HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 1 सिल्वर बैंडिग

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 1 सिल्वर बैंडिग Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 1 सिल्वर बैंडिग

HBSE 12th Class Hindi सिल्वर बैंडिग Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ ढल सकने में सफल होती है लेकिन यशोधर बाबू असफल रहते हैं। ऐसा क्यों?
उत्तर:
यशोधर बाबू और उनकी पत्नी दोनों ही आधुनिक सोच से दूर हैं, परंतु यशोधर बाबू की पत्नी अपने बच्चों का पक्ष लेते-लेते आधुनिक बन गई है। जब वह विवाह के बाद ससुराल में आई थी, तो उस समय यशोधर बाबू का परिवार संयुक्त परिवार था। घर में ताऊ जी एवं ताई जी की चलती थी। इसलिए उनकी पत्नी के मन में एक बहुत बड़ा दुख था। वह समझती थी कि उसे आचार-विचार के बंधनों में रखा जाता है। मानो वह जवान न होकर बूढ़ी औरत हो। जो नियम बुढ़िया ताई पर लागू होते थे, वे सभी उस पर भी लागू होते थे। इसलिए वह अपनी अतप्त इच्छाओं को पूरा करना चाहती है। इसलिए वह अपने पति से कहती है कि-“तुम्हारी ये बाबा आदम के जमाने की बातें, मेरे बच्चे नहीं मानते तो इसमें उनका कोई कसूर नहीं। मैं भी इन बातों को उसी हद तक मानूंगी जिस हद तक सुभीता हो। अब मेरे कहने से वह सब ढोंग-ढकोसला हो नहीं सकता-साफ बात।” ।

इसलिए यशोधर बाबू की पत्नी इस उम्र में भी बिना बाँह का ब्लाऊज पहनती है। होंठों पर लाली लगाती है और सिल्वर वैडिंग में खुलकर भाग लेती है। परंतु यशोधर बाबू एक परंपरावादी व्यक्ति हैं। वे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को चाय पान के लिए तीस रुपये तो दे देते हैं परंतु वे आयोजन में भाग नहीं लेते। वे पूजा के लिए मंदिर जाते हैं। सुख-दुख में संयुक्त परिवार के लोगों से मिलना चाहते हैं। परंतु किसी अच्छे मकान में रहने के लिए नहीं जाते। यहाँ तक कि वे डी०डी०ए० का फ़्लैट लेने का भी प्रयास नहीं करते। जब उनके लड़के घर पर उनकी सिल्वर वैडिंग का आयोजन करते हैं, तो वे उससे भी बचने की कोशिश करते हैं। वे अपने आदर्श किशनदा के संस्कारों का ही अनुसरण करते हैं। परिणाम यह होता है कि वे परिस्थितियों के आगे झुक तो जाते हैं, परंतु उनका मन पुरानी परंपराओं से ही चिपका हुआ है। वे नए जमाने की सुविधाओं; जैसे गैस, फ्रिज आदि को अच्छा नहीं समझते। फिर भी वे सोचते हैं कि ये चीजें हैसियत बढाने वाली हैं। सच्चाई तो यह है कि वे समय के साथ ढल नहीं पाते और बार-बार किशनदा के संस्कारों को याद कर उठते हैं।

प्रश्न 2.
पाठ में ‘जो हुआ होगा’ वाक्य की आप कितनी अर्थ छवियाँ खोज सकते/सकती हैं?
उत्तर:
‘जो हुआ होगा’ वाक्य का पाठ में अनेक बार प्रयोग हुआ है। पहली बार इसका तब प्रयोग होता है, जब यशोधर बाबू ने किशनदा के किसी जाति भाई से उनकी मृत्यु का कारण पूछा था। उत्तर में उसने कहा था ‘जो हआ होगा’ अर्थात पता नहीं क्या हुआ और किस कारण से उनकी मृत्यु हुई। किशनदा ने विवाह नहीं किया था। इसलिए उनके बच्चे नहीं थे। इसलिए जाति भाई उनके प्रति उदासीन थे। उन्होंने यह आवश्यक नहीं समझा कि किशनदा की मृत्यु के कारणों का पता लगाया जाए। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि मानव के लिए विवाह संस्कार आवश्यक है। बाल-बच्चों से ही वृद्धावस्था में सुरक्षा हो सकती है। यदि किशनदा की संतान होती, तो उनके रिश्तेदार उनकी मृत्यु के कारणों की जानकारी रखते और उनके प्रति इतने उदासीन न होते।

किशनदा ने भी इस वाक्य का प्रयोग किया है। अपनों से मिली उपेक्षा के लिए, वे इस वाक्य का प्रयोग करते हैं। किशनदा भी जन इसी ‘जो हुआ होगा’ से मरते हैं, गृहस्थ हों, ब्रह्मचारी हों, अमीर हों, गरीब हों, मरते ‘जो हुआ होगा’ से ही हैं। हाँ-हाँ, शुरू में और आखिर में, सब अकेले ही होते हैं। अपना कोई नहीं ठहरा दुनिया में, बस अपना नियम अपना हुआ। यहाँ इस वाक्य का अर्थ अन्य संदर्भ में देखा जा सकता है अर्थात् किसी-न-किसी कारण से ही सबकी मृत्यु होती है। पाठ के आखिर में जब बच्चे यशोधर बाबू पर व्यंग्य करते हैं, तो उनको यह निश्चय हो गया कि किशनदा की मृत्यु ‘जो हुआ होगा’ से ही हुई होगी। भाव यह है कि बच्चे जब अपने माता-पिता की उपेक्षा करने लगते हैं, तो उनके प्राण जल्दी निकल जाते हैं।

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प्रश्न 3.
‘समहाउ इंप्रापर’ वाक्यांश का प्रयोग यशोधर बाबू लगभग हर वाक्य के प्रारंभ में तकिया कलाम की तरह करते हैं। इस वाक्यांश का उनके व्यक्तित्व और कहानी के कथ्य से क्या संबंध बनता है?
उत्तर:
‘समहाउ इंप्रापर’ यशोधर बाबू का तकिया कलाम है। जिसका अर्थ यह है कि फिर भी यह अनुचित है। इस पाठ में एक दर्जन से अधिक बार इस वाक्यांश का प्रयोग हुआ है। इससे यशोधर बाबू का व्यक्तित्व झलकता है। वस्तुतः वे सिद्धांत प्रिय व्यक्ति हैं। जब उन्हें कोई बात अनुचित लगती है, तब उनके मुख से यह वाक्य निकल पड़ता है। उदाहरण के रूप में सर्वप्रथम ‘सिल्वर वैडिंग’ के लिए, वे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को तीस रुपये चाय पान के लिए देते हैं, परंतु इसे ‘समहाउ इंप्रापर’ कहते हैं। यही नहीं, वे अपने साधारण पुत्र को असाधारण वेतन मिलना भी ‘समहाउ इंप्रापर’ कहते हैं।

अन्यत्र उन्होंने अपनों से परायेपन का व्यवहार मिलने, डी०डी०ए० के फ्लैट के लिए पैसे न चुकाने, अपनी वृद्धा पत्नी द्वारा आधुनिका का स्वरूप धारण करने, बेटे द्वारा अपने पिता को वेतन न देने, संपन्नता में सगे-संबंधियों की उपेक्षा करने, बेटी द्वारा विवाह का निर्णय न लेने आदि को भी ‘समहाउ इंप्रापर’ कहा है। इसी प्रकार जब उसकी बेटी जींस तथा सैंडो ड्रैस पहनती है, घर में गैस, फ्रिज लाया जाता है। सिल्वर वैडिंग पर भव्य पार्टी दी जाती है। छोटा साला ओछापन दिखाता है और केक काटा जाता है, तब भी वे इसी वाक्यांश का प्रयोग करते हैं। वस्तुतः यशोधर बाबू किशनदा से प्रभावित होने के कारण सिद्धांतों पर चलने वाले व्यक्ति हैं। यही नहीं, वे भारतीय मूल्यों और मान्यताओं में विश्वास रखते हैं। लगभग ऐसे ही विचार आजकल के बुजुर्गों के हैं।

वाक्यांश कहानी के मूल कथ्य से जुड़ा हुआ है। लेखक यह दिखाना चाहता है कि आज पुरानी और नई पीढ़ी में एक खाई उत्पन्न हो चुकी है। प्रत्येक पुरानी पीढ़ी नवीन परिवर्तनों को अनुचित मानती है। इस नकारात्मक दृष्टिकोण के कारण ही उनके बच्चे तथा परिजन उनकी उपेक्षा करने लगते हैं, परंतु उनकी पत्नियाँ नए ज़माने के साथ स्वयं को अनुकूल बना लेती हैं। यही कारण है कि ‘समहाउ इंप्रापर’ एक प्रश्न चिह्न बनकर रह गया है। लेखक इस पाठ द्वारा यह कहना चाहता है कि यदि वृद्ध लोगों को अपने बच्चों के साथ सम्मानपूर्वक जीना है तो उन्हें नए परिवर्तनों को स्वीकार करना पड़ेगा, अन्यथा उनकी हालत यशोधर बाबू जैसी हो जाएगी।

प्रश्न 4.
यशोधर बाबू की कहानी को दिशा देने में किशनदा की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। आपके जीवन को दिशा देने में किसका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा और कैसे?
उत्तर:
यशोधर बाबू का जीवन किशनदा और उनके सिद्धांतों से प्रभावित रहा है। वे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के प्रति जो व्यवहार करते थे, वह किशनदा के ही समान था। भारतीय मूल्यों में आस्था, सादी जीवन-प्रणाली तथा धन-दौलत के प्रति अनासक्ति आदि प्रवृत्तियाँ किशनदा से ही प्रभावित हैं। हर आदमी जीवन में किसी-न-किसी से प्रेरणा अवश्य प्राप्त करता है। मेरे जीवन को प्रेरणा देने वाली मेरी अपनी माँ है। वे आज महाविद्यालय की एक सफल प्राध्यापिका हैं। उन्होंने प्रत्येक क की थी। इसके साथ-साथ वे बहुपठित एवं बहुश्रुत भी हैं। अपने विषय में प्रवीण होने के साथ-साथ उन्होंने अन्य विषयों का भी गहन अध्ययन किया है।

वे निरंतर मुझे पढ़ने और आगे बढ़ने की प्रेरणा देती रहती हैं। परंतु मेरी माता जी का रहन-सहन बड़ा सादा और सरल है। वे बाहरी ताम-झाम में विश्वास नहीं करतीं। फलस्वरूप मैं आरंभ से ही पढ़ने-लिखने में ठीक हूँ। दसवीं की परीक्षा में मैंने नगर में सर्वाधिक अंक प्राप्त किए थे। यही नहीं, मैं विद्यालय के सांस्कृतिक कार्यों में भी बढ़-चढ़कर भाग लेता हूँ और अपने गुरुजनों का हमेशा आदर करता हूँ। मैं उच्च शिक्षा प्राप्त करके किसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर का पद प्राप्त करना चाहता हूँ। यदि ईश्वर की कृपा रही और मेरी माँ की मुझे नियमित प्रेरणा मिलती रही, तो मैं निश्चय से ही इस लक्ष्य को प्राप्त करूँगा।

प्रश्न 5.
वर्तमान समय में परिवार की संरचना, स्वरूप से जुड़े आपके अनुभव इस कहानी से कहाँ तक सामंजस्य बिठा पाते हैं?
उत्तर:
आधुनिक युग में संयुक्त परिवार प्रथा लगभग समाप्त हो चुकी है। भले ही यशोधर बाबू अपने ताऊ और ताई के साथ रहे हों। परंतु आज भौतिकवादी युग के कारण लोगों की आकांक्षाएँ बढ़ती जा रही हैं। प्रायः परिवार छोटे बनते जा रहे हैं। बेटा अपनी आय को स्वयं खर्चना चाहता है और अपनी पत्नी के साथ अलग रहना चाहता है। इधर पत्नी भी अपने पति की सलाह को नहीं मानती। बच्चे भी अपने कैरियर के बारे में माँ-बाप की सलाह को नहीं मानते हैं। इधर बेटियाँ भड़कीले वस्त्र पहनकर अपने मित्रों के साथ घूमना चाहती हैं। उनके पहनावे को देखकर माँ-बाप और बड़े बुजुर्गों को शर्म आती है। प्रत्येक लड़की अपने विवाह का निर्णय स्वयं लेना चाहती है। फलस्वरूप घर में गृहस्वामी की उपेक्षा की जाती है। इस प्रकार पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच एक दरार उत्पन्न हो गई है।

परंतु सामंजस्य के द्वारा हम इस समस्या का हल निकाल सकते हैं। पुराने लोगों को थोड़ा आधुनिक बनना पड़ेगा और नए लोगों को थोड़ा पुराना। हमारे मूल्य आज भी हमारी धरोहर हैं, उनमें बहुत-सी ऐसी बातें हैं जो हमारे समाज के लिए अत्यधिक उपयोगी हैं। घर की साग-सब्जी, दूध, राशन आदि लाने में घर के सभी लोगों को सहयोग करना होगा। यदि आज के बच्चे आधुनिक युग की सुख-सुविधाओं को पाना चाहते हैं तो उन्हें यशोधर बाबू जैसे पिता को अपमानित नहीं करना चाहिए। पत्नी का भी कर्त्तव्य बनता है कि वह अपने पति की सलाह को मानती हुई अपनी संतान की देखभाल करे, बल्कि वह एक माँ के रूप में अपने पति और बच्चों के बीच सेतु का काम कर सकती है। इसके साथ-साथ यशोधर बाबू के समान अधिक परंपरावादी बनना भी अच्छा नहीं है।

इधर घर की बेटियों और नारियों का यह कर्त्तव्य बनता है कि वे शालीनता का ध्यान रखते हुए वस्त्र धारण करें। अधिक मॉड बनने के दुष्परिणाम तो हम हर रोज़ देखते ही रहते हैं। इस कहानी में यशोधर बाबू ने तीस रुपये देकर, घर में गैस एवं फ्रिज के प्रति नरम रुख रखकर, केक काटकर तथा मेहमानों का स्वागत करके सामंजस्य स्थापित करने का प्रयत्न किया है। घर के अन्य लोगों का भी कर्त्तव्य बनता है कि वे यशोधर बाबू जैसे गृहस्वामियों की भावनाओं को समझें। दोनों पक्षों में सामंजस्य स्थापित करने से ही आधुनिक युग को सफल बनाया जा सकता है।

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से किसे आप कहानी की मूल संवेदना कहेंगे/कहेंगी और क्यों? (क) हाशिए पर धकेले जाते मानवीय मूल्य (ख) पीढ़ी का अंतराल (ग) पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव
उत्तर:
इस कहानी में मानवीय मूल्यों को हाशिए पर धकेले जाते हुए ही दिखाया गया है। उदाहरण के रूप में यशोधर बाबू के बच्चे, भाईचारा एवं रिश्तेदारी का ध्यान नहीं रखते और न ही बुजुर्गों का उचित सम्मान करते हैं। इस कहानी में पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव भी देखा जा सकता है। यशोधर बाबू के बच्चे तो आधुनिक बनना ही चाहते हैं, परंतु उनकी पत्नी भी आधुनिका बनी हुई है, और वह अपने पति को आधुनिक रंग-ढंग में देखना चाहती है।

परंतु यदि गहराई से इस कहानी का अध्ययन किया जाए तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि कहानी की मूल संवेदना पीढ़ी का अंतराल है। यशोधर बाबू पुरानी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करने वाले पात्र हैं। वे भारतीय संस्कृति को मानते हैं। पूजा-पाठ करते हैं। रामलीला देखने जाते हैं। रिश्तेदारी को निभाने का प्रयास करते हैं और सादा तथा सरल जीवन व्यतीत करना चाहते हैं, परंतु उनके बच्चे तथा पत्नी आधुनिक रंग-ढंग में ढल गए हैं। इस कहानी का कथानक इसी द्वंद्व पर टिका हुआ है। पीढ़ी-अंतराल के कारण जो कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं, उसका शिकार यशोधर बाबू बनते हैं। वे अपने-आप में किशनदा से प्रभावित होने के कारण पुरानी व्यवस्था को अपनाते हैं।

यही नहीं, वह पुरानी परंपराओं को सही तथा नई परंपराओं को ‘समहाउ इंप्रापर’ कहते हैं। इसीलिए सर्वत्र उपेक्षा होती है। घर के बच्चे उनकी वेशभूषा, चाल-ढाल, आचार-विचार आदि का विरोध करते हैं। उनका विचार है कि उनके पिता की सादगी वस्तुतः फटीचरी है। यही नहीं, उनके विचारानुसार रिश्तेदारी निभाना घाटे का सौदा है। धीरे-धीरे यशोधर बाबू उपेक्षित होते चले जाते हैं। बच्चे उनके लिए नया गाउन इसलिए लाते हैं कि ताकि वे फटा हुआ पुलओवर पहनकर समाज में उनकी बेइज्जती न कराएं। बच्चों को अपने मान-सम्मान की तो चिंता है, परंतु वे अपने पिता की मनःस्थिति को नहीं समझ पाते। अतः पीढ़ी अंतराल की समस्या ही इस कहानी की मुख्य समस्या है।

प्रश्न 7.
अपने घर और विद्यालय के आस-पास हो रहे उन बदलावों के बारे में लिखें जो सुविधाजनक और आधुनिक होते हुए भी बुजुर्गों को अच्छे नहीं लगते। अच्छा न लगने के क्या कारण होंगे?
उत्तर:
आज का युग वैज्ञानिक युग है। प्रतिदिन नए-नए आविष्कार हो रहे हैं। प्रायः अधिकांश आविष्कार मानव को सुख-सुविधाएँ देने में अत्यधिक सहायक हैं। जहाँ तक हमारे देश का प्रश्न है, यहाँ पिछले कुछ दशकों में वैज्ञानिक प्रगति हुई है। आज प्रत्येक घर में बिजली के पंखे, ए०सी०, रसोई गैस के चूल्हे, टेलीफोन, इंटरनेट आदि अनेक ऐसी वस्तुएँ हैं जो लोगों के जीवन को सुविधाजनक बना रही हैं। लेकिन हमारे बड़े-बूढ़े अभी तक पुरानी बातों को याद कर उठते हैं।

वे प्रायः कहते रहते हैं कि चूल्हे की रोटी का कोई मुकाबला नहीं है। इसी प्रकार उनका कहना है कि फ्रिज के कारण हम बासी भोजन करते हैं, टी०वी० अश्लीलता फैला रहा है और मोबाइल का अधिक प्रयोग लड़के-लड़कियों को बिगाड़ रहा है। इसी प्रकार इंटरनेट के प्रयोग के कारण युवक-युवतियाँ अश्लील फिल्में देखते हैं और वे चरित्रहीन बन रहे हैं। यद्यपि सच्चाई है कि बुजुर्गों के विचार पुराने हो सकते हैं, परंतु आधुनिक सुविधाओं का अधिक प्रयोग हमारी जीवन-शैली को जटिल बनाता जा रहा है, परंतु सुविधाओं की ऐसी आँधी बुजुर्गों के रोकने पर रुकने वाली नहीं है।

प्रश्न 8.
यशोधर बाबू के बारे में आपकी क्या धारणा बनती है? दिए गए तीन कथनों में से आप जिसके समर्थन में हैं, अपने अनुभवों और सोच के आधार पर उसके लिए तर्क दीजिए
(क) यशोधर बाबू के विचार पूरी तरह से पुराने हैं और वे सहानुभूति के पात्र नहीं हैं।
(ख) यशोधर बाबू में एक तरह का द्वंद्व है जिसके कारण नया उन्हें कभी-कभी खींचता तो है पर पुराना छोड़ता नहीं। इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की ज़रूरत है।
(ग) यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व है और नयी पीढ़ी द्वारा उनके विचारों का अपनाना ही उचित है।
उत्तर:
ऊपर जो तीन कथन दिए गए हैं, उनमें से दूसरा कथन ही मुझे उचित लगता है। यशोधर बाबू एक द्वंद्व ग्रस्त व्यक्ति हैं। कभी नया उन्हें अपनी ओर खींचता है, परंतु पुराना उन्हें छोड़ नहीं पाता। वे स्वयं यह निर्णय नहीं कर पाते कि उन्हें नवीन मूल्यों को अपनाना चाहिए अथवा पुराने मूल्यों से चिपका रहना चाहिए। इसलिए हमें उनके बारे में सहानुभूतिपूर्वक सोचना चाहिए। मेरे दादा जी प्रायः नई वस्तुओं की आलोचना करते रहते हैं। एक बार हमने घर पर ए०सी० लगवाया। दादा जी ने इस सुविधा की न केवल आलोचना की, बल्कि इसका विरोध भी किया। यहाँ तक की उन्होंने मेरे पिता जी को डाँटते हुए कहा कि तुम आधुनिक चीज़ों पर पैसा खराब करते रहते हो, परंतु अगले दिन वे ए०सी० की ठंडी हवा में काफी देर तक सोते रहे। जब मैंने उन्हें चाय के लिए गाया तो वे मुझे कहने लगे–“बेटे ए०सी० पर खर्चा तो बहुत आ गया, परंतु इसकी ठंडी हवा बहुत सुख देती है। मैं तो गहरी नींद में सो गया था।”

इस प्रकार हम देखते हैं कि यशोधर बाबू का द्वंद्व स्वाभाविक है। वे पिछड़े हुए ग्रामीण क्षेत्र से महानगर में आए हैं। अभी तक उनके मन पर ग्रामीण अंचल का प्रभाव बना पड़ा है, परंतु उनके बच्चे दिल्ली महानगर में जन्मे एवं पले हैं। वे आधुनिक परिवेश से अत्यधिक प्रभावित हैं। वे अपने घर में सब प्रकार की आधुनिक सुविधाएँ चाहते हैं। ये नयापन यशोधर बाबू को भी यदा-कदा आकर्षित करता है। उदाहरण के रूप में गैस तथा फ्रिज के बारे में उनकी सोच अथवा भूषण से हाथ मिलाना, अतिथियों को अंग्रेज़ी में अपना परिचय देना आदि नएपन के सूचक हैं। ऐसी स्थिति में यशोधर बाबू के प्रति सहानुभूति का व्यवहार करना उचित होगा। यदि यशोधर बाबू के परिवार के लोग उन्हें पहले से ही सिल्वर वैडिंग की सूचना दे देते तो वे समय पर घर आते और अतिथियों का भरपूर स्वागत करते। इसके साथ-साथ हमें यह भी देखना चाहिए कि घर के बड़े बुजुर्गों के साथ सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करना चाहिए। उनकी उपेक्षा कभी नहीं की जानी चाहिए।

HBSE 12th Class Hindi सिल्वर बैंडिग Important Questions and Answers

बोधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के आधार पर यशोधर बाबू की चार विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भले ही यशोधर बाबू ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के प्रमुख पात्र हैं, परंतु वे एक परंपरावादी व्यक्ति होने के कारण आधुनिक परिवेश में मिसफिट दिखाई देते हैं। वे किशनदा के आदर्श व्यक्तित्व से कुछ प्रभावित हैं। वे पुराने संस्कारों को छोड़ नहीं पाते और नए परिवेश को ग्रहण करके उसकी आलोचना करते हैं। उनके व्यक्तित्व की चार प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(क) कर्त्तव्यनिष्ठ व्यक्ति-यशोधर बाब एक कर्त्तव्यपरायण व्यक्ति हैं। वे प्रतिदिन समय पर कार्यालय जाते हैं और दिन-भर मेहनत से काम करते हैं। वे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को ईमानदारी से काम करने की प्रेरणा देते हैं तथा प्रतिदिन का काम पूरा करके ही लौटते हैं।

(ख) एक संस्कारवान व्यक्ति-किशनदा से प्रभावित होने के कारण यशोधर बाबू प्रतिदिन मंदिर जाकर प्रवचन सुनते हैं और सुबह-शाम घर पर पूजा करते हैं। यही नहीं, वे अपने घर पर ‘जन्यो-पुन्यू’ तथा रामलीला शिक्षा का काम भी समाज-सेवा के रूप में करते हैं। यही नहीं, वे यह भी चाहते हैं कि सगे-संबंधियों की सुख-दुख में सहायता करनी चाहिए। वे सरल वेशभूषा पहनते हैं और समय पर घूमने जाते हैं और सुबह जल्दी उठ जाते हैं।

(ग) सफल गहस्थी-उनको हम एक सफल गहस्थी कह सकते हैं। वे प्रतिदिन घर का राशन और साग-सब्जी खरीदकर लाते हैं तथा बच्चों का मन देखकर साइकिल छोड़कर पैदल जाते हैं। अनाथ होते हुए भी उन्होंने संयुक्त परिवार परंपरा को निभाया।

(घ) आधुनिकता के आलोचक-यशोधर बाबू आधुनिकता के नाम पर मनमानी करना, कम कपड़े पहनना, नए उपकरणों का प्रयोग करना यह सब पसंद नहीं करते हैं। विवाह की रजत जयंती मनाने को एक अनावश्यक खर्च मानते हैं। इसी प्रकार वे अपनी बेटी और पत्नी द्वारा आधुनिक कपड़ों को अपनाने का भी विरोध करते हैं। वस्तुतः किशनदा से अत्यधिक प्रभावित होने के बाद वे नवीन मूल्यों को आसानी से स्वीकार नहीं कर पाते। फिर भी यशोधर बाबू ने पिता के कर्त्तव्य को अच्छी तरह निभाया। अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दी और उन्हें मानवीय मूल्यों तथा समाज संस्कृति से यथासंभव जोड़ने का प्रयास किया। लेकिन उनके बच्चे नए ज़माने से अत्यधिक प्रभावित हुए।

प्रश्न 2.
किशनदा के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इस कहानी में किशनदा के चरित्र का वर्णन पृष्ठभूमि के रूप में किया गया है। इस कहानी के प्रत्येक संदर्भ में वे हस्तक्षेप करते दिखाई देते हैं। भले ही उनकी मृत्यु हो चुकी है, परंतु वे अपने मानस पुत्र यशोधर बाबू के रूप में अब भी जिंदा हैं। यशोधर बाबू के व्यक्तित्व पर उनका गहरा प्रभाव है। वे हर समय उनकी विशेषताएँ याद करते रहते हैं।

किशनदा एक सरल हृदय व्यक्ति हैं जो कुमाऊँ क्षेत्र से दिल्ली आकर सरकारी नौकरी करते हैं। उन्होंने कई पहाड़ी युवकों को अपने यहाँ शरण देकर उन्हें नौकरी प्राप्त करने में सहायता की। वे आजीवन कुँवारे रहे। यशोधर बाबू को उन्होंने न केवल नौकरी दिलवाने में सहायता की, बल्कि अनेक बार उन पर अपनी जेब से पैसे भी खर्च किए। किशनदा एक संस्कारवान तथा ग्रामीण संस्कृति से जुड़े व्यक्ति हैं।

यशोधर बाबू के व्यक्तित्व का निर्माण करने में उनका अत्यधिक सहयोग रहा। उन्होंने ही यशोधर बाबू को सुबह सैर पर जाने, सवेरे-शाम पूजा-पाठ करने, रामलीला वालों को एक कमरे की सुविधा देने तथा पहाड़ी क्षेत्रों की परंपराओं का निर्वाह करने की आदत डाल दी। यही कारण है कि यशोधर बाबू किशनदा की मृत्यु के बाद भी उनके द्वारा बताए गए संस्कारों का पालन करते रहे।

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प्रश्न 3.
यशोधर बाबू की पत्नी की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
यशोधर बाबू की पत्नी मुख्यतः पुराने संस्कारों वाली होते हुए भी किन कारणों से आधुनिका बन गई?
उत्तर:
यशोधर बाबू की पत्नी एक सामान्य भारतीय नारी है। वह पहले पुराने संस्कारों को मानती थी, परंतु बदलते वक्त के साथ-साथ उसने अपने-आपको भी बदल दिया। इसका कारण यह है कि वह समय की गति को अच्छी प्रकार से जानती है।

उसका विवाह एक अनचाहे संयुक्त परिवार में हुआ। घर के बड़ों की शर्म के कारण वह न तो मन चाहा ओढ़-पहन सकी और न ही खा सकी। वह स्वच्छंद होकर जीवन को जीना चाहती थी। परंतु संयुक्त परिवार में होने के कारण ऐसा नहीं कर पाई। इसलिए एक स्थल पर वह अपने पति को कहती भी है-“किशनदा तो थे ही जन्म के बूढ़े, तुम्हें क्या सुर लगा कि जो उनका बुढ़ापा खुद ओढ़ने लगे हो?” वह आधुनिक रंग-ढंग से जीना चाहती थी। इसलिए अधेड़ अवस्था में आते ही उसने होंठों पर लाली तथा बालों में खिज़ाब लगाना आरंभ कर दिया। उसने अपनी बेटी पर किसी तरह की रोक नहीं लगाई तथा उसे जींस तथा टॉप पहनने की खुली छूट दी।

यही नहीं, वह एक ऐसी नारी है जो आधुनिक सुविधाओं की दीवानी है। अपने पति के प्रति उसके मन में कोई सहानुभूति नहीं है। उसका मानना है कि उसका पति समय से पहले बूढ़ा हो गया है। इसलिए वह पूर्णतः आधुनिकता के रंग में रंगे बच्चों का साथ देने लगती है।

प्रश्न 4.
किशनदा का बुढ़ापा सुख से क्यों नहीं बीता? संक्षेप में उत्तर दीजिए।
उत्तर:
किशनदा ने आजीवन विवाह नहीं किया और वे सदैव समाज सेवा करते रहे। उनके साथियों ने दिल्ली की पॉश कॉलोनियों में ज़मीन लेकर अपने मकान बनवाए, लेकिन उन्होंने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। सेवानिवृत्त होने तक तो वे सरकारी क्वार्टर में रहे, बाद में कुछ समय के लिए किराए के क्वार्टर में भी रहे। अन्ततः वे अपने गाँव लौट गए। वहीं कुछ समय बाद उनका देहांत हो गया। यह किसी को नहीं पता कि उनकी मृत्यु कैसे हुई। यह अनुमान लगाया जा सकता है कि गाँव में उनकी कोई सेवा गा। इस कहानी के आधार पर कहा जा सकता है कि किशनदा एकाकी और बेघर रहते हुए सबकी सेवा करते रहे। परंतु उन्होंने अपने भविष्य के बारे में कभी नहीं सोचा।

प्रश्न 5.
यशोधर बाबू का अपने बच्चों के प्रति कैसा व्यवहार था? ‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यशोधर बाबू लोकतंत्रीय मूल्यों पर विश्वास करते थे। उन्होंने अपने बच्चों पर कोई बात थोपने का प्रयास नहीं किया। उनका कहना था कि बच्चे उनके कहे को पत्थर की लकीर न माने। उन्होंने अपने बच्चों को अपनी इच्छानुसार काम करने की आज़ादी दी। उनका मानना था कि आज के बच्चों को अधिक ज्ञान है, लेकिन अनुभव का कोई विकल्प नहीं होता। उनकी केवल यही छोटी-सी इच्छा थी कि बच्चे कुछ भी करने से पहले उनसे पूछ लें, भले ही हम यशोधर बाबू को एक परंपरावादी पात्र कहें, लेकिन उन्होंने अपने बच्चों को हमेशा स्वतंत्र जीवन जीने दिया।

प्रश्न 6.
‘सिल्वर वैडिंग’ पार्टी में यशोधर बाबू का व्यवहार क्या आपको उचित लगा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘सिल्वर वैडिंग’ पार्टी में यशोधर बाबू का व्यवहार बड़ा ही विचित्र था। उन्होंने इस पार्टी को इंप्रापर कहा। क्योंकि उनका मानना था कि यह सब अंग्रेज़ों के चोंचले हैं। यही नहीं, उन्होंने पत्नी तथा बेटी के कपड़ों पर भी प्रश्न चिह्न लगाया। उन्होंने यह सोचकर केक नहीं खाया कि इसमें अंडा होता है। हालांकि वे पहले मांसाहारी रह चुके थे। उन्होंने लड्ड भी इसलिए नहीं खाया, क्योंकि उन्होंने शाम की पूजा नहीं की। वे शाम की पूजा में अधिक देर तक इसलिए बैठे रहे, ताकि मेहमान वहाँ से चले जाएँ। यशोधर बाबू की अधिकांश हरकतें अनुचित ही लगती हैं। यदि वे परिवार के साथ थोड़ा-बहुत समझौता करके चलते तो शायद यह अधिक अच्छा होता।

प्रश्न 7.
यशोधर बाबू की कहानी को दिशा देने में किशनदा की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
यशोधर बाबू किशनदा के मानस-पुत्र हैं। आप इस कथन से कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर:
इस कहानी को पढ़ने से यह स्वतः स्पष्ट हो जाता है कि यशोधर बाबू का जीवन किशनदा से अत्यधिक प्रभावित रहा है। वे दिल्ली में आकर किशनदा की छत्र-छाया में रहने लगे थे। इसलिए उनके आदर्शों का अनुकरण करते हुए वे ऑफिस के कर्मचारियों के साथ वैसा ही व्यवहार करते थे जैसा किशनदा करते थे। वे किशनदा के समान मंदिर जाते थे और घंटा भर बैठकर प्रवचन सुनते थे। किशनदा ने जीवन भर यदि मकान नहीं बनाया तो यशोधर बाबू ने भी डी०डी०ए० फ्लैट के पैसे जमा नहीं करवाए। उन्होंने किशनदा के इस वाक्य को हमेशा याद रखा कि मूर्ख घर बनाते हैं और बुद्धिमान उसमें रहते हैं। किशनदा के समान वे जन्यो-पुन्यूं, रामलीला आदि के धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते रहें। सही अर्थों में यशोधर बाबू किशनदा के सकते हैं। संध्या-पूजा करते समय उन्हें भगवान के स्थान पर किशनदा के ही दर्शन होते हैं। वस्तुतः यशोधर बाबू ने शुरू से ही किशनदा को अपना गुरु, माता-पिता और मार्गदर्शक माना तथा जीवन भर उनके आदर्शों का अनुकरण करते रहे।

प्रश्न 8.
‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के कथ्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
‘सिल्वर वैडिंग’ मनोहर श्याम जोशी की एक उल्लेखनीय लंबी कहानी है। इसका अपना भाषिक अंदाज है। लेखक यहाँ पर यह कहना चाहता है कि आधुनिकता की ओर अग्रसर होता हमारा समाज नवीन उपलब्धियों को समेट लेना चाहता है, परंतु हमारे मानवीय मूल्य नष्ट होते जा रहे हैं।

यशोधर बाबू के जीवन में ‘जो हुआ होगा’ तथा ‘समहाउ इंप्रापर’ वाक्यांशों का अधिक महत्त्व है। पहले में तो यथा स्थिति वाद की सोच है, दूसरे में अनिर्णय की स्थिति। यहाँ लेखक यह स्पष्ट करना चाहता है कि आधुनिकता के कारण जो बदलाव आ रहा है, उसे बड़े-बुजुर्ग लोग स्वीकार करने में द्वंद्व ग्रस्त दिखाई देते हैं। लगभग यही स्थिति यशोधर बाबू की है जो अ तरक्की से खुश होते हैं और इसे ‘समहाउ इंप्रापर’ भी कहते हैं। लेखक यशोधर बाबू बुजुर्ग लोगों के द्वंद्व को रेखांकित करना चाहता है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 1 सिल्वर बैंडिग

प्रश्न 9.
‘यशोधर बाबू सहज, सरल तथा सादगीपूर्ण जीवन के पक्षधर हैं।’ सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
किशनदा के आदर्शों से प्रभावित होने के कारण यशोधर बाबू सहज, सरल तथा सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहते हैं। उनके मन में आधुनिक साधनों और उपकरणों के प्रति कोई विशेष रुचि नहीं है। ऑफिस जाते समय वे साइकिल का प्रयोग करते हैं और फटा हुआ पुलओवर पहनकर दूध लेने जाते हैं। ऐसा करने से उन्हें कोई दुविधा नहीं होती। वे दहेज़ में मिली घड़ी से ही काम चला लेते हैं और अपने सरकारी क्वार्टर को छोड़कर किसी आलीशान मकान में नहीं जाना चाहते। यही कारण है कि उन्होंने डी०डी०ए० फ़्लैट के लिए पैसे नहीं भरे। वे अपनी वर्तमान परिस्थिति से पूर्णतया संतुष्ट हैं। वे अपने बेटों के काम-काज में अधिक हस्तक्षेप नहीं करते।

प्रश्न 10.
यशोधर बाबू सामाजिक और पारिवारिक जीवन-शैली जीना चाहते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विवाह के बाद यशोधर बाबू संयुक्त परिवार में रहते थे। दूसरा, किशनदा ने उनकी जीवन-शैली को अत्यधिक प्रभावित किया था। इसलिए वह न केवल अपने परिवार के लोगों से, बल्कि अन्य रिश्तेदारों से भी मिलना-जुलना चाहते हैं। वे हर माह अपनी बहन के पास कुछ पैसे भेजते रहते हैं। वे अपने बीमार जीजा का पता करने के लिए अहमदाबाद जाना चाहते हैं। उनकी यह भी इच्छा है कि उनके बच्चे सभी रिश्तेदारों का मान करें। रिश्तेदारों से जुड़ने में उन्हें विशेष प्रसन्नता प्राप्त होती है। परंतु उनकी पत्नी तथा बच्चे इसे एक मूर्खतापूर्ण कार्य कहते हैं। वे यह भी चाहते हैं कि उनकी पत्नी तथा बच्चे हर बात में उनकी सलाह लें और अपनी कमाई लाकर पिता के हाथों में रखें। इससे स्पष्ट होता है कि यशोधर बाबू की अपने परिवार के प्रति गहरी आसक्ति है।

प्रश्न 11.
यशोधर बाबू का व्यवहार आपको कैसा लगा? ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यशोधर बाबू भले ही नए ज़माने के व्यक्ति नहीं हैं, लेकिन वे ज़माने की चाल को अवश्य पहचानते हैं। वे सरल और सादी जिंदगी जीना चाहते हैं। साथ ही अधेड़ आयु होने के कारण उनमें शिथिलता आ चुकी है, परंतु फिर भी वे मजबूर होकर नए परिवर्तन को अपना लेते हैं। ऐसा करने से उनके पुराने संस्कार ट जाते हैं। नई चीज को अपनाने में वे हमेशा सं परंतु वे उसका विरोध भी नहीं करते हैं। कारण यह है कि उनकी आयु अब ढल चुकी है। हमारे विचार में यशोधर बाबू जैसे व्यक्ति से थोड़े-बहुत परिवर्तन की ही आशा की जा सकती है।

प्रश्न 12.
यशोधर बाबू अपने ही घर में बेचारे तथा असहाय बन चुके हैं। सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
इसमें दो मत नहीं हैं कि यशोधर बाबू अपने घर में ही बेचारे, मजबूर और असहाय-से लगते हैं। उनके बच्चे उनका कहना नहीं मानते। वे न तो अपने पिता का सम्मान करते हैं, न ही उनसे कोई सलाह लेते हैं और न ही उनसे अधिक बात करते हैं। घर के सभी लोग उन्हें उपेक्षा तथा तिरस्कार की दृष्टि से देखते हैं। मजबूर होकर वे साइकिल चलाना छोड़ देते हैं। फ्रिज और गैस को अपना लेते हैं। उपहार में मिले गाउन को पहन लेते हैं। अब उनमें बच्चों का विरोध करने की शक्ति नहीं रही। उनकी अपनी बेटी उनका अपमान करती है और उनकी पत्नी उन्हें छोड़कर बच्चों के साथ मिल जाती है। ऐसा लगता है कि वे अपने बच्चों से हार चुके हैं। यही कारण है कि उनके मन में ‘जो हुआ होगा’ वाक्यांश बार-बार उभरकर आता है।

प्रश्न 13.
एक सैक्शन आफिसर के रूप में यशोधर बाबू का दफ्तर में कैसा व्यवहार था?
उत्तर:
यशोधर बाबू एक सरकारी कार्यालय में सैक्शन आफिसर हैं वे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर पूरा नियंत्रण रखते हैं। वे समय पर कार्यालय पहुँचते हैं और साढ़े पाँच बजे तक वहाँ कार्य करते हैं। मजबूर होकर अन्य कर्मचारियों को भी साढ़े पाँच बजे तक बैठना पड़ता है। अधीनस्थ कर्मचारियों से वे प्रायः सख्ती से निपटते हैं। परंतु आफिस से प्रस्थान करते समय वे एकाध चुटीली बात कहकर माहौल के तनाव को कम कर देते हैं। वे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से थोड़ी-बहुत दूरी बनाए रखते हैं और उनके साथ अधिक घुलते-मिलते नहीं हैं। यही कारण है कि वे अपनी सिल्वर वैडिंग पार्टी के लिए तीस रुपये तो देते हैं, लेकिन उसमें शामिल नहीं होते। जब चड्डा उनके साथ बदतमीज़ी का व्यवहार करता है तो वे उसकी बात को मज़ाक में उड़ा देते हैं। इससे यह पता चलता है कि वे एक व्यवहार कुशल व्यक्ति हैं।

प्रश्न 14.
यशोधर बाबू अपनी भाषा में कार्यालयी मुहावरों का प्रयोग करते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यशोधर बाबू की भाषा पर दफ़्तर की भाषा का अत्यधिक प्रभाव है। वे प्रायः बोलते समय सरकारी दफ्तरों में बोली जाने वाली अंग्रेजी भाषा के वाक्यांशों का प्रयोग करते हैं। इस पाठ से दो-एक उदाहरण देखिए-
(i) आप लोग चाय पीजिए’ दैट’. तो ‘आई ड नाट माइंड’ लेकिन जो हमारे लोगों में ‘कस्टम’ नहीं है, उस पर ‘इनसिस्ट’ करना दैट’ मैं ‘समहाउ इंप्रॉपर फाइंड करता हूँ।

(ii) “मुझे तो वे ‘समहाउ इंप्रापर’ ही मालूम होते हैं। ‘एनीवे’ मैं तुम्हें ऐसा करने से रोक नहीं रहा। देयरफोर तुम लोगों को भी मेरे जीने के ढंग पर कोई एतराज नहीं होना चाहिए।”

प्रश्न 15.
‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी में चड्डा का यशोधर बाबू के प्रति कैसा व्यवहार है और क्यों?
उत्तर:
चड्ढा यशोधर बाबू का अधीनस्थ कर्मचारी है। वह असिस्टेंट ग्रेड की परीक्षा पास करके नया-नया कर्मचारी नियुक्त हुआ है। उसमें अपनी योग्यता का घमंड है और वह हर बात में यशोधर बाबू को नीचा दिखाना चाहता है। वह यशोधर बाबू की पुरानी घड़ी को चूनेदानी अथवा बाबा आदम के ज़माने की घड़ी बताता है। वह यशोधर बाबू को डिजीटल घड़ी खरीदने के लिए कहता है। जब यशोधर बाबू अपना हाथ उससे मिलाने के लिए आगे बढ़ाते हैं तो वह उनका अपमान कर देता है। यही नहीं, यशोधर बाबू की सिल्वर वैडिंग की पार्टी के लिए उनसे तीस रुपये ले लेता है। इससे पता चलता है कि उसमें न तो गरिमा है, और न ही अपने से बड़ों की इज्जत करने की सभ्यता है। उसमें धृष्टता देखी जा सकती है।

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प्रश्न 16.
यशोधर बाबू के बच्चों का उज्ज्वल पक्ष कौन-सा है?
उत्तर:
यशोधर बाबू के बच्चे बड़े प्रतिभाशाली और मेहनती हैं। वे अपनी प्रतिभा और मेहनत के बल पर आगे बढ़े हैं। बड़ा लड़का एक विज्ञापन कंपनी में पंद्रह सौ रुपये पर काम कर रहा है। दूसरा लड़का एलाइड सर्विसेज़ में चुना गया है। लेकिन वह और अच्छी नौकरी पाने के लिए दोबारा पढ़ रहा है। तीसरा लड़का स्कॉलरशिप लेकर पढ़ने के लिए अमरीका गया है। उनकी बेटी डॉक्टरी अमरीका जाना चाहती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि सभी बच्चे उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हैं। वे अपने घर में गैस, फ्रिज, सोफा, कालीन आदि सुविधाएँ जुटाना चाहते हैं।

प्रश्न 17.
यशोधर बाबू के बच्चों का पक्ष मलिन कौन-सा है?
उत्तर:
भले ही यशोधर बाबू के बच्चे बड़े ही प्रतिभाशाली और मेहनती हैं। लेकिन उनका व्यवहार अधिक अच्छा नहीं है। वे न तो पिता का मान करते हैं, न रिश्तेदारी का और न ही धर्म और समाज का। बल्कि वे बात-बात पर अपने पिता का अपमान करते हैं। वे पिता की सलाह लिए बिना ही उनकी सिल्वर वैडिंग की पार्टी का आयोजन कर देते हैं। साथ ही वे चाहते हैं कि उनके पिता हर बात में उनका सहयोग करें। भूषण अच्छी नौकरी पाकर भी घर में कुछ नहीं देता। वह हमेशा अपने घर में अपने पैसों की धौंस जमाता रहता है। वह पिता को अपमानित करते हुए कहता है कि वह घर में कोई नौकर रख लें, जिसका वेतन वह स्वयं देगा।

उपहार के रूप में एक गाउन देकर वह कहता है कि उनके पिता फटा हुआ गाउन पहनकर दूध लेने न जाएँ। इसी प्रकार उनकी लड़की स्वयं बेढंगे कपड़े पहनती है और पिता द्वारा टोकने पर उसे झिड़क देती है। यही नहीं, बच्चों के मन में अपने रिश्तेदारों और सगे-संबंधियों के प्रति भी कोई लगाव नहीं है। बुआ को पैसे भेजने के बारे में वे आनाकानी करते हैं और धर्म तथा समाज के कामों में भाग नहीं लेते। उनमें न तो अच्छे संस्कार हैं और न ही मानव मूल्य। उनके मन में केवल पद, प्रतिष्ठा और पैसे का ही मोह है।

प्रश्न 18.
यशोधर बाबू की पत्नी अपने पति से प्रतिकूल व्यवहार क्यों करती है?
उत्तर:
आरंभ में यशोधर बाबू की पत्नी को संयुक्त परिवार के बंधन में रहना पड़ा था। वह न तो जीवन के सुखों को भोग सकी और न ही जीवन का आनंद ले सकी। यशोधर बाबू ने अपनी बूढ़ी ताई के समान उसे भी अच्छा खाने-पहनने को नहीं दिया। वह अपने यौवन को खुलकर नहीं भोग पाई। इसलिए वह अपने पति के परंपरावादी विचारों का विरोध करती है। उसे इस बात का दुख है कि उसका पति बूढ़ों जैसी बातें करने लग गया है। एक स्थल पर वह उसे कहती भी है कि ‘तुम शुरू में तो ऐसे नहीं थे, शादी के बाद मैंने तुम्हें देख जो क्या नहीं रखा है! हफ्ते में दो-दो सिनेमा देखते थे। गज़ल गाते थे गज़ल! इस प्रकार हम देखते हैं कि यशोधर की पत्नी आधुनिक सुख-सुविधाओं को भोगना चाहती है और यशोधर पुराने मूल्यों से चिपका हुआ है। अतः वह अपने पति का विरोध करती है।

प्रश्न 19.
‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ के यशोधर बाबू समय के साथ ढल सकने में असफल रहते हैं, ऐसा क्यों?
उत्तर:
यशोधर बाबू आजीवन किशनदा के आदर्शों का अनुसरण करते रहे। वे अपने परिवार को भी उन्हीं संस्कारों में ढालना चाहते थे, परंतु वे सच्चाई को भूल गए कि अब ज़माना बदल गया है। उनकी पत्नी तथा बच्चे नए ज़माने के अनुसार चलना चाहते यशोधर बाबू अपने पुराने संस्कारों तथा प्रौढावस्था के कारण नए जमाने का स्वागत नहीं करते। उन्हें लगता है कि आधनिक पहनावा पश्चिमी रंग-ढंग से प्रभावित है। इसलिए वे समय के साथ ढल सकने में असमर्थ रहते हैं।

प्रश्न 20.
‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ ढल सकने में सफल होती है।
उत्तर:
यशोधर बाबू की पत्नी अपने यौवनकालीन जीवन से असंतुष्ट रही है। उसे संयुक्त परिवार के बंधनों में रहना पड़ा था। वह न तो मनमर्जी का खा सकी थी और न पहन सकी थी। उसका कोई शौक पूरा नहीं हुआ था। इसलिए जब उसके बच्चे नए ज़माने की ओर अग्रसर होते हैं तो वह भी उनके सुर में सुर मिलाना शुरू कर देती है। वह अपने सफेद बालों में खिज़ाब लगाती है। होंठों पर लाली लगाती है और ऊँची एड़ी के सैंडिल पहनती है। इस प्रकार वह समय के अनुसार ढल जाती है। यहाँ तक कि घर के सभी बच्चे भी उसका साथ देते हैं।

प्रश्न 21.
क्या पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव को ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी की मूल संवेदना कहा जा सकता है। तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
निश्चय से इस कहानी में पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव को चित्रित किया गया है। लेखक यह स्पष्ट करना चाहता है कि पश्चिमी सभ्यता का अंधा अनुकरण करने के कारण हम भारतवासी अपनी संस्कृति को त्याग चुके हैं। हमारे लिए रिश्तेदारी, परंपरा, भारतीय वेशभूषा तथा तीज-त्योहार का कोई मूल्य नहीं है। यही नहीं, मंदिर जाना या संध्या वंदना करना आदि भी हम पसंद नहीं करते। इसके स्थान पर हम सिल्वर वैडिंग पार्टी करना, केक काटना, जींस और टॉप पहनना आदि उचित मानते हैं, परंतु यशोधर बाबू अभी भी भारतीय संस्कृति का पक्ष लेते हैं और पाश्चात्य परंपरा का विरोध करते हैं। प्रस्तुत कहानी में पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से उत्पन्न संघर्ष को दर्शाया गया है। अतः यह भी कहानी की मूल संवेदना हो सकती है।

प्रश्न 22.
क्या पीढ़ी के अंतराल को सिल्वर वैडिंग की मूल संवेदना कहा जा सकता है? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
वस्तुतः पीढ़ी का अंतराल ही इस कहानी की मूल संवेदना है। यशोधर बाबू पुरानी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनके बच्चे नई पीढ़ी का। यशोधर बाब परानी परंपराओं का निर्वाह करना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि होली, रामलीला, रिश्तेदारी आदि को निभाया जाए। वे सादा और सरल जीवन जीना चाहते हैं और बच्चों से यह चाहते हैं कि वे भी अपने बड़ों का सम्मान करें।

इसके विपरीत नई पीढ़ी भौतिकता को महत्त्व देती है। वह रिश्तेदारी की अपेक्षा आर्थिक विकास को श्रेयस्कर कर मानती है। उनके लिए पुराने संस्कार और परंपराएँ व्यर्थ हैं। यहाँ तक कि नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी को भी अपने रंग-ढंग में ढालना चाहती है। अतः सिल्वर वैडिंग में इन दो पीढ़ियों के संघर्ष का सजीव वर्णन किया गया है।

प्रश्न 23.
सिल्वर वैडिंग के कथानायक यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व हैं और नई पीढ़ी द्वारा उनके विचारों को अपनाना ही उचित है-इस कथन के पक्ष या विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
किसी भी दृष्टि से यशोधर बाबू का व्यक्तित्व आदर्श नहीं है। वे भले ही पुराने संस्कारों एवं परंपराओं से चिपके हुए तो उनकी पत्नी उनकी बात सुनती है और न ही उनके बच्चे। यहाँ तक कि वे अपने घर-परिवार, दफ्तर तथा समाज में अकेले पड़ जाते हैं। वे किशनदा के आदर्शों पर चलना चाहते हैं और नए युग के तौर-तरीकों को अपनाने में पूर्णतया असमर्थ रहते हैं। वस्तुतः उनका आचरण और व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली नहीं है कि वे अपने बच्चों में अपनी सोच को भर सकें। वे समय से पिछड़ चुके हैं और प्राचीन तथा नवीन में सामंजस्य नहीं बैठा सके। यदि वे ऐसा करने में सफल होते तो फिर यशोधर बाबू एक आदर्श कथानायक कहलाते।

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प्रश्न 24.
यशोधर बाबू की वाहन से सम्बद्ध विचारधारा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यशोधर बाबू सदा ही दिखावे की दुनिया से दूर रहे और सहज जीवन जीने के पक्षधर रहे। वाहन के प्रति भी उनका यही दृष्टिकोण रहा है। यशोधर बाबू सवारी पर अधिक खर्च नहीं करते थे। जहाँ तक हो सकता था, वे पैदल चलना पसन्द करते थे। वे अपने क्वार्टर गोल मार्केट से सेक्रेट्रिएट तक पैदल ही आते-जाते थे। वे साग-सब्जी लेने भी पैदल ही जाते थे। आरम्भ में वे कार्यालय में साइकिल पर जाते थे, किन्तु अब उनके बच्चे युवा हो गए थे। उन्हें लगता था कि साइकिल तो चपरासी भी चलाते हैं। बच्चे चाहते थे कि उनके पिता जी अब स्कूटर ले लें। किन्तु उनका मानना था कि स्कूटर तो एक बेहूदा सवारी है और कार जब अफोर्ड नहीं कर सकते, तब उसकी बात सोचना ही क्यों?

प्रश्न 25.
यशोधर पंत के स्वभाव को रेखांकित कीजिए।
उत्तर:
यशोधर बाबू सहज, सरल तथा सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहते हैं। उनके मन में आधुनिक साधनों और उपकरणों के प्रति कोई विशेष रुचि नहीं है। ऑफिस जाते समय वे साइकिल का प्रयोग करते हैं और फटा हुआ पुलओवर पहनकर दूध लेने जाते हैं। ऐसा करने से उन्हें कोई दुविधा नहीं होती। वे दहेज़ में मिली घड़ी से ही काम चला लेते हैं और अपने सरकारी क्वार्टर को छोड़कर किसी आलीशान मकान में नहीं जाना चाहते। यही कारण है कि उन्होंने डी०डी०ए० फ़्लैट के लिए पैसे नहीं भरे। वे अपनी वर्तमान परिस्थिति से पूर्णतया संतुष्ट हैं। वे अपने बेटों के कामकाज में अधिक हस्तक्षेप नहीं करते।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भूषण बुआ को पैसे भेजने से मना क्यों करता है?
उत्तर:
यशोधर के अतिरिक्त घर के किसी सदस्य का अपने रिश्तेदारों से कोई लगाव नहीं है। विशेषकर भूषण यह समझता है कि बुआ उसके पिता की बहन है। इसलिए उसे पैसे भेजना उसका दायित्व नहीं है। वह इसे अनावश्यक संबंध मानता है।

प्रश्न 2.
यशोधर बाबू अपने घर देर से क्यों आते हैं?
उत्तर:
घर का कोई भी सदस्य यशोधर बाबू का आदर-मान नहीं करता, बल्कि सभी उनकी उपेक्षा एवं तिरस्कार करते हैं। छोटी-छोटी बातों पर उनका अपनी पत्नी से मतभेद हो जाता है। इसलिए जितना हो सकता है, वे घर से दूर ही रहते हैं।

प्रश्न 3.
यशोधर बाबू को अपने बड़े बेटे की बड़ी नौकरी पसंद क्यों नहीं थी?
उत्तर:
भले ही यशोधर सेक्शन आफिसर थे, लेकिन वे भी डेढ़ हज़ार के मासिक वेतन तक नहीं पहुँच पाए थे। उनके बेटे को छोटी आयु में ही इतना बड़ा वेतन मिल रहा था। वे सोचते थे कि इसमें कोई-न-कोई गड़बड़ अवश्य है। वे बेटे की नौकरी के रहस्य को नहीं समझ पाए। इसलिए उनको अपने बड़े बेटे की बड़ी नौकरी पसंद नहीं थी।

प्रश्न 4.
उपहार में मिले यशोधर के ड्रेसिंग गाउन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यशोधर बाबू की सिल्वर वैडिंग के अवसर पर घर पर परिवार के सदस्यों ने एक पार्टी का आयोजन किया था। बच्चों ने उन्हें अनेक उपहार दिए थे। उनके एक बेटे ने उन्हें ड्रेसिंग गाउन उपहार में दिया था। यशोधर बाबू ने कभी गाउन का प्रयोग नहीं किया था, किन्तु उपहार में दिए गए गाउन को स्वीकार करना पड़ा। उन्होंने उसे अपने कमीज-पाजा पर पहन लिया था।

प्रश्न 5.
किशनदा की मृत्यु का कारण क्या रहा होगा?
उत्तर:
किशनदा रिटायर होकर दिल्ली छोड़कर अपने गाँव चले गए। वहाँ भी उन्हें उपेक्षा और तिरस्कार प्राप्त हुआ। वृद्धावस्था में उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। इस कारण शायद उनकी मृत्यु शीघ्र हो गई होगी।

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प्रश्न 6.
यशोधर ने किशनदा को अपने घर पर आश्रय क्यों नहीं दिया?
उत्तर:
यशोधर बाबू का क्वार्टर बहुत छोटा था। उसमें केवल दो कमरे थे, जिसमें तीन परिवार रहते थे। इसलिए यशोधर बाबू किशनदा को अपने घर आश्रय नहीं दे पाए।

प्रश्न 7.
यशोधर बाबू ने आजीवन अपना मकान क्यों नहीं बनाया?
उत्तर:
किशनदा से प्रभावित होने के कारण यशोधर बाबू भी मानते थे कि मूर्ख लोग मकान बनाते हैं और सयाने उनमें रहते हैं। वे आजीवन सरकारी क्वार्टर में रहे। फिर उन्हें यह भी उम्मीद थी कि जब उनका बेटा सरकारी नौकरी पर लग जाएगा तो उनके रिटायर होने के बाद यह क्वार्टर उन्हें फिर से मिल जाएगा। इस कारण यशोधर बाबू ने आजीवन अपना मकान नहीं बनाया।

प्रश्न 8.
यशोधर बाबू का प्रवचन में मन क्यों नहीं लगा?
उत्तर:
पहली बात तो यह है कि यशोधर अधिक धार्मिक तथा कर्मकांडी नहीं है। वे केवल किशनदा के कहने पर प्रवचन सुनने के लिए जाते हैं। दूसरा, घर से मिली उपेक्षा और तिरस्कार उनको चैन से जीने नहीं देती। धार्मिक प्रवचन सुनकर भी उनके मन की बेचैनी दूर नहीं होती। इसलिए यशोधर बाबू का प्रवचन में मन नहीं लगा।

प्रश्न 9.
यशोधर बाबू की सामाजिकता को उनकी पत्नी और बच्चे पसंद क्यों नहीं करते?
उत्तर:
यशोधर की पत्नी तथा बच्चे नहीं चाहते थे कि ‘जन्यो पुन्यूं की परंपरा का निर्वाह करने के लिए लोगों को घर पर बुलाया जाए और रामलीला की तैयारी के लिए घर का एक कमरा दिया जाए। इससे एक तो धन भी खर्च होता है तथा दूसरा समय भी नष्ट होता है। इन परंपराओं में बच्चों का कोई विश्वास नहीं था।

प्रश्न 10.
यशोधर बाबू को ऐसा क्यों लगा कि उनके क्वार्टर पर अब उनके बेटे का अधिकार हो गया है?
उत्तर:
यशोधर बाबू ने अनुभव किया कि उनका बेटा उनके क्वार्टर में मन माना परिवर्तन कर रहा है। वह घर के लिए पर्दे, कालीन, सोफा, डबल बेड और टी०वी० ले आया। फिर उसने यह भी निर्देश जारी कर दिया कि उसके टी०वी० को कोई हाथ न लगाए। इन बातों से यशोधर बाबू को यह महसूस हुआ कि उसके बेटे ने उसके ही क्वार्टर पर अधिकार जमा लिया है।

प्रश्न 11.
यशोधर बाबू गिरीश को बिगडैल क्यों कहते हैं?
उत्तर:
गिरीश यशोधर का साला है। वह महत्त्वाकांक्षी होने के साथ येन-केन-प्रकारेण उन्नति प्राप्त करने में विश्वास करता है। वह लड़कों को शार्ट-कट द्वारा तरक्की प्राप्त करने के उपाय बताता रहता है। यह सब यशोधर बाबू के सिद्धांतों के विरुद्ध है। अतः वे उसे बिगडैल कहते हैं।

प्रश्न 12.
यशोधर बाबू और उनकी पत्नी की ड्रेस के बारे में अलग-अलग राय क्यों है?
उत्तर:
यशोधर बाबू किशनदा से प्रभावित होने के कारण एक परंपरावादी व्यक्ति हैं। वे सरल और साधारण वेशभूषा पहनने में विश्वास करते हैं, लेकिन उनकी पत्नी नए ज़माने से प्रभावित होने के कारण बालों में खिज़ाब लगाती है, ऊँची एड़ी के सैंडल पहनती है और होंठों पर लाली लगाती है। वह अपनी बेटी को भी जींस, पतलून तथा बिना बाँह का ब्लाऊज पहनाती है।

प्रश्न 13.
किशनदा ने यशोधर बाबू की सहायता किस प्रकार से की?
उत्तर:
यशोधर. बाबू रेम्जे स्कूल अल्मोड़ा से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करके नौकरी की तलाश में दिल्ली आए थे। उस समय उनकी आयु नौकरी के लायक नहीं थी। ऐसी दशा में किशनदा ने उन्हें मैस का रसोइया बनाकर रख लिया। यही नहीं, किशनदा ने यशोधर बाबू को पचास रुपये उधार भी दिए ताकि वह अपने लिए कपड़े बनवा सके और गाँव पैसा भिजवा सके। बाद में किशनदा ने अपने ही ऑफिस में नौकरी दिलवाई और दफ्तरी जीवन में भी मार्ग-दर्शन किया।

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प्रश्न 14.
यशोधर बाबू ने अपनी सिल्वर वैडिंग पर केक क्यों नहीं खाया?
उत्तर:
भले ही यशोधर बाबू पहले यदा कदा माँस खा लेते थे। लेकिन इस समय वे पूर्णतया निरामिष भोजी थे। उन्होंने यह सोचकर केक नहीं खाया कि उसमें अंडा होता है। दूसरा वे विलायती परंपरा को भी नहीं निभाना चाहते थे।

प्रश्न 15.
घर बनाने के विषय में यशोधर बाबू के दृष्टिकोण का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
यशोधर बाबू घर बनाने के विषय में ‘मूरख लोग मकान बनाते हैं और सयाने उनमें रहते हैं’ कहावत से सहमत है। उसका मत है कि जब तक सरकारी नौकरी में है तो सरकारी क्वार्टर। फिर बच्चों में से किसी की सरकारी नौकरी लग गई तो उसे सरकारी क्वार्टर मिल जाएगा। उसमें रह लेंगे। यशोधर बाबू ने कभी भी मकान बनाने के विषय में गम्भीरता से सोचा ही नहीं था।

प्रश्न 16.
किशनदा और यशोधर पंत की मित्रता की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
किशनदा और यशोधर पंत की मित्रता ही नहीं थी, अपितु दोनों में गहरा सम्बन्ध भी था। यशोधर पंत को किशनदा का मानस पुत्र कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। किशनदा और यशोधर बाबू दोनों अच्छे मित्र थे। दोनों एक-दूसरे के काम आते थे अर्थात् एक-दूसरे का सहयोग करके अपनी अच्छी मित्रता का प्रमाण भी देते थे। किशनदा का यशोधर पंत के व्यक्तित्व निर्माण में अत्यधिक सहयोग रहा है। यशोधर पंत को किशनदा की मृत्यु के समाचार से बहुत शौक हुआ था। इन सब तथ्यों से पता चलता है कि दोनों में गहन मित्रता थी।

प्रश्न 17.
क्या यशोधर बाबू द्वारा बैठक में गमछा पहनकर आना उचित कहा जा सकता है?
उत्तर:
यशोधर बाबू का यह कार्य सर्वथा अनुचित कहा जाएगा। भारतीय अथवा विलायती दोनों परंपराओं की दृष्टि से इसे हम उचित नहीं कह सकते।

प्रश्न 18.
यशोधर बाब की बेटी की आधुनिकता का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यशोधर बाबू की बेटी परम्परागत जीवन जीना पसन्द नहीं करती थी। वह हमेशा जींस और बगैर बाँह का टॉप पहने रहती है। वह अपने पिता की 25वीं वर्षगाँठ के समय इसी ड्रैस में मेहमानों को विदाई देती है। यशोधर बाबू भी उसे कई बार ऐसी ड्रैस न पहनने के लिए कह चुके थे। किन्तु उस पर उनकी बात का कोई असर नहीं हुआ। यशोधर बाबू की पत्नी बेटी का पक्ष लेती है वह स्वयं भी आधुनिक बनने व दिखने के पक्ष में है। किन्तु यशोधर बाबू को उनकी बात पसन्द नहीं थी।

सिल्वर बैंडिग Summary in Hindi

सिल्वर बैंडिग लेखक-परिचय

प्रश्न-
श्री मनोहर श्याम जोशी का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
श्री मनोहर श्याम जोशी का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-श्री मनोहर श्याम जोशी का जन्म 9 अगस्त, 1933 को अजमेर में हुआ। वे हिंदी साहित्य में एक कथाकार, व्यंग्यकार, संपादक, पत्रकार तथा दूरदर्शन धारावाहिक लेखक के रूप में प्रसिद्ध हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय से उन्होंने विज्ञान में स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। उन्होंने ‘दिनमान’ पत्रिका के सहायक संपादक के रूप में साहित्य जगत् में प्रवेश किया। बाद में वे ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ पत्रिका का संपादन करने लगे। सन् 1984 में उन्होंने दूरदर्शन से प्रसारित होने वाले ‘हम लोग’ धारावाहिक का लेखन किया। आम लोगों में यह धारावाहिक अत्यधिक लोकप्रिय हुआ। उनके द्वारा लिखित पटकथाओं पर ‘बुनियाद’, ‘हमराही’, ‘कक्का जी कहिन’, ‘मुंगेरी लाल के हसीन सपने’ आदि लोकप्रिय धारावाहिक बने। सन् 2006 में इस साहित्यकार का निधन हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ इनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं

  • कहानी-संग्रह-‘कुरू कुरू स्वाहा’, ‘कसम’, ‘हरिया’, ‘हरक्यूलीज़ की हैरानी’, ‘हमजाद’, ‘क्याप’ आदि।
  • व्यंग्य-संग्रह ‘एक दुर्लभ व्यक्तित्व’, ‘कैसे किस्सागो’, ‘मंदिर घाट की पौड़ियाँ’, ‘ट-टा प्रोफेसर षष्ठी वल्लभ पंत’, ‘नेताजी कहिन’, ‘इस देश का यारो क्या कहना’ आदि।
  • साक्षात्कार-संग्रह ‘बातों बातों में’, ‘इक्कीसवीं सदी’।
  • संस्मरण-संग्रह-‘लखनऊ मेरा लखनऊ’, ‘पश्चिमी जर्मनी पर एक उड़ती नज़र’।
  • दूरदर्शन धारावाहिक ‘हम लोग’, ‘बुनियाद’, ‘मुंगेरी लाल के हसीन सपने’। सन् 2005 में ‘क्याप’ के लिए उनको ‘साहित्य अकादमी’ के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

3. साहित्यिक विशेषताएँ-मनोहर श्याम जोशी एक बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। उन्होंने असंख्य कहानियाँ, संस्मरण, व्यंग्य लेख, साक्षात्कार तथा दूरदर्शन के लिए धारावाहिक लिखे। वे मूलतः आधुनिक युग बोध के साहित्यकार थे। उन्होंने आज की पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा नैतिक समस्याओं पर अपने मौलिक विचार व्यक्त किए। ‘हम लोग’ तथा ‘बुनियाद’ जैसे धारावाहिकों में उन्होंने समाज की नब्ज़ को पकड़ने का सफल प्रयास किया है। उदाहरण के रूप में ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी में लेखक ने पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच उत्पन्न खाई की ओर संकेत किया है जिसके फलस्वरूप आज संयुक्त परिवार टूटकर बिखर रहे हैं। अपने व्यंग्यात्मक लेखों में उन्होंने आज के राजनीतिज्ञों, तथाकथित साहित्यकारों एवं सामाजिक नेताओं पर करारे व्यंग्य किए हैं। उनकी कुछ कहानियाँ सामाजिक समस्याओं का उद्घाटन करती हैं और पाठकों को बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर कर देती हैं। उनकी अधिकांश रचनाएँ शिक्षा जगत् के लिए काफी उपयोगी हैं।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Vitan Chapter 1 सिल्वर बैंडिग

4. भाषा-शैली-मनोहर श्याम जोशी ने प्रायः साहित्यिक हिंदी भाषा का ही प्रयोग किया है, जिसमें अंग्रेज़ी तथा उर्दू शब्दों का मिश्रण खुलकर देखा जा सकता है। कहीं-कहीं तो वे अंग्रेजी भाषा के पूरे वाक्य का ही प्रयोग कर देते हैं। वस्तुतः उनकी भाषा पात्रानुकूल तथा प्रसंगानुकूल कही जा सकती है। आवश्यकतानुसार वे पंजाबी तथा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग कर लेते हैं। ‘दिनमान’ तथा ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ पत्रिकाओं में उन्होंने पूर्णतया साहित्यिक हिंदी भाषा का ही प्रयोग किया है।

इसके साथ-साथ उनकी शैली साहित्यिक विधा के अनुसार बदल जाती है। व्यंग्य लेखों में उनका व्यंग्य बड़ा ही तीखा और चुभने वाला है। इस पाठ से उनकी भाषा-शैली का एक उदाहरण देखिए “अपनी सिल्वर वैडिंग की यह भव्य पार्टी भी यशोधर बाबू को समहाउ इंप्रापर ही लगी तथापि उन्हें इस बात से संतोष हुआ कि जिस अनाथ यशोधर बाबू के जन्मदिन पर कभी लह नहीं आए, जिसने अपना विवाह भी कोऑपरेटिव से दो-चार हज़ार कर्जा निकालकर किया बगैर किसी खास धूमधाम के, उसके विवाह की पच्चीसवीं वर्षगाँठ पर केक, चार तरह की मिठाई, चार तरह की नमकीन, फल, कोल्डड्रिंक्स, चाय सब कुछ मौजूद है।”

सिल्वर बैंडिग पाठ का सार

प्रश्न-
श्री मनोहर श्याम जोशी द्वारा रचित ‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
सिल्वर वैडिंग’ पाठ के रचयिता श्री मनोहर श्याम जोशी हैं। इसमें लेखक ने यशोधर पंत की 25वीं वर्षगाँठ का सजीव वर्णन किया है। यशोधर बाबू अपने विभाग के सेक्शन आफिसर के पद पर नियुक्त थे। वे अपने कार्यालय में एक निश्चित समय तक काम करते थे। दिनभर अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ उनका व्यवहार प्रायः रूखा था। लेकिन अपने गुरु कृष्णानंद (किशनदा) की परंपरा का अनुसरण करते हुए वे प्रायः सांयकाल को दफ्तर से जाते समय अपने कर्मचारियों के साथ हल्का-फुलका मज़ाक भी कर लेते थे। कभी-कभी वे अपने अधीनस्थ असिस्टेंट ग्रेड के लिपिक चड्डा की धृष्टता की भी अनदेखी कर देते थे।

एक बार यशोधर बाबू को अपने पूर्ववर्ती अधिकारी किशनदा की याद आ गई। वे उनके साथ बिताए हुए कुछ क्षणों की याद में डूब से गए। चड्ढा द्वारा पुनः बोलने पर उनके मुख से अचानक निकल पड़ा “नाव लैट मी सी, आई वॉज़ मैरिड ऑन सिक्स्थ फरवरी नाइंटिन फोर्टी सेवन।” आफिस के एक अन्य बाबू ने तत्काल हिसाब लगाकर कहा-“मैनी हैप्पी रिटर्नुस आफ द डे सर! आज तो आपका सिल्वर वैडिंग है। शादी को पूरा पच्चीस साल हो गया।” परंतु यशोधर बाबू सिल्वर वैडिंग को गोरे साहबों का चोंचला मानते थे। इधर चड्डा तथा मेनन ने चाय-मट्ठी तथा लड्डु की माँग प्रस्तुत की। यशोधर बाबू ने इसे ‘समहाउ इंप्रॉपर’ कहकर दस रुपये दे दिए। सारे सेक्शन के कहने पर भी वे इस दावत में शामिल नहीं हुए। हाँ, उन्होंने दस-दस के दो नोट और अवश्य दे दिए।

यशोधर बाबू ‘बॉय सर्विस से उन्नति प्राप्त करके सेक्शन ऑफिसर बने। किशनदा हमेशा उनके आदर्श बने रहे। वे उनके पूर्ववर्ती अधिकारी थे। इसलिए वे हमेशा उन्हीं का अनुकरण करते रहे और तरक्की करते हुए सेक्शन ऑफिसर बन गए। यशोधर बाबू किशनदा के समान सिद्धांतों के पक्के हैं। ऑफिस से छुट्टी मिलने के बाद हर रोज़ बिड़ला मंदिर जाते, प्रवचन सुनते और स्वयं ध्यान भी लगाते। वहाँ से निकलकर वे पहाड़गंज से साग-सब्जी खरीद कर लाते थे। इसी समय में वे लोगों से मिल-जुल लेते थे। वे पैदल घर से ऑफिस और ऑफिस से घर आते थे। यद्यपि ऑफिस से पाँच बजे छुट्टी मिल जाती थी, परंतु वे रात के आठ बजे ही घर पहुँचते थे। आज जब यशोधर बाबू बिड़ला मंदिर जा रहे थे, तो उन्होंने तीन बैडरूम वाले उस क्वार्टर को देखा, जिसमें किशनदा रहते थे। अब वह क्वार्टर नहीं रहा था। वहाँ पर एक छह मंजिला मकान खड़ा था। एक मंज़िल के क्वार्टर को तोड़कर छह मंजिला मकान बनाना यशोधर बाबू को अच्छा नहीं लगा।

भले ही उन्हें पद के अनुसार एंड्रयूज़गंज, लक्ष्मीबाई नगर, पंडारा रोड पर डी-2 टाइप का अच्छा क्वार्टर मिल रहा था। परंतु उन्होंने स्वीकार नहीं किया। जब उनका अपना क्वार्टर तोड़ा जाने लगा तब उन्होंने बचे क्वार्टरों में से एक क्वार्टर अपने नाम अलाट करवा लिया। इसका कारण यह था कि वे किशनदा की यादों को मन में लिए वहीं रहना चाहते थे। किशनदा को याद करते-करते वे मन-ही-मन सोचने लगे। अच्छा तो यह होता कि वह भी किशनदा के समान शादी न करता और जीवन भर समाज की सेवा करता।

फिर उन्हें याद आया कि किशनदा का बढ़ापा ठीक से व्य हुआ। जब सेवानिवृत्त होने के बाद किशनदा को क्वार्टर खाली करना पड़ा, तो किसी ने भी उन्हें आश्रय नहीं दिया। स्वयं यशोधर बाबू उन्हें अपने यहाँ रहने के लिए नहीं कह पाए। क्योंकि उस समय उनका विवाह हो गया था और उनके दो कमरों वाले क्वार्टर में तीन परिवार रह रहे थे। किशनदा कुछ साल राजेंद्र नगर में किराए का क्वार्टर लेकर रहे। किंतु मजबूर होकर वे अपने गाँव लौट गए और साल भर बाद स्वर्ग सिधार गए। यशोधर बाबू ने किशनदा से जो कुछ सीखा था, वह सब यशोधर बाबू को याद था।

यशोधर बाबू को याद आया कि हर रोज़ भ्रमण करने के बाद लौटते समय किशनदा अपने इस मानस पुत्र यशोधर बाबू के घर आते थे। किशनदा ने उन्हें जल्दी उठना सिखाया था। किशनदा ने ‘अरली टू बैड एंड अरली टू राइज मेक्स ए मैन हैल्दी एंड वाइज़!’ का मंत्र यशोधर बाबू को दिया था। इसलिए वे भी जल्दी उठने और सैर करने जाने लगे। आज भी यशोधर बाबू उस दृश्य को नहीं भूला पाते, जब किशनदा कुरते-पजामे में सैर को निकलते थे।

वे कुर्ते-पजामे के ऊपर ऊनी गाऊन पहनते थे, सिर पर गोल विलायती टोपी और पाँव में देसी खड़ाऊँ तथा छड़ी हाथ में लेकर चलते थे। यही कारण है कि जब तक किशनदा दिल्ली में रहे, तब तक यशोधर बाबू उनके शिष्य बने रहे। उन्होंने अपने बीवी-बच्चों की नाराज़गी की परवाह नहीं की। किशनदा से उन्होंने यह सीखा कि अपने घर पर होली गवाई जाए, जनेऊ बदलने के लिए कुमाऊँ वासियों को घर पर बुलाया जाए और रामलीला वालों को क्वार्टर का एक कमरा दिया जाए।

सिद्धांतों का पालन करने वाले यशोधर बाबू की पिछले कुछ वर्षों से अपनी पत्नी तथा बच्चों से छोटी-छोटी बात पर तकरार होती रहती थी। इसलिए शायद वे घर जल्दी लौटकर नहीं आते। उन्हें यह बिल्कुल पसंद नहीं था कि उनकी पत्नी आधुनिक नारी बने। यह उनके मूल संस्कारों के विरुद्ध था। जबकि यशोधर बाबू की पत्नी अपने बच्चों का साथ देते हुए ‘मॉड’ बन गई थी। यशोधर बाबू को इस बात का दुख है कि संयुक्त परिवार में रहते हुए उसकी पत्नी ने उसका साथ नहीं दिया। कारण यह था कि यशोधर बाबू परंपरावादी थे और उनके बच्चे आधुनिकवादी थे। पत्नी पुरानी परंपराओं को ढकोसला मानती थी और बच्चों का साथ देती थी। अपनी पत्नी के शृंगार को देखकर मज़ाक करते हुए कहते थे-शानयल बुढ़िया, चटाई का लहँगा, बूढ़ी मुँह मुँहासे, लोग करें तमासे’।

जब उनका बड़ा बेटा एक विज्ञापन संस्था में डेढ़ हज़ार रुपये मासिक का कर्मचारी बन गया, तो उन्हें ऐसा लगा कि उनके साधारण पत्र को असाधारण वेतन वाली नौकरी मिल गई है। उन्हें इस बात का भी दुख था कि उनका मंझला पुत्र ‘एलाइड सर्विसेज़’ में नहीं गया और बेटी विवाह के लिए तैयार न हुई, परंतु उन्हें अपने बच्चों की बातें उचित भी लगीं। उदाहरण के रूप में डी०डी०ए० के फ्लैट में पैसा न भरना, उन्होंने अपनी भूल ही मानी। उनके बच्चे बात-बात पर तर्क देते थे। उन्होंने यह भी सोचा कि पुश्तैनी घर में जाकर मरम्मत की जिम्मेवारी लेने से बेकार का झगड़ा लेना पड़ेगा। वे हमेशा किशनदा की बात को याद रखते थे कि मूर्ख लोग मकान बनाते हैं, सयाने उनमें रहते हैं। उनका सोचना था जब तक सरकारी नौकरी है, तब तक क्वार्टर है। बाद में गाँव का पुश्तैनी घर है। उनका यह विचार भी था कि उनके रिटायर होने से पहले उनके बेटे को सरकारी नौकरी मिल जाएगी और यह सरकारी क्वार्टर उन्हीं के पास रहेगा।

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आज प्रवचन सुनने में यशोधर बाबू का मन नहीं लगा। वे मन से न धार्मिक हैं, न कर्मकांडी। वे तो केवल अपने आदर्श किशनदा की परंपरा का पालन कर रहे थे। जैसे उनकी उम्र ढलने लगी तो वे किशनदा के समान मंदिर जाने लगे। गीता प्रेस गोरखपुर की पुस्तकें पढ़ने लगे और संध्या वंदना करने लगे, परंतु उनका मन कहीं टिकता नहीं था। कभी-कभी यह भी सोचते कि उन्हें आसक्ति को छोड़कर परलोक के बारे में सोचना चाहिए। अचानक प्रवचन में जनार्दन शब्द सुनकर उन्हें अपने जीजा जनार्दन जोशी की याद आ गई। उनकी तबीयत बहुत खराब थी और उनका हाल-चाल जानने के लिए उन्हें अहमदाबाद जाना होगा। परंतु उनके बीवी और बच्चे इसका विरोध करेंगे, जबकि यशोधर बाबू सुख अथवा दुख में सगे-संबंधियों के यहाँ जाना आवश्यक समझते थे। वस्तुतः यशोधर बाबू की पत्नी को उनका परंपरावादी होना बिल्कुल पसंद नहीं था।

उसका कहना था कि उसके पति ने स्वयं कुछ नहीं देखा। माँ के मरने के बाद यशोधर बाबू को अपनी विधवा बुआ के पास रहना पड़ा, जिसका लंबा-चौड़ा परिवार नहीं था। जब मैट्रिक करके दिल्ली पहुंचे तो किशनदा की छत्रछाया में रहने लगे। किशनदा के पास केवल गवई लोगों का ज्ञान था। जबकि यशोधर बाबू की पत्नी बगैर बाँह का ब्लाऊज पहनती थी, रसोई से बाहर दाल-भात खाती थी और ऊँची हील की सैंडल पहनती थी। यशोधर बाबू इसे ‘समहाउ इंप्रापर’ कहते थे। यशोधर बाबू चाहते थे कि समाज उन्हें एक आदरणीय बुजुर्ग समझे, बच्चे उनका आदर करें और उनसे सलाह लें। उनका यह भी विचार था कि बच्चे उनकी हर बात को पत्थर की लकीर न समझें, परंतु वे मनमानी तो न करें। वे चाहते थे कि बच्चे उनसे कहें कि बब्बा अब दूध लाना, सब्जी लाना, दालें लाना, राशन लाना, दवा लाना, कोयला लाना आदि सब काम छोड़ दें। उनकी यह इच्छा थी कि उनका बेटा वेतन लाकर उन्हीं को दे। लेकिन घर का कोई सदस्य उनकी इच्छाओं की ओर ध्यान नहीं देता था।

यशोधर बाबू टूटी-फूटी सड़कों से गुजरते हुए हाथ में सब्जी का झोला लटकाए जब घर पहुँचते हैं तो उनकी दशा द्वारका से लौटे सुदामा की तरह प्रतीत हो रही थी। घर के बाहर नेम प्लेट पर उनका अपना ही नाम वाई.डी. पंत लिखा है, परंतु उन्हें लगता ही नहीं कि यह घर उनका है। उनके क्वार्टर के बाहर एक कार, कुछ स्कूटर और मोटर-साइकिलें खड़ी थीं। लोग एक-दूसरे को विदा ले-दे रहे थे। उनके घर के बाहर गुब्बारे और कागज़ से बनी रंगीन झालरें और रंग-बिरंगी रोशनियों वाली लाइटें लगी हुई थीं। उनके बड़े बेटे भूषण को कार में बैठा व्यक्ति हाथ मिलाकर कह रहा था-“गिव माई वार्म रिगार्ड्स टू योर फादर।” यशोधर बाबू को यह सब देखकर कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि बाहर क्या हो रहा है? यशोधर बाबू ने देखा कि उसकी पत्नी एवं बेटी कुछ मेहमानों को विदा कर रही हैं।

लड़की ने जींस और बगैर बाँह का टॉप पहना हआ था और पत्नी ने बालों में खिजाब और होंठों पर लाली लगा रखी थी। यशोधर बाबू को यह सब ‘समहाउ इंप्रापर’ लगा। जब वे घर पहुँचे तो बड़े बेटे ने झिड़कते हुए कहा-“बब्बा, आप भी हद करते हैं। “सिल्वर वैडिंग के दिन साढ़े आठ बजे घर पहुंच रहे हैं। अभी तक मेरे बॉस आपकी राह देख रहे थे।” इस पर यशोधर बाबू ने कहा कि-“हम लोगों के यहाँ सिल्वर वैडिंग कब से होने लगी है।” तब यशोधर बाबू के भांजे चंद्रदत्त तिवारी ने कहा कि जब से आपका बेटा डेढ़ हज़ार रुपये महीना कमाने लगा है।

यशोधर बाबू को सिल्वर वैडिंग का आयोजन ठीक नहीं लगा, जिसमें केक, चार तरह की मिठाई, चार तरह की नमकीन, फल, कोल्डड्रिंक्स, चाय आदि सर्व की जा रही थी। उनको इस बात का दुख है कि आफिस जाते समय उन्हें किसी बात की सूचना नहीं दी गई थी। यही कारण है कि उनके पुत्र भूषण ने अपने मित्रों तथा सहयोगियों से अपने पिता का परिचय करवाया तो उन्होंने केवल बैंक्यू कहकर सबका जवाब दिया। आखिर बच्चों ने केक काटने का आग्रह किया। बेटी के आग्रह पर उन्होंने केक तो काटा पर साथ यह भी कहा “समहाउ आई डोंट लाइक आल दिस।” वे केक खाने को भी राजी नहीं हुए, क्योंकि उसमें अंडा होता है। उन्होंने अन्य सब लोगों को खाने के लिए कहा और खुद पूजा करने चले गए।

आज यशोधर बाबू ने संध्याकालीन पूजा में अधिक समय लगाया। वे चाहते थे कि अधिकांश मेहमान चले जाएँ, तो वे अपनी पूजा को समाप्त करेंगे। पूजा करते समय उन्हें किशनदा दिखाई दिए। यशोधर बाबू ने उनसे पूछा कि ‘जो हुआ होगा’ से आप कैसे मर गए। किशनदा ने उत्तर दिया-“भाऊ सभी जन इसी ‘जो हुआ होगा’ से मरते हैं।” शुरू और आखिर में सब अकेले ही होते हैं। वे चाहते थे कि काश किशनदा उनका आज भी मार्ग दर्शन करते। इसी बीच यशोधर बाबू की पत्नी ने आकर उन्हें डाँटा, तो वे आसन से खड़े हो गए।

सब रिश्तेदारों के जाने की बात मालूम होने पर यशोधर बाबू गमछा पहने ही बैठक में आ गए। यह देखकर उनकी बेटी क्रोधित हो उठी। तब यशोधर बाबू ने उसकी जींस पर व्यंग्य किया। अन्ततः यशोधर बाबू को प्रेजेंट खोलने के लिए कहा गया परंतु उन्होंने बच्चों से कहा कि तुम ही इसे खोलो और इसका इस्तेमाल करो। इस पर उनके बेटे भूषण ने प्रेजेंट को खोला और कहा कि यह ऊनी ड्रेसिंग गाउन है, मैं आपके लिए लाया हूँ। जब आप सवेरे दूध लेने जाएँ तो फटे हुए पुलोवर के स्थान पर इसे पहनकर जाएँ। उनकी बेटी कुर्ता-पजामा ले आई, तब यशोधर बाबू ने कुर्ता-पजामा पहन कर गाउन धारण कर लिया। परंतु यह निर्णय करना बड़ा कठिन है कि भूषण द्वारा कही गई दूध लाने की बात उन्हें चुभी या गाउन पहनकर उन्हें किशनदा बनना पसंद आया। परंतु इतना निश्चित था कि यशोधर बाबू की आँखें नम हो गईं।

कठिन शब्दों के अर्थ

सिल्वर वैडिंग = विवाह की रजत जयंती जो कि विवाह के पच्चीस वर्ष बाद मनाई जाती है। निगाह = दृष्टि। सुस्त = धीमी। मातहत = अधीन। जूनियर = अधीन काम करने वाला। शुष्क = रूखा। निराकरण = समाधान । छोकरा = लड़का। पतलून = पैंट। बदतमीज़ी = अभद्र व्यवहार। चूनेदानी = पान खानों वालों द्वारा चूना रखने का बर्तन । धृष्टता = अशिष्टता। करेक्ट = सही। बाबा आदम का ज़माना = पुराना समय। नहले पर दहला = जैसे को तैसा, जवाब देना। दाद = प्रशंसा। वक्ता = बोलने वाले। ठठाकर = ज़ोर से हँसते हुए। ठीक-ठिकाना = सही व्यवस्था। चोंचले = बनावटी व्यवहार। इनसिस्ट = आग्रह। चुग्गे भर = पेट भरने योग्य । जुगाड़ = अस्थायी व्यवस्था। नगण्य = महत्त्वहीन। सेक्रेट्रिएट = सचिवालय। नागवार = अनुचित।

निहायत = सर्वथा, एकदम। बेहूदा = अनुचित। अफोर्ड करना = सहन करना। इसरार = आग्रह। गप्प-गप्पाष्टक = बेकार की बातें। प्रवचन = धार्मिक व्याख्यान। रीत = प्रणाली। सिद्धांत के धनी = विचारों के पक्के। फिकरा = वाक्यांश। वजह = कारण । मदद = सहायता। पेंच = कारण। स्कॉलरशिप = छात्रवृत्ति। वर = विवाह के योग्य युवक। तरक्की = उन्नति। खुशहाली = संपन्नता। उपेक्षा = तिरस्कार का भाव। दिलासा देना = सांत्वना देना। तरफदारी करना = पक्ष लेना। मातृसुलभ = माताओं की स्वाभाविक मनोदशाएँ। मॉड = आधुनिक। गज़ब = आश्चर्यजनक। ताई = पिता के बड़े भाई की पत्नी। ढोंग-ढकोसला = आडंबरपूर्ण व्यवहार। अनदेखा करना = ध्यान न करना।

कुल = वंश। परंपरा = मान्यताएँ। निःश्वास = लंबी साँस । डेडीकेट = समर्पित। रिटायर = सेवानिवृत्त। विरासत = उत्तराधिकार। उपकृत = जिस पर उपकार किया गया है। प्रस्ताव = पेशकश। बिरादर = जाति भाई। किस्म = तरह। खुराफात = विघ्न डालने वाले काम। सर = सिर। दुनियादारी = सांसारिकता। पुश्तैनी = पैतृक। बिरादरी = जाति। बाध्य करना = मजबूर करना। कर्मकांडी = पूजा-पाठ करने वाला। राजपाट = राजसिंहासन। बाट = पगडंडी। जनार्दन = ईश्वर। तबीयत खराब होना = अस्वस्थ होना। एकतरफा लगाव = एक तरफ की आसक्ति। गम = दुख। गवाई = गाँव के। निभ = निर्वाह करना। बुजुर्गियत = वृद्धावस्था का बड़प्पन । बुढ़याकाल = वृद्धावस्था। एनीवे = किसी तरह। प्रवचन = भाषण। इरादा = निश्चय । लहजा = ढंग, तरीका। हाज़िरी = उपस्थिति।

भाऊ = बच्चा। अनुरोध = आग्रह। पट्टशिष्य = प्रिय शिष्य। निष्ठा = विश्वास, आस्था। जन्यो पुन्यूं = जनेऊ परिवर्तित करने वाली पूर्णिमा। कुमाउँनियों = कुमायूँ क्षेत्र के निवासियों। सख्त नापसंद = अत्यधिक अप्रिय लगना। बदतर = बुरी हालत। दुराग्रह = अनुचित हठ। बुजुर्ग = वृद्ध व्यक्ति। हरगिज़ = बिल्कुल। एक्सपीरिएंस = अनुभव। सबस्टीट्यूट = विकल्प। कुहराम = कोलाहल । नुक्ताचीनी = आलोचना। कारपेट = फर्श की दरी। कारोबार = धंधा। चौपट = नष्ट होना। कई मर्तबा = अनेक बार। इंप्रापर = अनुचित। तरफदारी करना = पक्ष लेना। खिजाब = सफेद बालों को काला करने वाला द्रव्य । एल.डी.सी. = लोअर डिवीजन क्लर्क। कदम = डग। माह = मासिक। नए दौर = नया युग। मिसाल = उदाहरण। भव्य = सुंदर। चचेरा भाई = चाचे का पुत्र। संपन्न = धनवान। हरचंद = बहुत अधिक। जताना = बताना, परिचित कराना। अनमनी = उदासी से भरा हुआ। आखिर = अंत। रवैया = व्यवहार। आमादा = तैयार। खिलाफ = विरुद्ध । लिमिट = सीमा। प्रेजेंट = तोहफा। इस्तेमाल = प्रयोग।

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