Haryana State Board HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 7 राष्ट्रवाद Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 11th Class Political Science Solutions Chapter 7 राष्ट्रवाद
HBSE 11th Class Political Science राष्ट्रवाद Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
राष्ट्र किस प्रकार से बाकी सामूहिक संबद्धताओं से अलग है?
उत्तर:
राष्ट्र और अन्य सामूहिक संबद्धताएँ पूर्णत: अलग-अलग हैं। अन्य सामूहिक संबद्धताओं के विपरीत राष्ट्र की अवधारणा को अधिक व्यापक सन्दर्भ में व्यक्त किया जाता है । इस कथन की पुष्टि निम्नलिखित विवरणों के द्वारा की जा सकती है
(1) राष्ट्र, मानव समाज में पाए जाने वाले अन्य समूहों या समुदायों से पूर्णत: अलग है। यह परिवार से भी अलग है, क्योंकि परिवार प्रत्यक्ष संबंधों पर आधारित होता है। जिसका प्रत्येक सदस्य दूसरे सदस्यों के व्यक्तित्व और चरित्र के बारे में व्यक्तिगत जानकारी रखता है, जबकि दूसरी तरफ राष्ट्र का क्षेत्र व्यापक हैं। क्योंकि राष्ट्र एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में विभिन्न परिवारों, समुदायों, जातियों और धर्मानुयायियों आदि का समूह है।
इसकी अपनी सरकार और प्रभुसत्ता होती है और जो निर्णय लेने के लिए भी पूर्णत: स्वतंत्र होता है। इसमें रहने वाले लोगों के बीच साझा विश्वास और साझी ऐतिहासिक पहचान भी पाई जाती हैं।
(2) राष्ट्र एक तरह से जनजातीय, जातीय और अन्य सगोत्रीय समूहों से भी अलग है। इन समूहों में विवाह और वंश-परंपरा सदस्यों को आपस में जोड़ती हैं। इसलिए यदि हम सभी सदस्यों को व्यक्तिगत रूप से नहीं भी जानते हैं तब भी आवश्यकता पड़ने पर हम उन सूत्रों को ढूँढ सकते हैं, जो हमें आपस में जोड़ते हैं। जबकि दूसरी तरफ राष्ट्र के सदस्य के रूप में हम अपने राष्ट्र के अधिकतर सदस्यों को सीधे तौर पर न कभी जान पाते हैं और न ही उनके साथ वंशानुगत नाता जोड़ पाते हैं। फिर भी राष्ट्रों का अपना अस्तित्व है। लोग उनमें रहते हैं और राष्ट्र के प्रति पूर्ण निष्ठाभाव रखते हैं।
(3) प्रायः यह माना जाता है कि राष्ट्रों का निर्माण ऐसे समूह द्वारा किया जाता है जो कुल, भाषा, धर्म तथा जातीयता जैसी कुछेक निश्चित पहचान का सहभागी होता है। लेकिन ऐसे निश्चित विशिष्ट गुण वास्तव में हैं ही नहीं जो सभी राष्ट्रों में समान रूप से मौजूद हों। कई राष्ट्रों की अपनी कोई सामान्य भाषा नहीं है। बहुत से राष्ट्रों में उनको जोड़ने वाला कोई सामान्य धर्म भी नहीं है। वास्तव में, राष्ट्र का निर्माण साझे विश्वास एवं हित, साझी ऐतिहासिक पहचान, विशेष भौगोलिक क्षेत्र, साझे राजनीतिक दर्शन और साझी राजनीतिक पहचान जैसे तत्त्वों से होता है।
प्रश्न 2.
राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के अधिकार से आप क्या समझते हैं? किस प्रकार यह विचार राष्ट्र-राज्यों के निर्माण और उनको पिल रही चुनौती में परिणत होता है?
उत्तर:
आत्म-निर्णय का तात्पर्य एक राज्य में रहने वाले लोगों की जनसंख्या को उसके बाह्य व आन्तरिक पहलुओं पर स्वयं निर्णय लेने के अधिकार से लिया जाता है। प्रत्येक राष्ट्र में कई अलग-अलग समूह निवास करते हैं। इन समूहों में यह भिन्नता जाति, धर्म, नस्ल, भाषा और संस्कृति के आधार पर पाई जाती है।
यही समूह अन्य सामाजिक समूहों से अलग अपना राष्ट्र, अपना शासन व अपने-आप काम करने एवं अपना भविष्य निश्चित करने का अधिकार चाहते हैं, जो कि आत्मनिर्णय को अधिकार के रूप में जानते हैं। एक समूह की माँग दूसरे समूह से न होकर, दूसरे स्वतंत्र राष्ट्र से होती है। अपनी इस माँग में एक अलग इकाई अथवा एक अलग राज्य की माँग को मान्यता देने तथा उस मान्यता को स्वीकृति देने पर बल दिया जाता है।
इस प्रकार की माँगें एक निश्चित भू-भाग पर स्थायी रूप से बसे लोगों के द्वारा की जाती है, जिनकी अपनी कोई साझी नस्ल या संस्कृति भी होती है। कुछ माँगें स्वतंत्रता से जुड़ी हो सकती हैं तथा कुछ ऐसी माँगें भी हो सकती हैं जिनका संबंध संस्कृति की रक्षा से होता है। राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के विचार के अन्तर्गत यद्यपि कई राष्ट्र-राज्यों का निर्माण हुआ। प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात राज्यों की पुनर्व्यवस्था में एक संस्कृति एक राज्य के विचार को आजमाया गया।
वर्साय की संधि से बहुत-से छोटे और नए स्वतंत्र राज्यों का गठन हुआ। लेकिन आत्म-निर्णय की सभी माँगों को संतुष्ट करना वास्तव में असंभव था। इसके अतिरिक्त एक संस्कृति-एक राज्य की माँगों को संतुष्ट करने से राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन भी आए। इससे सीमाओं के एक ओर से दूसरी ओर बहुत बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हुए।
परिणामस्वरूप उन लाखों लोगों के घर उजड़ गए और उन्हें उस जगह से बाहर धकेल दिया गया, जहाँ पीढ़ियों से उनका घर था। बहुत-से-लोग सांप्रदायिक दंगों के शिकार हुए। राज्यों की सीमाओं में आए बदलाव के कारण मानव जाति को भारी कीमत चुकानी पड़ी। इस प्रयास के बावजूद यह सुनिश्चित करना संभव नहीं हो सका कि नवगठित राज्यों में केवल एक ही नस्ल के लोग रहें।
वास्तव में अधिकतर राज्यों की सीमाओं के अंदर एक से अधिक नस्ल और संस्कृति के लोग रहते थे। ये छोटे-छोटे समुदाय राज्य के अंदर अल्पसंख्यक थे और हमेशा असुरक्षा की भावना से ग्रसित रहते थे।
प्रश्न 3.
हम देख चुके हैं कि राष्ट्रवाद लोगों को जोड़ भी सकता है और तोड़ भी सकता है। उन्हें मुक्त कर सकता है और उनमें कटुता और संघर्ष भी पैदा कर सकता है। उदाहरणों के साथ उत्तर दीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रवाद के विषय में उपर्युक्त कथन पूर्णतः सत्य है। इसकी सत्यता को हम निम्नलिखित उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं
(1) उन्नीसवीं शताब्दी के यूरोप में राष्ट्रवाद ने कई छोटी-छोटी रियासतों के एकीकरण से वृहत्तर राष्ट्र-राज्यों की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। आज के जर्मनी और इटली का गठन एकीकरण और सुदृढ़ीकरण की इसी प्रक्रिया के द्वारा हुआ था। लातिनी अमेरिका में बड़ी संख्या में नए राज्य भी स्थापित किए गए थे। राज्य की सीमाओं के सुदृढीकरण के साथ स्थानीय निष्ठाएँ और बोलियाँ भी उत्तरोत्तर राष्ट्रीय निष्ठाओं एवं सर्वमान्य जनभाषाओं के रूप में विकसित हुईं। नए राष्ट्र के लोगों ने एक नई पहचान अर्जित की जो राष्ट्र-राज्य की सदस्यता पर आधारित थी।
(2) यद्यपि इसी राष्ट्रवाद ने बड़े-बड़े साम्राज्यों का पतन भी किया है। यूरोप में बीसवीं शताब्दी के आरंभ में ऑस्ट्रेयाई-हंगेरियाई, रूसी साम्राज्य तथा इनके साथ एशिया और अफ्रीका में ब्रिटिश फ्रांसीसी डच और पुर्तगाली साम्राज्य के विघटन के मूल में राष्ट्रवाद ही था। भारत और अन्य पूर्व उपनिवेशों के औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्र होने के संघर्ष भी राष्ट्रवादी संघर्ष ही मुख्य था।
प्रश्न 4.
वंश, भाषा, धर्म या नस्ल में से कोई भी पूरे विश्व में राष्ट्रवाद के लिए साझा कारण होने का दावा नहीं कर सकता। टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त कथन बिलकुल सत्य है। सामान्यतया ऐसा माना जाता है कि राष्ट्रों का निर्माण ऐसे समूह द्वारा किया जाता है जो वंश, भाषा, धर्म तथा जातीयता जैसे कुछेक निश्चित पहचान का सहभागी होता है। लेकिन ऐसे निश्चित विशिष्ट गुण वास्तव में हैं ही नहीं जो सभी राष्ट्रों में समान रूप से मौजूद हों; जैसे भारत में विभिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न नस्लों या कुल के लोग यहाँ रहते हैं।
कनाडा में अंग्रेजों और फ्रांसीसी भाषा-भाषी लोग साथ रहते हैं। अमेरिका में भी इसी प्रकार की विभिन्नताएँ देखने को मिलती हैं। वहाँ यूरोप के विभिन्न देशों के लोग रहते हैं। बहुत-से राष्ट्रों में उनको जोड़ने वाला कोई सामान्य धर्म भी नहीं है। इस प्रकार विभिन्न वंश, भाषा, धर्म या नस्ल के लोग एक राष्ट्र में रहते हैं लेकिन इनमें से कोई भी राष्ट्रवाद के लिए साझा कारण होने का दावा नहीं कर सकते।
प्रश्न 5.
राष्ट्रवादी भावनाओं को प्रेरित करने वाले कारकों पर सोदाहरण रोशनी डालिए।
उत्तर:
1. भौगोलिक एकता-राष्ट्रवाद को जन्म देने वाले तत्त्वों में भौगोलिक एकता एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है जो व्यक्ति-समूह काफी लम्बे समय तक एक निश्चित क्षेत्र पर, जिसके सभी भाग आपस में मिले हुए हैं, मिल-जुलकर रहते हैं, तो उनके जीवन में एक ऐसी एकता की उत्पत्ति हो जाती है जो राष्ट्रीयता का सार है। एक ही स्थान पर रहने वाले लोगों में आपस में एक-जैसे रीति-रिवाज़, समान रहन-सहन तथा खान-पान का विकास होता है जो कि राष्ट्रीयता के निर्माण में बहुत बड़ा सहयोग देता है।
उदाहरणस्वरूप, यहूदी लोगों को अरबों के आक्रमण के कारण फिलिस्तीन से भागना पड़ा और वे यूरोप के कई भागों में बिखरे रहे, परन्तु उन्होंने अपने हृदय से अपनी मातृ-भूमि को कभी नहीं निकाला और उसकी स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष जारी रखा। सन् 1948 में जब अंग्रेज़ो ने फिलिस्तीन खाली कर दिया तो ये लोग वहाँ आकर बस गए और यहूदी राज्य की स्थापना की।
2. समान इतिहास-समान इतिहास व्यक्तियों में राष्ट्रवाद की भावनाओं को उत्पन्न करने में बहुत सहायक सिद्ध हुआ है। लोगों की समान स्मृतियाँ, समान जय-पराजय, समान राष्ट्रीय अभिमान की भावनाएँ, समान राष्ट्रीय वीर, समान लोक गीत आदि उनमें राष्ट्रीयता की भावना को प्रबल बनाने में बहुत योग देते हैं। किसी देश की जनता का विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध किया गया सामूहिक संघर्ष उनमें राष्ट्रीयता की भावना भर देता है।
पं० जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गाँधी, भगत सिंह जैसे वीरों ने भारत के इतिहास में शानदार कार्य किए जिन्हें कोई भी भारतीय भुला नहीं सकता, क्योंकि उन्होंने भारत में राष्ट्रवाद की भावना जागृत की। रैम्जे म्यूर (Ramsey Muir) ने सांझे इतिहास के तत्त्व के महत्त्व को बताते हुए लिखा है, “बहादुरी से प्राप्त की गई उपलब्धियाँ तथा बहादुरी से झेले गए कष्ट, दोनों ही राष्ट्रवाद की भावना के लिए ताकतवर भोजन हैं। भूत में उचित सम्मान, वर्तमान में पूर्ण विश्वास तथा भविष्य की आशा, ये सभी राष्ट्रीय भावनाओं को मजबूत बनाते हैं तथा उन्हें स्थि करते हैं।”
3. समान राजनीतिक आकांक्षाएँ-आजकल समान राजनीतिक आकांक्षाओं को राष्ट्रवाद के निर्माण के लिए समान धर्म तथा समान भाषा आदि से भी अधिक महत्त्व दिया जाता है। एक ही सरकार के अधीन रहने तथा एक ही प्रकार के कानूनों का पालन करने से लोगों में एकता की भावना पैदा हो जाती है। यह एकता उस समय और भी अधिक मजबूत हो जाती है जब वह किसी विदेशी सरकार के अधीन रहते हों, क्योंकि अधीनस्थ लोग अपनी स्वतन्त्रता को प्राप्त करने के लिए और अपने राष्ट्र का निर्माण करने के लिए आसानी से संगठित हो जाते हैं।
उदाहरणस्वरूप, भारत में राष्ट्रवाद की भावना उस समय मजबूत हुई जब इन्होंने मिलकर अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध अपना संघर्ष शुरू किया। एशिया तथा अफ्रीका के कुछ अधीनस्थ देशों में इसी तत्त्व ने राष्ट्रीयता की लहर फैलाई। इसी प्रकार भारतवर्ष पर 1962 ई० में किए गए चीनी आक्रमण ने भारतवासियों में राष्ट्रवाद की भावना को और दृढ़ कर दिया।
4. लोक इच्छा-राष्ट्रवाद के निर्माण में सहायता देने वाला एक अन्य महत्त्वपूर्ण तत्त्व लोगों में ‘राष्ट्रवाद की इच्छा’ का होना है। डॉ० अम्बेडकर (Dr. Ambedkar) ने लोक-इच्छा को भारत में राष्ट्रवाद के विकास में एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व माना है। लोगों में जब तक राष्ट्र बनाने की इच्छा प्रबल नहीं होती, तब तक किसी भी देश में राष्ट्रवाद का निर्माण नहीं हो सकता।
प्रश्न 6.
संघर्षरत राष्ट्रवादी आकांक्षाओं के साथ बर्ताव करने में तानाशाही की अपेक्षा लोकतंत्र अधिक समर्थ होता है। कैसे?
उत्तर:
लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत अलग-अलग सांस्कृतिक और नस्लीय पहचानों के लोग देश में समान नागरिक और साथियों की तरह सह-अस्तित्वपूर्वक जीवनयापन कर सकते हैं। यह न केवल आत्म-निर्णय के नए दावों से उत्पन्न होने वाली समस्याओं के समाधान के लिए वरन् मजबूत और एकताबद्ध राज्य बनाने के लिए समर्थ व्यवस्था है।
इससे राष्ट्र-राज्य अपने शासन में अल्पसंख्यक समूहों के अधिकारों और सांस्कृतिक पहचान को सम्मान देता है और उसके बदले में अपने सदस्यों की निष्ठा प्राप्त करने में भी सफल रहता है। वास्तव में, लोकतंत्र समावेशी होता है अर्थात् सबके अस्तित्व को महत्त्व देता है, सबकी आकांक्षाओं के साथ समान बर्ताव करता है। इसके विपरीत तानाशाही व्यवस्था में दमनकारी नीतियाँ अधिक प्रभावी होती हैं और समाज में रहने वाले लोगों में असुरक्षा की भावना बनी रहती है। अतः संघर्षरत राष्ट्रवादी आकांक्षाओं का पतन हो जाता है।
प्रश्न 7.
आपकी राय में राष्ट्रवाद की सीमाएँ क्या हैं?
उत्तर:
मेरे विचार या राय में राष्ट्रवाद की सीमाएँ निम्नलिखित हैं
(1) जिन राज्यों में धनी तथा निर्धन का अन्तर बहुत अधिक होगा तथा उनके हितों में विरोध होगा तो वहाँ के लोगों में राष्ट्रवाद की भावना का विकास नहीं होगा।
(2) धर्म की विभिन्नता भी राष्ट्रीय एकता को नष्ट करती है; जैसे भारत में धार्मिक विभिन्नता के कारण ही साम्प्रदायिक दंगे होते हैं।
(3) आधुनिक राज्यों में छोटे-छोटे समूह निजी स्वार्थों के कारण आत्म-निर्णय की माँग करते हैं। यदि इनकी माँगों को स्वीकार कर लिया जाए तो एक राज्य में अनेक राज्य स्थापित हो जाएँगे, जहाँ विकास नहीं बल्कि पतन की संभावनाएँ अधिक होती हैं।
(4) जातीय, भाषाई व क्षेत्रीय श्रेष्ठता की संकुचित भावना भी राष्ट्रवाद के मार्ग में बाधा उत्पन्न करती है।
(5) जिस राष्ट्र के नागरिक हमेशा व्यक्तिगत हितों की पूर्ति में लगे रहते हैं वहाँ पर राष्ट्रीय भावनाएँ अवरुद्ध हो जाती हैं।
(6) राष्ट्रों में अपनी संस्कृति को श्रेष्ठ मानने तथा दूसरों को तुच्छ मानने की भावना भी राष्ट्रवाद को सीमित करती है।
राष्ट्रवाद HBSE 11th Class Political Science Notes
→ आधुनिक युग की विचारधाराओं में राष्ट्रवाद महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। राष्ट्रवाद एक ऐसी भावना है जो व्यक्ति में देश-प्रेम तथा देश-भक्ति की भावना पैदा करती है।
→ यह वह शक्ति है जो विभिन्न राज्यों के विकास तथा प्रगति, पराधीन राज्यों की स्वतन्त्रता, विश्व शान्ति तथा युद्ध आदि समस्याओं का प्रमुख आधार है। इस भावना के आधार पर ही भिन्न-भिन्न राज्यों ने आश्चर्यजनक प्रगति की है। गुलाम देशों ने स्वतन्त्रता प्राप्त की है तथा अन्य अधीनस्थ राज्यों को स्वतन्त्रता पाने का मार्ग दिखाया है।
→ एक राष्ट्र की मजबूती उस राष्ट्र में रहने वाले लोगों में पाई जाने वाली राष्ट्रवाद की भावना पर निर्भर करती है। इसी भावना के कारण ही मनुष्य अपना तन, मन तथा धन अपने राष्ट्र के लिए कुर्बान करने के लिए तैयार हो जाते हैं। इस प्रकार राष्ट्रवाद एक विशाल अवधारणा है।
→ राष्ट्र, राष्ट्रीयता तथा राष्ट्रवाद एक ही अवधारणा के अलग-अलग रूप हैं। ये अवधारणाएँ उतनी ही प्राचीन हैं जितना कि मानव का सामुदायिक तथा सामाजिक जीवन है। परन्तु राजनीतिक सन्दर्भ में ये अवधारणाएँ अपने सक्रिय रूपों में आधुनिक राजनीतिक परिवेशों में व्यक्त होती रही हैं।
→ वर्तमान समय के राजनीतिक समाज अथवा राज्य ‘राष्ट्रराज्य’ कहलाते हैं। इनके निर्माण का आधार राष्ट्र, राष्ट्रीयता तथा राष्ट्रवाद की धारणाएँ हैं।
→ यद्यपि हम इस बात को तो सर्वसम्मति से स्वीकार कर सकते हैं कि विश्व में राष्ट्रवाद आज भी एक प्रभावी शक्ति है, लेकिन राष्ट्र या राष्ट्रवाद जैसे शब्दों की परिभाषा के सम्बन्ध में किसी सहमति पर पहुँचना बहुत कठिन है।
→ वास्तव में राष्ट्र क्या है? लोग राष्ट्रों का निर्माण क्यों करते हैं और राष्ट्र क्या करने की तीव्र इच्छा जगाते हैं? लोग अपने राष्ट्र के लिए त्याग करने एवं प्राण तक न्यौछावर करने के लिए क्यों तैयार रहते हैं?
→ राष्ट्रत्व या देशभक्ति के दावे राज्यत्व या शासकीय शक्ति के दावों से क्यों और कैसे जुड़ जाते हैं? क्या राष्ट्रों को पृथक् रहने या राष्ट्रीय आत्म-निर्णय का अधिकार प्राप्त है? क्या पृथक्-राज्यत्व को स्वीकार किए बिना राष्ट्रवाद के दावे को पुष्ट किया जा सकता है?
→ इन विभिन्न के मुद्दों या विषयों के सम्बन्ध में हम इस अध्याय में विभिन्न अति लघु, लघु एवं निबन्धात्मक प्रश्नों के माध्यम से स्पष्ट करेंगे।