Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 8 कन्यादान
HBSE 10th Class Hindi कन्यादान Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना?
उत्तर-
माँ के इन शब्दों में लाक्षणिकता विद्यमान है। लड़की होने का तात्पर्य है कि उसमें कोमलता, सुंदरता, शालीनता, सहनशीलता, ममता, माधुर्य आदि स्वाभाविक गुण होते हैं। उसके इन गुणों के कारण ही परिवार बनते हैं और समाज का विकास होता है। माँ के कथन के अनुसार इन गुणों का होना आवश्यक है। किंतु साथ ही माँ का यह कहना लड़की जैसी दिखाई मत देना का तात्पर्य है कि उसमें सामाजिक स्थितियों अथवा अन्याय या शोषण का विरोध करने का साहस भी होना अनिवार्य है। उसमें सचेतता, सजगता आदि गुण भी होने चाहिएँ। उसे डरपोक नहीं होना चाहिए। जहाँ उसके मन में कोमलता, माधुर्य तथा ममता के भाव हैं, वहाँ उसमें अन्याय, शोषण आदि का विरोध करने का साहस भी होना चाहिए।
प्रश्न 2.
‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं’
(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है?
(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों ज़रूरी समझा?
उत्तर-
(क) इन पंक्तियों में कवि ने समाज में विवाहित नारी की दशा की ओर संकेत किया है। आज हमारे समाज में दहेज प्रथा और सामाजिक बंधनों की आग बहुओं को बहुत तेजी से निगलती जा रही है। आज वर पक्ष के लोग कन्या पक्ष से अच्छी, सुंदर पढ़ी-लिखी व नौकरी करने वाली कन्या ही नहीं चाहते हैं, अपितु इन सबके साथ-साथ बहुत-सा दहेज भी चाहते हैं। यदि वह दहेज नहीं लाती तो उसके शेष गुण नगण्य हो जाते हैं तथा दहेज न मिलने पर बहू के साथ बुरा व्यवहार किया जाता हैं। उसे हर प्रकार से तंग किया जाता है। इतना ही नहीं, लोभ के चंगुल में फँसकर बहू को आग में धकेल देते हैं या फिर आग में जलकर मरने के लिए विवश कर देते हैं। कवि ने नारी जीवन के इसी यथार्थ की ओर संकेत किया है। नारी की यह दशा अत्यंत शोचनीय एवं दयनीय है। कवि ने नारी को इस दशा के प्रति सचेत भी किया है।
(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना इसलिए जरूरी समझा क्योंकि वह भी अनेक अन्य बहुओं की भाँति आग में अपना जीवन न खो दे। उसे किसी अवस्था में कमजोर नहीं बनना चाहिए। उसे कष्ट पहुँचाने वालों या शोषण करने की कोशिश करने वालों के सामने झुकना नहीं चाहिए। कोमलता नारी का गुण है, किंतु आज की परिस्थितियों से उसे मजबूत बनकर रहने का पाठ अवश्य पढ़ लेना चाहिए, ताकि वह किसी भी विकटतम स्थिति का सामना कर सके।
प्रश्न 3.
पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की – कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की’ इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभरकर आ रही है उसे शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर-
लड़कियाँ सरल स्वभाव की होती हैं। वे छल-कपटपूर्ण व्यवहार को नहीं जानती अर्थात् उनका व्यवहार अति सरल एवं सहज होता है। वे समाज के अनुभव से भी अनभिज्ञ होती हैं। समाज में आज जो कुछ हो रहा है, उसके प्रति उन्हें सचेत करना ही लेखक का परम लक्ष्य है।
प्रश्न 4.
माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ क्यों लग रही थी?
उत्तर-
माँ को अपनी बेटी सच्ची सहेली की भाँति लगती है, क्योंकि वह उसके हर सुख-दुःख की साथी होती है। माँ बेटी के साथ हर प्रकार की बात कर लेती है। बेटी माँ को अच्छी सलाह देती है और हर काम में उसका हाथ बँटाती है। इसलिए बेटी माँ की एकमात्र पूँजी है जो विवाह के पश्चात् अपनी ससुराल चली जाएगी और माँ उसके बाद अकेली पड़ जाएगी।
प्रश्न 5.
माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी?
उत्तर-
माँ ने बेटी को सीख देते हुए कहा कि उसे कभी अपनी सुंदरता और उसकी प्रशंसा पर नहीं रीझना चाहिए। क्योंकि वह उसकी कमज़ोरी बन जाएगी और दूसरे उसका लाभ उठाएँगे।
माँ ने उसे यह भी शिक्षा दी कि उसे घर के सब काम करने चाहिएँ, दूसरों को सहयोग भी देना चाहिए, किंतु अत्याचार सहन नहीं करना चाहिए।
माँ ने बेटी को समझाते हुए कहा कि वस्त्रों व आभूषणों के बदले में अपनी स्वतंत्रता का गला नहीं घोंटना चाहिए। अपने व्यक्तित्व की पहचान सदा बनाकर रखनी चाहिए। कभी भी अपनी सरलता और भोलेपन को इस तरह प्रकट नहीं करना चाहिए जिससे कि लोग उसका गलत ढंग से लाभ उठाएँ।
रचना और अभिव्यक्ति-
प्रश्न 6.
आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है?
उत्तर-
कन्या के साथ ‘दान’ शब्द का प्रयोग अनुचित प्रतीत होता है। ऐसा लगता है कि जैसे कन्या कोई वस्तु हो और उसे दान में दिया जा रहा है। मानो कन्या बेजान हो, उसकी अपनी कोई इच्छा न हो। जैसे किसी वस्तु को दान देने के पश्चात् दान करने वाले से उसका कोई संबंध नहीं रहता। कन्यादान करने के पश्चात् मानो माता-पिता का कन्या के साथ कोई संबंध न रह गया हो। वह पराई हो गई हो। इस दृष्टि से कन्या के साथ ‘दान’ शब्द का प्रयोग उचित नहीं है।
‘दान’ शब्द का एक दूसरा पक्ष भी है। किसी वस्तु को दान करने वाला व्यक्ति किसी सुपात्र को वस्तु का दान करके अपने-आप को धन्य समझने लगता है। ठीक इसी प्रकार किसी सुयोग्य युवक के साथ विवाह के समय माता-पिता अपनी बेटी का कन्यादान करके अपने आपको धन्य समझते हैं। यहाँ इस बात का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए कि कन्यादान के समय कन्या की सहमति होना नितांत आवश्यक है, क्योंकि आज स्थिति बदल चुकी है।
पाठेतर सक्रियता
प्रश्न 1.
‘स्त्री को सौंदर्य का प्रतिमान बना दिया जाना ही उसका बंधन बन जाता है’ इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। विद्यार्थी इसे अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से करें।
प्रश्न 2.
यहाँ अफगानी कवयित्री मीना किश्वर कमाल की कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं। क्या आपको कन्यादान कविता से इसका कोई संबंध दिखाई देता है?
मैं लौटूंगी नहीं
मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी राह देख ली है
अब मैं लौटूंगी नहीं
मैंने ज्ञान के बंद दरवाज़े खोल दिए हैं
सोने के गहने तोड़कर फेंक दिए हैं
‘भाइयो! मैं अब वह नहीं हूँ जो पहले थी
मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी राह देख ली है।
अब मैं लौटूंगी नहीं।
उत्तर-
‘कन्यादान’ और ‘मैं लौटूंगी नहीं दोनों कविताओं के केंद्र में नारी है। इसलिए दोनों कविताओं का एक सीमा तक संबंध अवश्य है। किंतु दोनों कविताओं में दृष्टिकोण अलग-अलग हैं। ‘कन्यादान’ कविता में भोली-भाली कन्या के जीवन का वर्णन किया गया है, जो अबोध है, जो वस्त्रों, गहनों, सौंदर्य आदि के मोह के बंधनों में बंधी हुई है। वह अपने शोषण के कारणों से भी अनजान है। किंतु ‘मैं लौटूंगी नहीं’ कविता में उस नारी जीवन का वर्णन किया गया है जो जागरूक हो चुकी है। वह जानती है कि सोने के गहने उसके लिए गुलामी की जंजीरों के समान हैं। उसने अपने लक्ष्य व उसकी दिशा को समझ लिया है। अतः स्पष्ट है कि ‘मैं लौटूंगी नहीं’ कविता की कन्या ‘कन्यादान’ कविता की कन्या का जागरूक रूप है।
HBSE 10th Class Hindi कन्यादान Important Questions and Answers
विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘कन्यादान’ कविता में कौन किसको सीख देता है और क्यों?
उत्तर-
‘कन्यादान’ कविता में माँ अपनी बेटी को विदाई के समय शिक्षा देती है क्योंकि विवाह से पूर्व कन्या को व्यावहारिक जीवन का बोध नहीं होता। माँ अपने जीवन में प्राप्त अनुभवों को अपनी बेटी को शिक्षा के रूप में बताती है ताकि उसका भावी जीवन सुखी एवं सुरक्षित बना रह सके। माँ बेटी को परंपरागत संस्कारों से मुक्त होकर स्वतंत्र जीवन जीने का व्यावहारिक ज्ञान देती है ताकि उसे कोई कष्ट न पहुँचा सके तथा उसका शोषण न कर सके।
प्रश्न 2.
समाज में नई बहुओं के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है? .
उत्तर-
भारतीय समाज में प्रायः नई बहुओं को सजी-धजी सौंदर्य की गुड़िया समझकर उनसे अच्छा व्यवहार किया जाता है। उसे नए-नए वस्त्र व गहने दिए जाते हैं। लोग उसके नए वस्त्रों, गहनों व रूप-सौंदर्य की प्रशंसा करते हैं। किंतु कुछ लोग दहेज का सामान कम लाने पर या अच्छा सामान न लाने पर व्यंग्य भी करते हैं। दहेज कम लाने पर उसे तंग भी किया जाता है। कभी-कभी तो उसे जलकर मरने पर मजबूर किया जाता है।
प्रश्न 3.
कवि ने स्त्री के आभूषणों को ‘शाब्दिक भ्रम’ के समान क्यों कहा है?
उत्तर-
कवि के अनुसार स्त्रियाँ गहनों पर मुग्ध होकर उसी प्रकार भ्रमित हो जाती हैं जिस प्रकार शब्दों के प्रयोग के द्वारा लोगों को भ्रमित किया जाता है। स्त्रियाँ गहनों के प्रति इतनी अधिक आकृष्ट होती हैं कि उनकी प्राप्ति के लिए वे अपनी स्वतंत्रता को भी दाँव पर लगा देती हैं। पुरुष वर्ग उनकी इस कमज़ोरी का फायदा उठाकर मनमानी करता है। इसलिए कवि ने स्त्रियों के आभूषणों को ‘शाब्दिक भ्रम’ के समान कहा है।
संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 4.
‘कन्यादान’ नामक कविता में कवि ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में माँ की शिक्षा के माध्यम से नारी-जागृति की भावना को उजागर किया गया है। कवि का मुख्य उद्देश्य नारी को उसके बंधन की बेड़ियों और उनके कारणों को समझाना है। कवि का मत है कि नारी का सौंदर्य, प्रशंसा, वस्त्र, गहने आदि उसको गुलाम बनाने के नए-नए ढंग हैं। नारी इन्हीं बंधनों-के-बंधन में फँसकर अपना व्यक्तित्व ही भूल जाती है। कभी-कभी उसे पुरुषों के द्वारा जलकर मरने के लिए विवश किया जाता है या फिर उसे जलाकर मार दिया जाता है। कवि ने संदेश दिया है कि यदि नारी अपनी कोमलता, सरलता और भोलेपन के प्रति सचेत हो जाए और अपने शोषण के विरुद्ध आवाज़ बुलंद करने की थोड़ी-सी हिम्मत अपने में पैदा कर ले तो वह शक्तिशाली बन सकती है।
प्रश्न 5.
‘कन्यादान’ कविता में माँ ने बेटी को किस प्रकार का जीवन जीने की शिक्षा दी है?
उत्तर-
‘कन्यादान’ कविता में माँ ने कन्यादान के समय अर्थात् विवाह के समय जो परंपरागत बात बताई जाती है, उनसे हट कर शिक्षा दी है। उसे बताया गया है कि वह केवल अपने शारीरिक सौंदर्य व वस्त्रों, आभूषणों की प्राप्ति आदि की ओर ही ध्यान मत दे। उसे चाहिए कि वह सामाजिक परिवर्तन को खुली आँखों से देखे तथा अपने भीतर हिम्मत और साहस उत्पन्न करे ताकि वह अपने प्रति होने वाले अपमान या अन्याय का विरोध कर सके। उसे अपने अधिकारों के प्रति सजग रहना होगा। यह सजगता ही उसके जीवन में एक नई दिशा दिखाएगी। इसी से उसका जीवन सुखी बन सकेगा।
प्रश्न 6.
‘कन्यादान’ शीर्षक कविता के आधार पर माँ के जीवन की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि ने माँ के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि वह एक सजग एवं अनुभवशील नारी है। उसने उन्हें अपने जीवन में आने वाले सुख-दुःख को भोगा है और उन्हें प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत भी किया है। वह एक संवेदनशील नारी है। उसने जीवन में जिन सुखों व दुःखों को भोगा है, उनके कारणों को समझा भी है। वह नहीं चाहती थी कि जिन दुःखों को उसने भोगा है, उन्हीं दुःखों को उसकी बेटी भी भोगे। इसलिए एक माँ अपने कर्तव्य का पालन करती हुई अपनी बेटी को जीवन में आने वाली कठिनाइयों के प्रति सचेत करती है।
प्रश्न 7.
‘कवि ने ‘कन्यादान’ कविता में किसके दुःख को प्रामाणिक कहा है और क्यों?
उत्तर-
कवि ने ‘कन्यादान’ कविता में विवाहिता नारी के दुःख को प्रामाणिक कहा है। क्योंकि आज हमारे समाज में दहेज प्रथा और सामाजिक बन्धनों की आग बहुओं को तेजी से निगलती जा रही है। लोग लोभ के कारण इतने अन्धे हो चुके हैं कि बहू को आग में धकेल देते हैं या फिर खुद-कुशी करने के लिए विवश कर देते हैं।
अति लघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
कविवर ऋतुराज का जन्म कब हुआ था?
उत्तर-
कविवर ऋतुराज का जन्म सन् 1940 में हुआ था।
प्रश्न 2.
कविवर ऋतुराज ने अपनी कविताओं में किस वर्ग के जीवन का अधिक वर्णन किया है?
उत्तर-
कविवर ऋतुराज ने अपनी कविताओं में शोषित वर्ग के जीवन का अधिक वर्णन किया है।
प्रश्न 3.
‘कन्यादान’ कविता में लड़की को किसकी पाठिका कहा गया है?
उत्तर-
‘कन्यादान’ कविता में लड़की को धुंधले प्रकाश की पाठिका कहा गया है।
प्रश्न 4.
कवि ने किसे धुंधले प्रकाश की पाठिका बताया है?
उत्तर-
कवि ने बेटी को धुंधले प्रकाश की पाठिका बताया है।
प्रश्न 5.
नारियों के लिए किसे बंधन बताया गया है?
उत्तर-
नारियों के लिए वस्त्रों एवं आभूषणों को बंधन बताया गया है।
प्रश्न 6.
‘कन्यादान’ कविता के रचयिता कौन हैं?
उत्तर-
श्री ऋतुराज।
प्रश्न 7.
‘लड़की जैसी दिखाई न देना’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
‘लड़की जैसी दिखाई न देना’ का तात्पर्य कमजोर मत बनना है।
प्रश्न 8.
‘शाब्दिक भ्रम’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
‘शाब्दिक भ्रम’ से अभिप्राय है अवास्तविक को वास्तविक दिखाना।
प्रश्न 9.
‘कन्यादान’ कविता में वस्त्र और आभूषणों को कैसा बताया है?
उत्तर-
कवि ने वस्त्र और आभूषणों को नारी के लिए मोह के बन्धन बताया है।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
कविवर ऋतुराज का जन्म कब हुआ था?
(A) सन् 1940 में
(B) सन् 1945 में
(C) सन् 1950 में
(D) सन् 1952 में
उत्तर-
(A) सन् 1940 में
प्रश्न 2.
श्री ऋतुराज किस प्रदेश के रहने वाले थे?
(A) हरियाणा
(B) पंजाब
(C) राजस्थान
(D) उत्तर प्रदेश
उत्तर-
(C) राजस्थान
प्रश्न 3.
कविवर ऋतुराज ने किस विषय में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की थी?
(A) संस्कृत
(B) अंग्रेज़ी
(C) इतिहास
(D) हिंदी
उत्तर-
(B) अंग्रेज़ी
प्रश्न 4.
कविवर ऋतुराज का व्यवसाय क्या था?
(A) व्यापार
(B) कृषि
(C) अध्यापन
(D) ठेकेदारी
उत्तर-
(C) अध्यापन
प्रश्न 5.
‘कन्यादान’ कविता के कवि का क्या नाम है?
(A) जयशंकर प्रसाद
(B) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
(C) नागार्जुन
(D) ऋतुराज
उत्तर-
(D) ऋतुराज
प्रश्न 6.
कविवर ऋतराज ने अपनी कविताओं में किस वर्ग के जीवन का अधिक वर्णन किया है?
(A) शोषित वर्ग
(B) अमीर वर्ग
(C) अध्यापक वर्ग
(D) उच्च वर्ग
उत्तर-
(A) शोषित वर्ग
प्रश्न 7.
प्रस्तुत कविता में प्रामाणिक किसे कहा गया है?
(A) सुख
(B) दुःख
(C) आनन्द
(D) स्मृति
उत्तर-
(B) दुःख
प्रश्न 8.
माँ की अंतिम पूँजी किसे कहा गया है?
(A) बेटी को
(B) सास को
(C) बेटे को
(D) बहन को
उत्तर-
(A) बेटी को
प्रश्न 9.
माँ ने अपनी बेटी को किस रूप में देखा?
(A) विदुषी
(B) महिषी
(C) उपदेशिका
(D) पाठिका
उत्तर-
(D) पाठिका
प्रश्न 10.
‘कन्यादान’ कविता में कवि ने किसको धुंधले प्रकाश की पाठिका कहा है?
(A) पत्नी को
(B) माँ को
(C) बेटी को
(D) बहन को
उत्तर-
(C) बेटी को
प्रश्न 11.
माँ ने किसे देखकर न रीझने का आदेश दिया है?
(A) वस्त्रों को
(B) धन को
(C) चेहरे को
(D) गहनों को
उत्तर-
(C) चेहरे को
प्रश्न 12.
आग का प्रयोग किस कार्य के लिए बताया गया है?
(A) रोटियाँ सेंकने के लिए
(B) स्वयं जलने के लिए
(C) दूसरों को जलाने के लिए
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(A) रोटियाँ सेंकने के लिए
प्रश्न 13.
भारतीय समाज में ‘लड़की का दान’ का अर्थ है
(A) लड़की का दान
(B) लड़की की शिक्षा
(C) लड़की का जन्म
(D) लड़की का विवाह
उत्तर-
(D) लड़की का विवाह
प्रश्न 14.
बेटी का स्वभाव था
(A) चतुर
(B) कठोर
(C) भोला-भोला
(D) प्रवीण
उत्तर-
(C) भोला-भोला
प्रश्न 15.
‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है’ वाक्य का प्रतीकार्थ है
(A) आग सही जलाना
(B) रोटी न जलाना
(C) रोटी कच्ची न रखना
(D) यथोचित प्रयोग
उत्तर-
(D) यथोचित प्रयोग
कन्यादान पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
[1] कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो
लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सख का आभास तो होता था।
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की [पृष्ठ 50]
शब्दार्थ-प्रामाणिक = वास्तविक, सच्चा। सयानी = समझदार। आभास = अनुभव, महसूस। बाँचना = पढ़ना।। धुंधले = अस्पष्ट। लयबद्ध = लय में बँधी हुई।
प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस काव्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि ने किसके दुःख को प्रामाणिक कहा है और क्यों?
(ङ) माँ की अंतिम पूँजी कौन और कैसे है?
(च) “दुख बाँचने का आशय स्पष्ट कीजिए।
(छ) कवि ने किसे और क्यों धुंधले प्रकाश की पाठिंका कहा है?
(ज) इस पद्यांश का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
(झ) प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ञ) प्रस्तुत पद में निहित शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ट) इस पद में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-ऋतुराज। . कविता का नाम कन्यादान।
(ख) प्रस्तुत कवितांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘कन्यादान’ नामक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता श्री ऋतुराज हैं। इस कविता में कवि ने वर्तमान युग में बदलते हुए जीवन-मूल्यों का उल्लेख किया है। माँ अपनी बेटी के लिए केवल भावुकता को ही महत्त्वपूर्ण नहीं मानती, अपितु अपने संचित अनुभवों की पीड़ा का पाठ भी उसे पढ़ाना देना चाहती है। वह उसे भावी जीवन के यथार्थ के विषय में भी बताती है।
(ग) कवि कहता है कि माँ ने अपने जीवन में जिन दुःखों को सहन किया था, उन्हें अपनी बेटी को कन्यादान के समय बताना और समझाना अति आवश्यक था। यह एक सत्य है। कहने का भाव है कि आज के युग में बेटी के विवाह के समय कन्यादान में कुछ सामान देना ही पर्याप्त नहीं है, अपितु उसे जीवन के उन अनुभवों से भी अवगत करा देना उचित होगा जिनको माँ ने अपने जीवन में भोगा था ताकि बेटी अपना जीवन समुचित रूप से जी सके। माँ के लिए बेटी ही तो अंतिम संपत्ति थी। जीवन के सब सुख-दुःख वह बेटी के साथ बाँटती थी। भले ही वह बेटी का विवाह कर रही थी, किंतु उसकी दृष्टि में बेटी अब भी अधिक समझदार नहीं थी। उसके पास सांसारिक जीवन के अनुभव नहीं थे। वह अत्यंत सरल एवं भोले स्वभाव वाली थी। वह दुःखों की उपस्थिति को अनुभव तो करती थी, किंतु उसे उन्हें पढ़ना नहीं आता था। ऐसा लगता था कि उसे धुंधले प्रकाश में जीवन रूपी कविता की कुछ तुकों व लयबद्ध पंक्तियों को पढ़ना ही आता था, किंतु उसके अर्थ उसकी समझ में नहीं आते थे। कवि के कहने का भाव है कि कन्या भले ही विवाह के योग्य हो जाती है किंतु उसे उन्हें दुनियादारी की ऊँच-नीच व व्यवहार अभी पूरी तरह समझ में नहीं आते। उसमें इस समय इतनी योग्यता नहीं आ पाती कि वह दुनियावी भेदभाव को समझ सके। इसलिए माँ के द्वारा बेटी को समझाना उचित ही नहीं, नितांत आवश्यक भी है।
(घ) कवि ने माँ के दुःखों को प्रामाणिक कहा है क्योंकि उसने अपने जीवन में उन्हें भोगा एवं अनुभव किया है।
(ङ) बेटी ही माँ की अंतिम पूँजी है क्योंकि वह अपने जीवन के हर सुख-दुःख को उसी के साथ बाँटती है। बेटी ही माँ के सबसे अधिक निकट होती है। वह उसके सुख-दुःख की सच्ची साथी है।
(च) ‘दुःख बाँचना’ का साधारण अर्थ दुःखों को पढ़ना है। यहाँ दुःख बाँचना का अभिप्राय है-जीवन में आने वाले दुःखों की समझ रखना अर्थात् दुःखों को गहराई से समझना व जानना है।
(छ) कवि ने बेटी को धुंधले प्रकाश की पाठिका कहा है क्योंकि वह अभी जीवन में आने वाले सुख-दुःख को थोड़ा-बहुत अनुभव तो करती है, किंतु उनको गहराई से समझना व उनके कारणों पर विचार करना उसे नहीं आता। इसलिए उसे धुंधले प्रकाश की पाठिका कहा गया है जोकि उचित है।
(ज) प्रस्तुत पद्यांश का मूल भाव बदलते जीवन-मूल्यों के समय परंपरागत विचारों में भी बदलाव की आवश्यकता को व्यक्त करना है। आज बेटी को कन्यादान में कुछ सामान देना ही पर्याप्त नहीं अपितु माँ को चाहिए कि वे अपने जीवन के अनुभवों से भी उसे अवगत कराए ताकि वह अपना वैवाहिक जीवन भली-भाँति व्यतीत कर सके।
(झ) कवि ने कन्या की विवाहपूर्व स्थिति का अत्यंत सूक्ष्मता एवं भावनात्मकतापूर्ण वर्णन किया है। कन्या की चिंता में घुलती माँ की मनोदशा का अत्यंत सजीव चित्र अंकित किया गया है।
(ञ)
- प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने अर्थ-लय का सुंदर मिश्रण किया है जिससे काव्य-सौंदर्य में वृद्धि हुई है।
- भाषा, सरल एवं सहज होते हुए भी भावाभिव्यक्ति में पूर्णतः सक्षम है।
- तत्सम शब्दावली का भावानुकूल प्रयोग द्रष्टव्य है।
- अंतिम पूँजी में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
- ‘दुःख बाँचना’ लाक्षणिक प्रयोग है।
- ‘धुंधला प्रकाश’, ‘तुक’, ‘समलय पंक्तियाँ’ आदि प्रतीकात्मक प्रयोग हैं।
(ट) कविवर ऋतुराज भाषा के मर्मज्ञ विद्वान हैं। वे भाषा के महत्व को भली-भांति समझते हैं। अतः उन्होंने इस पद्यांश में सरल एवं सहज भाषा के सफल प्रयोग द्वारा विषय को रोचकतापूर्ण अभिव्यक्त किया है। व्यावहारिकता उनकी भाषा की प्रमुख विशेषता है। भाषा पूर्णतः लोक-जीवन से जुड़ी हुई है।
[2] माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना। [पृष्ठ 50]
शब्दार्थ-रीझना = प्रसन्न होना। रोटियाँ सेंकना = रोटियाँ पकाना। आभूषण = गहने। भ्रम = धोखा।
प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस कवितांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) इस पद्यांश की व्याख्या लिखिए।
(घ) माँ ने आग का क्या प्रयोग बताया और क्यों?
(ङ) वस्त्रों एवं आभूषणों को स्त्री जीवन के बंधन क्यों बताया गया है?
(च) कवि ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की जैसी दिखाई मत देना?
(छ) माँ ने बेटी को अपने चेहरे पर रीझने के लिए क्यों मना किया है?
(ज) ‘शाब्दिक भ्रम’ का क्या तात्पर्य है?
(झ) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ञ) प्रस्तुत पद्यावतरण में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ट) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-ऋतुराज। कविता का नाम-कन्यादान।
(ख) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘कन्यादान’ नामक कविता से उद्धृत हैं। इनमें कविवर ऋतुराज ने एक माँ के द्वारा विदाई के समय पुत्री को दी जाने वाली शिक्षा का उल्लेख किया है। अकसर नारियों को कोमल, कमज़ोर और असहाय बताया जाता है। माँ अपनी बेटी को इस भ्रम को तोड़कर जीवन जीने की शिक्षा देती है।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश में माँ अपनी बेटी को विदाई के समय शिक्षा देती हुई कहती है कि तुम कभी अपने चेहरे को पानी में देखकर अपनी सुंदरता पर प्रसन्न मत होना। कवि के कहने का भाव है कि कभी-कभी उनकी सुंदरता ही उनके लिए बंधन बन जाती है। दहेज के कारण लोग लड़कियों को जला देते हैं। इस भय के कारण माँ बेटी को समझाती है कि आग रोटी पकाने के लिए होती है, स्वयं जलने के लिए नहीं। किसी भी ऐसी घटना से सदा सचेत रहना। देखा गया है कि लड़कियाँ ससुराल वालों के जुल्म सहती रहती हैं और कुछ बोलती भी नहीं। यदि समय रहते उसका विरोध किया जाए तो ऐसी घटना से बचा जा सकता है। अकसर नारी की कोमलता को उसकी कमज़ोरी मान लिया जाता है। नारी को अच्छे वस्त्रों और आभूषणों तक सीमित कर दिया जाता है। नारी के लिए नए-नए आदर्शों की व्याख्या की जाती है। उसे क्या करना है, क्या नहीं करना है आदि। ऐसी बातें या आदर्श उसके बंधन बन जाते हैं। इसीलिए उसकी माँ कहती है कि लड़कियों की तरह रहना, किंतु लड़कियों की तरह दिखाई मत देना। कहने का भाव है कि हर बात को सिर झुकाकर स्वीकार करना, किसी बात का विरोध न करना आदि। लड़कियों के गुणों से ऊपर उठकर अपनी बात को दृढ़ता से औरों के सामने रखना जिससे लोग स्त्री को अबला समझकर उस पर अत्याचार करने की हिम्मत न करें।
(घ) माँ ने अपनी बेटी की विदाई के समय उसे शिक्षा देते हुए बताया है कि आग रोटियाँ सेंकने के लिए है अर्थात आग का प्रयोग भोजन बनाने के लिए होता है, स्वयं जलने के लिए नहीं। दुल्हनों को आग में जलाकर मारने की घटनाएँ प्रतिदिन सुनने को मिलती हैं। अतः माँ ने बेटी को सावधान करते हुए ऐसा कहा है।
(ङ) स्त्री को लोग सौंदर्य की वस्तु समझते हैं। वह अच्छे वस्त्र और आभूषण पहनकर और भी सुंदर लगती है। इस भावना को स्त्रियाँ भी समझती हैं। इसलिए वे सुंदर वस्त्रों और आभूषणों के प्रति मोह रखती हैं। अतः कवि ने वस्त्रों और आभूषणों को नारी जीवन के लिए बंधन कहा है।
(च) कवि ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि ससुराल वाले लड़की को कमज़ोर समझकर उस पर तरह-तरह के अत्याचार करते हैं और वह उनको सहती रहती है। वह किसी भी तरह का प्रतिवाद नहीं करती। किंतु उसे ऐसा नहीं होने देना चाहिए। उसे अन्याय व अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिए। उसे चुप नहीं रहना चाहिए।
(छ) माँ ने बेटी को चेहरे पर रीझने के लिए इसलिए मना किया क्योंकि प्रायः स्त्रियाँ अपनी सुंदरता पर रीझकर हर बंधन को निभा लेती हैं। वे ससुराल वालों की प्रशंसा पाकर उनके हर अत्याचार व अन्याय को भी सहन कर लेती हैं और अपने शोषण का विरोध नहीं करतीं।
(ज) ‘शाब्दिक भ्रम’ का तात्पर्य है कि शब्दों के द्वारा किसी अवास्तविक वस्तु को वास्तविक बताना। किसी वस्तु का शब्दों द्वारा बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन करना। इसकी समानता बहू को मिलने वाले सुंदर कपड़ों और आभूषणों से की गई है। ये भी बहू के मन में भ्रम पैदा करते हैं कि उसके ससुराल वाले उससे सचमुच प्यार करते हैं। कहने का भाव है कि माँ अपनी बेटी को ऐसे शाब्दिक भ्रमों से सावधान रहने के लिए कहती है।
(झ) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने उन सब बातों व सामाजिक बंधनों के रहस्य को व्यक्त किया है जिनके कारण स्त्री को गुलाम बनाया जाता है। कवि ने नारी की सुंदरता, वस्त्र और आभूषणों के प्रति मोह, झूठी प्रशंसा, आदर्शों की व्याख्या आदि को नारी जीवन की गुलामी के कारण बताया है। इस भाव को अत्यंत कुशलता से अभिव्यक्त किया गया है। इसके अतिरिक्त लड़कपन का होना भी कभी-कभी स्त्री के शोषण का कारण बन सकता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि नारी इन बातों का ध्यान रखते हुए अपना जीवन स्वतंत्रतापूर्वक व्यतीत कर सकती है।
(ञ)
- कवि ने नारी को सामाजिक बंधनों से मुक्त रहने के लिए सुझाव दिए हैं।
- भाषा सांकेतिक है। पानी में झाँकना, लड़की होना, रोटियाँ सेंकना, जलने के लिए नहीं आदि प्रयोग इसके उदाहरण हैं। जो सांकेतिक होते हुए भी अपने में गूढ़ अर्थ समेटे हुए हैं।
- वाक्य-रचना अत्यंत सरल है।
- मुक्त छंद का प्रयोग किया गया है।
- लाक्षणिकता का प्रयोग हुआ है।
(ट) कविवर ऋतुराज भाषा के मर्म को समझते हैं। उन्होंने उपर्युक्त पद्यांश में सरल, सहज एवं व्यावहारिक भाषा का सफल प्रयोग किया है। ‘रोटियाँ सेकना’ ‘आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह’ आदि भाषिक प्रयोग अत्यन्त सार्थक एवं सटीक बन पड़े हैं। प्रवाहमयता एवं रोचकता भाषा की प्रमुख विशेषताएँ हैं। इस काव्यांश की भाषा में तद्भव शब्दों का सफल प्रयोग किया गया है।
कन्यादान Summary in Hindi
कन्यादान कवि-परिचय
प्रश्न-
कविवर ऋतुराज का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-ऋतुराज का आधुनिक हिंदी कवियों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनका जन्म सन् 1940 में भरतपुर (राजस्थान) में हुआ। उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय से एम०ए० अंग्रेजी की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात् उन्होंने अध्यापन का कार्य आरंभ किया। आजकल श्री ऋतुराज सेवानिवृत्त होकर साहित्य-सृजन में लगे हुए हैं।
2. प्रमुख रचनाएँ-कविवर ऋतुराज के अब तक आठ काव्य-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं’एक मरणधर्मा और अन्य’, ‘पुल पर पानी’, ‘सुरत-निरत’, ‘लीला मुखारविंद’ आदि।
पुरस्कार-कवि श्री ऋतुराज सोमदत्त परिमल सम्मान, मीरा पुरस्कार, पहल सम्मान तथा बिहारी पुरस्कार आदि पुरस्कारों से भी सम्मानित हो चुके हैं।
3. काव्यगत विशेषताएँ-ऋतुराज के काव्यों के अध्ययन से पता चलता है कि वे शोषितों, पीड़ितों व उपेक्षितों के कवि हैं। उन्होंने उन लोगों के जीवन पर लेखनी चलाई है जिन्हें समाज ने हाशिए पर खड़ा किया हुआ है अथवा जिन्हें उपेक्षित समझा जाता है। वे अपने काव्य में कल्पना की अपेक्षा यथार्थ को अपनाते हैं। उनका मत है कि आज काव्य को कल्पना की उड़ान भरने की अपेक्षा यथार्थ को आधार बनाकर आगे बढ़ना चाहिए। कवि ने अत्यंत सहज भाव से अन्याय, दमन, शोषण और रूढ़िग्रस्त जर्जरित संस्कारों का विरोध किया है। कहीं-कहीं उनके विद्रोह की भावना अत्यंत तीखी होकर उभरी है। उन्होंने आज के मानव के संघर्ष को काव्य में स्थान देकर एवं उसको प्रतिष्ठित करके संघर्ष व परिश्रम के प्रति विश्वास व्यक्त किया है। उन्होंने बड़ी-बड़ी दार्शनिक बातें कहने की अपेक्षा दैनिक जीवन के अनुभवों का यथार्थ के धरातल पर जाकर सजीव चित्रण किया है। उन्होंने परंपरा से हटकर नए जीवन-मूल्यों की स्थापना करने का प्रयास किया है। उनकी कविता में कल्पना नहीं, अपितु यथार्थ के दर्शन होते हैं; यथा
माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना,
X X X
बंधन हैं स्त्री जीवन के।
4. भाषा-शैली-कविवर ऋतुराज भाषा के मर्म को समझते हैं। इसलिए उन्होंने जीवन को यथार्थ के धरातल पर चित्रित करने के लिए सरल, सहज एवं व्यावहारिक भाषा को माध्यम बनाया है। उनकी भाषा पूर्णतः लोक-जीवन से जुड़ी हुई है। उनकी काव्य भाषा में तद्भव शब्दों का विषयानुकूल प्रयोग हुआ है।
कन्यादान कविता का सार
प्रश्न-
‘कन्यादान’ नामक कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘कन्यादान’ ऋतुराज की सुप्रसिद्ध रचना है। इस कविता में माँ बेटी को स्त्री के परंपरागत ‘आदर्श’ रूप से हटकर शिक्षा व सीख देती है। कवि का मत है कि समाज-व्यवस्था में स्त्रियों के लिए आचरण संबंधी जो प्रतिमान गढ़ लिए जाते हैं, वे आदर्श के मुलम्मे में बंधन ही होते हैं। ‘कोमलता’ के गौरव में कमजोरी का उपहास छुपा हुआ है। लड़की जैसा न दिखाई देने में इसी आदर्शीकरण का प्रतिकार है।
बेटी माँ के सबसे निकट होती है। उसके सुख-दुःख की साथी होती है। इसीलिए माँ के लिए बेटी उसकी अंतिम पूँजी है। प्रस्तुत कविता कोरी कल्पना पर आधारित नहीं है और न ही इसमें भावुकता को आधार बनाया गया है। यह कविता माँ के संचित अनुभवों की पीड़ा की प्रामाणिक अभिव्यक्ति है। प्रस्तुत कविता में कवि की स्त्री जीवन के प्रति गहरी संवेदनशीलता अभिव्यक्त हुई है।