Class 10

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

HBSE 10th Class Hindi कन्यादान Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना?
उत्तर-
माँ के इन शब्दों में लाक्षणिकता विद्यमान है। लड़की होने का तात्पर्य है कि उसमें कोमलता, सुंदरता, शालीनता, सहनशीलता, ममता, माधुर्य आदि स्वाभाविक गुण होते हैं। उसके इन गुणों के कारण ही परिवार बनते हैं और समाज का विकास होता है। माँ के कथन के अनुसार इन गुणों का होना आवश्यक है। किंतु साथ ही माँ का यह कहना लड़की जैसी दिखाई मत देना का तात्पर्य है कि उसमें सामाजिक स्थितियों अथवा अन्याय या शोषण का विरोध करने का साहस भी होना अनिवार्य है। उसमें सचेतता, सजगता आदि गुण भी होने चाहिएँ। उसे डरपोक नहीं होना चाहिए। जहाँ उसके मन में कोमलता, माधुर्य तथा ममता के भाव हैं, वहाँ उसमें अन्याय, शोषण आदि का विरोध करने का साहस भी होना चाहिए।

प्रश्न 2.
‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं’
(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है?
(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों ज़रूरी समझा?
उत्तर-
(क) इन पंक्तियों में कवि ने समाज में विवाहित नारी की दशा की ओर संकेत किया है। आज हमारे समाज में दहेज प्रथा और सामाजिक बंधनों की आग बहुओं को बहुत तेजी से निगलती जा रही है। आज वर पक्ष के लोग कन्या पक्ष से अच्छी, सुंदर पढ़ी-लिखी व नौकरी करने वाली कन्या ही नहीं चाहते हैं, अपितु इन सबके साथ-साथ बहुत-सा दहेज भी चाहते हैं। यदि वह दहेज नहीं लाती तो उसके शेष गुण नगण्य हो जाते हैं तथा दहेज न मिलने पर बहू के साथ बुरा व्यवहार किया जाता हैं। उसे हर प्रकार से तंग किया जाता है। इतना ही नहीं, लोभ के चंगुल में फँसकर बहू को आग में धकेल देते हैं या फिर आग में जलकर मरने के लिए विवश कर देते हैं। कवि ने नारी जीवन के इसी यथार्थ की ओर संकेत किया है। नारी की यह दशा अत्यंत शोचनीय एवं दयनीय है। कवि ने नारी को इस दशा के प्रति सचेत भी किया है।

(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना इसलिए जरूरी समझा क्योंकि वह भी अनेक अन्य बहुओं की भाँति आग में अपना जीवन न खो दे। उसे किसी अवस्था में कमजोर नहीं बनना चाहिए। उसे कष्ट पहुँचाने वालों या शोषण करने की कोशिश करने वालों के सामने झुकना नहीं चाहिए। कोमलता नारी का गुण है, किंतु आज की परिस्थितियों से उसे मजबूत बनकर रहने का पाठ अवश्य पढ़ लेना चाहिए, ताकि वह किसी भी विकटतम स्थिति का सामना कर सके।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

प्रश्न 3.
पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की – कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की’ इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभरकर आ रही है उसे शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर-
लड़कियाँ सरल स्वभाव की होती हैं। वे छल-कपटपूर्ण व्यवहार को नहीं जानती अर्थात् उनका व्यवहार अति सरल एवं सहज होता है। वे समाज के अनुभव से भी अनभिज्ञ होती हैं। समाज में आज जो कुछ हो रहा है, उसके प्रति उन्हें सचेत करना ही लेखक का परम लक्ष्य है।

प्रश्न 4.
माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ क्यों लग रही थी?
उत्तर-
माँ को अपनी बेटी सच्ची सहेली की भाँति लगती है, क्योंकि वह उसके हर सुख-दुःख की साथी होती है। माँ बेटी के साथ हर प्रकार की बात कर लेती है। बेटी माँ को अच्छी सलाह देती है और हर काम में उसका हाथ बँटाती है। इसलिए बेटी माँ की एकमात्र पूँजी है जो विवाह के पश्चात् अपनी ससुराल चली जाएगी और माँ उसके बाद अकेली पड़ जाएगी।

प्रश्न 5.
माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी?
उत्तर-
माँ ने बेटी को सीख देते हुए कहा कि उसे कभी अपनी सुंदरता और उसकी प्रशंसा पर नहीं रीझना चाहिए। क्योंकि वह उसकी कमज़ोरी बन जाएगी और दूसरे उसका लाभ उठाएँगे।
माँ ने उसे यह भी शिक्षा दी कि उसे घर के सब काम करने चाहिएँ, दूसरों को सहयोग भी देना चाहिए, किंतु अत्याचार सहन नहीं करना चाहिए।
माँ ने बेटी को समझाते हुए कहा कि वस्त्रों व आभूषणों के बदले में अपनी स्वतंत्रता का गला नहीं घोंटना चाहिए। अपने व्यक्तित्व की पहचान सदा बनाकर रखनी चाहिए। कभी भी अपनी सरलता और भोलेपन को इस तरह प्रकट नहीं करना चाहिए जिससे कि लोग उसका गलत ढंग से लाभ उठाएँ।

रचना और अभिव्यक्ति-

प्रश्न 6.
आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है?
उत्तर-
कन्या के साथ ‘दान’ शब्द का प्रयोग अनुचित प्रतीत होता है। ऐसा लगता है कि जैसे कन्या कोई वस्तु हो और उसे दान में दिया जा रहा है। मानो कन्या बेजान हो, उसकी अपनी कोई इच्छा न हो। जैसे किसी वस्तु को दान देने के पश्चात् दान करने वाले से उसका कोई संबंध नहीं रहता। कन्यादान करने के पश्चात् मानो माता-पिता का कन्या के साथ कोई संबंध न रह गया हो। वह पराई हो गई हो। इस दृष्टि से कन्या के साथ ‘दान’ शब्द का प्रयोग उचित नहीं है।

‘दान’ शब्द का एक दूसरा पक्ष भी है। किसी वस्तु को दान करने वाला व्यक्ति किसी सुपात्र को वस्तु का दान करके अपने-आप को धन्य समझने लगता है। ठीक इसी प्रकार किसी सुयोग्य युवक के साथ विवाह के समय माता-पिता अपनी बेटी का कन्यादान करके अपने आपको धन्य समझते हैं। यहाँ इस बात का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए कि कन्यादान के समय कन्या की सहमति होना नितांत आवश्यक है, क्योंकि आज स्थिति बदल चुकी है।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न 1.
‘स्त्री को सौंदर्य का प्रतिमान बना दिया जाना ही उसका बंधन बन जाता है’ इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। विद्यार्थी इसे अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से करें।

प्रश्न 2.
यहाँ अफगानी कवयित्री मीना किश्वर कमाल की कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं। क्या आपको कन्यादान कविता से इसका कोई संबंध दिखाई देता है?
मैं लौटूंगी नहीं
मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी राह देख ली है
अब मैं लौटूंगी नहीं
मैंने ज्ञान के बंद दरवाज़े खोल दिए हैं
सोने के गहने तोड़कर फेंक दिए हैं
‘भाइयो! मैं अब वह नहीं हूँ जो पहले थी
मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी राह देख ली है।
अब मैं लौटूंगी नहीं।
उत्तर-
‘कन्यादान’ और ‘मैं लौटूंगी नहीं दोनों कविताओं के केंद्र में नारी है। इसलिए दोनों कविताओं का एक सीमा तक संबंध अवश्य है। किंतु दोनों कविताओं में दृष्टिकोण अलग-अलग हैं। ‘कन्यादान’ कविता में भोली-भाली कन्या के जीवन का वर्णन किया गया है, जो अबोध है, जो वस्त्रों, गहनों, सौंदर्य आदि के मोह के बंधनों में बंधी हुई है। वह अपने शोषण के कारणों से भी अनजान है। किंतु ‘मैं लौटूंगी नहीं’ कविता में उस नारी जीवन का वर्णन किया गया है जो जागरूक हो चुकी है। वह जानती है कि सोने के गहने उसके लिए गुलामी की जंजीरों के समान हैं। उसने अपने लक्ष्य व उसकी दिशा को समझ लिया है। अतः स्पष्ट है कि ‘मैं लौटूंगी नहीं’ कविता की कन्या ‘कन्यादान’ कविता की कन्या का जागरूक रूप है।

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HBSE 10th Class Hindi कन्यादान Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘कन्यादान’ कविता में कौन किसको सीख देता है और क्यों?
उत्तर-
‘कन्यादान’ कविता में माँ अपनी बेटी को विदाई के समय शिक्षा देती है क्योंकि विवाह से पूर्व कन्या को व्यावहारिक जीवन का बोध नहीं होता। माँ अपने जीवन में प्राप्त अनुभवों को अपनी बेटी को शिक्षा के रूप में बताती है ताकि उसका भावी जीवन सुखी एवं सुरक्षित बना रह सके। माँ बेटी को परंपरागत संस्कारों से मुक्त होकर स्वतंत्र जीवन जीने का व्यावहारिक ज्ञान देती है ताकि उसे कोई कष्ट न पहुँचा सके तथा उसका शोषण न कर सके।

प्रश्न 2.
समाज में नई बहुओं के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है? .
उत्तर-
भारतीय समाज में प्रायः नई बहुओं को सजी-धजी सौंदर्य की गुड़िया समझकर उनसे अच्छा व्यवहार किया जाता है। उसे नए-नए वस्त्र व गहने दिए जाते हैं। लोग उसके नए वस्त्रों, गहनों व रूप-सौंदर्य की प्रशंसा करते हैं। किंतु कुछ लोग दहेज का सामान कम लाने पर या अच्छा सामान न लाने पर व्यंग्य भी करते हैं। दहेज कम लाने पर उसे तंग भी किया जाता है। कभी-कभी तो उसे जलकर मरने पर मजबूर किया जाता है।

प्रश्न 3.
कवि ने स्त्री के आभूषणों को ‘शाब्दिक भ्रम’ के समान क्यों कहा है?
उत्तर-
कवि के अनुसार स्त्रियाँ गहनों पर मुग्ध होकर उसी प्रकार भ्रमित हो जाती हैं जिस प्रकार शब्दों के प्रयोग के द्वारा लोगों को भ्रमित किया जाता है। स्त्रियाँ गहनों के प्रति इतनी अधिक आकृष्ट होती हैं कि उनकी प्राप्ति के लिए वे अपनी स्वतंत्रता को भी दाँव पर लगा देती हैं। पुरुष वर्ग उनकी इस कमज़ोरी का फायदा उठाकर मनमानी करता है। इसलिए कवि ने स्त्रियों के आभूषणों को ‘शाब्दिक भ्रम’ के समान कहा है।

संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 4.
‘कन्यादान’ नामक कविता में कवि ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में माँ की शिक्षा के माध्यम से नारी-जागृति की भावना को उजागर किया गया है। कवि का मुख्य उद्देश्य नारी को उसके बंधन की बेड़ियों और उनके कारणों को समझाना है। कवि का मत है कि नारी का सौंदर्य, प्रशंसा, वस्त्र, गहने आदि उसको गुलाम बनाने के नए-नए ढंग हैं। नारी इन्हीं बंधनों-के-बंधन में फँसकर अपना व्यक्तित्व ही भूल जाती है। कभी-कभी उसे पुरुषों के द्वारा जलकर मरने के लिए विवश किया जाता है या फिर उसे जलाकर मार दिया जाता है। कवि ने संदेश दिया है कि यदि नारी अपनी कोमलता, सरलता और भोलेपन के प्रति सचेत हो जाए और अपने शोषण के विरुद्ध आवाज़ बुलंद करने की थोड़ी-सी हिम्मत अपने में पैदा कर ले तो वह शक्तिशाली बन सकती है।

प्रश्न 5.
‘कन्यादान’ कविता में माँ ने बेटी को किस प्रकार का जीवन जीने की शिक्षा दी है?
उत्तर-
‘कन्यादान’ कविता में माँ ने कन्यादान के समय अर्थात् विवाह के समय जो परंपरागत बात बताई जाती है, उनसे हट कर शिक्षा दी है। उसे बताया गया है कि वह केवल अपने शारीरिक सौंदर्य व वस्त्रों, आभूषणों की प्राप्ति आदि की ओर ही ध्यान मत दे। उसे चाहिए कि वह सामाजिक परिवर्तन को खुली आँखों से देखे तथा अपने भीतर हिम्मत और साहस उत्पन्न करे ताकि वह अपने प्रति होने वाले अपमान या अन्याय का विरोध कर सके। उसे अपने अधिकारों के प्रति सजग रहना होगा। यह सजगता ही उसके जीवन में एक नई दिशा दिखाएगी। इसी से उसका जीवन सुखी बन सकेगा।

प्रश्न 6.
‘कन्यादान’ शीर्षक कविता के आधार पर माँ के जीवन की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि ने माँ के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि वह एक सजग एवं अनुभवशील नारी है। उसने उन्हें अपने जीवन में आने वाले सुख-दुःख को भोगा है और उन्हें प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत भी किया है। वह एक संवेदनशील नारी है। उसने जीवन में जिन सुखों व दुःखों को भोगा है, उनके कारणों को समझा भी है। वह नहीं चाहती थी कि जिन दुःखों को उसने भोगा है, उन्हीं दुःखों को उसकी बेटी भी भोगे। इसलिए एक माँ अपने कर्तव्य का पालन करती हुई अपनी बेटी को जीवन में आने वाली कठिनाइयों के प्रति सचेत करती है।

प्रश्न 7.
‘कवि ने ‘कन्यादान’ कविता में किसके दुःख को प्रामाणिक कहा है और क्यों?
उत्तर-
कवि ने ‘कन्यादान’ कविता में विवाहिता नारी के दुःख को प्रामाणिक कहा है। क्योंकि आज हमारे समाज में दहेज प्रथा और सामाजिक बन्धनों की आग बहुओं को तेजी से निगलती जा रही है। लोग लोभ के कारण इतने अन्धे हो चुके हैं कि बहू को आग में धकेल देते हैं या फिर खुद-कुशी करने के लिए विवश कर देते हैं।

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अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कविवर ऋतुराज का जन्म कब हुआ था?
उत्तर-
कविवर ऋतुराज का जन्म सन् 1940 में हुआ था।

प्रश्न 2.
कविवर ऋतुराज ने अपनी कविताओं में किस वर्ग के जीवन का अधिक वर्णन किया है?
उत्तर-
कविवर ऋतुराज ने अपनी कविताओं में शोषित वर्ग के जीवन का अधिक वर्णन किया है।

प्रश्न 3.
‘कन्यादान’ कविता में लड़की को किसकी पाठिका कहा गया है?
उत्तर-
‘कन्यादान’ कविता में लड़की को धुंधले प्रकाश की पाठिका कहा गया है।

प्रश्न 4.
कवि ने किसे धुंधले प्रकाश की पाठिका बताया है?
उत्तर-
कवि ने बेटी को धुंधले प्रकाश की पाठिका बताया है।

प्रश्न 5.
नारियों के लिए किसे बंधन बताया गया है?
उत्तर-
नारियों के लिए वस्त्रों एवं आभूषणों को बंधन बताया गया है।

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प्रश्न 6.
‘कन्यादान’ कविता के रचयिता कौन हैं?
उत्तर-
श्री ऋतुराज।

प्रश्न 7.
‘लड़की जैसी दिखाई न देना’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
‘लड़की जैसी दिखाई न देना’ का तात्पर्य कमजोर मत बनना है।

प्रश्न 8.
‘शाब्दिक भ्रम’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
‘शाब्दिक भ्रम’ से अभिप्राय है अवास्तविक को वास्तविक दिखाना।

प्रश्न 9.
‘कन्यादान’ कविता में वस्त्र और आभूषणों को कैसा बताया है?
उत्तर-
कवि ने वस्त्र और आभूषणों को नारी के लिए मोह के बन्धन बताया है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कविवर ऋतुराज का जन्म कब हुआ था?
(A) सन् 1940 में
(B) सन् 1945 में
(C) सन् 1950 में
(D) सन् 1952 में
उत्तर-
(A) सन् 1940 में

प्रश्न 2.
श्री ऋतुराज किस प्रदेश के रहने वाले थे?
(A) हरियाणा
(B) पंजाब
(C) राजस्थान
(D) उत्तर प्रदेश
उत्तर-
(C) राजस्थान

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प्रश्न 3.
कविवर ऋतुराज ने किस विषय में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की थी?
(A) संस्कृत
(B) अंग्रेज़ी
(C) इतिहास
(D) हिंदी
उत्तर-
(B) अंग्रेज़ी

प्रश्न 4.
कविवर ऋतुराज का व्यवसाय क्या था?
(A) व्यापार
(B) कृषि
(C) अध्यापन
(D) ठेकेदारी
उत्तर-
(C) अध्यापन

प्रश्न 5.
‘कन्यादान’ कविता के कवि का क्या नाम है?
(A) जयशंकर प्रसाद
(B) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
(C) नागार्जुन
(D) ऋतुराज
उत्तर-
(D) ऋतुराज

प्रश्न 6.
कविवर ऋतराज ने अपनी कविताओं में किस वर्ग के जीवन का अधिक वर्णन किया है?
(A) शोषित वर्ग
(B) अमीर वर्ग
(C) अध्यापक वर्ग
(D) उच्च वर्ग
उत्तर-
(A) शोषित वर्ग

प्रश्न 7.
प्रस्तुत कविता में प्रामाणिक किसे कहा गया है?
(A) सुख
(B) दुःख
(C) आनन्द
(D) स्मृति
उत्तर-
(B) दुःख

प्रश्न 8.
माँ की अंतिम पूँजी किसे कहा गया है?
(A) बेटी को
(B) सास को
(C) बेटे को
(D) बहन को
उत्तर-
(A) बेटी को

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प्रश्न 9.
माँ ने अपनी बेटी को किस रूप में देखा?
(A) विदुषी
(B) महिषी
(C) उपदेशिका
(D) पाठिका
उत्तर-
(D) पाठिका

प्रश्न 10.
‘कन्यादान’ कविता में कवि ने किसको धुंधले प्रकाश की पाठिका कहा है?
(A) पत्नी को
(B) माँ को
(C) बेटी को
(D) बहन को
उत्तर-
(C) बेटी को

प्रश्न 11.
माँ ने किसे देखकर न रीझने का आदेश दिया है?
(A) वस्त्रों को
(B) धन को
(C) चेहरे को
(D) गहनों को
उत्तर-
(C) चेहरे को

प्रश्न 12.
आग का प्रयोग किस कार्य के लिए बताया गया है?
(A) रोटियाँ सेंकने के लिए
(B) स्वयं जलने के लिए
(C) दूसरों को जलाने के लिए
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(A) रोटियाँ सेंकने के लिए

प्रश्न 13.
भारतीय समाज में ‘लड़की का दान’ का अर्थ है
(A) लड़की का दान
(B) लड़की की शिक्षा
(C) लड़की का जन्म
(D) लड़की का विवाह
उत्तर-
(D) लड़की का विवाह

प्रश्न 14.
बेटी का स्वभाव था
(A) चतुर
(B) कठोर
(C) भोला-भोला
(D) प्रवीण
उत्तर-
(C) भोला-भोला

प्रश्न 15.
‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है’ वाक्य का प्रतीकार्थ है
(A) आग सही जलाना
(B) रोटी न जलाना
(C) रोटी कच्ची न रखना
(D) यथोचित प्रयोग
उत्तर-
(D) यथोचित प्रयोग

कन्यादान पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो
लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सख का आभास तो होता था।
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की [पृष्ठ 50]

शब्दार्थ-प्रामाणिक = वास्तविक, सच्चा। सयानी = समझदार। आभास = अनुभव, महसूस। बाँचना = पढ़ना।। धुंधले = अस्पष्ट। लयबद्ध = लय में बँधी हुई।

प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस काव्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि ने किसके दुःख को प्रामाणिक कहा है और क्यों?
(ङ) माँ की अंतिम पूँजी कौन और कैसे है?
(च) “दुख बाँचने का आशय स्पष्ट कीजिए।
(छ) कवि ने किसे और क्यों धुंधले प्रकाश की पाठिंका कहा है?
(ज) इस पद्यांश का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
(झ) प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ञ) प्रस्तुत पद में निहित शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ट) इस पद में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-ऋतुराज। . कविता का नाम कन्यादान।

(ख) प्रस्तुत कवितांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘कन्यादान’ नामक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता श्री ऋतुराज हैं। इस कविता में कवि ने वर्तमान युग में बदलते हुए जीवन-मूल्यों का उल्लेख किया है। माँ अपनी बेटी के लिए केवल भावुकता को ही महत्त्वपूर्ण नहीं मानती, अपितु अपने संचित अनुभवों की पीड़ा का पाठ भी उसे पढ़ाना देना चाहती है। वह उसे भावी जीवन के यथार्थ के विषय में भी बताती है।

(ग) कवि कहता है कि माँ ने अपने जीवन में जिन दुःखों को सहन किया था, उन्हें अपनी बेटी को कन्यादान के समय बताना और समझाना अति आवश्यक था। यह एक सत्य है। कहने का भाव है कि आज के युग में बेटी के विवाह के समय कन्यादान में कुछ सामान देना ही पर्याप्त नहीं है, अपितु उसे जीवन के उन अनुभवों से भी अवगत करा देना उचित होगा जिनको माँ ने अपने जीवन में भोगा था ताकि बेटी अपना जीवन समुचित रूप से जी सके। माँ के लिए बेटी ही तो अंतिम संपत्ति थी। जीवन के सब सुख-दुःख वह बेटी के साथ बाँटती थी। भले ही वह बेटी का विवाह कर रही थी, किंतु उसकी दृष्टि में बेटी अब भी अधिक समझदार नहीं थी। उसके पास सांसारिक जीवन के अनुभव नहीं थे। वह अत्यंत सरल एवं भोले स्वभाव वाली थी। वह दुःखों की उपस्थिति को अनुभव तो करती थी, किंतु उसे उन्हें पढ़ना नहीं आता था। ऐसा लगता था कि उसे धुंधले प्रकाश में जीवन रूपी कविता की कुछ तुकों व लयबद्ध पंक्तियों को पढ़ना ही आता था, किंतु उसके अर्थ उसकी समझ में नहीं आते थे। कवि के कहने का भाव है कि कन्या भले ही विवाह के योग्य हो जाती है किंतु उसे उन्हें दुनियादारी की ऊँच-नीच व व्यवहार अभी पूरी तरह समझ में नहीं आते। उसमें इस समय इतनी योग्यता नहीं आ पाती कि वह दुनियावी भेदभाव को समझ सके। इसलिए माँ के द्वारा बेटी को समझाना उचित ही नहीं, नितांत आवश्यक भी है।

(घ) कवि ने माँ के दुःखों को प्रामाणिक कहा है क्योंकि उसने अपने जीवन में उन्हें भोगा एवं अनुभव किया है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

(ङ) बेटी ही माँ की अंतिम पूँजी है क्योंकि वह अपने जीवन के हर सुख-दुःख को उसी के साथ बाँटती है। बेटी ही माँ के सबसे अधिक निकट होती है। वह उसके सुख-दुःख की सच्ची साथी है।

(च) ‘दुःख बाँचना’ का साधारण अर्थ दुःखों को पढ़ना है। यहाँ दुःख बाँचना का अभिप्राय है-जीवन में आने वाले दुःखों की समझ रखना अर्थात् दुःखों को गहराई से समझना व जानना है।

(छ) कवि ने बेटी को धुंधले प्रकाश की पाठिका कहा है क्योंकि वह अभी जीवन में आने वाले सुख-दुःख को थोड़ा-बहुत अनुभव तो करती है, किंतु उनको गहराई से समझना व उनके कारणों पर विचार करना उसे नहीं आता। इसलिए उसे धुंधले प्रकाश की पाठिका कहा गया है जोकि उचित है।

(ज) प्रस्तुत पद्यांश का मूल भाव बदलते जीवन-मूल्यों के समय परंपरागत विचारों में भी बदलाव की आवश्यकता को व्यक्त करना है। आज बेटी को कन्यादान में कुछ सामान देना ही पर्याप्त नहीं अपितु माँ को चाहिए कि वे अपने जीवन के अनुभवों से भी उसे अवगत कराए ताकि वह अपना वैवाहिक जीवन भली-भाँति व्यतीत कर सके।

(झ) कवि ने कन्या की विवाहपूर्व स्थिति का अत्यंत सूक्ष्मता एवं भावनात्मकतापूर्ण वर्णन किया है। कन्या की चिंता में घुलती माँ की मनोदशा का अत्यंत सजीव चित्र अंकित किया गया है।

(ञ)

  • प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने अर्थ-लय का सुंदर मिश्रण किया है जिससे काव्य-सौंदर्य में वृद्धि हुई है।
  • भाषा, सरल एवं सहज होते हुए भी भावाभिव्यक्ति में पूर्णतः सक्षम है।
  • तत्सम शब्दावली का भावानुकूल प्रयोग द्रष्टव्य है।
  • अंतिम पूँजी में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
  • ‘दुःख बाँचना’ लाक्षणिक प्रयोग है।
  • ‘धुंधला प्रकाश’, ‘तुक’, ‘समलय पंक्तियाँ’ आदि प्रतीकात्मक प्रयोग हैं।

(ट) कविवर ऋतुराज भाषा के मर्मज्ञ विद्वान हैं। वे भाषा के महत्व को भली-भांति समझते हैं। अतः उन्होंने इस पद्यांश में सरल एवं सहज भाषा के सफल प्रयोग द्वारा विषय को रोचकतापूर्ण अभिव्यक्त किया है। व्यावहारिकता उनकी भाषा की प्रमुख विशेषता है। भाषा पूर्णतः लोक-जीवन से जुड़ी हुई है।

[2] माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना। [पृष्ठ 50]

शब्दार्थ-रीझना = प्रसन्न होना। रोटियाँ सेंकना = रोटियाँ पकाना। आभूषण = गहने। भ्रम = धोखा।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस कवितांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) इस पद्यांश की व्याख्या लिखिए।
(घ) माँ ने आग का क्या प्रयोग बताया और क्यों?
(ङ) वस्त्रों एवं आभूषणों को स्त्री जीवन के बंधन क्यों बताया गया है?
(च) कवि ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की जैसी दिखाई मत देना?
(छ) माँ ने बेटी को अपने चेहरे पर रीझने के लिए क्यों मना किया है?
(ज) ‘शाब्दिक भ्रम’ का क्या तात्पर्य है?
(झ) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ञ) प्रस्तुत पद्यावतरण में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ट) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-ऋतुराज। कविता का नाम-कन्यादान।

(ख) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘कन्यादान’ नामक कविता से उद्धृत हैं। इनमें कविवर ऋतुराज ने एक माँ के द्वारा विदाई के समय पुत्री को दी जाने वाली शिक्षा का उल्लेख किया है। अकसर नारियों को कोमल, कमज़ोर और असहाय बताया जाता है। माँ अपनी बेटी को इस भ्रम को तोड़कर जीवन जीने की शिक्षा देती है।

(ग) प्रस्तुत काव्यांश में माँ अपनी बेटी को विदाई के समय शिक्षा देती हुई कहती है कि तुम कभी अपने चेहरे को पानी में देखकर अपनी सुंदरता पर प्रसन्न मत होना। कवि के कहने का भाव है कि कभी-कभी उनकी सुंदरता ही उनके लिए बंधन बन जाती है। दहेज के कारण लोग लड़कियों को जला देते हैं। इस भय के कारण माँ बेटी को समझाती है कि आग रोटी पकाने के लिए होती है, स्वयं जलने के लिए नहीं। किसी भी ऐसी घटना से सदा सचेत रहना। देखा गया है कि लड़कियाँ ससुराल वालों के जुल्म सहती रहती हैं और कुछ बोलती भी नहीं। यदि समय रहते उसका विरोध किया जाए तो ऐसी घटना से बचा जा सकता है। अकसर नारी की कोमलता को उसकी कमज़ोरी मान लिया जाता है। नारी को अच्छे वस्त्रों और आभूषणों तक सीमित कर दिया जाता है। नारी के लिए नए-नए आदर्शों की व्याख्या की जाती है। उसे क्या करना है, क्या नहीं करना है आदि। ऐसी बातें या आदर्श उसके बंधन बन जाते हैं। इसीलिए उसकी माँ कहती है कि लड़कियों की तरह रहना, किंतु लड़कियों की तरह दिखाई मत देना। कहने का भाव है कि हर बात को सिर झुकाकर स्वीकार करना, किसी बात का विरोध न करना आदि। लड़कियों के गुणों से ऊपर उठकर अपनी बात को दृढ़ता से औरों के सामने रखना जिससे लोग स्त्री को अबला समझकर उस पर अत्याचार करने की हिम्मत न करें।

(घ) माँ ने अपनी बेटी की विदाई के समय उसे शिक्षा देते हुए बताया है कि आग रोटियाँ सेंकने के लिए है अर्थात आग का प्रयोग भोजन बनाने के लिए होता है, स्वयं जलने के लिए नहीं। दुल्हनों को आग में जलाकर मारने की घटनाएँ प्रतिदिन सुनने को मिलती हैं। अतः माँ ने बेटी को सावधान करते हुए ऐसा कहा है।

(ङ) स्त्री को लोग सौंदर्य की वस्तु समझते हैं। वह अच्छे वस्त्र और आभूषण पहनकर और भी सुंदर लगती है। इस भावना को स्त्रियाँ भी समझती हैं। इसलिए वे सुंदर वस्त्रों और आभूषणों के प्रति मोह रखती हैं। अतः कवि ने वस्त्रों और आभूषणों को नारी जीवन के लिए बंधन कहा है।

(च) कवि ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि ससुराल वाले लड़की को कमज़ोर समझकर उस पर तरह-तरह के अत्याचार करते हैं और वह उनको सहती रहती है। वह किसी भी तरह का प्रतिवाद नहीं करती। किंतु उसे ऐसा नहीं होने देना चाहिए। उसे अन्याय व अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिए। उसे चुप नहीं रहना चाहिए।

(छ) माँ ने बेटी को चेहरे पर रीझने के लिए इसलिए मना किया क्योंकि प्रायः स्त्रियाँ अपनी सुंदरता पर रीझकर हर बंधन को निभा लेती हैं। वे ससुराल वालों की प्रशंसा पाकर उनके हर अत्याचार व अन्याय को भी सहन कर लेती हैं और अपने शोषण का विरोध नहीं करतीं।

(ज) ‘शाब्दिक भ्रम’ का तात्पर्य है कि शब्दों के द्वारा किसी अवास्तविक वस्तु को वास्तविक बताना। किसी वस्तु का शब्दों द्वारा बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन करना। इसकी समानता बहू को मिलने वाले सुंदर कपड़ों और आभूषणों से की गई है। ये भी बहू के मन में भ्रम पैदा करते हैं कि उसके ससुराल वाले उससे सचमुच प्यार करते हैं। कहने का भाव है कि माँ अपनी बेटी को ऐसे शाब्दिक भ्रमों से सावधान रहने के लिए कहती है।

(झ) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने उन सब बातों व सामाजिक बंधनों के रहस्य को व्यक्त किया है जिनके कारण स्त्री को गुलाम बनाया जाता है। कवि ने नारी की सुंदरता, वस्त्र और आभूषणों के प्रति मोह, झूठी प्रशंसा, आदर्शों की व्याख्या आदि को नारी जीवन की गुलामी के कारण बताया है। इस भाव को अत्यंत कुशलता से अभिव्यक्त किया गया है। इसके अतिरिक्त लड़कपन का होना भी कभी-कभी स्त्री के शोषण का कारण बन सकता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि नारी इन बातों का ध्यान रखते हुए अपना जीवन स्वतंत्रतापूर्वक व्यतीत कर सकती है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान

(ञ)

  • कवि ने नारी को सामाजिक बंधनों से मुक्त रहने के लिए सुझाव दिए हैं।
  • भाषा सांकेतिक है। पानी में झाँकना, लड़की होना, रोटियाँ सेंकना, जलने के लिए नहीं आदि प्रयोग इसके उदाहरण हैं। जो सांकेतिक होते हुए भी अपने में गूढ़ अर्थ समेटे हुए हैं।
  • वाक्य-रचना अत्यंत सरल है।
  • मुक्त छंद का प्रयोग किया गया है।
  • लाक्षणिकता का प्रयोग हुआ है।

(ट) कविवर ऋतुराज भाषा के मर्म को समझते हैं। उन्होंने उपर्युक्त पद्यांश में सरल, सहज एवं व्यावहारिक भाषा का सफल प्रयोग किया है। ‘रोटियाँ सेकना’ ‘आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह’ आदि भाषिक प्रयोग अत्यन्त सार्थक एवं सटीक बन पड़े हैं। प्रवाहमयता एवं रोचकता भाषा की प्रमुख विशेषताएँ हैं। इस काव्यांश की भाषा में तद्भव शब्दों का सफल प्रयोग किया गया है।

कन्यादान Summary in Hindi

कन्यादान कवि-परिचय

प्रश्न-
कविवर ऋतुराज का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-ऋतुराज का आधुनिक हिंदी कवियों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनका जन्म सन् 1940 में भरतपुर (राजस्थान) में हुआ। उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय से एम०ए० अंग्रेजी की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात् उन्होंने अध्यापन का कार्य आरंभ किया। आजकल श्री ऋतुराज सेवानिवृत्त होकर साहित्य-सृजन में लगे हुए हैं।

2. प्रमुख रचनाएँ-कविवर ऋतुराज के अब तक आठ काव्य-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं’एक मरणधर्मा और अन्य’, ‘पुल पर पानी’, ‘सुरत-निरत’, ‘लीला मुखारविंद’ आदि।
पुरस्कार-कवि श्री ऋतुराज सोमदत्त परिमल सम्मान, मीरा पुरस्कार, पहल सम्मान तथा बिहारी पुरस्कार आदि पुरस्कारों से भी सम्मानित हो चुके हैं।

3. काव्यगत विशेषताएँ-ऋतुराज के काव्यों के अध्ययन से पता चलता है कि वे शोषितों, पीड़ितों व उपेक्षितों के कवि हैं। उन्होंने उन लोगों के जीवन पर लेखनी चलाई है जिन्हें समाज ने हाशिए पर खड़ा किया हुआ है अथवा जिन्हें उपेक्षित समझा जाता है। वे अपने काव्य में कल्पना की अपेक्षा यथार्थ को अपनाते हैं। उनका मत है कि आज काव्य को कल्पना की उड़ान भरने की अपेक्षा यथार्थ को आधार बनाकर आगे बढ़ना चाहिए। कवि ने अत्यंत सहज भाव से अन्याय, दमन, शोषण और रूढ़िग्रस्त जर्जरित संस्कारों का विरोध किया है। कहीं-कहीं उनके विद्रोह की भावना अत्यंत तीखी होकर उभरी है। उन्होंने आज के मानव के संघर्ष को काव्य में स्थान देकर एवं उसको प्रतिष्ठित करके संघर्ष व परिश्रम के प्रति विश्वास व्यक्त किया है। उन्होंने बड़ी-बड़ी दार्शनिक बातें कहने की अपेक्षा दैनिक जीवन के अनुभवों का यथार्थ के धरातल पर जाकर सजीव चित्रण किया है। उन्होंने परंपरा से हटकर नए जीवन-मूल्यों की स्थापना करने का प्रयास किया है। उनकी कविता में कल्पना नहीं, अपितु यथार्थ के दर्शन होते हैं; यथा
माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना,
X X X
बंधन हैं स्त्री जीवन के।

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4. भाषा-शैली-कविवर ऋतुराज भाषा के मर्म को समझते हैं। इसलिए उन्होंने जीवन को यथार्थ के धरातल पर चित्रित करने के लिए सरल, सहज एवं व्यावहारिक भाषा को माध्यम बनाया है। उनकी भाषा पूर्णतः लोक-जीवन से जुड़ी हुई है। उनकी काव्य भाषा में तद्भव शब्दों का विषयानुकूल प्रयोग हुआ है।

कन्यादान कविता का सार

प्रश्न-
‘कन्यादान’ नामक कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘कन्यादान’ ऋतुराज की सुप्रसिद्ध रचना है। इस कविता में माँ बेटी को स्त्री के परंपरागत ‘आदर्श’ रूप से हटकर शिक्षा व सीख देती है। कवि का मत है कि समाज-व्यवस्था में स्त्रियों के लिए आचरण संबंधी जो प्रतिमान गढ़ लिए जाते हैं, वे आदर्श के मुलम्मे में बंधन ही होते हैं। ‘कोमलता’ के गौरव में कमजोरी का उपहास छुपा हुआ है। लड़की जैसा न दिखाई देने में इसी आदर्शीकरण का प्रतिकार है।

बेटी माँ के सबसे निकट होती है। उसके सुख-दुःख की साथी होती है। इसीलिए माँ के लिए बेटी उसकी अंतिम पूँजी है। प्रस्तुत कविता कोरी कल्पना पर आधारित नहीं है और न ही इसमें भावुकता को आधार बनाया गया है। यह कविता माँ के संचित अनुभवों की पीड़ा की प्रामाणिक अभिव्यक्ति है। प्रस्तुत कविता में कवि की स्त्री जीवन के प्रति गहरी संवेदनशीलता अभिव्यक्त हुई है।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

HBSE 10th Class Hindi छाया मत छूना Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है?
उत्तर-
यथार्थ का पूजन करके अर्थात यथार्थ को स्वीकार करके ही मानव जीवन में आगे बढ़ा जा सकता है। मनुष्य को वास्तविकता का सामना करना ही पड़ता है। हर मनुष्य अपनी परिस्थितियों में जीता है और उनके अनुसार जीवन को ढालता है। भूली-बिसरी यादों के सहारे जीवन में आगे बढ़ा जा सकता है। इसलिए कवि ने कठिन यथार्थ की पूजा करने के लिए कहा है।

प्रश्न 2.
भाव स्पष्ट करेंप्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है, हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
उत्तर-
मनुष्य प्रभुता एवं सुख-सुविधाएँ प्राप्त करने के लिए जीवन-भर दौड़ता रहता है, परंतु उसकी यह दौड़ निरर्थक सिद्ध . होती है क्योंकि सुख-दुःख जीवन के दो पहलू हैं। सुख के बाद दुःख आता ही है।

प्रश्न 3.
‘छाया’ शब्द यहाँ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है? कवि ने उसे छूने के लिए मना क्यों किया है?
उत्तर-
कविता में ‘छाया’ शब्द अतीत की यादों के लिए प्रयुक्त हुआ है जो अब वास्तविकता से दूर हो गई हैं। इसलिए अतीत की स्मृतियों रूपी छायाएँ अनुभव करने में भले ही मधुर प्रतीत होती हों, किंतु वर्तमान की वास्तविकता नहीं हो सकती। पुरानी यादों या छाया से चिपके रहने वाला मनुष्य अपने वर्तमान को सुधार नहीं सकता और न ही भविष्य को उज्ज्वल बना सकता है। इसलिए कवि ने छाया को छूने से मना किया है।

प्रश्न 4.
कविता में विशेषण के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में विशेष प्रभाव पड़ता है, जैसे कठिन यथार्थ।
कविता में आए ऐसे अन्य उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी लिखिए कि इससे शब्दों के अर्थ में क्या विशिष्टता पैदा हुई?
उत्तर-
गिरिजाकुमार माथुर छायावादी काव्य से प्रभावित हैं, इसलिए उन्होंने प्रस्तुत कविता में विविध विशेषण शब्दों का प्रयोग करके विषय-वर्णन में रोचकता उत्पन्न की है। आलोच्य कविता में अनेक विशेषण शब्द प्रयुक्त हुए हैं, उनमें से प्रमुख विशेषण निम्नांकित हैं

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

(क) दूना दुख-दूना शब्द दुःख की गहराई को व्यक्त करता है।
(ख) सुरंग सुधियाँ यादों की विविधता और मोहक सुंदरता की विशिष्टता दिखलाई गई है।
(ग) छवियों की चित्र-गंध-सुंदर रूपों में मादक गंध की विशिष्टता को व्यक्त किया गया है।
(घ) तन-सुगंध-सुगंध के साकार रूप की विशिष्टता है।
(ङ) शरण-बिंब-जीवन में आधार बनने की विशेषता को व्यक्त किया गया है।
(च) यथार्थ कठिन-जीवन की कठोर वास्तविकता की विशिष्टता दिखाई गई है।
(छ) दुविधा-हत साहस-साहस होते हुए भी दुविधाग्रस्त रहने की विशिष्टता दिखलाई गई है।
(ज) शरद्-रात-रात में शरद् ऋतु की ठंडक की विशिष्टता।
(झ) रस-वसंत-वसंत ऋतु में मधुर रस के अहसास की विशिष्टता।

प्रश्न 5.
‘मृगतृष्णा’ किसे कहते हैं, कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है?
उत्तर-
‘मृगतृष्णा’ शब्द का साधारण अर्थ है-भ्रम या धोखा। गर्मी के मौसम में रेगिस्तान के रेत पर पड़ती हुई सूर्य की किरणों की चमक में जल का भ्रम या धोखा हो जाता है और प्यासा मृग धोखे के कारण इसे जल समझ लेता है और इसे प्राप्त करने के लिए इसके पीछे दौड़ता है, किंतु कविता में इसका प्रयोग सुख-सुविधाओं के लिए हुआ है। व्यक्ति प्रभुता एवं सुखसुविधाओं की प्राप्ति हेतु दिन-रात उनके पीछे भागता है, किंतु उसकी यह दौड़ अंतहीन है और एक दिन वह थककर गिर जाता है। इसलिए कविता में संदेश दिया गया है कि मनुष्य को मृगतृष्णा की भावना से बचकर रहना चाहिए।

प्रश्न 6.
‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ यह भाव कविता की किस पंक्ति में झलकता है?
उत्तर-
उपरोक्त भाव निम्नलिखित पंक्ति में झलकता है’जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण’।

प्रश्न 7.
कविता में व्यक्त दुःख के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
इस कविता में दुःख का कारण अतीत की सुखद यादों को बताया गया है। मनुष्य के जीवन में जब थोड़ा-सा भी दुःख आता है तो वह अपने वर्तमान जीवन की तुलना अतीत से करने लगता है। अतीत की मधुर स्मृतियाँ उसके मानस-पटल पर अंकित हो जाती हैं। इससे उसकी कार्य करने की क्षमता भी प्रभावित होती है। ऐसा करके वह अपने दुःखों पर विजय नहीं पाता, बल्कि उसका साहस भी मंद पड़ जाता है और दुःख बढ़ जाते हैं जो उसके आगे बढ़ने के रास्ते में बाधा बन जाते हैं।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 8.
‘जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी’, से कवि का अभिप्राय जीवन की मधुर स्मृतियों से है। आपने अपने जीवन । की कौन-कौन सी स्मृतियाँ संजो रखी हैं?
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। छात्र इसे स्वयं करें।

प्रश्न 9.
‘क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर? कवि का मानना है कि समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनंद देती है। क्या आप ऐसा मानते हैं? तर्क सहित लिखिए।
उत्तर-
निश्चय ही उचित समय पर प्राप्त उपलब्धियाँ अच्छी लगती हैं, जैसे गर्मी बीत जाने पर ए.सी. किस काम का? फसलें सूख जाने पर वर्षा किस काम की? इसी प्रकार रोगी के दम तोड़ देने के पश्चात् डॉक्टर का पहुँचना व्यर्थ होता है। ये सब उदाहरण देखकर लगता है कि समय बीत जाने के बाद यदि उपलब्धियाँ प्राप्त हुईं तो किस काम की। अतः हम समय पर प्राप्त उपलब्धियों के महत्त्व के पक्ष में हैं।

पाठेतर सक्रियता

आप गर्मी की चिलचिलाती धूप में कभी सफर करें तो दूर सड़क पर आपको पानी जैसा दिखाई देगा पर पास पहुँचने पर वहाँ कुछ नहीं होता। अपने जीवन में भी कभी-कभी हम सोचते कुछ हैं, दिखता कुछ है लेकिन वास्तविकता कुछ और होती है। आपके जीवन में घटे ऐसे किसी अनुभव को अपने प्रिय मित्र को पत्र लिखकर अभिव्यक्त कीजिए।
उत्तर-
छात्र स्वयं अपने अनुभव लिखें।

कवि गिरिजाकुमार माथुर की ‘पंद्रह अगस्त’ कविता खोजकर पढ़िए और उस पर चर्चा कीजिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

यह भी जानें
प्रसिद्ध गीत ‘We shall overcome का हिंदी अनुवाद ‘होंगे कामयाब’ शीर्षक से कवि गिरिजाकुमार माथुर ने किया है।

HBSE 10th Class Hindi छाया मत छूना Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘छाया मत छूना’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
बीते हुए सुखी जीवन की स्मृति को कवि ने छाया कहा है। इसलिए कवि का कथन है कि बीते हुए सुखी जीवन की घड़ियों को स्मरण करने से कुछ प्राप्त नहीं होगा, बल्कि वर्तमान जीवन और दुःखी होगा तथा भविष्य भी भ्रम में पड़ जाएगा। यही कारण है कि कवि ने छाया अर्थात् अतीत के सुखी जीवन की यादों को भूलना ही हितकर बताया है।

प्रश्न 2.
कविता में कवि किसकी और क्यों पूजा करने पर बल देता है?
उत्तर-
‘छाया मत छूना’ कविता में कवि ने बताया है कि अतीत के सुखी जीवन की यादों से चिपटे रहकर तथा भविष्य की आकांक्षाओं में खोए रहने से मानव-जीवन कभी सुखी नहीं हो सकता। बीते दिनों की सुखद यादें हमें कुछ देर के लिए तो मधुर लग सकती हैं, किंतु अंत में उनसे कुछ लाभ नहीं हो सकता। उनमें डूबे रहने से वर्तमान जीवन दुःखी बन जाता है। भविष्य की आकांक्षाओं से मनुष्य दुविधा में फँस जाता है। वह निर्णय नहीं ले सकता कि उसे क्या करना चाहिए तथा क्या नहीं करना चाहिए। इसलिए कवि ने वर्तमान के कठोर यथार्थ को पूजने का आग्रह किया है।

प्रश्न 3.
‘हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।’ जीवन से उदाहरण देकर इस तथ्य की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने यह बताने का प्रयत्न किया है कि सुख-दुःख जीवन में बराबर आते रहते हैं। जिस प्रकार दिन के बाद रात का आना निश्चित होता है, उसी प्रकार मानव-जीवन में आए सुख का अंत होना भी निश्चित है। मानव-जीवन सुख-दुःख का एक अनोखा क्रम है। मानव-जीवन में प्रायः देखा जाता है कि आज हम उत्सव मनाने में मग्न हैं तो कल शोकाकुल हैं। आज विवाह है तो कल मांग का सिंदूर मिट जाता है। आज कोई व्यक्ति सफलता की खुशियाँ मना रहा है तो कल वही व्यक्ति असफलता पर भी रोता दिखाई देता है। अतः कवि ने ठीक ही कहा है कि हर चांदनी रात में एक अंधेरी रात छिपी रहती है अर्थात् सुख और दुःख जीवन में निरंतर आते रहते हैं।

प्रश्न 4.
‘छाया मत छूना’ कविता में कवि ने मानव-जीवन के दुःखों का क्या कारण बताया है?
उत्तर-
कवि कहता है कि व्यक्ति का अतीत की बातों की याद में दिन-रात खोए रहने से तथा प्रेम की असफलताओं पर पश्चात्ताप करते रहने से वर्तमान जीवन दुःखद बन जाता है। अतीत की यादों से चिपके रहने वाला व्यक्ति सदा दुःखी रहता है। वर्तमान की वास्तविकताओं को भुलाकर भविष्य की कल्पनाओं में डूबे रहना भी व्यक्ति के जीवन को दुःखी बना देता है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्ति की व्याख्या कीजिएप्रभुता की शरण बिंब केवल मृगतृष्णा है।
उत्तर-
प्रभुत्व की प्राप्ति की शरण का बिंब एक मृगतृष्णा के समान धोखा है, मिथ्या है। जिस प्रकार रेगिस्तान में चमकती रेत को देखकर मृग को पानी होने का भ्रम हो जाता है तथा उसे प्राप्त करने के लिए भागता है किंतु अंत में कुछ भी हाथ न लगने के कारण निराश हो जाता है, उसी प्रकार प्रभुत्व प्राप्ति की शरण भी मृगतृष्णा के समान एक धोखा है।

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संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 6.
‘छाया मत छूना’ कविता का उद्देश्य/मूलभाव स्पष्ट कीजिए। [H.B.S.E. 2017 (Set-B), Sample Paper,.2019]
उत्तर-
‘छाया मत छूना’ कविता में कवि का उद्देश्य यह उजागर करना है कि अतीत की सुखद यादों में निरंतर खोए रहना उचित नहीं है क्योंकि इससे वर्तमान जीवन दुखद और भविष्य अनिश्चित बन जाता है। जीवन की कठोर वास्तविकताओं को ध्यान में रखकर जीने में ही मानव की भलाई है। कवि ने यह भी बताया है कि भविष्य की आकांक्षाओं में जीने से भी मानव-जीवन दुःखी बनता है। अतः कवि का स्पष्ट मत है कि वर्तमान जीवन के आधार पर जीना ही उचित है।

प्रश्न 7.
‘छाया मत छूना’ में कवि की आशावादी और यथार्थवादी भावनाओं की एक साथ अभिव्यक्ति हुई है। सिद्ध कीजिए।
उत्तर-
निश्चय ही कविवर गिरिजाकुमार माथुर की इस कविता में आशावादी चेतना के दर्शन होते हैं। वे कहते हैं कि हमें अपने अतीत के दुःखों व असफलताओं को याद करने की अपेक्षा अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाने का प्रयास करना चाहिए
“जो न मिला भूल उसे, कर तू भविष्य वरण।”

इसी प्रकार कविवर माथुर अतीत की सुखद यादों व कल्पनाओं को तथा अवास्तविकताओं को त्यागकर जीवन में यथार्थ को स्वीकार करते हुए जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं।
“जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन”।

प्रश्न 8.
‘दुविधा-हत साहस है दिखाता पंथ नहीं’ पंक्ति कवि की किस विचारधारा की ओर संकेत करती है?
उत्तर-
इस पंक्ति में कवि की जीवन के प्रति यथार्थ एवं स्पष्ट विचारधारा व्यक्त हुई है। कवि ने बताया है कि जब मनुष्य का मन दुविधाओं से ग्रस्त रहता है, तब उसे आगे बढ़ने का कोई उचित मार्ग नहीं सूझता। उसका साहस भी नष्ट होने लगता है। जीवन में वह किसी एक निर्णय पर नहीं पहुँच सकता। इसलिए कवि ने स्पष्ट किया है कि हमें अपने मन में किसी भी प्रकार की दुविधा को स्थान नहीं देना चाहिए। हमारी जीवन-शैली दुविधा रहित होनी चाहिए।

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गिरिजाकुमार माथुर का जन्म कब हुआ था?
उत्तर-
गिरिजाकुमार माथुर का जन्म सन् 1918 में हुआ था।

प्रश्न 2.
गिरिजाकुमार माथुर का निधन कब हुआ था?
गिरिजाकुमार माथुर का निधन सन् 1994 में हुआ था?

प्रश्न 3.
‘छाया’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है?
उत्तर-
‘छाया’ शब्द का प्रयोग मधुर स्मृतियों के लिए किया गया है।

प्रश्न 4.
चाँदनी रात को देखकर कवि को क्या याद आता है?
उत्तर-
चाँदनी रात को देखकर कवि को प्रियतमा के केशों में गूंथे हुए फूलों की याद आती है।

प्रश्न 5.
किसके तन की सुगंध की यादें शेष रह गई हैं?
उत्तर-
कवि की पत्नी के तन की सुगंध की यादें शेष रह गई हैं।

प्रश्न 6.
‘छाया मत छूना’ कविता के रचयिता कौन हैं?
उत्तर-
श्री गिरिजाकुमार माथुर।

प्रश्न 7.
‘कृष्णा’ शब्द के माध्यम से कवि ने किस ओर संकेत किया है?
उत्तर-
‘कृष्णा’ शब्द के माध्यम से कवि ने दुख रूपी रात की ओर संकेत किया है।

प्रश्न 8.
कवि को पंथ दिखाई क्यों नहीं देता?
उत्तर-
कवि को दुविधाग्रस्त होने के कारण पंथ दिखाई नहीं देता।

प्रश्न 9.
‘छाया मत छूना’ कविता में जो न मिला उसे भूलकर किसका वरण करने की बात कही है?
उत्तर-
कवि ने जो नहीं मिला उसे भूलकर भविष्य को वरण करने को कहा है।

प्रश्न 10.
‘रस-बसंत’ का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
रस-बसंत’ का अभिप्राय सुखमय जीवन है।

प्रश्न 11.
कवि के अनुसार छाया को छूने से क्या होता है?
उत्तर-
कवि के अनुसार छाया को छूने से दुख की प्राप्ति होती है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गिरिजाकुमार माथुर किस प्रदेश के रहने वाले थे?
(A) उत्तर प्रदेश
(B) हरियाणा
(C) मध्य प्रदेश
(D) पंजाब
उत्तर-
(C) मध्य प्रदेश

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प्रश्न 2.
गिरिजाकुमार माथुर कृत कविता का नाम है
(A) छाया मत छूना
(B) फसल
(C) संगतकार .
(D) कन्यादान
उत्तर-
(A) छाया मत छूना

प्रश्न 3.
कवि ने किसे छुने से मना किया है?
(A) छाया को
(B) बादल को
(C) आग को
(D) पानी को
उत्तर-
(A) छाया को

प्रश्न 4.
कवि के अनुसार छाया को छूने से क्या होता है?
(A) सुख की प्राप्ति
(B) दुख की प्राप्ति
(C) धन की प्राप्ति
(D) भोजन की प्राप्ति
उत्तर-
(B) दुख की प्राप्ति

प्रश्न 5.
‘यामिनी’ का क्या अर्थ है?
(A) सर्पनी
(B) अंधेरी रात
(C) प्रातःकाल
(D) चाँदनी रात
उत्तर-
(D) चाँदनी रात

प्रश्न 6.
‘यश है या न वैभव है मान है न सरमाया’, यहाँ ‘सरमाया’ का अर्थ है
(A) शर्म आना
(B) शर्म न करना
(C) परिश्रम
(D) पूँजी
उत्तर-
(D) पूँजी

प्रश्न 7.
दुविधा की अधिकता के कारण कवि को क्या दिखाई नहीं देता?
(A) लक्ष्य
(B) सहायक
(C) पंथ
(D) साथी
उत्तर-
(C) पंथ

प्रश्न 8.
‘भरमाया’ शब्द का क्या अर्थ है?
(A) भटका हुआ
(B) भ्रमित होना
(C) सुधरा हुआ
(D) दौड़ता हुआ
उत्तर-
(A) भटका हुआ

प्रश्न 9.
पूज्य कठिन यथार्थ क्या है?
(A) पलायन
(B) कल्पना
(C) उपदेश
(D) चुनौती स्वीकारना
उत्तर-
(D) चुनौती स्वीकारना

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प्रश्न 10.
‘मृगतृष्णा’ का अर्थ है
(A) मृग की प्यास
(B) मृग की दौड़
(C) छलावा
(D) दिखावा
उत्तर-
(C) छलावा

प्रश्न 11.
‘चन्द्रिका’ शब्द का प्रयोग किस अर्थ के लिए किया गया है?
(A) सुख के दिनों के लिए
(B) दुख के दिनों के लिए
(C) आलस्य के अर्थ में
(D) मस्ती के दिनों के लिए
उत्तर-
(A) सुख के दिनों के लिए

प्रश्न 12.
कवि ने मानव को किसका ‘पूजन’ करने के लिए कहा है?
(A) भगवान का
(B) धन का
(C) यथार्थ का
(D) भविष्य का
उत्तर-
(C) यथार्थ का

प्रश्न 13.
क्या होते हुए भी दुविधा से ग्रस्त रहते हैं?
(A) धन
(B) साहस
(C) पराक्रम
(D). यौवन
उत्तर-
(B) साहस

प्रश्न 14.
प्रस्तुत कविता में हर चंद्रिका में क्या छिपी होने की बात कही है?
(A) चाँदनी
(B) ज्योत्स्ना
(C) काली रात
(D) खुशी
उत्तर-
(C) काली रात

प्रश्न 15.
जीवन में सुहावनी चीजें क्या हैं?
(A) वैभव
(B) सुरंग सुधियाँ
(C) कर्म
(D) अमीरी
उत्तर-
(B) सुरंग सुधियाँ

प्रश्न 16.
‘कुंतल’ शब्द का क्या अर्थ है?
(A) रेशमी वस्त्र
(B) फूल
(C) लम्बे केश .
(D) कंचुकी
उत्तर-
(C) लम्बे केश

प्रश्न 17.
‘छवियों की चित्र गंध’ किस प्रकार की है?
(A) आकर्षक
(B) आनंददायक
(C) मनभावनी
(D) सुहावनी
उत्तर-
(C) मनभावनी

प्रश्न 18.
प्रस्तुत कविता में किसका वरण करने की बात की गई है?
(A) जो न मिला हो
(B) भविष्य का
(C) ईश्वर का
(D) खुशियों का
उत्तर-
(B) भविष्य का

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

प्रश्न 19.
पथ न दिखने पर साहस कैसा होता है?
(A) अपार
(B) आनन्दमय
(C) दुविधा-हत
(D) अकथनीय
उत्तर-
(C) दुविधा-हत

छाया मत छूना पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी;
तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना। [पृष्ठ 46]

शब्दार्थ-छाया मत छूना = अतीत को याद न करना। सुरंग = रंग-बिरंगी। सुधियाँ = यादें, स्मृतियाँ। छवियों की चित्र-गंध = सौंदर्य की स्मृति, चित्र की स्मृति के साथ उसके आसपास की गंध का अनुभव होना। यामिनी = चाँदनी रात। कुंतल = केश। छुअन = स्पर्श। छाया = भ्रम।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) जीवन में सुधियाँ कैसी हैं?
(ङ) कवि छाया को छूने से मना क्यों कर रहा है?
(च) छाया को छूने का क्या परिणाम होगा और कैसे?
(छ) ‘छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ज) चाँदनी रात को देखकर कवि को किसकी स्मृति आती है और क्यों?
(झ) ‘बीत गई यामिनी’ में कवि का कौन-सा भाव मुखरित हुआ है?
(अ) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ट) प्रस्तुत काव्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ठ) प्रस्तुत काव्यांश की भाषागत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-गिरिजाकुमार माथुर। कविता का नाम-छाया मत छूना।

(ख) प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित एवं गिरिजाकुमार माथुर द्वारा रचित कविता ‘छाया मत छूना’ से उद्धृत है। प्रस्तुत कविता में कवि ने बीते हुए सुखी जीवन की स्मृतियों को त्यागकर वर्तमान जीवन को सुखी बनाने की प्रेरणा दी है। इन पंक्तियों में कवि ने अतीत के प्रेम और सुख की यादें सुखद होने पर भी वर्तमान को दुखद बनाने वाली बताया है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना

(ग) कवि अपने मन को संबोधित करते हुए कहता है कि हे मन! अतीत की यादों को मत छूना क्योंकि उन्हें स्मरण करके वर्तमान जीवन दुःखी होता है तथा भविष्य भ्रामक कल्पनाओं में उलझ जाता है। अतीत के प्रेम और प्रिय की रंग-बिरंगी सुहावनी अनेक स्मृतियाँ होती हैं। इन यादों में बीते हुए क्षणों के चित्र उभरकर एक सुहावनी सुगंध की मादकता मन में भर देते हैं। अतः प्रिय के तन की सुगंध की स्मृतियों में ही सारी रात बीत जाती है। प्रिय के केशों में लगे फूलों की याद चाँदनी के समान मन रूपी आसमान पर छाई रहती है। प्रिय के तन का स्पर्श, जो भुलाया नहीं जा सकता, वह पुनः बीते क्षणों को जीवंत कर देता है। अतः हे मन! अतीत की यादों को मत छूना वरन् वर्तमान और भविष्य दोनों दुखद बन जाएँगे।

(घ) जीवन में सुधियाँ रंग-बिरंगी, सुहावनी तथा मन को भाने वाली हैं।

(ङ) कवि के अनुसार छाया को छूने अर्थात् अतीत की यादों में जीने का परिणाम अच्छा नहीं होता अथवा अतीत की यादों में जीने का परिणाम दुखद होता है। हम पुराने दिनों के बीत जाने पर उन्हें याद करके दुःखी होते हैं। इसका हमारे वर्तमान जीवन पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए कवि छाया को छूने से मना करता है।

(च) छाया को छूने का अर्थात् अतीत की मधुर स्मृतियों को मन में संजोये रखने का परिणाम अच्छा नहीं होता। यदि हम अपने अतीत में ही जीते रहेंगे तो हमारा वर्तमान और भविष्य दोनों अच्छे नहीं बन सकेंगे। इसलिए छाया को छूते रहने से जीवन अभावग्रस्त एवं दुःखी होता है।

(छ) इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने बताया है कि जब हम पुरानी यादों में जीते हैं अर्थात् बीते हुए समय को याद करते हैं तो हमारे सामने न केवल बीती हुई मीठी यादों के दृश्य ही आते हैं अपितु उन क्षणों की सुगंध भी तरोताजा हो जाती है। वे हमें सजीव-सी प्रतीत होती हैं।

(ज) चाँदनी रात को देखकर कवि को अपनी प्रियतमा के केशों में गूंथे हुए फूलों की स्मृति आती है क्योंकि उन्हें चाँदनी को देखकर अपने बीते हुए प्रेम के सुहावने दिनों की याद आती है।

(झ) ‘बीत गई यामिनी’ में पुरानी यादों में रात बीतने की पीड़ा व्यक्त हुई है। कवि के कहने का तात्पर्य है कि पुरानी यादों की स्मृतियों में पूरा जीवन ही समाप्त हो जाता है, किंतु यादें फिर भी बनी रहती हैं। किंतु उनसे वर्तमान जीवन के लिए कुछ ठोस प्राप्त नहीं हो सकता।

(ञ) इस कवितांश में कवि ने मानव मन की उस स्थिति का मनोरम वर्णन किया है जो उसे अतीत से जोड़े रखती है। कवि ने पुरानी यादों से उत्पन्न निराशा को गहरा करने की मनोभावना का उल्लेख किया है। कवि ने स्पष्ट किया है कि पुरानी यादों से मधुरता कम और निराशा अधिक उत्पन्न होती है तथा निराशा का हमारे वर्तमान पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

(ट)

  • कवि ने मानव मन की गहराइयों को अत्यंत सशक्त एवं समर्थ भाषा में उजागर किया है।
  • संपूर्ण काव्यांश में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
  • मुक्त छंद का प्रयोग किया गया है।
  • संस्कृत के शब्दों की अधिकता है।
  • तुकांतता के कारण विषय प्रभावशाली बन पड़ा है।
  • कोमलकांत शब्दावली का सार्थक प्रयोग किया गया है।

(ठ) गिरिजाकुमार माथुर भाषा के मर्मज्ञ विद्वान थे। उन्होंने अपनी कविताओं में सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया है। प्रयुक्त काव्यांश में सरल एवं सामान्य बोलचाल की हिन्दुस्तानी भाषा का सफल प्रयोग किया गया है। तत्सम एवं तद्भव शब्दों का प्रयोग विषयानुकूल है। सम्पूर्ण पद में प्रसाद गुण संयुक्त भाषा का प्रयोग हुआ है।

[2] यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना। [पृष्ठ 46]

शब्दार्थ-यश = सम्मान। वैभव = सुख-साधन, धन-दौलत। सरमाया = पूँजी, धन। भरमाया = भटका। प्रभुता का शरण-बिंब = बड़प्पन का अहसास। मृगतृष्णा = छलावा, धोखा। रात कृष्णा = काली रात, दुखद समय। यथार्थ = सत्य। पूजन = पूजा करना, अर्चना करना।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस काव्यांश का प्रसंग स्पष्ट करें।
(ग) इस काव्यांश की व्याख्या लिखिए।
(घ) दुःख क्यों दुगुना होने लगता है?
(ङ) ‘भरमाया’ में निहित भावार्थ को स्पष्ट कीजिए।
(च) ‘मृगतृष्णा’ क्या है और इसका मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(छ) ‘चंद्रिका’ शब्द का प्रयोग किस अर्थ में किया गया है?
(ज) ‘कृष्णा’ शब्द के माध्यम से कवि ने किसकी ओर संकेत किया है?
(झ) यथार्थ को कठिन क्यों कहा गया है?
(ञ) इस काव्यांश के भावार्थ पर प्रकाश डालिए।
(ट) इस पद्यांश के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ठ) प्रस्तुत पद्यांश में प्रयुक्त भाषागत विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-गिरिजाकुमार माथुर। कविता का नाम-छाया मत छूना।

(ख) ये पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित गिरिजाकुमार माथुर द्वारा लिखित कविता ‘छाया मत छूना’ में से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने अतीत के साथ चिपके रहने का विरोध किया है। उन्होंने बताया है कि अतीत की यादें चाहे कितनी भी मधुर क्यों न हों, किंतु दुःख की घड़ी में ये और भी अधिक दुखद. बन जाती हैं।

(ग) कवि का कथन है कि बीती सुखद एवं प्रेम की घड़ियों की स्मृतियों के पीछे दौड़ने से मान, यश, ऐश्वर्य आदि कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता। अतीत की सुखद स्मृतियों के पीछे भागने से कुछ मिलने की अपेक्षा और भ्रम में पड़ सकते हैं। किसी प्रकार की प्रभुता की छाया अर्थात् अधिकार पाने का विचार भी एक धोखा ही है। यह सदैव स्मरण रखना चाहिए कि हर चाँदनी रात में एक काली रात भी छिपी रहती है अर्थात् हर सुख के साथ दुःख तथा मिलन के साथ जुदाई जुड़ी रहती है। अतीत को भूलकर वर्तमान जीवन का जो कटु सत्य है उसी को स्वीकार करना चाहिए अर्थात् उसी की पूजा करनी चाहिए। बीते समय की यादों के पीछे भागना तो दुख को बुलावा देने जैसा है।

(घ) मनुष्य जब दुःख के समय में बीते हुए जीवन के सुखों को याद करने लगता है तो वर्तमान जीवन के दुःख दुगुने लगने लगते हैं।

(ङ) ‘भरमाया’ का शाब्दिक अर्थ है-भटका हुआ। कवि ने इस शब्द के माध्यम से बताया है कि सुख-संपत्ति के साधनों या सुखों को प्राप्त करने के लिए मनुष्य जितनी अधिक भाग-दौड़ करता है, वह उतना ही अधिक भ्रम में पड़ता है। उसकी परेशानियाँ या कठिनाइयाँ कम होने की अपेक्षा बढ़ती ही जाती हैं। . (च) ‘मृगतृष्णा’ एक धोखा है। जो न होकर भी होने का आभास देता है, वही मृगतृष्णा है। जीवन में प्रभुता पाने को कवि ने धोखा बताया है। इसी धोखे को या प्रभुता की चमक-दमक को कवि ने मृगतृष्णा की संज्ञा दी है। इसका जीवन पर विपरीत प्रभाव पाता है जिससे वह इधर-उधर रहता है।

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(छ) ‘चंद्रिका’ शब्द का साधारण अर्थ है-चाँदनी। किंतु कवि ने यहाँ उसका प्रयोग सुखों को व्यक्त करने के लिए किया है। हर मनुष्य अपने जीवन में सुखों रूपी चाँदनी को प्राप्त करने के लिए लालायित रहता है।

(ज) ‘कृष्णा’ का प्रयोग सायास किया गया है। कृष्णा शब्द दुःख रूपी अमावस्या का बोध कराने हेतु प्रयुक्त किया गया है। कवि ने बताया है कि हर सुख के पीछे दुःख छिपा रहता है। जीवन में दुःखों का आना-जाना तो लगा ही रहता है। इसलिए उनके विषय में सोचकर मनुष्य को घबराना नहीं चाहिए।

(झ) यथार्थ जीवन का कटु सत्य होता है, जिसे हर व्यक्ति को सहन करना पड़ता है। इससे मुख मोड़कर जीवन नहीं जिया जा सकता। कठोर परिश्रम करना और जीवन को सुखी बनाने का प्रयास इससे संबंधित है।

(ञ) कवि ने स्पष्ट किया है कि दुःख की घड़ियों में बीते हुए समय के सुखों को याद करने से दुःख घटने की अपेक्षा बढ़ता है। इसी प्रकार कवि ने बताया है कि मनुष्य धन-दौलत व सुखों की प्राप्ति के लिए जितना इनके पीछे भागता है, वह उतना ही भ्रमित होता जाता है। यह एक मृगतृष्णा है। हर सुख के पीछे दुःख छिपा रहता है जिसे मनुष्य को भूलना नहीं चाहिए। मनुष्य को जीवन के यथार्थ को ही मन में रखना चाहिए।

(ट)

  • प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने जीवन से संबंधित सुख-दुःख की भावना को कलात्मकतापूर्ण अभिव्यक्त किया है।
  • खड़ी बोली के साहित्यिक रूप का सफल प्रयोग किया गया है।
  • सुप्रसिद्ध तत्सम शब्दों का सार्थकता पूर्ण प्रयोग देखते ही बनता है।
  • अनुप्रास, रूपक आदि अलंकारों के प्रयोग से काव्य-सौंदर्य में वृद्धि हुई है।
  • तुकांत छंद है।
  • भाषा प्रसादगुण संपन्न है।

(ठ) दिए गए काव्यांश में कविवर माथुर ने सरल, सहज एवं सामान्य बोलचाल की भाषा का सफल प्रयोग किया है। कवि ने सरमाया, पूजन, भरमाया, दूना आदि तद्भव शब्दों के साथ-साथ शरण-बिम्ब, मृगतृष्णा, चंद्रिका, वैभव आदि तत्सम शब्दों का प्रयोग भी विषयानुकूल किया है। कवि ने ग्रामीण अंचल के शब्दों का सफल प्रयोग करके भाषा को अधिक व्यावहारिक बनाया है।

[3] दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।
दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।[पृष्ठ 46]

शब्दार्थ-दुविधा-हत साहस = साहस होते हुए भी दुविधाग्रस्त रहना। पंथ = रास्ता। देह = शरीर । अंत नहीं = सीमा नहीं। शरद-रात = सर्दी की रात। भविष्य वरण = आने वाले समय को धारण करना।।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस काव्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) ‘दुविधा-हत साहस’ से क्या अभिप्राय है?
(ङ) “पंथ’ में निहित भावार्थ पर प्रकाश डालिए।
(च) हर प्रकार के सुख-सुविधाओं की प्राप्ति पर भी मनुष्य को किसके अंत का पता नहीं चलता?
(छ) रस बसंत से क्या तात्पर्य है?
(ज) कवि ने इन पंक्तियों में क्या संदेश दिया है?
(झ) ‘न चाँद खिला’ का क्या अभिप्राय है?
(ञ) इस पद्यांश का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
(ट) इस काव्यांश के शिल्प-सौंदर्य का वर्णन कीजिए।
(ठ) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-गिरिजाकुमार माथुर। कविता का नाम-छाया मत छूना।

(ख) प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘छाया मत छूना’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता श्री गिरिजाकुमार माथुर हैं। इस कवितांश में कवि ने मनुष्य को सचेत करते हुए कहा है कि अतीत के सुखों की बातों में डूबा रहना उचित नहीं है। इससे जीवन में दुःखों की छाया बढ़ती है। मनुष्य को वर्तमान में रहते हुए परिश्रम करके अपने भविष्य को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए।

(ग) कवि कहता है कि तुम्हारा साहस मन की दुविधाओं के कारण नष्ट होता जा रहा है। कल क्या होगा, क्या नहीं, सफलता मिलेगी या नहीं, आदि दुविधाओं के कारण तुम्हारा साहस नष्ट हो रहा है। तुम्हें आगे बढ़ने के लिए दुविधा के कारण ही कोई निश्चित मार्ग दिखाई नहीं देता। शरीर सुखी होने पर भी मन में असीम दुःख हैं। हर प्रकार की सुख-सुविधा होने पर भी तुम मन से प्रसन्न नहीं हो। तुम्हें इस बात का भी दुःख है कि शरद् की रात आने पर भी आकाश में चाँद नहीं खिला। कहने का अभिप्राय है कि हर प्रकार के सुख की प्राप्ति के पश्चात् भी तुम्हारा मन प्रसन्न नहीं हुआ। यदि बसंत ऋतु के समाप्त होने पर फूल खिलें तो उनका क्या लाभ? यह ठीक है कि तुम्हें समय पर सफलता नहीं मिली। फिर तुम्हें इन असफलताओं को भूलकर अपने भविष्य को सुधारने का प्रयास करना चाहिए। मनुष्य को अतीत व कल्पनाओं में जीने की अपेक्षा वर्तमान में जीने का प्रयास करना चाहिए। इसलिए यह तुम्हारे लिए हितकर सिद्ध होगा।

(घ) ‘दुविधा-हत साहस’ से अभिप्राय है-सफलता-असफलता, शुभ-अशुभ तथा गलत-ठीक के भ्रम में पड़ने पर मन में साहस का न जग पाना।

(ङ) ‘पंथ’ से तात्पर्य जीवन के उन उद्देश्यों से है जिन्हें हम दुविधाग्रस्त होने के कारण प्राप्त नहीं कर सके।

(च) मनुष्य को हर प्रकार की सुख-सुविधाओं के प्राप्त होने पर भी मन में व्याप्त दुःखों के अंत का पता नहीं अर्थात् मनुष्य के जीवन में दुःख तो आते ही रहते हैं।

(छ) रस बसंत से कवि का तात्पर्य सुखमय जीवन से है। दूसरे शब्दों में, रस बसंत जीवन के यौवन व उचित अवसर का प्रतीक है।

(ज) कवि ने इन पंक्तियों में संदेश दिया है कि जीवन में हमें जो कुछ नहीं मिला, उसे भूल जाओ। वर्तमान के यथार्थ को स्वीकार करो और भविष्य को सुधारने का प्रयास करो। यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो हमें जीवन में सफलता प्राप्त नहीं हो सकेगी।

(झ) ‘न चाँद खिला’ का अभिप्राय सुखों का प्राप्त न होना है। कवि ने यहाँ चाँद का प्रतीकात्मक प्रयोग किया है जिसका अर्थ सुख है। समय पर सुखों की प्राप्ति न होने पर मन प्रसन्न नहीं होता।

(ञ) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने बताया है कि जब मन में दुविधाएँ बनी हुई हों तो मनुष्य साहसी होते हुए भी साहसपूर्ण कार्य नहीं कर सकता। मन की दुविधाओं से केवल साहस ही नष्ट नहीं होता, अपितु मनुष्य अपने भले-बुरे, लाभ-हानि को भी नहीं पहचान सकता। इसलिए कवि ने मन में दुविधा को न रखने की प्रेरणा दी है।

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(ट)

  • कवि ने इन पंक्तियों में सहज भाषा का प्रयोग करते हुए गंभीर भावों को अभिव्यंजित किया है।
  • सुप्रसिद्ध तत्सम शब्दावली का प्रयोग किया गया है।
  • भाषा प्रसादगुण संपन्न है।
  • स्वरमैत्री के प्रयोग के कारण काव्यांश में लय एवं संगीतात्मकता का समावेश हुआ है।
  • अनुप्रास, प्रश्न एवं रूपक अलंकारों का प्रयोग हुआ है।

(ठ) उपर्युक्त काव्यांश में कविवर माथुर ने अत्यन्त सरल, सामान्य एवं सहज भाषा का भावानुकूल प्रयोग किया है। कवि ने दो अलग-अलग विरोधी भावों को एक-साथ चित्रित किया है जिससे विषय की रोचकता के साथ-साथ भाषा में भी सौंदर्य का समावेश हुआ है। वर्णनात्मक शैली का सफल प्रयोग किया है। भाषा प्रसाद गुण सम्पन्न है।

सूरदास के पद Summary in Hindi

छाया मत छूना कवि-परिचय

प्रश्न-
कविवर गिरिजाकुमार माथुर का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं और भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-गिरिजाकुमार माथुर का जन्म सन् 1918 में मध्य प्रदेश के गुना नामक स्थान पर हुआ। प्रारंभिक शिक्षा झाँसी, उत्तर प्रदेश में ग्रहण करने के पश्चात् उन्होंने एम०ए० अंग्रेज़ी व एल०एल०बी० की उपाधि लखनऊ से प्राप्त की।
आरंभ में इन्होंने कुछ समय तक वकालत की। तत्पश्चात् आकाशवाणी और दूरदर्शन में कार्यरत हुए। नौकरी के साथ-साथ गिरिजाकुमार माथुर जी निरंतर साहित्य-साधना भी करते रहे। इन्होंने अनेक रचनाओं का निर्माण करके माँ भारती के आँचल को भर दिया। उनका निधन सन् 1994 में हुआ।

2. प्रमुख रचनाएँ-उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं-‘नाश और निर्माण’, ‘धूप के धान’, ‘शिलापंख चमकीले’, ‘भीतरी नदी की यात्रा’ (काव्य-संग्रह); ‘जन्म कैद’ (नाटक); ‘नयी कविता : सीमाएँ और संभावनाएँ’ (आलोचना)।

3. काव्यगत विशेषताएँ-गिरिजाकुमार माथुर रुमानी भाव-बोध के कवि हैं। इस क्षेत्र में उनको खूब सफलता मिली थी। यद्यपि उनकी आरंभिक रचनाओं में छायावादी प्रवृत्तियाँ दिखलाई पड़ती हैं, किंतु बाद में माथुर जी प्रगतिवाद से जुड़कर लिखने लगे थे। माथुर जी मानव मन की गहराइयों को छूने की अद्भुत क्षमता रखते थे। जीवन के प्रति उनका दृष्टिकोण सदा यथार्थवादी रहा है। वे जीवन की निराशाओं से हार मानकर बैठने वाले नहीं थे, अपितु वे उन्हें नए-नए रूपों में ढालने के पक्ष में थे।
गिरिजाकुमार माथुर विषय की मौलिकता के पक्षधर थे, साथ ही शिल्प की विलक्षणता को अनदेखा नहीं करना चाहते थे। वे विषय को अधिक स्पष्ट एवं सजीव रूप में प्रस्तुत करने के लिए वातावरण के रंग भी भरने के पक्ष में थे। .

4. भाषा-शैली-गिरिजाकुमार माथुर मुक्त छंद में ध्वनि साम्य के प्रयोग के कारण तुक के बिना भी कविता में संगीतात्मकता संभव कर सके। इनकी रुमानी कविताओं की भाषा सहज, सरल, सरस तथा सामान्य बोलचाल की हिंदुस्तानी भाषा है। परंतु क्लासिकल कविताओं में इन्होंने संस्कृत के तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग किया है। लेकिन स्थानीय बोली और ग्रामीण आँचल के शब्दों के प्रति इनका विशेष मोह है। ऐसे स्थलों पर वे वातावरण निर्माण के लिए स्थानीय शब्दों का प्रयोग करते हैं। इसी प्रकार से उन्होंने बिंबों और प्रतीकों का खुलकर प्रयोग किया है। विशेषकर रंग, दृश्य, प्राण तथा प्रकृति बिंबों की प्रमुखता है। इसके अतिरिक्त माथुर साहब ने अभिधात्मक, क्लासिकल और वर्णनात्मक सभी प्रकार की शैलियों का प्रयोग किया है। मुक्त छंद के प्रति इनका विशेष आग्रह है।

छाया मत छूना कविता का सार

प्रश्न-
‘छाया मत छूना’ नामक कविता का सार लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि ने अपने मन को संबोधित करते हुए कहा है कि हे मन! तू कभी भी बीते हुए सुख के समय की यादों के पीछे मत दौड़ना। ऐसा करने से दुःख कम होने की अपेक्षा दुगुना ही होगा। सुख स्मृतियों के पीछे भागना मन को भटकन में डालना है। मानव धन-दौलत, आदर-मान जितना प्राप्त करना चाहता है, उतना ही वह दुविधा में जकड़ा जाता है। कवि का कहना है कि प्रत्येक चाँदनी से युक्त रात के पीछे अंधकारपूर्ण रात छिपी रहती है। अतः जीवन के यथार्थ को समक्ष रखकर जीवन-यापन करना चाहिए। कवि का मत है कि दुविधा युक्त मानव कभी भी जीवन का सही मार्ग नहीं चुन सकता। भौतिक पदार्थों के पर्याप्त मात्रा में प्राप्त कर लेने पर भी यदि मानव की इच्छाएँ फलीभूत होती हैं तो भले ही उसे शारीरिक सुख अनुभव हो, किंतु मानसिक पीड़ा फिर भी बनी रहेगी। कवि पुनः कहता है कि हे मानव! जिस वस्तु को तू प्राप्त नहीं कर सकता, उसे भूलकर अपने भविष्य का मार्ग निर्धारित कर। अतीत की घटनाओं को याद करके उन पर पश्चात्ताप करने से कोई लाभ नहीं होता। भाव यह है कि अतीत से जुड़े रहना केवल मूर्खता है। इससे वर्तमान और भविष्य दोनों दुखद बनते हैं।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

HBSE 10th Class Hindi यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘बच्चे की दंतुरित मुसकान’ का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है? [H.B.S.E. 2018, 2019 (Set-A)]
उत्तर-
बच्चे की दंतरित मुसकान को देखकर कवि का मन प्रसन्न हो उठता है। उसके निराश और उदास मन में पुनः स्फूर्ति आ जाती है। उसे ऐसा लगता है मानों उसकी झोपड़ी में कमल के फूल खिल उठे हों। मानों उसके मन में स्नेह की धारा प्रवाहित हो गई हो या फिर बबूल व बाँस के वृक्ष से मानों शेफालिका के फूल झड़ने लगे हों। कहने का भाव है कि कवि का मन बच्चे की दंतुरित मुसकान से अत्यधिक प्रभावित हुआ था।

प्रश्न 2.
बच्चे की मुसकान और एक बड़े व्यक्ति की मुसकान में क्या अंतर है?
उत्तर-
बच्चे की मुसकान निश्छल एवं स्वाभाविक होती है। उसके मन में किसी प्रकार का छल-कपट नहीं होता, किंतु बड़े व्यक्ति की मुसकान में छल-कपट व दिखावा हो सकता है। उसे न चाहते हुए भी मुसकाना पड़ता है। बड़ों की मुसकान उनके मन की स्वाभाविक गति न होकर लोक व्यवहार का अंग भी हो सकती है।

प्रश्न 3.
कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को किन-किन बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है?
उत्तर-
कवि ने बच्चे की मुसकान को निम्नलिखित बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है(क) बच्चे की मुसकान से मृतक भी प्राणवान् हो जाता है। (ख) बच्चे की मुसकान ऐसी लगती है मानों झोंपड़ी में कमल का फूल खिल गया हो। (ग) बच्चे की मुसकान से मानों चट्टानों ने पिघलकर जलधारा का रूप धारण कर लिया हो। (घ) मानों बाँस व बबूल के वृक्षों से शेफालिका के फूल झड़ने लगे हों।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए
(क) छोड़कर तालाब मेरी झोपड़ी में खिल रहे जलजात।
(ख) छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल बाँस था कि बबूल?
उत्तर-
(क) कवि को ऐसा लगा कि उस छोटे बच्चे की मुसकान तो ईश्वरीय वरदान के समान थी। वह धूल-धूसरित अंग-प्रत्यंगों वाला तो जैसे तालाब में खिले कमल के समान मोहक और मनोरम था जो उसकी झोंपड़ी में आकर बस गया था।
(ख) नन्हें बालक का रूप ऐसा मनोरम था कि चाहे कोई कितना भी निर्मम क्यों न हो, उसे देख मन-ही-मन प्रसन्नता से भर . उठता था। चाहे बाँस के समान हो या बबूल के समान, पर उसकी सुंदरता से प्रभावित हो वह उसकी ओर देख मुसकराने के लिए विवश हो जाता था।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 5.
मुसकान और क्रोध दो भिन्न-भिन्न भाव हैं। इनकी उपस्थिति से बने वातावरण की भिन्नता का चित्रण कीजिए।
उत्तर-
मुसकान और क्रोध दोनों ही मानव मन में उत्पन्न होने वाले भाव हैं। मुसकान एक सुखद भाव है, जबकि क्रोध एक मनोविकार है जिसका उत्पन्न होना अधिकतर हानिकारक होता है। मुसकान सुखद है। इससे हँसी-खुशी का वातावरण बनता है। आपस में प्रेम भाव का संचार होता है। समाज में मेल-जोल बढ़ता है। इसके विपरीत क्रोध उन सबको कष्ट पहुंचाता है जो क्रोध करने वाले व्यक्ति के समीप होते हैं। क्रोध में लिए गए, निर्णय का परिणाम कभी लाभदायक नहीं होता। मुसकान से हर व्यक्ति के हृदय को जीता जा सकता है, किंतु क्रोध से सदा शत्रुता बढ़ती है।

प्रश्न 6.
दंतरित मुसकान से बच्चे की उम्र का अनुमान लगाइए और तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर-
इस कविता को पढ़कर अनुमान लगाया जा सकता है कि बच्चे की आयु 7 और 9 मास के बीच रही होगी, क्योंकि इसी आयु में ही बच्चों के दूध के दाँत निकलने आरंभ होते हैं। इसी आयु में बच्चा अपने माता-पिता को भी पहचानने लगता है।

प्रश्न 7.
बच्चे से कवि की मुलाकात का जो शब्द-चित्र उपस्थित हुआ है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
कवि कई मास के पश्चात् घर लौटने पर बच्चे से मिला। बच्चा उन्हें देखकर मुसकाने लगता है। बच्चे की नए-नए दाँतों वाली मुसकान को देखकर कवि का मन प्रसन्नता से खिल उठा। नन्हें बच्चे की भोली-सी मुसकान को देखकर उसके निराश जीवन में मानो प्राण आ गए। कवि को लगा कि कमल का सुंदर फूल उनकी झोंपड़ी में उग आया हो। उसके बूढ़े व नीरस शरीर को ऐसा प्रतीत हुआ मानो बबूल के पेड़ पर शेफालिका के फूल खिल गए हों। आरंभ में बालक कवि को अजनबी की भाँति देखता रहा किंतु बच्चे की माँ ने दोनों के बीच माध्यम बनकर दोनों का परिचय कराया। बच्चा कवि को तिरछी नज़रों से देखकर मुँह फेरने लगा। किंतु माँ के द्वारा परिचय करवाने पर दोनों में स्नेह बढ़ने लगा। बच्चा मुस्करा पड़ा और उसके नए-नए उगे हुए दो दाँत दिखाई देने लगे। .

पाठेतर सक्रियता

आप जब भी किसी बच्चे से पहली बार मिलें तो उसके हाव-भाव, व्यवहार आदि को सूक्ष्मता से देखिए और उस अनुभव . को कविता या अनुच्छेद के रूप में लिखिए।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

एन०सी०ई०आर०टी० द्वारा नागार्जुन पर बनाई गई फिल्म देखिए।
उत्तर-
विद्यार्थी विद्यालय की ओर से फिल्म मँगवाकर देख सकते हैं।

फसल

प्रश्न 1.
कवि के अनुसार फसल क्या है?
उत्तर-
कवि के अनुसार, फसल मनुष्य और प्रकृति के सम्मिलित प्रयासों का परिणाम है। फसल अनेक नदियों के जल का जादू, करोड़ों लोगों के हाथों के स्पर्श अथवा परिश्रम की गरिमा तथा भूरी, काली व संदली मिट्टी का गुण धर्म है। फसल सूर्य की किरणों का रूपांतरण भी है, जिसे हवा नचाती व लहराती है।

प्रश्न 2.
कविता में फसल उपजाने के लिए आवश्यक तत्त्वों की बात कही गई है वे आवश्यक तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
कवि के अनुसार फसल के लिए आवश्यक तत्त्व हैं-मिट्टी, खाद, पानी, सूर्य की किरणें और हवा।

प्रश्न 3.
फसल को ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा’ और ‘महिमा’ कहकर कवि क्या व्यक्त करना चाहता है?
उत्तर-
कवि बताना चाहता है कि फसल पैदा करने के लिए घर के सभी व्यक्तियों को परिश्रम करना पड़ता है। किसान का पूरा परिवार फसल को पैदा करने में जुटा रहता है। फसल से अनेक लोगों का पेट पलता है। यह एक नहीं अनेक हाथों की महिमा है। अतः स्पष्ट है कि कवि ने किसान के परिश्रम के. महत्त्व को प्रतिपादित करने का सफल प्रयास किया है।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए(क) रूपांतर है सूरज की किरणों का सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!
उत्तर-कवि ने स्पष्ट किया है कि ये फसलें और कुछ नहीं सूरज की किरणों का बदला हुआ रूप हैं। फसलों की हरियाली सूरज की किरणों के प्रभाव के कारण आती है तथा सूर्य की गर्मी से ही फसलें पकती हैं। फसलों को बढ़ाने में हवा की थिरकन का भी भरपूर योगदान है। मानों हवा सिमट-सिकुड़कर फसलों में समा जाती है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 5.
कवि ने फसल को हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म कहा है।
(क) मिट्टी के गुण-धर्म को आप किस तरह परिभाषित करेंगे?
(ख) वर्तमान जीवन शैली मिट्टी के गुण-धर्म को किस-किस तरह प्रभावित करती है?
(ग) मिट्टी द्वारा अपना गुण-धर्म छोड़ने की स्थिति में क्या किसी भी प्रकार के जीवन की कल्पना की जा सकती है?
(घ) मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हमारी क्या भूमिका हो सकती है?
उत्तर-
(क) मिट्टी के गुण-धर्म से तात्पर्य उसकी उपजाऊ शक्ति से है जो उसमें मिले विभिन्न तत्त्वों के कारण होती है। उन तत्त्वों के कारण ही मिट्टी विभिन्न रंगों को प्राप्त करती है। मिट्टी के तत्त्व ही फसल को उगाने व विकसित करने में सहायक होते हैं।
(ख) वर्तमान जीवन-शैली मिट्टी को प्रदूषित कर रही है। उसके सहज-स्वाभाविक गुणों को नष्ट कर रहे हैं। आज रासायनिक पदार्थों के अधिक प्रयोग से मिट्टी के स्वाभाविक गुणों में परिवर्तन आ रहा है। तरह-तरह के कीटनाशक व खरपतवार नाशक मिट्टी को हानि पहुंचाते हैं। इनके प्रयोग से भले ही हमें फसल अधिक मिलती हो किंतु इनके दूरगामी परिणाम बहुत ही हानिकारक हैं।
(ग) यदि मिट्टी अपना मूल गुण-धर्म और स्वभाव छोड़ देगी तो जीवन का स्वरूप विकृत हो जाएगा अर्थात् मिट्टी में फसल नहीं उग सकेगी। शायद जीवन तो नष्ट न हो किंतु वह विद्रूप अवश्य हो जाएगा।
(घ) मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हम बहुत कुछ कर सकते हैं। सबसे पहली बात हम सचेत हों। हम मिट्टी के . . गुण-धर्म को प्रभावित करने वाले कारकों के बारे में जानें। इससे हम स्वयमेव जागरूक हो जाएँगे। हम स्वयं जागकर अन्य लोगों को जगाने का कार्य भी कर सकते हैं तथा मिट्टी को पहुँचने वाली हानि को रोक सकते हैं।

पाठेतर सक्रियता

इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया के माध्यमों द्वारा आपने किसानों की स्थिति के बारे में बहुत कुछ सुना, देखा और पढ़ा होगा। एक सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था के लिए आप अपने सुझाव देते हुए अखबार के संपादक को पत्र लिखिए।
उत्तर-
सेवा में,
संपादक महोदय,
दैनिक ट्रिब्यून,
चंडीगढ़।

विषय : सुदृढ़ कृषि व्यवस्था हेतु कुछ सुझाव।
आदरणीय महोदय,

मैं आपके सुप्रसिद्ध समाचार-पत्र के माध्यम से सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था पर कुछ सुझाव कृषकों तक पहुँचाना चाहता हूँ जो किसान व उनके खेतों के लिए निश्चित रूप से लाभदायक सिद्ध होंगे। हमारा देश कृषि प्रधान देश है। कृषि व किसानों के हित में सोचना हम सबका नैतिक कर्त्तव्य है।

कृषि व्यवस्था को समुचित बनाने हेतु हमें कृषि करने योग्य भूमि पर समय पर फसल की बिजाई कर देनी चाहिए। कृषि करने के परंपरागत तरीकों के स्थान पर नई-नई कृषि पद्धतियों व विधियों को निःसंकोच अपनाना चाहिए। फसल की बिजाई करने से पहले हमें अपने खेत की मिट्टी की जाँच अवश्य करवा लेनी चाहिए ताकि यह पता चल सके कि उसमें कौन-सी फसल उगानी चाहिए जिससे अच्छी-से-अच्छी फसल हो सके। यदि हमारे खेत की मिट्टी में किसी तत्त्व की कमी हो तो हमें उसे दूर कर लेना चाहिए। हमें श्रेष्ठ श्रेणी के बीजों का प्रयोग करना चाहिए। उन्नत किस्म के बीजों को हमें सरकारी एजेंसी से ही प्राप्त करना चाहिए। हमें फसलों को बदल-बदलकर बोना चाहिए। एक ही प्रकार की फसल बोने से जमीन की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। खरपतवार नाश करने वाली और कीटनाशकों का प्रयोग एक निश्चित सीमा तक रहकर करना चाहिए। सारा खेत समतल होना चाहिए और उसकी सिंचाई भी एक बार में ही करनी चाहिए। गोबर की खाद का प्रयोग भी बीच-बीच में करते रहना चाहिए। इससे पृथ्वी की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है और फसल भी अच्छी होती है।
आशा है कि आप अपने सुप्रसिद्ध समाचार-पत्र में इन सुझावों को प्रकाशित करके मुझे अनुगृहीत करेंगे।

भवदीय
अविनाश कुमार

फसलों के उत्पादन में महिलाओं के योगदान को हमारी अर्थव्यवस्था में महत्त्व क्यों नहीं दिया जाता है? इसके बारे में . कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। विद्यार्थी अपने अध्यापक व अध्यापिका की सहायता से स्वयं करेंगे।

HBSE 10th Class Hindi यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता में शिशु के भोलेपन एवं सौंदर्य को व्यक्त किया गया है-सिद्ध कीजिए।
उत्तर-
‘यह दंतुरित मुसकान’ नामक कविता में कवि ने शिशु के भोलेपन का वर्णन किया है। शिश कवि को अपरिचित की भाँति देखता है। उसे पहचानने के प्रयास से उसकी ओर निरंतर देखता रहता है। इसी प्रकार शिशु की मनमोहक छवि को देखकर कवि भी प्रभावित हुए बिना न रह सका। बालक के नए-नए उगे हुए दो दाँतों को देखकर कवि उनकी प्रशंसा किए बिना न रह सका। नन्हा शिशु जब हँसता है तो उसके नए-नए दो दाँत अत्यंत सुंदर लगते हैं। उसकी हँसी की सुंदरता में ऐसा प्रभाव है कि उन्हें देखकर पत्थर दिल व्यक्ति भी पिघल जाता है। इस प्रकार कवि ने नन्हें बच्चे के भोलेपन एवं सौंदर्य का उल्लेख किया गया है।

प्रश्न 2.
‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता में बाँस और बबूल किसे और क्यों कहा गया है?
उत्तर-
‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता में कवि ने नन्हें बालक की हँसी के प्रभाव का वर्णन करते हुए कहा है कि उसकी हँसी का प्रभाव ऐसा है कि जिसे देखकर बाँस और बबूल के वृक्षों से भी शेफालिका के फूल झड़ने लगते हैं। यहाँ बाँस और बबूल का प्रयोग बुरे व्यक्तियों के लिए किया गया है। कहने का तात्पर्य है कि समाज के बुरे-से-बुरे लोग भी नन्हें बच्चे की हँसी को देखकर हँसने लगते हैं। उनके मन में भी बच्चे के प्रति अच्छी भावना जागृत हो जाती है।

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प्रश्न 3.
शिशु किसी अनजान व्यक्ति को एकटक क्यों देखने लगता है?
उत्तर-
जब शिशु किसी अनजान व्यक्ति से मिलता है तो उसे पहचानने का प्रयास करता है। इसीलिए वह उसकी ओर एकटक देखता रहता है। मानों वह उसके मन के भावों को पढ़ने का प्रयास करता है। कभी-कभी ऐसा भी अनुभव होता है कि वह अजनबी व्यक्ति को देखते-देखते थक-सा गया है।

प्रश्न 4.
‘फसल’ नामक कविता में कवि ने फसल उगाने के संबंध में मिट्टी की किस विशेषता का उल्लेख किया है?
उत्तर-
‘फसल’ नामक कविता में कवि ने मिट्टी या धरती के उन गुणों का उल्लेख किया है जिसके कारण वह फसल उगाने में सहायक होती है। कवि के अनुसार मिट्टी ‘भूरी’, ‘काली’, ‘संदली’ आदि कई प्रकार की होती है। विभिन्न प्रकार की मिट्टी पर अलग-अलग प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं। मिट्टी में मिले तत्त्वों के कारण ही मिट्टी के गुण अलग-अलग होते हैं। मिट्टी की उपजाऊ शक्ति के कारण ही फसलें उगाई जाती हैं। यदि मिट्टी में यह शक्ति न होती तो फसलों के उगने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थीं।

संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 5.
‘यह दंतुरित मुसकान’ क्या-क्या कर सकती है?
उत्तर-
कवि के अनुसार ‘दंतुरित मुसकान’ में बहुत कुछ करने की क्षमता है। दंतुरित मुसकान कठोर-से-कठोर हृदय वाले व्यक्ति के मन में कोमलता का संचार कर सकती है। ‘दंतुरित मुसकान’ निराश एवं उदास लोगों के हृदयों में प्रसन्नता एवं खुशी के भाव उत्पन्न कर सकती है। जो व्यक्ति इस संसार से विमुख हो चुका है जब वह नन्हें शिशु की निश्छल हँसी को देखेगा तो वह मुसकराए बिना नहीं रह सकेगा। दंतुरित मुसकान का प्रभाव इतना अधिक है कि वह मृतक में भी प्राण फूंक सकती है। कहने का तात्पर्य है कि ‘दंतुरित मुसकान’ अत्यधिक प्रभावशाली है। ..

प्रश्न 6.
‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि का उद्देश्य छोटे बच्चे की मनोहारी मुसकान के प्रभाव का चित्रण करना है। छोटे बच्चे के मुख में उगे हुए नए-नए दाँतों वाली हँसी को देखकर कवि के मन में जो भाव उमड़ते हैं, उन्हें कवि ने विभिन्न बिंबों की योजना के द्वारा व्यक्त किया है जो कविता का प्रमुख लक्ष्य है। कवि का यह मानना है कि बच्चे की इस निश्छल हँसी में जीवन का संदेश छिपा हुआ है। इस दंतुरित मुसकान की सुंदरता का प्रभाव ऐसा है कि उसे देखकर कठोर-से-कठोर हृदय भी पिघल जाता है। दंतुरित मुसकान की सुंदरता को उस समय चार चाँद लग जाते हैं जब उसके साथ बच्चे की नज़रों का बाँकपन भी जुड़ जाता है। अतः स्पष्ट है कि प्रस्तुत कविता का लक्ष्य नन्हें बच्चे की निश्छल एवं मनमोहक हँसी के प्रभाव का उल्लेख करना है।

प्रश्न 7.
कवि ने ‘फसल’ के द्वारा किन-किन में आपसी सहयोग का भाव अभिव्यक्त किया है? .
उत्तर-
कवि ने ‘फसल’ कविता के माध्यम से फसल के उगाने में मनुष्य के शारीरिक बल और परिश्रम तथा प्रकृति में निहित अथाह ऊर्जा के पारस्परिक सहयोग के भाव को अभिव्यक्त किया है। कवि के अनुसार जब मनुष्य का परिश्रम और प्रकृति का सहयोग आपस में मिल जाते हैं तो फसलें उत्पन्न होती हैं। अकेली मानवीय परिश्रम की शक्ति या अकेली प्राकृतिक शक्ति कुछ नहीं कर सकती। इनके सहयोग में ही महान शक्ति छिपी हुई है। इसी सहयोग की शक्ति को प्रस्तुत कविता में अभिव्यक्त करने का सफल प्रयास किया गया है।

प्रश्न 8.
‘फसल’ शीर्षक कविता के प्रतिपाय पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता का प्रमुख प्रतिपाद्य किसानों के परिश्रम के साथ-साथ प्राकृतिक तत्त्वों के प्रभाव का सम्मान करना है। कवि ने स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि जिन फसलों से उत्पन्न अन्न को हम खाते हैं उसके लिए किसी एक व्यक्ति, नदी या प्राकृतिक तत्त्व को श्रेय नहीं दिया जा सकता, अपितु सभी नदियों के जल, सब खेतों की विविध प्रकार की मिट्टियों के गुणों, सूर्य की गर्मी, वायु और किसानों के श्रम के सामूहिक सहयोग से ही फसलें उगाई जाती हैं। अतः इन सब पर सबका सहज अधिकार होना चाहिए।

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
श्री नागार्जुन का जन्म कब हुआ था?
उत्तर-
श्री नागार्जुन का जन्म सन् 1911 में हुआ था।

प्रश्न 2.
‘पाषाण पिघलने’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
पाषाण पिघलने’ से तात्पर्य है कठोर हृदय में दया उत्पन्न होना।

प्रश्न 3.
‘फसल’, कविता के रचयिता कौन हैं?
उत्तर-
‘फसल’, कविता के रचयिता नागार्जुन हैं।

प्रश्न 4.
‘दंतरित मुसकान’ कविता में कवि के ध्यानाकर्षण का केन्द्र कौन है?
उत्तर-
दंतुरित मुसकान’ कविता में कवि के ध्यानाकर्षण का केन्द्र उसका नन्हा बालक है।

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प्रश्न 5.
किसके कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा बताई गई है?
उत्तर-
किसान के कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा बताई गई है।

प्रश्न 6.
कवि ने किसे हाथों के स्पर्श की महिमा कहा है?
उत्तर-
कवि ने फसल को हाथों के स्पर्श की महिमा कहा है।

प्रश्न 7.
यह दंतुरित मुसकान’ कविता में तालाब छोड़कर जलजात कहाँ खिलने की बात कही है?
उत्तर-
‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता में तालाब छोड़कर जलजात कवि की झोंपड़ी में खिलने की बात कही है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
श्री नागार्जुन किस राज्य के रहने वाले थे?
(A) हरियाणा
(B) पंजाब
(C) उत्तर प्रदेश
(D) बिहार
उत्तर-
(D) बिहार

प्रश्न 2.
श्री नागार्जुन का वास्तविक नाम क्या था?
(A) रामचंद्र
(B) मेघनाद
(C) वैद्यनाथ मिश्र
(D) रामनरेश मिश्र
उत्तर-
(C) वैद्यनाथ मिश्र

प्रश्न 3.
कवि ने श्रीलंका में जाकर कौन-सा धर्म अपना लिया था?
(A) हिंदू
(B) मुस्लिम
(C) सिक्ख
(D) बौद्ध
उत्तर-
(D) बौद्ध

प्रश्न 4.
श्री नागार्जुन का देहांत कब हुआ था?
(A) सन् 1998 में
(B) सन् 1996 में
(C) सन् 1995 में
(D) सन् 1994 में
उत्तर-
(A) सन् 1998 में

प्रश्न 5.
नागार्जुन कृत कविता का नाम है
(A) संगतकार
(B) कन्यादान
(C) फसल
(D) उत्साह
उत्तर-
(C) फसल

प्रश्न 6.
‘दंतुरित मुसकान’ में कवि के ध्यानाकर्षण का केन्द्र है-
(A) शेर का बच्चा
(B) खरगोश का बच्चा
(C) कवि का नन्हा बच्चा
(D) छोटा बच्चा
उत्तर-
(C) कवि का नन्हा बच्चा

प्रश्न 7.
बच्चे की दंतुरित मुसकान किसमें भी जान डाल देगी?
(A) रोगी में
(B) पक्षी में
(C) कमजोर में .
(D) मृतक में
उत्तर-
(D) मृतक में

प्रश्न 8.
कवि की झोपड़ी में क्या खिल रहे थे?
(A) जलजात
(B) गेंदा
(C) गुलाब
(D) जूही
उत्तर-
(A) जलजात

प्रश्न 9.
‘चिर प्रवासी मैं इतर’ वाक्यांश में ‘चिर प्रवासी’ कौन है?
(A) कवि
(B) पुत्र
(C) माता
(D) श्रोता
उत्तर-
(A) कवि

प्रश्न 10.
किसके प्राणों का स्पर्श पाकर कठिन पाषाण पिघल गया होगा?
(A) कवि के
(B) माता के
(C) बच्चे के
(D) पिता के
उत्तर-
(C) बच्चे के

प्रश्न 11.
दही, घी, शहद, जल और दूध का योग, जो देवता और अतिथि के सामने रखा जाता है, उसे ‘यह दंतुरित मुसकान’
कविता में कहा है-
(A) प्रसाद
(B) मधुपर्क
(C) इत्र
(D) गव्य
उत्तर-
(B) मधुपर्क

प्रश्न 12.
‘अनिमेष देखना’ का अर्थ है-
(A) रुक-रुक कर देखना
(B) कभी-कभी देखना
(C) लगातार देखना
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(C) लगातार देखना

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प्रश्न 13.
मधुपर्क किसकी उँगलियाँ करती हैं?
(A) पिता की
(B) माँ की
(C) कवि की
(D) भाई की
उत्तर-
(B) माँ की

प्रश्न 14.
छोटे बच्चे के स्पर्श-मात्र से कौन-से फूल झड़ने लगे थे?
(A) शेफालिका
(B) कमल
(C) गुलाब
(D) चंपा
उत्तर-
(A) शेफालिका

प्रश्न 15.
कठिन पाषाण पिघलकर क्या बन गया होगा?
(A) जल
(B) सुंदरता
(C) नदी
(D) झरना
उत्तर-
(A) जल

प्रश्न 16.
प्रस्तुत कविता में किसकी आँखें चार होने की बात कही है?
(A) माँ और बच्चे की
(B) कवि और बच्चे की
(C) कवि और बच्चे की माँ की
(D) कवि और पाठक की
उत्तर-
(B) कवि और बच्चे की

प्रश्न 17.
‘कवि ने फसल को कितनी नदियों का जादू कहा है?
(A) एक
(B) दो
(C) ढेर सारी
(D) अनेक
उत्तर-
(C) ढेर सारी

प्रश्न 18.
‘फसल’ में किसकी प्रधानता है?
(A) आत्मा की
(B) परमात्मा की
(C) प्रकृति की
(D) माया की
उत्तर-
(C) प्रकृति की

प्रश्न 19.
फसल के लिए जादू का काम कौन करता है?
(A) नदियों का पानी.
(B) तालाब का पानी
(C) वर्षा का पानी
(D) गड्ढे का पानी
उत्तर-
(A) नदियों का पानी

प्रश्न 20.
फसल कितने हाथों के स्पर्श की गरिमा होती है?
(A) करोड़ों
(B) दर्जनों
(C) हज़ारों
(D) सैकड़ों
उत्तर-
(A) करोड़ों

प्रश्न 21.
फसल किसके स्पर्श की महिमा है?
(A) मिट्टी की
(B) हवा की
(C) जल की
(D) हाथों की
उत्तर-
(D) हाथों की

प्रश्न 22.
फसल कविता की भाषा की विशिष्टता है
(A) बोलचाल की
(B) भाव प्रधान
(C) व्यंग्यात्मक
(D) ओज गुण संपन्न
उत्तर-
(A) बोलचाल की

प्रश्न 23.
फसल को किसका सिमटा हुआ संकोच कहा गया है?
(A) नदियों के पानी का
(B) हवा की थिरकन का
(C) सूरज की किरणों का
(D) उपर्युक्त सभी का
उत्तर-
(B) हवा की थिरकन का

प्रश्न 24.
फसल किसका रूपांतरण है?
(A) वायु का
(B) वर्षा की बूंदों का
(C) सूर्य की किरणों का
(D) किसान की सोच का
उत्तर-
(C) सूर्य की किरणों का

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यह दंतुरहित मुस्कान और फसल पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात…
छोड़कर तालाब मेरी झोपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बाँस था कि बबूल? [पृष्ठ 39-40]

शब्दार्थ-दंतुरित = बच्चों के नए-नए दाँत। मृतक = मरा हुआ। जान डाल देना = जीवित कर देना। धूलि-धूसर = धूल में सना हुआ। गात = शरीर। जलजात = कमल का फूल। परस = स्पर्श । कठिन पाषाण = कठोर पत्थर।।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) ‘दंतुरित मुसकान’ किसकी है?
(ङ) बच्चे का शरीर किससे सना हुआ है?
(च) कवि की झोंपड़ी में नन्हा बच्चा किस रूप में है?
(छ) मृतक में जान डालने का सामर्थ्य किसमें है? मृतक में जान डालने का क्या अभिप्राय है?
(ज) धूल से सने बच्चे को देखकर कवि को क्या अनुभव हुआ?
(झ) “पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
(अ) शेफालिका के फल क्यों और किससे झरने लगे?
(ट) ‘बाँस और बबूल’ किसको कहा गया है?
(3) प्रस्तुत पयांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ड) प्रस्तुत पद्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ट) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-नागार्जुन। कविता का नाम यह दंतुरित मुसकान।

(ख) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘यह दंतुरित मुसकान’ नामक कविता में से · ली गई हैं। इस कविता के रचयिता श्री नागार्जुन हैं। इस कविता में उन्होंने छोटे बच्चे के प्रति अपने भावों को विविध बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है। जब कवि ने अपने छोटे-से बच्चे के मुसकराते हुए मुख में दो दाँत देखे तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। कवि ने उन भावों को ही इन शब्दों में व्यक्त किया है।

(ग) कवि अपने छोटे-से मुस्कुराते हुए बच्चे को देखकर कहता है कि तुम्हारी मुसकान इतनी मनमोहक है कि वह मुर्दे में भी जान डाल देती है अर्थात् यदि कोई जीवन से निराश हुआ व्यक्ति भी तुम्हारी इस भोली-सी हँसी को देख ले तो वह भी प्रसन्न हो उठेगा। मैं जब तुम्हारे इस धूल से सने हुए शरीर को देखता हूँ तो ऐसा लगता है कि कमल का जो फूल तालाब के जल में खिलता है वह मानों तालाब के जल को छोड़कर मेरी झोंपड़ी में खिल गया है। कवि के कहने का भाव है कि धूल में सना हुआ यह नन्हा-सा बालक कमल के फूल के समान कोमल एवं सुंदर है।

कवि पुनः कहता है कि हे शिशु! तुम ऐसे प्राणवान एवं सुंदर हो कि तुम्हें छूकर ही ये कठोर चट्टानें पिघलकर जल की धारा बनकर बहने लगी हैं। कवि के कहने का अभिप्राय है कि बच्चे की मधुर एवं निश्छल हँसी को देखकर कठोर एवं निर्दयी व्यक्ति का हृदय भी द्रवित हो जाता है। इस शिशु के सामने चाहे बाँस का पेड़ हो अथवा बबूल का वृक्ष, शेफालिका के फूल बरसाने लगता है। कहने का भाव है कि बच्चे की मुसकान के सामने बुरे-से-बुरा व्यक्ति भी सरस बन जाता है। एक क्षण के लिए वह भी अपनी बुराई त्यागकर मुसकाने लगता है।

(घ) दंतुरित मुसकान उस छोटे बच्चे की है जिसके मुख में अभी-अभी दो नए दाँत उगे हों। (ङ) बच्चे का शरीर धूल मिट्टी से सना हुआ है। (च) कवि की झोपड़ी में नन्हा बच्चा कमल के समान सुंदर एवं कोमल फूल के रूप में है।

(छ) नए-नए दाँत निकालने वाले नन्हें बच्चे की हँसी में मृतक में जान डालने की शक्ति व सामर्थ्य होता है। मृतक में जान डालने का अभिप्राय है-निराश और उदास व्यक्ति के मन में प्रसन्नता को उत्पन्न करना।

(ज) धूल से सने बच्चे को देखकर कवि को ऐसा अनुभव हुआ मानो उसकी झोंपड़ी में कमल का फूल खिल उठा हो। कहने का भाव है कि बच्चे की सुकोमलता को देखकर कवि का मन प्रसन्न हो उठता है।

(झ) कवि ने नन्हें से बच्चे की पावन हँसी को देखकर कल्पना की है कि छोटे बच्चे की हँसी में इतना आकर्षण होता है कि पत्थर की भाँति कठोर हृदय वाले व्यक्ति के मन में भी बच्चे की इस हँसी को देखकर सहज एवं सरस भाव उत्पन्न हो जाते हैं। वह उसे देखकर अपनी कठोरता व निर्दयता को कुछ क्षणों के लिए त्याग देता है।

(ञ) नन्हें शिशु के स्पर्श से बाँस व काँटेदार वृक्ष बबूल के समान बुरे व्यक्ति के मन में शेफालिका के फूल के समान सरस एवं सुंदर भाव उत्पन्न हो जाते हैं।

(ट) कवि ने यहाँ बाँस व बबूल नीरस, रूखे, निर्दयी एवं कठोर स्वभाव वाले पुरुष को कहा है।

(ठ) प्रस्तुत पद में कवि की बच्चे के प्रति अत्यंत कोमल एवं सरस भावों की कलात्मक अभिव्यक्ति हुई है। कवि अपने बच्चे के मुसकाने पर उसके मुख में उत्पन्न दो नए-नए उगे हुए दाँतों को देखकर अत्यंत प्रसन्न हो उठता है। पिता के अपने नन्हें से बच्चे के प्रति अत्यंत कोमल भावों का मनोरम वर्णन किया गया है। बच्चे की मधुर, निश्छल एवं पावन हँसी के प्रभाव का अत्यंत सजीव चित्रण भी देखते ही बनता है। कवि को अनुभव होता है कि बच्चे की कोमल हँसी में अपार सुंदरता एवं प्रभाव छुपा हुआ है।

(ड)

  • कवि ने अपने कोमल भावों को कल्पना के सहयोग से अत्यंत मधुर वाणी में व्यक्त किया है। .
  • तद्भव एवं तत्सम शब्दावली के मिश्रित प्रयोग से भाषा अत्यंत रोचक एवं व्यावहारिक बन पड़ी है।
  • अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है।
  • प्रतीकों एवं बिंबों का सुंदर प्रयोग किया गया है।
  • प्रश्न, अनुप्रास एवं अतिशयोक्ति अलंकारों का प्रयोग हुआ है।
  • अतुकांत छंद है।

(ढ) प्रस्तुत काव्यांश में कविवर नागर्जुन ने शुद्ध साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है। यहाँ भाषा के बोल-चाल रूप का प्रयोग किया गया है। जनवादी कवि होने के कारण ही भाषा में ग्रामीण एवं देशज शब्दों का अधिक प्रयोग किया गया है। कोमलकांत शब्दों के कारण भाषा अत्यन्त रोचक एवं व्यावहारिक बन पड़ी है।

[2] तुम मुझे पाए नहीं पहचान?
देखते ही रहोगे अनिमेष!
थक गए हो?
आँख लूँ मैं फेर?
क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार?
यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
मैं न सकता देख
मैं न पाता जान
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान [पृष्ठ 40]

शब्दार्थ-अनिमेष = निरंतर देखना, बिना पलक झपकाए देखना। परिचित = जाने-पहचाने। माध्यम = साधन।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस कवितांश का प्रसंग लिखें।
(ग) इस पद की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि ने ऐसा क्यों कहा कि ‘तुम मुझे पाए नहीं पहचान’ ?
(ङ) कवि नन्हें बालक को क्यों नहीं पहचान पाया?
(च) कवि बालक की मधुर मुसकान किसके माध्यम से देख सका?
(छ) नन्हा बालक कवि की ओर एकटक क्यों देख रहा था?
(ज) इस काव्यांश का भाव-सौंदर्य लिखिए।
(झ) उपर्युक्त पद्यांश के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ञ) इन काव्य पंक्तियों में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-नागार्जुन। कविता का नाम यह दंतरित मुसकान।

(ख) प्रस्तुत कवितांश श्री नागार्जुन द्वारा रचित सुप्रसिद्ध कविता ‘यह दंतुरित मुसकान’ से लिया गया है। कवि जब कई मास के पश्चात् घर लौटता है तो उनकी दृष्टि अपने छोटे बच्चे की निश्छल मसकान पर पड़ती है। कवि उस मुसकान से अत्यंत प्रभावित होता है। कवि के मन में वात्सल्य भाव जागृत होते हैं, जिनका वर्णन इन पंक्तियों में किया गया है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

(ग) कवि अपने नन्हें बालक को देखकर उससे पूछता है कि क्या तुम मुझे पहचान गए हो? क्या तुम मुझे इस प्रकार एकटक देखते ही रहोगे। क्या तुम इस प्रकार मेरी ओर निरंतर देखते हुए थक गए हो? क्या मैं तुम्हारी ओर से अपना मुँह फेर लूँ अर्थात् वह बच्चे की ओर न देखे। कवि पुनः कहता है कि क्या हुआ कि यदि वह मुझे पहली बार न पहचान सका। कहने का तात्पर्य है कि वह अभी बहुत छोटा है किंतु बहुत भोला और सुंदर है।
कवि पुनः कहता है कि हे सुंदर दाँतों वाले मेरे बच्चे! यदि तुम्हारी माँ मेरे और तुम्हारे बीच माध्यम न बनी होती तो मैं कभी भी तुम्हारे सुंदर कोमल रूप और तुम्हारी मधुर मुसकान को देख न पाता। कवि के कहने का भाव है कि संतान और पिता के बीच संबंध जोड़ने का माध्यम माँ ही होती है। यदि वह बच्चे की माँ होती है तो पिता की पत्नी भी होती है।

(घ) नन्हा बच्चा अनजान व्यक्ति को सामने पाकर उसे टकटकी लगाकर देखने लगा। बच्चे की आँखों में उत्सुकता और अजनबीपन का भाव था। इसलिए कवि ने बच्चे के इस अनोखे भाव को देखकर ये शब्द कहे थे।

(ङ) कवि लंबे समय के पश्चात् घर लौटा था। बच्चे का जन्म उसकी अनुपस्थिति में हुआ होगा और कवि ने पहली बार बच्चे को देखा होगा इसलिए कवि बच्चे को पहचान नहीं पाया था।

(च) कवि शिशु की मधुर मुसकान शिशु की माँ के माध्यम से ही देख पाया था। जब तक बच्चा कवि के लिए अनजान था तब तक मौन एवं स्थिर बना रहा, किंतु जब उसकी माँ ने बच्चे का कवि से परिचय करवाया तभी वह मुसकाने लगा।

(छ) नन्हें बालक ने कवि को पहली बार देखा था। वह कवि को पहचानने का प्रयास कर रहा था। कवि कई मास के पश्चात् घर लौटा था। इसलिए बच्चा उसे अजनबी समझकर उसे पहचानने का प्रयास कर रहा था।

(ज) कवि अपनी घुमक्कड़ प्रवृत्ति के कारण अपने परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह भली-भाँति नहीं कर पाया था। इसलिए कवि के मन का अपराध बोध व्यक्त हो रहा है। दूसरी ओर, बालक की मधुर एवं निश्छल मुसकान के प्रभाव का भी सजीव चित्रण हुआ है।

(झ)

  • प्रस्तुत कवितांश में कवि ने अपने भावों का उल्लेख अत्यंत सरल भाषा में किया है।
  • भाषा सरल, सहज, आडंबरहीन एवं भावाभिव्यक्ति में पूर्णतः सक्षम है।
  • संबोधन शैली के कारण विषय रोचक बन पड़ा है।
  • संस्कृतनिष्ठ शब्दावली के साथ-साथ तद्भव एवं देशज शब्दों का भी सार्थक प्रयोग किया गया है।

(ञ) इन काव्य पंक्तियों में कवि ने सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया है। कविवर नागार्जुन ने अपने छोटे बच्चे की मधुर एवं पावन मुसकान को प्रभावशाली भाषा में अभिव्यक्त किया है। ग्राम्यभाषा अथवा लोकभाषा के शब्दों के प्रयोग के कारण भाषा में व्यावहारिकता का समावेश हुआ है। छोटे-छोटे शब्दों की आवृत्ति के कारण भाषा में लयात्मकता का समावेश हुआ है।

[3] धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!
इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रह संपर्क
उँगलियाँ माँ की कराती रही है मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होती जब कि आँखें चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान! [पृष्ठ 40]

शब्दार्थ-धन्य = सम्मान के योग्य, भाग्यशाली। चिर प्रवासी = देर तक घर से बाहर दूर देश में रहने वाला। इतर = अन्य, दूसरा। संपर्क = संबंध। मधुपर्क = दही, घी, शहद, जल और दूध का मिश्रण, जिसे पंचामृत कहा जाता है, आत्मीयता से परिपूर्ण वात्सल्य। कनखी मार = तिरछी नज़रों से। आँखें चार होना = प्रेम होना, नज़रें मिलना। छविमान = सुंदर।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम बताइए।
(ख) प्रस्तुत कवितांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि ने किसे और क्यों धन्य कहा है?
(ङ) कवि ने अपने आपको चिर प्रवासी क्यों कहा है?
(च) मधुपर्क से क्या अभिप्राय है? मधुपर्क का सांकेतिक अर्थ क्या है?
(छ) कविता में किस-किसकी आँखें चार हुई हैं?
(ज) कवि को क्या छविमान लगती है?
(झ) प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ञ) इस पद्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ट) उपर्युक्त काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-नागार्जुन। कविता का नाम यह दंतुरित मुसकान।

(ख) प्रस्तुत कवितांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘यह दंतरित मुसकान’ से उद्धृत है। इस कविता के रचयिता नागार्जुन हैं। इस कविता में कवि ने एक नन्हें बालक की मधुर मुसकान के प्रति उत्पन्न भावों को सशक्त अभिव्यक्ति प्रदान की है। कवि लंबे समय के पश्चात् घर लौटता है। उसने अपने बच्चे के मुँह में उगे हुए नए-नए दाँतों की चमक से शोभायमान मुसकान को देखा था। इससे उसे असीम खुशी प्राप्त हुई थी।

(ग) कवि शिशु को संबोधित करता हुआ कहता है कि तुम सौभाग्यशाली हो और तुम्हारी माँ भी अत्यंत सौभाग्यशाली है। मैं तुम दोनों के प्रति आभारी हूँ। मैं तो बहुत लंबे समय से घर से बाहर रहा हूँ इसलिए मैं तो बाहर वाला व कोई दूसरा हूँ। मेरे प्रिय बच्चे मैं तो तुम्हारे लिए किसी अतिथि की भाँति हूँ। तुम्हारे लिए मेरा कोई संबंध नहीं रहा। तुम्हारे लिए तो मैं अनजान-सा ही हूँ। मेरी लंबे समय की अनुपस्थिति में तुम्हारी माँ ही आत्मीयतापूर्ण तुम्हारा पालन-पोषण करती रही है। तुम्हें अपनी स्नेह देती रही। वह तुम्हें पंचामृत चटाकर तुम्हारा पोषण करती रही। तुम मेरी ओर बड़ी हैरानी से कनखियों में से देख रहे थे। जब भी अचानक तुम्हारी और मेरी नज़रें मिल जाती थीं तो मुझे तुम्हारे चमकते हुए दातों से युक्त मुसकान दिखाई दे जाती है। वास्तव में, मुझे तुम्हारी दुधिया दाँतों से सजी हुई मुसकान बहुत ही सुंदर लगती है। मैं तुम्हारी इस निश्छल मुसकान पर मुग्ध हूँ।

(घ) कवि ने अपनी पत्नी और बेटे को धन्य कहा है क्योंकि उनके कारण उसे अपार प्रसन्नता प्राप्त हुई थी। वह स्वयं को भी धन्य मानने के योग्य बना था।

(ङ) कवि ने अपने-आपको चिर प्रवासी इसलिए कहा है कि क्योंकि वह अधिकतर घर से बाहर ही रहता था और इस समय भी वह कई महीनों के पश्चात् घर आया था।

(च) मधुपर्क दूध, दही, घी, शहद और जल के मिश्रण को कहते हैं। यहाँ मधुपर्क का सांकेतिक अर्थ है-माँ की आत्मीयता भरा वात्सल्य।

(छ) कविता में कवि और नन्हें शिशु की आँखें चार हुई हैं अर्थात् कवि की ओर शिशु टकटकी लगाए देखता रहा। शिशु कवि को देखकर मुसकराने लगता है।

(ज) कवि को शिशु की नए-नए दाँतों वाली मधुर मुसकान छविमान लगती है जिससे देखकर कवि का हृदय गद्गद् हो उठता है।

(झ) प्रस्तुत पद्यांश में माँ और बच्चे के आत्मीय संबंध की महिमा का उल्लेख किया गया है। नए-नए उगे हुए दाँतों वाले नन्हें बच्चे की मुसकान, उसकी तिरछी नज़रों से देखना और प्रेम व्यक्त करना आदि भावों का मनोरम चित्रण किया गया है।

(ञ)

  • कवि ने नन्हें शिशु की मधुर मुसकान से संबंधी भावों को अत्यंत सजीवतापूर्वक व्यक्त किया है।
  • भाषा मुहावरेदार है। ‘आँखें चार होना’ मुहावरे का सफल प्रयोग देखते ही बनता है।
  • संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का सार्थक प्रयोग हुआ है।
  • तुकांत छंद का प्रयोग किया गया है।
  • अनुप्रास अलंकार का सहज एवं स्वाभाविक प्रयोग है।

(ट) प्रस्तुत काव्य पंक्तियों में कवि ने सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया है। ‘आँख चार होना’ आदि मुहावरों के प्रयोग से भाषा में सारगर्भिता एवं रोचकता का समावेश हुआ है। संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ तद्भव तथा देशज शब्दों के प्रयोग से भाषा में व्यावहारिकता का समावेश हुआ है। अलंकारों के सफल प्रयोग से भाषा को अलंकृत रूप में प्रस्तुत किया गया है।

फसल

कविता का सार

प्रश्न-
‘फसल’ नामक कविता का सार लिखिए।
उत्तर-
‘फसल’ शब्द के सुनते ही लहलहाती फसल का चित्र आँखों के सामने आ जाता है। प्रस्तुत कविता ‘फसल’ में कवि ने बताया है कि फसल को उत्पन्न करने में विभिन्न तत्त्वों का योगदान रहता है। उनके अनुसार फसल उगाने में नदियों के पानी का, अनेक मनुष्य के हाथों की मेहनत का तथा खेतों की उपजाऊ मिट्टी का योगदान रहता है। इनके अतिरिक्त फसलों को उत्पन्न करने में , सूरज की किरणों और हवा का भी योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। साथ ही कवि ने स्पष्ट किया है कि प्रकृति और मनुष्य के सहयोग से ही सृजन संभव है। आज के उपभोक्तावादी संस्कृति के युग में कवि ने कृषि-संस्कृति का जोरदार शब्दों में समर्थन किया है।

पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] एक के नहीं,
दो के नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू :
एक के नहीं,
दो के नहीं,
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा :
एक की नहीं,
दो की नहीं,
हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण धर्म : [पृष्ठ 40-41]

शब्दार्थ-पानी का जादू = पानी का प्रभाव। कोटि = करोड़ों। स्पर्श = छूना। गरिमा = गौरव।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) ‘एक के नहीं, दो के नहीं’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
(ङ) ‘कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
(च) ‘मिट्टी का गुण धर्म’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
(छ) इस पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ज) प्रस्तुत पद्यांश के शिल्प-सौंदर्य का उल्लेख कीजिए।
(झ) प्रस्तुत काव्यांश के भाषा वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-नागार्जुन। कविता का नाम-फसल।

(ख) प्रस्तुत कवितांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘फसल’ नामक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता नागार्जुन हैं। इस कविता में कवि ने बताया है कि फसल उत्पन्न करने के लिए मनुष्य एवं प्रकृति एक-दूसरे का सहयोग करते हैं।
(ग) कवि कहता है कि फसल उत्पन्न करने के लिए अनेक नदियों के पानी का अपना जादू जैसा प्रभाव दिखाई देता है अर्थात् नदियों से प्राप्त पानी से ही फसलें उगाई जाती हैं। पानी से उगकर फसलें बड़ी होती हैं। फसल को उगाने के लिए करोड़ों व्यक्तियों का सहयोग होता है अर्थात् फसल उगाने के लिए करोड़ों लोग काम करते हैं। यह करोड़ों लोगों के परिश्रम का फल होता है। इसमें अनेक खेतों की उपजाऊ मिट्टी के गुणों का योगदान भी होता है। इसके पीछे मिट्टी के गुण धर्म भी छिपे रहते हैं।

(घ) कवि के इस कथन का तात्पर्य है कि फसल उगाने के लिए अनेक नदियों के जल का सहयोग रहता है। इसी प्रकार एक दो व्यक्तियों के सहयोग से नहीं, अपितु अनेकानेक लोगों की मेहनत से फसल उगाई जाती है। इसी तरह अनगिनत खेतों का भी योगदान रहता है। .

(ङ) इस पंक्ति का भाव है कि फसल उगाने में देश के करोड़ों किसान अपने हाथ से काम करते हैं। फसल उगाने में करोड़ों किसानों के श्रम का गौरव सम्मिलित है।

(च) ‘मिट्टी का गुण धर्म’ का तात्पर्य है कि मिट्टी की उपजाऊ शक्ति व विशेषताएँ। हमारे देश में कई प्रकार की मिट्टी पाई जाती है तथा हर प्रकार की मिट्टी की विशेषताएँ व गुण अलग-अलग होते हैं। इसलिए मिट्टी के इन्हीं गुणों के कारण यहाँ भिन्न-भिन्न प्रकार की फसलें होती हैं।

(छ) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने फसल उगाने अथवा कृषि के क्षेत्र में किए जाने वाले श्रम के महत्त्व को उजागर किया है। कवि ने देश की विभिन्न नदियों, विभिन्न प्रकार की मिट्टी, वातावरण एवं मानव श्रम से संबंधित अपने भावों को सशक्त भाषा में अभिव्यक्त किया है।

(ज)

  • प्रस्तुत कविता में कवि ने फसलें उगाने वाली सभी शक्तियों व साधनों का काव्यात्मक उल्लेख किया है।
  • ‘एक नहीं दो नहीं’ की आवृत्ति के कारण, जहाँ कविता की भाषा में प्रवाह का संचार हुआ है वहाँ भाव को सर्वव्यापकता भी मिली है।
  • ‘पानी का जादू’ प्रयोग से पानी के महत्त्व व गुणों की ओर संकेत किया गया है।
  • पुनरुक्ति प्रकाश एवं अनुप्रास अलंकारों का सहज एवं सफल प्रयोग किया गया है।
  • भाषा सरल, सहज एवं विषयानुकूल है।
  • तत्सम, तद्भव एवं देशज शब्दों का प्रयोग किया गया है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

(झ)

प्रस्तुत काव्यांश में कविवर नागार्जुन ने सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया है। छोटे-छोटे शब्दों के सफल प्रयोग से जहाँ विषय को रोचकतापूर्ण भाषा में स्पष्ट किया है, वहीं भाषा भी प्रभावशाली बन पड़ी है। आदि से अन्त तक भाषा का प्रवाह बना हुआ है। शब्दों की आवृत्ति के कारण भाषा में लयात्मकता का समावेश हुआ है।

[2] फसल क्या है?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का! [पृष्ठ 41]

शब्दार्थ-महिमा = यश। संदली = एक विशेष प्रकार की मिट्टी। रूपांतर = बदला हुआ रूप। संकोच = सिमटा हुआ रूप। थिरकन = नाचना, लहराना।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने किसका वर्णन किया है?
(ङ) ‘हाथों के स्पर्श की महिमा’ किसे कहा है और क्यों?
(च) फसलों को सूर्य की किरणों का रूपांतर कहना कहाँ तक उचित है?
(छ) मिट्टी के लिए ‘संदली’ शब्द का प्रयोग किस संदर्भ में किया गया है?
(ज) प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(झ) इस पद्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ञ) उपर्युक्त काव्यांश की भाषागत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-नागार्जुन। कविता का नाम-फसल।

(ख) प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘फसल’ नामक कविता से उद्धृत है। इस कविता के रचयिता श्री नागार्जुन हैं। उन्होंने बताया है कि फसल उगाना मनुष्य और प्रकृति का सम्मिलित प्रयास है।

(ग) कवि प्रश्न करता है कि आखिर फसल क्या है? कवि अपने आप इस प्रश्न का उत्तर देता हुआ कहता है कि ये फसलें और कुछ नहीं हैं, वे तो नदियों के पानी से सिंचकर पुष्ट हुई हैं। इन फसलों पर नदियों के जल का जादू जैसा प्रभाव होता है। किसानों के हाथों का स्पर्श और श्रम पाकर फसलें खूब फलती-फूलती हैं। कवि के कहने का भाव है कि फसलों को उगाने और उनके फलने-फूलने में नदियों का पानी और किसानों की मेहनत ही काम करती है। किसानों की मेहनत से ही फसलें फली-फूली हैं। ये फसलें विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगती हैं। कहीं काली व भूरी मिट्टी है तो कहीं संदली मिट्टी है। हर प्रकार की मिट्टी में अपना-अपना गुण होता है, उसी के अनुसार उनमें फसलें उगाई जाती हैं। कहने का भाव है कि मालिटी के गुण, स्वभाव और विशेषताएँ भी छिपी रहती हैं। ये फसलें सूरज की किरणों का बदला हुआ रूप हैं। सूत्र को किरणों की गर्मी से ही फसलें पकती हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि फसलें सूर्य की किरणों का बदला हुआ रूप हैं। ऐसा लगता है कि हवाओं की थिरकन सिमटकर इन फसलों में समा गई है अर्थात् हवा के चलने पर खेतों में खड़ी फसलें लहलहाने लगती हैं। कहने का तात्पर्य है कि फसलों को उगाने में हवाओं का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है।

(घ) इस पद्यांश में कवि ने फसलों पर विचार करते हुए उनके उगाने में पानी, किसान के परिश्रम, विभिन्न प्रकार की मिट्टी, सूर्य की गर्मी और हवाओं की भूमिका का वर्णन किया है।

(ङ) ‘हाथों के स्पर्श की महिमा’ किसान के द्वारा किए गए परिश्रम के महत्त्व को कहा गया है। किसान दिन-रात परिश्रम करता है, तब कहीं जाकर फसलें उगती हैं। बिना परिश्रम के फसलें नहीं उगाई जा सकतीं। अतः किसान की मेहनत के महत्त्व को उजागर करने के लिए ये शब्द कहे गए हैं।

(च) फसलें सूर्य की किरणों का रूपांतर अर्थात् बदला हुआ रूप हैं। सूर्य की किरणों की गर्मी से फसलें पकती हैं। अतः इन्हें सूर्य की किरणों का रूपांतर कहना उचित है।

(छ) संदली का अर्थ है-चंदन। ऐसी मिट्टी जिसमें सौंधी-सौंधी-सी गंध आती हो। ऐसी मिट्टी फसल उगाने के लिए अत्यंत उपयुक्त होती है। कवि ने मिट्टी की इसी विशेषता को प्रकट करने के लिए ‘संदली’ शब्द का प्रयोग किया है।

(ज) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने फसलों को उगाने वाले सभी तत्त्वों के प्रभाव और उनके महत्त्व को सफलतापूर्वक अभिव्यंजित किया है। कवि ने किसान के परिश्रम, पानी के महत्त्व, सूर्य की गर्मी के प्रभाव, हवाओं की भूमिका आदि का फसलों के संदर्भ में उल्लेख किया है।

(झ)

  • कवि ने सरल, सहज एवं प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग करके विषय को अत्यंत ग्रहणीय बनाया है।
  • ‘पानी का जादू’ आदि लाक्षणिक प्रयोग देखते ही बनते हैं।
  • प्रश्नोत्तर शैली के प्रयोग से विषय रोचक बन पड़ा है।
  • संस्कृत के शब्दों के साथ तद्भव शब्दों का प्रयोग भी किया गया है।
  • तुकांत छंद का प्रयोग किया गया है।

(ञ) श्री नागार्जुन ने इन काव्य पंक्तियों में सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया है। छोटे-छोटे वाक्यों का सफल प्रयोग किया गया है। तद्भव व तत्सम शब्दावली का प्रयोग विषयानुकूल किया गया है। प्रवाहमयता, रोचकता तथा भावाभिव्यक्ति की क्षमता भाषा की अन्य प्रमुख विशेषताएँ हैं।

यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Summary in Hindi

यह दंतुरहित मुस्कान और फसल कवि-परिचय

प्रश्न-
कविवर नागार्जुन का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं और भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-सुप्रसिद्ध जनवादी कवि नागार्जुन का वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्र था। आपका जन्म बिहार प्रदेश के दरभंगा जिले के सतलखा नामक गाँव में सन् 1911 में हुआ। अल्पायु में ही इनकी माँ का देहांत हो गया। एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में इनका लालन-पालन हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय संस्कृत विद्यालय में हुई। सन् 1936 में श्रीलंका में जाकर इन्होंने बौद्ध धर्म में दीक्षा ले ली। राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने के कारण अनेक बार उनको जेल भी जाना पड़ा। संस्कृत, पाली, प्राकृत तथा हिंदी सभी भाषाओं का इन्होंने गहरा अध्ययन किया। बाल्यावस्था में कष्टों और पीड़ाओं को भोगने के कारण इनके काव्य में पीड़ा का अधिक महत्त्व है। वैसे ये स्वभाव से फक्कड़, मस्तमौला तथा अपने मित्रों में नागा बाबा के नाम से जाने जाते हैं। सन् 1998 में उनका देहांत हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ-1) काव्य–’युगधारा’, ‘प्यासी पथराई आँखें’, ‘सतरंगे पंखों वाली’, ‘प्यासी परछाई’, ‘तालाब की मछलियाँ’, ‘हजार-हजार बाँहों वाली’, ‘तुमने कहा था’, ‘पुरानी जूतियों का कोरस’, ‘खून और शोले’, ‘चना जोर गर्म’ तथा ‘भस्मांकुर’ (खंडकाव्य)।
(ii) उपन्यास-‘वरुण के बेटे’, ‘हीरक जयंती’, ‘बलचनमा रतिनाथ की चाची’, ‘नई पौध’, ‘कुंभीपाक और उग्रतारा’ । __ आपने दीपक (हिंदी मासिक) तथा विश्वबंधु (साप्ताहिक) का संपादन भी किया। मैथिली में रचित काव्य रचना पर इनको साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला है।

3. काव्यगत विशेषताएँ-नागार्जुन एक जनवादी कवि हैं, अतः इनका काव्य मानव-जीवन से संबद्ध है। इनका काव्य वैविध्यपूर्ण है। इनकी कुछ कविताओं में मानव मन की रागात्मक अनुभूति का सुंदर वर्णन हुआ है। कुछ रचनाओं में इन्होंने सामाजिक विषमताओं तथा राजनीतिक विद्रूपताओं पर व्यंग्य किया है। इस प्रकार प्रगतिवादी विचारधारा के साथ-साथ प्रेम और सौंदर्य का चित्रण भी इनके काव्य में हुआ है। अन्यत्र ये प्रकृति वर्णन में भी रुचि लेते हुए दिखाई देते हैं। इनके समूचे काव्य में देश-प्रेम की भावना विद्यमान है। पुनः नागार्जुन ने वर्तमान व्यवस्था के प्रति आक्रोश प्रकट करते हुए समाज की रूढ़ियों और जड़ परंपराओं पर भी प्रहार किया है।

4. भाषा-शैली-नागार्जुन की भाषा खड़ी बोली है, लेकिन इन्होंने खड़ी बोली के बोलचाल रूप को ही अपनाया है। जनवादी कवि होने के कारण इनकी भाषा में ग्रामीण और देशज शब्दों का अधिक प्रयोग हुआ है। कुछ स्थलों पर अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग भी मिलता है। इन्होंने अपनी कविताओं में शृंगार, वीर तथा करुण तीनों रसों को समाविष्ट किया है, इससे भाषा में भी सरलता, कोमलता तथा कठोरता आ गई है। जहाँ आक्रोश तथा व्यंग्यात्मकता का पुट है, वहाँ अलंकारों का बहुत कम प्रयोग हुआ है। शब्द की तीनों शक्तियों-अभिधा, लक्षणा तथा व्यंजना का सार्थक प्रयोग हुआ है। अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग है। कुछ स्थलों पर प्रतीक विधान तथा बिंब योजना भी देखी जा सकती है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

यह दंतुरहित मुस्कान और फसल कविता का सार

प्रश्न-
‘यह दंतुरित मुसकान’ नामक कविता का सार लिखें।
उत्तर-
“यह दंतुरित मुसकान’ नागार्जुन की प्रमुख कविता है। इसमें उन्होंने छोटे बच्चे की अत्यंत आकर्षक मुसकान को देखकर मन में उमड़े हुए भावों को विविध बिंबों के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। कवि के मतानुसार इस सुंदरता में जीवन का संदेश है। बच्चे की उस मधुर मुसकान के सामने कठोर-से-कठोर हृदय भी पिघल जाता है। उसकी मुसकान में अद्भुत शक्ति है जो किसी मृतक में भी नया जीवन फूंक सकती है। धूल मिट्टी में सना हुआ बच्चा तो ऐसा लगता है मानो वह कमल का कोमल फूल है जो तालाब का जल त्यागकर उसकी झोंपड़ी में खिल उठा हो। उसे छूकर तो पत्थर भी जल बन जाता है। उसे छूकर शेफालिका के फूल झड़ने लगते हैं। छोटा-सा शिशु कवि को पहचान नहीं सका। इसलिए वह उसकी ओर टकटकी लगाकर देखता रहता है। कवि मानता है कि वह उस मोहिनी सूरत वाले बालक और उसके सुंदर दाँतों को उसकी माँ के कारण ही देख सका था। वह माँ धन्य है और बालक की मधुर मुसकान भी धन्य है। वह इधर-उधर घूमने वाले प्रवासी के समान था। इसलिए उसकी पहचान नन्हें बच्चे के साथ नहीं हो सकी थी। जब वह कनखियों से कवि की ओर देखता तो उसकी छोटे-छोटे दाँतों से सजी मुसकान कवि का मन मोह लेती थी।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

HBSE 10th Class Hindi उत्साह और अट नहीं रही Textbook Questions and Answers

1. उत्साह

प्रश्न 1.
कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘गरजने’ के लिए कहता है, क्यों?
उत्तर-
निश्चय ही बादल अपने जल से इस पृथ्वी के प्राणियों की प्यास बुझाता है और उन्हें प्रसन्न करता है। यही बादल विध्वंस और विप्लव भी मचा सकता है। कवि बादल को गरजने के लिए इसलिए कहता है ताकि सोई हुई आत्माएँ जाग जाएँ तथा उनके मन में क्रांति का संचार हो सके। क्रांति व परिवर्तन से ही नए युग का निर्माण हो सकता है। इसलिए कवि बादल को बरसने की अपेक्षा ‘गरजने’ के लिए कहता है।

प्रश्न 2.
कविता का शीर्षक उत्साह क्यों रखा गया है?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता एक आह्वान गीत है जिसमें कवि ने उत्साहपूर्वक विधि से प्रगतिवादी स्वर को मुखरित किया है। कवि बादल से गरजने के लिए कहता है। ‘गरजन’ बादल की शक्ति को व्यक्त करता है। इसलिए कवि बादल का गरज-गरजकर नई प्रेरणा देने के लिए आह्वान करता है। अतः कवि ने बादल के इस विशेष गुण के आधार पर इस कविता का शीर्षक ‘उत्साह’ रखा है जो अत्यंत उचित एवं सार्थक है।

प्रश्न 3.
कविता में बादल किन-किन अर्थों की ओर संकेत करता है?
उत्तर-
कविता में बादल कवि की कल्पना शक्ति और क्रांति की भावना की ओर संकेत करता है। बादल एक ओर पीड़ित लोगों की आशाओं और कामनाओं को पूरा करने वाला है तो दूसरी ओर जन-जन के मन में उत्साह और संघर्ष के भाव भरने वाला भी है।

प्रश्न 4.
शब्दों का ऐसा प्रयोग जिससे कविता के किसी खास भाव या दृश्य में ध्वन्यात्मक प्रभाव पैदा हो, नाद-सौंदर्य कहलाता है। उत्साह कविता में ऐसे कौन-से शब्द हैं जिनमें नाद-सौंदर्य मौजूद है, छाँटकर लिखें।
उत्तर-
कविता में निम्नलिखित शब्दों में नाद-सौंदर्य मौजूद है
घेर घेर घोर गगन।
ललित ललित।
काले धुंघराले।
बाल कल्पना के-से पाले।

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रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 5.
जैसे बादल उमड़-घुमड़कर बारिश करते हैं वैसे ही कवि के अंतर्मन में भी भावों के बादल उमड़-घुमड़कर कविता के रूप में अभिव्यक्त होते हैं। ऐसे ही किसी प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर अपने उमड़ते भावों को कविता में उतारिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। छात्र इसे स्वयं करें।

पाठेतर सक्रियता:

बादलों पर अनेक कविताएँ हैं। कुछ कविताओं का संकलन करें और उनका चित्रांकन भी कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से बादल संबंधी कविताओं का संकलन करें।

2. अट नहीं रही है

प्रश्न 1.
छायावाद की एक खास विशेषता है अंतर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है? लिखिए।
उत्तर-
अंतर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाने की धारणा कविता की निम्नांकित पंक्तियों से व्यक्त होती है
आमा फागुन की तन
सट नहीं रही है।
x x x x
कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,

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प्रश्न 2.
कवि की आँख फागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही है?
उत्तर-
फागुन मास का प्राकृतिक सौंदर्य अत्यंत आकर्षक है। चारों ओर हरियाली छा गई है। वृक्ष हरे-भरे पत्तों और रंग-बिरंगे फूलों से लद गए हैं। पूरा वातावरण मधुर एवं सुगंधित बन गया है। फागुन का यह सौंदर्य प्रकृति में समा नहीं रहा है अर्थात् पूरा वातावरण सौंदर्य से परिपूर्ण है। इसलिए कवि फागुन मास के ऐसे अद्भुत सौंदर्य में पूर्णतः तल्लीन हो गया है और वह अपनी आँख ऐसे सौंदर्य से हटाना नहीं चाहता।

प्रश्न 3.
प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है? अथवा प्रस्तुत कविता के आधार पर प्रकृति के सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
कवि ने प्रकृति की शोभा को वैभवशाली बताया है क्योंकि उसमें सुंदरता रूपी विविध प्रकार की निधियाँ समाहित हैं। कवि ने बताया है कि फागुन मास में वन, उपवन, बाग, बगीचे आदि सभी स्थानों पर, पेड़ों पर हरे-भरे पत्ते लद गए हैं तथा उन पर तरह-तरह के फूल भी खिल गए हैं जिससे संपूर्ण वातावरण आकर्षक बन गया है। चारों ओर फूलों की सुगंध व्याप्त है। फूलों से लदे हुए पेड़ ऐसे लग रहे हैं मानों उन्होंने अपने गले में सुगंधित फूलों से बनी मालाएँ पहन ली हों।

प्रश्न 4.
फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है?
उत्तर-
फागुन का महीना बसंत ऋतु में आता है। इस मास के आने पर सभी पेड़-पौधों के पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और उनके स्थान पर नए पत्ते उग आते हैं। सर्दी की ऋतु समाप्त हो जाती है। मौसम अत्यंत आकर्षक बन जाता है। खेतों में दूर-दूर तक फैली । हुई पीली-पीली सरसों ऐसी लगती है कि मानों धरती पीली चादर ओढ़कर सज गई हो। सभी बाग-बगीचों में खड़े पेड़ भी फूलों से लद जाते हैं। वातावरण पूर्णतः सुगंधित एवं सुहावना बन जाता है पक्षियों की मधुर ध्वनियाँ सुनाई देने लगती हैं। मानव-जीवन में भी स्फूर्ति का संचार होने लगता है। सभी प्राणियों में नया उत्साह भर जाता है। इसलिए फागुन मास अन्य ऋतुओं से भिन्न होता है।

प्रश्न 5.
इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य-शिल्प की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
निराला जी छायावाद के प्रमुख कवि थे। उनकी इन कविताओं में छायावादी काव्य की सभी प्रमुख विशेषताएँ एक साथ देखने को मिलती हैं। उनकी भाषा में मधुर शब्दावली की योजना, संगीतात्मकता, लाक्षणिकता, चित्रात्मकता तथा प्रकृति का मानवीकरण बेजोड़ है। भावपक्ष की भाँति ही उनके काव्य का कलापक्ष भी अत्यंत समृद्ध है। शिल्प के क्षेत्र में उनका विद्रोही रूप भी देखने को मिलता है। उन्होंने छंदमुक्त काव्य-शैली का प्रयोग किया है। अतः स्पष्ट है किं विषय-वस्तु के साथ-साथ निराला जी ने काव्य के शिल्प पक्ष में नवीनता का समावेश किया है। बादल निराला जी को बहुत प्रिय रहा है इसलिए नहीं कि वह सुंदर है बल्कि इसलिए भी कि वह शक्ति का प्रतीक है। ‘उत्साह’ कविता में ललित कल्पना और क्रांति का स्वर समांतर बना हुआ है। ‘अट नहीं रहा है। शीर्षक कविता में देशज शब्दों का प्रयोग भी देखते ही बनता है। निराला जी लघु-लघु शब्दों का प्रयोग इस प्रकार करते हैं कि भाषा की प्रवाहमयता देखते ही बनती है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 6.
होली के आसपास प्रकृति में जो परिवर्तन दिखाई देते हैं, उन्हें लिखिए।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

पाठेतर सक्रियता

फागुन में गाए जाने वाले गीत जैसे होरी, फाग आदि गीतों के बारे में जानिए।
उत्तर-
यह परीक्षोपयोगी नहीं है।
इस कविता में भी निराला फागुन के सौंदर्य में डूब गए हैं। उनमें फागुन की आभा रच गई है, ऐसी आभा जिसे न शब्दों से अलग किया जा सकता है, न फागुन से।
फूटे हैं आमों में बौर
भौंर वन-वन टूटे हैं।
होली मची ठौर-ठौर,
सभी बंधन छूटे हैं।
फागुन के रंग राग,
बाग-वन फाग मचा है,
भर गये मोती के झाग,
जनों के मन लूटे हैं। ,
माथे अबीर से लाल,
गाल सेंदुर के देखे,
आँखें हुई हैं गुलाल,
गेरू के ढेले कूटे हैं।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

HBSE 10th Class Hindi उत्साह और अट नहीं रही Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘उत्साह’ कविता के आधार पर बादल की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
‘उत्साह’ कविता में कवि ने बादल के मंगलमय रूप को चित्रित किया है। साथ ही बादल के सौंदर्य को भी उजागर किया है। बादल को कवि ने ‘ललित ललित काले बादल’ कहकर उसकी सुंदरता की ओर संकेत किया है। बादल को ‘बाल कल्पना के-से पाले’ बताकर बादल की कोमलता एवं माधुर्य पर प्रकाश डाला है। बादल को बिजली की सुंदरता को हृदय में धारण करने वाला, हृदय में वज्र छुपाने वाला बताकर उसके शक्तिशाली रूप को उजागर किया है। ‘तप्त धरा को जल से फिर शीतल कर दो’ के माध्यम से बादल के मंगलमय रूप को प्रदर्शित किया है। इसी प्रकार ‘उत्साह’ कविता में बादल को नव-जीवन देने वाला बताया गया। है, क्योंकि उसके जल से ही प्राणी मात्र के जीवन में नया उत्साह व सुख मिलता है।

प्रश्न 2.
‘उत्साह’ नामक कविता में ‘नवजीवन वाले’ किसे और क्यों कहा गया है?
उत्तर-
‘उत्साह’ कविता में ‘नवजीवन वाले’ विशेषण का प्रयोग बादल और कवि दोनों के लिए किया गया है। बादल को नवजीवन वाले इसलिए कहा गया है क्योंकि वह अपने जल से मुरझाई हुई-सी धरती को पुनः हरा-भरा करके उसमें नव-जीवन का संचार कर देता है। इसी प्रकार कवि भी अपनी कविता के माध्यम से सोई हुई मानवता को जगाकर उसमें नए-नए विचारों का संचार करता है और नव-जीवन का संदेश देता है।

प्रश्न 3.
फागुन के मदमाते वातावरण का मानव-जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
फागुन मास मदभरा मास माना जाता है क्योंकि इस मास में चारों ओर प्राकृतिक सौंदर्य छा जाता है। चारों ओर हरियाली छा जाती है। फूलों की सुगंध से वातावरण सुगंधित बन जाता है। सर्दी की ऋतु के पश्चात् बसंत का आगमन हो जाता है। इस सारे वातावरण का मानव-जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। मानव-मन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो जाता है। उसका मन उत्साह से भर जाता है। वह आकाश में उड़ने की उमंग भरने लगता है। वह प्राकृतिक सौंदर्य को देखने में इतना तल्लीन हो जाता है कि अपनी दृष्टि उससे हटाना नहीं चाहता। फागुन मास के आते ही लोग मस्ती से भर उठते हैं और फागुन के गीत गाने लगते हैं। चारों ओर उत्साह का अद्भुत वातावरण बन जाता है।

संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 4.
‘उत्साह’ कविता के केंद्रीय भाव का उल्लेख कीजिए। अथवा
‘उत्साह’ कविता के मूल उद्देश्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
‘उत्साह’ कविता में कविवर निराला ने बादल को उत्साह के प्रतीक के रूप में चित्रित किया है। कवि बादल से अनुरोध करता है कि वह सारे आकाश में छा जाए और खूब वर्षा करे ताकि तपती हुई धरती को शीतलता मिल सके। वह किसी संघर्षशील कवि के समान सबके जीवन में उत्साह भर दे। वह अपनी गर्जन से सोई हुई मानवता को जगा दे। उसमें नया जोश व उत्साह भर दे। जब सारी धरा पर लोग व्याकुल व अनमने हों तो बादल जल की धारा बनकर सबको शीतलता प्रदान करें।

प्रश्न 5.
‘अट नहीं रही है’ कविता का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘अट नहीं रही है’ शीर्षक कविता में कवि ने छायावादी शैली में प्रकृति की मनोरम छटा का उल्लेख किया है। कवि ने बताया है कि फागुन मास की शोभा अपने आप में समा नहीं रही है। इसलिए वह अनंत शोभा-सी लगती है। हर तरफ हरियाली छाई हुई है। फूलों की सुगंध वातावरण में मिलकर वातावरण को मधुर बना रही है। संपूर्ण प्राकृतिक दृश्य अत्यंत आकर्षक बने हुए हैं। कवि का मन इन सुंदर दृश्यों में इतना तल्लीन है कि वह एक क्षण के लिए भी अपनी आँखों को उनसे हटाना नहीं चाहता।

प्रश्न 6.
‘उत्साह’ कविता में कवि और बादल में क्या समानता दिखाई देती है?
उत्तर-
‘उत्साह’ कविता में बादल एक ओर पीड़ित लोगों की आशाओं और कामनाओं को पूरा करने वाला है तो दूसरी ओर जन-जन के मन में उत्साह और संघर्ष के भाव भरने वाला है। ठीक इसी प्रकार कवि भी दुःखी लोगों के प्रति सहानुभूति रखता है और शोषण के विरुद्ध क्रांति की भावना के विकास के लिए प्रेरित करता है। बादल गरजता है तो कवि कविता के माध्यम से जन-जन को ललकारता है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
किसकी आभा अट नहीं रही है?
उत्तर-
फागुन की आभा अट नहीं रही है।

प्रश्न 2.
निराला जी का निधन कब हुआ?
उत्तर-
निराला जी का निधन सन् 1961 में हुआ।

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प्रश्न 3.
कवि बादलों के माध्यम से मानव को क्या प्रदान करना चाहता है?
उत्तर-
कवि बादलों के माध्यम से मानव को जीवन की नई-नई प्रेरणाएँ प्रदान करना चाहता है।

प्रश्न 4.
निराला जी का प्रतिकार किसके प्रति व्यक्त हुआ है?
उत्तर-
निराला जी का प्रतिकार शोषक वर्ग के प्रति व्यक्त हुआ है।

प्रश्न 5.
‘तप्त धरा’ का सांकेतिक अर्थ क्या है?
उत्तर-
‘तप्त धरा’ का सांकेतिक अर्थ सांसारिक दुखों से पीड़ित पृथ्वी है।

प्रश्न 6.
फागुन मास के आते ही वृक्ष कैसे लगने लगते हैं?
उत्तर-
फागुन मास के आते ही वृक्ष हरे-भरे लगने लगते हैं।

प्रश्न 7.
कवि की आँख कहाँ से नहीं हट रही है?
उत्तर-
कवि की आँख प्राकृतिक सुंदरता से नहीं हट रही है।

प्रश्न 8.
‘अट नहीं रही है’ कविता में किस मास का वर्णन किया गया है?
उत्तर-
‘अट नहीं रही है’ कविता में फागुन मास का वर्णन किया गया है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘निराला’ जी मूलतः किस राज्य के रहने वाले थे?
(A) पंजाब
(B) उत्तर प्रदेश
(C) हरियाणा
(D) मध्य प्रदेश
उत्तर-
(B) उत्तर प्रदेश

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प्रश्न 2.
निराला की आरंभिक शिक्षा कहाँ हुई?
(A) बनारस में
(B) लखनऊ में
(C) महिषादल में
(D) कोलकाता में
उत्तर-
(C) महिषादल में

प्रश्न 3.
निराला जी के जीवन में सबसे बड़ा दुख क्या था?
(A) गरीब होना
(B) बीमार पड़ना
(C) समाज द्वारा ठुकराया जाना
(D) पत्नी तथा बेटा-बेटी की मृत्यु
उत्तर-
(D) पत्नी तथा बेटा-बेटी की मृत्यु

प्रश्न 4.
निराला जी ने सबसे पहले किस छंद का प्रयोग किया था?
(A) सवैया
(B) दोहा
(C) चौपाई
(D) मुक्त
उत्तर-
(D) मुक्त

प्रश्न 5.
‘उत्साह’ किस प्रकार का गीत है?
(A) प्रेम
(B) विरह
(C) आह्वान
(D) उत्साह
उत्तर-
(C) आह्वान

प्रश्न 6.
‘उत्साह’ कविता में कवि ने किसका आह्वान किया है?
(A) बादल का
(B) पवन का
(C) सूर्य का
(D) वर्षा का
उत्तर-
(A) बादल का

प्रश्न 7.
“उत्साह’ नामक कविता में बादलों में क्या छिपा हुआ है?
(A) गर्जन
(B) वज्र
(C) जल
(D) कालापन
उत्तर-
(B) वज्र

प्रश्न 8.
‘उत्साह’ कविता में किस दिशा से अनंत के घन आने की बात की गई है?
(A) पश्चिम
(B) अज्ञात
(C) पूर्व
(D) ज्ञात
उत्तर-
(B) अज्ञात

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प्रश्न 9.
कवि ने बादल को किसके प्रतीक के रूप में चित्रित किया है?
(A) संदेशवाहक
(B) सैनिक
(C) क्रांतिकारी पुरुष
(D) स्वार्थी व्यक्ति
उत्तर-
(C) क्रांतिकारी पुरुष

प्रश्न 10.
कवि ने बादलों को किसकी कल्पना के समान बताया?
(A) बालकों की
(B) कवि की
(C) सैनिक की
(D) व्यापारी की
उत्तर-
(A) बालकों की

प्रश्न 11.
‘विश्व के निदाघ के सकल जन’, यहाँ सकल का अर्थ है-
(A) सुंदर
(B) सब
(C) अच्छे
(D) दुष्ट
उत्तर-
(B) सब

प्रश्न 12.
वज्र किसके हृदय में छिपा रहता है?
(A) बादल
(B) पवन
(C) सूर्य
(D) आकाश
उत्तर-
(A) बादल

प्रश्न 13.
प्रस्तुत कविता में बादल से किसको शीतल करने की बात कही गई है?
(A) विकल जन
(B) तप्त धरा
(C) विद्युत
(D) जीवन
उत्तर-
(A) विकल जन ।

प्रश्न 14.
विश्व के जन क्यों व्याकुल एवं परेशान थे?
(A) भूख के कारण
(B) बीमारी के कारण
(C) प्रियजनों से दूर जाने के कारण
(D) भयंकर गर्मी के कारण
उत्तर-
(D) भयंकर गर्मी के कारण

प्रश्न 15.
कवि ने बादलों के हृदय में कैसी छवि बताई है?
(A) सुनहरी
(B) काली
(C) सफेद
(D) विद्युत
उत्तर-
(D) विद्युत

प्रश्न 16.
पत्तों से लदी डाल पर कौन-कौन से रंगों की छटा बिखरी हुई है?
(A) हरी, पीली
(B) लाल, पीली
(C) हरी, लाल
(D) पीली, भूरी
उत्तर-
(C) हरी, लाल

प्रश्न 17.
‘अट नहीं रही है’ कविता के कवि का क्या नाम है?
(A) जयशंकर प्रसाद
(B) तुलसीदास
(C) महादेवी वर्मा
(D) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
उत्तर-
(D) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

प्रश्न 18.
‘अट नहीं रही है’ कविता में कवि ने किस मास की मादकता का वर्णन किया है?
(A) फागुन मास की
(B) कार्तिक मास की
(C) सावन मास की
(D) आषाढ़ मास की
उत्तर-
(A) फागुन मास की

प्रश्न 19.
किसकी आभा ‘अट’ नहीं रही है?
(A) धूप
(B) फागुन
(C) बसंत
(D) हवा
उत्तर-
(B) फागुन

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प्रश्न 20.
कवि के अनुसार घर-घर में क्या भर जाता है?
(A) धुआँ
(B) जल
(C) फागुन मास की शोभा
(D) वर्षा का पानी
उत्तर-
(C) फागुन मास की शोभा

प्रश्न 21.
‘अट नहीं रही है’ नामक कविता में पाट-पाट पर क्या बिखरी है?
(A) उज्ज्वलता
(B) शोभा-श्री
(C) सुगंध
(D) हरीतिमा
उत्तर-
(B) शोभा-श्री

प्रश्न 22.
‘अट’ शब्द से तात्पर्य है
(A) नष्ट
(B) अटकना
(C) प्रविष्ट
(D) अटना
उत्तर-
(C) प्रविष्ट

प्रश्न 23.
‘अट नहीं रही है’ नामक कविता में हटाने पर भी क्या नहीं हट रही है?
(A) आभा
(B) रोशनी
(C) जाला
(D) आँख
उत्तर-
(D) आँख

प्रश्न 24.
‘मंद-गंध-पुष्प-माल’ का धारक किसे कहा गया है?
(A) चैत्र
(B) बैसाख
(C) जेठ
(D) फागुन
उत्तर-
(D) फागुन

प्रश्न 25.
फागुन मास में कौन-सी ऋतु होती है?
(A) वर्षा
(B) बसंत
(C) ग्रीष्म
(D) सर्दी
उत्तर-
(B) बसंत

उत्साह और अट नहीं रही पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] बादल, गरजो:
घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
ललित ललित, काले धुंघराले,
बाल कल्पना के-से पाले,
विद्युत-छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले!
वज छिपा, नूतन कविता
फिर भर दो
बादल, गरजो! [पृष्ठ 33]

शब्दार्थ-घोर = भयंकर। धाराधर = जल की धारा धारण करने वाले। ललित = सुंदर। विद्युत-छबि = बिजली के समान सुंदरता। उर = हृदय। वन = कठोर, भीषण। नूतन = नई।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि ने बादल का गरजने के लिए आह्वान क्यों किया है?
(ङ) यहाँ बादलों को किसके प्रतीक के रूप में चित्रित किया गया है?
(च) बादल किसकी कल्पना के समय पाले गए हैं?
(छ) बादल मानव-जीवन और कवि को क्या प्रदान करते हैं?
(ज) कवि बादलों से बरसकर क्या करने को कहता है?
(झ) ‘वज्र छिपा’ में निहित व्यंग्यार्थ को स्पष्ट कीजिए।
(अ) प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ट) प्रस्तुत पद्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ठ) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’। कविता का नाम-उत्साह।

(ख) प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘उत्साह’ नामक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। कवि ने उत्साह एवं शक्ति के प्रतीक बादलों का आह्वान किया है कि वे पीड़ित, दुःखी एवं प्यासे लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करें। कवि ने बादलों को अंधविश्वास के अंकुर के विध्वंसक एवं क्रांति की चेतना को जागृत करने वाला कहा है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

(ग) कवि ने क्रांति के प्रतीक बादल को संबोधित करते हुए कहा है कि हे बादल! तुम खूब गरजो। तुम सारे आकाश को घेरकर खूब बरसो। घनघोर वर्षा करो। हे बादल! तुम बहुत ही सुंदर हो। तुम्हारा रूप घने काले और धुंघराले बालों के समान है। तुम अबोध बालकों की मधुर कल्पना के समान पाले हुए हो। तुम अपने हृदय में बिजली की शोभा रखे हुए हो। तुम नई सृष्टि की रचना करने वाले हो। तुम अपने जल द्वारा नया जीवन देने वाले हो। तुम्हारे भीतर वज्र की शक्ति विद्यमान् है। हे बादल! तुम इस संसार को नई-नई प्रेरणा और जीवन प्रदान करने वाले हो। हे बादल! तुम खूब गरजो और सबमें एक बार फिर नया जीवन भर दो।

(घ) कवि ने बादलों का आह्वान गरजने के लिए इसलिए किया है क्योंकि कवि वातावरण में जोश और क्रांति की भावना भर देना चाहता है। बादल की गर्जन को सुनकर सबमें जोश भर जाता है।

(ङ) यहाँ बादलों को क्राँति उत्पन्न करने वाले साहसी व उत्साही वीर पुरुष के प्रतीक के रूप में चित्रित किया गया है।

(च) बादल नन्हें अबोध बालकों की कल्पना के समान पाले गए हैं। वे अत्यंत सुंदर एवं कोमल हैं।

(छ) बादल मानव-जीवन और कवि को नई-नई प्रेरणाएँ प्रदान करते हैं। (ज) कवि बादलों को जल बरसाकर प्राणियों को सुख प्रदान करने के लिए कहते हैं। .

(झ) ‘वज्र छिपा’ का तात्पर्य है कि बादलों के भीतर बिजली की कड़क छिपी हुई है। दूसरे शब्दों में, कवि के हृदय में भी उथल-पुथल करने वाली क्रांति की भावना छिपी हुई है।

(ञ) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने प्यासे और पीड़ित लोगों के हृदय की पीड़ा को दूर करके उनकी कामनाओं को पूरा करने . का आह्वान किया है। कवि को बादलों की गर्जन प्रिय है क्योंकि उसमें शक्ति की भावना समाहित है। कवि समाज में क्रांति लाना . चाहता है ताकि समाज में व्याप्त रूढ़िबद्ध परंपराएँ समाप्त हो जाएँ और समाज विकास के मार्ग पर अग्रसर हो सके।

(ट)

  • प्रस्तुत पद में कवि ने ओजस्वी वाणी में क्रांति के स्वर को मुखरित किया है।
  • संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का सार्थक प्रयोग किया गया है।
  • लघु शब्दों की आवृत्ति के कारण जहाँ भाव प्रभावशाली बन पड़े हैं, वहीं कविता में प्रवाह का समावेश भी हुआ है।
  • संबोधन शैली का प्रयोग किया गया है।
  • ‘ललित ललित काले धुंघराले’ में अनुप्रास अलंकार है।
  • ‘घेर-घेर, ललित-ललित’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  • ‘बाल कल्पना के-से पाले’ में उपमा अलंकार है।
  • ‘बादल गरजो’ में मानवीकरण अलंकार है।

(ठ) कविवर ‘निराला’ ने अपने काव्य में तत्सम प्रधान भाषा का प्रयोग किया है। इस पद्यांश में भी उन्होंने तत्सम प्रधान और ओजस्वी भाषा का प्रयोग किया है। लघु शब्दों की आवृत्ति से भाषा में गति एवं एक लय का समावेश हुआ है। भाषा ओजगुण संपन्न है।

[2] विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो
बादल, गरजो! [पृष्ठ 33]

शब्दार्थ-विकल = बेचैन। उन्मन = अनमना। निदाघ = तपती गर्मी। सकल = सारा। जन = मनुष्य। अज्ञात = अनजान। अनंत = असीम अज्ञान। घन = बादल। तप्त = तपी हुई। धरा = पृथ्वी।

प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत कवितांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि बादल से क्या प्रार्थना करता है?
(ङ) पृथ्वी पर लोग क्यों बेचैन हो रहे थे?
(च) ‘निदाघ’ किसके प्रतीक के रूप में प्रयुक्त हुआ है?
(छ) बादल कहाँ से आकर आकाश में छा जाते हैं? ।
(ज) ‘तप्त धरा’ का शाब्दिक व सांकेतिक अर्थ लिखिए।
(झ) प्रस्तुत पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ञ) इस पद्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ट) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में प्रयुक्त भाषा की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’।
कविता का नाम-उत्साह।

(ख) प्रस्तुत कवितांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘उत्साह’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। इस कविता में कवि ने बादलों का दुःख से पीड़ित मानवता को सुख प्रदान करने के लिए आह्वान किया है।

(ग) कवि कहता है कि चारों ओर व्याकुलता और बेचैनी थी। सब लोग परेशान थे तथा सबके मन अनमने व उचाट हो रहे थे। विश्व के सभी लोग भीषण गर्मी से दुःखी एवं पीड़ित थे। तब न जाने किस अज्ञात दिशा से बादल आकाश में छा गए। कवि बादलों को संबोधित करता हुआ कहता है कि हे बादलो! तुम खूब बरसो और गर्मी से पीड़ित लोगों को शीतलता प्रदान करो। खूब बरसो और जन-जन को ठंडक पहुँचाओ। हे बादल! तुम खूब गरजो।

(घ) कवि बादल से प्रार्थना करता है कि वे गर्मी से तपी हुई धरती पर खूब जल बरसाओ और उसे शीतलता प्रदान करो।

(ङ) संपूर्ण पृथ्वी के लोग कष्टों व दुःखों रूपी गर्मी के कारण बेचैन व व्याकुल थे।

(च) कवि ने ‘निदाघ’ अर्थात् भीषण गर्मी का प्रयोग संसार के कष्टों के प्रतीकार्य किया है।

(छ) बादल न जाने असीम आकाश के किस कोने से आकर चारों ओर छाया की भाँति छा जाते हैं।

(ज) ‘तप्त धरा’ का शाब्दिक अर्थ है-गर्मी से तपती हुई धरती तथा इसका सांकेतिक अर्थ है-सांसारिक दुःखों से पीड़ित मानव-जीवन।

(झ) प्रस्तुत कविता में कवि ने बादलों का मानवता को सुख देने के लिए आह्वान किया है। इस धरती पर सांसारिक कष्टों व पीड़ाओं से पीड़ित मनुष्य को सुख प्रदान करके उसे शांति व शीतलता प्रदान करनी चाहिए। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार गर्मी से तपती हुई धरती को बादल वर्षा करके ठंडक प्रदान करते हैं। .

(ञ)

  • कवि ने बादलों का मानवीकरण करके विषय को रोचक बना दिया है।
  • भाषा सरल एवं सहज है।
  • ‘अनंत’ के दो अर्थ हैं-ईश्वर और आकाश। इसलिए श्लेष अलंकार है।
  • नाद-सौंदर्य विद्यमान है।
  • ओजगुण सर्वत्र देखा जा सकता है।
  • शब्द-योजना अत्यंत सार्थक एवं सटीक बन पड़ी है।

(ट) संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का प्रयोग किया गया है। छोटे-छोटे शब्दों के सार्थक प्रयोग से भाषा में प्रवाह बना हुआ है। संबोधन शैली के प्रयोग से कविता में रोचकता का समावेश हुआ है। भाषा ओजगुण संपन्न है।

[3] अट नहीं रही है
आमा फागुन की तन
सट नहीं रही है।
कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है।
पत्तों से लदी डाल
कहीं हरी, कहीं लाल,
कहीं पड़ी है उर में
मंद-गंध-पुष्प-माल
पाट पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है। [पृष्ठ 34]

शब्दार्थ-अट = समाना, प्रविष्ट करना। आभा = सुंदरता। नभ = आकाश। उर = हृदय। मंद-गंध = धीमी-धीमी सुगंध। पुष्प-माल = फूलों की माला। पाट-पाट = जगह-जगह। शोभा-श्री = सुंदरता से परिपूर्ण। पट = न समाना।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि ने किस मास की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया है?
(ङ) घर-घर में क्या भर जाता है और क्यों?
(च) कौन किसको उड़ने के लिए प्रेरित करता है?
(छ) कवि की आँख किससे नहीं हटती और क्यों?
(ज) वृक्षों पर किस प्रकार के पत्ते लद गए हैं?
(झ) बन में क्या पट नहीं रही है?
(अ) फागुन के कारण वन-उपवन कैसे लग रहे हैं?
(ट) प्रस्तुत पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ठ) इस पयांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ड) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’। कविता का नाम-अट नहीं रही है।

(ख) प्रस्तुत कवितांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘अट नहीं रही है’ नामक कविता से अवतरित है। प्रस्तुत कविता में कविवर सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने फागुन मास की प्राकृतिक छटा का मनोरम चित्रण किया है। कवि ने अपने अनंत प्रिय को संबोधित करते हुए कहा है कि यह सब तुम्हारी शोभा का प्रकाश है जो समा नहीं रहा है।

(ग) कवि कहता है कि फागुन की सुंदरता व चमक कहीं भी समा नहीं रही है। प्रकृति का तन इस फागुनी सुंदरता से जगमगा रहा है। तुम पता नहीं कहाँ से साँस लेते हो और अपनी साँसों की सुगंध से घर भर देते हो अर्थात् कवि को हर जगह अपने प्रिय की साँसों की सुगंध अनुभव होती है। वे तुम्ही हो जो मन को ऊँची कल्पनाओं में उड़ने की प्रेरणा प्रदान करते हो। चारों ओर तुम्हारे सौंदर्य की आभा ही चमक रही है। मैं चाहकर भी इस सौंदर्य से आँख नहीं हटा सकता। कवि का मन प्राकृतिक सौंदर्य से बंधकर रह जाता है।
कवि पुनः कहता है कि फागुन मास में वन एवं उपवन के वृक्ष हरे-भरे, नए-नए पत्तों से लद गए हैं। इन वृक्षों पर विभिन्न रंगों के फूल खिले हुए हैं। कहीं कंठों में मंद सुगंधित पुष्पमालाएँ पड़ गई हैं। हे प्रिय! तुमने तो इस प्रकृति में इस सौंदर्य रूपी वैभव को इस प्रकार भर दिया है कि यह इस प्रकृति में समा नहीं रहा है।

(घ) कवि ने फागुन मास की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया है।

(ङ) घर-घर में फागुन मास की शोभा और मस्ती भर जाती है। चारों ओर सुंदरता एवं मधुरता का वातावरण बन जाता है। .

(च) फागुन मास पक्षियों को उड़ने की प्रेरणा देता है अर्थात् फागुन मास के आते ही पक्षियों के जीवन में भी क्रियाशीलता अधिक . तीव्रता से उत्पन्न हो जाती है। फागुन मास में मनुष्यों के मनों में भी ताज़गी भर जाती है और वे भी क्रियाशील हो उठते हैं।

(छ) कवि की आँख प्राकृतिक छटा से नहीं हटती क्योंकि कवि को फागुन मास की प्राकृतिक छटा देखना अत्यंत प्रिय लगता है। (ज) फागुन मास के आते ही वृक्षों पर हरे-भरे व लाल-लाल पत्ते लद जाते हैं।

(झ) वन में प्राकृतिक छटा पट (समा) नहीं रही है।

(ञ) फागुन मास के कारण वन-उपवन सब महक उठे हैं। पेड़ों पर हरे-भरे व नए-नए पत्ते लद जाते हैं तथा तरह-तरह के फूल खिल जाते हैं। फूलों से लदे पेड़ ऐसे लगते हैं मानों उन्होंने फूलों से बनी हुई मालाएँ पहन रखी हों। वन-उपवनों में फागुन मास की छटा पट नहीं रही है।

(ट) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने फागुन मास के अपूर्व एवं असीम सौंदर्य का अत्यंत मनोरम चित्रण किया है। कवि के अनुसार प्रकृति की अनंत सुंदरता व शोभा का कोई छोर नहीं है अर्थात् उसे सीमाओं में नहीं बाँधा जा सकता। फागुन मास में प्रकृति का सौंदर्य ऐसा बन जाता है जो बरबस लोक लोचनों को बाँध लेता है।

(ठ)

  • भाषा सरल, सहज एवं विषयानुकूल है।
  • अट, सट, पट, पाट आदि लघु-लघु शब्दों के सार्थक प्रयोग से भाषा में प्रवाहमयता बनी हुई है।
  • देशज शब्दों का अत्यंत सुंदर प्रयोग देखते ही बनता है।
  • भाषा माधुर्यगुण संपन्न है।
  • कोमलकांत पदावली है।
  • यमक, पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास, रूपक, उपमा आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।

(ड) ‘अट नहीं रही है’ शीर्षक कविता में कवि ने शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग किया है। लघु शब्दों की आवृत्ति के कारण भाषा में जहाँ प्रवाह बना रहता है वहीं लय भी उत्पन्न हुई है, इन काव्य-पंक्तियों में प्रयुक्त भाषा की अन्य विशेषता यह है कि इसमें देशज शब्दों का प्रयोग किया गया है जिससे भाषा में व्यावहारिकता का समावेश हुआ है तथा विशेष वातावरण का निर्माण भी हुआ है।

उत्साह और अट नहीं रही Summary in Hindi

उत्साह और अट नहीं रही कवि-परिचय

प्रश्न-
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का आधुनिक हिंदी कवियों में सर्वश्रेष्ठ स्थान है। वे वास्तव में ही ‘निराला’ थे। निराला जी ने आधुनिक हिंदी काव्य को एक नई दिशा प्रदान की है। उनका जन्म बंगाल के महिषादल नामक रियासत में मेदिनीपुर नामक स्थान पर सन् 1899 में हुआ था। उनके पिता इस राज्य में एक प्रतिष्ठित पद पर कार्य करते थे। उनका बचपन यहीं व्यतीत हुआ। निराला जी की आरंभिक शिक्षा महिषादल में ही संपन्न हुई। संस्कृत, बांग्ला और अंग्रेजी भाषाओं का अध्ययन उन्होंने घर पर ही किया। दर्शन और संगीत में भी उनकी गहरी रुचि थी। निराला जी का जीवन आरंभ से अंत तक संघर्षों से परिपूर्ण रहा। शैशवावस्था में ही उनकी माता जी का देहांत हो गया। विवाह के कुछ वर्ष पश्चात उनकी पत्नी चल बसी। तत्पश्चात पिता, चाचा तथा चचेरे भाई भी चल बसे। पुत्री सरोज की मृत्यु से उनका हृदय विदीर्ण हो गया। इस प्रकार, संघर्षों से जूझते-जूझते सन् 1961 में निराला जी की जीवन-लीला समाप्त हो गई। निराला जी जीवन के संघर्षों से जूझते हुए भी निरंतर साहित्य सृजन में लगे रहे।

2. प्रमुख रचनाएँ-निराला जी महान साहित्यकार थे। उन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं पर सफलतापूर्वक लेखनी चलाई। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
काव्य-‘अनामिका’, ‘परिमल’, ‘गीतिका’, ‘तुलसीदास’, ‘अणिमा’, ‘कुकुरमुत्ता’, ‘बेला’, ‘अर्चना’, ‘आराधना’, ‘गीतागूंज’, ‘नए पत्ते’ ‘जूही की कली’ आदि।
उपन्यास-‘अप्सरा’, ‘अलका’, ‘प्रभावती’, ‘निरुपमा’ ‘चमेली’ आदि।
कहानी-संग्रह ‘लिली’, ‘सखी’, ‘सुकुल की बीवी’ आदि।
रेखाचित्र-‘कुल्ली भाट’, ‘बिल्लेसुर बकरिहा’ आदि।
जीवनी-साहित्य-‘महाराणा प्रताप’, ‘प्रह्लाद’, ‘ध्रुव’, ‘शकुंतला’, ‘भीष्म’ आदि।
आलोचना और निबंध-‘पद्म-प्रबंध’, ‘प्रबंध-प्रतिमा’, ‘प्रबंध-परिचय’ आदि।

3. काव्यगत विशेषताएँ-निराला जी के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) मानवतावादी दृष्टिकोण-महाकवि निराला जी के मन में दीन-दुखियों के प्रति अत्यधिक सहानुभूति थी। संसार में व्याप्त अव्यवस्था तथा सामाजिक एवं आर्थिक विषमता को देखकर निराला जी बहुत दुःखी होते थे। उनकी ‘भिक्षुक’ और ‘वह तोड़ती पत्थर’ नामक कविताएँ उनके मानवतावादी विचारों को प्रकट करती हैं।
(ii) राष्ट्रीयता-निराला जी अपने युग के एक सचेत कवि थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में अपने युग में व्याप्त राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक विषमता को बड़ी यथार्थता से चित्रित किया। उन्होंने तत्कालीन कुप्रथाओं पर जमकर प्रहार किए। उनके साहित्य से एक स्वस्थ समाज बनाने की प्रेरणा मिलती है। अतः कहा जा सकता है कि निराला जी सच्चे अर्थों में राष्ट्रीय भावना के कवि थे।
(iii) प्रगतिवादी चेतना-निराला जी ने अपने काव्य में एक ओर दीन-दुखियों के जीवन का मार्मिक चित्रण किया तो दूसरी ओर शोषकों के प्रति आक्रोश से भरी आवाज़ बुलंद की

, “अबे सुन बे गुलाब, भूल मत जो पाई खुशबू, रंगो-आब,
खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट, डाल पर इतराता है कैपिटलिस्ट।”

(iv) रहस्यवादी दृष्टिकोण-निराला जी के रहस्यवाद का मूल आधार वेदांत है। वे आत्मा और परमात्मा के प्रणय संबंधों पर बल देते हैं। उनके रहस्यवाद में भावना और चिंतन का सुंदर समन्वय है। निराला जी के रहस्यवाद में व्यावहारिकता अधिक है। उनके रहस्यवादी दर्शन के निष्कर्ष शक्ति, करुणा, सेवा, त्याग आदि हैं।

(v) प्रकृति-चित्रण-अन्य छायावादी कवियों की ही भाँति निराला जी ने भी प्रकृति के विविध रूपों को बड़ी सूक्ष्मता से चित्रित किया है। उनके प्रकृति-चित्रण में प्रकृति के भयानक और मनोरम, दोनों ही रूपों के दर्शन होते हैं। उन्होंने भावनाओं को उद्दीप्त करने वाले प्राकृतिक रूप को अधिक चित्रित किया है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

(vi) प्रेम और श्रृंगार का वर्णन-निराला जी के आरंभिक काव्य में प्रेम और शृंगार का खूब वर्णन हुआ है लेकिन उनके शृंगार-वर्णन में ऐंद्रियता का अभाव है। ‘जूही की कली’ आदि कविताओं में तो शृंगार स्थूल है लेकिन अन्य कविताओं में यह पावन एवं उदात्त है। उनका प्रेम निरूपण लौकिक होने के साथ-साथ अलौकिक भी है। ऐसे स्थलों पर निराला रहस्यवादी कवि प्रतीत होने लगते हैं। ‘तुम और मैं’, ‘यमुना के प्रति’, ‘कौन तम के पार रे कह!’ आदि कविताओं में उनकी रहस्यवादी भावना व्यक्त हुई है।

4. भाषा-शैली-कविवर निराला ने अपने काव्य में तत्सम प्रधान शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग किया है। उन्होंने कोमलकांत पदावली के प्रयोग से अपनी काव्य-भाषा को खूब सजाया है। निराला जी अपने सूक्ष्म प्रतीकों, लाक्षणिक पदावली तथा नवीन उपमानों के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके काव्य में संगीतात्मकता के सभी अनिवार्य तत्त्व उपलब्ध हैं।

निराला जी ने अपने काव्य में शब्दालंकार एवं अर्थालंकार, दोनों का सफल प्रयोग किया है। उनकी रचनाओं में पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास, उपमा, रूपक, यमक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग देखते ही बनता है।
निराला जी का संपूर्ण काव्य मुक्त छंद में रचित है। मुक्त छंद उनकी काव्य को बहुत बड़ी देन है। अतः स्पष्ट है कि निराला जी का काव्य भाव तथा भाषा दोनों दृष्टियों से अत्यंत सक्षम एवं संपन्न है। निश्चय ही वे आधुनिक हिंदी साहित्य के महान एवं निराले कवि थे।

उत्साह और अट नहीं रही कविता का सार

1. उत्साह

प्रश्न-
‘उत्साह’ शीर्षक कविता का सार लिखिए।
उत्तर-
“उत्साह’ शीर्षक कविता में कवि ने समाज में नई चेतना और सामाजिक परिवर्तन के लिए आह्वान किया है। कवि ने जीवन को व्यापक एवं समग्र दृष्टि से देखते हुए अपने मन की कल्पना और क्रांति की चेतना को समानांतर रूप से ध्यान में रखा है। कवि बादलों को गरज-गरजकर बरसने की बात कहता है। सुंदर और काले बादल बालकों की कल्पना के समान हैं। वे नई सृष्टि की रचना करते हैं। उनके भीतर वज्रपात की शक्ति छिपी हुई है। कवि बादलों का आह्वान करता है कि वे पानी बरसाकर तप्त धरती की तपन दूर करके उसे शीतलता प्रदान करें।

2. अट नहीं रही है।

प्रश्न-
‘अट नहीं रही है’ शीर्षक कविता का सार लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि ने फागुन के महीने की प्राकृतिक सौंदर्य से उत्पन्न मादकता का वर्णन किया है। कवि फागुन की सर्वव्यापक सुंदरता को कई संदर्भो में देखता है। कवि का मत है कि जब व्यक्ति के मन में प्रसन्नता हो तो उस समय उसे सारी प्रकृति में सुंदरता फूटती नज़र आती है। हर तरफ से सुगंध अनुभव होती है। मन में तरह-तरह की कल्पनाएँ फूट पड़ती हैं। वनों के सभी पेड़ नए-नए पत्तों से लद जाते हैं। तरह-तरह के सुगंधित फूल भी खिल जाते हैं। सारे वन में प्राकृतिक छटा का दृश्य अत्यंत मनमोहक बन पड़ा है।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

HBSE 10th Class Hindi आत्मकथ्य Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है?
उत्तर-
कवि आत्मकथा लिखने से इसलिए बचना चाहता है क्योंकि उसका जीवन साधारण-सा रहा है। उसमें कुछ भी ऐसा महत्त्वपूर्ण नहीं है जिसे पढ़कर लोगों को सुख व आनंद प्राप्त हो सके। फिर उसके जीवन में दुःख और अभावों की भरमार रही है जिन्हें कवि दूसरों से बाँटना नहीं चाहता। उसके मन में किसी के प्रति अनुरक्ति की भावना थी, उसे भी कवि किसी को बाँटना नहीं चाहता। कवि द्वारा आत्मकथा न लिखने के ये ही कारण रहे हैं।

प्रश्न 2.
आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में, ‘अभी समय भी नहीं’ कवि ऐसा क्यों कहता है?
उत्तर-
कवि द्वारा यह कहना कि ‘अभी समय भी नहीं है’ के दो प्रमुख कारण रहे होंगे-प्रथम, उसने अभी तक कोई महान् कार्य नहीं किया कि उसके बारे में आत्मकथा लिखकर संसार भर को बताया जाए। दूसरा प्रमुख कारण यह हो सकता है कि कवि शांत चित्त है। उसके जीवन में व्यथा-ही-व्यथा है। उन्हें सुनाकर फिर से अपने मन को अशांत क्यों किया जाए।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

प्रश्न 3.
स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि का क्या आशय है?
उत्तर-
जिस प्रकार एक पथिक को यात्रा पूरी करने के लिए मार्ग में पाथेय की आवश्यकता पड़ती है उसी प्रकार अपनी लंबी एवं दुःखों से भरी जीवन-यात्रा में कवि ने अपने जीवन की सुखद एवं मधुर स्मृतियों को मन में संजोया है ताकि उनके सहारे वे आगे के पथ में पाथेय का काम करती रहें अर्थात् आने वाला जीवन उन मधुर यादों के सहारे व्यतीत हो सके। .

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
(ख) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उत्तर-
(क) कवि ने इन पंक्तियों में स्पष्ट किया है कि उसने जिस सुख का सपना देखा था वह सुख कभी नहीं मिला। उसकी पत्नी या प्रेमिका भी उसके आलिंगन में आते-आते रह गई। वह मुस्कराकर उसकी ओर बढ़ी, किंतु कवि के आलिंगन में न आ सकी। वह उसकी पहुँच से सदा के लिए दूर चली गई। कहने का भाव यह है कि कवि को दांपत्य सुख कभी प्राप्त न हो सका।
(ख) कवि ने अपनी प्रिया की सुंदरता का उल्लेख करते हुए कहा है कि उसके गाल लाल एवं मस्ती भरे थे। ऐसा लगता है कि प्रेममयी भोर की बेला भी अपनी लालिमा उसके मतवाले गालों से लिया करती थी। कवि के कहने का भाव है कि उसकी प्रिया के मुख की सुंदरता प्रातःकालीन लालिमा से अधिक सुंदर थी।

प्रश्न 5.
‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’-कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है? .
उत्तर-
इस कथन के माध्यम से कवि ने स्पष्ट किया है कि निज प्रेम के मधुर प्रसंगों को सबके सामने प्रकट नहीं किया जाता। मधुर चाँदनी रात में बिताए गए मधुर क्षण कवि को उज्ज्वल गाथा के समान लगते हैं। ऐसी उज्ज्वल गाथा अत्यंत निजी संपत्ति होती है। अतः ऐसे क्षणों को आत्मकथा में लिखकर अपना मजाक बनवाना है। अतः आत्मकथा में उनका लिखना आवश्यक नहीं।

प्रश्न 6.
‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर-
आत्मकथ्य एक छायावादी कविता है। इसमें कवि ने संस्कृतनिष्ठ भाषा का प्रयोग किया है अर्थात् इसमें संस्कृत की तत्सम शब्दावली का प्रयोग किया है; जैसे- …
“उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।” कवि ने इस कविता की भाषा में प्रकृति के विभिन्न उपमानों का प्रयोग किया है, जिससे विषय अत्यंत रोचक बन गया है। मधुप, पत्तियाँ, नीलिमा, चाँदनी रात आदि इसके उदाहरण हैं। इसके अतिरिक्त मधुप, रीति गागर आदि प्रतीकों का भी प्रयोग किया गया है। संपूर्ण कविता की भाषा में गेय तत्त्व विद्यमान है। अन्त्यानुप्रास अलंकार के सफल प्रयोग से भाषा में लय बनी रहती है; यथा-

“उसकी स्मृति पाथेय बनी है, थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की? ॥”

स्वर मैत्री के कारण भी भाषा संगीतात्मक बन पड़ी है। चित्रात्मकता भाषा की अन्य प्रमुख विशेषता है। कवि ने इसके द्वारा पाठक के मन पर शब्दचित्र अंकित किए हैं जिससे पाठक के मन पर कविता का प्रभाव देर तक बना रहता है।

प्रश्न 7.
कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि ने बताया है कि उसने जो सुख का स्वप्न देखा था, वह उसे प्राप्त नहीं कर पाया था। वह स्वप्न अधूरा ही रह गया था। किंतु उस स्वप्न की स्मृति उसके मन की गहराइयों में बसी हुई है। कवि के हृदय में अपनी प्रिया की स्मृति बसी हुई है। कवि के लिए सुख के वे दिन भुलाए नहीं भूलते। उसकी प्यार भरी वे चाँदनी रातें उसके लिए सदा याद रखने योग्य थीं। वे स्मृतियाँ उनके लिए महत्त्वपूर्ण संबल थीं। उसके जीवन में एक अपूर्व आनंद का संचार करती थीं। प्रिया की हँसी का स्रोत तो उसके जीवन के कण-कण को सराबोर किए रहता था। कवि उस स्वप्न को प्राप्त नहीं कर पाया। ज्यों हि कवि ने उसे प्राप्त करने के लिए बाँहें फैलायी तो आँख खुल गई और स्वप्न अपना न हो सका। इस प्रकार कवि ने इस कविता में सुख के स्वप्न को मधुर स्मृतियों के रूप में प्रस्तुत किया है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 8.
इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
इस कविता के माध्यम से पता चलता है कि जयशंकर प्रसाद अत्यंत सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। वे अंतर्मुखी होते हुए भी यथार्थवादी थे। वे सत्यवादी थे और सच कहने में विश्वास रखते थे। विनम्रता उनके व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषता थी। वे अपने-आपको एक साधारण व्यक्ति की भाँति समझते थे। इसलिए उन्होंने कहा है
‘तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे यह गागर रीती।’ उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि उनके जीवन में ऐसी कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है जिसका वर्णन वे आत्मकथा में लिखें।
वे बीती बातों को कुरेदने के पक्ष में नहीं हैं। वे नहीं चाहते थे कि विगत जीवन की दुःखद घटनाओं को पुनः याद करके दुःखी हों। वे दिखावे व प्रदर्शन के पक्ष में नहीं थे। वे यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाने वाले व्यक्ति थे। वे अपने सुख-दुःख के क्षणों को स्वयं ही समभाव से झेलने व बिताने के पक्ष में थे।

प्रश्न 9.
आप किन व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहेंगे और क्यों?
उत्तर-
हम महान् व्यक्तियों की आत्मकथाएँ पढ़ना चाहेंगे क्योंकि उनकी आत्मकथाओं में उनके जीवन की सफलता के रहस्यों का पता चलता है। उनकी आत्मकथाओं को पढ़कर हम भी उनका अनुसरण करते हुए जीवन में सफल बनने का प्रयास करेंगे। महान् व्यक्तियों की आत्मकथा सदा दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत होती है। .

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

प्रश्न 10.
कोई भी अपनी आत्मकथा लिख सकता है। उसके लिए विशिष्ट या बड़ा होना जरूरी नहीं। हरियाणा राज्य के गुड़गाँव में घरेलू सहायिका के रूप में काम करने वाली बेबी हालदार की आत्मकथा बहुतों के द्वारा सराही गई। आत्मकथात्मक शैली में अपने बारे में कुछ लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

पाठेतर सक्रियता

  • किसी भी चर्चित व्यक्ति का अपनी निजता को सार्वजनिक करना या दूसरों का उनसे ऐसी अपेक्षा करना सही है-इस विषय के पक्ष-विपक्ष में कक्षा में चर्चा कीजिए।
  • बिना ईमानदारी और साहस के .आत्मकथा नहीं लिखी जा सकती। गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ पढ़कर पता लगाइए कि उसकी क्या-क्या विशेषताएँ हैं?

उत्तर-
इन प्रश्नों के उत्तर विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

यह भी जानें

प्रगतिशील चेतना की साहित्यिक मासिक पत्रिका हंस प्रेमचंद ने सन् 1930 से 1936 तक निकाली थी। पुनः सन् 1986 से यह साहित्यिक पत्रिका निकल रही है और इसके संपादक राजेंद्र यादव हैं।
बनारसीदास जैन कृत अर्धकथानक हिंदी की पहली आत्मकथा मानी जाती है। इसकी रचना सन् 1641 में हुई और यह पद्यात्मक है।

आत्मकथ्य का एक अन्य रूप यह भी देखें
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।
मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना;
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना!
मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ;
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ।
-कवि बच्चन की आत्म-परिचय
कविता का अंश

HBSE 10th Class Hindi आत्मकथ्य Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कविवर जयशंकर प्रसाद की कविता ‘आत्मकथ्य’ के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ जयशंकर प्रसाद की सोद्देश्य रचना है। इस कविता में उन्होंने अपने जीवन के विषय में संकेत रूप में वह सब कुछ कह दिया है जो बहुत लंबी-चौड़ी आत्मकथा में भी नहीं कहा जा सकता। उन्होंने अपनी इस कविता में उन लोगों को उत्तर दिया है जो लोग उनको आत्मकथा लिखने का आग्रह कर रहे थे। उन्होंने स्पष्ट किया है कि उनके जीवन में आत्मकथा लिखने योग्य महान् उपलब्धियाँ नहीं हैं। उनका जीवन तो दुःखों व अभावों से भरा पड़ा है। इसलिए अभावों व दुःखों की घटनाओं को दोहराने से मनुष्य सदा दुःखी ही होता रहता है। उनके जीवन के कुछ मधुर एवं प्रसन्नता के पल भी रहे हैं जो उनके जीवन की निजी निधि हैं। उन्हें वे सबके सामने व्यक्त नहीं करना चाहते। अतः स्पष्ट है कि प्रसाद जी ने अपनी इस कविता में अपने विषय में कुछ न कहकर भी सब कुछ कह दिया है। यही इस कविता का लक्ष्य है। .

प्रश्न 2.
कवि अपने जीवन के किस प्रसंग को उद्घाटित नहीं करना चाहता और क्यों?
उत्तर-
कवि अपने जीवन में किसी के प्रति किए प्रेमभाव के प्रसंग को लोगों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता था। वह नहीं चाहता था कि जिस प्रेम के सुख को उसने पाया ही नहीं अपितु उसने तो सुख का सपना ही देखा था, भला उसे दूसरों के सामने क्या प्रकट करे। वह प्रेम तो उसके लिए भावी जीवन जीने के लिए प्रेरणा बना रहता है अथवा जीवन जीने की प्रेरणा देता है।

प्रश्न 3.
कवि मधुर चाँदनी रातों की उज्ज्वल गाथाएँ क्यों नहीं गाना चाहता? .
उत्तर-
कवि मधुर चाँदनी रातों में किए गए मधुर प्रेम की कहानियों को निजी दौलत समझता है। वह उनके विषय में लोगों से कुछ नहीं कहना चाहता। उन मधुर स्मृतियों पर केवल कवि का अधिकार है। वह अपनी उन मधुर यादों के सहारे अपना शेष जीवन जी लेना चाहता है। यही कारण है कि कवि मधुर चाँदनी रातों की उज्ज्वल गाथा को नहीं गाना चाहता।

प्रश्न 4.
‘भोली आत्मकथा’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
कवि ने ‘भोली आत्मकथा’ के माध्यम से यह समझाने का सफल प्रयास किया है कि उसका जीवन अत्यंत सरल एवं सीधा सादा है। उसने अपना सारा जीवन एक साधारण व्यक्ति की भाँति व्यतीत किया है। उसके जीवन में कहीं किसी प्रकार का छलकपट नहीं है। उनके जीवन में संतुष्टि तो है, किंतु किसी को प्रेरणा देने की क्षमता बहुत कम है।

प्रश्न 5.
पठित कविता के आधार पर कवि की प्रिया के रूप-सौंदर्य का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
पठित कविता के अध्ययन से पता चलता है कि कवि को अपनी प्रिया से मिलने के बहुत कम क्षण प्राप्त हुए थे। कवि ने स्वयं स्वीकार किया है कि उनकी प्रिया के गाल लाल और मस्ती भरे थे। ऐसा लगता था मानो प्रातःकाल की लालिमा कवि की प्रिया के गालों की लालिमा से उधार ली हुई है। कहने का तात्पर्य है कि कवि की प्रिया के चेहरे की लालिमा प्रातःकाल की लालिमा से भी अधिक सुंदर है।

सदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 6.
‘आत्मकथ्य’ कविता का मूलभाव स्पष्ट कीजिए। [H.B.S.E. March, 2019 (Set-A, D), 2020 (Set-D)]
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ कविता में कवि के जीवन के रहस्यों का आभास मिलता है। कवि स्वयं को एक सामान्य व्यक्ति बताता है। यह उनके व्यक्तित्व की उदारता है। कवि के अनुसार उसका जीवन दुर्बलताओं, अभावों व दुःखों से भरा हुआ है। उसके जीवन में मधुर क्षण बहुत कम आए हैं। कवि ने मधुर सपने देखे किंतु वे पूरा होने से पहले ही मिट गए थे। उसका जीवन अत्यंत सरल एवं साधारण रहा है। कवि ने स्पष्ट किया है कि उसके जीवन में कुछ महान् नहीं है जिसे वह आत्मकथा में लिखकर लोगों के सामने प्रस्तुत करे। उसका जीवन तो अभावों से भरा हुआ है। उसके जीवन में मधुर क्षण भी आए हैं जिन्हें वह किसी दूसरे के सामने प्रकट नहीं करना चाहता। कवि अपनी बातें बताने की अपेक्षा दूसरों की कहानी सुनना अच्छा समझता है।

प्रश्न 7.
“आत्मकथ्य’ शीर्षक कविता के आधार पर बताएँ कि प्रसाद जी का जीवन कैसा रहा?
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ नामक कविता से पता चलता है कि जयशंकर प्रसाद का जीवन सरल, सहज एवं विनम्रता से युक्त था। वे दिखावे में जरा भी विश्वास नहीं रखते थे। इस आत्मकथा को लिखकर वे अपनी प्रशंसा के पक्ष में नहीं थे। पठित कविता से पता चलता है कि उनके जीवन में दुःखों एवं अभावों का पक्ष ही भारी रहा। सुख के क्षण बहुत कम थे। इसलिए वे बीते दुःखद जीवन को दोहराना नहीं चाहते थे। उनके जीवन में जो मधुर क्षण थे, उन्हें वे अपनी निजी संपत्ति समझकर दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहते। इसलिए उन्होंने बताया है कि उनके जीवन में ऐसा कुछ नहीं था जिसे पढ़कर लोग सुख व आनंद अनुभव कर सकें।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

प्रश्न 8.
कवि अपनी आत्मकथा लिखने के प्रस्ताव को क्यों ठुकरा देता है?
उत्तर-
कवि का मत है कि आत्मकथा तो महान् लोग ही लिखा करते हैं क्योंकि उनके जीवन की महान् उपलब्धियों को पढ़ने . व सुनने से लोगों को जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा मिलती है। किंतु कवि कहता है कि उसके जीवन में कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है जिसे लिखकर बताया जाए। उसके जीवन में अभाव-ही-अभाव हैं जिन्हें सुनकर किसी को प्रसन्नता नहीं मिल सकती। इसके अतिरिक्त उन्होंने कहा है कि उनके मन में दुःख की स्मृतियाँ थककर सो गई हैं। उन्हें जगाने का अभी उचित समय नहीं है। उन्हें जगाने से मन को पीड़ा ही पहुँचेगी। इसलिए कवि आत्मकथा लिखने के प्रस्ताव को ठुकरा देता है।

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘आत्मकथ्य’ शीर्षक कविता के कवि का क्या नाम है?
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ शीर्षक कविता के कवि जयशंकर प्रसाद हैं।

प्रश्न 2.
कवि ने ‘गंभीर अनंत नीलिमा’ में क्या होने की बात कही है?
उत्तर-
कवि ने ‘गंभीर अनंत नीलिमा’ में असंख्य जीवन-इतिहास होने की बात कही है।

प्रश्न 3.
‘आत्मकथ्य’ कविता में किसकी सीवन को उधेड़कर देखने की बात कही है?
उत्तर-
कवि जयशंकर प्रसाद के जीवन की।

प्रश्न 4.
‘मेरा रस ले अपनी भरने वाले’ में रस का प्रयोग किसके लिए किया गया है?
उत्तर-
इसमें रस का प्रयोग काव्य-रस के लिए किया गया है।

प्रश्न 5.
‘खिल-खिला कर हँसते होने वाली बातें’ किन्हें कहा गया है?
उत्तर-
‘खिल-खिला कर हँसते होने वाली बातें’ खुशियों से युक्त बात को कहा गया है।

प्रश्न 6.
कवि ने ‘मधुप’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया है?
उत्तर-
कवि ने ‘मधुप’ शब्द का प्रयोग मन रूपी भौरे के लिए किया है।

प्रश्न 7.
‘आत्मकथ्य’ कविता में कवि किसका स्वप्न देखकर जाग गया था?
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ कविता में कवि सुख का स्वप्न देखकर जाग गया था।

प्रश्न 8.
‘गागर रीती’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
‘गागर रीती’ से कवि का तात्पर्य है-सुखों से खाली जीवन।

प्रश्न 9.
‘आत्मकथ्य’ कविता में किसकी उज्ज्वल गाथा गाने की बात कही गई है?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में मधुर चाँदनी रातों में बिताए गए मधुर क्षणों की उज्ज्वल गाथा गाने की बात कही गई है।

प्रश्न 10.
कवि किसके अरुण-कपोलों की ओर संकेत करता है?
उत्तर-
कवि पत्नी के अरुण-कपोलों की ओर संकेत करता है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि ने ‘आत्मकथ्य’ कविता में संसार को क्या कहा है?
(A) शाश्वत
(B) धनी
(C) नश्वर
(D) सनातन
उत्तर-
(C) नश्वर

प्रश्न 2.
कवि ने ‘मधुप’ किसे कहा है?
(A) मन को
(B) भौंरा को
(C) धन को
(D) आकाश को
उत्तर-
(A) मन को

प्रश्न 3.
‘असंख्य जीवन-इतिहास’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
(A) जीवन का वर्णन
(B) आत्मकथा
(C) जीवनी
(D) मानव मन में उत्पन्न विचार
उत्तर-
(D) मानव मन में उत्पन्न विचार

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

प्रश्न 4.
कवि ने भावहीन मन को क्या कहा है?
(A) छिछला
(B) कथा
(C) रीतीगागर
(D) शून्य
उत्तर-
(C) रीतीगागर

प्रश्न 5.
कवि अपनी आत्मकथा क्यों नहीं लिखना चाहता?
(A) उसके जीवन में सुख-ही-सुख थे
(B) उसके जीवन में केवल दुर्बलताएँ थीं
(C) उसके जीवन में गरीबी थी
(D) उसका जीवन आदर्श था
उत्तर-
(B) उसके जीवन में केवल दुर्बलताएँ थीं ।

प्रश्न 6.
कवि ने ‘मधुर चाँदनी रात’ किसे कहा है?
(A) अपने जीवन की मीठी यादों को
(B) सुहावनी चाँदनी रात को
(C) आनंददायक रात को
(D) जीवन की खुशी को
उत्तर-
(A) अपने जीवन की मीठी यादों को

प्रश्न 7.
कवि किन्हें खाली करने वाले बताता है?
(A) आत्मकथा लिखवाने वाले मित्रों को
(B) पाठकों को
(C) प्रकाश को
(D) राजनेताओं को
उत्तर-
(B) पाठकों को

प्रश्न 8.
‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ मधुर चाँदनी रातों की’-इस पंक्ति में कवि ने क्या बताया है?
(A) निज प्रेम प्रसंगों को सबको नहीं बताया जाता
(B) जीवन गाथा को नहीं गाया जाता
(C) चाँदनी रात में गाते नहीं
(D) चाँदनी रात मधुर होती है
उत्तर-
(A) निज प्रेम प्रसंगों को सबको नहीं बताया जाता

प्रश्न 9.
कवि के द्वारा अपनी आत्मकथा न लिखने का क्या कारण है?
(A) उसे आत्मकथा लिखनी नहीं आती
(B) वह अपने जीवन के रहस्य दूसरों को नहीं बताना चाहता
(C) उसका आत्मकथा में विश्वास नहीं
(D) वह आत्मकथा में झूठ नहीं बोलना चाहता
उत्तर-
(B) वह अपने जीवन के रहस्य दूसरों को नहीं बताना चाहता

प्रश्न 10.
कवि किसका स्वप्न देखकर जाग गया था?
(A) धन का
(B) पारिवारिक जीवन का
(C) स्मृतियों का
(D) सुख का
उत्तर-
(D) सुख का

प्रश्न 11.
कवि के आलिंगन में आते-आते कौन मुस्कुराकर भाग गया?
(A) सुख
(B) दुख
(C) दुर्बलता
(D) व्यथा
उत्तर-
(A) सुख

प्रश्न 12.
कवि ने किसकी उज्ज्वल गाथा गाने में असमर्थता व्यक्त की है?
(A) मधुर चाँदनी रातों की
(B) कथा की
(C) मधुमाया की
(D) पथिक की पंथा की
उत्तर-
(A) मधुर चाँदनी रातों की

प्रश्न 13.
कवि के लिए किसकी स्मृति ‘पाथेय’ बन जाती है?
(A) माता की
(B) पिता की
(C) बच्चों की
(D) पत्नी की
उत्तर-
(D) पत्नी की

प्रश्न 14.
‘सीवन उधेड़ना’ का अर्थ है
(A) सीवन खोलना
(B) टाँके तोड़ना
(C) जीवन के रहस्य जानना
(D) सिलाई काटना
उत्तर-
(C) जीवन के रहस्य जानना

प्रश्न 15.
‘सीवन को उधेड़कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की’ यहाँ कंथा का अर्थ है-
(A) कथा
(B) कविता
(C) चद्दर
(D) गुदड़ी
उत्तर-
(D) गुदड़ी

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प्रश्न 16.
‘आत्मकथ्य’ कविता में गुन-गुनाकर अपनी कहानी कौन कहता है?
(A) कवि
(B) मधुप
(C) कोकिल
(D) खिलते फूल
उत्तर-
(B) मधुप

प्रश्न 17.
प्रस्तुत कविता में ‘अनंत नीलिमा’ से क्या तात्पर्य है?
(A) नीला आकाश
(B) नीला गगन
(C) अंतहीन विस्तार .
(D) नीला कमल
उत्तर-
(C) अंतहीन विस्तार

प्रश्न 18.
कवि ने अपनी आत्मकथा को कैसी बताया है?
(A) महान
(B) प्रभावशाली
(C) भोली
(D) चंचल
उत्तर-
(C) भोली

प्रश्न 19.
कवि किसे याद करके दुःखी था?
(A) अपने बचपन को
(B) अपने वर्तमान को
(C) अपने दुःख भरे अतीत को
(D) पारिवारिक जीवन को
उत्तर-
(C) अपने दुःख भरे अतीत को

प्रश्न 20.
अभी थककर मौन रूप में क्या सोई हुई है?
(A) व्यथा
(B) कथा
(C) शांति
(D) भ्रांति
उत्तर-
(A) व्यथा

आत्मकथ्य पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
तब भी कहते हो कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे यह गागर रीती।
[पृष्ठ 28]

शब्दार्थ-मधुप = भौंरा (मन रूपी भौंरा)। घनी = अधिक। अनंत-नीलिमा = अंतहीन विस्तार। असंख्य = जिसकी गिनती न की जा सके। जीवन-इतिहास = जीवन की कहानी। व्यंग्य-मलिन = खराब ढंग से निंदा करना। उपहास = मजाक। दुर्बलता = कमजोरी। गागर = घड़ा। रीती = खाली।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या लिखिए।
(घ) ‘मधुप’ किसे कहा है और उसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

(ङ) पत्तियों का मुरझाना किसे स्पष्ट करता है?
(च) ‘अनंत-नीलिमा’ और ‘असंख्य जीवन इतिहास’ से क्या तात्पर्य है?
(छ) कवि अपनी बीती दुर्बलताओं को क्यों नहीं बताना चाहता है?
(ज) कवि की कहानी जानकर उनको कहानी लिखने के लिए प्रेरित करने वालों को क्या लगा?
(झ) ‘गागर रीती’ से क्या अभिप्राय है?
(ञ) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ट) इन काव्य-पंक्तियों में निहित शिल्प-सौंदर्य/काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ठ) उपर्युक्त काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद। कविता का नाम-आत्मकथ्य।

(ख) छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कविता ‘आत्मकथ्य’ से उद्धृत इस काव्यांश में बताया गया है कि उनके जीवन में आत्मकथा में लिखने योग्य कुछ विशेष नहीं है। उनका मत है कि उनके जीवन में ऐसी सुंदर घटनाएँ या उपलब्धियाँ नहीं हैं जिन्हें सुनकर या पढ़कर पाठक सुख या आनंद प्राप्त कर सकें।

(ग) कवि कहता है कि उसका मन रूपी यह भ्रमर गुन-गुनाकर कह रहा है कि अपनी ऐसी कौन-सी कहानी है जिसे लिखकर दूसरों को बताया जाए। मेरे जीवन की अनेक पत्तियाँ मुरझाकर गिर रही हैं अर्थात् मैंने जीवन में अनेक दुःखद घटनाएँ देखी हैं, जीवन में अनेक निराशाओं का सामना किया है। मैंने अपने सपनों को मरते देखा है। इस विशाल एवं गहन नीले आकाश पर असंख्य लोगों ने अपने जीवन के इतिहास लिखे हैं। उन्हें पाकर ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो वे स्वयं अपनी बुराइयाँ करके अपने ही जीवन पर कटाक्ष कर रहे हों और अपना ही मजाक उड़ा रहे हों। कवि अपने उन मित्रों से पूछता है जो उसे आत्मकथा लिखने के लिए कहते हैं जो उसे आत्मकथा लिखने के लिए कहते हैं कि ऐसा जान लेने पर भी तुम मुझसे चाहते हो कि मैं अपने जीवन कि कमजोरियाँ बता दूं। कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हें मेरे जीवन की खाली गागर देखकर सुख मिलेगा। कवि के कहने का भाव है कि मेरे जीवन में दुःखों व अभावों के अतिरिक्त कुछ नहीं है जिसे मैं दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

(घ) कवि ने मधुप मन को कहा है। ‘मधुप’ का यहाँ प्रतीकात्मक प्रयोग है। मन भौरे के समान इधर-उधर उड़कर कहीं भी पहुँच जाता है।

(ङ) पत्तियों का मुरझाना मन में उत्पन्न सुख और आनंद के भावों का मिट जाना है। तरह-तरह के दुःखों व संकटों के कारण कवि के हृदय में उत्पन्न भाव दबकर रह जाते हैं।

(च) अनंत-नीलिमा जीवन का अंतहीन विस्तार है। मनुष्य अपने मन में न जाने कौन-कौन से भाव अनुभव करता रहता है। वे भाव सुख व दुःख दोनों से संबंधित होते हैं। ‘असंख्य जीवन इतिहास’ मानव-मन में उत्पन्न विभिन्न विचार हैं जो विभिन्न घटनाओं के घटित होने के कारण बनते हैं।

(छ) कवि जानता है कि सच्चा आत्मकथा लेखक अपने जीवन की घटनाओं का सच्चा उल्लेख करता है। जीवन में झाँकने पर कवि को अपनी कमजोरियाँ-ही-कमजोरियाँ दिखाई देती हैं। इसलिए कवि जान-बूझकर अपनी दुर्बलताओं को सबके सामने व्यक्त करके अपना मज़ाक नहीं करवाना चाहता। इसलिए कवि अपनी दुर्बलताओं को व्यक्त नहीं करना चाहता।

(ज) कवि की कहानी जानकर कवि को उनकी कहानी लिखने के लिए प्रेरित करने वाले लोगों को लगा कि कवि अपनी आत्मकथा में कुछ ऐसा लिखेगा जिसे पढ़कर उन्हें सुख या आनंद प्राप्त होगा, किंतु कवि ने ऐसा कुछ नहीं लिखा जिसे पढ़कर उन्हें सुख की अनुभूति हुई हो।

(झ) ‘गागर रीती’ से तात्पर्य है कि कवि का जीवन सुख और सुविधाओं से रहित है। उसमें अभाव-ही-अभाव है। अतः ‘गागर रीति’ का प्रयोग प्रतीकात्मक और लाक्षणिक है।

(ञ) कवि ने इस पद्यांश में अत्यंत मार्मिक शब्दों में अपने जीवन के दुःखों, पीड़ाओं और अभावों की व्यथा भरी कहानी की ओर संकेत किया है। कवि ने स्पष्ट किया है कि किसी की भी दुःख भरी कहानी को सुनकर किसी को खुशी प्राप्त नहीं हो सकती। कवि ने जीवन के सत्य को सरल एवं सच्चे मन से कहा है।

(ट)

  • इन पंक्तियों में कवि ने अत्यंत कलात्मकतापूर्ण अपने मन के भावों को अभिव्यंजित किया है।
  • लाक्षणिक भाषा का प्रयोग किया गया है।
  • तत्सम प्रधान खड़ी बोली का प्रयोग है।
  • अनुप्रास, प्रश्न और रूपक अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग है।
  • करुण रस है।

(ठ) जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित इन काव्य पंक्तियों में शुद्ध साहित्यिक हिन्दी भाषा का प्रयोग किया गया है। प्रसाद जी छायावादी कवि हैं। उन्होंने भाषा को रोचक एवं आकर्षक बनाने हेतु तत्सम शब्दों के साथ-साथ तद्भव शब्दावली का भी सार्थक प्रयोग किया है। प्रसाद जी की भाषा में ओज, माधुर्य, प्रसाद आदि तीनों गुण हैं। अनेक स्थलों पर चित्रात्मक भाषा का भी प्रयोग किया गया है। उनकी छंद-योजना, स्वर और लय की मिठास से परिपूर्ण है। भाषा भाव को अभिव्यक्त करने में पूर्णतः सक्षम है।

[2] किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
यह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की। [पृष्ठ 28].

शब्दार्थ-विडंबना = उपहास का विषय, निराशा। प्रवंचना = धोखा। उज्ज्वल = पवित्र, सुख से भरी हुई।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश के प्रसंग को स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) प्रस्तुत काठ्यांश के भावार्थ पर प्रकाश डालिए।
(ङ) कवि किसका रस लेने की बात कहता है?
(च) कवि ने ‘खाली करने वाले’ किसे और क्यों कहा है?
(छ) कवि ने किस बात को विडंबना कहा है और क्यों?
(ज) कवि अपनी आत्मकथा क्यों नहीं लिखना चाहता?
(झ) कवि किन उज्ज्वल गाथाओं की बात कहता है?
(ञ) खिलखिलाकर हँसने वाली बातों का क्या अभिप्राय है?
(ट) इस पद्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ठ) प्रस्तुत पद्यांश में प्रयुक्त भाषागत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद। . कविता का नाम-आत्मकथ्य।

(ख) प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘आत्मकथ्य’ नामक कविता से उद्धृत है। इस कविता के रचयिता श्री जयशंकर प्रसाद हैं। इस कविता में उन्होंने स्पष्ट किया है कि उनके जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे वे अपनी आत्मकथा में लिखें और पाठक उसे पढ़कर सुख या प्रसन्नता अनुभव कर सकें। कवि ने अति यथार्थ रूप में अपने सरल व सहज विचारों को व्यक्त किया है।

(ग) कवि ने प्रस्तुत पद्यावतरण में बताया है कि जो लोग उनके जीवन की दुःखपूर्ण कथा को सुनना चाहते थे, वे यह न समझने लगें कि वही उनके जीवन रूपी गागर को खाली करने वाले थे। वे सब पहले अपने-आपको समझें। वे उनके भावों रूपी रस को लेकर अपने-आपको भरने वाले थे। हे सरल मन वालो! यह उपहास और निराशा का ही विषय था कि मैं उन पर व्यंग्य । कर रहा था, उनकी हँसी उड़ा रहा था।

कवि पुनः कहता है कि वह आत्मकथा के नाम पर अपनी व औरों की बातें जग-जाहिर नहीं करना चाहता। उसके जीवन में तो पूर्णतः निराशा और पीड़ा की कालिमा ही नहीं है अपितु उसमें मधुर चाँदनी रातों की मीठी यादें भी हैं। उन मधुर एवं उज्ज्वल गाथाओं का वर्णन कैसे करूँ? वह अपने जीवन की मधुर एवं उज्ज्वल स्मृतियों में सबको भागीदार नहीं बनाना चाहता, वह उन्हें सबके सामने क्यों अभिव्यक्त करे। जब कभी वह अपनों के साथ खिल-खिलाकर हँसा था अथवा मधुर-मधुर बातों के सुख में डूबा हुआ था और उसका हृदय आनंद से भर उठा था। उन मीठी स्मृतियों को वह दूसरों को क्यों बताए।

(घ) इस पद्यांश में कवि ने स्पष्ट किया है कि आत्मकथा में जीवन की घटनाओं का सच्चा एवं यथार्थ वर्णन किया जाता है। उसके जीवन में सुख कम और दुःख अधिक हैं। वह अपने और दूसरों के दुःखों को जग-जाहिर नहीं करना चाहता। इसी प्रकार कवि अपनी और दूसरों की भूलों को व्यक्त करके हँसी का पात्र नहीं बनना चाहता।

(ङ) कवि ने अपना प्रेम भरा रस लेने की बात कही है। उसके साहित्यिक मित्र ही उसके रस को लेने की बात करते हैं। कवि ने बताया है कि उसके आस-पास भँवरे की भाँति मंडराने वाले मित्र लोग उनके काव्य रस को चूसकर अपने-आपको उन्नत बनाना चाहते हैं।

(च) कवि ने अपने उन मित्रों को ही ‘खाली करने वाले’ बताया है जिन्होंने उसे आत्मकथा लिखने के लिए कहा था। कवि के निजी अनुभव बहुत कटु रहे हैं। हो सकता है कि उनके मित्रों ने ही उनकी खुशी में बाधा डाली हो। इस प्रकार उनके जीवन को खुशियों से वंचित कर दिया हो।

(छ) कवि अपने जीवन में दुःखों व कष्टों के लिए किसी को दोष नहीं देना चाहता। वह स्वभाव से अत्यंत सरल था। यदि वह अपनी सरलता को कष्टों का कारण मानता है तो यह उसके लिए विडंबना ही होगी। कवि अपनी सरलता के कारण प्रसन्न है यदि उसे अपनी सरलता के कारण कष्ट या दुःख सहन करने पड़ते हैं तो वह इसका बुरा नहीं मानता।

(ज) कवि आत्मकथा इसलिए नहीं लिखना चाहता क्योंकि आत्मकथा में जीवन संबंधी घटनाओं, विचारों आदि का सच्चाई पूर्ण वर्णन करना पड़ता है। इसलिए कवि अपने जीवन की सरलता को लोगों की हँसी का कारण नहीं बनाना चाहता। वह अपनी भूलों और दूसरों के छलकपट को जग-ज़ाहिर नहीं करना चाहता। कवि अपने प्रेम के सुखपूर्ण क्षणों को भी दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता। ये ऐसी बातें है जिनके कारण कवि अपनी आत्मकथा लिखकर इन्हें लोगों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता।

(झ) कवि ने अपने जीवन के प्रेम के क्षणों और मधुर स्मृतियों को जीवन की उज्ज्वल गाथाओं की संज्ञा दी है। प्रेम के वे क्षण जो कवि ने खिल-खिलाती हुई रातों में बिताए थे वे आज उसे अपने जीवन की उज्ज्वल गाथाएँ-सी प्रतीत होती हैं।

(ञ) खिल-खिलाकर हँसने वाली बातों का अभिप्राय है-प्रेम के अत्यंत मधुर क्षण जो उन्होंने अपनी प्रिया के साथ बिताए थे।

(ट)

  • प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने अपने जीवन की उन बातों को अत्यंत विनम्रता एवं यथार्थपूर्वक व्यक्त किया है जो उनके व्यक्तिगत प्रेम व सुख से संबंधित थीं। साथ ही उन लोगों के विषय में भी लिखा है जो उनसे आत्मकथा लिखवाना चाहते थे।
  • कवि ने अपनी सरलता का मानवीकरण किया है जिससे विषय अत्यंत रोचक बन गया है।
  • तत्सम शब्दों का सफल एवं सार्थक प्रयोग किया गया है।
  • संकेत-शैली का सुंदर प्रयोग किया गया है।
  • स्वर मैत्री के कारण भाषा लयात्मक बनी हुई है।

(ठ) भाषा प्रसादगुण संपन्न है। उसमें तत्सम शब्दावली का प्रयोग किया गया है। भाषा पूर्णतः भावानुकूल है। भाषा में भावों की अभिव्यक्ति करने की पूर्ण क्षमता है।

[3] मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की? [पृष्ठ 28]

शब्दार्थ-स्वप्न = सपना। आलिंगन में = बाँहों में। मुसक्या = मुस्कराकर, हँसकर। अरुण-कपोल = लाल गाल। मतवाली = हँसी से भरी हुई। अनुरागिनी = प्रेम में लीन। उषा = प्रातः। निज = अपना। सुहाग = सुगंध, इत्र। मधुमाया = मधुर मोहकता। पाथेय = रास्ते का भोजन। पथिक = यात्री। पंथा = रास्ता। सीवन = सिया हुआ। उधेड़कर = फाड़कर। कंथा = गुदड़ी, अंतर्मन।।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत पद की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि किसका स्वप्न देखकर जाग गया था?
(ङ) कौन और कैसे भाग गया?
(च) कवि की प्रेमिका के कपोल कैसे थे?

(छ) कवि ने किसको पाथेय माना है?
(ज) सीवन उधेड़ने से कवि का क्या तात्पर्य है?
(झ) कवि ने भोर को कैसा बताया है?
(ञ) ‘कथा’ से क्या अभिप्राय है?
(ट) उपर्युक्त पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ठ) इन काव्य-पंक्तियों में निहित शिल्प-सौंदर्य का उल्लेख कीजिए।
(ड) इस पद में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद। . . कविता का नाम-आत्मकथ्य।

(ख) प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘आत्मकथ्य’ नामक कविता से उद्धत है। इस कविता के रचयिता छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद हैं। कवि ने अपने जीवन की दुःखभरी कहानी को कभी किसी को न बताने का निश्चय किया था। उन्हें ऐसा लगता था कि उनके जीवन में कुछ भी सुखद नहीं था जिसे सुनकर या पढ़कर कोई सुखी हो सके। उसके जीवन में कष्ट और अभाव ही थे जिन्हें वह किसी को बताना नहीं चाहता था।

(ग) कवि ने बताया है कि उसको जीवन में कभी सुख की प्राप्ति नहीं हुई। उसने स्वप्न में भी जिस सुख को देखा था, नींद से जागने पर उसे वह सुख प्राप्त नहीं हो सका। वह सुख देने वाला स्वप्न भी उसकी बाँहों में आते-आते मुस्कराकर भाग गया अर्थात् कवि को कभी स्वप्न में भी सुख प्राप्त नहीं हुआ। सपने में जो सुख का आधार बना था वह अपार सुंदर और मोहक था। उसकी लाल-गुलाबी गालों की मस्ती भरी छाया में प्रेम भरी भोर अपने सुहाग की मिठास भरी मनोहरता को लेकर प्रकट हुई थी। कवि के कहने का तात्पर्य है कि. उसकी गालों में प्रातःकालीन लाली और शोभा विद्यमान थी। जीवन की लंबी डगर पर चलते हुए, थके हुए कवि रूपी यात्री की स्मृतियों में केवल वही सहारा बनी। उसकी यादें ही थके हुए पथिक की थकान कम करने में सहायक बनी थीं। कवि नहीं चाहता कि उसके जीवन की मधुर यादों के विषय में कोई दूसरा जाने। कवि अपने उन मित्रों से पूछता है जो उसे आत्मकथा लिखने के लिए प्रेरित कर रहे थे कि क्या आप मेरी अंतर्मन रूपी गुदड़ी की सिलाई को उधेड़कर उसमें छिपे हुए उसके रहस्यों को देखना चाहते हो? कवि के कहने का तात्पर्य है कि वह अपने जीवन के रहस्यों को अपने तक ही सीमित रखना चाहता है उन्हें दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता।

(घ) कवि उस स्वप्न को देखकर जाग गया जिसके सुख को वह प्राप्त नहीं कर सका।

(ङ) वह कवि की पत्नी अथवा प्रेमिका हो सकती है जो कवि के आलिंगन में आते-आते उसे छोड़कर चली गई। कवि ने तीन बार विवाह किया। एक के बाद एक पत्नी चल बसी। कवि उन्हीं पत्नियों को याद कर रहा है जिन्हें वह ठीक से अपना भी न सका कि वे सदा के लिए उससे दूर चली गईं। .

(च) कवि की प्रेमिका के कपोल ऐसे लाल-लाल व मतवाले थे कि स्वयं ऊषा की लालिमा भी उनसे लालिमा उधार लेती थी।

(छ) कवि ने अपने जीवन के उन सुखद क्षणों को पाथेय माना है जो स्वप्न की भाँति उसके जीवन में आए और क्षण भर में ही मिट गए।

(ज) सीवन उधेड़ने से कवि का तात्पर्य जीवन की परतों को खोलना है जिन पर समय के साथ गर्द जम चुकी थी, जिनमें व्यथा के अतिरिक्त और कुछ बहुत कम था।

(झ) कवि ने भोर को प्रेम एवं लालिमा से युक्त बताया है।

(ञ) ‘कथा’ का शाब्दिक अर्थ गुदड़ी है जिसे कवि ने अपने अंतर्मन के लिए प्रयुक्त किया है।

(ट) कवि ने इस पद्यांश में बताया है कि उसका जीवन सदा दुःखों से घिरा रहा है। कवि के हृदय में निश्चय ही कोई टीस छिपी हुई है जिसको वह प्रकट नहीं करना चाहता। कवि ने अपने जीवन में सुख को स्वप्न की भाँति बताया है। सुख की उन स्मृतियों को ही अपने जीवन रूपी पथ में सहारा बताया है। कवि ने इन सब भावों को कलात्मकतापूर्ण अभिव्यंजित किया है।

(ठ)

  • कवि ने अपने जीवन के गोपनीय सुखद क्षणों का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया है।
  • संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
  • भाषा प्रसादगुण संपन्न है।
  • प्रतीकों एवं बिंबों का प्रयोग किया गया है।
  • अनुप्रास, मानवीकरण, रूपक आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
  • वियोग शृंगार है।

(ड) प्रस्तुत काव्य में कवि ने संस्कृतनिष्ठ भाषा का प्रयोग किया है। विभिन्न प्राकृतिक उपमानों के प्रयोग से भाषा एवं वर्ण्य विषय में रोचकता का विकास हुआ है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

[4] छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा। [पृष्ठ 28]

शब्दार्थ-कथाएँ = कहानियाँ । मौन = चुप । भोली आत्मकथा = सीधी-सादी जीवन कहानी। मौन व्यथा = वह पीड़ा जिसको कभी व्यक्त नहीं किया गया।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि ने अपने जीवन को कैसा माना है?
(ङ) कवि के जीवन में बड़ी-बड़ी कथाएँ क्यों नहीं थीं?
(च) कवि को क्या अच्छा लगता था?
(छ) कवि ने अपनी जीवन-कहानी को कैसा बताया है?
(ज) कवि के हृदय में मौन व्यथा किस स्थिति में थी?
(झ) इस कवितांश में निहित भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ञ) इस पद्यांश के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ट) इस काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद। कविता का नाम-आत्मकथ्य।

(ख) प्रस्तुत कवितांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘आत्मकथ्य’ नामक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता जयशंकर प्रसाद हैं। इस कविता में कवि ने कहा है कि उसके जीवन में दुःख का पलड़ा भारी रहा है। कवि अपने जीवन के सुख की स्मृतियों को आधार बनाकर जीना चाहता है। किंतु कवि अपनी आत्मकथा लिखकर अपने दुःख रूपी जख्मों को पुनः हरा नहीं करना चाहता।

(ग) कवि अपने उन मित्रों, जो उससे आत्मकथा लिखने का आग्रह करते थे, को संबोधित करता हुआ कहता है कि यदि मेरे जीवन की परतों को खोलकर देखोगे तो तुम्हें उसमें कोई बड़ी कहानी नहीं मिलेगी। मेरा छोटा-सा जीवन है। मेरे लिए यही उचित है कि मैं औरों की कथाएँ सुनता रहूँ तथा अपनी व्यथा न ही कहूँ तो अच्छा है। मेरी आत्मकथा सुनकर भला तुम्हें क्या मिलेगा। मेरी कथा सुनने का अभी समय नहीं है। मेरी मौन व्यथा अभी मेरे मन में सोई पड़ी है। इसलिए उसे न ही जगाओ तो अच्छा है।

(घ) कवि ने अपने जीवन को अत्यंत छोटा माना है। इसमें कोई बड़ी कथा नहीं है।

(ङ) कवि का जीवन अत्यंत लघु जीवन है। कवि स्वभाव से अत्यंत विनम्र तथा साहित्य-सेवी है। इसलिए सरल, सहज एवं विनम्र होने के कारण उनके जीवन में बड़ी-बड़ी व्यथाएँ या बड़ी कथाएँ बनाने वाली घटनाएँ भी नहीं घटीं।

(च) कवि को मौन रहकर दूसरों की आत्म-कथाएँ अथवा कथाएँ सुनना अच्छा लगता है।

(छ) कवि ने अपने जीवन की कथा को अत्यंत सरल, सीधी-सादी और भोली माना है।

(ज) कवि के हृदय में मौन व्यथा सुसुप्त (सोई हुई) रूप में थी।

(झ) कवि अपनी जीवन कथा को दूसरों के सामने व्यक्त करने योग्य नहीं समझता क्योंकि उनके विचार से उनके जीवन में ऐसा कुछ महत्त्वपूर्ण नहीं जो दूसरों को अच्छा लगे। इसलिए कवि चाहता है कि मौन रहकर दूसरों की जीवनकथा सुनना ही उसके लिए उचित है। उसके जीवन में तो व्यथा-ही-व्यथा है। अतः उन्हें कवि अपने मन में छुपाए रखना चाहता है। इन भावों को कवि ने अत्यंत कलात्मक ढंग से व्यक्त किया है।.

(ञ)

  • कवि ने अपने मन के गहन भावों को कलात्मक अभिव्यक्ति प्रदान की है।
  • कवि ने तत्सम प्रधान शब्दावली का सार्थक प्रयोग किया है।
  • शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग हुआ है।
  • भाषा प्रसादगुण संपन्न है।
  • स्वर मैत्री के सार्थक एवं सफल प्रयोग के कारण लयात्मकता बनी हुई है।
  • प्रश्न, रूपक, मानवीकरण, अनुप्रास आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।

(ट) इन काव्य पंक्तियों में शुद्ध साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया गया है। तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है इसलिए कहीं-कहीं भाषा में जटिलता का समावेश हो गया है। स्वर मैत्री के कारण भाषा में सौंदर्य-वृद्धि हुई है। चित्रात्मक भाषा के प्रयोग से विषय रोचक बन पड़ा है।

आत्मकथ्य Summary in Hindi

आत्मकथ्य कवि-परिचय

प्रश्न-
कविवर जयशंकर प्रसाद का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय छायावाद के प्रवर्तक जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के प्रतिष्ठित वैश्य कुल में सन् 1889 में हुआ था। उनका कुल ‘सुँघनी साहू’ के नाम से विख्यात था। उनके पिता का नाम देवीप्रसाद था। किशोरावस्था में ही उनके सिर से पिता का साया उठ गया था। यक्ष्मा रोग का शिकार होकर सन् 1937 में वे 48 वर्ष की आयु में ही इस संसार से विदा हो गए। प्रसाद जी ने हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। वे भारतीय साहित्य और संस्कृति के पुजारी थे तथा राष्ट्र-प्रेम ‘ की भावना उनमें कूट-कूटकर भरी हुई थी। शैव दर्शन से प्रभावित होने के कारण वे नियतिवादी भी थे।

2. प्रमुख रचनाएँ-जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं(क) काव्य-ग्रंथ ‘लहर’, ‘झरना’, ‘आँसू’, ‘कानन कुसुम’, ‘प्रेम पथिक’, ‘महाराणा का महत्त्व’, ‘करुणालय’, ‘चित्राधार’, ‘कामायनी’ । (ख) उपन्यास-‘कंकाल’, ‘तितली’, ‘इरावती’ (अपूर्ण)। (ग) कहानी-संग्रह ‘छाया’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘आकाशदीप’, ‘आँधी’ और ‘इंद्रजाल’ (कुल 69 कहानियाँ)। (घ) निबंध-संग्रह ‘काव्य और कला तथा अन्य निबंध।
(ङ) नाटक-‘सज्जन’, ‘राज्यश्री’, ‘अजातशत्रु’, ‘एक घुट’, ‘कल्याणी’, ‘परिचय’, ‘विशाख’, ‘कामना’, ‘स्कंदगुप्त’, ‘ध्रुवस्वामिनी’ .. और ‘चंद्रगुप्त’।

3. काव्यगत विशेषताएँ-प्रसाद जी एक प्रतिभासंपन्न साहित्यकार थे। वे छायावाद के प्रवर्तक तथा सर्वश्रेष्ठ कवि थे। अतीत के प्रति उनका मोह था, लेकिन वर्तमान के प्रति भी वे जागरूक थे। उनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार से हैं
(i)प्रेम तथा सौंदर्य का वर्णन-प्रसाद जी के काव्य का मुख्य तत्त्व प्रेमानुभूति एवं सौंदर्यानुभूति है। प्रेमानुभूति की दिशा मानव, प्रकृति और ईश्वर तक फैली हुई है। इसी प्रकार से प्रसाद जी ने मानव, प्रकृति और ईश्वर तीनों के सौंदर्य का आकर्षक चित्रण किया है। उनकी सौंदर्य-चेतना परिष्कृत, उदात्त एवं सूक्ष्म है।

(ii) वेदना की अभिव्यक्ति–प्रसाद जी के काव्य में ऐसे अनेक स्थल हैं जो पाठक के हृदय को छू लेते हैं। उनका ‘आँसू’ काव्य कवि के हृदय की वेदना को व्यक्त करता है। इसी प्रकार से ‘लहर’ काव्य-ग्रंथ की ‘प्रलय की छाया’ कविता भी मार्मिक है। ‘कामायनी’ में भी इस प्रकार के स्थलों की कमी नहीं है जो पाठक के हृदय को आत्मविभोर न कर देते हों।

(iii) प्रकृति-वर्णन-प्रसाद जी के काव्य में अनेक स्थलों पर प्रकृति का स्वाभाविक चित्रण किया गया है। ‘लहर’ की अनेक कविताएँ प्रकृति-वर्णन से संबंधित हैं। प्राकृतिक पदार्थों पर मानवीय भावों का आरोप करना उनके प्रकृति-चित्रण की अनूठी विशेषता है; जैसे-
बीती विभावरी जाग री,
अंबर पनघट में डुबो रही,
तारा घट उषा-नागरी।
छायावादी काव्य होने के नाते यहाँ पर प्रकृति का मानवीकरण देखने योग्य है। उषा को नायिका के रूप में वर्णित किए जाने से यहाँ प्रकृति का मानवीकरण हुआ है। उन्होंने प्रकृति-वर्णन के अनेक रूपों में से आलंबन, उद्दीपन, दूती, उपदेशिका, रहस्यात्मक, पृष्ठभूमि, मानवीकरण आदि रूपों को चुना है।

(iv) रहस्य भावना-छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद सर्वात्मवाद से सर्वाधिक प्रभावित हैं। वे अज्ञात सत्ता के प्रेम-निरूपण में अधिक तल्लीन रहे हैं। उनकी इस प्रवृत्ति को रहस्यवाद की संज्ञा दी जाती है। कवि बार-बार प्रश्न करता है कि वह अज्ञात सत्ता कौन है और क्या है? प्रसाद जी के काव्य में रहस्य-भावना का सुष्ठु रूप देखने को मिलता है। रहस्यसाधक कवि प्रकृति के अनंत सौंदर्य को देखकर उस विराट् सत्ता के प्रति जिज्ञासा प्रकट करता है। तदंतर अपनी प्रिया का अधिकाधिक परिचय प्राप्त करने के लिए आतुरता व्यक्त करता है, उसके विरह में तड़पता है और प्रियतमा के परिचय की अनुभूति का ‘गूंगे के गुड़’ की भाँति आस्वादन करता है। प्रसाद जी के काव्य में रहस्य भावना का रूप निम्नलिखित उदाहरण में देखा जा सकता है
हे अनंत रमणीय! कौन हो तुम? यह मैं कैसे कह सकता। कैसे हो, क्या हो? इसका तो
भार विचार न सह सकता ॥

(v) नारी भावना-छायावादी कवि होने के कारण प्रसाद जी ने नारी को अशरीरी सौंदर्य प्रदान करके उसे लोक की मानवी न बनाकर परलोक की ऐसी काल्पनिक देवी बना दिया जिसमें प्रेम, सौंदर्य, यौवन और उच्च भावनाएँ हैं, लेकिन ऐसे गुण मृत्युलोक की नारी में देखने को नहीं मिलते। ‘कामायनी’ की श्रद्धा इसी प्रकार की नारी है। वह काल्पनिक जगत् की अशरीरी सौंदर्यसंपन्न अलौकिक देवी है जो नित्य छवि से दीप्त है, विश्व की करुण-कामना मूर्ति है और कानन-कुसुम अंचल में मंद पवन से प्रेरित सौरभ की साकार प्रतिमा है। प्रसाद जी की यह नारी भावना छायावादी काव्य के सर्वथा अनुकूल है लेकिन यह नारी भावना आधुनिक युगबोध से मेल नहीं खाती।

(vi) नवीन जीवन-दर्शन-कविवर प्रसाद शैव दर्शन के अनुयायी थे। अतः उनके दार्शनिक विचारों पर शैव दर्शन का स्पष्ट प्रभाव है। वे कामायनी के माध्यम से समरसता और आनंदवाद की स्थापना करना चाहते हैं। उनकी रचनाओं, विशेषकर, ‘कामायनी’ में दार्शनिकता और कवित्व का सुंदर समन्वय हुआ है। वे समरसताजन्य आनंदवाद को ही जीवन का परम लक्ष्य स्वीकार करते हैं। ‘कामायनी’ की यात्रा ‘चिंता’ सर्ग से प्रारंभ होकर ‘आनंद’ सर्ग में ही समाप्त होती है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

(vii) राष्ट्रीय भावना-प्रसाद सांस्कृतिक और दार्शनिक चेतना के कवि हैं। यह सांस्कृतिक चेतना उनके राष्ट्रीय भावों की प्रेरक है। उनके नाटकों में कवि का देशानुराग अथवा राष्ट्र-प्रेम अधिक मुखरित हुआ है। उनकी काव्य-रचनाओं में यह राष्ट्र-प्रेम संस्कृति प्रेम के रूप में संकेतित हुआ है। ।
कवि ने अतीत के संदर्भ में वर्तमान का भी चित्रण किया है। ‘चंद्रगुप्त’, ‘स्कंदगुप्त’, ‘ध्रुवस्वामिनी’, ‘जनमेजय का नागयज्ञ’ आदि नाटकों में भी इसी दृष्टिकोण को व्यक्त किया गया है। ‘चंद्रगुप्त’ नाटक का निम्नलिखित गीत कवि की राष्ट्रीय भावना को स्पष्ट करता है-

अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।
सरस तामरस गर्भ विभा पर नाच रही तरु शिखा मनोहर,
छिटका जीवन-हरियाली पर मंगल कुमकुम सारा।

(viii) मानवतावादी दृष्टिकोण-मानवतावाद छायावादी कवियों की उल्लेखनीय प्रवृत्ति है। अनेक स्थलों पर कवि राष्ट्रीयता की भाव-भूमि से ऊपर उठकर मानव-कल्याण की चर्चा करता हुआ दिखाई देता है। प्रसाद जी के काव्य में शाश्वत मानवीय भावों और मानवतावाद को प्रचुर बल मिला है। ‘कामायनी’ में कवि ने मनु, श्रद्धा और इड़ा के प्रतीकों के माध्यम से मानवता के विकास की कहानी कही है और इच्छा, क्रिया एवं ज्ञान के समन्वय पर बल दिया है। समष्टि के लिए व्यक्ति का उत्सर्ग ‘कामायनी’ का संदेश है। श्रद्धा इस बात पर बल देती हुई कहती है

औरों को हँसते देखो मनु हँसो और सुख पाओ।
अपने सुख को विस्तृत कर लो सबको सुखी बनाओ।

‘आनंद’ सर्ग में कवि ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की चर्चा करके विश्व-बंधुत्व की भावना का संदेश दिया है। कवि बार-बार मानव-प्रेम पर बल देता है और मानवतावादी दृष्टिकोण को अभिव्यक्त करता है।

4. भाषा-शैली–प्रसाद जी ने प्रबंध और गीति इन दो काव्य-रूपों को ही अपनाया है। प्रेम पथिक’ और ‘महाराणा का महत्त्व’ दोनों उनकी प्रबंधात्मक रचनाएँ हैं। ‘कामायनी’ उनका प्रसिद्ध महाकाव्य है। ‘लहर’, ‘झरना’ और ‘आँसू’ गीतिकाव्य हैं। उनके काव्य में भावात्मकता, संगीतात्मकता, आत्माभिव्यक्ति, संक्षिप्तता, कोमलकांत पदावली आदि सभी विशेषताएँ देखी जा सकती हैं। प्रसाद जी की भाषा साहित्यिक हिंदी है। फिर भी इसे संस्कृतनिष्ठ, तत्सम प्रधान हिंदी भाषा कहना अधिक उचित होगा। प्रसाद जी की भाषा में ओज, माधुर्य और प्रसाद तीनों गुण विद्यमान हैं। उनकी भाषा प्रवाहपूर्ण, प्रांजल, संगीतात्मक और भावानुकूल है। उनकी भाषा की प्रथम विशेषता है लाक्षणिकता। लाक्षणिक प्रयोगों में कवि ने विरोधाभास, मानवीकरण, विशेषण-विपर्यय, प्रतीक आदि उपकरणों के प्रयोग से भाषा में सौंदर्य उत्पन्न कर दिया है। उनकी भाषा की दूसरी विशेषता है- प्रतीकात्मकता। कवि ने प्रकृति के विभिन्न उपादानों को प्रतीक के रूप में प्रयुक्त किया है। उनके सभी प्रतीक प्रभावपूर्ण हैं। कवि ने कुछ स्थलों पर चित्रात्मकता और ध्वन्यात्मकता का भी सफल प्रयोग किया है। .

प्रसाद जी की अलंकार योजना उच्चकोटि की है। शब्दालंकारों की अपेक्षा अर्थालंकारों में उनकी दृष्टि अधिक रमी है। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, रूपकातिशयोक्ति, अर्थान्तरन्यास आदि प्रसाद जी के प्रिय अलंकार हैं। प्रसाद जी की छंद योजना स्वर और लय की मिठास से अणुप्राणित है। कुछ स्थलों पर कवि ने अतुकांत और मुक्तक छंदों का भी प्रयोग किया है। इस प्रकार भाव और भाषा दोनों ही दृष्टियों से उनका काव्य उच्चकोटि का है।

आत्मकथ्य कविता का सार

प्रश्न-
‘आत्मकथ्य’ शीर्षक कविता का सार लिखिए।
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ जयशंकर प्रसाद की महत्त्वपूर्ण छायावादी कविता है। यह सन् 1932 में ‘हंस’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। कवि के मित्रों ने उन्हें आत्मकथा लिखने के लिए आग्रह किया। उसी आग्रह के उत्तर में प्रसाद जी ने यह कविता लिखी थी।

इस कविता में कवि ने बताया है कि यह संपूर्ण संसार नश्वर है। हर जीवन एक दिन मुरझाई पत्ती-सा झड़कर गिर जाता है। इस नीले आकाश के नीचे न जाने कितने जीवनों के इतिहास रचे जाते हैं, किंतु ये व्यंग्य से भरे होने के कारण पीड़ा को प्रकट करते हैं। क्या इन्हें सुनकर किसी को सुख मिला है। मेरा जीवन तो खाली गागर के समान व्यर्थ तथा अभावग्रस्त है। इस दुनिया में मानव स्वार्थ से पूर्ण जीवन जीते हैं। इस संसार में लोग दूसरों के सुखों को छीनकर स्वयं सुखी जीवन जीने की इच्छा रखते हैं। यही जीवन की विडंबना है।

कवि दूसरों के धोखे और अपनी पीड़ा की कहानी सुनाने का इच्छुक नहीं है। कवि के पास दूसरों को सुनाने के लिए जीवन की मीठी व मधुर यादें भी नहीं हैं। उसे अपने जीवन में सुख प्रदान करने वाली मधुर बातें दिखाई नहीं देतीं। उसके जीवन में अधूरे सुख थे जो जीवन के आधे मार्ग में ही समाप्त हो गए। उसका जीवन तो थके हुए यात्री के समान है जिसमें कहीं भी सुख नहीं है। उनके जीवन में जो दुःख से पूर्ण यादें हैं, उन्हें भला कोई क्यों सुनना चाहेगा। उसके इस लघु जीवन में बड़ी-बड़ी उपलब्धियाँ भी नहीं हैं जिन्हें वह दूसरों को सुना सके। अतः कवि इस आत्मकथ्य के नाम पर चुप रहना ही उचित समझता है। उसे अपनी आत्मकथा अत्यंत सरल एवं साधारण प्रतीत होती है। उसके हृदय की पीड़ाएँ मौन रूप में सोई हुई हैं जिन्हें वह जगाना उचित नहीं समझता। कवि नहीं चाहता कि कोई उसके जीवन के कष्टों को जाने। वह अपने जीवन के कष्टों को स्वयं ही जीना चाहता है।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

HBSE 10th Class Hindi सवैया और कवित्त Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है?
उत्तर-
कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ श्रीकृष्ण के लिए प्रयुक्त किया है। उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक इसलिए कहा है क्योंकि जिस प्रकार मंदिर का दीपक संपूर्ण मंदिर में अपना प्रकाश फैलाता है; उसी प्रकार श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाओं एवं कलाओं से संपूर्ण संसार को प्रभावित किया है।

प्रश्न 2.
पहले सवैये में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है?
उत्तर-
निम्नलिखित पंक्तियों के रेखांकित अंशों में अनुप्रास अलंकार है।
पायनि नूपुर मंजु बजै, कटि किकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
निम्नलिखित पंक्तियों के रेखांकित अंशों में रूपक अलंकार है।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुख चंद जुन्हाई।
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सहाई ॥

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
पाँयनि नूपुर मंजु बसें, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई ॥
उत्तर-

  • इस काव्यांश में श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन किया गया है। उनके साँवले शरीर पर पीले वस्त्र सुशोभित हैं।
  • गले में वनमाला है। पाँवों में पाज़ेब और कमर में करधनी है।
  • अनुप्रास अलंकार की छटा देखते ही बनती है।
  • तत्सम शब्दावली युक्त ब्रजभाषा का प्रयोग है।
  • सवैया छंद है।
  • संपूर्ण पद में भाषा लयात्मक एवं संगीतमय है।
  • शब्द-योजना अत्यंत सार्थक बन पड़ी है।

प्रश्न 4.
दूसरे कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतुराज वसंत के बाल-रूप का वर्णन परंपरागत वसंत वर्णन से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर-
परंपरागत रूप से बसंत का वर्णन करते हुए कवि प्रायः ऋतु परिवर्तन की शोभा का वर्णन करते हैं। कवि रंग-बिरंगे फूलों, चारों ओर फैली हुई हरियाली, नायक-नायिकाओं का झूलना, राग-रंग आदि का उल्लेख करते हैं। वे नर-नारियों के हृदय में उत्पन्न रागात्मकता का वर्णन भी करते हैं। किंतु इस कवित्त में कविवर देव ने बसंत का एक बालक के रूप में चित्रण किया है। यह बालक कामदेव का बालक है। कवि ने दिखाया है कि सारी प्रकृति उसके साथ ऐसा व्यवहार करती है जैसा नवजात या छोटे बच्चों से व्यवहार किया जाता है। इससे कवि की बसंत ऋतु संबंधी कल्पनाशीलता का बोध होता है तथा यह भी स्पष्ट हो जाता है कि कवि देव के द्वारा किया गया बसंत वर्णन परंपरागत नहीं है।

प्रश्न 5.
‘प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै’-इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
काव्य में यह माना जाता है कि प्रातःकाल में जब कलियाँ खिलकर फूल बनती हैं तो ‘चट्’ की ध्वनि होती है। कवि ने इसी काव्य रूढ़ि का प्रयोग करते हुए बालक रूप बसंत को प्रातः जगाने के लिए गुलाब के फूलों की सहायता ली है। सुबह-सवेरे गुलाबों के खिलते समय चटकने की ध्वनि होती है। कवि ने कल्पना की है कि गुलाब के फूलों का चटककर खिलना ऐसा लगता है मानो वे चटक की ध्वनि से बालक रूपी बसंत को जगाते हैं।

प्रश्न 6.
चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने किन-किन रूपों में देखा है?
उत्तर-
चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने दूध, दही के समुद्र, सफेद संगमरमर के फर्श, गौरांगी तरुणियों, जिनके वस्त्र मोतियों एवं मल्लिका के फूलों से सुसज्जित हैं, के रूप में देखा है।

प्रश्न 7.
‘प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद’-इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करते हुए बताएँ कि इसमें कौन-सा अलंकार है?
उत्तर-
राधा का रूप अत्यंत सुंदर है। चाँदनी में नहाया राधा का रूप अति उज्ज्वल है। चंद्रमा की शोभा और चमक-दमक अपनी नहीं है, अपितु वह राधा के रूप को प्रतिबिंबित कर रही है। राधा चंद्रमा से भी अधिक सुंदर है। यहाँ रूढ़ उपमान (चाँद) उपमेय हो गया है। अतः यहाँ उपमेय उपमान बन गया है। यहाँ उपमा अलंकार है किंतु इस पंक्ति में उत्प्रेक्षा अलंकार का भी आभास मिलता है।

प्रश्न 8.
तीसरे कवित्त के आधार पर बताइए कि कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है?
उत्तर-
कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए निम्नलिखित उपमानों का प्रयोग किया है(1) स्फटिक शिला, (2) दूध का सागर, (3) सुधा-मंदिर, (4) आरसी, (5) दूध की झाग से बना फर्श, (6) आभा आदि।

प्रश्न 9.
पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-
पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

देव दरबारी कवि थे। उन्होंने अपने आश्रयदाताओं को प्रसन्न करने के लिए काव्य की रचना की है। उन्होंने जीवन के सुख-दुःख का वर्णन करने की अपेक्षा विलासमय जीवन का चित्रण किया है। उनके सवैये में श्रीकृष्ण के दूल्हा-रूप का चित्रण किया गया है। कवित्तों में बसंत और चाँदनी को राजसी-वैभव से परिपूर्ण रूप में चित्रित किया गया है।

प्रस्तुत काव्यांश में कविवर देव ने कल्पना शक्ति का परिचय देते हुए विषय को परंपरागत रूप से भिन्न रूप में प्रस्तुत किया है। वृक्षों को पालने के रूप में, पत्तों को बिछौने के रूप में, बसंत को बालक के रूप में, चाँदनी रात में आकाश को सुधा मंदिर के रूप में चित्रित करना देव की कल्पना शक्ति का परिचायक है।

पठित काव्यांश में सवैया और कवित्त छंदों का सुंदर प्रयोग किया गया है। देव के काव्य की भाषा में ब्रजभाषा का सुंदर एवं सटीक प्रयोग किया गया है। अनुप्रास, रूपक, उत्प्रेक्षा, उपमा आदि अलंकारों का सुंदर एवं सफल प्रयोग किया गया है। कोमलकांत शब्दावली का विषयानुकूल प्रयोग देखते ही बनता है।

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रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 10.
आप अपने घर की छत से पूर्णिमा की रात देखिए तथा उसके सौंदर्य को अपनी कलम से शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर-
पूर्णिमा की रात अपनी सुंदरता से हमेशा कवियों को लुभाती आई है। फिर सर्दकालीन पूर्णिमा की रात का तो कहना ही क्या? कल ही पूर्णिमा की रात थी। मैं अपने घर की छत पर गया तो देखा चाँद पूर्ण रूप से चमक रहा था। उसकी चाँदनी चारों ओर फैली हुई थी। ऐसा लगता था कि सारे संसार ने ही चाँदनी में नहाकर उज्ज्वल रूप धारण कर लिया है। आकाश में तारे भी चमक रहे थे। वातावरण अत्यंत शीतल एवं मनोरम था। मैं देर तक चाँदनी की उज्ज्वलता को निहारता रहा। वहाँ से उठने को मन ही नहीं कर रहा था। रात काफी बीत चुकी थी किंतु चाँदनी की उज्ज्वलता में कोई कमी नहीं आई थी।

यह भी जानें

कवित्त – कवित्त वार्णिक छंद है, उसके प्रत्येक चरण में 31-31 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण के सोलहवें या फिर पंद्रहवें वर्ण पर यति रहती है। सामान्यतः चरण का अंतिम वर्ण गुरु होता है।

‘पाँयनि नूपुर’ के आलोक में भाव-साम्य के लिए पढ़ें
सीस मुकुट कटि काछनि, कर, मुरली उर माल।
यों बानक मौं मन सदा, बसौ बिहारी लाल ॥ -बिहारी
रीतिकालीन कविता का बसंत ऋतु का एक चित्र यह भी देखिए-
कूलन में केलि में कछारन में कुंजन में,
क्यारिन में कलित कलीन किलकत है।

कहै पदमाकर परागन में पौनहू में
पातन में पिक में पलासन पगंत है।
द्वारे में दिसान में दुनी में देस देसन में ।
देखौ दीपदीपन में दीपत दिगंत है।
बीथिन में ब्रज में नबेलिन में बेलिन में
बनन में बागन में बगस्यौ बसंत है ॥

HBSE 10th Class Hindi सवैया और कवित्त Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
देव के काव्य की भाषा का सार रूप में वर्णन कीजिए।
उत्तर-
देव के काव्य की भाषा साहित्यिक ब्रजभाषा है। भाषा के सौष्ठव, समृद्धि एवं अलंकरण पर देव का विशेष ध्यान रहा है। इनकी कविता में पद-मैत्री, यमक और अनुप्रास अलंकारों के पर्याप्त दर्शन होते हैं। भाषा में रसाता और गति कम पाई जाती है। कहीं-कहीं शब्द व्यय अधिक और अर्थ बहुत अल्प पाया जाता है। देव की भाषा में मुहावरों और लोकोक्तियों का सुंदर प्रयोग देखने को मिलता है।

प्रश्न 2.
देव के काव्य के कलापक्ष पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
देव के काव्य के अध्ययन से ज्ञात होता है कि उन्होंने परंपरागत काव्य-शैली का सफल प्रयोग किया है। उन्होंने कवित्त, सवैया आदि छंदों का सुंदर प्रयोग किया है। चित्रकला और अभिव्यञ्जना के सुंदर समन्वय की कला में देव का मुकाबला नहीं किया जा सकता। उन्होंने ब्रजभाषा के साहित्यिक रूप का प्रयोग किया है। देव ने ब्रजभाषा के साथ-साथ तत्सम, तद्भव, देशज, फारसी आदि के शब्दों का भी खुलकर प्रयोग किया है। रीतिकाल के कवियों में देव संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् थे, इसलिए उनके काव्य की भाषा भी पाण्डित्यपूर्ण है। उन्होंने विभिन्न अलंकारों के सफल प्रयोग से अपनी कविता को सजाया है।

प्रश्न 3.
कवि देव द्वारा चाँदनी रात का वर्णन किस रूप में किया गया है? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
उत्तर-
चाँदनी रात न केवल कवियों का ही मन आकृष्ट करती है, अपितु हर व्यक्ति को अच्छी लगती है। चाँदनी रात की आभा संसार को सुंदरता प्रदान करती है। कवि ने बताया है कि स्फटिक की शिलाओं से अमृत-सा उज्ज्वल भवन चमक उठता है। दही के सागर की तरंगें अपार मात्रा में चमक उठती हैं। चाँदनी की अधिकता के कारण दीवारें भी कहीं दिखाई नहीं देतीं। सारा भवन चाँदनी से नहाया हुआ-सा लगता है। राधा भी चाँदनी में झिलमिलाती हुई-सी लगती है; जैसे मोती की आभा में मल्लिका के पराग की सुगंध मिली हुई हो। चंद्रमा की जगमगाहट राधा के प्रतिबिंब का ही रूप लगता है।

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प्रश्न 4.
श्रीकृष्ण की हँसी की तुलना कवि ने चाँदनी से क्यों की है?
उत्तर-
जिस प्रकार चाँद की चाँदनी चारों ओर फैलकर वातावरण को सुंदर बना देती है; उसी प्रकार श्रीकृष्ण की हँसी भी सभी के चेहरों पर खुशी ला देती है। इसलिए कवि ने श्रीकृष्ण की हँसी की तुलना चाँदनी से की है। (ख) संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 5.
कवि ने सवैये में किस प्रकार की संतष्टि प्रदान की है?
उत्तर-
कविवर देव के प्रथम सवैये में श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का चित्रण किया गया है। कविवर देव द्वारा रचित सवैया में श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन किया गया है। प्रस्तुत कवितांश में कवि ने श्रीकृष्ण को ‘ब्रजदूल्हा’ के रूप में चित्रित किया है। श्रीकृष्ण को जिस रूप में चित्रित किया गया है वह रूप लोगों के मन को अत्यधिक भाता है। लोग श्रीकृष्ण के सुसज्जित रूप को देखकर अधिक संतुष्ट होते हैं। श्रीकृष्ण के इस रूप को देखकर उन्हें आत्मिक सुख व आनंद मिलता है। इस सवैये का महत्त्व इसी आत्मिक सुख व संतुष्टि में है।

प्रश्न 6.
देव के कवित्तों की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कवित्तों में कवि के सौंदर्यबोध का पता चलता है। प्रथम कवित्त में बसंत ऋतु का वर्णन परंपरा से हटकर किया गया है। कवि ने बसंत को बालक के रूप में चित्रित किया है। यह कवि की अत्यंत सुंदर कल्पना है। साथ ही कवि ने प्रकृति के विभिन्न अवयवों की भी सुंदर कल्पना की है। इसी प्रकार दूसरे कवित्त में चाँदनी रात के विभिन्न चित्र अंकित किए गए हैं। राधिका जी के रूप की उज्ज्वलता ही चंद्रमा की उज्ज्वलता के रूप में प्रतिबिंबित होने की सुंदर कल्पना की गई है। इन कवित्तों में कलात्मकता देखते ही बनती है। कवि ने प्रकृति के विभिन्न अवयवों को कल्पना के चाक पर चढ़ाकर अत्यंत सुंदर रूप प्रदान किया है।

प्रश्न 7.
‘देव दरबारी कवि थे’ इस विषय पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर-
निश्चय ही देव दरबारी कवि थे अर्थात् उन्होंने विभिन्न राजाओं के दरबार में रहकर उन्हें प्रसन्न करने के लिए काव्य लिखा है। देव के तीनों पठित कवितांशों में दरबारी संस्कृति के दर्शन होते हैं। इन तीनों कविताओं में दरबारी चमक-दमक तथा राजसी ठाठ-बाठ देखे जा सकते हैं। श्रीकृष्ण मुकुट, पाजेब, करधनी आदि आभूषणों से सुसज्जित हैं। तत्कालीन राजा भी आभूषण धारण करते थे। इसी प्रकार कवित्त में बालक बसंत को भी अत्यंत लाड-प्यार से पले बालक के समान दिखाया है। वृक्ष पालना झुलाते हैं तो विभिन्न पक्षी अपनी मधुर ध्वनियों से उसका मन बहलाते हैं। प्रातःकाल उसे कलियाँ चटकाकर जगाता है। इसी प्रकार दूसरे कवित्त में भी राधा के रूप-सौंदर्य का चित्रण किया गया है। इस कवित्त में राजाओं के महलों, राजसी वैभव का उद्दीपन रूप में चित्रण किया गया है। इन तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है कि देव दरबारी कवि थे तथा उनका काव्य दरबार के हाव-भाव के अनुकूल रखा गया है।

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कविवर देव ने ‘सवैया’ में किसकी सुंदरता का वर्णन किया है?
उत्तर-
कविवर देव ने ‘सवैया’ में श्रीकृष्ण की सुंदरता का वर्णन किया है।

प्रश्न 2.
बसंत रूपी बालक को किसका पुत्र बताया गया है?
उत्तर-
बसंत रूपी बालक को कामदेव का पुत्र बताया गया है।

प्रश्न 3.
श्रीकृष्ण की आँखें कैसी थीं?
उत्तर-
श्रीकृष्ण की आँखें बड़ी-बड़ी एवं चंचल थीं।

प्रश्न 4.
श्रीब्रजदूलह के किरीट कहाँ शोभा देता है?
उत्तर-
श्रीब्रजदूलह के किरीट माथे पर शोभा देता है।

प्रश्न 5.
हाथ की ताली बजाकर बसंत को कौन प्रसन्न करता है?
उत्तर-
हाथ की ताली बजाकर बसंत को कोयल प्रसन्न करती है।

प्रश्न 6.
‘श्रीब्रजदूलह’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
उत्तर-
श्रीब्रजदूलह’ शब्द श्रीकृष्ण के लिए प्रयुक्त हुआ है।

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प्रश्न 7.
कवि ने चंद्रमा को किसका प्रतिबिंब बताया है?
उत्तर-
कवि ने चंद्रमा को राधा के मुख का प्रतिबिंब बताया है।

प्रश्न 8.
‘पवन झुलावै, केकी-कीर बतरावै’-यहाँ ‘कीर’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
यहाँ ‘कीर’ का अर्थ तोता है।

प्रश्न 9.
कवि के अनुसार भवन में किसकी तरंगों-सा अपार आनंद उमड़ रहा है?
उत्तर-
कवि के अनुसार भवन में दही के समुद्र की तरंगों-सा अपार आनंद उमड़ रहा है।

प्रश्न 10.
‘मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई’–यहाँ जुन्हाई’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
यहाँ ‘जुन्हाई’ का अर्थ चाँदनी है।

प्रश्न 11.
‘जै जग-मंदिर-दीपक’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर-
इसमें रूपक अलंकार है।

प्रश्न 12.
श्रीकृष्ण की कमर पर क्या बंधी हुई थी? ।
उत्तर-
श्रीकृष्ण की कमर पर किंकिनि (तगड़ी) बँधी हुई थी।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कविवर देव ने ‘सवैया’ में किसकी सुंदरता का वर्णन किया है?
(A) श्रीकृष्ण की
(B) राधिका की
(C) श्रीराम की
(D) सीता की
उत्तर-
(A) श्रीकृष्ण की

प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण ने पैरों में क्या पहना है?
(A) पायल
(B) कंगन
(C) नूपुर
(D) माला
उत्तर-
(C) नूपुर

प्रश्न 3.
‘कटि’ का अर्थ है
(A) कटी हुई
(B) पतली
(C) कमर
(D) पेट
उत्तर-
(C) कमर

प्रश्न 4.
श्रीकृष्ण किंकिनि कहाँ पहने हैं?
(A) कटि में
(B) पाँयनि में
(C) माथे पर
(D) वक्षस्थल पर
उत्तर-
(A) कटि में

प्रश्न 5.
श्रीकृष्ण ने किस रंग के कपड़े पहने थे?
(A) लाल
(B) पीले
(C) नीले
(D) काले
उत्तर-
(B) पीले

प्रश्न 6.
श्रीकृष्ण ने माथे पर क्या धारण किया हुआ था?
(A) साफा
(B) ताज
(C) कलगी
(D) मुकुट
उत्तर-
(D) मुकुट

प्रश्न 7.
श्रीकृष्ण ने किरीट कहाँ पहना हुआ है?
(A) पाँयनि में
(B) माथे पर
(C) वक्षस्थल पर
(D) कटि में
उत्तर-
(B) माथे पर

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प्रश्न 8.
‘जग-मंदिर’ किसे कहा गया है?
(A) पृथ्वी को
(B) समुद्र को
(C) मंदिर को
(D) संसार को
उत्तर-
(D) संसार को

प्रश्न 9.
कवि के अनुसार श्रीब्रज दूलह कौन हैं?
(A) विष्णु
(B) श्रीकृष्ण
(C) ग्वाले
(D) बाबा नंद
उत्तर-
(B) श्रीकृष्ण

प्रश्न 10.
‘जै जग-मंदिर-दीपक’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) उपमा
(B) अनुप्रास
(C) पुनरुक्ति प्रकाश
(D) रूपक
उत्तर-
(D) रूपक

प्रश्न 11.
‘डार द्रुम …………. गुलाब चटकारी दै’ कविता में किसका वर्णन किया गया है?
(A) वर्षा ऋतु का
(B) ग्रीष्म ऋतु का
(C) बसंत ऋतु का
(D) शरद ऋतु का
उत्तर-
(C) बसंत ऋतु का

प्रश्न 12.
बसंत से कौन-कौन बातें करते हैं?
(A) चिड़िया और कौआ
(B) मोरनी और तोता
(C) कबूतर और गिद्ध
(D) कोयल और बगुला
उत्तर-
(B) मोरनी और तोता

प्रश्न 13.
बसंत में झूला कौन झुलाता है?
(A) पवन
(B) कोयल
(C) मेघ
(D) भौंरा
उत्तर-
(A) पवन

प्रश्न 14.
कवि ने बसंत को किसका पुत्र बताया है?
(A) ब्रह्मा का
(B) इंद्रदेव का
(C) कुबेर का
(D) कामदेव का
उत्तर-
(D) कामदेव का

प्रश्न 15.
‘मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई’ यहाँ ‘जुन्हाई’ का अर्थ है
(A) जादूई हँसी
(B) जुदाई
(C) चाँदनी
(D) चंद्रमा
उत्तर-
(C) चाँदनी

प्रश्न 16.
फर्श पर फैली चाँदनी कैसी लग रही थी?
(A) सागर-सी
(B) दूध की झाग-सी
(C) सफेद वस्त्र-सी
(D) बादल-सी
उत्तर-
(B) दूध की झाग-सी

प्रश्न 17.
दूसरे कक्ति में किसके सौंदर्य का चित्रण किया गया है?
(A) श्रीकृष्ण के
(B) राधिका के
(C) सीता के
(D) इंद्र की पत्नी शची के
उत्तर-
(B) राधिका के

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प्रश्न 18.
द्वितीय पद्य में किसका चित्रण किया गया है?
(A) अंधेरी रात का
(B) आधी रात का
(C) पूर्णिमा की रात का
(D) चाँदनी रात का
उत्तर-
(C) पूर्णिमा की रात का

प्रश्न 19.
‘पवन झुलावै, केकी-कीर बतरावै’ यहाँ ‘कीर’ का अर्थ है-
(A) कीकर
(B) तोता
(C) खीर
(D) मोर
उत्तर-
(B) तोता

प्रश्न 20.
कवि ने बसंत को किस रूप में चित्रित किया है?
(A) बालक रूप में
(B) युवा रूप में
(C) किशोर रूप में
(D) वृद्ध रूप में
उत्तर-
(A) बालक रूप में

प्रश्न 21.
‘मदन’ शब्द का अर्थ है
(A) नशा
(B) कामदेव
(C) अभिमान
(D) शराब
उत्तर-
(B) कामदेव

सवैया और कवित्त पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. सवैया

[1] पाँयनि नूपुर मंजु बसें, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई। माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई। जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सहाई ॥ [पृष्ठ 20]

शब्दार्थ-पाँयनि = पाँव। नूपुर = पायल। मंजु = सुंदर। कटि = कमर। किंकिनि = करधनि। लसै = सुंदर लगती है। पट = वस्त्र। पीत = पीला। हिये = हृदय। हुलसै = आनंदित होना। बनमाल = फूलों की माला। सुहाई = सुशोभित होना। किरीट = मुकुट । दृग = आँखें। मंद = धीमी। मुखचंद = चाँद-सा मुख । जुन्हाई = चाँदनी रात। जग-मंदिर = संसार रूपी मंदिर। श्रीब्रजदूलह = श्रीकृष्ण। सहाई = सहायक।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस सवैये का प्रसंग स्पष्ट करें।
(ग) प्रस्तुत सवैये की व्याख्या कीजिए।
(घ) श्रीकृष्ण ने पाँव में क्या पहना हुआ है?
(ङ) श्रीकृष्ण की कमर में मधुर ध्वनि किस कारण से उत्पन्न हो रही है?
(च) श्रीकृष्ण के मुख एवं नेत्रों की शोभा का वर्णन कीजिए।
(छ) ‘जग-मंदिर-दीपक’ किसे कहा गया है?
(ज) ‘ब्रजदूलह’ किसे कहा गया है? उसके रूप-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(झ) प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ञ) प्रस्तुत पद के शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ट) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त भाषागत विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम देव। कविता का नाम-सवैया।

(ख) प्रस्तुत सवैया कविवर देव के श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य संबंधी ‘सवैयों’ में से लिया गया है। इसमें उन्होंने बालक श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का अत्यंत मनोरम चित्रण किया है।

(ग) कवि देव श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि श्रीकृष्ण के पाँवों में सदैव धुंघरू वाली पाजेब बजती रहती है जो पाँवों की सुंदरता को बढ़ाती है। उनकी कमर पर बँधी हुई तगड़ी की मधुर ध्वनि भी उनके चलते समय सुनाई देती है। उनके साँवले शरीर पर पीले वस्त्र सुशोभित हो रहे हैं। उनके गले में वन के फूलों की माला बड़ी मनोहर लग रही है। श्रीकृष्ण के माथे पर मुकुट विराजमान है। उनकी बड़ी-बड़ी आँखें अत्यंत चंचल हैं। उनके चेहरे की हँसी ऐसी लगती है मानो चाँद की चाँदनी ही उनके चेहरे पर उतर आई हो। इस संसार रूपी मंदिर में ब्रज के दूल्हे श्रीकृष्ण दीपक के समान हैं। कवि कामना करता है कि विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण सबके सहायक बने रहें।

(घ) श्रीकृष्ण ने अपने पाँवों में धुंघरुओं वाली पाजेब पहनी हुई है।

(ङ) श्रीकृष्ण ने अपनी कमर में करधनी (तगड़ी) पहनी हुई है। उसके किनारे पर छोटे-छोटे घुघरू बँधे हुए हैं। जब भी बालक कृष्ण चलता है तो धुंघरू हिलने के कारण बजते हैं। इस कारण ही श्रीकृष्ण की कमर से मधुर ध्वनि उत्पन्न होती है।

(च) श्रीकृष्ण के मुख पर सदा मंद-मंद हँसी बिखरी रहती है। उनका मुख चंद्रमा के समान उज्ज्वल प्रतीत होता है तथा उनके नेत्र विशाल एवं चंचल हैं।

(छ) ‘जग-मंदिर’ संसार को कहा गया है और ‘दीपक’ श्रीकृष्ण को। संसार रूपी मंदिर में श्रीकृष्ण दीपक के समान सुशोभित हैं।

(ज) ‘ब्रजदूलह’ बालक श्रीकृष्ण को कहा गया है। वे ब्रज प्रदेश में सबसे सुंदर हैं। उनके पाँवों में पाजेब, कमर में धुंघरू वाली करधनी, साँवले शरीर पर पीले वस्त्र सुशोभित हैं और उनका मुख चाँद के समान सुंदर तथा नेत्र विशाल एवं चंचल हैं। इस प्रकार वे सजे हुए दूल्हे के समान लगते हैं।

(झ) इस पद में कवि ने श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन परंपरागत रूप से किया है। इसमें बालक कृष्ण की मनोरम छवि को अंकित किया है। बालक कृष्ण का रूप अत्यंत आकर्षक है जो बरबस सबका मन अपनी ओर खींच लेता है।

(ज)

  • कवि ने इस सवैये में श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य को कलात्मकतापूर्ण व्यक्त किया है।
  • इस काव्यांश में ब्रजभाषा का सुंदर एवं सटीक प्रयोग हुआ है।
  • सवैया छंद का प्रयोग देखते ही बनता है।
  • भाषा सुकोमल एवं माधुर्यगुण संपन्न है।
  • रूपक एवं अनुप्रास अलंकारों का सफल प्रयोग किया गया है।

(ट) इस काव्यांश में ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है। भाषा माधुर्यगुण संपन्न है। भाषा आदि से अंत तक संगीत एवं प्रवाहमयी बनी हुई है। भाषा में विषयानुकूल शब्दावली का प्रयोग किया गया है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

2. कवित्त

[1] डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावें ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै॥
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै॥ [पृष्ठ 21]

शब्दार्थ-डार द्रुम = पेड़ की डाल। बिछौना = बिस्तर। नव पल्लव = नए पत्ते। झिंगूला = फूलों का झबला, ढीला-ढाला वस्त्र। सोहै = सुशोभित है। छबि = सुंदरता। केकी = मोर। कीर = तोता। बतरावें = बाँटना, हाल बाँटना। कोकिल = कोयल। हुलसावै = प्रसन्न करती है। कर तारी दै = हाथ की ताली देकर। पूरित = भरा हुआ। पराग = फूलों के सुगंधित कण। उतारो करै राई नोन = बच्चे की नज़र उतारने के लिए उसके सिर के चारों ओर राई-नमक घुमाकर आग में जलाने की क्रिया। कंजकली= कमल की कली। लतान = लताओं की। मदन = कामदेव। महीप = राजा। ताहि = उसे। चटकारी = चुटकी।

प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत काव्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत कवित्त की व्याख्या कीजिए।
(घ) इस पद में किस ऋत का वर्णन किस रूप में किया गया है?
(ङ) कवि ने किन-किन पक्षियों का किस-किस रूप में वर्णन किया है?
(च) कमल की कली रूपी नायिका बालक की नज़र क्यों उतार रही है?
(छ) इस काव्यांश में कवि ने किन-किन अमूर्त वस्तुओं को मूर्त रूप में प्रस्तुत किया है?
(ज) लताओं को देखकर कवि ने क्या कल्पना की है?
(झ) प्रातः किस प्रकार बसंत का स्वागत करती है?
(ञ) इस पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ट) इस पद में निहित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालें।
(ठ) इस पद में प्रयुक्त किन्हीं दो अलंकारों को स्पष्ट कीजिए।
(ड) उपर्युक्त काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-देव। कविता का नाम-कवित्त।

(ख) प्रस्तुत कवित्त हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित देव के कवित्तों में से उद्धृत है। इस कवित्त में कवि ने बसंत ऋतु का प्राकृतिक चित्रण किया है। बसंत को बालक रूप में चित्रित करके प्रकृति के साथ उसका रागात्मक संबंध दिखाया है।

(ग) कवि का कथन है कि बसंत रूपी बालक के लिए वृक्षों की डालियाँ पलना बन गईं तथा नए-नए पत्तों अर्थात् कोपलों का बिछौना (शैय्या) बन गया। कहने का भाव है कि बसंत रूपी बालक के सोने का सुंदर प्रबंध हो गया। उसके वस्त्र पुष्पों के हैं जो अत्यंत सुंदर हैं। उसके झूले को मंद-मंद गति से चलने वाली वायु झुला रही है। कवि देव का कथन है कि मोरनी और तोते उसे मीठी वाणी से आनंदित करते हैं लोरियाँ सुनाते हैं। कोयल अपने हाव-भाव से उसे प्रसन्न करने की चेष्टा करती है। मानों वह ताली बजाकर बच्चे को बहला रही है। कंजकली (कमल की कली) रूपी नायिका अपने पूर्ण सौंदर्य के रस से सनी हुई लताओं की साड़ी को सिर पर धारण कर, उस बच्चे की राई नोन उतारती अर्थात् उस पर आई आपत्तियाँ मिटाने का प्रयत्न करती है। कामदेव के पुत्र बसंत को प्रायः विमल कली चुटकी बजाकर जगाती है। जैसे माता बच्चे को प्यार से जगाती है, उसी प्रकार कली बसंत रूपी बालक को बड़े ध्यान से चुटकी बजाकर जगाने का प्रयत्न करती है।

(घ) प्रस्तुत पद में बसंत ऋतु का वर्णन एक बालक के रूप में किया गया है।

(ङ) कवि ने मोर और तोते को अपनी मधुर आवाज़ में बसंत रूपी बालक के साथ बातें करते हुए दिखाया है। कोयल को उल्लास में भरकर तथा करतल बजाकर बसंत रूपी बालक का पालना हिलाते हुए दिखाया है।

(च) बसंत रूपी बालक बहुत सुंदर है, जो सुंदर होते हैं उन्हें नज़र लगने का डर रहता है। इसलिए कमल की कली रूपी नायिका बसंत रूपी बालक की नज़र उतार रही है।

(छ) कवि ने यहाँ बसंत, फूल, कमल की कली, गुलाब आदि अमूर्त को मूर्त रूप में प्रस्तुत करके इनका मानवीकरण भी किया है। इसी प्रकार मोर, तोता, कोयल आदि का भी मानवीकरण किया गया है।

(ज) लताओं को देखकर कवि ने कल्पना की है कि मानो यह नायिका की ज़रीदार और फूलदार साड़ी है जिसे नायिका ने सिर तक ओढ़ रखा है।

(झ) प्रातःकाल, गुलाब का फूल लेकर बसंत रूपी बालक को जगाने आता है। वह उसे जगाकर सुगंधित झोंके से प्रसन्न करना

(ञ) प्रस्तुत कवित्त में कवि ने प्रकृति को उद्दीपन रूप में चित्रित किया है। बसंत को वैभव-विलास में पहले सुकोमल बालक के रूप में चित्रित किया गया है। प्रकृति के विभिन्न अंग बालक को प्रसन्न रखने का प्रयास करते हैं। कवि की कल्पनाएँ अत्यंत आकर्षक एवं मनोरम बन पड़ी हैं।

(ट)

  • तत्सम शब्दावली युक्त ब्रजभाषा का सफल प्रयोग किया गया है।
  • भाषा माधुर्यगुण संपन्न है।
  • कवित्त छंद का सफल प्रयोग द्रष्टव्य है।
  • वात्सल्य रस का वर्णन हुआ है।
  • संपूर्ण कवित्त का प्रमुख अलंकार मानवीकरण है। साथ ही रूपक एवं अनुप्रास अलंकारों की छटा भी द्रष्टव्य है।

(ठ) मानवीकरण-इसमें पवन को झूला झुलाते हुए दिखाया गया है। बसंत को बालक के रूप में दिखाया गया है। गुलाब का फूल चुटकी बजाकर बालक बसंत को जगाता है। इस प्रकार पवन, बसंत, गुलाब के फूल का मानवीकरण किया गया है।
रूपक-मदन महीप, बालक बसंत, कंजकली नायिका आदि में रूपक अलंकार है।

(ड) कवि देव ने इन काव्य पंक्तियों में साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। इस भाषा में माधुर्य गुण विद्यमान है। उन्होंने ब्रजभाषा में प्रचलित लोकभाषा के शब्दों का प्रयोग किया है। तत्सम और तद्भव शब्दों का सफल प्रयोग भाषा में आदि से अन्त तक दिखलाई पड़ता है। लोक प्रचलित मुहावरों के प्रयोग से भाषा सारगर्भित एवं प्रभावशाली बन पड़ी है।

[2] फटिक सिलानि सौं सुधार्यो सुधा मंदिर,
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए ‘देव’,
दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद।
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद ॥ [पृष्ठ-22]

शब्दार्थ-फटिक = स्फटिक मणि, संगमरमर। सिलानि = शिलाएँ, पत्थर। सुधार्यो = बना हुआ। सुधा = चूना। उदधि= समुद्र। उमगे = उमड़ पड़ रहा है। अमंद = जो कम न हो, अत्यधिक। भीति = दीवार। फेन = झाग। फरसबंद = चबूतरा। तरुनि = तरुणी (राधिका)। ठाढ़ी = खड़ी हुई। जोति = ज्योति। मल्लिका = बेले की जाति का एक सफेद फूल । मकरंद = पराग। आरसी = एक गोल आभूषण जिसमें छोटा-सा दर्पण लगा होता था। स्त्रियाँ उसे हाथ के अंगूठे में पहनती थीं। अंबर = आकाश। आभा = चमक। उजारी = प्रकाश, चाँदनी।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस कवित्त का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत कवित्त की व्याख्या कीजिए।
(घ) पद के अनुसार भवन में किसकी तरंगों-सा अपार आनंद उमड़ रहा है?
(ङ) आँगन और फर्श पर चाँदनी किस प्रकार फैली हुई थी?
(च) राधा में किसकी ज्योति और सुगंध मिली हुई थी?
(छ) पठित पद में आकाश कैसा प्रतीत हो रहा है?
(ज) चाँद की तुलना राधा से क्यों की गई है?
(झ) इस कवित्त में किस समय का वर्णन किया गया है?
(ञ) प्रस्तत कवित्त में निहित भाव-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ट) इस कवित्त में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ठ) उपर्युक्त काव्यांश की भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम देव। कविता का नाम-कवित्त।

(ख) प्रस्तुत कवित्त हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित देव के कवित्तों में से लिया गया है। इस कवित्त में कवि ने दूध से नहाई हुई पूर्णिमा की चाँदनी रात का वर्णन किया है। चाँद और तारों की छटा अनोखी है।

(ग) कवि का कथन है कि राधा का रंगमहल सफेद संगमरमर के पत्थरों से बना हुआ है। उस सफेद रंगमहल में आनंद ऐसे उमड़ रहा है, जैसे दही का समुद्र ऊँची हिलोरें ले रहा हो। देव कवि कहते हैं कि शुभ्रता (सफेदी) के कारण बाहर से भीतर तक महल की दीवारें दिखाई नहीं दे रही हैं। उस महल के आँगन के चबूतरे पर दूध का झाग-सा फैला हुआ है, मानों दूध की तरह सफेद फर्शबंद (कालीन) से उसे ढक दिया गया हो। उस भव्य और सफेद महल के सफेद कालीन पर खड़ी हुई तरुणी राधा अपने ही प्रकाश से झिलमिला रही है। राधा की मुस्कुराहट से मोतियों को सफेद चमक मिलती है और मल्लिका के फूलों को सुगंधित शुभ्रता। राधा की गुराई (गोरा रंग) इतनी प्रभावपूर्ण है कि दर्पण की तरह चमकने वाले आकाश में प्रकाश फैला रही है। ऐसा प्रतीत होता है मानों चंद्रमा प्यारी राधा का प्रतिबिंब हो। चंद्रमा राधा के गोरे मुख से चमक रहा है। इसलिए राधा का गोरा रंग संसार की सभी वस्तुओं की शुभ्रता का कारण है।

(घ) भवन में दही के समुद्र-सी तरंगों का अपार आनंद उमड़ रहा है।

(ङ) आँगन और फर्श पर दूध की झाग-सी चाँदनी फैली हुई है।

(च) राधा में मोतियों की चमक और मल्लिका (जूही) की सुगंध मिली हुई है।

(छ) पठित पाठ से पता चलता है कि चाँदनी रात में आकाश आइने के समान साफ, स्वच्छ और उज्ज्वलता से परिपूर्ण लगता है।

(ज) आकाश में चाँद असंख्य तारों के बीच अकेला होता है जिसकी चाँदनी से सारा आकाश नहाया हुआ-सा लगता है। इसी प्रकार अनेक गोपियों के बीच राधा का सौंदर्य भी अलग ही प्रतीत होता है। वह सबसे अलग नज़र आती है। इसीलिए कवि ने चाँद में राधिका के प्रतिबिंब की कल्पना की है।

(झ) इस कवित्त में रात्रि का वर्णन किया गया है। यह पूर्णिमा की रात्रि है। इसमें संपूर्ण प्रकृति चाँद की चाँदनी में नहाई-सी प्रतीत होती है।

(ञ) प्रस्तुत पद में कवि ने पूर्णिमा की चाँदनी रात का मनोहारी चित्रण किया है। आकाश को चाँदनी में नहाया हुआ बताया गया है। चाँदनी रात की आभा के माध्यम से कवि ने राधा की अपार सुंदरता का वर्णन किया है। उसकी सुंदरता से ही मानो चाँद ने भी सुंदरता प्राप्त की है। चाँद की चाँदनी का प्रभाव अति व्यापक है जिसने सारे भवन को भी उज्ज्वलता प्रदान की है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

(ट)

  • तत्सम शब्दावली युक्त ब्रजभाषा का सफल प्रयोग किया गया है।
  • कवित्त छंद है।
  • माधुर्य गुण विद्यमान है।
  • उत्प्रेक्षा, उपमा, रूपक, अनुप्रास आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
  • शृंगार रस का परिपाक हुआ है।

(ठ) देव-कृत इन काव्य पंक्तियों में शुद्ध साहित्यिक ब्रजभाषा का सफल प्रयोग किया गया है। उन्होंने संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग भी किया है, फलस्वरूप कहीं-कहीं भाषा कुछ जटिल बन गई है। अलंकारों के सही प्रयोग से भाषा एवं विषय में रोचकता उत्पन्न की गई है। भाषा पांडित्य लिए हुए है।

सवैया और कवित्त Summary in Hindi

सवैया और कवित्त कवि-परिचय

प्रश्न-
कविवर देव का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-रीतिकालीन काव्य-परंपरा के कवियों में ‘देव’ का विशिष्ट स्थान है। इनका पूरा नाम देवदत्त द्विवेदी था। इनके पूर्ण जीवन-वृत्त के बारे में विद्वानों को अधिक ज्ञान प्राप्त नहीं हो पाया। ‘भाव प्रकाश’ के एक दोहे के अनुसार इनका जन्म इटावा में सन् 1673 में हुआ था। इनके जन्म-स्थान के बारे में एक उक्ति भी है-
“योसरिया कवि देव को नगर इटावो वास।”

कुछ विद्वानों ने कविवर बिहारी को इनका पिता माना है, लेकिन अन्य लोग कहते हैं कि इनके पिता वंशीधर थे। इनका कोई भाई नहीं था, परंतु दो पुत्र थे भवानी प्रसाद और पुरुषोत्तम । कवि देव के गुरु श्री हितहरिवंश थे, जो वृंदावन में रहते थे। देव किसी भी राजा या नवाब के यहाँ अधिक देर तक नहीं टिक सके। आज़मशाह, राजा सीताराम, कुशल सिंह तथा राजा योगी लाल आदि के यहाँ इन्होंने आश्रय ग्रहण किया। ये लगभग समूचे देश में भ्रमण करते रहे। इनका देहांत सन् 1767 के आस-पास माना जाता है। इनके वंशज अब भी इटावा में रहते हैं।

2. रचनाएँ-कवि देव की रचनाओं की संख्या 52 या 72 मानी जाती है, लेकिन डॉ० नगेंद्र ने इनके ग्रंथों की संख्या 20 मानी है। इनके उल्लेखनीय ग्रंथों में ‘भाव-विलास’, ‘रस-विलास’, ‘भवानी-विलास’, ‘कुशल-विलास’, ‘सुमिल विनोद’, ‘सुजान विनोद’, ‘काव्य-रसायन’, ‘जयसिंह विनोद’, ‘अष्टयाम’, ‘प्रेम-चंद्रिका’, ‘वैराग्य-शतक’, ‘देव-चरित्र’, ‘देवमाया प्रपंच’ तथा ‘सुखसागर तरंग’ आदि हैं। इनके नाम के साथ कुछ संस्कृत की रचनाएँ भी जुड़ी हुई हैं।

3. काव्यगत विशेषताएँ-देव ने केशव की भाँति कवि और आचार्य कर्म, दोनों का निर्वाह किया। इन्होंने तीन प्रकार की रचनाएँ लिखीं-(क) रीति-शास्त्रीय ग्रंथ, (ख) शृंगारिक काव्य (ग) भक्ति-वैराग्य तथा तत्त्व-चिंतन संबंधी काव्य। देव के काव्य-शास्त्रीय ग्रंथों से प्रतीत होता है कि ये रसवादी आचार्य थे। दर्शन-शास्त्र, ज्योतिष, आयुर्वेद तथा काम-शास्त्र आदि का इनको पूर्ण ज्ञान था। महाकवि देव एक रुचि-संपन्न तथा प्रतिभा-संपन्न कवि थे। इन्होंने विशाल काव्य की रचना की। रीतिकाल में इनका स्थान सर्वोच्च है। आचार्य एवं कवि होने के कारण इनका काव्य रीतिकालीन प्रवृत्तियों की कसौटी पर खरा उतरता है। इनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार से हैं

(i) सौंदर्य-वर्णन-नायक-नायिका का सौंदर्य-वर्णन करने में कवि देव को सफलता प्राप्त हुई है। इनका सौंदर्य-वर्णन अतींद्रिय और वायवी न होकर स्थूल और मांसल है। अतः यह इंद्रिय ग्राह्य एवं पार्थिव जगत् की विभूति है। कवि देव ने नायिका के सौंदर्य का वर्णन करते समय उसके विभिन्न अंगों का आकर्षक वर्णन किया है। एक उदाहरण देखिए-

रूप के मंदिर तो मुख में मनि दीपक से दृग है अनुकूले।
दर्पन में मनि, मीन सलील सुधाकर नील सरोज से फूले ॥
‘देवजू’ सुरमुखी मृदु कूल के भीतर भौंर मनो भ्रम भूले।
अंक मयंकज के दल पंकज, पंकज में मनो पंकज फूले ॥

(ii) शृंगार-वर्णन-देव रीतिकालीन शृंगारी कवि थे। इन्होंने अपने काव्य में सच्चे प्रेम का अत्यंत सुंदर वर्णन किया है। इन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘प्रेम-चन्द्रिका’ में प्रेम का सजीव एवं क्रमबद्ध वर्णन किया है। इसमें इन्होंने प्रेम का लक्षण, स्वरूप, महत्त्व, भेद आदि का अत्यंत सूक्ष्म वर्णन किया है। कवि ने नायिका के सौंदर्य, चपलता, अंग-विभा आदि का अत्यंत मार्मिक वर्णन किया है। देव के शृंगारिक काव्य के चित्र बड़े सुंदर एवं सजीव हैं। देव के शृंगारिक-वर्णन का निम्नलिखित उदाहरण देखिए-

धार में धाइ धसी निरधार है, जाइ फँसी उकसी न उफरी,
री अँगराय गिरी गहरी, गहि फेरे फिरी न फिरी नहिं घेरौं।
देव कछू अपनो बसु ना, रस लालच लाल चितै भईं चेरी,
बेगि ही बूड़ि गईं पँखियाँ, अँखियाँ मधु की मखियाँ भईं मेरीं ॥

(iii) वियोग श्रृंगार-देव के काव्य में विरह के मार्मिक चित्र अंकित किए गए हैं। इनके विरह-वर्णन में दीनता, व्याकुलता और प्रेम की गहन कूक है। इन्होंने अपने काव्य में विरह की सभी दशाओं का वर्णन किया है। कवि ने एक विरहिणी की दशा का वर्णन करते हुए लिखा है
साँसन ही सों समीर गयो अरु, आँसन ही सब नीर गयो ढरि
तेज गयो गुन लौ अपनो अरु भूमि गई तन की तनुता करि।

कहने का भाव यह है कि यह पाँच तत्त्वों से बना शरीर विरह की आग में जलकर समाप्त हो गया है तथा केवल शून्य तत्त्व ही शेष रह गया है।

(iv) रीति-शास्त्रीय विवेचन देव कवि का रीतिकालीन आचार्य कवियों में प्रमुख स्थान है। इन्होंने 20 से भी अधिक रीति-ग्रंथों की रचना की है। इन्होंने अपने रीति-ग्रंथों में नायिका-भेद तथा शृंगार-रस का निरूपण सविस्तार किया है। इनके रीति-ग्रंथों में मौलिकता का अभाव है। इन रीति-ग्रंथों में वे सभी कमियाँ देखी जा सकती हैं, जो उस युग के अन्य आचार्य कवियों के ग्रंथों में पाई जाती थीं। देव आचार्य की अपेक्षा कवि अधिक प्रतीत होते हैं। इन्होंने जिस काव्य की रचना अपने आचार्यत्व के घेरे से मुक्त होकर की, उस काव्य को अत्यंत सफलता मिली है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

(v) भक्ति और वैराग्य की भावना-देव कवि के काव्य में ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का अत्यंत मार्मिक वर्णन हुआ है। देव की भक्ति-संबंधी रचनाओं में शांत-रस का सुंदर परिपाक हुआ है। जीवन के अंतिम समय में इनमें भक्ति और वैराग्य की भावना उत्पन्न हुई थी। अतः कवि ने अपने जीवन के अनुभव के आधार पर भक्ति और तत्त्व-चिंतन पर रचनाएँ लिखीं। ‘देव चरित्र’, ‘देव शतक’ आदि रचनाएँ इसी कोटि में आती हैं। देव अपने मन को डराते एवं समझाते हुए लिखते हैं

ऐसो हौं जु जानतो कि जैहै तू विषै के संग
ए रे मन मेरे, हाथ-पाँय तेरे तोरतो।

अर्थात् हे मन! यदि मैं यह जानता कि तू विषय-वासनाओं में डूब जाएगा तो मैं तेरे हाथ-पाँव तोड़ देता। इसके साथ ही कवि अपने मन को कृष्ण-भक्ति के समुद्र में डुबाने की इच्छा भी व्यक्त करता है।

(vi) प्रकृति-चित्रण-रीतिकालीन अन्य कवियों की भाँति देव ने भी प्रकृति का चित्रण पृष्ठभूमि के रूप में ही किया है। देव ने प्रकृति के अनेक चित्र बड़ी भावपूर्णता के साथ अंकित किए हैं। कवि पूनम की रात में रास-लीला का वर्णन करते हुए भाव-विभोर हो उठता है तथा लिखता है
झहरि झहरि झीनी बूंद हैं परति मानों,
घहरि घहरि घटा घेरि हैं गगन में।

4. भाषा-शैली-कविवर देव ने प्रायः मुक्तक काव्य-शैली को अपनाया। चित्रकला के रमणीय संयोजन तथा अभिव्यक्ति व्यञ्जना-कौशल में वे अद्वितीय हैं। इन्होंने प्रायः साहित्यिक ब्रजभाषा का ही प्रयोग किया है। इनकी भाषा में माधुर्य गुण विद्यमान है। इस भाषा में इन्होंने ब्रज-प्रदेश में प्रचलित तद्भव और देशज शब्दों का भी सुंदर मिश्रण किया है।

देव का शब्द-कोश काफी समृद्ध है। इसके साथ ही, ये भाषा के अच्छे पारखी भी हैं। व्याकरण की दृष्टि से इनकी भाषा सर्वथा दोषहीन कही जा सकती है। देव की भाषा के विषय में आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है, “अधिकतर इनकी भाषा में प्रवाह पाया जाता है। कहीं-कहीं शब्द-व्यय बहुत अधिक है और कहीं-कहीं अर्थ अल्प भी। अक्षर-मैत्री के ध्यान से इन्हें कहीं-कहीं अशक्त शब्द रखने पड़ते थे, जो कहीं-कहीं अर्थ को आच्छन्न करते थे। तुकांत और अनुप्रास के लिए ये कहीं-कहीं शब्दों को तोड़ते-मरोड़ते व वाक्य को भी अविन्यस्त कर देते थे।”

देव ने शब्दालंकारों के साथ-साथ अर्थालंकारों का भी सफल प्रयोग किया है। फिर भी अनुप्रास तथा यमक इनके प्रिय अलंकार हैं। अर्थालंकारों में इन्होंने उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि का प्रयोग किया है। कवित्त और सवैया इनके प्रिय छंद हैं। इनकी काव्य-भाषा में लाक्षणिकता एवं व्यञ्जनात्मकता भी देखी जा सकती है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि देव, रीतिकाल के एक श्रेष्ठ कवि थे। भाव और भाषा, दोनों दृष्टियों से इनका काव्य उच्च-कोटि का है। इन्होंने आचार्य और कवि दोनों के कर्मों का अनुकूल निर्वाह किया।

सवैया और कवित्त कविता का सार

प्रश्न-
सवैया एवं कवित्त का सार लिखिए।
उत्तर-
सवैया-कवि देव के द्वारा रचित सवैये में बालक श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का चित्रण किया गया है। बालक कृष्ण के पाँवों में पड़ी पाजेब अत्यंत मधुर ध्वनि करती है। उनकी कमर में करधनी है और पीले रंग के वस्त्र भी अत्यंत सुशोभित हैं। उनके माथे पर मुकुट है। उनकी आँखें चंचल एवं सुंदर हैं। उनकी मंद-मंद हँसी बहुत ही मधुर एवं उज्ज्वल है। इस संसार रूपी मंदिर में उनकी शोभा दीपक के समान फैली हुई है।

कक्ति-कवि देव ने कवित्तों में बालक को बसंत रूप में दिखाकर प्रकृति के साथ उसका संबंध जोड़ा है। ऐसा लगता है मानो बालक बसंत में पेड़ों के पलने पर झूलता है और भाँति-भाँति के फूल उनके शरीर पर ढीले-ढीले वस्त्रों के रूप में सजे हुए हैं। हवा उन्हें झूला झुलाती है। मोर, तोते आदि उससे बातें करते हैं। कोयल उसका मन बहलाती है। कमल की कली रूपी नायिका उसकी नज़र उतारती है। कामदेव बालक बसंत को प्रातःकाल ही उठा देता है। दूसरे कवित्त में कवि ने रात्रिकालीन छवि का वर्णन किया है। कवि ने रात की चाँदनी की तुलना दूध के फैन जैसे पारदर्शी बिंबों से की है। चारों ओर चाँदनी छाई हुई है। तारों की भाँति झिलमिल करती हुई राधा की अंगूठी दिखाई दे रही है। उसके शरीर का हर अंग शोभायुक्त है। चाँदनी जैसे रंग वाली राधा चाँदनी रात में स्फटिक के महल में छिपी-सी रहती है।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

HBSE 10th Class Hindi राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए?
उत्तर-
परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने तर्क देते हुए कहा कि हमने बचपन में ऐसे अनेक’धनुष तोड़े हैं। इसी धनुष को तोड़ने पर आपको क्रोध क्यों आया। क्या आपकी इस धनुष के प्रति अधिक ममता थी। हमारी दृष्टि में तो सभी धनुष समान हैं फिर इस धनुष के टूटने पर आपने क्रोध क्यों व्यक्त किया। यह धनुष तो अत्यधिक पुराना था जोकि श्रीराम के छूने मात्र से ही टूट गया। फिर भला इसमें श्रीराम का क्या दोष है।

प्रश्न 2.
परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं उनके आधार पर कहा जा सकता है कि श्रीराम स्वभाव से अत्यंत शांत एवं गंभीर हैं। धनुष के टूट जाने पर श्रीराम ने परशुराम से कहा कि धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका ही दास होगा। इतना ही नहीं, श्रीराम ने अपनी मधुर वाणी से लक्ष्मण को चुप रहने के लिए भी कहा और परशुराम जी का क्रोध भी शांत किया। दूसरी ओर, लक्ष्मण अत्यंत उग्र स्वभाव वाले हैं। उन्होंने अपने कटु वचनों द्वारा परशुराम के क्रोध को और भी भड़का दिया। उन्होंने परशुराम की धमकियों तथा डींगें हाँकने पर करारा व्यंग्य किया। लक्ष्मण ने ब्राह्मण देवता के सामने कटु वचन बोलकर अपने उग्र रूप का उदाहरण दिया था जबकि श्रीराम ने मधुर वाणी बोलकर उन्हें अपने उदार एवं शांत स्वभाव से प्रभावित किया था।

प्रश्न 3.
लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।
उत्तर-
लक्ष्मण ने मुस्कुराते हुए कहा, मुनियों में श्रेष्ठ परशुराम जी! क्या आप अपने आपको बहुत बहादुर समझते हो? आप बार-बार कुल्हाड़ा दिखाकर मुझे डरा देना चाहते हो। आप अपनी फूंक से पहाड़ को उड़ा देना चाहते हो।
परशुराम गुस्से में भरकर कहते हैं, हे मूर्ख बालक, मैं तुम्हें बच्चा समझकर छोड़ रहा हूँ अन्यथा अब तक का……।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 4.
परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही ॥
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही ॥
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोक महीपक्रमारा ॥
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर ॥
उत्तर-
परशुराम ने अपने विषय में कहा, “मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ। स्वभाव से बहुत क्रोधी हूँ। सारा संसार जानता है कि मैं क्षत्रियों के कुल का शत्रु हूँ। अपनी भुजाओं के बल के द्वारा मैंने पृथ्वी को कई बार राजा विहीन कर दिया और उसे ब्राह्मणों को दान में दे दिया। मेरा यह फरसा बहुत भयानक है। इसने सहस्रबाहु जैसे राजाओं को भी नष्ट कर दिया। हे राजकुमार! इस फरसे को देखकर गर्भवती स्त्रियों के गर्भ भी गिर जाते हैं।”

प्रश्न 5.
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताईं?
उत्तर-
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की विशेषताएँ बताते हुए कहा है कि वीर योद्धा रणभूमि में ही वीरता दिखाता है, अपना गुणगान नहीं करता फिरता। कायर ही अपनी शक्ति की डींगें हाँकते हैं।

प्रश्न 6.
साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर-
शास्त्रों में कहा गया है कि विनम्रता सदा वीर पुरुषों को ही शोभा देती है। कमजोर और कायर व्यक्ति का विनम्र होना उसका गुण नहीं अपितु उसकी मजबूरी होती है क्योंकि वह किसी को कुछ हानि नहीं पहुँचा सकता। दूसरी ओर जब कोई शक्तिशाली व्यक्ति दीन-दुखियों की सहायता करता है अथवा दूसरों के प्रति विनम्रतापूर्वक व्यवहार करता है तो समाज में उसका सम्मान किया जाता है। शक्ति को प्राप्त करके भी जो लोग अहंकारी न बनकर विनम्र एवं धैर्यवान बने रहते हैं और दूसरों को मार्ग से विचलित नहीं होने देते, संसार में ऐसे ही लोगों का आदर किया जाता है। विनम्र व्यक्ति ही दूसरों के दुःख को अनुभव कर सकता है और उनकी सहायता के लिए आगे आता है। भगवान विष्णु को जब भृगुऋषि ने क्रोध में भरकर लात मारी थी तब उन्होंने साहस और शक्ति के बावजूद अत्यंत विनम्रता एवं उदारता का परिचय देते हुए उसे क्षमा कर दिया था। तभी से देवताओं में उनका सम्मान और भी बढ़ गया था। साहस और शक्ति के साथ-साथ विनम्रता का गुण मनुष्य को सदा सम्मान दिलाता है और उसे सच्चे अर्थों में मनुष्य बनाता है।

प्रश्न 7.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) बिहसि लखनु बोले मूदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी ॥
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू । चहत उड़ावन फूंकि पहारू ॥
(ख) इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं ॥
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥
(ग) गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ ॥
उत्तर-
(क) इस पद में कवि ने बताया है कि लक्ष्मण परशुराम के वचनों पर हँसकर व्यंग्य कर रहा है जिससे परशुराम का क्रोध बढ़ रहा है। लक्ष्मण ने परशुराम को बड़ा योद्धा कहकर और फूंक मारकर पहाड़ उड़ा देने की बात कहकर उन पर तीखा व्यंग्य किया है। कहने का तात्पर्य है कि गरज-गरजकर अपनी वीरता का वर्णन करना व्यर्थ है। इससे कोई व्यक्ति वीर नहीं बन जाता। वीरता बखान करने का नहीं, अपितु कुछ कर दिखाने का गुण है।

(ख) इस पद में लक्ष्मण ने परशुराम की वेश-भूषा पर व्यंग्य किया है। वे ब्राह्मण होते हुए भी ब्राह्मण के वेश में नहीं थे। लक्ष्मण ने इसीलिए कहा है कि हे मुनि जी यदि आप योद्धा हैं तो हम भी कोई छुईमुई नहीं कि तर्जनी देखते ही मुरझा जाएँगे। कहने का भाव है कि लक्ष्मण भी योद्धा था। वे पुनः कहते हैं कि आपके धनुष-बाण और कंधे पर कुल्हाड़ा देखकर ही आपको योद्धा समझकर मैंने अभिमान भरी बातें कह दीं। यदि मुझे पता होता कि आप मुनि-ज्ञानी हैं तो मैं ऐसा कदापि न करता।

(ग) इन पंक्तियों में विश्वामित्र ने परशुराम की अभिमानपूर्वक प्रकट की जाने वाली बातों को सुनकर उन पर व्यंग्य करते हुए ये शब्द कहे हैं कि मुनि जी को सर्वत्र हरा-ही-हरा दिखाई दे रहा है। वे सदा सामान्य क्षत्रियों से युद्ध करके विजय प्राप्त करते रहे हैं। इसलिए उन्हें लगता था कि वे श्रीराम व लक्ष्मण को भी अन्य क्षत्रियों की भाँति आसानी से हरा देंगे किंतु ये साधारण क्षत्रिय नहीं हैं। ये गन्ने की खांड के समान नहीं थे, अपितु फौलाद के बने खाँडा के समान थे। मुनि बेसमझ बनकर इनके प्रभाव को नहीं समझ रहे।

प्रश्न 8.
पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा-सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर-
तुलसीदास ने अपने काव्य में ठेठ अवधी भाषा का सफल प्रयोग किया है। तुलसीदास कवि व भक्त होने के साथ-साथ महान विद्वान भी थे। उन्होंने अपने काव्य में शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग किया है। उन्होंने व्याकरण सम्मत भाषा का प्रयोग किया है। उनकी भाषा में कहीं शिथिलता दिखाई नहीं देती। उनकी वाक्य-रचना व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध एवं सफल है। तुलसीदास ने शब्द-चयन विषयानुकूल किया है। तत्सम शब्दों के साथ-साथ तद्भव व उर्दू-फारसी शब्दों का प्रयोग भी किया है। लोक प्रचलित मुहावरों एवं लोकोक्तियों के सार्थक प्रयोग से तुलसीदास के काव्य की भाषा सारगर्भित बन पड़ी है। तुलसीदास ने प्रसंगानुकूल भाषा का प्रयोग किया है इसलिए उनके काव्य की भाषा कहीं प्रसादगुण सम्पन्न है तो कहीं ओजस्वी बन पड़ी है। उन्होंने इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखा है कि किस शब्द का कहाँ और कैसे प्रयोग किया जाए। यही कारण है कि तुलसीदास के काव्यों की भाषा अत्यंत सफल एवं सार्थक सिद्ध हुई है।

प्रश्न 9.
इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पद के अध्यया से पता चलता है कि लक्ष्मण के कथन में गहरा व्यंग्य छिपा हुआ है। लक्ष्मण परशुराम से कहते . हैं कि बचपन में हमने कितने ही धनुष तोड़ डाले तब तो आपको क्रोध नहीं आया। श्रीराम ने तो इस धनुष को छुआ ही था कि यह टूट गया। परशुराम की डींगों को सुनकर लक्ष्मण पुनः कहते हैं कि हे मुनि, आप अपने आपको बड़ा भारी योद्धा समझते हो और फूंक मारकर पहाड़ उड़ाना चाहते हो। हम भी कोई कुम्हड़बतिया नहीं कि तर्जनी देखकर मुरझा जाएँगे। आपने ये धनुष-बाण व्यर्थ ही धारण किए हुए हैं क्योंकि आपका तो एक-एक शब्द करोड़ों वज्रों के समान है। लक्ष्मण जी व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि आपके रहते आपके यश का वर्णन भला कौन कर सकता है? शूरवीर तो युद्ध क्षेत्र में ही अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हैं तथा कायर अपनी शक्ति का बखान किया करते हैं। परशुराम के शील पर व्यंग्य करते हुए लक्ष्मण जी पुनः कहते हैं कि आपके शील को तो पूरा संसार जानता है। आप तो केवल अपने घर में ही शूरवीर बने फिरते हैं, आपका किसी योद्धा से पाला नहीं पड़ा।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 10.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए-
(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।
(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
(ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा।
बार बार मोहि लागि बोलावा ॥
(घ) लखन उतर आहुति सरिस भूगुबरकोपु कृसानु। _
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु ॥
उत्तर-
(क) इस पंक्ति में ‘ब’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।।

(ख) इस पंक्ति में परशुराम के वचनों की तुलना कठोर वज्र से की गई है। अतः इसमें उपमा अलंकार है।

(ग) इस पंक्ति में उत्प्रेक्षा एवं पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार हैं।
(घ) ‘लखन उतर …… कृसानु’ में रूपक अलंकार है तथा ‘बढ़त देखि ……. रघुकुलभानु’ में उपमा अलंकार है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 11.
“सामाजिक जीवन में क्रोध की जरूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दूसरे के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।”
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव लिए नहीं होता बल्कि कभी-कभी सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष या विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए।
उत्तर-
पक्ष में आचार्य शुक्ल जी का यह कथन सही है कि क्रोध केवल नकारात्मक ही नहीं, अपितु सकारात्मक भी होता है। उदाहरण के लिए हथौड़ा या बुलडोजर केवल मकान तोड़ने के ही काम नहीं आते, अपितु वे मकान के निर्माण में भी काम आते हैं। इसी प्रकार क्रोध भी बुरी आदतों को दूर करने में काम आता है। कोई बच्चा यदि चोरी करता है तो उस पर क्रोध करके उसकी बुरी आदत को छुड़वाया जा सकता है। इसी प्रकार यदि कोई बदमाश हमारे घर आकर हमारे साथ दुर्व्यवहार करे और हम चुप बैठे रहें तो उसका हौसला बढ़ता जाएगा उस बदमाश को ठीक करने के लिए क्रोध करना अति आवश्यक है। इस प्रकार क्रोध सदा नकारात्मक ही नहीं अपितु सकारात्मक भी होता है।

विपक्ष में-क्रोध करना अच्छी बात नहीं है। क्रोध से मनुष्य के मन और शरीर दोनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। क्रोध की स्थिति में मनुष्य बुद्धि से काम नहीं लेता। अतः क्रोध में किया गया कोई भी काम उचित नहीं हो सकता। क्रोध में कही गई बात पर भी बाद में पश्चात्ताप करना पड़ता है। अतः क्रोध से बचना चाहिए।

प्रश्न 12.
संकलित अंश में राम का व्यवहार विनयपूर्ण और संयत है, लक्ष्मण लगातार व्यंग्य बाणों का उपयोग करते हैं और परशुराम का व्यवहार क्रोध से भरा हुआ है। आप अपने आपको इस परिस्थिति में रखकर लिखें कि आपका व्यवहार कैसा होता।
उत्तर-
मेरा व्यवहार इन सबसे अलग होता क्योंकि मैं परशुराम के बड़बोले व्यवहार के विषय में उन्हें अत्यंत संयत ढंग से अवगत कराता ताकि वहाँ उपस्थित लोग मेरा विरोध न करते अपितु परशुराम के व्यवहार को ही अनुचित कहते। यदि फिर भी वह सुनने के लिए तैयार न होते तो वहाँ उपस्थित सभा के सामने तर्क के आधार पर उन्हें दोषी ठहराता।

प्रश्न 13.
अपने किसी परिचित या मित्र के स्वभाव की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

प्रश्न 14.
‘दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए।’ इस शीर्षक को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

प्रश्न 15.
उन घटनाओं को याद करके लिखिए जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं अपना अनुभव लिखें।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 16.
अवधी भाषा आज किन-किन क्षेत्रों में बोली जाती है?
उत्तर-
अवधी भाषा आज लखनऊ, इलाहाबाद, फैजाबाद, मिर्जापुर आदि क्षेत्रों के आसपास बोली जाती है।

यह भी जानें

दोहा- दोहा एक लोकप्रिय मात्रिक छंद है जिसकी पहली और तीसरी पंक्ति में 13-13 मात्राएँ होती हैं और दूसरी और चौथी पंक्ति में 11-11 मात्राएँ।
चौपाई – मात्रिक छंद चौपाई चार पंक्तियों का होता है और इसकी प्रत्येक पंक्ति में 16 मात्राएँ होती हैं। तुलसी से . पहले सूफी कवियों ने भी अवधी भाषा में दोहा-चौपाई छंद का प्रयोग किया है जिसमें मलिक मुहम्मद जायसी का ‘पद्मावत’ उल्लेखनीय है।

परशुराम और सहस्रबाहु की कथा पाठ में ‘सहस्रबाहु सम सो रिपु मोरा’ का कई बार उल्लेख आया है। परशुराम और सहस्रबाहु के बैर की अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। महाभारत के अनुसार यह कथा इस प्रकार है

परशुराम ऋषि जमदग्नि के पुत्र थे। एक बार राजा कार्तवीर्य सहस्रबाहु शिकार खेलते हुए जमदग्नि के आश्रम में आए। जमदग्नि के पास कामधेनु गाय थी जो विशेष गाय थी, कहते हैं वह सभी कामनाएं पूरी करती थी। कार्तवीर्य सहस्रबाहु ने ऋषि जमदग्नि से कामधेनु गाय की माँग की। ऋषि द्वारा मना किए जाने पर सहस्रबाहु ने कामधेनु गाय का बलपूर्वक अपहरण कर लिया। इस पर क्रोधित हो परशुराम ने सहस्रबाहु का वध कर दिया। इस कार्य की ऋषि. जमदग्नि ने बहुत निंदा की और परशुराम को प्रायश्चित्त करने को कहा। उधर सहस्रबाहु के पुत्रों ने क्रोध में आकर ऋषि जमदग्नि का वध कर दिया। इस पर पुनः क्रोधित होकर परशुराम ने पृथ्वी को क्षत्रिय-विहीन करने की प्रतिज्ञा की।

HBSE 10th Class Hindi सूरदास के पद Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
इस कवितांश के आधार पर लक्ष्मण के द्वारा परशुराम के प्रति किए गए व्यवहार पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
इस कवितांश के अध्ययन से बोध होता है कि लक्ष्मण उग्र एवं तेज स्वभाव वाले हैं। वे भरी सभा में परशुराम द्वारा दी गई चुनौती व धमकी से आहत हो उठते हैं। इसलिए परशुराम के प्रश्नों का उत्तर उसी लहजे में देते हैं। वे परशुराम की आत्मप्रशंसा पर करारा व्यंग्य कसते हैं। लक्ष्मण के इस व्यवहार से एक ओर जहाँ परशुराम का क्रोध बढ़ता है, वहीं सभा में उपस्थित लोगों के मन का भय भी कम हो जाता है, किंतु यह स्थिति जब अतिक्रमण कर जाती है तो सभा में उपस्थित लोग लक्ष्मण के व्यवहार को अनुचित कहने लगते हैं। परशुराम लक्ष्मण से आयु में बहुत बड़े थे। वे उनके पिता तुल्य थे। इसलिए उन्हें उसके प्रति नृपद्रोही जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए था। लक्ष्मण अपनी वीरता के जोश में उम्र और समाज की मर्यादा का विचार भी भूल जाते हैं। लक्ष्मण का परशुराम के प्रति क्रोध उचित था, किंतु संयम त्याग देना उचित नहीं था।

प्रश्न 2.
पठित कवितांश के आधार पर परशुराम द्वारा किए गए व्यवहार पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
पठित कवितांश के अध्ययन से पता चलता है कि परशुराम अत्यंत उग्र स्वभाव वाले हैं। ऐसा लगता है कि क्रोध करना उनके स्वभाव का अभिन्न अंग है। बिना सोचे-समझे क्रोधित हो जाना उचित प्रतीत नहीं होता। वे पूरी बात समझे बिना ही क्रुद्ध हो उठते हैं। उनके आतंक के कारण सभा में कोई व्यक्ति सच्चाई नहीं बता सका। दूसरों को बात कहने का अवसर दिए बिना अपनी बात कहते जाना उचित नहीं है। फिर क्रोध की स्थिति में व्यक्ति उचित-अनुचित का अंतर भी नहीं कर सकता। परशुराम जी का क्रोध ऐसा ही है। यही कारण है कि लक्ष्मण उनकी इस कमजोरी को भाँप जाते हैं और अपने व्यंग्य बाणों को छोड़कर उनके क्रोध को और भी भड़का देते हैं जिससे परशुराम वे बातें भी कह जाते हैं जो उन्हें नहीं कहनी चाहिए थीं। अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि परशुराम के इस व्यवहार व उनके ऐसे स्वभाव को कदापि उचित नहीं कहा जा सकता।

प्रश्न 3.
परशुराम ने लक्ष्मण को वध करने योग्य क्यों कहा था?
उत्तर-
परशुराम लक्ष्मण के विषय में कहते हैं कि यह मंद बुद्धि बालक है। यह मेरे स्वभाव के विषय में नहीं जानता कि मैं कितना क्रोधी हूँ। इसे किसी से डर या शर्म नहीं है। इसे अपने माता-पिता की चिंता का भी बोध नहीं है। क्षत्रिय राजकुमार होने के कारण भी यह स्वाभाविक रूप से परशुराम का शत्रु है तथा परशुराम क्षत्रिय द्रोही हैं। लक्ष्मण ने परशुराम का मज़ाक उड़ाया है। . इसलिए वह वध करने योग्य है।

प्रश्न 4.
‘कहेउ लखन मुनि सील तुम्हारा’ को नहि जान बिदित संसारा’ इस पंक्ति में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
इस पंक्ति में परशुराम के शील व स्वभाव पर व्यंग्य किया गया है। इसमें व्यंग्य है कि परशुराम अपने क्रोधी स्वभाव . के लिए सारे संसार में प्रसिद्ध हैं। लक्ष्मण ने परशुराम के क्रोधी स्वभाव को सहज एवं स्वाभाविक कहकर व्यंग्य किया है। प्रकट रूप से इस पंक्ति का अर्थ है कि परशुराम महान् क्रोधी स्वभाव वाले व्यक्ति हैं। इस बात को सारा संसार भली-भाँति जानता है।

संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 5.
राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ शीर्षक कविता के संदेश को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
कवि ने इस कविता के माध्यम से संदेश दिया है कि क्रोध अच्छी भावना नहीं है। इससे सदा दूर रहना चाहिए। क्रोध मनुष्य की सोचने व भले-बुरे के अंतर को जानने की शक्ति को नष्ट कर देता है। क्रोध की स्थिति में व्यक्ति उचित अनुचित का अंतर भी नहीं कर सकता। क्रोध के वश में होकर परशुराम श्रीराम व लक्ष्मण को साधारण बालक समझकर उन्हें मारने तक की धमकी दे डालते हैं। क्रोध के कारण ही व्यक्ति सदा हँसी का पात्र बनता है। परशुराम क्रोध के कारण ही विश्वामित्र की हँसी का पात्र बनता है। परशुराम स्वयं की प्रशंसा करते हैं और दूसरों को मारने की धमकी देते हैं। यही संदेश हमें इस कवितांश से मिलता है कि हमें सदा अपने क्रोध पर नियंत्रण रखने का प्रयास करना चाहिए एवं सोच-समझकर ही कोई बात कहनी चाहिए।

प्रश्न 6.
परशुराम ने श्रीराम को क्या उत्तर दिया था?
उत्तर-
परशुराम ने श्रीराम से कहा था कि सेवक वह होता है जो सेवा करता है, न कि शत्रुता का भाव रखता हो। शत्रुता का भाव रखने वाले के साथ तो लड़ाई करनी चाहिए। जिसने भी शिव का धनुष तोड़ा, वह उनके लिए सहस्रबाहु के समान शत्रु है। उसे आज इस सभा से अलग हो जाना चाहिए। ऐसा न करने पर इस सभा में उपस्थित सभी राजा मारे जाएँगे।

प्रश्न 7.
श्रीराम द्वारा परशुराम के क्रोध को शांत करने के लिए कौन-सा काम किया गया था?
उत्तर-
श्रीराम ने भली-भाँति समझ लिया था कि परशुराम क्रोधी होने के साथ अहंकारी भी थे। उन्हें अपनी शक्ति का अहंकार था। इसलिए क्रोधी को क्रोधी बनकर जीतना बुद्धिमत्ता नहीं है। श्रीराम ने क्रोधी परशुराम के सामने अत्यंत संयत एवं विनम्र भाषा में कहा था कि शिव-धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका दास ही होगा। यदि आप कोई आज्ञा देना चाहते हैं, तो उन्हें आदेश करें। श्रीराम ने अत्यंत सहज एवं मधुर वाणी का प्रयोग करके परशुराम का क्रोध शांत करने का प्रयास किया था।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 8.
इस काव्यांश के आधार पर बताइए कि आपको किसका चरित्र सबसे अच्छा लगता है और क्यों?
उत्तर-
इस काव्यांश में श्रीराम, लक्ष्मण और परशुराम के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख किया गया है। परशुराम को इस काव्यांश में अत्यंत क्रोधी दिखाया गया है। वे शिव-धनुष को टूटा हुआ देखकर क्रोध से पगला उठे और किसी की बात न सुनकर दूसरों को मार डालने की धमकियाँ देते हैं और आत्म-प्रशंसा करते हैं। लक्ष्मण परशुराम की धमकियों को सुनकर उन पर व्यंग्य बाण कसने लगा। लक्ष्मण ने उनकी उम्र का भी ध्यान न रखा । यहाँ तक कि लक्ष्मण ने मर्यादा का भी अतिक्रमण कर दिया। जबकि श्रीराम ने परशुराम के सामने अत्यंत मधुर भाषा में अपने-आपको उनका सेवक व दास कहा था जिसे सुनकर परशुराम का क्रोध शांत हो गया था। उन्होंने अपनी शक्ति का दिखावा न करके अपने आपको उनका दास तथा सेवक बताया। यह श्रीराम के चरित्र की सबसे बड़ी विशेषता है। इसीलिए हमें श्रीराम का चरित्र सर्वाधिक पसंद है।

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
तुलसीदास के आराध्य देव कौन थे?
उत्तर-
तुलसीदास के आराध्य देव दशरथ सुत श्रीराम थे।

प्रश्न 2.
किसने स्वयंवर में पहुँचकर सबको धमकी दी थी?
उत्तर-
परशुराम ने स्वयंवर में पहुँचकर सबको धमकी दी थी।

प्रश्न 3.
परशुराम अपने-आपको किस कुल का द्रोही (दुश्मन) कहते हैं?
उत्तर-
परशुराम अपने-आपको क्षत्रिय कुल का द्रोही (दुश्मन) कहते हैं।

प्रश्न 4.
‘वीरव्रती तुम्ह धीर अछोभा’ – यहाँ अछोभा’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
‘अछोभा’ शब्द का अर्थ है-क्षोभ रहित।

प्रश्न 5.
परशुराम ने मंदबुद्धि बालक किसे कहा है?
उत्तर-
परशुराम ने मंदबुद्धि बालक लक्ष्मण को कहा है।

प्रश्न 6.
‘खर कुठार मैं अकरुन कोही’-यहाँ कोही’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
‘कोही’ का अर्थ है-क्रोधी।

प्रश्न 7.
युद्ध-क्षेत्र में शत्रु को देखकर कौन अपनी प्रशंसा करता है?
उत्तर-
युद्ध-क्षेत्र में शत्रु को देखकर कायर अपनी प्रशंसा करता है।

प्रश्न 8.
‘गर्भन्ह के अर्भक दलन’ – यहाँ अर्भक’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
अर्भक का अर्थ है-बच्चा।

प्रश्न 9.
परशुराम के गुरु कौन थे?
उत्तर-
परशुराम के गुरु भगवान शिव थे।

प्रश्न 10.
परशुराम गुरु के ऋण से कैसे उऋण होना चाहते थे?
उत्तर-
धनुष तोड़ने वाले का वध करके परशुराम गुरु के ऋण से उऋण होना चाहते थे।

प्रश्न 11.
लक्ष्मण परशुराम से संघर्ष क्यों नहीं करना चाहते थे?
उत्तर-
परशुराम ब्राह्मण थे, इसलिए लक्ष्मण परशुराम से संघर्ष नहीं करना चाहते थे।

प्रश्न 12.
परशुराम जी के क्रोध को शांत करने का प्रयास किसने किया?
उत्तर–
परशुराम जी के क्रोध को शांत करने का प्रयास श्रीराम ने किया।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से तुलसी की रचना कौन-सी है?
(A) रामचरितमानस
(B) सूरसागर
(C) पद्मावत
(D) साकेत
उत्तर-
(A) रामचरितमानस

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प्रश्न 2.
‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ शीर्षक कविता रामचरितमानस के किस कांड से ली गई है?
(A) अयोध्याकांड से
(B) सुंदरकांड से
(C) बालकांड से
(D) किष्किंधाकांड से
उत्तर-
(C) बालकांड से

प्रश्न 3.
‘हे नाथ! शिव-धनुष को तोड़ने वाला तुम्हारा ही कोई दास होगा।” ये शब्द किसने किसको कहे हैं?
(A) लक्ष्मण ने राम को
(B) राम ने परशुराम को ‘
(C) जनक ने परशुराम को
(D) हनुमान ने जनक को
उत्तर-
(B) राम ने परशुराम को

प्रश्न 4.
परशुराम को क्या देखकर गुस्सा आता है? .
(A) श्रीराम को
(B) सीता को
(C) स्वयंवर-आयोजन को
(D) टूटे हुए शिव के धनुष को
उत्तर-
(D) टूटे हुए शिव के धनुष को

प्रश्न 5.
परशुराम ने सेवक किसे कहा है?
(A) जो सम्मान करे
(B) जो सेवा करे
(C) जो आज्ञा का पालन करे
(D) जो कुछ भी न करे
उत्तर-
(B) जो सेवा करे

प्रश्न 6.
तुलसीदास के अनुसार कुम्हड़बतियाँ किसे देखकर मुरझाती हैं।
(A) सूर्य
(B) अंधकार
(C) तरजनी
(D) उख
उत्तर-
(C) तरजनी

प्रश्न 7.
परशुराम ने सभा में उपस्थित राजाओं को क्या धमकी दी थी?
(A) आक्रमण करने की
(B) वध करने की
(C) राज्य छीन लेने की
(D) धन-संपत्ति लूटने की
उत्तर-
(B) वध करने की

प्रश्न 8.
तुलसीदास ने ‘भूगुकुल केतु’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त किया है?
(A) परशुराम
(B) वशिष्ठ
(C) विश्वामित्र
(D) लक्ष्मण
उत्तर-
(A) परशुराम

प्रश्न 9.
‘देखि कुठारु सरासन बाना’-यहाँ ‘कुठारु’ का अर्थ है-
(A) कठोर
(B) कोठार
(C) कुल्हाड़ा
(D) कमरा
उत्तर-
(C) कुल्हाड़ा

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प्रश्न 10.
परशुराम के क्रोध को किसने शांत करने का प्रयास किया था?
(A) राजा जनक ने
(B) श्रीराम ने
(C) विश्वामित्र ने
(D) लक्ष्मण ने
उत्तर-
(B) श्रीराम ने

प्रश्न 11.
तुलसीदास ने ‘कौशिक’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त किया है?
(A) वशिष्ठ
(B) विश्वामित्र
(C) परशुराम
(D) जनक
उत्तर-
(B) विश्वामित्र

प्रश्न 12.
परशुराम लक्ष्मण का वध क्या समझकर नहीं करते? ।
(A) वीर
(B) कायर
(C) राजकुमार
(D) बालक
उत्तर-
(D) बालक

प्रश्न 13.
तुलसीदास ने ‘गाधिसूनु’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त किया है?
(A) परशुराम
(B) विश्वामित्र
(C) लक्ष्मण
(D) श्रीराम
उत्तर-
(B) विश्वामित्र

प्रश्न 14.
‘अयमय खाँडव न ऊखमय’ यहाँ ‘अयमय’ का अर्थ है:
(A) स्वयं
(B) गन्ना
(C) लोहे का बना हुआ
(D) खाँड का बना हुआ
उत्तर-
(C) लोहे का बना हुआ

प्रश्न 15.
परशुराम ने धनुष तोड़ने वाले को किसके समान अपना शत्रु बताया है?
(A) रावण के
(B) लक्ष्मण के
(C) राजा जनक के
(D) सहस्रबाहु के
उत्तर-
(D) सहस्रबाहु के

प्रश्न 16.
‘अहो मुनीसु महाभट मानी’ शब्द किसने कहे हैं?
(A) राजा जनक ने
(B) श्रीराम ने
(C) विश्वामित्र ने
(D) लक्ष्मण ने
उत्तर-
(D) लक्ष्मण ने

प्रश्न 17.
श्रीराम ने किसके धनुष को तोड़ा था?
(A) परशुराम के
(B) शिव के
(C) ब्रह्मा के
(D) विष्णु के
उत्तर-
(B) शिव के

प्रश्न 18.
किसके वचन ‘कोटि कुलिस’ के समान हैं?
(A) राजा जनक के
(B) सीता के
(C) परशुराम के
(D) श्रीराम के
उत्तर-
(C) परशुराम के

प्रश्न 19.
‘गर्भन्ह के अर्भक दलन’ यहाँ ‘अर्भक’ का अर्थ है
(A) गर्दभ
(B) बच्चा
(C) गंधक
(D) शत्रु
उत्तर-
(B) बच्चा

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 20.
परशुराम ने ‘सूर्यवंश का कलंक’ किसे कहा है?
(A) श्रीराम को
(B) विश्वामित्र को
(C) लक्ष्मण को
(D) सीता को
उत्तर-
(C) लक्ष्मण को

प्रश्न 21.
परशुराम ने विश्वामित्र को क्या चेतावनी दी थी?
(A) उसकी शक्ति लक्ष्मण को बता दे
(B) सीता-स्वयंवर को रुकवा दे
(C) शिव-धनुष को पुनः जुड़वा दे
(D) धनुष तोड़ने वाले का नाम बता दे
उत्तर-
(A) उसकी शक्ति लक्ष्मण को बता दे

प्रश्न 22.
युद्ध में रिपु के सामने अपने प्रताप का बखान कौन करता है?
(A) लक्ष्मण
(B) परशुराम
(C) कायर
(D) शूरवीर
उत्तर-
(C) कायर

प्रश्न 23.
परशुराम ने राजाओं से अनेक बार भूमि जीतकर किसको दी?
(A) स्वयं रखी
(B) वापिस उन्हें दे दी
(C) ब्राह्मणों को
(D) अपने गुरु को
उत्तर-
(C) ब्राह्मणों को

प्रश्न 24.
विश्वामित्र के अनुसार साधु किसके दोषों को मन में धारण नहीं करते?
(A) वृद्धों के
(B) युवकों के
(C) स्त्रियों के
(D) बालकों के
उत्तर-
(D) बालकों के

प्रश्न 25.
परशुराम ने लक्ष्मण के लिए किन-किन शब्दों का प्रयोग किया है
(A) कुटिल
(B) कालवश
(C) निजकुल-घालक
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 26.
परशुराम किसे अपना गुरु मानते हैं?
(A) हनुमान को
(B) शिवजी को
(C) विश्वामित्र को
(D) ब्रह्मा को
उत्तर-
(B) शिवजी को

प्रश्न 27.
‘भृगुवंसमनि’ किसे कहा गया है?
(A) लक्ष्मण को
(B) जनक को
(C) विश्वामित्र को
(D) परशुराम को
उत्तर-
(D) परशुराम को

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा ॥
आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही ॥
सेवक सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई ॥
सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा ॥
सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा ॥
सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने ॥
बहु धनुही तोरी लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं ॥
येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भूगुकुलकेतू ॥
रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।
धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार ॥ [पृष्ठ 12]

शब्दार्थ-संभुधनु = शिव-धनुष। भंजनिहारा = तोड़ने वाला। केउ = कोई। आयेसु = आज्ञा। मोही = मुझे। रिसाइ = क्रोध करना। कोही = क्रोधी। सेवकाई = सेवा करने वाला। अरि = शत्रु। करि = करके। लराई = लड़ाई। सम = समान। रिपु = शत्रु। बिलगाउ = अलग हो जाना। न त = न तो। अवमाने = अवमानना करना। लरिकाईं = लड़कपन में। असि = ऐसा। येहि = इस। ममता = स्नेह। केहि हेतू = किस कारण। भृगुकुलकेतु = भृगु ऋषि के कुल ध्वज। नृपबालक = राजा के पुत्र। कालबस = मृत्यु के अधीन। त्रिपुरारी = शिव। बिदित = जानता है। सकल = संपूर्ण।

प्रश्न-
(क) कवि, कविता एवं मूल ग्रंथ का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) श्रीराम ने परशुराम से क्या कहा और क्यों?
(ङ) परशुराम को गुस्सा क्यों आया था?
(च) किसने सभा के बीच में पहुँचकर सभा को धमकी दी?
(छ) परशुराम के क्रोध भरे वचन सुनकर लक्ष्मण क्यों मुस्कराए?
(ज) परशुराम की धमकी भरी बातें सुनकर लक्ष्मण ने क्या कहा?
(झ) इस पद के आधार पर परशुराम के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ञ) इस पद को पढ़कर श्रीराम के व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ट) इस पद के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ठ) इस पद में निहित शिल्प-सौंदर्य व काव्य-सौंदर्य का उल्लेख कीजिए।
(ड) इस पद की भाषागत विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-तुलसीदास।
कविता का नाम-राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद। मूल ग्रंथ का नाम-‘रामचरितमानस’ (बालकांड)।

(ख) प्रस्तुत पद्यांश तुलसीदास-कृत ‘रामचरितमानस’ के बालकांड से उद्धृत है। राजा जनक की शर्त के अनुसार श्रीराम शिव-धनुष को तोड़ डालते हैं तथा सीता का वरण करते हैं। उसी समय वहाँ परशुराम जी आ जाते हैं। वे शिव भक्त हैं। उन्हें शिव के टूटे हुए धनुष को देखकर क्रोध आ जाता है। वे सारी सभा को नष्ट कर देने की धमकी देते हैं। सभी उपस्थित लोग उनके वचनों को सुनकर सहम जाते हैं। लभी श्रीराम ने अत्यंत धैर्यपूर्वक स्थिति को संभाला और परशुराम जी से विनम्रतापूर्वक ये शब्द कहे।

(ग) परशुराम को अत्यंत क्रोध में देखकर श्रीराम ने कहा हे नाथ ! इस शिव-धनुष को तोड़ने वाला भी कोई तुम्हारा ही दास अथवा सेवक होगा। क्या आज्ञा है मुझसे क्यों नहीं कहते। यह सुनकर क्रोधी मुनि क्रोध में भरकर बोले कि सेवक वह है जो सेवा करे किंतु जो शत्रुता का काम करे उससे तो लड़ाई करनी चाहिए। कहने का भाव है कि जिसने शिव-धनुष तोड़ा है वह परशुराम के लिए शत्रु के समान है। हे राम ! सुनो जिसने यह शिव-धनुष तोड़ा है वह सहस्रबाहु के समान ही मेरा शत्रु है। परशुराम जी कहने लगे जिसने इस धनुष को तोड़ा है, वह इस सभा से अलग हो जाए, नहीं तो उसके साथ सभी राजा लोग मारे जाएँगे। मुनि के वचनों को सुनकर लक्ष्मण जी मुस्कुराने लगे। वे परशुराम जी से बोले कि हमने अपने बचपन में ऐसे अनेक धनुष तोड़े हैं। हे स्वामी ! तब आपने ऐसा क्रोध नहीं किया था। इस धनुष के लिए आपके मन में इतनी ममता किसलिए है?
लक्ष्मण के वचन सुनकर परशुराम जी बोले हे राजकुमार ! क्या तुम काल के अधीन हो! संभलकर क्यों नहीं बोलता। सारा संसार जानता है कि क्या शिव-धनुष अन्य धनुषों के समान था अर्थात् शिव-धनुष का महत्त्व तो संपूर्ण विश्व जानता है।

(घ) श्रीराम ने परशुराम से अत्यंत विनम्र भाव से कहा कि शिव-धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका ही दास है। अतः आप मुझे आज्ञा दें। मैं आपकी सेवा में हाज़िर हूँ। श्रीराम ने ये शब्द परशुराम जी के क्रोध को शांत करने के लिए कहे थे।

(ङ) परशुराम को गुस्सा अपने गुरु शिवजी के धनुष को तोड़ने पर आया था।

(च) परशुराम ने सभा के बीच में पहुँचकर सबको धमकी दी थी कि जिसने भी उनके गुरु शिवजी का धनुष तोड़ा है वह सामने आ जाए अन्यथा वे सभी राजाओं का वध कर डालेंगे।

(छ) लक्ष्मण परशुराम जी के गुस्से से भरे एवं बड़बोले वचनों को सुनकर मुस्कुराए, क्योंकि उन्हें ऐसा लगा कि परशुराम जी का यह गुस्सा केवल दिखावे का है। जब उन्हें पता चलेगा कि धनुष को तोड़ने वाला कोई और नहीं श्रीराम हैं तो उनका गुस्सा स्वतः शांत हो जाएगा।

(ज) परशुराम की धमकी भरी बातें सुनकर लक्ष्मण ने कहा, हे मुनि! बचपन में हमने ऐसे कितने ही धनुष तोड़े थे तब तो आपको गुस्सा नहीं आया था। फिर इस धनुष के प्रति आप इतनी अधिक ममता क्यों दिखा रहे हैं?

(झ) इस पद से पता चलता है कि परशुराम जी क्रोधी स्वभाव वाले थे। वे अपनी शक्ति की डींगें हाँकने वाले थे। साथ ही वे बड़बोले भी थे। वे छोटी-छोटी बातों पर आपे से बाहर हो उठते थे अर्थात् क्रोध के कारण आग-बबूले हो उठते थे। वे आत्म-प्रशंसक भी थे। वे बात-बात पर सामने वाले को मारने की धमकी भी दे देते थे।

(ञ) इस पद के अध्ययन से पता चलता है कि श्रीराम अत्यंत शांत एवं गंभीर स्वभाव वाले व्यक्ति थे। वे परशुराम जैसे क्रोधी स्वभाव वाले व्यक्ति को भी अपनी विनम्र एवं गंभीर वाणी से शांत करने वाले थे। उनमें अहंकार नाममात्र भी नहीं था। वे परशुराम जी के सामने अपने आपको दास या सेवक कहते हैं।

(ट) इस पद में कविवर तुलसीदास ने मूलतः परशुराम जी के क्रोधी स्वभाव का उल्लेख किया है। वे लक्ष्मण जी के व्यंग्य भरे वचनों को सुनकर क्रोधित हो जाते हैं और सभा में उपस्थित राजाओं का वध करने की धमकी भी दे डालते हैं। कवि ने श्रीराम के शांत एवं गंभीर स्वभाव की ओर भी संकेत किया है। साथ ही सहस्रबाहु के वध की पौराणिक कथा का उल्लेख भी किया है।

(ठ)

  • इस पद में कवि ने विभिन्न प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों के स्वभाव का कलात्मकतापूर्ण उल्लेख किया है।
  • इस पद में शांत एवं रौद्र रसों की अभिव्यक्ति हुई है।
  • इस पद में दोहा एवं चौपाई छंदों का प्रयोग किया गया है।
  • अवधी भाषा का भावानुकूल प्रयोग देखते ही बनता है।
  • संपूर्ण पद में अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है।
  • संवाद शैली का प्रयोग किया गया है।

(ड) इस पद में कवि ने ठेठ अवधी भाषा का प्रयोग किया है। भाषा भावों को अभिव्यक्त करने में पूर्णतः सक्षम है। भाषा में तद्भव शब्दों का विषयानुकूल प्रयोग किया गया है। स्वरमैत्री के कारण भाषा में लय का समावेश हुआ है। भाषा ओजगुण प्रधान है।

[2] लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना ॥
का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरे ॥
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू ॥
बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा ॥
बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही ॥
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित छत्रियकुल द्रोही ॥
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही ॥
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा ॥
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर ॥ [पृष्ठ 13]

शब्दार्थ-छति = हानि। लाभु = लाभ। नयन = नया। भोरें = धोखे। दोसू = दोष। रोसू = क्रोध। सठ = दुष्ट। सुभाउ = स्वभाव। जड़ = मूर्ख। मोही = मुझे। बिस्व = संसार, विश्व। बिदित = विख्यात। महिदेवन्ह = ब्राह्मण। बिलोक = देखकर। महीपकुमार = राजकुमार। अर्भक = बच्चा। दलन = नाश।

प्रश्न-
(क) कवि, कविता एवं मूल ग्रंथ का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या लिखिए।
(घ) लक्ष्मण सभी धनुषों को कैसा मानते हैं?
(ङ) लक्ष्मण के अनुसार धनुष को तोड़ने में श्रीराम का कोई दोष क्यों नहीं था?
(च) परशुराम लक्ष्मण का वध क्यों नहीं कर रहे थे?
(छ) इस पद के अनुसार परशुराम जी ने अपने स्वभाव की क्या-क्या विशेषताएँ बताई हैं?
(ज) परशुराम ने अपनी वीरता का बखान कैसे किया?
(झ) ‘परशुराम का फरसा अधिक भयानक है’ यह कैसे कह सकते हैं?
(ञ) ‘क्षत्रियकुल द्रोही’ से परशुराम की कौन-सी विशेषता का बोध होता है?
(ट) इस पद्यांश का भावार्थ/भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ठ) इस पद्यांश में निहित शिल्पगत सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ड) प्रस्तुत पद्यांश की भाषागत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-तुलसीदास। कविता का नाम-राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद। मूल ग्रंथ का नाम-‘रामचरितमानस’ (बालकांड)।

(ख) प्रस्तुत पद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के बालकांड से लिया गया है। सीता-स्वयंवर के समय श्रीराम ने शिवजी का धनुष तोड़ दिया था जिस कारण परशुराम क्रोध में भर गए थे। लक्ष्मण के द्वारा व्यंग्य करने पर परशुराम का गुस्सा भड़क गया था परंतु उनके गुस्से का लक्ष्मण पर कोई प्रभाव पड़ता दिखाई नहीं दे रहा था।

(ग) लक्ष्मण ने हँसकर कहा, हे देव ! सुनिए हमारी समझ में तो सभी धनुष समान हैं। पुराने धनुष के तोड़ने से क्या लाभ तथा क्या हानि हो सकती है? श्रीराम जी ने तो इसे नया समझकर इसे हाथ ही लगाया था कि यह छूने मात्र से ही टूट गया तो इसमें रघुपति जी का क्या दोष है। तब परशुराम जी अपने फरसे की ओर देखकर बोले हे मूर्ख! क्या तूने मेरा स्वभाव नहीं सुना है। बालक जानकर मैं तुम्हें नहीं मारता हूँ। तूने मुझे केवल मुनि ही समझा है अर्थात् मैं मुनि वेश में हूँ, वास्तव में मैं मुनि नहीं हूँ। मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ और अत्यंत क्रोधी हूँ। संपूर्ण विश्व जानता है कि मैं क्षत्रिय कुल का दुश्मन हूँ। मैंने अपनी भुजाओं के बल से पृथ्वी को राजाओं से छीनकर उसे कई बार ब्राह्मणों को दान में दे दिया था अर्थात् पृथ्वी के राजाओं को हराकर उनके राज्यों पर अधिकार कर लिया था। हे राजकुमार ! तू मेरे सहस्रबाहु की भुजाओं को काटने वाले इस फरसे को देख। हे राजकिशोर! अपने माता-पिता को सोच के वश में मत कर अर्थात् यदि मैं तुम्हें मार दूं तो तेरे माता-पिता को चिंता होगी। मेरा यह कठोर फरसा गर्भो के बालकों तक को मार डालने वाला भयंकर फरसा है अर्थात् इसके डर के कारण गर्भवती नारियों के बच्चे गर्भ में ही मर जाते हैं।

(घ) लक्ष्मण जी सभी धनुषों को समान मानते हैं अर्थात् उनकी दृष्टि में सभी धनुष समान हैं।

(ङ) लक्ष्मण जी के अनुसार धनुष को तोड़ने में राम का दोष इसलिए नहीं था क्योंकि राम ने तो उसे नए धनुष के रूप में देखा था किंतु वह तो उनके छूने मात्र से टूट गया था। अतः इस संबंध में श्रीराम निर्दोष थे।

(च) परशुराम यद्यपि लक्ष्मण पर अत्यधिक क्रोधित थे, किंतु वे उसको बच्चा समझकर उसका वध नहीं कर रहे थे।

(छ) इस पद में परशुराम ने अपने स्वभाव की विशेषताएँ बताते हुए कहा है कि वह केवल मुनि ही नहीं है बल्कि अति क्रोधी भी है। वह बालक समझकर ही लक्ष्मण का वध नहीं कर रहा है।

(ज) परशुराम ने अपनी वीरता का बखान करते हुए कहा है कि उसने अनेक बार इस पृथ्वी को अपनी भुजाओं के बल पर राजाओं से विहीन कर दिया था अर्थात् उसने सभी राजाओं को हरा दिया था। उसने सहस्रबाहु की भुजाएँ काट डाली थीं।

(झ) परशुराम का फरसा अत्यंत भयानक है क्योंकि उसके भय से ही गर्भस्थ शिशुओं का नाश हो जाता है।

(ञ) ‘क्षत्रिय कुल द्रोही’ वाक्यांश से पता चलता है कि परशुराम ने अपनी शक्ति के बल पर इस पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया था।

(ट) गोस्वामी तुलसीदास ने इस पद में लक्ष्मण के प्रति परशुराम के क्रोध का वर्णन किया है। उन्होंने बताया है कि परशुराम को अपनी शक्ति और पराक्रम पर घमंड था। किंतु लक्ष्मण उनके बल से जरा भी प्रभावित नहीं था। वह बिना डरे हुए उनके जीवन की वस्तुस्थिति को उनके सामने रख रहा था।

(ठ)

  • इस पद में तुलसीदास ने परशुराम के वीरत्व और क्रोधी स्वभाव का ओजस्वी भाषा में उल्लेख किया है।
  • कवि ने शब्द-योजना अत्यंत सार्थक एवं सफलतापूर्वक की है।
  • अतिशयोक्ति एवं अनुप्रास अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
  • वीररस का सुंदर वर्णन हुआ है।
  • चौपाई एवं दोहा छंद है।

(ड) प्रस्तुत काव्यांश में शुद्ध साहित्यिक अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है। इन पंक्तियों की भाषा में तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है। इन पंक्तियों में कोमलकांत शब्दावली का प्रयोग किया गया है। ओजस्वी भावानुरूप शब्दों का प्रयोग किया गया है। भाषा में जितनी लौकिकता है उतनी ही शास्त्रीयता भी है। ।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

[3] बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी ॥
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूंकि पहारू ॥
इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं ॥
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना ॥
भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी ॥
सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई ॥
बधे पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें ॥
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा ॥
जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर।
सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गंभीर ॥ [पृष्ठ 13]

शब्दार्थ-बिहसि = हँसकर। मूदु = मधुर। महाभट = शूरवीर। कुठारु = फरसा। उड़ावन = उड़ाना। पहारू = पहाड़। कुम्हड़बतिया = छुईमुई का वृक्ष । जे तरजनी = अँगुली का संकेत। सरासन = धनुष-बाण। बिलोकी = देखकर। रिस = क्रोध। सुर= देवता। महिसुर = ब्राह्मण। हरिजन = भक्त। सुराई = वीरता दिखाना। अपकीरति = अपयश, दोष। कोटि = करोड़ों। कुलिस = ब्रज। भृगुबंसमनि = भृगु कुल में श्रेष्ठ।

प्रश्न-
(क) कवि, कविता एवं मूल ग्रंथ का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) परशुराम अपना कुल्हाड़ा बार-बार किसे और क्यों दिखा रहे थे?
(ङ) लक्ष्मण ने परशुराम से अभिमानपूर्ण बात क्यों की थी?
(च) लक्ष्मण ने किन-किन को अवध्य बताया और क्यों?
(छ) लक्ष्मण ने परशुराम से ऐसा क्यों कहा कि आप व्यर्थ ही धनुष-बाण एवं फरसा धारण किए फिरते हो?
(ज) लक्ष्मण ने परशुराम को मारने की अपेक्षा क्या करने की बात कही थी?
(झ) “अहो मुनीसु महाभट मानी’ में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।।
(ञ) प्रस्तुत पद के अनुसार लक्ष्मण के स्वभाव की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ट) प्रस्तुत पद्यांश के भावार्य/भाव सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ठ) इस पद में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ड) पद में प्रयुक्त भाषा की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम तुलसीदास। कविता का नाम-राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद। मूल ग्रंथ का नाम-‘रामचरितमानस’ (बालकांड)।

(ख) प्रस्तुत पद्यांश तुलसीदास-कृत ‘रामचरितमानस’ बालकांड से उद्धृत है। राजा जनक के दरबार में सीता स्वयंवर के समय श्रीराम ने शिव-धनुष को तोड़ दिया। तभी वहाँ परशुराम पहुँच गए। वे टूटे हुए शिव-धनुष को देखकर धनुष तोड़ने वाले को मारने की धमकी देने लगे। वहाँ उपस्थित लक्ष्मण ने उन्हें बताया कि यह धनुष बहुत पुराना था तथा राम के छूने मात्र से ही टूट गया। इसमें राम का कोई दोष नहीं। इस पर परशुराम और भी क्रोधित हो उठे तथा अपने पराक्रम और शक्ति की डींगें मारने लगे। उनकी ये डींगें सुनकर लक्ष्मण ने व्यंग्य भरे वचन कहे।

(ग) जब परशुराम बड़ी-बड़ी डींगें मारने लगे तो लक्ष्मण ने हँसते हुए मधुर वाणी में कहा कि आप मुनि होकर अपने-आपको बहुत बड़ा शूरवीर समझते हैं। आप मुझे बार-बार अपना कुल्हाड़ा दिखाकर ऐसे डरा देना चाहते हो जैसे फूंक मारकर पहाड़ को उड़ा देना चाहते हो। हे मुनिवर ! यहाँ भी कोई छुईमुई का पेड़ नहीं है कि अँगुली के इशारे से ही कुम्हला जाएगा अर्थात् मैं इतना कमज़ोर नहीं हूँ कि तुम्हारे कुल्हाड़े के भय से ही डर जाऊँगा। मैंने तो तुम्हारे द्वारा धारण किए हुए कुठार एवं धनुष-बाण को देखकर ही अभिमान से कुछ कहा है। किंतु अब मैं जान गया हूँ। आपको भृगुकुल का ब्राह्मण समझ और आपका जनेऊ देखकर, जो कुछ आपने कहा उसे मैंने अपना क्रोध रोककर सहन कर लिया है। हमारे कुल में देवता, ब्राह्मण, भक्त और गाय पर वीरता नहीं दिखाते अर्थात् इनके साथ युद्ध नहीं करते। इनका वध करने पर पाप लगता है और हारने से अपयश होता है। यदि आप मुझे मारेंगे, तो भी मैं आपके चरणों में ही गिरूँगा और फिर आपके तो वचन ही करोड़ों वज्रों के समान कठोर हैं। आप तो व्यर्थ ही धनुष-बाण और कुठार धारण किए हुए हैं।
हे धीर मुनिवर ! इनको देखकर यदि मैंने कुछ अनुचित कह दिया हो तो मुझे क्षमा करना। यह सुनकर भृगुकुल में श्रेष्ठ परशुराम भी क्रोधित होकर गंभीर वाणी में बोले।

(घ) परशुराम अपना कुल्हाड़ा बार-बार लक्ष्मण को डराने हेतु दिखा रहे थे। वे उसे बता देना चाहते थे कि वे कुल्हाड़े से उसका वध कर सकते हैं।

(ङ), लक्ष्मण ने परशुराम के कुल्हाड़े और धनुष-बाण को देखकर उन्हें क्षत्रिय समझकर अभिमानपूर्ण बात की थी।

(च) लक्ष्मण क्षत्रिय कुल से है इसलिए उसने देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त व गाय को अवध्य बताया है क्योंकि इनका वध करने से पाप होता है और अपकीर्ति भी होती है।

(छ) लक्ष्मण के अनुसार परशुराम के वचन ही इतने कठोर हैं कि उन्हें अस्त्र-शस्त्र धारण करने की आवश्यकता नहीं है। वे अपने कठोर वचनों से ही शत्रु को परास्त कर देते हैं।

(ज) लक्ष्मण ने परशुराम को मारने की अपेक्षा उनके पाँव में पड़ने और क्षमा माँगने की बात कही थी।

(झ) इस वाक्य के माध्यम से परशुराम के बड़बोलेपन पर व्यंग्य किया है। यह उनकी वीरता को खुली चुनौती थी। परशुराम को माना हुआ योद्धा कहकर उनकी वीरता का मजाक किया है।

(ञ) इस पद को पढ़ने से पता चलता है कि लक्ष्मण निर्भीक, वाक्पटु एवं व्यंग्य-कुशल युवक है। वह परशुराम के बड़बोलेपन को चुपचाप सहन करने वाला वीर नहीं है। वह सामने वाले व्यक्ति द्वारा चुनौती देने पर कभी चुप नहीं रह सकता।

(ट) प्रस्तुत पद में लक्ष्मण ने परशुराम के द्वारा अभिमानपूर्वक कहे गए कथनों पर करारा व्यंग्य किया है। परशुराम ने अपनी शक्ति और कर्मों का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया है ताकि सभी उपस्थित लोग उनके कथनों से भयभीत हो जाएँ। किंतु लक्ष्मण ने स्पष्ट शब्दों में उन्हें समझा दिया कि उनके कुल में देवता, ब्राह्मण व गाय पर शस्त्र नहीं उठाते। इससे पाप लगता है। लक्ष्मण के इस कथन से अभिप्राय है कि यदि वह ब्राह्मण न होता तो वह उसे युद्ध के लिए ललकार देता और उनकी शक्ति का परीक्षण भी हो जाता।

(ठ)

  • इस पद में लक्ष्मण द्वारा परशुराम की अभिमानयुक्त वाणी और डींग हाँकने का मजाक उड़ाया गया है।
  • वीररस का सुंदर वर्णन हुआ है।
  • दोहा एवं चौपाई छंदों का प्रयोग किया गया है।
  • अवधी भाषा का विषयानुकूल प्रयोग किया गया है।
  • तत्सम एवं तद्भव शब्दों का अत्यंत सार्थक प्रयोग देखते ही बनता है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री, उपमा आदि अलंकारों के प्रयोग के द्वारा काव्यांश को सजाया गया है।
  • भाषा ओजगुण सम्पन्न है।

(ड) अवधी भाषा का भावानुकूल प्रयोग किया गया है। भाषा कीर रस के वर्णन के अनुकूल ओजस्वी है। तत्सम शब्दों के साथ-साथ तद्भव शब्दों का सुंदर एवं सार्थक प्रयोग किया गया है। पदमैत्री के प्रयोग के कारण भाषा में गेय तत्त्व विद्यमान है।

[4] कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु ॥
भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू ॥
कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं ॥
तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बल रोषु हमारा ॥
लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा ॥
अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी ॥
नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू ॥
बीरबती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा ॥
सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आए।
बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु ॥ [पृष्ठ 13]

शब्दार्थ-कौसिक = विश्वामित्र। मंद = मूर्ख । कुटिलु = दुष्ट। घालकु = घातक, नाश करने वाला। भानुबंस = सूर्यवंश। कलंकू = कलंक। निपट = बिल्कुल । निरंकुसु = उदंड। अबुधु = मूर्ख, अज्ञानी। असंकू = निडर। कवलु = ग्रास । खोरि = दोष। हटकहु = मना कर दो। तुम्हहि = न टूटने वाला। अछत = तुम्हारे रहते दूसरा। रिस = क्रोध । दुसह = असहाय। अछोभा = क्षोभ रहित। गारी = गाली। रन = युद्ध। रिपु = शत्रु। कायर = डरपोक। कथहिं = कहना। प्रतापु = बड़ाई।

प्रश्न-
(क) कवि, कविता एवं मूल ग्रंथ का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) परशुराम ने विश्वामित्र से क्या कहा?
(ङ) लक्ष्मण ने परशुराम पर क्या कहते हुए व्यंग्य किया?
(च) इस चौपाई के आधार पर परशुराम के चरित्र की विशेषताएँ बताइए।
(छ) लक्ष्मण के अनुसार शूरवीर कौन है?
(ज) लक्ष्मण ने परशुराम को क्या सुझाव दिया था?
(झ) इस पद के आधार पर लक्ष्मण के स्वभाव की विशेषताएँ लिखिए।’
(ञ) परशुराम ने विश्वामित्र को क्या करने की चेतावनी दी?
(ट) इस पद में प्रयुक्त किन्हीं दो अलंकारों के नाम लिखिए।
(ठ) प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ भाव सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ड) इस काव्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य (काव्य-सौंदय) पर प्रकाश डालिए।
(ढ) प्रस्तुत काव्यांश की भाषागत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-तुलसीदास। कविता का नाम-राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद। मूल ग्रंथ का नाम-‘रामचरितमानस’ (बालकांड)।।

(ख) तुलसीदास के प्रमुख काव्य ‘रामचरितमानस’ के ‘बालकांड’ से उद्धृत इन पंक्तियों में परशुराम व लक्ष्मण की स्वभावगत विशेषताओं का वर्णन किया गया है। सीता-स्वयंवर में जब श्रीराम ने शिव-धनुष को तोड़ दिया था, तब परशुराम जी ने वहाँ पहुँचकर अपनी वीरता और शक्ति की डींगें हाँकनी प्रारंभ कर दी थीं। इस पर लक्ष्मण ने उनकी शक्ति और वीरता पर व्यंग्य आरंभ कर दिए थे जिससे परशुराम जी का क्रोध और भी उत्तेजित हो गया था। तब परशुराम ने ये शब्द विश्वामित्र को संबोधित करते हुए कहे थे।

(ग) लक्ष्मण के व्यंग्य भरे वचन सुनकर परशुराम विश्वामित्र को संबोधित करते हुए कहते हैं, हे विश्वामित्र ! सुनो यह बालक कुबुद्धि और कुटिल, कालवश होकर अपने कुल का नाशक बन रहा है। यह सूर्यवंश रूपी पूर्ण-चंद्रमा का कलंक है। यह बालक बहुत ही उदंड, मूर्ख और निडर है। यह क्षणमात्र में ही काल का ग्रास बन जाएगा अर्थात् मैं इसका शीघ्र वध कर दूंगा। मैं बार-बार पुकार-पुकार कर कह रहा हूँ फिर मुझे दोष न देना। यदि तुम इसे बचाना चाहते हो तो मेरा बल, क्रोध और प्रताप बताकर इसे रोक लो। इस पर लक्ष्मण जी ने कहा हे मुनि ! भला तुम्हारे रहते हुए तुम्हारे यश का वर्णन कौन कर सकता है अर्थात् आप ही अपने यश का वर्णन बढ़ा-चढ़ाकर कर रहे हो। आपने अपनी करनी अपने मुख से अनेक बार अनेक प्रकार से तो कह दी है। यदि अब भी संतोष नहीं हुआ है तो फिर कुछ कह लीजिए। किंतु अपने क्रोध को रोक सहृदय कष्ट सहन न करे। आप वीरव्रती, धैर्यवान तथा क्षोभ-रहित हैं। आप गाली देते शोभा नहीं पाते अर्थात् गाली देना या अपशब्द कहना आपके लिए शोभनीय नहीं है।

लक्ष्मण जी ने पुनः कहा कि शूरवीर युद्ध-क्षेत्र में अपनी वीरता दिखाते हैं, अपने-आपको स्वयं कहकर प्रकट नहीं करते अर्थात् अपनी वीरता का वर्णन स्वयं नहीं करते। रण में अपने शत्रु को देखकर कायर लोग ही अपना गुणगान करते हैं।

(घ) परशुराम ने विश्वामित्र से कहा कि यह बालक कुबुद्धि है और यह काल के वश होकर अपने कुल के लिए घातक बन सकता है। इसको बचाना हो तो इसे मेरे प्रताप और बल के बारे में बता दीजिए अन्यथा फिर मुझे दोष मत देना।

(ङ) लक्ष्मण ने परशुराम पर व्यंग्य बाण छोड़ते हुए कहा कि आपके सुयश का वर्णन आपके अतिरिक्त और कौन कर सकता है। आप तो धैर्यवान और क्षोभरहित हो। युद्ध में शत्रु को पाकर कायर ही अपने प्रताप की डींगें मारा करते हैं।

(च) प्रस्तुत चौपाई को पढ़ने से पता चलता है कि परशुराम अत्यंत क्रोधी एवं आत्म-प्रशंसक स्वभाव वाले हैं। वे बार-बार अपना परिचय देने के बाद भी विश्वामित्र से कहते हैं कि आप बालक लक्ष्मण को मेरे विषय में बता दीजिए।

(छ) लक्ष्मण के अनुसार शूरवीर वह होता है जो बातें न करके युद्ध भूमि में जाकर युद्ध करता है। युद्ध भूमि में शत्रु को देखकर कायर ही डींगें मारता है।

(ज) लक्ष्मण ने परशुराम को सुझाव दिया था कि उसे अपना यश अपने मुख से प्रकट करना चाहिए था क्योंकि उनके स्वयं यहाँ रहते हुए भला उनके यश का ठीक-ठीक वर्णन कौन कर सकता है।

(झ) इस पद से पता चलता है कि लक्ष्मण का स्वभाव अत्यंत तेज एवं उग्र है। वे वीर एवं वाक्पटु भी हैं। जब परशुराम के क्रोध को देखकर सारी सभा मौन हो गई थी तब लक्ष्मण ने निडरतापूर्वक परशुराम को खरी-खरी बातें सुनाई थीं।।

(अ) परशुराम ने विश्वामित्र को चेतावनी दी थी कि वे लक्ष्मण को उनकी वीरता और प्रभाव के बारे में ठीक से बता दें। उसे उदंडता करने से मना कर दें अन्यथा वह बिना मौत के उसके हाथों मारा जाएगा।

(ट) रूपक-भानुबंस राकेस कलंकू। अनुप्रास-‘कुटिलु कालबस’, ‘बहुबरनी’ आदि।

(ठ) प्रस्तुत पद में कवि ने अत्यंत ओजस्वी भाषा में परशुराम के क्रोधी एवं आत्म-प्रशंसक रूप का उल्लेख किया है। लक्ष्मण की तेजस्विता, वाग्वीरता, व्यंग्य क्षमता और निर्भीकता को प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त किया गया है।

(ड)

  • कवि ने परशुराम के क्रोधी एवं आत्म-प्रशंसक रूप का उल्लेख किया है।
  • “लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।” पंक्ति में व्यंग्य देखते ही बनता है।
  • ‘काल कवलु’, ‘कुल घालकु’ आदि शब्दों का प्रयोग सुंदर एवं सटीक बन पड़ा है।
  • अवधी भाषा का सुंदर एवं सफल प्रयोग हुआ है।
  • अनुप्रास, रूपक, मानवीकरण आदि अलंकारों का सहज एवं स्वाभाविक प्रयोग भी देखते ही बनता है।
  • वीर रस का सुंदर एवं सजीव वर्णन हुआ है।
  • तत्सम एवं तद्भव शब्दावली का सार्थक एवं सटीक प्रयोग किया गया है।

(ढ) महाकवि तुलसीदास ने इन काव्य पंक्तियों में ठेठ अवधी भाषा का प्रयोग किया है। पूर्ण पद की भाषा भावानुकूल है। भाषा वीर रस की अभिव्यक्ति के अनुकूल ओजपूर्ण है। पदमैत्री का सफल प्रयोग किया गया है जिससे भाषा में प्रवाह एवं गेयतत्व का समावेश हुआ है। ‘कुल घालकु’ आदि मुहावरों के प्रयोग से भाषा सारगर्भित बन पड़ी है। अलंकृत भाषा के प्रयोग से काव्य-सौंदर्य में वृद्धि हुई है।

[5] तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा ॥
सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि घरेउ कर घोरा ॥
अब जनि देइ दोसु मोहि लोगू। कटुबादी बालकु बधजोगू ॥
बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा ॥
कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू ॥
खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही ॥
उतर देत छोड़ौं बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे ॥
न त येहि काटि कुठार कठोरे। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरे ॥
गाधिसू नु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ ॥ [पृष्ठ 14]

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

शब्दार्थ-कालु = काल, मृत्यु। हाँक = बुलाना। घोरा = भयानक। जनि = मानो। कटुबादी = कटु बोलने वाला। बधजोगू = वध करने योग्य। बिलोकि = देखकर। बाँचा = बचाया। मरनिहार = मरने वाला। अपराधू = दोष। खर = तीक्ष्ण, तेज। अकरुन = दया रहित। सील = व्यवहार। उरिन = उऋण, ऋण रहित। श्रम = परिश्रम। हरियरे = हरा-ही-हरा। अयमय = लोहमयी। खाँड़ = खड़ग।

प्रश्न-
(क) कवि, कविता व मूल ग्रंथ का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) परशुराम मानो किसे और क्यों हाँककर किसके पास बुला रहे थे?
(ङ) लक्ष्मण की खरी-खरी बातों का परशुराम पर क्या प्रभाव पड़ा?
(च) विश्वामित्र ने परशुराम को क्या कहकर शांत किया? ।
(छ) विश्वामित्र परशुराम के अकारण क्रोध को देखकर क्या सोचने लगे थे?
(ज) परशुराम ने लक्ष्मण को गुरुद्रोही क्यों कहा था?
(झ) परशुराम ने इस पद में अपने किन गुणों की ओर सकेत किया है?
(अ) परशुराम किन कारणों से लक्ष्मण को बिना मारे छोड़ रहे थे?
(ट) इस पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ठ) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में निहित शिल्प-सौंदर्य (काव्य-सौंदर्य) पर प्रकाश डालिए।
(ड) इस पद में प्रयुक्त भाषा की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-तुलसीदास। कविता का नाम-राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद। मूल ग्रंथ का नाम-‘रामचरितमानस’ (बालकांड)।

(ख) प्रस्तुत पद तुलसीदास के सुप्रसिद्ध काव्य-ग्रंथ ‘रामचरितमानस’ के ‘बालकांड’ से उद्धृत है। इसमें सीता-स्वयंवर के समय श्रीराम द्वारा शिव-धनुष तोड़ दिए जाने पर परशुराम द्वारा अचानक सभा में पहुँचकर क्रोध व्यक्त किया गया था जिससे सभा में उपस्थित सभी राजा लोग भयभीत हो गए थे। किंतु लक्ष्मण पर उनकी धमकियों व डींगों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा था, अपितु उसने निडरतापूर्वक उन्हें खरी-खरी सुनाई थी जिससे परशुराम का क्रोध और भी बढ़ गया था।

(ग) लक्ष्मण ने परशुराम को संबोधित करते हुए कहा, मानो आप तो काल को हाँक कर ले आए हैं। जो बारंबार मुझे बुला रहे हैं। लक्ष्मण के ऐसे कठोर वचन सुनकर परशुराम ने अपना भयंकर कुठार सुधारकर हाथ में पकड़ा और कहने लगे अब लोग मुझे दोष न दें। यह कटु वचन बोलने वाला बालक मारने योग्य है। बालक जानकर मैंने इसे बहुत बचाया, किंतु अब यह सचमुच ही मरना चाहता है। विश्वामित्र बोले इसका अपराध क्षमा करें। बालक के दोष व अवगुण साधु लोग नहीं गिनते। परशुराम ने कहा, मेरे हाथ में तीक्ष्ण कुठार है और मैं बिना कारण ही क्रोधी हूँ। इस पर भी मेरे सामने यह गुरुद्रोही है। जो उत्तर दे रहा है (इतने पर भी) हे कौशिक, केवल तुम्हारे सद्व्यवहार से ही इसको मैं बिना मारे छोड़ देता हूँ नहीं तो इसे कुठार से काटकर थोड़े ही परिश्रम से गुरु के ऋण से उऋण हो जाता।

इस पर विश्वामित्र मन में हँस कर कहने लगे मुनि को हरा-ही-हरा सूझता है जिन्होंने लोहे के समान धनुष को गन्ने की भाँति सरलता से तोड़ दिया। मुनि अब भी उनके प्रभाव को नहीं समझ रहे हैं।

(घ) परशुराम बार-बार लक्ष्मण का वध करने की धमकी देते हैं। इसे सुनकर लक्ष्मण जी कहते हैं कि मानो परशुराम तो काल को हाँककर उसके (लक्ष्मण के) पास बुला रहे हैं।

(ङ) लक्ष्मण की खरी-खरी बातों को सुनकर परशुराम का क्रोध और भी बढ़ जाता है। वे अपने कुल्हाड़े को संभालते हुए बोले, यह कटु वचन कहने वाला बालक निश्चय ही मारने योग्य है।

(च) विश्वामित्र जी ने परशुराम से कहा कि साधु लोग बालकों पर क्रोध नहीं करते और न ही उनके गुण-दोषों की ओर ध्यान देते हैं।

(छ) विश्वामित्र जी परशुराम के अकारण क्रोध को देखकर सोचने लगे कि मुनि विजय प्राप्त करने के कारण सर्वत्र हरा-हीहरा देख रहा है। वह श्रीराम को साधारण क्षत्रिय समझता है। मुनि अब भी बेसमझ बना हुआ है। वह इनके प्रभाव को नहीं देख रहा है।

(ज) परशुराम शिवजी को अपना गुरु मानते थे तथा इस नाते भगवान् शिव के धनुष की रक्षा करना उनका कर्तव्य बनता था। किंतु सीता-स्वयंवर के समय उसे श्रीराम ने भंग कर दिया था। इसी कारण परशुराम जी ने अपना और भगवान् शिव का अपमान समझ भरी सभा में क्षत्रियों को भला-बुरा कहा। इस पर लक्ष्मण ने परशुराम के व्यंग्यात्मक शब्दों का विरोध किया। इसलिए परशुराम ने लक्ष्मण को गुरुद्रोही कहा था।

(झ) इस पद में परशुराम ने कहा कि वह अत्यंत क्रोधी एवं निर्मम स्वभाव वाला व्यक्ति है।

(ञ) परशुराम अत्यंत क्रोधी एवं शक्तिशाली हैं, किंतु उन्होंने लक्ष्मण का वध इसलिए नहीं किया कि वह अभी बालक है और उसके स्वभाव को नहीं जानता।

(ट) इस पद में कवि ने परशुराम के अभिमानी एवं आत्म-प्रशंसक स्वभाव का वर्णन किया है। परशुराम लक्ष्मण को अपना अपमान करते देखकर अपना कुल्हाड़ा संभालने लगता है। विश्वामित्र के समझाने पर भी वह नहीं समझ सका कि श्रीराम कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं। यह देखकर विश्वामित्र मन-ही-मन मुस्कुरा दिए कि परशुराम को सब ओरं अपनी विजय-ही-विजय दिखाई देती है। वह वास्तविकता को नहीं समझ रहे थे तथा अपनी वीरता की डींगें मार रहे थे।

(ठ)

  • प्रस्तुत पद में कवि ने परशुराम एवं लक्ष्मण के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख किया है।
  • अवधी भाषा का विषयानुकूल प्रयोग किया गया है।
  • नाटकीयता के कारण रोचकता का समावेश हुआ है।
  • सम्पूर्ण पद्य में व्यंग्य का प्रयोग हुआ है।
  • चौपाई एवं दोहा छंद का प्रयोग किया गया है।
  • रूपक एवं मानवीकरण अलंकारों का प्रयोग किया गया है।

(ड) भाषा अलंकृत एवं विषयानुकूल है। तत्सम शब्दों का सफल एवं सार्थक प्रयोग किया गया है। भाषा ओजगुण संपन्न है। मुहावरों के सफल प्रयोग के कारण भाषा सारगर्भित बन पड़ी है।

[6] कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा । को नहि जान बिदित संसारा ॥
माता पितहि उरिन भये नीकें। गुररिनु रहा सोचु बड़ जी के ॥
सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये व्याज बड़ बाढ़ा ॥
अब आनिअ व्यवहरिआ बोली। तुरत देउँ मैं थैली खोली ॥
सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा ॥
भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र बिचारि बचौं नृपद्रोही ॥
मिले न कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े ॥
अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे ॥
लखन उतर आहुति सरिस भूगुबरकोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु ॥ [पृष्ठ 14]

शब्दार्थ-सीलु = स्वभाव। बिदित = जानना, परिचित। उरिन = ऋण से मुक्त, कर्ज चुकाना। नीकें = भली प्रकार। गुररिनु = गुरु का ऋण। बड़ = बड़ी। जी = हृदय। जनु = मानो। हमरेहि माथे काढ़ा = हमारे माथे पर निकालना, हम पर निकालना। बाढ़ा = बढ़ गया। आनिअ = लाओ। व्यवहरिआ = हिसाब-किताब करने वाला। तुरत = शीघ्र । कटु = कठोर। सुधारा = संभाला। भृगुबर = भृगु के वंशज, परशुराम। मोही = मुझे। बिप्र = ब्राह्मण। बिचारि = सोचकर। बचौं = बचा रहा था। नृपद्रोही = राजाओं के शत्रु। सुभट = वीर योद्धा। रन = युद्ध । गाढ़े = अच्छे। द्विजदेवता = ब्राह्मण देवता। बाढ़े = फूलना। सयनहि = आँखों के इशारे से। नेवारे = रोका, मना किया। सरिस = समान। कोपु = क्रोध । कृसानु = आग। रघुकुलभानु = रघुवंश के सूर्य श्रीरामचंद्र।

प्रश्न-
(क) कवि, कविता एवं मूल ग्रंथ का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद की व्याख्या कीजिए।
(घ) इस पद में किसने किस पर क्या व्यंग्य किया?
(ङ) सभा में हाहाकार मचने का क्या कारण था?
(च) परशराम के बढ़ते क्रोध को किसने और कैसे शांत किया?
(छ) परशुराम के गुरु कौन थे? वे गुरु के ऋण से कैसे उऋण होना चाहते थे?
(ज) परशुराम को फरसा संभालते हुए देखकर सभा ने क्या प्रतिक्रिया की?
(झ) लक्ष्मण ने परशुराम के साथ संघर्ष को क्यों टाल दिया?
(अ) लक्ष्मण की उत्तेजक बातों का सभा पर क्या प्रभाव पड़ा?
(ट) राम ने लक्ष्मण को शांत रहने के लिए किस प्रकार समझाया?
(ठ) इस पद के आधार पर लक्ष्मण की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ड) राम के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
(ढ) ‘द्विजदेवता घरहि के बाढ़े का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
(ण) प्रस्तुत पद का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
(त) प्रस्तुत पद के भाषा वैशिष्ट्रय पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-तुलसीदास। कविता का नाम-राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद। मूल ग्रंथ का नाम-‘रामचरितमानस’ (बालकांड)।

(ख) तुलसीदास द्वारा रचित काव्य-ग्रंथ ‘रामचरितमानस’ से उद्धृत इस पद में उस घटना का वर्णन किया गया है जब श्रीराम ने शिव-धनुष तोड़कर सीता का वरण किया था और उसी समय परशुराम ने वहाँ पधारकर सभी को अपने क्रोध से आतंकित कर दिया था। वे धनुष तोड़ने वाले का वध करने की धमकी देने लगे। तभी लक्ष्मण ने उनकी धमकियों पर व्यंग्य करते हुए ये शब्द कहे थे।

(ग) लक्ष्मण ने परशुराम से कहा, हे मुनि! आपके शील के विषय में कौन नहीं जानता अर्थात् सारा संसार आपके शील से परिचित है। आप अपने माता-पिता के ऋण से तो अच्छी प्रकार से उऋण हो चुके हैं। केवल गुरु का ऋण शेष बचा है। उसे उतारना ही आपकी सबसे बड़ी चिंता है। वह शायद आप हमारे माथे पर काढ़ना चाहते हैं। कहने का भाव है कि लक्ष्मण को मारकर वे अपने गुरु के ऋण को उतारना चाहते हैं। यह बात उचित भी है क्योंकि काफी समय बीत गया है और ब्याज भी बहुत बढ़ गया है। चलिए अब किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुला लेना चाहिए और तुरंत ही थैली खोलकर हिसाब चुकता कर दूंगा। लक्ष्मण के ये कटु वचन सुनकर परशुराम ने अपना फरसा संभाल लिया। सारी सभा भयभीत होकर हाय-हाय करने लगी। लक्ष्मण ने फिर धैर्यपूर्वक कहा, हे भृगुकुल के श्रेष्ठ परशुराम! आप मुझे अपना फरसा दिखा रहे हैं और मैं आपको ब्राह्मण समझकर लड़ने से बार-बार बच रहा हूँ। हे नृपद्रोही! लगता है कि आपका युद्ध भूमि में कभी पराक्रमी वीरों से पाला नहीं पड़ा। इसलिए हे ब्राह्मण देवता! आप अपने घर में ही अपनी वीरता के कारण फूले-फूले फिर रहे हैं।
लक्ष्मण के ये शब्द सुनकर सभा में उपस्थित लोग ‘अनुचित-अनुचित’ कहने लगे। श्रीराम ने लक्ष्मण को आँख के संकेत से शांत रहने के लिए कहा। इस प्रकार लक्ष्मण के शब्द परशुराम के क्रोध को इस प्रकार भड़काने वाले थे जैसे आहुति आग को भड़काती है। उस आग को बढ़ते देखकर श्रीराम ने जल के समान शीतल वचन कहे।

(घ) इस पद में लक्ष्मण ने परशुराम पर व्यंग्य किया है। लक्ष्मण ने कहा कि आपने अपने पिता का कहना मानकर अपनी माता का वध कर दिया और माता-पिता के ऋण से उऋण हो गए अब मुझे मारकर गुरु का ऋण चुकता करना चाहते हैं तो ठीक है किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुला लीजिए।

(ङ) लक्ष्मण के कटु वचन सुनकर परशुराम जी का क्रोध बढ़ गया और उन्होंने लक्ष्मण को मारने के लिए अपना फरसा उठा लिया था। वहाँ बैठी सभा यह देखकर हाहाकार कर उठी थी।

(च) श्रीराम ने अपनी मधुर वाणी से परशुराम के बढ़ते क्रोध को शांत किया।

(छ) परशुराम के गुरु भगवान् शिव थे। वे शिव के धनुष को तोड़ने वाले का वध करके गुरु के ऋण से उऋण होना चाहते थे।

(ज) परशुराम को अपना फरसा संभालते हुए देखकर सारी सभा भयभीत हो उठी थी क्योंकि परशुराम लक्ष्मण के प्रति और भी अधिक क्रुद्ध हो उठे थे तथा उसका वध करना चाहते थे। उधर लक्ष्मण भी परशुराम को युद्ध की चुनौती देने लगे थे। इसलिए सभा हाहाकार करने लगी थी।

(झ) लक्ष्मण ने परशुराम के साथ संघर्ष इसलिए टाल दिया था क्योंकि परशुराम ब्राह्मण थे और वे ब्राह्मण के साथ युद्ध नहीं करना चाहते थे। ब्राह्मणों के साथ युद्ध करना व उनका वध करना उनके कुल की मर्यादा के विपरीत था।

(ञ) लक्ष्मण की उत्तेजक बातों को सुनकर सभा में उपस्थित लोगों ने आपत्ति की तथा लक्ष्मण के वचनों को अनुचित बताया। यहाँ तक कि श्रीरामचंद्र ने भी उन्हें चुप रहने का संकेत किया।

(ट) श्रीराम ने लक्ष्मण को आँख के संकेत से शांत रहने को कहा और परशुराम का अपमान न करने के लिए कहा।

(ठ) इस पद को पढ़कर पता चलता है कि लक्ष्मण स्वभाव से अत्यधिक उग्र हैं। वे अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं कर सकते। उन्हें छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा आ जाता है। वे अपने से बड़े परशुरामजी के सामने भी कठोर वचन आसानी से बोल जाते हैं। इसी कारण सारी सभा उनके विरुद्ध बोलने लगती है।

(ड) इस पद से पता चलता है कि श्रीराम अत्यंत गंभीर एवं शांत स्वभाव वाले व्यक्ति हैं। उन्होंने लक्ष्मण को शांत रहने का संकेत किया। उन्होंने अपनी मधुर वाणी से परशुराम जी के क्रोध को शांत किया था। अतः वे शांत स्वभाव वाले एवं मधुरभाषी हैं।

(ढ) इस पद के माध्यम से लक्ष्मण ने परशुराम की खोखली धमकियों पर व्यंग्य किया है। लक्ष्मण कहते हैं कि हे ब्राह्मण देवता! आप तो अपने घर में ही शेर बने फिरते हैं आपका कभी किसी वीर योद्धा से पाला नहीं पड़ा।

(ण) इस पद में कवि ने लक्ष्मण, परशुराम और श्रीराम के स्वभाव का समान रूप से चित्रण किया है। लक्ष्मण अपने कटु वचनों से परशुराम के क्रोध को बढ़ाता है तथा उन पर व्यंग्य कसता है। परशुराम अपने क्रोध के अतिक्रमण के कारण लक्ष्मण का वध करने के लिए अपना फरसा संभाल लेता है किंतु श्रीराम अपनी मधुर वाणी और शांत स्वभाव से दोनों को शांत कर देते हैं।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

(त) भाषा भाव के अनुरूप विनम्र, क्रोध तथा व्यंग्य के भावों को अभिव्यक्त करने में पूर्णतः सफल रही है। उपमा, अनुप्रास, वीप्सा, वक्रोक्ति आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है। दोहा एवं चौपाई छंद हैं। अवधी भाषा का विषयानुकूल प्रयोग हुआ है।

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Summary in Hindi

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद कवि-परिचय

प्रश्न-
तुलसीदास का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-गोस्वामी तुलसीदास हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। अत्यंत खेद का विषय है कि इनका जीवन-वृत्तांत अभी तक अंधकारमय है। इसका कारण यह है कि इन्हें अपने इष्टदेव के सम्मुख निज व्यक्तित्व का प्रतिफलन प्रिय नहीं था। इनका जन्म सन् 1532 में बाँदा जिले के राजापुर नामक गाँव में हुआ था। कुछ लोग इनका जन्म-स्थान सोरों (ज़िला एटा) को भी मानते हैं। इनके पिता का नाम आत्माराम दूबे और माता का नाम हुलसी था। जनश्रुति के अनुसार, इनका विवाह रत्नावली से हुआ था। इनका तारक नाम का पुत्र भी हुआ था जिसकी मृत्यु हो गई थी। तुलसी अपनी पत्नी के रूप-गुण पर अत्यधिक आसक्त थे और इसीलिए इन्हें उससे “लाज न आवति आपको दौरे आयहु साथ” मीठी भर्त्सना सुननी पड़ी थी। इसी भर्त्सना ने उनकी जीवनधारा को ही बदल दिया। इनके ज्ञान-चक्षु खुल गए। इन्होंने बाबा नरहरिदास से दीक्षा प्राप्त की। काशी में इन्होंने सोलह-सत्रह वर्ष तक वेद, पुराण, उपनिषद्, रामायण तथा श्रीमद्भागवत का गंभीर अध्ययन किया। इनका देहांत सन् 1623 में काशी में हुआ।

2. प्रमुख रचनाएँ-तुलसीदास की बारह रचनाएँ प्रसिद्ध हैं। उनमें ‘रामचरितमानस’, ‘विनयपत्रिका’, ‘कवितावली’, ‘दोहावली’, ‘जानकी मंगल’, ‘पार्वती मंगल’ आदि उल्लेखनीय हैं।

3. काव्यगत विशेषताएँ-तुलसीदास रामभक्त कवि थे। ‘रामचरितमानस’ इनकी अमर रचना है। तुलसीदास आदर्शवादी विचारधारा के कवि थे। इन्होंने राम के सगुण रूप की भक्ति की है। इन्होंने राम के चरित्र के विराट स्वरूप का वर्णन किया है। तुलसीदास ने श्रीराम के जीवन के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला है। उन्होंने ‘रामचरितमानस’ में सर्वत्र आदर्श की स्थापना की है। पिता, पुत्र, भाई, पति, प्रजा, राजा, स्वामी, सेवक सभी का आदर्श रूप में चित्रण किया गया है।
तुलसीदास के साहित्य की अन्य प्रमुख विशेषता है तुलसी का समन्वयवादी दृष्टिकोण। इनकी रचनाओं में ज्ञान, भक्ति और कर्म, धर्म और संस्कृति, सगुण और मिर्गुण आदि का सुंदर समन्वय दिखाई देता है।
तुलसीदास की भक्ति दास्य भाव की भक्ति है। वे अपने आराध्य श्रीराम को श्रेष्ठ और स्वयं को तुच्छ या हीन स्वीकार करते हैं। तुलसीदास का कथन है

“राम सो बड़ो है कौन, मोसो कौन है छोटो?
राम सो खरो है कौन, मोसो कौन है खोटो?”

कविवर तुलसीदास अपने युग के महान समाज-सुधारक थे। इनके काव्य में आदि से अंत तक जनहित की भावना भरी हुई है। तुलसीदास जी के काव्य में उनके भक्त, कवि और समाज-सुधारक तीनों रूपों का अद्भुत समन्वय मिलता है।

4. भाषा-शैली-इन्होंने अपना अधिकांश काव्य अवधी भाषा में लिखा, किंतु ब्रज भाषा पर भी इन्हें पूर्ण अधिकार प्राप्त था। इनकी भाषा में संस्कृत की कोमलकांत पदावली की सुमधुर झंकार है। भाषा की दृष्टि से इनकी तुलना हिंदी के किसी अन्य कवि से नहीं हो सकती। इनकी भाषा में समन्वय का प्रयास है। वह जितनी लौकिक है, उतनी ही शास्त्रीय भी है। इन्होंने अपने काव्य में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। भावों के चित्रण के लिए इन्होंने उत्प्रेक्षा, रूपक और उपमा अलंकारों का अधिक प्रयोग किया है। इन्होंने रोला, चौपाई, हरिगीतिका, छप्पय, सोरठा आदि छंदों का सुंदर प्रयोग किया है।

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद काव्यांशों का सार

प्रश्न-
‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ नामक कवितांश का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ तुलसीदास के महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के ‘बालकांड’ अध्याय का प्रमुख अंश है। इसका ‘रामचरितमानस’ के कथानक में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस संक्षिप्त से अंश में राम, लक्ष्मण और परशुराम तीनों के चरित्र का उद्घाटन होता है। जब राजा जनक द्वारा आयोजित सीता स्वयंवर के अवसर पर श्रीराम भगवान शंकर के धनुष को तोड़ डालते हैं, तब वहाँ उपस्थित समाज के लोगों पर विभिन्न प्रभाव पड़ता है। राजा जनक प्रसन्न होते हैं। सीता की मनोकामना एवं भक्ति पूरी होती है। साधु लोग प्रसन्न होते हैं। दुष्ट राजा लोग इससे दुःखी होते हैं। परशुराम को जब धनुष भंजन की खबर मिलती है तो वे क्रोध से पागल हो उठते हैं तथा राजा जनक की सभा में उपस्थित होकर धनुष तोड़ने वाले को समाप्त करने की धमकी देते हैं।

परशुराम की क्रोध भरी बातें सुनकर श्रीराम अत्यंत धीरज एवं सहज भाव से बोल उठे, हे नाथ! शिवजी के धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका ही दास होगा। यह सुनकर भी उनका क्रोध शांत नहीं होता। वे उसी भाव से कहते हैं, सेवक का काम तो सेवा करना है। जिसने भी यह धनुष तोड़ा है, वह मेरा सहस्रबाहु के समान शत्रु है। परशुराम का क्रोध बढ़ता ही गया और उन्होंने कहा कि धनुष तोड़ने वाला सभा से अलग हो जाए, अन्यथा वे सारे समाज को नष्ट कर देंगे। इस पर लक्ष्मण ने यह कहकर कि बचपन में ऐसे कितने धनुष तोड़े होंगे, फिर इस धनुष से आपको इतनी ममता क्यों है? परशुराम के क्रोध को और भी भड़का दिया। लक्ष्मण ने पुनः कहा कि इसमें राम का कोई दोष नहीं। वह तो उनके छूते ही टूट गया। इसलिए हे मुनिवर! आप तो व्यर्थ ही क्रोध कर रहे हैं। परशुराम क्रोधाग्नि में जल उठे और बोले कि मैं तुम्हें बालक समझकर छोड़ रहा हूँ। मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ और क्षत्रिय कुल का शत्रु हूँ।

मैंने अपने भुजबल से पृथ्वी को कई बार राजा-विहीन कर दिया और पृथ्वी को देवताओं को दान में दे दिया। हे राजकुमार ! तुम मेरे फरसे को देख रहे हो। लक्ष्मण ने सहज भाव से कहा कि हे मुनिवर ! तुम मुझे बार-बार कुल्हाड़ा दिखाते हो तब फूंक मारकर पहाड़ को उड़ाना चाहते हो। मैंने तो जो कुछ कहा वह तुम्हारे वेश को देखकर कहा, किंतु अब मुझे पता चल गया है कि तुम भृगु-सुत हो और तुम्हारे जनेउ को देखकर सब कुछ जान गया हूँ। इसलिए आप जो कुछ भी कहेंगे मैं उसे सहन कर लूँगा। परशुराम ने विश्वामित्र से कहा कि इस बालक को समझा लीजिए अन्यथा यह काल कलवित हो जाएगा। किंतु लक्ष्मण ने उन्हें स्पष्ट भाषा में ललकारा तो उन्होंने अपना फरसा संभाल लिया और कहा कि अब मुझे बालक का वध करने का दोष मत देना। अंत में विश्वामित्र ने परशुराम को समझाते हुए कहा कि आप महान् हैं और बड़ों को छोटों के अपराध क्षमा कर देने में ही उनकी महानता है। किंतु वे मन-ही-मन हँसने लगे कि जिसने शिव-धनुष को गन्ने की भाँति सरलता से तोड़ दिया वे उसके प्रभाव को नहीं समझे। लक्ष्मण ने पुनः मजाक में कहा कि परशुराम जी माता-पिता के ऋण से तो मुक्त हो चुके हैं। अब गुरु के ऋण से उऋण होना चाहते हैं। यह सुनते ही परशुराम ने अपना कुल्हाड़ा संभाल लिया। सारी सभा में हाहाकार मच गया। लक्ष्मण के शब्दों ने परशुराम का क्रोध और भी बढ़ा दिया, किंतु तब श्रीराम ने जल के समान शांत करने वाले शब्द कहे।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

HBSE 10th Class Hindi सूरदास के पद Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?
उत्तर-
गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहकर वास्तव में उसके दुर्भाग्य पर व्यंग्य किया गया है जो व्यक्ति प्रेम के सागर श्रीकृष्ण के समीप रहकर भी प्रेम रूपी जल को प्राप्त नहीं कर सकता, वह वास्तव में दुर्भाग्यशाली ही होगा। गोपियों के कहने का अभिप्राय यह है कि उद्धव के हृदय में प्रेम जैसी पावन भावना का संचार नहीं है। इसलिए वह भाग्यवान नहीं, अपितु भाग्यहीन है।

प्रश्न 2.
उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?
उत्तर-
उद्धव के व्यवहार की तुलना कमल के पत्ते एवं तेल की गगरी से की गई है। जिस प्रकार कमल का पत्ता पानी में रहता हुआ भी उससे प्रभावित नहीं होता अर्थात् उस पर पानी की बूंदों के दाग नहीं पड़ते और तेल की गगरी भी चिकनी होती है। उस । पर पानी की बूंदें भी नहीं ठहर सकतीं। ठीक इसी प्रकार उद्धव पर भी श्रीकृष्ण के प्रेम का प्रभाव नहीं पड़ सका।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

प्रश्न 3.
गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?
उत्तर-
गोपियों ने निम्नलिखित उदाहरणों द्वारा उद्धव को उलाहने दिए हैं-
वे कहती हैं कि हे उद्धव ! हमारी प्रेम-भावना हमारे मन में ही रह गई है। हम तो कृष्ण को अपने मन की प्रेम-भावना बताना चाहती थीं किंतु उनका यह योग का संदेश सुनकर तो हम उन्हें कुछ भी नहीं बता सकतीं। हम तो श्रीकृष्ण के लौट आने की आशा में जीवित थीं। हमें उम्मीद थी कि श्रीकृष्ण अवश्य ही एक-न-एक दिन लौट आएँगे, किंतु उनका यह संदेश सुनकर हमारी आशा ही नष्ट हो गई और हमारे विरह की आग और भी भड़क उठी। इससे तो अच्छा था कि तू आता ही न। गोपियों को यह भी आशा थी कि श्रीकृष्ण प्रेम की मर्यादा का पालन करेंगे। वे उनके प्रेम के प्रतिदान में प्रेम देंगे। किंतु उन्होंने निर्गुणोपासना का संदेश भेजकर प्रेम की सारी मर्यादा को तोड़ डाला। इस प्रकार वह मर्यादाहीन बन गया है।

प्रश्न 4.
उद्धव द्वारा दिए गए योग के सदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया?
उत्तर-
श्रीकृष्ण के मथुरा गमन के पश्चात् गोपियाँ विरह की आग में जलती रहती थीं। वे श्रीकृष्ण को याद करके तड़पती रहती थीं। उन्हें आशा थी कि एक-न-एक दिन श्रीकृष्ण अवश्य लौटकर आएँगे और तब उन्हें उनका खोया हुआ प्रेम पुनः मिल जाएगा। श्रीकृष्ण के आने पर वे अपने हृदय की पीड़ा को उनके सामने व्यक्त करेंगी। किंतु उसी समय उद्धव श्रीकृष्ण द्वारा भेजा गया योग-साधना का संदेश लेकर गोपियों के पास आ पहुँचा तब गोपियों की सहनशक्ति जवाब दे गई। उन्होंने श्रीकृष्ण के द्वारा भेजे जाने वाले ऐसे योग संदेश की कभी कल्पना भी नहीं की थी। इससे उनका विश्वास टूट गया था। विरहाग्नि में जलता हुआ उनका हृदय योग के वचनों से दहक उठा था। योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम किया था। इसीलिए उन्होंने उद्धव और श्रीकृष्ण को मनचाही जली-कटी सुनाई थी।

प्रश्न 5.
‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?
उत्तर-
कवि ने इस कथन के माध्यम से स्पष्ट किया है कि प्रेम की मर्यादा यही है कि प्रेमी व प्रेमिका दोनों ही प्रेम के नियमों . का पालन करें अर्थात् प्रेम के प्रतिदान में प्रेम देवें। प्रेम की सच्ची भावना को समझते हुए प्रेम की मर्यादा का पालन करें, किंतु श्रीकृष्ण ने गोपियों के प्रेम के बदले उन्हें योग-साधना अपनाने का संदेश भेज दिया जो कि उनकी एक चाल थी। श्रीकृष्ण की इसी छलपूर्वक चाल को ही मर्यादा का उल्लंघन कहा गया है।

प्रश्न 6.
कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है?
उत्तर-
जिस प्रकार हारिल पक्षी सदा ही अपने पंजों में लकड़ी को पकड़े रहता है और उसे अपने जीवन का आधार समझता है; उसी प्रकार गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रेम को अपने जीवन का आधार समझती हैं और सदा उसे अपने हृदय में बसाए रहती हैं। वे मन से श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित हैं। इसलिए वे दिन-रात, सोते-आगते, उठते-बैठते तथा स्वप्न में भी कान्ह-कान्ह रटती रहती हैं। इस प्रकार गोपियों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को अभिव्यक्त किया है।

प्रश्न 7.
गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?
उत्तर-
गोपियों के अनुसार उनका मन श्रीकृष्ण के प्रेम में लगा हुआ है। वे एकनिष्ठ भाव से ही कृष्ण से प्रेम करती हैं। इसलिए उनके मन में किसी प्रकार की उलझन व दुविधा नहीं है। अतः वे कहती हैं कि उद्धव को यह शिक्षा उन लोगों को देनी चाहिए जिनके मन चकरी की भाँति घूमते हों अर्थात् जिनके मन में दुविधा हो व जिनके मन अस्थिर हों।

प्रश्न 8.
प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।
उत्तर-
गोपियों के लिए योग-साधना बिल्कुल निरर्थक है। उनके लिए तो यह कड़वी ककड़ी की भाँति व्यर्थ एवं अरुचिकर है। योग-साधना की शिक्षा उनके लिए कष्टप्रद है। वह उनके कानों को भी कष्ट देने वाली प्रतीत होती है। इतना ही नहीं, वे योग-साधना को अनीतिपूर्ण, शास्त्र-विरुद्ध एवं अग्रहणीय बताकर उनका विरोध करती हैं। वे यहाँ तक कह देती हैं कि इस साधना की शिक्षा तो उन लोगों को दो जिनके मन भ्रम में पड़े हो, जिनके मन अस्थिर हों।

प्रश्न 9.
गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?
उत्तर-
गोपियों के अनुसार राजा का धर्म प्रजा की रक्षा व कल्याण करना होना चाहिए। उसे अपनी प्रजा को किसी प्रकार का कष्ट नहीं देना चाहिए। उसे प्रजा के सुख-चैन का ध्यान रखना चाहिए।

प्रश्न 10.
गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं?
उत्तर-
गोपियों के अनुसार अब श्रीकृष्ण बदल गए हैं। अब वे मथुरा के राजा बन गए हैं और उन्होंने राजनीति भी पढ़ ली है। अब वे पहले से भी अधिक बुद्धिमान् व चतुर हो गए हैं। अब वे प्रजा (गोपियों) के हित की नहीं सोचते। वे केवल अपने स्वार्थ की बात सोचते हैं। उन्होंने गोपियों की विरह-वेदना को शांत करने के लिए स्वयं न आकर उद्धव के माध्यम से योग-संदेश भेजकर उन्हें भड़काने का काम किया है जो उनके प्रति अन्याय एवं अहितकर है।

प्रश्न 11.
गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य से उद्धव को निरुत्तर कर दिया था। गोपियों ने सर्वप्रथम उन्हें भाग्यशाली कहा कि उनके मन को प्रेम छू न सका। जिस प्रकार कमल का पत्ता पानी में रहता है किंतु पानी का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, उसी प्रकार तेल की गगरी पर भी पानी की बूंद तक नहीं ठहर सकती परंतु गोपियों के अनुसार योग-साधना उन लोगों के लिए है जिनका मन अस्थिर रहता है या जिनका मन चकरी की भाँति दुविधा में रहता है। वे स्वयं को हारिल पक्षी और श्रीकृष्ण को हारिल पक्षी द्वारा पकड़ी हई लकड़ी बताती हैं जिससे उन्हें श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम का बोध होता है। इस प्रकार वे अपने वाक्चातुर्य से उद्धव को परास्त करने में सफल होती हैं।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

प्रश्न 12.
संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-
सूर के भ्रमरगीत की सबसे प्रमुख विशेषता है कि इसमें गोपियों की श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम की अभिव्यञ्जना हुई है। वे अपने हृदय में हारिल पक्षी की भाँति श्रीकृष्ण के प्रेम को सदैव बसाए रखती हैं। गोपियाँ उद्धव को अपने वाक्चातुर्य से परास्त कर देती हैं जिससे सिद्ध हो जाता है कि कवि ने सगुण की निर्गुण पर विजय दिखाई है।
भ्रमरगीत में व्यंग्य, कटाक्ष, उलाहना, निराशा, विरह की पीड़ा, प्रार्थना, आस्था, अनास्था, गुहार आदि अनेक भावों को एक साथ व्यक्त करने का सफल प्रयास किया गया है।
भ्रमरगीत में ब्रजभाषा का सफल प्रयोग किया गया है। भाषा में जितना माधुर्यगुण है उतनी ही कटाक्ष व व्यंग्य करने की क्षमता भी। संपूर्ण भ्रमरगीत में कवि ने अनेक अलंकारों का प्रयोग करके भाषा को अलंकृत किया है। भ्रमरगीत में विचारधारा के पक्ष के लिए श्रीकृष्ण पर्दे के पीछे रहते हैं, किंतु गोपियाँ सामने आकर वार करती दिखाई देती हैं। . रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 13.
गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए।
उत्तर-
गोपियाँ उद्धव को बता रही हैं कि हे उद्धव! यदि यह योग-साधना इतनी उत्तम वस्तु है तो इसे मथुरावासियों को क्यों नहीं सिखाते। फिर हम तो श्रीकृष्ण की एक मन से आराधना करती हैं। हमारे पास तो उनका प्रेम ही जीवन के आधार के रूप में विद्यमान है। जिस व्यक्ति ने मीठी मिसरी का स्वाद चख लिया हो वह भला कड़वी निबौरी क्यों खाएगा। हम गोपियाँ कोमलांग युवतियाँ हैं, जबकि योग-साधना बहुत ही कठिन शारीरिक साधना है। इसलिए योग-साधना की शिक्षा या उपदेश कहीं और जाकर दीजिए।

प्रश्न 14.
उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे गोपियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी?
उत्तर-गोपियों के पास श्रीकृष्ण के अनन्य प्रेम की शक्ति, उनके प्रति निष्ठा और पूर्ण समर्पण भाव की वह शक्ति थी, जो . उद्धव के समक्ष उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी।

प्रश्न 15.
गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नज़र आता है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
गोपियों के मन में श्रीकृष्ण के प्रति सहचर्य से उत्पन्न सच्चा प्रेम था। वे श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने के पश्चात् उनके विरह की पीड़ा से व्याकुल थीं। श्रीकृष्ण ने उनकी विरह की पीड़ा से उत्पन्न व्याकुलता को शांत करने के लिए स्वयं आने की अपेक्षा निर्गुण ईश्वर की उपासना का ज्ञान देने के लिए उद्धव को भेज दिया। श्रीकृष्ण के निर्मम और अनीतिपूर्ण व्यवहार पर व्यंग्य करते हुए गोपियाँ उन्हें राजनीतिज्ञ की संज्ञा देती हैं। गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में भी दिखाई देता है। जो मनुष्य शासन या राजनीति से जुड़ जाता है, वह शुष्क एवं नीरस व्यवहार करने लगता है। उसके मन में प्रेम, स्नेह जैसी कोमल भावनाएँ लुप्त हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त वह प्रेम के व्यवहार की मर्यादाएँ भी भूल जाता है।

HBSE 10th Class Hindi सूरदास के पद Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सूरदास किस भक्ति-भावना के पक्ष में थे? उदाहरण देकर सिद्ध कीजिए।
उत्तर-
सूरदास सगुण भक्ति-भावना के पक्ष में थे। उनकी गोपियाँ भगवान् विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण की उपासिकाएँ थीं। वे श्रीकृष्ण से अनन्य प्रेम करती थीं। गोपियाँ अपने संबंध में कहती हैं कि “अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी” । वे हारिल पक्षी का उदाहरण देती हुई कहती हैं कि हम हारिल की लकड़ी के समान कृष्ण की सच्ची आराधिका हैं अर्थात् वे अपने हृदय में हर क्षण श्रीकृष्ण को बसाए रहती हैं। सूरदास ने सगुण भक्ति में प्रेम की भावना को अनिवार्य माना है तथा उसकी मर्यादा का पालन करना भी अनिवार्य बताया है। वे निर्गुणोपासना या योग-साधना की अवहेलना ‘कड़वी- ककड़ी’ कहकर करते हैं तो कभी उसे ‘व्याधि’ कहकर उसका विरोध करते हैं। इन सब तथ्यों से स्पष्ट है कि सूरदास सगुण भक्ति-भावना के उपासक हैं।

प्रश्न 2.
प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
पठित पदों में भक्त कवि सूरदास ने बताया है कि गोपियों के मन में श्रीकृष्ण के प्रति एकनिष्ठ प्रेम की भावना थी। वे अपना सर्वस्व श्रीकृष्ण के प्रेम में त्याग चुकी थीं। उनकी प्रेमनिष्ठता के सामने निर्गुण ईश्वर का उपासक उद्धव भी परास्त हो जाता है। उद्धव का मान-सम्मान करते हुए वे उन पर सीधा कटाक्ष न करते हुए उन्हें मधुकर कहकर संबोधित करती हैं। वे लोक-मर्यादा का पूर्ण ध्यान रखती हैं। श्रीकृष्ण द्वारा प्रेम की मर्यादा का पालन न करने पर उन्हें बहुत दुःख होता है। वे श्रीकृष्ण के वियोग में पीड़ा सहन करती हैं। वे दिन-रात, सोते-जागते यहाँ तक कि स्वप्न में भी श्रीकृष्ण के नाम की रट लगाती रहती हैं।

प्रश्न 3.
पठित पदों के मूल संदेश पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
सूरदास-कृत इन पदों में गोपियों एवं उद्धव के संवाद के माध्यम से निर्गुण ईश्वर की भक्ति पर सगुण ईश्वर की भक्ति की भावना की विजय दिखाई गई है। उद्धव गोपियों की श्रीकृष्ण के प्रति एकनिष्ठ प्रेम-भावना को देखकर दंग रह जाता है। वह गोपियों के द्वारा किए गए तर्कों का कोई उत्तर नहीं दे सकता। सूरदास ने गोपियों के माध्यम से सख्य-भाव की भक्ति का उद्घाटन किया है। इसीलिए वे श्रीकृष्ण पर व्यंग्य करने से भी नहीं चूकतीं। अलौकिक धरातल पर यदि देखा जाए तो सूरदास ने आत्मा और परमात्मा के मिलन व सामीप्य का साक्षात्कार करवाया है। यही इन पदों का परम लक्ष्य भी है।

प्रश्न 4.
‘ते क्यौं अनीति करें आपुन, जे और अनीति छुड़ाए’-काव्य-पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने गोपियों के प्रति श्रीकृष्ण द्वारा अपनाई गई अनीति की ओर संकेत किया है। गोपियाँ कहती हैं कि श्रीकृष्ण तो सबको अन्याय से छुड़ाने वाले हैं अर्थात् वे किसी के प्रति अन्याय होता नहीं देख सकते, फिर वे प्रेम के बदले में योग-संदेश भेजकर हमारे प्रति अन्याय क्यों कर रहे हैं? कवि के कहने का भाव यह है कि गोपियों के लिए श्रीकृष्ण की प्रेम-भक्ति ही श्रेष्ठ मार्ग है फिर भला योग संदेश भेजकर वे हमारे मार्ग में बाधा क्यों खड़ी कर रहे हैं। यह तो हमारे प्रति अन्याय है। अन्याय से छुड़वाने वाला ही अन्याय करे तो फिर कोई क्या कर सकता है।

(ख) संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

प्रश्न 5.
“हमारे हरि हारिल की लकरी” के माध्यम से कवि ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि ने संदेश दिया है कि ईश्वर-प्राप्ति हेतु हमें सच्चे मन से ईश्वर को हृदय में बसाना होगा। जिस प्रकार हारिल पक्षी सदा ही अपने पंजों में लकड़ी पकड़े रहता है, उसे एक क्षण के लिए भी नहीं छोड़ता; उसी प्रकार भक्त को अत्यंत निष्ठा एवं दृढ़तापूर्वक भगवान् का नाम स्मरण करना चाहिए। जब भक्त सांसारिक मोह त्यागकर दिन-रात, सोते-जागते व स्वप्न में भी प्रभु का नाम स्मरण करता है, तभी वह प्रभु का साक्षात्कार कर सकता है। .

प्रश्न 6.
“हरि हैं राजनीति पढ़ि आए” में श्रीकृष्ण की किस प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया गया है?
उत्तर-
इस पंक्ति में गोपियों ने श्रीकृष्ण की उस प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है जिसके कारण वे प्रेम की मर्यादा को ठीक प्रकार से नहीं निभाते। कहने का भाव यह है कि गोपियाँ श्रीकृष्ण से सच्चे मन से प्रेम करती हैं और उनकी विरह की पीड़ा में व्याकुल हैं। ऐसे में उन्हें स्वयं आकर गोपियों से मिलकर उनके विरह की व्याकुलता को शांत करना चाहिए था किंतु वे निर्गुण ईश्वर के उपासक उद्धव की परीक्षा लेने हेतु उसे योग का संदेश देकर गोपियों के पास भेज देते हैं। इसलिए गोपियाँ श्रीकृष्ण की इस नीति को देखते हुए उन्हें कहती हैं कि श्रीकृष्ण ने अब राजनीति पढ़ ली है। अब वे राजनीतिज्ञों की भाँति व्यवहार करते हैं।

प्रश्न 7.
गोपियों ने उद्धव को ‘बड़भागी’ क्यों कहा है? सूरदास इसके माध्यम से किन लोगों पर व्यंग्य करना चाहते हैं ?
उत्तर-
गोपियों ने उद्धव को ‘बड़भागी’ व्यंग्य में कहा है। गोपियाँ श्रीकृष्ण से प्रेम करती हैं और अब श्रीकृष्ण मथुरा चले गए हैं। वे उनके विरह में पीड़ित रहती हैं। उद्धव मथुरा में श्रीकृष्ण का मित्र बनकर रहता है, किंतु प्रेम के सागर श्रीकृष्ण के प्रेम से वंचित रहता है। इसलिए गोपियाँ व्यंग्य में उसे ‘बड़भागी’ कहती हैं जिसका अर्थ दुर्भाग्यशाली है। अतः स्पष्ट है कि सूरदास ने उन लोगों पर व्यंग्य किया है जिन लोगों ने भगवान् से कभी प्रेम नहीं किया। भगवान् के प्रेम से वंचित रहने वाले लोगों का जीवन व्यर्थ है। भगवान् के प्रेम में चाहे कितने ही कष्ट हों, किंतु उससे ही जीवन की सार्थकता है।

प्रश्न 8.
गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रति किस प्रकार समर्पित हैं?
उत्तर-
गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रति पूर्णतः समर्पित हैं। जिस प्रकार हारिल पक्षी लकड़ी को अपना आधार मानकर उसे पकड़े रहता है; उसी प्रकार गोपियाँ भी श्रीकृष्ण की प्रेम-भक्ति को अपने जीवन का आधार मानकर उनकी प्रेम-भक्ति में अपना सर्वस्व त्यागकर दिन-रात उन्हीं का ध्यान करती हैं। वे क्षणभर के लिए भी उनसे अपना ध्यान डिगने नहीं देतीं। वे मन, वचन और कर्म से श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित हैं तथा उनके प्रेम के बंधन में बँधी हुई हैं।

अति लघत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सूरदास के उपास्य देव कौन थे?
उत्तर-
सूरदास के उपास्य देव श्रीकृष्ण थे।

प्रश्न 2.
‘पुरइनि पात’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
‘पुरइनि पात’ का अर्थ है – कमल का पत्ता।

प्रश्न 3.
‘धार बही’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
धार बही’ का अर्थ निर्गुण ईश्वर की भक्ति की धारा है।

प्रश्न 4.
गोपियाँ सोते जागते रात-दिन किसका ध्यान करती हैं?
उत्तर-
गोपियाँ सोते जागते रात-दिन श्रीकृष्ण का ध्यान करती हैं।

प्रश्न 5.
‘सु तौ व्याधि हमकौं लै आए’ पंक्ति में ‘व्याधि’ किसे कहा गया है?
उत्तर-
इस पंक्ति में ‘ब्याधि’ योग साधना को कहा गया है।

प्रश्न 6.
‘मधुकर’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है?
उत्तर-
‘मधुकर’ शब्द का प्रयोग उद्धव के लिए किया गया है।

प्रश्न 7.
जागते, सोते एवं स्वप्न में रात-दिन गोपियों को क्या रट रहती है?
उत्तर-
जागते, सोते एवं स्वप्न में रात-दिन गोपियों को श्रीकृष्ण के दर्शन की छवि की रट रहती है।

प्रश्न 8.
“हमारे हरि हारिल की लकरी’-यह किसने किसको कहा है?
उत्तर-
ये शब्द गोपियों ने उद्धव से कहे हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से सूरदास की रचना कौन-सी है?
(A) रामचरितमानस
(B) सूरसागर
(C) बीजक
(D) पद्मावत
उत्तर-
(B) सूरसागर

प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण के मित्र का क्या नाम है, जो गोपियों को योग का संदेश देता है?
(A) बलराम
(B) नंद
(C) उद्धव
(D) अक्रूर
उत्तर-
(C) उद्धव

प्रश्न 3.
उद्धव को ‘बड़भागी’ किसने कहा है?
(A) यशोदा माता ने
(B) नंद ने
(C) कंस ने
(D) गोपियों ने
उत्तर-
(D) गोपियों ने

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

प्रश्न 4.
उद्धव को बड़भागी कहने में कौन-सा भाव निहित है?
(A) पूजा का
(B) गुस्से का
(C) प्रशंसा का
(D) व्यंग्य का
उत्तर-
(D) व्यंग्य का

प्रश्न 5.
‘प्रीति-नदी’ किसके लिए प्रयोग किया गया है?
(A) उद्धव के लिए
(B) यशोदा के लिए
(C) नंद के लिए
(D) श्रीकृष्ण के लिए
उत्तर-
(D) श्रीकृष्ण के लिए

प्रश्न 6.
प्रथम पद में कौन अपने-आपको भोली और अबला समझती हैं?
(A) देवकी
(B) यशोदा
(C) गोपियाँ
(D) राधा
उत्तर-
(C) गोपियाँ

प्रश्न 7.
‘गुर चाँटी ज्यौं पागी’-यहाँ ‘गुर’ का अर्थ है
(A) गुरु
(B) बड़ा
(C) गुड़
(D) गुर सिखाना
उत्तर-
(C) गुड़

प्रश्न 8.
‘मन की मन ही माँझ रही’ का अर्थ है
(A) मन की दृढ़ता
(B) मन की बात मन में ही रहना
(C) मन का भेद
(D) मन का पाप
उत्तर-
(B) मन की बात मन में ही रहना

प्रश्न 9.
गोपियाँ कौन-सी बात किसे बताना चाहती थीं?
(A) अपने मन की बात श्रीकृष्ण को
(B) अपने मन की बात उद्धव को
(C) संसार के व्यवहार की बात अक्रूर को
(D) समाज की बात नंद को
उत्तर-
(A) अपने मन की बात श्रीकृष्ण को

प्रश्न 10.
उद्धव गोपियों को कौन-सा संदेश देता है?
(A) प्रेम का
(B) योग-साधना का
(C) मोक्ष-प्राप्ति का
(D) भक्ति का
उत्तर-
(B) योग-साधना का

प्रश्न 11.
गोपियाँ क्या नहीं सुनना चाहती थीं?
(A) योग-संदेश
(B) भक्ति योग
(C) विपश्यना
(D) कर्मयोग
उत्तर-
(A) योग-संदेश

प्रश्न 12.
गोपियों ने हरि (श्रीकृष्ण) की तुलना किससे की है?
(A) गिद्ध से
(B) बाज से
(C) हारिल से
(D) कबूतर से
उत्तर-
(C) हारिल से

प्रश्न 13.
गोपियों का मन चुराकर कौन ले गया?
(A) राम
(B) कृष्ण
(C) उद्धव
(D) गौतम
उत्तर-
(B) कृष्ण

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प्रश्न 14.
गोपियाँ ‘कड़वी ककड़ी’ किसे कहती हैं?
(A) ककड़ी को
(B) श्रीकृष्ण को
(C) यशोदा को
(D) उद्धव द्वारा दिए गए योग संदेश को
उत्तर-
(D) उद्धव द्वारा दिए गए योग संदेश को

प्रश्न 15.
‘मन चकरी’ से क्या अभिप्राय है?
(A) मन की चालाकी
(B) मन का चक्र
(C) मन की अस्थिरता
(D) मन की स्थिरता
उत्तर-
(C) मन की अस्थिरता

प्रश्न 16.
गोपियों के अनुसार किसने राजनीति की शिक्षा प्राप्त की है?
(A) कंस ने
(B) नंद ने
(C) श्रीकृष्ण ने
(D) ऊधौ ने
उत्तर-
(C) श्रीकृष्ण ने

प्रश्न 17.
गोपियों के अनुसार पहले से ही चतुर कौन था?
(A) बलराम
(B) श्रीकृष्ण
(C) कंस
(D) उद्धव
उत्तर-
(B) श्रीकृष्ण

प्रश्न 18.
गोपियों ने योग के संदेश को किसके समान कड़वा कहा
(A) कड़वी ककड़ी के
(B) करेले के
(C) खीरे के
(D) नींबू के
उत्तर-
(A) कड़वी ककड़ी के

प्रश्न 19.
‘अपरस रहत सनेह तगा तें-यहाँ ‘अपरस’ का अर्थ है
(A) अलिप्त
(B) सरस
(C) मीठा
(D) कमल
उत्तर-
(A) अलिप्त

प्रश्न 20.
‘अपरस रहत सनेह तगा तें’ यहाँ ‘तगा’ का अर्थ है-
(A) सगा
(B) संबंधी
(C) धागा
(D) टूटना
उत्तर-
(C) धागा

सूरदास के पद पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माह तेल की गागरि, बूंद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोत्यौ, दृष्टि न रूप परागी।
‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी ॥
[पृष्ठ 5]

शब्दार्थ-बड़भागी = भाग्यशाली। अपरस = अछूता, दूर, अलिप्त। सनेह = प्रेम। तगा = धागा, बंधन। पुरइनि = कमल। पात = पत्ता। रस = जल। देह = शरीर। न दागी = दाग नहीं लगता। माह = में, भीतर। गागरि = मटकी। ताकौं = उसको। परागी = मुग्ध होना। अबला = नारी। भोरी = भोली। गुर = गुड़। चाँटी = चींटियाँ। पागी = लिपटना।

प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद के प्रसंग पर प्रकाश डालिए।
(ग) प्रस्तुत पद की व्याख्या कीजिए।
(घ) ‘अति बड़भागी’ में निहित व्यंग्य-भाव को स्पष्ट कीजिए।
(ङ) गोपियों ने किसके प्रति अपना प्रेमभाव व्यक्त किया?
(च) “सनेह तगा तैं अपरस रहना’-सौभाग्य है या दुर्भाग्य? स्पष्ट कीजिए।
(छ) ‘नाहिन मन अनुरांगी’ के माध्यम से किस पर और क्यों व्यंग्य किया गया है?
(ज) इस पद में किस ‘प्रीति-नदी’ की ओर संकेत किया गया है?
(झ) कौन स्वयं को भोरी और अबला समझती हैं और क्यों?
(ञ) ‘गुर चाँटी ज्यौं पागी’ के माध्यम से गोपियों की किस भावना को दर्शाया गया है?
(ट) इस पद में प्रयुक्त अलंकारों के नाम लिखिए।
(छ) प्रस्तुत पद का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ड) इस पद के भाव-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ढ) इस पद में विद्यमान् गेय तत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
(ण) प्रस्तुत पद के भाषा वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-सूरदास। कविता का नाम-पद।

(ख) प्रस्तुत पद हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में से लिया गया है। ‘सूरदास’ द्वारा रचित इस पद में उस समय का उल्लेख किया गया है जब श्रीकृष्ण मथुरा जाकर वहाँ के राजा बन जाते हैं। वे गोपियों को योग-मार्ग की शिक्षा देने के लिए अपने मित्र ऊधौ को वृंदावन भेजते हैं। श्रीकृष्ण का योग-मार्ग अपनाने का संदेश सुनकर गोपियाँ बेचैन हो उठती हैं। उनका प्रेम आहत हो उठता है। वे ऊधौ की बात सुनकर उस पर व्यंग्य करती हुई ये शब्द कहती हैं।

(ग) गोपियाँ श्रीकृष्ण के द्वारा भेजे गए संदेश को सुनकर ऊधौ पर व्यंग्य करती हुई कहती हैं हे ऊधौ! तुम बहुत ही सौभाग्यशाली हो। तुम सदा ही प्रेम के बंधन से दूर रहे हो। तुमने कभी प्रेम की भावना को समझा ही नहीं। तुम्हारा मन किसी के प्रेम में डूबा ही नहीं। तुम श्रीकृष्ण के समीप रहकर भी उनके प्रेम के बंधन में नहीं बँधे। जिस प्रकार कमल का पत्ता सदा पानी में रहता है, परंतु फिर भी उस पर पानी का दाग तक नहीं लगता; उस पर जल की बूंद नहीं ठहरती। इसी प्रकार तेल की मटकी को पानी में रख दिया जाए तो उस पर भी जल की एक बूंद नहीं ठहरती अर्थात् कमल के पत्ते और तेल की मटकी पर जल का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। उसी प्रकार श्रीकृष्ण की संगति में रहते हुए भी उनके प्रेम का प्रभाव ऊधौ पर नहीं पड़ता। तुमने तो आज तक प्रेम की नदी में अपना पैर तक नहीं डुबोया। तुम्हारी दृष्टि किसी के रूप को देखकर भी उसमें नहीं उलझी। किंतु हम तो भोली अबलाएँ हैं जो श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य को देखकर उसमें उलझ गईं। हम श्रीकृष्ण के प्रेम में इस प्रकार लिप्त हैं जिस प्रकार चींटियाँ गुड़ पर चिपट जाती हैं और फिर उससे कभी नहीं छूट सकतीं। वहीं अपने प्राण त्याग देती हैं।

(घ) गोपियों के द्वारा प्रयुक्त ‘अति बड़भागी’ अपने भीतर व्यंग्य भाव समेटे हुए है। वे मजाक भाव में ऊधौ को भाग्यशाली मानती हैं क्योंकि वह श्रीकृष्ण के समीप रहकर भी उनके प्रेम के बंधन में नहीं बँध सका और न ही कभी उनके प्रेम में व्याकुल हुआ।

(ङ) गोपियों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपना प्रेम व्यक्त किया है। उनके प्रेम की अनन्यता श्रीकृष्ण के रूप-माधुर्य के प्रति है।

(च) स्नेह के धागे से दूर रहना अर्थात् किसी का प्रेम न पा सकना सौभाग्य नहीं, दुर्भाग्य है। जीवन का वास्तविक सुख तो प्रेम की अनुभूति में है, न कि सांसारिक विषय-वासनाओं के भोग में।

(छ) ‘नाहिन मन अनुरागी’ के माध्यम से गोपियों ने ऊधौ पर करारा व्यंग्य किया है क्योंकि वे श्रीकृष्ण के समीप रहकर भी उनके प्रेम भाव को न समझ सके।

(ज) यहाँ कवि ने प्रीति-नदी के माध्यम से श्रीकृष्ण की प्रेम-भावना की ओर संकेत किया है। ऊधौ उस प्रेम नदी में कभी डुबकी नहीं लगा सका।

(झ) गोपियाँ स्वयं को भोली-भाली अबलाएँ समझती हैं क्योंकि वे श्रीकृष्ण के प्रेम में अपने-आपको छला हुआ समझती हैं। उन्होंने सच्चे हृदय से श्रीकृष्ण से प्रेम किया, किंतु श्रीकृष्ण उन्हें बिना बताए मथुरा चले गए थे और वहाँ से उन्होंने योग-साधना करने का संदेश भेजा था। इसलिए गोपियाँ अपने-आपको भोली-भाली अबलाएँ समझती हैं।

(ञ) इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने गोपियों के श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम और त्याग भावना को दर्शाया है।

(ट) इस पद में निम्नलिखित अलंकारों का प्रयोग किया गया हैरूपक-प्रीति-नदी मैं पाऊँ न बोरयौ। उपमा-गुर चाँटी ज्यौं पागी। उदाहरण-ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूंद न ताकौं लागी। अनुप्रास-नाहिन मन अनुरागी। वक्रोक्ति-ऊधौ तुम हौ अति बड़भागी।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

(ठ)

  • इस पद में गेय तत्त्व विद्यमान है।
  • रूपक, उपमा, उदाहरण, अनुप्रास आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
  • भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
  • कोमलकांत पदावली का प्रयोग किया गया है।

(ड) इस पद में कवि ने गोपियों के माध्यम से कृष्ण की भक्ति-भावना को अभिव्यंजित किया है। ज्ञानमार्गी अथवा योगमार्गी ऊधौ पर करारा व्यंग्य किया है। उसे प्रेम भावना से मुक्त व अनासक्त कहा है। दूसरी ओर, गोपियों को श्रीकृष्ण के प्रेम में डूबी हुई दिखाया गया है। वे श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य पर आसक्त हैं और उनके मथुरा चले जाने पर अत्यंत व्याकुल हैं। वे किसी भी दशा में श्रीकृष्ण के प्रेमभाव को दूर नहीं कर सकतीं।

(ढ) महाकवि सूरदास द्वारा रचित यह पद ‘राग-मलार’ पर आधारित है। इसमें स्वर मैत्री का सुंदर प्रयोग किया गया है। ब्रजभाषा की कोमलकांत पदावली का प्रयोग किया गया है जो गेयता के अनुकूल है।

(ण) इस पद में ब्रजभाषा का सफल एवं सार्थक प्रयोग किया गया है। भाषा माधुर्यगुण संपन्न है। लक्षणा शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है। कवि ने शब्द-योजना पूर्णतः भावानुकूल की है।

[2] मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाही परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग संदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
चाहति हुती गृहारि जितहिं तैं, उत तें धार बही।
‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही ॥[पृष्ठ 6]

शब्दार्थ-माँझ = में। अधार = आधार; सहारा। आवन = आगमन; आने की। बिथा = व्यथा। बिरहिनि = वियोग में जीने वाली। बिरह दही = विरह की आग में जल रही। हुती = थी। गुहारि = रक्षा के लिए पुकारना। जितहिं तें = जहाँ से। उत = उधर; वहाँ । धार = योग की प्रबल धार। मरजादा = मर्यादा; प्रतिष्ठा। लही = नहीं रही; नहीं रखी।

प्रश्न–
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) गोपियों की कौन-सी बात मन में रह गई?
(ङ) ऊधौ के संदेश को सुनकर गोपियों की व्यथा घटने की अपेक्षा बढ़ गई, ऐसा क्यों हुआ?
(च) गोपियों को कृष्ण को गुहार लगाना अब व्यर्थ क्यों लगने लगा?
(छ) गोपियों ने किस मर्यादा की बात कही है?
(ज) इस पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(झ) ‘धार बही’ का क्या अर्थ है?
(ञ) गोपियों के लिए क्या प्रिय है और क्या अप्रिय?
(ट) गोपियाँ अधीर क्यों हो रही हैं?
(ठ) इस पद के शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ड) इस पद में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-सूरदास।
कविता का नाम-पद।

(ख) गोपियाँ श्रीकृष्ण से अत्यधिक प्रेम करती हैं, किंतु वे मथुरा में जाकर वहाँ के राजा बन जाते हैं। वे गोपियों को अपना कोई प्रेम संदेश भेजने की अपेक्षा ऊधौ के द्वारा योग-मार्ग अपनाने का संदेश भेजते हैं। यह संदेश उन्हें कटे पर नमक के समान लगता है। वे इस संदेश को सुनकर आहत हो जाती हैं तथा ऊधौ और श्रीकृष्ण पर व्यंग्य करती हैं।

(ग) विरह की पीड़ा से व्याकुल गोपियाँ श्रीकृष्ण के मित्र ऊधौ को उपालंभ देती हुई कहती हैं हे ऊधौ! हमारे मन की बात मन में ही रह गई है अर्थात् हमें श्रीकृष्ण के लौटने की पूरी आशा थी। हम अपने मन की बात उन्हें बता देना चाहती थीं, किंतु अब उनका यह संदेश मिलने पर कि वे नहीं आ रहे हमारे मन की बात मन में ही रह गई। हे ऊधौ! अब तुम ही बताओ कि अपने मन की बात को भला हम किसे जाकर कहें। प्रेम की बात हर किसी के सामने कही भी तो नहीं जा सकती। हम अब तक श्रीकृष्ण के लौट आने की आशा को अपने प्राणों का आधार बनाए हुए थीं। इसी उम्मीद पर तो हम तन-मन से विरह की व्यथा को सहन कर रही थीं, किंतु तुम्हारे इस योग-साधना के संदेश को सुनकर हमारी विरह-व्यथा और भी भड़क उठी है। हम विरह की आग में जली जा रही हैं। यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि जिधर से हम अपनी रक्षा के लिए सहारा चाह रही थीं, उधर से ही योग-साधना की धारा बह निकली है। कहने का तात्पर्य यह है कि गोपियाँ चाहती थीं कि श्रीकृष्ण आकर उनकी व्यथा को दूर करें किंतु उन्होंने ही योग-साधना का मार्ग अपनाने का संदेश भेज दिया है। इससे उनकी वियोग की ज्वाला और भी भड़क उठी है। सूरदास ने बताया है कि गोपियाँ कह रही हैं कि अब तो श्रीकृष्ण ने सभी लोक-मर्यादाएँ त्याग दी हैं। उन्होंने हमारे प्रेम का निर्वाह करने की अपेक्षा हमें धोखा दिया है। भला ऐसे में हम धैर्य कैसे रखें?

(घ) गोपियों के मन में श्रीकृष्ण के पुनः लौट आने की बात थी जो उनके संदेश के आने के पश्चात् उनके मन में रह गई। वे अब अपनी प्रेम भावना को श्रीकृष्ण के सामने प्रकट नहीं कर सकेंगी।

(ङ) गोपियाँ श्रीकृष्ण को अत्यधिक प्रेम करती थीं। वे श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने पर उनके वियोग की पीड़ा में जली जा रही थीं। ऊधौ ने उन्हें योग-संदेश सुनाया और कहा कि तुम श्रीकृष्ण को भूल जाओ और निर्गुण ईश्वर की उपासना करो। इस संदेश को सुनकर उन्हें लगा कि श्रीकृष्ण ने उनके साथ दगा किया है। इससे उनके विरह की व्यथा घटने की अपेक्षा और भी बढ़ गई थी।

(च) गोपियों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपना सब कुछ अर्पित कर दिया था। वे श्रीकृष्ण के बिना उनके विरह में व्याकुल थीं, किंतु जब ऊधौ ने गोपियों को श्रीकृष्ण को भूलकर योग-साधना करने का उपदेश दिया तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। जिसको वे गुहार कर सकती थीं जब वही योग का संदेश भेज रहे हैं तो फिर उनके सामने गुहार करने का कोई लाभ नहीं हो सकता था।

(छ) गोपियाँ श्रीकृष्ण द्वारा वादा न निभाने की बात कह रही थीं। अब उनके लिए धैर्य धरना कठिन हो गया है। श्रीकृष्ण को गोपियों के प्रेम की मर्यादा का ख्याल ही नहीं है।

(ज) इस पद में कवि ने गोपियों के विरह भाव का मार्मिक चित्रण किया है। योग-साधना व निर्गुण ईश्वर की उपासना में मन लगाने के श्रीकृष्ण के संदेश को सुनकर गोपियों की विरह-वेदना और भी बढ़ जाती है। उनके मन में श्रीकृष्ण के लौट आने की आशा का आधार भी अब नष्ट हो गया है। इसलिए वे अपने-आपको अत्यंत असहाय समझने लगी थीं। अब वे शिकायत करें भी तो किससे करें क्योंकि उनकी इस दशा के लिए श्रीकृष्ण ही जिम्मेदार हैं।

(झ) ‘धार बही’ का यहाँ लाक्षणिक प्रयोग किया गया है। गोपियों को लगा था कि निर्गुण ईश्वर की भक्ति की धारा श्रीकृष्ण की ओर से बहकर उन तक पहुंची थी। उन्होंने ही ऊधौ को निर्गुण ईश्वर की भक्ति की धारा देकर भेजा था।

(ञ) गोपियों के लिए श्रीकृष्ण का प्रेम प्रिय है और ऊधौ की निर्गुण ईश्वर की उपासना अप्रिय है। ” (ट) गोपियाँ इसलिए अधीर हो रही हैं क्योंकि उनके प्रियतम श्रीकृष्ण ने प्रेम की मर्यादा का उल्लंघन किया है। उन्होंने प्रेम निभाने की अपेक्षा प्रेम का मजाक उड़ाया और गोपियों को अपने से दूर रखने की युक्तियाँ सुझाई हैं।

(ठ)

  • इस पद में ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है।
  • वियोग शृंगार का सुंदर चित्रण है।
  • संदेसनि, सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह, धीर-धरहिं में अनुप्रास अलंकार है।
  • ‘सुनि-सुनि’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग किया गया है।
  • मध्य के लिए ‘माँझ’, आधार के लिए ‘अधार’, पड़त के लिए ‘परत’ आदि कोमल शब्दों का प्रयोग देखते ही बनता है।
  • संपूर्ण पद्य में गेय तत्त्व विद्यमान है।

(ड) इस पद में ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है। कोमलकांत शब्दावली का सार्थक प्रयोग किया गया है। स्वर-मैत्री के प्रयोग के कारण भाषा में लय विद्यमान है। तद्भव शब्दों का विषयानुकूल प्रयोग किया गया है। भाषा में गेय तत्त्व भी है।

[3] हमारे हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह द्रढ़ करि पकरी।
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।
सुतौ व्याधि हमकौं लै आए, देखी सनी न करी।
यह तो ‘सूर’ तिनहिं लै सौंपौ, जिनके मन चकरी ॥ [पृष्ठ 6 ]

शब्दार्थ-हरि = भगवान् श्रीकृष्ण। हारिल = एक पक्षी जो सदा अपने पंजों में एक लकड़ी थामे रहता है। लकरी = लकड़ी। क्रम = कर्म। नंद-नंदन = नंद का बेटा। उर = हृदय। दृढ़ करि = निश्चयपूर्वक। पकरी = पकड़ी हुई। दिवस = दिन। निसि = रात। कान्ह-कान्ह = कृष्ण-कृष्ण। जकरी = रटती रहती हैं। जोग = योग। करुई-ककरी = कड़वी ककड़ी। व्याधि = रोग। तिनहिं = उन्हें। मन चकरी = मन में चक्कर; मन में दुविधा।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

प्रश्न-
(क) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस पद की व्याख्या कीजिए।
(घ) गोपियों ने अपने हरि की तुलना किससे और क्यों की है?
(ङ) ‘मन क्रम बचन …………… पकरी’ का वर्णन किसके लिए आया है? स्पष्ट कीजिए।
(च) गोपियाँ सोते-जागते, रात-दिन किसका ध्यान करती हैं और क्यों?
(छ) कवि ने इस पद में ‘करुई ककरी’ किसे कहा है?
(ज) ‘जिनके मन चकरी’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
(झ) गोपियाँ योग का संदेश किसे देने को कहती हैं और क्यों?
(ञ) गोपियों ने अपनी तुलना किससे की है और क्यों?
(ट) इस पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ठ) इस पद का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ड) इस पद में प्रयुक्त किन्हीं दो अलंकारों के नाम लिखिए।
(ढ) उपर्युक्त काव्यांश की भाषागत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-सूरदास। कविता का नाम-पद।
(ख) प्रस्तुत पद हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित सूरदास के पदों में से लिया गया है। इस पद में बताया गया है कि गोपियाँ श्रीकृष्ण के विरह में व्यथित हैं। वे श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने पर भी उन्हें सच्चे मन से प्रेम करती हैं। इस प्रेमावेग में उन्हें ऊधौ द्वारा दिया गया योग-साधना व निर्गुण ईश्वर की भक्ति का संदेश जरा भी पसंद नहीं है। गोपियाँ अपने अनन्य प्रेम और योग-साधना के प्रति अपने मन के विचारों को व्यक्त करती हुई ये शब्द कहती हैं।

(ग) गोपियाँ ऊधौ को बताती हैं कि उनकी दृष्टि में निर्गुण उपासना का कोई महत्त्व नहीं है। वे सगुणोपासना को ही महत्त्व देती हैं। इसलिए वे कहती हैं कि कृष्ण तो हमारे लिए हारिल पक्षी की लकड़ी के समान हैं जिसे वह सदैव अपने पंजों में पकड़े रहता है। हमने भी श्रीकृष्ण को अपने जीवन का आधार मानकर उन्हें अपने हृदय में बसा रखा है। हम एक क्षण के लिए भी अपने उस जीवन के आधार श्रीकृष्ण को नहीं भूलतीं। हमने उसे मन, वचन और कर्म से दृढ़तापूर्वक पकड़ा हुआ है। कहने का भाव है कि गोपियाँ मन, वचन और कर्म से श्रीकृष्ण की उपासिकाएँ हैं। उन्हें हर स्थिति में सोते-जागते या स्वप्न में भी श्रीकृष्ण की ही रट लगी रहती है। उनका मन क्षण भर के लिए भी श्रीकृष्ण से अलग नहीं होता। हे भ्रमर! तुम्हारा यह योग का संदेश सुनने में हमारे कानों को कड़वी ककड़ी के समान कड़वा व अरुचिकर लगता है। तुम तो हमारे लिए ऐसी बीमारी ले आए हो, जो हमने पहले न तो कभी देखी और न सुनी तथा न कभी इसका व्यवहार करके देखा। गोपियाँ ऊधौ को पुनः संबोधित करती हुई कहती हैं कि तुम यह योग साधना उन लोगों को दो, जिनके मन में दुविधा हो अर्थात् भटकन हो और जिनकी कहीं कोई आस्था न हो। हम पूर्णतः श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित हैं तथा हमारी उनमें पूर्ण आस्था है। इसलिए आपके इस योग-संदेश की हमें आवश्यकता नहीं है।

(घ) गोपियों ने अपने हरि (श्रीकृष्ण) की तुलना हारिल पक्षी की लकड़ी से की है क्योंकि वह समझता है कि जिस लकड़ी को वह अपने पंजों में सदा पकड़े रहता है। वही उसके उड़ने का आधार है। इसी प्रकार गोपियाँ भी श्रीकृष्ण को अपने जीवन का आधार समझती हैं और हर समय उसे अपने हृदय में बसाए रखना चाहती हैं।

(ङ) गोपियों ने इस पंक्ति के माध्यम से श्रीकृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम का वर्णन किया है। वे मन, वचन और कर्म से नंद के बेटे श्रीकृष्ण को अपने हृदय में धारण किए हुए हैं।

(च) गोपियाँ सोते-जागते तथा स्वप्न में भी नंद के बेटे श्रीकृष्ण का ही ध्यान करती हैं। वे सच्चे मन से श्रीकृष्ण को प्रेम करती हैं।

(छ) इस पद में कवि ने ‘करुई ककरी’ ऊधौ द्वारा दिए गए योग के संदेश को कहा है, क्योंकि उसका यह संदेश गोपियों को कड़वी ककड़ी के स्वाद की तरह अरुचिकर लगा था।

(ज) इस पंक्ति का आशय है वे लोग जिनके मन स्थिर नहीं हैं, जो श्रीकृष्ण के प्रेम को नहीं समझते हैं। जो किसी के प्रति भी आस्थावान न रहकर व्यर्थ में इधर-उधर भटकते फिरते हैं।

(झ) गोपियाँ योग का संदेश ऐसे व्यक्तियों को देने के लिए कहती हैं जिनका मन चकरी की भाँति चंचल हो। ऐसे व्यक्तियों का मन कई-कई कामों या विचारों में उलझा रहता है। ऐसे व्यक्ति दुविधाग्रस्त भी होते हैं, किंतु वे तो पूर्ण रूप से एकनिष्ठ होकर श्रीकृष्ण की उपासना करती हैं इसलिए उन्हें इस संदेश की आवश्यकता नहीं है।

(ञ) गोपियों ने अपनी तुलना हारिल पक्षी से की है क्योंकि हारिल पक्षी सदा अपने पंजों में एक लकड़ी पकड़े रहता है जिसे वह क्षण भर के लिए भी नहीं छोड़ता। इसी प्रकार गोपियाँ भी श्रीकृष्ण को अपने हृदय में हर क्षण धारण किए रहती हैं। वे एक क्षण के लिए भी अपने प्राणों के आधार श्रीकृष्ण को हृदय से दूर नहीं करतीं।

(ट) प्रस्तुत पद में कवि ने जहाँ गोपियों की मनोदशा का चित्रण किया है, वहीं गोपियों के माध्यम से निर्गुण भक्ति-भावना की अवहेलना और सगुण भक्ति की स्थापना की है। गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रेम में इतनी लीन हो गई हैं कि उनको श्रीकृष्ण से एक क्षण के लिए दूर रहना कठिन लगता है तथा उसके स्थान पर किसी अन्य देवी-देवता की उपासना नहीं करना चाहतीं। वे साकार श्रीकृष्ण की दीवानी हैं। वे श्रीकृष्ण को अपना मन दे चुकी हैं।

(ठ)

इस पद में गोपियों के एकनिष्ठ प्रेम का सजीव चित्रण किया गया है तथा निर्गुण ईश्वर की उपासना या योग-साधना को ‘व्याधि’ कहकर उसकी अवहेलना की गई है।

  • श्रृंगार रस के वियोग भाव का उल्लेख किया गया है।
  • अनुप्रास, उपमा, पुनरुक्ति प्रकाश आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
  • ब्रजभाषा की कोमलकांत पदावली का विषयानुरूप प्रयोग देखते ही बनता है।
  • भाषा में गेय तत्त्व विद्यमान है।
  • माधुर्य गुण विद्यमान है।
  • शब्द-योजना अत्यंत सार्थक एवं सटीक है।
  • लक्षणा शब्द-शक्ति के प्रयोग से वर्ण्य-विषय गंभीर बन पड़ा है।

(ड) रूपक-हमारै हरि हारिल की लकरी।
उपमा-ज्यौं करुई ककरी।

(ढ) प्रस्तुत काव्यांश में साहित्यिक ब्रजभाषा का सफल प्रयोग किया गया है। सम्पूर्ण काव्यांश में भाषा की प्रवाहमयता एवं गेयता की विशेषताएँ बनी रहती हैं। ‘मन चकरी होना’ मुहावरे का सार्थक प्रयोग किया गया है। अलंकृत भाषा के प्रयोग के कारण विषय में रोचकता का समावेश हुआ है। इसी प्रकार ‘हारिल की लकड़ी’ का प्रयोग भी गोपियों की कृष्ण के प्रति श्रद्धा-भक्ति को अभिव्यक्त करने में सफल सिद्ध हुआ है।

[4] हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।
इक अति चतुर हुते पहिलै ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।
बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए।
ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए।
अब अपनै मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।
ते क्यों अनीति करें आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।
राज धरम तो यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए ॥ [पृष्ठ 6]

शब्दार्थ-हरि = श्रीकृष्ण। पढ़ि आए = सीख आए। मधुकर = भ्रमर, भँवरा, यहाँ ऊधौ। हुते = थे। पठाए = भेजे। आगे के = पहले के। पर हित = दूसरों की भलाई। डोलत धाए = दौड़ते फिरते थे। फेर पाइहैं = फिर से पा लेंगी। अनीति = अन्याय। आपुन = स्वयं, अपने आप। जे = जो। जाहिं सताए = सताई जाए।

प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस पद की व्याख्या कीजिए।
(घ) गोपियों ने ऐसा क्यों समझ लिया कि श्रीकृष्ण ने राजनीति की शिक्षा प्राप्त कर ली थी?
(ङ) ‘बढ़ी बुद्धि जानी जो’ के माध्यम से कवि ने क्या स्पष्ट किया है?
(च) पुराने जमाने के लोगों को भला क्यों कहा गया है?
(छ) गोपियाँ क्या प्राप्त करना चाहती थीं?
(ज) गोपियों ने ऊधौ पर क्या कहकर व्यंग्य किया है?
(झ) गोपियाँ योग की शिक्षा लेने में क्या कहकर अपनी असमर्थता व्यक्त करती हैं?
(अ) सच्चा राजधर्म किसे माना गया है?
(ट) इस पद का भाव सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ठ) इस काव्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ड) इस पद में प्रयुक्त भाषागत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-सूरदास। कविता का नाम-पद।

(ख) प्रस्तुत पद हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित सूरदास के पदों में से लिया गया है। इसमें कवि ने सगुणोपासना का पक्ष लेते हुए निर्गुणोपासना की अवहेलना की है। गोपियाँ ऊधौ द्वारा दिए गए योग-साधना व निर्गुणोपासना के संदेश को सुनकर बहुत दुःखी होती हैं। वे श्रीकृष्ण के इस व्यवहार को कुटिल राजनीति, अन्याय व धोखा कहती हैं।

(ग) गोपियाँ ऊधौ के माध्यम से भेजे गए श्रीकृष्ण के योग-साधना के संदेश को उनके प्रति अन्याय, धोखा और अत्याचार बताती हैं। वे आपस में एक-दूसरी से कहती हैं कि हे सखि! अब श्रीकृष्ण ने राजनीति की शिक्षा ग्रहण कर ली है। वे अब पूर्णरूप से राजनीतिज्ञ हो गए हैं। यह मधुकर (ऊधौ) हमें जो समाचार दे रहा है क्या तुम उसे समझती हो? एक तो श्रीकृष्ण पहले से ही बहुत चतुर थे तथा अब गुरु ने उन्हें राजनीति के ग्रंथ भी पढ़ा दिए हैं। उनकी बुद्धि कितनी विशाल है, इसका अनुमान तो इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे हमारे लिए योग का संदेश भेज रहे हैं। कहने का भाव है कि उनके इस कार्य से सिद्ध हो गया है कि वे केवल बुद्धिमान् ही नहीं, अपितु बहुत चालाक व अन्यायी भी हैं क्योंकि युवतियों के लिए योग-साधना का संदेश भेजना उचित नहीं है।

हे ऊधौ! पुराने समय में सज्जन दूसरों का भला करने के लिए प्रयास करते थे, परंतु आजकल के सज्जन तो दूसरों को दुःख देने के लिए ही यहाँ तक दौड़ते हुए चले आए हैं। हे ऊधौ! हम तो केवल इतना ही चाहती हैं कि हमें हमारा मन मिल जाए जिसे श्रीकृष्ण यहाँ से जाते समय अपने साथ चुराकर ले गए थे, किंतु उनसे ऐसे न्यायपूर्ण काम करने की उम्मीद कम ही की जा सकती है। वे दूसरों द्वारा अपनाई जाने वाली रीतियों को ही छुड़ाने का काम करते रहते हैं। कवि के कहने का तात्पर्य है कि गोपियाँ तो प्रेम की रीति का पालन करना चाहती हैं, किंतु श्रीकृष्ण ने योग-साधना का संदेश भेजकर उनकी प्रेम की रीति निभाने की भावना को ठेस पहुंचाई है। वास्तव में यह गोपियों के प्रति अन्याय है। सच्चा राजधर्म तो उसी को माना जाता है जिसमें प्रजा को कोई कष्ट न पहुँचाया जाए अर्थात् उन्हें सताया न जाए। कहने का तात्पर्य है कि श्रीकृष्ण राजा होकर गोपियों के सारे सुख-चैन छीनकर उन्हें और भी दुःखी कर रहे हैं। यह अच्छा राजधर्म नहीं है।

(घ) श्रीकृष्ण ने राजनीति की शिक्षा प्राप्त कर ली है, गोपियों ने यह इसलिए समझा क्योंकि वह राजनीति के क्षेत्र में अपनाई जाने वाली कुटिलता और छलपूर्ण चालें चलने लगे हैं। उन्होंने अपने स्वार्थ के लिए गोपियों का सुख-चैन छीन लिया है और उन्हें दुःख पहुँचाने का प्रयास किया है। ऊधौ को योग का संदेश देकर भेजना भी उनकी ऐसी ही छलपूर्ण नीति थी।

(ङ) कवि ने इस पंक्ति के माध्यम से श्रीकृष्ण की कूटनीति पर करारा व्यंग्य किया है। श्रीकृष्ण इस तथ्य को भली-भाँति समझते हैं कि गोपियाँ उनके प्रेम के बिना नहीं रह सकतीं। फिर भी उन्होंने ऊधौ को गोपियों के लिए योग-साधना का संदेश देकर भेज दिया। गोपियों को श्रीकृष्ण के इस व्यवहार में नासमझी ही प्रतीत होती है, क्योंकि वे अपने मित्र ऊधौ के निर्गुण भक्ति के उपासक होने के अहंकार को चूर करना चाहते हैं और इसके लिए उन्होंने बेचारी गोपियों को मोहरा बनाया।

(च) पुराने जमाने के लोग दूसरों के भले के लिए प्रयास किया करते थे इसीलिए उन्हें भले लोग कहा गया है।

(छ) गोपियाँ तो केवल अपने मन को पुनः प्राप्त करना चाहती थीं जिसे श्रीकृष्ण मथुरा जाते समय चुराकर ले गए थे।

(ज) गोपियों ने ऊधौ से कहा कि पहले जमाने के लोग बहुत भले थे, क्योंकि वे परहित के लिए इधर-उधर भागते थे अर्थात् प्रयास करते थे किंतु आजकल के लोग हमारे जैसे लोगों को दुःख पहुँचाने के लिए मथुरा से वृंदावन तक मारे-मारे फिरते हैं।

(झ) गोपियों का कहना है कि हमारा मन तो हमारे पास नहीं है। उसे तो श्रीकृष्ण अपने साथ चुराकर मथुरा ले गए हैं। भला हम योग-साधना कैसे करें। पहले हम अपना मन तो वापिस ले लें, फिर आपके योग-संदेश पर विचार करेंगी।

(अ) सच्चा राजधर्म उसे कहा गया है जिसमें प्रजा को सुख पहुँचाने का प्रयास किया जाता है। राजधर्म प्रजा के हित की चिंता करता है।

(ट) इस पद में गोपियों ने राजनीति की बात कहकर श्रीकृष्ण की अज्ञानता पर करारा व्यंग्य किया है। वह अपने-आपको बहुत बड़े बुद्धिमान् समझते हैं, किंतु योग का संदेश भेजकर भोली-भाली गोपियों पर अन्याय एवं अत्याचार करते हैं। उन्होंने युवतियों को योग-साधना की शिक्षा देने को अनीति और शास्त्र-विरुद्ध कहा है। साथ ही सच्चे राजधर्म की विशेषता पर भी प्रकाश डाला गया है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

(ठ)

  • ब्रजभाषा का सुंदर एवं सार्थक प्रयोग किया गया है।
  • तद्भव एवं तत्सम शब्दों का भावानुकूल प्रयोग देखते ही बनता है। ,
  • ‘राज धरम तौ यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए’ जैसी सुंदर सूक्तियों का प्रयोग किया गया है।
  • संपूर्ण पद में वक्रोक्ति अलंकार की छटा है।
  • गेय तत्त्व निरंतर बना हुआ है।
  • ‘हरि हैं’, ‘बात कहत’, ‘गुरु ग्रंथ पढ़ाए’ आदि में अनुप्रास अलंकार का सुंदर एवं सहज प्रयोग द्रष्टव्य है।

(ड) इस पद में कवि ने ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। तत्सम एवं तद्भव शब्दावली के प्रयोग से भाषा को व्यावहारिक एवं आकर्षक बनाया गया है। व्यंग्यार्थ के प्रयोग से भाषा मूलभाव की अभिव्यञ्जना में पूर्णतः सफल हुई है। योग के स्थान पर ‘जोग’, संदेश के स्थान पर ‘सँदेस’, धर्म के स्थान पर ‘धरम’ जैसे प्रयोग से भाषा में कोमलता का समावेश हुआ है।

सूरदास के पद Summary in Hindi

सूरदास के पद कवि-परिचय

प्रश्न-
महाकवि सूरदास का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-महाकवि सूरदास का संपूर्ण भक्ति-काव्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है। सूरदास सगुण भक्तिधारा की कृष्णभक्ति शाखा के कवि थे। उनकी जन्म-तिथि एवं जन्म-स्थान के विषय में पर्याप्त मतभेद हैं। उनका जन्म सन् 1478 से 1483 के लगभग स्वीकार किया गया है। कुछ विद्वानों का विचार है कि उनका जन्म रुनकता या रेणुका क्षेत्र में हुआ था जबकि कुछ अन्य विद्वानों का मत है कि उनका जन्म दिल्ली के निकट सीही नामक गाँव में हुआ था। ऐसा अनुमान है कि महाकवि सूरदास जन्मांध थे, किंतु सूर के बाल-लीला वर्णन, प्रकृति-चित्रण एवं रंग-विश्लेषण के वर्णन को पढ़कर विश्वास नहीं हो पाता कि वे जन्म से अंधे थे। सूर के गुरु महाप्रभु वल्लभाचार्य माने जाते हैं। गुरु जी से भेंट से पहले सूरदास प्रभु का गुणगान विनय के पदों में किया करते थे। अपने गुरु के आग्रह पर उन्होंने शेष जीवन में, अपने पदों द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की बाल-लीला, मुरली वादन, गोपी विरह (भ्रमरगीत) आदि का चित्रण किया। सूरदास की मृत्यु सन् 1583 में पारसौली में हुई।

2. प्रमुख रचनाएँ-सूरदास द्वारा रचित तीन रचनाएँ उपलब्ध हैं(1) ‘सूरसागर’, (2) ‘सूरसारावली’ तथा (3) ‘साहित्य लहरी’ ।
सूरसागर ‘श्रीमद्भागवत’ पर आधारित वृहत ग्रंथ है। इसके द्वादश स्कंध में श्रीकृष्ण की लीला का वर्णन है। 3. काव्यगत विशेषताएँ-सूरदास के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) विनय भाव-गुरु से भेंट से पूर्व सूरदास ने विनय के पदों की रचना की है। इनमें कवि ने स्वयं को दीन-हीन, तुच्छ, खल, कामी आदि तथा प्रभु को सर्वगुणसंपन्न कहा है; यथा
‘मो सम कौन कुटिल खल कामी।’
(ii) बाल-लीला वर्णन-सूरदास ने वात्सल्य वर्णन के अंतर्गत अपने उपास्य देव श्रीकृष्ण की बाल-छवि, बाल-क्रीड़ाओं, मुरलीवादन, माखन-चोरी आदि का मनोहारी चित्रांकन किया है। माखन-चोरी का एक उदाहरण देखिए
– “मैया मैं नहीं माखन खायो। .
ग्वाल बाल सब ख्याल परें हैं बरबस मुख लपटायौ।”

(iii) श्रृंगार-वर्णन-सूरदास ने श्रीकृष्ण की रास-लीला के माध्यम से श्रृंगार रस का अत्यंत मनोहारी चित्रण किया है। ‘भ्रमरगीत’ में गोपियों की विरह दशा का हृदयस्पर्शी चित्रण किया गया है। एक उदाहरण देखिए
“ऊधौ, मन नाहिं दस बीस।
एक हुतो सो गयो स्याम संग, कौन आराधे ईस।”

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

सूर काव्य की रचना ब्रज प्रदेश में हुई है। अतः कवि ने ब्रज प्रदेश की प्रकृति का स्वाभाविक वर्णन किया है। उन्होंने प्रकृति के उद्दीपक रूप का अधिक वर्णन किया है, लेकिन कवि को प्रकृति के कोमल रूप से अधिक प्रेम है। ‘सूरसागर’ में प्रकृति-वर्णन के अनेक स्थल हैं; यथा
‘पिय बिनु नागिन काली रात।’ ।

4. भाषा-शैली-सूरदास के काव्य की भाषा शुद्ध साहित्यिक ब्रज भाषा है। उसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ तद्भव शब्दावली का भी सुंदर एवं सार्थक मिश्रण किया गया है। कवि ने यथास्थान मुहावरों और लोकोक्तियों का भी सुंदर प्रयोग किया है जिससे भाषा में अधिक सार्थकता आ गई है। सूरदास का संपूर्ण काव्य पद अथवा गेय शैली में रचित है। सूरदास के काव्य में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, श्लेष, अतिशयोक्ति आदि अलंकारों का सहज एवं स्वाभाविक प्रयोग किया गया है।

सूरदास के पद पदों का सार

प्रश्न-
पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘सूरदास’ द्वारा रचित ‘पदों’ का सार लिखिए।
उत्तर-
सूरदास द्वारा रचित इन पदों में गोपियों का श्रीकृष्ण के प्रति गहन प्रेम व्यक्त हुआ है। श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने पर गोपियाँ अत्यंत व्याकुल हो उठती हैं। वे श्रीकृष्ण के मित्र ऊधौ को कभी उलाहना देती हैं तो कभी उस पर ताना कसती हैं। वे ऊधौ से कहती हैं कि तुम बहुत भाग्यशाली हो कि तुम किसी से प्रेम आदि के चक्कर में नहीं पड़े हो। तुमने श्रीकृष्ण के साथ रहते हुए भी उनसे प्रेम नहीं किया। हम ही ऐसी मूर्ख हैं कि श्रीकृष्ण के प्रेम में ऐसी चिपटी हुई हैं जैसी चींटियाँ गुड़ से चिपक जाती हैं।

दूसरे पद में गोपियाँ ऊधौ को उलाहना देती हुई कहती हैं कि अब हमारे मन की आशा मन में रह गई है। जिस कृष्ण के लौट आने की आशा हमारे मन में बनी हुई थी, वह तुम्हारी योग-साधना के संदेश को सुनकर समाप्त हो गई है। अब हम श्रीकृष्ण के वियोग में किसी भी प्रकार का धैर्य नहीं रख सकती क्योंकि अब धैर्य का कोई आधार ही नहीं रह गया है।

तीसरे पद में गोपियाँ श्रीकृष्ण को अपने जीवन का आधार बताती हैं। जिस प्रकार हारिल पक्षी अपने मुख में पकड़े हुए तिनके को अपने जीवन का आधार मानता है; उसी प्रकार वे दिन-रात श्रीकृष्ण के नाम को रटती रहती हैं। योग का नाम तो उन्हें कड़वी ककड़ी के समान कड़वा लगता है। योग-साधना तो उनके लिए है जो प्रभु श्रीकृष्ण से प्रेम नहीं करते।

चतुर्थ पद में गोपियाँ श्रीकृष्ण पर करारा व्यंग्य करती हुई कहती हैं कि वह उनके साथ राजनीति खेल रहा है। वह जन्म से ही चालाक था और अब तो राजनीति के दाँव-पेच भी जान गया है। पहले राजनीतिज्ञ जनता की भलाई के लिए आगे-आगे फिरते थे, किंतु अब वे प्रजा के प्रति अन्याय करते हैं। ऐसे ही श्रीकृष्ण हमें योग-साधना करने के लिए कहकर हमारे प्रति अन्याय ही तो कर रहे हैं। श्रीकृष्ण का यह व्यवहार किसी भी प्रकार उचित नहीं है।

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Haryana Board HBSE 10th Class Sanskrit Solutions शेमुषी भाग 2

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खण्डः ‘क’-अपठित-अवबोधनम्

खण्डः ‘ख’-रचनात्मक कार्यम्

खण्डः ‘ग’-अनुप्रयुक्त-व्याकरणम्

खण्डः ‘घ’ पठित-अवबोधनम्

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Haryana Board HBSE 10th Class Hindi Solutions क्षितिज कृतिका भाग 2

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HBSE Haryana Board 10th Class Hindi Kritika

HBSE Class 10 Hindi व्याकरण

HBSE Class 10 Hindi रचना

HBSE 10th Class Hindi Question Paper Design

Class: 10th
Subject: Hindi
Paper: Annual or Supplementary
Marks: 80
Time: 3 Hours

1. Weightage to Objectives:

ObjectiveKCEATotal
Percentage of Marks27.55018.753.75100
Marks224015380

2. Weightage to Form of Questions:

Forms of QuestionsESAVSAOTotal
No. of Questions31082 (8 + 8)23
Marks Allotted1830161680
Estimated Time46902816180

3. Weightage to Content:

Units/Sub-UnitsMarks
1. व्याकरण – संधि, उपसर्ग, प्रत्यय, वाच्य, समास, विलोम, पर्यायवाची, मुहावरे, लोकोक्तियाँ, शब्द, पद, पदबंध, वाक्य, विकारी व अविकारी शब्द, अनेकार्थक, अयोगवाह14
2. अलंकार, छंद4
निबंध लेखन6
पत्र-लेखन6
3. क्षितिज (भाग-2) (काव्य-खण्ड)
बहुविकल्पीय प्रश्न1 × 8 = 8
काव्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्न5
काव्यांश सराहना/सौन्दर्यबोध सम्बन्धी प्रश्न4
जीवन मूल्य/रचनात्मक3
क्षितिज (भाग-2) (गद्य-खण्ड)
बहुविकल्पी प्रश्न1 × 8 = 8
लेखक परिचय6
गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्न4
जीवन मूल्य/रचनात्मक प्रश्न2
5. कृतिका (भाग-2)
विषय वस्तु व बोध प्रश्न10
Total80

4. Scheme of Sections:

5. Scheme of Options: Internal Choice in Long Answer Question i.e. Essay Type in Two Questions

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