HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विदेश नीति का क्या अर्थ है ? भारत की विदेश नीति के मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन करें।
अथवा
नेहरू जी की विदेश नीति के मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन करें।
अथवा
भारत की विदेश नीति’ के मुख्य सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
विदेश नीति का अर्थ- प्रत्येक देश दूसरे देश के साथ सम्बन्धों की स्थापना में एक विशेष प्रकार की नीति का प्रयोग करता है जिसे विदेश नीति कहा जाता है। विदेश नीति उन सिद्धान्तों और साधनों का समूह है जो राष्ट्र अपने राष्ट्रीय हितों को परिभाषित करने, अपने उद्देश्यों को सही बताने और उनको प्राप्त करने के लिए अपनाते हैं। रुथना स्वामी के अनुसार, “विदेश नीति ऐसे सिद्धान्तों और व्यवहारों का समूह है जिनके द्वारा राज्य के अन्य राज्यों के साथ सम्बन्धों को नियमित किया जाता है।”

भारतीय विदेश नीति के मुख्य सिद्धान्त-भारतीय विदेश नीति के निर्माता भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं० जवाहर लाल नेहरू माने जाते हैं। स्वतन्त्रता के पश्चात् उन्होंने भारतीय विदेश नीति में जिन तत्त्वों का समावेश किया, वे आज भी विद्यमान हैं, जिनका वर्णन इस प्रकार है

1: गुट-निरपेक्षता (Non-Alignment):
भारत की विदेश नीति की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता गुट-निरपेक्षता है। भारत एक गुट-निरपेक्ष देश है और इसकी विदेश नीति भी गुट-निरपेक्षता पर आधारित है। पं० नेहरू ने कहा था-“जहां तक सम्भव हो, हम इन शक्ति-गुटों से अलग रहना चाहते हैं, जिनके कारण पहले भी महायुद्ध हुए हैं और भविष्य में हैं।” गुट-निरपेक्षता का अर्थ है-अपनी स्वतन्त्र नीति । जनता सरकार ने मार्च, 1977 में सत्ता में आने पर गुट-निरपेक्षता की नीति पर बल दिया। श्रीमती इन्दिरा गांधी और उसके बाद राजीव गांधी की सरकार ने गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया। आजकल संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन की सरकार भी गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण कर रही है।

2. साम्राज्यवादियों तथा उपनिवेशवादियों का विरोध (Opposition of Imperialists and Colonialists):
भारत स्वयं ब्रिटिश साम्राज्यवाद का शिकार रहा है, जिस कारण भारत ने सदैव साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद का विरोध किया है।

3. जाति, रंग व भेदभाव की नीति के विरुद्ध (Opposite to the Policy of Caste, Colour and Discrimination):
भारत की विदेश नीति का एक अन्य मूल सिद्धान्त यह है कि भारत ने जाति, रंग, भेदभाव की भारत के विदेश सम्बन्ध नीति के विरुद्ध सदैव आवाज़ उठाई है। भारत शुरू से ही जाति-पाति के बन्धन को समाप्त करने के पक्ष में रहा है और उसने अपनी विदेश नीति द्वारा समय-समय पर ऐसे प्रयत्न किए हैं जिनसे इस नीति को विश्व में समाप्त कर सके।

4. अन्य देशों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध (Friendly Relations with other Countries):
भारत की विदेश नीति की एक अन्य विशेषता यह है कि भारत विश्व के अन्य देशों से अच्छे सम्बन्ध बनाने के लिए सदैव तैयार रहता है। भारत ने न केवल मित्रतापूर्ण सम्बन्ध एशिया के देशों से ही बढाए हैं, बल्कि उसने विश्व के अन्य देशों से भी सम्बन्ध बनाए हैं।

5. एशिया-अफ्रीकी देशों का संगठन (Unity of Afro-Asian Countries):
भारत ने पारस्परिक आर्थिक तथा राजनीतिक सम्बन्धों को मजबूत बनाने के लिए एशिया और अफ्रीका के देशों को संगठित करने का प्रयास किया है। भारत का विचार है कि देश संगठित होकर उपनिवेशवाद का अच्छी तरह से विरोध कर सकेंगे तथा अन्य एशियाई और अफ्रीकी देशों की स्वतन्त्रता के लिए वातावरण उत्पन्न कर सकेंगे। भारत ने इन देशों को गुट-निरपेक्षता का रास्ता दिखाया तथा अनेक देशों ने गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया और इस प्रकार गुट-निरपेक्ष देशों का एक गुट बन गया। 24 मई, 1994 को दक्षिण अफ्रीका गुट-निरपेक्ष देशों के आन्दोलन का 110वां सदस्य बन गया।

6. संयुक्त राष्ट्र के सिद्धान्तों को महत्त्व देना (Importance to Principles of United Nations):
भारत की विदेश नीति में संयुक्त राष्ट्र के सिद्धान्तों को भी महत्त्व दिया गया और भारत द्वारा सदा ही प्रयास किया गया है कि वह विश्व-शान्ति स्थापित करने के लिए युद्धों को रोके। भारत ने सदैव संयुक्त राष्ट्र के सिद्धान्तों का पालन किया है और किसी देश पर हमला नहीं किया है। भारत शान्ति का पुजारी है।

7. राष्ट्रमण्डल की सदस्यता (Membership of Commonwealth of Nations):
भारत की विदेश नीति की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता राष्ट्रमण्डल की सदस्यता है। राष्ट्रमण्डल की सदस्यता ने भारत को अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में अधिक प्रभावशाली भूमिका अदा करने योग्य बनाया है।

8. अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में भारत तटस्थ नहीं है (India is not Neutral in International Politics):
यद्यपि भारत की विदेश नीति का मुख्य आधार गुट-निरपेक्षता है, परन्तु इसका अभिप्राय यह नहीं कि भारत अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में बिल्कुल भाग नहीं लेता। भारत किसी गुट में शामिल न होने के कारण ठीक को ठीक और ग़लत को ग़लत कहने वाली नीति अपनाता है। पं० नेहरू के शब्द आज भी सजीव हैं “जहां स्वतन्त्रता के लिए खतरा उपस्थित हो, न्याय की धमकी दी जाती हो अथवा जहां आक्रमण होता हो, वहां न तो हम तटस्थ रह सकते हैं और न ही तटस्थ रहेंगे।”

9. पंचशील (Panchsheel):
भारत की विदेश नीति का एक और महत्त्वपूर्ण भाग है-पंचशील, जो भारत की अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को एक महत्त्वपूर्ण देन है। यह सिद्धान्त 1954 में बड़ा लोकप्रिय हुआ जब भारत और चीन के बीच तिब्बत के प्रश्न पर सन्धि हुई। राज्यों के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखने के लिए पांच सिद्धान्तों की रचना की गई, जिन्हें पंचशील के नाम से पुकारा जाता है। भारत द्वारा जब भी कोई निर्णय अन्तर्राष्ट्रीय मामलों पर लिया जाता है तो वह इन पांच सिद्धान्तों को सामने रखकर लिया जाता है। भारत ने सदैव प्रयास किया है कि इन पांच सिद्धान्तों को अन्य देश भी स्वीकार करें।

10. क्षेत्रीय सहयोग (Regional Co-operation) :
यद्यपि भारत में एक महाशक्ति बनाने के सारे लक्षण पाए जाते हैं, परन्तु भारत ने कभी भी महाशक्ति बनने का प्रयत्न नहीं किया। भारत का सदा ही क्षेत्रीय सहयोग में विश्वास रहा है। भारत ने क्षेत्रीय सहयोग की भावना को विकसित करने के लिए 1985 में क्षेत्रीय सहयोग के लिए ‘दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संघ’ (South Asian Association of Regional Co-operation) की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसे संक्षेप में, ‘सार्क’ (SAARC) कहा जाता है। इस संघ में भारत के अतिरिक्त पाकिस्तान, बांग्ला देश, श्रीलंका, भूटान, नेपाल, अफगानिस्तान तथा मालद्वीप भी शामिल हैं।

11. नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और वातावरण की सुरक्षा का प्रश्न (New International Economic order and question of the protection of Environment):
पिछले कुछ वर्षों से नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना और वातावरण की सुरक्षा का प्रश्न भारत की विदेश नीति का महत्त्वपूर्ण भाग बन गया है। भारत विश्व में से अन्याय पर आधारित अर्थव्यवस्था समाप्त करके न्यायपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना करना चाहता है, ताकि विकासशील देश विकसित देशों के वित्तीय संगठनों से आर्थिक मदद प्राप्त कर सकें। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर किये जाने वाले ऐसे प्रयत्नों का भारत ने सदैव समर्थन किया है, जिससे पर्यावरण की सुरक्षा की जा सके।

अन्त में हम कह सकते हैं कि, भारत की विदेश नीति प्रो० हीरेन मुखर्जी (Prof. Hiren Mukherjee) के शब्दों में यह है कि, “उपनिवेशवाद का विरोध ……… सारी नस्लों को पूरी समानता ………… गुट-निरपेक्षता ………. एशिया तथा अफ्रीका को संसार की राजनीति में नए उभर रहे तत्त्वों के रूप में मान्यता …………. अन्तर्राष्ट्रीय तनाव को समाप्त करना और विवादों को हिंसा तथा युद्ध के बिना हल करना भारत की विदेश नीति के मूल सिद्धान्त हैं।”

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

प्रश्न 2.
‘विदेश नीति’ का अर्थ स्पष्ट करें। भारत की विदेश नीति के निर्धारक तत्त्व बताइये।
अथवा
भारत की ‘विदेश नीति’ के निर्धारक तत्त्वों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
विदेश नीति का अर्थ-इसके लिए प्रश्न नं० 1 देखें। भारतीय विदेश नीति के निर्धारक तत्त्व-सन् 1947 से पूर्व भारत की कोई अपनी विदेश नीति नहीं थी। ब्रिटेन की जो विदेश नीति होती थी वही भारत सरकार की विदेश नीति थी। यदि जर्मनी ब्रिटेन का शत्रु होता, तो भारत सरकार भी उसे अपना शत्रु मानती थी। 1947 में स्वतन्त्र होने के पश्चात् भारत को स्वतन्त्र विदेश नीति का निर्माण करना था। स्वतन्त्र भारत के संविधान में उन नीति निर्देशक सिद्धान्तों का वर्णन कर दिया गया है जिनका अनुसरण इस देश को करना है। स्वतन्त्र भारत ने जिस विदेश नीति का अनुसरण किया है वह भी राष्ट्रीय हितों पर आधारित है। इस नीति को निर्धारित करने में अनेक तत्त्वों ने सहयोग दिया है। ये तत्त्व निम्नलिखित हैं

1.संवैधानिक आधार (Constitutional Basis):
भारत के संविधान में राजनीति के निर्देशक सिद्धान्तों में केवल राज्य की आन्तरिक नीति से सम्बन्धित ही निर्देश नहीं दिए गए बल्कि भारत को अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में किस प्रकार की नीति अपनानी चाहिए इस विषय में भी निर्देश दिए गए हैं। अनुच्छेद 51 के अनुसार राज्य को निम्नलिखित कार्य करने के लिए कहा गया है

(क) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा को बढ़ावा देना।
(ख) दूसरे राज्यों के साथ न्यायपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखना।
(ग) अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियों, समझौतों तथा कानूनों के लिए सम्मान उत्पन्न करना।
(घ) अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों को निपटाने के लिए मध्यस्थ का रास्ता अपनाना। राजनीति के इन निर्देशक सिद्धान्तों ने भारत की विदेश नीति को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

2. भौगोलिक तत्त्व (Geographical Factors):
भारत में विदेश नीति को निर्धारित करने में भौगोलिक तत्त्व ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत का समुद्र तट बहुत विशाल है। भारत की सुरक्षा के लिए नौ-सेना का शक्तिशाली होना अति आवश्यक है और इसलिए भारत अपनी नौ-सेना को शक्तिशाली बनाने के लिए लगा हुआ है। भारत की सीमाएं पाकिस्तान, चीन, नेपाल और बर्मा (म्यनमार) के साथ लगती हैं। कश्मीर राज्य के कुछ प्रदेश ऐसे भी हैं, जिनकी सीमा अफ़गानिस्तान और रूस के साथ लगती है यद्यपि इस समय वे पाकिस्तान के कब्जे में हैं। इन देशों को लगती अपनी सीमाओं को ध्यान में रखकर ही भारत ने अपनी विदेश नीति का निर्धारण किया है।

3. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background):
लगभग 200 वर्ष के दीर्घकाल तक भारत को अंग्रेजों की दासता में रहना पड़ा, फलस्वरूप भारत अन्य राष्ट्रों की तुलना में ग्रेट ब्रिटेन के सम्पर्क में अधिक रहा और इसी कारण इंग्लैण्ड की सभ्यता व संस्कृति का भारत पर विशेष रूप से प्रभाव पड़ा। चिरकाल तक साम्राज्यवाद के कारण शोषित व परतन्त्र रहने के कारण भारत की विदेश नीति पर प्रभाव पड़ा है और अब इसकी विदेश नीति का मुख्य सिद्धान्त साम्राज्यवाद तथा औपनिवेशवाद का विरोध करना है अ एशिया व अफ्रीका में होने वाले स्वाधीनता संघर्षों का समर्थन करता रहा है।

4. आर्थिक तत्त्व (Economic Factors) :
भारत की विदेश नीति के निर्धारण में आर्थिक तत्त्व ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जब भारत स्वतन्त्र हुआ उस समय भारत की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। भारत में उस समय अनाज की भारी कमी थी और वस्तुओं की कीमतें तेजी से बढ़ रही थीं। भारत अनाज और अन्य आवश्यक वस्तुओं के आयात के लिए अमेरिका और ब्रिटेन पर निर्भर करता था। भारत का विदेशी व्यापार मुख्यत: ब्रिटेन व अमेरिका के साथ था। जिन मशीनरियों व खाद्य सामग्रियों को विदेशों से मंगवाना होता है वह भी उसे इन देशों से ही मुख्यतः प्राप्त करनी होती हैं और इनके साथ ही अमेरिका व ब्रिटेन की पर्याप्त पूंजी भारत के अनेक कल-कारखानों में लगी हुई है।

ऐसी स्थिति में यह स्वाभाविक था कि भारत की विदेश नीति पश्चिमी पूंजीवादी राज्यों के प्रति सद्भावनापूर्ण रही। 1950 के पश्चात् भारत और सोवियत संघ धीरे-धीरे एक-दूसरे के नज़दीक आने लगे और भारत सोवियत संघ तथा अन्य समाजवादी देशों से तकनीकी तथा आर्थिक सहायता प्राप्त करने लगा। दोनों गुटों से आर्थिक सहायता प्राप्त करने के लिए भारत ने गट-निरपेक्षता की नीति अपनाई। वास्तव में भारत की विदेश नीति और उसके आर्थिक विकास में घनिष्ठ सम्बन्ध है।

5. राष्ट्रीय हित (National Interest):
विदेश नीति के निर्माण में राष्ट्रीय हित ने सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 4 दिसम्बर, 1947 को संविधान सभा में पण्डित नेहरू ने कहा था कि आप कोई भी नीति अपनाएं, विदेश नीति का निर्धारण करने की कला राष्ट्रीय हित के सम्पादन में ही निहित है। पं. नेहरू ने गट-निरपेक्षता और विश्व-शान्ति की स्थापना को भारत की विदेश नीति का आधार इसलिए बनाया ताकि भारत गुटों से अलग रहकर अपना आर्थिक तथा औद्योगिक विकास कर सके। यदि भारत गुटों की नीति में फंस जाता तो दोनों गुटों से आर्थिक सहायता न पा सकता। अत: भारत के हित को देखते हुए ही गुट-निरपेक्षता की नीति को अपनाया गया है। भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रमण्डल (Commonwealth of Nations) का सदस्य रहना स्वीकार किया।

6. विचारधारा का प्रभाव (Impact of Ideology):
विदेश नीति का निर्माण करने में उस देश की विचारधारा का महत्त्वपूर्ण प्रभाव होता है। राष्ट्रीय आन्दोलन के समय कांग्रेस ने अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में तरह-तरह के आदर्श संसार के सामने प्रस्तुत किए थे। कांग्रेस ने सदैव विश्व-शान्ति और शान्तिपूर्ण सह-जीवन का समर्थन तथा साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का घोर विरोध किया। सत्तारूढ़ होने पर कांग्रेस को अपनी विदेश नीति का निर्माण इन्हीं आदर्शों पर करना था। कांग्रेस महात्मा गांधी के आदर्शों तथा सिद्धान्तों से भी काफी प्रभावित थी।

अत: भारत की विदेश नीति गांधीवाद से काफी प्रभावित थी, इसलिए भारत की विदेश नीति में विश्व-शान्ति पर बहुत जोर दिया जाता है। समाजवादी देशों के प्रति भारत की सहानुभूति बहुत कुछ मार्क्सवादी प्रभाव का परिणाम मानी जाती है। पश्चिम के उदारवाद का भी भारत की विदेश नीति पर काफ़ी प्रभाव है। हमारी विदेश नीति के निर्माता पं० नेहरू पश्चिमी लोकतन्त्रीय परम्पराओं से बहुत प्रभावित थे। वे पश्चिमी लोकतन्त्र तथा साम्यवाद दोनों की अच्छाइयों को पसन्द करते थे और उनकी बुराइयों से दूर रहना चाहते थे। अत: गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया गया।

7. अन्तर्राष्ट्रीय तत्त्व (International Factors):
भारत की विदेश नीति के निर्धारण में अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जब भारत स्वतन्त्र हुआ उस समय सोवियत गुट और अमरीकी गुट में शीत-युद्ध चल रहा था। संसार के प्रायः सभी देश उस समय दो गुटों में विभाजित थे। पं० जवाहरलाल नेहरू ने किसी एक गुट में शामिल होने के स्थान पर दोनों गुटों से अलग रहना देश के हित में समझा।

अतः भारत ने गुट-निरपेक्ष नीति का अनुसरण किया। पिछले कुछ वर्षों से अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति में परिवर्तन हुआ है। अमेरिका और चीन के सम्बन्धों में सुधार हुआ है लेकिन अमेरिका और पाकिस्तान बहुत नज़दीक हैं। इस अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति के कारण भारत और सोवियत संघ और समीप आए। 1991 में सोवियत संघ के विघटन होने के बाद विश्व में अमेरिका ही एकमात्र सुपर पॉवर रह गया है। इसीलिए भारत भी अमेरिका के साथ अपने आर्थिक, सामाजिक सम्बन्धों को मज़बूत बनाने पर बल दे रहा है।

8. सैनिक तत्त्व (Military Factors):
सैनिक तत्त्व ने भी भारत की विदेश नीति को प्रभावित किया है। स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत सैनिक दृष्टि से बहुत निर्बल था। इसलिए भारत ने दोनों गुटों से सैनिक सहायता प्राप्त करने के लिए गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाई। 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में अमेरिका ने खुलेआम पाकिस्तान का साथ दिया और भारत पर दबाव डालने के लिए अपना सातवां जंगी बेड़ा बंगाल की खाड़ी में भेजा तो भारत को सोवियत संघ से 20 वर्षीय सन्धि करनी पड़ी। आजकल अमेरिका पाकिस्तान को आधुनिकतम हथियार दे रहा है, जिसका भारत ने अमेरिका से विरोध किया है, पर अमेरिका अपनी नीति पर अटल है। अतः भारत को भी अपनी रक्षा के लिए रूस तथा अन्य देशों से आधुनिकतम हथियार खरीदने पड़ रहे हैं।

9. राष्ट्रीय संघर्ष (National Struggle):
भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन ने विदेश नीति के निर्माण में महत्त्वपूर्ण

  • राष्ट्रीय आन्दोलन ने भारत में महाशक्तियों के संघर्ष का मोहरा बनने से बचने का संकल्प उत्पन्न किया।
  • अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक क्षेत्र में गुट-निरपेक्ष रहते हुए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की भावना जागृत हुई।
  • प्रत्येक तरह के उपनिवेशवाद, जातिवाद व रंग-भेद का विरोध करने का साहस हुआ।
  • स्वाधीनता संघर्ष के लिए सहानुभूति उत्पन्न हुई।

10. वैयक्तिक तत्त्व (Personal Factors):
भारतीय विदेश नीति पर इस राष्ट्र के महान् नेताओं के वैयक्तिक तत्त्वों का भी प्रभाव पड़ा। पण्डित नेहरू के विचारों से हमारी विदेश नीति पर्याप्त प्रभावित हुई। पण्डित नेहरू उपनिवेशवाद व फासिस्टवाद के घोर विरोधी थे और वे समस्याओं का समाधान करने के लिए शान्तिपूर्ण मार्ग के समर्थक थे। वह मैत्री, सहयोग व सह-अस्तित्व के पोषक थे।

साथ ही अन्याय का विरोध करने के लिए शक्ति प्रयोग के समर्थक थे। पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने अपने विचारों द्वारा हमारी विदेश नीति के ढांचे को ढाला। पण्डित नेहरू के अतिरिक्त डॉ० राधाकृष्णन, कृष्णा मेनन, पाणिक्कर जैसे महान् नेताओं के विचारों ने भी हमारी विदेश नीति को प्रभावित किया। स्वर्गीय शास्त्री जी व भूतपूर्व प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी के काल में हमने अपनी विदेश नीति के मूल तत्त्वों को कायम रखते हुए इसमें व्यावहारिक तत्त्वों का भी प्रयोग किया।

प्रश्न 3.
भारत-चीन के मध्य विवाद के उन मुख्य विषयों का वर्णन करें जो 1962 के युद्ध का कारण बने।
अथवा
भारत और चीन के बीच मतभेदों का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत एवं चीन एशिया के दो महत्त्वपूर्ण देश हैं। भारत और चीन के मध्य पहले गहरी मित्रता थी, परन्तु धीरे-धीरे दोनों देशों में मतभेद बढ़ते रहे, जिनके कारण अन्ततः 1962 में दोनों देशों के बीच एक युद्ध भी हुआ। इस युद्ध के निम्नलिखित कारण माने जा सकते हैं

1. तिब्बत समस्या (Tibet Problem)-भारत-चीन के बीच हुए युद्ध का एक कारण तिब्बत की समस्या थी। सन् 1914 में इन दोनों देशों के बीच सीमा निर्धारण करने के लिए शिमला में एक सम्मेलन हुआ था जिसमें आर्थर हेनरी मैकमोहन ने भाग लिया था। शिमला-सन्धि में यह निर्णय हुआ था कि

  • तिब्बत पर चीन का आधिपत्य रहेगा परन्तु बाह्य तिब्बत को अपने कार्य में पूरी आज़ादी रहेगी।
  • चीन तिब्बत के आन्तरिक मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा।
  • चीन कभी भी तिब्बत को अपने राज्य का प्रान्त घोषित नहीं करेगा।

बाह्य तिब्बत और भारत के बीच की ऊंची पर्वत श्रेणियों को सीमा मान कर एक नक्शे में लाल पैंसिल से निशान लगा दिए तथा इस सीमा रेखा को मैकमोहन लाइन का नाम दिया गया। सीमा-विवाद के समय चीन ने भी इसी रेखा का समर्थन किया। कश्मीर की उत्तरी सीमा को स्पष्ट करते हुए ब्रिटिश अधिकारियों ने 1899 में चीन को लिखा था कि भारत के विदेश सम्बन्ध इसकी पूर्वी सीमा 80 अक्षांश पूर्वी देशान्तर है। इससे स्पष्ट है कि अक्साई चीन भारतीय सीमा के अन्तर्गत है और वह सीमा ऐतिहासिक है।

स्वतन्त्रता प्राप्त करने के बाद भारत को तिब्बत में निम्नलिखित बहिदेशीय (Extra-territorial) अधिकार मिले :

  • तिब्बत और ब्रिटिश भारतीय व्यापारियों के झगड़ों में बचाव पक्ष पर देश की विधि लागू होती थी और उसी देश का न्यायाधीश सुनवाई के समय अध्यक्षता करता था।
  • यदि तिब्बत में ब्रिटिश-राज्य के लोगों के बीच विवाद होते थे तो उनका निर्णय ब्रिटिश अधिकारी ही करते थे।
  • ब्रिटिश एजेंटों को अपने अधिकारों की रक्षा के लिए कुछ फ़ौज रखने का अधिकार था।
  • गेट टुंग के यान टुंग से व्यॉणट्सी तक टेलीफोन और टेलीग्राफ संस्थाओं पर भी ब्रिटिश अधिकारियों का अधिकार था।
  • तिब्बत में भारत सरकार के ग्यारह विश्राम-गृह थे।

चीन ने तिब्बत की सत्ता तथा भारत के अधिकारों का सम्मान न करते हुए 7 अक्तूबर, 1950 को तिब्बत में अपने सैनिक भेज दिए। जब भारत ने इस ओर चीन का ध्यान आकर्षित करवाया तो उसने कठोर शब्दों में अपेक्षा की। नये नक्शों में चीन ने भारत की लगभग 50 हज़ार वर्गमील सीमा चीन प्रदेश के अन्तर्गत दिखाई। श्री नेहरू द्वारा इसका विरोध करने पर चीनी प्रधानमन्त्री ने कहा कि ये नक्शे राष्ट्रवादी सरकार के पुराने नक्शों की नकल हैं और समय मिलने पर इसे ठीक कर लिया जाएगा।

चीनियों ने आक्साईचिन के पठार में सड़क बना ली। लद्दाख में कई सैनिक चौकियां स्थापित कर ली। सन् 1958 में लद्दाख के खरनाम किले पर भी कब्जा कर लिया गया। 31 मार्च, 1957 में दलाईलामा ने चीनियों के दमन से भयभीत होकर भारत में राजनीतिक शरण ली। चीन ने इसका विरोध किया। श्री चाऊ-एन-लाई ने भारत को लिखा कि “मैकमोहन रेखा चीन के तिब्बत क्षेत्र के विरुद्ध अंग्रेजों की आक्रमणकारी नीति का परिणाम था। कानूनी तौर पर इसे वैध नहीं माना जा सकता।”

सन् 1959 को भारत पर आरोप लगाया कि वह तिब्बत में सशस्त्र विद्रोहियों को संरक्षण दे रहा है। चीन ने भारत के लगभग 90,000 किलोमीटर प्रदेश पर दावा करते हुए कहा कि भारतीय सेनाएं इस प्रदेश में घुसकर चीन की अखण्डता को चुनौती दे रही हैं। __ 1960 में भारत और चीन के प्रधानमन्त्रियों ने दिल्ली में एक संयुक्त-विज्ञप्ति में यह माना कि दोनों देशों में कुछ मतभेद हैं। यह तनाव और भी बढ़ा जब 1962 में गलवान घाटी की भारतीय पुलिस चौकी को चीनियों ने घेर लिया।

2. मानचित्र से सम्बन्धित समस्या (Problem Regarding Maps):
भारत एवं चीन के मध्य 1962 में युद्ध का एक कारण दोनों देशों के बीच मानचित्र के रेखांकित भू-भाग था। चीन ने 1954 में प्रकाशित अपने मानचित्र में कुछ ऐसे भाग प्रदर्शित किये थे जो वास्तव में भारतीय भू-भागों में थे। जब इस मुद्दे को चीन के साथ उठाया गया, तो उसने कहा कि यह पुराना मानचित्र है, नये मानचित्र में इस गलती को सुधार लिया जायेगा, परन्तु 1955 में चीन ने बराहोती पर कब्जा किया, तत्पश्चात् शिपकी दर्रा के द्वारा भारतीय भू-क्षेत्र की अवमानना की।

3. सीमा विवाद (Boundary Dispute):
भारत-चीन के बीच विवाद का एक कारण सीमा विवाद था। भारत ने सदैव मैकमोहन रेखा को स्वीकार किया, परन्तु चीन ने नहीं। सीमा विवाद धीरे-धीरे इतना बढ़ता गया कि इसने आगे चलकर युद्ध का रूप धारण कर लिया।

प्रश्न 4.
1962 में भारत-चीन के मध्य हुए युद्ध का वर्णन करें। युद्ध से सम्बन्धित कोलम्बो समझौते का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत एवं चीन के मध्य 1962 में हुए युद्ध की परिस्थितियां बहुत पहले बननी शुरू हो गई थीं। अन्ततः चीन ने 20 अक्तूबर, 1962 को भारत की उत्तरी सीमा पर आक्रमण कर दिया। इस अचानक हमले के कारण भारतीय फ़ौजें जब तक सम्भली तब तक चीन ने सैनिक चौकियों पर कब्जा कर लिया। ब्रिटेन और अमेरिका ने भारत के कहने पर तेजी से सैन्य सामग्री भेजी। चीन ने अचानक 21 नवम्बर, 1962 को एक पक्षीय युद्ध-विराम की घोषणा कर दी। इसके साथ ही द्वि-सूत्रीय योजना की घोषणा भी की

(1) चीनी सेनाएं 7 नवम्बर, 1962 की वास्तविक नियन्त्रण रेखा (Actual Line of Control) से 20 किलोमीटर अपनी ओर हट जाएंगी और सेना 1 दिसम्बर से हटना शुरू करेंगी।

(2) चीनी सेना के हटने से खाली क्षेत्र पर चीन सरकार अपनी असैनिक चौकियां स्थापित करेगी। इन चौकियों की स्थिति का पता भारत सरकार को उसके दूतावास द्वारा दिया जाएगा। चीन ने भारत सरकार को इन शर्तों को मानने के लिए कहा। इसके साथ ही भारत को 7 नवम्बर, 1959 को अपनी सेनाओं को अपने ही क्षेत्र में 20 किलोमीटर हटने के लिए कहा।

विपरीत स्थितियों के कारण भारत ने चीन की एक-पक्षीय युद्ध-विराम घोषणा को मान लिया परन्तु द्वि-सूत्रीय योजना को नहीं माना और घोषित किया कि जब तक चीन 8 सितम्बर, 1962 की स्थिति तक नहीं लौट जाता तब तक कोई वार्ता नहीं होगी। चीन के इस आक्रमण के बाद हिन्दी चीनी भाई-भाई का युग समाप्त हुआ और भारत और चीन एक-दूसरे के शत्रु गए। उन्हीं दिनों भारत की संसद ने एक सर्वसम्मत प्रस्ताव द्वारा यह संकल्प किया कि “भारत जब तक चीन द्वारा बलात् अधिकृत किए गए अपने क्षेत्र को खाली न करा लेगा तब तक चैन नहीं लेगा।”

चीन के इस आक्रमण के कारण भारत गुट-निरपेक्ष नीति की कड़ी आलोचना हुई परन्तु पं० नेहरू ने इस नीति पर गहरा विश्वास प्रकट किया। भारत की विदेश नीति में अब यथार्थवाद की ओर झुकाव शुरू हुआ। पं० नेहरू ने यह घोषणा कि-“अतीत में हम निर्धनता और निरक्षरता की मानवीय समस्याओं में इतने उलझे रहे कि हमने प्रतिरक्षा की आवश्यकताओं के प्रति तुलनात्मक दृष्टि से बहुत कम ध्यान दिया। यह स्पष्ट है कि अब हम इस ओर अधिक ध्यान देंगे। हम अपनी सेनाओं को सुदृढ़ बनायेंगे तथा जहां तक सम्भव होगा सेना के लिए आवश्यक शस्त्र सामग्री अपने ही देश में तैयार करेंगे।”

कोलम्बो प्रस्ताव और चीन का दुराग्रह-श्रीलंका, बर्मा (म्यांमार) कम्बोडिया, इण्डोनेशिया, मिस्र और घाना ने दिसम्बर 1962 में भारत-चीन वार्ता के लिए कोलम्बो सम्मेलन का आयोजन किया। श्रीमती भण्डारनायके स्वयं प्रस्ताव लेकर नई दिल्ली और पीकिंग गईं। इसके बाद 19 जनवरी, 1963 को यह प्रस्ताव प्रकाशित किए गए जिनकी मुख्य बातें निम्नलिखित थीं

  • युद्ध-विराम का समय भारत-चीन विवाद के शान्तिपूर्ण हल के लिए उचित है।
  • चीन पश्चिमी क्षेत्रों में अपनी सैनिक चौकियां 20 किलोमीटर पीछे हटा ले।
  • भारत अपनी वर्तमान स्थिति कायम रखे।
  • विवाद का अन्तिम हल होने तक चीन द्वारा खाली किया गया क्षेत्र असैनिक क्षेत्र हो जिसकी निगरानी दोनों पक्षों द्वारा नियुक्त गैर-सैनिक चौकियां करें।
  • पूर्वी नेफा क्षेत्र दोनों सरकारों द्वारा मान्य वास्तविक नियन्त्रण रेखा युद्ध-विराम रेखा का रूप ले। शेष क्षेत्रों के बारे में दोनों देश भावी वार्ताओं में निर्णय करें।
  • मध्यवर्ती क्षेत्र का हल शान्तिपूर्ण ढंग से किया जाए।

कोलम्बो प्रस्ताव का उद्देश्य दोनों देशों में गतिरोध की स्थिति को खत्म करना था। चीन ने इस प्रस्ताव को स्वीकार करने का विश्वास दिलाया और भारत ने कुछ स्पष्टीकरण मांगे। पूर्वी क्षेत्र में भारतीय सेना मैकमोहन लाइन तक जा सकेगी और चीनी सेना भी अपने पूर्व तक जा सकेगी लेकिन विवादपूर्ण क्षेत्रों से उसे दूर रहना होगा। इस स्पष्टीकरण के बाद भारत ने अपनी सहमति दे दी परन्तु चीन ने कुछ शर्ते जोड़ दी जिससे यह प्रस्ताव महत्त्वहीन हो गया। इससे चीन का रुख स्पष्ट हो गया कि वह भारत के साथ अपने विवादों को शान्तिपूर्ण ढंग से सुलझाना नहीं चाहता था।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

प्रश्न 5.
भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 में हुए युद्ध से पहले की घटनाओं का वर्णन करें।
उत्तर:
15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतन्त्र हुआ परन्तु साथ ही भारत का विभाजन भी हुआ और पाकिस्तान का जन्म हुआ। अतः पाकिस्तान भारत का पड़ोसी देश है जिस कारण भारत-पाक समस्याओं का विशेष महत्त्व है। कावदश सम्बन्ध पाकिस्तान को भारत की अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की नीति बिल्कुल पसन्द नहीं थी। पाकिस्तान अन्य देशों से सहायता प्राप्त करने तथा अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अपना महत्त्व बढ़ाने के लिए पश्चिमी गुट में सम्मिलित हो गया और CENTO तथा SEATO आदि क्षेत्रीय तथा सैनिक संगठनों का सदस्य बन गया। परन्तु भारत ने उन गुटों की नीति की अपेक्षा गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया।

विस्थापित सम्पत्ति, देशी रियासतों की संवैधानिक स्थिति, नहरी पानी, सीमा निर्धारण, वित्तीय और व्यापारिक समायोजन, जूनागढ़, हैदराबाद तथा कश्मीर और कच्छ के विवादों के लिए भारत और पाकिस्तान में युद्ध होते रहे हैं और तनावपूर्ण स्थिति बनी रही है। कश्मीर के विवाद को छोड़कर अन्य सभी विवादों एवं समस्याओं का हल लगभग हो चुका है। 1948 में कश्मीर को लेकर दोनों देशों में युद्ध हुआ फिर इसी समस्या को लेकर 1965 में युद्ध हुआ और 1971 में बंगला देश के मामले पर युद्ध हुआ। जब तक कश्मीर की समस्या का पूर्णरूप से हल नहीं होता तब तक दोनों देशों में स्थायी रूप से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध नहीं हो सकते।

भारत और पाकिस्तान में निम्नलिखित विवादों के कारण अच्छे सम्बन्ध नहीं रहे हैं :

1. जूनागढ़ और हैदराबाद का भारत में मिलाया जाना:
भारतीय क्षेत्र की रियासत जूनागढ़ के नवाब ने जब अपनी रियासत को पाकिस्तान में मिलाना चाहा तो जनता ने विद्रोह कर दिया। नवाब स्वयं पाकिस्तान भाग गया और रियासत के दीवान तथा वहां की पुलिस की प्रार्थना पर 9 नवम्बर, 1947 को भारत सरकार ने रियासत का शासन अपने हाथों में ले लिया। फरवरी, 1948 में जनमत संग्रह में भारत के पक्ष में 1 लाख 90 हजार से भी अधिक मत आए जबकि पाकिस्तान के पक्ष में केवल 91 मत पड़े।

हैदराबाद की रियासत भी पूरी तरह भारतीय क्षेत्र में थी। 1947 में निज़ाम ने भारत के साथ एक ‘यथा-पूर्व-स्थिति’ में समझौता किया। लेकिन हैदराबाद के प्रशासन में प्रभावशाली मुस्लिम साम्प्रदायिक संगठन ‘मजलिस-ए-ईहादउल’ के रजाकारों ने रियासत में भयानक अराजकता की स्थिति पैदा कर दी। तब जनता और निज़ाम की रक्षा के लिए पुलिस की और रजाकारों ने आत्म-समर्पण कर दिया। हैदराबाद सरकार ने समस्या को सुरक्षा परिषद में रखा और इसका अन्तिम हल तब हुआ जब दिसम्बर, 1948 में भारत ने सुरक्षा परिषद् से स्पष्ट कह दिया कि वह अब इस प्रश्न के वाद-विवाद में कोई भाग नहीं लेगी।

2. ऋण अदा करने का प्रश्न:
स्वतन्त्र भारत ने पुरानी सरकार के कर्ज का भार सम्भाला। इसके अनुसार उसे 5 वर्ष में पाकिस्तान से 300 करोड़ रुपया लेना था लेकिन पाकिस्तान ने कर्जे को चुकाने का नाम तक नहीं लिया जबकि भारत ने पाकिस्तान को दिये जाने वाले ₹ 5 करोड़ का कर्ज चुका दिया।

3. विस्थापित सम्पत्ति तथा अल्पसंख्यकों की रक्षा का प्रश्न:
1947 से 1957 तक लगभग 90 लाख मुसलमान भारत से पाकिस्तान गए और इतने ही गैर मुस्लिम पाकिस्तान से भारत आए। दोनों ही क्षेत्रों के लोग अपने पीछे विशाल मात्रा में चल और अचल सम्पत्ति छोड़ गए। यह अनुमान लगाया जाता है कि मुसलमानों ने भारत में ₹300 करोड़ की और भारतीयों ने पाकिस्तान में ₹ 3 हजार करोड़ की सम्पत्ति छोड़ी थी।

पाकिस्तान समस्या के सभी सुझावों को ठुकराता गया। अल्पसंख्यकों की रक्षा की समस्या भी दोनों के सामने थी। 1950 में साम्प्रदायिक उपद्रवों को रोकने और अल्पसंख्यकों में रक्षा की भावना उत्पन्न करने के लिए दोनों देशों के प्रधानमन्त्रियों के बीच ‘नेहरू-लियाकत’ समझौता हुआ जिसका पाकिस्तान ने कभी पालन नहीं किया और दुःखी शरणार्थी भारत में आते रहे।

4. नहरी पानी विवाद:
भारत और पाकिस्तान के बीच एक और समस्या नदियों के हिस्से के सम्बन्ध में थी। पंजाब के विभाजन के कारण पानी के प्रश्न पर कठिन स्थिति पैदा हो गई। सतलुज, व्यास और रावी नदियों के हैडवर्क्स भारत में रह गए लेकिन नदियों की दृष्टि से 25 में से केवल 20 नहरें भारत में आईं और एक नहर दोनों देशों में आई।

दोनों देशों की सहमति से यह विवाद मध्यस्थता के लिए विश्व बैंक को सौंप दिया गया। इसके प्रयत्नों से 19 सितम्बर, 1960 को भारत और पाक में सिन्ध बेसिन के पाने के बंटवारे में ‘नहरी समझौता’ (Indo-Pak Canal Water Treaty) हुआ। इस समझौते के अनुसार यह निश्चय किया गया कि 10 वर्ष की अवधि के बाद, जो पाकिस्तान की प्रार्थना पर 3 वर्ष के लिए बढ़ाई जा सकेगी, तीनों पूर्वी नदियों का पानी भारत के अधिकार में रहेगा जबकि तीनों पश्चिमी नदियों का पानी पाकिस्तान के अधिकार में; केवल इनका सीमित पानी उत्तर की ओर के जम्मू और कश्मीर

प्रान्त में प्रयोग किया जाएगा। यह तय हुआ कि 10 वर्ष तक भारत पूर्वी नदियों से पाकिस्तान की प्रत्येक वर्ष घटती हुई मात्रा में पानी देगा और नई नहरों के निर्माण के लिए पाकिस्तान को आवश्यक मात्रा में धन भी देगा। यदि पाकिस्तान भारत से पानी देने वाली अवधि में 3 वर्ष की वृद्धि के लिए प्रार्थना करेगा तो प्रार्थना स्वीकृत होने पर उसी अनुपात में भारत द्वारा पाकिस्तान को दी जाने वाली राशि में कटौती कर दी जाएगी। 12 जनवरी, 1961 को इस सन्धि की शर्ते लागू कर दी गईं। यह सन्धि पाकिस्तान के लिए विशेष लाभदायक थी।

5. कश्मीर विवाद (Kashmir Controversy):
स्वतन्त्रता से पूर्व कश्मीर भारत के उत्तर-पश्चिमी कोने में स्थित एक देशी रियासत था। इसका क्षेत्रफल 1,34,00 वर्ग कि० मी० और जनसंख्या 40 लाख थी। इनमें से लगभग 77% मुसलमान, 20% हिन्दू तथा 3% सिक्ख, बौद्ध आदि थे। पाकिस्तान ने पश्चिमी सीमा प्रान्त के कबायली लोगों (Tribesmen) को प्रेरणा और सहायता देकर 20 अक्तूबर, 1947 को कश्मीर पर आक्रमण करवा दिया। 24 अक्तूबर, 1947 को श्रीनगर को बिजली प्रदान करने वाले मदुरा बिजली घर पर अधिकार कर लिया गया। इस पर महाराजा हरि सिंह ने भारत से सहायता मांगी और कश्मीर को भारत में शामिल करने की प्रार्थना की।

27 अक्तूबर, 1947 को भारत सरकार ने इस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया। भारत ने पाकिस्तान से कबायलियों को मार्ग न देने के लिए कहा परन्तु पाकिस्तान उन्हें पूरी सहायता देता रहा। इस पर लार्ड माऊंटबेटन के परामर्श पर भारत सरकार ने 1 जनवरी, 1948 की संयुक्त राष्ट्र चार्टर की 34वीं और 35वीं धारा के अनुसार सुरक्षा परिषद् से पाकिस्तान के विरुद्ध शिकायत की और अनुरोध किया कि वह पाकिस्तान को आक्रमणकारियों की सहायता बन्द करने को कहे।

कश्मीर और संयुक्त राष्ट्र–सुरक्षा परिषद् कश्मीर विवाद का कोई समाधान ढूंढ़ने में असफल रही है। इसका मुख्य कारण यह था कि सुरक्षा परिषद् का उद्देश्य एक न्यायपूर्ण निर्णय करना नहीं रहा है। अपितु दोनों पक्षों में किसी भी मूल्य पर समझौता कराना रहा है। सुरक्षा परिषद् के सामने भारत की शिकायत के बाद दो मुख्य प्रश्न थे

(1) क्या पाकिस्तान ने आक्रमण किया है ?
(2) क्या कश्मीर का भारत में अधिमिलन (Accession) वैधानिक है? इन दोनों प्रश्नों के तथ्य स्पष्ट थे, परन्तु सुरक्षा परिषद् ने इनका उत्तर देने के अतिरिक्त आक्रमण के शिकार भारत और आक्रमणकारी पाकिस्तान को समान स्थिति देकर समझौता करवाने का प्रयत्न किया। 21 अप्रैल, 1948 को सुरक्षा-परिषद् ने भारत और पाकिस्तान के विवाद के समाधान के लिए 5 सदस्यों के संयुक्त राष्ट्र आयोग (U.N.C.I.P.) की नियक्ति की। को कश्मीर में युद्ध-विराम हो गया। आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें कश्मीर विवाद के समाधान के लिए आधार रूप में निम्नलिखित सिद्धान्तों को सामने रखा

  • पाकिस्तान कश्मीर से अपनी सेनाएं हटा ले और कबायलियों को भी वहां से हटाने का प्रयत्न करे।
  • सेनाओं द्वारा खाली किए गए प्रदेशों का शासन-प्रबन्ध आयोग के निरीक्षण में स्थानीय अधिकारी करेंगे।
  • पाकिस्तानी सेनाओं के हट जाने के पश्चात् भारत भी अपनी सेना के अधिकांश भाग को हटा लेगा।
  • अन्त में एक स्वतन्त्र और निष्पक्ष जनमत संग्रह के द्वारा यह निर्णय किया जाएगा कि कश्मीर भारत में शामिल होगा या पाकिस्तान में।

सुरक्षा परिषद् ने श्री चैस्टर निमिट्ज को जनमत संग्रह का प्रशासक नियुक्त किया, परन्तु दोनों देशों में कोई समझौता न हो सकने के कारण श्री चैस्टर ने त्याग-पत्र दे दिया। फरवरी, 1950 में सुरक्षा-परिषद् ने सर ओवन डिक्सन (Sir Owen Dixon) को तथा उनकी कोशिशों के सफल हो जाने पर 1951 में डॉ० फ्रैंक ग्राहम (Dr. Frank Graham) को समझौता करवाने के लिए नियुक्त किया। 27 मार्च, 1953 को डॉ० ग्राहम ने अपनी अन्तिम रिपोर्ट में इस समस्या को दोनों देशों में सीधी वार्ता के द्वारा सुलझाने पर जोर दिया। इस सुझाव के अनुसार 1953 में दोनों देशों के प्रधानमन्त्रियों में सीधी वार्ता और 1953-54 में सीधा पत्र-व्यवहार हुआ, परन्तु इसका कोई फल नहीं निकला।

1954 में अमेरिका पाकिस्तान को सैनिक सहायता देने को तैयार हो गया। पाकिस्तान का उद्देश्य इस सहायता से अपनी सैनिक स्थिति दृढ़ करना था। इससे बाध्य होकर भारत को भी अपनी नीति बदलनी पड़ी। पं० नेहरू ने घोषणा की- “जनमत संग्रह करने का प्रश्न स्पष्ट रूप से इस शर्त के साथ सम्बद्ध था कि पाकिस्तान कश्मीर से अपनी सेनाएं भारत के विदेश सम्बन्ध हटा लेगा। पिछले 9 वर्षों में पाकिस्तान यह शर्त पूरी करने में असमर्थ रहा है। पाकिस्तान को मिलने वाली सैनिक सहायता और उसकी सैनिक समझौतों की सदस्यता ने कश्मीर में जनमत संग्रह करने के प्रस्ताव के मूल आधार को ही नष्ट कर दिया है।”

26 जनवरी, 1957 को जनता द्वारा निर्वाचित विधान सभा ने कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाने का निश्चय किया। पाकिस्तान ने फिर से कश्मीर के प्रश्न को सुरक्षा परिषद् में उठाया। पहले गुन्नार यारिंग (Gunnar Yarring) और फिर डॉ० फ्रैंक ग्राहम को दोनों पक्षों में समझौता करने के लिए भेजा गया परन्तु कोई सफलता नहीं मिली। बाद में दिल्ली, कराची, रावलपिंडी और ढाका में दोनों देशों के विदेश मन्त्रियों के बीच वार्ता हुई। परन्तु पाक विदेश मन्त्री श्री भुट्टो के तनावपूर्ण रुख के कारण ये वार्ताएं 1963 में असफल हो गईं।

प्रश्न 6.
भारत एवं पाकिस्तान के बीच हुए 1965 की युद्ध एवं ताशकंद समझौते का वर्णन करें।
उत्तर:
पाकिस्तान का व्यवहार सदैव भारत विरोधी रहा है। सन् 1965 में भारत को दो बार पाकिस्तानी आक्रमण का शिकार होना पड़ा। पहली बार अप्रैल में कच्छ के रण में और दूसरी बार सितम्बर में कश्मीर में। कच्छ के रण में कुछ सफलताओं के बाद पाकिस्तानी सेनाओं को पीछे हट जाना पड़ा। 30 जून, 1965 को युद्ध-विराम समझौता हो गया और भारत ने अपनी शान्तिप्रियता का परिचय देते हुए कच्छ-सम्बन्धी मतभेदों को एक अन्तर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण के निर्णय के लिए रखने की बात मान ली।

परन्तु पाकिस्तान ने भारत के इस रूख को दुर्बलता समझा और 1965 में युद्ध-विराम रेखा का उल्लंघन करके बड़ी संख्या में घुसपैठिये कश्मीर में भेज दिये। परन्तु भारतीय सेनाओं ने उन्हें पीछे धकेल दिया और हाजीपीर और टिथवाल के पाक-अधिकृत इलाकों को मुक्त करवा लिया। सितम्बर, 1965 को पाकिस्तानी सेनाओं ने अन्तर्राष्ट्रीय सीमा का उल्लंघन करके छम्ब प्रदेश पर आक्रमण कर दिया।

इससे विवश होकर भारत को भी अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पार कर पश्चिमी पाकिस्तान के क्षेत्र में युद्ध को ले जाना पड़ा। पाकिस्तानी सेनाओं के पास आधुनिकतम शस्त्रों के होते हुए भी भारतीय सेनाओं ने उन्हें बुरी तरह हरा दिया। अन्त में सुरक्षा परिषद् के 20 सितम्बर के प्रस्ताव का पालन करते हुए दोनों पक्षों ने 22-23 सितम्बर को सुबह 3.30 बजे युद्ध बन्द कर दिया। इस समय तक भारतीय सेनाएं लाहौर के दरवाजों तक पहुंच चुकी थीं।

युद्ध-विराम के बाद भी दोनों देशों में सामान्य सम्बन्धों की समस्या बनी रही। 10 जनवरी, 1966 को सोवियत संघ के प्रधानमन्त्री श्री कोसीगिन के प्रयत्नों से दोनों देशों में ताशकन्द समझौता हो गया जिसके द्वारा भारत के प्रधानमन्त्री तथा पाकिस्तान के राष्ट्रपति इस बात पर सहमत हो गये कि दोनों देशों के सभी सशस्त्र व्यक्ति 25 फरवरी, 1966 के पूर्व उस स्थान पर वापस बुला लिये जाएंगे जहां वे 5 अगस्त, 1965 के पूर्व थे तथा दोनों पक्ष युद्ध-विराम रेखा पर युद्ध विराम की शर्तों का पालन करेंगे। इस समझौते के द्वारा भारत ने खोया अधिक और पाया कम। यह समझौता पाकिस्तान के लिए अधिक लाभप्रद था तथा आचार्य कृपलानी का यह मत, “श्री लाल बहादुर शास्त्री ने दबाव में आकर हस्ताक्षर किये थे,’ एक बड़ी सीमा तक उचित लगता है।

इससे एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता पूरी हुई-भारत और पाकिस्तान में युद्ध स्थिति की औपचारिक समाप्ति। परन्तु पाकिस्तान ने शीघ्र ही भारत विरोधी प्रचार करना शुरू कर दिया। ताशकंद समझौते (Tashkent Agreement)-भारत एवं पाकिस्तान के बीच हुए 1965 के युद्ध को रुकवाने में सोवियत संघ ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसके प्रयासों से भारत एवं पाकिस्तान के बीच ताशकंद समझौता हुआ, जिसके मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं

  • दोनों पक्षों का यह प्रयास रहेगा कि संयुक्त राष्ट्र के घोषणा-पत्र के अनुसार दोनों में मधुर सम्बन्ध बने।
  • दोनों पक्ष इस बात पर सहमत थे कि दोनों की सेनाएं 5 फरवरी, 1966 से पहले उस स्थान पर पहुंच जाये, जहां वे 5 अगस्त, 1965 से पहले थी।
  • दोनों देश एक-दूसरे के आन्तरिक विषयों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
  • दोनों देश एक-दूसरे के विरुद्ध प्रचार नहीं करेंगे।
  • दोनों देशों के उच्चायुक्त एक-दूसरे के देश में वापिस आयेंगे।

प्रश्न 7.
सन् 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध के मुख्य कारण बताइए। इसके क्या परिणाम हुए ?
उत्तर:
भारत एवं पाकिस्तान के बीच 1971 में हुए युद्ध का मुख्य कारण पूर्वी पाकिस्तान में होने वाली घटनाएं और उनका भारत पर पड़ने वाला प्रभाव था। 1971 में पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बंगला देश) में जनता ने याहियां खां की तानाशाही के विरुद्ध स्वतन्त्रता का आन्दोलन आरम्भ किया। याहिया खां ने आन्दोलन को कुचलने के लिए सैनिक शक्ति का प्रयोग किया।

भारत ने बंगला देश मुक्ति संघर्ष में उसका साथ दिया। लगभग एक करोड़ शरणार्थियों को भारत में आना पड़ा। इससे भारत की आर्थिक व्यवस्था पर बड़ा बोझ पड़ा। भारत ने विश्व के देशों से अपील की कि जब तक बंगला देश की समस्या का संकट हल नहीं हो जाता तब तक पाकिस्तान को किसी प्रकार की आर्थिक सहायता न दी जाए।

सोवियत संघ और अनेक अन्य देशों ने भारत के साथ सहानुभूति प्रकट की। परन्तु चीन और अमेरिका जैसी महान् शक्तियां बंगला देश के प्रश्न को पाकिस्तान का घरेलू मामला बताकर उसे आर्थिक तथा सैनिक सहायता देती रहीं। पाकिस्तान ने 3 दिसम्बर, 1971 को भारत पर आक्रमण कर दिया। भारत ने पाकिस्तान को सबक सिखाने का निश्चय किया और पाकिस्तान के आक्रमण का डटकर मुकाबला किया। 5 दिसम्बर को सुरक्षा परिषद् की बैठक में पाकिस्तान ने भारत पर आरोप लगाया कि वह पूर्वी पाकिस्तान में क्रान्तिकारियों को सहायता दे रहा है।

अमेरिका ने पाकिस्तान का समर्थन किया, परन्तु सोवियत संघ ने भारत का पक्ष लिया और वीटो का प्रयोग किया। 6 दिसम्बर को श्रीमती इन्दिरा गांधी ने भारतीय संसद् में बंगला देश गणराज्य के उदय की सूचना दी। 16 दिसम्बर, 1971 को ढाका में जनरल नियाजी ने आत्म-समर्पण के कागजों पर हस्ताक्षर कर दिए और लगभग 1 लाख पाक सैनिकों ने आत्म-समर्पण किया।

17 दिसम्बर को रात्रि के 8 बजे ‘एक-पक्षीय युद्ध विराम’ की घोषणा करते हुए श्रीमती गांधी ने याहिया खां को युद्धबन्दी प्रस्ताव मान लेने की अपील की। याहिया खां ने तुरन्त इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। इस युद्ध की विजय से भारत का सम्मान बढ़ा और अमेरिका की गहरी कूटनीतिक पराजय हुई। पाकिस्तान के विभाजन से पाकिस्तान का हौसला ध्वस्त हो गया।

शिमला सम्मेलन-श्रीमती गांधी ने पाकिस्तान की हार का कोई अनुभव लाभ न उठाते हुए दोनों देशों की समस्याओं पर विचार करने के लिए जून 1972 में शिमला में एक शिखर सम्मेलन बुलाया। इस सम्मेलन में पाक के तत्कालीन शासक प्रधानमन्त्री भुट्टो ने और भारत की उस समय की प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी ने भाग लिया। 3 जुलाई को दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ जो शिमला समझौते के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस समझौते की महत्त्वपूर्ण बातें निम्नलिखित हैं

(1) दोनों राष्ट्र अपने पारस्परिक झगड़ों को द्विपक्षीय बातचीत और मान्य शांतिपूर्ण ढंगों से हल करने के लिए दृढ़ संकल्प हैं।

(2) दोनों राष्ट्र एक-दूसरे की राष्ट्रीय एकता, क्षेत्रीय अखण्डता, राजनीतिक स्वतन्त्रता और सार्वभौम समानता का सम्मान करेंगे।

(3) दोनों राष्ट्र एक-दूसरे क्षेत्रीय अखण्डता और राजनीतिक स्वतन्त्रता के विरुद्ध बल प्रयोग या धमकी का प्रयोग नहीं करेंगे।

(4) दोनों देशों द्वारा परस्पर विरोधी प्रचार नहीं किया जाएगा।

(5) समझौते में तय पाया गया कि दोनों देश परस्पर सामान्य सम्बन्ध स्थापित करने के लिए प्रयत्न करेंगे। संचार व्यवस्था, डाक व्यवस्था, जल, थल, हवाई यात्रा को पुनः चालू करने के लिए वार्ताएं की जाएंगी। आर्थिक तथा व्यापारिक सहयोग के सम्बन्ध में भी शीघ्र वार्ता की जाएगी।

(6) स्थायी शान्ति हेतु भी अनेक प्रयत्न किए जाने का समझौते में उल्लेख था। इसके लिए दोनों देशों को अपनी सेनाओं को अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर वापस बुलाना था।

प्रश्न 8.
भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 के बाद के सम्बन्धों का वर्णन करें।
अथवा
भारत के पाकिस्तान के साथ संबंधों पर एक नोट लिखें।
उत्तर:
1971 के युद्ध के पश्चात् भारत-पाक के सम्बन्ध काफ़ी खराब हो गए। मार्च, 1977 में जनता सरकार की स्थापना के पश्चात् भारत-पाक सम्बन्धों में सुधार की प्रक्रिया शुरू हुई। श्रीमती इन्दिरा गांधी ने जनवरी, 1980 में प्रधानमन्त्री बनने पर भारत-पाक सम्बन्ध को सुधारने पर बल दिया, परन्तु सोवियत सेना के अफ़गानिस्तान में होने से स्थिति काफ़ी खराब हो गई। जनवरी-फरवरी, 1982 में पाकिस्तान के विदेश मन्त्री आगाशाह भारत आए और उन्होंने युद्ध-वर्जन सन्धि का प्रस्ताव पेश किया जिस पर श्रीमती इन्दिरा गांधी ने भारत पाक में सहयोग बढ़ाने के लिए संयुक्त आयोग की स्थापना का सुझाव दिया।

सहयोग के प्रयास-1985 में भारत और पाकिस्तान के कई मन्त्रियों और अधिकारियों की एक-दूसरे के देशों में यात्राएं हुईं। व्यापार, कृषि, विज्ञान, तकनीकी और संस्कृति के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए कुछ समझौते भी हुए। प्रधानमन्त्री राजीव गांधी की पाकिस्तान यात्रा-29 दिसम्बर, 1988 को प्रधानमन्त्री राजीव गांधी दक्षेस (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग) शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए पाकिस्तान गए और उनकी पाकिस्तान की प्रधानमन्त्री बेनजीर भुट्टो से भारत-पाक सम्बन्धों पर भी बातचीत हुई। 31 दिसम्बर, 1988 को भारत और पाकिस्तान ने आपसी सम्बन्ध सद्भावनापूर्ण बनाने के उद्देश्य से शिमला समझौते के करीब 16 वर्ष बाद तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किए जिनमें एक-दूसरे के परमाणु संयन्त्रों पर आक्रमण नहीं करने सम्बन्धी समझौता काफ़ी महत्त्वपूर्ण है।

दिसम्बर, 1989 में वी० पी० सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार बनी। इस सरकार के अल्पकालीन कार्यकाल में भारत-पाक सम्बन्धों में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई। नरसिम्हा राव की सरकार और भारत-पाक सम्बन्ध– राष्ट्रमण्डल शिखर सम्मेलन में भाग लेने आए भारत और पाक के प्रधानमन्त्री ने 17 अक्तूबर, 1991 को हरारे में बातचीत की। 1 जनवरी, 1992 को भारत और पाकिस्तान द्वारा यह समझौता लागू कर दिया गया, जिससे एक-दूसरे के आण्विक ठिकानों और सुविधाओं पर हमला न करने की व्यवस्था की गई थी।

पाक परमाणु कार्यक्रम-पाक परमाणु कार्यक्रम में भारत काफ़ी समय से चिन्तित है। पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम से चिन्तित होकर भारत ने भी मई, 1998 में पांच परमाणु परीक्षण किए जिसके मुकाबले में पाकिस्तान ने छ: परमाणु परीक्षण किए। बस सेवा के लिए भारत-पाक समझौता-17 फरवरी, 1999 को भारत और पाकिस्तान ने नई दिल्ली और लाहौर के बीच बस सेवा प्रारम्भ करने के लिए एक समझौता किया।

20 जनवरी, 1999 को भारत-पाक सम्बन्धों में एक नया अध्याय उस समय खुला जब भारतीय प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी स्वयं बस से लाहौर तक गए। ऐतिहासिक लाहौर घोषणा के अन्तर्गत भारत व पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर सहित सभी विवादों को गम्भीरता से हल करने पर सहमत हुए और दोनों ने एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का विश्वास व्यक्त किया।

कारगिल मुद्दा–पाकिस्तान ने लाहौर घोषणा को रौंदते हुए भारत के कारगिल व द्रास क्षेत्र में व्यापक घुसपैठ करवाई। अनंत धैर्य के पश्चात् 26 मई, 1999 को भारत ने पाकिस्तान के इस विश्वासघात का करारा जवाब दिया। 12 अक्तूबर, 1999 को पाकिस्तान में सेना ने शासन पर अपना कब्जा कर लिया। लेकिन पाकिस्तान के जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने भी भारत के साथ सम्बन्धों में मधुरता का कोई संकेत नहीं दिया। आगरा शिखर वार्ता-पाकिस्तान के शासक परवेज़ मुशर्रफ भारत के आमन्त्रण पर जुलाई, 2001 में भारत आए।

भारत में दोनों देशों के बीच शिखर वार्ता हुई, जिसमें कश्मीर समस्या का समाधान, प्रायोजित आतंकवाद, एटमी लड़ाई खतरा, सियाचिन से सेना की वापसी, व्यापार की सम्भावनाएं, युद्धबन्दियों की रिहाई एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान मुख्य मुद्दे थे, परन्तु मुशर्रफ के अड़ियल रवैये के कारण यह वार्ता विफल रही।

भारतीय संसद पर हमला-13 दिसम्बर, 2001 को पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों लश्कर-ए-तोइबा एवं जैश-ए-मोहम्मद ने भारतीय संसद् पर हमला किया जिससे दोनों देशों के सम्बन्ध बहुत खराब हो गये तथा दोनों देशों ने सीमा पर फ़ौजें तैनात कर दीं, परन्तु विश्व समुदाय के हस्तक्षेप एवं पाकिस्तान द्वारा लश्कर-ए-तोइबा एवं जैश-ए मोहम्मद पर पाबन्दी लगाए जाने से दोनों देशों में तनाव कुछ कम हुआ।

प्रधानमन्त्री वाजपेयी की इस्लामाबाद यात्रा-जनवरी, 2004 में भारतीय प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी चार दिन के लिए ‘दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन’ (सार्क) के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद गए। अपनी यात्रा के दौरान प्रधानमन्त्री वाजपेयी ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति व प्रधानमन्त्री से मुलाकात की। इस शिखर सम्मेलन से दोनों देशों के बीच तनाव में कमी आई और दोनों ने विवादित मुद्दों को बातचीत द्वारा हल करने पर सहमति व्यक्त की।

मुम्बई पर आतंकवादी हमला-26 नवम्बर, 2008 को पाकिस्तानी समर्थित आतंकवादियों ने मुम्बई के होटलों पर कब्जा करके कई व्यक्तियों को मार दिया। भारत ने पाकिस्तान में चल रहे आतंकवादी शिविरों को बंद करने की मांग की, जिसे पाकिस्तान ने नहीं माना, इससे दोनों देशों के सम्बन्ध और अधिक खराब हो गए। भारत एवं पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री जुलाई 2009 में मिस्र में 15वें गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के दौरान मिले तथा दोनों नेताओं ने परस्पर द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत की। इस बैठक के दौरान दोनों देशों ने विवादित मुद्दों को परस्पर बातचीत द्वारा हल करने की बात को दोहराया था।

25 फरवरी, 2010 को भारत एवं पाकिस्तान के विदेश सचिवों की नई दिल्ली में बातचीत हुई। इस बातचीत के दौरान भारत ने पाकिस्तान को वांछित आतंकवादियों को भारत को सौंपने को कहा। अप्रैल 2010 में भारत एवं पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री सार्क सम्मेलन के दौरान भूटान में मिले। इस बातचीत के दौरान दोनों नेताओं ने विवादित मुद्दों को बातचीत द्वारा हल करने पर सहमति जताई। नवम्बर 2011 में भारत एवं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मालद्वीप में 17वें सार्क शिखर सम्मेलन के दौरान मिले। इस बैठक में दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय सम्बन्धों पर बातचीत की।

दिसम्बर 2012 में पाकिस्तान के आन्तरिक मंत्री श्री रहमान मलिक भारत यात्रा पर आए। इस दौरान दोनों देशों ने वीजा नियमों को और सरल बनाया। सितम्बर, 2013 में संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह एवं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने द्विपक्षीय मुलाकात की। इस दौरान दोनों देशों ने सभी विवादित मुद्दों को बातचीत द्वारा हल करने पर सहमति जताई। मई 2014 में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ श्री नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए भारत आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीप मुद्दों पर बातचीत की।

जुलाई 2015 में भारत एवं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान रूस के शहर उफा में मुलाकात की। इस बैठक में दोनों नेताओं ने आतंकवाद एवं द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत की। 25 दिसम्बर, 2015 को भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अचानक पाकिस्तान पहुंच कर दोनों देशों के सम्बन्धों में सुधार लाने का प्रयास किया। नवम्बर 2018 में भारत-पाकिस्तान ने करतारपुर कॉरिडोर को बनाने की घोषणा की। करतारपुर साहब सिक्खों का पवित्र तीर्थ स्थल है, जहां गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के 18 साल बिताए थे।

उपर्युक्त विवरण के आधार पर यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि भारत और पाकिस्तान के सम्बन्ध न तो सामान्य थे और न ही सामान्य हैं। समय के साथ-साथ दोनों देशों में कटुता बढ़ती जा रही है। यह खेद का विषय है कि दोनों देशों में इस कड़वाहट को दोनों देशों के पढ़े-लिखे नागरिक भी दूर करने में असफल रहे। वास्तव में दोनों देशों में मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध तब तक स्थापित नहीं हो सकते जब तक कि दोनों देशों के बीच अनेक विवादास्पद मुद्दों को हल नहीं किया जाता।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

प्रश्न 9.
भारत द्वारा परमाणु नीति अपनाने के मुख्य कारण बताएं।
उत्तर:
भारत में प्रारम्भिक वर्षों में परमाणु नीति एवं परमाणु हथियारों के प्रति दृष्टिकोण आदर्शवादी एवं उदारवादी ही रहा। भारत ने शीत युद्ध के दौरान गुट निरपेक्ष आन्दोलन के विकास पर अधिक बल दिया तथा निशस्त्रीकरण का समर्थन करता रहा। परन्तु 1962 में चीन से युद्ध में हार, 1964 में चीन द्वारा परमाणु विस्फोट तथा 1965 एवं 1971 में पाकिस्तान के साथ दो युद्धों ने भारत की परमाणु नीति एवं परमाणु हथियारों के निर्माण पर बहुत अधिक प्रभाव डाला।

1970 के दशक में भारतीय नेतृत्व ने पहली बार अनुभव किया कि भारत को भी परमाणु सम्पन्न राष्ट्र बनना है। 1970 के दशक से लेकर वर्तमान समय तक भारत ने परमाणु नीति एवं परमाणु हथियारों के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सफलताएं प्राप्त की हैं। भारत ने सर्वप्रथम 1974 में एक तथा 1998 में पांच परमाणु परीक्षण करके विश्व को दिखला दिया कि भारत भी एक परमाणु सम्पन्न राष्ट्र है। भारत द्वारा परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार को बनान एवं रखने के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं

1. आत्मनिर्भर राष्ट्र बनना (To Become Self Dependent Nation):
भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर एक आत्मनिर्भर राष्ट्र बनना चाहता है। विश्व में जिन देशों के पास भी परमाणु हथियार हैं वे सभी आत्मनिर्भर राष्ट्र माने जाते हैं।

2. न्यूनतम अवरोध की स्थिति प्राप्त करना (To Achieve the Position of Minimum Deterrent):
भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर दूसरे देशों के आक्रमण से बचने के लिए न्यूनतम अवरोध की स्थिति प्राप्त करना चाहता है। भारत ने सदैव यह कहा है कि भारत कभी भी पहले परमाणु हथियारों का प्रयोग नहीं करेगा। भारत के पास परमाणु हथियार होने पर कोई भी देश भारत पर हमला करने से पहले सोचेगा।

3. शक्तिशाली राष्ट्र बनना (To Become Strong Nation):
भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर विश्व में एक शक्तिशाली राष्ट्र बनना चाहता है। विश्व में जितने देश भी परमाणु सम्पन्न हैं, वे सभी के सभी शक्तिशाली राष्ट्र माने जाते हैं। इसके साथ परमाणु हथियारों की धारणा से भारत में केन्द्रीय शक्ति और अधिक मज़बूत एवं शक्तिशाली होती है जोकि बहुत आवश्यक है, क्योंकि जब कभी भी भारत में केन्द्रीय सरकार कमज़ोर हुई है, भारत को नुकसान उठाना पड़ा है।

4. प्रतिष्ठा प्राप्त करना (To achieve Prestige):
भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर विश्व में प्रतिष्ठा प्राप्त करना चाहता है। क्योंकि विश्व के सभी परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों को आदर एवं सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।

5. भारत द्वारा लड़े गए युद्ध (War fought by India):
भारत ने समय-समय पर 1962, 1965, 1971 एवं 1999 में युद्धों का सामना किया। युद्धों में होने वाली अधिक हानि से बचने के लिए भारत परमाणु हथियार प्राप्त करना चाहता है।

6. दो पड़ोसी देशों के पास परमाणु हथियार होना (Two Neighbours have a Nuclear Drum):
भारत के लिए परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाने इसलिए भी आवश्यक हैं, क्योंकि भारत के दो पड़ोसी देशों चीन एवं पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं और इन दोनों देशों के साथ भारत युद्ध भी लड़ चुका है। अतः भारत को अपनी सुरक्षा के लिए परमाणु हथियार बनाने का हक है।

7. परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों की विभेदपूर्ण नीति (Policy of Nuclear Nation):
परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों ने 1968 में परमाणु अप्रसार सन्धि (N.P.T.) तथा 1996 में व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध सन्धि (C.T.B.T.) को इस प्रकार लागू करना चाहा, कि उनके अतिरिक्त कोई अन्य देश परमाणु हथियार न बना सके। भारत ने इन दोनों सन्धियों को विभेदपूर्ण मानते हुए इन पर हस्ताक्षर नहीं किये तथा अपना परमाणु कार्यक्रम जारी रखा।

प्रश्न 10.
गुट-निरपेक्षता का अर्थ बताइए। गुट-निरपेक्षता आन्दोलन के मुख्य उद्देश्य तथा सिद्धान्तों का वर्णन करें।
अथवा
गुट-निरपेक्ष आंदोलन के मुख्य उद्देश्यों तथा सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
गुट निरपेक्ष आन्दोलन का अर्थ-गुट-निरपेक्षता का अर्थ है किसी शक्तिशाली राष्ट्र का पिछलग्गू न बनकर अपना स्वतन्त्र मार्ग अपनाना। गुटों से अलग रहने की नीति का तात्पर्य अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में ‘वटस्थता’ कदापि नहीं है। कई पाश्चात्य लेखकों ने गुट-निरपेक्षता के लिए तटस्थता अथवा तटस्थतावाद शब्द का प्रयोग किया है उनमें मौर्गेन्थो, पीस्टर लायन, हेमिल्टन, फिश आर्मस्ट्रांग तथा कर्नल लेवि आदि ने इस नीति के लिए तटस्थता शब्द का प्रयोग कर भ्रम पैदा कर दिया है। वास्तव में दोनों नीतियां शान्ति व युद्ध के समय संघर्ष में नहीं उलझतीं, परन्तु तटस्थता निष्क्रियता व उदासनीता की नीति है, जबकि गुट-निरपेक्षता सक्रियता की नीति है।

तटस्थ देश अन्तर्राष्ट्रीय विषयों या घटनाओं के सम्बन्ध में पूर्णतया निष्पक्ष रहते हैं और वे किसी अन्तर्राष्ट्रीय घटना या विषय के सम्बन्ध में अपने विचार अभिव्यक्त नहीं करते हैं। गुट-निरपेक्ष देश अन्तर्राष्ट्रीय विषयों के प्रति निष्पक्ष या उदासीन नहीं होते, अपितु वे इन विषयों में पूर्ण रुचि लेते हैं और प्रत्येक के गुणों को सम्मुख रखते हुए उसके सम्बन्ध में निर्णय करने हेतु स्वतन्त्र होते हैं और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका भी अभिनीत करते हैं। अत: गुट-निरपेक्षता की नीति का अभिप्राय निष्पक्षता या उदासीनता की नीति नहीं है। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के उद्देश्य-गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं

1. शान्ति-गुट-निरपेक्ष आन्दोलन विश्व में शान्ति व्यवस्था और न्याय की स्थापना के लिए प्रयासरत है।

2. सजनात्मकता-गुट-निरपेक्ष आन्दोलन शीत युद्ध के दौरान उत्पन्न हुई विश्व को नष्ट करने की प्रवृत्ति को समाप्त करके विश्व को सृजनात्मक प्रवृत्ति की ओर मोड़ना चाहता है।

3. आर्थिक न्याय-गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का उद्देश्य विश्व में विद्यमान आर्थिक विषमता को दूर करके सभी देशों और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक न्याय को उपलब्ध करवाने का समर्थक है।

4. निःशस्त्रीकरण-गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य सभी तरह के अस्त्रों-शस्त्रों को नष्ट करके विवादों का शान्तिपूर्ण ढंग से समाधान करना है ताकि आतंक व भय के माहौल से मुक्ति प्राप्त हो सके।

गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के सिद्धान्त-गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के निम्नलिखित सिद्धान्त हैं

  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का प्रमुख सिद्धान्त सैनिक सम्बन्धों का विरोध करना एवं उनसे दूर रहना है।
  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन विश्व को वैचारिक आधार पर बांटने का विरोध करना है।
  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन मित्रता एवं समानता में विश्वास रखता है।
  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन संयुक्त राष्ट्र जैसे विश्व संस्थाओं का समर्थन करता है।

प्रश्न 11.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का क्या अर्थ है ? भारत द्वारा इस नीति को अपनाने के मुख्य कारण लिखें।
उत्तर:
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का अर्थ- इसके लिए प्रश्न नं० 10 देखें। भारत द्वारा गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाने के कारण भारत के गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाने के निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण कारण हैं

1. आर्थिक पुनर्निर्माण–स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत के सामने सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न देश का आर्थिक पुनर्निर्माण था। अतः भारत के लिए किसी गुट का सदस्य न बनना ही उचित था ताकि सभी देशों से आर्थिक सहायता प्राप्त की जा सके।

2. स्वतन्त्र नीति-निर्धारण के लिए- भारत ने गुट-निरपेक्षता की नीति इसलिए भी अपनाई ताकि भारत स्वतन्त्र नीति का निर्धारण कर सके। भारत को स्वतन्त्रता हज़ारों देश प्रेमियों के बलिदान के बाद मिली थी। किसी एक गुट में सम्मिलित होने का अर्थ इस मूल्यवान् स्वतन्त्रता को खो बैठना था।

3. भारत की प्रतिष्ठा बढाने के लिए भारत की प्रतिष्ठा बढाने के लिए गट-निरपेक्षता की नीति का निर्माण किया गया। यदि भारत स्वतन्त्र विदेश नीति का अनुसरण करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं पर निष्पक्ष रूप से अपना निर्णय देता तो दोनों गुट उसके विचारों का आदर करेंगे और अन्तर्राष्ट्रीय तनाव में कमी होगी और भारत की प्रतिष्ठा बढ़ेगी।

4. दोनों गुटों से आर्थिक सहायता-भारत ने गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण इसलिए भी किया ताकि दोनों गुटों से सहायता प्राप्त की जा सके और हुआ भी ऐसा ही।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

प्रश्न 12.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में भारत की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) भारत गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का जन्मदाता है।

(2) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का 7वां शिखर सम्मेलन 1983 में श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व में दिल्ली में हुआ।

(3) राजीव गांधी की अध्यक्षता में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन ने दक्षिण-दक्षिण सहयोग, उत्तर-दक्षिण वार्तालाप, नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थ-व्यवस्था, संयुक्त राष्ट्र संघ की सक्रिय भूमिका आदि विषयों पर जोर दिया।

(4) भारत की पहल पर ‘अफ्रीका कोष’ कायम किया गया।

(5) भारत ने अफ्रीका कोष को, रु० 50 करोड़ की राशि दी।

(6) भारत को 1986 एवं 1989 में अफ्रीका कोष का अध्यक्ष चुना गया। ऋण, पूंजी-निवेश तथा अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था जैसे कई आर्थिक प्रस्तावों का मूल प्रारूप भारत ने बनाया।

(7) 1989 के बेलग्रेड सम्मेलन में भारत ने पृथ्वी संरक्षण कोष कायम करने का सुझाव दिया और सदस्य राष्टों ने इसका भारी समर्थन किया।

(8) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के दसवें शिखर सम्मेलन में भारत ने विश्वव्यापी निशस्त्रीकरण, वातावरण सुरक्षा, आतंकवाद जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों को उठाया। भारत का यह रुख जकार्ता घोषणा में शामिल किया गया कि आतंकवाद प्रादेशिक अखण्डता एवं राष्ट्रों की सुरक्षा को एक भयानक चुनौती है।

(9) भारत ने ही गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों का ध्यान विश्वव्यापी निशस्त्रीकरण की तरफ खींचा।

(10) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के महत्त्व एवं सदस्य राष्ट्रों की इसमें निष्ठा बनाए रखने के लिए भारत ने द्विपक्षीय मामले सम्मेलन में न खींचने की बात कही जिसे सदस्य राष्ट्रों ने स्वीकार किया।

(11) 1997 में दिल्ली में गुट-निरपेक्ष देशों के विदेश मन्त्रियों का शिखर सम्मेलन हुआ।

(12) बारहवें शिखर सम्मेलन में भारत ने विश्वव्यापी निशस्त्रीकरण, विश्व शान्ति एवं आतंकवाद से निपटने के लिए एक विश्वव्यापी सम्मेलन बुलाने का प्रस्ताव पेश किया, जिसका सदस्य राष्ट्रों ने समर्थन किया।

(13) तेरहवें शिखर सम्मेलन में सक्रिय भूमिका अभिनीत करते हुए भारत ने आतंकवाद एवं इसके समर्थकों की कड़ी आलोचना कर विश्व शान्ति पर बल दिया।

(14) भारत ने क्यूबा में हए 14वें एवं मिस्त्र में हए 15वें शिखर सम्मेलन में भाग लेते हए आतंकवाद को समाप्त करने का आह्वान किया।

(15) भारत ने ईरान में 16वें शिखर सम्मेलन में भाग लेते हुए सीरिया समस्या एवं ईरान परमाणु विवाद को बातचीत द्वारा हल करने पर जोर दिया।

(16) भारत ने वेनेजुएला (2016) में हए 17वें एवं अजरबैजान में (2019) हए 18वें शिखर सम्मेलन में भाग लेते हुए विकास के लिए वैश्विक शांति स्थापित करने एवं आतंकवाद को समाप्त करने पर जोर दिया।

प्रश्न 13.
‘गुट-निरपेक्षता’ का क्या अर्थ है ? भारतीय गुट-निरपेक्षता की विशेषताएं बताइये ।
उत्तर:
गुट-निरपेक्षता का अर्थ- इसके लिए प्रश्न नं० 10 देखें।

1. भारत की निर्गुटता की नीति उदासीनता की नीति नहीं है- भारत की निर्गुटता की नीति उदासीनता की नीति नहीं है क्योंकि भारत ने स्वयं को अन्तर्राष्ट्रीय राज्य नीति से दूर नहीं रखा है, अपितु भारत अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय भूमिका अभिनीत करता है।

2. सैन्य समझौतों का विरोध-भारत सैन्य समझौतों का विरोध करता है। अतः भारत सेन्टो (CENTO), नाटो (NATO), सीटो (SEATO), वारसा सन्धि (WARSA-PACT) आदि में सम्मिलित नहीं हुआ है।

3. शक्ति राजनीति से दूर रहना-भारत शक्ति राजनीति का विरोध करता है और प्रत्येक राष्ट्र के शक्तिशाली बनने के अधिकार को स्वीकार करता है।

4. शान्तिमय सह-अस्तित्व तथा अहस्तक्षेप की नीति-भारत का पंचशील के सिद्धान्तों पर पूर्ण विश्वास है। शान्तिमय सह-अस्तित्व तथा अहस्तक्षेप की नीति पंचशील के दो प्रमुख सिद्धान्त हैं। भारत शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति का समर्थन करता है।

5. स्वतन्त्र विदेश नीति-भारत अपनी स्वतन्त्र विदेश नीति पर कार्यान्वयन करता है। भारत अपनी विदेश नीति का निर्माण किसी भी अन्य देश के प्रभावाधीन नहीं करता, अपितु स्वेच्छा से स्वतन्त्र रूप में करता है। भारत दोनों शक्ति गुटों में से किसी भी गुट का सदस्य नहीं है।

6. निर्गुट देशों के मध्य गुटबन्दी नहीं है-कुछ आलोचकों का मत है कि निर्गुटता की नीति गुट-निरपेक्ष देशों की गुटबन्दी है। किन्तु आलोचकों का यह विचार उचित नहीं है। गुट-निरपेक्षता का अर्थ गुट-निरपेक्ष देशों का तृतीय गुट स्थापित करना नहीं है।

7. गुट-निरपेक्षता शान्ति की नीति है-भारत एक निर्गुट देश है। भारत की विदेश नीति का प्रमुख उद्देश्य विश्व शान्ति स्थापित करना है। भारत शीत युद्ध एवं सैन्य समझौतों का विरोध करता है क्योंकि वह इन्हें विश्व-शान्ति हेतु भयावह समझता है।

प्रश्न 14.
विदेश नीति से आप क्या समझते हैं ? भारत की विदेश नीति के लक्ष्यों एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिये।
अथवा
भारत की विदेश नीति के लक्ष्यों एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
विदेश नीति का अर्थ- इसके लिए प्रश्न नं० 1 देखें। भारतीय विदेश नीति के लक्ष्य एवं उद्देश्य-भारतीय विदेश नीति के लक्ष्य एवं उद्देश्यों का वर्णन इस प्रकार है

  • अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा को बढ़ावा देना।
  • दूसरे राज्यों के साथ न्यायपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखना।
  • अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियों, समझौतों तथा कानूनों के लिए सम्मान उत्पन्न करना।
  • अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों को निपटाने के लिए मध्यस्थ का रास्ता अपनाना।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विदेश नीति का अर्थ बताइये। कोई एक परिभाषा भी दीजिए।
अथवा
विदेश नीति से आपका क्या अभिप्राय है? एक परिभाषा देकर स्पष्ट करें।
उत्तर:
विदेश नीति उन सिद्धान्तों और साधनों का एक समूह है जो राष्ट्र अपने राष्ट्रीय हितों को परिभाषित करने, अपने उद्देश्यों को सही बताने और उनको प्राप्त करने के लिए अपनाते हैं। विभिन्न राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों के व्यवहार में क विदश सम्बन्ध परिवर्तन लाने के लिए और अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण को अपने व्यवहार के अनुसार बनाने के लिए विदेश नीति का प्रयोग करता है।

डॉ० महेन्द्र कुमार के शब्दों में , “विदेश नीति कार्यों की सोची समझी क्रिया दिशा है जिससे राष्ट्रीय हित की विचारधारा के अनुसार विदेशी सम्बन्धों में उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है।” रुथना स्वामी के शब्दों में, “विदेश नीति ऐसे सिद्धान्तों और व्यवहार का समूह है जिनके द्वारा राज्य के अन्य राज्यों के साथ सम्बन्धों को नियमित किया जाता है।”

प्रश्न 2.
भारत की विदेश नीति के किन्हीं चार मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
अथवा
भारत की विदेश नीति के कोई चार मुख्य सिद्धान्त लिखिए।
उत्तर:
1. गुट-निरपेक्षता- भारत की विदेश नीति की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता गुट-निरपेक्षता है। गुट-निरपेक्षता का अर्थ है किसी गुट में शामिल न होना और स्वतन्त्र नीति का अनुसरण करना। भारत सरकार ने सदा ही गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया है।

2. विश्व शान्ति और सुरक्षा की नीति-भारत की विदेश नीति का आधारभूत सिद्धान्त विश्व शान्ति और सुरक्षा बनाए रखना है। भारत अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को शान्तिपूर्ण ढंग से निपटाने के पक्ष में है। भारत ने सदैव विश्व शान्ति की स्थापना की और सुरक्षा की नीति अपनाई है।

3. साम्राज्यवादियों तथा उपनिवेशों का विरोध-भारत स्वयं ब्रिटिश साम्राज्य का शिकार रहा है जिसके कारण भारत ने सदैव साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद का विरोध किया है। भारत साम्राज्यवाद को विश्व शान्ति का शत्रु मानता है क्योंकि साम्राज्यवाद युद्ध को जन्म देता है।

4. अन्य देशों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध-भारतीय विदेश नीति की एक प्रमुख विशेषता यह है कि भारत विश्व के सभी देशों से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बनाने का प्रयास करता है।

प्रश्न 3.
भारत की विदेश नीति के कोई चार निर्धारक तत्व लिखिए।
उत्तर:
1. संवैधानिक आधार-भारत के संविधान में राज्यनीति के निर्देशक सिद्धान्तों में भारत को अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में किस प्रकार की नीति अपनानी चाहिए, बताया गया है। अनुच्छेद 51 के अनुसार भारत सरकार को अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा को बढ़ावा देना चाहिए तथा दूसरे राज्यों के साथ न्यायपूर्ण सम्बन्ध बनाने चाहिए।

2. राष्ट्रीय हित-विदेशी नीति के निर्माण में राष्ट्रीय हित ने सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत ने गुट निरपेक्षता की नीति अपने हितों की रक्षा के लिए अपनाई है।

3. आर्थिक तत्व-भारत की विदेश नीति के निर्धारण में आर्थिक तत्व ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। स्वतन्त्रता के समय भारत की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। आर्थिक पुनर्निर्माण के लिए भारत ने गट-निरपेक्षता की नीति अपनाई ताकि दोनों गुटों के देशों से आर्थिक सहायता प्राप्त की जा सके।

4. विचारधारा का प्रभाव-विदेश नीति का निर्माण करने में उस देश की विचारधारा का महत्त्वपूर्ण प्रभाव होता है।

प्रश्न 4.
भारत की परमाणु नीति की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत परमाणु शक्ति का प्रयोग विनाशकारी उद्देश्यों के लिए करने के विरुद्ध है। 1974 में भारत ने एक परमाणु धमाका किया था, परन्तु इसके साथ भारत ने यह घोषणा की थी कि भारत का परमाणु धमाका सैनिक लक्ष्यों के लिए नहीं, बल्कि शान्तिमयी उद्देश्यों के लिए है। भारत ने परमाणु अप्रसार सन्धि (Nuclear Non-Proliferation Treaty) के ऊपर हस्ताक्षर नहीं किए हैं क्योंकि भारत इस सन्धि को गैर-परमाणु शक्तियों के लिए पक्षपात वाली सन्धि मानता है।

यद्यपि भारत ने परमाणु बम न बनाने की घोषणा की थी, फिर भी अपने पड़ोसी देशों द्वारा एकत्र की जाने वाली परमाणु सामग्री से चिंतित होकर तथा अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए भारत ने 11 मई तथा 13 मई, 1998 को पांच परमाणु विस्फोट किए। यह परमाणु विस्फोट भारत ने अपनी सुरक्षा की दृष्टि से किए हैं। इन विस्फोटों के बाद भारत ने और परमाणु विस्फोट न करने की घोषणा कर दी। इसके साथ ही साथ परमाणु अस्त्रों को पूर्णतः समाप्त करने के पक्ष में है। इसके लिए वह एक आम सहमति वाली सन्धि के निर्माण के पक्ष में है।

प्रश्न 5.
1962 के भारत-चीन युद्ध के प्रमुख कारण क्या थे ?
उत्तर:
1. तिब्बत की समस्या-1962 की भारत-चीन युद्ध की सबसे बड़ी समस्या तिब्बत की समस्या थी। चीन ने सदैव तिब्बत पर अपना दावा किया, जबकि भारत इस समस्या को तिब्बतवासियों की भावनाओं को ध्यान में रखकर सुलझाना चाहता था।

2. मानचित्र से सम्बन्धित समस्या-भारत एवं चीन के मध्य 1962 में युद्ध का एक कारण दोनों देशों के बीच मानचित्र में रेखांकित भू-भाग था। चीन ने 1954 में प्रकाशित अपने मानचित्र में कुछ ऐसे भाग प्रदर्शित किये जो वास्तव में भारतीय भू-भाग में थे, अत: भारत ने इस पर चीन के साथ अपना विरोध दर्ज कराया।

3. सीमा विवाद- भारत चीन के बीच युद्ध का एक कारण सीमा विवाद भी था। भारत ने सदैव मैकमोहन रेखा को स्वीकार किया, परन्तुचीन ने नहीं। सीमा विवाद धीरे-धीरे इतना बढ़ गया कि इसने आगे चलकर युद्ध का रूप धारण कर लिया।

प्रश्न 6.
भारत-चीन सीमा विवाद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत और चीन एशिया के दो बड़े और पड़ोसी देश हैं। दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को लेकर तनाव रहा है। इसी विवाद के चलते 1962 में दोनों देशों के बीच एक युद्ध भी हो चुका है। दोनों देशों के बीच तिब्बत एक संवेदनशील विषय है। तिब्बत भारत की उत्तरी सीमा पर स्थित है। पहले यह एक स्वतन्त्र राज्य हुआ करता था। 18वीं शताब्दी में तिब्बत को चीन का एक भाग मान लिया गया। 1950 में चीन ने तिब्बत में व्यापक पैमाने पर घुसपैठ की जिसका भारत ने विरोध किया। 1959 में तिब्बत की राजधानी में अचानक सैनिक गतिविधियां बढ़ गयीं।

तिब्बत के वैधानिक शासक दलाई लामा को बाहर निकाल दिया गया। चीन भारत की तिब्बत के प्रति इस सहानुभूति को पसन्द नहीं करता और भारत के दलाई लामा की शरण को शत्रु जैसी कार्यवाही मानता है। सितम्बर, 1959 में चीनी सरकार ने भारत के लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के 1,28,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में औपचारिक रूप से अपना दावा प्रस्तुत किया। 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया और इसकी 6400 वर्ग किलोमीटर सीमा पर कब्जा कर लिया। आज भी भारत की लगभग 90,000 वर्ग किलोमीटर सीमा चीन के कब्जे में है। चीन इस पर अपना दावा करता है जबकि यह भारत की सीमा है। आज भी दोनों देशों में सीमा विवाद बना हुआ है।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

प्रश्न 7.
1962 में भारत-चीन के मध्य हुए युद्ध का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत-चीन के मध्य 1962 में हुए युद्ध की परिस्थितियां बहुत पहले बननी शुरू हो गई थीं। अन्तत: चीन ने 20 अक्तूबर, 1962 को भारत की उत्तरी सीमा पर आक्रमण कर दिया। इस अचानक हमले के कारण भारतीय फ़ौजें जब तक सम्भलीं, तब तक चीन ने सैनिक चौंकियों पर कब्जा कर लिया। ब्रिटेन और अमेरिका ने भारत के कहने पर तेजी से सैन्य सामग्री भेजी। चीन ने अचानक 21 नवम्बर, 1962 के एक पक्षीय युद्ध-विराम की घोषणा कर दी तथा दो सूत्रीय योजना की घोषणा की।

प्रथम, चीनी सेनाएं, 7 नवम्बर, 1959 की वास्तविक नियन्त्रण रेखा से 20 किलोमीटर अपनी ओर हट जायेंगी। द्वितीय, चीनी सेना के हटने से खाली क्षेत्र पर चीन सरकार अपनी असैनिक चौंकियां स्थापित करेगी। विपरीत परिस्थितियों के कारण भारत ने चीन की एक पक्षीय युद्ध-विराम की घोषणा को मान लिया, परन्तु द्विपक्षीय योजना को नहीं माना और यह घोषणा की, कि जब तक चीन 8 सितम्बर, 1962 की स्थिति तक नहीं लौट जाता तब तक कोई वार्ता नहीं होगी।

प्रश्न 8.
कोलम्बो प्रस्ताव के मुख्य प्रावधान लिखें।
उत्तर:
श्रीलंका, बर्मा (म्यांमार), कम्बोडिया, इण्डोनेशिया, मिस्र और घाना ने दिसम्बर, 1962 में भारत-चीन वार्ता लम्बो सम्मेलन आयोजित किया। श्रीमती भण्डारनायके स्वयं प्रस्ताव लेकर दिल्ली और पीकिंग गई। इसके बाद 19 जनवरी, 1963 को यह प्रस्ताव प्रकाशित किये गए, जिनकी मुख्य बातें निम्नलिखित थीं

  • युद्ध-विराम का समय भारत-चीन विवाद के शान्तिपूर्ण दल के लिए उचित है।
  • चीन पश्चिमी क्षेत्रों में सैनिक चौंकियां 20 किलोमीटर पीछे हटा ले।
  • भारत अपनी वर्तमान स्थिति कायम रखे।
  • विवाद को अन्तिम हल होने तक चीन द्वारा खाली किया गया क्षेत्र असैनिक क्षेत्र हो, जिसकी निगरानी दोनों पक्षों द्वारा नियुक्त गैर सैनिक चौंकियां करें।
  • मध्यवर्ती क्षेत्र का हल शान्तिपूर्ण ढंग से किया जाए।

प्रश्न 9. 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के कोई चार कारण लिखें।
उत्तर:
1. जूनागढ़ एवं हैदराबाद का भारत में मिलाया जाना-जूनागढ एवं हैदराबाद की रियासतें भारत में मिला लिये जाने से पाकिस्तान को गहरा धक्का लगा तथा वह भारत को सदैव नीचा दिखाने की कार्यवाहियां करने लगा।

2. ऋण अदा करने का प्रश्न-स्वतन्त्र भारत ने पुरानी सरकार के कर्जे का भार सम्भाला। इसके अनुसार इसे 5 वर्ष में पाकिस्तान से 300 करोड़ रुपये लेने थे, लेकिन पाकिस्तान ने कर्जे को चुकाने का नाम तक नहीं लिया।

3. विस्थापित सम्पत्ति तथा अल्प संख्यकों की रक्षा का प्रश्न-1947 से 1957 तक लगभग 90 लाख मुसलमान भारत से पाकिस्तान गये तथा इतने ही गैर मुस्लिम पाकिस्तान से भारत आए। पाकिस्तान ने इन विस्थापितों की सम्पत्ति तथा अल्पसंख्यकों की रक्षा से सम्बन्धित सभी सुझावों को नकार दिया।

4. कश्मीर समस्या-1965 में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध का सबसे बड़ा कारण कश्मीर समस्या थी। अक्तूबर, 1947 में कश्मीर के राजा हरि सिंह ने कश्मीर रियासत को भारत में मिलाने की घोषणा कर दी थी, परन्तु पाकिस्तान ने इसे कभी स्वीकार नहीं किया।

प्रश्न 10.
ताशकंद समझौते के मुख्य प्रावधान लिखें।
उत्तर:
ताशकंद समझौता 1966 में सोवियत संघ में भारत-पाकिस्तान के बीच हुआ। इस समझौते के मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं

  • दोनों पक्षों का यह प्रयास रहेगा, कि संयुक्त राष्ट्र के घोषणा-पत्र के अनुसार दोनों में मधुर सम्बन्ध बनें।
  • दोनों पक्ष इस बात पर सहमत थे, कि दोनों देशों की सेनाएं 5 फरवरी, 1966 से पहले उस स्थान पर पहुंच जायें, जहां वे 5 अगस्त, 1965 से पहले थीं।।
  • दोनों देश एक-दूसरे के आन्तरिक विषयों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
  • दोनों देश एक-दूसरे के विरुद्ध प्रचार नहीं करेंगे।
  • दोनों देशों के उच्चायुक्त एक-दूसरे के देश में वापिस आयेंगे।

प्रश्न 11.
पंचशील पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर:
पंचशील के सिद्धान्त भारत और चीन के प्रधानमंत्री, पण्डित जवाहर लाल व चाऊ-एन-लाई ने बनाए। पंचशील का साधारण अर्थ पांच सिद्धान्त हैं। अप्रैल, 1954 में भारत तथा चीन के मध्य एक व्यापारिक समझौता हुआ था। इस व्यापारिक समझौते की प्रस्तावना में पांच सिद्धान्त दिए गए जिनको सामूहिक रूप से पंचशील कहा जाता है। इन पांच सिद्धान्तों को भारत तथा चीन ने परस्पर सम्बन्धों को नियमित करने के विषय में स्वीकार किया था। ये सिद्धान्त हैं-

  • परस्पर क्षेत्रीय अखण्डता तथा प्रभुसत्ता का सम्मान करना।
  • परस्पर आक्रमण न करना।
  • परस्पर आन्तरिक कार्यों में हस्तक्षेप न करना।
  • समानता तथा परस्पर लाभ।
  • शान्तिमय सह-अस्तित्व।

प्रश्न 12.
भारत द्वारा परमाणु नीति एवं कार्यक्रम अपनाने के कोई चार कारण लिखें।
उत्तर:
1. आत्म-निर्भर राष्ट्र बनना-भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर एक आत्म-निर्भर राष्ट्र बनना चाहता है। विश्व में जिन देशों के पास भी परमाणु हथियार हैं वे सभी आत्म-निर्भर राष्ट्र हैं।

2. न्यूनतम अवरोध की स्थिति प्राप्त करना-भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर दूसरे देशों के आक्रमण से बचने के लिए न्यूनतम अवरोध की स्थिति प्राप्त करना चाहता है।

3. दो पड़ोसी देशों के पास परमाणु हथियार होना-भारत के लिए परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाने इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि भारत के दो पड़ोसी देशों चीन एवं पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं।

4. परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों की विभेदपूर्ण नीति- परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों ने 1968 में परमाणु अप्रसार सन्धि (NPT) तथा 1996 में व्यापक परमाणु परीक्षण सन्धि (C.T.B.T.) के विभेदपूर्ण ढंग से लागू किया, जिसके कारण भारत ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किए।

प्रश्न 13.
भारतीय परमाणु नीति के कोई दो पक्ष बताएं।
उत्तर:
भारतीय परमाणु नीति के दो पक्ष निम्नलिखित हैं

1. आत्म रक्षा-भारतीय परमाणु नीति का प्रथम पक्ष आत्म रक्षा है। भारत ने आत्म रक्षा के लिए परमाणु हथियारों का निर्माण किया है, ताकि कोई अन्य देश भारत पर परमाणु हमला न कर सके।

2. प्रथम प्रयोग की मनाही-भारत की परमाणु नीति का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष यह है कि भारत ने परमाणु हथियारों का युद्ध में पहले प्रयोग न करने की घोषणा कर रखी है।

प्रश्न 14.
भारत की विदेश नीति को प्रभावित करने वाले किन्हीं चार बाहरी कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • अन्तर्राष्ट्रीय संगठन-भारतीय विदेश नीति अन्तर्राष्ट्रीय जैसे यू० एन० ओ०, आई० एम० एफ० तथा वर्ल्ड बैंक प्रभावित करते हैं।
  • अन्तर्राष्ट्रीय जनमत- भारतीय विदेश नीति को अन्तर्राष्ट्रीय जनमत प्रभावित करता है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय कानून-भारतीय विदेश नीति को अन्तर्राष्ट्रीय कानून प्रभावित करते हैं।
  • विश्व समस्याएं-भारतीय विदेश नीति को मानवीय अधिकारों तथा आतंकवाद की समस्याएं भी प्रभावित करती हैं।

प्रश्न 15.
‘गुट-निरपेक्ष आन्दोलन’ के कोई चार उद्देश्य बताइये।
अथवा
गुट निरपेक्षता के कोई चार उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:

  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों को शक्ति गुटों से अलग रखना था।
  • गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का उद्देश्य विकासशील देशों के सम्मान एवं प्रतिष्ठा को बढ़ाना था।
  • सदस्य देशों में सामाजिक एवं आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना।
  • उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद को समाप्त करना इसका एक मुख्य उद्देश्य रखा गया।

प्रश्न 16.
भारतीय गुट-निरपेक्षता की कोई चार विशेषताएँ बताइये ।
अथवा
भारत की गुट निरपेक्षता की नीति के मुख्य तत्त्व लिखिए।
उत्तर:

  • गुट-निरपेक्ष आंदोलन की नीति किसी गुट में शामिल होने के विरुद्ध है।
  • गुट-निरपेक्षता की नीति सभी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने पर बल देती है।
  • गुट-निरपेक्षता की नीति साम्राज्यवाद के विरुद्ध है।
  • गुट-निरपेक्षता की नीति रंग भेदभाव की नीति के विरुद्ध है।

प्रश्न 17.
भारत द्वारा गुट-निरपेक्षता की नीति को अपनाने के कोई चार कारण लिखिए।
अथवा
गुट-निरपेक्षता का क्या अर्थ है? भारत द्वारा इस नीति को अपनाने के कोई तीन कारण लिखिए।
उत्तर:
गुट-निरपेक्षता का अर्थ- इसके लिए अति लघु उत्तरीय प्रश्नों में प्रश्न नं0 4 देखें। भारत द्वारा गुट निरपेक्ष नीति अपनाने के कारण

1. आर्थिक पुनर्निर्माण-स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत के सामने सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न देश का आर्थिक पुनर्निर्माण था। अत: भारत के लिए किसी गुट का सदस्य न बनना ही उचित था ताकि सभी देशों से आर्थिक सहायता प्राप्त की जा सके।

2. स्वतन्त्र नीति-निर्धारण के लिए भारत ने गुट-निपरेक्षता की नीति इसलिए भी अपनाई ताकि भारत स्वतन्त्र नीति का निर्धारण कर सके। भारत को स्वतन्त्रता हज़ारों देश प्रेमियों के बलिदान के बाद मिली थी। किसी एक गुट में सम्मिलित होने का अर्थ इस मूल्यवान् स्वतन्त्रता को खो बैठना था।

3. भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए गुट-निरपेक्षता की नीति का निर्माण किया गया। यदि भारत स्वतन्त्र विदेश नीति का अनुसरण करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं पर निष्पक्ष रूप से अपना निर्णय देता तो दोनों गुट उसके विचारों का आदर करेंगे और अन्तर्राष्ट्रीय तनाव में कमी होगी और भारत की प्रतिष्ठा बढ़ेगी।

4. दोनों गुटों से आर्थिक सहायता- भारत ने गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण इसलिए भी किया ताकि दोनों गुटों से सहायता प्राप्त की जा सके और हुआ भी ऐसा ही।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विदेश नीति का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
प्रत्येक देश दूसरे देश के साथ सम्बन्धों की स्थापना में एक विशेष प्रकार की नीति का प्रयोग करता है जिसे विदेश नीति कहा जाता है। विदेश नीति उन सिद्धान्तों और साधनों का समूह है जो राष्ट्र अपने राष्ट्रीय हितों को परिभाषित करने, अपने उद्देश्यों को सही बताने और उनको प्राप्त करने के लिए अपनाते हैं। रुथना स्वामी के अनुसार, “विदेश नीति ऐसे सिद्धान्तों और व्यवहारों का समूह है जिनके द्वारा राज्य के अन्य राज्यों के साथ सम्बन्धों को नियमित किया जाता है।”

प्रश्न 2.
भारत की विदेश नीति की कोई दो मुख्य विशेषताएं लिखिए।
उत्तर:

  • भारतीय विदेश नीति का मुख्य आधारभूत सिद्धान्त गुट-निरपेक्षता है।
  • भारतीय विदेश नीति का महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त राष्ट्रहित की रक्षा करना है।

प्रश्न 3.
भारतीय विदेश नीति को निर्धारित करने वाले दो तत्त्वों का वर्णन करो।
उत्तर:
1. संवैधानिक आधार-भारत के संविधान में राज्यनीति के निर्देशक सिद्धान्तों में केवल राज्य की आन्तरिक नीति से सम्बन्धित ही निर्देश नहीं दिए गए बल्कि भारत को अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में किस प्रकार की नीति अपनानी चाहिए इस विषय में भी निर्देश दिए गए हैं। अनुच्छेद 51 के अनुसार राज्य को अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा को बढ़ावा देने, दूसरे राज्यों के साथ न्यायपूर्ण सम्बन्ध रखने तथा अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों को निपटाने के लिए मध्यस्थ का रास्ता अपनाने सम्बन्धी निर्देश दिए गए हैं।

2. राष्ट्र हित-विदेश नीति के निर्माण में राष्ट्रीय हित ने सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत ने अपने राष्ट्र हितों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रमण्डल का सदस्य रहना स्वीकार किया। भारत ने राष्ट्र हितों को सामने रखते हुए ही ऐसे कार्य किए हैं जिन्हें उचित कहना कठिन है।

प्रश्न 4.
गुट-निरपेक्षता का अर्थ स्पस्ट करें।
उत्तर:
भारत एक गुट-निरपेक्ष देश है। भारत की विदेश नीति का मुख्य आधार गुट-निरपेक्षता है। गुट-निरपेक्षता का अर्थ है-अपनी स्वतन्त्र नीति। गुट-निरपेक्षता का अर्थ है कि किसी गुट में शामिल न होकर स्वतन्त्र रहना। गुट-निरपेक्षता की नीति के कारण देश प्रत्येक समस्या पर उसके गुण-दोष पर विचार कर अपनी राय कायम करता है। गुट-निरपेक्षता की नीति शान्तिवाद की नीति है।

भूतपूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के अनुसार, “गुट-निरपेक्षता में न तो तटस्थता है और न ही समस्याओं के प्रति उदासीनता। उसमें सिद्धान्तों के आधार पर सक्रिय और स्वतन्त्र रूप से निर्णय करने की भावना निहित है। अपनी इसी आन्तरिक शक्ति के सहारे वह सभी देशों के बीच विश्वास तथा सहयोग को अधिक-से-अधिक बढ़ाने पर बल दे रहा है, ताकि विश्व को युद्ध और आर्थिक विनाश से बचाया जा सके।”

प्रश्न 5.
पंचशील क्या है ?
उत्तर:
पंचशील के सिद्धान्त भारत और चीन के प्रधानमन्त्री, पण्डित जवाहर लाल व चाऊ-एन-लाई ने बनाए। पंचशील का साधारण अर्थ पांच सिद्धान्त हैं। अप्रैल, 1954 में भारत तथा चीन के मध्य एक व्यापारिक समझौता हुआ था। इस व्यापारिक समझौते की प्रस्तावना में पांच सिद्धान्त दिए गए जिनको सामूहिक रूप से पंचशील कहा जाता है। इन पांच सिद्धान्तों को भारत तथा चीन ने परस्पर सम्बन्धों को नियमित करने के विषय में स्वीकार किया था। ये सिद्धान्त हैं-

  • परस्पर क्षेत्रीय अखण्डता तथा प्रभुसत्ता का सम्मान करना।
  • परस्पर आक्रमण न करना
  • परस्पर आन्तरिक कार्यों में हस्तक्षेप न करना
  • समानता तथा परस्पर लाभ
  • शान्तिमय सह-अस्तित्व।

प्रश्न 6.
भारत-चीन में हुए 1962 के युद्ध के कोई दो कारण बताएं।
उत्तर:
1. तिब्बत की समस्या-1962 के भारत-चीन युद्ध की सबसे बड़ी समस्या तिब्बत की समस्या थी। चीन ने सदैव तिब्बत पर अपना दावा किया, जबकि भारत इस समस्या को तिब्बतवासियों की भावनाओं को ध्यान में रखकर सुलझाना चाहता था।

2. सीमा विवाद- भारत-चीन के बीच युद्ध का एक कारण सीमा विवाद भी था। भारत ने सदैव मैकमोहन रेखा को स्वीकार किया, परन्तु चीन ने नहीं किया। सीमा विवाद धीरे-धीरे इतना बढ़ गया कि इसने आगे चलकर युद्ध का रूप धारण कर लिया।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

प्रश्न 7.
कोलम्बो प्रस्ताव के कोई चार प्रावधान लिखें।
उत्तर:

  • युद्ध विराम का समय भारत-चीन विवाद के शान्तिपूर्ण हल के लिए उचित है।
  • चीन पश्चिमी क्षेत्रों में अपनी सैनिक चौकियां 20 किलोमीटर पीछे हटा लें।
  • भारत अपनी वर्तमान स्थिति कायम रखे।
  • मध्यवर्ती क्षेत्र का हल शांतिपूर्ण ढंग से किया जाए।

प्रश्न 8.
श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने पाकिस्तान के साथ कब और कौन-सा समझौता किया था?
उत्तर:
श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने पाकिस्तान के साथ सन् 1966 में ताशकन्द समझौता किया था।

प्रश्न 9.
ताशकंद समझौते के कोई दो प्रावधान लिखें।
उत्तर:

  • दोनों पक्षों (भारत-पाकिस्तान) का यह प्रयास रहेगा कि संयुक्त राष्ट्र के घोषणा-पत्र के अनुसार दोनों में मधुर सम्बन्ध बनें।
  • दोनों पक्ष इस बात पर सहमत थे कि दोनों देशों की सेनाएं 5 फरवरी, 1966 से पहले उस स्थान पर पहुंच जाएं जहां से 5 अगस्त, 1965 से पहले थीं।

प्रश्न 10.
‘शिमला समझौता’ कब और किसके मध्य सम्पन्न हुआ ?
उत्तर:
1972 को भारत की प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी और पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री भुट्टो के बीच एक समझौता हुआ, जो शिमला समझौते के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसकी मुख्य बातें निम्नलिखित हैं

  • दोनों देश आपसी मतभेदों का शान्तिपूर्ण ढंग से हल करेंगे।
  • दोनों देश एक-दूसरे की सीमा पर आक्रमण नहीं करेंगे।

प्रश्न 11.
भारत और चीन के मध्य दो मुख्य विवाद कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:

  • भारत और चीन में महत्त्वपूर्ण विवाद सीमा का विवाद है। चीन ने भारत की भूमि पर कब्ज़ा कर रखा है।
  • चीन का तिब्बत पर कब्जा और भारत का दलाई लामा को राजनीतिक शरण देना।

प्रश्न 12.
भारत-पाकिस्तान के बीच सम्बन्धों में तनाव के मुख्य कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत और पाकिस्तान में कभी भी मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध नहीं रहे। इन दोनों में तनाव के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
(1) भारत-पाक सम्बन्धों में तनाव का महत्त्वपूर्ण कारण कश्मीर का मामला है। पाकिस्तान के नेताओं ने कई बार कश्मीर के मामले को संयुक्त राष्ट्र में उठाया है जिसे भारत नापसन्द करता है।

(2) भारत और पाकिस्तान में तनावपूर्ण सम्बन्धों का एक कारण यह है कि पाकिस्तान पिछले कुछ वर्षों से कश्मीर के आतंकवादियों की सभी तरह की सहायता कर रहा है।

प्रश्न 13.
भारत द्वारा परमाणु शस्त्र बनाने के दो मुख्य कारण क्या हैं ?
उत्तर:

  • भारत परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाकर दूसरे देशों के आक्रमण से बचने के लिए न्यूनतम अवरोध की स्थिति प्राप्त करना चाहता है।
  • भारत के लिए परमाणु नीति एवं परमाणु हथियार बनाने इसलिए भी आवश्यक हैं क्योंकि भारत के दो पड़ोसी देशों चीन एवं पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं और इन दोनों देशों से भारत युद्ध भी लड़ चुका है।

प्रश्न 14.
भारत की परमाणु नीति के विकास के दो पड़ाव लिखें।
उत्तर:

  • भारत ने 1948 में परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना की।
  • भारत ने 1974 एवं 1998 में परमाणु परीक्षण किए। इन परीक्षणों द्वारा भारत ने परमाणु कार्यक्रम को आगे जारी रखने के लिए आवश्यक तथ्य एवं आंकड़े प्राप्त किए।

प्रश्न 15.
पोखरण में भारत ने परमाणु परीक्षण कब किए ?
उत्तर:
भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण सन् 1974 एवं सन् 1998 में किये।

प्रश्न 16.
नेहरू की विदेश नीति के कोई दो उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:

  • दूसरे देशों से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना।
  • गुटों की राजनीति से अलग रहना।

प्रश्न 17.
विदेशी नीति से सम्बन्धित किन्हीं दो नीति निर्देशक सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति सुरक्षा को बढ़ावा देना।
  • दूसरे राज्यों के साथ न्यायपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखना।

प्रश्न 18.
तिब्बत का पठार भारत और चीन में तनाव का एक बड़ा मसला कैसे बना ?
उत्तर:
भारत और चीन के बीच तनाव का एक कारण तिब्बत की समस्या है। 29 अप्रैल, 1954 को भारत ने कुछ शर्तों के साथ तिब्बत पर चीन के आधिपत्य को स्वीकार किया। दोनों देशों ने पंचशील के सिद्धान्तों में विश्वास व्यक्त किया। मार्च, 1957 में दलाईलामा ने चीनियों के दमन से भयभीत होकर भारत में राजनीतिक शरण ले ली, जिसका चीन ने विरोध किया, तभी से तिब्बत भारत एवं चीन के बीच एक बड़ा मसला बना हुआ है।

प्रश्न 19.
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों के ऐसे दो उदाहरण दीजिए जिनमें भारत ने स्वतन्त्र रवैया अपनाया है ?
उत्तर:

  • निःशस्त्रीकरण-भारत ने नि:शस्त्रीकरण के मुद्दे पर स्वतन्त्र रवैया अपनाया है तथा किसी के दबाव में नहीं आया।
  • आतंकवाद-भारत ने आतंकवाद जैसे अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दे पर स्वतन्त्र रवैया अपनाया है।

प्रश्न 20.
अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं के ऐसे कोई दो उदाहरण दीजिए, जिनमें भारत ने स्वतन्त्र रवैया अपनाया ?
उत्तर:
1. स्वेज नहर की समस्या-26 जुलाई, 1956 को मिस्र ने स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया। इस पर ब्रिटेन, फ्रांस एवं इज़रायल ने मिस्र पर आक्रमण कर दिया, भारत ने इस आक्रमण की निन्दा करते हुए कहा कि विवाद को शान्तिपूर्ण ढंग से सुलझाया जाए।

2. सोवियत संघ द्वारा अफगानिस्तान में सैनिक हस्तक्षेप-भारत ने 1979 में सोवियत संघ द्वारा अफगानिस्तान में किए गए सैनिक हस्तक्षेप की निन्दा की।

प्रश्न 21.
मैक्मोहन रेखा से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
मैक्मोहन रेखा उत्तर-पूर्व में भारत-चीन सीमा का विभाजन करती है। सन् 1914 में शिमला में हुए ब्रिटिश भारत, चीन और तिब्बत के प्रतिनिधियों के एक सम्मेलन में यह सीमा रेखा निर्धारित करके औपचारिक रूप से सीमा विभाजन किया गया था। इस सीमा रेखा का नाम तत्कालीन भारत मन्त्री आर्थर हेनरी मैक्मोहन के नाम से रखा गया था। भारत ने इस सीमा रेखा को सदैव वैध माना है। यह एक प्राकृतिक सीमा है। क्योंकि यह उत्तर में तिब्बत के पठार और दक्षिण में भारत की पर्वत श्रेणियों से निकलती है। चीन ने इस सीमा रेखा का कभी आदर नहीं किया।

प्रश्न 22.
भारत चीन सीमा विवाद क्या है ?
उत्तर:
भारत-चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर तनाव रहा है। सितम्बर, 1959 में चीनी सरकार ने भारत के लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के 1,28,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में औपचारिक रूप से अपना दावा प्रस्तुत किया। 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया और इसकी 6400 वर्ग किलोमीटर सीमा पर कब्जा कर लिया। आज भी भारत की लगभग 90,000 वर्ग किलोमीटर सीमा चीन के कब्जे में है। चीन इस पर अपना दावा करता है जबकि यह भारत की सीमा है। आज भी दोनों देशों में सीमा विवाद बना हुआ है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. निम्न में से कौन-सा पं० नेहरू द्वारा अपनाई गई विदेश नीति का एक तत्त्व है
(A) गुट-निरपेक्षता
(B) साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद का विरोध
(C) पंचशील।
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

2. निम्न में से कौन-सा भारतीय विदेश नीति को निर्धारित करने वाला तत्त्व है-
(A) संवैधानिक आधार
(B) भौगोलिक तत्त्व
(C) राष्ट्रीय हित
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

3. भारत-चीन युद्ध कब हुआ ?
(A) 1962
(B) 1965
(C) 1971
(D) 1974
उत्तर:
(A) 1962

4. कोलम्बो प्रस्ताव का प्रावधान था
(A) युद्ध विराम का समय भारत-चीन विवाद के शान्तिपूर्ण हल के लिए उचित है
(B) चीन द्वारा पश्चिमी क्षेत्रों में अपनी सैनिक चौकियां 20 किलोमीटर पीछे हटाना
(C) भारत द्वारा अपनी वर्तमान स्थिति को कायम रखना
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

5. मैक्मोहन रेखा का निर्धारण किया गया
(A) 1914 में
(B) 1920 में
(C) 1925 में
(D) 1935 में।
उत्तर:
(A) 1914 में।

6. निम्न में से किसने पंचशील के सिद्धान्तों का निर्धारण किया ?
(A) श्रीमती इन्दिरा गांधी
(B) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
(C) पं० नेहरू
(D) सरदार पटेल।
उत्तर:
(C) पं० नेहरू।

7. पंचशील के कितने सिद्धान्त हैं ?
(A) चार
(B) पाँच
(C) सात
(D) आठ।
उत्तर:
(B) पाँच।

8. 1965 में किन दो देशों के बीच युद्ध हुआ ?
(A) भारत-पाकिस्तान
(B) भारत-चीन
(C) भारत-श्रीलंका
(D) पाकिस्तान-नेपाल।
उत्तर:
(A) भारत-पाकिस्तान।

9. ताशकन्द समझौता किन दो देशों के बीच हुआ ?
(A) भारत-चीन
(B) भारत-पाकिस्तान
(C) भारत-नेपाल
(D) भारत-श्रीलंका।
उत्तर:
(B) भारत-पाकिस्तान।

10. 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में किस नए देश का जन्म हुआ ?
(A) नेपाल
(B) भूटान
(C) बंगलादेश
(D) मालद्वीप।
उत्तर:
(C) बंगलादेश।

11. शिमला समझौता किन दो देशों के बीच हुआ ?
(A) भारत-पाकिस्तान
(B) भारत-चीन
(C) भारत-नेपाल
(D) भारत-श्रीलंका।
उत्तर:
(A) भारत-पाकिस्तान।

12. पं० नेहरू कब से कब तक भारत के प्रधानमन्त्री रहे ?
(A) 1947-1950
(B) 1947-1955
(C) 1947-1962
(D) 1947-1964
उत्तर:
(D) 1947-1964

13. किसके सुझाव पर कश्मीर का विभाजन किया गया था ?
(A) माउण्टबेटन
(B) एम० सी० नाटन
(C) पं० नेहरू
(D) सरदार पटेल।
उत्तर:
(A) माउण्टबेटन।

14. भारत द्वारा परमाणु नीति अपनाने का कारण है
(A) आत्म-निर्भर राष्ट्र बनना
(B) शक्तिशाली राष्ट्र बनना
(C) पड़ोसी देशों के पास परमाणु हथियार
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

15. भारत ने प्रथम परमाणु विस्फोट किस वर्ष किया ?
(A) 1974
(B) 1988
(C) 2000
(D) 2001
उत्तर:
(A) 1974

16. भारत ने द्वितीय परमाणु विस्फोट कब किया ?
(A) 1974
(B) 1985
(C) 1998
(D) 2000
उत्तर:
(C) 1998

17. निम्नलिखित में से कौन-सा भारतीय विदेश नीति का आन्तरिक निर्धारक तत्त्व है ?
(A) संवैधानिक आधार
(B) भौगोलिक तत्त्व
(C) ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

18. निम्नलिखित में से कौन-सा भारतीय विदेश नीति का बाहरी निर्धारक तत्त्व है ?
(A) राष्ट्रीय हित
(B) अन्तर्राष्ट्रीय संगठन
(C) आर्थिक तत्त्व
(D) संवैधानिक आधार।
उत्तर:
(B) अन्तर्राष्ट्रीय संगठन।

19. निम्नलिखित में से कौन-सी भारतीय विदेश नीति की विशेषता है ?
(A) गुट-निरपेक्षता
(B) साम्राज्यवादियों का विरोध
(C) उपनिवेशवादियों का विरोध
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

20. पंचशील के सिद्धान्तों का प्रतिपादन कब किया गया ?
(A) 1954
(B) 1956
(C) 1958
(D) 1960
उत्तर:
(A) 1954

21. निम्नलिखित में से कौन-सा पंचशील का सिद्धान्त है ?
(A) राष्ट्रों को एक-दूसरे की प्रभुसत्ता का सम्मान करना चाहिए
(B) एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर आक्रमण नहीं करेगा
(C) एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र के आन्तरिक कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

22. भारत में अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार ने परमाणु परीक्षण किया
(A) सन् 1998 में
(B) सन् 1996 में
(C) सन् 1999 में
(D) सन् 1997 में।
उत्तर:
(D) सन् 1998 में।

23. भारत-पाक के मध्य शिमला समझौता कब हुआ?
(A) वर्ष 1962 में
(B) वर्ष 1972 में
(C) वर्ष 1974 में
(D) वर्ष 1976 में।
उत्तर:
(B) वर्ष 1972 में।

24. कारगिल संघर्ष के दौरान भारतीय सेना ने कौन-सा ऑपरेशन चलाया था?
(A) ऑपरेशन विजय
(B) ऑपरेशन सुरक्षा
(C) ऑपरेशन शान्ति
(D) इनमें कोई नहीं।
उत्तर:
(A) ऑपरेशन विजय।

25. गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का जनक किसको माना जाता है ?
(A) सुकर्णो को
(B) पं० जवाहर लाल नेहरू को
(C) नेल्सन मंडेला को
(D) सभी को।
उत्तर:
(B) पं० जवाहर लाल नेहरू को।

26. पाकिस्तान की स्थापना किस वर्ष में हुई ?
(A) 1947 में
(B) 1950 में
(C) 1945 में
(D) 1949 में।
उत्तर:
(A) 1947 में।

27. भारत की विदेश नीति का मुख्य निर्माता किसे माना जाता है ?
(A) पं० जवाहर लाल नेहरू
(B) इंदिरा गांधी
(C) महात्मा गांधी
(D) सरदार पटेल।
उत्तर:
(A) पं० जवाहर लाल नेहरू।

28. पहला गुट-निरपेक्ष सम्मेलन हुआ
(A) काहिरा में
(B) बेलग्रेड में
(C) कोलम्बो में
(D) नई दिल्ली में।
उत्तर:
(B) बेलग्रेड में।

29. ‘पंचशील समझौता’ किन देशों के मध्य हुआ ?
(A) भारत-श्रीलंका
(B) भारत-नेपाल
(C) भारत-पाकिस्तान
(D) भारत-तीन।
उत्तर:
(D) भारत-चीन।

30. निम्न में से एक भारत का पड़ोसी देश नहीं है ?
(A) चीन
(B) अमेरिका
(C) नेपाल
(D) पाकिस्तान।
उत्तर:
(B) अमेरिका।

31. भारत का पड़ोसी देश नहीं है
(A) पाकिस्तान
(B) नेपाल
(C) अमेरिका
(D) चीन।
उत्तर:
(C) अमेरिका।

32. भारत का विभाजन कब हुआ ?
(A) 1947
(B) 1948
(C) 1949
(D) 1950
उत्तर:
(A) 1947

33. भारत के विभाजन से कौन-सा नया देश अस्तित्व में आया ?
(A) रूस
(B) जर्मनी
(C) पाकिस्तान
(D) जापान।
उत्तर:
(C) पाकिस्तान।

34. पाकिस्तान ने भारत पर पहली बार कब आक्रमण किया ?
(A) वर्ष 1965 में
(B) वर्ष 1971 में
(C) वर्ष 1984 में
(D) वर्ष 1950 में।
उत्तर:
(A) वर्ष 1965 में।

35. वर्ष 1972 में भारत और पाकिस्तान के बीच कौन-सा समझौता हुआ ?
(A) ताशकन्द समझौता
(B) पंचशील समझौता
(C) शिमला समझौता
(D) कारगिल समझौता।
उत्तर:
(C) शिमला समझौता।

36. प्रधानमन्त्री राजीव गांधी कब चीन की ऐतिहासिक यात्रा पर गए ?
(A) 1985
(B) 1986
(C) 1987
(D) 1988
उत्तर:
(D) 1988

37. बांडुंग में एफ्रो-एशियाई दोनों देशों का सम्मेलन कब हुआ ?
(A) सन् 1952 में
(B) सन् 1955 में
(C) सन् 1956 में
(D) सन् 1972 में।
उत्तर:
(B) सन् 1955 में।

38. क्या वर्तमान समय में नेपाल में लोकतन्त्र पाया जाता है ?
(A) हां
(B) नहीं
(C) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) हां।

39. गुट निरपेक्षता से तात्पर्य है
(A) तटस्थता
(B) तटस्थीकरण
(C) अलगाववाद
(D) किसी भी शक्ति गुट में शामिल न होना।
उत्तर:
(D) किसी भी शक्ति गुट में शामिल न होना।

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

(1) चीन ………… दल के शासन वाला देश है।
उत्तर:
साम्यवादी

(2) शिमला समझौता वर्ष ……….. में हुआ।
उत्तर:
1972

(3) 1962 में ……….. और …….. देशों के बीच युद्ध हुआ।
उत्तर:
चीन, भारत

(4) ………. भारत का पड़ोसी देश है।
उत्तर:
पाकिस्तान

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

(5) आजकल गुट निरपेक्ष देशों की संख्या ………… है।
उत्तर:
120

(6) 1962 में ……………… ने भारत पर आक्रमण किया।
उत्तर:
चीन

(7) पंचशील समझौते पर ………….. और ……………. दो देशों ने हस्ताक्षर किए।
उत्तर:
भारत, चीन,

(8) भारत द्वारा अपना प्रथम परमाणु परीक्षण सन् ……………. में किया गया था।
उत्तर:
1974

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
विदेश नीति क्या होती है ?
उत्तर:
प्रत्येक देश दूसरे देश के साथ सम्बन्धों की स्थापना में एक विशेष प्रकार की नीति का प्रयोग करता है जिसे विदेश नीति कहा जाता है।

प्रश्न 2.
भारत की विदेश नीति का संवैधानिक आधार लिखें।
उत्तर:
अनुच्छेद 51 के अनुसार राज्य को अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों को निपटाने के लिए मध्यस्थ का रास्ता अपनाने सम्बन्धी निर्देश दिए गए हैं।

प्रश्न 3.
भारत की विदेश नीति का कोई एक उद्देश्य लिखें।
उत्तर:
क्षेत्रीय अखण्डता की रक्षा करना।

प्रश्न 4.
भारत की विदेश नीति का मख्य निर्माता किसे माना जाता है ?
उत्तर:
पं. जवाहर लाल नेहरू को भारत की विदेश नीति का निर्माता माना जाता है।

प्रश्न 5.
लाल बहादुर शास्त्री ने पाकिस्तान के साथ कौन-सा समझौता किया?
उत्तर:
ताशकन्द समझौता।

प्रश्न 6.
‘ताशकन्द समझौता’ किन देशों के मध्य हुआ ?
उत्तर:
भारत-पाकिस्तान के बीच।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *