HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

HBSE 12th Class Hindi कविता के बहाने, बात सीधी थी पर Textbook Questions and Answers

कविता के साथ

प्रश्न 1.
इस कविता के बहाने बताएँ कि ‘सब घर एक कर देने के माने क्या हैं?
उत्तर:
“सब घर एक कर देने का अभिप्राय है-आपसी भेदभाव तथा ऊँच-नीच के भेद को समाप्त कर देना और एक-दूसरे के प्रति आत्मीयता का अनुभव करना। गली-मोहल्ले में खेलते बच्चे अपने-पराए के भेदभाव को भूल जाते हैं। वे अन्य घरों को अपने घर जैसा मानने लगते हैं। इसी प्रकार कवि भी काव्य रचना करते समय सामाजिक भेदभाव को भूलकर कविता के माध्यम से अपनी बात कहता है।

प्रश्न 2.
‘उड़ने’ और ‘खिलने’ का कविता से क्या संबंध बनता है?
उत्तर:
‘उड़ने’ और ‘खिलने’ का कविता से गहरा संबंध है। कवि कल्पना की उड़ान द्वारा नए-नए भावों की अभिव्यंजना करता है परंतु कवि की उड़ान पक्षियों की उड़ान से अधिक ऊँची होती है। उसकी उड़ान अनंत तथा असीम होती है। जिस प्रकार फूल कर अपनी सुगंध और रंग को चारों ओर फैलाता है, उसी प्रकार कवि भी अपनी कविता के भावों के आनंद को सभी पाठकों में बाँटता है। कवि की कविता सभी पाठकों को आनंदानुभूति प्रदान करती है।

प्रश्न 3.
कविता और बच्चे को समानांतर रखने के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर:
कवि कल्पना के संसार की सृष्टि करके आनंद प्राप्त करता है और बच्चे आनंद प्राप्त करने के लिए क्रीड़ा करते हैं। खेलते समय सभी बच्चे आपस में जुड़ जाते हैं और छोटे-बड़े तथा अपने-पराए के भेद को भूल जाते हैं। कवि भी भेदभाव को भूलकर सबके कल्याणार्थ कविता की रचना करता है। खेल खेलते समय बच्चों का संसार बड़ा हो जाता है और साहित्य-रचना करते समय कवि का। इसीलिए कविता और बच्चे को समानांतर रखा गया है।

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प्रश्न 4.
कविता के संदर्भ में ‘बिना मुरझाए महकने के माने’ क्या होते हैं?
उत्तर:
फूल कुछ समय अपनी सुगंध और रंग का सौंदर्य बिखेरता है, फिर वह मुरझा जाता है। उसकी कोमल पत्तियाँ सूख कर बिखर जाती हैं, लेकिन कविता एक ऐसा फूल है जो कभी नहीं मुरझाता। कविता की महक अनंतकाल तक पाठकों को आनंद विभोर करती रहती है। हम हज़ारों साल पूर्व रचे गए साहित्य का आज भी आनंद प्राप्त करते रहते हैं।

प्रश्न 5.
‘भाषा को सहूलियत’ से बरतने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘भाषा को सहूलियत’ से बरतने का अभिप्राय है-सहज, सरल तथा बोधगम्य भाषा का प्रयोग करना ताकि श्रोता भावाभिव्यक्ति को आसानी से ग्रहण कर सके। कवि को कृत्रिम तथा चमत्कृत करने वाली भाषा से बचना चाहिए। सरल बात, सरल भाषा में कही गई ही अच्छी लगती है।

प्रश्न 6.
बात और भाषा परस्पर जुड़े होते हैं, किंतु कभी-कभी भाषा के चक्कर में ‘सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है। कैसे?
उत्तर:
बात और भाषा का गहरा संबंध होता है। मानव अपने मन की भावनाएँ शब्दों के द्वारा ही व्यक्त करता है। यदि हम अपनी अनुभूति को सहज और सरल भाषा में व्यक्त कर दें तो किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं होती। परंतु कवि प्रायः अपनी बात को कहने के लिए सुंदर भाषा और चमत्कृत करने वाली भाषा का प्रयोग करने लगते हैं जिससे कवि का कथ्य अस्पष्ट हो जाता है। कवि जो कुछ कहना चाहता है, वह ठीक से कह नहीं पाता। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि हम उन शब्दों को पढ़ रहे होते हैं जो हमारी समझ के बाहर होते हैं अर्थात् कविता का मूल भाव हमारी समझ में नहीं आ पाता। हिंदी साहित्य के रीतिकालीन कवियों ने प्रायः कविता के कलापक्ष को अधिक महत्त्व दिया है जिससे उनकी कविता के भाव अस्पष्ट होकर रह गए।

प्रश्न 7.
बात (कथ्य) के लिए नीचे दी गई विशेषताओं का उचित बिंबों/महावरों से मिलान करें।

बिंब/मुहावरा विशेषता
(क) बात की चूड़ी मर जाना कथ्य और भाषा का सही सामंजस्य बनना
(ख) बात की पेंच खोलना बात का पकड़ में न आना
(ग) बात का शरारती बच्चे की तरह खेलना बात का प्रभावहीन हो जाना
(घ) पेंच को कील की तरह ठोंक देना बात में कसावट का न होना
(ङ) बात का बन जाना बात को सहज और स्पष्ट करना

उत्तर:

बिंब/मुहावरा विशेषता
(क) बात की चूड़ी मर जाना बात का पकड़ में न आना
(ख) बात की पेंच खोलना बात का प्रभावहीन हो जाना
(ग) बात का शरारती बच्चे की तरह खेलना बात में कसावट का न होना
(घ) पेंच को कील की तरह ठोंक देना बात को सहज और स्पष्ट करना
(ङ) बात का बन जाना कथ्य और भाषा का सही सामंजस्य बनना

कविता के आसपास

प्रश्न 1.
बात से जुड़े कई मुहावरे प्रचलित हैं। कुछ मुहावरों का प्रयोग करते हुए लिखें।
उत्तर:

  1. बातें बनाना केवल बातें बनाते रहोगे या मेरा काम भी करोगे।
  2. बात का धनी होना-यह अधिकारी बात का धनी है। यह जरूर हमारा काम करेगा।
  3. बात का बतंगड़ बनाना हमारा पड़ोसी तो हमेशा बात का बतंगड़ बना देता है। कभी-कभी तो झगड़े की नौबत भी आ जाती है।
  4. बात से मुकर जाना-जो लोग बात से मुकर जाते हैं, उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता।
  5. बात-बात पर मुँह बनाना तुम्हारी पत्नी तो बात-बात पर मुँह बनाने लगती है। यह कोई अच्छी बात नहीं है।

व्याख्या करें

“ज़ोर ज़बरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी।
उत्तर:
जब कोई कवि अपनी भावाभिव्यक्ति को व्यक्त करने के लिए जटिल भाषा का प्रयोग करने लगता है तो उसकी व्यंजना कुंद हो जाती है। कवि द्वारा प्रयुक्त जटिल भाषा के कारण कविता का मूल कथ्य नष्ट हो जाता है। अन्ततः कवि-कथ्य कृत्रिम भाषा में फँसकर रह जाता है और श्रोता कवि के भाव को समझ नहीं पाता।

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चर्चा कीजिए

आधुनिक युग में कविता की संभावनाओं पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
आज के वैज्ञानिक युग में कविता की रचना करना काफी कठिन हो गया है, क्योंकि भौतिकवादी दृष्टिकोण को अपनाने के कारण आधुनिक युग अत्यधिक बेचैन और व्याकुल रहता है। ऐसी स्थिति में केवल कविता ही मानव-मन को सुख-शांति प्रदान कर सकती है। आज भी हमारे समक्ष प्रकृति का विशाल प्रांगण है। आज समाज में अनेक समस्याएँ जटिल होती जा रही हैं। अतः कविता की संभावनाएँ काफी बढ़ चुकी हैं। आज प्रेम, मोहब्बत पर कविता लिखना व्यर्थ है, बल्कि जन-जीवन से जुड़ी कविता कवि-सम्मेलनों में वाह-वाही लूटती है। एक अच्छी कविता को पढ़कर आज का उलझा हुआ मानव कुछ राहत महसूस करता है। केवल आवश्यकता इस बात की है कि कविता हमारे जीवन से संबंधित होनी चाहिए।

चूड़ी, कील, पेंच आदि मूर्त उपमानों के माध्यम से कवि ने कथ्य की अमूर्तता को साकार किया है। भाषा को समृद्ध एवं संप्रेषणीय बनाने में, बिंबों और उपमानों के महत्त्व पर परिसंवाद आयोजित करें।
उत्तर:
कविता के बहाने’ कविता में चूड़ी, कील, पेंच आदि मूर्त उपमानों का प्रयोग किया है तथा कथ्य की अमूर्तता को साकार करने का प्रयास किया है इस पर यह संवाद कुछ इस प्रकार आयोजित किया जा सकता है
(क) आज के कवि सहज, सरल भाषा में अपनी बात क्यों नहीं कहते? वे कील, चूड़ी, पेंच आदि मूर्त उपमानों को माध्यम क्यों बनाते हैं?

(ख) एक सफल कवि अपनी बात को हमेशा सरल तथा प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करने में समर्थ होता है। कभी-कभी वह प्रतीकों, उपमानों तथा बिंबों का प्रयोग भी करता है। ऐसा करने से कविता के अर्थ में गंभीरता उत्पन्न हो जाती है।

(ग) कवि को जटिल प्रतीकों तथा उपमानों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। उसका यह प्रयास रहना चाहिए कि कविता में कही गई बात उलझकर न रह जाए।

आपसदारी

1. सुंदर है सुमन, विहग सुंदर
मानव तुम सबसे सुंदरतम।
पंत की इस कविता में प्रकृति की तुलना में मनुष्य को अधिक सुंदर और समर्थ, बताया गया है। ‘कविता के बहाने’ कविता में से इस आशय को अभिव्यक्त करने वाले बिंदुओं की तलाश करें।
उत्तर:
कविता के बहाने में कवि ने बच्चे को चिड़िया और फूल की अपेक्षा श्रेष्ठ सिद्ध करने का प्रयास किया है। इसके लिए निम्नलिखित पंक्तियाँ उद्धृत हैं –
“कविता एक खेल है बच्चों के बहाने
बाहर भीतर
यह घर, वह घर
सब घर एक कर देने के माने
बच्चा ही जाने।”

2. प्रतापनारायण मिश्र का निबंध ‘बात’ और नागार्जुन की कविता ‘बातें’ ढूँढ़ कर पढ़ें।
उत्तर:
विद्यार्थी शिक्षक की सहायता से पुस्तकालय से पुस्तकें लेकर इन दोनों रचनाओं को पढ़ें।

HBSE 12th Class Hindi कविता के बहाने, बात सीधी थी पर Important Questions and Answers

सराहना संबंधी प्रश्न

कविता के बहाने

प्रश्न 1.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए
कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने
कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने
बाहर भीतर
इस घर, उस घर कविता के पंख लगा उड़ने के माने
चिड़िया क्या जाने?
उत्तर:

  1. प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने कविता और चिड़िया की उड़ान की तुलना करते हुए यह स्पष्ट किया है कि चिड़िया की उड़ान कविता की उड़ान की उपेक्षा ससीम है, जबकि कविता की उड़ान अनंत और असीम है।
  2. ‘कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने’ में वक्रोक्ति अलंकार है।
  3. ‘चिड़िया क्या जाने’ में प्रश्नालंकार के साथ-साथ मानवीकरण का भी पुट है।
  4. ‘कविता के पंख लगा उड़ने’ में रूपक अलंकार का सफल प्रयोग है।
  5. ‘बाहर-भीतर इस घर, उस घर’ में अनुप्रास अलंकार का सुंदर प्रयोग है।
  6. सहज, सरल तथा बोधगम्य हिंदी भाषा का प्रयोग हआ है तथा शब्द-चयन सर्वथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  7. मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए –
कविता एक खेल है बच्चों के बहाने
बाहर भीतर
यह घर, वह घर
सब घर एक कर देने के माने
बच्चा ही जाने।
उत्तर:

  1. प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने बच्चों के सरल स्वभाव पर प्रकाश डाला है। बच्चे आपस में खेलते समय अपने-पराए के भेदभाव को नहीं जानते।
  2. बच्चे की क्रीड़ाओं तथा कवियों की काव्य रचनाओं में काफी समानता होती है, क्योंकि न तो बच्चे भेदभाव को समझते हैं और न ही कवि। इसीलिए कवि ने कहा है कि सब घर एक कर देना।।
  3. ‘बाहर भीतर’, ‘इस घर, उस घर’ तथा ‘बच्चों के बहाने’ में अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।
  4. प्रस्तुत पद्य में सहज, सरल तथा प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  5. शब्द-योजना सार्थक व सटीक है।
  6. मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है।

बात सीधी थी पर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए –
1. बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में
जरा टेढ़ी फंस गई।
उसे पाने की कोशिश में
भाषा को उलटा पलटा
तोड़ा मरोड़ा
घुमाया फिराया
कि बात या तो बने
या फिर भाषा से बाहर आए-
उत्तर:
(1) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने इस बात पर बल दिया है कि कथ्य के अनुसार कविता की अभिव्यंजना होनी चाहिए। ऐसा करने से अभिव्यक्ति बड़ी सरलता के साथ स्वयं प्रकट हो जाती है।

(2) ‘उलटा-पलटा’, ‘तोड़ा-मरोड़ा’, ‘घुमाया-फिराया’ आदि शब्दों का सटीक प्रयोग हुआ है। ये शब्द भाषा की कृत्रिमता और जटिलता पर व्यंग्य करते हैं।

(3) ‘उलटा-पलटा’, ‘तोड़ा-मरोड़ा’, ‘घुमाया-फिराया’ आदि में अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है।

(4) भाषा का चक्कर’ तथा ‘टेढ़ी-फँसी’, जैसे लोक प्रचलित शब्दों का प्रयोग हुआ है जोकि अभिव्यंजना-शिल्प को सौंदर्य प्रदान करते हैं।

(5) सहज, सरल तथा बोधगम्य हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।

(6) शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं सटीक है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए –
ऊपर से ठीकठाक
पर अंदर से
न तो उसमें कसाव था
न ताकत!
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछते देख कर पूछा
“क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा?”
उत्तर:

  1. यहाँ कवि ने भाषा के द्वारा भाव को सजाने का प्रयास किया है लेकिन वह भाव स्पष्ट नहीं हो पाया।
  2. यहाँ बात का सुंदर मानवीकरण किया गया है।
  3. कवि द्वारा ‘पसीना पोंछना’ एक सुंदर दृश्य बिंब है जो परिश्रम की व्यर्थता को सिद्ध करता है।
  4. ‘शरारती बच्चे की तरह’ में उपमा अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  5. ‘पसीना पोंछते’ में अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।
  6. इस पद्य में संवादात्मक शैली का बहुत ही प्रभावशाली प्रयोग हुआ है।
  7. सहज, सरल, बोधगम्य तथा प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  8. शब्द-योजना सार्थक तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

विषय-वस्तु पर आधारित लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘कविता के बहाने’ कविता का प्रतिपाद्य (उद्देश्य) स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस कविता के माध्यम से कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि कविता की उड़ान आकाश में उड़ने वाली चिड़िया तथा फूल की सुगंध से भी अधिक ऊँची और विस्तृत होती है। चिड़िया की उड़ान ससीम है तथा फूल की महक भी ससीम है। पुनः ये दोनों नश्वर हैं तथा इनके क्रियाकलाप भी नश्वर हैं। परंतु कविता का प्रभाव अनंत और स्थाई होता है। कविता बच्चों के खेल के समान भेदभाव से मुक्त होती है और श्रोता को असीम आनंद प्रदान करती है। इसलिए कविता का प्रभाव अनंत, व्यापक तथा आनंदपूर्ण माना गया है।

प्रश्न 2.
कविता और चिड़िया की उड़ान में क्या अंतर है स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कविता और चिड़िया दोनों ऊँची उड़ान भर सकते हैं, परंतु चिड़िया की अपेक्षा कविता की उड़ान अनंत तथा असीम होती है। चिड़िया एक सीमित दायरे में ही उड़ सकती है, परंतु कवि अपनी कल्पना द्वारा कहीं भी पहुंच सकता है। इसलिए कहा भी गया है
“जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि”।

प्रश्न 3.
कविता और फूल की तुलना करें।
उत्तर:
फूल और उसकी महक ससीम है। पुनः ये दोनों ही नश्वर हैं। फूल क्षण भर के लिए खिलकर अपनी महक फैलाता है और फिर नष्ट हो जाता है, परंतु कवि की कल्पना, उसका भाव और सौंदर्य अनंत काल तक श्रोताओं को आनंद दे सकते हैं।

प्रश्न 4.
बच्चों और कविता में क्या समानता है?
उत्तर:
बच्चे आपसी भेदभाव तथा अपने-पराए के अंतर को भूलकर खेलते हुए आनंद प्राप्त करते हैं। कविता भी अपने-पराए की भावना को भूलकर भावों को ग्रहण करती है। जिस प्रकार बच्चों को खेल से आनंद मिलता है, उसी प्रकार कविता भी आनंदानुभूति के लिए लिखी जाती है।

प्रश्न 5.
‘बात सीधी थी पर’ कविता का प्रतिपाद्य (उद्देश्य)/मूलभाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘बात सीधी थी पर कविता के माध्यम से कवि यह बताना चाहता है कि हमें सहज, सरल तथा बोधगम्य भाषा द्वारा अपनी बात को कहना चाहिए। यदि कवि अपनी बात को जटिल तथा चमत्कृत करने वाली भाषा के द्वारा कहता है तो उसकी बात श्रोता तक ठीक से नहीं पहुँच पाती। प्रायः कुछ कवि अपने कथ्य को चमत्कारी बनाने के लिए भाषा को जान-बूझकर तोड़ते-मरोड़ते और घुमाते-फिराते हैं। इससे कविता का भाव-सौंदर्य तथा कलागत सौंदर्य दोनों नष्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 6.
‘बात की चूड़ी मरने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘बात की चूड़ी मरने’ का यह अभिप्राय है कि बेवजह बात को घुमाने-फिराने से उसका प्रभाव समाप्त हो जाता है। जिस प्रकार पेंच की चूड़ी मरने के बाद उसका कसाव ढीला पड़ जाता है, उसी प्रकार भाषा के अनावश्यक विस्तार से मूल बात शब्द-जाल में उलझ जाती है। वह श्रोता तक ठीक से नहीं पहुँच पाती।

प्रश्न 7.
‘बात और अधिक पेचीदा’ क्यों होती चली गई?
उत्तर:
कवि ने भाषा को अनावश्यक विस्तार देते हुए अपनी बात को कहने का प्रयास किया। उसने चमत्कृत करने वाली कृत्रिम भाषा का अधिक प्रयोग किया जिसके फलस्वरूप बात और भी पेचीदा होती चली गई।

प्रश्न 8.
कवि ने हारकर उसे कील की तरह उसी जगह क्यों ठोंक दिया?
उत्तर:
पहले तो कवि ने चमत्कृत भाषा के प्रयोग द्वारा अपनी बात को प्रभावशाली बनाने का प्रयास किया परंतु इससे कवि का कथ्य उलझकर रह गया। वस्तुतः कवि अपना धैर्य खो बैठा। इसलिए उसने निराश होकर अपनी बात को उसी कृत्रिम भाषा में प्रकट कर दिया।

प्रश्न 9.
कवि को पसीना क्यों आ रहा था?
उत्तर:
कवि अपनी बात को सरलता से नहीं कह पा रहा था। वह प्रभावशाली भाषा के प्रयोग में उलझकर रह गया। कवि जो कुछ कहना चाहता था, वह कह नहीं पाया। वह बार-बार काव्य भाषा को बदल रहा था। इस कारण उसकी बात जटिल भाषा में उलझकर रह गई। इसलिए उसे थकावट के कारण पसीना आ रहा था।

प्रश्न 10.
बात ने एक शरारती बच्चे की तरह कवि से क्या कहा?
उत्तर:
बात एक शरारती बच्चे की तरह कवि से क्रीड़ा कर रही थी। वह जानती थी कि कवि उसे ठीक से अभिव्यक्त नहीं कर पा रहा है। इसलिए उसने कवि से कहा कि तुम अभी तक यह भी नहीं सीख पाए कि भाषा का सहज प्रयोग किस प्रकार किया जाता है? अर्थात् कवि को यह समझना चाहिए था कि सहज शब्दावली में भी सहज विचारों को व्यक्त किया जा सकता है। उसके लिए जटिल अथवा उलझी हुई शब्दावली की कोई आवश्यकता नहीं है।

प्रश्न 11.
आखिर कवि को डर किस बात का था?
उत्तर:
कवि अपनी ओर से बात को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करना चाहता था। इसके लिए उसने आडंबर प्रधान भाषा का या। लेकिन बलपूर्वक कृत्रिम भाषा का प्रयोग करने से कवि का कथ्य इस प्रकार प्रभावहीन हो गया जैसे जोर जबरदस्ती करने से चूड़ी मर जाती है।

प्रश्न 12.
बात पेचीदा क्यों होती चली गई?
उत्तर:
कवि सहज एवं सरल भाषा में अपनी बात को कह सकता था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। वह भाषा को तोड़ने-मरोड़ने लगा ताकि उसका कथन अधिक प्रभावशाली हो सके। इसका परिणाम यह हुआ कि उस कृत्रिम भाषा के फलस्वरूप कवि का कथन उलझता चला गया और बात पेचीदा होती चली गई।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. कुँवर नारायण का जन्म कब हुआ?
(A) 19 सितंबर, 1927
(B) 19 सितंबर, 1937
(C) 19 दिसंबर, 1927
(D) 19 अक्तूबर, 1927
उत्तर:
(A) 19 सितंबर, 1927

2. कुँवर नारायण का जन्म कहाँ पर हुआ?
(A) मुरादाबाद
(B) मेरठ
(C) बरेली
(D) फैज़ाबाद
उत्तर:
(D) फैज़ाबाद

3. कुँवर नारायण ने किस विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण की?
(A) इलाहाबाद विश्वविद्यालय
(B) लखनऊ विश्वविद्यालय
(C) आगरा विश्वविद्यालय
(D) दिल्ली विश्वविद्यालय
उत्तर:
(B) लखनऊ विश्वविद्यालय

4. कुँवर नारायण ने चेकोस्लोवाकिया, पौलेंड, रूस तथा चीन का भ्रमण कब किया?
(A) सन् 1954 में
(B) सन् 1955 में
(C) सन् 1956 में
(D) सन् 1957 में
उत्तर:
(B) सन् 1955 में

5. सन् 1956 में कुँवर नारायण किस पत्रिका के संपादक मंडल से जुड़ गए?
(A) धर्म युग
(B) दिनमान
(C) नवनीत
(D) युग चेतना
उत्तर:
(D) युग चेतना

6. भारतेंदु नाटक अकादमी में वे किस पद पर नियुक्त हुए?
(A) सचिव
(B) उपाध्यक्ष
(C) अध्यक्ष
(D) सलाहकार
उत्तर:
(C) अध्यक्ष

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7. कुँवर नारायण को ‘हिंदुस्तानी अकादमी पुरस्कार’ कब मिला?
(A) सन् 1971 में
(B) सन् 1973 में
(C) सन् 1969 में
(D) सन् 1968 में
उत्तर:
(A) सन् 1971 में

8. कुँवर नारायण को ‘प्रेमचंद पुरस्कार’ कब मिला?
(A) सन् 1973 में
(B) सन् 1975 में
(C) सन् 1976 में
(D) सन् 1977 में
उत्तर:
(A) सन् 1973 में

9. कुँवर नारायण को मध्य प्रदेश का ‘तुलसी पुरस्कार’ कब मिला?
(A) सन् 1981 में
(B) सन् 1982 में
(C) सन् 1984 में
(D) सन् 1984 में
उत्तर:
(B) सन् 1982 में

10. ‘कविता के बहाने’ के कवि का नाम क्या है?
(A) आलोक धन्वा
(B) रघुवीर सहाय
(C) कुँवर नारायण
(D) हरिवंश राय बच्चन
उत्तर:
(C) कुँवर नारायण

11. ‘कविता के बहाने कविता कवि के किस काव्य-संग्रह में संकलित है?
(A) चक्रव्यूह
(B) अपने सामने
(C) इन दिनों
(D) आत्मजयी
उत्तर:
(C) इन दिनों

12.
‘बात सीधी थी पर कविता के कवि का नाम क्या है?
(A) रघुवीर सहाय
(B) मुक्तिबोध
(C) आलोक धन्वा
(D) कुँवर नारायण
उत्तर:
(D) कुँवर नारायण

13. ‘बात सीधी थी पर’ किस काव्य-संग्रह में संकलित है?
(A) इन दिनों
(B) कविता के बहाने
(C) कोई दूसरा नहीं
(D) चक्रव्यूह
उत्तर:
(C) कोई दूसरा नहीं

14. ‘तीसरा सप्तक’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1961 में
(B) सन् 1958 में
(C) सन् 1959 में
(D) सन् 1957 में
उत्तर:
(C) सन् 1959 में

15. ‘परिवेश : हम तुम’ के रचयिता का नाम क्या है?
(A) हरिवंश राय बच्चन
(B) रघुवीर सहाय
(C) आलोक धन्वा
(D) कुँवर नारायण
उत्तर:
(D) कुँवर नारायण

16. ‘परिवेश : हम तुम’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1961 में
(B) सन् 1962 में
(C) सन् 1959 में
(D) सन् 1963 में
उत्तर:
(A) सन् 1961 में

17. ‘इन दिनों का प्रकाशन वर्ष कौन-सा है?
(A) सन् 1962 में
(B) सन् 1963 में
(C) सन् 1965 में
(D) सन् 1964 में
उत्तर:
(D) सन् 1964 में 18. ‘अपने सामने के रचयिता का नाम क्या है?

18. ‘अपने सामने’ के रचयिता का नाम क्या है?
(A) रघुवीर सहाय
(B) कुँवर नारायण
(C) मुक्तिबोध
(D) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
उत्तर:
(B) कुँवर नारायण

19. ‘अपने सामने का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1996 में
(B) सन् 1995 में
(C) सन् 1997 में
(D) सन् 1999 में
उत्तर:
(C) सन् 1997 में

20. ‘आकारों के आस-पास’ के रचयिता कौन हैं?
(A) आलोक धन्वा
(B) रघुवीर सहाय
(C) मुक्ति बोध
(D) कुँवर नारायण
उत्तर:
(D) कुँवर नारायण

21. ‘आकारों के आस-पास’ किस विधा की रचना है?
(A) काव्य-संग्रह
(B) कहानी संग्रह
(C) निबंध संग्रह
(D) कविता संग्रह
उत्तर:
(B) कहानी संग्रह

22. ‘आज और आज से पहले किस विधा की रचना है?
(A) निबंध संग्रह
(B) उपन्यास
(C) एकांकी संग्रह
(D) समीक्षा
उत्तर:
(D) समीक्षा

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23. ‘कविता के पंख लगाने में कौन-सा अलंकार है?
(A) अनुप्रास
(B) रूपक
(C) उत्प्रेक्षा
(D) उपमा
उत्तर:
(B) रूपक

24. सीधी बात भी किसके चक्कर में फंस गई थी?
(A) निपुणता
(B) शैतानी
(C) भाषा
(D) भय
उत्तर:
(C) भाषा

25. ‘कवि की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) रूपक
(B) उपमा
(C) श्लेष
(D) काकुवक्रोक्ति
उत्तर:
(A) रूपक

26. ‘कविता के बहाने’ कविता में किस छंद का प्रयोग हआ है?
(A) कवित्त छंद
(B) सवैया छंद
(C) मुक्त छंद
(D) दोहा छंद
उत्तर:
(C) मुक्त छंद

27. ‘बाहर भीतर इस घर, उस घर’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) श्लेष
(B) यमक
(C) अनुप्रास
(D) वक्रोक्ति
उत्तर:
(C) अनुप्रास

28. भाषा के क्या करने से बात और अधिक पेचीदा हो गई?
(A) तोड़ने-मरोड़ने
(B) उलटने-पलटने
(C) घुमाने-फिराने
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

29. ‘बात की चूड़ी मर जाना’ का अर्थ है
(A) स्पष्ट होना
(B) प्रभावहीन होना
(C) प्रभावपूर्ण होना
(D) तर्कपूर्ण होना
उत्तर:
(B) प्रभावहीन होना

30. ‘बात की पेंच खोलना’ का अर्थ है
(A) बात उलझा देना
(B) बात का प्रभावहीन होना
(C) बात को सहज और स्पष्ट करना
(D) बात को घुमाकर कहना
उत्तर:
(B) बात का प्रभावहीन होना

31. ‘बात का शरारती बच्चे की तरह खेलना’ का अर्थ है
(A) बात का प्रभावहीन होना
(B) कोई ठीक उत्तर न देना
(C) बात द्वारा शरारत करना
(D) बात को सहज स्पष्ट करना
उत्तर:
(B) कोई ठीक उत्तर न देना

32. बिन मुरझाए महकना का अर्थ है
(A) कविता का प्रभाव अनंत काल तक रहता है
(B) कविता कभी नहीं मुरझाती
(C) कविता का प्रभाव शीघ्र नष्ट हो जाता है
(D) कविता को लोग पढ़ना नहीं चाहते
उत्तर:
(A) कविता का प्रभाव अनंत काल तक रहता है

33. बात कवि के साथ किसके समान खेल रही थी?
(A) शरारती बच्चे के
(B) खिलौने के
(C) भाषा के
(D) पेंच के
उत्तर:
(A) शरारती बच्चे के

34. बात बाहर निकलने की अपेक्षा कैसी हो गई थी?
(A) पेचीदा
(B) सरल
(C) वक्र
(D) व्यर्थ
उत्तर:
(A) पेचीदा

35. ‘बात सीधी थी पर’ नामक कविता में कवि ने किस पर बल दिया है?
(A) भाषा की जटिलता
(B) भावों की सरसता
(C) भाषा की सहजता
(D) भावों की गरिमा
उत्तर:
(C) भाषा की सहजता

36. ‘बात सीधी थी पर’ कविता में कवि ने कौन-सी कोशिश नहीं की थी?
(A) उलटा पलटा
(B) तोड़ा मरोड़ा
(C) हिलाया सरकाया
(D) घुमाया फिराया
उत्तर:
(C) हिलाया सरकाया

37. भाषा को घुमाने फिराने से बात कैसी हो जाती है?
(A) पेचीदा
(B) सरल
(C) दिव्य
(D) सौम्य
उत्तर:
(A) पेचीदा

कविता के बहाने पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर 

[1] कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने
कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने
बाहर भीतर
इस घर, उस घर
कविता के पंख लगा उड़ने के माने
चिड़िया क्या जाने? [पृष्ठ-17]

शब्दार्थ-सरल हैं।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘कविता के बहाने से लिया गया है। यह कविता ‘इन दिनों काव्य-संग्रह से ली गई है तथा इसके कवि कुँवर नारायण हैं। इस कविता में कवि स्पष्ट करता है कि कविता के द्वारा अपार संभावनाओं को खोजा जा सकता है। अतः यह कहना गलत है कि कविता का अस्तित्व समाप्त हो गया है

व्याख्या-कवि कविता की शक्ति का वर्णन करता हुआ कहता है कि कविता एक उड़ान है। जहाँ चिड़िया की उड़ान सीमित होती है, परन्तु कविता की उड़ान असीमित होती है। उसमें नए-नए भाव, नए-नए रंग तथा नए-नए विचार उत्पन्न होते रहते हैं। कविता की उड़ान बड़ी ऊँची होती है। चिड़िया भी कविता की उड़ान के उस छोर तक नहीं पहुँच पाती। कविता के भाव असीम होते हैं। कविता न केवल घर के भीतर की गतिविधियों का वर्णन करती है, बल्कि वह बाहर के क्रियाकलापों को भी व्यक्त करती है। भाव यह है कि कभी तो कविता घर-परिवार की समस्याओं का उद्घाटन करती है तो कभी घर के बाहर के वातावरण का मार्मिक वर्णन करती है। कविता के साथ कल्पना के पंख लगे होते हैं। इसलिए उसकी उड़ान असीम है। बेचारी चिड़िया कविता की असीम शक्ति को कैसे पहचान सकती है। जहाँ प्रकृति का क्षेत्र ससीम है, वहाँ कविता का क्षेत्र अनंत और असीम है।

विशेष –

  1. यहाँ कवि ने कविता और चिड़िया की उड़ान की मनोहारी तुलना की है। चिड़िया एक सीमित क्षेत्र में ही उड़ान भर सकती है, परंतु कविता की उड़ान असीमित है।
  2. ‘चिड़िया क्या जाने’ में प्रश्नालंकार है तथा इसमें मानवीकरण का भी पुट है।
  3. ‘कविता के पंख’ में रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  4. ‘बाहर भीतर इस घर, उस घर’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  5. सहज, सरल तथा प्रवाहमयी हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  6. शब्द-योजना सार्थक व सटीक है।
  7. वर्णनात्मक शैली है तथा मुक्त छंद का सफल प्रयोग है, लेकिन छंद में लयबद्धता भी है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
(ग) कविता चिड़िया के बहाने एक उड़ान क्यों है?
(घ) इस पद्यांश का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(क) कवि-कुँवर नारायण कविता- कविता के बहाने’

(ख) इस पंक्ति द्वारा कवि यह कहना चाहता है कि चिड़िया तो प्रकृति के प्रांगण में ही उड़ान भरती है। उसकी अपनी कुछ सीमाएँ हैं। वह केवल आकाश में ही उड़ सकती है, परंतु वह मानव-मन की सूक्ष्म भावनाओं में प्रवेश नहीं कर पाती। इसलिए वह कविता की उड़ान को नहीं जान सकती।

(ग) जिस प्रकार चिड़िया खुले आकाश में उड़ान भरती है, उसी प्रकार कवि की कल्पना चिड़िया की ऊँची उड़ान को देखकर कल्पना लोक में विचरण करने लगती है। कवि केवल प्राकृतिक सौंदर्य का ही वर्णन नहीं करता, बल्कि वह मानव मन की सूक्ष्म भावनाओं का वर्णन भी करता है। अतः चिड़िया की उड़ान कविता के लिए प्रेरणा का काम करती है।

(घ) इस पद्यांश में कवि ने चिड़िया की उड़ान और कविता की उड़ान की तुलना की है। चिड़िया की उड़ान की अपेक्षा कविता की उड़ान अधिक प्रभावशाली, शक्तिशाली तथा व्यापक है। कविता की उड़ान का संबंध मानव मन की सूक्ष्म भावनाओं से भी है।

[2] कविता एक खिलना है फूलों के बहाने
कविता का खिलना भला फूल क्या जाने!
बाहर भीतर
इस घर, उस घर
बिना मुरझाए महकने के माने
फूल क्या जाने? [पृष्ठ-17]

शब्दार्थ-महकना = सुगंध बिखेरना।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘कविता के बहाने’ से लिया गया है। यह कविता ‘इन दिनों काव्य-संग्रह से ली गई है। इसके कवि कुँवर नारायण हैं। इस कविता में कवि ने स्पष्ट किया है कि कविता के द्वारा अपार संभावनाओं को खोजा जा सकता है। अतः यह कहना गलत है कि कविता का वजूद समाप्त हो गया है। इस पद्य में कवि कविता की तुलना फूल के साथ करता है।

व्याख्या-कवि कहता है कि कविता फूलों को देखकर खिलती है और पुष्पित होती है। फूलों के समान कविता में भी नए-नए रंग भर जाते हैं। कविता का खिलना असीम है, जबकि फूल का खिलना ससीम है। फल केवल खिलकर अपने चारों ओर स तथा सुंदरता को बिखेर देता है, परंतु फूल कविता के खिलने को ठीक से समझ नहीं पाता। फूल का क्षेत्र सीमित है। एक समय ऐसा आता है जब फूल मुरझाकर नष्ट हो जाता है। उसके साथ-साथ उसकी सुगंध तथा सुंदरता भी समाप्त हो जाती है, परंतु कविता की सुगंध तथा सुंदरता कभी समाप्त नहीं होती। वह न केवल घर के बाहर तथा भीतर अपनी सुगंध तथा सुंदरता को बिखेरती है, बल्कि वह प्रत्येक घर में अपने भाव-सौंदर्य को बिखेरती रहती है। फूल तो केवल इतना जानता है कि बस सुगंध उत्पन्न करना तथा एक दिन झर जाना। फूल बिना मुरझाए महकने के अर्थ को नहीं जान सकता। कविता हमेशा अपने भावों की सुगंध बिखेरती रहती है। उसका भाव शाश्वत होता है तथा वह कभी नष्ट नहीं होता।

विशेष –

  1. इस पद्यांश में कवि ने कविता तथा फूल की तुलना बहुत सुंदर ढंग से की है। कविता की तुलना में फूल ससीम है परंतु कविता अनंत और असीम है।
  2. ‘कविता का खिलना फूल क्या जाने’ इस पद्य पंक्ति में काकूवक्रोक्ति अलंकार का वर्णन हुआ है।
  3. ‘फूल क्या जाने’ में प्रश्नालंकार है तथा मानवीकरण अलंकार का पुट भी है।
  4. संपूर्ण पद्य में अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।
  5. सहज, सरल तथा बोधगम्य हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  6. शब्द-चयन सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  7. वर्णनात्मक शैली है तथा मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है, लेकिन छंद में लयबद्धता भी है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कविता का खिलना फूल क्या जाने-पंक्ति में कवि क्या कहना चाहता है?
(ख) कविता और फूल के खिलने में क्या अंतर है?
(ग) कविता बिना मुरझाए बाहर भीतर कैसे महकती है?
(घ) इस पद्य का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(क) कवि फूल की सीमाओं पर प्रकाश डालता हुआ कहता है कि भले ही वह खिलकर चारों ओर सुगंध बिखेरता है, परंतु उसका खिलना सीमित होता है। वह कविता के मर्म को नहीं जान पाता। निश्चय से कविता फूल से अधिक मूल्यवान है। उसकी प्रभावोत्पादकता असीम है।

(ख) फूल खिलकर एक सीमित क्षेत्र में अपनी सुगंध तथा सुंदरता को बिखेरता है। परंतु कविता का क्षेत्र असीमित होता है। कविता की कल्पना सर्वत्र पहुँच सकती है। फूल कविता के समान व्यापक नहीं है। इसलिए कहा भी गया है
“जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि।”

(ग) कविता एक ऐसा फूल है जो कभी नहीं मुरझाता और हमेशा अपनी महक को बिखेरता रहता है। कविता बाह्य प्रकृति और आंतरिक प्रकृति दोनों का वर्णन करने में समर्थ है। वह अनंत काल तक अपनी सुगंध को बिखेरती रहती है। कविता का प्रभाव अनंत तथा असीम है।

(घ) इस पद्यांश द्वारा कवि कविता और फूल की तुलना करते हुए कहता है कि फूल एक सीमित दायरे में अपनी सुगंध तथा सुंदरता को बिखेरता है। कुछ समय के बाद शीघ्र ही वह नष्ट हो जाता है। परंतु कविता मानव मन के बाहर तथा भीतर दोनों को सुगंधित करती है। इसलिए फूल की शक्ति ससीम है, परंतु कविता की शक्ति असीम है।

[3] कविता एक खेल है बच्चों के बहाने
बाहर भीतर
यह घर, वह घर
सब घर एक कर देने के माने
बच्चा ही जाने। [पृष्ठ-17]

शब्दार्थ-सरल हैं।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘कविता के बहाने से लिया गया है। यह कविता ‘इन दिनों काव्य-संग्रह से ली गई है। इसके कवि कुँवर नारायण हैं। इस कविता में कवि ने स्पष्ट किया है कि कविता के द्वारा अपार संभावनाओं को खोजा जा सकता है। अतः यह कहना गलत है कि कविता का वजूद समाप्त हो गया है। इसमें कवि ने बच्चों में पाई जाने वाली स्वाभाविक आत्मीयता और निष्कलुषता का सजीव वर्णन किया है।

व्याख्या-कवि का कथन है कि कवि बच्चों की क्रीड़ाओं को देखकर अपनी कविता द्वारा शब्द-क्रीड़ा करता है। वह शब्दों के माध्यम से नए-नए भावों तथा विचारों के खेल खेलता है। जिस प्रकार बच्चे कभी घर में खेलते हैं, कभी बाहर खेलते हैं और अपने-पराए का भेदभाव नहीं करते, उसी प्रकार कवि भी कविता के द्वारा सभी के भावों का वर्णन करता है। बच्चों के खेल कवि को भी प्रेरणा देते हैं। खेल-खेल में बच्चे एक-दूसरे को अपना बना लेते हैं और वे एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं। कवि भी बच्चों के समान बाहर और भीतर के मनोभावों का वर्णन करता है। वह समान भाव से सभी लोगों की सूक्ष्म भावनाओं का चित्रण करता है। भाव यह है कि जिस प्रकार बच्चे एक-दूसरे को जोड़ते हैं, उसी प्रकार कवि भी अपनी कविता द्वारा जोड़ने का प्रयास करता है।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने बच्चों में पाई जाने वाली स्वाभाविक आत्मीयता तथा निष्कलुषता का उद्घाटन किया है।
  2. कवि यह स्पष्ट करता है कि बच्चे आपस में खेलते हुए अपने-पराए के भेदभाव को भूल जाते हैं।
  3. संपूर्ण पद्य में अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।
  4. सहज, सरल तथा बोधगम्य हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  5. शब्द-चयन सर्वथा उचित व सटीक है।
  6. वर्णनात्मक शैली का प्रयोग है तथा मुक्त छंद है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि ने कविता को खेल क्यों कहा है?
(ख) बच्चे खेल-खेल में कौन-सा महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं?
(ग) बच्चों के खेलने तथा कविता रचने में क्या समानता है?
(घ) इस पद्य से हमें क्या संदेश मिलता है?
उत्तर:
(क) बच्चे मनोरंजन तथा आत्माभिव्यक्ति के लिए आपस में खेलते हैं। खेलों के पीछे उनका कोई गंभीर उद्देश्य नहीं होता, परंतु क्रीड़ाएँ बच्चों को आनंदानुभूति प्रदान करती हैं। इसी प्रकार कविता की रचना करना भी एक खेल है। कविता के द्वारा कवि न केवल श्रोताओं का मनोरंजन करता है, बल्कि उन्हें आनंदानुभूति भी प्रदान करता है।

(ख) बच्चे खेल-खेल में अपने-पराए के भेदभाव को भूल जाते हैं। खेलों द्वारा उनमें आत्मीयता की भावना उत्पन्न होती है। बच्चे खेलों के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं।

(ग) बच्चों के खेलने तथा कविता रचने में सबसे बड़ी समानता यह है कि दोनों ही आनंदानुभूति प्रदान करते हैं। दोनों ही समाज को जोड़ने का काम करते हैं, तोड़ने का नहीं। दूसरा, दोनों से ही मनोरंजन होता है।

(घ) इस पद्यांश से हमें यह संदेश मिलता है कि बच्चों के समान कविता भी हमें आपस में जोड़ती है। कविता अपने-पराए के भेदभाव को भूलकर सबकी अनुभूतियों को व्यक्त करती है। कविता का क्षेत्र बड़ा ही विस्तृत व व्यापक है। इसका प्रभाव भी शाश्वत और अनंत है।

बात सीधी थी पर पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर 

[1] बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में
जरा टेढ़ी फँस गई।
उसे पाने की कोशिश में
भाषा को उलटा पलटा
तोड़ा मरोड़ा
घुमाया फिराया
कि बात या तो बने
या फिर भाषा से बाहर आए
लेकिन इससे भाषा के साथ साथ
बात और भी पेचीदा होती चली गई। [पृष्ठ-18]

शब्दार्थ-चक्कर = प्रभाव दिखाने की कोशिश। टेढ़ा फँसना = बुरी तरह फँसना। पेचीदा = जटिल, उलझी हुई।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘बात सीधी थी पर’ में से अवतरित है। यह कविता कुँवर नारायण द्वारा रचित काव्य-संग्रह ‘कोई दूसरा नहीं’ में संकलित है। इस पद्यांश में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि कथ्य के अनुसार कविता की भाषा सहज, सरल तथा बोधगम्य होनी चाहिए। सीधी बात को हम सहज एवं सरल भाषा द्वारा प्रभावशाली बना सकते हैं।

व्याख्या-कवि कहता है कि मैं कविता द्वारा एक सहज, सरल बात कहना चाहता था। एक बार ऐसा करते समय मैं भाषा के भ्रम का शिकार बन गया। मैंने सोचा कि मैं बढ़िया-से-बढ़िया भाषा का प्रयोग करूँ, परंतु ऐसा करते समय मेरा कथ्य उलझकर रह गया और बात की सरलता और स्पष्टता नष्ट हो गई। सरल-सी बात भी सुलझकर रह गई। तब मैंने एक बड़ी भारी भूल की। मैंने भाषा के शब्दों को काटना-छाँटना तथा तोड़ना-मरोड़ना आरंभ कर दिया। उसे कभी इधर घुमाया, कभी उधर घुमाया। वस्तुतः मैं अपनी मूल बात को सहज तथा सरल रूप से व्यक्त करना चाहता था, परंतु मेरी बात उलझकर रह गई। तब मैंने यह कोशिश की कि या तो मेरे मन की बात सहजता से व्यक्त हो जाए या मेरी बात को भाषा के उलट-फेर से स्वतंत्रता मिल जाए। परंतु दोनों काम नहीं हो सके। इस प्रयास में भाषा जटिल से जटिलतर होती चली गई और मेरी मूल बात भी सरलता खोकर जटिल बन गई। भाव यह है कि कविता का कथ्य और माध्यम दोनों उलझकर रह गए।

विशेष-

  1. इस पद्य में कवि ने सहज, सरल कथ्य को सहज और सरल माध्यम (भाषा) द्वारा अभिव्यक्त करने की प्रक्रिया पर बल दिया है। ऐसा करने से अभिव्यक्ति की सरलता का भाव स्वतः प्रकट हो जाता है।
  2. सहज, सरल तथा बोधगम्य हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है जिसे लयात्मक गद्य कहा जा सकता है।
  3. प्रस्तुत पद्य में उलटा-पलटा, तोड़ा-मरोड़ा, घुमाया-फिराया आदि शब्दों का सटीक प्रयोग किया गया है। इन शब्द-युग्मों में अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है।
  4. ‘साथ-साथ’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग है।
  5. ‘भाषा का चक्कर’ तथा ‘टेढ़ी फँसी’ आदि लोक प्रचलित शब्दों का प्रयोग हुआ है।
  6. ज़रा, पेचीदा आदि उर्दू शब्दों का सहज प्रयोग है।
  7. मुक्त छंद है तथा आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) ‘भाषा के चक्कर’ से कवि का क्या अभिप्राय है?
(ग) कवि द्वारा भाषा के तरोड़ने-मरोड़ने का क्या दुष्परिणाम हुआ?
(घ) कवि भाषा के चक्कर में क्यों फँस गया?
(ङ) इस पद्यांश का संदेश क्या है?
उत्तर:
(क) कवि-कुँवर नारायण कविता-बात सीधी थी पर (ख) जब कवि कविता की भाषा में अलंकार-सौंदर्य, शब्द-शक्तियों आदि को बलपूर्वक लूंसने का प्रयास करता है तो भाषा में जटिलता उत्पन्न हो जाती है। परिणामस्वरूप मूल संदेश शब्दों में उलझकर रह जाता है। कवि कथ्य के चारों ओर भाषा का ऐसा जंजाल खड़ा हो जाता है कि सीधी बात भी नहीं कही जा सकती।

(ग) कवि द्वारा भाषा को तरोड़ने-मरोड़ने तथा उलटने-पलटने के फलस्वरूप बात और उलझकर रह गई और कवि-कथ्य जटिल और पेचीदा बन गया।

(घ) कवि अपनी सीधी बात को प्रभावशाली ढंग से कहना चाहता था। इसलिए उसने बढ़िया-से-बढ़िया भाषा का प्रयोग करने का प्रयास किया, परंतु उसकी बात और उलझकर रह गई।

(ङ) इस पद्य द्वारा कवि यह संदेश देना चाहता है कि कवि को जान-बूझकर भाषा जटिल नहीं बनानी चाहिए, बल्कि सीधी बात सरल शब्दों में व्यक्त करनी चाहिए। भाषा की जटिलता कथ्य को उलझाकर रख देती है और कविता पाठक को आनंदानुभूति नहीं दे पाती।

[2] सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना
मैं पेंच को खोलने के बजाए
उसे बेतरह कसता चला जा रहा था
क्यों कि इस करतब पर मुझे
साफ सुनाई दे रही थी
तमाशबीनों की शाबाशी और वाह वाह। [पृष्ठ-18]

शब्दार्थ-मुश्किल = कठिनाई। बेतरह = बुरी तरह। करतब = चमत्कार। तमाशबीन = तमाशा देखने वाले (पाठक)। शाबाशी = प्रशंसा।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘बात सीधी थी पर’ में से अवतरित है। यह कविता कुँवर नारायण द्वारा रचित काव्य-संग्रह ‘कोई दूसरा नहीं’ में संकलित है। इस पद्यांश में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि कथ्य के अनुसार कविता की भाषा सहज, सरल तथा बोधगम्य होनी चाहिए। इसमें कवि स्पष्ट करता है कि जटिल भाषा का प्रयोग करने वाला कवि लोगों की वाह-वाही तो लूट लेता है, परंतु वह अपने भाव तथा भाषा को जटिल बना देता है

व्याख्या कवि कहता है कि मेरी सहज, सरल बात भाषा के चक्कर में फंस गई थी। मैं इस कठिनाई को धैर्यपूर्वक समझ नहीं पाया, बल्कि मैं समस्या के कारण को समझे बिना ही उसे और जटिल बनाता चला गया। जिस प्रकार कोई कारीगर पेंच को खोलने की बजाए उसे बुरी तरह कसता चला जाता है, उसी प्रकार मैं भी भाषा के साथ ज़बरदस्ती करने लगा। मेरी इस बेवकूफी पर वाह-वाही करने वाले लोग भी अधिक थे जो मुझे शाबाशी दे रहे थे। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि मेरी कविता के भाव और भाषा दोनों जटिल बनते चले गए और कविता का कथ्य उलझकर रह गया।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने स्पष्ट किया है कि कवि का कथ्य जब जटिल भाषा में उलझकर रह जाता है तो वह अपना धैर्य खो बैठता है तब वह जटिल से जटिलतर भाषा का प्रयोग करने लगता है।
  2. ‘तमाशबीन’ शब्द में व्यंग्य छिपा हुआ है। प्रायः दर्शक, श्रोता अथवा प्रशंसक अकारण प्रशंसा द्वारा कवि को भ्रमित कर देते हैं और वह कविता में जटिल भाषा का प्रयोग करने का आदी बन जाता है।
  3. ‘करतब’ शब्द में व्यंग्यात्मकता है। जान-बूझकर भाषा को जटिल बनाना करतब ही कहा जाएगा।
  4. पेंच कसने के बिंब द्वारा कवि अपनी बात को स्पष्ट करता है। यहाँ उद्देश्य बिंब के साथ रूपकातिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  5. सहज, सरल तथा बोधगम्य हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  6. शब्द-योजना सर्वथा उचित व सटीक है।
  7. मुश्किल, करतब, साफ, तमाशबीन, शाबाशी आदि उर्दू के शब्दों का सफल प्रयोग है जिससे इस पद्यांश की भाषा लोक प्रचलित हिंदी बन गई है।
  8. पेंच खोलने की बजाए उसे कसने में दृश्य बिंब की योजना सुंदर बन पड़ी है।
  9. मुक्त छंद का प्रयोग है तथा आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(क) पेंच खोलने का क्या अर्थ है?
(ख) कवि सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना पेंच को खोलने की बजाए कसता क्यों चला गया?
(ग) तमाशबीन वाह-वाह क्यों कर रहे थे?
(घ) कवि के कार्य को करतब क्यों कहा गया है?
(ङ) इस पद्यांश का मुख्य भाव क्या है?
उत्तर:
(क) यहाँ पेंच खोलने से अभिप्राय अभिव्यक्ति की जटिलता को और अधिक बढ़ाना है। कवि अपना धैर्य खो चुका था। इस कारण वह मूल समस्या को समझे बिना जटिल से जटिलतर भाषा का प्रयोग करता चला गया।

(ख) कवि अपने कथ्य को अत्यधिक प्रभावशाली बनाना चाहता था। इसलिए वह धैर्यपूर्वक समस्या को नहीं समझ पाया और कविता के अभिव्यक्ति पक्ष को जटिल बनाता चला गया।

(ग) तमाशबीन कवि की प्रशंसा करके उसका उत्साह बढ़ा रहे थे। वे अभिव्यक्ति के सौंदर्य को जानते नहीं थे। वे तो केवल कवि की जटिल भाषा से प्रभावित होकर कवि की पीठ ठोंक रहे थे।

(घ) कवि ने सोचे-समझे बिना अपनी बात को उलझाने तथा जटिल बनाने का प्रयास किया। इसलिए कवि के कार्य को करतब कहा गया है।

(ङ) इस पद्यांश के द्वारा कवि यह कहना चाहता है कि कवि को धैर्यपूर्वक सरल अभिव्यक्ति का ही प्रयोग करना चाहिए। सरल भाषा में कही गई बात श्रोता की समझ में शीघ्र आ जाती है और वह कवि की अभिव्यंजना शिल्प से प्रभावित भी होता है। परंतु जो कवि सोचे-समझे बिना बात को उलझाकर जटिल बना देते हैं, उनकी कविता वांछित प्रभाव

[3] आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था
ज़ोर ज़बरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी!
हार कर मैंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया
ऊपर से ठीकठाक
पर अंदर से
न तो उसमें कसाव था
न ताकत!
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछते देख कर पूछा
“क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा?” [पृष्ठ-18-19]

शब्दार्थ- ज़ोर ज़बरदस्ती = बलपूर्वक। चूड़ी मरना = पेंच कसने के लिए बनाई गई चूड़ी का नष्ट होना (कथ्य की प्रभावोत्पादकता)। कसाव = कसावट। ताकत = शक्ति। सहूलियत = आसानी, सरलता। बरतना = प्रयोग करना।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘बात सीधी थी पर’ में से अवतरित है। यह कविता कुँवर नारायण द्वारा रचित काव्य-संग्रह ‘कोई दूसरा नहीं’ में संकलित है। इस पद्यांश के कवि कुँवर नारायण हैं। इस पद्यांश में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि कथ्य के अनुसार कविता की भाषा सहज, सरल तथा बोधगम्य होनी चाहिए।

व्याख्या कवि स्पष्ट करता है कि यहाँ अन्ततः वही परिणाम निकला जिसका कवि को भय था। भाषा को तोड़ने-मरोड़ने तथा जटिल बनाने से कविता की भावाभिव्यक्ति का प्रभाव ही नष्ट हो गया। उसकी अभिव्यंजना कंद हो र भाषा भावहीन होकर पीड़ा करने लगी अर्थात् कविता का मूल कथ्य तो नष्ट हो गया, केवल भाषा की उछल-कूद ही दिखाई देने लगी। अंत में कवि तंग आ गया। उसने निराश होकर अभिव्यक्ति को चमत्कारी शब्दों से बलपूर्वक लूंस दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि ऊपर से वह कविता ठीक लग रही थी, परंतु उसका कथ्य पक्ष बड़ा ही कमज़ोर तथा प्रभावहीन बनकर रह गया। कवि के कथन में न कोई प्रभाव था और न ही भावों की गंभीरता थी। कवि की कविता पूर्णतः प्रभावहीन बनकर रह गई थी।

अंत में कविता के कथ्य ने (बात ने) बच्चे की तरह कवि के साथ क्रीड़ा करते हुए उससे कहा कि तुम मुझ पर व्यर्थ में ही मेहनत कर रहे थे और अपनी इस मूर्खता पर पसीना बहा रहे थे। हैरानी की बात यह है कि तुम्हें आज तक सहज तथा सरल भाषा का प्रयोग करना ही नहीं आया। इससे पता चलता है कि तुम एक अयोग्य और बेकार कवि हो। तुम इस तथ्य को नहीं जान पाए कि सहज तथा सरल भाषा में कही बात ही प्रभावशाली सिद्ध होती है।

विशेष-

  1. कवि ने स्वीकार किया है कि जटिल तथा चमत्कारी भाषा का प्रयोग करने से कविता का मूल भाव प्रभावहीन हो जाता है।
  2. पेंच कसने में दृश्य बिंब की योजना सजीव बन पड़ी है। यहाँ रूपकातिशयोक्ति अलंकार का भी प्रयोग हुआ है।
  3. ‘बात की चूड़ी मरना’ में भी रूपकातिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  4. ‘कील की तरह ठोंकना’ से अभिप्राय है भाषा का बलपूर्वक प्रयोग करना।
  5. प्रस्तुत पद्य में बात का सुंदर और प्रभावशाली मानवीकरण हुआ है।
  6. ‘कील की तरह’, ‘शरारती बच्चे की तरह’ दोनों में उपमा अलंकार का प्रयोग है।
  7. ‘पसीना पोंछना’, ‘ज़ोर-ज़बरदस्ती’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
  8. ‘कवि का पसीना पोंछना’ में सुंदर बिंब योजना है। यह पद परिश्रम की व्यर्थता को सिद्ध करता है।
  9. इसमें कवि ने सहज, सरल एवं बोधगम्य भाषा का प्रयोग किया है। इसमें आखिर, ज़ोर-ज़बरदस्ती, ताकत, पसीना, सहूलियत आदि उर्दू शब्दों का बड़ा ही सुंदर मिश्रण किया गया है।
  10. शब्द-योजना बड़ी सार्थक व सटीक है।
  11. मुक्त छंद तथा संवादात्मक शैली का प्रयोग है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि को किस बात का डर था?
(ख) कवि के सामने कथ्य तथा माध्यम की क्या समस्या थी?
(ग) क्या कवि इस समस्या का हल निकाल सका?
(घ) बात ने शरारती बच्चे के समान कवि से क्या कहा?
(ङ) इस पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(क) कवि को इस बात का डर था कि जटिल भाषा का प्रयोग करने से कविता का मुख्य भाव प्रभावहीन तथा अस्पष्ट हो जाएगा और अंत में ऐसा ही हुआ।

(ख) कवि अपने कथ्य को प्रभावशाली माध्यम के द्वारा व्यक्त करना चाहता था। परंतु कवि इस सच्चाई से अनभिज्ञ था कि सहज तथा बोधगम्य भाषा में कही गई बात ही अधिक प्रभावशाली और गंभीर होती है।

(ग) कवि इस समस्या का हल नहीं निकाल पाया। जटिल भाषा के प्रयोग के कारण कवि की बात उलझकर रह गई। अंततः कवि ने निराश होकर अभिव्यक्ति को चमत्कारी शब्दों से लूंस दिया।

(घ) बात ने शरारती बच्चे के समान कवि से कहा कि तुम व्यर्थ में ही परिश्रम कर रहे हो और अपनी बेवकूफी की मेहनत पर पसीना बहा रहे हो। तुम आज तक समझ नहीं पाए कि कविता में हमेशा सहज, सरल, बोधगम्य भाषा का ही प्रयोग करना चाहिए।

(ङ) इस पद्यांश में कवि स्वीकार करता है कि वह अपने कथ्य को सहज, सरल भाषा के द्वारा अभिव्यक्त नहीं कर पाया। जटिल भाषा के प्रयोग के कारण उसकी बात उलझकर रह गई और प्रभावहीन हो गई।

कविता के बहाने, बात सीधी थी पर Summary in Hindi

कविता के बहाने, बात सीधी थी पर कवि-परिचय

प्रश्न-
श्री कुँवर नारायण का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
श्री कुँवर नारायण का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-कुँवर नारायण उत्तर शती के एक महत्त्वपूर्ण नए कवि हैं। उनका जन्म 19 सितंबर, 1927 को फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ। इंटर तक उन्होंने विज्ञान विषय में शिक्षा प्राप्त की। बाद में उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण की। उन्हें आरंभ से ही घूमने-फिरने का शौक था। उन्होंने सन् 1955 में चेकोस्लोवाकिया, पौलैंड, रूस तथा चीन का भ्रमण किया। वे सन् 1956 में ‘युग चेतना’ के संपादक मंडल से जुड़ गए। बाद में ‘नया प्रतीक’ तथा ‘धायानट’ के संपादक मंडल में भी रहे तथा उत्तर प्रदेश नाटक मंडली के अध्यक्ष भी बने। कालांतर में वे भारतेंदु नाटक अकादमी के अध्यक्ष बन गए। आरंभ में उन्होंने अंग्रेज़ी में कविताएँ लिखीं। परंतु बाद में हिंदी में कविता लिखने लगे। उनको सन् 1971 में हिंदुस्तानी अकादमी पुरस्कार, 1973 में ‘प्रेमचंद पुरस्कार’ तथा 1982 में मध्यप्रदेश का ‘तुलसी पुरस्कार’ तथा केरल का ‘कुमारन आशान पुरस्कार’ भी प्राप्त हुए। उनके इस काम के लिए उत्तर प्रदेश संस्थान ने भी सम्मानित किया तथा 1955 में ‘व्यास सम्मान’, ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘शतदल’ पुरस्कार मिले। इन्हें ‘कबीर’ सम्मान भी मिला।

2. प्रमुख रचनाएँ-अज्ञेय के संपादन में निकले ‘तीसरा सप्तक’ 1959 में संकलित कविताएँ ‘चक्रव्यूह’ (1956), ‘परिवेश : हम तुम’ (1961), ‘आत्मजयी’ (1965), ‘इन दिनों अपने सामने’ (1997), ‘कोई दूसरा नहीं’ (1993) आदि इनकी प्रसिद्ध काव्य रचनाएँ हैं। इसके अतिरिक्त ‘आकारों के आस-पास’ (कहानी संग्रह); ‘आज और आज से पहले’ (समीक्षा); ‘मेरे साक्षात्कार’ (सामान्य) उल्लेखनीय रचनाएँ हैं।

3. काव्यगत विशेषताएँ-कुँवर नारायण जी की काव्य-यात्रा निरंतर विकास की ओर हुई है। ‘तार सप्तक’ की कविताओं के बाद कवि ने व्यक्ति के मन की स्थिति के चित्रों का अंकन किया है। इनकी काव्यगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) सामाजिक चेतना-कुँवर नारायण की कविताओं में सामाजिक चेतना का विकास देखा जा सकता है। ‘चक्रव्यूह’ में जहाँ जीवन के प्रति सामाजिक जीवन का प्रवाह है, वहाँ जीवन-संघर्षों के अनेक प्रश्नों की तलाश भी दिखाई देती है। इस काव्य रचना में कवि ने जीवन व जगत की अनेक स्थितियों का वर्णन किया है। जीवन के संघर्षों को कवि अपनी नियति नहीं मानता, बल्कि वह टुकड़ों में बँटी हुई जिंदगी के सुनहरे क्षणों को देखता है; यथा
जरा ठहरो, जिंदगी के इन टुकड़ों को फिर से सँवार लूँ,
और उन सुनहले क्षणों को जो भागे जा रहे हैं।
पुकार लू …………….
आगे चलकर कवि मानव के अस्तित्व का चित्रण करते हुए उसके सामने उपस्थित भयानक स्थितियों का वर्णन करता है। कवि स्वीकार करता है कि विषम परिस्थितियों में आदमी जानवर बन जाता है। इसका कारण यह है कि परिस्थितियों की जकड़न से बाहर निकलकर उसके स्वभाव में बदलाव आ जाता है। ‘तब भी कुछ नहीं हुआ’, ‘पूरा जंगल’ आदि कविताएँ इसी तथ्य को उजागर करती हैं।

(ii) क्रूर व्यवस्था का वर्णन- कवि ‘अपने सामने’, काव्य-संग्रह में उस क्रूर व्यवस्था का वर्णन करता है जो मनुष्य की स्वतंत्रता, उसके अस्तित्व को जकड़ लेना चाहती है। लेकिन इसके साथ-साथ वह मुक्ति की भी चर्चा करता है। कवि आस्थाशील है। उसके विचारानुसार सत्ता की यह क्रूरता सार्वकालिक नहीं है, इसे हटाया भी जा सकता है। इसके लिए कवि नैतिकता से जुड़ने की सलाह देता है। कवि का विचार है कि हमें क्रूर व्यवस्था का डट कर विरोध करना चाहिए, अन्यथा यह संपूर्ण मानवता को निगल जायेगी।
उनके अफसर, सिपाही और कोतवाल-
उनके सलाहकार, मसखरे और नक्काल-
…………………………………………………
छा गये हैं।
वे सबके सब वापस आ गये हैं।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

(iii) सही मार्ग की खोज-कवि चारों ओर फैली हुई छीना-झपटी और दुनियादारी में विश्वास नहीं करता। वह मानव-जीवन को अंधकारमय होने से बचाना चाहता है। वह एक ऐसा मार्ग खोजना चाहता है जो जीवन को गतिशील बनाए रखे और बाधाओं का सामना कर सके। कवि कहता है
मुझको इस छीना-झपटी में विश्वास नहीं।
मुझको इस दुनियादारी में विश्वास नहीं
……………………………………………………….
एक दृष्टि चाहिए मुझे –
भौतिक जीवन बच सके।

(iv) प्रकृति-वर्णन-कवि ने ‘जाड़े की एक सुबह’, ‘बसंत की लहर’, ‘बसंत आ’, ‘सूर्यास्त’ आदि कविताओं में प्रकृति के पूरे निखार का वर्णन किया है। कवि प्रकृति-वर्णन द्वारा उपदेश नहीं देना चाहता, बल्कि उसके सौंदर्य का स्वाभाविक वर्णन करना चाहता है; यथा
नदी की गोद में नादान शिशु-सा
अर्द्ध सोया द्वीप।
झिलमिल चाँदनी में नाचती परियाँ
लहर पर लहर लहराती
बजाकर तालियाँ गाती।

(v) प्रेम के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण-प्रेम के प्रति कुँवर नारायण का दृष्टिकोण पूर्णतया स्वस्थ एवं वैयक्तिक है। उनके विचारानुसार प्रेम मनुष्य के लिए शक्ति का काम करता है। यह निराश तथा कुचले जीवन में भी सजीवता उत्पन्न करता है। इसलिए प्रेम को आत्मा में स्थान देना चाहिए।
जिंदा रहने के लिए
प्यार एक खूबसूरत वजह है
लेकिन जिंदगी के लिए
दिल से कहीं अधिक आत्मा में जग है।

4. भाषा-शैली-कुँवर नारायण ने खड़ी बोली के स्वाभाविक रूप का अधिक प्रयोग किया है। उन्होंने न तो बलपूर्वक लोक भाषा का प्रयोग किया है और न ही संस्कृतनिष्ठ पदावली का। कवि ने सहज, सरल तथा भावानुकूल छंदों, बिंबों, प्रतीकों तथा अलंकारों का ही प्रयोग किया है। उनकी कविता को पढ़कर पाठक आत्मीयता का अनुभव करता है। छंदों के बारे में उनकी दृष्टि खुली है, क्योंकि वे सभी प्रकार के छंदों का प्रयोग करते हैं। यही नहीं उनकी कविताओं में अनुप्रास, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, मानवीकरण आदि अलंकारों का भी सहज प्रयोग हुआ है; यथा-
उपमा –
जहरीली फफूंदी-सी उदासी
छीलकर मन से अलग कर दो।
मानवीकरण-धूप चुपचाप एक कुर्सी पर बैठी
किरणों के ऊन का स्वेटर बुनती रही।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि कुँवर नारायण नयी कविता के प्रसिद्ध हस्ताक्षर हैं। भाव और भाषा दोनों दृष्टिकोणों से उनका काव्य आधुनिक युगबोध से जुड़ा हुआ है।

कविता के बहाने कविता का सार 

प्रश्न-
कुँवर नारायण द्वारा रचित कविता ‘कविता के बहाने’ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता आधुनिक कवि कुँवर नारायण द्वारा रचित एक छोटी-सी कविता है। यह कविता कवि के काव्य-संग्रह ‘इन दिनों में संकलित है। आज के वैज्ञानिक युग में कविता का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। यद्यपि पाश्चात्य काव्यशास्त्री आई०ए० रिचर्डस् ने आज के भौतिकवादी युग के लिए कविता को आवश्यक माना है, लेकिन काव्य प्रेमियों में एक डर-सा समा गया है कि आज के यांत्रिक युग में कविता का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। इस संदर्भ में प्रस्तुत कविता अपार संभावनाओं को टटोलने का प्रयास करती है। ‘कविता के बहाने’ कविता चिड़िया की यात्रा से आरंभ होती है और फूल का स्पर्श करते हुए बच्चे पर आकर समाप्त हो जाती है। कवि कविता के महत्त्व का प्रतिपाद्य करते हुए कहता है कि चिड़िया की उड़ान सीमित है। वह एक निश्चित समय में निश्चित दायरे में ही उड़ान भर सकती है। इसी प्रकार फूल भी एक निश्चित समय के बाद मुरझा जाता है। परंतु बालक के मन और मस्तिष्क में असीम सपने होते हैं। बच्चों के खेलों की कोई सीमा नहीं होती। इसी प्रकार कविता के शब्दों का खेल भी अनंत और शाश्वत है। कवि जड़, चेतन, अतीत, वर्तमान और भविष्य सभी को स्पर्श करता हुआ अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति करता है। कविता में एक रचनात्मक ऊर्जा होती है। इसलिए वह घर, भाषा तथा समय के बंधनों को तोड़कर प्रवाहित होती है। कविता का क्षेत्र अनंत और असीम है।

बात सीधी थी पर कविता का सार 

प्रश्न-
कुँवर नारायण द्वारा रचित ‘बात सीधी थी पर कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता कुँवर नारायण द्वारा रचित काव्य-संग्रह ‘कोई दूसरा नहीं’ में संकलित है। इस कविता में कवि ने कथ्य और माध्यम के द्वंद्व को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। कवि हमें यह समझाने का प्रयास करता है कि हमें काव्य के विषय को सहज तथा सरल भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त करना चाहिए। परंतु प्रायः कवि कविता में चमत्कार उत्पन्न करने के लिए उसे पेचीदा बना देते हैं। इस प्रकार के कवि इस भ्रम के शिकार हो जाते हैं कि इस क्लिष्ट भाषा का प्रयोग करने से उन्हें अधिकाधिक लोकप्रियता प्राप्त होगी। कुछ क्षणों के लिए ऐसा हो भी जाता है। पाठक अथवा श्रोता भी कवि के भ्रम का शिकार हो जाते हैं, परंतु बाद में कवि द्वारा कही गई बात प्रभावहीन हो जाती है क्योंकि चमत्कार के चक्कर में कवि की भाषा पर पकड़ ढीली पड़ जाती है। इस संदर्भ में कवि उदाहरण भी देता है। वह कहता है कि पेंच को निर्धारित चूड़ियों पर ही कसा जाना चाहिए। यदि चूड़ियाँ समाप्त होने पर पेंच को घूमाएँगे तो चूड़ियाँ मर जाएँगी और उसकी पकड़ ढीली पड़ जाएगी। भले ही उसे बलपूर्वक ठोक दिया जाए, पर वह पहली जैसी बात नहीं रहती। सहज शब्दावली में सहजता के साथ ही भावों की अभिव्यक्ति होनी चाहिए। सहजता की पकड़ मजबूत और स्थाई होती है। इसमें न अधिक परिश्रम करना पड़ता है और न ही अधिक दवाब डालना पड़ता है। इसलिए कवि को अपनी सहज एवं सीधी बात को सहज भाषा के साथ अभिव्यक्त करना चाहिए।

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