HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

HBSE 10th Class Hindi बालगोबिन भगत Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे? .
उत्तर-
बालगोबिन भगत खेतीबाड़ी करने वाले गृहस्थ थे, किंतु उनका संपूर्ण व्यवहार साधुओं जैसा था। सर्वप्रथम तो हम कह सकते हैं कि उनका जीवन उनके ईश्वर (साहब) के प्रति अर्पित था। उनमें किसी प्रकार का अहम् भाव नहीं था। वे अपने-आपको ईश्वर का बंदा मानते थे। वे अपनी कमाई पर सर्वप्रथम ईश्वर का अधिकार मानते थे। इसलिए वे अपने खेत में उत्पन्न होने वाली फसल को सर्वप्रथम कबीरपंथी मठ में ले जाते थे। वहाँ से उन्हें जो कुछ प्रसाद के रूप में मिलता था, उससे वे अपना गुजारा करते थे। वे तो अपने जीवन को ही प्रभु की देन मानते थे। वे सदैव सुख-दुःख में समभाव रहते थे। वे कभी झूठ नहीं बोलते थे और न ही किसी से धोखे का व्यवहार करते थे। वे तन-मन से प्रभु के गुणों का गान करते रहते थे। इन सब बातों को देखते हुए कहा जा सकता है कि बालगोबिन भगत गृहस्थ होते हुए भी साधु कहलाते थे।

प्रश्न 2.
भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी?
उत्तर-
भगत की पुत्रवधू बहुत समझदार युवती थी। पुत्र की मृत्यु के बाद भगत के घर में एकमात्र उनकी पुत्रवधू ही थी जो उनकी देखभाल कर सकती थी। वह सोचती थी कि यदि मैं भी यहाँ से चली गई तो कौन इनकी देखभाल करेगा? बुढ़ापे में कौन इनकी सेवा करेगा? बीमार होने पर कौन इनकी दवा-पानी करेगा? कौन इनको भोजन देगा? इन सब बातों के कारण ही वह भगत को अकेले नहीं छोड़ना चाहती थी।

प्रश्न 3.
भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस प्रकार व्यक्त की?
उत्तर-
बालगोबिन भगत का पुत्र उनकी एकमात्र संतान थी। वह कुछ सुस्त और बोदा-सा था। भगत उसे बहुत प्यार करते थे। किंतु अब वह बीमार रहने लगा और भगत द्वारा बचाने के प्रयास करने पर भी वह मर गया। भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर दूसरों की भाँति शोक नहीं मनाया। उनका मत था कि उनके बेटे की आत्मा परमात्मा के पास चली गई है। आज एक विरहिणी अपने प्रियतम के पास चली गई है। उसके मिलन का दुःख कैसा, उसके मिलन की तो खुशी मनाई जानी चाहिए। उन्होंने अपने बेटे के शव को फूलों से सजाया और उसके सामने आसन जमाकर प्रभु भजन गाने लगे। उसके सिराहने दीप जलाकर रख दिया था। जब उनकी पुत्रवधू रोने लगी तो उन्होंने उसे भी खुशी मनाने के लिए कहा था।

प्रश्न 4.
भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-
बालगोबिन भगत की आयु लगभग साठ वर्ष की रही होगी। वे मँझोले कद वाले गोरे-चिट्टे व्यक्ति थे। उनके बाल सफेद थे। उनके चेहरे पर उनके सफेद बाल चमचमाते रहते थे। माथे पर चंदन का लेप रहता था। कपड़ों के नाम पर कमर पर एक लंगोटी
और एक कबीरपंथी टोपी रहती थी। सर्द ऋतु आने पर वे काले रंग की कमली धारण करते थे। उनके गले में तुलसी की जड़ों से बनी एक बेडौल माला पड़ी रहती थी। वे कबीर को ‘साहब’ मानते थे। उनमें एक सच्चे साधु-संन्यासियों के सभी गुण थे। वे कबीर के पदों को अपनी मधुर आवाज़ में गाते रहते थे। वे सदा कबीर के द्वारा बताए गए आदर्शों पर चलते थे। वे कभी झूठ नहीं बोलते थे। अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए कभी किसी से धोखा नहीं करते थे। वे सबसे सदा खरा-खरा व्यवहार करते थे। वे सदा सत्य बोलते थे तथा कभी किसी से व्यर्थ का झगड़ा नहीं करते थे। दूसरों की वस्तुओं को कभी लेते या छूते तक नहीं थे। ईश्वर में पूर्ण रूप से उनकी आस्था थी। वे सदैव समभाव रहते थे।

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प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी?
उत्तर-
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण इसलिए थी क्योंकि वे अपने दैनिक जीवन में भी नियमों का दृढ़ता से पालन करते थे। वे प्रातः बहुत जल्दी उठते और गाँव से लगभग दो मील दूर नदी पर जाकर स्नान करते थे। वापसी पर पोखर के ऊँचे स्थान पर बैठकर बँजड़ी बजाते हुए कबीर के पदों का गान करते थे। वे गर्मी-सर्दी की चिंता किए बिना प्रतिदिन ऐसा करते थे। वे बिना पूछे किसी की वस्तु को छूते नहीं थे, यहाँ तक कि किसी के खेत में कभी शौच भी न करते थे। इस प्रकार अपने दैनिक जीवन के व्यवहार में नियमों का ऐसा दृढ़ता से पालन करना लोगों के अचरज का कारण था।

प्रश्न 6.
पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
बालगोबिन भगत कबीरदास से अत्यधिक प्रभावित थे। यहाँ तक कि उन्हें ‘साहब’ कहते थे। इसलिए वे कबीर के प्रभु भक्ति संबंधी पदों का तल्लीनतापूर्ण गायन करते थे। उनके स्वर प्रभु की सच्ची पुकार थी। उनके गीतों का स्वर हृदय से निकला हुआ स्वर था। उनके गीतों को सुनने वाला हर व्यक्ति मंत्रमुग्ध हो जाता था। औरतें और बच्चे तो उनके गीतों को गुनगुनाने लग जाते थे। खेतों में काम करने वाले किसानों व मजदूरों के हाथ और पाँव एक विशेष लय में चलने लगते थे। उनके संगीत का हर दिल पर एक विशेष प्रभाव पड़ता था। जब भगत भजन गाता था तो चारों ओर एक मधुर वातावरण छा जाता था। गर्मी-सर्दी आदि हर मौसम में उनकी मधुर ध्वनि की लहरियाँ सुनी जा सकती थीं।।

प्रश्न 7.
कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर–
पाठ के आधार पर कहा जा सकता है कि निश्चित रूप से बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। इस बात को प्रमाणित करने के लिए पाठ के कुछ मार्मिक प्रसंग इस प्रकार हैं
पुत्र की मृत्यु पर विलाप न करके उसके शव के सामने आसन जमाकर तल्लीनता से गीत गाना। पुत्र की चिता को अग्नि स्वयं या किसी अन्य पुरुष से दिलवाने की अपेक्षा अपनी पुत्रवधू से दिलवाना। इसके साथ-साथ पुत्रवधू को उसके भाई के साथ वापस भेज देना ताकि वह पुनः विवाह करके सुखी जीवन व्यतीत कर सके। एक गृहस्थ होते हुए भी वे सच्चे साधु का जीवन व्यतीत करते थे।

प्रश्न 8.
धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थीं? उस माहौल का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए। .
उत्तर-
आषाढ़ के महीने में वर्षा होने पर चारों ओर खेतों में धान की फसल की ज्यों ही रोपाई आरंभ होती तो बालगोबिन भगत के भगवद् भक्ति के गीतों की स्वर लहरियाँ भी चारों ओर के वातावरण को संगीतमय बना देती थीं। ऐसा लगता था कि उनका कंठ एक-एक शब्द को संगीत की सीढ़ियों पर चढ़ाकर मानो स्वर्ग की ओर भेज रहा हो। खेलते हुए बच्चे झूम उठते थे, मेंड़ पर खड़ी औरतें गुनगुनाने लगती थीं, हलवाहों के पैर ताल के साथ उठने लगते थे और रोपनी करने वालों की अंगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगती थीं। चाहे मूसलाधार वर्षा हो, चाहे तेज़ गर्मी या जाड़ों की कड़कती सुबह, उनके संगीत को कोई भी मौसम प्रभावित नहीं कर पाता था। गर्मियों की उमस भरी संध्या में उनके घर में आँगन में खंजड़ी-करताल की भरमार हो जाती थी। एक निश्चित ताल और निश्चित गति से जब उनका स्वर ऊपर उठता था तो उनकी प्रेमी-मंडली के मन भी ऊपर उठते जाते थे और फिर धीरे-धीरे सभी बालगोबिन के साथ नृत्यशील हो उठते थे।

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रचना और अभिव्यक्ति-

प्रश्न 9.
पाठ के आधार पर बताएँ कि बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हुई है?
उत्तर-
बालगोबिन भगत कबीरदास के अनन्य उपासक एवं श्रद्धालु थे। उनकी यह श्रद्धा व उपासना विभिन्न रूपों में व्यक्त हुई है-
कबीरदास ईश्वर में आस्था रखते थे। इसलिए बालगोबिन भगत कबीरदास की इस भावना से अत्यंत प्रभावित हुए और उनके बताए हुए जीवन आदर्शों पर चलने लगे थे। जैसे कबीरदास ने गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए प्रभु भक्ति की, वैसे ही बालगोबिन भगत भी गृहस्थ जीवन में रहते हुए सदा प्रभु-भजन में लीन रहते थे। कबीर जीवन में दिखावे व पाखंड से दूर रहे, सामाजिक परंपराओं और अंधविश्वास का खंडन किया। बालगोबिन भगत ने पुत्रवधू के हाथ से पति की चिता को आग दिलवाकर और उसे स्वयं पुनर्विवाह के लिए प्रेरित करके कबीरदास के प्रति श्रद्धा व्यक्त की है। वे कबीर की भाँति सदा सत्य आचरण का पालन करते रहते थे।
कबीर की भाँति उन्होंने भी नर-नारी को समान माना और संसार व शरीर को नश्वर और आत्मा को अमर माना। वे कबीर की भाँति मन को ईश्वर भक्ति में लगाने की प्रेरणा देते थे।

प्रश्न 10.
आपकी दृष्टि में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के क्या कारण रहे होंगे?
उत्तर-
भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के अनेक कारण थे, यथा-कबीर समाज में प्रचलित रूढ़िवादी सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। वे भगवान् के निराकार रूप को मानते थे जिसमें मनुष्य के अंत समय में आत्मा से परमात्मा का मिलन होता . है। वे गृहस्थी होते हुए भी व्यवहार से साधु थे। इसी प्रकार कबीर जीवन और जीवन की वस्तुओं में ईश्वर की कृपा मानते थे। बालगोबिन भगत कबीर के जीवन की इन विशेषताओं के कारण ही उनके प्रति अगाध श्रद्धा रखते होंगे।

प्रश्न 11.
गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से क्यों भर जाता है?
उत्तर-
गाँव में किसानों की संख्या अधिक होती है। उनका मुख्य धंधा खेती होता है। ज्येष्ठ की तपती गर्मी के पश्चात् आषाढ़ मास में बादल उमड़कर वर्षा करने के लिए आ जाते हैं। इससे किसानों के हृदयों में प्रसन्नता का भाव भर जाता है। वर्षा की रिमझिम आरंभ हो जाती है। किसान धान की रोपाई का काम आरंभ कर देते हैं। गाँव के लोग खेतों में काम पर लग जाते हैं। बच्चे भी गीली मिट्टी में लिथड़कर भरपूर आनंद उठाते हैं। औरतें भी खेतों के काम करने के लिए निकल पड़ती हैं। अतः आषाढ़ के आते ही गाँव के सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवेश में उल्लास भर जाता है।

प्रश्न 12.
“ऊपर की तसवीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे।” क्या ‘साधु’ की पहचान पहनावे के आधार पर की जानी चाहिए? आप किन आधारों पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति ‘साधु’ है?
उत्तर-
साधु की पहचान उसके पहनावे से नहीं की जा सकती। आज के युग में लाखों की संख्या में साधु का पहनावा पहनकर लोग पेट-पूजा करने में जुटे हुए हैं। क्या उन सबको साधु मान लिया जाए, वास्तव में साधु की पहचान तो उसके व्यवहार एवं विचारों से ही की जानी चाहिए। साधु व्यक्ति की पहचान हम निम्नलिखित आधारों पर कर सकते हैं

(क) ईश्वर में आस्था होनी चाहिए और उसका जीवन प्रभु के प्रति समर्पित होना चाहिए।
(ख) सच्चे साधु का सरल स्वभाव होना नितांत आवश्यक है। यदि वह चंचल स्वभाव वाला है तो उसका व्यवहार भी वैसा ही होगा।
(ग) मधुर वाणी सच्चे साधु की अन्य प्रमुख पहचान है। कबीरदास ने भी मीठी वाणी की प्रशंसा की है। जो व्यक्ति सामाजिक बुराइयों का खंडन करता है और उनसे बचकर रहता है तथा उनके प्रति समाज के लोगों को सचेत करता है, वही सच्चा साधु कहलाता है।
ये सभी विशेषताएँ जिस व्यक्ति के जीवन में हों वह भले ही गृहस्थी क्यों न हो, फिर भी सच्चा साधु कहलाता है।

प्रश्न 13.
मोह और प्रेम में अंतर होता है। भगत के जीवन की किस घटना के आधार पर इस कथन का सच सिद्ध करेंगे ?
उत्तर-
मोह और प्रेम दो भिन्न भाव हैं। बालगोबिन भगत का एक ही बेटा था जो दिमाग से सुस्त था। भगत जी ने उसका पालनपोषण बहुत प्यार एवं ध्यानपूर्वक किया। भगत का मत है कि ऐसे बच्चों को सामान्य बच्चों की अपेक्षा अधिक प्यार की आवश्यकता होती है। भगत ने उसका विवाह भी बड़े चाव से किया। जब उसके बेटे की मृत्यु हो गई तब भगत ने बेटे के मोह में पड़कर उसकी मृत्यु का शोक नहीं किया। यहाँ तक कि उसकी पत्नी को भी शोक नहीं मनाने दिया। उसने जान लिया था कि शरीर नश्वर है और आत्मा अमर है जो शरीर के नष्ट हो जाने पर परमात्मा में विलीन हो जाती है। इस प्रकार उसे अपने बेटे से प्रेम तो था, किंतु मोह नहीं।

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भाषा-अध्ययन-

प्रश्न 14.
इस पाठ में आए कोई दस क्रियाविशेषण छाँटकर लिखिए और उनके भेद भी बताइए।
उत्तर-
(1) जब जब वह सामने आता
जब जब-कालवाची क्रियाविशेषण
सामने स्थानवाचक क्रियाविशेषण

(2) कपड़े बिल्कुल कम पहनते
बिल्कुल कम परिमाणवाची क्रियाविशेषण

(3) थोड़ी देर पहले मूसलाधार वर्षा हुई।
मूसलाधार–परिमाणवाची क्रियाविशेषण।

(4) न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते।
खामखाह रीतिवाचक क्रियाविशेषण।

(5) वे दिन-दिन. छीजने लगे।
दिन-दिन-कालवाची क्रियाविशेषण।

(6) जो सदा-सर्वदा सुनने को मिलते।
सदा-सर्वदा कालवाची क्रियाविशेषण।

(7) धीरे-धीरे स्वर ऊँचा होने लगा।
धीरे-धीरे-रीतिवाचक क्रियाविशेषण।

(8) मैं कभी-कभी सोचता हूँ।
कभी-कभी-कालवाचक क्रियाविशेषण।

(9) इधर पतोहू रो-रोकर कहती।।
रो-रोकर-रीतिवाचक क्रियाविशेषण।

(10) उस दिन संध्या में गीत गाए।
संध्या में कालवाचक क्रियाविशेषण

पाठेतर सक्रियता

पाठ में ऋतुओं के बहुत ही सुंदर शब्द-चित्र उकेरे गए हैं। बदलते हुए मौसम को दर्शाते हुए चित्र/फोटो का संग्रह कर एक अलबम तैयार कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

पाठ में आषाढ़, भादो, माघ आदि में विक्रम संवत कलैंडर के मासों के नाम आए हैं। यह कलैंडर किस माह से आरंभ होता है? महीनों की सूची तैयार कीजिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

कार्तिक के आते ही भगत ‘प्रभाती’ गाया करते थे। प्रभाती प्रातःकाल गाए जाने वाले गीतों को कहते हैं। प्रभाती गायन का संकलन कीजिए और उसकी संगीतमय प्रस्तुति कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

इस पाठ में जो ग्राम्य संस्कृति की झलक मिलती है वह आपके आसपास के वातावरण से कैसे भिन्न है?
उत्तर-
मैं रामपुर नगर का रहने वाला छात्र हूँ। यहाँ का वातावरण पाठ में दिखाए सांस्कृतिक वातावरण से नितांत भिन्न है। नगर में पक्की, चौड़ी सड़कें हैं। बड़े-बड़े कारखाने हैं जिनकी चिमनियों से धुआँ निकलता रहता है। वाहनों की ध्वनियाँ होती रहती हैं। सब लोग अपने कार्यों में व्यस्त रहते हैं। गाड़ियों की भरमार है। वर्षा आने न आने से कोई विशेष अंतर नहीं पड़ता। गर्मी से बचने के लिए वर्षा की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती क्योंकि यहाँ कूलर व ए०सी० जैसे आधुनिक साधन उपलब्ध हैं। यहाँ लोग रात को देर तक जागते हैं और प्रातःकाल में देर से उठने के आदी हो चुके हैं। यहाँ गाँवों की अपेक्षा प्रदूषण अत्यधिक है।

यह भी जानें-

प्रभातियाँ मुख्य रूप से बच्चों को जगाने के लिए गाई जाती हैं। प्रभाती में सूर्योदय से कुछ समय पूर्व से लेकर कुछ समय बाद तक का वर्णन होता है। प्रभातियों का भावक्षेत्र व्यापक और यथार्थ के अधिक निकट होता है। प्रभातियों या जागरण गीतों में केवल सुकोमल भावनाएँ ही नहीं वरन् वीरता, साहस और उत्साह की बातें भी कही जाती हैं। कुछ कवियों ने प्रभातियों में राष्ट्रीय चेतना और विकास की भावना पिरोने का प्रयास किया है।

श्री शंभूदयाल सक्सेना द्वारा रचित एक प्रभाती
पलकें, खोलो, रैन सिरानी।
बाबा चले खेत को हल ले सखियाँ भरती पानी ॥
बहुएँ घर-घर छाछ बिलोतीं गातीं गीत मथानी।
चरखे के संग गुन-गुन करती सूत कातती नानी ॥
मंगल गाती चील चिरैया आस्मान फहरानी।
रोम-रोम में रमी लाडली जीवन ज्योत सुहानी ॥
रोम-रोम में रमी लाडली जीवन ज्योत सुहानी।।
आलस छोड़ो, उठो न सुखदे! मैं तब मोल बिकानी।।
पलकें खोलो हे कल्याणी।।

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HBSE 10th Class Hindi बालगोबिन भगत Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बालगोबिन भगत किस संत को ‘साहब’ कहते थे और उन पर उसका कितना प्रभाव था?
उत्तर-
बालगोबिन भगत संत कबीर को ‘साहब’ कहते थे अर्थात् उन्हें अपना स्वामी या ईश्वर समझते थे। उनके जीवन पर कबीरदास का गहरा प्रभाव था। कबीरदास अत्यंत निर्भीक तथा दो टूक बात कहने वाले संत थे। कबीरदास की भाँति बालगोबिन भगत भी सदा सत्य बोलने का पालन करते रहे और सबके साथ खरी-खरी बातें करते थे। वे अपने खेत की फसल को सबसे पहले कबीर पंथी मठ में ले जाकर उनके प्रति अर्पित करते थे। वे वहाँ से मिले शेष अनाज को प्रसाद समझकर स्वीकार करते थे। अतः स्पष्ट है कि बालगोबिन भगत कबीरदास के प्रति गहन आस्था रखते थे।

प्रश्न 2.
लेखक बालगोबिन भगत की किन बातों से प्रभावित था?
उत्तर-
लेखक बालगोबिन भगत की ईश्वरं भक्ति से अत्यधिक प्रभावित था। उनकी ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना से तो लेखक अत्यधिक प्रभावित था। इसके अतिरिक्त उनके मधुर गायन का प्रभाव भी लेखक पर देखा जा सकता है। जब वे अपनी मधुर ध्वनि में गाते थे तो अन्य लोग भी अपना काम छोड़कर उनकी मधुर संगीत लहरी को सुनने में तल्लीन हो जाते थे।

प्रश्न 3.
बालगोबिन भगत की दिनचर्या पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
बालगोबिन भगत बहुत सवेरे जाग जाते थे। वे गंगा-स्नान करने के पश्चात् किसी स्थान पर बैठकर बँजड़ी बजाकर प्रभु-भजन गाते थे। उसके पश्चात् वे अपने पशुओं का काम करते और स्वयं भोजन करके खेत में काम करने निकल पड़ते। संध्या होने पर वे घर लौट आते थे।

प्रश्न 4.
आपकी दृष्टि में बालगोबिन भगत की संगीत साधना का चरमोत्कर्ष कब होता है? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर-
निश्चय ही बालगोबिन भगत एक अच्छे संगीतकार व गायक थे। किंतु उनकी संगीत साधना का चरमोत्कर्ष तब देखने को मिलता है जब अपने पुत्र की मृत्यु होने पर भी वे पहले की भाँति तल्लीनता से गाते रहे थे। उनका विश्वास था कि मृत्यु के पश्चात् आत्मा परमात्मा के पास चली जाती है। इससे बढ़कर खुशी का अवसर और क्या हो सकता है। यह समय रोने या शोक मनाने का नहीं, अपितु उत्सव मनाने का है।

प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत अपनी पुत्रवधू का पुनः विवाह क्यों करना चाहते थे? इसके पीछे उनकी कौन-सी भावना के दर्शन होते हैं?
उत्तर-
बालगोबिन भगत की पुत्रवधू अभी जवान थी। उसका सारा जीवन उसके सामने पड़ा था। वे नहीं चाहते थे कि वह अपना सारा जीवन विधवा बनकर काटे। उनका यह भी मानना था कि वह अभी जवान है और उसकी आयु अभी वासनाओं पर नियंत्रण करने की नहीं है, वह पुनः विवाह करके लोगों द्वारा दिए जाने वाले तानों में भी बच सकती है। बालगोबिन भगत समाज की रूढ़िवादिता में विश्वास नहीं रखते थे और समाज की वस्तु-स्थिति को भी भली-भाँति समझते थे। इसलिए यह निर्णय उनकी दूरदर्शिता को व्यक्त करता है।

प्रश्न 6.
कार्तिक मास से फाल्गुन मास तक बालगोबिन भगत का प्रमुख कार्य क्या होता था? ।
उत्तर-
कार्तिक मास के आरंभ होते ही बालगोबिन भगत का प्रभाती गायन आरंभ हो जाता था। उनकी प्रभाती फाल्गुन मास तक निरंतर चलती थी। वे बहुत सवेरे उठते दो मील दूर गंगा-स्नान करते और वापसी में गाँव के पोखर पर बैठकर अपनी बँजड़ी बजाते हुए प्रभु-भजन गाते रहते थे। वे इतनी तल्लीनता से गाते थे कि अपने आस-पास के वातावरण को भी भूल जाते थे। वे माघ की सर्दी में इतनी उत्तेजना से गाते थे कि उन्हें पसीना आ जाता था जबकि सुनने वाले ठंड से काँप रहे होते थे।

प्रश्न 7.
बालगोबिन भगत की मृत्यु पर लघु टिप्पणी लिखिए।
उत्तर–
बालगोबिन भगत हर वर्ष गंगा-स्नान के लिए जाते थे, किंतु अब वे अत्यधिक बूढ़े हो गए थे। उनका शरीर भी कमज़ोर पड़ चुका था। किंतु वे अपने नियम पर अङिग रहे और गंगा स्नान के लिए पहले की भाँति ही गए। वे मार्ग मे कुछ नहीं खाते थे। इस वर्ष जब वे गंगा-स्नान से लौटे तो उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था। धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य गिरने लगा किंतु वे अपने जीवन के नेम-व्रत पालन पर अङिग रहे। वे दोनों समय स्नान ध्यान व गायन करते तथा खेतीबाड़ी की देखभाल भी करते। लोग उन्हें आराम करने की सलाह देते तो हँसकर टाल देते। एक दिन वे गीत गाकर सोए तो उनके प्राण पखेरू उड़ गए। उनके साँसों की माला टूटकर बिखर गई। लोगों को पता चला कि बालगोबिन भगत नहीं रहे। अतः उनकी मृत्यु स्वाभाविक मृत्यु थी।

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प्रश्न 8.
बालगोबिन भगत का चरित्र-चित्रण अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
बालगोबिन ईश्वर के भगत हैं। वे पाठ के मुख्य पात्र हैं। उनके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं
वे गृहस्थ होते हुए भी एक साधु जैसा जीवन व्यतीत करते थे। उनकी आयु साठ वर्ष के लगभग थी। वे एक धोती ही पहनते थे और सिर पर कबीर कनफटी टोपी धारण करते थे। सर्दी आने पर काला कंबल ओढ़ लेते थे। उनके माथे पर चंदन का टीका लगा रहता था।
बालगोबिन भगत अन्य ग्रामीण लोगों की भाँति खेतीबाड़ी का काम करते थे। वे खेत में काम करते हुए भी प्रभु-भजन में लीन रहते थे। बालगोबिन भगत मधुर स्वर में प्रभु-भजन गाया करते थे। वे कबीर के पद गाते थे। उनके संगीत का जादू ऐसा था कि जो भी उसे सुनता, उसमें लीन हो जाता था।

बालगोबिन भगत अत्यंत संतोषी व्यक्ति थे। उनकी इच्छाएँ अत्यंत सीमित थीं। वे सबके साथ खरा एवं सच्चा व्यवहार करते थे। उनके मन में ईश्वर के प्रति अगाध आस्था थी। सांसारिक मोह उन्हें छू भी नहीं सकता था। वे शरीर को नश्वर और आत्मा को परमात्मा का अंश मानते थे। मृत्यु उनके लिए मोक्ष प्राप्ति का साधन थी। वे उसे एक उत्सव के रूप में मानते थे।
सामाजिक रूढ़ियों में उनका विश्वास नहीं था। उसकी दृष्टि में नर-नारी सब समान थे। वे विधवा-विवाह के पक्ष में थे।
अतः स्पष्ट है कि बालगोबिन भगत एक सच्चे साधु थे।

विचार/संदेश संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 9.
‘बालगोबिन भगत’ पाठ के माध्यम से लेखक ने क्या संदेश/मूलभाव दिया है।
उत्तर-
‘बालगोबिन भगत’ शीर्षक पाठ के माध्यम से लेखक ने संदेश दिया है कि ईश्वर की भक्त करने के लिए मनुष्य को समाज छोड़कर जंगलों में आने की आवश्यकता नहीं है। गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी प्रभु-भक्ति की जा सकती है। बालगोबिन भगत का जीवन इसका प्रमाण है। वह साधारण गृहस्थी है। वह खेतीबाड़ी का काम करता है, और सदा सच बोलता है। वह दूसरों से कभी कपटपूर्ण व्यवहार नहीं करता। जो कुछ भी वह कमाता है, उसे ईश्वर का प्रसाद समझकर ग्रहण करता है। सांसारिक मोह के बंधन से मुक्त है। वह सामाजिक रूढ़ियों में विश्वास नहीं करता। सुख-दुःख में सदैव प्रभु गुणगान करता रहता है। अतः स्पष्ट है कि लेखक ने बालगोबिन भगत के जीवन के माध्यम से महान संदेश दिया है कि प्रभु-भक्ति गृहस्थ जीवन में भी संभव है।

प्रश्न 10.
लेखक ने मनुष्य की श्रेष्ठता के कौन-से प्रमुख आधार बताए हैं? पठित पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर-
पठित पाठ में लेखक ने स्पष्ट किया है कि मनुष्य की श्रेष्ठतां उसके बाह्य दिखावे व पहनावे पर नहीं, अपितु उसके गुणों पर आधारित होती है। पाठ में बालगोबिन तेली जाति से संबंधित था। तेली जात को समाज नीची जाति समझता है। स्वयं लेखक भी ऐसा ही समझता था और बालगोबिन के सामने सिर झुकाना अपना अपमान समझता था किंतु बालगोबिन की प्रभु-भक्ति की भावना ने लेखक का हृदय जीत लिया और लेखक उसका सम्मान करने लगा था। न केवल लेखक ही, बल्कि सारा गाँव उसका सम्मान करता था।

प्रश्न 11.
“पाठ में जाति-प्रथा पर करारा व्यंग्य किया गया है-” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर–
प्रस्तुत पाठ में जाति-प्रथा पर करारा व्यंग्य किया गया है। लेखक ने बताया है कि मनुष्य जन्म या जाति के आधार पर बड़ा नहीं होता, मनुष्य तो अपने शुभ कर्मों व गुणों के आधार पर बड़ा होता है। लेखक स्वयं ब्राह्मण जाति से संबंधित था और ब्राह्मणत्व के नशे में चूर रहता था। वह छोटी जाति के लोगों का आदर नहीं करता था। वह तेली जाति के लोगों को हीन समझता था। किंतु लेखक को बड़े होने पर यह बात समझ आई कि व्यक्ति की महानता जाति या जन्म के आधार पर नहीं होती, अपितु व्यक्ति के कर्मों और गुणों के आधार पर होती है। इसलिए लेखक ने जाति-प्रथा को समाज विरोधी समझकर उस पर करारा व्यंग्य किया है।

प्रश्न 12.
‘बालगोबिन भगत’ पाठ में लेखक के मृत्यु संबंधी विचारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में मृत्यु को दुःख या शोक का कारण न बताकर उत्सव व प्रसन्नता का कारण बताया गया है। बालगोबिन भगत अपने बेटे की मृत्यु पर जरा भी दुःखी नहीं हुए और न अपनी पुत्रवधू को रोने दिया। वे मृत्यु को आत्मा का परमात्मा से मिलन का साधन मानते हैं। इसलिए मृत्यु को उत्सव की भाँति समझना चाहिए।

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘बालगोबिन भगत’ शीर्षक पाठ साहित्य की किस विधा के अंतर्गत आता है?
उत्तर-
‘बालगोबिन भगत’ शीर्षक पाठ साहित्य रेखाचित्र विधा के अंतर्गत आता है।

प्रश्न 2.
बालगोबिन की टोपी कैसी थी?
उत्तर-
बालगोबिन की टोपी कबीरपंथियों जैसी थी।

प्रश्न 3.
लेखक बालगोबिन भगत की किस विशेषता पर अत्यधिक मुग्ध था?
उत्तर-
लेखक बालगोबिन भगत के मधुर के गान पर अत्यधिक मुग्ध था।

प्रश्न 4.
बालगोबिन भगत के कितने बेटे थे?
उत्तर-
एक बेटा था।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत आत्मा और परमात्मा के बीच कौन-सा संबंध मानते थे?
उत्तर-
बालगोबिन भगत आत्मा और परमात्मा के बीच प्रेमी-प्रेमिका का संबंध मानते थे।

प्रश्न 6.
बेटे की मृत्यु के पश्चात् बालगोबिन भगत की आखिरी दलील क्या थी?
उत्तर-
बेटे की मृत्यु के पश्चात् बालगोबिन भगत की आखिरी दलील पतोहू का पुनर्विवाह करवाना था।

प्रश्न 7.
लेखक ने बालगोबिन भगत की आयु कितनी बताई है?
उत्तर-
साठ वर्ष से अधिक।

प्रश्न 8.
बालगोबिन भगत ने पुत्र की मृत्यु के उपरांत पतोहू को रोने के बदले क्या करने को कहा?
उत्तर-
बालगोबिन भगत ने पुत्र की मृत्यु के उपरांत पतोहू को रोने के बदले उत्सव मनाने को कहा।

प्रश्न 9.
घर की पूरी प्रबंधिका बनकर बालगोबिन भगत को किसने दुनियादारी से मुक्त कर दिया था?
उत्तर-
बालगोबिन भगत की पुत्रवधू ने।

प्रश्न 10.
बालगोबिन भगत के पुत्र की मृत्यु का क्या कारण था?
उत्तर-
बालगोबिन भगत के पुत्र की मृत्यु का कारण बीमारी था।

प्रश्न 11.
बालगोबिन भगत की संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष किस दिन देखा गया?
उत्तर-
बालगोबिन भगत की संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष उस दिन देखा गया जब अपने पुत्र की मृत्यु होने पर भी वे तल्लीनता से गाते रहे।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘बालगोबिन भगत’ शीर्षक पाठ के लेखक का क्या नाम है?
(A) यशपाल
(B) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
(C) रामवृक्ष बेनीपुरी
(D) स्वयं प्रकाश
उत्तर-
(C) रामवृक्ष बेनीपुरी

प्रश्न 2.
बालगोबिन भगत की आयु कितनी थी?
(A) 50 वर्ष
(B) 60 वर्ष से अधिक
(C) 70 वर्ष
(D) 80 वर्ष
उत्तर-
(B) 60 वर्ष से अधिक

प्रश्न 3.
बालगोबिन भगत किसके आदर्शों पर चलते थे?
(A) तुलसीदास के
(B) कबीर के
(C) सूरदास के
(D) नानक के
उत्तर-
(B) कबीर के

प्रश्न 4.
बालगोबिन भगत कैसे कद के व्यक्ति थे
(A) लम्बे
(B) छोटे
(C) मंझोले
(D) सामान्य
उत्तर-
(C) मंझोले

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प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत अपनी फसल को पहले कहाँ ले जाते थे?
(A) मंदिर में
(B) गुरुद्वारे में
(C) मस्जिद में
(D) कबीरपंथी मठ में
उत्तर-
(D) कबीरपंथी मठ में

प्रश्न 6.
लेखक ने “रोपनी’ किसे कहा है?
(A) रोपण को
(B) धान की रोपाई को
(C) धान की कटाई को
(D) धान की खेती को
उत्तर-
(B) धान की रोपाई को

प्रश्न 7.
बालगोबिन भगत खेत में क्या करते हैं?
(A) केवल गीत गाते हैं .
(B) खेत की मेंड़ पर बैठते हैं
(C) धान के पौधे लगाते हैं
(D) उपदेश देते हैं
उत्तर-
(C) धान के पौधे लगाते हैं

प्रश्न 8.
बालगोबिन भगत का रंग कैसा था
(A) साँवला
(B) काला
(C) गेहुंआ
(D) गोरा चिट्टा
उत्तर-
(D) गोरा चिट्टा

प्रश्न 9.
बालगोबिन भगत के गीतों में कौन-सा भाव व्यक्त होता था?
(A) शृंगार का भाव
(B) विरह का भाव
(C) ईश्वर भक्ति का भाव
(D) वैराग्य का भाव
उत्तर-
(C) ईश्वर भक्ति का भाव ।

प्रश्न 10.
‘तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग ज़रा!’ इस पंक्ति में मुसाफिर किसे कहा गया है?
(A) यात्री को
(B) मनुष्य को
(C) पथिक को
(D) बालक को
उत्तर-
(B) मनुष्य को

प्रश्न 11.
कार्तिक मास आने पर बालगोबिन भगत क्या करने लगते थे?
(A) प्रभातफेरी शुरू करने लगते
(B) गंगा-स्नान करने लगते
(C) भजन करने लगते
(D) सत्संग करने लगते
उत्तर-
(A) प्रभातफेरी शुरू करने लगते

प्रश्न 12.
बालगोबिन भगत के संगीत को लेखक ने क्या कहा है?
(A) उपदेश
(B) लहर
(C) जादू
(D) शहनाई
उत्तर-
(C) जादू

प्रश्न 13.
बेटे की मृत्यु के पश्चात् बालगोबिन भगत की आखिरी दलील क्या थी?
(A) पतोहू का पुनर्विवाह करवाना
(B) पतोहू को शिक्षा दिलवाना
(C) पतोहू को घर से निकालना
(D) पतोहू से घृणा करना
उत्तर-
(A) पतोहू का पुनर्विवाह करवाना

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प्रश्न 14.
बालगोबिन भगत की मृत्यु का क्या कारण था?
(A) दुर्घटना
(B) बीमारी
(C) भूख
(D) बेटे की मृत्यु की चिंता
उत्तर-
(B) बीमारी

प्रश्न 15.
बाल गोबिन भगत की प्रभातियाँ कब तक चलती थीं-
(A) फागुन तक
(B) कार्तिक तक
(C) बैशाख तक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(A) फागुन तक

प्रश्न 16.
बालगोबिन भगत गंगा स्नान करने किस साधन से जाते थे?
(A) मोटरगाड़ी से
(B) रेलगाड़ी से
(C) बैलगाड़ी से
(D) पैदल
उत्तर-
(D) पैदल

प्रश्न 17.
बालगोबिन भगत के पुत्र की मृत्यु पर अंतिम संस्कार में आग किससे दिलाई गई?
(A) स्वयं बालगोबिन भगत से
(B) पतोहू से
(C) रिश्तेदार से
(D) पतोहू के भाई से
उत्तर-
(B) पतोहू से

प्रश्न 18.
बालगोबिन भगत के घर से गंगा नदी कितनी कोस दूर थी?
(A) 10
(B) 30
(C) 50
(D) 80
उत्तर-
(B) 30

प्रश्न 19.
बालगोबिन भगत के कितने बेटे थे?
(A) तीन
(B) चार
(C) दो ।
(D) एक
उत्तर-
(D) एक

प्रश्न 20.
बालगोबिन भगत कौन-सा वाद्य यंत्र बजाते थे?
(A) बाँसुरी
(B) तानपूरा
(C) सितार
(D) बँजड़ी
उत्तर-
(D) बँजड़ी

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बालगोबिन भगत पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) ऊपर की तसवीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे। नहीं, बिलकुल गृहस्थ! उनकी गृहिणी की तो मुझे याद नहीं, उनके बेटे और पतोहू को तो मैंने देखा था। थोड़ी खेतीबारी भी थी, एक अच्छा साफ-सुथरा मकान भी था।
किंतु, खेतीबारी करते, परिवार रखते भी, बालगोबिन भगत साधु थे-साधु की सब परिभाषाओं में खरे उतरनेवाले। कबीर को ‘साहब’ मानते थे, उन्हीं के गीतों को गाते, उन्हीं के आदेशों पर चलते। कभी झूठ नहीं बोलते, खरा व्यवहार रखते। किसी से भी दो-टूक बात करने में संकोच नहीं करते, न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते। किसी की चीज़ नहीं छूते, न बिना पूछे व्यवहार में लाते। इस नियम को कभी-कभी इतनी बारीकी तक ले जाते कि लोगों को कुतूहल होता!-कभी वह दूसरे के खेत में शौच के लिए भी नहीं बैठते! वह गृहस्थ थे; लेकिन उनकी सब चीज़ ‘साहब’ की थी। जो कुछ खेत में पैदा होता, सिर पर लादकर पहले उसे साहब के दरबार में ले जाते जो उनके घर से चार कोस दूर पर था-एक कबीरपंथी मठ से मतलब! वह दरबार में ‘भेंट’ रूप रख लिया जाकर ‘प्रसाद’ रूप में जो उन्हें मिलता, उसे घर लाते और उसी से गुज़र चलाते! [पृष्ठ 70]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) ऊपर की तस्वीर के अनुसार बालगोबिन कैसे लगते थे?
(ग) क्या बालगोबिन एक गृहस्थ थे? स्पष्ट कीजिए।
(घ) बालगोबिन किसको साहब मानते थे?
(ङ) बालगोबिन गृहस्थ होते हुए भी साधु थे-कैसे?
(च) बालगोबिन का दूसरों के प्रति व्यवहार कैसा था?
(छ) मठ बालगोबिन की फसलों का क्या करता था?
(ज) इस गद्यांश का मूलभाव क्या है?
(झ) उपर्युक्त गद्यांश का प्रसंग लिखते हुए आशय स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-बालगोबिन भगत।
लेखक का नाम-रामवृक्ष बेनीपुरी।

(ख) ऊपर की तस्वीर के अनुसार बालगोबिन एक साधु लगते थे। उनकी आयु साठ वर्ष के लगभग होगी। वे रंग-रूप में अत्यधिक गोरे थे। उनके सिर और दाढ़ी के बाल सफेद हो चुके थे। उनका कद मँझोला था। वे प्रायः एक लंगोटी में रहते थे। सिर पर कबीरपंथियों के समान कनफटी टोपी धारण करते थे। सर्दी आने पर काला कंबल ओढ़ते थे। उनके माथे पर चंदन का लेप रहता था और गले में तुलसी की माला रहती थी।

(ग) बालगोबिन भगत वास्तव में ही गृहस्थ थे। वे देखने में भले ही संन्यासी लगते हों, किंतु एक सच्चे गृहस्थी के सारे कर्तव्यों का पालन करते थे। उनकी पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी किंतु उनका बेटा और बहू उनके साथ रहते थे। वे दूसरों से सदा ही सद्व्यवहार करते थे। वे दूसरों से कोई भी वस्तु माँगने से या उधार लेने से बचते थे। यहाँ तक कि वे किसी दूसरे के खेत में शौच तक न जाते थे।

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(घ) बालगोबिन संत कबीर को अपना ‘साहब’ अर्थात् स्वामी मानते थे।

(ङ) बालगोबिन भगत गृहस्थी थे और एक सच्चे गृहस्थी की भाँति व्यवहार करते थे। किंतु उनका व्यवहार साधु-संन्यासियों जैसा था। उन्हें ईश्वर (साहब) में पूर्ण विश्वास था। उन्हें संसार की किसी भी वस्तु से मोह नहीं था। वे सबसे सच्चा और खरा व्यवहार करते थे। उनकी बातों में जरा भी संदेह नहीं होता था। अहंकार तो उन्हें छू तक नहीं गया था।

(च) बालगोबिन का दूसरों के प्रति अत्यंत उचित व्यवहार था। वे कभी किसी से झूठ नहीं बोलते थे और न ही किसी प्रकार का धोखा करते थे। किसी से उधार माँगकर कभी किसी को तंग नहीं करते थे। कभी किसी बात पर दूसरों से झगड़ा नहीं करते थे।

(छ) कबीरपंथी मठ का सेवक बालगोबिन की फसल में से कुछ अंश अपने पास रख लेता था और शेष उन्हें प्रसाद के रूप में लौटा देता था। इस अनाज को लेकर बालगोबिन घर आ जाता था और उसी से घर का गुजारा चलाता था।

(ज) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने बालगोबिन भगत के जीवन की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख किया है। वे कभी किसी से झूठ, लोभ व क्रोधयुक्त व्यवहार नहीं करते थे। वे पूर्णरूप से ईश्वर में विश्वास रखते थे। वे अपनी नेक कमाई को पहले भगवान के प्रति अर्पित करते थे और फिर भोग करते थे। उनके भोग में त्याग की भावना सदैव बनी रहती थी। कहने का भाव है कि यदि हम भी बालगोबिन के इन गुणों को अपना लें तो हमारा भी कल्याण हो जाएगा।

(झ) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित एवं रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा रचित ‘बालगोबिन भगत’ नामक पाठ से लिया गया है। इस पाठ में लेखक ने बालगोबिन भगत के जीवन और आदर्शों पर प्रकाश डाला है।

आशय/व्याख्या-बालगोबिन भगत की बनाई गई तस्वीर से वे एक साधु लगते थे, किंतु वास्तव में वे एक गृहस्थी थे। उनकी पत्नी की तो लेखक को याद नहीं है, किंतु उनके बेटे और बेटे की पत्नी को अवश्य देखा था। वे थोड़ा-बहुत खेतीबाड़ी (कृषि) का काम भी करते थे। उनका एक साफ-सुथरा मकान भी था। बालगोबिन भगत खेतीबाड़ी के साथ-साथ पारिवारिक काम भी करते थे। इन सबके होते हुए भी वे भगत एवं साधु-संन्यासी थे। उनमें साधु-संन्यासियों वाले सभी गुण थे। वे कबीर को ‘साहब’ मानते थे। उन्हीं के आदर्शों पर चलते थे और कभी झूठ नहीं बोलते थे। वे दूसरों के साथ सच्चा एवं खरा व्यवहार करते थे। किसी के साथ बिना बात के झगड़ा भी नहीं करते थे। दूसरों की वस्तुओं को स्पर्श तक नहीं करते थे। बिना पूछे कभी किसी की वस्तु का प्रयोग भी नहीं करते थे। उनके ऐसे व्यवहार को देखकर लोग हैरान रह जाते थे। वे दूसरों के खेत में शौच भी नहीं जाते थे। वे अपनी हर वस्तु को ईश्वर की वस्तु मानते थे। उनके खेत में जो अनाज उत्पन्न होता, उसे अपने सिर पर उठाकर साहब के दरबार में ले जाते थे। दरबार कबीरपंथी मठ था। वहाँ से जो अनाज उन्हें प्रसाद रूप में मिलता था, उसे घर लाते और उसी में गुजारा करते थे।

(2) आसमान बादल से घिरा; धूप का नाम नहीं। ठंडी पुरवाई चल रही। ऐसे ही समय आपके कानों में एक स्वर-तरंग झंकार-सी कर उठी। यह क्या है यह कौन है! यह पूछना न पड़ेगा। बालगोबिन भगत समूचा शरीर कीचड़ में लिथड़े अपने खेत में रोपनी कर रहे हैं। उनकी अँगुली एक-एक धान के पौधे को, पंक्तिबद्ध, खेत में बिठा रही है। उनका कंठ एक-एक शब्द को संगीत के जीने पर चढ़ाकर कुछ को ऊपर, स्वर्ग की ओर भेज रहा है और कुछ को इस पृथ्वी की मिट्टी पर खड़े लोगों के कानों की ओर! बच्चे खेलते हुए झूम उठते हैं; मेंड़ पर खड़ी औरतों के होंठ काँप उठते हैं, वे गुनगुनाने लगती हैं; हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते हैं; रोपनी करने वालों की अँगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगती हैं! बालगोबिन भगत का यह संगीत है या जादू! [पृष्ठ 71]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) लेखक ने किस अवसर का वर्णन किया है?
(ग) बालगोबिन भगत क्या कर रहे थे?
(घ) बालगोबिन भगत के संगीत का लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा?
(ङ) बालगोबिन भगत के संगीत को जादू क्यों कहा गया?
(च) बच्चे और महिलाएँ क्या कर रहे थे?
(छ) प्रस्तुत गद्यांश का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
(ज) उपर्युक्त गद्यांश का प्रसंग लिखकर आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम बालगोबिन भगत।
लेखक का नाम-रामवृक्ष बेनीपुरी।

(ख) लेखक ने आषाढ़ के महीने में होने वाली रिमझिम वर्षा का वर्णन किया है। इस अवसर पर गाँव में किसान धान की फसल रोपने का काम करते हैं। आकाश बादलों से घिरा हुआ था तथा पुरवाई हवाएँ चल रही थीं।

(ग) बालगोबिन भगत अपने खेत में धान के रोपने का काम कर रहे थे। वे हर पौधे को पंक्ति में लगा रहे थे।

(घ) बालगोबिन भगत धान के रोपन के साथ-साथ मधुर कंठ से गीत गा रहे थे। उनके गीत का वहाँ उपस्थित लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ा। वे मंत्रमुग्ध हो गए तथा गीत की ताल पर क्रम से काम करने लगे।

(ङ) भगत जी के संगीत को जादू इसलिए कहा गया है क्योंकि उसका सभी के हृदय पर गहरा प्रभाव पड़ रहा था। उसे सुनकर बच्चे मस्त हो जाते तथा स्त्रियाँ उसके साथ-साथ गुनगुनाने लगती थीं। किसानों के पैरों में तो मानो लय-सी आ जाती थी। धान रोपते हुए किसानों की अँगुलियाँ क्रम से चलने लगती थीं।

(च) बच्चे उछल-उछलकर मौसम का आनंद उठा रहे थे और गीली मिट्टी में लिथड़कर खुश हो रहे थे। औरतें किसानों के लिए नाश्ता भोजन लेकर खेतों की मेंड़ों पर बैठी थीं।

(छ) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने वर्षा ऋतु के प्राकृतिक वातावरण का सजीव चित्रण किया है। आषाढ़ के महीने में सभी किसान अपने-अपने खेतों में धान रोपने के काम में जुट जाते हैं। लेखक बालगोबिन भगत की मस्ती, तल्लीनता और उसकी संगीत-कला की जादुई मिठास का वर्णन करना चाहता है। वह किसान भी है और संगीतकार भी।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

(ज) प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘बालगोबिन भगत’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक श्री रामवृक्ष बेनीपुरी हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने आषाढ़ के महीने में होने वाली वर्षा और बालगोबिन भगत द्वारा धान रोपने का वर्णन किया है।

आशय/व्याख्या-लेखक कहता है कि आसमान पर बादल छाए हुए थे, धूप कहीं भी दिखाई नहीं देती थी। ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। ऐसे मनभावन समय में एक मधुर स्वर की झंकार कानों में सुनाई पड़ रही थी। वहाँ के लोगों को इस मधुर स्वर व उसके गाने वाले के विषय में पूछना नहीं पड़ता। बालगोबिन भगत जिनका समूचा शरीर कीचड़ से लथपथ है, अपने खेत में धान की फसल का आरोपण कर रहे हैं। उनके हाथों की अगुलियाँ जहाँ धान के एक-एक पौधे को पंक्ति में बैठा रही हैं, वहीं उनके कंठ से निकला एक-एक शब्द संगीत की सीढ़ियों से चढ़कर स्वर्ग की ओर जा रहा है। उनके मधुर स्वर को सुनकर बच्चे खेलते हुए झूम उठते हैं। स्त्रियाँ उन शब्दों को अपने स्वर में गुनगुनाने लगती हैं। हल चलाने वालों के पैर उसके शब्दों की ताल के अनुसार ही उठने लगते हैं। खेत में धान के पौधों को रोपने वाले लोगों की अंगुलियाँ भी उनके संगीतमय स्वर के अनुकूल ही काम करने लगती हैं। बालगोबिन भगत के संगीत का प्रभाव आस-पास के लोगों पर जादू-सा काम करता है।

(3) भादो की वह अँधेरी अधरतिया। अभी, थोड़ी ही देर पहले मुसलधार वर्षा खत्म हुई है। बादलों की गरज, बिजली की तड़प .. में आपने कुछ नहीं सुना हो, किंतु अब झिल्ली की झंकार या दादुरों की टर्र-टर्र बालगोबिन भगत के संगीत को अपने कोलाहल में डुबो नहीं सकती। उनकी बँजड़ी डिमक-डिमक बज रही है और वे गा रहे हैं-“गोदी में पियवा, चमक उठे सखिया, चिहुँक उठे ना!” हाँ, पिया तो गोद में ही है, किंतु वह समझती है, वह अकेली है, चमक उठती है, चिहक उठती है। उसी भरे-बादलों वाले भादो की आधी रात में उनका यह गाना अँधेरे में अकस्मात कौंध उठने वाली बिजली की तरह किसे न चौंका देता? अरे, अब सारा संसार निस्तब्धता में सोया है, बालगोबिन भगत का संगीत जाग रहा है, जगा रहा है! तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग जरा! [पृष्ठ 71]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) भादो की रात का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
(ग) भगत जी के गीतों में कौन-सा भाव व्यक्त होता था?
(घ) ‘तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग ज़रा’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
(ङ) जब सारा संसार सो रहा था तब कौन जाग रहा था?
(च) प्रस्तुत गद्यांश में बालगोबिन भगत के व्यक्तित्व की कौन-सी विशेषता उभरकर सामने आती है?
(छ) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग एवं आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-बालगोबिन भगत।
लेखक का नाम-रामवृक्ष बेनीपुरी।

(ख) लेखक ने भादो की रात का वर्णन करते हुए कहा है कि भादो की रात अत्यधिक अँधेरी थी। आकाश में घने काले बादल छाए हुए थे। वर्षा होने वाली थी। बादल गरज रहे थे और बिजली कड़क रही थी। झाड़ियों से झिल्ली की झंकार सुनाई दे रही थी। मेंढकों के टर्राने की ध्वनि भी सुनाई पड़ रही थी। ऐसे वातावरण को बालगोबिन का गीत और भी मधुर बना रहा था।

(ग) बालगोबिन भगत के गीत ईश्वर-भक्ति की भावना से भरे होते थे। उनमें परमात्मा से बिछुड़ने की पीड़ा और भूले हुओं को जगाने के भाव भरे होते थे।

(घ) इस पंक्ति में कवि ने मनुष्य को विषय-वासनाओं से सावधान रहते हुए जीवन व्यतीत करने की चेतावनी दी है। कवि कहता है, हे मानव! तेरे जीवन का हर क्षण नष्ट हो रहा है। जीवन रूपी गठरी को पंच विकार रूपी चोर चुराने में लगे हुए हैं। अतः समय रहते तू सावधान हो जा और प्रभु का भजन कर जिससे तुझे मोक्ष प्राप्त हो सकेगा।

(ङ) जब सारा संसार खामोशी में सो रहा था तब बालगोबिन भगत का संगीत जाग रहा था अर्थात् उस समय बालगोबिन जागकर प्रभु-भजन कर रहे थे।

(च) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने बालगोबिन भगत के व्यक्तित्व के विषय में बताया है कि वे एक सच्चे भगत थे। उनका जीवन साधु-संन्यासियों जैसा त्यागशील एवं मोह रहित था। वे गृहस्थी होते हुए भी सच्चे साधु थे। उनकी ईश्वर में गहन आस्था थी। वे रात को जाग-जागकर प्रभु-भक्ति के गीत गाते थे। उसे प्रभु को भूले हुए लोगों को प्रभु की याद दिलाना बहुत अच्छा लगता था।

(छ) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में से संकलित एवं श्री रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा रचित ‘बालगोबिन भगत’ नामक पाठ से अवतरित है। इस पाठ में लेखक ने बालगोबिन भगत के जीवन के गुणों का उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में बताया गया है कि भादो की अंधेरी रातों में बालगोबिन भगत जाग-जाग कर ईश्वर-भक्ति के गीत गाते थे। वे अपने गीतों के माध्यम से लोगों को ईश्वर-भक्ति की याद दिलाते थे।

आशय/व्याख्या-लेखक ने भादो की रात का वर्णन करते हुए कहा है कि भादो की अंधेरी रात थी। आकाश में घने काले बादल छाए हुए थे। अभी-अभी वर्षा समाप्त हुई थी। बादल गरज रहे थे। बिजली कड़क रही थी। झिल्ली की झंकार और मेंढकों के टर्राने की ध्वनि सुनाई दे रही थी, किंतु ये सब मिलकर भी बालगोबिन भगत के संगीत को अपने कोलाहल में डुबो नहीं सके। उनकी बँजड़ी धीरे-धीरे, डिमक-डिमक कर बज रही थी और वे मधुर ध्वनि में गा रहे थे ‘गोदी में पियवा, चमक उठे सखिया चिहुँक उठे ना” हाँ, पिया तो गोद में ही है, किंतु वह समझती है कि वह अकेली है। वह चमक उठती है। कहने का भाव है कि आत्मा और परमात्मा सदा साथ-साथ रहते हैं। उस बादलों से भरी हुई भादो की आधी रात को उनका यह मधुर गीत अँधेरे में एकाएक ऐसे कौंध जाता है जैसे अँधेरी रात में बादलों में बिजली चमक उठती है। जब सारा संसार एकांत में सोया होता है, तब बालगोबिन भगत का संगीत निरंतर जाग रहा होता है
और लोगों को भी जगा रहा होता है। वे कहते हैं, “तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग जरा।” अर्थात् हे मनुष्य! तेरा जीवन प्रतिक्षण नष्ट हो रहा है। जीवन रूपी गठरी को पंच विकार रूपी चोर चुराने में लगे हुए हैं। इसलिए तुझे सावधान रहना चाहिए।

(4) बालगोबिन भगत की संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष उस दिन देखा गया जिस दिन उनका बेटा मरा। इकलौता बेटा था वह! कुछ सुस्त और बोदा-सा था, किंतु इसी कारण बालगोबिन भगत उसे और भी मानते। उनकी समझ में ऐसे आदमियों पर ही ज़्यादा नज़र रखनी चाहिए या प्यार करना चाहिए, क्योंकि ये निगरानी और मुहब्बत के ज्यादा हकदार होते हैं। बड़ी साध से उसकी शादी कराई थी, पतोहू बड़ी ही सुभग और सुशील मिली थी। घर की पूरी प्रबंधिका बनकर भगत को बहुत कुछ दुनियादारी से निवृत्त कर दिया था उसने। उनका बेटा बीमार है, इसकी खबर रखने की लोगों को कहाँ फुरसत! किंतु मौत तो अपनी ओर सबका ध्यान खींचकर ही रहती है। हमने सुना, बालगोबिन भगत का बेटा मर गया। कुतूहलवश उनके घर गया। देखकर दंग रह गया। बेटे को आँगन में एक चटाई पर लिटाकर एक सफेद कपड़े से ढाँक रखा है। वह कुछ फूल तो हमेशा ही रोपते रहते, उन फूलों में से कुछ तोड़कर उस पर बिखरा दिए हैं; फूल और तुलसीदल भी। सिरहाने एक चिराग जला रखा है। और, उसके सामने ज़मीन पर ही आसन जमाए गीत गाए चले जा रहे हैं! वही पुराना स्वर, वही पुरानी तल्लीनता। [पृष्ठ 72-73]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) जिस दिन बालगोबिन का बेटा मरा, उस दिन क्या देखा गया? ।
(ग) लेखक ने बेटे की मृत्यु पर गायन को संगीत-साधना का चरमोत्कर्ष क्यों कहा है?
(घ) बालगोबिन भगत अपने बेटे को किस कारण अधिक प्यार करते थे?
(ङ) बालगोबिन भगत की पुत्रवधू कैसी थी?
(च) लेखक में किस बात का कुतूहल था?
(छ) प्रस्तुत गद्यांश के अनुसार आपको बालगोबिन के जीवन की कौन-सी विशेषता प्रभावित करती है?
(ज) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग एवं आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-बालगोबिन भगत।
लेखक का नाम-रामवृक्ष बेनीपुरी।

(ख) जिस दिन बालगोबिन का बेटा मरा, उस दिन उनके संगीत का चरमोत्कर्ष देखा गया। उस दिन एक सच्चे संगीतकार की साधना की सफलता भी देखी गई थी।

(ग) लेखक के अनुसार साधना वही है जब व्यक्ति अपनी सुध-बुध खोकर परमात्मा की भक्ति में लीन हो जाए और उसको किसी प्रकार का दुःख प्रभावित न कर सके। इकलौते बेटे की मृत्यु से बढ़कर और कोई दुःख नहीं हो सकता। जो व्यक्ति अपने बेटे की मृत्यु पर भी भजन गा सकता है, उसके लिए उससे बढ़कर संगीत साधना और क्या हो सकती है।

(घ) बालगोबिन भगत अपने पुत्र से बहुत प्यार करते थे। उनका वह पुत्र बहुत ही कमज़ोर और सुस्त था। उनका मानना था कि ऐसे बच्चों को प्यार की अधिक ज़रूरत होती है। इसलिए वे अपने पुत्र को अधिक प्यार करते थे।

(ङ) बालगोबिन भगत की पुत्रवधू बहुत ही सुंदर एवं सुशील युवती थी। वह घर के काम-काज में निपुण थी तथा एक अच्छी प्रबंधिका भी थी। उसके इस प्रबंधन के गुण के कारण ही बालगोबिन जी गृहस्थ जीवन से मुक्त हो पाए थे।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

(च) लेखक को इस बात को लेकर कुतूहल था कि उसका इकलौता बेटा मर गया है तथा उसका शव अभी घर में ही पड़ा हुआ है। ऐसे में वह कैसे गा सकता है? उसे तो शोक मनाना चाहिए था किंतु लेखक ने देखा कि वह पुत्र की लाश के पास ही आसन जमाकर गाए जा रहा था।

(छ) प्रस्तुत गद्यांश के अनुसार, बालगोबिन भगत की सच्ची भक्ति, तल्लीनता, धैर्य और संगीत की मस्ती हमें अत्यधिक प्रभावित करती है। उनके हृदय में प्रभु के प्रति अडिग विश्वास था जो सबके हृदय को प्रभावित किए बिना नहीं रहता।

(ज) प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘बालगोबिन भगत’ नामक पाठ से उद्धृत है। इस पाठ के लेखक श्री रामवृक्ष बेनीपुरी हैं। इन पंक्तियों में उन्होंने बालगोबिन भगत के बेटे की मृत्यु की घटना का वर्णन किया है।

आशय/व्याख्या-लेखक का कथन है कि जिस दिन बालगोबिन भगत का बेटा मरा था, उस दिन उनकी संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष अर्थात् चरम सीमा देखी गई थी। एक सफल एवं सच्चे संगीतकार की सफलता देखी गई थी। बालगोबिन का इकलौता बेटा कुछ सुस्त एवं कमजोर था। इसी कारण बालगोबिन उसका अधिक ध्यान रखते थे। बालगोबिन का मत था कि ऐसे व्यक्तियों पर हमें अधिक ध्यान देना चाहिए और दूसरों की अपेक्षा उन्हें प्यार भी अधिक करना चाहिए। वे देखभाल और प्यार के ज्यादा हकदार होते हैं। उन्होंने बहुत-ही सीधे ढंग से अपने बेटे का विवाह करवाया था। उसकी पत्नी बहुत सुशील एवं विनम्र स्वभाव वाली थी। उसने घर का सारा काम-काज संभाल लिया था, जिससे बालगोबिन भगत ने दुनियादारी से छुटकारा पा लिया था। बालगोबिन का बेटा बीमार पड़ गया, परंतु काम-काज की व्यस्तता से किसको फुर्सत जो बीमार का हाल जानें, किंतु मृत्यु तो सबका ध्यान अपनी ओर दिला देती है और एक दिन उसकी मौत हो गई। उसकी मौत का समाचार सारे गाँव को मिल गया। लेखक भी उसके घर गया। यह देखकर हैरान था कि बालगोबिन ने अपने बेटे के शव को आंगन में एक चटाई पर लिटाकर सफेद कपड़े से ढक रखा था। उस पर कुछ फूल और तुलसी के पत्ते बिखेर दिए थे। उसके सिराहने एक दीप जलाया हुआ था। वे उसके सामने बैठकर गीत गा रहे थे। उनके गीत का स्वर पहले जैसा ही था और उतनी ही तल्लीनता भी थी। कहने का भाव है कि बालगोबिन भगत की ईश्वर-भक्ति और गीत की तल्लीनता को बेटे की मौत जैसा आघात भी नहीं डिगा सका था।

(5) बेटे के क्रिया-कर्म में तूल नहीं किया; पतोहू से ही आग दिलाई उसकी। किंतु ज्योंही श्राद्ध की अवधि पूरी हो गई, पतोहू
के भाई को बुलाकर उसके साथ कर दिया, यह आदेश देते हुए कि इसकी दूसरी शादी कर देना। इधर पतोहू रो-रोकर कहतीमैं चली जाऊँगी तो बुढ़ापे में कौन आपके लिए भोजन बनाएगा, बीमार पड़े, तो कौन एक चुल्लू पानी भी देगा? मैं पैर पड़ती हूँ, मुझे अपने चरणों से अलग नहीं कीजिए। लेकिन भगत का निर्णय अटल था। तू जा, नहीं तो मैं ही इस घर को छोड़कर चल दूंगा-यह थी उनकी आखिरी दलील और इस दलील के आगे बेचारी की क्या चलती? [पृष्ठ 73]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) बालगोबिन की दृष्टि में स्त्री-पुरुष में कोई भेद नहीं है-स्पष्ट कीजिए।
(ग) बालगोबिन भगत सामाजिक रूढ़ियों में विश्वास नहीं रखते, पठित गद्यांश के आधार पर सिद्ध कीजिए।
(घ) बालगोबिन भगत की पुत्रवधू उनके पास क्यों रहना चाहती थी?
(ङ) बालगोबिन भगत ने अपनी पुत्रवधू को वापस भेजने के लिए किस युक्ति से काम लिया?
(च) भगत जी की पुत्रवधू की क्या इच्छा थी?
(छ) प्रस्तुत गद्यांश में बालगोबिन भगत के चरित्र की किन विशेषताओं का उल्लेख किया गया है?
(ज) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग बताते हुए आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-बालगोबिन भगत।
लेखक का नाम-रामवृक्ष बेनीपुरी।

(ख) बालगोबिन भगत उदार एवं प्रगतिशील विचारों वाले व्यक्ति हैं। उनकी दृष्टि में स्त्री-पुरुष बराबर हैं। हमारे समाज में प्राचीनकाल से माना जाता है कि मृतक को आग लगाने का अधिकार पुत्र या किसी पुरुष को है। स्त्री इस कार्य को नहीं कर सकती। नारी को तो श्मशान भूमि में जाने तक की अनुमति नहीं है। किंतु बालगोबिन भगत ने इन मान्यताओं को नहीं माना और अपने बेटे की चिता को अपनी पुत्रवधू से आग दिलवाई थी। इससे पता चलता है कि बालगोबिन भगत की दृष्टि में नर-नारी सब एक समान हैं।

(ग) निश्चय ही बालगोबिन भगत सामाजिक रूढ़ियों को नहीं मानते। उन्होंने अपनी पुत्रवधू से अपने बेटे की चिता को आग दिलवाकर सदियों से चली आ रही परंपरा को सहज ही तोड़ डाला। ऐसी हिम्मत किसी-किसी व्यक्ति में ही होती है। इससे पता चलता है कि भगत जी सामाजिक रूढ़ियों में विश्वास नहीं रखते थे।

(घ) बालगोबिन भगत की पुत्रवधू पति की मृत्यु के पश्चात् बालगोबिन भगत के पास रहकर उनकी सेवा करना चाहती थी। वह उनके लिए भोजन बनाने व गृहस्थी के अन्य कार्य करने के लिए ही उनके पास रहना चाहती थी।

(ङ) जब बालगोबिन भगत ने अपनी पुत्रवधू को उसके भाई के साथ जाने के लिए कहा तो वह जिद्द करने लगी कि वह उन्हें छोड़कर कहीं नहीं जाएगी। आजीवन उनकी सेवा करती रहेगी। किंतु बालगोबिन भी अपने इरादे के पक्के थे। उन्होंने कहा यदि
यहाँ रहना चाहती है तो रह, किंतु मैं यह घर छोड़कर अन्यत्र चला जाऊँगा। भगत जी की यह धमकी सुनकर उनकी पुत्रवधू अपने मायके जाने के लिए तैयार हो गई थी।

(च) भगत जी की पुत्रवधू उनके पास रहकर उनके बुढ़ापे का सहारा बनना चाहती थी। वह उनके लिए भोजन बनाना चाहती थी और उनकी सेवा करना चाहती थी।

(छ) प्रस्तुत गद्यांश के आधार पर हम कह सकते हैं कि बालगोबिन भगत एक उदार हृदय और सुलझे हुए व्यक्ति थे। वे अपने निजी स्वार्थ के लिए दूसरों के जीवन में किसी प्रकार की बाधा नहीं बनना चाहते थे। यही कारण है कि वह अपनी चिंता किए बिना अपनी पुत्रवधू को उसके भाई के साथ भेज देते हैं ताकि वह पुनः विवाह करके सुखी जीवन व्यतीत कर सके। बालगोबिन भगत दृढ़ विचारों वाले व्यक्ति थे। वे जिस काम को करने का निश्चय कर लेते, उसे पूर्ण करके छोड़ते थे।

(ज) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘बालगोबिन भगत’ नामक पाठ से उद्धृत है। इस पाठ में लेखक श्री रामवृक्ष बेनीपुरी ने बालगोबिन भगत के जीवन का उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में बालगोबिन भगत के विषय में बताया गया है कि वे स्त्री-पुरुष में कोई अन्तर नहीं समझते थे और न ही सामाजिक रूढ़ियों में विश्वास करते थे।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

आशय/व्याख्या-लेखक ने बताया है कि बालगोबिन भगत ने अपने बेटे की चिता को आग स्वयं न देकर उसकी पत्नी से ही दिलवाई थी। समाज में ऐसा नहीं होता था। चिता को आग हमेशा से पुरुष ही देते आए थे। ज्यों ही श्राद्ध का समय पूरा हुआ पतोहू के भाई को बुलाकर उसे उसके साथ भेज दिया तथा यह आदेश भी दे दिया कि इसका दूसरा विवाह अवश्य कर देना। कहने का भाव है कि बालगोबिन भगत विधवा विवाह के पक्ष में थे, किंतु बालगोबिन की पतोहू जिद्द करने लगी कि वह उनके साथ रहकर उनकी सेवा करेगी। यदि मैं चली जाऊँगी तो इस बुढ़ापे में कौन आपके लिए भोजन बनाएगा। यदि बीमार पड़ गए तो कौन आपको पानी देगा। मैं आपके पैर पड़ती हूँ आप मुझे अपने से अलग मत कीजिए, किंतु बालगोबिन भगत का निर्णय अटल था। उन्होंने कहा कि यदि तू इस घर से नहीं जाएगी तो मैं यह घर छोड़कर चला जाऊँगा। यह उनका आखिरी तर्क था। इस तर्क के सामने पतोहू की एक न चली। उसे अपने भाई के साथ जाना पड़ा। कहने का भाव है कि बालगोबिन भगत दृढ़ निश्चयी और उदार दृष्टिकोण वाले व्यक्ति थे।

बालगोबिन भगत Summary in Hindi

बालगोबिन भगत लेखक-परिचय

प्रश्न-
श्री रामवृक्ष बेनीपुरी का जीवन परिचय एवं उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय श्री रामवृक्ष बेनीपुरी हिंदी के सुप्रसिद्ध निबंधकार हैं। इनका जन्म सन् 1899 को बिहार प्रदेश के मुजफ्फरपुर जिले के छोटे से गाँव बेनीपुर में हुआ था। बचपन में ही इनके माता-पिता का देहांत हो गया था। इनका पालन-पोषण इनके ननिहाल में हुआ। इन्होंने बड़ी कठिनाई से मैट्रिक तक शिक्षा ग्रहण की थी। श्री बेनीपुरी जी सन् 1920 में महात्मा गाँधी जी के नेतृत्व में चलाए जा रहे असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। उन्होंने स्वाध्याय के बल पर हिंदी ज्ञान में निपुणता प्राप्त की तथा अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत आदि भाषाओं का भी गंभीर अध्ययन किया। स्वतंत्रता आंदोलन के समय श्री बेनीपुरी जी दस बार जेल गए। स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् सन् 1957 में आप बिहार विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। बेनीपुरी जी ने लगभग 15 वर्ष की आयु में पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखना शुरू किया तथा पत्रकारिता को जीवनयापन के साधन के रूप में अपना लिया। इन्होंने समय-समय पर ‘किसान मित्र’, ‘तरुण भारत’, ‘बालक’, ‘युवक’, ‘योगी’, ‘जनता’, ‘जनवाणी’, ‘नई धारा’, ‘कर्मवीर’ आदि अनेक पत्र-पत्रिकाओं का कुशल संपादन किया है। इनका निधन सन् 1968 में हुआ था।

2. प्रमुख रचनाएँ श्री बेनीपुरी जी की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं-

  • उपन्यास-‘कैदी की पत्नी’ और ‘पतितों के देश में’।
  • कहानी-संग्रह ‘चिता के फूल’।
  • नाटक तथा एकांकी-‘अंबपाली’, ‘संघमित्रा’, ‘सीता की माँ’, ‘नेत्रदान’, ‘तथागत’, ‘विजेता’, ‘राम- राज्य’ तथा ‘गाँव का देवता’।
  • रेखाचित्र-‘माटी की मूरतें’, ‘गेहूँ और गुलाब’, ‘मन और विजेता’।
  • निबंध तथा संस्मरण-‘जंजीरें और दीवारें’, ‘मुझे याद है’, ‘मेरी डायरी’, ‘नयी नारी’, ‘मशाल’।
  • यात्रा-वृत्तांत-‘मेरे तीर्थ’, ‘उड़ते चलो उड़ते चलो’, ‘पैरों में पंख बाँधकर’।
  • जीवनी-‘कार्ल मार्क्स’, ‘जयप्रकाश नारायण’।

3. साहित्यिक विशेषताएँ श्री रामवृक्ष बेनीपुरी की रचनाओं में प्रमुख रूप से स्वाधीनता की चेतना, मनुष्यता की चिंता और इतिहास की युगानुरूप व्याख्या है। वे निष्ठावान भारतीय संस्कृति के पुजारी भी हैं। इनकी रचनाओं में भारतीय संस्कृति के दर्शन होते हैं। इनके साहित्य में गहन अनुभूतियों और उच्च कल्पनाओं का सुंदर मिश्रण है। इनकी रचनाओं में जहाँ जीवन से संबंधित ज्वलंत समस्याओं को उठाया गया है, वहाँ उनके समाधानों की ओर संकेत भी किए गए हैं। सार रूप में कहा जा सकता है कि रामवृक्ष बेनीपुरी जी का साहित्य उच्चकोटि का साहित्य है, जिससे मानवता के विकास की प्रेरणा मिलती है।

4. भाषा-शैली-श्री रामवृक्ष बेनीपुरी के साहित्य की भाषा सरल, सहज, रोचक एवं ओजस्वी है। अलंकृत एवं भावनापूर्ण शैली के कारण हिंदी गद्य-साहित्य में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन्होंने अपनी रचनाओं में संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ तद्भव, देशज, उर्दू-फारसी व अंग्रेज़ी के शब्दों का अत्यंत सटीक एवं सार्थक प्रयोग किया है। इन्होंने लोक प्रचलित मुहावरों व लोकोक्तियों का भी सफल प्रयोग किया है।

बालगोबिन भगत पाठ का सार

प्रश्न-
‘बालगोबिन भगत’ शीर्षक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘बालगोबिन भगत’ एक रेखाचित्र है। लेखक ने इसमें एक ऐसे विलक्षण चरित्र का वर्णन किया है जो मानवता, संस्कृति और सामूहिक चेतना का प्रतीक है। लेखक की मान्यता है कि वेशभूषा व बाह्य दिखावे से कोई संन्यासी नहीं होता। संन्यास का आधार तो जीवन के मानवीय सरोकार होते हैं। पाठ का सार इस प्रकार है

बालगोबिन भगत मँझोले कद के गोरे वर्ण के व्यक्ति थे। उनकी आयु साठ से ऊपर की थी। उनके सिर के बाल और दाढ़ी सफेद थे। वे शरीर पर कपड़ों के नाम पर केवल एक लंगोटी बाँधते थे और सिर पर कबीर टोपी पहनते थे और सर्दी के मौसम में काली कमली ओढ़ लेते थे। वे माथे पर चंदन और गले में तुलसी की जड़ों की माला पहनते थे। वे संन्यासी नहीं, गृहस्थ थे और थोड़ी बहुत खेतीबाड़ी भी करते थे। वे गृहस्थ होते हुए भी साधु की परिभाषा में खरे उतरते थे। वे कबीर के विचारों से बहुत प्रभावित थे। वे सदा सत्य बोलते और सद्व्यवहार करते थे। वे किसी से व्यर्थ में झगड़ा मोल नहीं लेते थे। वे बिना पूछे किसी वस्तु को नहीं छूते थे। उनके लिए कबीर ‘साहब’ थे और उनका सब कुछ ‘साहब’ का था। उनके खेत में जो फसल उत्पन्न होती थी, उसे वे सबसे पहले साहब के दरबार में ले जाते थे। वह उनके घर से चार कोस दूर था।

बालगोबिन भगत एक अच्छे गायक भी थे। उनका मधुर गान सदा सुनाई पड़ता था। वे कबीर के पदों को गाते रहते थे। आषाढ़ आते ही खेतों में धान की रोपाई शुरू हो जाती थी। पूरा गाँव, अर्थात् आदमी, औरतें और बच्चे खेतों में दिखाई देते थे। खेतों में रोपाई करते समय हर किसी के कानों में गाने का स्वर गूंजता रहता था। उनके संगीत से सारा वातावरण संगीतमय हो जाता था। सभी लोग एक ताल में एक क्रम में काम करने लगते थे। वे भादों की अंधेरी रातों में पिया के प्यार के गीत गाते थे। उनके अनुसार पिया के साथ होते हुए भी प्रियतमा अपने-आपको अकेली समझती है और बिजली की चमक से चौंक उठती है। जब सारा संसार सो रहा होता था, उस समय बालगोबिन का संगीत जाग रहा होता था। बालगोबिन कार्तिक से फागुन तक प्रभाती गाया करते थे। वे सुबह अंधेरे में उठकर, दो मील चलकर नदी स्नान करते थे। वापसी में गाँव के बाहर पोखरे पर वे अपनी खजड़ी लेकर बैठ जाते और गीत गाने लगते थे। लेखक को देर तक सोने की आदत थी, परंतु एक दिन उसकी आँख जल्दी खुल गई। वे माघ के दिन थे। लेखक को बालगोबिन का संगीत गाँव के बाहर पोखर पर ले गया। वे अपने संगीत में बहुत मस्त थे। उनके माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं लेकिन लेखक ठंड के मारे काँप रहा था। गर्मियों में उमसभरी शाम को वे अपने गीतों से शीतल कर देते थे। उनके गीत लोगों के मन से होते हुए तन पर हावी हो जाते थे। वे भी बालगोबिन की तरह मस्ती में नाचने लगते थे। उनके घर का आँगन संगीत-भक्ति से ओत-प्रोत हो जाता था।

बालगोबिन की संगीत साधना का चरमोत्कर्ष उस दिन देखने को मिला जिस दिन उनके बेटे की मृत्यु हुई थी। उनका एक ही बेटा था जो कुछ सुस्त रहता था। वे उसे अत्यधिक प्रेम करते थे और उसका ध्यान भी रखते थे। वह उनका इकलौता बेटा था। उसकी शादी भी उन्होंने बड़ी साध से करवाई थी। उनकी पुत्रवधू गृह प्रबंध में अत्यंत कुशल थी। उसने आते ही घर का सारा काम-काज संभाल लिया था। लेखक बालगोबिन भगत के उस कार्य से हैरान रह गया था। उन्होंने अपने पुत्र के शव को सफेद वस्त्र से ढक रखा था। उसके सिर की ओर चिराग जला रखा था। वे अपनी पुत्रवधू को भी उत्सव मनाने के लिए कहते हैं, क्योंकि उनका मानना था कि उसकी आत्मा परमात्मा के पास चली गई है। भला इससे बढ़कर आनंद की क्या बात हो सकती है? यह उनका विश्वास बोल रहा था। वह विश्वास जो मृत्यु पर विजयी होता आया है। उन्होंने अपनी पतोहू से ही बेटे की चिता में अग्नि दिलवाई थी। बालगोबिन ने अपनी पुत्रवधू के भाई को बुलाकर कहा था कि इसे यहाँ से ले जाओ और इसका विवाह कर दो। किंतु वह वहाँ रहकर बालगोबिन भगत की सेवा करना चाहती थी। लेकिन बालगोबिन का कहना था कि वह अभी जवान है और उसका अपनी इंद्रियों पर काबू रखना मुश्किल है। किंतु वह आग्रह कर रही थी कि मुझे अपने चरणों में ही रहने दो। भगत भी अपने निर्णय पर अटल थे। उन्होंने कहा कि यदि तू यहाँ रहेगी तो मुझे घर छोड़कर जाना पड़ेगा।

बालगोबिन भगत की मौत वैसे ही हुई जैसी वह चाहते थे। वे हर वर्ष गंगा-स्नान तथा संत-समागम के लिए जाते थे। वे घर से खाकर चलते थे और घर पर ही आकर खाते थे। उन्हें गंगा-स्नान के लिए आने-जाने में चार-पाँच दिन लग जाते थे। वे गृहस्थी थे, इसलिए किसी से भीख भी नहीं माँग सकते थे। इस बार जब गंगा-स्नान करके लौटे तो खाने-पीने के बाद भी उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं हुआ। तेज़ बुखार में भी उनके नेम-व्रत वैसे ही चलते रहे। लोगों ने नहाने-धोने व काम करने से मना किया और आराम करने के लिए कहा। उस संध्या को भी गीत गाए। ऐसा लगता था कि उसके जीवन का धागा टूट गया हो। मानो माला का एक-एक मनका बिखर गया हो। भोर में लोगों ने उनका गीत नहीं सुना, जाकर देखा तो पता चला कि बालगोबिन नहीं रहे। वहाँ सिर्फ उनका पिंजर ही पड़ा था।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

कठिन शब्दों के अर्थ-

(पृष्ठ-70) मँझोले = न अधिक लंबे न छोटे। गोरे-चिट्टे = बहुत गोरे। जटाजूट = लंबे बाल। कबीरपंथी = कबीर के पंथ को मानने वाले। कनफटी. = ऐसी टोपी जिस पर कान के स्थान पर जगह कटी रहती थी। कमली = कंबल। मस्तक = माथा।
रामानंदी = रामानंद द्वारा प्रचलित। चंदन = माथे पर किया जाने वाला लेप। बेडौल = अनगढ़। गृहस्थ = विवाहित आदमी। गृहिणी = पत्नी। पतोहू = बेटे की पत्नी। खरा उतरना = सही सिद्ध होना। खरा व्यवहार रखना = सच्चा व्यवहार करना। दो-टूक बात करना = साफ-साफ बात कहना। संकोच करना = शरमाना, बचना। झगड़ा मोल लेना = जान-बूझकर लड़ाई करना। व्यवहार में लाना = प्रयोग करना। कुतूहल = जिज्ञासा, जानने की उत्सुकता। साहब = भगवान। दरबार = मंदिर, घर। प्रसाद = बाँट में मिलने वाला पदार्थ। मुग्ध = प्रसन्न, खुश। सर्वदा = हमेशा। सजीव = जीवित। रिमझिम = हल्की-हल्की बारिश। समूचा = सारा। रोपनी = धान के पौधे को खेत में रोपना। कलेवा = नाश्ता। मेंड़ = खेत का ऊँचा किनारा।

(पृष्ठ-71) पुरवाई = पूर्व दिशा से बहने वाली हवा। स्वर-तरंग = स्वर की लहर। झंकार = बजती हुई आवाज़। पंक्तिबद्ध = पंक्ति में बाँधे हुए। जीने = सीढ़ी। हलवाहों = किसान। ताल = संगीत। क्रम = सिलसिला। अधरतिया = आधी रात। मुसलधार वर्षा = तेज वर्षा। झिल्ली की झंकार = गहरी काली रातों में झाड़ियों से उठने वाला झींगुरों का स्वर। दादुर = मेंढक। खैजड़ी = डपली के आकार का उससे कुछ छोटा वाद्य-यंत्र। सखिया = सखी। चिहुँक = खुशी से चिल्ला पड़ना। कौंध उठना = चमक उठना। निस्तब्धता = सन्नाटा। प्रभाती = प्रातःकाल गाया जाने वाला गीत।

(पृष्ठ-72) पोखरे = छोटा तालाब। भिंडे = ऊँची उठी जगह। टेरना = ऊँची आवाज़ में बोलना। दाँत किटकिटानेवाली = ठंड के कारण दाँतों को कैंपाने वाली। लोही लगना = सुबह की लाली। कुहासा = कोहरा। रहस्य = छिपी हुई बात। आवृत = ढका हुआ। कुश = एक प्रकार की लंबी घास। ताँता लगना = लगातार निकलना। सुरूर = नशा। उत्तेजित = जोश से भड़का हुआ। श्रमबिंदु = पसीने की बूंदें। उमस = घुटन। करताल = तालियाँ। भरमार = अधिकता। तिहराती = तीसरी बार कहती। हावी होना = भारी पड़ना। नृत्यशील = नाचने को होना। ओतप्रोत = भरा हुआ। चरम उत्कर्ष = सबसे अधिक ऊँचाई। बोदा = कमज़ोर। निगरानी = देखभाल। साध = इच्छा, कामना। सुभग = सुंदर। सुशील = भले व्यवहार वाली। प्रबंधिका = प्रबंध करने वाली। निवृत्त = आज़ाद, मुक्त, अलग। कुतूहलवश = जानने की इच्छा के कारण। दंग = हैरान। चिराग = दीपक।

(पृष्ठ-73) तल्लीनता = पूरे मन से। उत्सव मनाना = त्योहार के समान खुशी मनाना। क्रिया-कर्म = मृत्यु के बाद निभाई जाने वाली रस्में। तूल करना = महत्त्व देना। आग दिलाना = मुर्दे को आग लगाना। श्राद्ध = मृत्यु के बाद पितरों की शांति के लिए किया गया क्रिया-कर्म। निर्णय = फैसला। अटल = जिसे टाला न जा सके। दलील = तर्क। आस्था = विश्वास। संत-समागम = संतों के साथ संगति करना। लोक-दर्शन = संतों के दर्शन। संबल = सहारा। भिक्षा = भीख। उपवास = भूखे रहना, व्रत रखना। टेक = आदत, नियम। तबीयत = स्वास्थ्य। नेम-व्रत = नियम-व्रत आदि। जून = समय। छीजन = कमज़ोर होना। तागा टूटना = जीवन की साँसें पूरी होना। पंजर = शरीर।

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