HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है?
(A) खुली अर्थव्यवस्था में विश्व के अन्य राष्ट्रों से आयात-निर्यात होता है
(B) विश्व की अधिकांश अर्थव्यवस्थाएँ खुली अर्थव्यवस्थाएँ हैं
(C) विश्व की अधिकांश अर्थव्यवस्थाएँ बंद अर्थव्यवस्थाएँ हैं
(D) खुली अर्थव्यवस्था में अन्य राष्ट्रों के साथ वित्तीय परिसंपत्तियों में भी व्यापार होता है
उत्तर:
(C) विश्व की अधिकांश अर्थव्यवस्थाएँ बंद अर्थव्यवस्थाएँ हैं

2. भुगतान शेष से अभिप्राय है
(A) निर्यात तथा आयात के दृश्य मदों में अंतर
(B) निर्यात तथा आयात के अदृश्य मदों में अंतर
(C) स्वर्ण के बाहरी तथा आंतरिक प्रवाह में अंतरं
(D) एक देश के निवासियों तथा दूसरे देश के निवासियों में किए गए आर्थिक सौदों का क्रमबद्ध लेखा
उत्तर:
(D) एक देश के निवासियों तथा दूसरे देश के निवासियों में किए गए आर्थिक सौदों का क्रमबद्ध लेखा

3. व्यापार शेष से अभिप्राय है
(A) वस्तुओं के निर्यात तथा आयात में अंतर
(B) सेवाओं के निर्यात तथा आयात में अंतर
(C) पूँजी के निर्यात तथा आयात में अंतर
(D) उपर्युक्त में से कोई भी नहीं
उत्तर:
(A) वस्तुओं के निर्यात तथा आयात में अंतर

4. भुगतान शेष में शामिल होते हैं-
(A) दृश्य मदें
(B) अदृश्य मदें
(C) पूँजी हस्तांतरण
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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5. व्यापार शेष में निम्नलिखित में से किसको शामिल नहीं किया जाता?
(A) सेवाओं के आयात-निर्यात को
(B) देशों के बीच ब्याज तथा लाभांश के भुगतान को
(C) पर्यटकों द्वारा व्यय को
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

6. भुगतान शेष के चालू खाते में निम्नलिखित में से कौन-से सौदे रिकॉर्ड किए जाते हैं?
(A) वस्तुओं तथा सेवाओं के आयात और निर्यात
(B) एक देश से दूसरे देश को एक-पक्षीय हस्तांतरण
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

7. भुगतान शेष के एक-पक्षीय हस्तांतरण-
(A) एक देश से दूसरे देश को एक-तरफा किए जाते हैं.
(B) इनका व्यावसायिक लेन-देन से कोई संबंध नहीं होता
(C) इनमें प्राप्तियों के बदले में कोई भुगतान नहीं किए जाते; जैसे-उपहार
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

8. भुगतान शेष के पूँजी खाते की मुख्य मदें निम्नलिखित में से कौन-सी हैं?
(A) विदेशी निवेश
(B) ऋण
(C) बैंकिंग पूँजी लेन-देन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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9. वे सभी पूँजीगत सौदे जिनके कारण विदेशी विनिमय का प्रवाह देश से बाहर को जाता है, उन्हें भुगतान शेष के पूँजी खाते में किन मदों में लिखा जाता है?
(A) धनात्मक मदों में
(B) ऋणात्मक मदों में
(C) शून्य मदों में
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) ऋणात्मक मदों में

10. निर्यात-आयात के मूल्य के अंतर को कहते हैं-
(A) व्यापार शेष
(B) भुगतान शेष
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) व्यापार शेष

11. केवल दृश्य मदों को शामिल किया जाता है-
(A) व्यापार शेष में
(B) भुगतान शेष में
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) व्यापार शेष में

12. व्यापार शेष
(A) भुगतान शेष + शुद्ध अदृश्य मदें
(B) भुगतान शेष – शुद्ध अदृश्य मदें
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) भुगतान शेष – शुद्ध अदृश्य मदें

13. स्वायत्त (Autonomous) मदें उन सौदों से संबंधित होती हैं जिनका-
(A) निर्धारण लाभ को ध्यान में रखकर किया जाता है
(B) संबंध भुगतान शेष की स्थिति से नहीं होता
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

14. समायोजक (Accommodating) मदें भुगतान शेष के खाते की वे मदें हैं जिनका
(A) निर्धारण लाभ को ध्यान में रखकर नहीं किया जाता
(B) संबंध देश के भुगतान शेष की धनात्मक अथवा ऋणात्मक स्थिति से होता है
(C) उद्देश्य भुगतान शेष की समानता स्थापित कराना होता है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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15. भुगतान शेष सदैव होता है
(A) प्रतिकूल
(B) संतुलित
(C) अनुकूल
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) संतुलित

16. व्यापार शेष की तुलना में भुगतान शेष है
(A) अधिक व्यापक
(B) कम व्यापक
(C) व्यापक भी तथा नहीं भी
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) अधिक व्यापक

17. भुगतान शेष के असंतुलन से अभिप्राय है-
(A) बचत वाला भुगतान शेष
(B) घाटे वाला भुगतान शेष
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

18. भुगतान शेष का घाटे वाला असंतुलन तब होता है जब-
(A) प्राप्तियों तथा भुगतानों का शुद्ध शेष ऋणात्मक (-) है
(B) प्राप्तियों तथा भुगतानों का शुद्ध शेष धनात्मक (+) है
(C) प्राप्तियों तथा भुगतानों का शुद्ध शेष बराबर (=) है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं ।
उत्तर:
(A) प्राप्तियों तथा भुगतानों का शुद्ध शेष ऋणात्मक (-) है

19. ब्रेटन वुड्स व्यवस्था किस वर्ष से प्रारंभ हुई?
(A) 1944 से
(B) 1960 से
(C) 1994 से
(D) 1947 से
उत्तर:
(A) 1944 से

20. यदि व्यापार शेष (-) 600 करोड़ रुपए है और निर्यात का मूल्य 500 करोड़ रुपए है तो आयात का मूल्य होगा
(A) -1,300 करोड़ रुपए
(B) 300 करोड़ रुपए
(C) 1,100 करोड़ रुपए
(D) 1,200 करोड़ रुपए
उत्तर:
(C) 1,100 करोड़ रुपए

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21. विनिमय दर से अभिप्राय अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाज़ार में एक करेंसी की अन्य करेंसियों के रूप में-
(A) कीमत से है
(B) विनिमय के अनुपात से है
(C) (A) और (B) दोनों
(D) वस्तु विनिमय से है
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

22. वर्तमान में विनिमय दरों के किस रूप को अपनाया जाता है?
(A) स्थिर विनिमय दरों के
(B) नम्य (लोचशील) विनिमय दरों के
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) नम्य (लोचशील) विनिमय दरों के

23. स्थिर विनिमय प्रणाली के अंतर्गत विनिमय दर का निर्धारण करेंसी की एक इकाई में निहित निम्नलिखित में से किसके आधार पर किया जाता है?
(A) चाँदी की मात्रा
(B) सोने की मात्रा
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) सोने की मात्रा

24. टकसाली दर से अभिप्राय है-
(A) समान क्रय-शक्ति
(B) दो करेंसियों में स्वर्ण का भार
(C) विदेशी करेंसी की माँग तथा पूर्ति
(D) दो देशों में कीमत स्तर
उत्तर:
(B) दो करेंसियों में स्वर्ण का भार

25. विनिमय दर की समंजनीय प्रणाली (या ब्रेटन वुडस प्रणाली) के अनुसार-
(A) विभिन्न करेंसियों को एक करेंसी (अमेरिकी डॉलर) के साथ संबंधित कर दिया गया
(B) अमेरिकी डॉलर का एक निश्चित कीमत पर स्वर्ण मूल्य निर्धारित कर दिया गया
(C) दो करेंसियों के बीच समता उनमें पाई जाने वाली स्वर्ण की मात्रा द्वारा निर्धारित की जाती थी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

26. वर्तमान समय में एक देश की मुद्रा की विभिन्न देशों की मुद्राओं के बीच विनिमय दर-
(A) एक ही होगी
(B) अलग-अलग होगी.
(C) निश्चित होगी
(D) अनिश्चित होगी
उत्तर:
(B) अलग-अलग होगी

27. निम्नलिखित में से स्थिर विनिमय प्रणाली का कौन-सा लाभ नहीं है?
(A) अस्थिरता
(B) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा
(C) स्थिरता
(D) समष्टिगत नीतियों में समन्वय
उत्तर:
(A) अस्थिरता

28. स्थिर विनिमय प्रणाली का निम्नलिखित में से कौन-सा दोष नहीं है?
(A) विशाल अंतर्राष्ट्रीय निधि की आवश्यकता
(B) पूँजी का असीमित आवागमन
(C) जोखिम पूँजी का निरुत्साहित होना
(D) साधनों के आबंटन में कठोरता
उत्तर:
(B) पूँजी का असीमित आवागमन

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29. नम्य(लोचशील) वह दर है जिसका निर्धारण-
(A) मुद्रा में निहित सोने की मात्रा द्वारा होता है
(B) विभिन्न मुद्राओं की पूर्ति तथा माँग द्वारा होता है
(C) एक करेंसी के टकसाली मूल्य द्वारा होता है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) विभिन्न मुद्राओं की पूर्ति तथा माँग द्वारा होता है

30. जिस विनिमय दर पर विदेशी मुद्रा की माँग उसकी पूर्ति के बराबर हो जाए तो उसे कहते हैं-
(A) विनिमय की समानता दर
(B) विनिमय की असंतुलन दर
(C) संतुलन दर
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) संतुलन दर

31. विदेशी विनिमय की माँग निम्नलिखित में से किस उद्देश्य के लिए की जाती है?
(A) अंतर्राष्ट्रीय ऋणों का भुगतान करने के लिए
(B) शेष विश्व में निवेश करने के लिए
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

32. विदेशी मुद्रा की माँग तथा विनिमय दर में क्या संबंध पाया जाता है?
(A) विपरीत
(B) प्रत्यक्ष
(C) कोई संबंध नहीं
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) विपरीत

33. विदेशी विनिमय की पूर्ति तथा विनिमय दर में क्या संबंध पाया जाता है?
(A) विपरीत
(B) प्रत्यक्ष
(C) बहुत निकट
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) प्रत्यक्ष

34. नम्य विनिमय दर प्रणाली का निम्नलिखित में से कौन-सा दोष नहीं है?
(A) अस्थिरता
(B) समष्टिगत नीतियों के समन्वय में कठिनाई
(C) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में स्थिरता
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में स्थिरता

35. विदेशी विनिमय बाज़ार वह बाज़ार है जिसमें संसार के विभिन्न देशों की राष्ट्रीय करेंसियों को-
(A) बेचा जाता है
(B) खरीदा जाता है
(C) बेचा अथवा खरीदा जाता है
(D) विनिमय नहीं होता
उत्तर:
(C) बेचा अथवा खरीदा जाता है।

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36. हाजिर (चालू) बाज़ार का अर्थ उस बाज़ार से है जिसमें-
(A) केवल चालू या हाजिर लेन-देन किया जाता है
(B) किसी भविष्य में किसी तिथि पर लेन-देन किया है
(C) तात्कालिक विनिमय दर का निर्धारण होता है
(D) (A) और (C) दोनों
उत्तर:
(D) (A) और (C) दोनों

37. वर्तमान समय में विनिमय दर का निर्धारण होता है-
(A) IMF ART
(B) IBRD द्वारा
(C) WTO GRI
(D) विदेशी मुद्रा बाज़ार में विदेशी मुद्रा की माँग और पूर्ति द्वारा
उत्तर:
(D) विदेशी मुद्रा बाज़ार में विदेशी मुद्रा की माँग और पूर्ति द्वारा

38. विनिमय दर का निर्धारण होता है-
(A) विदेशी मुद्रा की माँग से
(B) विदेशी तथा देशी मुद्रा की माँग से
(C) विदेशी तथा देशी मुद्रा की माँग व पूर्ति से
(D) विदेशी मुद्रा की माँग तथा पूर्ति से
उत्तर:
(D) विदेशी मुद्रा की माँग तथा पूर्ति से

39. स्वतंत्र विनिमय बाज़ार में जब पूर्ति यथास्थिर रहते हुए विदेशी मुद्रा की माँग बढ़ जाती है तो विनिमय दर में ……………. होती है और जब माँग यथास्थिर रहे परंतु पूर्ति बढ़ जाए तो विनिमय दर में …………. हो जाती है।
(A) कमी, शून्य
(B) वृद्धि, कमी
(C) वृद्धि, शून्य
(D) वृद्धि, वृद्धि
उत्तर:
(B) वृद्धि, कमी

40. नम्य (लोचपूर्ण) विनिमय प्रणाली में विनिमय दर निर्धारित होती है-
(A) देश के मौद्रिक प्राधिकरण (Authority) द्वारा
(B) स्वर्ण कीमत द्वारा
(C) विदेशी विनिमय बाज़ार की माँग-पूर्ति शक्ति द्वारा
(D) विनिमय मूल्यांतर द्वारा
उत्तर:
(C) विदेशी विनिमय बाज़ार की माँग-पूर्ति शक्ति द्वारा

41. देश में मुद्रास्फीति बढ़ने पर विनिमय दर-
(A) देश के विपक्ष में हो जाती है
(B) देश के पक्ष में हो जाती है
(C) अप्रभावित रहती है।
(D) उपर्युक्त सभी दशाएँ संभव हैं
उत्तर:
(A) देश के विपक्ष में हो जाती है

42. नम्य विनिमय दर प्रणाली में इंग्लैंड के पौंड की अमेरिका में माँग बढ़ती है, तब-
(A) डॉलर का मूल्यह्रास (Depreciation) होगा
(B) पौंड का मूल्यह्रास होगा
(C) डॉलर की मूल्यवृद्धि (Appreciation) होगी
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) डॉलर का मूल्यह्रास (Depreciation) होगा

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43. विनिमय दर यदि 3 डॉलर = 1 पौंड से बदल कर 2 डॉलर = 1 पौंड हो जाती हे तब इसका अर्थ है-
(A) डॉलर का मूल्यह्रास
(B) डॉलर की मूल्यवृद्धि
(C) पौंड की मूल्यवृद्धि
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) डॉलर की मूल्यवृद्धि

44. यदि किसी देश में किसी समय स्टोरियों द्वारा विदेशी मुद्रा को अधिक मात्रा में खरीदा जाता है, तब उस देश में विनिमय दर-
(A) घटती है
(B) बढ़ती है
(C) स्थिर बनी रहती है
(D) उपर्युक्त सभी असत्य
उत्तर:
(B) बढ़ती है

45. देश में विस्तारवादी मौद्रिक नीति देश में विनिमय दर को-
(A) घटाती है
(B) बढ़ाती है
(C) अप्रभावित रखती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) घटाती है

46. नम्य (लोचपूर्ण) विनिमय दर के लिए कौन-सा कथन सत्य नहीं है?
(A) विनिमय दर परिवर्तनशील होती है
(B) इस दर पर सरकार का नियंत्रण रहता है
(C) इसमें माँग और पूर्ति की शक्तियों के फलस्वरूप परिवर्तन होता है
(D) उपर्युक्त सभी सत्य
उत्तर:
(B) इस दर पर सरकार का नियंत्रण रहता है

47. विनिमय दर का निर्धारण माँग व पूर्ति से होता है, इस संदर्भ में किसी देश के अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में माँग किससे निर्धारित होती है? (A) उस देश के आयात से
(B) उस देश द्वारा लिए गए ऋणों से
(C) उस देश के निर्यातों से
(D) उस देश की राष्ट्रीय आय से
उत्तर:
(C) उस देश के निर्यातों से

48. नम्य (लोचदार) विनिमय दर नीति-
(A) माँग के नियम पर आधारित है
(B) पूर्ति के नियम पर आधारित है
(C) (A) और (B) दोनों पर आधारित है
(D) उपर्युक्त में से किसी पर भी आधारित नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों पर आधारित है।

49. स्वर्णमान में विनिमय दर का निर्धारण किया जाता था-
(A) टकसाली समता सिद्धांत द्वारा
(B) क्रय-शक्ति समता सिद्धांत द्वारा
(C) (A) और (B) दोनों द्वारा
(D) उपर्युक्त में से किसी के द्वारा नहीं
उत्तर:
(A) टकसाली समता सिद्धांत द्वारा

50. वर्तमान में विनिमय दर का निर्धारण टकसाली समता सिद्धांत द्वारा महत्त्वहीन हो गया है क्योंकि-
(A) वर्तमान में किसी भी देश ने स्वर्णमान नहीं अपना रखा है
(B) वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय पटल पर स्वर्ण आयात-निर्यात पर प्रतिबंध लगे हुए हैं
(C) वर्तमान में सभी देशों ने अपरिवर्तनीय पत्र मुद्रामान अपना रखा है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

51. स्वर्णमान वाले देशों की मुद्राओं की विनिमय दरों के उच्चावचन की सीमाएँ निर्धारित होती हैं-
(A) उनके स्वर्ण के मूल्यों के बीच
(B) स्वर्ण निर्यात तथा आयात मूल्यों के बीच
(C) रजत तथा स्वर्ण की मात्रा पर
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) स्वर्ण निर्यात तथा आयात मूल्यों के बीच

52. क्रय-शक्ति समता सिद्धांत के अनुसार विनिमय दर किस देश के पक्ष में होगी यदि पाँच वर्ष में A देश का सूचकांक 150 और B देश का सूचकांक 200 हो जाए।
(A) ‘A’ देश के
(B) ‘B’ देश के
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से किसी के नहीं
उत्तर:
(A) ‘A’ देश के

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53. विनिमय दर को निम्नलिखित प्रक्रिया द्वारा बाज़ार के सभी भागों में समान बनाया जा सकता है-
(A) सट्टे (Specutation) द्वारा
(B) विनिमय की मध्यस्थता (Arbitrage) द्वारा
(C) विदेशी मुद्रा की माँग एवं पूर्ति द्वारा
(D) ब्याज मध्यस्थता द्वारा
उत्तर:
(C) विदेशी मुद्रा की माँग एवं पूर्ति द्वारा

54. हाजिर दर (Spot Rate) एवं अग्रिम दर (Forward Rate) के बीच निम्न में से कौन-सी क्रिया होती है?
(A) सट्टा
(B) द्वैद्य रक्षण
(C) मध्यस्थता
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

55. वायदा बाज़ार वह बाज़ार है जिसमें-
(A) भविष्य में पूरा होने वाला लेन-देन का कारोबार होता है
(B) यह भविष्य की विनिमय दर को परिभाषित करता है
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

56. यदि 50 रुपए 2 डॉलर खरीदने के लिए आवश्यक हैं तो विनिमय दर है-
(A) 50 रुपए = 2 डॉलर
(B) 25 रुपए = 1 डॉलर
(C) 20 रुपए = 1 डॉलर
(D) 100 रुपए = 4 डॉलर
उत्तर:
(B) 25 रुपए = 1 डॉलर

57. नम्य (Flexible) विनिमय दर व्यवस्था का लाभ है-
(A) आर्थिक उथल-पुथल से बचाव
(B) विदेशी मुद्राओं को रिज़र्व रखने की जरूरत नहीं
(C) अंतर्राष्ट्रीय सौदों में जोखिम और अनिश्चितता
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं

58. स्थिर विनिमय दर व्यवस्था का लाभ है-
(A) आर्थिक उथल-पुथल से बचाव
(B) विदेशी मुद्राओं को रिज़र्व रखने की जरूरत नहीं
(C) अंतर्राष्ट्रीय सौदों में जोखिम और अनिश्चितता
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) आर्थिक उथल-पुथल से बचाव

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. एक देश के निवासियों तथा दूसरे देश के निवासियों में किए गए आर्थिक सौदों का क्रमबद्ध लेखा ………………….. कहलाता है। (भुगतान शेष/व्यापार शेष)
उत्तर:
भुगतान शेष

2. वस्तुओं के निर्यात तथा आयात में अंतर ………………… कहलाता है। (भुगतान शेष/व्यापार शेष)
उत्तर:
व्यापार शेष

3. भुगतान शेष सदैव होता है। (असंतुलित/संतुलित)
उत्तर:
संतुलित

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4. व्यापार शेष की तुलना में भुगतान शेष ………………… होता है। (अधिक व्यापक/कम व्यापक)
उत्तर:
अधिक व्यापक

5. यदि विदेशी मुद्रा बाज़ार में लेन-देन दैनिक प्रकृति का है तो वह ………………… बाज़ार कहलाता है। (हाजिर/कारक)
उत्तर:
हाजिर

6. नम्य विनिमय दर में विनिमय दर का निर्धारण ………………….. माँग तथा पूर्ति की शक्तियों द्वारा होता है। (बाज़ार/कारक)
उत्तर:
बाज़ार

C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत

  1. नम्य विनिमय दर पर सरकार का नियंत्रण होता है।
  2. व्यापार-शेष और भुगतान-शेष में अंतर पाया जाता है।
  3. भुगतान-शेष एक आर्थिक बैरोमीटर है जिसकी सहायता से किसी देश की अन्तर्राष्ट्रीय भुगतानों की स्थिति का अनुमान लगाया जाता है।
  4. व्यापार-शेष को दृश्य वस्तुओं का सन्तुलन भी कहा जाता है।
  5. भुगतान-शेष व्यापार-शेष से विस्तृत धारणा है।
  6. वास्तविक विनिमय दर, स्थिर कीमतों पर आधारित विनिमय दर होती है।
  7. किसी मुद्रा की औसत सापेक्ष क्षमता का माप, वास्तविक प्रभावी विनिमय दर कहलाती है।
  8. विश्व की अधिकांश अर्थव्यवस्थाएँ बंद अर्थव्यवस्थाएँ हैं।
  9. स्थिर विनिमय दर प्रणाली में विनिमय की दर सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है।
  10. सेयर्स के अनुसार मुद्राओं के आपसी मूल्यों को विदेशी विनिमय दर कहते हैं।

उत्तर:

  1. गलत
  2. सही
  3. सही
  4. सही
  5. सही
  6. सही
  7. गलत
  8. गलत
  9. सही
  10. सही

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक बंद अर्थव्यवस्था क्या है?
उत्तर:
एक बंद अर्थव्यवस्था से अभिप्राय उस अर्थव्यवस्था से है जिसका अन्य देशों के साथ कोई आर्थिक संबंध नहीं होता।

प्रश्न 2.
एक खुली अर्थव्यवस्था क्या है?
उत्तर:
एक खुली अर्थव्यवस्था से अभिप्राय उस अर्थव्यवस्था से है जिसके अन्य देशों के साथ आर्थिक संबंध होते हैं।

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प्रश्न 3.
एक अर्थव्यवस्था के खुलेपन की मात्रा को कैसे मापा जाता है?
उत्तर:
सकल घरेलू उत्पाद में कुल विदेशी व्यापार के अनुपात के रूप में एक अर्थव्यवस्था के खुलेपन की मात्रा को मापा जाता है।

प्रश्न 4.
भुगतान शेष (BOP) क्या है?
उत्तर:
भुगतान शेष (Balance of Payment) देश के शेष विश्व से आर्थिक लेन-देन के फलस्वरूप समस्त अंतर्राष्ट्रीय भुगतानों और प्राप्तियों का अंतर है।

प्रश्न 5.
व्यापार शेष का क्या अर्थ है?
उत्तर:
व्यापार शेष से अभिप्राय किसी देश के केवल वस्तुओं या दृश्य मदों के आयात और निर्यात के अंतर से है।

प्रश्न 6.
भुगतान शेष (अदायगी संतुलन) खाते का क्या अर्थ है?
उत्तर:
भुगतान शेष (अदायगी संतुलन) खाते से अभिप्राय शेष विश्व के साथ किसी दिए हुए वित्तीय वर्ष में आर्थिक लेन-देनों के व्यवस्थित रिकॉर्ड से है।

प्रश्न 7.
भुगतान शेष के चालू व पूँजी खातों के मुख्य घटक बताएँ।
उत्तर:
भुगतान शेष के चालू खाते के घटक हैं-(i) वस्तुओं का आयात-निर्यात, (ii) सेवाओं का आयात-निर्यात और (ii) एक-पक्षीय हस्तांतरण।
भुगतान शेष के पूँजी खाते के घटक हैं-(i) निजी लेन-देन, (ii) सरकारी लेन-देन, (iii) प्रत्यक्ष निवेश और (iv) पत्राधार निवेश।

प्रश्न 8.
भुगतान शेष के पूँजी खाते का क्या अर्थ है?
उत्तर:
भुगतान शेष का पूँजी खाता वह खाता है जिसमें एक देश के निवासियों द्वारा शेष विश्व से पूँजीगत परिसंपत्तियों तथा दायित्वों के आदान-प्रदानों का लेखा किया जाता है।

प्रश्न 9.
एक देश के भुगतान शेष खाते में क्या दर्ज किया जाता है?
उत्तर:
एक देश के भुगतान शेष खाते में एक देश के अन्य देशों के साथ किए गए वस्तुओं, सेवाओं और परिसंपत्तियों के लेन-देन दर्ज किए जाते हैं।

प्रश्न 10.
भुगतान शेष में घाटे (Deficit) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भुगतान शेष में घाटे से अभिप्राय यह है कि समस्त प्राप्तियों और भुगतानों का शुद्ध शेष ऋणात्मक (-) होता है।

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प्रश्न 11.
भुगतान शेष में आधिक्य (Surplus) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भुगतान शेष में आधिक्य से अभिप्राय यह है कि सभी प्राप्तियों और भुगतानों का शुद्ध शेष धनात्मक (+) होता है।

प्रश्न 12.
समायोजक (Accommodating) और स्वायत्त (स्वप्रेरित) (Autonomous) मदों से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
समायोजक मदों का अभिप्राय उन लेन-देनों से है जो भुगतान शेष (BOP) में किन्हीं अन्य गतिवधियों के कारण करने जरूरी हो जाते हैं; जैसे सरकार द्वारा वित्तीयन।

स्वायत्त (स्वप्रेरित) मदों से अभिप्राय उन अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक लेन-देनों (Transactions) से है जो अधिकतम लाभ कमाने जैसे उद्देश्यों से प्रेरित होते हैं।

प्रश्न 13.
विदेशी मुद्रा बाज़ार क्या है?
उत्तर:
विदेशी मुद्रा बाज़ार वह बाज़ार है जिसमें विभिन्न देशों की मुद्राओं को परस्पर बेचा व खरीदा जाता है।

प्रश्न 14.
विनिमय बाज़ार में संतुलन कहाँ होगा?
उत्तर:
विनिमय बाज़ार में संतुलन वहाँ होगा जहाँ विदेशी मुद्रा का माँग वक्र विदेशी मुद्रा के पूर्ति वक्र को काटता है।

प्रश्न 15.
विदेशी मुद्रा की माँग के दो स्रोत बताइए।
उत्तर:

  1. विदेशों में उपहार भेजने के लिए
  2. विदेशों से वस्तुओं और सेवाओं का क्रय।

प्रश्न 16.
विदेशी मुद्रा की पूर्ति के दो स्रोत बताइए।
उत्तर:

  1. निर्यात
  2. विदेशी निवेश।

प्रश्न 17.
विनिमय की दर में वृद्धि का क्या अर्थ है?
उत्तर:
विनिमय की दर में वृद्धि का अर्थ यह है कि विदेशी मुद्रा की एक इकाई के लिए अपने देश की पहले से अधिक मुद्रा देनी होगी।

प्रश्न 18.
आंतरिक मुद्रा के मूल्यहास से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आंतरिक मुद्रा के मूल्यह्रास से अभिप्राय देशीय मुद्रा इकाइयों में विदेशी मुद्राओं की कीमत में वृद्धि से है। दूसरे शब्दों में, आंतरिक मुद्रा के ह्रास से अभिप्राय देश की मुद्रा के मूल्य में कमी से है।।

प्रश्न 19.
मुद्रा अधिमूल्यन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मुद्रा अधिमूल्यन से अभिप्राय देशी मुद्रा की इकाइयों में विदेशी मुद्रा की कीमत में कमी से है।

प्रश्न 20.
एक देश में विनिमय दर की कौन-सी दो व्यवस्थाएँ हो सकती हैं?
उत्तर:

  1. स्थिर विनिमय दर व्यवस्था
  2. नम्य (लोचदार) विनिमय दर व्यवस्था।

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प्रश्न 21.
स्थिर विनिमय दर व्यवस्था से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
स्थिर विनिमय दर व्यवस्था से अभिप्राय उस व्यवस्था से है जिसमें सभी विनिमय (लेन-देन) सरकार द्वारा घोषित की गई दर पर होते हैं। इस विनिमय दर में बहुत मामूली उतार-चढ़ाव मान्य होते हैं।

प्रश्न 22.
समंजनीय सीमाबंध व्यवस्था (Adjustable Peg System) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
समंजनीय सीमाबंध व्यवस्था से अभिप्राय एक देश द्वारा अपनी मुद्रा की विनिमय दर को किसी अन्य देश की मुद्रा की इकाइयों में नियत करने से है। इस नियत दर में किन्हीं विशेष परिस्थितियों में ही परिवर्तन किया जाता है।

प्रश्न 23.
नम्य (Flexible) विनिमय दर व्यवस्था से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
नम्य विनिमय दर व्यवस्था से अभिप्राय उस व्यवस्था से है जिसमें विनिमय दर का निर्धारण विदेशी मुद्रा बाज़ार में माँग और आपूर्ति द्वारा होता है। इस व्यवस्था में सरकारी हस्तक्षेप नहीं होता। इसे लचीली विनिमय दर भी कहते है।

प्रश्न 24.
विस्तृत सीमापट्टी व्यवस्था से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विस्तृत सीमापट्टी व्यवस्था से अभिप्राय उस व्यवस्था से है जिसमें प्रत्येक सदस्य देश को उसकी घोषित विनिमय दर से 10% तक उतार-चढ़ाव करने की स्वतंत्रता होती है।

प्रश्न 25.
प्रबंधित तिरती व्यवस्था (Managed Floating System) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रबंधित तिरती व्यवस्था से अभिप्राय उस व्यवस्था से है जिसमें मौद्रिक अधिकारी ऐच्छिक आधार पर विनिमय दर निर्धारण में हस्तक्षेप कर सकते हैं।

प्रश्न 26.
विदेशी मुद्रा का हाजिर बाज़ार (Spot Market) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विदेशी मुद्रा के हाजिर बाज़ार से अभिप्राय उस मुद्रा बाज़ार से है जिसमें तुरंत होने वाले लेन-देन के लिए विदेशी मुद्रा की दर निर्धारित की जाती है।

प्रश्न 27.
विदेशी मुद्रा का वायदा बाज़ार (Forward Market) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विदेशी मुद्रा के वायदा बाज़ार से अभिप्राय उस मुद्रा बाज़ार से है जिसमें भविष्य में किसी तिथि पर होने वाले लेन-देन के लिए विदेशी मुद्रा की दर निर्धारित की जाती है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक बंद अर्थव्यवस्था की तुलना में एक खुली अर्थव्यवस्था के क्या लाभ हैं? अथवा ‘एक खुली अर्थव्यवस्था में चयन की अधिक स्वतंत्रता होती है।’ समझाइए।
उत्तर:
यह कहना उचित है कि एक बंद अर्थव्यवस्था की तुलना में एक खुली अर्थव्यवस्था में लोगों को चयन की अधिक स्वतंत्रता होती है, जिसे निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है-(i) उपभोक्ताओं और फर्मों को घरेलू एवं विदेशी वस्तुओं के बीच चयन का अवसर मिलता है, (i) निवेशकों को घरेलू व विदेशी परिसंपत्तियों के बीच चयन का अवसर मिलता है, (iii) फर्मों को उत्पादन के स्थान का चयन करने और श्रमिकों को कहाँ काम देने, यह चयन की स्वतंत्रता होती है।

प्रश्न 2.
भुगतान शेष लेखांकन किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर:
भुगतान शेष खाते में सभी लेन-देन को दोहरी लेखा प्रणाली के आधार पर लिखा जाता है। प्रत्येक लेन-देन को दो प्रविष्टियों के रूप में लिखा जाता है- एक पक्ष ‘नाम’ और दूसरा पक्ष ‘जमा’। इन दोनों प्रविष्टियों का आकार समान होता है, जिसके कारण ‘जमा’ पक्ष की प्रविष्टियों का योगफल सदा ‘नाम’ पक्ष की प्रविष्टियों के योग के बराबर रहता है। उदाहरण के लिए, जब किसी अन्य देश से भुगतान प्राप्त होता है तो यह क्रेडिट सौदा है और जब किसी अन्य देश को भुगतान किया जाता है तो यह डेबिट सौदा है। भुगतान शेष खाते के लेन-देन को हम निम्नलिखित पाँच प्रमुख श्रेणियों में वर्गीकृत करते हैं-

  • वस्तुएँ और सेवाएँ खाता
  • एक-पक्षीय हस्तांतरण खाता
  • दीर्घकालिक पूँजी खाता|
  • अल्पकालिक निजी पूँजी खाता
  • अल्पकालिक सरकारी पूँजी खाता।

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प्रश्न 3.
पूँजी खाते के संघटकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पूँजी खाते के संघटक निम्नलिखित हैं-

  1. निजी लेन-देन-इस लेन-देन से व्यक्तियों, व्यवसायों और गैर-सरकारी निकायों द्वारा निजी रूप से धारित परिसंपत्तियाँ और दायित्व प्रभावित होते हैं।
  2. सरकारी लेन-देन सरकारी लेन-देन सरकार और उसकी संस्थाओं की परिसंपत्तियों और दायित्वों को प्रभावित करते हैं।
  3. प्रत्यक्ष निवेश-प्रत्यक्ष निवेश किसी परिसंपत्ति को खरीदकर उस पर अपना नियंत्रण स्थापित करता है।
  4. पत्राधार निवेश-पत्राधार निवेश (Perfect Investment) परिसंपत्तियों के क्रेता को उन पर नियंत्रण प्रदान नहीं करता। सरकार को विदेशी बैंकों द्वारा ऋण दिया जाना इस वर्ग में आता है।

प्रश्न 4.
भुगतान शेष से क्या अभिप्राय है? भुगतान शेष, व्यापार शेष से किस प्रकार विस्तृत अवधारणा है? अथवा व्यापार शेष तथा भुगतान शेष में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भुगतान शेष का अर्थ-मोटे रूप में, भुगतान शेष एक लेखा वर्ष में एक देश के समस्त अंतर्राष्ट्रीय भुगतानों और प्राप्तियों का अंतर है। भुगतान शेष लेखा एक देश का अन्य देशों के साथ एक वर्ष में किए गए समस्त आर्थिक सौदों का एक क्रमबद्ध लेखा है। इसमें दृश्य मदें (वस्तुएँ), अदृश्य मदें (गैर-साधन सेवाएँ) एक-पक्षीय हस्तांतरण और पूँजीगत लेन-देन शामिल होते हैं। भौतिक वस्तुओं (जैसे मशीनरी, चाय) का आयात-निर्यात दृश्य मदें हैं, क्योंकि वे दिखाई देती हैं जबकि सेवाएँ (जैसे जहाज़रानी, बीमा आदि) अदृश्य मदें हैं, क्योंकि वे राष्ट्रीय सीमा को पार करते दिखाई नहीं देती हैं। पुनः भुगतान शेष खाता दोहरी लेखांकन प्रणाली के अनुसार लिखा जाता है जिससे भुगतान और प्राप्तियाँ सदा बराबर रहती हैं। दूसरे शब्दों में, भुगतान शेष, तकनीकी दृष्टि से सदा संतुलन में रहता है।

व्यापार शेष और भुगतान शेष में अंतर-भुगतान शेष, व्यापार शेष की तुलना में एक व्यापक व विस्तृत अवधारणा है क्योंकि व्यापार शेष, भुगतान शेष के चार घटकों में से केवल एक घटक (दृश्य मदों के आयात-निर्यात का अंतर) है। यह दोनों के बीच अंतर से स्पष्ट है

व्यापार शेष भुगतान शेष
1. व्यापार शेष में केवल दृश्य मदें (वस्तुएँ) शामिल होती हैं। 1. भुगतान शेष में दृश्य मदें (वस्तुएँ) और अदृश्य मदें (सेवाएँ) दोनों शामिल होती हैं।
2. इसमें पूँजीगत लेन-देन शामिल नहीं होते। 2. इसमें पूँजीगत लेन-देन शामिल होते हैं।
3. यह भुगतान शेष के चालू खाते का एक भाग है। 3. यह संपूर्ण चालू खाते और पूँजी खाते का भाग है।
4. यह अनुकूल, प्रतिकूल या संतुलित हो सकता है। 4. यह लेखांकन दृष्टि से सदा संतुलित रहता है।
5. इसके घाटे को भुगतान शेष की मदों से पूरा किया जा सकता है। 5. इसके घाटे को व्यापार शेष द्वारा पूरा नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 5.
स्थिर विनिमय दर के किन्हीं चार लाभों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्थिर विनिमय दर के लाभ निम्नलिखित हैं:
(i) स्थिर विनिमय दर विदेशी व्यापार को सविधाजनक बनाती है क्योंकि उनसे व्यापार में आने वाली वस्तुओं की कीमतों का सही अनुमान लगाया जा सकता है।

(ii) स्थिर विनिमय दर व्यवस्था में कोई अनिश्चितता नहीं होती और न ही कोई जोखिम होता है। इस प्रकार स्थिर विनिमय दर व्यवस्थित तथा अबाध रूप से दीर्घकालीन पूँजी प्रवाहों को प्रोत्साहन देती है।

(iii) स्थिर विनिमय दर प्रणाली एक प्रतिबंध का काम करती है और सरकार पर यह अनुशासन लगाती है कि वे देश के भीतर उत्तरदायित्वपूर्ण वित्तीय नीतियों का पालन करे।

(iv) स्थिर विनिमय दर प्रणाली के अंतर्गत सट्टेबाजी समाप्त हो जाती है क्योंकि सट्टेबाजी का विनिमय दर पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।

प्रश्न 6.
व्यापार शेष (Balance of Trade) और चालू खाता शेष (Balance of CurrentAccount) में भेद कीजिए।
उत्तर:
व्यापार शेष केवल दृश्य मदों (वस्तुओं) के निर्यात मूल्य और आयात मूल्य का अंतर है। दूसरे शब्दों में, व्यापार शेष में केवल दृश्य मदों को शामिल किया जाता है। इसके विपरीत चालू खाता शेष में दृश्य मदें, अदृश्य मदें (सेवाएँ) और एक-पक्षीय हस्तांतरण के आयात-निर्यात का ब्यौरा दिया होता है। इस प्रकार व्यापार शेष, चालू खाता शेष का एक भाग है। स्पष्टतः व्यापार शेष की तुलना में ‘चालू खाता शेष’ एक विस्तृत अवधारणा है।

प्रश्न 7.
विदेशी मुद्रा दर का क्या अर्थ है? तीन कारण दीजिए कि क्यों लोग विदेशी मुद्रा प्राप्त करना चाहते हैं?
उत्तर:
विदेशी मुद्रा दर से अभिप्राय उस दर से है जिस पर एक देश की मुद्रा को अन्य देश की मुद्रा की इकाइयों में बदला जा सकता है। निम्नलिखित कारणों के लिए लोग विदेशी मुद्रा प्राप्त करना चाहते हैं-

  • अन्य देशों से वस्तुओं और सेवाओं को क्रय करने के लिए
  • विदेशों को उपहार भेजने के लिए
  • किसी अन्य देश में वित्तीय परिसंपत्तियाँ खरीदने के लिए
  • विदेशी मुद्राओं के मूल्यमान को लेकर व्यावसायिक दृष्टि से सट्टेबाजी के लिए।

प्रश्न 8.
भुगतान शेष तथा राष्ट्रीय आय लेखों के बीच संबंध की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भुगतान शेष अंतर्राष्ट्रीय प्राप्तियों और भुगतानों से संबंधित होता है। इसलिए भुगतान शेष राष्ट्रीय आय को प्रभावित करते हैं। एक अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन पर समस्त व्यय में घरेलू क्षेत्र के उपभोक्ताओं, निवेशकों तथा सरकार के व्यय के साथ ही विदेशियों द्वारा उक्त देश से आयात पर व्यय को जोड़ा जाता है। अर्थात्
Y = C + I + G + X
इस प्रकार सृजित आय का प्रयोग उपभोग, बचत और कर भुगतान में होता है। विदेशों से आयात पर व्यय (M) भी इसी में से किया जाता है। अर्थात्
Y = C + S + T + M
राष्ट्रीय आय लेखांकन सिद्धांत के अनुसार सृजित आय का मान प्रयोग की गई आय के समान होगा। अर्थात्
Y = C+ I + G + x
= C + S + T + M
I + G + x = S + T + M
इनमें I, G, X आय के चक्रीय प्रवाह में भरण (Injections) हैं और S, T, M क्षरण (Leakages) हैं। इसलिए संतुलन में प्रयोजित भरणों (Planned Injections) का योग, प्रायोजित क्षरणों (Planned Leakages) के योग के बराबर होगा। यही राष्ट्रीय आय और भुगतान शेष में संबंध है।

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प्रश्न 9.
विदेशी मुद्रा दर क्या है? विदेशी मुद्रा की कीमत कम होने से इसकी माँग क्यों बढ़ती है?
उत्तर:
विदेशी मुद्रा दर से अभिप्राय उस दर से है जिस पर एक देश की मुद्रा का दूसरे देश की मुद्रा से विनिमय किया जाता है। विदेशी मुद्रा की माँग के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं

  • अन्य देशों से वस्तुओं और सेवाओं को क्रय करने के लिए।
  • विदेशों को उपहार भेजने के लिए।
  • किसी अन्य देश में वित्तीय परिसंपत्तियाँ खरीदने के लिए।
  • विदेशी मुद्राओं के मूल्यमान को लेकर व्यावसायिक दृष्टि से सट्टेबाजी के लिए।

विदेशी मुद्रा बाज़ार में भी माँग का नियम लागू होता है और विदेशी मुद्रा का माँग वक्र ऊपर से नीचे दाईं ओर गिरता हुआ होता है। जब विदेशी मुद्रा की कीमत कम होती है तो विदेशी मुद्रा की माँग बढ़ती है।

प्रश्न 10.
विदेशी विनिमय बाज़ार से क्या अभिप्राय है? इसके मुख्य कार्य लिखें।
उत्तर:
विदेशी विनिमय बाज़ार से अभिप्राय उस बाज़ार से है जिसमें विभिन्न देशों की मुद्राओं को परस्पर बेचा व खरीदा जाता है। विदेशी विनिमय बाज़ार निम्नलिखित तीन कार्य करता है

  • हस्तांतरण कार्य-विदेशी विनिमय बाज़ार देशों के बीच क्रय-शक्ति का हस्तांतरण करता है।
  • साख कार्य-विदेशी विनिमय बाज़ार विदेशी व्यापार के लिए साख स्रोत का प्रावधान करता है।
  • जोखिम पूर्वोपाय कार्य-विदेशी विनिमय बाज़ार विदेशी विनिमय जोखिम से बचाव करता है।

प्रश्न 11.
विदेशी विनिमय की बाज़ार दर का निर्धारण कैसे होता है? एक रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
विदेशी विनिमय की बाज़ार दर का निर्धारण मुद्रा बाज़ार में संतुलन द्वारा होता है। विदेशी मुद्रा बाज़ार में संतुलन उस बिंदु पर निर्धारित होता है जहाँ विदेशी मुद्रा का माँग वक्र और मुद्रा का पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हों। विदेशी मुद्रा का माँग वक्र ऊपर से नीचे दाईं ओर गिरता हुआ होता है, जबकि विदेशी मुद्रा का पूर्ति वक्र नीचे से ऊपर दाईं ओर उठता हुआ होता है। विदेशी मुद्रा बाज़ार में संतुलन को संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था समष्टि अर्थशास्त्र 1

संलग्न रेखाचित्र में माँग वक्र और पूर्ति वक्र एक-दूसरे को E बिंदु पर काटते विदेशी मुद्रा की माँग और पूर्ति । हैं जहाँ संतुलन विनिमय दर OP है और संतुलन विदेशी मुद्रा की मात्रा OQ है।

प्रश्न 12.
स्थिर विनिमय और नम्य विनिमय दरों में भेद समझाइए।
उत्तर:
स्थिर विनिमय दर से अभिप्राय उस विनिमय दर से है जिसमें सभी विनिमय (लेन-देन) सरकार या मौद्रिक अधिकारी द्वारा घोषित की गई दरों पर होते हैं। नम्य विनिमय दर से अभिप्राय उस विनिमय दर से है जो विदेशी मुद्रा की माँग और पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। इस प्रकार स्थिर विनिमय दर में मौद्रिक अधिकारी का हस्तक्षेप आवश्यक है, जबकि नम्य विनिमय दर की दशा में मौद्रिक अधिकारी का हस्तक्षेप नहीं होता। पूर्ण रूप से स्थिर विनिमय दर को अव्यावहारिक माना जाता है, इसलिए यह प्रचलित नहीं है। सामान्यतया नम्य विनिमय दर को ही व्यावहारिक माना जाता है।

प्रश्न 13.
नम्य विनिमय दर प्रणाली के किन्हीं चार लाभों (गुणों) का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नम्य विनिमय दर प्रणाली के लाभ निम्नलिखित हैं-

  1. नम्य विनिमय दर प्रणाली के अंतर्गत केंद्रीय बैंक को विदेशी मुद्राओं के भंडार बनाए रखने की आवश्यकता नहीं होती।
  2. यह व्यापार तथा पूँजी के आवागमन के प्रति अवरोधों की समाप्ति में सहायक है।
  3. यह संसाधनों का कुशलतम आबंटन करती है जिससे अर्थव्यवस्था की कशलता में वृद्धि होती है।
  4. नम्य विनिमय दर की व्यवस्था सरल है। विनिमय दर अपने आप स्वतंत्र रूप से बदलती रहती है तथा माँग और पूर्ति में समानता लाती है।

प्रश्न 14.
विस्तृत सीमापट्टी व्यवस्था को समझाइए।
उत्तर:
विस्तृत सीमापट्टी व्यवस्था स्थिर विनिमय दर व्यवस्था (प्रणाली) और नम्य विनिमय दर व्यवस्था का मिश्रण है। विस्तृत सीमापट्टी व्यवस्था के अंतर्गत प्रत्येक सदस्य देशों को यह छूट होती है कि वह अपनी घोषित विनिमय दर से 10 प्रतिशत तक उतार-चढ़ाव कर सकता है। इस छूट का मुख्य उद्देश्य भुगतानों में आसानी से समायोजन करना है। उदाहरण के लिए, यदि किसी देश को भुगतान शेष के घाटों का सामना करना पड़ रहा है तो वह 10 प्रतिशत तक अपनी मुद्रा की दर कम करके इस समस्या से निपट सकता है।

प्रश्न 15.
चलित सीमाबंध व्यवस्था को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
चलित सीमाबंध व्यवस्था स्थिर विनिमय दर व्यवस्था और नम्य विनिमय दर व्यवस्था का मिश्रण है। चलित सीमाबंध व्यवस्था के अनुसार विभिन्न करेंसियों की विनिमय दर में लघु सीमा तक किंतु समय-समय पर नियमित रूप से परिवर्तन की छूट होती है। चलित सीमाबंध के अंतर्गत प्रत्येक सदस्य देश को यह छूट होती है कि वह अपनी घोषित विनिमय दर से केवल एक प्रतिशत तक ही उतार-चढ़ाव कर सकता है। वास्तव में यह लघु समायोजन है, किंतु इसे समय-समय पर दोहराया जा सकता है। समायोजन का आकार तथा बारंबारता इस बात पर निर्भर करते हैं कि समायोजन करने वाले देश के पास विदेशी मुद्रा के भंडार कितने हैं।

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प्रश्न 16.
समायोजक (Accommodating) मदों और स्वप्रेरित (Autonomous) मदों की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
भुगतान शेष खाते से संबंधित मदों के लिए अर्थशास्त्री विभिन्न शब्दों का प्रयोग करते हैं जैसे-स्वायत्त (स्वप्रेरित), समायोजक, रेखा के ऊपर, रेखा के नीचे आदि। इनकी संक्षिप्त जानकारी नीचे दी गई है।

स्वायत्त या स्वप्रेरित मदें-भुगतान शेष में प्रयोग किए गए स्वायत्त अथवा स्वप्रेरित (Autonomous items) शब्द से अभिप्राय उन अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक लेन-देनों (Transactions) से है जो अधिकतम लाभ कमाने जैसे आर्थिक उद्देश्यों से प्रेरित होते हैं। ऐसे सौदे (लेन-देन), देश के भुगतान शेष की स्थिति की परवाह किए बिना होते हैं। इन्हीं को ही भुगतान शेष खाते में रेखा से ऊपर मदें’ (above the line items) कहा जाता है।

प्रश्न 17.
भुगतान संतुलन के प्रतिकूल होने के आर्थिक कारण बताइए।
उत्तर:
भुगतान संतुलन के प्रतिकूल होने के आर्थिक कारण निम्नलिखित हैं-

  1. निर्यात और आयात में असंतुलन का पैदा होना।
  2. बड़े पैमाने पर विकास व्यय जिसके लिए भारी आयात करने पड़ते हैं।
  3. ऊँची घरेलू कीमतों के कारण आयात में वृद्धि होना।
  4. चक्रीय उतार-चढ़ाव (Cyclical Fluctuations) अर्थात् सामान्य व्यवसाय में तेजी व मंदी का चक्र।
  5. पूर्ति के नए स्रोतों का विकास।
  6. नए व बेहतर स्थानापन्न उत्पाद का उभरना।
  7. उत्पादन लागतों में वृद्धि आदि।

प्रश्न 18.
गंदी तरणशीलता तिरती (Dirty Floating) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
यह अवधारणा विनिमय दर की प्रबंधित तरणशीलता तिरती व्यवस्था से संबंधित है। ऐसी स्थिति तब उत्पन्न होती है जब नियमों और अधिनियमों की परवाह किए बिना प्रबंधित तरणशीलता व्यवस्था को लागू किया जाता है। एक देश जब विनिमय दर को किसी अन्य देश के हित के विरूद्ध कम या अधिक करता है तब इस प्रकार के व्यवहार को गंदी तरणशीलता/तिरती व्यवस्था कहा जाता है।

प्रश्न 19.
प्रबंधित तिरती व्यवस्था (Managed Floating System) की व्यवस्था का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रबंधित तिरती व्यवस्था स्थिर और नम्य विनिमय दरों का मिश्रण है। प्रबंधित तिरती व्यवस्था में मौद्रिक अधिकारी ऐच्छिक आधार पर विनिमय दर के निर्धारण में हस्तक्षेप करते हैं लेकिन इसमें हस्तक्षेप के लिए आधिकारिक रूप से नियम और मार्गदर्शक सत्रों की घोषणा होती है। परंत मौद्रिक अधिकारी कोई विनिमय दर नियत नहीं करते और न ही विनिमय दर के उतार-चढ़ाव की कोई समय-सीमा निर्धारित की जाती है। जब भी मौद्रिक अधिकारी को हस्तक्षेप की आवश्यकता अनुभव होती है वे उपयुक्त कदम उठा सकते हैं।

प्रश्न 20.
विस्तृत सीमापट्टी चलित सीमाबंध कैसे एक-दूसरे से भिन्न हैं?
उत्तर:
दोनों व्यवस्थाएँ विनिमय दर में समायोजन की अनुमति देती हैं। चलित सीमाबंध की तुलना में विस्तृत सीमापट्टी में अधिक समायोजन (Wider adjustments) किया जा सकता है। अन्य शब्दों में, विस्तृत सीमापट्टी की तुलना में चलित सीमाबंध एक संकुचित सीमापट्टी (Narrow Bond) है।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘भुगतान शेष खाते’ (Balance of Payment Accounts) का क्या अर्थ है? एक उदाहरण द्वारा BOP खाते की संरचना समझाइए।
उत्तर:
भुगतान शेष खाते का अर्थ-भुगतान शेष खाता किसी देश के निवासियों और शेष विश्ववासियों के बीच नियत अवधि में हुए सारे आर्थिक लेन-देनों का व्यवस्थित रिकॉर्ड होता है। यह दोहरी लेखा पद्धति (Double Entry System) के आधार पर तैयार किया जाता है। लेखांकन की दृष्टि से भुगतान शेष, सदा संतुलन में रहता है क्योंकि भुगतान शेष लेखा, दोहरी लेखा पद्धति में प्रस्तुत किया जाता है जिसके अनुसार प्राप्ति पक्ष, सदैव भुगतान पक्ष के बराबर रहता है।

दोहरी लेखा प्रणाली-समस्त अंतर्राष्ट्रीय सौदों (लेन-देनों को ‘दोहरी लेखा प्रणाली’ के आधार पर भगतान शेष खाते में रिकॉर्ड किया जाता है। प्रत्येक अंतर्राष्ट्रीय सौदा, बराबर मूल्य की लेनदारी (Credit) और देनदारी (Debit) की प्रविष्टि (Entry) दिखाता है। समस्त अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक लेन-देन, इन तीन प्रवाहों के कारण उत्पन्न होते हैं-(i) वस्तुओं के प्रवाह, (ii) सेवाओं व अन्य अदृश्य मदों के प्रवाह और (iii) पूँजी के प्रवाह। भुगतान शेष लेखा के यही मुख्य घटक हैं। भुगतान शेष खाते के दो पक्ष-लेनदारी पक्ष और देनदारी पक्ष होते हैं। लेखे के लेनदारी पक्ष में वे मदें शामिल की जाती हैं जिनसे विदेशी मुद्रा के रूप में भुगतान प्राप्त होता. है और प्राप्त भुगतान की राशि दिखाई जाती है, इन्हें लेनदारी मदें कहते हैं। देनदारी पक्ष में यह लेखा उन मदों और मदों की राशि को दर्शाता है जिनका विदेशी मुद्रा के रूप में विदेशियों को भुगतान किया जाता है। इन्हें देनदारी मदें कहते हैं।

एक देश के भुगतान शेष का एक काल्पनिक सरल उदाहरण निम्नलिखित तालिका में दिखाया गया है। इसका बायाँ भाग वे सभी स्रोत दिखाता है जिनसे कोई देश विदेशी करेंसी प्राप्त करता है जबकि दायाँ भाग शेष विश्व को भुगतान की गई विदेशी करेंसी का ब्यौरा देता है।
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प्रतिकूल, अनुकूल व संतुलित भुगतान शेष जब देनदारियाँ (भुगतान), लेनदारियों (प्राप्तियों) से अधिक हो जाती हैं तो इसे प्रतिकूल (या घाटे का) भुगतान संतुलन (शेष) कहते हैं। जब देनदारियाँ, लेनदारियों से कम होती हैं तो इसे अनुकूल (या बचत का) भुगतान शेष (संतुलन) कहते हैं। देनदारियाँ और लेनदारियाँ बराबर होने पर भुगतान शेष संतुलित कहलाता है।

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प्रश्न 2.
भुगतान शेष (संतुलन) खाते की दृश्य एवं अदृश्य मदों का अर्थ बताते हुए भुगतान शेष खाते के संघटकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भुगतान शेष खाते की दृश्य और अदृश्य मदें भुगतान शेष (संतुलन) खाते की दृश्य मदों से अभिप्राय भौतिक वस्तुओं से है जो राष्ट्रीय सीमा को पार (Cross) करती देखी जाती हैं। दृश्य मदों (Visible Items) के उदाहरण हैं-मशीनरी, चाय, चावल, वस्त्रों का आयात-निर्यात जिन्हें आँखों से देखा जा सकता है। भुगतान शेष खाते में दृश्य मदों के आयात-निर्यात के शेष को ‘दृश्य व्यापार का शेष’ कहा जाता है। भुगतान शेष की अदृश्य मदें वे मदें हैं जिन्हें राष्ट्रीय सीमा (National Border) पार करते नहीं देखा जाता है। सब प्रकार की सेवाएँ; जैसे जहाज़रानी, बैंकिंग, पर्यटन, सॉफ्टवेयर तथा एक-पक्षीय हस्तांतरण अदृश्य मदें हैं। अदृश्य मदों (Invisible Items) के आयात-निर्यात के शेष (Balance) को ‘अदृश्य व्यापार का शेष’ कहा जाता है।

भुगतान शेष खाते के संघटक-भुगतान शेष खाते के प्रमुख संघटक निम्नलिखित हैं-
1. वस्तओं का निर्यात व आयात (दृश्य मदें) विदेशी मुद्रा प्राप्त करने का सबसे सरल तरीका वस्तुओं का निर्यात है। विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं का आना-जाना खुले रूप में होता है और सीमा शुल्क अधिकारी इन्हें देखकर प्रमाणित कर सकते हैं। ये दृश्य मदें (Visible Items) कहलाती हैं। ऐसी सभी मदें देश का दृश्य व्यापार (Visible Trade) दर्शाती हैं।

2. सेवाओं का निर्यात व आयात (अदृश्य मदें) इसमें गैर-साधन आय; (जैसे-जहाज़रानी, बैंकिंग, बीमा, पर्यटन, सॉफ्टवेयर सेवाओं से आय और साधन आय; जैसे ब्याज, लाभांश, लाभ के रूप में विदेशों में हमारी परिसंपत्तियों से आय आदि मदें शामिल की जाती हैं। ध्यान रहे, ब्याज, लाभांश और लाभ जो एक देश के नागरिक विदेशों में निवेश करने पर कमाते हैं, निवेश आय है जिसे साधन आय माना जाता है। ये अदृश्य मदें हैं जो राष्ट्रीय सीमाओं को पार करते दिखाई नहीं देती हैं। ऐसी सभी मदें देश का अदृश्य व्यापार (Invisible Trade) दर्शाती हैं।

3. एक-पक्षीय हस्तांतरण या अप्रतिदत्त हस्तांतरण-इसमें वे मदें शामिल की जाती हैं जिनके बदले में प्राप्त करने वाले को कुछ भी नहीं देना पड़ता; जैसे उपहार, प्रेषणाएँ, अनुदान क्षतिपूर्ति आदि। इसमें निजी और सरकारी दोनों प्रकार के हस्तांतरण शामिल होते हैं। उदाहरण के लिए, विदेशों से प्राप्त उपहार, अनिवासियों (Emigrants) द्वारा अपने रिश्तेदारों को भेजी गई प्रेषणाएँ और युद्ध में पराजित देश द्वारा क्षतिपूर्ति आदि की प्राप्तियाँ। (नोट-भारत में एक-पक्षीय हस्तांतरणों को अदृश्य व्यापार में शामिल किया जाता है।)

4. पूँजीगत प्राप्तियाँ व भुगतान-इसमें निजी व सरकारी ऋण, सोने के स्टॉक व विदेशी मुद्रा के भंडार में परिवर्तन, परिसंपत्तियों का क्रय-विक्रय, पूँजीगत अनुदान आदि जैसी मदें शामिल की जाती हैं। ऐसे अंतर्राष्ट्रीय सौदे एक देश की शेष विश्व से देनदारियों और परिसंपत्तियों (Liabilities and Assets) को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, एक देश की सरकार, दूसरे देश की सरकार से ऋण लेती है, एक फर्म विदेश में शेयर्स का निर्गमन करती है या एक बैंक विदेश में ऋण शुरू करता है या एक देश के नागरिक विदेश में भूमि, मकान, प्लांट, आदि के रूप में संपत्तियों का क्रय-विक्रय करते हैं-ये सब पूँजीगत प्राप्तियों और भुगतान के रूप हैं।

प्रश्न 3.
भगतान शेष में असंतलन के कारण और उसे दूर करने के उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भुगतान शेष में असंतुलन के कारण अनेक कारणों से भुगतान शेष में घाटा (Deficit) या आधिक्य (Surplus) के रूप में असंतुलन पैदा हो जाता है। ध्यान रहे, इस घाटे या आधिक्य का संबंध मुख्यतः भुगतान शेष के चालू खाते से होता है। इन साधनों को निम्नलिखित तीन वर्गों में बाँटा गया है
1. आर्थिक साधन-

  • निर्यात और आयात में असंतुलन का पैदा होना
  • बड़े पैमाने पर विकास व्यय जिसके लिए भारी आयात करने पड़ते हैं
  • ऊँची घरेलू कीमतों के कारण आयात में वृद्धि होना
  • चक्रीय उतार-चढ़ाव (Cyclical Fluctuations) अर्थात् सामान्य व्यवसाय में तेजी व मंदी का चक्र
  • पूर्ति के नए स्रोतों का विकास
  • नए व बेहतर स्थानापन्न उत्पाद का उभरना
  • उत्पादन लागतों में वृद्धि आदि।

2. राजनीतिक साधन अनुभव बताता है कि देश में राजनीतिक अस्थिरता और दंगों से-

  • देश से बड़े पैमाने पर पूँजी का पलायन होता है
  • विदेशी निवेश रुक जाता है और
  • नए घरेलू उद्योगों की स्थापना धीमी पड़ जाती है।

3. सामाजिक कारण-

  • लोगों के फैशन, अभिरुचियों और प्राथमिकताओं के कारण आयात-निर्यात प्रभावित होते हैं जिससे भुगतान शेष में असंतुलन उत्पन्न हो जाता है
  • गरीब व पिछड़े देशों में जनसंख्या में तीव्र वृद्धि होने से निर्यात घट जाते हैं और आयात बढ़ जाते हैं जिससे भुगतान शेष में असंतुलन पैदा हो जाता है।

भुगतान शेष में असंतुलन दूर करने के उपाय-भुगतान शेष में असंतुलन दूर करने के उपाय निम्नलिखित है-
1. निर्यात बढ़ाना-उद्यमियों और निर्यातकों को भारी आर्थिक सहायता, अनुदान व रियायतें देकर निर्यात संवर्धन (Promote) करना चाहिए और आयात यथासंभव सीमित करना चाहिए।

2. आयात प्रतिस्थापन-आयात की जाने वाली वस्तुओं का स्थान लेने वाली अर्थात् प्रतिस्थापित वस्तुएँ देश के अंदर निर्मित करनी चाहिएँ जिससे आयात कम हो सके।

3. घरेलू करेंसी का अवमूल्यन-जब घरेलू मुद्रा का विदेशी मुद्रा में मूल्य घटाया जाता है तो विदेशियों के लिए हमारी घरेलू वस्तुएँ सस्ती हो जाती हैं जिससे निर्यात में वृद्धि होती है। ध्यान रहे, घरेलू मुद्रा का अवमूल्यन सरकार द्वारा होता है जब देश में स्थिर विनिमय दर की व्यवस्था लागू हो।

4. विनिमय नियंत्रण-सरकार द्वारा सब निर्यातकों (Exporters) को विदेशी मुद्रा (विनिमय) केंद्रीय बैंक में समर्पण (Surrender) करने के आदेश देकर विदेशी विनिमय पर नियंत्रण करना चाहिए। केवल लाइसेंस प्राप्त आयातकों (Importers) को राशन के रूप में विदेशी विनिमय देनी चाहिए।

5. निरंतर बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करना तेजी या बढ़ती कीमतों से निर्यात कम होता है और आयात बढ़ता है। इसलिए सरकार को न केवल कीमतों में वृद्धि की प्रवृत्ति रोकनी चाहिए, बल्कि कीमतें गिराने के उपाय भी करने चाहिए।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 4.
स्थिर विनिमय दर व्यवस्था क्या है? इसके गुण-दोषों का वर्णन करें।
उत्तर:
स्थिर विनिमय दर व्यवस्था इस व्यवस्था में देश की सरकार अपनी मद्रा की विनिमय दर को सोने के रूप में या किसी दसरी करेंसी के रूप में घोषित करती है। चूंकि इस दर को लगभग स्थिर रखा जाता है, इसलिए इसे स्थिर विनिमय दर कहते हैं। इस दर में बहुत मामूली अंतर ही मान्य होता है। यह प्रणाली 1880-1914 तक लागू स्वर्णमान व्यवस्था (Gold Standard System) में अपनाई गई थी जिसके अंतर्गत प्रत्येक देश अपनी मुद्रा का मूल्य सोने के निश्चित भार के रूप में घोषित करता था।

इन घोषित मूल्यों के आधार पर विभिन्न मुद्राओं (करेंसियों) का आपस में विनिमय दर तय हो जाता था, इसे विनिमय की टकसाल मान समता दर (Mint Parity . Value of Exchange) कहा जाता था। उदाहरण के लिए, यदि एक रुपए के बदले शुद्ध सोने के 20 ग्राम मिलते हैं तथा एक अमेरिकी डॉलर के बदले 100 ग्राम मिलते हैं तो एक डॉलर 100/20 = 5 रुपए का है। ऐसी स्थिति में एक डॉलर = 5 रुपए की विनिमय दर निश्चित हो जाएगी।

स्थिर विनिमय दर व्यवस्था के गुण-स्थिर विनिमय दर व्यवस्था के गुण निम्नलिखित हैं-

  • इससे विनिमय दर में स्थायित्व (Stability) आता है जो विदेशी व्यापार को बढ़ावा देता है।
  • अंतर्निर्भर विश्व अर्थव्यवस्था में, देशों की समष्टि स्तर की आर्थिक नीतियों में यह समन्वय लाने में सहायता करती है।
  • यह प्रणाली सदस्य देशों में गंभीर आर्थिक उथल-पुथल से बचाती है क्योंकि विनिमय दर स्थिर रहती है।
  • यह विश्व व्यापार को बढ़ाने में सहायता करती है, क्योंकि इससे अंतर्राष्ट्रीय सौदों में जोखिम और अनिश्चितता नहीं रहती।

स्थिर विनिमय दर व्यवस्था के दोष-स्थिर विनिमय दर व्यवस्था के दोष निम्नलिखित हैं-
1. मुद्रा अवमूल्यन का भय-जब माँग अधिक होती है तो केंद्रीय बैंक, स्थिर विनिमय दर बनाए रखने के लिए अपने रिज़र्व का इस्तेमाल करता है, परंतु जब सुरक्षित रखा रिज़र्व भी समाप्त हो जाए और माँग आधिक्य जारी रहे तो सरकार को मजबूर होकर घरेलू मुद्रा के मान में ह्रास करना पड़ता है। यदि सट्टेबाजों ने इसकी माँग और बढ़ा दी तो घरेलू मुद्रा का अवमूल्यन करना पड़ जाएगा। यही इसका सबसे बड़ा दोष है।

2. कारकों (साधनों) के आबंटन में कठोरता-इस प्रणाली के कारण अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में विशेष रूप से कारकों के आबंटन में कठोरता (Rigidity) आती है।

3. पूँजी का सीमित आवागमन-स्थिर विनिमय दर को बनाए रखने हेतु बहुत अधिक अंतर्राष्ट्रीय निधि की मदद की जरूरत पड़ती है, इस कारण पूँजी का विभिन्न देशों में आवागमन बहुत सीमित (Restricted) हो जाता है।

प्रश्न 5.
नम्य (लचीली) विनिमय दर प्रणाली से आप क्या समझते हैं? इसके गुण-दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नम्य (लचीली) विनिमय दर व्यवस्था-नम्य (लचीली) विनिमय दर वह दर है जो विदेशी मुद्रा बाज़ार में किसी देश की मुद्रा की माँग एवं पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। विदेशी करेंसी की माँग और पूर्ति में परिवर्तन के अनुसार यह दर बदलती रहती है। इस व्यवस्था में सरकारी हस्तक्षेप बिलकुल नहीं होता। सामान्य रूप से केंद्रीय बैंक भी दखल नहीं देता। नम्य विनिमय दर एक प्रकार से स्थिर विनिमय दर के बिलकुल विपरीत दूसरे सिरे पर है क्योंकि यह विदेशी मुद्रा बाज़ार में माँग और पूर्ति में उतार-चढ़ाव के फलस्वरूप निरंतर बदलती रहती है। इसीलिए इस दर को नम्य या लचीली विनिमय दर कहते हैं। जैसे समाचार-पत्रों में हम डॉलर और रुपयों में हर रोज़ बदलती हुई विनिमय दर पढ़ते हैं।

नम्य विनिमय दर व्यवस्था के गुण-नम्य विनिमय दर व्यवस्था के गुण निम्नलिखित हैं-

  • भुगतान शेष में असंतुलन स्वतः दूर हो जाता है।
  • केंद्रीय बैंक को विदेशी मुद्राओं के भंडार (Reserve) रखने की जरूरत नहीं रहती। अतः भंडार रखने व प्राप्त करने की लागत से बचा जा सकता है।
  • यह व्यापार और पूँजी के आवागमन में आने वाली रुकावटों को दूर करने में सहायक है।
  • इससे अर्थव्यवस्था में संसाधनों का सर्वोत्तम आबंटन होता है जिससे कार्यक्षमता बढ़ जाती है।
  • इस प्रणाली में जोखिम पूँजी को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाज़ार में प्रोत्साहन प्राप्त होता है।
  • इस प्रणाली को अंतर्राष्ट्रीय निधि की मदद की आवश्यकता नहीं होती।

नम्य विनिमय दर व्यवस्था के दोष-नम्य विनिमय दर व्यवस्था के दोष निम्नलिखित हैं-

  • यह सट्टेबाजी को बढ़ावा देती है जिससे विनिमय दर में उतार-चढ़ाव होते रहते हैं।
  • विनिमय दर में बार-बार उतार-चढ़ाव से विदेशी व्यापार और विदेशी निवेश में रुकावट आती है।
  • भुगतान शेष घाटा पूरा करने के लिए मद्रा अवमूल्यन से कीमतों में निरंतर वृद्धि (मद्रास्फीति) होने लगती है।
  • यह प्रणाली समष्टिगत नीतियों में समन्वय स्थापित करने में कठिनाई उत्पन्न कर देती है।
  • इसके कारण अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अस्थिरता उत्पन्न हो जाती है।

प्रश्न 6.
विदेशी विनिमय दर कैसे निर्धारित होती है? एक रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
स्वतंत्र मुद्रा बाज़ार में, संतुलन (साम्य) विनिमय दर उस बिंदु पर निर्धारित होती है जहाँ विदेशी विनिमय की माँग, विदेशी विनिमय की पूर्ति के बराबर हो जाए अर्थात् संतुलन विनिमय दर का निर्धारण विदेशी विनिमय की माँग और पूर्ति वक्रों के प्रतिच्छेदन द्वारा होता है। वस्तुतः जिस प्रकार किसी वस्तु की कीमत उसकी माँग और पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है उसी प्रकार नम्य विदेशी विनिमय दर भी विदेशी मुद्रा (करेंसी) की माँग और पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। मान लीजिए, दो देश भारत और अमेरिका की करेंसी अर्थात् रुपया और डॉलर की विनिमय दर निर्धारित होनी है। इस समय भारत और अमेरिका दोनों में चलायमान विनिमय दर (Floating Exchange Rate) व्यवस्था है। इसलिए प्रत्येक देश की करेंसी का, दूसरी करेंसी के रूप में मूल्य, दोनों करेंसियों की माँग और पूर्ति पर निर्भर करता है। इस संदर्भ में संतुलन विनिमय दर के निर्धारण की चर्चा निम्नलिखित तीन भागों माँग, पूर्ति तथा संतुलन-शीर्षकों के अंतर्गत की गई है

(क) विदेशी विनिमय (मुद्रा) की माँग (जैसे अमेरिकी डॉलर)-विदेशी मुद्रा की माँग निम्नलिखित कार्यों के लिए की जाती है

  • विदेशों से वस्तुएँ व सेवाएँ खरीदने (आयात करने) के लिए
  • विदेशों में उपहार भेजने के लिए
  • विदेश में वित्तीय परिसंपत्तियों (अर्थात् बॉण्ड व शेयर) खरीदने के लिए
  • विदेशी मुद्राओं के मूल्यों पर सट्टेबाजी के लिए
  • विदेशों में जाने वाले पर्यटकों की विदेशी विनिमय की माँग पूरी करने के लिए।

विदेशी विनिमय की दर और विदेशी विनिमय की माँग में संबंध-दोनों में विपरीत संबंध (Inverse Relations) हैं अर्थात् कीमत घटने पर माँग बढ़ जाती है और कीमत बढ़ने (महँगा होने) पर विदेशी विनिमय की माँग कम हो जाती है। मान लीजिए विदेशी विनिमय अमेरिकी डॉलर की कीमत 1 डॉलर = 45 रुपए गिरकर 1 डॉलर = 40 रुपए हो गई है। इसका अर्थ यह है कि अमेरिकी वस्तुएँ भारत के लोगों के लिए सस्ती हो गई हैं क्योंकि 1 डॉलर मूल्य की अमेरिकी वस्तुएँ खरीदने के लिए उन्हें 45 रुपए देने की बजाय 40 रुपए देने होंगे।

फलस्वरूप भारत, अमेरिका से अधिक माल आयात करने लगेगा जिसके लिए अमेरिकी डॉलर की माँग भारत में बढ़ जाएगी। अतः स्पष्ट है कि विदेशी विनिमय की दर (कीमत) गिरने पर (जैसे 1 डॉलर की कीमत 45 रुपए से गिरकर 40 रुपए होने पर), विदेशी विनिमय (यहाँ डॉलर) की माँग बढ़ जाती है। इसी प्रकार विदेशी विनिमय की दर बढ़ने पर उसकी माँग कम हो जाती है। इसी कारण विदेशी मुद्रा का माँग वक्र का आकार बाएँ से दाएँ ऋणात्मक ढाल वाला होता है। संक्षेप में, विदेशी विनिमय दर गिरने पर विदेशी मुद्रा की माँग इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि तब विदेशी वस्तुएँ देशीय लोगों के लिए तुलनात्मक रूप से सस्ती हो जाती हैं।

(ख) विदेशी विनिमय की पूर्ति (जैसे अमेरिकी डॉलर)-किसी देश (जैसे भारत) में विदेशी विनिमय निम्नलिखित स्रोतों से आती है

  • विदेशियों द्वारा उस देश (जैसे भारत) की वस्तुओं व सेवाओं की खरीद अर्थात् भारत द्वारा निर्यात
  • विदेशी निगमों द्वारा उस देश (भारत) में निवेश
  • विदेशी पर्यटकों का उस देश (भारत) में भ्रमण
  • मुद्रा के व्यापारियों और सट्टेबाजों की गतिविधियाँ
  • विदेश में रहने वालों (भारतीयों) द्वारा प्रेषणाएँ।

विदेशी विनिमय की दर (कीमत) और विदेशी विनिमय की पूर्ति में संबंध दोनों में प्रत्यक्ष संबंध (Direct Relation) हैं अर्थात् कीमत बढ़ने पर विदेशी विनिमय की पूर्ति बढ़ जाती है। मान लीजिए कि विदेशी विनिमय अमेरिकी डॉलर की भारतीय मुद्रा में कीमत 1 डॉलर = 65 रुपए से बढ़कर 1 डॉलर = 67 रुपए हो गई है। इसका अर्थ है कि भारतीय वस्तुएँ अमेरिका के लिए सस्ती हो गई हैं क्योंकि अब 1 डॉलर से 65 रुपए की बजाय 67 रुपए की भारतीय वस्तुएँ अर्थात् अधिक वस्तुएँ खरीदी जा सकती हैं। फलस्वरूप अमेरिका, भारत से अधिक आयात करने लगेगा जिससे विदेशी विनिमय अर्थात् अमेरिकी डॉलर की पूर्ति भारत में बढ़ जाएगी।

अतः स्पष्ट है कि विदेशी विनिमय की दर (कीमत) बढ़ने से उसकी पूर्ति बढ़ जाती है। इसी प्रकार विदेशी विनिमय दर कम होने पर (जैसे 1 डॉलर की कीमत 65 रुपए से गिरकर 63 रुपए होने पर) विदेशी विनिमय की पूर्ति कम हो जाती है। इसीलिए विदेशी मुद्रा की पूर्ति वक्र का आकार दाईं ओर ऊपर की तरफ ढाल वाला होता है। संक्षेप में, विदेशी विनिमय दर बढ़ने पर विदेशी मुद्रा की पूर्ति इसलिए बढ़ जाती है, क्योंकि तब देशी वस्तुएँ विदेशियों के लिए तुलनात्मक रूप से सस्ती हो जाती हैं।

(ग) विनिमय बाज़ार में संतुलन-संतुलन विनिमय दर, उस बिंदु पर निर्धारित होती है जहाँ विदेशी विनिमय की माँग और विदेशी विनिमय की पूर्ति आपस में बराबर हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में, माँग और पूर्ति वक्रों के प्रतिच्छेदन (Intersection) से संतुलन दर और संतुलन मात्रा का निर्धारण हो जाता है। इसे संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है। उपर्युक्त उदाहरण के संदर्भ में डॉलर की रुपयों में कीमत को Y-अक्ष पर दर्शाया गया है जबकि डॉलर की माँग और पूर्ति को X-अक्ष पर दर्शाया गया है। इस रेखाचित्र में माँग वक्र नीचे की ओर ढालू है जो यह दर्शाता है कि ऊँची विनिमय दर होने पर विदेशी विनिमय (डॉलर) की माँग कम होती है। पूर्ति वक्र ऊपर की ओर उठता हुआ वक्र है जो इस बात का प्रतीक है कि
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था समष्टि अर्थशास्त्र 3
विदेशी मुद्रा बाजार में संतुलन विनिमय दर बढ़ने पर विदेशी विनिमय (डॉलर) की पूर्ति बढ़ती जाती है। दोनों वक्र एक-दूसरे को बिंदु E पर प्रतिच्छेदित करते हैं जिसका यह अर्थ है कि OR (QE) विनिमय दर पर माँग और पूर्ति की मात्रा बराबर है (क्योंकि दोनों OQ के बराबर हैं)। अतः संतुलन विनिमय दर OR है और संतुलन विनिमय मात्रा OQ है।

विनिमय दर में परिवर्तन होने पर अमेरिकी डॉलर के लिए भारत की माँग बढ़ने पर माँग वक्र DD ऊपर खिसक कर वक्र D’D’ हो जाएगा। फलस्वरूप विनिमय पर (डॉलर की रुपयों में कीमत) OR से बढ़कर OR, हो जाएगी। इसका अर्थ होगा भारत को प्रत्येक अमेरिकी डॉलर के लिए पहले से अधिक रुपए देने होंगे। इसी को भारतीय रुपए के मान में हास (Depreciation of Indian Currency) कहा जाता है।

इसी प्रकार अमेरिकी डॉलरों की पूर्ति में वृद्धि होने से पूर्ति वक्र SS नीचे खिसककर S’S’ हो जाएंगा। फलस्वरूप रुपयों में डॉलर की कीमत गिर जाएगी। यह भारतीय रुपए का अधिमूल्यन (Appreciation of Indian Currency) होगा क्योंकि तब एक डॉलर खरीदने के लिए कम रुपए देने होंगे।

प्रश्न 7.
विदेशी विनिमय बाज़ार में हाजिर बाज़ार (Spot Market) और वायदा बाज़ार (Forward Market) के बारे में आप क्या जानते हैं? .
उत्तर:
हाजिर बाज़ार-यदि विदेशी मुद्रा बाज़ार में लेन-देन दैनिक प्रकृति का है तो उसे हाजिर या चालू (Current) बाज़ार कहते हैं। विदेशी मुद्रा के हाजिर बाज़ार में लागू हो रही विनिमय दर को हाजिर दर (Spot Rate) कहते हैं। दूसरे शब्दों में, हाजिर दर से अभिप्राय उस दर से है जिस पर विदेशी करेंसी तत्काल उपलब्ध होती है। उदाहरण के लिए, यदि विदेशी मुद्रा बाज़ार में किसी समय बिंदु पर एक अमेरिकी डॉलर 65 रुपए में खरीदा जा सकता है तो यह विदेशी मुद्रा (डॉलर) की हाजिर दर होगी। निस्संदेह तुरंत होने वाले सौदों में विदेशी मुद्रा की हाजिर (या तात्कालिक) दर बहुत उपयोगी होती है परंतु हाजिर दर की मात्रा क्या है इसे जानना भी जरूरी होता है।

वायदा बाज़ार-यह विदेशी मुद्रा का वह बाज़ार है जिसमें विदेशी करेंसी के क्रय-विक्रय का सौदा वर्तमान में हो जाता है, परंतु करेंसी की देयता (Delivery) भविष्य में तयशुदा किसी तिथि पर होती है। दूसरे शब्दों में, भविष्य में विदेशी मुद्रा की देयता का बाज़ार, वायदा बाज़ार कहलाता है। हम जानते हैं कि अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन (या सौदे) उसी दिन पूरे नहीं हो जाते, बल्कि जिस दिन सौदों के प्रपत्रों पर हस्ताक्षर होते हैं उसके कई दिनों बाद वह लेन-देन पूरा होता है। ऐसी स्थिति में भविष्य में होने वाली संभावित विनिमय दर की ओर ध्यान देना जरूरी हो जाता है। विनिमय की वह दर जो भविष्य की किसी तिथि पर विदेशी मुद्रा के लेन-देन पर लागू होती है, वायदा दर (Forward Rate) कहलाती है। इस प्रकार वायदा दर वह दर है जिस पर भविष्य में विदेशी करेंसी के क्रय-विक्रय का सौदा होता है।

भविष्य में सौदा करने के दो उद्देश्य होते हैं-

  • विनिमय दर के बदलने से संभावित जोखिम को कम करना। इसे जोखिम का पूर्वोपाय (Hedging) कहते हैं।
  • सौदे से लाभ कमाना। इसे सट्टेबाजी कहते हैं। स्पष्ट है कि वायदा बाज़ार में वे व्यापारी होते हैं जिन्हें भविष्य में किसी दिन को विदेशी मुद्रा की आवश्यकता (माँग) होगी अथवा उसकी पूर्ति करनी होगी।

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प्रश्न 8.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त नोट लिखिए-
(क) मुद्रा का अधिमूल्यन (Appreciation) और मुद्रा का मूल्यहास (Depreciation)।
(ख) (O NEER, (ii) REER और (iii) RER को परिभाषित कीजिए।
(ग) चलित सीमाबंध (Crawling Peg) व प्रबंधित तरणशीलता (Managed Floating)।
उत्तर:
(क) मुद्रा का अधिमूल्यन और मुद्रा का मूल्यहास:
1. मुद्रा का अधिमूल्यन-मुद्रा (करेंसी) के अधिमूल्यन से अभिप्राय, अन्य विदेशी करेंसी के मूल्य में कमी से है। दूसरे शब्दों में, मुद्रा अधिमूल्यन तब होता है जब घरेलू मुद्रा की इकाइयों में विदेशी मुद्रा की कीमत कम हो जाए अर्थात विदेशी मुद्रा के रूप में घरेलू मुद्रा का मूल्य बढ़ जाए। उदाहरण के लिए, यदि भारतीय रुपए की अमेरिकी डॉलर में कीमत 65 रुपए से 64 रुपए हो जाए तो इसे भारतीय करेंसी (रुपया) का अधिमूल्यन कहा जाएगा, क्योंकि एक डॉलर खरीदने के लिए कम (65 रुपए की बजाय 64 रुपए) रुपए देने पड़ेंगे अर्थात् रुपए की क्रय-शक्ति बढ़ गई है। यह भारतीय मुद्रा के प्रबल होने का प्रतीक है। तुलन में, हम यह भी कह सकते हैं कि जब भारतीय रुपए का अमेरिकी डॉलर के रूप में अधिमूल्यन (Appreciation) होता है तो अमेरिकी डॉलर का मूल्यह्रास (Depreciation) होता है।

2. मुद्रा का मूल्यहास-मुद्रा (करेंसी) के मूल्यह्रास से अभिप्राय, दूसरी विदेशी करेंसी के मूल्य में वृद्धि से है। दूसरे शब्दों में, का मूल्यह्रास उस समय होता है जब घरेलू मद्रा की इकाइयों में विदेशी मुद्रा की कीमत में वृद्धि हो जाए उदाहरण के लिए, यदि भारतीय रुपए की अमेरिकी डॉलर में कीमत 65 रुपए से 66 रुपए हो जाए तो यह भारतीय करेंसी (रुपए) का मूल्यह्रास माना जाएगा क्योंकि एक डॉलर खरीदने के लिए अब अधिक रुपए (65 रुपए की बजाए 66 रुपए) देने पड़ेंगे। यह भारतीय रुपए,के दुर्बल होने का प्रतीक है। स्पष्ट है नम्य विनिमय दर व्यवस्था में किसी करेंसी का विनिमय मूल्य, उसकी माँग व पूर्ति में बार-बार परिवर्तन के आधार पर घटता बढ़ता रहता है।

(ख) NEER, REER, RER की परिभाषाएँ:
1. मौद्रिक प्रभावी विनिमय दर (Nominal Effective Exchange Rate-NEER)-किसी मुद्रा की औसत सापेक्ष शक्ति या क्षमता का मान (माप), प्रभावी विनिमय दर कहलाता है। चूंकि कीमतों में परिवर्तन के प्रभावों को हम समाप्त नहीं करते, इसलिए इसे मौद्रिक प्रभावी विनिमय दर (NEER) कहते हैं।

2. वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (Real Effective Exchange Rate-REER)-यह ऐसी प्रभावी विनिमय दर है जो मौद्रिक दर की बजाय वास्तविक विनिमय दरों पर आधारित होती है।

3. वास्तविक विनिमय दर (Real Exchange Rate-RER) यह स्थिर कीमतों पर आधारित विनिमय दर होती है। पुनः यह कीमतों में उतार-चढ़ाव के प्रभाव से मुफ्त (स्वतंत्र) होती है।

(ग) चलित सीमाबंध और प्रबंधित तरणशीलता:
1. चलित (परिवर्तनशील) सीमाबंध-यह स्थिर विनिमय दर और नम्य विनिमय दर के बीच का एक समझौता है। चलित सीमाबंध व्यवस्था के अनुसार देश अपनी करेंसी का समता मान (Parity Value) नियत करता है और इसके इर्द-गिर्द थोड़ा उतार-चढ़ाव (जैसे समता मान से ± 1%) की इजाजत देता है।

2. प्रबंधित तरणशीलता-यह स्थिर विनिमय दर और नम्य (लचीली) विनिमय दर के प्रबंध की अंतिम संकर प्रजाति या मिश्रण है जो सरकार द्वारा प्रबंधित या नियंत्रित होती है। इसे प्रबंधित तरणशीलता कहते हैं, परंतु यह नियत दर समय-समय पर जरूरत के अनुसार मौद्रिक अधिकारी द्वारा संशोधित की जाती है।

संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जब व्यापार शेष 400 करोड़ रुपए है और निर्यात का मूल्य 300 करोड़ रुपए का है, तो आयात का मूल्य ज्ञात कीजिए।
हल:
व्यापार शेष = निर्यात का मूल्य – आयात का मूल्य
400 करोड़ रुपए = 300 करोड़ रुपए – आयात का मूल्य
आयात का मूल्य = 300 करोड़ रुपए – 400 करोड़ रुपए
अतः
आयात का मूल्य = (-) 100 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 2.
जब व्यापार शेष 500 करोड़ रुपए है और आयात का मूल्य 300 करोड़ रुपए है, तो निर्यात का मूल्य ज्ञात कीजिए।
हल:
व्यापार शेष = निर्यात का मूल्य – आयात का मूल्य
500 करोड़ रुपए = निर्यात का मूल्य – 300 करोड़ रुपए
500 करोड़ रुपए + 300 करोड़ रुपए = निर्यात का मूल्य
800 करोड़ रुपए = निर्यात का मूल्य
अतः निर्यात का मूल्य = 800 करोड़ रुपए उत्तर

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 3.
जब व्यापार शेष (-) 400 करोड़ रुपए हो और निर्यातों का मूल्य 300 करोड़ रुपए हो, तो आयातों के मूल्य की गणना कीजिए।
हल:
व्यापार शेष = (-) 400 करोड़ रुपए
निर्यातों का मूल्य = 300 करोड़ रुपए
आयातों का मूल्य = 300 + 400
अतः आयातों का मूल्य = 700 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 4.
व्यापार शेष (-) 300 करोड़ रुपए है और निर्यात का मूल्य 500 करोड़ रुपए है, तो आयात का मूल्य ज्ञात कीजिए।
हल:
व्यापार शेष = निर्यात का मूल्य – आयात का मूल्य
(-) 300 करोड़ रुपए = 500 करोड़ रुपए – आयात का मूल्य
आयात का मूल्य = 500 करोड़ रुपए + 300 करोड़ रुपए
अतः आयात का मूल्य = 800 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 5.
जब व्यापार शेष में घाटा 800 करोड़ रुपए का है और निर्यात का मूल्य 500 करोड़ रुपए है, तो आयात का मूल्य ज्ञात कीजिए।
हल:
व्यापार शेष = निर्यात का मूल्य – आयात का मूल्य
– 800 करोड़ रुपए = 500 करोड़ रुपए – आयात का मूल्य
आयात का मूल्य = 500 करोड़ रुपए + 800 करोड़ रुपए
अतः आयात का मूल्य = 1300 करोड़ रुपए उत्तर

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