HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

HBSE 11th Class Geography भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. स्थलरूप विकास की किस अवस्था में अधोमुख कटाव प्रमुख होता है?
(A) तरुणावस्था
(B) प्रथम प्रौढ़ावस्था
(C) अंतिम प्रौढ़ावस्था
(D) वृद्धावस्था
उत्तर:
(A) तरुणावस्था

2. एक गहरी घाटी जिसकी विशेषता सीढ़ीनुमा खड़े ढाल होते हैं; किस नाम से जानी जाती है-
(A) U आकार की घाटी
(B) अंधी घाटी
(C) गॉर्ज
(D) कैनियन
उत्तर:
(D) कैनियन

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

3. निम्न में से किन प्रदेशों में रासायनिक अपक्षय प्रक्रिया यांत्रिक अपक्षय प्रक्रिया की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली होती है-
(A) आर्द्र प्रदेश
(B) शुष्क प्रदेश
(C) चूना-पत्थर प्रदेश
(D) हिमनद प्रदेश
उत्तर:
(A) आर्द्र प्रदेश

4. निम्न में से कौन-सा वक्तव्य लेपीज (Lapies) शब्द को परिभाषित करता है-
(A) छोटे से मध्यम आकार के उथले गर्त
(B) ऐसे स्थलरूप जिनके ऊपरी मुख वृत्ताकार व नीचे से कीप के आकार के होते हैं
(C) ऐसे स्थलरूप जो धरातल से जल के टपकने से बनते हैं
(D) अनियमित धरातल जिनके तीखे कटक व खाँच हों
उत्तर:
(D) अनियमित धरातल जिनके तीखे कटक व खाँच हों

5. गहरे, लंबे व विस्तृत गर्त या बेसिन जिनके शीर्ष दीवार खड़े ढाल वाले व किनारे खड़े व अवतल होते हैं, उन्हें क्या कहते हैं?
(A) सर्क
(B) पाश्विक हिमोढ़
(C) घाटी हिमनद
(D) एस्कर
उत्तर:
(A) सर्क

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
चट्टानों में अधःकर्तित विसर्प और मैदानी भागों में जलोढ़ के सामान्य विसर्प क्या बताते हैं?
उत्तर:
नदी विकास की प्रारंभिक अवस्था में प्रारंभिक मंद ढाल पर विसर्प लूप विकसित होते हैं और ये लूप चट्टानों में गहराई तक होते हैं जो प्रायः नदी अपरदन या भूतल के लगातार उत्थान के कारण बनते हैं। बाढ़ व डेल्टाई मैदानों पर लूप जैसे प्रारूप विकसित होते हैं, जिन्हें विसर्प कहते हैं। नदी विसर्प के निर्मित होने का एक कारण तटों पर जलोढ़ का अनियमित व असंगठित जमाव है। बड़ी नदियों के विसर्प में उत्तल किनारों पर सक्रिय निक्षेपण होते हैं।

प्रश्न 2.
घाटी रंध्र अथवा युवाला का विकास कैसे होता है?
उत्तर:
धरातलीय प्रवाहित जल घोल रंध्रों व विलयन रंध्रों से गुजरता हुआ अन्तभौमि नदी के रूप में विलीन हो जाता है और फिर कुछ दूरी के पश्चात् किसी कंदरा से भूमिगत नदी के रूप में फिर निकल आता है। जब घोलरंध्र व डोलाइन इन कंदराओं की छत से गिरने से या पदार्थों के स्खलन द्वारा आपस में मिल जाते हैं, तो लंबी, तंग तथा विस्तृत खाइयाँ बनती हैं जिन्हें घाटी रंध्र या युवाला कहते हैं।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

प्रश्न 3.
चूनायुक्त चट्टानी प्रदेशों में धरातलीय जल प्रवाह की अपेक्षा भौम जल प्रवाह अधिक पाया जाता है, क्यों?
उत्तर:
भौम जल का कार्य सभी चट्टानों में नहीं देखा जा सकता। ऐसी चट्टानें जैसे चूना-पत्थर या डोलोमाइट, जिनमें कैल्शियम कार्बोनेट की प्रधानता होती है, वहाँ पर इसकी अधिक मात्रा देखने को मिलती है। इसलिए चूना युक्त चट्टानी प्रदेशों में धरातलीय जल प्रवाह की अपेक्षा भौम जल प्रवाह अधिक पाया जाता है।

प्रश्न 4.
हिमनद घाटियों में कई रैखिक निक्षेपण स्थलरूप मिलते हैं। इनकी अवस्थिति व नाम बताएँ।
उत्तर:
हिमनद घाटियों के रैखिक निक्षेपण स्थलरूप निम्नलिखित हैं-
1. हिमोढ़-हिमोढ़, हिमनद टिल या गोलाश्मी मृत्तिका के जमाव की लंबी कटके हैं। अंतस्थ, हिमोढ़ हिमनद के अंतिम भाग में मलबे के निक्षेप से बनी लंबी कटकें हैं।

2. एस्कर-हिमनद के पिघलने से जल हिमतल के ऊपर से प्रवाहित होता है अथवा इसके किनारों से रिसता है या बर्फ के छिद्रों के नीचे से प्रवाहित होता है। यह जलधारा अपने साथ बड़े गोलाश्म, चट्टानों के टुकड़े और छोटा चट्टानी मलबा बहाकर लाती है जो हिमनद के नीचे इस बर्फ की घाटी में जमा हो जाते हैं फिर ये पिघलकर वक्राकार कटक के रूप में मिलते है, जिन्हें एस्कर कहते हैं।

3. हिमानी धौत मैदान-हिमानी जलोढ़ निक्षेपों से हिमानी धौत मैदान निर्मित होते हैं।

4. ड्रमलिन-ड्रमलिन का निर्माण हिमनद दरारों में भारी चट्टानी मलबे के भरने व उसके बर्फ के नीचे रहने से होता है।

प्रश्न 5.
मरुस्थली क्षेत्रों में पवन कैसे अपना कार्य करती है? क्या मरुस्थलों में यही एक कारक अपरदित स्थलरूपों का निर्माण करता है?
उत्तर:
मरुस्थली धरातल शीघ्र गर्म और ठंडे हो जाते है। ठंड और गर्मी से चट्टानों में दरारें पड़ जाती हैं जो खंडित होकर पवनों द्वारा अपरदित होती रहती हैं। पवनें रेत के कण उड़ाकर अपने आस-पास की चट्टानों का कटाव करती हैं, जिससे कई स्थलाकृतियों का निर्माण होता है। मरुस्थलों में अपक्षय केवल पवन द्वारा ही नहीं, अपितु वर्षा व वृष्टि से भी प्रभावित होता है। मरुस्थलों में नदियाँ चौड़ी, अनियमित तथा वर्षा के बाद अल्प समय तक ही प्रवाहित होती हैं।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
आई व शुष्क जलवायु प्रदेशों में प्रवाहित जल ही सबसे महत्त्वपूर्ण भू-आकृतिक कारक है। विस्तार से वर्णन करें।
उत्तर:
आर्द्र प्रदेशों में अत्यधिक वर्षा होती है। प्रवाहित जल सबसे महत्त्वपूर्ण भू-आकृतिक कारक है, जो धरातल के निम्नीकरण के लिए उत्तरदायी है। प्रवाहित जल के दो तत्त्व हैं-

  • धरातल पर परत के रूप में फैला हुआ प्रवाह।
  • रैखिक प्रवाह, जो घाटियों में नदियों, सरिताओं के रूप में बहता है।

प्रवाहित जल द्वारा निर्मित अधिकतर अपरदित स्थलरूप ढ़ाल प्रवणता के अनुरूप बहती हुई नदियों की आक्रामक युवावस्था से संबंधित हैं। तेज ढाल लगातार अपरदन के कारण मंद ढाल में परिवर्तित हो जाते हैं, जिससे निक्षेपण आरंभ होता है। तेज ढाल से बहती हुई सरिताएँ भी कुछ निक्षेपित भू-आकृतियाँ बनाती हैं, लेकिन ये नदियों के मध्यम तथा धीमे ढाल पर बने आकारों की अपेक्षा बहुत कम होते हैं। प्रवाहित जल का ढाल जितना मंद होगा उतना ही अधिक निक्षेपण होगा।

जब लगातार अपरदन के कारण नदी तल समतल हो जाए, तो अधोमुखी कटाव कम हो जाता है और तटों का पार्श्व अपरदन बढ़ जाता है और इसके फलस्वरूप पहाड़ियाँ और घाटियाँ समतल मैदानों में परिवर्तित हो जाती हैं। शुष्क क्षेत्रों में अधिकतर स्थलाकृतियों का निर्माण बृहत् क्षरण और प्रवाहित जल की चादर बाढ़ से होता है। मरुस्थलीय चट्टानें अत्यधिक वनस्पति-विहीन होने के कारण तथा दैनिक तापांतर के कारण यांत्रिक एवं रासायनिक अपक्षय से अधिक प्रवाहित होती हैं। मरुस्थलीय भागों में • भू-आकृतियों का निर्माण सिर्फ पवनों से नहीं बल्कि प्रवाहित जल से भी होता है।

प्रश्न 2.
चूना चट्टाने आई व शुष्क जलवायु में भिन्न व्यवहार करती हैं क्यों? चूना प्रदेशों में प्रमुख व मुख्य भू-आकृतिक प्रक्रिया कौन सी हैं और इसके क्या परिणाम हैं?
उत्तर:
चूना-पत्थर एक घुलनशील पदार्थ है, इसलिए चूना-पत्थर आर्द्र जलवायु में कई स्थलाकृतियों का निर्माण करता है जबकि शुष्क प्रदेशों में इसका कार्य आर्द्र प्रदेशों की अपेक्षा कम होता है। चूना पत्थर एक घुलनशील पदार्थ होने के कारण चट्टान पर इसके रासायनिक अपक्षय का प्रभाव सर्वाधिक होता है, लेकिन शुष्क जलवायु वाले प्रदेशों में यह अपक्षय के लिए अवरोधक होता है। लाइमस्टोन की रचना में समानता होती है तथा परिवर्तन के कारण चट्टान में फैलाव तथा संकुचन नहीं होता जिस कारण चट्टान का बड़े-बड़े टुकड़ों में विघटन अधिक मात्रा में नहीं हो पाता। डोलोमाइट चट्टानों के क्षेत्र में भौमजल द्वारा घुलन क्रिया और उसकी निक्षेपण प्रक्रिया से बने ऐसे स्थलरूपों को कार्ट स्थलाकृति का नाम दिया गया है।

अपरदनात्मक तथा निक्षेपणात्मक दोनों प्रकार के स्थलरूप कार्ट स्थलाकृतियों की विशेषताएँ हैं। अपरदित स्थलरूप घोलरंध्र, कुंड, लेपीज और चूना पत्थर चबूतरे हैं। चूनायुक्त चट्टानों के अधिकतर भाग गर्तों व खाइयों के हवाले हो जाते हैं और पूरे क्षेत्र में अत्यधिक अनियमित, पतले व नुकीले कटक आदि रह जाते हैं, जिन्हें लेपीज कहते है। कभी-कभी लेपिज के विस्तृत क्षेत्र समतल चुनायुक्त चूबतरों में परिवर्तित हो जाते हैं।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

प्रश्न 3.
हिमनद ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों को निम्न पहाड़ियों व मैदानों में कैसे परिवर्तित करते हैं या किस प्रक्रिया से यह कार्य सम्पन्न होता है बताएँ?
उत्तर:
महाद्वीपीय हिमनद या गिरिपद हिमनद वे हिमनद हैं, जो वृहत् समतल क्षेत्र पर हिम परत के रूप में फैले हों तथा पर्वतीय या घाटी हिमनद वे हिमनद हैं, जो पर्वतीय ढालों में बहते हैं। प्रवाहित जल के विपरीत हिमनद प्रवाह बहुत धीमा होता है। हिमनद प्रतिदिन कुछ सेंटीमीटर या इससे कम से लेकर कुछ मीटर तक प्रवाहित हो सकते हैं। हिमनद मुख्यतः गुरुत्व बल के कारण गतिमान होते हैं। हिमनदों से प्रबल अपरदन होता है जिसका कारण इसके अपने भार से उत्पन्न घर्षण है। हिमनद द्वारा कर्षित चट्टानी पदार्थ, इसके तल में ही इसके साथ घसीटे जाते हैं या घाटी के किनारों पर अपघर्षण व घर्षण द्वारा अत्यधिक अपरदन करते हैं। हिमनद अपक्षय-रहित चट्टानों का भी प्रभावशाली अपरदन करते हैं जिससे ऊँचे पर्वत छोटी पहाड़ियों व मैदानों में परिवर्तित हो जाते हैं।

हिमनद के लगातार संचलित होने से हिमनद मलबा हटता है, विभाजक नीचे हो जाता है और ढाल इतने निम्न हो जाते हैं कि हिमनद की संचलन शक्ति समाप्त हो जाती है तथा निम्न पहाड़ियों व अन्य निक्षेपित स्थलरूपों वाला एक हिमानी धौत रह जाता है।

भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास HBSE 11th Class Geography Notes

→ लोएस (Loess)-पवन द्वारा उड़ाकर जमा किए गए धूल के पीले या स्लेटी रंग के निक्षेप।

→ भू-आकृति (Land Forms)-छोटे-से मध्यम आकार के भूखण्ड को भू-आकृति कहा जाता है।

→ हिमनदी/हिमानी (Glacier) कर्णहिम (Neve) के पुनर्पटन (Recrystallisation) से बनी हिम की विशाल संहतराशि जो धरातल पर गुरुत्वाकर्षण के प्रभावाधीन बहती है, हिमनदी या हिमानी कहलाती है।

→ जल-प्रपात (Water Falls)-चट्टानी कगार के ऊपरी भाग से नदी का सीधे नीचे गिरना जल-प्रपात कहलाता है।

→ नदी तंत्र (River System) मुख्य नदी और उसकी सहायक नदियों को मिलाकर बना एक तंत्र।

→ भूगु (Cliff)-एकदम खड़े समुद्री तट को भृगु कहा जाता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *