HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. संतुलन कीमत उस कीमत को कहते हैं जिस पर-
(A) क्रेता वस्तु को खरीदने के लिए तैयार है
(B) विक्रेता वस्तु को बेचने के लिए तैयार है
(C) वस्तु की माँग तथा पूर्ति बराबर हो जाती है
(D) वस्तु की कीमत वस्तु की उपयोगिता के बराबर होती है
उत्तर:
(C) वस्तु की माँग तथा पूर्ति बराबर हो जाती है

2. पूर्ति के स्थिर रहने तथा माँग के कम होने पर कीमत
(A) बढ़ती है
(B) स्थिर रहती है
(C) कम होती है
(D) घटती-बढ़ती रहती है
उत्तर:
(C) कम होती है

3. माँग के स्थिर रहने तथा पूर्ति के कम होने पर कीमत-
(A) बड़ती है
(B) स्थिर रहती है
(C) कम होती है
(D) घटती-बढ़ती रहती है
उत्तर:
(A) बढ़ती है

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4. जब माँग और पूर्ति एक साथ बढ़ती है परंतु माँग में होने वाली वृद्धि पूर्ति में होने वाली वृद्धि से अधिक होती है तो कीमत
(A) बढ़ेगी
(B) कम होगी
(C) स्थिर रहेगी
(D) घटती-बढ़ती रहेगी
उत्तर:
(A) बढ़ेगी

5. जब माँग और पूर्ति में बराबर वृद्धि होती है तो उत्पादन की मात्रा-
(A) बढ़ेगी
(B) कम होगी
(C) स्थिर रहेगी
(D) घटती-बढ़ती रहेगी
उत्तर:
(A) बढ़ेगी

6. जब माँग और पूर्ति में बराबर कमी होती है तो कीमत
(A) बढ़ती है
(B) कम होती है
(C) स्थिर रहती है
(D) घटती-बढ़ती रहती है
उत्तर:
(C) स्थिर रहती है

7. जब पूर्ति पूर्णतया लोचदार हो तथा माँग में वृद्धि हो तो संतुलन कीमत पर क्या प्रभाव होगा?
(A) समान रहेगी
(B) घटेगी
(C) बढ़ेगी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) समान रहेगी

8. पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार होने पर माँग में वृद्धि होने से संतुलन कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(A) बढ़ेगी
(B) घटेगी
(C) स्थिर रहेगी
(D) समान रहेगी
उत्तर:
(A) बढ़ेगी

9. माँग पूर्णतया बेलोचदार होने पर पूर्ति में कमी का संतुलन मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(A) बढ़ेगी
(B) घटेगी
(C) समान रहेगी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) समान रहेगी

10. माँग पूर्णतया लोचदार होने पर पूर्ति में कमी का संतुलन कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(A) समान रहेगी
(B) बढ़ेगी
(C) घटेगी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) समान रहेगी

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11. बाजार कीमत का निर्धारण किया जाता है
(A) अल्पकाल में
(B) अति-अल्पकाल में
(C) दीर्घकाल में
(D) अति-दीर्घकाल में
उत्तर:
(B) अति-अल्पकाल में

12. संतुलन कीमत से कम, कीमत की उच्चतम सीमा निर्धारण से-
(A) अधिमाँग की स्थिति उत्पन्न होती है
(B) न्यून माँग की स्थिति उत्पन्न होती है
(C) शून्य माँग की स्थिति उत्पन्न होती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) अधिमाँग की स्थिति उत्पन्न होती है

13. संतुलन कीमत से अधिक, कीमत की निम्नतम सीमा निर्धारण से-
(A) अधिपूर्ति की स्थिति उत्पन्न होती है
(B) न्यून पूर्ति की स्थिति उत्पन्न होती है
(C) शून्य पूर्ति की स्थिति उत्पन्न होती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) अधिपूर्ति की स्थिति उत्पन्न होती है।

14. जब सरकार द्वारा किसी वस्तु की उच्चतम कीमत निर्धारित की जाती है, तो उसे कहा जाता है-
(A) समर्थन मूल्य
(B) उच्चतम निर्धारित कीमत
(C) न्यूनतम निर्धारित कीमत
(D) उचित कीमत
उत्तर:
(B) उच्चतम निर्धारित कीमत

15. अभिरुचियों में सकारात्मक परिवर्तन का वस्तु की कीमत और विनिमय मात्रा पर कैसा प्रभाव पड़ता है?
(A) कीमत और विनिमय मात्रा में वृद्धि होती है
(B) कीमत और विनिमय मात्रा समान रहती है
(C) कीमत और विनिमय मात्रा में कमी होती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) कीमत और विनिमय मात्रा में वृद्धि होती है

16. किसी अव्यवहार्य (Non-viable) उद्योग का पूर्ति वक्र माँग वक्र की तुलना में कहाँ स्थित होता है?
(A) पूर्ति वक्र माँग वक्र के नीचे होता है
(B) पूर्ति वक्र माँग वक्र के ऊपर होता है
(C) पूर्ति वक्र माँग वक्र को प्रतिच्छेदित करता है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) पूर्ति वक्र माँग वक्र के ऊपर होता है

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. पूर्ति के स्थिर तथा माँग के कम होने पर कीमत …………… होती है। (कम/अधिक)
उत्तर:
कम

2. माँग के …………. होने तथा पूर्ति के कम होने पर कीमत बढ़ती है। (स्थिर/परिवर्तित)
उत्तर:
स्थिर

3. जब माँग और पूर्ति में …………. वृद्धि होती है तो उत्पादन की मात्रा बढ़ती है। (समान/असमान)
उत्तर:
समान

4. जब माँग और पूर्ति में बराबर कमी होती है तो कीमत ………….. रहती है। (परिवर्तित स्थिर)
उत्तर:
स्थिर

5. जब सरकार द्वारा किसी वस्तु की उच्चतम कीमत निर्धारित की जाती है, तो उसे ………….. निर्धारित कीमत कहा जाता है। (न्यूनतम/उच्चतम)
उत्तर:
उच्चतम

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6. वस्तु की वह मात्रा जिसे संतुलन कीमत पर बेचा और खरीदा जाता है, वह …………. कहलाती है। (संतुलन मात्रा पूर्ति मात्रा)
उत्तर:
संतुलन मात्रा

7. फर्म उस समय संतुलन में होता है, जब उसे अधिकतम ………….. प्राप्त होता होती है। (लाभ/हानि)
उत्तर:
लाभ

8. बिक्री कर लगाना और आर्थिक सहायता देना ………… बाज़ार व्यवस्था के उदाहरण हैं। (प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष)
उत्तर:
अप्रत्यक्ष

9. संतुलन कीमत से अधिक कीमत की निम्नतम सीमा निर्धारण से …………… की स्थिति उत्पन्न होती है। (अधिपूर्ति/न्यूनपूर्ति)
उत्तर:
अधिपूर्ति

C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत

  1. पूर्ण बाज़ार में विक्रेता कीमत-स्वीकारक नहीं होता।
  2. पूर्ण बाज़ार में विक्रय लागतों का महत्त्व होता है।
  3. बाज़ार कीमत वह कीमत है जिसकी बाज़ार में प्रचलित होने की प्रवृत्ति होती है।
  4. समर्थन मूल्य संतुलन कीमत से अधिक होता है।
  5. पूर्ण प्रतियोगिता की तुलना में शुद्ध प्रतियोगिता अधिक वास्तविक होती है।
  6. पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में वस्तुएँ समरूप होती हैं।
  7. पूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म कीमत को प्रभावित करती है।
  8. पूर्ण प्रतियोगिता उस समय तक नहीं पाई जाती जब तक बाज़ार में फर्मों का स्वतन्त्र प्रवेश नहीं होता।
  9. अल्पकाल में वस्तु की कीमत पर माँग की अपेक्षा पूर्ति का अधिक प्रभाव पड़ता है।
  10. सामान्य कीमत का संबंध अल्पकाल से होता है।
  11. पूर्ति तथा स्टॉक में अंतर होता है।
  12. अर्थशास्त्र में प्रत्येक वस्तु का अलग बाज़ार होता है।
  13. एकाधिकार में अन्य बाज़ारों की अपेक्षा कीमत कम व उत्पादन अधिक होता है।
  14. एकाधिकारी प्रतियोगिता में वस्तुएँ निकट स्थानापन्न नहीं होती।
  15. द्वि-अधिकार में दो क्रेता होते हैं।
  16. अल्पाधिकार में अनेक विक्रेता होते हैं।
  17. एकाधिकार में एक नई फर्म का बाज़ार में प्रवेश हो सकता है।
  18. यदि किसी वस्तु की माँग बढ़ती है, अन्य बातें समान रहने पर उसकी कीमत कम होती है।
  19. दीर्घकाल में एक वस्तु की कीमत सीमांत लागत के बराबर होती है।
  20. माँग के स्थिर रहने तथा पूर्ति के कम होने पर कीमत बढ़ती है।

उत्तर:

  1. गलत
  2. गलत
  3. गलत
  4. सही
  5. सही
  6. गलत
  7. गलत
  8. सही
  9. गलत
  10. गलत
  11. सही
  12. सही
  13. गलत
  14. गलत
  15. गलत
  16. गलत
  17. गलत
  18. गलत
  19. सही
  20. सही।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संतुलन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
संतुलन से अभिप्राय ऐसी स्थिति से है जिसमें परिवर्तन की प्रवृत्ति का अभाव हो।

प्रश्न 2.
उन दो कारकों का उल्लेख कीजिए जिन पर संतुलन कीमत निर्भर करती है।
उत्तर:

  • वस्तु की बाज़ार माँग।
  • वस्तु की बाज़ार पूर्ति।

प्रश्न 3.
संतुलन कीमत के निर्धारण में किस बाज़ार शक्ति, माँग तथा पूर्ति, का अधिक योगदान होता है?
उत्तर:
संतुलन कीमत के निर्धारण में माँग और पूर्ति का बराबर योगदान होता है, क्योंकि वस्तु की कीमत उस बिंदु पर निर्धारित होती है जहाँ माँग और पूर्ति दोनों एक-दूसरे के बराबर होती हैं।

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प्रश्न 4.
उपभोग में प्रतिस्थापक (Substitute) वस्तु की कीमत में वृद्धि का संतुलन कीमत पर क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
प्रतिस्थापक वस्तु की कीमत में वृद्धि से संतुलन कीमत में वृद्धि हो जाएगी क्योंकि इस वस्तु की माँग बढ़ जाएगी।

प्रश्न 5.
अभिरुचियों में सकारात्मक परिवर्तन का कीमत और विनिमय मात्रा पर कैसे प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
अभिरुचियों में सकारात्मक परिवर्तन से वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है जिसके फलस्वरूप कीमत और विनिमय मात्रा दोनों में वृद्धि होगी।

प्रश्न 6.
अभिरुचियों में नकारात्मक परिवर्तन का कीमत और विनिमय मात्रा पर कैसे प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
अभिरुचियों में नकारात्मक परिवर्तन से वस्तु की माँग में कमी हो जाती है जिसके फलस्वरूप कीमत और विनिमय मात्रा में कमी आती है।

प्रश्न 7.
कीमत नियंत्रण से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कीमत नियंत्रण से अभिप्राय यह है कि सरकार ने कुछ वस्तुओं की कीमत की उच्चतम सीमा निर्धारित कर दी है।

प्रश्न 8.
कीमत नियंत्रण का क्या उद्देश्य है?
उत्तर:
कीमत नियंत्रण का उद्देश्य गरीब जन-समुदाय को अति आवश्यक वस्तुओं; जैसे खाद्यान्नों आदि को उचित कीमत पर उपलब्ध कराना होता है।

प्रश्न 9.
नियंत्रित कीमत और संतुलन कीमत में क्या संबंध है?
उत्तर:
उपभोक्ताओं के हित की रक्षा के लिए सरकार नियंत्रित कीमत को संतुलन कीमत से कम रखती है।

प्रश्न 10.
नियंत्रित कीमत से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सरकार द्वारा वस्तु की संतुलन कीमत से कम निर्धारित कीमत, नियंत्रित कीमत कहलाती है।

प्रश्न 11.
सरकार किन दो रूपों में कीमत नियंत्रित करती है?
उत्तर:
सरकार अधिकतम कीमत तथा न्यूनतम कीमत निर्धारित करके कीमत नियंत्रित करती है।

प्रश्न 12.
उच्चतम कीमत सीमा (Price Ceiling) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जब सरकार द्वारा किसी वस्तु की उच्चतम कीमत निर्धारित की जाती है, तो उसे कीमत की उच्चतम सीमा कहते हैं।

प्रश्न 13.
न्यूनतम (समर्थन) कीमत क्या है?
उत्तर:
न्यूनतम (समर्थन) कीमत से अभिप्राय उस कीमत से है जो सरकार द्वारा प्रचलित कीमत से अधिक निर्धारित की जाती है और उस कीमत पर सरकार वस्तुओं का क्रय करती है अर्थात् संतुलन कीमत से अधिक निर्धारित कीमत समर्थन कीमत कहलाती है।

प्रश्न 14.
राशनिंग से आप क्या समझते हैं? उत्तर:राशनिंग का अर्थ एक व्यक्ति के लिए वस्तु के उपभोग या क्रय की उच्चतम सीमा का निर्धारण करना है। प्रश्न 15. ‘कालाबाजारी’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कालाबाजारी का अर्थ किसी वस्तु को सरकार द्वारा निर्धारित कीमत से अधिक कीमत पर गैर-कानूनी ढंग से बेचा जाना है।

प्रश्न 16.
मज़दूरी दर का निर्धारण कैसे होता है?
उत्तर:
मज़दूरी दर का निर्धारण उस बिंदु पर होता है जहाँ श्रम की माँग और श्रम की पूर्ति बराबर हो।

प्रश्न 17.
वस्तु की माँग और श्रम की माँग में क्या अंतर है?
उत्तर:
वस्तु की माँग उपभोक्ता द्वारा की जाती है और श्रम की माँग उत्पादक द्वारा की जाती है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 18.
वस्तु के पूर्ति वक्र और श्रम के पूर्ति वक्र में क्या अंतर है?
उत्तर:
वस्तु के पूर्ति वक्र की प्रवणता नीचे से ऊपर होती है जबकि श्रम के पूर्ति वक्र की प्रवणता एक सीमा के बाद पीछे की ओर मुड़ी हुई होती है।

प्रश्न 19.
किसी उद्योग के व्यवहार्य (अर्थक्षेम) (Viable) होने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
व्यवहार्य या अर्थक्षेम उद्योग वह होता है जिसके माँग वक्र और पूर्ति वक्र उत्पादन के धनात्मक स्तर पर परस्पर काटते हैं।

प्रश्न 20.
‘बाज़ार’ (Market) अवधारणा का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बाजार से अभिप्राय उस क्षेत्र से है जिसमें वस्तु के क्रय-विक्रय के लिए खरीदने और बेचने वाले एक-दूसरे के संपर्क में रहते हैं।

प्रश्न 21.
बाज़ार व्यवस्था के मुख्य तत्त्व बताएँ।
उत्तर:

  1. पदार्थ या सेवा का उपलब्ध होना
  2. क्षेत्र, जहाँ वस्तु का लेन-देन हो
  3. क्रेता व विक्रेता का विद्यमान होना
  4. क्रेताओं व विक्रेताओं में संपर्क होना है। ध्यान रहे क्रेताओं व विक्रेताओं के बीच संपर्क (प्रतिस्पर्धा) आमने-सामने होने के अतिरिक्त डाक-तार या टेलीफोन से भी हो सकता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित को स्पष्ट कीजिए (क) पूर्ण प्रतियोगिता में सीमांत संप्राप्ति (MR), औसत संप्राप्ति (AR) के बराबर क्यों होते हैं? (ख) पूर्ण प्रतियोगिता में MR व AR रेखा X-अक्ष के समानांतर क्यों होते हैं?
उत्तर:
(क) पूर्ण प्रतियोगिता में AR, MR के बराबर (AR=MR) होने का कारण यह है कि उद्योग कीमत निर्धारित करता है और फर्म इसे स्वीकार करती है। स्पष्ट है कि उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत पर फर्म जितनी भी इकाइयाँ बेचेगी, उसे प्रत्येक अतिरिक्त इकाई से आगम (अर्थात् MR) उस कीमत (अर्थात् AR) के बराबर मिलेगा। फलस्वरूप MR औसत आगम (AR) के बराबर होगा, क्योंकि कीमत और A=R सदा समान होते हैं। संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि पूर्ण प्रतियोगिता (प्रतिस्पर्धा) में MR, AR व कीमत बराबर होते हैं अर्थात् MR = AR = कीमत।

(ख) पूर्ण प्रतियोगिता में MR व AR रेखा (वक्र) एक समतल सीधी रेखा (Horizontal Straight Line) होती है जो X-अक्ष के समानांतर होती है। इसका कारण यह है कि MR और AR बराबर होते हैं। MR,AR के बराबर इसलिए होता है क्योंकि फर्म उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत पर ही वस्तु बेच सकती है। MR,AR और कीमत बराबर होने के फलस्वरूप उनका वक्र एक ही बनता है जो X-अक्ष के समानांतर होता है। चूंकि AR कीमत के बराबर होता है, इसलिए AR वक्र को कीमत रेखा भी कहते हैं।

प्रश्न 2.
माँग व पूर्ति अनुसूचियों की सहायता से बाज़ार संतुलन का निर्धारण समझाइए। रेखाचित्र भी बनाइए।
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में वस्तु की कीमत का निर्धारण फर्म द्वारा नहीं, बल्कि उद्योग द्वारा वस्तु की बाज़ार माँग और बाज़ार पूर्ति की शक्तियों द्वारा किया जाता है। बाज़ार में एक वस्तु की कीमत सामान्यतः वस्तु की माँग और पूर्ति शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है। जिस कीमत पर वस्तु की माँग वस्तु की पूर्ति के बराबर होती है, वह बाज़ार कीमत निर्धारित होती है। इसे हम सारणी व रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं

गेहूँ की कीमत (रुपए) गेहूँ की माँग (क्विंटल) गेहूँ की पूर्ति (क्विंटल)
900 80 25
1000 70 40
1100 50 50
1200 30 70
1300 15 90

उपर्युक्त सारणी में गेहूँ की बाज़ार कीमत 1100 रुपए प्रति क्विंटल है, जबकि रेखाचित्र में बाज़ार की कीमत OP है। क्योंकि इस कीमत पर वस्तु की माँग (50 क्विंटल) वस्तु की बाज़ार पूर्ति (50 क्विंटल) बराबर है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 3.
संतुलन कीमत या साम्य कीमत (Equilibrium Price) तथा बाज़ार संतुलन (Market Equilibrium) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
संतुलन कीमत-वह कीमत जिस पर वस्तु की माँग और पूर्ति बराबर होती है, संतुलन कीमत कहलाती है और माँग व पूर्ति की मात्रा को संतुलन मात्रा कहते हैं। जिस निश्चित बिंदु पर माँग वक्र और पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं उसे संतुलन बिंदु कहते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 1
बाज़ार संतुलन-बाज़ार संतुलन तब होता है जब वस्तु की माँगी गई मात्रा और पूर्ति की मात्रा बराबर होती है। ऐसी अवस्था में न तो आधिक्य माँग होती है और न ही आधिक्य पूर्ति होती है अर्थात् बाज़ार माँग और बाज़ार पूर्ति में पूर्ण संतुलन होता है। बाजार कीमत वह कीमत है जिस पर बाज़ार में वस्तुओं का क्रय-विक्रय होता है। यह संतुलन कीमत से कम या अधिक हो सकती है।

प्रश्न 4.
किन परिस्थितियों में पूर्ति में वृद्धि का उसकी कीमत पर प्रभाव नहीं पड़ेगा?
उत्तर:
निम्नलिखित परिस्थितियों में पूर्ति में वृद्धि का उसकी कीमत पर प्रभाव नहीं पड़ेगा
(i) जब पूर्ति में वृद्धि के साथ-साथ उसी अनुपात में माँग में भी वृद्धि हो। इसे हम निम्नांकित रेखाचित्र (i) द्वारा दिखा सकते हैं। (ii) जब माँग पूर्णतया लोचदार हो। इसे हम निम्नांकित रेखाचित्र (ii) द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 2

प्रश्न 5.
रेखाचित्र की सहायता से संतुलन कीमत और मात्रा पर पड़ने वाले प्रभाव को दिखाइए जब-
(i) माँग पूर्णतया लोचदार है और पर्ति घटती है।
(ii) पूर्ति पूर्णतया लोचदार है और माँग बढ़ती है।
उत्तर:
(i) जब माँग पूर्णतया लोचदार है और पूर्ति घटती है तो कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। अग्रांकित रेखाचित्र में पूर्ति घटने के पश्चात् भी कीमत पूर्ववत् OP बनी रहती है लेकिन मात्रा OQ से घटकर OQ1 हो जाती हैं। जैसाकि अग्रांकित रेखाचित्र (i) से स्पष्ट हो रहा है।

(ii) यदि पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार है और माँग बढ़ती है तो संतुलन कीमत में वृद्धि होती है लेकिन वस्तु की मात्रा पूर्ववत् रहती है। जैसाकि निम्नांकित रेखाचित्र में माँग बढ़ने पर संतुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है लेकिन वस्तु की मात्रा OQ ही बनी रहती है। जैसाकि निम्नांकित रेखाचित्र (ii) से स्पष्ट हो रहा है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 3

प्रश्न 6.
बाज़ार कीमत और विनिमय मात्रा पर क्या प्रभाव होगा, जब (i) माँग वक्र दाहिनी ओर खिसक जाए। (i) माँग वक्र पूर्णतया लोचशील हो और पूर्ति वक्र बाहर की ओर खिसक जाए। (ii) माँग और पूर्ति वक्रों में समान अनुपात में बाईं ओर खिसकाव हो जाए।
उत्तर:
(i) जब माँग वक्र दाहिनी ओर खिसक जाए तो बाज़ार कीमत बढ़ जाएगी और विनिमय मात्रा भी बढ़ जाएगी। निम्नांकित रेखाचित्र में कीमत OP से बढ़कर OP1 तथा विनिमय मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो गई है। जैसाकि निम्नांकित रेखाचित्र (i) से स्पष्ट हो रहा है।

(ii) जब माँग वक्र पूर्णतया लोचशील हो और पूर्ति वक्र बाहर की ओर खिसक जाए तो संतुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन विनिमय मात्रा में वृद्धि होगी जैसाकि रेखाचित्र (ii) में कीमत OP रहती है लेकिन विनिमय मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।

(iii) जब माँग और पूर्ति वक्रों में समान अनुपात में बाईं ओर खिसकाव हो तो बाज़ार कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होगा, लेकिन विनिमय मात्रा में कमी आएगी। निम्नांकित रेखाचित्र में कीमत OP ही रहेगी परंतु विनिमय मात्रा OQ से कम होकर OQ1 हो जाएगी। जैसाकि निम्नांकित रेखाचित्र (iii) से स्पष्ट हो रहा है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 4

प्रश्न 7.
जब किसी वस्तु की बाज़ार पूर्ति में वृद्धि होती है तो उस वस्तु की संतुलन कीमत व मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है? रेखाचित्र की सहायता से दर्शाइए।
अथवा
एक वस्तु के पूर्ति वक्र के दायीं ओर खिसकने से उसकी संतुलन कीमत और मात्रा पर होने वाले प्रभाव को एक रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
किसी वस्तु की बाज़ार पूर्ति में वृद्धि से उस वस्तु का पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाता है जिसके फलस्वरूप संतुलन कीमत में कमी और संतुलन मात्रा में वृद्धि होती है। इसे हम रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 5
संलग्न रेखाचित्र में SS वस्तु का प्रारंभिक पूर्ति वक्र है जो वस्तु के माँग वक्र DD को E बिंदु पर काटता है जिससे संतुलन कीमत OP तथा संतुलन मात्रा OQ निर्धारित होती है। जब पूर्ति वक्र खिसकर S1S1 हो जाता है तो नया संतुलन बिंदु E1 हो जाता है जहाँ संतुलन कीमत OP1 है जो पूर्व संतुलन कीमत से कम है लेकिन संतुलन मात्रा OQ1 है जो पूर्व संतुलन मात्रा से अधिक है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 8.
जब किसी वस्तु की बाज़ार माँग में कमी होती है जो उस वस्तु की कीमत और मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है? एक रेखाचित्र की सहायता से दर्शाइए।
अथवा
एक वस्तु के माँग वक्र के बायीं ओर खिसकने से उसकी संतुलन कीमत और मात्रा पर होने वाले प्रभाव को एक रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
किसी वस्तु की बाज़ार माँग में कमी से उस वस्तु का माँग वक्र बायीं ओर खिसक जाता है जिससे उस वस्तु की संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा भी कम हो जाती है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र से दिखा सकते हैं-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 6
संलग्न रेखाचित्र में DD वस्तु का प्रारंभिक मॉग वक्र है जो वस्तु के पूर्ति वक्र SS को E बिंदु परं काटता है जिसके फलस्वरूप OP संतुलन कीमत और OQ संतुलन मात्रा निर्धारित होती है। माँग वक्र के दायीं ओर खिसकने से माँग वक्र D1D1 हो जाता है जो पूर्व पूर्ति वक्र को E1 बिंदु पर काटता है जिसके फलस्वरूप संतुलन कीमत OP से कम होकर OP1 तथा संतुलन मात्रा OQ से कम होकर OQ1 हो जाती है।

प्रश्न 9.
एक वस्तु की पूर्ति में कमी का उसकी संतुलन कीमत और मात्रा वस्तु की मात्रा पर प्रभाव एक रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
अथवा
एक वस्तु की पूर्ति वक्र के बाईं ओर खिसकने से उसकी संतुलन कीमत और मात्रा पर प्रभाव एक रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
एक वस्तु के पूर्ति वक्र के बाईं ओर खिसकने का अर्थ है कि वस्तु की पूर्ति में कमी हुई है। एक वस्तु के पूर्ति वक्र के बाईं ओर खिसकने से उस वस्तु की संतुलन कीमत और मात्रा पर जो प्रभाव पड़ेगा उसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 7a
संलग्न रेखाचित्र में प्रारंभिक पूर्ति वक्र SS है जो माँग वक्र DD को बिंदु E पर काटता है जिससे OP संतुलन कीमत और OQ संतुलन मात्रा निर्धारित होती है। पूर्ति वक्र SS के बाईं ओर खिसकने से पूर्ति वक्र SS1 हो जाता है जो माँग वक्र को E1 पर काटता है जिससे संतुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है और संतुलन मात्रा OQ से घटकर OQ1 हो जाती है। इस प्रकार एक वस्तु की पूर्ति में कमी से संतुलन कीमत में वृद्धि होगी और संतुलन मात्रा में कमी होगी।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पूर्ण प्रतियोगिता (प्रतिस्पर्धा) बाज़ार से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता (प्रतिस्पर्धा) बाज़ार का अर्थ-पूर्ण प्रतियोगिता (प्रतिस्पर्धा) बाज़ार की वह अवस्था है जिसमें असंख्य क्रेता और विक्रेता स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करते हैं और वस्तु एक-समान कीमत पर बाज़ार में बिकती है। वस्तुएँ समरूप (Homogeneous) होती हैं। उद्योग वस्तु की कीमत निर्धारित (Price Maker) करता है और फर्म कीमत स्वीकार (Price taker) करती है। क्रेताओं व विक्रेताओं को बाज़ार की स्थिति का पूर्ण ज्ञान होता है और बाज़ार में नई फर्मों के प्रवेश या बाज़ार छोड़ने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है।

पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार की विशेषताएँ पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. क्रेताओं व विक्रेताओं की अत्यधिक संख्या पूर्ण प्रतियोगिता में क्रेता तथा विक्रेता दोनों की संख्या इतनी अधिक होती है कि कोई भी अकेली फर्म या व्यक्ति अपने व्यक्तिगत व्यवहार से प्रचलित कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता। इसका कारण यह है कि प्रत्येक विक्रेता और क्रेता बाज़ार में वस्तु की कुल पूर्ति/माँग का बहुत थोड़ा अंश बेचता या खरीदता है।

2. समरूप वस्तुएँ विभिन्न फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तुएँ, गुण, रंग, रूप तथा आकार में समरूप होती हैं। वस्तु (उत्पाद) एक समान या समरूप होने के कारण कोई भी विक्रेता किसी वस्तु की कीमत अधिक वसूल नहीं कर सकता अन्यथा वह ग्राहक खो बैठेगा। इसी प्रकार कोई क्रेता किसी विशेष फर्म द्वारा बनाई वस्तु को प्राथमिकता नहीं दे सकता, क्योंकि वस्तु की इकाइयाँ हर दृष्टि से एक-समान होती हैं और उनमें भेद करना कठिन होता है।

3. निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन-पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म को उद्योग में आने और छोड़ने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है। यदि फर्म को किसी उद्योग के अंतर्गत असामान्य लाभ दिखाई देता है और फर्म उद्योग में आना चाहे तो आ सकती है और यदि हानि दिखाई दे तो फर्म उद्योग को छोड़कर जा सकती है। इसलिए सब फर्मे केवल सामान्य लाभ कमा सकती हैं।

4. परिवहन लागत का अभाव कीमत की समानता के लिए जरूरी है कि परिवहन लागत स्थिर होनी चाहिए। कीमत की समानता के लिए यह मान लिया जाता है कि वस्तु को लाने व ले जाने में परिवहन व्यय नहीं होता। गुण, आकार तथा रूप में वस्तु एक जैसी होने के कारण इसके विज्ञापन पर विक्रेता को व्यय करने की आवश्यकता नहीं होती।

5. पूर्ण ज्ञान-क्रेताओं और विक्रेताओं को कीमत संबंधी पूर्ण जानकारी होनी चाहिए। क्रेताओं को मालूम होना चाहिए कि बाज़ार में वस्तु की क्या कीमत है और विक्रेताओं को भी मालूम होना चाहिए कि बाज़ार में वस्तु किस कीमत पर बिक रही है। इसलिए यदि दोनों को कीमत की पूर्ण जानकारी होगी तो विक्रेता क्रेता से वस्तु की अधिक कीमत नहीं ले सकेगा।

6. पूर्ण गतिशीलता यहाँ उत्पादन के सभी साधनों की पूर्ण गतिशीलता होती है अर्थात् वे मनपसंद धंधे में आ-जा सकते हैं। इसी प्रकार वस्तुओं को एक-स्थान से दूसरे स्थान पर लाने ले जाने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है। जब अर्थव्यवस्था में साधनों और वस्तुओं की पूरी गतिशीलता होगी तो बाज़ार में वस्तु की एक ही कीमत होगी।

7. समान कीमत–पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार में वस्तु की कीमत समान होगी, क्योंकि कीमत उद्योग की समस्त माँग और पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है जिसे प्रत्येक फर्म स्वीकार करती है।

8. माँग (AR) वक्र माँग वक्र पूर्ण लोचशील और X-अक्ष के समानांतर होता है।

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प्रश्न 2.
पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग कीमत निर्धारित करता (Price Maker) है और फर्म कीमत स्वीकार करती (Price Taker) है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग कीमत-निर्धारक व फर्म कीमत-स्वीकारक होती है-
1. उद्योग और फर्म में अंतर-मोटे रूप में किसी वस्तु विशेष के क्रेताओं और विक्रेताओं के समूह को उस वस्तु का उद्योग कहते हैं और उद्योग में व्यक्तिगत उत्पादन इकाई को फर्म कहते हैं। परंतु यहाँ उद्योग का अभिप्राय उन फर्मों के समूह से है जो एक प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन करती हैं; जैसे जूतों के सभी उत्पादकों के समूह को जूता उद्योग (Shoe Industry) और कपड़ा बनाने वाली सभी मिलों के समूह को कपड़ा उद्योग कहेंगे।

2. कीमत निर्धारण में उद्योग व फर्म की भूमिका पूर्ण प्रतियोगिता में किसी वस्तु की कीमत का निर्धारण समस्त उद्योग की माँग व पूर्ति द्वारा होता है। यहाँ वस्तु की कीमत का निर्धारण किसी एक उत्पादक (या फम) द्वारा नहीं होता, बल्कि उस उद्योग की सामूहिक माँग व सामूहिक पूर्ति द्वारा होता है। उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत प्रत्येक फर्म को स्वीकार करनी पड़ती है। फर्म को केवल इतनी छूट है कि इस दी हुई कीमत पर जितना चाहे बेच सकती है। इसीलिए पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग को कीमत-निर्धारक और फर्म को कीमत-स्वीकारक कहा जाता है।

3. कीमत का निर्धारण–पूर्ण प्रतिस्पर्धा में वस्तु की कीमत का निर्धारण उद्योग की कुल माँग व कुल पूर्ति के संतुलन पर होता है। इसे उद्योग की संतुलन कीमत भी कहते हैं। इसे अग्रांकित तालिका व रेखाचित्र द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है।
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दी गई तालिका व रेखाचित्र से स्पष्ट है कि इस उद्योग में माँग व पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित कीमत 6 रुपए प्रति इकाई होगी, क्योंकि इस कीमत पर माँग व पूर्ति दोनों बराबर हैं अर्थात् 60-60 इकाइयाँ हैं। उद्योग द्वारा निर्धारित इस कीमत को प्रत्येक फर्म स्वीकार करेगी। यदि कोई फर्म इस कीमत से अधिक लेने का प्रयत्न करेगी तो उसकी वस्तु कोई नहीं खरीदेगा। यदि वह कम लेगी तो हानि सहन करेगी। अतः कीमत 6 रुपए ही रहेगी चाहे कोई फर्म इस कीमत पर कम बेचे या अधिक बेचे, उद्योग में रहे या उद्योग छोड़कर चली जाए।

प्रश्न 3.
एक वस्तु की एक दी हुई कीमत पर ‘माँग आधिक्य’ है। क्या यह कीमत एक संतुलन कीमत है? यदि नहीं, तो संतुलन कीमत कैसे स्थापित होगी? (रेखाचित्र का प्रयोग कीजिए।)
उत्तर:
एक वस्तु की दी हुई कीमत पर माँग आधिक्य का अर्थ यह है कि वस्तु की माँग वस्तु की पूर्ति से अधिक है। ऐसी कीमत संतुलन कीमत नहीं हो सकती। संतुलन कीमत से अभिप्राय उस कीमत से है जिस पर वस्तु की माँग उसकी पूर्ति के बराबर होती है।
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यदि एक वस्तु की दी हुई कीमत पर माँग आधिक्य है तो संतुलन कीमत पर निम्नलिखित विकल्पों द्वारा पहुँचा जा सकता है-
(i) माँग आधिक्य से संतुलन कीमत पर पहुँचने के लिए उत्पादकों को माँग आधिक्य को दूर करने के लिए उसी कीमत पर अधिक पूर्ति करने के लिए प्रोत्साहित करना पड़ेगा। इसे हम संलग्न रेखाचित्र (i) द्वारा दिखा सकते हैं।

संलग्न रेखाचित्र (i) में हम देखते हैं कि OP कीमत पर पूर्ति OQ है जबकि माँग OQ1 है जिसके फलस्वरूप AB (QQ1) माँग का आधिक्य है। इसे दूर करने के लिए पूर्ति वक्र को SS से S1S1 तक खिसकाना होगा अर्थात् पूर्ति में वृद्धि करनी होगी ताकि OP कीमत बन जाए। B बिंदु पर संतुलन कीमत OP तथा संतुलन मात्रा OQ1 होगी।
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(ii) माँग आधिक्य से संतुलन कीमत पर पहुँचने के लिए उपभोक्ताओं को माँग में कमी करने के लिए प्रोत्साहित करना पड़ेगा, जिससे माँग वक्र बाईं ओर खिसक आए। इसे हम संलग्न रेखाचित्र (ii) द्वारा दिखा सकते हैं।

संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि OP कीमत पर पूर्ति OQ है जबकि माँग OQ1 है जिसके फलस्वरूप EE1 (QQ1) माँग का आधिक्य है। इसे दूर करने के लिए माँग वक्र को DD से D1D1 तक खिसकाना होगा अर्थात् माँग में कमी करनी होगी ताकि OP कीमत पर ही संतुलन कीमत बन जाए। E बिंदु पर संतुलन कीमत OP तथा संतुलन मात्रा OQ होगी।

प्रश्न 4.
एक वस्तु की माँग में वृद्धि के उसकी संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा पर पड़ने वाले प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एक वस्तु की संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा का निर्धारण उस वस्तु की माँग और पूर्ति द्वारा होता है। जहाँ ये दोनों शक्तियाँ एक-दूसरे के बराबर होती हैं, वहाँ संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा निर्धारित होती है। माँग में वृद्धि से माँग वक्र दाईं ओर खिसक जाती है जिसके फलस्वरूप संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा में वृद्धि होती है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
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संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि प्रारंभिक माँग वक्र DD है जो पूर्ति वक्र SS को E बिंदु पर काटता है। यहाँ संतुलन कीमत OP और मात्रा OQ है। जब माँग वक्र DD से बढ़कर D1D1 हो जाती है तो संतुलन बिंदु E1 हो जाता है और संतुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 तथा मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।

प्रश्न 5.
एक वस्तु की पूर्ति में वृद्धि के उसकी संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा पर पड़ने वाले प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एक वस्तु की संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा का निर्धारण उस वस्तु की माँग और पूर्ति द्वारा होता है। जहाँ ये दोनों शक्तियाँ एक-दूसरे के बराबर होती हैं, वहाँ संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा निर्धारित होती है। पूर्ति में वृद्धि से पूर्ति वक्र दाईं ओर खिसक जाता है जिसके फलस्वरूप संतुलन कीमत गिर जाती है और संतुलन मात्रा में वृद्धि होती है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
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संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि प्रारंभिक पूर्ति SS है जो माँग वक्र DD को E बिंद पर काटता है। यहाँ संतलन कीमत OP और संतुलन मात्रा OQ है। जब पूर्ति वक्र SS से बढ़कर S1S1 हो जाता है तो संतुलन बिंदु E1 हो जाता है और संतुलन कीमत OP से घटकर OP1 तथा संतुलन मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।

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प्रश्न 6.
एक वस्तु की बाज़ार माँग और बाज़ार पूर्ति दोनों में एक साथ वृद्धि से उसकी कीमत पर क्या प्रभाव पड़ सकते हैं? समझाइए।
उत्तर:
माँग और पूर्ति में एक साथ वृद्धि का प्रभाव हम जानते हैं कि माँग और पूर्ति में वृद्धि होने के कारण वस्तु की संतुलित मात्रा में अवश्य वृद्धि होती है। परंतु कीमत में कोई परिवर्तन होगा या नहीं, इस बात पर निर्भर करता है कि माँग व पूर्ति में बराबर की वृद्धि होती है या पूर्ति की तुलना में माँग में अधिक वृद्धि होती है या पूर्ति की तुलना में माँग में कम वृद्धि होती है। अतः पूर्ति में एक साथ परिवर्तन से संतुलन कीमत पर प्रभाव के संबंध में तीन स्थितियाँ हो सकती हैं। इन्हें निम्नांकित रेखाचित्र द्वारा दर्शाया जा सकता है।
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रेखाचित्र (i) में माँग में होने वाली वृद्धि पूर्ति की वृद्धि के बराबर है ऐसी स्थिति में संतुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता यह OP1 रहती है। केवल संतुलन मात्रा OQ1 से बढ़कर OQ2 हो जाती है। अतः जब माँग और पूर्ति में समान वृद्धि होती है तो संतलन कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता। परंत संतलन मात्रा में परिवर्तन होता है अर्थात यह बढ़ जाती है।

रेखाचित्र (ii) में माँग में होने वाली वृद्धि पूर्ति में वृद्धि की तुलना में अधिक है। ऐसी स्थिति में नई संतुलन कीमत OP2 पहली संतुलन कीमत OP1 से अधिक होती है। संतुलन मात्रा भी OQ1 से बढ़कर OQ2 हो जाती है। अतः जब माँग, पूर्ति की तुलना में अधिक बढ़ती है तो संतुलन कीमत तथा मात्रा में वृद्धि होती है।

रेखाचित्र (iii) में पूर्ति में होने वाली वृद्धि माँग में होने वाली वृद्धि की तुलना में अधिक है। ऐसी स्थिति में नई संतुलन कीमत OP2 पहली संतुलन कीमत OP1 की तुलना में कम होगी और संतुलन मात्रा OQ1 से बढ़कर OQ2 होगी। अतः जब पूर्ति में वृद्धि माँग की तुलना में अधिक होती है तो संतुलन कीमत कम हो जाती है तथा संतुलन मात्रा बढ़ जाती है।

प्रश्न 7.
जब किसी वस्तु की पूर्ति (1) पूर्णतया लोचदार व (ii) पूर्णतया बेलोचदार हो तो उसकी माँग में वृद्धि और कमी से उसकी कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है? (रेखाचित्र बनाइए)
उत्तर:
(i) जब पूर्ति पूर्णतया लोचदार हो-यदि वस्तु की पूर्ति पूर्णतया लोचदार हो, तो माँग में होने वाली वृद्धि या कमी का संतुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, केवल वस्तु की मात्रा पर ही प्रभाव पड़ता है। इसे संलग्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
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रेखाचित्र में DD माँग वक्र और SS पूर्णतया लोचदार पूर्ति वक्र हैं। दोनों एक-दूसरे को E बिंदु पर काटते हैं। OP संतुलन कीमत तथा OQ संतुलन मात्रा है। यदि माँग में वृद्धि होने पर माँग वक्र ऊपर खिसककर D1D1 हो जाता है तो नया संतुलन बिंदु E1 होगा। संतुलन कीमत तो OP ही रहती है, परंतु संतुलन मात्रा बढ़कर OQ1 हो जाती है। इसके विपरीत माँग में कमी होने पर माँग वक्र नीचे की ओर D2D2 हो जाता है तो नया संतुलन बिंदु E2 होगा। संतुलन कीमत OP ही रहती है, परंतु संतुलन मात्रा कम होकर OQ2 हो जाती है।

(ii) जब पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार हो-वस्तु की पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार होने पर कीमत और माँग का प्रत्यक्ष संबंध हो जाता है अर्थात् माँग में वृद्धि से कीमत बढ़ जाती है और माँग में कमी से कीमत कम हो जाती है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र से स्पष्ट है।
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रेखाचित्र में SS पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति वक्र है जिसका अभिप्राय है कि मूल्य में परिवर्तन होने पर पूर्ति की मात्रा में परिवर्तन नहीं होता। आरंभ में DD माँग वक्र E पर काटता है। OP संतुलन कीमत और OQ संतुलन मात्रा है। यदि माँग बढ़कर D1D1 हो जाती है तो पूर्ति की मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होता। कीमत बढ़कर OP1 और इसी प्रकार माँग के कम होने पर कीमत कम होकर OP2 हो जाती है।

प्रश्न 8.
पूर्ति की स्थिति परिवर्तन (Supply Shift) के कारण समझाइए और संतुलन कीमत व विनिमय मात्रा पर उनके प्रभाव बताइए।
उत्तर:
पूर्ति में स्थिति-परिवर्तन के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं, जिनके संतुलन कीमत और विनिमय मात्रा का प्रभाव नीचे स्पष्ट किया गया है
1. साधन आदानों की कीमतों में परिवर्तन-साधन आदानों की कीमतों (लगान, मज़दूरी, ब्याज आदि) में वृद्धि से उत्पादन लागत बढ़ जाती है और उत्पादन में कमी आती है जिससे पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाता है।

प्रभाव-वस्तु की कीमत बढ़ जाती है और विनिमय मात्रा गिर जाती है। इसके विपरीत साधन आदान की कीमत गिरने से पूर्ति वक्र दाहिनी ओर खिसक जाता है और प्रभाव के रूप में वस्तु की कीमत गिर जाती है तथा विनिमय मात्रा बढ़ जाती है।

2. तकनीकी प्रगति-चूँकि यह उत्पादन लागत घटाती है इसलिए तकनीकी प्रगति, पूर्ति वक्र को दाहिनी ओर खिसका देती है।

प्रभाव-वस्तु की कीमत गिर जाती है और विनिमय मात्रा बढ़ जाती है। किंतु उत्पादन की घटिया एवं पुरानी तकनीकों को अपनाने से पूर्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

3. उत्पादन में संबंधित वस्तु की कीमत में वृद्धि उत्पादन में प्रतिस्थापक वस्तु की कीमत में वृद्धि से वस्तु विशेष का पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाता है (क्योंकि उत्पादक अब प्रतिस्थापक वस्तु का उत्पादन करना लाभदायक समझता है।)

प्रभाव-दी. की कीमत बढ़ जाएगी और विनिमय मात्रा कम हो जाएगी। परिणाम तब विपरीत होता है जब प्रतिस्थापक वस्तु की कीमत गिर जाती है तो दी हुई वस्तु का पूर्ति वक्र दाहिनी ओर खिसक जाता है, दी हुई वस्तु की कीमत गिर जाती है और विनिमय मात्रा बढ़ जाती है।

4. उत्पादन शुल्क में परिवर्तन वस्तु के उत्पादन पर, उत्पादन शुल्क में वृद्धि होने पर वस्तु का पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाता है।

प्रभाव-वस्तु की कीमत बढ़ जाती है और विनिमय मात्रा गिर जाती है। इसके विपरीत उत्पादन शुल्क की दर कम होने पर वस्तु का पूर्ति वक्र दाहिनी ओर खिसक जाता है और प्रभाव के रूप में वस्तु की कीमत गिर जाती है तथ विनिमय मात्रा बढ़ जाती है।

5. बाज़ार में फर्मों की संख्या फर्मों की संख्या बढ़ने पर पूर्ति वक्र दाहिनी ओर खिसक जाता है।

प्रभाव-वस्तु की कीमत (प्रतिस्पर्धा बढ़ने के कारण) कम हो जाएगी तथा विनिमय मात्रा बढ़ जाएगी। प्रभाव इसके विपरीत होते हैं जब बाज़ार में फर्मों की संख्या कम हो जाती है।

6. अन्य कारक हैं मौसम की दशा में परिवर्तन (जैसे बाढ़, सूखा आदि), उत्पादकों के लक्ष्यों में परिवर्तन, भविष्य में कीमतों में परिवर्तन की आशा तथा सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली आर्थिक सहायता आदि।

संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
X-वस्तु के बाज़ार में 20,000 समरूप क्रेता है। प्रत्येक का माँग फलन Qx = 12 – 2 Px है। दूसरी ओर वस्तु के 2,000 समरूप विक्रेता हैं, प्रत्येक का आपूर्ति फलन Q1 = 20 Px दिया हुआ है। संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा ज्ञात कीजिए।
हल:
माँग फलन = 20,000 (12 – 2Px)
आपूर्ति फलन = 2,000 (20 Px)
जैसाकि हमें विदित है कि संतुलन की स्थिति में मांगी गई मात्रा (Qx) आपूर्ति की मात्रा (Sx) के बराबर होती है। अतः संतुलन स्तर पर
20,000 (12 – 2Px) = 2,000 (20 Px)
2,40,000 – 40,000 Px = 40,000 Px
2,40,000 = 80,000 Px
Px = 3
अर्थात् संतुलन कीमत 3 रु० प्रति इकाई है।
संतुलन मात्रा का परिकलन
20,000 (12 – 2Px)
20,000 (12 – 2 x 3)
20,000 x 6 = 1,20,000 इकाइयाँ (माँगी गई मात्रा)
अथवा
2,000 (20Px)
2,000 (20 x 3) =1,20,000 इकाइयाँ (आपूर्ति की मात्रा)। स्पष्ट है 3 रु० प्रति इकाई की कीमत पर माँगी गई मात्रा और आपूर्ति की मात्रा समान है।

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प्रश्न 2.
यदि qd = 10 – p और qs = p तो एक वस्तु विशेष के माँग और पूर्ति कक्रों के लिये संतुलन कीमत और मात्रा की गणना कीजिए। यह भी बताइये कि यदि उस वस्तु की बाज़ार कीमत 7 रु० या 3 रु० प्रति इकाई हो तो उसकी माँग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
हल:
(i) संतुलित कीमत = qd = qs
10 – p = p
∴ – p – p = – 10
– 2p = – 10
∴ p = \(\frac { 10 }{ 2 }\) = 5
वस्तु विशेष की संतुलित कीमत = 5 रु० प्रति इकाई
∴ संतुलित मात्रा = qd = 10 – 5
qd = 5 (माँग पक्ष)
∴ संतुलित मात्रा = 5 इकाई

(ii) बाज़ार कीमत 7 रु० होने पर यह संतुलित कीमत से 2 रु० अधिक हो जाएगी अतः वस्तु विशेष की माँग कम होने से अतिरिक्त पूर्ति का समायोजन करना होगा।

(iii) बाज़ार कीमत 3 रु० होने पर यह संतुलित कीमत से 2 रु० कम है अतः वस्तु विशेष की माँग बढ़नी आवश्यक होगी।

प्रश्न 3.
एक वस्तु विशेष की माँग और पूर्ति के समीकरण क्रमशः Qd = 8000 – 3000 p तथा Qs = – 6000 + 4000p दिए गए हों, तो संतुलन कीमत और मात्रा ज्ञात कीजिए।
हल:
संतुलित कीमत : Qd = Qs
∴ 8000 – 3000 p = – 6000 + 4000p
⇒ – 3000p – 4000p = – 6000 – 8000
⇒ – 7000 p = – 14000
∴ p = \(\frac { 14000 }{ 2 }\)= 2 रुपए
संतुलित मात्रा = p का मान समीकरण (i) में रखने पर
= 8000 – 3000 x 2 = – 6000 + 4000 x 2
= 8000 – 6000
= – 6000 + 8000
= 2000
= 2000
संतुलित मात्रा = 2000 उत्तर

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