Author name: Prasanna

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

HBSE 12th Class Sanskrit विद्ययाऽमृतमश्नुते Textbook Questions and Answers

1. संस्कृतभाषया उत्तरं लिखत
(क) ईशावास्योपनिषद् कस्याः संहितायाः भागः?
(ख) जगत्सर्वं कीदृशम् अस्ति?
(ग) पदार्थभोगः कथं करणीयः?
(घ) शतं समाः कथं जिजीविषेत्?
(ङ) आत्महनो जनाः कीदृशं लोकं गच्छन्ति?
(च) मनसोऽपि वेगवान् कः?
(छ) तिष्ठन्नपि कः धावतः अन्यान् अत्येति?
(ज) अन्धन्तमः के प्रविशन्ति?
(ङ) धीरेभ्यः ऋषयः किं श्रुतवन्तः?
(च) अविद्यया किं तरति?
(ट) विद्यया किं प्राप्नोति?
उत्तरम्:
(क) ईशावास्योपनिषद् ‘यजुर्वेद-संहितायाः’ भागः ।
(ख) जगत्सर्वम् ईशावास्यम् अस्ति।
(ग) पदार्थभोगः त्यागभावेन करणीयः।
(घ) शतं समाः कर्माणि कुर्वन् एव जिजीविषेत्।
(ङ) आत्महनो जनाः ‘असुर्या’ नामकं लोकं गच्छन्ति।
(च) मनसोऽपि वेगवान् आत्मा अस्ति।
(छ) तिष्ठन्नपि परमात्मा धावतः अन्यान् अत्येति।
(ज) ये अविद्याम् उपासते ते अन्धन्तमः प्रविशन्ति।
(ङ) धीरेभ्यः ऋषयः इति श्रुतवन्तः यत् विद्यया अन्यत् फलं भवति अविद्यया च अन्यत् फलं भवति।
(च) अविद्यया मृत्युं तरति।
(ट) विद्यया अमृतं प्राप्नोति।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

2. ‘ईशावास्यम्…….कस्यस्विद्धनम्’ इत्यस्य भावं सरलसंस्कृतभाषया विशदयत
उत्तरम्:
(संस्कृतभाषया भावार्थः)
अस्मिन् सृष्टिचक्रे यत् किमपि जड-चेतनादिकं जगत् अस्ति, तत् सर्वम् ईश्वरेण व्याप्तम् अस्ति। ईश्वरः संसारे व्यापकः अस्ति, सः एव च संसारस्य सर्वेषां पदार्थानाम् ईशः = स्वामी। अतः त्यागभावेन एव सांसारिक-पदार्थानाम् उपभोगः करणीयः। कदापि कस्य अपि धने लोभ: न करणीयः।

3. ‘अन्धन्तमः प्रविशन्ति…….विद्यायां रताः’ इति मन्त्रस्य भावं हिन्दीभाषया आंग्लभाषया वा विशदयत
उत्तरम्:
पञ्चममन्त्रस्य भावार्थं पश्यत।

4. ‘विद्यां चाविद्यां च…….ऽमृतमश्नुते’ इति मन्त्रस्य तात्पर्यं स्पष्टयत
उत्तरम्:
सप्तममन्त्रस्य भावार्थं पश्यत।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

5. रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) इदं सर्वं जगत् ………………..।
(ख) मा गृधः …………………..!
(ग) शतं समाः ………………….. जिजीविषेत्।
(घ) असुर्या नाम लोका ………………….. आवृताः ।
(ङ) आवद्योपासकाः ………………….. प्रविशन्ति।
उत्तरम्:
(क) इदं सर्वं जगत् ईशावास्यम्।
(ख) मा गृधः कस्यस्वित् धनम्।
(ग) शतं समाः कर्माणि कुर्वन् एव जिजीविषेत्।
(घ) असुर्या नाम लोका अन्धेनतमसा आवृताः ।
(ङ) अविद्योपासकाः अन्धन्तमः प्रविशन्ति।

6. अधोलिखितानां सप्रसंग हिन्दीभाषया व्याख्या कार्या
(क) तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः।
(ख) न कर्म लिप्यते नरे।
(ग) तस्मिन्नपो मातरिश्वा दधाति।
(घ) अविद्यया मृत्युं ती| विद्ययाऽमृतमश्नुते।
(ङ) एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति।
(च) तांस्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः।
(छ) अनेजदेकं मनसो जवीयो नैनदेवा आप्नुवन् पूर्वमर्षत्।
उत्तरम्:
(क) तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः। (त्यागपूर्वक भोग कर)
प्रसंग:-प्रस्तुत मन्त्रांश ‘ईशावास्य-उपनिषद्’ से संगृहीत ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ पाठ के ‘ईशावास्यम्……….’ मन्त्र से लिया गया है। इसमें त्यागपूर्वक भोग करने का उपदेश दिया गया है।

व्याख्या-परमेश्वर सब जड़-चेतन पदार्थों में व्यापक है। वही संसार के सभी पदार्थों का स्वामी है। मनुष्य का कर्तव्य है कि अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इन पदार्थों को त्यागपूर्वक ग्रहण करे। इनके उपयोग में लोभकदापि न करे, क्योंकि लोभवश पदार्थों का उपभोग करने से प्रकृति का सन्तुलन बिगड़ जाता है और मनुष्य का अपना शरीर भी रोगी हो जाता है। प्रकृति के संरक्षण में ही अपनी सुरक्षा छिपी है। इस मन्त्रांश में सन्तुलित एवं स्वस्थ जीवन का रहस्य छिपा है

पदार्थ + त्यागभाव = भोजन, पदार्थ + लोभवृत्ति = भोग। भोजन से शरीर को ऊर्जा मिलती है और भोग करने में रोग का भय रहता है-‘भोगे रोगभयम्’।

(ख) न कर्म लिप्यते नरे।
(मनुष्य में कर्मों का लेप नहीं होता है)
प्रसंगः-प्रस्तुत मन्त्रांश ‘ईशावास्योपनिषद्’ से संगृहित ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ पाठ के दूसरे मन्त्र से लिया गया है। इसमें बताया गया है कि निष्काम कर्म बन्धन का कारण नहीं होते।

व्याख्या-मन्त्रांश का अर्थ है-‘मनुष्य में कर्मों का लेप नहीं होता है।’ वे कौन से कर्म हैं, उन कर्मों की क्या विधि है, जिनसे कर्म मनुष्य के बन्धन का कारण नहीं बनते। पूरे मन्त्र में इस भाव को अच्छी प्रकार स्पष्ट किया गया है। मन्त्र में कहा गया है कि मनुष्य अपनी पूर्ण इच्छाशक्ति से जीवन भर कर्म करे, निठल्ला-कर्महीन-अकर्मण्य बिल्कुल न रहे, पुरुषार्थी बने। जिन पदार्थों को पाने के लिए हम कर्म करते हैं, उनका वास्तविक स्वामी सर्वव्यापक ईश्वर है। वही प्रतिक्षण हमारे अच्छे बुरे कर्मों को देखता है। अतः यदि मनुष्य पदार्थों के ग्रहण में त्याग भाव रखते हुए, ईश्वर को सर्वव्यापक समझते हुए कर्तव्य भाव से (अनासक्त भाव से) कर्म करता है तो ऐसे निष्काम कर्म मनुष्य को सांसारिक बन्धन में नहीं डालते अपितु उसे जीवन्मुक्त बना देते हैं।

(ग) तस्मिन्नपो मातरिश्वा दधाति। (उसी में वायु जलों को धारण करता है)
प्रसंग:-प्रस्तुत मन्त्रांश ‘ईशावास्योपनिषद्’ से संगृहीत ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ पाठ में संकलित मन्त्र से लिया गया है। इसमें वायु को जलों का धारण करने वाला कहा गया है।

व्याख्या-मन्त्र में परमात्मा का स्वरूप वर्णन करते हुए उसे अचल, एक तथा मन से भी गतिशील बताते कहा गया है कि इस संसार में ईश्वर-व्यवस्था निरन्तर कार्य कर रही है। उसी के नियम से वायु बहती है, सूर्य-चन्द्र चमकते हैं, पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है, फल-फूल-वनस्पतियाँ पैदा होती हैं। यहाँ तक कि वायु = गैसों से जल का निर्माण भी ईश्वरीय व्यवस्था के अधीन ही होता है। मित्र-वरुण नामक दो वायुतत्त्व (गैसें) हैं, इन्हें विज्ञान की भाषा में हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन कह सकते हैं, इनके मेल से (H2 ,O) से जल का निर्माण होता है। ‘अप:’ का अर्थ जल के अतिरिक्त कर्म भी होता है। सभी प्राणी ईश्वरीय व्यवस्था के अधीन होकर अपने-अपने कर्म फलों को प्राप्त करते हैं। यह भी मन्त्रांश का भाव है।

(घ) अविद्यया मृत्युं तीा विद्ययाऽमृतमश्नुते।
प्रसंग:-प्रस्तुत मन्त्रांश ‘ईशावास्य-उपनिषद्’ से संकलित ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ नामक पाठ में संगृहीत मन्त्र से उद्धृत है। इस मन्त्रांश में व्यावहारिक ज्ञान द्वारा मृत्यु को जीतकर अध्यात्म ज्ञान द्वारा अमरत्व प्राप्ति का रहस्य उद्घाटित किया गया है।

व्याख्या-प्रस्तुत मन्त्रांश की व्याख्या के लिए सप्तम मन्त्र के भावार्थ का उपयोग करें।

(ङ) एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति।
प्रसंग:-प्रस्तुत मन्त्रांश ‘ईशोपनिषद्’ से सम्पादित विद्ययाऽमृतमश्नुते’ नामक पाठ में संकलित मन्त्र से उद्धत है। इस मन्त्रांश में उस मार्ग की ओर संकेत किया गया है, जिस मार्ग पर चलकर मनुष्य कर्मबन्धन में नहीं पड़ता।

व्याख्या-मन्त्रांश का सामान्य अर्थ है-‘इस प्रकार तुझ में (कर्म का लेप नहीं होता), इससे भिन्न कोई मार्ग नहीं। यह मन्त्रांश ईशोपनिषद् के पहले दो मन्त्रों के उपदेश की ओर पाठक का ध्यान केन्द्रित करता है। साधारण रूप से कर्म के सम्बन्ध में यह धारणा है कि कर्म चाहे अच्छा हो या बुरा-मनुष्य कर्मबन्धन में अवश्य बँधता है। परन्तु इन दो मन्त्रों में एक ऐसा मार्ग बताया गया है, जिसके अनुसार कर्म करने/जीवन यापन करने पर मनुष्य कर्मबन्धन में नहीं पड़ता। वह मार्ग है ईश्वर को सदा सर्वत्र व्यापक मानते हुए आसक्ति छोड़कर कर्तव्य भाव से कर्म करने का मार्ग। अनासक्त भाव से किया गया कर्म सदा शुभ ही होता है, अतः ऐसे कर्म मनुष्य के बन्धन का कारण नहीं होते अपितु उसे जीवन्मुक्त बना देते हैं। इस मार्ग को छोड़कर जीवन्मुक्त होने का कोई दूसरा मार्ग नहीं है।

(च) ताँस्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः।
प्रसंग-प्रस्तुत मन्त्रांश ‘ईशोपनिषद्’ से संकलित ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ नामक पाठ में संगृहीत मन्त्र से उद्धृत है। इस मन्त्रांश में आत्मा का तिरस्कार करने वाले मनुष्यों की मरण-उपरान्त गति के बारे में बताया गया है।

व्याख्या-प्रस्तुत मन्त्रांश की व्याख्या के लिए तृतीय मन्त्र के भावार्थ का उपयोग करें।

(छ) अनेजदेकं मनसो जवीयो नैनद् देवा आप्नुवन् पूर्वमर्षत्।
प्रसंग:-प्रस्तुत मन्त्रांश ‘ईशोपनिषद्’ से सम्पादित ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ नामक पाठ में संगृहीत मन्त्र से उद्धृत है। इस मन्त्रांश में आत्मा के स्वरूप का प्रतिपादन किया गया है।

व्याख्या-‘अनेजत्’ का अर्थ है-कम्पन से रहित, अचल, स्थिर। परमात्मा अनेजत्-अर्थात् कम्पन रहित है, वह अपने स्वरूप में सदा स्थिर बना रहता है। परमात्मा के स्वरूप की दूसरी विशेषता है कि वह एक अर्थात् अद्वितीय है। वह स्थिर होकर भी मन से अधिक वेग वाला है। उसका वेग इतना अधिक है कि देव अर्थात् प्रकाशक इन्द्रियाँ उसको पकड़ ही नहीं पाती क्योंकि परमात्मा सूक्ष्म से सूक्ष्म है और इन्द्रियाँ केवल स्थूल वस्तु का ही ज्ञान कर पाती हैं। परमात्मा सर्वव्यापक है अतः वह ‘पूर्वम् अर्षत्’-सभी जगह पहले से पहुँचा हुआ रहता है।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

7. उपनिषन्मन्त्रयोः अन्वयं लिखत.
(क) अन्यदेवाहुर्विद्यया अन्यदाहुरविद्यया।
इति शुश्रुम धीराणां ये नस्तद्विचचक्षिरे॥
(ख) अनेजदेकं मनसो जवीयो नैनद्देवा आप्नुवन्पूर्वमर्षत्।
तद्धावतोऽन्यानत्येति तिष्ठत्तस्मिन्नपो मातरिश्वा दधाति॥
उत्तरम्:
उपर्युक्त दोनों मन्त्रों का अन्वय पाठ में दिया जा चुका है।

8. प्रकृति प्रत्ययं च योजयित्वा पदरचनां कुरुत
त्यज् + क्तः; कृ + शत; तत् + तसिल्
उत्तरम्:
(क) त्यज् + क्त = त्यक्तः
(ख) कृ + शतृ = कुर्वन्
(ग) तत् + तसिल् = ततः

9. प्रकृतिप्रत्ययविभागः क्रियताम्
प्रेत्य, तीर्खा, धावतः, तिष्ठत्, जवीयः
उत्तरम्:
(क) प्रेत्य = प्र + इ + ल्यप्
(ख) तीर्त्वा = √तृ + क्त्वा
(ग) धावतः = √धाव् + शतृ (नपुंसकलिङ्गम्, षष्ठी-एकवचनम्)
(घ) तिष्ठत् = (स्था + शतृ (नपुंसकलिङ्गम्, प्रथमा-एकवचनम्)
(ङ) जवीयः = जव + ईयसुन् > ईयस् (नपुंसकलिङ्गम्, प्रथमा-एकवचनम्)

10. अधोलिखितानि पदानि आश्रित्य वाक्यरचनां कुरुत
जगत्याम्, धनम्, भुञ्जीथाः, शतम्, कर्माणि, तमसा, त्वयि, अभिगच्छन्ति, प्रविशन्ति, धीराणाम्, विद्यायाम्, भूयः, समाः ।
उत्तरम्:
(वाक्यरचना)
(i) जगत्याम्-जगत्याम् अनेके ग्रहाः उपग्रहाः च सन्ति ।
(ii) धनम्-कस्य अपि धनं मा गृधः ।
(iii) भुञ्जीथा:-जगतः भोगान् त्यागभावेन भुञ्जीथाः।
(iv) शतम्-कर्माणि कुर्वन् एवं शतं वर्षाणि जिजीविषेत्।
(v) कर्माणि-सदा शुभानि कर्माणि एव कुर्यात्।
(vi) तमसा-एतत् कूपं तमसा आवृतम् अस्ति।
(vii) त्वयि-त्वयि कः स्निहयति ?
(viii) अभिगच्छन्ति-छात्राः पठनाय गुरुम् अभिगच्छन्ति।
(ix) प्रविशन्ति-अविद्यायाः उपासकाः अन्धन्तमः प्रविशन्ति।
(x) धीराणाम्-धीराणाम् उपदेशः धैर्येण श्रोतव्यः।
(xi) विद्यायाम्-प्रायः योगिनः विद्यायाम् एव रताः भवन्ति ।
(xii) भूयः (पुनः)-सः आगत्य भूयः अगच्छत्।
(xiii) समाः (वर्षाणि)-सदाचारिणः जनाः शतं समाः जीवन्ति।

11. सन्धि/सन्धिच्छेदं वा कुरुत
उत्तरम्:
(क) ईशावास्यम् – ईश + आवास्यम्
(ख) कुर्वन्नेवेह – कुर्वन् + एव + इह
(ग) जिजीविषेत् + शतं – जिजीविषेच्छतम्
(घ) तत् + धावतः – तद्धावतः
(ङ) अनेजत् + एकं – अनेजदेकम्
(च) आहुः + अविद्यया – आहुरविधया
(छ) अन्यथेतः – अन्यथा + इतः
(ज) ताँस्ते – तान् + ते।

12. अधोलिखितानां समुचितं योजनं कुरुत
धनम् – वायुः
समाः – आत्मानं ये घ्नन्ति
असुर्याः – श्रुतवन्तः स्म
आत्महनः – तमसाऽऽवृताः
मातरिश्वा – वर्षाणि शुश्रुम
अमरतां अमृतम् – वित्तम्
उत्तरम्:
धनम् – वित्तम्
समाः – वर्षाणि
असुर्याः – तमसाऽऽवृताः
आत्महनः – आत्मानं ये जन्ति
मातरिश्वा – वायुः
शुश्रुम – श्रुतवन्तः स्म
अमृतम् – अमरताम्

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13. अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदानि लिखत
नरे, ईशः, जगत, कर्म, धीराः, विद्या, अविद्या
उत्तरम्:
(पर्यायपदानि)
नरे = मनुष्ये
ईशः = ईश्वरः
जगत् = संसारः
कर्म = कार्यम्
धीराः = विद्वांसः, पण्डिताः
विद्या = अध्यात्मज्ञानम्
अविद्या = अध्यात्मेतरविद्या, व्यावहारिकज्ञानम्

14. अधोलिखितानां पदानां विलोमपदानि लिखत
एकम्, तिष्ठत्, तमसा, उभयम्, जवीयः, मृत्युम्
उत्तरम्:
(विलोमपदानि)
एकम् – अनेकम्
तिष्ठत् – धावत्
तमसा – प्रकाशन
उभयम् – एकम्
जवीयः – शनैश्चरम्, तिष्ठत्
मृत्युम् – अमृतम्

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योग्यताविस्तारः
समग्रेऽस्मिन् विश्वे ज्ञानस्याद्यं स्रोतो वेदराशिरिति सुधियः आमनन्ति। तादृशस्य वेदस्य सार: उपनिषत्सु समाहितो वर्तते। उपनिषदां ‘ब्रह्मविद्या’ ‘ज्ञानकाण्डम्’ ‘वेदान्तः’ इत्यपि नामान्तराणि विद्यन्ते। उप-नि इत्युपसर्गसहितात् सद् (षद्लु) धातोः क्विप् प्रत्यये कृते उपनिषत्-शब्दो निष्पद्यते, येन अज्ञानस्य नाशो भवति, आत्मनो ज्ञानं साध्यते, संसारचक्रस्य दुःखं शिथिलीभवति तादृशो ज्ञानराशिः उपनिषत्पदेन अभिधीयते । गुरोः समीपे उपविश्य अध्यात्मविद्याग्रहणं भवतीत्यपि कारणात् उपनिषदिति पदं सार्थकं भवति।

प्रसिद्धासु 108 उपनिषत्स्वपि 11 उपनिषदः अत्यन्तं महत्त्वपूर्णाः महनीयाश्च । ताः ईश-केन-कठ-प्रश्न-मुण्डकमाण्डूक्य-ऐतरेय-तैत्तिरीय-छान्दोग्य-बृहदारण्यक-श्वेताश्वतराख्याः वेदान्ताचार्याणां टीकाभिः परिमण्डिताः सन्ति।

आद्यायाम् ईशावास्योपनिषदि ‘ईशाधीनं जगत्सर्वम्’ इति प्रतिपाद्य भगवदर्पणबुद्ध्या भोगो निर्दिश्यते। ईशोपनिषदि ‘जगत्यां जगत्’ इति कथनेन समस्तब्रह्माण्डस्य या गत्यात्मकता निरूपिता सा आधुनिकगवेषणाभिरपि सत्यापिता। सततं परिवर्तमाना ब्रह्माण्डगता चलनस्वभावा या सृष्टि:-पशूनां प्राणिनां, तेजः पुञ्जानां, नदीनां, तरङ्गाणां वायोः वा; या च स्थिरत्वेन अवलोक्यमाना सृष्टि:-पर्वतानां, वृक्षाणां, भवनादीनां वा सा सर्वा अपि सृष्टिः ईश्वराधीना सती चलत्स्वभावा एव। ईश्वरस्य विभूत्या सर्वा अपि सृष्टिः परिपूर्णा चलत्स्वभावा च चकास्ते। तदुक्तं भगवद्गीतायाम्

यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा।
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोऽशसम्भवम् ॥ इति ॥ भगवद्गीता-10.41

उपनिषत्प्रस्थानरहस्यं विद्याया अविद्यायाश्च समन्वयमुखेन अत्र उद्घाटितमस्ति। ये जना अविद्यापदवाच्येषु यज्ञयागादिकर्मसु, भौतिक-शास्त्रेषु, लौकिकेषु ज्ञानेषु दैनन्दिनसुखसाधन-सञ्चयनार्थं संलग्नमानसा भवन्ति ते लौकिकीम् उन्नतिं प्राप्नुवन्त्येव; किन्तु तेषां तेषां जनानाम् आध्यात्मिकं बलम्, अन्तरसत्त्वं वा निस्सारं भवति। ये तु विद्यापदवाच्ये आत्मज्ञाने एव केवलं संलग्नमनसः भवन्ति, भौतिकज्ञानस्य साधनसामग्रीणां च तिरस्कारं कुर्वन्ति ते जीवननिर्वाहे, लौकिकेऽभ्युदये च क्लेशमनुभवन्ति।

अत एव अविद्यया भौतिकज्ञानराशिभिः मानवकल्याणकारीणि जीवनयात्रासम्पादकानि वस्तूनि सम्प्राप्य विद्यया आत्मज्ञानेन-ईश्वरज्ञानेन जन्ममृत्युदुःखरहितम् अमृतत्वं प्राप्नोति । विद्याया अविद्यायाश्च ज्ञानेन एव इहलोके सुखं परत्र च अमृतत्वमिति कल्याणी वाचम् उपदिशति उपनिषत् ‘अविद्यया मृत्युं तीा विद्ययाऽमृतमश्नुते’ इति।

पाठ्यांशेन सह भावसाम्यं पर्यालोचयत
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायोऽह्यकर्मणः।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः ॥ भगवद्गीता-3.8
अशब्दमस्पर्शमरूपमव्ययं तथाऽरसं नित्यमगन्धवच्च यत्।
अनाद्यनन्तं महतः परं ध्रुवं निचाय्य तन्मृत्युमुखात्प्रमुच्यते॥ कठोपनिषत्-3.15

कठोपनिषदि प्रतिपादितं श्रेयं प्रेयश्च अधिकृत्य सङ्ग्रणीत-दिङ्मानं यथा

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श्रेयश्च प्रेयश्च मनुष्यमेतस्तौ
संपरीत्य विविनक्ति धीरः।
श्रेयो हि धीरोऽभिप्रेयसो वृणीते
प्रेयो मन्दो योगक्षेमात् वृणीते॥ कठोपनिषत्-2.2

विविधासु उपनिषत्सु प्रतिपादिताम् आत्मप्राप्तिविषयकजिज्ञासां विशदयत
नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो
न मेधया न बहुना श्रुतेन।
यमेवैष वृणुते तेन लभ्यस्तस्यैष
आत्मा विवृणुते तनूं स्वाम् ।। कठोपनिषत्-2.23

वैदिकस्वराः
वैदिकमन्त्रेषु उच्चारणदृष्ट्या त्रिविधानां ‘स्वराणां’ प्रयोगो भवति। मन्त्राणाम् अर्थमधिकृत्य चिन्तनं, प्रकृतिप्रत्यययोः योगं, समासं वाश्रित्य भवति। तत्र अर्थनिर्धारणे स्वरा महत्त्वपूर्णा भवन्ति। ‘उच्चैरुदात्त:’ ‘नीचैरनुदात्तः’ ‘समाहारः स्वरितः’ इति पाणिनीयानुशासनानुरूपम् उदात्तस्वर: ताल्वादिस्थानेषु उपरिभागे उच्चारणीयः, अनुदात्तस्वरः ताल्वादीनां नीचैः स्थानेषु, उभयोः स्वरयोः समाहाररूपेण (समप्रधानत्वेन)स्वरित उच्चारणीय इति उच्चारणक्रमः। वैदिकशब्दानां निर्वचनार्थं प्रवृत्ते निरुक्ताख्ये ग्रन्थे पाणिनीयशिक्षायां च स्वरस्य महत्त्वम् इत्थमुक्तम्

मन्त्रो हीनस्स्वरतो वर्णतो वा
मिथ्याप्रयुक्तो न तमर्थमाह।
स वाग्वज्रो यजमानं हिनस्ति
यथेन्द्रशत्रुस्स्वरतोऽपराधात्॥

मन्त्राः स्वरसहिताः उच्चारणीया इति परम्परा। अतः स्वरितस्वरः अक्षराणाम् उपरि चिह्नन, अनुदात्तस्वरः अक्षराणां नीचैः चिह्नन उदात्तस्वरः किमपि चिह्न विना च मन्त्राणां पठन-सौकर्यार्थं प्रदर्श्यते।

निष्कर्षः
वैदिक मन्त्रों के उच्चारण में तीन प्रकार के स्वरों का प्रयोग होता है-1. उदात्तस्वर, 2. अनुदात्तस्वर और 3. स्वरितस्वर। स्वरों के परिवर्तन से कभी-कभी अर्थ-परिवर्तन भी हो जाता है। अतः मन्त्रों के सस्वर पाठ की प्राचीन परम्परा रही है। लेखन में अक्षर के ऊपर स्वरितस्वर के लिए खड़ी रेखा (इति), अनुदात्तस्वर के लिए नीचे पड़ी रेखा (ततः) लगाई जाती है। उदात्तस्वर के लिए किसी चिह्न का प्रयोग नहीं होता है; जैसे-(यः)।

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HBSE 9th Class Sanskrit विद्ययाऽमृतमश्नुते Important Questions and Answers

1. समुचितम् उत्तरं चित्वा लिखत
(i) ईशावास्योपनिषद् कस्याः संहितायाः भागः ?
(A) ऋग्वेदसंहितायाः
(B) यजुर्वेदसंहितायाः
(C) सामवेदसंहितायाः
(D) अथर्ववेदसंहितायाः।
उत्तराणि:
(B) यजुर्वेदसंहितायाः

(ii) जगत्सर्वं कीदृशम् अस्ति ?
(A) वास्यम्
(B) आवास्यम्
(C) सर्वम्
(D) ईशावास्यम्।
उत्तराणि:
(D) ईशावास्यम्

(iii) पदार्थभोगः कथं करणीयः ?
(A) त्यागभावेन
(B) लोभवृत्त्या
(C) साधुवृत्त्या
(D) भोगभावेन।
उत्तराणि:
(A) त्यागभावेन

(iv) आत्महनो जनाः कीदृशं लोकं गच्छन्ति ?
(A) सूर्यलोकम्
(B) चन्द्रलोकम्
(C) असुर्यालोकम्
(D) ब्रह्मलोकम्।
उत्तराणि:
(C) असुर्यालोकम्

(v) मनसोऽपि वेगवान् कः ?
(A) वायुः
(B) आत्मा
(C) आत्मीयः
(D) वायव्यः।
उत्तराणि:
(B) आत्मा

(vi) तिष्ठन्नपि कः धावतः अन्यान् अत्येति ?
(A) परमात्मा
(B) दुरात्मा
(C) अश्वः
(D) मनः।
उत्तराणि:
(A) परमात्मा

(vii) अविद्यया किं तरति ?
(A) अमृतम्
(B) वित्तम्
(C) ऋतम्
(D) मृत्युम्।
उत्तराणि:
(D) मृत्युम्

(vii) विद्यया किं प्राप्नोति ?
(A) अमृतम्
(B) धनम्
(C) यशः
(D) मृत्युम्।
उत्तराणि:
(A) अमृतम्।

II. रेखाङ्कितपदम् आधृत्य-प्रश्ननिर्माणाय समुचितम् पदं चित्वा लिखत
(i) इदं सर्वं जगत् ईशावास्यम्
(A) कः
(B) कीदृशम्
(C) कति
(D) कस्मात्।
उत्तराणि:
(B) कीदृशम्

(ii) शतं समाः कर्माणि कुर्वन् एव जिजीविषेत्।
(A) कस्य
(B) केषाम्
(C) किम्
(D) कुत्र।
उत्तराणि:
(C) किम्

(iii) असुर्या नाम लोका अन्धेन तमसा आवृताः।
(A) केन
(B) कस्य
(C) कस्मै
(D) कस्याम्।
उत्तराणि:
(A) केन

(iv) अविद्योपासकाः अन्धन्तमः प्रविशन्ति।
(A) कः
(B) को
(C) काः
(D) के।
उत्तराणि:
(D) के।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

विद्ययाऽमृतमश्नुते पाठ्यांशः

1. शावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्य॑ स्विद्धनम्॥1॥

अन्वयः-इदं सर्वं यत् किं च जगत्यां जगत् (तत्) ईशावास्यम्, तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः, कस्यस्वित् धनं मा गृधः ।

प्रसंग:-प्रस्तुत मन्त्र हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ ‘ईशोपनिषद्’ से संकलित है। इस मन्त्र में परमात्मा की सर्वव्यापकता तथा त्यागपूर्वक भोग का उपदेश दिया गया है।

सरलार्थ:-यह सब जो कुछ सृष्टि में चराचर जगत् है, वह सब परमेश्वर से व्याप्त है। इसीलिए त्याग भाव से सृष्टि के पदार्थों का उपभोग कर। किसी के भी धन का लालच मत कर।

भावार्थ:-इस सृष्टि में जो भी जड़-चेतन पदार्थ दृष्टिगोचर हो रहे हैं, उन सबमें एकरस होकर परमात्मा व्यापक त्यागभाव से ही सृष्टि के पदार्थों का उपभोग करना चाहिए। किसी के भी धन पर गृद्ध दृष्टि नहीं रखनी चाहिए क्योंकि अन्ततः यह धन किसी का भी नहीं। त्यागपूर्वक भोग शरीर के लिए भोजन (शरीर की शक्ति) बन जाता है और आसक्ति/लालच से किसा गया भोग विषय-भोग बन जाता है। ऐसा आसक्तिमय भोग ही रोग का कारण होता है-‘भोगे रोगभयम्’।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च

ईशावास्यम् = ईश के रहने योग्य अर्थात् ईश्वर से व्याप्त। ईशस्य ईशेन वा आवास्याम्। जगत्याम् = जगती अर्थात् ब्रह्माण्ड/सृष्टि में। सप्तमी एकवचन। जगत् = सतत परिवर्तनशील संसार। गच्छति इति जगत्। सततं परिवर्तमानः प्रपञ्चः । भुञ्जीथाः = भोग करो। विषय वस्तु का ग्रहण करो। भोगं कुरु। ।भुज् (पालने अभ्यवहारे च), आत्मनेपदी, विधिलिङ् मध्यम पुरुष, एकवचन। मा गृधः = लोलुप मत हो। लोभ मत करो। लोलुपः मा भव। गध (अभिकांक्षायाम) लङ् लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन में ‘अगृधः’ रूप बनता है। व्याकरण के नियमानुसार निषेधार्थक ‘माङ्’ अव्यय के योग में ‘अगृधः’ के आरम्भ में विद्यमान ‘अ’ कार का लोप हो जाता है। कस्यस्विद् = किसी का। इसके समानार्थक पद हैं-कस्यचित्, कस्यचन। अव्यय।।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

2. कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः।
वं त्वयि नान्यथेतोस्ति न कर्म लिप्यते नरे॥2॥

अन्वयः-इह कर्माणि कुर्वन् एव शतं समाः जिजीविषेत् । एवं त्वयि नरे कर्म न लिप्यते। इतः अन्यथा (मार्गः) न अस्ति। __ प्रसंग:-प्रस्तुत मन्त्र हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ ‘ईशोपनिषद्’ से संकलित है। इस मन्त्र में कर्तव्य भाव से कर्म करने की प्रेरणा दी गई है।

सरलार्थः-इस संसार में कर्म करते हुए ही सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करे। इस प्रकार तुझ मनुष्य में कर्मों का लेप/बन्धन नहीं होता। इससे अन्य दूसरा कोई मार्ग नहीं है।

भावार्थ:-उपनिषद् के पहले मन्त्र में त्यागपूर्वक भोग की बात कही गई है। इस मन्त्र में कर्म करते हुए-पुरुषार्थी बनकर ही सौ वर्षों के दीर्घजीवन का संकल्प प्रकट किया गया है। दोनों मन्त्रों का समन्वित भाव यह है कि मनुष्य को संसार में अनासक्त भाव से कर्म करते हुए स्वाभिमान पूर्वक जीवन यापन करना चाहिए। लोभ/आसक्ति के कारण ही मनुष्य पाप कर्म करता है-‘लोभः पापस्य कारणम्’। कर्तव्य भाव से किए गए कर्म सदा शुभ होते हैं। अतः ऐसे निष्काम कर्म मनुष्य को कर्म-बन्धन में नहीं बाँधते अपितु उसे मुक्त जीवन प्रदान करते है। श्रीमद्भगवद्गीता के निष्काम कर्मयोग का मूल स्रोत उपनिषद् के ये वचन ही हैं।

प्रस्तुत मन्त्र का यह सारगर्भित सन्देश है कि मनुष्य को निठल्ले रहकर नहीं अपितु जीवन भर पुरुषार्थी बनकर कर्तव्य भाव से शुभ कर्म करते हुए ही अपना जीवन यापन करना चाहिए। जीवन्मुक्त होने का यही एक उपाय है, इससे भिन्न कोई उपाय नहीं है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
कुर्वन्नेव = करते हुए ही। कृ + शत, पुंल्लिङ्ग, प्रथमा विभक्ति, एकवचन। कुर्वन् + एव। जिजीविषेत् = जीने की इच्छा करें। जीवितुम् इच्छेत्। Vजीव् (प्राणधारणे), इच्छार्थक सन् प्रत्यय से विधिलिङ्। जीव + सन् + विधिलिङ् प्रथमपुरुष, एकवचन। शतं समाः = सौ वर्ष; शतं वर्षाणि। कर्म न लिप्यते = कर्म लिप्त नहीं होता। लिप् (उपदेहे), लट्, कर्मणि प्रयोग। ‘कर्म नरे न लिप्यते-यह एक विशिष्ट वैदिक प्रयोग है। तुलना कीजिए–’लिप्यते न स पापेन।’ – (भगवद्गीता-5.10)।

पन्थाः = मार्ग, उपाय। पथिन्, पुंल्लिग, प्रथमा-एकवचन। अन्यथा इतः = इससे भिन्न।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

3. असुर्या ना ते लोकाऽन्धेसाऽऽवृताः।
ताँस्ते प्रेत्यापिं गच्छन्ति ये के चात्मनो जनाः ॥3॥

अन्वयः-असुर्याः नाम ते लोकाः, (ये) अन्धेन तमसा आवृताः (सन्ति), ये के च आत्महनः जनाः (भवन्ति), ते प्रेत्य तान् अभिगच्छन्ति।

प्रसंग:-प्रस्तुत मन्त्र हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ ‘ईशोपनिषद्’ से संकलित है। इस मन्त्र में आत्मस्वरूप का तिरस्कार करने वाले को आत्महन्ता कहा गया है।

सरलार्थः-असुरों अर्थात् केवल प्राणपोषण में लगे हुए लोगों के वे प्रसिद्ध लोक (योनियाँ) हैं, जो गहरे अज्ञानअन्धकार से ढके हुए हैं। जो कोई लोग आत्मा के हत्यारे (आत्मा के विरुद्ध अधर्म का आचरण करने वाले) होते हैं, वे मरकर उन अज्ञान के अन्धकार से युक्त योनियों को प्राप्त करते हैं।

भावार्थ:-आत्मा अमर है, यह कभी नहीं मरता। आत्मा के विरुद्ध अधर्म का आचरण करना तथा आत्मा की सत्ता को स्वीकार न करना ही आत्महत्या है। आत्मा के दो रूप हैं-परमात्मा और जीवात्मा। परमात्मा सम्पूर्ण जड-चेतन में व्यापक होकर उसे अपने शासन में रखता है। जीवात्मा शरीर में व्यापक होकर उसे अपने नियन्त्रण में रखता है। जो लोग आत्मा के इस स्वरूप का तिरस्कार करते हैं तथा अपने प्राणपोषण के लिए आसक्तिपूर्वक सृष्टि के पदार्थों का भोग करते हैं, वे असुर हैं। ऐसे राक्षसवृत्ति लोगों को मरने के पश्चात् उन ‘असुर्या’ नामक अन्धकारमयी योनियों में जन्म मिलता है, जहाँ ज्ञान का प्रकाश नहीं होता।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
असुर्याः = प्रकाशहीन। अथवा असुर सम्बन्धी। अविद्यादि दोषों से युक्त, प्राणपोषण में निरत। असुषु प्राणेषु रमते यः सः असुरः। असुर + यत् = असुर्य। प्रथमा विभक्ति बहुवचन। अन्धेन तमसा = अज्ञान रूपी घोर अन्धकार से। ‘तमः’ शब्द अज्ञान का बोधक। आवृताः = आच्छादित। आ +/ वृ (वरणे) + क्त। प्रेत्य = मरणं प्राप्य, मरण प्राप्तकर। इण (गतौ) धातु। प्र + इ + ल्यप्। आत्महनः = आत्मानं ये घ्नन्ति । आत्मा की व्यापकता को जो स्वीकार नहीं करते। ‘आत्मानं = ईशं सर्वतः पूर्ण चिदानन्दं घ्नन्ति = तिरस्कुर्वन्ति (शाकरभाष्ये)’।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

4. अनेदेकं मनसो जवीयो नैनदेवा आप्नुन् पूर्वमर्शत्।
तद्धावतोऽन्यानत्यति तिष्ठत्तस्मिन्नपो मारिश्वा दधाति॥4॥

अन्वयः-अनेजत्, एकम् मनसः जवीयः। देवाः एनत् न आप्नुवत्। पूर्वम् अर्षत्। तत् तिष्ठत् धावतः अन्यान् अत्येति। तस्मिन् मातरिश्वा अपः दधाति।।

प्रसंग:-प्रस्तुत मन्त्र हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ ‘ईशोपनिषद्’ से संकलित है। इस मन्त्र में सर्वव्यापक परमात्मा के स्वरूप का निरूपण किया गया है।

सरलार्थ:-(वह परमात्मा) निश्चल, एक, मन से भी अधिक वेग वाला है। देव (इन्द्रियाँ) उस तक नहीं पहुँच पाते हैं। (यह सर्वव्यापक होने से सब जगह) पहले से ही पहुँचा हुआ है। इसीलिए वह परमात्मा अपने स्वरूप में स्थिर रहते हुए दौड़ने वाले दूसरे ग्रह-उपग्रह आदि का अतिक्रमण कर जाता है। उसी परमात्मा के नियम से वायु जलों को धारण करता है अथवा यह जीवात्मा कर्मों को धारण करता है।

भावार्थ:-वह परमात्मा अचल, एक, मन से भी अधिक वेगवान् तथा इन्द्रियों की पहुँच से परे है। परमात्मा की व्यवस्था से ही मित्र और वरुण नामक वायु मिलकर जल का रूप (H2,O) धारण करते हैं अथवा परमात्मा की व्यवस्था में ही सभी जीवात्माएँ अपने-अपने कर्मों को धारण करती हैं।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
अनेजत् = कम्पन रहित। विकार रहित, स्थिर, अचल। √ एज़ (कम्पने)। न + √ एज् + शतृ। नपुंसकलिङ्ग, प्रथमा विभक्ति एकवचन। जवीयः = अधिक वेगवाला। अतिशयेन जववत्। जव + ईयस्। नपुंसकलिङ्ग, प्रथमा विभक्ति एकवचन। देवाः = इन्द्रियाँ । न आप्नुवन् = प्राप्त नहीं किया। /आप्लु (व्याप्तौ), लङ् लकार, प्रथम पुरुष बहुवचन। अर्षत् = गच्छत्। गमनशील। √ ऋषी (गतौ)। शतृ प्रत्यय, नपुंसकलिङ्ग, प्रथमा विभक्ति एकवचन। अथवा √ऋ (गतौ), लेट् लकार। तिष्ठत् = स्थिर रहने वाला। परिवर्तन रहित। (स्था + शतृ, नपुंसकलिङ्ग, प्रथमा विभक्ति एकवचन। अपः = जल, कर्म । मातरिश्वा = वायु , प्राणवायु। मातरि – अन्तरिक्षे श्वयति – गच्छति इति मातरिश्वा। नकारान्त पुंलिङ्ग, प्रथमा विभक्ति एकवचन।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

5. न्धन्तमः प्रविशन्ति येऽविद्यामुपासते।
तो भूय इ ते तमो य उ विद्याया रताः॥

अन्वयः-ये अविद्याम् उपासते, (ते) अन्धन्तमः प्रविशन्ति। ततः भूयः इव ते तमः (प्रविशन्ति), ये उ विद्यायां रताः ।

प्रसंग:-प्रस्तुत मन्त्र हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘विद्ययाऽ-मृतमश्नुते’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ ‘ईशोपनिषद्’ से संकलित है। इस मन्त्र में बताया गया है कि केवल अविद्या = भौतिक विद्या अथवा केवल विद्या = अध्यात्म विद्या में लगे रहना अन्धकार में पड़े रहने के समान है।

सरलार्थः-जो लोग केवल अविद्या अर्थात् भौतिक साधनों की प्राप्ति कराने वाले ज्ञान की उपासना करते हैं, वे घोर अन्धकार में प्रवेश करते हैं। परन्तु उनसे भी अधिक घोर अन्धकारमय जीवन उन लोगों का होता है, जो केवल विद्या अर्थात् अध्यात्म ज्ञान प्राप्त करने में ही लगे रहते हैं।

भावार्थ:-अविद्या और विद्या वेद के विशिष्ट शब्द हैं। ‘अविद्या’ से तात्पर्य है शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायता करने वाला ज्ञान। ‘विद्या’ का अर्थ है, आत्मा के रहस्य को प्रकट करने वाला अध्यात्म ज्ञान। वेद मन्त्र का तात्पर्य है कि यदि व्यक्ति केवल भौतिक साधनों को जुटाने का ज्ञान ही प्राप्त करता है और ‘आत्मा’ के स्वरूपज्ञान को भूल जाता है तो बहुत बड़ा अज्ञान है, उसका जीवन अन्धकारमय है। परन्तु जो व्यक्ति केवल अध्यात्म ज्ञान में ही मस्त रहता है, उसकी दुर्दशा तो भौतिक ज्ञान वाले से भी अधिक दयनीय होती है। क्योंकि भौतिक साधनों के अभाव में शरीर की रक्षा भी कठिन हो जाएगी। अत: वेदमन्त्र का स्पष्ट संकेत है कि भौतिक ज्ञान तथा अध्यात्म ज्ञान से युक्त सन्तुलित जीवन ही सफल और आनन्दित जीवन है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
अन्धन्तमः = घोर अन्धकार। प्रविशन्ति= प्रवेश करते हैं। प्र + विश् (प्रवेशने) लट् लकार प्रथम पुरुष बहुवचन। उपासते = उपासना करते हैं। उप + आसते। आस् (उपवेशने) धातु लट् लकार प्रथम पुरुष बहुवचन। आस्ते आसाते आसते। ततो भूय इव = उससे अधिक। तीनों पद अव्यय हैं। ततः + भूयः + इव। रताः = रमण करते हैं। निरत हैं। रिम् (क्रीडायाम्) + क्त प्रथमा विभक्ति।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

6. न्यदेवाहुर्विद्यया न्याहुरविद्यया।
इति शुश्रु धीराणां ये स्तद्विचचक्षिरे॥6॥

अन्वयः-विद्यया अन्यत् एव (फलम्) आहुः । अविद्यया अन्यत् एव (फलम् आहुः) इति धीराणां (वचांसि) शुश्रुम, ये नः तत् विचचक्षिरे।

प्रसंग:-प्रस्तुत मन्त्र हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ ‘ईशोपनिषद्’ से संकलित है। इस मन्त्र में विद्या और अविद्या के अलग-अलग फल की चर्चा की गई है।

सरलार्थ:-अविद्या अर्थात् व्यावहारिक ज्ञान का अलग प्रकार का फल होता है और विद्या अर्थात् अध्यात्मज्ञान का अलग प्रकार का फल होता है। इस प्रकार से हमने उन विद्वान् ज्ञानी पुरुषों के वचनों को सुना है, जिन विद्वानों ने उस विद्या और अविद्या के रहस्य को हमारे लिए स्पष्ट उपदेश किया है।

भावार्थ:-व्यावहारिक ज्ञान से सांसारिक सुख-साधनों की प्राप्ति तथा शरीर की भूख-प्यास दूर होती है। अध्यात्मज्ञान आत्मा को अपने स्वरूप में स्थिर बनाता है। इस प्रकार दोनों प्रकार का ज्ञान अलग-अलग उद्देश्य को सिद्ध करता है। जिन विद्वान् लोगों ने अविद्या और विद्या के इस रहस्य को हमारे कल्याण के लिए समझाया है, उन्हीं से हमने ऐसा सुना

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
आहुः = कहते हैं। ब्रूञ् (व्यक्तायां वाचि), लट् लकार प्रथम पुरुष बहुवचन । शुश्रुम = सुन चुके हैं। √श्रु (श्रवणे), लिट् लकार उत्तम पुरुष बहुवचन। विचचक्षिरे = स्पष्ट उपदेश किए थे। वि + √चक्षिङ् (आख्याने), लिट् लकार प्रथम पुरुष बहुवचन। चचक्षे चचक्षाते चचक्षिरे। विद्या = ज्ञान, अध्यात्म ज्ञान। । √विद् (ज्ञाने) + क्यप् + टाप् । यहाँ ‘अध्यात्म विद्या’ के अर्थ में ‘विद्या’ शब्द का प्रयोग हुआ है। इस चराचर जगत् में सर्वत्र व्याप्त आत्मस्वरूप ईश्वर के ज्ञान को तथा शरीर में व्याप्त आत्मस्वरूप जीव के ज्ञान को ‘अध्यात्मविद्या’ की संज्ञा दी गई है। यह यथार्थ ज्ञान ‘विद्या’ है। इसे ही ‘मोक्ष विद्या’ नाम से भी जाना जाता है। अविद्या = अध्यात्मेतर विद्या, व्यावहारिक विद्या। अध्यात्म ज्ञान से भिन्न सभी ज्ञान। न + विद्या ‘न’ का अर्थ है ‘इतर’ अथवा ‘भिन्न’। अर्थात् ‘आत्मविद्या से भिन्न’ जो भी ज्ञानराशि है; जैसे-सृष्टिविज्ञान, यज्ञविद्या, भौतिक विज्ञान, आयुर्विज्ञान, प्रौद्योगिकी, सूचना-तन्त्र-ज्ञान आदि अविद्या पद में समाहित

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

7. विद्यां चाविद्यां यस्तद्वेदोभयं ह।
अविद्यया मृत्युं तीर्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते॥7॥

अन्वयः-यः विद्यां च अविद्यां च उभयं सह वेद, (सः) अविद्यया मृत्यु तीा विद्यया अमृतम् अश्नुते।

प्रसंगः-प्रस्तुत मन्त्र हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ ‘ईशोपनिषद्’ से संकलित है। इस मन्त्र में अध्यात्मज्ञान तथा व्यावहारिक ज्ञान द्वारा सन्तुलित जीवन यापन करने का आदेश दिया है।

सरलार्थः-जो मनुष्य विद्या अर्थात् अध्यात्मज्ञान तथा अविद्या अर्थात् अध्यात्म ज्ञान से भिन्न सभी प्रकार का व्यावहारिक ज्ञान, दोनों को एक साथ जानता है। वह व्यावहारिक ज्ञान द्वारा मृत्यु को पारकर अध्यात्म ज्ञान द्वार। जन्ममृत्यु के दुःख से रहित अमरत्व को प्राप्त करता है।

भावार्थ:-‘विद्या’ और ‘अविद्या’-ये दोनों शब्द विशिष्ट वैदिक प्रयोग हैं। ‘विद्या’ शब्द का प्रयोग यहाँ अध्यात्म ज्ञान’ के अर्थ में हुआ है। इस जड़-चेतन जगत् में सर्वत्र व्याप्त परमात्मा तथा शरीर में व्याप्त जीवात्मा के ज्ञान को अध्यात्म ज्ञान कहा जाता है। यह मोक्षदायी यथार्थ ज्ञान ही ‘विद्या’ है। इससे भिन्न सभी प्रकार के ज्ञान को ‘अविद्या’ नाम दिया गया है। अध्यात्म ज्ञान से भिन्न सृष्टिविज्ञान, यज्ञविज्ञान, भौतिकविज्ञान, आयुर्विज्ञान, गणितविज्ञान, अर्थशास्त्र प्रौद्योगिकी, सूचनातन्त्र आदि सभी प्रकार का ज्ञान ‘अविद्या’ शब्द में समाहित हो जाता है। यह अध्यात्मेतर ज्ञान मनुष्ट को मृत्यु दुःख से छुड़वाता है और इसी अध्यात्म ज्ञान द्वारा मनुष्य फिर अमरत्व अर्थात् मोक्ष को प्राप्त कर लेता है, जन्ममरण के चक्र से छूट जाता है। इस प्रकार यह दोनों प्रकार का ज्ञान ही मनुष्य के लिए आवश्यक है, तभी वह इहलोक तथा परलोक दोनों को सिद्ध कर सकता है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
वेद = जानता है। विद् (ज्ञाने), लट् लकार प्रथम पुरुष एकवचन । उभयम् = दोनों। तीर्वा =पार जाकर, तरणकर। √तृ (प्लवनतरणयोः) + क्त्वा। अव्यय। अमृतम् = अमरता को। जन्म-मृत्यु के दुःख से रहित अमरत्व को। अश्नुते = प्राप्त करता है। अश् (भोजने) भोजनार्थक धातु इस सन्दर्भ में प्राप्ति के अर्थ में है। (अश्नुते प्राप्तिकर्मा; निघण्टुः 2.18)

विद्ययाऽमृतमश्नुते (अध्यात्मज्ञान से अमरता प्राप्त होती है) Summary in Hindi

विद्ययाऽमृतमश्नुते पाठ-परिचय

“सम्पूर्ण विश्व में ज्ञान का आदिस्रोत ‘वेद’ ही हैं”-ऐसा विद्वानों का मत है। वेदों का सार उपनिषदों में निहित है। उपनिषदों को ‘ब्रह्मविद्या’, ‘ज्ञानकाण्ड’ अथवा ‘वेदान्त’ नाम से भी जाना जाता है। ‘उप’ तथा ‘नि’ उपसर्ग पूर्वक सद् (षद्ल) धातु से ‘क्विप्’ प्रत्यय होकर ‘उपनिषद्’ शब्द निष्पन्न होता है-उप + नि + √सद् + क्विप् > 0 = उपनिषद् जिससे अज्ञान का नाश होता है, आत्मा का ज्ञान सिद्ध होता है, संसार चक्र का दुःख छूट जाता है; वह ज्ञानराशि ‘उपनिषद्’ कही जाती है। गुरु के समीप बैठकर अध्यात्मविद्या ग्रहण की जाती है-इस कारण भी ‘उपनिषद्’ शब्द सार्थक है।

‘उपनिषद्’ नाम से 200 से भी अधिक ग्रन्थ मिलते हैं। परन्तु प्रामाणिक दृष्टि से उन में 11 उपनिषद् ही महत्त्वपूर्ण हैं और इन्हीं पर आचार्य शकर का भाष्य भी मिलता है। इनके नाम इस प्रकार हैं-1. ईशावास्य 2. केन, 3. कठ, 4. प्रश्न, 5. मुण्डक, 6. माण्डूक्य, 7. तैत्तिरीय, 8. ऐतरेय, 9. छान्दोग्य, 10. बृहदारण्यक तथा 11. श्वेताश्वतर। • इनमें भी ‘ईशावास्य-उपनिषद्’ सबसे अधिक प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण है। ‘यजुर्वेद’ का अन्तिम चालीसवाँ अध्याय ही ‘ईशोपनिषद्’ के नाम से प्रसिद्ध है, इसमें कुल 17 मन्त्र हैं।

इस उपनिषद् में ‘समस्त जगत् ईश्वाराधीन है’- यह प्रतिपादित करके भगवद्-अर्पणबुद्धि से जगत् के पदार्थों का उपभोग करने का निर्देश किया गया है। ‘जगत्यां जगत्”ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी है, सब जगत् अर्थात् गतिमय है’-उपनिषद् के इस सिद्धान्त की पुष्टि आधुनिक विज्ञान एवं आधुनिक खोज द्वारा भी होती है। निरन्तर परिवर्तन तथा निरन्तर गतिमयता ब्रह्माण्ड के समस्त सूर्य + चन्द्र + पृथ्वी आदि ग्रह-उपग्रहों का स्वभाव है।

इस उपनिषद् में ‘विद्या’ ‘अविद्या’ दो विशिष्ट वैदिक पदों का प्रयोग हुआ है। जो लोग ‘अविद्या’ शब्द द्वारा कहे जाने वाले यज्ञयाग, भौतिकशास्त्र आदि सांसारिक ज्ञान में दैनिक सुख-साधनों की प्राप्ति हेतु प्रयत्नशील रहते हैं; उनकी सांसारिक उन्नति तो बहुत होती है, परन्तु उनका अध्यात्म पक्ष निर्बल रह जाता है। जो लोग केवल अध्यात्म ज्ञान में ही लीन रहते हैं और भौतिक ज्ञान की साधन सामग्री की अवहेलना करते हैं, वे सांसारिक जीवन के निर्वाह तथा सांसारिक उन्नति में पिछड़ जाते हैं।

इसीलिए अविद्या अर्थात् भौतिकज्ञान द्वारा जीवन की सुख-साधन सामग्री अर्जित कर विद्या अर्थात् अध्यात्मज्ञान द्वारा जन्म-मरण के दुःख से रहित अमृतपद को प्राप्त करने का सारगर्भित उपदेश इस उपनिषद् में दिया गया है-‘अविद्यया मृत्युं तीा विद्ययाऽमृतमश्नुते’। श्रीमद्भगवद्गीता में ईशोपनिषद् के ही दार्शनिक विचारों का विस्तार से व्याख्यान किया गया है।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 1 विद्ययाऽमृतमश्नुते

विद्ययाऽमृतमश्नुते पाठस्य सारः

प्रस्तुत पाठ ‘ईशावास्योपनिषद्’ से संकलित है। ‘ईशावास्यम्’ पद से आरम्भ होने के कारण इसे ‘ईशावास्योपनिषद्’ नाम दिया गया है। इसे ही ‘ईशोपनिषद्’ के नाम से भी जाना जाता है। यह उपनिषद् यजुर्वेद की माध्यन्दिन एवं काण्व संहिता का 40वाँ अध्याय है, जिसमें 18 मन्त्र हैं।

इस पाठ के पहले दो मन्त्रों में ईश्वर की सर्वत्र विद्यमानता को दर्शाते हुए, कर्तव्य भावना से कर्म करने एवं त्यागपूर्वक संसार के पदार्थों का उपयोग एवं संरक्षण करने का उल्लेख है। तीसरे मन्त्र में उन लोगों को अज्ञानी तथा आत्महन्ता कहा गया है जो लोग परमात्मा की व्यापकता को स्वीकार नहीं करते हैं। चतुर्थ मन्त्र में चैतन्य स्वरूप, स्वयं प्रकाश एवं विभु सर्वव्यापक आत्म तत्त्व का निरूपण है। पञ्चम एवं षष्ठ मन्त्रों में अविद्या अर्थात् व्यावहारिक ज्ञान एवं विद्या अर्थात् आध्यात्मिक ज्ञान पर सूक्ष्म चिन्तन किया गया है। अन्तिम मन्त्र में यह स्पष्ट किया गया है कि व्यावहारिक ज्ञान से लौकिक अभ्युदय एवं अध्यात्मज्ञान से अमरता की प्राप्ति होती है।

इस पाठ में संकलित मन्त्रों में परमात्मा की सर्वव्यापकता, त्यागपूर्वक भोग, स्वाभिमान से पूर्ण कर्मनिष्ठ जीवन का उपदेश देते हुए यह सारगर्भित सन्देश दिया गया है कि लौकिक एवं अध्यात्म विद्या एक-दूसरे की पूरक हैं तथा मानव जीवन की परिपूर्णता और उसके सर्वांगीण विकास में समान रूप से महत्त्व रखती हैं।

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HBSE 10th Class Maths Chapter 11 Constructions

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HBSE 10th Class Maths Chapter 12 Areas Related to Circles

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HBSE 10th Class Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes

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HBSE 10th Class Maths Chapter 14 Statistics

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HBSE 10th Class Maths Chapter 15 Probability

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HBSE 12th Class Economics Important Questions and Answers

Haryana Board HBSE 12th Class Economics Important Questions and Answers

HBSE 12th Class Economics Important Questions in Hindi Medium

HBSE 12th Class Economics Important Questions व्यष्टि अर्थशास्त्र एक परिचय

HBSE 12th Class Economics Important Questions समष्टि अर्थशास्त्र एक परिचय

HBSE 12th Class Economics Important Questions in English Medium

HBSE 12th Class Economics Important Questions: Microeconomics

  • Chapter 1 Micro Economics: An Introduction Important Questions
  • Chapter 2 Theory of Consumer Behaviour Important Questions
  • Chapter 3 Production and Costs Important Questions
  • Chapter 4 Theory of the Firm Under Perfect Competition Important Questions
  • Chapter 5 Market Equilibrium Important Questions
  • Chapter 6 Non-Competitive Markets Important Questions

HBSE 12th Class Economics Important Questions: Macroeconomics

  • Chapter 1 Macro Economics: An Introduction Important Questions
  • Chapter 2 National Income Accounting Important Questions
  • Chapter 3 Money and Banking Important Questions
  • Chapter 4 Determination of Income and Employment Important Questions
  • Chapter 5 Government Budget and The Economy Important Questions
  • Chapter 6 Open Economy: Macro Economics Important Questions

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HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार एक परिचय Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

पाठयपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
माँग वक्र का आकार क्या होगा ताकि कुल संप्राप्ति वक्र (a) a मूल बिंदु से होकर गुजरती हुई धनात्मक प्रवणता वाली सरल रेखा हो। (b) a समस्तरीय रेखा हो।
उत्तर:
(a) माँग वक्र एक सीधी, सरल, समस्तरीय व x-अक्ष के समानांतर रेखा होगा जब कुल संप्राप्ति (आगम) वक्र मूल बिंदु से गुजरता हुआ धनात्मक प्रवणता वाली सरल रेखा हो। इसे हम निम्नांकित रेखाचित्र (i) द्वारा दिखा सकते हैं।

(b) माँग वक्र नीचे की ओर प्रवणता वाला वक्र होगा जब कुल संप्राप्ति (आगम) वक्र समस्तरीय रेखा हो। इसे हम निम्नांकित रेखाचित्र (ii) द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार 1

प्रश्न 2.
नीचे दी गई सारणी से कुल संप्राप्ति माँग वक्र और माँग की कीमत-लोच की गणना कीजिए

मात्रा12345678910
सीमांत संप्राप्ति (आगम)1062222000-5

हल:

मात्रासीमांत संप्राप्ति (आगम)कुल संप्राप्ति
(रुपए)
औसत संप्राप्ति (रुपए)माँग की कीमत-ल्लोच
1101010
261684
321861.5
422051.67
52224.41.83
60223.671
70223.141
80222.751
9-5171.890.27

प्रयोग किए गए सूत्र-
(i) कुल संप्राप्ति = सीमांत संप्राप्ति, + सीमांत संप्राप्ति, +…… + सीमांत संप्राप्तिn
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार 2

प्रश्न 3.
जब माँग वक्र लोचदार हो तो सीमांत संप्राप्ति का मूल्य क्या होगा?
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार 3
जब माँग वक्र लोचदार हो तो इस वक्र के प्रत्येक बिंदु पर सीमांत संप्राप्ति (आगम) धनात्मक होगी, लेकिन औसत संप्राप्ति से कम (\(\frac { e-1 }{ e }\))
इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

प्रश्न 4.
एक एकाधिकारी फर्म की कुल स्थिर लागत 100 रुपए और निम्नलिखित माँग सारणी है

मात्रा12345678910
कीमत100907060504030302010

अल्पकाल में संतुलन मात्रा, कीमत और कुल लाभ प्राप्त कीजिए। दीर्घकाल में संतुलन क्या होगा? जब कुल लागत 1000 रु० हो, तो अल्पकाल और दीर्घकाल में संतुलन का वर्णन करें।

मात्राकीमतकुल संप्राप्तिसीमांत संप्राप्तिकुल लागतलाभ
11001001000
2901808010080
38024060100140
47028040100180
56030020100200
6503000100200
740280– 20100180
830240– 40100140
920180– 6010080
1010100– 801000

उपर्युक्त तालिका के अनुसार एक एकाधिकारी फर्म का संतुलन 6 मात्रा पर होगा क्योंकि यहाँ पर TR और TC का अंतर अधिकतम है।
यहाँ संतुलन कीमत = 50 रु०
लाभ = 300 – 100 = 200 रु०

प्रश्न 5.
यदि अभ्यास प्रश्न 4 की एकाधिकारी फर्म सार्वजनिक क्षेत्र की फर्म हो, तो सरकार इसके प्रबंधक के लिए दी हुई सरकारी स्थिर कीमत (अर्थात् वह कीमत स्वीकारकर्ता है और इसलिए पूर्ण प्रतिस्पर्धात्मक बाज़ार के फर्म जैसा व्यवहार करता है) स्वीकार करने के लिए नियम बनाएगी और सरकार यह निर्धारित करेगी कि ऐसी कीमत निर्धारित हो, जिससे बाज़ार में माँग
और पूर्ति समान हो। उस स्थिति में संतुलन कीमत, मात्रा और लाभ क्या होंगे?
उत्तर:
यदि सरकार सरकारी स्थिर कीमत स्वीकार करने के लिए नियम बनाती है और ऐसी कीमत निर्धारित करती है जिससे बाज़ार में माँग और पूर्ति समान हो तो उस स्थिति में निम्नलिखित तथ्य होंगे
संतुलन कीमत = 10 रु०
संतुलन मात्रा = 10
लाभ = शून्य;
क्योंकि कुल संप्राप्ति = कुल लागत।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

प्रश्न 6.
उस स्थिति में सीमांत संप्राप्ति वक्र के आकार पर टिप्पणी कीजिए, जिसमें कुल संप्राप्ति वक्र (i) धनात्मक प्रवणता (ढलान) वाली सरल रेखा हो, (ii) समस्तरीय सरल रेखा हो।
उत्तर:
(i) जब कुल संप्राप्ति वक्र धनात्मक प्रवणता (ढाल) वाली सरल रेखा है तो सीमांत संप्राप्ति वक्र एक समस्तरीय सरल रेखा होगी। जैसाकि रेखाचित्र (i) में दर्शाया गया है।

(ii) जब कुल संप्राप्ति वक्र समस्तरीय सरल रेखा है तो सीमांत संप्राप्ति वक्र ऋणात्मक प्रवणता वाली सरल रेखा होगी। जैसाकि रेखाचित्र (ii) में दर्शाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार 4

प्रश्न 7.
नीचे दी गई सारणी में वस्तु की बाज़ार माँग वक्र और वस्तु उत्पादक एकाधिकारी फर्म के लिए कुल लागत दी हुई है। इनका उपयोग करके निम्नलिखित की गणना करें-

मात्राकीमतमात्राकुल लागत
052010
144160
237290
3313100
4264102
5225105
6196109
7167115
8138125

(a) सीमांत संप्राप्ति और सीमांत लागत सारणी।
(b) वह मात्रा जिस पर सीमांत संप्राप्ति और सीमांत लागत बराबर है।
(c) निर्गत (उत्पादन) की संतुलन मात्रा और वस्तु की संतुलन कीमत।
(d) संतुलन में कुल संप्राप्ति, कुल लागत और कुल लाभ।
हल-
(a) लागत और संप्राप्ति सारणी

मात्राकीमत
(रुपए)
कुल संप्राप्ति (रुपए)सीमांत संप्राप्ति (रुपए)कुल लागत (रुपए)सीमात लागत (रुपए)लाभ
052001000
14444446050-16
23774309040-16
331931910010-7
4261041110282
522110610535
619114410945
716112-21156-3
813104-812510-21

(b) 6 इकाइयों पर सीमांत संप्राप्ति और सीमांत लागत बराबर होगी।
(c) उत्पादन वस्तु की संतुलन मात्रा 6 इकाइयाँ हैं और वस्तु की संतुलन कीमत 19 रु० है।
(d) संतुलन में कुल संप्राप्ति (आगम) = 114 रुपए
संतुलन में कुल लागत = 109 रु०
संतुलन में कुल लाभ = 114-109 = 5 रुपए

प्रयोग किए गए सूत्र-
(a) कुल संप्राप्ति = मात्रा कीमत
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार 5
(d) लाभ = कुल संप्राप्ति – कुल लागत

प्रश्न 8.
निर्गत के उत्तम अल्पकाल में यदि घाटा हो रहा हो तो क्या अल्पकाल में एकाधिकारी फर्म उत्पादन जारी रखेगी?
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार 6
अल्पकाल में एकाधिकारी फर्म (Monopoly Firm) को उस समय हानि उठानी पड़ती है जब उसकी औसत संप्राप्ति (आगम) (AR) उसकी औसत लागत (AC) से कम होती है। एकाधिकारी फमैं उस समय तक उत्पादन करती रहेगी जब तक, कि उसकी औसत परिवर्ती (AVC) लागत पूरी हो रही है। यदि उसकी औसत परिवर्ती लागत पूरी नहीं होती है तो वह उत्पादन बंद कर देगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।

रेखाचित्र में एकाधिकारी फर्म का संतुलन बिंदु E है जहाँ MC = MR है तथा MC वक्र MR को नीचे से काट रही है। E बिंदु पर संतुलन कीमत OP है जो औसत लागत OT से कम है जिसके कारण फर्म को PTCR की हानि उठानी पड़ती हैं। यदि एकाधिकारी फर्म उत्पादन बंद कर देती है तो उसे प्रति इकाई CV हानि उठानी पड़ेगी। इस प्रकार फर्म उत्पादन करके RV प्रति इकाई हानि को बचा रही है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

प्रश्न 9.
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में किसी फर्म की माँग वक्र की प्रवणता ऋणात्मक क्यों होती है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में एक फर्म की माँग वक्र की प्रवणता ऋणात्मक होती है क्योंकि प्रत्येक फर्म को अधिक वस्तु बेचने के लिए कीमत कम करनी पड़ती है। माँग वक्र की ऋणात्मक प्रवणता कीमत और माँग के विपरीत संबंध को ही दर्शाती है।

प्रश्न 10.
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में दीर्घकाल के लिए किसी फर्म का संतुलन शून्य लाभ पर होने का क्या कारण है?
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में दीर्घकाल के लिए किसी फर्म का संतुलन शून्य लाभ पर होगा अर्थात् सामान्य लाभ पर होगा। इसका कारण यह है कि एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में फर्मों को बाजार में प्रवेश करने तथा बाजार से बहिर्गमन करने की स्वतंत्रता होती है। यदि अल्पकाल में फर्मों को असामान्य लाभ प्राप्त हो रहा है तो दीर्घकाल में नई फर्मे बाज़ार में प्रवेश कर जाएँगी, जिससे वर्तमान फर्मों का असामान्य लाभ समाप्त हो जाएगा और उन्हें केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त होगा। यदि अल्पकाल में फर्मों को हानि हो रही है तो दीर्घकाल में कुछ वर्तमान फर्मे बाज़ार से बहिर्गमन कर जाएँगी, जिससे उत्पादन कम होगा, कीमत बढ़ेगी और हानि समाप्त हो जाएगी अर्थात् फर्मों को केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त होगा।

प्रश्न 11.
तीन विभिन्न विधियों की सची बनाइए, जिसमें अल्पाधिकारी फर्म व्यवहार कर सकती है।
उत्तर:
एक अल्पाधिकारी फर्म निम्नलिखित विधियों में व्यवहार कर सकती है-
(i) अल्पाधिकारी फर्मे आपस में साठ-गाँठ कर यह निर्णय ले सकती हैं कि वे एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा नहीं करेंगी। इस प्रकार वे फर्मे बाज़ार का उचित बँटवारा कर लेंगी और प्रत्येक फर्म अपने-अपने बाज़ार में एकाधिकारी फर्म की तरह व्यवहार करेंगी।

(ii) अल्पाधिकारी फर्मे यह निर्णय ले सकती हैं कि लाभ को अधिकतम करने के लिए वे उस वस्तु की कितनी मात्रा का उत्पादन करें। इस प्रकार उनकी वस्तु की मात्रा की पूर्ति को अन्य फर्मे प्रभावित नहीं करेंगी।

(iii) अल्पाधिकारी फर्मे वस्तु अनम्य कीमत/कीमत स्थिरता (Price-Rigidity) की नीति अपना सकती हैं। इस नीति के अंतर्गत माँग में परिवर्तन के फलस्वरूप कीमत में परिवर्तन नहीं होगा।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

प्रश्न 12.
यदि द्वि-अधिकारी का व्यवहार कुर्नोट के द्वारा वर्णित व्यवहार के जैसा हो, तो बाज़ार माँग वक्र को समीकरण q=200-4p द्वारा दर्शाया जाता है तथा दोनों फर्मों की लागत शून्य होती है। प्रत्येक फर्म के द्वारा संतुलन कीमत और संतुलन बाज़ार कीमत में उत्पादन की मात्रा ज्ञात कीजिए।
हल:
बाज़ार माँग वक्र समीकरण
q = 200 – 4p
200 – 4p = 0
4p = 200
संतुलन कीमत (p) = \(\frac { 200 }{ 4 }\) = 50 रु०
संतुलन मात्रा (q) = \(\frac { 200 }{ 4 }\) = 4
फर्मों की संख्या = 2
प्रत्येक फर्म द्वारा पूर्ति की मात्रा = \(\frac { 4 }{ 2 }\) = 2 उत्तर

प्रश्न 13.
आय अनम्य कीमत का क्या अभिप्राय है? अल्पाधिकार के व्यवहार से इस प्रकार का निष्कर्ष कैसे निकल सकता है?
उत्तर:
आय अनम्य कीमत का अभिप्राय यह है कि अल्पाधिकार बाज़ार में फर्मे वस्तु की कीमत में परिवर्तन नहीं करेंगी। अनम्य कीमत नीति के अंतर्गत अल्पाधिकारी फर्मों का माँग में परिवर्तन के फलस्वरूप बाज़ार कीमत में निर्बाध संचलन नहीं होता। इसका कारण यह है कि किसी भी फर्म द्वारा प्रारंभ की गई कीमत में परिवर्तन के प्रति अल्पाधिकारी फर्म प्रतिक्रिया व्यक्त करती है। यदि एक फर्म अपने लाभ में वृद्धि करने के लिए वस्तु की कीमत में वृद्धि करती है और अन्य फर्मे ऐसा नहीं करती तो उस फर्म की बिक्री कम हो जाएगी और अंततः उसका लाभ भी कम हो जाएगा। इसलिए किसी फर्म के लिए कीमत में वृद्धि करना उचित नहीं होगा। दूसरी ओर, यदि एक फर्म वस्तु की कम कीमत पर बिक्री में वृद्धि करती है तो अन्य फर्मे भी अपनी कीमत कम कर देंगी। इससे सभी फर्मों की कीमतें कम हो जाएँगी और कीमत में कमी का लाभ सभी फर्मों को मिलेगा। अतः कीमत में कमी करना किसी के हित में नहीं है। इसलिए अल्पाधिकारी फर्मों का हित अनभ्य कीमत में होता है।

प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार HBSE 12th Class Economics Notes

→ बाज़ार-अर्थशास्त्र में बाज़ार से अभिप्राय किसी विशेष स्थान से नहीं बल्कि एक वस्तु के बाज़ार से होता है; जैसे कपड़े का बाज़ार, चाय का बाज़ार, चीनी का बाज़ार आदि।

→ बाजार के मख्य रूप-

  • पर्ण प्रतिस्पर्धा
  • एकाधिकार
  • एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा

→ एकाधिकार-जिस बाज़ार संरचना में किसी वस्तु का केवल एक ही विक्रेता हो, वस्तु का कोई स्थानापन्न नहीं हो तथा उद्योग में अन्य फर्मों का प्रवेश वर्जित हो तो उस वस्तु बाज़ार की संरचना एकाधिकार कहलाता है।

→ एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा यह वह बाज़ार संरचना है, जिसमें विक्रेताओं की संख्या तो बहुत होती है लेकिन उनके द्वारा बेचे जाने वाली वस्तु सजातीय नहीं होता।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

→ औसत संप्राप्ति (आगम) वक्र वस्तु की बाज़ार कीमत एकाधिकार फर्म की पूर्ति की मात्रा पर निर्भर करती है। एकाधिकार फर्म के लिए बाज़ार माँग वक्र ही औसत संप्राप्ति वक्र कहलाती है।

→ कुल संप्राप्ति (आगम) वक्र कुल संप्राप्ति वक्र का आकार औसत आगम वक्र के आकार पर निर्भर करता है। ऋणात्मक प्रवणता वाली सरल रेखीय माँग वक्र की स्थिति में कुल संप्राप्ति वक्र प्रतिलोमित उर्ध्वाधर परवलय के रूप में होता है।

→ किसी भी मात्रा स्तर के लिए औसत संप्राप्ति की माप कुल संप्राप्ति वक्र पर उद्गम से संबद्ध बिंदु की ओर जाती हुई – रेखा की प्रवणता से की जाती है।

→ किसी भी मात्रा स्तर के लिए सीमांत संप्राप्ति की माप कुल संप्राप्ति वक्र पर स्थित संबद्ध बिंदु की स्पर्शज्या (Tangent) की प्रवणता से की जाती है।

→ ऋणात्मक प्रवणता वाला माँग वक्र अति प्रवण होता है और यह सीमांत आगम वक्र के नीचे होता है। माँग वक्र तब लोचदार होता है, जब सीमांत आगम का मूल्य धनात्मक होता है और यह तब लोचहीन होता है जब सीमांत आगम का मूल्य ऋणात्मक होता है।

→ यदि एकाधिकारी फर्म की लागत शून्य हो अथवा केवल स्थिर लागत हो तो संतुलन से पूर्ति की मात्रा को उस बिंदु द्वार दर्शाया जाता है, जिस पर सीमांत आगम शून्य होती है। इसके विपरीत पूर्ण प्रतिस्पर्धा में संतुलन की मात्रा उस बिंदु द्वारा दर्शाया जाता है, जिस पर औसत आगम शून्य होता है।

→ एकाधिकार के संतुलन को उस बिंदु से परिभाषित किया जाता है जिस पर सीमांत संप्राप्ति (आगम) = सीमांत लागत और सीमांत लागत वृद्धि की स्थिति में होती है। यह बिंदु उत्पादन की संतुलन मात्रा को बताती है। दी हुई संतुलन मात्रा से माँग वक्र के द्वारा संतुलन कीमत को दर्शाया जाता है।

→ वस्तु बाज़ार में एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा असजातीय वस्तु के कारण उत्पन्न होती है।

→ एकाधिकार तथा एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा की अवस्था में AR वक्र का ढलान नीचे की ओर होता है। यह इसलिए क्योंकि एकाधिकार या एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में वस्तु की अधिक मात्रा केवल कीमत को कम करके ही बेची जा सकती है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि वस्तु की कीमत तथा फर्म के उत्पादन के लिए माँग के बीच विपरीत संबंध है। इसीलिए फर्म के माँग वक्र का ढलान नीचे की ओर होता है।

→ एकाधिकार तथा एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में AR के कम होने की प्रवृत्ति होती है। जब AR गिरता है तो MR उससे अधिक तेजी से गिरता है अर्थात् AR > MR। गिरते हुए MR से अभिप्राय है कि TR घटती दर पर बढ़ता है।

→ एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में अल्पकालीन संतुलन के परिणामस्वरूप पूर्ण प्रतिस्पर्धा की तुलना में उत्पादन की मात्रा कम होती है और कीमत अधिक होती है। यह स्थिति दीर्घकाल में भी यथावत रहती है, लेकिन दीर्घकाल में लाभ शून्य होता है।

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HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
बाज़ार संतुलन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
बाज़ार संतुलन से अभिप्राय उस स्थिति से है, जहाँ बाज़ार माँग और बाज़ार पूर्ति एक-दूसरे के बराबर होती हैं।
बाज़ार संतुलन : बाज़ार माँग = बाज़ार पूर्ति

प्रश्न 2.
हम कब कहते हैं कि बाज़ार में किसी वस्तु के लिए अधिमाँग है?
उत्तर:
बाज़ार में अधिमाँग के होने की स्थिति उस समय होती है, जब वस्तु की बाज़ार माँग वस्तु की बाज़ार पूर्ति से अधिक है।
अधिमाँग = बाज़ार माँग > बाज़ार पूर्ति अथवा अतिरिक्त माँग = बाज़ार माँग – बाज़ार पूर्ति

प्रश्न 3.
हम कब कहते हैं कि बाज़ार में किसी वस्तु के लिए अधिपूर्ति है?
उत्तर:
बाज़ार में अधिपूर्ति के होने की स्थिति उस समय होती है, जब वस्तु की बाज़ार पूर्ति वस्तु की बाज़ार माँग से अधिक है।
अधिपूर्ति = बाज़ार पूर्ति > बाज़ार माँग अथवा अतिरिक्त पूर्ति = बाज़ार पूर्ति – बाज़ार माँग

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 4.
क्या होगा यदि बाज़ार में प्रचलित मूल्य (a) संतुलन कीपत से अधिक है? (b) संतुलन कीमत से कम है?
उत्तर:
(a) यदि बाज़ार में प्रचलित मूल्य संतुलन कीमत से अधिक है तो अधिपूर्ति की स्थिति होगी अर्थात् बाज़ार पूर्ति बाज़ार माँग से अधिक होगी।(b) यदि बाज़ार में प्रचलित मूल्य संतुलन कीमत से कम है तो अधिमाँग की स्थिति होगी अर्थात् बाज़ार माँग बाज़ार पूर्ति . से अधिक होगी।

प्रश्न 5.
फर्मों की एक स्थिर संख्या के होने पर पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में कीमत का निर्धारण किस प्रकार होता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
फर्मों की संख्या स्थिर होने पर संतुलन कीमत बाज़ार माँग और बाज़ार पूर्ति के वक्रों के परस्पर प्रतिच्छेदन बिंदु पर निर्धारित होती है। इसे संलग्न रेखाचित्र के द्वारा दर्शाया जा सकता है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 1
संलग्न रेखाचित्र में वस्तु का पूर्ति वक्र SS वस्तु के माँग वक्र DD को E बिंदु पर काटता है। परिणामस्वरूप OP बाज़ार कीमत का निर्धारण होता है। OP कीमत से अधिक कोई भी कीमत जैसे OP1 बाज़ार में अधिपूर्ति की स्थिति उत्पन्न करेगी। इसी प्रकार OP कीमत से कम कोई भी कीमत जैसे OP2 बाज़ार में अधिमाँग की स्थिति उत्पन्न करेगी।

प्रश्न 6.
मान लीजिए कि अभ्यास 5 में संतुलन कीमत बाज़ार में फर्मों की न्यूनतम औसत लागत से अधिक है। अब यदि हम फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति दे दें, तो बाज़ार कीमत इसके साथ किस प्रकार समायोजन करेगी?
उत्तर:
यदि बाज़ार में फर्मों का निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन है तो संतुलन कीमत सदैव फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के समान होगी। यदि बाज़ार कीमत को न्यूनतम औसत लागत से ऊँचा रखा जाता है तो इसका अर्थ यह होगा कि कुछ फर्मों को असामान्य लाभ हो रहा है। इस स्थिति में नई फ बाज़ार में प्रवेश करेंगी और अंततः बाज़ार कीमत घटकर न्यूनतम औसत लागत पर आ जाएगी। यदि बाज़ार कीमत को न्यूनतम औसत लागत से नीचा रखा जाता है तो इसका अर्थ यह होगा कि कुछ फर्मों को असामान्य हानि हो रही है। इस स्थिति में कुछ फर्मे बाज़ार से बाहर चली जाएँगी और अंततः बाज़ार कीमत बढ़कर न्यूनतम औसत लागत पर आ जाएगी। इस प्रकार बाज़ार कीमत प्रत्येक स्थिति में न्यूनतम औसत लागत के समान होगी।

प्रश्न 7.
जब बाज़ार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति है, तो फर्मे पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में कीमत के किस स्तर पर पूर्ति करती हैं? ऐसे बाज़ार में संतुलन मात्रा किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर:
जब बाज़ार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति है तो फर्म की बाज़ार कीमत, कीमत के उस स्तर पर होती है जहाँ वह न्यूनतम औसत लागत के बराबर होती है। फलस्वरूप बाज़ार पूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार वक्र होगा जो X-अक्ष के समानांतर होगा।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 2
ऐसी स्थिति में संतुलन मात्रा उस बिंदु पर निर्धारित होगी जहाँ पूर्ति की गई मात्रा माँगी गई मात्रा के बराबर हो। माँग के बढ़ने या घटने से बाज़ार की कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, परंतु संतुलन मात्रा में परिवर्तन होता है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दर्शा सकते हैं।

संलग्न रेखाचित्र में PP कीमत रेखा तथा पूर्ति वक्र है तथा प्रारंभिक माँग वक्र DD है। ये दोनों वक्र एक-दूसरे को E बिंदु पर स्पर्श करते हैं जहाँ संतुलन कीमत OP और संतुलन मात्रा OQ है। जब वस्तु की माँग बढ़कर D1D1 हो जाती है तो संतुलन बिंदु E1 तथा संतुलन मात्रा OQ1 हो जाएगी।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 8.
एक बाज़ार में फर्मों की संतुलन संख्या किस प्रकार निर्धारित होती है, जब उन्हें निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो?
उत्तर:
जब फर्मों को बाज़ार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो तो प्रत्येक फर्म की पूर्ति एक समान (q0f) होगी। इस प्रकार बाज़ार में फर्मों की संतुलन संख्या फर्मों की उस संख्या के बराबर होगी जो P0 निर्गत पर q0 पूर्ति के लिए आवश्यक है। प्रत्येक फर्म इस कीमत पर q0f मात्रा की पूर्ति करेगी। इस प्रकार
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 3

प्रश्न 9.
संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होती है, जब उपभोक्ताओं की आय में
(a) वृद्धि होती है।
(b) कमी होती है।
उत्तर:
(a) जब उपभोक्ताओं की आय में वृद्धि होती है तो उपभोक्ता की क्रय करने की शक्ति में भी वृद्धि होती है। फलस्वरूप (घटिया वस्तुओं को छोड़कर) सभी वस्तुओं की माँग में वृद्धि होगी, जिसके परिणामस्वरूप वस्तु का माँग वक्र दाईं ओर खिसक जाएगा। माँग वक्र में इस परिवर्तन के कारण संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा दोनों में वृद्धि होगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 4
संलग्न रेखाचित्र में प्रारंभिक माँग वक्र DD है जो पूर्ति वक्र SS को E बिंदु पर काटता है। यहाँ संतुलन कीमत OP और मात्रा OQ है। जब माँग वक्र DD से बढ़कर D1D1 हो जाता है तो संतुलन बिंदु E1 हो जाता है और संतुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 तथा मात्रा OQ1 से बढ़कर OQ1 हो जाती है।

(b) जब उपभोक्ताओं की आय में कमी होती है तो उपभोक्ताओं की क्रय करने की शक्ति में भी कमी होती है। परिणामस्वरूप (घटिया वस्तुओं को छोड़कर) सभी वस्तुओं की माँग में कमी आएगी, जिसके फलस्वरूप वस्तु का माँग वक्र बाईं ओर खिसक जाएगा। माँग वक्र में इस परिवर्तन के कारण संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा दोनों में कमी होगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 5
संलग्न रेखाचित्र में प्रारंभिक माँग वक्र DD है जो पूर्ति वक्र SS को E बिंदु पर काटता है। यहाँ संतुलन कीमत OP और मात्रा OQ है। जब माँग वक्र D1D1 से कम होकर D1D1 हो जाता है तो संतुलन बिंदु E1 हो जाता है और संतुलन कीमत OP से घटकर OP1 तथा मात्रा OQ से घटकर OQ1 हो जाती है।

प्रश्न 10.
पूर्ति तथा माँग वक्रों का उपयोग करते हुए दर्शाइए कि जूतों की कीमतों में वृद्धि, खरीदी व बेची जानी वाली मोजों की जोड़ी की कीमतों को तथा संख्या को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
जूते और मोजों की जोड़ी पूरक वस्तुएँ हैं जिनका उपयोग साथ-साथ किया जाता है। पूरक वस्तुओं की स्थिति में, जूतों की कीमतों में कमी से दूसरी वस्तु, मोजों की जोड़ी की माँग में वृद्धि होगी और जूतों की कीमतों में वृद्धि से दूसरी वस्तु मोजों की जोड़ी की माँग में कमी होगी। इस प्रकार जूतों की कीमतों में वृद्धि से मोजों की जोड़ी का माँग वक्र बाईं ओर खिसक जाता है। फलस्वरूप मोजों की जोड़ी की कीमत व मात्रा दोनों में कमी होगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 6
संलग्न रेखाचित्र में मोजों की जोड़ी का प्रारंभिक माँग वक्र DD है जो पूर्ति वक्र ss को E बिंदु पर काटता है। यहाँ संतुलन कीमत OP और मात्रा OQ है। जब माँग वक्र DD से घटकर D1D1 हो जाता है तो संतुलन बिंदु E1 हो जाता है और संतुलन कीमत OP से घटकर OP1 तथा मात्रा OQ से घटकर OQ1 हो जाती है।

प्रश्न 11.
कॉफी की कीमत में परिवर्तन, चाय की संतुलन कीमत को किस प्रकार प्रभावित करेगा? एक आरेख द्वारा संतलन मात्रा पर प्रभाव को भी समझाइए।
उत्तर:
कॉफ़ी और चाय स्थानापन्न वस्तुएँ हैं। स्थानापन्न वस्तुओं की स्थिति में एक उपभोक्ता इन वस्तुओं का उपभोग एक-दूसरे के स्थान पर सुगमतापूर्वक कर सकता है। कॉफ़ी की कीमत में वृद्धि से कॉफी की माँग कम हो जाएगी और चाय की माँग बढ़ जाएगी। कॉफ़ी की कीमत में कमी से कॉफ़ी की माँग बढ़ जाएगी और चाय की माँग में कमी होगी। इस प्रकार कॉफ़ी की कीमत में परिवर्तन चाय की संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा दोनों को प्रभावित करेगा। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 7
संलग्न रेखाचित्र में DD चाय का प्रारंभिक माँग वक्र है और SS पूर्ति वक्र है। ये दोनों वक्र एक-दूसरे को E बिंदु पर काटते हैं जहाँ संतुलन कीमत OP और संतुलन मात्रा OQ है। जब कीमत में बढ़ोतरी से चाय की माँग बढ़ जाती है तो माँग वक्र दाईं ओर खिसककर D1D1 हो जाता है। इससे संतुलन बिंदु E1 हो जाता है जहाँ संतुलन कीमत OP, और संतुलन मात्रा OQ1 हो जाएगी। जब कीमत में कमी से चाय की माँग कम हो जाती है तो माँग वक्र बाईं ओर खिसककर D1D1 हो जाता है। इससे संतुलन बिंदु हो जाता है। जहाँ संतुलन कीमत OP2 और संतुलन मात्रा OQ2 हो जाएगी।

प्रश्न 12.
जब उत्पादन में प्रयुक्त आगतों की कीमतों में परिवर्तन होता है, तो किसी वस्तु की संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार परिवर्तित होती है?
उत्तर:
जब उत्पादन में प्रयुक्त आगतों (Inputs) की कीमतों में परिवर्तन होता है तो उस वस्तु की पूर्ति में परिवर्तन होगा। उत्पादन में प्रयुक्त आगतों की कीमतों में कमी से उत्पादन लागत में कमी आएगी और उस वस्त की पर्ति बढ जाएगी। परिणामस्वरूप पूर्ति वक्र दाईं ओर खिसक जाएगा। उत्पादन में प्रयुक्त आगतों की कीमतों में वृद्धि से उत्पादन लागत में वृद्धि होगी और उस वस्तु की पूर्ति कम हो जाएगी। फलस्वरूप पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाएगा। पूर्ति वक्र में परिवर्तन से संतुलन कीमत और मात्रा में भी परिवर्तन होगा, जिसे संलग्न रेखाचित्र द्वारा दर्शाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 8
संलग्न रेखाचित्र में SS वस्तु का प्रारंभिक पूर्ति वक्र है जो माँग वक्र DD को E बिंदु पर काटता है जहाँ संतुलन कीमत OP और संतुलन मात्रा OQ है। जब प्रयुक्त आगतों की कीमतों में कमी से पूर्ति वक्र S1S1 हो जाता है तो नया संतुलन बिंदु E1 हो जाएगा। जहाँ वस्तु की कीमत OP1 तथा वस्तु की मात्रा OQ1 होगी। जब प्रयुक्त आगतों की कीमतों में वृद्धि से पूर्ति वक्र S2S2 हो जाता है तो नया संतुलन बिंदु E2 हो जाएगा। जहाँ वस्तु की कीमत OP2 तथा वस्तु की मात्रा OQ2 होगी।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 13.
यदि वस्तु X की स्थानापन्न वस्तु Y की कीमत में वृद्धि होती है, तो वस्तु X की संतुलन कीमत तथा मात्रा पर इसका क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
जब X की स्थानापन्न वस्तु Y की कीमत में वृद्धि होती है तो X-वस्तु की माँग। में वृद्धि हो जाएगी क्योंकि उपभोक्ता Y-वस्तु के बदले X-वस्तु की ओर आकर्षित होगा। परिणामस्वरूप X-वस्तु का माँग वक्र दाईं ओर खिसक जाएगा, जिससे संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा दोनों में वृद्धि होगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 9
संलग्न रेखाचित्र में DD, X-वस्तु का प्रारंभिक माँग वक्र है जो पूर्ति वक्र SS को E बिंदु पर काटता है जिससे संतुलन कीमत OP और संतुलन मात्रा OQ निर्धारित होती। है। X-वस्तु के माँग वक्र के दाईं ओर खिसकने से नई माँग D1D1 हो जाती है जो पूर्ति वक्र को E1 बिंदु पर काटती है। इस बिंदु पर संतुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है और संतुलन मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।

प्रश्न 14.
बाज़ार फर्मों की संख्या स्थिर होने पर तथा निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्थिति में, माँग वक्र के स्थानांतरण का संतुलन पर प्रभाव की तुलना कीजिए।
उत्तर:
जब बाज़ार में फर्मों की संख्या स्थिर होती है, संतुलन स्थिति (संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा) बाज़ार माँग और बाज़ार पूर्ति वक्रों के प्रतिच्छेदन बिंदु पर निर्धारित होती है। जब माँग वक्र का स्थानांतरण होता है तो संतुलन स्थिति में भी परिवर्तन होता है। इसे संलग्न रेखाचित्र द्वारा दर्शाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 10
संलग्न रेखाचित्र में, DD वस्तु का प्रारंभिक माँग वक्र है जो पूर्ति वक्र ss को E बिंदु पर काटता है जहाँ संतुलन कीमत OP और संतुलन मात्रा OQ है। जब माँग वक्र में दाईं ओर खिसकाव होता है तो माँग वक्र D1D1 हो जाता है जिससे कीमत OP से बढ़कर OP1 और संतुलन मात्रा OQ1 से OQ हो जाती है। जब माँग वक्र में बाईं वस्तु की मात्रा ओर खिसकाव होता है तो माँग वक्र D1D1 हो जाता है जिससे कीमत OP से कम होकर OP2 तथा संतुलन मात्रा OQ से कम होकर OQ2 हो जाती है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 11
जंब बाज़ार में फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्थिति पाई जाती है तो संतुलन कीमत फर्म की न्यूनतम औसत लागत के बराबर होती है। बाज़ार पूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार वक्र होगा, जो X-अक्ष के समानांतर होगा। ऐसी स्थिति में बाज़ार की संतुलन कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता। ऐसी स्थिति में संतुलन मात्रा उस बिंदु पर निर्धारित होगी जहाँ पूर्ति की गई मात्रा माँगी गई मात्रा के बराबर हो। माँग के बढ़ने या घटने से संतुलन मात्रा में भी परिवर्तन होता है। इसे संलग्न रेखाचित्र द्वारा दर्शाया गया है। संलग्न रेखाचित्र में, संतुलन बिंदु E है जहाँ संतुलन कीमत OP और संतुलन मात्रा OQ है। जब माँग वक्र D1D1 हो जाता है तो संतुलन मात्रा OQ1 हो जाएगी। जब माँग वक्र D2D2 हो जाता है तो संतुलन मात्रा OQ2 हो जाएगी।

प्रश्न 15.
माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों के दाईं ओर शिफ्ट का, संतुलन कीमत तथा मात्रा पर प्रभाव को एक आरेख द्वारा समझाइए।
उत्तर:
जब किसी वस्तु की माँग और पूर्ति वक्र दोनों ही दाईं ओर शिफ्ट होते (खिसकते) हैं तो इसका अर्थ है-दोनों में वृद्धि होना। इस संबंध में तीन परिस्थितियाँ हो सकती हैं
1. जब माँग और पूर्ति दोनों में समान वृद्धि हो-इस स्थिति में संतुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जबकि मात्रा बढ़ जाएगी, जैसाकि निम्न रेखाचित्र (i) से स्पष्ट है। संतुलन कीमत पूर्ववत् OP बनी रहती है, जबकि संतुलन मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।

2. जब माँग में वृद्धि, पूर्ति में वृद्धि की अपेक्षा अधिक हो इस स्थिति में संतुलन कीमत व मात्रा दोनों में वृद्धि होगी, जैसाकि निम्न रेखाचित्र (ii) से स्पष्ट है, संतुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है तथा संतुलन मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।

3. जब माँग में वृद्धि, पूर्ति में वृद्धि की अपेक्षा कम हो इस स्थिति में नई संतुलन कीमत आरंभिक कीमत की अपेक्षा कम होगी, जैसाकि निम्न रेखाचित्र (ii) से स्पष्ट है, संतुलन कीमत OP से गिरकर OP1 हो जाती है और संतुलन मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 12

प्रश्न 16.
संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होते हैं जब (a) माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों, समान दिशा में शिफ्ट होते हैं? (b) माँग तथा पूर्ति वक्र विपरीत दिशा में शिफ्ट होते हैं?
उत्तर:
(a) माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों, समान दिशा में शिफ्ट होते हैं जब माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों समान (एक) दिशा में शिफ्ट होते हैं तो संतुलन कीमत व संतुलन मात्रा में परिवर्तन इस बात पर निर्भर करता है कि दोनों में परिवर्तन की मात्रा कितनी है? इस संबंध में निम्नलिखित स्थितियाँ हो सकती हैं
(i) यदि माँग और पर्ति दोनों वक्र बाईं ओर शिफ्ट होते हैं तो संतलन मात्रा में कमी आएगी. परंत संतलन कीमत में परिवर्तन नहीं भी। जब माँग और पूर्ति में कमी समान दर से होती है तो संतुलन कीमत में कोई परिवर्तन नहीं आता। जब माँग में कमी पूर्ति में कमी की अपेक्षा कम होती है तो कीमत में वृद्धि हो जाती है। जब माँग में कमी पूर्ति में कमी की अपेक्षा अधिक होती है तो कीमत में गिरावट आ जाती है।

(ii) यदि माँग और पूर्ति दोनों वक्र दाईं ओर शिफ्ट होते हैं तो संतुलन मात्रा में वृद्धि होगी, परंतु संतुलन कीमत में परिवर्तन आ भी सकता है और नहीं भी। जब माँग और पूर्ति में वृद्धि एक-समान दर से होती है तो संतुलन कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता। जब माँग में वृद्धि पूर्ति की वृद्धि की अपेक्षा कम होती है तो कीमत में कमी हो जाती है। जब माँग में वृद्धि पूर्ति की वृद्धि की अपेक्षा अधिक होती है तो कीमत में वृद्धि हो जाती है।

(b) माँग तथा पूर्ति वक्र विपरीत दिशा में शिफ्ट होते हैं जब माँग और पूर्ति वक्र दोनों विपरीत दिशा में शिफ्ट होते हैं तो संतुलन कीमत व मात्रा में परिवर्तन इस बात पर निर्भर करते हैं कि दोनों में शिफ्ट की मात्रा कितनी है? यदि माँग वक्र बाईं ओर तथा पूर्ति वक्र दाईं ओरं शिफ्ट होते हैं तो संतुलन कीमत में कमी आएगी, लेकिन संतुलन मात्रा में परिवर्तन हो भी सकता है और नहीं भी। यदि माँग वक्र का बायाँ शिफ्ट पूर्ति वक्र के दाएँ शिफ्ट के अनुपात में बराबर है तो संतुलन मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होगा। यदि माँग वक्र का बायाँ शिफ्ट पूर्ति वक्र के दाएँ शिफ्ट के अनुपात से अधिक है तो संतुलन मात्रा में कमी आएगी। यदि माँग वक्र का बायाँ शिफ्ट पूर्ति वक्र के दाएँ शिफ्ट के अनुपात से कम है तो संतुलन मात्रा में वृद्धि होगी।

यदि माँग वक्र दाईं ओर तथा पूर्ति वक्र बाईं ओर शिफ्ट होता है तो संतुलन कीमत में वृद्धि होगी, लेकिन संतुलन मात्रा में परिवर्तन हो भी सकता है और नहीं भी। यदि माँग वक्र का दायाँ शिफ्ट पूर्ति वक्र के बाएँ शिफ्ट के अनुपात के बराबर है तो संतुलन मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होगा। यदि माँग वक्र का दायाँ शिफ्ट पूर्ति वक्र के बाएँ शिफ्ट के अनुपात से अधिक है तो संतुलन मात्रा में वृद्धि होगी। यदि माँग वक्र का दायाँ शिफ्ट पूर्ति वक्र के बाएँ शिफ्ट के अनुपात से कम है तो संतुलन मात्रा में कमी होगी।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 17.
वस्तु बाज़ार में तथा श्रम बाज़ार में माँग तथा पूर्ति वक्र किस प्रकार भिन्न होते हैं?
उत्तर:
वस्तु बाज़ार और श्रम बाज़ार में माँग और पूर्ति के स्रोत में अंतर होता है। श्रम बाज़ार में श्रम की माँग फर्मों से आती है जबकि वस्तु बाज़ार में वस्तुओं की माँग घर-परिवार से आती है। श्रम बाज़ार में श्रम की पूर्ति घर-परिवार द्वारा होती है और वस्तु बाज़ार में वस्तुओं की पूर्ति फर्मों द्वारा की जाती है। श्रम बाज़ार में श्रम की माँग व्युत्पन्न (अप्रत्यक्ष) माँग है जबकि वस्तु बाज़ार में वस्तु की माँग प्रत्यक्ष है। श्रम की माँग श्रम की उत्पादकता से प्रभावित होती है। श्रम की माँग स्थानापन्न साधन अर्थात् पूँजी की कीमत पर निर्भर होगी। यदि पूँजी की कीमत कम हो तो श्रम की माँग कम होगी। श्रम की पूर्ति वस्तु की पूर्ति से निम्नलिखित संदर्भो में होती है
(i) श्रम वस्तु की तुलना में कम गतिशील होता है।

(ii) श्रम का पूर्ति वक्र पीछे की ओर मुड़ता हुआ होता है जो यह दिखाता है कि एक सीमा के पश्चात् मजदूरी दर के बढ़ने पर श्रम की पूर्ति कम होने कार्य के घंटे+ लगती है क्योंकि मजदूरी के एक उच्च स्तर पर श्रमिक काम की तुलना में अवकाश अधिक पसंद करने लगते हैं। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 13
संलग्न रेखाचित्र से स्पष्ट है कि M बिंदु तक मजदूरी के बढ़ने से श्रम की पूर्ति बढ़ती है परंतु उसके बाद जब मज़दूरी ow, से बढ़कर ow, हो जाती है तो श्रम की पूर्ति OL2 से घटकर OL1 रह जाती है।

प्रश्न 18.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में श्रम की इष्टतम मात्रा किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में श्रम की इष्टतम मात्रा का निर्धारण उस बिंदु पर होता है जहाँ मज़दूरी दर श्रम की सीमांत उत्पादकता के बराबर होती है अर्थात्
W = MPL
अथवा
मज़दूरी की दर = श्रम की सीमांत उत्पादकता

प्रश्न 19.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी श्रम बाज़ार में मजदूरी दर किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में मजदूरी दर का निर्धारण उस बिंद पर होता है जहाँ श्रम की माँग श्रम की पूर्ति के बराबर हो। इसे संलग्न रेखाचित्र द्वारा दर्शाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 14
इस रेखाचित्र में DLDL श्रम का माँग वक्र है जो श्रम की पूर्ति वक्र SLSL को E बिंदु पर काटता है। इस प्रकार E संतुलन बिंदु है जहाँ मजदूरी दर OW निर्धारित होती है। यदि मज़दूरी दर OW से अधिक (अर्थात् OW1) है तो श्रम की अधिमाँग पूर्ति श्रम की माँग से अधिक होगी। यदि मज़दूरी दर OW से कम (अर्थात् ow2) है तो श्रम की माँग श्रम की पूर्ति से अधिक होगी। इस प्रकार OW मज़दूरी दर ही संतुलित मजदूरी दर है जहाँ श्रम की माँग व पूर्ति बराबर है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

प्रश्न 20.
क्या आप किसी ऐसी वस्तु के विषय में सोच सकते हैं, जिस पर भारत में कीमत की उच्चतम निर्धारित कीमत लागू है? निर्धारित उच्चतम कीमत सीमा के क्या परिणाम हो सकते हैं?
उत्तर:
भारत में पेट्रोल, अनाज आदि पर उच्चतम निर्धारित कीमत लागू है। कीमत नियंत्रण का उद्देश्य गरीब जन-समुदाय को अति आवश्यक वस्तुओं; जैसे खाद्यान्नों आदि को उचित कीमत पर उपलब्ध कराना है। नियंत्रित कीमत संतुलन कीमत से कम होती है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन 15
संलग्न रेखाचित्र में OP संतुलन कीमत है जिस पर OQ मात्रा का विनिमय किया जाता है। सरकार OP1 नियंत्रित कीमत निर्धारित करती है जिससे MN अर्थात् RT मात्रा में वस्तु की कमी उत्पन्न हो जाएगी। इस कमी को पूरा करने के लिए सरकार को राशनिंग की नीति अपनानी चाहिए। राशनिंग का अर्थ है-एक व्यक्ति के लिए वस्तु के क्रय की उच्चतम सीमा निर्धारित करना। राशनिंग व्यवस्था के अंतर्गत निम्नलिखित दोष होते हैं
(i) प्रत्येक उपभोक्ता को राशन की दुकानों से वस्तुओं को खरीदने के लिए लंबी कतारों में खड़ा रहना पड़ता है।
वस्तु की मात्रा

(ii) क्योंकि सभी उपभोक्ता उचित कीमत की दुकानों से प्राप्त वस्तुओं की मात्रा से संतुष्ट नहीं होंगे, उनमें से कुछ अधिक कीमत देने के लिए तत्पर होंगे। इससे कालाबाजारी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

प्रश्न 21.
माँग वक्र में शिफ्ट का कीमत पर अधिक तथा मात्रा पर कम प्रभाव होता है, जबकि फर्मों की संख्या स्थिर रहती है। स्थितियों की तुलना करें जब निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो। व्याख्या करें।
उत्तर:
जब फर्मों की संख्या स्थिर रहती है तो माँग वक्र में शिफ्ट का संतुलन कीमत पर अधिक तथा मात्रा पर कम प्रभाव पड़ता है, क्योंकि माँग में परिवर्तन कीमत में परिवर्तन करते हैं। यदि माँग वक्र दाईं ओर शिफ्ट होता है तो कीमत में वृद्धि होती है और यदि माँग वक्र बाईं ओर शिफ्ट करता है. तो कीमत में कमी होती है।

जब बाज़ार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो तो माँग वक्र में शिफ्ट का संतुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन संतुलन मात्रा में परिवर्तन होगा। यदि माँग वक्र दाईं ओर शिफ्ट होता है तो संतुलन मात्रा में वृद्धि होती है। यदि माँग वक्र बाईं ओर शिफ्ट होता है तो संतुलन मात्रा में कमी होती है।

प्रश्न 22.
मान लीजिए, एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में वस्तु X की माँग तथा पूर्ति वक्र निम्नलिखित प्रकार दिए गए है qd = 700 – p
qs = 500 + 3p क्योंकि p ≥ 15
= 0 क्योंकि ≤ 0 p ≤ 15
मान लीजिए कि बाज़ार में समरूपी फर्मे हैं। 15 रुपए से कम, किसी भी कीमत पर वस्तु X की बाज़ार पूर्ति के शून्य होने के कारण की पहचान कीजिए। इस वस्तु के लिए संतुलन कीमत क्या होगी? संतुलन की स्थिति में x की कितनी मात्रा का उत्पादन होगा?
हल:
वस्तु का बाज़ार माँग वक्र qd = 700 – p
वस्तु का बाज़ार पूर्ति वक्र-
qd = 500 + 3p क्योंकि p ≥ 15
= 0 क्योंकि 0 ≤ p ≤ 15
वस्तु X की बाज़ार पूर्ति 15 रुपए से कम किसी भी कीमत पर शून्य होगी क्योंकि यह वस्तु X को उत्पादित करने की न्यूनतम औसत लागत है। यदि एक फर्म 15 रुपए से कम कीमत पर वस्तु की पूर्ति करती है तो फर्म को हानि सहन करनी होगी। इस प्रकार पूर्ति वक्र का प्रारंभिक बिंदु 15 रुपए की कीमत होगा।

संतुलन बिंदु पर-
qd = qs
700 – p = 500 + 3p
4p = 200
p = 50
इस प्रकार 50 रुपए संतुलन बिंदु है। संतुलन मात्रा की गणना निम्नलिखित प्रकार से होगी-
संतुलन मात्रा = 700 – p
= 700 – 50
= 650 उत्तर

प्रश्न 23.
अभ्यास 22 में दिए गए समान माँग वक्र को लेते हुए, आइए, फर्मों को वस्तु X का उत्पादन करने के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति देते हैं। यह भी मान लीजिए कि बाज़ार समानरूपी फर्मों से बना है जो वस्तु x का उत्पादन करती है। एक अकेली फर्म का पूर्ति वक्र निम्नलिखित प्रकार से है-
qsf = 8+ 3p क्योंकि p ≥ 20
= 0 क्योंकि 0 ≤ p < 20
(a) p = 20 का क्या महत्त्व है?
(b) बाज़ार में x के लिए किस कीमत पर संतुलन होगा? अपने उत्तर का कारण बताइए।
(c) संतुलन मात्रा तथा फर्मों की संख्या का परिकलन कीजिए।
हल:
एक वस्तु का माँग वक्र निम्नलिखित है-
qd = 700 – p (अभ्यास 22 में दिया गया है)
एक एकल फर्म का पूर्ति वक्र निम्नलिखित है-
qsf = 8 + 3p क्योंकि p ≥ 0
= 0 क्योंकि 0 ≤ P< 20
(a) p = 20 का महत्त्व यह है कि यह फर्मों की न्यूनतम औसत लागत है। इस कीमत स्तर से नीचे एक फर्म वस्तु की पूर्ति के लिए इच्छुक नहीं होगी।

(b) X के लिए बाज़ार में संतुलन 20 रुपए की कीमत पर होगा। जब बाज़ार में फर्मों का प्रवेश और बहिर्गमन निर्बाध रूप से होता है तो बाजार का संतुलन उस कीमत पर होगा जो फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के बराबर हो। इसी कीमत पर बाजार की माँग और पूर्ति बराबर होगी।

(c) माँग वक्र से हम संतुलन मात्रा का परिकलन कर सकते हैं-
q0 = 700 – 20
= 680
P0 = 20 पर प्रत्येक फर्म की पूर्ति है-
qsf = 8 + 3p
= 8 + (3 x 20)
= 68
फर्मों की संख्या (n0) = \(\frac{q_{0}}{q_{0 f}}\)
= \(\frac { 680 }{ 68 }\)
= 10 उत्तर

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प्रश्न 24.
मान लीजिए कि नमक की माँग तथा पूर्ति वक्र को इस प्रकार दिया गया है-
qd = 1000 – p
qs = 700 + 2P
(a) संतुलन कीमत तथा मात्रा ज्ञात कीजिए।
(b) अब मान लीजिए कि नमक के उत्पादन के लिए प्रयुक्त एक आगत की कीमत में वृद्धि हो जाती है और नया पूर्ति वक्र है
qs = 400 + 2p
संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार परिवर्तित होती है? क्या परिवर्तन आपकी अपेक्षा के अनुकूल है?
(c) मान लीजिए, सरकार नमक की बिक्री पर 3 रुपए प्रति इकाई कर लगा देती है। यह संतुलन कीमत तथा मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करेगा?
हल:
नमक का माँग वक्र निम्नलिखित है-
qd = 1000 – p
नमक का पूर्ति वक्र निम्नलिखित है–
qs = 700 + 2p
(a) संतुलन पर नमक की माँग और नमक की पूर्ति बराबर होंगे-
qd = qs
1000 – p = 700 + 2p
– 3p = 700 – 1000
– 3p = – 300
3p = 300
p = 100
संतुलन कीमत = 100
संतुलन मात्रा = 1000 – p
= 1000 – 100
= 900 उत्तर

(b) नमक का माँग वक्र है
qd = 100 – p
नमक की नई पूर्ति वक्र है-
qs = 400 – 2p
नए संतुलन के लिए भी qd = qs की शर्त का लागू होना आवश्यक है।
इसलिए
qd = qs
1000 – p = 400 + 2 p
– 3p = 400 – 1000
3p = 600
p = 200
नई संतुलन कीमत = 200
संतुलन मात्रा = 1000 – p
= 1000 – 200 = 800
संतुलन मात्रा में कमी = 900 – 800
= 100
संतुलन कीमत में वृद्धि = 200 – 100
= 100 उत्तर
ये परिवर्तन हमारी अपेक्षा के अनुकूल हैं। जब नमक के उत्पादन के लिए प्रयुक्त एक आगत की कीमत में वृद्धि हो जाती है तो वस्तु की लागत में वृद्धि होगी। फलस्वरूप संतुलन कीमत में वृद्धि तथा संतुलन मात्रा में कमी होना स्वाभाविक है।

(c) नमक पर बिक्री कर = 3 रुपए
कर पूर्व माँग वक्र है = 1000 – p
कर पश्चात् माँग वक्र होगा = 1000 – 3 – p
= 997 – p
कर पूर्व पूर्ति वक्र है = 700 + 2p
कर पश्चात् पूर्ति वक्र होगा = 700 + 2 (p – 3)
= 700 + 2p – 6
= 694 + 2p
संतुलन स्थिति है- qd = qs
997 – p = 694 + 2p
3p = 303
p = \(\frac { 303 }{ 3 }\)
p = 101 रुपए
संतुलन कीमत = 101 रुपए
संतुलन मात्रा = 997 – p
= 997 -101
= 896 उत्तर
इस प्रकार 3 रुपए प्रति इकाई के कर के परिणामस्वरूप संतुलन कीमत 100 रुपए से बढ़कर 101 रुपए हो गई है और संतुलन मात्रा 900 से 896 तक घट गई है।

प्रश्न 25.
मान लीजिए कि एपार्टमेंटों के लिए बाज़ार-निर्धारित किराया इतना अधिक है कि सामान्य लोगों द्वारा वहन नहीं किया जा सकता, यदि सरकार किराए पर एपार्टमेंट लेने वालों की मदद करने के लिए किराया नियंत्रण लागू करती है, तो इसका एपार्टमेंटों के बाज़ार पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि सरकार किराए पर एपार्टमेंट लेने वालों की मदद करने के लिए किराया नियंत्रण लागू करती है तो इसका अर्थ यह होगा कि सरकार द्वारा निर्धारित किया हआ किराया बाजार द्वारा निर्धारित (संतलन) किराए से कम होगा। इसके परिणामस्वस एपार्टमेंट की पूर्ति उसकी माँग से कम हो जाएगी। इस प्रकार एपार्टमेंट की माँग की तुलना में पूर्ति कम होगी। इस कमी को पूरा करने के लिए सरकार को नियंत्रित किराए पर एपार्टमेंट की पूर्ति स्वयं बढ़ानी होगी। यदि सरकार किसी भी कारणवश ऐसा नहीं कर पाती है तो बाज़ार में कालाबाज़ारी का बोलबाला हो जाएगा।

बाज़ार संतुलन HBSE 12th Class Economics Notes

→ संतुलन वह स्थिति है, जहाँ किसी परिवर्तन की कोई प्रवृत्ति नहीं होती।

→ एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में संतुलन वहाँ होता है, जहाँ बाज़ार माँग तथा बाज़ार पूर्ति बराबर होती है।
बाज़ार संतुलन : बाज़ार माँग = बाज़ार पूर्ति ।

→ फर्मों की संख्या स्थिर होने पर संतुलन कीमत तथा मात्रा, बाज़ार माँग तथा बाज़ार पूर्ति वक्रों के परस्पर प्रतिच्छेदन बिंदु पर निर्धारित होती है।

→ प्रत्येक फर्म श्रम का उपयोग उस बिंदु तक करती है, जहाँ श्रम का सीमांत संप्राप्ति (आगम) उत्पाद, मजदूरी दर के बराबर होता है। यही बिंदु श्रम की इष्टतम मात्रा का बिंदु होता है।

→ पर्ति वक्र के अपरिवर्तित रहने पर जब माँग वक्र दायीं (बायीं ओर शिफ्ट होता है, तो फर्मों की स्थिर संख्या होने पर संतुलन मात्रा में वृद्धि (गिरावट) होती है।

→ माँग वक्र के अपरिवर्तित रहने पर जब पूर्ति वक्र दायीं (बायीं) ओर शिफ्ट होता है, तो फर्मों की स्थिर संख्या होने पर संतुलन मात्रा में वृद्धि (गिरावट) होती है तथा संतुलन कीमत में गिरावट (घृद्धि) होती है।

→ जब माँग तथा पूर्ति दोनों वक्र समान दिशा में शिफ्ट होते हैं, तो संतलन मात्रा पर इसका प्रभाव सस्पष्ट रूप से निर्धारित किया जा सकता है, जबकि संतुलम कीमत पर इसका प्रभाव शिफ्ट के परिमाण पर निर्भर करता है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 बाज़ार संतुलन

→ जब माँग तथा पूर्ति वक्र, दोनों का दायीं ओर शिफ्ट होता है, तो संतलन मात्रा में बद्धि होती है जबकि संतलन कीमत में वृद्धि, कमी हो सकती है अथवा अपरिवर्तित भी रह सकती है। यह माँग और पूर्ति चक्रों में शिफ्ट के परिमाण पर निर्भर करता है।

→ जब माँग तथा पूर्ति वक्र विपरीत दिशाओं में शिफ्ट होते हैं, तो संतुलन कीमत पर इसका प्रभाव सुस्पष्ट रूप से निर्धारित किया जा सकता है, जबकि संतुलन मात्रा पर प्रभाव शिफ्ट के परिमाण पर निर्भर करता है।

→ जब माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों का बायीं ओर शिफ्ट होना है, तो संतुलन मात्रा में कमी होती है, जबकि संतुलन कीमत ‘ में वृद्धि कमी अथवा अपरिवर्तित हो सकती है। यह माँग और पूर्ति वक्रों में शिफ्ट के परिमाण पर निर्भर करता है।

→ संतुलन कीमत से कम कीमत का उच्चतम निर्धारित कीमत निर्धारण से अधिमाँग उत्पन्न होती है।

→ संतुलन कीमत से अधिक कीमत की निम्नतम निर्धारित कीमत निर्धारण से अधिपूर्ति उत्पन्न होती है।

→ एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में समरूपी के साथ यदि फर्मे बाज़ार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन कर सकती है, तो संतुलन कीमत सदैव फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के ही बराबर होती है अर्थात् P = न्यूनतम औसत लागत।

→ नर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन होने पर माँग में शिफ्ट का संतुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं होता, परंतु संतुलन मात्रा तथा फर्मों की संख्या में परिवर्तन माँग की दिशा में परिवर्तन के समान होता है।

→ फर्मों की स्थिर संख्या वाले बाज़ार की तुलना में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन वाले बाज़ार में माँग वक्र के शिफ्ट का संतुलन मात्रा पर प्रभाव अधिक प्रबल होगा।

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HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

पाठयपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. क्रेताओं तथा विक्रेताओं की बहुत बड़ी संख्या पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या बहुत बड़ी होती है। प्रत्येक क्रेता या विक्रेता कुल बिक्री का बहुत ही छोटा भाग खरीदता अथवा बेचता है।

2. समरूप वस्तु पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में सभी फर्मे एक प्रकार की वस्तु का ही उत्पादन करती हैं। सभी विक्रेताओं द्वारा बेची गई वस्तुएँ, गुण, आकार व रंग-रूप से एक-समान होती हैं।

3. पूर्ण स्वतंत्रता पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार के अंतर्गत किसी भी फर्म को उद्योग में प्रवेश करने तथा उसे छोड़कर बाहर जाने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है। जब उद्योग में लाभ हो रहे हों, तो नई फर्मे उद्योग में प्रवेश कर सकती हैं और जब हानि की अवस्था हो, तो कुछ फर्मे उद्योग छोड़कर जा सकती हैं।

4. एक-समान कीमत–पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाज़ार में सभी फर्मे मूल्य स्वीकारक होती हैं। अतः समग्र बाज़ार में उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत ही प्रचलित रहती है। एक क्रेता या विक्रेता कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता।

5. पूर्ण ज्ञान-पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाज़ार में क्रेताओं और विक्रेताओं को बाज़ार का पूर्ण ज्ञान होता है।

6. विक्रय लागत का अभाव-पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में वस्तुएँ समरूप होती हैं, इसलिए एक फर्म को वस्तु के प्रचार, विज्ञापन आदि पर व्यय करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। अतः पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में बिक्री और परिवहन लागतें शून्य होती हैं।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

प्रश्न 2.
एक फर्म की संप्राप्ति, बाज़ार कीमत तथा उसके द्वारा बेची गई मात्रा में क्या संबंध है?
उत्तर:
एक फर्म की संप्राप्ति, बाज़ार कीमत तथा उसके द्वारा बेची गई मात्रा का गुणनफल है। अर्थात्
फर्म की कुल संप्राप्ति = बिक्री की मात्रा – बाज़ार कीमत
अथवा
TR = q x p
यहाँ TR = कुल संप्राप्ति, q = बिक्री की मात्रा तथा p = कीमत।

प्रश्न 3.
कीमत रेखा क्या है?
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 1
कीमत रेखा से अभिप्राय पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में एक फर्म के माँग वक्र से है जो x-अक्ष के समानांतर एक सीधी रेखा होती है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दिखाया गया है। रेखाचित्र में PD रेखा वस्तु की माँग रेखा है। रेखाचित्र से स्पष्ट है कि OP कीमत पर माँग की मात्रा OQ या OQ1 कुछ भी हो सकती है। अन्य शब्दों में, पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में फर्म Q Q1 की औसत व सीमांत संप्राप्ति वक्र OX-अक्ष के समानांतर होती है।

प्रश्न 4.
एक कीमत-स्वीकारक फर्म का कुल संप्राप्ति वक्र, ऊपर की ओर प्रवणता वाली सीधी रेखा क्यों होता है? यह वक्र उद्गम से होकर क्यों गुजरता है?
उत्तर:
एक कीमत-स्वीकारक फर्म का कुल संप्राप्ति वक्र ऊपर की ओर प्रवणता वाली सीधी रेखा इसलिए होता है क्योंकि बाज़ार कीमत स्थिर होती है अर्थात् कुल संप्राप्ति समान दर से बढ़ती है। कुल संप्राप्ति वक्र उद्गम से होकर इसलिए गुजरता है क्योंकि शून्य बिक्री की मात्रा पर कुल संप्राप्ति भी शून्य होती है और बाद में AR = P स्थिर रहने के कारण कुल संप्राप्ति में वृद्धि समान दर पर होती है।
जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 2

प्रश्न 5.
एक कीमत-स्वीकारक फर्म का बाज़ार कीमत तथा औसत संप्राप्ति में क्या संबंध है?
उत्तर:
एक कीमत-स्वीकारक फर्म की बाज़ार कीमत तथा औसत संप्राप्ति सदैव बराबर होती है क्योंकि बेची गई प्रत्येक इकाई के मूल्य में कोई परिवर्तन नहीं होता। अर्थात्
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 3

प्रश्न 6.
एक कीमत-स्वीकारक फर्म की बाज़ार कीमत तथा सीमांत संप्राप्ति में क्या संबंध है?
उत्तर:
एक कीमत-स्वीकारक फर्म की बाज़ार कीमत तथा सीमांत संप्राप्ति एक-दूसरे के बराबर होते हैं क्योंकि बेची गई हर अतिरिक्त इकाई की कीमत एक-समान होती है।
अर्थात्
सीमांत संप्राप्ति = औसत संप्राप्ति = कीमत

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

प्रश्न 7.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म की सकारात्मक उत्पादन करने की क्या शर्ते हैं?
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म की सकारात्मक उत्पादन करने की शर्ते निम्नलिखित हैं-

  • बाज़ार कीमत (p) = अल्पकालीन सीमांत लागत।
  • अल्पकालीन दीर्घकालीन सीमांत लागत घट नहीं रही है।
  • बाज़ार कीमत ≥ औसत परिवर्ती लागत अथवा दीर्घकालीन औसत लागत।

प्रश्न 8.
क्या प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म जिसकी बाज़ार कीमत सीमांत लागत के बराबर नहीं है, उसका निर्गत का स्तर सकारात्मक हो सकता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म जिसकी बाज़ार कीमत सीमांत लागत के बराबर नहीं है, उसके निर्गत का स्तर सकारात्मक नहीं हो सकता है, यदि बाज़ार कीमत सीमांत लागत और औसत परिवर्ती लागत से कम है। यदि बाज़ार कीमत सीमांत लागत से कम है, लेकिन औसत परिवर्ती लागत से अधिक है तो उसके निर्गत का स्तर सकारात्मकं हो सकता है। ऐसा इसलिए होता है कि फर्म का उद्देश्य हानि को न्यूनतम करना भी होता है। यदि बाजार कीमत सीमांत लागत और औसत परिवर्ती लागत से कम है तो उत्पादन व बिक्री से हानि अधिक होगी। इसलिए उत्पादन बंद करना अधिक लाभदायक होगा। यदि बाजार कीमत सीमांत लागत से कम, लेकिन औसत परिवर्ती लागत से अधिक है तो उत्पादन जारी रखने पर फर्म को हानि कम होगी। एक फर्म का अधिकतम लाभ तभी होगा जब बाज़ार कीमत (p) सीमांत लागत (MC) के बराबर होगी।

प्रश्न 9.
क्या एक प्रतिस्पर्धी बाज़ार में कोई लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक निर्गत स्तर पर उत्पादन कर सकती है, जब सीमांत लागत घट रही हो? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 4
एक प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन कर सकती है यदि सीमांत लागत घट रही हो। अधिकतम लाभ की आवश्यक शर्त यह है कि बाज़ार कीमत (p) सीमांत लागत (MC) से अधिक हो या बराबर हो। इस प्रकार बाज़ार कीमत के MC से कम होने पर लाभ नहीं होगा। यदि एक फर्म बाज़ार कीमत की तुलना में घटती हुई सीमांत लागत पर उत्पादन करती है तो फर्म को लाभ होगा. परंत अधिकतम लाभ नहीं होगा। अधिकतम लाभ के लिए यह आवश्यक है कि बाज़ार कीमत (p) और सीमांत लागत (MC) बराबर हो। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।

संलग्न रेखाचित्र में फर्म की सीमांत लागतं E1 और E के बीच बाज़ार कीमत से कम है जो लाभ की स्थिति दर्शाता है, परंतु फर्म को अधिकतम लाभ E बिंदु पर प्राप्त होगा।

प्रश्न 10.
क्या अल्पकाल में प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन कर सकती है? यदि बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम है, व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 5
अल्पकाल में प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन नहीं करेगी, क्योंकि बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम है। यदि फर्म ऐसी स्थिति में उत्पादन बंद कर देती है, तो उसकी हानि स्थिर लागत के बराबर होगी। यदि फर्म उत्पादन जारी रखती है, तो उसकी हानि स्थिर लागत और कीमत पर औसत परिवर्ती लागत के आधिक्य के योग के बराबर होगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।

संलग्न रेखाचित्र में औसत परिवर्ती लागत की तुलना में कीमत कम है फिर भी फर्म उत्पादन करेगी क्योंकि B बिंदु पर उसकी हानि स्थिर लागत के बराबर है। अन्य किसी बिंदु पर फर्म की हानि A, B, E, P से अधिक होगी।

प्रश्न 11.
क्या दीर्घकाल में स्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन कर सकती है? यदि बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत लागत से कम है, व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यदि बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत लागत से कम है तो दीर्घकाल में प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन नहीं करेगी। यदि एक फर्म इस स्तर पर उत्पादन करती है तो उसकी कुल लागत कुल संप्राप्ति से अधिक होगी, जिसके फलस्वरूप फर्म को हानि उठानी पड़ेगी। इसलिए दीर्घकाल में फर्म की कीमत औसत लागत के बराबर या अधिक होनी चाहिए। दीर्घकाल में एक फर्म बाज़ार छोड़कर जा सकती है। अतः वह हानि उठाना पसंद नहीं करेगी।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

प्रश्न 12.
अल्पकाल में एक फर्म का पूर्ति वक्र क्या होती है?
उत्तर:
अल्पकाल में, एक फर्म का पूर्ति वक्र उसके अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र का न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत (AVC) से ऊपर को उठता हुआ भाग होता है तथा न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम सभी कीमतों पर निर्गत स्तर शून्य होता है।

अल्पकालीन पूर्ति वक्र-हम जानते हैं कि अल्पकाल में AVC की भरपाई होनी अनिवार्य है अन्यथा उत्पादन बंद हो जाएगा। हम यह भी जानते हैं कि अल्पकाल में कीमत, सीमांत लागत के बराबर होती है। इसलिए SMC वक्र ही फर्म का पूर्ति वक्र होता है। तथापि SMC वक्र का केवल उठता हुआ भाग ही पूर्ति वक्र होता है, इसका सारा भाग नहीं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 6
SMC के बढ़ते हुए भाग का केवल वही हिस्सा किसी फर्म का पूर्ति वक्र है जो AVC के ऊपर स्थित है। इसलिए जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में मोटी रेखा द्वारा दिखाया गया है। SMC, E बिंदु के पहले से ही बढ़ना शुरू कर देती है, परंतु पूर्ति वक्र केवल बिंदु E, AVC का न्यूनतम बिंदु से आरंभ होता है। यदि यह बिंदु F से आरंभ हो, तो SMC का FE हिस्सा पूर्ति वक्र का हिस्सा नहीं हो सकता, क्योंकि यह AVC से कम है।

प्रश्न 13.
दीर्घकाल में एक फर्म का पूर्ति वक्र क्या होता है?
उत्तर:
दीर्घकाल में, एक फर्म का पूर्ति वक्र उसके दीर्घकालीन सीमांत लागत वक्र का न्यूनतम दीर्घकालीन औसत लागत से ऊपर को उठता हुआ भाग होता है तथा न्यूनतम दीर्घकालीन औसत लागत से कम सभी कीमतों पर निर्गत का स्तर शून्य होता है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 7
दीर्घकालीन पूर्ति वक्र दीर्घकालीन पूर्ति वक्र, अल्पकालीन पूर्ति वक्र से अलग होता है। दीर्घकाल में कोई स्थिर लागतें नहीं होती। इसलिए सारी लागत परिवर्ती है तथा इसकी भरपाई होनी अनिवार्य है। यदि कीमत LAC की भरपाई नहीं करती, उत्पादन बंद हो जाएगा। इसलिए पूर्ति वक्र LMC का वह हिस्सा है जो LAC के न्यूनतम स्तर से ऊपर है। जैसाकि रेखाचित्र में दिखाया गया है, LMC का मोटा हिस्सा दीर्घकालीन पूर्ति वक्र है।

प्रश्न 14.
प्रौद्योगिकीय प्रगति एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 8
प्रौद्योगिकीय प्रगति एक फर्म के पूर्ति वक्र को प्रभावित करती है। यदि प्रौद्योगिकी में सुधार होता है तो उन्हीं पूर्ववत संसाधनों से अधिक इकाइयों का उत्पादन संभव हो जाता है। फलस्वरूप उत्पादन लागत में कमी आती है और पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाता है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दिखाया गया है। आरंभ में OP कीमत पर पूर्ति PE है, प्रौद्योगिकी प्रगति के बाद समान कीमत पर पूर्ति बढ़कर PE, हो जाती है। प्रौद्योगिकीय प्रगति से वस्तु की पूर्ति में वृद्धि के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं

  • कंप्यूटरों के प्रयोग से लागत में कमी आना।
  • स्वचालित मशीनों से वस्तु का अधिक उत्पादन।

प्रश्न 15.
इकाई कर लगाने से एक फर्म का पूर्ति वक्र किस प्रकार प्रभावित होता है?
उत्तर:
इकाई कर लगने से वस्तु की प्रति इकाई (औसत) व सीमांत लागत में भी वृद्धि होती है। फलस्वरूप वस्तु की पूर्ति कम हो जाती है और पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाता है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र द्वारा दर्शाया गया है। आरंभ में OP कीमत पर उत्पादक PE मात्रा की पूर्ति करने को तैयार था। इकाई कर के लगने के पश्चात् वह प्रचलित कीमत पर केवल PE1 मात्रा की पूर्ति ही करता है। पूर्ति वक्र अब S1S1 से पीछे को खिसककर SMS बन जाता है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 9

प्रश्न 16.
किसी आगत की कीमत में वृद्धि एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
सामान्यतया वस्तु की पूर्ति और लागत में ऋणात्मक संबंध होता है। आगतों (Inputs) की कीमत में वृद्धि (जैसे कच्चे माल की कीमत में वृद्धि, श्रमिकों। की मजदूरी में वृद्धि) से वस्तु की लागत में वृद्धि होने के फलस्वरूप वस्तु की पूर्ति। कम हो जाएगी और पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाता है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है। रेखाचित्र में SS प्रारंभिक पूर्ति वक्र है। आगत में वृद्धि होने पर यह बाईं ओर खिसककर S1S1 हो जाता है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 10

प्रश्न 17.
बाज़ार में फर्मों की संख्या में वृद्धि, बाज़ार पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
बाज़ार में फर्मों की संख्या में वृद्धि से बाज़ार पूर्ति में वृद्धि होगी क्योंकि बाज़ार पूर्ति बाज़ार में पाई जाने वाली फर्मों द्वारा की गई पूर्ति का योगफल है। फर्मों की संख्या में वृद्धि से बाज़ार पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाता है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 11
संलग्न रेखाचित्र में प्रारंभिक पूर्ति वक्र SS है, जिस पर OP कीमत पर OQ1 पूर्ति है। फर्मों की संख्या में वृद्धि से पूर्ति वक्र S1S1 हो जाता है जिससे उसी कीमत OP पर पूर्ति बढ़कर OQ1 हो जाती है।

प्रश्न 18.
पूर्ति की कीमत लोच का क्या अर्थ है? हम इसे कैसे मापते हैं?
उत्तर:
पूर्ति की कीमत लोच का अर्थ-अन्य बातें समान रहते हुए, वस्तु की कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप वस्तु की पूर्ति की मात्रा में जिस दर से परिवर्तन होता है, उसे पूर्ति की कीमत लोच कहते हैं।
पूर्ति की कीमत लोच को मापने की निम्नलिखित विधियाँ हैं-
1.प्रतिशत विधि-प्रतिशत विधि के अंतर्गत पूर्ति की कीमत लोच को मापने के लिए पूर्ति की गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन को कीमत में प्रतिशत परिवर्तन से भाग दिया जाता है। सूत्र के रूप में,
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 12
इस विधि को हम एक उदाहरण द्वारा समझ सकते हैं। माना कि आम की कीमत 10 रु० प्रति किलोग्राम है और इस कीमत पर आम की 600 किलोग्राम है। यदि आम की कीमत बढ़कर 12 रु० प्रति किलोग्राम हो जाती है तो आम की पूर्ति बढ़कर 800 किलोग्राम हो जाती है। इस उदाहरण में आम की पूर्ति की कीमत लोच होगी।
आम की पूर्ति की कीमत लोच = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
इस उदाहरण में, P0 = 10, Ap = 2, q0 = 600, ∆q = 200
= \(\frac{200}{2} \times \frac{10}{600}\)
= 1.67
अर्थात् es >1 है। अतः पूर्ति अधिक लोचदार है।

2. ज्यामितीय विधि-ज्यामितीय विधि के अंतर्गत पूर्ति की कीमत लोच की गणना पूर्ति वक्र को उद्गम बिंदु (Point of origin) अर्थात् अक्ष केंद्र की ओर विस्तार करके किया जाता है। पूर्ति वक्र को अक्ष केंद्र.से विस्तार करने पर निम्नलिखित स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं

  • यदि पूर्ति वक्र y-अक्ष को पार कर x-अक्ष के ऋणात्मक पक्ष पर पहुँचता है तो पूर्ति की कीमत लोच का मान एक से अधिक होगा।
  • यदि पूर्ति वक्र x-अक्ष के धनात्मक अंश पर पहुँचता है तो पूर्ति की कीमत लोच का मान एक से कम होगा।
  • यदि पूर्ति वक्र अक्ष केंद्र को स्पर्श करता है तो पूर्ति की कीमत लोच का मान एक के बराबर होगा।

ज्यामितीय विधि को हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शित कर सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 13

  • वस्तु-A की पूर्ति वक्र इकाई से कम लोचदार है अर्थात् e < 1
  • वस्तु-B की पूर्ति वक्र इकाई के बराबर है अर्थात् e = 1
  • वस्तु-C की पूर्ति वक्र इकाई से अधिक लोचदार है अर्थात् es > 1

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

प्रश्न 19.
निम्न तालिका में कुल संप्राप्ति, सीमांत संप्राप्ति तथा औसत संप्राप्ति का परिकलन कीजिए। वस्तु की प्रति इकाई बाज़ार कीमत 10 रु० है।

बेची गई मात्राकुल संप्राप्तिसीमांत संप्राप्तिऔसत संप्राप्ति
0
1
2
3
5
6

हल:
(i) कुल संप्राप्ति = बेची गई मात्रा x प्रति इकाई कीमत
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 14
प्रयोग किए गए सूत्र-
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 15

प्रश्न 20.
निम्न तालिका में एक प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल संप्राप्ति तथा कुल लागत सारणियों को दर्शाया गया है। प्रत्येक उत्पादन स्तर के लाभ की गणना कीजिए। वस्तु की बाज़ार कीमत भी निर्धारित कीजिए।

बेची गई मात्राकुल संप्राप्ति (र०)कुल लागत (रु०)लाभ (रु०)
005
157
21010
31512
52015
62523
73033

हल:
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 16
प्रयोग किए गए सूत्र-
(i) लाभ = कुल संप्राप्ति – कुल लागत
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 17

प्रश्न 21.
निम्न तालिका में एक प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल लागत सारणी को दर्शाया गया है। वस्तु की कीमत 10 रु० दी हुई है। प्रत्येक उत्पादन स्तर पर लाभ की गणना कीजिए। लाभ-अधिकतमीकरण निर्गत स्तर ज्ञात कीजिए।

उत्पादनकुल लागत (इकाई) रु०
0 5
115
222
327
431
538
649
763
881
9101
10123

हल:

उत्पादनकीमत (रु०)कुल संप्राप्ति (रु०)कुल लागत (रु०)लाभ (रु०)
01005-5
1101015-5
2102022-2
3103027+3
4104031+9
5105038+12
6106049+11
7107063+7
8108081-1
91090101-11
1010100123-23

प्रयोग किए गए सूत्र

  • कुल संप्राप्ति = उत्पादन x कीमत
  • लाभ = कुल संप्राप्ति – कुल लागत।

प्रश्न 22.
दो फर्मों वाले एक बाज़ार को लीजिए। निम्न तालिका दोनों फर्मों के पूर्ति सारणियों को दर्शाती है। SS1, कालम में फर्म-1 की पूर्ति सारणी, कालम SS2 में फर्म-2 की पूर्ति सारणी है। बाज़ार पूर्ति अनुसूची सारणी का परिकलन कीजिए।

कीमतSS1 इकाइयाँSS2 इकाइयाँ
000
100
210
3– 11
422
533
644

हल:

कीमतSS1
इकाइयाँ
SS2
इकाइयाँ
MSS
(इकाइयाँ)
0000
1000
2100
3– 112
4224
5336
6448

नोट-बाज़ार पूर्ति (MSS) (इकाइयाँ) = SS1 (इकाइयाँ) + SS2 (इकाइयाँ)

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

प्रश्न 23.
दो फर्मों वाले एक बाज़ार को लीजिए। निम्न तालिका में कालम SS1 तथा कालम SS2 क्रमशः फर्म-1 तथा फर्म-2 के पूर्ति सारणियों को दर्शाते हैं। बाज़ार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।

कीमतSS1 इकाइयाँSS2 इकाइयाँ
000
100
200
310
420.5
531
641.5
752
862.5

हल:

कीमतSS1 इकाइयाँSS2 इकाइयाँMSS(इकाइयाँ)
0000
1000
2000
3101
420.52.5
5314
641.55.5
7527
862.58.5

नोट-बाज़ार पूर्ति (MSS) = SS1 (किलो) + SS2 (किलो)

प्रश्न 24.
एक बाज़ार में 3 समरूपी फर्मे हैं। निम्नलिखित तालिका फर्म-1 की पूर्ति सारणी दर्शाती है। बाज़ार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।

कीमत (रु०)SS1 (इकाई)
00
10
22
34
46
58
610
712
814

हल:
चूँकि तीनों फ समरूप हैं, हम बाज़ार पूर्ति अनुसूची को फर्म-1 की अनुसूची को 3 से गुणा करके प्राप्त कर सकते हैं।

कीमत (रु०)SS1 (इकाई)MSS(इकाई)
000
100
226
3412
4618
5824
61030
71236
81442

वैकल्पिक विधि-
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 18
नोट-बाज़ार पूर्ति (MSS) = SS1 + SS2 + SS3

प्रश्न 25.
10 रु० प्रति इकाई बाज़ार कीमत पर एक फर्म की संप्राप्ति 50 रु० है। बाज़ार कीमत बढ़कर 15 रु० हो जाती है और अब फर्म को 150 रु० की संप्राप्ति होती है। पूर्ति वक्र की कीमत लोच क्या है?
हल:
कुल संप्राप्ति = 50 रु०
वस्तु की पुरानी कीमत = 10 रु०
वस्तु की बेची गई पुरानी इकाइयाँ = \(\frac{50}{10}\) = 5 इकाइयाँ
वस्तु की नई कीमत = 15 रु०
वस्तु की कुल संप्राप्ति = 150 रु०
वस्तु की बेची गई नई इकाइयाँ = \(\frac{150}{15}\) = 10 इकाइयाँ
पूर्ति की कीमत लोच (es) = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
= p0 = 10, ∆p = 15 – 10 = 5, q0 = 5, ∆q = 10 – 5 = 5
= \(\frac{5}{5} \times \frac{10}{5}\)
= \(\frac{50}{25}\)
= 2 उत्तर

प्रश्न 26.
एक वस्तु की बाज़ार कीमत 5 रु० से बदलकर 20 रु० हो जाती है। फलस्वरूप फर्म पूर्ति की मात्रा 15 इकाई बढ़ जाती है। फर्म के पूर्ति वक्र की कीमत लोच 0.5 है। फर्म का आरंभिक तथा अंतिम निर्गत स्तर ज्ञात करें।
हल:
पूर्व कीमत (p0) = 5 रु०
वर्तमान कीमत (p1) = 20 रु०
कीमत में परिवर्तन (Ap) = 20 – 5 = 15 रु०
पूर्ति में परिवर्तन (Aq) = 15 इकाइयाँ
पूर्ति की कीमत लोच (e) = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
0.5 = \(\frac{15}{q^{0}} \times \frac{5}{15}\)
0.5 = \(\frac{75}{15 q^{0}}\)
0.5 = \(\frac{5}{q^{0}}\)
q0 = 10
इस प्रकार, पुरानी पूर्ति (q0) = 10
नई पूर्ति (q1) = 10 + 15 = 25
फर्म का आरंभिक निर्गत स्तर = 10
फर्म का अंतिम निर्गत स्तर = 25 उत्तर

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

प्रश्न 27.
10 रु० बाज़ार कीमत पर एक फर्म निर्गत की 4 इकाइयों की पूर्ति करती है। बाज़ार कीमत बढ़कर 30 रु० हो जाती है। फर्म की पूर्ति की कीमत लोच 1.25 है। नई कीमत पर फर्म कितनी मात्रा की पूर्ति करेगी?
हल:
p0 = 10 रु०
q0 = 4 इकाइयाँ
p1 = 30 रु०
पूर्ति की कीमत लोच (es) = 1.25
125 = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
125 = \(\frac{\Delta q}{30-10} \times \frac{10}{4}\)
125 = \(\frac{\Delta q}{20} \times \frac{10}{4}\)
125 = \(\frac{\Delta q}{8}\)
∆q = 10
पूर्ति की नई मात्रा = पूर्ति की पुरानी मात्रा + पूर्ति में परिवर्तन
= 4+ 10 = 14 इकाइयाँ उत्तर

पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत HBSE 12th Class Economics Notes

→ पूर्ण प्रतिस्पर्धा-पूर्ण प्रतिस्पर्धा (प्रतियोगिता) उस बाज़ार को कहते हैं जिसमें असंख्य क्रेता तथा समरूप वस्तु के असंख्य विक्रेता होते हैं और वस्तु की कीमत का निर्धारण उद्योग द्वारा किया जाता है। बाज़ार में केवल एक ही कीमत प्रचलित होती है और सभी फर्मों को अपनी वस्तु इसी प्रचलित कीमत पर बेचनी होती है।

→ एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में फर्म कीमत-स्वीकारक होती है। * फर्म की कुल संप्राप्ति (आगम), फर्म की कुल निर्गत बाज़ार कीमत का गुणनफल होती है।
TR = P.Q.
अथवा
उत्पादन की सभी इकाइयों के MR को जोड़कर भी TR प्राप्त हो जाता है। अतः
TR = ∑MR

→ औसत संप्राप्ति (आगम) औसत संप्राप्ति से अभिप्राय है उत्पादक को प्रति इकाई उत्पादन बेच कर प्राप्त होने वाली मौद्रिक राशि।
AR = \(\frac { TR }{ Q }\)

→ कीमत-स्वीकारक फर्म की औसत संप्राप्ति (AR) बाज़ार कीमत के बराबर होती है।

→ सीमांत संप्राप्ति-सीमांत संप्राप्ति (MR) से अभिप्राय है किसी वस्तु की एक इकाई अधिक बेचने से कुल संप्राप्ति (आगम) में होने वाला परिवर्तन।
MR = \(\frac { ∆TR }{ ∆Q }\); TRn – TR-1

→ कीमत स्वीकारक फर्म के लिए सीमांत संप्राप्ति बाज़ार कीमत के बराबर होती है।

→ पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में फर्म की माँग वक्र पूर्णतया लोचदार होती है। यह बाज़ार कीमत पर एक सीधी समस्तरीय रेखा होती है।

→ औसत संप्राप्ति वक्र फर्म की माँग वक्र है-AR वक्र फर्म के माँग वक्र को प्रदर्शित करता है, क्योंकि AR को Y-अक्ष पर और उत्पादन/बिक्री को X-अक्ष पर दिखाया जाता है। हम जानते हैं कि AR = कीमत, अतएव AR वक्र वस्तु की कीमत (Y-अक्ष पर) और वस्तु की बिक्री या माँग (X-अक्ष पर) के बीच संबंध को प्रकट करता है।

→ पूर्ण प्रतिस्पर्धा में AR वक्र पड़ी सीधी रेखा और AR तथा MR बराबर होती है-यह इसलिए क्योंकि पूर्ण प्रतिस्पर्धा में एक फर्म कीमत स्वीकारक (Price-Taker) होती है, जिसका अर्थ है कि फर्म के उत्पादन के समस्त स्तरों के लिए AR समान होती है। पूर्ण प्रतिस्पर्धा की अवस्था में दी हुई कीमत पर फर्म वस्तु की जितनी भी मात्रा चाहे बेच सकती है।

→ फर्म का लाभ, कुल आगम जो वह अर्जित करती है तथा कुल लागत जो वह उठाती है, इनके बीच का अंतर होता है।
π (लाभ) = कुल आगम – कुल लागत

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

→ यदि अल्पकाल में किसी फर्म के लाभ का अधिकतमीकरण निर्गत के किसी धनात्मक स्तर पर होता है, तो उस निर्गत स्तर पर तीन शर्ते पूरी होनी चाहिए
(i) p = अल्पकालीन सीमांत लागत
(ii) अल्पकालीन सीमांत लागत घट नहीं रही है
(iii) p > औसत परिवर्ती लागत

→ किसी फर्म अल्पकालीन पूर्ति वक्र, अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र का न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत तथा उससे ऊपर उठता हुआ भाग होता है तथा न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम सभी कीमतों पर निर्गत स्तर शून्य होता है।

→ किसी फर्म का दीर्घकालीन पूर्ति वक्र, दीर्घकालीन सीमांत लागत वक्र का न्यूनतम दीर्घकालीन सीमांत लागत तथा – उससे ऊपर, उठता हुआ भाग होता है तथा न्यूनतम दीर्घकालीन सीमांत लागत से कम, सभी कीमतों पर निर्गत स्तर शून्य होता है।

→ प्रौद्योगिकीय प्रगति से फर्म का पूर्ति वक्र दाहिनी ओर शिफ्ट हो जाती है।

→ आगतों की कीमतों में वृद्धि (कमी) से फर्म का पूर्ति वक्र बायीं (दाहिनी) ओर शिफ्ट हो जाती है।

→ प्रति इकाई कर लगाने से फर्म का पूर्ति वक्र बायीं ओर शिफ्ट हो जाती है।

→ बाज़ार में फर्मों की संख्या में वृद्धि से बाज़ार पूर्ति वक्र दाहिनी ओर शिफ्ट हो जाती है।

→ बाज़ार पूर्ति वक्र सभी व्यक्तिगत फर्मों के पूर्ति वक्रों के समस्तरीय योग द्वारा प्राप्त होता है।

→ वस्तु की पूर्ति की कीमत लोच वस्तु की बाज़ार कीमत में एक प्रतिशत परिवर्तन के फलस्वरूप पूर्ति की गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन है।

→ पर्ति की कीमत लोच (es) = HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 19

→ लाभ-अलाभ-किसी फर्म का समविच्छेद बिंदु (Break Even Point) तब होता है जब TR = TC (कुल संप्राप्ति (आगम) = कुल लागत)। इस स्थिति में उत्पादक के लाभ तथा हानि दोनों शून्य होते हैं। पूर्ति वक्र के जिस बिंदु पर एक फर्म साधारण लाभ अर्जित करती है, वह फर्म का लाभ-अलाभ बिंदु कहलाता है। अतः न्यूनतम औसत लागत का वह बिंदु जिस पर पूर्ति वक्र LRAC (अल्पकाल में SRAC) को काटता है फर्म का लाभ-अलाभ बिंदु कहलाता है। दीर्घकाल में एक फर्म को इस बिंदु को अवश्य प्राप्त करना चाहिए।

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HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 13 उत्पादन तथा लागत

पाठयपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
उत्पादन फलन की संकल्पना को समझाइए।
उत्तर:
उत्पादन फलन से अभिप्राय भौतिक आगतों और अधिकतम संभावित निर्गत के तकनीकी संबंध से है। अर्थात् उत्पादन फलन (q) = f (L, K)
यहाँ f = फलन
L = श्रम की भौतिक इकाइयाँ
K = पूँजी की भौतिक इकाइयाँ
उत्पादन फलन दो प्रकार के हो सकते हैं-

  • आगतों का स्थिर अनुपात उत्पादन फलन
  • आगतों का परिवर्ती अनुपात उत्पादन फलन

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 2.
एक आगत का कुल उत्पाद क्या होता है?
उत्तर:
एक आगत (Input) का कुल उत्पाद उस आगत की सभी इकाइयों से प्राप्त कुल निर्गत (Output) है यदि अन्य आगतों को स्थिर रखा जाता है। अन्य शब्दों में, उत्पादन प्रक्रिया में प्रयोग हुई परिवर्ती कारक की प्रत्येक इकाई के उत्पादन का योग कुल उत्पाद है। अर्थात्
TP = \(\sum_{i=1}^{n} \mathrm{MP}\)
एक परिवर्ती कारक की सभी इकाइयों के सीमांत उत्पाद (MP) को जोड़कर हम कुल उत्पाद (TP) प्राप्त कर सकते हैं।

प्रश्न 3.
एक आगत का औसत उत्पाद क्या होता है?
उत्तर:
एक आगत का औसत उत्पाद उस आगत के कुल उत्पाद को परिवर्ती आगत की इकाइयों से विभाजित करने से प्राप्त उत्पाद है। इस प्रकार,
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 1

प्रश्न 4.
एक आगत का सीमांत उत्पाद क्या होता है?
उत्तर:
एक आगत का सीमांत उत्पाद उस आगत की अतिरिक्त इकाई में परिवर्तन करने से कुल उत्पाद में होने वाला परिवर्तन है। इस प्रकार,
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 2

प्रश्न 5.
एक आगत के सीमांत उत्पाद तथा कुल उत्पाद के बीच संबंध समझाइए।
उत्तर:
परिवर्ती अनुपातों के नियम के अनुसार सीमांत उत्पाद और कुल उत्पाद में महरा संबंध है और सीमांत उत्पाद के कारण ही कुल उत्पाद में परिवर्तन होता है। सीमांत उत्पाद और कुल उत्पाद तीन अवस्थाओं से गुजरता है-

  • प्रथम अवस्था में, जब सीमांत उत्पाद बढ़ता है तो कुल उत्पाद अधिक दर से बढ़ता है।
  • द्वितीय अवस्था में, जब सीमांत उत्पाद घटता है तो कुल उत्पाद घटती हुई दर से बढ़ता है।
  • तृतीय अवस्था में, जब सीमांत उत्पाद ऋणात्मक होता है तो कुल उत्पाद भी घटता है।

इस संबंध को हम निम्न तालिका द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं-

श्रमिकों की संख्यासीमांत उत्पादकुल उत्पाद
1100100
2120220
3130350
4100450
560510
620530
700530
8-10520

प्रश्न 6.
अल्पकाल तथा दीर्घकाल की संकल्पनाओं को समझाइए।
उत्तर:
अल्पकाल समय की वह अवधि है जिसमें उत्पादन के कुछ कारक स्थिर और कुछ परिवर्ती होते हैं, जिनके फलस्वरूप उत्पादन में परिवर्तन एक सीमा में ही किया जा सकता है। दीर्घकाल समय की वह अवधि है जिसमें उत्पादन के सभी कारक परिवर्ती होते हैं, जिसके फलस्वरूप उत्पादन में परिवर्तन वांछित मात्रा में किया जा सकता है।

प्रश्न 7.
हासमान सीमांत उत्पाद का नियम क्या है?
उत्तर:
हासमान सीमांत उत्पाद का नियम यह बताता है कि जब स्थिर कारकों (Constant Factors) के साथ परिवर्ती कारक (Variable Factors) की मात्रा में वृद्धि की जाती है तो एक सीमा के पश्चात् कुल उत्पाद घटती दर से प्राप्त होते हैं।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 8.
परिवर्ती अनुपात का नियम क्या है?
उत्तर:
परिवर्ती अनुपात का नियम यह बताता है कि जब स्थिर आगतों के साथ परिवर्ती आगत की मात्रा में वृद्धि की जाती है, तो पहले औसत तथा सीमांत उत्पाद एक सीमा तक बढ़ेंगे और उसके पश्चात् घटने लगेंगे।

प्रश्न 9.
एक उत्पादन फलन स्थिर पैमाने के प्रतिफल को कब संतुष्ट करता है?
उत्तर:
एक उत्पादन फलन स्थिर पैमाने के प्रतिफल को उस समय संतुष्ट करता है, जब सभी आगतों की इकाइयों में निश्चित अनुपात में वृद्धि करने से कुल उत्पाद में भी उसी अनुपात में वृद्धि हो।

प्रश्न 10.
एक उत्पादन फलन वर्धमान पैमाने के प्रतिफल को कब संतुष्ट करता है?
उत्तर:
एक उत्पादन फलन वर्धमान पैमाने के प्रतिफल को उस समय संतुष्ट करता है, जब कुल उत्पाद में उस अनुपात से अधिक वृद्धि होती है जिस अनुपात में आगतों को बढ़ाया जाता है।

प्रश्न 11.
एक उत्पादन फलन ह्रासमान पैमाने के प्रतिफल को कब संतुष्ट करता है?
उत्तर:
एक उत्पादन फलन ह्रासमान पैमाने के प्रतिफल को उस समय संतुष्ट करता है, जब कुल उत्पाद में उस अनुपात से कम वृद्धि होती है जिस अनुपात में आगतों को बढ़ाया जाता है।

प्रश्न 12.
लागत फलन की संकल्पनाओं को संक्षिप्त में समझाइए।
उत्तर:
लागत फलन एक निर्गत स्तर और उसकी न्यूनतम लागत के संबंध को दर्शाता है। लागत फलन को निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है
C = f(Q, P, T, K………) यहाँ C = कुल लागत, f= फलन, Q = निर्गत, P = आगतों की कीमतें, T = उत्पादन तकनीक, K = मशीनरी।

प्रश्न 13.
एक फर्म की कुल स्थिर लागत, कुल परिवर्ती लागत तथा कुल लागत क्या हैं? वे किस प्रकार संबंधित हैं?
उत्तर:
कुल स्थिर लागत से हमारा अभिप्राय उन लागतों से है जो विभिन्न उत्पादन स्तरों पर एक-समान रहती हैं। कुल परिवर्ती लागत से हमारा अभिप्राय उन लागतों से है जो उत्पादन में परिवर्तन के साथ-साथ परिवर्तित होती हैं। कुल लागत से हमारा अभिप्राय उन सभी लागतों से है जिसका संबंध एक वस्तु के उत्पादन से है। कुल लागत, कुल स्थिर लागत और कुल परिवर्ती लागत का जोड़ है। इस प्रकार,
कुल लागत = कुल स्थिर लागत + कुल. परिवर्ती लागत

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 14.
एक फर्म की औसत स्थिर लागत, औसत परिवर्ती लागत तथा औसत लागत क्या है, वे किस प्रकार संबंधित हैं?
उत्तर:
औसत स्थिर लागत से अभिप्राय प्रति इकाई स्थिर लागत से है। कुल स्थिर लागत को उत्पादन की मात्रा (इकाइयों) से भाग देने पर औसत स्थिर लागत प्राप्त होती है। अर्थात्
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 3
औसत परिवर्ती लागत से अभिप्राय प्रति इकाई परिवर्ती लागत से है। कुल परिवर्ती लागत को उत्पादन की मात्रा (इकाइयों) से भाग देने पर औसत परिवर्ती लागत प्राप्त होती है। अर्थात्
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 4
औसत लागत से अभिप्राय प्रति इकाई उत्पादन लागत से है। कुल लागत को उत्पादन की मात्रा (इकाइयों) से भाग देने पर औसत लागत प्राप्त होती है। अर्थात्
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 5
इस प्रकार औसत लागत, औसत स्थिर लागत और औसत परिवर्ती लागत का योग है।

प्रश्न 15.
क्या दीर्घकाल में कुछ स्थिर लागत हो सकती है? यदि नहीं तो क्यों?
उत्तर:
दीर्घकाल में कोई भी लागत स्थिर नहीं हो सकती, क्योंकि दीर्घकाल वह अवधि है जिसमें सभी आगत परिवर्ती हो जाते हैं।

प्रश्न 16.
औसत स्थिर लागत वक्र कैसा दिखता है? यह ऐसा क्यों दिखता है?
उत्तर:
औसत स्थिर लागत वक्र एक आयताकार अतिपरवलय (Rectangular Hyperbola) होता है। यदि हम निर्गत (उत्पादन) के किसी भी मूल्य को उससे संबंधित औसत स्थिर लागत से गुणा करते हैं, तब हम कुल स्थिर लागत प्राप्त करते हैं। औसत स्थिर लागत वक्र को संलग्न रेखाचित्र द्वारा दर्शाया गया है। औसत स्थिर लागत वक्र का आकार आयताकार अतिपरवलय होता है क्योंकि इस वक्र के विभिन्न बिंदुओं पर वक्र के नीचे कुल क्षेत्रफल समान रहता है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 6

प्रश्न 17.
अल्पकालीन सीमांत लागत, औसत परिवर्ती लागत तथा अल्पकालीन औसत लागत वक्र कैसे दिखाई देते हैं?
उत्तर:
अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र, औसत परिवर्ती लागत वक्र और अल्पकालीन औसत लागत वक्र-ये तीनों वक्र U आकार के होते हैं, परंतु इनका यह आकार एक-समान नहीं होता। ऐसा परिवर्ती अनुपातों के नियम के लागू होने के कारण होता है। इन लागत वक्रों को संलग्न रेखाचित्र द्वारा दर्शाया गया है। संलग्न रेखाचित्र से यह स्पष्ट है कि एक सीमा तक ये तीनों वक्र नीचे गिरते हैं और फिर ऊपर उठने लगते हैं। अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र तेजी से नीचे गिरता है और तेजी से ऊपर उठता है। ऊपर उठते हुए यह वक्र औसत परिवर्ती लागत वक्र और अल्पकालीन औसत लागत वक्र को उनके न्यूनतम बिंदुओं पर काटता है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 7
औसत परिवर्ती लागत और अल्पकालीन औसत परिवर्ती लागत वक्र धीरे-धीरे गिरते हैं और फिर धीरे-धीरे ऊपर उठते हैं। प्रारंभिक अवस्था में तीनों वक्रों में अधिक अंतर होता है लेकिन बाद में यह अंतर कम होता जाता है परंतु ये वक्र कभी-भी एक-दूसरे को स्पर्श नहीं करते।

प्रश्न 18.
क्यों अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र औसत परिवर्ती लागत वक्र को काटता है, औसत परिवर्ती लागत वक्र के न्यूनतम बिंदु पर?
उत्तर:
अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र और औसत परिवर्ती लागत वक्र दोनों ही ‘U’ आकार के होते हैं क्योंकि परिवर्ती अनुपातों का नियम लागू होता है। प्रारंभिक अवस्था में दोनों वक्र नीचे गिरते हुए होते हैं और एक सीमा के बाद दोनों ऊपर उठते हुए होते हैं। लेकिन सीमांत लागत के बढ़ने और घटने की दर औसत परिवर्ती लागत के बढ़ने और घटने की दर से अधिक होती है। इसलिए सीमांत लागत वक्र प्रारंभ में औसत परिवर्ती लागत वक्र से नीचे होता है और कुछ सीमा के बाद उठते हुए औसत लागत वक्र को न्यूनतम स्तर पर काटते हुए ऊपर उठता है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 8

प्रश्न 19.
किस बिंदु पर अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र अल्पकालीन औसत लागत वक्र को काटता है? अपने उत्तर के समर्थन में कारण बताइए।
उत्तर:
अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र अल्पकालीन औसत लागत वक्र को उसके न्यूनतम बिंदु पर काटता है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं। रेखाचित्र से यह स्पष्ट होता है कि प्रारंभिक अवस्था में अल्पकालीन औसत लागत वक्र और अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र दोनों ही नीचे गिरते हुए होते हैं, लेकिन अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र अल्पकालीन औसत लागत वक्र की तुलना में तेजी से गिरता है। अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र अल्पकालीन औसत लागत वक्र की तुलना में अधिक ऊपर उठता है। ऊपर उठते हुए अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र, अल्पकालीन औसत लागत वक्र को उसके न्यूनतम बिंदु पर काटता है। जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ता जाता है, दोनों ही वक्र ऊपर उठते हैं परंतु अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र तेजी से ऊपर उठता है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 9

प्रश्न 20.
अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र ‘U’ आकार का क्यों होता
उत्तर:
अल्पकालीन सीमांत लागत (MC) वक्र ‘U’ आकार का इसलिए होता है क्योंकि अल्पकाल में परिवर्ती अनुपातों का नियम लागू होता है। परिवर्ती अनुपातों के नियम के कारण सीमांत उत्पाद प्रारंभ में तेजी से बढ़ता है और एक सीमा के बाद सीमांत उत्पाद गिरने लगता है। सीमांत उत्पाद वक्र उल्टे ‘U’ आकार का होता है। जबकि अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र का आकार ‘U’ की तरह होता है जो यह दर्शाता है कि प्रारंभिक अवस्था में सीमांत लागत गिरती है और बाद में उठती है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 10

प्रश्न 21.
दीर्घकालीन सीमांत लागत तथा औसत लागत वक्र कैसे दिखते हैं?
उत्तर:
दीर्घकाल में एक फर्म के सीमांत लागत वक्र और औसत लागत वक्र पैमाने के प्रतिफल पर निर्भर करते हैं। पैमाने के प्रतिफल की तीन अवस्थाएँ होती हैं-वर्धमान प्रतिफल, स्थिर प्रतिफल और ह्रासमान प्रतिफल। इन अवस्थाओं के कारण दीर्घकाल में औसत लागत वक्र और सीमांत लागत वक्र ‘U’ आकार का होता है, लेकिन अल्पकालीन औसत लागत वक्र और सीमांत लागत वक्र की तुलना में दीर्घकालीन औसत लागत व सीमांत लागत वक्र कम गहरे अर्थात् अधिक चपटे होते हैं। दीर्घकालीन औसत लागत वक्र तश्तरी (Dish) का आकार भी ग्रहण कर सकता है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 11

प्रश्न 22.
निम्नलिखित तालिका श्रम का कुल उत्पादन अनुसूची देती है। तदनुरूप श्रम का औसत उत्पाद तथा सीमांत उत्पाद अनुसूची निकालिए।

L012345
कुल उत्पाद01535504048

हल
औसत उत्पाद तथा सीमांत उत्पाद अनुसूची

श्रम की इकाइयाँ (L)कुल उत्पादऔसत उत्पादसीमांत उत्पाद
0000
1151515
23517.520
35016.6715
4401010
5489.68

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 12

प्रश्न 23.
नीचे दी हुई तालिका श्रम का औसत उत्पाद अनुसूची बताती है। कुल उत्पाद तथा सीमांत उत्पाद अनुसूची निकालिए, जबकि श्रम प्रयोगता के शून्य स्तर पर यह दिया गया है कि कुल उत्पाद शून्य है।

L123456
कुल उत्पाद2344.2543.5

हल
कुल उत्पाद तथा सीमांत उत्पाद अनुसूची

श्रम की इकाइयाँ (L)औसत उत्पादकुल उत्पादसीमांत उत्पाद
0000
1222
2364
34126
44.25175
54203
63.5211

सूत्रों का प्रयोग : (i) कुल उत्पाद = औसत उत्पाद x श्रम की इकाइयाँ
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 13

प्रश्न 24.
निम्नलिखित तालिका श्रम का सीमांत उत्पादं अनुसूची देती है। यह भी दिया गया है कि श्रम का कुल उत्पाद शून्य है। प्रयोग के शून्य स्तर पर श्रम के कुल उत्पाद तथा औसत उत्पाद अनुसूची की गणना कीजिए।

L123456
सीमांत उत्पाद357531

हल
कुल उत्पाद तथा औसत उत्पाद अनुसूची

श्रम की इकाइयाँ (L)सीमांत उत्पादकुल उत्पादऔसत उत्पाद
0000
1333
2584
37155
45205
53234.6
60244

सूत्रों का प्रयोग:
(i) कुल उत्पाद = सीमांत उत्पाद1 + सीमांत उत्पाद2 + ………+ सीमांत उत्पादn
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 14

प्रश्न 25.
नीचे दी गई तालिका एक फर्म की कुल लागत अनुसूची दर्शाती है। इस फर्म का कुल स्थिर लागत क्या है? फर्म के कुल परिवर्ती लागत, कुल स्थिर लागत, औसत परिवर्ती लागत, अल्पकालीन औसत लागत तथा अल्पकालीन सीमांत लागत अनुसूची की गणना कीजिए।

Q0123456
कुल उत्पाद103045557090120

हल:
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 15
सूत्रों का प्रयोग-
(i) कुल स्थिर लागत = शून्य उत्पादन पर कुल लागत

(ii) कुल परिवर्ती लागत = कुल लागत कुल स्थिर लागत
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 16

प्रश्न 26.
निम्नलिखित तालिका एक फर्म के लिए कुल लागत अनुसूची देती है। यह भी दिया गया है कि औसत स्थिर लागत निर्गत की 4 इकाइयों पर 5 रुपए है। कुल परिवर्ती लागत, कुल स्थिर लागत, औसत परिवर्ती लागत, औसत स्थिर लागत, अल्पकालीन औसत लागत, अल्पकालीन सीमांत लागत अनुसूची फर्म के निर्गत के तदनुरूप मूल्यों के लिए निकालिए।

Qकुल लागत
150
265
375
495
5130
6185

हल:
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 17
सूत्रों का प्रयोग
(i) कुल स्थिर लागत = शून्य उत्पादन पर कुल लागत

(ii) कुल परिवर्ती लागत = कुल लागत-कुल स्थिर लागत
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 18

प्रश्न 27.
एक फर्म की अल्पकालीन सीमांत लागत अनुसूची निम्नलिखित तालिका में दी गई है। फर्म की स्थिर लागत 100 रुपए है। फर्म के कुल परिवर्ती लागत, कुल लागत, औसत परिवर्ती लागत तथा अल्पकालीन औसत लागत अनुसूची निकालिए।

Qअल्पकालीन सीमांत लागत
0
1500
2300
3200
4300
5500
6800

हल:
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 19
सूत्रों का प्रयोग
(i) कुल परिवर्ती लागत = अल्पकालीन सीमांत लागत1 + अल्पकालीन सीमांत लागत2 +…….. + अल्पकालीन सीमांत लागतn

(ii) कुल लागत = कुल परिवर्ती लागत + कुल स्थिर लागत
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 20

प्रश्न 28.
मान लीजिए, एक फर्म का उत्पादन फलन है, q = \(5 \mathrm{~L}^{\frac{1}{2}} \mathrm{~K}^{\frac{1}{2}}\) 100 इकाइयाँ L तथा 100 इकाइयाँ K द्वारा अधिकतम संभावित निर्गत निकालिए, जिसका उत्पादन फर्म कर सकती है।
हल:
उत्पादन फलन
q = \(5 \mathrm{~L}^{\frac{1}{2}} \mathrm{~K}^{\frac{1}{2}}\) = 100
यहाँ,
L = 100
K = 100
इस प्रकार,
q = \(5 \times 100^{\frac{1}{2}} \times 100^{\frac{1}{2}}\)
q = 5 x 10 x 10
= 500
अधिकतम संभावित निर्गत = 500 उत्तर

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 29.
मान लीजिए, एक फर्म का उत्पादन फलन है, q = 2L²K² 5 इकाइयाँ L तथा 2 इकाइयाँ K द्वारा अधिकतम संभावित निर्गत ज्ञात कीजिए, जिसका फर्म उत्पादन कर सकती है। शून्य इकाई L तथा 10 इकाई K द्वारा अधिकतम संभावित निर्गत क्या है, जिसका फर्म उत्पादन कर सकती है?
हल:
उत्पादन फलन-
q = 2L²K²
यहाँ,
L = 5
K = 2
इस प्रकार,
q = 2 x 5² x 2²
= 2 x 5 x 5 x 2 x 2
अधिकतम संभावित निर्गत = 200
यदि,
L = 0
K = 10
इस प्रकार,
q = 2L²K²
= 2 x 0 x 10²
= 2 x 0 x 0 x 10 x 10
= शून्य
अधिकतम संभावित निर्गत = शून्य उत्तर

प्रश्न 30.
एक फर्म के लिए शून्य इकाई L तथा 10 इकाइयाँ K द्वारा अधिकतम संभावित निर्गत निकालिए, जब इसका उत्पादन फलन है-q = 5L x 2K
हल:
उत्पादन फलन
q = 5L x 2K
यहाँ,
L = 0
K = 10
इस प्रकार,
q = 5 x 0 x 2 x 10
= शून्य
अधिकतम संभावित निर्गत = शून्य उत्तर

उत्पादन तथा लागत HBSE 12th Class Economics Notes

→ उत्पादन फलन-एक फर्म का उत्पादन फलन उपयोग में लाए गए आगतों तथा फर्म द्वारा उत्पादित निर्गतों के मध्य का संबंध है। उपयोग में लाए गए आगतों की विभिन्न मात्राओं के लिए यह निर्गत की अधिकतम मात्रा प्रदान कर सकता है, जिसका उत्पादन किया जा सकता है। उत्पादन फलन को इस प्रकार भी लिखा जा सकता है
q = f(x1 + x2)
यह बताता है कि हम कारक 1 की x1 मात्रा तथा कारक 2 की x2 मात्रा का प्रयोग कर वस्तु की अधिकतम मात्रा q का उत्पादन कर सकते हैं।

→ कुल उत्पाद-किसी विशेष अवधि में कारकों की किसी विशेष मात्रा में फर्म द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की कुल .. मात्रा को कुल उत्पाद (TP) कहा जाता है।

→ औसत उत्पाद औसत उत्पाद निर्गत की प्रति इकाई परिवर्ती आगत के रूप में परिभाषित किया जाता है।

→ सीमांत उत्पाद-निर्गत के एक स्थिर कारक पर परिवर्ती कारक की एक अतिरिक्त इकाई लगाने से कुल उत्पाद में जो वृद्धि होती है, उसे सीमांत उत्पाद कहा जाता है।

→ परिवर्ती अनुपातों का नियम-परिवर्ती अनुपात का नियम बताता है कि जैसे-जैसे स्थिर कारक के साथ एक परिवर्ती कारक की अधिक-से-अधिक इकाइयों का प्रयोग किया जाता है तो एक स्थिति ऐसी अवश्य आ जाती है जब परिवर्ती कारक का अतिरिक्त योगदान अर्थात् परिवर्ती कारक का सीमांत उत्पादन कम होने लगता है।

→ कारक के प्रतिफल-यदि उत्पादक उत्पादन में परिवर्तन अन्य कारकों को स्थिर रखकर उत्पादन के केवल एक ही कारक में वृद्धि अथवा कमी के द्वारा करता है तथा इसके फलस्वरूप उत्पादन के कारकों के मिश्रण का अनुपात बदलता है तो उत्पादन और उत्पादन के कारकों के इस संबंध को कारक के प्रतिफल या परिवर्ती अनुपात का नियम कहते हैं।

→ उत्पादन की तीन अवस्थाएँ होती हैं-

प्रथम अवस्था बढ़ते (वर्धमान) प्रतिफल की है जब परिवर्ती कारक का सीमांत उत्पाद (MP) बढ़ रहा होता है।
दूसरी अवस्था घटते (हासमान) प्रतिफल की है जब परिवर्ती कारक का सीमांत उत्पाद (MP) घट रहा (किंतु धनात्मक) होता है।
तीसरी अवस्था ऋणात्मक प्रतिफल की है जब परिवर्ती कारक का सीमांत उत्पाद (MP) ऋणात्मक होता है। उत्पादक केवल दूसरी अवस्था में ही उत्पादन करेगा, प्रथम और तीसरी अवस्थाओं में नहीं।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

→ कारक के प्रतिफल या परिवर्ती अनुपात के नियम की अवस्थाएँ-

  • कारक के वर्धमान (बढ़ते) प्रतिफल
  • कारक के समान प्रतिफल
  • कारक के ह्रासमान (घटते) प्रतिफल।

→ पैमाने के प्रतिफल पैमाने के प्रतिफल का संबंध सभी कारकों के समान अनुपात में होने वाले परिवर्तनों के फलस्वरूप कुल उत्पाद में होने वाले परिवर्तन से है।

→ पैमाने के प्रतिफल की तीन अवस्थाएँ-

  • पैमाने के वर्धमान (बढ़ते) प्रतिफल
  • पैमाने के ह्रासमान (घटते) प्रतिफल
  • पैमाने के स्थिर (समान) प्रतिफल।

→ औसत लागत-औसत लागत से अभिप्राय प्रति इकाई लागत से है।
या

→ औसत लागत औसत परिवर्ती लागत तथा औसत स्थिर लागत का जोड़ है। अर्थात्
AC = AVC + AFC
ध्यान रहे कि, AFC वक्र नीचे की ओर प्रवणता वाली होती है, जबकि AVC वक्र ‘U’ आकार की होती है।

→ सीमांत लागत-सीमांत लागत से अभिप्राय है एक इकाई का अधिक या कम उत्पादन करने से कुल लागत में होने वाला परिवर्तन।
MC = \(\)

→ अल्पकालीन सीमांत लागत, औसत परिवर्ती लागत तथा अल्पकालीन औसत लागत वक्र ‘U’ आकार के होते हैं।

→ अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र, औसत परिवर्ती लागत वक्र को नीचे से औसत परिवर्ती लागत के न्यूनतम बिंदु पर काटता है।

→ अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र, अल्पकालीन औसत लागत वक्र को नीचे से अल्पकालीन औसत लागत के न्यूपर काटता है।

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HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
उपभोक्ता के बजट सेट से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
उपभोक्ता का बजट सेट उन वस्तुओं के सभी बंडलों का संग्रह है, जिन्हें उपभोक्ता प्रचलित बाजार कीमत पर अपनी आय से खरीद सकता है।

प्रश्न 2.
बजट रेखा क्या है?
उत्तर:
बजट रेखा वह रेखा है जो दो वस्तुओं के ऐसे विभिन्न बंडलों को दिखाती है, जिन्हें उपभोक्ता दी हुई कीमतों और दी। हुई आय पर खरीद सकता है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 3.
बजट रेखा की प्रवणता नीचे की ओर क्यों होती है? समझाइए।
उत्तर:
बजट रेखा दो वस्तुओं की अधिकतम इकाइयाँ दर्शाती है जिन्हें एक उपभोक्ता अपनी दी हुई आय से दोनों वस्तुओं को दी गई कीमतों पर खरीद सकता है। मान लीजिए कि एक उपभोक्ता की आय 1000 रुपए है और दो वस्तुओं x तथा y की कीमतें क्रमशः 2 रुपए और 5 रुपए प्रति इकाई है। इस प्रकार वह अपनी आय से x की अधिकतम 500 इकाइयाँ तथा y की शून्य इकाई खरीद सकेगा अथवा y की 200 इकाइयाँ और x की शून्य इकाई खरीद सकेगा। इस प्रकार x की 500 और y की 200 इकाइयों के अंदर ही एक उपभोक्ता x और की इकाइयाँ खरीदेगा। मान लीजिए, वह x की 200 और y की 120 इकाइयाँ खरीदता है। अगर । वह ) की अधिक इकाइयाँ खरीदना चाहता है, तो उसे x वस्तु की कुछ इकाइयों का त्याग करना पड़ेगा। इस प्रकार दोनों वस्तुओं की इकाइयों में ऋणात्मक (विपरीत) संबंध होता है। इसी संबंध के कारण बजट रेखा की प्रवणता नीचे की ओर होती है

प्रश्न 4.
एक उपभोक्ता दो वस्तुओं का उपभोग करने के लिए इच्छुक है। दोनों वस्तुओं की कीमत क्रमशः 4 रुपए तथा 5 रुपए है। उपभोक्ता की आय 20 रुपए है
(i) बजट रेखा के समीकरण को लिखिए।
(ii) उपभोक्ता यदि अपनी संपूर्ण आय वस्तु 1 पर व्यय कर दे, तो वह उसकी कितनी मात्रा का उपभोग कर सकता है?
(iii) यदि वह अपनी संपूर्ण आय वस्तु 2 पर व्यय कर दे, तो वह उसकी कितनी मात्रा का उपभोग कर सकता है?
(iv) बजट रेखा की प्रवणता क्या है?
उत्तर:
(i) बजट रेखा का समीकरण निम्नलिखित होगा
p1x1 + p2x2 = M
4x1 + 5x2 = 20

(ii) बजट रेखा समीकरण
4x1 + 5x2 = 20
चूँकि x2 = 0
इसलिए 4x1 + 5 x 0 = 20
4x1 = 20
x1 = \(\frac { 20 }{ 4 }\) = 5
अतः यदि उपभोक्ता अपनी संपूर्ण आय वस्तु 1 पर व्यय कर दे, तो वह उसकी 5 इकाइयों का उपभोग कर सकता है।

(iii) बजट रेखा समीकरण-
4x1 + 5x2 = 20
चूँकि x1 = 0
इसलिए 4 x 0 + 5x2 = 20
5x2 = 20
x2 = \(\frac { 20 }{ 5 }\) = 4
अतः यदि उपभोक्ता अपनी संपूर्ण आय वस्तु 2 पर व्यय कर दे, तो वह उसकी 4 इकाइयों का उपभोग कर सकता है।

(iv) बजट रेखा की प्रवणता = \(\frac{p_{1}}{p_{2}}\)
= \(\frac { 4 }{ 5 }\) = 0.8
नोट-प्रश्न 5, 6 तथा 7 प्रश्न 4 से संबंधित हैं।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 5.
यदि उपभोक्ता की आय बढ़कर 40 रुपए हो जाती है, परंतु कीमत अपरिवर्तित रहती है तो बजट रेखा में क्या परिवर्तन होता है?
उत्तर:
उपभोक्ता की आय बढ़ने पर बजट रेखा का समीकरण निम्नलिखित प्रकार से बदल जाएगा
4x1 + 5x2 = 40
इस समीकरण के अनुसार-
4x1 + 5 x 0 = 40
4x1 = 40
x1 = \(\frac { 40 }{ 4 }\) = 10
4 x 0 + 5x2 = 40
5x2 = 40
x2 = \(\frac { 40 }{ 5 }\) = 8
इस प्रकार, उपभोक्ता अपनी आय से वस्तु 1 की अधिकतम 10 और वस्तु 2 की 8 इकाइयाँ खरीद सकेगा। बजट रेखा में निम्नलिखित परिवर्तन होगा-
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 1
रेखाचित्र में AB प्रारंभिक बजट रेखा है। जब उपभोक्ता की आय 20 रुपए से बढ़कर 40 रुपए हो जाती है, तो बजट रेखा AB से बढ़कर A,B, हो जाएगी।

प्रश्न 6.
यदि वस्तु 2 की कीमत में एक रुपए की गिरावट आ जाए परंतु वस्तु 1 की कीमत में तथा उपभोक्ता की आय में कोई परिवर्तन न हो, तो बजट रेखा में क्या परिवर्तन आएगा?
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 2
पुरानी P2 = 5
नई P2 = 5 – 1 = 4 रुपए
इसलिए नई x2 = 20 = 5 इकाइयाँ
p2 में परिवर्तन से बजट रेखा में निम्नलिखित परिवर्तन आएगा-
रेखाचित्र में AB प्रारंभिक बजट रेखा है, जबकि A1B नई बजट रेखा है।

प्रश्न 7.
अगर कीमतें और उपभोक्ता की आय दोनों दुगुनी हो जाए, तो बजट सेंट कैसा होगा?
उत्तर:
पुरानी M = 20
नई M = 20 x 2 = 40 रुपए
पुरानी P1 = 4
नई P1 = 4 x 2 = 8 रुपए
नई x1 = \(\frac { 40 }{ 8 }\) = 5 इकाइयाँ
पुरानी p2 = 5
नई p2 = 5 x 2 = 10 रुपए
नई x2 = \(\frac { 40 }{ 10 }\) = 4
इकाइयाँ चूँकि बजट रेखा के सभी तत्त्व (x1 और x2) पूर्ववत हैं इसलिए बजट रेखा में कोई भी परिवर्तन नहीं होगा।

प्रश्न 8.
मान लीजिए कि कोई उपभोक्ता अपनी पूरी आय का व्यय करके वस्तु 1 की 6 इकाइयाँ तथा वस्तु 2 की 8 इकाइयाँ खरीद सकता है। दोनों वस्तुओं की कीमतें क्रमशः 6 रुपए तथा 8 रुपए हैं। उपभोक्ता की आय कितनी है?
उत्तर:
वस्तु 1 की इकाइयाँ (x1) = 6
वस्तु 1 की कीमत (p1) = 6
वस्तु 2 की इकाइयाँ (x2) = 8
वस्तु 2 की कीमत (p2) = 8
बजट रेखा समीकरण के अनुसार
M = p1x1 + p2x2
= 6 x 6 + 8 x 8
= 36 + 64
= 100
रुपए इस प्रकार उपभोक्ता की आय 100 रुपए है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 9.
मान लीजिए, उपभोक्ता दो ऐसी वस्तुओं का उपभोग करना चाहता है जो केवल पूर्णांक इकाइयों में उपलब्ध हैं। दोनों वस्तुओं की कीमत 10 रुपए के बराबर ही है तथा उपभोक्ता की आय 40 रुपए है।
(i) वे सभी बंडल लिखिए, जो उपभोक्ता के लिए उपलब्ध हैं।
(ii) जो बंडल उपभोक्ता के लिए उपलब्ध हैं, उनमें से वे बंडल कौन-से हैं जिन पर उपभोक्ता के पूरे 40 रुपए व्यय हो जाएँगे?
उत्तर:
(i)
M = 40
p = 10
x1 = \(\frac { 40 }{ 10 }\) = 4 इकाइयाँ
p2 = 10
x2 = \(\frac { 40 }{ 10 }\) = 4 इकाइयाँ
उपभोक्ता के लिए उपलब्ध बंडल निम्नलिखित होंगे
(0,0) (0, 1) (0, 2) (0, 3) (0, 4)
(1,0) (1, 1) (1, 2) (1, 3)
(2, 0) (2, 1) (2, 2)
(3,0) (3, 1)
(4,0)

(ii) वे बंडल जिन पर उपभोक्ता के पूरे 40 रुपए व्यय हो जाएँगे, निम्नलिखित हैं
(0,4) (1,3) (2, 2) (3, 1) (4,0)

प्रश्न 10.
‘एकदिष्ट अधिमान’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
एकदिष्ट अधिमान’ का अर्थ यह है कि एक उपभोक्ता दो वस्तुओं के विभिन्न बंडलों में से उस बंडल को अधिमान देता है, जिसमें इन वस्तुओं में से कम-से-कम एक वस्तु की अधिक मात्रा हो और दूसरे बंडल की तुलना में दूसरी वस्तु की मात्रा भी कम न हो।

प्रश्न 11.
यदि एक उपभोक्ता के अधिमान एकदिष्ट हैं, तो क्या वह बंडल (10, 8) और बंडल (8, 6) के बीच तटस्थ हो सकता है?
उत्तर:
यदि उपभोक्ता के अधिमान एकदिष्ट हैं, तो वह बंडल (10, 8) और बंडल (8, 6) के बीच तटस्थ नहीं हो सकता। वह बंडल (10, 8) का चुनाव करेगा, क्योंकि इस बंडल में दोनों वस्तुओं की इकाइयाँ दूसरे बंडल की दोनों वस्तुओं की इकाइयों से अधिक हैं।

प्रश्न 12.
मान लीजिए कि उपभोक्ता के अधिमान एकदिष्ट हैं। बंडल (10, 10), (10, 9) तथा (9,9) पर उसके अधिमान श्रेणीकरण के विषय में आप क्या बता सकते हैं?
उत्तर:
यदि उपभोक्ता के अधिमान एकदिष्ट हैं, तो हम विभिन्न बंडलों को निम्नलिखित प्राथमिकता देंगे-

बंडलप्राथमिकता
(10, 10)I
(10, 9)II
(9, 9)III

प्रश्न 13.
मान लीजिए कि आपका मित्र, बंडल (5, 6) तथा (6, 6) के बीच तटस्थ है। क्या आपके मित्र के अधिमान एकदिष्ट हैं?
उत्तर:
यदि हमारा मित्र बंडल (5, 6) और (6, 6) के बीच तटस्थ है तो उसके अधिमान एकदिष्ट नहीं हैं, क्योंकि बंडल (6,6) से उसे बंडल (5, 6) की तुलना में अधिक संतुष्टि प्राप्त होगी। अधिमान एकदिष्ट के रूप में उसे बंडल (5, 6) की तुलना में बंडल (6,6) को प्राथमिकता देनी चाहिए।

प्रश्न 14.
मान लीजिए कि बाज़ार में एक ही वस्तु के लिए दो उपभोक्ता हैं तथा उनके माँग फलन इस प्रकार हैं-
d1 (p) = 20 – p किसी भी ऐसी कीमत के लिए जो 15 से कम या बराबर हो तथा
d2 (p) = 0 किसी भी ऐसी कीमत के लिए जो 15 से अधिक हो।
d2 (p) = 30 – 2p किसी भी ऐसी कीमत के लिए जो 15 से कम या बराबर हो और
d2 (p) = 0 किसी भी ऐसी कीमत के लिए जो 15 से अधिक हो।
बाज़ार माँग फलन को ज्ञात कीजिए। उत्तर
d1 (p) = 20 – p …..(i)
d2 (p) = 30 – 2p ….(ii)
बाज़ार माँग (d1 + d2) = 50 – 3p इस प्रकार बाज़ार माँग 15 रुपए से कम या बराबर वाली कीमत पर 50-3p होगी और 15 रुपए से अधिक कीमत पर शून्य (0) होगी।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 15.
मान लीजिए, किसी वस्तु के लिए 20 उपभोक्ता हैं तथा उनके माँग फलन एक-जैसे हैं
d (p) = 10 – 3p किसी ऐसी कीमत के लिए जो \(\frac { 10 }{ 3 }\) से कम हो अथवा बराबर हो तथा
d1(p) = 0 किसी ऐसी कीमत पर जो \(\frac { 10 }{ 3 }\) से अधिक है।
बाज़ार माँग फलन क्या है?
उत्तर
उपभोक्ताओं की संख्या = 20
एक उपभोक्ता का माँग फलन = d(p) = 10 – 3p क्योंकि p ≤ \(\frac { 10 }{ 3 }\)
चूँकि सभी 20 उपभोक्ताओं के माँग फलन एक-जैसे हैं, अतः बाज़ार माँग फलन व्यक्तिगत माँग फलन का 20 गुना होगा।
बाज़ार माँग फलन = 20(10 – 3p) क्योंकि p ≤ \(\frac { 10 }{ 3 }\)
= 200 – 60p क्योंकि p ≤ \(\frac { 10 }{ 3 }\)

प्रश्न 16.
एक ऐसे बाज़ार को लीजिए, जहाँ केवल दो उपभोक्ता हैं तथा मान लीजिए, किसी वस्तु के लिए उनकी माँगें इस प्रकार हैं-

pd1d2
1924
2820
3718
4616
5514
6412

वस्तु के लिए बाज़ार माँग की गणना कीजिए।
उत्तर:
वस्तु के लिए बाज़ार माँग तालिका

कीमत रुपए (p)उपभोक्ता (1) द्वारा माँगी गई मात्रा (d1)उपभोक्ता (2) द्वारा  माँगी गई मात्रा (d2)बाज़ार माँग (d1 + d2)
192433
282028
371825
461622
551419
641216

प्रश्न 17.
सामान्य वस्तु से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सामान्य वस्तुएँ वे होती हैं जिनकी माँगी गई मात्रा में वृद्धि होती है। जब उपभोक्ता की आय बढ़ती है तथा वस्तु की मात्रा में कमी आती है, तब उपभोक्ता की आय कम होती है; जैसे गेहूँ, मलाईयुक्त दूध, फल आदि।

प्रश्न 18.
निम्नस्तरीय वस्तुओं को परिभाषित कीजिए तथा कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
निम्नस्तरीय वस्तुएँ ऐसी वस्तुओं को कहा जाता है जिनके लिए माँग उपभोक्ता की आय के विपरीत दिशा में जाती है। उपभोक्ता की आय बढ़ने पर इनकी माँग घटती है और आय घटने पर इनकी माँग बढ़ती है। उदाहरण के लिए, मोटे अनाज, मोटा कपड़ा, घटिया मार्क वाली वस्तुएँ, टोंड दूध आदि।

प्रश्न 19.
स्थानापन्न को परिभाषित कीजिए। ऐसी दो वस्तुओं के उदाहरण दीजिए जो एक-दूसरे के स्थानापन्न हैं।
उत्तर:
स्थानापन्न वस्तुएँ वे होती हैं जो एक-दूसरे के स्थान पर प्रयोग होती हैं; जैसे चाय-कॉफी, चीनी-गुड़।

प्रश्न 20.
पूरकों को परिभाषित कीजिए। ऐसी दो वस्तुओं के उदाहरण दीजिए जो एक-दूसरे के पूरक हैं।
उत्तर:
जिन वस्तुओं का साथ-साथ उपयोग किया जाता है उन्हें पूरक वस्तुएँ कहा जाता है; जैसे चाय-चीनी, जूते तथा जुराबे, टॉर्च तथा सैल।

प्रश्न 21.
माँग की कीमत लोच को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
माँग की कीमत लोच से हमारा अभिप्राय उस दर से है जिसके अनुसार वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने से वस्तु की माँग में परिवर्तन होता है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 3

प्रश्न 22.
एक वस्तु की माँग पर विचार करें। 4 रुपए की कीमत पर इस वस्तु की 25 इकाइयों की माँग है। मान लीजिए वस्त की कीमत बढ़कर 5 रुपए हो जाती है तथा परिणामस्वरूप वस्तु की माँग घटकर 20 इकाइयाँ हो जाती है। कीमत लोच की गणना कीजिए।
उत्तर:
p0 = 4
q0 = 25
p1 = 5
q0 = 20
कीमत की लोच = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
= \(\frac{25-20}{5-4} \times \frac{4}{25}=\frac{5}{1} \times \frac{4}{25}\)
= \(\frac { 20 }{ 25 }\) = 0.8
इस उदाहरण में माँग की लोच 0.8 या इकाई से कम (eD < 1) या कम लोचदार है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 23.
माँग वक्र D (p) = 10 – 3p को लीजिए। कीमत \(\frac { 5 }{ 3 }\) पर लोच क्या है?
उत्तर:
रैखिक माँग वक्र की दिशा में लोच- (eD) = -b\(\frac { p }{ q }\)
= –\(\frac { bp }{ a-bp }\)
दी हुई माँग वक्र D (p) = 10 – 3p
यहाँ a= 10 और b = – 3
कीमत \(\frac { 5 }{ 3 }\) पर q = 10 – 3(\(\frac { 5 }{ 3 }\)) = 5
माँग की लोच = -b\(\frac { p }{ q }\)
= -3\(\frac{\frac{5}{3}}{5}\)
= – 1
अर्थात् माँग की लोच इकाई के बराबर है।

प्रश्न 24.
मान लीजिए, किसी वस्तु की माँग की कीमत लोच -0.2 है। यदि वस्तु की कीमत में 5% की वृद्धि होती है, तो वस्तु के लिए माँग में कितनी प्रतिशत कमी आएगी?
उत्तर:
eD = – 0.2
% ∆p = 5
eD = \(\frac{\% \Delta q}{\% \Delta p}\)
-0.2 = \(\frac{\% \Delta q}{5}\)
∴ % ∆q = -0.2 x 5 = – 1
इस प्रकार वस्तु की माँग में 1 प्रतिशत की कमी आ जाएगी।

प्रश्न 25.
मान लीजिए, किसी वस्तु की माँग की कीमत लोच -0.2 है। यदि वस्तु की कीमत में 10% वृद्धि होती है, तो उस पर होने वाला व्यय किस प्रकार प्रभावित होगा?
उत्तर:
eD = – 0.2
% ∆p = 10
eD = \(\frac{\% \Delta q}{\% \Delta p}\)
– 0.2 = \(\frac{\% \Delta q}{10}\)
∴ % ∆q = -0.2 x 10
= – 2

प्रश्न 26.
मान लीजिए कि किसी वस्तु की कीमत में 4% की गिरावट होने के परिणामस्वरूप उस पर होने वाले व्यय में 2% की वृद्धि हो गई। आप माँग की लोच के बारे में क्या कहेंगे?
उत्तर:
कीमत में % कमी = 4
कुल व्यय में % वृद्धि = 2
चूँकि कीमत में 4% कमी वस्तु पर होने वाले व्यय में 2% वृद्धि से अधिक है, अतः माँग की लोच इकाई से कम या बेलोचदार है।

उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत HBSE 12th Class Economics Notes

→ उपयोगिता-किसी वस्तु की वह क्षमता जो आवश्यकता को संतुष्ट करती है, उपयोगिता कहलाती है।

→ कुल उपयोगिता-किसी वस्तु की सभी इकाइयों से प्राप्त संतुष्टि के कुल जोड़ को कुल उपयोगिता कहते हैं।

→ सीमांत उपयोगिता-सीमांत उपयोगिता (MU) से अभिप्राय वस्तु की एक अधिक इकाई के प्रयोग करने से प्राप्त होने
वाली अतिरिक्त उपयोगिता से है। उदाहरण-
कुल उपयोगिता (TU) जब 10 इकाइयों का उपयोग किया जाता है = 100 यूटिल
कुल उपयोगिता जब 11 इकाइयों का उपयोग किया जाता है = 110 यूटिल
MU11th = TU11 – TU10 = 110 – 100 = 10 यूटिल

→ सीमांत उपयोगिता (MU) और कुल उपयोगिता (TU) में संबंध-सभी इकाइयों की सीमांत उपयोगिता (MU) को जोड़ने पर कुल उपयोगिता (TU) प्राप्त हो जाती है, अतएव TU = ∑MU
सीमांत उपयोगिता (MU) ह्रासमान होती है (ह्रासमान सीमांत उपयोगिता नियम के अनुसार)। यह शून्य या ऋणात्मक हो जाती है। स्पष्ट है कि जब MU = 0 तब TU में कोई वृद्धि नहीं होती। इसलिए जब MU = 0 (शून्य) होती है, तब TU अधिकतम होती है। जब MU ऋणात्मक हो जाती है तब TU घटना शुरू हो जाती है।

→ ह्रासमान सीमांत उपयोगिता का नियम ह्रासमान सीमांत उपयोगिता का नियम बतलाता है कि अन्य बातें समान रहने पर जब किसी वस्तु (जैसे चाय का एक प्याला) की अधिक इकाइयों का निरंतर उपभोग किया जाता है तब प्रत्येक अगली इकाई से मिलने वाली अतिरिक्त उपयोगिता (MU) अवश्य ह्रासमान होती है और शून्य या ऋणात्मक भी हो सकती है।

→ उपभोक्ता संतुलन-उपभोक्ता संतुलन एक ऐसी स्थिति है जिसमें एक उपभोक्ता अपनी सीमित आय को व्यय करके अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करता है तथा वह अपनी आय को खर्च करने के वर्तमान ढंग में किसी भी प्रकार का परिवर्तन करना पसंद नहीं करता।

→ उपभोक्ता संतुलन का निर्धारण-एक ही वस्तु के लिए उपभोक्ता संतुलन (अधिकतम संतुष्टि) की स्थिति तब प्राप्त करता है जब वस्तु से प्राप्त होने वाली सीमांत उपयोगिता कीमत के रूप में दी जाने वाली मुद्रा की सीमांत उपयोगिता (MUM ) के बराबर हो जाती है।

→ बजट सेट-बजट सेट उन वस्तुओं के सभी बंडलों का संग्रह है, जिन्हें उपभोक्ता प्रचलित बाज़ार कीमत पर अपनी आय से खरीद सकता है।

→ बजट रेखा बजट रेखा उन सभी बंडलों का प्रतिनिधित्व करती है जिन पर उपभोक्ता की संपूर्ण आय व्यय हो जाती है। बजट रेखा की प्रवणता ऋणात्मक होती है। यदि कीमतों या आय दोनों में से किसी एक में परिवर्तन आता है, तो बजट सेट में परिवर्तन आ जाता है।

→ सुस्पष्ट अधिमान-सभी संभावित बंडलों के संग्रह के विषय में उपभोक्ता के सुस्पष्ट अधिमान हैं। वह उन पर अपनी अधिमानता के अनुसार उनका श्रेणीकरण कर सकता है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

→ अनधिमान वक्र-अनधिमान वक्र सभी बिंदुओं का बिंदुपथ है जो उन बंडलों को प्रदर्शित करते हैं, जिनके बीच उपभोक्ता तटस्थ है।

→ अनधिमान वक्र की प्रवणता-अधिमान की एकदिष्टता से अभिप्राय है कि अनधिमान वक्र की प्रवणता नीचे की ओर है।

→ अनधिमान मानचित्र-उपभोक्ता का अधिमान सामान्यतया अनधिमान मानचित्र द्वारा दर्शाया जा सकता है। उपभोक्ता का अधिमान सामान्यतया उपयोगिता फलन द्वारा भी दर्शाया जा सकता है।

→ उपभोक्ता का चयन-एक विवेकशील उपभोक्ता सदा बजट सेट में से अपने सर्वाधिक अधिमानता बंडल का चयन करता

→ उपभोक्ता का इष्टतम बंडल उपभोक्ता का इष्टतम बंडल बजट रेखा तथा अनधिमान वक्र के बीच स्पर्शिता बिंदु पर स्थित होता है।

→ उपभोक्ता का माँग वक्र-उपभोक्ता का माँग वक्र वस्तु की मात्रा को प्रदर्शित करता है, जिसका चयन उपभोक्ता कीमत के विभिन्न स्तरों पर ऐसी स्थिति में करता है, जब अन्य वस्तुओं की कीमत, उपभोक्ता की आय तथा उनकी रुचियाँ और अधिमान अपरिवर्तित रहते हैं।

→ सामान्य वस्तुओं की माँग-किसी सामान्य वस्तु की माँग में वृद्धि (गिरावट) उपभोक्ता की आय में वृद्धि (गिरावट) के साथ होती है।

→ निम्नस्तरीय वस्तु की माँग-उपभोक्ता की आय में वृद्धि (गिरावट) होने के साथ-साथ निम्नस्तरीय वस्तु की माँग में गिरावट (वृद्धि) होती है।

→ बाज़ार माँग वक्र बाज़ार माँग वक्र बाज़ार में सभी उपभोक्ताओं की माँग को वस्तु की कीमत में विभिन्न स्तरों पर समग्र दृष्टि से देखकर माँग को प्रदर्शित करता है।

→ माँग की कीमत लोच-किसी वस्तु की माँग की कीमत लोच, किसी वस्तु की माँग के प्रतिशत में परिवर्तन को इसकी कीमत के प्रतिशत-परिवर्तन से भाग देकर प्राप्त किया जाता है।

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HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

पाठयपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्याओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
किसी अर्थव्यवस्था की तीन केंद्रीय समस्याएँ निम्नलिखित हैं-
1. क्या उत्पादन किया जाए और कितनी मात्रा में? संसाधन दुर्लभ हैं और उनके वैकल्पिक प्रयोग किए जा सकते हैं। इसलिए पहली केंद्रीय समस्या यह है कि क्या उत्पादित किया जाए और कितनी मात्रा में?

2. उत्पादन कैसे किया जाए? साधारणतया वस्तुओं का उत्पादन एक से अधिक तरीकों से किया जा सकता है। इसलिए . दूसरी केंद्रीय समस्या यह है कि उत्पादन कैसे किया जाए?

3. किसके लिए उत्पादन किया जाए?-उत्पादन के बाद इन वस्तुओं का वितरण उत्पादन के साधनों में किस प्रकार किया जाए? यह भी अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्या है।

प्रश्न 2.
अर्थव्यवस्था की उत्पादन संभावनाओं से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था की उत्पादन संभावनाओं से हमारा अभिप्राय वस्तुओं और सेवाओं के उन संयोगों से है, जिन्हें अर्थव्यवस्था में उपलब्ध संसाधनों की मात्रा तथा उपलब्ध प्रौद्योगिकीय ज्ञान के द्वारा उत्पादित किया जा सकता है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

प्रश्न 3.
सीमांत उत्पादन संभावना वक्र क्या है?
उत्तर:
सीमांत उत्पादन संभावना वक्र से अभिप्राय उस वक्र से है जो एक वस्तु (जैसे गेहूँ) की किसी निश्चित मात्रा के बदले दूसरी वस्तु (जैसे गन्ना) की अधिकतम संभावित उत्पादित मात्रा तथा दूसरी वस्तु (जैसे गन्ना) के बदले गेहूँ की मात्रा दर्शाता है। उदाहरण के लिए, एक किसान के पास 50 एकड़ कृषि योग्य भूमि है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र एक परिचय 1
वह इस पर गेहूँ या गन्ना या फिर दोनों की खेती कर सकता है। एक एकड़ भूमि पर 2.5 टन गेहूँ या फिर 80 टन गन्ने का उत्पादन हो सकता है। गेहूँ का अधिकतम उत्पादन (2.5 x 50) 125 टन होगा 1000 2000 जबकि गन्ने का अधिकतम उत्पादन (80 x 50) 4,000 टन होगा। गन्ना (टनों में) गेहूँ और गन्ने की अधिकतम उत्पादन मात्राओं को जोड़कर सीमांत उत्पादन संभावना वक्र को प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु आर्थिक इकाइयों का आर्थिक व्यवहार है जो वे व्यक्तिगत रूप में अथवा समूहों के रूप में करती हैं। अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु को मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा जाता है

  • व्यष्टि अर्थशास्त्र
  • समष्टि अर्थशास्त्र।

व्यष्टि अर्थशास्त्र में व्यक्तिगत आर्थिक इकाइयों के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है; जैसे एक उपभोक्ता, एक गृहस्थ, एक उत्पादक तथा एक फर्म आदि। समष्टि अर्थशास्त्र में व्यक्तिगत आर्थिक इकाइयों की अपेक्षा संपूर्ण अर्थव्यवस्था अथवा अर्थव्यवस्था के आर्थिक समूहों के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है; जैसे राष्ट्रीय आय, रोज़गार, सामान्य कीमत-स्तर आदि।

व्यष्टि अर्थशास्त्र और समष्टि अर्थशास्त्र में अध्ययन किए जाने वाले विषयों को निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है

व्यष्टि अर्थशास्त्र की विषय-वस्तुसमष्टि अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु
1. उपभोक्ता का व्यवहार अर्थात् माँग सिद्धांत।1. आय और रोजगार निर्धारण सिद्धांत।
2. उत्पादन अर्थात पूर्ति सिद्धांत।2. विकास सिद्धांत।
3. बाज़ार संरचना।3. मौद्रिक तथा राजकोषीय नीति।
4. साधन सेवाओं का मूल्य निर्धारण।4. भुगतान शेष।

प्रश्न 5.
केंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था तथा बाज़ार अर्थव्यवस्था के भेद को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
केंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था तथा बाज़ार अर्थव्यवस्था में मुख्य भेद निम्नलिखित हैं

अंतर का आधारकेंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्थाबाज़ार अर्थव्यवस्था
1. उत्पादन साधनों का स्वामित्वइस अर्थव्यवस्था में सभी उत्पादन साधनों पर सरकार का स्वामित्व होता है।इस अर्थव्यवस्था में उत्पादन साधनों पर व्यक्तियों का स्वामित्व होता है। अर्थव्यवस्था में व्यक्तियों को संपत्ति रखने व उत्तराधिकार का अधिकार होता है।
2. उद्देश्यसभी आर्थिक क्रियाओं का उद्देश्य सामाजिक कल्याण है। अर्थव्यवस्था में उत्पादन की वे गतिविधियाँ होती हैं जो समाज की आवश्यकताओं को पूरा करती हैं।सभी आर्थिक क्रियाओं का उद्देश्य सभी आर्थिक क्रियाओं का उद्देश्य व्यक्तिगत लाभ कमाना है। आर्थिक गतिविधियों से सामाजिक कल्याण का  होना आवश्यक नहीं है।
3. स्वतंत्रताइसमें लोगों को उपभोग और व्यवसाय के चुनाव की स्वतंत्रता नहीं होती।इसमें लोगों को उपभोग और व्यवसाय के चुनाव की स्वतंत्रता होती है।
4. केंद्रीय समस्याओं का हलइसमें केंद्रीय समस्याओं का हल आर्थिक नियोजन द्वारा किया जाता है।इसमें केंद्रीय समस्याओं का हल कीमत तंत्र द्वारा स्वतः ही हो जाता है।

प्रश्न 6.
सकारात्मक आर्थिक विश्लेषण से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सकारात्मक आर्थिक विश्लेषण से हमारा अभिप्राय उस अध्ययन से है जिसका संबंध वास्तविक आर्थिक घटनाओं से होता है। सकारात्मक आर्थिक विश्लेषण के अंतर्गत हम यह अध्ययन करते हैं कि विभिन्न कार्यविधियाँ किस प्रकार कार्य करती हैं। सकारात्मक आर्थिक विश्लेषण ‘साध्य’ के प्रति तटस्थ होता है।

प्रश्न 7.
आदर्शक आर्थिक विश्लेषण से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आदर्शक आर्थिक विश्लेषण से हमारा अभिप्राय उस अध्ययन से है जिसका संबंध आदर्शों से होता है। आदर्शक आर्थिक विश्लेषण के अंतर्गत हम यह अध्ययन करते हैं कि विभिन्न कार्यविधियाँ हमारे अनुकूल हैं या नहीं। आदर्शक आर्थिक विश्लेषण ‘साध्य’ के प्रति तटस्थ नहीं होता।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

प्रश्न 8.
व्यष्टि अर्थशास्त्र तथा समष्टि अर्थशास्त्र में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यष्टि अर्थशास्त्र तथा समष्टि अर्थशास्त्र में निम्नलिखित अंतर हैं-

अंतर का आधारव्यष्टि अर्थशास्त्रसमष्टि अर्थशास्त्र
1. अध्ययन-सामग्रीइसके अंतर्गत व्यक्तिगत आर्थिक इकाइयों का अध्ययन किया जाता है।इसके अंतर्गत अर्थव्यवस्था के आर्थिक समूहों का अध्ययन किया जाता है।
2. उद्देश्यइसका उद्देश्य संसाधनों का कुशलतम उपयोग करना है।इसका उद्देश्य पूर्ण रोज़गार की स्थिति प्राप्त करना है।
3. उपकरणइसके उपकरण माँग और पूर्ति हैं।इसके उपकरण समग्र माँग और समग्र पूर्ति हैं।
4. क्षेत्रइसका क्षेत्र सीमित है। इसमें महत्त्वपूर्ण नीतियों एवं समस्याओं जैसे राजस्व नीति या मौद्रिक नीति आदि का अध्ययन नहीं किया जा सकता।इसका क्षेत्र विस्तृत है। इसमें महत्त्वपूर्ण आर्थिक नीतियों एवं समस्याओं का संपूर्ण अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से अध्ययन किया जा सकता है।

व्यष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय HBSE 12th Class Economics Notes

→ अर्थव्यवस्था अर्थव्यवस्था से अभिप्राय उस प्रणाली से है जिसके द्वारा मनुष्य अपनी आजीविका कमाते हैं और अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि करते हैं।

→ व्यष्टि अर्थशास्त्र व्यष्टि अर्थशास्त्र, अर्थशास्त्र की वह शाखा है जिसके अंतर्गत अर्थव्यवस्था की व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन किया जाता है; जैसे व्यक्तिगत उपभोक्ता, व्यक्तिगत उत्पादक (फम), व्यक्तिगत उद्योग, व्यक्तिगत वस्तु या साधन की कीमत निर्धारण, व्यक्तिगत आय आदि का अध्ययन।

→ आर्थिक समस्या आर्थिक समस्या मूलतः चुनाव की आवश्यकता के कारण उत्पन्न होने वाली समस्या है। यह सीमित साधनों के वैकल्पिक प्रयोगों में से चुनाव करने की समस्या है। यह साधनों के कुशल प्रबंधन की समस्या है।

→ केंद्रीय समस्याएँ क्यों उत्पन्न होती हैं?-केंद्रीय समस्या चुनाव की समस्या है। इसके उत्पन्न होने के दो मुख्य कारण हैं-

  • वैकल्पिक प्रयोगों वाले सीमित साधन और
  • असीमित आवश्यकताएँ।

→ अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्याएँ अर्थव्यवस्था की मुख्य तीन केंद्रीय समस्याएँ हैं-

  • क्या उत्पादन किया जाए और कितनी मात्रा में?
  • कैसे उत्पादन किया जाए?
  • किसके लिए उत्पादन किया जाए?

→ उत्पादन संभावना वक्र-यह वक्र दो वस्तुओं के संभावित संयोगों को प्रकट करता है। यह दो मुख्य मान्यताओं पर आधारित है-

  • स्थिर तकनीक
  • स्थिर साधन।

→ उत्पादन संभावना वक्र का ढलान सीमांत अवसर लागत को दर्शाता है उत्पादन संभावना वक्र का ढलान बढ़ता है (क्योंकि उत्पादन संभावना वक्र मूल बिंदु की ओर नतोदर (concave) है)। इसी कारण, जब साधनों को एक उपयोग से हटाकर दूसरे उपयोग में लगाया जाता है, तो सीमांत अवसर लागत में बढ़ने की प्रवृत्ति पाई जाती है।

→ उत्पादन संभावना वक्र केंद्रीय समस्याओं की व्याख्या करता है उदाहरण-

  • उत्पादन संभावना वक्र पर कोई भी बिंदु यह प्रकट करता है कि वस्तु-X तथा वस्तु-Y की कितनी मात्रा का उत्पादन किया जा रहा है।
  • उत्पादन संभावना वक्र पर कोई भी बिंदु संसाधनों के पूर्ण प्रयोग को दर्शाता है जबकि इस वक्र के अंदर कोई भी बिंदु संसाधनों के अपूर्ण (अकुशल) प्रयोग को दर्शाता है।

→ सीमांत अवसर लागत-सीमांत अवसर लागत से अभिप्राय Y-वस्तु के उत्पादन की मात्रा में होने वाली उस कमी से है जो कि X-वस्तु की एक अधिक इकाई के उत्पादन के फलस्वरूप होती है जबकि उत्पादन के साधन तथा तकनीक स्थिर रहते हैं।

→ बाज़ार अर्थव्यवस्था बाजार अर्थव्यवस्था के अंतर्गत सभी आर्थिक क्रियाकलापों का निर्धारण बाज़ार की स्थितियों के अनुसार होता है। इसमें केंद्रीय समस्याओं का हल कीमत-तंत्र द्वारा किया जाता है।

→ केंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था केंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था से अभिप्राय उस अर्थव्यवस्था से है जिसके अंतर्गत सभी आर्थिक क्रियाकलापों का निर्धारण सरकार द्वारा किया जाता है। इसमें केंद्रीय समस्याओं का हल केंद्रीय अधिकारी अथवा नियोजन तंत्र द्वारा किया जाता है।

→ सकारात्मक आर्थिक विश्लेषण-सकारात्मक आर्थिक विश्लेषण से अभिप्राय उस अध्ययन से है जिसका संबंध वास्तविक। आर्थिक घटनाओं से है। इसके अंतर्गत हम यह अध्ययन करते हैं कि विभिन्न कार्यविधियाँ किस प्रकार कार्य करती हैं। सकारात्मक आर्थिक विश्लेषण ‘साध्य’ के प्रति तटस्थ होता है।

→ आदर्शक (आदर्शात्मक) आर्थिक विश्लेषण-आदर्शक (आदर्शात्मक) आर्थिक विश्लेषण से अभिप्राय उस अध्ययन से है जिसका संबंध आदर्शों से होता है। इसके अंतर्गत हम यह अध्ययन करते हैं कि विभिन्न कार्यविधियाँ हमारे अनुकूल हैं या नहीं। आदर्शक आर्थिक विश्लेषण ‘साध्य’ के प्रति तटस्थ नहीं होता।

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