HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 6 उपभोक्ता अधिकारों का ज्ञान

Haryana State Board HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 6 उपभोक्ता अधिकारों का ज्ञान Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Home Science Solutions Chapter 6 उपभोक्ता अधिकारों का ज्ञान

अति लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1. (A)
वस्तुओं पर आई० एस० आई० (ISI) मार्क होने का क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
आई० एस० आई० मार्क भारतीय मानक संस्थान (Indian Standard Institute) द्वारा किसी वस्तु की उत्तमता के लिए दिया गया प्रमाण-पत्र है।

प्रश्न 1. (B)
खाद्य-पदार्थों के अतिरिक्त दस (चार) ऐसी वस्तुओं के नाम लिखिए जिन पर आई० एस० आई० मार्क लगा हो।
अथवा
उन चार वस्तुओं के नाम लिखो जिन पर आई० एस० आई० चिह्न लगाया जाता
उत्तर :
खाद्य-पदार्थों के अतिरिक्त दस वस्तुओं के नाम जिन पर आई० एस० आई० का मार्क होता है, निम्नलिखित हैं –

  1. गैस स्टोव
  2. गैस सिलेण्डर
  3. कुकिंग रेन्ज
  4. हेलमेट
  5. ब्लेड
  6. तराजू
  7. बाट
  8. विद्युत् प्रेस
  9. गीजर
  10. विद्युत् हीटर।

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प्रश्न 2.
कोई भी चार मानकीकरण चिह्न बताएं।
उत्तर :
I.S.I., एगमार्क, हालमार्क, F.P.O., वूलमार्क।

प्रश्न 3.
औषधि तथा मादक पदार्थ अधिनियम क्या है ?
उत्तर :
औषधि तथा मादक पदार्थ अधिनियम 1940 में बनाये गये। इस अधिनियम के अन्तर्गत देश में तैयार की गई अथवा आयात की गई औषधियों तथा मादक पदार्थों के गुणों की जाँच की जाती है। इस नियम में समय-समय पर आवश्यकतानुरूप संशोधन किया जाता है।

प्रश्न 4.
औषधि तथा मादक पदार्थ अधिनियम में क्या-क्या संशोधन किये गये ?
उत्तर :
सन् 1955, 1961, 1969 में इस अधिनियम में अनेक महत्त्वपूर्ण संशोधन किए गए हैं तथा उपनियम बनाए गए हैं। इस अधिनियम के अनुसार यदि किसी औषधि अथवा मादक पदार्थ में प्रमाणित स्तर से नीचे के गुण पाए जाते हैं, तो उसे उसके निर्माता से उसके निर्माण का अधिकार छीन लेने के साथ-साथ उसके मालिक को एक वर्ष के कारावास का दण्ड भी दिया जाता है। इस अधिनियम में यह भी व्यवस्था है कि जो औषधियाँ एवं मादक पदार्थ बाजार में बिकने के लिए आएं उन पर लेबल लगा होना चाहिए और इस लेबल पर उपयुक्त सूचनाएं होनी चाहिए।

प्रश्न 5.
एगमार्क क्या है ?
उत्तर :
एगमार्क, भारत सरकार के बिक्री एवं निरीक्षण निदेशालय द्वारा खाद्य-पदार्थों की उत्तमता के लिए दिया गया प्रमाण है।

प्रश्न 6.
I.S.I. मार्क क्या है ? इसकी स्थापना कब हुई ?
उत्तर :
I.S.I. मार्क प्रयोग में लाये जाने वाले उपकरणों की उत्तमता का प्रमाण है। इसकी स्थापना 1947 में हुई।

प्रश्न 7.
पैकिंग के क्या लाभ हैं ?
उत्तर :

  1. पैकिंग करने से वस्तुएं खराब नहीं होती।
  2. वस्तुएँ टूटने से बचती हैं।
  3. उसमें मिलावट नहीं होती।
  4. उनकी मात्रा कम नहीं होती।

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प्रश्न 8.
P.F.A. और F.P.O. का पूरा नाम बताएं।
उत्तर :
P.F.A. Prevention of Food Adulteration act. F.P.O. Food Product Order.

प्रश्न 9.
(A) एगमार्क का चिह्न किन पदार्थों पर लगाया जाता है ?
(B) चार वस्तुओं के नाम लिखें जिन पर एगमार्क चिह्न लगाया जाता है।
उत्तर :
एगमार्क का चिह्न निम्नलिखित पदार्थों पर लगाया जाता है-खाने के तेल, मक्खन, घी, अण्डों, मसालों आदि पर।

प्रश्न 10.
स्वेटर पर लगा वुलमार्क का लेबल हमें क्या सूचना देता है ?
उत्तर :
इससे पता चलता है कि स्वेटर की क्वालटी अच्छी है।

प्रश्न 11.
विज्ञापन उपभोक्ता की किस प्रकार मदद करते हैं ?
उत्तर :
विज्ञापन द्वारा उपभोक्ता को पदार्थ की सूचना, उपयोगिता का पता चलता है तथा उपभोक्ता की गलतफहमी दूर होती है।

प्रश्न 12.
उपभोक्ता शिक्षण का अर्थ समझाएं।
अथवा
उपभोक्ता शिक्षा से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
उपभोक्ता शिक्षा का अर्थ है उपभोक्ता को अपने अधिकारों, हितों, अनहितों तथा सरकार द्वारा उसके हितों की रक्षा के लिए उठाए गए कदमों के बारे में शिक्षित करना है।

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प्रश्न 13.
ईको लेबल किन वस्तुओं पर लगाया जाता है ?
उत्तर :
जो वस्तुएं वातावरण के अनुकूल हैं उन पर यह लेबल लगाया जाता है।

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प्रश्न 14.
उपभोक्ता की किन्हीं दो समस्याओं का उदाहरण सहित उल्लेख करें।
उत्तर :
उपभोक्ता को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे विभिन्न वस्तुओं में मिलावट तथा दुकानदार द्वारा मानक बाटों के स्थान पर पत्थर आदि से बनाए बाटों का प्रयोग करना। खाद्य पदार्थों तथा और पदार्थों पर लेबल न लगे होना जैसे सरसों के तेल में आरगीमोन के तेल का मिला होना। जैसे गैस स्टोव पर आई० एस० आई० का चिहन न लगा होना।

प्रश्न 15.
समझदार उपभोक्ता के किन्हीं दो उत्तरदायित्वों का उल्लेख करें।
उत्तर :
देखें लघु उत्तरीय प्रश्न 2 का उत्तर।

प्रश्न 16.
स्तरता के चिहन क्या होते हैं ? किन्हीं दो चिहनों के नाम लिखें व बताएं कि ये किन उत्पादकों पर पाए जाते हैं ?
उत्तर :
स्तरता चिह्नों का प्रयोग वस्तुओं के उचित स्तर को बताने के लिए किया जाता है जैसे आई० एस० आई० तथा एगमार्क, एफ० पी० ओ० आदि।
1. एगमार्क कृषि से सम्बन्धित खाद्य पदार्थों के लिए।
2. आई० एस० आई० चिह्न कारखानों में बने पदार्थ उपकरणों के लिए।

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प्रश्न 17.
मिलावट से आप क्या समझते हैं ?
अथवा
किस स्थिति में भोज्य पदार्थ को मिलावटी कहा जाता है ?
उत्तर :
मिलावट से अर्थ है कि किसी खाद्य पदार्थ में कुछ ऐसा मिला देना जो सस्ता हो तथा उसी पदार्थ जैसा दिखे जैसे असली घी में वनस्पति घी की मिलावट। कई बार खाद्य पदार्थ में से कुछ पदार्थ निकाल दिया जाता है यह भी एक प्रकार की मिलावट है जैसे दूध में से क्रीम निकालकर दूध को पूरे मूल्य पर बेचना। कई बार कुछ दुकानदार अधिक पैसे कमाने के लालच में सेहत के लिए हानिकारक पदार्थ भी मिला देते हैं जैसे सरसों में आरगीमोन के बीज।

प्रश्न 18.
उपभोक्ता की उपलब्ध कोई चार सहायक सामग्री बतायें।
उत्तर :
विज्ञापन, मानकीकरण चिह्न, पर्चे, लेबल, पैकिंग आदि।

प्रश्न 19.
उपभोक्ता किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जो भी व्यक्ति बाज़ार से या कहीं से वस्तुओं अथवा सेवाओं को खरीदता है तथा इनके बदले पैसे देता है तथा उपभोग करता है वह उपभोक्ता कहलाता है।

प्रश्न 20.
मानकीकरण चिहन उपभोक्ता की किस प्रकार मदद करते हैं ?
उत्तर :
उपभोग की विभिन्न वस्तुओं पर मानकीकरण चिह्न लगे रहते हैं जैसे F.P.O., एगमार्क, आई० एस० आई०, पी० एफ० ए०, वूल मार्क आदि। ये चिन सरकार द्वारा विभिन्न निर्माताओं को उचित जांच परख के बाद ही दिए जाते हैं। कोई भी निर्माता इन चिह्नों का गलत प्रयोग नहीं कर सकता। इस प्रकार यदि वस्तु पर मानकीकरण चिह्न लगा है तो उपभोक्ता बिना किसी हिचकिचाहट के वस्तु को खरीद सकता है। एगमार्क कृषि सम्बन्धी पदार्थों पर लगाया जाता है। ISI का मार्क प्रोसेस तथा पैक किए खाद्य पदार्थ जैसे बिस्कुट, सेवियां, पाऊडर दूध, बेकिंग पाऊडर आदि तथा उपकरणों जैसे प्रेशर कुक्कर, बिजली की प्रेस, गीजर, केतली, गैस चूल्हा आदि पर लगता है। यदि मानकीकरण चिहन लगा हो तो उपभोक्ता के मन को तसल्ली रहती है कि उसके पैसे का ठीक प्रयोग हुआ है। उपभोक्ता को इतनी वस्तुओं में से गुणवत्ता के आधार पर चयन की सुविधा हो जाती है।

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प्रश्न 21.
ISI मार्क क्या है ? यह किन चीज़ों पर लगाया जाता है ?
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
दुकानदार किन विधियों से सामान कम तोलकर उपभोक्ताओं को ठगते हैं ?
अथवा
चार ऐसे तरीके बताएं जिनसे दुकानदार नापने व तौलने में गड़बड़ करते हैं ?
उत्तर :
सामान्यत: दुकानदार निम्नलिखित तरीकों से सामग्री कम तोलकर उपभोक्ताओं को ठगते हैं –
1. मिठाइयों को डिब्बे सहित, मांस को वेष्टित किए गए कागज़ के साथ तथा फलों एवं सब्जियों को पत्तों सहित तोलकर मुख्य वस्तु की कम मात्रा देते हैं। कुछ दुकानदार डिब्बे के एक ढक्कन को वज़न के साथ एक-दूसरे हिस्से में मिठाई आदि रखकर तोलते हैं और इस प्रकार से तोल के सही होने का भ्रम पैदा करते हैं जबकि वस्तुस्थिति यह होती है कि माल के साथ तोले जाने वाले डिब्बे का हिस्सा वज़न में भारी होता है तथा बाट के साथ रखा गया हिस्सा वज़न में कम होता है।

2. मानक बाटों के स्थान पर देशी बाटों या पत्थर आदि से बनाए गए घरेलू बाटों का प्रयोग करके।
3. घिसे हुए पुराने बाटों का प्रयोग करके।
4. तरल पदार्थों को लीटर के माप द्वारा मापने के स्थान पर तोल द्वारा बेचकर।
5. हाथ वाले तराजू का प्रयोग करते समय डंडी मारकर।
6. पैमाने वाले तराजू को दोषपूर्ण रखकर।
7. कुछ दुकानदार तराजू के जिस पलड़े में तोलने के लिए सामग्री रखी जाती है इसके नीचे चुम्बक रख देते हैं और इस प्रकार यह पलड़ा चुम्बक द्वारा नीचे की ओर खींच लिया जाता है। इस प्रकार उपभोक्ता को कम सामग्री प्राप्त होती है।

1. (क) दुकानदार नाप-तोल में गड़बड़ी कैसे करते हैं ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 1 का उत्तर।

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प्रश्न 2.
एक उपभोक्ता के रूप में आप अपने हक को सुरक्षित रखने के लिए किन-किन ज़िम्मेदारियों व कर्तव्यों को निभाने का प्रयास करेंगे ?
उत्तर :
एक उपभोक्ता के रूप में अपने हक को सुरक्षित रखने के लिए निम्नलिखित कर्तव्यों को निभाने का प्रयास करना चाहिए –
1. यदि यह भ्रम हो कि वस्तु में जान-बूझकर मिलावट की गई है, तो इस बात को नजरअन्दाज न कर उस मिलावट की रोकथाम की भरपूर कोशिश करनी चाहिए। इसकी जानकारी सम्बन्धित अधिकारियों को स्वयं जाकर, टेलीफोन द्वारा या पत्रों द्वारा देनी चाहिए।
2. उपभोक्ताओं को खाद्य-पदार्थ के निरीक्षकों की मिलावटी पदार्थों के नमूने लेने में सहायता करनी चाहिए तथा ऐसे प्रकरणों में गवाही देने के लिए तैयार रहना चाहिए।
3. उपभोक्ताओं को अपूर्ण लेबल वाली वस्तुएं नहीं खरीदनी चाहिएं तथा अन्य परिचित लोगों को भी इन वस्तुओं को खरीदने की मनाही करनी चाहिए।
4. नकली वस्तुओं की खरीद से बचने के लिए वस्तुएं विश्वसनीय दुकानों से ही खरीदनी चाहिए।
5. नकली वस्तुओं की बिक्री कम करने के लिए असली वस्तुओं के बारे में स्वयं जानकारी प्राप्त करने के साथ-साथ अपने परिचितों को भी इसकी जानकारी देनी चाहिए।
6. असत्य विज्ञापनों पर रोक लगवानी चाहिए। यदि विज्ञापन वस्तु विशेष से ताल मेल नहीं खाता तो इसकी सूचना सम्बन्धित विभाग को देनी चाहिए।
7. दोष-युक्त माप-तोल के साधनों के प्रयोग पर रोक लगानी चाहिए।

प्रश्न 2.
(A) उपभोक्ताओं के कोई तीन उत्तरदायित्व लिखें।
(B) उपभोक्ता के किसी एक मुख्य अधिकार के बारे में लिखिए।
(C) उपभोक्ता के चार कर्त्तव्य बताएं।
(D) उपभोक्ता के चार कर्तव्य लिखिए।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

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प्रश्न 3.
नाम-पत्र या लेबल क्या होते हैं ? एक अच्छे नाम-पत्र में कौन-कौन से गुण होने चाहिएं ?
अथवा
एक अच्छे लेबल में कौन-कौन से गुण होने चाहिए ?
उत्तर :
किसी भी वस्तु को खरीदते समय उस वस्तु को तैयार करने में प्रयुक्त हुए पदार्थों की मात्रा, वस्तु का परिमाण एवं गिनती, तैयार पदार्थ की उत्तमता प्रयोग-विधि, गुणवत्ता मूल्य आदि को जानने का साधन उसकी पैकिंग पर चिपका हुआ नाम-पत्र या लेबल (Label) होता है। यही कारण है कि प्रत्येक उत्पादनकर्ता के लिए निर्मित पदार्थ की पैकिंग पर एक ऐसा लेबल चिपका होना जरूरी होता है जिससे उपभोक्ता को ये सारी सूचनाएं मिल सकें। इसके साथ ही यह भी आवश्यक है कि निर्माता अथवा उत्पादक द्वारा किसी वस्तु पर चिपकाए गए लेबल में दी गई सारी सूचनाएं सही हों। यदि इस प्रकार का कोई बन्धन न हो तो बेईमान वस्तु निर्माता लेबल पर गलत सूचना देकर उपभोक्ता को गुमराह कर सकता है। भारतीय मानक संस्थान ने तैयार खाद्य-पदार्थों पर चिपकाए गए लेबलों में निम्नलिखित गुणों का होना ज़रूरी बताया है –

1. खाद्य-पदार्थों पर चिपकाया गया लेबल स्पष्ट होना चाहिए जिसे पढ़कर उपभोक्ता को वस्तु की गुणवत्ता आदि के बारे में कोई धोखा न हो।
2. दूसरे पदार्थों से मिलते-जुलते नामों, चित्रों, संकेतों आदि का नाम प्रयोग नहीं होना चाहिए अन्यथा उपभोक्ता को धोखा हो सकता है।
3. लेबल पर किसी ऐसे अधिनियम, नियम अथवा निर्देश का उल्लेख नहीं होना चाहिए जिसके फलस्वरूप लेबल पर दिए गए विवरणों एवं गुणवत्ता में बदलाव आ जाए।
4. चिपकाए गए लेबल पर अग्रलिखित सूचनाएं होनी चाहिए –

  • खाद्य-पदार्थ का नाम।
  • खाद्य-पदार्थ तैयार करने के लिए प्रयुक्त किए गए पदार्थों के नाम और उनकी मात्रा।
  • सामग्री की मात्रा।
  • उत्पादक, निर्माता का नाम एवं पता।
  • उस देश का नाम जहाँ पर वह पदार्थ तैयार किया गया है।
  • बैच नम्बर अथवा कोड नम्बर।
  • निर्माण की तिथि।
  • प्रयोग-अवधि अर्थात् सामग्री का उपयोग किस तिथि तक किया जा सकता है (Expiry date)।
  • भण्डार (Storage) के लिए निर्देश।
  • उपभोक्ता द्वारा दिए जाने वाला अधिकतम मूल्य (स्थानीय करों को छोड़कर)।

प्रश्न 4.
एगमार्क (Agmark) कौन-कौन सी वस्तुओं पर लगाया जाता है ? किसी वस्तु पर एगमार्क लगे होने से उपभोक्ता को क्या लाभ होता है ?
उत्तर :
एगमार्क मानक भारत सरकार के बिक्री एवं निरीक्षण निदेशालय द्वारा कृषि के माध्यम से उत्पादित खाद्य-पदार्थों की विभिन्न किस्मों के निमित्त निर्धारित किए गए हैं। अनाज, मसाले, तिलहन, तेल, मक्खन, घी, अण्डे आदि की विभिन्न किस्मों को कृषि उपज के श्रेणीकरण अधिनियम, 1937 (Grading and Marketing of Agricultural Products Act 1937) में परिभाषित किया गया है। विभिन्न खाद्य-पदार्थों के रंग-रूप, भार संरचना आदि के आधार पर उन्हें चार विभिन्न वर्गों क्रमश: 1-2-3-4 में वर्गीकृत किया गया है। यह वर्ग क्रमशः अतिउत्तम, उत्तम, अच्छा व सामान्य के सूचक हैं। एगमार्क सम्बन्धी मानक निर्धारित करते समय इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि विभिन्न खाद्य-पदार्थों को वेष्टित (Wrapped) करते समय किस प्रकार के वेष्टन (Wrapper) का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

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किसी भी खाद्य-पदार्थ पर एगमार्क का होना उस वस्तु के उपभोक्ताओं के लिए बहुत लाभप्रद होता है। इससे उसे निम्नलिखित सूचनाएं सहज ही प्राप्त हो जाती हैं –

  1. खाद्य-पदार्थ लाइसेंस प्राप्त निर्माता द्वारा निर्मित है।
  2. खाद्य-पदार्थ तैयार करते समय स्वच्छता सम्बन्धी पूरी सावधानी रखी गई है।
  3. नाप-तोल सम्बन्धी विवरण प्रमाण पुष्ट है।
  4. खाद्य-पदार्थ का मानक मूल्य क्या है।
  5. खाद्य-पदार्थ किस्म की दृष्टि से वर्गीकृत श्रेणियों में से किस श्रेणी का है।

इस जानकारी के उपलब्ध होने से उपभोक्ता के लिए किसी वस्तु की सही किस्म का चुनाव करने में सरलता हो जाती है और उसके पैसे का सदुपयोग हो पाता है।

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प्रश्न 5.
आई० एस० आई० मार्क क्या है ? यह प्रमाण-पत्र कौन-कौन सी शर्ते पूरी होने पर दिया जाता है ?
उत्तर :
आई० एस० आई० (ISI) मार्क भारतीय मानक संस्थान (Indian Standard Institute) द्वारा किसी वस्तु की उत्तमता के लिए दिया गया प्रमाण-पत्र है। भारतीय मानक संस्थान राष्ट्रीय स्तर का संगठन है। इसकी स्थापना सन् 1947 में हुई थी। इसका मुख्य कार्य विभिन्न खाद्य-पदार्थों यथा फल तथा सब्जियों से तैयार किए गए संरक्षित खाद्य-पदार्थों, संघनित दूध (Condensed Milk), पाश्विक खाद्य-पदार्थ, मसाले, शिशु-आहार (Baby food) आदि की किस्म को उत्तम बनाए रखना है। इस कार्य को सम्पन्न करने के लिए यह संस्थान विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों के परामर्श एवं सक्रिय सहयोग के विभिन्न खाद्य-पदार्थों के मानक तैयार करता रहता है।

ये मानक तैयार करते समय खाद्य-पदार्थों की संरचना, बाह्य रूप-रंग आदि विभिन्न बातों का ध्यान रखा जाता है। सन् 1952 में लागू किए गए तथा सन् 1961 में संशोधित किए आई० एस० आई० सर्टिफिकेशन मार्क अधिनियम (ISI) (Certification Mark Act) के अन्तर्गत इस संस्थान द्वारा विभिन्न खाद्य-पदार्थों के उत्पादकों को आई० एस० आई० मार्क के इस्तेमाल की सुविधा उपलब्ध है। लेकिन इसके इस्तेमाल के लिए खाद्य-पदार्थों के निर्माताओं की संस्थान से सम्पर्क स्थापित करके लाइसेंस (Licence) लेना पड़ता है। यह लाइसेंस निम्नलिखित शर्ते पूरी करने पर ही दिया जाता है

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1. खाद्य – पदार्थ भारतीय मानक संस्थान द्वारा निर्धारित मानकों (Standards) के अनुरूप हो।
2. खाद्य – पदार्थ के संरक्षण, डिब्बाबन्दी आदि की विभिन्न प्रक्रियाओं के दौरान संस्थान द्वारा प्रस्तावित प्रविधियों का प्रयोग हुआ हो।।
3. खाद्य – पदार्थों को भारतीय मानक संस्थान से उत्तमता का प्रमाण-पत्र हासिल करने के लिए भेजे जाने से पूर्व निर्माता द्वारा उन खाद्य-पदार्थों के स्तर निर्धारण की जाँच आई० एस० आई० के निरीक्षकों द्वारा प्रस्तावित विधि के अनुसार की गई हो।
4. खाद्य – पदार्थ तैयार करने की विधि, स्थान, तैयार सामग्री का निरीक्षण भी आई० एस० आई० के निरीक्षकों द्वारा किया जा सकता है।

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प्रश्न 6.
भार और माप अधिनियम सबसे पहले कब पास हुआ ? इसमें कब-कब संशोधन किए गए ?
उत्तर :
स्वतन्त्रता से पूर्व हमारे देश में नाप-तोल के लिए कहीं मन, सेर, छटांक का चलन था, कहीं कच्चा सेर तथा पक्का सेर चलता था, कहीं रत्ती, तोला काम में लाए जाते थे, कहीं कुड़ों और पायली चलते थे। सभी उपभोक्ताओं को विभिन्न क्षेत्रों में प्रयुक्त होने वाले बाटों की समुचित जानकारी नहीं होती थी। व्यापारी कम तोल कर उपभोक्ता का भरपूर फायदा उठाता था। यदि कोई उपभोक्ता पूछता था तो उसे कोई मनगढंत उत्तर देकर चुप करा दिया जाता था। बाजारों में सुधार लाने तथा उनका नियमन करने के लिए सरकार ने 28 मार्च, 1939 को स्टैंडर्ड ऑफ़ वेट एक्ट (Standard of Weight Act) पास किया।

लेकिन इस बीच द्वितीय विश्व महायुद्ध प्रारम्भ हो गया जिसके परिणामस्वरूप इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया जा सका। यह अधिनियम पहली जुलाई, 1942 से ही लागू हो पाया। इसके बाद टकसाल अधिकारी द्वारा प्रमाणित वज़न या बाट तैयार किए गए और पूरे देश में इन्हें वितरित किया गया। पहले दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई आदि बड़े-बड़े शहरों में इनका चलन हुआ। स्वतन्त्रता के बाद तोल एवं माप के साधनों के एकीकरण की दिशा में गम्भीरतापूर्वक विचार किया गया।

अप्रैल सन् 1955 में भारतीय संसद् ने मानक नाप-तोल के लिए देश में मीट्रिक पद्धति तथा दशमलव प्रणाली अपनाए जाने का प्रस्ताव रखा। सन् 1956 में मानकमाप एवं तोल अधिनियम पास हुआ तथा पहली अक्तूबर, 1960 में यह पूरे देश में लागू हो गया। इस अधिनियम के अन्तर्गत विक्रेता द्वारा मीट्रिक बाटों का प्रयोग न करना एक कानूनी अपराध है। समय-समय पर माप व तोल ब्यूरो (Weight and Measure Bureau) के निरीक्षक इस बात की जाँच करते हैं कि विक्रेता इस अधिनियम का पालन कर रहा है अथवा नहीं।

किसी पदार्थ को उसके वैष्टन (Wrapper) अथवा उनके डिब्बों (Containers) सहित तोलना भी एक कानूनी अपराध है। यदि कोई व्यापारी ऐसा करता है तो उपभोक्ता इसकी सूचना माप व तोल ब्यूरो (Weights and Measures Bureau) को दे सकता है।

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प्रश्न 7.
खाद्य कानून के क्या उद्देश्य हैं ?
उत्तर :
खाद्य कानून उपभोक्ताओं तक सुरक्षित तथा पौष्टिक खाद्य-पदार्थ पहुँचाने का कार्य करता है। इसके मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  1. मिलावटी खाद्य-पदार्थ के हानिकारक प्रभाव से उपभोक्ता की रक्षा करना।
  2. उचित व्यापार-आचरण को बढ़ावा देना तथा लागू करना।
  3. उपभोक्ता की रक्षा के लिए निम्नलिखित कानून पारित किए गए हैं
    • Prevention of Food Adulteration Act (P.F.A.)
    • Food Product Order (F.P.O.)
    • मांस उत्पाद नियन्त्रण आदेश।

प्रश्न 8.
औषधि तथा मादक पदार्थ अधिनियम का मूल उद्देश्य क्या है ? इस अधिनियम में क्या-क्या संशोधन किए गए ?
उत्तर :
औषधि तथा मादक पदार्थ अधिनियम 1940 में बनाया गया। इस अधिनियम के अन्तर्गत देश में तैयार की गई अथवा आयात की गई औषधियों तथा मादक पदार्थों के गुणों की जांच की जाती है। इस अधिनियम में समय-समय पर आवश्यकतानुरूप अनेक संशोधन किए जाते हैं। सन् 1955, 60, 61, 69 में इस अधिनियम में अनेक महत्त्वपूर्ण संशोधन किए गए हैं तथा उपनियम बनाए गए हैं। इस अधिनियम के अनुसार यदि किसी औषधि अथवा मादक पदार्थ में प्रमाणित स्तर से नीचे के गुण पाए जाते हैं तो उसके निर्माता से उसके निर्माण का अधिकार छीन लेने के साथ-साथ उसके मालिक को एक वर्ष के कारावास का दण्ड भी दिया जाता है। इस अधिनियम में यह भी व्यवस्था है कि जो औषधियाँ एवं मादक पदार्थ बाज़ार में बिकने के लिए आएं उन पर लेबल लगा होना चाहिए और इस लेबल पर निम्नलिखित सूचनाएँ होनी चाहिएं –

  1. निर्माता का नाम, पता तथा निर्माण के अधिकार।
  2. बैच नम्बर।
  3. निर्माण की तिथि और अवसान तिथि (Expiry date) अर्थात् उसे कब तक इस्तेमाल में लाया जा सकता है।
  4. औषधि-निर्माण के समय प्रयुक्त किए गए मिश्रणों के नाम ।
  5. उपभोग की विधि।

प्रश्न 9.
एक अच्छे लेबल में कौन-कौन से गुण होने चाहिए ?
अथवा
लेबल पर दी जाने वाली अपेक्षित जानकारी की कोई चार बातें बताएं।
उत्तर :
एक अच्छे लेबल में निम्नलिखित गुण होने चाहिए –

  1. लेबल सही ढंग से खाद्य-पदार्थों पर चिपका हुआ होना चाहिए।
  2. पात्र ऐसा बनाया गया हो जो खाद्य-पदार्थ की मात्रा के बारे में धोखा नहीं दे या भ्रम नहीं उत्पन्न करे।
  3. लेबल पर लिखा हुआ विवरण आसानी से पढ़ा और समझा जा सके।
  4. लेबल पर खाद्य-पदार्थ में प्रयोग किए गए कृत्रिम रोगों अथवा रासायनिक परिरक्षकों का उल्लेख हो।
  5. वह खाद्य-पदार्थ जिसके स्तर की परिभाषा दी गई है, स्टॉक के अनुसार हो।

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प्रश्न 10.
उपभोक्ता सहायक सामग्री क्या होती है ? उपभोक्ताओं को उपलब्ध किन्हीं तीन प्रकार की सहायक सामग्री का उल्लेख करें।
उत्तर :
उपभोक्ता सहायक सामग्री उपभोक्ता को वस्तुओं के चयन में सहायता प्रदान करती हैं। विभिन्न उपभोक्ता सहायक सामग्री हैं-मानकीकरण चिह्न, लेबल, पैकिंग, विज्ञापन, पर्चे, पुस्तकें, उपभोक्ता फोरम आदि।

1. लेबल-लेबल द्वारा उपभोक्ताओं को वस्तु की गुणवत्ता, कीमत आदि का पता चलता है। लेबल पर निम्न जानकारी होती है –

  • वस्तु का नाम
  • वस्तु में प्रयुक्त सामग्री
  • बनने की तारीख
  • ट्रेड मार्क
  • मानकीकरण चिह्न
  • बैच लाईसेंस नम्बर
  • गारण्टी
  • प्रयोग तथा सम्भाल के दिशानिर्देश आदि।।

2. विज्ञापन – निर्माता द्वारा वस्तु को बेचने के लिए विभिन्न प्रकार के विज्ञापनों द्वारा उपभोक्ता को जानकारी दी जाती है। विज्ञापन, समाचार-पत्र, टी०वी०, रेडियो आदि पर सुन देख कर उपभोक्ता को वस्तु के बारे में जानकारी मिलती है तथा आवश्यकता होने पर उसे खरीदना आसान रहता है।

3. पर्चे – उपभोक्ता को वस्तु की जानकारी देने के लिए निर्माता पर्चे छपवाकर समाचार-पत्रों में डलवा देते हैं या अपने नौकरों द्वारा लोगों के घरों में फेंकवा दिए जाते हैं। इन पर वस्तु के बारे में पूर्ण जानकारी देने की कोशिश की जाती है। इस पर तकनीकी जानकारी या अन्य कोई भी आवश्यक जानकारी विस्तार से होती है।

प्रश्न 12.
उपभोक्ता को खरीददारी करते समय किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ? इनमें से किसी एक के बारे में लिखिए।
अथवा
उपभोक्ता को खरीददारी करते समय किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ? कोई चार कठिनाइयों को बताइए।
उत्तर :
उपभोक्ता की खरीददारी करते समय कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है जैसे –

  1. मूल्यों में परिवर्तन
  2. वस्तुओं का न मिलना
  3. धोखाधड़ी
  4. मिलावट
  5. गलत विज्ञापन
  6. गलत लेबल
  7. अपूर्ण तथा गलत जानकारी
  8. घटिया वस्तुएं
  9. मानकीकरण चिहन का गलत प्रयोग आदि।

मूल्यों में परिवर्तन-कई दुकानदार वस्तु पर लिखे अधिकतम मूल्य से अधिक पैसे मांगते हैं, कई बार फ्री होम डिलवरी के नाम पर वस्तु का मूल्य बढ़ा दिया जाता है। कई छोटे दुकानदार अधिकतम मल्य से कुछ कम पैसे लेकर भी वस्तु बेच देते हैं इससे उपभोक्ता क्नफयूज़ हो जाता है कि एक ही वस्तु के भिन्न-भिन्न मूल्य क्यों है।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 6 उपभोक्ता अधिकारों का ज्ञान

प्रश्न 13.
कोई भी चार खाद्य पदार्थों के नाम इनमें पाई जाने वाली मिलावट के साथ लिखें।
उत्तर :

क्रमांक खाद्य पदार्थ मिलावट
1. हल्दी लेड क्रोमेट
2. देसी घी वनस्पति घी
3. बादाम की गिरी खुमानी की गिरी
4. शहद चीनी
5. गेहूँ का आटा वासी पीसी हुई रोटी

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
परिवार के लिए आवश्यक वस्तुओं का चुनाव करते समय गृहिणी को किस-किस प्रकार के निर्णय लेने पड़ते हैं ? उदाहरण सहित चर्चा कीजिए।
अथवा
विभिन्न वस्तुओं के चयन के समय क्या-क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?
उत्तर :
अपने परिवार की आवश्यकताओं के अनुसार उचित प्रकार की विभिन्न वस्तुओं का चुनाव करने के लिए गृहिणी को कई निर्णय लेने पड़ते हैं जिनमें से मुख्य निम्नलिखित प्रकार हैं –
1. क्या खरीदें – उचित स्तर की वस्तुओं को खरीदने के लिए सबसे पहले यह निर्णय लेना पड़ता है कि क्या खरीदा जाए। उपभोक्ता को सर्वप्रथम यह देखना चाहिए कि, क्या खरीदी जाने वाली वस्तु की वास्तविक रूप से ज़रूरत है अथवा नहीं। अपने पारिवारिक बजट तथा पारिवारिक मापदण्ड, मूल्यों तथा लक्ष्यों के आधार पर गृहिणी तथा अन्य सदस्यों को भी यह देखना चाहिए कि आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए क्या खरीदना है।

2. कहाँ से खरीदें – “क्या खरीदा जाए” इस बात का निश्चय कर लेने के बाद उपभोक्ता को यह निश्चित करना पड़ता है कि वस्तुएँ कहाँ से खरीदी जाएँ। इसके लिए यह समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, रेडियो, टेलीविज़न आदि पर आने वाले विज्ञापनों से भी जानकारी प्राप्त कर सकता है। वस्तुओं की खरीददारी करने से पहले उसे विभिन्न बाजारों तथा दुकानों का ज्ञान होना आवश्यक है, क्योंकि प्रायः किसी एक विशेष प्रकार की अच्छी किस्म की वस्तु कम मूल्यों पर किसी विशेष बाज़ार में ही मिलती है, जैसे फर्नीचर की कोई भी वस्तु हमें लकड़ी या फर्नीचर के थोक-बाज़ार में ही बढ़िया व सस्ती मिल सकती है।

किस बाजार से खरीदनी है इस बात को निश्चित कर लेने के बाद उपभोक्ता को इस बात का निर्णय करना चाहिए कि किस दुकान से सामान खरीदा जाए। कई बार यह देखा गया है कि एक ही बाज़ार में विभिन्न दुकानों में एक ही प्रकार की वस्तु के लिए अलग-अलग दाम होते हैं। कई बार दुकानदार उपभोक्ताओं को कई एक अतिरिक्त सुविधाएँ या उपहार भी देते हैं। जैसे-खरीदी गई वस्तुओं को घर पर मुफ्त पहुंचाने की ज़िम्मेदारी या फिर दुकान से मुफ्त टेलीफोन करने की सुविधा या छोटे-मोटे उपहार आदि।

कई बार दुकानों को इस आकर्षक ढंग से सजाया जाता है ताकि उपभोक्ता खुद इसकी सजावट को देखकर दुकान की ओर खिंचा चला आए। परन्तु ऐसी दुकानों के भाव अन्य दुकानों के भाव से अधिक होंगे। क्योंकि इन सब सुविधाओं आदि का खर्चा निकालने के लिए वस्तुओं आदि का भाव बढ़ा दिया जाता है अथवा वस्तु का स्तर कुछ गिरा दिया जाता है। अत: वस्तुएँ खरीदने से पहले दो या तीन दुकानों से वस्तुएँ तथा उनके भाव देखकर ही निश्चय करना चाहिए।

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3. कब खरीदें – वस्तुओं को कब खरीदा जाए, यह निर्भर करता है उसकी प्रकृति पर। कुछ वस्तुएँ ऐसी होती हैं जो केवल किसी मौसम में ही उपलब्ध होती हैं। उदाहरणार्थ विभिन्न प्रकार की सब्जियाँ तथा फल इत्यादि। ये वस्तुएँ मौसम में न केवल उपलब्ध ही होती हैं, अपितु सस्ती तथा उत्तम किस्म की भी होती हैं। इन वस्तुओं को मौसम में ही खरीदना चाहिए। इसके विपरीत कुछ अन्य वस्तुओं, जैसे कि पंखे, कूलर, रेफ्रीजरेटर, हीटर, गीजर इत्यादि की आवश्यकता विशेष मौसम में होने के कारण ये अपने मौसम में महँगी होती हैं। अतः जहाँ तक इस प्रकार की वस्तुओं को मौसम से पहले या मौसम के बाद अर्थात् ऑफ़ सीजन (Off Season) में ही खरीदना चाहिए जिससे उचित डिस्काउन्ट (Discount) मिल सके तथा वस्तु की कीमत कम देनी पड़े।

4. कितना खरीदें – गृहिणी को परिवार के सभी सदस्यों की आवश्यकताओं के आधार पर यह निश्चय कर लेना चाहिए कि वस्तु कितनी मात्रा में खरीदी जानी है। चूंकि प्रत्येक परिवार में साधन सीमित होते हैं अतः साधनों को ध्यान में रखकर ही वस्तु खरीदनी चाहिए, अन्यथा वस्तु उत्तम स्तर की नहीं खरीदी जा सकती तथा आवश्यकता की कोई एक-दो वस्तु अवश्य ही छूट जाती है। इसके अतिरिक्त अगर वस्तुएं इकट्ठी अधिक मात्रा में खरीदी जाती हैं तो सस्ती पड़ती हैं। ऐसा विशेषकर संयुक्त परिवार या ऐसे परिवार जिसमें सदस्यों की संख्या अधिक होते ही किया जाता है। इकट्ठी वस्तुएँ खरीदना बहुत लाभकारी रहता है, परन्तु ऐसा करते समय ध्यान रखें कि परिवार की आवश्यकता से अधिक मात्रा में वस्तुएँ न खरीदी जाएँ क्योंकि ऐसे में व्यर्थ ही धन की हानि होगी और वस्तु भी व्यर्थ जाएगी।

5. कितना व्यय करें – वस्तुओं की कीमत उसकी किस्मत, स्तर, मौसम तथा दुकान पर बहुत निर्भर करती है। उपभोक्ता को वस्तुओं की कीमत का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। व्यय सदा बजट के अनुसार ही किया जाना चाहिए। यह उपभोक्ता की सामर्थ्य तथा आवश्यकता पर निर्भर करता है कि वह किस वस्तु के लिए कितना व्यय करना चाहता है। यह कुछ हद तक उसकी रहन-सहन के स्तर पर ही निर्भर करता है।

इस प्रकार उपभोक्ता, विशेषकर गृहिणी को खरीददारी करने से पहले इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि उसे कौन-सी किस्म की वस्तुएँ कब और कहाँ से खरीदनी हैं। उसे उस दुकानदार से ही वस्तु खरीदनी चाहिए जिस पर उसे पूर्ण विश्वास हो तथा जो वस्तु की अच्छी किस्म की पूरी ज़िम्मेदारी ले। गृहिणी को चाहिए कि वह इस बात की ओर पूर्णतः सावधान रहे कि दुकानदार उसे किसी भी प्रकार का धोखा न दें। एक अच्छे उपभोक्ता को बाजार में बिकने वाली वस्तुओं का पूरी तरह से ज्ञान होना चाहिए।

अक्सर कई बार यह देखा गया है कि विक्रेता, उपभोक्ता को धोखा देने की कोशिश करते हैं, विशेषकर जब उपभोक्ता को सही ज्ञान न हो। उचित खरीद के लिए उपभोक्ता को विभिन्न वस्तुओं की किस्मों तथा उनके दामों के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। विक्रेता की धोखाधड़ी से बचने के लिए तथा विक्रेता को किसी भी प्रकार का गलत काम करने से रोकने में उपभोक्ताओं का बहुत बड़ा योगदान है। जिसे हर उपभोक्ता को अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुए पूर्ण रूप से निभाना चाहिए।

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प्रश्न 2.
उत्पादनकर्ता या विक्रेता उपभोक्ताओं को किस प्रकार धोखा देने की कोशिश करते हैं ? उनसे बचने के लिए उपभोक्ताओं को क्या-क्या कदम उठाने चाहिएं ?
उत्तर :
प्राय: यह देखने में आता है कि अधिकतर उपभोक्ता बाजार से पूरी तरह वाकिफ नहीं होता। उसे विभिन्न प्रकार की वस्तुओं की किस्म के अनुसार दाम का सही ज्ञान नहीं होता। उपभोक्ता की इस कमज़ोरी का फायदा दुकानदार या विक्रेता उठा लेते हैं और वे कई तरीकों से उपभोक्ता को धोखा देने की कोशिश करते हैं। अधिक मुनाफा कमाने के लिए विक्रेता अक्सर कई गलत चालों का सहारा लेते हैं। जैसे ही उनको पता चलता है कि उनकी किसी भी वस्तु की माँग बहुत अधिक बढ़ गई है और वस्तु बाज़ार में अधिक उपलब्ध नहीं है तो वह अपनी वस्तु का दाम बढ़ा देते हैं। ऐसा भी देखने में आता है कि विक्रेता अपनी वस्तुओं के महत्त्व को बढ़ाने के लिए उसकी कृत्रिम कमी भी उत्पन्न कर देते हैं और इस प्रकार विक्रेताओं को अधिक-से-अधिक लाभ कमाने का मौका मिल जाता है। इसके अतिरिक्त विक्रेता उपभोक्ता को धोखा देने के लिए कई नए-नए ढंग भी अपनाने लगे हैं जिनकी चर्चा नीचे की जा रही है।

1. वस्तुओं में मिलावट करके – बाज़ार में बेचे जाने वाले कई खाद्य पदार्थों में अक्सर मिलावट की जाती है। अक्सर यह मिलावट जान-बूझकर की जाती है। कई खाद्य-पदार्थों के रंग-रूप को बढ़ाने के लिए कई घटिया किस्म के कृत्रिम रंग मिला दिये जाते हैं जो कि मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक सिद्ध होते हैं। खाद्य-पदार्थों में मिलावट दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है जिसका मुख्य कारण है-वस्तुओं की कम उपलब्धि और दिन-प्रतिदिन होने वाली कीमतों में बढ़ोतरी ।

इस प्रकार की धोखाधड़ी को रोकने के लिए भारत सरकार ने 1954 में खाद्य-पदार्थों में मिलावट को रोकने के लिए एक कानून-पी० एफ० ए० (Prevention of Food Adulteration Act, PFA) बनाया जिसे 1955 में लागू किया गया। इस कानून के अन्तर्गत बाज़ार में बिकने वाले प्रायः सभी खाद्य-पदार्थों के लिए न्यूनतम मान्य मापदण्ड दिए गए हैं जिन्हें अपनाना आवश्यक है। यदि कोई खाद्य-पदार्थ इन मापदण्डों को पूरा नहीं कर पाता तो उसे मिलावटी खाद्य-पदार्थ कहा जाता है।

इस मिलावट को रोकने के लिए उपभोक्ता महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान कर सकते हैं। उन्हें चाहिए कि जैसे ही उन्हें मालूम हो कि किसी खाद्य-पदार्थ में मिलावट है तो तुरन्त इसकी सूचना सम्बन्धित अधिकारियों को दी जाए। इसके अतिरिक्त उपभोक्ता को चाहिए कि वे खुली वस्तुएँ नहीं खरीदें क्योंकि इनमें मिलावट की ज्यादा सम्भावना होती है। मान्यता प्राप्त खाद्य-पदार्थ ही खरीदने चाहिए जैसा कि आई० एस० आई० (ISI), एगमार्क (Agmark) या एफ० पी० ओ० (F. P. O.) मार्क वाले पदार्थ।

सामान्यतः उपभोक्ताओं द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली वस्तुओं में खाद्य-पदार्थ ही अक्सर मिलावट के शिकार होते हैं। फिर भी कुछ दूसरी वस्तुएँ इससे वंचित नहीं रह पातीं, जैसे टेरीकाट या टैरीवूल कपड़े। यदि इन पर अच्छी ‘मिल’ का पूरी जानकारी देने वाला मार्क न हो, तो विक्रेता कपडे में टेरीलीन तथा ‘काटन’ या ‘वल’ की % मात्रा गलत बताकर उपभोक्ता को आसानी से धोखा दे सकता है। इसी प्रकार मकान बनाते समय प्रयोग में लाए जाने वाले सीमेंट में विक्रेता अक्सर रेत मिलाकर उपभोक्ता को धोखा देने की कोशिश करता है।

अतः प्रयोग में लाई जाने वाली सभी प्रकार की वस्तुओं में की जाने वाली मिलावटों से बचने के लिए उपभोक्ताओं को चाहिए कि वस्तुएँ सदा विश्वसनीय से ही खरीदें। साथ ही यह देख लें कि उन पर सही मार्का हो और जहाँ तक हो सके मान्यता प्राप्त वस्तुएँ जैसे आई० एस० आई० मार्क वाली ही खरीदें। आई० एस० आई० मार्क न केवल खाद्य-पदार्थों पर ही लगाए जाते हैं अपितु आजकल प्रयोग में लाई जाने वाली लगभग हर वस्तुओं पर लगाए जाते हैं।

आई० एस० आई० मार्क लगे होने पर, यह न केवल वस्तु की उत्तम किस्म को ही प्रदर्शित करता है परन्तु साथ ही उपभोक्ताओं को वस्तुओं के चयन में सहायता करता है और उन्हें इस बात की भी सन्तुष्टि देता है कि उन्होंने अपने पैसे का सही उपयोग किया है। आई० एस० आई० मार्क लगी वस्तुओं के कुछ उदाहरण हैं-बिजली के उपकरणों, जैसे – मिक्सी, फ्रिज, गीजर, पंखा, प्रैस, बल्ब, ट्यूब तथा बिजली की तारें आदि। इसी प्रकार रसोई घर के कुछ उपकरणों; जैसे-तेल, स्टोव, गैस का चूल्हा, कुकिंग-रेंज, गैस का सिलेण्डर, प्रेशर कुकर आदि पर आई० एस० आई० मार्क होता है जो इनकी उत्तम किस्म को तो दर्शाता ही है साथ ही इन्हें प्रयोग करते समय गृहिणी अपने आपको सुरक्षित भी महसूस करती है। इनके अतिरिक्त प्रयोग में लाई जाने वाली अन्य बहुत-सी वस्तुएँ, जैसे-रंग-रोगन, स्याही, गोंद, ब्लेड, हैलमेट इत्यादि पर भी आई० एस० आई० का मार्क होता है।

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2. अपर्याप्त लेबल-लेबल एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा उपभोक्ता को उस पदार्थ के बारे में जानकारी दी जाती है। लेबल से हमें निम्नलिखित बातें पता चलती हैं – (i) पदार्थ क्या हैं, (ii) पदार्थ बनने की तारीख, (iii) पदार्थ का भार, (iv) उत्पादनकर्ता का पता तथा (v) पदार्थ का मूल्य। लेबल पर दी गई जानकारी के द्वारा उपभोक्ता अपनी आवश्यकतानुसार वस्तु को खरीद सकता है। परन्तु ऐसा भी देखा गया है कि व्यापारी अपूर्ण लेबल लगाकर उपभोक्ताओं को धोखा देने की कोशिश करते हैं। इस प्रकार उपभोक्ताओं को भारतीय मानक संस्थान द्वारा निर्धारित अच्छे लेबल के गुणों का ज्ञान होना आवश्यक है जिसमें पूर्ण जानकारी वाला लेबल न होने पर किसी पदार्थ को झूठे मार्का वाला समझा जाएगा। उपभोक्ता को अपूर्ण लेबल बाली वस्तुओं को नहीं खरीदना चाहिए। उसको चाहिए कि वह मान्यता प्राप्त पदार्थ की खरीदे जो कि अच्छी किस्म के होते हैं।

3. त्रुटिपूर्ण माप और तोल के साधन – सन् 1956 ई० में मानक माप व तोल अधिनियम पास किया गया था। इस अधिनियम के अन्तर्गत मानक माप व तोल के साधनों की आवश्यकता और इनके बारे में पूर्ण जानकारी दी गई है। इसके साथ ही उनके डिज़ाइन और आधारित पदार्थ के बारे में आवश्यक निर्देश दिए गए हैं। कई बार ऐसा देखने में आता है कि विक्रेता अक्सर पदार्थों को तोलने के लिए मानक बाटों (Weights) का प्रयोग नहीं करते अपितु कोई ईंट-पत्थर आदि को बाटों के स्थान पर इस्तेमाल कर लेते हैं, जिसके फलस्वरूप वे आसानी से तोल में हेरा-फेरी कर लेते हैं। विक्रेता कई बार खाद्य-पदार्थों को उनके डिब्बे सहित तोल देते हैं तथा तराजू के पलड़ों को बराबर किए बिना ही पदार्थों को तोल कर उपभोक्ता को कम वस्तु दे देते हैं। कुछ विक्रेता मान्यता प्राप्त तराजू का प्रयोग न करके भी उपभोक्ताओं को छलने की कोशिश करते हैं। विशेषकर हाथ से पकड़कर तोलने वाले तराजू से तो वे तोल में हेरा-फेरी करते हैं।

इन दोषयुक्त तोल व माप के साधनों के प्रयोग को रोकने के लिए उपभोक्ताओं को निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए –

(i) उपभोक्ताओं को चाहिए कि वे हाथ वाले तराजू के प्रयोग को बढ़ावा न दें।
(ii) वस्तुओं को तोलने से पहले तराजू की जाँच कर लेनी चाहिए। हाथ की तराजू में डण्डी देख लेना चाहिए। पैमाने वाले तराजू में भी यह देख लेना चाहिए कि उसकी सूई शून्य पर है या नहीं। इस प्रकार अगर तराजू में कोई त्रुटि हो तो उसे विक्रेता से सूचित करते हुए उस त्रुटि को दूर करवा लेना चाहिए।
(iii) बाटों तथा मापक का भली प्रकार निरीक्षण कर लेना चाहिए जिससे इस बात का पता लग जाता है कि प्रयोग में लाए जा रहे माप व तोल के साधन मानक अधिनियम के अनुसार हैं या नहीं।
(iv) डिब्बों या शीशियों में पैक किए गए पदार्थ खरीदने से पहले उनके लेबल पर दिए गए भार या मात्रा का भली-भाँति निरीक्षण कर लेना चाहिए।
(v) उपभोक्ता को गलियों में घूमने वाले या फेरी वालों से सामान खरीदते समय अत्यधिक सावधान रहना चाहिए क्योंकि उनके वाट अक्सर मानक अधिनियम के अनुसार नहीं होते।
(vi) किसी भी विक्रेता द्वारा यदि कम तोलने या मापने का भ्रम हो, तो शीघ्र ही माप व तोल कार्यालय को सूचित करना चाहिए।
अगर उपभोक्ता ऊपर दी गई इन बातों का ध्यान रखेंगे तो वह हर प्रकार की धोखा धड़ी को रोकने में महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान कर सकते हैं। उन्हें ऐसा करने में अपने ऊपर किसी प्रकार का बोझ न समझकर इसे अपना कर्त्तव्य समझना चाहिए।

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4. असत्य विज्ञापनों द्वारा – आज के युग में एक ही प्रकार की वस्तु विभिन्न उत्पादकों द्वारा बनाई जाने लगी है और बाज़ार में कई नई-नई वस्तुएँ आने लगी हैं। अत: उत्पादनकर्ता अपने पदार्थों की बिक्री बढ़ाने के लिए कई प्रकार के विज्ञापनों का सहारा लेते हैं। इन विज्ञापनों का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं को उनके पदार्थों की सूचना देना, उन पदार्थों की विशेषताएँ बताना तथा उन पदार्थों की बिक्री बढ़ाना है।

इस प्रकार के विज्ञापन देने के लिए उत्पादनकर्ता या विक्रेता कई माध्यमों का प्रयोग करते हैं। जैसे-अखबार, पत्रिकाएँ, पोस्टर, रेडियो, टेलीविज़न, सिनेमा रील, सिनेमा स्लाइड्स आदि। विज्ञापनों पर उत्पादनकर्ता को काफ़ी खर्च करना पड़ता है। अतः इन विज्ञापनों पर किए गए खर्चों को निकालने के लिए उत्पादनकर्ता को अपनी वस्तुओं के दाम बढ़ाने पड़ते हैं। इस प्रकार यह कहना उचित नहीं होगा कि विज्ञापनों पर हुए खर्च का भार भी उपभोक्ताओं पर ही पड़ता है।

अक्सर देखा गया है कि विज्ञापनों में उत्पादनकर्ता अपनी वस्तुओं की विशेषताओं को काफ़ी बढ़ा-चढ़ाकर देते हैं जिससे अधिक उपभोक्ता उनकी वस्तुओं की ओर आकर्षित होकर उनका प्रयोग करना शुरू कर दें। इस प्रकार के असत्य विज्ञापन उपभोक्ताओं को पदार्थ के बारे में सही जानकारी न देकर उन्हें धोखे में रखते हैं और ऐसे में एक सामान्य उपभोक्ता के लिए पदार्थों की खरीद के बारे में निर्णय लेना काफ़ी कठिन हो जाता है। उपभोक्ताओं को चाहिए कि वे वस्तुओं को खरीदते समय विज्ञापनों की सहायता तो अवश्य लें परन्तु केवल विज्ञापन के आधार पर ही वस्तुओं के खरीद का निर्णय कर लें। यदि उपभोक्ता केवल विज्ञापनों से आकर्षित होकर कोई भी ऐसी वस्तु खरीदता है जोकि उसके प्रयोग में न आ सके तो ऐसे में वह अपने धन को बेकार ही गँवाता है।

5. घटिया किस्म की वस्तुओं की बिक्री – विक्रेता कई बार बिना बताए ही उपभोक्ताओं को अच्छी वस्तुओं के स्थान पर घटिया किस्म की वस्तुएँ बेचकर उन्हें धोखा देने की कोशिश करते हैं। जैसे – मिलों द्वारा घोषित घटिया किस्म के कपड़े को अच्छी किस्म के कपड़े के स्थान पर बेचना, फर्नीचर की भीतरी सतहों पर घटिया किस्म की लकड़ी लगाना, लोहे की अलमारी या दूसरे फर्नीचर बनाने में घटिया किस्म की चादर का प्रयोग करके ऊपर से अच्छा रंग-रोगन आदि करके उन्हें महँगे दामों पर बेचना आदि। इस प्रकार की धोखाधड़ी से बचने के लिए उपभोक्ताओं को चाहिए कि वह सदा विश्वसनीय दुकानों से ही वस्तुएँ खरीदें।

6. नकली वस्तुओं की बिक्री – सौन्दर्य प्रसाधनों के असली पैकिंग में नकली चीजें भरकर बेचना तो इस प्रकार एक आम उदाहरण है जैसे-पाउडर, शैम्पू, क्रीम, लिपिस्टिक, सैंट इत्यादि। ऐसी नकली वस्तुओं की बिक्री को रोकने के लिए उपभोक्ताओं को चाहिए कि वे नकली वस्तुओं के उत्पादन को प्रोत्साहित न करें। अक्सर नकली और असली वस्तुओं के बीच जाँच करना भी काफ़ी कठिन हो जाता है। अत: उपभोक्ताओं को सदा विश्वसनीय दुकानों से ही वस्तुएँ खरीदनी चाहिए। इस प्रकार विक्रेताओं द्वारा की जाने वाली सब प्रकार की धोखाधड़ी को अगर उपभोक्ता चाहें तो रोकने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।

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प्रश्न 2.
(A) विक्रेता उपभोक्ता को किस प्रकार धोखा देने की कोशिश करते –
(B) दोषयुक्त तोल व माप के साधनों के प्रयोग को रोकने के लिए उपभोक्ता को चाहिए कि वह किन चीज़ों के प्रयोग को बढ़ावा दें ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 2 का उत्तर।

प्रश्न 3.
उपभोक्ता को सूचना देने वाले नाम-पत्र या लेबल कितने प्रकार के होते हैं ? प्रत्येक प्रकार के बारे में महत्त्वपूर्ण बातें बताइए।
उत्तर :
उपभोक्ता को सूचना देने के लिए पदार्थों पर चिपकाए गए लेबल (Labels) को मोटे तौर पर चार वर्गों में बाँटा जा सकता है। ये निम्नलिखित हैं
1. पदार्थों की विशेषताओं का परिचय देने वाले लेबल (Informative Labelling)-इस प्रकार के लेबल का उद्देश्य उपभोक्ताओं को यह सूचना देना है कि निर्मित पदार्थ को तैयार करने में कौन-कौन सी वस्तुएँ इस्तेमाल में लाई गई हैं। कच्चे पदार्थ (Raw Material), संरक्षणीय पदार्थ (Preservatives), रंग (Colours), पदार्थ के स्वाद को बढ़ाने वाले एसेंस (Essence), एकस्ट्रेक्ट (Extract), भण्डारण की विधि, प्रयोग विधि आदि सूचनाएँ देकर निर्माता अपनी ईमानदारी जतलाता हुआ उपभोक्ता का पूरा विश्वास अर्जित कर लेना चाहता है। वह जानता है कि यदि वह उपभोक्ता का विश्वास अर्जित कर लेगा तो उपभोक्ता उसके माल को हमेशा खरीदता रहेगा। वह दूसरों से भी उसके माल की तारीफ करेगा और वही माल खरीदने के लिए प्रेरित करेगा। ऐसा करने से उसके माल की बिक्री बढ़ेगी और बिक्री बढ़ने से साख बढ़ेगी एवं अधिक लाभ होगा।

2. ब्रांड की सूचना देने वाले लेबल (Brand Labelling) – प्रत्येक निर्माता एवं उत्पादक अपने पदार्थों को एक खास नाम से प्रचारित करता है। जैसे-ब्रुक ब्राण्ड चाय (Brook Bond Tea), डालडा घी, पोस्टमैन तेल, लिज्जत पापड़, विमल सूटिंग, हाकिंस प्रेशर कुकर, केलवीनेटर फ्रिज, ई० सी०, टेलीविज़न, फिलिप्स रेडियो, एवन साइकिल आदि। उत्पादक या निर्माता द्वारा अपने यहाँ उत्पादित या निर्मित होने वाले पदार्थों को कोई नाम दे देने से विज्ञापन में सुविधा रहती है। उपभोक्ता भी दुकानदार से उत्पादक, निर्माता द्वारा प्रचारित नाम की वस्तु माँग करके किसी वस्तु की गुणवत्ता सम्बन्धी अपनी पसन्द को व्यक्त करता है।

3. ट्रेड मार्क की सूचना देने वाले लेबल (Trade Mark Labelling) – वस्तु उत्पादक अथवा निर्माता अपने माल को दूसरे उत्पादकों अथवा कम्पनियों से पृथक् करने के लिए जहाँ एक ओर ब्राण्ड का सहारा लेता है वहीं दूसरी ओर वह ट्रेड-मार्क का भी आश्रय लेता है। ट्रेड-मार्क के रूप में किसी शब्द का इस्तेमाल भी किया जा सकता है और किसी चित्र, प्रतीक आदि का भी। उदाहरण के लिए दिल्ली क्लाथ मिल ने वानस्पतिक घी के लिए जहाँ ब्राण्ड के रूप में ‘रथ’ नाम का इस्तेमाल किया है वहाँ रथ का चित्र एक ट्रेड मार्क के रूप में प्रयुक्त हुआ है।

4. गुणवत्ता की श्रेणी की सूचना देने वाले लेबल (Grade Labelling) – इस वर्ग के अन्तर्गत वे लेबल आते हैं जिन पर यह सूचना छपी होती है कि वह पदार्थ गुणवत्ता की दृष्टि से किस स्तर का है। इसका उद्देश्य यह बताना होता है कि उपभोग की दृष्टि से किस पदार्थ की गुणवत्ता को सर्वोत्तम, उत्तम, अच्छा, सामान्य आदि कई वर्गों में बाँटा जा सकता है। हमारे देश में इस प्रकार के लेबल का कोई विशेष चलन नहीं है। केवल एगमार्क मानक ही खाद्य-पदार्थों को उनके रंग, रूप, भार, संरचना आदि के आधार पर पर चार वर्गों यथा अति उत्तम, अच्छा एवं सामान्य में बाँटकर 1,2,3,4 अंकों से स्थिति को सूचित करता है।

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प्रश्न 4.
एक अच्छे उपभोक्ता में कौन-कौन से गुण होने चाहिए ?
अथवा
विभिन्न वस्तुओं के चयन के समय क्या-क्या सावधानी बरतनी चाहिए ?
अथवा
एक अच्छे उपभोक्ता के कोई भी तीन गुण बताएँ।
उत्तर :
विभिन्न वस्तुओं के चयन के समय उपभोक्ता को निम्नलिखित सावधानियाँ बरतनी चाहिए –
1. विज्ञापनों के प्रभाव में न आना – आज का युग विज्ञापन का युग है। विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के निर्माता पत्र-पत्रिकाओं, दूरदर्शन (T.V.) रेडियो, पोस्टर आदि के माध्यम से अपनी वस्तु का भरपूर प्रचार करते हैं और अपनी वस्तु को सर्वश्रेष्ठ होने का दावा करते हैं। लेकिन बुद्धिमान उपभोक्ता को विज्ञापनों में दिए गए इस प्रकार के दावों से प्रभावित नहीं होना चाहिए। उसे अपनी सूझ-बूझ से काम लेना चाहिए और अच्छी कम्पनी की अच्छी वस्तु ही खरीदनी चाहिए।

2. खरीदी गई वस्त के लेबल को ध्यान से पढना बहत – से वस्त निर्माता किसी लोकप्रिय ब्रांड के नाम से मिलता-जुलता नाम रखकर ग्राहकों को गुमराह करने का प्रयत्न करते हैं। उदाहरण के लिए बॉम्बे डाइंग की चादरें कम्पनी से बनी बनाई आती हैं, जबकि बहुत-से दुकानदार उस पर बॉम्बे डाइंग के कपड़े से निर्मित (Made from Bombay Dyeing Cloth) की मोहर लगाकर बॉम्बे डाइंग के नाम से ही बेच देते हैं। विम, सर्फ, फिनायल, साबुन आदि बहुत-सी ऐसी घरेलू वस्तुएँ हैं जिनके लोकप्रिय ब्रांडों के नामों से मिलते-जुलते नाम रख देने से उपभोक्ता को धोखा हो जाता है। अतएव यह ज़रूरी है कि जो भी वस्तु खरीदी जाए उसके लेबल को ध्यान से पढ़ लिया जाये। जब दुकानदार को यह पता चल जाता है कि आप हर वस्तु देखभाल कर खरीदती हैं तब वह मिलते-जुलते नामों वाली वस्तुएं देकर ठगने का प्रयत्न नहीं करता।

3. जल्दबाजी में न खरीदना – जब दुकानदार को यह पता होता है कि आप जल्दी में हैं तो वह उसका अनुचित लाभ उठाने की कोशिश करने से नहीं चूकता। ऐसी स्थिति में वह उपभोक्ता को घटिया माल दे देता है। कभी-कभी तोल में हेरा-फेरी कर देता है या पैसों के हिसाब में गड़बड़ी कर देता है।

4. दिन में खरीदना – बहुत सी वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिनके दोष रात को ठीक तरह से दिखाई नहीं देते। उदाहरण के लिए कपड़ों के रंग आदि की जाँच रात को ठीक तरह से नहीं हो पाती। अतएव ऐसी वस्तुएँ हमेशा दिन में ही खरीदनी चाहिए।

5. खरीदी जाने वाली वस्तुओं की सूची बनाना – खरीददारी के लिए बाजार में जाने से पहले उन सब वस्तुओं की सूची बना लेनी चाहिए जो आप खरीदना चाहती हैं। सूची बनाते समय यह भी लिख लेना चाहिए कि उसकी कितनी मात्रा चाहिए। इससे यह लाभ होता है कि कोई ज़रूरी चीज़ खरीदने से छूटती नहीं है तथा कोई भी वस्तु अधिक नहीं खरीदी जाती।

6. आई० एस० आई० अथवा एगमार्क वाली वस्तुएँ खरीदना – भारतीय मानक संस्थान (ISI) बहुत-से वस्तुओं के गुण, स्तर आदि की जाँच अपनी मोहर लगाती है। इसी प्रकार खाद्य सामग्रियों पर एगमार्ग की मोहर उनकी उत्तमता की प्रतीक होती है। अतएव जहाँ तक सम्भव हो सके वहाँ तक आई० एस० आई० अथवा एगमार्क की मोहर वाले खाद्य-पदार्थ खरीदने चाहिए।

7. दुकानदार से सामान तौलवाते समय सावधान रहना – बहुत-से दुकानदार तोल में हेरा-फेरी करके भी उपभोक्ताओं को ठगते हैं। इसके लिए वे विभिन्न प्रकार के तरीके काम में लाते हैं। घिसे हुए बाटों को प्रयोग, लिफाफे अथवा डिब्बे समेत वस्तुएँ तोलता आदि कुछ बहुप्रचलित विधियाँ हैं। अतएव प्रबुद्ध उपभोक्ता को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि दुकानदार कोई वस्तु तौलते समय इस प्रकार की कोई बेईमानी न करने पाए।

प्रत्येक नागरिक का यह महत्त्वपूर्ण कर्त्तव्य है कि वह दुकानदारों द्वारा की जाने वाली बेइमानी से उपभोक्ताओं की रक्षा करने में सरकार की सहायता करे। खाद्य-पदार्थ में मिलावट का पता लगाने पर खाद्य एवं स्वास्थ्य निरीक्षक को इसकी शिकायत करनी चाहिए। PFA 1954 ऐसा ही कानून है जिसके अन्तर्गत मिलावट करना अपराध माना गया है।

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प्रश्न 5.
PFA क्या है ? इसका संशोधन किन-किन वर्षों में किया गया ? अन्तिम संशोधन में कौन-कौन सी नई व्यवस्थाएँ जोड़ी गई हैं ?
उत्तर :
PFA का पूरा नाम है Prevention of Food Adulteration Act अर्थात् खाद्य अपमिश्रण (मिलावट) निवारण अधिनियम। भारत सरकार ने सन् 1954 में कोडेक्स ऐलिमेण्टेरियस कमीशन (Codex Alimentarius Commission) द्वारा विभिन्न खाद्य-पदार्थों के लिए निर्धारित गुण सम्बन्धी मानकों तथा नियमों को अपने देश की जलवायु एवं परिस्थितियों के अनुरूप परिवर्तित करते हुए खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम (Prevention of Food Adulteration Act-PFA) बनाया। यह अधिनियम पहली जून, 1955 से जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर सारे देश में लागू किया गया। सन् 1968, 1973 तथा 1979 में इस अधिनियम में संशोधन किए गए।

इस अधिनियम के अन्तर्गत वैज्ञानिकों, रसायन-विश्लेषकों, चिकित्सकों, पोषण-विशेषज्ञों तथा व्यावसायिकों के प्रतिनिधियों की समिति ने बाजार में बिकने वाले सभी खाद्य-पदार्थों के गुण सम्बन्धी न्यूनतम मानक निर्धारित किए हैं। आहारीय मानकों की केन्द्रीय समिति (Central Committee for Food Standards-CCFS) द्वारा इन मानकों में समय-समय पर आवश्यकतानुसार सुधार लाया जाता है। बाजार में बिकने वाले सभी खाद्य-पदार्थों को इन मानकों के अनुरूप होना आवश्यक है। इस अधिनियम के अनुसार किसी एक ब्रांड के खाद्य-पदार्थों से मिलते-जुलते ब्रांड वाले खाद्य-पतार्थों को आयात करना, रखना एवं बेचना प्रतिबन्धित है।

कतिपय रंगों, रासायनिक संरक्षणीय पदार्थों, कृत्रिम मिठासयुक्त पदार्थों यथा सेकीन का प्रयोग प्रतिबन्धित है तथा जिन रंगों एवं संरक्षणीय पदार्थों के प्रयोग की अनुज्ञा प्राप्त है, वे भी केवल निर्धारित मात्रा के अनुसार ही इस्तेमाल किए जा सकते हैं। इसी प्रकार से केसरी दाल (Keshri Dal) तथा अपने आप मर जाने वाले पशुओं एवं पक्षियों के मांस की बिक्री भी प्रतिबन्धित है। यदि कोई विक्रेता निर्धारित मानकों एवं नियमों के अनुसार खाद्य-पदार्थ नहीं बेचता है तो उसे सजा दी जाती है। सन् 1979 में संशोधित हुए इस अधिनियम के अनुसार इस अधिनियम का पालन न करने वाले विक्रेता को 3 मास से 6 वर्ष तक का कारावास और ₹ 500 से ₹ 2000 तक जुर्माना किया जा सकता है।

किसी विक्रेता को कितना दण्ड दिया जाए यह उस विक्रेता द्वारा किए गए अपराध की गम्भीरता पर निर्भर करता है। यदि कोई विक्रेता ऐसा अपराध करता हुआ पकड़ा जाता है तो उसे पहले से भी कड़ी सजा दी जाती है। उसका लाइसेंस जब्त किया जा सकता है। उसके अपराध का विवरण देते हुए उसका नाम एवं पता स्थानीय अखबारों में मुद्रित कराया जा सकता है और इस कार्य पर हुआ व्यय विक्रेता को ही उठाना पड़ता है। यदि किसी विक्रेता द्वारा बेचे गए खाद्य-पदार्थ मानक स्तर एवं नियमों के अनुकूल न होने के कारण किसी उपभोक्ता का जीवन संकट में पड़ जाता है अथवा उसकी मृत्यु हो जाती है तो विक्रेता को आजीवन कारावास की सज़ा भी दी जा सकती है।

बाज़ार में बेचे जाने वाले खाद्य – पदार्थ के गुण निर्धारित मानक के अनुरूप हों इसकी व्यवस्था के लिए पी० एफ० ए० (PFA) के अतिरिक्त फूड प्रोडक्ट आर्डर (FPO) के माध्यम से एक अन्य व्यवस्था भी की गई है।

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प्रश्न 6.
खाद्य अपमिश्रण निवारण नियम क्या है ? यह कब बना ? इस नियम के अनुसार किन स्थितियों में भोज्य-पदार्थों को मिलावटी या अपमिश्रित कहा जाता है ?
अथवा
उपभोक्ता मिलावट निवारण नियम कब बना ? इस नियम के अनुसार भोज्य पदार्थों को किन स्थितियों में मिलावटी कहा जाता है ?
उत्तर :
उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य की दशा के लिए भारत सरकार ने खाद्य मिलावट निवारण नियम (Prevention of Food Adulteration Act-PFA) 1954 ई० में बनाया।
इस अधिनियम के अन्तर्गत दण्ड का प्रावधान है। अधिनियम 1976 के संशोधन के अनुसार दोषी पाए जाने पर कम-से-कम 6 माह का सश्रम कारावास तथा एक हजार रुपए का जुर्माना है, यदि मिलावट स्वास्थ्य के लिए हानिकारक न हो। मिलावट स्वास्थ्य के लिए हानिकारक प्रमाणित हो तो 6 वर्ष सश्रम कारावास के अलावा ₹ 2000 (दो हज़ार रुपए) तक जुर्माना हो सकता है। यदि किसी खाद्य-पदार्थ के उपयोग से किसी की मृत्यु हो जाने की सम्भावना हो या शरीर में ऐसी हानि हो जाए जिससे खतरनाक आघात लग जाए तो दण्ड आजन्म कारावास और कम-से-कम ₹ 5000 (पाँच हजार रुपए) का जुर्माना होगा।
इस नियम के अनुसार निम्नलिखित स्थितियों में भोज्य पदार्थों को मिलावटी कहा जाता है –

  1. जब भोज्य-पदार्थ अपने वास्तविक रंग-रूप वाले नहीं रहते हैं।
  2. जब भोज्य-पदार्थ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तत्त्वों से युक्त हों।
  3. जब भोज्य-पदार्थ से उसके कुछ भोज्य तत्त्व निकाल दिए जाते हों, जैसे-दूध में से क्रीम।
  4. जब भोज्य-पदार्थों में घटिया या कम दाम वाले पदार्थ मिला दिए जाते हों, जैसे-देसी घी में वनस्पति घी।
  5. जब भोज्य-पदार्थों में हानिकारक विषैले तत्त्व मिला दिए जाते हों, जैसे-पीसी हुई हल्दी में लेड क्रोमेट।
  6. जब भोज्य-पदार्थों को ऐसे धातु के बर्तन में रखा जाता है जिसके सम्पर्क से भोज्य-पदार्थ दूषित हो जाते हों।
  7. जब भोज्य-पदार्थ रोगी पशु या पक्षी द्वारा प्राप्त होते हैं।
  8. जब भोज्य-पदार्थों में न खाने योग्य रासायनिक पदार्थ या वर्जित रंग मिला दिए गए हों।
  9. जब भोज्य-पदार्थ दूषित स्थान पर दूषित हाथ से बनाए जाते हों, डिब्बे में बन्द किए जाते हों या बिक्री के लिए रखे जाते हों।
  10. जब भोज्य पदार्थो में संरक्षण के लिए निर्धारित सीमा से अधिक मात्रा में रंग या संरक्षक पदार्थ मिलाए गए हों।
  11. जब भोज्य पदार्थों के गुणों एवं शुद्धता का गलत विवरण उनके डिब्बों पर दिया गया हो।

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प्रश्न 7.
F.P.O. (एफ० पी० ओ०) क्या है ? यह कब लागू हुआ ? इसके अन्तर्गत क्या व्यवस्था की गई ?
उत्तर :
फल व सब्जियों से तैयार किए गए खाद्य-पदार्थों तथा जैम, जैली, स्क्वैश, डिब्बाबन्द खाद्य-पदार्थ आदि की स्वच्छता, न्यूनतम मान्य मानक, खाद्य-पदार्थों के वेष्टन (Wrapper) तथा उन पर लगाये जाने वाले लेबल (Label) आदि के सम्बन्ध में आवश्यक निर्देश देने के लिए भारत सरकार ने सन् 1946 में फूड प्रोडक्ट आर्डर (Food Product Order) F.P.O की घोषणा की। सन् 1955 में अनिवार्य पदार्थों के अधिनियम की धारा तीन के अन्तर्गत इसमें संशोधन किया गया है। इस नियम के अनुसार बाज़ार में बिक्री के लिए फल व सब्जी से खाद्य-पदार्थ तैयार करने से पहले प्रत्येक निर्माता के लिए एफ० पी० ओ० (E.P.O.) लाइसेंस लेना ज़रूरी है। इसके साथ ही उसे खाद्य-पदार्थ तैयार करते समय इस कानून में दिए गए नियमों का पालन करना भी अनिवार्य है। यदि कोई निर्माता इन नियमों का उल्लंघन करता है तो उसके द्वारा तैयार किये गये माल को घटिया (Substandard) घोषित कर दिया जाता है। यदि वह दुबारा इन नियमों का उल्लंघन करता है तो उसे कानून में दिए गए प्रावधान के अनुसार दण्डित किया जाता है।

F.P.O. के अन्तर्गत –
(i) फल तथा सब्जियों से बने खाद्य-पदार्थों की किस्म के निम्न स्तर निर्धारित किए गए हैं।
(ii) कारखानों में काम करने के स्वच्छता तथा स्वास्थ्य के न्यूनतम स्तर निर्धारित किए गए हैं।
(iii) खाद्य-पदार्थों को पैक करने तथा उसके पात्रों पर लेबल लगाने के निर्देश दिए गए हैं। खाद्य-पदार्थ निर्माताओं (FPO) के लिए एफ० पी० ओ० (F.P.0.) सम्बन्धी नियमों का पालन करने के अतिरिक्त संग्रहण के लिए प्रयोग में लाये गये डिब्बों, बोतलों आदि पर चिपकाये गये लेबल (Label) पर एफ० पी० ओ० का निम्नलिखित सूचनाएँ देना आवश्यक होता है –

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  1. संरक्षित खाद्य-पदार्थ का नाम।
  2. खाद्य-पदार्थ तैयार करने के लिए प्रयुक्त सामग्री की सूची मात्रा सहित।
  3. प्रयुक्त किए गए रंगों, सुगंधियों तथा संरक्षकों के नाम।
  4. संरक्षित खाद्य-सामग्री की पैकिंग के समय मात्रा।
  5. संरक्षित खाद्य-पदार्थ का मूल्य।
  6. डिब्बा बन्दी की तिथि।
  7. वस्तु के इस्तेमाल की अवधि यदि कोई हो तो।
  8. मानक नियन्त्रण संस्थान का नाम जैसे F.P.O., I.S.I., Agmark आदि।
  9. बैच नम्बर अथवा कोड नम्बर।
  10. खाद्य-पदार्थ खराब होने की अंदेशित तिथि अथवा प्रयोग की विधि।
  11. खाद्य-पदार्थ को संगृहीत करने के लिए आवश्यक निर्देश।
  12. निर्माता का नाम एवं पता।
  13. उस प्रदेश का नाम जहाँ वह खाद्य-पदार्थ तैयार किया गया है।
  14. तैयार करने की विधि।

इस प्रकार स्पष्ट है कि एफ० पी० ओ० (F.P.O.) के अनुसार बाजार में बेचे जाने वाले विभिन्न खाद्य-पदार्थों में गुणों की न्यूनतम निर्धारित मात्रा का होना ज़रूरी है।

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प्रश्न 8.
उपभोक्ता के किन्हीं तीन मुख्य अधिकारों के बारे में लिखिए।
उत्तर :
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत उपभोक्ता के अधिकार इस प्रकार हैं –
1. मूलभूत आवश्यकताएं – सभ्य जीवन के लिए आवश्यकताओं की पूर्ति जैसे रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, जल, चिकित्सा आदि उपभोक्ता का अधिकार हैं।
2. चयन अथवा चुनाव का अधिकार – उपभोक्ता का अधिकार है कि वह बेचने वाले से उचित गुणवत्ता तथा उचित कीमत वाली वस्तुओं का चयन करे।
3. सुनवाई – उपभोक्ता को अधिकार है कि वह वस्तुओं को निर्माताओं को अपने विचार प्रकट करे तथा निर्माता उनके विचारों को प्राप्त करें तथा उपभोक्ताओं की समस्याओं का समाधान करें।
4. जागरुक होना – उपभोक्ता का अधिकार है कि वह वस्तु की जानकारी मांग सकता है तथा निर्माता को उचित जानकारी प्रदान करनी पड़ेगी।
5. क्षतिपूर्ति – यदि वस्तु में किसी प्रकार से उचित नहीं है तो उपभोक्ता को उसका उचित परिशोधन या मुआवजा मिलना अधिकार क्षेत्र में आता है। उपभोक्ता उस वस्तु के निर्माता से मुआवज़ा लेने का अधिकारी है।

एक शब्द/एक वाक्य वाले प्रश्न –

(क) एक शब्द में उत्तर दें –

प्रश्न 1.
फूड प्रोडक्ट आर्डर की घोषणा कब की गई ?
उत्तर :
1946 में।

प्रश्न 2.
हैलमेट पर कौन-सा मार्क लगेगा ?
उत्तर :
ISI.

प्रश्न 3.
P.F.A. कब लागू किया गया ?
उत्तर :
1954.

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प्रश्न 4.
ISI की स्थापना कब हुई ?
उत्तर :
1947.

प्रश्न 5.
वातावरण के अनुसार अनुकूल वस्तुओं पर कौन-सा मार्क लगेगा ?
उत्तर :
ईको लेबल।

प्रश्न 6.
शुद्ध सोने के गहनों पर कौन-सा मार्क लगेगा?
उत्तर :
हॉल मार्क।

प्रश्न 7.
गैस स्टोव पर कौन-सा मार्क लगेगा ?
उत्तर :
ISI.

प्रश्न 8.
खाने के तेलों पर कौन-सा चिन्ह लगाया जाता है ?
उत्तर :
एगमार्क।

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प्रश्न 9.
स्वेटर पर कौन-सा मार्क लगेगा ?
उत्तर :
वूलमार्क।

प्रश्न 10.
औषधि तथा मादक पदार्थ अधिनियम कब बनाया गया ?
उत्तर :
1940.

प्रश्न 11.
विद्युत् प्रेस पर कौन-सा मार्क लगा होता है ?
उत्तर :
ISI.

(ख) रिक्त स्थान भरो –
1. विद्युत् प्रेस पर ………… मार्क लगेगा।
2. FPO का पूरा नाम …………. है।
3. सप्रेटा दूध सस्ता बेचना ………… नहीं है।
4. कूलर व हीटर आदि मौसम के ………… खरीदने चाहिए।
5. भारतीय मानक संस्थान द्वारा ………… मार्क दिया गया है।
उत्तर :
1. ISI
2. Fruit Product Order
3. मिलावट
4. पहले या बाद
5. ISI.

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(ग) निम्न में गलत या ठीक बताएं –
1. जलेबी में रंग डालना मिलावट है।
2. एगमार्क कृषि सम्बन्धी पदार्थों के लिए है।
3. पैकिंग करने से वस्तुएं टूटती नहीं।
4. ISI मार्क कारखानों में बने पदार्थ उपकरण के लिए है।
5. FPO का मतलब Food Product Order.
6. PFA का मतलब Production of Food Adulteration Act.
7. एगमार्क प्रेस पर लगेगा।
उत्तर :
1. ठीक
2. ठीक
3. ठीक
4. ठीक
5. ठीक
6. ठीक
7. गलत।

बहु-विकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
निम्न में से ISI मार्क नहीं लगेगा ?
(A) बिजली की तारें
(B) बिजली के पंखे
(C) ब्लेड
(D) मसाले।
उत्तर :
मसाले।

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प्रश्न 2.
उपकरणों की उत्तमता के लिए लगने वाला मार्क है –
(A) ISI
(B) AGMARK
(C) FPO
(D) PFA.
उत्तर :
ISI.

प्रश्न 3.
FPO का पूरा नाम है –
(A) फ्रूट प्रोडक्ट आर्डर
(B) फ्रूट प्रोडक्ट आफिस
(C) फूड प्रोडक्ट आर्डर
(D) फूड प्रोडक्ट आफिस।
उत्तर :
फ्रूट प्रोडक्ट आर्डर।

प्रश्न 4.
एगमार्क लगाते हैं –
(A) सील बंद मसाले
(B) अनाज व दालें
(C) आटा
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर : उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 5.
एक जैम के पैक पर चिन्ह होता है –
(A) I.S.I.
(B) F.P.O.
(C) AGMARK
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर :
F.P.O.

प्रश्न 6.
एगमार्क लगाया जाता है –
(A) संसाधित भोजन पर
(B) अनाज और दालों पर
(C) पैक भोजन पर
(D) फल पदार्थों पर।
उत्तर :
अनाज और दालों पर।

प्रश्न 7.
एगमार्क ……… द्वारा दिया जाता है –
(A) भारतीय संसद् द्वारा
(B) भारत सरकार के बिक्री एवं निरीक्षण निदेशालय द्वारा
(C) भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा
(D) भारतीय मानकीकरण संस्थान द्वारा।
उत्तर :
भारत सरकार के बिक्री एवं निरीक्षण निदेशालय द्वारा।

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प्रश्न 8.
मानक माप एवं तोल अधिनियम पूरे देश में कब लागू हुआ ?
(A) 1950
(B) 1960
(C) 1965
(D) 1970
उत्तर :
1960.

प्रश्न 9.
Standard of Weight Act कब लागू हुआ –
(A) 1 अगस्त, 1940
(B) 1 जुलाई, 1942
(C) 1 मार्च, 1944
(D) 1 नवम्बर, 1946.
उत्तर :
1 जुलाई, 1942.

प्रश्न 10.
कूलर और हीटर आदि कब खरीदने चाहिएं ?
(A) मौसम के पहले
(B) मौसम में
(C) मौसम के पहले या बाद
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
मौसम के पहले या बाद।

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प्रश्न 11.
किस स्थिति में भोज्य पदार्थ को मिलावटी कहा जाता है ?
(A) वास्तविक रंग-रूप वाले न हों
(B) हानिकारक तत्त्वों से युक्त हों
(C) घटिया या कम दाम वाले पदार्थ मिला दिए जाएं
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 12.
दोषयुक्त तोल व माप के साधनों के प्रयोग को रोकने के लिए उपभोक्ता को चाहिए कि वह ……………. के प्रयोग को बढ़ावा दें।
(A) डिजिटल तोलने वाली मशीन
(B) हाथ वाले तराजू
(C) तराजू
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
डिजिटल तोलने वाली मशीन।

प्रश्न 13.
विद्युत् प्रेस पर कौन-सा मार्क लगा होता है-
(A) ISI
(B) FPO
(C) Agmark
(D) Woolmark.
उत्तर :
ISI.

प्रश्न 14.
ISI मार्क किस संस्था द्वारा दिया जाता है –
(A) भारतीय मानक संस्थान
(B) भारतीय माप संस्थान
(C) अंतर्राष्ट्रीय मानक संस्थान
(D) कोई भी नहीं।
उत्तर :
भारतीय मानक संस्थान।

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प्रश्न 15.
ISI मार्क किन चीज़ों पर लगाया जाता है –
(A) विद्युत् उपकरणों पर
(B) खाद्य पदार्थों पर
(C) कपड़ों पर
(D) अण्डों पर।
उत्तर :
विद्युत् उपकरणों पर।

प्रश्न 16.
वूलमार्क का लेबल हमें क्या सूचना देता है –
(A) क्वालिटी खराब है
(B) क्वालिटी नकली है
(C) क्वालिटी अच्छी है
(D) क्वालिटी सामान्य है।
उत्तर :
क्वालिटी अच्छी है।

प्रश्न 17.
P.F.A. का पूरा नाम बताएं –
(A) Prevention of Food Act
(B) Prevention of Food Adulteration Act
(C) Product Food Act
(D) Product of Food Adulteration Act.
उत्तर :
Prevention of Food Adulteration Act

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प्रश्न 18.
Agmark का चिन्ह किन पदार्थों पर लगाया जाता है ?
(A) खाने के तेलों पर
(B) सब्जियों पर
(C) दालों पर
(D) कपड़ों पर।
उत्तर :
खाने के तेलों पर।

प्रश्न 19.
ISI मार्क की स्थापना कब हुई ?
(A) 1940
(B) 1947
(C) 1942
(D) 1950.
उत्तर :
1947.

प्रश्न 20.
एगमार्क का चिह्न……… की उत्तमता के लिए दिया गया प्रमाण है।
(A) खाद्य पदार्थों
(B) उपकरणों
(C) ऊन
(D) घी।
उत्तर :
घी।

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प्रश्न 21.
P.F.A. का पूरा नाम ……………… है।
(A) प्रिवेंशन ऑफ फूड अडल्टरेशन एक्ट
(B) प्रिवेंशन ऑफ फ्रूट अडल्टरेशन एक्ट
(C) प्रिवेंशन ऑफ फूड अडल्टरेटड एक्ट
(D) प्रिवेंशन ऑफ फूड अडल्टरेटड एक्ट।
उत्तर :
प्रिवेंशन ऑफ फूड अडल्टरेशन एक्ट।

प्रश्न 22.
खाने के तेलों पर कौन-सा चिन्ह लगाया जाता है ?
(A) एगमार्क
(B) एफ०पी०ओ०
(C) आई०एस०आई०
(D) वूल मार्क।
उत्तर :
एगमार्क।

प्रश्न 23.
बिजली की तारों पर कौन-सा चिह्न लगाया जाता है ?
(A) एगमार्क
(B) एफ० पी० ओ०
(C) आई०एस०आई०
(D) वूल मार्क।
उत्तर :
आई०एस०आई०।

उपभोक्ता अधिकारों का ज्ञान HBSE 10th Class Home Science Notes

ध्यानार्थ तथ्य :

→ ISI मार्क भारतीय मानक संस्थान द्वारा किसी वस्तु की उत्तमता के लिए दिया गया प्रमाण पत्र है।

→ I.S.I. प्रयोग में लाए जाने वाले उपकरणों की उत्तमता का प्रमाण है इसकी स्थापना 1947 में हुई।

→ एगमार्क, भारत सरकार के बिक्री एवं निरीक्षण निदेशालय द्वारा खाद्य-पदार्थों की उत्तमता के लिए दिया गया प्रमाण है।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 6 उपभोक्ता अधिकारों का ज्ञान

→ एगमार्क का चिन्ह निम्नलिखित पदार्थों पर लगाया जाता है-खाने के तेल, घी, मक्खन, मसाले आदि।

→ दुकानदार कई तरह से उपभोक्ताओं को ठगते हैं – जैसे-घिसे बाट का प्रयोग करके, तराजू के पलड़े पर चुम्बक लगाकर आदि।।

→ उपभोक्ताओं के रूप में हमें अपने हक को सुरक्षित रखने के लिए कुछ कर्तव्यों को निभाने का प्रयास करना चाहिए। जैसे-दोष युक्त माप तोल के साधनों के प्रयोग पर रोक लगाएं, अपूर्ण लेबल वाली वस्तुएं न लें, नकली वस्तुओं की खरीद से बचें, यदि मिलावट वाली वस्तुओं का अनुमान हो तो सम्बन्धित अधिकारियों को सूचित करें।

→ 1940 में औषधि तथा मादक पदार्थ अधिनियम बनाया गया। इसके अनुसार यदि किसी औषधि अथवा मादक पदार्थ में प्रमाणित स्तर से नीचे के गुण पाए जाते हैं तो उसके निर्माता से उसके निर्माण का अधिकार छीन कर उसके मालिक को एक वर्ष के कारावास का दण्ड भी दिया जाता है।

→ परिवार के लिए आवश्यक वस्तुओं का चुनाव करते समय गृहिणी को कई निर्णय लेने पड़ते हैं; जैसे क्या खरीदें, कहां से खरीदें, कब खरीदें, कितना खरीदें आदि।

→ विक्रेता उपभोक्ताओं को धोखा देने की कोशिश करते हैं; जैसे – वस्तुओं में मिलावट करके, अपर्याप्त लेबल लगाकर त्रुटिपूर्ण माप और तोल द्वारा, असत्य विज्ञापनों द्वारा नकली वस्तुओं की बिक्री द्वारा।

→ उपभोक्ताओं को सूचना देने वाले लेबल चार प्रकार के होते हैं; जैसे – पदार्थों की विशेषताओं का परिचय देने वाले, ब्रांड की सूचना देने वाले, ट्रेड मार्क की सूचना वाले, गुणवत्ता की श्रेणी की सूचना वाले।

→ एक अच्छे उपभोक्ता के निम्नलिखित गुण होने चाहिएं –
विज्ञापनों के प्रभाव में न आना, जल्दबाजी में न खरीदना, खरीदी जाने वाली वस्तुओं की सूची बनाना, आई० एस० आई० अथवा एगमार्क वाली वस्तुएं खरीदना।

→ PFA – Prevention of Food Adulteration Act
CCFS – Central Committee for Food Standards
FPO – Food Product Order.

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