Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय Important Questions and Answers.
Haryana Board 12th Class Political Science Important Questions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
जन आन्दोलन का क्या अर्थ है ? इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
जन आन्दोलन का अर्थ-जो आन्दोलन लोगों की किसी समस्या या जनहित को लेकर चलाए जाते हैं, उन्हें जन आन्दोलन कहते हैं। ऐसे आन्दोलन के साथ अधिक से अधिक लोग जुड़े हुए होते हैं। एक आन्दोलन के साथ जितने अधिक लोग जुड़ते जायेंगे वह आंदोलन और अधिक लोकप्रिय होता जायेगा। उदाहरण के लिए भ्रष्टाचार के खिलाफ श्री अन्ना हजारे द्वारा चलाया गया आन्दोलन एक जन आन्दोलन ही था।
विशेषताएं:
(1) जन आन्दोलनों ने समाज के उन नए वर्गों की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं को अभिव्यक्ति दी जो अपनी समस्याओं को चुनावी राजनीति के माध्यम से हल नहीं कर पा रहे थे।
(2) जन आन्दोलन सामाजिक समूहों के लिए अपनी बात उचित ढंग से रखने के बेहतर मंच बनकर उभरे हैं।
(3) इन आंदोलनों ने जनता के क्रोध एवं तनाव को एक सार्थक दिशा देकर लोकतंत्र को मजबूत किया।
(4) इन आंदोलनों ने भारतीय लोकतंत्र के जनाधार को बढ़ाया है।
प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में चलाए गए किसान आन्दोलनों का वर्णन करें।
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद किसान आन्दोलन (Peasant Movements after Independence) स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने निश्चय किया कि उसे कृषकों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए, क्योंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारत सरकार ने इस दिशा में कई कदम उठाए, फिर भी कृषकों ने कई आन्दोलन किए, जिनका वर्णन निम्नलिखित है
1.तिभागा आन्दोलन (Tibhaga Movement):
तिभागा आन्दोलन 1946-47 में बंगाल में आरम्भ हुआ। यह आन्दोलन मुख्यतः जोतदारों के विरुद्ध मझोले किसानों एवं बटाईदारों का संयुक्त प्रयास था। इस आन्दोलन का मुख्य कारण सन् 1943 में बंगाल में पड़ा भीषण अकाल था। इस आन्दोलन के कारण कई गांवों में किसान सभा का शासन स्थापित हो गया। परन्तु औद्योगिक मजदूर वर्ग और मझोले किसानों के समर्थन के बिना यह शीघ्र ही समाप्त हो गया।
2. तेलंगाना आन्दोलन (Telangana Movement):
तेलंगाना आन्दोलन हैदराबाद राज्य में 1946 में जागीरदारों द्वारा की जा रही जबरन एवं अत्यधिक वसूली के विरोध में चलाया गया क्रान्तिकारी किसान आन्दोलन था। इस आन्दोलन में किसानों ने मांग की कि उनके सभी ऋण माफ कर दिए जाएं, परन्तु ज़मींदारों ने उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया। क्रान्तिकारी किसानों ने पांच हजार गुरिल्ला सैनिक तैयार किए और ज़मींदारों के विरुद्ध संघर्ष आरम्भ कर दिया। गुरिल्ला सैनिकों ने ज़मींदारों के हथियार छीन लिए और उन्हें भगा दिया, परन्तु भारत सरकार द्वारा हस्तक्षेप करने पर यह आन्दोलन समाप्त हो गया।
3. नक्सलवाड़ी आन्दोलन (Naxalbari Movement):
सन् 1964 में साम्यवादी दल में फूट पड़ गई। दोनों दलों के संसदीय राजनीति में व्यस्त होने के कारण इन दलों के सक्रिय व संघर्षशील कार्यकर्ता दलों से अलग होकर जन कार्य करने लगे। सन् 1967 में बंगाल में साम्यवादी दल की सरकार बनी। इसी समय दार्जिलिंग में नक्सलवाड़ी नामक स्थान पर किसानों ने विद्रोह कर दिया। यद्यपि पश्चिमी बंगाल की सरकार ने इसे दबा दिया।
परन्तु इस आन्दोलन की प्रतिक्रिया पंजाब, उत्तर प्रदेश और कश्मीर में भी हुई। इससे नक्सलवाड़ी आन्दोलन का विरोध किया गया, जिसके परिणामस्वरूप मई, 1967 में भारी हिंसक घटनाएं हुईं। यह आन्दोलन तेज़ी से राज्य के अन्य क्षेत्रों में भी फैल गया। केन्द्र सरकार का ध्यान इस तरफ आकर्षित हुआ क्योंकि सन् 1948 के बाद यह किसानों का मुख्य हिंसक विद्रोह था और ऐसे समय में हुआ था जब पश्चिम बंगाल में मार्क्सवादियों की सरकार सत्तारूढ़ थी।
4. आधुनिक आन्दोलन (Modern Movement):
अपने हितों की रक्षा के लिए किसान समय-समय पर आन्दोलन करते रहे हैं। पिछले कई वर्षों से कपास के दामों में कमी होने के कारण कपास उत्पादक राज्यों, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब आदि के किसानों में असंतोष भर गया। मार्च, 1987 में गुजरात के किसानों ने अपनी मांगें मनवाने के लिए विधान सभा का घेराव करने की योजना बनाई। सरकार ने गुजरात विधानसभा (गांधीनगर) की किलेबन्दी कर दी। पुलिस ने किसानों पर तरह-तरह के अत्याचार किए और किसानों ने पुलिस के अत्याचारों के विरुद्ध ग्रामबंद की अपील की, जिसके कारण गुजरात के अनेक शहरों में दूध और सब्जी की समस्या कई दिनों तक रही।
मनों का मल्यांकन (Evaluation of Peasant Movements):स्वतन्त्रता प्राप्ति के वर्षों के बाद भी किसानों की समस्याएं वैसी ही बनी हुई हैं जैसी कि ब्रिटिश काल में थीं। इससे जाहिर होता है कि स्वतन्त्रता से पूर्व और स्वतन्त्रता के बाद किए गए सभी किसान आन्दोलन असफल रहे हैं। अपनी सफलता के कारण ये आन्दोलन किसानों को न्याय न दिला सके। यद्यपि किसानों की स्थिति और भूमि सुधार की दिशा में सरकार ने काफ़ी यत्न किए हैं, परन्तु वह ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ ही सिद्ध हुए हैं। इन किसान आन्दोलनों की असफलता के महत्त्वपूर्ण कारण हैं, किसान आन्दोलन के अच्छे संगठन की कमी, किसानों में अज्ञानता, अन्धविश्वास, आसन्न स्थिति, क्रान्तिकारी तथा उद्देश्यपूर्ण विचारधारा की कमी और योग्य नेतृत्व का अभाव।
राजनीतिक दल और किसान आन्दोलन (Peasant Movements and Political Parties):भारत के सभी प्रमुख दलों का किसानों के प्रति व्यवहार स्वार्थपूर्ण रहा है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद कांग्रेस पार्टी ने किसानों के हितों की रक्षा, भूमिहीन किसानों और बन्धुओं मजदूरों की सुरक्षा और उन्नति की गारन्टी दी थी। परन्तु यह अपने उद्देश्य में असफल रही है।
ज़मींदार और समृद्ध किसान कांग्रेस दल के लिए ‘वोट बैंक’ का काम करते हैं और उसे ग़रीब वर्ग का समर्थन दिलवाते हैं। परन्तु कांग्रेस की नीतियों से विमुख होकर किसान वर्ग वामपंथी दलों की तरफ झुका है। वामपंथी दलों ने किसानों के हितों की रक्षा के लिए कई आन्दोलन चलाए हैं और उनका सफल नेतृत्व भी किया है।
वामपंथी दलों ने पश्चिमी बंगाल, केरल, त्रिपुरा, पंजाब, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र आदि के किसानों को संगठित करके किसानों की मांगों को पूरा करवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। किसानों के हितों के सम्बन्ध में जो कुछ भी आज उपलब्ध हुआ है, वह वामपंथी दलों के सक्रिय सहयोग के कारण हुआ है। किसानों में संगठन की कमी के कारण उनकी आर्थिक स्थिति पिछड़ी हुई है।
किसान वर्ग में राजनीतिक चेतना न होने के कारण उन पर धर्म और जाति का विशेष प्रभाव रहा है। राजनीतिज्ञ किसानों की जातीय और धार्मिक भावनाओं को भड़का कर अपने स्वार्थों की पूर्ति करते हैं। किसानों की राजनीति में अधिक सक्रिय न होने के कारण भारतीय राजनीति पिछड़ी हुई है, जिसके कारण सवर्ण हिन्दुओं और हरिजनों तथा आदिवासियों के बीच जाति संघर्ष पैदा हुआ है।
बिहार, उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों में सवर्ण हिन्दुओं ने और खेतिहर हरिजनों ने अपनी जातीय सेनाएं तैयार कर रखी हैं, जो कि खूनी संघर्ष करती हैं। आज धनी किसान अधिक साधन उत्पन्न और समृद्ध हो रहे हैं। यह वर्ग ही किसान आन्दोलन का नेतृत्व करते हैं तथा राजनीतिक दल चाहे वह सत्तारूढ़ दल हो अथवा विपक्षी दल, किसान रैलिय आयोजन करके अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए और किसानों के मत अपने पक्ष में बटोरने के लिए करते रहते हैं।
आज किसान आन्दोलन की आड़ में क्षेत्रीय और अल्पसंख्यक नेतृत्व भी उभरने लगा है। इसके अतिरिक्त उत्तर और दक्षिण भारत में चलाए जाने वाले किसान आन्दोलनों में एक बड़ा भारी अन्तर पाया जाता है। वह अन्तर है उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिण भारत के किसान आन्दोलन में पिछड़ी जातियों का प्रमुख हाथ रहा है और वह उन में बढ़-चढ़ कर भाग लेती रही हैं। राजनीतिक दल इस तरह के आन्दोलन कर्ताओं को प्रोत्साहित करते रहे हैं कि किसानों को संगठित होकर विशाल रैलियों व आन्दोलनों के माध्यम से सरकार पर किसानों की मांगों को मनवाने के लिए दबाव डालना चाहिए।
इसी कारण से स्वतन्त्रता के बाद किसानों के कई दबाव समूह उभरकर सामने आए हैं। । आज चाहे कोई भी राजनीतिक दल हो, उसमें उद्योगपतियों की एक सशक्त लॉबी सक्रिय है। इनके माध्यम से यह उद्योगपति किसान आन्दोलन को गुमराह करने की कोशिश करते हैं।
इनका प्रयास रहता है कि किसान आन्दोलन का नेतृत्व किसी तरह राजनीतिक दलों के हाथों में आ जाए ताकि वे अपने हितों की पूर्ति कर सकें। वास्तव में आज जो भी आन्दोलन देश में सक्रिय है, चाहे वह किसान आन्दोलन हो या छात्र आन्दोलन और चाहे अन्य आन्दोलन, उनमें राजनीतिज्ञ किसी-न-किसी रूप में ज़रूर संलिप्त होते हैं। ये सभी आन्दोलन अपने ही ढंग की राजनीति को उभार रहे हैं।
भारत सरकार द्वारा समय-समय पर निश्चित की गई योजनाओं और नीतियों से देश के लगभग एक चौथाई किसानों को ही लाभ मिला है और तथाकथित हरित क्रान्ति के नाम पर किसानों के बीच आर्थिक असमानता बढ़ी है। हरित क्रान्ति से यद्यपि देश का उत्पादन बढ़ा है, परन्तु यह एक सीमित क्षेत्र तक ही पनप सकी है। सिंचाई के साधनों की उपलब्धता न होने के कारण देश के किसानों को प्राकृतिक साधनों, वर्षा पर निर्भर रहना पड़ता है। दो या तीन वर्ष बाद किसानों को बाढ़ अथवा सूखे का सामना करना पड़ता है।
अतः किसानों को चाहिए कि वे संगठित होकर यह मा “एक निश्चित अवधि में देश के प्रत्येक खेत में पानी का इन्तज़ाम होना चाहिए। सिंचाई सरकारी होगी।” किसानों को अपने आन्दोलनों का नेतृत्व स्वयं करना चाहिए क्योंकि राजनीतिक दलों का उद्देश्य लोगों को मूर्ख बना कर सत्ता प्राप्त करना रहा है। किसानों को उन लोगों और पाखण्डी राजनीतिज्ञों से बचना चाहिए, जोकि अपने-आपको किसानों का मसीहा कहलाते हैं, जोकि स्वयं तो वातानुकूलित कमरों में बैठते हैं और उनके किसान भाई अपनी मौलिक आवश्यकताओं को भी तरसते हैं। उन्हें ऐसे लोगों से भी बचना होगा, जिनका एक पैर गांव में तथा दूसरा पांव शहर में रहता है।
प्रश्न 3.
महिला आन्दोलन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
प्राचीन काल से ही पुरुष प्रधान समाज रहा है और आज भी काफ़ी हद तक समाज में और सार्वजनिक जीवन में पुरुषों का ही अधिक महत्त्व है। स्त्रियों को दासी मान कर पांव की जूती के समान दर्जा दिया जाता रहा था। जन आन्दोलन का उनका कार्य क्षेत्र घर की चारदीवारी रहा था और उनको पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त नहीं थे। स्त्रियों का मुख्य कर्त्तव्य पुरुषों की सेवा करना, बच्चे पैदा करना, बच्चों का पालन करना तथा पति को परमेश्वर मान कर जीवन यापन करना रहा है। स्त्रियों के साथ लिंग के आधार पर भेदभाव किया जाता रहा है और आज भी संसार के अधिकांश देशों में स्त्रियों की स्थिति विशेष अच्छी नहीं है केवल पिछड़े देशों में ही नहीं, बल्कि संसार के अन्य देशों में भी स्त्रियों की स्थिति शोचनीय है।
यद्यपि संसार के कई देशों में स्त्रियों को पुरुषों के समान अधिकार दिए गए हैं, किन्तु व्यवहार में स्त्रियों को समानाधिकार प्राप्त नहीं हैं। राजनीतिक क्षेत्र में स्त्रियों का महत्त्व और भी कम है। निःसन्देह भारत, अमेरिका, इंग्लैण्ड, फ्रांस आदि देशों में स्त्रियों को मताधिकार और चुने जाने का अधिकार प्राप्त है, परन्तु व्यवहार में इन देशों में भी स्त्रियां राजनीति में अधिक सक्रिय नहीं हैं।
निर्णय निर्माण में तो स्त्रियां बहुत ही कम भागीदार हैं। स्त्रियों में राजनीतिक चेतना आने के बावजूद भी रूढ़िवादी पुरुष प्रधान समाज के कारण प्रगतिशील परिवर्तन नहीं हो रहे हैं। अत: आज भी स्त्रियों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। यद्यपि आज भी स्त्रियों की स्थिति अच्छी नहीं है, परन्तु स्त्रियों में मानसिक परिवर्तन अवश्य आया है।
स्त्रियों के अन्दर व्यक्तित्व की भावना जाग उठी है और वे अपने हितों की रक्षा के लिए प्रयत्नशील हैं। संसार के अनेक विकसित देशों में स्त्रियों ने पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त करने के लिए आन्दोलन चलाए हैं और उन्हें काफ़ी सफलता भी प्राप्त हुई हैं। अनेक पुरुष संगठनों ने भी स्त्रियों के इन आन्दोलनों का समर्थन किया है। आज स्त्रियां अपने हितों एवं अधिकारों की रक्षा के लिए संगठित होकर संघर्ष के मार्ग पर चल पड़ी हैं और स्त्रियों के इस आन्दोलन को ही स्त्रीवाद कहा जाता है। Feminism शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द Female से बना है, जिसका अर्थ है स्त्री या स्त्रियों सम्बन्धी। स्त्रीवाद स्त्रियों के हितों की रक्षा से सम्बन्धित आन्दोलन है।
1. ऑक्सफोर्ड शब्दकोष (Oxford Dictionary) के अनुसार, “स्त्रीवाद स्त्रियों के दावों की मान्यता, उनकी सफलताओं तथा उनके अधिकारों का समर्थन करता है।”
2. रैनडो हाऊस शब्दकोष (Randow House Dictionary) के अनुसार, “स्त्रीवाद पुरुषों के समान स्त्रियों के सामाजिक तथा राजनीतिक अधिकारों के समर्थन का सिद्धान्त है। स्त्रीवाद स्त्रियों के अधिकारों की प्राप्ति के लिए संगठित आन्दोलन है।” विभिन्न विद्वानों की परिभाषाओं के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि स्त्रीवाद (Feminism) एक ऐसा आन्दोलन है. जो स्त्रियों की समस्याओं का आलोचनात्मक मल्यांकन करता है तथा स्त्रियों को समान अधिकार दिलवाने के लिए प्रयत्नशील है।
स्त्रीवाद स्त्रियों को उन्नति के लिए अधिक सुविधाएं व अवसर दिलाने के लिए प्रयत्नशील है। केवल स्त्रियां ही नहीं बल्कि अनेक पुरुष भी इन आन्दोलनों में सक्रिय भाग ले रहे हैं और इन आन्दोलनों का समर्थन कर रहे हैं।
3. जॉन चारवेट (John Charvet) के अनुसार, “स्त्रीवाद का मूल विचार यह है कि मौलिक महत्त्व की दृष्टि से पुरुषों और स्त्रियों में कोई भेद नहीं है। इस स्तर पर समाज में पुरुष प्राणी या स्त्री प्राणी नहीं बल्कि वे केवल मानव प्राणी या व्यक्ति है। व्यक्तियों का स्वभाव और महत्त्व उनके लिंग भेद से स्वतन्त्र है।” महिला आन्दोलन की उत्पत्ति व विकास (Origin and Development of Women Movement) स्त्रियों की समानता की धारणा का इतिहास बहुत पुराना है।
भारतीय वैदिक काल में स्त्री को सामाजिक व धार्मिक दृष्टि से अनेक अधिकार प्राप्त थे। कोई भी धार्मिक व सामाजिक अनुष्ठान व यज्ञ स्त्री बिना अधूरा माना जाता था। उसे कुल लक्ष्मी व देवी आदि उपनामों से पुकारा जाता था वेदों में तो यहां तक लिखा है कि जहां-जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवताओं का निवास होता है। उत्तर वैदिक काल में नारी के स्थान व सम्मान में कमी आनी शुरू हो गई।
उसे धीरे-धीरे वर चुनने व शिक्षा प्राप्ति के अधिकारों से वंचित कर दिया गया। महात्मा बुद्ध ने तो अपने शिष्य आनन्द के बार-बार अनुरोध करने पर स्त्रियों को भिक्षुणियां बनने की अनुमति दी थी। राजपूतों और तुर्कों के काल में स्त्रियां, चारदीवारी में बन्द हो गईं और पर्दा व कन्यावध जैसी सामाजिक कुरीतियों द्वारा इनका शोषण किया जाता रहा है।
15वीं शताब्दी में गुरु नानक देव जी ने स्त्रियों की समानता और स्त्रियों की श्रेष्ठता का प्रचार किया। भक्ति आन्दोलन और सुधार आन्दोलनों ने स्त्रियों की स्थिति सुधारने के लिए अनेक यत्न किए। 18वीं शताब्दी में अनेक विद्वानों ने पुरुषों द्वारा स्त्रियों पर किए गए अत्याचारों की कड़ी आलोचना की। बोरन डी हुलबैक (Boron D Holbach) ने स्त्रियों को शिक्षा न दिया जाने का विरोध किया और इस बात पर जोर दिया कि समाज की उन्नति के लिए स्त्रियों को शिक्षा देना अति ज़रूरी है।
अनेक फ्रांसीसी विद्वानों ने स्त्रियों को पुरुषों के समान शिक्षा देने का समर्थन किया। मेरी उलम्पी डी गोज़ज (Marie Olympe D. Goages) ने 1791 ई० में “स्त्रियों के अधिकारों की घोषणा” (Declaration of Women) प्रकाशित की और इस बात की मांग की कि, “जब हमें स्त्रियों को फांसी के फंदे पर लटकने का अधिकार है तो हमें न्यायालयों की कुर्सी पर भी बैठने का अधिकार है।”
1792 ई० में एक अंग्रेज़ स्त्री मेरी वुलस्टोनकराफट (Mary Wollstonecraft) ने स्त्रियों के अधिकारों का समर्थन व रक्षा (A Vindication of the Rights of Women) नामक एक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक में मेरी वुलस्टोनकराफट ने इस बात पर जोर दिया है कि स्त्रियों के शरीर का प्रयोग किया जाता है, किन्तु उनके दिमाग को जंग लगने दिया जाता है। मेरी ने स्त्रियों को शिक्षा दिए जाने पर बल दिया और यह भी कहा कि अनेक स्त्रियां ब्रिटिश संसद् की सदस्या बनने के योग्य हैं।
परन्तु इन विद्वानों के विचारों के बावजूद स्त्रियों की दशा में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ और न ही 17वीं शताब्दी के अन्त तक कोई विशेष संगठन शुरू हुआ। शैले (Shelley), फलोरेंस नाइटिंगेल (Florence Nightingale), एलिजाबेथ गैसकल (Elizabeth Gaskall), राबर्ट ओवन (Robert Oven) और एलिजाबेथ फराई (Elizabeth Fry) आदि ने अस्पतालों, कारखानों तथा अन्य स्थानों पर काम कर रही स्त्रियों की स्थिति को सुधारने के लिए प्रयत्न किए।
1820 ई० में अमेरिका में United Tailoresses Society of New York और Lady Shoe Bender of Cynu Massachusetts नामक संगठनों की स्थापना की गई, परन्तु इन संगठनों को कोई विशेष सफलता न मिली क्योंकि इन संगठनों को पुरुषों का समर्थन प्राप्त नहीं था। अमेरिका में 1824 ई० में स्त्रियों ने पहली बार हड़ताल की। इस हड़ताल का पुरुषों ने भी काफ़ी सीमा तक समर्थन किया।
1848 ई० में एलिजाबेथ केडी स्टेनटन (Elizabeth Cady Stanton) तथा लुकरीसियन मट (Lucretin Matt) द्वारा बुलाई कन्वेंशन में की गई घोषणा अमेरिकन स्त्रियों के अधिकारों के लिए चलाए गए आन्दोलनों से महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इस घोषणा में स्पष्ट कहा गया था कि मानव जाति का इतिहास पुरुषों द्वारा स्त्रियों पर किए गए अत्याचारों का इतिहास है। अमेरिका के गृह युद्ध (1861-65) ने स्त्रियों को कुछ अधिकार दिलवाने में बहुत सहायता की। स्त्रियों के लिए एक कॉलेज खोला गया और उन्हें सरकारी नौकरियां देने की भी व्यवस्था की गईं। 19वीं शताब्दी के अन्त में स्त्रियों को अनेक अधिकार दिए गए।
स्त्रियों को मताधिकार की प्राप्ति (Attainment of right to vote by women)-जे० एस० मिल (J. S. Mill) स्त्री मताधिकार का भारी समर्थक था। उसके विचारानुसार मताधिकार देने में लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। स्त्रियों को मताधिकार न देना उसे बहुत अन्यायपूर्ण लगता था। मिल स्त्रियों को वही समर्थन देना चाहता था, जो पुरुषों को प्राप्त था। उस का कहना है कि, “स्त्री और पुरुषं में कोई अन्तर है भी तो पुरुष की अपेक्षा मत देने के अधिकार की आवश्यकता नारी को अधिक है क्योंकि शारीरिक दृष्टि से पुरुष की तुलना में निर्बल होने के कारण उसे रक्षा के लिए कानून और समाज पर निर्भर रहना पड़ता है।”
अमेरिका में 1920 ई० में तथा इंग्लैण्ड में 1928 ई० में स्त्रियों को मताधिकार दिया गया। फ्रांस में द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् स्त्रियों को मताधिकार दिया गया। भारतीय संविधान के अन्तर्गत स्त्रियों को पुरुषों समान अधिकार दिए गए हैं। संविधान में यह स्पष्ट लिखा गया है कि लिंग के आधार पर किसी प्रकार का स्त्रियों के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा। अमेरिका में 1964 ई० में “नागरिक अधिकार अधिनियम” (Civil Rights Act) के अन्तर्गत नौकरियों में लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है। इंग्लैण्ड में 1967 ई० में अमेरिका में 1975 ई० में गर्भपात के अधिकार को कानूनी मान्यता दी गई।
1960 ई० के पश्चात् स्त्रियों को स्वतन्त्रता दिलवाने के लिए अनेक संगठनों की स्थापना की गई है और अनेक आन्दोलन चलाए गए हैं। 1963 ई० में बैट्टी फ्राईडन (Betty Friden) ने “The Ferminine Mystique” नामक पुस्तक प्रकाशित की। इस पुस्तक में स्त्रीवाद आन्दोलन के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् स्त्रियों में राजनीतिक जागृति का काफ़ी विकास हुआ है। भारत जैसे देश में आज अनेक महिला संगठन स्त्रियों के अधिकारों की रक्षा के लिए काम कर रहे हैं। इन संगठनों में मुख्य संगठन इस प्रकार है-All India Women Conference, National Council of Women in India, Bharatiya Grameen Mahila Sangh, National Federation of Indian Women आदि।
यूरोप के अनेक देशों में, विशेषकर अमेरिका में स्त्रियों के अधिकारों के लिए चलाए गए आन्दोलन उग्र रूप धारण कर चुके हैं। स्त्रीवाद के उग्र रूप की समर्थक स्त्रियां केवल समान अधिकारों की बात करती है बल्कि पुरुषों की आवश्यकता का भी खण्डन करती है। इसलिए अमेरिका में हमें एक स्त्री का दूसरी स्त्री के साथ विवाह का उदाहरण मिलता है। परन्तु स्त्रीवाद का यह रूप समाज एवं मानव के हित में नहीं है क्योंकि समाज को बनाए रखने के लिए स्त्री पुरुष सम्बन्ध होना आवश्यक है।
प्रश्न 4.
महिला सशक्तिकरण हेतु संवैधानिक प्रावधानों का उल्लेख करें।
उत्तर:
महिला सशक्तिकरण और विकास के लिए यह आवश्यक है कि महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को बढ़ाया जाए। प्राय: सभी राजनीतिक दल, महिला संघ व सामाजिक संगठन निरन्तर इस बात पर बल देते रहे हैं कि जब तक स्थानीय संस्थाओं, विधानमण्डलों और संसद् में महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं हो सकता। 73वें और 74वें संशोधन द्वारा ग्रामीण एवं शहरी स्थानीय संस्थाओं में महिलाओं के लिए कुल निर्वाचित पदों का एक तिहाई भाग आरक्षित किया गया है।
इससे महिला सशक्तिकरण आन्दोलन को बल मिला। संसद् और राज्य विधानमण्डलों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई स्थान आरक्षित रखने के लिए कई बार प्रयास किए जा चुके हैं, लेकिन इसमें सफलता प्राप्त नहीं हुई। विभिन्न राजनीतिक दल अपनी रैलियों, घोषणा-पत्रों, सार्वजनिक स्थानों आदि पर तो महिलाओं के लिए संसद् व राज्य विधान सभाओं में एक-तिहाई स्थान दिलाने का जोर-शोर से प्रचार करते हैं, लेकिन जब संसद् में महिला आरक्षण विधेयक पेश किया जाता है तो उसे पास नहीं होने दिया जाता।
प्रश्न 5.
राष्ट्रीय महिला आयोग के प्रमुख कार्यों का सविस्तार वर्णन करें।
उत्तर:
भारत में महिलाओं की रक्षा तथा उनकी स्थिति में सुधार के लिए राष्ट्रीय महिला आपेक्षा महिला आयोग निम्नलिखित कार्य करता है
1. महिलाओं का सर्वांगीण विकास-राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं के सर्वांगीण विकास पर विशेष बल देता है, तथा इससे सम्बन्धित कई प्रकार के कार्य करता है।
2. महिलाओं से सम्बन्धित कानूनों की समीक्षा करना-राष्ट्रीय महिला आयोग सरकार द्वारा समय-समय पर महिला कल्याण के लिए जो कानून बनाए जाते हैं, उनकी समीक्षा करता है तथा आवश्यकता पड़ने पर उससे संशोधन हेतु सुझाव भी देता है।
3. महिलाओं से सम्बन्धित कानूनी सुरक्षा उपायों की समीक्षा करना-राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं से सम्बन्धित कानूनी सुरक्षा उपायों की समीक्षा एवं जांच-पड़ताल करता है तथा इन कानूनों को प्रभावशाली ढंग से लागू करने के लिए समय-समय पर सरकार को परामर्श भी देता है।
4. महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना-राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करता है। यदि कोई व्यक्ति या अधिकारी इन अधिकारों की अवहेलना करता है, तो राष्ट्रीय महिला आयोग इस घटना को सम्बन्धित अधिकारी के समक्ष उठाता है।
5. लिंग भेदभाव को समाप्त करना-राष्ट्रीय महिला आयोग समाज में से लिंग भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास करता है। यह आयोग महिलाओं से सम्बन्धित समस्याओं से सम्बन्धित खोज करके, उसको समाप्त करने का सुझाव देता है।
6. महिलाओं को सामाजिक-आर्थिक विकास-वर्तमान में भी समाज में महिलाओं की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। अतः राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए अनेक कार्य करता है।
7. घरेलू हिंसा से बचाव-राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए कई महत्त्वपूर्ण कार्य करता है।
8. वार्षिक प्रतिवेदन देना-राष्ट्रीय महिला आयोग प्रति वर्ष महिलाओं की स्थिति से सम्बन्धित प्रतिवेदन केन्द्रीय सरकार को देता है तथा आवश्यकता पड़ने पर किसी राज्य सरकार को भी प्रतिवेदन दे सकता है। ..
9. महिलाओं से सम्बन्धित सुधार गृहों तथा जेलों का निरीक्षण करना-राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं से सम्बन्धित सुधार गृहों तथा जेलों आदि का समय-समय पर निरीक्षण करता है उनमें सुधार के लिए सिफारिशें प्रस्तुत करता है।
10. महिलाओं के कल्याण के लिए केन्द्र सरकार द्वारा दिया गया कोई कार्य करना-राष्ट्रीय महिला आयोग कोई ऐसा कार्य करता है, जो महिलाओं के कल्याण के लिए केन्द्र सरकार द्वारा उसे सौंपा जाए। .
11. राष्ट्रीय महिला आयोग अपने समक्ष किसी भी व्यक्ति को बुलाने एवं उसकी उपस्थिति विश्वसनीय बनाने की शक्ति प्राप्त है ।
12. शपथ पत्रों की जांच करना-राष्ट्रीय महिला आयोग को शपथ पत्रों की जांच करने की शक्ति प्राप्त है।
13. न्यायालय से महिलाओं से सम्बन्धित रिकार्ड प्राप्त करना-राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं से सम्बन्धित कोई रिकार्ड किसी न्यायलय या कार्यालय से प्राप्त कर सकता है।
14. सबूतों एवं प्रलेखों की जांच-राष्ट्रीय महिला आयोग को सबूतों एवं प्रलेखों की जांचे के आदेश देने का अधिकार प्राप्त है।
प्रश्न 6.
पर्यावरण एवं विकास से प्रभावित लोगों के आन्दोलनों का वर्णन करें।
उत्तर:
विकासशील देश निरन्तर विकास के लिए प्रयत्न करते रहते हैं और अल्पविकसित राष्ट्र भी अपने अस्तित्व . के लिए तथा अपने-अपने देश की आवश्यकताओं के लिए हमेशा संघर्षरत रहते हैं। विकास के इन प्रयत्नों के फलस्वरूप विश्व के पर्यावरण पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। सभ्यता के प्रारम्भिक युग में मानव की आवश्यकताएं अत्यधिक सीमित थीं और मानव जनसंख्या भी कम थी। आवश्यकताओं के सीमित होने व जनसंख्या के कम होने के कारण प्रकृति के चक्कर (Cycle of Nature) पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता था, क्योंकि मनुष्य प्रकृति के अपार भण्डार से जो कुछ व्यय करता था, वह वापिस प्रकृति में, बिना क्षति पहुंचाए किसी-न-किसी रूप में, विलीन हो जाता था।
किन्तु जहां एक ओर जनसंख्या का निरन्तर विस्तार हो रहा है, वहां दूसरी ओर सभ्यता और प्रौद्योगिकी के विकास के कारण मानव उपभोग का स्तर ऊंचा होता जा रहा है, जिसके कारण विश्व के सभी राष्ट्रों-विकसित, विकासशील एवं अल्पविकसित द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का दोहन इतना अधिक बढ़ गया है कि प्राकृतिक साधनों की कमी होनी शुरू हो गई है और पर्यावरण के प्रदूषण की समस्याएं पैदा हो गई हैं।
पर्यावरण क्षरण एवं विकास के कारण विश्व के अधिकांश लोग नकारात्मक ढंग से प्रभावित हुए हैं।
इसका प्रभाव भारत जैसे विकासशील देश में भी बहुत पड़ा है। इसी कारण विश्व के साथ-साथ भारत में भी पर्यावरण क्षरण एवं विकास के विरुद्ध समय-समय पर आन्दोलन होते रहे हैं। भारत में पर्यावरण से सम्बन्धित सर्वप्रथम आन्दोलन को चिपको आन्दोलन के रूप में जाना जाता है। चिपको आन्दोलन 1972 में हिमालय क्षेत्र में उत्पन्न हुआ। चिपको आन्दोलन का अर्थ है-पेड़ से चिपक जाना अर्थात् पेड़ को आलिंगन बद्ध कर लेना। चिपको आन्दोलन की शुरुआत उस समय हुई जब एक ठेकेदार ने गांव के समीप पड़ने वाले जंगल के पेड़ों को काटने का फैसला किया।
लेकिन गांव वालों ने इसका विरोध किया। परन्तु जब एक दिन गांव के सभी पुरुष गांव से बाहर गए हुए थे, तब ठेकेदार ने पेड़ों को काटने के लिए अपने कर्मचारियों को भेजा। इसकी जानकारी जब गांव की महिलाओं को मिली, तब वे एकत्र होकर जंगल पहुंच गईं तथा पेड़ों से चिपक गईं। इस कारण ठेकेदार के कर्मचारी पेड़ों को काट न सके। इस घटना की जानकारी पूरे देश में समाचार माध्यमों के द्वारा फैल गई। पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित इस आन्दोलन को ? प्राप्त है। चिपको आन्दोलन के बाद भारत में नर्मदा बचाओ आन्दोलन बांध विरोधी आन्दोलन, उद्योगों एवं कारखानों को शहर से बाहर स्थापित करने की योजना, ताजमहल को बचाने की योजना, बसों एवं आटो रिक्शा में सी० एन० जी० के प्रयोग जन आन्दोलन का उदय की योजना शुरू की गई।
इन योजनाओं में लोगों के साथ-साथ भारत की न्यायपालिका ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। नर्मदा बचाओ आन्दोलन में लोगों की भागीदारी इतनी अधिक थी, कि विश्व बैंक ने भी इस योजना से अपने आपको अलग कर लिया। इसके साथ-साथ भारत में टिहरी बांध परियोजना नर्मदा घाटी परियोजना तथा शांत घाटी परियोजना से सम्बन्धित भी पर्यावरणीय आन्दोलन चलाए। टिहरी बांध परियोजना के विरुद्ध चलने वाला आन्दोलन भारत का सबसे लम्बे समय तक चलने वाला आन्दोलन माना जाता है। टिहरी बांध परियोजना का विरोध करने के लिए लोगों ने स्वतन्त्रता सेनानी वीरेन्द्र दत्त सखलानी के नेतृत्व में टिहरी बांध परियोजना विरोधी संघर्ष समिति का निर्माण किया।
टिहरी बांध से टिहरी शहर के पानी में डूब जाने का खतरा था। आगे चलकर इस योजना से समाज सेवी सुन्दर लाल बहुगुणा भी जुड़ गए तथा टिहरी बांध परियोजना का विरोध करने के लिए उन्होंने आमरण अनशन भी किया तथा प्रधानमन्त्री द्वारा इस योजना की समीक्षा के आश्वासन पर ही उन्होंने अपना आमरण अनशन तोड़ा था। शांत घाटी परियोजना केरल में शुरू की गई थी। इस परियोजना का विरोध करने के लिए ‘केरल शास्त्र साहित्य परिशट्’ की स्थापना की गई इस सभा का मुख्य तर्क यह था कि यदि यह परियोजना पूरी होती है, तो इससे जंगली जीवों को बहुत हानि पहुंचेगी। इसी कारण इस परियोजना को बन्द ही कर दिया गया।
पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित सबसे महत्त्वपूर्ण आन्दोलन नर्मदा बचाओ आन्दोलन को माना जाता है। यद्यपि यह आन्दोलन 1970 के दशक में ही शुरू हो गया था, परन्तु इसमें तेजी 1980 के दशक में आई। इस आन्दोलन को चलाने वालों में मेधा पाटकर, बाबा आमटे तथा सुन्दर लाल बहुगुणा शामिल हैं। इनके प्रयासों से समाज के अन्य वर्गों से भी इन्हें समर्थन मिला।
आन्दोलन के समर्थकों की मांग है कि बांध परियोजना के पूर्ण होने पर कई लाख लोग बेघर हो जाएंगे, अतः सरकार इनके पुनर्वास की पूर्ण व्यवस्था करे। परन्तु सम्बन्धित अधिकारियों द्वारा लोगों के पुनर्वास को अधिक गम्भीरता से नहीं लिया जा रहा था। इसी कारण इस आन्दोलन के साथ समाज के अन्य वर्गों के लोग भी जुड़ गए तथा यह आन्दोलन और तेज़ हो गया तथा जो देश इस परियोजना में धन लगा रहे थे, वो पीछे हट गए।
यहां पर यह बात उल्लेखनीय है कि भारत में पर्यावरण से सम्बन्धित, नर्मदा बचाओ आन्दोलन, जैसे कई और आन्दोलन भी सफलतापूर्वक चले हैं, परन्तु कुछ ऐसे आन्दोलन भी रहे हैं जो सफलता प्राप्त नहीं कर पाए। जैसे 1985 में भोपाल में ‘यूनियन कारबाइड गैस’ दुर्घटना द्वारा लगभग 3000 लोग मारे गए। इस घटना के विरुद्ध भी एक सफल आन्दोलन चलाया जा सकता था, क्योंकि इसमें तात्कालिक तौर पर ही 3000 लोग मारे जा चुके थे। क्योंकि इस दुर्घटना के लिए एक विदेशी कम्पनी यनियन कारबाइड कार्पोरेशन उत्तरदायी थी, अत: उसके विरुद्ध न तो भारतीय सरकार और न ही स्थानीय लोग ही उचित कार्यवाही कर पाए।
निष्कर्ष (Conclusion)-उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है, कि भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् लोगों में पर्यावरण से सम्बन्धित जागरुकता बढ़ी तथा भारतीय लोगों ने पर्यावरण को खराब करने वाली परियोजनाओं के विरुद्ध सफल आन्दोलन चलाए।
प्रश्न 7.
भारत में महिलाओं के उत्थान के लिए उठाए गए मुख्य कदम बताएं।
उत्तर:
भारत में महिलाओं के उत्थान के लिए निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं
(1) महिलाओं के उत्थान के लिए हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955, हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम-1956, स्त्रियों एवं लड़कियों का अनैतिक व्यापार निषेध कानून, 1956 तथा दहेज विरोधी कानून, 1960 कानून बनाया गया।
(2) सन् 1972 में कामकाजी महिलाओं के लिए आवास गृह योजना आरम्भ की गई।
(3) भारत में महिलाओं एवं लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए 1958 में एक परिषद् की स्थापना की गई जिसे लड़कियों तथा स्त्रियों की शिक्षा के लिए राष्ट्रीय परिषद् कहा जाता है।
(4) 1987 में विशेष तौर पर ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वाली महिलाओं के लिए प्रशिक्षण एवं रोजगार हेतु कार्यक्रम शुरू किया गया।
(5) 1982 में स्त्रियों पर होने वाले अत्याचार को रोकने के लिए शिक्षात्मक कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया।
(6) सन् 1977 में संकट ग्रस्त स्त्रियों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण एवं रोज़गार तथा आवासीय व्यवस्था का प्रावधान किया गया।
(7) सन् 1992 में 73वें एवं 74वें संशोधनों द्वारा ग्रामीण एवं शहरी स्थानीय संस्थाओं में महिलाओं के लिए कुल निर्वाचित पदों का एक तिहाई भाग आरक्षित किया गया।
(8) 20 अगस्त, 1995 में को इन्दिरा महिला योजना आरम्भ की गई ।
(9) सन् 1992 में राष्ट्रपति महिला आयोग का गठन किया गया।
(10) सन् 2001 में महिला सशक्तिकरण नीति का निर्माण किया गया।
(11) सन् 2005 में घरेलू महिला हिंसा विरोधी कानून लागू किया गया।
प्रश्न 8.
आरक्षण की नीति का भारतीय राजनीति पर प्रभाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय राजनीति पर आरक्षण की नीति का निम्नलिखित ढंग से प्रभाव पड़ा है :-
- आरक्षण की नीति ने दलितों का सर्वांगीण विकास हुआ है।
- आरक्षण की नीति ने दलितों में वर्गीय चेतना का विकास किया है।
- जाति आधारित राजनीतिक दलों और दबाव समूहों का निर्माण हुआ है।
- आरक्षण की नीति के कारण दलितों में विशिष्ट वर्ग का विकास हुआ है।
- आरक्षण की नीति के कारण समाज में सामाजिक तनाव बढ़ा है।
- आरक्षण की नीति के कारण दलितों को एक वोट बैंक के रूप में देखा जाने लगा है।
- आरक्षण की नीति ने मतदान व्यवहार को भी प्रभावित किया है।
- आरक्षण की नीति के कारण अन्य कई जातियों ने भी आरक्षण की मांग करनी आरम्भ कर दी है।
- आरक्षण की नीति के कारण बहुत तेजी से राजनीति का जातीयकरण हुआ है।
- आरक्षण की नीति ने गठबंधन की नीति को बढ़ावा दिया है।
प्रश्न 9.
मण्डल आयोग के गठन एवं उसकी सिफ़ारिशों का वर्णन करें।
उत्तर:
काका कालेलकर की अध्यक्षता में पिछड़ी जाति आयोग-संविधान के अनुच्छेद 340 के अन्तर्गत अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जन-जातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई लेकिन पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं की गई थी। इसलिए पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने के लिए भारत सरकार ने 1953 में गांधीवादी विचारक काका कालेलकर की अध्यक्षता में प्रथम पिछड़ी जाति आयोग की स्थापना की। इस आयोग ने 30 मार्च, 1955 को राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
इस आयोग ने पिछड़ी जातियों के रूप में 2399 जातियों की पहचान की। इस आयोग ने सभी स्त्रियों को पिछड़ी जाति में शामिल करने की सिफारिश की
(1) आयोग ने प्रथम श्रेणी की सरकारी नौकरियों में 25 प्रतिशत, दूसरी श्रेणी में 33 प्रतिशत, तीसरी तथा चौथी श्रेणी में 40 प्रतिशत आरक्षण की भी सिफारिश की। आयोग ने सभी तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षण संस्थाओं में 70 प्रतिशत स्थान आरक्षित रखने की भी मांग की लेकिन इन सिफ़ारिशों के सम्बन्ध में आयोग के सारे सदस्य एक मत नहीं थे।
आयोग के सात में से तीन सदस्यों ने तो यह भी नहीं माना कि जातीयता पिछड़ेपन का कारण है। स्वयं आयोग के अध्यक्ष काका कालेलकर ने सरकार को लिखे अपने प्रशस्ति-पत्र में अपनी सिफ़ारिशों के परिणाम पर सन्देह प्रकट किया था। इसलिए 1956 में संसद् में एक रिपोर्ट के साथ अपने स्मृति-पत्र में आयोग द्वारा निर्णय एकमत के अभाव के आधार इसे अस्वीकार कर दिया और 1961 में राज्यों को सूचित किया गया कि उन्हें अपने स्तर पर ‘समुचित आधार’ खोजने की स्वतन्त्रता है। इस सम्बन्ध में यह उचित होगा कि यदि राज्य
आर्थिक मापदण्ड को व्यवहार में लाएं। इसका परिणाम यह निकला कि पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण का विषय उलझता. चला गया। राज्यों ने अपने स्तर पर पिछड़ेपन के आधार ढूंढने के प्रयास किए। इससे न केवल भेदभाव बढ़े बल्कि पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था राजनीति का शिकार हो गई। प्रान्तीय स्तर पर अनेक हिंसक आरक्षण समर्थक तथा आरक्षण विरोधी आन्दोलन हुए।
तमिलनाडु में 50 प्रतिशत, कर्नाटक में 48 प्रतिशत, केरल में 30 प्रतिशत कोटा निर्धारित किया गया जबकि पंजाब में केवल 5 प्रतिशत और राजस्थान, दिल्ली एवं उड़ीसा में यह व्यवस्था बिल्कुल भी नहीं है जन आन्दोलन का उदय जैसा कि स्पष्ट किया गया है कि विभिन्न व्यवस्थाओं से राज्य स्तर पर अनेक विवादों एवं हिंसक कार्यवाहियों का जन्म हुआ।
मण्डल आयोग की स्थापना-काका कालेलकर आयोग की सिफारिशों के भेदभाव को दूर करने के लिए मोरारजी देसाई की प्रधानता में जनता पार्टी की सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमन्त्री बिन्देश्वरी प्रसाद मण्डल की अध्यक्षता में 20 सितम्बर, 1978 को दूसरे पिछड़ी जाति आयोग का गठन किया। इस आयोग में अध्यक्ष के अतिरिक्त पांच अन्य सदस्य रखे गए। इस आयोग का उद्देश्य सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की पहचान करके उनके उत्थान के लिए दिशा निर्धारित करना था। इस आयोग ने 31 दिसम्बर, 1980 को राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट में कालेलकर रिपोर्ट की तरह तथ्यों के अभाव को स्वीकार किया गया, फिर भी आयोग की कार्यविधि में सुधार कहा जा सकता है जो कि काफ़ी खोजबीन पर आधारित थी।
मण्डल आयोग की सिफ़ारिशें-आयोग ने कुल 3743 पिछड़ी जातियों को वर्गीकृत किया जिसमें हिन्दुओं के साथ-साथ अन्य धर्मों को भी शामिल किया गया। आयोग के अनुसार देश भर में इनकी संख्या 52 प्रतिशत है। मण्डल आयोग की मुख्य सिफ़ारिश यह है कि पिछड़ी जातियों को सरकारी नौकरियों, शिक्षण संस्थाओं के प्रवेश में 27 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए।
आयोग ने इस सिफ़ारिश के पक्ष में यह तर्क दिया कि यदि 22.5 प्रतिशत जनसंख्या वाले हरिजनों एवं जन-जातियों के लिए उतनी ही आरक्षण की व्यवस्था हो सकती है तो 52 प्रतिशत पिछड़ी जातियों के लिए 27 प्रतिशत क्यों नहीं किया जा सकता। इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट में जाति को पिछड़ेपन का आधार मानते हुए सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ेपन के लिए 11 मापदण्ड प्रस्तुत किए जिनको मुख्य रूप से तीन शीर्षकों के अन्तर्गत वर्गीकृत किया गया
- सामाजिक
- शैक्षणिक
- आर्थिक। इन. 11 मापदण्डों का वर्णन इस प्रकार हैं
1. सामाजिक मापदण्ड (Social Standard):
ऐसी जातियां या वर्ग जिनको सामाजिक तौर पर निम्न जातियों या वर्गों द्वारा पिछड़ा हुआ.माना जाता है।
(2) ऐसी जातियां या वर्ग जो मुख्य तौर पर शारीरिक श्रम पर निर्भर हैं।
(3) ऐसी जातियां या वर्ग जिनमें राज्य के औसत से 25 प्रतिशत से अधिक महिलाएं तथा 10 प्रतिशत से ज्यादा पुरुष ग्रामीण क्षेत्र में तथा कम-से-कम 10 प्रतिशत से अधिक महिलाएं एवं 5 प्रतिशत से अधिक पुरुष शहरी क्षेत्र में 17 साल की आयु से पहले ही वैवाहिक पाए जाते हैं।
(4) ऐसी जातियां या वर्ग जहां कार्यों में महिलाओं की भागीदारी राज्य के औसत से कम-से-कम 25 प्रतिशत अधिक है।
2. शैक्षणिक मापदण्ड (Educational Standard):
(1) ऐसी जातियां या वर्ग जहां 5 से 15 साल की आयु वर्ग में कभी स्कूल न जाने वाले बच्चों की संख्या राज्य के अनुपात से कम-से-कम 25 प्रतिशत अधिक है।
(2) ऐसी जातियां या वर्ग जहाँ स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या राज्य के औसत से कम-से-कम 25 प्रतिशत अधिक है।
(3) ऐसी जातियां या वर्ग जिनमें 10वीं पास लोगों की संख्या राज्य के औसत से कम-से-कम 25 प्रतिशत कम है।
3. आर्थिक मापदण्ड (Economic Standard):
- ऐसी जातियां या वर्ग जिनकी पारिवारिक सम्पत्ति का मूल्य राज्य के औसत से कम-से-कम 25 प्रतिशत कम है।
- ऐसी जातियां या वर्ग जिनमें कच्चे घरों में रहने वाले परिवारों की संख्या राज्य के औसत से 25 प्रतिशत से अधिक है।
- ऐसी जातियां या वर्ग जहां 50 प्रतिशत से अधिक परिवारों के लिए पीने के पानी का स्रोत आधा किलोमीटर से दूर है।
- ऐसी जातियां या वर्ग जिनमें उपभोक्ता ग्रहण (Consumption Loan) लेने वाले परिवारों की संख्या राज्य के औसत से कम-से-कम 25 प्रतिशत अधिक है।
मण्डल आयोग ने उपरोक्त मापदण्डों के आधार पर 1931 के जनगणना आंकड़ों से वर्ग समुदाय सम्बन्धी आंकड़े प्राप्त किए तथा उनको पांच प्रमुख शीर्षकों के अधीन इस प्रकार बांटा है
इस प्रकार मण्डल आयोग ने कुल जनसंख्या के 52 प्रतिशत भाग को पिछड़े वर्ग के रूप में माना। इसमें हिन्दू तथा गैर-हिन्दू दोनों समुदायों के पिछड़े वर्गों को शामिल किया गया है। आयोग ने यह भी माना है कि धर्म परिवर्तन के बाद यह समह जाति रूढिवादिता तथा पिछडेपन से स्वतन्त्र नहीं हो सके हैं। आयोग ने इनके लिए जाति आधार की अपेक्षा अग्रलिखित आधारों का प्रयोग किया है
(A) धर्म परिवर्तन करने वाले सभी अछूत जातियां तथा
(B) कुछ हिन्दू जातियों को व्यावसायिकता के आधार पर भी पिछड़े वर्गों में शामिल किया। इन जातियों में बार्बर, धोबी, गुज्जर, लुहार आदि वर्णन योग्य हैं। आयोग ने सभी महिलाओं को भी पिछड़े वर्गों में रखा।
27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश:
मण्डल आयोग का यह मानना है कि पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने से दलितों की स्थिति में परिवर्तन आएगा। इसलिए आयोग ने पिछड़े वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की मांग करते हुए संविधान की धारा 15 (4), 16 (4) तथा सर्वोच्च न्यायालय के उन सब निर्णयों का पालन किया है जिसके अनुसार देश में कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं किया जा सकता। इसलिए आयोग ने पिछड़े वर्गों के लिए 27 प्रतिशत
आरक्षण की निम्नलिखित योजना प्रस्तुत की
- अन्य पिछड़े वर्गों के उन सदस्यों को जो खुली प्रतियोगिता द्वारा नियुक्त किए गए हैं, 27 प्रतिशत आरक्षण के अन्तर्गत न माने जाएं।
- आरक्षण की यही व्यवस्था पदोन्नति के लिए सभी स्तरों पर लागू मानी जाएगी।
- आरक्षित पद यदि रिक्त है तो उसे तीन वर्ष तक आरक्षित रखा जाए। इसके बाद इसे गैर-आरक्षित कर दिया जाए।
- अनुसूचित जातियों एवं जन-जातियों की तरह पिछड़े वर्ग के उम्मीदवार को भी सीधी भर्ती के मामले में आय सीमा में छूट दी जाए।
मण्डल आयोग ने सिफारिश की थी कि पिछड़े वर्गों से सम्बन्धित 27 प्रतिशत आरक्षण की यह व्यवस्था सभी सार्वजनिक उद्यमों, सरकारी सहायता प्राप्त निजी उद्यमों, विश्वविद्यालयों तथा उनसे सम्बन्धित कॉलेजों में लागू की जानी चाहिए। आयोग ने यह स्पष्ट किया है कि जिन राज्यों में 27 प्रतिशत से अधिक की व्यवस्था लागू की जा चुकी है उसे वैसा ही रखा जाए अर्थात् अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण कम-से-कम था।
आयोग का यह भी मानना था कि शिक्षा के माध्यम से पिछड़े वर्गों की सामाजिक दशा में सुधार किया जा सकता है। इसलिए इन वर्गों के विद्यालयों के लिए व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए। पिछड़े वर्ग के विद्यार्थियों के लिए तकनीकी एवं व्यावसायिक संस्थाओं में प्रशिक्षण की अधिक सुविधा होनी चाहिए।
पिछड़े वर्गों की सहायता के लिए आयोग ने वित्तीय संस्थाओं तथा सहकारी संस्थाओं की भी सिफ़ारिश की। इन वर्गों में औद्योगिक उद्यमों को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकारों को भी अपने स्तर पर वित्तीय तथा तकनीकी संस्थाओं की स्थापना का सुझाव दिया। आयोग ने केन्द्र तथा राज्य सरकारों को वर्तमान भूमि सम्बन्धों को बदलने के लिए भूमि सुधार कानूनों के निर्माण तथा उसे लागू करने के लिए कहा।
आयोग ने यह भी सिफ़ारिश की कि आरक्षण की व्यवस्था को लागू करने के लिए एक पिछड़ा वर्ग विकास निगम (Backward Class Development Corporation) का निर्माण किया जाए। मण्डल आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की इस सिफ़ारिश से लोगों के दिलों में धड़कन बढ़ जाएगी, पर क्या इसी एक तथ्य के कारण एक बड़े सामाजिक हित के कार्य को रोक दिया जाए ?
प्रश्न 10.
ताड़ी विरोधी आन्दोलन क्या था ? इस आन्दोलन का आरम्भ क्यों हुआ?
उत्तर:
ताड़ी विरोधी आन्दोलन शराब माफिया के विरुद्ध चलाया गया एक महत्त्वपूर्ण आन्दोलन था। इस आन्दोलन का आरम्भ 1990 के दशक में आध्र-प्रदेश में हुआ। ताड़ी सामान्यतः देसी शराब को कहते हैं। इस प्रकार की शराब का निर्माण घरों में ही हो जाता है। ताड़ी के विरोध में आन्ध्र प्रदेश की महिलाओं ने आन्दोलन चलाया। उन्होंने इसके निर्माण एवं वितरण पर रोक लगाने की मांग की। इस आन्दोलन के प्रारम्भ होने के निम्नलिखित कारण थे
- ताड़ी पीने के कारण लोगों की आर्थिक स्थिति खराब हो रही थी।
- ताड़ी पीने के कारण लोगों की शारीरिक एवं मानसिक स्थिति खराब हो रही थी, जिसका प्रभाव प्रतिदिन के कार्यों एवं खेती बाड़ी पर पड़ रहा था।
- ताड़ी पीने के कारण पुरुष कोई कार्य नहीं करते थे, जिससे सारा कार्य महिलाओं को करना पड़ता था।
- ताड़ी बनाने वाले लोगों को ताड़ी पीने के लिए प्रोत्साहित करते थे, और प्रायः कृषि भूमि कर्ज में चली जाती है।
- ताड़ी के नशे में पुरुष घरों में महिलाओं एवं बच्चों से मारपीट करते थे। (6) ताड़ी के कारण घरों एवं गांवों में तनाव रहने लगा था।
प्रश्न 11.
जन अथवा सामाजिक आन्दोलन भारतीय लोकतन्त्र को कैसे सुदृढ़ बनाते हैं ? इनकी क्या सीमाएं हैं ?
उत्तर:
जन अथवा सामाजिक आन्दोलन भारतीय लोकतन्त्र को सुदृढ़ बनाते हैं। जन आन्दोलन अथवा सामाजिक आन्दोलन का अर्थ केवल सामूहिक कार्यवाही ही नहीं होता, बल्कि आन्दोलन का एक काम सम्बन्धित लोगों को अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के प्रति जागरूक बनाना भी है। भारत में चलने वाले विभिन्न सामाजिक आन्दोलनों ने लोगों को इस सम्बन्ध में जागरूक बनाया है, तथा लोकतन्त्र को मज़बत किया है।
भारत में समय-समय ताड़ी विरोधी आन्दोलन, नर्मदा बचाओ आन्दोलन तथा सरदार सरोवर परियोजना से सम्बन्धित आन्दोलन चलते रहते हैं। इन आन्दोलनों ने कहीं-कहीं भारतीय लोकतन्त्र को मज़बूत ही किया है। इन सभी आन्दोलनों का उद्देश्य भारतीय दलीय राजनीति की समस्या को दूर करना था।
सामाजिक आन्दोलन ने उन वर्गों के सामाजिक-आर्थिक हितों को उजागर किया, जोकि समकालीन राजनीतिक द्वारा नहीं उभारे जा रहे थे। इस प्रकार सामाजिक आन्दोलनों ने समाज के गहरे तनाव और जनता के क्रोध को एक सकारात्मक दिशा देकर भारतीय लोकतन्त्र को सुदृढ़ किया है। इसके साथ-साथ सक्रिय राजनीति भागेदारी के नये-नये रूपों के प्रयोगों ने भी भारतीय लोकतन्त्र के जनाधार को बढ़ाया है।
ये आन्दोलन जनसाधारण की उचित मांगों को उभार कर सरकार के सामने रखते हैं तथा इस प्रकार जनता के एक बड़े भाग को अपने साथ जोड़ने में सफल रहते हैं। अत: जिस आन्दोलन में इतनी बड़ी संख्या में लोग भाग लेते हैं, उसको समाज की स्वीकृति भी प्राप्त होती है तथा इससे देश में लोकतन्त्र को मजबूती भी मिलती है।
प्रश्न 12.
दलित पैंथर्स की गतिविधियों एवं सफलताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
दलित पैंथर्स की स्थापना सन 1972 में महाराष्ट्र में हई। दलित पैंथर्स दलित यवाओं का एक संगठन था। दलित पँथर्स नामक संगठन में ज्यादातर शहर की मलिन बस्तियों में रहने वाले युवा शामिल थे। दलित पैंथर्स के निम्नलिखित उद्देश्य थे–
- जाति आधारित असमानता को समाप्त करना इस संगठन का मुख्य उद्देश्य था।
- आरक्षण के कानूनों को लागू करना।
- सामाजिक न्याय की स्थापना करना।
- छुआछूत को पूरी तरह समाप्त करना।
गतिविधियां एवं सफलताएं-महाराष्ट्र के अलग-अलग क्षेत्रों में दलितों पर बढ़ रहे अत्याचार से लड़ना दलित पैंथर्स की मुख्य गतिविधि थी। इस संगठन के बार-बार मांग करने पर 1989 में एक कानून बनाया गया, जिसके अन्तर्गत दलित पर अत्याचार करने पर कठोर सजा का प्रावधान किया गया।
इस संगठन का व्यापक विचारात्मक एजेण्डा जाति प्रथा को समाप्त करना तथा भूमिहीन, गरीब किसान, शहरी औद्योगिक मज़दूर और दलित सहित सभी वंचित वर्गों का एक संगठन बनाना था। इस दौरान अनेक आत्मकथाएं एवं साहित्यिक रचनाएं लिखी गईं। दलितों के दबे-कुचले जीवन के अनुभव इन रचनाओं में अंकित थे। इस रचनाओं से मराठी भाषा के साहित्य पर बड़ा प्रभाव पड़ा।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
लोकप्रिय आन्दोलन का क्या अर्थ है ? दल आधारित एवं गैर-दल आधारित आन्दोलन की व्याख्या करें।
उत्तर:
लोकप्रिय आन्दोलन का अर्थ यह है कि एक आन्दोलन के साथ अधिक-से-अधिक लोगों को जुड़ना। एक आन्दोलन के साथ जितने अधिक लोग जुड़ते जायेंगे, वह आन्दोलन उतना ही अधिक लोकप्रिय होता जायेगा। जो आन्दोलन किसी संगठित दल द्वारा चलाया जाए, उसे दल आधारित आन्दोलन कहा जाता है तथा जो आन्दोलन बिना किसी दल के द्वारा चलाया जाए, उसे गैर-दल आधारित आन्दोलन कहा जाता है। गुजरात आन्दोलन एवं बिहार आन्दोलन दल आधारित आन्दोलन माने जाते हैं तथा चिपको आन्दोलन एवं नर्मदा बचाओ गैर-दल आधारित आन्दोलन माने जातें हैं।
प्रश्न 2.
किन्हीं चार किसान आन्दोलनों का वर्णन करें।
उत्तर:
1. तिभागा आन्दोलन-तिभागा आन्दोलन 1946-47 में बंगाल में प्रारम्भ हुआ। यह आन्दोलन मुख्यतः जोतदारों के विरुद्ध मझोले किसानों एवं बंटाईदारों का संयुक्त प्रयास था। इस आन्दोलन का मुख्य कारण भीषण अकाल था।
2. तेलंगाना आन्दोलन-तेलंगाना आन्दोलन हैदराबाद राज्य में 1946 में जागीरदारों द्वारा की जा रही जबरन एवं अत्यधिक वसूली के विरोध में चलाया गया क्रान्तिकारी किसान आन्दोलन था। क्रान्तिकारी किसानों ने पांच हज़ार गुरिल्ला सैनिक तैयार किए और ज़मीदारों के विरुद्ध संघर्ष आरम्भ कर दिया। भारत सरकार द्वारा हस्तक्षेप करने पर यह आन्दोलन समाप्त हो गया।
3. नक्सलबाड़ी आन्दोलन-नक्सलबाड़ी आन्दोलन 1967 में साम्यवादी सरकार के समय शुरू हुआ। धीरे-धीरे यह आन्दोलन पंजाब, उत्तर-प्रदेश तथा काश्मीर में भी फैल गया।
4. आधुनिक आन्दोलन-1980 के दशक में महाराष्ट्र, गुजरात तथा पंजाब के किसानों ने कपास के दामों को कम किए जाने के विरोध में आन्दोलन किया। 1987 में किसानों द्वारा गुजरात विधानसभा का घेराव किये जाने के कारण पुलिस ने किसानों पर तरह-तरह के अत्याचार किए।
प्रश्न 3.
महिला कल्याण के लिए संसद् द्वारा पारित किन्हीं दो अधिनियमों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत में महिलाओं की स्थिति सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक दृष्टि से अत्यन्त पिछड़ी हुई है। महिलाओं के कल्याण के लिए स्वतन्त्रता से पूर्व भी समाज सुधारकों तथा राष्ट्रीय नेताओं ने अनेक सराहनीय प्रयास किए। ब्रह्म समाज, आर्य समाज, प्रार्थना समाज तथा अनेक सामाजिक आन्दोलनों द्वारा महिलाओं के प्रति अन्याय का विषय प्रमुखता से उठाया गया।
19वीं शताब्दी में महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए सती प्रथा उन्मूलन अधिनियम (1829), विधवा पुनर्विवाह अधिनियम (1856), सिविल मैरिज अधिनियम (1872) आदि अनेक कदम उठाए गए। स्वतन्त्रता के बाद महिलाओं के कल्याण के लिए अनेक कानून बनाए गए जिनमें तीन कानूनों का वर्णन इस प्रकार हैं-
- हिन्दू विवाह अधिनियम (1955),
- हिन्दू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम (1956),
- दहेज निषेध अधिनियम (1961),
- गर्भपात अधिनियम (1971), बाल-विवाह पर रोक (संशोधन अधिनियम) 1978,
- दहेज निषेध (संशोधन) अधिनियम (1984) आदि।
प्रश्न 4.
राष्ट्रीय महिला आयोग पर नोट लिखिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए की गई है। इस आयोग में एक अध्यक्ष और 5 अन्य सदस्य होते हैं। अध्यक्ष की नियुक्ति केन्द्र सरकार द्वारा की जाती है। वर्तमान समय में श्रीमती गिरिजा व्यास राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष हैं। अन्य सदस्यों की नियुक्ति ऐसे व्यक्तियों में से की जाती है, जो कानून के जानकार हों तथा प्रशासनिक योग्यता रखते हों, तथा महिलाओं के कल्याण के इच्छुक हों। आयोग का एक सचिव होता है, जिसकी नियुक्ति केन्द्र सरकार करती है। आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों का कार्यकाल 3 साल से अधिक नहीं हो सकता। केन्द्र सरकार किसी सदस्य को समय से पहले भी हटा सकती है।
प्रश्न 5.
भारत में महिलाओं की सक्षमता के लक्ष्य को पूरा करने में राष्ट्रीय महिला आयोग की भूमिका बताइए।
उत्तर:
भारत में महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए 1990 में संसद् ने एक कानून बनाया जो कि 31 जनवरी, 1992 को अस्तित्व में आया। इस कानून के तहत महिला राष्ट्रीय आयोग (National Woman Commission) की स्थापना की गई। महिला राष्ट्रीय आयोग को बहुत अधिक और व्यापक कार्य दिये गए हैं। महिला राष्ट्रीय आयोग वे सभी कार्य करता है, जो महिलाओं की उन्नति एवं अधिकार से जुड़े हुए हैं।
यह आयोग महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए संसद् को कानून बनाने के लिए उस पर दबाव डालती है। संसद् द्वारा पास किये गए ऐसे कानूनों की आयोग समीक्षा करता है, जो महिलाओं के अधिकारों से सम्बन्धित हैं। यह आयोग महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों की जांच करता है, तथा दोषी को दण्ड दिलवाने की सिफारिश करता है। इसके साथ-साथ यह आयोग महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक अधिकार दिलाने के लिए प्रयासरत रहता है।
प्रश्न 6.
‘ताड़ी विरोधी आन्दोलन’ के कोई चार प्रभाव बताइए।
उत्तर:
- ताड़ी विरोधी आन्दोलन के कारण महिलाओं में काफ़ी जागरूकता फैली।
- महिलाएं अब घरेलू हिंसा के मुद्दे पर खुलकर बोलने लगीं।
- इस आन्दोलन के कारण दहेज प्रथा, कार्य स्थल एवं सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न के मामले मुख्य मुद्दे बन गए।
- आन्दोलन के कारण लैंगिक समानता के सिद्धान्त पर आधारित व्यक्तिगत एवं सम्पत्ति कानूनों की मांग की जाने लगी।
प्रश्न 7.
महिलाओं की सामाजिक स्थिति पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
“यत्र नार्यास्तु पूजयन्ते, रमन्ते तत्र देवता” अर्थात् जहां नारी की उपासना होती है वहां देवताओं का निवास होता है। नारी के विषय में इसी प्रकार की अनेक गर्वोक्तियां अनादि काल से सुनाई पड़ रही हैं। परन्तु वास्तव में समाज में नारी की स्थिति इसके सर्वथा विपरीत है। प्रत्येक समाज का स्वरूप इस प्रकार का बना हुआ है कि इसमें पुरुष की प्रधानता बनी रहे।
ऐसी स्थिति में स्त्री के विषय में कहा जाता है कि वह दोहरी दासता की शिकार है। एक दासता पुरातन रूढ़ियों व परम्पराओं की ओर दूसरी पुरुष की। जैसे ही नारी के कदम घर की दहलीज़ से बाहर निकलते हैं, सामाजिक बाधाएं उस पर हावी हो जाती हैं। विशेषतः मुस्लिम समाज में पर्दा प्रथा को स्वीकार किया गया है।
कट्टरपन्थी यह तय करते हैं कि विशेष समुदाय के लोग क्या पहनें और क्या खाएं तथा कैसे अपने उत्सव मनाएं। मुसलमानों में स्त्रियों को पर्दा करने अथवा बुर्का ओढ़ने के नियमों को कट्टरता से पालन करना पड़ता है। ऐसा न करने पर उन्हें कठोर दण्ड का भागीदार बनाना पड़ता है। भेदभाव के कारण स्त्रियों को समुचित शिक्षा व्यवस्था भी नहीं दिलाई जाती जिसके परिणामस्वरूप स्त्रियां निरक्षर रह जाती हैं।
विशेष रूप से विकासशील राज्यों में महिलाओं की सबसे बड़ी समस्या अशिक्षा है। 1991 में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार संसार की 33.6 प्रतिशत महिलाएं निरक्षर थीं। 1991 में की गई जनगणना के आंकड़े भी दर्शाते हैं कि भारत में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की निरक्षरता दर अधिक है। अशिक्षा के कारण स्त्रियां न तो अपने अधिकारों को समझ पाती हैं और न ही उनकी रक्षा कर सकती हैं। इसलिए वे अनवरत शोषण की शिकार बनी रहती हैं।
प्रश्न 8.
भारत में किसान आन्दोलन’ की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
- किसान आन्दोलन के कारण भारत में किसानों की स्थिति अच्छी एवं मज़बूत हुई।
- किसान आन्दोलन पूर्ण रूप से संगठित नहीं थे।
- बड़े-बड़े जमीदारों ने अपने आप को किसान नेता के रूप में स्थापित करके अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति की।
- किसान आन्दोलन में स्थायित्व का अभाव पाया जाता है।
प्रश्न 9.
महिला सशक्तिकरण हेतु भारतीय संविधान में दिए गए विभिन्न अनुच्छेदों में से किन्हीं चार अनुच्छेदों का वर्णन करें।
अथवा
भारत में महिला सशक्तिकरण हेतु संवैधानिक प्रावधान का उल्लेख करें।
उत्तर:
(1) संविधान के अनुच्छेद 14 के अन्तर्गत महिलाओं को भी सभी नागरिकों सहित कानून के समक्ष समानता और कानून के समान संरक्षण प्राप्त है।
(2) अनुच्छेद 15 के अनुसार भेदभाव की मनाही की गई है। इसका अभिप्राय है कि राज्य महिलाओं के साथ लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता। अनुच्छेद 15 के अन्तर्गत ही यह व्यवस्था की गई है कि राज्य महिलाओं और बच्चों के कल्याण के लिए विशेष कदम उठा सकता है।
(3) अनुच्छेद 39 (क) के अनुसार राज्य अपनी नीति का संचालन इस प्रकार करेगा कि सभी स्त्री-पुरुषों को समान रूप से आजीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त हों।
(4) अनुच्छेद 39 (घ) के अनुसार स्त्रियों और पुरुषों को समान काम के लिए समान वेतन मिले।
प्रश्न 10.
‘चिपको आन्दोलन’ करने वालों की मुख्य मांगें क्या थी ?
उत्तर:
- जंगल की कटाई का कोई भी ठेका बाहरी व्यक्ति को न दिया जाए।
- स्थानीय लोगों का जल, जंगल, जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण होना चाहिए।
- सरकार लघु उद्योगों के लिए कम कीमत पर सामग्री उपलब्ध कराए।
- सरकार मजदूरों के लिए न्यूनतम मजदूरी की व्यवस्था करे।
प्रश्न 11.
टिहरी बांध परियोजना के विरोध में चलाए गए आन्दोलनों पर एक नोट लिखें।
उत्तर:
टिहरी बांध परियोजना के विरुद्ध चलने वाला आन्दोलन भारत का सबसे लम्बे समय तक चलने वाला आन्दोलन माना जाता है। टिहरी बांध परियोजना का विरोध करने के लिए लोगों ने स्वतन्त्रता सेनानी वीरेन्द्र दत्त सखलानी के नेतृत्व में ‘टिहरी बांध परियोजना विरोधी संघर्ष समिति’ का निर्माण किया। टिहरी बांध से टिहरी शहर के पानी में डूबने का खतरा था। समाज सेवी सुन्दर लाल बहुगुणा ने इस परियोजना का विरोध करने के लिए आमरण अनशन किया तथा प्रधानमन्त्री द्वारा इस योजना की समीक्षा के आश्वासन पर ही उन्होंने अपना आमरण अनशन तोड़ा था।
प्रश्न 12.
मण्डल आयोग के बारे में क्या जानते हैं ? इसकी किन्हीं दो सिफ़ारिशों को लिखिए।
उत्तर:
1 जनवरी, 1979 को जनता पार्टी की सरकार ने मण्डल आयोग का गठन किया। इस आयोग के चार सदस्य थे और बिहार के भूतपूर्व मुख्यमन्त्री बी० पी० मण्डल इसके अध्यक्ष थे। इस आयोग का कार्य सामाजिक और शैक्षणिक रूप वर्गों की पहचान करना तथा उनके विकास के लिए सुझाव देना था। मण्डल कमीशन ने 13 दिसम्बर, 1980 को अपनी रिपोर्ट सरकार को प्रस्तुत की। मण्डल आयोग ने अपनी रिपोर्ट में 3743 पिछड़ी जातियों की पहचान की। मण्डल आयोग की मुख्य सिफ़ारिशें निम्नलिखित हैं
- सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण होना चाहिए।
- अन्य पिछड़े वर्गों (OBCs) के कल्याण के लिए बनाए गए कार्यक्रम के लिए धन केन्द्रीय सरकार को देना चाहिए।
- भूमि सुधार शीघ्र किए जाएं ताकि छोटे किसानों को अमीर किसानों पर निर्भर न रहना पड़े।
- अन्य पिछड़े वर्गों को लघु उद्योग लगाने के लिए सहायता दी जाए तथा उन्हें प्रोत्साहित किया जाए।
- अन्य पिछड़े वर्गों के लिए विशेष शिक्षा योजनाएं लागू की जाएं।
प्रश्न 13.
आरक्षण नीति के पक्ष में कोई चार तर्क दें।
उत्तर:
1. आर्थिक उन्नति में सहायक-आरक्षण की नीति का समर्थन करने वालों का मत है कि इससे समाज के ग़रीब वर्गों के लिए वर्षों से रुके हुए व्यवसाय के अवसर खुलेंगे, जिससे उनकी आर्थिक उन्नति होगी।
2. सामाजिक सम्मान में वृद्धि-आरक्षण की नीति के फलस्वरूप कमजोर वर्ग के लोग सार्वजनिक सेवा के किसी भी उच्च पद को प्राप्त करने में सफल हो सकेंगे, जिससे उनके सामाजिक सम्मान में वृद्धि होगी।
3. राजनीतिक चेतना में वृद्धि-कमजोर वर्गों के शिक्षित लोग अब अपने राजनीतिक अधिकारों के प्रति पहले से अधिक जागरूक हैं। यह सब साक्षरता की व्यवस्था लागू करने के परिणामस्वरूप ही सम्भव हो पाया है।
4. राजनीतिक भागीदारी में वृद्धि-आरक्षण की नीति के कारण समाज के उच्च वर्गों के साथ-साथ निम्न वर्गों को भी शासन प्रणाली और राजनीतिक व्यवस्था में अपनी भागीदारी निभाने का अवसर मिलता है।
प्रश्न 14.
आरक्षण के विरोध में कोई चार तर्क दें।
उत्तर:
1. जातिवाद को बढ़ावा-आरक्षण आर्थिक आधार पर न होकर जातिगत आधार पर तय किया गया है। इसलिए इस व्यवस्था का लाभ उठाने के लिए जातिवाद को बहुत अधिक बढ़ावा मिला है।
2. आरक्षण का लाभ सभी लोगों को नहीं मिला-आरक्षण का लाभ अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों तथा पिछड़े वर्गों के सभी लोगों को नहीं मिल पाया है। इसका लाभ इन जातियों के एक छोटे से वर्ग ने उठाया है।
3. निर्भरता को बढ़ावा-आरक्षण के कारण अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों तथा पिछड़े वर्गों की आत्म निर्भरता में कमी हई है। ये जातियां स्वेच्छा से अपनी उन्नति करने की अपेक्षा आरक्षण को सीढी बनाकर ऊपर उठना चाहते हैं। ये जातियां आरक्षण के बिना अपना विकास सम्भव नहीं मानती हैं।
4. समानता के सिद्धान्त के विरुद्ध-भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 में सभी नागरिकों को समानता का अधिकार प्रदान किया गया है। परन्तु आरक्षण की व्यवस्था इस समानता के विरुद्ध है।
प्रश्न 15.
दलित पैंथर्स कौन थे ? उनका उद्देश्य क्या था ?
अथवा
दलित पैंथर्स ने कौन-से मुद्दे उठाए ?
उत्तर:
दलित पैंथर्स दलित युवाओं का एक संगठन था। दलित पैंथर्स नामक संगठन में ज्यादातर शहर की मलिन बस्तियों में रहने वाले युवा शामिल थे। दलित पैंथर्स के निम्नलिखित उद्देश्य थे
- जाति आधारित असमानता को समाप्त करना इस संगठन का मुख्य उद्देश्य था।
- आरक्षण के कानूनों को लागू करना।
- सामाजिक न्याय की स्थापना करना।
- छुआछूत को पूरी तरह समाप्त करना।
प्रश्न 16.
चिपको आन्दोलन के विभिन्न पहलू बताइए।
उत्तर:
चिपको आन्दोलन के निम्नलिखित पहलू सामने आए
(1) चिपको आन्दोलन का एकदम नया पहलू यह था कि इसमें महिलाओं ने सक्रिय भागेदारी की।
(2) महिलाओं ने शराबखोरी की लत के खिलाफ भी आवाज़ उठाई।
(3) आन्दोलन के कारण सरकार ने अगले 15 सालों के लिए हिमालयी क्षेत्र में पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी, ताकि बनाच्छादन फिर से ठीक स्थिति में लाया जा सके।
(4) चिपको आन्दोलन सत्तर के दशक और उसके बाद के वर्षों में देश के विभिन्न भागों में शुरू हुए कई जन आन्दोलनों का प्रतीक बन गया।
प्रश्न 17.
नर्मदा बचाओ आन्दोलन क्या था ? इसके विरुद्ध क्या आलोचना की गई है ?
उत्तर:
नर्मदा बांध परियोजना के विरुद्ध नर्मदा बचाओ आन्दोलन चलाया गया। पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित सबसे महत्त्वपूर्ण आन्दोलन नर्मदा बचाओ आन्दोलन को माना जाता है। इस आन्दोलन को चलाने में मेधा पाटकर, बाबा आमटे तथा सुन्दर लाल बहुगुणा शामिल हैं। आन्दोलन के समर्थकों की मांग है कि बांध परियोजना के पूर्ण होने पर कई लाख लोग बेघर हो जाएंगे, अतः सरकार इनके पुनर्वास की पूर्ण व्यवस्था करे।
परन्तु नर्मदा बचाओ आन्दोलन को सफलता के साथ-साथ कुछ आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा है। आलोचकों के अनुसार आन्दोलन का नकारात्मक रुख विकास प्रक्रिया, पानी की उपलब्धता तथा आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न कर रहा है। इसी कारण यह आन्दोलन मुख्य विपक्षी दलों के बीच अपना महत्त्वपूर्ण स्थान नहीं बना पाया है।
प्रश्न 18.
‘सूचना के अधिकार’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सूचना का अर्थ यह है, कि नागरिकों को ज्ञात होना चाहिए कि सरकार उनके कल्याण के लिए क्या-क्या योजनाएं बना रही हैं। किस योजना पर कितना धन एवं क्यों खर्च कर रही है। इस प्रकार की जानकारी जब हम सरकार से प्राप्त करते हैं, तो उसे सूचना कहते हैं। सन् 2005 में पारित सूचना के अधिकार के कानून में यह प्रावधान किया गया है, कि कोई भी नागरिक सलाह, विचार, ई-मेल, अभिलेख, दस्तावेज़, प्रेस विज्ञापन तथा मीडिया द्वारा प्रसारित आंकड़ों से ऐसी प्रत्येक सूचना सरलता से प्राप्त कर सकते हैं, जिस तक कि किसी सार्वजनिक अधिकारी की कानूनी पहुंच हो। सूचना प्राप्त करने के लिए आवेदनकत्तो को 10 रु. के मामूली शुल्क के साथ दस्तावेजों की प्रतिलिपि अथवा सी० डी० जन सूचना अधिकारी को देनी होगी।
प्रश्न 19.
जन आन्दोलन की कोई चार विशेषताएं लिखिए।
अथवा
जन आन्दोलनों की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
- जन आन्दोलनों ने समाज के उन नए वर्गों की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं को अभिव्यक्ति दी जो अपनी समस्याओं को चुनावी राजनीति के माध्यम से हल नहीं कर पा रहे थे।
- जन आन्दोलन सामाजिक समूहों के लिए अपनी बात उचित ढंग से रखने के बेहतर मंच बन कर उभरे।
- इन आन्दोलनों ने जनता के क्रोध एवं तनाव को एक सार्थक दिशा देकर लोकतन्त्र को मज़बूत किया।
- इन आन्दोलनों ने भारतीय लोकतन्त्र के जनाधार को बढ़ाया है।
प्रश्न 20.
सूचना के अधिकार की चार विशेषताएं लिखो।
उत्तर:
- वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना-सूचना के अधिकार से वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना होती है।
- भ्रष्टाचार की समाप्ति सूचना के अधिकार से प्रशासन में से भ्रष्टाचार की समाप्ति होती है।
- कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी-सूचना के अधिकार से लोगों को कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी मिलती है।
- कार्यकुशलता में वृद्धि–सूचना के अधिकार से कर्मचारियों की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है।
प्रश्न 21.
राष्ट्रीय महिला आयोग के कोई चार कार्य लिखें।
अथवा
राष्ट्रीय महिला आयोग के कोई चार कार्य लिखिए।
उत्तर:
- राष्ट्रीय महिला आयोग संसद् द्वारा पास किए गए उन कानूनों की समीक्षा करता है जो महिलाओं के अधिकारों से सम्बन्धित है।
- राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों की जांच करता है तथा दोषी को दण्ड दिलवाने की सिफ़ारिश करता है।
- राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक अधिकार दिलाने के लिए प्रयासरत रहता है।
- महिलाओं से सम्बन्धित किसी भी मामले के बारे में और विशेष करके जिन कठिनाइयों में महिलाएं काम करती हैं, उनके बारे में सरकार को नियतकालीन रिपोर्ट देना।
प्रश्न 22.
भारतीय किसान यूनियन की मुख्य माँगें क्या थी ?
उत्तर:
भारतीय किसान यूनियन की मुख्य माँगें निम्नलिखित थीं
- भारतीय किसान यूनियन ने गन्ने और गेहूँ के सरकारी खरीद मूल्य में बढ़ोत्तरी की मांग की।
- कृषि उत्पादों के अन्तर्राज्जीय आवाजाही पर लगी पाबंदियों को हटाने की मांग की।
- समुचित दर पर गारंटीशुदा बिजली आपूर्ति करने की मांग।
- किसानों के बकाया कर्ज माफ करने तथा किसानों के लिए पेंशन का प्रावधान करने की मांग।
प्रश्न 23.
महिला सशक्तिकरण वर्ष 2001 की मुख्य घोषणाएं बताएं।
उत्तर:
- महिलाओं को आर्थिक पक्ष से सुदृढ़ बनाने के लिए राष्ट्रीय महिला कोष गठित किया जाएगा।
- महिलाओं को आत्म-निर्भर बनाने के लिए ‘स्वशक्ति योजना’ लागू की जाएगी।
- आपदाग्रस्त महिलाओं के पुनर्वास के लिए ‘स्वधार योजना’ चलाई जाएगी।
- महिलाओं को संसद एवं राज्य की विधानसभाओं में 33% स्थान आरक्षित करने के प्रयत्न किये जायेंगे।
प्रश्न 24.
महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता के कारण बताइये।
उत्तर:
- महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त न होना।
- महिलाओं की आर्थिक स्थिति निम्न स्तर की होना एवं इसके लिए पुरुषों पर निर्भर होना।
- सामाजिक स्तर पर महिलाओं का कमजोर होना।
- महिलाओं को राजनीतिक अधिकार प्राप्त न होना।
आत लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
कृषक आन्दोलन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
जो आन्दोलन कृषकों के हितों की पूर्ति के लिए चलाए जाते हैं, उन्हें कृषक आन्दोलन कहते हैं। भारत एक कृषि प्रधान देश है, अत: यहां पर किसानों से सम्बन्धित दबाव समूहों द्वारा किसानों को अपने हितों की पूर्ति के लिए जागरूक करके आन्दोलन करते रहते हैं। उदाहरण के लिए स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में तिभागा आन्दोलन, तेलंगाना आन्दोलन, नक्सलवादी आन्दोलन चलाए गए।
प्रश्न 2.
किन्हीं दो किसान आन्दोलनों के नाम लिखें।
उत्तर:
1.तिभागा आन्दोलन-तिभागा आन्दोलन 1946-1947 में बंगाल में प्रारम्भ हुआ। यह आन्दोलन मुख्यतः जोतदारों के विरुद्ध मझोले किसानों एवं बंटाईदारों का संयुक्त प्रयास था। इस आन्दोलन का मुख्य कारण भीषण अकाल था।
2. तेलंगाना आन्दोलन तेलंगाना आन्दोलन हैदराबाद राज्य में 1946 में जागीरदारों द्वारा की जा रही जबरन एवं अत्यधिक वसूली के विरोध में चलाया गया क्रान्तिकारी आन्दोलन था। क्रान्तिकारी किसानों ने पांच हज़ार गुरिल्ला सैनिक तैयार किए और ज़मींदारों के विरुद्ध संघर्ष आरम्भ कर दिया। भारत सरकार द्वारा हस्तक्षेप करने पर यह आन्दोलन समाप्त हो गया।
प्रश्न 3.
महिला सशक्तिकरण का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
महिला सशक्तिकरण से अभिप्राय महिलाओं को अपने व्यक्तित्व के विकास के पूर्ण अवसर उपलब्ध करवाना है, ताकि वे समाज में पुरुषों के समान सामाजिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पूर्ण विश्वास के साथ कार्य कर सके। महिला सशक्तिकरण के लिए यह अनिवार्य है कि महिलाओं को उनकी वर्तमान उपेक्षित स्थिति से मुक्ति दिलाई जाए। उन्हें आर्थिक क्षेत्र में आत्म-निर्भर बनाया जाए। सामाजिक और राजनीतिक जीवन में उन्हें आगे बढ़ने के अवसर दिए जाएं। इन सबसे अधिक महिलाओं को भी इंसान समझा जाए और उन्हें समाज में अपनी भमिका निभाने का मौका दिया जाए।
प्रश्न 4.
मौलिक अधिकारों के अन्तर्गत महिलाओं के कल्याण के बारे में क्या व्यवस्थाएं की गई हैं ?
उत्तर:
मौलिक अधिकारों के अन्तर्गत महिलाओं के कल्याण के बारे में निम्नलिखित व्यवस्थाएं की गई हैं
- संविधान के अनुच्छेद 14 के अन्तर्गत महिलाओं को भी सभी नागरिकों सहित कानून के समक्ष समानता और कानून के समान संरक्षण प्राप्त है।
- अनुच्छेद 15 के अनुसार भेदभाव की मनाही की गई है। इसका अभिप्राय है कि राज्य महिलाओं के साथ लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता।
- अनुच्छेद 15 के अन्तर्गत ही यह व्यवस्था की गई है कि राज्य महिलाओं और बच्चों के कल्याण के लिए विशेष कदम उठा सकता है।
प्रश्न 5.
राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्तों में महिलाओं के कल्याण सम्बन्धी क्या व्यवस्थाएं की गई हैं ?
उत्तर:
राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्तों में महिलाओं के कल्याण के विषय में निम्नलिखित व्यवस्थाएं की गई हैं
- राज्य अपनी नीति का संचालन इस प्रकार करेगा कि सभी स्त्री-पुरुषों को समान रूप से आजीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त हों (अनुच्छेद 39)
- स्त्रियों और पुरुषों के समान काम के लिए समान वेतन मिले। (अनुच्छेद 39)
प्रश्न 6.
महिला सशक्तिकरण की राष्ट्रीय नीति, 2001 के दो मुख्य उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
महिला सशक्तिकरण की राष्ट्रीय नीति, 2001 के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं
- न्याय प्रणाली को बेहतर बनाकर महिलाओं के विरुद्ध होने वाले भेदभाव की मनाही।
- सकारात्मक आर्थिक तथा सामाजिक नीतियों द्वारा ऐसा वातावरण बनाना जिसमें महिलाएं अपनी पूर्ण क्षमता की पहचान कर सकें और उनके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास हो सके।
प्रश्न 7.
राष्ट्रीय महिला आयोग के कोई दो कार्य लिखिए।
उत्तर:
- राष्ट्रीय महिला आयोग संसद् द्वारा पास किए गए उन कानूनों की समीक्षा करता है जो महिलाओं के अधिकारों से सम्बन्धित है।
- राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों की जांच करता है तथा दोषी को दण्ड दिलवाने की सिफ़ारिश करता है।
प्रश्न 8.
आप महिला सशक्तिकरण के लिए कौन-कौन से सुझाव देंगे ?
उत्तर:
(1) महिलाओं के लिए उचित शिक्षा व्यवस्था की जाए ताकि उनका मानसिक विकास हो सके। इससे उनका दृष्टिकोण व्यापक होगा और वे अपने अधिकारों के प्रति सजग होंगी।
(2) महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव किया जाना चाहिए। महिलाएं भी पुरुषों के समान क्षमतावान और सूझबूझ रखती हैं। महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए अवसर प्रदान किए जाने चाहिएं।
प्रश्न 9.
टिहरी बांध परियोजना के विरुद्ध-चलाए गए आन्दोलन पर एक नोट लिखें।
उत्तर:
टिहरी बांध परियोजना के विरुद्ध चलने वाला आन्दोलन भारत का सबसे लम्बे समय तक चलने वाला | माना जाता है। टिहरी बांध परियोजना का विरोध करने के लिए लोगों ने स्वतन्त्रता सेनानी वीरेन्द्र दत्त सखलानी में टिहरी बांध परियोजना विरोधी संघर्ष समिति’ का निर्माण किया। टिहरी बांध से टिहरी शहर के पानी में का खतरा था। समाजसेवी सुन्दर लाल बहुगुणा ने इस परियोजना का विरोध करने के लिए आमरण अनशन किया तथा प्रधानमन्त्री द्वारा इस योजना की समीक्षा के आश्वासन पर ही उन्होंने अपना आमरण अनशन तोड़ा था।
प्रश्न 10
चिपको आन्दोलन पर एक नोट लिखें।
अथवा
चिपको आन्दोलन का आरम्भ कब और किस राज्य से हआ ?
उत्तर:
चिपको आन्दोलन 1972 में हिमालय क्षेत्र में उत्पन्न हुआ। चिपको आन्दोलन का अर्थ है-पेड़ से चिपक जाना अर्थात् पेड़ को आलिंगनबद्ध कर लेना। जब एक ठेकेदार ने गांव के समीप जंगल में अपने कर्मचारियों को पेड़ काटने के लिए भेजा तो गांव की महिलाएं आकर पेड़ों से चिपक गई। जिसके कारण कर्मचारी पेड़ कहीं काट सके। पर्यावरण संरक्षण वे सम्बन्धित इस आन्दोलन का भारत में विशेष स्थान है।
प्रश्न 11.
‘नर्मदा बचाओ आन्दोलन’ पर एक नोट लिखें।
उत्तर:
नर्मदा बांध परियोजना के विरुद्ध नर्मदा बचाओ आन्दोलन चलाया गया। पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित सबसे महत्त्वपूर्ण आन्दोलन नर्मदा बचाओ आन्दोलन को माना जाता है। इस आन्दोलन को चलाने में मेधा पाटकर, बाबा आमटे तथा सुन्दर लाल बहुगुणा शामिल हैं। आन्दोलन के समर्थकों की मांग है कि बांध परियोजना के पूर्ण होने पर कई लाख लोग बेघर हो जाएंगे, अतः सरकार इनके पुनर्वास की पूर्ण व्यवस्था करें।
प्रश्न 12.
मण्डल आयोग के बारे में आप क्या जानते हैं ?
अथवा
मण्डल आयोग ने राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट कब पेश की थी?
उत्तर:
मण्डल आयोग की स्थापना जनता पार्टी की सरकार ने 1979 में की थी। इस आयोग का कार्य सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए वर्गों की पहचान करना तथा उनके विकास के लिए सुझाव देना था। मण्डल आयोग ने 13 दिसम्बर, 1980 को अपनी रिपोर्ट सरकार को प्रस्तुत की। मण्डल आयोग ने अपनी रिपोर्ट में 3743 पिछड़ी जातियों की पहचान की।
प्रश्न 13.
‘मण्डल कमीशन’ की किन्हीं दो सिफ़ारिशों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
- सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्ग के लिए 27% आरक्षण होना चाहिए।
- अन्य पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए बनाए गए कार्यक्रमों के लिए धन केन्द्र सरकार को देना चाहिए।
प्रश्न 14.
‘अन्य पिछड़े वर्ग का सम्पन्न तबका’ (Creamy Layer) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सम्पन्न तबका पिछड़े वर्गों में वह वर्ग है जो सामाजिक आर्थिक व शैक्षणिक दृष्टि से काफ़ी सम्पन्न है और जो राजनीतिक कारणों से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का लाभ उठा रहा है। इस शब्द का प्रयोग सर्वोच्च न्यायालय ने 1992 में एक निर्णय में किया था जिसमें कहा गया कि यह वर्ग यदि सामाजिक आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न है तो उसे पिछड़ा वर्ग से अलग किया जाए क्योंकि इसे पिछड़ा वर्ग नहीं माना जा सकता।
प्रश्न 15.
मण्डल आयोग की सिफ़ारिशों को कब लागू किया गया और किस प्रकार सरकार ने लागू किया ?
उत्तर:
मण्डल आयोग की सिफारिशों को राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने 8 अगस्त, 1990 को लागू करने के लिए आदेश जारी किया।
प्रश्न 16.
एन० एफ० एफ० का पूरा नाम लिखिए। मछुआरों के जीवन के लिए एक बड़ा संकट कैसा आ खड़ा हुआ है ?
उत्तर:
एन० एफ० एफ० का पूरा नाम नेशनल फिशवर्कर्स फोरम है। केन्द्र सरकार की एक नीति के अन्तर्गत व्यावसायिक जहाजों को गहरे समुद्र में मछली मारने की इजाजत दी गई थी, जिसमें मछुआरों के जीवन के लिए एक बड़ा संकट खड़ा हो गया।
प्रश्न 17.
जन आन्दोलन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
जन आन्दोलन से अभिप्राय आन्दोलन के साथ अधिक लोगों का जुड़ना ताकि वे अपने सामाजिक उद्देश्यों की प्राप्ति कर सकें। जन आन्दोलन के साथ जितने अधिक लोग जुड़ते जाएंगे, वह आन्दोलन उतना ही अधिक लोकप्रिय होता जाएगा। जन आन्दोलन भारतीय लोकतन्त्र को सुदृढ़ बनाते हैं। जन आन्दोलन का अर्थ केवल सामूहिक कार्यवाही ही नहीं होता, बल्कि आन्दोलन का एक काम सम्बन्धित लोगों को अपने अधिकारों एवं कर्त्तव्यों के प्रति जागरूक भी बनाता है। भारत में चलने वाले विभिन्न सामाजिक आन्दोलनों ने लोगों को इस सम्बन्ध में जागरूक बनाया है, तथा लोकतन्त्र को मज़बूत किया है।
प्रश्न 18.
‘चिपको आन्दोलन’ का मुख्य उद्देश्य लिखें।
उत्तर:
‘चिपको आन्दोलन’ का मुख्य उद्देश्य वृक्षों (वनों) की रक्षा करना था।
प्रश्न 19.
पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित किन्हीं दो आन्दोलनों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- चिपको आन्दोलन।
- नर्मदा बचाओ आन्दोलन।
प्रश्न 20.
हरियाणा में शराबबन्दी कब लागू हुई थी ?
उत्तर:
हरियाणा में शराबबन्दी सन् 1996 में लागू हुई थी।
प्रश्न 21.
किस स्थान पर हिन्दी को राजभाषा बनाने के खिलाफ आन्दोलन चला ?
उत्तर:
हिन्दी को राजभाषा बनाने के खिलाफ तमिलनाडु में आन्दोलन चलाया गया।
प्रश्न 22.
महाराष्ट्र में दलितों के हितों की रक्षा के लिये कौन-सा संगठन बना ?
उत्तर:
महाराष्ट्र में दलितों के हितों की रक्षा के लिये दलित पैन्थर्स नाम का संगठन बना।
प्रश्न 23.
किन्हीं दो किसान आन्दोलनों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- तिभागा आन्दोलन,
- तेलगांना आन्दोलन।
प्रश्न 24.
‘सूचना के अधिकार’ का आन्दोलन कब शुरू हुआ तथा इसका नेतृत्व किसने किया ?
उत्तर:
‘सूचना के अधिकार’ का आन्दोलन सन् 1990 में शुरू हुआ तथा प्रारम्भ में इसका नेतृत्व मजदूर किसान शक्ति संगठन ने किया।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. निम्न में से कौन-सा किसान आन्दोलन माना जाता है ?
(A) तिभागा आन्दोलन
(B) तेलंगाना आन्दोलन
(C) नक्सलवादी आन्दोलन
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।
2. अखिल भारतीय किसान सभा की स्थापना कब की गई ?
(A) 1920
(B) 1924
(C) 1936
(D) 1930
उत्तर:
(C) 1936
3. वर्तमान में लोकसभा में अनुसूचित जातियों के लिए कितने स्थानों का आरक्षण किया गया है ?
(A) 69
(B) 84
(C) 40
(D) 89
उत्तर:
(B) 84
4. महिला आन्दोलन किससे सम्बन्धित है ?
(A) पुरुषों से
(B) महिलाओं से
(C) बच्चों से
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(B) महिलाओं से।
5. निम्न में से कौन-सा पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित आन्दोलन माना जाता है ?
(A) चिपको आन्दोलन
(B) नर्मदा बचाओ आन्दोलन
(C) टिहरी बांध परियोजना के विरुद्ध आन्दोलन
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।
6. निम्न में से कौन पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित है ?
(A) सुन्दर लाल बहुगुणा
(B) मेधा पाटकर
(C) बाबा आमटे
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।
7. मण्डल आयोग में कितने सदस्य थे ?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच।
उत्तर:
(C) चार।
8. भारतीय संविधान का कौन-सा अनुच्छेद महिलाओं के कल्याण से सम्बन्धित है ?
(A) अनुच्छेद 39
(B) अनुच्छेद 10
(C) अनुच्छेद 30
(D) अनुच्छेद 54
उत्तर:
(A) अनुच्छेद 39
9. राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग का गठन कब किया गया ?
(A) सन् 1993 में
(B) सन् 1992 में
(C) सन् 1991 में
(D) सन् 1990 में।
उत्तर:
(A) सन् 1993 में।
10. आन्ध्र प्रदेश में चलाए गए शराब (ताड़ी) विरोधी आन्दोलन का सम्बन्ध था
(A) पेड़ काटने से
(B) छुआछूत पर पाबन्दी लगाने से
(C) शराब की बिक्री पर पाबन्दी लगाने से
(D) गऊ सुरक्षा से।
उत्तर:
(C) शराब की बिक्री पर पाबन्दी लगाने से।
11. 2019 में हुए 17वीं लोकसभा के चुनावों में कितनी महिलाएं निर्वाचित हुई थीं ?
(A) 73
(B) 80
(C) 78
(D) 71
उत्तर:
(C) 78
12. भारत में प्रतिवर्ष कब महिला दिवस मनाया जाता है ?
(A) 1 जनवरी
(B) 26 जनवरी
(C) 20 फरवरी
(D) 8 मार्च।
उत्तर:
(D) 8 मार्च।
13. भारत में ‘राष्ट्रीय महिला आयोग’ की स्थापना निम्न में से किस वर्ष में हुई ?
(A) 1990 में
(B) 1991 में
(C) 1992 में
(D) 1995 में।
उत्तर:
(C) 1992 में।
14. मेधा पाटेकर निम्नलिखित आन्दोलन से सम्बन्धित है ?
(A) किसान आन्दोलन
(B) महिला आन्दोलन
(C) चिपको आन्दोलन
(D) नर्मदा बचाओ आन्दोलन।
उत्तर:
(D) नर्मदा बचाओ आन्दोलन
15. किसान आन्दोलन के मुख्य नेता थे।
(A) वी० पी० सिंह
(B) महेन्द्र सिंह टिकैत
(C) रामकृष्ण हेगड़े
(D) राजीव गांधी।
उत्तर:
(B) महेन्द्र सिंह टिकैत।
16. चिपको आन्दोलन का क्या उद्देश्य था ?
(A) वनों की रक्षा करना
(B) शिक्षा को बढ़ावा देना
(C) खेलों को बढ़ावा देना
(D) मनोरंजन को बढ़ावा देना।
उत्तर:
(A) वनों की रक्षा करना।
17. दहेज निषेध अधिनियम पास किया गया
(A) 1950
(B) 1958
(C) 1961
(D) 1977
उत्तर:
(C) 1961
18. घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा सम्बन्धी अधिनियम किस वर्ष पारित हुआ ?
(A) 2002
(B) 2003
(C) 2005
(D) 2017
उत्तर:
(C) 2005
19. किस वर्ष को महिला सशक्तिकरण वर्ष का नाम दिया गया ?
(A) 2001
(B) 1990
(C) 2003
(D) 2005
उत्तर:
(A) 2001
20. जन-आन्दोलन लोकतन्त्र को
(A) कमज़ोर करते हैं
(B) समाप्त करते हैं
(C) मजबूत करते हैं
(D) प्रभावित नहीं करते।
उत्तर:
(C) मज़बूत करते हैं।
21. मण्डल आयोग की सिफारिशों को किस वर्ष में लागू किया गया था?
(A) 1971 में
(B) 1977 में
(C) 1990 में
(D) 1991 में।
उत्तर:
(C) 1990 में।
22. ‘चिपको आन्दोलन’ का उद्देश्य था
(A) आर्थिक शोषण से रक्षा
(B) महिलाओं से रक्षा
(C) वनों की रक्षा
(D) दलितों की रक्षा।
उत्तर:
(C) वनों की रक्षा।
23. महाराष्ट्र में दलितों के हितों की रक्षा के लिए कौन-सा संगठन बनाया गया ?
(A) दलित पँथर्स
(B) मंडल आयोग
(C) पिछड़ा वर्ग आयोग
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) दलित पैंथर्स।
24. दलित पैन्थर्स संगठन की कब स्थापना की गई ?
(A) 1980
(B) 1976
(C) 1972
(D) 1975
उत्तर:
(C) 1972
25. ताड़ी विरोधी आन्दोलन किस राज्य में शुरू किया गया ?
(A) बिहार
(B) आन्ध्र प्रदेश
(C) गुजरात
(D) केरल।
उत्तर:
(B) आन्ध्र प्रदेश।
26. चिपको आन्दोलन किस राज्य से सम्बन्धित है ?
(A) उत्तराखण्ड
(B) हरियाणा
(C) उड़ीसा
(D) केरल।
उत्तर:
(A) उत्तराखण्ड।
निम्न रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
(1) चिपको आन्दोलन का सम्बन्ध ………. प्रदेश से है।
उत्तर:
उत्तराखण्ड
(2) भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् ……….. का प्रतिमान अपनाया।
उत्तर:
नियोजित विकास
(3) ……… मराठी के एक प्रसिद्ध कवि हैं।
उत्तर:
नामदेव दसाल
(4) डॉ० अम्बेदकर ……….. के नेता माने जाते हैं।
उत्तर:
दलितों
(5) महेन्द्र सिंह टिकैत ………. के अध्यक्ष थे।
उत्तर:
भारतीय किसान यूनियन
(6) मछुआरों के राष्ट्रीय संगठन का नाम …………. है।
उत्तर:
नेशनल फिशवर्कर्स फोरम
(7) वर्तमान में लोकसभा में अनुसूचित जातियों के लिए …….. स्थानों का आरक्षण किया गया है।
उत्तर:
84
(8) 1989 में प्रधानमन्त्री ………….. ने मण्डल आयोग रिपोर्ट को लाग किया।
उत्तर:
वी० पी० सिंह
(9) 73वें एवं 74वें संशोधन द्वारा स्थानीय निकायों में ……….. को आरक्षण प्रदान किया गया है ?
उत्तर:
महिलाओं
(10) मेघा पाटेकर …….. आन्दोलन से सम्बन्धित हैं।
उत्तर:
पर्यावरण
(11) 1972 में महाराष्ट्र में दलित हितों की रक्षा के लिए …………… नामक संगठन बनाया गया।
उत्तर:
दलित पैन्थर्स
(12) ‘चिपको आन्दोलन’ का उद्देश्य ……. करना था।
उत्तर:
वृक्षों (वनों) की रक्षा
एक शब्द में उत्तर दें
प्रश्न 1.
मण्डल आयोग के अध्यक्ष कौन थे ?
उत्तर:
मण्डल आयोग के अध्यक्ष बी० पी० मण्डल थे।
प्रश्न 2.
ताड़ी विरोधी आन्दोलन किस राज्य में शुरू हुआ था ?
उत्तर:
ताड़ी विरोधी आन्दोलन आंध्र प्रदेश में शुरू हुआ था।
प्रश्न 3.
मेघा पाटेकर किस आन्दोलन से सम्बन्धित हैं ?
उत्तर:
नर्मदा बचाओ आन्दोलन से।
प्रश्न 4.
महिलाओं की घरेलू हिंसा से सुरक्षा कानून कब पास हुआ ?
उत्तर:
सन् 2005 में।
प्रश्न 5.
पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित किसी एक आन्दोलन का नाम बताइये।
उत्तर:
चिपको आन्दोलन।
प्रश्न 6.
‘चिपको आन्दोलन’ किस राज्य से सम्बन्धित है ?
उत्तर:
उत्तराखण्ड से।
प्रश्न 7.
किस प्रधानमन्त्री ने ‘मंडल आयोग’ की सिफ़ारिशों को लागू किया ?
उत्तर:
मंडल आयोग की सिफारिशों को वी० पी० सिंह ने लागू किया।
प्रश्न 8.
आन्ध्र-प्रदेश में सन् 1990 में महिलाओं द्वारा कौन कौन-सा आन्दोलन प्रारम्भ किया गया ?
उत्तर:
ताड़ी विरोधी आन्दोलन।
प्रश्न 9.
सूचना का अधिकार सम्बन्धी कानून किस वर्ष पारित हुआ ?
उत्तर:
सूचना का अधिकार सम्बन्धी कानून. सन् 2005 में पारित हुआ।