Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत Important Questions and Answers.
Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए
1. उत्पादन फलन होते हैं
(A) केवल अल्पकालीन
(B) केवल दीर्घकालीन
(C) अल्पकालीन व दीर्घकालीन दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) अल्पकालीन व दीर्घकालीन दोनों
2. अल्पकाल में उत्पादन कारक होते हैं
(A) स्थिर
(B) परिवर्ती
(C) स्थिर भी और परिवर्ती भी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) स्थिर भी और परिवर्ती भी।
3. दीर्घकाल में उत्पादन के सभी कारक होते हैं
(A) स्थिर
(B) परिवर्ती
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई भी नहीं
उत्तर:
(B) परिवर्ती
4. एक निश्चित अवधि में उत्पादित की गई वस्तुओं व सेवाओं की समान मात्रा क्या कहलाती है?
(A) औसत उत्पाद (AP)
(B) सीमांत उत्पाद (MP)
(C) कुल उत्पाद (TP)
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) कुल उत्पाद (TP)
5. श्रम तथा पूँजी की एक अधिक इकाई का प्रयोग करने से प्राप्त अतिरिक्त उत्पाद कहलाता है-
(A) औसत उत्पाद
(B) कुल उत्पाद
(C) सीमांत उत्पाद
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) सीमांत उत्पाद
6. श्रम की दो इकाइयाँ लगाने से कुल उत्पाद 38 इकाइयाँ हैं। तीसरी इकाई लगाने से कुल उत्पाद में 16 इकाइयों की वृद्धि होती है। इसलिए तीन इकाइयों की औसत उत्पाद है-
(A) 16
(B) 18
(C) 22
(D) 54
उत्तर:
(B) 18
7. जब सीमान्त उत्पादन शून्य होता है, तो कुल उत्पादन होगा-
(A) शून्य
(B) ऋणात्मक
(C) अधिकतम
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) अधिकतम
8. क्या औसत उत्पाद वक्र Ox-अक्ष को छू सकता है?
(A) हमेशा
(B) कभी-कभी
(C) कभी नहीं
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) कभी नहीं
9. MPP तथा APP का आकार कैसा होता है?
(A) U-आकार जैसा
(B) V-आकार जैसा
(C) L-आकार जैसा
(D) उल्टे-U (∩) आकार जैसा
उत्तर:
(D) उल्टे-U (∩) आकार जैसा
10. परिवर्ती अनुपातों के नियम को जिस दूसरे नाम से पुकारा जाता है, वह है
(A) ह्रासमान प्रतिफल का नियम
(B) पैमाने का ह्रासमान प्रतिफल नियम
(C) वर्धमान प्रतिफल का नियम
(D) पैमाने का वर्धमान प्रतिफल नियम
उत्तर:
(A) ह्रासमान प्रतिफल का नियम
11. वर्धमान प्रतिफल के नियम के अनुसार परिवर्ती कारक की मात्रा बढ़ाने पर उत्पादन निर्गत किस अनुपात में परिवर्तित होता है?
(A) बढ़ते हुए अनुपात में
(B) घटते हुए अनुपात में
(C) समान अनुपात में
(D) परिवर्ती अनुपात में
उत्तर:
(A) बढ़ते हुए अनुपात में
12. यदि श्रम की एक अतिरिक्त इकाई लगाने से सीमांत भौतिक उत्पाद घटता है तो यह स्थिति कहलाएगी-
(A) कारक का ह्रासमान प्रतिफल
(B) पैमाने का ह्रासमान प्रतिफल
(C) कारक का वर्धमान प्रतिफल
(D) कारक का स्थिर प्रतिफल
उत्तर:
(A) कारक का ह्रासमान प्रतिफल
13. पैमाने का प्रतिफल विश्लेषण निम्नलिखित में से किस मान्यता पर आधारित है?
(A) एक कारक स्थिर तथा दूसरा कारक परिवर्ती
(B) उत्पादन के अन्य सभी कारक स्थिर किंतु एक कारक परिवर्ती
(C) सभी कारकों में परिवर्तन किंतु उनके अनुपात में भी अंतर
(D) सभी कारकों के परस्पर अनुपात को स्थिर रखते हुए उनके पैमाने में परिवर्तन
उत्तर:
(D) सभी कारकों के परस्पर अनुपात को स्थिर रखते हुए उनके पैमाने में परिवर्तन
14. पैमाने में वृद्धि का अर्थ है
(A) सभी कारकों को एक ही अनुपात में बढ़ाना
(B) सभी कारकों को भिन्न-भिन्न अनुपातों में बढ़ाना
(C) एक कारक को स्थिर रखकर अन्य साधनों को बढ़ाना
(D) केवल एक कारक को बढ़ाना
उत्तर:
(A) सभी कारकों को एक ही अनुपात में बढ़ाना
15. अनुपात का संबंध है-
(A) अति अल्पकाल से
(B) अल्पकाल से
(C) दीर्घकाल से
(D) अति दीर्घकाल से
उत्तर:
(B) अल्पकाल से
16. पैमाने का संबंध है-
(A) अति अल्पकाल से
(B) अल्पकाल से
(C) दीर्घकाल से
(D) अति दीर्घकाल से
उत्तर:
(C) दीर्घकाल से
17. जब साधनों में 10% वृद्धि होने पर उत्पादन/निर्गत में 10% से अधिक वृद्धि हो जाए, तो ऐसी अवस्था को कहेंगे-
(A) पैमाने के स्थिर प्रतिफल की अवस्था
(B) पैमाने के वर्धमान प्रतिफल की अवस्था
(C) पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल की अवस्था
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) पैमाने के वर्धमान प्रतिफल की अवस्था
18. यदि उत्पादन के सभी साधनों को दुगुना करने से उत्पादन दुगुने से अधिक हो जाता है तो यह कहलाएगा-
(A) पैमाने का स्थिर प्रतिफल
(B) कारक का वर्धमान प्रतिफल
(C) पैमाने का वर्धमान प्रतिफल
(D) कारक का स्थिर प्रतिफल
उत्तर:
(C) पैमाने का वर्धमान प्रतिफल
19. निम्नलिखित में से कौन-सी बाहरी बचते हैं?
(A) तकनीकी बचतें
(B) प्रबन्धकीय बचतें
(C) जोखिम संबंधी बचतें
(D) सूचना संबंधी बचतें
उत्तर:
(D) सूचना संबंधी बचतें
20. आंतरिक तथा बाह्य बचतों का संबंध है-
(A) परिवर्ती कारकों के प्रतिफलों से
(B) पैमाने के प्रतिफलों से
(C) (A) और (B) दोनों से
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) पैमाने के प्रतिफलों से
21. अधिकतम लाभ कमाने की इच्छुक फर्म परिवर्ती अनुपात के नियम के कौन-से चरण में उत्पादन करना चाहेगी?
(A) पहले चरण में
(B) दूसरे चरण में
(C) तीसरे चरण में
(D) उपरोक्त किसी में भी नहीं
उत्तर:
(B) दूसरे चरण में
22. यदि 2L + 2K से 1000 इकाइयों का उत्पादन होता है तथा 3L + 3K से 2000 इकाइयों का उत्पादन होता है, तो बताइए कौन-से प्रतिफल प्राप्त हो रहे हैं?
(A) पैमाने के वर्धमान प्रतिफल
(B) पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल
(C) पैमाने के स्थिर (समान) प्रतिफल
(D) पैमाने के ऋणात्मक प्रतिफल
उत्तर:
(A) पैमाने के वर्धमान प्रतिफल
23. उत्पादन लागत है
(A) किसी वस्तु के उत्पादन में किया गया समस्त व्यय
(B) साहसी का लाभ
(C) पूँजी का ब्याज
(D) विक्रय मूल्य
उत्तर:
(A) किसी वस्तु के उत्पादन में किया गया समस्त व्यय
24. फैक्टरी का किराया तथा लाइसेंस फीस निम्नलिखित में से किन लागतों में शामिल की जाएगी?
(A) परिवर्ती लागतों में
(B) सीमांत लागतों में
(C) स्थिर (बँधी) लागतों में ।
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) स्थिर (बँधी) लागतों में
25. जब उत्पादन का स्तर शून्य होता है, तब स्थिर लागत होती है-
(A) धनात्मक
(B) ऋणात्मक
(C) शून्य
(D) परिवर्तनशील लागत के बराबर
उत्तर:
(A) धनात्मक
26. अल्पकाल में उत्पादन शून्य होने पर कौन-सी लागत शून्य हो जाती है?
(A) परिवर्ती लागत
(B) सीमांत लागत
(C) स्थिर (बँधी) लागत
(D) अवसर लागत
उत्तर:
(A) परिवर्ती लागत
27. अल्पकाल में कुल लागत में स्थिर लागत के साथ किस अन्य लागत को शामिल किया जाता है?
(A) स्पष्ट लागत
(B) औसत लागत
(C) सीमांत लागत
(D) परिवर्ती लागत
उत्तर:
(D) परिवर्ती लागत
28. यदि हम कुल स्थिर लागत एवं कुल परिवर्ती लागत को जोड़ दें तो हमें
(A) औसत लागत मालूम होगी
(B) सीमांत लागत मालूम होगी
(C) कुल लागत मालूम होगी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) कुल लागत मालूम होगी
29. औसत स्थिर लागत के प्रत्येक बिंदु से यदि X-अक्ष एवं Y-अक्ष पर लंब डाला जाए तो जो आयत बनेंगे, उन सभी का क्षेत्रफल-
(A) अलग-अलग होगा
(B) समान होगा
(C) जैसे-जैसे उत्पादन की मात्रा बढ़ेगी क्षेत्रफल घटेगा
(D) जैसे-जैसे उत्पादन की मात्रा बढ़ेगी क्षेत्रफल बढ़ेगा
उत्तर:
(B) समान होगा।
30. जैसे-जैसे उत्पादन की मात्रा बढ़ेगी AC और AVC के बीच की दूरी-
(A) बढ़ेगी
(B) घटेगी
(C) स्थिर रहेगी
(D) दोनों समानांतर होगी
उत्तर:
(B) घटेगी
31. किसको मालूम करता है?
(A) AC
(B) TC
(C) MC
(D) AVC
उत्तर:
(C) MC
32. अंशकालिक या मौसमी रोज़गार प्राप्त श्रमिकों की मजदूरी पर किया गया व्यय-
(A) स्थिर लागत है
(B) परिवर्ती लागत है
(C) अवसर लागत है
(D) अल्पकालीन लागत है
उत्तर:
(B) परिवर्ती लागत है
33. स्थिर लागत वक्र सदैव-
(A) बाएँ से दाएँ व नीचे की ओर झुकता है
(B) सीधी रेखा X-अक्ष के समानांतर होता है
(C) सीधी रेखा Y-अक्ष के समानांतर होता है
(D) “U’ आकृति वक्र होता है
उत्तर:
(B) सीधी रेखा X-अक्ष के समानांतर होता है
34. MC वक्र, AC वक्र को उस स्थिति में काटता है, जब-
(A) AC वक्र नीचे की ओर गिर रहा होता है
(B) AC वक्र ऊपर की ओर उठ रहा होता है
(C) AC वक्र न्यूनतम होता है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) AC वक्र न्यूनतम होता है
35. अल्पकाल में एक फर्म अधिक से अधिक कितनी हानि उठाने को तत्पर हो जाती है?
(A) कुल लागत के बराबर
(B) परिवर्ती लागत के बराबर
(C) स्थिर लागत के बराबर
(D) सीमांत लागत के बराबर
उत्तर:
(C) स्थिर लागत के बराबर
36. लागत वक्रों की आकृति निम्नलिखित में से किन पर निर्भर करती है?
(A) माँग वक्र पर
(B) उत्पत्ति के नियमों पर
(C) बाजार की दशाओं पर
(D) साधनों के प्रतिफल पर
उत्तर:
(B) उत्पत्ति के नियमों पर
37. अल्पकाल में
(A) कुल उत्पाद लागत = कुल स्थिर लागत + कुल परिवर्ती लागत
(B) कुल उत्पाद लागत = कुल स्थिर लागत x कुल परिवर्ती लागत
(C) कुल उत्पाद लागत = कुल स्थिर लागत – कुल परिवर्ती लागत
(D) कुल उत्पाद लागत = कुल स्थिर लागत
उत्तर:
(A) कुल. उत्पाद लागत = कुल स्थिर लागत + कुल परिवर्ती लागत
38. कौन-सा वक्र ‘U’ आकार का होता है?
(A) अनधिमान (तटस्थता) वक्र
(B) समान मात्रा
(C) औसत लागत वक्र
(D) पूर्ति वक्र
उत्तर:
(C) औसत लागत वक्र
39. उत्पादन के कारकों (साधनों) पर किया जाने वाला व्यय क्या कहलाता है?
(A) आगत
(B) लागत
(C) आय/संप्राप्ति
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) लागत
40. कुल लागत का सूत्र है-
(A) AC xq
(B) AFC + AVC
(C) (A) एवं (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) एवं (B) दोनों
41. सीमांत लागत के घटने पर कुल लागत-
(A) घटती है
(B) बढ़ती है
(C) स्थिर रहती है
(D) बढ़ती दर पर बढ़ती है
उत्तर:
(A) घटती है
42. यदि कुल लागत 1200 रु० है, कुल स्थिर लागत 500 रु० है तो कुल परिवर्ती लागत कितनी होगी?
(A) 500
(B) 1700
(C) 700
(D) 600
उत्तर:
(C) 700
43. अल्पकाल में कौन-सी स्थिर लागत होती है?
(A) स्थायी कर्मचारियों का वेतन
(B) मशीन की घिसावट तथा ह्रास
(C) स्थायी पूँजी पर ब्याज
(D) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी
44. औसत लागत (AC) = ….
(A) \(\frac { TC }{ q }\)
(B) TC x q
(C) \(\frac{\Delta \mathrm{TC}}{\Delta q}\)
(D) \(\frac{\Delta \mathrm{TC}}{q}\)
उत्तर:
(A) \(\frac { TC }{ q }\)
45. औसत लागत वक्र ‘U’ आकार की क्यों होती है?
(A) परिवर्ती प्रतिफल के कारण
(B) स्थिर प्रतिफल के कारण
(C) लाभ के कारण
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) परिवर्ती प्रतिफल के कारण
46. कौन-सा वक्र ATC वक्र को उसके निम्नतम बिंदु पर प्रतिच्छेदित करता है?
(A) AVC ash
(B) AFC वक्र
(C) MC वक्र
(D) TC वक्र
उत्तर:
(C) MC वक्र
47. दिए गए सूत्र को पूरा करें : ……….
(A) AC
(B) MC
(C) AVC
(D) AFC
उत्तर:
(A) AC
48. निम्नलिखित में से किस लागत वक्र का आकार आयताकार अतिपरवलय (रेक्टैंगुलर हाईपरबोला) होता है-
(A) MC वक्र
(B) AC ash
(C) AFC वक्र
(D) AVC वक्र
उत्तर:
(C) AFC वक्र
49. MC की गणना संबंधी कौन-सा सूत्र सही है?
(A) MC = TCn – TCn-1
(B) MC = TVCn – TVCn-1
(C) MC = \(\frac{\Delta \mathrm{TC}}{\Delta q}\)
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी
50. LAC वक्र-
(A) गिरता है जब LMC वक्र गिरता है
(B) बढ़ता है जब LMC वक्र बढ़ता है
(C) गिरता है जब LMC कम है LAC से तथा बढ़ता है जब LMC अधिक है LAC से
(D) उपर्युक्त सभी असत्य
उत्तर:
(C) गिरता है जब LMC कम है LAC से तथा बढ़ता है जब LMC अधिक है LAC से
51. जब सीमांत उत्पादन घटता है, तब कुल उत्पादन की क्या अवस्था होती है?
(A) अधिकतम
(B) स्थिर
(C) घटती दर से बढ़ता है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) घटती दर से बढ़ता है
52. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है
(A) LAC और LMC दोनों वक्र ‘U’ आकार के होते हैं
(B) LMC वक्र LAC वक्र को नीचे से, LAC के न्यूनतम बिंदु पर काटता है
(C) LAC और LMC दोनों SAC और SMC की भाँति ‘U’ आकार के होते हैं, परंतु ये कम उग्र और अधिक चपटे होते हैं
(D) उपर्युक्त सभी कथन सत्य हैं
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी कथन सत्य हैं
B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. …………………… में स्थिर और परिवर्ती उत्पादन कारक होते हैं। (अल्पकाल/दीर्घकाल)
उत्तर:
अल्पकाल
2. दीर्घकाल में उत्पादन के सभी कारक ……………………. होते हैं। (स्थिर/परिवर्ती)
उत्तर:
परिवर्ती
3. एक निश्चित अवधि में उत्पादित की गई वस्तुओं व सेवाओं की समान मात्रा ……………………. कहलाती है। (औसत उत्पाद/कुल उत्पाद)
उत्तर:
कुल उत्पाद
4. श्रम तथा पूँजी की एक अधिक इकाई का प्रयोग करने से प्राप्त अतिरिक्त उत्पाद …………………… कहलाता है। (औसत उत्पाद/सीमांत उत्पाद)
उत्तर:
सीमांत उत्पाद
5. जब कुल उत्पाद अधिकतम होता है, तो सीमांत उत्पाद ………… होता है। (शून्य/अधिकतम)
उत्तर:
शून्य
6. वर्धमान प्रतिफल के नियम के अनुसार परिवर्ती कारक की मात्रा बढ़ाने पर उत्पादन ……………………. अनुपात में परिवर्तित होता है। (बढ़ते हुए/घटते हुए)
उत्तर:
बढ़ते हुए
7. किसी वस्तु के उत्पादन में किया गया समस्त व्यय …………………… कहलाता है। (उत्पादन लागत/सीमांत लागत)
उत्तर:
उत्पादन लागत
8. अल्पकाल में उत्पादन शून्य होने पर …………………… लागत शून्य नहीं होती। (परिवर्ती स्थिर)
उत्तर:
स्थिर
9. अल्पकाल में उत्पादन शून्य होने पर …………………… लागत शून्य हो जाती है। (परिवर्ती स्थिर)
उत्तर:
परिवर्ती
10. जब सीमान्त उत्पाद शून्य होता है तो …………………… उत्पाद अधिकतम होता है। (कुल/सीमान्त)
उत्तर:
कुल
11. जब कुल उत्पाद बढ़ती दर से बढ़ता तो …………………… भी बढ़ती दर से बढ़ता है। (कुल उत्पाद/सीमान्त उत्पाद)
उत्तर:
सीमान्त उत्पाद।
12. सीमान्त उत्पाद का सामान्य आकार …………………… आकृति का होता है। (‘U’/’V’)
उत्तर:
‘U’।
C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत
- उत्पादन प्रक्रिया आगत तथा निर्गत का संबंध है।
- सीमांत लागत वक्र औसत घटते-बढ़ते लागत वक्र को न्यूनतम बिंदु पर काटता है।
- औसत लागत वक्र ‘U’ आकार का होता है।
- औसत उत्पाद वक्र का आकार उल्टे ‘U’ जैसा होता है।
- अल्पकालीन औसत लागत वक्र औसत परिवर्तनशील लागत तथा सीमांत लागत का जोड़ होता है।
- घटते प्रतिफल का नियम तब लागू होता है जब सभी साधन (कारक) परिवर्तनशील होते हैं।
- परिवर्तनशील आनुपातिक प्रतिफल का नियम तब लागू होता है जब कम-से-कम एक साधन स्थिर रहता है।
- घटते प्रतिफल का नियम केवल कृषि पर लागू नहीं होता है।
- आंतरिक बचतें संपूर्ण उद्योग के विस्तार के कारण उत्पन्न होती हैं।
- यदि AC स्थिर है तो MC गिर रही होती है।
- आदर्श उत्पाद वह उत्पाद है जिस पर सीमांत आय सीमांत लागत के बराबर होती है।
- यदि सीमांत उत्पादन शून्य होता है तो कुल उत्पादन अधिकतम होता है।
- बंधी व घटती-बढ़ती लागत का अंतर अल्पकाल में पाया जाता है।
- परिवर्तनशील अनुपात के नियम का संबंध उपभोग से है।
- जब अल्पकाल में उत्पादन का स्तर शून्य हो, तो स्थिर लागतें भी शून्य होती हैं।
- किसी उद्योग का विस्तार होने से उसकी सभी फर्मों को प्राप्त होने वाली बचतें बाहरी बचतें कहलाती हैं।
- पैमाने के प्रतिफल दीर्घकाल में लागू होते हैं।
- अल्पकाल में उत्पादन के सभी साधन परिवर्तनशील होते हैं।
- परिवर्तनशील अनुपात के नियम अल्पकाल में लागू होते हैं।
- औसत बंधी लागत उत्पादन के विभिन्न स्तरों पर बढ़ती रहती है।
- कुल लागत = कुल बँधी लागत + कुल परिवर्तनशील लागत।
उत्तर:
- सही
- सही
- सही
- सही
- गलत
- गलत
- सही
- सही
- गलत
- गलत
- सही
- सही
- सही
- गलत
- गलत
- सही
- सही
- गलत
- सही
- गलत
- सही।
अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
उत्पादन की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
उत्पादन का अर्थ निर्गत (output) की उस मात्रा से है जिसे दी हुई तकनीक और दिए हुए आगतों (inputs) की मात्रा से प्राप्त किया जा सकता है।
प्रश्न 2.
आगत अथवा उत्पादन कारक का क्या अर्थ है? आगतों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
किसी वस्तु के उत्पादन के लिए जिन विभिन्न मदों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें आगत अथवा उत्पादन कारक कहते हैं। उदाहरण के लिए, (i) श्रम (ii) कच्चा माल (iii) मशीन।
प्रश्न 3.
आगतों का अनुकूलतम मिश्रण क्या है?
उत्तर:
आगतों का अनुकूलतम मिश्रण से अभिप्राय विभिन्न आगतों के उस मिश्रण से है जिससे अधिकतम उत्पादन प्राप्त होता है।
प्रश्न 4.
निर्गत का क्या अर्थ है?
उत्तर:
निर्गत उत्पादन प्रक्रिया का अंतिम परिणाम है। अन्य शब्दों में, निर्गत आगत का फलन है।
निर्गत = f (आगत)
प्रश्न 5.
उत्पादन प्रक्रिया क्या है?
उत्तर:
उत्पादन प्रक्रिया वह प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत आगतों का रूपांतरण निर्गत में किया जाता है।
प्रश्न 6.
उत्पादक या उत्पादन इकाई की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
उत्पादक या उत्पादन इकाई से अभिप्राय उस व्यक्ति या संस्था से है जो आगतों को जुटाकर उत्पादन प्रक्रिया संभव बनाता है।
प्रश्न 7.
उत्पादन फलन के समीकरण को व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
q = f (x1, x2)
प्रश्न 8.
उत्पादन फलन की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
उत्पादन फलन से अभिप्राय किसी उत्पादन की इकाई के भौतिक आगतों और निर्गतों के बीचे कार्यात्मक संबंध से है।
प्रश्न 9.
दो प्रकार के उत्पादन फलन के नाम बताइए।
उत्तर:
स्थिर अनुपात में आदानों का मिश्रण।
परिवर्ती अनुपात में आदानों का मिश्रण।
प्रश्न 10.
आदानों का अनुकूलतम मिश्रण क्या है?
उत्तर:
आदानों का अनुकूलतम मिश्रण से अभिप्राय विभिन्न आदानों के उस मिश्रण से है जिससे अधिकतम उत्पादन प्राप्त होता है।
प्रश्न 11.
उत्पादन के स्थिर कारकों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
उत्पादन के स्थिर कारकों से हमारा अभिप्राय उन उत्पादन कारकों से है जिनकी पूर्ति स्थिर है अर्थात् जिनकी मात्रा को अल्पकाल में बदला नहीं जा सकता।
प्रश्न 12.
उत्पादन के परिवर्ती कारकों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उत्पादन के परिवर्ती कारकों से अभिप्राय उन उत्पादन कारकों से है जिनकी पूर्ति को बदला जा सकता है।
प्रश्न 13.
अल्पकाल तथा दीर्घकाल की संकल्पनाओं को समझाइए।
उत्तर:
अल्पकाल समय की वह अवधि है जिसमें उत्पाद के कुछ कारक स्थिर होते हैं और कुछ कारक परिवर्ती होते हैं जिनके फलस्वरूप उत्पादन में परिवर्तन एक सीमा में ही किया जा सकता है। दीर्घकाल समय की वह अवधि है जिसमें उत्पादन के सभी कारक परिवर्ती होते हैं जिसके फलस्वरूप उत्पादन में परिवर्तन वाँछित मात्रा में किया जा सकता है।
प्रश्न 14.
सीमांत उत्पाद की परिभाषा दीजिए। इसका गणना सूत्र भी लिखें।
उत्तर:
सीमांत उत्पाद से अभिप्राय एक परिवर्ती आगत की अतिरिक्त इकाई में परिवर्तन करने से कुल भौतिक उत्पाद में होने वाले परिवर्तन से है। सीमांत उत्पाद की गणना का सूत्र निम्नलिखित है-
प्रश्न 15.
सीमांत उत्पाद वक्र का सामान्य आकार कैसा होता है? एक सीमांत उत्पाद वक्र खींचिए।
उत्तर:
सीमांत उत्पाद वक्र का सामान्य आकार उल्टा ‘U’ आकृति का होता है। जैसाकि रेखाचित्र में दर्शाया गया है।
प्रश्न 16.
औसत उत्पाद वक्र का सामान्य आकार कैसा होता है? एक औसत उत्पाद वक्र खींचिए।
उत्तर:
औसत उत्पाद वक्र का सामान्य आकार उल्टा ‘U’ आकार का होता है। जैसाकि रेखाचित्र में दर्शाया गया है।
प्रश्न 17.
औसत उत्पाद और सीमांत उत्पाद वक्र का आकार उल्टा ‘U’ आकार का क्यों होता है? एक कुल उत्पाद वक्र खींचिए।
उत्तर:
औसत उत्पाद और सीमांत उत्पाद वक्र का आकार उल्टा ‘U’ इसलिए होता है क्योंकि परिवर्ती अनुपातों के नियम के अनुसार उत्पादन पहले बढ़ता है और बाद में घटता है। एक कुल उत्पाद वक्र को निम्न रेखाचित्र द्वारा दर्शाया गया है-
प्रश्न 18.
परिवर्ती अनुपात का नियम क्या है? यह किस अवधि में लागू होता है?
उत्तर:
परिवर्ती अनुपात का नियम यह बताता है कि जब स्थिर कारकों के साथ परिवर्ती कारक की मात्रा में है, तो पहले औसत तथा सीमांत उत्पाद एक सीमा तक बढ़ेंगे और उसके पश्चात् घटने लगेंगे। परिवर्ती अनुपात का नियम अल्पकाल – में लागू होता है।
प्रश्न 19.
परिवर्ती अनुपातों के नियम का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
परिवर्ती अनुपातों के नियम का मुख्य कारण स्थिर कारकों का अनुकूलतम उपभोग है। आरंभ में अधूरे उपयोग में लाए जाने वाले स्थिर कारक जैसे मशीन पर परिवर्ती कारक की इकाइयाँ बढ़ाने से कारक-मिश्रण आदर्श होता जाने से कारकों का श्रेष्ठ व पूर्ण उपयोग होने लगता है। फलस्वरूप उत्पाद बढ़ती दर से प्राप्त होता है। परंतु अनुकूलतम बिंदु प्राप्त होने के बाद भी परिवर्ती कारक की मात्रा बढ़ाने पर कारकों का आदर्श मिश्रण टूट जाता है, जिसमें ह्रासमान प्रतिफल शुरू हो जाता है।
प्रश्न 20.
परिवर्ती अनुपातों के नियम की तीन अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
- कुल उत्पाद में वृद्धिमान दर से वृद्धि।
- कुल उत्पाद में ह्रासमान दर से वृद्धि।
- कुल उत्पाद में कमी।
प्रश्न 21.
अधिकतम लाभ कमाने की इच्छुक फर्म परिवर्ती अनुपात के कौन-से चरण में उत्पादन करना चाहेगी?
उत्तर:
अधिकतम लाभ कमाने की इच्छुक फर्म परिवर्ती अनुपात के दूसरे चरण में उत्पादन करना चाहेगी।
प्रश्न 22.
पैमाने का प्रतिफल क्या होता है?
उत्तर:
पैमाने का प्रतिफल वह उत्पादन फलन है जो यह बताता है कि यदि उत्पादन के सभी साधनों की इकाइयों को एक साथ बढ़ाया जाए, तो कुल उत्पादन पर इसकी क्या प्रतिक्रिया होगी। दूसरे शब्दों में, पैमाने के प्रतिफल यह स्पष्ट करते हैं कि किसी निर्दिष्ट पैमाना रेखा पर यदि सभी साधनों में आनुपातिक वृद्धि की जाए तो उत्पादन में किस अनुपात में वृद्धि होगी।
प्रश्न 23.
पैमाने के प्रतिफल किस समय अवधि में लागू होते हैं। पैमाने के प्रतिफल के तीन प्रकार बताइए।
उत्तर:
पैमाने के प्रतिफल दीर्घकाल में लागू होते हैं। इसके तीन प्रकार हैं (i) पैमाने के वर्धमान (बढ़ते) प्रतिफल, (ii) पैमाने के स्थिर प्रतिफल, (iii) पैमाने के ह्रासमान (घटते) प्रतिफल।
प्रश्न 24.
पैमाने के वर्धमान प्रतिफल का अर्थ बताइए।
उत्तर:
पैमाने के वर्धमान प्रतिफल से हमारा अभिप्राय उत्पादन फलन की उस स्थिति से है जिसमें कुल उत्पाद में उसी अनुपात से अधिक वृद्धि होती है, जिस अनुपात में आगत के कारकों को बढ़ाया जाता है।
प्रश्न 25.
पैमाने के स्थिर प्रतिफल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पैमाने के स्थिर प्रतिफल से हमारा अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें आगत (input) के सभी कारकों को निश्चित अनुपात में बढ़ाए जाने पर उत्पादन निर्गत में भी उसी अनुपात में वृद्धि होगी।
प्रश्न 26.
पैमाने के हासमान प्रतिफल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल से हमारा अभिप्राय उस स्थिति से है जिसके अंतर्गत आगत (input) के सभी कारकों को एक निश्चित अनुपात में बढ़ाने पर उत्पादन/निर्गत में उस अनुपात से कम वृद्धि होगी।
प्रश्न 27.
दीर्घकाल में पैमाने के वर्धमान प्रतिफलों के लिए उत्तरदायी दो कारक बताइए।
उत्तर:
- श्रम विभाजन
- विशिष्ट मशीनों का उपयोग।
प्रश्न 28.
श्रम विभाजन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
श्रम विभाजन से अभिप्राय उस कार्य पद्धति से है जिसके अंतर्गत श्रमिकों को उनकी योग्यता व क्षमता के अनुसार कार्य दिया जाता है।
प्रश्न 29.
अधिक खरीददारी पर कटौती (Volume Discount) क्या होती है?
उत्तर:
बड़ी मात्रा में एक साथ खरीददारी करने पर कीमत में जो कटौती या छूट (Discount) मिलती है, उसे अधिक खरीददारी पर कटौती या थोक की छूट कहते हैं।
प्रश्न 30.
समान मात्रा (iso-quant) की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
समान मात्रा दो आगतों के उन सभी संभावित कारकों को प्रकट करती है जो एक-समान कुल उत्पाद प्रदान करते हैं।
प्रश्न 31.
एक समान मात्रा वक्र ऋणात्मक ढाल वाला वक्र क्यों होता है?
उत्तर:
एक समान मात्रा वक्र ऋणात्मक ढाल वाला वक्र इसलिए होता है क्योंकि दो आगतों की मात्राओं में परिवर्तन विपरीत दिशा में होते हैं।
प्रश्न 32.
समान मात्रा मानचित्र (Iso-quant Map) क्या है? रेखाचित्र बनाकर दर्शाएँ।
उत्तर:
समान मात्रा वक्रों के समूह या परिवार को समान मात्रा मानचित्र कहते हैं। इसका रेखाचित्र नीचे दिया गया है।
प्रश्न 33.
उत्पादन की लागत से आपका क्या अभिप्राय है? उत्पादन की लागत के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
उत्पादन की लागत से हमारा अभिप्राय उन व्ययों से है जिनका संबंध एक वस्तु के उत्पादन से होता है। उत्पादन की लागत के दो उदाहरण निम्नलिखित हैं-(i) मजदूरी, (ii) कच्चे माल की लागत।
प्रश्न 34.
स्थिर लागतों से आपका क्या अभिप्राय है? स्थिर लागतों के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
स्थिर लागतों से हमारा अभिप्राय उन लागतों से है जो उत्पादन में परिवर्तन के परिणामस्वरूप परिवर्ती नहीं होतीं। स्थिर लागतें विभिन्न उत्पादन स्तरों पर एक समान रहती हैं। स्थिर लागतों के दो उदाहरण हैं-(i) भवन का किराया, (ii)बीमा किश्त।
प्रश्न 35.
एक फर्म का स्थिर लागत (FC) वक्र खींचिए।
उत्तर:
प्रश्न 36.
परिवर्ती लागतों से आपका क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
परिवर्ती लागतों से हमारा अभिप्राय उन लागतों से है जो उत्पादन में परिवर्तन के साथ परिवर्तित होती हैं। उदाहरण के लिए, (i) कच्चे माल की लागत, (ii) बिजली-शक्ति पर व्यय।
प्रश्न 37.
कुल परिवर्ती लागत वक्र (TVC) खींचिए।
उत्तर:
TVC वक्र उल्टे S आकार जैसा होता है।
प्रश्न 38.
स्थिर और परिवर्ती लागतों में भेद करें।
उत्तर:
स्थिर लागतें वे लागतें होती हैं जो उत्पादन की मात्रा घटाने-बढ़ाने पर घटती-बढ़ती नहीं है, बल्कि स्थिर रहती हैं। परिवर्ती लागतें वे लागतें होती हैं जो उत्पादन की मात्रा बढ़ाने पर बढ़ती हैं, उत्पादन की मात्रा घटाने पर घटती हैं और उत्पादन बंद होने पर बंद हो जाती हैं।
प्रश्न 39.
औसत लागत से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
औसत लागत से अभिप्राय उत्पादन (निर्गत) की प्रति इकाई कुल लागत से है। कुल लागत को उत्पादन की मात्रा से भाग देने पर औसत लागत प्राप्त होती है। सूत्र के रूप में,
प्रश्न 40.
सीमांत लागत से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सीमांत लागत से अभिप्राय किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई का उत्पादन (निर्गत) करने की लागत से है।
प्रश्न 41.
औसत स्थिर लागत से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
औसत स्थिर लागत से अभिप्राय प्रति इकाई स्थिर लागत से है।
प्रश्न 42.
औसत स्थिर लागत (AFC) वक्र खींचिए।
उत्तर:
प्रश्न 43.
औसत परिवर्ती लागत से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
औसत परिवर्ती लागत से अभिप्राय प्रति इकाई परिवर्ती लागत से है।
AVC = \(\frac { TVC }{ q }\)
प्रश्न 44.
औसत परिवर्ती लागत (AVC) वक्र खींचिए।
उत्तर:
प्रश्न 45.
सीमांत लागत (MC) सारणी से कुल परिवर्ती लागत (TVC) कैसे निकाली जाती है?
उत्तर:
सीमांत लागतों को जोड़कर कुल परिवर्ती लागत (TVC) निकाली जाती है।
TVC = ∑MC
प्रश्न 46.
सीमांत लागत (MC) वक्र से आप कुल परिवर्ती लागत (TVC) कैसे ज्ञात करेंगे?
उत्तर:
कुल परिवर्ती लागत सीमांत लागत वक्र तथा क्षैतिज अक्ष के बीच के क्षेत्रफल के समान होती है अर्थात् कुल परिवर्ती लागत सीमांत लागत वक्र के नीचे का क्षेत्रफल होती है। अन्य शब्दों में, MC वक्र के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रफल को मापकर TVC ज्ञात की जाती है।
प्रश्न 47.
AFC वक्र का सामान्य आकार कैसा होता है?
उत्तर:
AFC वक्र का सामान्य आकार ऊपर से नीचे की ओर ढलवाँ होता है। AFC वक्र आयताकार अतिपरवलय आकार का होता है।
प्रश्न 48.
जब औसत लागत बढ़ रही हो तो क्या औसत लागत सीमांत लागत से कम हो सकती है?
उत्तर:
हाँ, जब औसत लागत बढ़ रही हो तो औसत लागत सीमांत लागत से कम हो सकती है।
प्रश्न 49.
क्या ATC तथा AVC वक्र प्रतिच्छेदन करते हैं?
उत्तर:
ATC तथा AVC वक्र कभी भी एक-दूसरे को प्रतिच्छेद नहीं करते। कारण
ATC = AFC + AVC
ATC > AVC. (चूँकि AFC >0)
अर्थात् ATC सदैव AVC से अधिक होती है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अल्पकालीन उत्पादन फलन तथा दीर्घकालीन उत्पादन फलन में भेद कीजिए। परिवर्ती अनुपात उत्पादन फलन तथा समान/स्थिर अनुपात उत्पादन फलन में अंतर बताइए।
अथवा
उत्तर:
अल्पकालीन (परिवर्ती अनुपात) उत्पादन फलन | दीर्घकालीन (समान/स्थिर अनुपात) उत्पादन फलन |
1. इस उत्पादन फलन में, उत्पादन के स्तर में परिवर्तन के साथ-साथ कारक आगत अनुपात में परिवर्तन होता है। | 1. इस उत्पादन फलन में, उत्पादन के स्तर में परिवर्तन के साथ-साथ कारक आगत अनुपात समान/स्थिर रहता है। |
2. इसमें कुछ कारकों के स्थिर रहते हुए, केवल कुछ कारकों में परिवर्तन करके ही उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है। | 2. इसमें सभी कारक आगतों की मात्रा में वृद्धि करके उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है। |
3. इसमें उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन होने से उत्पादन के पैमाने में परिवर्तन नहीं होता। | 3. इसमें उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन होने के साथ-साथ उत्पादन के पैमाने में भी परिवर्तन होता है। |
प्रश्न 2.
MP वक्र AP वक्र को उसके उच्चतम बिंदु पर काटता है, क्यों?
उत्तर:
क्योंकि, जब AP में वृद्धि होती है, तब MP > AP होता है। जब AP में गिरावट आती है तब MP < AP होता है। जब AP अपने उच्चतम बिंदु पर स्थिर होता है, तब MP = AP होता है। अतः MP वक्र AP वक्र को उसके उच्चतम बिंदु पर काटता है।
प्रश्न 3.
सीमांत भौतिक उत्पादन में परिवर्तन आने पर कुल भौतिक उत्पादन में कैसे परिवर्तन आते हैं?
उत्तर:
सबसे पहले सीमांत भौतिक उत्पादन (MPP) बढ़ता है, जिसके कारण TPP कुल भौतिक उत्पाद (TPP) बढ़ती दर से बढ़ता है। इसके बाद जब MPP घटती दर से बढ़ता है तो TPP घटती दर पर बढ़ता है। उसके बाद MPP कम होता हुआ शून्य पर पहुँच जाता है तो TPP घटती दर पर बढ़ते हुए अधिकतम बिंदु पर पहुँचता है तथा स्थिर हो जाता है। इसके बाद जब MPP ऋणात्मक हो जाता है। तब TPP घटना आरंभ हो जाता है।
प्रश्न 4.
TP और MP में संबंध बताइए।
उत्तर:
- जब TP बढ़ती दर से बढ़ता है, तो MP बढ़ता है।
- जब TP घटती हुई दर से बढ़ता है, तो MP घटता है।
- जब TP अधिकतम होता है, तो MP शून्य (zero) होता है।
- जब TP घट रहा होता है, तो MP ऋणात्मक (-) होता है।
प्रश्न 5.
AP और MP में संबंध बताइए।
उत्तर:
- AP तब तक बढ़ता है, जब MP > AP होता है।
- AP तब अधिकतम होता है, जब MP = AP होता है।
- AP तब गिरता है, जब MP < AP होता है।
- AP कभी भी शून्य नहीं होता, जबकि MP शून्य भी हो सकता है और ऋणात्मक भी।
प्रश्न 6.
एक कारक (साधन) के प्रतिफल का क्या अर्थ है? एक कारक के वर्धमान या बढ़ते प्रतिफल किस कारण से प्राप्त होते हैं?
उत्तर:
एक कारक (साधन) के प्रतिफल से हमारा अभिप्राय एक परिवर्ती कारक की एक इकाई में परिवर्तन करने से कुल भौतिक उत्पादन में होने वाले परिवर्तन से है, यदि अन्य सभी कारकों की इकाइयों को पूर्ववत (अपरिवर्तित) रखा जाए। उदाहरण के लिए, अन्य कारकों को स्थिर रखते हुए यदि श्रमिकों की इकाइयों में वृद्धि की जाती है तो कुल उत्पादन में होने वाली वृद्धि श्रम का प्रतिफल होगा।
एक कारक के बढ़ते प्रतिफल निम्नलिखित कारणों से होते हैं-
1. स्थिर कारकों का अनुकूलतम उपयोग-एक कारक के बढ़ते प्रतिफल का मुख्य कारण यह है कि परिवर्ती कारक की इकाइयों में वृद्धि से अविभाज्य स्थिर कारकों का अनुकूलतम व प्रभावी उपयोग होने लगता है।
2. श्रम विभाजन श्रम विभाजन से आशय उस कार्यपद्धति से है जिसके अंतर्गत श्रमिकों को उनकी योग्यता व क्षमता के अनुसार कार्य दिया जाता है।
3. थोक मात्र की कटौती-जब कच्चे माल को बड़ी मात्रा में क्रय किया जाता है तो क्रेता को अनेक बचतें व कटौतियाँ प्राप्त होती हैं।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित उत्पादन संबंधी आँकड़ों की सहायता से परिवर्ती अनुपात के नियम के विभिन्न चरणों की पहचान करें-
परिवर्ती आगत (इकाइयाँ) | कुल उत्पाद (इकाइयाँ) |
0 | 0 |
1 | 8 |
2 | 20 |
3 | 28 |
4 | 28 |
5 | 20 |
उत्तर:
प्रश्न 8.
परिवर्ती अनुपात के नियम की तीन अवस्थाएँ रेखाचित्र द्वारा समझाइए। अथवा
दिए गए रेखाचित्र की सहायता से उत्पादन की तीन अवस्थाओं का स्पष्टीकरण कीजिए जब एक कारक आगत परिवर्तनीय हो।
उत्तर:
(i) प्रथम अवस्था-TP बढ़ती हुई दर से बढ़ता है। दूसरे शब्दों में, MP बढ़ता जाता है। यह अवस्था आरंभ से लेकर बिंदु क है जहाँ AP अधिकतम है AP=MP । इस अवस्था में AP और MP दोनों बढ़ते हैं। कुल उत्पाद (TP) बढ़ती हुई दर से बढ़त है। रेखाचित्र में TP वक्र A से B तक बढ़ता है। यह वर्धमान प्रतिफल की अवस्था कहलाती है।
(ii) द्वितीय अवस्था-TP घटती दर से बढ़ता है। दूसरे शब्दों में, MP गिरता जाता है। यह अवस्था बिंदु R से लेकर S तक जाता है। इस अवस्था में TP बढ़ता तो है, परंतु घटती दर से जैसाकि रेखाचित्र में B से C तक दिखाया गया है। इस अवस्था में AP और MP दोनों गिरते हैं और TP जब अधिकतम होता है तो MP शून्य होता है। यह ह्रासमान प्रतिफल की अवस्था कहलाती है और इस अवस्था में फर्म उत्पादन करना चाहेगी।
(iii) तृतीय अवस्था इस अवस्था में TP गिरना शुरू हो जाता है अर्थात् दूसरे शब्दों में MP ऋणात्मक हो जाता है। यह शून्य से शुरू होकर वहाँ तक जाती है, जहाँ MP ऋणात्मक होता है। यहाँ TP घटना शुरू हो जाता है। यह ऋणात्मक प्रतिफल की अवस्था है।
प्रश्न 9.
हासमान सीमांत प्रतिफलों का नियम समझाइए। किसी कारक (साधन) का प्रयोग बढ़ाने पर उसका सीमांत उत्पाद कम क्यों होता है?
उत्तर:
अल्पकाल में उत्पादन के कछ कारक स्थिर होते हैं और कुछ कारक परिवर्ती। जब स्थिर कारकों के साथ परिवर्ती कारकों की मात्रा में वृद्धि की जाती है तो पहले प्रतिफल बढ़ने लगते हैं, परंतु एक अवस्था के पश्चात् प्रतिफल घटने लगते हैं। इस अवस्था को हम घटते प्रतिफल के सिद्धांत के कारण प्राप्त करते हैं। यह अवस्था परिवर्ती अनुपातों के नियम की अंतिम और आवश्यक अवस्था है। इस अवस्था में सीमांत प्रतिफल घटती दर से मिलता है जिसके कारण कुल प्रतिफल में वृद्धि घटती दर से या ऋणात्मक दर से होती है। जैसे ही एक उत्पादक संसाधनों के इष्टतम समायोजन की स्थिति प्राप्त कर लेता है, उसका कुल उत्पाद अधिकतम होता है। इस स्थिति के बाद यदि चल साधनों की मात्रा में वृद्धि होगी तो घटते प्रतिफल का सिद्धांत लागू होगा।
प्रश्न 10.
परिवर्ती अनुपात के नियम को कुल उत्पाद में होने वाले परिवर्तनों के रूप में समझाइए।
उत्तर:
परिवर्ती अनुपात का नियम (Law of Variable Proportions) – अल्पकाल में, अन्य कारकों को स्थिर रखते हुए जब परिवर्ती कारक (श्रम) की इकाइयाँ बढ़ाई जाती हैं, तो पहले कुल भौतिक उत्पाद (TPP) में बढ़ती दर से वृद्धि होती है। परंतु एक सीमा के बाद TPP में घटती दर से वृद्धि होती है। अन्ततः TPPघटने लगता है। TPP द्वारा प्रदर्शित इस व्यवहार को ‘परिवर्ती अनुपात का नियम’ कहा जाता है। इसे निम्न तालिका द्वारा सुस्पष्ट किया गया है-
उत्पादन तालिका
प्रश्न 11.
परिवर्ती अनुपात के नियम को सीमांत उत्पाद में होने वाले परिवर्तनों के रूप में समझाइए।
उत्तर:
परिवर्ती अनुपात का नियम (Law of Variable Proportions)-अल्पकाल में, अन्य कारकों को स्थिर रखते हुए जब परिवती कारक (श्रम) की इकाइयाँ बढ़ाई जाती हैं, तो पहले सीमांत भौतिक उत्पाद (MPP) में वृद्धि होती है। फिर MPP घटने लगता है लेकिन धनात्मक रहता है और शून्य तक पहुँच जाता है और अंत में MPPऋणात्मक हो जाता है। MPP द्वारा प्रदर्शित इसी व्यवहार को ‘परिवर्ती अनुपात का नियम’ कहा जाता है।
प्रश्न 12.
पैमाने के वर्धमान प्रतिफल के अर्थ की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पैमाने के वर्धमान प्रतिफल (Increasing returns to scale)-पैमाने के वर्धमान प्रतिफल से हमारा अभिप्राय उस स्थिति से है जिसके अंतर्गत पैमाने में परिवर्तन की तुलना में उत्पादन में अधिक दर से परिवर्तन होता है। यह स्थिति पैमाने के प्रतिफल की पहली अवस्था है। पैमाने के वर्धमान प्रतिफल उत्पादन की मितव्ययिताओं के कारण होते हैं। इसे हम निम्न उदाहरण से समझा सकते हैं-
क्रम संख्या | आगत्तों का पैमाना | कुल उत्पाद (इकाइयाँ) | सीमांत उत्पाद (इकाइयाँ) |
1 | 2 श्रमिक + 1 मशीन | 200 | 200 |
2 | 4 श्रमिक + 2 मशीन | 500 | 300 |
3 | 6 श्रमिक + 3 मशीन | 900 | 400 |
4 | 8 श्रमिक + 4 मशीन | 1,400 | 500 |
प्रश्न 13.
पैमाने के प्रतिफल की विभिन्न अवस्थाओं को उत्पाद अनुसूची की सहायता से दिखाइए।
उत्तर:
पैमाने के प्रतिफल की निम्नलिखित तीन अवस्थाएँ हैं-
- पैमाने के वर्धमान (बढ़ते) प्रतिफल (Increasing returns to scale)
- पैमाने के स्थिर प्रतिफल (Constant returns to scale)
- पैमाने के ह्रासमान (घटते) प्रतिफल (Decreasing returns to scale)
पैमाने के प्रतिफल (Returns to scale) की अवस्थाएँ निम्नलिखित उत्पाद अनुसूची में दर्शायी गई हैं
उत्पादन के पैमाने में वृद्धि | कुल उत्पाद में वृद्धि | पैमाने के प्रतिफल की अवस्था |
10 % | 15 % | वर्धमान प्रतिफल |
10 % | 10 % | स्थिर प्रतिफल |
10 % | 5 % | हासमान प्रतिफल |
प्रश्न 14.
पैमाने के वर्धमान प्रतिफल के कारण बताइए। अथवा
आंतरिक तथा बाह्य बचतें कौन-कौन सी होती हैं ?
उत्तर:
पैमाने के वर्धमान प्रतिफल के कारण पैमाने के वर्धमान प्रतिफल दीर्घकाल में, आंतरिक व बाह्य बचतों के कारण संभव होते हैं। ये बचतें छोटे पैमाने से बड़े पैमाने पर उत्पादन करने से उत्पन्न होती हैं।
I. आंतरिक बचतें-एक फर्म को अपने उत्पादन का पैमाना बढ़ाने के फलस्वरूप जो बचतें प्राप्त होती हैं, उन्हें आंतरिक बचतें कहते हैं। बिना उत्पादन बढ़ाए ये बचतें प्राप्त नहीं होती। ये वे बचतें होती हैं जो किसी फर्म विशेष को अपने निजी प्रयत्नों के फलस्वरूप प्राप्त होती हैं। ये बचतें अन्य फर्मों को प्राप्त नहीं होतीं, बल्कि केवल विशेष फर्म को प्राप्त होती हैं जिसके उत्पादन के
आकार में वृद्धि हुई है। मुख्य आंतरिक बचतें (Internal Economies) निम्नलिखित हैं
- श्रम संबंधी बचतें बड़े पैमाने के उत्पादन से श्रम विभाजन से बचतें प्राप्त होती हैं।
- तकनीकी बचतें तकनीकी उन्नति के कारण बचतें उपलब्ध होती हैं।
- बाज़ार संबंधी बचतें बड़े पैमाने पर क्रय-विक्रय संबंधी बचतें मिलने लगती हैं।
- प्रबंध संबंधी बचतें-उत्तम प्रबंध संबंधी बचतें प्राप्त होती हैं।
- बड़ी मशीन संबंधी बचतें बड़ी मशीनों की अविभाज्यता के कारण भी बचतें प्राप्त होती हैं।
II. बाह्य बचतें बाह्य बचतें वे होती हैं जो समस्त उद्योग के विकसित होने व एक स्थान विशेष में केंद्रित सब फर्मों को उत्पादन का पैमाना बढ़ाने से प्राप्त होती हैं। एक क्षेत्र में उद्योगों के स्थानीयकरण (localisation) या केंद्रित होने से फर्मों को ये बाहरी बचतें (External Economies) प्राप्त होती हैं; जैसे
- उत्तम परिवहन एवं संचार सुविधाओं की उपलब्धि
- सहायक उद्योगों की स्थापना
- बैंक तथा अन्य वित्त संस्थाओं की उपलब्धि
- श्रमिकों के प्रशिक्षण केंद्र स्थापित होना
- एक क्षेत्र का एक विशेष उद्योग के लिए प्रसिद्ध होना
- चालक शक्ति का पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होना
- विशेष प्रकार के श्रमिकों का केंद्र बन जाना
- कच्चे माल का सुगमता से उपलब्ध होना।
प्रश्न 15.
पैमाने के हासमान प्रतिफल के कारण बताइए। अथवा
आंतरिक तथा बाह्य अवबचतें कौन-कौन-सी होती हैं?
उत्तर:
पैमाने के हासमान (घटते) प्रतिफल के कारण (Causes of Diminishing Returns to Scale)-पैमाने के ह्रासमान (घटते) प्रतिफल दीर्घकाल में आंतरिक व बाह्य अवबचतों (Internal and External Diseconomies) के कारण प्राप्त होते हैं।
I. आंतरिक अवबचतें आंतरिक अवबचतें वे हानियाँ हैं जो किसी विशेष फर्म के एक निश्चित सीमा से अधिक आकार बढ़ने के फलस्वरूप उत्पन्न होती हैं। इसका प्रभाव सारे उद्योग पर नहीं पड़ता। कुछ महत्त्वपूर्ण आंतरिक हानियाँ (Internal Diseconomies) निम्नलिखित हैं
1. प्रबंध की कठिनाइयाँ फर्म के अत्यधिक विस्तार से प्रबंध की देखभाल (Supervision) कठिन हो जाती है जिससे प्रबंधकीय कुशलता (Operational Efficiency) में गिरावट आती है।
2. तकनीकी हानियाँ-प्रत्येक मशीन की एक अनुकूलतम क्षमता (Optimum Capacity) होती है। फर्म का बहुत बड़ा आकार होने पर मशीन का अत्यधिक प्रयोग होने के कारण अनेक तकनीकी दोष पैदा होने लगते हैं।
3. लालफीताशाही-लालफीताशाही के कारण फर्म संबंधी निर्णय लेने में देरी होती है।
4. बाज़ार संबंधी हानियाँ-दूरस्थ स्थानों से कच्चे माल लाने और तैयार माल को दूर की मंडियों में बेचने का यातायात व्यय काफी बढ़ जाता है।
5. श्रम-संघ-फर्म या उद्योग का विस्तार होने से श्रमिकों की संख्या बढ़ जाने से श्रमिक अपनी माँगें मनवाने के लिए अपने श्रम-संघ बना लेते हैं जिससे औद्योगिक झगड़े शुरू हो जाते हैं।
II. बाह्य अवबचतें-बाह्य अवबचतें वे हानियाँ हैं जो किसी उद्योग के एक निश्चित सीमा से अधिक आकार बढ़ने के फलस्वरूप उत्पन्न होती हैं। इनका प्रभाव उद्योग की सभी फर्मों पर पड़ता है। कुछ महत्त्वपूर्ण बाहरी अवबचतें (External Diseconomies) निम्नलिखित हैं-
- कच्चे माल का न मिलना।
- विद्युत शक्ति का पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न होना।
- यातायात की कठिनाइयाँ।
- वित्त मिलने में कठिनाइयाँ।
- औद्योगिक केंद्रों पर गंदी बस्तियों (Slums) तथा झुग्गी-झोंपड़ी कॉलोनियों (J.J. Colonies) का बन जाना आदि।
प्रश्न 16.
कारक/साधन के प्रतिफल और पैमाने के प्रतिफल में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कारक/परिवर्ती साधन के प्रतिफल | पैमाने के प्रतिफल |
1. अन्य साधनों को स्थिर रखते हुए किसी परिवर्ती साधन (जैसे श्रम) की इकाइयाँ बढ़ाने से कुल भौतिक उत्पाद (TPP) में हुई वृद्धि को ‘साधन के प्रतिफल’ कहते हैं। | 1. उत्पादन के सभी साधनों की इकाइयों में समान अनुपात में वृद्धि करने से कुल भौतिक उत्पाद (TPP) में हुई वृद्धि को ‘पैमाने के प्रतिफल’ कहते हैं। |
2. अन्य साधनों को स्थिर रखते हुए जब केवल एक ही साधन की इकाइयों में परिवर्तन किया जाता है तो परिवर्ती कारक और स्थिर कारकों का अनुपात बदल जाता है। | 2. उत्पादन के सभी साधनों में समान अनुपात में वृद्धि होने से साधनों का अनुपात स्थिर रहता है। |
3. साधन के प्रतिफल अल्पकाल में लागू होते हैं। | 3. पैमाने के प्रतिफल दीर्घकाल में लागू होते हैं। |
प्रश्न 17.
संख्यात्मक उदाहरण की सहायता से ‘एक कारक/साधन के प्रतिफल’ और ‘पैमाने के प्रतिफल’ में अंतर बताइए।
अथवा साधन के प्रतिफल और पैमाने के प्रतिफल में क्या अंतर है?
उत्तर:
कारक (साधन) के प्रतिफल से अभिप्राय उत्पादन के परिवर्ती कारक की एक अतिरिक्त इकाई के प्रयोग से प्राप्त होने वाली अतिरिक्त उत्पादन की मात्रा से है जैसाकि निम्नांकित तालिका से स्पष्ट होता है-
साधन/कारक (इकाइयाँ) | कुल उत्पाद | सीमांत उत्पाद |
3 श्रम +1 मशीन | 100 | – |
4 श्रम +1 मशीन | 125 | 25 |
5 श्रम +1 मशीन | 140 | 15 |
सीमांत उत्पाद साधन के प्रतिफल को व्यक्त करते हैं।
दीर्घकाल में ‘उत्पादन के पैमाने’ में वृद्धि संभव होती है। दीर्घकाल में सभी कारकों की मात्रा को समान अनुपात में बढ़ाया जाता है। इसके परिणामस्वरूप कुल उत्पाद पर जो प्रभाव होता है उसे पैमाने के प्रतिफल कहते हैं। निम्नांकित तालिका में इन्हें प्रस्तुत किया गया है। स्पष्ट है कि उत्पादन का पैमाना बढ़ाने से उत्पादन का स्तर बढ़ जाता है।
कारक (इकाइयाँ) | कुल उत्पाद | सीमांत उत्पाद |
3 श्रम + 1 मशीन | 100 | 100 |
6 श्रम + 1 मशीन | 200 | 110 |
प्रश्न 18.
नतिपरिवर्तक बिंदु (Point of Inflexion) क्या है?
अथवा
नीतिपरिवर्तक बिंदु के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
नतिपरिवर्तक बिंदु वह है, जहाँ TPP के ढाल में परिवर्तन होता है। इस बिंदु तक TPP बढ़ती दर से बढ़ती है। इस बिंदु के पश्चात् भी TPP में वृद्धि होती है किंतु घटती दर से। यह वह बिंदु है जहाँ उत्पादन की पहली अवस्था का अंत होता है। क्योंकि इस बिंदु पर MPP का बढ़ना रुक जाता है अथवा यह वह बिंदु है जो उत्पादन की दूसरी अवस्था के आरंभ (Beginning) को दर्शाता है, क्योंकि इस बिंदु के पश्चात् MPP घटने लगता है। संलग्न रेखाचित्र में K बिंदु को नतिपरिवर्तक बिंदु (Point of Inflexion) दर्शाया गया है।
प्रश्न 19.
कुल भौतिक उत्पाद अनुसूची की सहायता से पैमाने के वर्धमान (बढ़ते) और हासमान (घटते) प्रतिफल की अवधारणा को सुस्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कुल भौतिक उत्पाद अनुसूची (TPP)-
पैमाने के प्रतिफल (Returns to Scale) – सभी कारकों को एक ही अनुपात में बढ़ाए जाने की दशा में होने वाली उत्पादन में वृद्धि ही पैमाने का प्रतिफल है। पैमाने के ये प्रतिफल निम्नलिखित तीन प्रवृत्ति वाले होते हैं
(i) पैमाने के वर्धमान (बढ़ते) प्रतिफल (IRS)-जैसा कि उपर्युक्त तालिका से सुस्पष्ट है, आगत संयोग 1 K + 2L, 2K+4 L तथा 3K +6L एक निश्चित अनुपात में बढ़ाए जा रहे हैं अर्थात् उत्पादन कारकों में शत-प्रतिशत वृद्धि हो रही है, लेकिन उत्पादन वृद्धि का अनुपात अधिक है, तात्पर्य यह है कि इन तीन संयोगों की तुलना में उत्पादन वृद्धि का अनुपात अधिक है (100% : 120%) तथा (50% : 63.63%)। इन प्रतिफलों को पैमाने के वर्धमान (बढ़ते) प्रतिफल (IRS) कहा जाता है।
(ii) पैमाने के स्थिर प्रतिफल (CRS) उपर्युक्त तालिका में आगत संयोग या कारक एक निश्चित अनुपात से ही बढ़ रहे हैं अर्थात् 4K +8L तथा 5K + 10L लेकिन इसमें उत्पादन का अनुपात साम्यावस्था में आ गया है अर्थात् कारकों के अनुपात में ही बढ़ रहा है। (33.3%: 33.3%)। ऐसे प्रतिफल पैमाने के स्थिर प्रतिफल कहे जाते हैं। उक्त दो संयोगों में समान अनुपात में उत्पादन
बढ़ रहा है।
(ii) पैमाने के ह्रासमान (घटते) प्रतिफल (DRS)-जब सभी कारक एक दिए हुए अनुपात में बढ़ाए जा रहे हों, लेकिन उत्पादन वृद्धि का अनुपात कम होने लगता है तो ऐसे प्रतिफलों को पैमाने के हासमान (घटते) प्रतिफल कहा जाता है। तालिका से स्पष्ट है कि आगत संयोग लगातार बढ़ रहे हैं अर्थात् (6K + 12L) तथा (7K+14L) लेकिन उत्पादन 16.6% एवं 14.28% तक ही बढ़ पा रहा है, जबकि इससे पहले के आगत संयोग में यह 25% तथा 33% था, दूसरे शब्दों में, TPP में वृद्धि 35 से 40 हो रही है, लेकिन उत्पादन वृद्धि का अनुपात 16.6% और 14.28% है।
प्रश्न 20.
स्थिर लागतों तथा परिवर्ती लागतों में अंतर बताइए। प्रत्येक के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
स्थिर लागतों से हमारा अभिप्राय उन लागतों से है जो उत्पादन की इकाइयों में परिवर्तन के परिणामस्वरूप परिवर्तित नहीं होतीं। इसके विपरीत परिवर्ती लागतों से हमारा अभिप्राय उन लागतों से है जो उत्पादन की इकाइयों में परिवर्तन के परिणामस्वरूप परिवर्तित होती हैं। स्थिर लागत वक्र X-अक्ष के समानांतर एक सीधी रेखा होता है, जबकि परिवर्ती लागत वक्र नीचे शून्य से शुरू होकर ऊपर उठता हुआ होता है अर्थात् शून्य उत्पादन पर VC शून्य होती है और उत्पादन की मात्रा जैसे-जैसे बढ़ती जाती है, VC वक्र भी ऊँचा उठता जाता है। चूँकि शुरू में VC वक्र घटती दर से और बाद में बढ़ती दर से उठता है, इसलिए यह उल्टे ‘S’ आकार का होता है। इसे हम निम्नांकित रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं-
स्थिर लागतों के दो उदाहरण-
- भवन का किराया।
- बीमा किश्त।
परिवर्ती लागतों के दो उदाहरण-
- कच्चे माल की लागत।
- उत्पादन में लगे श्रमिकों की मज़दूरी।
प्रश्न 21.
उत्पादन के शून्य स्तर पर (उत्पादन बंद करने) पर भी स्थिर लागत शून्य नहीं होती, क्यों?
उत्तर:
चूँकि स्थिर कारकों को उत्पादन के आरंभ से पहले खरीद लिया जाता है, इसलिए स्थिर या बँधी लागत उत्पादन के शून्य होने पर अथवा उत्पादन के बंद होने पर भी ज्यों-की-त्यों बनी रहती है।
प्रश्न 22.
उत्पादन की प्रारंभिक अवस्था में कुल परिवर्ती लागत (TVC) में घटती दर पर वृद्धि होती है, क्यों? कारण बताइए।
उत्तर:
एक फर्म के उत्पादन की प्रारंभिक अवस्था में कारक के वर्धमान प्रतिफल लागू होते हैं। यह वह अवस्था है जिसमें परिवर्ती कारक का सीमांत उत्पाद (MP) बढ़ने की प्रवृत्ति रखता है। बढ़ती सीमांत उत्पादकता का अर्थ है, घटती लागत। अतः जब अतिरिक्त इकाई उत्पन्न करने की लागत घट रही होती है, तब TVC में वृद्धि घटती दर पर ही होती है।
प्रश्न 23.
एक उपयुक्त रेखाचित्र की सहायता से TC, TFC और TVC के संबंध समझाइए।
उत्तर:
TC = TVC + TFC
TC कुल स्थिर लागत (TFC)X-अक्ष के समानांतर है। उत्पादन के स्तर में परिवर्तन होने पर भी यह लागत परिवर्तित नहीं होती अर्थात् स्थिर रहती है। जबकि कुल परिवर्ती लागत (TVC) उत्पादन के स्तर में वृद्धि होने से बढ़ती जाती है। जब उत्पादन का स्तर शून्य होता है तो TVC भी शून्य होती है। जबकि TFC उत्पादन के शून्य होने पर TFC शून्य नहीं होती। कुल लागत (TC) भी उत्पादन के स्तर में वृद्धि होने पर बढ़ती है। उत्पादन के शून्य स्तर पर कुल लागत TFC के बराबर होती है क्योंकि
TC = TVC + TFC
TC = 0+ TFC या TC = TFC
अतः उत्पादन के शून्य स्तर पर TC = TFC होती है। किंतु जब उत्पादन के बढ़ने पर TVC बढ़ती है तो TC भी TVC के साथ-साथ बढ़ती जाती है और TC वक्र TVC वक्र के समानांतर रहती है तथा TC और TVC का अंतर TFC के बराबर होता है।
प्रश्न 24.
AFC वक्र आयताकार अतिपरवलय (Rectangular Hyperbola) आकार का होता है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
AFC वक्र आयताकार अतिपरवलय (रक्टैंगुलर हाइपरबोला) है। इसका कारण यह है कि यदि हम उत्पादन के किसी भी स्तर Q.Q1 आदि को उससे संबंधित औसत स्थिर लागत (AFC) से गुणा करते हैं, तब हम सदैव एक स्थिर (समान) कुल स्थिर लागत प्राप्त करते हैं।
रेखाचित्र में, AFC वक्र आयताकार अतिपरवलय है क्योंकि उत्पादन के स्तर पर आयत OQCF तथा उत्पादन के Q1 स्तर पर उत्पादन (निर्गत) आयत OQ1C1F1 हमें कुल स्थिर लागत के क्षेत्रफल देते हैं। ये दोनों क्षेत्रफल समान हैं।
प्रश्न 25.
क्या ATC तथा AVC वक्र एक-दूसरे को प्रतिच्छेदन करते हैं? अपने उत्तर के कारण बताइए।
उत्तर:
औसत कुल लागत (ATC) तथा औसत परिवर्ती लागत (AVC) कभी एक-दूसरे को प्रतिच्छेद नहीं करते हैं। इसका कारण यह है कि ATC = AFC + AVC
AFC कभी भी शून्य नहीं होती, उत्पादन के शून्य स्तर पर भी यह .. शून्य नहीं होती जबकि AVC उत्पादन के शून्य स्तर पर शून्य होती है। AFC के कभी शून्य न होने के कारण ATC सदैव AVC से अधिक होती है। चूंकि AVC सदैव ATC से कम होती है इसलिए ATC वक्र तथा AVC वक्र कभी एक-दूसरे को प्रतिच्छेद नहीं करते हैं।
प्रश्न 26.
सिद्ध करें कि MC की गणना TC अथवा TVC द्वारा किस प्रकार की जा सकती है?
उत्तर:
सीमांत लागत (MC) अतिरिक्त लागत होती है और अतिरिक्त लागत कभी स्थिर (बँधी) लागत नहीं हो सकती, यह सदा परिवर्ती लागत ही होती है। अतः निम्नलिखित सूत्र की सहायता से MC का अनुमान लगाया जा सकता है
MC = TCn – TCn-1
या
सीमांत लागत = ‘n’ इकाइयों की कुल लागत – ‘n-1’ इकाइयों की कुल लागत
या
MC = TVCn – TVCn-1
या
सीमांत लागत = ‘n’ इकाइयों की कुल परिवर्ती लागत – ‘n-1’ इकाइयों की कुल परिवर्ती लागत
प्रमाण (Proof):
MC = TCn – TCn-1
= (TFCn + TVCn) – (TFCn-1 + TVCn-1) (∵ TC = TFC + TVC)
= (TFCn + TVCn) – (TFCn-1 + TVCn-1)
= TVCn – TFCn-1
[TFCn = TFCn-1 क्योंकि TFC स्थिर (Constant) रहती है]
प्रश्न 27.
अल्पकालीन MC वक्र ” आकार का क्यों होता है?
उत्तर:
अल्पकाल में MC वक्र ‘U’ आकार का इसलिए होता है क्योंकि शुरू में बढ़ते प्रतिफल का नियम लागू होता है जिससे MC घटती है। फिर स्थिर प्रतिफल का नियम लागू होने पर MC भी स्थिर रहती है। इसके पश्चात् MC बढ़ना शुरू करती है। अतः उत्पादन के आरंभ में सीमांत लागत कम हो रही है तथा इसके पश्चात् बढ़ रही है जिसके कारण MC वक्र ‘U’ आकार का होता है।
प्रश्न 28.
एक रेखाचित्र की सहायता से दिखाइए कि MC वक्र के नीचे का क्षेत्रफल कुल परिवर्ती लागत (TVC) के बराबर होता है।
अथवा
उत्पादन के किसी निश्चित स्तर पर MC वक्र के नीचे का कुल क्षेत्र, उत्पादन के उस स्तर के TVC को मापता है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सीमांत लागत केवल परिवर्ती लागत होती है क्योंकि MC निर्गत की एक अतिरिक्त इकाई उत्पन्न करने की एक अतिरिक्त लागत होती है। परिभाषा से ही सीमांत (अतिरिक्त) लागत स्थिर लागत नहीं हो सकती, यह केवल परिवर्ती लागत ही हो सकती है। इसके अनुसार, उत्पादन की विभिन्न इकाइयों के अनुरूप (1 से n इकाइयों तक) सीमांत लागत का कुल जोड़ TVC (कुल परिवर्ती लागत) हो जाता है। अतएव
\(\sum_{i=1}^{n}\)MC – TVC
ज्यामितीय दृष्टि से, उत्पादन के किसी भी स्तर के अनुरूप MC के नीचे का कुल क्षेत्र, उत्पादन के उस स्तर के TVC को मापता है। जैसे कि संलग्न रेखाचित्र यह प्रकट करता है कि उत्पादन के OQ स्तर के लिए, TVC = क्षेत्र OQCK =Oसे Q के बीच के उत्पादन की सभी इकाइयों के लिए ZMC है।
प्रश्न 29.
औसत लागत (AC) और सीमांत लागत (MC) के बीच संबंध बताइए।
उत्तर:
(1) औसत लागत (AC) और सीमांत लागत (MC) दोनों ही कुल लागत (TC) से ज्ञात की जा सकती हैं।
AC = \(\frac { TC }{ q }\) = तथा MC = TCn – TCn-1
(2) जब AC घटती है तो MC औसत लागत से कम होती है।
(3) जब AC बढ़ती है तब MC औसत लागत से अधिक होती है।
(4) MC वक्र AC वक्र को उसके न्यूनतम बिंदु पर काटता है।
(5) जब AC घट रही होती है तो MC बढ़ सकती है। ऐसा तब तक होता है, जब तक MC < AC हो।
प्रश्न 30.
सीमांत लागत और औसत परिवर्ती लागत के बीच क्या संबंध
उत्तर:
सीमांत लागत से अभिप्राय किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई का उत्पादन करने की लागत से है। सूत्र के रूप में,
सीमांत लागत और औसत परिवर्ती लागत में घनिष्ठ संबंध होता है। दोनों ही लागत वक्र ‘U’ आकार के होते हैं। संलग्न रेखाचित्र को देखने से यह स्पष्ट होता है कि प्रारंभिक अवस्था में औसत परिवर्ती लागत वक्र और सीमांत लागत वक्र नीचे गिरता हुआ होता है परंतु सीमांत लागत वक्र E बिंदु के बाद ऊपर उठने लगता है और औसत परिवर्ती लागत वक्र को उसके न्यूनतम बिंदु B पर काटता हुआ जाता है। इस प्रकार सीमांत लागत वक्र की गिरने और उठने की दर अधिक है।
प्रश्न 31.
एक लागत तालिका की सहायता से सीमांत लागत और औसत लागत के बीच संबंध समझाइए।
उत्तर:
सीमांत लागत तथा औसत लागत दोनों ही कुल लागत पर आधारित हैं। इसलिए सीमांत लागत और औसत लागत के बीच घनिष्ठ संबंध है। अग्रलिखित तालिका से हमें औसत लागत और सीमांत लागत के बीच संबंध का पता चलता है
उत्पादन इकाइयाँ | कुल लागत (रुपए) | औसत लागत (रुपए) | सीमांत लागत (रुपए) |
1 | 120 | 120 | 120 |
2 | 200 | 100 | 80 |
3 | 240 | 80 | 40 |
4 | 320 | 80 | 80 |
5 | 450 | 90 | 130 |
6 | 600 | 100 | 150 |
प्रारंभिक अवस्था में दोनों ही लागतें गिरती हुई होती हैं, लेकिन सीमांत लागत औसत लागत की तुलना में तेजी से गिरती है। जैसे-जैसे उत्पादन इकाइयों में वृद्धि होती है, दोनों ही लागतें बढ़ने लगती हैं परंतु सीमांत लागत औसत लागत से अधिक दर से बढ़ती है। औसत लागत सीमांत लागत के बाद ऊपर उठती है। सीमांत लागत चौथी उत्पादन इकाई से ऊपर उठती है, जबकि औसत लागत पाँचवीं इकाई से।
प्रश्न 32.
रेखाचित्र की सहायता से समझाइए कि फर्म के औसत लागत वक्र और सीमांत लागत वक्र के बीच क्या संबंध है। अथवा
स्पष्ट कीजिए कि जब औसत लागत गिर रही हो तो क्या सीमांत लागत बढ़ सकती है?
उत्तर:
औसत लागत वक्र तथा सीमांत लागत वक्र को कुल लागत वक्र से ज्ञात किया जाता है। इसलिए औसत लागत वक्र और सीमांत लागत वक्र में घनिष्ठ संबंध होता है। दोनों ही लागत वक्र उत्पादन फलन के कारण ‘U’ आकार के होते हैं। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं
रेखाचित्र से यह स्पष्ट होता है कि प्रारंभिक अवस्था में औसत लागत वक्र और सीमांत लागत वक्र दोनों ही नीचे गिरते हुए होते हैं, लेकिन सीमांत लागत वक्र औसत लागत की तुलना में तेजी से गिरता है। सीमांत लागत वक्र औसत लागत वक्र की तुलना में अधिक ऊपर उठता है। ऊपर उठते हुए सीमांत लागत वक्र औसत लागत वक्र को उसके न्यूनतम बिंदु पर काटता है। जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ता जाता है, दोनों ही वक्र ऊपर उठते हैं परंतु सीमांत लागत वक्र तेजी से ऊपर उठता है।
प्रश्न 33.
TC और MC में संबंध बताइए।
उत्तर:
- सीमांत लागत की गणना निर्गत (उत्पादन) की दो अनुक्रमी इकाइयों की कुल लागत के अंतर द्वारा किया जाता है। अर्थात् MC = TCn – TCn-1
- जब TC घटती दर से बढ़ता है तो MC गिरता है।
- जब TC में वृद्धि दर गिरना बंद हो जाता है तो MC अपने न्यूनतम बिंदु पर होता है।
- जब TC बढ़ती दर से बढ़ता है, तो MC बढ़ता है।
प्रश्न 34.
एक रेखाचित्र की सहायता से ATC, AVC तथा MC: वक्रों के संबंध स्थापित कीजिए।
उत्तर:
संलग्न रेखाचित्र ATC, AVC तथा MC वक्रों के संबंध स्पष्ट करता है। तीनों लागत वक्र ‘U’ आकार के होते हैं। AVC, ATC तथा MC वक्र एक बिंदु तक तीनों गिरते हैं और उसके पश्चात् ऊपर उठते हैं।
(i) MC वक्र AVC वक्र की तुलना में तेजी से गिरता भी है और उठता भी है।
(ii) MC वक्र AVC वक्र और ATC वक्र को उनके न्यूनतम बिंदुओं B तथा C पर काटता है।
प्रश्न 35.
“पैमाने के वर्धमान एवं ह्रासमान प्रतिफल ही क्रमशः दीर्घकालीन औसत लागत वक्र (LAC) के नीचे की ओर गिरते और ऊपर उठते हुए हिस्सों का कारण होते हैं।” इस कथन के पक्ष या विपक्ष में तर्क
LMC दीजिए।
उत्तर:
पैमाने के वर्धमान प्रतिफल दीर्घकालीन औसत लागत वक्र के नीचे की ओर तथा पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल दीर्घकालीन औसत लागत वक्र के ऊपर की ओर उठते हुए दिखाए जाते हैं। यह कथन सही है।
रेखाचित्र में दीर्घकालीन सीमांत लागत (LMC) वक्र दीर्घकालीन औसत लागत (LAC) वक्र को उसके न्यूनतम बिंदु E पर काटता है। उत्पादन के 0 से लेकर Q तक के स्तर में LAC घट रही है अर्थात् जिस प्रतिशत से उत्पादन बढ़ रहा है, उस प्रतिशत से कम औसत लागत बढ़ रही उत्पादन (निर्गत) है जो पैमाने के वर्धमान प्रतिफल को प्रकट कर रही है। Q से आगे उत्पादन का स्तर बढ़ने पर दीर्घकालीन लागत वक्र ऊपर की ओर उठ रहा है अर्थात् जिस अनुपात से उत्पादन का स्तर बढ़ रहा है उससे अधिक अनुपात में औसत लागत बढ़ रही है जो पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल को प्रकट करती है।
प्रश्न 36.
LAC वक्र के ‘U’ आकार होने के कारण बताइए।
उत्तर:
LAC वक्र का U आकार होने के कारण-संलग्न रेखाचित्र में LAC वक्र के तीन भाग अर्थात् शुरू में A बिंदु तक नीचे गिरने, फिर A बिंदु पर टिकने और अंत में ऊपर उठने के कारण क्रमशः पैमाने के वर्धमान, स्थिर और ह्रासमान प्रतिफल हैं। ध्यान रहे पैमाने के वर्धमान प्रतिफल का अर्थ है-औसत लागत में गिरावट आना, जबकि पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल का अर्थ है औसत लागत में वृद्धि होना।
(a) आरंभ में जब कोई फर्म छोटे पैमाने से बड़े पैमाने पर उत्पादन करती है तो उसे वर्धमान या बढ़ते हुए प्रतिफल प्राप्त होते हैं। इसके मुख्य कारण बड़े पैमाने के उत्पादन से प्राप्त होने वाली बचतें (Economies of large scale) हैं। दो अति महत्त्वपूर्ण बचतें श्रम विभाजन (Division of Labour) और थोक की छूट (Volume Discount) हैं।
(i) फर्म द्वारा श्रमिकों में उनकी विशेष योग्यताओं के अनुसार कार्यों का बँटवारा, श्रम विभाजन कहलाता है। श्रम विभाजन से श्रमिकों की कार्यकुशलता बढ़ती है, समय और उपकरणों की बचत इष्टतम उत्पादन होती है और मशीनरी का अधिक उपयोग होता है जिसके फलस्वरूप फर्म की उत्पादन लागत गिर जाती है,
(ii) बड़ी मात्रा में एक साथ खरीदारी करने पर कीमत में जो कटौती या छूट (discount) मिलती है, उसे थोक की छूट कहते हैं। दूसरे शब्दों में, कच्चे माल की थोक या बड़े पैमाने पर खरीद, कम कीमत पर की जा सकती है। इससे भी फर्म की उत्पादन लागत कम हो जाती है। इन दो बचतों के अतिरिक्त बड़े पैमाने पर उत्पादन की अन्य बचतें हैं तकनीकी बचतें, प्रबंध संबंधी बचतें, वित्त संबंधी बचतें आदि।
(b) वर्धमान प्रतिफल के परिणामस्वरूप जब औसत लागत (AC) न्यूनतम हो जाती है तो फर्म को कुछ समय के लिए पैमाने के स्थिर प्रतिफल (Constant Returns) प्राप्त होते हैं; जैसे रेखाचित्र में A बिंदु पर स्थिति दर्शायी गई है। इस स्थिति में उत्पादन को, सबसे अधिक कुशलतापूर्वक किए जाने वाला उत्पादन माना जाता है, क्योंकि तब औसत लागत न्यूनतम होती है।
(c) फर्म जब A बिंदु से अधिक उत्पादन करती है तो उसे अवबचतों (diseconomies) के कारण ह्रासमान प्रतिफल प्राप्त होने लगते हैं जिससे लागत बढ़ती जाती है और औसत लागत वक्र ऊपर उठता जाता है। बड़े पैमाने के उत्पादन से अवबचतों के उदाहरण हैं प्रबंध की कठिनाइयाँ, विद्यत शक्ति का पर्याप्त मात्रा में न मिलना, यातायात व वित्त की कठिनाइयाँ. इन उपरोक्त कारणों से LAC वक्र ‘U’ आकार के होते हैं।
प्रश्न 37.
अल्पकालीन और दीर्घकालीन वक्रों की प्रकृति में अंतर बताइए।
उत्तर:
(i) जहाँ अल्पकाल में परिवर्ती अनुपात का नियम लागत वक्रों के आकार को निर्धारित करता है, वहाँ दीर्घकाल में पैमाने के प्रतिफलों का स्वरूप (Pattern) लागत वक्रों के ‘U’ आकार का निर्धारण करता है।
(ii) जहाँ परिवर्ती कारक के वर्धमान (बढ़ते) प्रतिफल की अवस्था के कारण SAC वक्र पहले गिरती है, फिर समान प्रतिफल के कारण SAC स्थिर रहती है, अंततः ह्रासमान (घटते) प्रतिफल के कारण SAC बढ़ती है। फलस्वरूप SAC वक्र ‘U’ आकार का हो जाता है। वहाँ बड़े पैमाने की बचतों (Economies of Scale) के कारण LAC वक्र पहले गिरता है और कुछ समय स्थिर रहने के बाद अवबचतों (Diseconomies) के कारण फिर ऊपर उठ जाता है। फलस्वरूप LAC वक्र ‘U’ आकार का हो जाता है।
(iii) LAC के ‘U’ आकार के कारण LMC भी ‘U’ आकार का हो जाता है अर्थात् LMC का ‘U’ आकार LAC के ‘U’ आकार के कारण बनता है जबकि अल्पकाल में स्थिति विपरीत रहती है, क्योंकि अल्पकाल में AC का ‘U’ आकार MC के ‘U’ आकार के कारण बनता है।
(iv) LAC वक्र SAC वक्र की तुलना में कम ढाल वाला अथवा अधिक चपटा (More Flatter) होता है।
दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
एक तालिका व रेखाचित्र की सहायता से TP, MP और AP में संबंध को स्पष्ट कीजिए। AP और MP में संबंध बताइए।
अथवा
उपयुक्त रेखाचित्र की सहायता से औसत उत्पाद तथा सीमांत उत्पाद के बीच संबंध की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
TP, AP और MP के परस्पर संबंध को निम्न तालिका व रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है TP, AP, MP की काल्पनिक तालिका
भूभि व पूँजी (स्थिर कारक) | श्रम की इकाइयाँ (परिवर्ती कारक) | TP | AP | MP |
1 | 0 | O | 0 | 0 |
1 | 1 | 2 | 2 | 2 |
1 | 2 | 6 | 3 | 4 |
1 | 3 | 12 | 4 | 6 |
1 | 4 | 20 | 5 | 8 |
1 | 5 | 25 | 5 | 5 |
1 | 6 | 29 | 4.8 | 4 |
1 | 7 | 31 | 4.4 | 2 |
1 | 8 | 31 | 3.9 | 0 |
1 | 9 | 29 | 3.2 | -2 |
TP और MP में संबंध-
- जब TP बढ़ती दर से बढ़ता है, तो MP बढ़ता है।
- जब TP घटती हुई दर से बढ़ता है, तो MP घटता है।
- जब TP अधिकतम होता है, तो MP शून्य होता है।
- जब TP घट रहा होता है, तो MP ऋणात्मक (-) होता है।
AP और MP में संबंध-
- जब AP बढ़ता है, तो MP, AP से अधिक होता है (तालिका की चौथी इकाई तक)।
- AP उस समय अधिकतम होता है, जब MP, AP के बराबर होता है। (तालिका की 5वीं इकाई पर)।
- AP तब गिरता है, जब MP, AP से कम होता है।
- MP शून्य व ऋणात्मक हो सकता है, परंतु AP शून्य नहीं हो सकता।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित पर नोट लिखिए (क) उत्पादन के स्थिर कारक (Fixed Factors) व परिवर्ती कारक (Variable Factors)। (ख) अल्पकाल तथा दीर्घकाल (Short Period and Long Period)।
उत्तर:
(क) उत्पादन के स्थिर व परिवर्ती कारक हम जानते हैं कि उत्पादन (निर्गत) कारकों के संयुक्त प्रयत्नों का परिणाम होता है। इन कारकों को हम अग्रलिखित दो श्रेणियों में बाँट सकते हैं-
- स्थिर कारक तथा
- परिवर्ती कारक।
1. स्थिर कारक-स्थिर कारक वे हैं जिनकी मात्रा अल्पकाल में स्थिर रहती है। अतः उत्पादन में परिवर्तन करने के लिए इनकी पूर्ति स्थिर रहती है। इसके अंतर्गत भूमि, उद्यमी तथा प्लांट आदि को शामिल किया जाता है, परंतु दीर्घकाल में इन कारकों को आवश्यकतानुसार बदला जा सकता है।
2. परिवर्ती कारक परिवर्ती कारकों से अभिप्राय, उन कारकों से है जिन्हें उत्पादन प्रक्रिया में आवश्यकतानुसार परिवर्तित किया जा सकता है। इसके अंतर्गत श्रम, कच्चा माल, बिजलीशक्ति आदि को शामिल किया जाता है। वे उत्पा ल बिजलीशक्ति आदि को शामिल किया जाता है। वे उत्पादन के स्तर के अनसार घटाए-बढ़ाए जा सकते हैं। उत्पादन बंद होने पर परिवर्ती कारकों का प्रयोग समाप्त हो जाता है।
किसी वस्त का उत्पादन बढ़ाने के लिए उत्पादन के कारकों की मात्रा बढ़ाई जाती है, इससे उस वस्तु का उत्पादन किस मात्रा में बढ़ता है, उसे उत्पादन के नियम (Laws of Production) कहा जाता है। यह ध्यान रहना चाहिए कि अल्पकाल (Short Period) में हम केवल परिवर्ती कारकों में परिवर्तन करके ही उत्पादन में परिवर्तन ला सकते हैं, जबकि दीर्घकाल में उत्पादन के सभी कारकों में परिवर्तन लाया जा सकता है।।
अतः दीर्घकाल में उत्पादन के पैमाने को कम या अधिक किया जा सकता है। इस प्रकार दीर्घकाल में पैमाने के प्रतिफल तथा अल्पकाल में कारक के प्रतिफल लागू होते हैं।
(ख) अल्पकाल तथा दीर्घकाल
1. अल्पकाल-अल्पकाल समय की वह अवधि होती है जिसमें उत्पादन का कम-से-कम एक या कुछ कारक स्थिर रहते हैं तथा बाकी के कारक परिवर्ती (Variable) होते हैं। अतः अल्पकाल में स्थिर तथा परिवर्ती दोनों प्रकार के कारक होते हैं। अल्पकाल में परिवर्ती कारक की मात्रा में परिवर्तन लाकर ही उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन लाया जा सकता है; जैसे यदि उत्पादक अल्पकाल में उत्पादन में वृद्धि करना चाहते हैं तो वे वर्तमान इमारत, प्लांट, मशीनों और उपकरणों के साथ कच्चे माल, श्रम आदि का अधिक मात्रा में प्रयोग करके ही कर सकते हैं। इसके विपरीत, यदि वे अल्पकाल में उत्पादन में कमी लाना चाहते हैं तो वे कम श्रमिकों और कच्चे माल का कम मात्रा में प्रयोग करके ऐसा कर सकते हैं, परंतु वे कारखाने की इमारत और प्लांट आदि में तुरंत परिवर्तन नहीं कर सकते।
2. दीर्घकाल-दीर्घकाल समय की वह अवधि होती है जिसमें उत्पादन के सभी कारक परिवर्ती होते हैं। दीर्घकाल में कोई कारक स्थिर नहीं होता, सभी कारक परिवर्ती होते हैं। दीर्घकाल में फैक्टरी, बिल्डिंग, प्लांट, मशीनरी आदि सभी में परिवर्तन लाकर उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन लाया जा सकता है।
प्रश्न 3.
कारक/साधन के हासमान/घटते प्रतिफल के नियम को तालिका व रेखाचित्र की सहायता से समझाएँ।
अथवा
ह्रासमान सीमांत प्रतिफल का नियम क्या है? इस नियम के लागू होने के कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:
हासमान सीमांत प्रतिफल का नियम-हासमान सीमांत प्रतिफल का नियम यह बताता है कि, “अन्य कारकों का प्रयोग स्थिर रहने पर, यदि एक परिवर्ती कारक के प्रयोग में वृद्धि की जाती है, तो एक स्तर के बाद सीमांत भौतिक उत्पाद में कमी आने लगती है।” वास्तव में, केवल परंपरावादी अर्थशास्त्री ही इसे अलग नियम का रूप देते हैं अन्यथा आधुनिक अर्थशास्त्री इसे परिवर्ती अनुपात के प्रतिफल के नियम की मात्र एक अवस्था (घटते ह्रासमान प्रतिफल की अवस्था) मानते हैं। चूँकि परिवर्ती अनुपात के नियम में ह्रासमान प्रतिफलों की प्रधानता रहती है। इसीलिए इसे ह्रासमान प्रतिफल के नियम के रूप में प्रतिबिंबित किया जाता है। वास्तव में, एक उद्योग में वर्धमान प्रतिफल का नियम प्रकट हो या न हो, ह्रासमान प्रतिफल का नियम अन्ततः अवश्य प्रकट होता है।
हासमान सीमांत प्रतिफल का नियम
तालिका व रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शन-इस नियम को दी गई तालिका एवं रेखाचित्र की सहायता से अधिक स्पष्ट किया जा सकता है। मान लो, भूमि पर खेती करने में जब श्रम व पूँजी की मात्रा (इकाइयाँ) बढ़ाई जाती हैं तो कुल उत्पाद घटती दर से बढ़ता है अर्थात् सीमांत उत्पाद निरंतर घटता जाता है। तालिका का चित्रीकरण करने से MP वक्र के ढलान से स्पष्ट हो जाता है कि जैसे-जैसे पूँजी व श्रम की इकाइयाँ बढ़ाई जाती हैं वैसे-वैसे सीमांत उत्पाद (MP) गिरता जाता है और वक्र बाएँ से दाईं ओर नीचे गिरता है।
तालिका : हासमान प्रतिफल का नियम
स्थिर कारक (भूमि) | श्रम व पूँजी की इकाइयाँ | कुल उत्पाद (TP) | सीमांत उत्पाद (MP) |
x | 1 | 50 | 50 |
x | 2 | 90 | 40 |
x | 3 | 120 | 30 |
x | 4 | 140 | 20 |
नियम लागू होने के कारण इस नियम के लागू होने के निम्नलिखित कारण हैं-
1. इष्टतम उत्पादन प्रत्येक स्थिर कारक का एक इष्टतम अथवा आदर्श बिंदु होता है जिस पर उसका श्रेष्ठतम उपयोग होता है। इस इष्टतम बिंदु के आ जाने के बाद जब स्थिर कारक के साथ परिवर्ती कारक (Variable Factor) की इकाई को बढ़ाया जाता है, तो सीमांत प्रतिफल कम होने लगते हैं।
2. अपूर्ण स्थानापन्न घटते हुए प्रतिफल का दूसरा मुख्य कारण साधनों की पूर्ण स्थानापन्नता का अभाव (Lack of Perfect Substitution) है; जैसे भूमि के स्थान पर श्रम व पूँजी का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
3. उत्पादन के कुछ स्थिर कारक होते हैं इस नियम के लागू होने का एक कारण यह है कि उत्पादन का एक या कुछ कारक स्थिर रखे जाते हैं और इसके साथ परिवर्ती कारकों की मात्रा बढ़ाई जाती है, तो स्थिर कारक का अनुपात परिवर्ती कारकों की तुलना में कम हो जाता है। फलस्वरूप एक सीमा के बाद सीमांत उत्पाद घटने लगता है।
प्रश्न 4.
अल्पकालीन औसत लागत वक्र ‘U’ के आकार की क्यों होती है?
उत्तर:
अल्पकालीन औसत लागत वक्र ‘U’ आकार की होती है। पहले बाएँ से दाएँ नीचे की ओर गिरती है फिर एक न्यूनतम बिंदु पर पहुँचने के बाद बढ़ने लगती है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है।
अल्पकालीन औसत लागत वक्र के ‘U’ के आकार की होने के निम्नलिखित दो कारण होते हैं
1. औसत स्थिर लागत व औसत परिवर्ती लागत का व्यवहार (Behaviour of AFC and AVC) – औसत लागत, AFC और AVC का जोड़ होती है। उत्पादन में जैसे-जैसे वृद्धि होती जाती है, वैसे-वैसे AFC घटती जाती है और आरंभ में AVC भी घटती है। अतः आरंभ में AC भी घटती है। बाद में AFC के गिरने की दर कम हो जाती है और AVC तीव्रता से बढ़ने लगती है। परिणामस्वरूप AC भी बढ़ने लगती है। इसलिए औसत लागत वक्र ‘U’ के आकार की हो जाती है।
2. परिवर्ती अनुपात के नियम का लागू होना (Due to Operation of the Law of Variable Proportions) – आरंभ में स्थिर कारक के साथ जब परिवर्ती कारक की मात्रा बढ़ाई जाती
है तो स्थिर कारक का अधिक कुशलतापूर्वक प्रयोग होने के कारण AC कम होने लगती है। G बिंदु पर AC न्यूनतम हो जाती है। यह बिंदु आदर्श उत्पादन का बिंदु है। इसका अर्थ यह है कि स्थिर कारक का कुशलतम उपयोग हो रहा है। इसके बाद जब स्थिर कारक के साथ परिवर्ती कारक की मात्रा बढ़ाई जाती है तो इसकी कार्यकुशलता कम हो जाती है और इसके फलस्वरूप औसत लागत बढ़ने लगती है तथा ‘U’ के आकार की बन जाती है।
प्रश्न 5.
परिवर्ती अनुपात के नियम (Law of Variable Proportions) को तालिका व रेखाचित्र द्वारा समझाइए।
अथवा
परिवर्ती अनुपात के नियम की तालिका एवं रेखाचित्र सहित व्याख्या करें। एक फर्म (उत्पादक) के लिए नियम की किस अवस्था में उत्पादन करना उपयुक्त होगा?
अथवा
परिवर्ती अनुपात का नियम क्या है? यह नियम किन कारणों से लागू होता है?
उत्तर:
परिवर्ती अनुपात का नियम यह बतलाता है कि, “अल्पकाल में, जब अन्य कारकों को स्थिर रखते हुए एक परिवर्ती कारक की इकाइयाँ बढ़ाई जाती हैं, तो पहले कुल भौतिक उत्पाद (TPP) बढ़ती दर से बढ़ता है, एक सीमा के बाद कुल उत्पाद में वृद्धि घटती दर से होती है और अंततः कुल उत्पाद घटने लगता है अर्थात् पहले सीमांत भौतिक उत्पाद (MPP) बढ़ता है, फिर कम होने लगता है लेकिन धनात्मक रहता है और अंत में ऋणात्मक हो जाता है।”
परिवर्ती अनुपात का नियम
तालिका व रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शन-उपरोक्त नियम को निम्नांकित तालिका व रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
मान लो, जब स्थिर कारकों (जैसे 2 एकड़ भूमि या पूँजी की दो इकाइयों) पर किसी परिवर्ती कारक (जैसे श्रम) की इकाइयाँ बढ़ाई जाती हैं, तो कुल उत्पाद, औसत उत्पाद तथा सीमांत उत्पाद निम्नलिखित प्रकार से परिवर्तन होगा-
परिवर्ती अनुपात के नियम की अवस्थाएँ-ऊपर दी गई तालिका व संलग्न रेखाचित्र से इस नियम की निम्नलिखित तीन अवस्थाएँ या चरण स्पष्ट होते हैं
1. पहली अवस्था-तालिका से स्पष्ट है कि आरंभ में जब श्रम की अधिकाधिक इकाइयाँ स्थिर कारक भूमि पर लगाई जाती हैं, तो श्रम की तीसरी इकाई तक सीमांत उत्पाद (MP) बढ़ता जाता है इस स्थिति में कल उत्पाद (TP) बढ़ती दर से बढ़ता है। कारक के वर्धमान (बढ़ते) प्रतिफल की है। रेखाचित्र में यह अवस्था उत्पादन स्तर O बिंदु से शुरू कर Q1 बिंदु पर समाप्त हो जाती है। इस अवस्था में कुल उत्पाद (TP) बढ़ती दर से बढ़ता है जैसाकि अग्रांकित रेखाचित्र में TP वक्र O से M तक बढ़ती दर से बढ़ रहा है। इस अवस्था को बढ़ते प्रतिफल की अवस्था कहा जाता है।
2. दूसरी अवस्था दूसरी अवस्था में, श्रम की चौथी इकाई पर ह्रासमान सीमांत प्रतिफल की स्थिति आरंभ हो जाती है। सीमांत उत्पाद (MP) घटने लगता है तथा कुल उत्पाद (TP) घटती दर से बढ़ता है। सीमांत उत्पाद घटते-घटते शून्य हो जाता है। जब सीमांत उत्पाद शून्य होता है तो कुल उत्पाद अधिकतम (30) हो जाता है। रेखाचित्र में (TP) वक्र बिंदु M से बिंदु N तक घटती दर से बढ़ता हुआ अपने अधिकतम बिंदु N पर स्थिर हो जाता है। इस अवस्था में MP गिरना शुरू कर देता है और घटते-घटते बिंदु Q2 पर शून्य हो जाता है। रेखाचित्र में दूसरी अवस्था उत्पादन स्तर के Q1 बिंदु से शुरू होकर Q2 पर समाप्त होती है। इस क्षेत्र को परिवर्ती अनुपात के नियम की ह्रासमान प्रतिफल की अवस्था कहा जाता है। कोई भी फर्म दूसरी अवस्था में ही कार्यशील होने का
नतिपरिवर्तक बिंदु-यह वह बिंदु है जहाँ TP के ढाल में परिवर्तन होता है। इस बिंदु तक TP बढ़ती दर से बढ़ता है और इसके बाद TP घटती दर से बढ़ता है। यह बिंदु पहली अवस्था के अंत को और दूसरी अवस्था के आरंभ को बताता है। रेखाचित्र में M बिंदु नतिपरिवर्तक बिंदु दिखाया गया है।
3. तीसरी अवस्था इस अवस्था में MP ऋणात्मक हो जाता है। MP के ऋणात्मक होने पर TP गिरना शुरू हो जाता है जैसाकि तालिका में 7वीं इकाई लगाने पर TP 30 से कम होकर 28 हो गया बिन्दु N है। फलस्वरूप TP वक्र नीचे की ओर ढलना शुरू हो जाता है। जैसाकि रेखाचित्र में TP वक्र बिंदु N से नीचे गिरता हुआ दिखाई देता है। MP ऋणात्मक (-) हो जाता है और MP वक्र X-अक्ष के नीचे चला जाता है। इस अवस्था को ऋणात्मक प्रतिफल की अवस्था कहते हैं।
फर्म कौन-सी अवस्था में उत्पादन करेगी? कोई भी फर्म दूसरी अवस्था में उत्पादन करना चाहेगी। पहली अवस्था में फर्म आदर्श कारक आगत मिश्रण की ओर बढ़ने के कारण उत्पादन बंद करने की बजाए परिवर्ती कारक की इकाइयाँ बढ़ाती जाएगी। तीसरी अवस्था में आदर्श मिश्रण टूट जाने से सीमांत उत्पाद ऋणात्मक होने व कुल उत्पाद गिरने के कारण फर्म उत्पादन नहीं करेगी। अतः कोई भी सनझदार फर्म दूसरी अवस्था में अपने उत्पादन की मात्रा का निर्णय लेगी।
नियम लागू होने के कारण इस नियम के अंतर्गत पहले बढ़ते हुए प्रतिफल और बाद में घटते हुए प्रतिफल प्राप्त होने के कारण निम्नलिखित हैं
1.स्थिर कारकों (जैसे मशीनरी) का अनुकूलतम उपयोग-आरंभ में अधूरे उपयोग में लाए जाने वाले स्थिर कारक जैसे मशीन पर परिवर्ती कारक (साधन) की इकाइयाँ बढ़ाने से कारक-मिश्रण आदर्श हो जाने से कारकों का बेहतर व पूर्ण उपयोग होने लगता है। फलस्वरूप उत्पादन बढ़ती दर से प्राप्त होता है। परंतु अनुकूलतम बिंदु प्राप्त होने के बाद भी परिवर्ती कारक की मात्रा बढ़ाने पर कारकों का आदर्श मिश्रण टूट जाता है जिससे ह्रासमान (घटते) प्रतिफल शुरू हो जाता है।
2. श्रम विभाजन व विशिष्टीकरण-जैसे-जैसे श्रम की इकाइयाँ बढ़ाई जाती हैं वैसे-वैसे श्रम विभाजन और विशिष्टीकरण बढ़ता जाता है जिससे शुरू में बढ़ते प्रतिफल प्राप्त होते हैं, परंतु एक सीमा के बाद कुशलता गिरने लगती है जिससे घटते प्रतिफल आने लगते हैं।
3. थोक पर छूट-यह बड़ी मात्रा में एक साथ कच्चा माल आदि की खरीद पर कीमत में मिलने वाली छूट है जो वर्धमान प्रतिफल प्राप्त होने में सहायक होती है। संक्षेप में, कारकों का आदर्श मिश्रण प्राप्त होना और फिर छूट जाना ही परिवर्ती अनुपात के नियम लागू होने का मुख्य कारण है।
उल्लेखनीय है कि यद्यपि परिवर्ती अनुपात के प्रतिफल के अंतर्गत हमने तीन अवस्थाएँ वर्धमान, ह्रासमान और ऋणात्मक बतलाई हैं। परंतु परिवर्ती अनुपात के नियम को प्रायः ह्रासमान प्रतिफल का नियम कहा जाता है क्योंकि परिवर्ती अनुपात के नियम में मुख्य बात घटता हुआ (ह्रासमान) प्रतिफल है।
प्रश्न 6.
औसत लागत और सीमांत लागत की परिभाषा दीजिए। सीमांत लागत और औसत लागत के बीच संबंध बताइए।
अथवा
औसत लागत और सीमांत लागत से आप क्या समझते हैं? औसत लागत और सीमांत लागत के बीच पाए जाने वाले संबंध को तालिका एवं रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
औसत लागत औसत लागत से अभिप्राय उत्पादन (निर्गत) की प्रति इकाई कुल लागत से है। कुल लागत को उत्पादन की मात्रा से भाग देने पर औसत लागत प्राप्त होती है। सूत्र के रूप में,
सीमांत लागत-सीमांत लागत से अभिप्राय किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई का उत्पादन (निर्गत) करने की लागत से है। सूत्र के रूप में,
औसत तथा सीमांत लागत में संबंध-औसत और सीमांत लागत में घनिष्ठ संबंध पाया जाता है, जिसे निम्नलिखित प्रकार – से स्पष्ट किया गया है
(1) दोनों औसत लागत और सीमांत लागत की गणना कुल लागत से की जाती है जैसे कि
AC = \(\frac { TC }{ q }\) और MCn = TCn – TCn-1
(2) जब औसत लागत घटती है, तो सीमांत लागत भी घटती है। इस अवस्था में सीमांत लागत औसत लागत से कम होती है।
(3) जेब औसत लागत स्थिर रहती है तो सीमांत लागत औसत लागत के बराबर होती है।
(4) जब औसत लागत बढ़ती है, तो सीमांत लागत भी बढ़ती है। इस अवस्था में सीमांत लागत औसत लागत से अधिक रहती है।
AC और MC के बीच पाए जाने वाले दूसरे, तीसरे तथा चौथे संबंध को संलग्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं-
(5) सीमांत लागत का न्यूनतम बिंदु औसत लागत के न्यूनतम बिंदु से पहले आता है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दिखाया गया है-
(6) जब औसत लागत पहले गिर रही हो तथा बाद में बढ़ रही हो तो सीमांत लागत वक्र औसत लागत वक्र के न्यूनतम बिंदु से गुजरता है अर्थात् सीमांत लागत वक्र औसत लागत वक्र को उसके न्यूनतम बिंदु पर नीचे से काटता हुआ ऊपर को चला जाता है।
औसत और सीमांत लागत के बीच पाए जाने वाले संबंध को निम्नांकित तालिका एवं रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
तालिका
उत्पादन मात्रा (इकाइ) (Q) | कुल लागत (TC) | औसत लागत (AC) = (TC + Q) | सीमांत लागत (MC) |
1 | 20 | 20 | 20 |
2 | 28 | 14 | 8 |
3 | 34 | 11.3 | 6 |
4 | 38 | 9.5 | 4 |
5 | 42 | 8.4 | 4 |
6 | 48 | 8 | 6 |
7 | 56 | 8 | 8 |
8 | 72 | 9 | 16 |
तालिका से स्पष्ट है कि आरंभ में औसत तथा सीमांत लागत दोनों गिर रही हैं। उत्पादन की छठी इकाई तक औसत लागत गिर रही है तो सीमांत लागत औसत लागत से कम है। उत्पादन की 7वीं इकाई पर औसत लागत स्थिर है तो सीमांत लागत औसत लागत के बराबर है। 8वीं इकाई पर औसत लागत बढ़ रही है तो सीमांत लागत औसत लागत से अधिक है। तालिका से यह भी स्पष्ट है कि औसत लागत का न्यूनतम बिंदु 8वीं इकाई पर है, जबकि सीमांत लागत का न्यूनतम बिंदु 5वीं इकाई पर है। औसत व सीमांत लागत के संबंध को रेखाचित्र द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है-
रेखाचित्र में AC औसत लागत वक्र तथा MC सीमांत लागत वक्र है। स्पष्ट है कि जब औसत लागत वक्र नीचे की ओर गिर रहा है तो सीमांत लागत वक्र औसत लागत वक्र के नीचे रहता है। जब औसत लागत स्थिर है तो सीमांत लागत वक्र इसके बराबर होता हुआ इसके न्यूनतम बिंदु पर नीचे से काटता है और जब औसत लागत वक्र ऊपर की ओर उठ रहा है तो सीमांत लागत वक्र के ऊपर रहता है।
प्रश्न 7.
पैमाने के प्रतिफल के नियम से आप क्या समझते हैं? इसकी अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
उदाहरण देकर पैमाने के प्रतिफल के नियम को समझाइए। यह किन कारणों से लागू होता है?
उत्तर:
पैमाने के प्रतिफल का अर्थ-पैमाने के प्रतिफल का संबंध सभी कारकों/ साधनों की मात्रा में एक ही अनुपात से परिवर्तन करने के फलस्वरूप कुल उत्पादन में होने वाले परिवर्तन से है। अन्य शब्दों में, उत्पादन के सभी कारकों की इकाइयों में समान अनुपात में वृद्धि करने से कुल भौतिक उत्पाद (TPP) में हुई वृद्धि को ‘पैमाने के प्रतिफल’ कहते हैं। यह एक दीर्घकालीन धारणा है। पैमाने को प्रतिफल इसलिए कहा जाता है क्योंकि उत्पादन के सभी कारकों को बढ़ाने से उत्पाद का पैमाना (Scale of Production) ही बदल जाता है अर्थात् उत्पादन छोटे पैमाने से बड़े पैमाने पर होने लगता है। संक्षेप में, पैमाने के प्रतिफल बताते हैं कि सभी कारकों को एक निश्चित अनुपात में बढ़ाने से कुल उत्पाद पर क्या प्रभाव पड़ता है।
पैमाने के प्रतिफल के नियम की अवथाएँ-पैमाने के प्रतिफल में उत्पादन की तीन अवस्थाएँ देखने को मिलती हैं-
1. पैमाने के वर्धमान (बढ़ते) प्रतिफल-माना कि उत्पादन के दो ही कारक (साधन) हैं श्रम (L) तथा मशीन (K)। सभी कारकों का प्रयोग एक ही अनुपात में बढ़ाए जाने पर यदि कुल उत्पाद में उस अनुपात से अधिक वृद्धि होती है तो यह पैमाने के वर्धमान प्रतिफल की अवस्था होगी। कुल भौतिक उत्पाद (TPP) में बढ़ती दर से वृद्धि होती है अर्थात् सीमांत भौतिक उत्पाद (MPP) क्रमशः बढ़ता जाता है। सभी कारकों की इकाइयों को दुगुना करने से उत्पाद दुगुने से भी अधिक हो जाता है।
2. पैमाने के स्थिर (समानुपाती) प्रतिफल-सभी कारकों का प्रयोग एक ही अनुपात में बढ़ाए जाने पर यदि उत्पादन भी उसी अनुपात में बढ़े जिस अनुपात में सभी कारकों के प्रयोग में वृद्धि की गई है, तो यह पैमाने के स्थिर प्रतिफल की स्थिति होगी। TPP में स्थिर दर से वृद्धि होती है और MPP समान रहता है। यह संक्रमणकालीन अवस्था होती है जो वर्धमान प्रतिफल की समाप्ति और ह्रासमान प्रतिफल के आरंभ के बीच में पाई जाती है। कारकों को दुगुना करने पर उत्पादन भी दुगुना हो जाता है।
3. पैमाने के हासमान (घटते) प्रतिफल-सभी कारकों का प्रयोग एक ही अनुपात में बढ़ाए जाने पर यदि उत्पादन में उस अनुपात से कम वृद्धि हो तो पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल की अवस्था होगी। TPP में घटती दर से वृद्धि होती है तथा MPP घटता है। कारकों को दुगुना करने पर उत्पादन दुगुने से कम होता है।
पैमाने के प्रतिफलों की तीनों अवस्थाओं को निम्नलिखित तालिका द्वारा भी स्पष्ट किया गया है-
1. तालिका के कॉलम (3) में दर्शाए गए साधनों (श्रम तथा पूँजी) में होने वाली % वृद्धि की गणना निम्नलिखित विधि द्वारा की गई है
पूँजी में % वृद्धि = \(\frac { 2-1 }{ 1 }\) x 100 = 100% ; = \(\frac { 3-2 }{ 2 }\) 100 = 50%
इसी प्रकार श्रम में प्रतिशत वृद्धि की गणना की गई है।
श्रम में % वृद्धि = \(\frac { 4-2 }{ 2 }\) x 100 = 100% ; = \(\frac { 6-4 }{ 4 }\) x 100 = 50%
यह स्पष्ट है कि श्रम तथा पूँजी में होने वाला % परिवर्तन एक-दूसरे के बराबर है, क्योंकि इन दोनों में समान अनुपात में परिवर्तन होता है।
2. तालिका के कॉलम (4) में प्रकट किए गए कुल भौतिक उत्पाद के % परिवर्तन की गणना निम्नलिखित विधि द्वारा की गई है-
= \(\frac { 30-10 }{ 10 }\) x 100 = 200%; = \(\frac { 60-30 }{ 30 }\) x 100 = 100%
तालिका से स्पष्ट है कि पैमाने की तीसरी वृद्धि तक उत्पादन में वृद्धि कारकों के अनुपात में हुई वृद्धि से अधिक है। यह पैमाने के वर्धमान (बढ़ते) प्रतिफल की स्थिति है। पैमाने की चौथी तथा पाँचवीं वृद्धि से स्पष्ट है कि उत्पादन में वृद्धि कारकों के अनुपात में होने वाली वृद्धि के बराबर है। यह पैमाने के समान प्रतिफल का प्रतीक है। पैमाने की 6वीं, 7वीं और 8वीं वृद्धि से स्पष्ट है कि उत्पादन में वृद्धि कारकों के अनुपात में होने वाली वृद्धि से कम है जो कि पैमाने के ह्रासमान (घटते) प्रतिफल को दर्शाती है।
पैमाने के प्रतिफल के कारण – पैमाने के प्रतिफल वास्तव में बचतों (किफायतों) और अवबचतों के कारण प्राप्त होते हैं। यहाँ तक कि पैमाने के वर्धमान प्रतिफल का दूसरा नाम पैमाने की बचतें (Economies of Scale) हैं और घटते हुए प्रतिफल का दूसरा नाम पैमाने की अवबचतें (Diseconomies of Scale) हैं।
संख्यात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-
श्रम की इकाइयाँ | कुल उत्पाद (TP) | औसत उत्पाद (AP) | सीमांत उत्पाद (MP) |
1 | 50 | – | – |
2 | 90 | – | – |
3 | 120 | – | – |
4 | 140 | – | – |
5 | 150 | – | – |
6 | 150 | – | – |
7 | 140 | – | – |
8 | 120 | – | – |
हल:
श्रम की इकाइयाँ | कुल उत्पाद (TP) | औसत उत्पाद (AP) | सीमांत उत्पाद (MP) |
1 | 50 | 50 | 50 |
2 | 90 | 45 | 40 |
3 | 120 | 40 | 30 |
4 | 140 | 35 | 20 |
5 | 150 | 30 | 10 |
6 | 150 | 25 | 0 |
7 | 140 | 20 | -10 |
8 | 120 | 15 | -20 |
प्रश्न 2.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-
श्रम की इकाइयाँ | कुल उत्पाद (TP) | औसत उत्पाद (AP) | सीमांत उत्पाद (MP) |
1 | – | – | 20 |
2 | – | – | 16 |
3 | – | – | 12 |
4 | – | – | 8 |
5 | – | – | 4 |
6 | – | – | 0 |
7 | – | – | -4 |
8 | – | – | 20 |
हल:
श्रम की इकाइयाँ | कुल उत्पाद (TP) | औसत उत्पाद (AP) | सीमांत उत्पाद (MP) |
1 | 20 | 20 | 20 |
2 | 36 | 18 | 16 |
3 | 48 | 16 | 12 |
4 | 56 | 14 | 8 |
5 | 60 | 12 | 4 |
6 | 60 | 10 | 0 |
7 | 56 | 8 | -4 |
प्रश्न 3.
निम्नलिखित तालिका एक कारक (साधन) की APP को दर्शाती है। ऐसा मालूम है कि रोजगार के शून्य स्तर पर TPP शून्य होती है तथा MPP तालिका का निर्धारण कीजिए।
रोजगार का स्तर | 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 |
APP | 50 | 48 | 45 | 42 | 39 | 35 |
हल:
कारक (साधन) के रोजगार का स्तर | APP | TPP | MPP |
1 | 50 | 50 | 50 |
2 | 48 | 96 | 46 |
3 | 45 | 135 | 39 |
4 | 42 | 168 | 33 |
5 | 39 | 195 | 27 |
6 | 35 | 210 | 15 |
प्रश्न 4.
निम्नलिखित तालिका में कुल भौतिक उत्पाद (TPP) सारणी दी गई है। औसत भौतिक उत्पाद (APP) तथा सीमांत भौतिक उत्पाद (MPP) का आकलन करें-
कारक (साधन) | 0 | 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 |
TPP | 0 | 5 | 12 | 20 | 28 | 35 | 40 | 42 |
हल :
कारक (साधन) | TPP | APP | MPP |
0 | 0 | 0 | 0 |
1 | 5 | 5 | 5 |
2 | 12 | 6 | 7 |
3 | 20 | 6.66 | 8 |
4 | 28 | 7 | 8 |
5 | 35 | 7 | 7 |
6 | 40 | 6.66 | 5 |
7 | 42 | 6 | 2 |
प्रश्न 5.
निम्नलिखित तालिका में एक कारक की MPP की जानकारी दी जा रही है। हम जानते हैं कि यदि कारक प्रयोग शून्य हो तो TPP भी शून्य रहता है। TPP तथा APP सारणियों की रचना करें-
कारक (साधन) रोजगार स्तर | 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 |
MPP | 20 | 22 | 18 | 16 | 14 | 6 |
हल:
कारक (साधन) रोजगार स्तर | MPP | TPP | APP |
1 | 20 | 20 | 20 |
2 | 22 | 42 | 21 |
3 | 18 | 60 | 20 |
4 | 16 | 76 | 19 |
5 | 14 | 90 | 18 |
6 | 6 | 96 | 16 |
प्रश्न 6.
निम्न तालिका को पूरा कीजिए
कारक (इकाइयाँ) | कुल उत्पाद (₹) | औसत उत्पाद | सीमांत उत्पाद |
1 | 20 | — | — |
2 | — | — | 18 |
3 | — | — | 16 |
4 | — | — | 14 |
5 | — | — | 12 |
6 | — | — | 10 |
हल :
कारक (इकाइयाँ) | कुल उत्पाद (₹) | औसत उत्पाद | सीमांत उत्पाद |
1 | 20 | 20 | 20 |
2 | 38 | 19 | 18 |
3 | 54 | 18 | 16 |
4 | 68 | 17 | 14 |
5 | 80 | 16 | 12 |
6 | 90 | 15 | 10 |
प्रश्न 7.
निम्नलिखित तालिका में एक फर्म की सकल लागत सारणी दी गई है-
(क) इस फर्म की कुल स्थिर लागत (TFC) क्या है?
(ख) फर्म की AFC,AVC, ATC तथा MC सारणियाँ बनाइए।
हल :
प्रश्न 8.
निम्नलिखित तालिका उत्पादन के विभिन्न स्तरों पर एक फर्म की सीमांत लागत दर्शाती है। इसकी TFC 120 रु० है। उत्पादन के प्रत्येक स्तर की ATC तथा AVC ज्ञात कीजिए।
उत्पादन (इकाई में) | 1 | 2 | 3 |
MC (रुपए में) | 40 | 30 | 26 |
हल :
प्रश्न 9.
नीचे दी गई तालिका उत्पादन के विभिन्न स्तरों पर फर्म की कुल लागत दर्शाती है। उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर MC और AVC निकालिए।
उत्पादन (इकाइयों में) | 0 | 1 | 2 | 3 | 4 |
TC (रुपयों में) | 100 | 160 | 212 | 280 | 356 |
हल :
प्रश्न 10.
नीचे दी गई कुल लागत अनुसूची से औसत लागत और सीमांत लागत ज्ञात कीजिए-
उत्पादन की मात्रा (इकाइयों में) | 0 | 1 | 2 |
TC (रुपए में) | 10 | 15 | 22 |
हल:
AC तथा MC की गणना
प्रश्न 11.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए
हल :
[संकेत : TFC = TC (उत्पादन के शून्य स्तर पर)]
प्रश्न 12.
नीचे दिए गए फर्म के लागत फलन से निम्नलिखित के मान निकालिए (a) कुल स्थिर लागत, (b) कुल परिवर्ती लागत, (c) औसत स्थिर लागत, (a) औसत कुल लागत, (e) औसत परिवर्ती लागत, (f) सीमांत लागत।
हल :
प्रश्न 13.
नीचे दी गई तालिका से सीमांत लागत निकालिए-
हल : सीमांत लागत की गणना
उत्पादन की मात्रा (कि०ग्रा०) | औसत परिवर्ती लागत (AVC) (रु०) | कुल परिवर्ती लागत (TVC) (रु०) | सीमांत लागत (MC) (रु०) |
1 | 60 | 60 | – |
2 | 40 | 80 | 20 |
3 | 30 | 90 | 10 |
4 | 26.25 | 105 | 15 |
5 | 28 | 140 | 35 |
6 | 35 | 210 | 70 |
[संकेत : सीमांत लागत की गणना TVC की सहायता से की जा सकती है।]
प्रश्न 14.
एक फर्म की नीचे दी गई लागत अनुसूची से उसके उत्पादन के कुल लागत (TC) और औसत परिवर्ती लागत (AVC) का परिकलन कीजिए।
हल :
उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर TFC (q x AFC) स्थिर रहती है और TVC = EMCs.
प्रश्न 15.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-
हल :
प्रश्न 16.
एक फर्म की कुल स्थिर लागत 10 रुपए है और उसकी लागत अनुसूची नीचे दी गई है। कुल परिवर्ती लागत (TVC) तथा ‘कुल लागत’ (TC) का परिकलन कीजिए।
उत्पादन (इकाइयों में) | 1 | 2 | 3 | 4 |
सीमांत लागत (रुपयों में) | 6 | 5 | 4 | 6 |
हल:
उत्पादन की इकाइयाँ | सीमांत लागत (MC) (रु०) | कुल परिवर्ती लागत (TVC) (रु०) | कुल स्थिर लागत (TFC) (रु०) | कुल लागत (TC) (रु०) |
1 | 6 | 6 | 10 | 16 |
2 | 5 | 11 | 10 | 21 |
3 | 4 | 15 | 10 | 25 |
4 | 6 | 21 | 10 | 31 |
सूत्रों का प्रयोग (i) कुल परिवर्ती लागत = MC1 + MC2 + ………….
(ii) कुल लागत = कुल परिवर्ती लागत + कुल स्थिर लागत।
प्रश्न 17.
दिए गए आँकड़ों की सहायता से कुल बंधी लागत तथा कुल परिवर्तनशील लागत ज्ञात कीजिए
उत्पादन (इकाइयाँ) | 0 | 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 |
कुल लागत (ऊ०) | 100 | 120 | 140 | 182 | 198 | 208 | 232 |
हल :
उत्पादन (इकाइयाँ) | कुल लागत (रु०) | कुल बंधी लागत (रु०) | कुल परिवर्तनशील लागत (रु०) |
0 | 100 | 100 | 0 |
1 | 120 | 100 | 20 |
2 | 140 | 100 | 40 |
3 | 182 | 100 | 82 |
4 | 198 | 100 | 98 |
5 | 208 | 100 | 108 |
6 | 232 | 100 | 132 |
प्रश्न 18.
एक फर्म के बारे में निम्नलिखित सूचनाएँ दी गई हैं। इस सूचना के आधार पर ज्ञात कीजिए
(i) 3 इकाइयाँ उत्पादित करने की AFC
(ii) 4 इकाइयाँ उत्पादित करने की AVC
(ii) न्यूनतम औसत लागत (AC) का उत्पादन स्तर
(iv) पाँचवीं इकाई उत्पादित करने की MC
(v) 6 इकाइयाँ उत्पादित करने की कुल परिवर्ती लागत (TVC)
हल:
- 3 इकाइयाँ उत्पादित करने की AFC = 50 रु०
- 4 इकाइयाँ उत्पादित करने की AVC = 160 रु०
- न्यूनतम AC का उत्पादन स्तर = 4 इकाई
- पाँचवीं इकाई उत्पादित करने की MC = 210 रु०
- 6 इकाइयाँ उत्पादित करने की TVC = 1110 रु०
प्रश्न 19.
यदि स्थिर लागत 20 रु० हो तो निम्नलिखित तालिका से TVC तथा TC का परिकलन कीजिए।
उस्पादन (इकाइयाँ) | 0 | 1 | 2 | 3 |
सीमांत जागत (र०० में) | 0 | 10 | 15 | 25 |
हल :
उत्पादन (इकाइयाँ) | FC (रु०) | MC (रु०) | TVC (रु०) | TC(FC+TVC) (रु०) |
0 | 20 | 0 | 0 | 20 |
1 | 20 | 10 | 10 | 30 |
2 | 20 | 15 | 25 | 45 |
3 | 20 | 25 | 50 | 70 |
प्रश्न 20.
उत्पादन के दिए गए प्रत्येक स्तर पर निम्नलिखित तालिका से TVC और MC का परिकलन कीजिए।
उस्पादन (इकाइयाँ) | 0 | 1 | 2 | 3 | 4 |
कुल लागत (रु०) | 40 | 60 | 78 | 97 | 124 |
हल:
उत्पादन (इकाइयाँ) | TC (रु०) | TFC (रु०) | TVC (रु०) | MC (रु०) |
0 | 40 | 40 | – | – |
1 | 60 | 40 | 20 | 20 |
2 | 78 | 40 | 38 | 18 |
3 | 97 | 40 | 57 | 19 |
4 | 124 | 40 | 84 | 27 |
प्रश्न 21.
एक फर्म की TFC 12 रु० है। इसकी तालिका नीचे दी गई है। उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर TC और AVC ज्ञात कीजिए।
हल:
प्रश्न 22.
निम्नलिखित तालिका उत्पादन के विभिन्न स्तरों पर एक फर्म की सीमांत लागत (MC) दर्शाती है। इसकी कुल स्थिर लागत (TFC) 120 रु० है। उत्पादन के प्रत्येक स्तर की औसत कुल लागत (ATC) और औसत परिवर्ती लागत (AVC) ज्ञात कीजिए।
उस्पादन (इकाइयाँ) | 1 | 2 | 3 |
सीमांत जागत (र०) | 40 | 30 | 26 |
हल:
प्रश्न 23.
निम्नलिखित तालिका उत्पादन के विभिन्न स्तरों पर एक फर्म की कुल लागत (TC) दर्शाती है। उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर औसत परिवर्ती लागत (AVC) और सीमांत लागत (MC) ज्ञात कीजिए।
उस्पादन (इकाइयाँ) | 0 | 1 | 2 | 3 |
कुल लागत (रुपये) | 60 | 100 | 130 | 150 |
हल:
प्रश्न 24.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-
उत्पदन | कुल परिवर्ती लागत | औसत परिवर्ती लागत | सीमांत लागत |
1 | – | 12 | – |
2 | 20 | – | – |
– | – | 10 | 10 |
4 | 40 | – | – |
हल:
उत्पदन | कुल परिवर्ती लागत | औसत परिवर्ती लागत | सीमांत लागत |
1 | 12 | 12 | 12 |
2 | 20 | 10 | 8 |
3 | 30 | 10 | 10 |
4 | 40 | 10 | 10 |
प्रश्न 25.
एक फर्म 20 इकाइयों का उत्पादन कर रही है। इस उत्पादन स्तर पर उसके ATC तथा AVC क्रमशः 40 रुपए तथा 37 रुपए हैं। फर्म की कुल स्थिर लागतें ज्ञात करें।
हल :
उत्पादन इकाइयों की संख्या = 20
ATC = 40 रुपए
AVC = 37 रुपए
TC = 20 x 40 = 800 रुपए
TVC = 20 x 37 = 740 रुपए
फर्म की कुल स्थिर लागत = TC – TVC
= 800 – 740 = 60 रुपए
वैकल्पिक हल
AFC = ATC – AVC
= 40 – 37 = 3 रुपए
कुल स्थिर लागत = उत्पादन इकाइयाँ x AFC
= 20 x 3 = 60 रुपए
प्रश्न 26.
एक फर्म के उत्पादन विभाग के एक सप्ताह के आँकड़े निम्नलिखित प्रकार हैं
सेवायोजित श्रमिकों की संख्या | 50 |
उत्पादन इकाइयों की संख्या | 100 |
प्रत्येक श्रमिक की साप्ताहिक मज़दूरी | 200 रुपए |
शेड का साप्ताहिक किराया | 400 रुपए |
प्रयुक्त कच्चा माल | 1,600 रुपए |
शक्ति | 300 रुपए |
कुल लागत एवं औसत परिवर्ती लागत का अनुमान कीजिए।
हल:
1. श्रमिकों का वेतन = 200 x 50 = 10,000 रुपए
2. साप्ताहिक शेड का किराया = 400 रुपए
3. कच्चा माल = 1,600 रुपए
4. शक्ति = 300 रुपए
कुल लागत = 1 + 2 + 3 + 4
= 12,300 रुपए
कुल परिवर्ती लागत = 1 + 3 + 4 = 11,900 रुपए
इसलिए औसत परिवर्ती लागत = \(\frac { 11,900 }{ 100 }\) = 119 रुपए