HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

निबन्धात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1.
राष्ट्र निर्माण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण की समस्या सभी राष्ट्रों के सामने आती है। यह समस्या विशेषकर उन देशों की है जिन्होंने द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् स्वतन्त्रता प्राप्त की। आज भी यह समस्या तीसरे विश्व (Third World) के देशों के लिए बनी हुई है।

राष्ट्र-निर्माण का अर्थ (Meaning of Nation-Building):
राष्ट्र निर्माण के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों के भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण हैं। एक इतिहासकार राष्ट्रों के विकास (Growth of Nations) की शब्दावली का प्रयोग करता है जबकि एक राजनीतिज्ञ राष्ट्र निर्माण (Nation-Building) की भाषा बोलता है। समाजशास्त्री राष्ट्र विकास (Nation Development) जैसे शब्दों का प्रयोग करता है। राष्ट्र निर्माण एक ऐसी सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा राष्ट्र निर्माण की चुनौतियां ।

कुछ समूहों में राष्ट्रीय चेतना प्रकट होती है। यह सामाजिक प्रक्रिया कई प्रकार की संस्थाओं में पाई जाती है। इसके कई स्वरूप होते हैं जिनके द्वारा राष्ट्र निर्माण का कार्य होता है। डेविड ए० विलसन (David A. Wilson) के शब्दों में, “राष्ट्र निर्माण से अभिप्राय वह सामाजिक प्रक्रिया अथवा प्रक्रियाएं हैं जिनके द्वारा कुछ समूहों में राष्ट्रीय चेतना उभरती है तथा यह समूह कुछ-न-कुछ संगठित सामाजिक संरचनाओं के माध्यम से समाज के लिए राजनैतिक स्वायत्तता प्राप्त करते हैं।’

लुसियन पाई (Pye) के मतानुसार, “राष्ट्र निर्माण का अर्थ है वह प्रक्रिया जिसके द्वारा लोग छोटे कबीलों, गांवों, नगरों या छोटी रियासतों के प्रति वफ़ादारी और बन्धनों को विशाल केन्द्रीय राजनीतिक प्रणाली की ओर मोड़ लेते हैं।”

गिलक्राइस्ट (Gilchrist) ने राष्ट्र की परिभाषा इस प्रकार दी है, “राष्ट्र राज्य तथा राष्ट्रीयता का योग है।”

ब्लंट्शली (Bluntschli) के अनुसार, “राष्ट्र निर्माण मनुष्यों के ऐसे समूह को कहते हैं जो विशेषतया भाषा और रीति-रिवाज द्वारा एक समान सभ्यता में बंधे हुए हों, जिससे उनमें एकता और समस्त विदेशियों से भिन्नता की भावना पैदा होती है।”

नाविको (Navicow) कहता है कि, “राष्ट्र एक सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक एकता है और सामाजिक विकास का उच्चतम उत्पादन है।” कुछ विद्वान् राष्ट्र निर्माण को राजनीतिक विकास समझते हैं। परन्तु वास्तव में राष्ट्र निर्माण राजनीतिक विकास नहीं है। राजनीतिक विकास का अर्थ समाज का सामूहिक राजनीतिक परिवर्तन होता है। (Total Political Formation of Society.) राजनीतिक परिवर्तन के भिन्न-भिन्न पक्ष होते हैं।

आल्मण्ड और पॉवेल (Almond and Powell) के अनुसार, “राजनीतिक विकास अर्थात् राजनीतिक परिवर्तन में चार मुख्य समस्याएं होती हैं।” वे हैं-राज्य निर्माण, राष्ट्र निर्माण, राजनीतिक भागेदारी, कल्याण और विभाजन। (State building, Political Participation, Welfare and Distribution.) इसका अर्थ यह है कि राष्ट्र निर्माण न तो राज्य निर्माण है और न ही इसको राजनीतिक विकास कहा जा सकता है क्योंकि आल्मण्ड के मतानुसार राज्य निर्माण का अर्थ है एक राज्य में नये ढांचों की रचना और सरकार के चले हुए ढांचों का पुनर्गठन और उसकी अधिक क्रिया। इससे अभिप्राय यह है कि राज्य निर्माण का अर्थ है आधुनिक राजनीतिक ढांचों के सभी रूपों की रचना।

इसके विपरीत राष्ट्र निर्माण एक ढांचे सम्बन्धी समस्या नहीं है, राष्ट्र निर्माण राजनीतिक विकास के सांस्कृतिक पक्ष पर जोर देता है। इसके अनुसार एक राष्ट्र में ऐसी प्रक्रिया हो जिसके द्वारा लोग अपने छोटे-छोटे कबीलों, गांवों और नगरों के प्रति वफ़ादारी के स्थान पर विशाल केन्द्रीय राजनीतिक प्रणाली को वफ़ादारी प्रदान करें।

साधारण शब्दों में इसका अर्थ यह है कि परम्परावादी संकुचित वफ़ादारों को समाप्त होना चाहिए जैसे कि परिवार, जाति, धर्म, आदि के प्रति वफ़ादारी के स्थान पर सम्पूर्ण प्रणाली तथा राष्ट्र के प्रति वफ़ादारी होनी चाहिए। इससे अभिप्राय यह है कि एक देश में राष्ट्रीय एकीकरण (National Integration) हो जहां एक व्यक्ति सीमित वफ़ादारियों की तुलना में राज्य के प्रति वफादारियों को अधिक महत्त्व दें।

प्रश्न 2.
राष्ट्र निर्माण की परिभाषा दीजिए और राष्ट्र निर्माण के मुख्य तत्त्वों का उल्लेख करें।
अथवा
राष्ट्र निर्माण का अर्थ स्पष्ट करें। राष्ट्र निर्माण के मुख्य तत्वों का वर्णन करें।
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण का अर्थ- इसके लिए प्रश्न नं० 1 देखें। राष्ट्र निर्माण के तत्त्व-इसके लिए पाठ्य-पुस्तक का प्रश्न नं० १ देखें।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

प्रश्न 3.
“राष्ट्र निर्माण” के मार्ग में बाधक तत्वों का वर्णन कीजिए।
अथवा
राष्ट्र निर्माण के मार्ग में आने वाले बाधक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत को विदेशी गुलामी से स्वतंत्रता 15 अगस्त, 1947 को प्राप्त हुई थी। इस दीर्घ समय में भारत राष्ट्र निर्माण के आदर्श को प्राप्त नहीं कर सका है। इसका मुख्य कारण यह है कि भारत में कुछ ऐसी समस्याएं विद्यमान हैं जो राष्ट्र निर्माण के मार्ग में बाधाएं सिद्ध हुई हैं। ऐसी कुछ समस्याएं अथवा बाधाएं इस प्रकार हैं

1. साम्प्रदायिकता (Communalism):
भारत बहुधर्मी देश है। अंग्रेजों ने भारत के इस बहुधर्मी स्वरूप को अपने राजनीतिक हितों के लिए प्रयोग किया था। उन्होंने भारतीयों में ‘फूट डालो तथा राज्य करो’ की नीति (Policy of divide and rule) को ग्रहण किया था। अंग्रेजों ने विशेष रूप से हिन्दुओं तथा मुसलमानों में पारस्परिक वैर विरोध बढ़ाने के लिए विशेष प्रयत्न किये थे।

उनके ऐसे प्रयत्नों के कारण ही 1947 में साम्प्रदायिक आधार पर भारत का विभाजन हुआ था। इस विभाजन के साथ ही भारत में साम्प्रदायिकता समाप्त न हुई, बल्कि अनेक कारणों ने साम्प्रदायिकता को और भी अधिक उत्तेजित किया तथा अन्त में यह समस्या राष्ट्रीय एकीकरण के लिए एक महत्त्वपूर्ण संकट अथवा बाधा बन गई।

2. जातिवाद (Casteism):
साम्प्रदायिकता की तरह जातिवाद भी राष्ट्र निर्माण के मार्ग में एक बड़ी बाधा है। जातिवाद के तथ्य ने लोगों को तुच्छ विचारों वाले मनुष्य बना दिया है। अनेक लोग राष्ट्रीय हितों की अपेक्षा जाति हितों को प्राथमिकता देते हैं। उनकी ऐसी प्रवृत्ति ही राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग में बड़ी बाधा है।

3. भाषावाद (Linguism):
जिस तरह भारत एक बह-धर्मी देश है उसी तरह भारत एक बह-भाषाई देश भी है। भारतीय संविधान ने हिन्दी सहित भारत की 22 भाषाओं को मान्यता दी है। परन्तु भारत में बोलने वाली भाषाएं कई सैंकड़ों में हैं। भारतीय लोग अपनी भाषा के साथ बहुत अनुराग रखते हैं। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि सभी लोगों को अपनी मातृ-भाषा से प्रेम होता है। परन्तु भारत में भाषा को एक राजनीतिक तथ्य बना दिया गया है। भाषावाद तथा साम्प्रदायिकता का गम्भीर संगम कर दिया है तथा यह संगम राष्ट्र निर्माण के मार्ग में बाधा बना हुआ है।

4. क्षेत्रवाद (Regionalism):
भारत एक विशाल देश है जिसके कई क्षेत्र (Regions) हैं। कई क्षेत्रों को भाषा के आधार पर राज्यों के रूप में संगठित किया गया है। लोगों की क्षेत्रवाद की भावना इतनी अधिक बलवान् है कि राष्ट्रीय सरकार इन विवादों को सम्बन्धित लोगों की प्रसन्नतानुसार हल नहीं कर सकी है। क्षेत्रवाद की इस बलवान भावना के कारण ही भारत के कई भागों में पृथक्कवाद का स्वर भी उठा है। इस तरह क्षेत्रवाद अथवा प्रदेशवाद राष्ट्र निर्माण के मार्ग में बाधा बन गया है।

5. साम्प्रदायिक राजनीतिक दल (Communal Political Parties):
भारत के कुछ राजनीतिक दल साम्प्रदायिक आधारों पर संगठित किए गए हैं। कुछ ऐसे दल भी हैं जिसका संगठन जाति अथवा भाषा के आधार पर किया गया है। ऐसे राजनीतिक दल दोनों की धार्मिक, जातीय अथवा भाषाई भावनाओं को अपने राजनीतिक हितों के लिए उत्तेजित करते हैं। इस तरह की नीतियों वाले राजनीतिक दल भी राष्ट्र निर्माण के मार्ग में रुकावट सिद्ध होते हैं।

6. राजनीतिक अवसरवादिता (Political Opportunism):
भारत में लगभग सभी राजनीतिक दलों में राजनीतिक अवसरवादिता पाई जाती है। राजनीतिक व्यक्ति यह देखते हैं कि उसके दल को राजनीतिक लाभ किस तरह हो सकता है। राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए विरोधी विचारों वाले राजनीतिक दल चुनाव गठबन्धन कर लेते हैं। इसका परिणाम यह निकला है कि अधिकतर नेताओं तथा उनके समर्थकों में अपने स्वार्थी हितों के अतिरिक्त राष्ट्र अथवा समाज के हितों के विषय में सोचने अथवा कुछ करने की कोई रुचि नहीं रही है। ऐसी रुचि का अभाव भी राष्ट्र निर्माण के आदर्श के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहा है।

7. ग़रीबी तथा निरक्षरता (Poverty and Illiteracy):
भारत में ग़रीबी तथा निरक्षरता व्यापक स्तर पर पाई जाती है। ऐसे लोगों को राष्ट्र निर्माण के अर्थों का ज्ञान शायद तब तक न हो सके जब तक ग़रीबी तथा निरक्षरता से उनकी मुक्ति नहीं हो जाती है।

8. आन्दोलनों तथा हिंसा की राजनीति (Politics of Agitation and Violence):
भारतीय राजनीति वास्तव में आन्दोलनों की राजनीति बन गई है। छोटी-छोटी बातों के लिए भी हड़तालों, धरनों, रैलियों इत्यादि का सहारा लिया जाता है। हिंसक घटनाएं लोगों में एक-दूसरे के प्रति घृणा उत्पन्न करती हैं। इस तरह आन्दोलनों तथा हिंसा की राजनीति भी राष्ट्र निर्माण के मार्ग में बाधा सिद्ध हो रही है।

9. अल्पसंख्यकों में असुरक्षा की भावना (Sence of Insecurity in Minorities):
भारत में अनेक ही धार्मिक, भाषाई तथा सांस्कृतिक अल्पसंख्यक है। संविधान ने इन अल्पसंख्यकों को अपनी संस्कृति तथा भाषा की सुरक्षा का अधिकार दिया हुआ है परन्तु इसके बावजूद भारत में रहते अल्पसंख्यकों को असुरक्षा की भावना अनुभव होती है। इस तरह अल्पसंख्यकों तथा बहुसंख्यकों में अविश्वास की भावना बढ़ती जा रही है तथा भावना राष्ट्र निर्माण के लिए बाधा सिद्ध होगी।

10. अपर्याप्त संसाधन (Inadequate Resources):
भारत में धन एवं पर्याप्त संसाधनों की कमी है, जिसके कारण राष्ट्र निर्माण के कार्यों में बाधा पहुंचती है।

प्रश्न 4.
राष्ट्र निर्माण के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने के उपायों का वर्णन कीजिए। 2014, 18)
उत्तर:
भारतीय राष्ट्र निर्माण के मार्ग में आने वाली रुकावटों को निम्नलिखित उपायों द्वारा दूर किया जा सकता है

1. शिक्षा प्रणाली में सुधार (Reforms in Educational System):
प्रचलित भारतीय शैक्षिक प्रणाली में क्रान्तिकारी सुधार किए जाने अनिवार्य हैं। शिक्षा को वास्तविक जीवन से सम्बन्धित करने की अति आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त शैक्षिक प्रणाली में ऐसे सुधार करने चाहिए जिनके फलस्वरूप शिक्षा रोज़गार प्रधान (Employment Oriented) हो तथा विद्यार्थियों में हथकरघों का गुण विकसित करे।

शिक्षा का उद्देश्य केवल परीक्षा पास करना ही नहीं होना चाहिए बल्कि विद्यार्थियों में देश-भक्ति तथा राष्ट्रवाद की भावना तथा राष्ट्रीय चरित्र का विकास होना चाहिए। पाठ्यक्रम ऐसा होना चाहिए जो विद्यार्थियों में धर्म-निरपेक्षता का गुण विकसित कर सके तथा उनके दृष्टिकोण को विशाल कर सके।

2. ग़रीबी तथा बेरोज़गारी को दूर करना (Removal of Poverty and Unemployment):
जब तक बेरोज़गारी को समाप्त नहीं किया जाता तब तक ग़रीबी की भी समाप्ति नहीं हो सकती। ये दोनों आर्थिक बुराइयां परस्पर सम्बन्धित हैं तथा दोनों की समाप्ति के बिना राष्ट्र निर्माण का कार्य सफल नहीं हो सकता।

3. सन्तुलित आर्थिक विकास (Balanced Economic Development):
भारत के विभिन्न भागों अथवा क्षेत्रों का सन्तुलित विकास होना अनिवार्य है। यदि कुछ क्षेत्र अधिक विकसित हों तथा कुछ अधिक पिछड़े होंगे तो उनमें ईर्ष्या अथवा पारस्परिक विरोध की भावना उत्पन्न हो सकती है। इस पारस्परिक विरोध के अतिरिक्त पिछड़े हुए क्षेत्रों के लोगों में ऐसा असन्तोष फैलता है कि वह धीरे-धीरे राष्ट्रीय मुख्य धारा से दूर होते जाते हैं। ऐसी स्थिति से बचने के लिए देश के सभी क्षेत्रों का सन्तुलित विकास होना चाहिए।

4. भाषा की समस्या का समाधान (Solution of Language Problem):
भारत में भाषा की समस्या भी गम्भीर रूप की है। भाषा की समस्या का समाधान करने के लिए तीन भाषाई फार्मूला तैयार किया गया था। इस फार्मूले ने भाषा सम्बन्धी समस्या की गम्भीरता को कुछ कम तो अवश्य किया है परन्तु समस्या पूरी तरह हल नहीं हुई। भाषा सम्बन्धी समस्या को हल किए बिना राष्ट्र निर्माण के आदर्श की प्राप्ति असम्भव है।

5. भारतीय भाषाओं की एक साझी लिपि (Common Script for all Indian Languages):
राष्ट्र निर्माण के कार्य की सफलता के लिए सभी भारतीय भाषाओं की एक सांझी लिपि का विकास करना अनिवार्य है। यूरोप के कई देशों में कई भाषाएं बोली जाती हैं तथा रोमन लिपि को सभी भाषाओं की एक सांझी लिपि के रूप में ग्रहण किया जाता है।

आचार्य विनोबा भावे तथा श्री राज नारायण ने देवनागरी लिपि को सभी भारतीय भाषाओं की सांझी लिपि के रूप में विकसित करने का सुझाव दिया था। यदि कोई सांझी लिपि ग्रहण कर ली जाए तो विभिन्न भाषाएं बोलने वाले भारतीयों में वह लिपि साझी कड़ी का काम कर सकती है।

6. स्वस्थ राजनीतिक वातावरण (Healthy Political Atmosphere):
यदि देश के राजनीतिक वातावरण में आवश्यक सुधार न किए गए तो राष्ट निर्माण का आदर्श मात्र कल्पना बन कर ही रह जाएगा। इसलिए यह अनिवार्य है कि राजनीतिक बुराइयों को दूर करके राजनीतिक वातावरण स्वस्थ बनाया जाए।

7. स्वच्छ प्रशासन (Clean Administration):
राजनीतिक भ्रष्टाचार ने प्रशासन को भी भ्रष्ट बना दिया है। आज प्रशासन के प्रत्येक स्तर पर भ्रष्टाचार की भरमार है। धन के बल से प्रशासकीय अधिकारियों से गैर-कानूनी कार्य भी करवाए जाते हैं। यह भी सत्य है कि रिश्वत दिए बिना उचित कार्य कम ही होते हैं। प्रशासन में बेइमानी, रिश्वतखोरी को समाप्त करने की आवश्यकता है। ऐसी बुराइयों को समाप्त करने से ही स्वच्छ प्रशासन सम्भव हो सकता है।

8. साम्प्रदायिक राजनीतिक दलों तथा संगठनों पर प्रतिबन्ध (Ban on Communal Parties and Organisations):
राष्ट्र निर्माण की प्राप्ति के लिए यह भी आवश्यक है कि ऐसे राजनीतिक दलों तथा संगठनों पर प्रतिबन्ध लगाया जाए जो लोगों में साम्प्रदायिकता की घृणा उत्पन्न करते हैं।

9. दल प्रणाली में सुधार (Reforms in Party System):
हमारे देश में बहुदलीय प्रणाली है। ठोस सिद्धान्तों पर आधारित राजनीतिक दलों का अभाव है। दलों में आन्तरिक लोकतन्त्र का भी अभाव है। गुटबन्दी अथवा आन्तरिक धड़ेबन्दी लगभग प्रत्येक भारतीय राजनीतिक दल की विशेषता बन चुकी है। इतने अधिक राजनीतिक दल राष्ट्रीय एकता के लिए स्वयं ही संकट बन जाते हैं। राष्ट्र निर्माण के लिए यह अनिवार्य है कि दल प्रणाली में ऐसे सुधार किए जाएं।

10. भावनात्मक एकीकरण (Emotional Integration):
राष्ट्र निर्माण के लिए भारतीयों में भावनात्मक एकीकरण का होना है। भावनात्मक एकीकरण एक प्रकार की भावना है जिसका स्थान लोगों के मन तथा दिमागों में हैं। भावनात्मक एकीकरण की प्राप्ति सत्ताधारी कानूनों द्वारा नहीं हो सकती। यह तो एक आन्तरिक भावना है जो स्वयं ही विकसित हो सकती है तथा लोगों को जागृत करने से उनके मन में उत्पन्न की जा सकती है। भारतीय राष्ट्र निर्माण के आदर्श की प्राप्ति के लिए भारतीयों में पारस्परिक भावनात्मक साझेदारी विकसित की जानी अनिवार्य है।

प्रश्न 5.
विभाजन की विरासतों का वर्णन करें।
अथवा
1947 में भारत विभाजन से उत्पन्न समस्याओं का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत लगभग 200 वर्षों तक ब्रिटेन के अधीन रहा। एक लम्बे स्वतन्त्रता संग्राम के कारण भारत को 15 अगस्त, 1947 को स्वतन्त्रता प्राप्त हुई। परन्तु भारत की स्वतन्त्रता के साथ-साथ भारत का दुःखद विभाजन हो गया तथा पाकिस्तान नाम का एक नया स्वतन्त्र राज्य अस्तित्व में आया। भारत विभाजन के समय हमें बहुत-सी समस्याएं विरासत के रूप में मिलीं। जैसे रिफ्यूजियों के पुनर्वास की समस्या, कश्मीर समस्या, राज्यों के गठन एवं पुनर्गठन की समस्या तथा भाषा से सम्बन्धित राजनीतिक विवाद। इन समस्याओं से निपटने के लिए पं० नेहरू एवं सहयोगियों ने क्या दृष्टिकोण अपनाया, उनका वर्णन इस प्रकार है

1. शरणार्थियों के पुनर्वास की समस्या (Problem of resettlement of Refugee):
भारत के विभाजन के फलस्वरूप जो पहली समस्या हमें विरासत के रूप में मिली, वह थी शरणार्थियों के पुनर्वास की समस्या। जब भारत का विभाजन होना निश्चित हो गया, तो बड़ी संख्या में जो लोग पाकिस्तान को छोड़कर भारत आए, उन्हें ही वास्तव में शरणार्थी कहा जाता है। पाकिस्तान छोड़कर भारत आने वाले लोगों की संख्या लाखों में थी।

अतः सरकार के सामने इन लोगों के पुनर्वास की मुश्किल समस्या सामने थी। भारत सरकार को न केवल इन शरणार्थी लोगों को भारत में रहने के लिए घरों की ही व्यवस्था करनी थी, बल्कि उन्हें मनोवैज्ञानिक आधार पर यह समझाना भी था, कि जिस प्रकार वे पाकिस्तान में सुरक्षित जीवन व्यतीत कर रहे थे, वैसा ही सुरक्षित जीवन उन्हें अब भारत में भी प्रदान किया जायेगा।

परन्तु विभाजन के समय दोनों ओर से जिस प्रकार कत्लेआम किया जा रहा था, वैसी स्थिति में लोगों को किसी भी प्रकार का ढाढस या विश्वास दिलाना मुश्किल था, क्योंकि इस विभाजन के कारण लाखों लोगों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा था यही कारण था, कि विभाजन के समय भारत आने वाले लोग, जिन्हें हम शरणार्थी कहते हैं, काफ़ी डरे हुए थे,

इसके साथ ही इन लोगों को अपनी ज़मीन जायदाद की चिन्ता भी सता रही थी कि बार्डर के दूसरी ओर (हिन्दुस्तान) जाकर हमें हमारी सम्पत्ति एवं जायदाद के मुआवजे के रूप में कुछ प्राप्त भी होगा, या नहीं। शरणार्थियों की इस प्रकार की समस्याओं ने तत्कालीन प्रधानमन्त्री पं० नेहरू एवं उनके सहयोगियों के सामने मुश्किलें खड़ी कर रखी थीं तथा पं० नेहरू एवं उनके सहयोगियों के लिए इस प्रकार की समस्या से निपटना एक चुनौती थी।

समस्या का समाधान (Settlement of the Problems) यद्यपि शरणार्थियों की समस्या भारत के विभाजन की सबसे बड़ी समस्या थी, परन्तु भारत सरकार को इस समस्या को निपटाना ही था, अन्यथा भारत में अराजकता की स्थिति पैदा होने का खतरा था, तथा जो लोग अपना सब कुछ छोड़कर भारत आए उन्हें यह लगे कि उन्होंने भारत आकर कोई गल्ती नहीं की।

इस समस्या को हल करने के लिए भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री पं० नेहरू ने दूरदर्शिता का परिचय दिया तथा लोगों के पुनर्वास को बड़े ही संयम ढंग से व्यावहारिक रूप प्रदान किया। पं० नेहरू ने शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए सर्वप्रथम एक पुनर्वास मन्त्रालय (Resettlement Ministry) का निर्माण किया, जिसको शरणार्थी लोगों के पुनर्वास की ज़िम्मेदारी सौंपी गई।

शरणार्थियों को अस्थाई तौर पर ठहराने के लिए जगह-जगह कैम्प लगाए। जैसे-जैसे इन लोगों के रहने की पूर्णकालिक व्यवस्था होने लगी, वैसे-वैसे उन्हें इन कैम्पों से निकालकर उन स्थानों पर भेजा जाने लगा। पं० नेहरू ने शरणार्थियों को मुआवजे के रूप में यथा-योग्य जमीन जायदाद प्रदान की। उन्हें सभी प्रकार के राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक अधिकार प्रदान किये गए। 1955 में नागरिकता कानून बना कर इन शरणार्थियों को भारत का नागरिक बनाया गया। इस प्रकार पं० नेहरू ने अपने सकारात्मक दृष्टिकोण से एक बड़ी ही जटिल समस्या का समाधान किया।

2. कश्मीर की समस्या (The Kashmir Problem)-कश्मीर की समस्या भारत एवं पाकिस्तान के बीच एक प्रमुख समस्या बनी हुई है। भारत के विभाजन स्वरूप कश्मीर समस्या पैदा हुई। स्वतन्त्रता से पहले कश्मीर भारत के उत्तर-पश्चिमी कोने में स्थित एक देशी रियासत थी। भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय यह निर्णय लिया गया कि इस बात का फैसला स्वयं कश्मीर करेगा कि वह भारत में शामिल होना चाहता है या पाकिस्तान में या स्वतन्त्र राज्य बनना चाहेगा। कश्मीर के राजा हरि सिंह ने कश्मीर को एक स्वतन्त्र राज्य ही बनाये रखने का निर्णय लिया। परन्तु पाकिस्तान सदैव ही कश्मीर को अपने राज्य में शामिल करने के लिए उत्सुक रहा। अतः उसने पश्चिमी सीमा प्रान्त के कबाइली लोगों को प्रेरणा और सहायता देकर कश्मीर पर आक्रमण करवा दिया।

15 अक्तूबर, 1947 को लगभग 5000 आक्रमणकारियों ने कश्मीर के अन्दर ओवन के किले (Fort Owen) की घेराबन्दी शुरू कर दी। 22 अक्तूबर, तक इस घुसपैठ ने एक पूर्ण आक्रमण का रूप धारण कर लिया। यह बात सर्वविदित थी, कि आक्रमणकारियों में अधिकांशतः पाकिस्तानी सैनिक थे। इस आक्रमण से कश्मीर के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया। इससे भारत का चिन्तित होना भी स्वाभाविक था, क्योंकि इस प्रकार की घटना का भारत में अवश्य प्रभाव पड़ता। अत: कश्मीर समस्या का समाधान पं० नेहरू एवं सरदार पटेल के लिए एक मुश्किल चुनौती थी।

समस्या के समाधान का प्रयास (Efforts to resolve the Problem)-कश्मीर के राजा हरि सिंह को जब यह लगने लगा, कि कश्मीर पर पाकिस्तान का कब्जा हो जायेगा, तो उसने भारत से सहायता मांगी। भारत ने सहायता का आश्वासन देते हुए कश्मीर को भारत में शामिल होने की बात कही, जिसे राजा हरि सिंह ने मान लिया। इस पर पं० नेहरू एवं सरदार पटेल ने भारतीय सेना को कश्मीर में भेजा, इसके साथ भारत ने पाकिस्तान से यह आग्रह किया कि, वह कश्मीर में अपनी सैनिक गतिविधियां बन्द करें।

परन्तु पाकिस्तान ने इससे इन्कार कर दिया। जब भारत सरकार एवं माऊंटबेटन को यह लगने लगा, कि कश्मीर की समस्या को इस ढंग से नहीं सुलझाया जा सकता तो, पं० नेहरू इस समस्या को संयुक्त राष्ट्र के सामने ले गए, ताकि इसका कोई सर्वमान्य हल निकल सके। परन्तु कश्मीर की समस्या काफ़ी सालों तक बनी रही। अन्तत: 5-6 अगस्त, 2019 को भारत सरकार ने धारा 370 को समाप्त कर दिया तथा यह स्पष्ट किया, कि अब केवल पाकिस्तान के गैर-कानूनी कब्जे वाले (पी० ओ० के०-POK) पर ही बातचीत होगी।

3. राज्यों का गठन एवं पुनर्गठन की समस्या-इसके लिए प्रश्न नं० 6 देखें। प्रश्न 6. भारत में राज्यों के पुनर्गठन पर एक विस्तृत लेख लिखें।
उत्तर:
भारत के विभाजन के परिणामस्वरूप विरासत के रूप में जो दूसरी बड़ी समस्या मिली, वह थी, देशी रियासतों का स्वतन्त्र भारत में विलय करना। स्वतन्त्रता प्राप्ति से पहले भारत दो भागों में बंटा हआ था-ब्रिटिश भारत (British India) एवं देशी राज्य (Native States) । ब्रिटिश भारत का शासन तत्कालीन भारत सरकार के अधीन था, जबकि देशी राज्यों का शासन देशी राजाओं के हाथों में था। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के मार्ग में देशी रियासतें सदैव बाधा बनी रहीं। इन देशी रियासतों ने संवैधानिक गतिरोधों को बढ़ावा दिया। जब कभी भी भारत की संवैधानिक समस्या को हल करने का प्रयास किया जाता, तो इन देशी रियासतों के भविष्य की समस्या पैदा हो जाती थी।

स्वतन्त्र भारत के निर्माण के भावी ढांचे में देशी रियासतों के लिए व्यवस्था करना संविधान निर्माताओं के लिए हमेशा सिरदर्द बना रहा। स्वतन्त्रता प्राप्ति से पहले भारत में देशी रियासतों की संख्या लगभग 565 थी, इसके अन्तर्गत भारत की जनसंख्या का 20% भाग तथा भारत के क्षेत्रफल का लगभग 45% भाग आता था, अतः इतनी बड़ी जनसंख्या एवं क्षेत्रफल को भारत से अलग नहीं किया जा सकता था और उस स्थिति में तो बिल्कुल नहीं, जब अधिकांश देशी रियासतें भारत के आन्तरिक हिस्सों में विद्यमान थीं।

इन देशी रियासतों में जनसंख्या, क्षेत्र एवं आर्थिक दृष्टिकोण के आधार पर पर्याप्त अन्तर पाए जाते थे, जहां एक ओर कश्मीर, हैदराबाद तथा मैसूर जैसे ऐसे देशी राज्य थे जोकि कई यूरोपीय राज्यों से भी बड़े थे, तो वहीं दूसरी ओर काठियावाड़ तथा पश्चिमी भारत के देशी राज्य नक्शों में सूई की नोक से अधिक बड़े नहीं थे। ये देशी राज्य भारत में विलय को तैयार नहीं थे, जोकि भारत की कानून व्यवस्था के लिए काफ़ी हानिकारक स्थिति थी। वी० पी० मेनन का कहना है, कि, “निराशावादी भविष्यवक्ताओं ने यह भविष्यवाणी की, कि भारतीय स्वतन्त्रता की नौका देशी रियासतों की चट्टानों से टकरा कर चूर-चूर हो जायेगी।” इस प्रकार देशी रियासतों की भारत में विलय की समस्या भारत सरकार के सामने खड़ी थी।

समस्या का समाधान (Resettlement of the Problems) यद्यपि देशी रियासतों की भारत में विलय की समस्या एक महत्त्वपूर्ण समस्या थी, परन्तु पं० नेहरू एवं तत्कालीन गृहमन्त्री सरदार पटेल ने इस समस्या को बड़े ही सुनियोजित ढंग से सुलझाया। देशी रियासतों की समस्या के हल के लिए पं० नेहरू ने 27 जून, 1947 को एक विभाग की स्थापना की, जिसे राज्य विभाग (State’s Department) कहा जाता है। पं० नेहरू ने सरदार पटेल को इस विभाग का मन्त्री एवं वी० पी० मेनन को इसका सचिव नियुक्त किया।

देशी रियासतों का भारत में विलय तीन चरणों के अन्तर्गत किया गया। प्रथम एकीकरण, द्वितीय-अधिमिलन, तृतीय-प्रजातन्त्रीकरण। एकीकरण (Integration) के अन्तर्गत वे देशी रियासतें आती हैं, जिन्होंने सरदार पटेल के परामर्श पर स्वयं ही भारत में विलय होना स्वीकार कर लिया था। अधिकांश देशी रियासतें इसी आधार पर भारत में शामिल हो गईं।

जबकि अधिमिलन (Accession) के अन्तर्गत जूनागढ़ एवं हैदराबाद जैसी रिय ो शामिल किया गया, क्योंकि इन्होंने स्वेच्छा से भारत में शामिल होना स्वीकार नहीं किया था, परन्तु सरदार पटेल ने अपने रणनीतिक कौशल एवं सूझ-बूझ से इन दोनों रियासतों को भारत में विलय होने के लिए मजबूर कर दिया।

तीसरा चरण इन संस्थाओं के प्रजातन्त्रीकरण (Democratisation) से सम्बन्धित है। देशी रियासतों को प्रजातान्त्रिक ढांचे में ढालना भारत सरकार के लिए प्रमुख समस्या थी। इस समस्या के लिए प्रान्तों में प्रजातान्त्रिक एवं प्रतिनिधिक संस्थाओं की स्थापना की गई। इन प्रान्तों में भी संसदीय शासन प्रणाली लागू की गई तथा निर्वाचित विधानसभाओं की व्यवस्था की गई। इस प्रकार पं० नेहरू एवं सरदार पटेल की सूझ-बूझ से देशी रियासतों की समस्या का समाधान हो पाया।

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प्रश्न 7.
‘भाषा’ पर राजनीतिक विवाद की समस्या का वर्णन करें।
उत्तर:
स्वतन्त्रता के पश्चात् संविधान निर्माताओं के सामने एक प्रमुख समस्या सरकारी भाषा को लेकर थी। भारत के बहुत बड़े भाग में हिन्दी भाषा बोली जाती है लेकिन विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न भाषाओं का प्रयोग किया जाता है। भाषायी विविधता को देखते हुए भी संविधान निर्माता इस बात पर सहमत थे कि भारत के लिए एक सामान्य भाषा का होना आवश्यक है।

संविधान सभा के बहुत-से सदस्य हिन्दी को सरकारी भाषा बनाने के पक्ष में थे जबकि अहिन्दी भाषी क्षेत्रों से आए सदस्यों ने इसका विरोध किया। इनका मानना था कि यदि हिन्दी को सरकारी भाषा घोषित कर दिया गया तो प्रतियोगी सरकारी नौकरियों में हिन्दी बोलने वाले व्यक्तियों का प्रभुत्व स्थापित हो जाएगा और ग़ैर-हिन्दी भाषी क्षेत्र पिछड़ जाएंगे।

परन्तु हिन्दी भाषा के समर्थकों का विचार था कि, क्योंकि भारत के लगभग 40 प्रतिशत लोग हिन्दी बोलने वाले हैं, अतः हिन्दी स्वाभाविक रूप से सरकारी भाषा होनी चाहिए। उनका यह भी मानना था कि यदि अंग्रेज़ी को सरकारी भाषा घोषित किया गया तो इससे सरकार और लोगों में दूरियां बढ़ जाएंगी क्योंकि विदेशी भाषा होने के कारण लोग इससे भावनात्मक रूप से जुड़ नहीं पाएंगे।

अन्ततः संविधान सभा में यह निर्णय लिया गया कि हिन्दी भारत की सरकारी भाषा होगी। (अनुच्छेद 343) लेकिन अंग्रेजी भाषा अगले 15 वर्षों तक संघीय सरकार के अधिकारिक कार्यों के लिए जारी रहेगी। इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 345 में यह भी व्यवस्था की गई कि राज्य विधानमण्डल के कानून द्वारा कोई राज्य अधिकारिक रूप से किसी अन्य भाषा को सरकारी कार्यों के लिए प्रयोग कर सकता है।

यद्यपि अंग्रेजी भाषा संविधान लागू होने के 15 वर्षों तक सरकारी भाषा के रूप में जारी रहनी थी, परन्तु 1955 में श्री जी० बी० खेर (G.B. Kher) की अध्यक्षता में गठित सरकारी भाषा आयोग ने अंग्रेजी भाषा के स्थान पर हिन्दी भाषा का प्रयोग करने पर बल दिया। भाषा आयोग ने और भी कई महत्त्वपूर्ण सिफ़ारिशें कीं। लेकिन भाषा आयोग की सिफारिशों पर गैर-हिन्दी क्षेत्रों में तीखी प्रतिक्रिया हुई। इसके विरोध में देश के कई स्थानों पर व्यापक प्रदर्शन हुए।

सरकारी भाषा विधेयक, 1963 (Official Language Bill, 1963):
अप्रैल, 1963 में संसद् में औपचारिक रूप से सरकारी भाषा विधेयक प्रस्तुत किया गया। साथ ही प्रधानमन्त्री पं० जवाहर लाल नेहरू को यह भी आश्वासन देना पड़ा कि हिन्दी भाषा को गैर-हिन्दी भाषी क्षेत्रों पर थोपा नहीं जाएगा। हिन्दी का सरकारी भाषा बनना और भाषायी विवाद (Hindi to be an official Language and Lingual Conflicts)-26 जनवरी, 1965 को हिन्दी सरकारी भाषा बन गई।

लेकिन जब इसको लागू करने का प्रश्न आया तो भारत के अधिकांश प्रदेशों में भारी प्रदर्शन एवं दंगे हुए। विशेषतया मद्रास, बंगाल और केरल में हिन्दी विरोधी जबकि उत्तरी राज्यों-राजस्थान, उत्तर-प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि में हिन्दी के समर्थन में प्रदर्शन हुए।

भाषायी विवाद के दिनों में सितम्बर-अक्तूबर, 1961 में दिल्ली में हुए राष्ट्रीय एकता सम्मेलन में यह सुझाव दिया गया था कि सैकेण्डरी शिक्षा के लिए त्रि-भाषा फार्मूला प्रयोग में लाया जाए। यह कहा गया कि हिन्दी भाषी राज्यों में हिन्दी और अंग्रेजी के साथ-साथ एक और आधुनिक भाषा अपनाई जाएगी और गैर-हिन्दी भाषी राज्यों में क्षेत्रीय भाषा और अंग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी भाषा को पढ़ाए जाने की व्यवस्था की जाए।

धीरे-धीरे हिन्दी अंग्रेजी भाषा का स्थान ले लेगी। लेकिन त्रि-भाषीय फार्मूला एक मज़ाक बन कर रह गया। 1965 में हिन्दी विरोधी दंगों को शान्त करने के लिए प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री ने यह आश्वासन दिया, कि हिन्दी को सरकारी स्तर पर लाने का यह अर्थ बिल्कुल नहीं है, कि अंग्रेजी को भारत से बाहर निकाला जा रहा है, गैर-हिन्दी भाषी राज्य तब तक अंग्रेजी का प्रयोग करते रहेंगे, जब तक वे हिन्दी प्रयोग के लिए तैयार नहीं हो जाते।

प्रश्न 8.
स्वतंत्र भारत के सामने मुख्य चुनौतियां क्या थीं ?
उत्तर:
स्वतंत्रता के समय भारत के समक्ष राष्ट्र निर्माण सम्बन्धी निम्नलिखित चुनौतियां थीं

1. राष्ट्रीय एकीकरण की चुनौती-स्वतत्रता के समय भारत के समक्ष राष्ट्र निर्माण सम्बन्धी सबसे बड़ी चुनौती राष्ट्रीय एकीकरण की थी। स्वतंत्रता के समय लगभग 565 देशी रियासतों को भारत में शामिल करने की बड़ी चुनौती थी। इन सभी रियासतों की बोली, भाषा, खान-पान, रहन-सहन तथा पहरावा सब कुछ भिन्न-भिन्न था। अधिक अनेकता वाला देश कभी भी एकजुट नहीं रह सकता। इसीलिए देश के नेताओं के सामने देश के भविष्य को लेकर गम्भीर प्रश्न खड़े थे। जिसका हल किया जाना आवश्यक था।

2. विकास की चुनौती-स्वतंत्रता के समय भारत के समक्ष राष्ट्र निर्माण सम्बन्धी एक अन्य बड़ी चुनौती विकास की थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय लगभग प्रत्येक क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता थी, क्योंकि अंग्रेज़ भारत को बहुत बुरी दशा में छोड़कर गए थे। अतः सभी प्रकार के क्षेत्र में विकास की आवश्यकता थी। साथ ही साथ भारतीय नेताओं को इस बात की भी व्यवस्था करनी थी कि विकास ऐसा हो, जिससे सभी वर्गों का कल्याण हो।

3. लोकतन्त्र की स्थापना की चुनौती-स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत में नेताओं के समक्ष लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था की स्थापना की भी चुनौती थी। ताकि समाज के सभी वर्गों को भारत की राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर मिल सके। इसके लिए भारत में संसदीय शासन प्रणाली की व्यवस्था की गई, सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की व्यवस्था की गई। लोगों को मौलिक अधिकार प्रदान किए गए तथा राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों की व्यवस्था की गई।

प्रश्न 9.
भारत विभाजन के अच्छे व बरे परिणामों का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत का विभाजन सन् 1947 में हुआ। इस विभाजन के अच्छे एवं बुरे परिणामों का वर्णन इस प्रकार है

(क) भारत विभाजन के अच्छे परिणाम

  • भारत विभाजन से लोगों को आजादी अपेक्षाकृत जल्दी मिल गई।
  • विभाजन के पश्चात् भारत एवं पाकिस्तान में रह रहे अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करना आसान हो गया।
  • विभाजन के पश्चात् कानून व्यवस्था को लागू करना आसान हो गया।
  • विभाजन के पश्चात् प्रशासन को उचित एवं कुशलतापूर्वक चलाया जाने लगा।

(ख) भारत विभाजन के बुरे परिणाम

  • सन् 1947 में बड़े पैमाने पर एक जगह की आबादी को दूसरी जगह जाना पड़ा।
  • धर्म के नाम पर एक समुदाय के लोगों ने दूसरे समुदायों के लोगों को बेरहमी से कत्ल किया।
  • भारत विभाजन से महिलाओं को अमानवीय यातनाएं झेलनी पड़ी।
  • भारत विभाजन से देश की एकता एवं अखण्डता को गहरा धक्का लगा।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राष्ट्र निर्माण से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण एक ऐसी सामाजिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा कुछ समूहों में राष्ट्रीय चेतना प्रकट होती है। राष्ट्र निर्माण राजनीतिक विकास के सांस्कृतिक पक्ष पर जोर देता है। इसके अनुसार एक राष्ट्र में ऐसी प्रक्रिया हो जिसके द्वारा लोग अपने छोटे-छोटे कबीलों, गांवों और नगरों के प्रति वफ़ादारी के स्थान पर विशाल केन्द्रीय राजनीतिक प्रणाली को वफ़ादारी प्रदान करें।

साधारण शब्दों में, इसका अर्थ यह है कि परम्परावादी संकुचित वफ़ादारियों को समाप्त होना चाहिए जैसे कि परिवार, जाति, धर्म आदि के प्रति वफ़ादारी के स्थान पर सम्पूर्ण प्रणाली तथा राष्ट्र के प्रति वफ़ादारी होनी चाहिए। इससे अभिप्राय यह है कि एक देश में राष्ट्रीय एकीकरण (National Integration) हो जहां एक व्यक्ति सीमित वफ़ादारियों की तुलना में राज्य के प्रति वफ़ादारियों को अधिक महत्त्व दें।

प्रश्न 2.
राष्ट्र निर्माण की परिभाषा दें।
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण की निम्नलिखित परिभाषाएं हैं

(1) डेविड ए० विल्सन के अनुसार, “राष्ट्र निर्माण से अभिप्राय वह सामाजिक प्रक्रिया अथवा प्रक्रियाएं हैं जिनके द्वारा कुछ समूहों में राष्ट्रीय चेतना उभरती है तथा यह समूह कुछ-न-कुछ संगठित सामाजिक संरचनाओं के माध्यम से समाज के लिए राजनीतिक स्वायत्तता प्राप्त करते हैं।”

(2) ब्लंटशली के अनुसार, “राष्ट्र निर्माण मनुष्यों के ऐसे समूह को कहते हैं, जो विशेषतया भाग और रीति-रिवाज द्वारा एक समान सभ्यता में बंधे हुए हैं, जिससे उनमें एकता और समस्त विदेशियों से भिन्नता की भावना उत्पन्न हो।”

(3) लूसियन पाई के मतानुसार, “राष्ट्र निर्माण का अर्थ है वह प्रक्रिया जिसके द्वारा लोग छोटे कबीलों, गांवों, नगरों या छोटी रियासतों के प्रति वफ़ादारी और बन्धनों को विशाल केन्द्रीय राजनीतिक प्रणाली की ओर मोड़ लेते हैं।”

(4) प्रेडियर फोडरे के अनुसार, “नस्ल की साझ और भाषा, आदतें, रीति-रिवाज और धर्म की समानता ऐसे तत्त्व हैं, जो राष्ट्र का निर्माण करते हैं।”

प्रश्न 3.
राष्ट्र निर्माण के विषय में लूसियन पाई के विचारों का वर्णन करें।
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण के विषय में लूसियन पाई के विचारों को तीन भागों में बांटा जा सकता है

1. सामूहिक जन-सम्बन्धी-राजनीतिक विकास को जब जन-सम्बन्धी स्तर से देखते हैं तो इसका अर्थ यह हो जाता है कि लोगों के आदर्श में क्या मुख्य परिवर्तन आया है। वे सरकार और उच्च स्तरीय अधिकारियों इत्यादि के निर्णयों का पालन कैसे करते हैं ? और राजनीतिक निर्णयों में किस तरह और किस हद तक भागीदार है। इसको गण का सिद्धान्त (Principal of Quality) कहा जा सकता है।

2. सरकार के स्तर सम्बन्धी राजनीतिक विकास के साथ प्रजातन्त्र प्रणाली में अधिक शक्ति (सामर्थ्य) उत्पन्न हो जाती है। इसका अर्थ है कि जन सम्बन्धी मामलों के प्रतिबन्ध की सामर्थ्य तथा जन साधारण की मांगों के साथ चलने की सामर्थ्य । एक अविकसित राजनीतिक प्रणाली में इस प्रकार का सामर्थ्य बहुत कम होता है।

3. नीति के संगठन सम्बन्धी-राजनीतिक प्रणाली के संगठन के विषय में यह कहा जा सकता है कि एक विकसित हो रही राजनीतिक प्रणाली में संगठन सम्बन्धी भिन्नता अधिक होती है और भागीदारी संस्थाओं का समूहीकरण भी 15 अधिक होता है। इससे यह पता चलता है कि पाई (Pye) की राजनीतिक विकास की धारणा आल्मण्ड (Almond) के राजनीतिक विकास की धारणा से भिन्न है क्योंकि वह सामर्थ्य का एक नया तत्त्व प्रस्तुत करता है।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

प्रश्न 4.
राष्ट्र निर्माण को प्रभावित करने वाले तत्त्वों का वर्णन करो।
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण को प्रभावित करने वाले तत्त्वों का वर्णन इस प्रकार है

1. औद्योगीकरण. औद्योगीकरण राष्ट्र निर्माण को प्रभावित करता है। जैसे ही एक देश औद्योगिक उन्नति करता लोगों का जीवन स्तर ऊंचा होता है और वे अपनी परानी आदतों और परम्पराओं को त्याग देते हैं।

2. ध्यम का प्रसार एक राष्ट्र में जन-माध्यम के साधनों का विकास और प्रसार भी राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देता है। जन-माध्यम के साधनों में समाचार-पत्र, प्रसारण, डाक एवं तार प्रबन्ध, सड़कें, रेलें, वायु सेवाएं, चलचित्र, टेलीविज़न आदि शामिल हैं। इन साधनों द्वारा नागरिकों में अधिक जानकारी तथा चेतनता उत्पन्न होती है।

3. धर्म-निरपेक्ष संस्कृति का प्रसार-धर्म-निरपेक्ष संस्कृति भी राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देती है क्योंकि कट्टर धर्म कई बार नागरिकों में फूट और घृणा पैदा करता है। इसके विपरीत यदि एक देश में लोग धर्म-निरपेक्ष संस्कृति को अपना लें तो उनका दृष्टिकोण विशाल हो जाता है।

4. राजनीतिक भागीदारी-राजनीतिक भागीदारी भी राष्ट्र-निर्माण में अपनी भूमिका निभाती है। इसका अर्थ यह है कि लोगों को राष्ट्र की राजनीतिक क्रियाओं में भाग लेना चाहिए। यदि वे राजनीतिक क्रियाओं, जनता के कामों और निर्णयों में भाग लेते रहें तो राष्ट्र निर्माण में वृद्धि होती है। राजनीतिक भागीदारी के साथ अवसरों की समानता भी उत्पन्न होती है। इससे जाति-पाति के प्रभावों को भी पराजित किया जाता है।

प्रश्न 5.
राष्ट्र निर्माण के किन्हीं चार बाधक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
अथवा
राष्ट्र निर्माण के चार बाधक तत्त्वों का वर्णन करें।
उत्तर:

  • जातिवाद राष्ट्र निर्माण के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है।
  • भाषावाद ने राष्ट्र निर्माण के मार्ग में बाधाएं पैदा की हैं।
  • क्षेत्रवाद ने राष्ट्र निर्माण की भावना को हानि पहुंचाई है।
  • भारत में कुछ सांप्रदायिक दल पाए जाते हैं, जो राष्ट्र निर्माण के मार्ग में रुकावट सिद्ध होते हैं।

प्रश्न 6.
भारतीय संघ में हैदराबाद को शामिल करने की घटना पर नोट लिखें।
उत्तर:
स्वतन्त्रता के समय भारत में लगभग 565 देशी रियासतें थीं। ब्रिटिश सरकार ने इन रियासतों को यह निर्णय करने की छूट दे दी थी, कि वे भारत में शामिल हों, या पाकिस्तान में या स्वतन्त्र राज्य के रूप में अपने आपको बनाये रखें। तत्कालीन परिस्थितियों में हैदराबाद के निजाम उसमान अली खान ने हैदराबाद को स्वतन्त्र रखने का निर्णय किया। परन्तु हैदराबाद का निजाम परोक्ष रूप से पाकिस्तान समर्थक था। हैदराबाद भारत के केन्द्र में स्थित था। इसका क्षेत्रफल 132000 वर्ग किलोमीटर था।

इसकी जनसंख्या लगभग एक करोड़ चालीस लाख थी। इस जनसंख्या में से लगभग 85% जनसंख्या हिन्दू थी। भारत के गृहमन्त्री सरदार पटेल को यह अन्देशा था कि आने वाले समय में हैदराबाद पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत के लिए खतरा पैदा कर सकता है। हैदराबाद के निजाम ने पाकिस्तान से हथियार खरीद कर हिन्दुओं पर अत्याचार करने शुरू कर दिये।

सरदार पटेल ने लॉर्ड माऊण्टबेटन की मदद से निजाम को यह समझाने का पूरा प्रयास किया कि हैदराबाद को भारत में मिलाने में ही हित है। परन्तु निजाम ने सभी प्रयासों को नकार दिया। तत्पश्चात् सरदार पटेल ने हैदराबाद के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करने का आदेश दिया। 13 सितम्बर, 1947 से 18 सितम्बर, 1947 तक दोनों पक्षों में युद्ध हुआ परन्तु हैदराबाद के लड़ाकुओं को भारतीय सेना के सामने हथियार डालने ही पड़े। हैदराबाद को भारत में मिला लेने की अनेक मुसलमान नेताओं ने तारीफ की।

प्रश्न 7.
भारतीय संघ में जूनागढ़ को शामिल करने की घटना पर नोट लिखें।
उत्तर:
जूनागढ़ गुजरात के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक राज्य था। इसमें बाबरियावाड़, मानावदार तथा मंगरोल नामक जागीरें शामिल थीं। जूनागढ़ की लगभग 80% जनसंख्या हिन्दू थी। जूनागढ़ के नवाब महाबत खान ने पाकिस्तान के साथ शामिल होने का निर्णय किया। सितम्बर, 1947 में जब पाकिस्तान ने जनागढ के शामिल होने की स्वीकृति का अनुमोदन किया तो भारत सरकार को गहरा धक्का लगा।

क्योंकि भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर जूनागढ़ भारत में ही शामिल हो सकता था, परन्तु जूनागढ़ के शासक के न मानने पर सरदार पटेल ने, जूनागढ़ के शासकों के विरुद्ध बल प्रयोग का आदेश दिया। जूनागढ़ में भारतीय सैनिकों का सामना करने की क्षमता नहीं थी। अत: पहले अरजी हुकूमत (अरजी अर्थात् लोगों द्वारा प्रार्थना तथा हुकूमत अर्थात् शासन) को आमन्त्रित किया गया तत्पश्चात् भारतीय सरकार को 1 दिसम्बर, 1947 में करवाये गए जनमत संग्रह में जूनागढ़ के लगभग 99% लोगों ने भारत में शामिल होने की बात कही।

प्रश्न 8.
पाण्डिचेरी तथा गोवा के भारत में शामिल होने की घटना पर नोट लिखें।
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् पाण्डिचेरी फ्रांस तथा गोवा पुर्तगाल के अधीन थे। फ्रांस पाण्डिचेरी को भारत में शामिल करने के पक्ष में नहीं था। परिणामस्वरूप भारतीय सैनिकों ने कार्यवाही करके पाण्डिचेरी को भारतीय संघ में शामिल कर लिया। इसी तरह पुर्तगाल भी गोवा पर से अपना अधिकार छोड़ना नहीं चाहता था। अतः पुर्तगाल ने भारत द्वारा पेश किये गए सभी प्रस्तावों का विरोध किया।

परिणामस्वरूप 18 दिसम्बर, 1961 को भारतीय सेना ने गोवा, दमन व दीयू को पुर्तगाल से मुक्त कराके भारत में शामिल कर लिया। भारतीय प्रधानमन्त्री ने इसे मात्र पुलिस कार्यवाही की संज्ञा दी। लगभग 3000 पुर्तगाली सैनिक युद्धबन्दी बना लिए गए, जिन्हें बाद में छोड़ दिया गया। 1987 में गोवा भारत का 25वां राज्य बन गया।

प्रश्न 9.
कश्मीर समस्या पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता से पूर्व कश्मीर भारत के उत्तर-पश्चिमी कोने में स्थित एक देशी रियासत थी। 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतन्त्र हुआ और पाकिस्तान की भी स्थापना हुई। पाकिस्तान ने पश्चिमी सीमा प्रान्त के कबाइली लोगों को प्रेरणा और सहायता देकर 22 अक्तूबर, 1947 को कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत से सहायता मांगी और कश्मीर को भारत में शामिल करने की प्रार्थना की।

भारत में कश्मीर का विधिवत् विलय हो गया, परन्तु पाकिस्तान का आक्रमण जारी रहा और पाकिस्तान ने कुछ क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और अब भी उस क्षेत्र पर जिसे ‘आजाद कश्मीर’ कहा जाता है, पाकिस्तान का कब्जा है। भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को खदेड़ दिया। भारत सरकार ने कश्मीर का मामला संयुक्त राष्ट्र को सौंप दिया और 1 जनवरी, 1949 को कश्मीर का युद्ध विराम हो गया।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने कश्मीर की समस्या को हल करने का प्रयास किया पर यह समस्या काफ़ी सालों तक बनी रही। अन्ततः 5-6-अगस्त, 2019 को भारत सरकार ने धारा 370 को समाप्त कर दिया तथा यह स्पष्ट किया, कि अब केवल पाकिस्तान के गैर-कानूनी कब्जे वाले (पी० ओ० के०-POK) पर ही बातचीत होगी।

प्रश्न 10.
‘भाषावाद’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत एक बहु-भाषी देश है। यहां पर सैंकड़ों भाषाएं बोली जाती हैं। संविधान के द्वारा देवनागरी लिपि की हिन्दी भाषा को केन्द्र सरकार की सरकारी भाषा निश्चित किया है। इसके अतिरिक्त संविधान द्वारा हिन्दी सहित 22 भाषाओं को भी संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है। भारतीय लोगों को अपनी मातृ-भाषा के प्रति बहुत ज्यादा लगन और श्रद्धा है। इसीलिए भारत में भाषावाद का विकास हुआ है। भारतीय संघ के राज्यों का संगठन भी भाषा के आधार पर किया गया है।

इस तथ्य ने भी भारत में भाषावाद के विकास को प्रोत्साहित किया है। भाषावाद भारतीय लोकतन्त्र की कार्यशीलता पर बुरे प्रभाव डाल रहा है। कई राजनीतिक दलों का निर्माण भाषा के आधार पर किया गया है।

कई राज्यों के लोग भाषा के आधार पर पृथक् राज्यों के निर्माण की मांग कर रहे हैं। लोगों की भाषा के प्रति निष्ठा राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय भावना के विकास के मार्ग में रुकावट बन रही है। भाषावाद कई लोगों के मत व्यवहार को प्रभावित करता है। दक्षिण भारत के लोगों की विरोधता के कारण हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा सरकारी रूप से नहीं दिया जा सका है। यह पूर्णतया राष्ट्रीय विकास के रास्ते में रुकावट बन रहा है।

प्रश्न 11.
भारत विभाजन के अच्छे परिणाम बताइये।
उत्तर:

  • भारत विभाजन से लोगों को आजादी अपेक्षाकृत जल्दी मिल गई।
  • विभाजन के पश्चात् भारत एवं पाकिस्तान में रह रहे अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करना आसान हो गया।
  • विभाजन के पश्चात् कानून व्यवस्था को लागू करना आसान हो गया।
  • विभाजन के पश्चात् प्रशासन को उचित ढंग से चलाया जाने लगा।

प्रश्न 12.
भारतीय राजनीति में भाषा की भूमिका पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
भाषा ने भारतीय राजनीति को निम्नलिखित ढंगों से प्रभावित किया है
1. राष्ट्रीय एकता को खतरा-राष्ट्रीय एकता के लिए एक सामान्य भाषा का होना अति आवश्यक है। संविधान निर्माताओं ने यही बात सोचकर हिन्दी को राष्ट्र भाषा घोषित किया था। परन्तु भाषा के विवाद ने राष्ट्रीय एकता व अखण्डता को करारी चोट पहुंचायी है। दक्षिण के राज्य और उत्तर के राज्यों में मुख्य विवाद का कारण भाषा ही है।

2. भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन–राज्य पुनर्गठन कानून 1956 के आधार पर भारत को 14 राज्यों तथा 6 संघीय क्षेत्रों में विभाजित किया गया। परन्तु राज्यों के 1956 के पुनर्गठन से समस्या समाप्त नहीं हुई, बल्कि उसके बाद भी अनेक राज्यों का पुनर्गठन किया गया और आज भारत में 28 राज्य और 8 संघीय क्षेत्र हैं। आज भी अनेक क्षेत्रों के भाषा के आधार पर अलग राज्य बनाने की मांग उठाई जाती है।

3. क्षेत्रवाद की भावना का विकास-भाषा के आधार पर ही लोगों में क्षेत्रवाद की भावना का विकास हुआ है और विभिन्न भाषा बोलने वाले पृथक् राज्य की मांग करते हैं जिससे भारत की एकता खतरे में पड़ सकती है।

4. सीमा विवाद-भाषा के कारण अनेक राज्यों में सीमा विवाद उत्पन्न हुए हैं और आज भी अनेक राज्यों के बीच यह विवाद चल रहे हैं। उदाहरणस्वरूप पंजाब और हरियाणा, महाराष्ट्र और कर्नाटक तथा केरल इत्यादि में सीमा विवाद विद्यमान है।

प्रश्न 13.
राष्ट्र निर्माण के मार्ग की बाधाओं को दूर करने के कोई चार उपाय लिखिए।
उत्तर:

  • राष्ट्र निर्माण के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए शिक्षा प्रणाली में सुधार करना आवश्यक है। शिक्षा को वास्तविक जीवन से सम्बन्धित करने की आवश्यकता है।
  • बेरोज़गारी एवं ग़रीबी को दूर करना आवश्यक है।
  • राष्ट्र निर्माण की बाधाओं को दूर करने के लिए देश में संतुलित आर्थिक विकास होना चाहिए।
  • राष्ट्र निर्माण की बाधाओं को दूर करने के लिए लोगों को स्वच्छ एवं पारदर्शी प्रशासन दिया जाना आवश्यक है।

प्रश्न 14.
विभाजन से उत्पन्न किन्हीं चार समस्याओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत विभाजन से उत्पन्न कोई चार समस्याएं लिखें।
उत्तर:

  • विभाजन से उत्पन्न पहली जो समस्या थी, वह थी शरणार्थियों के पुनर्वास की समस्या।
  • भारत के विभाजन की दूसरी समस्या कश्मीर की समस्या है। भारत के विभाजन स्वरूप ही कश्मीर की समस्या पैदा हई है।
  • भारत के विभाजन के परिणामस्वरूप जो एक अन्य समस्या पैदा हुई, वह थी देशी रियासतों का स्वतन्त्र भारत में विलय करना।
  • भारत के विभाजन के कारण राज्यों के पुनर्गठन की समस्या भी पैदा हुई।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

प्रश्न 15.
स्वतन्त्रता के बाद, पिछले छः दशकों में राष्ट्रीय एकता से सम्बन्धित सीखे पाठों में से किन्हीं चार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • राष्ट्रीय एकता के लिए धर्म-निरपेक्षता का होना आवश्यक है, ताकि सभी लोगों को धर्म की स्वतन्त्रता प्राप्त हो।
  • राष्ट्रीय एकता के लिए साम्प्रदायिक सद्भावना का होना भी आवश्यक है।
  • राष्ट्रीय एकता के लिए लोगों का शिक्षित होना आवश्यक है, ताकि उन्हें अपने अधिकारों एवं कर्त्तव्यों का ज्ञान हो।
  • राष्ट्रीय एकता के लिए राजनीतिक दलों का स्वस्थ आधारों पर संगठित होना आवश्यक है, राजनीतिक दल धर्म या जाति के आधार पर संगठित न होकर राजनीतिक और आर्थिक आधार पर संगठित होने चाहिएं।

प्रश्न 16.
मणिपुर और जूनागढ़ के रजवाड़े भारतीय संघ का अंग कैसे बने ?
उत्तर:
मणिपुर- मणिपुर की विधानसभा में भारत के विलय के प्रश्न पर सहमति नहीं थी। मणिपुर कांग्रेस चाहती थी कि इस रियासत को भारत में मिला दिया जाए, जबकि अन्य पार्टियां इसके विरुद्ध थीं। परन्तु भारत सरकार ने मणिपुर पर भारत में विलय के लिए दबाव डाला, जिसमें उसे सफलता भी मिली। मणिपुर के महाराजा बोधचन्द्र सिंह ने भारत में विलय से सम्बन्धित दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर किये। जूनागढ़- इसके लिए प्रश्न नं0 7 देखें।

प्रश्न 17.
राष्ट्र निर्माण सम्बन्धी नेहरू जी के दृष्टिकोण की व्याख्या करें।
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण सम्बन्धी नेहरू जी के दृष्टिकोण का वर्णन इस प्रकार है

  • संसदीय शासन प्रणाली-राष्ट्र निर्माण के लिए नेहरू जी संसदीय शासन प्रणाली को लागू करना चाहते थे।
  • धर्म-निरपेक्ष राज्य-नेहरू जी राष्ट्र निर्माण के लिए धर्म-निरपेक्ष राज्य की स्थापना करना चाहते थे।
  • न्याय एवं स्वतन्त्रता-नेहरू जी ने राष्ट्र निर्माण के लिए न्याय एवं स्वतन्त्रता का समर्थन किया।
  • मिश्रित अर्थव्यवस्था-पं० नेहरू राष्ट्र के निर्माण के लिए मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाए जाने के पक्ष थे।

प्रश्न 18.
स्वतन्त्र भारत के सामने उपस्थित किन्हीं चार मुख्य चुनौतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वतन्त्र भारत के सामने राष्ट्र निर्माण सम्बन्धी निम्नलिखित चुनौतियां थीं

1. राष्ट्रीय एकीकरण की चुनौती-स्वतन्त्रता के समय भारत के समक्ष राष्ट्र निर्माण सम्बन्धी सबसे बड़ी चुनौती राष्ट्रीय एकीकरण की थी।

2. विकास की चुनौती-स्वतन्त्रता के समय भारत के समक्ष राष्ट्र निर्माण सम्बन्धी एक अन्य बड़ी चुनौती विकास की थी। स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय लगभग प्रत्येक क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता थी, क्योंकि अंग्रेज़ भारत को बहुत बुरी दशा में छोड़कर गए थे।

3. लोकतन्त्र की स्थापना की चनौती-स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारत में नेताओं के समक्ष लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था की स्थापना की भी चुनौती थी ताकि समाज के सभी वर्गों को भारत की राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर मिल सके।

4. धार्मिक कट्टरता की चुनौती-स्वतन्त्रता के समय धार्मिक कट्टरता भी एक चुनौती थी।

प्रश्न 19.
भारत विभाजन के चार प्रमुख कारण बताइये।
उत्तर:
1. अंग्रेजों की कुटिल नीति – भारत विभाजन का प्रमुख कारण अंग्रेजों की कुटिल नीतियां थीं, क्योंकि अंग्रेज़ जाते-जाते भारत को कमज़ोर करना चाहते थे।

2. जिन्ना की हठधर्मिता – भारत विभाजन का एक अन्य कारण जिन्ना की हठधर्मिता थी।

3. भारतीय नेताओं की शांति की इच्छा – भारत का विभाजन इसलिए भी हुआ, क्योंकि भारतीय नेताओं को यह आशा थी, कि विभाजन के बाद शायद भारत में शांति स्थापित हो जाए।

4. साम्प्रदायिक दंगे – भारत विभाजन का एक अन्य कारण उस दौरान हुए भीषण साम्प्रदायिक दंगे हैं।

प्रश्न 20.
राष्ट्र के किन्हीं चार तत्वों का वर्णन करें।
अथवा
राष्ट्र निर्माण के किन्हीं चार तत्वों का वर्णन करें।
अथवा
राष्ट्र को जन्म देने वाले चार तत्व बताइये।।
उत्तर:
1.सामान्य मातृभूमि-प्रत्येक मनुष्य को अपनी मातृभूमि अर्थात् अपने जन्म-स्थान से प्यार होना स्वाभाविक ही है। एक ही स्थान या प्रदेश पर जन्म लेने वाले व्यक्ति मातृभूमि से प्यार करते हैं और इस प्यार के कारण वे आपस में एक भावना के अन्दर बन्ध जाते हैं।

2. वंश की समानता-कुछ लेखकों ने राष्ट्रीयता के लिए वंश पर जोर दिया है। वंश अथवा जाति की समानता से अभिप्राय व्यक्तियों के उस समूह से है जो एक ही पूर्वजों से सम्बन्धित हैं और वे रूप, आकार, रंग, कद आदि की कुछ शारीरिक समानताएं रखते हैं।

3. सामान्य भाषा-सामान्य भाषा राष्ट्रवाद का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। भाषा के द्वारा ही एक मनुष्य अपने विचारों को प्रकट कर सकता है।

4. सामान्य धर्म-सामान्य धर्म से भी एकता उत्पन्न होती है। धर्म के नाम पर लोग इकट्ठे हो जाते हैं और धर्म के नाम पर अपना जीवन भी बलिदान दे देते हैं।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राष्ट्र निर्माण का अर्थ बताइए।
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण एक ऐसी सामाजिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा कुछ समूहों में राष्ट्रीय चेतना प्रकट होती है। राष्ट्र निर्माण राजनीतिक विकास के सांस्कृतिक पक्ष पर जोर देता है। इसके अनुसार एक राष्ट्र में ऐसी प्रक्रिया हो जिसके द्वारा लोग अपने छोटे-छोटे कबीलों, गांवों एवं नगरों के प्रति वफ़ादारी के स्थान पर विशाल केन्द्रीय राजनीतिक प्रणाली को वफ़ादारी प्रदान करें।

प्रश्न 2.
राष्ट्र निर्माण की कोई दो परिभाषाएं लिखें।
अथवा
राष्ट्र की कोई एक परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
1. डेविड ए० विल्सन के अनुसार, “राष्ट्र निर्माण से अभिप्राय वह सामाजिक प्रक्रिया अथवा प्रक्रियाएं हैं, जिनके द्वारा कुछ समूहों में राष्ट्रीय चेतना उभरती है तथा यह समूह कुछ-न-कुछ संगठित सामाजिक संरचनाओं के माध्यम से समाज के लिए राजनीतिक स्वायत्तता प्राप्त करते हैं।”

2. लुसियन पाई के अनुसार, “राष्ट्र निर्माण का अर्थ है, वह प्रक्रिया जिसके द्वारा लोग छोटे कबीलों, गांवों, नगरों या छोटी रियासतों के प्रति वफादारी और बन्धनों को विशाल केन्द्रीय राजनीतिक प्रणाली की ओर मोड़ लेते हैं।”

प्रश्न 3.
राष्ट्र निर्माण को प्रभावित करने वाले तत्त्वों का वर्णन करो।
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण को प्रभावित करने वाले तत्त्वों का वर्णन इस प्रकार है

1. औद्योगीकरण – औद्योगीकरण राष्ट निर्माण को प्रभावित करता है। जैसे ही एक देश औद्योगिक उन्नति करता है वैसे ही वहां के लोगों का जीवन स्तर ऊंचा होता है और वे अपनी पुरानी आदतों और परम्पराओं को त्याग देते हैं।

2. जन-माध्यम का प्रसार – एक राष्ट्र में जन-माध्यम के साधनों का विकास और प्रसार भी राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देता है। जन-माध्यम के साधनों में समाचार-पत्र, प्रसारण, डाक एवं तार प्रबन्ध, सड़कें, रेलें, वायु सेवाएं, चलचित्र, टेलीविज़न आदि शामिल हैं। इन साधनों द्वारा नागरिकों में अधिक जानकारी तथा चेतनता उत्पन्न होती है।

प्रश्न 4.
3 जून, 1947 को ब्रिटिश गवर्नर जनरल माऊण्टबेटन ने क्या घोषणा की ?
उत्तर:
3 जून, 1947 का दिन भारतीय इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इस दिन ब्रिटिश गवर्नर जनरल माऊण्टबेटन ने यह घोषणा की, कि ब्रिटिश सरकार जून, 1948 की अपेक्षा अगस्त, 1947 में सत्ता भारतीयों को सौंप देगी।

प्रश्न 5.
हैदराबाद को भारत में किस प्रकार शामिल किया गया ?
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति एवं भारत के विभाजन के पश्चात् हैदराबाद के निजाम उसमान अली खान ने हैदराबाद को स्वतन्त्र रखने का निर्णय किया। परन्तु परोक्ष रूप से निजाम पाकिस्तान समर्थक था। हैदराबाद भारत के केन्द्र में स्थित था तथा इसकी 85% जनसंख्या हिन्दू थी। हैदराबाद कभी भी भारतीय सुरक्षा को खतरा पैदा कर सकता था। अतः सरदार पटेल के काफ़ी मनाने के बाद भी निज़ाम जब नहीं माना तो भारत ने सैनिक कार्यवाही करके हैदराबाद को भारत में मिला लिया।

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प्रश्न 6.
जूनागढ़ को भारत में किस प्रकार शामिल किया गया ?
उत्तर:
जूनागढ़ गुजरात के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक राज्य था। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् जूनागढ़ ने पाकिस्तान में शामिल होने का निर्णय किया। परन्तु भारत की सुरक्षा की दृष्टि से यह उचित नहीं था। अन्ततः भारत द्वारा बल प्रयोग करने के बाद पहले अरजी हुकूमत को आमन्त्रित किया गया, तत्पश्चात् शासन सम्भालने के लिए भारत को आमन्त्रित किया गया।

प्रश्न 7.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारत द्वारा किन दो चुनौतियों का सामना किया जा रहा था ?
उत्तर:

  • शरणार्थियों के पुनर्वास की समस्या-स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारत द्वारा शरणार्थियों के पुनर्वास की समस्या का सामना किया जा रहा था।
  • राज्यों के पुनर्गठन की समस्या-स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय विरासत के रूप जो दूसरी बड़ी समस्या मिली, वह थी देशी रियासतों का स्वतन्त्र भारत में विलय करना।

प्रश्न 8.
उन वास्तविक राज्यों के नाम बताएं, जिनमें से निम्नलिखित राज्य बने
1. मेघालय
2. गुजरात।
उत्तर:

  1. मेघालय- मेघालय, असम राज्य से अलग होकर राज्य बना है।
  2. गुजरात-गुजरात, बम्बई प्रेजीडेंसी से अलग होकर राज्य बना है।

प्रश्न 9.
राज्यों का पुनर्गठन क्या है ? यह कब किया गया ?
उत्तर:
राज्यों के पुनर्गठन का अर्थ है कि राज्यों का भाषा के आधार पर पुनः गठन करना। भारत में राज्यों का पुनर्गठन 1956 में किया गया।

प्रश्न 10.
मुहम्मद अली जिन्नाह के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
मुहम्मद अली जिन्नाह का जन्म कराची में 1876 में हुआ। जिन्नाह ने द्वि-राष्ट्र का सिद्धान्त दिया, तथा पाकिस्तान की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रश्न 11.
महात्मा गांधी ने 14 अगस्त, 1947 को कहा, “कल का दिन हमारे लिए खुशी का दिन भी होगा और गमी का भी।” इस कथन की व्याख्या करें।
उत्तर:
महात्मा गांधी के अनुसार 15 अगस्त, 1947 को खुशी का दिन इसलिए होगा, क्योंकि इस दिन भारत आजाद होगा जबकि गमी का दिन इसलिए होगा, क्योंकि इस दिन भारत का विभाजन होगा।

प्रश्न 12.
भारत के विभाजन के दो मुख्य कारण बताएँ।
उत्तर:

  • भारत के विभाजन का प्रमुख कारण अंग्रेजों की कुटिल नीतियां थीं, जो जाते-जाते भारत को कमज़ोर करना चाहते थे।
  • भारत विभाजन के लिए जिन्नाह की हठधर्मिता भी ज़िम्मेदार थी।

प्रश्न 13.
किस अधिनियम के अन्तर्गत भारत को स्वतन्त्रता प्राप्त हुई ?
उत्तर:
भारत को भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम 1947 के अन्तर्गत स्वतन्त्रता प्राप्त हुई।

प्रश्न 14.
देश विभाजन के समय कश्मीर का राजा कौन था ?
उत्तर:
देश विभाजन के समय कश्मीर का राजा हरि सिंह था।

प्रश्न 15.
वर्तमान में कितनी भाषाओं को संविधान के द्वारा मान्यता दी गई है ?
उत्तर:
वर्तमान में 22 भाषाओं को संविधान द्वारा मान्यता दी गई है।

प्रश्न 16.
देश के विभाजन के समय भारत के गवर्नर जनरल कौन थे ?
उत्तर:
देश के विभाजन के समय भारत के गर्वनर जनरल लार्ड माऊण्टबेटन थे।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न 

1. गुजरात राज्य का निर्माण हुआ
(A) वर्ष 1959 में
(B) वर्ष 1958 में
(C) वर्ष 1960 में
(D) वर्ष 1957 में।
उत्तर:
(C) वर्ष 1960 में।

2. द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त का प्रतिपादन किया
(A) कांग्रेस ने
(B) मुस्लिम लीग ने
(C) हिन्दू महासभा ने
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(B) मुस्लिम लीग ने।

3. विभाजन से पहले भारत की जनसंख्या थी
(A) लगभग 36 करोड़
(B) लगभग 40 करोड़
(C) लगभग 50 करोड़
(D) लगभग 38 करोड़।
उत्तर:
(A) लगभग 36 करोड़।

4. भारत में राष्ट्र निर्माण में निम्न बाधा है
(A) अनपढ़ता
(B) बेरोजगारी
(C) जातिवाद
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

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5. हरियाणा राज्य का गठन हुआ
(A) वर्ष 1966 में
(B) वर्ष 1967 में
(C) वर्ष 1968 में
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) वर्ष 1966 में।

6. सीमा आयोग के अध्यक्ष कौन थे ?
(A) जवाहर लाल नेहरू
(B) सरदार पटेल
(C) लिरिल रेडक्लिफ
(D) जॉन साइमन।
उत्तर:
(D) लिरिल रेडक्लिफ।

7. भारत के विभाजन से उत्पन्न समस्याएं हैं
(A) भौगोलिक दूरी की समस्या
(B) गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों की समस्या
(C) शरणार्थियों की समस्या
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी।

8. निम्नलिखित में से किसे पुलिस कार्य द्वारा पुर्तगालियों से मुक्त करवाया गया था ?
(A) पांडिचेरी
(B) कारगिल
(C) गोवा
(D) कश्मीर।
उत्तर:
(C) गोवा।

9. निम्नलिखित में से कौन-सा तत्व राष्ट्र निर्माण में बाधा डालता है ?
(A) भौगोलिक एकता
(B) शिक्षा का प्रसार
(C) राजनीतिक भागीदारी
(D) साम्प्रदायिकता।
उत्तर:
(D) साम्प्रदायिकता।

10. निम्नलिखित में से भारत के प्रथम गहमन्त्री कौन थे ?
(A) महात्मा गांधी
(B) डॉ० अम्बेदकर
(C) पं० नेहरू
(D) सरदार पटेल।
उत्तर:
(D) सरदार पटेल।

11. राज्य पुनर्गठन अधिनियम को कब लागू किया गया था ?
(A) 10 जून, 1956 को
(B) 15 अगस्त, 1947 को
(C) 20 जनवरी, 1948 को
(D) 1 नवम्बर, 1956 को।
उत्तर:
(D) 1 नवम्बर, 1956 को।

12. हैदराबाद के शासक को कहा जाता था
(A) नवाब
(B) राजा
(C) निजाम
(D) महाराजा।
उत्तर:
(C) निजाम।

13. राज्य बनने से पहले हरियाणा किस राज्य का अंग था ?
(A) मुम्बई
(B) पंजाब
(C) राजस्थान
(D) गुजरात।
उत्तर:
(B) पंजाब।

14. भारतीय संविधान को लागू किया गया
(A) 26 जनवरी, 1948 को
(B) 26 जनवरी, 1950 को
(C) 15 अगस्त, 1947 को
(D) 28 जनवरी, 1949 को।
उत्तर:
(B) 26 जनवरी, 1950 को।

15. भारत में कितनी भाषाओं को संवैधानिक मान्यता प्राप्त है ?
(A) 22 भाषाओं को
(B) 24 भाषाओं को
(C) 18 भाषाओं को
(D) 25 भाषाओं को।
उत्तर:
(A) 22 भाषाओं को।

16. भारत के पहले प्रधानमंत्री थे
(A) डॉ. मनमोहन सिंह
(B) पं० जवाहर लाल नेहरू
(C) श्रीमती इंदिरा गांधी
(D) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद।
उत्तर:
(B) पं० जवाहर लाल नेहरू।

17. विभाजन के समय भारत में कुल देशी रियासतों की संख्या थी :
(A) 560
(B) 562
(C) 565
(D) 665.
उत्तर:
(C) 565.

18. अलग आन्ध्र प्रदेश राज्य का उदय किस वर्ष में हुआ ?
(A) 1957 में
(B) 1956 में
(C) 1952 में
(D) 1959 में।
उत्तर:
(C) 1952 में।

रिक्त स्थानों की पूर्ति करो

(1) स्वतन्त्रता के बाद सबसे बड़ी चुनौती ……….. की थी।
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण

(2) स्वतन्त्रता के समय भारतीय रियासतों की संख्या ………… थी।
उत्तर:
565

(3) हैदराबाद की रियासत के शासक को ……….. कहते थे।
उत्तर:
निजाम

(4) ………… में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पास हुआ।
उत्तर:
1956

(5) असम से अलग करके 1972 में …………. राज्य बनाया गया।
उत्तर:
मेघालय

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(6) भारत 15 अगस्त, ………… को स्वतन्त्र हुआ।
उत्तर:
1947

(7) 15 अगस्त, 1947 को लाल किले की प्राचीर से ………… ने ऐतिहासिक भाषण दिया।
उत्तर:
पं० जवाहर लाल नेहरू

(8) स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारत के समक्ष कई ……….. थीं।
उत्तर:
चुनौतियाँ

(9) 26 जनवरी, 1950 को भारतीय ………… लागू किया गया।
उत्तर:
संविधान।

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
राष्ट्र निर्माण के लिए किन तत्वों का होना अनिवार्य है ?
उत्तर:
राष्ट्र निर्माण के लिए भाषायी एकता, सामान्य संस्कृति तथा भौगोलिक एकता जैसे महत्वपूर्ण तत्त्वों का होना अनिवार्य है।

प्रश्न 2.
भारत में राष्ट्र निर्माण में कौन-से तत्त्व बाधा डालते हैं ?
उत्तर:
भारत में राष्ट्र निर्माण में अनपढ़ता, बेरोज़गारी तथा जातिवाद इत्यादि जैसे तत्त्व बाधा डालते हैं।

प्रश्न 3.
हजोग, चकमा, सन्थाल तथा अन्य अनेक गैर-बंगाली समूह जिन्होंने पूर्वी पाकिस्तान छोड़ दिया था, वे बसने के लिए कहां गए ?
उत्तर:
भारत।

प्रश्न 4.
भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री कौन थे ?
उत्तर:
भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं० जवाहर लाल नेहरू थे।

प्रश्न 5.
भारत के प्रथम गृहमन्त्री कौन थे ?
उत्तर:
भारत के प्रथम गृहमन्त्री सरदार वल्लभ भाई पटेल थे।

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