ कमाने जैसे आर्थिक उद्देश्यों से प्रेरित होते हैं। ऐसे सौदे (लेन-देन), देश के भुगतान शेष की स्थिति की परवाह किए बिना होते हैं। इन्हीं को ही भुगतान शेष खाते में रेखा से ऊपर मदें’ (above the line items) कहा जाता है।

प्रश्न 17.
भुगतान संतुलन के प्रतिकूल होने के आर्थिक कारण बताइए।
उत्तर:
भुगतान संतुलन के प्रतिकूल होने के आर्थिक कारण निम्नलिखित हैं-

  1. निर्यात और आयात में असंतुलन का पैदा होना।
  2. बड़े पैमाने पर विकास व्यय जिसके लिए भारी आयात करने पड़ते हैं।
  3. ऊँची घरेलू कीमतों के कारण आयात में वृद्धि होना।
  4. चक्रीय उतार-चढ़ाव (Cyclical Fluctuations) अर्थात् सामान्य व्यवसाय में तेजी व मंदी का चक्र।
  5. पूर्ति के नए स्रोतों का विकास।
  6. नए व बेहतर स्थानापन्न उत्पाद का उभरना।
  7. उत्पादन लागतों में वृद्धि आदि।

प्रश्न 18.
गंदी तरणशीलता तिरती (Dirty Floating) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
यह अवधारणा विनिमय दर की प्रबंधित तरणशीलता तिरती व्यवस्था से संबंधित है। ऐसी स्थिति तब उत्पन्न होती है जब नियमों और अधिनियमों की परवाह किए बिना प्रबंधित तरणशीलता व्यवस्था को लागू किया जाता है। एक देश जब विनिमय दर को किसी अन्य देश के हित के विरूद्ध कम या अधिक करता है तब इस प्रकार के व्यवहार को गंदी तरणशीलता/तिरती व्यवस्था कहा जाता है।

प्रश्न 19.
प्रबंधित तिरती व्यवस्था (Managed Floating System) की व्यवस्था का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रबंधित तिरती व्यवस्था स्थिर और नम्य विनिमय दरों का मिश्रण है। प्रबंधित तिरती व्यवस्था में मौद्रिक अधिकारी ऐच्छिक आधार पर विनिमय दर के निर्धारण में हस्तक्षेप करते हैं लेकिन इसमें हस्तक्षेप के लिए आधिकारिक रूप से नियम और मार्गदर्शक सत्रों की घोषणा होती है। परंत मौद्रिक अधिकारी कोई विनिमय दर नियत नहीं करते और न ही विनिमय दर के उतार-चढ़ाव की कोई समय-सीमा निर्धारित की जाती है। जब भी मौद्रिक अधिकारी को हस्तक्षेप की आवश्यकता अनुभव होती है वे उपयुक्त कदम उठा सकते हैं।

प्रश्न 20.
विस्तृत सीमापट्टी चलित सीमाबंध कैसे एक-दूसरे से भिन्न हैं?
उत्तर:
दोनों व्यवस्थाएँ विनिमय दर में समायोजन की अनुमति देती हैं। चलित सीमाबंध की तुलना में विस्तृत सीमापट्टी में अधिक समायोजन (Wider adjustments) किया जा सकता है। अन्य शब्दों में, विस्तृत सीमापट्टी की तुलना में चलित सीमाबंध एक संकुचित सीमापट्टी (Narrow Bond) है।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘भुगतान शेष खाते’ (Balance of Payment Accounts) का क्या अर्थ है? एक उदाहरण द्वारा BOP खाते की संरचना समझाइए।
उत्तर:
भुगतान शेष खाते का अर्थ-भुगतान शेष खाता किसी देश के निवासियों और शेष विश्ववासियों के बीच नियत अवधि में हुए सारे आर्थिक लेन-देनों का व्यवस्थित रिकॉर्ड होता है। यह दोहरी लेखा पद्धति (Double Entry System) के आधार पर तैयार किया जाता है। लेखांकन की दृष्टि से भुगतान शेष, सदा संतुलन में रहता है क्योंकि भुगतान शेष लेखा, दोहरी लेखा पद्धति में प्रस्तुत किया जाता है जिसके अनुसार प्राप्ति पक्ष, सदैव भुगतान पक्ष के बराबर रहता है।

दोहरी लेखा प्रणाली-समस्त अंतर्राष्ट्रीय सौदों (लेन-देनों को ‘दोहरी लेखा प्रणाली’ के आधार पर भगतान शेष खाते में रिकॉर्ड किया जाता है। प्रत्येक अंतर्राष्ट्रीय सौदा, बराबर मूल्य की लेनदारी (Credit) और देनदारी (Debit) की प्रविष्टि (Entry) दिखाता है। समस्त अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक लेन-देन, इन तीन प्रवाहों के कारण उत्पन्न होते हैं-(i) वस्तुओं के प्रवाह, (ii) सेवाओं व अन्य अदृश्य मदों के प्रवाह और (iii) पूँजी के प्रवाह। भुगतान शेष लेखा के यही मुख्य घटक हैं। भुगतान शेष खाते के दो पक्ष-लेनदारी पक्ष और देनदारी पक्ष होते हैं। लेखे के लेनदारी पक्ष में वे मदें शामिल की जाती हैं जिनसे विदेशी मुद्रा के रूप में भुगतान प्राप्त होता. है और प्राप्त भुगतान की राशि दिखाई जाती है, इन्हें लेनदारी मदें कहते हैं। देनदारी पक्ष में यह लेखा उन मदों और मदों की राशि को दर्शाता है जिनका विदेशी मुद्रा के रूप में विदेशियों को भुगतान किया जाता है। इन्हें देनदारी मदें कहते हैं।

एक देश के भुगतान शेष का एक काल्पनिक सरल उदाहरण निम्नलिखित तालिका में दिखाया गया है। इसका बायाँ भाग वे सभी स्रोत दिखाता है जिनसे कोई देश विदेशी करेंसी प्राप्त करता है जबकि दायाँ भाग शेष विश्व को भुगतान की गई विदेशी करेंसी का ब्यौरा देता है।
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प्रतिकूल, अनुकूल व संतुलित भुगतान शेष जब देनदारियाँ (भुगतान), लेनदारियों (प्राप्तियों) से अधिक हो जाती हैं तो इसे प्रतिकूल (या घाटे का) भुगतान संतुलन (शेष) कहते हैं। जब देनदारियाँ, लेनदारियों से कम होती हैं तो इसे अनुकूल (या बचत का) भुगतान शेष (संतुलन) कहते हैं। देनदारियाँ और लेनदारियाँ बराबर होने पर भुगतान शेष संतुलित कहलाता है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 2.
भुगतान शेष (संतुलन) खाते की दृश्य एवं अदृश्य मदों का अर्थ बताते हुए भुगतान शेष खाते के संघटकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भुगतान शेष खाते की दृश्य और अदृश्य मदें भुगतान शेष (संतुलन) खाते की दृश्य मदों से अभिप्राय भौतिक वस्तुओं से है जो राष्ट्रीय सीमा को पार (Cross) करती देखी जाती हैं। दृश्य मदों (Visible Items) के उदाहरण हैं-मशीनरी, चाय, चावल, वस्त्रों का आयात-निर्यात जिन्हें आँखों से देखा जा सकता है। भुगतान शेष खाते में दृश्य मदों के आयात-निर्यात के शेष को ‘दृश्य व्यापार का शेष’ कहा जाता है। भुगतान शेष की अदृश्य मदें वे मदें हैं जिन्हें राष्ट्रीय सीमा (National Border) पार करते नहीं देखा जाता है। सब प्रकार की सेवाएँ; जैसे जहाज़रानी, बैंकिंग, पर्यटन, सॉफ्टवेयर तथा एक-पक्षीय हस्तांतरण अदृश्य मदें हैं। अदृश्य मदों (Invisible Items) के आयात-निर्यात के शेष (Balance) को ‘अदृश्य व्यापार का शेष’ कहा जाता है।

भुगतान शेष खाते के संघटक-भुगतान शेष खाते के प्रमुख संघटक निम्नलिखित हैं-
1. वस्तओं का निर्यात व आयात (दृश्य मदें) विदेशी मुद्रा प्राप्त करने का सबसे सरल तरीका वस्तुओं का निर्यात है। विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं का आना-जाना खुले रूप में होता है और सीमा शुल्क अधिकारी इन्हें देखकर प्रमाणित कर सकते हैं। ये दृश्य मदें (Visible Items) कहलाती हैं। ऐसी सभी मदें देश का दृश्य व्यापार (Visible Trade) दर्शाती हैं।

2. सेवाओं का निर्यात व आयात (अदृश्य मदें) इसमें गैर-साधन आय; (जैसे-जहाज़रानी, बैंकिंग, बीमा, पर्यटन, सॉफ्टवेयर सेवाओं से आय और साधन आय; जैसे ब्याज, लाभांश, लाभ के रूप में विदेशों में हमारी परिसंपत्तियों से आय आदि मदें शामिल की जाती हैं। ध्यान रहे, ब्याज, लाभांश और लाभ जो एक देश के नागरिक विदेशों में निवेश करने पर कमाते हैं, निवेश आय है जिसे साधन आय माना जाता है। ये अदृश्य मदें हैं जो राष्ट्रीय सीमाओं को पार करते दिखाई नहीं देती हैं। ऐसी सभी मदें देश का अदृश्य व्यापार (Invisible Trade) दर्शाती हैं।

3. एक-पक्षीय हस्तांतरण या अप्रतिदत्त हस्तांतरण-इसमें वे मदें शामिल की जाती हैं जिनके बदले में प्राप्त करने वाले को कुछ भी नहीं देना पड़ता; जैसे उपहार, प्रेषणाएँ, अनुदान क्षतिपूर्ति आदि। इसमें निजी और सरकारी दोनों प्रकार के हस्तांतरण शामिल होते हैं। उदाहरण के लिए, विदेशों से प्राप्त उपहार, अनिवासियों (Emigrants) द्वारा अपने रिश्तेदारों को भेजी गई प्रेषणाएँ और युद्ध में पराजित देश द्वारा क्षतिपूर्ति आदि की प्राप्तियाँ। (नोट-भारत में एक-पक्षीय हस्तांतरणों को अदृश्य व्यापार में शामिल किया जाता है।)

4. पूँजीगत प्राप्तियाँ व भुगतान-इसमें निजी व सरकारी ऋण, सोने के स्टॉक व विदेशी मुद्रा के भंडार में परिवर्तन, परिसंपत्तियों का क्रय-विक्रय, पूँजीगत अनुदान आदि जैसी मदें शामिल की जाती हैं। ऐसे अंतर्राष्ट्रीय सौदे एक देश की शेष विश्व से देनदारियों और परिसंपत्तियों (Liabilities and Assets) को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, एक देश की सरकार, दूसरे देश की सरकार से ऋण लेती है, एक फर्म विदेश में शेयर्स का निर्गमन करती है या एक बैंक विदेश में ऋण शुरू करता है या एक देश के नागरिक विदेश में भूमि, मकान, प्लांट, आदि के रूप में संपत्तियों का क्रय-विक्रय करते हैं-ये सब पूँजीगत प्राप्तियों और भुगतान के रूप हैं।

प्रश्न 3.
भगतान शेष में असंतलन के कारण और उसे दूर करने के उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भुगतान शेष में असंतुलन के कारण अनेक कारणों से भुगतान शेष में घाटा (Deficit) या आधिक्य (Surplus) के रूप में असंतुलन पैदा हो जाता है। ध्यान रहे, इस घाटे या आधिक्य का संबंध मुख्यतः भुगतान शेष के चालू खाते से होता है। इन साधनों को निम्नलिखित तीन वर्गों में बाँटा गया है
1. आर्थिक साधन-

  • निर्यात और आयात में असंतुलन का पैदा होना
  • बड़े पैमाने पर विकास व्यय जिसके लिए भारी आयात करने पड़ते हैं
  • ऊँची घरेलू कीमतों के कारण आयात में वृद्धि होना
  • चक्रीय उतार-चढ़ाव (Cyclical Fluctuations) अर्थात् सामान्य व्यवसाय में तेजी व मंदी का चक्र
  • पूर्ति के नए स्रोतों का विकास
  • नए व बेहतर स्थानापन्न उत्पाद का उभरना
  • उत्पादन लागतों में वृद्धि आदि।

2. राजनीतिक साधन अनुभव बताता है कि देश में राजनीतिक अस्थिरता और दंगों से-

  • देश से बड़े पैमाने पर पूँजी का पलायन होता है
  • विदेशी निवेश रुक जाता है और
  • नए घरेलू उद्योगों की स्थापना धीमी पड़ जाती है।

3. सामाजिक कारण-

  • लोगों के फैशन, अभिरुचियों और प्राथमिकताओं के कारण आयात-निर्यात प्रभावित होते हैं जिससे भुगतान शेष में असंतुलन उत्पन्न हो जाता है
  • गरीब व पिछड़े देशों में जनसंख्या में तीव्र वृद्धि होने से निर्यात घट जाते हैं और आयात बढ़ जाते हैं जिससे भुगतान शेष में असंतुलन पैदा हो जाता है।

भुगतान शेष में असंतुलन दूर करने के उपाय-भुगतान शेष में असंतुलन दूर करने के उपाय निम्नलिखित है-
1. निर्यात बढ़ाना-उद्यमियों और निर्यातकों को भारी आर्थिक सहायता, अनुदान व रियायतें देकर निर्यात संवर्धन (Promote) करना चाहिए और आयात यथासंभव सीमित करना चाहिए।

2. आयात प्रतिस्थापन-आयात की जाने वाली वस्तुओं का स्थान लेने वाली अर्थात् प्रतिस्थापित वस्तुएँ देश के अंदर निर्मित करनी चाहिएँ जिससे आयात कम हो सके।

3. घरेलू करेंसी का अवमूल्यन-जब घरेलू मुद्रा का विदेशी मुद्रा में मूल्य घटाया जाता है तो विदेशियों के लिए हमारी घरेलू वस्तुएँ सस्ती हो जाती हैं जिससे निर्यात में वृद्धि होती है। ध्यान रहे, घरेलू मुद्रा का अवमूल्यन सरकार द्वारा होता है जब देश में स्थिर विनिमय दर की व्यवस्था लागू हो।

4. विनिमय नियंत्रण-सरकार द्वारा सब निर्यातकों (Exporters) को विदेशी मुद्रा (विनिमय) केंद्रीय बैंक में समर्पण (Surrender) करने के आदेश देकर विदेशी विनिमय पर नियंत्रण करना चाहिए। केवल लाइसेंस प्राप्त आयातकों (Importers) को राशन के रूप में विदेशी विनिमय देनी चाहिए।

5. निरंतर बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करना तेजी या बढ़ती कीमतों से निर्यात कम होता है और आयात बढ़ता है। इसलिए सरकार को न केवल कीमतों में वृद्धि की प्रवृत्ति रोकनी चाहिए, बल्कि कीमतें गिराने के उपाय भी करने चाहिए।

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प्रश्न 4.
स्थिर विनिमय दर व्यवस्था क्या है? इसके गुण-दोषों का वर्णन करें।
उत्तर:
स्थिर विनिमय दर व्यवस्था इस व्यवस्था में देश की सरकार अपनी मद्रा की विनिमय दर को सोने के रूप में या किसी दसरी करेंसी के रूप में घोषित करती है। चूंकि इस दर को लगभग स्थिर रखा जाता है, इसलिए इसे स्थिर विनिमय दर कहते हैं। इस दर में बहुत मामूली अंतर ही मान्य होता है। यह प्रणाली 1880-1914 तक लागू स्वर्णमान व्यवस्था (Gold Standard System) में अपनाई गई थी जिसके अंतर्गत प्रत्येक देश अपनी मुद्रा का मूल्य सोने के निश्चित भार के रूप में घोषित करता था।

इन घोषित मूल्यों के आधार पर विभिन्न मुद्राओं (करेंसियों) का आपस में विनिमय दर तय हो जाता था, इसे विनिमय की टकसाल मान समता दर (Mint Parity . Value of Exchange) कहा जाता था। उदाहरण के लिए, यदि एक रुपए के बदले शुद्ध सोने के 20 ग्राम मिलते हैं तथा एक अमेरिकी डॉलर के बदले 100 ग्राम मिलते हैं तो एक डॉलर 100/20 = 5 रुपए का है। ऐसी स्थिति में एक डॉलर = 5 रुपए की विनिमय दर निश्चित हो जाएगी।

स्थिर विनिमय दर व्यवस्था के गुण-स्थिर विनिमय दर व्यवस्था के गुण निम्नलिखित हैं-

  • इससे विनिमय दर में स्थायित्व (Stability) आता है जो विदेशी व्यापार को बढ़ावा देता है।
  • अंतर्निर्भर विश्व अर्थव्यवस्था में, देशों की समष्टि स्तर की आर्थिक नीतियों में यह समन्वय लाने में सहायता करती है।
  • यह प्रणाली सदस्य देशों में गंभीर आर्थिक उथल-पुथल से बचाती है क्योंकि विनिमय दर स्थिर रहती है।
  • यह विश्व व्यापार को बढ़ाने में सहायता करती है, क्योंकि इससे अंतर्राष्ट्रीय सौदों में जोखिम और अनिश्चितता नहीं रहती।

स्थिर विनिमय दर व्यवस्था के दोष-स्थिर विनिमय दर व्यवस्था के दोष निम्नलिखित हैं-
1. मुद्रा अवमूल्यन का भय-जब माँग अधिक होती है तो केंद्रीय बैंक, स्थिर विनिमय दर बनाए रखने के लिए अपने रिज़र्व का इस्तेमाल करता है, परंतु जब सुरक्षित रखा रिज़र्व भी समाप्त हो जाए और माँग आधिक्य जारी रहे तो सरकार को मजबूर होकर घरेलू मुद्रा के मान में ह्रास करना पड़ता है। यदि सट्टेबाजों ने इसकी माँग और बढ़ा दी तो घरेलू मुद्रा का अवमूल्यन करना पड़ जाएगा। यही इसका सबसे बड़ा दोष है।

2. कारकों (साधनों) के आबंटन में कठोरता-इस प्रणाली के कारण अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में विशेष रूप से कारकों के आबंटन में कठोरता (Rigidity) आती है।

3. पूँजी का सीमित आवागमन-स्थिर विनिमय दर को बनाए रखने हेतु बहुत अधिक अंतर्राष्ट्रीय निधि की मदद की जरूरत पड़ती है, इस कारण पूँजी का विभिन्न देशों में आवागमन बहुत सीमित (Restricted) हो जाता है।

प्रश्न 5.
नम्य (लचीली) विनिमय दर प्रणाली से आप क्या समझते हैं? इसके गुण-दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नम्य (लचीली) विनिमय दर व्यवस्था-नम्य (लचीली) विनिमय दर वह दर है जो विदेशी मुद्रा बाज़ार में किसी देश की मुद्रा की माँग एवं पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। विदेशी करेंसी की माँग और पूर्ति में परिवर्तन के अनुसार यह दर बदलती रहती है। इस व्यवस्था में सरकारी हस्तक्षेप बिलकुल नहीं होता। सामान्य रूप से केंद्रीय बैंक भी दखल नहीं देता। नम्य विनिमय दर एक प्रकार से स्थिर विनिमय दर के बिलकुल विपरीत दूसरे सिरे पर है क्योंकि यह विदेशी मुद्रा बाज़ार में माँग और पूर्ति में उतार-चढ़ाव के फलस्वरूप निरंतर बदलती रहती है। इसीलिए इस दर को नम्य या लचीली विनिमय दर कहते हैं। जैसे समाचार-पत्रों में हम डॉलर और रुपयों में हर रोज़ बदलती हुई विनिमय दर पढ़ते हैं।

नम्य विनिमय दर व्यवस्था के गुण-नम्य विनिमय दर व्यवस्था के गुण निम्नलिखित हैं-

  • भुगतान शेष में असंतुलन स्वतः दूर हो जाता है।
  • केंद्रीय बैंक को विदेशी मुद्राओं के भंडार (Reserve) रखने की जरूरत नहीं रहती। अतः भंडार रखने व प्राप्त करने की लागत से बचा जा सकता है।
  • यह व्यापार और पूँजी के आवागमन में आने वाली रुकावटों को दूर करने में सहायक है।
  • इससे अर्थव्यवस्था में संसाधनों का सर्वोत्तम आबंटन होता है जिससे कार्यक्षमता बढ़ जाती है।
  • इस प्रणाली में जोखिम पूँजी को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाज़ार में प्रोत्साहन प्राप्त होता है।
  • इस प्रणाली को अंतर्राष्ट्रीय निधि की मदद की आवश्यकता नहीं होती।

नम्य विनिमय दर व्यवस्था के दोष-नम्य विनिमय दर व्यवस्था के दोष निम्नलिखित हैं-

  • यह सट्टेबाजी को बढ़ावा देती है जिससे विनिमय दर में उतार-चढ़ाव होते रहते हैं।
  • विनिमय दर में बार-बार उतार-चढ़ाव से विदेशी व्यापार और विदेशी निवेश में रुकावट आती है।
  • भुगतान शेष घाटा पूरा करने के लिए मद्रा अवमूल्यन से कीमतों में निरंतर वृद्धि (मद्रास्फीति) होने लगती है।
  • यह प्रणाली समष्टिगत नीतियों में समन्वय स्थापित करने में कठिनाई उत्पन्न कर देती है।
  • इसके कारण अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अस्थिरता उत्पन्न हो जाती है।

प्रश्न 6.
विदेशी विनिमय दर कैसे निर्धारित होती है? एक रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
स्वतंत्र मुद्रा बाज़ार में, संतुलन (साम्य) विनिमय दर उस बिंदु पर निर्धारित होती है जहाँ विदेशी विनिमय की माँग, विदेशी विनिमय की पूर्ति के बराबर हो जाए अर्थात् संतुलन विनिमय दर का निर्धारण विदेशी विनिमय की माँग और पूर्ति वक्रों के प्रतिच्छेदन द्वारा होता है। वस्तुतः जिस प्रकार किसी वस्तु की कीमत उसकी माँग और पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है उसी प्रकार नम्य विदेशी विनिमय दर भी विदेशी मुद्रा (करेंसी) की माँग और पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। मान लीजिए, दो देश भारत और अमेरिका की करेंसी अर्थात् रुपया और डॉलर की विनिमय दर निर्धारित होनी है। इस समय भारत और अमेरिका दोनों में चलायमान विनिमय दर (Floating Exchange Rate) व्यवस्था है। इसलिए प्रत्येक देश की करेंसी का, दूसरी करेंसी के रूप में मूल्य, दोनों करेंसियों की माँग और पूर्ति पर निर्भर करता है। इस संदर्भ में संतुलन विनिमय दर के निर्धारण की चर्चा निम्नलिखित तीन भागों माँग, पूर्ति तथा संतुलन-शीर्षकों के अंतर्गत की गई है

(क) विदेशी विनिमय (मुद्रा) की माँग (जैसे अमेरिकी डॉलर)-विदेशी मुद्रा की माँग निम्नलिखित कार्यों के लिए की जाती है

  • विदेशों से वस्तुएँ व सेवाएँ खरीदने (आयात करने) के लिए
  • विदेशों में उपहार भेजने के लिए
  • विदेश में वित्तीय परिसंपत्तियों (अर्थात् बॉण्ड व शेयर) खरीदने के लिए
  • विदेशी मुद्राओं के मूल्यों पर सट्टेबाजी के लिए
  • विदेशों में जाने वाले पर्यटकों की विदेशी विनिमय की माँग पूरी करने के लिए।

विदेशी विनिमय की दर और विदेशी विनिमय की माँग में संबंध-दोनों में विपरीत संबंध (Inverse Relations) हैं अर्थात् कीमत घटने पर माँग बढ़ जाती है और कीमत बढ़ने (महँगा होने) पर विदेशी विनिमय की माँग कम हो जाती है। मान लीजिए विदेशी विनिमय अमेरिकी डॉलर की कीमत 1 डॉलर = 45 रुपए गिरकर 1 डॉलर = 40 रुपए हो गई है। इसका अर्थ यह है कि अमेरिकी वस्तुएँ भारत के लोगों के लिए सस्ती हो गई हैं क्योंकि 1 डॉलर मूल्य की अमेरिकी वस्तुएँ खरीदने के लिए उन्हें 45 रुपए देने की बजाय 40 रुपए देने होंगे।

फलस्वरूप भारत, अमेरिका से अधिक माल आयात करने लगेगा जिसके लिए अमेरिकी डॉलर की माँग भारत में बढ़ जाएगी। अतः स्पष्ट है कि विदेशी विनिमय की दर (कीमत) गिरने पर (जैसे 1 डॉलर की कीमत 45 रुपए से गिरकर 40 रुपए होने पर), विदेशी विनिमय (यहाँ डॉलर) की माँग बढ़ जाती है। इसी प्रकार विदेशी विनिमय की दर बढ़ने पर उसकी माँग कम हो जाती है। इसी कारण विदेशी मुद्रा का माँग वक्र का आकार बाएँ से दाएँ ऋणात्मक ढाल वाला होता है। संक्षेप में, विदेशी विनिमय दर गिरने पर विदेशी मुद्रा की माँग इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि तब विदेशी वस्तुएँ देशीय लोगों के लिए तुलनात्मक रूप से सस्ती हो जाती हैं।

(ख) विदेशी विनिमय की पूर्ति (जैसे अमेरिकी डॉलर)-किसी देश (जैसे भारत) में विदेशी विनिमय निम्नलिखित स्रोतों से आती है

  • विदेशियों द्वारा उस देश (जैसे भारत) की वस्तुओं व सेवाओं की खरीद अर्थात् भारत द्वारा निर्यात
  • विदेशी निगमों द्वारा उस देश (भारत) में निवेश
  • विदेशी पर्यटकों का उस देश (भारत) में भ्रमण
  • मुद्रा के व्यापारियों और सट्टेबाजों की गतिविधियाँ
  • विदेश में रहने वालों (भारतीयों) द्वारा प्रेषणाएँ।

विदेशी विनिमय की दर (कीमत) और विदेशी विनिमय की पूर्ति में संबंध दोनों में प्रत्यक्ष संबंध (Direct Relation) हैं अर्थात् कीमत बढ़ने पर विदेशी विनिमय की पूर्ति बढ़ जाती है। मान लीजिए कि विदेशी विनिमय अमेरिकी डॉलर की भारतीय मुद्रा में कीमत 1 डॉलर = 65 रुपए से बढ़कर 1 डॉलर = 67 रुपए हो गई है। इसका अर्थ है कि भारतीय वस्तुएँ अमेरिका के लिए सस्ती हो गई हैं क्योंकि अब 1 डॉलर से 65 रुपए की बजाय 67 रुपए की भारतीय वस्तुएँ अर्थात् अधिक वस्तुएँ खरीदी जा सकती हैं। फलस्वरूप अमेरिका, भारत से अधिक आयात करने लगेगा जिससे विदेशी विनिमय अर्थात् अमेरिकी डॉलर की पूर्ति भारत में बढ़ जाएगी।

अतः स्पष्ट है कि विदेशी विनिमय की दर (कीमत) बढ़ने से उसकी पूर्ति बढ़ जाती है। इसी प्रकार विदेशी विनिमय दर कम होने पर (जैसे 1 डॉलर की कीमत 65 रुपए से गिरकर 63 रुपए होने पर) विदेशी विनिमय की पूर्ति कम हो जाती है। इसीलिए विदेशी मुद्रा की पूर्ति वक्र का आकार दाईं ओर ऊपर की तरफ ढाल वाला होता है। संक्षेप में, विदेशी विनिमय दर बढ़ने पर विदेशी मुद्रा की पूर्ति इसलिए बढ़ जाती है, क्योंकि तब देशी वस्तुएँ विदेशियों के लिए तुलनात्मक रूप से सस्ती हो जाती हैं।

(ग) विनिमय बाज़ार में संतुलन-संतुलन विनिमय दर, उस बिंदु पर निर्धारित होती है जहाँ विदेशी विनिमय की माँग और विदेशी विनिमय की पूर्ति आपस में बराबर हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में, माँग और पूर्ति वक्रों के प्रतिच्छेदन (Intersection) से संतुलन दर और संतुलन मात्रा का निर्धारण हो जाता है। इसे संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है। उपर्युक्त उदाहरण के संदर्भ में डॉलर की रुपयों में कीमत को Y-अक्ष पर दर्शाया गया है जबकि डॉलर की माँग और पूर्ति को X-अक्ष पर दर्शाया गया है। इस रेखाचित्र में माँग वक्र नीचे की ओर ढालू है जो यह दर्शाता है कि ऊँची विनिमय दर होने पर विदेशी विनिमय (डॉलर) की माँग कम होती है। पूर्ति वक्र ऊपर की ओर उठता हुआ वक्र है जो इस बात का प्रतीक है कि
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विदेशी मुद्रा बाजार में संतुलन विनिमय दर बढ़ने पर विदेशी विनिमय (डॉलर) की पूर्ति बढ़ती जाती है। दोनों वक्र एक-दूसरे को बिंदु E पर प्रतिच्छेदित करते हैं जिसका यह अर्थ है कि OR (QE) विनिमय दर पर माँग और पूर्ति की मात्रा बराबर है (क्योंकि दोनों OQ के बराबर हैं)। अतः संतुलन विनिमय दर OR है और संतुलन विनिमय मात्रा OQ है।

विनिमय दर में परिवर्तन होने पर अमेरिकी डॉलर के लिए भारत की माँग बढ़ने पर माँग वक्र DD ऊपर खिसक कर वक्र D’D’ हो जाएगा। फलस्वरूप विनिमय पर (डॉलर की रुपयों में कीमत) OR से बढ़कर OR, हो जाएगी। इसका अर्थ होगा भारत को प्रत्येक अमेरिकी डॉलर के लिए पहले से अधिक रुपए देने होंगे। इसी को भारतीय रुपए के मान में हास (Depreciation of Indian Currency) कहा जाता है।

इसी प्रकार अमेरिकी डॉलरों की पूर्ति में वृद्धि होने से पूर्ति वक्र SS नीचे खिसककर S’S’ हो जाएंगा। फलस्वरूप रुपयों में डॉलर की कीमत गिर जाएगी। यह भारतीय रुपए का अधिमूल्यन (Appreciation of Indian Currency) होगा क्योंकि तब एक डॉलर खरीदने के लिए कम रुपए देने होंगे।

प्रश्न 7.
विदेशी विनिमय बाज़ार में हाजिर बाज़ार (Spot Market) और वायदा बाज़ार (Forward Market) के बारे में आप क्या जानते हैं? .
उत्तर:
हाजिर बाज़ार-यदि विदेशी मुद्रा बाज़ार में लेन-देन दैनिक प्रकृति का है तो उसे हाजिर या चालू (Current) बाज़ार कहते हैं। विदेशी मुद्रा के हाजिर बाज़ार में लागू हो रही विनिमय दर को हाजिर दर (Spot Rate) कहते हैं। दूसरे शब्दों में, हाजिर दर से अभिप्राय उस दर से है जिस पर विदेशी करेंसी तत्काल उपलब्ध होती है। उदाहरण के लिए, यदि विदेशी मुद्रा बाज़ार में किसी समय बिंदु पर एक अमेरिकी डॉलर 65 रुपए में खरीदा जा सकता है तो यह विदेशी मुद्रा (डॉलर) की हाजिर दर होगी। निस्संदेह तुरंत होने वाले सौदों में विदेशी मुद्रा की हाजिर (या तात्कालिक) दर बहुत उपयोगी होती है परंतु हाजिर दर की मात्रा क्या है इसे जानना भी जरूरी होता है।

वायदा बाज़ार-यह विदेशी मुद्रा का वह बाज़ार है जिसमें विदेशी करेंसी के क्रय-विक्रय का सौदा वर्तमान में हो जाता है, परंतु करेंसी की देयता (Delivery) भविष्य में तयशुदा किसी तिथि पर होती है। दूसरे शब्दों में, भविष्य में विदेशी मुद्रा की देयता का बाज़ार, वायदा बाज़ार कहलाता है। हम जानते हैं कि अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन (या सौदे) उसी दिन पूरे नहीं हो जाते, बल्कि जिस दिन सौदों के प्रपत्रों पर हस्ताक्षर होते हैं उसके कई दिनों बाद वह लेन-देन पूरा होता है। ऐसी स्थिति में भविष्य में होने वाली संभावित विनिमय दर की ओर ध्यान देना जरूरी हो जाता है। विनिमय की वह दर जो भविष्य की किसी तिथि पर विदेशी मुद्रा के लेन-देन पर लागू होती है, वायदा दर (Forward Rate) कहलाती है। इस प्रकार वायदा दर वह दर है जिस पर भविष्य में विदेशी करेंसी के क्रय-विक्रय का सौदा होता है।

भविष्य में सौदा करने के दो उद्देश्य होते हैं-

  • विनिमय दर के बदलने से संभावित जोखिम को कम करना। इसे जोखिम का पूर्वोपाय (Hedging) कहते हैं।
  • सौदे से लाभ कमाना। इसे सट्टेबाजी कहते हैं। स्पष्ट है कि वायदा बाज़ार में वे व्यापारी होते हैं जिन्हें भविष्य में किसी दिन को विदेशी मुद्रा की आवश्यकता (माँग) होगी अथवा उसकी पूर्ति करनी होगी।

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प्रश्न 8.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त नोट लिखिए-
(क) मुद्रा का अधिमूल्यन (Appreciation) और मुद्रा का मूल्यहास (Depreciation)।
(ख) (O NEER, (ii) REER और (iii) RER को परिभाषित कीजिए।
(ग) चलित सीमाबंध (Crawling Peg) व प्रबंधित तरणशीलता (Managed Floating)।
उत्तर:
(क) मुद्रा का अधिमूल्यन और मुद्रा का मूल्यहास:
1. मुद्रा का अधिमूल्यन-मुद्रा (करेंसी) के अधिमूल्यन से अभिप्राय, अन्य विदेशी करेंसी के मूल्य में कमी से है। दूसरे शब्दों में, मुद्रा अधिमूल्यन तब होता है जब घरेलू मुद्रा की इकाइयों में विदेशी मुद्रा की कीमत कम हो जाए अर्थात विदेशी मुद्रा के रूप में घरेलू मुद्रा का मूल्य बढ़ जाए। उदाहरण के लिए, यदि भारतीय रुपए की अमेरिकी डॉलर में कीमत 65 रुपए से 64 रुपए हो जाए तो इसे भारतीय करेंसी (रुपया) का अधिमूल्यन कहा जाएगा, क्योंकि एक डॉलर खरीदने के लिए कम (65 रुपए की बजाय 64 रुपए) रुपए देने पड़ेंगे अर्थात् रुपए की क्रय-शक्ति बढ़ गई है। यह भारतीय मुद्रा के प्रबल होने का प्रतीक है। तुलन में, हम यह भी कह सकते हैं कि जब भारतीय रुपए का अमेरिकी डॉलर के रूप में अधिमूल्यन (Appreciation) होता है तो अमेरिकी डॉलर का मूल्यह्रास (Depreciation) होता है।

2. मुद्रा का मूल्यहास-मुद्रा (करेंसी) के मूल्यह्रास से अभिप्राय, दूसरी विदेशी करेंसी के मूल्य में वृद्धि से है। दूसरे शब्दों में, का मूल्यह्रास उस समय होता है जब घरेलू मद्रा की इकाइयों में विदेशी मुद्रा की कीमत में वृद्धि हो जाए उदाहरण के लिए, यदि भारतीय रुपए की अमेरिकी डॉलर में कीमत 65 रुपए से 66 रुपए हो जाए तो यह भारतीय करेंसी (रुपए) का मूल्यह्रास माना जाएगा क्योंकि एक डॉलर खरीदने के लिए अब अधिक रुपए (65 रुपए की बजाए 66 रुपए) देने पड़ेंगे। यह भारतीय रुपए,के दुर्बल होने का प्रतीक है। स्पष्ट है नम्य विनिमय दर व्यवस्था में किसी करेंसी का विनिमय मूल्य, उसकी माँग व पूर्ति में बार-बार परिवर्तन के आधार पर घटता बढ़ता रहता है।

(ख) NEER, REER, RER की परिभाषाएँ:
1. मौद्रिक प्रभावी विनिमय दर (Nominal Effective Exchange Rate-NEER)-किसी मुद्रा की औसत सापेक्ष शक्ति या क्षमता का मान (माप), प्रभावी विनिमय दर कहलाता है। चूंकि कीमतों में परिवर्तन के प्रभावों को हम समाप्त नहीं करते, इसलिए इसे मौद्रिक प्रभावी विनिमय दर (NEER) कहते हैं।

2. वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (Real Effective Exchange Rate-REER)-यह ऐसी प्रभावी विनिमय दर है जो मौद्रिक दर की बजाय वास्तविक विनिमय दरों पर आधारित होती है।

3. वास्तविक विनिमय दर (Real Exchange Rate-RER) यह स्थिर कीमतों पर आधारित विनिमय दर होती है। पुनः यह कीमतों में उतार-चढ़ाव के प्रभाव से मुफ्त (स्वतंत्र) होती है।

(ग) चलित सीमाबंध और प्रबंधित तरणशीलता:
1. चलित (परिवर्तनशील) सीमाबंध-यह स्थिर विनिमय दर और नम्य विनिमय दर के बीच का एक समझौता है। चलित सीमाबंध व्यवस्था के अनुसार देश अपनी करेंसी का समता मान (Parity Value) नियत करता है और इसके इर्द-गिर्द थोड़ा उतार-चढ़ाव (जैसे समता मान से ± 1%) की इजाजत देता है।

2. प्रबंधित तरणशीलता-यह स्थिर विनिमय दर और नम्य (लचीली) विनिमय दर के प्रबंध की अंतिम संकर प्रजाति या मिश्रण है जो सरकार द्वारा प्रबंधित या नियंत्रित होती है। इसे प्रबंधित तरणशीलता कहते हैं, परंतु यह नियत दर समय-समय पर जरूरत के अनुसार मौद्रिक अधिकारी द्वारा संशोधित की जाती है।

संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जब व्यापार शेष 400 करोड़ रुपए है और निर्यात का मूल्य 300 करोड़ रुपए का है, तो आयात का मूल्य ज्ञात कीजिए।
हल:
व्यापार शेष = निर्यात का मूल्य – आयात का मूल्य
400 करोड़ रुपए = 300 करोड़ रुपए – आयात का मूल्य
आयात का मूल्य = 300 करोड़ रुपए – 400 करोड़ रुपए
अतः
आयात का मूल्य = (-) 100 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 2.
जब व्यापार शेष 500 करोड़ रुपए है और आयात का मूल्य 300 करोड़ रुपए है, तो निर्यात का मूल्य ज्ञात कीजिए।
हल:
व्यापार शेष = निर्यात का मूल्य – आयात का मूल्य
500 करोड़ रुपए = निर्यात का मूल्य – 300 करोड़ रुपए
500 करोड़ रुपए + 300 करोड़ रुपए = निर्यात का मूल्य
800 करोड़ रुपए = निर्यात का मूल्य
अतः निर्यात का मूल्य = 800 करोड़ रुपए उत्तर

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 3.
जब व्यापार शेष (-) 400 करोड़ रुपए हो और निर्यातों का मूल्य 300 करोड़ रुपए हो, तो आयातों के मूल्य की गणना कीजिए।
हल:
व्यापार शेष = (-) 400 करोड़ रुपए
निर्यातों का मूल्य = 300 करोड़ रुपए
आयातों का मूल्य = 300 + 400
अतः आयातों का मूल्य = 700 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 4.
व्यापार शेष (-) 300 करोड़ रुपए है और निर्यात का मूल्य 500 करोड़ रुपए है, तो आयात का मूल्य ज्ञात कीजिए।
हल:
व्यापार शेष = निर्यात का मूल्य – आयात का मूल्य
(-) 300 करोड़ रुपए = 500 करोड़ रुपए – आयात का मूल्य
आयात का मूल्य = 500 करोड़ रुपए + 300 करोड़ रुपए
अतः आयात का मूल्य = 800 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 5.
जब व्यापार शेष में घाटा 800 करोड़ रुपए का है और निर्यात का मूल्य 500 करोड़ रुपए है, तो आयात का मूल्य ज्ञात कीजिए।
हल:
व्यापार शेष = निर्यात का मूल्य – आयात का मूल्य
– 800 करोड़ रुपए = 500 करोड़ रुपए – आयात का मूल्य
आयात का मूल्य = 500 करोड़ रुपए + 800 करोड़ रुपए
अतः आयात का मूल्य = 1300 करोड़ रुपए उत्तर

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HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. सार्वजनिक वस्तुओं की विशेषता है-
(A) ये अप्रतिस्पर्धी होती हैं
(B) ये अवर्ण्य होती हैं
(C) इनके उपभोग का शुल्क संग्रह करना कठिन होता है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

2. निम्नलिखित में से सरकारी बजट के संबंध में कौन-सा कथन सही है?
(A) यह एक वित्तीय वर्ष में सरकार की अनुमानित आय तथा व्यय का ब्यौरा है
(B) यह एक वित्तीय वर्ष में सरकार की वास्तविक आय तथा व्यय का ब्यौरा है
(C) इसमें बीते वर्ष की उपलब्धियों तथा कमियों के संबंध में कोई चर्चा नहीं होती है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) यह एक वित्तीय वर्ष में सरकार की अनुमानित आय तथा व्यय का ब्यौरा है

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

3. बजट में-
(A) पिछले वर्ष की आय का विवरण होता है
(B) चालू वर्ष की आय-व्यय की संशोधित स्थिति होती है
(C) आगामी वर्ष की आय-व्यय के अनुमान होते हैं
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) आगामी वर्ष की आय-व्यय के अनुमान होते हैं

4. सरकारी बजट के निम्नलिखित में से कौन-से उद्देश्य हैं?
(A) आय और संपत्ति का पुनः वितरण
(B) आर्थिक स्थिरता
(C) (A) और (B) दोनों
(D) सार्वजनिक उद्यमों को निजी क्षेत्र को सौंपना
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

5. राजस्व प्राप्तियाँ वे प्राप्तियाँ हैं जिनसे सरकार की-
(A) परिसंपत्तियों में कोई कमी नहीं होती
(B) परिसंपत्तियों में कमी होती है
(C) कोई देयता उत्पन्न नहीं होती
(D) (A) और (C) दोनों
उत्तर:
(D) (A) और (C) दोनों

6. निम्नलिखित में से कौन-सी करेत्तर प्राप्ति (Non-tax Receipts) है?
(A) उपहार कर
(B) बिक्री कर
(C) उपहार और अनुदान
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) उपहार और अनुदान

7. कर एक
(A) ऐच्छिक भुगतान है
(B) अनिवार्य भुगतान है
(C) एक कानूनी भुगतान नहीं है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) अनिवार्य भुगतान है

8. जब किसी कर का करापात तथा कराघात एक ही व्यक्ति पर पड़ता है, तो उसे कहते हैं-
(A) प्रत्यक्ष कर
(B) अप्रत्यक्ष कर
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) प्रत्यक्ष कर

9. निम्नलिखित में से कौन-सा प्रत्यक्ष कर का उदाहरण है?
(A) मनोरंजन कर
(B) उत्पादन कर
(C) आय कर
(D) सेवा कर
उत्तर:
(C) आय कर

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

10. निम्नलिखित में से कौन-सा अप्रत्यक्ष कर का उदाहरण है?
(A) उत्पादन कर
(B) सेवा कर
(C) मनोरंजन कर
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

11. निम्नलिखित में से कौन-सा प्रत्यक्ष कर का उदाहरण नहीं है?
(A) निगम कर
(B) संपत्ति कर
(C) सेवा कर
(D) आय कर
उत्तर:
(C) सेवा कर

12. निम्नलिखित में से प्रत्यक्ष कर का उदाहरण कौन-सा है?
(A) आयात-निर्यात कर
(B) उत्पादन कर
(C) बिक्री कर
(D) आय कर
उत्तर:
(D) आय कर

13. निम्नलिखित में से अप्रत्यक्ष कर का उदाहरण कौन-सा है?
(A) आय कर
(B) निगम कर
(C) मृत्यु कर
(D) आयात-निर्यात कर
उत्तर:
(D) आयात-निर्यात कर

14. कारकों के आबंटन की दृष्टि से अच्छे होते हैं-
(A) प्रत्यक्ष कर
(B) अप्रत्यक्ष कर
(C) प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष कर
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) अप्रत्यक्ष कर

15. निम्नलिखित में से कौन-सा अप्रत्यक्ष कर नहीं है?
(A) सीमा शुल्क
(B) निगम कर
(C) केंद्रीय उत्पाद शुल्क
(D) व्यापार कर
उत्तर:
(B) निगम कर

16. कर की दर के अनुसार एक आनुपातिक कर प्रणाली क्या है?
(A) कर की दर समान रहे
(B) प्रत्येक को समान कर राशि चुकानी पड़े
(C) कर की दर में कमी हो
(D) कर की दर में वृद्धि हो
उत्तर:
(A) कर की दर समान रहे

17. प्रगतिशील कर पद्धति में-
(A) आय वृद्धि के साथ-साथ कर का प्रतिशत कम होता रहता है
(B) आय वृद्धि के साथ-साथ कर का प्रतिशत बढ़ता जाता है
(C) आय कम हो या अधिक कर का प्रतिशत समान रहता है
(D) निर्धनों पर कर का भार अधिक पड़ता है
उत्तर:
(B) आय वृद्धि के साथ-साथ कर का प्रतिशत बढ़ता जाता है

18. प्रगतिशील कर का उद्देश्य होता है-
(A) त्याग का समान बंटवारा
(B) कर में वृद्धि
(C) हानिप्रद उपभोग पर प्रतिबंध
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) त्याग का समान बंटवारा

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

19. प्रतिगामी कर वह कर है जो
(A) व्यक्ति की आय बढ़ने पर बढ़ता प्रतिशत लेता है
(B) व्यक्ति की आय बढ़ने पर घटता प्रतिशत लेता है
(C) व्यक्ति की आय का सापेक्षिक रूप में निम्न प्रतिशत होता है
(D) व्यक्ति की आय का स्थिर प्रतिशत लेता है
उत्तर:
(B) व्यक्ति की आय बढ़ने पर घटता प्रतिशत लेता है

20. आय के असमान वितरण को कम किया जा सकता है-
(A) प्रगतिशील कर प्रणाली द्वारा
(B) आनुपातिक कर प्रणाली द्वारा
(C) प्रतिगामी कर प्रणाली द्वारा
(D) अवरोही कर प्रणाली द्वारा
उत्तर:
(A) प्रगतिशील कर प्रणाली द्वारा

21. सरकार की गैर-कर आय का मुख्य स्रोत कौन-सा है?
(A) फीस
(B) लाइसेंस तथा परमिट
(C) (A) तथा (B) दोनों
(D) आय कर पर सरचार्ज
उत्तर:
(C) (A) तथा (B) दोनों

22. पूँजीगत प्राप्तियाँ वे मौद्रिक प्राप्तियाँ हैं जिनसे सरकार की-
(A) देयता उत्पन्न होती है
(B) देयता उत्पन्न नहीं होती
(C) परिसंपत्तियाँ बढ़ती हैं।
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) देयता उत्पन्न होती है

23. निम्नलिखित में से सरकार की पूँजीगत प्राप्तियाँ कौन-सी हैं?
(A) ऋणों की वसूली
(B) उधार तथा अन्य देयताएँ
(C) विनिवेश
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

24. निम्नलिखित में से कौन-सी पूँजीगत प्राप्ति है?
(A) कर राजस्व
(B) सरकारी निवेश से प्राप्त आय
(C) फीस व जुर्माने से प्राप्त राशि
(D) उधार ली गई राशि
उत्तर:
(D) उधार ली गई राशि

25. निम्नलिखित में से कौन-सी गैर-राजस्व प्राप्ति नहीं है?
(A) फीस
(B) उपहार कर
(C) जुर्माना
(D) अनुदान
उत्तर:
(B) उपहार कर

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

26. विनिवेश से अभिप्राय है-
(A) वर्तमान निवेश को कम करना
(B) वर्तमान निवेश को शून्य करना
(C) लोगों के पास चलन मुद्रा + बैंकों के पास माँग जमाएँ
(D) सरकार की परिसंपत्तियों को बढ़ाना
उत्तर:
(A) वर्तमान निवेश को कम करना

27. राजस्व व्यय वह व्यय है जिसके फलस्वरूप-
(A) सरकार की परिसंपत्ति का निर्माण होता है
(B) सरकार की परिसंपत्ति का निर्माण नहीं होता
(C) सरकार की देयता में कमी होती है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) सरकार की परिसंपत्ति का निर्माण नहीं होता

28. पूँजीगत व्यय सरकार की वे अनुमानित व्यय हैं जो सरकार की-
(A) परिसंपत्ति में वृद्धि करते हैं
(B) देयता को कम करते हैं
(C) (A) तथा (B) दोनों
(D) देयता को बढ़ाते हैं
उत्तर:
(C) (A) तथा (B) दोनों

29. निम्नलिखित में कौन-सा गैर-विकासात्मक (विकासेत्तर) व्यय है?
(A) देश की सुरक्षा पर व्यय
(B) नहरों के निर्माण पर व्यय
(C) वृद्धावस्था पेंशन
(D) बेरोज़गारी भत्ता
उत्तर:
(B) नहरों के निर्माण पर व्यय

30. निम्नलिखित में से कौन-सा विकास व्यय नहीं है?
(A) ब्याज के भुगतान पर व्यय
(B) शिक्षा और चिकित्सा पर व्यय
(C) बिजली उत्पादन पर व्यय
(D) सड़क निर्माण पर व्यय
उत्तर:
(A) ब्याज के भुगतान पर व्यय

31. शिक्षा, प्रशिक्षण, जनस्वास्थ्य आदि पर व्यय कहलाता है-
(A) पूँजीगत निर्माण
(B) मानव पूँजीगत
(C) तकनीकी प्रगति
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) मानव पूँजीगत

32. बजट घाटे से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें सरकार का बजट व्यय सरकार की बजट प्राप्तियों से-
(A) कम होता है
(B) अधिक होता है।
(C) बराबर होता है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) अधिक होता है

33. राजस्व घाटे के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा सही है?
(A) इसका संबंध राजस्व व्यय और राजस्व प्राप्तियों से है
(B) इसका संबंध पूँजीगत प्राप्तियों और पूँजीगत व्यय से है
(C) यह राजस्व व्यय की राजस्व प्राप्तियों पर अधिकता है
(D) (A) और (C) दोनों
उत्तर:
(D) (A) और (C) दोनों

34. राजकोषीय घाटा =
(A) बजट व्यय – उधार को छोड़कर बजट प्राप्तियाँ
(B) कुल व्यय > उधार को छोड़कर कुल प्राप्तियाँ
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) कुल व्यय > उधार को छोड़कर कुल प्राप्तियाँ

35. राजकोषीय घाटे के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा तथ्य सही है?
(A) इससे मुद्रास्फीति उत्पन्न होती है
(B) इससे विदेशों पर निर्भरता बढ़ती है
(C) इससे ऋणों में वृद्धि होती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

36. प्राथमिक घाटा =
(A) राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान
(B) राजकोषीय घाटा + ब्याज भुगतान
(C) राजकोषीय घाटा ब्याज भुगतान
(D) राजकोषीय घाटा x ब्याज भुगतान
उत्तर:
(A) राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

37. सरकार की कुल आय तथा कुल व्यय का अंतर कहलाता है-
(A) बजटीय घाटा
(B) राजकोषीय घाटा
(C) मौद्रिक घाटा
(D) राजस्व घाटा
उत्तर:
(A) बजटीय घाटा

38. राजस्व घाटे की तुलना में राजकोषीय घाटे का आकार हमेशा होगा?
(A) बड़ा
(B) छोटा
(C) एक जैसा
(D) अनियत
उत्तर:
(A) बड़ा

39. राजस्व घाटे में सरकार की किस आय को शामिल किया जाता है?
(A) कर स्रोत को
(B) गैर-कर स्रोत को
(C) (A) और (B) दोनों को
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों को

40. राजकोषीय घाटे में से ब्याज की अदायगियाँ घटा देने पर प्राप्त होने वाला घाटा कहलाता है-
(A) बजटीय घाटा
(B) प्राथमिक घाटा
(C) राजस्व घाटा
(D) मौद्रिक घाटा
उत्तर:
(B) प्राथमिक घाटा

41. राजस्व प्राप्ति + पूँजीगत प्राप्ति – गैर-आयोजन व्यय + आयोजन व्यय-पर गणना किसे प्रदर्शित करती है?
(A) बजटीय घाटा को
(B) प्राथमिक घाटा को
(C) राजस्व घाटा को
(D) राजकोषीय घाटा को
उत्तर:
(A) बजटीय घाटा को

42. सरकार का राजकोषीय घाटा बराबर होता है
(A) चालू आय – चालू व्यय
(B) कुल आय – कुल व्यय
(C) पूँजीगत प्राप्तियाँ – पूँजीगत भुगतान
(D) चालू आय – (चालू व्यय + पूँजीगत व्यय)
उत्तर:
(D) चालू आय – (चालू व्यय + पूँजीगत व्यय)

43. राजस्व घाटा (Revenue Deficit) बजटीय घाटे से कम होगा यदि-
(A) पूँजीगत खाते में घाटा हो
(B) पूँजीगत खाता संतुलित हो
(C) पूँजीगत खाते में बचत (Surplus) हो
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) पूँजीगत खाते में बचत हो

44. निम्नलिखित में से सही है
(A) बजट घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व आय
(B) बजट घाटा = कुल व्यय – कुल आय
(C) बजट घाटा = चालू व्यय – चालू आय
(D) बजट घाटा = सकल राजस्व व्यय – सकल राजस्व आय
उत्तर:
(B) बजट घाटा = कुल व्यय – कुल आय

45. यदि सरकार द्वारा दिया गया ब्याज प्राथमिक घाटे में जोड़ दिया जाए तो यह बराबर होगा-
(A) राजस्व घाटे के
(B) बजट घाटे के
(C) मौद्रिक घाटे के
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) राजस्व घाटे के

46. एक बजट में राजस्व = व्यय हो तो उसे कहते हैं-
(A) घाटे का बजट
(B) संतुलित बजट
(C) बचत का बजट
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) संतुलित बजट।

47. सरकारी व्यय उसकी आय से अधिक होने की स्थिति को क्या कहते हैं?
(A) संतुलित बजट
(B) बचत का बजट
(C) घाटे का बजट
(D) स्फीतिक बजट
उत्तर:
(C) घाटे का बजट

48. निम्नलिखित में से कौन-सा असंत त बजट है?
(A) बचत का बजट
(B) घाटे का बजट
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

49. घाटे का बजेट वह बजट है जिसमें
(A) सरकार की अनुमानित आय < सरकार का अनुमानित व्यय (B) सरकार की अनुमानित आय > सरकार का अनुमानित व्यय
(C) सरकार की अनुमानित आय = सरकार का अनुमानित व्यय
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) सरकार की अनुमानित आय < सरकार का अनुमानित व्यय

50. बजट के घाटे को निम्नलिखित में से किस उपाय द्वारा दूर किया जा सकता है?
(A) मुद्रा का विस्तार
(B) जनता से उधार लेना
(C) विनिवेश
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

51. राजकोषीय घाटे में से ब्याज अदायगियाँ घटाने पर क्या प्राप्त होता है?
(A) बजटीय घाटा
(B) राजस्व घाटा
(C) प्राथमिक घाटा
(D) कुल उधार
उत्तर:
(C) प्राथमिक घाटा

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

52. बजटीय घाटे की वित्तीय व्यवस्था की जाती है
(A) केंद्रीय बैंक से उधार लेकर
(B) ऋणों द्वारा
(C) बचतों द्वारा
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

53. राजकोषीय घाटे की वित्तीय व्यवस्था होती है-
(A) केंद्रीय बैंक से उधार लेकर
(B) घरेलू ऋण उगाही द्वारा
(C) विदेशी ऋणों द्वारा
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. बजट 1 अप्रैल से ………………. तक की अवधि के वित्तीय वर्ष के लिए सरकार के अनुमानित व्यय और प्राप्तियों का वार्षिक ब्यौरा होता है। (आगामी 31 मार्च/आगामी 30 अप्रैल)
उत्तर:
आगामी 31 मार्च

2. राजस्व प्राप्तियों से सरकार की परिसंपत्तियों में ……………… (कोई कमी नहीं होती/कमी होती है)
उत्तर:
कोई कमी नहीं होती

3. कर एक ……………… भुगतान है। (ऐच्छिक/अनिवार्य)
उत्तर:
अनिवार्य

4. जब किसी कर का कराधान तथा करापात एक ही व्यक्ति पर पड़ता है, तो उसे ……………… कहते हैं। (प्रत्यक्ष कर/अप्रत्यक्ष कर)
उत्तर:
प्रत्यक्ष कर

5. प्रगतिशील कर का वास्तविक भार ………….. पर अधिक पड़ता है। (अमीरों/गरीबों)
उत्तर:
गरीबों

6. राजकोषीय घाटा = कुल व्यय राजस्व प्राप्तियाँ ……………… (पूँजीगत व्यय/ पूँजीगत प्राप्तियाँ)
उत्तर:
पूँजीगत प्राप्तियाँ

7. ……………… = अनुमानित सरकारी प्राप्तियाँ < अनुमानित सरकारी व्यय। (घाटे का बजट/संतुलित बजट)
उत्तर:
घाटे का बजट

C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत

  1. आय कर एक अप्रत्यक्ष कर है।
  2. सरकारी बजट प्रति मास पेश किया जाता है।
  3. भारत में वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से अगले वर्ष के 31 मार्च की अवधि तक होता है।
  4. केन्द्रीय उत्पादन शुल्क अप्रत्यक्ष कर है।
  5. सार्वजनिक ऋण वह ऋण है जो सरकार केवल जनता से लेती है
  6. राजस्व घाटे का सम्बन्ध राजस्व व्यय और राजस्व प्राप्तियों से है।
  7. अप्रत्यक्ष करों में कराघात व करापात एक ही व्यक्ति पर होता है।
  8. कर एक अनिवार्य भुगतान नहीं है।
  9. संपत्ति कर एवं उपहार कर प्रत्यक्ष कर हैं।
  10. राजस्व, सार्वजनिक वित्त तथा राज्य वित्त पर्यायवाची हैं।
  11. निजी वित्त और सार्वजनिक वित्त में कोई मूलभूत अन्तर नहीं होता।
  12. सेवा कर एक अप्रत्यक्ष कर है।
  13. कर सदा उपभोग में कमी लाते हैं।
  14. सार्वजनिक व्यय में वृद्धि सदा मुद्रास्फीति लाती है।
  15. प्रगतिशील कर पद्धति में आय वृद्धि के साथ-साथ कर का प्रतिशत बढ़ता जाता है।

उत्तर:

  1. गलत
  2. गलत
  3. सही
  4. सही
  5. गलत
  6. सही
  7. गलत
  8. गलत
  9. सही
  10. सही
  11. गलत
  12. सही
  13. सही
  14. गलत
  15. सही।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निजी वस्तु से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
निजी वस्तु से अभिप्राय ऐसी वस्तु से है जो एक व्यक्ति द्वारा निजी तौर पर उपभोग में लाई जाती है। उदाहरण के लिए-

  • कपड़े
  • कार।

प्रश्न 2.
सार्वजनिक वस्तु से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक वस्तु से अभिप्राय ऐसी वस्तु से है जिसका उपभोग सामूहिक रूप से किया जाता है। उदाहरण के लिए-

  • सड़कें
  • पुलिस सुरक्षा।

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प्रश्न 3.
मुफ्तखोरी (Free-Rider) की समस्या से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मुफ्तखोरी की समस्या से अभिप्राय यह है कि सार्वजनिक वस्तुओं का शुल्क एकत्रित करना या तो बहुत कठिन या असंभव होता है इसलिए इन्हें मुफ्त ही प्रदान किया जाता है।

प्रश्न 4.
सार्वजनिक प्रावधान का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सार्वजनिक प्रावधान का तात्पर्य यह है कि सार्वजनिक वस्तुओं का वित्त प्रबंधन बजट के माध्यम से मुफ्त में उपलब्ध होता है।

प्रश्न 5.
सरकार के नियतन फलन (Allocation Function) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सरकार के नियतन फलन से अभिप्राय लोगों को वे वस्तुएँ उपलब्ध करवाना है जिन्हें कीमत तंत्र द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 6.
सरकार के वितरण फलन (Distribution Function) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सरकार के वितरण फलन से अभिप्राय लोगों को अंतरण भुगतान करके अथवा लोगों से कर एकत्रित करके लोगों की वैयक्तिक प्रयोज्य आय प्रभावित करना है।

प्रश्न 7.
सरकार के स्थिरीकरण फलन (Stablisation Function) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सरकार के स्थिरीकरण फलन से अभिप्राय अर्थव्यवस्था में होने वाले उच्चावचनों को नियंत्रित करना है।

प्रश्न 8.
सरकारी बजट क्या होता है?
उत्तर:
सरकारी बजट 1 अप्रैल से आगामी 31 मार्च तक की अवधि के वित्तीय वर्ष के लिए सरकार के अनुमानित व्यय और प्राप्तियों का वार्षिक ब्यौरा होता है।

प्रश्न 9.
भारत में वित्तीय वर्ष से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भारत में वित्तीय वर्ष से अभिप्राय किसी वर्ष के 1 अप्रैल से दूसरे वर्ष के 31 मार्च की अवधि से है।

प्रश्न 10.
बजट को किस प्रकार विभाजित किया जाता है?
उत्तर:
बजट को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है-

  • राजस्व बजट
  • पूँजीगत बजट।

प्रश्न 11.
राजस्व बजट (Revenue Budget) क्या है?
उत्तर:
राजस्व बजट से अभिप्राय सरकार की अनुमानित राजस्व प्राप्तियों और अनुमानित राजस्व भुगतानों के विवरण से है।

प्रश्न 12.
पूँजीगत बजट (Capital Budget) क्या है?
उत्तर:
पूँजीगत बजट से अभिप्राय सरकार की अनुमानित पूँजीगत प्राप्तियों और अनुमानित पूँजीगत भुगतानों के विवरण से है।

प्रश्न 13.
राजस्व की मदों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
राजस्व मदें, वे मौद्रिक मदें हैं जो सरकार के लिए कोई देयता उत्पन्न नहीं करती तथा परिसंपत्तियों में कोई कमी उत्पन्न नहीं करतीं।

प्रश्न 14.
राजस्व प्राप्तियों (Revenue Receipts) से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
राजस्व प्राप्तियों से अभिप्राय उन प्राप्तियों से है जो दायित्वों में वृद्धि नहीं करती और जिनकी प्रकृति प्रतिवर्ष प्राप्त होने वाली होती है। राजस्व प्राप्तियों के दो उदाहरण हैं-

  • आय कर
  • लाइसेंस फीस।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 15.
पूँजीगत प्राप्तियों (Capital Receipts) से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
पूँजीगत प्राप्तियों से अभिप्राय उन प्राप्तियों से है जो दायित्वों में वृद्धि करती हैं और जिनकी प्रकृति आकस्मिक होती है। पूँजीगत प्राप्तियों के दो उदाहरण हैं-

  • सार्वजनिक ऋण
  • अनुदान।

प्रश्न 16.
राजस्व अथवा आगम व्यय (Revenue Expenditure) से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
राजस्व अथवा आगम व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनके फलस्वरूप न तो परिसंपत्तियों का निर्माण होता है और न ही दायित्वों में कोई कमी आती है। राजस्व व्यय के दो उदाहरण हैं-

  • कानून व्यवस्था पर व्यय
  • वेतन।

प्रश्न 17.
पूँजीगत व्यय (Capital Revenue) से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
पूँजीगत व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनके फलस्वरूप भौतिक तथा वित्तीय परिसंपत्तियों का निर्माण होता है अथवा जिनके फलस्वरूप दायित्वों में कमी आती है। पूँजीगत व्यय के दो उदाहरण हैं-

  • भवन निर्माण
  • सड़कों का विकास।

प्रश्न 18.
कर राजस्व से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कर राजस्व से अभिप्राय सरकार द्वारा लगाए गए सभी करों और शुल्कों से एकत्रित की गई राशियों से है।

प्रश्न 19.
गैर-कर राजस्व से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गैर-कर राजस्व से अभिप्राय सरकार द्वारा लगाए गए करों से एकत्रित की गई राशियों के अलावा प्राप्त की गई राशियों से है। यह करों के अतिरिक्त राजस्व के अन्य स्रोतों; जैसे लाभ, ब्याज प्राप्तियाँ, लाभांश आदि का जोड़ होता है।

प्रश्न 20.
कर क्या है?
उत्तर:
कर एक व्यक्ति अथवा संस्था द्वारा सरकार को बिना किसी लाभ की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला अनिवार्य भुगतान है।

प्रश्न 21.
प्रत्यक्ष कर से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
प्रत्यक्ष कर से अभिप्राय उस कर से है जिसके भार को अन्य व्यक्तियों पर डाला नहीं जा सकता। उदाहरण के लिए, (i) आय कर, (ii) संपत्ति कर।

प्रश्न 22.
अप्रत्यक्ष कर से क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
अप्रत्यक्ष कर से अभिप्राय उस कर से है जिसके भार को अंशतः या पूर्णतया अन्य व्यक्तियों पर डाला जा सकता है। उदाहरण के लिए-

  • बिक्री कर
  • उत्पादन शुल्क।

प्रश्न 23.
मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) कर क्या होता है?
उत्तर:
उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर लगाए जाने वाले कर को मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) कर (Value Added Tax-VAT) कहा जाता है।

प्रश्न 24.
प्रगतिशील कर तथा प्रतिगामी कर क्या हैं? अथवा प्रगतिशील कर तथा प्रतिगामी कर में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रगतिशील कर वह कर है जिसका भार निर्धन व्यक्तियों की तुलना में धनी व्यक्तियों पर अधिक पड़ता है। प्रतिगामी कर वह कर है जिसका वास्तविक भार निर्धन व्यक्तियों पर अधिक तथा धनी व्यक्तियों पर कम पड़ता है।

प्रश्न 25.
आनुपातिक कर क्या है?
उत्तर:
आनुपातिक कर वह कर है जिसमें कर की दर समान रहती है। आय के बढ़ने या घटने पर भी इसकी दर में परिवर्तन नहीं होता।

प्रश्न 26.
गैर-योजना व्यय क्या होता है?
उत्तर:
गैर-योजना व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनका संबंध देश के आर्थिक विकास से जुड़ी हुई योजनाओं से नहीं होता। यह व्यय सरकारी प्रशासन और सामान्य गतिविधियों को सुचारु रूप से चलाने पर किया जाता है। चालू पंचवर्षीय योजना से संबंधित व्यय को छोड़कर अन्य सब व्यय, गैर-योजना व्यय कहलाते हैं।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 27.
विकासात्मक व्यय (Development Expenditure) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विकासात्मक व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिन्हें सरकार द्वारा देश की आर्थिक तथा सामाजिक विकास संबंधी योजनाओं के अंतर्गत व्यय किया जाता है। दूसरे शब्दों में, विकासात्मक व्यय का प्रत्यक्ष संबंध देश के आर्थिक विकास से होता है।

प्रश्न 28.
गैर-विकासात्मक व्यय (Non-Development Expenditure) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गैर-विकासात्मक व्यय से अभिप्राय उस व्यय से है जिसे सरकार सामान्य सामाजिक सेवाओं व प्रशासन, पुलिस आदि पर करती है।

प्रश्न 29.
संतुलित बजट से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
संतुलित बजट से अभिप्राय उस बजट से है जिसमें सरकार की अनुमानित आय तथा अनुमानित व्यय दोनों बराबर होते हैं।

प्रश्न 30.
सरकारी बजट में राजस्व घाटे से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सरकारी बजट में राजस्व घाटे से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें सरकार का कुल राजस्व व्यय कुल राजस्व प्राप्तियों से अधिक होता है।

प्रश्न 31.
घाटे के बजट से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
घाटे के बजट से अभिप्राय उस बजट से है जिसमें सरकार की अनुमानित आय उससे अनुमानित व्यय से कम होती है। इस प्रकार,
घाटे का बजट = अनुमानित व्यय > अनुमानित आय

प्रश्न 32.
प्राथमिक घाटे (Primary Deficit) की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
राजकोषीय घाटे में से पुराने ऋणों पर ब्याज घटाने पर जो घाटा प्राप्त होता है, उसे प्राथमिक घाटा कहते हैं।

प्रश्न 33.
राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) की सुरक्षित सीमा क्या है?
उत्तर:
राजकोषीय घाटे की सुरक्षित सीमा तब तक मानी जाती है जब तक उसके फलस्वरूप अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न नहीं होती। राजकोषीय घाटे की सुरक्षित सीमा सकल घरेलू उत्पाद के 5% के बराबर मानी जाती है।

प्रश्न 34.
ब्याज का भुगतान एक राजस्व व्यय क्यों है?
उत्तर:
ब्याज का भुगतान एक राजस्व व्यय है क्योंकि ब्याज की अदायगी से न तो कोई दायित्वों में वृद्धि होती है और न ही संपत्तियों में कोई कमी होती है।

प्रश्न 35.
आभ्यांतरिक स्थिरक से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आभ्यांतरिक स्थिरक से अभिप्राय यह है कि निश्चित व्यय और कर नियमों के अंतर्गत जब आर्थिक दशाएँ बदतर स्थिति को प्राप्त होती है तो व्यय में स्वतः बढ़ोत्तरी हो जाती है अथवा करों में स्वतः कमी हो जाती है जिससे अर्थव्यवस्था स्वतः स्थिर दशा को प्राप्त करती है।

प्रश्न 36.
सरकारी व्यय गुणक निकालने का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
सरकारी व्यय गुणक = \(\frac { 1 }{ 1-c }\)

प्रश्न 37.
रिकॉर्डो समतुल्यता क्या है?
उत्तर:
रिकॉर्डों समतुल्यता वह सिद्धांत है जिसमें उपभोक्ता अग्रदर्शी होते हैं और आशा करते हैं कि सरकार आज जो ऋण ग्रहण करती है, भविष्य में उसके पुनर्भुगतान के लिए करों में वृद्धि होगी जिससे अर्थव्यवस्था पर वैसा ही प्रभाव होगा जैसाकि कर में वृद्धि से आज होता है।

प्रश्न 38.
कर गुणक की गणना का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
कर गुणक की गणना = \(\frac { -c }{ 1-c }\)

प्रश्न 39.
आनुपातिक कर गुणक का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
आनुपातिक कर गुणक = \(\frac{1}{(1-c)(1-t)}\)

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सार्वजनिक वस्तुओं की परिभाषा दीजिए। सार्वजनिक वस्तुएँ निजी वस्तुओं से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर:
सार्वजनिक वस्तुओं से अभिप्राय उन वस्तुओं से है, जिनका उपभोग सामूहिक रूप से किया जाता है। सार्वजनिक वस्तुओं और निजी वस्तुओं में निम्नलिखित अंतर हैं-
(i) निजी वस्तुओं का लाभ केवल एक ही उपभोक्ता तक सीमित होता है, जबकि सार्वजनिक वस्तुओं का लाभ सभी लोगों तक उपलब्ध होता है। किसी भी व्यक्ति को सार्वजनिक वस्तुओं के उपभोग करने से वंचित नहीं किया जा सकता। इससे मुफ्तखोरी की समस्या उत्पन्न होती है।

(ii) निजी वस्तुओं की कुछ-न-कुछ कीमत होती है, जबकि सार्वजनिक वस्तुओं की कोई कीमत नहीं होती। ये सरकार द्वारा लोगों को मुफ्त उपलब्ध करवाई जाती है। सार्वजनिक वस्तुओं के उपभोग का शुल्क संग्रह करना कठिन होता है।

प्रश्न 2.
सरकारी बजट (राजकोषीय नीति) के कार्य बताइए।
उत्तर:
सरकारी बजट (राजकोषीय नीति) के निम्नलिखित कार्य होते हैं-
(i) नियतन कार्य (आबंटन कार्य)-सरकारी बजट के मुख्य कार्य लोगों को सार्वजनिक वस्तुएँ; जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा, सड़कें, सरकारी प्रशासन आदि उपलब्ध करवाना है।

(ii) वितरण कार्य-सरकारी बजट आय के वितरण को न्यायपूर्ण बनाता है, ताकि आय की असमानताओं को दूर किया जा सके। स्थिरीकरण कार्य-सरकारी बजट अर्थव्यवस्था में उच्चावचों के प्रभाव को समाप्त करता है, ताकि आर्थिक स्थिरता बनी रह सके।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 3.
कर की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
कर की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. कर एक अनिवार्य भुगतान है।
  2. कर एक कानूनी भुगतान है।
  3. कर से प्राप्त आय जन-कल्याण हेतु खर्च की जाती है।
  4. कर देना प्रत्येक व्यक्ति का निजी उत्तरदायित्व है।

प्रश्न 4.
बजटीय नीति या बजट के मुख्य उद्देश्यों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बजटीय नीति या बजट के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. संसाधनों का पुनः आबंटन-बजट का मुख्य उद्देश्य सरकार द्वारा सामाजिक संसाधनों को घोषित कर सामाजिक और आर्थिक हितों के अनुरूप पुनः आबंटित करना है।

2. आय संपत्ति का पुनः वितरण-सरकारी बजट द्वारा क्षेत्रीय तथा व्यक्तिगत असमानताओं को कम करना है। सार्वजनिक व्यय द्वारा पिछड़े क्षेत्रों का विकास किया जाता है तथा निर्धन वर्ग को मुफ्त या रियायती दरों पर सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं।

3. स्थिरीकरण बजट का उद्देश्य व्यापार चक्रों की संभावनाओं को समाप्त करके अर्थव्यवस्था को स्थिरता प्रदान करना है।

4. सामाजिक कल्याण में वृद्धि-बजट द्वारा सामाजिक कल्याण में वृद्धि का प्रयास किया जाता है। बजट द्वारा सार्वजनिक उद्यमों के उत्तम प्रबंधन की व्यवस्था की जाती है।

प्रश्न 5.
बजट समाज को किन तीन स्तरों पर प्रभावित करता है?
उत्तर:
बजट समाज को निम्नलिखित तीन स्तरों पर प्रभावित करता है-
1. वित्तीय अनुशासन-बजट समग्र स्तर पर वित्तीय अनुशासन लागू करता है। वित्तीय अनुशासन का अर्थ राजस्व के स्तर का पूर्व निर्धारण कर व्यय पर अंकुश रखना है।

2. संसाधनों का आवंटन-सामान्यतया संसाधनों का आबंटन बाज़ार में कीमत प्रक्रिया द्वारा किया जाता है। जब बाज़ार संसाधनों के कुशलतम आबंटन में असफल रहता है तो बजट द्वारा संसाधनों के कुशलतम आबंटन का प्रयास किया जाता है। बजट सामाजिक उद्देश्यों को ध्यान में रखकर संसाधनों का आबंटन करता है।

3. लक्ष्यों की प्राप्ति-बजट विभिन्न कार्यक्रमों और सेवाओं को प्रदान किए जाने का प्रभावी एवं कुशल माध्यम है। बजट के द्वारा सरकार अपने लक्ष्यों को न्यूनतम आर्थिक व सामाजिक लागत पर प्राप्त करने का प्रयास करती है।

प्रश्न 6.
एक अच्छी कर संरचना की कोई चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
एक अच्छी कर संरचना की चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. उत्पादकता एक अच्छी कर संरचना में सभी प्रकार के कर होने चाहिएँ, ताकि सरकार को नियमित रूप से पर्याप्त मात्रा में आय प्राप्त होती रहे।

2. लोच-एक अच्छी कर संरचना में लोचशीलता का गुण होना चाहिए जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि के साथ कर आगम में भी वृद्धि होती रहे।

3. न्यायसंगत कर प्रणाली को न्यायसंगत होना चाहिए अर्थात् कर प्रणाली के अंतर्गत निर्धन वर्ग की तुलना में धनी वर्ग पर कर का भार अधिक होना चाहिए।

4. प्रशासनिक व्यवहार्यता-कर के एकत्रीकरण के लिए समय, प्रयास और लागत आवश्यक होते हैं। इसलिए कर प्रणाली को सरल और मितव्ययी होना चाहिए। कर अपवचन की संभावनाएँ न्यूनतम होनी चाहिएँ। कर प्रणाली करदाताओं के लिए सुविधाजनक होनी चाहिए।

प्रश्न 7.
प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर में निम्नलिखित अंतर हैं-

अंतर का आधारप्रत्यक्ष करअप्रत्यक्ष कर
(i) अंतिम भारप्रत्यक्ष कर का अंतिम भार उसी व्यक्ति को सहन करना पड़ता है जिस पर इसे लगाया जाता है।अप्रत्यक्ष कर कां अंतिम भार उस व्यक्ति को नहीं सहन करना पड़ता जिस पर इसे लगाया जाता है।
(ii) करों का टालनाप्रत्यक्ष कर के भार को टाला नहीं जा सकता।अप्रत्यक्ष कर के भार को टाला जा सकता है।
(iii) प्रकृतिप्रत्यक्ष कर प्रायः प्रगतिशील होते हैं अर्थात् आय बढ़ने पर इनका भार बढ़ता है।अप्रत्यक्ष कर प्रतिगामी होते हैं। इनका भार गरीबों पर अधिक पड़ता है।

प्रश्न 8.
राजस्व प्राप्तियों एवं पूँजीगत प्राप्तियों में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
राजस्व प्राप्तियों और पूँजीगत प्राप्तियों में निम्नलिखित अंतर हैं-

अंतर का आधारराजस्व प्राप्तियाँपूँजीगत प्राप्तियाँ
(i) प्रकृतिराजस्व प्राप्तियाँ प्रतिवर्ष प्राप्त होने वाली होती हैं।पूँजीगत प्राप्तियों की प्रकृति आकस्मिक होती हैं।
(ii) उद्देश्यइसका उद्देश्य नियमित व्ययों को पूरा करना है।इसका उद्देश्य दायित्व का निर्माण करना अथवा संपत्तियों में कमी करना है।
(iii) संघटकइसमें कर और गैर-कर दोनों प्राप्तियाँ सम्मिलित हैं।इसमें केवल गैर-कर प्राप्तियाँ सम्मिलित होती हैं।
(iv) उदाहरणआय करलोगों से ऋण

प्रश्न 9.
पूँजीगत व्यय और राजस्व व्यय का क्या अर्थ है? प्रत्येक के उदाहरण दीजिए।
अथवा
सरकारी व्यय को राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय में वर्गीकृत करने का क्या आधार है? प्रत्येक के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सरकारी व्यय को राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय में वर्गीकृत करने का आधार यह है कि क्या इस व्यय के फलस्वरूप भौतिक अथवा वित्तीय परिसंपत्तियों का निर्माण होता है अथवा दायित्वों की कमी होती है। राजस्व व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनके फलस्वरूप न तो परिसंपत्तियों का निर्माण होता है और न ही दायित्वों में कमी आती है। इन व्ययों की प्रकृति प्रतिवर्ष किए जाने की होती है। इसके विपरीत, पूँजीगत व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनके फलस्वरूप परिसंपत्तियों का निर्माण होता है अथवा दायित्वों में कमी आती है।

राजस्व व्यय के उदाहरण

  • कानून व्यवस्था पर व्यय
  • वेतन, पेंशन आदि।

पूँजीगत व्यय के उदाहरण

  • भवन निर्माण
  • सड़कों का निर्माण।

प्रश्न 10.
योजना व्यय और गैर-योजना व्यय का क्या अर्थ है? अथवा सरकारी व्यय को योजना व्यय और गैर-योजना व्यय में वर्गीकृत करने का क्या आधार है? प्रत्येक के उदाहरण दें।
उत्तर:
सरकारी व्यय को योजना व्यय और गैर-योजना व्यय में वर्गीकृत करने का आधार यह है कि क्या इसका संबंध देश के आर्थिक विकास की योजनाओं से है। योजना व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिसका संबंध देश के आर्थिक विकास से जुड़ी हुई योजनाओं से है। योजना व्यय का संबंध देश के योजनात्मक विकास संबंधी कार्यक्रमों से होता है। उदाहरण के लिए, सिंचाई परियोजनाओं तथा विद्युत परियोजनाओं पर किया जाने वाला व्यय। गैर-योजना व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनका संबंध देश के आर्थिक विकास से जुड़ी हुई योजनाओं से नहीं होता। इसमें ब्याज का भुगतान, रियायतें, पुलिस, प्रशासन आदि पर किए गए व्यय सम्मिलित होते हैं।

प्रश्न 11.
कारण बताते हुए निम्नलिखित को राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय में वर्गीकृत कीजिए
(i) आर्थिक सहायता
(ii) राज्य सरकारों को दिया गया अनुदान
(iii) ऋणों की अदायगी
(iv) पाठशाला भवनों का निर्माण।
उत्तर:
(i) आर्थिक सहायता राजस्व व्यय है, क्योंकि इसके फलस्वरूप न तो परिसंपत्तियों का निर्माण होता है और न ही दायित्वों में कमी आती है। आर्थिक सहायता अल्पकालीन और बार-बार होने वाला व्यय है और इसकी आवृत्ति अधिक होती है।

(ii) राज्य सरकारों को दिया गया अनुदान राजस्व व्यय है क्योंकि इसके फलस्वरूप न तो परिसंपत्तियों का निर्माण होता है और न ही इसके दायित्वों में कमी आती है।

(iii) ऋणों की अदायगी पूँजीगत व्यय है, क्योंकि इसके फलस्वरूप दायित्वों में कमी आती है।

(iv) पाठशाला भवनों का निर्माण पूँजीगत व्यय है, क्योंकि इसके फलस्वरूप संपत्तियों का निर्माण होता है।

प्रश्न 12.
करों को प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर में किस आधार पर वर्गीकृत किया जाता है?
उत्तर:
करों को प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर में वर्गीकृत करने का आधार यह है कि अमुक कर के भार को दूसरे व्यक्ति पर टाला जा सकता है या नहीं। यदि कर का भार दूसरे व्यक्ति पर नहीं टाला जा सकता तो वह प्रत्यक्ष कर कहलाता है; जैसे आय कर, लाभ (निगम) कर, उत्पादन शुल्क, संपत्ति कर आदि। इसके विपरीत, यदि कर का भार दूसरे व्यक्ति पर टाला जा सकता है तो वह, अप्रत्यक्ष कर कहलाता है; जैसे बिक्री कर जिसे दुकानदार पहले सरकार को अदा करता है और फिर दुकानदार अपने ग्राहक से कीमत में मिलाकर बिक्री कर वसूल करता है। इसी प्रकार अप्रत्यक्ष कर के अन्य उदाहरण हैं; जैसे मनोरंजन कर, उत्पादन शुल्क, सीमा शुल्क आदि।

प्रश्न 13.
सार्वजनिक ऋण तथा कर में अंतर बताइए।
उत्तर:
सार्वजनिक ऋण तथा कर में निम्नलिखित अंतर हैं-

अंतर का आधारकरसार्वजनिक ऋण
(i) प्रकृतिकर सरकार की आय का निर्माण स्रोत है।सार्वजनिक ऋण विशेष परिस्थितियों में लिया जाता है।
(ii) मात्राकर से एक सीमित मात्रा में ही धन एकत्रित किया जाता है।सार्वजनिक ऋण से बहुत अधिक मात्रा में धन एकत्रित किया जा सकता है।
(iii) भार एवं लाभकर का भार एवं लाभ वर्तमान पीढ़ी को प्राप्त होता है।सार्वजनिक ऋणों का भार व लाभ भावी पीढ़ी को प्राप्त होता है।
(iv) वापसी का दायित्वकरों से प्राप्त रकम को वापिस नहीं करना पड़ता।सार्वजनिक ऋणों को सरकार को वापिस करना पड़ता है।

प्रश्न 14.
राजस्व घाटे का क्या अर्थ है? इससे क्या समस्याएँ उत्पन्न होती हैं?
उत्तर:
राजस्व घाटा वह स्थिति है जिसमें सरकार का राजस्व व्यय उसकी राजस्व प्राप्तियों से अधिक होता है। अर्थव्यवस्था में कई समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। राजस्व घाटे का अर्थ है कि सरकार को अपने नियमित राजस्व व्यय के लिए अपनी बचत को प्रयोग करना पड़ेगा। राजस्व घाटे को पूरा करने के लिए सरकार को ऋण लेने के लिए बाध्य होना पड़ता है, जिससे सरकार के समक्ष ऋण के भुगतान तथा ऋणों पर ब्याज के भुगतान की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इसके अतिरिक्त अधिक राजस्व घाटा सरकार को अनावश्यक व्यय करने की सुविधा देता है। राजस्व घाटे से वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होने लगती है जिससे देश की आर्थिक प्रगति में बाधा उत्पन्न होती है।

प्रश्न 15.
राजस्व घाटा और राजकोषीय घाटा में अंतर बताइए।
उत्तर:
(i) जब सरकार का राजस्व व्यय (योजना व्यय), राजस्व प्राप्तियों (कर राजस्व + गैर-कर राजस्व) की तुलना में अधिक होता है तो उसे राजस्व घाटा कहते हैं। राजस्व घाटा सरकार की अवबचतें (Dissavings) को दर्शाता है क्योंकि इस घाटे को सरकार अपनी पूँजीगत प्राप्तियों से उधार लेकर या अपनी परिसंपत्तियाँ बेचकर पूरा करती है।

(ii) जब बज व्यय (योजना व्यय + गैर-योजना व्यय), उधार रहित कुल प्राप्तियों (राजस्व प्राप्तियों + पूँजीगत प्राप्तियों) से अधिक होता है तो इसे राजकोषीय घाटा कहते हैं। गहराई से देखें तो राजकोषीय घाटा वास्तव में उधार के बराबर होता है। यह बजट को पूरा करने के लिए सरकार की उधार पर निर्भरता की मात्रा को दर्शाता है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 16.
संतुलन आय पर एकमुश्त करों में परिवर्तन का प्रभाव बताइए।
उत्तर:
एकमुश्त करों में परिवर्तन का संतुलन आय पर पड़ने वाला प्रभाव कर गुणक पर निर्भर करता है, जिसे हम निम्नलिखित प्रकार से निकाल सकते हैं-
कर गुणक = \(\frac { -c }{ 1-c }\)
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था 1
इस प्रकार संतुलन आय में निम्नलिखित परिवर्तन होगा
∆Y = कर गुणक x ∆T
= \(\frac { -c }{ 1-c }\)∆T
इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं-
संलग्न रेखाचित्र में E संतुलन बिंदु है जहाँ OY संतुलन आय है। जब कर में कमी होती है तो वैयक्तिक प्रयोज्य आय बढ़ जाती है और समस्त माँग वक्र दायीं ओर शिफ्ट हो जाता है। परिणामस्वरूप नया संतुलन बिंदु E’ हो जाता है और सतुलन आय बढ़कर OY’ हो जाती है।

प्रश्न 17.
क्या संतुलित बजट भारत के लिए लाभकारी है? समझाइए।
उत्तर:
यद्यपि परंपरावादी अर्थशास्त्री सदा संतुलित बजट के पक्षधर रहे हैं परंतु केज व आधुनिक अर्थशास्त्री इससे सहमत नहीं हैं। संतुलित बजट वह होता है जिसमें सरकार की अनुमानित प्राप्तियाँ, अनुमानित व्यय के बराबर होती हैं। दूसरे शब्दों में, करों से प्राप्त राशि, व्यय राशि के बराबर होती है। यद्यपि संतुलित बजट आर्थिक स्थायित्व (Financial Stability) लाता है और सरकार को फिजूलखर्ची से बचाता है परंतु यह आर्थिक विकास की प्रक्रिया को अवरुद्ध भी करता है। भारत जैसे विकासशील देश में जहाँ बेरोज़गारी और गरीबी व्याप्त है, सरकार को व्यय बढ़ाना चाहिए ताकि रोज़गार के अधिक-से-अधिक अवसर उत्पन्न हों और अधिक उत्पादन से बेरोज़गारी दूर करने में सहायता मिले। इसलिए भारत के लिए इस समय घाटे का बजट (अनुमानित व्यय > अनुमानित प्राप्तियाँ) अधिक लाभकारी सिद्ध होगा।

प्रश्न 18.
संतुलन आय पर सरकारी व्यय में परिवर्तन के प्रभाव की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
सरकारी व्यय समस्त माँग का एक भाग है। इस प्रकार सरकारी व्यय संतुलन आय को प्रभावित करता है। आय पर होने वाला प्रभाव सरकारी व्यय गुणक पर निर्भर करता है जिसे निम्नलिखित सूत्र द्वारा निकाला जा सकता है
सरकारी व्यय गुणक = \(\frac { 1 }{ 1-c }\)
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था 2
संतुलन आय में परिवर्तन को निम्नलिखित सूत्र से निकाल सकते हैं राष्ट्रीय आय में परिवर्तन (∆Y) = ∆G x गुणक
= \(\frac { 1 }{ 1-c }\)∆G
इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं-
संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि संतुलन आय OY है। सरकारी व्यय में वृद्धि होने से संतुलन आय OY से बढ़कर OY’ हो जाती है।

प्रश्न 19.
घाटे के बजट से क्या अभिप्राय है? घाटे के बजट के लाभ बताइए।
उत्तर:
घाटे के बजट का अर्थ-घाटे के बजट से अभिप्राय उस बजट से है जिसमें सरकार की अनुमानित आय उससे अनुमानित व्यय से कम होती है। इस प्रकार,
घाटे का बजट = अनुमानित व्यय > अनुमानित आय

घाटे के बजट के लाभ-घाटे के बजट के निम्नलिखित लाभ हैं-

  1. घाटे के बजट द्वारा महामंदी और बेरोज़गारी की समस्या का समाधान किया जा सकता है।
  2. अल्पविकसित देशों को घाटे के बजट से अतिरिक्त संसाधन प्राप्त होते हैं जिससे आर्थिक विकास में सहायता प्राप्त होती है।
  3. घाटे के बजट से सरकार सामाजिक कल्याण की गतिविधियाँ संचालित कर सकती है।

प्रश्न 20.
सार्वजनिक व्यय क्या है? इसके मुख्य उद्देश्य बताएँ।
उत्तर:
सार्वजनिक व्यय का अर्थ-सार्वजनिक व्यय (Government Expenditure) से अभिप्राय सरकार द्वारा एक वित्तीय वर्ष में विभिन्न शीर्षकों के अंतर्गत किए जाने वाले अनुमानित व्यय से है।

सार्वजनिक व्यय के उद्देश्य-सार्वजनिक व्यय के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. लोगों की सामूहिक आवश्यकताओं को पूरा करना
  2. सरकारी प्रशासन को सुचारू रूप से चलाना
  3. लोगों के आर्थिक व सामाजिक कल्याण हेतु हस्तांतरण भुगतान से वृद्धि लाना
  4. पूँजीगत संपत्तियों व आधारित ढाँचे (Infrastructure) का निर्माण करना
  5. अर्थव्यवस्था में व्याप्त मंदी को नियंत्रित करना
  6. आर्थिक विकास की गति बढ़ाना
  7. क्षेत्रीय विकास में असमानता दूर करना आदि।

प्रश्न 21.
वस्तु एवं सेवा कर (GST) से आप क्या समझते हैं? पुरानी कर व्यवस्था के मुकाबले GST व्यवस्था कितनी श्रेष्ठ है? इसकी श्रेणियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वस्तु एवं सेवा कर का अर्थ-वस्तु एवं सेवा कर, देश में सबसे बड़ा कर सुधार है जो 30 जून/1 जुलाई, 2017 की अर्धरात्रि को संसद द्वारा देश में लागू किया गया। यह कर उत्पाद को सेवा प्रदायकों से सीधे ही वस्तुओं एवं सेवाओं की पूर्ति पर लगाया जाता है। यह कर पूरे भारत में एक ही प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं पर एक ही दर से लागू होता है।

पुरानी कर व्यवस्था के मुकाबले GST व्यवस्था श्रेष्ठ अनेकों मध्यवर्ती वस्तुएँ/सेवाएँ, जो GST लगने से पहले अर्थव्यवस्था में उत्पादन कर रही थीं, उनके प्रत्येक स्तर पर वर्धित मूल्य पर एवं वस्तु सेवा के कुल मूल्य पर बिना किसी आगत कर जमा (ITC) के कर लगाए जाते थे जिसमें कुल मूल्य में मध्यवर्ती वस्तुओं/सेवाओं पर दिया गया कर सम्मिलित था। इससे करों का सोपानन हो जाता था। GST पूर्ति के प्रत्येक स्तर पर लिया जाता है। यह प्रभावी रूप से पूर्ति के प्रत्येक स्तर पर एक मूल्य वर्जित कर है। हमारी तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था के लिए यह पूरे देश में कराधार में समता और मूल्य संवर्धित करके सिद्धांतों को सभी वस्तुओं और सेवाओं पर स्थापित करता है।

इसने केन्द्र/राज्य/केन्द्रशासित प्रदेशों के द्वारा लगाए गए विभिन्न प्रकार के करों/उपकरों को प्रतिस्थापित कर दिया है। केन्द्र द्वारा लगाए गए कुछ कर केन्द्रीय उत्पादन कर, सेवाकर, केन्द्रीय बिक्री कर और कृषि कल्याण कर, स्वच्छ भारत कर उपकर थे।

GST की शुरुआत में पैट्रोलियम पदार्थों को बाहर रखा गया था, लेकिन समय बीतने के साथ इन्हें भी GST में समाहित कर दिया। मानव उपयोग के लिए मादक पेयों पर राज्य सरकारें वस्तु और सेवा कर लगाती रहेगी।

श्रेणियाँ-GST की श्रेणियाँ निम्नलिखित हैं-
1. SGST-SGST का पूर्ण रूप State Goods and Services Tax है जिसका अर्थ राज्य माल एवं सेवा कर होता है। यह कर वसूले गए वस्तु एवं सेवा कर (GST) का वह भाग होता है जो राज्य सरकार को मिलता है। इस कर को वसूलने के लिए भिन्न राज्यों ने अपने यहाँ SGST Act पारित किए हैं। यह उन्हीं सौदों पर लगता है जो उस राज्य के भीतर होते हैं।

2. CGST-CGST का पूर्ण रूप Central Goods and Services Tax है जिसका अर्थ केन्द्र माल एवं सेवा कर होता है। यह कर वसूले गए वस्तु एवं सेवा कर (GST) का वह भाग होता है जो केन्द्र सरकार को मिलता है।

3. UTGST- UTGST का पूर्ण रूप Union Territory Goods and Services Tax है जिसका अर्थ केन्द्रशासित प्रदेश का माल एवं सेवा कर होता है। यह कर वसूले गए GST का वह भाग होता है जो केंद्रशासित प्रदेश को मिलता है।

4. IGST-IGST का पूर्ण रूप Integrated Goods and Services Tax है जिसका अर्थ समेकित या एकीकृत माल एवं सेवा कर होता है। किसी माल की पूर्ति पर IGST तब लगाया जाता है जब वह माल किसी अन्य राज्य में भेजा जाता है।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सरकारी बजट को परिभाषित कीजिए। बजट के घटक (Components) भी बताइए।
उत्तर:
बजट का अर्थ “बजट आगामी वित्तीय वर्ष में सरकार की अनमानित आय और अनमानित व्यय का मदवार विवरण होता है।” दूसरे शब्दों में, इसमें विभिन्न शीर्षकों (Head) के अंतर्गत होने वाला प्रत्याशित व्यय और व्यय के लिए साधन जुटाने के प्रस्तावित स्रोतों का ब्यौरा होता है। इस प्रकार बजट के दो भाग होते हैं-प्राप्तियाँ और व्यय। भारत में वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से शरू होकर अगले वर्ष 31 मार्च को समाप्त होता है।

बजट की परिभाषाएँ:
1. प्रो० जॉनसन के अनुसार, “सरकार का बजट आगामी अवधि, जो कि आमतौर पर एक वर्ष होती है, के दौरान सरकार की अनुमानित आय और व्यय का ब्यौरा है।”

2. प्रो० रिचर्ड गुड के अनुसार, “एक सरकारी बजट सरकार के व्यय और आय संबंधी एक वित्तीय योजना है।” इस प्रकार बजट में सम्मिलित तत्त्व निम्नलिखित हैं-

  • यह सरकार की प्राप्तियों और व्यय के अनुमानों का विवरण होता है।
  • बजट अनुमानों की अवधि सामान्यतया एक वर्ष होती है।
  • व्यय की मदें और आय के स्रोत सरकार की नीतियों और लक्ष्यों के अनुरूप रखे जाते हैं।
  • बजट लागू करने से पहले इसे संसद अथवा विधानसभा द्वारा पास करवाना आवश्यक होता है।

बजट के घटक बजट को दो भागों-राजस्व बजट और पूँजीगत बजट में बाँटा जाता है। राजस्व बजट में सरकार की राजस्व प्राप्तियाँ और इनके द्वारा पूरे किए गए खर्चों का विवरण होता है। राजस्व प्राप्तियों में दोनों राजस्व कर और गैर-राजस्व प्राप्तियाँ शामिल की जाती हैं। पूँजीगत बजट में सरकार की पूँजीगत प्राप्तियों और भुगतानों का विवरण होता है। पुनः बजट प्राप्तियों और बजट खर्चों को राजस्व और पूँजी के संदर्भ में विभक्त किया जाता है जैसाकि आगे दर्शाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था 3

प्रश्न 2.
बजट से क्या अभिप्राय है? इसके उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
बजट एक वित्तीय वर्ष, जो 1 अप्रैल से अगले वर्ष के 31 मार्च तक चलता है, की अवधि में सरकार की अनुमानित प्राप्तियों और अनुमानित व्यय का ब्यौरा होता है। दूसरे शब्दों में, इसमें विभिन्न शीर्षकों (Heads) के अंतर्गत होने वाला प्रत्याशित (Expected) व्यय और व्यय के लिए साधन जुटाने के प्रस्तावित स्रोतों (Proposed Sources of Financing Expenditure) का ब्यौरा होता है। इस प्रकार बजट के दो भाग होते हैं-प्राप्तियाँ (Receipts) और व्यय (Expenditure)।

बजट के उद्देश्य सरकारी बजट सरकार की अनुमानित प्राप्तियों अथवा आय और व्ययों का एक सांख्यिकीय ब्यौरा मात्र नहीं है। यह सरकार की नीतियों और उद्देश्यों का विवरण है। बजट के कुछ मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं
1. आर्थिक विकास-सभी देशों का मुख्य उद्देश्य अपना-अपना आर्थिक विकास करना होता है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए बजटीय नीति का प्रयोग किया जाता है। एक देश की विकास दर उसकी बचत और निवेश की दरों पर निर्भर करती है। इस दृष्टि से बचत की भूमिका बजट और निवेश में वृद्धि के लिए आवश्यक परिस्थितियों का निर्माण करने की रहनी चाहिए।

2. संसाधनों का उचित आबंटन-निजी उद्यमी सदा यही चाहेंगे कि संसाधनों का आबंटन उत्पादन के उन क्षेत्रों में किया जाए जहाँ ऊँचे लाभ मिलने की आशा हो। परंतु यह भी संभव है कि उत्पादन के कुछ क्षेत्रों द्वारा सामाजिक कल्याण में कोई वृद्धि न हो। अतः सरकार अपनी बजटीय नीति में संसाधनों के आबंटन को इस प्रकार से प्रकट करती है जिससे अधिकतम लाभ और सामाजिक कल्याण के मध्य संतुलन स्थापित किया जा सके।

3. आर्थिक स्थिरता आर्थिक स्थिरता लाना भी सरकारी बजट का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य होता है। अर्थव्यवस्था में तेजी और मंदी के चक्र निरंतर चलते रहते हैं। सरकार अर्थव्यवस्था को इन व्यापार चक्रों से सुरक्षित रखने के लिए सदा ही वचनबद्ध होती है। बजट सरकार के हाथों में एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है जिसके द्वारा सरकार अवस्फीतिक और मुद्रा स्फीतिक की स्थितियों का मुकाबला करती है। ऐसा करके सरकार आर्थिक स्थिरता की स्थिति को प्राप्त करने का प्रयास करती है।

4. आर्थिक समानता-प्रत्येक अर्थव्यवस्था में आर्थिक विषमताएँ पाई जाती हैं परंतु एक सीमा से अधिक आर्थिक विषमताएँ सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से अवांछनीय मानी जाती हैं। अतः आर्थिक विषमताओं में कमी लाने का महत्त्वपूर्ण उपकरण बजटीय नीति अथवा बजट है। अमीरों और गरीबों के बीच आय और धन की विषमता को कम करने के लिए कर (Tax) और सार्वजनिक व्यय के उपायों को अपनाया जा सकता है।

5. सार्वजनिक उद्यमों का प्रबंध-सरकार की बजट संबंधी नीति से ही यह प्रकट होता है कि वह किस प्रकार सार्वजनिक उद्यमों के माध्यम से विकास की गति को तेज करने के लिए उत्सुक है। अक्सर सार्वजनिक उद्यमों को उन क्षेत्रों में लगाने का प्रयत्न किया जाता जहाँ प्राकृतिक एकाधिकार पाया जाता है। प्राकृतिक एकाधिकार से अभिप्राय उस स्थिति से होता है जहाँ विशाल स्तर पर उत्पादन की बचतें मिलती हैं और कोई एक अकेली फर्म निम्न औसत लागत पर उत्पादन कर सकती है।

6. रोज़गार का सृजन-रोज़गार का सृजन भी सरकार की बजट संबंधी नीति का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य होता है। इस दृष्टि से आवश्यक है कि सरकार श्रम गहन तकनीक और सड़क, बाँध, नहरें व पुल निर्माण जैसे सार्वजनिक कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करे और विशिष्ट रोज़गार कार्यक्रमों को अपनाए।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 3.
बजट (सरकारी) व्यय किसे कहते हैं? इसके मुख्य घटकों या अंगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सरकारी व्यय का अर्थ-सरकारी व्यय से अभिप्राय सरकार द्वारा एक वित्तीय वर्ष में विभिन्न शीर्षकों (Heads) के अंतर्गत किए जाने वाले अनुमानित व्यय से है।

बजट व्यय के घटक बजट व्यय भी दो प्रकार का होता है-
(i) राजस्व व्यय

(ii) पूँजीगत व्यय, परंतु सरकारी व्यय के संदर्भ में नोट करने वाली बात यह है कि समस्त सरकारी व्यय को पहले

  • योजना व्यय और
  • गैर-योजना व्यय में वर्गीकृत किया जाता है और फिर उन्हें राजस्व व्यय तथा पूँजीगत व्यय में बाँटा जाता है। जैसे निम्नलिखित चार्ट में घटकों सहित दिखाया गया है।

मोटे रूप में व्यय को तीन प्रकार से वर्गीकृत कर सकते हैं-
(a) योजना और गैर-योजना व्यय
(b) राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय
(c) विकासात्मक और गैर-विकासात्मक व्यय।
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प्रश्न 4.
राजस्व प्राप्तियों के घटकों व स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राजस्व प्राप्तियों के घटक-सरकार की राजस्व प्राप्तियों (अथवा आय) को दो भागों में बाँटा जाता है (i) करों से प्राप्त राजस्व और (ii) गैर-करों से प्राप्त राजस्व। कर राजस्व से अभिप्राय सभी प्रकार के करों से प्राप्त राजस्व (आय) से है। उदाहरण के लिए, आय कर, निगम कर, सीमा शुल्क, उत्पादन शुल्क आदि। गैर-कर राजस्व से अभिप्राय कर-भिन्न राजस्व के स्रोतों (जैसे ब्याज प्राप्तियाँ, लाभ, लाभांश आदि) से है। राजस्व प्राप्तियों के स्रोत या घटक निम्नलिखित हैं
1. कर राजस्व-यह सरकार द्वारा लगाए गए सभी करों और शुल्कों से प्राप्त राशियों का योग होता है। कर, सरकारी राजस्व का मुख्य स्रोत है। कर एक कानूनी अनिवार्य भुगतान (Legal Compulsory Payment) है जो सरकार द्वारा व्यक्तियों व कंपनियों की आय व लाभ पर लगाया जाता है। बदले में मिलने वाली सरकारी सेवा का इससे कोई संबंध नहीं होता। इसी प्रकार सरकार वस्तुओं के उत्पादन पर, बिक्री पर, आयात-नि ति पर तथा धन व उपहार आदि पर कर लगाती है। करों से प्राप्त आय की सामूहिक आवश्यकताएँ (जैसे सड़के, पुल, पार्क, स्कूल, अस्पताल, कानून व्यवस्था, सुरक्षा आदि) पूरी करने व सार्वजनिक हित में व्यय करती है।

कर अदा न करने पर सरकार उचित सजा देती है। करदाता सरकार से बदले में कुछ माँग नहीं सकता। जैसे कोई अमीर व्यक्ति विद्यालय चलाने हेतु सरकार द्वारा लगाए गए कर को देने से इस आधार पर मना नहीं कर सकता कि उसकी कोई संतान नहीं है। केंद्रीय (या संघ) सरकार विभिन्न प्रकार के करों से राजस्व एकत्रित करती है; जैसे आय कर, निगम कर, सीमा शुल्क, उत्पादन शुल्क, व्यय कर, धन कर, ब्याज कर, उपहार कर आदि। विभिन्न प्रकार के कर लगाने के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • सरकारी राजस्व बढ़ाना
  • आय व संपत्ति में विषमता कम करना
  • स्वास्थ्य के लिए हानिकारक वस्तुओं का उपभोग नियंत्रित करना
  • विदेशी व्यापार को व्यवस्थित करना
  • देश के संसाधनों को सुरक्षित रखना
  • विकास कार्यों और प्रशासन चलाने के लिए आवश्यक धन जुटाना।

कर कई प्रकार के होते हैं; जैसे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कर, प्रगतिशील व आनुपातिक कर आदि।

2. गैर-कर राजस्व-यह कर भी सरकार की आय (राजस्व) का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। इसमें सरकारी उद्यमों द्वारा बेची गई वस्तुओं व सरकारी विभागों द्वारा प्रदत्त सेवाओं से प्राप्त आय शामिल की जाती है। गैर-कर राजस्व (Non-Tax Revenue) के मुख्य स्रोत या घटक निम्नलिखित हैं
(i) ब्याज प्राप्तियाँ-केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों, संघ राज्य क्षेत्रों, स्थानीय सरकारों, निजी उद्यमों व लोगों को दिए गए ऋण पर बड़ी मात्रा में ब्याज प्राप्त होता है। यह सरकार को गैर-कर आय का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।

(ii) लाभ और लाभांश-गत कुछ वर्षों से सरकार ने आय का एक अन्य स्रोत विकसित किया है। सरकार ने सार्वजनिक उद्यम (Public Enterprises) स्थापित किए हैं जो निजी उद्यमों की भाँति वस्तुओं व सेवाओं का उत्पादन करते हैं और बिक्री से लाभ अर्जित करते हैं; जैसे राष्ट्रीयकृत बैंक, भारतीय औद्योगिक वित्त निगम, भारतीय बीमा निगम (LIC), STC, MMTC, BHEL इत्यादि। इसी प्रकार सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र में उद्यमों के किए गए निवेश से लाभांश भी प्राप्त होता है।

(iii) फीस और जर्माना सरकार को विभिन्न प्रकार की फीस वसल करने से भी कछ आय होती है; जैसे स्कल में पढ़ाई की फीस, अस्पताल में कार्ड बनवाने की फीस, भूमि की रजिस्ट्री करवाने की फीस, पासपोर्ट बनवाने की फीस, कोर्ट फीस, स्कूटर कार चलाने हेतु लाइसेंस बनवाने की फीस आदि। इन्हें प्रशासकीय राजस्व (Administrative Revenue) कहते हैं क्योंकि यह प्रशासकीय कार्यों से प्राप्त होती है। इसी प्रकार कानून तोड़ने वालों से जुर्माने के रूप में भी सरकार को आय प्राप्त होती है।

(iv) विशेष आकलन-जब सरकार किसी विशेष क्षेत्र में सड़कें, नालियाँ व पार्क बनवाती है या सीवरेज व्यवस्था उपलब्ध करवाती है तो इसके फलस्वरूप आस-पास स्थित मकानों की कीमतें व किराए बढ़ जाते हैं जो मकान मालिकों की मेहनत का परिणाम नहीं है। इसलिए सरकार ऐसे मकान मालिकों से उनकी संपत्ति को पहुँचने वाले लाभ का विशेष आकलन करके सुधारों पर किए गए व्यय का कुछ भाग वसूल करती है। इसे विशेष आकलन (Special Assessment) कहते हैं जो सरकार की आय का एक स्रोत बन जाता है।

(v) विदेशी सहायता अनुदान-सरकार को विदेशी सरकारों व अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं (जैसे WHO, UNESCO आदि) से अनुदान, उपहार, भेंट और योगदान के रूप में वित्तीय सहायता प्राप्त होती है। यह भी गैर-कर राजस्व का एक स्रोत है।

3. पूँजीगत प्राप्तियों के स्रोत-यह पहले भी बताया जा चुका है कि सरकार की वे प्राप्तियाँ जो (i) देनदारियाँ पैदा करती हैं या (ii) जो परिसंपत्तियाँ कम कर देती हैं पूँजीगत प्राप्तियाँ कहलाती हैं। सरकार की पूँजीगत प्राप्तियों के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं
(i) आंतरिक व विदेशी ऋण-सरकार अपने व्यय को पूरा करने के लिए (a) खुले बाज़ार से, (b) भारतीय रिज़र्व बैंक से, (c) विदेशी सरकारों व अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं (जैसे विश्व बैंक, एशियन विकास बैंक) से कर्ज लेती है। उधार से एकत्रित की गई धनराशि पूँजीगत प्राप्ति मानी जाती है, क्योंकि इसमें सरकार की देनदारी बढ़ती है।

(ii) ऋणों व अग्रिमों की वसूली केंद्र सरकार द्वारा (a) राज्य सरकारों व केंद्र-शासित प्रदेशों, (b) सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों और (c) विदेशी सरकारों को जो ऋण व अग्रिम, भूतकाल में दिए गए थे, उनकी वसूली, पूँजीगत प्राप्ति का अंग है क्योंकि इससे वित्तीय परिसंपत्ति कम होती है।

(iii) विनिवेश-सरकार विनिवेश के माध्यम से भी धन इकट्ठा करती है। विनिवेश (Disinvestment) का अर्थ है सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ चुने हुए उद्यमों के शेयर्ज (Shares) पूर्ण रूप या आंशिक रूप से बेचना। इसके फलस्वरूप सरकार की परिसंपत्तियों में कमी आ जाती है। कभी-कभी विनिवेश को निजीकरण (Privatisation) भी कहा जाता है क्योंकि इससे सरकारी उद्यमों का स्वामित्व, निजी क्षेत्र को स्थानांतरित हो जाता है।

(iv) लघु बचतें इसमें छोटी-छोटी बचतें; जैसे डाकघर बचत खातों में जमा सामान्य भविष्य निधि (GPF) में जमा, राष्ट्रीय बचत योजना (NSS) में जमा, किसान विकास पत्रों के रूप में जमा राशियाँ शामिल की जाती हैं।

प्रश्न 5.
सार्वजनिक (सरकारी) व्यय का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक व्यय को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है-
1. राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय-वे सभी व्यय जो पूँजी का निर्माण करते हैं अथवा दायित्वों में कमी करते हैं पूँजीगत व्यय की श्रेणी में वर्गीकृत किए जाते हैं। वे सभी व्यय जो न तो संपत्तियों का निर्माण करते हैं और न ही दायित्वों में कमी करते हैं राजस्व व्यय की श्रेणी में वर्गीकृत किए जाते हैं।

पूँजीगत व्यय के दो उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  • स्कूल के भवन का निर्माण।
  • सड़कों का निर्माण।

राजस्व व्यय के दो उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  • वेतन।
  • ब्याज का भुगतान।

2. विकासात्मक और गैर-विकासात्मक व्यय विकासात्मक व्यय से अभिप्राय उस व्यय से है जिसका संबंध देश के आर्थिक विकास से होता है। विकासात्मक व्यय के उदाहरण निम्नलिखित हैं

  • शिक्षा
  • चिकित्सा
  • उद्योग
  • कृषि
  • यातायात
  • बिजली।

गैर-विकासात्मक व्यय से अभिप्राय उस व्यय से है जिसका संबंध सरकारी प्रशासन तथा कल्याणकारी कार्यक्रमों से है। गैर-विकासात्मक व्यय के उदाहरण निम्नलिखित हैं

  • कानून व्यवस्था
  • वेतन
  • वृद्धावस्था पेंशन
  • ऋण पर ब्याज।

3. योजना व्यय और गैर-योजना व्यय-योजना व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनका संबंध देश के आर्थिक विकास से जुड़ी हुई योजनाओं से है। योजना व्यय का संबंध देश के योजनात्मक विकास संबंधी कार्यक्रमों से होता है। उदाहरण के लिए, सिंचाई परियोजनाओं तथा विद्युत परियोजनाओं पर किया जाने वाला व्यय। गैर-योजना व्यय से अभिप्राय उन व्ययों से है जिनका संबंध देश के आर्थिक
विकास से जुड़ी हुई योजनाओं से नहीं होता। इसमें ब्याज का भुगतान, रियायतें, पुलिस प्रशासन आदि पर किए गए व्यय सम्मिलित होते हैं।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में अंतर स्पष्ट कीजिए। (क) विकासात्मक व्यय और गैर-विकासात्मक व्यय। (ख) योजना व्यय और गैर-योजना व्यय।
उत्तर:
(क) विकासात्मक व्यय और गैर-विकासात्मक व्यय में अंतर-जब किसी व्यय से वस्तुओं व सेवाओं के प्रवाह में प्रत्यक्ष वृद्धि होती है तो यह विकासात्मक व्यय है अन्यथा गैर-विकासात्मक व्यय होता है।
1. विकासात्मक व्यय ऐसे कार्यों पर व्यय जिनका देश के आर्थिक व सामाजिक विकास से प्रत्यक्ष संबंध होता है, विकासात्मक व्यय कहलाता है; जैसे कृषि, औद्योगिक विकास, शिक्षा, चिकित्सा, ग्रामीण विकास, वैज्ञानिक अनुसंधान आदि से संबंधित क्रियाओं पर व्यय, विकासात्मक व्यय कहलाता है।

2. गैर-विकासात्मक व्यय-सरकार का आवश्यक सामान्य सेवाओं पर व्यय, गैर-विकासात्मक व्यय कहलाता है। उदाहरण के लिए, प्रशासन, कानून व्यवस्था, पुलिस, जेल, न्यायाधीशों, कर वसूली आदि पर व्यय गैर-विकासात्मक व्यय कहलाता है। यद्यपि ऐसा व्यय राष्ट्रीय उत्पाद में प्रत्यक्ष योगदान नहीं देता फिर भी आर्थिक विकास की गति देने में अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग देता है। इस दृष्टि से गैर-विकासात्मक व्यय, विकास प्रक्रिया का एक आवश्यक भाग है।

(ख) योजना व्यय और गैर-योजना व्यय में अंतर
1. योजना व्यय इससे अभिप्राय उस अनुमानित व्यय से है जिसे चालू पंचवर्षीय योजना में शामिल परियोजनाओं और कार्यक्रमों (projects and programmes) के लागू करने पर व्यय करने का प्रावधान बजट में किया गया हो। बजट में ऐसे व्ययों का प्रावधान, ‘योजना व्यय’ कहलाता है। इसमें तात्कालिक विकास और निवेश मदें शामिल होती हैं; जैसे

  • सड़कों व पुलों का निर्माण
  • विद्युत उत्पादन
  • सिंचाई व ग्रामीण विकास
  • विज्ञान, टेक्नॉलोजी तथा पर्यावरण आदि।

इसका प्रयोग अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित केंद्रीय योजना के वित्तीयन (financing) पर किया जाता है। इसके अतिरिक्त राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों की योजनाओं हेतु केंद्र सरकार द्वारा दी गई सहायता भी योजना व्यय में शामिल की जाती है। योजना व्यय को राजस्व व्यय और पूँजी व्यय में बाँटा जाता है।

2. गैर-योजना व्यय चालू पंचवर्षीय योजना से संबंधित व्यय को छोड़कर सरकार के अन्य सब व्यय, गैर-योजना व्यय कहलाते हैं। ये व्यय मुख्यतः सरकारी प्रशासन व सामान्य गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने पर किए जाते हैं। ऐसे व्यय प्रत्येक सरकार के लिए आवश्यक होते हैं, चाहे योजना हो या न हो। उदाहरण के लिए, कोई भी सरकार लोगों के जीवन और संपत्ति की रक्षा करने तथा विदेशी आक्रमण से देश को बचाने जैसे अपने बुनियादी कर्तव्यों से बच नहीं सकती। अतः इसके लिए सरकार को पुलिस, न्यायाधीशों, सेना आदि पर व्यय करना पड़ता है। इसी प्रकार सरकार को सरकारी विभागों को सामान्य रूप से चलाने तथा आर्थिक व सामाजिक सेवाएँ प्रदान करने पर व्यय करने पड़ते हैं।

प्रश्न 7.
संतुलित बजट क्या है? इसके पक्ष और विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
संतुलित बजट (Balanced Budget)-संतुलित बजट वह बजट होता है जिसमें सरकार की अनुमानित आय (राजस्व प्राप्तियाँ अथवा आय + पूँजीगत प्राप्तियाँ अथवा आय) के बराबर होती हैं। अर्थात्
संतुलित बजट : अनुमानित आय = अनुमानित व्यय

संतुलित बजट के पक्ष में तर्क (Arguments in favour of Balanced Budget)-

  • सरकार की फिजूलखर्ची पर प्रभावी रूप से रोक लगाने की दृष्टि से संतुलित बजट को उपयोगी माना जाता है।
  • संतुलित बजट के द्वारा अर्थव्यवस्था में आने वाले आर्थिक उतार-चढ़ावों से बचा जा सकता है।
  • मंदी को दूर करने के लिए घाटे का बजट बनाना आवश्यक नहीं है।

संतुलित बजट के विपक्ष में तर्क (Arguments against Balanced Budget)

  • ऐसी स्थितियाँ हो सकती हैं जिनमें अर्थव्यवस्था को मंदी से उबारने में केवल घाटे का बजट ही सहायक हो सकता है।
  • केज के अनुसार, कई बार तो संतुलन बनाने के लिए अपनाए गए बजटीय उपाय ही आगे चलकर बजटीय घाटे का कारण बन जाते हैं।
  • इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि संतुलित बजट सरकार के द्वारा वित्तीय अनुशासन और कुशल वित्तीय प्रशासन लाने वाला सिद्ध हो।
  • पहले से ही यह नियम बनाकर चलना कि बजट हमेशा संतुलित रहना चाहिए, सरकार की स्वतंत्रता छीन लेता है और सरकार उचित राजकोषीय नीति का प्रयोग नहीं कर पाती।

प्रश्न 8.
संतुलित बजट, बचत बजट और घाटे के बजट का विवरण दीजिए।
उत्तर:
बजट की तीन श्रेणियाँ होती हैं संतुलित बजट, बचत बजट और घाटे का बजट। प्रत्येक का विवरण इस प्रकार से है
1. संतुलित बजट-सरकार का वह बजट जिसमें सरकार की अनुमानित प्राप्तियाँ (राजस्व व पूँजी) सरकार के अनुमानित व्यय के बराबर दिखाई गई हों, संतुलित बजट कहलाता है।
उदाहरण के लिए, सरलता के लिए मान लीजिए कि सरकार के राजस्व (आय) का एकमात्र स्रोत एकमुश्त कर है। यदि कर राजस्व, सरकारी व्यय के बराबर है तो यह संतुलित बजट कहलाएगा।
सांकेतिक रूप में संतुलित बजट वह है जिसमें
संतुलित बजट : अनुमानित प्राप्तियाँ = अनुमानित व्यय
परंपरावादी (Classical) अर्थशास्त्री सदा संतुलित बजट के पक्षधर रहे हैं परंतु केञ्ज व आधुनिक अर्थशास्त्री इससे सहमत नहीं रहे। उनके मत में संतुलित बजट के कुल व्यय (सरकारी तथा निजी व्यय), पूर्ण रोज़गार की अवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक व्यय से कम रहता है। इसलिए सरकार ने इस अंतराल को भरने के लिए अपना व्यय बढ़ाना चाहिए अर्थात् घाटे का बजट अपनाना चाहिए।

असंतुलित बजट वह बजट है जिसमें सरकार का अनुमानित व्यय, सरकार की अनुमानित प्राप्तियों से कम या अधिक दिखाया गया हो। असंतुलित बजट के दो रूप हो सकते हैं-सरकारी व्यय या तो सरकारी प्राप्तियों से अधिक है या कम है।

2. बचत (आधिक्यपूर्ण) बजट-जब बजट में सरकार की प्राप्तियाँ सरकार के खर्चों से अधिक दिखाई जाती हैं तो उस बजट को बचत का बजट,कहते हैं। दूसरे शब्दों में, बचत बजट उस स्थिति का प्रतीक है जब सरकार का राजस्व, सरकार के व्यय से अधिक होता है। सांकेतिक रूप में
बचत बजट = अनुमानित सरकारी प्राप्तियाँ > अनुमानित सरकारी व्यय
आधिक्यपूर्ण (बचत) बजट दर्शाता है कि सरकार अधिक मुद्रा उगाह रही है और आर्थिक प्रणाली में उससे कम मुद्रा डाल रही है। फलस्वरूप समग्र माँग (Aggregate Demand) गिरने लगती है जिससे कीमत स्तर भी गिरने लगता है। अतः मंदी या अवस्फीतिक (Deflation) की स्थिति में, बचत बजट से बचना चाहिए (अर्थात् घाटे का बजट अपनाना चाहिए)। हाँ तेजी व स्फीतिकारी (Inflationary) स्थिति में बचत का बजट लाभकारी व उचित माना जाता है।

3. घाटे का बजट-जब बजट में सरकारी व्यय, सरकारी प्राप्तियों से अधिक दिखाया जाता है तो उस बजट को घाटे का बजट कहते हैं। दूसरे शब्दों में, घाटे के बजट में सरकारी व्यय, सरकार की आय से अधिक होता है। सांकेतिक रूप में
घाटे का बजट = अनुमानित सरकारी प्राप्तियाँ < अनुमानित सरकारी व्यय
विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए घाटे के बजट के दो विशेष लाभ हैं-

  • यह आर्थिक संवृद्धि की गति को बढ़ाता है और
  • यह लोगों के कल्याणकारी कार्यक्रम को लागू करने में सहायक है।

साथ ही घाटे के बजट के दोष भी हैं; जैसे-

  • यह सरकार की अनावश्यक और फिजूलखर्ची को बढ़ाता है और
  • इससे वित्तीय और राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न होने का डर बना रहता है।

संक्षेप में, तेजी (निरंतर बढती हुई कीमतों की स्थिति में बचत वाला बजट और मंदी (कीमतों और रोजगार स्थिति में घाटे वाला बजट अपनाना चाहिए।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 9.
बजटीय घाटा किसे कहते हैं? इसे कैसे पूरा किया जाता है?
उत्तर:
बजटीय घाटा-बजटीय घाटे से अभिप्राय सरकार के कुल व्यय (राजस्व व्यय + पूँजी व्यय) को कुल प्राप्तियों (राजस्व प्राप्तियाँ + पूँजी प्राप्तियाँ) से अधिक होने से है। दूसरे शब्दों में जब सरकार की चालू राजस्व प्राप्तियों और निवल पूँजी प्राप्तियों का जोड़, कुल व्यय से कम रह जाता है तो उसे बजटीय घाटा (या कुल बजट घाटा) कहते हैं। सांकेतिक रूप में
बजटीय घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियाँ
उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि किसी वर्ष के लिए केंद्रीय बजट में कुल व्यय 90,000 करोड़ रुपए और कुल प्राप्तियाँ 80,000 करोड़ रुपए दिखाई गई है। ऐसी स्थिति में बजटीय घाटा 10,000 (90,000-80,000) करोड़ रुपए होगा क्योंकि कुल प्राप्तियाँ कुल व्यय से 10,000 करोड़ रुपए कम रह गई हैं।

बजट घाटे को कैसे पूरा किया जाता है?
(1) घाटे की वित्त व्यवस्था-बजट घाटे को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार अपने ट्रेजरी बिल (Treasury Bill) जारी करके बदले में भारतीय रिज़र्व बैंक से उधार ले लेती है। दूसरे शब्दों में, सरकार अपने कुल खर्चे और कुल प्राप्तियों के अंतर को पाटने की वित्त-व्यवस्था, रिज़र्व बैंक से उधार लेकर करती है और रिज़र्व बैंक इसके लिए नए करेंसी नोट छापता है। इसे तकनीकी भाषा में घाटे की वित्त-व्यवस्था (Deficit Financing) कहते हैं। दूसरे शब्दों में, घाटे की । वित्त-व्यवस्था से अभिप्राय बजटीय घाटे को नए करेंसी नोट छापकर पूरा करने से है। फलस्वरूप मुद्रा की पूर्ति (Supply) में वृद्धि होने से कीमतें लगातार बढ़ने लगती हैं और यह स्फीतिकारी स्थिति कई अन्य समस्याओं को जन्म देती उपाय (नए करेंसी नोट छापने) का तभी प्रयोग करना चाहिए जब उसके पास कोई अन्य विकल्प न हो।

(2) ऋण लेना-बजट घाटे को घरेलू बाज़ार व विदेशों से ऋण लेकर भी पूरा किया जा सकता है। बजट के घाटे से संबंधित तीन अवधारणाएँ हैं-राजस्व घाटा, राजकोषीय घाटा और प्राथमिक घाटा।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था 5

घाटा सांकेतिक रूप में[-

  1. राजस्व घाटा = कुल राजस्व व्यय – कुल राजस्व प्राप्तियाँ
  2. राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – उधार के बिना कुल प्राप्तियाँ
  3. प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – व्याज अदायगियाँ

प्रश्न 10.
राजस्व घाटा किसे कहते हैं? इसके प्रभाव तथा इसको दूर करने के उपाय बताएँ।
उत्तर:
राजस्व घाटा-राजस्व घाटे से अभिप्राय सरकार की राजस्व प्राप्तियाँ (कर राजस्व + गैर-कर राजस्व) की तुलना में राजस्व व्यय (योजना राजस्व + गैर-योजना राजस्व व्यय) के अधिक होने से है। संक्षेप में, सरकार जब प्राप्त किए गए राजस्व से अधिक व्यय करती है तो उसे राजस्व घाटा सहन करना पड़ता है। ध्यान रहे, राजस्व घाटे में केवल वे मदें शामिल की जाती हैं जो सरकार की चालू (Current) राजस्व आय और व्यय को प्रभावित करती है। सांकेतिक रूप में-
राजस्व घाटा = कुल राजस्व व्यय – कुल राजस्व प्राप्तियाँ
राजस्व घाटे को पूँजीगत प्राप्तियों से अर्थात् उधार लेकर या परिसंपत्ति के विक्रय से पूरा किया जाता है। राजकोषीय घाटा स्थिर (या उतना) रहने पर, अधिक राजस्व घाटा, कम राजस्व घाटे की तुलना में बदतर (Worse) होगा क्योंकि इससे भविष्य में पुनर्भुगतान (Repayment) का भार बढ़ जाएगा जबकि इतनी राशि निवेश करने से लाभ सृजित होगा।

प्रभाव-
(i) राजस्व घाटा सरकार की अवबचतों (Dissavings) को दर्शाते हैं क्योंकि इस घाटे को सरकार अपनी पूँजी प्राप्तियों से उधार लेकर या अपनी परिसंपत्तियाँ बेचकर पूरा करती है।

(ii) चूँकि सरकार अपने आधिक्य उपभोग व्यय को मुख्यतः पूँजी खाते से उधार लेकर पूरा करती है। इसलिए स्फीतिकारी स्थिति उत्पन्न होने का भय बना रहता है।

(iii) राजस्व घाटे को पूरा करने हेतु लिए गए ऋण से कर्ज का भार और अधिक बढ़ जाएगा क्योंकि ऋण की राशि और उस पर ब्याज वापस करना होगा। फलस्वरूप भविष्य में राजस्व घाटा और बढ़ाता जाएगा और यह कुचक्र का रूप धारण कर लेगा।

उपाय-

  1. सरकार अमीर लोगों पर लगे करों की दर बढ़ाए और नए कर लगाएँ।
  2. सरकार को खर्चे कम करने चाहिएँ और अनावश्यक खर्चों से बचना चाहिए।

प्रश्न 11.
राजकोषीय घाटा क्या है? इसके प्रभाव तथा इसको दूर करने के उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राजकोषीय घाटा-राजकोषीय घाटे का अर्थ है सरकार के कुल व्यय (योजना व्यय + गैर-योजना व्यय) का उधार रहित कुल प्राप्तियों (राजस्व प्राप्तियाँ + उधार बिना पूँजी प्राप्तियाँ) से अधिक हो जाना। सांकेतिक रूप में-
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – उधार के बिना कुल प्राप्तियाँ
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ-उधार रहित पूँजी प्राप्तियाँ

वास्तव में राजकोषीय घाटा उधार के बराबर होता है।
राजकोषीय घाटे के संबंध में नोट करने वाली बात यह है कि इसमें उधार (Borrowing), जो पूँजी प्राप्तियों का एक घटक है, को शामिल नहीं किया जाता है।

प्रभाव – राजकोषीय घाटा सरकार की उधार संबंधी जरूरतों को प्रकट करता है। यह बजट व्यय को पूरा करने के लिए सरकार की उधार पर निर्भरता की मात्रा को दर्शाता है। उल्लेखनीय है कि राजकोषीय घाटे की संपूर्ण राशि व्यय पूरा करने के लिए उपलब्ध नहीं होती क्योंकि इसका एक भाग ब्याज अदा करने में लग जाता है। पुनः जैसे-जैसे सरकार द्वारा लिए गए ऋण की मात्रा बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे भविष्य में ब्याज सहित ऋण वापस करने की सरकार की देनदारियाँ भी बढ़ती जाती हैं जिसके फलस्वरूप राजकोषीय घाटा और भी बढ़ता जाता है। अंत में यह एक कुचक्र का रूप धारण कर लेता है। अतः सरकार को राजकोषीय घाटा यथासंभव न्यूनतम रखना चाहिए।

उपाय – जब सार्वजनिक व्यय और राजस्व व्यय में कटौती करने पर भी राजकोषीय घाटा दूर नहीं होता तो इसे निम्नलिखित दो उपायों ऋण और मौद्रिक प्रसार-से दूर करना चाहिए।
1. उधार-आंतरिक और विदेशी स्रोतों से उधार लेकर घाटे को पूरा करना चाहिए।

2. घाटे की वित्त-व्यवस्था (अर्थात् नए करेंसी नोट छापना)-राजकोषीय घाटे को रिज़र्व बैंक से उधार लेकर पूरा किया जा सकता है जो सरकारी प्रतिभूतियों (Securities) के बदले में नए करेंसी नोट छापकर सरकार को उधार देता है। यह कहने की जरूरत नहीं है कि घाटे की वित्त-व्यवस्था से मुद्रास्फीति तथा अन्य कई समस्याएँ पैदा हो जाती हैं। अतः इसका यथासंभव कम-से-कम सहारा लेना चाहिए।

संख्यात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आँकड़ों की सहायता से बजट घाटा ज्ञात करें

(मदें)(करोड़ रुपए)
(i) कुल व्यय1,00,000
(ii) कुल प्राप्तियाँ92,000

हल:
बजट घाटा = कुल व्यय > कुल आय
Budget Deficit = Total Expenditure >Total Receipts
or
Budget Deficit = TE (RE + CE) > TR (RR + CR)
बजट घाटा = 1,00,000 > 92,000 करोड़ रुपए
= 8000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आँकड़ों से बजट घाटा ज्ञात करें

(मदें)(करोड़ रुपए)
(i) राजस्व व्यय60,000
(ii) पूँजीगत व्यय30,000
(iii) राजस्व प्राप्तियाँ50,000
(iv) पूँजीगत प्राप्तियाँ25,000

हल:
बजट घाटा = TE (RE + CE) > TR (RR + CR)
= 60,000 + 30,000 > 50,000 + 25,000 करोड़ रुपए
= 90,000 > 75000 करोड़ रुपए
= 15,000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 3.
निम्नलिखित आँकड़ों से राजस्व घाटा ज्ञात करें

(मदें)(करोड़ रुपए)
(i) राज प्राप्तियाँ80,000
(ii) राजस्व व्यय90,000

हल:
राजस्व घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ (जब राजस्व व्यय > राजस्व प्राप्तियाँ)
(Revenue Deficit) = (RE) – (RR) जब RE > RR
= 90,000 – 80,000 करोड़ रुपए
= 10,000 करोड़ रुपए उत्तर

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आँकड़ों से राजकोषीय घाटा ज्ञात करें

(मदें)(करोड़ रुपए)
(i) कुल व्यय75,000
(ii) राजस्व प्राप्तियाँ60,000
(iii) गैर-ऋण पूँजीगत प्राप्तियाँ5,000

हल:
राजकोषीय घाटा = बजट व्यय या कुल व्यय (राजस्व व्यय + पूँजीगत व्यय) – ऋण छोड़कर बजट प्राप्तियाँ या कुल प्राप्तियाँ (राजस्व प्राप्तियाँ + ऋण छोड़कर पूँजीगत प्राप्तियाँ) जब कुल व्यय > ऋण छोड़कर कुल प्राप्तियाँ
= 75,000 – (60,000 + 5000) करोड़ रुपए
= 75,000 – 65,000 करोड़ रुपए
= 10,000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 5.
प्राथमिक घाटा ज्ञात करें-

(मदें)(करोड़ रुपए)
(i) राजकोषीय घाटा10,000
(ii) सरकार द्वारा ब्याज का भुगतान600

हल:
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान
PD = FD – IP
= 10,000 – 600 करोड़ रुपए
= 9400 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 6.
एक सरकारी बजट में प्राथमिक घाटा 20,000 करोड़ रुपए है और व्याज भुगतान 8,000 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
राजकोषीय घाटा = प्राथमिक घाटा + ब्याज भुगतान
= 20,000 + 8,000 करोड़ रुपए
= 28,000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 7.
एक सरकारी बजट में प्राथमिक घाटा 20,000 करोड़ रुपए है और ब्याज भुगतान 7,000 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
राजकोषीय घाटा = प्राथमिक घाटा + ब्याज भुगतान
= 20,000 + 7,000 करोड़ रुपए
= 27,000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 8.
एक सरकारी बजट में राजस्व घाटा 60,000 करोड़ रुपए है और ऋण की वसूली 80,000 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
राजकोषीय घाटा = राजस्व घाटा – ऋण की वसूली
= 60,000 – 80,000 करोड़ रुपए
= (-)20,000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 9.
एक सरकारी बजट 5,600 करोड़ रुपए का प्राथमिक घाटा दिखाता है। ब्याज भुगतान पर राजस्व व्यय 599 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा ज्ञात करें।
हल:
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान
5,600 करोड़ रुपए = राजकोषीय घाटा – 599 करोड़ रुपए
राजकोषीय घाटा = 5,600 करोड़ रुपए + 599 करोड़ रुपए = 6,199
= 6,199 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 10.
एक सरकारी बजट में राजस्व घाटा 60,000 करोड़ रुपए है और उधार 80,000 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
राजकोषीय घाटा = उधार और अन्य दायित्व = 80,000 करोड़ रुपए

प्रश्न 11.
एक सरकारी बजट में 4,400 करोड़ रुपए का प्राथमिक घाटा है। व्याज भुगतान पर राजस्व व्यय 400 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
राजकोषीय घाटा = प्राथमिक घाटा + ब्याज भुगतान
= 4,400 + 400
= 4,800 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 12.
एक सरकारी बजट में प्राथमिक घाटा 10,000 करोड़ रुपए है और ब्याज भुगतान 8,000 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल : राजकोषीय घाटा = प्राथमिक घाटा + ब्याज भुगतान
= 10,000 + 8,000
= 18,000 करोड़ रुपए उत्तर

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 13.
एक सरकारी बजट में राजस्व घाटा 50,000 करोड़ रुपए है और उधार 75,000 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
राजकोषीय घाटा = उधार = 75,000 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 14.
एक सरकारी बजट में प्राथमिक घाटा 500 करोड़ रुपए है तथा ब्याज का भुगतान 200 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा कितना है?
हल:
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज का भुगतान
500 करोड़ रुपए = राजकोषीय घाटा – 200 करोड़ रुपए
राजकोषीय घाटा = 500 करोड़ रुपए + 200 करोड़ रुपए
= 700 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 15.
सरकार के बजट में कुल व्यय 1500 करोड़ रुपए है। राजस्व आय 1100 करोड़ रुपए है तथा गैर-ऋण पूँजी आय 300 करोड़ रुपए है। राजकोषीय घाटा बताइए।
हल:
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियाँ (ऋण के अतिरिक्त)
= 1500 करोड़ रुपए – (1100 करोड़ रुपए + 300 करोड़ रुपए)
= 1500 करोड़ रुपए – 1400 करोड़ रुपए
= 100 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 16.
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 0.8 है। राष्ट्रीय आय में क्या वृद्धि होगी यदि
(a) सरकारी व्यय में 1000 रुपए की वृद्धि होती है?
(b) कर में 1000 रुपए की कटौती होती है?
हल:
(a) सरकारी व्यय गुणक = \(\frac{1}{1-c}=\frac{1}{1-0.8}=\frac{1}{0.2}\) = 5
राष्ट्रीय आय में वृद्धि = 5 × 1000
= 5,000 रुपए
वैकल्पिक रूप से,
राष्ट्रीय आय में वृद्धि =\(\frac{1}{1-c}\) ∆G = \(\frac{1}{1-0.8}\) × 1000 = \(\frac{1}{0.2}\) × 1000
= 5,000 रुपए

(b) कर गुणक = \(\frac{-c}{1-c}\) = \(\frac{0.8}{1-0.8}\) = \(\frac{0.8}{0.2}\) = 4
राष्ट्रीय आय में वृद्धि = 4 × 1000
= 4,000 रुपए
वैकल्पिक रूप से,
राष्ट्रीय आय में वृद्धि = \(\frac{-c}{1-c}\) ∆T = \(\frac{0.8}{1-0.8}\) × 1000
= 4,000 रुपए

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HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. एक खुली अर्थव्यवस्था में समग्र (समस्त) माँग के निम्नलिखित में से कौन-से घटक हैं?
(A) निजी उपभोग व्यय
(B) निजी निवेश व्यय
(C) सरकारी व्यय + उपभोग व्यय
(D) निजी उपभोग व्यय +निजी निवेश व्यय + सरकारी व्यय + शुद्ध निर्यात
उत्तर:
(D) निजी उपभोग व्यय +निजी निवेश व्यय + सरकारी व्यय + शुद्ध निर्यात

2. AS और AD तथा S और I में एक-साथ संतुलन तब आता है जब-
(A) AS = AD
(B) S = I
(C) (A) तथा (B) दोनों
(D) कोई भी बराबर नहीं
उत्तर:
(C) (A) तथा (B) दोनों

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

3. समग्र पूर्ति के कौन-से घटक हैं?
(A) उपभोग
(B) बचत
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

4. उपभोग फलन फलनात्मक संबंध है-
(A) आय एवं बचत का
(B) आय एवं उपभोग का
(C) उपभोग एवं बचत का
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) आय एवं उपभोग का

5. उपभोग प्रवृत्ति का अर्थ है
(A) उपभोक्ता का उत्कृष्ट उपभोग की ओर झुकाव होना
(B) आय के विभिन्न स्तरों पर उपभोग तथा आय का अनुपात
(C) आय का स्तर जिस पर उपभोग व्यय आय के बराबर है
(D) आय की अतिरिक्त दर जो उपभोग पर व्यय की जाएगी
उत्तर:
(B) आय के विभिन्न स्तरों पर उपभोग तथा आय का अनुपात

6. समग्र माँग व्यक्त करती है-
(A) संभावित कुल प्राप्तियाँ
(B) संभावित कुल व्यय
(C) न्यूनतम प्राप्तियाँ
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) संभावित कुल व्यय

7. समग्र माँग कीमत व्यक्त करती है-
(A) संभावित प्राप्तियाँ
(B) न्यूनतम प्राप्तियाँ
(C) कुल लागतें
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) संभावित प्राप्तियाँ

8. समग्र पूर्ति कीमत व्यक्त करती है-
(A) संभावित प्राप्तियाँ
(B) कुल लागतें
(C) न्यूनतम प्राप्तियाँ
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) न्यूनतम प्राप्तियाँ

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

9. केज के अनुसार समस्त माँग बराबर है-
(A) C + S
(B) C + I
(C) C + I + G
(D) C + I + G + X – M
उत्तर:
(B) C + I

10. एक अर्थव्यवस्था में शून्य आय स्तर पर
(A) C = 0
(B) C = \(\overline{\mathrm{C}}\)
(C) S = 0
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) C = \(\overline{\mathrm{C}}\)

11. आय के एक न्यूनतम स्तर से आय का स्तर कम होने पर बचत होती है-
(A) ऋणात्मक
(B) शून्य
(C) धनात्मक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) ऋणात्मक

12. स्वायत्त उपभोग (Autonomous Consumption) अर्थात् जीवित रहने के लिए न्यूनतम उपभोग का संकेतक है-
(A) C
(B) C
(C) I
(D) A
उत्तर:
(B) C

13. कुल स्वायत्त व्यय का प्रतीक है-
(A) A = C + I
(B) A = C + I
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) A = C + I

14. ‘I’ संकेतक है-
(A) प्रत्याशित (नियोजित) निवेश का
(B) यथार्थ निवेश का
(C) स्वायत्त निवेश का
(D) इनमें से किसी का नहीं
उत्तर:
(C) स्वायत्त निवेश का

15. स्वायत्त निवेश का प्रतीक (चिह) है-
(A) A
(B) C
(C) I
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) I

16. सही सूत्र चुनिए-
(A) APC = \(\frac { ∆C }{ ∆Y }\)
(B) MPC = \(\frac { C }{ Y }\)
(C) K = \(\frac { 1 }{ 1-APS }\)
(D) K = \(\frac { 1 }{ MPS }\)
उत्तर:
(D) K = \(\frac { 1 }{ MPS }\)

17. प्रभावी माँग अथवा प्रभावपूर्ण माँग एक ऐसी स्थिति है, जिसमें-
(A) AD = AS
(B) AD > AS
(C) AD < AS
(D) AD = 0
उत्तर:
(A) AD = AS

18. प्रभावपूर्ण माँग की स्थिति दिखती है-
(A) पूर्ण रोज़गार में
(B) अल्परोज़गार में
(C) पूर्ण रोज़गार से अधिक में
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

19. उपभोग फलन का समीकरण है-
(A) C = f (Y)
(B) C = f (S)
(C) C = f (R.I.)
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) C = f (Y)

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

20. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है?
(A) आय में प्रत्येक वृद्धि के साथ उपभोग बढ़ता है
(B) उपभोग सदैव धनात्मक होता है (आय के शून्य स्तर पर भी)
(C) आय में वृद्धि से उपभोग कम अनुपात से बढ़ता है।
(D) उपर्युक्त तीनों सही हैं।
उत्तर:
(D) उपर्युक्त तीनों सही हैं

21. APC बराबर होती है-
(A) \(\frac { Y }{ C }\)
(B) \(\frac { ∆Y }{ ∆C }\)
(C) \(\frac { C }{ Y }\)
(D) \(\frac { ∆C }{ ∆Y }\)
उत्तर:
(D) \(\frac { ∆C }{ ∆Y }\)

22. MPC बराबर है-
(A) \(\frac { ∆Y }{ ∆C }\)
(B) \(\frac { ∆C }{ ∆Y }\)
(C) \(\frac { C }{ Y }\)
(D) \(\frac { Y }{ C }\)
उत्तर:
(B) \(\frac { ∆C }{ ∆Y }\)

23. यदि सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 0.5 हो तो आय में 100 रुपए की वृद्धि होने पर उपभोग व्यय क्या होगी?
(A) 40 रुपए
(B) 50 रुपए
(C) 60 रुपए
(D) 70 रुपए
उत्तर:
(B) 50 रुपए

24. बचत प्रवृत्ति का अर्थ है-
(A) आय के विभिन्न स्तरों पर बचत तथा आय का अनुपात
(B) आय का स्तर जिस पर बचत आय के बराबर हो
(C) आय की अतिरिक्त दर जिसकी बचत की जाए
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) आय के विभिन्न स्तरों पर बचत तथा आय का अनुपात

25. APS बराबर होती है-
(A) \(\frac { Y }{ S }\)
(B) \(\frac { ∆Y }{ ∆S }\)
(C) \(\frac { S }{ Y }\)
(D) \(\frac { ∆S }{ ∆Y }\)
उत्तर:
(C) \(\frac { S }{ Y }\)

26. MPS बराबर होती है-
(A) \(\frac { ∆Y }{ ∆S }\)
(B) \(\frac { ∆S }{ ∆Y }\)
(C) \(\frac { S }{ Y }\)
(D) \(\frac { Y }{ S }\)
उत्तर:
(B) \(\frac { ∆S }{ ∆Y }\)

27. यदि MPS 0.6 है तो आय में 100 रुपए की वृद्धि होने पर बचत क्या होगी?
(A) 40 रुपए
(B) 50 रुपए
(C) 60 रुपए
(D) 70 रुपए
उत्तर:
(C) 60 रुपए

28. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है?
(A) APC + APS = 1
(B) MPC + MPS = 1
(C) (A) व (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) व (B) दोनों

29. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है?
(A) MPC + MPS = 0
(B) MPC + MPS = 1
(C) MPC+ MPS > 1
(D) MPS + MPS < 1
उत्तर:
(B) MPC + MPS = 1

30. निम्नलिखित में से कौन-सा सही है?
(A) APC + APS = 1
(B) APC = 1 – APS
(C) APS = 1 – APC
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

31. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है?
(A) MPC = 1 – MPS
(B) MPS = 1 – MPC
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई भी सत्य नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

32. यदि MPC 40% है, तो MPS होगी-
(A) 70%
(B) 60%
(C) 50%
(D) 40%
उत्तर:
(B) 60%

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

33. निम्नलिखित में से कौन-सा विकल्प गलत है?
(A) AS वक्र 45° पर बनी सीधी रेखा होती है
(B) MPC का मूल्य शून्य व इकाई के बीच रहता है
(C) समस्तर बिंदु से पहले उपभोग आय से अधिक रहता है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(D) इनमें से कोई नहीं

34. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?
(A) अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार की अवस्था में किसी भी प्रकार की बेरोज़गारी संभव नहीं है
(B) सीमांत उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य इकाई से अधिक हो सकता है
(C) समता बिंदु आय स्तर पर औसत उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य इकाई के बराबर होता है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) समता बिंदु आय स्तर पर औसत उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य इकाई के बराबर होता है

35. निवेश गुणक का संबंध होता है-
(A) स्वतंत्र निवेश में परिवर्तन के कारण आय में परिवर्तन
(B) आय में परिवर्तन के कारण स्वतंत्र निवेश में परिवर्तन
(C) आय में परिवर्तन के कारण उपभोग में परिवर्तन
(D) प्रेरित निवेश में परिवर्तन के कारण आय में परिवर्तन
उत्तर:
(A) स्वतंत्र निवेश में परिवर्तन के कारण आय में परिवर्तन

36. गुणक =
(A) \(\frac { ∆Y }{ ∆S }\)
(B) \(\frac { ∆Y }{ ∆I }\)
(C) \(\frac { ∆I }{ ∆Y }\)
(D) \(\frac { ∆Y }{ ∆C }\)
उत्तर:
(B) \(\frac { ∆Y }{ ∆I }\)

37. निवेश गुणक से अभिप्राय है-
(A) K = \(\frac { ∆Y }{ ∆I }\)
(B) K = \(\frac { ∆I }{ ∆Y }\)
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) K = \(\frac { ∆Y }{ ∆I }\)

38. निवेश गुणक कौन-से सूत्र द्वारा निर्धारित होता है?
(A) \(\frac { 1 }{ MPC }\)
(B) \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}\)
(C) \(\frac{1}{1+\mathrm{MPC}}\)
(D) \(\frac{1}{1+\mathrm{MPS}}\)
उत्तर:
(B) \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}\)

39. यदि MPC = \(\frac { 1 }{ 2 }\) है, तो गुणक होगा
(A) 3
(B) 4
(C) 1
(D) 2
उत्तर:
(D) 2

40. यदि MPS = \(\frac { 1 }{ 4 }\) है, तो गुणक का मूल्य होगा
(A) 4
(B) 5
(C) 2
उत्तर:
(A) 4

41. यदि MPC = 0.8 है, तो गुणक (K) का मूल्य होगा-
(A) 1
(B) 2
(C) 4
(D) 5
उत्तर:
(D)5

42. यदि MPC =.80 है, तो निवेश में 100 रुपए की वृद्धि होने से आय में वृद्धि होगी-
(A) 400 रुपए
(B) 300 रुपए
(C) 500 रुपए
(D) 200 रुपए
उत्तर:
(C) 500 रुपए

43. यदि MPC = 0.5 है, तो गुणक (K) क्या होगा?
(A) 1
(B) 8
(C) 2
(D) 5
उत्तर:
(C) 2

44. यदि गुणक का मूल्य 10 है, तो उपभोग की सीमांत प्रवृत्ति होगी-
(A) 0.8
(B) 0.6
(C) 0.9
(D) 0.5
उत्तर:
(C) 0.9

45. यदि MPC(\(\frac { ∆C }{ ∆Y }\)) = 1 हो, तो गुणक होगा-
(A) शून्य
(B) 1
(C) 2
(D) ∞ (अनंत)
उत्तर:
(D) ∞ (अनंत)

46. यदि MPC = 0 हो, तो गुणक का मूल्य होगा-
(A) शून्य
(B) 1
(C) 2
(D) ∞ (अनंत)
उत्तर:
(B) 1

47. जब गुणक का आकार 1 है, तो MPC होगी-
(A) 1
(B) \(\frac { 1 }{ 2 }\)
(C) शून्य
(D) 3
उत्तर:
(C) शून्य

48. गुणक का MPC के साथ-
(A) विपरीत संबंध होता है
(B) सीधा संबंध होता है
(C) आनुपातिक संबंध होता है
(D) कोई संबंध नहीं होता है
उत्तर:
(B) सीधा संबंध होता है

49. यदि सीमांत बचत प्रवृत्ति 0.2 है, तो गुणक का मान होगा-
(A) 2.0
(B) 1.25
(C) 4.0
(D) 5.0
उत्तर:
(D) 5.0

50. यदि सीमांत बचत प्रवृत्ति 0.4 है, तो गुणक का मूल्य होगा-
(A) 6
(B) 2
(C) 4
(D) 2.5
उत्तर:
(D) 2.5

51. यदि \(\frac { ∆C }{ ∆Y }\) = 1 तब गुणक होगा
(A) शून्य
(B) ∞
(C) 1
(D) 2
उत्तर:
(B) ∞ (अनंत)

52. चूँकि AS = C + S तथा AD = C + I, इसलिए संतुलन वहाँ स्थापित होता है जहाँ C + S = C + I या वहाँ स्थापित होता है जहाँ-
(A) S = I
(B) S > I
(C) S < I
(D) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(A) S = I

53. न्यून (अभावी) माँग वह स्थिति है जिसमें समग्र माँग अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार के लिए आवश्यक समग्र पूर्ति से-
(A) अधिक होती है
(B) कम होती है
(C) बराबर होती है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) कम होती है

54. न्यून माँग की स्थिति में आय, उत्पाद तथा रोजगार का स्तर होगा-
(A) निम्नतम
(B) अधिकतम
(C) शून्य
(D) ऋणात्मक
उत्तर:
(A) निम्नतम

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

55. न्यून माँग को प्रायः किससे संबोधित किया जाता है?
(A) अवस्फीतिक अंतराल
(B) स्फीतिक अंतराल
(C) आय-व्यय अंतराल
(D) बचत-उपभोग अंतराल
उत्तर:
(A) अवस्फीतिक अंतराल

56. न्यून माँग का प्रभाव होता है-
(A) कीमतों में कमी
(B) रोज़गार में कमी
(C) उत्पादन में कमी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

57. निम्नलिखित में से कौन-सा न्यून माँग अथवा अवस्फीतिक अंतराल का कारण नहीं है?
(A) निजी उपभोग व्यय में कमी
(B) निवेश व्यय में कमी
(C) आयातों में कमी
(D) करों में वृद्धि
उत्तर:
(C) आयातों में कमी

58. निम्नलिखित में से न्यून माँग के परिणाम होते हैं-
(A) कीमत स्तर में निरंतर गिरावट
(B) लाभ घटने लगते हैं।
(C) निवेश निरुत्साहित होता है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

59. अधिमाँग वह स्थिति है जिसमें समग्र माँग अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार के लिए आवश्यक समग्र पूर्ति से होती है-
(A) अधिक
(B) कम
(C) बराबर
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) अधिक

60. अधिमाँग =
(A) ADE + ADF
(B) ADE – ADF
(C) ADE ÷ ADF
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) ADE – ADF

61. अधिमाँग की स्थिति में निम्नलिखित में से कौन-सा सही है?
(A) AD > AS
(B) AD < AS
(C) AD = AS
(D) AD x AS
उत्तर:
(A) AD > AS

62. स्फीतिक अंतराल निम्नलिखित में से किसका माप है?
(A) न्यून माँग
(B) अधिमाँग
(C) उपभोग प्रवृत्ति का
(D) निवेश प्रवृत्ति का
उत्तर:
(B) अधिमाँग

63. निम्नलिखित में से कौन-सा अधिमाँग (स्फीतिक अंतराल) का कारण है?
(A) कर की दर में वृद्धि
(B) निवेश में कमी
(C) सरकारी व्यय में कमी
(D) आयातों में कमी
उत्तर:
(D) आयातों में कमी

64. अधिमाँग का निम्नलिखित में से कौन-सा परिणाम है?
(A) कीमत स्तर में निरंतर वृद्धि होती है
(B) उत्पादन को अधिक बढ़ाया नहीं जा सकता
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

65. अधिमाँग का कारण होता है-
(A) उपभोग माँग में वृद्धि
(B) निवेश माँग में वृद्धि
(C) निर्यात माँग में वृद्धि
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

66. अधिमाँग का प्रभाव होता है-
(A) कीमत में वृद्धि
(B) उत्पादन में कमी
(C) रोज़गार में कमी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) कीमत में वृद्धि

67. अभावी माँग को ठीक करने का राजकोषीय उपाय हैं-
(A) सार्वजनिक व्यय में वृद्धि व करों की कमी
(B) सार्वजनिक ऋणों में कमी
(C) घाटे की वित्त व्यवस्था
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

68. अवस्फीतिक अंतराल को ठीक करने का उपाय हैं-
(A) सार्वजनिक व्यय में कमी
(B) करों में कमी
(C) सार्वजनिक ऋण में वृद्धि
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) करों में कमी

69. अत्यधिक माँग को ठीक करने का उपाय हैं-
(A) घाटे की वित्त व्यवस्था।
(B) करों में कमी
(C) सार्वजनिक व्यय में वृद्धि
(D) सार्वजनिक ऋण में वृद्धि
उत्तर:
(D) सार्वजनिक ऋण में वृद्धि

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

70. स्फीतिक अंतराल को ठीक करने का उपाय हैं-
(A) सार्वजनिक व्यय में कमी
(B) करों में कमी
(C) सार्वजनिक ऋण में वृद्धि
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

71. अभावी माँग को ठीक करने का मौद्रिक उपाय है-
(A) बैंक दर में कमी
(B) CRR में कमी
(C) SLR में कमी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

72. अवस्फीतिक अंतराल को ठीक करने का मौद्रिक उपाय है-
(A) खुले बाज़ार में प्रतिभूतियों की केंद्रीय बैंक द्वारा खरीद
(B) साख की राशनिंग खत्म करके
(C) ऋण की सीमांत आवश्यकता में कमी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

73. अत्यधिक माँग को ठीक करने का मौद्रिक उपाय है-
(A) बैंक दर में कमी
(B) CRR में कमी
(C) SLR में कमी
(D) खुले बाज़ार में केंद्रीय बैंक द्वारा प्रतिभूतियों का विक्रय
उत्तर:
(D) खुले बाज़ार में केंद्रीय बैंक द्वारा प्रतिभूतियों का विक्रय

74. स्फीतिक अंतराल को ठीक करने का मौद्रिक उपाय है-
(A) बैंक दर में वृद्धि
(B) CRR में कमी
(C) SLR में कमी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) बैंक दर में वृद्धि

75. स्फीतिक अंतराल को कम करने का उपाय है-
(A) कर तथा ऋण द्वारा लोगों की व्यय योग्य
(B) पूर्ति में वृद्धि करना आय कम करना
(C) (A) व (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) पूर्ति में वृद्धि करना

76. विस्फीतिक अंतराल को ठीक करने का उपाय है-
(A) करों में कमी तथा व्यय में वृद्धि।
(B) साख-प्रवाह में वृद्धि
(C) निर्यातों में आधिक्य
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. एक खुली अर्थव्यवस्था में समग्र माँग के घटक, निजी उपभोग व्यय, निजी निवेश आय, सरकारी व्यय तथा …………………. है। (शुद्ध निर्यात/उपभोग व्यय)
उत्तर:
शुद्ध निर्यात

2. आय एवं ……………. का संबंध उपभोग फलन होता है। (बचत/उपभोग)
उत्तर:
उपभोग

3. आय के विभिन्न स्तरों पर उपभोग तथा आय के अनुपात को …………………. कहते हैं। (उपभोग प्रवृत्ति/बचत प्रवृत्ति)
उत्तर:
उपभोग प्रवृत्ति

4. समग्र माँग …………………. व्यक्त करती है। (संभावित कुल प्राप्तियाँ/संभावित कुल व्यय)
उत्तर:
संभावित कुल व्यय

5. समग्र माँग कीमत ………………….. व्यक्त करती है। (संभावित प्राप्तियाँ न्यूनतम प्राप्तियाँ)
उत्तर:
बचत

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

6. गुणक का मूल्य = ……………………. \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}} / \frac{1}{\mathrm{MPC}}\)
उत्तर:
\(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}\)

7. आय के एक न्यूनतम स्तर से आय का स्तर कम होने पर ………………… बचत होती है। (धनात्मक/ऋणात्मक)
उत्तर:
ऋणात्मक

8. माँग आधिक्य के कारण कीमत ………………… है। (बढ़ती/घटती)
उत्तर:
बढ़ती

C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत

  1. केज का रोजगार सिद्धान्त खुली अर्थव्यवस्था में लागू होता है।
  2. ऐच्छिक बेरोजगारी पूर्ण रोजगार की अवस्था में भी हो सकती है।
  3. न्यून माँग की स्थिति में आय, उत्पाद तथा रोज़गार का स्तर निम्नतम होगा।
  4. किसी पुरानी कम्पनी के शेयर खरीदना वास्तविक निवेश है।
  5. यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति शून्य है तो गुणक का मूल्य 1 होगा।
  6. स्वचालित निवेश ब्याज की दर पर निर्भर करता है।
  7. MPC शून्य से अधिक और इकाई से कम होती है।
  8. सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति सदैव धनात्मक होती है।
  9. आय के एक न्यूनतम स्तर से आय का स्तर कम होने पर बचत ऋणात्मक होती है।
  10. परम्परावादी रोज़गार सिद्धान्त के अनुसार बचत आय का फलन है।
  11. आय में वृद्धि से उपभोग कम अनुपात से बढ़ता है।
  12. ‘से’ का बाज़ार नियम परम्परावादी रोजगार सिद्धान्त का मुख्य आधार है।
  13. जे० बी० से के अनुसार, “पूर्ति स्वयं अपनी माँग का निर्माण करती है।”
  14. गुणक का मूल्य = 1-MPS
  15. सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) तथा सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) का योग एक होता है।

उत्तर:

  1. गलत
  2. सही
  3. सही
  4. गलत
  5. सही
  6. गलत
  7. सही
  8. सही
  9. सही
  10. गलत
  11. सही
  12. सही
  13. सही
  14. गलत
  15. गलत।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय आय के किन्हीं दो परिवर्तों (Variables) का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आय के दो मुख्य परिवर्त हैं:

  • उपभोग तथा
  • निवेश।

प्रश्न 2.
प्रत्याशित (नियोजित या इच्छित) उपभोग क्या है? यह किस पर निर्भर करता है?
उत्तर:
प्रत्याशित अथवा नियोजित उपभोग से अभिप्राय योजनागत (इच्छित) उपभोग के मूल्य से है। यह सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) पर निर्भर करता है।

प्रश्न 3.
प्रत्याशित (नियोजित) निवेश क्या है? यह किस पर निर्भर करता है?
उत्तर:
प्रत्याशित निवेश से अभिप्राय योजनागत (इच्छित) निवेश के मूल्य से है। यह बाज़ार ब्याज की दर पर निर्भर करता है।

प्रश्न 4.
प्रस्तावित (प्रयोजित) और यथार्थ (वास्तविक) निवेश में क्या अंतर है?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में फर्मों और नियोजकों द्वारा आरंभ में जितना निवेश करने की योजना होती है, उसे प्रस्तावित निवेश कहते हैं। दी हुई अवधि में वास्तव में जितना निवेश किया जाता है, उसे यथार्थ निवेश कहते हैं।

प्रश्न 5.
प्रत्याशित (Ex-ante) बचत और यथार्थ (Ex-post) बचत में भेद का आधार क्या है?
उत्तर:
दोनों में भेद का आधार प्रक्रिया शुरू होने से पहले प्रस्तावित स्थिति और प्रक्रिया समाप्ति के बाद वास्तविक स्थिति है। अर्थव्यवस्था में सब गृहस्थों द्वारा एक अवधि में जितना बचाने की योजना बनाई जाती है, उसे प्रत्याशित बचत कहते हैं। इसके विपरीत, अर्थव्यवस्था में दी हुई अवधि के अंत में जितना हम वास्तव में बचा पाते हैं, उसे यथार्थ बचत कहते हैं।

प्रश्न 6.
समीकरण C = C + bY के घटक बताइए।
उत्तर:
C उपभोग फलन का प्रतीक है, \(\overline{\mathrm{C}}\) स्वायत्त उपभोग (Autonomous Consumption) को दर्शाता है, b सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) का प्रतीक है और Y आय (राष्ट्रीय आय) का प्रतीक है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 7.
समग्र पूर्ति (AS) किसे कहते हैं? समग्र पूर्ति के दो घटक बताइए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में दी हुई अवधि में वस्तुओं और सेवाओं के कुल उत्पादन को समग्र पूर्ति कहते हैं। मौद्रिक रूप में राष्ट्रीय आय, समग्र पूर्ति का प्रतीक है।
समग्र पूर्ति के दो घटक हैं-

  • उपभोग
  • बचत।

समग्र पूति = उपभोग + बचत।

प्रश्न 8.
समग्र पूर्ति (AS) की प्रतिष्ठित (Classical) अवधारणा, केज की AS अवधारणा से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
प्रतिष्ठित अवधारणा के अनुसार समग्र पूर्ति, कीमतों के प्रति पूर्णतया बेलोचदार रहती है, जबकि केज़ के अनुसार समग्र पूर्ति, कीमतों के प्रति पूर्णतया लोचदार रहती है।

प्रश्न 9.
बचत प्रवृत्ति क्या होती है?
उत्तर:
बचत प्रवृत्ति अथवा बचत फलन से अभिप्राय बचत और आय के बीच संबंध बताने वाली प्रवृत्ति से है। अन्य शब्दों में, आय और बचत के बीच फलनात्मक संबंध को बचत प्रवृत्ति या बचत फलन कहते हैं।

प्रश्न 10.
औसत बचत प्रवृत्ति की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
औसत बचत प्रवृत्ति से अभिप्राय आय (Y) के साथ बचत (S) के अनुपात को बताने वाली दर से है। सूत्र के रूप में
APS = \(\frac { S }{ Y }\)

प्रश्न 11.
सीमांत बचत प्रवृत्ति की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
सीमांत बचत प्रवृत्ति से अभिप्राय बचत में परिवर्तन (∆S) और आय में परिवर्तन (∆Y) के अनुपात से है। सूत्र के रूप में-
MPS = \(\frac { ∆S }{ ∆Y }\)
यहाँ, ∆S = बचत में परिवर्तन, ∆Y = आय में परिवर्तन।

प्रश्न 12.
मितव्ययिता (बचत) का विरोधाभास (Paradox of Saving) क्या है?
उत्तर:
मितव्ययिता का विरोधाभास वह सिद्धांत है जिसके अनुसार जब लोग अधिक मितव्ययी हो जाते हैं तो वे समस्त रूप से बचत कम करते हैं या पूर्ववत करते हैं क्योंकि अधिक बचत = कम माँग = उपभोग में कमी = आय में कमी = बचत में कमी।

प्रश्न 13.
औसत बचत प्रवृत्ति का औसत उपभोग प्रवृत्ति से क्या संबंध है?
उत्तर:
औसत बचत प्रवृत्ति + औसत उपभोग प्रवृत्ति = 1, अर्थात् औसत बचत प्रवृत्ति के अधिक होने पर औसत उपभोग प्रवृत्ति कम होगी।

प्रश्न 14.
निवेश को समझ पाने में किन तत्त्वों की जानकारी महत्त्वपूर्ण होती है?
उत्तर:

  • निवेश से आगम
  • ब्याज की दर
  • भविष्य में लाभ की अपेक्षाएँ।

प्रश्न 15.
निवेश माँग फलन क्या होता है?
उत्तर:
निवेश माँग फलन से हमारा अभिप्राय निवेश माँग और ब्याज की दर के संबंध से है।

प्रश्न 16.
जिस अर्थव्यवस्था में प्रत्याशित निवेश प्रत्याशित बचत से अधिक हो, उसमें कुल आय पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
जिस अर्थव्यवस्था में प्रत्याशित निवेश प्रत्याशित बचत से अधिक हो, उसमें कुल आय में वृद्धि होती है।

प्रश्न 17.
संतुलन आय में बचत और निवेश का क्या संबंध होता है?
उत्तर:
संतुलन आय में प्रत्याशित बचत और प्रत्याशित निवेश दोनों बराबर होते हैं अर्थात् प्रत्याशित बचत = प्रत्याशित निवेश।

प्रश्न 18.
निवेश गुणक की धारणा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
निवेश गुणक से अभिप्राय उस सिद्धांत से है जिसके अनुसार, निवेश में प्रारंभिक परिवर्तन से अर्थव्यवस्था की आय में गुणज परिवर्तन होता है। सूत्र के रूप में,
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 1

प्रश्न 19.
संतुलन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
संतुलन का शाब्दिक अर्थ है, दो विपरीत स्थितियों के बीच साम्य या बराबरी। यहाँ इससे अभिप्राय समग्र माँग और . समग्र पूर्ति के विशेष कीमत पर बराबर-बराबर होने से है।

प्रश्न 20.
उत्पादन का स्तर क्या है?
उत्तर:
उत्पादन का वह स्तर, जिस पर उत्पादित वस्तुओं व सेवाओं की मात्रा, माँगी गई मात्रा के बराबर हो, उत्पादन का संतुलन स्तर कहलाता है।

प्रश्न 21.
ऐच्छिक बेरोज़गारी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
ऐच्छिक बेरोज़गारी से अभिप्राय उस बेरोज़गारी से है जिसमें कार्य के लिए योग्य व्यक्ति अपनी इच्छा से कार्य नहीं करते यद्यपि अर्थव्यवस्था में उनके लिए उपयुक्त कार्य उपलब्ध होता है।

प्रश्न 22.
अनैच्छिक बेरोज़गारी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अनैच्छिक बेरोज़गारी से अभिप्राय उस बेरोज़गारी से है जिसमें कार्य के लिए इच्छुक और योग्य व्यक्तियों को रोज़गार प्राप्त न हो।

प्रश्न 23.
प्रभावी माँग का सिद्धांत क्या है?
उत्तर:
प्रभावी माँग का सिद्धांत यह बताता है कि समस्त निर्गत (उत्पादन) का निर्धारण केवल समस्त माँग के मूल्यों द्वारा होता है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 24.
पूर्ण रोज़गार संतुलन का क्या अर्थ है?
उत्तर:
पूर्ण रोज़गार संतुलन अर्थव्यवस्था में संतुलन की वह अवस्था होती है जहाँ उसके सभी संसाधनों का पूरा प्रयोग हो रहा हो।

प्रश्न 25.
अपूर्ण रोज़गार संतुलन का क्या अर्थ है?
उत्तर:
अपूर्ण रोज़गार संतुलन अर्थव्यवस्था के संतुलन की वह अवस्था होती है जहाँ उसके सभी संसाधनों का पूरा प्रयोग नहीं हो रहा हो अर्थात् कुछ संसाधन अप्रयुक्त रहते हैं। यह स्थिति समस्त माँग का समस्त पूर्ति से कम होने पर उत्पन्न होती है।

प्रश्न 26.
क्या बेरोज़गारी की स्थिति में एक अर्थव्यवस्था में संतुलन अवस्था संभव है?
उत्तर:
हाँ, बेरोज़गारी की स्थिति में एक अर्थव्यवस्था में संतुलन अवस्था संभव है क्योंकि संतुलन वहाँ स्थापित होता है जहाँ समग्र माँग (AD), समग्र पूर्ति (AS) के बराबर होती है। लेकिन संतुलन अवस्था पूर्ण रोज़गार की स्थिति में ही हो, यह जरूरी नहीं होता। संतुलन स्थिति अपूर्ण रोज़गार अवस्था पर भी हो सकती है।

प्रश्न 27.
केज़ सिद्धांत के अनुसार अपूर्ण रोज़गार स्तर का उपचार किस प्रकार किया जा सकता है?
उत्तर:
समग्र माँग में वृद्धि द्वारा अपूर्ण रोज़गार स्तर का उपचार किया जा सकता है।

प्रश्न 28.
माँग का अभाव क्या होता है?
उत्तर:
जब समग्र माँग पूर्ण रोज़गार स्तर के उत्पादन से कम रह जाती है, तो उसे माँग का अभाव कहते हैं।

प्रश्न 29.
माँग आधिक्य क्या होता है?
उत्तर:
जब समग्र माँग, पूर्ण रोज़गार स्तर के उत्पादन से अधिक होती है, तो उसे माँग आधिक्य कहते हैं।

प्रश्न 30.
मुद्रास्फीतिक अंतराल की अवधारणा बताइए।
उत्तर:
यदि आय का संतुलन स्तर पूर्ण रोज़गार के स्तर के बाद निर्धारित होता है तो वह मुद्रास्फीतिक अंतराल की स्थिति होती है।

प्रश्न 31.
अवस्फीतिक अंतराल की अवधारणा बताइए।
उत्तर:
यदि कुल माँग पूर्ण रोज़गार के स्तर से कम होती है तो वह अवस्फीतिक अंतराल की स्थिति होती है।

प्रश्न 32.
मौद्रिक नीति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मौद्रिक नीति से अभिप्राय किसी देश के केंद्रीय बैंक की उस नीति से है जिसका उपयोग अर्थव्यवस्था में मुद्रा तथा साख की पूर्ति के नियंत्रण के लिए किया जाता है।

प्रश्न 33.
बैंक दर से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
बैंक दर से हमारा अभिप्राय उस दर से है जिस पर केंद्रीय बैंक व्यावसायिक बैंक को वित्तीय सुविधाएँ अर्थात् ऋण प्रदान करता है।

प्रश्न 34.
राजकोषीय नीति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
राजकोषीय नीति से अभिप्राय सरकार की व्यय तथा कर नीति से है; जिसका उपयोग अर्थव्यवस्था में कुल माँग के संतुलन को ठीक करने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 35.
नकद रिज़र्व अनुपात (CRR) और साविधिक तरल अनुपात (SLR) में भेद कीजिए।
उत्तर:
नकद रिज़र्व अनुपात (CRR)-प्रत्येक व्यावसायिक बैंक को अपनी जमा राशियों का एक न्यूनतम अनुपात कानूनी त पर केंद्रीय बैंक के पास जमा करना होता है, उसे नकद रिजर्व अनपात (CRR) कहते हैं।

साविधिक तरल अनुपात (SLR)-प्रत्येक व्यावसायिक बैंक को अपनी कुल जमाओं का एक निश्चित अनुपात अपने पास तरल संपत्तियों (जैसे सरकारी प्रतिभूतियों) के रूप में रखना कानूनन अनिवार्य होता है, उसे साविधिक तरल अनुपात (SLR) कहते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक काल्पनिक उपभोग तालिका की सहायता से उपभोग फलन की अवधारणा समझाइए।
उत्तर:
केज के अनुसार, “उपभोग और आय के बीच के संबंध को उपभोग की प्रवृत्ति या उपभोग फलन कहते हैं।” उपभोग फलन आय और उपभोग के पारस्परिक संबंध को दर्शाता है। उपभोग फलन हमें बताता है कि आय का कौन-सा भाग उपभोग वस्तुओं की माँग पर व्यय किया जाता है। दूसरे शब्दों में, Consumption = f (Y).

प्रो० केज़ के अनुसार, “जैसे-जैसे किसी परिवार की आय बढ़ती जाती है, उसका उपभोग व्यय भी बढ़ता जाता है, परंतु उपभोग उस दर से नहीं बढ़ता, जिस दर से आय बढ़ती है।” दूसरे शब्दों में, जैसे-जैसे आय बढ़ती है, बचत भी बढ़ती है और फलस्वरूप उपभोग व्यय भी कम होता जाता है। हम उपभोग फलन को निम्नलिखित काल्पनिक तालिका के रूप में दिखा सकते हैं
उपभोग फलन तालिका

राष्ट्रीय आय
(करोड़ रुपए)
उपभाग
(करोड़ रुपए)
030
100100
200170
300240
400310
500380
600450

प्रश्न 2.
उपभोग की सीमांत प्रवृत्ति क्या है? अर्थव्यवस्था में आय स्तर को यह कैसे प्रभावित करती है?
उत्तर:
आय में वृद्धि का वह भाग जो उपभोग पर व्यय किया जाता है, सीमांत उपभोग प्रवृत्ति कहलाता है। सूत्र के रूप में,
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 2
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति एक अर्थव्यवस्था के उपभोग फलन को प्रदर्शित करती है। उपभोग कुल माँग का एक संघटक है। राष्ट्रीय आय का स्तर उस बिंदु पर निर्धारित होता है जहाँ कुल माँग और कुल पूर्ति बराबर हों। अगर कुल माँग कम है तो राष्ट्रीय आय का स्तर भी कम होगा। इसके अतिरिक्त, अर्थव्यवस्था में गुणक का मूल्य सीमांत उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करता है। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति जितनी अधिक होगी, गुणक का मूल्य भी उतना ही अधिक होगा।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 3.
बचत की परिभाषा दीजिए। एक बचत अनुसूची बनाइए तथा उस पर आधारित वक्र खींचिए।
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था में बचत, आय का वह भाग है जिसका उपभोग नहीं किया जाता। इस प्रकार बचत, आय और उपभोग का अंतर है अर्थात आय में से उपभोग घटाकर बचत प्राप्त की जा सकती है। सूत्र के रूप में,
बचत = आय – उपभोग
काल्पनिक बचत अनुसूची और इस पर आधारित रेखाचित्र निम्नलिखित प्रकार से बना सकते हैं-
काल्पनिक उपभोग और बचत अनुसूची
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 3

राष्ट्रीय आय (Y)उपभोग (C)बचत (S)
06-6
1013-3
20200
30273
40346
50419
604812
705515

उपर्युक्त अनुसूची के आधार पर हम संलग्न रेखाचित्र में बचत वक्र खींच सकते हैं।

प्रश्न 4.
‘निवेश गुणक’ की अवधारणा से क्या अभिप्राय है? सीमांत उपभोग प्रवृत्ति और निवेश गुणक के बीच संबंध की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
निवेश गुणक की अवधारणा से अभिप्राय उस सिद्धांत से है जिसके अनुसार निवेश में प्रारंभिक परिवर्तन से अर्थव्यवस्था की आय में गुणज परिवर्तन होता है। दूसरे शब्दों में, (निवेश) गुणक आय में होने वाले परिवर्तन तथा निवेश में होने वाले परिवर्तन का अनुपात है। सूत्र के रूप में,
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 4
गुणक का प्रत्यक्ष संबंध सीमांत उपभोग प्रवृत्ति से है। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति जितनी अधिक होगी, गुणक उतना ही अधिक होगा।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 5
हम एक उदाहरण द्वारा गुणक की प्रक्रिया समझा सकते हैं। मान लीजिए कि एक अर्थव्यवस्था में सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) 80% अर्थात् 0.8 है और नवीन निवेश 100 करोड़ रुपए है। निवेश में वृद्धि होने के फलस्वरूप अतिरिक्त वस्तुओं की माँग में वृद्धि होगी जिसकी पूर्ति के लिए उत्पादक अतिरिक्त उत्पादन क्षमता को बढ़ाएँगे। यह निवेश जिन लोगों की आय बनेगी, वे उसका 80% व्यय करेंगे। यह क्रम उस समय तक चलता रहेगा जब तक कि निवेश की पूरी राशि समाप्त नहीं हो जाती।

इस प्रकार 100 करोड़ रुपए के अतिरिक्त निवेश से अर्थव्यवस्था में 500 करोड़ रुपए की अतिरिक्त आय उत्पन्न होगी। इस प्रकार सीमांत उपभोग प्रवृत्ति के 0.8 पर गुणक 5 है। इसे हम इस प्रकार निकाल सकते हैं
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 6

प्रश्न 5.
समग्र माँग के कोई तीन संघटक बताइए।
उत्तर:
समग्र माँग के तीन संघटक निम्नलिखित हैं-
1. पारिवारिक उपभोगिक माँग-पारिवारिक उपभोगिक माँग का स्तर सबसे पहले परिवार की प्रबंध आय पर निर्भर करता है। उपभोग और आय के बीच संबंध को उपभोग प्रवृत्ति या उपभोग फलन कहते हैं।

2. निवेश माँग-निवेश का अर्थ पूँजी की नई संपत्ति बनाने पर होने वाले खर्च से है। किसी अर्थव्यवस्था में निवेश दो कारकों पर निर्भर करता है। (क) ब्याज की दर (ri) तथा (ख) निवेश की सीमांत कुशलता (MEI)।

3. सरकार द्वारा वस्तुओं और सेवाओं की खरीद-सरकार की यह माँग सार्वजनिक आवश्यकताओं; जैसे सड़कें, स्कूल, स्वास्थ्य, सिंचाई, बिजली आदि के लिए हो सकती है।

प्रश्न 6.
औसत उपभोग प्रवृत्ति और सीमांत उपभोग प्रवृत्ति में अंतर बताइए। इनमें से किसका मूल्य एक से अधिक हो सकता है और कब?
उत्तर:
औसत उपभोग प्रवृत्ति से अभिप्राय उस दर से है जो आय के साथ उपभोग के अनुपात को बताती है। इस प्रकार
औसत उपभोग प्रवृत्ति = \(\frac { उपभोग }{ आय }\)
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति से अभिप्राय उस दर से है जो उपभोग में परिवर्तन और आय में परिवर्तन का अनुपात बताती है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 7
आय में परिवर्तन औसत उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य एक से अधिक हो सकता है। यह उस समय हो सकता है जब निम्न आय स्तर पर लोगों का उपभोग उनकी आय से अधिक हो।

प्रश्न 7.
समष्टि अर्थशास्त्र में समग्र माँग और समग्र पूर्ति से क्या अभिप्राय है? जब ये दोनों बराबर हों तो क्या पूर्ण रोज़गार की स्थिति होगी?
उत्तर:
समग्र माँग से अभिप्राय किसी अर्थव्यवस्था में एक वर्ष की अवधि में अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं पर किए गए कुल व्यय के जोड़ से है। दूसरे शब्दों में, समग्र माँग से अभिप्राय उपभोग तथा निवेश पर किए गए कुल व्यय के जोड़ से है। इस प्रकार,
समग्र माँग = उपभोग + निवेश
समग्र पूर्ति से अभिप्राय किसी अर्थव्यवस्था में एक वर्ष की अवधि में उत्पादित अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य से है। दूसरे शब्दों में, समग्र पूर्ति से अभिप्राय उपभोग तथा बचत के जोड़ से है। इस प्रकार,
समग्र पूर्ति = उपभोग + बचत
एक अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय का संतुलन उस बिंदु पर होगा जहाँ समग्र माँग और समग्र पूर्ति बराबर होते हैं। संतुलन की इस स्थिति पर पूर्ण रोज़गार का होना आवश्यक नहीं है। संतुलन की यह
स्थिति पूर्ण रोज़गार के स्तर से पहले अथवा बाद में भी हो सकती है जिसके कारण अर्थव्यवस्था में अधिमाँग अथवा अभावी माँग की स्थिति हो जाती है।

प्रश्न 8.
एक सीधी पंक्ति का उपभोग वक्र खींचिए। प्रक्रिया समझाते हुए उसका एक बचत वक्र खींचिए। निम्नलिखित को रेखाचित्र पर दिखाइए
(i) आय का वह स्तर जिस पर उपभोग औसत प्रवृत्ति इकाई (1) के बराबर है।
(ii) आय का वह स्तर जिस पर औसत बचत प्रवृत्ति ऋणात्मक है।
उत्तर:
संलग्न रेखाचित्र उपभोग वक्र और बचत वक्र को दर्शाता है-
संलग्न रेखाचित्र में, CC उपभोग वक्र है और OY आय वक्र है। यह एक तथ्य है जो कि बचत आय और उपभोग का अंतर है। जब आय शून्य है तो उपभोग OC के बराबर है और बचत – OA होगी। इसी प्रकार -A बचत वक्र का प्रारंभिक बिंदु होगा। E बिंदु पर आय और उपभोग एक बराबर हैं और बचत शून्य है। इस प्रकार बचत वक्र का एक बिंदु B भी होगा। -A और B बिंदु को मिलाते हुए जो वक्र खींची जाएगी वह बचत वक्र होगी। इस प्रकार -AS बचत वक्र होगी।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 8
बचत वक्र पर OB आय स्तर पर औसत उपभोग प्रवृत्ति एक के बराबर है। -AS बचत वक्र पर OY आय स्तर पर औसत बचत प्रवृत्ति ऋणात्मक है।

प्रश्न 9.
एक अर्थव्यवस्था के लिए सीधी रेखा बचत वक्र एक रेखाचित्र पर खींचिए। इसके आधार पर उपभोग वक्र बनाइए और इसके बनाने की विधि बताइए। उपभोग वक्र पर एक ऐसा बिंदु दर्शाइए जिस पर औसत उपभोग प्रवृत्ति 1 के बराबर हो।
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था में बचत, आय का वह भाग है जिसका उपभोग नहीं किया जाता। इस प्रकार बचत, आय और उपभोग का अंतर है अर्थात् आय में से उपभोग घटाकर बचत प्राप्त की जा सकती है।
सूत्र के रूप में,
बचंत = आय – उपभोग
आय वक्र उद्गम पर 45° का कोण बनाता है। आय वक्र और बचत वक्र की दूरी से उपभोग को मापा जा सकता है। इसका अर्थ यह है कि जब बचत ऋणात्मक है तो उपभोग वक्र 45° वक्र के ऊपर होगा। जहाँ उपभोग वक्र और आय वक्र एक-दूसरे को काटते हैं तो आय और उपभोग वहाँ बराबर होंगे और बचत शून्य होगी। 1 के बराबर होगी। संलग्न रेखाचित्र में बचत वक्र, आय वक्र और उपभोग वक्र दर्शाए गए हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 9
संलग्न रेखाचित्र में SS1 बचत वक्र है और OY आय वक्र है जो 45° कोण वक्र है। चूँकि OS उद्गम पर ऋणात्मक बचत प्रदर्शित करती बचत है, उपभोग वक्र का उद्गम C बिंदु होगा क्योंकि OC = OS, A1 बिंदु पर बचत शून्य है। C और A1 बिंदुओं को जोड़ते हुए CC1 उपभोग वक्र खींचा जा सकता है।

A1 बिंदु पर औसत उपभोग प्रवृत्ति 1 के बराबर होगी क्योंकि इस बिंदु पर आय और उपभोग बराबर होते हैं।

प्रश्न 10.
उपभोग + निवेश (C+I) वक्र की सहायता से आय के संतुलन स्तर की व्याख्या कीजिए। यदि नियोजित बचत नियोजित निवेश से अधिक हो तो किस प्रकार के समायोजन इन दोनों को बराबर कर देंगे?
अथवा
एक अर्थव्यवस्था को संतुलन की स्थिति में लाने के लिए क्या परिवर्तन होंगे, यदि नियोजित बचत नियोजित निवेश से अधिक हो?
अथवा
उपभोग + निवेश (C + I) दृष्टिकोण द्वारा आय के संतुलन स्तर का निर्धारण समझाइए। रेखाचित्र का प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
उपभोग + निवेश वक्र का तात्पर्य समग्र अथवा कुल माँग वक्र से है। एक अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय का संतुलन वहाँ निर्धारित होता है जहाँ कुल माँग कुल पूर्ति के बराबर हो। अगर कुल माँग कुल पूर्ति से कम है तो राष्ट्रीय उत्पादन और आय में कमी होने की प्रवृत्ति पाई जाएगी। अगर कुल माँग कुल पूर्ति से अधिक है तो राष्ट्रीय आय और उत्पादन में बढ़ने की प्रवृत्ति पाई जाएगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 10
संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि राष्ट्रीय आय का संतुलन बिंदु E है और इस संतुलन बिंदु पर राष्ट्रीय आय OY होगी।

यदि नियोजित बचत नियोजित निवेश से अधिक है तो इसका अर्थ यह हुआ कि परिवार इतना उपभोग नहीं कर रहे हैं जितना उन्हें करना चाहिए, क्योंकि अधिक बचत से उपभोग कम होता है। कम उपभोग का परिणाम यह होगा कि विक्रेताओं के पास बिना बिके माल का स्टॉक राष्ट्रीय आय एकत्रित होने लगेगा, क्योंकि माँग पूर्ति की तुलना में कम है। बिना बिके माल के स्टॉक में वृद्धि से उत्पादक उत्पादन (तथा रोज़गार) में कमी करेंगे। यह प्रक्रिया उस समय तक चलती रहेगी जब तक कि नियोजित बचत नियोजित निवेश के बराबर नहीं हो जाती।

प्रश्न 11.
बचत और निवेश वक्रों की सहायता से आय के संतुलन स्तर की व्याख्या कीजिए। यदि बचत नियोजित निवेश से अधिक हो तो किस प्रकार के परिवर्तन इन दोनों में समानता लाएँगे?
अथवा
एक अर्थव्यवस्था को संतुलन की स्थिति में लाने के लिए क्या परिवर्तन होंगे, यदि नियोजित बचत नियोजित निवेश से कम हो,
अथवा
बचत-निवेश दृष्टिकोण द्वारा आय के संतुलन स्तर का निर्धारण समझाइए। रेखाचित्र का प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आय का संतुलन स्तर उस बिंदु पर निर्धारित होता है जहाँ बचत और निवेश बराबर होते हैं। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शित कर सकते हैं।
संलग्न रेखाचित्र में SS बचत वक्र है और II निवेश वक्र है। ये दोनों वक्र एक-दूसरे को A बिंदु पर काटते हैं। A बिंदु पर राष्ट्रीय आय का संतुलन है जहाँ राष्ट्रीय आय OY होगी।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 11
यदि बचत नियोजित निवेश से अधिक है तो इसका यह प्रभाव होगा कि परिवार उपभोग पर कम व्यय कर रहे हैं और उनकी बचत निवेश से अधिक होगी। इसके फलस्वरूप व्यापारियों के पास वस्तुओं का बिना बिका हुआ स्टॉक जमा हो जाएगा। इस राष्ट्रीय आय + स्टॉक को कम करने के लिए विभिन्न फर्मे अपने उत्पादन में कमी करेंगी; जिससे रोज़गार में भी कमी आएगी। यह प्रक्रिया उस समय तक चलती रहेगी जब तक कि बचत और नियोजित निवेश बराबर नहीं हो जाते।

प्रश्न 12.
बचत और निवेश सदैव बराबर होते हैं। विवेचना कीजिए।
उत्तर:
बचत और निवेश दोनों ही दो प्रकार के होते हैं-

  • नियोजित
  • वास्तविक।

वास्तविक बचत और वास्तविक निवेश हमेशा बराबर होते हैं, लेकिन ऐच्छिक बचत और ऐच्छिक निवेश केवल तभी बराबर होंगे जब अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय संतुलन की स्थिति में होगी क्योंकि संतुलन स्थिति में कोई भी अनैच्छिक या अनियोजित निवेश नहीं होता। बचत और निवेश की समानता को इस प्रकार भी व्यक्त किया जा सकता है-
Y = C + S
और Y = C + I
अतः S = I

प्रश्न 13.
समझाइए कि किस प्रकार समग्र माँग और समग्र पूर्ति पूर्ण रोज़गार स्तर से कम स्तर पर संतुलन में हो सकते हैं।
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय का संतुलन उस बिंदु पर निर्धारित होता है जहाँ समग्र माँग (C+ I) समग्र पूर्ति (C+S) के बराबर हो। लेकिन इस स्थिति का पूर्ण रोज़गार स्तर पर होना आवश्यक नहीं है। राष्ट्रीय आय का संतुलन पूर्ण रोज़गार स्तर से कम स्तर पर भी हो सकता है। ऐसा उस समय संभव है जब समग्र माँग समग्र पूर्ति से कम हो। इस स्थिति को अभावी माँग या अवस्फीतिक अंतराल कहते हैं। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 12
संलग्न रेखाचित्रं में हम देखते हैं कि समग्र माँग और समग्र पूर्ति राष्ट्रीय आय पूर्ण रोज़गार स्तर से कम स्तर पर संतुलन में हो सकते हैं।

प्रश्न 14.
स्फीतिक अंतराल व अवस्फीतिक अंतराल के बीच भेद कीजिए।
उत्तर:
यदि आय का संतुलन पूर्ण रोज़गार स्तर के बाद निर्धारित होता है तो कुल माँग और कुल पूर्ति के बीच के अंतर को स्फीतिक अंतराल कहते हैं। सूत्र के रूप में-
स्फीतिक अंतराल = नियोजित कुल व्यय – संतुलन स्तर का व्यय
यदि आय का संतुलन पूर्ण रोज़गार स्तर से पहले निर्धारित होता है तो कुल माँग और कुल पूर्ति के बीच के अंतर को अवस्फीतिक अंतराल कहते हैं। सूत्र के रूप में-
अवस्फीतिक अंतराल = संतुलन स्तर का व्यय – नियोजित कुल व्यय
स्फीतिक अंतराल के अंतर्गत अर्थव्यवस्था में अधिमाँग की स्थिति पाई जाती है अर्थात् कुल माँग कुल पूर्ति से अधिक होती है जिससे कीमतें बढ़ने लगती हैं। इसके विपरीत, अवस्फीतिक अंतराल के अंतर्गत अर्थव्यवस्था में अभावी माँग की स्थिति पाई जाती है अर्थात् कुल पूर्ति कुल माँग से अधिक होती है जिससे कीमतें घटने लगती हैं।

प्रश्न 15.
अवस्फीतिक अंतराल अथवा अभावी माँग की स्थिति को ठीक करने के चार मौद्रिक नीति के उपाय बताइए।
उत्तर:
अवस्फीतिक अंतराल अथवा अभावी माँग की स्थिति को ठीक करने के मौद्रिक नीति के चार उपाय निम्नलिखित हैं-

  1. बैंक दर-अभावी माँग में केंद्रीय बैंक, बैंक दर में कमी करेगा जिससे व्यावसायिक बैंकों की ब्याज दर कम हो जाएगी और बैंक उद्यमियों को सस्ती दर पर ऋण दे सकेंगे।
  2. खुली बाज़ार प्रक्रिया-इस उपाय के अंतर्गत केंद्रीय बैंक व्यावसायिक बैंकों से सरकारी प्रतिभूतियाँ बड़े पैमाने पर क्रय करता है, इससे व्यावसायिक बैंकों की ऋण देय क्षमता बढ़ जाती है।
  3. सदस्य बैंकों के रिज़र्व अनुपात में परिवर्तन केंद्रीय बैंक सदस्य बैंकों के रिज़र्व अनुपात में कमी करेगा जिससे बैंकों की ऋण देय क्षमता अधिक हो जाएगी।
  4. सीमांत अनिवार्यताओं में परिवर्तन-केंद्रीय बैंक सदस्यं बैंकों को यह आदेश देगा कि वे अपनी सीमांत अनिवार्यता कम कर दें, इससे लोगों को अधिक ऋण लेने में सुविधा होगी।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 16.
अवस्फीतिक अंतराल या अभावी माँग की स्थिति को ठीक करने के चार राजकोषीय उपाय बताइए।
उत्तर:
अवस्फीति अंतराल अथवा अभावी माँग की स्थिति को ठीक करने के लिए राजकोषीय नीति के निम्नलिखित चार उपाय अपनाए जा सकते हैं-
1. सार्वजनिक व्यय में वृद्धि-अभावी माँग को दूर करने के लिए सरकार को सावजनिक व्यय में वृद्धि करनी होगी ताकि मुद्रा की पूर्ति बढ़ जाए। सरकार सड़कें बनाने, विद्युतीकरण, जन-स्वास्थ्य, शिक्षा आदि पर अधिक व्यय कर सकती है।

2. करों में कमी देश में लोगों के पास क्रय-शक्ति बढ़ाने के लिए सरकार कर की दरों में कमी कर सकती है जिससे लोग अधिक मात्रा में क्रय करें और माँग में वृद्धि हो।

3. सार्वजनिक ऋणों में कमी-सरकार को लोगों के पास क्रय-शक्ति बढ़ाने के लिए सार्वजनिक ऋणों में कमी करनी चाहिए ताकि लोगों की क्रय-शक्ति अधिक हो और कुल माँग में वृद्धि हो।

4. घाटे की वित्त व्यवस्था सरकार को घाटे का बजट बनाना चाहिए और नए नोट छापकर दीर्घकालीन परियोजनाओं पर व्यय करना चाहिए।

प्रश्न 17.
ऐसे किन्हीं दो उपायों का वर्णन करें जिनके द्वारा एक केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीतिक अंतराल को कम करने का प्रयत्न कर सकता हैं।
उत्तर:
केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीतिक अंतराल को निम्नलिखित उपायों द्वारा कम करने का प्रयत्न कर सकता है-
1. सदस्य बैंकों के रिज़र्व अनुपात में परिवर्तन कानून के अंतर्गत सभी व्यावसायिक बैंकों को अपनी माँग जमा दायित्व का न्यूनतम प्रतिशत केंद्रीय बैंक के पास नकदी के रूप में जमा रखना होता है। इस अनुपात को बढ़ाकर व्यावसायिक बैंकों के नकदी के साधनों को कम किया जा सकता है और बैंकों को अपनी ऋण को कम करने के लिए मजबूर कि

2. कटौती की दर में परिवर्तन केंद्रीय बैंक जैसेकि ऋण थोक के व्यापारी जिस पर व्यावसायिक बैंकों जैसेकि परचून में ऋण का व्यापार करने वालों को उधार देते हैं, उसे कटौती दर या बैंक दर कहते हैं। सदस्य बैंक दो प्रकार से केंद्रीय बैंक से ऋण ले सकते हैं आरक्षित प्रोमिसरी नोट (आई.ओ.यू.) देकर या ड्राफ्ट, हुंडियाँ या ग्राहकों के आरक्षित प्रोमिसरी नोट की पुनः कटौती करके। व्यावसायिक बैंकों को ऋण की आवश्यकता अपने घटते हुए रिज़र्व को पूरा करने के लिए करनी पड़ती है। कटौती की दर बढ़ाकर केंद्रीय बैंक व्यावसायिक बैंकों द्वारा ऋण की लागत को सीधे से तथा ब्याज की दर और ऋण की स्थिति को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित ‘ कर सकता है।

प्रश्न 18.
उपभोग फलन या प्रवृत्ति को बढ़ाने के कोई चार उपाय बताएँ।
उत्तर:
उपभोग फलन या प्रवृत्ति को बढ़ाने के कोई चार उपाय निम्नलिखित हैं-
1. आय का पुनर्वितरण-उपभोग प्रवृत्ति को बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय आय का पुनर्वितरण निर्धन लोगों के पक्ष में होना चाहिए। मोग प्रवत्ति धनी वर्ग की उपभोग प्रवत्ति से अधिक होती है, इसलिए यदि आय का पनर्वितरण निर्धन लोगों के पक्ष में किया जाए अर्थात् अमीरों की कुछ आय गरीबों को प्राप्त होने लगे तो स्वाभाविक है कि उपभोग प्रवृत्ति बढ़ जाएगी।

2. सामाजिक सुरक्षा-लोगों को सामाजिक सुरक्षा की सुविधाएँ प्रदान करने से भी उपभोग प्रवृत्ति को बढ़ाया जा सकता है। जब सरकार लोगों को बेरोज़गारी भत्ते, पेंशन तथा स्वास्थ्य सुविधाएँ इत्यादि प्रदान करती है तो लोगों में असुरक्षा का भय समाप्त हो जाता है। फलस्वरूप लोगों की बचत करने की प्रवृत्ति कम हो जाती है तथा उपभोग प्रवृत्ति बढ़ जाती है।।

3. साख सुविधाएँ साख सुविधाओं के उपलब्ध होने पर लोग अधिक मात्रा में कार, स्कूटर, टेलीविज़न, फ्रिज आदि खरीदेंगे। परिणामस्वरूप उपभोग प्रवृत्ति में वृद्धि होगी।

4. नगरीकरण-ग्रामीण लोगों में नगरीकरण की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करके उपभोग प्रवृत्ति को बढ़ाया जा सकता है। यह देखने में आया है कि शहरों में रहने वाले लोगों की उपभोग प्रवृत्ति ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की उपभोग प्रवृत्ति से अधिक होती है। अतः यदि नगरीकरण द्वारा ग्रामीण जनता के कुछ भाग- को नगरों में बसाने का प्रयत्न किया जाए तो उपभोग प्रवृत्ति बढ़ जाती है।

प्रश्न 19.
निवेश को प्रभावित करने वाले किन्हीं चार कारकों या तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
निवेश को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं
1. विदेशी व्यापार-किसी देश के विदेशी व्यापार का भी निवेश पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यदि देश में विदेशी व्यापार के विस्तार की सम्भावना बढ़ जाती है, तो निवेश पर इसका अनुकूल प्रभाव पड़ता है तथा निवेश में वृद्धि होती है। इसके विपरीत विदेशी व्यापार की मात्रा के कम हो जाने का निवेश की मात्रा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है अर्थात् निवेश कम मात्रा में किया जाता है।

2. राजनीतिक वातावरण-यदि देश का राजनीतिक वातावरण शान्तिपूर्ण है तथा देश में आन्तरिक व बाहरी शान्ति एवं स्थिरता है तो इसका निवेश पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है तथा निवेश में वृद्धि होती है। इसके विपरीत यदि देश में अशान्ति और अस्थिरता का वातावरण है, कानून व्यवस्था ठीक नहीं है, विदेशी आक्रमण का भय बना हुआ है तो इसका निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा निवेश कम हो जाता है।

3. व्यावसायिक आशाएँ-निवेश प्रेरणा व्यावसायिक आशाओं पर भी निर्भर करती है। यदि निवेशकर्ता भविष्य के सम्बन्ध में आशावादी (Optimistic) होंगे तो निवेश में वृद्धि होगी। इसके विपरीत यदि निवेशकर्ता निराशावादी (Pessimistic) होंगे तो निवेश की मात्रा कम होगी।

4. पूँजी का वर्तमान स्टॉक-किसी अर्थव्यवस्था में पूँजी के वर्तमान स्टॉक का भी निवेश पर प्रभाव पड़ता है। यदि पूँजीगत वस्तुओं का स्टॉक बहुत अधिक है तो अतिरिक्त निवेश नहीं किया जाएगा। यदि वर्तमान पूँजीगत स्टॉक को पूर्ण रूप से प्रयोग कर लिया गया है, परन्तु माँग में लगातार वृद्धि हो रही है, तो नए निवेश की सम्भावना अधिक होगी।

प्रश्न 20.
प्रेरित निवेश तथा स्वायत्त/स्वतंत्र निवेश में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रेरित निवेश तथा स्वायत्त निवेश में मुख्य अन्तर निम्नलिखित हैं-

प्रेरित निवेशस्वायत्त निवेश
1. यह निवेश आय प्रेरित होता है।1. यह निवेश आय प्रेरित नहीं होता।
2. इस निवेश का मुख्य उद्देश्य अधिकतम लाभ प्राप्त करना होता है।2. इस निवेश का मुख्य उद्देश्य अधिकतम सामाजिक कल्याण होता है।
3. प्रेरित निवेश प्रायः निजी क्षेत्र में किया जाता है, इसे निजी निवेश भी कहते हैं।3. स्वायत्त निवेश प्रायः सार्वजनिक क्षेत्र में सरकार द्वारा किया जाता है, इसे सार्वजनिक निवेश भी कहते हैं।
4. प्रेरित निवेश का स्तर केवल लाभप्रदता की मात्रा से प्रभावित होता है।4. स्वायत्त निवेश का स्तर राजनीतिक, सामाजिक तथा अन्य कारणों से प्रभावित होता है।

प्रश्न 21.
निजी निवेश तथा सार्वजनिक निवेश में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निजी निवेश-निजी निवेश से अभिप्राय उस निवेश से है जो निजी व्यक्ति लाभ कमाने के उद्देश्य से करते हैं। इस प्रकार का निवेश केज के अनुसार मुख्यतः दो तत्त्वों पर निर्भर करता है (i) पूँजी की सीमान्त उत्पादकता (MEC) तथा (ii) ब्याज की दर (Rate of Interest)। यदि पूँजी की सीमान्त उत्पादकता (MEC) ब्याज की दर (r) से अधिक है अर्थात् (MEC>r), तो निजी निवेश अधिक किया जाएगा। इसके विपरीत, यदि MEC, ब्याज की दर से कम है अर्थात् (MEC <r) तो निजी निवेश नहीं किया जाएगा। इस प्रकार का निवेश, प्रेरित निवेश (Induced Investment) होता है।

सार्वजनिक निवेश सार्वजनिक निवेश वह निवेश है जो देश की केन्द्रीय, प्रान्तीय या स्थानीय सरकारों के द्वारा किया जाता है। यह निवेश लोगों के कल्याण, देश की सुरक्षा तथा आर्थिक विकास के लिए किया जाता है। यह निवेश लाभ के उद्देश्य से नहीं किया जाता। अतः यह लाभ-सापेक्ष (Profit Elastic) नहीं होता। यह निवेश साधारणतया स्वतंत्र निवेश होता है। स्कूलों, कॉलेजों, रेलों, सड़कों, अस्पतालों, नहरों तथा बाँधों आदि पर किया जाने वाला निवेश इसी श्रेणी में आता है।

प्रश्न 22.
रेखाचित्र की सहायता से अवस्फीतिक अंतराल (Deflationary Gap) की अवधारणा समझाइए।
उत्तर:
पूर्ण रोज़गार देने वाली समग्र पूर्ति से, समग्र माँग जितनी कम होती है, उसे अवस्फीतिक अंतराल कहते हैं। यह समग्र माँग में पूर्ण रोजगार कमी का माप है। इसे वैकल्पिक रूप में, इस प्रकार परिभाषित कर संतुलन बिंदु सकते हैं। “अवस्फीतिक अंतराल, वास्तविक समग्र माँग और पूर्ण रोज़गार संतुलन के लिए वांछनीय समग्र माँग का अंतर होता है। यह वास्तविक समग्र माँग के अभाव का माप है।” इसे संलग्न रेखाचित्र में EB के रूप में दिखाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 13
रेखाचित्र में E पूर्ण रोज़गार संतुलन बिंदु है जहाँ समग्र माँग EM, पूर्ण रोज़गार देने वाली समग्र पूर्ति OM के बराबर है। मान लीजिए नई माँग BM उत्पादन स्तर के बराबर है जो पूर्ण रोज़गार संतुलन स्तर के उत्पादन EM(OM) से कम है। दोनों में अंतर EB(EM – BM) अवस्फीतिक अंतराल है। इस प्रकार EB अवस्फीतिक अंतराल और अभावी माँग का माप है। ध्यान रहे अभावी माँग मंदी और बेरोजगारी की स्थिति पैदा करती है।

प्रश्न 23.
क्या एक अर्थव्यवस्था अल्प रोज स्थिति में हो सकती है? समझाइए।
उत्तर:
आय व रोज़गार का संतुलन स्तर उस बिंदु पर होता है जहाँ कुल माँग और कुल पूर्ति बराबर होती है। संतुलन स्तर के पूर्ण रोजगार स्तर पर निर्धारण में कुल माँग महत्त्वपूर्ण घटक है। कुल माँग उपभोग और वास्तविक स्तर पर निवेश का योग है। संतुलन स्तर पूर्ण रोज़गार स्तर से कम हो सकता है जहाँ अल्प रोज़गार होता है। अल्प रोज़गार संतुलन की स्थिति उस समय उत्पन्न होती है, जब अभावी माँग अर्थात् अवस्फीतिक अंतराल हो। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 14
संलग्न रेखाचित्र में F पूर्ण रोज़गार स्तर है जहाँ राष्ट्रीय आय OYf होनी चाहिए, परंतु अभावी माँग के कारण आय का वास्तविक राष्ट्रीय आय  संतुलन स्तर E पर है जहाँ राष्ट्रीय आय OY है। पूर्ण रोज़गार संतुलन पर पहुँचने के लिए निवेश व्यय में FG की वृद्धि करनी होगी।

प्रश्न 24.
राजकोषीय नीति तथा मौद्रिक नीति में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजकोषीय नीति तथा मौद्रिक नीति में निम्नलिखित अंतर हैं-

राजकोषीय नीतिमौद्रिक नीति
1. इस नीति का संबंध सार्वजनिक आय, व्यय, ऋण एवं बजट से होता है।1. इस नीति का संबंध मुद्रा की पूर्ति तथा साख की उपलब्धता एवं लागत से होता है।
2. इसका निर्धारण प्रायः वित्त मंत्रालय करता है।2. इसका निर्धारण केंद्रीय बैंक करता है।
3. इस नीति का अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।3. इसका प्रमुख रूप से उत्पादक क्षेत्र पर प्रभाव पड़ता है।
4. इस नीति के मुख्य संघटक कर, सार्वजनिक व्यय, ऋण, घाटे की वित्त व्यवस्था आदि हैं।4. इस नीति के मुख्य संघटक बैंक दर, खुली बाज़ार प्रक्रियाएँ, तरलता अनुपात आदि हैं।

प्रश्न 25.
‘से’ के बाजार नियम की कोई पाँच मान्यताएँ बताएँ।
उत्तर:
‘से’ के बाज़ार नियम की पाँच मान्यताएँ निम्नलिखित हैं
1. पूर्ण प्रतियोगिता की मान्यता बाज़ार में पूर्ण प्रतियोगिता की अवस्था पाई जाती है जिसमें माँग तथा पूर्ति की शक्तियों के द्वारा सन्तुलन स्थापित होता है।

2. लोचशील कीमतें, मज़दूरी तथा ब्याज-कीमतें, मज़दूरी तथा ब्याज पूर्णतया लोचशील हैं। यदि माँग पूर्ति से कम है तो कीमतें कम हो जाएँगी जिससे माँग तथा पूर्ति में फिर से सन्तुलन आ जाएगा। यदि देश में बेरोज़गारी है तो मज़दूरी कम हो जाएगी जिससे रोज़गार बढ़ जाएगा। इसी प्रकार, यदि निवेश तथा बचत में असन्तुलन है तो ब्याज की दर में परिवर्तन होने से निवेश तथा बचत में समानता आ जाएगी।

3. मुद्रा केवल विनिमय का माध्यम है-मुद्रा केवल एक आवरण (Veil) है जिसका अर्थ है कि मुद्रा द्वारा केवल वस्तुओं का लेन-देन ही होता है। मुद्रा धन के संचय के लिए नहीं होती।

4. धन-संचय का न होना-लोग जो कुछ कमाते हैं, वह समस्त मुद्रा व्यय कर दी जाती है अर्थात् किसी प्रकार का संचय (Hoarding) नहीं किया जाता। मुद्रा को या तो उपभोग पदार्थों पर खर्च कर दिया जाता है या पूँजी पदार्थों पर। यही कारण है कि बचत तथा निवेश एक-समान हो जाते हैं।

5. राज्य के तटस्थ होने की नीति-आर्थिक क्षेत्र में राज्य की ओर से किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। अर्थव्यवस्था में माँग तथा पूर्ति की शक्तियों द्वारा स्वयं ही संतुलन (Automatic Adjustment) स्थापित हो जाता है।

प्रश्न 26.
उपभोग फलन को तालिका एवं रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
उपभोग फलन या उपभोग प्रवृत्ति की धारणा को निम्नलिखित तालिका की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है दी गई तालिका से स्पष्ट होता है कि आरम्भ में जब आय शून्य है तो लोगों का उपभोग 10 करोड़ रुपए है। लोग यह उपभोग व्यय पिछली बचतों (Past Savings) के द्वारा या उधार लेकर करते हैं। जब आय बढ़कर 100 करोड़ रुपए हो जाती है, तो उपभोग व्यय भी बढ़कर 100 करोड़ रुपए हो जाता है। यहाँ बचत शुन्य होती है और जब आय बढ़कर क्रमशः 200, रुपए हो जाती है तो उपभोग व्यय बढ़कर क्रमशः 190, 280, 370 व 460 करोड़ रुपए हो जाता है। तालिका से यह भी स्पष्ट होता है कि जैसे-जैसे आय बढ़ रही है, उपभोग व्यय तथा बचत भी बढ़ रहे हैं, परन्तु उपभोग व्यय में होने वाली वृद्धि आय में होने वाली वृद्धि की तुलना में कम होती है।

आयउपशायबचत
010-10
1001000
200190+10
300280+20
400370+30
500460+40

रेखाचित्र-उपभोग फलन अथवा उपभोग प्रवृत्ति की धारणा को संलग्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया गया है चित्र में OX-अक्ष पर आय तथा OY-अक्ष पर उपभोग और बचत को दर्शाया गया है। चित्र में 45° वाली Y = C + S रेखा आय तथा उपभोग + बचत की समानता को प्रकट करती है। चित्र में CC रेखा उपभोग वक्र है। चित्र से स्पष्ट है कि जब आय शून्य है तो उपभोग व्यय OC है। आय के OY तक बढ़ जाने से उपभोग व्यय आय के समान है तथा इस बिन्दु पर बचत शून्य है।

OY के बाद आय में वृद्धि से उपभोग व्यय अवश्य बढ़ता है, परन्तु उपभोग व्यय में वृद्धि आय में वृद्धि से कम होती है। चित्र में SS वक्र बचत रेखा है जो कि यह स्पष्ट करती है कि शून्य आय के स्तर पर बचत ऋणात्मक है। आय के OY स्तर पर बचत शून्य है तथा इसके बाद आय के बढ़ने पर बचत बढ़ती जाती है; जैसे आय के OY1 स्तर पर उपभोग C1Y1 है और बचत S1 C1 है। इस प्रकार CC उपभोग वक्र की ढलान से स्पष्ट है कि जैसे-जैसे आय में वृद्धि आय होती है, उपभोग व्यय भी बढ़ता है, परन्तु उपभोग व्यय में वृद्धि आय की तुलना में कम दर से होती है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 15

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उपभोग प्रवृत्ति को परिभाषित कीजिए। इसकी मुख्य विशेषताएँ बताएँ।
अथवा
उपभोग फलन से क्या अभिप्राय है? उपभोग फलन के मुख्य लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपभोग फलन/उपभोग प्रकृति का अर्थ एवं परिभाषाएँ-उपभोग फलन या उपभोग प्रवृत्ति एक ऐसी तालिका है जो आय के विभिन्न स्तरों पर उपभोग के विभिन्न स्तरों को व्यक्त करती है अर्थात् उपभोग फलन या उपभोग प्रवृत्ति राष्ट्रीय आय तथा उपभोग व्यय के बीच कार्यात्मक सम्बन्ध (Functional Relationship) व्यक्त करती है। इससे यह पता चलता है कि आय के विभिन्न स्तरों पर उपभोग व्यय के कौन-कौन से स्तर हैं।

उपभोग (Consumption) और उपभोग प्रवृत्ति (Propensity to Consume) में अन्तर होता है। उपभोग का अर्थ यह है कि किसी देश की समस्त आय में से कल कितना उपभोग पर खर्च किया जाता है। मान लीजिए कि एक देश की राष्ट्रीय आय 100 करोड़ रुपए है और इसमें से 80 करोड़ रुपए वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने पर खर्च कर दिए जाते हैं तो 80 करोड़ रुपए उपभोग कहलाएगा, जबकि उपभोग प्रवृत्ति एक ऐसी अनुसूची है जो यह स्पष्ट करती है कि आय के बदलने के साथ-साथ उपभोग कैसे बदलता है?

यदि उपभोग को अक्षर ‘C’ द्वारा और आय को अक्षर ‘Y’ द्वारा दर्शाया जाए तो उपभोग प्रवृत्ति या उपभोग फलन कुल उपयोग व्यय तथा कुल राष्ट्रीय आय में फलनात्मक सम्बन्ध को व्यक्त करती है। समीकरण के रूप में,
c = f(Y)
इसे पढ़ सकते हैं कि उपभोग (C), आय (Y) का फलन है। समीकरण में (1) उपभोग तथा आय के कार्यात्मक सम्बन्ध को दर्शाता है और चूँकि उपभोग फलन या उपभोग प्रवृत्ति भी राष्ट्रीय आय तथा उपभोग व्यय के फलनात्मक सम्बन्ध को व्यक्त करती है। इसलिए हम (f) को ही उपभोग प्रवृत्ति (Propensity to Consume) कह सकते हैं। यदि हमें लोगों की उपभोग प्रवृत्ति का पता लग जाए तो हमें ज्ञात हो जाता है कि एक दी हुई आय में से देशवासी उपभोग पर कितना व्यय करेंगे। संक्षेप में, उपभोग प्रवृत्ति, उपभोग तथा आय के फलनात्मक सम्बन्ध को प्रकट करती है।
1. डिलर्ड के अनुसार, “आय के विभिन्न स्तरों पर, उपभोग की विभिन्न मात्राओं को प्रकट करने वाली अनुसूची को उपभोग प्रवृत्ति कहा जाता है।”

2. लिप्सी के अनुसार, “उपभोग फलन उपभोग व्यय और आय के सम्बन्ध में वक्तव्य से अधिक कुछ भी नहीं है।”

3. पीटरसन के अनुसार, “उपभोग फलन की परिभाषा एक अनुसूची के रूप में दी जा सकती है जो कि विभिन्न आय-स्तरों पर उपभोग पदार्थों और सेवाओं पर किए गए व्यय की मात्रा को बताती है।” ।

उपभोग फलन या उपभोग प्रवृत्ति की विशेषताएँ-उपभोग प्रवृत्ति की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. उपभोग प्रवृत्ति अल्पकाल में स्थिर रहती है चूँकि उपभोग प्रवृत्ति एक मनोवैज्ञानिक धारणा (Psychological Concept) है, इस पर कई भावगत तत्त्वों (Subjective Factors); जैसे मनुष्यों की आदतों, रुचि, फैशन आदि का प्रभाव पड़ता है। अल्पकाल में ये तत्त्व स्थिर रहते हैं। इसलिए अल्पकाल में उपभोग प्रवृत्ति भी स्थिर रहती है।

2. गरीब वर्ग की उपभोग प्रवृत्ति, अमीर वर्ग की उपभोग प्रवृत्ति से अधिक होती है इसका कारण यह है कि निर्धन लोगों की आय कम होने के कारण कुछ आवश्यकताएँ असन्तुष्ट रहती हैं और जब आय बढ़ती है तो वे तुरन्त ही अपनी असन्तुष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यय कर देते हैं। इसके विपरीत अमीर लोगों की आवश्यकताएँ पहले ही तृप्त होती हैं। अतः जब धनी लोगों की आय बढ़ती है तो वह उपभोग पर खर्च न होकर बचत का रूप धारण कर लेती है।

3. अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन उपभोग फलन-अल्पकाल में उपभोग व्यय स्वतन्त्र उपभोग (Autonomous Consumption) प्रकार का होता है। स्वतन्त्र उपभोग से अभिप्राय, उस न्यूनतम उपभोग व्यय से है जो एक व्यक्ति को अवश्य करना पड़ता है, चाहे उसकी आर्य शून्य ही क्यों न हो। जबकि दीर्घकालीन उपभोग व्यय स्वतन्त्र उपभोग नहीं होता। इसका कारण यह है कि दीर्घकाल में कोई भी व्यक्ति बिना आय के खर्च नहीं कर सकता।

4. आय और रोजगार उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करते हैं-आय और रोज़गार का उपभोग प्रवृत्ति से सीधा सम्बन्ध है। उपभोग प्रवृत्ति के बढ़ने पर कुल उपभोग व्यय में वृद्धि होती है, फलस्वरूप आय तथा रोज़गार में वृद्धि होती है। इसी प्रकार, उपभोग प्रवृत्ति के कम होने से कुल उपभोग व्यय में कमी होने के कारण आय और रोज़गार में कमी आती है। अतः देश में रोज़गार या राष्ट्रीय आय को बढ़ाने के लिए ऐसे कदम उठाए जाने चाहिएँ जिनसे देश में उपभोग प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिले।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 2.
निवेश गणक की अवधारणा स्पष्ट कीजिए। निवेश की प्रक्रिया या कार्यशीलता को तालिका की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
निवेश गुणक की अवधारणा हम जानते हैं कि निवेश से उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है जिससे रोज़गार, उत्पादन व आय का स्तर बढ़ जाता है अर्थात् निवेश में परिवर्तन, आय में परिवर्तन लाता है। आय में यह परिवर्तन, निवेश में परिवर्तन का कई गुना (या गुणक) होता है। अतः अर्थव्यवस्था में जितनी मात्रा में निवेश बढ़ाया जाता है, राष्ट्रीय आय में उससे कई गुना वृद्धि हो जाती है। चूंकि आय में होने वाला परिवर्तन, निवेश परिवर्तन का कई गुना होता है, इसलिए इसे निवेश गुणक कहते हैं। उदाहरण के लिए, यदि दी हुई अवधि में निवेश राशि 100 करोड़ रुपए बढ़ाने से कुल आय 500 करोड़ रुपए बढ़ जाती है तो निवेश गुणक 500/100 = 5 होगा। निवेश में वृद्धि के फलस्वरूप राष्ट्रीय आय में वृद्धि के अनुपात को निवेश गुणक कहते हैं। सूत्र के रूप में-
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संक्षेप में, गुणक (K) से अभिप्राय निवेश में परिवर्तन (AI) और आय में परिवर्तन (AY) के अनुपात से है।

निवेश गुणक की प्रक्रिया निवेश व्यय बढ़ाने से आय में कई गुना बढ़ने की प्रक्रिया इस प्रकार है। हम जानते हैं कि एक व्यक्ति का व्यय, दूसरे व्यक्ति की आय बन जाती है। इसी प्रकार दूसरे व्यक्ति का व्यय, तीसरे व्यक्ति की आय होती है और तीसरे व्यक्ति का व्यय, चौथे व्यक्ति की आय होती है। इस प्रकार अर्थव्यवस्था में उपभोग व्यय और आय की एक ह्रासमान (Dwindling Chain of Consumption and Income) श्रृंखला बनती चली जाती है। यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक उपभोग शून्य नहीं हो जाता। इस प्रक्रिया के अंत में आय का जोड़ करने पर कुल आय, आरंभिक निवेश की कई गुना हो जाती है। ध्यान रहे, एक व्यक्ति का व्यय, उसकी आय और सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) पर निर्भर करता है। अब एक उदाहरण से इसे स्पष्ट करते हैं

मान लीजिए कि सरकार 100 करोड़ रुपए, निवेश करके खाद का एक कारखाना स्थापित करती है। इसका पहला प्रभाव यह होगा कि कारखाने में लगे श्रमिकों की आय 100 करोड़ रुपए बढ़ जाएगी। यदि उनकी सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) 1/2 या 50% है तो वे 50 करोड़ (100 का 1/2) नई उपभोग वस्तुओं पर खर्च करेंगे। यह इस कथा का अंत नहीं है। अब इन वस्तुओं के उत्पादकों की आय 50 करोड़ रुपए (कारकों के व्यय के बराबर) बढ़ जाएगी और वे 25 करोड़ रुपए (50 का 1/2) उपभोग प खर्च करेंगे। इस प्रकार यह श्रृंखला बढ़ती जाएगी जिसमें प्रत्येक दौर (Round), पिछले दौर का 1/2 होगा। आय में वृद्धि तब समाप्त हो जाएगी, जब आय में परिवर्तन (AI), बचत में परिवर्तन (AS) के बराबर हो जाएगा अर्थात् ∆I = ∆S.

निवेश-गुणक की प्रक्रिया को निम्नलिखित तालिका द्वारा स्पष्ट किया गया है। यह इस मान्यता पर आधारित है कि निवेश में आरंभिक वृद्धि 10 करोड़ रुपए है और MPC = 50% या 1/2 है।
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उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि पहले दौर में आय में वृद्धि 10 करोड़ रुपए की होगी, क्योंकि इसी दौर में सरकार ने 10 करोड़ रुपए का निवेश किया है। दूसरे दौर में आय में वृद्धि 5 करोड़ रुपए की होगी, क्योंकि लोगों की सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 1/2 है। इसलिए लोग अपनी बढ़ी हुई आय का 50% खर्च करेंगे तथा 50% बचाकर रखेंगे। इस प्रकार, प्रत्येक दौर में आय में वृद्धि होती जाएगी। यह प्रक्रिया तब तक चलती रहेगी जब तक कि अंततः कुल आय में होने वाली वृद्धि 20 करोड़ रुपए के बराबर नहीं हो जाती। इस क्रिया को हम आय सृजन का चलचित्र (Motion Picture of Income Propogation) कहते हैं।

तालिका के स्तंभों का जोड़ करने के लिए G.P. Series (Geometrical Progression Series) के सूत्र का प्रयोग किया जा सकता है, जैसे कि-
GP. Series का सूत्र है- S = \(\frac { a }{ 1-r }\)
यहाँ, S = Sum total (कुल जोड़), a = First item of the column तथा r = Rate of change or MPC
आय वाले स्तंभ का जोड़ =\(\frac { 10 }{ 1-1/2 }\) = \(\frac { 10 }{ 1/2 }\) = 20
उपभोग वाले स्तंभ का जोड़ = \(\frac { 5 }{ 1-1/2 }\) = \(\frac { 5 }{ 1/2 }\) = 10
बचत वाले स्तंभ का जोड़ =\(\frac { 5 }{ 1-1/2 }\) = \(\frac { 5 }{ 1/2 }\) = 10
स्पष्ट है कि 10 करोड़ रुपए का आरंभिक निवेश करने से जब MPC = 1/2 हो तो गुणक का मूल्य 2 होगा और आय में वृद्धि निवेश की दो गुना अर्थात् 20 करोड़ रुपए होगी। इस प्रकार गुणक (K) = \(\frac { ∆Y }{ ∆I }\) = \(\frac { 20 }{ 10 }\) = 2

प्रश्न 3.
आय व रोज़गार के प्रतिष्ठित (परंपरावादी) सिद्धांत और केज़ के सिद्धांत में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आय व रोज़गार के प्रतिष्ठित सिद्धांत और केज के सिद्धांत में अंतर निम्नलिखित हैं-

प्रतिष्ठित (परंपरावादी) सिद्धांतकेज्ज का सिद्धांत
1. आय व रोज़गार का साम्य (संतुलन) स्तर, सदा पूर्ण रोज़गार के स्तर पर निर्धारित होता है। पूर्ण रोज़गार की मान्यता इस सिद्धांत में सर्वव्याप्त है।1. आय व रोज़गार का साम्य स्तर, उस स्तर पर निर्धारित होता है जहाँ AD = AS परंतु आवश्यक नहीं कि यह साम्य, पूर्ण रोज़गार पर ही हो, क्योंकि यह इससे कम या अधिक पर भी हो सकता है।
2. पूर्ण रोज़गार संतुलन एक सामान्य (Normal) स्थिति है। दीर्घकाल में पूर्ण रोज़गार से कम की स्थिति संभव नहीं है।2. ‘पूर्ण रोज़गार से कम पर संतुलन’ एक सामान्य स्थिति है जबकि पूर्ण रोज़गार संतुलन एक आदर्श और असाधारण अवस्था है।
3. यह सिद्धांत इस विश्वास पर आधारित है कि ‘पूर्ति अपनी माँग स्वयं उत्पन्न करती है।’ फलस्वरूप समस्त उत्पादन के बिक जाने से अति-उत्पादन (Overproduction) और बेरोज़गारी असंभव है।3. पूर्ति स्वतः अपनी माँग उत्पन्न नहीं करती जिससे अति-उत्पादन और बेरोज़गारी की स्थिति पैदा हो जाती है। इसके विपरीत ‘माँग, पूर्ति को सृजित करती है।’
4. अल्पकालिक या अस्थाई बेरोज़गारी की दशा में मज़दूरी दर घटाने से रोज़गार में वृद्धि की जा सकती है।4. प्रभावी या समग्र माँग (AD) बढ़ाकर ही रोज़गार में वृद्धि की जा सकती है।
5. ब्याज दर में परिवर्तन से बचत और निवेश में संतुलन स्थापित होंता है।5. आय स्तर में परिवर्तन से बचत और निवेश में संतुलन स्थापित होता है।
6. कीमत, मज़दूरी और ब्याज दर की लोचदार (Elastic) प्रणाली से अर्थव्यवस्था स्वयं ही पूर्ण रोज़गार संतुलन लाती है।6. एकाधिकार और ट्रेड यूनियनों के होते हुए कीमत, मज़दूरी और ब्याज दर में लोच या परिवर्तनशीलता नहीं रहती।
7. समग्र पूर्ति (AS), कीमतों के प्रति पूर्णतया बेलोचदार होती है।7. समग्र पूर्ति (AS), कीमतों के प्रति पूर्णतया लोचदार होती है।
8. सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं, क्योंकि माँग और पूर्ति की स्वतंत्र शक्तियों द्वारा संतुलन स्वतः ही स्थापित हो जाता है।8. AD और AS में संतुलन लाने व पूर्ण रोज़गार को संभव बनाने के लिए संरकारी हस्तक्षेप जरूरी है।
9. यह सिद्धांत दीर्घकाल में लागू होता है।9. यह सिद्धांत अल्पकाल में लागू होता है।

प्रश्न 4.
आय व रोज़गार का प्रतिष्ठित/परंपरावादी (Classical) सिद्धांत तथा केञ्ज (Keynes) के सिद्धांत का संक्षेप में विवरण दीजिए।
उत्तर:
‘आय के निर्धारण’ से अभिप्राय देश में ‘आय और रोज़गार के संतुलन स्तर के निर्धारण’ से है। हम व्यष्टि अर्थशास्त्र में उत्पादक (फम) के संतुलन के विषय का अध्ययन करते हैं कि उत्पादक का संतुलन, उत्पादन के उस स्तर पर होता है जिस स्तर पर उत्पादक को अधिकतम लाभ प्राप्त होता है। इसी प्रकार समष्टि अर्थशास्त्र में हम देश की आय और रोज़गार के संतुलन स्तर का अध्ययन करते हैं जोकि राष्ट्रीय आय (उत्पादन) का उच्चतम स्तर प्राप्त करने का प्रयास करता है, जब समस्त साधनों का पूर्ण उपयोग (अर्थात् पूर्ण रोज़गार संतुलन की स्थिति में) किया जाता है। इस विषय में दो सिद्धांत-प्रतिष्ठित (या परंपरावादी) सिद्धांत और केज़ का सिद्धांत प्रसिद्ध हैं। दोनों सिद्धांतों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

ध्यान रहे, समष्टि अर्थशास्त्र में यह सर्वमान्य सिद्धांत है कि समग्र माँग और समग्र पूर्ति दोनों मिलकर उत्पादन का स्तर, पूर्ण रोज़गार का स्तर और सामान्य कीमत-स्तर निर्धारित करते हैं।
(क) आय व रोज़गार का प्रतिष्ठित (परंपरावादी) सिद्धांत-प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने आय व रोज़गार से संबंधित कोई सिद्धांत अलग से नहीं दिया, बल्कि व्यक्तिगत इकाइयों के अध्ययन से प्राप्त निष्कर्षों को समस्त अर्थव्यवस्था की आय व रोजगार के निर्धारण में लागू किया। प्रतिष्ठित (परंपरावादी) सिद्धांत की मुख्य बातें इस प्रकार हैं

अर्थव्यवस्था सदा पूर्ण रोजगार की स्थिति में रहती है यदि संसाधनों के पूर्ण रोज़गार में अस्थाई रूप से कभी कमी आ भी जाए, तो यह अल्पकालिक होती है, क्योंकि मजदूरी-दर में कमी आने से श्रम की माँग बढ़ जाती है जिससे बेरोज़गारों को शीघ्र ही रोज़गार मिल जाता है। अतः दीर्घकाल में बेरोज़गारी स्वतः समाप्त हो जाती है। परंपरावादियों का यह विश्वास कि समग्र पूर्ति सदा पूर्ण रोज़गार वाली होगी, निम्न दो मान्यताओं-‘से’ का बाज़ार नियम और कीमत-मजदूरी की लोचशीलता पर आधारित है जिनका विवरण निम्नलिखित प्रकार से है

(i) ‘से’ (Say) का बाजार नियम-उपर्युक्त मत फ्रांसीसी अर्थशास्त्री, जे.बी. ‘से’ के इस बाज़ार नियम पर आधारित है कि “पर्ति अपनी माँग स्वयं पैदा करती है” अर्थात उत्पादन की प्रत्येक क्रिया से आय सजित होती है और आय से माँग उत्पन्न होती है जिससे समस्त उत्पादन बिक जाते हैं। फलस्वरूप अति-उत्पादन व बेरोज़गारी की संभावना समाप्त हो जाती है। इस प्रकार . प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री अर्थव्यवस्था की स्वचालिता (Automatic Functioning) में विश्वास रखते थे और सरकार के हस्तक्षेप का विरोध करते थे।

(ii) लोचशील कीमत, मजदूरी और ब्याज दर-इनके कारण अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार संतुलन की अवस्था स्वतः स्थापित हो जाती है, जैसे-

  • कीमतों में लचीलेपन के कारण माँग और पूर्ति की शक्तियों में संतुलन हो जाता है।
  • मज़दूरी-दर में लचीलापन, पूर्ण रोज़गार संतुलन स्थापित करता है।
  • ब्याज-दर में लचीलापन, बचत और निवेश में समानता बनाए रखता है। लचीलेपन से अभिप्राय है स्वतंत्रतापूर्वक घटने-बढ़ने का गुण। ऐसी स्थिति में सरकार को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, क्योंकि माँग और पूर्ति की स्वतंत्र आर्थिक शक्तियाँ स्वयं ही अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार संतुलन की अवस्था ला देती हैं।

(ख) आय व रोजगार का केज (Keynes) का सिद्धांत – सन 1929-33 में अमेरिका और यूरोप के पश्चिमी देशों में महामंदी की स्थिति ने परंपरावादी (प्रतिष्ठित) अर्थशास्त्रियों के इस मत को चूर-चूर कर दिया कि अर्थव्यवस्था सदा पूर्ण रोज़गार की स्थिति में रहती है। यहाँ ‘से’ का बाज़ार नियम (पूर्ति अपनी माँग स्वयं पैदा करती है) फेल हो गया और किसी अन्य सिद्धांत की जरूरत अनुभव होने लगी जो यह बताए कि अमेरिका जैसे विकसित देशों को भी बेरोज़गारी का सामना क्यों करना पड़ा?

इस पृष्ठभूमि में सन् 1936 में इंग्लैंड के एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जे०एम०केज ने अपनी पुस्तक “रोज़गार, ब्याज और मुद्रा का सामान्य सिद्धांत” (General Theory of Employment, Interest and Money) प्रकाशित की जो 20वीं शताब्दी की अर्थशास्त्र की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक मानी जाती है। इसके साथ ही एक नया अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्र या केज का अर्थशास्त्र विकसित हुआ। यह शास्त्र मुख्य रूप से बताता है कि किसी देश में आय व रोज़गार के संतुलन (साम्य) स्तर का निर्धारण कैसे होता है। केज ने बेरोज़गारी का मुख्य कारण प्रभावी माँग की कमी बतलाया। केज के सिद्धांत की मुख्य बातें निम्नलिखित हैं
(i) यह आवश्यक नहीं कि आय और रोज़गार का संतुलन स्तर, पूर्ण रोज़गार पर हो, क्योंकि यह इससे कम या अधिक पर भी हो सकता है, बल्कि पूर्ण रोज़गार से कम पर संतुलन, एक सामान्य अवस्था है।

(ii) माँग, पूर्ति को सृजित करती है न कि पूर्ति माँग को। विकसित देशों को भी महामंदी का सामना इसलिए करना पड़ा क्योंकि उनके माल के लिए प्रभावी माँग कम थी।

(iii) उत्पादन, आय और रोज़गार का स्तर, वस्तुओं व सेवाओं की समग्र (समस्त) माँग पर प्रत्यक्ष रूप से निर्भर करता है। यदि समग्र माँग में वृद्धि होती है तो बढ़ती हुई माँग को पूरा करने के लिए संसाधनों के कुशलतम प्रयोग या अधिक रोजगार से उत्पादन व आय का स्तर भी बढ़ जाएगा।

विस्तृत रूप में केज के सिद्धांत का सार है-समष्टि अर्थशास्त्र का संबंध मुख्य रूप से आय, रोज़गार और उत्पादन स्तर के निर्धारण में है। ध्यान रहे, यद्यपि समष्टि अर्थशास्त्र में यह सर्वमान्य सिद्धांत है कि समग्र माँग और समग्र पूर्ति दोनों मिलकर उत्पादन, रोज़गार और कीमत स्तर निर्धारित करते हैं, फिर भी केज द्वारा रचित इस ढाँचे में यह स्तर मुख्य रूप से समग्र माँग द्वारा ही निर्धारित होता है क्योंकि समग्र पूर्ति, कीमत के प्रति पूर्ण लोचशील होती है अर्थात फर्मे चालू कीमतों पर किसी भी मात्रा तक पूर्ति करने को तैयार होती हैं। यदि समग्र माँग बढ़ती है तो उत्पादन, आय व रोजगार का स्तर भी बढ़ता है। यदि समग्र माँग घटती है तो उत्पादन, आय व रोज़गार का स्तर भी गिरता है।

प्रश्न 5.
समग्र (समस्त) माँग किसे कहते हैं? समग्र माँग के विभिन्न संघटक क्या हैं?
उत्तर:
समग्र माँग का अर्थ-समग्र माँग से अभिप्राय अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की कुल माँग से है। चूँकि इसे समाज के कुल व्यय द्वारा मापा जाता है, इसलिए समग्र माँग का अर्थ मुद्रा की वह राशि है जिसे समस्त क्रेता (गृहस्थ, फर्मे और सरकार) अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के क्रय पर दी हुई अवधि में, खर्च करने को तैयार हैं। इस प्रकार समग्र माँग अर्थव्यवस्था के समग्र व्यय का पर्यायवाची है। इसमें उपभोग व्यय और निवेश व्यय दोनों शामिल होते हैं।

यहाँ माँग को प्रभावी माँग के अर्थ में लिया गया है। यदि अर्थव्यवस्था के उत्पादन की खरीद पर समाज पहले से अधिक खर्च करने का इरादा करता है तो यह समग्र माँग में वृद्धि दर्शाता है। इसके विपरीत, यदि समाज उपलब्ध वस्तुओं व सेवाओं पर पहले से कम खर्च करने का निर्णय लेता है तो यह समग्र माँग में गिरावट प्रकट करता है। संक्षेप में, समग्र माँग से अभिप्राय वह राशि है जो अर्थव्यवस्था के उत्पादन पर समस्त क्रेता (गृहस्थ, फर्म, सरकार) खर्च करने को तैयार हैं।

समग्र माँग के संघटक-वस्तुओं व सेवाओं की माँग गृहस्थों, फर्मों, सरकार तथा विदेशियों द्वारा की जाती है। इसलिए समग्र माँग (AD) के घटक भी यही होते हैं; जैसे-

  • निजी उपभोग माँग (C)
  • निजी निवेश माँग (I)
  • सरकार द्वारा वस्तुओं व सेवाओं की माँग (G) और शुद्ध निर्यात (X – M)।
  • इसे निम्नलिखित समीकरण के रूप में स्पष्ट किया गया है-
    AD = C + I + G + (X – M)

1. निजी (या गृहस्थ) उपभोग माँग-निजी उपभोग माँग से अभिप्राय उन वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य है जिन्हें किसी समय विशेष पर गृहस्थ खरीदने के इच्छुक और सक्षम होते हैं। गृहस्थ या परिवार अपनी मूल आवश्यकताओं को पूरा करने व जीवन स्तर ऊँचा उठाने के लिए अनेक प्रकार की वस्तुओं व सेवाओं की माँग करते हैं; जैसे रोटी, कपड़ा, मकान, चीनी, पुस्तकें, जूते, स्कूटर, कार, टी.वी., फर्नीचर और शिक्षा व मनोरंजन सेवाएँ आदि। इसे निजी उपभोग माँग कहते हैं। गृहस्थ उपभोग माँग का स्तर, प्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ताओं की प्रयोज्य आय (वैयक्तिक आय–वैयक्तिक कर) पर निर्भर करता है। उपभोग (C) आय (Y) का फलन है अर्थात् C = f (Y)। यदि आय बढ़ती है तो उपभोग व्यय भी बढ़ता है पर कितना? यह उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करता है।

केञ्ज ने इसी आधार पर उपभोग का मनोवैज्ञानिक नियम (Psychological Law of Consumption) की रचना की। इस नियम के अनुसार, “जैसे-जैसे आय बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे लोग अपना उपभोग भी बढ़ा देते हैं परंतु उपभोग में यह वृद्धि, आय की वृद्धि से कम रहती है।” कारण यह है कि जब आय बढ़ती है तो उपभोक्ताओं की अधिक-से-अधिक आवश्यकताएँ पूरी होती जाती हैं। फलस्वरूप, समस्त आय वृद्धि को शेष बची आवश्यकताओं पर खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ती।

2. निजी निवेश माँग-इसमें निजी फर्मों द्वारा पूँजीगत परिसंपत्तियों; जैसे मशीनों, औज़ारों, इमारतों आदि के निर्माण पर खर्च शामिल होता है। निवेश माँग दो मुख्य तत्त्वों पर निर्भर करती है-
(i) निवेश की सीमांत कुशलता (MEI) अर्थात् निवेश से आगम में कितनी वृद्धि होती है।

(ii) ब्याज की दर अर्थात् लागत। जब तक संभावित लाभ (या आगम) की दर, ब्याज की दर से अधिक है अर्थात् MEI, ब्याज की दर से ऊँचा है तब तक निजी उद्यमियों को अधिक निवेश करने की प्रेरणा मिलती रहेगी।

(iii) इन दो तत्त्वों के अतिरिक्त एक तीसरा तत्त्व अपेक्षाएँ भी अपना महत्त्व रखती हैं अर्थात् भविष्य में लाभ की अपेक्षाएँ कैसी होगी। संक्षेप में निवेश के तीन निर्धारक तत्त्व हैं-निवेश से आय, निवेश की लागत अर्थात् ब्याज दर और भविष्य में लाभ की अपेक्षाएँ।

निवेश माँग को प्रभावित करने वाले तीन तत्त्वों में से ‘ब्याज की दर सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। अतः निवेश माँग और ब्याज की दर के बीच संबंध को निवेश माँग फलन कहते हैं। ध्यान रहे ब्याज दर और निवेश माँग के बीच विपरीत संबंध होता है।

3. सरकार द्वारा वस्तुओं व सेवाओं की माँग-सरकार उपभोक्ता भी है और उत्पादक भी। इसलिए सरकार उपभोग व निवेश दोनों की माँग करती है। उत्पादक के नाते सरकार सड़कें, पुल, इमारतें, रेलों आदि के निर्माण के लिए वस्तुओं व सेवाओं की माँग करती है जिनका उद्देश्य लाभ कमाना नहीं होता, बल्कि लोक कल्याण व समाज की सामूहिक जरूरतों को पूरा करना होता है। इसी प्रकार सरकार को तब उपभोक्ता माना जाता है जब जनता, सरकार द्वारा उपलब्ध शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, संचार, शांति व्यवस्था व सुरक्षा संबंधी सुविधाओं का उपभोग करती है। दूसरे शब्दों में, लोगों की सामूहिक उपभोग माँग पूरी करने के लिए सरकार समाज की ओर से इनकी खरीद करती है। ध्यान रहे, जहाँ निजी निवेश लाभ से प्रेरित होने के कारण प्रेरित निवेश कहलाता है, वहीं सार्वजनिक (या सरकारी) निवेश समाज हित में होने के कारण स्वायत्त निवेश कहलाता है।

4. शुद्ध निर्यात-यद्यपि दी हुई अवधि में निर्यात और आयात का अंतर शुद्ध निर्यात कहलाता है, परंतु समग्र माँग के संद में शुद्ध निर्यात हमारे माल के लिए विदेशी माँग को दर्शाता है। विदेशी माँग को प्रभावित करने वाले अनेक तत्त्व होते हैं; जैसे व्यापार की शर्ते, निर्यातक व आयातक देशों की व्यापार नीतियाँ, विदेशी विनिमय दर, भुगतान संतुलन की स्थिति आदि।

ध्यान रहे कि आय व रोज़गार के विश्लेषण को सरल व सुविधाजनक बनाने के लिए केज़ ने दो क्षेत्रीय (गृहस्थ और फमें) अर्थव्यवस्था की कल्पना की है जिसमें समग्र माँग को उपर्युक्त चार घटकों की बजाय दो मुख्य संघटकों-उपभोग माँग (व्यय) और निवेश माँग (व्यय) के योग के रूप में प्रकट किया है। सूत्र के रूप में
AD = C + I
समग्र माँग (AD) वक्र जिसमें AD समग्र माँग को, C उपभोग माँग को और I निवेश माँग को दर्शाते हैं। समग्र माँग वक्र को, उपभोग माँग वक्र और निवेश माँग वक्र के ऊर्ध्व (vertical) योग के रूप में संलग्न रेखाचित्र में दिखाया गया है। रेखाचित्र से निम्नलिखित मुख्य बातें स्पष्ट होती हैं-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 18
(i) AD वक्र धनात्मक ढाल वाला है जो यह बताता है कि आय बढ़ने पर समग्र माँग (व्यय). बढ़ जाती है।

(ii) AD वक्र अपने मूल बिंदु 0 से आरंभ नहीं होता जो यह दर्शाता है कि आय शून्य होने पर भी, न्यूनतम उपभोग (रखाचित्र में OR के बराबर) निवेश जरूरी करना पड़ता है।

(iii) निवेश वक्र, X-अक्ष के समानांतर एक सीधी रेखा इसलिए है, क्योंकि केज के अनुसार अल्पकाल में निवेश का स्तर वही (स्थिर) रहता है चाहे आय का स्तर कुछ भी हो।

AD का आय स्तर पर प्रभाव – यदि देश में बेरोज़गारी की अवस्था है तो समग्र माँग (AD) बढ़ने पर उत्पादन में वृद्धि होगी और फलस्वरूप आय स्तर में भी वृद्धि होगी। इसी प्रकार AD में कमी आने पर आय स्तर में भी कमी आएगी परंतु यदि अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार की स्थिति है तो AD बढ़ने पर भी उत्पादन में वृद्धि संभव नहीं होगी, क्योंकि पहले ही सभी संसाधनों के प्रयोग से यथासंभव उत्पादन हो रहा है तब आय स्तर में वृद्धि नहीं होगी। हाँ, ऐसी अवस्था में कीमतें अवश्य बढ़ेगी।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 6.
समग्र (समस्त) पूर्ति की संकल्पना स्पष्ट कीजिए। समग्र पूर्ति के संघटक बताइए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की कुल पूर्ति को विस्तृत रूप में समग्र पूर्ति कहते हैं। दी हुई अवधि में एक अर्थव्यवस्था द्वारा जितनी वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन किया जाता है, उनके मौद्रिक मूल्य को समग्र पूर्ति कहते हैं। यदि हम गहराई से देखें तो पाएँगे कि राष्ट्रीय आय ही समग्र पूर्ति का प्रतीक है। हम जानते हैं कि देश में अंतिम उत्पादन का मूल्य ही उत्पादन के साधनों में समग्र पूर्ति (AS) वक्र लगान, मजदूरी, ब्याज और लाभ के रूप में बाँट दिया जाता है। उत्पादकों की दृष्टि से यह वस्तुएँ व सेवाएँ उत्पादन करने की लागतें हैं जो उत्पादकों को इनके विक्रय से जरूर मिलनी चाहिए अन्यथा वे उत्पादन नहीं करेंगे। यद्यपि उद्यमी के लिए ये साधन भुगतान लागतें हैं, परंतु साधनों के लिए वही साधन आय है। देश की संपूर्ण साधन आय का योग राष्ट्रीय आय (या साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद) कहलाती है। अतः राष्ट्रीय आय ही समग्र पूर्ति को प्रकट करती है। दूसरे शब्दों में, समग्र पूर्ति का मूल्य, राष्ट्रीय उत्पाद के मूल्य (राष्ट्रीय आय) के बराबर होता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 19
राष्ट्रीय आय का बड़ा भाग उपभोग पर खर्च किया जाता है और शेष भाग जो उपभोग पर खर्च नहीं किया जाता, बचत कहलाता है। अतः समग्र पूर्ति के दो मुख्य घटक उपभोग और बचत हैं। सूत्र के रूप में-
AS = C + S
जिसमें AS = समग्र पूर्ति, C = उपभोग, S = बचत को प्रकट करते हैं। इसे संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखाया गया है।
ध्यान रहे, समग्र पूर्ति वक्र सदा 45° पर बनी रेखा द्वारा दिखाया जाता है, क्योंकि इस रेखा पर प्रत्येक बिंदु की X-अक्ष और Y-अक्ष से दूरी बराबर होती है जिससे संतुलन बिंदु पहचानना आसान होता है। 45° पर यह वक्र इस मान्यता पर आधारित है कि AS (राष्ट्रीय आय) और AD (कुल व्यय) बराबर होते हैं, क्योंकि उत्पादकों को विक्रय से प्राप्त आगम, उनकी लागत (राष्ट्रीय आय) के बराबर अवश्य होना चाहिए। अतः 45° रेखा पर समग्र पूर्ति, राष्ट्रीय आय और कुल व्यय बराबर होते हैं।

प्रश्न 7.
समग्र पूर्ति की प्रतिष्ठित तथा केजीयन अवधारणा समझाइए।
उत्तर:
समग्र पूर्ति (AS) की प्रतिष्ठित व केजीयन अवधारणा-अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की कुल पूर्ति को समग्र पूर्ति कहते हैं परंतु ‘कीमत और समग्र पूर्ति वक्र पूर्ति में संबंध’ के बारे में प्रतिष्ठित अवधारणा और केज़ की अवधारणा अलग-अलग हैं, जैसाकि नीचे स्पष्ट किया गया है।
1. प्रतिष्ठित विचारधारा-इसके अनुसार ‘समग्र पूर्ति कीमतों के स्तर से पूर्णतः बेलोच रहती है। दूसरे शब्दों में, कीमत स्तर में उतार-चढ़ाव का समग्र पूर्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। फलस्वरूप प्रतिष्ठित समग्र पूर्ति वक्र, Y-अक्ष के समानांतर एक लंबवत रेखा होती है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है। यह वक्र कीमत के संदर्भ में पूर्णतया बेलोचदार होता है। रेखाचित्र में वक्र AS समग्र पूर्ति वक्र है और OQ पूर्ण रोज़गार उत्पादन स्तर को दर्शाता है। समग्र पूर्ति वक्र AS का Y-अक्ष के समानांतर होना यह प्रकट करता है कि कीमत स्तर में परिवर्तनों का समग्र पूर्ति पर कोई प्रभाव नहीं होता।
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2. केजीयन विचारधारा केजीयन विचारधारा के अनुसार, ‘समग्र पूर्ति, कीमत के प्रति पूर्णतया लोचदार (Perfectly elastic) होती है। दूसरे शब्दों में, सभी फर्मे चालू कीमतों पर वस्तु की कितनी ही मात्रा उत्पादन करने को तब तक तैयार रहती है जब तक पूर्ण रोज़गार की स्थिति प्राप्त नहीं हो जाती। फलस्वरूप केजीय समग्र पूर्ति वक्र, पूर्णतया रोज़गार की स्थिति प्राप्त होने से पहले पूर्ण लोचदार होता है, परंतु पूर्ण रोज़गार उत्पादन स्तर पर पहुँचकर समग्र पूर्ति वक्र कीमत के संदर्भ में पूर्ण बेलोचदार हो जाता है क्योंकि सब संसाधनों का पहले ही पूर्ण प्रयोग होने के कारण उत्पादन बढ़ाना संभव नहीं होता। इसे संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है जिसमें पूर्ण रोज़गार उत्पादन स्तर OQ पर समग्र पूर्ति वक्र AS पूर्णतया बेलोचदार है।
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प्रश्न 8.
निम्नलिखित को स्पष्ट कीजिए-
(क) औसत उपभोग प्रवत्ति (APC) क्या है? क्या APC का मल्य एक से अधिक हो सकता है?
(ख) सीमांत उपभोग प्रवत्ति (MPC) क्या है? MPC की विशेषताएँ बताइए।
(ग) APC और MPC में अंतर बताइए। इनमें से किसका मूल्य एक (इकाई) से अधिक हो सकता है और कब?
उत्तर:
(क) औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC)-समग्र उपभोग और समग्र आय के अनुपात को औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) कहते हैं। यह कुल आय का वह भाग (अनुपात) है जो उपभोग पर खर्च किया जाता है। समग्र उपभोग (C) को समग्र आय (Y) से भाग करके APC ज्ञात किया जाता है। समीकरण के रूप में
APC = C/Y
उदाहरण के लिए, यदि एक अर्थव्यवस्था की राष्ट्रीय या समग्र आय 100 करोड़ रुपए है और समग्र उपभोग 90 करोड़ रुपए है तो औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) = \(\frac { C }{ Y }\) = \(\frac { 90 }{ 100 }\) = 0.9 या 90%

औसत उपभोग प्रवृत्ति की उपरोक्त मात्रा यह दर्शाती है कि अर्थव्यवस्था अपनी कुल आय का $90 \%$ उपभोग पर खर्च कर रही है, परंतु यदि समग्र आय बहुत कम है, जैसे 1000 करोड़ रुपए है और समग्र उपभोग व्यय 1200 करोड़ रुपए है तो APC = 1200 / 1000 = 1.2 । अतः हम कह सकते हैं कि APC का मूल्य तब 1 से अधिक होता है जब आय का स्तर कम होने पर, उपभोग व्यय, आय से बढ़ जाता है तब बचत ऋणात्मक (-) होती है अर्थात् वह अवबचत (Dissaving) की स्थिति होती है।

(ख) सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) आय में परिवर्तन के कारण उपभोग में परिवर्तन के अनुपात को सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) कहते हैं। यह बढ़ी हुई आय का वह भाग है, जो उपभोग पर खर्च किया जाता है। उपभोग में परिवर्तन (∆C) को आय में परिवर्तन (∆Y) से भाग करके MPC को ज्ञात किया जाता है। समीकरण के रूप में,
MPC = ∆C/∆Y
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति से अभिप्राय ‘अतिरिक्त उपभोग करने की तत्परता (प्रवृत्ति) से है।’ यह अतिरिक्त आय के उस भाग को, जो उपभोग पर खर्च किया जाता है, दर्शाता है। उदाहरण के लिए, यदि आय 50 करोड़ रुपए बढ़ जाती है और फलस्वरूप उपभोग व्यय 30 करोड़ रुपए बढ़ जाता है, तो सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = \(\frac{\Delta C}{\Delta Y}=\frac{30}{50}=\frac{3}{5}\) = 0.6 या 60%
इससे यह पता चलता है कि आय में 100 रुपए की वृद्धि से उपभोग में 60 रुपए की वृद्धि हुई है।

MPC की विशेषताएँ – आय बढ़ने से उपभोग व्यय भी बढ़ता है (MPC > 0), लेकिन आय में सारी वृद्धि को उपभोग पर खर्च नहीं किया जाता (MPC <1),

अतः

  • MPC का मूल्य सदा धनात्मक अर्थात् शून्य से अधिक होता है. (MPC >0)।
  • MPC का मूल्य 1 से कम होता है (MPC <1), क्योंकि अतिरिक्त उपभोग (∆C) अतिरिक्त आय (∆Y) से कम होता है। संक्षेप में, MPC का मूल्य शून्य और 1 के बीच रहता है।

MPC का आय के स्तर पर प्रभाव केज्ज़ के अनुसार, ‘माँग पूर्ति को सृजित करती है। इस प्रकार ऊँची सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) उत्पादन के स्तर (पूर्ति) और आय के स्तर को बढ़ाएगी जबकि निम्न सीमांत उपभोग प्रवृत्ति आय के स्तर को नीचे लाएगी।

(ग) APC और MPC में अंतर-
(i) समग्र उपभोग व्यय (C) को समग्र आय (Y) से भाग देने पर औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) प्राप्त होती है। सूत्र के रूप में, APC = C/Y, जबकि उपभोग में परिवर्तन (AC) को आय में परिवर्तन (AY) से भाग देने पर सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) प्राप्त होती है। सूत्र के रूप में, MPC = ∆C/∆Y।

(ii) APC और MPC में से APC का मूल्य एक (इकाई) से अधिक तभी हो सकता है जब उपभोग व्यय आय से अधिक हो जाता है। इसका कारण यह है कि उपभोग का न्यूनतम स्तर बनाए रखना होता है, चाहे आय शून्य हो।

(iii) जब आय में वृद्धि होती है तो APC और MPC दोनों में भी कमी होती है परंतु MPC में गिरावट अधिक होती है।

प्रश्न 9.
बचत प्रवृत्ति या बचत फलन किसे कहते हैं? आय और बचत में संबंध बताइए।
उत्तर:
आय का वह भाग जो उपभोग पर खर्च नहीं किया जाता, बचत कहलाता है। दूसरे शब्दों में, आय में से उपभोग व्यय घटाने पर जो कुछ शेष बचता है, उसे बचत कहते हैं। सूत्र के रूप में
बचत = आय – उपभोग
बचत प्रवृत्ति का अर्थ-आय और बचत में फलनात्मक संबंध को बचत प्रवृत्ति या बचत फलन कहते हैं। बचत फलन, बचत और आय की एक सूची होती है जो आय के विभिन्न स्तरों पर बचत की मात्रा व्यक्त करती है। बचत आय पर निर्भर करती है अर्थात् बचत (S), आय (Y) का फलन (1) है। सूत्र के रूप में-
S = f (Y)
यह दी हुई आय के स्तर पर गृहस्थों द्वारा बचत करने की तत्परता (प्रवृत्ति) दर्शाती है। इस प्रकार बचत फलन, उपभोग फलन का उप-सिद्धांत है।

आय और बचत में संबंध-
(i) दोनों में प्रत्यक्ष संबंध होता है अर्थात् आय बढ़ने पर बचत भी बढ़ जाती है, परंतु बचत में वृद्धि की दर आय में वृद्धि की दर से अधिक होती है। इसका अर्थ यह है कि आय बढ़ने पर उस आय में से बचत का अनुपात बढ़ता जाता है और उपभोग पर खर्च का अनुपात घटता जाता है।

(ii) आय का स्तर कम होने पर बचत ऋणात्मक (-) होती है। ऐसा उपभोग का आय से अधिक होने के कारण होता है। उदाहरण के लिए, यदि आय 5,000 रुपए है और उपभोग व्यय 6,000 रुपए है तो बचत-1000 रुपए (5000-6000) होगी अर्थात् अवबचत (dissaving) होगी। स्पष्ट है यहाँ औसत बचत प्रवृत्ति, ऋणात्मक है अर्थात्
APS = S/Y = \(\frac { -1000 }{ 5000 }\) = – 0.2
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 22
संलग्न रेखाचित्र में बचत फलन दर्शाती है जो आय और बचत के स्तर (या मात्रा) में संबंध प्रकट करती है। बचत फलन रेखा SS, आय रेखा ox को बिंदु B पर काटती है जिसे समता बिंदु कहते हैं, क्योंकि इस बिंदु पर बचत शून्य होती है (उपभोग, आय के बराबर है)। समता बिंदु के बाईं ओर बचत ऋणात्मक (-) है अर्थात् उपभोग आय से अधिक है जबकि समता बिंदु के दाईं ओर बचत धनात्मक (+) है अर्थात् उपभोग व्यय आय से कम है। छायादार क्षेत्र अवबचत (Dissaving) का प्रतीक है जो स्वायत्त समता बिंदु उपभोग के बराबर है जैसाकि रेखाचित्र में द्वारा दर्शाया गया है।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त नोट लिखिए-
(क) नियोजित बचत व नियोजित निवेश।
(ख) वास्तविक बचत व वास्तविक निवेश।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र में एक्स-एन्टे (Ex-ante)अथवा नियोजित और एक्स-पोस्ट (Ex-post) अर्थात् वास्तविक शब्दावली का निवेश और उत्पाद के संदर्भ में किया जाता है। दोनों में अंतर केवल इतना है कि एक कार्य शुरू होने के पहले की प्रस्तावित स्थिति बताता है और दूसरा कार्य समाप्ति के बाद की वास्तविक स्थिति प्रकट करता है।

(क) नियोजित बचत व नियोजित निवेश – अर्थव्यवस्था में सब गृहस्थों द्वारा एक दी हुई अवधि में जितनी बचाने की योजना आरंभ में बनाई जाती है उसे नियोजित या इच्छित (Intended) बचत कहते हैं। इसी प्रकार अर्थव्यवस्था में फर्म या उद्यमी जितना निवेश करने की शुरू में योजना बनाते हैं उसे प्रत्याशित या नियोजित या इच्छित निवेश कहते हैं। विचार करने वाली बात यह है कि अर्थव्यवस्था में आय का संतुलन स्तर वहाँ होता है जहाँ नियोजित बचत नियोजित निवेश के बराबर होती है, परंतु ऐसा विरला या कदाचित (Rarely) ही होता है क्योंकि बचत करने वाले और निवेश करने वाले भिन्न-भिन्न लोग होते हैं और उनके उद्देश्य भी भिन्न-भिन्न होते हैं। इसलिए यह जरूरी नहीं कि बचतकर्ता जितना बचाने की योजना बनाते हैं, निवेशकर्ता उतना ही निवेश करने ‘ की योजना बनाएँ।

बचत और निवेश में अंतर के प्रभाव-इन दोनों में अंतर के राष्ट्रीय आय पर प्रभाव इस प्रकार हैं-
(i) जब नियोजित बचत. नियोजित निवेश से अधिक होती है तो यह उपभोग व्यय में गिरावट दर्शाता है। जिसके कारण समग्र माँग, समग्र पूर्ति से कम हो जाती है। फलस्वरूप कुछ वस्तुएँ अन-बिकी रह जाती हैं। फर्मों का अन-बिका माल जमा होने से फर्मे श्रमिकों की संख्या और उत्पाद को घटा देती हैं। फलस्वरूप राष्ट्रीय उत्पादन (आय) में कमी आती है। आय में कमी आने से बचत भी घटती जाती है जब तक कि नियोजित बचत, नियोजित निवेश के बराबर नहीं हो जाती। इसी समता बिंदु पर अर्थव्यवस्था संतुलन अवस्था में पहुँच जाती है।

(ii) जब नियोजित बचत, नियोजित निवेश से कम होती है तो समग्र माँग समग्र पूर्ति से अधिक होती है। उत्पादकों का वर्तमान स्टॉक बिक जाएगा और बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए वे उत्पादन बढ़ाएँगे। फलस्वरूप जब राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है तो बचत भी बढ़ती जाती है जब तक कि यह निवेश के बराबर नहीं हो जाती। यहीं पर राष्ट्रीय आय का साम्य (संतुलन) स्तर निर्धारित होता है। संक्षेप में, राष्ट्रीय आय के संतुलन स्तर पर ही नियोजित बचत और नियोजित निवेश दोनों बराबर होते हैं।

(ख) वास्तविक बचत व वास्तविक निवेश-अर्थव्यवस्था में दी हुई अवधि के अंत में जितना हम वास्तव में बचा पाते हैं या आय में से उपभोग व्यय घटाने पर जो कुछ शेष बच जाता है उसे वास्तविक बचत कहते हैं। इसी प्रकार अर्थव्यवस्था में जितना हम वास्तव में निवेश करते हैं या पूँजी के भंडार में जितनी वास्तविक वृद्धि होती है, उसे वास्तविक निवेश कहते हैं। उल्लेखनीय बात यह है कि नियोजित बचत व नियोजित निवेश विरले ही बराबर होते हैं, परंतु वास्तविक बचत और वास्तविक निवेश सदा बराबर होते हैं।

इसका कारण वास्तविक निवेश में अनियोजित निवेश का शामिल होना है जो न चाहने पर भी शामिल हो जाता है; जैसे राष्ट्रीय उत्पादन में उपभोग और नियोजित निवेश के बराबर वस्तुएँ खरीदने के बाद यदि कुछ वस्तुएँ बच जाती हैं और स्टॉक में वृद्धि हो जाती है तो इसे अनियोजित निवेश कहते हैं। वास्तविक निवेश = नियोजित निवेश + अनियोजित निवेश। इस प्रकार वास्तविक निवेश में नियोजित निवेश और अनियोजित निवेश शामिल होने से यह वास्तविक बचत के बराबर हो जाता है।

स्पष्ट है कि राष्ट्रीय आय के संतुलन स्तर पर नियोजित निवेश और नियोजित बचत बराबर होने के कारण अनियोजित बचत शून्य होगी। बचत के नियोजित निवेश से अधिक होने पर इस अंतर के बराबर अनियोजित निवेश धनात्मक होगा। बचत के नियोजित निवेश से कम होने पर इस अंतर के बराबर पिछला स्टॉक कम हो जाएगा अर्थात् अनियोजित निवेश ऋणात्मक होगा।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त नोट लिखिए-
(क) प्रेरित निवेश (Induced Investment) व स्वायत्त निवेश (Autonomous Investment)।
(ख) निवेश की सीमांत कार्यकुशलता (Marginal Efficiency of Investment)।
उत्तर:
(क) प्रेरित निवेश व स्वायत्त निवेश-
(i) प्रेरित निवेश, वह निवेश है जो लाभ की भावना से प्रेरित होकर किया जाता है, जैसे निजी क्षेत्र में निवेश मुख्य रूप से प्रेरित निवेश होता है। समष्टिगत दृष्टि से विचार किया जाए तो प्रेरित निवेश राष्ट्रीय आय से संबंधित है क्योंकि जब आय बढ़ती है तो वस्तुओं व सेवाओं की माँग भी बढ़ती है जिसे पूरा करने के लिए निवेश में वृद्धि की जाती है। अतः प्रेरित निवेश आय सापेक्ष होता है अर्थात् इसका राष्ट्रीय आय से सीधा संबंध होता है। फलस्वरूप प्रेरित निवेश वक्र, बाएँ से दाएँ ऊपर की ओर (पूर्ति वक्र की भाँति) बढ़ता जाता है अर्थात् आय बढ़ने पर निवेश बढ़ता है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है।
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(ii) स्वायत्त या स्वचालित निवेश का आय के स्तर से कोई संबंध आय नहीं होता अर्थात् यह आय-निरपेक्ष होता है। इस पर आय, लाभ, ब्याज की दर में परिवर्तनों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसे प्रभावित करने वाले दूसरे बाहरी तत्त्व होते हैं; जैसे तकनीकी विकास, नए संसाधनों की खोज व आविष्कार, जनसंख्या में वृद्धि आदि। ऐसे निवेश प्रायः सार्वजनिक हित के लिए सरकार द्वारा किए जाते हैं। चूँकि स्वायत्त निवेश का आय के स्तर से कोई संबंध नहीं होता अर्थात् आय के प्रत्येक स्तर पर निवेश स्वायत निवेश वक्र की राशि उतनी ही (स्थिर) रहती है, इसलिए स्वायत्त निवेश का वक्र X-अक्षांश के समानांतर रहता है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 24

(ख) निवेश की सीमांत कार्यकुशलता (MEI)- हम जानते हैं कि निजी निवेश माँग, MEI और ब्याज की दर पर निर्भर करती है। दूसरे शब्दों में, निवेश (I) वास्तव में ब्याज दर (r:) और निवेश की सीमांत कार्यकुशलता (MEI) का फलन () है। समीकरण के रूप में
I = f(ri, MEI)
पूँजी की एक अतिरिक्त इकाई निवेश करने से संभावित प्रतिफल (या लाभ) की दर को निवेश की सीमांत कार्यकुशलता (MEI) कहते हैं। निवेशकर्ता तभी निवेश करेगा जब निवेश की एक अतिरिक्त इकाई लगाने से प्राप्त होने वाला संभावित लाभ,
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उसके द्वारा अदा की जाने वाली ब्याज दर से अधिक होगा। उदाहरण के लिए, यदि निवेश से संभावित लाभ दर (या MEI) 16% है और उधार लिए गए ऋण पर ब्याज दर 12% है तो निवेशकर्ता तब तक निवेश बढ़ाता जाएगा जब तक MEI ब्याज दर के बराबर नहीं हो जाता। ध्यान रहे, अर्थव्यवस्था में जैसे-जैसे निवेश की अधिक मात्रा लगाई जाती है, वैसे-वैसे MEI घटता जाता है अर्थात् निवेश की मात्रा और MEI में विपरीत संबंध होता है, जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दिखाया गया है। अतः हम कह सकते हैं कि ब्याज दर कम होने पर पूँजी की अधिक मात्रा निवेश की जाएगी।

प्रश्न 12.
अंतिम वस्तुओं की नियोजित माँग (Ex-ante Demand) क्या है? इसके (नियोजित उपभोग और निवेश के) माप निवेश (लाख रु०) या निर्धारक कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अंतिम वस्तुओं की नियोजित माँग-सरकार व विदेशी क्षेत्र रहित अर्थव्यवस्था में अंतिम वस्तुओं की माँग (AD) ऐसी वस्तुओं पर कुल नियोजित उपभोग व्यय (C) और नियोजित निवेश व्यय (I) का योग होती है। सांकेतिक रूप में
AD = C + I
उपभोग फलन को समीकरण C = C + bY द्वारा प्रकट किया जाता है जिसमें C = उपभोग फलन, C = स्वायत्त उपभोग अर्थात् जीवित रहने के लिए न्यूनतम उपभोग, b = सीमांत उपभोग प्रवृत्ति और Y= आय का स्तर । संक्षेप में, MPC आय में परिवर्तन (∆Y) के फलस्वरूप उपभोग में परिवर्तन (∆C) का अनुपात (∆C/∆Y) है।

नियोजित निवेश व्यय के संदर्भ में समग्र माँग का स्तर निर्धारित करने के लिए सर मान लेते हैं कि अल्पकाल में ब्याज दर और कीमत स्थिर रहती है और फर्म हर वर्ष उसी मात्रा में निवेश करने की योजना बनाती है अर्थात I = I जिसमें 1 स्वायत्त निवेश को प्रकट करता है। साथ ही हम यह भी मान लेते हैं कि इस (स्थिर) कीमत पर समग्र पूर्ति केवल समग्र माँग द्वारा निर्धारित होती है। इसे प्रभावी माँग (Effective Demand) के सिद्धांत की संज्ञा दी जाती है।
(ध्यान रहे, उत्पादन का संतुलन स्तर वह स्तर है जिस पर उत्पादित की गई मात्रा माँगी गई मात्रा के बराबर हो।)
समीकरण, AD = C+ I में C और I के मूल्य भरकर इसे सरल बनाते हैं।
AD = C +I
AD = \(\overline{\mathrm{C}}\) + bY+ \(\overline{\mathrm{I}}\) (क्योंकि C = \(\overline{\mathrm{C}}\) + bY और I = \(\overline{\mathrm{I}}\))
जब अंतिम वस्तुओं का बाज़ार में संतुलन होता है अर्थात् माँगी गई मात्रा (AD) = पूर्ति की मात्रा (Y) हो तो हम समीकरण को इस प्रकार भी लिख सकते हैं-
Y = AD
Y = \(\overline{\mathrm{C}}\) + bY+ \(\overline{\mathrm{I}}\) (जिसमें Y अंतिम वस्तुओं की नियोजित पूर्ति है)
= \(\overline{\mathrm{C}}\) + \(\overline{\mathrm{I}}\) + bY
Y = \(\overline{\mathrm{A}}\) + bY (\(\overline{\mathrm{A}}\) = \(\overline{\mathrm{C}}\) + \(\overline{\mathrm{I}}\) कुल स्वायत्त व्यय का प्रतीक है)

संतुलन पर अंतिम वस्तुओं की नियोजित पूर्ति = अंतिम वस्तुओं की नियोजित माँग
विचार करने वाली बात यह है कि नियोजित पूर्ति और नियोजित माँग सदा बराबर नहीं होते, क्योंकि बचत करने वाले और निवेश करने वाले भिन्न-भिन्न लोग होते हैं। केवल संतुलन की स्थिति में ये बराबर होते हैं। यदि नियोजित पूर्ति (उत्पादन), नियोजित माँग से अधिक है तो अन-बिके माल के स्टॉक में अनियोजित वृद्धि होगी। फलस्वरूप उत्पादक अपना उत्पादन तब तक घटाते जाएँगे जब तक समग्र माँग और समग्र पूर्ति (उत्पादन) में संतुलन न हो जाए। इसके विपरीत, यदि उत्पादन, समग्र माँग से कम है तो उत्पादक अपने माल का स्टॉक (Inventories) तब तक बेचते जाएँगे जंब तक समग्र माँग और समग्र पूर्ति में संतुलन पुनः स्थापित नहीं हो जाता।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित पर नोट लिखिए-
(क) अनैच्छिक बेरोज़गारी (Involuntary Unemployment) की अवधारणा तथा ऐच्छिक बेरोज़गारी और अनैच्छिक बेरोज़गारी में अंतर।
(ख) पूर्ण रोज़गार (Full Employment) की अवधारणा।
उत्तर:
(क) अनैच्छिक बेरोज़गारी की अवधारणा अनैच्छिक बेरोज़गारी से अभिप्राय अर्थव्यवस्था की ऐसी स्थिति से है जिसमें काम करने के इच्छुक व योग्य लोग प्रचलित मजदूरी दर पर काम करना चाहते हैं, परंतु फिर भी काम नहीं मिलता है। ऐसे लोग शारीरिक व मानसिक रूप से काम करने के योग्य भी हैं और काम करने को तैयार भी हैं परंतु बेरोज़गार हैं। इस प्रकार की बेरोज़गारी को अनैच्छिक बेरोज़गारी कहते हैं क्योंकि यह बेरोज़गारी उनकी इच्छा के खिलाफ (विरुद्ध) है। पूर्ण रोज़गार के लिए आवश्यक समग्र माँग में कमी के कारण, अनैच्छिक बेरोज़गारी की समस्या पैदा होती है। स्पष्ट है जब तक अनैच्छिक बेरोज़गारी विद्यमान रहेगी तब तक अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार की स्थिति नहीं हो पाएगी अर्थात् अर्थव्यवस्था अल्प-रोज़गार की स्थिति में रहेगी।

ऐच्छिक बेरोज़गारी और अनैच्छिक बेरोज़गारी में अंतर-अनैच्छिक बेरोज़गारी, ऐच्छिक बेरोज़गारी से भिन्न होती है। ऐच्छिक बेरोज़गारी देश की श्रम शक्ति के उस भाग या उन लोगों की ओर संकेत करती है जो काम उपलब्ध होने के बावजूद काम करने को तैयार नहीं हैं अर्थात् वे अपनी इच्छा से बेरोज़गार हैं। यह वास्तव में बेरोज़गारी की समस्या नहीं है। इसलिए ऐसे लोगों को देश की श्रम-शक्ति में शामिल नहीं किया जाता है। इसके विपरीत, अनैच्छिक बेरोज़गारी वह स्थिति है जब लोग मज़दूरी की चालू दर पर काम करने को तैयार हैं, परंतु फिर भी काम नहीं मिलता।

(ख) पूर्ण रोज़गार की अवधारणा पूर्ण रोजगार से अभिप्राय अर्थव्यवस्था की ऐसी स्थिति से है जिसमें प्रत्येक शारीरिक व मानसिक दृष्टि से योग्य व्यक्ति को, जो मज़दूरी की प्रचलित दर पर काम करने को तैयार है, काम मिलता है। दूसरे शब्दों में, यह अर्थव्यवस्था की वह स्थिति है जिसमें अनैच्छिक बेरोज़गारी नहीं है। पूर्ण रोज़गार की स्थिति में समस्त संसाधनों का सर्वोत्तम प्रयोग होता है। संसार में प्रत्येक अर्थव्यवस्था अपने समस्त संसाधनों का पूर्ण व कुशलतम प्रयोग कर पूर्ण रोज़गार चाहती है, परंतु व्यवहार में पूर्ण रोज़गार का अर्थ देश की श्रम शक्ति के पूर्ण रोज़गार से लिया जाता है।

ध्यान रहे, पूर्ण रोज़गार की अवस्था में ऐच्छिक बेरोज़गारी, संघर्षी बेरोज़गारी (Frictional Unemployment) व संरचनात्मक बेरोज़गारी (Structural Unemployment) विद्यमान रह सकती हैं। एक बात निश्चित है कि पूर्ण रोज़गार का अर्थ यह नहीं है कि एक भी श्रमिक बेरोज़गार न हो क्योंकि नई व बेहतर नौकरी की खोज में अथवा उत्पादन की तकनीक व विधियों में परिवर्तन से संबंधित कुछ बे रोज़गारी (जैसे 3% तक) अत्याज्य (Unavoidable) है, अर्थात् कुछ बेरोज़गारी सदा ही रहती है। केज़ पूर्ण रोज़गार को अलग दृष्टि से देखता है। केज़ के अनुसार, “जब समग्र माँग में वृद्धि होने पर उत्पादन और रोज़गार के स्तर में वृद्धि नहीं होती, तो वह पूर्ण रोज़गार की स्थिति होती है।”

परंपरावादी और केज़ के विचार-यद्यपि परंपरावादी अर्थशास्त्री और केज दोनों पूर्ण रोज़गार को ‘अनैच्छिक बेरोज़गारी का अभाव’ मानते हैं फिर भी दोनों के विचारों में भिन्नता पाई जाती है। परंपरावादी मानते हैं कि अर्थव्यवस्था में सदा पूर्ण रोज़गार की स्थिति पाई जाती है जबकि केज के मतानुसार अर्थव्यवस्था में प्रायः पूर्ण रोज़गार से कम की स्थिति पाई जाती है।

प्रश्न 14.
(क) आय के संतुलन स्तर (Equilibrium level of Income) से आप क्या समझते हैं?
(ख) पूर्ण रोज़गार एवं अल्प रोज़गार संतुलन की अवधारणा, रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
(क) आय के संतुलन स्तर का अर्थ-आय का संतुलन स्तर आय का वह स्तर है जहाँ समग्र माँग, उत्पादन के स्तर (समग्र पूर्ति) के बराबर होती है। संतुलन बिंदु पर समस्त वस्तुओं और सेवाओं का कुल उत्पादन, उन वस्तुओं और सेवाओं की कुल माँग के बराबर होता है। इसीलिए आय के संतुलन स्तर को उत्पादन का संतुलन स्तर भी कहा जाता है। आय के संतुलन स्तर पर इसे बढ़ाने या घटाने की प्रवृत्ति नहीं रहती। स्मरण रहे, अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की कुल माँग को समग्र माँग कहते हैं जबकि वस्तुओं और सेवाओं की कुल पर्ति को समग्र पर्ति कहते हैं।

समग्र पूर्ति और समग्र माँग में संतुलन का अर्थ मात्र इन दोनों का बराबर होना है चाहे रोजगार का स्तर कैसा भी हो। इस संतुलन का अर्थव्यवस्था के संसाधनों के पूर्ण या अपूर्ण प्रयोग से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता। अतः यह आवश्यक नहीं है कि आय का संतुलन स्तर, सदा पूर्ण रोज़गार स्तर पर हो। यह पूर्ण रोज़गार स्तर से कम पर भी हो सकता है अर्थात् अल्प रोज़गार स्तर भी हो सकता है। दूसरे शब्दों में, आय के संतुलन स्तर पर बेरोज़गारी हो सकती है।

(ख) रोज़गार का संतुलन स्तर-संतुलन स्तर वाली समग्र पूर्ति से जुड़े रोज़गार स्तर को रोज़गार का संतुलन स्तर कहते हैं। यह दो प्रकार का हो सकता है-पूर्ण रोज़गार संतुलन तथा अपूर्ण (अल्प) रोज़गार संतुलन जैसाकि स्पष्ट किया गया है।

पूर्ण रोज़गार संतुलन-पूर्ण रोज़गार संतुलन अर्थव्यवस्था के संतुलन की वह अवस्था है जहाँ अर्थव्यवस्था के सभी संसाधनों का पूरा उपयोग हो रहा हो अर्थात समस्त संसाधन अपनी चरम सीमा तक प्रयुक्त हो रहे हों।। तब कोई संसाधन बेकार नहीं होता। अनैच्छिक बेकारी समाप्त हो जाती है। पूर्ण रोज़गार समग्र माँग न तो अधिक है और न ही कम है बल्कि पूर्ण रोज़गार वाले संतुलन बिंदु उत्पादन (समग्र पूर्ति) के बराबर है। संक्षेप में जब समग्र माँग, ‘पूर्ण रोज़गार वाली समग्र पूर्ति’ के बराबर हो तो उसे पूर्ण रोज़गार संतुलन की संज्ञा दी जाती है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 26

पूर्ण रोज़गार संतुलन वाली अवस्था अग्रांकित रेखाचित्र में दर्शाई गई है। अल्प रोज़गार रेखाचित्र में 45° वाली AS रेखा समग्र पूर्ति को और AD रेखा समग्र माँग को संतुलन बिंदु प्रदर्शित करती है। दोनों रेखाएँ एक-दूसरे को बिंदु E पर काटती हैं। यह पूर्ण रोज़गार संतुलन | बिंदु है क्योंकि बिंदु E45° रेखा पर होने के कारण समग्र उत्पादन (आय)या (AS)+ माँग EM, समग्र पूर्ति OM के बराबर है। अर्थव्यवस्था OMके उत्पादन स्तर पर, पूर्ण रोज़गार संतुलन की अवस्था में है क्योंकि इस पर उन सब लोगों को जो प्रचलित मज़दूरी दर पर काम करने को तैयार हैं, रोज़गार मिला हुआ है।

नोट-प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के मत में समग्र पूर्ति, सदा पूर्ण रोज़गार स्तर पर होती है। चूंकि यह पूर्णतया कीमत-बेलोचदार होती है इसलिए प्रतिष्ठित समग्र पूर्ति वक्र पूर्ण रोज़गार उत्पादन स्तर पर Y-अक्ष के समानांतर एक लंबवत रेखा होती है। इसलिए प्रतिष्ठित पूर्ण रोज़गार संतुलन उस बिंदु पर होगा जहाँ समग्र माँग वक्र, इस लंबवत समग्र पूर्ति वक्र को काटता है।

प्रश्न 15.
निम्नलिखित पर नोट लिखिए-
(क) अत्यधिक (अधि) माँग (Excess Demand) का अर्थ बताइए।
(ख) स्फीतिक अंतराल (Inflationary Gap) का अर्थ रेखाचित्र की सहायता से बताइए।
उत्तर:
(क) अत्यधिक माँग का अर्थ-जब समग्र माँग, ‘पूर्ण रोज़गार स्तर के उत्पादन (पूर्ति) से अधिक हो तो उसे अत्यधिक माँग (या अतिरेक माँग या अधिमाँग) कहते हैं। यह स्फीतिक अंतराल को जन्म देती है। इसे हम एक काल्पनिक उदाहरण से स्पष्ट कर सकते हैं। सुविधा के लिए मान लीजिए, एक काल्पनिक अर्थव्यवस्था अपने समस्त उपलब्ध संसाधनों के पूर्ण प्रयोग से 5000 क्विंटल गेहूँ पैदा कर सकती है। यह अर्थव्यवस्था की ‘पूर्ण रोज़गार वाली पूर्ति’ होगी। यदि गेहूँ की कुल माँग 6000 क्विंटल हो तो इस माँग को अत्यधिक माँग मानी जाएगा क्योंकि यह ‘पूर्ण रोज़गार देने वाली पूर्ति’ (5000 क्विंटल) से अधिक है। दोनों के अंतर को स्फीतिक अंतराल कहते हैं।

(ख) स्फीतिक अंतराल–पूर्ण रोज़गार देने वाली समग्र पूर्ति से जब समग्र माँग अधिक होती है तो दोनों के अंतर को स्फीतिक अंतराल कहते हैं। दूसरे शब्दों में, यह समग्र माँग के आधिक्य का माप है। इसे वैकल्पिक अत्यधिक माँग रूप में, इस प्रकार भी परिभाषित कर सकते हैं। “स्फीतिक अंतराल, वास्तविक समग्र माँग और पूर्ण रोज़गार संतुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक समग्र माँग के बीच का अंतर होता है। यह वास्तविक समग्र स्फीतिक अंतराल माँग के आधिक्य का माप है।” स्फीतिक अंतराल को संलग्न रेखाचित्र में EB के रूप में दिखाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 27
रेखाचित्र में E पूर्ण रोज़गार संतुलन बिंदु है जहाँ समग्र माँग EM, समग्र पूर्ति OM के बराबर है। मान लीजिए, नई माँग BM उत्पादन स्तर के बराबर है जो पूर्ण रोज़गार संतुलन स्तर के उत्पादन EM(OM) से अधिक है। दोनों में अंतर EB(BM – EM) स्फीतिक अंतराल है। यह अत्यधिक माँग का माप है। अत्यधिक माँग की अवस्था में, रोज़गार और उत्पादन में वृद्धि नहीं हो सकती क्योंकि पहले ही समस्त संसाधनों के पूर्ण उपयोग से अधिकतम उत्पादन किया जा रहा है। फलस्वरूप अत्यधिक माँग का प्रभाव मुद्रास्फीतिक व कीमत स्तर में वृद्धि के रूप में होता है।

प्रश्न 16.
निम्नलिखित पर नोट लिखिए-
(क) अभावी (न्यून) माँग (Deficient Demand) का अर्थ समझाइए।
(ख) रेखाचित्र की सहायता से अवस्फीतिक अंतराल (Deflationary Gap) की अवधारणा समझाइए।
उत्तर:
(क) अभावी माँग का अर्थ-अभावी माँग से अभिप्राय उस समग्र माँग से है जो ‘पूर्ण रोज़गार स्तर के उत्पादन (पूर्ति) से कम होती है। यह इस बात का बोध कराती है कि देश के समस्त संसाधनों के पूर्ण उपयोग से जितना उत्पादन होता है उसे खपाने के लिए माँग कम है। इसे एक काल्पनिक उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। मान लीजिए कि एक अर्थव्यवस्था अपने समस्त संसाधन पूर्ण रूप से जुटाकर केवल 5000 क्विंटल गेहूँ का उत्पादन करती है। यह उसकी ‘पूर्ण रोज़गार स्तर का उत्पादन (पूर्ति) है, क्योंकि इसमें अनैच्छिक बेरोज़गारी नहीं है। यदि देश में गेहूँ के लिए समग्र (या कुल) माँग 4000 क्विंटल हो तो इसे अभावी या न्यून माँग कहेंगे, क्योंकि यह माँग पूर्ण रोज़गार वाली समग्र पूर्ति (5000 क्विंटल) से 1000 क्विंटल कम है। माँग और पूर्ति में यह अंतर ‘अवस्फीतिक अंतराल’ की स्थिति दर्शाता है। माँग कम होने से कुछ संसाधन बेकार हो जाएँगे अर्थात् बेरोज़गारी की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।

(ख) अवस्फीतिक अंतराल-पूर्ण रोज़गार देने वाली समग्र पूर्ति से, समग्र माँग जितनी कम होती है, उसे अवस्फीतिक अंतराल कहते हैं। यह समग्र माँग में कमी का माप है। इसे वैकल्पिक रूप में, इस प्रकार भी परिभाषित कर सकते हैं, “अवस्फीतिक अंतराल, वास्तविक पूर्ण रोजगार समग्र माँग और पूर्ण रोज़गार संतुलन के लिए वांछनीय समग्र माँग का संतुलन बिंदु अंतर होता है। यह वास्तविक समग्र माँग के अभाव का माप है।” इसे संलग्न रेखाचित्र में EB के रूप में दिखाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 28
रेखाचित्र में E पूर्ण रोज़गार संतुलन बिंदु है जहाँ समग्र माँग EM, पूर्ण रोज़गार देने वाली समग्र पूर्ति OM के बराबर है। मान लीजिए नई माँग BM उत्पादन स्तर के बराबर है जो पूर्ण रोज़गार संतुलन स्तर के उत्पादन EM(OM) से कम है। दोनों में अंतर EB(EM-BM) अवस्फीतिक अंतराल है। इस प्रकार EB अवस्फीतिक MM अंतराल और अभावी माँग का माप है। ध्यान रहे अभावी माँग मंदी राष्ट्रीय आय (समग्र पूर्ति), और बेरोज़गारी की स्थिति पैदा करती है।

प्रश्न 17.
अधिमाँग (Excess Demand) की स्थिति को ठीक करने के राजकोषीय उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अधिमाँग को ठीक करने के उपाय-अधिमाँग जो ‘पूर्ण रोज़गार वाली पूर्ति’ से अधिक होती है, कीमतों में वृद्धि लाती है। मुद्रास्फीति (कीमतों में निरंतर वृद्धि), पूर्ति में वृद्धि हुए बिना माँग में वृद्धि के कारण पैदा होती है। मुद्रास्फीति संपत्ति में विषमताएँ लाती है, बँधी आय के लोगों का जीवन दूभर करती है जिससे लोगों का सरकार व नैतिकता से विश्वास उठ जाता है। अतः हमें समग्र माँग को स्फीतिक अंतराल की मात्रा के बराबर घटाना होगा। यहाँ हम सरकारी क्षेत्र को शामिल करते हैं जिससे अर्थव्यवस्था तीन-क्षेत्रीय हो जाएगी और समग्र माँग-गृहस्थों, फर्मों और सरकार की माँग का योग हो जाएगी। सरकार को शामिल करने का कारण यह है कि सरकार करों और सार्वजनिक व्यय के माध्यम से समग्र माँग को घटाने-बढ़ाने में बहुत प्रभावित होती है। अतः यदि अर्थव्यवस्था ने ‘सामाजिक न्याय के साथ विकास करना’ (Growth with Social Justice) है तो अधिमाँग की स्थिति को ठीक करने के प्रभावी उपाय अपनाने होंगे। इसे ठीक करने के राजकोषीय उपाय निम्नलिखित हैं

राजकोषीय नीति/बजट घाटों में कमी – सरकार की आय-व्यय नीति को राजकोषीय नीति कहते हैं और बजट इस नीति का सार होता है। राजकोषीय नीति के दो पक्ष-व्यय नीति और आय नीति होते हैं। वर्ष के बजट में जब व्यय, आय से अधिक दिखाया जाता है तो इसे घाटे का बजट कहते हैं और जब आय, व्यय से अधिक दिखाई जाती है तो इसे बचत का बजट कहते हैं।

1. व्यय नीति-अधिमाँग की स्थिति में सरकार को सार्वजनिक खर्चे कम करके बजट घाटों में कमी लानी चाहिए; जैसे सड़कों, इमारतों, ग्रामीण विद्युतीकरण, सिंचाई, निर्माण कार्यों पर यदि सरकार खर्च कम कर देती है तो इससे लोगों की आय कम होगी और फलस्वरूप उनकी वस्तुओं के लिए माँग गिरेगी। अतः अधिमाँग की स्थिति में ‘बचत का बजट’ अपनाना चाहिए।

2. आय नीति-राजकोषीय नीति का दूसरा पक्ष आय नीति है। चूँकि सरकार की आय का प्रमुख भाग करों से आता है, इसलिए आय नीति को सरकार की कर नीति भी कहते हैं। मुद्रास्फीति के दौरान सरकार को न केवल नए कर लगाने चाहिए, बल्कि करों की दर भी बढ़ानी चाहिए, विशेष रूप से अमीर लोगों पर। इससे लोगों के पास खरीदने की शक्ति कम होगी और उनकी प्रभावी माँग गिर जाएगी। इस तरह कर बढ़ाकर बजट घाटे में कमी लाई जा सकती है।

3. सरकार द्वारा लिए जाने वाले सार्वजनिक ऋण को बढ़ाना चाहिए ताकि मुद्रास्फीति को रोका जा सके।

4. घाटे की वित्त व्यवस्था (नोट छापना) में कमी करनी चाहिए। फलस्वरूप मुद्रा की पूर्ति कम होगी जिससे बढ़ती कीमतों को नियंत्रित किया जा सकेगा।

संख्यात्मक प्रश्न

APC, MPC,APS और MPS पर आधारित संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
यदि प्रयोज्य आय 1,000 रुपए हो और उपभोग व्यय 700 रुपए हो, तो औसत बचत प्रवृत्ति ज्ञात (APS) कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 29

प्रश्न 2.
यदि प्रयोज्य आय 500 रुपए हो और बचत 100 रुपए हो, तो औसत उपभोग प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 30

प्रश्न 3.
यदि औसत उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है, तो औसत बचत प्रवृत्ति क्या होगी?
हल:
औसत उपभोग प्रवृत्ति + औसत बचत प्रवृत्ति = 1
0.75 + औसत बचत प्रवृत्ति = 1
औसत बचत प्रवृत्ति = 1 – 0.75 = 0.25 उत्तर

प्रश्न 4.
यदि औसत बचत प्रवृत्ति 0.6 है, तो औसत उपभोग प्रवृत्ति कितनी होगी?
हल:
औसत उपभोग प्रवृत्ति + औसत बचत प्रवृत्ति = 1
औसत उपभोग प्रवृत्ति + 0.6 = 1
औसत उपभोग प्रवृत्ति = 1-0.6 = 0.4 उत्तर

प्रश्न 5.
यदि सीमांत बचत प्रवृत्ति 1 है, तो सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) कितनी होगी?
हल:
सीमांत बचत प्रवृत्ति + सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = 1
चूंकि 1 + सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = 1 इसलिए
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = 1 – 1 = 0 (शून्य) उत्तर

प्रश्न 6.
जिस अर्थव्यवस्था में सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 0.8 है उसमें सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) कितनी है?
हल:
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति + सीमांत बचत प्रवृत्ति = 1
सीमांत बचत प्रवृत्ति = 1 – 0.8 = 0.2 उत्तर

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 7.
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य क्या होगा जब सीमांत बचत प्रवृत्ति शून्य हो?
हल:
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति + सीमांत बचत प्रवृत्ति = 1
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = 1 – सीमांत बचत प्रवृत्ति
= 1 – 0
= 1 उत्तर

प्रश्न 8.
जब प्रयोज्य आय 1,000 रुपए से बढ़कर 1,100 रुपए हो जाती है, तो बचत में 30 रुपए की वृद्धि होती है। सीमांत बचत प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 31

प्रश्न 9.
देश में कुल आय 1000 करोड़ रुपए है तथा उपभोग 750 करोड़ है। जब आय बढ़कर 1500 करोड़ रुपए हो जाती है तो उपभोग 1150 करोड़ हो जाता है। औसत उपभोग प्रवृत्ति तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति बताइए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 32

प्रश्न 10.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-

आयसीमांत उपभोग प्रवृत्तिबचतऔसत बचत प्रवृत्ति (APS)
0-90
1000.6
2000.6
3000.6

हल:

आयसीमांत उपभोग प्रवृत्तिउपभोगबचतऔसत बचत प्रवृत्ति (APS)
090-90
1000.6150-50-0.5
2000.6210-10-0.05
3000.6270300.1

प्रयोग किए गए सूत्र-

  • उपभोग में परिवर्तन = सीमांत उपभोग प्रवृत्ति x आय में परिवर्तन
  • वर्तमान आय स्तर पर उपभोग = पूर्ववत्त उपभोग + उपभोग में परिवर्तन
  • औसत बचत प्रवृत्ति = \(\frac { बचत }{ आय }\)

प्रश्न 11.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-

आयसीमांत उपभोग प्रवृति (MPC)बचतऔसत उपभोग प्रवृत्ति (APC)
00.75-30
1000.75
2000.75

हल:

आयसीमांत उपभोग प्रवृति (MPC)बचतऔसत उपभोग प्रवृत्ति (APC)
00.75-30
1000.75-51.05
2000.75200.90
3000.75450.85

प्रयोग किए गए सूत्र-
(i) औसत उपभोग प्रवृत्ति = \(\frac { उपभाग }{ आय }\)

(ii) बचत = आय – उपभोग

(iii) शून्य आय पर उपभोग = – बचत

(iv) उपभोग में परिवर्तन = सीमांत उपभोग प्रवृत्ति x आय में परिवर्तन

(v) 0 आय पर उपभोग = 30
100 आय पर उपभोग = 30 + 75 = 105
200 आय पर उपभोग = 105 + 75 = 180
300 आय पर उपभोग = 180 + 75 = 255

प्रश्न 12.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-

आय का स्तर
(रुपए)
उपभोग व्यय
(रुपए)
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC)
सीमांत बचत प्रतृत्ति
(MPS)
400240
500320
600395
700465

हल:
प्रयोग किए गए सूत्र-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 33
वैकल्पिक रूप से-
सीमांत बचत प्रवृत्ति = 1 – सीमांत उपभोग प्रवृत्ति

आय का स्तर (रुपए)उपभोग व्यय (रुपए)सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC)सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS)
400240
5003200.800.20
6003950.750.25
7004650.700.30

प्रश्न 13.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-

आय (रुपए)उपभोग व्यय (रुपए)सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS)औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC)
015
5050
10085
150120

हल:

आय (रुपए)उपभोग व्यय (रुपए)सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS)औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC)
015
50500.31.0
100850.30.85
1501200.30.80

प्रयोग किए गए सूत्र
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 34

प्रश्न 14.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-

आय (रुपए)
(Y)
उपभोग व्यय (रुपए)
(C)
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC)
सीमांत बचत प्रदृत्ति
(MPS)
1000900
12001060
14001210
16001350

हल:

आय (रुपए)
(Y)
उपभोग व्यय (रुपए)
(C)
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC) (∆C/∆Y)
सीमांत बचत प्रदृत्ति
(MPS)(∆S/∆Y)
1000900
12001060160 / 200 = 0.840 / 200 = 0.2
14001210150 / 200 = 0.7550 / 200 = 0.25
16001350140 / 200 = 0.760 / 200 = 0.3

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 15.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-

आय (रुपए)
(Y)
उपभोग व्यय (रुपए)
(C)
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC))
औसत उपभोग प्रवृत्ति
(APC)
20001900
30002700
40003400
50004000

हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 35

प्रश्न 16.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-

आयबचतसीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC)
औसत बचत प्रवृत्ति
(APS)
0-6
20-3
400
603

हल:

आयबचतसीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC)
औसत बचत प्रवृत्ति
(APS)
0-6
20-30.850.15
4000.85
6030.850.05

प्रयोग किए गए सूत्र-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 36

प्रश्न 17.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-

आय(Y)बचत(S)सीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC)
औसत बचत प्रवृत्ति
(APS)
0-12
20-6
400
606

हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 37

प्रश्न 18.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए

आयबचतसीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC)
औसत बचत प्रवृत्ति
(APS)
0-20
50-10
1000
15030
20060

हल:

आयबचतसीमांत उपभोग प्रवृत्ति
(MPC)
औसत बचत प्रवृत्ति
(APS)
0-20
50-100.81.2
10000.81
150300.40.8
200600.40.7

प्रयोग किए गए सूत्र-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 38

प्रश्न 19.
नीचे आय के विभिन्न स्तरों पर उपभोग की मात्राएँ दी गई हैं। APC, MPC, APS तथा MPS ज्ञात कीजिए।

आय (करोड़ रुपए)
Y
उपभोग (रुपए)

C

10090
200170
300240
400300
500350
600390
700420

हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 39

निवेश गुणक पर आधारित अंकमूलक प्रश्न

प्रश्न 1.
निवेश में 1,000 रुपए की वृद्धि से कुल राष्ट्रीय आय में 5,000 रुपए की वृद्धि होती है। गुणक का मूल्य क्या है?
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 40

प्रश्न 2.
यदि सीमांत उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य \(\frac { 4 }{ 5 }\) हो, तो गुणक (K) का मूल्य ज्ञात कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 41

प्रश्न 3.
यदि सीमांत बचत प्रवृत्ति का मूल्य 0.25 हो, तो गुणक का मूल्य ज्ञात कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 42

प्रश्न 4.
यदि MPC 0.50 है, तो गुणक का मूल्य निकालिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.50}=\frac{1}{0.50}=\frac{1}{50}=\frac{100}{50}\) = 2 उत्तर

प्रश्न 5.
यदि MPS 0.1 है, तो गुणक के मूल्य का परिकलन कीजिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}=\frac{1}{0.1}=\frac{1}{1 / 10}\) = 10

प्रश्न 6.
एक अर्थव्यवस्था में आय का स्तर 2000 करोड़ रुपए है और MPC 0.75 है। यदि निवेश 200 करोड़ रुपए बढ़ता है तो आय में कुल वृद्धि निकालिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}\) = 4
आय में कुल वृद्धि = 200 x 4 = 800 करोड़ रुपए उत्तर

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 7.
एक अर्थव्यवस्था में MPC 0.75 है। यदि निवेश व्यय 500 करोड़ रुपए बढ़ा दिया जाए तो आय और उपभोग व्यय में होने वाली कुल वृद्धि ज्ञात कीजिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}\) = 4
आय में कुल वृद्धि = निवेश में वृद्धि – K = 500 x 4 = 2000 करोड़ रुपए
उपभोग व्यय में वृद्धि = 2000 का 0.75 = 2000 का 3/4 = 1500 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 8.
निम्नलिखित परिस्थितियों में आय में परिवर्तन की गणना कीजिए जब-
(i) सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = 0.8 हो।
(ii) निवेश में परिवर्तन = 1,000 रुपए हो।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 43

प्रश्न 9.
यदि गुणक का मूल्य 5 है, तो सीमांत उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य परिकलित कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 44

प्रश्न 10.
निवेश में 20 करोड़ रुपए की वृद्धि से राष्ट्रीय आय में 100 करोड़ रुपए की वृद्धि होती है। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) ज्ञात कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 45

प्रश्न 11.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश में 120 करोड़ रुपए की वृद्धि की गई। गुणक (K) का मूल्य 4 है। MPC का मूल्य निकालिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac { 1 }{ 1-MPC }\) या 4 = \(\frac { 1 }{ 1-MPC }\) 4 – 4 MPC = 1
MPC = 4 – 1 = 3
MPC = 3/4 = 0.75

प्रश्न 12.
निवेश में 200 करोड़ रुपए की वृद्धि से राष्ट्रीय आय में 1,000 करोड़ रुपए की वृद्धि होती है। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) ज्ञात कीजिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}=\frac{1000}{200}\) = 5
K = \(\frac { 1 }{ 1-MPC }\) या 5 = \(\frac { 1 }{ 1-MPC }\) या 5-5 MPC = 1 या
5MPC = 5 – 1 = 4 MPC = 4/5 = 0.8 उत्तर

प्रश्न 13.
एक अर्थव्यवस्था में सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) 0.2 है और निवेश में वृद्धि 100 करोड़ रुपए होती है। राष्ट्रीय आय में होने वाली कुल वृद्धि परिकलित कीजिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}=\frac{1}{0.2}=\frac{1}{1 / 5}=1 \times \frac{5}{1}\) = 4
राष्ट्रीय आय में वृद्धि = 5 x 100 = 500 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 14.
निवेश में 125 रुपए की वृद्धि राष्ट्रीय आय में 500 करोड़ रुपए की वृद्धि लाती है। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) का परिकलन कीजिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}=\frac{500}{125}\) = 4
K = \(\frac { 1 }{ 1-MPC }\) या 4 = \(\frac { 1 }{ 1-MPC }\) या 4 – 4 MPC = 1
4 MPC = 4 – 1 = 3 या MPC = 3/4 = 0.75 उत्तर

प्रश्न 15.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश में वृद्धि से राष्ट्रीय आय में वृद्धि, निवेश में वृद्धि से 3 गुना अधिक होती है। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) का परिकलन कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 46
MPC = 3 – 1 = 2 या MPC = 2/3 = 0.67 उत्तर

प्रश्न 16.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश व्यय में 400 करोड़ रुपए की वृद्धि की जाती है और MPC 0.8 है। आय और बचत में होने वाली कुल वृद्धि ज्ञात कीजिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.8}=\frac{1}{0.2}=\frac{1}{1 / 5}\) = 5
आय में कुल वृद्धि = 400 x 5 = 2000 करोड़ रुपए
बचत में कुल वृद्धि = 2000 का 0.2 = 400 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 17.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश व्यय में 700 करोड़ रुपए की वृद्धि होती है। MPC 0.9 है। आय और उपभोग व्यय में होने वाली कुल वृद्धि ज्ञात कीजिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{1}{1-M P C}=\frac{1}{1-0.9}=\frac{1}{0.1}\) = 10
आय में कुल वृद्धि = 700 x 10 = 7000 करोड़ रुपए
उपभोग व्यय में कुल वृद्धि = 7000 का 0.9 = 7000 x 9/10 = 6300 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 18.
यदि MPC 0.9 हो और निवेश में वृद्धि 100 करोड़ रुपए हो तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि ज्ञात कीजिए।
हल:
गुणक (K) = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.9}=\frac{1}{0.1}=\frac{1}{1 / 10}=\) = 10
राष्ट्रीय आय में वृद्धि = 100 x 10 = 1000 करोड़ रुपए उत्तर

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 19.
एक अर्थव्यवस्था में जब भी आय में वृद्धि होती है तो आय में वृद्धि का 75% उपभोग पर व्यय किया जाता है। अब मान लीजिए उसी अर्थव्यवस्था में निवेश में 750 करोड़ रुपए की वृद्धि होती है। निम्नलिखित ज्ञात कीजिए-) आय में परिवर्तन, (ii) बचत में परिवर्तन।
हल:
आय में वृद्धि का 75% उपभोग पर व्यय करने का अर्थ है MPC = 75%
(i) K = \(\frac { 1 }{ 1-MPC }\) = \(\frac { 1 }{ 1-75/100}\) = \(\frac { 1 }{ 1-3/4 }\) = \(\frac { 1 }{ 1/4 }\) = 4
K = \(\frac { ∆Y }{ ∆C }\) अथवा 4 = \(\frac { ∆Y }{ 750 }\) Y∆ = 4 x 750 = 3,000 करोड़ रुपए
आय में परिवर्तन = 3000 करोड़ रुपए

(ii) MPS = 1 – MPC = 1 – 75% = 25%
बचत में परिवर्तन = आय में परिवर्तन का 25%
3000 का 25% = 750 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 20.
यदि एक अर्थव्यवस्था में निवेश 1,000 करोड़ रुपए से बढ़कर 1,200 करोड़ रुपए हो जाता है और इसके फलस्वरूप कुल आय में 800 करोड़ रुपए की वृद्धि होती है, तो सीमांत बचत प्रवृत्ति परिकलित कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 47

प्रश्न 21.
एक अर्थव्यवस्था में सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है। यदि इस अर्थव्यवस्था में निवेश में 300 करोड़ रुपए की वृद्धि होती है, तो इसका कुल आय पर क्या प्रभाव होगा?
हल:
कुल आय में वृद्धि = निवेश में वृद्धि x गुणक
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 48
अतः कुल आय में वृद्धि = 300 x 4 = 1,200 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 22.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश व्यय में 1,000 रुपए की वृद्धि से आय में 10,000 रुपए की वृद्धि होती है। गणना कीजिए
(अ) निवेश गुणक
(ब) सीमांत उपभोग प्रवृत्ति
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 49

प्रश्न 23.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश में 200 करोड़ रुपए की वृद्धि होती है। इसके फलस्वरूप कुल आय में वृद्धि 1,000 करोड़ रुपए होती है। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति का परिकलन कीजिए।
हल:
कुल आय में वृद्धि = निवेश में वृद्धि x गुणक
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 50
5 – 5 सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = 1
5 सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = 5 – 1 = 4
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = \(\frac { 4 }{ 5 }\) = 0.8 उत्तर

प्रश्न 24.
निवेश में 1,500 करोड़ की वृद्धि करने से राष्ट्रीय आय में 7,500 करोड़ की वृद्धि होती है। निवेश गुणक (K), सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) और सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) का परिकलन कीजिए।
हल:

  1. निवेश गुणक (K) = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}=\frac{7,500}{1,500}\) = 5
  2. K = \(\frac { 1 }{ MPS }\) या MPS = \(\frac { 1 }{ K }\) = \(\frac { 1 }{ 5 }\) = 0.2
  3. MPC = 1 – MPS = 1 – 0.2 = 0.8 उत्तर

प्रश्न 25.
एक अर्थव्यवस्था में आय का स्तर 2,000 करोड़ रुपए है और सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है। यदि निवेश में 200 करोड़ रुपए की वृद्धि होती है तो आय में होने वाली कुल वृद्धि की गणना कीजिए।
हल:
आय में होने वाली वृद्धि = निवेश में वृद्धि x गुणक
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 51
इसलिए, आय में होने वाली वृद्धि= 200 x 4 = 800 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 26.
निवेश में 200 करोड़ रुपए की वृद्धि से राष्ट्रीय आय में 1,000 करोड़ रुपए की वृद्धि होती है। सीमांत उपभोग प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
हल:
निवेश में वृद्धि = 200 करोड़ रुपए
राष्ट्रीय आय में वृद्धि = 1,000 करोड़ रुपए
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 52
सीमांत बचत प्रवृत्ति = \(\frac { 1 }{ 5 }\) = 0.2
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति = 1 – 0.2 = 0.8 उत्तर

आय के संतुलन स्तर पर आधारित संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक अर्थव्यवस्था में C = 500 + 0.9Y और I = 1000 है। (जहाँ C = उपभोग, Y = आय, I = निवेश है।) निम्नलिखित का परिकलन कीजिए-(i) आय का संतुलन स्तर (ii) आय के संतुलन स्तर पर उपभोग व्यय।
हल:
(i) संतुलन की स्थिति में,
Y = AD
Y = C + I
= 500+ 0.9Y + 1000
Y – 0.9Y = 500 + 1000
0.1Y = 1500
Y = 1500 x 10 = 15000 (यह आय का संतुलन स्तर है।)

(ii) C = 500 + 0.9Y
= 500 + 9/10 x 15000
= 500 + 13500
= 14000 (यह संतुलन पर उपभोग व्यय है।)

प्रश्न 2.
एक अर्थव्यवस्था में C = 300 + 0.5Y और I = 600 है। (जहाँ C = उपभोग, Y = आय, I = निवेश है।) निम्नलिखित का परिकलन कीजिए-(i) आय का संतुलन स्तर (ii) आय के संतुलन स्तर पर उपभोग व्यय।
हल:
(i) संतुलन की स्थिति में,
Y = AD
Y = C + I
= 300+ 0.5Y +600
Y – 0.5Y = 900
1/2Y = 900
Y = 900 x 2 = 1800 (यह आय का संतुलन स्तर है।)

(ii) C = 300 + 0.5Y
= 300 + \(\frac { 1 }{ 2 }\) x 1800
= 300 + 900 = 1200 (यह संतुलन पर उपभोग व्यय है।)

प्रश्न 3.
जब स्वायत्त (Autonomous) निवेश और उपभोग व्यय (A) 50 करोड़ रुपए हो और सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) 0.2 तथा आय का स्तर 4000 करोड़ रुपए हो तो प्रत्याशित (Ex-ante) समग्र माँग ज्ञात करें। यह भी बताएँ कि अर्थव्यवस्था संतुलन में है या नहीं, कारण भी बताएँ।
हल:
MPC = 1 – MPS = 1 – 0.2 = 0.8
AD = C + I (Ex-ante समग्र माँग)
= \(\overline{\mathrm{C}}\) + bY + \(\overline{\mathrm{I}}\) = \(\overline{\mathrm{A}}\) + bY (क्योंकि \(\overline{\mathrm{A}}\) = \(\overline{\mathrm{C}}\) + \(\overline{\mathrm{I}}\))
= 50 + (0.8 x 4000)
= 50 + 3200 करोड़ रुपए
= 3250 करोड़ रुपए
AS (Y) = 4000 करोड़ रुपए (Ex-ante समग्र पूर्ति दी गई है)
चूँकि समग्र माँग (अर्थात् 3250 करोड़), समग्र पूर्ति (अर्थात् 4000 करोड़) के बराबर नहीं है, इसलिए अर्थव्यवस्था संतुलन में नहीं है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

प्रश्न 4.
यदि उपभोग फलन C = 100 + 0.75Y (जहाँ C = उपभोग व्यय तथा Y = राष्ट्रीय आय) और निवेश व्यय 1000 रुपए हो तो ज्ञात कीजिए-(i) राष्ट्रीय आय का संतुलन स्तर, (ii) संतुलन स्तर पर उपभोग व्यय।
हल:
(i) संतुलन की स्थिति में,
Y = AD
Y = C + I
= 100 + 0.75Y + 1000
Y – 0.75Y = 100 + 1000 = 1100
25Y = 1100 अथवा 1/4Y = 1100
Y = 1100 x 4 = 4400 (यह आय का संतुलन स्तर है।)

(ii) C = 100 + 0.75Y (दिया है)
= 100 + \(\frac { 3 }{ 4 }\) x 4400
= 100 + 3300 = 3400 (यह आय के संतुलन पर उपभोग व्यय है।)

प्रश्न 5.
एक अर्थव्यवस्था में C = 600 + 0.5Y और Y = 1200 है। (जहाँ C = उपभोग, Y = आय और I = निवेश) निम्नलिखित का परिकलन कीजिए-(i) आय का संतुलन स्तर, (ii) संतुलन पर उपभोग।
हल:
(i) संतुलन की स्थिति में,
Y = AD
Y = C + I
= 600 + 0.5Y + 1200
Y – 0.5Y = 1800
1/2Y = 1800
Y = 1800 x 2 = 3600 (यह आय का संतुलन स्तर है।)

(ii) C = 600 + 0.5Y
= 600 + \(\frac { 1 }{ 2 }\) x 3600
= 600+ 1800 = 2400 (यह संतुलन पर उपभोग व्यय है।)

प्रश्न 6.
एक अर्थव्यवस्था में उपभोग फलन दिया हुआ है- C = 100 + 0.5Y
एक संख्यात्मक उदाहरण की सहायता से यह दिखाइए कि इस अर्थव्यवस्था में जैसे-जैसे आय बढ़ती है, औसत उपभोग प्रवृत्ति में कमी आएगी।
हल:
उपभोग फलन,
C = 100 + 0.5Y
100 रुपए के आय स्तर पर उपभोग (C)
= 100 + (0.5 x 100)
= 100 + 50 = 150 रुपए
इसी प्रकार विभिन्न आय स्तरों पर उपभोग निकाले जा सकते हैं और निम्नलिखित सारणी बनाई जा सकती है
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 53
उपर्युक्त सारणी को देखने से पता चलता है कि जैसे-जैसे आय बढ़ती है, औसत उपभोग प्रवृत्ति में कमी आती है।

प्रश्न 7.
एक अर्थव्यवस्था में बचत फलन दिया हुआ है- S = – 200 + 0.25Y
अर्थव्यवस्था उस समय संतुलन में होती है जब आय 2,000 के बराबर है। निम्नलिखित की गणना कीजिए-
(क) आय के संतुलन स्तर पर निवेश व्यय
(ख) स्वायत्त उपभोग
(ग) निवेश गुणक।
हल:
(क) आय के संतुलन स्तर पर नियोजित बचत और नियोजित निवेश बराबर होते हैं। संतुलन स्तर पर बचत की गणना निम्नलिखित प्रकार से की जा सकती है-
S = – 200 + 0.25Y
S = – 200 + 0.25 x 2000
= – 200 + 500 = 300
इस प्रकार आय के संतुलन स्तर पर निवेश व्यय = 300

(ख) स्वायत्त उपभोग से अभिप्राय उपभोग की उस राशि से है जो शून्य आय पर भी उपभोग में व्यय किया जाता है।
स्वायत्त उपभोग = शून्य आय पर ऋणात्मक बचत
= 200

(ग) निवेश गुणक (K) = \(\frac { 1 }{ 1-MPC }\) = \(\frac { 1 }{ MPS }\)
बचत फलन के अनुसार MPS = 0.25
= \(\frac { 1 }{ 0.25 }\)
निवेश गुणक = 4

प्रश्न 8.
एक अर्थव्यवस्था के बारे में दी गई निम्नलिखित सूचना से (i) उसकी राष्ट्रीय आय के संतुलन स्तर और (ii) राष्ट्रीय आय के संतुलन स्तर पर बचत का परिकलन कीजिए।
उपभोग फलन : C = 200 + 0.9Y (जहाँ C = उपभोग व्यय तथा Y = राष्ट्रीय आय) निवेश व्यय : I = 3,000
हल:
(i) राष्ट्रीय आय का संतुलन स्तर उस स्थिति में होगा जहाँ बचत और निवेश व्यय बराबर हो।
निवेश व्यय = 3,000
वांछित बचत = 3,000
बचत = आय – उपभोग
= Y – [200 + 0.9Y]
3000 की बचत का समीकरण इस प्रकार होगा,
Y – [200 + 0.9Y] = 3000
Y – 200 – 0.9Y = 3000
Y – 0.9Y = 3000 + 200
0.1Y = 3200
Y = 32000
इस प्रकार राष्ट्रीय आय का संतुलन स्तर 32000 होगा।

(ii) राष्ट्रीय आय के संतुलन स्तर पर
उपभोग व्यय = आय – बचत
= 32000 – 3000
= 29000

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HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. वर्तमान मुद्रा का आविष्कार हुआ
(A) वस्तु-विनिमय प्रणाली की कठिनाइयाँ दूर
(B) आर्थिक विकास के लिए करने के लिए
(C) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करने के लिए
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) वस्तु-विनिमय प्रणाली की कठिनाइयाँ दूर करने के लिए

2. भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना किस वर्ष में हुई?
(A) सन् 1905 में
(B) सन् 1920 में
(C) सन् 1935 में
(D) सन् 1995 में
उत्तर:
(C) सन् 1935 में

3. निम्नलिखित में से मुद्रा के प्राथमिक कार्य कौन-से हैं?
(A) विनिमय का माध्यम एवं मूल्य का माप
(B) मूल्य का माप एवं साख का आधार
(C) स्थगित भुगतान का मान एवं संचय का साधन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) विनिमय का माध्यम एवं मूल्य का माप

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

4. निम्नलिखित में से मुद्रा के गौण कार्य कौन-से हैं?
(A) साख एवं आय वितरण का आधार
(B) पूँजी को तरलता प्रदान करना व निर्णय का वाहक
(C) स्थगित भुगतान का मान एवं मूल्य का हस्तांतरण
(D) राष्ट्रीय आय का आकलन
उत्तर:
(C) स्थगित भुगतान का मान एवं मूल्य का हस्तांतरण

5. निम्नलिखित में से मुद्रा का कौन-सा कार्य गौण कार्य नहीं है?
(A) स्थगित भुगतानों का मान
(B) मूल्य का मापदंड
(C) मूल्य का संचय
(D) मूल्य का हस्तांतरण
उत्तर:
(B) मूल्य का मापदंड

6. निम्नलिखित में से मुद्रा के प्रकार में क्या शामिल नहीं है?
(A) बैंक साख
(B) पत्र मुद्रा
(C) धातु मुद्रा
(D) सोना
उत्तर:
(D) सोना

7. निम्नलिखित में से वैधानिक मुद्रा का रूप है-
(A) प्रचलन मुद्रा
(B) बैंक चैक
(C) बैंक ड्राफ्ट
(D) विनिमय बिल
उत्तर:
(A) प्रचलन मुद्रा

8. कानूनी मुद्रा का रूप किसे दिया जाता है?
(A) जो सरकार तथा देश के केंद्रीय बैंक द्वारा निकाली जाती है
(B) जो सरकार तथा व्यावसायिक बैकों द्वारा निकाली जाती है
(C) जो व्यावसायिक बैंकों द्वारा निकाली जाती है
(D) जो राज्य सरकारों द्वारा निकाली जाती है
उत्तर:
(A) जो सरकार तथा देश के केंद्रीय बैंक द्वारा निकाली जाती है

9. ‘मुद्रा विनिमय का माध्यम है।’ इससे अभिप्राय है-
(A) देश के समस्त भुगतान मुद्रा द्वारा किए जाते हैं
(B) मुद्रा विनिमय करती है
(C) मुद्रा वस्तुओं की कीमतें बताती हैं
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) देश के समस्त भुगतान मुद्रा द्वारा किए जाते हैं

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

10. निम्नलिखित में से कौन-सी मुद्रा की आवश्यक शर्त नहीं है?
(A) लेखे की इकाई
(B) मूल्य का संचय
(C) इसका आंतरिक मूल्य है
(D) यह विनिमय का माध्यम है
उत्तर:
(A) लेखे की इकाई

11. भारतीय रुपया है-
(A) प्रमाणिक मुद्रा
(B) सांकेतिक मुद्रा
(C) प्रमाणिक तथा सांकेतिक मुद्रा
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) सांकेतिक मुद्रा

12. रुपए के नोट है-
(A) परिवर्तनशील पत्र मुद्रा
(B) अपरिवर्तनशील पत्र मुद्रा
(C) प्रादिष्ट पत्र मुद्रा
(D) प्रतिनिधि पत्र मुद्रा
उत्तर:
(B) अपरिवर्तनशील पत्र मुद्रा

13. भारतीय रुपया है-
(A) विधि ग्राह्य मुद्रा
(B) प्रादिष्ट मुद्रा
(C) ऐच्छिक मुद्रा
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) विधि ग्राह्य मुद्रा

14. भारत में करेंसी नोट
(A) विधि मान्य मुद्रा है
(B) असीमित विधि मान्य मुद्रा है
(C) प्रादिष्ट मुद्रा है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

15. निम्नलिखित में से कौन-सी निकट मुद्रा है?
(A) समय जमा
(B) विनिमय पत्र
(C) ट्रेजरी बिल
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

16. सरकारी प्रतिभूतियाँ हैं-
(A) मुद्रा
(B) निकटवर्ती मुद्रा
(C) गैर मौद्रिक परिसंपत्तियाँ
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) निकटवर्ती मुद्रा

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

17. निम्नलिखित में से कौन-सी मुद्रा सांकेतिक है?
(A) सोने के सिक्के
(B) चाँदी के सिक्के
(C) कागज़ के नोट
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) कागज़ के नोट

18. जब मुद्रा का आंतरिक मूल्य एवं अंकित मूल्य समान हैं, तब इसे कहा जाता है
(A) सांकेतिक मुद्रा
(B) संपूर्णकाय मुद्रा
(C) आभास मुद्रा
(D) आदिष्ट मुद्रा
उत्तर:
(B) संपूर्णकाय मुद्रा

19. विधि ग्राह्य मुद्रा वह होती है, जिसे
(A) सरकार द्वारा वैधानिक स्वीकृति दे दी जाती है
(B) सामान्य जनता स्वीकार कर लेती है
(C) (A) व (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) सरकार द्वारा वैधानिक स्वीकृति दे दी जाती है

20. असीमित विधि ग्राह्य मुद्रा से अभिप्राय है-
(A) जिस मुद्रा का निश्चित मात्रा में सुरक्षित कोष रखकर असीमित मात्रा में निर्गमन किया जा सके
(B) जिस मुद्रा के पीछे शत-प्रतिशत कोष रखा जाता है
(C) जिसे असीमित मात्रा में स्वीकार किया जाता है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) जिस मुद्रा का निश्चित मात्रा में सुरक्षित कोष रखकर असीमित मात्रा में निर्गमन किया जा सके

21. मुद्रा पूर्ति के संबंध में कौन-सा कथन सत्य है?
(A) मुद्रा पूर्ति ब्याज दर से निर्धारित होती है
(B) मुद्रा पूर्ति व्यावसायिक बैंकों से नियंत्रित होती है
(C) मुद्रा पूर्ति में सिक्के, नोट तथा बैंक जमाएँ आती हैं
(D) मुद्रा पूर्ति का नियंत्रण भारतीय रिज़र्व बैंक करता है
उत्तर:
(D) मुद्रा पूर्ति का नियंत्रण भारतीय रिज़र्व बैंक करता है

22. उच्च शक्तिशाली मुद्रा (High Powered Money) है-
(A) भारतीय रिज़र्व बैंक के पास बैंकों की आरक्षित विधि
(B) बैंकों का समस्त ऋण एवं अग्रिम
(C) बैंकों के पास रखी मुद्रा
(D) जनता के पास रखी मुद्रा तथा भारतीय रिज़र्व बैंक के पास आरक्षित विधि
उत्तर:
(D) जनता के पास रखी मुद्रा तथा भारतीय रिज़र्व बैंक के पास आरक्षित विधि

23. भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के अनुसार उच्च शक्तिशाली मुद्रा है-
(A) जनता के पास नोट
(B) RBI के पास व्यावसायिक एवं सहकारी बैंकों की जमाएँ
(C) इन बैंकों का नकद + RBI के पास अन्य जमाएँ
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

24. भारत में एक रुपए के नोट कौन जारी करता है?
(A) भारतीय रिज़र्व बैंक
(B) भारत सरकार
(C) व्यापारिक बैंक
(D) हरियाणा सरकार
उत्तर:
(B) भारत सरकार

25. वर्तमान में भारत में नोट निर्गमन का अधिकार-
(A) सरकार के पास है
(B) RBI के पास है
(C) व्यावसायिक बैंक के पास है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) RBI के पास है

26. भारत में निम्नलिखित में से नोट जारी करने की कौन-सी व्यवस्था है?
(A) आनुपातिक विधि व्यवस्था
(B) न्यूनतम सुरक्षित व्यवस्था
(C) प्रतिशत अनुपात विधि व्यवस्था
(D) उपर्युक्त कोई नहीं
उत्तर:
(C) प्रतिशत अनुपात विधि व्यवस्था

27. भारत में नोट निर्गमन का अधिकार RBI के पास है किंतु यह बैंक नोट निर्गमन हेतु कितनी राशि का कोष स्वर्ण एवं विदेशी विनिमय के रूप में अपने पास रखता है?
(A) 400 करोड़ रुपए
(B) 40 प्रतिशत
(C) 200 करोड़ रुपए
(D) शत-प्रतिशत
उत्तर:
(C) 200 करोड़ रुपए

28. M1 है-
(A) जनता के पास चलन मुद्रा + बैंकों के पास माँग जमाएँ
(B) (A)+ डाकघर बचत बैंकों में बचत जमाएँ
(C) (A) + भारतीय रिज़र्व बैंक की अन्य जमाएँ
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) (A) + भारतीय रिज़र्व बैंक की अन्य जमाएँ

29. भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के अनुसार M2 के अंतर्गत शामिल है
(A) M1 + डाकघर बचत बैंकों में बचत जमाएँ
(B) M1 + बैंकों के पास काल जमाएँ (Call Deposits)
(C) जनता के पास चलन मुद्रा + बैंकों के पास माँग जमाएँ
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) M1 + डाकघर बचत बैंकों में बचत जमाएँ

30. M3 को परिभाषित किया जा सकता है
(A) M1 + डाकघर बचत बैंकों में बचत जमाएँ
(B) M1 + बैंकों की निवल जमाएँ
(C) M2 + बैंकों की समयबद्ध जमाएँ
(D) M2 + डाकघर बचत बैंकों में बचत जमाएँ
उत्तर:
(B) M1 + बैंकों की निवल ज़माएँ

31. M4 को परिभाषित किया जा सकता है-
(A) M3 + डाकघर बचत संगठनों के पास कुल जमाएँ
(B) M3 – डाकघर बचत संगठनों के पास कुल जमाएँ
(C) M2 + डाकघर बचत संगठनों के पास कुल जमाएँ
(D) M2 – डाकघर बचत संगठनों के पास कुल जमाएँ
उत्तर:
(A) M3 + डाकघर बचत संगठनों के पास कुल जमाएँ

32. भारत में 100 रुपए के नोट पर हस्ताक्षर होते हैं-
(A) वित्त मंत्रालय के सचिव के
(B) भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर के
(C) भारत के राष्ट्रपति के
(D) वित्तमंत्री के
उत्तर:
(B) भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर के

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

33. बैंक वह संस्था है जो-
(A) मुद्रा का व्यापार करती है।
(B) शेयर तथा परिसंपत्तियों का व्यापार करती है
(C) न केवल मुद्रा का व्यापार करती है बल्कि मुद्रा का निर्माण भी करती है
(D) वस्तुओं का निर्माण करती है
उत्तर:
(C) न केवल मुद्रा का व्यापार करती है बल्कि मुद्रा का निर्माण भी करती है

34. निम्नलिखित में से बैंकों का प्राथमिक कार्य है-
(A) एजेंट की तरह कार्य करना
(B) लॉकर सुविधाएँ उपलब्ध कराना
(C) संदर्भ पत्र जारी करना
(D) समय जमा स्वीकार करना
उत्तर:
(D) समय जमा स्वीकार करना

35. एक व्यावसायिक बैंक वह है जो-
(A) दीर्घकालीन ऋण देता है
(B) शेयर खरीदता है
(C) अल्पकालीन ऋण देता है
(D) नोट जारी करता है
उत्तर:
(C) अल्पकालीन ऋण देता है

36. बैंकों का एक महत्त्वपूर्ण कार्य-
(A) व्यक्तियों को कानूनी सलाह देना है।
(B) समाज में सहयोग की भावना जागृत करना है
(C) कृषि का विकास करना है
(D) साख निर्माण करना है
उत्तर:
(D) साख निर्माण करना है

37. व्यावसायिक बैंक का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है-
(A) जमाओं को स्वीकार करना
(B) एक एजेंट के रूप में कार्य करना
(C) साख का निर्माण करना
(D) निवेश करना
उत्तर:
(C) साख का निर्माण करना

38. इनमें से किस खाते के विरुद्ध चैक लिया जा सकता है?
(A) डिबेंचर जमा खाता
(B) शेयर जमा खाता
(C) चालू जमा खाता
(D) समय जमा खाता
उत्तर:
(C) चालू जमा खाता

39. निम्नलिखित में से कौन-सा कार्य व्यावसायिक बैंकों का नहीं है?
(A) ऋण प्रदान करना
(B) नोटों का निर्गमन करना
(C) धन का हस्तांतरण करना
(D) मूल्यवान वस्तुओं को सुरक्षित रखना
उत्तर:
(B) नोटों का निर्गमन करना

40. एक व्यावसायिक बैंक अपने उन्हीं ग्राहकों को ओवरड्राफ्ट की सुविधा देता है जिनका उस बैंक में-
(A) बचत बैंक खाता हो
(B) चालू बैंक खाता हो
(C) सावधि संचयी जमा खाता हो
(D) स्थायी जमा खाता हो
उत्तर:
(B) चालू बैंक खाता हो

41. निम्नलिखित में से व्यावसायिक बैंक का कार्य है-
(A) जमा स्वीकार करना
(B) विनिमय बिलों को भुनाना
(C) सरकारी वित्त व्यवस्था
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

42. अधिविकर्ष (Overdraft) सुविधा के अंतर्गत बैंक द्वारा-
(A) जमाओं पर नीची दर से ब्याज दिया जाता है
(B) जमाओं पर ऊँची दर से ब्याज दिया जाता है
(C) जमा रकम से अधिक रकम निकालने की सुविधा दी जाती है जिस पर ग्राहक को ब्याज देना पड़ता है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(C) जमा रकम से अधिक रकम निकालने की सुविधा दी जाती है जिस पर ग्राहक को ब्याज देना पड़ता है

43. व्यावसायिक बैंक का कार्य नहीं है-
(A) साख का निर्माण
(B) नोट निर्गमन
(C) ऋण प्रदान करना
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) नोट निर्गमन

44. अधिविकर्ष (overdraft) तथा नकद साख में मूल अंतर होता है-
(A) अधिविकर्ष अस्थाई व्यवस्था है जबकि नकद साख स्थाई व्यवस्था है
(B) अधिविकर्ष तथा नकद साख एक ही बात है
(C) अधिविकर्ष स्थाई व्यवस्था है जबकि नकद साख अस्थाई व्यवस्था है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) अधिविकर्ष अस्थाई व्यवस्था है जबकि नकद साख स्थाई व्यवस्था है

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

45. निम्नलिखित में से कौन-सा कार्य व्यावसायिक बैंक का नहीं है?
(A) यात्री चैक जारी करना
(B) साख का निर्माण
(C) नोट प्रचलन का कार्य
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) नोट प्रचलन का कार्य

46. यदि साख गुणक का मूल्य 10% है और व्यावसायिक बैंकों के पास 1,000 करोड़ रुपए हैं, तो अर्थव्यवस्था में साख का निर्माण कितना होगा?
(A) 1,000 करोड़ रुपए
(B) 10,000 करोड़ रुपए
(C) 100 करोड़ रुपए
(D) 11,000 करोड़ रुपए
उत्तर:
(B) 10,000 करोड़ रुपए

47. यदि साख गुणक का मूल्य 5% है और व्यावसायिक बैंकों के पास 1,000 करोड़ रुपए हैं, तो अर्थव्यवस्था में साख का निर्माण कितना होगा?
(A) 20,000 करोड़ रुपए
(B) 5,000 करोड़ रुपए
(C) 10,000 करोड़ रुपए
(D) 15,000 करोड़ रुपए
उत्तर:
(A) 20,000 करोड़ रुपए

48. यदि साख गुणक का मूल्य 10% है और व्यावसायिक बैंकों के पास 2,000 करोड़ रुपए हैं, तो अर्थव्यवस्था में साख का निर्माण कितना होगा?
(A) 21,000 करोड़ रुपए
(B) 200 करोड़ रुपए
(C) 2,000 करोड़ रुपए
(D) 20,000 करोड़ रुपए
उत्तर:
(D) 20,000 करोड़ रुपए

49. देश में बैंकिंग व्यवस्था का संरक्षक है-
(A) रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI)
(B) सैंट्रल बैंक ऑफ इंडिया
(C) स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI)
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया

50. निम्नलिखित में से कौन-सा कार्य केंद्रीय बैंक का नहीं है?
(A) नोट निर्गमन का एकाधिकार
(B) व्यावसायिक बैंकों के नकद कोषों का संरक्षक
(C) साख निर्माण
(D) अंतिम ऋणदाता
उत्तर:
(C) साख निर्माण

51. भारत में कागज़ी मुद्रा जारी करने का एकाधिकार किसे है?
(A) व्यावसायिक बैंक को
(B) भारतीय रिज़र्व बैंक को
(C) वित्तीय बैंक को
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) भारतीय रिज़र्व बैंक को

52. केंद्रीय बैंक निम्नलिखित में से एक कार्य नहीं करता-
(A) जनता की जमा पर ब्याज देना
(B) सरकारी बैंकर के रूप में कार्य करना
(C) अंतिम ऋणदाता के रूप में कार्य करना
(D) समाशोधन गृह के रूप में कार्य करना
उत्तर:
(A) जनता की जमा पर ब्याज देना

53. निम्नलिखित में से केंद्रीय बैंक तथा व्यावसायिक बैंक में कौन-सा अंतर है?
(A) नोट निर्गमन का एकाधिकार
(B) साख नियंत्रण
(C) सरकार का बैंक
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

54. भारत का केंद्रीय बैंक निम्नलिखित में से कौन-सा बैंक है?
(A) स्टेट बैंक ऑफ इंडिया
(B) सैंट्रल बैंक ऑफ इंडिया
(C) रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया
(D) यूनियन बैंक ऑफ इंडिया
उत्तर:
(C) रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

55. सावधि (मियादी) जमाएँ होती हैं-
(A) चैक आहरित जमाएँ
(B) गैर चैक आहरित जमाएँ
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) गैर चैक आहरित जमाएँ

56. निम्नलिखित में से कौन-सा कारण नियंत्रण का मात्रात्मक उपाय नहीं है?
(A) नकद कोष अनुपात (CRR)
(B) वैधानिक तरलता अनुपात (SLR)
(C) बैंक दर (Bank Rate)
(D) साख की राशनिंग
उत्तर:
(D) साख की राशनिंग

57. निम्नलिखित में से साख नियंत्रण की गुणात्मक विधि कौन-सी है?
(A) बैंक दर (Bank Rate)
(B) खुले बाज़ार की क्रियाएँ (OMO)
(C) नकद आरक्षित अनुपात (CRR)
(D) साख की राशनिंग
उत्तर:
(D) साख की राशनिंग

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. ………………. की कठिनाइयों को दूर करने के लिए वर्तमान मुद्रा का आविष्कार हुआ। (आर्थिक विकास/वस्तु-विनिमय प्रणाली)
उत्तर:
वस्तु-विनिमय प्रणाली

2. विनिमय का माध्यम एवं ……………….. मुद्रा के प्राथमिक कार्य हैं। (मूल्य का माप/साख का आधार)
उत्तर:
मूल्य का माप

3. ………………. का मान एवं मूल्य का हस्तांतरण मुद्रा के गौण कार्य हैं। (राष्ट्रीय आय स्थगित भुगतान)
उत्तर:
स्थगित भुगतान

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

4. मुद्रा के प्रकार में ………………. शामिल होती है। (धातु मुद्रा/सोना)
उत्तर:
धातु मुद्रा

5. मुद्रा में ………………. शामिल होते हैं। (केवल सिक्के/करेंसी व बैंक जमा)
उत्तर:
करेंसी व बैंक जमा

6. भारतीय रुपया ………………. मुद्रा है। (प्रमाणिक/सांकेतिक)
उत्तर:
सांकेतिक

C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत

  1. व्यापारिक बैंकों को नोट निर्गमन का एकाधिकार प्राप्त है।
  2. साख के विस्तार तथा संकुचन की नीति को साख-नियंत्रण कहते हैं।
  3. केंद्रीय बैंक का देश के आर्थिक विकास के साथ कोई सम्बन्ध नहीं होता।
  4. भारतीय स्टेट बैंक की स्थापना वर्ष 1958 में की गई थी।
  5. देश के केंद्रीय बैंक को नोट निर्गमन का एकाधिकार प्राप्त है।
  6. भारत में 1 रुपए के नोट भारत सरकार के द्वारा जारी किए जाते हैं।
  7. भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना अप्रैल, 1935 में की गई थी।
  8. व्यापारिक बैंक साख का निर्माण नहीं कर सकते।
  9. केन्द्रीय बैंक का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना है।
  10. केंद्रीय बैंक साख का निर्माण करता है।
  11. भारत का केन्द्रीय बैंक रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया है।
  12. मुद्रा में केवल करेंसी नोट शामिल किए जाते हैं।
  13. साख निर्माण तथा माँग जमा का सीधा अनुपात होता है।
  14. प्रमाणिक सिक्के का आन्तरिक मूल्य तथा अंकित मूल्य बराबर होते हैं।
  15. मुद्रा की तुलना में निकट मुद्रा कम तरल होती है।
  16. प्राथमिक जमा तथा गौण जमा में कोई अन्तर नहीं होता।
  17. एक रुपए का नोट सीमित विधि ग्राह्य है।
  18. देश के केन्द्रीय बैंक को नोट निर्गमन का एकाधिकार प्राप्त नहीं है।
  19. भारत में RBI द्वारा सिक्के जारी किए जाते हैं।
  20. मुद्रा विनिमय के माध्य’ के रूप में कार्य करती है।

उत्तर:

  1. गलत
  2. सही
  3. गलत
  4. गलत
  5. सही
  6. सही
  7. सही
  8. सही
  9. गलत
  10. सही
  11. सही
  12. गलत
  13. गलत
  14. सही
  15. सही
  16. गलत
  17. गलत
  18. गलत
  19. सही
  20. सही।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आवश्यकताओं के दोहरे संयोग के अभाव से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
आवश्यकताओं के दोहरे संयोग के अभाव से हमारा अभिप्राय यह है कि एक व्यक्ति जिसके पास जो अतिरिक्त वस्त; जैसे गेहूँ है और उसे जिस वस्तु; जैसे दाल की ज़रूरत है, तभी विनिमय कर सकेगा जब वह ऐसे व्यक्ति की खोज कर ले जिसे गेहूँ की ज़रूरत हो तथा जो दाल देने के लिए तैयार हो।

प्रश्न 2.
व्यापार लागत (Trading Cost) क्या है?
उत्तर:
व्यापार लागत वस्तु-विनिमय के माध्यम से व्यापार करवाने की लागत है।

प्रश्न 3.
व्यापार लागतों के दो घटक बताइए।
उत्तर:
व्यापार लागतों के दो घटक निम्नलिखित हैं-

  • अन्वेषण (तलाश) लागत।
  • प्रतीक्षा की अनुपयोगिता।

प्रश्न 4.
तलाश लागत (Search Cost) क्या है?
उत्तर:
तलाश लागत उस व्यक्ति को खोजने की लागत है जो उसे उसके पास रखी वस्तु के बदले उसकी इच्छित वस्तु प्रदान कर सके।

प्रश्न 5.
मुद्रा क्या है?
उत्तर:
मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जो विनिमय के माध्यम, मूल्य के मापक, ऋणों के अंतिम भुगतान तथा मूल्यों के संचय के साधन के रूप में स्वतंत्र, विस्तृत तथा सामान्य रूप से व्यक्तियों द्वारा निःसंकोच स्वीकार की जाती है।

प्रश्न 6.
मुद्रा की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
मुद्रा की परिभाषा किसी भी ऐसी वस्तु के रूप में की जा सकती है जिसे साधारणतया विनिमय का माध्यम स्वीकार किया जाता है और इसके साथ ही जो मूल्य के मापक और मूल्य के संचय का भी कार्य करती है।

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प्रश्न 7.
असीमित विधि ग्राह्य (मान्य) मुद्रा (Unlimited Legal Tender Money) क्या है?
उत्तर:
वह मुद्रा जिसे असीमित मात्रा में भुगतान के रूप में स्वीकार किया जाता है, उसे असीमित विधि ग्राह्य (मान्य) मुद्रा हते हैं। भारत में दो रुपए, पाँच रुपए के सिक्के तथा सभी मूल्यों के कागजी नोट असीमित विधि मान्य मुद्रा है। इन्हें लेने से मना करने पर राजदंड दिया जा सकता है।

प्रश्न 8.
वास्तविक मुद्रा क्या है? उत्तर:वास्तविक मुद्रा, मुद्रा का वह रूप है जो देश में वस्तुओं और सेवाओं के विनिमय के माध्यम के रूप में प्रचलित होती है। प्रश्न 9. साख मुद्रा अथवा बैंक मुद्रा किसे कहते हैं?
उत्तर:
साख मुद्रा, जिसे बैंक मुद्रा भी कहते हैं, वह मुद्रा है जिसे लोगों द्वारा बैंकों में जमा किया जाता है और किसी भी समय माँगने पर इसे प्राप्त किया जा सकता है। यह मुद्रा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को साख पत्रों के माध्यम से हस्तांतरित की जा सकती है।

प्रश्न 10.
ऐच्छिक मुद्रा का अर्थ उदाहरण देकर स्पष्ट करें।
उत्तर:
वह मुद्रा जिसको स्वीकार करना भुगतान प्राप्तकर्ता की इच्छा पर निर्भर करे, ऐच्छिक मुद्रा कहलाती है। उदाहरणार्थ चैक, विनिमय पत्र आदि।

प्रश्न 11.
निकट मुद्रा (Near Money) किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह मुद्रा जिसका प्रयोग प्रत्यक्ष लेन-देन के लिए नहीं किया जाता है, किंतु जिसे मुद्रा के रूप में बड़ी सरलता से तथा बिना लागत के परिवर्तित किया जा सकता है, निकट मुद्रा कहलाती है।

प्रश्न 12.
सहायक मुद्रा (Subsidiary Money) क्या है?
उत्तर:
वह मुद्रा जो मुख्य मुद्रा की सहायता करती है, सहायक मुद्रा कहलाती है। भारत में एक रुपया तथा 50 पैसे तक के सिक्के सहायक मुद्रा की श्रेणी में आते हैं। इसे सीमित विधि मान्य मुद्रा भी कहा जाता है क्योंकि भारत में, इनका प्रयोग केवल 25 रुपए के भुगतान तक के लिए किया जा सकता है।

प्रश्न 13.
धात्विक मुद्रा एवं पत्र मुद्रा क्या होती है?
उत्तर:
किसी धातु; जैसे सोना, चाँदी, निकल, ताँबा आदि से बनी मुद्रा को धात्विक मुद्रा तथा कागज़ से बनी मुद्रा को पत्र मुद्रा कहते हैं।

प्रश्न 14.
सांकेतिक (प्रतीक) मुद्रा (Token Money) क्या होती है?
उत्तर:
सांकेतिक मुद्रा वह होती है जिसका अंकित मूल्य धात्विक मूल्य से अधिक होता है।

प्रश्न 15.
मानक मुद्रा (Standard Money) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मानक मुद्रा वह मुद्रा है जिसका अंकित मूल्य, उसके वस्तु मूल्य के बराबर होता है। इसे पूर्णकाय सिक्के (Full Bodies Coins) भी कहते हैं।

प्रश्न 16.
प्रतिनिधि पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा क्या है?
उत्तर:
प्रतिनिधि पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा वह कागज़ी मुद्रा है जिसे मुद्रा पर अंकित मूल्य के बराबर पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा की मात्रा या सोने-चाँदी में परिवर्तित किया जा सकता है।

प्रश्न 17.
समीपवर्ती मुद्रा या मुद्रासम क्या है?
उत्तर:
समीपवर्ती मुद्रा या मुद्रासम वे संपत्तियाँ हैं जो वास्तव में मुद्रा के समान तरल नहीं हैं, परंतु इन्हें मुद्रा के रूप में आसानी से परिवर्तित किया जा सकता है।

प्रश्न 18.
भारत में किस प्रकार की मौद्रिक व्यवस्था का अनुसरण होता है?
उत्तर:
भारत में ‘प्रबंधित कागज़ मुद्रामान’ का प्रयोग होता है, जिसके लिए ‘न्यूनतम सुरक्षित कोष’ के आधार पर नोटों का निर्गम होता है।

प्रश्न 19.
उच्च शक्तिशाली मुद्रा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वह मुद्रा जो केवल मौद्रिक प्राधिकरण (जैसे भारत में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और भारत सरकार) द्वारा उत्पन्न या उत्पादित की जाती है, उच्च शक्तिशाली मुद्रा कहलाती है। इस मुद्रा को मौद्रिक आधार मुद्रा भी कहा जाता है। उच्च शक्तिशाली मुद्रा (H) में, जनता द्वारा अपने पास रखी गई करेंसी (C) बैंकों के नकद कोष [(Cash Reserve (R)] भारतीय रिज़र्व बैंक के पास रखी गई विदेशियों आदि की जमाएँ [Other Deposits (OD)] शामिल की जाती हैं, अर्थात् उच्च शक्तिशाली मुद्रा (H) = C + R+ OD के बराबर होती है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

प्रश्न 20.
किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा का मुख्य कार्य क्या है?
उत्तर:
किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा का मुख्य कार्य वस्तुओं और सेवाओं के लेन-देन को सरल बनाना है अर्थात् व्यापार में लगने वाले समय और परिश्रम को कम करना है।

प्रश्न 21.
आर्थिक प्रणाली में मुद्रा के प्रमुख चार कार्य क्या हैं?
उत्तर:
आर्थिक प्रणाली में मुद्रा के चार प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

  1. मूल्य मान की इकाई
  2. विनिमय का माध्यम
  3. भविष्य के भुगतानों का मानक
  4. मूल्य के भंडार के रूप में।

प्रश्न 22.
मुद्रा के मूल्य से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
मुद्रा के मूल्य से तात्पर्य मुद्रा की क्रय-शक्ति से होता है।

प्रश्न 23.
मुद्रामान से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
मुद्रामान से तात्पर्य उस मानक मुद्रा से है जिसका अर्थव्यवस्था में प्रयोग होता है।

प्रश्न 24.
मुद्रा को सबसे तरल संपत्ति क्यों माना गया है?
उत्तर:
मुद्रा को सबसे तरल संपत्ति इसलिए माना गया है क्योंकि मुद्रा को किसी दूसरी वस्तु के रूप में कभी भी आसानी से विनिमयः किया जा सकता है।

प्रश्न 25.
लोग मुद्रा में भुगतान प्राप्त करना क्यों पसंद करते हैं?
उत्तर:
जिन लेन-देनों (ऋणों आदि) का भुगतान तत्काल न करके भविष्य के लिए स्थगित कर दिया जाता है, उन्हें स्थगित भुगतान कहा जाता है। लोग स्थगित भुगतानों को मुद्रा में प्राप्त करना पसंद करते हैं, चूँकि-

  1. अन्य वस्तुओं की तुलना में मुद्रा का मूल्य स्थिर रहता है
  2. इसमें सामान्य स्वीकृति का गुण पाया जाता है तथा
  3. अन्य वस्तुओं की तुलना में यह अधिक टिकाऊ होती है।

प्रश्न 26.
क्या भारत में 50 पैसे के सिक्के सीमित विधि ग्राह्य मुद्रा हैं या नहीं?
उत्तर:
जब एक सीमा के अंदर ही मुद्रा का भुगतान कानूनन स्वीकार किया जाता है तो उसे सीमित विधि ग्राह्य (मान्य) मुद्रा (Limited Legal Tender Money) कहा जाता है। भारत में छोटे मूल्य के सिक्के; जैसे कि 50 पैसे का सिक्का सीमित विधि ग्राह्य (मान्य) मुद्रा है, क्योंकि छोटे सिक्के अधिक-से-अधिक 25 रुपए तक ही स्वीकार करने के लिए बाध्य होते हैं।

प्रश्न 27.
क्या भारत में 5 (10) रुपए का सिक्का संपूर्ण मूर्तिमान मुद्रा है? कारण दें।
उत्तर:
संपूर्ण मूर्तिमान मुद्रा (Full-bodied Money) वह मुद्रा होती है जिसका मौद्रिकमान, वस्तुमान के समान होता है अर्थात् जिस मुद्रा का अंकित मूल्य उसके धात्विक मूल्य के समान होता है। भारत में प्रचलित 5 रुपए का सिक्का संपूर्ण मूर्तिमान मुद्रा नहीं है, क्योंकि इसमें प्रयुक्त धातु का वास्तविक मूल्य इस पर अंकित मूल्य के बराबर नहीं है।

प्रश्न 28.
संव्यवहार प्रयोजन के लिए मुद्रा की माँग का सूत्र लिखें।
उत्तर:
मुद्रा की माँग, \(\mathbf{M}_{\mathrm{T}}^{d}\) = k.T
यहाँ, k = धनात्मक अंश
T = एक इकाई समयावधि में संव्यवहारों का मौद्रिक मूल्य।

प्रश्न 29.
सट्टा प्रयोजन के लिए मुद्रा की माँग का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
सट्टा प्रयोजन के लिए मुद्रा की माँग, \(\mathbf{M}_{\mathrm{d}}^{S}\) = kPY
यहाँ,
k = धनात्मक अंश
P = सामान्य कीमत स्तर
Y = वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद।

प्रश्न 30.
मुद्रा की पूर्ति की स्टॉक और प्रवाह धारणाएँ क्या हैं?
उत्तर:
मुद्रा की पूर्ति का स्टॉक तथा प्रवाह दोनों रूपों में अध्ययन किया जाता है। मुद्रा की स्टॉक धारणा से अभिप्राय समय के एक निश्चित बिंदु पर पाई जाने वाली मुद्रा की पूर्ति से है। मुद्रा की प्रवाह धारणा से अभिप्राय समय की एक निश्चित अवधि से मुद्रा की कुल मात्रा तथा उसकी चलन गति (Velocity) की गुणा से है। इस प्रकार मुद्रा पूर्ति प्रवाह के रूप में → MV होती है। यहाँ M से अभिप्राय जनता के पास मुद्रा के स्टॉक से है, जबकि V मुद्रा की चलन गति को प्रदर्शित करती है।

प्रश्न 31.
मुद्रा की पूर्ति के तीन मुख्य घटक कौन-से हैं?
उत्तर:
मुद्रा की पूर्ति = करेंसी (नोट + सिक्के) + माँग जमाएँ + सावधि जमाएँ।

प्रश्न 32.
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा प्रतिपादित मुद्रा के चार विभिन्न माप कौन-से हैं? इनमें सबसे लोकप्रिय माप कौन-सा है?
उत्तर:
M1, M2, M3 तथा M4। इनमें सबसे अधिक लोकप्रिय माप M3 है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

प्रश्न 33.
M1 के कौन-से घटक हैं?
उत्तर:
M1 = C + DD + OD
अर्थात M2 = जनता के पास धारित करेंसी +बैंकों के पास निवल माँग जमाएँ + भारतीय रिजर्व बैंक के पास अन्य जमाएँ।

प्रश्न 34.
M2 के घटक बताइए।
उत्तर:
M2 = M1 + Deposits in Post Office Saving Bank Accounts
अर्थात् M1 = जनता के पास धारित करेंसी + बैंकों की निवल माँग जमाएँ + भारतीय रिज़र्व बैंक के पास अन्य जमाएँ + डाकघर बचत बैंकों की बचत जमाएँ।

प्रश्न 35.
M3 के घटकों के नाम बताइए।
उत्तर
M4 = M3 + Time Deposits with Banks
अर्थात् M4 = जनता के पास धारित करेंसी + बैंकों की निवल माँग जमाएँ + भारतीय रिज़र्व बैंक के पास अन्य जमाएँ + बैंकों की अवधि जमाएँ।

प्रश्न 36.
M4 के घटक कौन-से हैं?
उत्तर:
M4 = M3 + Total Deposits with Post Offices
अर्थात् M4 = जनता के पास धारित करेंसी + बैंकों की निवल माँग जमाएँ + भारतीय रिज़र्व बैंक के पास अन्य जमाएँ + बैंकों की अवधि जमाएँ + डाकघरों की कुल जमाएँ। (राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्रों (NSCs) को छोड़कर)

प्रश्न 37.
आदर्श मुद्रा पूर्ति (Ideal Money Supply) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आदर्श मुद्रा पूर्ति से अभिप्राय उस मुद्रा राशि से है जो अर्थव्यवस्था की कुल क्रय शक्ति या कुल माँग को कुल पूर्ति के साथ संतुलन की स्थिति में रखती है ताकि अर्थव्यवस्था को किसी भी स्फीतिक या विस्फीतिक दबाव का सामना न करना पड़े।

प्रश्न 38.
भारत में मुद्रा पूर्ति के स्रोत (Sources of Money Supply) कौन-से हैं?
उत्तर:
भारत में मुद्रा पूर्ति के तीन स्रोत हैं-

  1. भारत सरकार का वित्त मंत्रालय
  2. रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया तथा
  3. व्यावसायिक बैंक।

प्रश्न 39.
माँग जमाएँ क्या होती हैं?
उत्तर:
बैंकों की माँग जमाएँ (Demand Deposits) मुद्रा पूर्ति का एक महत्त्वपूर्ण संघटक है। प्रत्येक देश में लोग अपना धन माँग जमा के रूप में रखते हैं। माँग जमा के रूप में रखी गई रकम को जमाकर्ता अपनी इच्छानुसार कभी भी चैक द्वारा निकलवा सकता है। इस प्रकार माँग जमा के रूप में रखी गई रकम उतनी ही तरल (Liquid) है जितनी कि नोट तथा सिक्के।

प्रश्न 40.
माँग जमाओं को मुद्रा क्यों समझा जाता है?
उत्तर:
मुद्रा आधारिक रूप से विनिमय का माध्यम है। माँग जमाएँ विनिमय के माध्यम के रूप में कार्य करती हैं क्योंकि माँग जमा में मुद्रा (खाता धारक द्वारा) अन्य किसी को (चैक द्वारा) वस्तुओं तथा सेवाओं के खरीदने के लिए दी जा सकती है।

प्रश्न 41.
सावधि जमाओं को सामान्यतया मुद्रा की पूर्ति में शामिल नहीं किया जाता, क्यों?
उत्तर:
सावधि जमाएँ निश्चित अवधि जमाएँ (Fixed Deposits) हैं। सावधि जमाओं में मुद्रा माँगी जाने पर निकाली नहीं जा सकती। इसलिए माँग जमाओं की तुलना में सावधि जमाएँ मुद्रा का आधारभूत कार्य विनिमय का माध्यम नहीं करतीं।

प्रश्न 42.
साधारण मुद्रा (M1) तथा उच्च शक्तिशाली मुद्रा (H) में आधारभूत अंतर क्या है?
उत्तर:
उच्च शक्तिशाली मुद्रा (H) में बैंकों के पास माँग जमाओं को शामिल नहीं किया जाता जबकि साधारण मुद्रा (M1) में इन्हें शामिल किया जाता है। अतः उच्च शक्तिशाली मुद्रा वह होती है जो देश के मौद्रिक प्राधिकरणों द्वारा उत्पन्न की जाती है।

प्रश्न 43.
बैंकिंग क्या होती है?
उत्तर:
उधार देने या निवेश करने के ध्येय से जनता से माँगने पर या चैक, धनादेश आदि के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय जमाएँ स्वीकार करने को बैंकिंग कहते हैं।

प्रश्न 44.
व्यावसायिक बैंक की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
व्यावसायिक बैंक वह संस्था है जो लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से जमा स्वीकार करती है जिनका चैक द्वारा भुगतान कर दिया जाता है तथा जो लोगों को ऋण तथा अग्रिम (Loan and Advances) की सुविधा देती है। कलबर्टन (Culberston) के अनुसार, “व्यावसायिक बैंक वे संस्थाएँ हैं जो व्यापार को अल्पकाल के लिए ऋण देती हैं तथा मुद्रा का निर्माण करती हैं।” संक्षेप में, व्यावसायिक बैंक वे बैंक हैं जो लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से मुद्रा तथा साख का व्यापार करते हैं।

प्रश्न 45.
डाकघर बचत बैंक (Post Office Saving Bank) को बैंक क्यों नहीं माना जाता है?
उत्तर:
डाकघर बचत बैंक को बैंक इसलिए नहीं माना जाता है, क्योंकि ये बैंक के दो बुनियादी कार्यों-जनता से जमाएँ स्वीकार करना और ऋण देना में से जमाएँ तो स्वीकार करते हैं परंतु ऋण नहीं देते हैं।

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प्रश्न 46.
बैंक कितने प्रकार की जमाएँ स्वीकार करता है? उनके नाम बताइए।
उत्तर:
बैंक चार प्रकार की जमाएँ स्वीकार करता है। उनके नाम निम्नलिखित हैं-

  1. चालू जमाएँ
  2. बचत जमाएँ
  3. आवृत्ति अथवा संचयी जमाएँ
  4. सावधि जमाएँ।

प्रश्न 47.
बैंक कितने प्रकार के ऋण उपलब्ध कराता है?
उत्तर:
बैंक मुख्य रूप से चार तरह के ऋण देते हैं; जैसे-

  1. नकद साख
  2. ओवरड्राफ्ट
  3. माँग ऋण; काल मनी
  4. अल्पावधि ऋण।

प्रश्न 48.
ओवरड्राफ्ट किसे कहते हैं?
उत्तर:
बैंक द्वारा अपने चालू जमा खाते रखने वाले खाताधारियों को एक समझौते के अनुसार अपनी जमा राशि से अधिक रुपया निकाल लेने की सुविधा को ओवरड्राफ्ट कहते हैं।

प्रश्न 49.
नकद साख (Cash Credit) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
इसके अंतर्गत बैंक द्वारा ऋणी को निश्चित जमानत के आधार पर खाते से एक निश्चित राशि निकलवाने का अधिकार दे दिया जाता है। इस सीमा के अंदर ही ऋणी आवश्यकतानुसार रुपया निकलवाता रहता है तथा जमा भी करवाता रहता है।

प्रश्न 50.
साख निर्माण (Credit Creation) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आजकल साख निर्माण बैंकों का एक प्रमुख कार्य है। बैंकों द्वारा उनकी प्राथमिक जमाओं के आधार पर गौण जमाओं के विस्तार को साख निर्माण कहते हैं। बैंक अपनी प्राथमिक जमा से अधिक रुपया उधार देकर साख का निर्माण करते हैं।

प्रश्न 51.
प्राथमिक जमाओं तथा गौण जमाओं में क्या अंतर है?
उत्तर:
जब कोई बैंक अपने किसी ग्राहक से नकद धनराशि जमा के रूप में स्वीकार करता है, तो यह प्राथमिक जमा कहलाती है। लेकिन जब बैंक किसी व्यक्ति को उधार राशि नकद न देकर उसके खाते में जमा कर देता है तो उसे गौण जमा कहते हैं।

प्रश्न 52.
वैधानिक तरलता अनुपात (Statutory Liquidity Ratio-SLR) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कुल जमाओं का वह भाग जिसे बैंक को अपने पास नकदी के रूप में कानूनन रखना पड़ता है, वैधानिक तरलता अनुपात कहलाता है।

प्रश्न 53.
क्रेडिट कार्ड (Credit Card) क्या होते हैं?
उत्तर:
बैंकों द्वारा क्रेडिट कार्ड जारी किए जाते हैं। उनकी सहायता से उपभोक्ता आवश्यकता की वस्तुएँ खरीद सकते हैं, जिनका भुगतान बैंक करते हैं। क्रेडिट कार्ड उपभोक्ता व्यय को बढ़ाते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था में कुल माँग के स्तर में वृद्धि होती है जिससे आय और रोज़गार का स्तर बढ़ता है।

प्रश्न 54.
सरकारी प्रतिभूतियों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
भारतीय रिज़र्व बैंक व राज्य सरकारों द्वारा जारी प्रतिभूतियों को सरकारी प्रतिभूति कहा जाता है। उदाहरण के लिए राजकोषीय पत्र, राष्ट्रीय बचत पत्र आदि।

प्रश्न 55.
स्वीकृत प्रतिभूतियों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
स्वीकृत प्रतिभूतियों से अभिप्राय स्वर्ण, बुलियन सरकारी प्रतिभूतियों तथा आसानी से विक्रय योग्य अंशपत्र व वस्तुओं से है।

प्रश्न 56.
व्यावसायिक बैंक कोषों का अंतरण किस प्रकार करते हैं?
उत्तर:
व्यावसायिक बैंक एक स्थान से दूसरे स्थान पर धनराशि को भेजने में सहायक होते हैं। यह राशि साख पत्रों; जैसे चैक, ड्राफ्ट, विनिमय बिल आदि की सहायता से एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजी जाती है।

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प्रश्न 57.
व्यावसायिक बैंक अर्थव्यवस्था में किस प्रकार पूँजी निर्माण को बढ़ावा देते हैं?
उत्तर:
व्यावसायिक बैंक लोगों की निष्क्रिय बचतों को एकत्रित करके उसे उत्पादक कार्यों में निवेश करने में सफल रहते हैं। इससे देश में पूँजी का निर्माण होता है। हम जानते हैं कि पूँजी का निर्माण आर्थिक विकास की कुंजी कहलाता है। इससे देश का उत्पादन, रोज़गार व आय बढ़ती है।

प्रश्न 58.
केंद्रीय बैंक की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
केंद्रीय बैंक वह बैंक है जो मुद्रा जारी करने का पूर्ण एकाधिकार रखता है और सरकार के प्रमख वित्तीय कार्यों का रता है। प्रो० वीरा स्मिथ के अनुसार, “केंद्रीय बैंक से अभिप्राय, बैंकिंग की उस प्रणाली से होता है जिसके अंतर्गत किसी एक विशेष बैंक को नोट निर्गमन का पूर्ण अधिकार होता है।”

प्रश्न 59.
केंद्रीय बैंक को सरकार का बैंकर क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
केंद्रीय बैंक को सरकार का बैंकर इसलिए कहा जाता है, क्योंकि केंद्रीय बैंक ‘सरकार की ओर से भुगतान स्वीकार करता है, भुगतान करता है और अन्य सभी लेन-देन करता है।

प्रश्न 60.
मौद्रिक प्रबंध (Monetary Management) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मौद्रिक प्रबंध से अभिप्राय मुद्रा की पूर्ति और साख को इस प्रकार नियमित करने से है ताकि व्यापार, व्यावसायिक तथा आर्थिक क्रियाओं के लिए मुद्रा की माँग को संतोषजनक ढंग से पूरा किया जा सके।

प्रश्न 61.
साख नियंत्रण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
केंद्रीय बैंक की साख संकुचन एवं साख विस्तार की नीति को साख नियंत्रण कहते हैं।

प्रश्न 62.
केंद्रीय बैंक द्वारा अपनाई जाने वाली साख नियंत्रण की विभिन्न विधियों का आप किस प्रकार वर्गीकरण करेंगे?
उत्तर:
केंद्रीय बैंक द्वारा अपनाई जाने वाली साख नियंत्रण की विधियों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. मात्रात्मक विधियाँ
  2. गुणात्मक विधियाँ।

प्रश्न 63.
मौद्रिक नीति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मौद्रिक नीति से अभिप्राय किसी देश के केंद्रीय बैंक की उस नीति से है जिसका उपयोग अर्थव्यवस्था में मुद्रा तथा साख की पूर्ति के नियंत्रण के लिए किया जाता है।

प्रश्न 64.
मौद्रिक नीति के उपायों को किन दो वर्गों में बाँटा जाता है?
उत्तर:

  1. परिमाणात्मक उपाय
  2. गुणात्मक उपाय।

प्रश्न 65.
मौद्रिक नीति के परिमाणात्मक उपायों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मौद्रिक नीति के परिमाणात्मक उपायों से अभिप्राय उन उपायों से है जिनके द्वारा एक केंद्रीय बैंक साख की लागत तथा मात्रा को नियंत्रित करता है।

प्रश्न 66.
मौद्रिक नीति के परिमाणात्मक उपाय कौन-से हैं?
उत्तर:

  1. बैंक दर में परिवर्तन
  2. बैंकों के रिज़र्व अनुपात में परिवर्तन
  3. खुले बाज़ार की प्रक्रिया।

प्रश्न 67.
मौद्रिक नीति के गुणात्मक उपायों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मौद्रिक नीति के गुणात्मक उपायों से अभिप्राय उन उपायों से है जिनके द्वारा एक केंद्रीय बैंक साख के प्रयोग और दिशा को नियंत्रित करता है।

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प्रश्न 68.
मौद्रिक नीति के गणात्मक उपाय कौन-से हैं?
उत्तर:

  1. सीमांत अपेक्षाएँ
  2. साख का वितरण नियंत्रण
  3. नैतिक आग्रह

प्रश्न 69.
बैंक दर (Bank Rate) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
बैंक दर से हमारा अभिप्राय उस दर से है जिस पर एक देश का केंद्रीय बैंक व्यावसायिक बैंकों को वित्तीय सुविधाएँ अर्थात् ऋण प्रदान करता है।

प्रश्न 70.
खुले बाज़ार की प्रक्रिया (Process of Open Market) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
खुले बाज़ार की प्रक्रिया से हमारा अभिप्राय देश के केंद्रीय बैंक द्वारा अपने विवेक से खुले बाज़ार में आम जनता तथा बैंकों को सरकारी प्रतिभतियों के क्रय-विक्रय से है।

प्रश्न 71.
बैंक दर और ब्याज दर में क्या अंतर है?
उत्तर:
जिस दर पर केंद्रीय बैंक व्यावसायिक बैंकों को ऋण सुविधाएँ प्रदान करता है, वह बैंक दर होती है जबकि ब्याज दर वह बाज़ार दर होती है जिस पर व्यावसायिक बैंक अपने ग्राहकों को ऋण प्रदान करते हैं।

प्रश्न 72.
केंद्रीय बैंक की प्रत्यक्ष कार्रवाई से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रत्यक्ष कार्रवाई से हमारा अभिप्राय उन सब नियंत्रणों व निर्देशों से है जिसे एक देश का केंद्रीय बैंक समस्त बैंकों पर या किसी एक बैंक पर लागू कर सकता है, ताकि उनके ऋणों और विनियोगों को नियंत्रित किया जा सके।

प्रश्न 73.
समाशोधन गृह (Clearing House) को परिभाषित करें।
उत्तर:
समाशोधन गृह से अभिप्राय देश के केंद्रीय बैंक द्वारा स्थापित उस केंद्र से है जहाँ विभिन्न बैंकों की परस्पर लेनदारियों और देनदारियों का निपटारा होता है। इनका निपटारा केंद्रीय बैंक विभिन्न बैंकों के खातों में अंतरण प्रविष्टियाँ करके करता है। समाशोधन गृह के कार्य के लिए केंद्रीय बैंक कोई शुल्क नहीं लेता।

प्रश्न 74.
नैतिक दबाव (Moral Suasion) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कभी-कभी केंद्रीय बैंक सदस्य बैंकों को समझा-बुझाकर, प्रार्थना करके या नैतिक दबाव डालकर उन्हें अपनी नीति के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य करता है। मुद्रास्फीति की स्थिति में केंद्रीय बैंक, बैंकों के साख संकुचन करने तथा मंदी और बेरोज़गारी की स्थिति में साख का विस्तार करने के लिए बाध्य करता है।

प्रश्न 75.
बैंक दर, साख की उपलब्धता को कैसे प्रभावित करती है?
उत्तर:
बैंक दर वह दर होती है जिस पर देश का केंद्रीय बैंक सदस्य बैंकों को ऋण सुविधाएँ उपलब्ध कराता है। बैंक दर और ब्याज दर में अंतर होता है, ब्याज दर वह दर होती है जिस पर व्यावसायिक बैंक अपने ग्राहकों को ऋण प्रदान करते हैं। बैंक दर और ब्याज दर में सीधा संबंध होता है। बैंक दर में वृद्धि से ब्याज दर बढ़ती है और बैंक दर में कमी से ब्याज दर कम होती है। जब ब्याज दर में कमी की जाती है तो बाज़ार में साख की उपलब्धता बढ़ती है और जब बैंक दर में वृद्धि की जाती है तो साख की उपलब्धता कम होती है।

प्रश्न 76.
बैंकों के किन्हीं दो प्राथमिक कार्यों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. साख का निर्माण
  2. जमा स्वीकार करना

प्रश्न 77.
मुद्रा के दो मुख्य प्राथमिक कार्य क्या हैं?
उत्तर:

  1. मूल्य का मापन
  2. विनिमय का माध्यम।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वस्त-विनिमय के संदर्भ में आवश्यकताओं के दोहरे संयोग के अभाव की समस्या समझाइए।
उत्तर:
वस्तु-विनिमय के लिए आवश्यक है कि एक व्यक्ति जिसके पास एक वस्तु का आधिक्य है, एक ऐसे अन्य व्यक्ति को खोज ले जो न केवल उस वस्तु की इच्छा करता हो, बल्कि उसके पास बदले में देने के लिए कुछ स्वीकार्य वस्तु हो। उदाहरण के लिए, Mr. X के पास अतिरिक्त मात्रा में गेहूँ है और उसे दाल की आवश्यकता है। दूसरी ओर, Mr. Y को गेहूँ की आवश्यकता है लेकिन उसके पास अतिरिक्त दाल नहीं है। ऐसी दशा में विनिमय नहीं होगा। विनिमय तभी संभव होगा जब Mr. Y, Mr. X को दाल देने की स्थिति में होगा। जब तक वस्तु-विनिमय में लगे हुए लोगों की आवश्यकताओं का दोहरा संयोग पूरी तरह से मेल नहीं खाता, वस्तु-विनिमय नहीं होगा।

प्रश्न 2.
वस्तु-विनिमय के संदर्भ में मूल्य के सर्वमान्य मापदंड के अभाव की समस्या समझाइए।
उत्तर:
वस्तु-विनिमय प्रणाली के अंतर्गत वस्तुओं के मूल्य का कोई सर्वमान्य मापदंड नहीं होता। विनिमय वस्तुएँ अलग-अलग मूल्य की होती हैं। वस्तु-विनिमय में यह निर्णय करना कठिन होता है कि दो वस्तुओं का किस अनुपात में आदान-प्रदान किया जाए। इस प्रकार विनिमय की शर्तों को निर्धारित करना कठिन हो जाता है। उदाहरण के लिए, कितने गेहूँ के बदले में कितना मीटर कपड़ा दिया जाएगा। चूँकि वस्तु-विनिमय में कोई सर्वमान्य मापदंड नहीं होता है जिसके संबंध में वस्तुओं के मूल्यों को व्यक्त किया जा वेनिमय अनुपात को पारस्परिक मांग की प्रबलता के अनुसार मनमाने ढंग से निधारित किया जाता है। इस प्रकार हो सकता है कि दो वस्तुओं के बीच प्रत्यक्ष विनिमय से किसी एक पक्ष को नुकसान हो रहा हो।

प्रश्न 3.
वस्तुओं की अविभाज्यता किस प्रकार वस्तु-विनिमय की एक प्रमुख समस्या है? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
हमारे दैनिक जीवन में ऐसी अनेक वस्तुएँ होती हैं जो अविभाज्य होती हैं अर्थात् जिन्हें छोटी इकाइयों में बाँटा नहीं जा सकता क्योंकि विभाजन करने से वस्तु की उपयोगिता या तो कम हो जाती है या समाप्त हो जाती है। इससे वस्तु-विनिमय में बहुत कठिनाई होती है। उदाहरण के लिए, एक घोड़े के बदले में Mr.X 100 किलो दाल ले सकता है जबकि Mr.X को केवल 20 किलो दाल की आवश्यकता है। घोड़े को छोटी इकाइयों में बाँटना मुश्किल है क्योंकि इससे घोड़ा अपना मूल्य खो देता है। अतः यह व्यवहार अकल्पनीय है।

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प्रश्न 4.
वस्तु-विनिमय प्रणाली में संपत्ति के संचयन और स्थानांतरण में कठिनाई की समस्या समझाइए।
उत्तर:
वस्तु-विनिमय प्रणाली में संपत्ति का संचयन कठिन है क्योंकि अधिकतर वस्तुओं की जीवनावधि सीमित होती है। जैसे गेहूँ, चावल आदि बहुत-सी वस्तुएँ समय बीतने के साथ खराब हो जाती हैं अथवा उनके संचयन पर भारी लागत की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरण करने में बहुत परिवहन व्यय करना पड़ता है और कुछ वस्तुओं (अचल संपत्ति) का स्थानांतरण असंभव होता है। इस प्रकार, वस्तु-विनिमय में क्रय-शक्ति का संचयन और स्थानांतरण लगभग असंभव होता है।

प्रश्न 5.
मौद्रिक नीति के मुख्य घटकों का वर्णन करें।
उत्तर:
मौद्रिक नीति के मुख्य घटक निम्नलिखित हैं-
1. बैंक दर-जिस दर पर देश के व्यावसायिक बैंकों को केंद्रीय बैंक, ऋण या अग्रिम (Advance) उपलब्ध करता है, उसे बैंक दर कहते हैं। यह बाज़ार ब्याज दर (जिस पर व्यावसायिक बैंक जनता को ऋण देते हैं) से भिन्न होती है। बैंक दर बढ़ने से ब्याज दर भी बढ़ जाती है और ऋण महँगा हो जाता है। मुद्रास्फीति की अवस्था में केंद्रीय बैंक, बैंक दर को बढ़ाकर साख या ऋण की उपलब्धता को सीमित करता है। ब्याज की ऊँची दर से उपभोग माँग और निवेश माँग में कमी आती है। इस प्रकार बैंक दर, केंद्रीय बैंक के हाथ में एक प्रभावी उपकरण है जिससे वह व्यावसायिक बैंकों की साख निर्माण की क्षमता को नियंत्रित करता है।

2. नकद रिज़र्व अनुपात-प्रत्येक व्यावसायिक बैंक को कानूनी तौर पर अपने पास जमा राशियों का एक न्यूनतम अनुपात केंद्रीय बैंक के पास नकदी के रूप में जमा करना होता है। इसे नकद रिज़र्व अनुपात (CRR) कहते हैं। यह अनुपात बढ़ाने से बैंकों की ऋण देने की क्षमता कम हो जाती है। मुद्रास्फीति की स्थिति में केंद्रीय बैंक इस अनुपात को बढ़ाकर व्यावसायिक बैंकों की साख निर्माण की क्षमता घटा देता है।

3. सांविधिक तरलता अनुपात (SLR)-प्रत्येक व्यावसायिक बैंक को अपनी कुल जमाओं का एक निश्चित अनुपात अपने पास तरल संपत्तियों (जैसे सरकारी प्रतिभूतियों) के रूप में रखना अनिवार्य होता है, इसे SLR कहते हैं। अधिमाँग की स्थिति में केंद्रीय बैंक तरल अनुपात में वृद्धि कर देता है जिसके फलस्वरूप बैंक कम ऋण दे सकते हैं। साख का संकुचन होने से समग्र माँग नियंत्रित हो जाती है।

प्रश्न 6.
वस्तु-विनिमय प्रणाली की किसी एक समस्या की व्याख्या कीजिए। मुद्रा ने इस समस्या का समाधान कैसे किया?
उत्तर:
वस्तु-विनिमय प्रणाली के अंतर्गत वस्तुओं के मूल्य का कोई सर्वमान्य मापदंड नहीं होता। विनिमय वस्तुएँ अलग-अलग मूल्य की होती हैं। वस्तु-विनिमय में यह निर्णय करना कठिन होता है कि दो वस्तुओं का किस अनुपात में आदान-प्रदान किया जाए। इस प्रकार विनिमय की शर्तों को निर्धारित करना कठिन हो जाता है। उदाहरण के लिए, कितने गेहूँ के बदले में कितने मीटर कपड़ा दिया जाएगा। चूँकि वस्तु-विनिमय में कोई सर्वमान्य मापदंड नहीं होता जिसके संबंध में वस्तुओं के मूल्यों को व्यक्त किया जा सके, विनिमय अनुपात को पारस्परिक माँग की प्रबलता के अनुसार मनमाने ढंग से निर्धारित किया जाता है।

मुद्रा का प्राथमिक कार्य वस्तुओं के मूल्य को मापना है। चूंकि मुद्रा व्यापक रूप से स्वीकार्य होती है। मुद्रा एक सामान्य मूल्यमान के रूप में काम करती है जिसमें सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य व्यक्त किए जाते हैं। मुद्रा में व्यक्त कीमतों के आधार पर दो वस्तुओं के सापेक्षिक मूल्यों की तुलना करना सरल हो जाता है। मुद्रा तब तक मूल्य के मापदंड का कार्य सही ढंग से कर सकती है जब तक उसका अपना मूल्यमान स्थिर रहे। मुद्रा के मूल्य से तात्पर्य क्रय-शक्ति से है।

प्रश्न 7.
मुद्रा का अर्थ बताइए। मुद्रा का ‘मूल्य संचय’ कार्य समझाइए।
उत्तर:
मुद्रा से अभिप्राय ऐसी वस्तु से है जो सामान्य रूप से विनिमय के माध्यम के रूप में स्वीकार्य है और जो मूल्य के मापक तथा मूल्य संचय या भंडार के रूप में कार्य करती है।

मुद्रा क्रय-शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है। जब मुद्रा को मूल्य की इकाई और भुगतान का माध्यम मान लिया जाता है तो मुद्रा सहज ही मूल्य के भंडार का कार्य करने लगती है। यद्यपि संपत्ति को मुद्रा के अतिरिक्त किसी भी रूप में संचित किया जा सकता है, परंतु मुद्रा संपत्ति (क्रय-शक्ति) के संचय करने का सबसे किफायती व सुविधाजनक तरीका है। तरलता और क्रय-शक्ति के कारण इसे भविष्य में आवश्यकतानुसार प्रयोग में लाया जा सकता है। मुद्रा का यह कार्य लोगों को वर्तमान आय के एक भाग की बचत करने और उसे भविष्य में उपयोग के लिए संचित करने की शक्ति देता है।

प्रश्न 8.
वस्तु-विनिमय क्या है? मुद्रा का स्थगित भुगतानों का मानक’ कार्य समझाइए।
उत्तर:
वस्तु-विनिमय से अभिप्राय उस व्यवस्था से है जिसमें एक वस्तु का लेन-देन दूसरी वस्तु से प्रत्यक्ष रूप में होता है। अनेक अवस्थाओं में किन्हीं कार्यों, ऋणों आदि का भुगतान एक निश्चित अवधि के पश्चात् किया जाता है। चूँकि मुद्रा को निश्चित एवं मानकित इकाइयों में व्यक्त किया जा सकता है और सामान्यतया मुद्रा का मूल्य समय के साथ स्थिर रहता है, मुद्रा स्थगित भुगतान का मानक होती है। मुद्रा का यह कार्य वास्तव में मुद्रा के विनिमय के माध्यम के रूप में कार्य का एक भाग है। मुद्रा के इस कार्य के कारण ही आधुनिक अर्थव्यवस्था में अधिकांश सौदों में तत्काल भुगतान नहीं किया जाता।

प्रश्न 9.
मुद्रा द्वारा मूल्य के हस्तांतरण का कार्य किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर:
मुद्रा अपने सामान्य स्वीकृति के गुण के कारण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तथा एक स्थान से दूसरे स्थान पर मूल्यों को हस्तांतरित करने में हमारी मदद करती है। मुद्रा ऐसे सौदों को सरलता से, शीघ्रता से और दक्षता से संपन्न करती है। मुद्रा के इसी गुण के कारण उधार लेने व देने की क्रियाएँ संभव होती हैं। वस्तुओं व सेवाओं को एक स्थान पर बेचकर आय को मुद्रा के रूप में प्राप्त कर इस मुद्रा से किसी अन्य स्थान पर दूसरी आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं को खरीदना भी संभव है।

प्रश्न 10.
कागज़ी मुद्रा ने सोने और चाँदी के सिक्कों को क्यों अप्रचलित कर दिया? कोई तीन कारण बताइए।
उत्तर:
निम्नलिखित कारणों से कागज़ी मुद्रा ने सोने और चांदी के सिक्कों को अप्रचलित कर दिया-
1. सिक्कों को रखना और उपयोग करना असुविधाजनक हो गया था।

2. सोना व चाँदी मूल्यवान धातुएँ थीं और इनकी सुरक्षा समस्या बन गई थी।

3. सोने और चाँदी का उत्पादन सिक्कों के लिए आवश्यक मात्रा से कम था। व्यवसाय और व्यापार की बढ़ती आवश्यकताओं को सोने-चाँदी की मात्रा पूरी नहीं कर सकती थी।

प्रश्न 11.
मुद्रा की माँग क्यों की जाती है? संक्षेप में समझाइए। अथवा मुद्रा को रखने के उद्देश्य कौन-से हैं? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
मुद्रा की माँग निम्नलिखित दो उद्देश्यों के लिए की जाती है-
1. संव्यवहार उद्देश्य अथवा क्रय-विक्रय उद्देश्य मुद्रा की माँग व्यक्तियों और फर्मों द्वारा विभिन्न संव्यवहारों को कार्यान्वित करने के लिए की जाती है। मुद्रा की यह माँग आय पर निर्भर करती है, ब्याज दर पर नहीं।

2. सट्टा उद्देश्य मुद्रा की माँग व्यक्तियों और फर्मों द्वारा लाभ कमाने के लिए भी की जाती है। वे प्रतिभूतियों को कीमतें बढ़ने की आशा से खरीदते हैं और कीमतें गिरने के पूर्वानुमान पर बेच देते हैं। मुद्रा की यह माँग ब्याज की दर पर निर्भर करती है।

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प्रश्न 12.
माँग जमा और सावधि जमा में अंतर कीजिए।
उत्तर:
माँग जमा और सावधि जमा में अंतर इस प्रकार है-

अंतर का आधारमाँग जमासावधि जमा
1. देयतामाँग जमा जमाकर्त्ता के माँगने पर देय है।सावधि जमा एक निश्चित अवधि के बाद ही देय होती है।
2. ब्याजइस जमा पर सामान्यतया बैंक द्वारा जमाकर्ता को कोई ब्याज नहीं दिया जाता।इस जमा पर बैंक द्वारा जमाकर्ता को ब्याज दिया जाता है।
3. तरलतायह अत्यधिक तरल है।यह तरल नहीं होता।

प्रश्न 13.
संकुचित मुद्रा (Narrow Money) और व्यापक मुद्रा (Broad Money) में भेद कीजिए।
उत्तर:

  1. संकुचित मुद्रा में करेंसी (नोट व सिक्के) C और व्यावसायिक बैंकों में लोगों की माँग जमाएँ (Demand Deposits DD) शामिल की जाती हैं। सांकेतिक रूप में M= C+ DD
  2. व्यापक मुद्रा में, संकुचित मुद्रा (C+ DD) के अतिरिक्त व्यावसायिक बैंकों तथा डाकघर बचत संगठनों में सावधि जमाएँ (Time Deposits-TD) शामिल की जाती हैं। M= C+ DD + TD

प्रश्न 14.
उच्च शक्तिशाली (High Powered Money) अथवा संकुचित मुद्रा (Narrow Money) और व्यापक मुद्रा (Broad Money) में भेद कीजिए।
उत्तर:
भारत की मौद्रिक प्राधिकरण (Monetary Authority) भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की संपूर्ण देयता (Total Liability) की मौद्रिक आधार या उच्च शक्तिशाली मुद्रा कहते हैं। इसमें आम जनता के पास करेंसी (C), व्यावसायिक बैंकों की नकदी रिज़र्व (R) और भारतीय रिज़र्व बैंक में रखी गई अन्य जमाएँ (Other Deposits-DD) शामिल की जाती हैं। सांकेतिक रूप में, M = C + R + OD जबकि व्यापक मुद्रा में उच्च शक्तिशाली मुद्रा के अतिरिक्त व्यावसायिक बैंकों और डाकघर बचत संगठनों में सावधि जमाएँ (Time Deposits-TD) शामिल की जाती हैं। सांकेतिक रूप में, M=C+ R + OD + TD

प्रश्न 15.
लोग अपना धन बैंकों में जमा क्यों करवाते हैं?
उत्तर:
लोग अपना धन बैंकों में निम्नलिखित कारणों से जमा करवाते हैं-

  1. ब्याज की प्राप्ति-घर में रखा पैसा बेकार पड़ा रहता है। बैंक में जमा करवाने से लोगों को ब्याज की प्राप्ति होती है।
  2. तरलता-लोगों को नकदी की आवश्यकता पड़ने पर जमा-राशि को बिना हानि के तुरंत निकलवाया जा सकता है।
  3. सुरक्षा-बैंकों में जमा धन सुरक्षित रहता है, जबकि घर में पड़ा रुपया असुरक्षित होता है।

प्रश्न 16.
साख निर्माण किसे कहते हैं? समझाइए। अथवा बैंक को मुद्रा का निर्माता भी कहा जाता है। समझाइए।
उत्तर:
साख निर्माण साख से अभिप्राय है कि जब कोई व्यक्ति, फर्म या बैंक अन्य व्यक्ति, फर्म या बैंक को उधार देता है या वित्त प्रदान करता है, तो वह साख कहलाती है। व्यावसायिक बैंक अपनी नकद जमाओं, जिन्हें प्राथमिक जमाएँ भी कहा जाता है, के आधार पर कई गुणा साख का निर्माण कर सकता है। जो धनराशि लोगों द्वारा नकदी के रूप में बैंक में जमा करवाई जाती है, उसे ही प्राथमिक जमा कहते हैं। बैंक लोगों की जमा नकदी पर उन्हें ब्याज देता है। इसके साथ ही बैंक उन्हें विश्वास दिलाते हैं कि जब भी उन्हें नकदी की आवश्यकता होगी, तो वे बैंक से अपना रुपया निकलवा सकते हैं।

परंतु बैंक अपनी प्राथमिक जमाओं का एक भाग ही नकदी में आरक्षित रखते हैं, क्योंकि बैंक अपने अनुभव के आधार पर जानते हैं कि सभी व्यक्ति एक ही समय पर धनराशि नहीं निकलवाते और इसलिए वे शेष रकम को उधार दे देते हैं। यह उधार बैंक नकदी में न देकर, ऋणी के नाम जमा खाता खोलकर उनमें जमा कर देते हैं जिनको गौण जमाएँ कहा जाता है। गौण जमाओं को माँग जमाएँ भी कहते हैं क्योंकि ऋण माँग जमाओं के रूप में होते हैं। इसके लिए बैंक उसे (ऋणी को) एक चैक बुक दे देता है। इन माँग जमाओं का निर्माण ही साख निर्माण कहलाता है। जब बैंक उधार देकर गौण जमाओं अथवा माँग जमाओं में वृद्धि कर सकता है, तो वह मुद्रा की पूर्ति (M1) में भी वृद्धि कर सकता है। इसलिए बैंक को मुद्रा का निर्माता भी कहा जाता है।

प्रश्न 17.
साख नियंत्रण के परिमाणात्मक तथा गुणात्मक उपायों में अंतर कीजिए।
उत्तर:
साख नियंत्रण के परिमाणात्मक उपायों तथा गुणात्मक उपायों में अंतर को निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है-

अंतर का आधारपरिमाणात्मक उपायगुणात्मक उपाय
1. स्वभाव या प्रकृतिपरिमाणात्मक उपाय साख के आवश्यक और गैर-आवश्यक उपयोगों में अंतर किए बिना साख की कुल मात्रा को प्रभावित करते हैं।गुणात्मक उपाय साख के आवश्यक और गैर-आवश्यक उपयोगों में अंतर करके साख नियंत्रित करते हैं।
2. बैंकों की भूमिकाये उपाय अव्यक्तिगत और अप्रत्यक्ष होते हैं। इसलिए केंद्रीय बैंक को सामान्य निगरानी करनी पड़ती है।ये उपाय व्यक्तिगत और प्रत्यक्ष होते हैं। व्यावसायिक बैंकों तथा केंद्रीय बैंक को अधिक जिम्मेदारी निभानी पड़ती है।
3. प्रभावये उपाय ऋणदाताओं को प्रभावित करते हैं और ॠणियों का प्रभावित होना आवश्यक नहीं है।ये उपाय ऋणदाताओं तथा ऋणियों दोनों को प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 18.
खुले बाज़ार की प्रक्रियाओं के द्वारा केंद्रीय बैंक साख उपलब्धता पर नियंत्रण कैसे करता है? समझाइए।
उत्तर:
खुले बाज़ार की प्रक्रियाओं से अभिप्राय एक केंद्रीय बैंक द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय से है। खुले बाज़ार की प्रक्रिया के अंतर्गत केंद्रीय बैंक व्यावसायिक बैंकों को सरकारी प्रतिभूतियाँ बेचता है या उनमें सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय करता है। खुले बाज़ार की प्रक्रियाओं से व्यावसायिक बैंकों के पास उपलब्ध नकदी की मात्रा प्रभावित होती है जिससे बैंक साख उपलब्धता प्रभावित होती है। सरकारी प्रतिभूतियों के बेचने से व्यावसायिक बैंकों के पास नकदी मात्रा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीकों से कम हो जाती है और व्यावसायिक बैंक द्वारा किए गए साख निर्माण भी कम हो जाते हैं। इसके विपरीत जब केंद्रीय बैंक यह महसूस करता है कि व्यावसायिक बैंकों द्वारा किए गए साख निर्माण में वृद्धि हो तो वह व्यावसायिक बैंकों से सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय कर लेता है जिससे बैंकों के पास नकदी की मात्रा बढ़ जाती है और वे अधिक साख का निर्माण करते हैं।

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प्रश्न 19.
अर्थव्यवस्था में ऋण की उपलब्धता पर प्रभाव डालने में सीमा (मार्जिन) अनिवार्यताओं की भूमिका समझाइए।
अथवा
साख नियंत्रण के किसी गुणात्मक उपाय का वर्णन उदाहरण सहित कीजिए।
उत्तर:
साख नियंत्रण का एक गुणात्मक उपाय सीमा अनिवार्यताओं का नियमन है। केंद्रीय बैंक प्रतिभूतियों का क्रय करने या रखने के लिए ऋणों पर न्यूनतम सीमा आवश्यकताएँ निर्धारित कर देता है। यह प्रतिभूतियों के मूल्य का वह प्रतिशत है जो उधार लिया अथवा दिया जा सकता है। उदाहरण के लिए, यदि केंद्रीय बैंक सीमा आवश्यकता 40% निर्धारित करता है तो एक व्यावसायिक बैंक 1,00,000 रुपए वाली प्रतिभूति के विरुद्ध केवल 60,000 रुपए ही उधार दे सकेगा। अगर केंद्रीय बैंक इस सीमा को बढ़ाकर 50% कर देता है तो व्यावसायिक बैंक केवल 50,000 रुपए ही ऋण के रूप में दे सकेगा। इस उपाय का उद्देश्य विशिष्ट उद्देश्यों के लिए साख के प्रयोग का नियमन करना है।

प्रश्न 20.
नकद कोष अनुपात (CRR) और साविधिक तरलता अनुपात (SLR) में भेद कीजिए।
उत्तर:
साख नियंत्रण के लिए केंद्रीय बैंक द्वारा अपनाई गई ये दो विधियाँ हैं। CRR वह न्यूनतम अनुपात (Ratio) है जो व्यावसायिक बैंकों को अपने पास जमा कुल राशियों का निर्धारित अनुपात केंद्रीय बैंक के पास कानूनन जमा करना होता है। SLR वह अनुपात है जो व्यावसायिक बैंकों को अपनी कुल जमाओं का एक निश्चित अनुपात अपने पास नकदी या तरल संपत्तियों (जैसे सरकारी प्रतिभूतियाँ) के रूप में रखना अनिवार्य होता है।

प्रश्न 21.
व्यापारिक बैंकों के कोई चार कार्य बताएँ।
उत्तर:
व्यापारिक बैंकों के कोई चार कार्य निम्नलिखित हैं-
1. पूँजी निर्माण-व्यापारिक बैंक लोगों की निष्क्रिय जमा (Idle Savings) को एकत्रित करते हैं तथा उन्हें उत्पादक कार्यों के लिए उपलब्ध कराते हैं। इस प्रकार, उपभोग से उत्पादन की ओर साधनों का हस्तांतरण होता है। परिणामस्वरूप पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि होती है जिससे आर्थिक विकास की गति तीव्र होती है।

2. वित्त एवं साख की व्यवस्था व्यापारिक बैंक उद्योग एवं व्यापार को वित्त एवं साख प्रदान करते हैं। वित्त एवं साख उद्योग एवं व्यापार में चिकनाहट का कार्य करता है। वित्त सुविधा होने पर उद्योगों को मशीनें और अन्य यन्त्र आयात करने में कोई कठिनाई नहीं आती।

3. नव-प्रवर्तन को प्रोत्साहन-बैंक उद्यमियों को साख प्रदान करके नव-प्रवर्तन को प्रोत्साहित करते हैं। फलस्वरूप नई वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि होती है। इसका आर्थिक विकास पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है।

4. ब्याज की दर का प्रभाव बैंक ब्याज की दर को इस प्रकार निर्धारित करते हैं जिससे उद्यमियों एवं व्यवसायियों को निवेश करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। फलस्वरूप उत्पादन तथा व्यापार में वृद्धि होती है। इसका आर्थिक विकास पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 22.
केंद्रीय बैंक के कोई चार कार्य बताइए।
उत्तर:
केंद्रीय बैंक के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-
1. मुद्रा निर्गमन केंद्रीय बैंक मुद्रा निर्गमन का बैंक होता है। केंद्रीय बैंक को मुद्रा निर्गमन करने का एकाधिकार होता है। इसके द्वारा जारी किए गए नोट वैध मुद्रा के रूप में प्रचलित रहते हैं। इससे मौद्रिक प्रणाली में स्थिरता आती है।

2. सरकार का बैंकर, प्रतिनिधि और परामर्शदाता केंद्रीय बैंक केंद्र और राज्य सरकारों की जमा रखता है और उनकी ओर से भुगतान करता है। वह सरकार के सभी वित्तीय कार्य करता है। केंद्रीय बैंक सरकार को मौद्रिक एवं आर्थिक मुद्दों पर परामर्श भी देता है।

3. बैंकों का बैंकर बैंकों के बैंकर के रूप में केंद्रीय बैंक अन्य बैंकों के नकदी रिज़र्व का रखवाला होता है। केंद्रीय बैंक व्यावसायिक बैंकों के नकद कोषों के एक अंश को अपने पास रखता है। उन्हें अल्पावधि के लिए नकदी देता है और उन्हें केंद्रीकृत समाशोधन और धन विप्रेषण की सुविधाएँ प्रदान करता है।

4. साख नियंत्रण केंद्रीय बैंक का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य व्यावसायिक बैंकों की साख-निर्माण शक्ति को नियंत्रित करना है।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मुद्रा की परिभाषा दीजिए। मुद्रा के प्रमुख कार्यों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुद्रा का अर्थ एवं परिभाषाएँ मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जो विनिमय के माध्यम, मूल्य के मापक, ऋणों के अंतिम भुगतान, मूल्यों के संचय के साधन के रूप में स्वतंत्र, विस्तृत तथा सामान्य रूप से व्यक्तियों द्वारा स्वीकार की जाती है।
1. रॉबर्टसन के अनुसार, “कोई भी वस्त जो वस्तुओं के बदले भुगतान के रूप में या अन्य व्यावसायिक दायित्वों के लिए स्वीकार की जाए मुद्रा कहलाती है।”

2. क्राउथर के अनुसार, “कोई भी वस्तु जो सामान्य रूप से विनिमय के माध्यम के रूप में स्वीकार की जाती है और साथ ही मूल्य के माप व संचय का कार्य भी करती है, मुद्रा कहलाती है।”

मुद्रा के प्रमुख कार्य-मुद्रा के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं
1. विनिमय का माध्यम मुद्रा का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य विनिमय के माध्यम के रूप में कार्य करना है। मुद्रा में सामान्य स्वीकृति का गुण होने के कारण विभिन्न वस्तुओं का लेन-देन प्रत्यक्ष न होकर मुद्रा के माध्यम से होता है। विनिमय के माध्यम (Medium of Exchange) का कार्य करके मुद्रा ने वस्तु-विनिमय प्रणाली की कठिनाइयों को समाप्त कर दिया है। मुद्रा से ही वस्तुओं और सेवाओं को खरीदा और बेचा जाता है। आप अपनी वस्तु को मुद्रा के बदले बेच सकते हैं और इससे प्राप्त मुद्रा से अपनी मनचाही कोई अन्य वस्तु खरीद सकते हैं।

2. मूल्य का मापक-यह मुद्रा का दूसरा अनिवार्य कार्य है। मुद्रा के इस कार्य को लेखे अथवा हिसाब की इकाई भी कहा जाता है। मुद्रा अर्थव्यवस्था के सामान्य मूल्य के मापक के रूप में कार्य करती है। यह सभी स्तुओं और सेवाओं के मूल्य आँकती है; जैसे, गेहूँ 1000 रुपए क्विंटल, कपड़ा 120 रुपए मीटर, मकान का किराया 2000 रुपए मासिक इत्यादि। मुद्रा में आँके गए विभिन्न वस्तुओं के मूल्यों को कीमत कहा जाता है। इस प्रकार मुद्रा एक ऐसा सामान्य मापदंड है जिसके द्वारा प्रत्येक वस्तु का मूल्य मापा जाता है।

3. स्थगित (भावी) भुगतान का मानक बहुत-से लेन-देन उधार होते हैं जिनका भुगतान भविष्य में किया जाता है। इस प्रकार का भुगतान वस्तु-विनिमय में कठिन होता है क्योंकि वस्तुओं का मूल्य परिवर्तित होता रहता है तथा इनकी किस्म भी एक-जैसी नहीं रहती, लेकिन उधार का भुगतान मुद्रा में करना और उधार का हिसाब मुद्रा में रखना संभव होता है। इस प्रकार मुद्रा में ऋणों का लेन-देन संभव होता है, क्योंकि मुद्रा के मूल्य में शीघ्र परिवर्तन नहीं आते।

4. मूल्य का संचय–प्रत्येक मनुष्य अपनी आय का कुछ भाग बचत करना चाहता है। धन संचय वस्तुओं के रूप में नहीं हो सकता क्योंकि इनके नष्ट होने का भय रहता है। मुद्रा संचय करने का सर्वोत्तम साधन है। मुद्रा के रूप में बचत करना सुरक्षित होता है। इसके नष्ट होने का भय नहीं होता। इसके लिए अधिक स्थान की आवश्यकता नहीं पड़ती। इस प्रकार मुद्रा पूँजी निर्माण के लिए आधार प्रस्तुत करती है।

5. मूल्य का हस्तांतरण-मुद्रा धन का सर्वाधिक तरल रूप है। मुद्रा द्वारा चल तथा अचल संपत्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान तक एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हस्तांतरित कर सकते हैं। यदि कोई व्यक्ति, पंजाब से दिल्ली में बसना चाहता है तो वह पंजाब बेचकर मुद्रा कमाएगा और प्राप्त मुद्रा से दिल्ली में जायदाद खरीद लेगा। इस प्रकार धन हस्तांतरण में मुद्रा सहायक होती है। इससे साधनों में गतिशीलता बढ़ती है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

प्रश्न 2.
केंद्रीय बैंक की परिभाषा दीजिए। इसके प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा
केंद्रीय बैंक क्या है? इसके ‘सरकार का बैंकर’ के रूप में कार्य की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
केंद्रीय बैंक का अर्थ एवं परिभाषाएँ- केंद्रीय बैंक देश की मौद्रिक व्यवस्था की सिरमौर (Apex) संस्था है जो नोट जारी करती है, सरकार और अन्य बैंकों का बैंकर है, मुद्रा और साख का नियंत्रण करती है और मौद्रिक स्थिरता बनाए रखती है। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) भारत का केंद्रीय बैंक है।
1. प्रो० वीरा स्मिथ के अनुसार, “केंद्रीय बैंक से अभिप्राय, बैंकिंग की उस प्रणाली से होता है जिसके अंतर्गत किसी एक विशेष बैंक को नोट निर्गमन का पूर्ण अधिकार होता है।”

2. प्रो० डी-कॉक के अनुसार, “केंद्रीय बैंक वह बैंक है जो देश के मौद्रिक तथा बैंकिंग ढाँचे के शिखर पर होता है।” केंद्रीय बैंक के प्रमुख कार्य केंद्रीय बैंक के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-
1. नोट जारी करना केंद्रीय बैंक देश में करेंसी जारी करने का एकाधिकार रखता है। चूंकि समस्त मुद्रा का निर्गमन, केंद्रीय होती है, इसलिए केंद्रीय बैंक पर समस्त जारी की गई मुद्रा के मान के बराबर, संपत्तियों (Assets) का सुरक्षित भंडार रखने का भी दायित्व होता है। इन संपत्तियों में सोना, चाँदी व इनके बने सिक्के, विदेशी मुद्रा और राष्ट्रीय सरकार की स्थानीय करेंसी प्रतिभूतियाँ शामिल रहती हैं। केंद्रीय बैंक द्वारा जारी नोट सारे देश में असीमित विधि ग्राह्य (Unlimited Legal Tender) घोषित होते हैं। देश की केंद्रीय सरकार को केंद्रीय बैंक से ऋण लेने का अधिकार होता है। इसके लिए सरकार केंद्रीय बैंक को अपनी स्थानीय करेंसी प्रतिभूतियाँ बेच देती है और केंद्रीय बैंक इनके मान के बराबर मुद्रा जारी कर देता है। इस प्रकार सरकार का यह अधिकार, उसे अपने ऋण की आवश्यकताओं का मौद्रिकरण करने की सविधा प्रदान करता है।।

2. सरकार का बैंकर-यह केंद्र सरकार और राज्य सरकारों का बैंकर होता है। इसलिए यह सरकार के सारे बैंक संबंधी कार्य निपटाता है और सरकार के सारे हिसाब-किताब रखता है। सरकार के फालतू रुपए को अपने पास जमा रखता है और ज़रूरत पड़ने पर सरकार को उधार देता है। किंतु सरकार को दिए गए उधार रुपए पर ब्याज नहीं लेता और न ही सरकार द्वारा दिए गए फालतू रुपए पर ब्याज देता है। इसके अतिरिक्त सरकार के एजेंट के रूप में प्रतिभूतियाँ और खजाना संबंधी बिलों (Treasury Bills) आदि का क्रय-विक्रय करता है। यह सरकार को समय-समय पर मौद्रिक, बैंकिंग व वित्तीय मामलों में परामर्श भी देता है। इस प्रकार यह सरकार का बैंकर होने के अतिरिक्त एजेंट और सलाहकार भी है।

3. बैंकों का बैंकर व पर्यवेक्षक यह देश के अन्य बैंकों के लिए बैंकर का काम करता है अर्थात् अन्य बैंकों के साथ केंद्रीय बैंक का संबंध वैसा होता है जैसे एक साधारण बैंक का अपने ग्राहकों के साथ होता है। ध्यान रहे, केंद्रीय बैंक, अन्य बैंकों की नकद जमा का निश्चित अनुपात अपने पास सुरक्षित रखता है। इसे नकद रिज़र्व अनुपात कहते हैं। इस प्रावधान का मकसद CRR के औज़ार के द्वारा मुद्रा और साख का नियंत्रण करना है। अन्य बैंक, CRR के अतिरिक्त और कुछ-न-कुछ राशि भी केंद्रीय बैंक के पास जमा रखते हैं ताकि संकट के समय अपने ग्राहकों द्वारा अतिशय राशि निकालने की कठिनाइयों से बचा जा सके। केंद्रीय बैंक, व्यावसायिक बैंकों के कोषों का संरक्षक (Custodian) होता है और ज़रूरत के समय उनको ऋण प्रदान करता है। दूसरे बैंकों को अपने हिसाब-किताब का ब्यौरा नियमित रूप से केंद्रीय बैंक को भेजना पड़ता है।

4. मुद्रा की पूर्ति और साख का नियंत्रण केंद्रीय बैंक अपनी मौद्रिक नीति के द्वारा (i) मुद्रा की पूर्ति और (ii) साख का नियंत्रण करता है ता है। जहाँ तक मुद्रा या करेंसी की पूर्ति का संबंध है केंद्रीय बैंक को करेंसी जारी करने का एकाधिकार प्राप्त है इसलिए यह करेंसी की पर्ति प्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित करता है।

साख नियंत्रण के लिए यह मात्रात्मक (Quantitative) और गुणात्मक (Qualitative) उपायों का प्रयोग करता है। जैसे कि-
(i) बैंक दर-बैंक दर वह दर है जिस पर केंद्रीय बैंक, व्यावसायिक बैंकों को ऋण देता है। ध्यान रहे, बैंक दर, बाज़ार की ब्याज दर से भिन्न होती है। ब्याज दर वह दर है जिंस पर व्यावसायिक बैंक, बाज़ार में जनता को ऋण देते हैं। बैंक दर में वृद्धि होने पर ब्याज दर भी बढ़ जाती है जिससे ऋण महँगा हो जाता है और व्यापारियों द्वारा साख (या ऋण) की माँग कम हो जाती है। अतः मुद्रास्फीति व अधिमाँग की स्थिति में केंद्रीय बैंक, बैंक दर बढ़ा देता है और इस प्रकार व्यावसायिक बैंकों द्वारा दिए जाने वाले ऋण या साख को अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित करता है। इसके विपरीत अभावी माँग व मंदी की हालत में केंद्रीय बैंक, बैंक दर घटाकर साख उपलब्धता अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ा देता है।

(ii) खुले बाजार की प्रक्रियाएँ इससे अभिप्राय केंद्रीय बैंक द्वारा खुले बाज़ार (Open Market) में सरकारी प्रतिभूतियों के खरीदने व बेचने से है। जब केंद्रीय बैंक, व्यावसायिक बैंकों को प्रतिभूतियाँ बेचता है तो उतने मूल्य की नकद राशि उनसे खींच लेता है, जिससे व्यावसायिक बैंकों की ऋण देने की क्षमता गिर जाती है। इस प्रकार केंद्रीय बैंक साख की उपलब्धता नियंत्रित करता है। मुद्रास्फीति की दशा में केंद्रीय बैंक व्यावसायिक बैंकों को सरकारी प्रतिभूतियाँ बेचकर, उतने मूल्य की नकद राशि उनसे खींच लेता है, फलस्वरूप व्यावसायिक बैंकों की ऋण देने की क्षमता सीमित हो जाती है। इसके विपरीत आर्थिक मंदी की स्थिति में केंद्रीय बैंक प्रतिभूतियाँ खरीदकर व्यावसायिक बैंकों का नकद कोष बढ़ा देता है जिससे साख की उपलब्धता बढ़ जाती है।

(iii) नकद कोष अनुपात-प्रत्येक व्यावसायिक बैंक को अपने पास कुल जमा राशियों का एक न्यूनतम अनुपात, केंद्रीय बैंक के पास कानूनन जमा करना होता है। इसे नकद कोष अनुपात (Cash Reserve Ratio) कहते हैं। इस अनुपात को बढ़ा-घटाकर केंद्रीय बैंक, व्यावसायिक बैंकों के पास बचे नकद कोष को घटा-बढ़ाकर उनकी साख देने की क्षमता को प्रभावित करता है। यह
बैंकों की ऋण देने की क्षमता कम हो जाती है। मुद्रास्फीति की स्थिति में, केंद्रीय बैंक इस अनुपात को बढ़ाकर बैंकों की साख निर्माण की क्षमता घटा देता है।

(iv) वैधानिक तरलता अनुपात-यह साख नियंत्रण की एक और विधि है जो केंद्रीय बैंक द्वारा प्रयोग किया जाता है। इस विधि के अनुसार प्रत्येक व्यावसायिक बैंक को अपनी कुल जमाओं का एक निश्चित अनुपात (जो केंद्रीय बैंक द्वारा निश्चित होता है) अपने पास तरल परिसंपत्तियों (जैसे सरकारी प्रतिभूतियों) के रूप में रखना अनिवार्य होता है। मुद्रास्फीति की स्थिति में केंद्रीय बैंक तरल अनुपात में वृद्धि कर देता है जिसके फलस्वरूप बैंकों की ऋण देय क्षमता कम हो जाती है।

5. अंतिम ऋणदाता-जब व्यावसायिक बैंक तरलता संकट (Liquidity Crisis) के समय अपने सारे साधन जुटाने के बाद भी नकद राशि का प्रबंध नहीं कर सकते तो वे अंतिम उपाय के रूप में केंद्रीय बैंक का दरवाजा खटखटाते हैं और कठिनाई का . सामना करने के लिए ऋण माँगते हैं। तब केंद्रीय बैंक उन्हें उधार देता है और उनकी जायज माँगों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से पूरा करने की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले लेता है। इसीलिए केंद्रीय बैंक के इस कार्य के कारण, उसे अंतिम ऋणदाता कहा जाता है।

6. विदेशी मुद्रा कोषों का संरक्षक केंद्रीय बैंक अन्य देशों से प्राप्त विदेशी मुद्रा के कोषों का भी संरक्षक है। देश के नागरिकों को, बाहर से प्राप्त की गई विदेशी मुद्रा, केंद्रीय बैंक के पास जमा करवानी होती है। यदि नागरिकों को विदेशी मुद्रा में बाहर कोई अदायगी करनी है तो उन्हें केंद्रीय बैंक से निवेदन करके विदेशी मुद्रा प्राप्त करनी होती है। अपने देश की मुद्रा इकाई के बाहरी मूल्य को अर्थात् विनिमय दर को स्थिर (Stable) रखना केंद्रीय बैंक का महत्त्वपूर्ण कार्य बन गया है।

प्रश्न 3.
व्यावसायिक बैंक की परिभाषा दीजिए। इसके प्राथमिक कार्यों का विस्तारपूर्वक वर्णन करें।
अथवा
व्यापारिक बैंकों (Commercial Banks) के प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
व्यावसायिक बैंक का अर्थ. एवं परिभाषा-व्यावसायिक बैंक (Commercial Bank) एक वित्तीय संस्था है जो लाभ कमाने के उद्देश्य से साधारण जनता से जमा स्वीकार करने और निवेश के लिए ऋण देने का कार्य करती है।

कलबर्टन के शब्दों में, “व्यावसायिक बैंक वे संस्थाएँ हैं जो व्यापार को अल्पकाल के लिए ऋण देती हैं और इस प्रक्रिया में मुद्रा का निर्माण करती हैं।”

व्यावसायिक बैंक के प्राथमिक कार्य-व्यावसायिक बैंक के प्राथमिक कार्य निम्नलिखित हैं-
1. जमा स्वीकार करना-व्यावसायिक बैंकों का प्रथम कार्य लोगों की बचतों को जमा करना है। बैंकों में जमा के लिए हम निम्नलिखित प्रकार के खाते खोल सकते हैं
(i) चालू जमा खाता-इस खाते में सामान्यतः व्यापारी वर्ग तथा उद्योगपति रुपया जमा कराते हैं। इस खाते की विशेषता यह है कि इसमें किसी भी समय कितनी ही मात्रा में रकम जमा कराई जा सकती है और आवश्यकतानुसार किंतनी ही बार निकाली जा सकती है। चालू खातों पर रखी जाने वाली राशि पर सामान्यतः ब्याज नहीं दिया जाता, वरन् कुछ स्थितियों में जमाकर्ताओं से कुछ शुल्क भी वसूल किया जाता है। इन खातों में जमा राशि को बैंक की ‘माँग देनदारियाँ’ (Demand Liabilities) कहा जाता है।

(ii) निश्चित जमा खाता इस प्रकार के खाते में जमा एक निश्चित अवधि के लिए स्वीकार किए जाते हैं। जो प्रायः एक माह से 5 वर्ष या अधिक अवधि के लिए स्वीकार किए जाते हैं। चूँकि बैंक के पास जमा राशि एक निश्चित अवधि के लिए होती है। अतः बैंक निश्चितता के साथ इसका विनियोजन कर सकता है। इस कारण इन जमा राशियों पर ब्याज की दर अधिक होती है। यह खाते उन लोगों के लिए उपयोगी होते हैं जो अपना धन किसी भी प्रकार के जोखिम में नहीं लगाना चाहते। जमावधि की पूर्णता से पूर्व यदि जमाकर्ता जमा राशि वापस लेना चाहे तो कुछ कटौती काटकर बैंक जमा राशि उसे लौटा देता है। इन खातों में जमा राशि को ‘काल देनदारियाँ’ (Time Liabilities) कहते हैं।

(iii) बचत जमा खाता-यह खाता सामान्य जनता में बचतों को प्रोत्साहन देने के लिए होता है। यह खाता चालू और निश्चित अवधि खाते की बीच की स्थिति है। इस खाते में किसी भी समय रुपया जमा कराया जा सकता है, किन्तु रुपया निकलवाने की अवधियाँ प्रायः सीमित होती हैं। बैंक इन खातों में भी चैक द्वारा रुपया निकलवाने की सुविधा देते हैं। इन खातों पर निश्चित अवधि खाते से कम ब्याज दिया जाता है, क्योंकि बैंक के पास रुपया कम अवधि के लिए जमा रहता है। ये खाते नौकरी-पेशे व्यक्तियों तथा लघु व्यापारियों के लिए उचित होते हैं। पश्चिमी देशों में बचत बैंक प्रायः अलग बैंक के रूप में कार्य करते हैं, किन्तु भारत में व्यावसायिक बैंकों में ही खाते खोले जाते हैं।

(iv) आवर्ती जमा खाता-इस प्रकार के खाते में जमाकर्ता एक निश्चित समय के लिए प्रतिमास निश्चित रकम जमा करते हैं। यह रकम कुछ विशेष परिस्थितियों के अलावा साधारणतया निर्धारित समय से पहले नहीं निकाली जा सकती। जमाकर्ताओं की जमा राशि पर मिलने वाली ब्याज की रकम भी खाते में जमा होती जाती है। इस खाते में सावधि खाते की तरह ही अन्य सभी खातों की तुलना में अधिक ब्याज प्राप्त होता है।

2. उधार देना-व्यावसायिक बैंकों का दूसरा प्राथमिक कार्य ऋण देना है। बैंक दूसरे लोगों से जो जमा स्वीकार करता है, उसका एक निश्चित भाग सुरक्षा कोष में रखकर, शेष राशि व्यापारियों व उद्यमियों को उत्पादक कार्यों के लिए उधार दे देता है और उस पर ब्याज कमाता है। वास्तव में बैंक की आय का यही मुख्य स्रोत है। बैंक निम्नलिखित रूपों में ऋण तथा अग्रिम (Advance) प्रदान करता है
(i) नकद साख-इस विधि में पात्र (Eligible) ऋणी के लिए पहले साख सीमा (Credit Limit) निर्धारित कर दी जाती है और इस सीमा के अंदर ही वह दी हुई गारंटी (Security) के आधार पर राशि निकाल सकता है। ऋणी द्वारा पैसा निकालने की क्षमता उसकी साख अर्हता (Credit Worthiness) पर निर्भर करती है। साख अर्हता, ऋणी की वर्तमान परिसंपत्तियों, स्टॉक, हुंडियों आदि का विवरण जो उसे बैंक के पास जमा करना पड़ता है पर निर्भर करती है। बैंक केवल आहरित या स्वीकृत साख की उपयोग की गई राशि पर ब्याज वसूल करता है।

(ii) अल्पावधि ऋण-ऐसे ऋणों में व्यक्तिगत ऋण, कार्यशील पूँजी ऋण व वरीयता वाले क्षेत्रकों को अल्पकाल के लिए दिए हुए ऋण शामिल किए जाते हैं। ये प्रतिभूतियों अथवा धरोहर के आधार पर दिए जाते हैं और ऋण स्वीकार होने पर ऋण की समस्त राशि ऋणी के खाते में हस्तांतरित हो जाती है जिस पर ब्याज तुरंत लगना शुरू हो जाता है। ऋण की वापसी पहले से तय शर्तों के अनुसार ऋण अवधि के बीच किश्तों में अथवा अवधि समाप्ति पर एक मुश्त की जा सकती है।

(iii) ओवरड्राफ्ट कई प्रकार के ग्राहकों को, बैंक उस राशि से अधिक राशि निकलवाने की इजाजत दे देता है, जितनी कि उनकी बैंक में जमा होती है। यह इजाजत वह सभी को नहीं देता है बल्कि उनको देता है जिनका बैंक में चालू खाता होता है और जो जमानत दे सकता है। जमानत का आधार ग्राहक के शेयर, ऋण पत्र, बीमा पॉलिसी आदि वित्तीय परिसंपत्तियाँ होती हैं। इस पर ब्याज भी नकद साख (Cash Credit) के ब्याज से कम होता है, क्योंकि ओवरड्राफ्ट (अधिविकष) में जोखिम और सेवा लागत कम होती है। जैसे वित्तीय परिसंपत्तियों को भुनाना, (नकद साख में प्रस्तुत) भौतिक परिसंपत्तियों की बिक्री कर पाने से अधिक आसान होता है। संक्षेप में ओवरड्राफ्ट, ग्राहक को अपनी जमा से अधिक राशि निकलवाने की एक सुविधा है।।

(iv) विनिमय बिलों पर कटौती-व्यापारिक बैंक सावधि बिलों की कटौती करके तत्काल ऋण दे देते हैं। बिल व्यावसायिक प्रकृति के होने चाहिएँ। बिलों की कटौती, बिल की राशि, अवधि और जोखिम की मात्रा पर निर्भर करती है।

3. साख का निर्माण-बैंक के विषय में प्रायः यह बात देखी गई है कि जितना रुपया उनके पास होता है, उससे कई गुना अधिक वे उधार देते हैं। इसी कारण से बैंक को साख निर्माण का कारखाना कहा जाता है। लोग बैंक में अपना फालतू रुपया जमा करवाते हैं। बैंक उन्हें यह विश्वास दिला देता है कि जब भी उन्हें अपना रुपया चाहिए, वे बैंक से वापिस ले सकते हैं। बैंक शत-प्रतिशत रुपया अपने पास नहीं रखता। इस जमा हुई रकम को बैंक अल्पकालीन ऋण के रूप में व्यापार और उद्योग आदि कार्यों के लिए उधार दे देता है। परंतु जमाकर्ताओं की माँग को पूरा करने के लिए बैंक उनके द्वारा जमा की गई रकम का केवल कुछ ही भाग रोक (Reserve) में रख लेता है।

बैंक ऐसा इसलिए करता है क्योंकि बैंक जानता है कि सभी जमाकर्ता एक ही समय में अपनी सारी जमा रकम लेने नहीं आएँगे। अतः थोड़ी-सी नकद रोक (Cash Reserve) के आधार पर बैंक बहुत अधिक मात्रा में साख का निर्माण कर लेता है। दूसरा, बैंक उधार दी गई रकम नकद नहीं देता, बल्कि उधार लेने वाले के नाम का खाता खोलकर उसमें जमा कर देता है और उधार दी गई रकम तक रुपए प्राप्त करने के लिए उन्हें चैक-बुक देता है। इस प्रकार बैंक के खाते में जमा बढ़ जाती है, जिसको साख जमा (Credit Deposit) कहा जाता है।

4. एजेंसी कार्य-बैंक अपने ग्राहकों के एजेंट के रूप में भी काम करता है जिसके लिए बैंक कुछ कमीशन लेता है। बैंक द्वारा प्रदत्त एजेंसी सेवाएँ निम्नलिखित हैं

  • नकद कोषों का हस्तांतरण-बैंक ड्राफ्ट, उधार खाते की चिट्ठी तथा अन्य साख-पत्रों द्वारा अथवा कंप्यूटर ऑन लाइन सिस्टम द्वारा बैंक एक स्थान से दूसरे स्थान को रकम का स्थानांतरण करता है। ये सेवा कम लागत, शीघ्रता और सुरक्षायुक्त होती है।
  • बैंक अपने ग्राहकों के लिए कंपनियों के शेयर बेचता और खरीदता है। यह कंपनियों के नाम पर हिस्सेदारों में लाभ को बाँटता है।
  • बैंक मृतक की वसीयतों (Wills) और प्रबंधकर्ता (Trustee) का दायित्व निभाता है।
  • ग्राहकों को आय कर संबंधी परामर्श देता है और उनके आय कर का भुगतान करता है।
  • ग्राहकों की ओर से संवाददाता, एजेंट या प्रतिनिधि का कार्य करता है और हवाई तथा जलमार्ग हेतु जरूरी दस्तावेज़ों (Documents) की व्यवस्था करता है।

5. सामान्य उपयोगी सेवाएँ-बैंक द्वारा उपलब्ध अन्य उपयोगी सेवाएँ (Utility services) निम्नलिखित हैं-

  • बैंक, विदेशी मुद्रा का क्रय-विक्रय करता है।
  • कीमती वस्तुएँ; जैसे ज़ेवरात, सोना, चाँदी, कागज़-पत्र को सुरक्षित रखने के लिए लॉकर्स (Lockers) उपलब्ध करता है।
  • पर्यटक चैक (Traveller Cheque) और उपहार चैक (Gift Cheque) जारी करता है।
  • बैंक अपने ग्राहकों के आर्थिक हवाले (References) देता है।
  • बैंक बिल्टी के माध्यम से वस्तुओं की ढुलाई (transportation) में सहायता करता है जैसे एक व्यापारी अपने ग्राहक को माल भेजकर उसकी बिल्टी बैंक में भेज देता है और क्रेता बैंक में रुपए जमा करवाकर उस बिल्टी को छुड़वा लेता है जिसके आधार पर वह माल ले लेता है।

प्रश्न 4.
मुद्रा-पूर्ति से क्या अभिप्राय है? मुद्रा-पूर्ति को प्रभावित करने वाले कारकों (तत्त्वों) की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मुद्रा-पूर्ति का अर्थ-मुद्रा-पूर्ति से अभिप्राय किसी समय बिंदु पर अर्थव्यवस्था में सभी प्रकार की मुद्राओं (कागज़ी मुद्रा, सिक्के, बैंक जमा) के उपलब्ध स्टॉक से है अर्थात् एक निश्चित समय में अर्थव्यवस्था में प्रचलित करेंसी की कुल मात्रा एवं माँग जमा की मात्रा के कुल जोड़ को मुद्रा-पूर्ति कहा जाता है। करेंसी अर्थव्यवस्था में प्रचलित सिक्के एवं कागज़ मुद्रा का कुल जोड़ है। माँग जमा अथवा चेक जमा उस बैंक जमा को कहते हैं जिसे जमाकर्ता माँगने पर बैंक से प्राप्त कर सकता है या जिसे चेक द्वारा बैंक से निकलवा सकता है। मिल्टन फ्रीडमैन के अनुसार, “चलन में करेंसी एवं माँग जमा के अलावा मुद्रा-पूर्ति में बचत एवं समय जमा शामिल होनी चाहिए।”

मुद्रा पूर्ति को प्रभावित करने वाले कारक-एक अर्थव्यवस्था में मुद्रा-पूर्ति मुख्य रूप से निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करती है
1. मौद्रिक आधार का आकार–भारत के मौद्रिक प्राधिकरण (Monetary Authority) भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की सम्पूर्ण देयता (Total Liability) को मौद्रिक आधार कहते हैं। इसे ही उच्च शक्ति मुद्रा (High Powered Money) कहा जाता है।
उच्च शक्ति मुद्रा उस मुद्रा को कहते हैं जिसको केन्द्रीय बैंक या सरकार जारी करती है और जिसे जनता तथा बैंक अपने पास रखते हैं। दूसरे शब्दों में,
H = R + C
(यहाँ, H = उच्च शक्ति मुद्रा; R= बैंकों के कुल रिज़र्व; C = चलन में करेंसी।)
दूसरे शब्दों में,
उच्च शक्ति मुद्रा = बैंकों के कुल रिज़र्व + जनता के पास करेंसी (नोट + सिक्के)
मुद्रा तथा उच्च शक्ति मुद्रा में अन्तर यह है कि मुद्रा में करेंसी के अतिरिक्त माँग जमाओं को सम्मिलित किया जाता है, जबकि उच्च शक्ति मुद्रा में करेंसी के अतिरिक्त बैंकों के नकद रिज़र्व को भी सम्मिलित किया जाता है। मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि तब होती है जब उच्च शक्ति मुद्रा में वृद्धि होती है। मुद्रा की पूर्ति का आकार मुद्रा गुणक (Money Multiplier) पर निर्भर करता है।

2. मुद्रा गुणक मुद्रा गुणक, मुद्रा की पूर्ति में परिवर्तन तथा मौद्रिक आधार में परिवर्तन का अनुपात है। मौद्रिक आधार, चलन में करेंसी तथा बैंकों के नकद रिज़र्व का कुल जोड़ है। मान लीजिए कि मौद्रिक आधार में 10 करोड़ रुपए के परिवर्तन के फलस्वरूप मुद्रा की पूर्ति में 30 करोड़ रुपए का परिवर्तन हो जाता है तो मुद्रा गुणक 3 होगा। मुद्रा गुणक का गुणांक निम्नलिखित सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग 1

3. नकदी तथा माँग जमा का अनुपात मुद्रा की पूर्ति पर इस बात का भी प्रभाव पड़ता है कि नकदी और माँग जमाओं का क्या अनुपात है। लोग कुल मुद्रा का जितना अधिक अनुपात जमाओं के रूप में रखना चाहेंगे, उतनी ही बैंकों की उन जमाओं के आधार पर, साख-निर्माण करने की शक्ति अधिक होगी। साख के निर्माण की मात्रा साख गुणक (Credit Multiplier) के आकार पर निर्भर करती है। साख गुणक का आकार नकद कोष अनुपात (Cash Reserve Ratio – CRR) द्वारा प्रभावित होता है।

जितना अनुपात बैंकों को अपने पास नकदी के रूप में रखना पड़ता है, उसको नकद कोष अनुपात (Cash Reserve Ratio) कहा जाता है। नकद कोष अनुपात जितना कम होगा बैंकों की साख-निर्माण करने की शक्ति उतनी ही अधिक होगी तथा मुद्रा की पूर्ति भी उतनी ही अधिक बढ़ जाएगी। अतएव यदि लोग कुल मुद्रा का अधिक भाग बैंक जमाओं के रूप में रखना पसन्द करेंगे तो मुद्रा की पूर्ति अधिक होगी।

4. मुद्रा की चलन गति-मुद्रा की पूर्ति का अनुमान लगाने के लिए अर्थशास्त्रियों के दो विभिन्न दृष्टिकोण निम्नलिखित हैं
(i) समय बिन्दु पर मुद्रा की पूर्ति कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्रियों; जैसे मार्शल, पीगू, रॉबर्टसन तथा केज़ का यह मत था कि किसी निश्चित समय बिन्दु पर मुद्रा की पूर्ति का अनुमान लोगों के पास करेंसी तथा माँग जमा के जोड़ द्वारा लगाया जा सकता है।

(ii) समयावधि में मुद्रा की पूर्ति-मुद्रा परिमाण सिद्धान्त के प्रतिपादकों में इरविंग फिशर (Irving Fisher) की रुचि यह ज्ञात करने में थी कि किसी विशेष समयावधि में मुद्रा की पूर्ति कितनी होती है। एक विशेष समयावधि में मुद्रा की इकाई का प्रयोग कई बार किया जा सकता है। अतः मुद्रा की वह इकाई एक से अधिक इकाइयों का काम करती है। मान लीजिए भारत में मुद्रा की एक इकाई एक वर्ष में औसतन सात बार प्रयोग में लाई जाती है। इसका अर्थ यह हुआ कि मुद्रा की एक इकाई ने सात इकाइयों का काम किया है। इसे कहा जाएगा कि मुद्रा की व्यवसाय चलन गति (Transaction Velocity of Money) अर्थात् ‘V’ सात है। अतएव मुद्रा की चलन गति से अभिप्राय यह है कि “मुद्रा की एक इकाई एक वर्ष में कितनी बार विनिमय के माध्यम के रूप में एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के पास जाती है।”

इस प्रकार एक निश्चित समयावधि में मुद्रा की पूर्ति का अनुमान मुद्रा की मात्रा को चलन गति से गुणा करके लगाया जाता है। अन्य शब्दों में,
मुद्रा की पूर्ति = MV

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

प्रश्न 5.
केंद्रीय बैंक तथा व्यावसायिक बैंकों में अंतर बताइए।
उत्तर:
केंद्रीय बैंक तथा व्यावसायिक बैंकों में निम्नलिखित अंतर पाए जाते हैं-

केद्रीय बैंकव्यावसायिक बैंक
1. यह देश का सर्वोच्च बैंक होने के नाते संपूर्ण बैंकिंग व्यवस्था पर नियंत्रण रखता है।1. यह बैंकिंग व्यवस्था का एक अंग मात्र होते हैं और केंद्रीय बैंक के आदेशों का पालन करते हैं।
2. इसका प्रमुख उद्देश्य सेवा या लोकहित करना है, लाभ कमाना इसका एक गौण उद्देश्य होता है।2. इसके लिए लाभ कमाना (Profit Motive) प्राथमिक उद्देश्य है, तभी तो ये जोखिमपूर्ण कार्यों तक में धन लगा देते हैं।
3. यह जनता से प्रत्यक्ष व्यवसाय नहीं करता, केवल अन्य बैंकों और सरकार से करता है।3. ये जनता से प्रत्यक्ष व्यवसाय करते हैं।
4. यह मुद्रा निर्गमन करने वाली संस्था है। इसे वास्तव में नोटों के निर्गमन का एकाधिकार होता है।4. इन्हें ऐसा अधिकार नहीं होता।
5. यह सरकार के बैंकर के रूप में कार्य करता है और इसलिए इसे सरकार से अनेक विशेष सुविधाएँ प्राप्त होती हैं।5. इनकी राज्य के प्रति ऐसी ज़िम्मेवारी नहीं है।
6. यह अंतिम ऋणदाता है। आवश्यकता पड़ने पर अन्य बैंक इससे ऋण लेते हैं।6. ये केंद्रीय बैंक से ऋण लेते हैं किंतु केंद्रीय बैंक इनसे ऋण नहीं लेता।
7. केंद्रीय बैंक देश में एक ही होता है, उसकी शाखाएँ अधिक हो सकती हैं।7. व्यावसायिक बैंक सभी देशों में अनेक होते हैं।
8. केंद्रीय बैंक एक सरकारी संस्था होती है।8. व्यावसायिक बैंक का स्वामित्व सरकारी तथा गैर-सरकारी भी हो सकता है।
9. केंद्रीय बैंक व्यावसायिक बैंकों से किसी प्रकार की प्रतियोगिता नहीं करता।9. व्यावसायिक बैंक अपने कार्य को बढ़ाने के लिए अन्य बैंकों से प्रतिस्पर्धा करते हैं।
10. केंद्रीय बैंक देश के विदेशी विनिमय का संरक्षक होता है।10. व्यावसायिक बैंक विदेशी विनिमय संबंधी कार्यों के लिए केंद्रीय बैंक की स्वीकृति पर निर्भर करते हैं।

प्रश्न 6.
साख-नियंत्रण से क्या अभिप्राय है? साख-नियंत्रण के विभिन्न उपायों का वर्णन करें।
अथवा
साख-नियंत्रण की मात्रात्मक विधियों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
साख-नियंत्रण की चयनात्मक विधियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
साख नियंत्रण से अभिप्राय देश के केंद्रीय बैंक द्वारा निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए साख के संकुचन तथा साख के विस्तार का नियंत्रण करना है।
साख नियंत्रण की विधियाँ-साख नियंत्रण की विधियाँ या उपाय निम्नलिखित हैं-
(क) साख नियंत्रण के मात्रात्मक उपाय-साख नियंत्रण के इन उपायों द्वारा एक अर्थव्यवस्था की कुल मुद्रा पूर्ति/साख को प्रभावित किया जा सकता है। इसके मुख्य उपाय निम्नलिखित हैं-
1. बैंक दर-बैंक दर ब्याज की वह न्यूनतम दर है जिस पर देश का केंद्रीय बैंक (अंतिम ऋणदाता होने के कारण) वाणिज्यिक बैंकों को ऋण देने के लिए तैयार होता है। बैंक दर के बढ़ने से ब्याज की दर बढ़ती है तथा ऋण महँगा होता है। इसके फलस्वरूप साख की माँग कम हो जाती है। इसके विपरीत, बैंक दर कम करने पर व्यावसायिक बैंकों द्वारा अपने उधारकर्ताओं से लिए जाने वाले ब्याज की बाज़ार दर कम हो जाती है अर्थात् साख (ऋण) सस्ती हो जाती है। इसके फलस्वरूप साख की माँग बढ़ जाती है। मुद्रास्फीति के समय जब साख का संकुचन जरूरी होता है तब केंद्रीय बैंक महँगी साख नीति (Dear Money Policy) को अपनाता है। अवस्फीति के समय जब साख का विस्तार करना जरूरी होता है तब केंद्रीय बैंक सस्ती साख नीति (Cheap Money Policy) को अपनाता है अर्थात् बैंक दर को कम कर देता है।

2. खुले बाज़ार की क्रियाएँ-खुले बाज़ार की क्रियाओं से अभिप्राय केंद्रीय बैंक द्वारा प्रतिभूतियों का खुले बाज़ार में बेचना तथा खरीदना है। प्रतिभूतियों (जैसे राष्ट्रीय बचत सर्टीफिकेट-NSC) को बेचने से केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में मौजूद नकद कोषों को अपनी ओर खींच लेता है। ये नकद कोष, उच्च शक्तिशाली मुद्रा होती है जिसके आधार पर व्यावसायिक बैंक साख का निर्माण करते हैं। अतः खुले बाज़ार की क्रियाओं (Open Market Operations-OMO) द्वारा यदि नकद कोषों में वृद्धि की जाती है तो साख का प्रवाह कई गुणा अधिक बढ़ जाएगा और यदि नकद कोषों में कमी की जाती है तो साख प्रवाह में कई गणा कमी हो जाएगी।

3. नकद कोष अनुपात-इसका अर्थ बैंक की कुल जमाओं का वह न्यूनतम अनुपात है जो उसे केंद्रीय बैंक के पास जमा रखना पड़ता है। व्यावसायिक बैंकों को कानूनी तौर पर अपनी जमाओं का एक निश्चित प्रतिशत केंद्रीय बैंक के पास नकद निधि के रूप में रखना पड़ता है। उदाहरण के लिए, यदि न्यूनतम निधि अनुपात 10 प्रतिशत है और किसी बैंक की कुल जमाएँ 100 करोड़ रुपए हैं तो इस बैंक को 10 करोड़ रुपए केंद्रीय बैंक के पास रखने होंगे। यदि न्यूनतम निधि अनुपात को बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दिया जाता है तो बैंक को 20 करोड़ रुपए केंद्रीय बैंक के पास रखने होंगे। यदि केंद्रीय बैंक को साख या नकद प्रवाह का संकचन करना होगा तो वह न्यूनतम नकद निधि अनुपात को बढ़ा देगा और यदि उसको साख या नकद प्रवाह का विस्तार करना होगा तो इसे घटा देगा।

4. वैधानिक तरलता अनुपात-प्रत्येक बैंक को अपनी परिसंपत्तियों के एक निश्चित प्रतिशत को अपने पास नकद रूप में या अन्य तरल परिसंपत्तियों (जैसे सरकारी प्रतिभूतियों) के रूप में कानूनी तौर पर रखना पड़ता है. जिसे वैधानिक तरलता अनुपात (Statutory Liquidity Ratio) कहते हैं। बाज़ार में साख के प्रवाह को कम करने के लिए केंद्रीय बैंक तरलता अनुपात को बढ़ा देता है और यदि केंद्रीय बैंक साख का विस्तार करना चाहता है तो वह तरलता अनुपात को घटा देता है।

(ख) साख नियंत्रण के गुणात्मक उपाय-साख नियंत्रण (Credit Control) गुणात्मक के उपाय वे उपाय हैं जो किसी विशेष उद्देश्यों के लिए दी जाने वाली तथा विशेष बैंकों द्वारा दी जाने वाली साख को नियंत्रित करते हैं। इसे चयनात्मक साख नियंत्रण (Selective Credit Control) भी कहा जाता है। इसका प्रभाव साख की कुल मात्रा पर नहीं पड़ता। इसका उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों की दी जाने वाली साख को नियंत्रित करना है। साख नियंत्रण के मुख्य गुणात्मक उपाय निम्नलिखित हैं

1. सीमांत आवश्यकता-सीमांत आवश्यकता से अभिप्राय, बैंक द्वारा किसी वस्तु की जमानत पर दिए गए ऋण तथा जमानत वाली वस्तु के वर्तमान मूल्य के अंतर से है। मान लीजिए किसी व्यक्ति ने 100 रुपए मूल्य का माल बैंक के पास जमानत के रूप में रखा है तो बैंक उसे 80 रुपए का ऋण देता है। इस स्थिति में सीमांत आवश्यकता 20 प्रतिशत होगी। यदि अर्थव्यवस्था की किसी विशेष व्यावसायिक क्रिया के लिए साख के प्रवाह को सीमित करना है तो उस क्रिया के लिए सीमांत आवश्यकता को बढ़ा दिया जाएगा। इसके विपरीत, यदि साख का विस्तार किया जाना है तो सीमांत आवश्यकता को कम कर दिया जाता है।

2. साख की राशनिंग-साख राशनिंग से अभिप्राय विभिन्न व्यावसायिक क्रियाओं के लिए साख की मात्रा का कोटा निर्धारित करना है। साख की राशनिंग (Rationing of Credit) तब की जाती है जब अर्थव्यवस्था में विशेष रूप से सट्टे की क्रियाओं के लिए दी जाने वाले ऋणों पर रोक लगानी होती है। केंद्रीय बैंक विभिन्न व्यावसायिक क्रियाओं के लिए साख का कोटा निर्धारित कर देता है। ऋण देते समय व्यावसायिक बैंक कोटे की सीमा से अधिक ऋण नहीं दे सकते।

3. प्रत्यक्ष कार्रवाई केंद्रीय बैंक को उन बैंकों के विरुद्ध प्रत्यक्ष कार्रवाई करनी पड़ती है जो उसकी साख नीति का पालन नहीं करते। प्रत्यक्ष कार्रवाई के अंतर्गत ऐसे व्यावसायिक बैंकों की देश की बैंकिंग प्रणाली के सदस्यों के रूप में मान्यता को रद्द कर दिया जाता है।

4. नैतिक दबाव कभी-कभी केंद्रीय बैंक सदस्य बैंकों को समझा-बुझाकर, प्रार्थना करके या नैतिक दबाव डालकर उन्हें साख नियंत्रण के लिए अपनाई गई नीति के अनुसार काम करने के लिए सहमत कर लेता है। केंद्रीय बैंक का लगभग सभी व्यावसायिक बैंकों पर नैतिक प्रभाव होता है। अतः सामान्यतया ये बैंक केंद्रीय बैंक द्वारा साख के विस्तार या संकुचन करने की सलाह को मान लेते हैं।

प्रश्न 7.
मुद्रा-पूर्ति से क्या अभिप्राय है? मुद्रा-पूर्ति को प्रभावित करने वाले कारकों (तत्त्वों) की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मुद्रा-पूर्ति का अर्थ-मुद्रा-पूर्ति से अभिप्राय किसी समय बिंदु पर अर्थव्यवस्था में सभी प्रकार की मुद्राओं (कागजी मुद्रा, सिक्के, बैंक जमा) के उपलब्ध स्टॉक से है अर्थात एक निश्चित समय में अर्थव्यवस्था में प्रचलित करेंसी की कुल मात्रा एवं माँग जमा की मात्रा के कुल जोड़ को मुद्रा-पूर्ति कहा जाता है। करेंसी अर्थव्यवस्था में प्रचलित सिक्के एवं कागज़ मुद्रा का कुल जोड़ है। माँग जमा अथवा चेक जमा उस बैंक जमा को कहते हैं जिसे जमाकर्ता माँगने पर बैंक से प्राप्त कर सकता है या जिसे चेक द्वारा बैंक से निकलवा सकता है। मिल्टन फ्रीडमैन के अनुसार, “चलन में करेंसी एवं माँग जमा के अलावा मुद्रा-पूर्ति में बचत एवं समय जमा शामिल होनी चाहिए।”

मुद्रा पूर्ति को प्रभावित करने वाले कारक-एक अर्थव्यवस्था में मुद्रा-पूर्ति मुख्य रूप से निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करती है
1. मौद्रिक आधार का आकार भारत के मौद्रिक प्राधिकरण (Monetary Authority) भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की सम्पूर्ण देयता (Total Liability) को मौद्रिक आधार कहते हैं। इसे ही उच्च शक्ति मुद्रा (High Powered Money) कहा जाता
उच्च शक्ति मुद्रा उस मुद्रा को कहते हैं जिसको केन्द्रीय बैंक या सरकार जारी करती है और जिसे जनता तथा बैंक अपने पास रखते हैं। दूसरे शब्दों में,
H = R + C
(यहाँ, H= उच्च शक्ति मुद्रा; R = बैंकों के कुल रिज़र्व; C = चलन में करेंसी।)
दूसरे शब्दों में,
उच्च शक्ति मुद्रा = बैंकों के कुल रिज़र्व + जनता के पास करेंसी (नोट + सिक्के)
मुद्रा तथा उच्च शक्ति मुद्रा में अन्तर यह है कि मुद्रा में करेंसी के अतिरिक्त माँग जमाओं को सम्मिलित किया जाता है, जबकि उच्च शक्ति मुद्रा में करेंसी के अतिरिक्त बैंकों के नकद रिज़र्व को भी सम्मिलित किया जाता है। मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि तब होती है जब उच्च शक्ति मुद्रा में वृद्धि होती है। मुद्रा की पूर्ति का आकार मुद्रा गुणक (Money Multiplier) पर निर्भर करता है।

2. मुद्रा गुणक-मुद्रा गुणक, मुद्रा की पूर्ति में परिवर्तन तथा मौद्रिक आधार में परिवर्तन का अनुपात है। मौद्रिक आधार, चलन में करेंसी तथा बैंकों के नकद रिज़र्व का कुल जोड़ है। मान लीजिए कि मौद्रिक आधार में 10 करोड़ रुपए के परिवर्तन के फलस्वरूप मुद्रा की पूर्ति में 30 करोड़ रुपए का परिवर्तन हो जाता है तो मुद्रा गुणक 3 होगा। मुद्रा गुणक का गुणांक निम्नलिखित सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग 2

3. नकदी तथा माँग जमा का अनुपात मुद्रा की पूर्ति पर इस बात का भी प्रभाव पड़ता है कि नकदी और माँग जमाओं का क्या अनुपात है। लोग कुल मुद्रा का जितना अधिक अनुपात जमाओं के रूप में रखना चाहेंगे, उतनी ही बैंकों की उन जमाओं के आधार पर, साख-निर्माण करने की शक्ति अधिक होगी। साख के निर्माण की मात्रा साख गुणक (Credit Multiplier) के आकार पर निर्भर करती है। साख गुणक का आकार नकद कोष अनुपात (Cash Reserve Ratio – CRR) द्वारा प्रभावित होता है। कुल जमाओं का जितना अनुपात बैंकों को अपने पास नकदी के रूप में रखना पड़ता है, उसको नकद कोष अनुपात (Cash Reserve Ratio) कहा जाता है। नकद कोष अनुपात जितना कम होगा बैंकों की साख-निर्माण करने की शक्ति उतनी ही अधिक होगी तथा मुद्रा की पूर्ति भी उतनी ही अधिक बढ़ जाएगी। अतएव यदि लोग कुल मुद्रा का अधिक भाग बैंक जमाओं के रूप में रखना पसन्द करेंगे तो मुद्रा की पूर्ति अधिक होगी।

4. मुद्रा की चलन गति-मुद्रा की पूर्ति का अनुमान लगाने के लिए अर्थशास्त्रियों के दो विभिन्न दृष्टिकोण निम्नलिखित हैं
(i) समय बिन्दु पर मुद्रा की पूर्ति कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्रियों; जैसे मार्शल, पीगू, रॉबर्टसन तथा केज का यह मत था कि किसी निश्चित समय बिन्दु पर मुद्रा की पूर्ति का अनुमान लोगों के पास करेंसी तथा माँग जमा के जोड़ द्वारा लगाया जा सकता है।

(ii) समयावधि में मुद्रा की पूर्ति मुद्रा परिमाण सिद्धान्त के प्रतिपादकों में इरविंग फिशर (Irving Fisher) की रुचि यह ज्ञात करने में थी कि किसी विशेष समयावधि में मुद्रा की पूर्ति कितनी होती है। एक विशेष समयावधि में मुद्रा की इकाई का प्रयोग कई बार किया जा सकता है। अतः मुद्रा की वह इकाई एक से अधिक इकाइयों का काम करती है। मान लीजिए भारत में मुद्रा की एक इकाई एक वर्ष में औसतन सात बार प्रयोग में लाई जाती है। इसका अर्थ यह हुआ कि मुद्रा की एक इकाई ने सात इकाइयों का काम किया है। इसे कहा जाएगा कि मुद्रा की व्यवसाय चलन गति (Transaction Velocity of Money) अर्थात् ‘V’ सात है। अतएव मुद्रा की चलन गति से अभिप्राय यह है कि “मुद्रा की एक इकाई एक वर्ष में कितनी बार विनिमय के माध्यम के रूप में एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के पास जाती है।”

इस प्रकार एक निश्चित समयावधि में मुद्रा की पूर्ति का अनुमान मुद्रा की मात्रा को चलन गति से गुणा करके लगाया जाता है। अन्य शब्दों में,
मुद्रा की पूर्ति = Mv

संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित सूचना के आधार पर M1 और M3 का आकलन कीजिए

(मदें)(करोड़ रुपए में)
(i) जनता के पास धारित करेंसी3,16,660
(ii) बैंक के पास निवल माँग जमाएँ2,50,371
(iii) केंद्रीय बैंक के पास अन्य जमाएँ5,041
(iv) बैंकों के पास शुद्ध सावधि जमाएँ13,27,179

हल:
M1 = C + DD + OD
= जनता के पास धारित करेंसी + बैंक के पास निवल माँग जमाएँ + केंद्रीय बैंक के पास अन्य जमाएँ
= 3,16,660 + 2,50,371 + 5,041 करोड़ रुपए
M1 = 5,72,072 करोड़ रुपए उत्तर
M1 = M1 + बैंकों की सावधि जमाएँ
M1 = 5,72,072 + 13,27,179 करोड़ रुपए
= 18,99,251 करोड़ रुपए उत्तर

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

प्रश्न 2.
निम्नलिखित सूचना के आधार पर M1 और M3 का आकलन कीजिए

(मदें)(करोड़ रुपए में)
(i) जनता के पास धारित करेंसी3,16.758
(ii) बैंक के पास निवल माँग जमाएँ2,51,271
(iii) केंद्रीय बैंक के पास अन्य जमाएँ5,041
(iv) बैंकों के पास शुद्ध सावधि जमाएँ14,27,179

हल:
M1 = C + DD + OD
= जनता के पास धारित करेंसी + बैंक के पास निवल माँग जमाएँ + केंद्रीय बैंक के पास अन्य जमाएँ
= 3,16,758 + 2,51, 271 + 5,041 करोड़ रुपए
M1 = 5,73, 070 करोड़ रुपए उत्तर
M3 = M1 + बैंकों की सावधि जमाएँ
M3 = 5,73,070 + 14,27,179
= 20,00, 249 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 3.
निम्नलिखित सूचना के आधार पर M1, M2, M3 तथा M4 की गणना करें

(मदें)(रुपए करोड़ में)
(i) जनता के पास धारित करेंसी2,65,325
(ii) बैंकों के पास निवल माँग जमाएँ1,87,841
(iii) केंद्रीय बैंक के पास अन्य जमाएँ2,609
(iv) डाकघर के बचत खातों में जमा5,041
(v) बैंकों की समय जमा12,37,975
(vi) डाकघरों के बचत खातों की कुल जमाएँ25,969

हल:
M1 = C + DD + OD
= जनता के पास धारित करेंसी + बैंक के पास निवल माँग जमाएँ + केंद्रीय बैंक के पास अन्य जमाएँ
= 2,65,325 + 1,87,841 + 2,609 करोड़ रुपए
= 4,55,775 करोड़ रुपए
M2 = M1 + डाकघर बचत बैंकों में बचत जमा राशियाँ
M2 = 4,55,775+ 5,041 करोड़ रुपए
M2 = 4,60,816 करोड़ रुपए
M3 = M1 + बैंकों के पास अन्य जमाएँ
M3 = 4,55,775+ 12,37,975 करोड़ रुपए
M4 = 16,93,750 करोड़ रुपए
M4 = M3 + डाकघर बचत बैंकों के पास समस्त जमा राशियाँ
M4 = 16,93,750 + 25,969 करोड़ रुपए
M4 = 17,19,719 करोड़ रुपए

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HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. वास्तविक प्रवाह से तात्पर्य है –
(A) परिवारों से फर्मों को संसाधनों का प्रवाह
(B) फर्मों से परिवारों को वस्तुओं और सेवाओं का प्रवाह
(C) (A) और (B) दोनों।
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

2. मौद्रिक प्रवाह का अर्थ है-
(A) फर्मों से परिवारों को कारक सेवाओं के बदले मौद्रिक भुगतान
(B) परिवारों से फर्मों को वस्तुओं और सेवाओं के बदले मौद्रिक भुगतान
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) फर्मों से परिवारों को कारक सेवाओं के बदले मौद्रिक भुगतान

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

3. आय के चक्रीय (वर्तुल) प्रवाह से अभिप्राय है-
(A) अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में वस्तुओं का प्रवाहित होना
(B) अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में वस्तुओं और सेवाओं का प्रवाहित होना
(C) अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में सेवाओं का प्रवाहित होना
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में वस्तुओं और सेवाओं का प्रवाहित होना

4. आय के चक्रीय प्रवाह को निम्नलिखित में से किन रूपों में देखा जा सकता है?
(A) आय का वास्तविक प्रवाह
(B) आय का मौद्रिक प्रवाह
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

5. आय का वर्तुल प्रवाह निम्नलिखित में से किन में होता है?
(A) अर्थव्यवस्था के दो क्षेत्रों में
(B) अर्थव्यवस्था के तीन क्षेत्रों में
(C) अर्थव्यवस्था के चार क्षेत्रों में
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

6. निम्नलिखित में से कौन-सा आय के चक्रीय प्रवाह का क्षरण (Leakage) है?
(A) फर्मों द्वारा लिए गए ऋण
(B) सार्वजनिक व्यय
(C) निवेश
(D) परिवारों द्वारा की गई बचतें
उत्तर:
(D) परिवारों द्वारा की गई बचतें

7. राष्ट्रीय आय के प्रवाह का संतुलन वहाँ होता है जहाँ
(A) भरण = क्षरण होते हैं
(B) भरण > क्षरण होते हैं
(C) भरण < क्षरण होते हैं
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) भरण = क्षरण होते हैं

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

8. राष्ट्रीय आय को मापने की आय विधि के संघटक हैं
(A) मज़दूरी आय
(B) गैर-मज़दूरी आय
(C) अन्य आय
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

9. निम्नलिखित में से सकल राष्ट्रीय उत्पाद में शामिल है।
(A) मूल्यह्रास
(B) लॉटरी से प्राप्त आय
(C) पुराने मकान की बिक्री
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) मूल्यह्रास

10. यदि आर्थिक कल्याण की जानकारी प्राप्त करनी हो तो राष्ट्रीय आय गणना की कौन-सी विधि श्रेष्ठ रहेगी?
(A) उत्पाद विधि
(B) आय विधि
(C) व्यय विधि
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) व्यय विधि

11. सकल घरेलू उत्पाद में से कौन-सी रकम घटाकर शुद्ध घरेलू उत्पाद ज्ञात किया जा सकता है?
(A) हस्तांतरण भुगतान
(B) अप्रत्यक्ष कर
(C) मूल्यह्रास
(D) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज
उत्तर:
(C) मूल्यह्रास

12. निम्नलिखित में से दोहरी गणना की समस्या कौन-सी विधि में होती है?
(A) आय विधि में
(B) व्यय विधि में
(C) उत्पाद विधि में
(D) उपरोक्त सभी में
उत्तर:
(C) उत्पाद विधि में

13. देशीय/घरेलू उत्पाद (Domestic Product) बराबर है-
(A) राष्ट्रीय उत्पाद + विदेशों से निवल कारक आय
(B) राष्ट्रीय उत्पाद – विदेशों से निवल कारक आय
(C) राष्ट्रीय उत्पाद विदेशों से निवल कारक आय
(D) राष्ट्रीय उत्पाद – विदेशों से निवल कारक आय
उत्तर:
(B) राष्ट्रीय उत्पाद – विदेशों से निवल कारक आय

14. राष्ट्रीय आय में निम्नलिखित में से कौन-सी मद शामिल नहीं होती?
(A) गृहिणी की सेवाएँ
(B) विदेशों से दान
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

15. निम्नलिखित में से कौन-सी मद शामिल करके सकल घरेलू उत्पाद से कुल राष्ट्रीय उत्पाद का अनुमान लगाया जा सकता है?
(A) अप्रत्यक्ष कर से
(B) शुद्ध विदेशी आय से
(C) घिसावट व्यय से
(D) हस्तांतरण भुगतान से
उत्तर:
(B) शुद्ध विदेशी आय से

16. निम्नलिखित में से कौन-सा सही नहीं है?
(A) NNPMP = GNPMP – मूल्यह्रास
(B) NDPMP = NNPMP + विदेशों से निवल कारक आय
(C) NDPFC = NDPMP + अप्रत्यक्ष कर
(D) GDPFC = NDPFC – मूल्यह्रास
उत्तर:
(A) NNPMP = GNPMP – मूल्यह्रास

17. बाज़ार कीमत पर निवल घरेलू उत्पाद (NDP)
(A) GDPMP – घिसावट
(B) GDPMP + घिसावट
(C) GDPMP – अप्रत्यक्ष कर
(D) GDPMP + आर्थिक सहायता
उत्तर:
(A) GDPMP – घिसावट

18. कारक लागत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPFC) =
(A) GDPMP – निवल अप्रत्यक्ष कर
(B) GDPMP + निवल प्रत्यक्ष कर
(C) GDPMP + आर्थिक सहायता
(D) GDPMP – अप्रत्यक्ष कर
उत्तर:
(A) GDPMP – निवल अप्रत्यक्ष कर

19. निम्नलिखित में से सही विकल्प चुनिए
(A) NDPFC = GNPFC – मूल्यह्रास
(B) GNPMP = NNPFC + विदेशों से शुद्ध कारक आय
(C) GDP = GNP – विदेशों से शुद्ध कारक आय
(D) NNPFC = NDPMP – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
उत्तर:
(C) GDP = GNP – विदेशों से शुद्ध कारक आय

20. निम्नलिखित में से सही विकल्प चुनिए
(A) NDPFC = GDPMP – मूल्यह्रास
(B) GNPMP = GNPFC + निवल अप्रत्यक्ष कर
(C) GDP = GNP + विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय
(D) NNPFC = NDPMP – निवल अप्रत्यक्ष कर
उत्तर:
(D) NNPFC = NDPMP – निवल अप्रत्यक्ष कर

21. बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) =
(A) GDPMP – घिसावट
(B) GDPMP + विदेशों से निवल कारक आय
(C) GDPMP + घिसावट
(D) GDPMP – अप्रत्यक्ष कर
उत्तर:
(B) GDPMP + विदेशों से निवल कारक आय

22. बिस्कुट निर्माता कंपनी के लिए कौन-सी मध्यवर्ती वस्तु होगी?
(A) आटा
(B) घी
(C) चीनी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

23. कारक लागत में निम्नलिखित में से किसे शामिल किया जाता है?
(A) बाज़ार कीमत – अप्रत्यक्ष कर – आर्थिक सहायता
(B) बाज़ार कीमत – अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता
(C) बाज़ार कीमत + अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता
(D) बाज़ार कीमत + अप्रत्यक्ष कर – आर्थिक सहायता
उत्तर:
(B) बाज़ार कीमत – अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता

24. बाज़ार कीमत पर GNP = ?
(A) बाज़ार कीमत पर GDP – घिसावट
(B) बाज़ार कीमत पर GDP + विदेशों से निवल कारक आय
(C) बाज़ार कीमत पर GNP + आर्थिक सहायता
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) बाज़ार कीमत पर GDP + विदेशों से निवल कारक आय

25. बाज़ार कीमत पर NNP = ?
(A) बाज़ार कीमत पर GNP – घिसावट
(B) बाज़ार कीमत पर GNP + घिसावट
(C) बाज़ार कीमत पर GNP + अप्रत्यक्ष कर
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) बाज़ार कीमत पर GNP – घिसावट

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

26. प्रयोज्य आय ज्ञात करने के लिए व्यक्तिगत आय में से कौन-सी मद घटाई जाती है?
(A) बिक्री कर
(B) अप्रत्यक्ष कर
(C) प्रत्यक्ष कर
(D) हस्तांतरण भुगतान
उत्तर:
(C) प्रत्यक्ष कर

27. निम्नलिखित में से निवल अप्रत्यक्ष कर है-
(A) अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता
(B) अप्रत्यक्ष कर – आर्थिक सहायता
(C) प्रत्यक्ष कर – आर्थिक सहायता
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) अप्रत्यक्ष कर – आर्थिक सहायता

28. विदेशों में काम करने वाले भारतीयों की आय ……………… का भाग होती है।
(A) भारत की घरेलू आय
(B) विदेशों से प्राप्त आय
(C) भारत के निवल घरेलू उत्पाद
(D) भारत के सकल घरेलू उत्पाद
उत्तर:
(B) विदेशों से प्राप्त आय

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में वस्तुओं, सेवाओं और मुद्रा का प्रभावित होना, आय का …………….. प्रवाह कहलाता है। (चक्रीय/वास्तविक)
उत्तर:
चक्रीय

2. सकल घरेलू उत्पाद में ……………… पदार्थों का मूल्य शामिल किया जाता है। (मध्यवर्ती/अंतिम)
उत्तर:
अंतिम

3. सकल घरेलू उत्पाद में से ……………. घटाकर शुद्ध घरेलू उत्पाद ज्ञात किया जा सकता है। (मूल्यहास/हस्तांतरण भुगतान)
उत्तर:
मूल्यह्रास

4. छात्रवृत्ति ……………. आय है। (हस्तांतरण/वास्तविक)
उत्तर:
हस्तांतरण

5. राष्ट्रीय आय लेखांकन में राष्ट्रीय आय और उससे संबंधित ……………… आर्थिक चरों का अध्ययन किया जाता है। (समष्टि/व्यष्टि)
उत्तर:
समष्टि

6. दोहरी गणना से बचने के लिए ……………. विधि अपनाई जाती है। (आय/मूल्यवर्धित)
उत्तर:
मूल्यवर्धित

7. GDP = ……………. (Gross Domestic Product/Gross Demand Product)
उत्तर:
Gross Domestic Product

8. USA में काम कर रहे भारतीयों की आय …………………. का भाग है। (विदेशी शुद्ध कारक आय/भारत की घरेलू आय)
उत्तर:
विदेशी शुद्ध कारक आय

C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत

  1. यदि अवैध क्रियाओं को वैध घोषित कर दिया जाए तो GDP में वृद्धि होती है।
  2. एक देश की खनिज सम्पदा को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।
  3. यदि शुद्ध निर्यात धनात्मक है तो सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP), सकल घरेलू उत्पाद (GDP) से अधिक होता है।
  4. व्यय विधि को औद्योगिक उद्गम विधि भी कहा जाता है।
  5. अमेरिका में काम कर रहे भारतीयों की आय भारत की घरेलू आय का भाग है।
  6. राष्ट्रीय आय की संरचना से अभिप्राय उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की प्रकृति से है।
  7. व्यय विधि के अनुसार सकल घरेलू आय साधन लागत पर प्राप्त होती है।
  8. राष्ट्रीय आय लेखांकन राष्ट्रीय आय से सम्बन्धित लेखों को संकलित करने व प्रस्तुत करने की एक प्रणाली है।
  9. सरकार द्वारा दी जाने वाली वृद्धावस्था पेंशन भारत की घरेलू साधन आय का हिस्सा होती है।
  10. हस्तांतरण आय का सम्बन्ध उत्पादन से नहीं होता।
  11. सकल निवेश = शुद्ध निवेश + मूल्य हास
  12. ‘पूँजी पर ब्याज’ एक प्रवाह चर है।
  13. वृद्धावस्था पेंशन राष्ट्रीय आय में शामिल होती है।

उत्तर:

  1. सही
  2. सही
  3. सही
  4. गलत
  5. गलत
  6. सही
  7. गलत
  8. सही
  9. सही
  10. सही
  11. सही
  12. सही
  13. गलत

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय आय लेखांकन क्या है?
उत्तर:
राष्ट्रीय आय लेखांकन राष्ट्रीय आय से संबंधित लेखों को संकलित करने व प्रस्तुत करने की एक विधि है।

प्रश्न 2.
आय का चक्रीय (वर्तुल) प्रवाह क्या है?
उत्तर:
राष्ट्रीय आय में चक्रीय प्रवाह पाया जाता है। आय के चक्रीय प्रवाह से अभिप्राय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में मौद्रिक आय के प्रवाह या वस्तुओं और सेवाओं के चक्रीय प्रवाह से है। आय का पहले फर्मों (उत्पादकों) से कारक स्वामियों (परिवारों) की ओर कारक भुगतानों के रूप में और फिर परिवारों से फर्मों के पास उपभोग व्यय के रूप में हस्तांतरण होना आय का चक्रीय प्रवाह कहलाता है।

प्रश्न 3.
प्रवाह चर की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
वे चर जो समय की एक निश्चित समयावधि (Period of Time) के संदर्भ में मापे जाते हैं, प्रवाह कहलाते हैं। उदाहरण के लिए-आय, व्यय, बचत, निवेश, मूल्यह्रास, ब्याज, आयात-निर्यात, माल-सूची में परिवर्तन आदि प्रवाह चर हैं।

प्रश्न 4.
स्टॉक की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
जो मात्रा समय के किसी निश्चित बिंदु (Point of Time) के संदर्भ में मापे जाते हैं, स्टॉक कहलाते हैं। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय पूँजी, संपत्ति, विदेशी ऋण, माल-सूची (Inventory), खाद्यान्न भंडार आदि स्टॉक हैं।

प्रश्न 5.
उपभोक्ता वस्तुओं से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उपभोक्ता वस्तुओं से हमारा अभिप्राय उन वस्तुओं से है जिनका प्रयोग लोगों द्वारा अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए किया जाता है; जैसे पहनने के लिए कपड़े, खाने के लिए खाद्य पदार्थ आदि ।

प्रश्न 6.
मध्यवर्ती वस्तुओं से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मध्यवर्ती वस्तुओं से हमारा अभिप्राय उन गैर-टिकाऊ वस्तुओं से है जिनकी माँग उत्पादकों द्वारा उत्पादन करने अथवा पुनर्बिक्री के लिए की जाती है।

प्रश्न 7.
उत्पादक वस्तुओं से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उत्पादक वस्तुओं से हमारा अभिप्राय उन मध्यवर्ती वस्तुओं तथा अंतिम वस्तुओं से है जिनका उपयोग अन्य वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन के लिए किया जाता है।

प्रश्न 8.
टिकाऊ उत्पादक वस्तुएँ क्या हैं?
उत्तर:
टिकाऊ उत्पादक वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती हैं जिनका उपयोग उत्पादन क्रिया में एक से अधिक बार किया जा सकता है।

प्रश्न 9.
आय के वास्तविक प्रवाह से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आय के वास्तविक प्रवाह से अभिप्राय है कि परिवार क्षेत्र द्वारा कारक सेवाओं का प्रवाह उत्पादक क्षेत्र की ओर होता है और उत्पादक क्षेत्र अथवा फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का प्रवाह परिवार क्षेत्र की ओर होता है।

प्रश्न 10.
आय के मौद्रिक प्रवाह से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
आय के मौद्रिक प्रवाह से हमारा अभिप्राय उस प्रवाह से है जिसमें अर्थव्यवस्था का उत्पादक क्षेत्र (फम), परिवार क्षेत्र को कारक सेवाएँ जुटाने के बदले, कारक भुगतान नकदी के रूप में करता है। फिर परिवार क्षेत्र ‘उत्पादक क्षेत्र में उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का मुद्रा के माध्यम से क्रय करता है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 11.
उत्पादन प्रवाह कब उत्पन्न होता है?
उत्तर:
उत्पादन प्रवाह उस समय उत्पन्न होता है जब एक देश के लोग देश में उपलब्ध तकनीकी और सामाजिक संगठन के अंतर्गत उपलब्ध संसाधनों, वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करने के लिए उपयोग करते हैं। उत्पादन प्रक्रिया में उत्पादन प्रवाह द्वारा आय का सृजन होता है।

प्रश्न 12.
राष्ट्रीय आय के चक्रीय प्रवाह के तीन छिद्र (क्षरण) (Leakages) बताइए।
उत्तर:

  1. बचत
  2. आयात और
  3. सरकार द्वारा लगाए गए कर।

प्रश्न 13.
राष्ट्रीय आय के चक्रीय प्रवाह के तीन समावेश (भरण) (Injections) बताइए।
उत्तर:

  1. निवेश
  2. निर्यात और
  3. सरकार एवं परिवार क्षेत्र द्वारा किए गए उपभोग व्यय।

प्रश्न 14.
राष्ट्रीय उत्पाद के रूप में राष्ट्रीय आय क्या है?
उत्तर:
राष्ट्रीय आय को राष्ट्रीय उत्पाद अर्थात् एक वर्ष की अवधि में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के बाज़ार मूल्य के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है। राष्ट्रीय उत्पाद (आय) एक देश के सामान्य निवासियों द्वारा एक वर्ष में उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के बाज़ार मूल्य का जोड़ है।

प्रश्न 15.
सकल घरेलू उत्पाद (GDP) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सकल घरेलू उत्पाद से अभिप्राय एक वर्ष में एक अर्थव्यवस्था की घरेलू सीमा में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं व सेवाओं के मूल्य से है, जिसमें अचल (स्थाई) पूँजी का उपभोग भी सम्मिलित है।

प्रश्न 16.
निवल घरेलू उत्पाद (NDP) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
बाज़ार कीमत पर निवल घरेलू उत्पाद वह राशि है जो सकल घरेलू उत्पाद में से मूल्यह्रास घटाकर शेष रहती है।

प्रश्न 17.
स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय से हमारा अभिप्राय एक वर्ष में उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं के आधार वर्ष की कीमतों पर आकलित मूल्य से है।
स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय = वर्ष में उत्पादित वस्तुएँ और सेवाएँ x आधार वर्ष की कीमतें।

प्रश्न 18.
हस्तांतरण आय क्या है? उदाहरण दें। अथवा. हस्तांतरण आय के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
हस्तांतरण आय वह आय होती है जो उनके प्राप्तकर्ताओं को बिना किसी उत्पादक सेवा के बदले प्राप्त होती है; जैसे बेरोज़गारी भत्ता, वजीफा, वृद्धावस्था पेंशन।।

प्रश्न 19.
दोहरी गणना का क्या अर्थ है?
उत्तर:
दोहरी गणना का अर्थ यह है कि किसी वस्तु का मूल्य राष्ट्रीय आय में एक से अधिक बार गिना जाता है।

प्रश्न 20.
पूँजी हस्तांतरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पूँजी हस्तांतरण से अभिप्राय उस हस्तांतरण से है जिन्हें हस्तांतरणकर्ता द्वारा अपनी बचतों या संपत्ति में से किया जाता है और जिन्हें प्राप्तकर्ता पूँजी निर्माण या दीर्घकालीन व्यय के लिए प्रयोग करता है।

प्रश्न 21.
चालू हस्तांतरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
चालू हस्तांतरण से अभिप्राय उस हस्तांतरण से है जिन्हें हस्तांतरणकर्ता द्वारा अपनी आय में से किया जाता है और जिन्हें प्राप्तकर्ता की वर्तमान आय में जोड़ा जाता है।

प्रश्न 22.
अवितरित लाभ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कंपनी अपने लाभ में से लाभांश और लाभ कर देने के बाद, शेष राशि को सुरक्षित कोष के रूप में अपने पास रख लेती है, उसे अवितरित लाभ कहते हैं।

प्रश्न 23.
हस्तांतरण भुगतान से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
हस्तांतरण भुगतान से अभिप्राय ऐसे भुगतान से है जो बिना किसी आर्थिक क्रिया के दिए जाते हैं। हस्तांतरण भुगतान एकतरफा भुगतान है।

प्रश्न 24.
प्रचालन अधिशेष (Operating Surplus) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रचालन अधिशेष से अभिप्राय लगान, ब्याज तथा लाभ के योग से है। इस प्रकार,
प्रचालन अधिशेष = लगान + ब्याज + लाभ

प्रश्न 25.
प्राथमिक क्षेत्रक से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्राथमिक क्षेत्रक से अभिप्राय उन उद्यमों से है जो प्राकृतिक संसाधनों; जैसे भूमि, जल, कोयला, कच्चा लोहा तथा अन्य खनिज के दोहन से वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। प्राथमिक क्षेत्रक के अंतर्गत खेती तथा उससे संबद्ध क्रियाएँ, मछली उद्योग, खनिज व उत्खनन आदि शामिल हैं।

प्रश्न 26.
द्वितीयक क्षेत्रक से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
द्वितीयक क्षेत्रक से अभिप्राय उन उद्यमों से है जो एक प्रकार की वस्तु को दूसरे प्रकार की वस्तु में परिवर्तित करते हैं; जैसे चीनी उद्योग गन्ने को चीनी में परिवर्तित करते हैं। इसके अंतर्गत सभी प्रकार के उद्योग आते हैं।

प्रश्न 27.
तृतीयक क्षेत्रक से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
तृतीयक क्षेत्रक से अभिप्राय उन उद्यमों से है जो केवल सेवाओं का उत्पादन करते हैं; जैसे बीमा, बैंकिंग, परिवहन और संचार।

प्रश्न 28.
आय विधि से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आय विधि वह विधि है जो एक देश में, एक लेखा वर्ष में उत्पादन के प्राथमिक कारकों को उनकी उत्पादक सेवाओं के बदले में किए गए भुगतानों का जोड़ करके राष्ट्रीय आय की गणना करती है।

प्रश्न 29.
उत्पाद विधि अथवा मूल्यवृद्धि विधि (Value Added Method) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उत्पाद विधि या मूल्यवृद्धि विधि वह विधि है जो एक देश में, एक लेखा वर्ष में देश की घरेलू सीमा के अंतर्गत प्रत्येक उत्पादक उद्यम के योगदान की गणना करके राष्ट्रीय आय का माप करती है। इसमें विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय को भी जोड़ा जाता है।

प्रश्न 30.
राष्ट्रीय प्रयोज्य आय (National Disposable Income) क्या है?
उत्तर:
इसे बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद और शेष विश्व से शुद्ध चालू हस्तांतरण के रूप में परिभाषित किया जाता है। इस प्रकार,
NDI = NNPMP + शेष विश्व के शुद्ध चालू हस्तांतरण |

प्रश्न 31.
देश की राष्ट्रीय आय उसकी घरेलू कारक आय से कब कम होगी?
उत्तर:
देश की राष्ट्रीय आय उसकी घरेलू कारक आय से उस समय कम होगी, जब विदेशों से निवल कारक आय ऋणात्मक होगी।

प्रश्न 32.
अंतिम व्यय से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अंतिम व्यय वह व्यय है जो अंतिम उपभोग या पूँजी निर्माण के लिए बेची गई वस्तुओं और सेवाओं पर किया जाता है।

प्रश्न 33.
मध्यवर्ती व्यय से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मध्यवर्ती व्यय वह व्यय है जो उन वस्तुओं तथा सेवाओं पर किया जाता है जिन्हें दोबारा बेचा जाता है या जिनका आगे उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 34.
गैर-बाज़ार (Non-Market) गतिविधियों का अर्थ समझाइए।
उत्तर:
संगठित बाज़ार में क्रय-विक्रय; जैसे सौदों के बिना, वस्तुएँ व सेवाएँ प्राप्त करने की क्रियाओं को गैर-बाज़ार क्रियाएँ कहते हैं; जैसे गृहिणियों की सेवाएँ, वस्तु-विनिमय, घरेलू बगीचे में सब्जियाँ उगाना आदि।।

प्रश्न 35.
कर्मचारियों के पारिश्रमिक से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कर्मचारियों के पारिश्रमिक से हमारा अभिप्राय मालिकों द्वारा अपने कर्मचारियों को नकद और किस्म के रूपों में मजदूरी के भुगतान तथा सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में अंशदान से है। इस प्रकार,
कर्मचारियों का पारिश्रमिक = नकद मज़दूरी + किस्म में मज़दूरी + मालिक द्वारा सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में अंशदान

प्रश्न 36.
घरेलू सीमा (आर्थिक सीमा) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
घरेलू सीमा में राजनीतिक सीमाओं के अतिरिक्त, समुद्री सीमा, जलयान, वायुयान, मछली पकड़ने के जहाज, तेल व प्राकृतिक गैस निकालने वाले रिंग तथा तैरते प्लेटफार्म, विदेशों में स्थित दूतावास, वाणिज्य दूतावास (Consulates), सैनिक प्रतिष्ठान शामिल होते हैं। अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ जो देश की सीमा में कार्य करती हैं, घरेलू सीमा में शामिल नहीं की जाती क्योंकि उनके कार्यालय अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र के भाग माने जाते हैं।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 37.
मूल्यहास क्या होता है?
उत्तर:
एक वर्ष के दौरान उत्पादन प्रक्रिया में अचल (स्थाई) पूँजी के प्रयोग से उनके मूल्य में जो कमी आती है उसे अचल पूँजी का उपभोग या मूल्यह्रास कहते हैं।

प्रश्न 38.
GNP अवस्फीतिक (Deflator) क्या होता है?
उत्तर:
यह सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) में शामिल वस्तुओं और सेवाओं की औसत कीमत का मान है। सांकेतिक रूप में-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 1

प्रश्न 39.
हरित GNP किसे कहते हैं?
उत्तर:
हरित GNP से अभिप्राय उस GNP से है जो प्राकृतिक संसाधनों के निरंतर विदोहन (Sustainable Use) और विकास के लोगों के समान वितरण की प्राप्ति में सहायक होती है।

प्रश्न 40.
विश्रामावकाश (Leisure) को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं करने के कारण बताइए।।
उत्तर:

  1. विश्रामावकाश अदृश्य और वैयक्तिक होने के कारण इसका ठीक-ठीक मूल्यांकन करना कठिन होता है।
  2. इसका मूल्य आरोपित (Imputed) करना भी असंभव है।

प्रश्न 41.
एक ‘सामान्य निवासी’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
एक ‘सामान्य निवासी’ अथवा सामान्य व्यक्ति से हमारा अभिप्राय उस व्यक्ति से है जो सामान्यतया एक देश में निवास करता है तथा उसकी रुचि और हित उस देश में केंद्रित होते हैं। इस प्रकार, भारत के सामान्य निवासी = भारत में रह रहे नागरिक + भारत में हित रखने वाले गैर-नागरिक

प्रश्न 42.
मूल्यहास प्रावधान से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
एक वर्ष में उत्पादन के दौरान स्थाई पूँजी में होने वाली कमी को पूरा करने के लिए एक उद्यमकर्ता वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री में से अलग कोष का आबंटन करता है जिसे मूल्यह्रास प्रावधान कहा जाता है।

प्रश्न 43.
सकल मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सकल मूल्यवर्धित से अभिप्राय उत्पाद के मूल्य का मध्यवर्ती उपभोग पर आधिक्य से है और जिसमें मूल्यह्रास सम्मिलित होता है अर्थात्
सकल मूल्यवर्धित = उत्पाद का मूल्य – मध्यवर्ती उपभोग

प्रश्न 44.
निवल मूल्यवर्धित (शुद्ध मूल्यवृद्धि) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
निवल मूल्यवर्धित से अभिप्राय उस राशि से है जिसे सकल मूल्यवर्धित से मूल्यह्रास घटाने पर प्राप्त किया जाता है अर्थात्
निवल मूल्यवर्धित = सकल मूल्यवर्धित – मूल्यह्रास

प्रश्न 45.
बाज़ार कीमत पर निवल मूल्यवृद्धि से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
बाज़ार कीमत पर निवल मूल्यवृद्धि से अभिप्राय उस राशि से है जिसे वर्ष के चालू कीमतों पर निकाले गए सकल मूल्यवृद्धि से मूल्यह्रास घटाने पर प्राप्त किया जाता है अर्थात्
बाज़ार कीमत पर निवल मूल्यवृद्धि = बाज़ार कीमत पर सकल मूल्यवृद्धि – मूल्यह्रास

प्रश्न 46.
थोक कीमत सूचकांक से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
थोक कीमत सूचकांक से अभिप्राय उन वस्तुओं की भारित औसत कीमत में प्रतिशत परिवर्तन से है जिनकी खरीद-बिक्री थोक में की जाती है।

प्रश्न 47.
मिश्रित आय की धारणा की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
स्वरोज़गार (Self-Employed) व्यक्ति; जैसे किसान, छोटे दुकानदार, डॉक्टर आदि अपने साधनों; जैसे श्रम, पूँजी, भूमि आदि की सहायता से वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन करते हैं। अतएव उन्हें ब्याज, लाभ, लगान, मज़दूरी आदि के रूप में मिली-जुली आय प्राप्त होती है। इसलिए इसको मिश्रित आय कहा जाता है। इस आय को भी राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सकल निवेश व शुद्ध निवेश की अवधारणाओं से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
निवेश-निवेश से अभिप्राय पूँजीगत वस्तुओं; जैसे मशीनें, इमारतें, उपकरणों के स्टॉक में वृद्धि से है जो भविष्य में अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता बढ़ाते हैं। दूसरे शब्दों में, अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता बढ़ाने वाली भौतिकी पूँजी के स्टॉक में वृद्धि को निवेश या पूँजी निर्माण कहते हैं। इसमें भौतिक परिसंपत्तियों का निर्माण व वृद्धि शामिल की जाती है। ध्यान रहे, आम भाषा में मुद्रा द्वारा शेयर्ज व वित्तीय परिसंपत्तियों की खरीद को भी निवेश कहा जाता है जिसका उपरोक्त परिभाषा से कोई संबंध नहीं। अर्थशास्त्र में निवेश का अर्थ हमेशा पूँजी-निर्माण से है अर्थात् पूँजीगत स्टॉक में सकल या शुद्ध वृद्धि से है।

सकल निवेश-अंतिम उत्पाद का वह भाग जो पूँजीगत वस्तुओं के रूप में निर्मित होता है, अर्थव्यवस्था का सकल निवेश कहलाता है। इसमें विद्यमान पूँजीगत वस्तुओं की टूट-फूट व रख-रखाव की प्रतिस्थापन लागत (Replacement cost) शामिल होती है। दूसरे शब्दों में, सकल निवेश में मूल्यह्रास सम्मिलित होता है।

मूल्यहास-सामान्य टूट-फूट व प्रत्याशित अप्रचलन के कारण अचल परिसंपत्तियों के मूल्य में गिरावट (हास) को मूल्यह्रास (Depreciation) या ‘अचल पूँजी का उपभोग’ कहते हैं। हम जानते हैं कि अचल पुँजी; जैसे मशीनरी, ट्रैक्टर, रेल-इंजन, इमारत, रेलवे लाइन में समय के साथ-साथ टूट-फूट होती रहती है और इनके जीवनकाल के अंत में इन्हें बदलने (प्रतिस्थापन करने) की जरूरत पड़ती है। इस प्रकार स्थाई पूँजीगत वस्तुओं के मूल्य में होने वाली गिरावट (मूल्यह्रास) को ‘अचल पूँजी का उपभोग’ कहते हैं। संक्षेप में, सकल निवेश में मूल्यह्रास शामिल रहता है।

शुद्ध निवेश-सकल निवेश में मूल्यह्रास घटाने पर शुद्ध निवेश प्राप्त होता है। सांकेतिक रूप में-
निवल निवेश = सकल निवेश – मूल्यह्रास
ध्यान रहे, अर्थव्यवस्था के पूँजीगत स्टॉक में नई वृद्धि निवल निवेश के आधार पर मापी जाती है न कि सकल निवेश के आधार पर।

प्रश्न 2.
चालू और स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय के बीच अंतर बताइए। आर्थिक संवृद्धि मापने में इनमें से कौन अधिक उपयोगी है?
उत्तर:
चालू कीमतों पर राष्ट्रीय आय की गणना वर्तमान वर्ष में प्रचलित मूल्यों के आधार पर की जाती है। एक अर्थव्यवस्था के अंतर्गत एक वर्ष में बेची या खरीदी गई समस्त अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के बाज़ार मूल्य के जोड़ को ही प्रचलित कीमतों पर राष्ट्रीय आय कहते हैं। एक अर्थव्यवस्था के अंतर्गत एक वर्ष में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य जब किसी आधार वर्ष की कीमत के अनुसार आँका जाता है, तो इसे हम स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय कहते हैं। सांकेतिक रूप में
चालू कीमतों पर राष्ट्रीय आय = घरेलू उत्पाद x चालू कीमत
स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय = घरेलू उत्पाद x आधार वर्ष की कीमत
आर्थिक संवृद्धि के मापक के रूप में स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय अधिक उपयुक्त है क्योंकि चालू कीमतों पर राष्ट्रीय आय अर्थव्यवस्था के वास्तविक विकास को प्रदर्शित नहीं करती। चालू कीमतों पर राष्ट्रीय आय से जो आँकड़े उपलब्ध होते हैं उन्हें हम तुलनात्मक अध्ययन के लिए प्रयोग नहीं कर सकते, क्योंकि चालू कीमतों में राष्ट्रीय आय की वृद्धि वास्तविक नहीं होती।

प्रश्न 3.
‘निवासी’ (सामान्य निवासी) की अवधारणा राष्ट्रीय आय के आकलन के संदर्भ में समझाइए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आय के आकलन में सामान्य निवासी अवधारणा का विशेष अर्थ और महत्त्व है। निवासी से अभिप्राय उस व्यक्ति से है जो साधारणतया उस देश में रहता है और जिसका आर्थिक हित उसी देश में केंद्रित है क्र में रहता है। साधारण (सामान्य) निवासी के अंतर्गत व्यक्ति व संस्थाएँ दोनों आते हैं। साधारण निवासी में एक देश के निवासी व उस देश में रहने वाले गैर-निवासी दोनों ही प्रकार के व्यक्ति शामिल होते हैं। जैसे
(i) भारतीय काफी संख्या से इंग्लैंड के गैर-निवासी हैं क्योंकि वे वहाँ अब भी भारतीय पासपोर्ट पर हैं। वे भारत की नागरिकता रखते हैं फिर भी इंग्लैंड के सामान्य निवासी हैं क्योंकि वे वहाँ बस गए हैं और उनका आर्थिक हित उसी देश (इंग्लैंड) में है।

(ii)अंतर्राष्ट्रीय संगठनों; जैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन आदि के कर्मचारी अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र के निवासी हैं न कि उस देश के जहाँ वे स्थापित हैं। इन संगठनों के कार्यालय भारत में भी स्थित हैं फिर भी इनके कर्मचारी भारत के सामान्य निवासी नहीं हैं, परंतु इन कार्यालयों में कार्य करने वाले भारतीय नागरिक भारत के सामान्य निवासी हैं।

(iii) ऐसे व्यक्ति जो थोड़े समय (प्रायः एक वर्ष से कम) के लिए विदेश जाते हैं, अपने देश के ही सामान्य निवासी माने जाते हैं; जैसे भारतीयों का अमरीका में सैर-सपाटे के लिए जाना, खेलों के मैच या कांफ्रेंस में भाग लेने जाना, बीमारी का इलाज करवाने जाना आदि। ऐसे व्यक्ति भारत के ही सामान्य निवासी माने जाएँगे।

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय आय के आकलन के संदर्भ में आर्थिक सीमा (घरेल सीमा) की अवधारणा समझाइए।
उत्तर:
आर्थिक सीमा अथवा घरेलू सीमा की अवधारणा का प्रयोग राष्ट्रीय आय की गणना के संदर्भ में किया जाता है। आर्थिक सीमा की अवधारणा के अनुसार इसके अंतर्गत निम्नलिखित तथ्यों को सम्मिलित किया जाता है
(i) देश की राजनीतिक सीमाएँ (समुद्री सीमाओं सहित)।

(ii) देश के निवासियों द्वारा दो या दो से अधिक देशों के मध्य चलाए जाने वाली जलयान तथा वायुयान सेवाएँ।

(iii) देश के निवासियों द्वारा चलाई जाने वाली मछली पकड़ने की नौकाएँ, तेल व प्राकृतिक गैस के रिंग तथा तैरते हुए प्लेटफार्म (Floating Platforms)जिनके द्वारा अंतर्राष्ट्रीय जल सीमाओं में अथवा देश की सर्वाधिकारी जल सीमाओं में गैस या तेल का दोहन कार्य (Exploitation) किया जाता है।

(iv) एक देश के विदेशों में राजनयिक संस्थान दूतावास (Embassies), वाणिज्य दूतावास (Consulates)तथा सैनिक प्रतिष्ठान।

(v) अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ जो देश की सीमा में कार्य करती हैं, घरेलू सीमा में सम्मिलित नहीं की जाती। उनके कार्यालय अंतर्राष्ट्रीय ‘क्षेत्र के भाग माने जाते हैं। स्पष्ट है कि घरेलू सीमा की अवधारणा राजनीतिक सीमा की अवधारणा से अधिक विस्तृत है।

प्रश्न 5.
“क्रय की गई मशीन सदैव अंतिम वस्तु होती है।” क्या आप सहमत हैं?
उत्तर:
क्रय की गई मशीन सदैव अंतिम वस्तु नहीं होती। क्रय की गई मशीन मध्यवर्ती वस्तु भी हो सकती है। यदि एक मशीन का क्रय एक फर्म द्वारा अन्य वस्तुओं के उत्पादन के लिए अथवा दूसरी फर्म को पुनर्बिक्री के लिए किया जाता है, तो वह मशीन मध्यवर्ती वस्तु होगी। यदि एक मशीन का क्रय एक फर्म द्वारा पूँजी निर्माण के लिए अथवा उपभोक्ता द्वारा उपभोग के लिए किया जाता है, तो वह मशीन अंतिम वस्तु होगी।

प्रश्न 6.
टिकाऊ तथा गैर-टिकाऊ वस्तुओं में अंतर कीजिए। उन दो टिकाऊ वस्तुओं को बताइए जिन्हें मध्यवर्ती उपभोग में शामिल किया जाता है।
उत्तर:
टिकाऊ वस्तुओं से हमारा अभिप्राय उन वस्तुओं से है जिन्हें निरंतर कई वर्षों तक प्रयोग में लाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, मकान, फर्नीचर, मशीन, मोटरकार, वायुयान, टेलीविजन, कंप्यूटर आदि। गैर-टिकाऊ वस्तुओं से हमारा अभिप्राय उन वस्तुओं से है जिनका प्रयोग केवल एक बार किया जा सकता है। गैर-टिकाऊ वस्तुओं का जैसे ही प्रयोग किया जाता है, उनका अस्तित्व और मूल्य समाप्त हो जाता है। उदाहरण के लिए, गेहूँ, आटा, दूध आदि।

निम्नलिखित दो टिकाऊ वस्तुएँ मध्यवर्ती उपभोग में शामिल होती हैं-

  • सरकार द्वारा सैनिक उद्देश्य से खरीदी गई कार
  • सरकार द्वारा सैनिक उद्देश्य से खरीदे गए वायुयान।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 7.
‘स्वनियोजित की मिश्रित आय की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
‘स्वनियोजित की मिश्रित आय’ की अवधारणा से हमारा अभिप्राय स्व-लेखा श्रमिकों की आय और अनिगमित उद्यमों के लाभ और लाभांश से है। उदाहरण के लिए, एक छोटे दुकानदार की आय स्वनियोजित की मिश्रित आय है। वह अपने व्यवसाय का समुचित लेखा-जोखा नहीं रखता। उसकी कुल आय लगान/किराया, मज़दूरी, ब्याज और लाभ का जोड़ है, क्योंकि वह आय को मज़दूरी, ब्याज आदि में विभाजित नहीं करता।

प्रश्न 8.
हस्तांतरण भगतान क्या हैं? ये कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
वे भुगतान जो व्यक्तियों या समुदायों को बिना कोई उत्पादन कार्य या सेवा के उपलब्ध होते हैं, हस्तांतरण भुगतान कहलाते हैं। उदाहरण के लिए, बुढ़ापा पेंशन, छात्रवृत्ति, बेरोज़गारी भत्ता आदि। कारक भुगतान विभिन्न कारकों को उत्पादन में योगदान देने के बदले में दिए जाते हैं, लेकिन हस्तांतरण भुगतान में प्राप्तकर्ता उत्पादन में कोई योगदान देने के लिए बाध्य नहीं होता है।

हस्तांतरण भुगतान के प्रकार-हस्तांतरण दो प्रकार के होते हैं-

  • चालू हस्तांतरण
  • पूँजीगत हस्तांतरण

1. चालू हस्तांतरण चालू हस्तांतरण से हमारा अभिप्राय उन हस्तांतरणों से है जो उपभोग के लिए होते हैं तथा जिनसे राष्ट्रीय आय प्रभावित होती है। वर्तमान या चालू हस्तांतरण के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-

  • देश के अंतर्गत हस्तांतरण; जैसे छात्रवृत्ति, उपहार, पुरस्कार, बेकारी भत्ता, कर आदि।
  • देशों के बीच हस्तांतरण; जैसे एक देश द्वारा दूसरे देश के निवासियों को दिए गए उपहार; जैसे-वस्त्र, दवाइयाँ, भोजन आदि।

2. पूँजीगत हस्तांतरण-पूँजीगत हस्तांतरण वे हस्तांतरण होते हैं जो पूँजीगत खाते के अंतर्गत आते हैं। इन हस्तांतरणों से पूँजी का निर्माण होता है। एक देश के अंतर्गत पूँजी हस्तांतरण सरकार से परिवारों और उद्यमों के बीच और इसके विपरीत दिशा में होते हैं। परिवारों पर लगाए गए मृत्यु कर तथा उत्तराधिकारी कर परिवारों और उद्यमों से सरकार को दिए गए पूँजीगत हस्तांतरण के उदाहरण हैं। दो देशों के बीच पूँजीगत हस्तांतरण के उदाहरण इस प्रकार हैं-युद्ध में विनाश की पूर्ति, आर्थिक सहायता, पूँजीगत वस्तुओं का एकतरफा हस्तांतरण।

प्रश्न 9.
साधन आय और हस्तांतरण आय के बीच अंतर बताइए।
उत्तर:
साधनं (कारक) आय से हमारा अभिप्राय कारक आगतों; जैसे भूमि, श्रम, पूँजी और उद्यमियों की आय से है। साधन आय का भुगतान उत्पादकों द्वारा विभिन्न साधनों के स्वामियों को उनके द्वारा दी गई उत्पादक सेवाओं के बदले किया जाता है। लगान/किराया, मज़दूरी, ब्याज, लाभ आदि कारक आय के उदाहरण हैं। हस्तांतरण आय से हमारा अभिप्राय उन आयों से है जो व्यक्तियों या समुदायों को बिना कोई उत्पादन कार्य या सेवा के उपलब्ध होती हैं। हस्तांतरण आय में प्राप्तकर्ता उत्पादन में कोई योगदान देने के लिए बाध्य नहीं होता। पेंशन, छात्रवृत्ति, बेरोज़गारी भत्ता आदि हस्तांतरण आय के उदाहरण हैं।

प्रश्न 10.
विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय की अवधारणा समझाइए।
उत्तर:
विदेशों से प्राप्त निवल कारक (शुद्ध साधन) आय का अर्थ-मोटे तौर पर यह देश में बाहर से आने वाली कारक आय और देश से बाहर जाने वाली कारक आय का अंतर होता है। दूसरे शब्दों में, अन्य देशों को कारक सेवाएँ प्रदान करने से अर्जित आय और दूसरे देशों द्वारा प्रदत्त सेवाओं के बदले उन्हें किए गए कारक भुगतान के अंतर को विदेशों से प्राप्त निवल कारक (शुद्ध साधन) आय कहते हैं।
निवल विदेशी कारक आय = देश के सामान्य निवासियों द्वारा शेष विश्व से प्राप्त कारक आय – देश में गैर-निवासियों द्वारा प्राप्त कारक आय
हम जानते हैं कि भारत के सामान्य निवासी न केवल अपने देश की घरेलू सीमा (Domestic territory) में कारक आय (काम से आय + संपत्ति से आय) अर्जित करते हैं, बल्कि देश से बाहर विदेशों में भी ऐसी आय अर्जित करते हैं। (i) काम से आय; जैसे भारत के वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर, नर्तक, बढ़ई आदि विदेशों में काम करके वेतन व मजदूरी (कर्मचारियों का पारिश्रमिक) कमाते हैं, (ii) संपत्ति से आय; जैसे-भारत के निवासी विदेशों में अचल परिसंपत्तियों (दुकानें, मकान, फैक्टरियों) के मालिक बन जाते हैं तथा वित्तीय संपत्तियाँ (शेयर, ब्रांड) खरीद लेते हैं और इन पर ब्याज, लगान/किराया, लाभ कमाते हैं। उद्यमी के रूप में पदार्थ व सेवाओं की उत्पादन प्रक्रियाओं से लाभ भी कमाते हैं। इसी प्रकार विदेशी भी भारत में काम से आय व संपत्ति से आय अर्जित करते हैं। इन दोनों की आय के अंतर को भारत की विदेशों से प्राप्त निवल कारक (शुद्ध साधन) आय कहेंगे।

प्रश्न 11.
राष्ट्रीय आय और घरेलू आय में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
घरेलू आय एक देश की घरेलू सीमा के अंतर्गत उत्पादित की गई वस्तुओं व सेवाओं के मूल्य को कहते हैं। इस प्रकार घरेलू आय एक भौगोलिक तथ्य है। घरेलू आय में विदेशों में देश के नागरिकों द्वारा किए गए उत्पादन अथवा विदेशियों द्वारा देश में किए गए उत्पादन को शामिल नहीं किया जाता। राष्ट्रीय आय देश के सामान्य नागरिकों द्वारा किए गए उत्पादन के मूल्य के बराबर होती है चाहे वह उत्पादन देश की सीमा में किया गया हो अथवा विदेशों में। इस प्रकार, राष्ट्रीय आय एक विस्तृत अवधारणा है जिसमें घरेलू आय भी शामिल होती है। सूत्र के रूप में
राष्ट्रीय आय = घरेलू आय + विदेशों से शुद्ध साधन आय

प्रश्न 12.
शुद्ध अप्रत्यक्ष कर क्या है? राष्ट्रीय आय लेखांकन में शुद्ध अप्रत्यक्ष कर का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
शुद्ध अप्रत्यक्ष कर, अप्रत्यक्ष कर और आर्थिक सहायता का अंतर है।
1. अप्रत्यक्ष कर-सरकार वस्तुओं के उत्पादन व बिक्री पर अनेक प्रकार के अप्रत्यक्ष कर लगाती है; जैसे उत्पादन शुल्क, बिक्री कर, सीमा शुल्क, मनोरंजन कर आदि। कर लगाने से वस्तु की कीमत बढ़ जाती है।

2. आर्थिक सहायता-यह सरकार द्वारा उद्यमों को दिया जाने वाला आर्थिक सहायता या अनुदान होता है ताकि (i) उद्यमी बाज़ार कीमत से कम कीमत पर वस्तु बेचें, (ii) वस्तु का निर्यात बढ़ाएँ, (iii) रोज़गार बढ़ाने के लिए उत्पादन में श्रम-प्रधान तकनीक का प्रयोग करें। आर्थिक सहायता से वस्तु की कीमत कम हो जाती है; जैसे आर्थिक सहायता के फलस्वरूप ही खादी ग्राम उद्योग, खादी का कपड़ा सस्ता बेचता है, राशन की दुकानों से गेहूँ, चीनी व मिट्टी का तेल बाज़ार कीमत के मुकाबले सस्ता मिलता है।

महत्त्व – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (अप्रत्यक्ष कर – आर्थिक सहायता) का प्रयोग बाज़ार कीमत और कारक लागत में अंतर जानने के लिए किया जाता है। समीकरण के रूप में
बाज़ार कीमत = कारक लागत + अप्रत्यक्ष कर — आर्थिक सहायता
= कारक लागत + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
साधन लागत = बाज़ार कीमत + अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता
= बाज़ार कीमत – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
स्पष्ट है कि बाज़ार कीमत, अप्रत्यक्ष कर लगने से, कारक लागत से अधिक हो जाती है और आर्थिक सहायता मिलने से साधन लागत से कम हो जाती है। अप्रत्यक्ष कर और आर्थिक सहायता न होने पर कारक लागत और बाज़ार कीमत बराबर होते हैं। राष्ट्रीय आय निकालने के लिए हमें कारक लागत पर मूल्यांकन की जरूरत होती है। अतः कारक लागत निकालने के लिए बाज़ार कीमत में से शुद्ध अप्रत्यक्ष कर घटा देते हैं। राष्ट्रीय आय लेखांकन की दृष्टि से यही ‘शुद्ध अप्रत्यक्ष कर’ का महत्त्व है।

प्रश्न 13.
मूल्यवर्धित से क्या अभिप्राय है? सामान्य सरकार क्षेत्र में शुद्ध मूल्यवृद्धि का आकलन कैसे किया जाता है?
उत्तर:
मूल्यवर्धित से अभिप्राय उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मौद्रिक मूल्य तथा मध्यवर्ती वस्तुओं की लागत के अंतर से है। अर्थात्
मूल्यवर्धित = उत्पादन का मूल्य – मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य
निवल मूल्यवर्धित = मूल्यवृद्धि – अचल पूँजी का उपभोग
सामान्य सरकार क्षेत्र द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का कोई विक्रय नहीं होता। इसलिए सामान्य सरकार क्षेत्र में शुद्ध मूल्यवृद्धि उत्पाद का मूल्य वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन लागत के बराबर होता है। वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन लागत में निम्नलिखित दो बातें शामिल होती हैं

  • मध्यवर्ती उपभोग का मूल्य
  • कर्मचारियों का पारिश्रमिक।

प्रश्न 14.
उत्पाद के सकल मूल्य और बाज़ार कीमतों पर शुद्ध मूल्यवृद्धि में अंतर बताइए।
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था में एक वर्ष के अंतर्गत उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मौद्रिक मूल्य को उत्पाद का सकल मूल्य कहते हैं। इसमें चालू कार्य (Work-in-progress) में शुद्ध वृद्धि और स्व-लेखा पर उत्पादित वस्तुएँ भी शामिल हैं। बाज़ार कीमतों पर शुद्ध मूल्यवृद्धि अर्थात् सृजित आय का अर्थ, अर्थव्यवस्था द्वारा उत्पादित अंतिम वस्तुओं पर होने वाले व्ययों से है। शुद्ध मूल्यवृद्धि का संबंध केवल अंतिम वस्तुओं से है। इसलिए हमें कुल उत्पादन मूल्य में से मध्यवर्ती वस्तुओं के मूल्य को घटाना होगा। सूत्र के रूप में,
बाज़ार मूल्य पर शुद्ध (निवल) मूल्यवर्धित = उत्पादन का मूल्य – मध्यवर्ती वस्तुओं की लागत – अचल पूँजी का उपभोग

प्रश्न 15.
कारक लागत पर शुद्ध मूल्यवृद्धि क्या होती है? क्या यह सदैव कुल कारक आय के समान होती है?
उत्तर:
कारक लागत पर शुद्ध मूल्यवृद्धि से अभिप्राय उत्पादन प्रक्रिया के दौरान कारक लागत पर उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मौद्रिक मूल्य से है। सकल मूल्यवृद्धि उत्पादन की विभिन्न अवस्थाओं में वस्तु के कुल मूल्य में होने वाली वृद्धि से है। अर्थात्
सकल मूल्यवृद्धि = उत्पादन का कुल मूल्य – मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य
सकल मूल्यवृद्धि में मशीनों की टूट-फूट व घिसावट अर्थात् मूल्यह्रास शामिल होते हैं। यदि सकल मूल्यवृद्धि में से स्थाई पूँजी का उपयोग निकाल दिया जाए तो वह शुद्ध मूल्यवृद्धि कहलाता है। अर्थात्
शुद्ध मूल्यवृद्धि = उत्पादन का सकल मूल्य – मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य – स्थाई पूँजी का उपभोग
बाज़ार मूल्य पर शुद्ध मूल्यवृद्धि में से शुद्ध अप्रत्यक्ष कर घटाने पर कारक लागत पर शुद्ध मूल्यवृद्धि प्राप्त होती है। कारक लागत पर शुद्ध मूल्यवृद्धि सदैव कुल कारक आय के बराबर होती है क्योंकि ये दोनों ही एक सिक्के के दो पहलू हैं। कारक लागत पर शुद्ध मूल्यवृद्धि उत्पाद विधि द्वारा अनुमानित राष्ट्रीय आय है जबकि कुल कारक आय, आय विधि द्वारा अ राष्ट्रीय आय है। विभिन्न कारक आयों, जैसे लगान/किराया, मज़दूरी, ब्याज और लाभ का योग मूल्यवृद्धि के बराबर होता है। शुद्ध मूल्यवृद्धि से विभिन्न कारकों को उनकी आयों के रूप में बाँट दिया जाता है।

प्रश्न 16.
‘ऐसे बहुत से उत्पाद हैं जिन्हें राष्ट्रीय आय में सम्मिलित नहीं किया जाता परंतु वे एक देश के कल्याण में योगदान देते हैं।’ एक उदाहरण की सहायता से इस कथन को समझाइए।
उत्तर:
ऐसे बहुत से उत्पाद होते हैं जिन्हें समुचित आँकड़ों के अभाव तथा मूल्यांकन की समस्या के कारण राष्ट्रीय आय में सम्मिलित नहीं किया जाता, परंतु ये उत्पाद एक देश के कल्याण को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय आय में उन निःशुल्क सेवाओं को सम्मिलित नहीं किया जाता जो अनेक व्यक्ति अपने परिवारों तथा मित्रों के लिए करते हैं। इसी प्रकार, राष्ट्रीय आय में उन वस्तुओं और सेवाओं, जिन्हें विशुद्ध रूप से आत्मसंतुष्टि; जैसे-व्यायाम, बागवानी, खेल आदि के लिए उत्पादित किया जाता है, को सम्मिलित नहीं किया जाता परंतु ये सभी क्रियाएँ कल्याण में वृद्धि करती हैं। यही कारण है कि राष्ट्रीय आय को कल्याण का अच्छा सूचक नहीं माना जाता।

प्रश्न 17.
‘ऐसे बहुत से उत्पाद हैं जिन्हें राष्ट्रीय आय में सम्मिलित किया जाता है परंतु वे कल्याण को कम करते हैं।’ एक उदाहरण की सहायता से इस कथन को समझाइए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आय में हर प्रकार की वस्तओं तथा सेवाओं के उत्पादन को सम्मिलित किया जाता है लेकिन राष्ट्रीय आय में सम्मिलित सभी वस्तुओं तथा सेवाओं से आर्थिक कल्याण होना आवश्यक नहीं है। उदाहरण के लिए, अफीम, शराब आदि का उत्पादन कल्याण को कम करता है। इसी प्रकार, यदि एक देश के उत्पादन में युद्ध सामग्री और औद्योगिक मशीनरी का एक बड़ा भाग है तो उस देश के निवासियों का रहन-सहन का स्तर ऊँचा नहीं होगा जिससे आर्थिक कल्याण में वृद्धि नहीं होगी।

प्रश्न 18.
घरेलू साधन आय से क्या अभिप्राय है? इसके प्रमुख संघटकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
घरेलू साधन आय से अभिप्राय एक वर्ष में एक देश की घरेलू सीमा के अंदर उत्पादन के साधनों द्वारा अर्जित आय से है। घरेलू साधन आय के प्रमुख संघटक निम्नलिखित हैं-
1. कर्मचारियों का पारिश्रमिक-इसमें मालिकों द्वारा अपने कर्मचारियों को नकद और किस्म के रूप में दिए गए सभी भुगतान, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिए किए गए भुगतान और निःशुल्क सुविधाओं का आरोपित मूल्य शामिल हैं।

2. प्रचालन अधिशेष-यह संपत्ति और उद्यमवृत्ति से प्राप्त आय का जोड़ है। इसमें लगान, ब्याज और लाभ शामिल हैं। यदि शुद्ध घरेलू कारक (साधन) आय में से श्रमिकों का पारिश्रमिक और मिश्रित आय को घटा दिया जाए तो प्रचालन अधिशेष रह जाता है।

3. स्वनियोजन से आय-जब कोई व्यक्ति दूसरे के यहाँ नौकरी करने की बजाय अपना धंधा स्वयं करता है तो उसे स्वनियोजित व्यक्ति कहते हैं और उसकी आय को मिश्रित आय कहते हैं। ऐसे लोग उत्पादन में प्रायः अपने कारक स्वयं जुटाते हैं जिससे इनकी आय, लगान/किराया, मज़दूरी, ब्याज व लाभ का मिश्रण होती है; जैसे छोटे दुकानदार, किसान, बढ़ई, वकील, डॉक्टर आदि स्वनियोजित व्यक्ति हैं क्योंकि वे अपना धंधा स्वयं करते हैं। ऐसे व्यक्तियों की आय स्वनियोजितों की मिश्रित आय कहलाती है। भारत में मिश्रित आय के महत्त्व को देखते हुए इसे एक अलग स्रोत के रूप में दिखाया जाता है। समीकरण के रूप में-
घरेलू आय = कर्मचारियों का पारिश्रमिक + प्रचालन अधिशेष + मिश्रित आय

प्रश्न 19.
वैयक्तिक आय (Personal Income) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वैयक्तिक आय-व्यक्तियों या गृहस्थों (Households) द्वारा समस्त स्रोतों से प्राप्त कारक आय व हस्तांतरण आय का ग, वैयक्तिक आय कहलाती है। इसमें कारक आय (उत्पादक सेवाएँ प्रदान करने के बदले अर्जित आय) और हस्तांतरण आय (उत्पादक सेवा दिए बिना प्राप्त आय) दोनों शामिल होती हैं चाहे ये देश की घरेलू सीमाओं में हों या विदेश से प्राप्त हुई हों। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय आय, वैयक्तिक आय (Personal income) का योग नहीं होती हैं, क्योंकि राष्ट्रीय आय एक कमाई की संकल्पना (Earning concept) है जिसमें केवल अर्जित कारक आय शामिल होती है जबकि वैयक्तिक आय एक प्राप्ति की अवधारणा (Receipt concept) है जिसमें कारक आय के अतिरिक्त हस्तांतरण आय (Transfer income) भी शामिल होती है। वैयक्तिक आय निकालने के लिए राष्ट्रीय आय में से आय की कुछ मदें (जो व्यक्ति को प्राप्त नहीं होती हैं; जैसे लाभ कर, अवितरित लाभ, सरकारी क्षेत्र का अधिशेष) घटाई जाती हैं और हस्तांतरण आय जोड़ी जाती है। निजी आय से ‘लाभ कर’ और ‘अवितरित लाभ’ घटाने पर वैयक्तिक आय प्राप्त होती है।

प्रश्न 20.
वैयक्तिक प्रयोज्य आय क्या है?
उत्तर:
वैयक्तिक प्रयोज्य आय-यह वैयक्तिक आय का वह भाग है जो परिवारों को अपनी इच्छानुसार व्यय करने के लिए उपलब्ध होती है। निस्संदेह व्यक्ति ऐसी आय को अपनी इच्छानुसार उपभोग पर व्यय करने या बचत करने के लिए स्वतंत्र होते हैं। हम जानते हैं कि सरकार वैयक्तिक आय का एक भाग करों (जैसे आय कर, संपत्ति कर आदि) के रूप में ले जाती है। इसी प्रकार व्यक्ति को कुछ अनिवार्य भुगतान (जैसे फीस, जुर्माना आदि) करने पड़ते हैं जिन्हें सरकार की विविध प्राप्तियाँ कहते हैं। वैयक्तिक आय में से वैयक्तिक (प्रत्यक्ष) कर और सरकार की विविध प्राप्तियाँ घटाने से वैयक्तिक प्रयोज्य आय निकल आती है। समीकरण के रूप में
वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय – वैयक्तिक (प्रत्यक्ष) कर
चूँकि वैयक्तिक प्रयोज्य आय या तो उपभोग पर व्यय होती है या बचत के लिए प्रयोग होती है, इसलिए-
वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक व्यय + वैयक्तिक बचत

प्रश्न 21.
राष्ट्रीय आय की संरचना और वितरण का आर्थिक कल्याण पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
राष्ट्रीय आय की संरचना और वितरण का आर्थिक कल्याण पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ता है।
1. राष्ट्रीय आय की संरचना राष्ट्रीय आय की संरचना से अभिप्राय उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की प्रकृति से है। राष्ट्रीय आय में सम्मिलित किए गए कुछ उत्पादों; जैसे औद्योगिक मशीनरी, युद्ध सामग्री आदि का आर्थिक कल्याण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि ये लोगों के जीवन स्तर अर्थात् उपभोग के लिए उपलब्ध नहीं होते।

2. राष्ट्रीय आय का वितरण-यदि राष्ट्रीय आय का वितरण समान है तो आर्थिक कल्याण में वृद्धि होगी। राष्ट्रीय आय के असमान वितरण की स्थिति में कुछ धनी व्यक्तियों का जीवन स्तर तो ऊँचा हो जाएगा परंतु देश की अधिकतर निर्धन जनता का जीवन स्तर ऊँचा नहीं होगा। इस प्रकार पूरे समाज की दृष्टि से आर्थिक कल्याण में कोई वृद्धि नहीं होगी।

प्रश्न 22.
निजी आय तथा राष्ट्रीय आय में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निजी आय तथा राष्ट्रीय आय में निम्नलिखित अंतर हैं-

निजी आयराष्ट्रीय आय
1. निजी आय में केवल निजी क्षेत्र की आय शामिल होती है।1. राष्ट्रीय आय में निजी क्षेत्र एवं सरकारी क्षेत्र दोनों की आय शामिल होती है।
2. निजी आय में अर्जित आय तथा अनार्जित आय जैसे सभी प्रकार के चालू हस्तांतरण शामिल होते हैं।2. राष्ट्रीय आय में केवल अर्जित आय शामिल होती है। इसमें किसी प्रकार के हस्तांतरण शामिल नहीं होते।
3. निजी आय = निवल घरेलू उत्पाद से निजी क्षेत्र की आय + सभी प्रकार के चालू हस्तांतरण + विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय।3. राष्ट्रीय आय = निवल घरेलू कारक आय + विदेशों से अर्जित निवल कारक आय।
4. इसमें राष्ट्रीय ऋणों पर ब्याज को भी शामिल किया जाता है।4. इसमें राष्ट्रीय ऋणों पर ब्याज को शामिल नहीं किया जाता।
5. यह अपेक्षाकृत संकुचित धारणा है।5. यह अपेक्षाकृत विस्तृत धारणा है।

प्रश्न 23.
राष्ट्रीय प्रयोज्य आय की धारणा को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
राष्ट्रीय प्रयोज्य आय को बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP) और शेष विश्व से शुद्ध चालू हस्तांतरण के योग के रूप में परिभाषित किया जाता है अर्थात् NDI = NNP.MP+ शुद्ध विदेशी चालू हस्तांतरण। इस अवधारणा के पीछे उद्देश्य यह जानना है कि घरेलू अर्थव्यवस्था के पास वस्तुओं और सेवाओं की अधिक-से-अधिक कितनी मात्रा है जिसे राष्ट्र जैसे चाहे वैसे ही व्यय कर सकता है। शेषं विश्व से चालू हस्तांतरण (Current Transfers), नकदी, किस्म और उपहार के रूप में होते हैं। राष्ट्रीय प्रयोज्य आय में देश के भीतर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र को चालू हस्तांतरण शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि इसका देश की प्रयोज्य आय पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसमें केवल विदेशों से प्राप्त या उनको दिए गए चालू हस्तांतरण शामिल किए जाते हैं। NDI में शुद्ध अप्रत्यक्ष कर इसलिए शामिल है क्योंकि यह सरकार की हस्तांतरण आय है जिसे वह जैसा चाहे वैसा प्रयोग कर सकती है। राष्ट्रीय प्रयोज्य आय, राष्ट्रीय आय से कम भी हो सकती है और अधिक भी। जब कोई देश अपनी राष्ट्रीय आय का एक भाग दूसरे देशों को दान या उपहार के रूप में देता है तो इसकी उपभोग पर व्यय करने और बचत करने की क्षमता कम हो जाएगी। इसके विपरीत यदि अन्य देश इस देश को उपहार के रूप में कुछ देते हैं तो देश की व्यय करने व बचत करने की क्षमता बढ़ जाएगी। समीकरण के रूप में-
राष्ट्रीय प्रयोज्य आय = बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद + शेष विश्व से शुद्ध चालू हस्तांतरण
= साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + शुद्ध विदेशी साधन आय + शेष विश्व से शुद्ध चालू हस्तांतरण

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 24.
राष्ट्रीय आय के चक्रीय प्रवाह के तीन चरण समझाइए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आय के चक्रीय प्रवाह के तीन चरण हैं-उत्पादन, आय और व्यय। प्रत्येक चरण पर इसे मापने के लिए हमें भिन्न-भिन्न आँकड़ों और विधियों की आवश्यकता पड़ती है। यदि हम इसे उत्पादन के चरण पर मापते हैं तो हमें देश में सभी उत्पादक उद्यमों द्वारा शुद्ध मूल्यवृद्धि के कुल जोड़ को जानना होगा। यदि हम इसे आय के वितरण चरण पर मापना चाहते हैं तो हमें वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में उत्पादित कुल आय के जोड़ को मालूम करना होगा।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 2
यदि हम इसे व्यय चरण पर मापना चाहते हैं तो हमें अर्थव्यवस्था की तीन व्यय करने वाली इकाइयों अर्थात् सामान्य सरकार, उपभोक्ता परिवार तथा उत्पादक उद्यमों के कुल व्यय के जोड़ को ज्ञात करना होगा। राष्ट्रीय आय ‘के चक्रीय प्रवाह के विभिन्न चरणों को संलग्न चित्र की सहायता से समझा जा सकता है।

प्रश्न 25.
तीन-क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में आय का चक्रीय प्रवाह समझाइए।
उत्तर:
सरकार द्वारा फर्मों से वस्तुएँ और परिवारों से कारक सेवा खरीदने के कारण सरकारी क्षेत्रक में फर्म क्षेत्रक और परिवार क्षेत्रक को मौद्रिक प्रवाह होता है। इसी प्रकार जब सरकार फर्मों को अनुदान सब्सिडी तथा परिवारों को हस्तांतरण भुगतान करती है तब भी मौद्रिक प्रवाह फर्मों और परिवारों की ओर होते हैं। सरकार अपने खर्चों को पूरा करने के लिए तरह-तरह के करों के माध्यम से भी पैसों की उगाही करती है, जिसके कारण मौद्रिक प्रवाह फर्म क्षेत्रक तथा परिवार क्षेत्रक से सरकारी क्षेत्रक की ओर होते हैं। संलग्न चित्र के माध्यम से इन मौद्रिक प्रवाहों को स्पष्ट रूप से समझाया जा सकता है। सभी कर चक्रीय प्रवाह से क्षरण होते हैं और सरकारी व्यय इस प्रवाह में भरण का कार्य करते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 3

प्रश्न 26.
मध्यवर्ती तथा अंतिम वस्तुओं में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मध्यवर्ती तथा अंतिम वस्तुओं में निम्नलिखित अंतर हैं-

मध्यवर्ती वस्तुएँअंतिम वस्तुएँ
1. ये वस्तुएँ जिनका एक लेखा वर्ष में आगे उत्पादन करने या पुनर्बिक्री के लिए प्रयोग होता है, मध्यवर्ती वस्तुएँ कहलाती हैं।1. वे वस्तुएँ जिनका प्रयोग उपभोग के लिए या स्टॉक के लिए होता है, अंतिम वस्तुएँ कहलाती हैं।
2. इन वस्तुओं का प्रयोग और अधिक उत्पादन के लिए किया जाता है।2. इन वस्तुओं का प्रयोग अंतिम उपभोग के लिए होता है।
3. इन वस्तुओं को राष्ट्रीय आय क्री गणना में शामिल नहीं किया जाता है।3. इन वस्तुओं को राष्ट्रीय आय की गणना में शामिल किया जाता है।
4. ये वस्तुएँ उत्पादन प्रक्रिया में से गुजरती हैं।4. ये वस्तुएँ उत्पादन प्रक्रिया में से नहीं गुजरती हैं।

प्रश्न 27.
निजी आय तथा वैयक्तिक आय में क्या अन्तर है?
उत्तर:
निजी आय तथा वैयक्तिक आय में निम्नलिखित अन्तर हैं-

निजी आयवैयक्तिक आय
1. निजी आय की धारणा वैयक्तिक आय से अधिक व्यापक है।1. वैयक्तिक आय की धारणा निजी आय से कम व्यापक है।
2. निजी आय में निगम कर, निजी उद्यमों की बचतें शामिल होती हैं।2. वैयक्तिक आय में निगम कर, निजी उद्यमों की बचतें शामिल नहीं होती हैं।
3. निजी आय में अर्जित आय तथा अनार्जित आय जैसे सभी प्रकार के चालू हस्तांतरप्प शामिल होते हैं।3. वैयक्तिक आय में कारक आय और हस्तांतरण आय दोनों शामिल होते हैं।
4. निजी आय = निवल घरेलू उत्पाद से निजी क्षेत्र की आय + सभी प्रकार के चालू हस्तांतरण + विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय4. वैयक्तिक आय = निजी आय – लाभ कर – अवितरित लाभ

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय आय लेखांकन से क्या अभिप्राय है? इसके महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आय लेखांकन का अर्थ-राष्ट्रीय आय लेखांकन राष्ट्रीय आय से संबंधित लेखों को संकलित करने व प्रस्तुत करने की एक प्रणाली है। फ्रैंक जॉन (Franc John) के शब्दों में, “राष्ट्रीय आय लेखांकन वह विधि है जिसके द्वारा सामूहिक आर्थिक क्रियाओं को पहचाना तथा मापा जाता है।” यह व्यापार लेखा विधि (Business Accounting) की भाँति ‘दोहरी खाता प्रणाली’ (Double Entry System) पर आधारित है। इसके अंतर्गत प्रत्येक सौदा (या संव्यवहार) दो बार प्रविष्ट होता है एक बार भुगतान के रूप में और दूसरी बार प्राप्ति के रूप में। भुगतान तथा प्राप्ति सदा बराबर रहते हैं। राष्ट्रीय आय लेखा प्रणाली (लेखांकन) द्वारा उपलब्ध आर्थिक पहलुओं की जानकारी के आधार पर सरकार लोगों के भौतिक कल्याण के लिए नीतियाँ व कार्यक्रम बनाती है। यही राष्ट्रीय आय लेखांकन का मूल उद्देश्य है।

राष्ट्रीय आय लेखांकन का महत्त्व समष्टि अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री के रूप में राष्ट्रीय आय लेखांकन का महत्त्व निम्नलिखित है
1. आर्थिक विकास का सूचक-किसी देश की आर्थिक उन्नति का सूचक मोटे रूप में राष्ट्रीय आय मानी जाती है जो राष्ट्रीय आय लेखांकन द्वारा ही जानी जाती है। संक्षेप में, राष्ट्रीय आय लेखों द्वारा देश की आर्थिक उन्नति व संवृद्धि का सही अनुमान लगाया जा सकता है।

2. नीति निर्धारण में सहायक सरकार किसी प्रकार की आर्थिक नीति बनाते समय देश की राष्ट्रीय आय लेखांकन के आंकड़ों को सामने रखती है। राष्ट्रीय आय लेखा किसी भी अर्थव्यवस्था की मुद्रा, वित्त, व्यापार आदि संबंधी सूचनाएँ ऐसे सुव्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत करता है कि आर्थिक नीति निर्धारण में इन सूचनाओं का अच्छे ढंग से प्रयोग किया जा सकता है।

3. अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तनों का ज्ञान राष्ट्रीय आय लेखांकन के आंकड़े अर्थव्यवस्था में हुए संरचनात्मक परिवर्तनों (जैसे कृषि, उद्योग, सेवा क्षेत्रों की स्थिति) की जानकारी देते हैं। राष्ट्रीय आय के आंकड़ों से उत्पादन के विभिन्न क्षेत्रों के पारस्परिक संबंधों और राष्ट्रीय आय में इनके योगदान का ज्ञान होता है। इनसे किसी देश के आय रहन-सहन के स्तर के बारे में भी पूरी सूचना प्राप्त होती है।

4. अर्थव्यवस्था की उपलब्धियों की समीक्षा का आधार यह एक देश की आर्थिक उपलब्धियों की समीक्षा करने का आधार है। यह हमें एक देश के प्राकृतिक, मानवीय एवं पूँजीगत कारकों (साधनों) के उपयोग से प्राप्त उपलब्धियों को बताता है।

5. विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं से तुलना-राष्ट्रीय आय लेखांकन के आंकड़े देश की आर्थिक स्थिति की अन्य देशों के साथ तुलना में उपयोगी सिद्ध होते हैं।

6. आर्थिक दोषों को दूर करने में सहायक-राष्ट्रीय आय लेखांकन के आंकड़े आर्थिक दोषों की जानकारी देते हैं जिन्हें दूर करने के लिए उचित उपाय अपनाए जा सकते हैं।

7. राष्ट्रीय आय के उचित वितरण में सहायक राष्ट्रीय आय के आंकड़े उत्पादन के विभिन्न कारकों के बीच कारक-आय के वितरण के बारे में भी आवश्यक सूचनाएँ प्रदान करते हैं। इसकी सहायता से हम देश की कुल राष्ट्रीय आय में लगान, मजदूरी, ब्याज और लाभ के तुलनात्मक भाग के बारे में भी जान सकते हैं। अतः राष्ट्रीय आय के आंकड़े अर्थव्यवस्था में मानवीय गतिविधियों के भौतिक परिणामों का मौद्रिक प्रतिरूप होते हैं। आधुनिक युग में ये आंकड़े मानकों अथवा कसौटियों की रचना करते हैं जिनके आधार पर आर्थिक नीतियों की उपलब्धियों का मूल्यांकन होता है।

प्रश्न 2.
राष्ट्रीय आय को मापने की आय विधि की व्याख्या कीजिए। अथवा
आय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय मापने के विभिन्न चरण संक्षेप में समझाइए। इस विधि की सावधानियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
आय विधि-आय विधि वह विधि है जो एक लेखा वर्ष में उत्पादन के प्राथमिक कारकों (श्रम, भूमि, पूँजी तथा उद्यम) को उनकी उत्पादक सेवाओं के बदले में क्रमशः मज़दूरी, लगान, ब्याज तथा लाभ के रूप में किए गएं भुगतान की गणना करके राष्ट्रीय आय का माप करती है।

आय विधि के प्रमुख चरण या कदम-इस विधि द्वारा राष्ट्रीय आय की गणना उठाए गए निम्नलिखित कदमों से होती है-
(क) उत्पादक उद्यमों की पहचान-उत्पादक उद्यमों को तीन क्षेत्रों में बाँटा गया है
1. प्राथमिक क्षेत्र यह वह क्षेत्र है जिसमें प्राकृतिक कारकों का प्रयोग करके वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है; जैसे कृषि क्षेत्र में।
2. द्वितीयक क्षेत्र-यह वह क्षेत्र है जिसमें उद्यम कच्चे माल को निर्मित वस्तुओं में परिवर्तित करते हैं।
3. तृतीयक क्षेत्र-वह क्षेत्र जो सेवाओं का उत्पादन करता है; जैसे बैंकिंग, बीमा, परिवहन आदि।

(ख) कारक आय का वर्गीकरण-
1. कर्मचारियों का पारिश्रमिक इसके अंतर्गत नकद मज़दूरी और वेतन, किस्म के रूप में आय, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में मालिकों का योगदान तथा सेवानिवृत्त कर्मचारियों की पेंशन को शामिल किया जाता है।

2. प्रचालन अधिशेष-इसमें लगान या किराया, रॉयल्टी, ब्याज, लाभ (लाभांश + निगम कर + अवितरित लाभ) आदि शामिल हैं।

3. मिश्रित आय-स्वरोजगार व्यक्ति; जैसे किसान, डॉक्टर, दुकानदार आदि को अपने कारकों से जो आय प्राप्त होती है, उसे मिश्रित आय कहते हैं।
निवल घरेलू आय = CE + OS + MI

4. विदेशों से निवल कारक आय-किसी देश के निवासियों द्वारा विदेशों में प्रदान की गई कारक सेवाओं के बदले में प्राप्त आय तथा एक देश की घरेलू सीमा में गैर-निवासियों द्वारा प्रदान की गई सेवाओं के बदले में भुगतान की गई आय के अंतर को विदेशों से निवल कारक आय (NFIA) कहा जाता है।
राष्ट्रीय आय = NFIA + निवल घरेलू आय
अतः निवल घरेलू आय या कारक लागत पर निवल घरेलू उत्पाद = CE + OS + स्वनियोजितों की MI
निवल राष्ट्रीय आय या कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद = निवल घरेलू आय + NFIA
सकल राष्ट्रीय आय या कारक लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = निवल राष्ट्रीय आय + मूल्यह्रास
बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = सकल राष्ट्रीय आय + NIT

सावधानियाँ – आय विधि से राष्ट्रीय आय की गणना करते समय निम्नलिखित सावधानियाँ बरती जाती हैं
(i) सभी हस्तांतरण भुगतानों को इसमें शामिल नहीं किया जाना चाहिए, केवल कारक आय ही शामिल की जाती है।

(ii) स्व-उपभोग के लिए रखी गई वस्तुओं का मूल्य तथा आरोपित किराया इसमें शामिल किया जाना चाहिए।

(iii) गैर-कानूनी आय; जैसे तस्करी, जमाखोरी, रिश्वत, काला-बाजारी आदि से प्राप्त आय को शामिल नहीं किया जाना चाहिए।

(iv) आकस्मिक लाभ; जैसे लॉटरी से आय, घुड़-दौड़ आदि से प्राप्त आय को शामिल नहीं किया जाना चाहिए।

(v) लाभों को निगम करों का भुगतान करने से पहले शामिल किया जाना चाहिए। इसी प्रकार कर्मचारियों के पारिश्रमिक को आय कर तथा सामाजिक सुरक्षा योजना में अंशदान घटाने से पहले जोड़ा जाना चाहिए।

(vi) मृत्यु कर, उपहार कर, संपत्ति कर और आकस्मिक लाभों पर कर को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि ये करदाता की वर्तमान आय से नहीं दिए जाते, बल्कि भूतकालीन बचतों में से भुगतान किए जाते हैं। इसलिए ये राष्ट्रीय आय का भाग नहीं हैं। इन्हें पूँजीगत हस्तांतरण भुगतान माना जाता है।

(vii) पुरानी संपत्तियों का विक्रय मूल्य, राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं करना चाहिए, क्योंकि वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन नहीं हुआ। केवल बेची गई या खरीदी गई पुरानी वस्तुओं के स्वामित्व में परिवर्तन हुआ है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 3.
राष्ट्रीय आय को मापने की व्यय विधि की व्याख्या कीजिए।
अथवा
व्यय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय का मापन कैसे किया जाता है? व्यय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय को मापते समय कौन-सी सावधानियाँ बरतनी चाहिएँ?
उत्तर:
व्यय विधि-व्यय विधि जिसे ‘उपभोग निवेश विधि’ भी कहते हैं के अंतर्गत एक लेखा वर्ष में अर्थव्यवस्था के समस्त अंतिम व्ययों का योग करके राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है। एक अर्थव्यवस्था में सृजित आय दो प्रकार से प्रयोग में लाई जाती है। एक, परिवारों एवं सामान्य सरकार द्वारा उपभोग हेतु (जिसे अंतिम उपभोग कहते हैं) तथा दूसरे, अर्थव्यवस्था के उद्यमों (पारिवारिक उद्यम, निगमित एवं अर्द्ध-निगमित उद्यम तथा सामान्य सरकार) द्वारा पूँजी-निर्माण हेतु। इसलिए व्यय विधि को ‘आय वितरण विधि’ (Income Disposal Method) भी कहते हैं। अतः इस विधि के अनुसार एक लेखा वर्ष में बाज़ार कीमत पर सकल अंतिम व्यय को मापा जाता है। यह अतिम व्यय बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) कहलाता है।

व्यय विधि के प्रमुख कदम-व्यय विधि के अनुसार राष्ट्रीय आय के आकलन में निम्नलिखित कदम उठाए जाते हैं-

कदम 1 : अंतिम व्यय करने वाली आर्थिक इकाइयों की पहचान-सर्वप्रथम देश की घरेलू सीमा में उन समस्त आर्थिक इकाइयों की पहचान कर ली जाती है जो अंतिम व्यय (अंतिम उपभोग व्यय तथा अंतिम निवेश व्यय) करती हैं। अंतिम व्यय करने वाली प्रमुख इकाइयाँ हैं-

  • परिवार क्षेत्र की इकाइयाँ
  • उत्पादक क्षेत्र की इकाइयाँ
  • सरकारी क्षेत्र की इकाइयाँ तथा
  • विश्व क्षेत्र की इकाइयाँ।

कदम 2 : अंतिम व्यय का वर्गीकरण-दूसरे कदम के अंतर्गत अंतिम व्यय को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जाता है

  • निजी अंतिम उपभोग व्यय
  • सरकारी अंतिम उपभोग व्यय
  • सकल अचल पूँजी निर्माण
  • स्टॉक परिवर्तन
  • मूल्यवान वस्तुओं का निवल अर्जन
  • निवल निर्यात।

कदम 3 : अंतिम व्यय की गणना-अंतिम व्यय के वर्गीकरण के पश्चात् इसके विभिन्न अंगों की गणना की जाती है। इसके लिए दो प्रकार के आँकड़ों की आवश्यकता पड़ती है-

  • सकल बिक्री मूल्य तथा
  • परचून कीमतें।

विक्रय की जाने वाली वस्तुओं की मात्रा को उनकी संबंधित परचून कीमतों से गुणा करके तथा फिर उनका योग करके बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMI) प्राप्त हो जाता है।

कदम 4 : विदेशों से निवल कारक आय का आकलन-अंत में विदेशों से निवल कारक आय के मूल्य का आकलन किया जाता है। इससे GDPMP में जोड़ने से GNPMP का मूल्य प्राप्त हो जाता है।

कदम 5 : राष्ट्रीय आय का अनुमान-कारक लागत पर राष्ट्रीय आय ज्ञात करने के लिए घिसावट व्यय तथा निवल अप्रत्यक्ष कर घटा दिए जाते हैं।

संक्षेप में, राष्ट्रीय आय का अनुमान:

  • GDPMP = निजी अंतिम उपभोग व्यय + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + सकल अचल (स्थाई) पूँजी-निर्माण + स्टॉक में परिवर्तन + मूल्यवान वस्तुओं का निवल अर्जन + निवल निर्यात
  • GNPMP = GDPMP + NFIA
  • NNPFC = GDPMP – घिसावट – निवल अप्रत्यक्ष कर

सावधानियाँ-व्यय विधि के अनुसार राष्ट्रीय आय की गणना करते समय हमें निम्नलिखित सावधानियाँ बरतनी चाहिएँ-
(i) पुरानी वस्तुओं की बिक्री पर व्यय को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाएगा।

(ii) अंशपत्र, ऋण-पत्र आदि पर किए जाने वाले व्यय भी राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किए जाने चाहिएँ, क्योंकि ये मात्र कागज़ी दावे हैं जिनके क्रय-विक्रय से किसी भौतिक परिसंपत्ति का निर्माण नहीं होता।

(iii) हस्तांतरण भुगतानों के रूप में समस्त सरकारी व्यय; जैसे बेकारी भत्ता, वृद्धावस्था पेंशन, वजीफे आदि पर व्यय इसके क्षेत्र से बाहर रखे जाते हैं।

(iv) मध्यवर्ती और अर्द्ध-निर्मित वस्तुओं और सेवाओं पर होने वाले व्यय को इसके क्षेत्र से बाहर रखा जाना चाहिए।

(v) यहाँ पर यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि व्यय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय की गणना बाज़ार कीमत पर की जाती है। अतः कारक लागत पर राष्ट्रीय आय ज्ञात करने के लिए NNPMP में से निवल अप्रत्यक्ष कर घटाने होंगे।

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय आय को मापने की उत्पाद विधि की व्याख्या कीजिए।
अथवा
राष्ट्रीय आय को मापने की मूल्यवर्धित विधि की व्याख्या कीजिए।
अथवा
राष्ट्रीय आय के आकलन की उत्पाद विधि अथवा मूल्यवृद्धि विधि का वर्णन करते हुए इसकी सावधानियों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
उत्पाद अथवा मूल्यवृद्धि विधि-राष्ट्रीय आय को मापने की उत्पाद विधि को औद्योगिक उद्गम विधि या मूल्यवृद्धि (मूल्यवर्धित) या सूची गणना विधि आदि भी कहा जाता है। इस विधि से अभिप्राय एक लेखा वर्ष में एक देश की घरेलू सीमा में प्रत्येक उत्पादक उद्यम के योगदान की गणना करके राष्ट्रीय आय को ज्ञात करने से है। इस विधि के द्वारा उत्पादन के स्तर पर राष्ट्रीय आय को मापा जाता है। उत्पादन के स्तर पर राष्ट्रीय आय एक देश की घरेलू सीमाओं में एक वर्ष में अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के निवल प्रवाह के मौद्रिक मूल्य तथा विदेशों से अर्जित आय कारक आय के योग के समान है। उत्पादन के स्तर पर राष्ट्रीय आय के माप को राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं।

उत्पाद अथवा मूल्यवृद्धि विधि के प्रमुख कदम-मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) विधि के द्वारा राष्ट्रीय माप की गणना करते समय निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिएँ-
(i) इस विधि में सबसे पहले उन उद्यमों की पहचान की जाती है जो उत्पादन करते हैं। सर्वप्रथम अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों को प्राथमिक क्षेत्र, द्वितीयक क्षेत्र तथा तृतीयक क्षेत्र या सेवा क्षेत्र में वर्गीकृत किया जाता है। प्राथमिक क्षेत्र के अंतर्गत कृषि एवं संबंधित क्रियाएँ; जैसे मछली पालन, पशु-पालन, वनारोपण आदि आते हैं। द्वितीयक क्षेत्र को विनिर्माण क्षेत्र भी कहते हैं। इसमें सभी प्रकार के उद्योग आते हैं। तृतीयक क्षेत्र, जिसे सेवा क्षेत्र भी कहा जाता है, के अंतर्गत उत्पादक सेवाएँ प्रदान करने वाले सभी प्रकार के उद्यम आते हैं; जैसे बैंकिंग, बीमा, परिवहन, संचार, व्यापार, वाणिज्य आदि।

(ii) सकल उत्पाद मूल्य की गणना के लिए तीनों क्षेत्रों द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का मौद्रिक मूल्य ज्ञात किया जाता है।

(iii) निवल मूल्यवर्धित को ज्ञात करने के लिए सकल मूल्यवर्धित में से घिसावट व्यय को घटा दिया जाता है। इस प्रकार बाज़ार कीमत पर निवल मूल्यवर्धित ज्ञात हो जाती है। इसमें से निवल अप्रत्यक्ष कर घटाने पर कारक लागत पर निवल मूल्यवर्धित ज्ञात हो जाती है। कारक लागत पर निवल मूल्यवर्धित को NDPFC कहा जाता है जो कि कारक लागत पर निवल घरेलू उत्पाद के बराबर है।
NDPFC = प्राथमिक क्षेत्र द्वारा की गई मूल्यवर्धित + द्वितीयक क्षेत्र द्वारा की गई मूल्यवर्धित + तृतीयक क्षेत्र द्वारा की गई मूल्यवर्धित

(iv) राष्ट्रीय आय अर्थात् NNPFC को ज्ञात करने के लिए NDPFC में विदेशों से अर्जित निवल कारक आय को जोड़ लिया जाता है।

संक्षेप में, राष्ट्रीय आय का अनुमान-

  • बाज़ार कीमत पर सकल मूल्यवर्धित (GVAMP) या सकल घरेलू उत्पाद = तीनों क्षेत्रों में बाज़ार कीमत पर सकल मूल्यवर्धित
  • बाज़ार कीमत पर निवल मूल्यवर्धित या निवल घरेलू उत्पाद = GVAMP – मूल्यहास
  • कारक लागत पर निवल मूल्यवर्धित (NVAFC) या निवल घरेलू आय = NVAMP – NIT
  • राष्ट्रीय आय = NVAFC + विदेशों से निवल कारक आय

उत्पाद विधि अथवा मूल्यवृद्धि विधि से संबंधित सावधानियाँ-

  • पुरानी वस्तुओं के क्रय-विक्रय को मूल्यवर्धित में शामिल नहीं किया जाता।
  • पुरानी वस्तुओं पर दलाली या कमीशन को मूल्यवर्धित में शामिल किया जाता है।
  • सभी उत्पादक उद्यमों द्वारा किए गए स्वलेखा उत्पादन को मूल्यवर्धित में शामिल किया जाता है।
  • मध्यवती वस्तुओं के मूल्य को मूल्यवर्धित में शामिल नहीं किया जाता।
  • स्व-उपभोग के लिए उत्पादन का आरोपित मूल्य शामिल किया जाता है।
  • स्व-उपभोग सेवाओं के मूल्य को मूल्यवर्धित में शामिल नहीं किया जाता।

प्रश्न 5.
चार क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में आय के चक्रीय प्रवाह की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
आज सभी अर्थव्यवस्थाएँ खुली अर्थव्यवस्थाएँ (Open Economies) हैं। खुली अर्थव्यवस्था का अर्थ है वे सभी अर्थव्यवस्थाएँ जो कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भाग लेती हैं। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के दो पहलू हैं-(i) आयात (Import) तथा (ii) निर्यात (Export)। शेष विश्व के साथ ये आयात-निर्यात परिवारों, फर्मों तथा सरकारों तीनों क्षेत्रों द्वारा किए जाते हैं। इसी प्रकार विदेशी बाजारों से भी ऋण लिया जाता है और उनमें पूँजी जमा की जाती है। इसलिए अपने मॉडल को और भी वास्तविक बनाने के लिए हमें इस मॉडल में शेष विश्व क्षेत्र (Rest of the World Sector) को भी शामिल कर लेना चाहिए। जैसाकि चित्र में दर्शाया गया है
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 4
अर्थव्यवस्था का उत्पादन क्षेत्र शेष संसार से वस्तुएँ और सेवाएँ आयात करता है और इनके लिए भुगतान करता है। उत्पादन क्षेत्र वस्तुओं और सेवाओं का शेष संसार को निर्यात भी करता है। इन निर्यातों के बदले में उत्पादन क्षेत्र को शेष संसार से मुद्रा द्वारा भुगतान होता है। परिवार क्षेत्र शेष संसार को सेवाएँ प्रदान करने के लिए मुद्रा, उपहार, दान आदि के रूप में मुद्रा प्राप्त करता है। परिवार क्षेत्र शेष संसार से प्राप्त वस्तुओं और सेवाओं के बदले मुद्रा भुगतान करता है। सरकारी क्षेत्र शेष संसार को वस्तुएँ और सेवाएँ निर्यात करके शेष संसार से मुद्रा प्राप्त करता है तथा सरकारी क्षेत्र विदेशों से वस्तुएँ और सेवाएँ आयात करके मुद्रा भुगतान करता है।

जब एक अर्थव्यवस्था शेष विश्व से आयात करती है तो आयात की वस्तुओं का भुगतान होता है। इससे मुद्रा का प्रवाह देश से बाहर होता है। दूसरी ओर, जब एक देश शेष विश्व को वस्तुओं का निर्यात करता है तो दूसरे देश उसे भुगतान करते हैं। इस प्रकार शेष विश्व से उस देश की ओर मुद्रा का प्रवाह होता है। अर्थव्यवस्था की शेष विश्व से सभी लेनदारियों तथा देनदारियों को देश के भुगतान शेष (Balance of Payments) के खाते में दर्ज किया जाता है।

यदि निर्यात को X और आयात को M माना जाए तो विदेशी व्यापार के शुद्ध (निवल) प्रवाह को X-M के द्वारा प्रकट किया जा सकता है। यदि देश के X = M हो तो भुगतान शेष संतुलित होगा और मुद्रा-प्रवाह निरंतर एक गति से चलता रहेगा। इसके विपरीत, यदि X > M हो या M > X हो तो मुद्रा के प्रवाह का स्तर बदल जाता है। पहली अवस्था में भुगतान शेष देश के पक्ष में होगा और मुद्रा प्रवाह का स्तर बढ़ेगा। इसके विपरीत, दूसरी स्थिति में, भुगतान शेष विपक्ष (Adverse Balance of Payments) में होगा, इसमें मुद्रा प्रवाह का स्तर गिर जाता है।

प्रश्न 6.
दोहरी गणना की समस्या क्या है? इससे बचने के उपाय बताएँ।
अथवा
‘दोहरी गणना की समस्या’ क्या होती है? इससे किस प्रकार बचा जा सकता है?
उत्तर:
दोहरी गणना की समस्या-जब किसी देश की राष्ट्रीय आय की गणना में किसी वस्तु के मूल्य को एक से अधिक बार जोड़े जाने की आशंका बनी रहती है, तो इसे दोहरी गणना की समस्या कहते हैं, क्योंकि उत्पाद विधि द्वारा राष्ट्रीय आय की गणना करते समय केवल अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को जोड़ा जाता है लेकिन कौन-सी वस्तु अंतिम है और कौन-सी मध्यवर्ती, यह जानना कभी-कभी कठिन हो जाता है। प्रत्येक उत्पादक के द्वारा की गई बिक्री उसके लिए वस्तु की अंतिम बिक्री है। उदाहरण के लिए, एक फर्म कपास का उत्पादन करती है और उसे फर्म B को 100 रुपए में बेच देती है। फर्म A के लिए यहाँ पर कपास की बिक्री अंतिम वस्तु है।

मान लीजिए फर्म B कपास से धागा बनाकर (जो यहाँ मध्यवर्ती उपभोग है) फर्म C को 160 रुपए में बेच देती है। यहाँ पर फर्म Bधागे को अंतिम बिक्री के रूप में लेती है, क्योंकि वह इसे बेचने के बाद उस वस्तु से संबंधित नहीं है। फर्म c धागे से कपड़ा बनाकर उपभोक्ताओं को 200 रुपए में बेच देती है लेकिन यहाँ पर फर्म C के लिए धागा मध्यवर्ती वस्तु है। इस प्रकार फर्म A, फर्म B तथा फर्म C के अनुसार उत्पाद का मूल्य 460 रुपए (100+ 160+ 200) होगा।

यदि घरेलू उत्पाद या राष्ट्रीय उत्पाद की गणना करते समय दोहरी गणना की समस्या से बचाव नहीं किया जाएगा तो राष्ट्रीय या घरेलू आय का अधि-मूल्यन (Over estimation) हो जाता है, इससे किसी देश की वास्तविक स्थिति की जानकारी मिलना कठिन हो जाता है। इस प्रकार यदि हम कपास धागा और कपड़ा तीनों के बिक्री मूल्य को लेते हैं तो यहाँ पर कपास का मूल्य तीन बार, धागे का मूल्य दो बार राष्ट्रीय आय में शामिल हो जाएगा। अतः एक वस्तु के मूल्य की गणना जब एक से अधिक बार होती है, तो इसे ही दोहरी गणना कहते हैं।

दोहरी गणना से बचने के उपाय-यदि हम राष्ट्रीय आय की सही गणना करना चाहते हैं या दोहरी गणना की समस्या से बचना चाहते हैं तो इसके लिए निम्नलिखित दो उपाय या विधियाँ हैं-
1. अंतिम उत्पाद विधि-दोहरी गणना से बचने के लिए केवल अंतिम वस्तु का मूल्य शामिल किया जाना चाहिए। इस विधि के अनुसार, उत्पादन के मूल्य में से मध्यवर्ती वस्तुओं के मूल्य को घटा देना चाहिए। उपर्युक्त उदाहरण के अनुसार राष्ट्रीय आय में केवल कपड़े के मूल्य (यानि 200 रुपए) को जोड़ा जाना चाहिए अर्थात्
अंतिम वस्तु का मूल्य = अंतिम वस्तु की मात्रा x कीमत
लेकिन इस विधि के अंतर्गत एक और समस्या सामने आती है। प्रत्येक उत्पादक अपने उत्पाद को अंतिम उत्पाद के रूप में लेता है। वह यह नहीं जानता कि उसके द्वारा उत्पादन को बेचने के बाद उस उत्पादन का कौन प्रयोग करेगा। अतः इस समस्या से बचने का दूसरा वैकल्पिक एवं प्रभावी उपाय मूल्यवर्धित विधि है।

2. मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) विधि-दोहरी गणना से बचने के लिए दूसरा उपाय है, मूल्यवर्धित विधि द्वारा राष्ट्रीय आय की गणना करना। इसके अंतर्गत प्रत्येक फर्म की मूल्यवर्धित को जोड़कर घरेलू उत्पाद ज्ञात कर लिया जाता है। उसमें से घिसावट घटाने के पश्चात् निवल मूल्यवर्धित की गणना की जा सकती है अर्थात्
कारक लागत पर मूल्यवर्धित = उत्पादन का मूल्य – मध्यवर्ती उपभोग का मूल्य – घिसावट – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर

प्रश्न 7.
व्यय के संदर्भ में GDP के संघटक (Components) लिखिए।
उत्तर:
अंतिम व्यय-एक वर्ष में उत्पादित अंतिम वस्तुओं व सेवाओं की खरीद पर विभिन्न वर्गों (गृहस्थ, फळं, सरकार) द्वारा किया गया व्यय, अंतिम व्यय कहलाता है। ध्यान रहे व्यय विधि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) पर किए गए अंतिम व्यय को मापती है। अंतिम व्यय को दो वर्गों उपभोग व्यय व निवेश व्यय में बाँटा जाता है परंतु अंतिम व्यय करने वाले विभिन्न वर्गों को ध्यान में रखते हुए इसके निम्नलिखित पाँच संघटक हो सकते हैं जिनका योग करने से GDPMP निकल आता है। समीकरण के रूप में-
GDPMP = निजी अंतिम उपभोग व्यय + सकल अचल पूँजी निर्माण + स्टॉक में परिवर्तन + शुद्ध निर्यात
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 5
1. निजी अंतिम उपभोग व्यय-इसमें गृहिणीयों तथा गृहस्थों की सेवा में लगी गैर-लाभकारी संस्थाओं द्वारा वर्तमान उपभोग हेतु वस्तुओं व सेवाओं को खरीदकर किया गया व्यय मापा जाता है। व्यय विभिन्न प्रकार के उपभोग वस्तुओं व सेवाओं पर किया जाता है। जैसे (क) टिकाऊ वस्तुएँ (कार, फ्रिज, टीवी सेट), (ख) अर्ध-टिकाऊ वस्तुएँ (कपड़े, जूते, पेन), (ग) गैर-टिकाऊ या एकल उपयोगी वस्तुएँ (भोजन, साबुन, पेट्रोल) और (घ) सेवाएँ (शिक्षा, चिकित्सा, यातायात आदि)। इन्हें निजी अंतिम उपभोग व्यय के संघटक कहते हैं। ऐसे व्यय को मापने के लिए दो प्रकार के आँकड़ों की जरूरत होती हैं (i) बाज़ार में बिक्री की कुल मात्रा (ii) फुटकर (retail) कीमतें। अंतिम बिक्री की कुल मात्रा को फुटकर कीमतों से गुणा करने पर घरेलू बाज़ार में ‘निजी अंतिम उपभोग व्यय’ निकल आता है।

2. सरकारी अंतिम उपभोग व्यय इससे अभिप्राय “सरकारी प्रशासनिक विभागों द्वारा सुविधाएँ उपलब्ध करने में वस्तुओं व सेवाओं पर चालू व्यय घटा (-) विक्रय” से है। सरकार न केवल उत्पादक होती है बल्कि उपभोक्ता भी होती है। समाज की सामूहिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जब सामान्य सरकार सड़कें, पुल, पार्क, शिक्षा, चिकित्सा, पुलिस आदि की सेवाएँ लोगों को उपलब्ध कराती है तो नागरिकों द्वारा इनका उपभोग, सार्वजनिक उपभोग (या सरकारी उपभोग) माना जाता है। सरकार इस दृष्टि से उपभोक्ता मानी जाती है। फलस्वरूप सामान्य सरकार का उत्पादन, स्व-उपभोग हेतु उत्पादन माना जाता है, क्योंकि सरकार इसका विक्रय नहीं करती, बल्कि इसे मुफ्त या नाममात्र कीमत पर जनता को उपलब्ध करती है।

बिक्री न होने के कारण सरकारी अंतिम उपभोग व्यय को सरकार की उत्पादन लागत के बराबर मान लिया जाता है। इसमें शामिल की जाने वाली दो मुख्य मदें हैं (i) कर्मचारियों का पारिश्रमिक और (ii) मध्यवर्ती उपभोग अर्थात् सरकार द्वारा वर्तमान उत्पादित वस्तुओं की खरीद पर व्यय। इसके अतिरिक्त (iii) विदेशों से प्रत्यक्ष रूप से की गई खरीद पर व्यय जोड़ा जाता है जो विदेशों में स्थित दूतावासों के लिए पेट्रोल, स्टेशनरी, साबुन, तेल व संचार सेवाओं की खरीद पर व्यय है और (iv) जनता को नाममात्र कीमत पर उपलब्ध की गई सेवाओं से प्राप्त राशि घटाई जाती है। इन मदों के जोड़ से सरकारी अंतिम उपभोग व्यय प्राप्त होता है।

3. सकल अचल पूँजी निर्माण इसमें निम्नलिखित तीन मुख्य मदों पर किया गया व्यय शामिल होता है

  • व्यावसायिक स्थिर निवेश-इसमें फर्मों द्वारा मशीनों, संयंत्रों व फैक्टरी इमारत के निर्माण व खरीद पर व्यय शामिल है सकल व्यावसायिक स्थिर निवेश में मूल्यह्रास शामिल होता है, जबकि शुद्ध निवेश, मूल्यह्रास के बिना होता है।
  • गृह-निर्माण निवेश-यह नए मकानों के निर्माण पर व्यय की गई राशि होती है।
  • सार्वजनिक (सरकारी) निवेश-इसमें सरकार द्वारा सड़कों, पुलों, स्कूलों, अस्पतालों आदि के निर्माण पर किया गया व्यय शामिल होता है।

4. स्टॉक (माल-सूची) में परिवर्तन लेखा वर्ष के आरंभिक और अंतिम स्टॉक में अंतर को स्टॉक में परिवर्तन कहते हैं। इसमें कच्चा माल, अर्धनिर्मित माल व निर्मित माल के स्टॉक में भौतिक (Physical) परिवर्तन को लिया जाता है। स्टॉक में भौतिक परिवर्तन को बाज़ार कीमतों से गुणा करके, स्टॉक में परिवर्तन पर व्यय ज्ञात किया जाता है। ध्यान रहे इसमें उपभोक्ताओं के पास पड़े हुए माल के स्टॉक में परिवर्तन को शामिल नहीं किया जाता है, क्योंकि समस्त उपभोक्ता वस्तुओं का अंतिम उपभोग उसी समय मान लिया जाता है जिस समय उपभोक्ता उन्हें खरीद या प्राप्त कर लेते हैं।

(नोट-SNA, 1993 के अनुसार मूल्यवान पत्थरों व धातुओं (जैसे सोना, चाँदी, प्लेटिनम) का शुद्ध अर्जन (Net acquisition), सकल घरेलू पूँजी निर्माण का एक भाग है। इसलिए इसे भी GDP का एक संघटक मानना चाहिए।)

5. शुद्ध निर्यात-ध्यान रहे, यहाँ शुद्ध निर्यात (निर्यात-आयात) पर विचार, व्यय की दृष्टि से किया जाता है। निर्यात हमारे घरेलू उत्पादन का एक हिस्सा है। अतः इस पर विदेशियों द्वारा किया गया व्यय हमारे सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में जोड़ा जाना चाहिए। इस प्रकार निर्यात का मूल्य जोड़ा जाता है और आयात का मूल्य (भारतीयों द्वारा विदेशी माल पर प्रत्यक्ष व्यय) घटाया जाता है। इसे एक उदाहरण से स्पष्ट किया सकता है। मान लो, भारत ने एक वर्ष में 60 करोड़ रुपए मूल्य की साइकिलें बनाईं और फलस्वरूप उतने ही मूल्य (60 करोड़ रुपए) की आय सृजित हुई।

मान लो, 50 करोड़ रुपए की साइकिलें भारत ने स्वयं प्रयोग व उपभोग कर लीं और शेष 10 करोड़ रुपए की साइकिलें अमेरिका को निर्यात की। ऐसी स्थिति में भारत का अंतिम व्यय 50 करोड़ रुपए है जबकि सृजित आय 60 करोड़ रुपए है। परंतु यदि भारतीय साइकिलों (निर्यात) पर अमेरिका का व्यय जोड़ा जाए तो भारत का अंतिम व्यय 60 करोड़ रुपए (50 + 10) होगा जो भारत की सृजित आय के बराबर होगा। संक्षेप में, निर्यात घरेलू उत्पाद का भाग होने के कारण इस पर विदेशियों द्वारा किया गया व्यय जोड़ना चाहिए और आयात का मूल्य घटाना चाहिए। ध्यान रहे जब आयात का मूल्य, निर्यात के मूल्य से अधिक होता है तो इसे ‘शुद्ध आयात’ कहते हैं।

क्या निर्यात GDP का भाग है? हाँ, निर्यात GDP का भाग है। कैसे? जब विदेशी भारत में उत्पादित चाय, कॉफ़ी, जूट की बनी वस्तुएँ आदि खरीदते हैं तो यह भारत का निर्यात कहलाता है। इसी प्रकार भारत गैर-कारक सेवाओं (जैसे बीमा, बैंकिंग, वायु व समुद्री यातायात, पर्यटक सेवाओं) का भी निर्यात करता है। जब विदेशी, एयर इंडिया से यात्रा करते हैं या विदेशी पर्यटक भारत में आकर होटल, परिवहन, चिकित्सा, संचार आदि भारतीय सेवाओं का प्रयोग करते हैं। चूँकि निर्यात की गई ये सभी वस्तुएँ व सेवाएँ भारत की घरेलू सीमा में उत्पादकों द्वारा घरेलू कारकों से उत्पादित की गई हैं इसलिए वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का भाग है। ध्यान रहे सेवाओं के निर्यात-आयात से तात्पर्य गैर-कारक सेवाओं (जैसे बीमा, बैंकिंग, पर्यटक सेवाओं) से होता है न कि कारक सेवाओं (भूमि, श्रम, पूँजी आदि की सेवाओं) से।

(नोट-उपरोक्त पाँच संघटकों के जोड़ने से GDPM निकल आता है। मूल्यह्रास और शुद्ध अप्रत्यक्ष कर घटाने से NDPRO प्राप्त होता है। इसमें शुद्ध विदेशी कारक आय जोड़ने से राष्ट्रीय आय अर्थात् NNPR निकल आती है।

प्रश्न 8.
(क) वास्तविक व मौद्रिक GDP में अंतर कीजिए। इनमें भेद का महत्त्व बताइए। (ख) मौद्रिक GDP का वास्तविक GDP में रूपांतरण समझाइए।
उत्तर:
(क) वास्तविक व मौद्रिक GDP-GDP का मूल्यांकन दो प्रकार से किया जाता है-(i) चालू कीमतों पर और (ii) स्थिर कीमतों पर। जब GDP का मूल्यांकन प्रचलित बाज़ार कीमतों के आधार पर किया जाता है तो उसे चालू कीमतों पर GDP या मौद्रिक GDP कहते हैं। उदाहरण के लिए यदि वर्ष 2010-11 के उत्पादन का मूल्य, वर्ष 2010-11 की प्रचलित बाज़ार कीमतों पर आँका जाए तो इसे चालू कीमतों पर (at current prices) GDP कहेंगे। इसे ही मौद्रिक (Nominal) GDP कहते हैं। इसके विपरीत, जब GDP का मूल्यांकन आधार वर्ष (Base year) की कीमतों पर किया जाता है इसे स्थिर कीमतों पर (at constant prices)GDP या वास्तविक (Real) GDP कहते हैं। उल्लेखनीय है भारत में आजकल स्थिर कीमतों पर GDP (या अन्य समुच्चय) मापने के लिए 1999-2000 को आधार वर्ष माना जाता है।

भेद का महत्त्व (या वास्तविक GDP के लाभ)
(i) मौद्रिक GDP (चालू कीमतों पर GDP) दो कारकों से प्रभावित होती है-उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन से और कीमतों में परिवर्तन से जबकि वास्तविक GDP (स्थिर कीमतों पर GDP) केवल एक कारक उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन से प्रभावित होती है। चूंकि प्रत्येक देश अपने भौतिक उत्पादन में रुचि रखता है, इसलिए वास्तविक GDP देश के भौतिक उत्पादन व आर्थिक संवृद्धि
का ठीक-ठाक चित्रण करता है।

(ii) देश के विभिन्न वर्षों के भौतिक उत्पादन की तुलना करने के लिए वास्तविक GDP अधिक विश्वसनीय कसौटी है।

(iii) एक देश के आर्थिक निष्पादन (Performance) का दूसरे देशों के आर्थिक विकास से तुलना करने के लिए वास्तविक GDP अर्थात स्थिर कीमतों पर GDP का प्रयोग किया जाता है, क्योंकि ऐसे अनुमान कीमतों में परिवर्तन से अप्रभावित रहते हैं।

(ख) मौद्रिक GDP का वास्तविक GDP में रूपांतरण-वास्तव में स्थिर कीमतों पर GDP के प्रयोग का उद्देश्य कीमतों में । उतार-चढ़ाव के प्रभाव को समाप्त करना है। इसलिए मौद्रिक GDP को वास्तविक GDP में अर्थात चालू कीमतों पर GDP को स्थिर कीमतों पर GDP में परिवर्तित किया जाता है। इस कार्य के लिए GDP अवस्फीतिक (GDP Deflator) का प्रयोग किया जाता है। GDP अवस्फीतिक, GDP की संघटक वस्तुओं और सेवाओं की औसत कीमत का मान है। इसे मौद्रिक और वास्तविक GDP के अनुपात को 100 से गुणा करके ज्ञात किया जाता है। अर्थात्
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 5
मौद्रिक GDP को वास्तविक GDP में निम्नलिखित सूत्र द्वारा परिवर्तित किया जाता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 6

प्रश्न 9.
क्या GDP आर्थिक कल्याण का मापक है? GDP की आर्थिक कल्याण के रूप में सीमाएँ बताइए।
उत्तर:
कल्याण का अर्थ है-सखी व बेहतर अनभव करना। आर्थिक कल्याण सकल कल्याण का वह भाग है जिसे मुद्रा में मापा जा सकता है। क्या GDP आर्थिक संवृद्धि और विकास (Economic Growth and Development) का मापक है? बहुत समय . से GDP को आर्थिक संवृद्धि और विकास का प्रधान मापक माना जाता था, क्योंकि वास्तविक GDP में वृद्धि का अर्थ है भौतिक उत्पादन में वृद्धि जिसके फलस्वरूप उपभोग के लिए अधिक वस्तु व सेवाएँ उपलब्ध होती हैं और जीवन स्तर उन्नत होता है। इसलिए GDP में वृद्धि को अच्छा और कमी को खराब माना जाता था परंतु ऐसा निष्कर्ष (अर्थात् GDP और आर्थिक कल्याण में प्रत्यक्ष संबंध है) निम्नलिखित कारणों से अधूरा है। यद्यपि वास्तविक GDP आर्थिक कल्याण का एक अच्छा सूचक है परंतु निम्नलिखित सीमाओं के कारण पर्याप्त सूचक नहीं है।

GDP की आर्थिक कल्याण के सूचक के रूप में सीमाएँ-
1. सकल घरेलू उत्पाद का वितरण-आर्थिक कल्याण के लिए आवश्यक है कि सकल घरेलू उत्पाद का वितरण समान हो। सकल घरेलू उत्पाद के असमान वितरण की स्थिति में केवल कुछ ही लोगों का जीवन-स्तर ऊँचा होगा, परंतु देश की अधिकतर निर्धन जनता का जीवन-स्तर ऊँचा नहीं होगा। इस प्रकार असमान वितरण से आर्थिक कल्याण में वृद्धि नहीं होगी।

2. गैर-मौद्रिक द्रिक विनिमय-सकल घरेलू उत्पाद केवल मौद्रिक लेन-देनों के आधार पर निकाला जाता है। इसलिए इसमें गैर-मौद्रिक लेन-देनों को शामिल नहीं किया जाता। अनेक विकासशील व अल्पविकसित अर्थव्यवस्था में वस्तु विनिमय के माध्यम से अनेक लेन-देन होते हैं जिससे सकल घरेलू उत्पाद का मूल्यांकन कम होता है। इस प्रकार सकल घरेलू उत्पाद आर्थिक कल्याण का अच्छा सूचक नहीं।

3. बाह्य कारण-बाह्य कारणों से तात्पर्य किसी फर्म या व्यक्ति के लाभ (हानि) से है जिससे दूसरा पक्ष प्रभावित होता है जिसे भुगतान नहीं किया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि सकल घरेलू उत्पाद प्रदूषण की अवहेलना करता है तो आर्थिक कल्याण कम होगा।

निष्कर्ष – यद्यपि उपरोक्त कारणों से GDP आर्थिक कल्याण का पर्याप्त सूचक न हो फिर भी यह आर्थिक कल्याण की दशा बहुत हद तक दर्शाता है। इसीलिए कुछ अर्थशास्त्रियों ने ‘हरित GDP’ को आर्थिक कल्याण का वैकल्पिक माप सुझाया है।

हरित GDP – किसी भी कीमत पर मात्र GDP में वृद्धि होने से गरीबी तथा प्रदूषण जैसे आर्थिक दोष उत्पन्न हो जाते हैं। कारण यह है कि GDP, उत्पादन से पैदा होने वाले (i) प्रदूषित वातावरण और (ii) प्राकृतिक संसाधनों के ह्रास की परवाह नहीं करता। इसलिए आर्थिक विकास की प्रक्रिया ऐसी होनी चाहिए जिससे प्रदूषण रहित प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट होने से सुरक्षित रखा जा सके। इसीलिए हरित GDP को आर्थिक कल्याण का माप सुझाया गया है। हरित GDP का अर्थ है प्राकृतिक कारकों का उचित विदोहन और विकास के लाभों का समतापूर्ण बँटवारा होना।

प्रश्न 10.
राष्ट्रीय आय लेखांकन किसे कहते हैं? एक देश के सामान्य निवासी की धारणा की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आय लेखांकन का अर्थ-राष्ट्रीय आय लेखांकन राष्ट्रीय आय से संबंधित लेखों को संकलित करने तथा प्रस्तुत करने की एक विधि है।

एक देश के सामान्य निवासी की धारणा राष्ट्रीय लेखा विधि में ‘सामान्य निवासी’ संकल्पना का बार-बार प्रयोग किया जाता – है; जैसे राष्ट्रीय आय से अभिप्राय “एक वर्ष में, एक देश के सामान्य निवासियों (Normal Residents) द्वारा अर्जित कारक आय के योग” से लिया जाता है। अतः राष्ट्रीय लेखा में घरेलू सीमा की भाँति, सामान्य निवासियों (Normal Residents) की अवधारणा का भी विशेष महत्त्व है।

एक देश का सामान्य निवासी “वह व्यक्ति है जो सामान्यतया उस देश में रहता है जिस देश में उसके आर्थिक हित केंद्रित रहते हैं।” क्योंकि वह सामान्यतया अपनी रुचि या आर्थिक हित वाले देश में रहता है, इसलिए उसे उस देश का सामान्य निवासी कहा जाता है। उसके निवास का काल कम-से-कम एक वर्ष या उससे अधिक होना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक वर्ष या उससे अधिक अवधि के लिए जब कोई व्यक्ति एक देश में रहता है तो उसके आर्थिक हित उसी देश में माने जाते हैं। ‘सामान्य निवासी’ अवधारणा में व्यक्ति और संस्था दोनों सम्मिलित हैं। संक्षेप में, देश के सामान्य निवासियों से अंभिप्राय उन व्यक्तियों एवं संस्थाओं से है जिनकी आर्थिक रुचि उस देश में है जहाँ वे रहते हैं या स्थित हैं। सामान्य निवासियों में निम्नलिखित को शामिल किया जाता है-
(1) इसमें व्यक्ति और संस्थाएँ दोनों शामिल होते हैं बशर्त कि उनके आर्थिक हित उसी देश में हों।

(2) अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ (जैसे विश्व बैंक (World Bank), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) आदि) उस देश के निवासी नहीं समझी जाती जिस देश में वे कार्यरत होती हैं बल्कि वे अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र की निवासी मानी जाती हैं। परंतु इन संस्थाओं के कर्मचारी अपने गृह-देश के निवासी माने जाते हैं। उदाहरण के लिए, भारत में कार्यरत ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ यद्यपि भारत के सामान्य निवासी नहीं मानी जाएगी परंतु उस संस्था में काम करने वाले भारत के सामान्य निवासी समझे जाएँगे।

(3) ऐसे व्यक्ति जो थोड़े समय (प्रायः एक वर्ष से कम) के लिए विदेश जाते हैं, अपने देश के ही सामान्य निवासी माने जाते हैं। जैसे भारतीयों का अमरीका में सैर-सपाटे के लिए जाना, खेलों के मैच या कांफ्रेंस में भाग लेने जाना, बीमारी का इलाज करवाने जाना आदि। ऐसे व्यक्ति भारत के ही सामान्य निवासी माने जाएँगे।

(4) नागरिक (National) के अतिरिक्त गैर-नागरिक (Non-national) भी देश के सामान्य निवासी हो सकते हैं। जैसे इंग्लैंड में रहने वाले बहुत-से भारतीय वहाँ के सामान्य निवासी तो हैं परंतु नागरिक नहीं हैं। सामान्य निवासी इसलिए हैं क्योंकि वे एक वर्ष से अधिक अवधि के लिए इंग्लैंड में रह रहे हैं जहाँ उनके आर्थिक हित केंद्रित हैं। साथ ही वे भारत के नागरिक (इंग्लैंड के गैर-नागरिक) हैं क्योंकि उनके पास भारतीय पासपोर्ट (Passport) तथा भारतीय नागरिकता (Citizenship) है।

(5) अन्य देशों में स्थित विदेशी दूतावासों (Embassies) में काम करने वाले कर्मचारी अपने ही देश के सामान्य निवासी समझे जाते हैं; जैसे भारत में स्थित अमरीकी दूतावास में काम करने वाले भारतीय कर्मचारी भारत के निवासी माने जाएंगे।

राष्ट्रीय आय की गणना करने में विभिन्न मदों के साथ व्यवहार

प्रश्न 1.
(क) निम्नलिखित को राष्ट्रीय आय में शामिल क्यों नहीं किया जाता है?
(i) एक घरेलू फर्म से पुरानी मशीन का क्रय
(ii) एक घरेलू फर्म के नए शेयर्ज का क्रय
(iii) सरकार द्वारा विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति
(iv) संपत्ति कर
(v) अप्रत्यक्ष कर
(vi) वृद्धावस्था पेंशन।

(ख) क्या निम्नलिखित को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है?
(i) शेयर्ज की बिक्री से प्राप्त धनराशि
(ii) पुरानी वस्तुएँ खरीदने पर उनके व्यापारी को दिया गया कमीशन।
उत्तर:
(क)

  • क्योंकि इससे चालू उत्पादन में वृद्धि नहीं हुई है। यह संपत्ति का केवल हस्तांतरण है।
  • क्योंकि इससे वस्तुओं व सेवाओं के प्रवाह में वृद्धि नहीं हुई है। यह मात्र वित्त पूँजी का लेन-देन है।
  • क्योंकि उत्पादन में योगदान दिए बिना प्राप्त यह हस्तांतरण आय है।
  • क्योंकि यह कर का अनिवार्य भुगतान है।
  • क्योंकि यह मात्र कर का अनिवार्य भुगतान है। पुनः राष्ट्रीय आय, कारक लागत पर निकाली जाती है।
  • क्योंकि उत्पादन में योगदान के बगैर किया गया यह हस्तांतरण भुगतान है।

(ख)

  • नहीं, क्योंकि इससे उत्पादन प्रक्रिया में कोई प्रत्यक्ष योगदान नहीं हुआ है।
  • हाँ, क्योंकि कमीशन एजेंट (व्यापारी) ने सौदा कराने में उत्पादक सेवा प्रदान की है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित को राष्ट्रीय आय में शामिल क्यों नहीं किया जाता?
(i) संपत्ति कर
(ii) उपभोक्ता गृहस्थ द्वारा अदा किया गया ब्याज।
उत्तर:
(i) क्योंकि संपत्ति कर गत वर्षों की बचतों और धन से अदा किया गया माना जाता है। यह करदाता द्वारा सरकार को अनिवार्य पूँजी हस्तांतरण है।

(ii) क्योंकि उपभोक्ता द्वारा लिया गया ऋण उपभोग (जैसे विवाह, उत्सव) हेतु इस्तेमाल किया गया ऋण माना जाता है। इससे उत्पादन में कोई योगदान नहीं हुआ है।

प्रश्न 3.
क्या निम्नलिखित को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाएगा?
(i) विदेशों से प्राप्त उपहार
(ii) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज की अदायगी
(iii) एक उत्पादन इकाई द्वारा नई मशीन की खरीद
(iv) एक नई कंपनी के शेयरों की खरीद
(v) संपत्ति कर।
उत्तर:
(i) नहीं, क्योंकि हस्तांतरण आय है।
(ii) नहीं, क्योंकि सरकार द्वारा लिया गया ऋण उपभोग हेतु लिया गया ऋण माना जाता है।
(iii) हाँ, क्योंकि नई मशीन, चालू (current) वर्ष के उत्पादन का भाग है।।
(iv) नहीं, क्योंकि शेयर्ज केवल कागज़ी दावे या स्वामित्व दर्शाते हैं और उत्पादन में प्रत्यक्ष कोई योगदान नहीं देते हैं।
(v) नहीं, क्योंकि संपत्ति कर, सरकार को किया गया अनिवार्य पूँजी हस्तांतरण माना जाता है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित को भारत की घरेलू कारक आय में शामिल किया जाएगा या नहीं? अपने उत्तर के कारण बताइए।
(i) सिंगापुर में भारतीय कंपनी में काम करने वाले गैर-निवासी भारतीय को मज़दूरी का भुगतान
(ii) भारतीय दूतावास में काम करने वाले गैर-निवासियों का वेतन
(iii) गैर-निवासियों के स्वामित्व वाली भारत में स्थित एक कंपनी द्वारा अर्जित आय
(iv) इंग्लैंड में भारतीय स्टेट बैंक की एक शाखा द्वारा अर्जित आय।
उत्तर:
(नोट-भारत की घरेलू कारक आय में वहीं आय शामिल की जाएगी जो भारत की घरेलू (आर्थिक) सीमा में सृजित या अर्जित हुई हो।
(i) नहीं, क्योंकि यह भारत की घरेलू सीमा (Domestic territory) में सृजित नहीं हुई है।
(ii) हाँ, क्योंकि भारतीय दूतावास जो भारत की घरेलू सीमा का भाग माना जाता है, में आय सृजित हुई है।
(iii) हाँ, क्योंकि यह आय भारत की घरेलू सीमा में स्थित कंपनी द्वारा सृजित हुई है चाहे कंपनी के मालिक गैर-निवासी या विदेशी क्यों न हों।
(iv) नहीं, क्योंकि लाभ भारत की घरेलू सीमा से बाहर इंग्लैंड में अर्जित किया गया है।

प्रश्न 5.
क्या निम्नलिखित को भारत की घरेलू कारक आय में शामिल किया जाएगा? अपने उत्तर के लिए कारण बताइए।
(i) भारत में स्थित एक विदेशी कंपनी द्वारा दिया गया कर्मचारियों का पारिश्रमिक
(ii) विदेश में स्थित एक भारतीय कंपनी द्वारा अर्जित लाभ
(iii) भारत में अमरीका के दूतावास द्वारा निवासी भारतीयों को दिया गया कर्मचारियों का पारिश्रमिक
(iv) भारत में स्थित एक ऐसी कंपनी द्वारा अर्जित लाभ जिसका स्वामित्व अंशतः निवासियों के पास और अंशतः गैर-निवासियों के पास है।
उत्तर:
(i) हाँ, क्योंकि इसका सृजन भारत की घरेलू सीमा में हुआ है चाहे कंपनी विदेशी हो।
(ii) नहीं, क्योंकि लाभ भारत की घरेलू सीमा में अर्जित नहीं हुआ है।
(iii) नहीं, क्योंकि भारत में अमरीकी दूतावास, अमरीका की घरेलू सीमा का भाग है, चाहे दूतावास भारत में स्थित हो।
(iv) हाँ, क्योंकि यह लाभ भारत में स्थित कंपनी द्वारा अर्जित किया गया है. चाहे कंपनी के मालिक कोई भी हों।

प्रश्न 6.
क्या निम्नलिखित भारत की घरेलू (देशीय) कारक आय का हिस्सा है? अपने उत्तर के लिए कारण दीजिए।
(i) सरकार द्वारा दी जाने वाली वृद्धावस्था पेंशन
(ii) विदेशों से प्राप्त कारक आंय
(iii) भारत में रूसी दूतावास में काम करने वाले भारत के निवासियों को मिलने वाला वेतन
(iv) एक गैर-आवासी (Non-resident) की भारत में कंपनी द्वारा अर्जित लाभ।
उत्तर:
(i) नहीं, क्योंकि वृद्धावस्था पेंशन उत्पादन में योगदान के बिना देने से हस्तांतरण भुगतान है।

(ii) नहीं, क्योंकि यह कारक आय देश की घरेलू सीमा से बाहर अर्जित की गई है।

(iii) नहीं, क्योंकि यह वेतन भारत के निवासियों द्वारा रूसी दूतावास में काम करने से अर्जित किया गया है। ध्यान रहे भारत में रूसी दूतावास, रूस की घरेलू सीमा का भाग है न कि भारत की घरेलू सीमा का।

(iv) हाँ, क्योंकि यह लाभ भारत की घरेलू सीमा में अर्जित हुआ है चाहे लाभ पाने वाली कंपनी विदेशी हो।

प्रश्न 7.
क्या निम्नलिखित को भारत की घरेलू कारक आय में शामिल किया जाएगा? अपने उत्तर के लिए कारण दीजिए।
(i) एक विदेशी बैंक की भारत में शाखाओं द्वारा अर्जित लाभ
(ii) भारत सरकार द्वारा दी गई छात्रवृत्तियाँ
(iii) भारत के निवासी की सिंगापुर में स्थित कंपनी द्वारा अर्जित लाभ
(iv) भारत में अमरीकी दूतावास में काम करने वाले भारतीयों को मिलने वाला वेतन।
उत्तर:
(i) हाँ, क्योंकि लाभ भारत की घरेलू सीमा में अर्जित हुआ है चाहे बैंक विदेशी हो।

(ii) नहीं, क्योंकि छात्रवृत्तियाँ मात्र हस्तांतरण भुगतान हैं जो उत्पादन में योगदान किए बिना दी जाती हैं।

(iii) नहीं, क्योंकि यह लाभ भारत की घरेलू सीमा के बाहर (अर्थात् विदेश में) अर्जित किया गया है।

(iv) नहीं, क्योंकि यह वेतन भारतीयों द्वारा अमरीकी दूतावास, जो अमरीका की घरेलू सीमा का भाग है, में अर्जित किया गया है।

प्रश्न 8.
क्या निम्नलिखित कारक आय, भारत की घरेलू कारक आय में शामिल की जाएगी? अपने उत्तर के लिए कारण दीजिए।
(i) जापान में भारतीय दूतावास में कार्यरत जापान के निवासियों को दिया गया कर्मचारियों का पारिश्रमिक
(ii) भारत में एक विदेशी बैंक की शाखा द्वारा अर्जित लाभ
(iii) एक भारतीय निवासी को भारत में रूसी दूतावास से प्राप्त किराया
(iv) भारतीय स्टेट बैंक की इंग्लैंड में एक शाखा द्वारा अर्जित लाभ।
उत्तर:
ध्यान रहे, भारत की घरेलू आय में केवल वही कारक आय शामिल की जाएगी जो भारत की घरेलू (आर्थिक) सीमा में अर्जित सृजित हुई हो। पुनः किसी देश जैसे भारत का विदेशों में दूतावास अपने देश (जैसे भारत) की घरेलू सीमा का भाग होता है।
(i) यह शामिल होगा, क्योंकि जापान में भारतीय दूतावास, भारत की घरेलू सीमा का भाग है।
(ii) यह शामिल होगा, क्योंकि लाभ भारत की घरेलू सीमा में अर्जित हुआ है।
(iii) यह शामिल नहीं होगा, क्योंकि किराया रूसी दूतावास जो रूस की घरेलू सीमा का भाग है, से प्राप्त हुआ है।
(iv) यह शामिल नहीं होगा, क्योंकि लाभ भारत की घरेलू सीमा से बाहर अर्थात् इंग्लैंड में अर्जित हुआ है।

प्रश्न 9.
क्या निम्नलिखित कारक आय भारत की कारक आय का एक भाग होंगी? अपने उत्तर के लिए कारण दीजिए।
(i) विदेशी बैंकों की भारत में उनकी शाखाओं द्वारा अर्जित लाभ
(ii) भारत में अमरीकी दूतावास में कार्यरत भारतीय निवासियों को प्राप्त वेतन
(iii) एक भारतीय कंपनी की सिंगापुर में उसकी शाखा द्वारा अर्जित लाभ
(iv) चीन में भारतीय दूतावास में कार्यरत चीन के निवासियों को दिया जाने वाला कर्मचारियों का पारिश्रमिक।
उत्तर:
(i) यह शामिल होगा, क्योंकि यह लाभ भारत की घरेलू सीमा में अर्जित किया गया है।
(ii) यह शामिल नहीं होगा, क्योंकि भारत में अमरीकी दूतावास, अमरीका की घरेलू सीमा का भाग है न कि भारत की घरेलू सीमा का भाग है।
(iii) यह शामिल नहीं होगा, क्योंकि यह लाभ विदेश में अर्जित किया गया है।
(iv) यह शामिल होगा, क्योंकि चीन में भारतीय दूतावास, भारत की घरेलू सीमा का अंग माना जाता है।

प्रश्न 10.
कारण बताते हुए समझाइए कि राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाते समय निम्नलिखित के साथ क्या व्यवहार किया जाता है?
(i) एक फर्म द्वारा वकील की सेवाएँ लेना
(ii) नियोजक द्वारा कर्मचारी को दिया गया किराया-मुफ्त मकान
(iii) विदेशी पर्यटकों द्वारा खरीदारी।
उत्तर:
(i) फर्म द्वारा वकील को किया गया भुगतान राष्ट्रीय आय में शामिल होगा, क्योंकि यह वकील की उत्पादक (कानूनी) सेवाओं का पारिश्रमिक है।

(ii) किराया-मुफ्त मकान का आरोपित किराया (Imputed rent) राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाएगा, क्योंकि यह श्रमिक द्वारा प्रदत्त उत्पादक सेवाओं का किस्म (kind) में दिया गया मुआवजा है।

(iii) देश में विदेशी पर्यटकों द्वारा खरीदारी एक प्रकार से घरेलू उत्पाद का निर्यात है। चूंकि निर्यात घरेलू उत्पाद का एक भाग होता है इसलिए विदेशी पर्यटकों द्वारा खरीदारी पर किया गया व्यय राष्ट्रीय आय की व्यय विधि से गणना में शामिल किया जाएगा।

प्रश्न 11.
भारत के घरेलू (देशीय) कारक आय (Domestic factor income) का आकलन लगाते समय आप निम्नलिखित के साथ क्या व्यवहार करेंगे? अपने उत्तर के लिए कारण दीजिए।
(i) अनिवासी भारतीयों द्वारा भारत में अपने परिवारों को भेजी गई राशि
(ii) भारत में जापान के दूतावास द्वारा निवासी भारतीयों को दिया गया किराया
(iii) भारत में विदेशी बैंक की शाखाओं द्वारा अर्जित लाभ।
उत्तर:
(i) अनिवासी भारतीयों द्वारा भेजी गई राशि भारत की घरेलू आय में शामिल नहीं होगी, क्योंकि यह राशि भारत की घरेलू सीमा में सृजित नहीं हुई है बल्कि बाहर से आई है।

(ii) यह किराया शामिल नहीं किया जाएगा, क्योंकि किराया जापानी दूतावास से प्राप्त हुआ है जो जापान की घरेलू सीमा का भाग है।

(iii) यह लाभ भारत की घरेलू आय में शामिल किया जाएगा, क्योंकि विदेशी बैंक की शाखाओं का लाभ भारत की घरेलू सीमा में अर्जित किया गया है।

प्रश्न 12.
भारत की राष्ट्रीय आय का आकलन करते समय आप निम्नलिखित के साथ क्या व्यवहार करेंगे? अपने उत्तर के लिए कारण दीजिए।
(i) रूस में भारतीय दूतावास में कार्यरत रूसी नागरिकों को दिया गया वेतन
(ii) एक भारतीय कंपनी द्वारा सिंगापुर में स्थित अपनी शाखा से अर्जित लाभ
(iii) भारतीय निवासियों को विदेशी कंपनी के शेयर बेचने से पूँजीगत लाभ।
उत्तर:
(i) रूस में भारतीय दूतावास में कार्यरत रूसी नागरिकों को दिया गया वेतन विदेशों को दी गई कारक आय है जो विदेशों से शुद्ध कारक आय का एक भाग है। चूंकि विदेशों से शुद्ध कारक आय राष्ट्रीय आय का एक भाग होती है। अतः उपर्युक्त मद भारत की राष्ट्रीय आय में सम्मिलित होगी।

(ii) एक भारतीय कंपनी द्वारा सिंगापुर में स्थित अपनी शाखा से अर्जित लाभ भारत की राष्ट्रीय आय में शामिल होगा क्योंकि यह विदेशों से शुद्ध कारक आय है, जो राष्ट्रीय आय का एक भाग है।

(iii) भारतीय निवासियों को विदेशी कंपनी के शेयर बेचने से पूँजीगत लाभ विदेशों से कारक आय है, इसलिए इसे भारत की राष्ट्रीय आय में सम्मिलित किया जाएगा।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 13.
भारत की राष्ट्रीय आय का आकलन करते समय आप निम्नलिखित के साथ क्या व्यवहार करेंगे? अपने उत्तर के लिए कारण दीजिए।
(i) भारत में रूसी दूतावास में कार्यरत भारतीय निवासियों द्वारा प्राप्त वेतन
(ii) एक भारतीय बैंक द्वारा विदेशों में अपनी शाखाओं से अर्जित लाभ
(iii) सरकार द्वारा प्राप्त किया गया मनोरंजन कर।।
उत्तर:
(i) भारत में रूसी दूतावास में कार्यरत भारतीय निवासियों द्वारा प्राप्त वेतन राष्ट्रीय आय में सम्मिलित होगा, क्योंकि यह विदेशों से प्राप्त कारक आय है जो भारतीय नागरिकों ने अर्जित की है।

(ii) एक भारतीय बैंक द्वारा विदेशों में अपनी शाखाओं से अर्जित लाभ राष्ट्रीय आय में सम्मिलित होगा, क्योंकि यह एक भारतीय नागरिक (संस्था) की विदेशों से प्राप्त कारक आय है।

(iii) सरकार द्वारा प्राप्त मनोरंजन कर राष्ट्रीय आय में सम्मिलित नहीं होगा, क्योंकि मनोरंजन कर हस्तांतरण भुगतान है, कारक आय नहीं।

प्रश्न 14.
कारण बताइए, निम्नलिखित को घरेलू आय में शामिल क्यों नहीं किया जाता जबकि राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।
(i) भारतीय स्टेट बैंक की एक शाखा द्वारा फ्रांस में अर्जित लाभ
(ii) एक भारतीय निवासी (Resident) द्वारा हांगकांग में स्थित कंपनी से लाभ
(iii) एक भारतीय को रूसी दूतावास से प्राप्त किराया
(iv) जर्मन दूतावास से भारतीयों को प्राप्त वेतन।
उत्तर:
(i) क्योंकि बैंक द्वारा अर्जित यह लाभ भारत की घरेलू सीमा में अर्जित नहीं किया गया है।

(ii) क्योंकि यह लाभ भारतीय घरेलू सीमा से बाहर अर्जित किया गया है।

(ii) क्योंकि रूसी दूतावास रूस की घरेलू सीमा का भाग है (न कि भारत की घरेलू सीमा का जिसका संचालन रूस सरकार द्वारा किया जाता है।)

(iv) क्योंकि जर्मन दूतावास अपने देश (जर्मन) की घरेलू सीमा का भाग है जिसमें जर्मन सरकार का कानून लागू होता है चाहे दूतावास भारत में स्थित हो।

प्रश्न 15.
बताइए कि निम्नलिखित कथन सत्य है या असत्य। अपने उत्तर के लिए कारण बताइए।
(i) पूँजी निर्माण प्रवाह है
(ii) ब्रेड सदैव एक उपभोक्ता वस्तु है।
(ii) मौद्रिक GDP वास्तविक GDP से कभी कम नहीं हो सकती
(iv) सकल घरेलू पूँजी निर्माण सदैव सकल स्थिर पूँजी निर्माण से अधिक होता है।
उत्तर:
(i) सत्य। पूँजी निर्माण एक प्रवाह है क्योंकि इसे एक समयावधि में मापा जाता है।

(ii) असत्य। ब्रेड सदैव एक उपभोक्ता वस्त नहीं होती। ब्रेड को जब एक उपभोक्ता खरीदता है तो यह उपभोक्ता वस्तु होगी। ब्रेड को जब एक उत्पादक (होटल, रेस्टोरेंट) खरीदता है तो ब्रेड मध्यवर्ती वस्तु अर्थात् उत्पादक वस्तु बन जाएगी।

(iii)असत्य। मौद्रिक GDP वास्तविक GDP से कम भी हो सकती है यदि चालू वर्ष की कीमतें आधार वर्ष की कीमतों की तुलना में कम हैं।

(iv) असत्य। सकल घरेलू पूँजी निर्माण सकल स्थाई पूँजी निर्माण से कम भी हो सकता है यदि स्टॉक में परिवर्तन ऋणात्मक है अर्थात् प्रारंभिक स्टॉक अंतिम स्टॉक से अधिक है।

प्रश्न 16.
राष्ट्रीय आय का आकलन करते समय, निम्नलिखित के साथ क्या व्यवहार करेंगे? अपने उत्तर के लिए कारण दीजिए।
(i) स्वयं के मकान में रहने वालों के मकानों का आरोपित (अनुमानित) किराया
(ii) ऋणपत्रों पर प्राप्त ब्याज
(iii) बाढ़-पीड़ितों को प्राप्त आर्थिक सहायता।
उत्तर:
(i) स्वयं के मकान में रहने वालों के मकानों का आरोपित (अनुमानित) किराया देश की राष्ट्रीय आय में सम्मिलित किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि स्वयं के मकान में रहने वालों ने आरोपित किराये की राशि आय के रूप में स्वयं ही प्राप्त की है अर्थात् उन्होंने स्वयं को मकान किराये पर देकर कारक आय अर्जित की है।

(ii) ऋणपत्रों पर ब्याज को राष्ट्रीय आय में सम्मिलित किया जाता है। ऋणपत्र से एक कंपनी लोगों से ऋण प्राप्त करती है और उस ऋण की राशि का उपयोग संपत्तियाँ खरीदने तथा अपनी उत्पादन क्षमता में वृद्धि के लिए करती है। इसलिए कंपनी द्वारा ऋणपत्रधारी को दिया गया ब्याज कारक आय है।

(iii) बाढ़ पीड़ितों को आर्थिक सहायता राष्ट्रीय आय में सम्मिलित नहीं किया जाता, क्योंकि यह कारक आय नहीं है बल्कि हस्तांतरण आय है। इस प्राप्ति का देश की उत्पादक गतिविधियों से कोई संबंध नहीं है।

प्रश्न 17.
राष्ट्रीय आय का आकलन में निम्नलिखित को किस प्रकार व्यवहार में लाया जाता है?
(i) कारखाने में श्रमिकों को सस्ते दाम पर भोजन की व्यवस्था
(ii) वृद्धावस्था पेंशन
(iii) गृहिणी की सेवाएँ
(iv) परिवार द्वारा टिकाऊ उपभोग वाली वस्तुओं की खरीद
(v) विदेशों में अपनी शाखाओं से भारतीय कंपनियों द्वारा अर्जित आय
(vi) सड़क की रोशनी पर सरकारी व्यय।
उत्तर:
(i) कारखाने में श्रमिकों को सस्ते दाम पर भोजन की व्यवस्था को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाएगा, क्योंकि यह उत्पादन है और साथ-ही-साथ बिक्री भी है यद्यपि बिक्री सस्ते दामों पर हो रही है।

(ii) वृद्धावस्था पेंशन हस्तांतरण भुगतान है। इसलिए इसे राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता। ये अनुपार्जित प्राप्तियाँ हैं अर्थात् इनकी प्राप्ति बिना किसी वस्तु या सेवा के उत्पादन के हुई है।

(iii) गृहिणी की सेवाओं का मूल्य राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि गृहिणी की सेवाएँ बिक्री योग्य नहीं होतीं। गृहिणी की सेवाओं का आधार प्रेम व त्याग है न कि आर्थिक लाभ।

(iv) परिवार द्वारा टिकाऊ उपभोग वाली वस्तुओं की खरीद को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है क्योंकि इन्हें उपभोग माना जाता है।

(v) विदेशों में अपनी शाखाओं से भारतीय कंपनियों द्वारा अर्जित आय भारत की राष्ट्रीय आय है।

(vi) सड़क की रोशनी पर सरकारी व्यय को उस देश की राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाएगा, क्योंकि यह सकल पूँजी निर्माण है और यह सरकारी व्यय एक वर्ष की अवधि से अधिक समय के लिए किया गया है।

प्रश्न 18.
क्या निम्नलिखित को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है? कारण बताइए।
(i) उपभोक्ता परिवारों द्वारा नए मकानों का क्रय
(ii) पुराने भवन पर एक नई मंजिल का निर्माण
(ii) सरकार द्वारा एक गैर-कानूनी निर्माण को गिराने में किया गया व्यय
(iv) सार्वजनिक ऋण पर ब्याज
(v) निगम-लाभों पर कर
(vi) पुराने शेयरों की बिक्री से आय।
उत्तर:
(i) उपभोक्ता परिवारों द्वारा नए मकानों का क्रय राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है, क्योंकि यह निजी अंतिम उपभोग व्यय का एक भाग है। यह चालू वर्ष के उत्पादन का ही एक भाग है।

(ii) पुराने भवन पर एक नई मंजिल का निर्माण राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है, क्योंकि यह सकल घरेलू पूँजी निर्माण का एक भाग है। यह भी चालू वर्ष के उत्पादन का ही एक भाग है।

(iii) सरकार द्वारा एक गैर-कानूनी निर्माण को गिराने में किया गया व्यय राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि इसमें अंतिम वस्तु का कोई उत्पादन नहीं होता।

(iv) सार्वजनिक ऋण पर ब्याज एक हस्तांतरण आय है अर्थात् सरकार द्वारा लोगों को बिना किसी उत्पादक कार्य के बदले में किया जाने वाला भुगतान है। इसलिए इसे राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।

(v) निगम-लाभों पर कर लाभ का एक भाग है और लाभ उद्यमी की कारक आय है। इसलिए निगम-लाभों पर कर राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता।

(vi) पुराने शेयर्ज की बिक्री से होने वाली आय को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि यह एक वित्तीय लेन-देन है और इससे किसी आय का सृजन नहीं होता।

प्रश्न 19.
किसी देश की राष्ट्रीय आय के आकलन में क्या निम्नलिखित मदों को शामिल किया जाता है? अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क दीजिए।
(i) विदेशों से प्राप्त उपहार
(ii) शेयर्ज पर प्राप्त लाभांश
(iii) गृहिणी की सेवाएँ
(iv) भिखारियों को भोजन कराने पर व्यय
(v) मालिकों द्वारा खुद-काबिज मकान की सेवाएँ
(vi) भारत में विदेशी बैंकों द्वारा अर्जित लाभ।
उत्तर:
(i) विदेशों से प्राप्त उपहार कारक आय नहीं है बल्कि हस्तांतरण आय है और हस्तांतरण आय को राष्ट्रीय आय के आकलन में शामिल नहीं किया जाता।

(ii) शेयर्ज पर प्राप्त लाभांश वित्तीय पूँजी की आय है, उत्पादक क्रियाओं की आय नहीं। इसलिए शेयर्ज पर प्राप्त लाभांश को राष्ट्रीय आय के आकलन में शामिल नहीं किया जाता।

(iii) गृहिणी की सेवाएँ आर्थिक क्रियाएँ नहीं हैं, क्योंकि ये स्नेह (प्रेम) व कर्त्तव्य (त्याग) के लिए की जाती हैं, उत्पादन के लिए नहीं। इसलिए गृहिणी की सेवाओं को राष्ट्रीय आय के आकलन में शामिल नहीं किया जाता।

(iv) भिखारियों को भोजन कराने का व्यय अनुत्पादक है, क्योंकि यह हस्तांतरण भुगतान है इसलिए इसे राष्ट्रीय आय के आकलन में शामिल नहीं किया जाता।

(v) मालिकों द्वारा खुद-काबिज मकान की सेवाओं को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है, क्योंकि यह उत्पादन के समान है। यद्यपि मालिक वास्तव में कोई किराया अदा नहीं कर रहा है फिर भी हम मकान की सेवाओं को आरोपित मूल्य राष्ट्रीय आय में शामिल करेंगे।

(vi) भारत में विदेशी बैंकों द्वारा अर्जित लाभ भारत की घरेलू आय है परंतु भारत की राष्ट्रीय आय नहीं।

प्रश्न 20.
राष्ट्रीय आय के आकलन में निम्नलिखित को किस प्रकार व्यवहार में लाया जाता है?
(i) विदेश में कार्य कर रहे संबंधी से प्राप्त धनराशि
(ii) व्यापारी के पास रखे स्टॉक की कीमतों में हुई वृद्धि
(iii) पुरानी मोटरगाड़ियों के व्यापारी को प्राप्त कमीशन
(iv) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज
(v) स्व-उपभोग के लिए उत्पादन
(vi) पुरानी मोटरकार की बिक्री।
उत्तर:
(i) विदेश में कार्य कर रहे संबंधी से प्राप्त धनराशि को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि यह एक हस्तांतरण भुगतान है और हस्तांतरण भुगतान को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।

(i) व्यापारी के पास रखे स्टॉक की कीमतों में हुई वृद्धि को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि इससे राष्ट्रीय आय में कोई योगदान नहीं होता।

(iii) पुरानी मोटरगाड़ियों के व्यापारी को प्राप्त कमीशन को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है, क्योंकि व्यापारी ने अपनी सेवाओं द्वारा आय का अर्जन किया है।

(iv) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि यह ऋण का पुरस्कार है परंतु राष्ट्रीय ऋण के ब्याज को वैयक्तिक आय और निजी आय के अनुमान लगाने में शामिल किया जाता है।

(v) स्व-उपभोग के लिए उत्पादन को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है, क्योंकि यह उत्पादन राष्ट्रीय आय का एक भाग है।

(vi) पुरानी मोटरकार की बिक्री को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि इसका वर्तमान वर्ष की उत्पादन प्रक्रिया से कोई संबंध नहीं है।

प्रश्न 21.
क्या निम्नलिखित को देश की राष्ट्रीय आय के आकलन में शामिल किया जाता है? कारण सहित उत्तर दीजिए।
(i) जमीन की बिक्री से प्राप्त राशि
(ii) विदेश में काम कर रहे श्रमिक द्वारा उसके परिवार को मिली रकम
(iii) शेयर्ज पर लाभांश की प्राप्ति
(iv) सुरक्षा पर सरकारी व्यय
(v) भिखारियों को भोजन कराने पर व्यय
(vi) आकस्मिक लाभ।
उत्तर:
(i) जमीन की बिक्री से प्राप्त राशि को देश की राष्ट्रीय आय के आकलन में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि यह प्राप्ति पहले से ही मौजूद वस्तु के हस्तांतरण से हुई है न कि इस चालू वर्ष में उत्पादित वस्तु के हस्तांतरण से।

(ii) विदेश में काम कर रहे श्रमिक द्वारा उसके परिवार को मिली रकम को देश की राष्ट्रीय आय के आकलन में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि यह एक हस्तांतरण प्राप्ति है और हस्तांतरण प्राप्ति को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।

(iii) शेयर्ज पर लाभांश की प्राप्ति को देश की राष्ट्रीय आय के आकलन में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि लाभांश वित्तीय पूँजी का पारिश्रमिक है, वर्ष में उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं का प्रतिफल नहीं।

(iv) सुरक्षा पर सरकारी व्यय को देश की राष्ट्रीय आय के आकलन में शामिल किया जाता, क्योंकि इससे देश में वस्तुओं व सेवाओं का उत्पादन होता है।

(v) भिखारियों को भोजन कराने पर व्यय को देश की राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाएगा, क्योंकि यह एक हस्तांतरण भुगतान है और इसका देश में होने वाले उत्पादन से कोई संबंध नहीं है।

(vi) आकस्मिक लाभ को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि इसका देश में होने वाले उत्पादन से कोई संबंध नहीं है।

प्रश्न 22.
क्या निम्नलिखित को सकल राष्ट्रीय आय उत्पाद में सम्मिलित किया जाएगा? अपने उत्तर में कारण बताइए।
(i) भारत में एक विदेशी कंपनी द्वारा अर्जित लाभ
(ii) अंशों की बिक्री से प्राप्त राशि
(iii) अमरीका में स्थित भारतीय दूतावास में कार्य कर रहे अमरीकन निवासियों को दिया गया वेतन
(iv) पुराने मकान की बिक्री से प्राप्त राशि
(v) एक विद्यार्थी द्वारा प्राप्त छात्रवृत्ति
(vi) विदेशों से प्राप्तियाँ (Remittances)।
उत्तर:
(i) भारत में एक विदेशी कंपनी द्वारा अर्जित लाभ को सकल राष्ट्रीय उत्पाद में सम्मिलित नहीं किया जाएगा, क्योंकि यह भारतवर्ष में अनिवासी द्वारा अर्जित आय है। सकल राष्ट्रीय उत्पाद में केवल सामान्य निवासियों द्वारा अर्जित आय को ही शामिल किया जाता है। इसलिए एक विदेशी कंपनी द्वारा अर्जित लाभ को सकल राष्ट्रीय उत्पाद में सम्मिलित नहीं किया जाएगा।

(ii) अंशों की बिक्री से प्राप्त राशि को सकल राष्ट्रीय उत्पाद में सम्मिलित नहीं किया जाएगा, क्योंकि अंश एक वित्तीय संपत्ति है और अंशों के क्रय-विक्रय से वस्तुओं और सेवाओं से उत्पादन पर कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पड़ता। अंश एक कागजी मुद्रा है, उत्पादनीय संपत्ति नहीं।

(iii) अमरीका में स्थित भारतीय दूतावास में कार्य कर रहे अमरीकन निवासियों को दिया गया वेतन सकल राष्ट्रीय उत्पाद में सम्मिलित नहीं किया जाएगा क्योंकि यह भारतवर्ष में अनिवासी व्यक्तियों की आय है।

(iv) पुराने मकान की बिक्री से प्राप्त राशि को सकल राष्ट्रीय उत्पाद में सम्मिलित नहीं किया जाएगा, क्योंकि पुराना मकान वर्ष में उत्पादित वस्तु नहीं है। पुराने मकान को उस वर्ष के राष्ट्रीय उत्पाद में सम्मिलित कर लिया गया होगा जिस वर्ष उसका निर्माण हुआ होगा।

(v) एक विद्यार्थी द्वारा प्राप्त छात्रवृत्ति को सकल राष्ट्रीय उत्पाद में सम्मिलित नहीं किया जाएगा, क्योंकि प्राप्त छात्रवृत्ति एक हस्तांतरण आय है, कारक आय नहीं। एक हस्तांतरण आय को राष्ट्रीय उत्पाद में सम्मिलित नहीं किया जाता, क्योंकि हस्तांतरण आय अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं के प्रवाह को प्रभावित नहीं करता।

(vi) विदेशों से प्राप्तियों को सकल राष्ट्रीय उत्पाद में सम्मिलित नहीं किया जाएगा, क्योंकि विदेशों में प्राप्तियाँ हस्तांतरण प्राप्ति हैं, कारक आय नहीं।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 23.
राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाते समय निम्नलिखित को किस प्रकार व्यवहार में लाया जाता है?
(i) भारत में विदेशी बैंकों द्वारा अर्जित लाभ,
(ii) भारत में विदेशी दूतावासों को किराए पर दी गई इमारतों से भारतीय निवासियों को प्राप्त किराया,
(iii) अप्रत्याशित लाभ,
(iv) विदेश में काम कर रहे संबंधी से प्राप्त धनराशि,
(v) व्यापारी के पास रखे स्टॉक की कीमतों में वृद्धि,
(vi) सड़क की रोशनी पर सरकारी व्यय,
(vii) भिखारियों को भोजन कराने पर व्यय,
(vii) व्यावसायिक बैंक से गृहस्थों को ब्याज की प्राप्ति,
(ix) जमीन की बिक्री से प्राप्त राशि,
(x) विदेश में काम कर रहे श्रमिक द्वारा उसके परिवार को मिली रकम,
(xi) शेयर्ज से लाभांश की गृहस्थों को प्राप्ति,
(xii) सुरक्षा सरकारी व्यय,
(xiii) लंदन में भारतीय बैंक द्वारा अर्जित लाभ,
(xiv) पाकिस्तान में काम कर रहे भारतीयों को मज़दूरी,
(xv) कंपनी के शेयरों की कीमतों में वृद्धि,
(xvi) भूकंप पीड़ितों को आर्थिक सहायता,
(xvii) सरकारी दवाखाने की निःशुल्क सेवाएँ,
(xviii) पिता द्वारा पुत्र को दिया गया जेब खर्च।
उत्तर:
1. निम्नलिखित को राष्ट्रीय आय में जोड़ा जाएगा-
(ii), (vi), (vii), (viii), (x), (xi), (xii), (xiii), (xiv), (xvii)

2. निम्नलिखित को राष्ट्रीय आय में नहीं जोड़ा जाएगा-
(i), (iii), (iv), (v), (ix), (xv), (xvi), (xviii)

प्रश्न 24.
क्या निम्नलिखित मदों को GNP में सम्मिलित किया जाएगा? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
(i) पुरानी कार की बिक्री,
(ii) तस्कर की आय,
(iii) अप्रत्यक्ष कर,
(iv) सरकारी अनुदान,
(v) कमीशन,
(vi) अवितरित लाभ,
(vi) पूँजीगत लाभ,
(vil) लाभ कर,
(ix) राष्ट्रीय ऋणों पर ब्याज,
(x) विदेशों से अर्जित शुद्ध आय,
(xi) मकान मालिकों द्वारा अपने मकान का स्व-उपभोग,
(xii) मध्यवर्ती वस्तुएँ,
(xii) गृहिणी की सेवाएँ,
(xiv) हस्तांतरण भुगतान,
(xv) घिसावट,
(xvi) नए मकान का निर्माण,
(xvii) संसद सदस्य को मिलने वाला भत्ता।
उत्तर:
(i) नहीं, क्योंकि इसका उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

(ii) नहीं, क्योंकि गैर-कानूनी आय, GNP में सम्मिलित नहीं की जाती।

(iii) यदि GNP की गणना बाज़ार-कीमतों पर की जाती है, तो अप्रत्यक्ष करों को शामिल किया जाता है, परंतु यदि GNP की गणना कारक लागत पर की जाए तो ये GNP में शामिल नहीं होंगे।

(iv) सरकारी अनुदान, GNPFC में शामिल होते हैं, जबकि GNPMP में नहीं होते।

(v) हाँ, कमीशन से प्राप्त आय को GNP में सम्मिलित किया जाएगा, क्योंकि इससे आय का सृजन होता है।

(vi) हाँ, क्योंकि अवितरित लाभ सृजित आय का ही एक भाग होता है।

(vii) नहीं, क्योंकि पूँजीगत लाभों के रूप में प्राप्त आय से उत्पादन में कोई वृद्धि नहीं होती।

(viii) हाँ, क्योंकि लाभ कर कंपनी की सृजित आय पर लगाया जाता है।

(ix) नहीं, क्योंकि यह एक हस्तांतरण भुगतान है।

(x) हाँ, क्योंकि यह देश के नागरिकों द्वारा कमाई हुई आय है।

(xi) हाँ, ऐसे मकानों के आरोपित किराए (Imputed Rent) को राष्ट्रीय आय में जोड़ा जाता है।

(xii) नहीं, क्योंकि इससे दोहरी गणना की समस्या उत्पन्न हो जाएगी।

(xiii) नहीं, क्योंकि गृहिणी की सेवाओं का कोई मौद्रिक मूल्य नहीं होता।

(xiv) नहीं, हस्तांतरण भुगतान सदैव GNP से बाहर रखे जाते हैं। ये भुगतान एक-पक्षीय होते हैं और उत्पादन को प्रभावित नहीं करते।

(xv) हाँ, घिसावट GNP में सम्मिलित होती है।

(xvi) यह सकल घरेलू पूँजी निर्माण का अंग है। अतः इसे राष्ट्रीय आय में जोड़ा जाएगा।

(xvii) क्योंकि सरकारी अंतिम उपभोग का अंग है। अतः इसे राष्ट्रीय आय में सम्मिलित किया जाएगा।

संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आँकड़ों से कर्मचारियों के पारिश्रमिक का आकलन कीजिए-

(हज़ार रुपए में)
(i) कर्मचारियों द्वारा नकद रूप में प्राप्त मज़दूरी व वेतन720
(ii) मालिक द्वारा सामाजिक सुरक्षा योजना में अंशदान80
(iii) बीमा कंपनी से एक दुर्घटनाग्रस्त कर्मचारी का प्राप्त मुआवजा25
(iv) मुफ्त चिकित्सा सुविधाओं का मूल्य120
(v) बिक्री विभाग के कर्मचारियों द्वारा प्राप्त कमीशन80

हल:
कर्मचारियों का पारिश्रमिक = कर्मचारियों द्वारा प्राप्त मज़दूरी व वेतन + मालिक द्वारा सामाजिक सुरक्षा योजना में अंशदान + मुफ्त चिकित्सा सुविधाओं का मूल्य + बिक्री विभाग के कर्मचारियों द्वारा
प्राप्त कमीशन
= 720 + 80 + 120 + 80
= 1,000 रुपए

I. GDP, GNP, NNPMP, NNPFC पर आधारित संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय अर्थव्यवस्था के चालू कीमतों पर निम्नलिखित वास्तविक आँकड़ों के आधार पर NNPFC, GNPMP, GNPFC और NDPMP ज्ञात कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) NNPFC1,33,151
(ii) मूल्यहास11,242
(iii) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर19,183
(iv) शद्ध विदेशी कारक आय– 681

हल:
NNPFC = NDPFC + शुद्ध विदेशी कारक (साधन) आय = 1,33,151 + (-)681 = 1,32,470 करोड़ रुपए
NNPMP = NNPFC + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर = 1,32,470 + 19,183 = 1,51,653 करोड़ रुपए
GNPFC = NNPMP + मूल्यहास = 1,51,653 + 11,242 = 1,62,895 करोड़ रुपए
GNPFC = GNPMP – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर = 1,62,895 – 19,183 = 1,43,712 करोड़ रुपए
NDPMP = NNPMP – शुद्ध विदेशी कारक (साधन) आय = 1,51,653 – (-681)= 1,52,334 करोड़ रुपए

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आँकड़ों से गणना कीजिए-(i) NDP, (ii) NNPMP, (iii) NNPFC, (iv) GNP।

(करोड़ रुपए में)
(i) मूल्यहास100
(ii) शुद्ध विदेशी कारक आय300
(iii) सकल घरेलू उत्पाद (GDP)15,000
(iv) सरकार द्वारा आर्थिक सहायता50
(v) अप्रत्यक्ष कर75

हल:
(i) NDP = GDP – मूल्यह्रास = 15,000 – 100 = 14,900 करोड़ रुपए
(ii) NNPMP = NDPMP + शुद्ध विदेशी कारक (साधन) आय = 14,900 + 300 = 15,200 करोड़ रुपए
(iii) NNFC = NNPMP – अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता = 15,200 – 75 + 50 = 15,175 करोड़ रुपए
(iv) GNP = GDP + शुद्ध विदेशी कारक (साधन) आय = 15,000+ 300 = 15,300 करोड़ रुपए

प्रश्न 3.
निम्नलिखित सूचना के आधार पर गणना कीजिए-(i) कारक लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय आय (NNPFC), (ii) बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP)।

(करोड़ रुपए में)
(i) बाज़ार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDP<sub>MP</sub>)74,905
(ii) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर8,344
(iii) घरेलू उत्पाद से सरकार को अर्जित आय1,972
(iv) विदेशों से शुद्ध कारक आय-232
(v) मूल्यहास4,486

हल:
(i) NNPFC = बाज़ार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद + विदेशों से शुद्ध कारक आय – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
= 74,905 + (-232) – 8,344
= 66,329 करोड़ रुपए

(ii) GDPMP = बाज़ार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद + मूल्यह्रास = 74,905 + 4,486 = 79,391 करोड़ रुपए

प्रश्न 4.
दिए हुए आँकड़ों से निवल घरेलू उत्पाद (NDP) ज्ञात कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद97,503
(ii) विदेशों से निवल कारक आय– 201
(iii) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर10,576
(iv) अचल पूँजी का उपभोग (मूल्यहास)5,699

हल:
NDPMP = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद- अचल (स्थाई) पूँजी का उपभोग-विदेशों से निवल कारक आय
= 97,503 – 5,699 – (-201) = 92,005 करोड़ रुपए

प्रश्न 5.
एक काल्पनिक अर्थव्यवस्था का बाज़ार मूल्य पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) 1,12,000 करोड़ रुपए है। उसकी पूँजी स्कंध (stock) 3,00,000 करोड़ रुपए है। यदि उसकी पूँजी स्कंध में 20% प्रति वर्ष का ह्रास होता है, अप्रत्यक्ष कर 30,000 करोड़ रुपए के होते हैं और उपदान की राशि (आर्थिक सहायता) 15,000 करोड़ रुपए होती है, तो उसकी राष्ट्रीय आय क्या होगी?
हल:
राष्ट्रीय आय (NNPFC) = 1,12,000 – 60,000 (मूल्यह्रास 3,00,000 का 20%) — 30,000 + 15,000
= 37,000 करोड़ रुपए

प्रश्न 6.
निम्नलिखित आँकड़ों से GDPFC – ज्ञात कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) उत्पादन का मूल्य500
(ii) अचल पूँजी का उपभोग20
(iii) मध्यवर्ती उपभोग का मूल्य200
(iv) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर20

हल:
GDPFC = उत्पादन का मूल्य – मध्यवर्ती उपभोग का मूल्य – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
= 500 – 200 – 20
= 280 करोड़ रुपए

II. मूल्यवर्धित विधि (अथवा उत्पाद विधि) पर आधारित संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित से कारक लागत पर निवल मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) ज्ञात कीजिए-

(लाख रुपए में)
(i) कच्चे माल का क्रय30
(ii) मूल्यहास12
(iii) बिक्री200
(iv) उत्पाद कर20
(v) आरंभिक स्टॉक15
(vi) मध्यवर्ती उपभोग48
(vii) अंतिम स्टॉक10

हल:
NVA at FC = बिक्री + अंतिम स्टॉक – कच्चे माल का क्रय- मूल्यह्रास – उत्पाद कर – आरंभिक स्टॉक – मध्यवर्ती उपभोग
= 200 + 10 – 30 – 12 – 20 – 15 – 48
= 85 लाख रुपए

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आँकड़ों से फर्म x द्वारा की गई मूल्यवर्धित की गणना कीजिए

(लाख रुपए में)
(i) विक्रय600
(ii) कच्चे माल का क्रय200
(iii) कच्चे माल का आयात100
(iv) मशीर्नों का आयात200
(v) अंतिम स्टॉक40
(vi) प्रारंभिक स्टॉक10

हल:
फर्म X द्वारा की गई मूल्यवर्धित = विक्रय + अंतिम स्टॉक – प्रारंभिक स्टॉक – कच्चे माल का क्रय – कच्चे माल का आयात
= 600 + 40 – 10 – 200 – 100
= 640 – 310 = 330 लाख रुपए
(नोट मशीनों के आयात को मूल्यवर्धित की गणना में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि मशीनें स्थाई संपत्ति है।)

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 3.
‘X’ फर्म के बारे में दिए गए निम्नलिखित आँकड़ों से उनके द्वारा किया गया कारक (साधन) लागत पर सकल मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) का परिकलन कीजिए

(हज़ार रुपए में)
(i) बिक्री500
(ii) प्रारंभिक स्टॉक30
(iii) अंतिम स्टॉक20
(iv) मध्यवर्ती उत्पारों का क्रय300
(v) मशीनों का क्रय150
(vi) आर्थिक सहायता40

हल:
फर्म X द्वारा कारक लागत पर सकल मूल्यवृद्धि = बिक्री + अंतिम स्टॉक – प्रारंभिक स्टॉक. – मध्यवर्ती उत्पादों का क्रय + आर्थिक सहायता
= 500 + 20 – 30 – 300 + 40
= 560 – 330 = 230 हज़ार रुपए
(नोट-मशीनों का क्रय कारक लागत पर सकल मूल्यवृद्धि की गणना के लिए प्रासंगिक नहीं है।)

प्रश्न 4.
फर्म ‘x’ के बारे में दी गई निम्नलिखित सूचना में उसके द्वारा बाज़ार मूल्य पर की गई सकल मूल्यवृद्धि निकालिए

(लाख रुपए में)
(i) घरेलू बिक्री300
(ii) निर्यात100
(iii) स्व-उपभोग के लिए उत्पादन50
(iv) फर्म A से क्रय110
(v) फर्म B से क्रय70
(vi) कच्चे माल का आयात30
(vii) स्टॉक में परिवर्तन60

हल:
बाज़ार मूल्य पर की गई सकल मूल्यवृद्धि = घरेलू बिक्री + निर्यात + स्व-उपभोग के लिए उत्पादन + स्टॉक में परिवर्तन – फर्म A से क्रय – फर्म B से क्रय – कच्चे माल का आयात
= 300 + 100 + 50 + 60 – 110 – 70 – 30
= 510 – 210
= 300 लाख रुपए।

प्रश्न 5.
एक फर्म ‘A’ के बारे में दिए गए निम्नलिखित आँकड़ों से उसके द्वारा किए गए बाज़ार मूल्य पर निवल मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) का परिकलन कीजिए-

(रुपए हज़ारों में)
(i) बिक्री700
(ii) स्टॉक में परिवर्तन40
(iii) मूल्यह्रस80
(iv) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर100
(v) मशीनों का क्रय250
(vi) मध्यवर्ती उत्पादों का क्रय400

हल:
बाज़ार मूल्य पर निवल मूल्यवर्धित = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन – मध्यवर्ती उत्पादों का क्रय – मूल्यह्रास
= 700 + 40 – 400 – 80
= 740 – 480
= 260 हज़ार रुपए
(नोट-बाज़ार मूल्य पर निवल मूल्यवर्धित के परिकलन में मशीनों का क्रय तथा शुद्ध अप्रत्यक्ष कर प्रासंगिक नहीं है।)

प्रश्न 6.
निम्नलिखित आँकड़ों से कारक लागत पर सकल मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) का परिकलन कीजिए-

(लाख रुपए में)
(i) अचल पूँजी का उपभोग5
(ii) बिक्री100
(iii) आर्थिक सहायता2
(iv) अंतिम स्टॉक10
(v) कच्चे माल का स्टॉक50
(vi) आरंभिक स्टॉक15

हल:
MP पर सकल मूल्यवृद्धि = बिक्री + अंतिम स्टॉक – आरंभिक स्टॉक – कच्चे माल का स्टॉक
= 100 + 10 – 15-50 = 45 लाख रुपए
FC पर सकल मूल्यवृद्धि = MP पर सकल मूल्यवृद्धि + आर्थिक सहायता – अप्रत्यक्ष कर
= 45 + 2 – 10 = 37 लाख रुपए

प्रश्न 7.
निम्नलिखित आँकड़ों से कारक (साधन) लागत पर सकल मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) ज्ञात कीजि-

(लाख रुपए में)
(i) बिक्री180
(ii) किराया5
(iii) आर्थिक सहायता10
(iv) स्टॉक में परिवर्तन15
(v) कच्चे माल का क्रय100
(vi) लाभ25

हल:
कारक (साधन) लागत पर सकल मूल्यवर्धित (मल्यवृद्धि)
= बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन + आर्थिक सहायता – कच्चे माल का क्रय
= 180 + 15 + 10 – 100
= 205 – 100
= 105 लाख रुपए
(नोट-किराया और लाभ यहाँ पर प्रासंगिक नहीं हैं।)

प्रश्न 8.
निम्नलिखित आँकड़ों से कारक (साधन) लागत पर सकल मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) का परिकलन कीजिए-

(लाख रुपए में)
(i) निवल अप्रत्यक्ष कर20
(ii) मध्यवर्ती उत्पादों का क्रय120
(iii) मशीनों का क्रय300
(iv) बिक्री250
(v) अचल (स्थाइ) पूँजी का उपभोग (अवक्षय)20
(vi) स्टॉक में परिवर्तन30

हल:
कारक लागत पर सकल मूल्यवर्धित = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन-निवल अप्रत्यक्ष कर – मध्यवर्ती उत्पादों का क्रय
= 250 + 30 – 20 – 120
= 280 – 140
= 140 लाख रुपए
(नोट-कारक लागत पर सकल मूल्यवर्धित की गणना हेतु मशीनों का क्रय और अचल पूँजी का उपभोग प्रासंगिक नहीं है।)

प्रश्न 9.
निम्नलिखित आँकड़ों से MP पर निवल मूल्यवर्धित (शुद्ध मूल्यवृद्धि) की गणना कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) मूल्यहास5
(ii) बिक्री100
(iii) आरंभिक स्टॉक20
(iv) मध्यवर्ती उपभोग70
(v) उत्पादन शुल्क10
(vi) स्टॉक में परिवर्तन-10

हल:
MP पर निवल मूल्यवर्धित (शुद्ध मूल्यवृद्धि) = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन – मध्यवर्ती उपभोग – मूल्यह्रास
= 100 + (- 10) – 70 – 5
= 15 करोड़ रुपए

प्रश्न 10.
एक फर्म के निम्नलिखित आँकड़ों से कारक (साधन) लागत पर निवल मूल्यवर्धित ज्ञात कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) आर्थिक सहायता40
(ii) बिक्री1000
(iii) मूल्यहास30
(iv) निर्यात100
(v) अंतिम स्टॉक20
(vi) आरंभिक स्टॉक50
(vii) मध्यवर्ती उत्पादों का क्रय500

हल:
FC पर शुद्ध मूल्यवृद्धि = बिक्री + अंतिम स्टॉक – आरंभिक स्टॉक – मध्यवर्ती उत्पादों का क्रय + आर्थिक सहायता – मूल्यह्रास
= 1000 + 20 – 50 – 500 + 40 – 30
= 480 करोड़ रुपए
(नोट-निर्यात को बिक्री में शामिल माना गया है।)

प्रश्न 11.
एक फर्म से संबंधित निम्नलिखित आँकड़ों से उसकी कारक लागत पर निवल मूल्यवर्धित (शुद्ध मूल्यवृद्धि) की गणना कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) आर्थिक सहायता40
(ii) बिक्री800
(iii) मूल्यहास30
(iv) निर्यात100
(v) अंतिम स्टॉक20
(vi) प्रारंभिक स्टॉक50
(vii) मध्यवर्ती क्रय500
(viii) स्व-उपभोग के लिए मशीनरी का क्रय200
(ix) कच्चे माल का आयात60

हल:
कारक लागत पर निवल मूल्यवर्धित = बिक्री + अंतिम स्टॉक – प्रारंभिक स्टॉक – मध्यवर्ती क्रय – मूल्यह्रास + आर्थिक सहायता
= 800 + 20-50 – 500 – 30 + 40
= 860 – 580
= 280 करोड़ रुपए

नोट-

  • निर्यात को बिक्री में शामिल मान लिया गया है।
  • कच्चे माल का आयात मध्यवर्ती क्रय में शामिल मान लिया गया है।
  • स्व-उपभोग के लिए मशीनरी का क्रय शुद्ध मूल्यवर्धित की गणना के लिए प्रासंगिक नहीं है।

प्रश्न 12.
निम्नलिखित आँकड़ों से उत्पादन के मूल्य (Value of output) का परिकलन कीजिए-

(लाख रुपए में)
(i) कारक लागत पर निवल मूल्यवर्धित100
(ii) मध्यवर्ती लागत75
(iii) उत्पादक शुल्क20
(iv) आर्थिक सहायता5
(v) मूल्यहास10

हल:
उत्पादन का मूल्य = कारक लागत पर निवल मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) + मध्यवर्ती लागत + उत्पादक शुल्क- आर्थिक सहायता + मूल्यह्रास
= 100 + 75 + 20 – 5 + 10
= 200 लाख रुपए

प्रश्न 13.
निम्नलिखित आँकड़ों से उत्पादन के मूल्य (Value of output) का परिकलन कीजिए-

(लाख रुपए में)
(i) कारक (साधन) लागत पर शुद्ध मूल्यवर्धित200
(ii) मध्यवर्ती उपभोग150
(iii) उत्पादन शुल्क40
(iv) आर्थिक सहायता10
(v) मूल्यहास20

हल:
उत्पादन का मूल्य = कारक लागत पर शुद्ध मूल्यवर्धित + मध्यवर्ती उपभोग + उत्पादन शुल्क- आर्थिक सहायता + मूल्यह्रास
= 200 + 150+ 40- 10 + 20 = 400 लाख रुपए
(उत्पादन के मूल्य का अर्थ होता है ‘बाज़ार कीमत पर सकल उत्पादन का मूल्य’।)

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 14.
निम्नलिखित आँकड़ों से मध्यवर्ती उपभोग का परिकलन कीजिए

(लाख रुपए में)
(i) उत्पादन का मूल्य200
(ii) कारक लागत पर निवल मूल्यवर्धित80
(iii) बिक्री कर15
(iv) आर्थिक सहायता5
(v) मूल्यहास20

हल:
सकल मूल्यवृद्धि = उत्पादन का मूल्य – मध्यवर्ती उपभोग
मध्यवर्ती उपभोग = 200 – (80 + 20 + 15-5) = 90 लाख रुपए

प्रश्न 15.
निम्नलिखित आँकड़ों से बिक्री का परिकलन कीजिए

(लाख रुपए में)
(i) कारक लागत पर निवल मूल्यवर्धित300
(ii) मध्यक्ती उपभोग200
(iii) अप्रत्यक्ष कर20
(iv) मूल्यहास30
(v) स्टॉक में परिवर्तन-50

हल:
MP पर सकल मूल्यवर्धित = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन – मध्यवर्ती उपभोग
बिक्री = (300 + 30+ 20)- (-50) + 200
= 600 लाख रुपए

प्रश्न 16.
निम्नलिखित आँकड़ों से बिक्री (Sales) का परिकलन कीजिए

(लाख रुपए में)
(i) कारक लागत पर निवल मूल्यवर्धित600
(ii) मध्यवर्ती उपभोग400
(iii) अप्रत्यक्ष कर40
(iv) मूल्यहास60
(v) स्टॉक में परिवर्तन-100

हल:
बाज़ार कीमत पर सकल मूल्यवर्धित = कारक लागत पर शुद्ध मूल्यवर्धित + अप्रत्यक्ष कर + मूल्यह्रास
= 600 + 40 + 60 = 700
बिक्री = 700 + 400 – (-100) = 700 + 400 + 100 = 1200 लाख रुपए

प्रश्न 17.
निम्नलिखित आँकड़ों से कारक (साधन) लागत पर निवल मूल्यवर्धित का परिकलन कीजिए

(लाख रुपए में)
(i) मूल्यहास20
(ii) मध्यवर्ती लागत90
(iii) आर्थिक सहायता5
(iv) बिक्री140
(v) निर्यात7
(vi) स्टॉक में परिवर्तन– 10
(vii) कच्चे माल का आयात3

हल:
FC पर निवल मूल्यवर्धित = बिक्री– मध्यवर्ती लागत + स्टॉक में परिवर्तन – मूल्यह्रास + आर्थिक सहायता
= 140 – 90 + (- 10) – 20 + 5
= 25 लाख रुपए
(नोट-निर्यात को बिक्री में और कच्चे माल के आयात को मध्यवर्ती लागत में शामिल माना गया है।)

प्रश्न 18.
निम्नलिखित आँकड़ों के आधार पर फर्म A तथा फर्म B द्वारा की गई मूल्यवर्धित का आकलन कीजिए-

(लाख रुपए में)
(i) फर्म A द्वारा शेष विश्व से खरीद30
(ii) फर्म B की बिक्री90
(iii) फर्म A द्वारा B से खरीद50
(iv) फर्म A की बिक्री110
(v) फर्म A द्वारा निर्यात30
(vi) फर्म A का आरंभिक स्टॉक35
(vii) फर्म A का अंतिम स्टॉक20
(vii) फर्म B का आरंभिक स्टॉक30
(ix) फर्म B का वास्तविक स्टॉक20
(x) फर्म B द्वारा फर्म A से खरीद50

हल:
फर्म A का उत्पादन मूल्य = बिक्री + निर्यात + स्टॉक में परिवर्तन (अंतिम स्टॉक – आरंभिक स्टॉक)
= 110 + 30 + 20 – 35
= 160 – 35
= 125 लाख रुपए।

फर्म B का उत्पादन मूल्य = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन (अंतिम स्टॉक – आरंभिक स्टॉक)
= 90 + 20 – 30
= 110 – 30
= 80 लाख रुपए।

फर्म A द्वारा मूल्यवृद्धि = उत्पादन का मूल्य – क्रय – आयात
= 125 – 50 – 30
= 125 – 80
= 45 लाख रुपए।

फर्म B द्वारा मूल्यवृद्धि = उत्पादन का मूल्य – क्रय
= 80 – 50
= 30 लाख रुपए

प्रश्न 19.
निम्नलिखित आँकड़ों से फर्म X फर्म तथा Y द्वारा की गई मूल्यवर्धित ज्ञात कीजिए

(लाख रुपए में)
(i) फर्म x का अंतिम स्टॉक20
(ii) फर्म Y का अंतिम स्टॉक15
(iii) फर्म Y का आरंभिक स्टॉक10
(iv) फर्म x का आरंभिक स्टॉक5
(v) फर्म X द्वारा बिक्री300
(vi) फर्म X द्वारा फर्म Y से क्रय100
(vii) फर्म Y द्वारा फर्म x से क्रय80
(viii) फर्म Y द्वारा बिक्री250
(ix) फर्म x द्वारा कच्चे माल का आयात50
(x) फर्म Y द्वारा निर्यात30

हल:
फर्म X का उत्पादन मूल्य = फर्म X द्वारा बिक्री + फर्म X का अंतिम स्टॉक – फर्म X का आरंभिक स्टॉक
= 300 + 20 – 5
= 320 – 5
= 315 लाख रुपए

फर्म X की मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) = फर्म X के उत्पादन का मूल्य – फर्म X द्वारा फर्म Y से क्रय – फर्म X द्वारा कच्चे माल का आयात
= 315 – 100 – 50
= 315 – 150
= 165 लाख रुपए

फर्म Y के उत्पादन का मूल्य = फर्म Y द्वारा बिक्री + फर्म Y का अंतिम स्टॉक – फर्म Y का आरंभिक स्टॉक + फर्म Y द्वारा निर्यात
= 250 + 15 – 10+ 30
= 295 – 10
= 285 लाख रुपए

फर्म Y की मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) = फर्म Y के उत्पादन का मूल्य – फर्म Y द्वारा फर्म X से क्रय
= 285 – 80
= 205 लाख रुपए

प्रश्न 20.
निम्नलिखित आँकड़ों से सकल अचल पूँजी निर्माण की गणना कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) निजी अंतिम उपभोग व्यय1,000
(ii) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय500
(iii) निवल निर्यात-50
(iv) विदेशों से निवल कारक (साधन) आय20
(v) बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद2,500
(vi) प्रारंभिक स्टॉक300
(vii) अंतिम स्टॉक200

हल:
सकल अचल पूँजी निर्माण = बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद – निजी अंतिम उपभोग व्यय – सरकारी अंतिम उपभोग व्यय – निवल निर्यात – अंतिम स्टॉक + प्रारंभिक स्टॉक
= 2,500 – 1,000-500 – (-)50 – 200 + 300
= 2,850 – 1,700
= 1,150 करोड़ रुपए
(नोट-विदेशों से निवल कारक आय यहाँ प्रासंगिक नहीं है।)

III. आय विधि पर आधारित संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आँकड़ों के आधार पर ज्ञात कीजिए-
(i) घरेलू आय, (ii) राष्ट्रीय आय, (ii) वैयक्तिक आय, (iv) वैयक्तिक प्रयोज्य आय।

(रुपए में)
(i) लगान5,000
(ii) मज़दूरी30,000
(iii) ब्याज8,000
(iv) अधिशेष15,000
(v) अवितरित लाभ3,000
(vi) हस्तांतरण भुगतान (सरकार द्वारा)1,000
(vii) लाभ कर2,000
(viii) लाभांश12,000
(ix) मिश्रित आय4,000
(x) वैयक्तिक कर1,500
(xi) विदेशों से शुद्ध परिसंपत्ति आय7,000
(xii) उपहार व प्रेषणाएँ (विदेशों से)2,500

हल:
(i) घरेलू आय = लगान + मज़दूरी + ब्याज + अधिशेष + लाभ कर + लाभांश + मिश्रित आय + अवितरित लाभ
= 5,000 + 30,000 + 8,000 + 15,000 + 2,000 + 12,000 + 4,000 + 3,000
= 79,000 रुपए

(ii) राष्ट्रीय आय = घरेलू आय + शुद्ध विदेशी परिसंपत्ति आय
= 79,000 + 7,000 = 86,000 रुपए

(iii) वैयक्तिक आय = राष्ट्रीय आय – अधिशेष – लाभ कर – अवितरित लाभ + अंतरण भुगतान + उपहार व प्रेषणाएँ
= 86,000 – 15,000 – 2,000 – 3,000 + 1,000 + 2,500
= 69,500 रुपए

(iv) वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय – वैयक्तिक कर
= 69,500 – 1,500
= 68,000 रुपए

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आँकड़ों से ज्ञात कीजिए-(क) बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP at MP), (ख) निजी आय, (ग) वैयक्तिक प्रयोज्य आय।

(करोड़ रुपाए में)
(i) कारक लागत पर सकल घरेलू उत्पाद2,570
(ii) अप्रत्यक्ष कर850
(iii) आर्थिक सहायता125
(iv) विदेशों से निवल कारक आय-5
(v) गैर-विभागीय सार्वजनिक उद्यमों की बचत15
(vi) सरकारी विभागों को उद्यमवृत्ति व संपत्ति से आय100
(vii) अचल पूँजी का उपभोग290
(viii) सार्वजनिक ऋण पर ब्याज60
(ix) सरकार से वर्तमान (चालू) हस्तांतरण245
(x) शेष विश्व से अन्य वर्तमान हस्तांतरण310
(xi) निगम कर190
(xii) निजी निगमित क्षेत्र की बचत85
(xiii) परिवारों द्वारा दिए गए प्रत्यक्ष कर500

हल:
(क) NNP at MP (Set I) = (i) + (ii) – (iii) + (iv) – (vii)
= 2570 + 850 – 125 + (- 5) – 290
= 3,000 करोड़ रुपए

(ख) निजी आय (Set I) = NNP at MP – (ii) + (iii) – (v) – (vi) + (viii) + (ix) + (x)
= 3000 – 850 + 125 – 15 – 100 + 60 + 245 + 310 = 2,775 करोड़ रुपए

(ग) वैयक्तिक प्रयोज्य आय (Set I) = निजी आय – (xi) – (xii) – (xiii)
= 2775- 190 – 85-500 = 2,000 करोड़ रुपए

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 3.
निम्न आँकड़ों से राष्ट्रीय आय ज्ञात कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) मजदूरी व वेतन150
(ii) सामाजिक सुरक्षा में मालिकों का योगदान25
(iii) लाभ40
(iv) ब्याज25
(v) अप्रत्यक्ष कर30
(vi) अनुदान10
(vii) किराया12
(viii) मिश्रित आय40
(ix) घिसावट व्यय35

हल:
राष्ट्रीय आय = मजदूरी व वेतन + सामाजिक सुरक्षा में मालिकों का योगदान + लाभ + ब्याज + अप्रत्यक्ष कर + अनुदान + किराया + मिश्रित आय – घिसावट व्यय
= 150 + 25 + 40 + 25 + 30 + 10 + 12 + 40 – 35
= 297 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आँकड़ों से राष्ट्रीय आय का परिकलन कीजिए-

(i) लगान(₹ करोड़ रुपए में)
(ii) ब्याज80
(iii) लाभ100
(iv) लाभ कर210
(v) कर्मचारियों का सामाजिक सुरक्षा में अंशदान30
(vi) स्वनियोजितों की मिश्रित आय25
(vii) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर250
(viii) नियोजकों का सामाजिक सुरक्षा में अंशदान60
(ix) कर्मचारियों का पारिश्रमिक50
(x) विदेशों से शद्ध कारक आय500
(i) लगान-20

हल:
राष्ट्रीय आय = लगान + ब्याज + लाभ + स्वनियोजितों की मिश्रित आय+ कर्मचारियों का पारिश्रमिक + विदेशों से शुद्ध कारक आय
= 80 + 100 + 210 + 250 + 500 + (- 20)
= 1120 करोड़ रुपए

IV. व्यय विधि पर आधारित संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित सूचना की सहायता से बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) की गणना कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) निजी उपभोग व्यय50,000
(ii) सरकारी उपभोग व्यय15,000
(iii) सकल स्थाई पूँजी निर्माण10,000
(iv) स्कंध (स्टॉक) में वृद्धि2,000
(v) वस्तुओं व सेवाओं का निर्यात5,000
(vi) वस्तुओं व सेवाओं का आयात7,000
(vii) पूँजी उपभोग भत्ता6,500
(viii) शुद्ध (निवल) अप्रत्यक्ष कर5,000

हल:
GDPMP = निजी उपभोग व्यय + सरकारी उपभोग व्यय + सकल स्थाई पूँजी निर्माण + स्कंध (स्टॉक) में वृद्धि + वस्तुओं व सेवाओं का निर्यात – वस्तुओं व सेवाओं का आयात
= 50,000 + 15,000 + 10,000 + 2,000 + 5,000 – 7,000
GDPMP = 75,000 करोड़ रुपए

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आँकड़ों के आधार पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) निकालिए

परिकल्पित आँकड़े (रुपए में)
(i) वैयक्तिक उपभोग व्यय45,000
(ii) सरकारी उपभोग व्यय5,000
(iii) सकल घरेलू स्थाई निवेश5,000
(iv) स्टॉक में वृद्धि1,000
(v) वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात6,000
(vi) वस्तुओं और सेवाओं का आयात7,000
(vii) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर3,500
(viii) मूल्यहास4,500

हल:
GNP = वैयक्तिक उपभोग व्यय + सरकारी उपभोग व्यय + सकल घरेलू स्थाई निवेश + स्टॉक में वृद्धि + वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात – वस्तुओं और सेवाओं का आयात
= 45,000 + 5,000 + 5,000 + 1,000 + 6,000 – 7,000
= 55,000 रुपए।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित व्यवहारों से शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP) मालूम कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) उपभोग पर पारिवारिक व्यय1,00,000
(ii) सरकारी उपभोग व्यय12,500
(iii) कुल पूँजी निर्माण25,000
(iv) मूल्यहास6,000
(v) निर्यात6,000
(vi) आयात9,000
(vii) विदेशों से अर्जित शुद्ध आय750

हल:
NNP = उपभोग पर पारिवारिक व्यय + सरकारी उपभोग व्यय कुल पूँजी निर्माण- मूल्यह्रास + निर्यात – आयात + विदेशों से अर्जित शुद्ध आय
= 1,00,000 + 12,500 + 25,000 – 6,000 + 6,000 – 9,000 + 750
= 1,29,250 करोड़ रुपए

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) और (ख) साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) निकालिए

(करोड़ रुपए में)
(i) सकल घरेलू पूँजी निर्माण94
(ii) शुद्ध निर्यात-6
(iii) निजी अंतिम उपभोग व्यय260
(iv) विदेशों से प्राप्त शुद्ध कारक आय-3
(v) अचल पूँजी का उपभोग39
(vi) स्टॉक में शुद्ध परिवर्तन11
(vii) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर43
(viii) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय47

हल:
(क) GNPMP = सकल घरेलू पूँजी निर्माण + शुद्ध निर्यात + निजी अंतिम उपभोग व्यय + विदेशों से प्राप्त शुद्ध कारक आय + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय
= 94+ (- 6) + 260 + (- 3) + 47 = 392 करोड़ रुपए

(ख) NNPFC = GNPMP – (v) – (vii)
= 392 – 39 – 43 = 310 करोड़ रुपए

प्रश्न 5.
निम्नलिखित आँकड़ों की सहायता से बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP at MP) ज्ञात कीजिए

(करोड़ रुपए में)
Set ISet IISet III
(i) अचल पूँजी का उपभोग605030
(ii) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय200180100
(iii) विदेशों से प्राप्त शुद्ध कारक साधन आय-10-5-10
(iv) निजी अंतिम उपभोग व्यय800700400
(v) निर्यात505025
(vi) प्रारंभिक स्टॉक302015
(vii) आयात606035
(viii) अंतिम स्टॉक201510
(ix) सकल पूँजी निर्माण230200120

हल:
GNP at MP-
Set I = (ii) + (iv) + (v) – (vi)- (vii) + (viii) + (ix) + (ii)
= 200 + 800 + 50 – 30 – 60 + 20 + 230 + (-10)
= 1200 करोड़ रुपए

Set II = (ii) + (iv) + (v)- (vi) – (vii) + (viii) + (ix) + (iii)
= 180 + 700 + 50 – 20-60 + 15 + 200 + (-5)
= 1060 करोड़ रुपए

Set III = (ii) + (iv) + (v)- (vi)- (vii) + (viii) + (ix) + (iii)
= 100 + 400 + 25 – 15 – 35 + 10 + 120 + (- 10)
= 595 करोड़ रुपए

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 6.
निम्नलिखित आँकड़ों की सहायता से बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद GDP at MP ज्ञात कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
Set ISet IISet III
(i) शुद्ध आयात-30-10-15
(ii) निजी अंतिम उपभोग व्यय400500300
(iii) अनुदान5105
(iv) शुद्ध घरेलू अचल पूँजी निर्माण5010030
(v) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय10015070
(vi) विदेशों से प्राप्त शुद्ध कारक आय-10-15-20
(vii) अंतिम स्टॉक102010
(viii) अचल (स्थाई) पूँजी का उपभोग405040
(ix) अप्रत्यक्ष कर556050
(x) आरंभिक स्टॉक203025

हल:
GDP at MP = (ii) + (v) + (iv) + (viii) + (vii) – (x) + (i)
Set I = 400 + 100 + 50 + 40 + 10 – 20 + (-30) = 550 करोड़ रुपए
Set II = 500 + 150 + 100 + 50 + 20-30 + (-10) = 780 करोड़ रुपए
Set III = 300 + 70 + 30+ 40 + 10–25 + (- 15) = 410 करोड़ रुपए

प्रश्न 7.
निम्नलिखित आँकड़ों से राष्ट्रीय आय (NNPFC) ज्ञात कीजिए
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 7
हल:
(Set I) GDPMP = 500 + (- 5) + सरकारी उपभोग व्यय (100 + 10 + 100) + 60 + 10
= 775 करोड़ रुपए
NNPFC = 775 – 10 – 50 + (-10) = 705 करोड़ रुपए

(Set II) GDPMP= 50 + 750 + (- 25) + 50 + 100 + 300 – 100
= 1125 करोड़ रुपए
NNPFC = 1125 – 25 – 100 + (- 20) = 980 करोड़ रुपए

(Set III) GDPMP = 400 + 30-40+ 30+ 200 + 100 + 20 (मूल्यह्रास)
= 740 करोड़ रुपए

NNPFC = 740 – 20 + 20 – 40 + (- 20) = 680 करोड़ रुपए

प्रश्न 8.
निम्नलिखित आँकड़ों से राष्ट्रीय आय (NNPFC) निकालिए

(करोड़ रुपए में)
Set ISet II
(i) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय100150
(ii) प्रारंभिक स्टॉक5080
(iii) सकल अचल पूँजी निर्माण120130
(iv) विदेर्शों से शुद्ध कारक आय-10-10
(v) अप्रत्यक्ष कर6070
(vi) अंतिम स्टॉक80100
(vii) अनुदान1010
(viii) लगान, ब्याज और लाभ350500
(ix) अचल पूँजी का उपभोग2020
(x) निजी अंतिम उपभोग व्यय400600
(xi) निर्यात5060
(xii) आयात4070

हल:
(Set I) GDPMP = (i) + (vi) – (ii) + (iii) + (x) + (xi) – (xii)
= 100 + 80 – 50 + 120 + 400 + 50 – 40 = 660 करोड़ रुपए
राष्ट्रीय आय (NNPFC) = GDPMP – (ix) + (iv) – (v) + (vii)
= 660 – 20 + (- 10) – 60 + 10
= 580 करोड़ रुपए

(Set II) GDPMP = (i) + (vi) – (ii) + (iii) + (x) + (xi) – (xii)
= 150 + 100 – 80 + 130 + 600 + 60 – 70 = 890 करोड़ रुपए

राष्ट्रीय आय (NNPFC) = GDPMP – (ix) + (iv) – (v) + (vii)
= 890 – 20 + (-10)- 70 + 10 = 800 करोड़ रुपए

प्रश्न 9.
निम्नलिखित आँकड़ों से कारक लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPFC) निकालिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) निवल घरेलू पूँजी निर्माण350
(ii) अंतिम स्टॉक100
(iii) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय200
(iv) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर50
(v) आरंभिक स्टॉक60
(vi) अचल पूँजी का उपभोग50
(vii) शुद्ध निर्यात-10
(viii) निजी अंतिम उपभोग व्यय1500
(ix) आयात20
(x) विदेशों से शुद्ध कारक आय-10

हल:
GDP at MP = निवल घरेलू पूँजी निर्माण + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + अचल पूंजी का उपभोग + शुद्ध निर्यात + निजी अंतिम उपभोग व्यय
= 350 + 200 + 50 + (-10) + 1500 = 2090 करोड़ रुपए
GNP at FC = GDP at MP – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + विदेशों से शुद्ध कारक आय
= 2090 – 50 + (-10) = 2030 करोड़ रुपए

प्रश्न 10.
निम्नलिखित आँकड़ों से NDP at FC का परिकलन कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) घरेलू बाज़ार में निजी अंतिम उपभोग व्यय400
(ii) सकल घरेलू पूँजी निर्माण100
(iii) स्टॉक में परिवर्तन20
(iv) निवासी परिवारों द्वारा विदेशों से प्रत्यक्ष क्रय50
(v) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर60
(vi) विदेशों से निवल (शुद्ध) कारक आय10
(vii) घरेलू बाज़ार में गैर-निवासियों द्वारा प्रत्यक्ष क्रय150
(viii) शुद्ध निर्यात-20
(ix) अचल पूँजी का उपभोग20
(x) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय100

हल:
GDP at MP = घरेलू बाजार में निजी अंतिम उपभोग व्यय + सकल घरेलू पूँजी निर्माण + निवासी परिवारों द्वारा विदेशों से प्रत्यक्ष क्रय – घरेलू बाज़ार में गैर निवासियों द्वारा प्रत्यक्ष क्रय + शुद्ध निर्यात + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय
= 400 + 100 + 50 – 150 + (-20) + 100
= 480 करोड़ रुपए
NDP at FC = GDP at MP – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर – अचल पूंजी का उपभोग
= 480 – 60 – 20 = 400 करोड़ रुपए।

V. मूल्यवर्धित विधि, आय विधि, व्यय विधि पर आधारित मिश्रित संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) व्यय विधि तथा (ख) आय विधि द्वारा बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP at MP) ज्ञात कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) शुद्ध पूँजी निर्माण200
(ii) निजी अंतिम उपभोग व्यय1,000
(iii) प्रचालन अधिशेष360
(iv) मज़दूरी तथा वेतन900
(v) किराया100
(vi) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय300
(vii) अचल पूँजी का उपभोग50
(viii) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर200
(ix) विदेशों से प्राप्त शुद्ध कारक आय-10
(x) नियोजकों का सामाजिक सुरक्षा में अंशदान50
(xi) शुद्ध निर्यात10

हल:
(क) GNP at MP (व्यय विधि द्वारा) = शुद्ध पूँजी निर्माण + निजी अंतिम उपभोग व्यय + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + अचल पूँजी का उपभोग + विदेशों से प्राप्त शुद्ध कारक आय + शुद्ध निर्यात
= 200 + 1000 + 300 + 50 + (-10) + 10
= 1550 करोड़ रुपए

(ख) GNP at MP (आय विधि द्वारा) = प्रचालन अधिशेष + मजदूरी तथा वेतन + अचल पूँजी का उपभोग + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + विदेशों से प्राप्त शुद्ध कारक आय + नियोजकों का सामाजिक सुरक्षा में अंशदान
= 360 + 900 + 50 + 200 + (-10)+ 50
= 1550 करोड़ रुपए

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) आय विधि और (ख) व्यय विधि द्वारा GNP at MP की गणना कीजिए–

(करोड़ रुपए में)
(i) शुद्ध निर्यात10
(ii) किराया20
(iii) निजी अंतिम उपभोग व्यय400
(iv) ब्याज30
(v) लाभांश45
(vi) अवितरित लाभ5
(vii) निगम कर10
(viii) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय100
(ix) शुद्ध घरेलू पूँजी निर्माण50
(x) कर्मचारियों का पारिश्रमिक400
(xi) अचल पूँजी का उपभोग10
(xii) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर50
(xiii) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय-10

हल:
(क) GNP at MP (आय विधि द्वारा) = किराया + ब्याज + लाभांश + अवतरित लाभ + निगम कर + कर्मचारियों का पारिश्रमिक + अचल पूँजी का उपभोग+ शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + विदेशों से प्राप्त साधन आय
= 20 + 30 + 45 + 5 + 10 + 400 + 10 + 50+ (-10)
= 560 करोड़ रुपए

(ख) GNP at MP (व्यय विधि द्वारा) = शुद्ध निर्यात + निजी अंतिम उपभोग व्यय + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + शुद्ध घरेलू पूँजी निर्माण + अचल पूँजी का उपभोग + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय
= 10 + 400 + 100 + 50 + 10 + (-10)
= 560 करोड़ रुपए

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 3.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) आय और (ख) व्यय विधियों द्वारा राष्ट्रीय आय (NI) ज्ञात कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) मज़दूरी और वेतन500
(ii) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय120
(iii) रॉयल्टी20
(iv) ब्याज40
(v) पारिवारिक अंतिम उपभोग व्यय600
(vi) स्टॉक में परिवर्तन10
(vii) अप्रत्यक्ष कर100
(viii) किराया50
(ix) परिवारों की सेवारत निजी अलाभकारी संस्थाओं का अंतिम उपभोग व्यय30
(x) शुद्ध घरेलू अचल पूँजी निर्माण60
(xi) कर पश्चात लाभ100
(xii) निगम कर20
(xiii) शुद्ध निर्यात-20
(xiv) आर्थिक सहायता30
(xv) विदेशों से प्राप्त शुद्ध कारक आय-5

हल:
(क) राष्ट्रीय आय (आय विधि द्वारा) = मज़दूरी और वेतन + रॉयल्टी + ब्याज + किराया + अप्रत्यक्ष कर + निगम कर + विदेशों से प्राप्त शुद्ध कारक आय
= 500 + 20 + 40 + 50 + 100 + 20 + (- 5)
= 725 करोड़ रुपए

(ख) राष्ट्रीय आय (व्यय विधि द्वारा) = सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + पारिवारिक अंतिम उपभोग व्यय + स्टॉक में परिवर्तन-अप्रत्यक्ष कर + परिवारों की सेवारत निजी अलाभकारी संस्थाओं का अंतिम उपभोग व्यय + शुद्ध घरेलू अचल पूँजी निर्माण + शुद्ध निर्यात + आर्थिक सहायता + विदेशों से प्राप्त शुद्ध कारक आय
= 120 + 600 + 10 — 100 + 30 + 60 + (-20) + 30 + (-5)
= 725 करोड़ रुपए

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) आय विधि और (ख) व्यय विधि द्वारा कारक लागत पर GNP (GNPFC) का परिकलन कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) मज़दूरी और वेतन800
(ii) स्वनियोजितों की मिश्रित आय160
(iii) प्रचालन अधिशेष600
(iv) अवितरित लाभ150
(v) सकल पूँजी निर्माण330
(vi) स्टॉक में परिवर्तन25
(vii) निवल पूँजी निर्माण300
(viii) सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में नियोजर्कों का अंशदान100
(ix) विदेशों से शुद्ध कारक आय-20
(x) निर्यात30
(xi) आयात60
(xii) निजी अंतिम उपभोग व्यय1000
(xiii) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय450
(xiv) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर60
(xv) सरकार द्वारा दिया गया कर्मचारियों का पारिश्रमिक75

हल:
(क) GNP at FC (आय विधि द्वारा) मज़दूरी और वेतन + स्वनियोजितों की मिश्रित आय + प्रचालन अधिशेष + सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में नियोजकों का अंशदान + विदेशों से शुद्ध कारक आय + मूल्यह्रास (सकल पूँजी निर्माण-निवल पूँजी निर्माण)
= 800 + 160 + 600 + 100 + (- 20) + 30
= 1670 करोड़ रुपए

(ख) GNP at FC (व्यय विधि द्वारा) = सकल पूँजी निर्माण + विदेशों से शुद्ध कारक आय + निर्यात – आयात + निजी अंतिम उपभोग व्यय + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
= 330 + (-20)+ 30 – 60 + 1000 + 450-60 = 1670 करोड़ रुपए

प्रश्न 5.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) आय विधि और (ख) व्यय विधि द्वारा बाज़ार मूल्य पर NNP (NNPMP) का परिकलन कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) सरकार द्वारा दिया गया कर्मचारियों का पारिश्रमिक40
(ii) स्वनियोजितों की मिश्रित आय50
(iii) मज़दूरी और वेतन400
(iv) नियोजकों का सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में अंशदान80
(v) प्रचालन अधिशेष300
(vi) अप्रत्यक्ष कर30
(vii) आर्थिक सहायता10
(viii) शुद्ध पूँजी निर्माण150
(ix) विदेशों से शुद्ध साधन आय10
(x) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय230
(xi) निजी अंतिम उपभोग व्यय500
(xii) निर्यात15
(xiii) आयात45
(xiv) अचल (स्थाइ) पूँजी का उपभोग20
(xv) लाभ130

हल:
(क) NNP at MP (आय विधि द्वारा) = स्वनियोजितों की मिश्रित आय + मजदूरी और वेतन + नियोजितों का सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में अंशदान + प्रचालन अधिशेष + अप्रत्यक्ष कर – आर्थिक सहायता + विदेशों से निवल साधन आय
= 50 + 400 + 80 + 300 + 30 – 10 + (- 10)
= 840 करोड़ रुपए

(ख) NNP at MP (व्यय विधि द्वारा) = शुद्ध पूँजी निर्माण + विदेशों से शुद्ध साधन आय + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + निजी अंतिम उपभोग व्यय + निर्यात – आयात
= 150 + (-10) + 230 + 500 + 15 – 45 = 840 करोड़ रुपए

प्रश्न 6.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) आय विधि और (ख) व्यय विधि द्वारा बाज़ार मूल्य पर GNP (GNPMP) का परिकलन कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय250
(ii) स्टॉक में परिवर्तन65
(iii) निवल घरेलू पूँजी निर्माण150
(iv) ब्याज90
(v) लाभ210
(vi) निगम कर50
(vii) लगान100
(viii) विदेशों से कारक आय20
(ix) अप्रत्यक्ष कर55
(x) विदेशों को कारक आय40
(xi) निर्यात60
(xii) आर्थिक सहायता25
(xiii) आयात80
(xiv) अचल पूँजी का उपभोग20
(xv) निजी अंतिम उपभोग व्यय500
(xvi) कर्मचारियों का पारिश्रमिक450
(xvii) कर्मचारियों को मुफ़्त आवास का किराया मूल्य40

हल:
(क) GNP at MP (आय विधि द्वारा) = ब्याज + लाभ + लगान + विदेशों से साधन आय+ अप्रत्यक्ष कर-विदेशों को साधन आय – आर्थिक सहायता + अर मी का उपभोग + कर्मचारियों का पारिश्रमिक
= 90 + 210 + 100 + 20 + 55 – 40 – 25 + 20 + 450
= 880 करोड़ रुपए

(ख) GNP at MP (व्यय विधि द्वारा) = सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + निवल घरेलू पूँजी निर्माण + विदेशों से कारक आय–विदेशों को कारक आय + निर्यात – आयात + अचल पूँजी का उपभोग+ निजी अंतिम उपभोग व्यय
= 250 + 150 + 20 – 40 + 60 – 80 + 20 + 500 = 880 करोड़ रुपए

प्रश्न 7.
निम्नलिखित आँकड़ों से GNP का आय विधि और व्यय विधि द्वारा परिकलन कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) लगान40
(ii) निजी अंतिम उपभोग व्यय800
(iii) शुद्ध निर्यात20
(iv) ब्याज60
(v) लाभ120
(vi) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय200
(vii) शुद्ध घरेलू पूँजी निर्माण100
(viii) कर्मचारियों का पारिश्रमिक800
(ix) अचल पूँजी का उपभोग20
(x) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर100
(xi) विदेशों से शुद्ध साधन आय-20

हल:
(क) GNP at MP (आय विधि द्वारा) = लगान + ब्याज + लाभ + कर्मचारियों का पारिश्रमिक + अचल पूँजी का उपभोग + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + विदेशों से शुद्ध कारक आय
= 40 + 60 + 120 + 800 + 20 + 100 + (- 20) = 1120 करोड़ रुपए

(ख) GNP at MP (व्यय विधि द्वारा) = निजी अंतिम उपभोग व्यय + कुल निर्यात + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + शुद्ध घरेलू पूँजी निर्माण + अचल पूँजी का उपभोग + विदेशों से शुद्ध कारक आय
= 800 + 20 + 200 + 100 + 20 + (-20)
= 1120 करोड़ रुपए

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 8.
निम्नलिखित आँकड़ों से सकल राष्ट्रीय आय (NI) का (क) आय विधि, (ख) व्यय विधि द्वारा परिकलन कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) विदेशों से साधन आय10
(ii) कर्मचारियों का पारिश्रमिक150
(iii) शुद्ध घरेलू पूँजी निर्माण50
(iv) निजी अंतिम उपभोग व्यय220
(v) विदेशों को साधन आय15
(vi) स्टॉक में परिवर्तन15
(vii) सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में नियोजकों का अंशदान10
(viii) स्थाई पूँजी का उपभोग15
(ix) ब्याज40
(x) निर्यात20
(xi) आयात25
(xii) अप्रत्यक्ष कर30
(xiii) आर्थिक सहायता10
(xiv) लगान40
(xv) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय85
(xvi) लाभ100

हल:
(क) सकल राष्ट्रीय आय (आय विधि द्वारा) = NNP at FC + मूल्यह्रास
= 10 + 150 – 15 + 15 + 40+ 40+ 100
= 340 करोड़ रुपए

(ख) सकल राष्ट्रीय आय (व्यय विधि द्वारा) = GDP at MP – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + NFIA
= 10+ 50 + 220 – 15 + 15+ 20 – 25 – 30 + 10 + 85
= 340 करोड़ रुपए

प्रश्न 9.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) आय विधि और (ख) व्यय विधि द्वारा बाज़ार मूल्य पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) ज्ञात कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
Set ISet IISet III
(i) स्वनियोजितों की मिश्रित आय400300500
(ii) कर्मचारियों का पारिश्रमिक500400600
(iii) निजी अंतिम उपभोग व्यय9007001100
(iv) विदेशों से शुद्ध कारक आय-20-10-15
(v) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर10060150
(vi) अचल (स्थाइ) पूँजी का उपभोग (मूल्यह्मस)120100115
(vii) शुद्ध घरेलू पूँजी निर्माण280120375
(viii) निवल शुद्ध निर्यात-30-10-25
(ix) लाभ350250450
(x) किराया10080200
(xi) ब्याज15070250
(xii) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय450350700

हल:
(क) आय विधि द्वारा GNPMP =
Set I = स्वनियोजितों की मिश्रित आय + कर्मचारियों का पारिश्रमिक + विदेशों से शुद्ध साधन आय + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + अचल (स्थाई) पूँजी का उपभोग (मूल्यह्रास) + लाभ + किराया + ब्याज
= 400 + 500 + (-20) + 100 + 120 + 350 + 100 + 150 = 1700 करोड़ रुपए
Set II = 300 + 400 + (- 10) + 60 + 100 + 250 + 80 + 70 = 1250 करोड़ रुपए
Set III = 500 + 600 + (- 15) + 150 + 115 + 450 + 200 + 250 = 2250 करोड़ रुपए

(ख) व्यय विधि द्वारा GNPMP =
Set I = निजी अंतिम उपभोग व्यय + विदेशों से शुद्ध साधन आय + अचल (स्थाई) पूँजी का उपयोग (मूल्यह्रास) + शुद्ध घरेलू पूँजी निर्माण + शुद्ध निर्यात + सरकारी अंतिम उपयोग व्यय
900 + (-20) + 120 + 280 + (-30) + 450 = 1700 करोड़ रुपए

Set II = 700 + (-10) + 100 + 120 + (-10) + 350 = 1250 करोड़ रुपए

Set III = 1100 + (- 15) + 115 + 375 + (-25) + 700 = 2250 करोड़ रुपए

प्रश्न 10.
निम्नलिखित आँकड़ों की सहायता से आय विधि द्वारा कारक (साधन) लागत पर राष्ट्रीय आय (NNPFC) ज्ञात कीजिए-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 8
हल:
आय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय = घरेलू आय + शुद्ध विदेशी कारक आय
Set I = कर्मचारियों का पारिश्रमिक + विदेशों से शुद्ध साधन आय + लाभ + किराया + ब्याज + स्वनियोजित की मिश्रित आय
= 1200 + (-20) + 800 + 400 + 620 + 700 = 3700 करोड़ रुपए
Set II = 600 + (-10) + 400 + 200 + 310 + 350 = 1850 करोड़ रुपए
Set III = 500 + (-10) + 220 + 90 + 100 + 400 = 1300 करोड़ रुपए

प्रश्न 11.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) आय विधि और (ख) व्यय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय (NI) ज्ञात कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) निजी अंतिम उपभोग व्यय2000
(ii) सकल पूँजी निर्माण400
(iii) स्टॉक में परिवर्तन50
(iv) कर्मचारियों का पारिश्रमिक1900
(v) किराया200
(vi) ब्याज150
(vii) प्रचालन अधिशेष720
(viii) शुद्ध प्रत्यक्ष कर400
(ix) सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में नियोजन का योगदान100
(x) शुद्ध निर्यात20
(xi) विदेशों से निवल कारक आय-20
(xii) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय600
(xiii) अचल पूँजी का उपभोग100

हल:
(क) राष्ट्रीय आय (NNPFC ) (आय विधि द्वारा) = कर्मचारियों का पारिश्रमिक + प्रचालन अधिशेष + विदेशों से निवल कारक आय
= 1900 + 720 + (-20) = 2600 करोड़ रुपए

(ख) राष्ट्रीय आय (NNPEO) (व्यय विधि द्वारा) = निजी अंतिम उपभोग व्यय + सकल पूँजी निर्माण + शुद्ध निर्यात + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + विदेशों से निवल साधन आय शुद्ध प्रत्यक्ष कर
= 2000 + 400 + 20 + 600 + (-20)- 400 = 2600 करोड़ रुपए

नोट –

  • सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में नियोजकों का योगदान कर्मचारियों के पारिश्रमिक में पहले से ही सम्मिलित है। अतः यह प्रासंगिक नहीं है।
  • चूँकि किराया और ब्याज प्रचालन अधिशेष के अंग है। अतः ये यहाँ प्रासंगिक नहीं हैं।
  • स्टॉक में परिवर्तन यहाँ प्रासंगिक नहीं है क्योंकि यह सकल पूँजी निर्माण का ही एक भाग है।

प्रश्न 12.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) आय विधि और (ख) व्यय विधि द्वारा NNP at FC ज्ञात कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) शेष संसार से चालू हस्तांतरण100
(ii) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय1000
(iii) मज़दूरी और वेतन3800
(iv) लाभांश500
(v) लगान200
(vi) ब्याज150
(vii) शुद्ध घरेलूं पूँची निर्माण500
(viii) लाभ800
(ix) नियोजकों द्वारा सामाजिक सुरक्षा अंशदान200
(x) शुद्ध निर्यात50
(xi) विदेशों से शुद्ध साधन आय30
(xii) अचल पूँजी का उपभोग40
(xiii) निजी अंतिम उपभोग व्यय4000
(xiv) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर300

हल:
(क) NNP at FC (आय विधि द्वारा) = मज़दूरी और वेतन + लगान + ब्याज + लाभ + नियोजकों द्वारा सामाजिक सुरक्षा अंशदान + विदेशों से शुद्ध साधन आय
= 3800 + 200 + 150 + 800 + 200 + (-30)
= 5120 करोड़ रुपए

(ख) NNP at FC (व्यय विधि द्वारा) = सरकारी अंतिम उपभोग क्रय + शुद्ध घरेलू पूँजी निर्माण + निजी अंतिम उपभोग क्रय + शुद्ध निर्यात + विदेशों से शुद्ध साधन आय – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
= 1000 + 500 + 4000 + (- 50) + (-30)-300
= 5120 करोड़ रुपए
(नोट-यहाँ अचल पूँजी का उपभोग प्रासंगिक नहीं है।)

प्रश्न 13.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) आय विधि और (ख) व्यय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय (NI) ज्ञात कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) ब्याज250
(ii) विदेश्ं से निवल कारक आय-50
(iii) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय1400
(iv) स्वनियोजितों की मिश्रित आय1500
(v) कर्मचारियों का पारिश्रमिक3000
(vi) निजी अंतिम उपभोग व्यय4500
(vii) लाभ1000
(viii) अचल पूँजी का उपभोग60
(ix) किराया300
(x) सकल घरेलू पूँजी निर्माण600
(xi) निवल निर्यात-30
(xii) शेष विश्व से निवल चालू हस्तांतरण40
(xiii) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर420

हल:
(क) राष्ट्रीय आय (आय विधि द्वारा) = ब्याज + विदेशों से निवल कारक आय + स्वनियोजितों की मिश्रित आय + कर्मचारियों का पारिश्रमिक + लाभ + किराया
= 250 + (- 50) + 1500 + 3000 1000 + 300
= 6000 करोड़ रुपए

(ख) राष्ट्रीय आय (व्यय विधि द्वारा) = सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + निजी अंतिम उपभोग व्यय + सकल घरेलू पूँजी निर्माण + निवल निर्यात + विदेशों से निवल कारक आय – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
= 1400 + 4500 + 600 + (-30) + (-50)- 420
= 6000 करोड़ रुपए

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 14.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) आय विधि और (ख) व्यय विधि द्वारा कारक लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPFC) का परिकलन कीजिए।

(करोड़ रुपए में)
(i) निवल घरेलू पूँजी निर्माण500
(ii) कर्मचारियों का पारिश्रमिक1850
(iii) अचल पूँजी का उपभोग100
(iv) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय1100
(v) निजी अंतिम उपभोग व्यय2600
(vi) किराया400
(vii) लाभांश200
(viii) ब्याज500
(ix) निवल निर्यात-100
(x) लाभ1100
(xi) विदेशों से निवल कारक आय-50
(xii) निवल अप्रत्यक्ष कर250

हल:
(क) आय विधि द्वारा कारक लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = किराया + ब्याज + कर्मचारियों का पारिश्रमिक + लाभ + विदेशों से निवल कारक आय + अचल पूँजी का उपभोग।
= 400 + 500 + 1850 + 1100 + (-)50+ 100
= 3950 – 50
= 3900 करोड़ रुपए

(ख) व्यय विधि द्वारा कारक लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = निजी अंतिम उपभोग व्यय + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + निवल घरेलू पूँजी निर्माण + अचल पूँजी का उपभोग + निवल निर्यात + विदेशों से निवल कारक आय – निवल अप्रत्यक्ष कर।
= 2600 + 1100 + 500 + 100 + (-100) + (-50) – 250
= 4300 – 400
= 3900 करोड़ रुपए

प्रश्न 15.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) आय विधि और (ख) व्यय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय (NI) का परिकलन कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) ब्याज150
(ii) किराया250
(iii) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय600
(iv) निजी अंतिम उपभोग व्यय1200
(v) लाभ640
(vi) कर्मचारियों का पारिश्रमिक1000
(vii) विदेर्शों को निवल कारक आय30
(viii) निवल अप्रत्यक्ष कर60
(ix) निवल निर्यात-40
(x) अचल पूँजी का उपभोग50
(xi) निवल (घरेलू) देशीय पूँजी निर्माण340

हल:
(क) आय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय = ब्याज + किराया + लाभ + कर्मचारियों का पारिश्रमिक – विदेशों को शुद्ध कारक आय
= 150 + 250 + 640 + 1000 – 30
= 2040 – 30
= 2010 करोड़ रुपए

(ख) व्यय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय = सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + निजी अंतिम उपभोग व्यय निर्यात +निवल निर्यात + निवल घरेलू पूँजी निर्माण – विदेशों को शुद्ध कारक आय – निवल अप्रत्यक्ष कर
= 600 + 1200 + (- 40) + 340 – 30 – 60
= 2140 – 130
= 2010 करोड़ रुपए

प्रश्न 16.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) आय विधि और (ख) व्यय विधि द्वारा कारक लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPFC) का परिकलन कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) निजी अंतिम उपभोग व्यय1000
(ii) निवल घरेलू (देशीय) पूँजी निर्मा200
(iii) लाभ400
(iv) कर्मचारियों का पारिश्रमिक800
(v) किराया250
(vi) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय500
(vii) अचल पूँजी का उपभोग60
(viii) ब्याज150
(ix) शेष दिश्व से चालू हस्तांतरण-80
(x) विदेशों से निवल कारक आय-10
(xi) निवल निर्यात-20
(xii) निवल अप्रत्यक्ष कर80

हल:
(क) आय विधि द्वारा कारक लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = लाभ + कर्मचारियों का पारिश्रमिक + ब्याज + विदेशों से निवल कारक आय + अचल पूँजी का उपभोग
= 400 + 800 + 250 + 150 + (- 10) + 60
= 1660 – 10
= 1650 करोड़ रुपए

(ख) व्यय विधि द्वारा कारक लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = निजी अंतिम उपभोग व्यय + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + निवल घरेलू पूँजी निर्माण + अचल पूँजी का उपभोग+निवल निर्यात + विदेशों से निवल कारक आय

प्रश्न 17.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) आय विधि और (ख) व्यय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय (NI) की गणना कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय100
(ii) आर्थिक सहायता10
(iii) किराया200
(iv) मज़दूरी व वेतन600
(v) अप्रत्यक्ष कर60
(vi) निजी अंतिम उपभोग व्यय800
(vii) सकल घरेलू पूँजी निर्माण110
(viii) नियोक्ता द्वारा सामाजिक सुरक्षा में अंशदान55
(ix) रॉयल्टी25
(x) विदेशों को चुकाई गई निवल कारक आय30
(xi) ब्याज20
(xii) अचल पूँजी का उपभोग10
(xiii) लाभ130
(xiv) शुद्ध निर्यात70
(xv) स्टॉक में परिवर्तन50

हल:
(क) आय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय = किराया + मज़दूरी व वेतन + नियोक्ता द्वारा सामाजिक सुरक्षा में अंशदान + रॉयल्टी + ब्याज + लाभ – विदेशों को चुकाई गई निवल कारक आय
= 200 + 600 + 55 + 25 + 20 + 130 – 30
= 1030 – 30 = 1000 करोड़ रुपए

(ख) व्यय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय = निजी अंतिम उपभोग व्यय + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + आर्थिक सहायता + सकल घरेलू पूँजी निर्माण + शुद्ध निर्यात – अप्रत्यक्ष कर – विदेशों को चुकाई गई निवल कारक आय
= 800 + 100 + 10+ 110 + 70 – 60 – 30
= 1090 – 90
= 1000 करोड़ रुपए

(नोट-(i) रॉयल्टी किराए का ही एक भाग है। यहाँ यह मान लिया गया है कि चूँकि रॉयल्टी एक पृथक मद के रूप में दी गई है, यह किराए में सम्मिलित नहीं है। अतः इसे आय विधि में आय माना गया है।

(ii) मज़दूरी व वेतन और नियोक्ता द्वारा सामाजिक सुरक्षा में अंशदान कर्मचारियों के दो भाग हैं। इसलिए इन दोनों मदों को राष्ट्रीय आय में शामिल किया गया है।

VI. निजी आय पर आधारित संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आँकड़ों से निजी आय ज्ञात कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) निजी क्षेत्र को घरेलू उत्पाद से आय4000
(ii) गैर-विभागीय सार्वजनिक उद्यमों की बचत200
(iii) सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण150
(iv) निजी निगमित क्षेत्र की बचत400
(v) शेष विश्व से चालू हस्तांतरण50
(vi) विदेशों से निवल कारक आय-40
(vii) निगम कर60
(viii) वैयक्तिक प्रत्यक्ष कर140

हल:
निजी आय = निजी क्षेत्र को घरेलू उत्पाद से आय + सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण + शेष विश्व से चालू हस्तांतरण + विदेशों से निवल कारक आय
= 4000 + 150 + 50 + (- 40)
= 4160 करोड़ रुपए

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आँकड़ों से निजी आय का परिकलन कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज30
(ii) बाज़ार मूल्य पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP at MP)400
(iii) सरकार से चालू हस्तांतरण20
(iv) निवल अप्रत्यक्ष कर40
(v) शेष विश्व से निवल चालू हस्तांतरण-10
(vi) सरकार को प्राप्त कारक लागत पर निवल घरेलू उत्पाद50
(vii) अचल पूँजी का उपभोग70

हल:
निजी आय = बाज़ार मूल्य पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद – निवल अप्रत्यक्ष कर – अचल पूँजी का उपभोग – सरकार को प्राप्त कारक लागत पर निवल घरेलू उत्पाद + राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज + सरकार .. से चालू हस्तांतरण + शेष विश्व से निवल चालू हस्तांतरण
= 400 – 40 – 70 – 50 + 30 + 20 + (-)10
= 450 – 170 = 280 करोड़ रुपए

प्रश्न 3.
निम्नलिखित आँकड़ों से राष्ट्रीय आय और निजी आय का परिकलन कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) शेष विश्व को निवल चालू हस्तांतरण10
(ii) निजी अंतिम उपभोग व्यय600
(iii) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज15
(iv) निवल निर्यात-20
(v) सरकार से चालू हस्तांतरण5
(vi) सरकार को प्राप्त कारक लागत पर निवल घरेलू उत्पाद25
(vii) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय100
(viii) निवल अप्रत्यक्ष कर30
(ix) शुद्ध घरेलू पूँजी निर्माण70
(x) विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय10

हल:
NDP at MP (व्यय विधि द्वारा) = निजी अंतिम उपभोग व्यय + निवल निर्यात + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + शुद्ध घरेलू पूँजी निर्माण
= 600 + (- 20) + 100 + 70 = 750
NDP at FC = 750 – 30 = 720 करोड़ रुपए
NNP at FC (आय विधि द्वारा) = 720 + 10 = 730 करोड़ रुपए
Private sector income = 720-25 = 695 करोड़ रुपए
Private income = 695 + विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय + चालू हस्तांतरण
= 695 + 10 – 10 + 5 = 700 करोड़ रुपए

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) निजी आय और (ख) वैयक्तिक प्रयोज्य आय ज्ञात कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) निजी निगमित क्षेत्र की बचत500
(ii) गैर-विभागीय सार्वजनिक उद्यमों की बचत200
(iii) शेष विश्व से पूँजीगत हस्तांतरण50
(iv) सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण100
(v) निगम कर150
(vi) घरेलू उत्पाद से निजी क्षेत्र को होने वाली आय3500
(vii) निवल अप्रत्यक्ष कर300
(viii) विदेशों से निवल कारक आय-30
(ix) शेष विश्व से चालू हस्तांतरण40
(x) वैयक्तिक प्रत्यक्ष कर110

हल:
(क) निजी आय = घरेलू उत्पाद से निजी क्षेत्र को होने वाली आय + विदेशों से निवल कारक आय + सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण + शेष विश्व से चालू हस्तांतरण
= 3500 + (-30) + 100 + 40 = 3610 करोड़ रुपए

(ख) वैयक्तिक प्रयोज्य आय = निजी आय-निजी निगमित क्षेत्र की बचत -निगम कर – वैयक्तिक प्रत्यक्ष कर
= 3610 – 500 – 150 – 110 = 2850 करोड़ रुपए

प्रश्न 5.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) निजी आय और (ख) वैयक्तिक प्रयोज्य आय ज्ञात कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) सरकारी प्रशासनिक विभागों को संपत्ति व उद्यमवृत्ति से आय500
(ii) गैर-विभागीय सार्वजनिक उद्यमों की बचत100
(iii) निगम कर80
(iv) घरेलू (देशीय) उत्पाद से निजी क्षेत्र को आय4500
(v) सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण200
(vi) विदेशों से निवल साधन आय-50
(vii) वैयक्तिक प्रत्यक्ष कर150
(viii) अप्रत्यक्ष कर220
(ix) शेष विश्व से चालू हस्तांतरण80
(x) निजी निगमित क्षेत्र की बचत500

हल:
(क) निजी आय = घरेलू उत्पाद से निजी क्षेत्र को आय + सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण + विदेशों से निवल कारक आय + शेष विश्व से चालू हस्तांतरण
= 4500 + 200 + (-50) + 80 = 4730 करोड़ रुपए

(ख) वैयक्तिक प्रयोज्य आय = निजी आय-निगम कर – निजी निगमित क्षेत्र की बचत – वैयक्तिक प्रत्यक्ष कर
= 4730 – 80 – 500 – 150 = 4000 करोड़ रुपए

प्रश्न 6.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) निजी आय और (ख) वैयक्तिक प्रयोज्य आय ज्ञात कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) निजी क्षेत्र की घरेलू उत्पाद से आय4000
(ii) गैर-विभागीय सार्वजनिक उद्यमों की बचत200
(iii) सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण150
(iv) निजी निगमित क्षेत्र की बचत400
(v) शेष विश्व से चालू हस्तांतरण50
(vi) विदेशों से निवल साधन आय-40
(vii) निगम कर60
(viii) वैयक्तिक अप्रत्यक्ष कर140

हल:
(क) निजी आय = निजी क्षेत्र की घरेलू उत्पाद से आय + सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण + शेष विश्व से चालू हस्तांतरण + विदेशों से निवल कारक आय
= 4000 + 150 + 50 + (-40)
= 4160 करोड़ रुपए

(ख) वैयक्तिक प्रयोज्य आय = निजी आय – निजी निगमित क्षेत्र की बचत – निगम कर – वैयक्तिक अप्रत्यक्ष कर
= 4160 – 400 -60 – 140 = 3560 करोड़ रुपए

VII. वैयक्तिक प्रयोज्य आय पर आधारित संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) निजी आय, (ख) वैयक्तिक आय और (ग) वैयक्तिक प्रयोज्य आय का अनुमान लगाइए-

(करोड़ रुपए में)
(i) निजी क्षेत्रक को घरेलू उत्पाद से होने वाली आय79,096
(ii) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज964
(iii) निजी कंपनी क्षेत्रक की बचत (अवितरित लाभ)464
(iv) विदेशों से शुद्ध उत्पादन (कारक) आय-201
(v) सरकारी प्रशासकीय विभागों से चालू हस्तांतरण1981
(vi) निगम (लाभ) कर1251
(vii) परिवारों द्वारा दिए गए प्रत्यक्ष कर2100
(viii) संसार के अन्य भागों से शुद्ध चालू हस्तांतरण1271

हल:
(क) निजी आय = निजी क्षेत्रक को घरेलू उत्पाद से होने वाली आय + राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज + विदेशों से शुद्ध उत्पादन आय + सरकारी प्रशासकीय विभागों से चालू हस्तांतरण + संसार के अन्य भागों से शुद्ध चालू हस्तांतरण
= 79,096 + 964 + (-)201 + 1981 + 1271 = 83,111 करोड़ रुपए

(ख) वैयक्तिक आय = निजी आय – निजी कंपनी क्षेत्रक की बचत – निगम कर
= 83,111 – 464 – 1251 = 81,396 करोड़ रुपए

(ग) वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय – परिवारों द्वारा दिए गए अप्रत्यक्ष कर
= 81,396 – 2100 = 79,296 करोड़ रुपए

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आँकड़ों से परिकलन कीजिए-(क) निजी आय, (ख) वैयक्तिक आय और (ग) वैयक्तिक प्रयोज्य आय।

(करोड़ रुपए में)
(i) निवल घरेलू उत्पाद से निजी क्षेत्र को प्राप्त कारक आय300
(ii) उद्यमवृत्ति और संपत्ति से सरकारी प्रशासनिक विभागों को आय70
(iii) गैर-विभागीय उद्यमों की बचत60
(iv) विदेशों से कारक आय20
(v) अचल पूँजी का उुपभोग35
(vi) शेष विश्व से चालू हस्तांतरण15
(vii) निगम कर25
(viii) विदेशों को कारक आय30
(ix) सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण40
(x) परिवारों द्वारा दिए गए प्रत्यक्ष कर20
(xi) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज5
(xii) निजी निगमित क्षेत्र की बचत80

हल:
(क) निजी आय = निवल घरेलू उत्पाद से निजी क्षेत्र को प्राप्त कारक आय + विदेशों से कारक आय – विदेशों को कारक आय + शेष विश्व से चालू हस्तांतरण + सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण + राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज
= 300 + (20 – 30) + 15 + 40 + 5 = 350 करोड़ रुपए

(ख) वैयक्तिक आय = निजी आय – निगम कर – निजी निगमित क्षेत्र की बचत
= 350 – 25 – 80 = 245 करोड़ रुपए

(ग) वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय – परिवारों द्वारा दिए गए प्रत्यक्ष कर
= 245-20 = 225 करोड़ रुपए

प्रश्न 3.
निम्नलिखित आँकड़ों से परिकलन कीजिए-(क) निजी आय, (ख) वैयक्तिक आय और (ग) वैयक्तिक प्रयोज्य आय।

(करोड़ रुपए में)
(i) संपत्ति और उद्यमवृत्ति से सरकारी प्रशासनिक विभागों को प्राप्त आय100
(ii) गैर-विभागीय उद्यमों की बचत80
(iii) निजी क्षेत्र को निवल घरेलू उत्पाद से प्राप्त कारक आय500
(iv) निगम कर30
(v) निजी निगमित क्षेत्र की बचत, विदेशी कंपनियों की प्रतिधारित आय सहित65
(vi) परिवारों द्वारा दिए गए प्रत्यक्ष कर20
(vii) सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण10
(viii) शेष विश्व से चालू हस्तांतरण20
(ix) विदेशों, से कारक आय5
(x) प्रचालन अधिशेष150
(xi) विदेशों को कारक आय15

हल:
(क) निजी आय = निजी क्षेत्र को निवल घरेलू उत्पाद से प्राप्त कारक आय + विदेशों से कारक आय – विदेशों को कारक आय+सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण + शेष विश्व से चालू हस्तांतरण
= 500 + (5 – 15) + 10 + 20 = 520 करोड़ रुपए

(ख) वैयक्तिक आय = निजी आय – निगम कर – निजी निगमित क्षेत्र की बचत, विदेशी कंपनियों की प्रतिधारित आय सहित
= 520 – 30 – 65 = 425 करोड़ रुपए

(ग) वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय – परिवारों द्वारा दिए गए प्रत्यक्ष कर
= 425 – 20 = 405. करोड़ रुपए

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) वैयक्तिक प्रयोज्य आय (PDI) और (ख) राष्ट्रीय आय का परिकलन कीजिए
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 9
हल:
(क) वैयक्तिक प्रयोज्य आय = निजी आय – निजी उद्यमों की शुद्ध प्रतिधारित आय – निगम कर – परिवारों द्वारा दिया गया प्रत्यक्ष कर
Set I = 3000-600-350 – 300 = 1750 करोड़ रुपए
Set II = 4000 – 800 – 450 – 400 = 2350 करोड़ रुपए
Set III = 4000 – 200-400 – 150 = 3250 करोड़ रुपए

(ख) राष्ट्रीय आय = कर्मचारियों का पारिश्रमिक + स्वनियोजितों की मिश्रित आय + विदेशों से शुद्ध साधन आय किराया + लाभ + ब्याज
Set I = 800 + 900 + (-50)+ 350 + 600 + 450 = 3050 करोड़ रुपए
Set II = 1500 + 1400 + (-60)+ 300 + 1000 + 400 = 4540 करोड़ रुपए
Set III = 1300 + 1200 + (-50)+ 600+ 800 + 700 = 4550 करोड़ रुपए
(नोट-यहाँ निवल निर्यात, निवल अप्रत्यक्ष कर और अचल पँजी उपभोग प्रासंगिक नहीं है।)

प्रश्न 5.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) राष्ट्रीय आय और (ख) वैयक्तिक प्रयोज्य आय का परिकलन कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) कर्मचार्यिं का पारिश्रमिक1200
(ii) किराया400
(iii) लाभ800
(iv) अचल पूँजी का उपभोग300
(v) स्वनियोजितों की मिश्रित आय1000
(vi) निजी आय3600
(vii) विदेशों से शुद्ध साधन आय-50
(viii) निजी उद्यमियों की शुद्ध अवितरित आय200
(ix) ब्याज250
(x) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर350
(xi) शुद्ध निर्यात-60
(xii) परिवारों द्वारा दिए गए प्रत्यक्ष कर150
(xiii) निगम कर100

हल:
(क) राष्ट्रीय आय (NNP at FC) = कर्मचारियों का पारिश्रमिक + किराया + लाभ + स्वनियोजितों की मिश्रित आय + विदेशों से शुद्ध कारक आय + ब्याज
= 1200 + 400 + 800 + 1000 + (-50) + 250 = 3600 करोड़ रुपए

(ख) वैयक्तिक आय = राष्ट्रीय आय – निजी उद्यमियों की शुद्ध अवितरित आय-निगम कर
= 3600 – 200 – 100 = 3300 करोड़ रुपए
वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय – परिवारों द्वारा दिए गए प्रत्यक्ष कर
= 3300 – 150 = 3150 करोड़ रुपए
(नोट-राष्ट्रीय आय और वैयक्तिक प्रयोज्य आय के परिकलन के लिए अचल पूँजी का उपभोग तथा शुद्ध निर्यात प्रासंगिक नहीं है।)

प्रश्न 6.
निम्नलिखित आँकड़ों से वैयक्तिक प्रयोज्य आय का परिकलन कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) वैयक्तिक कर60
(ii) निजी क्षेत्र को होने वाला कारक लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद600
(iii) अवितरित लाभ10
(iv) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज50
(v) निगम (लाभ) कर100
(vi) शेष विश्व से निवल चालू हस्तांतरण-20
(vii) सरकार से चाल हस्तांतरण30

हल:
निजी क्षेत्र की कारक आय = 600
वैयक्तिक आय = निजी क्षेत्र को होने वाला कारक लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद – अवितरित लाभ-निगम (लाभ) कर + राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज + शेष विश्व से निवल चालू हस्तांतरण + सरकार से चालू हस्तांतरण
= 600 – 10 – 100 + 50+ (-20) + 30 = 550 करोड़ रुपए
वैयक्तिक प्रयोज्य आय = 550-60 = 490 करोड़ रुपए

प्रश्न 7.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) कारक लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDP at FC) तथा (ख) वैयक्तिक आय का परिकलन कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) निजी अंतिम उपभोग व्यय700
(ii) गैर-विभागीय उद्यमों की बचतें20
(iii) शुद्ध घरेलू अचल पूँजी निर्माण100
(iv) अवितरित लाभ5
(v) स्टॉक में परिवर्तन10
(vi) निगम कर35
(vii) शुद्ध निर्यात40
(viii) संपत्ति और उद्यमशीलता से प्रशासनिक विभागों को प्राप्त आय30
(ix) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज40
(x) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय150
(xi) सरकार द्वारा चालू हस्तांतरण25
(xii) विदेर्शों से शुद्ध कारक आय-10
(xiii) शेष विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तांतरण10
(xiv) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर60
(vv) वैयक्तिक कर35

हल:
(क) NDP at MP (व्यय विधि द्वारा) = निजी अंतिम उपयोग व्यय + शुद्ध घरेलू अचल पूँजी निर्माण + शेष विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तांतरण + राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज + सरकारी अंतिम उपयोग व्यय
= 700 + 100 + 10 + 40 + 150 = 1000 करोड़ रुपए
NDP at FC = 1000 -60 = 940 करोड़ रुपए

(ख) वैयक्तिक आय = NDO at FC-(ii) – (viii) – (iv) + (xv) + (ix + xi + xiii) + (xii)
= 940 – 20 – 30 – 5 – 35 + (40 + 25 + 10) + (-10)
= 915 करोड़ रुपए

प्रश्न 8.
निम्नलिखित आँकड़ों से बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) और वैयक्तिक प्रयोज्य आय की गणना कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) आर्थिक सहायता20
(ii) विदेशों से शुद्ध कारक आय-60
(iii) सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय1050
(iv) वैयक्तिक कर110
(v) निजी उद्यमों की बचतें40
(vi) राष्ट्रीय आय900
(vii) अप्रत्यक्ष कर100
(viii) निगम कर90
(ix) शुद्ध राष्ट्रीय प्रयोज्य आय1000
(x) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज30
(xi) विदेशों से चालू हस्तांतरण20
(xii) सरकार से चालू हस्तांतरण50
(xiii) सरकारी प्रशासनिक विभागों की विविध प्राप्तियाँ30
(xiv) निजी आय700
(xv) निजी अंतिम उपभोग व्यय380

हल:
बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय – विदेशों से चालू हस्तांतरण
= 1050 – 20 = 1030 करोड़ रुपए
वैयक्तिक प्रयोज्य आय = निजी आय – निगम कर – निजी उद्यमियों की बचतें – वैयक्तिक कर – सरकार प्रशासनिक विभागों की विविध प्राप्तियाँ
= 700 – 90 – 40 – 110 – 30
= 700 – 270
= 430 करोड़ रुपए

नोट-(i) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद की गणना निम्नलिखित प्रकार से की जा सकती है बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = राष्ट्रीय आय + अप्रत्यक्ष कर + अचल पूँजी का उपभोग – आर्थिक सहायता
= 900 + 100 + 50 – 20
= 1050 – 20 = 1030 करोड़ रुपए

(ii) अचल पूँजी का उपभोग = सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय – शुद्ध राष्ट्रीय प्रयोज्य आय
= 1050 – 1000
= 50 करोड़ रुपए

प्रश्न 9.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) निजी आय और (ख) वैयक्तिक प्रयोज्य आय ज्ञात कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) निजी क्षेत्र को देशीय उत्पाद से होने वाली आय4000
(ii) गैर-विभागीय सार्वजनिक उद्धमों की बचत200
(iii) सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण150
(iv) निजी निगमित क्षेत्र की बचत400
(v) शेष विश्व से चालू हस्तांतरण50
(vi) विदेशौं से निवल साधन आय-40
(vii) निगम कर60
(viii) वैयक्तिक प्रत्यक्ष कर140

हल:
(क) निजी आय = निजी क्षेत्र को देशीय (घरेलू) उत्पाद से होने वाली आय + विदेशों से निवल कारक (साधन) आय + सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण + शेष विश्व से चालू हस्तांतरण
= 4000 + (-40) + 150 + 50 = 4200 – 40 = 4160 करोड़ रुपए

(ख) वैयक्तिक प्रयोज्य आय = निजी आय –निगम कर – वैयक्तिक प्रत्यक्ष कर– निजी निगमित क्षेत्र की बचत
= 4160-60 – 140 – 400 = 4160 — 600 = 3560 करोड़ रुपए
नोट-गैर-विभागीय सार्वजनिक उद्यमों की बचत यहाँ प्रासंगिक नहीं है।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) निजी आय और (ख) वैयक्तिक प्रयोज्य आय ज्ञात कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) सरकारी प्रशासनिक विभागों को संपत्ति व उद्यमवृत्ति से अर्जित आय500
(ii) गैर-विभागीय सार्वजनिक उद्यमों की बचतें100
(iii) निगम कर80
(iv) घरेलू उत्पाद से निजी क्षेत्र को होने वाली आय4,500
(v) सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण200
(vi) विदेशों से निवल साधन आय-50
(vii) वैयक्तिक प्रत्यक्ष कर150
(viii) अप्रत्यक्ष कर220
(ix) शेष विश्व से चालू हस्तांतरण80
(x) निजी निगमित क्षेत्र की बचत500

हल:
(क) निजी आय = घरेलू (देशीय) उत्पाद से निजी क्षेत्र को होने वाली आय + विदेशों से निवल कारक (साधन) आय + शेष विश्व से चालू हस्तांतरण + सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण
= 4,500 + (-50) + 80 + 200 = 4,780 -50
= 4,730 करोड़ रुपए

(ख) वैयक्तिक प्रयोज्य आय = निजी आय + निगम कर – निजी निगमित क्षेत्र की बचत – वैयक्तिक प्रत्यक्ष कर
= 4,730 – 80 – 500 – 150
= 4,730 – 730
= 4,000 करोड़ रुपए
(नोट-निम्नलिखित मदें निजी आय और वैयक्तिक प्रयोज्य आय की गणना के लिए प्रासंगिक नहीं हैं-

  • सरकारी प्रशासनिक विभागों की संपत्ति व उद्यमवृत्ति से अर्जित आय
  • अप्रत्यक्ष कर
  • गैर-विभागीय सार्वजनिक उद्यमों की बचत)

VIII. राष्ट्रीय प्रयोज्य आय पर आधारित संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आँकड़ों से सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय (GNDI) ज्ञात कीजिए
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 10
हल:
GNDI = NNP at FC + मूल्यह्रास + शेष विश्व से शुद्ध चालू हस्तांतरण
Set I = 2000 + 250 + 100 + 200 = 2550 करोड़ रुपए
Set II = 3000 + 250 + 150 + 300 = 3700 करोड़ रुपए
Set III = 1000 + 80 + 100 + 150 = 1330 करोड़ रुपए
नोट-विदेशों से निवल कारक आय यहाँ पर अप्रासंगिक है क्योंकि यह राष्ट्रीय आय में पहले से ही शामिल है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आँकड़ों से शुद्ध राष्ट्रीय प्रयोज्य आय (NNDI) ज्ञात कीजिए
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 11
हल:
NNDI = GNP at FC – मूल्यह्रास + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + शुद्ध चालू हस्तांतरण
Set I = 800 -60 + 70+ 50 = 860 करोड़ रुपए
Set II = 1000 – 100 + 120 + 50 = 1070 करोड़ रुपए
Set III = 1500 – 100 + 120 + (-30) = 1490 करोड़ रुपए
नोट-विदेशों से निवल कारक आय यहाँ पर अप्रासंगिक है, क्योंकि यह कारक लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद में पहले से ही शामिल है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 3.
निम्नलिखित आँकड़ों से राष्ट्रीय आय और सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय (GNDI) का परिकलन कीजिए-

(करोड़ों रुपए)
(i) सरकार द्वारा पूँजी हस्तांतरण15
(ii) निजी अंतिम उपभोग व्यय400
(iii) शेष विश्व से चालू हस्तांतरण20
(iv) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय100
(v) विदेशों से निवल कारक आय-10
(vi) निवल घरेलू पूँजी निर्माण80
(vii) अचल पूँजी का उपभोग50
(viii) निवल निर्यात40
(ix) निबल प्रत्यक्ष कर60

हल:
(i) राष्ट्रीय आय = निजी अंतिम उपभोग व्यय + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + निवल घरेलू पूँजी निर्माण + निवल निर्यात + विदेशों से निवल कारक आय – निवल प्रत्यक्ष कर
= 400 + 100 + 80+ 40 + (-) 10 – 60
= 620 – 70
= 550 करोड़ रुपए

(ii) सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय = राष्ट्रीय आय + निवल प्रत्यक्ष कर + शेष विश्व से चालू हस्तांतरण
= 550 + 60 + 20
= 630 करोड़ रुपए

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आँकड़ों से राष्ट्रीय आय तथा निवल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय (NNDI) का परिकलन कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) सरकार से चालू हस्तांतरण35
(ii) निजी अंतिम उपभोग व्यय500
(iii) शेष विश्व से निवल चालू हस्तांतरण-10
(iv) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय150
(v) विदेशों से निवल कारक आय-20
(vi) निवल घरेलू पूँजी निर्माण100
(vii) निवल अप्रत्यक्ष कर120
(viii) निवल निर्यात50

हल:
NDP at MP (व्यय विधि द्वारा) = निजी अंतिम उपभोग व्यय + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + निवल घरेलू पूँजी निर्माण + निवल निर्यात।
= 500 + 150 + 100 + 50 = 800
NDP at FC = 800 – 120 = 680 करोड़ रुपए

  • राष्ट्रीय आय NNP at FC = 680 + (-20) = 660 करोड़ रुपए
  • NNDI = 660+ 120+ (-10) = 770 करोड़ रुपए

प्रश्न 5.
निम्नलिखित आँकड़ों से कारक लागत पर निवल घरेलू उत्पाद (NDP.) और सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय (GNDI) का परिकलन कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) विदेशों से शुद्ध चालू हस्तांतरण-5
(ii) निजी अंतिम उपभोग व्यय250
(iii) विदेशों से निवल कारक आय15
(iv) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय50
(v) अचल (स्थाई) पूँजी का उपभोग (अवक्षय)25
(vi) शुद्ध निर्यात-10
(vii) आर्थिक सहायता10
(viii) निवल घरेलू पूँजी निर्माण30
(ix) अप्रत्यक्ष कर20

हल:
GDPMP (व्यय विधि द्वारा)= निजी अंतिम उपभोग व्यय+ सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + निवल घरेलू पूँजी निर्माण + शुद्ध निर्यात + अचल (स्थाई) पूँजी का उपभोग (अवक्षय)
= 250 + 50+30+ (-10)+ 25 = 345 करोड़ रुपए
(i) NDPFC = GDPMP – मूल्यह्रास + आर्थिक सहायता – अप्रत्यक्ष कर
= 345 – 25 + 10 – 20 = 310 करोड़ रुपए

(ii) GNDI = GDPMP + विदेशों से निवल कारक आय + विदेशों से शुद्ध चालू हस्तांतरण
= 345 + 15 + (- 5) = 355 करोड़ रुपए

प्रश्न 6.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) राष्ट्रीय आय, और (ख) सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय (GNDI) ज्ञात कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) निजी अंतिम उपभोग व्यय400
(ii) शेष विश्व से शुद्ध हस्तांतरण-5
(iii) अप्रत्यक्ष कर65
(iv) निवल घरेलू पूँजी निर्माण120
(v) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय100
(vi) अचल (स्थाइ) पूँजी का उपभोग (मूल्यह्नास)20
(vii) आर्थिक सहायता5
(viii) निर्यात30
(ix) विदेशों से शुद्र कारक आय-10
(x) आयात40

हल:
GDP at MP = निजी अंतिम उपभोग व्यय + निवल घरेलू पूँजी निर्माण + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + अचल पूँजी का उपभोग + निर्यात – आयात
= 400 + 120 + 100 + 20+ 30 – 40 = 630

(क) राष्ट्रीय आय (NNPFC) = GDPMP – मूल्यह्रास + NFIA – आर्थिक सहायता
= 630 – 20 + (- 10) – 65 + 5
= 540 करोड़ रुपए

(ख) GNDI = GDPMP + NFIA + शेष विश्व से शुद्ध चालू हस्तांतरण
= 630 + (-10) + (-5)
= 615 करोड़ रुपए

प्रश्न 7.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) शुद्ध राष्ट्रीय प्रयोज्य आय (NNDI), और (ख) निजी आय ज्ञात कीजिए

(करोंड़ रुपए में)
(i) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर90
(ii) कर्मचारियों का पारिश्रमिक400
(iii) वैयक्तिक कर100
(iv) प्रचालन अधिशेष200
(v) निगम लाभ कर80
(vi) स्वनियोजितों की मिश्रित आय500
(vii) राष्ट्रीय ऋण ब्याज70
(viii) गैर-विभागीय उद्यमों की बचतें40
(ix) सरकार से चालू हस्तांतरण60
(x) सरकारी विभागों को संपत्ति व उद्यमवृत्ति से आय30
(xi) शेष संसार को शुद्ध चालू अंतरण20
(xii) विदेशों से प्राप्त शुद्ध कारक आय-50

हल:
घरेलू आय= कर्मचारियों का पारिश्रमिक + प्रचालन अधिशेष + स्वनियोजितों की मिश्रित आय = 400+ 200+ 500 = 1,100 करोड़ रुपए
राष्ट्रीय आय (NNP at FC) = घरेलू आय + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय = 1100 + (- 50) = 1,050 करोड़ रुपए

(क) NNDI = राष्ट्रीय आय + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + शेष संसार को शुद्ध चालू अंतरण = 1,050 + 90 + (-20) = 1,120 करोड़ रुपए

(ख) निजी आय = राष्ट्रीय आय – गैर-विभागीय उद्यमों की बचतें- सरकार विभागों को संपत्ति व उद्यमवृत्ति से आय + राष्ट्रीय ऋण ब्याज + सरकार से चालू हस्तांतरण + शेष विश्व को चालू हस्तांतरण
= 1,050 – 40 – 30 + (70 + 60 – 20)
= 1,090 करोड़ रुपए

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HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. माइक्रो (Micro) और मैक्रो (Macro) शब्दों की उत्पत्ति निम्नलिखित में से कौन-सी भाषा से हुई है?
(A) अंग्रेज़ी
(B) लैटिन
(C) यूनानी (ग्रीक)
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) यूनानी (ग्रीक)

2. व्यष्टि (Micro) और समष्टि (Macro) शब्दों का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया?
(A) मार्शल
(B) रोबिन्स
(C) रैगनर नर्कसे
(D) रैगनर फ्रिश
उत्तर:
(D) रैगनर फ्रिश

3. समष्टि (मैक्रो) अर्थशास्त्र का संबंध है-
(A) व्यक्तिगत इकाइयों से
(B) सामूहिक कार्यों से
(C) एक फर्म से
(D) एक उद्योग से
उत्तर:
(B) सामूहिक कार्यों से

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

4. विश्वव्यापी महामंदी का काल बताइए
(A) 1929-30
(B) 1929-32
(C) 1929-33
(D) 1929-36
उत्तर:
(C) 1929-33

5. आय और रोजगार सिद्धांत निम्नलिखित में से कौन-से सिद्धांत की एक प्रमुख विशेषता है?
(A) व्यष्टि
(B) समष्टि
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) समष्टि

6. समष्टि अर्थशास्त्र तथा व्यष्टि अर्थशास्त्र में निम्नलिखित में से कौन-सा अंतर सही है?
(A) अध्ययन क्षेत्र में अंतर
(B) सामूहिकता में अंतर
(C) विभिन्न मान्यताओं में अंतर
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

7. विश्वमंदी का अध्ययन होता है-
(A) व्यष्टि अर्थशास्त्र में
(B) समष्टि अर्थशास्त्र में
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) समष्टि अर्थशास्त्र में

8. समष्टि अर्थशास्त्र का विकास एक अलग शाखा के रूप में कब हुआ?
(A) 1930 से 1940 के बीच में
(B) 1910 से 1920 के बीच में
(C) 1920 से 1930 के बीच में
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) 1930 से 1940 के बीच में

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

9. साधनों के आबंटन का अध्ययन होता है-
(A) व्यष्टि अर्थशास्त्र में
(B) समष्टि अर्थशास्त्र में
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) व्यष्टि अर्थशास्त्र में

10. समष्टि अर्थशास्त्र अध्ययन करता है-
(A) संपूर्ण अर्थव्यवस्था का
(B) एक उद्योग का
(C) एक फर्म का
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) संपूर्ण अर्थव्यवस्था का

11. यदि समूचे चीनी उद्योग की जाँच की जाए, तो यह कौन-सा विश्लेषण कहलाएगा?
(A) व्यष्टिपरक
(B) समष्टिपरक
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) व्यष्टिपरक

12. आधुनिक समष्टि आर्थिक विश्लेषण का जनक किसे माना जाता है?
(A) डेविड रिकार्डो को
(B) डॉ० मार्शल को
(C) जॉन मेनार्ड केज़ को
(D) एडम स्मिथ को
उत्तर:
(C) जॉन मेनार्ड केज़ को

13. निम्नलिखित में से कौन-सा समष्टि तत्त्व नहीं है?
(A) रोज़गार का सिद्धांत
(B) माँग का सिद्धांत
(C) आय का सिद्धांत
(D) मौद्रिक नीति
उत्तर:
(B) माँग का सिद्धांत

14. राष्ट्रीय आय का अध्ययन होता है-
(A) समष्टि अर्थशास्त्र में
(B) व्यष्टि अर्थशास्त्र में
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) समष्टि अर्थशास्त्र में

15. उस अर्थशास्त्री का नाम बताइए जिसने सबसे पहले समष्टि अर्थशास्त्र की बुनियाद डाली।
(A) डेविड रिकार्डो
(B) डॉ० मार्शल
(C) जॉन मेनार्ड केज़
(D) एडम स्मिथ
उत्तर:
(D) एडम स्मिथ

16. समष्टि अर्थशास्त्र का मौलिक उद्देश्य यह जानना है कि-
(A) अर्थव्यवस्था में मंदी के क्या कारण हैं?
(B) अर्थव्यवस्था में धीमी संवृद्धि के क्या कारण हैं?
(C) कीमत स्तर में वृद्धि या बेरोज़गारी में वृद्धि के क्या कारण हैं?
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

17. निम्नलिखित में से कौन-सा समष्टि तत्त्व नहीं है?
(A) समग्र माँग
(B) राष्ट्रीय आय
(C) व्यापार चक्र
(D) उपभोक्ता संतुलन
उत्तर:
(D) उपभोक्ता संतुलन

18. निम्नलिखित में से कौन-सा समष्टि चर है?
(A) रोजगार का सिद्धान्त
(B) कीमत लोच
(C) लगान का सिद्धान्त
(D) वस्तु की कीमत
उत्तर:
(A) रोजगार का सिद्धान्त

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. कीमत सिद्धांत ……………. अर्थशास्त्र की एक प्रमुख विशेषता है। (व्यष्टि/समष्टि)
उत्तर:
व्यष्टि

2. संपूर्ण अर्थव्यवस्था का अध्ययन ……………. अर्थशास्त्र करता है। (समष्टि/व्यष्टि)
उत्तर:
समष्टि

3. ……………… समष्टिगत तत्त्व है। (माँग की लोच/मुद्रास्फीति)
उत्तर:
मुद्रास्फीति

4. विश्व महामंदी का वर्ष …………….. था। (1929/1942)
उत्तर:
1929

5. आधुनिक अर्थशास्त्र के जनक ……………. है। (एडम स्मिथ जे०एम० केज)
उत्तर:
एडम स्मिथ

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6. राष्ट्रीय आय का अध्ययन करना ……………. अर्थशास्त्र की विशेषता है। (समष्टि/व्यष्टि)
उत्तर:
समष्टि

7. आधुनिक समष्टि आर्थिक विश्लेषण का जनक ………….. को माना जाता है। (जे०एम० केज/एडम स्मिथ)
उत्तर:
जे०एम० केज

C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत

  1. समष्टि अर्थशास्त्र का संबंध व्यक्तिगत इकाइयों से होता है।
  2. जो बात व्यष्टि अर्थशास्त्र के लिए सही है, वही बात समष्टि अर्थशास्त्र के लिए भी सही होती है।
  3. सभी प्रकार के आर्थिक समूहों और औसतों का अध्ययन समष्टि अर्थशास्त्र के अर्न्तगत किया जाता है।
  4. प्रो० केज़ के अनुसार समष्टि अर्थशास्त्र सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के कार्यकरण से संबंधित है।
  5. व्यष्टि अर्थशास्त्र और समष्टि अर्थशास्त्र में कोई संबंध नहीं पाया जाता है।
  6. भारतीय अर्थव्यवस्था एक मिश्रित अर्थव्यवस्था है।
  7. पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का मुख्य उद्देश्य जन-कल्याण होता है।
  8. समष्टि अर्थशास्त्र और व्यष्टि अर्थशास्त्र परस्पर एक-दूसरे के विरोधी हैं।
  9. समष्टि अर्थशास्त्र का वैकल्पिक नाम आय एवं रोजगार का सिद्धांत है।
  10. कुल माँग एवं कुल पूर्ति व्यष्टि अर्थशास्त्र के उदाहरण हैं।
  11. समष्टि अर्थशास्त्र का सम्बन्ध व्यक्तिगत इकाइयों से होता है।
  12. समग्र माँग और समग्र पूर्ति समष्टि अर्थशास्त्र के मुख्य उपकरण हैं।
  13. सामान्य कीमत स्तर पर समष्टि अर्थशास्त्र एक आर्थिक अध्ययन है।
  14. प्रो० केज के अनुसार समष्टि अर्थशास्त्र सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के कार्यकरण से संबंधित है।

उत्तर:

  1. गलत
  2. गलत
  3. सही
  4. गलत
  5. गलत
  6. सही
  7. सही
  8. गलत
  9. सही
  10. गलत
  11. गलत
  12. सही
  13. सही
  14. गलत।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समष्टि अर्थशास्त्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र आर्थिक सिद्धांत की वह शाखा है जिसके अंतर्गत संपूर्ण अर्थव्यवस्था का एक इकाई के रूप में अध्ययन किया जाता है। समष्टि अर्थशास्त्र में आर्थिक समाहारों (Aggregates); जैसे सकल घरेलू उत्पाद, सकल राष्ट्रीय उत्पाद, सामान्य कीमत स्तर, रोज़गार का स्तर, कुल बचत, कुल निवेश, कुल माँग, कुल पूर्ति आदि का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 2.
दो मुख्य विषय बताएँ जिनका अर्थशास्त्र में अध्ययन किया जाता है।
उत्तर:

  1. व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics)
  2. समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics)।

प्रश्न 3.
व्यष्टि अर्थशास्त्र एवं समष्टि अर्थशास्त्र में कोई दो अंतर बताइए।
उत्तर:

  1. व्यष्टि अर्थशास्त्र के अंतर्गत व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन किया जाता है जबकि समष्टि अर्थशास्त्र में आर्थिक समूहों का अध्ययन किया जाता है।
  2. व्यष्टि अर्थशास्त्र अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार की मान्यता पर आधारित है जबकि समष्टि अर्थशास्त्र अर्थव्यवस्था में संसाधनों के अपूर्ण व अल्प रोज़गार पर आधारित है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

प्रश्न 4.
आधनिक अर्थशास्त्र के जनक कौन हैं? उनके द्वारा लिखी गई सप्रसिद्ध पस्तक का नाम लिखें।
उत्तर:
एडम स्मिथ (Adam Smith) आधुनिक अर्थशास्त्र के जनक हैं। एडम स्मिथ द्वारा रचित सुप्रसिद्ध पुस्तक “An Enquiry into the Nature and Causes of the Wealth of Nations” है।

प्रश्न 5.
समष्टि अर्थशास्त्र पर जॉन मेनार्ड केञ्ज (Keynes) द्वारा लिखी गई पुस्तक का नाम बताइए। यह कौन-से वर्ष प्रकाशित हुई? .
उत्तर:
जॉन मेनार्ड केञ्ज की लिखी पुस्तक ‘रोज़गार, ब्याज और मुद्रा का सामान्य सिद्धांत’ (The General Theory of Employment, Interest and Money) है जो सन् 1936 ई० में प्रकाशित हुई।

प्रश्न 6.
भारत में बेरोज़गारी की समस्या का अध्ययन समष्टि आर्थिक अध्ययन क्यों कहलाता है?
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र संपूर्ण अर्थव्यवस्था के अध्ययन से संबंधित है। चूँकि बेरोज़गारी की समस्या का अध्ययन संपूर्ण अर्थव्यवस्था से संबंधित है, इसलिए बेरोजगारी की समस्या का अध्ययन समष्टि आर्थिक अध्ययन कहलाता है।

प्रश्न 7.
क्या एक फर्म के उत्पादन का स्तर समष्टि आर्थिक अध्ययन है? कारण दें।
उत्तर:
समष्टि आर्थिक सिद्धांत अर्थशास्त्र का वह भाग है जो अर्थव्यवस्था के कुल समूहों का अध्ययन करता है। इस दृष्टि . से एक फर्म के उत्पादन का स्तर समष्टि आर्थिक अध्ययन नहीं है।

प्रश्न 8.
सूती वस्त्र उद्योग का अध्ययन समष्टि आर्थिक अध्ययन है या व्यष्टि आर्थिक अध्ययन।
उत्तर:
सूती वस्त्र उद्योग समष्टि अर्थशास्त्र का अध्ययन नहीं बल्कि व्यष्टि अर्थशास्त्र के अध्ययन का विषय है। चूंकि यह अध्ययन किसी विशेष उद्योग से संबंधित है।

प्रश्न 9.
समष्टि अर्थशास्त्र में रोज़गार निर्धारण के किन तत्त्वों का अध्ययन किया जाता है?
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र में रोज़गार निर्धारण के कुल माँग, कुल पूर्ति, कुल उपभोग, कुल बचत, कुल निवेश आदि तत्त्वों का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 10.
समष्टि अर्थशास्त्र के महत्त्वपूर्ण विषय कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
आय तथा रोज़गार का निर्धारण, सामान्य कीमत स्तर, आर्थिक विकास की समस्या, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समष्टि आर्थिक अध्ययन के महत्त्वपूर्ण विषय हैं।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

प्रश्न 11.
सन् 1929-33 की महामंदी काल में क्या बातें देखने में आईं?
उत्तर:
महामंदी के संकट के समय विश्व में उत्पादन तो था परंतु वस्तुओं की माँग नहीं थी। इस महामंदी के दौरान विश्व को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा था। श्रमिकों में बेरोज़गारी बढ़ गई थी।

प्रश्न 12.
समष्टि अर्थशास्त्र की दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:

  1. समष्टि अर्थशास्त्र अपूर्ण रोज़गार व अल्प रोज़गार की स्थिति पर आधारित है।
  2. समष्टि अर्थशास्त्र सरकारी हस्तक्षेप द्वारा सार्वजनिक निवेश में वृद्धि के महत्त्व को प्रकट करता है, चूँकि निवेश में वृद्धि पर ही आय तथा रोज़गार निर्भर करता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समष्टि अर्थशास्त्र का प्रादुर्भाव कैसे हुआ?
अथवा
समष्टि अर्थशास्त्र का उद्भव कैसे हुआ?
अथवा
समष्टि अर्थशास्त्र की विचारधारा का विकास किस प्रकार हुआ? समझाइए।
उत्तर:
अर्थशास्त्र में काफी लंबे समय तक व्यष्टिगत आर्थिक सिद्धांतों का प्रचलन रहा और अर्थशास्त्रियों ने उन्हें मान्यता दी, परंतु 1929-33 की विश्वव्यापी मंदी के दौरान इन सिद्धांतों को सत्य नहीं पाया गया। इस अवधि के दौरान संसार के अनेक देशों में मंदी और बेरोज़गारी की समस्या का समाधान करने के लिए जे०एम०केञ्ज ने अपने सिद्धांत अपनी पुस्तक ‘The General Theory of Employment, Interest and Money’ में 1936 में प्रकाशित किए। इस पुस्तक ने आर्थिक जगत में नए विचारों का सूत्रपात किया। केज के विचारों से आर्थिक क्षेत्र में एक बड़ा परिवर्तन आया, जिसे ‘केजीयन क्रांति’ की संज्ञा दी गई। केजीयन क्रांति के बाद ही समष्टि स्तरीय आर्थिक चिंतन में अर्थशास्त्रियों की रुचि जागत हुई। उससे पहले के आर्थिक चिंतन में किसी प्रकार के आर्थिक संकट की संभावना को स्वीकार नहीं किया जाता था।

उस समय ऐसा माना जाता था कि बाज़ार व्यवस्था में ‘स्वचालित सामंजस्य’ की क्षमता होती है जो अर्थव्यवस्था को सदैव संतुलन में रखती है। उन लोगों की मान्यता थी कि किसी भी आर्थिक व्यवधान के समय सामंजस्य प्रक्रिया उस व्यवधान का अपने-आप समाधान कर देगी। परंतु 1929-33 की विश्वव्यापी महामंदी के दौरान इन सिद्धांतों के उदय का मार्ग प्रशस्त हुआ। समष्टि स्तरीय आर्थिक विश्लेषण का आरंभ इसी सिद्धांत से होता है। केज ने अपने सिद्धांत में संपूर्ण अर्थव्यवस्था से संबंधित समस्याओं का अध्ययन करने के लिए समष्टि अर्थशास्त्र की प्रणाली का उपयोग किया। मंदी, बेरोज़गारी, राष्ट्रीय आय व रोज़गार, सामान्य कीमत स्तर, सामान्य मज़दूरी स्तर आदि के अध्ययन के लिए समष्टि अर्थशास्त्र के अध्ययन को अपनाने पर जोर दिया। यह सिद्धांत मुख्य रूप से यह स्पष्ट करता है कि किसी देश में आय व रोजगार का निर्धारण किस प्रकार होता है।

प्रश्न 2.
समष्टि अर्थशास्त्र की सीमाओं का वर्णन करें।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र की सीमाएँ निम्नलिखित हैं-
(i) व्यक्ति की समस्याएँ समूह की समस्याओं से भिन्न होती हैं जबकि समष्टि अर्थशास्त्र में समूहों का अध्ययन होता है। समूह में परिवर्तन का प्रभाव व्यक्तिगत इकाइयों पर अलग-अलग पड़ सकता है। जिस प्रकार बढ़ती हुई कीमतों का प्रभाव समाज के धनी वर्ग पर कम और निर्धन वर्ग पर अधिक पड़ता है।

(ii) इसका एक प्रमुख दोष यह है कि सामान्य निष्कर्ष वैयक्तिक इकाइयों के लिए उपयुक्त नहीं होते। व्यक्ति के लिए अपनी आय से एक भाग बचाना अच्छी बात है, किंतु यदि सारा समाज ही धन बचाने में जुट जाए तो निश्चय ही अर्थव्यवस्था में मंदी आ जाएगी।

(iii) यदि जिन इकाइयों से मिलकर समूह बनता है, वे बदल जाती हैं, किंतु समूह अपरिवर्तित रहता है तो इसके परिणामस्वरूप अनेक भ्रमात्मक निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।

(iv) समष्टि अर्थशास्त्र समूहों की समरूपता की मान्यता पर आधारित है, लेकिन व्यवहार में हमें अधिकांश रूप से विभिन्न रूपों वाले समूह ही देखने को मिलते हैं।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

प्रश्न 3.
समष्टि अर्थशास्त्र के महत्त्व का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र के महत्त्व निम्नलिखित हैं
1. संपूर्ण अर्थव्यवस्था के अध्ययन के लिए उपयुक्त-समष्टि अर्थशास्त्र बताता है कि संपूर्ण अर्थव्यवस्था एक इकाई के रूप में कैसे कार्य करती है और राष्ट्रीय आय व रोज़गार का स्तर कैसे निर्धारित होता है।

2. आर्थिक समस्याओं को हल करने व नीति-निर्धारण में सहायक-समष्टि अर्थशास्त्र अनेक आर्थिक समस्याओं; जैसे बेरोज़गारी, व्याप्त गरीबी, मंदी व तेजी, निम्न उत्पादन स्तर, व्यापार चक्र जैसी समस्याओं के मूल कारकों की पहचान कराने और उपयुक्त निदानकारी नीति बनाने में यह सहायता करता है।

3. आर्थिक विकास प्राप्त करने में सहायक प्रत्येक देश का उद्देश्य शीघ्र आर्थिक विकास करना है। समष्टि अर्थशास्त्र उन तत्त्वों का विवेचन करता है जो आर्थिक विकास संभव बनाते हैं। यह आर्थिक विकास की उच्चतम अवस्था प्राप्त करने और उसे बनाए रखने की विधि बताता है।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समष्टि अर्थशास्त्र की परिभाषा दीजिए। इसके क्षेत्र का वर्णन करें।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषाएँ-समष्टि शब्द का अंग्रेज़ी रूपांतर मैक्रो (Macro) है जो ग्रीक (Greek) भाषा के ‘MAKROS’ से बना है, जिसका अर्थ होता है-बड़ा (Large)। समष्टि अर्थशास्त्र में संपूर्ण अर्थव्यवस्था का अध्ययन किया जाता है। समष्टि अर्थशास्त्र आर्थिक सिद्धांत की वह शाखा है जो समग्र अर्थव्यवस्था का एक इकाई के रूप में अध्ययन करता है।
1. प्रो० बोल्डिंग के शब्दों में, “समष्टि अर्थशास्त्र व्यक्तिगत मात्राओं का अध्ययन नहीं करता बल्कि इन मात्राओं के समूहों का अध्ययन करता है; व्यक्तिगत आय का नहीं बल्कि राष्ट्रीय आय का; व्यक्तिगत कीमतों का नहीं बल्कि सामान्य कीमत स्तर का; व्यक्तिगत उत्पादन का नहीं अपितु राष्ट्रीय उत्पादन का अध्ययन करता है।”

2. शेपीरो के अनुसार, “समष्टि अर्थशास्त्र संपूर्ण अर्थव्यवस्था के कार्यकरण से संबंधित है।”
दूसरे शब्दों में, समष्टि अर्थशास्त्र में उन आर्थिक मुद्दों का अध्ययन होता है जिनका संबंध संपूर्ण अर्थव्यवस्था से होता है; जैसे समग्र माँग, समग्र पूर्ति, कुल रोज़गार, राष्ट्रीय आय, कीमत स्तर, कुल निवेश, कुल बचत आदि। उपमा के रूप में हम कह सकते हैं कि समष्टि अर्थशास्त्र आर्थिक वन का विश्लेषण करता है न कि वन के वृक्षों का।

समष्टि अर्थशास्त्र का क्षेत्र-समष्टि अर्थशास्त्र का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। समष्टि अर्थशास्त्र के क्षेत्र में निम्नलिखित विषयों का अध्ययन किया जाता है
1. राष्ट्रीय आय का सिद्धांत-समष्टि अर्थशास्त्र के अंतर्गत राष्ट्रीय आय का अर्थ, राष्ट्रीय आय संबंधी विभिन्न अवधारणाएँ, उसके विभिन्न तत्त्व, राष्ट्रीय आय के मापन की विधियाँ तथा सामाजिक लेखे (Social Accounting) आदि का अध्ययन किया जाता है।

2. रोज़गार का सिद्धांत-समष्टि अर्थशास्त्र में रोज़गार निर्धारण तथा बेरोज़गारी की समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। इसमें रोज़गार निर्धारण के विभिन्न कारकों; जैसे समस्त माँग, समस्त पूर्ति, कुल उपभोग, कुल बचत, कुल निवेश तथा कुल पूँजी-निर्माण आदि का अध्ययन किया जाता है।

3. मुद्रा का सिद्धांत मुद्रा की मात्रा का देश के उत्पादन, रोज़गार, आय, कीमत-स्तर आदि पर बहुत प्रभाव पड़ता है। अतः समष्टि अर्थशास्त्र में मुद्रा के कार्यों तथा मुद्रा पूर्ति से संबंधित सिद्धांतों, बैंकों तथा अन्य वित्तीय संस्थाओं का अध्ययन किया जाता है।

4. सामान्य कीमत स्तर का सिद्धांत-समष्टि अर्थशास्त्र में सामान्य कीमत स्तर के निर्धारण तथा उसमें होने वाले परिवर्तन जैसे मुद्रास्फीति (Inflation) अर्थात कीमतों में होने वाली माँग जन्य तथा लागत जन्य वृद्धि एवं अवस्फीतिक (Deflation) अर्थात् कीमतों में होने वाली सामान्य कमी आदि समस्याओं का अध्ययन भी किया जाता है।

5. आर्थिक विकास का सिद्धांत-आर्थिक विकास के सिद्धांतों का अध्ययन समष्टि अर्थशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण भाग है। इसमें किसी राष्ट्र के अल्पविकसित होने के कारणों, विकास करने की नीतियों एवं विधियों का अध्ययन किया जाता है।

6. व्यापार चक्र का सिद्धांत प्रत्येक अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास की गति में परिवर्तन आता रहता है। कभी तेजी (Boom) और कभी मंदी (Depression) की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इन्हें व्यापार चक्र कहा जाता है। समष्टि अर्थशास्त्र व्यापार चक्र की समस्याओं का भी अध्ययन करता है।

7. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का सिद्धांत समष्टि अर्थशास्त्र में विभिन्न देशों के बीच में होने वाले अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का भी अध्ययन किया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के सिद्धांत; जैसे कोटा (Quota), टैरिफ (Tariff) तथा संरक्षण (Protection) आदि के अध्ययन का समष्टि अर्थशास्त्र में विशेष महत्त्व है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

प्रश्न 2.
समष्टि अर्थशास्त्र के अलग अध्ययन की आवश्यकता क्यों है? समझाइए।
उत्तर:
निम्नलिखित कारणों से समष्टि अर्थशास्त्र के अलग अध्ययन की आवश्यकता है
1. व्यक्तिगत इकाइयाँ समूची अर्थव्यवस्था की दशा नहीं दर्शाती यद्यपि व्यष्टि अर्थशास्त्र व्यक्तिगत इकाइयों; जैसे एक उपभोक्ता, एक उत्पादक (एक फर्म) आदि के व्यवहार का विवेचन करता है परंतु व्यक्तिगत इकाइयाँ समूची अर्थव्यवस्था की दशा को प्रतिबिंबित नहीं करतीं।

2. आर्थिक विकास-वर्तमान युग में, संसार के प्रत्येक देश का उद्देश्य तीव्र आर्थिक विकास करना है। इसके लिए आर्थिक मुद्दों; जैसे राष्ट्रीय आय, सामान्य कीमत स्तर, गरीबी, कुल रोज़गार, मुद्रास्फीति, कुल व्यय, कुल बचत, कुल निवेश, अर्थव्यवस्था के संसाधनों का पूर्ण व सर्वोत्तम प्रयोग, आर्थिक नीतियों का निर्माण आदि के लिए समष्टि स्तर पर अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है।

3. समष्टि आर्थिक विरोधाभास समष्टि आर्थिक विरोधाभास (Macro Economic Paradox) से अभिप्राय उन निष्कर्षों से है जोकि व्यक्तिगत इकाई के लिए सही होते हैं, परंतु संपूर्ण अर्थव्यवस्था के स्तर पर सही होना आवश्यक नहीं है। विरोधाभास के कारण भी समष्टि आर्थिक सिद्धांत की अलग से अध्ययन की आवश्यकता है; जैसे
(i) बचत का विरोधाभास-बचत निःसंदेह व्यक्तियों के लिए लाभकारी है परंतु बचत समाज या अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक भी सिद्ध होती है। विशेष रूप से उस समय जब समग्र माँग में कमी होने के फलस्वरूप बेरोज़गारी और मंदी फैली हुई हो। अतः बचत एक व्यक्ति के लिए तो ठीक है, परन्तु संपूर्ण समाज के लिए ठीक नहीं है। इस कारण आर्थिक समूहों का समुच्चय स्तर पर अलग से विश्लेषण करना बहुत जरूरी हो जाता है।

(ii) मज़दूरी-रोज़गार विरोधाभास-परंपरावादी (Classical) अर्थशास्त्री मंदी व बेरोज़गारी दूर करने के लिए मज़दूरी-दर को घटाने की वकालत करते हैं जिसके फलस्वरूप व्यक्तिगत उद्योग काम पर अधिक श्रमिक लगाते हैं क्योंकि लागत कम होने से लाभ बढ़ जाता है। दूसरी ओर, अर्थव्यवस्था में सब जगह मज़दूरी घटने से वस्तुओं व सेवाओं की कुल माँग गिर जाती है जिससे श्रमिकों के लिए माँग भी गिर जाती है क्योंकि श्रमिकों की माँग उन वस्तुओं की माँग पर निर्भर करती है जिन्हें श्रमिक उत्पन्न करने में सहायक होते हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि एक श्रमिक कम मजदूरी लेकर अपनी बेरोज़गारी की समस्या तो हल कर लेता है पर समष्टि (या अर्थव्यवस्था) स्तर पर यदि सब श्रमिक कम मजदूरी प्राप्त करते हैं, तो कुल रोज़गार में अंततः गिरावट आ जाती है। अतः आर्थिक समूहों का समष्टि स्तर पर अलग से अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है।

ये विरोधाभास ऐसे लगते हैं जैसे एक वृक्ष अपने पड़ोस की जलवायु नहीं बदल सकता, पर एक वन जलवायु बदल सकता है। इस दृष्टि से केज ने व्यष्टि सिद्धांत से हटकर समष्टि स्तर पर अलग से विवेचन करने की वकालत की है।

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HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. एकाधिकार में-
(A) वस्तु के कई निकट स्थानापन्न होते हैं
(B) वस्तु का कोई निकट स्थानापन्न नहीं होता
(C) वस्तु विभेद पाया जाता है
(D) कीमत विभेद नहीं होता
उत्तर:
(B) वस्तु का कोई निकट स्थानापन्न नहीं होता

2. एकाधिकारी फर्म को अल्पकाल संतुलन में-
(A) न्यूनतम हानि हो सकती है
(B) असामान्य लाभ हो सकते हैं
(C) सामान्य लाभ हो सकते हैं ।
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

3. दीर्घकाल में एकाधिकार फर्म को-
(A) हानि होती है
(B) असामान्य लाभ मिलते हैं
(C) सामान्य लाभ मिलते हैं
(D) पूर्ण प्रतिस्पर्धा की तुलना में कम हानि होती है
उत्तर:
(B) असामान्य लाभ मिलते हैं

4. एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा की अवस्था में फर्म को अल्पकाल में संतुलन की स्थिति में-
(A) अधिकतम लाभ प्राप्त होते हैं
(B) न्यूनतम हानि होती है
(C) सामान्य लाभ प्राप्त होते हैं
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

5. एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में दीर्घकाल में फर्म को संतुलन की अवस्था में केवल-
(A) सामान्य लाभ प्राप्त होते हैं
(B) असामान्य लाभ प्राप्त होते हैं
(C) न्यूनतम हानि प्राप्त होती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) सामान्य लाभ प्राप्त होते हैं

6. एकाधिकार में कीमत-
(A) सीमांत लागत से अधिक होती है
(B) सीमांत लागत के बराबर होती है
(C) सीमांत लागत से कम होती है
(D) सीमांत लागत से कम या अधिक होती रहती है
उत्तर:
(A) सीमांत लागत से अधिक होती है

7. एकाधिकार में किस समय अवधि में फर्म को केवल असामान्य लाभ प्राप्त होते हैं?
(A) अति अल्पकाल में
(B) अल्पकाल में
(C) दीर्घकाल में
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) दीर्घकाल में

8. एकाधिकार के अंतर्गत फर्म के माँग वक्र का स्वरूप क्या है?
(A) पूर्ण लोचदार
(B) पूर्ण बेलोचदार
(C) कम लोचदार
(D) अधिक लोचदार
उत्तर:
(C) कम लोचदार

9. एकाधिकारी प्रतियोगिता में किस समय-अवधि में फर्म को केवल असामान्य लाभ प्राप्त होते हैं?
(A) अल्पकाल में
(B) अति-अल्पकाल में
(C) दीर्घकाल में
(D) अति-दीर्घकाल में
उत्तर:
(A) अल्पकाल में

10. निम्नलिखित में से एकाधिकारी बाज़ार की विशेषता नहीं है
(A) फर्मों के प्रवेश व निकासी की स्वतंत्रता
(B) निकटतम स्थानापन्न का अभाव
(C) एक विक्रेता
(D) कीमत विभेद की संभावना
उत्तर:
(A) फर्मों के प्रवेश व निकासी की स्वतंत्रता

11. वस्तु विभेद किस बाज़ार की प्रमुख विशेषता है?
(A) एकाधिकार की
(B) पूर्ण प्रतिस्पर्धा की
(C) एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा की
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा की

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

12. गैर-कीमत प्रतियोगिता सर्वाधिक पाई जाती है
(A) एकाधिकार में
(B) पूर्ण प्रतिस्पर्धा में
(C) एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में ..
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में

13. अपूर्ण प्रतिस्पर्धा में बाज़ार की कौन-सी अवस्था हो सकती है?
(A) एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा
(B) अल्पाधिकार
(C) द्वि-अधिकार
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

14. किस बाज़ार के लिए फर्म के लिए कीमत रेखा क्षैतिज सरल रेखा होती है?
(A) एकाधिकारी
(B) पूर्ण प्रतिस्पर्धा
(C) एकाधिकारी प्रतियोगिता
(D) अल्पाधिकार
उत्तर:
(B) पूर्ण प्रतिस्पर्धा

15. किस बाज़ार में विक्रय लागतों का बहुत अधिक महत्त्व होता है?
(A) पूर्ण प्रतियोगी बाज़ार में
(B) अल्पाधिकार बाज़ार में
(C) अपूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार में
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) अपूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार में

16. एकाधिकार में सीमांत संप्राप्ति वक्र का आकार कैसा होता है?
(A) धनात्मक ढलान वाला
(B) OX-अक्ष के समानांतर
(C) OY-अक्ष के समानांतर
(D) ऋणात्मक ढलान वाला
उत्तर:
(D) ऋणात्मक ढलान वाला

17. अल्पकाल में एकाधिकार के संतुलन की अवस्था में निम्नलिखित में से कौन-सी अवस्था हो सकती है?
(A) असामान्य लाभ
(B) सामान्य लाभ
(C) न्यूनतम हानि
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

18. एकाधिकार होता है
(A) कीमत-निर्धारक
(B) कीमत स्वीकार करने वाला
(C) (A) तथा (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) कीमत-निर्धारक

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. पूर्ण प्रतियोगिता में वस्तुएँ ……………… होती हैं। (भिन्न, समरूप)
उत्तर:
समरूप

2. एकाधिकारी बाज़ार में एकाधिकारी कीमत …………… होता है। (निर्धारक, स्वीकारक)
उत्तर:
निर्धारक

3. विज्ञापन लागते ……………. में अधिक महत्त्वपूर्ण होती हैं। (एकाधिकार, एकाधिकारी प्रतियोगिता)
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतियोगिता

4. ……………… एकाधिकार बाज़ार की मुख्य विशेषता होती है। (वस्तु विभेद, कीमत विभेद)
उत्तर:
कीमत विभेद

5. ‘अल्पाधिकार’ में ………………… विक्रेता पाए जाते हैं। (बहुत अधिक, कुछ)
उत्तर:
कुछ

6. ‘एकाधिकार’ की तुलना में ‘एकाधिकारी प्रतियोगिता’ में AR तथा MR वक्र सापेक्षिक ……………… लोचदार होते हैं। (कम, अधिक)
उत्तर:
अधिक

7. एकाधिकारी प्रतियोगिता (प्रतिस्पर्धा) में AR तथा MR वक्र एक-दूसरे के ……………….. होते हैं। (बराबर, भिन्न)
उत्तर:
भिन्न

8. द्वयाधिकार बाज़ार में वस्तु के ……………. विक्रेता पाए जाते हैं। (एक, दो)
उत्तर:
दो

9. विक्रय लागते ……………. बाज़ार में अधिक उपयोगी होती हैं। (एकाधिकार, एकाधिकारी प्रतियोगिता)
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतियोगिता

10. गैर-कीमत प्रतियोगिता सर्वाधिक ………………. में पाई जाती है। (पूर्ण प्रतियोगिता, एकाधिकारी प्रतियोगिता)
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतियोगिता

11. एकाधिकारी प्रतियोगिता में एक फर्म दीर्घकाल में …………. लाभ प्राप्त करती है। (सामान्य, असामान्य)
उत्तर:
सामान्य

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C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत-

  1. सर्वाधिक गैर कीमत प्रतियोगिता एकाधिकारी प्रतियोगिता में पाई जाती है।
  2. एकाधिकारी कीमत सदैव ऊँची होती है।
  3. एकाधिकार के अंतर्गत कीमत 10 रु० होगी यदि सीमांत लागत 10 रु० है।
  4. एकाधिकारी प्रतियोगिता में फर्मों के आने व छोड़कर जाने की स्वतंत्रता नहीं होती।
  5. एकाधिकार में कीमत, सीमान्त लागत के समान होती है।
  6. एक एकाधिकारी प्रतियोगी फर्म को दीर्घकाल में असामान्य लाभ प्राप्त होंगे।
  7. एकाधिकारी दीर्घकाल में असामान्य लाभ प्राप्त नहीं कर सकता।
  8. एकाधिकार में औसत आगम (AR) वक्र तथा सीमांत आगम (MR) वक्र एक-समान होते हैं।
  9. पूर्ण प्रतियोगिता में औसत आगम (AR) वक्र तथा सीमांत आगम (MR) वक्र एक-दूसरे के बराबर नहीं होते।
  10. एकाधिकारी बाजार में एकाधिकारी कीमत निर्धारक होता है।
  11. एकाधिकार में कीमत विभेद संभव होता है।
  12. एकाधिकारी प्रतियोगिता में AR तथा MR वक्र एक-दूसरे के भिन्न होते हैं।
  13. अल्पाधिकार में दो विक्रेता पाए जाते हैं।
  14. द्वयाधिकार बाज़ार में वस्तु के दो विक्रेता पाए जाते हैं।
  15. विज्ञापन लागतें एकाधिकारी प्रतियोगिता में अधिक महत्त्वपूर्ण होती हैं।

उत्तर:

  1. सही
  2. गलत
  3. गलत
  4. गलत
  5. गलत
  6. गलत
  7. गलत
  8. गलत
  9. गलत
  10. सही
  11. गलत
  12. सही
  13. गलत
  14. सही
  15. सही।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बाज़ार किसे कहते हैं?
उत्तर:
बाज़ार का अर्थ किसी विशेष स्थान से नहीं है बल्कि किसी वस्तु की मात्रा के क्रय-विक्रय से है।

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प्रश्न 2.
बाज़ार के मुख्य रूप कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  • पूर्ण प्रतियोगिता
  • एकाधिकार
  • एकाधिकारी प्रतियोगिता
  • अल्पाधिकार।

प्रश्न 3.
एकाधिकार (Monopoly) क्या है?
उत्तर:
एकाधिकार बाज़ार की वह स्थिति है जिसमें वस्तु का एक ही विक्रेता होता है और उस वस्तु का कोई निकट स्थानापन्न नहीं होता।

प्रश्न 4.
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा (Monopolistic Competition) क्या है?
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा बाज़ार की वह स्थिति है जिसमें वस्तु के बहुत-से विक्रेता लगभग एक-जैसी विभेदीकृत वस्तुओं (Differentiated Goods) के रूप में बेचने की प्रतिस्पर्धा करते हैं।

प्रश्न 5.
गठबंधन प्रतियोगिता और गैर-गठबंधन प्रतियोगिता में अंतर बताहए।
अथवा
गठबंधन अल्पाधिकार तथा गैर-गठबंधन अल्पाधिकार से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गठबंधन प्रतियोगिता या अल्पाधिकार-गठबंधन प्रतियोगिता अल्पाधिकार बाजार की वह स्थिति है जिसमें सभी फर्मे एक-दूसरे के सहयोग से अपनी वस्तुओं की कीमतों को निर्धारित करती हैं। ये एक-दूसरे से किसी भी प्रकार की कोई प्रतिस्पर्धा नहीं करतीं। गैर-गठबंधन प्रतियोगिता या अल्पाधिकार-गैर-गठबंधन प्रतियोगिता अल्पाधिकार बाजार की वह स्थिति है जिसमें सभी फर्मे स्वतंत्र रूप से अपनी वस्तुओं की कीमतों को निर्धारित करती हैं और इनमें प्रतिस्पर्धा होती है।

प्रश्न 6.
अल्पाधिकार की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
अल्पाधिकार बाज़ार की वह स्थिति है जिसमें वस्तु के कुछ उत्पादक होते हैं। वाटसन के अनुसार, “अल्पाधिकार वह बाजार अवस्था है जिसमें समरूप अथवा विभेदीकृत वस्तुएँ बेचने वाली थोड़ी-सी फर्मे होती हैं।”

प्रश्न 7.
कीमत विभेद किसे कहते हैं?
उत्तर:
एक ही वस्तु को विभिन्न क्रेताओं को भिन्न-भिन्न कीमतों पर बेचना कीमत विभेद कहलाता है।

प्रश्न 8.
विभेदीकृत उत्पादों (Differentiated Products) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विभेदीकृत उत्पादों से अभिप्राय उन उत्पादों से है जिनकी प्रकृति एक-समान होती है, परंतु जिन्हें ब्रांड नाम, आकार, रंग, डिज़ाइन, गुण, सेवा आदि के आधार पर अन्य वस्तुओं से विभेदित किया जाता है।

प्रश्न 9.
वस्तु विभेद (Product Differentiation) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वस्तु विभेद से अभिप्राय उस प्रक्रिया से है जिसके अंतर्गत एक-समान स्वभाव वाली वस्तुओं को विज्ञापन, पैकिंग, ब्रांड आदि के आधार पर अन्य वस्तुओं से भिन्न बनाया जाता है।

प्रश्न 10.
विक्रय लागते (Selling Costs) क्या होती हैं?
उत्तर:
विक्रय लागतों से अभिप्राय उन लागतों से है जिन्हें फर्म की बिक्री बढ़ाने के लिए व्यय किया जाता है।

प्रश्न 11.
विज्ञापन लागतें क्या होती हैं?
उत्तर:
विज्ञापन लागतें वे लागतें होती हैं जो एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा फर्मे अपनी-अपनी वस्तुओं के प्रचार पर बिक्री बढ़ाने के उद्देश्य से व्यय करती हैं।

प्रश्न 12.
पेटेंट अधिकार क्या होते हैं?
उत्तर:
पेटेंट अधिकार वे अधिकार हैं जिनमें धारक को ही एक विशेष उत्पादन विधि या नए उत्पाद का प्रयोग करने का अधिकार होता है और अन्य किसी भी उत्पादक को धारक से लाइसेंस पाए बिना इसके उत्पादन या प्रयोग करने का अधिकार नहीं होता।

प्रश्न 13.
संगुट विरोधी (Anti Trust) कानून क्या होते हैं?
उत्तर:
संगुट विरोधी कानून ऐसे कानून हैं जो उन सभी प्रकार के विलय (Merger), अधिग्रहण (Acquisition) और व्यावसायिक गतिविधियों को सीमित करते हैं जिनके कारण दक्षता में नाममात्र की वृद्धि परंतु बाज़ार पर नियंत्रण की संभावना अधिक होती है।

प्रश्न 14.
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में दीर्घकाल में फर्म असामान्य लाभ अर्जित क्यों नहीं कर पाती?
उत्तर:
क्योंकि दीर्घकाल में अन्य फळं बाजार में प्रवेश करके असामान्य लाभ को सामान्य लाभ में बदल देती हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एकाधिकार बाज़ार की कोई चार विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
एकाधिकार बाज़ार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. एक विक्रेता-एकाधिकार बाज़ार में वस्तु का केवल एक ही विक्रेता होता है। अतः इस बाज़ार में फर्म तथा उद्योग का अंतर समाप्त हो जाता है।
  2. निकट स्थानापन्न का न होना-एकाधिकार बाजार जिस वस्तु का उत्पादन या विक्रय करता है, उसका कोई निकट स्थानापन्न नहीं होता।
  3. प्रवेश पर प्रतिबंध-एकाधिकार बाजार में नई फर्मों के प्रवेश पर प्रतिबंध होता है। इसलिए एकाधिकारी का कोई प्रतियोगी नहीं होता।
  4. पूर्ति पर प्रभावी नियंत्रण वस्तु की पूर्ति पर एकाधिकारी बाज़ार का पूर्ण नियंत्रण होता है।

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प्रश्न 2.
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा की कोई चार विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. फर्मों की अधिक संख्या एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में फर्मों की संख्या अधिक होती है। इस प्रकार विक्रेताओं में प्रतिस्पर्धा पाई जाती है।

2. वस्तु विभेद-एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में अनेक फर्मे मिलती-जुलती वस्तुओं का उत्पादन करती हैं। उन वस्तुओं में रंग, रूप, आकार, डिज़ाइन, पैकिंग, ब्रांड, ट्रेडमार्क, सुगंध आदि के आधार पर वस्तु विभेद (Product Variation) किया जाता है; जैसे पेप्सोडेंट, कोलगेट, फोरहन्स, क्लोज़अप आदि टूथपेस्ट। इन पदार्थों में एकरूपता तो नहीं होती, लेकिन वे एक-दूसरे के निकट स्थानापन्न (Close Substitutes) होते हैं।

3. फर्मों के निर्बाध प्रवेश और बहिर्गमन-एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा बाज़ार में नई फर्मों के बाज़ार में प्रवेश करने और पुरानी फर्मों को बाजार छोडने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है।

4. विक्रय लागतें-एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा बाज़ार में प्रत्येक फर्म को अपनी वस्तु का प्रचार करने के लिए विज्ञापनों पर बहुत व्यय करना पड़ता है। अतः एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में फर्मों में अपनी-अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए कीमत प्रतियोगिता तो नहीं पाई जाती, बल्कि गैर-कीमत प्रतिस्पर्धा (Non-Price Competition) पाई जाती है।

प्रश्न 3.
उन कारकों की व्याख्या करें जिनके कारण एकाधिकार बाज़ार अस्तित्व में आया।
उत्तर:
एकाधिकार बाज़ार के अस्तित्व में आने के कारण निम्नलिखित हैं
1. सरकारी प्रतिबंध कई बार किसी क्षेत्र विशेष में अन्य किसी फर्म के प्रवेश करने पर सरकार प्रतिबंध लगा देती है। उदाहरण के लिए, रेल परिवहन के क्षेत्र में भारत सरकार ने अन्य किसी के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। अतः रेलवे परिवहन पर सरकार का एकाधिकार है।

2. लाइसेंस-सरकार द्वारा केवल एक कंपनी को किसी वस्तु या सेवा के उत्पादन का लाइसेंस देना किसी क्षेत्र या उद्योग में एकाधिकार फर्म को जन्म दे सकता है।

3. पेटेंट अधिकार-पेटेंट अधिकार के कारण भी एकाधिकार स्थापित हो सकता है। जब किसी एक फर्म अथवा उत्पादक को यह सरकारी मान्यता मिल जाती है कि उसके अलावा अन्य कोई भी फर्म उस वस्तु का उत्पादन अथवा उस तकनीक का प्रयोग नहीं कर सकती, जिसका विकास अथवा आविष्कार इस फर्म ने किया है तो इसे पेटेंट अधिकार कहते हैं। यह फर्मों को अन्वेषण एवं विकास के कार्य करते रहने हेतु प्रोत्साहित करने और जोखिम की पूर्ति के लिए दिया जाता है।

4. व्यापार गुट (कार्टेल) कभी-कभी किसी एक विशेष वस्तु के उत्पादक अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखते हुए अधिकतम लाभ कमाने के लिए एकत्रित होकर एक संगठन बना लेते हैं, इसे व्यापार गुट (कार्टेल) कहा जाता है। वे इस संस्था के माध्यम से एकाधिकारी की तरह ही अपनी उत्पादन एवं कीमत नीति को लागू करते हैं।

प्रश्न 4.
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धी फर्म का माँग वक्र अधिक लोचदार क्यों रहता है?
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धी फर्म द्वारा उत्पादित वस्तु की कई निकट प्रतिस्थापक वस्तुएँ बाज़ार में उपलब्ध होती हैं। जिस वस्तु की जितनी अधिक प्रतिस्थापक वस्तुएँ उपलब्ध होंगी उस वस्तु की माँग उतनी ही अधिक लोचदार होगी। इसलिए एक एकाधिकारी प्रतिस्पर्धी फर्म का माँग वक्र अधिक लोचदार रहता है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार 1

प्रश्न 5.
एकाधिकार और एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में से किस बाज़ार में फर्म का माँग वक्र अधिक लोचशील होता है और क्यों?
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा और एकाधिकार दोनों ही अवस्थाओं में फर्मों का माँग वक्र अथवा औसत आगम वक्र दाईं ओर नीचे को झुका हुआ होता है। इसका अर्थ यह है कि दोनों प्रकार की फर्मों को अधिक मात्रा में वस्तु बेचने के लिए कीमत कम करनी पड़ती है। लेकिन एक एकाधिकारी फर्म का माँग वक्र कम लोचशील होता है क्योंकि इस अवस्था में वस्तु की कोई निकट स्थानापन्न वस्तु नहीं होती। इसके विपरीत, एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में एक फर्म का माँग वक्र अधिक लोचशील होता है क्योंकि उस वस्तु की कई निकट स्थानापन्न वस्तुएँ बाज़ार में उपलब्ध होती हैं। एकाधिकार और एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में फर्म के माँग वक्र को निम्नांकित रेखाचित्रों द्वारा दिखाया जाता है
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प्रश्न 6.
बताइए कि एकाधिकारी फर्म का सीमांत आगम औसत आगम से कम क्यों रहता है?
उत्तर:
एकाधिकारी फर्म पूरे बाज़ार में एकमात्र वस्तु का अकेला विक्रेता होता है। एकाधिकारी फर्म का वस्तु की पूर्ति पर पूर्ण नियंत्रण होता है। लेकिन उसका वस्तु की माँग पर कोई नियंत्रण नहीं होता। अतः एकाधिकारी फर्म अधिक लाभ कमाने के लिए वस्तु को अधिकतम मूल्य पर बेचने का प्रयास करेगी। विक्रेता को वस्तु की अधिकाधिक इकाइयाँ बेचने के लिए कीमत कम करनी पड़ती है। इसलिए फर्म का सीमांत आगम औसत आगम से कम रहता है। सीमांत आगम और औसत आगम दोनों वक्रों का ढाल ऊपर से नीचे की ओर होता है लेकिन सीमांत आगम औसत आगम से सदैव कम होता है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
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प्रश्न 7.
माँग की कीमत लोच और सीमांत आगम के बीच संबंध को एक | रेखाचित्र से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
माँग की कीमत लोच (eD) और सीमांत संप्राप्ति (आगम) (MR) के बीच निकट संबंध रहता है। जैसे कि
(i) जब MR धनात्मक है तो कीमत लोच 1 से अधिक होती है।

(ii) जब MR शून्य होती है तो कीमत लोच 1 के बराबर होती है।

(iii) जब MR ऋणात्मक होता है तो कीमत लोच 1 से कम होती है। यह संबंध संलग्न रेखाचित्र द्वारा दर्शाया गया है।
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प्रश्न 8.
द्वि-अधिकार बाज़ार की कोई चार विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
द्वि-अधिकार बाज़ार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें केवल दो ही उत्पादक होते हैं।
  2. दोनों लगभग समान वस्तु का विक्रय करते हैं।
  3. दोनों ही अपने उत्पादन कार्य में स्वतंत्र होते हैं तथा दोनों ही वस्तुएँ एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करती हैं।
  4. प्रत्येक प्रतिस्पर्धी को स्वयं अपनी नीति का निर्धारण करने में दूसरे प्रतिस्पर्धी की नीति को ध्यान में रखना आवश्यक होता है।

प्रश्न 9.
शून्य उत्पादन लागत वाली एकाधिकार फर्म के संतुलन को रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
कभी-कभी एक एकाधिकारी फर्म की लागत शून्य होती है, क्योंकि उसे उत्पाद के लिए कोई कीमत नहीं चुकानी पड़ती। ऐसी स्थिति में फर्म का संतुलन उस बिंदु पर होगा जहाँ MC =MR है। एक फर्म की संतुलन स्थिति को हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं
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संलग्न रेखाचित्र में, X-अक्ष ही औसत व सीमांत लागत वक्र है, क्योंकि लागत शून्य है। E बिंदु पर MR=MC है इसलिए यह संतुलन बिंदु है, जहाँ फर्म को OPAE लाभ प्राप्त हो रहा है जो अधिकतम लाभ है। चूँकि हम जानते हैं कि जब MR = 0 होता है, तो TR अधिकतम होता है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

प्रश्न 10.
एकाधिकार फर्म के लिए माँग वक्र ही संरोध (Con-straint) कैसे बन जाता है?
उत्तर:
एकाधिकार फर्म पूरे बाज़ार में एकमात्र वस्तु का विक्रेता होता है। एकाधिकार फर्म का बाज़ार में वस्तु की पूर्ति पर पूरा नियंत्रण होता है। लेकिन कीमत प्रक्रिया के दूसरे पहलू माँग पर फर्म का कोई नियंत्रण नहीं होता क्योंकि माँग उपभोक्ताओं द्वारा की जाती है। एक फर्म अधिक लाभ कमाने के लिए वस्तु को अधिकतम कीमत पर बेचने का प्रयास करती है परंतु अधिकतम कीमत पर माँग कम होगी। अतः वस्तु की अधिक मात्रा बेचने के लिए फर्म को कीमत कम करनी पड़ती है। इस प्रकार फर्म के लिए माँग वक्र ही संरोध बन जाता है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार 6
संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि OP कीमत पर वस्तु की माँग केवल OQ है। OQ1 मात्रा बेचने के लिए फर्म को वस्तु की कीमत OP से कम करके OP1 करनी पड़ेगी।

प्रश्न 11.
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा क्या होती है? क्या ऐसे बाज़ार में एक विक्रेता कीमत को प्रभावित कर सकता है? समझाइए।
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा बाज़ार की वह स्थिति है जिसमें एक बड़ी संख्या में फर्मे लगभग एक जैसी किंतु विभेदीकृत वस्तुओं को बेचने की प्रतिस्पर्धा करती हैं।

एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में यहाँ एक ओर फर्मों को प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है वहीं दूसरी ओर फर्मों को वस्तु विभेद के कारण कुछ सीमा तक एकाधिकारी शक्ति भी प्राप्त होती है। इसलिए एक विक्रेता कीमत को प्रभावित कर सकता है। यहाँ एक विक्रेता कीमत निर्धारक होता है, कीमत स्वीकारक नहीं।

प्रश्न 12.
एकाधिकार व एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में औसत संप्राप्ति (AR) तथा सीमांत संप्राप्ति (MR) वक्र बनाइए।
उत्तर:
एकाधिकार तथा एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा की अवस्थाओं में फर्म अपनी स्वतंत्र कीमत नीति अपना सकती है। फर्म कीमत को कम करके अधिक माल बेच सकती है तथा कीमत में वृद्धि करने पर फर्म का कम माल बिकेगा। अतः इन दोनों स्थितियों में औसत संप्राप्ति वक्र तथा सीमांत संप्राप्ति (आगम) वक्र गिरते हुए होते हैं और जब औसत संप्राप्ति गिर रही होती है तो सीमांत संप्राप्ति औसत संप्राप्ति से कम रहती है अर्थात् इन दोनों में मुख्य अंतर यह है कि एकाधिकार में आगम वक्र कम लोचदार (Less Elastic) और एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में अधिक लोचदार (More Elastic) होते हैं।
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इसका अभिप्राय यह है कि यदि एकाधिकारी फर्म कीमत बढ़ा देती है, तो फर्म की कुल माँग पर कम प्रभाव पड़ता है क्योंकि एकाधिकार में वस्तु के स्थानापन्न (Substitutes) उपलब्ध नहीं होते जबकि एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा वाली फर्म यदि वस्तु की कीमत बढ़ा देती है तो उसकी माँग पर अधिक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में वस्तु के स्थानापन्न उपलब्ध होते हैं।

प्रश्न 13.
एक प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार में सीमांत संप्राप्ति (आगम) तथा कुल संप्राप्ति (आगम) का संबंध तालिका व रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
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एक प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार के कुल संप्राप्ति और सीमांत संप्राप्ति के संबंध को निम्न तालिका व रेखाचित्र से दिखा सकते हैं-

बेची गई इकाइयाँप्रति इकाई कीसतकुल आगमसीमांत आगम
1101010
29188
38246
47284
56302
65300
7428-2
8324-4

तालिका तथा रेखाचित्रों से यह स्पष्ट होता है कि कुल आगम उस समय तक बढ़ता है जब तक कि सीमांत आगम धनात्मक अर्थात् शून्य से ऊपर है। कुल आगम वहाँ अधिकतम है जहाँ सीमांत आगम शून्य है। कुल आगम उस समय घटने लगता है जब सीमांत आगम ऋणात्मक अर्थात् शून्य से कम होता है। उपर्युक्त तालिका से यह स्पष्ट है कि सीमांत आगम पाँचवीं इकाई तक धनात्मक है।

अतः कुल आगम बढ़ रहा है। छठी इकाई पर कुल आगम अधिकतम है क्योंकि सीमांत आगम शून्य है। छठी इकाई के पश्चात् सीमांत आगम ऋणात्मक होने लगता है और कुल आगम घटने वाले होते हैं।

प्रश्न 14.
कुल संप्राप्ति (आगम) (TR) तथा सीमांत संप्राप्ति (MR) में संबंध तालिका एवं रेखाचित्र की सहायता से बताइए।
उत्तर:
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बेची गई इकाइयाँTRMR
110
2188
3246
4284
5302
6300
728– 2

(i) जब MR धनात्मक होता है तो TR बढ़ता है।
(ii) जब MR शून्य होता है, तो TR अधिकतम होता है।
(iii) जब MR ऋणात्मक होता है, तो TR गिरना शुरू कर देता है।
(iv) TR बढ़ती दर से बढ़ता है, जब तक MR बढ़ता है तथा TR घटती दर से बढ़ता है, जब तक MR गिरता है।

प्रश्न 15.
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा के अंतर्गत कुल संप्राप्ति, औसत संप्राप्ति और सीमांत संप्राप्ति के बीच संबंध बताइए। रेखाचित्र का प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
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एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में एक फर्म कीमत निर्धारक होती है। एक फर्म अपनी वस्तु की बिक्री को तभी बढ़ा सकती है जब वह वस्तु की कीमत में कमी करे। इसलिए फर्म के AR और MR वक्र गिरते हुए सीधी रेखा के रूप में होते हैं। कुल संप्राप्ति वक्र का आकार उल्टे ‘U’ आकार का होता है, क्योंकि कुल संप्राप्ति पहले बढ़ती है, बाद में कम होती है। यह वस्तु की मात्रा संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
द्वि-अधिकार (Duopoly) की परिभाषा दीजिए। इसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
द्वि-अधिकार का अर्थ-द्वि-अधिकार से अभिप्राय बाजार की उस स्थिति से है जिसमें किसी एक ही सर्वथा समान अथवा लगभग समान वस्तु के दो उत्पादक होते हैं। दोनों ही अपने उत्पादन कार्य में स्वतंत्र होते हैं एवं दोनों की वस्तुएँ एक-दूसरे से पर्धा करती हैं। यदि एक विक्रेता अपनी उपज तथा कीमत संबंधी नीति में परिवर्तन करता है तो दूसरे की ओर से इसकी बलशाली प्रतिक्रिया होती है। इस प्रकार दोनों विक्रेताओं में से कोई भी बिना दूसरे की प्रतिक्रिया को ध्यान में रखे उत्पादन की मात्रा अथवा कीमत को निश्चित नहीं कर सकता।

द्वि-अधिकार बाजार की विशेषताएँ-द्वि-अधिकार बाजार की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-

  • यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें केवल दो ही उत्पादक होते हैं।
  • दोनों सर्वथा समान अथवा लगभग समान वस्तु का विक्रय करते हैं।
  • दोनों ही अपने उत्पादन कार्य में स्वतंत्र होते हैं तथा दोनों ही वस्तुएँ एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करती हैं।
  • अतः प्रत्येक प्रतिस्पर्धी को स्वयं अपनी नीति का निर्धारण करने में दूसरे प्रतिस्पर्धी की नीति को ध्यान में रखना आवश्यक होता है।

द्वि-अधिकार आवश्यक रूप से अपूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति नहीं होती, क्योंकि यदि दोनों विक्रेता परस्पर मिलकर उत्पादन करने लगे, तब द्वि-अधिकार की स्थिति समाप्त हो जाएगी। इसके विपरीत, यह भी संभव है कि कंठ-छेदी प्रतिस्पर्धा (Cut-throat competition) के कारण पूर्ण प्रतिस्पर्धा की सी दशाएँ उत्पन्न हो जाएँ।

प्रश्न 2.
कुल संप्राप्ति (TR) और कुल लागत (TC) वक्रों की सहायता से एक एकाधिकारी फर्म (Monopoly Firm) के संतुलन को समझाइए।
उत्तर:
कुल संप्राप्ति (आगम) तथा कुल लागत विधि द्वारा एकाधिकारी फर्म का संतुलन-एकाधिकार वस्तु की उस मात्रा को बेचकर अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकता है जिस पर कुल संप्राप्ति (आगम) (Total Revenue) तथा कुल लागत (Total Cost) का अंतर अधिकतम होता है। एकाधिकार वस्तु की विभिन्न कीमतें निर्धारित करके अथवा वस्तु की पूर्ति में परिवर्तन लाकर यह जानने का प्रयास करता है कि उत्पादन के किस स्तर पर कुल संप्राप्ति (TR) तथा कुल लागत (TC) का अंतर अधिकतम है। उत्पादन की उस मात्रा पर जिसके उत्पादन से एकाधिकार को अधिकतम लाभ प्राप्त होंगे, एकाधिकार संतुलन की स्थिति में होगा। इसे संलग्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है

रेखाचित्र में TC कुल लागत वक्र है, जो उत्पादन वृद्धि के साथ-साथ लागत में स्थिर दर से होने वाली वृद्धि को दर्शाता है। TR कुल संप्राप्ति वक्र है जो आरंभ में ऊपर की ओर बढ़ता है, बाद में चपटा (Flat) होता है और अंत में नीचे की ओर गिरता है जो एक निश्चित बिंदु के पश्चात कुल प्राप्तियों में गिरावट का प्रतीक है। TP कुल लाभ की रेखा है। यह Rबिंद से आरंभ होती है जो यह दर्शाती है कि प्रारंभिक स्थिति में फर्म को ऋणात्मक लाभ (Negative Profits) मिलते हैं। रेखाचित्र से यह स्पष्ट होता है कि जैसे-जैसे फर्म उत्पादन बढ़ाती है वैसे-वैसे कुल संप्राप्ति TR बढ़ती जाती है। आरंभ में TR < TC है। परिणामस्वरूप TR वक्र का RC भाग यह दिखाता है कि फर्म को हानि हो रही है। K बिंदु पर TR = TC है जो यह स्पष्ट करती है कि फर्म को न लाभ है और न ही हानि। जैसाकि TP के C बिंदु से स्पष्ट हो रहा है।
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K बिंदु ‘समविच्छेद बिंदु’ (Break Even Point) कहलाता है। जब फर्म K बिंदु से अधिक उत्पादन करती है तो TR > TC है। C बिंदु के बाद TP वक्र भी दाएँ ऊपर की ओर बढ़ता है। यह इस बात का प्रतीक है कि फर्म लाभ प्राप्त कर रही है। जब TP वक्र अपने उच्चतम बिंदु E पर पहुँचता है तब फर्म अधिकतम लाभ कमा रही होती है। इसलिए OQ उत्पादन की मात्रा संतुलन मात्रा कहलाती है। यदि फर्म संतुलन मात्रा से अधिक उत्पादन करती है तो TR और TC वक्रों का अंतर कम होता जाता है जो कि दोबारा K1 बिंदु पर एक-दूसरे को काटते हैं। पुनः TR = TC हो जाते हैं। इसका अभिप्राय यह है कि फर्म के लाभ घटते जाते हैं और D बिंदु पर फर्म को न लाभ न हानि होती है। इस प्रकार बिंदु K1 भी ‘समविच्छेद बिंदु’ (Break Even Point) कहलाता है। यदि फर्म इससे भी अधिक मात्रा का उत्पादन करती है तो TR < TC हो जाता है और फर्म को हानि होने लगती है।

सारांश में फर्म E बिंदु पर अधिकतम लाभ प्राप्त करेगी। अधिकतम लाभ का अनुमान लगाने के लिए TR और TC वक्रों पर दो स्पर्श रेखाएँ (Tangents) खींची गई हैं। जिन बिंदुओं पर स्पर्श रेखाएँ समानांतर (Parallel) हैं, वहीं TR और TC का अंतर अधिकतम होता, है। जैसाकि रेखाचित्र में A और B बिंदुर चूँकि स्पर्श रेखाएँ परस्पर समानांतर हैं, इसलिए यहाँ TR और TC का अंतर अधिकतम है। इसी स्थिति में फर्म को अधिकतम लाभ प्राप्त होता है जो TP वक्र के E बिंदु से स्पष्ट है और E बिंदु ही फर्म का संतुलन बिंदु है।

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प्रश्न 3.
सीमांत संप्राप्ति (MR) और सीमांत लागत (MC) विधि द्वारा एक एकाधिकारी फर्म की संतुलन स्थिति को समझाइए।
अथवा
एक एकाधिकारी किस प्रकार अपनी कीमत और मात्रा निर्धारित करता है? रेखाचित्र द्वारा समझाइए।
उत्तर:
सीमांत संप्राप्ति (आगम) तथा सीमांत लागत विधि द्वारा एकाधिकारी फर्म की संतुलन स्थिति-एकाधिकार की स्थिति उत्पादन तथा संतुलन स्थिति का निर्धारण सीमांत आगम और सीमांत लागत विधि द्वारा भी कर सकती है। इस विधि के अनुसार एकाधिकारी उस समय संतुलन स्थिति में होता है जहाँ निम्नलिखित दो शर्ते पूरी होंगी

  • सीमांत संप्राप्ति (आगम) (MR) = सीमांत लागत (MC) हो
  • सीमांत लागत (MC) वक्र सीमांत संप्राप्ति (MR) वक्र को नीचे से काटता हो।

एकाधिकार में कीमत, उत्पादन तथा संतुलन निर्धारण दिए गए रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया गया है रेखाचित्र में औसत लागत, तथा सीमांत लागत वक्र को माँग (औसत संप्राप्ति) वक्र तथा सीमांत संप्राप्ति वक्र के साथ दर्शाया गया है। रेखाचित्र से स्पष्ट है कि q0 के नीचे उत्पादन स्तर पर सीमांत संप्राप्ति स्तर सीमांत लागत स्तर से ऊँचा है। तात्पर्य यह है कि वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के विक्रय से प्राप्त कुल संप्राप्ति में वृद्धि उस अतिरिक्त इकाई की उत्पादन लागत में वृद्धि से अधिक होती है। इसका अर्थ यह है कि उत्पादन की एक अतिरिक्त इकाई से अतिरिक्त लाभ का सृजन होगा। चूँकि लाभ में परिवर्तन = कुल संप्राप्ति में परिवर्तन – कुल लागत में परिवर्तन। अतः यदि फर्म q0 से कम स्तर पर वस्तु का उत्पादन कर रही है, तो वह अपने उत्पादन में वृद्धि लाना चाहेगी, क्योंकि इससे उसके लाभ में बढ़ोतरी होगी। जब तक सीमांत संप्राप्ति (MR) वक्र सीमांत लागत (MC) वक्र के ऊपर स्थित है, तब तक उपर्युक्त D = AR तर्क का अनुप्रयोग होगा। अतः फर्म अपने उत्पादन में वृद्धि करेगी। इस प्रक्रम में तब रुकावट आएगी, जब उत्पादन का स्तर q0 पर प. प. पहुँचेगा, क्योंकि इस स्तर पर सीमांत संप्राप्ति (MR) और सीमांत उत्पादन (निर्गत) MR लागत (MC) दोनों समान होंगे और उत्पादन में वृद्धि से लाभ में किसी प्रकार की वृद्धि नहीं होगी।
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दूसरी ओर, यदि फर्म q0 से अधिक मात्रा में वस्तु का उत्पादन करती है तो सीमांत लागत (MC) सीमांत संप्राप्ति से अधिक होती है। अभिप्राय यह है कि उत्पादन की एक इकाई कम करने से कुल लागत में जो कमी होती है, वह इस कमी के कारण कल संप्राप्ति में हुई हानि से अधिक होती है। अतः फर्म के लिए यह उपयुक्त है कि वह उत्पादन में कमी लाए। यह तर्क तब तक ठीक साबित होगा जब तक सीमांत लागत (MC) वक्र सीमांत संप्राप्ति वक्र के ऊपर स्थित होगा और फर्म अपने उत्पादन में कमी को जारी रखेगी। एक बार उत्पादन स्तर के q0 पर पहुँचने पर सीमांत लागत (MC) और सीमांत संप्राप्ति (MR) के मूल्य समान हो जाएँगे और फर्म अपने उत्पादन में कमी को रोक देगी।

वार्य रूप से उत्पादन स्तर पर पहुँचती है, इसलिए इस स्तर को उत्पादन का संतुलन स्तर कहते हैं। चूंकि उत्पादन के उस संतुलन स्तर पर सीमांत संप्राप्ति (MR) सीमांत लागत के बराबर होती है तथा सीमांत लागत (MC) वक्र सीमांत संप्राप्ति वक्र को नीचे से काट रही है और इस बिंदु पर एकाधिकार फर्म की संतुलन की शर्ते पूरी हो रही हैं।

q0 उत्पादन के स्तर पर औसत लागत dq0 है। चूंकि कुल लागत, औसत लागत और उत्पादित मात्रा q0 के गुणनफल के बराबर होती है, इसलिए इसे आयंत Oq0dc के द्वारा दर्शाया गया है।

रेखाचित्र में कीमत बिंदु a द्वारा दर्शायी गई है जहाँ q0 से शुरू होकर उदग्र रेखा बाजार माँग वक्र D से मिलती है।। इससे aq0 की ऊँचाई द्वारा दर्शाई गई कीमत प्राप्त होती है। चूंकि फर्म द्वारा प्राप्त कीमत उत्पादन की प्रति इकाई संप्राप्ति होती है, अतः यह फर्म के लिए औसत संप्राप्ति है। कुल संप्राप्ति, औसत संप्राप्ति और उत्पादन q0 के स्तर का गुणनफल होती है, इसलिए इसे आयत Oq0ab के क्षेत्रफल के रूप में दर्शाया गया है। आरेख से स्पष्ट है कि आयत Oq0ab का क्षेत्रफल आयत Oq0dc के क्षेत्रफल से बड़ा है अर्थात् कुल संप्राप्ति कुल लागत से अधिक है। आयत cdab का क्षेत्रफल इनके बीच का अंतर है अतः लाभ = कुल संप्राप्ति – कुल लागत को cdab के क्षेत्रफल से प्रदर्शित किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
शून्य लागत की स्थिति में एक एकाधिकारी फर्म के संतुलन स्थिति को रेखाचित्र की सहायता से सुस्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शून्य लागत की स्थिति में एकाधिकार फर्म का संतुलन कभी-कभी एक एकाधिकार फर्म की वस्तु की उत्पादन लागत शून्य होती है, क्योंकि उसे अपने उत्पाद के लिए कोई कीमत चुकानी नहीं पड़ती। ऐसी स्थिति में भी एक फर्म का संतुलन उस बिंदु पर होगा, जहाँ MC = MR है और चूँकि हमने माना है कि MC = 0 है तो संतुलन की शर्त होगी (MR = MC = 0)। हम यह भी जान चुके हैं कि जब MR = 0 होता है तो TR अधिकतम होता है। एक फर्म की संतुलन स्थिति को हम निम्नलिखित उदाहरण व संलग्न रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कर सकते हैं

उदाहरण (Example) मान लीजिए कि कोई गाँव अन्य गाँवों से काफी दूरी पर स्थित है। इस गाँव में एक ही कुआँ है जिसमें पानी उपलब्ध होता है। सभी निवासी जल की आवश्यकता के लिए पूर्ण रूप से इसी कुएँ पर निर्भर हैं। कुएँ का स्वामी एक ऐसा व्यक्ति है जो अन्य लोगों को कुएँ से जल निकालने के लिए रोकने में समर्थ है सिवाय इसके कि कोई जल का क्रय करे। इस कुएँ से जल का क्रय करने वाले स्वयं ही जल निकालते हैं। हम इस एकाधिकार की स्थिति का विश्लेषण बिक्री जहाँ लागत शून्य है इस जल की मात्रा और उसकी कीमत जिस पर बेची जाती है, का निर्धारण करने के लिए करेंगे।

रेखाचित्र में कुल संप्राप्ति (TR), औसत संप्राप्ति (AR) और सीमांत संप्राप्ति (MR) वक्रों को दर्शाया गया है। फर्म का लाभ कुल संप्राप्ति – कुल लागत के बराबर होता है अर्थात
π = TR – TC.

रेखाचित्र से स्पष्ट है कि जब कुल उत्पादन OQ है, तो कुल लागत शून्य है। चूंकि इस स्थिति में कुल लागत शून्य है, जब कुल संप्राप्ति सर्वाधिक है। लाभ सर्वाधिक है तो जैसा कि हमने पहले देखा है कि यह स्थिति तब होती है, जब उत्पादन मात्रा OQ इकाइयाँ हों। यह स्तर तब प्राप्त होता है जब MR शून्य के बराबर होती है। लाभ का परिणाम ‘a’ से समस्तरीय अक्ष तक के उदग्र रेखा की लंबाई के द्वारा स्पष्ट है।

जिस कीमत पर उत्पाद की इस मात्रा का विक्रय होगा जिसे उपभोक्ता समग्र रूप से भुगतान करने को तैयार होंगे। इसे बाजार माँग वक्र D द्वारा दिया गया है। OQ इकाई के उत्पादन के स्तर पर कीमत P रु० है। चूँकि एकाधिकार फर्म के लिए बाजार माँग वक्र ही औसत संप्राप्ति (AR) वक्र है, इसलिए फर्म के द्वारा प्राप्त औसत संप्राप्ति P है। उत्पादन (निर्गत) Q MR कुल संप्राप्ति को औसत संप्राप्ति और बिक्री मात्रा के गुणनफल अर्थात् Px OQ इकाइयाँ = OQRP के द्वारा दिखाया गया है। यह छायांकित आयत के द्वारा चित्रित किया गया है।

पूर्ण प्रतिस्पर्धा से तुलना-उपरोक्त स्थिति में एकाधिकारी फर्म को अधिसामान्य लाभ प्राप्त होंगे। अब यदि हम यह मान लें कि बाजार में पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति है और गाँव में जल के अनगिनत कुएँ हैं, जिनके स्वामी भी अलग-अलग हैं, तब उनमें परस्पर प्रतिस्पर्धा होगी। दूसरे स्वामी कीमत को कम करेंगे और कीमत असीमित रूप से नीचे की ओर गिरेगी और तब तक गिरेगी जब तक शन्य न हो जाए और लाभ भी शून्य न हो जाए। अतः इस प्रकार पूर्ण प्रतिस्पर्धा लाभ के कारण कम कीमत पर अधिक मात्रा की बिक्री होती है तथा लाभ AR सामान्य (शून्य) होते हैं।
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प्रश्न 5.
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में फर्म के अल्पकालीन संतुलन की स्थिति समझाइए। MC, MR विधि का प्रयोग करें।
उत्तर:
अल्पकालीन संतुलन (Short Run Equilibrium) अल्पकाल समय की वह अवधि है, जिसमें माँग के बढ़ने पर उत्पादन उत्पादन (निर्गत) को केवल वर्तमान क्षमता (Existing Capacity) तक ही बढ़ाया जा सकता है। उत्पादन के स्थिर साधनों; जैसे मशीनरी, प्लांट आदि में परिवर्तन नहीं किया जा सकता। इस समय अवधि में एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा फर्म का संतुलन तो उसी बिंदु पर निर्धारित होता है, जिस पर MC = MR हो तथा MC, MR को नीचे से काटे, परंतु संतुलन की अवस्था में फर्म को उत्पादन करने में (i) असामान्य लाभ, (ii) सामान्य लाभ या (iii) हानि उठानी पड़ सकती है। इनका विवरण दिए गए रेखाचित्रों की सहायता से किया जा सकता है।

1. असामान्य लाभ-एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में फर्म को असामान्य लाभ (Supermormal Profit) उस समय होते हैं, जब फर्म की औसत संप्राप्ति (आगम) (AR) औसत लागत से अधिक होती है (AR > AC)। संलग्न रेखाचित्र में संतुलन बिंदु E है, जिस पर MC = MR है तथा MC वक्र, MR वक्र को नीचे से काट रहा है। इस स्थिति में संतुलन उत्पादन OQ है तथा संतुलन कीमत QP = OP1 है। OQ उत्पादन की प्रति इकाई कीमत (QP) औसत लागत (OC) से अधिक है। इसलिए फर्म को PP1C1C छाया वाले भाग के बराबर असामान्य लाभ प्राप्त होते हैं।
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2. सामान्य लाभ-अल्पकाल में एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में फर्म को सामान्य लाभ उस समय प्राप्त होते हैं, जब औसत संप्राप्ति (आगम) (AR) तथा औसत लागत (AC) एक-दूसरे के बराबर होती है। (AR = AC)। संलग्न रेखाचित्र में संतुलन बिंदु .E है, जिस पर MC = MR है तथा MC वक्र, MR वक्र को नीचे से काट रहा है। अतः संतुलन उत्पादन OQ है तथा संतुलन कीमत qP = OP1 निर्धारित होती है। OQ संतुलन उत्पादन की औसत संप्राप्ति (AR) तथा औसत लागत (AC) बराबर है (OP = QP1)। अतः फर्म को केवल सामान्य लाभ (Normal Profit) प्राप्त हो रहे हैं।
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3. न्यूनतम हानि-अल्पकाल में एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में उत्पादन (निर्गत) काम कर रही फर्म को हानि भी हो सकती है। हानि उस समय होती है जब फर्म की औसत संप्राप्ति (AR) औसत (AC) से कम होती है अर्थात् जब AR1 निर्धारित होती है। औसत लागत QC है, जो कि कीमत अथवा औसत संप्राप्ति से अधिक है। इसलिए फर्म को PC प्रति इकाई हानि हो रही है, परंतु संतुलन उत्पादन की कीमत औसत परिवर्ती लागत (AVC) के बराबर है, क्योंकि बिंदु P पर AR वक्र AVC वक्र को छू रहा है। इस स्थिति में उत्पादन (निर्गत) x फर्म को कुल हानि CC1P1P के बराबर हो रही है, जो कि बँधी लागत के बराबर है, इसलिए P बिंदु उत्पादन बंद बिंदु (Shut-down Point) है।

प्रश्न 6.
अल्पाधिकार क्या है? अल्पाधिकार में कीमत निर्धारण की समस्या की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अल्पाधिकार (Oligopoly) से अभिप्राय बाजार की उस स्थिति से है, जब उद्योग में समरूप वस्तु का उत्पादन करने वाली अथवा निकट स्थानापन्न वस्तुओं का उत्पादन करने वाली फर्मों की संख्या अल्प (3, 4, 5……) परंतु बहुत अधिक नहीं होती।
अल्पाधिकार में कीमत निर्धारण की समस्याएँ (Problems of Price Determination Under Oligopoly)-अल्पाधिकार में कीमत तथा उत्पादन निर्धारण की समस्या वास्तव में एक गंभीर समस्या है। इस समस्या का समाधान सरल व निश्चित नहीं है।
अल्पाधिकार में कीमत तथा उत्पादन निर्धारण की समस्या से सम्बन्धित निम्नलिखित पहलू महत्त्वपूर्ण हैं-
1. एक सामान्य सिद्धांत की रचना कठिन-अल्पाधिकार विभिन्न प्रकार की बाजार स्थितियाँ हो सकती हैं। अल्पाधिकार की गैर-लचीली अवस्था (Tight Oligopoly) भी हो सकती है, जिसमें दो या तीन फर्मे सारे बाजार को नियंत्रित करती हैं। लचीली अवस्था (Loose Oligopoly) भी हो सकती है, जिसमें छह या सात फर्मे बाजार के अधिक भाग को नियंत्रित करती हैं। इसके अंतर्गत वस्तु-विभेदीकरण (Product Differentiation) अथवा समरूप उत्पाद (Homogeneous Product) भी पाए जा सकते हैं। इसमें फर्मों का गठबंधन. (Collusion) अथवा गैर-गठबंधन (Non-Collusion) भी हो सकता है। इसलिए अर्थशास्त्र में ऐसा कोई सर्वमान्य सिद्धांत नहीं है, जो सभी प्रकार की अल्पाधिकार स्थितियों में कीमत तथा उत्पादन निर्धारण की व्याख्या कर सके।

2. अल्पाधिकार में माँग वक्र का अनिश्चित होना अल्पाधिकार में कीमत तथा उत्पादन के अनिर्धारण का एक अन्य कारण माँग का अनिर्धारित होना है। अल्पाधिकार में एक फर्म के निर्णय दूसरी फर्मों के निर्णयों पर निर्भर करते हैं। इसलिए अल्पाधिकारी फर्म की माँग वक्र का निर्धारण संभव नहीं होता, क्योंकि प्रतिद्वन्द्वियों की क्रियाओं के फलस्वरूप उसका खिसकाव होता रहता है। अतः प्रतिद्वन्द्रियों की क्रियाएँ तथा प्रतिक्रियाएँ अल्पाधिकारी माँग वक्र को अनिर्धारित बना देती हैं।

3. अल्पाधिकारी फर्म का उद्देश्य केवल अधिकतम लाभ प्राप्त करना ही नहीं होता-अल्पाधिकारी का उद्देश्य केवल लाभों को अधिकतम करना नहीं होता। चूंकि पूर्ण प्रतिस्पर्धा तथा एकाधिकार की स्थिति में फर्मों का उद्देश्य लाभ को अधिकतमं करना होता है। फलस्वरूप, ऐसे बाजारों में उत्पादन की कीमतें तथा मात्रा निर्धारित करना संभव हो जाता है, परंतु अल्पाधिकार में फर्मों के कई अन्य उद्देश्य जैसे बिक्री को अधिकतम करना अथवा दीर्घकाल तक उचित मात्रा में स्थायी लाभों को प्राप्त करना आदि हो सकते हैं। इन विभिन्न उद्देश्यों के कारण भी अल्पाधिकार में कीमत तथा उत्पादन मात्रा अनिर्धारित रह जाती है।

4. व्यवहार में भिन्नता अल्पाधिकार में परस्पर निर्भरता के फलस्वरूप फर्मों के व्यवहार में भिन्नता पाई जाती है। जैसे कि-
(i) एक तो यह कि फर्मे आपस में मिल-जुलकर अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने का निर्णय कर सकती हैं अथवा दूसरी सीमा यह है कि वे जीवन-पर्यंत एक-दूसरे से लड़ते रहें। यदि वे आपस में समझौते भी करते हैं तो ये कुछ शीघ्र ही टूट जाते हैं।
(ii) दूसरा, फर्मे अपने में से एक को नेता चुनकर कीमत तथा उत्पादन निर्धारण कर सकती हैं, परंतु इस अवस्था में भी कोई ऐसा सरल समाधान नहीं है कि जिससे यह पता चले कि फर्म अपनी कीमत व उत्पादन का निर्धारण किस प्रकार से करेगी। अतः स्पष्ट है कि अल्पाधिकार में कीमत तथा उत्पादन-निर्धारण संबंधी समस्या का कोई निश्चित समाधान नहीं है। इसका कारण प्रतिस्पर्धी फर्मों की प्रतिक्रिया में अनिश्चितता है।

अतः अल्पाधिकार में, परस्पर निर्भरता के फलस्वरूप फर्मों के व्यवहार में विभिन्नता संभव होती है। प्रतिद्वन्द्वी फर्मे परस्पर सहयोग भी कर सकती हैं अथवा स्वतन्त्र रहकर प्रतिस्पर्धा भी कर सकती हैं। वे समझौते कर सकती हैं या समझौते तोड़ सकती हैं। अतएव अल्पाधिकार में फर्मों के व्यवहार संबंधी इतनी अनिश्चितताएँ होती हैं जिस कारण से उनके बारे में कोई स्पष्ट निर्णय नहीं लिया जा सकता। कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुसार, अल्पाधिकारियों में प्रतिस्पर्धा की तुलना ‘ताश के खेल’ (Playing Cards) से की जा सकती है। जिस प्रकार ताश के खेल का परिणाम अनिश्चित होता है, उसी प्रकार अल्पाधिकार में उत्पादन की कीमत तथा मात्रा निर्धारण का कोई समाधान नहीं होता, इसलिए उन्हें अनिर्धारित कहा जाता है।

यहाँ यह भी स्पष्ट कर देना अनिवार्य है कि यद्यपि अल्पाधिकार में, कीमत तथा उत्पादन निर्धारण की समस्या महत्त्वपूर्ण है। इन बाधाओं के होते हुए भी अल्पाधिकार की स्थिति में कीमत निर्धारण की दो मुख्य विशेषताएँ हैं-
1. अल्पाधिकार में कीमतें दृढ़ होती हैं इस स्थिति में बाजार की अन्य अवस्थाओं; जैसे पूर्ण प्रतिस्पर्धा, एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा की तुलना में कीमतों में बहुत कम परिवर्तन होता है।
2. यदि अल्पाधिकार की स्थिति में, कीमतों में परिवर्तन होता है तो सभी फर्मों की कीमतों में परिवर्तन होगा, जिससे एक प्रकार का कीमत युद्ध (Price War) सा छिड़ जाता है। यह विशेषता भी अन्य बाजारों में नहीं पाई जाती।

इस प्रकार उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि अल्पाधिकार में कीमत तथा उत्पादन-निर्धारण का कोई निश्चित समाधान नहीं है।

प्रश्न 7.
द्वि-अधिकार क्या है? द्वि-अधिकार में फर्म की कीमत तथा उत्पादन मात्रा निर्धारण संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
द्वि-अधिकार का अर्थ-जब बाज़ार में किसी वस्तु का उत्पादन या विक्रय करने वाली केवल दो फर्मे होती हैं, तो उसे द्वि-अधिकार कहते हैं।
द्वि-अधिकार के अंतर्गत कीमत तथा उत्पादन-मात्रा निर्धारण (Price and Output Determination under Duopoply) यद्यपि द्वि-अधिकार के अंतर्गत कीमत तथा उत्पादन मात्रा के निर्धारण की समस्या अत्यंत जटिल होती है तथापि द्वि-अधिकार में कीमत निर्धारण की संभावित दशाओं का विश्लेषण निम्नलिखित प्रकार किया जा सकता है-
(1) समझौता हो जाने पर यदि दोनों विक्रेता आपस में समझौता करके बाज़ारों का बँटवारा कर लेते हैं तो दोनों विक्रेता अपने-अपने बाज़ारों में एकाधिकारी के समान कीमत निश्चित करने की स्थिति में हो जाते हैं। बाज़ारों का बँटवारा हो जाने के पश्चात् दोनों विक्रेता स्वतंत्र रूप से अपने-अपने क्षेत्रों में लागत-स्थितियों तथा माँग के अनुसार समायोजन करके कीमत निश्चित कर लेते हैं। यदि दोनों एकाधिकारियों की लागत-स्थितियाँ समान हों तथा दोनों की वस्तुओं की माँग की लोच समान हो तो दोनों बाज़ारों में कीमत भी समान होगी अन्यथा उनमें अंतर होने की संभावना बनी रहेगी।

(2) प्रतिस्पर्धा की स्थिति में यदि दोनों फर्मों के बीच कोई समझौता नहीं है तो उनमें प्रतिस्पर्धा रहेगी और कीमत युद्ध (Price War) छिड़ने की संभावना रहेगी। प्रत्येक विक्रेता अपने उत्पाद की कीमत घटाकर दूसरे विक्रेता के ग्राहकों को अपनी ओर खींचने का प्रयत्न करेगा तथा यह कीमत घटाने का क्रम तब तक चलेगा जब तक कि दोनों विक्रेताओं की कीमत उनकी सीमांत लागत के बराबर नहीं हो जाती है। यदि दोनों विक्रेताओं की वस्तुएँ समरूप नहीं हैं तो दोनों की कीमत में अंतर बना रह सकता है। व्यवहार में द्वि-अधिकारी फर्मे कीमत-युद्ध से बचने के लिए मूल्य नेतृत्व और आपसी समझौते का सहारा लेती हैं। इसलिए कहा जाता है कि द्वि-अधिकार का अंतिम हल कीमत नेतृत्व एवं गुटबंदी में निहित होता है।

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प्रश्न 8.
बाजार संरचना (Market Structure) का अर्थ बताते हए इसको निर्धारित करने वाले कारकों का वर्णन करें।
उत्तर:
बाज़ार संरचना का अर्थ बाज़ार संरचना से अभिप्राय उद्योग में काम कर रही फर्मों की संख्या, फर्मों के बीच प्रतियोगिता का स्वरूप और वस्तु की अपनी प्रकृति से है।
बाज़ार संरचना को निर्धारित करने वाले कारक-बाज़ार संरचना को निर्धारित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-
1. वस्तु के क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या-क्रेताओं और विक्रेताओं की अधिक संख्या होने का अर्थ यह है कि कोई भी क्रेता या विक्रेता अपने स्वतंत्र व्यवहार से बाजार कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता। पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार की यह पहली शर्त य है जिसमें प्रत्येक विक्रेता और क्रेता कुल उत्पादन का एक सूक्ष्म भाग बेचता या खरीदता है। बाज़ार में केवल एक विक्रेता होने को एकाधिकार बाज़ार कहते हैं जबकि अधिक विक्रेता होने को एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा बाज़ार कहते हैं, क्योंकि वे अपनी वस्तु के ट्रेडमार्क व ब्रांड आदि से कीमत को प्रभावित करते हैं।

2. वस्तु की प्रकृति यदि बाज़ार में बेची जाने वाली वस्तु समरूप व मानकीकृत है अर्थात् उसमें भेद नहीं किया जा सकता तो वस्तु की कीमत एक (या समान) रहेगी। कोई भी विक्रेता ऐसी वस्तु को अधिक कीमत पर नहीं बेच सकता। यह पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाज़ार की दूसरी शर्त या विशेषता है। यदि वस्तु; जैसे टूथपेस्ट में नाम, ब्रांड, आकृति, गुण आदि के आधार पर भेद किया जा सकता है तो फर्म अपने ब्रांड की वस्तु की कीमत अधिक वसूल कर सकती है। ऐसी स्थिति एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा बाज़ार में पाई जाती है।

3. फर्मों का निर्बाध प्रवेश व बहिर्गमन-इससे अभिप्राय है कि फर्म को उद्योग में आने या इससे बाहर जाने की पूर्ण स्वतंत्रता है या नहीं। यदि किसी उद्योग में अधिक लाभ के आकर्षण के कारण नई फर्मों को प्रवेश करने की स्वतंत्रता है तो उस उद्योग में असामान्य लाभ समाप्त हो जाएंगे। इसी प्रकार यदि उद्योग में घाटा उठाने वाली फर्मों को उद्योग छोड़ने की पूरी छूट है तो घाटा (Loss) भी समाप्त हो जाएगा। संक्षेप में फर्मों के निर्बाध प्रवेश व बहिर्गमन से पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति बन जाएगी। यह भी देखना होगा कि वस्तुओं और साधनों (जैसे श्रम, पूँजी उद्यम आदि) की गतिशीलता है या नहीं अर्थात् वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाने ले जाने या साधनों को एक धंधे से दूसरे धंधे में जाने की पूरी स्वतंत्रता है या नहीं।

उपर्युक्त कारकों के आधार पर बाज़ार को प्रायः चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है-(i) पूर्ण प्रतिस्पर्धा, (ii) एकाधिकार, (iii) एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा और (iv) अल्पाधिकार। अंतिम तीन श्रेणियाँ अपूर्ण प्रतिस्पर्धा के रूप हैं।

प्रश्न 9.
एकाधिकार की परिभाषा दीजिए। इसकी मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

एकाधिकार बाज़ार का अर्थ-एकाधिकार बाज़ार (Monopoly Market) बाज़ार की वह अवस्था है जिसमें वस्तु का केवल एक ही विक्रेता होता है तथा उसका वस्तु की पूर्ति पर पूर्ण नियंत्रण होता है। एकाधिकार उस वस्तु का उत्पादन करता है, जिसका कोई निकट स्थानापन्न नहीं होता।
एकाधिकार बाज़ार की विशेषताएँ एकाधिकार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. एक विक्रेता-एकाधिकार बाज़ार में वस्तु का केवल एक ही विक्रेता होता है। अतः इस बाज़ार में फर्म तथा उद्योग का अंतर समाप्त हो जाता है।

2. निकट स्थानापन्न का न होना-एकाधिकार बाज़ार जिस वस्तु का उत्पादन या विक्रय करता है, उसका कोई निकट स्थानापन्न नहीं होता।

3. प्रवेश पर प्रतिबंध एकाधिकार बाज़ार में नई फर्मों के प्रवेश पर प्रतिबंध होता है। इसलिए एकाधिकारी का कोई प्रतियोगी नहीं होता।

4. पूर्ति पर प्रभावी नियंत्रण-वस्तु की पूर्ति पर एकाधिकारी बाज़ार का पूर्ण नियंत्रण होता है।

5. स्वतंत्र कीमत नीति-एकाधिकार बाज़ार का वस्तु की कीमत पर पूर्ण नियंत्रण होता है। वह स्वतंत्र कीमत नीति अपना सकता है। वह अपनी इच्छानुसार वस्तु की कीमत में वृद्धि या कमी कर सकता है। वह कीमत निर्धारण करने वाला होता है, न कि कीमत स्वीकार करने वाला। अतः क्रेताओं को वह कीमत देनी पड़ती है, जो एकाधिकारी तय करता है और चूँकि एकाधिकारी को वस्तु का मूल्य निर्धारण करने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है, इसलिए उसे असामान्य लाभ प्राप्त होते हैं।

6. कीमत विभेद-एकाधिकारी अपनी वस्त की विभिन्न क्रेताओं से तथा विभिन्न बाज़ारों में विभिन्न कीमतें ले सकता है।

7. विभिन्न औसत एवं सीमांत आगम वक्र-एकाधिकार में औसत और सीमांत आगम वक्र अलग-अलग होते हैं; जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दिखाए गए हैं। एकाधिकार उत्पादन (निर्गत) फर्म का औसत आगम (AR) वक्र अथवा माँग-वक्र बाएँ से दाएँ नीचे की ओर झुकते हैं जो यह बताते हैं कि कम कीमत पर अधिक और अधिक कीमत पर कम वस्तु बेची जा सकती है। सीमांत आगम (MR) वक्र भी औसत आगम (AR) की तरह नीचे को ढालू होता है और औसत आगम (AR) वक्र के नीचे रहती है।
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प्रश्न 10.
अल्पाधिकार में कीमत अनम्यता क्या है? इसके कारण पर प्रकाश डालें। रेखाचित्र का प्रयोग करें।
उत्तर:
अल्पाधिकार में कीमत अनम्यता अथवा कीमत-दृढ़ता का अर्थ-जैसाकि पहले भी स्पष्ट किया जा चुका है, अल्पाधिकार में चूँकि सभी विक्रेताओं को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है तथा उनके समक्ष सदैव कीमत की अनिश्चितता की स्थिति बनी रहती है, इसलिए प्रायः सभी विक्रेता कीमत के ऐसे संतोषजनक स्तर को स्वीकार कर लेते हैं जो सभी के लिए लाभदायक हो। इस कीमत-स्तर को स्वीकार करके प्रायः सभी फर्मे इस कीमत-स्तर को बनाए रखने का प्रयास करती हैं जिससे इस बाज़ार-स्थिति में कीमत में स्थिरता पाई जाती है। इसका एक कारण और भी होता है कि यदि कोई फर्म अपनी कीमत कम करती है तो सभी फर्मे अपनी कीमतें कम करती हैं, लेकिन यदि कोई फर्म कीमत में वृद्धि करती है तो अन्य फर्मों द्वारा कीमत में वृद्धि आवश्यक नहीं है। परिणामस्वरूप कीमत में दृढ़ता अथवा स्थिरता दिखाई पड़ती है तथा एक फर्म की माँग रेखा विकुंचित (Kinked) हो जाती है अर्थात् अल्पाधिकार के अंतर्गत वस्तु के माँग वक्र में एक कोना होता है जो वर्तमान मूल्य से संबंधित होता है। उसी बिंदु पर कीमतें स्थिर रहती हैं, न घटती हैं, न बढ़ती हैं। अतः अल्पाधिकार के अंतर्गत कीमतों में स्थिरता होती है।

कीमत अनम्यता/कीमत-दृढ़ता के कारण-कीमत अनम्यता के कारण निम्नलिखित हैं-
अल्पाधिकारी, चूँकि वर्तमान स्तर से कीमत घटाकर माँग में अधिक वृद्धि नहीं कर सकता और वर्तमान स्तर से कीमत बढ़ाने पर उसकी बिक्री बहुत कम हो जाने पर वह वर्तमान कीमत में परिवर्तन लाने का इच्छुक नहीं होगा। अन्य शब्दों में, चूँकि वर्तमान कीमत को बदलने में कोई लाभ नहीं है, इसलिए अल्पाधिकारी वर्तमान कीमत पर ही अपनी वस्तु को बेचता रहेगा। इस प्रकार दृढ़ कीमतों की विकुंचित माँग वक्र सिद्धांत की सहायता से व्याख्या की जा सकती है। रेखाचित्र में वर्तमान कीमत MP है जिस पर माँग वक्र DD विकुंचित है। बाज़ार में MP कीमत स्थिर या दृढ़ रहेगी, क्योंकि अल्पाधिकारी स्थिति में कोई भी उत्पादक कीमत को कम अथवा अधिक करने से लाभान्वित नहीं होगा। इस पर ध्यान देना चाहिए कि यदि वर्तमान कीमत MP कीमत अन्मयता MP औसत लागत से अधिक होगी तो उत्पादकों को जो लाभ प्राप्त होंगे, वे सामान्य लाभ से अधिक होंगे। इस स्थिति में कीमत में-
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  • प्रतियोगी विक्रेताओं की प्रतिक्रियाओं की अनिश्चितताओं के कारण कोई भी फर्म कीमत को कम करने को तैयार नहीं होती है।
  • फर्मे यह निष्कर्ष निकाल चुकी होती हैं कि कीमत-युद्ध से कोई उत्पादन लाभ नहीं है।
  • फर्मे गैर-कीमत प्रतिस्पर्धा को अधिक पसंद करने लगती हैं।
  • यदि फर्मों को ऐसा आभास हो कि कीमत कम करने से पारस्परिक समझौते भंग हो जाएँगे और फर्म को कठिनाई का सामना करना पड़ेगा।

इन कारणों से कीमत में स्थिरता तथा दृढ़ता पाई जाती है तथा एक फर्म का माँग वक्र मोड़दार हो जाता है। इस प्रकार कोमेदार माँग कीमत-स्थिरता के कारणों पर प्रकाश डालती है परंतु यह स्थिर-कीमत किस प्रकार निश्चित की जाती है, इसके संबंध में कोनेदार माँग प्रकाश नहीं डालती। साथ-ही-साथ इसके द्वारा इस बात पर भी प्रकाश नहीं पड़ता कि नई कीमत पर नया कोना कैसे बनता है?

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प्रश्न 11.
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा की परिभाषा दीजिए। इसकी मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा का अर्थ एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा (Monopolistic Competition) बाज़ार की उस अवस्था को कहते हैं जिसमें बहुत-सी फर्मे मिलती-जुलती वस्तुओं का उत्पादन व विक्रय कर रही होती हैं। ये वस्तुएँ बिल्कुल एक जैसी (Exactly Identical) तो नहीं होतीं, किंतु मिलती-जुलती (Similar) अवश्य होती हैं अर्थात् इनका प्रयोग एक-जैसा होता है तथा ये एक-दूसरे के निकट स्थानापन्न (Close Substitutes) होती हैं और इनमें ब्रांड, ट्रेडमार्क, गुण, रंग, रूप, सुगन्ध आदि के अंतर के कारण वस्तु विभेद (Product Differentiation) पाया जाता है; जैसे लक्स, हमाम, रेक्सोना, लिरिल आदि नहाने के साबुनों (Toilet Soaps) का उत्पादन करने वाली अनेक फळं एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा की उदाहरण हैं।

संक्षेप में, एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा बाज़ार की वह अवस्था होती है जहाँ छोटे-छोटे अनेक विक्रेता पाए जाते हैं जो विभेदीकृत परंतु निकट प्रतिस्थापन्न वस्तुएँ बेचते हैं।

एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा की विशेषताएँ-एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. फर्मों की अधिक संख्या-एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में फर्मों की संख्या अधिक होती है। इस प्रकार विक्रेताओं में प्रतिस्पर्धा पाई जाती है।

2. वस्तु विभेद-एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में अनेक फर्मे मिलती-जुलती वस्तुओं का उत्पादन करती हैं। उन वस्तुओं में रंग, रूप, आकार, डिज़ाइन, पैकिंग, ब्रांड, ट्रेडमार्क, सुगंध आदि के आधार पर वस्तु विभेद (Product Variation) किया जाता है; जैसे पेप्सोडेंट, कोलगेट, फोरहन्स, क्लोज़अप आदि टूथपेस्ट। इन पदार्थों में एकरूपता तो नहीं होती, लेकिन वे एक-दूसरे के निकट स्थानापन्न (Close Substitutes) होते हैं।

3. फर्मों के निर्बाध प्रवेश और बहिर्गमन-एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में नई फर्मों के बाज़ार में प्रवेश करने और पुरानी फर्मों को बाज़ार छोड़ने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है।

4. विक्रय लागतें-एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा बाज़ार में प्रत्येक फर्म को अपनी वस्तु का प्रचार करने के लिए विज्ञापनों पर बहुत व्यय करना पड़ता है। अतः एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में फर्मों में अपनी-अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए कीमत प्रतियोगिता तो नहीं पाई जाती, बल्कि गैर-कीमत प्रतिस्पर्धा (Non-Price Competition) पाई जाती है।

5. प्रत्येक फर्म अपनी वस्तु के लिए एकाधिकारी है प्रत्येक फर्म का अपनी वस्तु पर एकाधिकार होता है अर्थात् उस नाम की वस्तु कोई अन्य फर्म नहीं बना सकती; जैसे लक्स (Lux) साबुन के उत्पादन पर हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड का एकाधिकार है। इस बाज़ार में उपभोक्ता भी कुछ विशेष वस्तुओं के लिए अपनी-अपनी पसंद रखते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोग ब्रुक ब्राड चाय अधिक पसंद करते हैं, जबकि कुछ ताज चाय। ऐसे क्रेताओं के लिए उत्पादक एकाधिकारी ही होता है।

6. उद्योग व ग्रुप में अंतर-एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में अनेक फर्मे एक समान वस्तुओं का उत्पादन नहीं करती, अपितु मिलती-जुलती वस्तुओं का उत्पादन करती हैं। ऐसी विभिन्न फर्मों के समूह को उद्योग न कहकर ग्रुप (Group) कहा जाता है।

7. आगम (संप्राप्ति) वक्र या माँग वक्र-एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में हर फर्म की अपनी कीमत नीति होती है। इसमें फर्म के औसत तथा सीमांत संप्राप्ति वक्र एकाधिकारी बाज़ार की तरह दाईं ओर नीचे को झुके हुए होते हैं, जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दिखाया गया है। इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक फर्म को अधिक वस्तु बेचने के लिए कीमत कम करनी पड़ती है। फर्म का औसत संप्राप्ति (AR) वक्र ही फर्म का माँग वक्र होता है। ध्यान रहे कि एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में माँग वक्र पूर्ण प्रतिस्पर्धा की भाँति समस्तरीय (पूर्ण लोचदार) भी नहीं होता क्योंकि एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में किसी विशेष फर्म के उत्पाद के प्रति निष्ठावान होते हुए भी यदि मिलती-जुलती वस्तुओं की कीमत में अंतर अधिक हो जाए तो उपभोक्ता सस्ते ब्रांड की ओर शिफ्ट होंगे क्योंकि इस बाज़ार में वस्तुएँ निकट स्थानापन्न होती हैं। इसलिए माँग उत्पादन (निर्गत) अथवा औसत आगम वक्र एकाधिकार की तुलना में, अधिक लोचदार होता है।
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प्रश्न 12.
अल्पाधिकार (Oligopoly) परिभाषित कीजिए। इसकी मुख्य विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
अल्पाधिकार का अर्थ-अपूर्ण प्रतिस्पर्धा का यह एक महत्त्वपूर्ण रूप है जहाँ चंद (कुछ) फर्मों में प्रतिस्पर्धा (प्रतियोगिता) होती बाजार में अल्प अर्थात कछ ही फर्मों का अधिकार होता है। इस प्रकार यह एकाधिकार (जिसमें केवल एक विक्रेता होता है) और एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा (जिसमें अधिक फमें होती हैं) के बीच की स्थिति प्रकट करती है।
अल्पाधिकार की विशेषताएँ-अल्पाधिकार बाज़ार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. कुछ बड़ी फर्मे फर्मों का अल्प या कम होना इसकी प्रमुख विशेषता है। अल्प होने का अर्थ यह है कि फर्म कीमत और उत्पादन की मात्रा का निर्णय लेते समय प्रतियोगी फर्मों की प्रतिक्रिया (Reaction) को ध्यान में रखती हैं। इस दृष्टि से फर्मे अंतर्निभर (Interdependent) होती हैं, क्योंकि प्रत्येक फर्म द्वारा कुल उत्पादन का एक बड़ा भाग पैदा किया व बेचा जाता है जिससे वस्तु की कीमत निश्चित रूप से प्रभावित होती है। प्रत्येक फर्म अपनी क्रिया से दूसरी फर्म को प्रभावित करती है।

2. समरूप व विभेदीकृत पदार्थ-अल्पाधिकार बाज़ार में बिकने वाले पदार्थ समरूप भी हो सकते हैं; जैसे इस्पात, उर्वरक आदि और विभेदीकृत पदार्थ भी हो सकते हैं जिन्हें ब्रांड, आकार, गुण, रंग, पैकिंग आदि के आधार पर विभेदीकृत भी किया जा सकता है; जैसे कारें, टी०वी० सेट, मोटर साइकिल, स्कूटी आदि।

3. नई फर्मों का प्रवेश कठिन-एक ही वस्तु का निर्माण करने व बेचने वाली फर्मे कुछ (जैसे पाँच या सात) ही होती हैं जो आपसी मेल-जोल व सामूहिक व्यवहार से नई फर्म का प्रवेश रोकने का भरसक प्रयास करती हैं। इसके अतिरिक्त फर्मों में परस्पर निर्भरता पाई जाती है।

4. बिक्री लागते-चाहे फर्मों की संख्या सीमित होती हो फिर भी वे अपनी वस्तु लोकप्रिय बनाने व बिक्री बढ़ाने के लिए समाचार पत्रों व रेडियो, टी.वी. आदि पर विज्ञापन, मुफ्त नमूने बाँटने व सेल्समैन आदि रखने पर व्यय करती हैं जिन्हें बिक्री लागते कहते हैं।

5. माँग वक्र की अनिश्चितता-यहाँ कीमत अधिकतर अपरिवर्तित रहती है, क्योंकि कोई भी फर्म ग्राहकों से वंचित होने के डर से कीमत नहीं बढ़ाती और न ही कीमत कम करती है कि कहीं दूसरी फर्मे कीमत ज्यादा गिराकर ग्राहक आकर्षित न कर लें। इसलिए किसी भी फर्म को यह अनुमान नहीं होता कि कीमत बढ़ाने या घटाने से माँग पर क्या प्रभाव पड़ेगा। फलस्वरूप माँग वक्र का स्वरूप अनिश्चित होता है।

प्रश्न 13.
पूर्ण प्रतियोगिता और एकाधिकार में अंतर बताइए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता और एकाधिकार में निम्नलिखित अंतर हैं-

अंतर का आधारपूर्ण प्रतियोगिताएकाधिकार
1. फर्मों की संख्यापूर्ण प्रतियोगिता में फर्मों की संख्या बहुत अधिक होती है।एकाधिकार में केवल एक ही फर्म बाज़ार में होती है।
2. वस्तु की प्रकृतिपूर्ण प्रतियोगिता में वस्तु समरूप होती है।एकाधिकार में वस्तुएँ समरूप अथवा विभेदीकृत हो सकती हैं।
3. माँग वक्रपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म का माँग वक्र पूर्णतया लोचदार होता है। माँग वक्र X-अक्ष के समानांतर सीधी रेखा होती है।एकाधिकार में फर्म का माँग वक्र लोचदार होता है। माँग वक्र ऊपर से नीचे गिरता हुआ अर्थात् ऋणात्मक ढाल वाला होता है।
4. कीमतपूर्ण प्रतियोगिता में पूरे बाज़ार में वस्तु की एक ही कीमत पाई जाती है।एकाधिकारी फर्म विभिन्न क्रेताओं से एक-समान कीमत अथवा विभिन्न कीमतें वसूल कर सकती है।
5. स्वतंत्रतापूर्ण प्रतियोगिता में फर्मों के प्रवेश तथा बहिर्गमन की पूर्ण स्वतंत्रता होती है।एकाधिकार में नई फर्मों के प्रवेश पर प्रतिबंध होता हैं।
6. विक्रय लागतेंपूर्ण प्रतियोगिता में विक्रय लागतें नहीं होती।एकाधिकार में मामूली-सी विक्रय लागतें हो सकती है।

प्रश्न 14.
पूर्ण प्रतिस्पर्धा (प्रतियोगिता) और एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में अंतर बताइए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धा और एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में निम्नलिखित अंतर हैं-

अंतर का आधारपूर्ण प्रतिस्पर्धाएकाधिकारी प्रतिस्पर्धा
1. फर्मों की संख्यापूर्ण प्रतिस्पर्धा में फर्मों की संख्या बहुत अधिक होती है।एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में फर्मों की संख्या सीमित होती है।
2. कीमतपूर्ण प्रतिस्पर्धा बाज़ार में एक ही कीमत पाई जाती है।एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में वस्तु की विभिन्न कीमतें पाई जाती हैं।
3. वस्तु की प्रकृतिपूर्ण प्रतिस्पर्धा में वस्तुएँ समरूप होती हैं। अर्थात् विभिन्न फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तुओं में कोई अंतर नहीं होता।एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में विभिन्न फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तुओं में वस्तु विभेद पाया जाता है।
4. बाज़ार का ज्ञानपूर्ण प्रतिस्पर्धा में क्रेताओं और विक्रेताओं को बाज़ार की स्थिति का ज्ञान होता है।एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में क्रेताओं और विक्रेताओं को बाज़ार की स्थिति का पर्याप्त ज्ञान नहीं होता।
5. मूल्य सापेक्षतापूर्ण प्रतिस्पर्धा में माँग की पूर्ण मूल्य सापेक्षता पाई जाती है।एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में माँग की मूल्य सापेक्षता कम होती है
6. विक्रय लागतेपूर्ण प्रतिस्पर्धा में विक्रय लागतों का अभाव पाया जाता है।एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में फर्मों की विक्रय लागते अधिक होती हैं।

प्रश्न 15.
एकाधिकार और एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में अंतर बताइए।
उत्तर:
एकाधिकार और एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में निम्नलिखित अंतर हैं-

अंतर का आधारएकाधिकारएकाधिकारी प्रतिस्पर्धा
1. विक्रेताओं की संख्याएकाधिकार में वस्तु का केवल एक विक्रेता होता है।एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में वस्तुओं की संख्या अधिक होती है।
2. वस्तु की किस्मएकाधिकार में एक ही किस्म की वस्तु का विक्रय किया जाता है और उस वस्तु का कोई निकट स्थानापन्न नहीं होता।एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में वस्तु विभेद के कारण वस्तु की अनेक किस्में पाई जाती हैं।
3. फर्म का माँग वक्रएकाधिकार में फर्म का माँग वक्र सामान्यतया बेलोचदार या कम लोचदार होता है।एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में एक फर्म का माँग वक्र अधिक लोचदार होता है।
4. कीमतएकाधिकार में एक विक्रेता होता है जिसके कारण वस्तु की कीमत सामान्यतया ऊँची होती है।एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में अनेक विक्रेता होते हैं और उनकी आपसी प्रतिस्पर्धा के कारण वस्तु की कीमत सामान्यतया कम होती है।
5. लाभएकाधिकार में एक फर्म को असामान्य लाभ प्राप्त होते हैं।एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में केवल अल्पकाल में ही फर्म को असामान्य लाभ प्राप्त होते हैं।
6. फर्मों का प्रवेशएकाधिकार में नई फर्मों के प्रवेश पर अनेक रुकावटें पाई जाती हैं।एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में नई फर्मों को बाज़ार में प्रवेश की पूर्ण स्वतंत्रता होती है।

संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नीचे दी गई जानकारी के आधार पर संतुलन वाले उत्पादन स्तर का निर्धारण कीजिए। सीमांत लागत (MC), सीमांत आगम (MR) विधि का प्रयोग करें। सकारण उत्तर दीजिए।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार 20
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार 21
उत्पादन की संतुलन स्थिति उत्पादन की छठी इकाई में प्राप्त होती है क्योंकि उत्पादन के इस स्तर पर उत्पादन की संतुलन दशा को संतुष्ट करने वाली निम्नलिखित दो शर्ते पूरी हो जाती हैं
(i) सीमांत लागत (7 रुपए) सीमांत आगम (7 रुपए) के बराबर है।
(ii) इस स्तर पर उत्पादन के बाद MC >MR हैं अर्थात् सीमांत आगम संप्राप्ति से अधिक आती है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

प्रश्न 2.
दी गई सारणी में एक एकाधिकारी प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल लागत एवं कुल आगम सारणी दी गई है। संतुलन उत्पादन की मात्रा ज्ञात कीजिए-

इकाइयाँकुल लागत (रु०)कुल संप्राप्ति (रु०)
1810
21519
32127
42834
53640
64545
75549

हल:

इकाइयाँकुल लागत (रु०)कुल संप्राप्ति (रु०)कुल लाभ (रु०)
181010 – 8 = 2
2151919 – 15 = 4
3212727 – 21 = 6
4283434 – 28 = 6
5364040 – 36 = 4
6454545 – 45 = 0
7554949 – 55 = -6

उपर्युक्त तालिका के अनुसार एकाधिकारी फर्म का कुल लाभ = 6 प्रतिस्पर्धा फर्म के संतुलन उत्पादन की मात्रा 4 इकाइयाँ हैं चूंकि इस स्थिति में फर्म का कुल लाभ = 6 सर्वाधिक है।

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HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. संतुलन कीमत उस कीमत को कहते हैं जिस पर-
(A) क्रेता वस्तु को खरीदने के लिए तैयार है
(B) विक्रेता वस्तु को बेचने के लिए तैयार है
(C) वस्तु की माँग तथा पूर्ति बराबर हो जाती है
(D) वस्तु की कीमत वस्तु की उपयोगिता के बराबर होती है
उत्तर:
(C) वस्तु की माँग तथा पूर्ति बराबर हो जाती है

2. पूर्ति के स्थिर रहने तथा माँग के कम होने पर कीमत
(A) बढ़ती है
(B) स्थिर रहती है
(C) कम होती है
(D) घटती-बढ़ती रहती है
उत्तर:
(C) कम होती है

3. माँग के स्थिर रहने तथा पूर्ति के कम होने पर कीमत-
(A) बड़ती है
(B) स्थिर रहती है
(C) कम होती है
(D) घटती-बढ़ती रहती है
उत्तर:
(A) बढ़ती है

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

4. जब माँग और पूर्ति एक साथ बढ़ती है परंतु माँग में होने वाली वृद्धि पूर्ति में होने वाली वृद्धि से अधिक होती है तो कीमत
(A) बढ़ेगी
(B) कम होगी
(C) स्थिर रहेगी
(D) घटती-बढ़ती रहेगी
उत्तर:
(A) बढ़ेगी

5. जब माँग और पूर्ति में बराबर वृद्धि होती है तो उत्पादन की मात्रा-
(A) बढ़ेगी
(B) कम होगी
(C) स्थिर रहेगी
(D) घटती-बढ़ती रहेगी
उत्तर:
(A) बढ़ेगी

6. जब माँग और पूर्ति में बराबर कमी होती है तो कीमत
(A) बढ़ती है
(B) कम होती है
(C) स्थिर रहती है
(D) घटती-बढ़ती रहती है
उत्तर:
(C) स्थिर रहती है

7. जब पूर्ति पूर्णतया लोचदार हो तथा माँग में वृद्धि हो तो संतुलन कीमत पर क्या प्रभाव होगा?
(A) समान रहेगी
(B) घटेगी
(C) बढ़ेगी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) समान रहेगी

8. पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार होने पर माँग में वृद्धि होने से संतुलन कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(A) बढ़ेगी
(B) घटेगी
(C) स्थिर रहेगी
(D) समान रहेगी
उत्तर:
(A) बढ़ेगी

9. माँग पूर्णतया बेलोचदार होने पर पूर्ति में कमी का संतुलन मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(A) बढ़ेगी
(B) घटेगी
(C) समान रहेगी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) समान रहेगी

10. माँग पूर्णतया लोचदार होने पर पूर्ति में कमी का संतुलन कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(A) समान रहेगी
(B) बढ़ेगी
(C) घटेगी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) समान रहेगी

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

11. बाजार कीमत का निर्धारण किया जाता है
(A) अल्पकाल में
(B) अति-अल्पकाल में
(C) दीर्घकाल में
(D) अति-दीर्घकाल में
उत्तर:
(B) अति-अल्पकाल में

12. संतुलन कीमत से कम, कीमत की उच्चतम सीमा निर्धारण से-
(A) अधिमाँग की स्थिति उत्पन्न होती है
(B) न्यून माँग की स्थिति उत्पन्न होती है
(C) शून्य माँग की स्थिति उत्पन्न होती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) अधिमाँग की स्थिति उत्पन्न होती है

13. संतुलन कीमत से अधिक, कीमत की निम्नतम सीमा निर्धारण से-
(A) अधिपूर्ति की स्थिति उत्पन्न होती है
(B) न्यून पूर्ति की स्थिति उत्पन्न होती है
(C) शून्य पूर्ति की स्थिति उत्पन्न होती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) अधिपूर्ति की स्थिति उत्पन्न होती है।

14. जब सरकार द्वारा किसी वस्तु की उच्चतम कीमत निर्धारित की जाती है, तो उसे कहा जाता है-
(A) समर्थन मूल्य
(B) उच्चतम निर्धारित कीमत
(C) न्यूनतम निर्धारित कीमत
(D) उचित कीमत
उत्तर:
(B) उच्चतम निर्धारित कीमत

15. अभिरुचियों में सकारात्मक परिवर्तन का वस्तु की कीमत और विनिमय मात्रा पर कैसा प्रभाव पड़ता है?
(A) कीमत और विनिमय मात्रा में वृद्धि होती है
(B) कीमत और विनिमय मात्रा समान रहती है
(C) कीमत और विनिमय मात्रा में कमी होती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) कीमत और विनिमय मात्रा में वृद्धि होती है

16. किसी अव्यवहार्य (Non-viable) उद्योग का पूर्ति वक्र माँग वक्र की तुलना में कहाँ स्थित होता है?
(A) पूर्ति वक्र माँग वक्र के नीचे होता है
(B) पूर्ति वक्र माँग वक्र के ऊपर होता है
(C) पूर्ति वक्र माँग वक्र को प्रतिच्छेदित करता है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) पूर्ति वक्र माँग वक्र के ऊपर होता है

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. पूर्ति के स्थिर तथा माँग के कम होने पर कीमत …………… होती है। (कम/अधिक)
उत्तर:
कम

2. माँग के …………. होने तथा पूर्ति के कम होने पर कीमत बढ़ती है। (स्थिर/परिवर्तित)
उत्तर:
स्थिर

3. जब माँग और पूर्ति में …………. वृद्धि होती है तो उत्पादन की मात्रा बढ़ती है। (समान/असमान)
उत्तर:
समान

4. जब माँग और पूर्ति में बराबर कमी होती है तो कीमत ………….. रहती है। (परिवर्तित स्थिर)
उत्तर:
स्थिर

5. जब सरकार द्वारा किसी वस्तु की उच्चतम कीमत निर्धारित की जाती है, तो उसे ………….. निर्धारित कीमत कहा जाता है। (न्यूनतम/उच्चतम)
उत्तर:
उच्चतम

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

6. वस्तु की वह मात्रा जिसे संतुलन कीमत पर बेचा और खरीदा जाता है, वह …………. कहलाती है। (संतुलन मात्रा पूर्ति मात्रा)
उत्तर:
संतुलन मात्रा

7. फर्म उस समय संतुलन में होता है, जब उसे अधिकतम ………….. प्राप्त होता होती है। (लाभ/हानि)
उत्तर:
लाभ

8. बिक्री कर लगाना और आर्थिक सहायता देना ………… बाज़ार व्यवस्था के उदाहरण हैं। (प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष)
उत्तर:
अप्रत्यक्ष

9. संतुलन कीमत से अधिक कीमत की निम्नतम सीमा निर्धारण से …………… की स्थिति उत्पन्न होती है। (अधिपूर्ति/न्यूनपूर्ति)
उत्तर:
अधिपूर्ति

C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत

  1. पूर्ण बाज़ार में विक्रेता कीमत-स्वीकारक नहीं होता।
  2. पूर्ण बाज़ार में विक्रय लागतों का महत्त्व होता है।
  3. बाज़ार कीमत वह कीमत है जिसकी बाज़ार में प्रचलित होने की प्रवृत्ति होती है।
  4. समर्थन मूल्य संतुलन कीमत से अधिक होता है।
  5. पूर्ण प्रतियोगिता की तुलना में शुद्ध प्रतियोगिता अधिक वास्तविक होती है।
  6. पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में वस्तुएँ समरूप होती हैं।
  7. पूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म कीमत को प्रभावित करती है।
  8. पूर्ण प्रतियोगिता उस समय तक नहीं पाई जाती जब तक बाज़ार में फर्मों का स्वतन्त्र प्रवेश नहीं होता।
  9. अल्पकाल में वस्तु की कीमत पर माँग की अपेक्षा पूर्ति का अधिक प्रभाव पड़ता है।
  10. सामान्य कीमत का संबंध अल्पकाल से होता है।
  11. पूर्ति तथा स्टॉक में अंतर होता है।
  12. अर्थशास्त्र में प्रत्येक वस्तु का अलग बाज़ार होता है।
  13. एकाधिकार में अन्य बाज़ारों की अपेक्षा कीमत कम व उत्पादन अधिक होता है।
  14. एकाधिकारी प्रतियोगिता में वस्तुएँ निकट स्थानापन्न नहीं होती।
  15. द्वि-अधिकार में दो क्रेता होते हैं।
  16. अल्पाधिकार में अनेक विक्रेता होते हैं।
  17. एकाधिकार में एक नई फर्म का बाज़ार में प्रवेश हो सकता है।
  18. यदि किसी वस्तु की माँग बढ़ती है, अन्य बातें समान रहने पर उसकी कीमत कम होती है।
  19. दीर्घकाल में एक वस्तु की कीमत सीमांत लागत के बराबर होती है।
  20. माँग के स्थिर रहने तथा पूर्ति के कम होने पर कीमत बढ़ती है।

उत्तर:

  1. गलत
  2. गलत
  3. गलत
  4. सही
  5. सही
  6. गलत
  7. गलत
  8. सही
  9. गलत
  10. गलत
  11. सही
  12. सही
  13. गलत
  14. गलत
  15. गलत
  16. गलत
  17. गलत
  18. गलत
  19. सही
  20. सही।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संतुलन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
संतुलन से अभिप्राय ऐसी स्थिति से है जिसमें परिवर्तन की प्रवृत्ति का अभाव हो।

प्रश्न 2.
उन दो कारकों का उल्लेख कीजिए जिन पर संतुलन कीमत निर्भर करती है।
उत्तर:

  • वस्तु की बाज़ार माँग।
  • वस्तु की बाज़ार पूर्ति।

प्रश्न 3.
संतुलन कीमत के निर्धारण में किस बाज़ार शक्ति, माँग तथा पूर्ति, का अधिक योगदान होता है?
उत्तर:
संतुलन कीमत के निर्धारण में माँग और पूर्ति का बराबर योगदान होता है, क्योंकि वस्तु की कीमत उस बिंदु पर निर्धारित होती है जहाँ माँग और पूर्ति दोनों एक-दूसरे के बराबर होती हैं।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 4.
उपभोग में प्रतिस्थापक (Substitute) वस्तु की कीमत में वृद्धि का संतुलन कीमत पर क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
प्रतिस्थापक वस्तु की कीमत में वृद्धि से संतुलन कीमत में वृद्धि हो जाएगी क्योंकि इस वस्तु की माँग बढ़ जाएगी।

प्रश्न 5.
अभिरुचियों में सकारात्मक परिवर्तन का कीमत और विनिमय मात्रा पर कैसे प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
अभिरुचियों में सकारात्मक परिवर्तन से वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है जिसके फलस्वरूप कीमत और विनिमय मात्रा दोनों में वृद्धि होगी।

प्रश्न 6.
अभिरुचियों में नकारात्मक परिवर्तन का कीमत और विनिमय मात्रा पर कैसे प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
अभिरुचियों में नकारात्मक परिवर्तन से वस्तु की माँग में कमी हो जाती है जिसके फलस्वरूप कीमत और विनिमय मात्रा में कमी आती है।

प्रश्न 7.
कीमत नियंत्रण से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कीमत नियंत्रण से अभिप्राय यह है कि सरकार ने कुछ वस्तुओं की कीमत की उच्चतम सीमा निर्धारित कर दी है।

प्रश्न 8.
कीमत नियंत्रण का क्या उद्देश्य है?
उत्तर:
कीमत नियंत्रण का उद्देश्य गरीब जन-समुदाय को अति आवश्यक वस्तुओं; जैसे खाद्यान्नों आदि को उचित कीमत पर उपलब्ध कराना होता है।

प्रश्न 9.
नियंत्रित कीमत और संतुलन कीमत में क्या संबंध है?
उत्तर:
उपभोक्ताओं के हित की रक्षा के लिए सरकार नियंत्रित कीमत को संतुलन कीमत से कम रखती है।

प्रश्न 10.
नियंत्रित कीमत से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सरकार द्वारा वस्तु की संतुलन कीमत से कम निर्धारित कीमत, नियंत्रित कीमत कहलाती है।

प्रश्न 11.
सरकार किन दो रूपों में कीमत नियंत्रित करती है?
उत्तर:
सरकार अधिकतम कीमत तथा न्यूनतम कीमत निर्धारित करके कीमत नियंत्रित करती है।

प्रश्न 12.
उच्चतम कीमत सीमा (Price Ceiling) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जब सरकार द्वारा किसी वस्तु की उच्चतम कीमत निर्धारित की जाती है, तो उसे कीमत की उच्चतम सीमा कहते हैं।

प्रश्न 13.
न्यूनतम (समर्थन) कीमत क्या है?
उत्तर:
न्यूनतम (समर्थन) कीमत से अभिप्राय उस कीमत से है जो सरकार द्वारा प्रचलित कीमत से अधिक निर्धारित की जाती है और उस कीमत पर सरकार वस्तुओं का क्रय करती है अर्थात् संतुलन कीमत से अधिक निर्धारित कीमत समर्थन कीमत कहलाती है।

प्रश्न 14.
राशनिंग से आप क्या समझते हैं? उत्तर:राशनिंग का अर्थ एक व्यक्ति के लिए वस्तु के उपभोग या क्रय की उच्चतम सीमा का निर्धारण करना है। प्रश्न 15. ‘कालाबाजारी’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कालाबाजारी का अर्थ किसी वस्तु को सरकार द्वारा निर्धारित कीमत से अधिक कीमत पर गैर-कानूनी ढंग से बेचा जाना है।

प्रश्न 16.
मज़दूरी दर का निर्धारण कैसे होता है?
उत्तर:
मज़दूरी दर का निर्धारण उस बिंदु पर होता है जहाँ श्रम की माँग और श्रम की पूर्ति बराबर हो।

प्रश्न 17.
वस्तु की माँग और श्रम की माँग में क्या अंतर है?
उत्तर:
वस्तु की माँग उपभोक्ता द्वारा की जाती है और श्रम की माँग उत्पादक द्वारा की जाती है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 18.
वस्तु के पूर्ति वक्र और श्रम के पूर्ति वक्र में क्या अंतर है?
उत्तर:
वस्तु के पूर्ति वक्र की प्रवणता नीचे से ऊपर होती है जबकि श्रम के पूर्ति वक्र की प्रवणता एक सीमा के बाद पीछे की ओर मुड़ी हुई होती है।

प्रश्न 19.
किसी उद्योग के व्यवहार्य (अर्थक्षेम) (Viable) होने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
व्यवहार्य या अर्थक्षेम उद्योग वह होता है जिसके माँग वक्र और पूर्ति वक्र उत्पादन के धनात्मक स्तर पर परस्पर काटते हैं।

प्रश्न 20.
‘बाज़ार’ (Market) अवधारणा का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बाजार से अभिप्राय उस क्षेत्र से है जिसमें वस्तु के क्रय-विक्रय के लिए खरीदने और बेचने वाले एक-दूसरे के संपर्क में रहते हैं।

प्रश्न 21.
बाज़ार व्यवस्था के मुख्य तत्त्व बताएँ।
उत्तर:

  1. पदार्थ या सेवा का उपलब्ध होना
  2. क्षेत्र, जहाँ वस्तु का लेन-देन हो
  3. क्रेता व विक्रेता का विद्यमान होना
  4. क्रेताओं व विक्रेताओं में संपर्क होना है। ध्यान रहे क्रेताओं व विक्रेताओं के बीच संपर्क (प्रतिस्पर्धा) आमने-सामने होने के अतिरिक्त डाक-तार या टेलीफोन से भी हो सकता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित को स्पष्ट कीजिए (क) पूर्ण प्रतियोगिता में सीमांत संप्राप्ति (MR), औसत संप्राप्ति (AR) के बराबर क्यों होते हैं? (ख) पूर्ण प्रतियोगिता में MR व AR रेखा X-अक्ष के समानांतर क्यों होते हैं?
उत्तर:
(क) पूर्ण प्रतियोगिता में AR, MR के बराबर (AR=MR) होने का कारण यह है कि उद्योग कीमत निर्धारित करता है और फर्म इसे स्वीकार करती है। स्पष्ट है कि उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत पर फर्म जितनी भी इकाइयाँ बेचेगी, उसे प्रत्येक अतिरिक्त इकाई से आगम (अर्थात् MR) उस कीमत (अर्थात् AR) के बराबर मिलेगा। फलस्वरूप MR औसत आगम (AR) के बराबर होगा, क्योंकि कीमत और A=R सदा समान होते हैं। संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि पूर्ण प्रतियोगिता (प्रतिस्पर्धा) में MR, AR व कीमत बराबर होते हैं अर्थात् MR = AR = कीमत।

(ख) पूर्ण प्रतियोगिता में MR व AR रेखा (वक्र) एक समतल सीधी रेखा (Horizontal Straight Line) होती है जो X-अक्ष के समानांतर होती है। इसका कारण यह है कि MR और AR बराबर होते हैं। MR,AR के बराबर इसलिए होता है क्योंकि फर्म उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत पर ही वस्तु बेच सकती है। MR,AR और कीमत बराबर होने के फलस्वरूप उनका वक्र एक ही बनता है जो X-अक्ष के समानांतर होता है। चूंकि AR कीमत के बराबर होता है, इसलिए AR वक्र को कीमत रेखा भी कहते हैं।

प्रश्न 2.
माँग व पूर्ति अनुसूचियों की सहायता से बाज़ार संतुलन का निर्धारण समझाइए। रेखाचित्र भी बनाइए।
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में वस्तु की कीमत का निर्धारण फर्म द्वारा नहीं, बल्कि उद्योग द्वारा वस्तु की बाज़ार माँग और बाज़ार पूर्ति की शक्तियों द्वारा किया जाता है। बाज़ार में एक वस्तु की कीमत सामान्यतः वस्तु की माँग और पूर्ति शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है। जिस कीमत पर वस्तु की माँग वस्तु की पूर्ति के बराबर होती है, वह बाज़ार कीमत निर्धारित होती है। इसे हम सारणी व रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं

गेहूँ की कीमत (रुपए)गेहूँ की माँग (क्विंटल)गेहूँ की पूर्ति (क्विंटल)
9008025
10007040
11005050
12003070
13001590

उपर्युक्त सारणी में गेहूँ की बाज़ार कीमत 1100 रुपए प्रति क्विंटल है, जबकि रेखाचित्र में बाज़ार की कीमत OP है। क्योंकि इस कीमत पर वस्तु की माँग (50 क्विंटल) वस्तु की बाज़ार पूर्ति (50 क्विंटल) बराबर है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 3.
संतुलन कीमत या साम्य कीमत (Equilibrium Price) तथा बाज़ार संतुलन (Market Equilibrium) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
संतुलन कीमत-वह कीमत जिस पर वस्तु की माँग और पूर्ति बराबर होती है, संतुलन कीमत कहलाती है और माँग व पूर्ति की मात्रा को संतुलन मात्रा कहते हैं। जिस निश्चित बिंदु पर माँग वक्र और पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं उसे संतुलन बिंदु कहते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 1
बाज़ार संतुलन-बाज़ार संतुलन तब होता है जब वस्तु की माँगी गई मात्रा और पूर्ति की मात्रा बराबर होती है। ऐसी अवस्था में न तो आधिक्य माँग होती है और न ही आधिक्य पूर्ति होती है अर्थात् बाज़ार माँग और बाज़ार पूर्ति में पूर्ण संतुलन होता है। बाजार कीमत वह कीमत है जिस पर बाज़ार में वस्तुओं का क्रय-विक्रय होता है। यह संतुलन कीमत से कम या अधिक हो सकती है।

प्रश्न 4.
किन परिस्थितियों में पूर्ति में वृद्धि का उसकी कीमत पर प्रभाव नहीं पड़ेगा?
उत्तर:
निम्नलिखित परिस्थितियों में पूर्ति में वृद्धि का उसकी कीमत पर प्रभाव नहीं पड़ेगा
(i) जब पूर्ति में वृद्धि के साथ-साथ उसी अनुपात में माँग में भी वृद्धि हो। इसे हम निम्नांकित रेखाचित्र (i) द्वारा दिखा सकते हैं। (ii) जब माँग पूर्णतया लोचदार हो। इसे हम निम्नांकित रेखाचित्र (ii) द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 2

प्रश्न 5.
रेखाचित्र की सहायता से संतुलन कीमत और मात्रा पर पड़ने वाले प्रभाव को दिखाइए जब-
(i) माँग पूर्णतया लोचदार है और पर्ति घटती है।
(ii) पूर्ति पूर्णतया लोचदार है और माँग बढ़ती है।
उत्तर:
(i) जब माँग पूर्णतया लोचदार है और पूर्ति घटती है तो कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। अग्रांकित रेखाचित्र में पूर्ति घटने के पश्चात् भी कीमत पूर्ववत् OP बनी रहती है लेकिन मात्रा OQ से घटकर OQ1 हो जाती हैं। जैसाकि अग्रांकित रेखाचित्र (i) से स्पष्ट हो रहा है।

(ii) यदि पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार है और माँग बढ़ती है तो संतुलन कीमत में वृद्धि होती है लेकिन वस्तु की मात्रा पूर्ववत् रहती है। जैसाकि निम्नांकित रेखाचित्र में माँग बढ़ने पर संतुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है लेकिन वस्तु की मात्रा OQ ही बनी रहती है। जैसाकि निम्नांकित रेखाचित्र (ii) से स्पष्ट हो रहा है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 3

प्रश्न 6.
बाज़ार कीमत और विनिमय मात्रा पर क्या प्रभाव होगा, जब (i) माँग वक्र दाहिनी ओर खिसक जाए। (i) माँग वक्र पूर्णतया लोचशील हो और पूर्ति वक्र बाहर की ओर खिसक जाए। (ii) माँग और पूर्ति वक्रों में समान अनुपात में बाईं ओर खिसकाव हो जाए।
उत्तर:
(i) जब माँग वक्र दाहिनी ओर खिसक जाए तो बाज़ार कीमत बढ़ जाएगी और विनिमय मात्रा भी बढ़ जाएगी। निम्नांकित रेखाचित्र में कीमत OP से बढ़कर OP1 तथा विनिमय मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो गई है। जैसाकि निम्नांकित रेखाचित्र (i) से स्पष्ट हो रहा है।

(ii) जब माँग वक्र पूर्णतया लोचशील हो और पूर्ति वक्र बाहर की ओर खिसक जाए तो संतुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन विनिमय मात्रा में वृद्धि होगी जैसाकि रेखाचित्र (ii) में कीमत OP रहती है लेकिन विनिमय मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।

(iii) जब माँग और पूर्ति वक्रों में समान अनुपात में बाईं ओर खिसकाव हो तो बाज़ार कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होगा, लेकिन विनिमय मात्रा में कमी आएगी। निम्नांकित रेखाचित्र में कीमत OP ही रहेगी परंतु विनिमय मात्रा OQ से कम होकर OQ1 हो जाएगी। जैसाकि निम्नांकित रेखाचित्र (iii) से स्पष्ट हो रहा है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 4

प्रश्न 7.
जब किसी वस्तु की बाज़ार पूर्ति में वृद्धि होती है तो उस वस्तु की संतुलन कीमत व मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है? रेखाचित्र की सहायता से दर्शाइए।
अथवा
एक वस्तु के पूर्ति वक्र के दायीं ओर खिसकने से उसकी संतुलन कीमत और मात्रा पर होने वाले प्रभाव को एक रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
किसी वस्तु की बाज़ार पूर्ति में वृद्धि से उस वस्तु का पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाता है जिसके फलस्वरूप संतुलन कीमत में कमी और संतुलन मात्रा में वृद्धि होती है। इसे हम रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 5
संलग्न रेखाचित्र में SS वस्तु का प्रारंभिक पूर्ति वक्र है जो वस्तु के माँग वक्र DD को E बिंदु पर काटता है जिससे संतुलन कीमत OP तथा संतुलन मात्रा OQ निर्धारित होती है। जब पूर्ति वक्र खिसकर S1S1 हो जाता है तो नया संतुलन बिंदु E1 हो जाता है जहाँ संतुलन कीमत OP1 है जो पूर्व संतुलन कीमत से कम है लेकिन संतुलन मात्रा OQ1 है जो पूर्व संतुलन मात्रा से अधिक है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 8.
जब किसी वस्तु की बाज़ार माँग में कमी होती है जो उस वस्तु की कीमत और मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है? एक रेखाचित्र की सहायता से दर्शाइए।
अथवा
एक वस्तु के माँग वक्र के बायीं ओर खिसकने से उसकी संतुलन कीमत और मात्रा पर होने वाले प्रभाव को एक रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
किसी वस्तु की बाज़ार माँग में कमी से उस वस्तु का माँग वक्र बायीं ओर खिसक जाता है जिससे उस वस्तु की संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा भी कम हो जाती है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र से दिखा सकते हैं-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 6
संलग्न रेखाचित्र में DD वस्तु का प्रारंभिक मॉग वक्र है जो वस्तु के पूर्ति वक्र SS को E बिंदु परं काटता है जिसके फलस्वरूप OP संतुलन कीमत और OQ संतुलन मात्रा निर्धारित होती है। माँग वक्र के दायीं ओर खिसकने से माँग वक्र D1D1 हो जाता है जो पूर्व पूर्ति वक्र को E1 बिंदु पर काटता है जिसके फलस्वरूप संतुलन कीमत OP से कम होकर OP1 तथा संतुलन मात्रा OQ से कम होकर OQ1 हो जाती है।

प्रश्न 9.
एक वस्तु की पूर्ति में कमी का उसकी संतुलन कीमत और मात्रा वस्तु की मात्रा पर प्रभाव एक रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
अथवा
एक वस्तु की पूर्ति वक्र के बाईं ओर खिसकने से उसकी संतुलन कीमत और मात्रा पर प्रभाव एक रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
एक वस्तु के पूर्ति वक्र के बाईं ओर खिसकने का अर्थ है कि वस्तु की पूर्ति में कमी हुई है। एक वस्तु के पूर्ति वक्र के बाईं ओर खिसकने से उस वस्तु की संतुलन कीमत और मात्रा पर जो प्रभाव पड़ेगा उसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 7a
संलग्न रेखाचित्र में प्रारंभिक पूर्ति वक्र SS है जो माँग वक्र DD को बिंदु E पर काटता है जिससे OP संतुलन कीमत और OQ संतुलन मात्रा निर्धारित होती है। पूर्ति वक्र SS के बाईं ओर खिसकने से पूर्ति वक्र SS1 हो जाता है जो माँग वक्र को E1 पर काटता है जिससे संतुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है और संतुलन मात्रा OQ से घटकर OQ1 हो जाती है। इस प्रकार एक वस्तु की पूर्ति में कमी से संतुलन कीमत में वृद्धि होगी और संतुलन मात्रा में कमी होगी।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पूर्ण प्रतियोगिता (प्रतिस्पर्धा) बाज़ार से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता (प्रतिस्पर्धा) बाज़ार का अर्थ-पूर्ण प्रतियोगिता (प्रतिस्पर्धा) बाज़ार की वह अवस्था है जिसमें असंख्य क्रेता और विक्रेता स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करते हैं और वस्तु एक-समान कीमत पर बाज़ार में बिकती है। वस्तुएँ समरूप (Homogeneous) होती हैं। उद्योग वस्तु की कीमत निर्धारित (Price Maker) करता है और फर्म कीमत स्वीकार (Price taker) करती है। क्रेताओं व विक्रेताओं को बाज़ार की स्थिति का पूर्ण ज्ञान होता है और बाज़ार में नई फर्मों के प्रवेश या बाज़ार छोड़ने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है।

पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार की विशेषताएँ पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. क्रेताओं व विक्रेताओं की अत्यधिक संख्या पूर्ण प्रतियोगिता में क्रेता तथा विक्रेता दोनों की संख्या इतनी अधिक होती है कि कोई भी अकेली फर्म या व्यक्ति अपने व्यक्तिगत व्यवहार से प्रचलित कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता। इसका कारण यह है कि प्रत्येक विक्रेता और क्रेता बाज़ार में वस्तु की कुल पूर्ति/माँग का बहुत थोड़ा अंश बेचता या खरीदता है।

2. समरूप वस्तुएँ विभिन्न फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तुएँ, गुण, रंग, रूप तथा आकार में समरूप होती हैं। वस्तु (उत्पाद) एक समान या समरूप होने के कारण कोई भी विक्रेता किसी वस्तु की कीमत अधिक वसूल नहीं कर सकता अन्यथा वह ग्राहक खो बैठेगा। इसी प्रकार कोई क्रेता किसी विशेष फर्म द्वारा बनाई वस्तु को प्राथमिकता नहीं दे सकता, क्योंकि वस्तु की इकाइयाँ हर दृष्टि से एक-समान होती हैं और उनमें भेद करना कठिन होता है।

3. निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन-पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म को उद्योग में आने और छोड़ने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है। यदि फर्म को किसी उद्योग के अंतर्गत असामान्य लाभ दिखाई देता है और फर्म उद्योग में आना चाहे तो आ सकती है और यदि हानि दिखाई दे तो फर्म उद्योग को छोड़कर जा सकती है। इसलिए सब फर्मे केवल सामान्य लाभ कमा सकती हैं।

4. परिवहन लागत का अभाव कीमत की समानता के लिए जरूरी है कि परिवहन लागत स्थिर होनी चाहिए। कीमत की समानता के लिए यह मान लिया जाता है कि वस्तु को लाने व ले जाने में परिवहन व्यय नहीं होता। गुण, आकार तथा रूप में वस्तु एक जैसी होने के कारण इसके विज्ञापन पर विक्रेता को व्यय करने की आवश्यकता नहीं होती।

5. पूर्ण ज्ञान-क्रेताओं और विक्रेताओं को कीमत संबंधी पूर्ण जानकारी होनी चाहिए। क्रेताओं को मालूम होना चाहिए कि बाज़ार में वस्तु की क्या कीमत है और विक्रेताओं को भी मालूम होना चाहिए कि बाज़ार में वस्तु किस कीमत पर बिक रही है। इसलिए यदि दोनों को कीमत की पूर्ण जानकारी होगी तो विक्रेता क्रेता से वस्तु की अधिक कीमत नहीं ले सकेगा।

6. पूर्ण गतिशीलता यहाँ उत्पादन के सभी साधनों की पूर्ण गतिशीलता होती है अर्थात् वे मनपसंद धंधे में आ-जा सकते हैं। इसी प्रकार वस्तुओं को एक-स्थान से दूसरे स्थान पर लाने ले जाने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है। जब अर्थव्यवस्था में साधनों और वस्तुओं की पूरी गतिशीलता होगी तो बाज़ार में वस्तु की एक ही कीमत होगी।

7. समान कीमत–पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार में वस्तु की कीमत समान होगी, क्योंकि कीमत उद्योग की समस्त माँग और पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है जिसे प्रत्येक फर्म स्वीकार करती है।

8. माँग (AR) वक्र माँग वक्र पूर्ण लोचशील और X-अक्ष के समानांतर होता है।

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प्रश्न 2.
पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग कीमत निर्धारित करता (Price Maker) है और फर्म कीमत स्वीकार करती (Price Taker) है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग कीमत-निर्धारक व फर्म कीमत-स्वीकारक होती है-
1. उद्योग और फर्म में अंतर-मोटे रूप में किसी वस्तु विशेष के क्रेताओं और विक्रेताओं के समूह को उस वस्तु का उद्योग कहते हैं और उद्योग में व्यक्तिगत उत्पादन इकाई को फर्म कहते हैं। परंतु यहाँ उद्योग का अभिप्राय उन फर्मों के समूह से है जो एक प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन करती हैं; जैसे जूतों के सभी उत्पादकों के समूह को जूता उद्योग (Shoe Industry) और कपड़ा बनाने वाली सभी मिलों के समूह को कपड़ा उद्योग कहेंगे।

2. कीमत निर्धारण में उद्योग व फर्म की भूमिका पूर्ण प्रतियोगिता में किसी वस्तु की कीमत का निर्धारण समस्त उद्योग की माँग व पूर्ति द्वारा होता है। यहाँ वस्तु की कीमत का निर्धारण किसी एक उत्पादक (या फम) द्वारा नहीं होता, बल्कि उस उद्योग की सामूहिक माँग व सामूहिक पूर्ति द्वारा होता है। उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत प्रत्येक फर्म को स्वीकार करनी पड़ती है। फर्म को केवल इतनी छूट है कि इस दी हुई कीमत पर जितना चाहे बेच सकती है। इसीलिए पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग को कीमत-निर्धारक और फर्म को कीमत-स्वीकारक कहा जाता है।

3. कीमत का निर्धारण–पूर्ण प्रतिस्पर्धा में वस्तु की कीमत का निर्धारण उद्योग की कुल माँग व कुल पूर्ति के संतुलन पर होता है। इसे उद्योग की संतुलन कीमत भी कहते हैं। इसे अग्रांकित तालिका व रेखाचित्र द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है।
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दी गई तालिका व रेखाचित्र से स्पष्ट है कि इस उद्योग में माँग व पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित कीमत 6 रुपए प्रति इकाई होगी, क्योंकि इस कीमत पर माँग व पूर्ति दोनों बराबर हैं अर्थात् 60-60 इकाइयाँ हैं। उद्योग द्वारा निर्धारित इस कीमत को प्रत्येक फर्म स्वीकार करेगी। यदि कोई फर्म इस कीमत से अधिक लेने का प्रयत्न करेगी तो उसकी वस्तु कोई नहीं खरीदेगा। यदि वह कम लेगी तो हानि सहन करेगी। अतः कीमत 6 रुपए ही रहेगी चाहे कोई फर्म इस कीमत पर कम बेचे या अधिक बेचे, उद्योग में रहे या उद्योग छोड़कर चली जाए।

प्रश्न 3.
एक वस्तु की एक दी हुई कीमत पर ‘माँग आधिक्य’ है। क्या यह कीमत एक संतुलन कीमत है? यदि नहीं, तो संतुलन कीमत कैसे स्थापित होगी? (रेखाचित्र का प्रयोग कीजिए।)
उत्तर:
एक वस्तु की दी हुई कीमत पर माँग आधिक्य का अर्थ यह है कि वस्तु की माँग वस्तु की पूर्ति से अधिक है। ऐसी कीमत संतुलन कीमत नहीं हो सकती। संतुलन कीमत से अभिप्राय उस कीमत से है जिस पर वस्तु की माँग उसकी पूर्ति के बराबर होती है।
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यदि एक वस्तु की दी हुई कीमत पर माँग आधिक्य है तो संतुलन कीमत पर निम्नलिखित विकल्पों द्वारा पहुँचा जा सकता है-
(i) माँग आधिक्य से संतुलन कीमत पर पहुँचने के लिए उत्पादकों को माँग आधिक्य को दूर करने के लिए उसी कीमत पर अधिक पूर्ति करने के लिए प्रोत्साहित करना पड़ेगा। इसे हम संलग्न रेखाचित्र (i) द्वारा दिखा सकते हैं।

संलग्न रेखाचित्र (i) में हम देखते हैं कि OP कीमत पर पूर्ति OQ है जबकि माँग OQ1 है जिसके फलस्वरूप AB (QQ1) माँग का आधिक्य है। इसे दूर करने के लिए पूर्ति वक्र को SS से S1S1 तक खिसकाना होगा अर्थात् पूर्ति में वृद्धि करनी होगी ताकि OP कीमत बन जाए। B बिंदु पर संतुलन कीमत OP तथा संतुलन मात्रा OQ1 होगी।
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(ii) माँग आधिक्य से संतुलन कीमत पर पहुँचने के लिए उपभोक्ताओं को माँग में कमी करने के लिए प्रोत्साहित करना पड़ेगा, जिससे माँग वक्र बाईं ओर खिसक आए। इसे हम संलग्न रेखाचित्र (ii) द्वारा दिखा सकते हैं।

संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि OP कीमत पर पूर्ति OQ है जबकि माँग OQ1 है जिसके फलस्वरूप EE1 (QQ1) माँग का आधिक्य है। इसे दूर करने के लिए माँग वक्र को DD से D1D1 तक खिसकाना होगा अर्थात् माँग में कमी करनी होगी ताकि OP कीमत पर ही संतुलन कीमत बन जाए। E बिंदु पर संतुलन कीमत OP तथा संतुलन मात्रा OQ होगी।

प्रश्न 4.
एक वस्तु की माँग में वृद्धि के उसकी संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा पर पड़ने वाले प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एक वस्तु की संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा का निर्धारण उस वस्तु की माँग और पूर्ति द्वारा होता है। जहाँ ये दोनों शक्तियाँ एक-दूसरे के बराबर होती हैं, वहाँ संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा निर्धारित होती है। माँग में वृद्धि से माँग वक्र दाईं ओर खिसक जाती है जिसके फलस्वरूप संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा में वृद्धि होती है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
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संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि प्रारंभिक माँग वक्र DD है जो पूर्ति वक्र SS को E बिंदु पर काटता है। यहाँ संतुलन कीमत OP और मात्रा OQ है। जब माँग वक्र DD से बढ़कर D1D1 हो जाती है तो संतुलन बिंदु E1 हो जाता है और संतुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 तथा मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।

प्रश्न 5.
एक वस्तु की पूर्ति में वृद्धि के उसकी संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा पर पड़ने वाले प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एक वस्तु की संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा का निर्धारण उस वस्तु की माँग और पूर्ति द्वारा होता है। जहाँ ये दोनों शक्तियाँ एक-दूसरे के बराबर होती हैं, वहाँ संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा निर्धारित होती है। पूर्ति में वृद्धि से पूर्ति वक्र दाईं ओर खिसक जाता है जिसके फलस्वरूप संतुलन कीमत गिर जाती है और संतुलन मात्रा में वृद्धि होती है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
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संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि प्रारंभिक पूर्ति SS है जो माँग वक्र DD को E बिंद पर काटता है। यहाँ संतलन कीमत OP और संतुलन मात्रा OQ है। जब पूर्ति वक्र SS से बढ़कर S1S1 हो जाता है तो संतुलन बिंदु E1 हो जाता है और संतुलन कीमत OP से घटकर OP1 तथा संतुलन मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।

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प्रश्न 6.
एक वस्तु की बाज़ार माँग और बाज़ार पूर्ति दोनों में एक साथ वृद्धि से उसकी कीमत पर क्या प्रभाव पड़ सकते हैं? समझाइए।
उत्तर:
माँग और पूर्ति में एक साथ वृद्धि का प्रभाव हम जानते हैं कि माँग और पूर्ति में वृद्धि होने के कारण वस्तु की संतुलित मात्रा में अवश्य वृद्धि होती है। परंतु कीमत में कोई परिवर्तन होगा या नहीं, इस बात पर निर्भर करता है कि माँग व पूर्ति में बराबर की वृद्धि होती है या पूर्ति की तुलना में माँग में अधिक वृद्धि होती है या पूर्ति की तुलना में माँग में कम वृद्धि होती है। अतः पूर्ति में एक साथ परिवर्तन से संतुलन कीमत पर प्रभाव के संबंध में तीन स्थितियाँ हो सकती हैं। इन्हें निम्नांकित रेखाचित्र द्वारा दर्शाया जा सकता है।
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रेखाचित्र (i) में माँग में होने वाली वृद्धि पूर्ति की वृद्धि के बराबर है ऐसी स्थिति में संतुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता यह OP1 रहती है। केवल संतुलन मात्रा OQ1 से बढ़कर OQ2 हो जाती है। अतः जब माँग और पूर्ति में समान वृद्धि होती है तो संतलन कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता। परंत संतलन मात्रा में परिवर्तन होता है अर्थात यह बढ़ जाती है।

रेखाचित्र (ii) में माँग में होने वाली वृद्धि पूर्ति में वृद्धि की तुलना में अधिक है। ऐसी स्थिति में नई संतुलन कीमत OP2 पहली संतुलन कीमत OP1 से अधिक होती है। संतुलन मात्रा भी OQ1 से बढ़कर OQ2 हो जाती है। अतः जब माँग, पूर्ति की तुलना में अधिक बढ़ती है तो संतुलन कीमत तथा मात्रा में वृद्धि होती है।

रेखाचित्र (iii) में पूर्ति में होने वाली वृद्धि माँग में होने वाली वृद्धि की तुलना में अधिक है। ऐसी स्थिति में नई संतुलन कीमत OP2 पहली संतुलन कीमत OP1 की तुलना में कम होगी और संतुलन मात्रा OQ1 से बढ़कर OQ2 होगी। अतः जब पूर्ति में वृद्धि माँग की तुलना में अधिक होती है तो संतुलन कीमत कम हो जाती है तथा संतुलन मात्रा बढ़ जाती है।

प्रश्न 7.
जब किसी वस्तु की पूर्ति (1) पूर्णतया लोचदार व (ii) पूर्णतया बेलोचदार हो तो उसकी माँग में वृद्धि और कमी से उसकी कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है? (रेखाचित्र बनाइए)
उत्तर:
(i) जब पूर्ति पूर्णतया लोचदार हो-यदि वस्तु की पूर्ति पूर्णतया लोचदार हो, तो माँग में होने वाली वृद्धि या कमी का संतुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, केवल वस्तु की मात्रा पर ही प्रभाव पड़ता है। इसे संलग्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
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रेखाचित्र में DD माँग वक्र और SS पूर्णतया लोचदार पूर्ति वक्र हैं। दोनों एक-दूसरे को E बिंदु पर काटते हैं। OP संतुलन कीमत तथा OQ संतुलन मात्रा है। यदि माँग में वृद्धि होने पर माँग वक्र ऊपर खिसककर D1D1 हो जाता है तो नया संतुलन बिंदु E1 होगा। संतुलन कीमत तो OP ही रहती है, परंतु संतुलन मात्रा बढ़कर OQ1 हो जाती है। इसके विपरीत माँग में कमी होने पर माँग वक्र नीचे की ओर D2D2 हो जाता है तो नया संतुलन बिंदु E2 होगा। संतुलन कीमत OP ही रहती है, परंतु संतुलन मात्रा कम होकर OQ2 हो जाती है।

(ii) जब पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार हो-वस्तु की पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार होने पर कीमत और माँग का प्रत्यक्ष संबंध हो जाता है अर्थात् माँग में वृद्धि से कीमत बढ़ जाती है और माँग में कमी से कीमत कम हो जाती है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र से स्पष्ट है।
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रेखाचित्र में SS पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति वक्र है जिसका अभिप्राय है कि मूल्य में परिवर्तन होने पर पूर्ति की मात्रा में परिवर्तन नहीं होता। आरंभ में DD माँग वक्र E पर काटता है। OP संतुलन कीमत और OQ संतुलन मात्रा है। यदि माँग बढ़कर D1D1 हो जाती है तो पूर्ति की मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होता। कीमत बढ़कर OP1 और इसी प्रकार माँग के कम होने पर कीमत कम होकर OP2 हो जाती है।

प्रश्न 8.
पूर्ति की स्थिति परिवर्तन (Supply Shift) के कारण समझाइए और संतुलन कीमत व विनिमय मात्रा पर उनके प्रभाव बताइए।
उत्तर:
पूर्ति में स्थिति-परिवर्तन के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं, जिनके संतुलन कीमत और विनिमय मात्रा का प्रभाव नीचे स्पष्ट किया गया है
1. साधन आदानों की कीमतों में परिवर्तन-साधन आदानों की कीमतों (लगान, मज़दूरी, ब्याज आदि) में वृद्धि से उत्पादन लागत बढ़ जाती है और उत्पादन में कमी आती है जिससे पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाता है।

प्रभाव-वस्तु की कीमत बढ़ जाती है और विनिमय मात्रा गिर जाती है। इसके विपरीत साधन आदान की कीमत गिरने से पूर्ति वक्र दाहिनी ओर खिसक जाता है और प्रभाव के रूप में वस्तु की कीमत गिर जाती है तथा विनिमय मात्रा बढ़ जाती है।

2. तकनीकी प्रगति-चूँकि यह उत्पादन लागत घटाती है इसलिए तकनीकी प्रगति, पूर्ति वक्र को दाहिनी ओर खिसका देती है।

प्रभाव-वस्तु की कीमत गिर जाती है और विनिमय मात्रा बढ़ जाती है। किंतु उत्पादन की घटिया एवं पुरानी तकनीकों को अपनाने से पूर्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

3. उत्पादन में संबंधित वस्तु की कीमत में वृद्धि उत्पादन में प्रतिस्थापक वस्तु की कीमत में वृद्धि से वस्तु विशेष का पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाता है (क्योंकि उत्पादक अब प्रतिस्थापक वस्तु का उत्पादन करना लाभदायक समझता है।)

प्रभाव-दी. की कीमत बढ़ जाएगी और विनिमय मात्रा कम हो जाएगी। परिणाम तब विपरीत होता है जब प्रतिस्थापक वस्तु की कीमत गिर जाती है तो दी हुई वस्तु का पूर्ति वक्र दाहिनी ओर खिसक जाता है, दी हुई वस्तु की कीमत गिर जाती है और विनिमय मात्रा बढ़ जाती है।

4. उत्पादन शुल्क में परिवर्तन वस्तु के उत्पादन पर, उत्पादन शुल्क में वृद्धि होने पर वस्तु का पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाता है।

प्रभाव-वस्तु की कीमत बढ़ जाती है और विनिमय मात्रा गिर जाती है। इसके विपरीत उत्पादन शुल्क की दर कम होने पर वस्तु का पूर्ति वक्र दाहिनी ओर खिसक जाता है और प्रभाव के रूप में वस्तु की कीमत गिर जाती है तथ विनिमय मात्रा बढ़ जाती है।

5. बाज़ार में फर्मों की संख्या फर्मों की संख्या बढ़ने पर पूर्ति वक्र दाहिनी ओर खिसक जाता है।

प्रभाव-वस्तु की कीमत (प्रतिस्पर्धा बढ़ने के कारण) कम हो जाएगी तथा विनिमय मात्रा बढ़ जाएगी। प्रभाव इसके विपरीत होते हैं जब बाज़ार में फर्मों की संख्या कम हो जाती है।

6. अन्य कारक हैं मौसम की दशा में परिवर्तन (जैसे बाढ़, सूखा आदि), उत्पादकों के लक्ष्यों में परिवर्तन, भविष्य में कीमतों में परिवर्तन की आशा तथा सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली आर्थिक सहायता आदि।

संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
X-वस्तु के बाज़ार में 20,000 समरूप क्रेता है। प्रत्येक का माँग फलन Qx = 12 – 2 Px है। दूसरी ओर वस्तु के 2,000 समरूप विक्रेता हैं, प्रत्येक का आपूर्ति फलन Q1 = 20 Px दिया हुआ है। संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा ज्ञात कीजिए।
हल:
माँग फलन = 20,000 (12 – 2Px)
आपूर्ति फलन = 2,000 (20 Px)
जैसाकि हमें विदित है कि संतुलन की स्थिति में मांगी गई मात्रा (Qx) आपूर्ति की मात्रा (Sx) के बराबर होती है। अतः संतुलन स्तर पर
20,000 (12 – 2Px) = 2,000 (20 Px)
2,40,000 – 40,000 Px = 40,000 Px
2,40,000 = 80,000 Px
Px = 3
अर्थात् संतुलन कीमत 3 रु० प्रति इकाई है।
संतुलन मात्रा का परिकलन
20,000 (12 – 2Px)
20,000 (12 – 2 x 3)
20,000 x 6 = 1,20,000 इकाइयाँ (माँगी गई मात्रा)
अथवा
2,000 (20Px)
2,000 (20 x 3) =1,20,000 इकाइयाँ (आपूर्ति की मात्रा)। स्पष्ट है 3 रु० प्रति इकाई की कीमत पर माँगी गई मात्रा और आपूर्ति की मात्रा समान है।

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प्रश्न 2.
यदि qd = 10 – p और qs = p तो एक वस्तु विशेष के माँग और पूर्ति कक्रों के लिये संतुलन कीमत और मात्रा की गणना कीजिए। यह भी बताइये कि यदि उस वस्तु की बाज़ार कीमत 7 रु० या 3 रु० प्रति इकाई हो तो उसकी माँग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
हल:
(i) संतुलित कीमत = qd = qs
10 – p = p
∴ – p – p = – 10
– 2p = – 10
∴ p = \(\frac { 10 }{ 2 }\) = 5
वस्तु विशेष की संतुलित कीमत = 5 रु० प्रति इकाई
∴ संतुलित मात्रा = qd = 10 – 5
qd = 5 (माँग पक्ष)
∴ संतुलित मात्रा = 5 इकाई

(ii) बाज़ार कीमत 7 रु० होने पर यह संतुलित कीमत से 2 रु० अधिक हो जाएगी अतः वस्तु विशेष की माँग कम होने से अतिरिक्त पूर्ति का समायोजन करना होगा।

(iii) बाज़ार कीमत 3 रु० होने पर यह संतुलित कीमत से 2 रु० कम है अतः वस्तु विशेष की माँग बढ़नी आवश्यक होगी।

प्रश्न 3.
एक वस्तु विशेष की माँग और पूर्ति के समीकरण क्रमशः Qd = 8000 – 3000 p तथा Qs = – 6000 + 4000p दिए गए हों, तो संतुलन कीमत और मात्रा ज्ञात कीजिए।
हल:
संतुलित कीमत : Qd = Qs
∴ 8000 – 3000 p = – 6000 + 4000p
⇒ – 3000p – 4000p = – 6000 – 8000
⇒ – 7000 p = – 14000
∴ p = \(\frac { 14000 }{ 2 }\)= 2 रुपए
संतुलित मात्रा = p का मान समीकरण (i) में रखने पर
= 8000 – 3000 x 2 = – 6000 + 4000 x 2
= 8000 – 6000
= – 6000 + 8000
= 2000
= 2000
संतुलित मात्रा = 2000 उत्तर

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