HBSE 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया

HBSE 9th Class Hindi किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
वह ऐसी कौन-सी बात रही होगी जिसने लेखक को दिल्ली जाने के लिए बाध्य कर दिया ?
उत्तर-
लेखक को किसी ने कुछ ऐसी बात कही होगी जिससे उनके स्वाभिमान पर आघात हुआ होगा। इसलिए वे अपने घर , से कुछ बनने के लिए निकल पड़े थे। उसी समय उन्होंने तय किया होगा कि अब उन्हें जो कोई काम मिलेगा, वह करेगा।

उन्होंने दूसरों के भरोसे बहुत जीवन व्यतीत कर दिया। अब अवश्य ही कुछ बनकर दिखाना होगा।

प्रश्न 2.
लेखक को अंग्रेज़ी में कविता लिखने का अफसोस क्यों रहा होगा ?
उत्तर-
लेखक के घर का माहौल उर्दू वातावरण का था। वह अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति या तो अंग्रेज़ी भाषा में करते थे या फिर उर्दू गज़ल के रूप में। निराला, पंत और बच्चन जी के संपर्क में आने के पश्चात ही लेखक का हिन्दी की ओर रुझान बढ़ा। बच्चन जी ने ही लेखक को हिन्दी के प्रांगण में स्थापित किया। लेखक ने श्रेष्ठ हिंदी साहित्य की रचना की और प्रसिद्धि भी प्राप्त की। इसलिए बाद में लेखक को अफ़सोस रहा होगा कि उसने पहले अंग्रेजी कविता लिखने में व्यर्थ ही समय गँवाया। इसलिए उन्हें अंग्रेजी कविता करने का अफ़सोस रहा होगा।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया

प्रश्न 3.
अपनी कल्पना से लिखिए कि बच्चन ने लेखक के लिए ‘नोट’ में क्या लिखा होगा ?
उत्तर-
एक बार बच्चन लेखक से मिलने उनके स्टूडियो में गए, लेकिन वे क्लास समाप्त होने के पश्चात वहाँ से जा चुके थे। अतः उन्होंने लेखक के नाम एक नोट लिखा था-

प्रिय अनुज,

तुमसे मिलने की प्रबल इच्छा मेरे हृदय को बहुत समय से बेचैन कर रही थी। इसलिए मैं यहाँ देहरादून में तुम्हें मिलने चला आया था। किंतु आज तुम मुझे नहीं मिल सके। अतः मुझे यहाँ आना व्यर्थ लगा। मुझे पता चला कि तुम स्टूडियो में बहुत अच्छा काम कर रहे हो। नाम कमा रहे हो। एक दिन महान कलाकार बनोगे। भूले-भटके कभी इस बदनसीब को भी याद कर लिया करो।

तुम्हारा अपना
-बच्चन

प्रश्न 4.
लेखक ने बच्चन के व्यक्तित्व के किन-किन रूपों को उभारा है ?
उत्तर-
लेखक ने बच्चन के व्यक्तित्व के निम्नलिखित रूपों को उभारा है-
सहृदय-बच्चन अत्यंत कोमल हृदय वाले व्यक्ति थे। वे किसी के दुःख को देखकर अत्यंत दुःखी हो जाते थे। वे अपनी पहली पत्नी को बहुत चाहते थे। उनकी अकस्मात मृत्यु ने उन्हें हिलाकर रख दिया था। वे न केवल अपनी पीड़ा से पीड़ित थे, अपितु लेखक की पत्नी की मृत्यु के वियोग की पीड़ा को भी समझते थे।

सहयोगी-श्री बच्चन के व्यक्तित्व की दूसरी प्रमुख विशेषता थी दूसरों को सहयोग देना। उन्होंने न केवल लेखक को इलाहाबाद बुलाया, अपितु उनको पढ़ाने व पूर्णतः बसाने तक का सहयोग भी दिया, जिसे लेखक आजीवन नहीं भूल सका। वे लेखक के संरक्षक बन गए थे।

निपुण, पारखी एवं प्रेरक-श्री बच्चन निपुण, पारखी एवं प्रेरक थे। वे सामने वाले की प्रतिभा को तुरंत भाँप जाते थे और यथासंभव उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देते थे। उन्होंने लेखक को देखकर तुरंत समझ लिया था कि उनमें काव्य-रचना की प्रतिभा है। इसलिए उन्हें इलाहाबाद बुलवाया और उनकी कविताओं को पढ़कर काँट-छाँट कर सुंदर रचना बना दी। श्री बच्चन अत्यंत सरल स्वभाव वाले व्यक्ति थे। छल-कपट तो उन्हें कभी छू भी नहीं सका था।

प्रश्न 5.
बच्चन के अतिरिक्त लेखक को अन्य किन लोगों का तथा किस प्रकार का सहयोग मिला ?
उत्तर-
लेखक को बच्चन जी के अतिरिक्त निम्नलिखित लोगों का सहयोग मिला था-

1. तेज बहादुर सिंह-ये लेखक के बड़े भाई थे, जिन्होंने घर में रहते हुए और घर से बाहर भी उनकी सहायता की थी।
2. सुमित्रानंदन पंत-सुमित्रानंदन पंत का स्वभाव भी अत्यंत सहयोगी था। उन्होंने लेखक को इंडियन प्रेस में अनुवाद का काम दिलवाया था। उससे उनकी आर्थिक सहायता भी हुई थी। इसके पश्चात ही लेखक ने हिंदी में कविता रचने का मन बनाया था। ‘सरस्वती’ पत्रिका में छपने वाली एक कविता पर भी निराला जी ने लेखक की प्रशंसा की थी।
3. ससुराल पक्ष के लोग-लेखक जब बेरोज़गार था, तब उन्होंने उन्हें कैमिस्ट की दुकान पर काम दिया था।

प्रश्न 6.
लेखक के हिंदी लेखन में कदम रखने का क्रमानुसार वर्णन कीजिए।
उत्तर-
लेखक ने सन् 1933 में ‘चाँद’ और ‘सरस्वती’ में प्रकाशित होने के लिए रचनाएँ लिखी थीं।
तीन-चार वर्ष के अंतराल के पश्चात सन् 1937 में फिर लिखना शुरू किया। उस समय वे श्री बच्चन की प्रमुख रचना ‘निशा-निमंत्रण’ से बहुत प्रभावित थे। उन्हीं दिनों कुछ निबंध भी लिखे।
‘रूपाभ’ के कार्यालय में हिंदी का प्रशिक्षण भी लिया। बनारस से प्रकाशित होने वाले ‘हंस’ के कार्यालय में नौकरी की।
इस प्रकार लेखक ने हिंदी में लिखने के लिए अनेक प्रयास किए। अंततः वे हिंदी के प्रतिष्ठित साहित्यकारों की पंक्ति में जा बैठे।

प्रश्न 7.
लेखक ने अपने जीवन में जिन कटिनाइयों को झेला है, उनके बारे में लिखिए।
उत्तर-
लेखक के जीवन में कठिनाइयों का क्रम-सा बना रहा। एक के बाद एक कठिनाई पूरे जोश के साथ उनके जीवन में . आती रही। यथा पत्नी की मृत्यु के पश्चात वियोग की पीड़ा को सहन करना पड़ा। बेरोज़गारी की मार झेलनी पड़ी। मात्र सात रुपए लेकर दिल्ली काम ढूँढने व पढ़ने जाना पड़ा। वहाँ कुछ साइनबोर्ड पेंट करके गुजारा करना पड़ा। ऐसी विकट परिस्थितियों में उनका लेखन कार्य किसी-न-किसी रूप में निरंतर जारी रहा। इसके पश्चात ससुराल की दवाइयों की दुकान पर रहकर केमस्ट्सि का कार्य सीखना पड़ा जिसे बाद में सदा के लिए अलविदा कह दिया। श्री बच्चन जी के सहयोग से एम०ए० की परीक्षा पास करने का प्रयास किया। श्री पंत द्वारा दिलाए गए अनुवाद का कार्य भी गुजारा करने के लिए करना पड़ा। इस प्रकार उन्हें एक के बाद एक कठिनाई का सामना करना पड़ा।

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HBSE 9th Class Hindi किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
पठित पाठ के आधार पर उन कारणों पर प्रकाश डालिए जिनके कारण एक साहित्यकार के जीवन में प्रसन्नता का समावेश होता है।
उत्तर-
एक कवि-कलाकार की खुशी सांसारिक सुखों पर उतनी निर्भर नहीं होती, जितनी उसके द्वारा रचित किसी रचना की सफलता पर निर्भर होती है। लेखक श्री शमशेर बहादुर सिंह के जीवन से यह बात पूर्णतः सिद्ध हो जाती है। लेखक दिल्ली नौकरी की तलाश में जाता है, वहाँ उन्हें कुछ काम भी मिल जाता है, किंतु उन्हें उससे कोई विशेष प्रसन्नता नहीं होती। वे वहाँ एक अच्छा कलाकार बनने का प्रयास करते रहे। इसी प्रकार लेखक के गुरु श्री शारदाचरण के चित्रकला प्रशिक्षण केंद्र के बंद होते ही उन्हें लगा कि अब कोई उनके हृदय की भावनाओं को समझने वाला नहीं रहा। इतना ही नहीं, उन्हें अपना जीवन बेकार लगने लगा। इसी प्रकार लेखक देहरादून में रहते हुए कंपाउंडर का काम सीख गए थे और पैसे भी कमाने लगे थे। किंतु हरिवंशराय बच्चन द्वारा उनकी एक सॉनेट की सराहना किए जाने पर उन्हें जो प्रसन्नता मिली, वह अवर्णनीय है। वे उनके कहने पर देहरादून छोड़कर इलाहाबाद चले आए। वहाँ भी उन्हें एम०ए० की परीक्षा पास करने में इतनी खुशी नहीं मिली, जितनी उन्हें कवि-सम्मेलन में जाकर अपनी रचनाएँ पढ़ने व दूसरों की रचनाएँ सुनने
और बड़े-बड़े साहित्यकारों से मिलने में हुई। इस प्रकार स्पष्ट है कि साहित्यकारों की दुनिया में सांसारिक सुख-समृद्धि इतना महत्त्व नहीं रखती जितना उनके द्वारा रचित साहित्य। यही उनकी प्रसन्नता का प्रमुख कारण होता है।

प्रश्न 2.
पठित पाठ में अभिव्यक्त कविवर बच्चन जी के पत्नी-वियोग पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
पठित पाठ में बताया गया है कि श्री हरिवंशराय बच्चन अपनी पत्नी के वियोग में अत्यधिक व्याकुल एवं व्यथित रहते थे। उनके जीवन में उनकी पत्नी का वही स्थान था जो शिव के मस्त नृत्य में उमा का था। जिस प्रकार शिव पत्नी-वियोग में व्याकुल रहे थे, वैसे ही श्री बच्चन भी पत्नी के वियोग में दुःखी रहे। उस समय उन्हें संसार की प्रत्येक वस्तु व्यर्थ प्रतीत होती थी। उनकी पत्नी उनकी सच्ची संगिनी थी। उनके जीवन की प्रेरणा थी। श्री बच्चन जी पत्नी के प्रति समर्पित थे। इसलिए उसकी आकस्मिक मृत्यु ने उनके कवि एवं भावुक हृदय को झकझोर कर रख दिया।

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प्रश्न 3.
लेखक (श्री शमशेर बहादुर सिंह) को अकेलापन क्यों अच्छा लगता था ? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
उत्तर-
वस्तुतः लेखक बचपन से ही अत्यंत संकीर्ण एवं एकांतप्रिय स्वभाव के थे। वे घर से बाहर अति आवश्यक काम से ही निकलते थे। इसलिए लोगों से मिलना-जुलना भी कम ही होता था। उन्हें सदा भ्रम-सा बना रहता था कि निजी दुनिया में उनका कोई साथी नहीं बन सकता। इसलिए उन्होंने अकेलेपन को ही साथी समझ लिया था। वे अपने अकेलेपन में अपने हृदय में बसे कवि से ही बातें करते थे। लेखक के अनुसार-अंदर से मेरा हृदय बहुत उद्विग्न रहता, यद्यपि अपने को दृश्यों व चित्रों में खो देने की मुझमें शक्ति थी।’ लेखक ने अन्यत्र लिखा है कि उसे सड़कों पर अकेले घूमना, कविताएँ लिखना और स्कैच बनाना अच्छा लगता था। किंतु अपनी खोली में पहुंचकर बोरियत महसूस होती थी। लेखक के इन कथनों से स्पष्ट है कि लेखक अपनी रचनाओं की दुनिया में ही खोया रहना चाहता था। वह इसमें किसी प्रकार की बाधा को सहन नहीं कर सकता था। इसलिए उसे अकेलापन अच्छा लगता था।

प्रश्न 4.
लेखक के हिंदी लेखन की ओर मुड़ने के कारणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
लेखक आरंभ में उर्दू और अंग्रेज़ी में अपनी रचनाएँ लिखा करता था। उर्दू में रचित उनकी रचनाएँ काफी प्रसिद्ध थीं। किंतु सन् 1930 में जब श्री हरिवंशराय बच्चन अपनी प्रसिद्धि के शिखर पर थे, तब वे लेखक के संपर्क में एक रचना के माध्यम से आए। लेखक ने अपनी एक ‘सॉनेट’ श्री बच्चन के पास भेजी। उन्हें वह सॉनेट बहुत अच्छी लगी। श्री बच्चन जी समझ गए थे कि इस युवक में साहित्य रचने की प्रतिभा है। इसलिए उन्होंने लेखक को इलाहाबाद बुला लिया और उन्हें हिंदी में लिखने के लिए प्रेरित किया। इलाहाबाद में रहते हुए उन्हें हिंदी का वातावरण मिला। वहाँ उनका परिचय श्री पंत, श्री निराला जैसे महान कवियों से हुआ जिनसे उन्हें हिंदी में लिखने की प्रेरणा मिली। निराला जी ने उनकी एक कविता पर सुंदर टिप्पणी लिखी। पंत जी ने उनकी कविताओं में सुधार किया। इलाहाबाद रहते हुए उन्हें कवि-सम्मेलनों में जाने का अवसर भी मिला। इस प्रकार लेखक हिंदी लेखन की ओर मुड़े और हिंदी साहित्यकार बन गए।

प्रश्न 5.
लेखक को दिल्ली में उकील आर्ट स्कूल में बिना फीस के क्यों दाखिल किया गया था?
उत्तर-
उनकी चित्रकला की महान प्रतिभा को देखकर उन्हें बिना फीस के आर्टस् स्कूल में दाखिल कर लिया गया था। उन्हें उससे इस क्षेत्र में उन्नति करने की बहुत उम्मीदें थीं।

प्रश्न 6.
लेखक दिल्ली क्यों गया था? .
उत्तर-
वस्तुतः लेखक देहरादून में बेरोज़गार था। वहाँ उसके पास करने के लिए कुछ काम नहीं था। घरवाले व दूसरे लोग उसे बेकार घूमने पर ताने भी देते थे। इसलिए लेखक दिल्ली काम की तलाश में गया था। वहाँ उसने काम और चित्रकला की शिक्षा दोनों ही एक साथ आरंभ की थीं।

प्रश्न 7.
दिल्ली आने पर लेखक अपना समय कैसे बिताता था ?
उत्तर-
लेखक ने दिल्ली पहुंचने पर करोलबाग में सड़क के किनारे एक कमरा किराए पर लिया तथा आर्ट की कक्षाओं में जाने लगा। इसी बीच चित्र बनाने व कविताएँ लिखने का काम भी करता था। जब भी कुछ समय मिलता तो सड़कों पर घूमने निकल पड़ता। इस प्रकार लेखक ने दिल्ली में अपना समय व्यतीत किया।

प्रश्न 8.
इलाहाबाद में श्री बच्चन ने लेखक के लिए कौन-सी योजना तैयार की थी ?
उत्तर-
इलाहाबाद में लेखक को बुलाने के पश्चात श्री बच्चन ने यह योजना बनाई थी कि वह किसी प्रकार एम०ए० की परीक्षा पास कर ले। उसका जिम्मा उन्होंने खुद ले लिया था। वे चाहते थे कि लेखक पढ़-लिखकर अपने पाँवों पर खड़ा हो जाए।

प्रश्न 9.
लेखक दिल्ली में रहता हुआ अपने कमरे में आकर बोर क्यों हो जाता था ?
उत्तर-
लेखक को एकांत एवं अकेलापन बहुत प्रिय था। वह अकेलेपन एवं एकांत में खोकर नए-नए विषयों पर विचार करता और उन पर कुछ लिखता। किंतु कमरे में और भी लोग रहते थे। लेखक को उनकी बातों में कोई रुचि नहीं थी। इसलिए वह कमरे में आकर बोर हो जाता था।

प्रश्न 10.
लेखक मार्ग में आने-जाने व उससे मिलने वाले चेहरों को गौर से क्यों देखता था ?
उत्तर-
लेखक को हर चेहरे में अपनी ड्राईंग के लिए कोई-न-कोई विषय मिल जाता था। उसे हर विषय और हर दृश्य में कोई-न-कोई विशेष अर्थ मिल जाता था। इसके लिए उसे गहरा निरीक्षण करना पड़ता था। इसीलिए वह मार्ग में आने-जाने वाले लोगों के चेहरों को गौर से देखता था।.

प्रश्न 11.
लेखक ने जो सॉनेट श्री बच्चन जी को भेजा था, उसका प्रमुख विषय क्या था ? उन्होंने यह सॉनेट बच्चन जी को ही क्यों भेजा था ?
उत्तर-
लेखक द्वारा रचित उस सॉनेट में बच्चन जी के प्रति उनसे मिलने के लिए कृतज्ञता के भाव थे। यह सॉनेट अंग्रेजी भाषा में लिखा था और अतुकांत मुक्त छंद में था। उन्होंने बच्चन के पास अपना यह सॉनेट नमूने के रूप में भेजा था।

प्रश्न 12.
लेखक दिल्ली से देहरादून क्यों आया था ?
उत्तर-
लेखक आजीविका कमाने और पेंटिंग अथवा चित्रकला से जुड़ने के लिए देहरादून आया था। वहाँ उनके गुरु शारदाचरण उकील ने पेंटिंग का स्कूल खोला हुआ था। वहाँ आकर उसने ससुराल वालों की कैमिस्ट की दुकान पर कंपाउंडरी भी सीखी।

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प्रश्न 13.
लेखक को सरकारी नौकरी से घृणा क्यों थी ?
उत्तर-
लेखक को सरकारी नौकरी से घृणा थी। अपने पिता जी की सरकारी नौकरी के बंधनों को देखकर उन्होंने अपने मन में सरकारी नौकरी न करने की ठान ली थी। दूसरा प्रमुख कारण था कि साहित्यकार बंधन के जीवन को पसंद नहीं करता है।

प्रश्न 14.
कविवर बच्चन लेखक से एम०ए० की परीक्षा देने के लिए बार-बार क्यों कहते थे ?
उत्तर-
कविवर बच्चन दूसरों की प्रतिभा को पहचानने की कला में प्रवीण थे। उन्होंने लेखक की सॉनेट को पढ़कर उनकी प्रतिभा का अनुमान लगा लिया था। दूसरा कारण था कि उसकी पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी। वे उसके हृदय की पीड़ा को भी समझते थे। इसलिए वे उन्हें आर्थिक संकट एवं पत्नी-वियोग की पीड़ा से निकालने के लिए ऐसा कहते थे।

प्रश्न 15.
लेखक ने किस-किस भाषा में रचना की और अंत में किस भाषा के साहित्य के लिए प्रसिद्धि मिली ?
उत्तर-
लेखक ने उर्दू एवं अंग्रेज़ी भाषाओं में लिखना आरंभ किया था, किंतु बाद में श्री बच्चन की प्रेरणा से हिंदी में कविता लिखने लगे थे। वे कुछ समय पश्चात हिंदी के अच्छे कवि बन गए थे और उन्हें हिंदी कवि के रूप में ही प्रसिद्धि प्राप्त हुई थी।

प्रश्न 16.
कविवर शमशेर बहादुर सिंह को हिंदी की ओर ले जाने में किन-किन का प्रयास रहा है ?
उत्तर-
सर्वप्रथम तो कविवर हरिवंशराय बच्चन ने लेखक (शमशेर बहादुर सिंह) को हिंदी की ओर मोड़ने का सफल प्रयास किया था। इसके अतिरिक्त कविवर पंत और निराला जी ने भी लेखक को हिंदी की ओर मोड़ने में सहयोग दिया था।

प्रश्न 17.
लेखक श्री बच्चन के जीवन की किस विशेषता से सबसे अधिक प्रभावित थे ? ।
उत्तर-
लेखक श्री बच्चन की दूसरों की प्रतिभा को पहचानने और उसे बढ़ावा देने की विशेषता से अधिक प्रभावित थे। वे सदा दूसरों की प्रतिभा को उभारने के लिए तत्पर रहते थे। वे उसे उचित प्रोत्साहन देते और आगे बढ़ने के अवसर भी प्रदान करते थे।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
“किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया” शीर्षक पाठ के लेखक कौन हैं?
(A) शमशेर बहादुर सिंह.
(B) फणीश्वरनाथ रेणु
(C) मृदुला गर्ग
(D) जगदीशचंद्र माथुर
उत्तर-
(A) शमशेर बहादुर सिंह

प्रश्न 2.
श्री शमशेर बहादुर सिंह ने दिल्ली में किस आर्ट स्कूल में प्रवेश लिया था?
(A) उनीस आर्ट स्कूल
(B) उकील आर्ट स्कूल
(C) नीलांभ आर्ट स्कूल
(D) चित्रा आर्ट स्कूल
उत्तर-
(B) उकील आर्ट स्कूल

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प्रश्न 3.
लेखक दिल्ली में आरंभ में कहाँ ठहरा हुआ था?
(A) मोती नगर
(B) उत्तम नगर
(C) करोलबाग
(D) कश्मीरी गेट
उत्तर-
(C) करोलबाग

प्रश्न 4.
आरंभ में श्री शमशेर बहादुर किस भाषा में लिखते थे?
(A) हिंदी में
(B) संस्कृत में
(C) उर्दू में
(D) बांग्ला में
उत्तर-
(C) उर्दू में

प्रश्न 5.
श्री शमशेर बहादुर सिंह को श्री हरिवंशराय बच्चन सर्वप्रथम कहाँ मिले थे?
(A) दिल्ली में
(B) इलाहाबाद में
(C) बनारस में
(D) देहरादून में
उत्तर-
(D) देहरादून में

प्रश्न 6.
देहरादून में आकर लेखक ने कौन-सा कार्य सीखा था?
(A) कविता लिखना
(B) पेंटिंग करना
(C) कंपाउंडरी
(D) दस्तकारी
उत्तर-
(C) कंपाउंडरी

प्रश्न 7.
श्री शमशेर बहादुर को आर्टस सिखाने वाले गुरू का क्या नाम था? ।
(A) श्री बच्चन
(B) श्री पंत
(C) शारदाचरण उकील
(D) निराला जी
उत्तर-
(C) शारदाचरण उकील

प्रश्न 8.
लेखक को अंग्रेज़ी में कविता लिखने का पश्चात्ताप क्यों था?
(A) वह दूसरी भाषाएँ नहीं जानता था
(B) उनके घर का वातावरण उर्दू भाषा का था
(C) उसे संस्कृत का ज्ञान था किंतु उसमें नहीं लिखता था
(D) लेखक को अन्य भाषाओं में लिखने में लज्जा आती थी
उत्तर-
(B) उनके घर का वातावरण उर्दू भाषा का था

प्रश्न 9.
लेखक की दृष्टि में बच्चन जी के जीवन की सबसे बड़ी विशेषता कौन-सी थी?
(A) वे महान् कवि थे
(B) कोमल हृदय व्यक्ति
(C) पारदर्शी व्यक्तित्व के धनी
(D) परिश्रमी
उत्तर-
(B) कोमल हृदय व्यक्ति

प्रश्न 10.
लेखक ने सर्वप्रथम हिंदी में कविता कब लिखी थी?
(A) सन् 1933 में
(B) सन् 1935 में
(C) सन् 1937 में
(D) सन् 1938 में
उत्तर-
(A) सन् 1933 में

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प्रश्न 11.
श्री हरिवंशराय बच्चन के पत्नी वियोग की तुलना लेखक ने किससे की है?
(A) श्रीराम के साथ
(B) मेघदूत के पक्ष के साथ
(C) शिव के साथ
(D) रतनसेन के साथ
उत्तर-
(C) शिव के साथ

प्रश्न 12.
लेखक को बच्चन कहाँ ले गए थे?
(A) इलाहाबाद
(B) दिल्ली
(C) बनारस
(D) कानपुर
उत्तर-
(A) इलाहाबाद

प्रश्न 13.
लेखक ने इलाहाबाद में आकर किस विषय में एम.ए. की परीक्षा की तैयारी की थी?
(A) अंग्रेज़ी
(B) इतिहास
(C) हिंदी
(D) संस्कृत
उत्तर-
(C) हिंदी

प्रश्न 14.
लेखक दिल्ली से देहरादून क्यों आया था?
(A) उनके गुरु उकील ने वहाँ आर्ट स्कूल खोल लिया
(B) उसे वहाँ नौकरी मिल गई
(C) उसके ससुराल वालों ने बुला लिया था
(D) अपने माता-पिता की चिंता के कारण
उत्तर-
(A) उनके गुरु उकील ने वहाँ आर्ट स्कूल खोल लिया।

प्रश्न 15.
लेखक सरकारी नौकरी क्यों नहीं करना चाहता था?
(A) उसे पसंद नहीं थी ।
(B) नौकरी उसके लिए बंधन के समान थी
(C) लेखक स्वच्छ प्रवृत्ति वाला व्यक्ति था
(D) नौकरी में झूठ बोलना पड़ता
उत्तर-
(B) नौकरी उसके लिए बंधन के समान थी।

प्रश्न 16.
लेखक को किस भाषा में लिखने से प्रसिद्धि मिली थी?
(A) उर्दू ,
(B) अंग्रेजी
(C) हिंदी
(D) संस्कृत
उत्तर-
(C) हिंदी

किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया Summary in Hindi

किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया पाठ-सार/गद्य-परिचय

प्रश्न-
‘किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया’ शीर्षक पाठ का सार/गद्य-परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ एक संस्मरण है। इसमें लेखक ने श्री हरिवंशराय बच्चन तथा सुमित्रानंदन पंत के साथ बिताए जीवन के क्षणों को याद किया है। प्रस्तुत संस्मरण का सार इस प्रकार है

इस संस्मरण में बताया गया है कि लेखक को किसी ने ऐसा कुछ कहा कि वह पहली बस पकड़कर दिल्ली आ गया। उसने सोच लिया था कि अब उसे दिल्ली में रहना है और पेंटिंग का काम सीखना है। लेखक को उकील आर्ट स्कूल में मुफ्त में दाखिला मिल गया था। वह करोल बाग में एक कमरा किराए पर लेकर वहाँ रहने लगा था। वह रास्ते में चलता-चलता अंग्रेज़ी, हिंदी व उर्दू की कविताएँ करता था। उसकी आदत-सी बन गई थी कि वह हर आने-जाने वाले के चेहरे को ध्यानपूर्वक देखता और उनमें अपनी पेंटिंग के विषय ढूँढता। कुछ साइनबोर्ड पेंट करके तथा कुछ बड़े भाई से प्राप्त धन से गुजारा करता। उसके साथ महाराष्ट्र का एक पत्रकार भी आकर रहने लगा। वह भी बेकार था। वह इलाहाबाद की चर्चा किया करता था।
लेखक उन दिनों बहुत अकेला और बेचैन-सा रहता था। पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी। एक बार बच्चन स्टूडियो में आए, किंतु लेखक क्लास खत्म होने के पश्चात जा चुका था। वे लेखक के लिए एक नोट छोड़ गए थे। वह नोट अत्यंत सारगर्भित और प्रभावशाली था। लेखक ने उसके लिए अपने-आपको अत्यंत कृतज्ञ अनुभव किया। जवाब में कृतज्ञतापूर्ण एक कविता भी लिखी, किंतु उनके पास कभी भेजी नहीं।

कुछ समय बाद दिल्ली में कुछ ऐसी घटनाएँ घटीं कि लेखक पुनः देहरादून आ गया। वहाँ आकर लेखक अपनी ससुराल की केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स की दुकान पर कंपाउंडरी का काम सीखने लगा। इस काम में वह सफल भी हो गया। तभी उनके गुरु श्री शारदाचरण ने पेंटिंग की क्लास बंद कर दी। इससे लेखक को कला-बोध की कमी खलने लगी। कलात्मकता के अभाव में लेखक अपने-आपको बहुत अकेला अनुभव करने लगा था। उनकी आंतरिक रुचियों की किसी को परवाह नहीं थी। इसी उधेड़बुन में उन्होंने एक दिन श्री हरिवंशराय बच्चन को लिखी हुई अपनी कविता पोस्ट कर दी। संयोग ही था कि एक बार बच्चन जी देहरादून आए और लेखक के यहाँ मेहमान बनकर रहे।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया

उन दिनों बच्चन जी साहित्य के क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध हो चुके थे। लेखक को उस भयानक आँधी की याद आ गई जिसमें असंख्य पेड़ जड़ से उखड़कर गिर पड़े थे। बच्चन जी एक पेड़ के नीचे आने से बाल-बाल बच गए थे। उन्हीं दिनों बच्चन जी को भी अपनी पत्नी श्यामा का वियोग हुआ था। वे इतने दुःखी थे कि मानो मस्त नृत्य करते शिव से उनकी उमा को छीन लिया गया हो। वे अपनी बात के धनी थे। एक दिन बहुत बारिश थी और रात के समय उन्हें गाड़ी पकड़नी थी। मेजबान के रोकने पर भी वे न रुके। बिस्तर बाँधा और काँधे पर रखकर स्टेशन जा पहुंचे।

लेखक इस बात को सोचकर हैरान होता है कि वे बच्चन जी के आग्रह पर इलाहाबाद जा पहुंचेंगे। उनकी बच्चन जी से अधिक गहरी जान-पहचान नहीं थी। वे हमेशा एकांत को पसंद करते थे। उन्हें ऐसा भ्रम रहता था कि उनके एकांत में उनके साथ चलने वाला कोई नहीं था। एक ओर बच्चन जी ने कहा कि देहरादून में रहेगा तो मर जाएगा। उधर केमिस्ट्स की दुकान पर बैठने वाले डॉक्टर ने भी कहा इलाहाबाद गया तो वहाँ उसका जीवित रहना असंभव होगा। इस प्रकार वह भ्रमित-सा हो गया। किंतु उसने इलाहाबाद जाने का निश्चय कर लिया। बच्चन जी ने एम०ए० हिंदी की पढ़ाई का जिम्मा अपने ऊपर लिया तथा कहा कि जब कमाएगा तो लौटा देना। बच्चन जी चाहते थे कि वह काम का आदमी बन जाए, किंतु वह न एम०ए० की परीक्षा दे सका और न नौकरी कर सका।

वहाँ रहते हुए लेखक का पंत जी से भी परिचय हुआ। उनकी कृपा से ही उन्हें अनुवाद करने का काम मिल गया था। अब लेखक के मन में हिंदी कविता लिखने की रुचि जाग गई थी, किंतु उन्हें तो अंग्रेजी कविता और उर्दू गज़लें लिखने का अभ्यास था। बच्चन जी ने उनकी कविताओं की सराहना की और हिंदी में लिखने का अभ्यास भी निरंतर बढ़ने लगा था। जाट परिवार से संबंधित होने के कारण भी भाषा की दीवार उन्हें रोक न सकी। लेखक हिंदी की ओर बढ़ने के अपने आकर्षण का कारण निराला, पंत, श्री बच्चन आदि महान हिंदी कवियों व इलाहाबाद के अन्य साहित्यकारों से मिलने वाले उत्साह को मानता है। यद्यपि वे हिंदी में बढ़ रही गुटबाजी से दुःखी थे। बच्चन जी उस समय इस गुटबाजी के विरुद्ध लड़ रहे थे।

सन् 1937 में लेखक को लगा कि वह श्री बच्चन जी की भाँति फिर से जीवन की ओर लौट रहा है। उसे भी बच्चन जी की भाँति ही आर्थिक दृष्टि से सबल होना है। बच्चन जी ने उसे 14 पंक्तियों का नया सॉनेट लिखना सिखाया था। इसमें बीच में अतुकांत पंक्तियाँ भी थीं और तुकांत भी। लेखक ने भी कुछ ऐसी ही एक रचना लिखी लेकिन वह कभी प्रकाशित नहीं हो सकी। लेखक अब श्री बच्चन जी के ‘निशा-निमंत्रण’ से प्रभावित हुआ और कुछ उसी पैटर्न पर कविताएँ भी लिखने लगा था। नौ पंक्तियाँ, तीन स्टैंजा। यद्यपि पंत जी ने लेखक की ऐसी कविताओं का संशोधन भी किया, किंतु उन्हें कोई विशेष सफलता नहीं मिली।

लेखक द्वारा अपनी पढ़ाई की ओर ध्यान न दिए जाने पर बच्चन जी बड़े दुःखी थे। लेखक एम०ए० की परीक्षा नहीं दे सका, किंतु उनकी हिंदी कविता में रुचि बढ़ती जा रही थी। वे एक दिन बच्चन जी के साथ एक कवि सम्मेलन में गए। उनका कविता लिखने का प्रभाव बेकार नहीं गया। उन्हीं दिनों उनकी एक कविता ने निराला जी का ध्यान आकृष्ट किया और उन्होंने लेखक को ‘हंस’ प्रकाशन में काम दिला दिया। इसलिए उन्हें हिंदी में लाने का श्रेय श्री बच्चन जी को जाता है।

लेखक का मानना है कि उनके जीवन को नया मोड़ देने के पीछे बच्चन जी की मौन-सजग प्रतिभा रही है। उनमें दूसरों की प्रतिभा को व्यक्तित्व प्रदान करने की स्वाभाविक क्षमता है। लेखक बच्चन जी से प्रायः दूर ही रहा है। परंतु उनके लिए दूर और समीप की परिभाषा दूसरों से हटकर है। वह नजदीक के लोगों के साथ भी दूरी अनुभव करता रहे और दूर के लोगों के साथ भी बहुत करीब रहे।

जिस प्रकार कवि अपनी कविता के माध्यम से अपने ही बहुत करीब रहता है। न वह कविता से कभी मिलता है, न कभी बात करता है फिर भी उसके अत्यधिक निकट रहता है। ठीक वैसे ही लेखक श्री बच्चन जी के निकट रहा। उनकी यह महानता उनके अच्छे-से-अच्छे कवि से भी महान है। श्री बच्चन जी ऐसे ही बहुत-से लोगों के करीब रहे हैं। उनका सहज एवं स्वाभाविक होना लेखक को बहुत अच्छा लगता है। इसी स्वाभाविकता के कारण लेखक अपने-आपको मुक्त समझता है। ऐसा अनुभव और लोगों को भी होता होगा। लेखक को विश्वास है कि बच्चन जैसे लोग दुनिया में हुआ करते हैं। वे असाधारण नहीं होते। होते तो साधारण हैं, किंतु होते बिरले हैं, दुष्प्राप्य हैं।

 

कठिन शब्दों के अर्थ –

(पृष्ठ-49) : जुमला = वाक्य । पेंटिंग = चित्रकारी। फौरन = जल्दी ही। किस्सा = कथा, घटना। मुख्तसर = संक्षिप्त, सार रूप में। शौक = रुचि। बिला-फीस = बिना फीस के। भर्ती = दाखिला। लबे-सड़क = सड़क के किनारे।

(पृष्ठ-51) : वहमो-गुमान = भ्रम, अनुमान। तरंग = लहर। टीस = वेदना। चुनाँचे = अतः, इसलिए। शेर = गज़ल के दो चरण। बगौर = ध्यानपूर्वक। तत्त्व = सार, तथ्य। दृश्य = दिखाई देने वाला। गति = चाल। विशिष्ट = विशेष। आकर्षण = खिंचाव। साइनबोर्ड = विज्ञापन के पट या पर्दे । बेकार = बेरोज़गार। जिक्र = चर्चा । हृदय = दिल। उद्विग्न = परेशान। टी०बी० = क्षय रोग। घसीटता = लापरवाही से लिखना। स्केच = रेखाचित्र। बोर होना = ऊब जाना। मुलाकात = भेंट। संलग्न = लगे हुए। वसीला = सहारा। नोट = कागज़ पर लिखा संदेश। कृतज्ञ = उपकार को अनुभव करना।

(पृष्ठ-52) : मौन = खामोश। उपलब्धि = प्राप्ति। अफसोस = दुःख। सॉनेट = यूरोपीय कविता का एक लोकप्रिय छंद। अतुकांत = तुक के बिना। मुक्तछंद = छंदों से मुक्त कविता। उफ = ओह । गोया = मानो, जैसे। केमिस्ट्रस = दवाइयाँ तथा रसायन बेचने वाला। ड्रगिस्ट्स = दवाइयाँ बेचने वाला। कंपाउंडरी = चिकित्सा में सहायता करने वाला कर्मचारी। महारत = कुशलता। अजूबा = अद्भुत, हैरान करने वाली। नुस्खा = तरीका। गरज़ = चाह, मतलब। आंतरिक = भीतरी, अंदरूनी। दिलचस्पी = रुचि। अदब-लिहाज़ = शर्म, संकोच। घुट्टी में पड़ना = जन्म से ही स्वभाव में होना। अभ्यासी = आदती। खिन्न = परेशान, दुःखी। सामंजस्य = तालमेल। कर्त्तव्य = करने योग्य काम। इत्तिफाक = संयोग।

(पृष्ठ-53) : प्रबल = मज़बूत, शक्तिशाली। झंझावात = आँधी। स्पष्ट = साफ़। मस्तिष्क = दिमाग। वियोग = बिछुड़ना। उमा = शिव की पत्नी पार्वती। अर्धांगिनी = पत्नी। मध्य वर्ग = धन की दृष्टि से बीच के लोग। भावुक = भावना से भरे, कोमल। आदर्श = सिद्धांत। उत्साह = जोश। संगिनी = साथिन। निश्छल = सरल, छल-रहित। आर-पार देखना = साफ़ एवं स्पष्ट होना। बात का धनी = अपनी बात पर टिके रहने वाला। वाणी का धनी = जिसकी वाणी बहुत मधुर एवं पटु हो। संकल्प = इरादा, निश्चय। फौलाद = बहुत मज़बूत। बरखा = वर्षा । झमाझम = बहुत तेजी से, अधिकता से। मेज़बान = आतिथ्य करने वाला। इसरार = आग्रह। बराय नाम = केवल नाम के लिए, दिखावे-भर को।

(पृष्ठ-54) : वहम = भ्रम, संदेह । गरीब-गरबा = गरीबों के लिए। नुस्खा = तरीका, ढंग, उपाय। थ्री टाइम्स अ-डे = एक दिन में तीन बार। बेफिक्र = चिंता से रहित। लोकल गार्जियन = स्थानीय अभिभावक। दर्ज होना = नाम लिखा जाना। सूफी नज्म = सूफ़ी कविता। प्रीवियस = पहला, पूर्व । फाइनल = अंतिम। काबिल = योग्य। प्लान = योजना। फारिग होना= मुक्त होना। पैर जमाकर खड़ा होना = नौकरी करने योग्य हो जाना। दिल में बैठना = दृढ़ होना। तर्क-वितर्क = बहसबाजी। घोंचूपन = नालायकी, कायरता, मूर्खता। पलायन = भागना। कॉमन रूम = सबके उठने-बैठने का कमरा।

(पृष्ठ-55) : गंभीरता = गहरी रुचि। शिल्प = शैली, तरीका। फर्स्ट फार्म = पहली भाषा। खालिस = शुद्ध। भावुकता = भावों की कोमलता। अभाव = कमी। विषयांतर = दूसरे विषय की तरफ भटक जाना। पुनर्संस्कार = फिर से स्वभाव में डालना। मतभेद = विचारों की भिन्नता। अभिव्यक्ति = भाव प्रकट करना। माध्यम = सहारा। एकांततः = अपने लिए ही। पछाँही = पश्चिम दिशा का। दीवार = बाधा। चेतना = मन, मस्तिष्क, हृदय। संस्कार = आदतें, गुण। प्रोत्साहन = उत्साह, बढ़ावा। विरक्त = अलगाव होना, अरुचि होना। संकीर्ण = तंग। सांप्रदायिक = एक संप्रदाय के प्रभाव वाला।

(पृष्ठ-56) : मर्दानावार = वीरों की भाँति। उच्च घोष = ऊँची आवाज । मनःस्थिति = मन की दशा। द्योतक = परिचायक। अंतश्चेतना = अंतर्मन। निश्चित = बेफिक्र । कमर कसना = तैयार होना। स्टैंज़ा = गीत का एक चरण या अंतरा । तुक = कविता के प्रत्येक चरण के अंतिम वर्णों का एक-सा होना। प्रभावकारी = प्रभावशाली। विन्यास = रचना। अतुकांत = तुक से रहित। बंद = पहरा, अनुच्छेद, चरण। फार्म = रूप। आकृष्ट करना = खींचना। संशोधन = सुधार। सुरक्षित = बचाकर रखे हुए।

(पृष्ठ-57) : क्षोभ = व्याकुलता। स्थायी संकोच = हमेशा महसूस होने वाली शर्म। निरर्थक = बेकार। प्रशिक्षण = ट्रेनिंग, सीखना। प्रांगण = आँगन, क्षेत्र। घसीट लाना = खींच लाना। आकस्मिक = अचानक। मौन-सजग = चुपचाप जाग्रत। प्रातिभ = प्रतिभा से युक्त। नैसर्गिक = सहज, प्राकृतिक। क्षमता = शक्ति। बेसिकली = मूल रूप से। व्यवधान = बाधा, रुकावट। प्रस्तुत होना = पेश होना, दिखाई देना, प्रकट होना। सामान्य = आम।

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(पृष्ठ-58) : विशिष्ट = खास, विशेष। असाधारण = जो साधारण न हो, विशेष। मर्यादा = शान। दुष्प्राप्य = कठिनाई से मिलने वाला।

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