HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

पाठयपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. क्रेताओं तथा विक्रेताओं की बहुत बड़ी संख्या पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या बहुत बड़ी होती है। प्रत्येक क्रेता या विक्रेता कुल बिक्री का बहुत ही छोटा भाग खरीदता अथवा बेचता है।

2. समरूप वस्तु पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में सभी फर्मे एक प्रकार की वस्तु का ही उत्पादन करती हैं। सभी विक्रेताओं द्वारा बेची गई वस्तुएँ, गुण, आकार व रंग-रूप से एक-समान होती हैं।

3. पूर्ण स्वतंत्रता पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार के अंतर्गत किसी भी फर्म को उद्योग में प्रवेश करने तथा उसे छोड़कर बाहर जाने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है। जब उद्योग में लाभ हो रहे हों, तो नई फर्मे उद्योग में प्रवेश कर सकती हैं और जब हानि की अवस्था हो, तो कुछ फर्मे उद्योग छोड़कर जा सकती हैं।

4. एक-समान कीमत–पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाज़ार में सभी फर्मे मूल्य स्वीकारक होती हैं। अतः समग्र बाज़ार में उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत ही प्रचलित रहती है। एक क्रेता या विक्रेता कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता।

5. पूर्ण ज्ञान-पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाज़ार में क्रेताओं और विक्रेताओं को बाज़ार का पूर्ण ज्ञान होता है।

6. विक्रय लागत का अभाव-पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में वस्तुएँ समरूप होती हैं, इसलिए एक फर्म को वस्तु के प्रचार, विज्ञापन आदि पर व्यय करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। अतः पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में बिक्री और परिवहन लागतें शून्य होती हैं।

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प्रश्न 2.
एक फर्म की संप्राप्ति, बाज़ार कीमत तथा उसके द्वारा बेची गई मात्रा में क्या संबंध है?
उत्तर:
एक फर्म की संप्राप्ति, बाज़ार कीमत तथा उसके द्वारा बेची गई मात्रा का गुणनफल है। अर्थात्
फर्म की कुल संप्राप्ति = बिक्री की मात्रा – बाज़ार कीमत
अथवा
TR = q x p
यहाँ TR = कुल संप्राप्ति, q = बिक्री की मात्रा तथा p = कीमत।

प्रश्न 3.
कीमत रेखा क्या है?
उत्तर:
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कीमत रेखा से अभिप्राय पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में एक फर्म के माँग वक्र से है जो x-अक्ष के समानांतर एक सीधी रेखा होती है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दिखाया गया है। रेखाचित्र में PD रेखा वस्तु की माँग रेखा है। रेखाचित्र से स्पष्ट है कि OP कीमत पर माँग की मात्रा OQ या OQ1 कुछ भी हो सकती है। अन्य शब्दों में, पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में फर्म Q Q1 की औसत व सीमांत संप्राप्ति वक्र OX-अक्ष के समानांतर होती है।

प्रश्न 4.
एक कीमत-स्वीकारक फर्म का कुल संप्राप्ति वक्र, ऊपर की ओर प्रवणता वाली सीधी रेखा क्यों होता है? यह वक्र उद्गम से होकर क्यों गुजरता है?
उत्तर:
एक कीमत-स्वीकारक फर्म का कुल संप्राप्ति वक्र ऊपर की ओर प्रवणता वाली सीधी रेखा इसलिए होता है क्योंकि बाज़ार कीमत स्थिर होती है अर्थात् कुल संप्राप्ति समान दर से बढ़ती है। कुल संप्राप्ति वक्र उद्गम से होकर इसलिए गुजरता है क्योंकि शून्य बिक्री की मात्रा पर कुल संप्राप्ति भी शून्य होती है और बाद में AR = P स्थिर रहने के कारण कुल संप्राप्ति में वृद्धि समान दर पर होती है।
जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है।
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प्रश्न 5.
एक कीमत-स्वीकारक फर्म का बाज़ार कीमत तथा औसत संप्राप्ति में क्या संबंध है?
उत्तर:
एक कीमत-स्वीकारक फर्म की बाज़ार कीमत तथा औसत संप्राप्ति सदैव बराबर होती है क्योंकि बेची गई प्रत्येक इकाई के मूल्य में कोई परिवर्तन नहीं होता। अर्थात्
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प्रश्न 6.
एक कीमत-स्वीकारक फर्म की बाज़ार कीमत तथा सीमांत संप्राप्ति में क्या संबंध है?
उत्तर:
एक कीमत-स्वीकारक फर्म की बाज़ार कीमत तथा सीमांत संप्राप्ति एक-दूसरे के बराबर होते हैं क्योंकि बेची गई हर अतिरिक्त इकाई की कीमत एक-समान होती है।
अर्थात्
सीमांत संप्राप्ति = औसत संप्राप्ति = कीमत

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प्रश्न 7.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म की सकारात्मक उत्पादन करने की क्या शर्ते हैं?
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म की सकारात्मक उत्पादन करने की शर्ते निम्नलिखित हैं-

  • बाज़ार कीमत (p) = अल्पकालीन सीमांत लागत।
  • अल्पकालीन दीर्घकालीन सीमांत लागत घट नहीं रही है।
  • बाज़ार कीमत ≥ औसत परिवर्ती लागत अथवा दीर्घकालीन औसत लागत।

प्रश्न 8.
क्या प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म जिसकी बाज़ार कीमत सीमांत लागत के बराबर नहीं है, उसका निर्गत का स्तर सकारात्मक हो सकता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म जिसकी बाज़ार कीमत सीमांत लागत के बराबर नहीं है, उसके निर्गत का स्तर सकारात्मक नहीं हो सकता है, यदि बाज़ार कीमत सीमांत लागत और औसत परिवर्ती लागत से कम है। यदि बाज़ार कीमत सीमांत लागत से कम है, लेकिन औसत परिवर्ती लागत से अधिक है तो उसके निर्गत का स्तर सकारात्मकं हो सकता है। ऐसा इसलिए होता है कि फर्म का उद्देश्य हानि को न्यूनतम करना भी होता है। यदि बाजार कीमत सीमांत लागत और औसत परिवर्ती लागत से कम है तो उत्पादन व बिक्री से हानि अधिक होगी। इसलिए उत्पादन बंद करना अधिक लाभदायक होगा। यदि बाजार कीमत सीमांत लागत से कम, लेकिन औसत परिवर्ती लागत से अधिक है तो उत्पादन जारी रखने पर फर्म को हानि कम होगी। एक फर्म का अधिकतम लाभ तभी होगा जब बाज़ार कीमत (p) सीमांत लागत (MC) के बराबर होगी।

प्रश्न 9.
क्या एक प्रतिस्पर्धी बाज़ार में कोई लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक निर्गत स्तर पर उत्पादन कर सकती है, जब सीमांत लागत घट रही हो? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
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एक प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन कर सकती है यदि सीमांत लागत घट रही हो। अधिकतम लाभ की आवश्यक शर्त यह है कि बाज़ार कीमत (p) सीमांत लागत (MC) से अधिक हो या बराबर हो। इस प्रकार बाज़ार कीमत के MC से कम होने पर लाभ नहीं होगा। यदि एक फर्म बाज़ार कीमत की तुलना में घटती हुई सीमांत लागत पर उत्पादन करती है तो फर्म को लाभ होगा. परंत अधिकतम लाभ नहीं होगा। अधिकतम लाभ के लिए यह आवश्यक है कि बाज़ार कीमत (p) और सीमांत लागत (MC) बराबर हो। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।

संलग्न रेखाचित्र में फर्म की सीमांत लागतं E1 और E के बीच बाज़ार कीमत से कम है जो लाभ की स्थिति दर्शाता है, परंतु फर्म को अधिकतम लाभ E बिंदु पर प्राप्त होगा।

प्रश्न 10.
क्या अल्पकाल में प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन कर सकती है? यदि बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम है, व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
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अल्पकाल में प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन नहीं करेगी, क्योंकि बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम है। यदि फर्म ऐसी स्थिति में उत्पादन बंद कर देती है, तो उसकी हानि स्थिर लागत के बराबर होगी। यदि फर्म उत्पादन जारी रखती है, तो उसकी हानि स्थिर लागत और कीमत पर औसत परिवर्ती लागत के आधिक्य के योग के बराबर होगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।

संलग्न रेखाचित्र में औसत परिवर्ती लागत की तुलना में कीमत कम है फिर भी फर्म उत्पादन करेगी क्योंकि B बिंदु पर उसकी हानि स्थिर लागत के बराबर है। अन्य किसी बिंदु पर फर्म की हानि A, B, E, P से अधिक होगी।

प्रश्न 11.
क्या दीर्घकाल में स्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन कर सकती है? यदि बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत लागत से कम है, व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यदि बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत लागत से कम है तो दीर्घकाल में प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन नहीं करेगी। यदि एक फर्म इस स्तर पर उत्पादन करती है तो उसकी कुल लागत कुल संप्राप्ति से अधिक होगी, जिसके फलस्वरूप फर्म को हानि उठानी पड़ेगी। इसलिए दीर्घकाल में फर्म की कीमत औसत लागत के बराबर या अधिक होनी चाहिए। दीर्घकाल में एक फर्म बाज़ार छोड़कर जा सकती है। अतः वह हानि उठाना पसंद नहीं करेगी।

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प्रश्न 12.
अल्पकाल में एक फर्म का पूर्ति वक्र क्या होती है?
उत्तर:
अल्पकाल में, एक फर्म का पूर्ति वक्र उसके अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र का न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत (AVC) से ऊपर को उठता हुआ भाग होता है तथा न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम सभी कीमतों पर निर्गत स्तर शून्य होता है।

अल्पकालीन पूर्ति वक्र-हम जानते हैं कि अल्पकाल में AVC की भरपाई होनी अनिवार्य है अन्यथा उत्पादन बंद हो जाएगा। हम यह भी जानते हैं कि अल्पकाल में कीमत, सीमांत लागत के बराबर होती है। इसलिए SMC वक्र ही फर्म का पूर्ति वक्र होता है। तथापि SMC वक्र का केवल उठता हुआ भाग ही पूर्ति वक्र होता है, इसका सारा भाग नहीं।
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SMC के बढ़ते हुए भाग का केवल वही हिस्सा किसी फर्म का पूर्ति वक्र है जो AVC के ऊपर स्थित है। इसलिए जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में मोटी रेखा द्वारा दिखाया गया है। SMC, E बिंदु के पहले से ही बढ़ना शुरू कर देती है, परंतु पूर्ति वक्र केवल बिंदु E, AVC का न्यूनतम बिंदु से आरंभ होता है। यदि यह बिंदु F से आरंभ हो, तो SMC का FE हिस्सा पूर्ति वक्र का हिस्सा नहीं हो सकता, क्योंकि यह AVC से कम है।

प्रश्न 13.
दीर्घकाल में एक फर्म का पूर्ति वक्र क्या होता है?
उत्तर:
दीर्घकाल में, एक फर्म का पूर्ति वक्र उसके दीर्घकालीन सीमांत लागत वक्र का न्यूनतम दीर्घकालीन औसत लागत से ऊपर को उठता हुआ भाग होता है तथा न्यूनतम दीर्घकालीन औसत लागत से कम सभी कीमतों पर निर्गत का स्तर शून्य होता है।
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दीर्घकालीन पूर्ति वक्र दीर्घकालीन पूर्ति वक्र, अल्पकालीन पूर्ति वक्र से अलग होता है। दीर्घकाल में कोई स्थिर लागतें नहीं होती। इसलिए सारी लागत परिवर्ती है तथा इसकी भरपाई होनी अनिवार्य है। यदि कीमत LAC की भरपाई नहीं करती, उत्पादन बंद हो जाएगा। इसलिए पूर्ति वक्र LMC का वह हिस्सा है जो LAC के न्यूनतम स्तर से ऊपर है। जैसाकि रेखाचित्र में दिखाया गया है, LMC का मोटा हिस्सा दीर्घकालीन पूर्ति वक्र है।

प्रश्न 14.
प्रौद्योगिकीय प्रगति एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
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प्रौद्योगिकीय प्रगति एक फर्म के पूर्ति वक्र को प्रभावित करती है। यदि प्रौद्योगिकी में सुधार होता है तो उन्हीं पूर्ववत संसाधनों से अधिक इकाइयों का उत्पादन संभव हो जाता है। फलस्वरूप उत्पादन लागत में कमी आती है और पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाता है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दिखाया गया है। आरंभ में OP कीमत पर पूर्ति PE है, प्रौद्योगिकी प्रगति के बाद समान कीमत पर पूर्ति बढ़कर PE, हो जाती है। प्रौद्योगिकीय प्रगति से वस्तु की पूर्ति में वृद्धि के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं

  • कंप्यूटरों के प्रयोग से लागत में कमी आना।
  • स्वचालित मशीनों से वस्तु का अधिक उत्पादन।

प्रश्न 15.
इकाई कर लगाने से एक फर्म का पूर्ति वक्र किस प्रकार प्रभावित होता है?
उत्तर:
इकाई कर लगने से वस्तु की प्रति इकाई (औसत) व सीमांत लागत में भी वृद्धि होती है। फलस्वरूप वस्तु की पूर्ति कम हो जाती है और पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाता है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र द्वारा दर्शाया गया है। आरंभ में OP कीमत पर उत्पादक PE मात्रा की पूर्ति करने को तैयार था। इकाई कर के लगने के पश्चात् वह प्रचलित कीमत पर केवल PE1 मात्रा की पूर्ति ही करता है। पूर्ति वक्र अब S1S1 से पीछे को खिसककर SMS बन जाता है।
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प्रश्न 16.
किसी आगत की कीमत में वृद्धि एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
सामान्यतया वस्तु की पूर्ति और लागत में ऋणात्मक संबंध होता है। आगतों (Inputs) की कीमत में वृद्धि (जैसे कच्चे माल की कीमत में वृद्धि, श्रमिकों। की मजदूरी में वृद्धि) से वस्तु की लागत में वृद्धि होने के फलस्वरूप वस्तु की पूर्ति। कम हो जाएगी और पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाता है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है। रेखाचित्र में SS प्रारंभिक पूर्ति वक्र है। आगत में वृद्धि होने पर यह बाईं ओर खिसककर S1S1 हो जाता है।
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प्रश्न 17.
बाज़ार में फर्मों की संख्या में वृद्धि, बाज़ार पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
बाज़ार में फर्मों की संख्या में वृद्धि से बाज़ार पूर्ति में वृद्धि होगी क्योंकि बाज़ार पूर्ति बाज़ार में पाई जाने वाली फर्मों द्वारा की गई पूर्ति का योगफल है। फर्मों की संख्या में वृद्धि से बाज़ार पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाता है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
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संलग्न रेखाचित्र में प्रारंभिक पूर्ति वक्र SS है, जिस पर OP कीमत पर OQ1 पूर्ति है। फर्मों की संख्या में वृद्धि से पूर्ति वक्र S1S1 हो जाता है जिससे उसी कीमत OP पर पूर्ति बढ़कर OQ1 हो जाती है।

प्रश्न 18.
पूर्ति की कीमत लोच का क्या अर्थ है? हम इसे कैसे मापते हैं?
उत्तर:
पूर्ति की कीमत लोच का अर्थ-अन्य बातें समान रहते हुए, वस्तु की कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप वस्तु की पूर्ति की मात्रा में जिस दर से परिवर्तन होता है, उसे पूर्ति की कीमत लोच कहते हैं।
पूर्ति की कीमत लोच को मापने की निम्नलिखित विधियाँ हैं-
1.प्रतिशत विधि-प्रतिशत विधि के अंतर्गत पूर्ति की कीमत लोच को मापने के लिए पूर्ति की गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन को कीमत में प्रतिशत परिवर्तन से भाग दिया जाता है। सूत्र के रूप में,
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इस विधि को हम एक उदाहरण द्वारा समझ सकते हैं। माना कि आम की कीमत 10 रु० प्रति किलोग्राम है और इस कीमत पर आम की 600 किलोग्राम है। यदि आम की कीमत बढ़कर 12 रु० प्रति किलोग्राम हो जाती है तो आम की पूर्ति बढ़कर 800 किलोग्राम हो जाती है। इस उदाहरण में आम की पूर्ति की कीमत लोच होगी।
आम की पूर्ति की कीमत लोच = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
इस उदाहरण में, P0 = 10, Ap = 2, q0 = 600, ∆q = 200
= \(\frac{200}{2} \times \frac{10}{600}\)
= 1.67
अर्थात् es >1 है। अतः पूर्ति अधिक लोचदार है।

2. ज्यामितीय विधि-ज्यामितीय विधि के अंतर्गत पूर्ति की कीमत लोच की गणना पूर्ति वक्र को उद्गम बिंदु (Point of origin) अर्थात् अक्ष केंद्र की ओर विस्तार करके किया जाता है। पूर्ति वक्र को अक्ष केंद्र.से विस्तार करने पर निम्नलिखित स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं

  • यदि पूर्ति वक्र y-अक्ष को पार कर x-अक्ष के ऋणात्मक पक्ष पर पहुँचता है तो पूर्ति की कीमत लोच का मान एक से अधिक होगा।
  • यदि पूर्ति वक्र x-अक्ष के धनात्मक अंश पर पहुँचता है तो पूर्ति की कीमत लोच का मान एक से कम होगा।
  • यदि पूर्ति वक्र अक्ष केंद्र को स्पर्श करता है तो पूर्ति की कीमत लोच का मान एक के बराबर होगा।

ज्यामितीय विधि को हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शित कर सकते हैं।
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  • वस्तु-A की पूर्ति वक्र इकाई से कम लोचदार है अर्थात् e < 1
  • वस्तु-B की पूर्ति वक्र इकाई के बराबर है अर्थात् e = 1
  • वस्तु-C की पूर्ति वक्र इकाई से अधिक लोचदार है अर्थात् es > 1

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प्रश्न 19.
निम्न तालिका में कुल संप्राप्ति, सीमांत संप्राप्ति तथा औसत संप्राप्ति का परिकलन कीजिए। वस्तु की प्रति इकाई बाज़ार कीमत 10 रु० है।

बेची गई मात्राकुल संप्राप्तिसीमांत संप्राप्तिऔसत संप्राप्ति
0
1
2
3
5
6

हल:
(i) कुल संप्राप्ति = बेची गई मात्रा x प्रति इकाई कीमत
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प्रयोग किए गए सूत्र-
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प्रश्न 20.
निम्न तालिका में एक प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल संप्राप्ति तथा कुल लागत सारणियों को दर्शाया गया है। प्रत्येक उत्पादन स्तर के लाभ की गणना कीजिए। वस्तु की बाज़ार कीमत भी निर्धारित कीजिए।

बेची गई मात्राकुल संप्राप्ति (र०)कुल लागत (रु०)लाभ (रु०)
005
157
21010
31512
52015
62523
73033

हल:
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प्रयोग किए गए सूत्र-
(i) लाभ = कुल संप्राप्ति – कुल लागत
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प्रश्न 21.
निम्न तालिका में एक प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल लागत सारणी को दर्शाया गया है। वस्तु की कीमत 10 रु० दी हुई है। प्रत्येक उत्पादन स्तर पर लाभ की गणना कीजिए। लाभ-अधिकतमीकरण निर्गत स्तर ज्ञात कीजिए।

उत्पादनकुल लागत (इकाई) रु०
0 5
115
222
327
431
538
649
763
881
9101
10123

हल:

उत्पादनकीमत (रु०)कुल संप्राप्ति (रु०)कुल लागत (रु०)लाभ (रु०)
01005-5
1101015-5
2102022-2
3103027+3
4104031+9
5105038+12
6106049+11
7107063+7
8108081-1
91090101-11
1010100123-23

प्रयोग किए गए सूत्र

  • कुल संप्राप्ति = उत्पादन x कीमत
  • लाभ = कुल संप्राप्ति – कुल लागत।

प्रश्न 22.
दो फर्मों वाले एक बाज़ार को लीजिए। निम्न तालिका दोनों फर्मों के पूर्ति सारणियों को दर्शाती है। SS1, कालम में फर्म-1 की पूर्ति सारणी, कालम SS2 में फर्म-2 की पूर्ति सारणी है। बाज़ार पूर्ति अनुसूची सारणी का परिकलन कीजिए।

कीमतSS1 इकाइयाँSS2 इकाइयाँ
000
100
210
3– 11
422
533
644

हल:

कीमतSS1
इकाइयाँ
SS2
इकाइयाँ
MSS
(इकाइयाँ)
0000
1000
2100
3– 112
4224
5336
6448

नोट-बाज़ार पूर्ति (MSS) (इकाइयाँ) = SS1 (इकाइयाँ) + SS2 (इकाइयाँ)

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प्रश्न 23.
दो फर्मों वाले एक बाज़ार को लीजिए। निम्न तालिका में कालम SS1 तथा कालम SS2 क्रमशः फर्म-1 तथा फर्म-2 के पूर्ति सारणियों को दर्शाते हैं। बाज़ार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।

कीमतSS1 इकाइयाँSS2 इकाइयाँ
000
100
200
310
420.5
531
641.5
752
862.5

हल:

कीमतSS1 इकाइयाँSS2 इकाइयाँMSS(इकाइयाँ)
0000
1000
2000
3101
420.52.5
5314
641.55.5
7527
862.58.5

नोट-बाज़ार पूर्ति (MSS) = SS1 (किलो) + SS2 (किलो)

प्रश्न 24.
एक बाज़ार में 3 समरूपी फर्मे हैं। निम्नलिखित तालिका फर्म-1 की पूर्ति सारणी दर्शाती है। बाज़ार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।

कीमत (रु०)SS1 (इकाई)
00
10
22
34
46
58
610
712
814

हल:
चूँकि तीनों फ समरूप हैं, हम बाज़ार पूर्ति अनुसूची को फर्म-1 की अनुसूची को 3 से गुणा करके प्राप्त कर सकते हैं।

कीमत (रु०)SS1 (इकाई)MSS(इकाई)
000
100
226
3412
4618
5824
61030
71236
81442

वैकल्पिक विधि-
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नोट-बाज़ार पूर्ति (MSS) = SS1 + SS2 + SS3

प्रश्न 25.
10 रु० प्रति इकाई बाज़ार कीमत पर एक फर्म की संप्राप्ति 50 रु० है। बाज़ार कीमत बढ़कर 15 रु० हो जाती है और अब फर्म को 150 रु० की संप्राप्ति होती है। पूर्ति वक्र की कीमत लोच क्या है?
हल:
कुल संप्राप्ति = 50 रु०
वस्तु की पुरानी कीमत = 10 रु०
वस्तु की बेची गई पुरानी इकाइयाँ = \(\frac{50}{10}\) = 5 इकाइयाँ
वस्तु की नई कीमत = 15 रु०
वस्तु की कुल संप्राप्ति = 150 रु०
वस्तु की बेची गई नई इकाइयाँ = \(\frac{150}{15}\) = 10 इकाइयाँ
पूर्ति की कीमत लोच (es) = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
= p0 = 10, ∆p = 15 – 10 = 5, q0 = 5, ∆q = 10 – 5 = 5
= \(\frac{5}{5} \times \frac{10}{5}\)
= \(\frac{50}{25}\)
= 2 उत्तर

प्रश्न 26.
एक वस्तु की बाज़ार कीमत 5 रु० से बदलकर 20 रु० हो जाती है। फलस्वरूप फर्म पूर्ति की मात्रा 15 इकाई बढ़ जाती है। फर्म के पूर्ति वक्र की कीमत लोच 0.5 है। फर्म का आरंभिक तथा अंतिम निर्गत स्तर ज्ञात करें।
हल:
पूर्व कीमत (p0) = 5 रु०
वर्तमान कीमत (p1) = 20 रु०
कीमत में परिवर्तन (Ap) = 20 – 5 = 15 रु०
पूर्ति में परिवर्तन (Aq) = 15 इकाइयाँ
पूर्ति की कीमत लोच (e) = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
0.5 = \(\frac{15}{q^{0}} \times \frac{5}{15}\)
0.5 = \(\frac{75}{15 q^{0}}\)
0.5 = \(\frac{5}{q^{0}}\)
q0 = 10
इस प्रकार, पुरानी पूर्ति (q0) = 10
नई पूर्ति (q1) = 10 + 15 = 25
फर्म का आरंभिक निर्गत स्तर = 10
फर्म का अंतिम निर्गत स्तर = 25 उत्तर

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प्रश्न 27.
10 रु० बाज़ार कीमत पर एक फर्म निर्गत की 4 इकाइयों की पूर्ति करती है। बाज़ार कीमत बढ़कर 30 रु० हो जाती है। फर्म की पूर्ति की कीमत लोच 1.25 है। नई कीमत पर फर्म कितनी मात्रा की पूर्ति करेगी?
हल:
p0 = 10 रु०
q0 = 4 इकाइयाँ
p1 = 30 रु०
पूर्ति की कीमत लोच (es) = 1.25
125 = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
125 = \(\frac{\Delta q}{30-10} \times \frac{10}{4}\)
125 = \(\frac{\Delta q}{20} \times \frac{10}{4}\)
125 = \(\frac{\Delta q}{8}\)
∆q = 10
पूर्ति की नई मात्रा = पूर्ति की पुरानी मात्रा + पूर्ति में परिवर्तन
= 4+ 10 = 14 इकाइयाँ उत्तर

पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत HBSE 12th Class Economics Notes

→ पूर्ण प्रतिस्पर्धा-पूर्ण प्रतिस्पर्धा (प्रतियोगिता) उस बाज़ार को कहते हैं जिसमें असंख्य क्रेता तथा समरूप वस्तु के असंख्य विक्रेता होते हैं और वस्तु की कीमत का निर्धारण उद्योग द्वारा किया जाता है। बाज़ार में केवल एक ही कीमत प्रचलित होती है और सभी फर्मों को अपनी वस्तु इसी प्रचलित कीमत पर बेचनी होती है।

→ एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में फर्म कीमत-स्वीकारक होती है। * फर्म की कुल संप्राप्ति (आगम), फर्म की कुल निर्गत बाज़ार कीमत का गुणनफल होती है।
TR = P.Q.
अथवा
उत्पादन की सभी इकाइयों के MR को जोड़कर भी TR प्राप्त हो जाता है। अतः
TR = ∑MR

→ औसत संप्राप्ति (आगम) औसत संप्राप्ति से अभिप्राय है उत्पादक को प्रति इकाई उत्पादन बेच कर प्राप्त होने वाली मौद्रिक राशि।
AR = \(\frac { TR }{ Q }\)

→ कीमत-स्वीकारक फर्म की औसत संप्राप्ति (AR) बाज़ार कीमत के बराबर होती है।

→ सीमांत संप्राप्ति-सीमांत संप्राप्ति (MR) से अभिप्राय है किसी वस्तु की एक इकाई अधिक बेचने से कुल संप्राप्ति (आगम) में होने वाला परिवर्तन।
MR = \(\frac { ∆TR }{ ∆Q }\); TRn – TR-1

→ कीमत स्वीकारक फर्म के लिए सीमांत संप्राप्ति बाज़ार कीमत के बराबर होती है।

→ पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में फर्म की माँग वक्र पूर्णतया लोचदार होती है। यह बाज़ार कीमत पर एक सीधी समस्तरीय रेखा होती है।

→ औसत संप्राप्ति वक्र फर्म की माँग वक्र है-AR वक्र फर्म के माँग वक्र को प्रदर्शित करता है, क्योंकि AR को Y-अक्ष पर और उत्पादन/बिक्री को X-अक्ष पर दिखाया जाता है। हम जानते हैं कि AR = कीमत, अतएव AR वक्र वस्तु की कीमत (Y-अक्ष पर) और वस्तु की बिक्री या माँग (X-अक्ष पर) के बीच संबंध को प्रकट करता है।

→ पूर्ण प्रतिस्पर्धा में AR वक्र पड़ी सीधी रेखा और AR तथा MR बराबर होती है-यह इसलिए क्योंकि पूर्ण प्रतिस्पर्धा में एक फर्म कीमत स्वीकारक (Price-Taker) होती है, जिसका अर्थ है कि फर्म के उत्पादन के समस्त स्तरों के लिए AR समान होती है। पूर्ण प्रतिस्पर्धा की अवस्था में दी हुई कीमत पर फर्म वस्तु की जितनी भी मात्रा चाहे बेच सकती है।

→ फर्म का लाभ, कुल आगम जो वह अर्जित करती है तथा कुल लागत जो वह उठाती है, इनके बीच का अंतर होता है।
π (लाभ) = कुल आगम – कुल लागत

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

→ यदि अल्पकाल में किसी फर्म के लाभ का अधिकतमीकरण निर्गत के किसी धनात्मक स्तर पर होता है, तो उस निर्गत स्तर पर तीन शर्ते पूरी होनी चाहिए
(i) p = अल्पकालीन सीमांत लागत
(ii) अल्पकालीन सीमांत लागत घट नहीं रही है
(iii) p > औसत परिवर्ती लागत

→ किसी फर्म अल्पकालीन पूर्ति वक्र, अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र का न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत तथा उससे ऊपर उठता हुआ भाग होता है तथा न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम सभी कीमतों पर निर्गत स्तर शून्य होता है।

→ किसी फर्म का दीर्घकालीन पूर्ति वक्र, दीर्घकालीन सीमांत लागत वक्र का न्यूनतम दीर्घकालीन सीमांत लागत तथा – उससे ऊपर, उठता हुआ भाग होता है तथा न्यूनतम दीर्घकालीन सीमांत लागत से कम, सभी कीमतों पर निर्गत स्तर शून्य होता है।

→ प्रौद्योगिकीय प्रगति से फर्म का पूर्ति वक्र दाहिनी ओर शिफ्ट हो जाती है।

→ आगतों की कीमतों में वृद्धि (कमी) से फर्म का पूर्ति वक्र बायीं (दाहिनी) ओर शिफ्ट हो जाती है।

→ प्रति इकाई कर लगाने से फर्म का पूर्ति वक्र बायीं ओर शिफ्ट हो जाती है।

→ बाज़ार में फर्मों की संख्या में वृद्धि से बाज़ार पूर्ति वक्र दाहिनी ओर शिफ्ट हो जाती है।

→ बाज़ार पूर्ति वक्र सभी व्यक्तिगत फर्मों के पूर्ति वक्रों के समस्तरीय योग द्वारा प्राप्त होता है।

→ वस्तु की पूर्ति की कीमत लोच वस्तु की बाज़ार कीमत में एक प्रतिशत परिवर्तन के फलस्वरूप पूर्ति की गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन है।

→ पर्ति की कीमत लोच (es) = HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 19

→ लाभ-अलाभ-किसी फर्म का समविच्छेद बिंदु (Break Even Point) तब होता है जब TR = TC (कुल संप्राप्ति (आगम) = कुल लागत)। इस स्थिति में उत्पादक के लाभ तथा हानि दोनों शून्य होते हैं। पूर्ति वक्र के जिस बिंदु पर एक फर्म साधारण लाभ अर्जित करती है, वह फर्म का लाभ-अलाभ बिंदु कहलाता है। अतः न्यूनतम औसत लागत का वह बिंदु जिस पर पूर्ति वक्र LRAC (अल्पकाल में SRAC) को काटता है फर्म का लाभ-अलाभ बिंदु कहलाता है। दीर्घकाल में एक फर्म को इस बिंदु को अवश्य प्राप्त करना चाहिए।

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