HBSE 6th Class Hindi रचना निबंध-लेखन

Haryana State Board HBSE 6th Class Hindi Solutions Hindi Rachana Nibandh-Lekhan निबंध-लेखन Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 6th Class Hindi Rachana निबंध-लेखन

1. स्वच्छ दिल्ली-स्वस्थ दिल्ली

स्वच्छ भारत अभियान भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर शुरू की गई एक मुहीम है जिसमें देश के लगभग 4000 नगरों के सार्वजनिक स्थानों जैसे गलियों, सड़कों आदि पर सफाई पर जोर दिया जा रहा है। इस अभियान का प्रारंभ 2 अक्टूबर, 2014 को महात्मा गाँधी जयती के दिन वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं राजघाट पर सफाई करी।

इस अभियान में लाखों शासकीय कर्मचारियों, स्कूल व कॉलेज के विद्यार्थियों ने स्वच्छ भारत अभियान में भाग लिया। इस अभियान का मूल उद्देश्य यह है कि साफ-सफाई एवं स्वच्छता के प्रति लोगों में जागरूकता हो ताकि ग्रामीण एवं शहरी जीवन स्तर में सुधार हो। इस अभियान के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं:

  • अस्वच्छ कच्चे शौचालयों का जल सुविधायुक्त तथा पक्के शौचालयों में परिवर्तित करना।
  • नगरपालिका या नगर निगमों द्वारा कचरे के संग्रह व निपटान की ठोस व्यवस्था करना।
  • साफ-सफाई एवं स्वच्छता के प्रति जन-जागरूकता का प्रचार प्रसार करना।
  • गैर-सरकारी संस्थानों को भी स्वच्छता कार्यक्रम के लिए पूँजी लगाने में प्रोत्साहित करना।

इस अभियान के तहत प्रधानमंत्री ने विशेष ख्याति व्यक्तियों जैसे सचिन तेंदुलकर, बाबा रामदेव, सलमान खान, अनिल अंबानी, कमल हसन आदि को स्वच्छ भारत अभियान को आगे बढ़ाने के लिए चुना है। इस अभियान की सफलता के लिए कुछ दिशा-निर्देश दिए गए हैं जैसे गरीब वर्ग के लिए शौचालयों के निर्माण में सहायता, गाँव में रहने वाली महिलाओं के लिए जलसुविधायुक्त शौचालयों का निर्माण, अस्वच्छ कच्चे शौचालयों को पक्के शौचालयों में परिवर्तित करना।

भारत के इतिहास में प्रथम बार विशाल पैमाने पर राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान के प्रति दिल्ली के सभी कार्यालयों, विद्यालय तथा कॉलेजों ने जागरूकता दिखाई है। इस अभियान के तहत सफाई अभियान, रैलियाँ तथा विभिन्न कार्यकम आयोजित किए जा रहे हैं ताकि संपूर्ण भारत के नागरिक स्वच्छता को अपना परम कर्तव्य समझें तथा दृढ़ विश्वास के साथ इस अभियान से जुड़ें।

इस अभियान के लिए बहुत बड़ी पूँजी की आवश्यकता होगी जो इस अभियान की सफलता की कुंजी होगी। दिल्ली सरकार ने स्वच्छ दिल्ली को बढ़ावा देने के लिए रेडियो, टेलीविजन, समाचार-पत्रों, बैनरों तथा पोस्टरों आदि संचार के माध्यम से लोगों में जागरूकता फैलानी चाही है।

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2. दीपावली को प्रदूषण-रहित बनाने के उपाय

विश्व स्तर पर प्रदूषण एक ज्वलंत समस्या है। प्रदूषण के काराण पर्यावरण को क्षति हो रही है। प्रदूषण मुख्य रूप से प्रकृति के साथ छेड़-छाड़ करने से होता है। यदि इसी गति से हमारे पर्यावरण की हालत बिगड़ती रही तो आने वाले बहुत कम समय में ही मानव जीवन के सामने संकट खड़ा हो जायेगा। इस बात के संकेत हमें अभी से मिलने शुरू हो गए हैं। विश्व भर में मौसम की मार में तेजी आयी है।

हर देश का मौसम बदलाव से गुजर रहा है। ध्रुवों की बर्फ पिघलने का सबसे बड़ा कारण प्रदूषण ही है। इसी तरह ओजोन की परत में छेद होने से भी गंभीर समस्या सामने आ रही है। भारत जैसे देश में तो हर नदी जल प्रदूषण का उदाहरण बनती जा रही है।

प्रदूषण की रोकथाम सरकार के साथ-साथ आम लोगों का भी महत्त्वपूर्ण उत्तरदायित्व है। इसके लिए सभी लोग मिलकर “दीपावली” वाले दिन अपने-अपने घरों की सफाई के साथ आस-पास की सफाई पर विशेष ध्यान दें, आपस में मेल-मिलाप के साथ जगह-जगह नए वृक्ष लगाएँ, जिससे शुद्ध हवा का प्रवाह आगे बढ़े, एक-दूसरे को उपहार में प्यार के साथ-साथ गमले व गुलाब के फूल भेंट करें।

हर अशिक्षित व्यक्ति को भी प्रदूषण के फायदे बताकर उसे अपने साथ कार्य में भागीदार बनाएँ। इस प्रकार की दीपावली को यादगार बनाकर एक बड़े से बड़ा वृक्ष लगाने की योजना का संकल्प कर अपने आस-पास के वातावरण को प्रदूषण रहित करें।

3. प्रातःकाल की सैर

प्रात:काल की सैर का विशेष आनन्द है। सैर करना एक ‘अच्छा व्यायाम है। प्रात:काल से अच्छा समय सैर करने के लिए और कोई नहीं। स्वस्थ रहने का यह एक सरल उपाय है। बच्चे, बूढ़े, अमीर-गरीब सब यह व्यायाम कर सकते हैं। इसीलिए गाँधी जी ने इसे ‘व्यायामों का राजा’ कहा था।

प्रात:काल का शांत और सुंदर वातावरण मन को प्रसन्नता से भर देता है। सैर यदि किसी बाग-बगीचे, नदी के किनारे या पहाड़ी स्थल पर की जाए तो प्रकृति के मनोहारी दृश्य यरबस ही हमारे मन को अपनी ओर खींच लेते हैं। यदि मन प्रसन्न हो तो सारा दिन व्यक्ति काम करने से थकता नहीं। प्रात:काल की सैर हमारे अंदर नई ताज़गी और स्फूर्ति पैदा कर देती है। सुबह-सुबह की मंद शीतल स्वच्छ वायु हमारे दिलोदिमाग को तरोताजा कर देती है।

प्रात:काल की सैर हमें पूरे दिन के कार्य के लिए नई ऊर्जा प्रदान करती है। जो व्यक्ति प्रातः देर तक सोते हैं, वे इस सुख से वंचित रह जाते हैं। प्रातः पक्षियों का कलरव, खिलती कलियाँ, मुस्कुराते फूल हमारे हृदय को भी खिला देते हैं। हम स्वस्थ और प्रसन्न रहते हैं। लंबी-लंबी साँस लेते हुए थोड़ी तेज चाल से सैर करनी चाहिए। इससे शरीर के प्रत्येक अंग का व्यायाम हो जाता है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। प्रात:काल की सैर स्वास्थ्य के लिए अति उत्तम है।

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4. दीपों का पर्व-दीपावली

हमारा देश अनेक धर्म, संप्रदायों, जातियों का अद्भुत संगम है। यहाँ के निवासी अपने विश्वास एवं रुचियों के अनुसार अपने-अपने त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। दीपावली भी भारतीयों द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है। दीपावली दो शब्दों से मिलकर बना है – दीप+अवली अर्थात् दीपों की पंक्ति। इस दिन दीप जलाने का विशेष महत्त्व है, इसलिए इस दिन रात को दीपक जलाकर प्रकाश किया जाता है, अत: दीपावली प्रकाश पर्व है।

दीपावली का पर्व प्रति वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। अगर देखा जाए तो दीपावली कई पर्यों का समूह है। दीपावली से पूर्व छोटी दीपावली और उससे पूर्व धनतेरस का पर्व होता है। दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पूजा तथा उसके अगले दिन भाईदूज का त्योहार होता है।

इस प्रकार दीपावली के समय सप्ताह पर्यंत हर्षोल्लास का वातावरण बना रहता है। दीपावली को रात्रि में लक्ष्मी पूजन किया जाता है. दीपक या विद्युत दीप जलाकर रोशनी की जाती है। बच्चे आतिशबाजी चलाकर प्रसन्न होते हैं। लक्ष्मी पूजन के उपरांत व्यापारीगण अपने नए बही-खाते प्रारंभ करते हैं।

दीपावली के कई दिन पहले ही लक्ष्मी के आगमन के लिए तैयारी प्रारम्भ हो जाती है। लोग अपने घरों की सफाई करते हैं। उन्हें यथा संभव सजाते हैं। सफाई एवं शुद्धता के वातावरण में जब दीपकों का प्रकाश किया जाता है तो अमावस्या की काली रात्रि भी पूर्णिमा में परिवर्तित हो जाती है। बाजारों में दुकानों की सजावट देखते ही बनती है। इस अवसर पर लोग अपने इष्टमित्रों के यहाँ मिष्ठान्न एवं उपहार प्रदान करके प्रेम एवं सौहार्द बढ़ाते हैं।

दीपावली का पौराणिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से भी विशेष महत्त्व है। एक मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान् श्रीराम लंका के राजा रावण को मारकर सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस लौटे थे। उनके अयोध्या वापस आने की खुशी में अयोध्यावासियों ने दीपकों की पंक्तियाँ जलाकर प्रकाश किया।

तभी से इस दिन दीपकों की पंक्तियाँ जलाने का महत्त्व है। इसी दिन सिक्खों के छठे गुरु गोविंद सिंह की बंधन-मुक्ति हुई थी। आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानंद, जैन तीर्थकर महावीर स्वामी ने भी इसी दिन निर्वाण प्राप्त किया था।

प्रकाश पर्व दीपावली हमें जीवन भर हर्षोल्लास से रहने की प्रेरणा देती है। हमारे जीवन में सदैव ज्ञान का प्रकाश जगमगाता रहे, परन्तु इस प्रकाश पर्व के दिन कुछ लोग जुआ खेलते हैं, यह कानूनी अपराध है। कभी-कभी आतिशबाजी से आग लगने की दुर्घटनाएं हो जाती हैं। आतिशबाजी से वायु-प्रदूषण तथा ध्वनि प्रदूषण फैलता है। अतः आतिशबाजी का विरोध करके प्रदूषण रहित दीपावली मनाना ही दीपावली की पवित्रता का परिचायक है।

5. रंगों का त्योहार-होली

भारत विभिन्न ऋतुओं का देश है। रंगों का त्योहार होली ऋतुराज वसंत के आने का सूचक है। इस रंग-बिरंगे वसंत में ही होली का शुभागमन होता है।

होली का त्योहार प्रति वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली का त्योहार दो दिन तक प्रमुख रूप से मनाया जाता है। पूर्णिमा की रात्रि को होलिका दहन होता है। लोग रात को अपने घरों में भी होली जलाते हैं तथा रबी की फसल की जौ और गेहूँ आदि की बालियाँ भूनते हैं।

परस्पर भूने अन्न के दानों का आदान-प्रदान करते हुए अभिवादन करते हैं। अगले दिन प्रातः से ही सभी आबाल वृद्ध एक-दूसरे को अबीर-गुलाल लगाते हैं। एक दूसरे के गले मिलते हैं। सभी भेद-भाव भुलाकर रंग डालते हैं।

लोगों के चेहरे और कपड़े रंग-बिरंगे हो जाते हैं। लोग मस्ती में गाते, बजाते, नाचते हैं। इस प्रकार होली पारस्परिक प्रेम और सौहार्द का परिचायक है। रंगों का त्योहार होली हमें पारस्परिक प्रेम एवं सौहार्द का संदेश देता है। इस दिन शत्रु भी अपनी शत्रुता भूलकर मित्र बन जाते हैं, परन्तु कुछ लोग अपनी विकृत मानसिकता का प्रयोग होली में करते हैं। वे शराब पीकर ऊधम मचाते हैं, कई बार प्रदुषित रंगों से आँखों एवं चमडी के रोग हो जाते हैं।

उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। हमें शालीनता के साथ गुलाल लगाकर प्रेमपूर्वक होली खेलनी चाहिए ताकि समाज में स्नेह एवं प्रेम का सौहार्द बढ़े।

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6. रक्षाबंधन

भारत पवों का देश है। यहाँ वर्ष भर अनेक धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक पर्व मनाए जाते हैं। सभी भारतीय अपने पर्वो को असीम हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। इन पर्वो में रक्षाबंधन एक पवित्र और प्रसिद्ध पर्व है। यह पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, इसलिए इसे श्रावणी भी कहा जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को रक्षासूत्र अर्थात् राखियाँ बाँधती हैं, इसलिए यह पर्व रक्षा बंधन के नाम से विशेष प्रसिद्ध है।

रक्षाबंधन से काफी समय पूर्व ही बाजार में रंग-बिरंगी राखियों की दुकानें सज जाती हैं। भाइयों के दूर होने पर बहनें डाक द्वारा अपनी राखियाँ भेजती हैं। पास रहने वाली बहनें अपने भाई के यहाँ स्वयं जाकर राखी बाँधती हैं तथा भाई के लिए मंगल कामनाएँ करती हैं। रक्षाबंधन के उपरान्त भाई अपनी बहनों को यथाशक्ति उपहार प्रदान करते हैं तथा बहन की रक्षा का उत्तरदायित्व लेते हैं। कई भाइयों की बहनें नहीं होती तो वे किसी को धर्म-बहन बनाकर रक्षाबंधन करवाते हैं और उसे बहन का प्रेम एवं सम्मान प्रदान करते हैं।

7. आदर्श विद्यार्थी

‘विद्यार्थी’ शब्द का अर्थ है-विद्या प्राप्त करने का इच्छुक। जीवन के प्रारंभिक काल अर्थात् प्रथम पच्चीस वर्ष का काल विद्यार्थी काल कहलाता है। इस समय में विद्यार्थी अपनी शिक्षा प्राप्त करता है। विद्यालय में पढ़ाई करते हुए वह ज्ञान पाता है।

विद्यार्थी काल में बालक के व्यक्तित्व का विकास होता है। उसमें अनेक गुणों का समावेश वांछित होता है। आदर्श विद्यार्थी में विनम्रता, सहनशीलता, संयम, परिश्रम तथा एकाग्रता के गुण होते हैं। कहा गया है कि कौए जैसी चेष्टा, बगुले जैसा ध्यान, कुत्ते की-सी नींद तथा संयमी, परिश्रमी, कम खाने वाला और घर से मोह न रखने वाला विद्यार्थी ही सही ढंग से शिक्षा पाने में सफल रहता है। यह जीवन उसके भावी जीवन की आधारशिला होता है।

विद्यार्थी का अनुशासन के साथ गहरा संबंध है। एक अच्छा विद्यार्थी स्कूल और समाज के नियमों का पालन करके ही अनुशासित रह सकता है। अनुशासन में रहने से ही विद्यार्थी के व्यक्तित्व का सही दिशा में विकास होता है। विद्यालय अनुशासन सिखाने की प्रथम पाठशाला है।

यहाँ उसकी गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखी जाती है। आज विद्यार्थी-वर्ग में जो अनुशासनहीनता दिखाई देती है वह उसके असंतोष का कारण हो सकती है। इसका उचित समाधान खोजा जा सकता है। आदर्श विद्यार्थी का विनयशील होना आवश्यक है। उसे गुरुजनों के प्रति श्रद्धा का भाव रखना चाहिए। गुरु को तो भगवान से भी बड़ा बताया गया है।

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय। बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोविंद दियौ मिलाय॥ – गुरु ही विद्यार्थी को ज्ञान का मार्ग दिखाता है। अत: गुरु के प्रति आदर-भाव रखना विद्यार्थी का पवित्र कर्तव्य है। आदर्श विद्यार्थी समाज के प्रति भी अपने उत्तरदायित्व का पालन करता है।

वह समाज-सेवा के कार्यों में बढ़-चढ़ कर भाग लेता है परोपकार की भावना उसमें कूट-कूट कर भरी होती है। वह शांत एवं शिष्ट स्वभाव का होता है। इन सभी गुणों को अपनाकर एक विद्यार्थी आदर्श विद्यार्थी बन पाता है। आदर्श विद्यार्थी ही आगे चलकर आदर्श नागरिक बनता है।

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8. मेरे प्रिय अध्यापक

हमारे विद्यालय में लगभग साठ अध्यापक/अध्यापिकाएँ हैं। इनमें अधिकांश उच्च शिक्षित हैं। वे हमें अत्यंत परिश्रमपूर्वक पढ़ाते हैं। इन सबमें हमारे कक्षा अध्यापक श्री रामलाल वर्मा मेरे प्रिय अध्यापक हैं। वे हमें हिंदी पढ़ाते हैं। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में एम.ए. (हिंदी) की उपाधि प्राप्त की है। इसके पश्चात् उन्होंने बी.एड. की ट्रेनिंग लेकर आज से लगभग दस वर्ष पूर्व शिक्षण व्यवसाय को अपनाया है। तभी से वे निरंतर प्रगति करते चले आ रहे हैं।

मेरे प्रिय अध्यापक श्री वर्मा जी ‘सादा जीवन उच्च विचार’ में विश्वास रखते हैं। वे सदैव खादी के वस्त्र पहनते हैं और पूर्णत: शाकाहारी हैं। उनके विचार बहुत उच्च हैं। वे मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाने के पक्षपाती हैं। जाति-पाति से उन्हें सख्त घृणा है। वे सभी को एक समान मानते हैं और उनसे प्रेममय व्यवहार करते हैं। उन्होंने दर्शनशास्त्र का भी गहन अध्ययन कर रखा है। वे हमें महान् दार्शनिक के विचारों से अवगत कराते रहते हैं। उनकी बातें हम बहुत ध्यानपूर्वक सुनते हैं।

मेरे प्रिय अध्यापक श्री वर्मा जी बहुत ही अनुशासन प्रिय हैं। उन्हें अनुशासनहीनता से सख्त नफरत है। वे किसी भी कीमत पर विद्यालय में उच्छ्ख लता सहन नहीं कर सकते हैं। उन्हें समय की पाबंदी बहुत प्रिय है। विलंब से आने वाले छात्रों को वे दंडित करने से भी नहीं चूकते। उनके इन प्रयासों के सुखद परिणाम सभी के सामने आ रहे हैं। वे भी सस्ती लोकप्रियता के चक्कर में नहीं पड़ते।

श्री वर्मा जी अपने विषय के प्रकांड विद्वान हैं। हिंदी साहित्य पर उनका असाधारण अधिकार है। वे कविताओं को पूरे संदर्भ सहित समझाते हैं। उन्हें अनेक प्रासंगिक कथाएँ स्मरण हैं। प्रसंगानुकूल वे उन्हें सुनाकर पाठ को रोचक बना देते हैं। कविता को पूरी लय के साथ गाकर पढ़ते हैं। उनके काव्य पाठ के दौरान विद्यार्थी झूम उठते हैं। उनके पढ़ने के ढंग से ही कविता का मूल भाव स्पष्ट हो जाता है। गद्य-पाठ को भी वे बहुत प्रभावशाली ढंग से समझाते हैं।

मेरे प्रिय अध्यापक हमारी दैनिक समस्याओं को सुलझाने में अत्यंत रुचि लेते हैं। हम उन्हें सच्चा मार्गदर्शक मानते हैं। वे हमारे साथ स्नेहमय एवं सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करते हैं। सभी विद्यार्थी उन्हें अपना समझते हैं। वे विद्यार्थियों में अत्यंत लोकप्रिय हैं। मेरे इन अध्यापक के प्रयासों का ही यह सुखद परिणाम है कि प्रति वर्ष हिंदी विषय का परीक्षा परिणाम शत-प्रतिशत रहता है। चार-पाँच विद्यार्थी विशेष योग्यता भी प्राप्त करते हैं। उन्हीं के प्रयासों से हमारा विद्यालय सांस्कृतिक गतिविधियों में भी अग्रणी रहता है।

श्री वर्मा जी को अपने सहयोगियों एवं प्रधानाचार्य का विश्वास प्राप्त है। उन्हें विद्यालय की सांस्कृतिक गतिविधियों की जिम्मेदारी सौंपी गई है जिसे वे अत्यंत कुशलतापूर्वक निभाते हैं। वे बहुत अनुशासनप्रिय हैं। उनके ऊपर विद्यालय को गर्व है। इन सब गुणों के कारण ही वे मेरे प्रिय अध्यापक बन गए हैं।

9. हिंदी : हमारी राष्ट्रभाषा

राष्ट्रभाषा किसी देश की अस्मिता होती है, उसका गौरव होती है राष्ट्रभाषा का दर्जा किसी भाषा को तभी मिलता है जब उस भाषा को वहाँ रहने वाले अधिकांश नागरिक बोलते, समझते और व्यवहार में लाते हों। भारत जैसे देश में जहाँ संविधान स्वीकृत बहुत-सी भाषाएँ हैं, वहाँ हिंदी को ही राष्ट्रभाषा का सम्मान मिलना कोई संयोग मात्र नहीं है।

हिंदी हमारी संस्कृति का प्राण तत्व है। यह हमारी सभी भाषाओं के बीच एक अदृश्य सेतु का काम करती है। भारत के एक बड़े भू-भाग में हिंदी को मातृ भाषा के रूप में बोला, पढ़ा और लिखा जाता है। हिंदी को राष्ट्रभाषा का गौरव दिलाने में स्वतंत्रता सेनानियों ने अहम भूमिका निभाई है।

इसके माध्यम से ही सभी नेता और क्रांतिकारी विचारों का आदान-प्रदान करते थे। हिंदी के लिए गौरव का विषय यह रहा कि इसे राष्ट्रभाषा का सम्मान अहिंदी भाषियों ने दिलाया। लोकमान्य तिलक, महात्मा गाँधी, सुभाषचंद्र बोस आदि अहिंदी भाषी थे।

संविधान के अनुच्छेद 351 में हिंदी की राष्ट्रभाषा के रूप में कल्पना की गई है। जब संविधान सभा में भाषा के संबंध में विचार-विमर्श किया जा रहा था, तब अधिकांश सदस्यों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया।

संविधान में हिंदी को राजभाषा और दूसरी भारतीय भाषाओं को प्रादेशिक कहा गया है। हिंदी को 14 सितंबर 1949 को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया। इससे इसके राष्ट्रभाषा के स्वरूप को मान्यता मिली। 14 सितंबर को पूरा देश ‘हिंदी दिवस’ के रूप में मनाता है। हिंदी को राष्ट्रभाषा बने हुए कई दशक हो गए हैं, किंतु व्यावहारिक रूप में इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं मिल पाया है।

हिंदी के साथ अंग्रेज़ी को कुछ वर्षों के लिए सह राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया। अंग्रेजी को इस विशेष स्थान से हटा देना चाहिए था परंत राजनैतिक कारणवश अंग्रेज़ी अभी तक उस स्थान पर बनी हुई है। राष्ट्रभाषा होने के बावजूद भी हिंदी का प्रचार-प्रसार जनमानस तक उस प्रकार नहीं हुआ; जैसे राष्ट्रभाषा का होना चाहिए।

हिंदी और अंग्रेजी के इतने विद्वानों के होते हुए भी वैज्ञानिक शब्दावली को हिंदी में लोकप्रिय एवं स्वीकार्य नहीं बनाया जा सका है। तकनीकी शब्दावली कठिन और अव्यावहारिक है तथा उसके अंग्रेज़ी पर्याय ही सरल लगते हैं। इस क्षेत्र में व्यापक शोध एवं प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। प्रत्येक भारतीय को हिंदी भाषा पर गर्व होना चाहिए। इसके प्रति भी वही भाव होना चाहिए, जैसा भाव अपने राष्ट्र के लिए होता है।

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10. क्रिसमस

क्रिसमस का त्योहार सारे विश्व में अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता है। यह ईसाइयों का प्रमुख त्योहार है। यह प्रति वर्ष 25 दिसंबर को मनाया जाता है। क्रिसमस का त्योहार नव वर्ष तक चलता है।

यह दिन महात्मा ईसा मसीह के जन्म दिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। आज से लगभग 2000 ई.पू. महात्मा ईसा का जन्म बेथलेहम नामक स्थान पर हुआ था। यह स्थान भूमध्य सागर के पश्चिमी तट के निकट फिलिस्तीन में है। तब यहाँ यहूदी लोग रहते थे लेकिन देश रोम साम्राज्य के अधीन था।

ईसा के माता-पिता (मेरी-जोसफ) को जनगणना कराने के लिए बेथलेहम जाना पड़ा। वे रात बिताने के लिए एक अस्तबल में ठहरे। उसी रात मेरी ने एक बालक को जन्म दिया। इस बालक का नाम जीसस रखा गया। यही बालक आगे चलकर ईसा मसीह के नाम से प्रसिद्ध हुआ। ईसा मसीह ने लोगों को प्रेम एवं भाई-चारे का संदेश दिया। उन्होंने अपने धर्म की नींव प्रेम और क्षमा पर रखी।

ईसा मसीह के अनुयायी उनका जन्म दिन प्रति वर्ष क्रिसमस के रूप में अत्यंत उल्लासपूर्वक मनाते हैं। कई दिन पहले से गिरजाघरों को सजाना प्रारंभ कर दिया जाता है। बाजारों में खूब चहल-पहल रहती है। लोग अपने प्रियजनों के लिए सुन्दर उपहार खरीदते हैं। इस अवसर पर ‘ग्रीटिंग कार्ड’ भेजने की भी प्रथा है। बच्चों और स्त्री-पुरुषों को नए-नए वस्त्र पहनने का शौक होता है। घरों को भी खूब सजाया जाता है। घर के एक कोने में ‘क्रिसमस ट्री’ बनाया जाता है। एक बूढ़ा व्यक्ति सांताक्लाज बच्चों के लिए मिठाइयाँ एवं उपहार लेकर आता है।

अर्धरात्रि के समय चर्च की घंटियाँ बज उठती है। सभी लोग हर्ष एवं उल्लास से झूम उठते हैं। केक काटकर ईसा मसीह का जन्म दिन मनाया जाता है। चर्च में प्रार्थना की जाती है। बच्चों को खाने के लिए केक और मिठाइयाँ मिलती हैं। उनकी खुशी देखते ही बनती है। यद्यपि यह त्योहार ईसाइयों का है, पर इसे सभी धर्मों के अनुयायी मिल-जुलकर मनाते हैं। इससे एकता की भावना बढ़ती है। इस दिन हमें ईसामसीह के उपदेशों का स्मरण कर उन पर चलने का प्रण करना चाहिए।

वस्तुतः क्रिमस मनाने का मूल उद्देश्य महान संत ईसामसीह का पावन स्मरण है, जो दया, प्रेम, क्षमा और धैर्य के अवतार थे। संसार में ईसामसीह के दिव्य संदेश से हर व्यक्ति को विश्व शांति की प्रेरणा प्राप्त होती है।

11. राष्ट्रपिता : महात्मा गाँधी

महात्मा गांधी उन महान् आत्माओं में से एक हैं जिन्होंने अपने नि:स्वार्थ कार्यों से विश्व में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया। गांधी जी का जीवन भारतीय इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ है। वे भारतीय स्वतन्त्रता के अग्रदूत थे। उन्होंने सत्य और अहिंसा का मार्ग अपनाकर ब्रिटिश शासन की नींव को हिलाकर रख दिया था। उन्हें सारा संसार महात्मा गांधी के नाम से जानता है। भारतवासी श्रद्धा वश उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ और प्यार से ‘बापू’ कहते हैं।

गांधी जी का जन्म 2 अक्तूबर, 1869 ई. को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ। इनके बचपन का नाम मोहन दास था और इनके पिता का नाम कर्मचन्द था। अत: इनका पूरा नाम मोहन दास कर्मचन्द गाँधी था। उनके पिता राजकोट के दीवान थे। भारत में प्रारम्भिक शिक्षा पूरी करने के उपरांत इन्हें बैरिस्टरी पढ़ने के लिए इंग्लैण्ड भेजा गया। गाँधी जी ने इंग्लैंड में सादा जीवन बिताया। वे विलायत से वकालत की डिग्री लेकर भारत लौटे। इन्होंने मुंबई में प्रैक्टिस शुरू कर दी।

वे झूठे मुकदमें नहीं लेते थे, अत: उनके पास कम मुकदमे आते थे। एक बार एक मुकदमे के सिलसिले में इन्हें दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहाँ उन्होंने गोरों द्वारा भारतीयों के अमानवीय व्यवहार को स्वयं देखा। इससे उनके हृदय को गहरा आघात पहुँचा। यहीं उन्होंने सबसे पहले सत्याग्रह का सफल प्रयोग किया। सन् 1915 ई. में गांधी जी भारत लौट आए। उन्होंने भारतीयों को अंग्रेजों के विरुद्ध संगठित किया। सन् 1919 ई के ‘जलियांवाला बाग हत्याकांड’ का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा।

सन् 1920 ई. में उन्होंने ‘असहयोग आन्दोलन’ छेड़ दिया। इसी कड़ी में उन्होंने 1930 का प्रसिद्ध ‘नमक सत्याग्रह’ किया। सन् 1942 ई. में गांधी जी ने ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा देकर संघर्ष का बिगुल बजा दिया। गांधी जी को अनेकों बार जेल की यात्रा करनी पड़ी। अन्ततः 15 अगस्त, 1947 ई. को भारत स्वतंत्र हो गया।

भारत विभाजन के परिणामस्वरूप सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, अत: शांति स्थापित करने के लिए उन्हें अनशन करना पड़ा। 30 जनवरी, 1948 ई. को प्रार्थना सभा में नाथूराम गोडसे ने उन्हें गोली मारकर इस संसार से विदा कर दिया। गांधी जी के मुख से अंतिम शब्द ‘हे राम’ निकले। इस प्रकार वे ऋषियों की परंपरा में जा मिले।

गांधी जी सत्य और अहिंसा के पुजारी थे। वे सत्य को ईश्वर मानते थे। उनकी अहिंसा दुर्बल व्यक्ति की अहिंसा न थी। उनके पीछे आत्मिक बल था। वे अन्याय और अत्याचार के सामने कभी नहीं झक। वे साध्य और साधन दोनों की पवित्रता पर बल देते थे। गांधी जी सब मनुष्यों को एक समान मानते थे। धर्म, संप्रदाय, रंग आदि के आधार पर होने वाले भेदभाव को वे कलंक मानते थे। उन्होंने समाज-सुधार के अनेक कार्य किए। हरिजनोद्धार उनका प्रमुख आंदोलन था।

उन्होंने हरिजनों को समाज में प्रतिष्ठा दिलवाई। स्त्री-शिक्षा के वे सबसे बड़े हिमायती थे। उन्होंने बाल-विवाह, सती प्रथा, पर्दा प्रथा आदि का डटकर विरोध किया। उन्होंने समाज में महिलाओं को बराबरी का दरजा प्रदान किया।

भारतवासियों के हृदयों में गांधी जी के प्रति असीम श्रद्धा भावना है। उनका नाम अत्यंत आदर के साथ लिया जाता है। उनकी मृत्यु पर पं. नेहरू ने कहा था –
“हमारी जिंदगी में जो ज्योति थी, वह बुझ गई और अब चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा है।”

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12. वसंत ऋतु

भारत ऋतुओं का देश है। यहाँ वर्षा, शरद, हेमंत, शीत, वसंत और ग्रीष्म छ: ऋतुएं होती हैं। इन सभी ऋतुओं में वसंत ऋतु का सर्वाधिक महत्त्व है, इसीलिए वसंत को ‘ऋतुराज’ कहा जाता है। वसंत ऋतु का आगमन शीत ऋतु के उपरांत होता है। पौराणिक मतानुसार वसंत को कामदेव का पुत्र बताया जाता है। वसंत के आगमन पर प्रकृति अपनी सज-धज के साथ उसका स्वागत करती है। वसंत ऋतु में प्रकृति की नैसर्गिक सुंदरता अपने उत्कर्ष पर होती है।

वसंत का प्रारंभ मधुमास से होता है। वसंत का स्वागत करने के लिए पेड़-पौधे अपने पुराने पत्तों रूपी वस्त्रों को त्यागकर नए पत्ते धारण कर लेते हैं। सभी ओर वन और उपवन नए रूप में दिखाई देने लगते हैं। प्रकृति में सर्वत्र हरीतिमा का साम्राज्य होता है। रंग-बिरंगे फूलों पर भ्रमरों की गुंजार मन मोहक लगती है। रंग-बिरंगी तितलियाँ फूलों पर लहराने लगती हैं। खेतों में सरसों के फूल लहराने लगते हैं।

वसंत ऋतु में आम के वृक्षों पर मंजरी आ जाती है, उसकी सुगंध से सभी वन-उपवन महकने लगते हैं। वसत ऋतु की छटा को देखकर जड़-चेतन सभी के मन में उल्लास छा जाता है। कवि अपनी नई-नई कल्पनाएँ करते हैं। कवियों ने अपनी कल्पना एवं अनुभूतियों से वसंत की अनेक प्रकार से महिमा गाई है। श्री सर्वेश्वरदयाल सक्सेना ने तो वसंत को महन्त का रूपक दे दिया :
“आए महंत बसंत।
मखमल के झूल पड़े, हाथी-सा टोला,
बैठे किंशुक छत्र लगा बाँध पाग पीला,
चंवर सदृश डोल रहे सरसों के सर अनंत।”

कवि भावुक हृदय होते हैं और वसंत ऋतु उनकी प्रसुप्त भावनाओं को जगा देती है।

वसंत ऋतु में वसंत पंचमी को वसंतोत्सव मनाया जाता है। वसंत पंचमी को ही ज्ञान की देवी सरस्वती का जन्मोत्सव भी मनाया जाता है। रंगों का पर्व होली भी वसंत ऋतु का मस्ती से भरा पर्व है। इस दिन सभी लोग अपनी भेद-भावना भुलाकर परस्पर होली खेलते हैं और मानवीय एकता का परिचय देते हैं।

वसंत ऋतु केवल भारत में ही नहीं संसार में सभी को आनंद देती है। इसलिए वसंत संसार की सबसे प्रिय ऋतु है। इस ऋतु में न अधिक सरदी होती है और न अधिक गरमी होती है। ऐसे समशीतोष्ण समय में प्रकृति सज-धज के साथ अपना सौंदर्य दिखाती है और सभी को अपने सौंदर्य से मोह लेती है।

वसंत ऋतु हमारे जीवन में नई प्रेरणा देती है। मनुष्यों को भी वसंत ऋतु से प्रेरणा लेकर अपने जीवन में आनंद भरना चाहिए और अपने जीवन को सुखमय बनाने के लिए प्रयत्नशील हो जाना चाहिए। इसी में वसंत ऋतु की सच्ची सार्थकता है।

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13. ऋतुओं की रानी वर्षा

भारत विविध ऋतुओं वाला देश है। ऋतु-परिवर्तन लोगों में स्फूर्ति का संचार करता है। भारत में क्रमश: बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर और हेमन्त ऋतुएँ आती हैं। यह ऋतु-चक्र अत्यंत सुहावना प्रतीत होता है।

वर्षा को ‘ऋतुओं की रानी’ कहा जाता है और बसंत को ‘ऋतुओं का राजा’। वर्षा ऋतु हमारे तन-मन की तपन को हरती है, धरती की प्यास को बुझाती है। रानी के समान सभी को इस ऋतु के आगमन की प्रतीक्षा रहती है। सावन-भादों को वर्षाकाल माना जाता है, वैसे आषाढ़ मास से ही आकाश में काले-काले बादल घिरने लगते हैं।

वर्षा ऋतु के आगमन से पूर्व ग्रीष्म ऋतु होती है। इस ऋतु में धरती तवे के समान जलती है। पशु-पक्षी, पेड़-पौधे तथा मनुष्य सभी को ग्रीष्म की तपन झेलनी पड़ती है। ज्येष्ठ मास में तो भयंकर लू चलती है। इस ऋतु में पानी का अभाव हो जाता है। सभी के चेहरे मुरझा जाते हैं। सभी की निगाहें आकाश की ओर उठ जाती हैं।

जुलाई के आगमन के साथ वर्षा का आगमन प्रारंभ हो जाता है। इसे ‘पावस ऋतु’ भी कहा जाता है। इसी ऋतु के लिए तुलसीदास जी ने कहा है-
वर्षा काल मेघ नभ छाए।
गरजत लागत परम सुहाए।।
वर्षा की फुहारों से हमारा तन-मन भीग उठता है। मन में आनंद की हिलोरें उठने लगती हैं। जब वर्षा की झड़ी लगती है, तभी धरती की प्यास बुझती है। नदियाँ और तालाब जल से भर जाते हैं। कई बार तो नदियाँ उफनने लगती हैं। वैसे चारों ओर हर्ष-उल्लास का वातावरण छा जाता है।

वर्षा ऋतु में ‘तीज’ का त्योहार स्त्रियों के लिए विशेष उल्लासदायक होता है। वे मिलकर गीत गाती हैं तथा झूला झूलती हैं। इस ऋतु में श्रावणी (राखी) तथा जन्माष्टमी के पर्व भी आते हैं। इन पर्वो से वर्षा ऋतु का आनंद और भी बढ़ जाता है। अत्यधिक वर्षा बाढ़ का कारण बनती है। बाड़ में गाँव डूब जाते हैं तथा अनेक वस्तुओं की हानि होती है। इसके बावजूद वर्षा ऋतु की सभी को प्रतीक्षा रहती है। यह ऋतु है ही ऐसी अनोखी।

14. मेरा देश

मेरे देश का नाम भारतवर्ष है। इसे हिन्दुस्तान भी कहते हैं। भारत एक विशाल देश है। उत्तर में हिमालय पर्वत से लेकर दिक्षण में हिंद महासागर तक और पूर्व में बंगाल की खाड़ी से पश्चिम में अरब सागर तक इसका विस्तार है। प्राकृतिक दृष्टि से भारत एक सुंदर देश है। यहाँ बर्फ से ढकी श्वेत पर्वत श्रृंखलाएँ, हरे-भरे मैदान और घाटियाँ, कलकल करती बहती गंगा-यमुना और हरे-भरे तटीय प्रदेश हैं।

मेरे देश में घने और विस्तृत वन हैं तो रेतीला रेगिस्तान भी है। अनेक प्रकार के पशु-पक्षी और लहलहाते खेत हैं। संसार में भारत ही ऐसा देश है जहाँ छ: ऋतुएँ बारी-बारी से आती हैं। भारत की संस्कृति अति प्राचीन है। भारत ने विश्व को कला, साहित्य और विज्ञान की ढेरों सौगात दी हैं।

वेदों की रचना इसी भूमि पर हुई। भारत ने ही विश्व को प्रेम और अहिंसा का पाठ पढ़ाया। भारत भूमि ऋषियों और मुनियों और शूरवीरों की भूमि रही है। यहाँ अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया। इसी भूमि पर राम, कृष्ण, गौतम, महावीर, स्वामी, नानक, विवेकानन्द जैसे महापुरुष हुए हैं।

वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप, रानी लक्ष्मीबाई, चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस जैसे वीरों ने इस धरती पर जन्म लेकर देश का गौरव बढ़ाया है।

भारत विविधताओं का देश है। यहाँ अनेक धर्मो, भाषाओं और देशों के लोग रहते हैं। मेरे देश की सबसे बड़ी विशेषता विभिन्नता में एकता है। सभी मिल-जुलकर प्रेम और सौहार्द के साथ रहते हैं और देश का मान बढ़ाते हैं। मुझे अपने देश पर गर्व है।

“सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा।”

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15. प्रदूषण : एक समस्या

आज प्रदूषण की समस्या केवल भारत की ही नहीं, विश्वव्यापी समस्या का रूप धारण कर चुकी है। प्रदूषण का अर्थ है-दूषित करना। सामान्य रूप से वातावरण का दूषित होना प्रदूषण कहलाता है। इसके कारण सामान्य जन-जीवन प्रभावित हो रहा है। इसने समस्त पर्यावरण को प्रदूषित कर दिया है।

इस पर्यावरण का जीवध रियों के साथ सीधा संबंध है। प्रकृति मानव की सहचरी रही है। यदि यही प्रकृति प्रदूषण का शिकार हो जाए तो मानव-जीवन भला कैसे स्वस्थ और सुखी रह सकता है।

प्रदूषण के विविधि रूप हैं। जब वायु में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है तब वायु प्रदूषण का खतरा उत्पन्न हो जाता है। जल-प्रदूषण की समस्या भी विकराल होती चली जा रही है क्योंकि गंगा जैसी पवित्र नदी का जल भी अब शुद्ध नहीं रह गया है। अन्य नदियों में भी कूड़ा-कचरा तथा कारखानों का गंदा-अवशिष्ट डाला जाता है जिससे उनका जल प्रदूषित हो रहा है। तेज आवाज ने ध्वनि-प्रदूषण को बढ़ाया है। भूमि-प्रदुषण का खतरा भी बढ़ रहा है।

इन सभी प्रदूषणों का एक मुख्य कारण है-प्रकृति के साथ अनियमित छेड़छाड़। हमने अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए प्राकृतिक संतुलन को गड़बड़ा दिया है। वृक्षों को अंधाधुंध ढंग से काटा जा रहा है। पर्वतों पर अब वृक्ष शेष नहीं रह गए हैं। इससे वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा घट गई है। जनसंख्या में अंधाधुंध वृद्धि ने भी प्रदूषण को बढ़ावा दिया है। हमने नदियों में कूड़ा-कचरा डालकर जल-प्रदूषण को बढ़ावा दिया है।

अब यह प्रदूषण भयावह स्थिति तक जा पहुंचा है। इस पर नियंत्रण करना अति आवश्यक हो गया है। हमें अधिक से अधि क वृक्ष लगाने होंगे। वृक्षों को लगाने के साथ-साथ उनकी रक्षा करनी भी जरूरी है। कारखानों को ‘वाटर ट्रीटमेंट प्लांट’ लगाने होंगे तथा शोर मचाने वाले कारखानों को आबादी से दूर भेजना होगा। ‘वृक्ष लगाओ-प्रदूषण भगाओ’ का नारा सार्थक करके ! दिखाना होगा। हमें यह समझना होगा-प्रदूषण मुक्त हो वातावरण, दूर हटाओ कृत्रिम आवरण।

16. पुस्तकालय

‘पुस्तकालय’ शब्द ‘पुस्तक + आलय’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है-पुस्तकों का घर। हमारे विद्यालय में भी एक पुस्तकालय है। पुस्तकालयों का महत्त्व प्राचीन काल से चला आ रहा है। हमारे यहाँ नालंदा एवं तक्षशिला में विशाल पुस्तकालय थे।

हमारा पुस्तकालय एक बहुत बड़े कमरे में है। इस कमरे में लगभग 20 अलमारियाँ हैं। इन अलमारियों में विभिन्न विषयों की पुस्तकों को बहुत ही सहेजकर रखा गया है। हमारे पुस्तकालय के अध्यक्ष ने इन पुस्तकों को विभिन्न शीर्षकों में बांटकर सूचीबद्ध कर रखा है, ताकि हमें अपनी इच्छानुसार पुस्तकें ढूंढने में सुविधा रहे।

हमारे पास पुस्तकालय की सदस्यता के दो कार्ड हैं, जिन पर हमें दो सप्ताह के लिए पुस्तकें मिल जाती हैं। हमारे पुस्तकालय में लगभग 5000 पुस्तकं हैं। इनमें अनेक पुस्तकें बहुत कीमती हैं जिन्हें हमारे लिए खरीदना संभव नहीं है। इन्हें हम पुस्तकालय से लेकर ही पढ़ते हैं।

पुस्तकालय के अपने नियम होते हैं, जिनका पालन करना हमारे हित में है। हम पुस्तकालय में शांतिपूर्ण वातावरण बनाए रखते हैं, ताकि अध्ययन करने वाले को किसी भी प्रकार की असुविधा न हो।

हमारे पुस्तकालयों में पुस्तकों के अतिरिक्त अनेक समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएँ भी आती हैं। इनको पढ़कर जहाँ हमारे ज्ञान में वृद्धि होती है, वहीं हमारा पर्याप्त मनोरंजन भी होता है। अनेक पत्रिकाएँ ज्ञानवर्धक लेखों के साथ-साथ रोचक सामग्री भी प्रस्तुत करती हैं। इस प्रकार हमारा पुस्तकालय बहुपयोगी बन गया है।

पुस्तकालय का सदुपयोग करना चाहिए। पुस्तकालय के नियमों का पालन करना हमारा कर्तव्य है। हमारे प्रत्येक व्यवहार में अनुशासन होना चाहिए। हमें अन्य पाठकों की सुविधा का भी ध्यान रखना चाहिए। पुस्तकालय में शांति बनाए रखना नितांत आवश्यक है। पुस्तकालय निर्धन वर्ग के छात्रों के लिए तो वरदान स्वरूप हैं, इसके साथ-साथ शोध कार्य में लगे विद्यार्थियों के लिए पुस्तकालय का बहुत महत्त्व है।

पुस्तकालय स्थापना का कार्य केवल सरकार का ही नहीं मानना चाहिए। समाज के विभिन्न वर्गों को भी इस कार्य में पर्याप्त रुचि लेनी चाहिए। उन्हें अपने-अपने क्षेत्रों में पुस्तकालय स्थापित करने चाहिए। इससे जहाँ पाठकों को लाभ पहुँचता है, वहीं लेखकों का भी उत्साहवर्धन होता है। यह एक पावन कार्य है। इससे समाज प्रबुद्ध बनता है।

पुस्तकालयाध्यक्ष पुस्तकालय का प्राण होता है। उसमें पाठकों की रुचि जानने की क्षमता होनी चाहिए। पुस्तकालय में पुस्तकों के शीर्षक लेखक का नाम, क्रम संख्या आदि में वर्गीकृत करके रखना चाहिए। नई पुस्तकों का परिचय पाठकों को उपलब्ध कराना चाहिए। अधिक-से-अधिक पुस्तकें पाठकों को जारी की जानी चाहिए। काम से बचने की प्रवृत्ति नहीं होनी चाहिए।

विद्यालय में पुस्तकालय का विशेष महत्त्व है। पुस्तकालय के बिना विद्यालय की वह स्थिति होती है जो औषधियों के बिना चिकित्सालय की। पुस्तकालय ज्ञान-पिपासा शांत करने का केंद्र है। हमें इसका पूरा उपयोग करना चाहिए।

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17. कंप्यूटर : आज की जरूरत
अथवा
कंप्यूटर : विज्ञान का अद्भुत वरदान

इक्कीसवीं सदी कंप्यूटर की है। इसका विकास बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में हो गया था. लेकिन इसके प्रयोग की नई-नई दिशाएँ इक्कीसवीं सदी में खुलती जा रही हैं। वर्तमान युग को कंप्यूटर युग’ कहें तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। कंप्यूटर विज्ञान का अत्यधिक विकसित बुद्धिमान यंत्र है। इसके पास ऐसा मशीनी मस्तिष्क है जो लाखों, करोड़ों गणनाएँ पलक झपकते ही कर देता है।

पहले इन गणनाओं को करने के लिए सैकड़ों-हजारों मुनीम, लेखपाल दिन-रात परिश्रम करत रहते थे, फिर भी गलतियाँ हो जाती थीं। अब यह यंत्र सेकेंड में बटन दबाते ही निर्दोष गणना प्रस्तुत कर देता है। बैंक का पूरा खाता बटन दबाते ही परदे पर आ जाता है। दूसरा बटन दबाते ही खाते या बिल की प्रति टाइप होकर आपके हाथों में पहुँच जाती है।

कार्यालय का सारा रिकार्ड क्षण भर में सामने आ जाता है। अब न रजिस्टर ढूँढने की आवश्यकता रह गई है और न पन्ना खोलकर एंट्री करने की। सारा काम साफ-सुथरे अक्षरों में मिनटों में हो जाता है। आप रेलवे बुकिंग केन्द्र पर जाएँ। पहले वहाँ लंबी-लंबी लाइनें लगती थीं। सुबह से शाम हो जाती थी सीट आरक्षित कराने में।

अब कंप्यूटर की कृपा से यह काम मिनटों में हो जाता है। आप कंप्यूटर की सहायता से देश को किसी भी कंप्यूटर खिड़की से कहीं का भी टिकट खरीद सकते हैं तथा अग्निम सीट आरक्षित करा सकते हैं। इंटरनेट की सहायता से पूरे रेलवे केंद्र आपस में जुड़ गए हैं। इसी प्रकार हवाई जहाज की सीटें बुक कराई जा सकती मुद्रण के क्षेत्र में कंप्यूटर की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण हो गई है।

पहले एक-एक अक्षर को जोड़कर सारी सामग्री कंपोज़ की जाती थी। गलती होने पर साँचा खोलना पड़ता था। अब इस सारे झंझट से मुक्ति कंप्यूटर ने दिला दी है। अब तो एक बटन दबाते ही अक्षरों को मनचाहे आकार एवं रूप में ढाला जा सकता है। कभी भी मोटाई घटाई-बढ़ाई जा सकती है। अब चित्र भी कंप्यूटर की सहायता से बनाए जा सकते हैं।

अब पुस्तक प्रकाशन इतना कलात्मक एवं विविधतापूर्ण हो गया है कि पुरानी मशीनें तो अब बाबा आदम के जमाने की लगती हैं। कंप्यूटर द्वारा प्रकाशित पुस्तके आकर्षक होती हैं।

संचार के क्षेत्र में कंप्यूटर ने क्रांति ही उपस्थित कर दी है। फैक्स, पेजिंग, मोबाइल के बाद इंटरनेट, चैट, सर्किंग आदि ने मानो सारे संसार को आपके कमरे में कैद कर दिया हो। सूचना तकनीक का विकास दिन-प्रतिदिन नए रूप में हो रहा है। ‘ई-मेल’ सेवा भी बहुत उपयोगी सिद्ध हो रही है। आप अपने कंप्यूटर पर विश्व भर की किसी संस्था अथवा उत्पाद की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। आप विश्व के किसी भी कोने के समाचार-पत्र और पुस्तक पढ़ सकते हैं। अपनी लिखित सामग्री कहीं भी भेजी जा सकती है।

रक्षा के उन्नत उपकरणों में कंप्यूटर प्रणाली अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुई। भारत ने कंप्यूटर की सहायता से ही अपनी परमाणु क्षमता का विकास किया है। कंप्यूटर की सहायता से हजारों कि.मी. दूर शत्रु पर वार किया जा सकता है। संवेदनशील राडार हो अथवा कृत्रिम उपग्रह सभी में कंप्यूटर प्रणाली की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। कंप्यूटर ने घरेलू उपकरणों में स्वचालित प्रणाली विकसित कर दी है।

स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी कंप्यूटर की सेवाएं बहुत उपयोगी हैं। इसकी सहायता से बीमारी की जाँच और रोगी का रिकॉर्ड रखने में सहायता मिलती है। आप अपने रोग के बारे में विदेशी डॉक्टर से परामर्श ले सकते हैं। यह सब काम कंप्यूटर कर देता है। कंप्यूटर मनोरंजन के क्षेत्र में भी बच्चों को लुभा रहा है। इस पर तरह-तरह के खेल खेले जा सकते हैं।

निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि कंप्यूटर वर्तमान युग की आवश्यकता बन गया है। सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में भारत ने बहुत प्रगति की है। कंप्यूटर धन एवं समय की बचत कराने में बेजोड़ है।

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