HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

HBSE 10th Class Hindi सवैया और कवित्त Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है?
उत्तर-
कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ श्रीकृष्ण के लिए प्रयुक्त किया है। उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक इसलिए कहा है क्योंकि जिस प्रकार मंदिर का दीपक संपूर्ण मंदिर में अपना प्रकाश फैलाता है; उसी प्रकार श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाओं एवं कलाओं से संपूर्ण संसार को प्रभावित किया है।

प्रश्न 2.
पहले सवैये में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है?
उत्तर-
निम्नलिखित पंक्तियों के रेखांकित अंशों में अनुप्रास अलंकार है।
पायनि नूपुर मंजु बजै, कटि किकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
निम्नलिखित पंक्तियों के रेखांकित अंशों में रूपक अलंकार है।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुख चंद जुन्हाई।
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सहाई ॥

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
पाँयनि नूपुर मंजु बसें, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई ॥
उत्तर-

  • इस काव्यांश में श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन किया गया है। उनके साँवले शरीर पर पीले वस्त्र सुशोभित हैं।
  • गले में वनमाला है। पाँवों में पाज़ेब और कमर में करधनी है।
  • अनुप्रास अलंकार की छटा देखते ही बनती है।
  • तत्सम शब्दावली युक्त ब्रजभाषा का प्रयोग है।
  • सवैया छंद है।
  • संपूर्ण पद में भाषा लयात्मक एवं संगीतमय है।
  • शब्द-योजना अत्यंत सार्थक बन पड़ी है।

प्रश्न 4.
दूसरे कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतुराज वसंत के बाल-रूप का वर्णन परंपरागत वसंत वर्णन से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर-
परंपरागत रूप से बसंत का वर्णन करते हुए कवि प्रायः ऋतु परिवर्तन की शोभा का वर्णन करते हैं। कवि रंग-बिरंगे फूलों, चारों ओर फैली हुई हरियाली, नायक-नायिकाओं का झूलना, राग-रंग आदि का उल्लेख करते हैं। वे नर-नारियों के हृदय में उत्पन्न रागात्मकता का वर्णन भी करते हैं। किंतु इस कवित्त में कविवर देव ने बसंत का एक बालक के रूप में चित्रण किया है। यह बालक कामदेव का बालक है। कवि ने दिखाया है कि सारी प्रकृति उसके साथ ऐसा व्यवहार करती है जैसा नवजात या छोटे बच्चों से व्यवहार किया जाता है। इससे कवि की बसंत ऋतु संबंधी कल्पनाशीलता का बोध होता है तथा यह भी स्पष्ट हो जाता है कि कवि देव के द्वारा किया गया बसंत वर्णन परंपरागत नहीं है।

प्रश्न 5.
‘प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै’-इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
काव्य में यह माना जाता है कि प्रातःकाल में जब कलियाँ खिलकर फूल बनती हैं तो ‘चट्’ की ध्वनि होती है। कवि ने इसी काव्य रूढ़ि का प्रयोग करते हुए बालक रूप बसंत को प्रातः जगाने के लिए गुलाब के फूलों की सहायता ली है। सुबह-सवेरे गुलाबों के खिलते समय चटकने की ध्वनि होती है। कवि ने कल्पना की है कि गुलाब के फूलों का चटककर खिलना ऐसा लगता है मानो वे चटक की ध्वनि से बालक रूपी बसंत को जगाते हैं।

प्रश्न 6.
चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने किन-किन रूपों में देखा है?
उत्तर-
चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने दूध, दही के समुद्र, सफेद संगमरमर के फर्श, गौरांगी तरुणियों, जिनके वस्त्र मोतियों एवं मल्लिका के फूलों से सुसज्जित हैं, के रूप में देखा है।

प्रश्न 7.
‘प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद’-इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करते हुए बताएँ कि इसमें कौन-सा अलंकार है?
उत्तर-
राधा का रूप अत्यंत सुंदर है। चाँदनी में नहाया राधा का रूप अति उज्ज्वल है। चंद्रमा की शोभा और चमक-दमक अपनी नहीं है, अपितु वह राधा के रूप को प्रतिबिंबित कर रही है। राधा चंद्रमा से भी अधिक सुंदर है। यहाँ रूढ़ उपमान (चाँद) उपमेय हो गया है। अतः यहाँ उपमेय उपमान बन गया है। यहाँ उपमा अलंकार है किंतु इस पंक्ति में उत्प्रेक्षा अलंकार का भी आभास मिलता है।

प्रश्न 8.
तीसरे कवित्त के आधार पर बताइए कि कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है?
उत्तर-
कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए निम्नलिखित उपमानों का प्रयोग किया है(1) स्फटिक शिला, (2) दूध का सागर, (3) सुधा-मंदिर, (4) आरसी, (5) दूध की झाग से बना फर्श, (6) आभा आदि।

प्रश्न 9.
पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-
पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

देव दरबारी कवि थे। उन्होंने अपने आश्रयदाताओं को प्रसन्न करने के लिए काव्य की रचना की है। उन्होंने जीवन के सुख-दुःख का वर्णन करने की अपेक्षा विलासमय जीवन का चित्रण किया है। उनके सवैये में श्रीकृष्ण के दूल्हा-रूप का चित्रण किया गया है। कवित्तों में बसंत और चाँदनी को राजसी-वैभव से परिपूर्ण रूप में चित्रित किया गया है।

प्रस्तुत काव्यांश में कविवर देव ने कल्पना शक्ति का परिचय देते हुए विषय को परंपरागत रूप से भिन्न रूप में प्रस्तुत किया है। वृक्षों को पालने के रूप में, पत्तों को बिछौने के रूप में, बसंत को बालक के रूप में, चाँदनी रात में आकाश को सुधा मंदिर के रूप में चित्रित करना देव की कल्पना शक्ति का परिचायक है।

पठित काव्यांश में सवैया और कवित्त छंदों का सुंदर प्रयोग किया गया है। देव के काव्य की भाषा में ब्रजभाषा का सुंदर एवं सटीक प्रयोग किया गया है। अनुप्रास, रूपक, उत्प्रेक्षा, उपमा आदि अलंकारों का सुंदर एवं सफल प्रयोग किया गया है। कोमलकांत शब्दावली का विषयानुकूल प्रयोग देखते ही बनता है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 10.
आप अपने घर की छत से पूर्णिमा की रात देखिए तथा उसके सौंदर्य को अपनी कलम से शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर-
पूर्णिमा की रात अपनी सुंदरता से हमेशा कवियों को लुभाती आई है। फिर सर्दकालीन पूर्णिमा की रात का तो कहना ही क्या? कल ही पूर्णिमा की रात थी। मैं अपने घर की छत पर गया तो देखा चाँद पूर्ण रूप से चमक रहा था। उसकी चाँदनी चारों ओर फैली हुई थी। ऐसा लगता था कि सारे संसार ने ही चाँदनी में नहाकर उज्ज्वल रूप धारण कर लिया है। आकाश में तारे भी चमक रहे थे। वातावरण अत्यंत शीतल एवं मनोरम था। मैं देर तक चाँदनी की उज्ज्वलता को निहारता रहा। वहाँ से उठने को मन ही नहीं कर रहा था। रात काफी बीत चुकी थी किंतु चाँदनी की उज्ज्वलता में कोई कमी नहीं आई थी।

यह भी जानें

कवित्त – कवित्त वार्णिक छंद है, उसके प्रत्येक चरण में 31-31 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण के सोलहवें या फिर पंद्रहवें वर्ण पर यति रहती है। सामान्यतः चरण का अंतिम वर्ण गुरु होता है।

‘पाँयनि नूपुर’ के आलोक में भाव-साम्य के लिए पढ़ें
सीस मुकुट कटि काछनि, कर, मुरली उर माल।
यों बानक मौं मन सदा, बसौ बिहारी लाल ॥ -बिहारी
रीतिकालीन कविता का बसंत ऋतु का एक चित्र यह भी देखिए-
कूलन में केलि में कछारन में कुंजन में,
क्यारिन में कलित कलीन किलकत है।

कहै पदमाकर परागन में पौनहू में
पातन में पिक में पलासन पगंत है।
द्वारे में दिसान में दुनी में देस देसन में ।
देखौ दीपदीपन में दीपत दिगंत है।
बीथिन में ब्रज में नबेलिन में बेलिन में
बनन में बागन में बगस्यौ बसंत है ॥

HBSE 10th Class Hindi सवैया और कवित्त Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
देव के काव्य की भाषा का सार रूप में वर्णन कीजिए।
उत्तर-
देव के काव्य की भाषा साहित्यिक ब्रजभाषा है। भाषा के सौष्ठव, समृद्धि एवं अलंकरण पर देव का विशेष ध्यान रहा है। इनकी कविता में पद-मैत्री, यमक और अनुप्रास अलंकारों के पर्याप्त दर्शन होते हैं। भाषा में रसाता और गति कम पाई जाती है। कहीं-कहीं शब्द व्यय अधिक और अर्थ बहुत अल्प पाया जाता है। देव की भाषा में मुहावरों और लोकोक्तियों का सुंदर प्रयोग देखने को मिलता है।

प्रश्न 2.
देव के काव्य के कलापक्ष पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
देव के काव्य के अध्ययन से ज्ञात होता है कि उन्होंने परंपरागत काव्य-शैली का सफल प्रयोग किया है। उन्होंने कवित्त, सवैया आदि छंदों का सुंदर प्रयोग किया है। चित्रकला और अभिव्यञ्जना के सुंदर समन्वय की कला में देव का मुकाबला नहीं किया जा सकता। उन्होंने ब्रजभाषा के साहित्यिक रूप का प्रयोग किया है। देव ने ब्रजभाषा के साथ-साथ तत्सम, तद्भव, देशज, फारसी आदि के शब्दों का भी खुलकर प्रयोग किया है। रीतिकाल के कवियों में देव संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् थे, इसलिए उनके काव्य की भाषा भी पाण्डित्यपूर्ण है। उन्होंने विभिन्न अलंकारों के सफल प्रयोग से अपनी कविता को सजाया है।

प्रश्न 3.
कवि देव द्वारा चाँदनी रात का वर्णन किस रूप में किया गया है? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
उत्तर-
चाँदनी रात न केवल कवियों का ही मन आकृष्ट करती है, अपितु हर व्यक्ति को अच्छी लगती है। चाँदनी रात की आभा संसार को सुंदरता प्रदान करती है। कवि ने बताया है कि स्फटिक की शिलाओं से अमृत-सा उज्ज्वल भवन चमक उठता है। दही के सागर की तरंगें अपार मात्रा में चमक उठती हैं। चाँदनी की अधिकता के कारण दीवारें भी कहीं दिखाई नहीं देतीं। सारा भवन चाँदनी से नहाया हुआ-सा लगता है। राधा भी चाँदनी में झिलमिलाती हुई-सी लगती है; जैसे मोती की आभा में मल्लिका के पराग की सुगंध मिली हुई हो। चंद्रमा की जगमगाहट राधा के प्रतिबिंब का ही रूप लगता है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

प्रश्न 4.
श्रीकृष्ण की हँसी की तुलना कवि ने चाँदनी से क्यों की है?
उत्तर-
जिस प्रकार चाँद की चाँदनी चारों ओर फैलकर वातावरण को सुंदर बना देती है; उसी प्रकार श्रीकृष्ण की हँसी भी सभी के चेहरों पर खुशी ला देती है। इसलिए कवि ने श्रीकृष्ण की हँसी की तुलना चाँदनी से की है। (ख) संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 5.
कवि ने सवैये में किस प्रकार की संतष्टि प्रदान की है?
उत्तर-
कविवर देव के प्रथम सवैये में श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का चित्रण किया गया है। कविवर देव द्वारा रचित सवैया में श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन किया गया है। प्रस्तुत कवितांश में कवि ने श्रीकृष्ण को ‘ब्रजदूल्हा’ के रूप में चित्रित किया है। श्रीकृष्ण को जिस रूप में चित्रित किया गया है वह रूप लोगों के मन को अत्यधिक भाता है। लोग श्रीकृष्ण के सुसज्जित रूप को देखकर अधिक संतुष्ट होते हैं। श्रीकृष्ण के इस रूप को देखकर उन्हें आत्मिक सुख व आनंद मिलता है। इस सवैये का महत्त्व इसी आत्मिक सुख व संतुष्टि में है।

प्रश्न 6.
देव के कवित्तों की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कवित्तों में कवि के सौंदर्यबोध का पता चलता है। प्रथम कवित्त में बसंत ऋतु का वर्णन परंपरा से हटकर किया गया है। कवि ने बसंत को बालक के रूप में चित्रित किया है। यह कवि की अत्यंत सुंदर कल्पना है। साथ ही कवि ने प्रकृति के विभिन्न अवयवों की भी सुंदर कल्पना की है। इसी प्रकार दूसरे कवित्त में चाँदनी रात के विभिन्न चित्र अंकित किए गए हैं। राधिका जी के रूप की उज्ज्वलता ही चंद्रमा की उज्ज्वलता के रूप में प्रतिबिंबित होने की सुंदर कल्पना की गई है। इन कवित्तों में कलात्मकता देखते ही बनती है। कवि ने प्रकृति के विभिन्न अवयवों को कल्पना के चाक पर चढ़ाकर अत्यंत सुंदर रूप प्रदान किया है।

प्रश्न 7.
‘देव दरबारी कवि थे’ इस विषय पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर-
निश्चय ही देव दरबारी कवि थे अर्थात् उन्होंने विभिन्न राजाओं के दरबार में रहकर उन्हें प्रसन्न करने के लिए काव्य लिखा है। देव के तीनों पठित कवितांशों में दरबारी संस्कृति के दर्शन होते हैं। इन तीनों कविताओं में दरबारी चमक-दमक तथा राजसी ठाठ-बाठ देखे जा सकते हैं। श्रीकृष्ण मुकुट, पाजेब, करधनी आदि आभूषणों से सुसज्जित हैं। तत्कालीन राजा भी आभूषण धारण करते थे। इसी प्रकार कवित्त में बालक बसंत को भी अत्यंत लाड-प्यार से पले बालक के समान दिखाया है। वृक्ष पालना झुलाते हैं तो विभिन्न पक्षी अपनी मधुर ध्वनियों से उसका मन बहलाते हैं। प्रातःकाल उसे कलियाँ चटकाकर जगाता है। इसी प्रकार दूसरे कवित्त में भी राधा के रूप-सौंदर्य का चित्रण किया गया है। इस कवित्त में राजाओं के महलों, राजसी वैभव का उद्दीपन रूप में चित्रण किया गया है। इन तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है कि देव दरबारी कवि थे तथा उनका काव्य दरबार के हाव-भाव के अनुकूल रखा गया है।

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कविवर देव ने ‘सवैया’ में किसकी सुंदरता का वर्णन किया है?
उत्तर-
कविवर देव ने ‘सवैया’ में श्रीकृष्ण की सुंदरता का वर्णन किया है।

प्रश्न 2.
बसंत रूपी बालक को किसका पुत्र बताया गया है?
उत्तर-
बसंत रूपी बालक को कामदेव का पुत्र बताया गया है।

प्रश्न 3.
श्रीकृष्ण की आँखें कैसी थीं?
उत्तर-
श्रीकृष्ण की आँखें बड़ी-बड़ी एवं चंचल थीं।

प्रश्न 4.
श्रीब्रजदूलह के किरीट कहाँ शोभा देता है?
उत्तर-
श्रीब्रजदूलह के किरीट माथे पर शोभा देता है।

प्रश्न 5.
हाथ की ताली बजाकर बसंत को कौन प्रसन्न करता है?
उत्तर-
हाथ की ताली बजाकर बसंत को कोयल प्रसन्न करती है।

प्रश्न 6.
‘श्रीब्रजदूलह’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
उत्तर-
श्रीब्रजदूलह’ शब्द श्रीकृष्ण के लिए प्रयुक्त हुआ है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

प्रश्न 7.
कवि ने चंद्रमा को किसका प्रतिबिंब बताया है?
उत्तर-
कवि ने चंद्रमा को राधा के मुख का प्रतिबिंब बताया है।

प्रश्न 8.
‘पवन झुलावै, केकी-कीर बतरावै’-यहाँ ‘कीर’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
यहाँ ‘कीर’ का अर्थ तोता है।

प्रश्न 9.
कवि के अनुसार भवन में किसकी तरंगों-सा अपार आनंद उमड़ रहा है?
उत्तर-
कवि के अनुसार भवन में दही के समुद्र की तरंगों-सा अपार आनंद उमड़ रहा है।

प्रश्न 10.
‘मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई’–यहाँ जुन्हाई’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
यहाँ ‘जुन्हाई’ का अर्थ चाँदनी है।

प्रश्न 11.
‘जै जग-मंदिर-दीपक’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर-
इसमें रूपक अलंकार है।

प्रश्न 12.
श्रीकृष्ण की कमर पर क्या बंधी हुई थी? ।
उत्तर-
श्रीकृष्ण की कमर पर किंकिनि (तगड़ी) बँधी हुई थी।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कविवर देव ने ‘सवैया’ में किसकी सुंदरता का वर्णन किया है?
(A) श्रीकृष्ण की
(B) राधिका की
(C) श्रीराम की
(D) सीता की
उत्तर-
(A) श्रीकृष्ण की

प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण ने पैरों में क्या पहना है?
(A) पायल
(B) कंगन
(C) नूपुर
(D) माला
उत्तर-
(C) नूपुर

प्रश्न 3.
‘कटि’ का अर्थ है
(A) कटी हुई
(B) पतली
(C) कमर
(D) पेट
उत्तर-
(C) कमर

प्रश्न 4.
श्रीकृष्ण किंकिनि कहाँ पहने हैं?
(A) कटि में
(B) पाँयनि में
(C) माथे पर
(D) वक्षस्थल पर
उत्तर-
(A) कटि में

प्रश्न 5.
श्रीकृष्ण ने किस रंग के कपड़े पहने थे?
(A) लाल
(B) पीले
(C) नीले
(D) काले
उत्तर-
(B) पीले

प्रश्न 6.
श्रीकृष्ण ने माथे पर क्या धारण किया हुआ था?
(A) साफा
(B) ताज
(C) कलगी
(D) मुकुट
उत्तर-
(D) मुकुट

प्रश्न 7.
श्रीकृष्ण ने किरीट कहाँ पहना हुआ है?
(A) पाँयनि में
(B) माथे पर
(C) वक्षस्थल पर
(D) कटि में
उत्तर-
(B) माथे पर

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

प्रश्न 8.
‘जग-मंदिर’ किसे कहा गया है?
(A) पृथ्वी को
(B) समुद्र को
(C) मंदिर को
(D) संसार को
उत्तर-
(D) संसार को

प्रश्न 9.
कवि के अनुसार श्रीब्रज दूलह कौन हैं?
(A) विष्णु
(B) श्रीकृष्ण
(C) ग्वाले
(D) बाबा नंद
उत्तर-
(B) श्रीकृष्ण

प्रश्न 10.
‘जै जग-मंदिर-दीपक’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) उपमा
(B) अनुप्रास
(C) पुनरुक्ति प्रकाश
(D) रूपक
उत्तर-
(D) रूपक

प्रश्न 11.
‘डार द्रुम …………. गुलाब चटकारी दै’ कविता में किसका वर्णन किया गया है?
(A) वर्षा ऋतु का
(B) ग्रीष्म ऋतु का
(C) बसंत ऋतु का
(D) शरद ऋतु का
उत्तर-
(C) बसंत ऋतु का

प्रश्न 12.
बसंत से कौन-कौन बातें करते हैं?
(A) चिड़िया और कौआ
(B) मोरनी और तोता
(C) कबूतर और गिद्ध
(D) कोयल और बगुला
उत्तर-
(B) मोरनी और तोता

प्रश्न 13.
बसंत में झूला कौन झुलाता है?
(A) पवन
(B) कोयल
(C) मेघ
(D) भौंरा
उत्तर-
(A) पवन

प्रश्न 14.
कवि ने बसंत को किसका पुत्र बताया है?
(A) ब्रह्मा का
(B) इंद्रदेव का
(C) कुबेर का
(D) कामदेव का
उत्तर-
(D) कामदेव का

प्रश्न 15.
‘मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई’ यहाँ ‘जुन्हाई’ का अर्थ है
(A) जादूई हँसी
(B) जुदाई
(C) चाँदनी
(D) चंद्रमा
उत्तर-
(C) चाँदनी

प्रश्न 16.
फर्श पर फैली चाँदनी कैसी लग रही थी?
(A) सागर-सी
(B) दूध की झाग-सी
(C) सफेद वस्त्र-सी
(D) बादल-सी
उत्तर-
(B) दूध की झाग-सी

प्रश्न 17.
दूसरे कक्ति में किसके सौंदर्य का चित्रण किया गया है?
(A) श्रीकृष्ण के
(B) राधिका के
(C) सीता के
(D) इंद्र की पत्नी शची के
उत्तर-
(B) राधिका के

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

प्रश्न 18.
द्वितीय पद्य में किसका चित्रण किया गया है?
(A) अंधेरी रात का
(B) आधी रात का
(C) पूर्णिमा की रात का
(D) चाँदनी रात का
उत्तर-
(C) पूर्णिमा की रात का

प्रश्न 19.
‘पवन झुलावै, केकी-कीर बतरावै’ यहाँ ‘कीर’ का अर्थ है-
(A) कीकर
(B) तोता
(C) खीर
(D) मोर
उत्तर-
(B) तोता

प्रश्न 20.
कवि ने बसंत को किस रूप में चित्रित किया है?
(A) बालक रूप में
(B) युवा रूप में
(C) किशोर रूप में
(D) वृद्ध रूप में
उत्तर-
(A) बालक रूप में

प्रश्न 21.
‘मदन’ शब्द का अर्थ है
(A) नशा
(B) कामदेव
(C) अभिमान
(D) शराब
उत्तर-
(B) कामदेव

सवैया और कवित्त पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. सवैया

[1] पाँयनि नूपुर मंजु बसें, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई। माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई। जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सहाई ॥ [पृष्ठ 20]

शब्दार्थ-पाँयनि = पाँव। नूपुर = पायल। मंजु = सुंदर। कटि = कमर। किंकिनि = करधनि। लसै = सुंदर लगती है। पट = वस्त्र। पीत = पीला। हिये = हृदय। हुलसै = आनंदित होना। बनमाल = फूलों की माला। सुहाई = सुशोभित होना। किरीट = मुकुट । दृग = आँखें। मंद = धीमी। मुखचंद = चाँद-सा मुख । जुन्हाई = चाँदनी रात। जग-मंदिर = संसार रूपी मंदिर। श्रीब्रजदूलह = श्रीकृष्ण। सहाई = सहायक।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस सवैये का प्रसंग स्पष्ट करें।
(ग) प्रस्तुत सवैये की व्याख्या कीजिए।
(घ) श्रीकृष्ण ने पाँव में क्या पहना हुआ है?
(ङ) श्रीकृष्ण की कमर में मधुर ध्वनि किस कारण से उत्पन्न हो रही है?
(च) श्रीकृष्ण के मुख एवं नेत्रों की शोभा का वर्णन कीजिए।
(छ) ‘जग-मंदिर-दीपक’ किसे कहा गया है?
(ज) ‘ब्रजदूलह’ किसे कहा गया है? उसके रूप-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(झ) प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ञ) प्रस्तुत पद के शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ट) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त भाषागत विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम देव। कविता का नाम-सवैया।

(ख) प्रस्तुत सवैया कविवर देव के श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य संबंधी ‘सवैयों’ में से लिया गया है। इसमें उन्होंने बालक श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का अत्यंत मनोरम चित्रण किया है।

(ग) कवि देव श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि श्रीकृष्ण के पाँवों में सदैव धुंघरू वाली पाजेब बजती रहती है जो पाँवों की सुंदरता को बढ़ाती है। उनकी कमर पर बँधी हुई तगड़ी की मधुर ध्वनि भी उनके चलते समय सुनाई देती है। उनके साँवले शरीर पर पीले वस्त्र सुशोभित हो रहे हैं। उनके गले में वन के फूलों की माला बड़ी मनोहर लग रही है। श्रीकृष्ण के माथे पर मुकुट विराजमान है। उनकी बड़ी-बड़ी आँखें अत्यंत चंचल हैं। उनके चेहरे की हँसी ऐसी लगती है मानो चाँद की चाँदनी ही उनके चेहरे पर उतर आई हो। इस संसार रूपी मंदिर में ब्रज के दूल्हे श्रीकृष्ण दीपक के समान हैं। कवि कामना करता है कि विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण सबके सहायक बने रहें।

(घ) श्रीकृष्ण ने अपने पाँवों में धुंघरुओं वाली पाजेब पहनी हुई है।

(ङ) श्रीकृष्ण ने अपनी कमर में करधनी (तगड़ी) पहनी हुई है। उसके किनारे पर छोटे-छोटे घुघरू बँधे हुए हैं। जब भी बालक कृष्ण चलता है तो धुंघरू हिलने के कारण बजते हैं। इस कारण ही श्रीकृष्ण की कमर से मधुर ध्वनि उत्पन्न होती है।

(च) श्रीकृष्ण के मुख पर सदा मंद-मंद हँसी बिखरी रहती है। उनका मुख चंद्रमा के समान उज्ज्वल प्रतीत होता है तथा उनके नेत्र विशाल एवं चंचल हैं।

(छ) ‘जग-मंदिर’ संसार को कहा गया है और ‘दीपक’ श्रीकृष्ण को। संसार रूपी मंदिर में श्रीकृष्ण दीपक के समान सुशोभित हैं।

(ज) ‘ब्रजदूलह’ बालक श्रीकृष्ण को कहा गया है। वे ब्रज प्रदेश में सबसे सुंदर हैं। उनके पाँवों में पाजेब, कमर में धुंघरू वाली करधनी, साँवले शरीर पर पीले वस्त्र सुशोभित हैं और उनका मुख चाँद के समान सुंदर तथा नेत्र विशाल एवं चंचल हैं। इस प्रकार वे सजे हुए दूल्हे के समान लगते हैं।

(झ) इस पद में कवि ने श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन परंपरागत रूप से किया है। इसमें बालक कृष्ण की मनोरम छवि को अंकित किया है। बालक कृष्ण का रूप अत्यंत आकर्षक है जो बरबस सबका मन अपनी ओर खींच लेता है।

(ज)

  • कवि ने इस सवैये में श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य को कलात्मकतापूर्ण व्यक्त किया है।
  • इस काव्यांश में ब्रजभाषा का सुंदर एवं सटीक प्रयोग हुआ है।
  • सवैया छंद का प्रयोग देखते ही बनता है।
  • भाषा सुकोमल एवं माधुर्यगुण संपन्न है।
  • रूपक एवं अनुप्रास अलंकारों का सफल प्रयोग किया गया है।

(ट) इस काव्यांश में ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है। भाषा माधुर्यगुण संपन्न है। भाषा आदि से अंत तक संगीत एवं प्रवाहमयी बनी हुई है। भाषा में विषयानुकूल शब्दावली का प्रयोग किया गया है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

2. कवित्त

[1] डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावें ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै॥
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै॥ [पृष्ठ 21]

शब्दार्थ-डार द्रुम = पेड़ की डाल। बिछौना = बिस्तर। नव पल्लव = नए पत्ते। झिंगूला = फूलों का झबला, ढीला-ढाला वस्त्र। सोहै = सुशोभित है। छबि = सुंदरता। केकी = मोर। कीर = तोता। बतरावें = बाँटना, हाल बाँटना। कोकिल = कोयल। हुलसावै = प्रसन्न करती है। कर तारी दै = हाथ की ताली देकर। पूरित = भरा हुआ। पराग = फूलों के सुगंधित कण। उतारो करै राई नोन = बच्चे की नज़र उतारने के लिए उसके सिर के चारों ओर राई-नमक घुमाकर आग में जलाने की क्रिया। कंजकली= कमल की कली। लतान = लताओं की। मदन = कामदेव। महीप = राजा। ताहि = उसे। चटकारी = चुटकी।

प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत काव्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत कवित्त की व्याख्या कीजिए।
(घ) इस पद में किस ऋत का वर्णन किस रूप में किया गया है?
(ङ) कवि ने किन-किन पक्षियों का किस-किस रूप में वर्णन किया है?
(च) कमल की कली रूपी नायिका बालक की नज़र क्यों उतार रही है?
(छ) इस काव्यांश में कवि ने किन-किन अमूर्त वस्तुओं को मूर्त रूप में प्रस्तुत किया है?
(ज) लताओं को देखकर कवि ने क्या कल्पना की है?
(झ) प्रातः किस प्रकार बसंत का स्वागत करती है?
(ञ) इस पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ट) इस पद में निहित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालें।
(ठ) इस पद में प्रयुक्त किन्हीं दो अलंकारों को स्पष्ट कीजिए।
(ड) उपर्युक्त काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-देव। कविता का नाम-कवित्त।

(ख) प्रस्तुत कवित्त हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित देव के कवित्तों में से उद्धृत है। इस कवित्त में कवि ने बसंत ऋतु का प्राकृतिक चित्रण किया है। बसंत को बालक रूप में चित्रित करके प्रकृति के साथ उसका रागात्मक संबंध दिखाया है।

(ग) कवि का कथन है कि बसंत रूपी बालक के लिए वृक्षों की डालियाँ पलना बन गईं तथा नए-नए पत्तों अर्थात् कोपलों का बिछौना (शैय्या) बन गया। कहने का भाव है कि बसंत रूपी बालक के सोने का सुंदर प्रबंध हो गया। उसके वस्त्र पुष्पों के हैं जो अत्यंत सुंदर हैं। उसके झूले को मंद-मंद गति से चलने वाली वायु झुला रही है। कवि देव का कथन है कि मोरनी और तोते उसे मीठी वाणी से आनंदित करते हैं लोरियाँ सुनाते हैं। कोयल अपने हाव-भाव से उसे प्रसन्न करने की चेष्टा करती है। मानों वह ताली बजाकर बच्चे को बहला रही है। कंजकली (कमल की कली) रूपी नायिका अपने पूर्ण सौंदर्य के रस से सनी हुई लताओं की साड़ी को सिर पर धारण कर, उस बच्चे की राई नोन उतारती अर्थात् उस पर आई आपत्तियाँ मिटाने का प्रयत्न करती है। कामदेव के पुत्र बसंत को प्रायः विमल कली चुटकी बजाकर जगाती है। जैसे माता बच्चे को प्यार से जगाती है, उसी प्रकार कली बसंत रूपी बालक को बड़े ध्यान से चुटकी बजाकर जगाने का प्रयत्न करती है।

(घ) प्रस्तुत पद में बसंत ऋतु का वर्णन एक बालक के रूप में किया गया है।

(ङ) कवि ने मोर और तोते को अपनी मधुर आवाज़ में बसंत रूपी बालक के साथ बातें करते हुए दिखाया है। कोयल को उल्लास में भरकर तथा करतल बजाकर बसंत रूपी बालक का पालना हिलाते हुए दिखाया है।

(च) बसंत रूपी बालक बहुत सुंदर है, जो सुंदर होते हैं उन्हें नज़र लगने का डर रहता है। इसलिए कमल की कली रूपी नायिका बसंत रूपी बालक की नज़र उतार रही है।

(छ) कवि ने यहाँ बसंत, फूल, कमल की कली, गुलाब आदि अमूर्त को मूर्त रूप में प्रस्तुत करके इनका मानवीकरण भी किया है। इसी प्रकार मोर, तोता, कोयल आदि का भी मानवीकरण किया गया है।

(ज) लताओं को देखकर कवि ने कल्पना की है कि मानो यह नायिका की ज़रीदार और फूलदार साड़ी है जिसे नायिका ने सिर तक ओढ़ रखा है।

(झ) प्रातःकाल, गुलाब का फूल लेकर बसंत रूपी बालक को जगाने आता है। वह उसे जगाकर सुगंधित झोंके से प्रसन्न करना

(ञ) प्रस्तुत कवित्त में कवि ने प्रकृति को उद्दीपन रूप में चित्रित किया है। बसंत को वैभव-विलास में पहले सुकोमल बालक के रूप में चित्रित किया गया है। प्रकृति के विभिन्न अंग बालक को प्रसन्न रखने का प्रयास करते हैं। कवि की कल्पनाएँ अत्यंत आकर्षक एवं मनोरम बन पड़ी हैं।

(ट)

  • तत्सम शब्दावली युक्त ब्रजभाषा का सफल प्रयोग किया गया है।
  • भाषा माधुर्यगुण संपन्न है।
  • कवित्त छंद का सफल प्रयोग द्रष्टव्य है।
  • वात्सल्य रस का वर्णन हुआ है।
  • संपूर्ण कवित्त का प्रमुख अलंकार मानवीकरण है। साथ ही रूपक एवं अनुप्रास अलंकारों की छटा भी द्रष्टव्य है।

(ठ) मानवीकरण-इसमें पवन को झूला झुलाते हुए दिखाया गया है। बसंत को बालक के रूप में दिखाया गया है। गुलाब का फूल चुटकी बजाकर बालक बसंत को जगाता है। इस प्रकार पवन, बसंत, गुलाब के फूल का मानवीकरण किया गया है।
रूपक-मदन महीप, बालक बसंत, कंजकली नायिका आदि में रूपक अलंकार है।

(ड) कवि देव ने इन काव्य पंक्तियों में साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। इस भाषा में माधुर्य गुण विद्यमान है। उन्होंने ब्रजभाषा में प्रचलित लोकभाषा के शब्दों का प्रयोग किया है। तत्सम और तद्भव शब्दों का सफल प्रयोग भाषा में आदि से अन्त तक दिखलाई पड़ता है। लोक प्रचलित मुहावरों के प्रयोग से भाषा सारगर्भित एवं प्रभावशाली बन पड़ी है।

[2] फटिक सिलानि सौं सुधार्यो सुधा मंदिर,
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए ‘देव’,
दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद।
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद ॥ [पृष्ठ-22]

शब्दार्थ-फटिक = स्फटिक मणि, संगमरमर। सिलानि = शिलाएँ, पत्थर। सुधार्यो = बना हुआ। सुधा = चूना। उदधि= समुद्र। उमगे = उमड़ पड़ रहा है। अमंद = जो कम न हो, अत्यधिक। भीति = दीवार। फेन = झाग। फरसबंद = चबूतरा। तरुनि = तरुणी (राधिका)। ठाढ़ी = खड़ी हुई। जोति = ज्योति। मल्लिका = बेले की जाति का एक सफेद फूल । मकरंद = पराग। आरसी = एक गोल आभूषण जिसमें छोटा-सा दर्पण लगा होता था। स्त्रियाँ उसे हाथ के अंगूठे में पहनती थीं। अंबर = आकाश। आभा = चमक। उजारी = प्रकाश, चाँदनी।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस कवित्त का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत कवित्त की व्याख्या कीजिए।
(घ) पद के अनुसार भवन में किसकी तरंगों-सा अपार आनंद उमड़ रहा है?
(ङ) आँगन और फर्श पर चाँदनी किस प्रकार फैली हुई थी?
(च) राधा में किसकी ज्योति और सुगंध मिली हुई थी?
(छ) पठित पद में आकाश कैसा प्रतीत हो रहा है?
(ज) चाँद की तुलना राधा से क्यों की गई है?
(झ) इस कवित्त में किस समय का वर्णन किया गया है?
(ञ) प्रस्तत कवित्त में निहित भाव-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ट) इस कवित्त में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ठ) उपर्युक्त काव्यांश की भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम देव। कविता का नाम-कवित्त।

(ख) प्रस्तुत कवित्त हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित देव के कवित्तों में से लिया गया है। इस कवित्त में कवि ने दूध से नहाई हुई पूर्णिमा की चाँदनी रात का वर्णन किया है। चाँद और तारों की छटा अनोखी है।

(ग) कवि का कथन है कि राधा का रंगमहल सफेद संगमरमर के पत्थरों से बना हुआ है। उस सफेद रंगमहल में आनंद ऐसे उमड़ रहा है, जैसे दही का समुद्र ऊँची हिलोरें ले रहा हो। देव कवि कहते हैं कि शुभ्रता (सफेदी) के कारण बाहर से भीतर तक महल की दीवारें दिखाई नहीं दे रही हैं। उस महल के आँगन के चबूतरे पर दूध का झाग-सा फैला हुआ है, मानों दूध की तरह सफेद फर्शबंद (कालीन) से उसे ढक दिया गया हो। उस भव्य और सफेद महल के सफेद कालीन पर खड़ी हुई तरुणी राधा अपने ही प्रकाश से झिलमिला रही है। राधा की मुस्कुराहट से मोतियों को सफेद चमक मिलती है और मल्लिका के फूलों को सुगंधित शुभ्रता। राधा की गुराई (गोरा रंग) इतनी प्रभावपूर्ण है कि दर्पण की तरह चमकने वाले आकाश में प्रकाश फैला रही है। ऐसा प्रतीत होता है मानों चंद्रमा प्यारी राधा का प्रतिबिंब हो। चंद्रमा राधा के गोरे मुख से चमक रहा है। इसलिए राधा का गोरा रंग संसार की सभी वस्तुओं की शुभ्रता का कारण है।

(घ) भवन में दही के समुद्र-सी तरंगों का अपार आनंद उमड़ रहा है।

(ङ) आँगन और फर्श पर दूध की झाग-सी चाँदनी फैली हुई है।

(च) राधा में मोतियों की चमक और मल्लिका (जूही) की सुगंध मिली हुई है।

(छ) पठित पाठ से पता चलता है कि चाँदनी रात में आकाश आइने के समान साफ, स्वच्छ और उज्ज्वलता से परिपूर्ण लगता है।

(ज) आकाश में चाँद असंख्य तारों के बीच अकेला होता है जिसकी चाँदनी से सारा आकाश नहाया हुआ-सा लगता है। इसी प्रकार अनेक गोपियों के बीच राधा का सौंदर्य भी अलग ही प्रतीत होता है। वह सबसे अलग नज़र आती है। इसीलिए कवि ने चाँद में राधिका के प्रतिबिंब की कल्पना की है।

(झ) इस कवित्त में रात्रि का वर्णन किया गया है। यह पूर्णिमा की रात्रि है। इसमें संपूर्ण प्रकृति चाँद की चाँदनी में नहाई-सी प्रतीत होती है।

(ञ) प्रस्तुत पद में कवि ने पूर्णिमा की चाँदनी रात का मनोहारी चित्रण किया है। आकाश को चाँदनी में नहाया हुआ बताया गया है। चाँदनी रात की आभा के माध्यम से कवि ने राधा की अपार सुंदरता का वर्णन किया है। उसकी सुंदरता से ही मानो चाँद ने भी सुंदरता प्राप्त की है। चाँद की चाँदनी का प्रभाव अति व्यापक है जिसने सारे भवन को भी उज्ज्वलता प्रदान की है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

(ट)

  • तत्सम शब्दावली युक्त ब्रजभाषा का सफल प्रयोग किया गया है।
  • कवित्त छंद है।
  • माधुर्य गुण विद्यमान है।
  • उत्प्रेक्षा, उपमा, रूपक, अनुप्रास आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
  • शृंगार रस का परिपाक हुआ है।

(ठ) देव-कृत इन काव्य पंक्तियों में शुद्ध साहित्यिक ब्रजभाषा का सफल प्रयोग किया गया है। उन्होंने संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग भी किया है, फलस्वरूप कहीं-कहीं भाषा कुछ जटिल बन गई है। अलंकारों के सही प्रयोग से भाषा एवं विषय में रोचकता उत्पन्न की गई है। भाषा पांडित्य लिए हुए है।

सवैया और कवित्त Summary in Hindi

सवैया और कवित्त कवि-परिचय

प्रश्न-
कविवर देव का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-रीतिकालीन काव्य-परंपरा के कवियों में ‘देव’ का विशिष्ट स्थान है। इनका पूरा नाम देवदत्त द्विवेदी था। इनके पूर्ण जीवन-वृत्त के बारे में विद्वानों को अधिक ज्ञान प्राप्त नहीं हो पाया। ‘भाव प्रकाश’ के एक दोहे के अनुसार इनका जन्म इटावा में सन् 1673 में हुआ था। इनके जन्म-स्थान के बारे में एक उक्ति भी है-
“योसरिया कवि देव को नगर इटावो वास।”

कुछ विद्वानों ने कविवर बिहारी को इनका पिता माना है, लेकिन अन्य लोग कहते हैं कि इनके पिता वंशीधर थे। इनका कोई भाई नहीं था, परंतु दो पुत्र थे भवानी प्रसाद और पुरुषोत्तम । कवि देव के गुरु श्री हितहरिवंश थे, जो वृंदावन में रहते थे। देव किसी भी राजा या नवाब के यहाँ अधिक देर तक नहीं टिक सके। आज़मशाह, राजा सीताराम, कुशल सिंह तथा राजा योगी लाल आदि के यहाँ इन्होंने आश्रय ग्रहण किया। ये लगभग समूचे देश में भ्रमण करते रहे। इनका देहांत सन् 1767 के आस-पास माना जाता है। इनके वंशज अब भी इटावा में रहते हैं।

2. रचनाएँ-कवि देव की रचनाओं की संख्या 52 या 72 मानी जाती है, लेकिन डॉ० नगेंद्र ने इनके ग्रंथों की संख्या 20 मानी है। इनके उल्लेखनीय ग्रंथों में ‘भाव-विलास’, ‘रस-विलास’, ‘भवानी-विलास’, ‘कुशल-विलास’, ‘सुमिल विनोद’, ‘सुजान विनोद’, ‘काव्य-रसायन’, ‘जयसिंह विनोद’, ‘अष्टयाम’, ‘प्रेम-चंद्रिका’, ‘वैराग्य-शतक’, ‘देव-चरित्र’, ‘देवमाया प्रपंच’ तथा ‘सुखसागर तरंग’ आदि हैं। इनके नाम के साथ कुछ संस्कृत की रचनाएँ भी जुड़ी हुई हैं।

3. काव्यगत विशेषताएँ-देव ने केशव की भाँति कवि और आचार्य कर्म, दोनों का निर्वाह किया। इन्होंने तीन प्रकार की रचनाएँ लिखीं-(क) रीति-शास्त्रीय ग्रंथ, (ख) शृंगारिक काव्य (ग) भक्ति-वैराग्य तथा तत्त्व-चिंतन संबंधी काव्य। देव के काव्य-शास्त्रीय ग्रंथों से प्रतीत होता है कि ये रसवादी आचार्य थे। दर्शन-शास्त्र, ज्योतिष, आयुर्वेद तथा काम-शास्त्र आदि का इनको पूर्ण ज्ञान था। महाकवि देव एक रुचि-संपन्न तथा प्रतिभा-संपन्न कवि थे। इन्होंने विशाल काव्य की रचना की। रीतिकाल में इनका स्थान सर्वोच्च है। आचार्य एवं कवि होने के कारण इनका काव्य रीतिकालीन प्रवृत्तियों की कसौटी पर खरा उतरता है। इनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार से हैं

(i) सौंदर्य-वर्णन-नायक-नायिका का सौंदर्य-वर्णन करने में कवि देव को सफलता प्राप्त हुई है। इनका सौंदर्य-वर्णन अतींद्रिय और वायवी न होकर स्थूल और मांसल है। अतः यह इंद्रिय ग्राह्य एवं पार्थिव जगत् की विभूति है। कवि देव ने नायिका के सौंदर्य का वर्णन करते समय उसके विभिन्न अंगों का आकर्षक वर्णन किया है। एक उदाहरण देखिए-

रूप के मंदिर तो मुख में मनि दीपक से दृग है अनुकूले।
दर्पन में मनि, मीन सलील सुधाकर नील सरोज से फूले ॥
‘देवजू’ सुरमुखी मृदु कूल के भीतर भौंर मनो भ्रम भूले।
अंक मयंकज के दल पंकज, पंकज में मनो पंकज फूले ॥

(ii) शृंगार-वर्णन-देव रीतिकालीन शृंगारी कवि थे। इन्होंने अपने काव्य में सच्चे प्रेम का अत्यंत सुंदर वर्णन किया है। इन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘प्रेम-चन्द्रिका’ में प्रेम का सजीव एवं क्रमबद्ध वर्णन किया है। इसमें इन्होंने प्रेम का लक्षण, स्वरूप, महत्त्व, भेद आदि का अत्यंत सूक्ष्म वर्णन किया है। कवि ने नायिका के सौंदर्य, चपलता, अंग-विभा आदि का अत्यंत मार्मिक वर्णन किया है। देव के शृंगारिक काव्य के चित्र बड़े सुंदर एवं सजीव हैं। देव के शृंगारिक-वर्णन का निम्नलिखित उदाहरण देखिए-

धार में धाइ धसी निरधार है, जाइ फँसी उकसी न उफरी,
री अँगराय गिरी गहरी, गहि फेरे फिरी न फिरी नहिं घेरौं।
देव कछू अपनो बसु ना, रस लालच लाल चितै भईं चेरी,
बेगि ही बूड़ि गईं पँखियाँ, अँखियाँ मधु की मखियाँ भईं मेरीं ॥

(iii) वियोग श्रृंगार-देव के काव्य में विरह के मार्मिक चित्र अंकित किए गए हैं। इनके विरह-वर्णन में दीनता, व्याकुलता और प्रेम की गहन कूक है। इन्होंने अपने काव्य में विरह की सभी दशाओं का वर्णन किया है। कवि ने एक विरहिणी की दशा का वर्णन करते हुए लिखा है
साँसन ही सों समीर गयो अरु, आँसन ही सब नीर गयो ढरि
तेज गयो गुन लौ अपनो अरु भूमि गई तन की तनुता करि।

कहने का भाव यह है कि यह पाँच तत्त्वों से बना शरीर विरह की आग में जलकर समाप्त हो गया है तथा केवल शून्य तत्त्व ही शेष रह गया है।

(iv) रीति-शास्त्रीय विवेचन देव कवि का रीतिकालीन आचार्य कवियों में प्रमुख स्थान है। इन्होंने 20 से भी अधिक रीति-ग्रंथों की रचना की है। इन्होंने अपने रीति-ग्रंथों में नायिका-भेद तथा शृंगार-रस का निरूपण सविस्तार किया है। इनके रीति-ग्रंथों में मौलिकता का अभाव है। इन रीति-ग्रंथों में वे सभी कमियाँ देखी जा सकती हैं, जो उस युग के अन्य आचार्य कवियों के ग्रंथों में पाई जाती थीं। देव आचार्य की अपेक्षा कवि अधिक प्रतीत होते हैं। इन्होंने जिस काव्य की रचना अपने आचार्यत्व के घेरे से मुक्त होकर की, उस काव्य को अत्यंत सफलता मिली है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

(v) भक्ति और वैराग्य की भावना-देव कवि के काव्य में ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का अत्यंत मार्मिक वर्णन हुआ है। देव की भक्ति-संबंधी रचनाओं में शांत-रस का सुंदर परिपाक हुआ है। जीवन के अंतिम समय में इनमें भक्ति और वैराग्य की भावना उत्पन्न हुई थी। अतः कवि ने अपने जीवन के अनुभव के आधार पर भक्ति और तत्त्व-चिंतन पर रचनाएँ लिखीं। ‘देव चरित्र’, ‘देव शतक’ आदि रचनाएँ इसी कोटि में आती हैं। देव अपने मन को डराते एवं समझाते हुए लिखते हैं

ऐसो हौं जु जानतो कि जैहै तू विषै के संग
ए रे मन मेरे, हाथ-पाँय तेरे तोरतो।

अर्थात् हे मन! यदि मैं यह जानता कि तू विषय-वासनाओं में डूब जाएगा तो मैं तेरे हाथ-पाँव तोड़ देता। इसके साथ ही कवि अपने मन को कृष्ण-भक्ति के समुद्र में डुबाने की इच्छा भी व्यक्त करता है।

(vi) प्रकृति-चित्रण-रीतिकालीन अन्य कवियों की भाँति देव ने भी प्रकृति का चित्रण पृष्ठभूमि के रूप में ही किया है। देव ने प्रकृति के अनेक चित्र बड़ी भावपूर्णता के साथ अंकित किए हैं। कवि पूनम की रात में रास-लीला का वर्णन करते हुए भाव-विभोर हो उठता है तथा लिखता है
झहरि झहरि झीनी बूंद हैं परति मानों,
घहरि घहरि घटा घेरि हैं गगन में।

4. भाषा-शैली-कविवर देव ने प्रायः मुक्तक काव्य-शैली को अपनाया। चित्रकला के रमणीय संयोजन तथा अभिव्यक्ति व्यञ्जना-कौशल में वे अद्वितीय हैं। इन्होंने प्रायः साहित्यिक ब्रजभाषा का ही प्रयोग किया है। इनकी भाषा में माधुर्य गुण विद्यमान है। इस भाषा में इन्होंने ब्रज-प्रदेश में प्रचलित तद्भव और देशज शब्दों का भी सुंदर मिश्रण किया है।

देव का शब्द-कोश काफी समृद्ध है। इसके साथ ही, ये भाषा के अच्छे पारखी भी हैं। व्याकरण की दृष्टि से इनकी भाषा सर्वथा दोषहीन कही जा सकती है। देव की भाषा के विषय में आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है, “अधिकतर इनकी भाषा में प्रवाह पाया जाता है। कहीं-कहीं शब्द-व्यय बहुत अधिक है और कहीं-कहीं अर्थ अल्प भी। अक्षर-मैत्री के ध्यान से इन्हें कहीं-कहीं अशक्त शब्द रखने पड़ते थे, जो कहीं-कहीं अर्थ को आच्छन्न करते थे। तुकांत और अनुप्रास के लिए ये कहीं-कहीं शब्दों को तोड़ते-मरोड़ते व वाक्य को भी अविन्यस्त कर देते थे।”

देव ने शब्दालंकारों के साथ-साथ अर्थालंकारों का भी सफल प्रयोग किया है। फिर भी अनुप्रास तथा यमक इनके प्रिय अलंकार हैं। अर्थालंकारों में इन्होंने उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि का प्रयोग किया है। कवित्त और सवैया इनके प्रिय छंद हैं। इनकी काव्य-भाषा में लाक्षणिकता एवं व्यञ्जनात्मकता भी देखी जा सकती है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि देव, रीतिकाल के एक श्रेष्ठ कवि थे। भाव और भाषा, दोनों दृष्टियों से इनका काव्य उच्च-कोटि का है। इन्होंने आचार्य और कवि दोनों के कर्मों का अनुकूल निर्वाह किया।

सवैया और कवित्त कविता का सार

प्रश्न-
सवैया एवं कवित्त का सार लिखिए।
उत्तर-
सवैया-कवि देव के द्वारा रचित सवैये में बालक श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का चित्रण किया गया है। बालक कृष्ण के पाँवों में पड़ी पाजेब अत्यंत मधुर ध्वनि करती है। उनकी कमर में करधनी है और पीले रंग के वस्त्र भी अत्यंत सुशोभित हैं। उनके माथे पर मुकुट है। उनकी आँखें चंचल एवं सुंदर हैं। उनकी मंद-मंद हँसी बहुत ही मधुर एवं उज्ज्वल है। इस संसार रूपी मंदिर में उनकी शोभा दीपक के समान फैली हुई है।

कक्ति-कवि देव ने कवित्तों में बालक को बसंत रूप में दिखाकर प्रकृति के साथ उसका संबंध जोड़ा है। ऐसा लगता है मानो बालक बसंत में पेड़ों के पलने पर झूलता है और भाँति-भाँति के फूल उनके शरीर पर ढीले-ढीले वस्त्रों के रूप में सजे हुए हैं। हवा उन्हें झूला झुलाती है। मोर, तोते आदि उससे बातें करते हैं। कोयल उसका मन बहलाती है। कमल की कली रूपी नायिका उसकी नज़र उतारती है। कामदेव बालक बसंत को प्रातःकाल ही उठा देता है। दूसरे कवित्त में कवि ने रात्रिकालीन छवि का वर्णन किया है। कवि ने रात की चाँदनी की तुलना दूध के फैन जैसे पारदर्शी बिंबों से की है। चारों ओर चाँदनी छाई हुई है। तारों की भाँति झिलमिल करती हुई राधा की अंगूठी दिखाई दे रही है। उसके शरीर का हर अंग शोभायुक्त है। चाँदनी जैसे रंग वाली राधा चाँदनी रात में स्फटिक के महल में छिपी-सी रहती है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *