HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

HBSE 10th Class Hindi राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए?
उत्तर-
परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने तर्क देते हुए कहा कि हमने बचपन में ऐसे अनेक’धनुष तोड़े हैं। इसी धनुष को तोड़ने पर आपको क्रोध क्यों आया। क्या आपकी इस धनुष के प्रति अधिक ममता थी। हमारी दृष्टि में तो सभी धनुष समान हैं फिर इस धनुष के टूटने पर आपने क्रोध क्यों व्यक्त किया। यह धनुष तो अत्यधिक पुराना था जोकि श्रीराम के छूने मात्र से ही टूट गया। फिर भला इसमें श्रीराम का क्या दोष है।

प्रश्न 2.
परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं उनके आधार पर कहा जा सकता है कि श्रीराम स्वभाव से अत्यंत शांत एवं गंभीर हैं। धनुष के टूट जाने पर श्रीराम ने परशुराम से कहा कि धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका ही दास होगा। इतना ही नहीं, श्रीराम ने अपनी मधुर वाणी से लक्ष्मण को चुप रहने के लिए भी कहा और परशुराम जी का क्रोध भी शांत किया। दूसरी ओर, लक्ष्मण अत्यंत उग्र स्वभाव वाले हैं। उन्होंने अपने कटु वचनों द्वारा परशुराम के क्रोध को और भी भड़का दिया। उन्होंने परशुराम की धमकियों तथा डींगें हाँकने पर करारा व्यंग्य किया। लक्ष्मण ने ब्राह्मण देवता के सामने कटु वचन बोलकर अपने उग्र रूप का उदाहरण दिया था जबकि श्रीराम ने मधुर वाणी बोलकर उन्हें अपने उदार एवं शांत स्वभाव से प्रभावित किया था।

प्रश्न 3.
लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।
उत्तर-
लक्ष्मण ने मुस्कुराते हुए कहा, मुनियों में श्रेष्ठ परशुराम जी! क्या आप अपने आपको बहुत बहादुर समझते हो? आप बार-बार कुल्हाड़ा दिखाकर मुझे डरा देना चाहते हो। आप अपनी फूंक से पहाड़ को उड़ा देना चाहते हो।
परशुराम गुस्से में भरकर कहते हैं, हे मूर्ख बालक, मैं तुम्हें बच्चा समझकर छोड़ रहा हूँ अन्यथा अब तक का……।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 4.
परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही ॥
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही ॥
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोक महीपक्रमारा ॥
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर ॥
उत्तर-
परशुराम ने अपने विषय में कहा, “मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ। स्वभाव से बहुत क्रोधी हूँ। सारा संसार जानता है कि मैं क्षत्रियों के कुल का शत्रु हूँ। अपनी भुजाओं के बल के द्वारा मैंने पृथ्वी को कई बार राजा विहीन कर दिया और उसे ब्राह्मणों को दान में दे दिया। मेरा यह फरसा बहुत भयानक है। इसने सहस्रबाहु जैसे राजाओं को भी नष्ट कर दिया। हे राजकुमार! इस फरसे को देखकर गर्भवती स्त्रियों के गर्भ भी गिर जाते हैं।”

प्रश्न 5.
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताईं?
उत्तर-
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की विशेषताएँ बताते हुए कहा है कि वीर योद्धा रणभूमि में ही वीरता दिखाता है, अपना गुणगान नहीं करता फिरता। कायर ही अपनी शक्ति की डींगें हाँकते हैं।

प्रश्न 6.
साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर-
शास्त्रों में कहा गया है कि विनम्रता सदा वीर पुरुषों को ही शोभा देती है। कमजोर और कायर व्यक्ति का विनम्र होना उसका गुण नहीं अपितु उसकी मजबूरी होती है क्योंकि वह किसी को कुछ हानि नहीं पहुँचा सकता। दूसरी ओर जब कोई शक्तिशाली व्यक्ति दीन-दुखियों की सहायता करता है अथवा दूसरों के प्रति विनम्रतापूर्वक व्यवहार करता है तो समाज में उसका सम्मान किया जाता है। शक्ति को प्राप्त करके भी जो लोग अहंकारी न बनकर विनम्र एवं धैर्यवान बने रहते हैं और दूसरों को मार्ग से विचलित नहीं होने देते, संसार में ऐसे ही लोगों का आदर किया जाता है। विनम्र व्यक्ति ही दूसरों के दुःख को अनुभव कर सकता है और उनकी सहायता के लिए आगे आता है। भगवान विष्णु को जब भृगुऋषि ने क्रोध में भरकर लात मारी थी तब उन्होंने साहस और शक्ति के बावजूद अत्यंत विनम्रता एवं उदारता का परिचय देते हुए उसे क्षमा कर दिया था। तभी से देवताओं में उनका सम्मान और भी बढ़ गया था। साहस और शक्ति के साथ-साथ विनम्रता का गुण मनुष्य को सदा सम्मान दिलाता है और उसे सच्चे अर्थों में मनुष्य बनाता है।

प्रश्न 7.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) बिहसि लखनु बोले मूदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी ॥
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू । चहत उड़ावन फूंकि पहारू ॥
(ख) इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं ॥
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥
(ग) गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ ॥
उत्तर-
(क) इस पद में कवि ने बताया है कि लक्ष्मण परशुराम के वचनों पर हँसकर व्यंग्य कर रहा है जिससे परशुराम का क्रोध बढ़ रहा है। लक्ष्मण ने परशुराम को बड़ा योद्धा कहकर और फूंक मारकर पहाड़ उड़ा देने की बात कहकर उन पर तीखा व्यंग्य किया है। कहने का तात्पर्य है कि गरज-गरजकर अपनी वीरता का वर्णन करना व्यर्थ है। इससे कोई व्यक्ति वीर नहीं बन जाता। वीरता बखान करने का नहीं, अपितु कुछ कर दिखाने का गुण है।

(ख) इस पद में लक्ष्मण ने परशुराम की वेश-भूषा पर व्यंग्य किया है। वे ब्राह्मण होते हुए भी ब्राह्मण के वेश में नहीं थे। लक्ष्मण ने इसीलिए कहा है कि हे मुनि जी यदि आप योद्धा हैं तो हम भी कोई छुईमुई नहीं कि तर्जनी देखते ही मुरझा जाएँगे। कहने का भाव है कि लक्ष्मण भी योद्धा था। वे पुनः कहते हैं कि आपके धनुष-बाण और कंधे पर कुल्हाड़ा देखकर ही आपको योद्धा समझकर मैंने अभिमान भरी बातें कह दीं। यदि मुझे पता होता कि आप मुनि-ज्ञानी हैं तो मैं ऐसा कदापि न करता।

(ग) इन पंक्तियों में विश्वामित्र ने परशुराम की अभिमानपूर्वक प्रकट की जाने वाली बातों को सुनकर उन पर व्यंग्य करते हुए ये शब्द कहे हैं कि मुनि जी को सर्वत्र हरा-ही-हरा दिखाई दे रहा है। वे सदा सामान्य क्षत्रियों से युद्ध करके विजय प्राप्त करते रहे हैं। इसलिए उन्हें लगता था कि वे श्रीराम व लक्ष्मण को भी अन्य क्षत्रियों की भाँति आसानी से हरा देंगे किंतु ये साधारण क्षत्रिय नहीं हैं। ये गन्ने की खांड के समान नहीं थे, अपितु फौलाद के बने खाँडा के समान थे। मुनि बेसमझ बनकर इनके प्रभाव को नहीं समझ रहे।

प्रश्न 8.
पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा-सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर-
तुलसीदास ने अपने काव्य में ठेठ अवधी भाषा का सफल प्रयोग किया है। तुलसीदास कवि व भक्त होने के साथ-साथ महान विद्वान भी थे। उन्होंने अपने काव्य में शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग किया है। उन्होंने व्याकरण सम्मत भाषा का प्रयोग किया है। उनकी भाषा में कहीं शिथिलता दिखाई नहीं देती। उनकी वाक्य-रचना व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध एवं सफल है। तुलसीदास ने शब्द-चयन विषयानुकूल किया है। तत्सम शब्दों के साथ-साथ तद्भव व उर्दू-फारसी शब्दों का प्रयोग भी किया है। लोक प्रचलित मुहावरों एवं लोकोक्तियों के सार्थक प्रयोग से तुलसीदास के काव्य की भाषा सारगर्भित बन पड़ी है। तुलसीदास ने प्रसंगानुकूल भाषा का प्रयोग किया है इसलिए उनके काव्य की भाषा कहीं प्रसादगुण सम्पन्न है तो कहीं ओजस्वी बन पड़ी है। उन्होंने इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखा है कि किस शब्द का कहाँ और कैसे प्रयोग किया जाए। यही कारण है कि तुलसीदास के काव्यों की भाषा अत्यंत सफल एवं सार्थक सिद्ध हुई है।

प्रश्न 9.
इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पद के अध्यया से पता चलता है कि लक्ष्मण के कथन में गहरा व्यंग्य छिपा हुआ है। लक्ष्मण परशुराम से कहते . हैं कि बचपन में हमने कितने ही धनुष तोड़ डाले तब तो आपको क्रोध नहीं आया। श्रीराम ने तो इस धनुष को छुआ ही था कि यह टूट गया। परशुराम की डींगों को सुनकर लक्ष्मण पुनः कहते हैं कि हे मुनि, आप अपने आपको बड़ा भारी योद्धा समझते हो और फूंक मारकर पहाड़ उड़ाना चाहते हो। हम भी कोई कुम्हड़बतिया नहीं कि तर्जनी देखकर मुरझा जाएँगे। आपने ये धनुष-बाण व्यर्थ ही धारण किए हुए हैं क्योंकि आपका तो एक-एक शब्द करोड़ों वज्रों के समान है। लक्ष्मण जी व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि आपके रहते आपके यश का वर्णन भला कौन कर सकता है? शूरवीर तो युद्ध क्षेत्र में ही अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हैं तथा कायर अपनी शक्ति का बखान किया करते हैं। परशुराम के शील पर व्यंग्य करते हुए लक्ष्मण जी पुनः कहते हैं कि आपके शील को तो पूरा संसार जानता है। आप तो केवल अपने घर में ही शूरवीर बने फिरते हैं, आपका किसी योद्धा से पाला नहीं पड़ा।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 10.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए-
(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।
(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
(ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा।
बार बार मोहि लागि बोलावा ॥
(घ) लखन उतर आहुति सरिस भूगुबरकोपु कृसानु। _
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु ॥
उत्तर-
(क) इस पंक्ति में ‘ब’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।।

(ख) इस पंक्ति में परशुराम के वचनों की तुलना कठोर वज्र से की गई है। अतः इसमें उपमा अलंकार है।

(ग) इस पंक्ति में उत्प्रेक्षा एवं पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार हैं।
(घ) ‘लखन उतर …… कृसानु’ में रूपक अलंकार है तथा ‘बढ़त देखि ……. रघुकुलभानु’ में उपमा अलंकार है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 11.
“सामाजिक जीवन में क्रोध की जरूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दूसरे के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।”
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव लिए नहीं होता बल्कि कभी-कभी सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष या विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए।
उत्तर-
पक्ष में आचार्य शुक्ल जी का यह कथन सही है कि क्रोध केवल नकारात्मक ही नहीं, अपितु सकारात्मक भी होता है। उदाहरण के लिए हथौड़ा या बुलडोजर केवल मकान तोड़ने के ही काम नहीं आते, अपितु वे मकान के निर्माण में भी काम आते हैं। इसी प्रकार क्रोध भी बुरी आदतों को दूर करने में काम आता है। कोई बच्चा यदि चोरी करता है तो उस पर क्रोध करके उसकी बुरी आदत को छुड़वाया जा सकता है। इसी प्रकार यदि कोई बदमाश हमारे घर आकर हमारे साथ दुर्व्यवहार करे और हम चुप बैठे रहें तो उसका हौसला बढ़ता जाएगा उस बदमाश को ठीक करने के लिए क्रोध करना अति आवश्यक है। इस प्रकार क्रोध सदा नकारात्मक ही नहीं अपितु सकारात्मक भी होता है।

विपक्ष में-क्रोध करना अच्छी बात नहीं है। क्रोध से मनुष्य के मन और शरीर दोनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। क्रोध की स्थिति में मनुष्य बुद्धि से काम नहीं लेता। अतः क्रोध में किया गया कोई भी काम उचित नहीं हो सकता। क्रोध में कही गई बात पर भी बाद में पश्चात्ताप करना पड़ता है। अतः क्रोध से बचना चाहिए।

प्रश्न 12.
संकलित अंश में राम का व्यवहार विनयपूर्ण और संयत है, लक्ष्मण लगातार व्यंग्य बाणों का उपयोग करते हैं और परशुराम का व्यवहार क्रोध से भरा हुआ है। आप अपने आपको इस परिस्थिति में रखकर लिखें कि आपका व्यवहार कैसा होता।
उत्तर-
मेरा व्यवहार इन सबसे अलग होता क्योंकि मैं परशुराम के बड़बोले व्यवहार के विषय में उन्हें अत्यंत संयत ढंग से अवगत कराता ताकि वहाँ उपस्थित लोग मेरा विरोध न करते अपितु परशुराम के व्यवहार को ही अनुचित कहते। यदि फिर भी वह सुनने के लिए तैयार न होते तो वहाँ उपस्थित सभा के सामने तर्क के आधार पर उन्हें दोषी ठहराता।

प्रश्न 13.
अपने किसी परिचित या मित्र के स्वभाव की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

प्रश्न 14.
‘दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए।’ इस शीर्षक को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

प्रश्न 15.
उन घटनाओं को याद करके लिखिए जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं अपना अनुभव लिखें।

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प्रश्न 16.
अवधी भाषा आज किन-किन क्षेत्रों में बोली जाती है?
उत्तर-
अवधी भाषा आज लखनऊ, इलाहाबाद, फैजाबाद, मिर्जापुर आदि क्षेत्रों के आसपास बोली जाती है।

यह भी जानें

दोहा- दोहा एक लोकप्रिय मात्रिक छंद है जिसकी पहली और तीसरी पंक्ति में 13-13 मात्राएँ होती हैं और दूसरी और चौथी पंक्ति में 11-11 मात्राएँ।
चौपाई – मात्रिक छंद चौपाई चार पंक्तियों का होता है और इसकी प्रत्येक पंक्ति में 16 मात्राएँ होती हैं। तुलसी से . पहले सूफी कवियों ने भी अवधी भाषा में दोहा-चौपाई छंद का प्रयोग किया है जिसमें मलिक मुहम्मद जायसी का ‘पद्मावत’ उल्लेखनीय है।

परशुराम और सहस्रबाहु की कथा पाठ में ‘सहस्रबाहु सम सो रिपु मोरा’ का कई बार उल्लेख आया है। परशुराम और सहस्रबाहु के बैर की अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। महाभारत के अनुसार यह कथा इस प्रकार है

परशुराम ऋषि जमदग्नि के पुत्र थे। एक बार राजा कार्तवीर्य सहस्रबाहु शिकार खेलते हुए जमदग्नि के आश्रम में आए। जमदग्नि के पास कामधेनु गाय थी जो विशेष गाय थी, कहते हैं वह सभी कामनाएं पूरी करती थी। कार्तवीर्य सहस्रबाहु ने ऋषि जमदग्नि से कामधेनु गाय की माँग की। ऋषि द्वारा मना किए जाने पर सहस्रबाहु ने कामधेनु गाय का बलपूर्वक अपहरण कर लिया। इस पर क्रोधित हो परशुराम ने सहस्रबाहु का वध कर दिया। इस कार्य की ऋषि. जमदग्नि ने बहुत निंदा की और परशुराम को प्रायश्चित्त करने को कहा। उधर सहस्रबाहु के पुत्रों ने क्रोध में आकर ऋषि जमदग्नि का वध कर दिया। इस पर पुनः क्रोधित होकर परशुराम ने पृथ्वी को क्षत्रिय-विहीन करने की प्रतिज्ञा की।

HBSE 10th Class Hindi सूरदास के पद Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
इस कवितांश के आधार पर लक्ष्मण के द्वारा परशुराम के प्रति किए गए व्यवहार पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
इस कवितांश के अध्ययन से बोध होता है कि लक्ष्मण उग्र एवं तेज स्वभाव वाले हैं। वे भरी सभा में परशुराम द्वारा दी गई चुनौती व धमकी से आहत हो उठते हैं। इसलिए परशुराम के प्रश्नों का उत्तर उसी लहजे में देते हैं। वे परशुराम की आत्मप्रशंसा पर करारा व्यंग्य कसते हैं। लक्ष्मण के इस व्यवहार से एक ओर जहाँ परशुराम का क्रोध बढ़ता है, वहीं सभा में उपस्थित लोगों के मन का भय भी कम हो जाता है, किंतु यह स्थिति जब अतिक्रमण कर जाती है तो सभा में उपस्थित लोग लक्ष्मण के व्यवहार को अनुचित कहने लगते हैं। परशुराम लक्ष्मण से आयु में बहुत बड़े थे। वे उनके पिता तुल्य थे। इसलिए उन्हें उसके प्रति नृपद्रोही जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए था। लक्ष्मण अपनी वीरता के जोश में उम्र और समाज की मर्यादा का विचार भी भूल जाते हैं। लक्ष्मण का परशुराम के प्रति क्रोध उचित था, किंतु संयम त्याग देना उचित नहीं था।

प्रश्न 2.
पठित कवितांश के आधार पर परशुराम द्वारा किए गए व्यवहार पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
पठित कवितांश के अध्ययन से पता चलता है कि परशुराम अत्यंत उग्र स्वभाव वाले हैं। ऐसा लगता है कि क्रोध करना उनके स्वभाव का अभिन्न अंग है। बिना सोचे-समझे क्रोधित हो जाना उचित प्रतीत नहीं होता। वे पूरी बात समझे बिना ही क्रुद्ध हो उठते हैं। उनके आतंक के कारण सभा में कोई व्यक्ति सच्चाई नहीं बता सका। दूसरों को बात कहने का अवसर दिए बिना अपनी बात कहते जाना उचित नहीं है। फिर क्रोध की स्थिति में व्यक्ति उचित-अनुचित का अंतर भी नहीं कर सकता। परशुराम जी का क्रोध ऐसा ही है। यही कारण है कि लक्ष्मण उनकी इस कमजोरी को भाँप जाते हैं और अपने व्यंग्य बाणों को छोड़कर उनके क्रोध को और भी भड़का देते हैं जिससे परशुराम वे बातें भी कह जाते हैं जो उन्हें नहीं कहनी चाहिए थीं। अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि परशुराम के इस व्यवहार व उनके ऐसे स्वभाव को कदापि उचित नहीं कहा जा सकता।

प्रश्न 3.
परशुराम ने लक्ष्मण को वध करने योग्य क्यों कहा था?
उत्तर-
परशुराम लक्ष्मण के विषय में कहते हैं कि यह मंद बुद्धि बालक है। यह मेरे स्वभाव के विषय में नहीं जानता कि मैं कितना क्रोधी हूँ। इसे किसी से डर या शर्म नहीं है। इसे अपने माता-पिता की चिंता का भी बोध नहीं है। क्षत्रिय राजकुमार होने के कारण भी यह स्वाभाविक रूप से परशुराम का शत्रु है तथा परशुराम क्षत्रिय द्रोही हैं। लक्ष्मण ने परशुराम का मज़ाक उड़ाया है। . इसलिए वह वध करने योग्य है।

प्रश्न 4.
‘कहेउ लखन मुनि सील तुम्हारा’ को नहि जान बिदित संसारा’ इस पंक्ति में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
इस पंक्ति में परशुराम के शील व स्वभाव पर व्यंग्य किया गया है। इसमें व्यंग्य है कि परशुराम अपने क्रोधी स्वभाव . के लिए सारे संसार में प्रसिद्ध हैं। लक्ष्मण ने परशुराम के क्रोधी स्वभाव को सहज एवं स्वाभाविक कहकर व्यंग्य किया है। प्रकट रूप से इस पंक्ति का अर्थ है कि परशुराम महान् क्रोधी स्वभाव वाले व्यक्ति हैं। इस बात को सारा संसार भली-भाँति जानता है।

संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 5.
राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ शीर्षक कविता के संदेश को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
कवि ने इस कविता के माध्यम से संदेश दिया है कि क्रोध अच्छी भावना नहीं है। इससे सदा दूर रहना चाहिए। क्रोध मनुष्य की सोचने व भले-बुरे के अंतर को जानने की शक्ति को नष्ट कर देता है। क्रोध की स्थिति में व्यक्ति उचित अनुचित का अंतर भी नहीं कर सकता। क्रोध के वश में होकर परशुराम श्रीराम व लक्ष्मण को साधारण बालक समझकर उन्हें मारने तक की धमकी दे डालते हैं। क्रोध के कारण ही व्यक्ति सदा हँसी का पात्र बनता है। परशुराम क्रोध के कारण ही विश्वामित्र की हँसी का पात्र बनता है। परशुराम स्वयं की प्रशंसा करते हैं और दूसरों को मारने की धमकी देते हैं। यही संदेश हमें इस कवितांश से मिलता है कि हमें सदा अपने क्रोध पर नियंत्रण रखने का प्रयास करना चाहिए एवं सोच-समझकर ही कोई बात कहनी चाहिए।

प्रश्न 6.
परशुराम ने श्रीराम को क्या उत्तर दिया था?
उत्तर-
परशुराम ने श्रीराम से कहा था कि सेवक वह होता है जो सेवा करता है, न कि शत्रुता का भाव रखता हो। शत्रुता का भाव रखने वाले के साथ तो लड़ाई करनी चाहिए। जिसने भी शिव का धनुष तोड़ा, वह उनके लिए सहस्रबाहु के समान शत्रु है। उसे आज इस सभा से अलग हो जाना चाहिए। ऐसा न करने पर इस सभा में उपस्थित सभी राजा मारे जाएँगे।

प्रश्न 7.
श्रीराम द्वारा परशुराम के क्रोध को शांत करने के लिए कौन-सा काम किया गया था?
उत्तर-
श्रीराम ने भली-भाँति समझ लिया था कि परशुराम क्रोधी होने के साथ अहंकारी भी थे। उन्हें अपनी शक्ति का अहंकार था। इसलिए क्रोधी को क्रोधी बनकर जीतना बुद्धिमत्ता नहीं है। श्रीराम ने क्रोधी परशुराम के सामने अत्यंत संयत एवं विनम्र भाषा में कहा था कि शिव-धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका दास ही होगा। यदि आप कोई आज्ञा देना चाहते हैं, तो उन्हें आदेश करें। श्रीराम ने अत्यंत सहज एवं मधुर वाणी का प्रयोग करके परशुराम का क्रोध शांत करने का प्रयास किया था।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 8.
इस काव्यांश के आधार पर बताइए कि आपको किसका चरित्र सबसे अच्छा लगता है और क्यों?
उत्तर-
इस काव्यांश में श्रीराम, लक्ष्मण और परशुराम के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख किया गया है। परशुराम को इस काव्यांश में अत्यंत क्रोधी दिखाया गया है। वे शिव-धनुष को टूटा हुआ देखकर क्रोध से पगला उठे और किसी की बात न सुनकर दूसरों को मार डालने की धमकियाँ देते हैं और आत्म-प्रशंसा करते हैं। लक्ष्मण परशुराम की धमकियों को सुनकर उन पर व्यंग्य बाण कसने लगा। लक्ष्मण ने उनकी उम्र का भी ध्यान न रखा । यहाँ तक कि लक्ष्मण ने मर्यादा का भी अतिक्रमण कर दिया। जबकि श्रीराम ने परशुराम के सामने अत्यंत मधुर भाषा में अपने-आपको उनका सेवक व दास कहा था जिसे सुनकर परशुराम का क्रोध शांत हो गया था। उन्होंने अपनी शक्ति का दिखावा न करके अपने आपको उनका दास तथा सेवक बताया। यह श्रीराम के चरित्र की सबसे बड़ी विशेषता है। इसीलिए हमें श्रीराम का चरित्र सर्वाधिक पसंद है।

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
तुलसीदास के आराध्य देव कौन थे?
उत्तर-
तुलसीदास के आराध्य देव दशरथ सुत श्रीराम थे।

प्रश्न 2.
किसने स्वयंवर में पहुँचकर सबको धमकी दी थी?
उत्तर-
परशुराम ने स्वयंवर में पहुँचकर सबको धमकी दी थी।

प्रश्न 3.
परशुराम अपने-आपको किस कुल का द्रोही (दुश्मन) कहते हैं?
उत्तर-
परशुराम अपने-आपको क्षत्रिय कुल का द्रोही (दुश्मन) कहते हैं।

प्रश्न 4.
‘वीरव्रती तुम्ह धीर अछोभा’ – यहाँ अछोभा’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
‘अछोभा’ शब्द का अर्थ है-क्षोभ रहित।

प्रश्न 5.
परशुराम ने मंदबुद्धि बालक किसे कहा है?
उत्तर-
परशुराम ने मंदबुद्धि बालक लक्ष्मण को कहा है।

प्रश्न 6.
‘खर कुठार मैं अकरुन कोही’-यहाँ कोही’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
‘कोही’ का अर्थ है-क्रोधी।

प्रश्न 7.
युद्ध-क्षेत्र में शत्रु को देखकर कौन अपनी प्रशंसा करता है?
उत्तर-
युद्ध-क्षेत्र में शत्रु को देखकर कायर अपनी प्रशंसा करता है।

प्रश्न 8.
‘गर्भन्ह के अर्भक दलन’ – यहाँ अर्भक’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
अर्भक का अर्थ है-बच्चा।

प्रश्न 9.
परशुराम के गुरु कौन थे?
उत्तर-
परशुराम के गुरु भगवान शिव थे।

प्रश्न 10.
परशुराम गुरु के ऋण से कैसे उऋण होना चाहते थे?
उत्तर-
धनुष तोड़ने वाले का वध करके परशुराम गुरु के ऋण से उऋण होना चाहते थे।

प्रश्न 11.
लक्ष्मण परशुराम से संघर्ष क्यों नहीं करना चाहते थे?
उत्तर-
परशुराम ब्राह्मण थे, इसलिए लक्ष्मण परशुराम से संघर्ष नहीं करना चाहते थे।

प्रश्न 12.
परशुराम जी के क्रोध को शांत करने का प्रयास किसने किया?
उत्तर–
परशुराम जी के क्रोध को शांत करने का प्रयास श्रीराम ने किया।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से तुलसी की रचना कौन-सी है?
(A) रामचरितमानस
(B) सूरसागर
(C) पद्मावत
(D) साकेत
उत्तर-
(A) रामचरितमानस

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प्रश्न 2.
‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ शीर्षक कविता रामचरितमानस के किस कांड से ली गई है?
(A) अयोध्याकांड से
(B) सुंदरकांड से
(C) बालकांड से
(D) किष्किंधाकांड से
उत्तर-
(C) बालकांड से

प्रश्न 3.
‘हे नाथ! शिव-धनुष को तोड़ने वाला तुम्हारा ही कोई दास होगा।” ये शब्द किसने किसको कहे हैं?
(A) लक्ष्मण ने राम को
(B) राम ने परशुराम को ‘
(C) जनक ने परशुराम को
(D) हनुमान ने जनक को
उत्तर-
(B) राम ने परशुराम को

प्रश्न 4.
परशुराम को क्या देखकर गुस्सा आता है? .
(A) श्रीराम को
(B) सीता को
(C) स्वयंवर-आयोजन को
(D) टूटे हुए शिव के धनुष को
उत्तर-
(D) टूटे हुए शिव के धनुष को

प्रश्न 5.
परशुराम ने सेवक किसे कहा है?
(A) जो सम्मान करे
(B) जो सेवा करे
(C) जो आज्ञा का पालन करे
(D) जो कुछ भी न करे
उत्तर-
(B) जो सेवा करे

प्रश्न 6.
तुलसीदास के अनुसार कुम्हड़बतियाँ किसे देखकर मुरझाती हैं।
(A) सूर्य
(B) अंधकार
(C) तरजनी
(D) उख
उत्तर-
(C) तरजनी

प्रश्न 7.
परशुराम ने सभा में उपस्थित राजाओं को क्या धमकी दी थी?
(A) आक्रमण करने की
(B) वध करने की
(C) राज्य छीन लेने की
(D) धन-संपत्ति लूटने की
उत्तर-
(B) वध करने की

प्रश्न 8.
तुलसीदास ने ‘भूगुकुल केतु’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त किया है?
(A) परशुराम
(B) वशिष्ठ
(C) विश्वामित्र
(D) लक्ष्मण
उत्तर-
(A) परशुराम

प्रश्न 9.
‘देखि कुठारु सरासन बाना’-यहाँ ‘कुठारु’ का अर्थ है-
(A) कठोर
(B) कोठार
(C) कुल्हाड़ा
(D) कमरा
उत्तर-
(C) कुल्हाड़ा

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प्रश्न 10.
परशुराम के क्रोध को किसने शांत करने का प्रयास किया था?
(A) राजा जनक ने
(B) श्रीराम ने
(C) विश्वामित्र ने
(D) लक्ष्मण ने
उत्तर-
(B) श्रीराम ने

प्रश्न 11.
तुलसीदास ने ‘कौशिक’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त किया है?
(A) वशिष्ठ
(B) विश्वामित्र
(C) परशुराम
(D) जनक
उत्तर-
(B) विश्वामित्र

प्रश्न 12.
परशुराम लक्ष्मण का वध क्या समझकर नहीं करते? ।
(A) वीर
(B) कायर
(C) राजकुमार
(D) बालक
उत्तर-
(D) बालक

प्रश्न 13.
तुलसीदास ने ‘गाधिसूनु’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त किया है?
(A) परशुराम
(B) विश्वामित्र
(C) लक्ष्मण
(D) श्रीराम
उत्तर-
(B) विश्वामित्र

प्रश्न 14.
‘अयमय खाँडव न ऊखमय’ यहाँ ‘अयमय’ का अर्थ है:
(A) स्वयं
(B) गन्ना
(C) लोहे का बना हुआ
(D) खाँड का बना हुआ
उत्तर-
(C) लोहे का बना हुआ

प्रश्न 15.
परशुराम ने धनुष तोड़ने वाले को किसके समान अपना शत्रु बताया है?
(A) रावण के
(B) लक्ष्मण के
(C) राजा जनक के
(D) सहस्रबाहु के
उत्तर-
(D) सहस्रबाहु के

प्रश्न 16.
‘अहो मुनीसु महाभट मानी’ शब्द किसने कहे हैं?
(A) राजा जनक ने
(B) श्रीराम ने
(C) विश्वामित्र ने
(D) लक्ष्मण ने
उत्तर-
(D) लक्ष्मण ने

प्रश्न 17.
श्रीराम ने किसके धनुष को तोड़ा था?
(A) परशुराम के
(B) शिव के
(C) ब्रह्मा के
(D) विष्णु के
उत्तर-
(B) शिव के

प्रश्न 18.
किसके वचन ‘कोटि कुलिस’ के समान हैं?
(A) राजा जनक के
(B) सीता के
(C) परशुराम के
(D) श्रीराम के
उत्तर-
(C) परशुराम के

प्रश्न 19.
‘गर्भन्ह के अर्भक दलन’ यहाँ ‘अर्भक’ का अर्थ है
(A) गर्दभ
(B) बच्चा
(C) गंधक
(D) शत्रु
उत्तर-
(B) बच्चा

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

प्रश्न 20.
परशुराम ने ‘सूर्यवंश का कलंक’ किसे कहा है?
(A) श्रीराम को
(B) विश्वामित्र को
(C) लक्ष्मण को
(D) सीता को
उत्तर-
(C) लक्ष्मण को

प्रश्न 21.
परशुराम ने विश्वामित्र को क्या चेतावनी दी थी?
(A) उसकी शक्ति लक्ष्मण को बता दे
(B) सीता-स्वयंवर को रुकवा दे
(C) शिव-धनुष को पुनः जुड़वा दे
(D) धनुष तोड़ने वाले का नाम बता दे
उत्तर-
(A) उसकी शक्ति लक्ष्मण को बता दे

प्रश्न 22.
युद्ध में रिपु के सामने अपने प्रताप का बखान कौन करता है?
(A) लक्ष्मण
(B) परशुराम
(C) कायर
(D) शूरवीर
उत्तर-
(C) कायर

प्रश्न 23.
परशुराम ने राजाओं से अनेक बार भूमि जीतकर किसको दी?
(A) स्वयं रखी
(B) वापिस उन्हें दे दी
(C) ब्राह्मणों को
(D) अपने गुरु को
उत्तर-
(C) ब्राह्मणों को

प्रश्न 24.
विश्वामित्र के अनुसार साधु किसके दोषों को मन में धारण नहीं करते?
(A) वृद्धों के
(B) युवकों के
(C) स्त्रियों के
(D) बालकों के
उत्तर-
(D) बालकों के

प्रश्न 25.
परशुराम ने लक्ष्मण के लिए किन-किन शब्दों का प्रयोग किया है
(A) कुटिल
(B) कालवश
(C) निजकुल-घालक
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 26.
परशुराम किसे अपना गुरु मानते हैं?
(A) हनुमान को
(B) शिवजी को
(C) विश्वामित्र को
(D) ब्रह्मा को
उत्तर-
(B) शिवजी को

प्रश्न 27.
‘भृगुवंसमनि’ किसे कहा गया है?
(A) लक्ष्मण को
(B) जनक को
(C) विश्वामित्र को
(D) परशुराम को
उत्तर-
(D) परशुराम को

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा ॥
आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही ॥
सेवक सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई ॥
सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा ॥
सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा ॥
सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने ॥
बहु धनुही तोरी लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं ॥
येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भूगुकुलकेतू ॥
रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।
धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार ॥ [पृष्ठ 12]

शब्दार्थ-संभुधनु = शिव-धनुष। भंजनिहारा = तोड़ने वाला। केउ = कोई। आयेसु = आज्ञा। मोही = मुझे। रिसाइ = क्रोध करना। कोही = क्रोधी। सेवकाई = सेवा करने वाला। अरि = शत्रु। करि = करके। लराई = लड़ाई। सम = समान। रिपु = शत्रु। बिलगाउ = अलग हो जाना। न त = न तो। अवमाने = अवमानना करना। लरिकाईं = लड़कपन में। असि = ऐसा। येहि = इस। ममता = स्नेह। केहि हेतू = किस कारण। भृगुकुलकेतु = भृगु ऋषि के कुल ध्वज। नृपबालक = राजा के पुत्र। कालबस = मृत्यु के अधीन। त्रिपुरारी = शिव। बिदित = जानता है। सकल = संपूर्ण।

प्रश्न-
(क) कवि, कविता एवं मूल ग्रंथ का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) श्रीराम ने परशुराम से क्या कहा और क्यों?
(ङ) परशुराम को गुस्सा क्यों आया था?
(च) किसने सभा के बीच में पहुँचकर सभा को धमकी दी?
(छ) परशुराम के क्रोध भरे वचन सुनकर लक्ष्मण क्यों मुस्कराए?
(ज) परशुराम की धमकी भरी बातें सुनकर लक्ष्मण ने क्या कहा?
(झ) इस पद के आधार पर परशुराम के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ञ) इस पद को पढ़कर श्रीराम के व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ट) इस पद के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ठ) इस पद में निहित शिल्प-सौंदर्य व काव्य-सौंदर्य का उल्लेख कीजिए।
(ड) इस पद की भाषागत विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-तुलसीदास।
कविता का नाम-राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद। मूल ग्रंथ का नाम-‘रामचरितमानस’ (बालकांड)।

(ख) प्रस्तुत पद्यांश तुलसीदास-कृत ‘रामचरितमानस’ के बालकांड से उद्धृत है। राजा जनक की शर्त के अनुसार श्रीराम शिव-धनुष को तोड़ डालते हैं तथा सीता का वरण करते हैं। उसी समय वहाँ परशुराम जी आ जाते हैं। वे शिव भक्त हैं। उन्हें शिव के टूटे हुए धनुष को देखकर क्रोध आ जाता है। वे सारी सभा को नष्ट कर देने की धमकी देते हैं। सभी उपस्थित लोग उनके वचनों को सुनकर सहम जाते हैं। लभी श्रीराम ने अत्यंत धैर्यपूर्वक स्थिति को संभाला और परशुराम जी से विनम्रतापूर्वक ये शब्द कहे।

(ग) परशुराम को अत्यंत क्रोध में देखकर श्रीराम ने कहा हे नाथ ! इस शिव-धनुष को तोड़ने वाला भी कोई तुम्हारा ही दास अथवा सेवक होगा। क्या आज्ञा है मुझसे क्यों नहीं कहते। यह सुनकर क्रोधी मुनि क्रोध में भरकर बोले कि सेवक वह है जो सेवा करे किंतु जो शत्रुता का काम करे उससे तो लड़ाई करनी चाहिए। कहने का भाव है कि जिसने शिव-धनुष तोड़ा है वह परशुराम के लिए शत्रु के समान है। हे राम ! सुनो जिसने यह शिव-धनुष तोड़ा है वह सहस्रबाहु के समान ही मेरा शत्रु है। परशुराम जी कहने लगे जिसने इस धनुष को तोड़ा है, वह इस सभा से अलग हो जाए, नहीं तो उसके साथ सभी राजा लोग मारे जाएँगे। मुनि के वचनों को सुनकर लक्ष्मण जी मुस्कुराने लगे। वे परशुराम जी से बोले कि हमने अपने बचपन में ऐसे अनेक धनुष तोड़े हैं। हे स्वामी ! तब आपने ऐसा क्रोध नहीं किया था। इस धनुष के लिए आपके मन में इतनी ममता किसलिए है?
लक्ष्मण के वचन सुनकर परशुराम जी बोले हे राजकुमार ! क्या तुम काल के अधीन हो! संभलकर क्यों नहीं बोलता। सारा संसार जानता है कि क्या शिव-धनुष अन्य धनुषों के समान था अर्थात् शिव-धनुष का महत्त्व तो संपूर्ण विश्व जानता है।

(घ) श्रीराम ने परशुराम से अत्यंत विनम्र भाव से कहा कि शिव-धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका ही दास है। अतः आप मुझे आज्ञा दें। मैं आपकी सेवा में हाज़िर हूँ। श्रीराम ने ये शब्द परशुराम जी के क्रोध को शांत करने के लिए कहे थे।

(ङ) परशुराम को गुस्सा अपने गुरु शिवजी के धनुष को तोड़ने पर आया था।

(च) परशुराम ने सभा के बीच में पहुँचकर सबको धमकी दी थी कि जिसने भी उनके गुरु शिवजी का धनुष तोड़ा है वह सामने आ जाए अन्यथा वे सभी राजाओं का वध कर डालेंगे।

(छ) लक्ष्मण परशुराम जी के गुस्से से भरे एवं बड़बोले वचनों को सुनकर मुस्कुराए, क्योंकि उन्हें ऐसा लगा कि परशुराम जी का यह गुस्सा केवल दिखावे का है। जब उन्हें पता चलेगा कि धनुष को तोड़ने वाला कोई और नहीं श्रीराम हैं तो उनका गुस्सा स्वतः शांत हो जाएगा।

(ज) परशुराम की धमकी भरी बातें सुनकर लक्ष्मण ने कहा, हे मुनि! बचपन में हमने ऐसे कितने ही धनुष तोड़े थे तब तो आपको गुस्सा नहीं आया था। फिर इस धनुष के प्रति आप इतनी अधिक ममता क्यों दिखा रहे हैं?

(झ) इस पद से पता चलता है कि परशुराम जी क्रोधी स्वभाव वाले थे। वे अपनी शक्ति की डींगें हाँकने वाले थे। साथ ही वे बड़बोले भी थे। वे छोटी-छोटी बातों पर आपे से बाहर हो उठते थे अर्थात् क्रोध के कारण आग-बबूले हो उठते थे। वे आत्म-प्रशंसक भी थे। वे बात-बात पर सामने वाले को मारने की धमकी भी दे देते थे।

(ञ) इस पद के अध्ययन से पता चलता है कि श्रीराम अत्यंत शांत एवं गंभीर स्वभाव वाले व्यक्ति थे। वे परशुराम जैसे क्रोधी स्वभाव वाले व्यक्ति को भी अपनी विनम्र एवं गंभीर वाणी से शांत करने वाले थे। उनमें अहंकार नाममात्र भी नहीं था। वे परशुराम जी के सामने अपने आपको दास या सेवक कहते हैं।

(ट) इस पद में कविवर तुलसीदास ने मूलतः परशुराम जी के क्रोधी स्वभाव का उल्लेख किया है। वे लक्ष्मण जी के व्यंग्य भरे वचनों को सुनकर क्रोधित हो जाते हैं और सभा में उपस्थित राजाओं का वध करने की धमकी भी दे डालते हैं। कवि ने श्रीराम के शांत एवं गंभीर स्वभाव की ओर भी संकेत किया है। साथ ही सहस्रबाहु के वध की पौराणिक कथा का उल्लेख भी किया है।

(ठ)

  • इस पद में कवि ने विभिन्न प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों के स्वभाव का कलात्मकतापूर्ण उल्लेख किया है।
  • इस पद में शांत एवं रौद्र रसों की अभिव्यक्ति हुई है।
  • इस पद में दोहा एवं चौपाई छंदों का प्रयोग किया गया है।
  • अवधी भाषा का भावानुकूल प्रयोग देखते ही बनता है।
  • संपूर्ण पद में अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है।
  • संवाद शैली का प्रयोग किया गया है।

(ड) इस पद में कवि ने ठेठ अवधी भाषा का प्रयोग किया है। भाषा भावों को अभिव्यक्त करने में पूर्णतः सक्षम है। भाषा में तद्भव शब्दों का विषयानुकूल प्रयोग किया गया है। स्वरमैत्री के कारण भाषा में लय का समावेश हुआ है। भाषा ओजगुण प्रधान है।

[2] लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना ॥
का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरे ॥
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू ॥
बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा ॥
बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही ॥
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित छत्रियकुल द्रोही ॥
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही ॥
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा ॥
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर ॥ [पृष्ठ 13]

शब्दार्थ-छति = हानि। लाभु = लाभ। नयन = नया। भोरें = धोखे। दोसू = दोष। रोसू = क्रोध। सठ = दुष्ट। सुभाउ = स्वभाव। जड़ = मूर्ख। मोही = मुझे। बिस्व = संसार, विश्व। बिदित = विख्यात। महिदेवन्ह = ब्राह्मण। बिलोक = देखकर। महीपकुमार = राजकुमार। अर्भक = बच्चा। दलन = नाश।

प्रश्न-
(क) कवि, कविता एवं मूल ग्रंथ का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या लिखिए।
(घ) लक्ष्मण सभी धनुषों को कैसा मानते हैं?
(ङ) लक्ष्मण के अनुसार धनुष को तोड़ने में श्रीराम का कोई दोष क्यों नहीं था?
(च) परशुराम लक्ष्मण का वध क्यों नहीं कर रहे थे?
(छ) इस पद के अनुसार परशुराम जी ने अपने स्वभाव की क्या-क्या विशेषताएँ बताई हैं?
(ज) परशुराम ने अपनी वीरता का बखान कैसे किया?
(झ) ‘परशुराम का फरसा अधिक भयानक है’ यह कैसे कह सकते हैं?
(ञ) ‘क्षत्रियकुल द्रोही’ से परशुराम की कौन-सी विशेषता का बोध होता है?
(ट) इस पद्यांश का भावार्थ/भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ठ) इस पद्यांश में निहित शिल्पगत सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ड) प्रस्तुत पद्यांश की भाषागत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-तुलसीदास। कविता का नाम-राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद। मूल ग्रंथ का नाम-‘रामचरितमानस’ (बालकांड)।

(ख) प्रस्तुत पद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के बालकांड से लिया गया है। सीता-स्वयंवर के समय श्रीराम ने शिवजी का धनुष तोड़ दिया था जिस कारण परशुराम क्रोध में भर गए थे। लक्ष्मण के द्वारा व्यंग्य करने पर परशुराम का गुस्सा भड़क गया था परंतु उनके गुस्से का लक्ष्मण पर कोई प्रभाव पड़ता दिखाई नहीं दे रहा था।

(ग) लक्ष्मण ने हँसकर कहा, हे देव ! सुनिए हमारी समझ में तो सभी धनुष समान हैं। पुराने धनुष के तोड़ने से क्या लाभ तथा क्या हानि हो सकती है? श्रीराम जी ने तो इसे नया समझकर इसे हाथ ही लगाया था कि यह छूने मात्र से ही टूट गया तो इसमें रघुपति जी का क्या दोष है। तब परशुराम जी अपने फरसे की ओर देखकर बोले हे मूर्ख! क्या तूने मेरा स्वभाव नहीं सुना है। बालक जानकर मैं तुम्हें नहीं मारता हूँ। तूने मुझे केवल मुनि ही समझा है अर्थात् मैं मुनि वेश में हूँ, वास्तव में मैं मुनि नहीं हूँ। मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ और अत्यंत क्रोधी हूँ। संपूर्ण विश्व जानता है कि मैं क्षत्रिय कुल का दुश्मन हूँ। मैंने अपनी भुजाओं के बल से पृथ्वी को राजाओं से छीनकर उसे कई बार ब्राह्मणों को दान में दे दिया था अर्थात् पृथ्वी के राजाओं को हराकर उनके राज्यों पर अधिकार कर लिया था। हे राजकुमार ! तू मेरे सहस्रबाहु की भुजाओं को काटने वाले इस फरसे को देख। हे राजकिशोर! अपने माता-पिता को सोच के वश में मत कर अर्थात् यदि मैं तुम्हें मार दूं तो तेरे माता-पिता को चिंता होगी। मेरा यह कठोर फरसा गर्भो के बालकों तक को मार डालने वाला भयंकर फरसा है अर्थात् इसके डर के कारण गर्भवती नारियों के बच्चे गर्भ में ही मर जाते हैं।

(घ) लक्ष्मण जी सभी धनुषों को समान मानते हैं अर्थात् उनकी दृष्टि में सभी धनुष समान हैं।

(ङ) लक्ष्मण जी के अनुसार धनुष को तोड़ने में राम का दोष इसलिए नहीं था क्योंकि राम ने तो उसे नए धनुष के रूप में देखा था किंतु वह तो उनके छूने मात्र से टूट गया था। अतः इस संबंध में श्रीराम निर्दोष थे।

(च) परशुराम यद्यपि लक्ष्मण पर अत्यधिक क्रोधित थे, किंतु वे उसको बच्चा समझकर उसका वध नहीं कर रहे थे।

(छ) इस पद में परशुराम ने अपने स्वभाव की विशेषताएँ बताते हुए कहा है कि वह केवल मुनि ही नहीं है बल्कि अति क्रोधी भी है। वह बालक समझकर ही लक्ष्मण का वध नहीं कर रहा है।

(ज) परशुराम ने अपनी वीरता का बखान करते हुए कहा है कि उसने अनेक बार इस पृथ्वी को अपनी भुजाओं के बल पर राजाओं से विहीन कर दिया था अर्थात् उसने सभी राजाओं को हरा दिया था। उसने सहस्रबाहु की भुजाएँ काट डाली थीं।

(झ) परशुराम का फरसा अत्यंत भयानक है क्योंकि उसके भय से ही गर्भस्थ शिशुओं का नाश हो जाता है।

(ञ) ‘क्षत्रिय कुल द्रोही’ वाक्यांश से पता चलता है कि परशुराम ने अपनी शक्ति के बल पर इस पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया था।

(ट) गोस्वामी तुलसीदास ने इस पद में लक्ष्मण के प्रति परशुराम के क्रोध का वर्णन किया है। उन्होंने बताया है कि परशुराम को अपनी शक्ति और पराक्रम पर घमंड था। किंतु लक्ष्मण उनके बल से जरा भी प्रभावित नहीं था। वह बिना डरे हुए उनके जीवन की वस्तुस्थिति को उनके सामने रख रहा था।

(ठ)

  • इस पद में तुलसीदास ने परशुराम के वीरत्व और क्रोधी स्वभाव का ओजस्वी भाषा में उल्लेख किया है।
  • कवि ने शब्द-योजना अत्यंत सार्थक एवं सफलतापूर्वक की है।
  • अतिशयोक्ति एवं अनुप्रास अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
  • वीररस का सुंदर वर्णन हुआ है।
  • चौपाई एवं दोहा छंद है।

(ड) प्रस्तुत काव्यांश में शुद्ध साहित्यिक अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है। इन पंक्तियों की भाषा में तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है। इन पंक्तियों में कोमलकांत शब्दावली का प्रयोग किया गया है। ओजस्वी भावानुरूप शब्दों का प्रयोग किया गया है। भाषा में जितनी लौकिकता है उतनी ही शास्त्रीयता भी है। ।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

[3] बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी ॥
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूंकि पहारू ॥
इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं ॥
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना ॥
भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी ॥
सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई ॥
बधे पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें ॥
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा ॥
जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर।
सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गंभीर ॥ [पृष्ठ 13]

शब्दार्थ-बिहसि = हँसकर। मूदु = मधुर। महाभट = शूरवीर। कुठारु = फरसा। उड़ावन = उड़ाना। पहारू = पहाड़। कुम्हड़बतिया = छुईमुई का वृक्ष । जे तरजनी = अँगुली का संकेत। सरासन = धनुष-बाण। बिलोकी = देखकर। रिस = क्रोध। सुर= देवता। महिसुर = ब्राह्मण। हरिजन = भक्त। सुराई = वीरता दिखाना। अपकीरति = अपयश, दोष। कोटि = करोड़ों। कुलिस = ब्रज। भृगुबंसमनि = भृगु कुल में श्रेष्ठ।

प्रश्न-
(क) कवि, कविता एवं मूल ग्रंथ का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) परशुराम अपना कुल्हाड़ा बार-बार किसे और क्यों दिखा रहे थे?
(ङ) लक्ष्मण ने परशुराम से अभिमानपूर्ण बात क्यों की थी?
(च) लक्ष्मण ने किन-किन को अवध्य बताया और क्यों?
(छ) लक्ष्मण ने परशुराम से ऐसा क्यों कहा कि आप व्यर्थ ही धनुष-बाण एवं फरसा धारण किए फिरते हो?
(ज) लक्ष्मण ने परशुराम को मारने की अपेक्षा क्या करने की बात कही थी?
(झ) “अहो मुनीसु महाभट मानी’ में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।।
(ञ) प्रस्तुत पद के अनुसार लक्ष्मण के स्वभाव की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ट) प्रस्तुत पद्यांश के भावार्य/भाव सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ठ) इस पद में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ड) पद में प्रयुक्त भाषा की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम तुलसीदास। कविता का नाम-राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद। मूल ग्रंथ का नाम-‘रामचरितमानस’ (बालकांड)।

(ख) प्रस्तुत पद्यांश तुलसीदास-कृत ‘रामचरितमानस’ बालकांड से उद्धृत है। राजा जनक के दरबार में सीता स्वयंवर के समय श्रीराम ने शिव-धनुष को तोड़ दिया। तभी वहाँ परशुराम पहुँच गए। वे टूटे हुए शिव-धनुष को देखकर धनुष तोड़ने वाले को मारने की धमकी देने लगे। वहाँ उपस्थित लक्ष्मण ने उन्हें बताया कि यह धनुष बहुत पुराना था तथा राम के छूने मात्र से ही टूट गया। इसमें राम का कोई दोष नहीं। इस पर परशुराम और भी क्रोधित हो उठे तथा अपने पराक्रम और शक्ति की डींगें मारने लगे। उनकी ये डींगें सुनकर लक्ष्मण ने व्यंग्य भरे वचन कहे।

(ग) जब परशुराम बड़ी-बड़ी डींगें मारने लगे तो लक्ष्मण ने हँसते हुए मधुर वाणी में कहा कि आप मुनि होकर अपने-आपको बहुत बड़ा शूरवीर समझते हैं। आप मुझे बार-बार अपना कुल्हाड़ा दिखाकर ऐसे डरा देना चाहते हो जैसे फूंक मारकर पहाड़ को उड़ा देना चाहते हो। हे मुनिवर ! यहाँ भी कोई छुईमुई का पेड़ नहीं है कि अँगुली के इशारे से ही कुम्हला जाएगा अर्थात् मैं इतना कमज़ोर नहीं हूँ कि तुम्हारे कुल्हाड़े के भय से ही डर जाऊँगा। मैंने तो तुम्हारे द्वारा धारण किए हुए कुठार एवं धनुष-बाण को देखकर ही अभिमान से कुछ कहा है। किंतु अब मैं जान गया हूँ। आपको भृगुकुल का ब्राह्मण समझ और आपका जनेऊ देखकर, जो कुछ आपने कहा उसे मैंने अपना क्रोध रोककर सहन कर लिया है। हमारे कुल में देवता, ब्राह्मण, भक्त और गाय पर वीरता नहीं दिखाते अर्थात् इनके साथ युद्ध नहीं करते। इनका वध करने पर पाप लगता है और हारने से अपयश होता है। यदि आप मुझे मारेंगे, तो भी मैं आपके चरणों में ही गिरूँगा और फिर आपके तो वचन ही करोड़ों वज्रों के समान कठोर हैं। आप तो व्यर्थ ही धनुष-बाण और कुठार धारण किए हुए हैं।
हे धीर मुनिवर ! इनको देखकर यदि मैंने कुछ अनुचित कह दिया हो तो मुझे क्षमा करना। यह सुनकर भृगुकुल में श्रेष्ठ परशुराम भी क्रोधित होकर गंभीर वाणी में बोले।

(घ) परशुराम अपना कुल्हाड़ा बार-बार लक्ष्मण को डराने हेतु दिखा रहे थे। वे उसे बता देना चाहते थे कि वे कुल्हाड़े से उसका वध कर सकते हैं।

(ङ), लक्ष्मण ने परशुराम के कुल्हाड़े और धनुष-बाण को देखकर उन्हें क्षत्रिय समझकर अभिमानपूर्ण बात की थी।

(च) लक्ष्मण क्षत्रिय कुल से है इसलिए उसने देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त व गाय को अवध्य बताया है क्योंकि इनका वध करने से पाप होता है और अपकीर्ति भी होती है।

(छ) लक्ष्मण के अनुसार परशुराम के वचन ही इतने कठोर हैं कि उन्हें अस्त्र-शस्त्र धारण करने की आवश्यकता नहीं है। वे अपने कठोर वचनों से ही शत्रु को परास्त कर देते हैं।

(ज) लक्ष्मण ने परशुराम को मारने की अपेक्षा उनके पाँव में पड़ने और क्षमा माँगने की बात कही थी।

(झ) इस वाक्य के माध्यम से परशुराम के बड़बोलेपन पर व्यंग्य किया है। यह उनकी वीरता को खुली चुनौती थी। परशुराम को माना हुआ योद्धा कहकर उनकी वीरता का मजाक किया है।

(ञ) इस पद को पढ़ने से पता चलता है कि लक्ष्मण निर्भीक, वाक्पटु एवं व्यंग्य-कुशल युवक है। वह परशुराम के बड़बोलेपन को चुपचाप सहन करने वाला वीर नहीं है। वह सामने वाले व्यक्ति द्वारा चुनौती देने पर कभी चुप नहीं रह सकता।

(ट) प्रस्तुत पद में लक्ष्मण ने परशुराम के द्वारा अभिमानपूर्वक कहे गए कथनों पर करारा व्यंग्य किया है। परशुराम ने अपनी शक्ति और कर्मों का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया है ताकि सभी उपस्थित लोग उनके कथनों से भयभीत हो जाएँ। किंतु लक्ष्मण ने स्पष्ट शब्दों में उन्हें समझा दिया कि उनके कुल में देवता, ब्राह्मण व गाय पर शस्त्र नहीं उठाते। इससे पाप लगता है। लक्ष्मण के इस कथन से अभिप्राय है कि यदि वह ब्राह्मण न होता तो वह उसे युद्ध के लिए ललकार देता और उनकी शक्ति का परीक्षण भी हो जाता।

(ठ)

  • इस पद में लक्ष्मण द्वारा परशुराम की अभिमानयुक्त वाणी और डींग हाँकने का मजाक उड़ाया गया है।
  • वीररस का सुंदर वर्णन हुआ है।
  • दोहा एवं चौपाई छंदों का प्रयोग किया गया है।
  • अवधी भाषा का विषयानुकूल प्रयोग किया गया है।
  • तत्सम एवं तद्भव शब्दों का अत्यंत सार्थक प्रयोग देखते ही बनता है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री, उपमा आदि अलंकारों के प्रयोग के द्वारा काव्यांश को सजाया गया है।
  • भाषा ओजगुण सम्पन्न है।

(ड) अवधी भाषा का भावानुकूल प्रयोग किया गया है। भाषा कीर रस के वर्णन के अनुकूल ओजस्वी है। तत्सम शब्दों के साथ-साथ तद्भव शब्दों का सुंदर एवं सार्थक प्रयोग किया गया है। पदमैत्री के प्रयोग के कारण भाषा में गेय तत्त्व विद्यमान है।

[4] कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु ॥
भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू ॥
कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं ॥
तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बल रोषु हमारा ॥
लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा ॥
अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी ॥
नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू ॥
बीरबती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा ॥
सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आए।
बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु ॥ [पृष्ठ 13]

शब्दार्थ-कौसिक = विश्वामित्र। मंद = मूर्ख । कुटिलु = दुष्ट। घालकु = घातक, नाश करने वाला। भानुबंस = सूर्यवंश। कलंकू = कलंक। निपट = बिल्कुल । निरंकुसु = उदंड। अबुधु = मूर्ख, अज्ञानी। असंकू = निडर। कवलु = ग्रास । खोरि = दोष। हटकहु = मना कर दो। तुम्हहि = न टूटने वाला। अछत = तुम्हारे रहते दूसरा। रिस = क्रोध । दुसह = असहाय। अछोभा = क्षोभ रहित। गारी = गाली। रन = युद्ध। रिपु = शत्रु। कायर = डरपोक। कथहिं = कहना। प्रतापु = बड़ाई।

प्रश्न-
(क) कवि, कविता एवं मूल ग्रंथ का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) परशुराम ने विश्वामित्र से क्या कहा?
(ङ) लक्ष्मण ने परशुराम पर क्या कहते हुए व्यंग्य किया?
(च) इस चौपाई के आधार पर परशुराम के चरित्र की विशेषताएँ बताइए।
(छ) लक्ष्मण के अनुसार शूरवीर कौन है?
(ज) लक्ष्मण ने परशुराम को क्या सुझाव दिया था?
(झ) इस पद के आधार पर लक्ष्मण के स्वभाव की विशेषताएँ लिखिए।’
(ञ) परशुराम ने विश्वामित्र को क्या करने की चेतावनी दी?
(ट) इस पद में प्रयुक्त किन्हीं दो अलंकारों के नाम लिखिए।
(ठ) प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ भाव सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ड) इस काव्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य (काव्य-सौंदय) पर प्रकाश डालिए।
(ढ) प्रस्तुत काव्यांश की भाषागत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-तुलसीदास। कविता का नाम-राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद। मूल ग्रंथ का नाम-‘रामचरितमानस’ (बालकांड)।।

(ख) तुलसीदास के प्रमुख काव्य ‘रामचरितमानस’ के ‘बालकांड’ से उद्धृत इन पंक्तियों में परशुराम व लक्ष्मण की स्वभावगत विशेषताओं का वर्णन किया गया है। सीता-स्वयंवर में जब श्रीराम ने शिव-धनुष को तोड़ दिया था, तब परशुराम जी ने वहाँ पहुँचकर अपनी वीरता और शक्ति की डींगें हाँकनी प्रारंभ कर दी थीं। इस पर लक्ष्मण ने उनकी शक्ति और वीरता पर व्यंग्य आरंभ कर दिए थे जिससे परशुराम जी का क्रोध और भी उत्तेजित हो गया था। तब परशुराम ने ये शब्द विश्वामित्र को संबोधित करते हुए कहे थे।

(ग) लक्ष्मण के व्यंग्य भरे वचन सुनकर परशुराम विश्वामित्र को संबोधित करते हुए कहते हैं, हे विश्वामित्र ! सुनो यह बालक कुबुद्धि और कुटिल, कालवश होकर अपने कुल का नाशक बन रहा है। यह सूर्यवंश रूपी पूर्ण-चंद्रमा का कलंक है। यह बालक बहुत ही उदंड, मूर्ख और निडर है। यह क्षणमात्र में ही काल का ग्रास बन जाएगा अर्थात् मैं इसका शीघ्र वध कर दूंगा। मैं बार-बार पुकार-पुकार कर कह रहा हूँ फिर मुझे दोष न देना। यदि तुम इसे बचाना चाहते हो तो मेरा बल, क्रोध और प्रताप बताकर इसे रोक लो। इस पर लक्ष्मण जी ने कहा हे मुनि ! भला तुम्हारे रहते हुए तुम्हारे यश का वर्णन कौन कर सकता है अर्थात् आप ही अपने यश का वर्णन बढ़ा-चढ़ाकर कर रहे हो। आपने अपनी करनी अपने मुख से अनेक बार अनेक प्रकार से तो कह दी है। यदि अब भी संतोष नहीं हुआ है तो फिर कुछ कह लीजिए। किंतु अपने क्रोध को रोक सहृदय कष्ट सहन न करे। आप वीरव्रती, धैर्यवान तथा क्षोभ-रहित हैं। आप गाली देते शोभा नहीं पाते अर्थात् गाली देना या अपशब्द कहना आपके लिए शोभनीय नहीं है।

लक्ष्मण जी ने पुनः कहा कि शूरवीर युद्ध-क्षेत्र में अपनी वीरता दिखाते हैं, अपने-आपको स्वयं कहकर प्रकट नहीं करते अर्थात् अपनी वीरता का वर्णन स्वयं नहीं करते। रण में अपने शत्रु को देखकर कायर लोग ही अपना गुणगान करते हैं।

(घ) परशुराम ने विश्वामित्र से कहा कि यह बालक कुबुद्धि है और यह काल के वश होकर अपने कुल के लिए घातक बन सकता है। इसको बचाना हो तो इसे मेरे प्रताप और बल के बारे में बता दीजिए अन्यथा फिर मुझे दोष मत देना।

(ङ) लक्ष्मण ने परशुराम पर व्यंग्य बाण छोड़ते हुए कहा कि आपके सुयश का वर्णन आपके अतिरिक्त और कौन कर सकता है। आप तो धैर्यवान और क्षोभरहित हो। युद्ध में शत्रु को पाकर कायर ही अपने प्रताप की डींगें मारा करते हैं।

(च) प्रस्तुत चौपाई को पढ़ने से पता चलता है कि परशुराम अत्यंत क्रोधी एवं आत्म-प्रशंसक स्वभाव वाले हैं। वे बार-बार अपना परिचय देने के बाद भी विश्वामित्र से कहते हैं कि आप बालक लक्ष्मण को मेरे विषय में बता दीजिए।

(छ) लक्ष्मण के अनुसार शूरवीर वह होता है जो बातें न करके युद्ध भूमि में जाकर युद्ध करता है। युद्ध भूमि में शत्रु को देखकर कायर ही डींगें मारता है।

(ज) लक्ष्मण ने परशुराम को सुझाव दिया था कि उसे अपना यश अपने मुख से प्रकट करना चाहिए था क्योंकि उनके स्वयं यहाँ रहते हुए भला उनके यश का ठीक-ठीक वर्णन कौन कर सकता है।

(झ) इस पद से पता चलता है कि लक्ष्मण का स्वभाव अत्यंत तेज एवं उग्र है। वे वीर एवं वाक्पटु भी हैं। जब परशुराम के क्रोध को देखकर सारी सभा मौन हो गई थी तब लक्ष्मण ने निडरतापूर्वक परशुराम को खरी-खरी बातें सुनाई थीं।।

(अ) परशुराम ने विश्वामित्र को चेतावनी दी थी कि वे लक्ष्मण को उनकी वीरता और प्रभाव के बारे में ठीक से बता दें। उसे उदंडता करने से मना कर दें अन्यथा वह बिना मौत के उसके हाथों मारा जाएगा।

(ट) रूपक-भानुबंस राकेस कलंकू। अनुप्रास-‘कुटिलु कालबस’, ‘बहुबरनी’ आदि।

(ठ) प्रस्तुत पद में कवि ने अत्यंत ओजस्वी भाषा में परशुराम के क्रोधी एवं आत्म-प्रशंसक रूप का उल्लेख किया है। लक्ष्मण की तेजस्विता, वाग्वीरता, व्यंग्य क्षमता और निर्भीकता को प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त किया गया है।

(ड)

  • कवि ने परशुराम के क्रोधी एवं आत्म-प्रशंसक रूप का उल्लेख किया है।
  • “लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।” पंक्ति में व्यंग्य देखते ही बनता है।
  • ‘काल कवलु’, ‘कुल घालकु’ आदि शब्दों का प्रयोग सुंदर एवं सटीक बन पड़ा है।
  • अवधी भाषा का सुंदर एवं सफल प्रयोग हुआ है।
  • अनुप्रास, रूपक, मानवीकरण आदि अलंकारों का सहज एवं स्वाभाविक प्रयोग भी देखते ही बनता है।
  • वीर रस का सुंदर एवं सजीव वर्णन हुआ है।
  • तत्सम एवं तद्भव शब्दावली का सार्थक एवं सटीक प्रयोग किया गया है।

(ढ) महाकवि तुलसीदास ने इन काव्य पंक्तियों में ठेठ अवधी भाषा का प्रयोग किया है। पूर्ण पद की भाषा भावानुकूल है। भाषा वीर रस की अभिव्यक्ति के अनुकूल ओजपूर्ण है। पदमैत्री का सफल प्रयोग किया गया है जिससे भाषा में प्रवाह एवं गेयतत्व का समावेश हुआ है। ‘कुल घालकु’ आदि मुहावरों के प्रयोग से भाषा सारगर्भित बन पड़ी है। अलंकृत भाषा के प्रयोग से काव्य-सौंदर्य में वृद्धि हुई है।

[5] तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा ॥
सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि घरेउ कर घोरा ॥
अब जनि देइ दोसु मोहि लोगू। कटुबादी बालकु बधजोगू ॥
बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा ॥
कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू ॥
खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही ॥
उतर देत छोड़ौं बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे ॥
न त येहि काटि कुठार कठोरे। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरे ॥
गाधिसू नु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ ॥ [पृष्ठ 14]

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

शब्दार्थ-कालु = काल, मृत्यु। हाँक = बुलाना। घोरा = भयानक। जनि = मानो। कटुबादी = कटु बोलने वाला। बधजोगू = वध करने योग्य। बिलोकि = देखकर। बाँचा = बचाया। मरनिहार = मरने वाला। अपराधू = दोष। खर = तीक्ष्ण, तेज। अकरुन = दया रहित। सील = व्यवहार। उरिन = उऋण, ऋण रहित। श्रम = परिश्रम। हरियरे = हरा-ही-हरा। अयमय = लोहमयी। खाँड़ = खड़ग।

प्रश्न-
(क) कवि, कविता व मूल ग्रंथ का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) परशुराम मानो किसे और क्यों हाँककर किसके पास बुला रहे थे?
(ङ) लक्ष्मण की खरी-खरी बातों का परशुराम पर क्या प्रभाव पड़ा?
(च) विश्वामित्र ने परशुराम को क्या कहकर शांत किया? ।
(छ) विश्वामित्र परशुराम के अकारण क्रोध को देखकर क्या सोचने लगे थे?
(ज) परशुराम ने लक्ष्मण को गुरुद्रोही क्यों कहा था?
(झ) परशुराम ने इस पद में अपने किन गुणों की ओर सकेत किया है?
(अ) परशुराम किन कारणों से लक्ष्मण को बिना मारे छोड़ रहे थे?
(ट) इस पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ठ) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में निहित शिल्प-सौंदर्य (काव्य-सौंदर्य) पर प्रकाश डालिए।
(ड) इस पद में प्रयुक्त भाषा की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-तुलसीदास। कविता का नाम-राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद। मूल ग्रंथ का नाम-‘रामचरितमानस’ (बालकांड)।

(ख) प्रस्तुत पद तुलसीदास के सुप्रसिद्ध काव्य-ग्रंथ ‘रामचरितमानस’ के ‘बालकांड’ से उद्धृत है। इसमें सीता-स्वयंवर के समय श्रीराम द्वारा शिव-धनुष तोड़ दिए जाने पर परशुराम द्वारा अचानक सभा में पहुँचकर क्रोध व्यक्त किया गया था जिससे सभा में उपस्थित सभी राजा लोग भयभीत हो गए थे। किंतु लक्ष्मण पर उनकी धमकियों व डींगों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा था, अपितु उसने निडरतापूर्वक उन्हें खरी-खरी सुनाई थी जिससे परशुराम का क्रोध और भी बढ़ गया था।

(ग) लक्ष्मण ने परशुराम को संबोधित करते हुए कहा, मानो आप तो काल को हाँक कर ले आए हैं। जो बारंबार मुझे बुला रहे हैं। लक्ष्मण के ऐसे कठोर वचन सुनकर परशुराम ने अपना भयंकर कुठार सुधारकर हाथ में पकड़ा और कहने लगे अब लोग मुझे दोष न दें। यह कटु वचन बोलने वाला बालक मारने योग्य है। बालक जानकर मैंने इसे बहुत बचाया, किंतु अब यह सचमुच ही मरना चाहता है। विश्वामित्र बोले इसका अपराध क्षमा करें। बालक के दोष व अवगुण साधु लोग नहीं गिनते। परशुराम ने कहा, मेरे हाथ में तीक्ष्ण कुठार है और मैं बिना कारण ही क्रोधी हूँ। इस पर भी मेरे सामने यह गुरुद्रोही है। जो उत्तर दे रहा है (इतने पर भी) हे कौशिक, केवल तुम्हारे सद्व्यवहार से ही इसको मैं बिना मारे छोड़ देता हूँ नहीं तो इसे कुठार से काटकर थोड़े ही परिश्रम से गुरु के ऋण से उऋण हो जाता।

इस पर विश्वामित्र मन में हँस कर कहने लगे मुनि को हरा-ही-हरा सूझता है जिन्होंने लोहे के समान धनुष को गन्ने की भाँति सरलता से तोड़ दिया। मुनि अब भी उनके प्रभाव को नहीं समझ रहे हैं।

(घ) परशुराम बार-बार लक्ष्मण का वध करने की धमकी देते हैं। इसे सुनकर लक्ष्मण जी कहते हैं कि मानो परशुराम तो काल को हाँककर उसके (लक्ष्मण के) पास बुला रहे हैं।

(ङ) लक्ष्मण की खरी-खरी बातों को सुनकर परशुराम का क्रोध और भी बढ़ जाता है। वे अपने कुल्हाड़े को संभालते हुए बोले, यह कटु वचन कहने वाला बालक निश्चय ही मारने योग्य है।

(च) विश्वामित्र जी ने परशुराम से कहा कि साधु लोग बालकों पर क्रोध नहीं करते और न ही उनके गुण-दोषों की ओर ध्यान देते हैं।

(छ) विश्वामित्र जी परशुराम के अकारण क्रोध को देखकर सोचने लगे कि मुनि विजय प्राप्त करने के कारण सर्वत्र हरा-हीहरा देख रहा है। वह श्रीराम को साधारण क्षत्रिय समझता है। मुनि अब भी बेसमझ बना हुआ है। वह इनके प्रभाव को नहीं देख रहा है।

(ज) परशुराम शिवजी को अपना गुरु मानते थे तथा इस नाते भगवान् शिव के धनुष की रक्षा करना उनका कर्तव्य बनता था। किंतु सीता-स्वयंवर के समय उसे श्रीराम ने भंग कर दिया था। इसी कारण परशुराम जी ने अपना और भगवान् शिव का अपमान समझ भरी सभा में क्षत्रियों को भला-बुरा कहा। इस पर लक्ष्मण ने परशुराम के व्यंग्यात्मक शब्दों का विरोध किया। इसलिए परशुराम ने लक्ष्मण को गुरुद्रोही कहा था।

(झ) इस पद में परशुराम ने कहा कि वह अत्यंत क्रोधी एवं निर्मम स्वभाव वाला व्यक्ति है।

(ञ) परशुराम अत्यंत क्रोधी एवं शक्तिशाली हैं, किंतु उन्होंने लक्ष्मण का वध इसलिए नहीं किया कि वह अभी बालक है और उसके स्वभाव को नहीं जानता।

(ट) इस पद में कवि ने परशुराम के अभिमानी एवं आत्म-प्रशंसक स्वभाव का वर्णन किया है। परशुराम लक्ष्मण को अपना अपमान करते देखकर अपना कुल्हाड़ा संभालने लगता है। विश्वामित्र के समझाने पर भी वह नहीं समझ सका कि श्रीराम कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं। यह देखकर विश्वामित्र मन-ही-मन मुस्कुरा दिए कि परशुराम को सब ओरं अपनी विजय-ही-विजय दिखाई देती है। वह वास्तविकता को नहीं समझ रहे थे तथा अपनी वीरता की डींगें मार रहे थे।

(ठ)

  • प्रस्तुत पद में कवि ने परशुराम एवं लक्ष्मण के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख किया है।
  • अवधी भाषा का विषयानुकूल प्रयोग किया गया है।
  • नाटकीयता के कारण रोचकता का समावेश हुआ है।
  • सम्पूर्ण पद्य में व्यंग्य का प्रयोग हुआ है।
  • चौपाई एवं दोहा छंद का प्रयोग किया गया है।
  • रूपक एवं मानवीकरण अलंकारों का प्रयोग किया गया है।

(ड) भाषा अलंकृत एवं विषयानुकूल है। तत्सम शब्दों का सफल एवं सार्थक प्रयोग किया गया है। भाषा ओजगुण संपन्न है। मुहावरों के सफल प्रयोग के कारण भाषा सारगर्भित बन पड़ी है।

[6] कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा । को नहि जान बिदित संसारा ॥
माता पितहि उरिन भये नीकें। गुररिनु रहा सोचु बड़ जी के ॥
सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये व्याज बड़ बाढ़ा ॥
अब आनिअ व्यवहरिआ बोली। तुरत देउँ मैं थैली खोली ॥
सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा ॥
भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र बिचारि बचौं नृपद्रोही ॥
मिले न कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े ॥
अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे ॥
लखन उतर आहुति सरिस भूगुबरकोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु ॥ [पृष्ठ 14]

शब्दार्थ-सीलु = स्वभाव। बिदित = जानना, परिचित। उरिन = ऋण से मुक्त, कर्ज चुकाना। नीकें = भली प्रकार। गुररिनु = गुरु का ऋण। बड़ = बड़ी। जी = हृदय। जनु = मानो। हमरेहि माथे काढ़ा = हमारे माथे पर निकालना, हम पर निकालना। बाढ़ा = बढ़ गया। आनिअ = लाओ। व्यवहरिआ = हिसाब-किताब करने वाला। तुरत = शीघ्र । कटु = कठोर। सुधारा = संभाला। भृगुबर = भृगु के वंशज, परशुराम। मोही = मुझे। बिप्र = ब्राह्मण। बिचारि = सोचकर। बचौं = बचा रहा था। नृपद्रोही = राजाओं के शत्रु। सुभट = वीर योद्धा। रन = युद्ध । गाढ़े = अच्छे। द्विजदेवता = ब्राह्मण देवता। बाढ़े = फूलना। सयनहि = आँखों के इशारे से। नेवारे = रोका, मना किया। सरिस = समान। कोपु = क्रोध । कृसानु = आग। रघुकुलभानु = रघुवंश के सूर्य श्रीरामचंद्र।

प्रश्न-
(क) कवि, कविता एवं मूल ग्रंथ का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद की व्याख्या कीजिए।
(घ) इस पद में किसने किस पर क्या व्यंग्य किया?
(ङ) सभा में हाहाकार मचने का क्या कारण था?
(च) परशराम के बढ़ते क्रोध को किसने और कैसे शांत किया?
(छ) परशुराम के गुरु कौन थे? वे गुरु के ऋण से कैसे उऋण होना चाहते थे?
(ज) परशुराम को फरसा संभालते हुए देखकर सभा ने क्या प्रतिक्रिया की?
(झ) लक्ष्मण ने परशुराम के साथ संघर्ष को क्यों टाल दिया?
(अ) लक्ष्मण की उत्तेजक बातों का सभा पर क्या प्रभाव पड़ा?
(ट) राम ने लक्ष्मण को शांत रहने के लिए किस प्रकार समझाया?
(ठ) इस पद के आधार पर लक्ष्मण की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ड) राम के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
(ढ) ‘द्विजदेवता घरहि के बाढ़े का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
(ण) प्रस्तुत पद का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
(त) प्रस्तुत पद के भाषा वैशिष्ट्रय पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-तुलसीदास। कविता का नाम-राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद। मूल ग्रंथ का नाम-‘रामचरितमानस’ (बालकांड)।

(ख) तुलसीदास द्वारा रचित काव्य-ग्रंथ ‘रामचरितमानस’ से उद्धृत इस पद में उस घटना का वर्णन किया गया है जब श्रीराम ने शिव-धनुष तोड़कर सीता का वरण किया था और उसी समय परशुराम ने वहाँ पधारकर सभी को अपने क्रोध से आतंकित कर दिया था। वे धनुष तोड़ने वाले का वध करने की धमकी देने लगे। तभी लक्ष्मण ने उनकी धमकियों पर व्यंग्य करते हुए ये शब्द कहे थे।

(ग) लक्ष्मण ने परशुराम से कहा, हे मुनि! आपके शील के विषय में कौन नहीं जानता अर्थात् सारा संसार आपके शील से परिचित है। आप अपने माता-पिता के ऋण से तो अच्छी प्रकार से उऋण हो चुके हैं। केवल गुरु का ऋण शेष बचा है। उसे उतारना ही आपकी सबसे बड़ी चिंता है। वह शायद आप हमारे माथे पर काढ़ना चाहते हैं। कहने का भाव है कि लक्ष्मण को मारकर वे अपने गुरु के ऋण को उतारना चाहते हैं। यह बात उचित भी है क्योंकि काफी समय बीत गया है और ब्याज भी बहुत बढ़ गया है। चलिए अब किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुला लेना चाहिए और तुरंत ही थैली खोलकर हिसाब चुकता कर दूंगा। लक्ष्मण के ये कटु वचन सुनकर परशुराम ने अपना फरसा संभाल लिया। सारी सभा भयभीत होकर हाय-हाय करने लगी। लक्ष्मण ने फिर धैर्यपूर्वक कहा, हे भृगुकुल के श्रेष्ठ परशुराम! आप मुझे अपना फरसा दिखा रहे हैं और मैं आपको ब्राह्मण समझकर लड़ने से बार-बार बच रहा हूँ। हे नृपद्रोही! लगता है कि आपका युद्ध भूमि में कभी पराक्रमी वीरों से पाला नहीं पड़ा। इसलिए हे ब्राह्मण देवता! आप अपने घर में ही अपनी वीरता के कारण फूले-फूले फिर रहे हैं।
लक्ष्मण के ये शब्द सुनकर सभा में उपस्थित लोग ‘अनुचित-अनुचित’ कहने लगे। श्रीराम ने लक्ष्मण को आँख के संकेत से शांत रहने के लिए कहा। इस प्रकार लक्ष्मण के शब्द परशुराम के क्रोध को इस प्रकार भड़काने वाले थे जैसे आहुति आग को भड़काती है। उस आग को बढ़ते देखकर श्रीराम ने जल के समान शीतल वचन कहे।

(घ) इस पद में लक्ष्मण ने परशुराम पर व्यंग्य किया है। लक्ष्मण ने कहा कि आपने अपने पिता का कहना मानकर अपनी माता का वध कर दिया और माता-पिता के ऋण से उऋण हो गए अब मुझे मारकर गुरु का ऋण चुकता करना चाहते हैं तो ठीक है किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुला लीजिए।

(ङ) लक्ष्मण के कटु वचन सुनकर परशुराम जी का क्रोध बढ़ गया और उन्होंने लक्ष्मण को मारने के लिए अपना फरसा उठा लिया था। वहाँ बैठी सभा यह देखकर हाहाकार कर उठी थी।

(च) श्रीराम ने अपनी मधुर वाणी से परशुराम के बढ़ते क्रोध को शांत किया।

(छ) परशुराम के गुरु भगवान् शिव थे। वे शिव के धनुष को तोड़ने वाले का वध करके गुरु के ऋण से उऋण होना चाहते थे।

(ज) परशुराम को अपना फरसा संभालते हुए देखकर सारी सभा भयभीत हो उठी थी क्योंकि परशुराम लक्ष्मण के प्रति और भी अधिक क्रुद्ध हो उठे थे तथा उसका वध करना चाहते थे। उधर लक्ष्मण भी परशुराम को युद्ध की चुनौती देने लगे थे। इसलिए सभा हाहाकार करने लगी थी।

(झ) लक्ष्मण ने परशुराम के साथ संघर्ष इसलिए टाल दिया था क्योंकि परशुराम ब्राह्मण थे और वे ब्राह्मण के साथ युद्ध नहीं करना चाहते थे। ब्राह्मणों के साथ युद्ध करना व उनका वध करना उनके कुल की मर्यादा के विपरीत था।

(ञ) लक्ष्मण की उत्तेजक बातों को सुनकर सभा में उपस्थित लोगों ने आपत्ति की तथा लक्ष्मण के वचनों को अनुचित बताया। यहाँ तक कि श्रीरामचंद्र ने भी उन्हें चुप रहने का संकेत किया।

(ट) श्रीराम ने लक्ष्मण को आँख के संकेत से शांत रहने को कहा और परशुराम का अपमान न करने के लिए कहा।

(ठ) इस पद को पढ़कर पता चलता है कि लक्ष्मण स्वभाव से अत्यधिक उग्र हैं। वे अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं कर सकते। उन्हें छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा आ जाता है। वे अपने से बड़े परशुरामजी के सामने भी कठोर वचन आसानी से बोल जाते हैं। इसी कारण सारी सभा उनके विरुद्ध बोलने लगती है।

(ड) इस पद से पता चलता है कि श्रीराम अत्यंत गंभीर एवं शांत स्वभाव वाले व्यक्ति हैं। उन्होंने लक्ष्मण को शांत रहने का संकेत किया। उन्होंने अपनी मधुर वाणी से परशुराम जी के क्रोध को शांत किया था। अतः वे शांत स्वभाव वाले एवं मधुरभाषी हैं।

(ढ) इस पद के माध्यम से लक्ष्मण ने परशुराम की खोखली धमकियों पर व्यंग्य किया है। लक्ष्मण कहते हैं कि हे ब्राह्मण देवता! आप तो अपने घर में ही शेर बने फिरते हैं आपका कभी किसी वीर योद्धा से पाला नहीं पड़ा।

(ण) इस पद में कवि ने लक्ष्मण, परशुराम और श्रीराम के स्वभाव का समान रूप से चित्रण किया है। लक्ष्मण अपने कटु वचनों से परशुराम के क्रोध को बढ़ाता है तथा उन पर व्यंग्य कसता है। परशुराम अपने क्रोध के अतिक्रमण के कारण लक्ष्मण का वध करने के लिए अपना फरसा संभाल लेता है किंतु श्रीराम अपनी मधुर वाणी और शांत स्वभाव से दोनों को शांत कर देते हैं।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

(त) भाषा भाव के अनुरूप विनम्र, क्रोध तथा व्यंग्य के भावों को अभिव्यक्त करने में पूर्णतः सफल रही है। उपमा, अनुप्रास, वीप्सा, वक्रोक्ति आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है। दोहा एवं चौपाई छंद हैं। अवधी भाषा का विषयानुकूल प्रयोग हुआ है।

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Summary in Hindi

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद कवि-परिचय

प्रश्न-
तुलसीदास का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-गोस्वामी तुलसीदास हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। अत्यंत खेद का विषय है कि इनका जीवन-वृत्तांत अभी तक अंधकारमय है। इसका कारण यह है कि इन्हें अपने इष्टदेव के सम्मुख निज व्यक्तित्व का प्रतिफलन प्रिय नहीं था। इनका जन्म सन् 1532 में बाँदा जिले के राजापुर नामक गाँव में हुआ था। कुछ लोग इनका जन्म-स्थान सोरों (ज़िला एटा) को भी मानते हैं। इनके पिता का नाम आत्माराम दूबे और माता का नाम हुलसी था। जनश्रुति के अनुसार, इनका विवाह रत्नावली से हुआ था। इनका तारक नाम का पुत्र भी हुआ था जिसकी मृत्यु हो गई थी। तुलसी अपनी पत्नी के रूप-गुण पर अत्यधिक आसक्त थे और इसीलिए इन्हें उससे “लाज न आवति आपको दौरे आयहु साथ” मीठी भर्त्सना सुननी पड़ी थी। इसी भर्त्सना ने उनकी जीवनधारा को ही बदल दिया। इनके ज्ञान-चक्षु खुल गए। इन्होंने बाबा नरहरिदास से दीक्षा प्राप्त की। काशी में इन्होंने सोलह-सत्रह वर्ष तक वेद, पुराण, उपनिषद्, रामायण तथा श्रीमद्भागवत का गंभीर अध्ययन किया। इनका देहांत सन् 1623 में काशी में हुआ।

2. प्रमुख रचनाएँ-तुलसीदास की बारह रचनाएँ प्रसिद्ध हैं। उनमें ‘रामचरितमानस’, ‘विनयपत्रिका’, ‘कवितावली’, ‘दोहावली’, ‘जानकी मंगल’, ‘पार्वती मंगल’ आदि उल्लेखनीय हैं।

3. काव्यगत विशेषताएँ-तुलसीदास रामभक्त कवि थे। ‘रामचरितमानस’ इनकी अमर रचना है। तुलसीदास आदर्शवादी विचारधारा के कवि थे। इन्होंने राम के सगुण रूप की भक्ति की है। इन्होंने राम के चरित्र के विराट स्वरूप का वर्णन किया है। तुलसीदास ने श्रीराम के जीवन के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला है। उन्होंने ‘रामचरितमानस’ में सर्वत्र आदर्श की स्थापना की है। पिता, पुत्र, भाई, पति, प्रजा, राजा, स्वामी, सेवक सभी का आदर्श रूप में चित्रण किया गया है।
तुलसीदास के साहित्य की अन्य प्रमुख विशेषता है तुलसी का समन्वयवादी दृष्टिकोण। इनकी रचनाओं में ज्ञान, भक्ति और कर्म, धर्म और संस्कृति, सगुण और मिर्गुण आदि का सुंदर समन्वय दिखाई देता है।
तुलसीदास की भक्ति दास्य भाव की भक्ति है। वे अपने आराध्य श्रीराम को श्रेष्ठ और स्वयं को तुच्छ या हीन स्वीकार करते हैं। तुलसीदास का कथन है

“राम सो बड़ो है कौन, मोसो कौन है छोटो?
राम सो खरो है कौन, मोसो कौन है खोटो?”

कविवर तुलसीदास अपने युग के महान समाज-सुधारक थे। इनके काव्य में आदि से अंत तक जनहित की भावना भरी हुई है। तुलसीदास जी के काव्य में उनके भक्त, कवि और समाज-सुधारक तीनों रूपों का अद्भुत समन्वय मिलता है।

4. भाषा-शैली-इन्होंने अपना अधिकांश काव्य अवधी भाषा में लिखा, किंतु ब्रज भाषा पर भी इन्हें पूर्ण अधिकार प्राप्त था। इनकी भाषा में संस्कृत की कोमलकांत पदावली की सुमधुर झंकार है। भाषा की दृष्टि से इनकी तुलना हिंदी के किसी अन्य कवि से नहीं हो सकती। इनकी भाषा में समन्वय का प्रयास है। वह जितनी लौकिक है, उतनी ही शास्त्रीय भी है। इन्होंने अपने काव्य में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। भावों के चित्रण के लिए इन्होंने उत्प्रेक्षा, रूपक और उपमा अलंकारों का अधिक प्रयोग किया है। इन्होंने रोला, चौपाई, हरिगीतिका, छप्पय, सोरठा आदि छंदों का सुंदर प्रयोग किया है।

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद काव्यांशों का सार

प्रश्न-
‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ नामक कवितांश का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ तुलसीदास के महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के ‘बालकांड’ अध्याय का प्रमुख अंश है। इसका ‘रामचरितमानस’ के कथानक में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस संक्षिप्त से अंश में राम, लक्ष्मण और परशुराम तीनों के चरित्र का उद्घाटन होता है। जब राजा जनक द्वारा आयोजित सीता स्वयंवर के अवसर पर श्रीराम भगवान शंकर के धनुष को तोड़ डालते हैं, तब वहाँ उपस्थित समाज के लोगों पर विभिन्न प्रभाव पड़ता है। राजा जनक प्रसन्न होते हैं। सीता की मनोकामना एवं भक्ति पूरी होती है। साधु लोग प्रसन्न होते हैं। दुष्ट राजा लोग इससे दुःखी होते हैं। परशुराम को जब धनुष भंजन की खबर मिलती है तो वे क्रोध से पागल हो उठते हैं तथा राजा जनक की सभा में उपस्थित होकर धनुष तोड़ने वाले को समाप्त करने की धमकी देते हैं।

परशुराम की क्रोध भरी बातें सुनकर श्रीराम अत्यंत धीरज एवं सहज भाव से बोल उठे, हे नाथ! शिवजी के धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका ही दास होगा। यह सुनकर भी उनका क्रोध शांत नहीं होता। वे उसी भाव से कहते हैं, सेवक का काम तो सेवा करना है। जिसने भी यह धनुष तोड़ा है, वह मेरा सहस्रबाहु के समान शत्रु है। परशुराम का क्रोध बढ़ता ही गया और उन्होंने कहा कि धनुष तोड़ने वाला सभा से अलग हो जाए, अन्यथा वे सारे समाज को नष्ट कर देंगे। इस पर लक्ष्मण ने यह कहकर कि बचपन में ऐसे कितने धनुष तोड़े होंगे, फिर इस धनुष से आपको इतनी ममता क्यों है? परशुराम के क्रोध को और भी भड़का दिया। लक्ष्मण ने पुनः कहा कि इसमें राम का कोई दोष नहीं। वह तो उनके छूते ही टूट गया। इसलिए हे मुनिवर! आप तो व्यर्थ ही क्रोध कर रहे हैं। परशुराम क्रोधाग्नि में जल उठे और बोले कि मैं तुम्हें बालक समझकर छोड़ रहा हूँ। मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ और क्षत्रिय कुल का शत्रु हूँ।

मैंने अपने भुजबल से पृथ्वी को कई बार राजा-विहीन कर दिया और पृथ्वी को देवताओं को दान में दे दिया। हे राजकुमार ! तुम मेरे फरसे को देख रहे हो। लक्ष्मण ने सहज भाव से कहा कि हे मुनिवर ! तुम मुझे बार-बार कुल्हाड़ा दिखाते हो तब फूंक मारकर पहाड़ को उड़ाना चाहते हो। मैंने तो जो कुछ कहा वह तुम्हारे वेश को देखकर कहा, किंतु अब मुझे पता चल गया है कि तुम भृगु-सुत हो और तुम्हारे जनेउ को देखकर सब कुछ जान गया हूँ। इसलिए आप जो कुछ भी कहेंगे मैं उसे सहन कर लूँगा। परशुराम ने विश्वामित्र से कहा कि इस बालक को समझा लीजिए अन्यथा यह काल कलवित हो जाएगा। किंतु लक्ष्मण ने उन्हें स्पष्ट भाषा में ललकारा तो उन्होंने अपना फरसा संभाल लिया और कहा कि अब मुझे बालक का वध करने का दोष मत देना। अंत में विश्वामित्र ने परशुराम को समझाते हुए कहा कि आप महान् हैं और बड़ों को छोटों के अपराध क्षमा कर देने में ही उनकी महानता है। किंतु वे मन-ही-मन हँसने लगे कि जिसने शिव-धनुष को गन्ने की भाँति सरलता से तोड़ दिया वे उसके प्रभाव को नहीं समझे। लक्ष्मण ने पुनः मजाक में कहा कि परशुराम जी माता-पिता के ऋण से तो मुक्त हो चुके हैं। अब गुरु के ऋण से उऋण होना चाहते हैं। यह सुनते ही परशुराम ने अपना कुल्हाड़ा संभाल लिया। सारी सभा में हाहाकार मच गया। लक्ष्मण के शब्दों ने परशुराम का क्रोध और भी बढ़ा दिया, किंतु तब श्रीराम ने जल के समान शांत करने वाले शब्द कहे।

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