HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

HBSE 11th Class Geography पृथ्वी की आंतरिक संरचना Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्नलिखित में से कौन भूगर्भ की जानकारी का प्रत्यक्ष साधन है?
(A) भूकंपीय तरंगें
(B) गुरुत्वाकर्षण बल
(C) ज्वालामुखी
(D) पृथ्वी का चुंबकत्व
उत्तर:
(C) ज्वालामुखी

2. दक्कन ट्रैप की शैल समूह किस प्रकार के ज्वालामुखी उद्गार का परिणाम है?
(A) शील्ड
(B) मिश्र
(C) प्रवाह
(D) कुंड
उत्तर:
(C) प्रवाह

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3. निम्नलिखित में से कौन-सा स्थलमंडल को वर्णित करता है?
(A) ऊपरी व निचला मैंटल
(B) भूपटल व क्रोड
(C) भूपटल व ऊपरी मैंटल
(D) मैंटल व क्रोड
उत्तर:
(C) भूपटल व ऊपरी मैंटल

4. निम्न में भूकंप तरंगें चट्टानों में संकुचन व फैलाव लाती हैं?
(A) ‘P’ तरंगें
(B) ‘S’ तरंगें
(C) धरातलीय तरंगें
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) ‘P’ तरंगें

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
भूगर्भीय तरंगें क्या हैं?
उत्तर:
भूगर्भीय तरंगें उद्गम केंद्र से ऊर्जा मुक्त होने के दौरान पैदा होती हैं और पृथ्वी के अंदरूनी भाग से होकर सभी दिशाओं की तरफ आगे बढ़ती हैं। ये दो प्रकार की होती हैं। इन्हें ‘P’ तरंगें और ‘S’ तरंगें भी कहा जाता है।

  • ‘P’ तरंगें इन्हें प्राथमिक तरंगें भी कहा जाता है। ये तरंगें तीव्र गति से चलने वाली तरंगें होती हैं जो धरातल पर सबसे पहले पहुँचती हैं।
  • ‘S’ तरंगें इन्हें द्वितीयक तरंगें भी कहा जाता है। ये तरंगें धरातल पर कुछ समय के अंतराल के बाद पहुँचती हैं।

प्रश्न 2.
भूगर्भ की जानकारी के लिए प्रत्यक्ष साधनों के नाम बताइए।
उत्तर:
(1) भूगर्भ की जानकारी का सबसे आसानी से उपलब्ध ठोस पदार्थ धरातलीय चट्टानें हैं। ये चट्टानें हमें खनन प्रक्रिया द्वारा प्राप्त होती हैं। खनन प्रक्रिया द्वारा हम भूगर्भ में स्थित जानकारियाँ प्राप्त कर सकते हैं।

(2) खनन के अलावा भू-वैज्ञानिक दो मुख्य परियोजनाओं पर भी काम कर रहे हैं जोकि इस प्रकार हैं-

  • गहरे समुद्र में प्रवेधन परियोजना
  • समन्वित महासागरीय प्रवेधन परियोजना

(3) ज्वालामुखी उद्गार भी प्रत्यक्ष जानकारी का महत्त्वपूर्ण स्रोत है।

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प्रश्न 3.
भूकंपीय तरंगें छाया क्षेत्र कैसे बनाती हैं?
उत्तर:
ऐसे क्षेत्र को भूकंपीय छाया क्षेत्र कहा जाता है जहाँ कोई भी भूकंपीय तरंगें अभिलेखित नहीं होती। वैज्ञानिकों के अनुसार भूकंप अधिकेन्द्र से 105° और 145° के बीच का क्षेत्र दोनों (S या P) तरंगों का छाया क्षेत्र होगा।

105° के परे क्षेत्र में ‘S’ तरंगें नहीं पहुँचतीं। ‘P’ तरंगों का छाया क्षेत्र एक पट्टी के रूप में पृथ्वी के चारों तरफ फैला है, ‘S’ तरंगों का छाया क्षेत्र विस्तार में बड़ा अर्थात् पृथ्वी के 40 प्रतिशत भाग से भी अधिक है।
HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना 1

प्रश्न 4.
भूकंपीय गतिविधियों के अतिरिक्त भूगर्भ की जानकारी संबंधी अप्रत्यक्ष साधनों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
पदार्थ के गुणधर्म के विश्लेषण से पृथ्वी के आंतरिक भाग की अप्रत्यक्ष जानकारी प्राप्त होती है। पृथ्वी की आंतरिक जानकारी के अप्रत्यक्ष साधन उल्काएँ हैं, जो कभी-कभी धरती पर पहुँच जाती हैं। इन्हीं ठोस उल्काओं से हमारी पृथ्वी का गठन हुआ है। गुरुत्वाकर्षण तथा चुबकीय स्रोतों का अध्ययन करना भी अप्रत्यक्ष साधनों के अंतर्गत आता है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
भूकंपीय तरंगों के संचरण का उन चट्टानों पर प्रभाव बताएँ जिनसे होकर ये तरंगें गुजरती हैं।
उत्तर:
भूकंपीय तरंगें दो प्रकार की होती हैं-भूगर्भिक तरंगें व धरातलीय तरंगें। भूगर्भिक तरंगों और धरातलीय शैलों के मध्य अन्योय क्रिया के कारण कई तरंगें उत्पन्न होती हैं। अलग-अलग घनत्व वाले पदार्थों से गुजरने के कारण इन तरंगों के वेग में परिवर्तन आता रहता है। इन परिवर्तनों के कारण परावर्तन (Reflection) एवं आवर्तन (Refraction) होता है, जिस कारण तरंगों की दिशा में बदलाव आता रहता है।

भिन्न-भिन्न प्रकार की भूकंपीय तरंगों के संचरित होने की प्रणाली भी भिन्न-भिन्न होती है, जैसे ही ये संचरित होती हैं, तो शैलों में कंपन पैदा होती है। ‘P’ तरंगें-‘P’ तरंगों से कंपन की दिशा तरंगों की दिशा के समानांतर ही होती है। ये तरंगें संचरण गति की दिशा में ही पदार्थ पर दबाव डालती हैं। इसके फलस्वरूप पदार्थ के घनत्व में भिन्नता आती है और शैलों में संकुचन व फैलाव की प्रक्रिया पैदा होती है।

‘S’ तरंगें-ये तरंगें ऊर्ध्वाधर तल में तरंगों की दिशा के समकोण पर कंपन पैदा करती हैं। ये तरंगें जिस पदार्थ से गुजरती हैं, उसमें उभार व गर्त बनाती हैं। ये तरंगें सबसे अधिक विनाशकारी समझी जाती हैं।

प्रश्न 2.
अंतर्वेधी आकृतियों से आप क्या समझते हैं? विभिन्न अंतर्वेधी आकृतियों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
अंतर्वेधी आकृति (Intrusive Landform)-ज्वालामुखी उद्गार से जो लावा निकलता है, उसके ठंडा होने से आग्नेय शैल बनती है और जब लावा भूपटल के भीतर ही ठंडा हो जाता है तो कई आकृतियाँ बनती हैं इन्हें ही अंतर्वेधी आकृतियाँ कहते हैं।

विभिन्न अंतर्वेधी आकृति (Various Intrusive Landform)-विभिन्न अंतर्वेधी आकृतियाँ इस प्रकार हैं-
1. बैथोलिथ (Batholiths) यदि मैग्मा का बड़ा पिंड भूपर्पटी में अधिक गहराई पर ठंडा हो जाए तो एक गुंबद के आकार में विकसित हो जाता है, इसे ही बैथोलिथ कहते हैं। ये अनाच्छादन प्रक्रियाओं के द्वारा ऊपरी पदार्थ के हटने पर धरातल पर उभर आते हैं। ये ग्रेनाइट के बने पिंड होते हैं।

2. लैकोलिथ (Lacoliths)-ये गंबदनुमा विशाल चट्टानें हैं, जिनका तल समतल व एक पाइपरूपी वाहक-नली से नीचे से जडा होता है और गहराई में पाया जाता है। इनक कृति धरातल पर पाए जाने वाले मिश्रित ज्वालामुखी के गुंबद से मिलती है।

3. लैपोलिथ, फैकोलिथ व सिल (Lapoliths, Phacoliths and sills) ऊपर उठते लावा का कुछ भाग क्षैतिज दिशा में पाए जाने वाले कमजोर धरातल में चला जाता है और यहाँ यह अलग-अलग आकृतियों में जम जाता है। यदि यह तश्तरी के आकार में जम जाए तो लैपोलिथ कहलाता है। यदि यह लहरदार आकृति में जम जाए तो फैकोलिथ कहलाता है।

अंतर्वेधी आग्नेय चट्टानों का क्षैतिज तल में एक चादर के रूप में ठंडा होना सिल या शीट कहलाता है। जमाव की मोटाई के आधार पर इन्हें विभाजित किया जाता है। कम मोटाई वाली जमाव को “शीट” व घने मोटाई वाले जमाव को “सिल” कहा जाता है।

4. डाइक (Dyke)-जब लावा का प्रवाह दरारों में धरातल के लगभग समकोण होता है और यदि इसी अवस्था में ठण्डा हो जाए तो दीवार की भाँति संरचना बनती है। यही संरचना डाइक कहलाती है। ज्वालामुखी उद्गार से बने दक्कन ट्रेप इसी प्रकार की स्थलाकृति के उदाहरण हैं।

पृथ्वी की आंतरिक संरचना HBSE 11th Class Geography Notes

→ भू-पर्पटी (Crust of the Earth) यह अवसादी शैलों से बने धरातलीय आवरण के नीचे पृथ्वी की सबसे बाहरी परत है, जो लगभग 5 से 50 किलोमीटर चौड़ी है। इस पतली परत की तुलना अण्डे के छिलके से की जा सकती है।

→ श्यानता (Viscosity)-किसी तरल पदार्थ का वह गुण जो इसके तत्त्वों के आन्तरिक घर्षण के कारण इसे धीरे बहने देता है। एस्फाल्ट, लाख, शहद, लावा इत्यादि ऐसे ही विस्कासी पदार्थ हैं।

→ उल्कापिण्ड (Meteorites)-उल्का का वह हिस्सा जो अपने बड़े आकार के कारण या कम वेग के कारण पृथ्वी के वायुमंडल में आते हुए घर्षण से पूरी तरह जल नहीं पाता और पृथ्वी तल पर आ गिरता है। अन्तरिक्ष से पृथ्वी पर गिरने वाले ऐसे पिण्डों को उल्कापिण्ड कहते हैं। वायुमंडल में पहुंचने से पहले उल्का को उल्काभ कहते हैं।

→ स्थलमंडल (Lithosphere)-वायुमण्डल और जलमंडल से भिन्न भू-पर्पटी का वह भाग, जो सियाल, साइमा तथा ऊपरी मैंटल के कुछ भाग से मिलकर बना है, उसे स्थलमंडल कहते हैं।

→ तरंगदैर्ध्य (Wave Length)-किसी एकांतर तरंग (Alternating wave) के क्रमिक समान बिंदुओं के बीच की दूरी तरंगदैर्ध्य कहलाती है। उदाहरणतः दो समुद्री तरंगों के शीर्षों के बीच की दूरी।

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→ गुरुमंडल (Barysphere)-पृथ्वी के अभ्यंतर का वह सारा भाग, जो स्थलमंडल के नीचे है। इसमें क्रोड, मैंटल तथा दुर्बलतामंडल (Asthenosphere) तीनों शामिल होते हैं। केवल क्रोड या मैंटल को गुरुमंडल नहीं कहना चाहिए।

→ पटलविरूपणी बल (Diastrophic Forces)-पृथ्वी के भीतर होने वाली वे धीमी, किंतु दीर्घकालीन हलचलें जो भू-पटल में विक्षोभ, मुड़ाव, झुकाव व टूटन (Fracture) लाकर धरातल पर विषमताएं लाती हैं, उन्हें पटलविरूपणी बल कहा जाता है। इन बलों से महाद्वीप बनते हैं।

→ सुनामी (Tsunamis) भूकंप-जनित समुद्री लहरों के लिए सारे संसार में प्रयुक्त किया जाने वाला सुनामी एक जापानी शब्द है, जिसका अर्थ है-Great Harbour Wave भूकंप, विशेष रूप से समुद्री तली पर पैदा होने वाले भूकंप, 15 मीटर या इससे ऊंची लहरों को जन्म देते हैं, जिसकी गति 640 से 960 किलोमीटर प्रति घंटा होती है। सुनामी बहुत दूर तक जा सकती हैं और तटों पर विनाशलीला करती हैं। सुनामी भूकंपों के साथ-साथ विस्फोटक ज्वालामुखी से भी पैदा होती हैं; जैसे क्राकाटोआ (1883) ज्वालामुखी से सुनामी उत्पन्न हुई थी। ऐसी तरंगों को ज्वारीय तरंगें कहना सर्वथा गलत है।

→ प्रशांत अग्नि वलन (Pacific Ring of Fire)-प्रशांत महासागर के पूर्वी और पश्चिमी तटों पर दुर्बल भू-पटल के कारण वहां अधिकतर होने वाली ज्वालामुखी क्रिया और भूकंपों के आगमन के कारण इस क्षेत्र को प्रशांत अग्नि वलय कहा जाता है।

→ भूकंप मूल (Seismic Focus) पृथ्वी के अन्दर वह स्थान जहाँ भूकंप उत्पन्न होता है अर्थात् जहाँ से ऊर्जा निकलती है, भूकंप का उद्गम केन्द्र या भूकंप मूल कहलाता है।

→ अधिकेन्द्र (Epicentre)-धरातल का वह बिन्दु जो उद्गम केन्द्र के सबसे निकट होता है अर्थात् जहाँ भूकंपीय तरंगें सबसे पहले पहुँचती हैं, अधिकेन्द्र कहलाता है।

→ भूकंपलेखी (Seismograph or Seismometre)-भूकंपीय तरंगों को दर्ज (Record) करने वाला स्वचालित यंत्र भूकंपलेखी कहलाता है।

→ समभूकंप रेखाएँ (Iso-seismal lines) समान तीव्रता अथवा आघात वाली भूकंप-रेखाओं को समभूकंप रेखाएँ कहते हैं।

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