HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 3 साना साना हाथ जोड़ि

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 3 साना साना हाथ जोड़ि Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 3 साना साना हाथ जोड़ि

HBSE 10th Class Hindi साना साना हाथ जोड़ि Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को किस तरह सम्मोहित कर रहा था?
उत्तर-
झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका के मन में सम्मोहन उत्पन्न कर रहा था। वहाँ की सुंदरता ने लेखिका पर एक जादू सा कर दिया था, कि वह एकटक उसे देखती ही रह गई। उसे उस समय सब कुछ ठहरा हुआ-सा लग रहा था। उसके आस-पास व उसके अंतर्मन में एक शून्य-सा समा गया था।

प्रश्न 2.
गंतोक को ‘मेहनतकश बादशाहों का शहर’ क्यों कहा गया?
उत्तर-
मेहनतकश से यहाँ अभिप्राय है, कड़ा परिश्रम करने वाले लोग। ‘बादशाह’ से तात्पर्य है अपनी इच्छानुसार काम करने वाले। गंतोक पहाड़ी स्थल है। पहाड़ी क्षेत्र का जीवन कठिन होता है। अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए यहाँ के लोग कड़ी मेहनत करने से घबराते नहीं, अपितु मेहनत करते हुए भी मस्त रहते हैं। उन्हें किसी की परवाह नहीं होती और न ही वे दूसरों की सहायता के लिए किसी के आगे हाथ फैलाते हैं। इसीलिए लेखिका ने गंतोक को ‘मेहनतकश बादशाहों का शहर’ कहा है।

प्रश्न 3.
कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना किन अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है?
उत्तर-
श्वेत पताकाएँ किसी बौद्ध धर्म के अनुयायी की मृत्यु पर फहराई जाती हैं। किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु हो जाने पर नगर से बाहर वीरान स्थान पर मंत्र-लिखित एक सौ आठ पताकाएँ फहराई जाती हैं। उन्हें उतारा नहीं जाता। वे धीरे-धीरे स्वयं नष्ट हो जाती हैं। रंगीन पताकाएँ काम के शुभारंभ के समय फहराई जाती हैं।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 3 साना साना हाथ जोड़ि

प्रश्न 4.
जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति के बारे में, वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जनजीवन के बारे में क्या महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ दीं। लिखिए।
उत्तर-
जितेन नार्गे सिक्किम का नागरिक था। वह ड्राइवर और गाइड दोनों का कार्य अकेले ही करता था। लेखिका ने जितेन नार्गे के साथ ही सिक्किम की यात्रा की थी। वह लेखिका को यात्रा के दौरान वहाँ की प्राकृतिक, भौगोलिक व जनजीवन की महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ देता रहता था। उसने बताया कि सिक्किम में प्राकृतिक नज़ारे अत्यंत सुंदर हैं। गंतोक से यूमथांग 149 किलोमीटर दूर है। यह मार्ग खूबसूरत प्राकृतिक दृश्यों से भरा पड़ा है। कहीं घाटियाँ फूलों से भरी हुई हैं। अनेक झरने कल-कल की ध्वनि करते हुए बहते हैं। कहीं घाटियों को फूलों की वादियाँ भी कहते हैं। सिक्किम की सीमा चीन से सटी हुई है। पहले यहाँ राजा का शासन था किंतु अब वह भारत का अंग है।

यहाँ बौद्ध धर्म का बोल-बाला है। यदि किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु हो जाए तो उसकी आत्मा की शांति के लिए एक सौ आठ सफेद पताकाएँ फहराई जाती हैं। जब किसी कार्य का शुभारंभ किया जाता है तो रंगीन पताकाएँ फहराई जाती हैं। यहाँ की औरतें बहुत मेहनत करती हैं। यहाँ बच्चों की पढ़ाई के लिए स्कूल कम हैं। बच्चों को स्कूल भेजने के लिए आवागमन के साधन भी कम हैं। यहाँ की नारियाँ रंगीन कपड़े पहनना पसंद करती हैं। उनका परंपरागत परिधान ‘बोकु’ है।

प्रश्न 5.
लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका को पूरे भारत की आत्मा एक-सी क्यों दिखाई दी?
उत्तर-
लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र के विषय में जितेन नार्गे ने बताया कि इसे घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं। लेखिका उस घूमते हुए चक्र को देखकर सोचने लगती हैं कि पूरे भारत में ऐसे विश्वास पाए जाते हैं। इसलिए भारत के लोगों की आत्मा एक-जैसी है, विज्ञान ने चाहे कितनी ही तरक्की क्यों न कर ली हो फिर भी लोगों की पाप-पुण्य संबंधी मान्यताएँ एक-जैसी ही हैं। वह चाहे पहाड़ी क्षेत्र हो अथवा मैदानी क्षेत्र। इन मान्यताओं में कहीं कोई अंतर नहीं है।

प्रश्न 6.
जितेन नार्गे की गाइड की भूमिका के बारे में विचार करते हुए लिखिए कि कुशल गाइड में क्या गुण होते हैं?
उत्तर-
जितेन नार्गे केवल गाइड ही नहीं, अपितु कुशल ड्राइवर भी था। एक कुशल गाइड की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि उसे उस क्षेत्र का पूरा ज्ञान होना चाहिए जिसमें वह गाइड का काम कर रहा है। जितेन एक कुशल गाइड है क्योंकि उसे सिक्किम के सारे पहाड़ी क्षेत्र का पूरा ज्ञान था। वह सैलानियों को उस क्षेत्र की पूरी जानकारी देता है। वह छोटी-से-छोटी जानकारी भी यात्रियों को देता है। इसके अतिरिक्त एक कुशल गाइड यात्रियों को कभी निराश नहीं होने देता। जितेन भी लेखिका और उसके सहयात्रियों को दिलासा दिलाता है कि उन्हें आगे चलकर बर्फ अवश्य देखने को मिलेगी। वह यात्रियों के साथ मित्र जैसा व्यवहार करता है। वह संगीत का ज्ञान भी रखता है। यात्रियों की थकान को दूर करने के लिए उनकी पसंद का संगीत सुनाता है। एक गाइड को अपने क्षेत्र के इतिहास और संस्कृति का पूरा ज्ञान होना चाहिए। जितेन इस दृष्टि से एक कुशल गाइड है। उसे सिक्किम के इतिहास और संस्कृति का पूरा ज्ञान है। वह लेखिका और अन्य यात्रियों को उससे अवगत कराता है। इसी प्रकार एक कुशल गाइड अपने क्षेत्र के जन-जीवन, वहाँ के प्रमुख व्यवसाय आदि की भी जानकारी रखता है। जितेन नार्गे को भी यह जानकारी थी। मार्ग में काम करने वाली सिक्किम नारियों के जीवन के बारे में वह पूर्ण जानकारी देता है। वहाँ के लोगों के धार्मिक स्थलों और लोगों के विश्वास व आस्थाओं की भी जानकारी देता है। अतः स्पष्ट है कि जितेन एक कुशल गाइड है। उसके मार्गदर्शन में यात्रा करने वाले यात्रियों का आनंद दुगुना हो जाता है। वह आस-पास के वातावरण को प्रसन्नतायुक्त बना देता है।

प्रश्न 7.
इस यात्रा-वृत्तांत में लेखिका ने हिमालय के जिन-जिन रूपों का चित्र खींचा है, उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
लेखिका की पहाड़ी यात्रा गंतोक से यूमथांग जाने के लिए आरंभ होती है। वे अपने पूरे दल के साथ जीप में बैठकर यात्रा शुरु करती है। जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते हैं वैसे-वैसे ऊँचाई भी बढ़ती जाती है। उन्होंने देखा कि हिमालय का प्राकृतिक दृश्य पल-पल में बदलता है। हिमालय का विराट रूप सामने आता है। अब हिमालय अपने विशाल रूप में दिखाई देने लगता है। आसमान में घटाएँ फैली हुई हैं। घाटियों में दूर – दूर तक खिले हुए फूल फैले हुए हैं। चारों ओर एक गहन शांति पसरी हुई थी। लेखिका हिमालय के उस चमत्कारी रूप को अपनी आत्मा में समेट लेना चाहती है। वह उस दृश्य से एकात्म हो उठती है। वह हिमालय को मेरे नगपति, मेरे विशाल कहकर सलामी देती है। हिमालय कहीं हरे रंग का कालीन ओढ़े हुए नज़र आता है तो कहीं सफेद बर्फ की चादर ओढ़े हुए और कहीं-कहीं बादल में लुका-छिपी का खेल खेलता सा लगता है। लेखिका को पर्वत क्षेत्र ‘जादू की छाया’ ‘माया एवं खेल लगता है तो कहीं लेखिका उसे देखकर गहन विचारों में डूब जाती है। उसे वह परम् सत्य का अनुभव होने लगता है। इसी प्रकार वह वहाँ के जन-जीवन का चित्र अंकित करने लगती है।

प्रश्न 8.
प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को कैसी अनुभूति होती है?
उत्तर-
हिमालय,की प्राकृतिक छटा पल-पल बदलती है। लेखिका हिमालय पर प्रकृति के अनंत और विराट रूप को देखकर अवाक् रह जाती है। वह प्रकृति के ‘माया’ और ‘छाया’ के रूप को देखकर सम्मोहित हो जाती है। उसे ऐसा लगता है कि प्रकृति उसे अपना परिचय दे रही है। वह उसे अधिक सयानी बनाने के लिए उसके सामने अपने रहस्यों का उद्घाटन कर रही है। प्रकृति के उस विराट रूप को देखकर उसे अनेक अनुभूतियाँ होती हैं। उसे अनुभव होता है कि जीवन की सार्थकता झरनों और फूलों की भाँति स्वयं को दे देने में है। झरनों की भांति निरंतर गतिशील रहना और फूलों की भांति सदा मुस्कुराते रहने में ही जीवन की जीवंतता है। जीवन में दूसरों के लिए कुछ कर गुज़रना ही जीवन को सार्थक बनाता है। ऐसी अनुभूति लेखिका को प्रकृति के विराट और अनंत स्वरूप को देखकर ही होती है।

प्रश्न 9.
प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को कौन-कौन से दृश्य झकझोर गए?
उत्तर-
प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को सड़क बनाने वाली पहाड़ी औरतों के द्वारा पत्थर तोड़ने के दृश्य झकझोर गए। लेखिका ने देखा कि उस प्राकृतिक सौंदर्य के दृश्यों से बेपरवाह कुछ अत्यंत सुंदर एवं कोमलांगी पहाड़ी औरतें पत्थर तोड़ने में लीन थीं। उनके हाथों में कुदाल व हथौड़े थे। कईयों की पीठ पर तो डोको (बड़ी टोकरी) में उनके बच्चे भी बँधे हुए थे। यह विचार लेखिका को बार-बार झकझोरता था कि नदियों, फूलों, झरनों, वादियों के प्राकृतिक नज़ारों के बीच भूख, प्यास, मौत और मानव के जीने की इच्छा के बीच कड़ा संघर्ष चल रहा था। वे नारियाँ उस संघर्ष से जीतने के लिए जीतोड़ परिश्रम कर रही थीं। मानव ने सदा कठिनाइयों पर विजय प्राप्त की है।

प्रश्न 10.
सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में किन-किन लोगों का योगदान होता है, उल्लेख करें।
उत्तर-
सैलानियों को प्राकृतिक छटा का अनुभव कराने में अनेक लोगों का योगदान रहता है। सर्वप्रथम सैलानियों को पर्यटन-स्थलों पर ठहराने का प्रबंध करने वाले लोगों का योगदान रहता है। इसके पश्चात् उनके लिए वाहनों का प्रबंध करने वाले लोगों का योगदान रहता है। वाहनों के चालकों व गाइडों का योगदान भी सराहनीय होता है। मार्गदर्शक (गाइड) की भूमिका तो और भी महत्त्वपूर्ण रहती है, क्योंकि वह सैलानियों को वहाँ के स्थानों की जानकारी के साथ – साथ वहाँ के इतिहास व सांस्कृतिक परंपराओं में विश्वास, जन-जीवन व परंपराओं की जानकारी देकर उनकी यात्रा को रोचक बनाता है। इनके अतिरिक्त वहाँ स्थानीय लोगों व सरकारी रख-रखाव के प्रबंध की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है।

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प्रश्न 11.
“कितना कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती है।” इस कथन के आधार पर स्पष्ट करें कि आम जनता की देश की आर्थिक प्रगति में क्या भूमिका है?
उत्तर-
निश्चय ही देश की आर्थिक प्रगति में आम जनता की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। देश की महत्त्वपूर्ण योजनाओं को सफल बनाने में आम जनता सहयोग देती है। सड़कों का निर्माण करने हेतु पत्थर तोड़ने व पत्थर जोड़ने से लेकर बहुमंजली अट्टालिकाएँ खड़ी करने में आम-जनता का परिश्रम ही काम करता है। किंतु आम जनता के इस कार्य के बदले में उन्हें बहुत कम पैसे मिलते हैं। बड़े-बड़े कामों को अंजाम देने वाली यह आम जनता अपनी दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति भी बड़ी मुश्किल से कर पाती है। सड़कों के निर्माण, बाँध-बाँधने, बड़ी- बड़ी फैक्टरियों के निर्माण की नींव आम जनता के खून-पसीने पर रखी जाती है। सड़कों के निर्माण से आवागमन सुगम हो जाता है। समान एक स्थान से दूसरे स्थान पर सरलता से पहुंचाया जा सकता है। इससे देश में आर्थिक प्रगति होती है। बड़ी-बड़ी फैक्टरियों के द्वारा वस्तुओं का निर्माण किया जाता है। बाँधों से बिजली का उत्पादन होता है। फसलों की सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध होता है। इन सब कार्यों में आम-जनता का पूर्ण योगदान रहता है। आम-जनता के सहयोग व भूमिका के बिना देश का आर्थिक विकास संभव नहीं है।

प्रश्न 12.
आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति के साथ किस तरह खिलवाड़ किया जा रहा है? इसे रोकने में आपकी क्या भूमिका होनी चाहिए?
उत्तर-
आज की पीढ़ी का विश्वास भौतिक उन्नति तक सीमित हो गया है। वह अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए कुछ भी करने के लिए तत्पर है। वह केवल आज के विषय में सोचती है। इसलिए वह प्रकृति के प्रति भी निर्ममता का व्यवहार करती है। वह भूल चुकी है, कि प्रकृति को नष्ट करके हम भी नष्ट हो जाएँगे। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, नदियों के जल का दुरुपयोग तथा कृषि योग्य भूमिका बड़े-बड़े नगर बसाने व औद्योगिक संस्थान खड़े करने से प्राकृतिक संतुलन समाप्त हो जाएगा।

आज हमें देखना होगा कि हम ऐसा कोई कार्य न करें, जिससे प्रकृति को हानि पहुँचती है या हम वे कार्य कम-से-कम करें जिससे प्रकृति का नुकसान हो। हमें वृक्षों के काटने पर ही रोक नहीं लगानी चाहिए, अपितु अधिक-से-अधिक वृक्ष लगाने का प्रयास भी करना चाहिए। हम विद्यार्थी भी अपने आँगन या घर के आस-पास की खाली पड़ी धरती पर छायादार वृक्षों के पौधे लगाकर प्रकृति को बचाने में योगदान दे सकते हैं। अपने विद्यालय में खड़े वृक्षों की देखभाल करके व और वृक्ष लगाकर प्रकृति के प्रति किए जा रहे खिलवाड़ को रोकने में सहायता दे सकते हैं। हमें जल के उचित प्रयोग के प्रति समाज में जागरूकता उत्पन्न करनी होगी, ताकि जल का सही प्रयोग हो। हमें नदियों में गंदगी नहीं फैंकनी चाहिए। कारखानों से निकले गंदे पानी को नदियों के पानी में नहीं बहाना चाहिए। कृषि योग्य भूमि का भी सदुपयोग करने का प्रचार करके हम प्रकृति को हानि पहुँचने से रोक सकते हैं। सरकार द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करके भी हम इस नेक कार्य में योगदान दे सकते हैं।

प्रश्न 13.
प्रदूषण के कारण स्नोफॉल में कमी का जिक्र किया गया है। प्रदूषण के और कौन-कौन से दुष्परिणाम सामने आए हैं, लिखें।
उत्तर-
प्रदूषण के कारण सबसे बड़ा दुष्परिणाम तो प्रकृति का संतुलन बिगड़ना है। प्रदूषण से मानव स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ा है। प्रदूषण से सारे देश व समाज का आर्थिक और सामाजिक वातावरण बिगड़ रहा है। खेती के उगाने के कृत्रिम उपायों, खादों आदि के प्रयोग से जहाँ धरती की उपजाऊ शक्ति नष्ट हो रही है, वहीं खराब फसलें उत्पन्न हो रही हैं, जिनके खाने से मानव के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। इसी प्रकार ध्वनि व वायु-प्रदूषण ने भी हमारे प्राकृतिक वातावरण को विकलांग बना दिया है। वायु-प्रदूषण से फेफड़ों की बीमारियाँ बढ़ती जा रही हैं। ध्वनि-प्रदूषण से मन की शांति नष्ट हो रही है और तनाव बढ़ता जा रहा है। ध्वनि-प्रदूषण से बहरेपन की बीमारी बढ़ रही है। इस प्रदूषण की बढ़ती समस्या के प्रति हर व्यक्ति का जागरूक होना अति अनिवार्य है। सरकार को चाहिए की प्रदूषण को रोकने के लिए कड़े नियम बनाए और उनको सख्ती से लागू करे।

प्रश्न 14.
‘कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। इस कथन के पक्ष में अपनी राय व्यक्त कीजिए?
उत्तर-
‘कटाओ’ को भारत का स्विट्ज़रलैंड कहा जाता है। वह स्विटज़रलैंड से भी अधिक सुंदर स्थान है, जिसे देखकर लोग अपने आपको ईश्वर के निकट समझते हैं। वहाँ उन्हें अद्भुत शांति मिलती है। यदि वहाँ पर दुकानें खुल जातीं, तो लोगों की भीड़ बढ़ जाती। गंदगी फैल जाती। वहाँ का प्राकृतिक वातावरण नष्ट हो जता। उसे भारत का स्विट्ज़रलैंड नहीं कहा जा सकता था। इसलिए ‘कटाओ’ पर किसी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है।

प्रश्न 15.
प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था किस प्रकार की है?
उत्तर-
प्रकृति के नियम अनोखे हैं। वह हर कार्य की व्यवस्था अपने ही ढंग से करती है। उसकी जल संचय व्यवस्था भी अत्यंत रोचक है। सर्दियों में बर्फ के रूप में जल एकत्रित होता है। गर्मियों में जब लोग प्यास से व्याकुल होते हैं तो प्रकृति के द्वारा एकत्रित बर्फ रूपी जल पिघलकर जलधारा बनकर बहने लगता है। जिसे प्राप्त करके लोग अपनी प्यास को बुझाते हैं।

प्रश्न 16.
देश की सीमा पर बैठे फौजी किस तरह की कठिनाइयों से जूझते हैं? उनके प्रति हमारा क्या उत्तरदायित्व होना चाहिए?
उत्तर-
देश की सीमाओं पर बैठे फौजी विशेषकर पहाड़ी क्षेत्र की सीमाओं पर उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वहाँ वे बर्फीली हवाओं और तूफानों का सामना करते हैं। पौष और माघ की ठंड में तो पेट्रोल के अतिरिक्त सब कुछ जम जाता है। फौजी बड़ी मुश्किल से अपने शरीर का तापमान सामान्य रखते हुए देश की सीमाओं की रक्षा करते हैं। वहाँ तक पहुँचने के मार्ग अत्यंत संकरे और खतरनाक हैं। कहीं-कहीं पर तो कोई वाहन भी नहीं जा सकता। वहाँ फौजी अपना सामान अपनी पीठ पर लादकर ले जाते हैं। वहाँ कभी भी किसी के भी प्राण जाने की संभावना बनी रहती है। किंतु फौजी अपने आपको खतरे में डालकर हमारे आने वाले कल को सुरक्षित करते हैं।

देश की सीमाओं की सुरक्षा करने वाले फौजियों के प्रति हमारा उत्तरदायित्व बनता है, कि हम उनका हौसला बढ़ाएँ और उनके परिवार की खुशहाली के लिए प्रयत्नशील रहें ताकि फौजी अपने परिवार की चिंता से मुक्त होकर सीमाओं की रक्षा कर सकें। समय-समय पर उनका साहस बढ़ाने के लिए उनके बीच जाकर उनका मनोरंजन करना चाहिए। हमें अपने फौजियों का सम्मान करना चाहिए।

HBSE 10th Class Hindi जॉर्ज पंचम की नाक Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखिका को गंतोक से कंजनजंघा की पहाड़ियाँ क्यों नहीं दिखाई दे रही थीं?
उत्तर-
लेखिका प्रातःकाल जब जगी तो वह तुरंत बाहर आकर कंचनजंघा की पहाड़ियाँ देखने लगी। किंतु उसे वे पहाड़ियाँ दिखाई नहीं दीं, क्योंकि उस प्रातः मौसम साफ नहीं था। मौसम के साफ रहने पर ही कंचनजंघा की पहाड़ियाँ दिखाई दे सकती हैं। किंतु उस दिन आकाश में हल्के-हल्के बादल छाए हुए थे। ..

प्रश्न 2.
लेखिका को लायुंग में बर्फ देखने को क्यों नहीं मिली?
उत्तर-
लेखिका अपने सहयात्रियों के साथ आगे बढ़ती जा रही थी। उन्हें उम्मीद थी कि वे लायुग में बर्फ देख सकेंगे। किंतु वहाँ उन्हें बर्फ के दर्शन नहीं हुए। किंतु जैसे ही लेखिका प्रातः उठी उन्हें विश्वास था, कि उन्हें बर्फ देखने को मिलेगी। किंतु ऐसा नहीं हुआ और लेखिका निराश हो गई। वहाँ बर्फ का एक भी कतरा न था। वहाँ स्थानीय लोगों ने बताया कि प्रदूषण के बढ़ने के कारण वहाँ बर्फ नहीं पड़ती। जिस प्रकार तेजगति से प्रदूषण बढ़ रहा है, वैसे-वैसे प्रकृति के साधनों में भी कमी आती जा रही है।

प्रश्न 3.
लेखिका के गाइड ने उसे कैसा स्थान बताया था, जहाँ बर्फ मिल सकती थी? उसका वर्णन कीजिए।
उत्तर-
लेखिका के गाइड जितेन नार्गे ने लेखिका को बताया था, कि कटाओ में बर्फ अवश्य देखने को मिलेगी। कटाओ को अभी टूरिस्ट स्थान नहीं बनाया गया। वह अपने प्राकृतिक रूप में विद्यमान है। उसे भारत का स्विट्ज़रलैंड कहा जाता है। कटाओ लायुंग से 500 फुट की ऊँचाई पर है। लायुंग से कटाओ पहुँचने के लिए लगभग दो घंटे लग जाते हैं। यहाँ के रास्ते अत्यंत संकरे एवं खतरनाक हैं।

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प्रश्न 4.
लायुंग के विषय में सार रूप में लिखते हुए बताइए, कि यहाँ आजकल बर्फ कम क्यों पड़ने लगी है?
उत्तर-
लायुंग सिक्किम राज्य का एक छोटा-सा कस्बा है। यह गंतोक और यूमथांग के बीच का मुख्य पड़ाव है। यहाँ के लोगों की जीविका का साधन पहाड़ी आलू, धान की खेती और शराब का व्यापार हैं। यद्यपि यह कस्बा समुद्र-तल से 14000 फुट की ऊँचाई पर है, किंतु यहाँ हिमपात बहुत कम होता है। इसका प्रमुख कारण पर्वतीय क्षेत्र में बढ़ता प्रदूषण है।

प्रश्न 5.
‘साना-साना हाथ जोड़ि……’ पाठ में झरने के संगीत में विलीन आत्मा के संगीत पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
लेखिका मार्ग में आने वाले एक खूबसूरत झरने के पास रुकी। उसका नाम था ‘सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल’। लेखिका वहाँ पत्थरों पर बैठकर झरने के संगीत के साथ ही आत्मा का संगीत भी सुनने लगी थी। उसका मन भी झरने के संगीत को सुनकर काव्यमय हो उठा। आत्मा सत्य व सौंदर्य का छूने लगी। आत्मा को झरना अनंतता का प्रतीक अनुभव हो रहा था। उससे उसे जीवन की शक्ति का भी एहसास होने लगा था। ऐसा लगा कि उसके जीवन से सभी कुटिलताएँ और दुष्ट भावनाएँ इस निर्मल धारा में बह गई हैं। उसका . जीवन असीम बनकर बहने लगा हो। वह कामना करती है कि मैं भी अनंत समय तक ऐसे ही बहती रहूँ और इस झरने की पुकार को सुनती रहूँ।

प्रश्न 6.
पताकाओं को लेखिका ने बौद्ध संस्कृति का अंग क्यों कहा है? अथवा घाटी में दिखाई देने वाली रंगीन पताकाएँ कब लगाई जाती हैं?
उत्तर-
लेखिका को जितेन ने बताया है कि जब किसी बौद्ध अनुयायी की मृत्यु हो जाती है, तो उसकी आत्मा की शांति हेतु मंत्र-लिखित एक सौ आठ पताकाएँ फहरा दी जाती हैं। इन्हें उतारा नहीं जाता, अपितु ये स्वयं नष्ट हो जाती हैं। जब कोई नया कार्य आरंभ किया जाता है, तो रंगदार पताकाएँ फहराई जाती हैं। अतः स्पष्ट है कि पताकाएँ बौद्ध संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। ये बौद्ध संस्कृति की पहचान भी कही जा सकती हैं।

प्रश्न 7.
सिक्किमी नवयुवक ने ‘कटाओ’ के बारे में लेखिका को क्या जानकारी दी?
उत्तर-
युवक ने लेखिका को बताया कि कटाओ जाने पर लेखिका को शर्तिया बर्फ मिल जाएगी-कटाओ यानि भारत का स्विट्जरलैंड! जो कि अभी तक टूरिस्ट स्पॉट नहीं बनने के कारण सुर्खियों में नहीं आया था और अपने प्राकृतिक स्वरूप में था।

प्रश्न 8.
किस कारण से कटाओ के मार्ग में सभी यात्री मौन हो गए थे, केवल उनकी साँसों की ध्वनि ही सुनाई देती थी?
उत्तर-
लायुंग और कटाओ के बीच का मार्ग अत्यंत संकरा और खतरनाक था। वाहन चालक को एक-एक इंच का ध्यान रखना पड़ता है। उसकी ज़रा- सी भूल से न जाने क्या हो जाए। जब लेखिका और उसके सहयात्री आगे बढ़े तो उस समय हल्की-हल्की वर्षा हो रही थी और धुंध भी छाई हुई थी। रास्ते के खतरे के अहसास ने सभी को खामोश कर दिया था। उस धुंध और फिसलन भरे रास्ते में कुछ भी घटित हो सकता था। इसलिए वे सब सारी मस्ती भूलकर अपना दम साधे बैठे थे।

प्रश्न 9.
कटाओ के अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर लेखिका क्या सोचने लगी थी?
उत्तर-
कटाओ का प्राकृतिक सौंदर्य जहाँ अनुपम एवं पवित्र था, वहीं उसका प्रभाव भी जादू की भाँति असरदार था। लेखिका उसकी सम्मोहन शक्ति से न बच पाई थी। वह उसे अपनी आत्मा में समा लेना चाहती थी। वह अनुभव करने लगी, कि विभोर कर देने वाली उस दिव्यता के बीच बैठकर हमारे ऋषि-मुनियों ने वेदों की रचना की होगी। उन्होंने ऐसे ही दिव्य प्राकृतिक वातावरण में बैठकर जीवन के सत्य को खोजा होगा। ‘सर्वे भवंतु सुखिनः के महामंत्र का उच्चारण किया होगा।

प्रश्न 10.
जितेन ने सैलानियों से गुरु नानक देव जी से संबंधित किस घटना का वर्णन किया है?
उत्तर-
जितेन को उस क्षेत्र के इतिहास और भौगोलिक स्थिति का पूरा ज्ञान था। वह लेखिका और उसके सहयात्रियों को रास्ते में अनेक जानकारियाँ देता रहता है। एक स्थान पर उसने बताया कि यहाँ पर एक पत्थर पर गुरु नानक देव जी के पैरों के निशान हैं। जब गुरु नानक देव जी यहाँ आए थे उस समय उनकी थाली से कुछ चावल छिटककर बाहर गिर गए थे। जहाँ-जहाँ चावल छिटके थे, वहाँ-वहाँ चावलों की खेती होने लगी थी।

प्रश्न 11.
सिक्किम के अधिकतर लोगों की जीविका का साधन क्या है?
उत्तर-
सिक्किम के अधिकतर लोग मेहनत मजदूरी करते हैं। उनके खेत छोटे होते हैं तथा वे पशु-पालन का काम भी करते हैं।

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बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘साना-साना हाथ जोड़ि’ नामक पाठ की रचयिता का क्या नाम है?
(A) महादेवी वर्मा
(B) मधु कांकरिया
(C) कमलेश्वर
(D) शिवपूजन सहाय
उत्तर-
(B) मधु कांकरिया

प्रश्न 2.
‘साना-साना हाथ जोड़ि’ नामक पाठ साहित्य की किस विधा के अंतर्गत आता है?
(A) कहानी
(B) निबंध
(C) यात्रा वृत्तांत
(D) संस्मरण
उत्तर-
(C) यात्रा वृत्तांत

प्रश्न 3.
‘गैंगटॉक’ नगर किस राज्य की राजधानी है?
(A) आसाम
(B) सिक्किम
(C) बंगाल
(D) अरुणाचल
उत्तर-
(B) सिक्किम

प्रश्न 4.
सिक्किम भारत की किस दिशा में स्थित है?
(A) पश्चिम
(B) पश्चिमोत्तर
(C) पूर्व
(D) पूर्वोत्तर
उत्तर-
(D) पूर्वोत्तर

प्रश्न 5.
लेखिका ने गैंगटॉक को किन लोगों का शहर बताया है?
(A) मेहनतकश बादशाहों को
(B) गरीबों का
(C) नवाबों का
(D) राजाओं का
उत्तर-
(A) मेहनतकश बादशाहों को

प्रश्न 6.
‘साना-साना हाथ जोड़ि’ प्रार्थना लेखिका ने किस देश की युवती से सीखी थी?
(A) वर्मा की
(B) श्रीलंका की
(C) नेपाल की
(D) चीन की
उत्तर-
(C) नेपाल की

प्रश्न 7.
‘कंचनजंघा’ किस पर्वत की चोटी का नाम है?
(A) हिमालय पर्वत
(B) कंचन पर्वत
(C) सुमेरू पर्वत
(D) नीलमणि पर्वत
उत्तर-
(A) हिमालय पर्वत

प्रश्न 8.
गैंगटॉक से यूमथांग कितनी दूर है?
(A) 139 किलोमीटर
(B) 149 किलोमीटर
(C) 159 किलोमीटर
(D) 169 किलोमीटर
उत्तर-
(B) 149 किलोमीटर

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 3 साना साना हाथ जोड़ि

प्रश्न 9.
लेखिका के ड्राइवर-कम-गाइड का क्या नाम है?
(A) रामदीन
(B) विक्रम थापा
(C) जितेन नार्गे
(D) उथापा
उत्तर-
(C) जितेन नार्गे

प्रश्न 10.
लेखिका को मार्ग में सफेद रंग के जो ध्वज दिखाई दिए थे, वे किस धर्म से संबंधित थे?
(A) बौद्धधर्म
(B) जैनधर्म
(C) ईसाई धर्म
(D) मुस्लिम धर्म
उत्तर-
(A) बौद्धधर्म

प्रश्न 11.
बौद्ध धर्म में किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु पर उसकी आत्मा की शांति के लिए कितनी पताकाएँ फहराई जाती हैं?
(A) 130
(B) 140
(C) 150
(D) 108
उत्तर-
(D) 108

प्रश्न 12.
जितेन नार्गे की जीप में किसकी तस्वीर लगी हुई थी?
(A) महात्मा गाँधी की
(B) दलाई लामा की
(C) महात्मा बुद्ध की
(D) महावीर की
उत्तर-
(B) दलाई लामा की

प्रश्न 13.
‘कवी-लोंगस्टॉक’ नामक स्थान पर कौन-सी हिंदी फिल्म की शूटिंग हुई थी?
(A) गाइड
(B) क्रांति
(C) उपकार
(D) देश प्रेमी
उत्तर-
(A) गाइड

प्रश्न 14.
लेखिका को पूरे देश में एक जैसी कौन-सी वस्तु दिखाई दी थी?
(A) आस्थाएँ
(B) धर्म
(C) वेशभूषा
(D) खानपान
उत्तर-
(A) आस्थाएँ

प्रश्न 15.
सिलीगुड़ी के पास लेखिका को कौन-सी नदी दिखाई दी थी? ।
(A) गंगा
(B) यमुना
(C) तिस्ता
(D) ब्यास
उत्तर-
(C) तिस्ता

प्रश्न 16.
‘मशगूल’ शब्द का अर्थ है-
(A) मशहूर
(B) व्यस्त
(C) प्रसिद्ध
(D) सुंदर
उत्तर-
(B) व्यस्त

प्रश्न 17.
लेखिका ने किस जंगल में पत्ते तलाशती हुई युवतियाँ देखीं थीं?
(A) पलामू
(B) सतपूड़ा
(C) पलाश के जंगल
(D) गीर के जंगल
उत्तर-
(A) पलामू

प्रश्न 18.
प्रकृति के विराट रूप को देकर लेखिका को क्या प्रेरणा मिलती है?
(A) सदा काम में लगा रहना चाहिए।
(B) सदा मुस्कराते रहना चाहिए
(C) चिंता नहीं करनी चाहिए
(D) लक्ष्य प्राप्त करना चाहिए
उत्तर-
(B) सदा मुस्कराते रहना चाहिए

प्रश्न 19.
लायुंग समुद्रतल से कितनी ऊँचाई पर है?
(A) 10000 फीट
(B) 11000 फीट
(C) 12000 फीट
(D) 14000 फीट
उत्तर-
(D) 14000 फीट

प्रश्न 20.
कटाओ लायुग से कितनी ऊँचाई पर स्थित है?
(A) 500 फीट
(B) 400 फीट
(C) 300 फीट
(D) 200 फीट
उत्तर-
(A) 500 फीट

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 3 साना साना हाथ जोड़ि

प्रश्न 21.
कटाओ को हिंदुस्तान का क्या कहा जाता है?
(A) इंग्लैंड
(B) अमेरिका
(C) स्विट्ज़रलैंड
(D) जर्मनी
उत्तर-
(C) स्विट्ज़रलैंड

जॉर्ज पंचम की नाक Summary in Hindi

जॉर्ज पंचम की नाक पाठ का सार

प्रश्न-
‘साना साना हाथ जोड़ि…….’ शीर्षक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘साना साना हाथ जोड़ि…….’ ‘मधु कांकरिया’ द्वारा रचित यात्रा-वृत्तांत है। इस पाठ में लेखिका ने सिक्किम राज्य की राजधानी गैंगटॉक से हिमालय तक की यात्रा का सजीव एवं भावपूर्ण वर्णन किया है। लेखिका का मत है कि यात्राओं से मनोरंजन, ज्ञानवर्धन एवं अज्ञात स्थलों की जानकारी के साथ-साथ भाषा और संस्कृति का आदान-प्रदान होता है। प्रस्तुत पाठ में लेखिका ने हिमालय के अनंत – सौंदर्य का अत्यंत अद्भुत एवं काव्यात्मक वर्णन किया है कि मानो हिमालय का पल-पल बदलता सौंदर्य हम अपनी आँखों से देख रहे हों। इस यात्रा वृत्तांत में महिला यायावरी विशिष्टता भी देखी जा सकती है। प्रस्तुत यात्रा-वृत्तांत में प्राकृतिक नज़ारों के साथ-साथ वहाँ के जीवन का भी यथार्थ चित्र अंकित किया गया है।

लेखिका गैंगटॉक में रात को तारों से जगमगाते आसमान को देखती है। रात में ऐसा सम्मोहन था कि कोई भी देखने वाला उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। लेखिका भी ऐसे दृश्य को देखकर उसमें खो जाती है। उसकी आत्मा भाव-शून्य हो जाती है। वह प्रातः उठकर नेपाली भाषा में प्रातःकालीन की जाने वाली प्रार्थना करती है। उसी सुबह उन्हें यूमथांग जाना था। यदि मौसम ‘साफ हो तो वहाँ से हिमालय की सबसे ऊँची चोटी दिखाई देती है। मौसम साफ था, किंतु आकाश में हल्के-हल्के बादल थे इसलिए हिमालय की ऊँची चोटी कंचनजंघा दिखाई न दे सकी। यूमथांग गैंगटॉक से लगभग 149 किलोमीटर दूर था। उनके ड्राइवर-कम-गाइड का नाम जितेन नार्गे था। यूमथांग का मार्ग फूलों भरी घाटियों वाला था। मार्ग में उन्हें एक स्थान पर सफेद रंग की बौद्ध पताकाएँ दिखाई दीं। ये पताकाएँ अहिंसा और शांति की प्रतीक थीं।

नार्गे ने बताया कि जब कोई बुद्धिस्ट मर जाता है तो एक सौ आठ श्वेत पताकाएँ फहराई जाती हैं। जिन्हें उतारा नहीं जाता। किसी नए कार्य के आरंभ के समय रंगीन पताकाएँ फहराई जाती हैं। जितेन नार्गे ने बताया कि कवी-लोंग स्टॉक नामक स्थान पर ‘गाइड’ फिल्म की शूटिंग हुई थी। उन लोगों ने मार्ग में एक घूमता हुआ चक्र भी देखा जिसे धर्म चक्र कहते हैं। वहाँ के लोगों का विश्वास है कि उसे घुमाने से घुमाने वाले के सभी पाप धुल जाते हैं। लेखिका को लगा कि सब स्थानों के लोगों की आस्थाएँ, विश्वास, अंधविश्वासों और पाप- पुण्य संबंधी धारणाएँ लगभग एक समान हैं ज्यों-ज्यों उनकी जीप ऊपर बढ़ती जा रही थी, त्यों- त्यों, बाज़ार, लोग, बस्तियाँ पीछे छूटते जा रहे थे। बड़ी-बड़ी पहाड़ियाँ सामने अपने विराट रूप में दिखाई देने लगी थीं। पास जाकर देखने से लगता था कि वे सौंदर्य के वैभव से मंडित थीं।

धीरे-धीरे मार्ग घुमावदार होते जा रहे थे। चारों ओर हरियाली-ही-हरियाली दिखाई देती थी। लगता था कि वे किसी हरी-भरी गुफा में प्रवेश कर रहे हैं। वहाँ के अत्यंत सुंदर मौसम का प्रभाव सब पर हो रहा था किंतु लेखिका चुपचाप बैठी हुई वहाँ के संपूर्ण दृश्यों को अपने में समा लेना चाहती थी। सिलीगुड़ी से साथ चल रही तिस्ता नदी का सौंदर्य अब देखते ही बनता था। लेखिका नदी के सौंदर्य को देखकर रोमांचित हो रही थी। साथ ही मन-ही-मन हिमालय को सलामी दे रही थी। जीप ‘सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल’ पर जाकर रुकती है। सभी लोग वहाँ के अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य को अपने-अपने कैमरों में बंद करने लगते हैं किंतु लेखिका अत्यंत तल्लीनता के साथ झरने से बह रहे संगीत को आत्मलीन होकर सुन रही थीं। उन्हें लगता था कि जैसे उन्होंने सत्य एवं सौंदर्य को छू लिया हो। झरने का बहता पानी उनमें एक जोश, शक्ति और अहसास भर रहा था। उन्हें लग रहा था कि उनके अंतःकरण की सारी कुटिलताएँ और बुरी इच्छाएँ पानी की धारा के साथ बह गई थीं। वे वहाँ से हटने के लिए तैयार नहीं थीं।

जब जितेन ने आकर कहा कि आगे इससे भी सुंदर दृश्य हैं, तब वे आगे चलने को तैयार हुईं। मार्ग में आँखों और आत्मा को आनंद प्रदान करने वाले अनेक दृश्य बिखरे हुए थे। मार्ग में प्राकृतिक दृश्य पल-पल में अपना रंग बदलते थे। लगता था कि कोई जादू की छड़ी घुमाकर जल्दी-जल्दी दृश्य बदल रहा है। माया और छाया का यह अनूठा खेल लेखिका को जीवन के रहस्य समझा रहा था। चारों ओर के दृश्य रहस्यों से भरे हुए थे। उनकी जीप थोड़ी देर के लिए रुक जाती है, जहाँ जीप रुकी थी वहाँ लिखा हुआ था ‘थिंक ग्रीन’ । वहाँ पूरे, ब्रह्मांड का दृश्य मानो एक साथ देखने को मिल रहा था। वहाँ बहते झरने, तिस्ता नदी का तीव्र वेग, धुंध का आवरण, ऊपर आकाश में बादल थे और हवा धीरे-धीरे बह रही थी। आस-पास खिले हुए फूलों की हँसी बिखरी हुई थी। संपूर्ण अद्भुत वातावरण को देखकर तो ऐसा प्रतीत हो रहा था कि हमारा अस्तित्व भी इस वातावरण के साथ ही बहता जा रहा है।

धुंधली चादर के हटते ही सामने विपरीत दिशाओं में खड़े पहाड़ दिखाई दिए। इन पहाड़ों के बीच स्वर्ग के समान सुंदर दृश्य बिखरे हुए थे। पर्वत, झरने, फूलों, घाटियों और वादियों के दुर्लभ नज़ारे लेखिका को कहीं बहुत गहरे अपने आपसे जोड़ रहे थे। उसकी आत्मा उदार होती जा रही थी। उसे लगा कि वह ईश्वर के बहुत समीप है। उसके होंठों पर फिर वही प्रार्थना “साना-साना हाथ जोड़ि ….” आने लगी। कुछ ही दूर चलने पर, लेखिका की दृष्टि पहाड़ी औरतों पर पड़ी। वे औरतें पत्थर तोड़ रही थीं, उनकी काया कोमल थी, किंतु उनके हाथों में हथौड़े और कुदाल थे। कुछ की पीठ पर तो उनके बच्चे भी बँधे हुए थे। वे पूरी ताकत के साथ पत्थर तोड़ रही थीं। वे उस अलौकिक सौंदर्य से निरपेक्ष अपनी जीविका के संघर्ष में लगी हुई थीं। लेखिका को एकाएक लगा मानो किसी समाधि भाव से नाचती नृत्यांगना के धुंघरू टूट गए हों। स्वर्गीय सौंदर्य के बीच मौत, भूख और जिंदा रहने की लड़ाई उनके सामने थी।

पूछने पर पता चला कि ये पहाड़िने सड़क को चौड़ा करने का काम कर रही थीं। यह बहुत ही खतरे से भरा हुआ कार्य है। आपको हैरानी होगी, किंतु इस काम को करने में बहुत-से लोगों ने तो मौत को भी झुठला दिया है। लेखिका गहरी चिंता में डूब गई थी। उन्हें देखकर जितेन नार्गे ने कहा, “मैडम, ये मेरे देश की आम जनता है। इन्हें तो आप कहीं भी देख सकती हो। आप पहाड़ों की सुंदरता को देखिए जिनको देखने के लिए आप पैसे खर्च करके आई हैं।” किंतु लेखिका सोच रही थी कि मेरे देश की जनता कितना कम लेकर कितना अधिक देती है। तभी वे श्रम-सुंदरियाँ किसी बात पर खिलखिला पड़ी। लेखिका को लगा कि खंडहर ताजमहल बन गया हो।

जीप चढ़ाई चढ़ती जा रही थी। हेयर पिन बेंट से पहले एक पड़ाव पर बहुत सारे पहाड़ी बच्चे स्कूल से लौट रहे थे। वे लिफ्ट माँग रहे थे। जितेन ने बताया कि यहाँ स्कूल बस की कोई व्यवस्था नहीं है। नीचे तराई में एक ही स्कूल है। दूर-दूर से बच्चे वहीं पढ़ने आते हैं। ये बच्चे पढ़ते ही नहीं, अपितु अपनी माताओं के साथ मवेशी चराते हैं, पानी भरते हैं और लकड़ियों के गट्ठर भी उठाकर लाते हैं। अब आगे का मार्ग और भी संकरा (तंग) हो गया था। जगह-जगह चेतावनी के बोर्ड लगाए हुए थे।

सूरज ढलने पर पहाड़ी औरतें और बच्चे गाय चराकर लौट रहे थे। कुछ के सिर पर लकड़ियों के गट्ठर थे। शाम का समय हो गया था। जीप चाय के बागानों से गुज़र रही थी। बागानों में कुछ युवतियाँ सिक्किमी परिधान पहने चाय की पत्तियाँ तोड़ रही थीं। उनके चेहरे ढलती शाम के सूरज की रोशनी में चमक रहे थे। चारों ओर इंद्रधनुषी रंग छटा बिखेर रहे थे। लेखिका इतना अधिक प्राकृतिक सौंदर्य देखकर खुशी से चीख उठी थी। यूमथांग पहुँचने से पूर्व लोग कुछ समय के लिए लायुंग रुके थे। लायुंग में लकड़ी से बने छोटे-छोटे घर थे। लेखिका थकान उतारने के लिए तिस्ता नदी के पत्थरों पर जाकर बैठ गई थी। वहाँ का वातावरण शांत था। ऐसा लग रहा था मानो प्रकृति अपनी लय, ताल और गति में कुछ कह रही हो। इस सफर में लेखिका दार्शनिक-सी बन गई थी। रात होने पर जितेन व अन्य साथियों ने नाच-गाना आरंभ कर दिया था। लेखिका की सहयात्री मणि ने अति सुंदर नृत्य किया। लागुंग के लोगों का मुख्य व्यवसाय आलू, धान की खेती और शराब था। लेखिका, की इच्छा वहाँ बर्फ देखने की थी, किंतु वहाँ बर्फ दिखाई नहीं दे रही थी।

वे लोग इस समय 14000 फीट की ऊँचाई पर थे। एक स्थानीय युवक का मानना था कि यहाँ प्रदूषण के कारण स्नोफाल नहीं होता। उसने बताया ‘कटाओ’ नामक स्थान पर बर्फ देखने को मिल सकती है। ‘कटाओ’ को भारत का स्विट्जरलैंड कहते हैं। ‘कटाओ’ को अभी तक टूरिस्ट स्थान नहीं बनाया गया था। इसलिए वह अपने प्राकृतिक स्वरूप में था। लागुंग से ‘कटाओ’ का सफर केवल दो घंटे का था। अब रास्ता और भी खतरनाक था। सब लोग खामोश बैठे हुए थे। जितेन अंदाज़ से गाड़ी चला रहा था। वहाँ के सारे वातावरण में बादल छाए हुए थे। जरा-सी असावधानी से कोई भी दुर्घटना हो सकती थी। थोड़ी दूर चलने पर मौसम साफ हो गया। मणि स्विट्ज़रलैंड देख चुकी थी।

इसलिए उसने एकाएक कहा यह स्थान तो स्विट्ज़रलैंड से भी अधिक सुंदर है। ‘कटाओ’ दिखने लगा था। चारों ओर बर्फ रूपी चाँदी की चादर फैली हुई थी। कटाओ पहुँचते ही थोड़ी-थोड़ी बर्फ पड़ने लगी थी। बर्फ को देखकर सभी के हृदय खिल गए थे। सभी यात्री वहाँ की बर्फ के फोटो खींच रहे थे। लेखिका बर्फ में जाना चाहती थी किंतु उनके पास बर्फ में पहनने वाले जूते नहीं थे। लेखिका फोटो खींचने की अपेक्षा वहाँ के वातावरण को अपनी साँसों में समा लेना चाहती थी। उन्हें लग रहा था कि यहाँ के वातावरण ने ही ऋषि-मुनियों को वेदों की रचना करने की प्रेरणा दी होगी। ऐसे अनुपम सौंदर्य को यदि कोई अपराधी भी देख ले तो वह भी कुछ समय के लिए आध्यात्मिक हो जाएगा। मणि के मन में भी आध्यात्मिकता का भाव जागने लगा था। लेखिका सोचती है कि ये हिमशिखर ही पूरे एशिया को पानी देते हैं। प्रकृति अपने ढंग से सर्दियों में हमारे लिए पानी एकत्रित करती है और गर्मियों में ये बर्फ की शिलाएँ पिघलकर जलधारा बनकर हमारी प्यास को शांत करती हैं। प्रकृति की जल संचय की यह विधि भी अद्भुत है। हम इन हिमशिखरों और नदियों के ऋणी हैं।

लेखिका और उसके सहयोगी यात्री कुछ आगे बढ़ते हैं तो वहाँ उन्हें फौजी छावनियाँ दिखाई देती हैं। वहाँ से कुछ ही दूरी पर चीन की सीमा है। फौजी जवान कड़कती ठंड में अपने आपको कष्ट देकर हमारी सुरक्षा करते हैं। लेखिका फौजियों को देखकर कुछ उदास हो जाती है कि जहाँ बैशाख के महीने में भी इतनी अधिक ठंड है तो वे लोग पौष – माघ की ठंड में किस तरह रहते होंगे। वहाँ जाने का रास्ता भी मुसीबतों से भरा हुआ है। वास्तव में फौजी अपना सुख त्यागकर हमारे लिए शांतिपूर्वक कल का निर्माण करते हैं।

वे लोग वहाँ के प्राकृतिक दृश्यों को अपनी आत्मा में संजोकर लौट पड़े थे। यूमथांग की संपूर्ण घाटी फूलों से भरी हुई थी। जितेन नार्गे ने बताया कि यहाँ के लोग बंदर का माँस भी खाते हैं। बंदर का माँस खाने से कैंसर नहीं होता। उसकी बातों पर लेखिका के अतिरिक्त किसी को विश्वास नहीं हो रहा था, क्योंकि उसने पठारी इलाकों की भयानक गरीबी देखी थी। लोगों को सूअर का दूध पीते देखा था। यूमथांग पहुँचकर लोगों को सब कुछ फीका- फीका लग रहा था। वहाँ के लोग अपने आपको भारतीय कहलवाने में गर्व अनुभव करते हैं। पहले सिक्किम स्वतंत्र राज्य था। अब वह भारत का ही एक हिस्सा बन गया है। ऐसा होने से वहाँ के लोग बहुत खुश हैं। मणि ने बताया कि पहाड़ी कुत्ते केवल चाँदनी रात में ही भौंकते हैं। यह सुनकर लेखिका हैरान हुई। उसे लगा कि पहाड़ी कुत्तों पर भी ज्वारभाटे की तरह पूर्णिमा की चाँदनी का प्रभाव पड़ता है। लौटते समय जितेन नार्गे ने और भी बहुत-सी जानकारियाँ उन्हें दी थीं। मार्ग में उन्हें एक ऐसा स्थान दिखाया, जहाँ पूरे एक किलोमीटर के क्षेत्र में देवी-देवताओं का निवास है। जो वहाँ गंदगी फैलाएंगा वह मर जाएगा, ऐसा विश्वास किया जाता है। उसने यह भी बताया कि वे पहाड़ों पर गंदगी नहीं फैलाते। वे लोग गंतोक बोलते हैं। गंतोक का अर्थ है-पहाड़। सिक्किम में अधिकतर क्षेत्रों को टूरिस्ट स्पॉट बनाने का श्रेय भारतीय आर्मी के कप्तान शेखर दत्ता को जाता है। लेखिका को इस यात्रा के पश्चात् लगा कि मनुष्य की कभी न समाप्त होने वाली खोज का नाम ही सौंदर्य है।

कठिन शब्दों के अर्थ

(पृष्ठ-17) संधि-स्थल = मिलने का स्थान। सम्मोहन = मोहित होने का भाव। स्थगित = कुछ समय के लिए टाला गया। अतींद्रियता = इंद्रियों से परे जाने का भाव। उजास = प्रकाश।

(पृष्ठ-18) रकम-रकम के = तरह- तरह के। गहनतम = सबसे गहरा। गाइड = मार्गदर्शक। जायज़ा = अनुभव और अनुमान। पताकाएँ = झंडे। बुद्धिस्ट = बौद्ध धर्म को मानने वाले। संधि-पत्र = समझौते के लिए लिखा गया पत्र। अवधारणाएँ = मानसिक विचार।

(पृष्ठ-19) परिदृश्य = नज़ारा। रफ्ता-रफ़्ता = धीरे-धीरे। वीरान = सुनसान। सँकरे = तंग। विशालकाय = बहुत बड़े आकार वाला। परिवर्तन = बदलाव। काम्य = मन की चाहत। वादियाँ = पर्वतों के बीच फैला हुआ भाग।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 3 साना साना हाथ जोड़ि

(पृष्ठ-20) मुंडकी = सिर। सैलानी = सैर करने आए यात्री। पराकाष्ठा = पूरी ऊँचाई पर। फेन = झाग। जल-प्रपात = जल का ऊँचाई से गिरना। मशगूल = व्यस्त। अभिशप्त = जिसे अभिशाप दिया गया हो। काव्यमय = कविता से संबंधित। सरहद = सीमा। अनंतता = अंत न होने का भाव। लम्हे = पल। तामसिकताएँ = बुरी भावनाएँ।

(पृष्ठ-21) सतत = निरंतर। वजूद = होने का भाव। छोर तक = किनारे तक। तंद्रिल अवस्था = नींद जैसी स्थिति में होना। आत्मलीन = अपने-आप में लीन। निरपेक्ष = जो किसी से पक्ष-पात न करे। समाधिस्थ = समाधि की दशा में।

(पृष्ठ-22-23) अकस्मात = अचानक। संजीदा = गंभीर। डाइनामाइट = एक प्रकार का विस्फोटक पदार्थ । चुहलबाजी = हंसी मज़ाक। वंचना = वंचित होने का भाव (कमी)। गमगीन = गम में डूबा हुआ। हेयर पिन बेंट = बालों में लगाने वाली सूई के आकार का। पड़ाव = ठहराव, ठहरने का स्थान।

(पृष्ठ-24-25) सात्विक = पवित्र। आभा = चमक। असहाय = असहनीय। संकल्प = निश्चय। हलाहल = ज़हर। जन्नत = स्वर्ग। परिदे = पक्षी। अनायास = अचानक।

(पृष्ठ-26-27) अहसास = अनुभव । गर्व = अभिमान। डाइवोर्स = तलाक। ख्वाहिश = इच्छा। विभोर = लीन होना। सर्वे भवंतु सुखिनः, = सभी सुखी हों। अमंगल = बुरा। वृत्ति = स्वभाव। अभिभूत = भावना से भरकर। बार्डर = सीमा।

(पृष्ठ-28-29) टुडे = आज। टुमारो = आने वाला कल। मीआद = समय-सीमा। अपेक्षाकृत = की बजाय। रोमांचक = रोमांच से भर देने वाला। फुटप्रिंट = पाँवों के निशान।

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