HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 9 राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार

Haryana State Board HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 9 राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Important Questions Chapter 9 राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न के अन्तर्गत कुछेक वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। ठीक उत्तर का चयन कीजिए-

1. मुग़ल शब्द की उत्पत्ति हुई है
(A) मंगोल से
(B) मोगोल से
(C) मोगिल से
(D) मोगोर से
उत्तर:
(A) मंगोल से

2. मुगलों की मातृभाषा क्या थी?
(A) तुर्की
(B) अरबी
(C) फारसी
(D) उर्दू
उत्तर:
(C) फारसी

3. बाबर ने भारत पर आक्रमण किया
(A) 1490 ई० में
(B) 1526 ई० में
(C) 1497 ई० में
(D) 1504 ई० में
उत्तर:
(B) 1526 ई० में

4. ‘तुक-ए-बाबरी’ का लेखक कौन है?
(A) बाबर
(B) जहाँगीर
(C) अबुल फज़्ल
(D) मामुरी
उत्तर:
(A) बाबर

5. बाबर का उत्तराधिकारी कौन था?
(A) हुमायूँ
(B) अकबर
(C) अस्करी
(D) हिन्दाल
उत्तर:
(A) हुमायूँ

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 9 राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार

6. अकबर की पहली सफलता थी
(A) पानीपत की पहली लड़ाई
(B) पानीपत की दूसरी लड़ाई
(C) पानीपत की तीसरी लड़ाई
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) पानीपत की दूसरी लड़ाई

7. राजकुमार सलीम ने शासक बनने के बाद अपना नाम रखा
(A) अकबर
(B) जहाँगीर
(C) शाहजहाँ
(D) आलमगीर
उत्तर:
(B) जहाँगीर

8. जहाँगीर ने न्याय की जंजीर किस किले में लगवाई ?
(A) आगरा
(B) दिल्ली
(C) लाहौर
(D) अजमेर
उत्तर:
(A) आगरा

9. किस मुगल शासक को अपने अन्तिम दिनों में अपने पुत्र की कैद में रहना पड़ा?
(A) जहाँगीर को
(B) औरंगजेब को
(C) बहादुरशाह द्वितीय को
(D) शाहजहाँ को
उत्तर:
(D) शाहजहाँ को

10. किस मुगल शासक ने अपने पिता के रहते हुए उत्तराधिकार के युद्ध में सफलता पाई ?
(A) जहाँगीर ने
(B) शाहजहाँ ने
(C) औरंगजेब ने
(D) फरुखसियर ने
उत्तर:
(C) औरंगजेब ने

11. उत्तर मुगलकाल में सैयद बन्धुओं को लोग किस नाम से पुकारते थे ?
(A) वफादार सेवक
(B) राजा बनाने वाले
(C) मित्र मण्डली
(D) देशद्रोही
उत्तर:
(B) राजा बनाने वाले

12. इतिवृत्त किस अंग्रेजी शब्द का हिन्दी अनुवाद है ?
(A) डाक्यूमेन्ट्स
(B) क्रॉनिकल्स
(C) ऑफिशियल लेटर
(D) फरमानज
उत्तर:
(B) क्रॉनिकल्स

13. निम्नलिखित में से कौन-सी लड़ाई बाबर ने नहीं लड़ी ?
(A) कन्वाह का युद्ध
(B) चन्देरी का युद्ध
(C) घाघरा का युद्ध
(D) पानीपत का दूसरा युद्ध
उत्तर:
(A) कन्वाह का युद्ध

14. बाबरनामा किस भाषा में लिखा गया है ?
(A) अरबी
(B) फारसी
(C) उर्दू
(D) तुर्की
उत्तर:
(D) तुर्की

15. मुगलकाल में निम्नलिखित पुस्तक का अनुवाद नहीं हुआ
(A) बाबरनामा
(B) महाभारत
(C) रामायण
(D) हुमायूँनामा
उत्तर:
(D) हुमायूँनामा

16. मुगलकाल में पांडुलिपियों का रचनास्थल कहलाता था
(A) शाही दरबार
(B) कारखाना
(C) दीवान-ए-आम
(D) किताबखाना
उत्तर:
(D) किताबखाना

17. किस मुगल शासक ने गैर-मुसलमानों पर दोबारा जजिया कर लगाया?
(A) हुमायूँ
(B) अकबर
(C) शाहजहाँ
(D) औरंगजेब
उत्तर:
(D) औरंगजेब

18. फतेहपुर सीकरी किस मुगल बादशाह की नई राजधानी थी?
(A) बाबर
(B) हुमायूँ
(C) शेरशाह सूरी
(D) अकबर
उत्तर:
(D) अकबर

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19. अकबर ने ‘जरीन कलम’ सोने की कलम का पुरस्कार किसे दिया ?
(A) अबुल फज़ल को
(B) बदायूँनी को
(C) मुहम्मद हुसैन को
(D) उपर्युक्त सभी को
उत्तर:
(C) मुहम्मद हुसैन को

20. इतिवृत्तों की चित्रकारी का उद्देश्य था
(A) पुस्तक की सुन्दरता
(B) शासक व राज्य की पहचान प्रदर्शन
(C) जनता को सन्देश देना।
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

21. इस्लाम की चित्रकारी के बारे में धारणा है
(A) इसका विकास होना चाहिए
(B) खुदा के सृजन के अधिकार को चुनौती है
(C) चित्रकारी करने वाला व्यक्ति अपराधी है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) खुदा के सृजन के अधिकार को चुनौती है

22. ईरान का वह दरबारी चित्रकार कौन था जिसको पूरे इस्लाम जगत से मान्यता मिली ? वह बाद में भारत आ गया।
(A) विहजाद
(B) अब्दुस समद
(C) मीर सैयद अली
(D) बसावन
उत्तर:
(A) विहजाद

23. अबुल फज़ल के बारे में सत्य है
(A) वह शेख मुबारक नागौरी का पुत्र था
(B) वह फैजी का भाई था
(C) वह अरबी, फारसी, यूनानी व तुर्की का ज्ञाता था
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

24. अबुल फज़ल की हत्या करवाई थी
(A) अकबर ने
(B) सलीम (जहाँगीर ने)
(C) मानसिंह ने
(D) फैजी ने
उत्तर:
(B) सलीम (जहाँगीर ने)

25. अब्दुल हमीद लाहौरी की प्रमुख रचना कौन-सी थी?
(A) अकबरनामा
(B) आइन-ए-अकबरी
(C) बादशाहनामा
(D) आलमगीरनामा
उत्तर:
(C) बादशाहनामा

26. मुगलकाल का कौन-सा इतिवृत्त अभी तक भी फारसी से अनुवादित नहीं हो पाया है ?
(A) अकबरनामा
(B) जहाँगीरनामा
(C) बादशाहनामा
(D) आलमगीरनामा
उत्तर:
(C) बादशाहनामा

27. “हुमायूँनामा” का लेखक कौन था?
(A) अबुल फजल
(B) अब्दुल हमीद
(C) गुलबदन बेगम
(D) नूरजहाँ
उत्तर:
(C) गुलबदन बेगम

28. जज़िया किस मुगल शासक ने हटाया था?
(A) औरंगजेब ने
(B) अकबर ने
(C) शाहजहाँ ने
(D) बाबर ने
उत्तर:
(B) अकबर ने

29. हुमायूँ की पत्नी का नाम था
(A) सुल्तान जहाँ बेगम
(B) जहाँआरा
(C) गुलबदन बेगम
(D) नादिरा
उत्तर:
(D) नादिरा

30. गैर-इस्लामी जनता का विश्वास पाने के लिए अकबर ने कदम उठाया
(A) तीर्थयात्रा व जजिया कर की समाप्ति
(B) सम्मानपूर्वक वैवाहिक संबंध
(C) बलपूर्वक धर्म परिवर्तन की मनाही
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

31. अकबर ने इस स्थान को राजधानी के रूप में प्रयोग नहीं किया
(A) अजमेर
(B) आगरा
(C) दिल्ली
(D) फतेहपुर सीकरी
उत्तर:
(A) अजमेर

32. अकबर ने लाल किले का निर्माण करवाया
(A) दिल्ली में
(B) लाहौर में
(C) आगरा में
(D) इलाहाबाद मे
उत्तर:
(C) आगरा में

33. अकबर के पिता का नाम था
(A) बाबर
(B) हुमायूँ
(C) औरंगजेब
(D) जहाँगीर
उत्तर:
(B) हुमायूँ

34. अकबर ने फतेहपुर सीकरी में किस विश्व-प्रसिद्ध इमारत का निर्माण करवाया ?
(A) शेख सलीम चिश्ती की दरगाह
(B) बुलन्द दरवाजा
(C) बीरबल का महल
(D) तानसेन का भवन
उत्तर:
(B) बुलन्द दरवाजा

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35. शाहजहाँ ने दिल्ली में मुख्य रूप से बनवाया
(A) जामा मस्जिद
(B) लाल किला
(C) चाँदनी चौक
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

36. औरंगजेब की मृत्यु हुई
(A) दिल्ली में
(B) आगरा में
(C) औरंगाबाद में
(D) लाहौर में
उत्तर:
(C) औरंगाबाद में

37. मुगल दरबार के शिष्टाचार में शामिल था
(A) किसी व्यक्ति के खड़े होने की जगह
(B) अभिवादन का तरीका
(C) शासक से मिलने के लिए नजराना भेंट करना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

38. मुगलकाल में कौन-सी एकमात्र महिला झरोखा दर्शन देती थी ?
(A) गुलबदन बेगम
(B) नूरजहाँ
(C) मुमताज महल
(D) जहाँआरा
उत्तर:
(B) नूरजहाँ

39. मुगलकाल में सबसे खर्चीला दरबारी उत्सव था
(A) शब-ए-बारात
(B) नौरोज
(C) शासक का जन्म दिन
(D) ईद
उत्तर:
(C) शासक का जन्म दिन

40. सिंहासनों के निर्माण पर सबसे अधिक धन खर्च किसने किया ?
(A) बाबर ने
(B) अकबर ने
(C) जहाँगीर ने
(D) शाहजहाँ ने
उत्तर:
(D) शाहजहाँ ने

41. अकबर ने तीर्थयात्रा कर कब समाप्त किया?
(A) 1563 ई० में
(B) 1564 ई० में
(C) 1565 ई० में
(D) 1569 ई० में
उत्तर:
(A) 1563 ई० में

42. अकबर ने किस नए धर्म की स्थापना की ?
(A) दीन-ए-इलाही
(B) सूफी मत
(C) सुलह-ए-कुल
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) दीन-ए-इलाही

43. हरम में सबसे उच्च स्थान प्राप्त महिला को कहा जाता था
(A) अगहा
(B) अगाचा
(C) बेगम
(D) पादशाह बेगम
उत्तर:
(D) पादशाह बेगम

44. नूरजहाँ के अतिरिक्त कौन-सी महिला ऐसी थी जिसने राजनीति में खूब हस्तक्षेप किया?
(A) गुलबदन बेगम
(B) जहाँआरा
(C) मुमताज महल
(D) रोशनआरा
उत्तर:
(B) जहाँआरा

45. मुगलकालीन नौकरशाही में शामिल नहीं थे
(A) दरबारी
(B) मनसबदार
(C) जमींदार
(D) जागीरदार
उत्तर:
(C) जमींदार

46. मुगल शासक नौकरशाहों पर नियंत्रण रखते थे
(A) सख्त व्यवहार द्वारा
(B) स्थानांतरण से
(C) मृत्यु के बाद सम्पत्ति जब्त करके
(D) उपर्युक्त सभी से
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी से

47. किस मुगल शासक के काल में प्रांतों की संख्या सबसे अधिक थी ?
(A) अकबर
(B) जहाँगीर
(C) शाहजहाँ
(D) औरंगजेब
उत्तर:
(C) शाहजहाँ

48. ईरानी शासकों के लिए सामान्य रूप से शब्द प्रयोग किया जाता था
(A) सफावी
(B) तुरानी
(C) उजबेग
(D) मंगोलियन
उत्तर:
(A) सफावी

49. मुगलों व ईरानी शासकों के बीच टकराव का मुख्य कारण था
(A) काबुल पर कब्जा
(B) कन्धार पर कब्जा
(C) हैरात का शहर
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) कन्धार पर कब्जा

50. थल मार्ग से व्यापार के लिए किस समीपवर्ती राज्य की मुग़लों को आवश्यकता थी ?
(A) चीन
(B) बर्मा
(C) ऑटोमन
(D) ईरान
उत्तर:
(C) ऑटोमन

51. मुगलों के लिए ऑटोमन (तुर्की) साम्राज्य का धार्मिक महत्त्व था
(A) मक्का व मदीना के कारण
(B) धर्म युद्धों के कारण
(C) धर्म की स्वीकृति के लिए
(D) खलीफा के कारण
उत्तर:
(A) मक्का व मदीना के कारण

52. अकबर के काल में जेसुइट मिशन आया
(A) 1580-82 ई० में
(B) 1591 ई० में
(C) 1595 ई० में
(D) उपर्युक्त सभी में
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी में

53. जेसुइट का सबसे प्रमुख प्रतिनिधि मण्डल था
(A) एक्या वीणा का
(B) मान्सेरेट का
(C) राल्फ फिन्च का
(D) उपरोक्त सभी का
उत्तर:
(B) मान्सेरेट का

54. मुगलकाल में प्रधानमंत्री को क्या कहा जाता था ?
(A) खानखाना
(B) दीवान
(C) वकील
(D) सदर
उत्तर:
(C) वकील

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55. मुगलकाल में झरोखा दर्शन का अधिकार किसको था ?
(A) काज़ी को
(B) वज़ीर को
(C) सम्राट को
(D) उपर्युक्त सभी को
उत्तर:
(C) सम्राट को

56. मुगलकाल में शाही घरानों के घरेलू कार्यों का मंत्री था
(A) खान-ए-सामा
(B) मीर-ए-बहर
(C) मीरबख्शी
(D) नाज़िम
उत्तर:
(A) खान-ए-सामा

57. अकबर ने शासन प्रबन्ध में किस शासक का अनुकरण किया था ?
(A) बहलोल लोधी
(B) शेरशाह सूरी
(C) इब्राहिम लोधी
(D) सिकन्दर लोधी
उत्तर:
(B) शेरशाह सूरी

58. निम्नलिखित में से जहाँगीर के समय का नया मुगल प्रान्त था/थे
(A) उड़ीसा
(B) सिन्ध
(C) कश्मीर
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

59. ‘बादशाहनामा’ का लेखक कौन था ?
(A) गुलबदन बेगम
(B) अब्दुल हमीद लाहौरी
(C) अबुल फज़ल
(D) इब्न-बतूता
उत्तर:
(B) अब्दुल हमीद लाहौरी

60. मुगलकाल में परगने का मुखिया कौन होता था ?
(A) आमिल
(B) मीर-ए-सदर
(C) दीवान-ए-आला
(D) मीर-ए-बहर
उत्तर:
(A) आमिल

61. अन्तिम मुगल बादशाह कौन था?
(A) औरंगजेब
(B) बहादुरशाह
(C) अकबर द्वितीय
(D) बहादुरशाह जफर द्वितीय
उत्तर:
(D) बहादुरशाह जफ़र द्वितीय

62. बुलंद दरवाज़ा का निर्माण फतेहपुर सीकरी में किसने कराया?
(A) अकबर ने
(B) शाहजहाँ ने
(C) औरंगजेब ने
(D) बाबर ने
उत्तर:
(A) अकबर ने

63. अकबर ने सभी धर्मों का सार ग्रहण कर किस नए मत की नींव डाली ?
(A) सूफी मत की
(B) भक्ति मत की
(C) दीन-ए-इलाही मत की
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) दीन-ए-इलाही मत की

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना कब और किसने की?
उत्तर:
भारत में मुग़ल साम्राजय की स्थापना 1526 ई० में बाबर ने की थी।

प्रश्न 2.
मुग़ल शब्द की उत्पत्ति किस शब्द से हुई ?
उत्तर:
मुग़ल शब्द की उत्पत्ति मंगोल शब्द से हुई।

प्रश्न 3.
मुगल शासक स्वयं को क्या कहते थे ?
उत्तर:
मुगल शासक स्वयं को तैमूरी वंशज कहते थे।

प्रश्न 4.
बाबर का जन्म स्थान कौन-सा है ?
उत्तर:
फरगाना बाबर का जन्म स्थान है।

प्रश्न 5.
हुमायूँ को भारत से बाहर किसने निकाला ?
उत्तर:
हमा को भारत से बाहर शेरशाह सरी ने निकाला।

प्रश्न 6.
अकबर का जन्म कब और कहाँ हुआ ?
उत्तर:
अकबर का जन्म 1542 ई० में सिन्ध के पास अमरकोट नामक स्थान पर हुआ।

प्रश्न 7.
हुमायूँ की मृत्यु के समय अकबर कहाँ पर था ?
उत्तर:
हुमायूँ की मृत्यु के समय अकबर पंजाब के कलानौर नामक स्थान पर था।

प्रश्न 8.
अकबर ने तीर्थ यात्रा कर व जजिया कर कब हटाया ?
उत्तर:
अकबर ने तीर्थ यात्रा कर 1563 ई० तथा जजिया कर 1564 ई० में हटाया।

प्रश्न 9.
1611 ई० में शादी के बाद जहाँगीर ने मेहरुनिसा को क्या नाम दिया ?
उत्तर:
1611 ई० में शादी के बाद जहाँगीर ने मेहरुनिसा को ‘नूरजहाँ’ नाम दिया।

प्रश्न 10.
खुर्रम को शाहजहाँ की उपाधि किसने और क्यों दी ?
उत्तर:
खुर्रम को शाहजहाँ की उपाधि जहाँगीर ने मेवाड़-विजय के उपलक्ष्य में दी।

प्रश्न 11.
औरंगजेब का शासन काल कब-से-कब तक था ?
उत्तर:
औरंगज़ेब का शासन काल 1658 से 1707 ई० तक रहा।

प्रश्न 12.
उत्तर मुगलकाल का समय क्या था ?
उत्तर:
उत्तर मुगलकाल 1707 से 1857 ई० तक था।

प्रश्न 13.
नादिरशाह ने भारत पर कब आक्रमण किया तथा किसे पराजित किया ?
उत्तर:
नादिरशाह ने भारत पर 1739 ई० में आक्रमण कर मुहम्मदशाह को पराजित किया।

प्रश्न 14.
अन्तिम मुगल सम्राट की मृत्यु कब व कहाँ हुई ?
उत्तर:
अन्तिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर की मृत्यु 1862 ई० में रंगून. में हुई।

प्रश्न 15.
मुगलकाल में इतिवृत्त कहाँ रचे गए ?
उत्तर:
मुगलकाल में इतिवृत्त शाही दरबार के संरक्षण में ‘किताबखाना’ में रचे गए।

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प्रश्न 16.
हुमायूँनामा किसकी रचना है ?
उत्तर:
हुमायूँनामा गुलबदन बेगम की रचना है।

प्रश्न 17.
अकबरनामा का लेखक कौन था ?
उत्तर:
अबुल फज़्ल अकबरनामा का लेखक था।

प्रश्न 18.
शाहजहाँनामा किसकी रचना है ?
उत्तर:
शाहजहाँनामा अब्दुल हमीद लाहौरी की रचना है।

प्रश्न 19.
मुहम्मद काजिम की रचना का नाम लिखें।
उत्तर:
मुहम्मद काजिम की रचना ‘आलमगीरनामा’ है।

प्रश्न 20.
तुक-ए-जहाँगीरी या जहाँगीरनामा का लेखक कौन है ?
उत्तर:
जहाँगीरनामा का लेखक स्वयं जहाँगीर है।

प्रश्न 21.
मुगलकाल में दरबारी भाषा कौन-सी थी ?
उत्तर:
मुगलकाल में दरबार की भाषा फारसी थी।

प्रश्न 22.
महाभारत का फारसी भाषा में अनुवाद किस नाम से हुआ ?
उत्तर:
महाभारत का फारसी भाषा में अनुवाद ‘रज्मनामा’ के नाम से हुआ।

प्रश्न 23.
पाण्डुलिपियों का लेखन स्थल क्या कहलाता था ?
उत्तर:
पाण्डुलिपियों का लेखन स्थल ‘किताबखाना’ कहलाता था।

प्रश्न 24.
अकबर के समय में लेखन की सर्वाधिक पसंद की जाने वाली शैली का क्या नाम था ?
उत्तर:
अकबर के समय में लेखन की सर्वाधिक पसंद की जाने वाली शैली ‘नस्तलिक’ कहलाती थी।

प्रश्न 25.
अकबर ने मुहम्मद हुसैन को क्या खिताब दिया था ?
उत्तर:
अकबर ने मुहम्मद हुसैन को ‘जरीन कलम (सोने की कलम)’ का खिताब दिया।

प्रश्न 26.
ईरानी दरबार का सबसे अधिक चर्चित चित्रकार कौन था ?
उत्तर:
ईरानी दरबार का सबसे अधिक चर्चित चित्रकार विहजाद था।

प्रश्न 27.
अकबरनामा व बादशाहनामा में लगभग कितने चित्र हैं ?
उत्तर:
इन दोनों में से प्रत्येक में लगभग 150 से अधिक चित्र हैं।

प्रश्न 28.
अबुल फज्ल ने अकबरनामा कब लिखा ?
उत्तर:
अबुल फज़्ल ने अकबरनामा 1589 से 1602 के बीच लिखा।

प्रश्न 29.
मुगलकाल के इतिवृत्तों के अनुवाद का कार्य किस संस्थान द्वारा करवाया गया ?
उत्तर:
मुगलकाल के इतिवृत्तों के अनुवाद का कार्य एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल (1784) द्वारा करवाया गया।

प्रश्न 30.
अकबरनामा का सबसे अच्छा अंग्रेजी अनुवाद किसका माना जाता है ?
उत्तर:
अकबरनामा का सबसे अच्छा अंग्रेजी अनुवाद हेनरी बेवरिज का माना जाता है।

प्रश्न 31.
मुगल राज्य को दैवीय राज्य सर्वप्रथम किसने वर्णित किया ?
उत्तर:
मुग़ल राज्य को दैवीय राज्य सर्वप्रथम अबुल फज्ल ने वर्णित किया।

प्रश्न 32.
चित्रकारों ने मुग़लों के राज्य को दैवीय राज्य कैसे स्पष्ट किया ?
उत्तर:
चित्रकारों ने मुग़ल शासकों के चेहरे को विशेष प्रभामंडल में दिखाया जैसे देवताओं को दिखाते हैं।

प्रश्न 33.
अकबर ने अपनी सारी जनता को एक जैसा स्वीकार करते हुए कौन-सी नीति अपनाई ?
उत्तर:
अकबर ने सभी के साथ मतभेद न करते हुए ‘सुलह-ए-कुल’ की नीति अपनाई।

प्रश्न 34.
‘न्याय की जंजीर’ किस शासक ने लगवाई ?
उत्तर:
‘न्याय की जंजीर’ जहाँगीर ने लगवाई।

प्रश्न 35.
आगरा शहर की नींव कब व किसने रखी ?
उत्तर:
आगरा शहर की नींव सिकंदर लोधी ने 1504 ई० में रखी।

प्रश्न 36.
आगरा का लालकिला किसने बनवाया ?
उत्तर:
आगरा का लालकिला अकबर ने बनवाया।

प्रश्न 37.
फतेहपुर सीकरी मुग़लों की राजधानी कब रही ?
उत्तर:
फतेहपुर सीकरी मुग़लों की राजधानी 1570 ई० से 1585 ई० तक रही।

प्रश्न 38.
जहाँगीर की मनपसंद जगह कौन-सी थी ?
उत्तर:
जहाँगीर की मनपसंद जगह लाहौर थी।

प्रश्न 39.
शाहजहाँ की दिल्ली को क्या नाम दिया गया?
उत्तर:
शाहजहाँ की दिल्ली को शाहजहाँनाबाद का नाम दिया गया।

प्रश्न 40.
शाहजहाँ के काल में अभिवादन के कौन-से नए तरीके जुड़े ?
उत्तर:
शाहजहाँ के काल में अभिवादन के नए तरीके ‘तसलीम’ व ‘जमींबोस’ जुड़े।

प्रश्न 41.
मुगल शासकों द्वारा प्रातःकाल जनता को दर्शन देने की प्रथा क्या कहलाती थी ?
उत्तर:
मुगल शासकों द्वारा प्रातःकाल जनता को दर्शन देने की प्रथा ‘झरोखा’ कहलाती थी।

प्रश्न 42.
मुगलशाही दरबार में कौन-सा ईरानी त्योहार धूमधाम से मनाया जाता था ?
उत्तर:
मुगलशाही दरबार में ‘नौरोज’ नामक ईरानी त्योहार धूमधाम से मनाया जाता था।

प्रश्न 43.
मयूर सिंहासन को कौन लूटकर ले गया ?
उत्तर:
मयूर सिंहासन को नादिरशाह लूटकर ले गया।

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प्रश्न 44.
शाही परिवार के अतिरिक्त अन्य लोगों के लिए मुग़ल दरबार की सर्वोच्च पदवी कौन-सी थी ?
उत्तर:
शाही परिवार के अतिरिक्त मुग़ल दरबार की सर्वोच्च पदवी ‘आसफखां’ की थी।

प्रश्न 45.
मुगल शासकों से मिलने के लिए दी जाने वाली भेंट क्या कहलाती थी ?
उत्तर:
मुग़ल शासकों से मिलने के लिए दी जाने वाली भेंट ‘नज़राना’ कहलाती थी।

प्रश्न 46.
‘हरम’ का शाब्दिक अर्थ क्या है ?
उत्तर:
हरम का शाब्दिक अर्थ है ‘पवित्र स्थान’

प्रश्न 47.
मुगलकाल में राजनीति में महिलाओं की शुरुआत किससे हुई ?
उत्तर:
मुगलकाल में राजनीति में महिलाओं की शुरुआत नूरजहाँ से हुई।

प्रश्न 48.
किस राजपूत शासक ने मुगलों से वैवाहिक संबंधों की शुरुआत की ?
उत्तर:
आमेर के राजा बिहारी मल (भारमल) ने मुग़लों से वैवाहिक संबंधों की शुरुआत की।

प्रश्न 49.
मुगलकाल में दरबार की कार्रवाई को किस नाम से दर्ज किया जाता था ?
उत्तर:
मुगलकाल में दरबारी कार्रवाई ‘अखबारात-ए-दरबार-ए-मुअल्ला’ के नाम से दर्ज की जाती थी।

प्रश्न 50.
मुगलकाल में प्रांत को क्या कहते थे ? इसका मुखिया कौन होता था ?
उत्तर:
मुगलकाल में प्रांत को सूबा कहते थे। सूबे का मुखिया सूबेदार कहलाता था।

प्रश्न 51.
‘दीन-ए-इलाही’ की स्थापना कब की गई थी?
उत्तर:
‘दीन-ए-इलाही’ की स्थापना 1582 ई० में की गई थी।

प्रश्न 52.
मुगलों व ईरान के बीच झगड़े की जड़ कौन-सा शहर था ?
उत्तर:
मुगलों व ईरान के बीच झगड़े की जड़ कन्धार शहर था।

प्रश्न 53.
कन्धार मुगलों के हाथ से अन्तिम बार कब निकल गया ?
उत्तर:
कन्धार अन्तिम बार मुगलों के हाथ से 1649 ई० में निकल गया।

प्रश्न 54.
मुगलकाल में ‘मक्का व मदीना’ किस साम्राज्य का हिस्सा थे ?
उत्तर:
मुगलकाल में मक्का व मदीना तुर्की साम्राज्य ‘ऑटोमन साम्राज्य’ का हिस्सा थे।

प्रश्न 55.
अकबर के दरबार में पहला जेसुइट मिशन कब आया ?
उत्तर:
अकबर के दरबार में पहला जेसुइट मिशन 1580-82 ई० में आया।

प्रश्न 56.
अकबर ने अपने बेटे मुराद का शिक्षक किसे नियुक्त किया ?
उत्तर:
अकबर ने अपने बेटे मुराद का शिक्षक फादर मान्सेरेट को नियुक्त किया।

प्रश्न 57.
अकबर ने इबादतखाना की स्थापना कब व कहाँ की ?
उत्तर:
अकबर ने इबादतखाना की स्थापना 1575 ई० में फतेहपुर सीकरी में की।

प्रश्न 58.
मनसबदारों की भर्ती कौन करता था ?
उत्तर:
मनसबदारों की भर्ती स्वयं सम्राट करता था।

प्रश्न 59.
मनसबदार की भर्ती सम्बन्धी रिकॉर्ड को क्या कहा जाता था ?
उत्तर:
उसे हकीकत कहा जाता था।

प्रश्न 60.
मनसबदारों की कितनी श्रेणियाँ थीं ?
उत्तर:
अबुल फल के अनुसार मनसबदारों की 60 श्रेणियाँ थीं, परन्तु वास्तविक श्रेणियाँ 33-34 से ऊपर नहीं थीं।

प्रश्न 61.
अकबर के समय में भूमि को मापने के लिए किस उपकरण का प्रयोग किया जाता था ?
उत्तर:
अकबर के समय में भूमि को मापने के लिए 33 इंच का गज प्रयोग किया जाता था।

प्रश्न 62.
मनसबदारी प्रणाली किसने शुरू की थी ?
उत्तर:
मनसबदारी प्रणाली अकबर ने आरम्भ की थी।

प्रश्न 63. सबसे बड़ा मनसबदार पद कितने सैनिकों पर था ?
उत्तर:
सबसे बड़ा मनसबदार पद 10000 सैनिकों पर था।

प्रश्न 64.
किन सम्राटों की चित्रकला में रुचि थी ?
उत्तर:
अकबर तथा जहाँगीर की चित्रकला में रुचि थी।

प्रश्न 65.
बाबर ने हैरात में क्या देखा था ?
उत्तर:
बाबर ने हैरात में ईरानी चित्रकला के नमूने देखे थे।

प्रश्न 66.
हमजानामा को चित्रित करने का काम कब पूरा हुआ था ?
उत्तर:
हमजानामा को चित्रित करने का काम अकबर के समय में पूरा हुआ था।

प्रश्न 67.
अकबर के काल में भू-राजस्व व्यवस्था किसने नियन्त्रित की?
उत्तर:
अकबर के काल में भू-राजस्व व्यवस्था राजा टोडरमल ने नियन्त्रित की।

अति लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जहाँगीर कौन था?
उत्तर:
अकबर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र सलीम जहाँगीर के नाम से शासक बना । उसने अकबर की नीतियों को आगे बढ़ाया। उसने अपने जीवन का अधिकतर समय लाहौर में बिताया। 1611 ई० में उसने मेहरूनिसा (बाद में नूरजहाँ) से शादी की। नूरजहाँ शासन में इतनी शक्तिशाली हो गई कि उसने शासन व्यवस्था को अपने हाथ में ले लिया। विजयों की दृष्टि से जहाँगीर मेवाड़ व कांगड़ा जैसे क्षेत्रों को जीत पाया, जिनको प्राप्त करने में अकबर को सफलता नहीं मिली थी परन्तु 1622 ई० में वह कन्धार को खो बैठा। उसके काल में उसके बेटे खुर्रम ने विद्रोह कर दिया जिससे वह काफी कमजोर हुआ। 1627 ई० में लाहौर में उसकी मृत्यु हो गई। जहाँगीर अपनी न्याय की जंजीर के कारण काफी विख्यात हुआ जो उसने आगरे के किले में लगवाई थी जिसको कोई भी फरियादी खींचकर न्याय की माँग कर सकता था।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 9 राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार

प्रश्न 2.
शाहजहाँ कौन था?
उत्तर:
जहाँगीर के बाद उसका पुत्र खुर्रम, शाहजहाँ के नाम से गद्दी पर बैठा। खुर्रम ने अपने पूर्वजों की नीति का अनुसरण किया। अपनी पत्नी मुमताज महल की मृत्यु के बाद उसने ताजमहल का निर्माण प्रारंभ करवाया। दक्षिण के बारे में उसने बीजापुर, गोलकुण्डा व अहमदनगर के सन्दर्भ में सन्तुलित नीति अपनाई। ईरान के शासक से वह 1638 ई० में कैन्धार जीतने में सफल रहा। 1640-45 ई० तक उसने मध्य एशिया की विजय का अभियान चलाया जिसको वह जीत तो पाया परन्तु यह विजय अस्थायी रही। इसके बाद ईरानी शासक ने 1649 ई० में कन्धार पर फिर कब्जा कर लिया जिसको औरंगजेब के दो तथा दारा शिकोह के एक अभियान द्वारा जीता नहीं जा सका। उसके शासन काल की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना उसके पुत्रों में उत्तराधिकार का युद्ध था जो 1657-58 ई० में लड़ा गया। इसमें उसके तीन पुत्र दारा शिकोह, मुराद व शुजा मारे गए तथा औरंगजेब सफल रहा। उसने 1658 ई० में शाहजहाँ को गद्दी से हटाकर जेल में डाल दिया। इस तरह शाहजहाँ की मृत्यु 7 वर्ष जेल में रहने के बाद हुई।

प्रश्न 3.
मुगलों की हरम व्यवस्था के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
शाही परिवार के हरम में महिलाओं की प्रमुखता थी। इसमें सभी महिलाएँ बराबर की तथा एक-जैसी हैसियत वाली नहीं थीं। हरम में प्रमुख महिलाओं को मोटे तौर पर तीन नामों से जाना जाता था।

  • बेगम-शाही परिवार में सबसे ऊँचा स्थान बेगमों का था। बेगम प्रायः कुलीन परिवार से संबंधित होती थी।
  • अगहा-ये सामान्य कुलीन परिवारों से थीं। ये भी शादी की परंपरा के बाद ही हरम में आती थीं।
  • अगाचा-हरम में इनका दर्जा तीसरा था। इन्हें उपपत्नियों का दर्जा प्राप्त था। इन्हें इनके खर्चे के अनुरूप मासिक भत्ता व दर्जे के अनुरूप उपहार इत्यादि मिलते थे।

प्रश्न 4.
इतिवृत्त के उद्देश्य लिखें।
उत्तर:
मुगलकाल में रचे गए इतिवृत्त बहुत सोची-समझी नीति का उद्देश्य थे। विभिन्न इतिहासकारों व विद्वानों ने इस बारे में अपने-अपने मतों की अभिव्यक्ति की है जिनमें से ये पक्ष उभरकर सामने आते हैं

  • इतिवृत्तों के माध्यम से मुग़ल शासक अपनी प्रजा के सामने एक प्रबुद्ध राज्य की छवि बनाना चाहते थे।
  • इतिवृत्तों के वृत्तांत के माध्यम से शासक उन लोगों को संदेश देना चाहते थे जिन्होंने राज्य का विरोध किया था तथा भविष्य में भी कर सकते थे। उन्हें यह बताना चाहते थे कि यह राज्य बहुत शक्तिशाली है तथा उनका विद्रोह कभी सफल नहीं होगा।
  • इतिवृत्तों के माध्यम से शासक अपने राज्य के विवरणों को भावी पीढ़ियों तक पहुँचाना चाहते थे।

प्रश्न 5.
अकबरनामा की विषयवस्तु पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
अकबरनामा में राजनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन ऐतिहासिक दृष्टिकोण से किया गया है। लेखक ने किसी घटना का पूरा विवरण प्राप्त करने के लिए संबंधित पक्षों की जानकारी भी दी है। उसने अकबर के साम्राज्य के भौगोलिक, सामाजिक, प्रशासनिक व सांस्कृतिक पक्षों को स्पष्ट रूप से लिखा है। उसने अपने वर्णन में समय व तिथियों के अनुरूप परिवर्तन को अधिक महत्त्व नहीं दिया। उसने अकबर के साम्राज्य में रहने वाले मुस्लिमों, हिंदुओं, जैनों व बौद्धों की जीवन-शैली, परम्पराओं तथा आपसी तालमेल को काफी महत्त्व दिया है। उसने अकबर के साम्राज्य को मिश्रित संस्कृति के केन्द्र के रूप में प्रस्तुत किया है।

अबुल फल का भाषा पर पूर्ण अधिकार था। उसे अपना साप्ताहिक लेखन दरबार में पढ़ना होता था। इसलिए उसने अलंकृत भाषा को महत्त्व दिया। इस भाषा में लय व कथन शैली विशेष रूप से उभरकर सामने आई है। क्षेत्र-विशेष का वर्णन करते हुए उसने उस क्षेत्र की स्थानीय भाषा के शब्दों का प्रयोग भी प्रचुर मात्रा में किया है। उसके इस प्रयास से भारतीय फारसी शैली का विकास हुआ।

लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सुलह-ए-कुल की नीति के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
अकबर ने सुलह-ए-कुल (Absolute peace) की नीति अर्थात् सभी के साथ सुलह (किसी से मतभेद नहीं) की नीति अपनाई। यह अकबर की सोची-समझी नीति थी। इसे बाद के शासकों ने भी इसे अपनाया। औरंगज़ेब ने इस नीति में बदलाव करने के प्रयास किए तो परिणाम घातक रहे। …

(i) नीति का अर्थ-मुगल कालीन इतिवृत्तों ने इस नीति को अलग-अलग ढंग से अभिव्यक्त किया है। हाँ, इतना सभी मानते हैं कि मुगल साम्राज्य में भिन्न-भिन्न जातियों व समुदायों के लोग रहते थे। शासक इस साम्राज्य में शान्ति व स्थायित्व का स्रोत था। इसलिए वह सभी नृजातीय समूहों व समुदायों से ऊपर था तथा वह इन सभी वर्गों के बीच मध्यस्थता करता था। क्योंकि न्याय व शान्ति का मार्ग तालमेल से निकलता था। अतः यह नीति मुगल शासकों व साम्राज्य के लिए आदर्श बनी। अबुल फज़्ल, सुलह-ए-कुल (पूर्ण शांति) के आदर्श को प्रबुद्ध शासन का आधार बताता है। उसके अनुसार सुलह-ए-कुल इस सिद्धांत पर आधारित था कि राज्य सत्ता को क्षति नहीं पहुंचे तथा प्रजा शांति से रहे।

(ii) नीति को व्यवहार में लाना-मुग़ल शासक विशेषकर अकबर ने धर्म व राजनीति दोनों के संबंधों को समझने का प्रयास किया। उसने इनकी सीमा व महत्त्व को समझा। इस समझ के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि पूरी तरह धर्म का त्याग संभव नहीं है लेकिन धर्म की कट्टरता को त्यागकर अवश्य चला जाए। उसने धर्म को राजनीति से भी थोड़ा दूर करने का प्रयास किया। इस कड़ी में उसने 1563 ई० में तीर्थ यात्रा कर तथा 1564 ई० में जजिया कर को समाप्त कर, यह सन्देश दिया कि गैर इस्लामी प्रजा से कोई भेद-भाव नहीं किया जाएगा। उसने युद्ध में पराजित सैनिकों को दास बनाने पर रोक लगाई तथा जबरदस्ती धर्म-परिवर्तन को गैर-कानूनी घोषित किया। अकबर ने अपने साम्राज्य में गौ -वध को देश द्रोह घोषित करते हुए उस पर रोक लगा दी।

अकबर ने इन फैसलों के माध्यम से धार्मिक पक्षपात को समाप्त करने की दिशा में कदम बढ़ाया तो साथ ही बहुसंख्यक वर्ग की भावनाओं का सम्मान भी किया। उसने राज्य के सभी अधिकारियों को सुलह-ए-कुल के नियमों के पालन करने के निर्देश दिए। इस तरह अकबर अपनी इस नीति के द्वारा राज्य में शांति व स्थायित्व का आधार बनाने में सफल रहा।

प्रश्न 2.
मनसबदारी प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
मुग़ल नौकरशाही में मनसबदारी प्रमुख थी। यह सैनिक व असैनिक दोनों के लिए थी। मनसब शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है-पद। इस शब्द की व्याख्या के अनुसार जो भी व्यक्ति मुगलों की सेवा में आता था तो उसे एक मनसब दिया जाता था। वह मनसब उसकी दरबार में पहचान, जिम्मेदारी व हैसियत तीनों बातों का अहसास कराता था। मनसब में जात व सवार दो शब्दों . का प्रयोग होता था। जात शब्द व्यक्ति के पद (status) को स्पष्ट करता था जबकि सवार उसके पास ऊँट, घोड़े, बैल इत्यादि सैनिक क्षमता का बोध कराता था। इससे यदि किसी व्यक्ति की 1000 की जात मनसब व 1000 की सवार मनसब है तो वह मनसबदार प्रथम श्रेणी में होता था, यदि जात की तुलना में सवार 500 या इसके आस-पास थे तो वह द्वितीय श्रेणी में आता था तथा यदि उसके सवार नाममात्र थे या थे ही नहीं वह तृतीय श्रेणी में आता था।

इसी श्रेणी के आधार पर उसका वेतन निर्धारित होता था जबकि इसी आधार पर उसे दरबार में जगह मिलती थी। यहाँ तक कि शासक के शिविर में भी उसी अनुरूप उसका तंबूकक्ष (Tent Room) बनता था। मनसबदारी व्यवस्था की खास बात यह थी कि मनसबदार चाहे 20 के रैंक का हो या 5,000 का वह सीधे शासक से जुड़ा होता था। वह किसी अन्य व्यक्ति के लिए जिम्मेदार नहीं होता था। मुगलकाल में सामान्य रूप से 1000 से बड़े पद के मनसबदार को उमरा (अमीर वर्ग का बहुवचन) कहा जाता था। मनसबदारों की नियुक्ति, पदोन्नति व पद मुक्ति की शक्तियाँ स्वयं शासक के पास होती थीं।

प्रश्न 3.
अकबर के धर्म संबंधी विचारों का वर्णन करें।
उत्तर:
अकबर ने धर्म संबंधी उदारता की धारणा शासन के प्रारंभिक दिनों में ही अपना ली थी। इसके व्यवहार और उदार विचारों से ईसाई पादरियों को तो यहाँ तक लगा कि शासक ने इस्लाम त्याग दिया है तथा वह ईसाई धर्म का सदस्य बन गया है। वास्तव में उनकी यह समझ तत्कालीन यूरोप की धार्मिक असहिष्णुता की नीति को स्पष्ट करती है क्योंकि इस काल में वहाँ धर्म संबंधी तालमेल का अभाव था।

अकबर ने इस तरह का व्यवहार केवल जेसुइट (ईसाई प्रचारकों) के प्रति नहीं किया बल्कि हिंदू, जैन, फारसी, बौद्ध धर्म में विश्वास. करने वाले सभी धर्मों के साथ किया। वह सभी के साथ तालमेल अपनी सुलह-ए-कुल की नीति के तहत करना चाहता रस्कार नहीं बल्कि सभी का एक-दूसरे के साथ मिलकर चलने का भाव था। अकबर की समझ यहाँ हमें और स्पष्ट होती है कि उसने फतेहपुर सीकरी में स्थापित इबादत खाना में मुसलमानों, हिंदुओं, जैन, फारसियों व ईसाइयों सभी की बातें सुनीं। उनके वाद-विवाद व विचार अभिव्यक्ति पर अपने तर्क दिए। इस विचार-विमर्श से उसे सभी धर्मों की अच्छी बातें जानने का मौका मिला। इस्लाम के कुछ लोगों की कट्टरपंथी सोच भी वह समझ पाया।

(i) सूर्य व अग्नि का उपासक (Devotee of Fire and the Sun)-विभिन्न धर्मों के बारे में अपनी समझ विकसित हो के बाद अकबर सूर्य पर केंद्रित स्व-कल्पित दैवीय उपासना के सिद्धांत की ओर बढ़ा जिसे अबुल फज्ल ने अकबरनामा में दैवीय सिद्धांत के साथ जोड़ दिया। अकबर इस सिद्धांत के माध्यम से विभिन्न धर्म व दर्शन के ग्राही (स्वीकारने) वाले रूप की ओर बढ़ा। इस दैवीय सिद्धांत के पीछे प्रेरक शक्ति यह थी कि इस नीति से शत्रुओं पर आसानी से नियंत्रण पाया जा सकता है। वास्तव में यह सिद्धांत शासक को सबका शासक बनाता है, न कि किसी वर्ग विशेष का।

(ii) दीन-ए-इलाही (Din-I-Ilahi)-अकबर उदारवादी रास्तों पर चलकर इस रास्ते पर पहुँचा कि सभी धर्मों की अच्छी बातों को मिलाकर एक धर्म बनाया जा सकता है जो सभी को स्वीकार हो सकता है। अपने अनुभव के आधार पर उसने 1582 ई० में ‘दीन-ए-इलाही’ (‘तोहिद-ए-इहाली’) की स्थापना की जिसमें सभी धर्मों की अच्छी बातें थीं। अकबर ने इसे अपनाने पर भी किसी को बाध्य नहीं दिया। इसलिए इस नए मत को मानने वालों की संख्या सैकड़ों में रही। इसकी भी अकबर ने परवाह नहीं की।

कुल मिलाकर स्पष्ट है कि अकबर ने औपचारिक धर्म को महत्त्व न देकर साम्राज्य की जरूरत के रूप में धर्म को देखा। इसने अकबर की छवि तो उच्च बनाई साथ ही अन्य लोगों को भी मार्ग दिया कि भारत में धर्म संबंधी कौन-सी नीति कारगर है।

दीर्घ-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मुगल वंश का परिचय देते हुए मुख्य मुग़ल शासकों के बारे में जानकारी दें।
उत्तर:
मुगल शब्द की उत्पत्ति मंगोल से हुई है। मंगोल से यह शब्द बदलकर मोगोल व मौगिल्ज बना तथा अन्ततः मुगल रूप में स्थापित हो गया। मुगल शासक स्वयं को तैमूरी कहते थे। मुगल तैमूरी इसलिए कहलाते थे क्योंकि वे पितृपक्ष से तैमूर के वंशज थे। बाबर (प्रथम मुगल शासक) मातृपक्ष से चंगेज का वंशज था लेकिन वह चंगेज के साथ अपना नाम जोड़ना उचित नहीं समझता था। वह चंगेज व अन्य मंगोलों को बर्बर (बद्द या यायावर) कहता था।

1. बाबर (Babur)-मुगल वंश के संस्थापक बाबर का जन्म 14 फरवरी, 1483 को मध्य-एशिया के फरगाना (वर्तमान में उजबेगिस्तान) में हुआ। 1494 ई० में बाबर अपने पिता उमर शेख मिर्जा की मृत्यु के बाद फरगाना का शासक बना। आपसी पारिवारिक लड़ाई के कारण उसने 1497 ई० में यह राज्य खो दिया तथा इधर-उधर ठोकरें खाने के लिए मजबूर हो गया। उसने 1504 ई० में काबुल तथा 1507 ई० में कन्धार को जीता। बाबर ने 1519 से 1526 ई० तक उसने भारत पर पाँच आक्रमण किए तथा वह सभी में सफल रहा। 1526 ई० में उसने पानीपत के मैदान में दिल्ली सल्तनत के अन्तिम सुल्तान इब्राहिम लोधी को हराकर मुगल वंश की नींव रखी। उसने 1527 ई० में खानवा, 1528 ई० में चन्देरी तथा 1529 ई० में घाघरा की लड़ाइयाँ जीतकर अपने राज्य को सुदृढ़ आधार दिया। 1530 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।

2. हुमायूँ (Humayun)-बाबर की मृत्यु के बाद हुमायूँ शासक बना। उसे गुजरात के शासक बहादुर शाह तथा बिहार क्षेत्र के मुखिया शेरशाह से निरन्तर युद्ध करने पड़े। शेरशाह ने उसे 1540 ई० में बेलग्राम (कन्नौज) के युद्ध में पराजित कर दिया तथा उसे भारत से निर्वासित होना पड़ा। उसने निर्वासन का कुछ समय काबुल, सिन्ध व अमरकोट में बिताया तथा अन्त में ईरान के शासक तहमास्म के पास शरण ली। ईरान के शासक की मदद से उसने काबुल, कन्धार व मध्य एशिया के क्षेत्रों को जीता। उसने 1555 ई० में शेरशाह के कमजोर उत्तराधिकारियों को हराकर एक बार फिर दिल्ली व आगरा पर अधिकार कर लिया। 1556 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।
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3. अकबर (Akbar)-हुमायूँ की मृत्यु के समय उसका पुत्र अकबर पंजाब के कलानौर में था। उसे वहीं पर शासक घोषित कर दिया गया। इस बीच रेवाड़ी के हेमू ने दिल्ली में अव्यवस्था का लाभ उठाकर कब्जा कर लिया। इस तरह अकबर व हेमू के बीच 1556 ई० में पानीपत के मैदान में दूसरा युद्ध हुआ तथा अकबर को विजय मिली। अकबर ने अपनी प्रारंभिक सफलताएँ अपने शिक्षक व संरक्षक बैहराम खाँ के नेतृत्व में पाईं। तत्पश्चात् उसने प्रत्येक क्षेत्र में साम्राज्य का विस्तार किया। उसने आन्तरिक दृष्टि से अपने राज्य का विस्तार कर इसे विशाल, सुदृढ़ तथा समृद्ध बनाया। उसने राजपूतों व स्थानीय प्रमुखों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किए। उसने 1563 ई० में तीर्थ यात्रा कर तथा 1564 ई० में जजिया कर हटाकर गैर-इस्लामी जनता को यह एहसास करवाने का प्रयास किया कि वह उनका भी शासक है। वह अपने राजनीतिक, प्रशासनिक व उदारवादी व्यवहार के कारण मुगल शासकों में महानतम स्थान प्राप्त करने में सफल रहा। 1605 ई० में उसकी मृत्यु के समय उसका साम्राज्य राजनीतिक दृष्टि से विशाल व शान्त, अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टि से बहुत शक्तिशाली तथा आर्थिक दृष्टि से समृद्ध था।

4. जहाँगीर (Jahangir)-अकबर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र सलीम जहाँगीर के नाम से शासक बना। 1611 ई० में उसने मेहरूनिसा (बाद में नूरजहाँ) से शादी की। नूरजहाँ शासन में इतनी शक्तिशाली हो गई कि उसने शासन-व्यवस्था को अपने हाथ में ले लिया। 1627 ई० में लाहौर में उसकी मृत्यु हो गई। जहाँगीर अपनी न्याय की जंजीर के कारण काफी विख्यात हुआ जो उसने आगरे के किले में लगवाई थी।

5. शाहजहाँ (Shahajahan)-जहाँगीर के बाद उसका पुत्र खुर्रम, शाहजहाँ के नाम से गद्दी पर बैठा। अपनी पत्नी मुमताज महल की मृत्यु के बाद उसने ताजमहल का निर्माण प्रारंभ करवाया। ईरान के शासक से वह 1638 ई० में कन्धार जीतने में सफल रहा। ईरानी शासक ने 1649 ई० में कन्धार पर फिर कब्जा कर लिया। उसके शासन काल की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना उसके पुत्रों में उत्तराधिकार का युद्ध था जो 1657-58 ई० में लड़ा गया। इसमें उसके तीन पुत्र दारा शिकोह, मुराद व शुजा मारे गए तथा औरंगजेब सफल रहा। उसने 1658 ई० में शाहजहाँ को गद्दी से हटाकर जेल में डाल दिया। इस तरह शाहजहाँ की मृत्यु 7 वर्ष जेल में रहने के बाद हुई।

6. औरंगजेब (Aurangzeb)-1658 ई० में अपने भाइयों को हराकर व पिता को बन्दी बनाकर औरंगजेब सत्ता प्राप्त करने में सफल रहा। वह व्यक्तिगत जीवन में सादगी को पसन्द करता था, लेकिन धार्मिक दृष्टि से संकीर्ण था। उसकी संकीर्णता के चलते हुए गैर-मुस्लिम प्रजा तथा मुस्लिमों में शिया उसके विरोधी हो गए। उसे जाटों, सतनामियों, राजपूतों, सिक्खों व मराठों के विद्रोहों का सामना करना पड़ा।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 9 राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार

प्रश्न 2.
इतिवृत्त क्या हैं? ये क्यों लिखे गए? मुगलकाल के प्रमुख इतिवृत्त कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
मुग़ल शासकों के दरबार में स्वयं शासकों या दरबारियों द्वारा जिन पुस्तकों की रचना की गई उन्हें इतिवृत्त कहा जाता है। इतिवृत्त (क्रॉनिकल्स) मुगलकालीन इतिहास की जानकारी का बहुत महत्त्वपूर्ण स्रोत है। सभी मुग़ल शासकों ने इतिवृत्तों के लेखन की ओर विशेष ध्यान दिया जिसके कारण हमें घटनाओं व शासन संबंधी विभिन्न पक्षों की व्यवस्थित

1. रचना के उद्देश्य (Purpose of the Writings)-मुगलकाल में रचे गए इतिवृत्त बहुत सोची-समझी नीति का उद्देश्य थे। विभिन्न इतिहासकारों व विद्वानों ने इस बारे में अपने-अपने मतों की अभिव्यक्ति की है जिनमें से ये पक्ष उभरकर सामने आते हैं

  • इतिवृत्तों के माध्यम से मुगल शासक अपनी प्रजा के सामने एक प्रबुद्ध राज्य की छवि बनाना चाहते थे।
  • इतिवृत्तों के वृत्तांत के माध्यम से शासक उन लोगों को संदेश देना चाहते थे जिन्होंने राज्य का विरोध किया था तथा भविष्य में भी कर सकते थे। उन्हें यह बताना चाहते थे कि यह राज्य बहुत शक्तिशाली है तथा उनका विद्रोह कभी सफल नहीं होगा।
  • इतिवृत्तों के माध्यम से शासक अपने राज्य के विवरणों को भावी पीढ़ियों तक पहुँचाना चाहते थे।

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2. इतिवृत्तों की विषय-वस्तु (Subjects of Chronicles)-मुग़ल शासकों ने इतिवृत्त लेखन का कार्य दरबारियों को दिया। अधिकतर इतिवृत्त शासक की देख-रेख में लिखे जाते थे या उसे पढ़कर सुनाए जाते थे। कुछ शासकों ने आत्मकथा लेखन का कार्य स्वयं किया। इस माध्यम से ये शासक स्वयं को प्रबुद्ध वर्ग में स्थापित करना चाहते थे, साथ ही अन्य लेखकों का मार्गदर्शन भी करना चाहते थे। इन सभी पक्षों से यह स्पष्ट होता है कि इन इतिवृत्तों के केन्द्र में स्वयं शासक व उसका परिवार रहता था। इस कारण इतिवृत्तों की विषय-वस्तु शासक, शाही परिवार, दरबार, अभिजात वर्ग, युद्ध व प्रशासनिक संस्थाएँ रहीं। इन इतिवृत्तों की विषय-वस्तु शासकों के नाम अथवा उनके द्वारा धारण उपाधियों की पुष्टि भी करना था। इसलिए इनके नाम सीधे तौर पर इतिवृत्त शासकों के नाम से जुड़े थे।

मुगलकाल के प्रमुख इतिवृत्तों में हैं-बाबरनामा या तुक-ए-बाबरी लेखक बाबर, हुमायूँनामा लेखिका हुमायूँ की बहन गुलबदन बेगम, अकबरनामा-लेखक अबुल फज़्ल, तुज्क-ए-जहाँगीरी लेखक जहाँगीर, शाहजहाँनामा लेखक मामुरी, बादशाहनामा (शाहजहाँ पर आधारित) लेखक-अब्दुल हमीद लाहौरी, आलमगीरनामा लेखक मुहम्मद काजिम इत्यादि हैं। विभिन्न इतिवृत्तों के नामों व लेखकों के नामों से यह स्पष्ट होता है कि मुग़ल शासक स्वयं के इतिहास-लेखन में पूरी रुचि लेते थे। इसके लिए वे इनके लेखकों को प्रत्येक तरह का संरक्षण भी देते थे तथा दरबार में उचित सम्मान भी। अधिकतर स्थितियों में इन इतिवृत्तों के लेखक शासक के अति नजदीकी मित्र होते थे।

प्रश्न 3.
मुगलों की मौलिक भाषा कौन-सी थी? उनके इतिवृत्त किस भाषा में मिलते हैं? इस काल में फारसी कैसे तथा किस-किस रूप में प्रचलन में आई?
उत्तर:
मुग़ल मूलतः मध्य एशिया से थे तथा इनकी मौलिक भाषा तुर्की थी। तुर्की भाषा में भी बाबर चगताई मूल का था, अतः उसकी भाषा ‘चगताई तुर्की’ थी। उसने अपनी आत्मकथा इसी भाषा में लिखी।

अकबर ने फारसी भाषा को दरबार की भाषा घोषित किया। उसने अपने दरबार में उन लोगों को स्थान व सम्मान दिया जो इस भाषा के ज्ञाता थे। शाही परिवार के सदस्यों को इस भाषा को सीखने का वातावरण दिया। फारसी को अपनाने के मुख्य कारण ईरान व मुगलों के संबंध कहे जा सकते हैं। हुमायूँ ने 15 वर्ष ईरान में निर्वासन में बिताए व उन लोगों के संपर्क में आया। उसने सत्ता मिलने के बाद उन्हें उनकी योग्यता के अनुरूप पद दिए। ईरानी दरबार इस काल में सांस्कृतिक विकास व बौद्धिकता का केन्द्र माना जाता था। अकबर उससे भी प्रभावित हुआ। अकबर की मिलनसार छवि के कारण भी ईरान से विद्वानों का एक दल मुगल दरबार में पद पाने के लिए आया। अकबर ने उन्हें समुचित स्थान दिया। इस तरह यह भाषा दरबार में अलग से अपनी पहचान बनाने में सफल रही। इसके बाद प्रशासन के प्रत्येक क्षेत्र में इसके ज्ञाता हो गए। इस तरह बहुत कम समय में लेखाकारों, प्रशासनिक अधिकारियों व अभिजात वर्ग के लोगों ने इसे सीख लिया।

(i) फारसी का भारतीयकरण-फारसी मुगल दरबार व प्रशासन तंत्र की भाषा तो बन गई, लेकिन इसका स्वरूप ईरान वाला नहीं था। मुगल साम्राज्य काफी विस्तृत था। इस साम्राज्य के अलग-अलग हिस्सों में राजस्थानी, मराठी, बंगाली व तमिल भाषाएँ बोली जाती थीं। इन क्षेत्रों में जंब फारसी गई तो स्थानीय विद्वानों ने अपने-अपने क्षेत्रों की शब्दावली व मुहावरों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया। फारसी पर सर्वाधिक प्रभाव हिंदवी (उत्तर भारत की जन सामान्य की भाषा) का पड़ा। इन दोनों भाषाओं के संपर्क के कारण एक नई भाषा ‘उर्दू अस्तित्व में आई। यह भाषा हिंदवी में बोली जाती थी तथा फारसी लिपि में लिखी जाती थी।

(ii) अनुवाद कार्य-मुग़लकाल में अकबर के शासन व उसके बाद मौलिक लेखन कार्य फारसी में हुआ। इसके साथ बहुत-सी पुस्तकों का अनुवाद भी फारसी में किया गया। प्रारंभ में बाबरनामा का तुर्की से अनुवाद किया गया। इसके बाद अकबर ने महाभारत व रामायण नामक संस्कृत ग्रन्थों के अनुवाद का आदेश दिया। महाभारत का अनुवाद ‘रज्मनामा’ (युद्धों की पुस्तक) के रूप में हुआ। यह पुस्तक फारसी के विद्वानों में बहुत लोकप्रिय हुई। अनुवादित रूप में यह पुस्तक ईरान व मध्य एशिया भी गई।

प्रश्न 4.
पांडुलिपियों में चित्रकारी की क्या भूमिका थी? जानकारी दें।
उत्तर:
मुग़ल शासकों ने जहाँ इतिवृत्त लिखने की दिशा में बहुत ध्यान दिया, वहीं उन्होंने इस बात का भी पूरा ध्यान रखा कि इतिवृत्त सामान्य-से-सामान्य व्यक्ति को समझ में आ सके। सामान्य रूप से पुस्तक या किसी रचना में किसी भाव या विषय की अभिव्यक्ति शब्दों से नहीं हो पाती, बल्कि दृश्य उसको स्पष्ट कर देते हैं। यह बात पांडुलिपियों पर भी लागू होती है। मुग़ल शासकों व पांडुलिपि के लेखकों को इस बात का ज्ञान था। इसलिए हमने किताबखाना में काम करने वाले व्यक्तियों में चित्रकार का वर्णन भी किया है।

जब कोई भी इतिवृत्त लेखक लेखन कार्य करता था एवं यह महसूस करता था कि उक्त स्थान पर दृश्य की आवश्यकता है तो वह उस पृष्ठ पर उतनी जगह खाली छोड़ देता था। यदि बड़े चित्र की आवश्यकता होती तो आस-पास के पृष्ठों को छोड़ दिया जाता था। फिर चित्रकार लेखक से बातचीत कर किसी अन्य कागज पर विषय संबंधी चित्र बनाता था। फिर उसे उस पृष्ठ पर चिपका दिया जाता था या फिर पांडुलिपि के साथ संलग्न कर दिया जाता था। .

1. चित्रकारी का उद्देश्य (Aims of Paintings)-इतिवृत्त पर चित्रकारी मात्र भावों की अभिव्यक्ति नहीं थी बल्कि कई और पक्षों को भी स्पष्ट करती थी; जैसे

• चित्रकारी पांडुलिपि के सौन्दर्य का अभिन्न अंग थी। किसी भी पांडुलिपि को उस समय तक पढ़ने के योग्य नहीं माना जाता था जब तक वह चित्रित न हो।

• राजा व राज्य की शक्ति के बारे में जो बात शब्दों में न कही जा सके उसे चित्र के माध्यम से दिखाया जाता था। उदाहरण के लिए शाही दरबार की अधिकतर चित्रकारी में शासक के साथ शेर व गाय अथवा शेर व बकरी के चित्र मिलते हैं। इसका अर्थ साफ है कि शासक शक्तिशाली व निर्बल सभी को संरक्षण देता था।

• जनता तक विभिन्न संदेश भेजने के लिए भी शासक इस कला का प्रयोग करते थे; जैसे कि उनके लिए साम्राज्य में रहने वाले सभी बराबर हैं। वे किसी भी तरह से उनमें अन्तर नहीं देखते।
अकबर के दरबारी लेखक अबुल फज्ल ने चित्रकारी को ‘जादुई कला’ कहा है। वह कहता है कि चित्रकारी निर्जीव को सजीव की भाँति प्रस्तुत करने की क्षमता रखती है।

2. पांडुलिपियों पर चित्रण (Paintings on Manuscripts)-मुग़ल शासकों ने पांडुलिपि चित्रण की ओर विशेष ध्यान दिया। अकबर के काल में चित्रित होने वाली मुख्य पांडुलिपियों में बाबरनामा, हुमायूनामा, अकबरनामा, (महाभारत का अनुवाद), तारीख-ए-अल्फी व तैमूरनामा थीं। बाद के शासकों ने अपने इतिवृत्तों विशेषकर तज्क-ए-जहाँगीरी व शाहजहाँनामा को चित्रित करवाया। इसके साथ ही उन्होंने पहले लिखे गए इतिवृत्तों की और पांडुलिपियों को तैयार करवाकर उन्हें चित्रित करवाया। ये पांडुलिपियाँ सैकड़ों की संख्या में किताबखाना में रखी गई थीं। मुगल शासकों द्वारा जिस तरह से पांडुलिपियों को चित्रित करवाया, उसकी नकल यूरोप के शासकों ने भी की। इस काल में चित्रित पुस्तकों को उपहार में देना एक प्रकार की परंपरा बन गई थी।

प्रश्न 5.
इतिवृत्त अकबरनामा पर संक्षिप्त निबंध लिखें।।
उत्तर:
मुगल वंश की जानकारी देने वाले इतिवृत्तों की संख्या बहुत अधिक है। इनमें जो सर्वाधिक चर्चित तथा सूचनाओं से परिपूर्ण है, वह है अकबरनामा। यह इतिवृत्त बहुत विस्तृत है तथा इसमें 150 से अधिक चित्रों को चित्रित किया गया है। इन चित्रों में दरबार, विभिन्न युद्धों, मोर्चाबन्दी का विवरण, शिकार, विवाह तथा भवन निर्माण के दृश्य हैं।

अकबरनामा का लेखन अबुल फज़्ल द्वारा किया गया। वह शेख नागौरी का पुत्र तथा फैजी का भाई था। वह अरबी, फारसी, तुर्की व यूनानी का ज्ञाता था। वह उदारवादी चिन्तक तथा सूफीवादी विचारधारा से प्रभावित था। अकबर से उसकी भेंट उसके बड़े भाई फैजी ने करवाई तथा वह उन्नति करता हुआ फैजी से काफी आगे निकल गया। अकबर उसके तर्क तथा वाद-विवाद करने की योग्यता से बहुत प्रभावित हुआ। उसने अकबर की विचारधारा को उदारवादी बनाने में बहुत योगदान दिया। वह अकबर के अति नजदीकी मित्रों में से एक रहा।

(1) अकबरनामा का लेखन (Writing of Akbarnama) अकबर ने अबुल फज्ल को अकबरनामा को लिखने का आदेश 1589 ई० में दिया। उसने इसके लिखने में कुल 13 वर्ष का समय लगाया। इस काल में उसने कई बार इस पुस्तक के कई प्रारूप तैयार किए। अन्ततः इसे अन्तिम रूप दिया। इस पुस्तक में घटनाओं का क्रमानुसार विवरण है। लेखक ने इसे अधिक-से-अधिक मौलिक दस्तावेजों तथा जानकार व्यक्तियों के मौलिक प्रमाण लेकर लिखा है।

अकबरनामा तीन खण्डों में विभाजित है। इसके प्रथम दो भाग ऐतिहासिक घटनाओं की जानकारी देते हैं जबकि तीसरा भाग आइन-ए-अकबरी है। . अबुल फज्ल ने पहले खण्ड में पृथ्वी पर मानव की उत्पत्ति का आधार आदम को मानकर वहीं से लेखन प्रारंभ किया। उसने इस कड़ी में पैगम्बर मोहम्मद, भारत में दिल्ली सल्तनत का संक्षिप्त परिचय देते हुए अकबर के शासन काल के प्रारंभिक 30 वर्षों का वर्णन किया है। अकबरनामा के दूसरे खण्ड में अकबर के 30वें वर्ष से लेकर 46वें वर्ष तक के शासन का वर्णन है। इसके बाद वह अपना लेखन जारी रखना चाहता था लेकिन 1602 ई० में अकबर के पुत्र सलीम (बाद में जहाँगीर) ने विद्रोह कर दिया। इसी दौरान सलीम ने एक षड्यंत्र द्वारा वीर सिंह बुंदेला के हाथों अबुल फज्ल की हत्या करवा दी।

(i) अकबरनामा की विषय-वस्तु (Subject-Matter of Akbarnama)-अकबरनामा में राजनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन ऐतिहासिक दृष्टिकोण से किया गया है। लेखक ने किसी घटना का पूरा विवरण प्राप्त करने के लिए संबंधित पक्षों की जानकारी भी दी है। उसने अकबर के साम्राज्य के भौगोलिक, सामाजिक, प्रशासनिक व सांस्कृतिक पक्षों को स्पष्ट रूप से लिखा है। उसने अपने वर्णन में समय व तिथियों के अनुरूप परिवर्तन को अधिक महत्त्व नहीं दिया। उसने अकबर के साम्राज्य में रहने वाले मुस्लिमों, हिंदुओं, जैनों व बौद्धों की जीवन-शैली, परम्पराओं तथा आपसी तालमेल को काफी महत्त्व दिया है। उसने अकबर के साम्राज्य को मिश्रित संस्कृति के केन्द्र के रूप में प्रस्तुत किया है।

अबुल फज़्ल का भाषा पर पूर्ण अधिकार था। उसे अपना साप्ताहिक लेखन दरबार में पढ़ना होता था। इसलिए उसने अलंकृत भाषा को महत्त्व दिया। इस भाषा में लय व कथन शैली विशेष रूप से उभरकर सामने आई है। क्षेत्र-विशेष का वर्णन करते हुए उसने उस क्षेत्र की स्थानीय भाषा के शब्दों का प्रयोग भी प्रचुर मात्रा में किया है। उसके इस प्रयास से भारतीय फारसी शैली का विकास हुआ।

(ii) अकबरनामा का अनुवाद (Translation of Akbarmama)-अकबरनामा के अनुवाद का कार्य बंगाल सिविल सर्विसज़ के अधिकारी हेनरी बेवरिज (Henry Beveridge) ने अपने हाथ में लिया। उसने कड़ी मेहनत के बाद इस पुस्तक का अनुवाद किया।

प्रश्न 6.
मुगलों के राजत्व सिद्धांत के आदर्श क्या थे ? उनकी व्याख्या करें।
उत्तर:
मुगलों ने भारत पर लगभग दो शताब्दियों तक शासन किया। उन्होंने अपने शासन में कुछ सिद्धान्तों को महत्त्व दिया। ये सिद्धांत भारत की परंपरागत शासन-व्यवस्था से भी जुड़े तथा दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों से भी। इनके राजत्व के सिद्धांत में मध्य-एशियाई तत्त्व भी थे तो ईरान का प्रभाव भी साफ दिखाई देता है। मुग़ल इतिवृत्तों में मुग़ल राज्य को आदर्श राज्य वर्णित किया है जिसमें निम्नलिखित विशेषताएँ प्रस्तुत की गई हैं

1. मुग़ल राज्य : एक दैवीय राज्य (Mughal State :ADivine State)-मुगलकाल के सभी इतिवृत्त इस बात की जानकारी देते हैं कि मुगल शासक राजत्व के दैवीय सिद्धान्त में विश्वास करते थे। उनका विश्वास था कि उन्हें शासन करने की शक्ति स्वयं ईश्वर ने प्रदान की है। ईश्वर की इस तरह की कृपा सभी व्यक्तियों पर नहीं होती, बल्कि व्यक्ति-विशेष पर ही होती है।

मुगल शासकों के दैवीय राजत्व के सिद्धांत को सर्वाधिक महत्त्व अबुल फज़्ल ने दिया। वह इसे फर-ए-इज इज़ादी (ईश्वर से प्राप्त) बताता है। वह इस विचार के लिए प्रसिद्ध ईरानी सूफी शिहाबुद्दीन सहरावर्दी (1191 में मृत्यु) से प्रभावित था। उसने इस तरह के विचार ईरान के शासकों के लिए प्रस्तुत किए थे। भारत में अबुल फल के पिता शेख मुबारक नागौरी ने इसे समझा तथा अपने बेटे फज्ल व फैजी को बताया। अबुल फज्ल ने यह सिद्धांत अकबर के लिए प्रस्तुत किया। अबुल फज्ल का यह मत इतिवृत्तों में विचार बना तथा फिर चित्रकारों ने उन्हें चित्रित किया। चित्रकारों ने मुगल शासकों के चित्रों के चारों ओर प्रभा मण्डल बना दिया। यह प्रभा मण्डल सामान्य रूप से हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं की तस्वीरों में होता है जबकि यूरोप में ईसा व वर्जिन मेरी के चित्रों में देखने को मिलता है।

2. सुलह-ए-कुल की नीति (Policy of Sulh-i-Kul)-अकबर की सुलह-ए-कुल (Absolute peace) की नीति अर्थात् सभी के साथ सुलह (किसी से मतभेद नहीं) की थी।

(i) नीति का अर्थ-मुगलकालीन इतिवृत्तों ने इस नीति को अलग-अलग ढंग से अभिव्यक्त किया है। हाँ, इतना सभी मानते हैं कि मुग़ल साम्राज्य में भिन्न-भिन्न जातियों व समुदायों के लोग रहते थे। शासक इस साम्राज्य में शान्ति व स्थायित्व का स्रोत था। इसलिए वह सभी नृजातीय समूहों व समुदायों से ऊपर था तथा वह इन सभी वर्गों के बीच मध्यस्थता करता था। क्योंकि न्याय व शान्ति का मार्ग तालमेल से निकलता था, अतः यह नीति मुग़ल शासकों व साम्राज्य के लिए आदर्श बनी। अबुल फज़्ल, सुलह-ए-कुल (पूर्ण शांति) के आदर्श को प्रबुद्ध शासन का आधार बताता है। उसके अनुसार सुलह-ए-कुल इस सिद्धांत पर आधारित था कि राज्य सत्ता को क्षति नहीं पहुंचे तथा प्रजा शांति से रहे।

(ii) नीति को व्यवहार में लाना-मुगल शासक विशेषकर अकबर ने धर्म व राजनीति दोनों के संबंधों को समझने का प्रयास किया। उसने इनकी सीमा व महत्त्व को समझा। इस समझ के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि पूरी तरह धर्म का त्याग संभव नहीं है लेकिन धर्म की कट्टरता को त्यागकर अवश्य चला जाए। उसने धर्म को राजनीति से भी थोड़ा दूर करने का प्रयास किया। इस कड़ी में उसने 1563 ई० में तीर्थ यात्रा कर तथा 1564 ई० में जजिया कर को समाप्त कर, यह सन्देश दिया कि गैर-इस्लामी प्रजा से कोई भेद-भाव नहीं किया जाएगा। उसने युद्ध में पराजित सैनिकों को दास बनाने पर रोक लगाई तथा जबरदस्ती धर्म-परिवर्तन को गैर-कानूनी घोषित किया। अकबर ने अपने साम्राज्य में गौ-वध को देशद्रोह घोषित करते हुए उस पर रोक लगा दी।

अकबर ने इन फैसलों के माध्यम से धार्मिक पक्षपात को समाप्त करने की दिशा में कदम बढ़ाया तो साथ ही बहुसंख्यक वर्ग की भावनाओं का सम्मान भी किया। उसने राज्य के सभी अधिकारियों को सुलह-ए-कुल के नियमों के पालन करने के निर्देश दिए। इस तरह अकबर अपनी इस नीति के द्वारा राज्य में शांति व स्थायित्व का आधार बनाने में सफल रहा।

3. सामाजिक अनुबंध पर आधारित न्यायपूर्ण प्रभुसत्ता (Just Sovereignty Based on Social Contract)-मुगल शासकों ने न्याय को विशेष महत्त्व दिया। वे यह मानते थे कि न्याय व्यवस्था ही उनसे सही अर्थों में प्रजा के साथ संबंधों की व्याख्या है। अबुल फज़्ल ने अकबर के प्रभुसत्ता के सिद्धांत को स्पष्ट किया है। उसके अनुसार बादशाह अपनी प्रजा के चार तत्त्वों-जीवन (जन), धन (माल), सम्मान और विश्वास (दीन) की रक्षा करता है। इसके बदले में जनता से आशा करता है कि वह राजाज्ञा का पालन करे तथा अपनी आमदनी (संसाधनों) में से कुछ हिस्सा राज्य को दे। अबुल फज़्ल स्पष्ट करता है कि इस तरह का चिन्तन किसी न्यायपूर्ण संप्रभु का ही हो सकता है जिसे दैवीय मार्गदर्शन प्राप्त हो।

मगल शासकों ने सामाजिक अनबंध पर आधारित न्याय को अपनाया तथा जनता में प्रचारित भी किया। इसके लिए विभिन्न प्रकार के प्रतीकों को प्रयोग में लाया गया। इसमें सर्वाधिक कार्य चित्रकारों के माध्यम से करवाया गया। मुगल शासकों ने दरबार तथा सिंहासन के आस-पास विभिन्न स्थानों पर जो चित्रकारी करवाई उसमें वो शेर तथा बकरी या शेर तथा गाय साथ-साथ बैठे दिखाई देते हैं। उनकी चित्रकारी जनता को यह सन्देश देने का साधन था कि इस राज्य में सबल या दुर्बल दोनों परस्पर मिलकर रह सकते हैं। इनमें भी कुछ चित्रों में शासक को शेर पर सवार दिखाया गया है जो इस बात का संदेश है कि उसके साम्राज्य में उनसे शक्तिशाली कोई नहीं था। कुल मिलाकर यह स्पष्ट है कि मुगलों ने विभिन्न प्रतीकों के माध्यम से न्याय को प्रदर्शित करने का प्रयास किया तथा स्पष्ट किया कि इसका आधार सामाजिक अनुबंध है।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 9 राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार

प्रश्न 7.
मुग़लों की राजधानियाँ कौन-कौन सी थीं ? इन राजधानी नगरों का वर्णन करें।
उत्तर:
राजधानी नगर मुगलों की सभी गतिविधियों का केन्द्र थे। मुगलों के राजधानी नगर को राज्य का हृदय-स्थल कह दें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मुगलों का राजधानी नगर कभी एक नहीं रहा बल्कि समय व स्थिति के अनुरूप उसमें बदलाव आते रहे। मुगलों के आने से पूर्व भारत में दिल्ली सल्तनत थी। स्वाभाविक है कि दिल्ली ही इस काल में राजधानी रहा। 1504 ई० में सिकन्दर लोदी ने आगरा शहर की नींव रखी। इससे सत्ता का एक और केन्द्र बन गया तथा गतिविधियों का संचालन दोनों नगरों से होने लगा। बाबर ने पानीपत की पहली लड़ाई में विजय के बाद पहले दिल्ली पर फिर आगरा पर कब्जा किया।

(i) मुग़ल साम्राज्य का प्रारंभिक काल-बाबर ने अपनी राजधानी आगरा को रखा। वहाँ पर उसने अपनी आवश्यकता के अनुरूप कुछ भवन बनवाए तथा अधिकतर की मुरम्मत करवाई। उसकी मृत्यु के बाद हुमायूँ ने भी आगरा को ही राजधानी बनाया। जिस समय वह शेरशाह से पराजित हुआ तो उसने कुछ समय के लिए दिल्ली को राजधानी बनाया। वहाँ पर उसने ‘दीन-पनाह’ नामक भवन का निर्माण भी करवाया।

(ii) अकबर के काल में राजधानी-पानीपत के दूसरे युद्ध (1556) के बाद अकबर ने दिल्ली व आगरा पर नियंत्रण किया। 1556-60 ई० तक अकबर ने अपने संरक्षक बैहराम खाँ के नेतृत्व में शासन किया। उस समय राजधानी आगरा थी लेकिन शाही वंश के अधिकतर सदस्य दिल्ली में रहते थे।
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1560 ई० के बाद अकबर ने आगरा में लाल किले का निर्माण प्रारंभ करवाया। उसने इसे सुरक्षा की दृष्टि से मजबूत तथा आवश्यकता की दृष्टि से काफी विशाल बनवाया। उसने इसके लिए आस-पास के क्षेत्रों से लाल-बलुआ पत्थर मंगवाया तथा 1568 ई० तक इस किले का अधिकतर हिस्सा बनकर तैयार हो गया। जिस समय आगरा में किले का निर्माण हो रहा था, उस समय अकबर सूफी मत के प्रभाव में आ गया। इसी कड़ी में उसे आगरा के पास सीकरी नामक स्थान पर एक सूफी सन्त सलीम चिश्ती की जानकारी मिली। उसके बाद वह उसका अनुयायी बन गया। सलीम चिश्ती के प्रति अपनी श्रद्धा दिखाने के लिए अकबर ने 1570 ई० में सीकरी का नाम बदलकर फतेहपुर सीकरी किया तथा इस स्थल को राजधानी घोषित कर दिया। यह स्थान आगरा-अजमेर मार्ग पर था तथा लोगों की पसंदीदा जगह थी। इस तरह फतेहपुर सीकरी राजधानी व तीर्थ स्थल दोनों रूपों में उभरकर सामने आया।

(iii) जहाँगीर व शाहजहाँ के काल में राजधानियाँ-जहाँगीर का राज्यारोहण आगरा में हुआ था तो यही स्थल राजधानी था। 1611 ई० में नूरजहाँ के साथ विवाह के उपरांत वह लाहौर चला गया। उसने वहाँ रावी नदी के तट पर एक लाल किले का निर्माण करवाया। जहाँगीर की मनपसंद जगह लाहौर थी। अतः यह उसकी राजधानी भी रहा तथा उसने अधिकतर समय वहाँ गुजारा। जहाँगीर गर्मियों के दिनों में अपना समय श्रीनगर में बिताया करता था। इस हेतु उसने शालीमार व निशात बागों का निर्माण भी करवाया। इस तरह यह स्थल भी उसकी अस्थायी राजधानी रहे। ‘. जहाँगीर के बाद शाहजहाँ ने प्रारंभ में एक दशक तक अपनी राजधानी आगरा रखी। वहाँ ताजमहल का निर्माण करवाया। 1640 ई० में उसने अपना ध्यान दिल्ली की ओर दिया। उसने दिल्ली के प्राचीन आबादी क्षेत्र के पास नया शहर बसाया जिसे शाहजहानाबाद का नाम दिया। इस क्षेत्र में उसने लालकिला, जामा मस्जिद, चाँदनी-चौक बाजार का निर्माण करवाया। 1648 ई० में शाहजहाँ ने आगरा की बजाय यहाँ अधिक समय बिताना प्रारंभ कर दिया। शाहजहाँ का नया नगर विशाल व भव्य था।

(iv) औरंगजेब काल में राजधानी-औरंगज़ेब ने अपनी राजधानी की गतिविधियाँ दिल्ली से चलाईं, परन्तु उसने आगरा के महत्त्व को कम नहीं होने दिया। प्रारंभ में वह आगरा के किले से इसलिए कटा रहा क्योंकि वहाँ शाहजहाँ बन्दी था। अपने जीवन के अन्तिम 25 वर्ष उसने दक्षिण में बिताए। वहाँ मराठवाड़ा क्षेत्र में वह शिविर से प्रशासन चलाता रहा। अन्ततः औरंगाबाद नामक स्थान पर उसने दम तोड़ दिया।

प्रश्न 8.
मुगलों के शाही दरबार के बारे में आप क्या जानते हो? इस बारे में जानकारी दें।
उत्तर:
मुगल साम्राज्य का हृदय दरबार था जिसे शाही दरबार कहा गया है। शाही दरबार में सबसे महत्त्वपूर्ण स्थल राजसिंहासन अथवा तख्त होता था। इस पर बैठकर शासक शासन के कार्यों को संचालित करता था। राजसिंहासन एक ऐसे स्तंभ का प्रतीक माना जाता था मानो इस पर पृथ्वी टिकी हो। राजसिंहासन के ऊपर बनी छतरी, शासक की कांति (चमक) सूर्य की कांति से अलग करने वाली मानी जाती थी। राजसिंहासन को ईश्वर के प्रतीक व उपहार के रूप में देखा जाता था। राजसिंहासन के सामने बहुत बड़ा आँगन होता था, जिसकी भव्यता, सजावट, कालीन व पर्दे शासक व साम्राज्य की पहचान माने जाते थे।
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(i) दरबारी शिष्टाचार-मुगलों का दरबार चाहे काफी बड़ा हो, लेकिन वहाँ भीड़-भाड़ की स्थिति कभी नहीं होती थी। दरबार में कौन कहाँ होगा, किस स्थिति में होगा, कौन प्रवेश करेगा तथा कौन जाएगा सब कुछ एक निश्चित नियम के अनुरूप होता था। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि दरबार में शासक की आज्ञा के बिना परिंदा भी पर नहीं मार सकता था।

(ii) दरबार में अभिवादन-दरबार में अभिवादन के तरीके भी व्यक्ति की हैसियत तथा पहुँच को स्पष्ट करते थे। अभिवादन में सामने जितना बड़ा व्यक्ति होता था, उतना ही झुकना दरबारी परंपरा थी। अभिवादन का सबसे उच्चतम रूप ‘सिजदा’ अर्थात् दंडवत लेटना था। यह केवल शासक के समक्ष ही होता था। शाहजहाँ के काल में चार तसलीम (झुककर चार बार हाथ को जमीन से माथे की ओर लाना) तथा जमींबोसी (झुककर जमीन चूमना) भी अपनाए जाने लगे थे। अभिवादन का एक सामान्य तरीका कोर्निश भी था। इसके अनुसार दरबारी अपने दाएँ हाथ की हथेली को अपनी छाती पर रखकर आगे की ओर सिर झुकाता था। यह इस बात का प्रतीक था कि अभिवादन करने वाला व्यक्ति इंद्रिय व मन स्थल को हाथ लगाते हुए झुककर विनम्रता से अपने को प्रस्तुत कर रहा है।

(iii) झरोखा-झरोखा मुग़ल दरबारी व्यवस्था की अकबर द्वारा जोड़ी गई परंपरा थी। यह प्राचीन भारतीय शासकों से ली गई थी। इसमें शासक प्रातः उठते ही सामान्य प्रार्थना इत्यादि के बाद अपने महल के एक विशेष हिस्से में बनी खिड़की (झरोखे) पर सूर्य की ओर मुँह करके बैठ जाता था। इस जगह के ठीक नीचे काफी खुली जगह होती थी जिसमें सैनिक, व्यापारी, कृषक, शिल्पकार यहाँ तक की बीमार बच्चों के साथ औरतें होती थीं। वे सूर्योदय से पहले वहाँ एकत्रित हो जाते थे तथा शासक की झलक पाते ही ऊँची आवाज में बोलते थे ‘बादशाह सलामत’ । अकबर द्वारा प्रारंभ की गई यह परंपरा अटूट चलती रही तथा उसका यह विश्वास था कि इससे जनता का सत्ता में विश्वास बनता था। औरंगज़ेब ने बाद में इसे गैर-इस्लामी घोषित करते हुए बन्द कर दिया था।

(iv) शाही उत्सव व समारोह-मुगल दरबार में सामान्य प्रशासनिक गतिविधियों के अतिरिक्त कुछ विशेष उत्सव व समारोह होते थे। उस दिन दरबार को विशिष्ट ढंग से सजाया जाता था। सजाने के लिए रंग-बिरंगे ढंग से सजे डिब्बों में रखी मोमबत्तियाँ, महल की दीवारों पर विभिन्न तरह के बंदनवार (सज्जा के लिए विशेष रूप से तैयार चीजें) तथा विभिन्न तरह की सुगंधित चीजों का प्रयोग किया जाता था। शाही उत्सव व समारोह तीन तरह के होते थे।

a. सामूहिक सामाजिक समारोहों में ईद, शब-ए-बारात तथा (हिजरी कैलेंडर के 8वें महीने की 14वीं तारीख या सावन की रात्रि का त्योहार) होली व दीवाली प्रमुख होते थे। इनमें जनता के विभिन्न वर्गों के लोग दरबार में शाही परिवार के सदस्यों के साथ भाग लेते थे।

b. शाही विशिष्ट समारोह में सिंहासनारोहण की वर्षगाँठ, सूर्यवर्ष व चंद्रवर्ष के अनुरूप शासक के जन्म का कार्यक्रम तथा वसंतागमन पर फारसी त्योहार नौरोज मुख्य थे। इनमें शासक का जन्मदिन अन्यों की तुलना में अधिक शोभायमान तथा खर्चीला होता था।

c. शाही दरबार का तीसरा समारोह व उत्सव शहजादों की शादियों का होता था। यह इतना मंहगा, मनमोहक व आकर्षक होता था कि सामान्य व्यक्ति कल्पना भी नहीं कर सकता था।

प्रश्न 9.
मुग़ल शासकों के परिवार का वर्णन करते हुए शाही परिवार की महिलाओं की स्थिति पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
मुगल शासन-व्यवस्था में शासक प्रमुख होता था। परंतु यह ध्यान रहना चाहिए कि उसका अकेले तौर पर कोई अस्तित्व नहीं था। प्रशासन की प्रत्येक गतिविधि में उसके परिवार के सदस्यों की भूमिका अहम् होती थी। शासक के परिवार को शाही परिवार कहा जाता था। शाही परिवार के सदस्यों को दरबार से अलग वर्णित करते हुए इतिवृत्तों में सर्वाधिक प्रचलित शब्द ‘हरम’ मिलता है। हरम शब्द शासक के निवास की ओर संकेत करता है। शाब्दिक रूप से हरम का अर्थ ‘पवित्र स्थान’ होता है। इतिवृत्तों में हरम के वर्णन में शासक, उसकी पत्नी, उपपत्नी, उसके नजदीक व दूर के रिश्तेदार, वास्तविक माता, धाय माता, सौतेली माता, उपमाता, बहन, पुत्री, चाची, मौसी उनके बच्चे व पुत्रों की पत्नियाँ व उनके सहयोगी होते थे। इसके अतिरिक्त महिला परिचारिकाएँ, गुलाम व दास-दासी भी इस परिवार का अंग होते थे।

अकबर के शासन काल से पहले मुग़लों के शाही परिवार में एक वर्ग विशेष के लोग थे। परन्तु अकबर ने जब राजपूतों के साथ वैवाहिक, राजनीतिक व मैत्री संबंध स्थापित किए तो पारिवारिक संरचना में बदलाव आया। इसमें सबसे बड़ा बदलाव तो यह था कि अब पादशाह बेगम (मुख्य पत्नी) अर्थात् हरम की राजपूत पत्नियाँ बनीं।
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1. हरम की व्यवस्था (System of Haram)-शाही परिवार के हरम में महिलाओं की प्रमुखता थी। इसमें सभी महिलाएँ बराबर की तथा एक जैसी हैसियत वाली नहीं थीं। हरम में प्रमुख महिलाओं को मोटे तौर पर तीन नामों से जाना जाता था।

बेगम-शाही परिवार में सबसे ऊँचा स्थान बेगमों का था। बेगम प्रायः कुलीन परिवार से संबंधित होती थी। उनके साथ विवाह एक निश्चित परंपरा के अनुरूप होता था। वे मेहर (दहेज) के रूप में काफी धन इत्यादि लाती थी। पहले ही दिन से इनका सम्मान होता था। शासक जिस बेगम को सर्वाधिक चाहता था उसे पादशाह

बेगम (मुख्य पत्नी) का खिताब दिया जाता था। उसकी स्थिति अन्य बेगमों की तुलना में अच्छी होती थी।
अगहा-हरम में इनका स्थान दूसरे नंबर पर था। ये सामान्य कुलीन परिवारों से थीं। ये भी शादी की परंपरा के बाद ही हरम में आती थीं।
अगाचा-हरम में इनका दर्जा तीसरा था। इन्हें उपपत्नियों का दर्जा प्राप्त था। इन्हें इनके खर्चे के अनुरूप मासिक भत्ता व दर्जे के अनुरूप उपहार इत्यादि मिलते थे।

2. शाही परिवार की महिलाओं का राजनीति में हस्तक्षेप (Interferance in Politics by the Women of Royal Family)-कई बार शाही परिवार की महिलाएँ भी राजनीति में सक्रिय रहती थीं। उदाहरण के लिए नूरजहाँ के राजनीति में आने के बाद हरम की स्थिति व पहचान दोनों बदल गई। 1611 ई० से 1626 ई० तक जहाँगीर के शासन काल में नूरजहाँ ने प्रत्येक गतिविधि में हिस्सा लिया। वह झरोखे पर बैठती थी तथा सिक्कों पर उसका नाम आता था। ‘नूरजहाँ गुट’ सही अर्थों में जहाँगीर के शासन में सारे फैसले करता था। जहाँगीर ने तो यहाँ तक कह दिया था कि मैंने बादशाहत नूरजहाँ को दे दी है, मुझे कुछ प्याले शराब तथा आधा सेर माँस के अतिरिक्त कुछ नहीं चाहिए। शाहजहाँ के शासन काल में उसकी पुत्री जहाँआरा तथा रोशनआरा लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक फैसलों में शामिल होती थीं। वे उच्च पदों पर आसीन मनसबदारों की भाँति वार्षिक वेतन लेती थीं। जहाँआरा (शाहजहाँ की बड़ी बेटी) तो सूरत की बंदरगाह (भारत की विदेशी व्यापार की उस समय सबसे बड़ी बंदरगाह) से निरंतर राजस्व की वसूली
करती थी।

हरम की प्रमुख महिलाओं ने इमारतों व बागों का निर्माण कार्य करवाया। नूरजहाँ ने आगरा में एतमादुद्दौला (अपने पिता) के मकबरे का निर्माण करवाया। शालीमार व निशात बागों को बनवाने में भी उसकी मुख्य भूमिका थी। इसी प्रकार दिल्ली में शाहजहाँनाबाद की कई कलात्मक योजनाओं में जहाँआरा की भूमिका थी। उसने शाहजहाँनाबाद में आँगन, बाग व एक दोमंजिला कारवाँ-सराय का निर्माण करवाया। दिल्ली के चाँदनी चौक की रूप-रेखा भी उसके द्वारा ही तैयार की गई थी।

प्रश्न 10.
मुगलकाल में नौकरशाही पर निबंध लिखें।
उत्तर:
मुगल साम्राज्य एक संतुलित तथा व्यवस्थित राज्य था। इसे यह रूप देने वाला वर्ग नौकरशाहों का था। इन नौकरशाहों पर मुगलों ने विश्वास भी किया तथा इन पर नियंत्रण भी रखा, जिसके कारण मुग़ल प्रशासन संगठित व उच्च आदर्शों वाला बन पाया। मुगलों के प्रशासन में भारतीय व विदेशी तत्त्वों का मिश्रण था। इसमें केंद्रीय व प्रांतीय शासन में ईरानी व मध्य एशियाई तत्त्व .
अधिक थे जबकि स्थानीय प्रशासन के अधिकतर तत्त्व भारतीय थे।

1. नौकरशाहों की नियुक्ति प्रक्रिया-मुग़ल शासन में शासक सबसे ऊपर थे। उनकी शक्तियाँ असीम थीं। अबुल फज्ल स्पष्ट करता है कि मुग़ल साम्राज्य में सत्ता की संपूर्ण क्रिया एकमात्र बादशाह में निहित थी। साम्राज्य के बाकी सभी लोग उसके आदेशों की पालना करते थे। वह व्यवस्था को चलाने के लिए योग्यता के आधार पर अधिकारियों की नियुक्ति करता था। इन्हीं लोगों के सहारे मुगल शासक एक प्रभावशाली तंत्र खड़ा कर सके। नियुक्ति के संदर्भ में हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यहाँ किसी व्यक्ति के दरबार में आने तथा सेवा से निवृत्त होने की कोई आयु नहीं थी। जिस भी व्यक्ति को सेवा में लेना होता था, शासक उससे बातचीत कर संबंधित विभाग के वरिष्ठ व्यक्ति को कहता था कि उसे दरबार में प्रस्तुत करे। इस तरह आदेश का पालन करते हुए संबंधित व्यक्ति की विस्तृत जाँच-पड़ताल करके सेवा में लेने का फैसला किया जाता था।

2. मनसबदारी प्रथा-मुग़ल नौकरशाही में मनसबदारी प्रमुख थी। यह सैनिक व असैनिक दोनों के लिए थी। मनसब शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है-पद। इस शब्द की व्याख्या के अनुसार जो भी व्यक्ति मुग़लों की सेवा में आता था तो उसे एक मनसब दिया जाता था। वह मनसब उसकी दरबार में पहचान, जिम्मेदारी व हैसियत तीनों बातों का अहसास कराता था। मनसब में जात व सवार दो शब्दों का प्रयोग होता था। जात शब्द व्यक्ति के पद (status) को स्पष्ट करता था जबकि सवार उसके पास ऊँट, घोड़े, बैल इत्यादि सैनिक क्षमता का बोध कराता था। इससे यदि किसी व्यक्ति की 1000 की जात मनसब व 1000 की सवार मनसब है तो वह मनसबदार प्रथम श्रेणी में होता था, यदि जात की तुलना में सवार 500 या इसके आस-पास थे तो वह द्वितीय श्रेणी में आता था तथा यदि उसके सवार नाममात्र थे या थे ही नहीं वह तृतीय श्रेणी में आता था।

इसी श्रेणी के आधार पर उसका वेतन निर्धारित होता था जबकि इसी आधार पर उसे दरबार में जगह मिलती थी। यहाँ तक कि शासक के शिविर में भी उसी अनुरूप उसका तंबूकक्ष (Tent-Room) बनता था। मनसबदारी व्यवस्था की खास बात यह थी कि मनसबदार चाहे 20 के रैंक का हो या 5,000 का वह सीधे शासक से जुड़ा होता था। वह किसी अन्य व्यक्ति के लिए जिम्मेदार नहीं होता था। मुगलकाल में सामान्य रूप से 1000 से बड़े पद के मनसबदार को उमरा (अमीर वर्ग का बहुवचन) कहा जाता था। मनसबदारों की नियुक्ति, पदोन्नति व पद मुक्ति की शक्तियाँ स्वयं शासक के पास होती थीं।

3. नौकरशाहों के प्रति दरबार का व्यवहार-मुगल दरबार में नौकरी पाना बेहद कठिन कार्य था। दूसरी ओर अभिजात व सामान्य वर्ग के लोग शाही सेवा को शक्ति, धन व उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा का एक साधन मानते थे। नौकरी में आने वाले व्यक्ति से आवेदन लिया जाता था, फिर मीरबख्शी की जाँच-पड़ताल के बाद उसे दरबार में प्रस्तुत होना होता था। मीर बख्शी के साथ-साथ दीवान-ए-आला (वित्तमंत्री) तथा सद्र-उस-सुदुर (जन कल्याण, न्याय व अनुदान का मंत्री) भी उस व्यक्ति को कागज तैयार करवाकर अपने-अपने कार्यालयों की मोहर लगाते थे। फिर वे शाही मोहर के लिए मीरबख्शी के द्वारा ले जाए जाते थे। ये तीनों मंत्री दरबार में दाएँ खड़े होते थे, बाईं ओर नियुक्ति व पदोन्नति पाने वाला व्यक्ति खड़ा होता था। शासक उससे कुछ औपचारिक बात करके उसे दरबार के प्रति वफादार रहने की बात कहता था तथा संकेत करता था कि वह किस स्थान पर खड़ा हो। इस तरह उस व्यक्ति की नियुक्ति तथा पदोन्नति मानी जाती थी।

4. नौकरशाहों पर नियंत्रण-शासक द्वारा नौकरशाहों पर नियंत्रण के लिए कुछ नियम बनाए गए थे। उनके अनुसार शासक सामान्य रूप से इनके प्रति कठोर व्यवहार रखता था। नियमित निरीक्षण में इन्हें किसी तरह की छूट नहीं थी। थोड़ा-सा भी शक होने या अनुशासन की उल्लंघना करने पर इन्हें दण्ड दिया जाता था। इनकी कभी भी कहीं भी बदली की जा सकती थी। कोई भी अधिकारी किसी भी कार्य को करने की मनाही नहीं कर सकता था। इन सबके अतिरिक्त यह कि इनका पद पैतृक नहीं होता था अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति को नए सिरे से जीवन की शुरुआत करनी होती थी। किसी भी अभिजात वर्ग के व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी सम्पत्ति, उसकी सन्तान को नहीं दी जाती थी बल्कि यह स्वतः ही बादशाह या दरबार की सम्पत्ति बन जाती थी।

प्रश्न 11.
मुगलों की विदेश नीति का परिचय देते हुए उनकी ईरान व तुर्की साम्राज्य के प्रति नीति का वर्णन करें।
उत्तर:
मुगल शासकों की विदेश नीति काफी परिपक्व थी। शासक जिस तरह की उपाधियों या पदवियों को धारण करते थे उनका असर पड़ोसी राज्यों पर अवश्य होता था। जहाँगीर (विश्व पर कब्जा करने वाला), शाहजहाँ (विश्व का शासक) तथा आलमगीर (विश्व का स्वामी) द्वारा धारण की गई उपाधियाँ खास थीं। इतिवृत्तों के लेखकों ने इन उपाधियों की व्याख्या व अर्थों का हवाला बार-बार दिया ताकि मुगल अविजित क्षेत्रों पर भी राजनीतिक नियंत्रण बना सकें तथा एक बार विजित करने के उपरांत उनका उस पर हमेशा के लिए हक बना रहे। इस तरह से स्पष्ट होता है कि मुग़ल अपने साम्राज्य की सीमा विस्तार के लिए हमेशा प्रयासरत रहते थे। उनकी इस नीति के आधार पर ही उनके पड़ोसी देशों के साथ संबंधों का निर्धारण होता था। इन रिश्तों में कूटनीतिक चाल व संघर्ष साथ-साथ चलता था। इस कड़ी में पड़ोसी राज्यों के साथ क्षेत्रीय हितों के तनाव व राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता चलती रहती थी। इसके साथ-साथ दूतों का . आदान-प्रदान भी होता रहता था।

1. ईरान के प्रति नीति (Policy Towards Perssia)-भौगोलिक दृष्टि से मुगल साम्राज्य की स्थिति वर्तमान भारत से थोड़ी भिन्न थी। उस समय पड़ोसी देशों में सबसे बड़ी सीमा ईरान में लगती थी। ऐसे में स्वाभाविक है कि दोनों के बीच कूटनीतिक संबंध भी रहे, तनाव की स्थितियाँ भी रहीं तथा संघर्ष भी हुआ। भारत व ईरान के बीच सामरिक व व्यापारिक महत्त्व का शहर कन्धार था। यही स्थल मुगलों व सफावियों के बीच झगड़े की जड़ रहा। झगड़े की शुरुआत 1507 ई० में बाबर द्वारा कन्धार पर कब्जा करने से प्रारंभ हुई थी तथा उसके बाद यह इन दोनों वंशों के बीच प्रतिष्ठा का प्रतीक भी बन गया जिसके कारण दोनों के बीच लंबे समय तक कंधार पर अधिकार के लिए संघर्ष चला तथा 1649 में ईरान ने अन्ततः इस पर कब्जा कर लिया। शाहजहाँ ने तीन अभियान भेजे, परंतु वे सफल नहीं हो सके। इसके बाद कन्धार कभी भी मुग़ल साम्राज्य व भारत का हिस्सा नहीं रह सका। औरंगज़ेब ने कन्धार को प्राप्त करने की बजाय क्षेत्र में शान्ति को महत्त्व दिया।

2. तुर्की साम्राज्य से संबंध (Relation with Ottomans Empire)-ईरान से आगे तुर्की साम्राज्य था जिसे सामान्य भाषा में ऑटोमन साम्राज्य के नाम से जाना जाता है। इस साम्राज्य में वर्तमान सऊदी अरब, कुवैत, सीरिया, जॉर्डन, ईरान व पश्चिमी एशिया के कई और देश थे। मुगलकाल में ऑटोमन (तुर्की) साम्राज्य धार्मिक व व्यापारिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण था। धार्मिक दृष्टि से इसलिए क्योंकि मक्का व मदीना जैसे ऐतिहासिक शहर इस क्षेत्र में थे जिनके प्रति लोगों में श्रद्धा थी। दूसरा यह कि व्यापार का अन्तर्राष्ट्रीय मार्ग रेशम मार्ग इस क्षेत्र से गुजरता था। भारत का थल मार्ग से होने वाला 80% व्यापार इस क्षेत्र से होता था।

मुगल शासकों ने ऑटोमन साम्राज्य के बारे में यह नीति अपनाई कि उन्हें इस क्षेत्र के विदेशी व्यापार से जो लाभ होता था, उसका काफी हिस्सा वे इस क्षेत्र के धर्म स्थलों के विकास पर लगाते थे तथा कुछ पैसा फकीरों इत्यादि में बाँट देते थे। इसके कारण मुगलों की छवि भी बहुत उच्च बनी। मक्का व मदीना की देख-रेख करने वाले व्यक्तियों को मुगलों से आने वाले धन की प्रतीक्षा रहती थी।

औरंगजेब ने धन भेजने के कारणों व उद्देश्यों के बारे में विस्तृत जाँच करवाई। उसे पता चला कि इसके कारण मुगलों की अन्तर्राष्ट्रीय छवि तो जरूर अच्छी बनती है लेकिन धन का दुरुपयोग भी हो रहा है। इसलिए उसने इस धन को नियंत्रित किया तथा स्पष्ट किया कि इस धन का वितरण भारत में हो। औरंगजेब के इस कदम की प्रतिक्रिया भारत व मक्का-मदीना दोनों जगह हुई। यहाँ के कट्टरपंथियों ने इसे अनुचित करार दिया जबकि उदार लोगों ने सही व संतुलित कार्य कहा। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि ऑटोमन साम्राज्य धार्मिक व व्यापारिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण था। मुगलों ने इसे उचित महत्त्व देकर कार्रवाई की।

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