HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 4 परिवार के संसाधन

Haryana State Board HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 4 परिवार के संसाधन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Home Science Solutions Chapter 4 परिवार के संसाधन

अति लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
लक्ष्य क्या हैं ?
उत्तर :
लक्ष्य वे उद्देश्य हैं जिन्हें हम प्राप्त करना चाहते हैं जैसे एक विद्यार्थी का लक्ष्य होता है कि वह अच्छे अंक प्राप्त करे तथा शिक्षा पूर्ति के बाद अच्छा व्यापार या अच्छी नौकरी प्राप्त करे।

प्रश्न 2.
संसाधन किसे कहते हैं ?
उत्तर :
लक्ष्य प्राप्ति के लिए हम जिन चीजों तथा साधनों का प्रयोग करते हैं उन्हें संसाधन कहते हैं।

प्रश्न 3.
संसाधन कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
ये दो प्रकार के होते हैं-मानवीय एवं मानवेतर।

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प्रश्न 4.
मानवीय व मानवेतर संसाधनों के कुछ उदाहरण दीजिए।
अथवा
निम्नलिखित साधनों का मानवीय व मानवेतर संसाधनों के अन्तर्गत सूचीकरण करें।समय, धन, ऊर्जा, भूमि, ज्ञान, भौतिक वस्तुएँ, कौशन व योग्यताएँ, सामुदायिक सुविधाएँ।
उत्तर :
HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 4 परिवार के संसाधन 1

प्रश्न 5.
मानवीय संसाधनों से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
मानवीय संसाधन व्यक्ति विशेष का अंश होते हैं। इन संसाधनों का प्रयोग केवल वही व्यक्ति विशेष कर सकता है। जैसे-समय, ऊर्जा आदि।

प्रश्न 6.
मानवेतर संसाधन क्या हैं ?
उत्तर :
ये इस तरह के संसाधन हैं जिनका प्रयोग कोई भी व्यक्ति कर सकता है। जैसे-धन, भूमि आदि।

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प्रश्न 7.
संसाधनों की विशेषताएँ संक्षेप में समझाएँ।
उत्तर :
संसाधनों की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

  1. सभी संसाधन उपयोगी हैं क्योंकि इनके प्रयोग द्वारा ही मानव अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकता है।
  2. सभी संसाधन सीमित हैं अतः हमें इन्हें बर्बाद नहीं करना चाहिए। जैसे यदि आप धन या ऊर्जा को बर्बाद करते हैं तो आपको यह दुबारा अजित करने पड़ेंगे।
  3. सभी संसाधन एक-दूसरे से परस्पर जुडे हैं जैसे कि सब्जियाँ खरीदने के लिए न सिर्फ धन चाहिए बल्कि समय, ऊर्जा व कौशल भी चाहिए।

प्रश्न 8.
योजना बनाने के अतिरिक्त गहिणी को कौन-सी अन्य बातों का ज्ञान होना चाहिए जिससे समय तथा शक्ति बच सकती हो ?
अथवा
समय का प्रभावपूर्ण ढंग से प्रयोग करने के लिए आप गृहिणी को कोई दो सुझाव दें।
अथवा
समय का सदुपयोग करने के लिए एक गृहिणी को तीन सुझाव दें।
उत्तर :

  1. सभी चीज़ों को अपने स्थान पर रखो ताकि ज़रूरत पड़ने पर वस्तु को ढूंढ़ने में समय नष्ट न हो।
  2. काम करने के लिए सामान अच्छा तथा ठीक हालत में होना चाहिए।
  3. काम करने वाली जगह पर रोशनी का ठीक प्रबन्ध होना चाहिए।
  4. काम करने के सुधरे तरीकों का प्रयोग करना चाहिए।
  5. घर के सभी सदस्यों की मदद लेनी चाहिए। यदि फिर भी कार्य तथा आय के साधन ठीक हों तो कार्य बाहर से भी करवाया जा सकता है।
  6. काम करने वाली जगह की ऊंचाई अथवा वस्तुओं के हैण्डल ऐसे हों कि कन्धों पर अधिक भार न पड़े।

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प्रश्न 9.
मूल्यांकन से क्या अभिप्राय है ? बच्चों के लिए यह क्यों ज़रूरी है?
उत्तर :
कुछ देर किसी योजना के अनुसार कार्य करते रहने के पश्चात् देखा जाता है कि नियत लक्ष्य प्राप्त हो रहे हैं, अथवा नहीं। यदि लक्ष्य प्राप्त न हो रहे हों तो योजना में फेर-बदल किया जाता है तथा इस तरह अपनी योजना का मूल्यांकन किया जाता है ताकि नियत लक्ष्यों की पूर्ति हो सके।
बच्चों के विकास तथा वृद्धि में किसी प्रकार की कमी न आए इसलिए उनका मूल्यांकन करना आवश्यक है।

प्रश्न 10.
पारिवारिक साधनों से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
पारिवारिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए परिवार में उपलब्ध साधनों का प्रयोग किया जाता है। इन साधनों को दो भागों में बांटा गया है –
(i) मानवीय साधन
(ii) भौतिक साधन।
दैनिक कार्यों में मौजूद साधनों का प्रयोग किया जाता है अथवा साधनों के प्रयोग से भी कार्य किया जाता है।

प्रश्न 11.
पारिवारिक साधनों का वर्गीकरण कैसे किया जा सकता है ?
उत्तर :
साधनों का वर्गीकरण दो भागों में किया जा सकता है –
1. मानवीय साधन
2. गैर-मानवीय अथवा भौतिक साधन।

(i) मानवीय साधन हैं – कुशलता, ज्ञान, शक्ति, दिलचस्पी, मनोवृत्ति तथा रुचियां आदि।
(ii) भौतिक साधन हैं – समय, धन, सामान, जायदाद, सुविधाएं आदि।

प्रश्न 12.
पारिवारिक साधनों की क्या विशेषताएं होती हैं ?
उत्तर :

  1. यह साधन सीमित होते हैं।
  2. साधन उपयोगी होते हैं तथा इनका प्रयोग कई रूपों में किया जा सकता है।
  3. साधनों का प्रभावशाली प्रयोग किसी भी व्यक्ति के जीवन स्तर को प्रभावित करता है।
  4. सभी साधनों का उचित प्रयोग परस्पर सम्बन्धित होता है तथा इस तरह उद्देश्यों की पूर्ति होती है।
  5. इन साधनों के उचित प्रयोग से हमारी इच्छाओं की पूर्ति होती है।

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प्रश्न 13.
मानवीय साधन कौन-से हैं और उनकी गृह-व्यवस्था में क्या महत्ता है ?
उत्तर :
ये वे साधन हैं जो मानव के अन्दर होते हैं। ये हैं – योग्यताएं, कुशलता, रुचियां, ज्ञान, शक्ति, समय, दिलचस्पी, मनोवृत्ति आदि।
इन साधनों का उचित प्रयोग करके गृह प्रबन्ध बढ़िया ढंग से किया जा सकता है। किसी कार्य को करने की योग्यता तथा कुशलता हो तो कार्य में रुचि तथा दिलचस्पी स्वयं पैदा हो जाती है। नए उपकरणों तथा मशीन आदि के बारे ज्ञान हो तो समय तथा शक्ति की बचत हो जाती है। घर के सदस्यों की शक्ति भी एक मानवीय साधन है।

प्रश्न 14.
भौतिक साधन कौन-से हैं और गृह-व्यवस्था के लिए कैसे लाभदायक हैं ?
अथवा
(A) भौतिक साधन क्या है? दो उदाहरण दें।
(B) कोई भी दो भौतिक साधन बताइये।
उत्तर :
गैर-मानवीय अथवा भौतिक साधन हैं-धन, समय, जायदाद, सुविधाएं आदि। इन सभी के उचित प्रयोग से गृह-व्यवस्था ठीक ढंग से की जा सकती है तथा परिवार के उद्देश्यों तथा ज़रूरतों की पूर्ति की जा सकती है।

प्रश्न 14. (A)
कोई भी दो भौतिक साधन बताइये।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्न।

प्रश्न 15.
समय तथा शक्ति की व्यवस्था से आप क्या समझते हो ?
उत्तर :
समय ऐसा साधन है जो कि सभी के लिए समान होता है। जब किसी कार्य को करने की शक्ति तथा समय का प्रयोग किया जाता है तो थकावट महसूस होती है। इसलिए समय तथा शक्ति दोनों साधनों को सही ढंग से प्रयोग करना चाहिए ताकि कार्य भी हो जाये तथा थकावट भी ज़रूरत से ज्यादा न हो तथा दोनों की बचत भी हो जाये।

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प्रश्न 16.
संसाधनों का प्रयोग समझदारी से करना चाहिए। इस कथन का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर :
इस कथन का अर्थ है कि सभी संसाधनों का प्रयोग समझदारी से करना चाहिए। संसाधन सीमित हैं यदि हम समझदारी से काम लेंगे तो हम संसाधनों का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग कर सकेंगे।

प्रश्न 17.
नीचे कुछ क्रियाएँ दी गई हैं। प्रत्येक क्रिया को करने के लिए आवश्यक संसाधन जो चाहिएं उनके नाम लिखें।
उत्तर :

  1. बाज़ार से सब्ज़ियाँ खरीदना – धन, कौशल, समय व ऊर्जा।
  2. कपड़े धोना – समय, ऊर्जा, कौशल।।
  3. भोजन पकाना – समय, ऊर्जा, कौशल व सब्जियाँ खरीदने के लिए धन।
  4. रेडियो सुनना – समय।
  5. गैस का चूल्हा चुनना – कौशल, ऊर्जा, समय, धन।
  6. चादर पर कढ़ाई करना – कौशल, समय, ऊर्जा ।

प्रश्न 18.
पार्क व डाक तार सेवा परिवार के किन संसाधनों के अन्तर्गत आते हैं ?
उत्तर :
भौतिक साधन।

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प्रश्न 19.
निम्नलिखित संसाधनों का मानवीय व मानवेतर संसाधनों के अन्तर्गत सूचीकरण करें –
(i) समय
(ii) कम्प्यू टर
(iii) पुस्तकें
(iv) ज्ञान।
उत्तर :
मानवीय संसाधन – ज्ञान।
मानवेतर संसाधन – समय, कम्प्यूटर, पुस्तकें।

प्रश्न 20.
एक गृहिणी की किन्हीं दो ऐसी निपुणताओं का उल्लेख करें, जो उसके परिवार के लिए संसाधन का कार्य कर सकती है। इन निपुणताओं की उपयोगिता बताएं।
उत्तर :
1. सिलाई-कढ़ाई
2. पाक कला।
गहिणी इन निपुणताओं का प्रयोग करके घर के माहौल को खुशगवार बना सकती है तथा इन्हीं निपुणताओं के प्रयोग से घर की आय में वृद्धि भी कर सकती है।

प्रश्न 21.
साधन कितनी प्रकार के हैं ? प्रत्येक का एक-एक उदाहरण दें।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

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प्रश्न 22.
कार्य सरलीकरण से आप क्या समझते हैं ?
अथवा
कार्य सरलीकरण किसे कहते हैं ?
उत्तर :
आज के इस नवीन युग में जबकि अधिकतर गृहिणियां घर की कार्य विधियों के साथ-साथ बाहर भी काम पर जाती हैं, कार्य-सरलीकरण (Work Simplification) बहुत ही आवश्यक है। ‘निर्धारित समय और शक्ति की मात्रा के उपयोग से अधिक कार्य सम्पादित करना’ अर्थात् ‘कार्य की निश्चित मात्रा को कम करने की प्रक्रिया’ को ही कार्य सरलीकरण कहा जाता है। कार्य के सरलीकरण में समय और शक्ति दोनों के प्रबन्ध को मिला दिया जाता है।

प्रश्न 23.
ज्ञान प्राप्ति के कोई चार साधन बताइये ?
उत्तर :
पुस्तकें, रेडियो, समाचार-पत्र, अनुभव।

लघु उत्तदीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
पारिवारिक साधनों को प्रभावित करने वाले तत्त्व कौन-से हैं ?
अथवा
पारिवारिक साधनों को प्रभावित करने वाले छः तत्त्व बताएँ।
उत्तर :
पारिवारिक साधनों को प्रभावित करने वाले तत्त्व हैं –
परिवार का आकार तथा रचना, जीवन-स्तर, घर की स्थिति, परिवार के सदस्यों की शिक्षा, गृह निर्माता की कुशलता तथा योग्यता, ऋतु आर्थिक स्थिति आदि।

प्रश्न 2.
योजना बनाकर समय और शक्ति के व्यय को कैसे कम किया जा सकता है ?
उत्तर :
योजना बनाकर कार्य किया जाये तो समय तथा शक्ति के खर्च को कम किया जा सकता है। योजना बनाने से पहले सारे कार्यों की सूची बनाई जाती है। इस तरह यह पता लगाया जाता है कि कौन-सा कार्य किस समय और कौन-से सदस्य द्वारा किया जाना है। योजना में अपने व्यक्तिगत कार्यों तथा मनोरंजन के लिए भी समय रखा जाता है। योजनाबद्ध ढंग से कार्य करने से रोज़ एक जैसी शक्ति का प्रयोग होता है। इस तरह अधिक थकावट भी नहीं होती। योजनाएं दैनिक कार्यों के अतिरिक्त साप्ताहिक तथा वार्षिक कार्यों के लिए भी तैयार की जाती हैं। इस तरह समय तथा शक्ति के खर्च को घटाया जा सकता है।

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प्रश्न 3.
निर्णय लेने की प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
निर्णय अथवा फैसला लेने की प्रक्रिया को गृह-सम्बन्ध का अभिन्न अंग माना गया है। निर्णय लेने की क्रिया से अभिप्राय है किसी समस्या के हल के लिए विभिन्न विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव करना। किसी भी तरह का निर्णय लेने के लिए अग्रलिखित चरणों में से गुजरना पड़ता है –

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प्रश्न 4.
निर्णय लेने से पूर्व सोच-विचार करना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
जब परिवार में कोई समस्या आ जाये तो उसके हल के लिए सोच-विचार करके ही निर्णय लेना चाहिए। प्रत्येक समस्या के हल के लिए कई विकल्प होते हैं। विभिन्न विकल्पों की जानकारी प्राप्त करनी चाहिए तथा प्रत्येक विकल्प कई तत्त्वों का समूह होता है। इनमें से कई तत्त्व समस्या के हल के लिए सहायक होते हैं तथा कई नहीं, कई कम सहायक होते हैं तथा कई अधिक सहायक होते हैं।

इसलिए इन तत्त्वों की जानकारी प्राप्त करनी तथा कई स्थितियों में आपको किसी अन्य अनुभवी व्यक्ति की सलाह भी लेनी पड़ती है ताकि ठीक विकल्प का चुनाव हो सके जैसे मनोरंजन की समस्या के लिए कई विकल्प हैं जैसे सिनेमा जाना, कोई खेल खरीदना अथवा टेलीविज़न खरीदना। इन सभी विकल्पों के बारे जानकारी लेना तथा फिर एक उपयुक्त विकल्प जैसे कि टेलीविज़न का चुनाव किया जाता है क्योंकि एक लम्बे समय तक चलने वाला मनोरंजन का साधन है। इसके साथ परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए मनोरंजन के कार्यक्रम मिल सकते हैं। इसलिए इन सभी तत्त्वों को ध्यान में रखकर सभी विकल्पों के बारे में सोच समझकर ही निर्णय लेना चाहिए।

प्रश्न 5.
सही निर्णय गृह व्यवस्था में कैसे उपयोगी होता है ?
उत्तर :
सही निर्णय लिए जाएं तो समय, शक्ति, धन आदि की बचत हो सकती है। यदि घर की व्यवस्था सोच-समझकर तथा सही निर्णय न लेकर की जाए, तो घर अस्त-व्यस्त हो जाता है। घर के सदस्यों में मेल-मिलाप नहीं रहता। कोई भी कार्य समय पर नहीं होता तथा मानसिक तथा शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस तरह सभी निर्णय घर की व्यवस्था में बड़ा लाभदायक होता है।

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प्रश्न 6.
साधन क्या हैं ? ये कितने प्रकार के होते हैं ?
अथवा
साधन कितने प्रकार के होते हैं ? प्रत्येक के दो-दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
प्रबन्ध में विभिन्न साधनों का प्रयोग करके ही पारिवारिक लक्ष्यों की प्राप्ति की जाती है। व्यवस्था से सम्बन्धित निर्णय लेते समय यह भी ध्यान रखा जाता है कि विभिन्न पारिवारिक साधनों का प्रयोग किस प्रकार से किया जाए जिससे कि अधिक-से-अधिक लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सके।

ये साधन दो प्रकार के होते हैं –
(i) मनुष्य गत या मानवीय साधन (Human Resources)
(ii) अमानवीय या बिना मनुष्य के या भौतिक साधन (Non Human or Material Resources)

मानवीय साधनों के अन्तर्गत समय, शक्ति तथा ऊर्जा, अभिरुचि, ज्ञान, निपुणता तथा परिस्थिति के अनुरूप अपने आप को ढालने की क्षमता आती है, जबकि भौतिक साधन हैं-धन-सम्पत्ति, मकान-कपड़ा आदि। सामुदायिक सुविधाएं जैसे-अस्पताल, स्कूल, पार्क आदि भी बिना मनुष्य के साधनों के ही उदाहरण हैं।

प्रश्न 7.
मानवीय साधन कार्य निपुणता एवं कुशलता द्वारा लक्ष्यों को कैसे प्राप्त किया जा सकता है ?
उत्तर :
घर को ठीक प्रकार से चलाने के लिए गृहिणी का विभिन्न कार्यों जैसे भोजन बनाना, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई आदि में कुशल होना बहुत ही आवश्यक है। यदि गृहिणी वस्त्रों की सिलाई में निपुण है तो वह घर के सदस्यों के वस्त्र बाहर से न सिलवाकर, घर पर ही सिल सकती है जिससे एक प्रकार से अपने परिवार की आय की सम्पूर्ति कर सकती है। न केवल गृहिणी ही, वरन् घर के अन्य सदस्य भी अपनी कुशलता तथा निपुणता के बल से घर को उत्तम ढंग से व्यवस्थित करने में मदद कर सकते हैं। परिवार के सभी सदस्यों की अलग-अलग रुचि होती है। गृहिणी का यह कर्त्तव्य है कि वह घर को सुचारू रूप से चलाने के लिए सदस्यों की विभिन्न रुचियों की पुष्टि करने में मदद करे। इस प्रकार सदस्यों की रुचियों तथा कुशलता के आधार पर ही वह घर के विभिन्न कार्यों को उन पर सौंप सकती है।

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प्रश्न 8.
अमानवीय या भौतिक या पदार्थीय साधनों को परिभाषित करते हुए उन्हें उदाहरण सहित वर्णित कीजिए।
अथवा
पारिवारिक मानवेतर संसाधनों का वर्णन करो।
अथवा
अमानवीय साधनों के अन्तर्गत कौन-कौन से साधन सम्मिलित किए जा सकते हैं ?
उत्तर :
अमानवीय या भौतिक या पदार्थीय साधन वे होते हैं जोकि भौतिक रूप से व्यक्ति को प्राप्त होते हैं। ये साधन व्यक्ति द्वारा धारण, उपयोग तथा नियन्त्रित किए जाते हैं, उदाहरणार्थ-स्थिर सम्पत्ति, जैसे मकान, दुकान तथा ज़मीन आदि, तथा अस्थिर साधन वास्तव में हर प्रकार की भौतिक वस्तु जो कि परिवार को उपलब्ध हों-भौतिक या पदार्थीय साधन कहलाती है। ‘धन’ सबसे मुख्य भौतिक साधन है, क्योंकि इसी के द्वारा मनुष्य अन्य वस्तुओं को किसी भी आवश्यकतानुसार खरीद सकता है।

इसके साथ ही समाज द्वारा दी गई विभिन्न सुविधाएं, जैसे कि-अस्पताल, पार्क, खेल के मैदान, बाजार, समाज सदन तथा मन्दिर आदि, जिनका उपयोग परिवार के सभी सदस्य करते हैं-सभी भौतिक साधन हैं। वास्तव में मानवीय और भौतिक साधनों को पृथक् करना बहुत कठिन है। उपरोक्त सभी पारिवारिक साधनों में से कुछ साधन ऐसे हैं, जोकि मानवीय तथा भौतिक साधन दोनों कहलाते हैं।

उदाहरणार्थ-यदि एक गृहिणी सभी कार्य स्वयं अकेले नहीं कर सकती, तो वह हाथ बंटाने के लिए घरेलू नौकर को रख सकती है। इस स्थिति में वह अपने ‘धन’ को, ‘मनुष्य श्रम’ के बदले में परिवर्तित करती है। इसी प्रकार आज के वैज्ञानिक युग में हम देखते हैं, कि मानवीय शक्ति का स्थान विद्युत् तथा गैस द्वारा प्राप्त ऊर्जा ले रही है। इसी प्रकार समय भी मानवीय तथा भौतिक दोनों ही साधनों के अन्तर्गत आता है, क्योंकि यह सभी मनुष्यों के लिए स्थिर होता है। परन्तु इसका उपयोग किसी प्रकार किया जाए यह व्यक्ति पर निर्भर करता है।

प्रश्न 9.
‘समय-व्यवस्थापन’ से आप क्या समझते हैं ?
अथवा
समय का व्यवस्थापन करना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
समय एक बहुत महत्त्वपूर्ण साधन है। यही एक ऐसा साधन है जिसकी मात्रा प्रत्येक व्यक्ति के पास समान होती है, चाहे वह गरीब हो या अमीर, वह किसी भी जाति का हो, किसी भी लिंग का अथवा किसी भी आयु का। सभी के लिए एक दिन में होने वाले चौबीस घण्टे ही होते हैं जिनका उपयोग व्यक्ति किसी भी तरीके से कर सकता है। समय का उपयुक्त उपयोग बहुत ही आवश्यक है, क्योंकि बीता हुआ समय फिर वापिस नहीं मिल सकता।

समय का हमारे जीवन में विशेष महत्त्व है इसीलिए हम सबको यह प्रयत्न करना चाहिए कि समय का इस प्रकार प्रयोग किया जाये जिससे कि कम से कम समय में अधिक से अधिक कार्य हो सके तथा इसके साथ यह भी ज़रूरी है कि कार्य भली प्रकार से किया जाए। इस कम-से-कम समय में अधिक-से-अधिक व अच्छा कार्य करना ही “समय व्यवस्थापन” (Time Management) कहलाता है।

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प्रश्न 10.
गृहिणी के लिए ‘समय योजना’ करना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
परिवार में आरम्भ से ही बच्चों को उनकी विभिन्न क्रियाओं को सीमित समय में ही पूरा करना सिखाया जाता है, उसी प्रकार माता-पिता भी विभिन्न कार्यविधियों, जैसे कि सुबह उठना, भोजन करना तथा बिस्तर पर जाने आदि के लिए एक निश्चित समय निर्धारित कर लेते हैं। इस प्रकार हर व्यक्ति समय का प्रयोग करने के लिए एक विशेष ‘समय अनुबन्ध’ (Time Pattern) की पुष्टि कर लेता है, चाहे वह कार्यसाधक हो या नहीं। परिवार में गृहिणी को सीमित समय में अनेक कार्य-विधियों को पूरा करना काफ़ी कठिन होता है क्योंकि उसे घर के विभिन्न उत्तरदायित्वों को निभाना पड़ता है। पारिवारिक जीवनचक्र के प्रथम सोपान में जबकि बच्चे बहुत छोटे होते हैं, यह कार्य और भी अधिक जटिल हो जाता है।

परिवार के विभिन्न लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए समय की ठीक व्यवस्था करना गृहिणी के लिए अत्यन्त आवश्यक है। उसे समय को विभिन्न कार्यों को करने, सोने आराम करने तथा मनोरंजन के लिए सही प्रकार से विभाजित करना चाहिए। परिवार की विभिन्न आवश्यकताओं के अनुसार ही एक गृहिणी को कई कार्यों को सम्पन्न करने के लिए समय लगाना पड़ता है, जैसे घर की देख-रेख करना, खाना पकाना, बच्चों को खिलाना, शिक्षा तथा धन सम्बन्धी उत्तरदायित्वों को निभाना तथा अन्य कई सामाजिक तथा धार्मिक कार्य-विधियों में भाग लेना आदि।

गृहिणी को चाहिए कि वह अपने समय का आयोजन इस प्रकार करे कि वह उपलब्ध सीमित समय का अधिक-से-अधिक प्रयोग करके सभी कार्यों को सम्पन्न करने में सफल हो सके। इसके लिए गृहिणी को विभिन्न कार्यविधियों को करने के लिए “समय योजना” (Time Plan) बना लेनी चाहिए। एक अच्छी सोच विचार से बनाई गई योजना एक साधन का कार्य करती है जोकि समय तथा शक्ति की बचत करने में सहायक होती है।

प्रश्न 11.
(क) मानवीय साधन क्या हैं ? दो उदाहरण दें।
(ख) कोई दो मानवीय साधन बताइये।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

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प्रश्न 12.
शक्ति प्रबन्ध को परिभाषित करें।
उत्तर :
दैनिक कार्यों को ऐसी कुशलता, चतुराई और योजनाबद्ध तरीके से करना, जिससे कम से कम मात्रा में शक्ति के उपयोग से अधिक लाभप्रद कार्यों को सम्पन्न कर सके-‘शक्ति-प्रबन्ध’ कहलाता है। इस प्रकार शक्ति प्रबन्ध का मुख्य उद्देश्य है-किसी भी कार्य के लिए कम-से-कम शक्ति का व्यय करना जिससे कि गृहिणी काम को बिना थकान के ही कर सके।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
पारिवारिक साधन मानवीय उद्देश्यों को प्राप्त करने में कैसे सहायक होते हैं ? इन्हें प्रभावित करने वाले तत्त्व कौन-से हैं ?
उत्तर :
परिवार के लिए उपलब्ध साधन, पारिवारिक लक्ष्यों अथवा उद्देश्यों की पूति करने में सहायक होते हैं। दैनिक कार्यों में मौजूद साधनों का प्रयोग किया जाता है अथवा साधनों के प्रयोग से भी कार्य किया जाता है। साधनों के सफल प्रयोग को कई तत्त्व प्रभावित करते हैं
1. परिवार का आकार तथा रचना – जिन परिवारों में छोटे बच्चे अथवा बुजुर्ग होते हैं वहां गृहिणी को अधिक कार्य करना पड़ता है। परन्तु बच्चे बड़े होकर गृहिणी की मदद करने लग जाते हैं, तथा कई बुजुर्ग भी घर के काम-काज में मदद कर देते हैं।
2. जीवन-स्तर – सादा जीवन व्यतीत करने वालों के लक्ष्य आसानी से प्राप्त किये जा सकते हैं।
3. घर की स्थिति – यदि घर, स्कूल तथा कॉलेज, मार्कीट आदि के निकट हो, तो आने-जाने का काफ़ी समय तथा शक्ति बच जाती है। यदि घर बड़ी सड़क के नज़दीक हो तो धूल-मिट्टी काफ़ी आती है तथा सफ़ाई पर काफ़ी समय नष्ट हो जाता है।
4. आर्थिक स्थिति – यदि अधिक आय हो तो घर में नौकर रखे जा सकते हैं तथा कई कार्य बाहर से भी करवाये जा सकते हैं। यदि आय कम हो तो गृहिणी को सभी कार्य स्वयं ही करने पड़ते हैं।
5. परिवार के सदस्यों की शिक्षा – पढ़े-लिखे लोग आधुनिक साधनों का प्रयोग करके अपनी शक्ति तथा समय की काफ़ी बचत कर लेते हैं, जैसे एक पढ़ी-लिखी गृहिणी वाशिंग मशीन तथा मिक्सी आदि का प्रयोग करेगी जबकि अनपढ लोग पुराने परम्परागत साधनों तथा रिवाजों पर ही निर्भर रहते हैं।
6. ऋतु बदलना – गांवों में बिजाई-कटाई के समय कार्य अधिक करना पड़ता है और समय कम। शहरों में ऋतु बदलने पर गर्म-ठण्डे कपड़ों आदि को निकालना तथा रखना आदि कार्य बढ़ जाते हैं।
7. गृह निर्माता की कुशलता तथा योग्यताएं – एक कुशल गृहिणी अपनी योग्यता से समय तथा शक्ति की बचत कर सकती है।

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प्रश्न 2.
समय और शक्ति पारिवारिक साधन कैसे हैं ? योजना बनाकर उनके व्यय को कैसे कम किया जा सकता है ?
अथवा
समय और शक्ति के व्यय को कैसे कम किया जा सकता है ?
उत्तर :
समय सभी के लिए ही बराबर होता है। एक दिन में 24 घण्टे होते हैं। परन्तु शक्ति सभी के पास एक जैसी नहीं होती तथा आयु के साथ-साथ इनमें अन्तर पड़ता रहता है। जब कोई कार्य किया जाता है तो समय तथा शक्ति दोनों खर्च होते हैं। योजना बनाकर कार्य किया जाये तो इन दोनों की बचत की जा सकती है। एक समझदार गृहिणी को समय तथा शक्ति के खर्च को घटाने के लिए योजना बनाने में कोई मुश्किल नहीं आती।

योजना को लिखकर बनाना चाहिए तथा योजना में लचीलापन होना चाहिए ताकि आवश्यकता पड़ने पर इसको बदला जा सके। सभी कार्यों की सूची बनाने के पश्चात् योजना बनानी चाहिए। यह भी तय कर लेना चाहिए कि इनमें से कौन-से कार्य किस सदस्य ने तथा कब करने हैं। दैनिक कार्यों के अतिरिक्त साप्ताहिक तथा वार्षिक कार्यों की भी योजना बना लेनी चाहिए।

अधिक भारी कार्य के पश्चात् हल्के कार्य को स्थान देना चाहिए ताकि अधिक थकावट न हो। योजना में अपने व्यक्तिगत तथा मनोरंजन के कार्यों के लिए भी समय रखना चाहिए। योजना इस तरह बनाएं कि प्रतिदिन ज़रूरी कार्यों तथा मनोरंजन के कार्यों में लगभग एक जैसी शक्ति व्यय हो। इस तरह योजनाबद्ध तरीके से कार्य करके शक्ति तथा समय दोनों की बचत हो जाती है।

प्रश्न 3.
रसोई में श्रम व समय की बचत के लिए क्या सामान्य उपाय हो सकते हैं ?
उत्तर :
रसोई में गहिणी को अपेक्षाकृत कम शारीरिक श्रम तथा समय लगे इसके लिए निम्नलिखित उपाय उपयोग में लाये जा सकते हैं –

  1. रसोईघर में या इसके समीप ही जल प्राप्ति के साधन हों, ताकि गृहिणी को पानी के लिए बार-बार रसोईघर के बाहर न जाना पड़े।
  2. प्रत्येक दिन मसाला पीसने में काफ़ी समय और श्रम लगता है। उस बचाव के लिए पिसे हुए मसालों का प्रयोग करना चाहिए।
  3. खाना पकाने में कई मामलों तथा नमक आदि का प्रयोग होता है। रसोई पकाते समय ये सभी चीजें यथासम्भव हाथ के निकट रखी हों, ताकि गृहिणी को बार-बार उठकर उन्हें लाने के लिए भण्डार-घर में न जाना पड़े।
  4. रसोईघर के बेकार पदार्थ, जैसे सब्जी के छिलके, डण्ठल आदि को रखने के लिए खास बर्तन निकट में रखा हो, ताकि उन्हें फेंकने के लिए गृहिणी को बार-बार बाहर न जाना पड़े।
  5. रसोई पकाने में यथासम्भव ऐसे साधनों का प्रयोग करना चाहिए जिनसे कम धुआं निकलता हो। ईंधनों में यथासम्भव उपलों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। साधारण आय के परिवारों के लिए कोयले का उपयोग करना अधिक उपयुक्त होता है।
  6. मैले कपड़ों को साफ करने के लिए गृहिणी को काफी श्रम करना पड़ता है। यदि साफ करने वाले कपड़ों को पहले ही सादे या सोडा मिले गर्म जल में भिगो दिया जाये तो कपड़े आसानी से साफ हो जाते हैं।
  7. गृहिणी को घर की सफाई करने में काफी समय लग जाता है। अतः ध्यान रखना चाहिए कि घर कम-से-कम गन्दा हो जिसके लिए जूतों को कमरे के भीतर नहीं लाना चाहिए तथा घर में प्रवेश करने के पहले पांवदान पर जूते या पैरों को साफ करने के बाद ही कमरे में प्रवेश करना चाहिए।

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प्रश्न 4.
अवकाश काल के लिए विभिन्न प्रकार की क्रियाएं क्या हो सकती हैं ?
उत्तर :
अवकाश-काल में विभिन्न प्रकार की कलात्मक-क्रियाएं क्रियात्मक-क्रिया तथा संग्रहात्मक क्रियाएं की जा सकती हैं। इन क्रियाओं के प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं –
1. कलात्मक क्रियाएं – दिन-प्रतिदिन के कार्यों को करने के पश्चात् अवकाश काल में विभिन्न प्रकार की कलात्मक क्रियाएं गृहिणी के जीवन की नीरसता को दूर कर उसे आनन्द का अनुभव कराती है। इन क्रियाओं से मनोरंजन के साथ-साथ थकान भी दूर हो जाती है। इन क्रियाओं के अन्तर्गत विभिन्न कलाएं, जैसे चित्रकला जिससे कि घर को सजाया जा सकता है, संगीत तथा नृत्यकला–जिससे मनोरंजन हो सकता है, तथा मूर्तिकला आदि आती हैं।

2. क्रियात्मक क्रियाएं – ये क्रियाएं परिवार के सभी सदस्यों के लिए आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से उपयोगी होती हैं उदाहरणार्थ एक गृहिणी, गृह प्रबन्ध सम्बन्धी क्रियाएं अपने अवकाश-काल में कर सकती हैं, जैसे मसाले तथा अनाज साफ करना, अचार-मुरब्बे बनाना, सिलाई-कढ़ाई आदि। इसके अतिरिक्त परिवार के अन्य सदस्य सामुदायिक तथा धार्मिक क्रियाओं, बागबानी, पशुपालन व भ्रमण आदि में अपना समय व्यय कर सकते हैं।

3. संग्रहात्मक क्रियाएं – गृहिणी अपनी रुचि के आधार पर अपने अवकाश-काल में विभिन्न वस्तुओं का संग्रह कर अपना मनोरंजन कर सकती है उदाहरणार्थ विभिन्न देशों के टिकटों का संग्रह, मुद्रा का संग्रह, फूल-पत्तियों तथा पक्षियों के पंखों को एकत्रित करना आदि इसी के अन्तर्गत आते हैं। न केवल गृहिणी वरन् परिवार में बच्चे तथा अन्य सदस्य भी अपनी रुचि के आधार पर इन वस्तुओं को एकत्रित करने का चयन कर सकते हैं।

अन्त में यह कहा जा सकता है कि गृहिणी को अपनी समय-योजना बनाते समय अवकाश-काल के उपयुक्त उपयोग पर भी अवश्य ध्यान देना चाहिए। उसे अवकाश-काल की योजना बनाते समय यह देखना चाहिए कि उसमें ऐसी क्रियाएं हों जिससे कि उसका मनोरंजन हो तथा इसके साथ ही उसे नई कलाओं में रुचि क्षमता तथा निपुणता बढ़ाने का प्रोत्साहन मिले।

प्रश्न 5.
व्यर्थ में समय नष्ट न होने पाए, इसके लिए गृहिणी को आप क्या संकेत देंगी ?
उत्तर :
एक कुशल गृहिणी के लिए यह भी आवश्यक है कि वह अपने घर के काम काज को इस तरह से संभाले कि व्यर्थ में समय नष्ट न होने पाये। समय के अपव्यय को रोकने के लिए निम्नलिखित संकेत प्रत्येक गृहिणी के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं –
1. समय के अपव्यय को रोकने के लिए सर्वोत्तम विधि यह है कि घर के कार्यों को एक सुनिश्चित योजना के माध्यम से पूरा किया जाये।

2. समय के बचाव के लिए यह आवश्यक है कि काम-काज में आने वाली वस्तुओं को चालू हालत में रखा जाये। यदि सब्जी काटने के लिए प्रयोग में लाये जाने वाले चाकू या छुरी की मूठ टूट गई तो सब्जी काटने में निश्चय ही देर लगेगी। इसी प्रकार यदि स्टोव के लिए प्रतिदिन बाजार से मिट्टी का तेल लाया जायेगा तो समय व्यर्थ में नष्ट होगा। इसी प्रकार से दिन-प्रतिदिन प्रयोग में आने वाली ऐसी बहुत-सी वस्तुएं हैं जिन्हें एक साथ क्रय न करने पर समय और श्रम का व्यर्थ में ही अपव्यय होता है।

3. समय के बचाव के लिए यह भी आवश्यक है कि जिस कार्य को करना हो. उसे करने की विधि भी ज्ञात हो। यदि ऐसा नहीं है तो काम करने में देर ही नहीं लगेगी अपितु वह ठीक प्रकार से सम्पन्न भी न हो पाएगा।

4. प्रत्येक काम मन लगा कर करने से भी समय की बचत होती है। मन लगाकर किया गया कार्य जहां एक ओर समय की बचत कराने में सहायक होता है वहीं दूसरी ओर वह ठीक समय पर पूरा भी हो जाता है।

5. समय की बचत के लिए उन यन्त्रों से भी सहायता लेनी चाहिए जिनके द्वारा कार्य शीघ्रता से सम्पन्न हो जाता है।

6. समय बचाने का सर्वोत्तम साधन तो यह है कि किसी भी कार्य को करते समय अपनी सूझबूझ का पूरा-पूरा लाभ उठाया जाए। उदाहरण के लिये, यदि किसी व्यक्ति को भोजन कराते या चाय पिलाते समय चार-पांच वस्तुएं परोसनी हों तो उन्हें एक-एक करके ले जाने के स्थान पर किसी ट्रे में रखकर एक साथ ले जाना चाहिए।

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प्रश्न 6.
एक गृहिणी को अपने अवकाश काल के सदुपयोग के बारे में आप क्या सलाह देंगे ?
उत्तर :
गृहिणी को प्रतिदिन कई प्रकार के गृह-कार्यों को सम्पन्न करना होता है जिसमें उसका अधिकांश समय लग जाता है। सबह के समय वह काफी व्यस्त होती है, क्योंकि उस समय उसे घर के अधिकांश कार्य करने होते हैं। अगर गृहिणी अपने कार्यों की योजना ठीक प्रकार से बनाये तो वह दोपहर में अवकाश का समय निकाल सकती है, जिसमें वह कुछ आराम कर सकती है तथा साथ ही अपने अवकाश काल में कुछ ऐसी क्रियाएं कर सकती हैं जिससे उसमें नवस्फूर्ति जागृत हो सके और वह पुनः अपने दैनिक कार्यों को सुचारु रूप से चला सके।

‘अवकाश-काल’ वह समय होता है जबकि गृहिणी घर के विभिन्न कार्यों में खाली होती है, तथा ‘अवकाश काल की क्रियाएं’ वे होती हैं जो कि सिर्फ उसके अपने लिए ही ज़रूरी होती हैं। एक गृहिणी अपने लिए कितना-अवकाश काल रखती है यह बहुत सी बातों पर निर्भर करता है उदाहरणार्थ-अगर वह परिवार के विभिन्न सदस्यों या नौकरों आदि से घर के कुछ कार्य करने में मदद ले लेती है तो उसके पास अधिक अवकाश-काल होता है जबकि इसके विपरीत कुछ गृहिणियां जो बाहर भी काम पर आती हैं, या कोई व्यवसाय चलाती हैं तो उन्हें ज्यादा अवकाश-काल नहीं मिल पाता। इसके साथ ही शहर व गांव के जीवन में काफ़ी अन्तर होने के कारण ग्रामीण व शहरी गृहिणियों के अवकाश काल में भी काफी अन्तर पाया जाता है।

अवकाश-काल चाहे कम हो या अधिक गृहिणी इसका उपयोग किसी प्रकार करे। प्रायः देखा जाता है कि अधिकांश गृहिणियां अवकाश-काल को सोने, आराम करने, बात-चीत करने में फिर उपन्यास आदि पढ़ने में ही व्यतीत करती हैं। आजकल की महँगाई के बढ़ते हुए इस युग में, विशेषकर उन गृहिणियों को चाहिए, जिनका कि कार्यक्षेत्र घर की चार-दीवारी तक ही सीमित रहता है कि वह अपने अवकाश काल को कुछ ऐसे उपयोगी कार्यों में लगाएं, जिससे कि वे अपनी पारिवारिक आय को बढ़ाने में भी मदद कर सकें।

गृहिणियां अपनी रुचि व कुशलता के अनुसार अपने अवकाश-काल में कढ़ाई-सिलाई, बागवानी, चित्रकारी, गुड़ियां बनाना आदि कार्य कर सकती हैं। ऐसा करने से वे न केवल अपने परिवार की आय ही बढ़ा सकती हैं, बल्कि जीवन की नीरसता को भी किसी हद तक कम कर सकती हैं। इस प्रकार परिस्थितियों के अनुसार, गृहिणी को चाहिए कि वह अपने अवकाश-काल को इस प्रकार आयोजित करे कि वह आराम के साथ-साथ इस समय को उपयोगी कार्यों में भी लगा सके।

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प्रश्न 7.
ज्ञान को मानवीय साधन के रूप में क्यों देखा जाता है ?
उत्तर :
वैसे तो जो भी व्यक्ति घर की व्यवस्था या प्रबन्ध को चलाए वही गृहप्रबन्धक कहलाता है, परन्तु इसका मुख्य उत्तरदायित्व गृहस्वामिनी अथवा गृहिणी पर ही होता है। घर को उचित ढंग से चलाने के लिए यह बहुत आवश्यक है कि गृहिणी को घर के सभी कार्यों को सही रीति से करने तथा परिवार के साधनों का उचित उपयोग करने का पूरा ज्ञान हो। गृहिणी को निम्नलिखित कार्यों का ज्ञान तो आवश्यक ही होना चाहिए –

  1. घर को कैसे सजाया जाये।
  2. बच्चों की देख-रेख किस प्रकार की जाए।
  3. सन्तुलित भोजन किस प्रकार का होना चाहिए जिससे परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य ठीक रहे।
  4. खाना बनाने में इस प्रकार की दक्षता होनी चाहिए जिससे खाना बनाने में समय कम लगे और भोज्य पदार्थों की पौष्टिकता बनी रही। साथ ही खाना रुचिकर व स्वादिष्ट भी हो।
  5. खाना पकाने से पहले परिवार के सभी सदस्यों की रुचियों को ध्यान में रखकर योजना बना सके।
  6. बाजार से वस्तुएं खरीदने की कला का ज्ञान होना चाहिए।
  7. उसे ज्ञान होना चाहिए कि क्या खरीदना है, कहां से खरीदना है, कब खरीदना है और कितनी मात्रा में खरीदना है। इस सब के पीछे अर्थ यह है कि खरीददारी में धन का अपव्यय न होकर बचत हो।
  8. गृहिणी को बजट बनाने का ज्ञान भी होना चाहिए जिससे बचत भी हो सके।
  9. बचत किए गए पैसे का सही उपयोग भी अति आवश्यक है, इसके लिए गृहिणी को बैंक आदि में पैसे जमा करवाना तथा आवश्यकता के समय पैसे निकलवाने का ज्ञान भी होना चाहिए।

अत: ज्ञान ऐसा मानवीय साधन है जिसकी सहायता से इसके मानवीय तथा पदार्थाय या भौतिक साधनों में वृद्धि करके पारिवारिक लक्ष्यों की प्राप्ति कर सकते हैं।

प्रश्न 8.
सब प्रकार के साधनों की समान विशेषतायें क्या हैं ? वर्णन कीजिए।
अथवा
परिवारिक संसाधनों की विशेषताएं बताएं।
अथवा
साधनों में क्या समानताएँ पायी जाती हैं ?
उत्तर :
विभिन्न प्रकार के साधनों में निम्नलिखित विशेषतायें समान रूप से विद्यमान रहती हैं –
1. सभी साधन सीमित होते हैं सब प्रकार के साधनों की एक मुख्य विशेषता यह है कि ये सभी सीमित होते हैं। यदि उपलब्ध साधन सीमित न हों, तो उनकी व्यवस्था करने की कोई आवश्यकता ही नहीं होती। वस्तुत: व्यवस्था की आवश्यकता तभी अनुभव होती है जब हमें सीमित साधनों में ही निर्धारित लक्ष्यों तक पहुंचना होता है।

जिस परिवार में जो साधन अधिक सीमित होगा, उस परिवार के लिए वही सबसे महत्त्वपूर्ण होगा जिस परिवार के पास पर्याप्त धन तो उपलब्ध हों परन्तु उसके सदस्यों के पास पर्याप्त समय न हो तो उस परिवार के लिए समय ही महत्त्वपूर्ण साधन होगा। इसके विपरीत ऐसा परिवार जिसके पास धन कम हो, उसके लिए समय की अपेक्षा धन ही महत्त्वपूर्ण साधन होगा। साधनों की सीमितता दो प्रकार की हो सकती है – (क) संख्यात्मक (Quantitative), (ख) गुणात्मक (Qualitative)।

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(क) संख्यात्मक (Quantitative) – वैसे तो सभी साधन सीमित होते हैं, किन्तु इनमें कुछ ऐसे होते हैं जिनकी सीमाएं स्पष्ट दिखाई देती हैं। उदाहरणार्थ समय एक ऐसा साधन है जिसे पूर्णतः सीमित कहा जा सकता है। संसार के प्रत्येक मनुष्य के लिये एक दिन में चौबीस घंटे होते हैं, न कम और न अधिक। यह बात दूसरी है कि अपनी आवश्यकताओं तथा उपलब्ध सुविधाओं के फलस्वरूप किसी व्यक्ति के पास एक मिनट बात करने के लिए भी समय न हो और किसी व्यक्ति के पास घंटों तक व्यर्थ की बातें करने के लिये समय निकल आये। इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के पास धन भी सामान्यतः एक सीमित मात्रा में ही होता है।

(ख) गुणात्मक (Qualitative) – यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि विभिन्न कार्यों को करने के लिये संसार के सभी व्यक्तियों में एक जैसी कार्य-क्षमता एवं प्रतिभा नहीं होती। यह कार्यक्षमता उसकी आयु, लिंग, अवस्था व स्थितियों पर निर्भर करती है। कुछ लोगों में जन्मजात प्रतिभा भी होती है जिसके फलस्वरूप वे प्रत्येक कार्य को अत्यन्त कलात्मक ढंग से अति शीघ्र पूर्ण कर लेते हैं। कई व्यक्तियों में यह प्रतिभा जन्मजात तो नहीं होती किन्तु वे पर्याप्त परिश्रम करके विभिन्न कलाओं में निपुणता प्राप्त कर लेते हैं।

लेकिन जिन व्यक्तियों में कलात्मक अभिरुचि का सर्वथा अभाव होता है, वे चाहे कितना भी प्रशिक्षण क्यों न ले लें किन्तु उनके द्वारा किए गए कार्यों में कलात्मकता आने ही नहीं पाती। यही कारण है कि कुछ परिवार जहां बहुत मामूली फर्नीचर, पर्दे आदि को ऐसे कलात्मक ढंग से सजाते हैं कि वे प्रत्येक व्यक्ति को तुरन्त प्रभावित कर डालते हैं, वहां दूसरी ओर बहुत से लोग कलात्मक अभिरुचि न होने के कारण बहुमूल्य वस्तुओं को भी अत्यन्त फूहड़ ढंग से प्रयोग में लाते हैं।

2. सभी साधनों का परस्पर सम्बन्धित होना – गृह प्रबन्ध एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें सभी साधन चाहे वह भौतिक हों अथवा मानवीय का आपसी गहरा सम्बन्ध होता है। जब कोई गृहिणी अपनी ऊर्जा की उचित व्यवस्था करती है, तो उसके समय की स्वयं ही व्यवस्था हो जाती है। उदाहरणार्थ यदि कोई व्यक्ति कार खरीदना चाहता है, तो उसे या तो मौद्रिक आय में वृद्धि करनी होगी या परिवार की अन्य आवश्यकताओं पर होने वाले व्यय में कटौती करनी होगी।

यदि ऐसा न किया गया तो फिर कार खरीदने के लिए धन कहां से आयेगा ? यदि यह कहा जाये कि परिवार ने कार खरीदने के लिये पहले से ही पैसा एकत्रित कर लिया है तो ऐसा तभी हुआ होगा जब पहले इस कार्य के लिये पैसा इकट्ठा करने के लिये योजना बनाई गई होगी तथा परिवार के अन्य खर्चों में कटौती की गई होगी। मौद्रिक आय में वृद्धि के लिए कई बार गृहिणी या परिवार के अन्य सदस्य अपने मानवीय साधनों का प्रयोग करते हैं तथा मानवीय साधनों के प्रयोग से उन्हें भौतिक साधन प्राप्त होते हैं जिनका उपयोग वह अन्य भौतिक अथवा मानवीय साधनों को क्रय करने के लिए प्रयोग कर सकते हैं।

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3. सभी साधन उपयोगी होते हैं-सभी साधनों की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि वे हमारे जीवन के लिए उपयोगी होते हैं। वास्तव में वस्तु विशेष की उपयोगिता सिद्ध हो जाने के बाद ही उसकी गणना साधन के रूप में की जाती है। उदाहरणार्थ यदि बागवानी का ज्ञान साग सब्जी आदि उगाने में उपयोगी होता है, तो कलात्मक अभिरुचि विभिन्न कार्यों को कलात्मक ढंग से सम्पन्न करने में उपयोगी होती है। इसी प्रकार किसी गृहिणी की नाचने या गाने की कला की गणना तभी साधन के रूप में की जाएगी जब वह अपनी इस कला का उपयोग करेगी अन्यथा यह केवल कला मात्र ही है। इस कला का उपयोग बच्चों के लिए या फिर धन कमाने के लिए किया जा सकता है तथा यह साधन के रूप में प्रयोग की जा सकती है।

4. सभी साधनों की व्यवस्था करना – सभी साधनों की (चाहे वह भौतिक हो या मानवीय) व्यवस्था की जा सकती है। इनकी उचित व्यवस्था करके ही हम उत्तम गृह प्रबन्ध की कल्पना कर सकते हैं। इन साधनों के प्रयोग के लिए सर्वप्रथम उन्हें आयोजित करने की आवश्यकता होती है, जैसे कौन-सा साधन किस आवश्यकता की पूर्ति के लिए प्रयोग किया जाए। भौतिक आय की व्यवस्था करके ही हम ज्ञात कर सकते हैं कि कोई परिवार कितना भोजन पर, कितना कपड़ों पर तथा कितना अन्य आवश्यकताओं पर व्यय करे।

आयोजन के पश्चात् साधनों का प्रयोग करते समय नियन्त्रण रखना भी अति आवश्यक है जिससे साधनों का दुरुपयोग न हो। सभी साधनों का प्रयोग करने के पश्चात् हमें मूल्यांकन करना चाहिए जिससे हमें ज्ञान हो जाए कि साधनों के प्रयोग से हमारी आवश्यकता की पूर्ति हुई है या नहीं। जैसे धन की व्यवस्था करके जब हम आहार पर व्यय करते हैं और इस व्यय को नियन्त्रित भी रखते हैं तो अन्त में हमें देखना होगा कि मुद्रा के उपयोग से हमारी सन्तुलित आहार पाने की आवश्यकता पूर्ण हुई है अथवा नहीं ! यदि हमारी आवश्यकता पूर्ण नहीं हुई है, तो उसका क्या कारण है जिससे आगामी मास की व्यवस्था करते समय उन कारणों को दूर किया जा सके।

5. सभी साधनों के प्रयोग से लक्ष्य की प्राप्ति-सभी साधनों का प्रयोग, लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किया जाता है। यदि साधन लक्ष्यों की प्राप्ति न करे, तो वह अर्थहीन एवं निरर्थक हो जाते हैं। विभिन्न साधनों का व्यवस्थित उपयोग करके ही हम अपने लक्ष्यों की प्राप्ति कर सकते हैं। यदि किसी भौतिक वस्तु या मानवीय गुणता के कारण लक्ष्य प्राप्ति न हो, तो हम उन्हें साधन की संज्ञा नहीं दे सकते हैं।

प्रश्न 8. (A)
सभी साधन सीमित होते हैं ? इस कथन का विश्लेषण करें।
उत्तर :
देखें प्रश्न 8 का उत्तर।

प्रश्न 8 (B)
संसाधनों की तीन विशेषताएं बताएं।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 8. (C)
साधनों की सीमितता कितने प्रकार की हो सकती है ? उदाहरण से समझाएँ।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 9.
ज्ञान प्राप्ति किन-किन साधनों द्वारा हो सकती है ?
उत्तर :
कोई भी व्यक्ति निम्न साधनों द्वारा ज्ञान प्राप्त करता है –

  1. शिक्षा (Education)
  2. अनुभव (Experience)
  3. किताबों, पत्रिकाओं, समाचार-पत्रों, टेलीविज़न आदि द्वारा (From Books, Magazines, Newspapers, T.V. etc.)

1. शिक्षा (Education) – परिवार के सदस्यों की उचित शिक्षा द्वारा (चाहे वह विद्यालय में दी जाए या घर पर दी जाए) मानवीय साधन ज्ञान का विकास किया जाता है। यह व्यक्ति की मानसिक क्षमता एवं बुद्धिमत्ता पर निर्भर करता है कि शिक्षा द्वारा वह कितना ज्ञान प्राप्त करेगा। एक बुद्धिमान् व्यक्ति शिक्षा के माध्यम से अपनी बुद्धि का विकास बहुत तीव्र गति से करता है। इसके विपरीत एक मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति सिखाने पर भी बहुत कम सीखता है। स्कूल में दी गई नियमानुसार शिक्षा तथा घर पर दी गई शिक्षा दोनों का ही महत्त्व एक-दूसरे से कम नहीं है।

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2. अनुभव (Experience) – परिवार का प्रत्येक सदस्य समय-समय पर अनुभवों को ग्रहण करता है तथा इन्हीं अनुभवों की सहायता से वह ज्ञान प्राप्त करता है। जैसे-जैसे आयु की वृद्धि होती है अनुभव बढ़ते रहने से ज्ञान भी बढ़ता रहता है। अनुभवों की कोई चरम सीमा नहीं होती है। अत: जीवन भर प्रत्येक व्यक्ति नाना प्रकार के अनुभवों द्वारा ज्ञान प्राप्त करता रहता है।

3. किताबों, पत्रिकाओं, समाचार – पत्रों, टेलीविज़न आदि द्वारा (From Books Magazines, Newspapers, T.V. etc.) – जिन परिवार के सदस्यों की पढ़ाई में रुचि होती है वह किसी-न-किसी प्रकार की किताब, पत्रिका, समाचार-पत्र आदि पढ़ते रहते हैं और अपने ज्ञान में वृद्धि करते रहते हैं। बच्चों में ज्ञान वृद्धि के लिए यह सामग्री देते समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए कि सामग्री उचित हो और वह उनके द्वारा उत्तम ज्ञान को ग्रहण करे। कई बार अनुचित किताबों, पत्रिकाओं आदि का चयन करने के कारण बच्चों को अच्छी आदतों के स्थान पर बुरी आदतें घेर लेती हैं और वह अनुचित ज्ञान प्राप्त करते हैं। आज के युग में टेलीविज़न भी ज्ञान का एक बहुत उपयोगी माध्यम है। टेलीविज़न से बच्चों के ज्ञान में बहुत वृद्धि हुई है।

प्रश्न 9 (A)
मानवीय संसाधन कौन-कौन से हैं ? किसी एक मानवीय संसाधन के बारे में लिखिए।
उत्तर :
मानवीय साधन हैं-कुशलता, ज्ञान, शक्ति, दिलचस्पी, रुचि आदि। देखें प्रश्न 9 का उत्तर (ज्ञान एक मानवीय साधन हैं)।

प्रश्न 10.
‘समय-योजना निर्माण के विभिन्न चरणों के बारे में विस्तारपूर्वक लिखिए।
उत्तर :
एक कार्यसाधक समय योजना के बनाने के लिए यह आवश्यक है कि एक गृहिणी अपने सभी परिवार के सदस्यों की सहायता से यह निर्णय कर ले कि कौन-कौन से कार्य प्रतिपादन करने आवश्यक हैं, कौन-कौन से साप्ताहिक कार्य हैं तथा कौन-से ऐसे कार्य हैं जोकि इतने आवश्यक नहीं हैं और आवश्यकता पड़ने पर जिन्हें छोड़ा जा सके। यद्यपि घर के सभी कार्यों को करने के लिए सामान्य रूप के समय स्थिर ही होता है, परन्तु योजना ऐसी होनी चाहिए कि आवश्यकतानुसार उनमें परिवर्तन लाया जा सके।

परिवार के सामूहिक कार्यों के अलावा कुछ अन्य व्यक्तिगत कार्य भी सदस्यों को पूर्ण करने होते हैं, अतः इनके लिए भी निश्चित समय होना चाहिए। इसीलिए समय-योजना बनाते समय इन कार्यों को भी ध्यान में रखना चाहिए, क्योंकि ये भी गृहिणी के समय के उपयोग पर प्रभाव डालती हैं। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि समय-योजना इस प्रकार की होनी चाहिए कि व्यक्तिगत रुचियों और सामूहिक परिवारिक कार्यों के लिए भी समय निकल सके।

समय-योजना निर्माण के चरण (Steps in making a Time Plan) समय योजना का निर्माण पारिवारिक आवश्यकताओं पर निर्भर करता है। सभी परिवारों की परिस्थितियां अलग-अलग होती हैं। इसलिए कभी भी किन्हीं दो परिवारों की समय योजना समान नहीं हो सकती। उदाहरणार्थ एक परिवार, जिसमें कि छोटे बच्चे हों, उसकी समय-योजना निश्चित रूप से ही उस दूसरे परिवार से भिन्न होगी, जिसमें कि वयस्क सदस्य अधिक होंगे, परन्तु योजना बनाने में विभिन्न चरण सदैव समान रहे हैं। परिस्थितियां चाहे कैसे भी हों, समय-योजना सदा परिवार की आवश्यकताओं के अनुसार ही होनी चाहिए। योजना निर्माण के विभिन्न चरणों का विवरण निम्नलिखित है –

1. इसमें परिवार के विभिन्न दैनिक, साप्ताहिक, वार्षिक या मौसम के अनुसार नियत समय पर किए जाने वाले कार्यों की एक तालिका तैयार कर ली जाती है। उदाहरणार्थ दैनिक कार्यों के अन्तर्गत खाना पकाना, परोसना, बर्तन धोना, बिस्तर लगाना, आराम करना तथा बच्चों की देख-रेख इत्यादि आते हैं, जबकि दूसरी ओर कुछ कार्य जैसे-इस्त्री करना, कपड़ों की मरम्मत करना, घर की भली प्रकार सफाई करना, कोई विशेष खाना पकाना तथा खरीददारी आदि करना, साप्ताहिक कार्यों के अन्तर्गत आते हैं। इसी प्रकार घर के रंग-रोगन करवाना एक वार्षिक, तथा सर्दी के मौसम में गर्म कपड़ों को निकालना व उसके पश्चात् उन्हें सम्भालकर रखना मौसम के अनुसार नियत समय पर किए जाने वाले कार्य के उदाहरण हैं।

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2. इसके अन्तर्गत परिवार में दैनिक कार्य, जोकि नियमित रूप से निश्चित समय पर किए जाते हैं, उनकी योजना बना ली जाती है। इन नियमित रूप से किए जाने वाले कार्यों का प्रारूप तैयार करने के बाद ही बाकी योजना बनाई जाती है। प्रतिदिन किए जाने वाले हर कार्य के लिए समय निर्धारित कर दिया जाता है। दैनिक कार्यों के आयोजन के बाद ही साप्ताहिक कार्यों के लिए खाली समय छोड़ दिया जाता है।

3. इस चरण में साप्ताहिक योजना पूरी कर ली जाती है। दैनिक योजना बनाते वक्त जो समय साप्ताहिक कार्यों के लिए छोड़ा जाता है, उसी समय में साप्ताहिक तथा कुछ विशिष्ट कार्यों को स्थान दिया जाता है। कार्यों के लिए समय निर्धारित करते समय गृहिणी को चाहिए कि वह ध्यान रखे कि परिवार की महत्त्वपूर्ण साप्ताहिक आवश्यकताओं को किस दिन व किस समय पूरा किया जा सकता है और साथ ही उसे यह भी देखना चाहिए कि परिवार के सदस्य उस समय उस कार्य को करने के लिए खाली हों।

4. इस अन्तिम चरण में परिवार में सामूहिक चर्चा करके यह निर्णय किया जाता है कि कौन-सा सदस्य क्या कार्य करेगा ? ऐसा करने के लिए परिवार के हर सदस्य के उत्तरदायित्व को स्पष्ट कर दिया जाता है।

समय – आयोजन के क्रियान्वय का नियन्त्रण (Control of Time Activities) समय-योजन के निर्माण के बाद इसको बहुत ध्यानपूर्वक क्रियान्वित करना चाहिए। योजना चाहे मौखिक हो या लिखित, एक अच्छी योजना सदा पथ-प्रदर्शक का काम करती है। एक सफल योजना वही है जोकि अवरोधों के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली कठिनाइयों में भी कार्य को भली प्रकार सम्पन्न होने में मदद करे।

उदाहरणार्थ अगर कोई आपात्कालीन स्थिति आ पड़े, जैसे कि घर में कोई बीमार हो जाए तो गृहिणी को चाहिए कि कुछ अनावश्यक कार्यों को स्थगित कर दे या फिर अपनी कार्य करने की गति में तीव्रता लाकर सभी कार्यविधियों को योजना के अनुसार ही पूरा करे। गृहिणी अपनी योजना पर नियंत्रण रखने में तभी सफल हो सकती है, अगर वह आपत्-स्थिति में भी न घबराए, अपितु मानसिक स्थिरता के बल पर उनका सामना करे।

समय-योजना का मूल्यांकन (Evaluating Time-Plans) समय-योजनाओं को क्रियान्वित करने के बाद, अन्त मे उसका मूल्यांकन किया जाता है। इससे यह पता लग जाता है कि हमारा कार्य योजना के अनुसार है या नहीं। दिन में सभी कार्य करने के बाद अन्त में गृहिणी को अवश्य ही समय-योजना का मूल्यांकन करना चाहिए जिससे कि वह जान सके कि क्या वह सभी कार्यों को सम्पन्न करने में सफल हुई है या नहीं।

सारे दिन या सप्ताह का कार्य समाप्त करके गृहिणी को योजना का विश्लेषण करते समय यह देखना चाहिए कि क्या योजना व्यवहार युक्त थी ? क्या पारिवारिक आवश्यकताएं इससे पूर्ण हुई हैं ? अगर नहीं, तो असफलता के क्या कारण थे ? इस प्रकार इन सब कारणों को जानकर गृहिणी फिर भविष्य में अधिक सफलता के साथ समय-योजना बना सकती है। एक योजना तभी सफल कहलाई जा सकती है अगर व्यक्तिगत या पारिवारिक लक्ष्यों की प्राप्ति संतोषजनक विधि से हो सके।

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प्रश्न 11.
शक्ति प्रबन्ध (Energy Management) के बारे में चर्चा कीजिए।
अथवा
अपनी ऊर्जा का आप बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग कैसे करेंगे ?
उत्तर :
समय के साथ-साथ शक्ति भी एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण मानवीय साधन है। ‘समय’ तथा ‘शक्ति’ आपस में घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। एक का प्रबन्ध दूसरे पर बहुत प्रभाव डालता है, परन्तु ‘शक्ति प्रबन्ध’ समय के प्रबन्ध की अपेक्षा अधिक कठिन एवं जटिल कार्य है। शक्ति प्रबन्ध में लक्ष्यों का निश्चित होना आवश्यक है तथा इसके साथ ही लक्ष्य उसकी उपलब्ध शक्ति के अनुसार निर्धारित किए जा सकते हैं।

प्रत्येक घरेलू कार्य के लिए विभिन्न प्रकार की शक्ति खर्च होती है-जैसा कि अधिकतर कार्यों के लिए आंखों की शक्ति (Visual effort) खर्च होती है। कोई अन्य कार्य, जैसे सफाई करने, भोजन पकाने, बर्तन साफ करने, टेबल लगाने, कपड़े धोने आदि में ‘शारीरिक शक्ति’, (Manual Effort) खर्च होती है। इसके अतिरिक्त कुछ कार्य, जैसे कि चलने, दौड़ने व खड़े होने के लिए ‘पैरों की शक्ति’ (Pedal Effort), तथा अन्य कई कार्यों जैसे कि पढ़ना-लिखना आदि में ‘मानसिक-शक्ति’ (Mental Effort) खर्च होती है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि विभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग मात्रा में शक्ति खर्च होती है। यह कहा जा सकता है कि शक्ति का खर्च होना कार्य की प्रकृति पर निर्भर करता है। उदाहरणार्थ-कुछ हल्के कार्य, जैसा गाना सुनना, कढ़ाई करना, स्वेटर बुनना, कपड़ों की हाथ की सिलाई द्वारा मरम्मत करना, फर्नीचर झाड़ना आदि में कम शक्ति का व्यय होता है। कुछ अन्य कार्य, जैसे फर्नीचर पोंछने, इस्त्री करने, चित्रकारी आदि करने में हल्के कार्यों की अपेक्षा अधिक शक्ति खर्च होती है, जबकि तेज़ चलने, नाचने, कपड़े-धोने व सुखाने, आटा पीसने, कुएं से पानी खींचने जैसे भारी कामों में सबसे अधिक शक्ति खर्च करनी पड़ती है।

कार्य की प्रकृति के अलावा, शक्ति का व्यय इस बात पर भी निर्भर करता है कि गृहिणी अपने पारिवारिक जीवन-चक्र के किस सोपान से गुजर रही है। एकाकी परिवार के प्रारम्भिक सोपान में स्त्री को केवल पति-पत्नी, यानी कि दो व्यक्तियों की देखभाल पर ही शक्ति व्यय करनी होती है। दूसरे सोपान में बच्चों के पालन-पोषण का कार्य-भार, गृहिणी की शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों पर दबाव डालते हैं।

तीसरे सोपान में, जब बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे होते हैं, गृहिणी अपनी कुछ शक्ति मनोरंजन के कार्यों में व्यय करती है। पारिवारिक जीवन-चक्र के अंतिम सोपान में तो वैसे ही आयु के अनुसार शक्ति क्षीण होने लगती है। इस प्रकार गृहिणी की कार्यक्षमता उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य तथा शारीरिक रचना पर भी निर्भर करती है और किन्हीं दो व्यक्तियों की कार्य क्षमता एक जैसी नहीं होती।

दैनिक कार्यों को ऐसी कुशलता, चतुराई और योजना बद्ध तरीके से करना, जिससे कम से-कम मात्रा में शक्ति के उपयोग से अधिक लाभप्रद कार्यों को सम्पन्न कर सके ‘शक्ति-प्रबन्ध’ कहलाता है। इस प्रकार शक्ति प्रबन्ध का मुख्य उद्देश्य है-किसी भी कार्य के लिए कम-से-कम शक्ति का व्यय करना जिससे कि गृहिणी काम को बिना थकान के ही कर सके। ‘थकान’ या ‘थकावट’-गृहिणी के कार्य करने की विधि से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है। गृहिणी को चाहिए कि वह अपनी क्रियाओं को इस प्रकार से आयोजित करे जिससे कि वह कुछ समय तथा शक्ति बचत करके परिवार तथा समाज की कई अन्य गतिविधियों में भी भाग ले सके।

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प्रश्न 12.
‘थकान’ क्या है ? यह कितने प्रकार की होती है ? उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर :
जब कोई व्यक्ति अपनी शारीरिक व मानसिक क्षमता से अधिक भारी कार्य करता है तो उसकी शारीरिक व मानसिक शक्ति कम हो जाती है, जिसके फलस्वरूप एक ऐसी स्थिति आ जाती है कि व्यक्ति बिल्कुल भी कार्य नहीं कर पाता, यही स्थिति ‘थकान’ (Fatique) कहलाती है। अत्यन्त सरल परिभाषा के रूप में यह कहा जा सकता है कि अपनी कार्य-क्षमता से अधिक शक्ति का व्यय करने से ‘थकान’ उत्पन्न हो जाती है। थकावट के कारण व्यक्ति कार्य में रुचि नहीं रख पाता।
यदि कोई व्यक्ति ऐसा कार्य करे जिसमें कि उसकी रुचि न हो और वह उसे करने में आनन्द का अनुभव न करे तो भी उसे थकान हो जाती है।
कार्य का ठीक प्रकार से आयोजन न करने से भी थकान की उत्पत्ति होती है। थकान के प्रकार (Type of Fatigue)-थकान दो प्रकार की होती है –
1. शारीरिक थकान (Physiological Fatigue)
2. मानसिक या मनोवैज्ञानिक थकान (Psychological Fatigue)

1. शारीरिक थकान लगातार कार्य करने से शारीरिक शक्ति का ह्रास हो जाता है, और एक स्थिति आती है जिसमें व्यक्ति और कार्य करने के योग्य नहीं रहता। कार्य करते समय शारीरिक मांसपेशियों में ‘ग्लूकोज’ के ऑक्सीकरण से ‘कार्बनडाइ-ऑक्साइड’, ‘जल’ तथा ‘लैक्टिक अम्ल’ उत्पन्न होते हैं। यह ऑक्सीकरण की क्रिया तभी पूर्ण होती है अगर शरीर को ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा मिलती रहे।

ग्लूकोज + ऑक्सीजन → कार्बन-डाइ-ऑक्साइड + जल + लैक्टिक अम्ल।
प्रत्येक कार्य के पश्चात् कार्बन-डाइ-ऑक्साइड का शरीर से निष्कासन तथा लैक्टिक अम्ल का ऑक्सीकरण होना बहुत ही आवश्यक होता है। साधारण

स्थिति में तो कार्बन डाइ-ऑक्साइड (CO2) मांसपेशियों से रक्त द्वारा फेफड़ों में पहुंचाई जाती है तथा वहां से श्वास क्रिया द्वारा शरीर के बाहर निकाल दी जाती है और इसी प्रकार रक्त फेफड़ों से ऑक्सीजन को मांसपेशियों में पहुँचाता है जिससे कि लैक्टिक अम्ल का दोबारा से ऑक्सीकरण हो जाता है। अगर किन्हीं कारणों से ऑक्सीजन की कमी हो तो यह क्रिया लैक्टिक अम्ल स्थिति पर ही समाप्त हो जाती है और यह लैक्टिक अम्ल रुधिर में एकत्रित हो जाता है, जिससे थकान महसूस होती है। जब व्यक्ति निरंतर कार्य करता है तो ऑक्सीजन की कमी हो जाने से थकान उत्पन्न होती है। इसीलिए इस थकान को कम करने के लिए व्यक्ति को निरंतर कार्य न करते रहकर बीच-बीच में आराम भी करते रहना चाहिए ताकि शरीर को ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा में मिलती रहे और उसे थकान भी महसूस न हो। गृहिणी को भी अपने कार्यों का विभाजन इस प्रकार करना चाहिए कि उसे किसी भी प्रकार का कार्य करते हुए थकान का अनुभव न हो।

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2. मानसिक थकान – जीवन में दैनिक कार्यों से उत्पन्न होने वाली थकान में अधिक मात्रा मानसिक थकान की ही होती है। मानसिक थकान से व्यक्ति की कार्यक्षमता कम हो जाती है तथा वह उस कार्य को करने में रुचि नहीं दिखाता। यह दो प्रकार की होती है।

  1. बोरियत से होने वाली थकान (Boredom Fatique)
  2. निराशा से होने वाली थकान (Frustration Fatique)।

1. बोरियत से होने वाली थकान – इस थकान में काम करने की वास्तविक क्षमता में तो कोई परिवर्तन नहीं आता, परन्तु कुछ ऐसे अन्य लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं जो बोरियत पैदा करते हैं, जैसे –

  1. मन का ऊब जाना
  2. बेचैनी का अनुभव होना
  3. मस्तिष्क में भारीपन
  4. काम में रुचि न दिखाना
  5. सोचने-समझने की शक्ति कम हो जाना।

उपरोक्त सभी लक्षणों के कई कारण हो सकते हैं, जैसे कार्य को लम्बी अवधि के लिए करना, काम करने का प्रबन्ध ठीक न होना, काम को उचित समय पर न करना, तथा कई बार प्रतिकूल परिस्थितियों का होना।

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2. निराशा से होने वाली थकान-इस प्रकार की मनोवैज्ञानिक थकान सामान्यतः व्यक्तिगत कारणों से होती है। उदाहरणार्थ-कार्य करते समय व्यक्ति का सन्तुष्ट न होना कार्य में सफलता प्राप्त करने में कोई संदेह होना, काम पूरा करने में सफल न होना और परिवार के विभिन्न सदस्यों द्वारा सराहना का अभाव होना आदि।

थकान चाहे शारीरिक हो या मानसिक-इसको दूर करना बहुत ही आवश्यक होता है जिससे कि व्यक्ति की कार्यक्षमता पुनः बढ़ सके। थकान दूर रखने के सामान्य उपाय निम्नलिखित हैं –

  1. कार्य के अनुसार व्यक्ति की क्षमता के आधार पर कार्य के बीच में आराम काल का होना आवश्यक है।
  2. व्यक्ति को उत्साहित करना चाहिए। इसके लिए उसके काम की सराहना की जानी चाहिए।
  3. कार्य की प्रकृति में परिवर्तन होना चाहिए, जैसे कि, किसी भारी कार्य के बाद साधारण हल्का कार्य करना। ऐसा करने से व्यक्ति समय तथा शक्ति की बचत कर सकता है।
  4. समय और श्रम बचत के उपकरणों का उपयोग करना चाहिए, जिससे समय तथा श्रम की बचत हो सके और कार्य सरल हो जाए।

प्रश्न 13.
थकान कम करने के कौन-कौन से उपाय हैं ? संक्षेप में बताइये।
उत्तर :
थकान कम करने का सर्वोत्तम उपाय विश्राम है। कोई भी कार्य करते समय यदि बीच-बीच में थोड़ा सा विश्राम कर लिया जाये तो कार्य-क्षमता बढ़ जाती है और काम में भी मन लगता है। किस व्यक्ति के लिए कितने विश्राम की आवश्यकता है यह उस व्यक्ति की शारीरिक रचना तथा कार्य की प्रकृति पर निर्भर करता है। कुछ कार्य तो ऐसे होते हैं जिनमें अन्य कार्यों की अपेक्षा थकान कम होती है। इसी प्रकार कुछ लोगों की प्रकृति क्षमता ऐसी होती है कि वे थोड़े ही विश्राम से अपनी थकान दूर कर लेते हैं, जबकि अन्य व्यक्तियों को अधिक विश्राम की आवश्यकता होती है। इसके अलावा कार्य के सरलीकरण तथा श्रम बचत के साधनों का उपयोग करने से भी थकान कम होती है। इसके अलावा थकान से बचने के लिए निम्नलिखित साधन व संकेत भी लाभकारी हो सकते हैं –

1. थकान से बचने के लिए कम – से-कम चलना फिरना चाहिए। चलना-फिरना कम करने के लिए घर में सभी आवश्यक तथा समय-समय पर उपयोग में आने वाली वस्तुएं इस प्रकार रखनी चाहिए कि वे समय पर आसानी से मिल सकें तथा उन्हें खोजने के लिए आवश्यक भाग दौड़ न करनी पड़े। ऐसा करने के लिए यह उपयुक्त होता है कि एक प्रकार का सामान एक ही स्थान पर रखा जाए। उदाहरणार्थ सिलाई का सब सामान सिलाई मशीन के साथ ही एक डिब्बे में रखना चाहिए, खाने-पीने का सब सामान किसी एक निश्चित स्थान पर रखना चाहिए, खाना बनाने का सभी सामान रसोई घर में एक ही स्थान पर पास-पास रखना चाहिए। ऐसा करने से न तो ढूंढ़ने में समय ही नष्ट होता है और न इधर-उधर व्यर्थ में भाग दौड़ करनी पड़ती है। भाग-दौड़ न करने पर अनावश्यक थकान बहुत कम होती है।

2. थकान से बचने के लिए यह भी आवश्यक है कि किसी भी कार्य को करते समय अनावश्यक क्रियाओं को हटा देना चाहिए। उदाहरणार्थ यदि किसी अतिथि के आने पर भोजन अथवा चाय परोसनी हो तो सामान लाने के लिए रसोईघर में बार-बार आने-जाने के स्थान पर एक ट्रे में सब वस्तुओं को रख कर ले जाया जा सकता है।

3. थकान से बचने के लिए यह भी आवश्यक है कि एक साथ प्रयोग में आने वाली वस्तुओं को एक स्थान पर रखा जाए, यथा-चाय के डिब्बे में चम्मच, चीनी का डिब्बा चाय के पास ही, सभी मसाले एक साथ ही मसालेदानी में, धुलाई का सभी सामान धुलाई कक्ष में एक अलमारी में रखना चाहिए।

4. थकान से बचने के लिए सही मुद्रा अपनाना भी जरूरी है। गलत मुद्रा में काम करने से थकान जल्दी होती है। उदाहरणार्थ बैठकर भोजन पकाने से अधिक थकान होती है जबकि खड़े होकर भोजन पकाने से थकान कम होती है।

5. थकान से बचाव के लिए ठीक यन्त्रों का उपयोग भी आवश्यक है। श्रम बचत के साधनों के उपयोग से भी थकान बहुत कम होती है।

6. थकान से बचने के लिए खड़े या बैठते समय इस बात का ध्यान भी रखना चाहिए कि शरीर ऐसी स्थिति में रहे जिससे मांसपेशियों पर अधिक जोर न पड़े।

7. बहुत अधिक चिन्ता करने पर भी थकान हो जाती है। अतः प्रत्येक कार्य प्रसन्नचित्त रह कर करना चाहिए।

8. लगातार एक जैसा कार्य करने के कारण भी कभी-कभी थकान का अनुभव होने लगता है। अत: यह आवश्यक है कि गृहिणी अपने कार्यों का विभाजन इस प्रकार से करे कि कार्य करने से वह थकान का अनुभव न करे।

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प्रश्न 14.
कार्य सरलीकरण को परिभाषित कीजिए तथा मण्डल द्वारा दिये गए सिद्धान्तों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर :
आज के इस नवीन युग में जबकि अधिकतर गृहिणियां घर की कार्य विधियों के साथ-साथ बाहर भी काम पर जाती हैं, कार्य-सरलीकरण (Work Simplification) बहुत ही आवश्यक है। ‘निर्धारित समय और शक्ति की मात्रा के उपयोग से अधिक कार्य सम्पादित करना’ अर्थात् ‘कार्य की निश्चित मात्रा को कम करने की प्रक्रिया’ को ही कार्य सरलीकरण कहा जाता है। कार्य के सरलीकरण में समय और शक्ति दोनों के प्रबन्ध को मिला दिया जाता है।

कार्य के सरलीकरण के विभिन्न तरीकों को एम० एच० मण्डल (M.H. Mandel) ने पांच वर्गों में विभाजित किया है।

1. हाथ और देह की गतियों में परिवर्तन – कार्य-सरलीकरण का सबसे आसान तरीका हाथ और देह की गतियां कम करना है। कार्य करते समय बैकार की गतियों को हटा देना चाहिए। ऐसा करने से समय तथा श्रम की बचत की जा सकती है। उदाहरणार्थ बर्तनों को रसोईघर में उसी क्रम से लगाना, जिस क्रम में उनका प्रयोग किया जाना हो, बर्तन धोने के बाद खुली हवा में रखकर सुखा लेना, जिससे उन्हें पोंछने की आवश्यकता न पड़े, खाना परोसते समय सभी पात्रों को ट्रे में रखकर ले जाना आदि।

इसी प्रकार रसोईघर में काम करते समय सभी उपकरण तथा खाना पकाते समय प्रयोग में लाया जाने वाला सामान, कार्य-स्थल के पास ही होना चाहिए, जैसे सब्जी बनाते समय मसालों का डिब्बा आदि। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि प्रबन्ध ऐसा होना चाहिए जिससे कि किसी भी काम को करने के लिए शारीरिक गतियां कम हों जिससे कार्य का भी सरलीकरण हो सके।

2. कार्य-स्थल एवं उपकरण में परिवर्तन – समय तथा श्रम की बचत तभी हो सकती है अगर संग्रह तथा कार्य-स्थल भी भली प्रकार से आयोजित किए जाएं, जैसे कि बर्तन धोने के स्थान का आयोजन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि साफ बर्तनों को बेसिन (Sink) के बाईं तरफ रखा जाए। इससे गृहिणी सरलता से कार्य कर सकती है तथा श्रम भी कम व्यय होता है। इसके साथ ही कार्य-स्थल की ठीक ऊंचाई होना भी बहुत आवश्यक है।

उपकरणों को इस तरह से क्रम में रखना चाहिए कि उनको उठाते समय कम समय व श्रम व्यय हो। हल्की वस्तुओं को अलमारी में ऊपर के खानों तथा भारी वस्तुओं को नीचे रखना चाहिए। जिससे उन्हें प्रयोग करते समय अधिक कठिनाई न हो। सही प्रकार के उपकरण प्रयोग में लाए जाएं तो इससे कार्य सीमित समय में पूर्ण हो जाता है। उदाहरणार्थ पतीले के स्थान पर प्रैशर-कुकर का प्रयोग करना, सब्जियां छीलने के लिए ‘पीलर’ (Peelers) का प्रयोग करना आदि। इसी प्रकार समय व श्रम बचत उपकरणों, जैसे मिक्सी, ग्राइंडर, कपड़े धोने की मशीन आदि के प्रयोग से भी गृहिणी समय व श्रम की बचत कर सकती है।

3. कार्य के क्रम में परिवर्तन – विभिन्न घरेलू क्रियाओं की योजना इस प्रकार से करनी चाहिए कि कार्य काफी सुगमता से हो सके। किसी भी कार्य को करने के लिए सबसे सरल तथा छोटा तरीका अपनाना चाहिए, जिससे समय व श्रम की बचत की जा सके। एक प्रकार का कार्य करते हुए अचानक ही दूसरा कार्य शुरू कर देने से कार्य करने की वह गति नहीं रहती तथा अधिक थकान होती है।

उदाहरणार्थ – सफाई करते समय अगर सर्वप्रथम एक कमरे में की सभी वस्तुओं को झाड़ा जाए, फिर उसके फर्श को झाड़ दी जाए तथा अन्त में उसी कमरे में पोंछा लगाया जाए, तथा फिर दूसरे कमरे में भी इन सभी क्रियाओं को इसी क्रम से दोहराया जाए तो कार्य इतनी सरलता से नहीं हो पाता। इसके विपरीत अगर सभी कमरों की सभी वस्तुओं को पहले झाड़-पोंछ की जाए फिर सब कमरों में झाड़ दी जाए तथा अन्त में पोंछा लगाया जाए, तो कम समय लगता है, क्योंकि ऐसा करने से काम की एक ही गति बनी रहती है जिससे कम थकान का अनुभव होता है। इस प्रकार कार्य को सरल बनाने के लिए कार्य करने की विधि में भी परिवर्तन लाना बहुत आवश्यक होता है।

4. कच्ची सामग्री के प्रयोग में परिवर्तन – वैज्ञानिक आविष्कारों के फलस्वरूप आजकल बाज़ार में अनेकों वस्तुएं उपलब्ध हैं जिनके प्रयोग से कार्य सरल बनाया जा सकता है। अपने परिवार के रहन-सहन के स्तर के आधार पर एक गृहिणी इन वस्तुओं का प्रयोग कर सकती है। पुराने समय में गृहिणी को स्वयं घर में आटा, दाल, बेसन व मसाले आदि पीसने में काफी समय लगता था, परन्तु आजकल बाजार में ये चीजें पीसी पिसाई ही मिलती हैं।

यह नहीं आजकल बाजार में कई व्यंजन बनाने के लिए कुछ हद तक तैयार सामग्री (Readymade Mixtures) भी उपलब्ध हैं-जिनके प्रयोग से समय व श्रम की बचत हो सकती है। उदाहरणार्थ-इडली, डोसा, गुलाबजामुन आदि बनाने के लिए बाजार में कई प्रकार के तैयार सूखे मिश्रण उपलब्ध हैं जिनके प्रयोग से गृहिणी समय की बचत कर कार्य को सरलता से करने में सफल होती है।

5. तैयार सामग्री में परिवर्तन – कच्ची सामग्री में परिवर्तन के साथ तैयार सामग्री की प्रकृति बदलकर भी समय व श्रम की बचत की जा सकती है। उदाहरण के लिए एक गृहिणी घर में अधिक मेहमान आ जाने पर चपाती के स्थान पर पूरी या चावल परोस सकती है जिन्हें बनाने में चपाती की अपेक्षा कम समय लगता है। यहां पर और भी कई उदाहरण दिए जा सकते हैं-अगर परिवार में ज्यादा छोटे बच्चे नहीं हों, तो गृहिणी के लिए यह जरूरी नहीं है कि वह हर कमरे की प्रतिदिन सफाई करे। जो कमरे प्रतिदिन प्रयोग में लाये जाते हैं-उनको रोज़ साफ किया जा सकता है और बाकी कमरों को हफ्ते में दो या तीन बार।

सूती या अन्य कपड़े के बने टेबल मैट के स्थान पर प्लास्टिक या चटाई के मैट का प्रयोग करना, ताकि प्रयोग तथा सफाई आदि करने में आसानी रहे। हालांकि ‘मण्डल’ के कार्य सरलीकरण के ये पांच वर्ग काफी प्रचलित हैं, परन्तु “ग्रास वक्रैन्डल” ने इन ‘पांच वर्गों’ का संक्षिप्तीकरण करके उन्हें ‘तीन वर्गों में विभाजित किया है, जो इस प्रकार हैं –

  1. देह की गतिविधियों परिवर्तन (Changes in the activities of the body)
  2. घर के वातावरण में परिवर्तन जैसे कि कार्य स्थल एवं उपकरण में परिवर्तन
  3. उत्पादन में परिवर्तन-यानी ‘कच्ची’ तथा ‘तैयार’ सामग्री में परिवर्तन (Changes in the product)

इस प्रकार विभिन्न विधियों का उपयोग करके गृहिणी कार्य का सरलीकरण कर सकती है। इसके अतिरिक्त गृहिणी कार्य को अधिक रुचिकर बनाकर तथा उसमें निपुण होने से भी कार्य को सरल बना सकती है। कार्य करने के साथ-साथ पर्याप्त अवधि के आराम काल की योजना से भी गृहिणी थकान से बच जाती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि ‘कार्य-सरलीकरण’.-समय तथा श्रम की बचत के साथ-साथ अच्छा कार्य करने में भी सहायक है।

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प्रश्न 15.
कार्य-सरलीकरण क्या है ? रसोईघर के कार्यों का आप किस प्रकार सरलीकरण करेंगी ?
उत्तर :
कार्य-सरलीकरण क्या है ? देखें उपरोक्त प्रश्न के उत्तर का सम्बन्धित अंश।
रसोईघर में कार्य-सरलीकरण-पाकक्रिया से संबद्ध कार्यों के सम्पादन में गति, समय एवं पाक-प्रणाली का अध्ययन म्यूज, आर्मस्ट्रॉग, हेनरी, लिंडमैन, ग्रॉस आदि व्यक्तियों ने किया। इन लोगों ने तीन बुनियादी प्रकार के रसोईघरों की व्यवस्था तथा उपकरणों में परिवर्तन कर रसोईघर की व्यवस्था का तुलनात्मक अध्ययन किया।

रसोईघर की स्थिति तथा रसोईघर में प्रयुक्त होने वाले उपकरणों के आधार पर निष्कर्ष निकाले गये तथा निष्कर्ष के आधार पर निम्नलिखित सुझाव हैं –

  1. सब्जियां छीलते समय पीलर (Peelar) तथा काटते समय नोंक वाली छुरी या चाकू का व्यवहार करें।
  2. सब्जियों को मथने के लिए मैशी (Mashee) को प्रयुक्त करें।
  3. सब्जियों को धोने के लिए बड़े पात्र का प्रयोग करें तथा अधिक जल लें।
  4. काम शुरू करने के पूर्व सभी सामानों को गैस, स्टोव या चूल्हे के पास रख लें। इससे चलने की कम आवश्यकता होती है।
  5. हाथ से चलाने वाले तथा मिश्रण करने वाले उपकरणों के स्थान पर विद्युत् द्वारा चालित उपकरणों के प्रयोग से समय की बचत होती है।
  6. रसोईघर में पहियों वाली ट्रे का उपयोग करने के गृहिणी को चलने फिरने में सुविधा रहती है।
  7. रसोईघर तथा भंडार में वस्तुओं को संग्रह करने के लिए अधिक संख्या में अलग अलग खाने (Shelves) तथा अलमारियां बनानी चाहिए।
  8. अलमारियां तथा खाने (Shelves) पास-पास हों ताकि सामानों को निकालने एवं रखने में अधिक न चलना पड़े
  9. उपकरणों की कार्य-केन्द्र के आधार पर व्यवस्था करने से अधिक चलना नहीं पड़ता है और इस तरह समय एवं शक्ति की बचत होती है।
  10. काम करते समय दोनों हाथों का व्यवहार करना चाहिए।
  11. भोजन तालिका में परिवर्तन लाकर पाकक्रिया सहज बनाई जा सकती है।

रसोईघर की व्यवस्था उपयुक्त ढंग से रहने पर कम भाग-दौड़ करनी पड़ती है। अतः पाक-कक्ष में परिवर्तन लाकर कार्यों का सरलीकरण किया जा सकता है। इसके लिए कुछ सुझाव प्रस्तुत हैं –

  1. रसोईघर को आई-आकारगत (I-shaped), एल-आकारगत (L-shaped), यू आकारगत (U-shaped) अथवा समानान्तर दीवार वाले (Parallel wall) रसोईघर के रूप में व्यवस्थित करें।
  2. रसोईघर में सबसे अधिक चूल्हा और सिंक, सिंक और बर्तन रखने के स्थान और खाने की मेज के बीच चलना पड़ता है। अतः चूल्हे और सिंक के बीच की दूरी अधिक नहीं होनी चाहिए। सिंक और बर्तन रखने का स्थान पास-पास होना चाहिए।
  3. सब्जियों-फलों को काटने, चावल, दाल बीनने तथा आटा गूंथने के निमित कार्य क्षेत्र चूल्हे तथा सिंक के पास होना चाहिए।
  4. भण्डार व्यवस्था रसोईघर में ही होनी चाहिए।
  5. पाकक्रिया में प्रयुक्त होने वाली सामग्री को चूल्हे के पास रखें तथा बनाने वाले पात्रों एवं उपकरणों को भी पास ही रखें।
  6. पका हुआ भोजन खाने की मेज तक पहुंचाने में बड़ी ट्रे या ट्राली (Trolly) का व्यवहार करें।
  7. पाकक्रिया में प्रयुक्त होने वाले उपकरणों को अच्छी व्यवस्था में गैस स्टोव या चूल्हे के पास सजाकर रखें।
  8. बर्तन धोने का सिंक ऊंचाई पर रखें। गहरे सिंक में पानी निकलने का छिद्र ढक्कन से बन्द कर देने पर एक साथ अधिक बर्तन धोए जा सकते हैं।

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प्रश्न 16.
परिवार के मानवीय संसाधनों का वर्णन करें।
उत्तर :
मानवीय संसाधन इस प्रकार से हैं-ज्ञान, कौशल, योग्यता, ऊर्जा, अभिरुचि आदि।
1. ज्ञान – ज्ञान अथवा शिक्षा व्यक्ति के दिमाग में होता है जिसे आवश्यकता पड़ने पर प्रयोग किया जा सकता है। यह किसी व्यक्ति विशेष के पास मरते दम तक रहता है। ज्ञान के प्रयोग से धन भी कमाया जा सकता है जैसे अध्यापक, वकील, सी० ए० आदि अपने ज्ञान के बल पर धन अर्जित करते हैं।

2. ऊर्जा – ऊर्जा को शक्ति भी कहते हैं। यह प्रत्येक व्यक्ति के पास उसकी डील डौल शरीर तथा सोच पर निर्भर है। यह व्यक्ति विशेष का अंश होती है। जिनका मानसिक ऊर्जा का स्तर ऊँचा होता है वे कमज़ोर शरीर के रहते भी अधिक कार्य कर लेते हैं। यदि ऊर्जा का उपयोग योजनाबद्ध ढंग से किया जाए तो अधिक कार्य किया जा सकता है। एकदम से बहुत कार्य करने से ऊर्जा की क्षति होती है तथा थकावट हो जाती है।

3. योग्यता – किसी भी कार्य को कशलता से करने के सामर्थ्य को योग्यता कहते हैं। जैसे कुशल गृहिणी रोटी को पूरी तरह गोल बना लेती है। यह योग्यता अभ्यास द्वारा प्राप्त की जाती है। योग्यता भी मानवीय संसाधन है।

4. अभिरुचि – यह मनः स्थिति है जो हमें किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करती है या रोकती है। कई बार कई कार्य करने से हमें आनन्द मिलता है तथा जोश पूर्ण होता है। इसी प्रकार कई बार कार्य करते हुए हम बोरियत महसूस करते हैं।

प्रश्न 17.
कार्य सरलीकरण के तीन सिद्धान्त बताएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 14 का उत्तर।

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प्रश्न 18.
शक्ति प्रबन्ध से आप क्या समझते हैं ? शक्ति प्रबन्ध का मुख्य उद्देश्य क्या है ?

उत्तर :
देखें प्रश्न 11 का उत्तर।

प्रश्न 19.
शारीरिक थकान क्या होती है ? यह कैसे दूर की जा सकती है ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 12, 13 का उत्तर।

एक शब्द/एक वाक्य वाले प्रश्न –

(क) एक शब्द में उत्तर दें –

प्रश्न 1.
संसाधन कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
दो।

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प्रश्न 2.
भूमि कैसा संसाधन है ?
उत्तर :
मानवेतर।

प्रश्न 3.
ज्ञान कैसा संसाधन है ?
उत्तर :
मानवीय।

प्रश्न 4.
कौन-सा संसाधन सभी के पास एक जैसा होता है ?
उत्तर :
समय।

प्रश्न 5.
कपड़े धोने के लिए ऊर्जा, कौशल के इलावा कौन-सा संसाधन चाहिए ?
उत्तर :
समय।

प्रश्न 6.
एक भौतिक साधन का उदाहरण दें।
उत्तर :
धन।

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प्रश्न 7.
निपुणता कैसा संसाधन है ?
उत्तर :
मानवीय।

प्रश्न 8.
थकान कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर :
दो।

प्रश्न 9.
सभी के पास कितना समय है ?
उत्तर :
24 घण्टे प्रतिदिन।

प्रश्न 10.
अस्पताल, स्कूल कैसी सुविधा है ?
उत्तर :
सामुदायिक सुविधाएं।

(ख) रिक्त स्थान भरो –

1. ज्ञान ………… संसाधन है।
2. ………… भौतिक वस्तु है।
3. कार्य किसी ………….. की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
4. कार्य सरलीकरण द्वारा हम ………… और ………….. की बचत कर सकते हैं।
5. अनुभव से …………… प्राप्त होता है।
उत्तर :
1. मानवीय
2. धन
3. उद्देश्य
4. समय, शक्ति
5. ज्ञान।

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(ग) निम्न में ठीक अथवा गलत बताएं –

1. थकान मानसिक तथा शारीरिक होती हैं।
2. रसोईघर के समीप ही पानी होना चाहिए।
3. आराम करके हम ऊर्जा का पुन: संचार करते हैं।
4. सभी संसाधन सीमित हैं।
उत्तर :
1. ठीक
2. ठीक
3. ठीक
4. ठीक

बहु-विकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
संसाधन कितने प्रकार के होते हैं ?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार।
उत्तर :
दो।

प्रश्न 2.
हर व्यक्ति के जीवन में कोई-न-कोई ………. होता है
(A) संसाधन
(B) लक्ष्य
(C) ऊर्जा
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर :
लक्ष्य।

प्रश्न 3.
हमारे पास दिन में कितने घण्टे होते हैं ?
(A) 8
(B) 12
(C) 24
(D) 16.
उत्तर :
24.

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प्रश्न 4.
निम्न में मानवीय संसाधन है –
(A) समय
(B) कम्प्यू टर
(C) पुस्तकें
(D) ज्ञान।
उत्तर :
ज्ञान।

प्रश्न 5.
घर पर रेडियो सुनने के लिए निम्न संसाधन चाहिए
(A) समय
(B) धन
(C) भूमि
(D) कौशल।
उत्तर :
समय।

प्रश्न 6.
सामुदायिक सुविधाएं हैं –
(A) अस्पताल
(B) स्कूल
(C) पार्क
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर :
उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 7.
थकान के प्रकार हैं –
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार।
उत्तर :
दो।

प्रश्न 8.
कार्य के सरलीकरण के विभिन्न तरीकों को एम० एच० मण्डल ने कितने वर्गों में बांटा है ?
(A) एक
(B) तीन
(C) पांच
(D) छः।
उत्तर :
पांच।

प्रश्न 9.
किस साधन के प्रयोग से हम लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं ?
(A) ऊर्जा
(B) कौशल एवं योजना
(C) ज्ञान
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

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प्रश्न 10.
कार्य किसी ………… की पूर्ति के लिए किया जाता है –
(A) उद्देश्य
(B) मूल्य
(C) ऊर्जा
(D) समय।
उत्तर :
उद्देश्य।

प्रश्न 11.
संसाधन कितने प्रकार के होते हैं ?
(A) चार
(B) तीन
(C) दो
(D) पांच।
उत्तर :
दो।

प्रश्न 12.
कौन-सा मानवीय साधन का उदाहरण नहीं है ?
(A) ऊर्जा
(B) समय
(C) ज्ञान
(D) भौतिक वस्तुएँ।
उत्तर :
भौतिक वस्तुएँ।

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प्रश्न 13.
कार्य सरलीकरण के द्वारा हम ………. की बचत कर सकते हैं –
(A) समय
(B) शक्ति
(C) समय और शक्ति
(D) धन।
उत्तर :
समय और शक्ति।

प्रश्न 14.
आराम करके हम ………. का पुनः संचार कर सकते हैं –
(A) ऊर्जा
(B) समय
(C) बुद्धि
(D) धन।
उत्तर :
ऊर्जा।

प्रश्न 15.
एक ऐसे साधन का नाम बताओ जो हर एक व्यक्ति के पास समान मात्रा में उपलब्ध है –
(A) धन
(B) समय
(C) ऊर्जा
(D) ज्ञान।
उत्तर :
समय।

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प्रश्न 16.
किस साधन के प्रयोग से हम धन कमा सकते हैं ?
(A) ज्ञान
(B) कौशल एवं योग्यता
(C) ऊर्जा
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

प्रश्न 17.
समय और शक्ति के खर्च को कैसे कम किया जा सकता है।
(A) योजनाबद्ध ढंग से
(B) धीरे-धीरे काम करके
(C) आराम करके
(D) सो कर।
उत्तर :
योजनाबद्ध ढंग से।

प्रश्न 18.
ऐसा कौन-सा साधन है जिसका प्रयोग कोई अन्य व्यक्ति नहीं कर सकता ?
(A) ज्ञान
(B) धन
(C) जायदाद
(D) सार्वजनिक सुविधाएं।
उत्तर :
ज्ञान।

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प्रश्न 19.
कपड़े धोने में किस साधन का प्रयोग होता है ?
(A) समय
(B) ऊर्जा
(C) कौशल
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

प्रश्न 20.
पार्क व डाक-तार सेवा परिवार के किन संसाधनों के अन्तर्गत आते हैं ?
(A) भौतिक साधन
(B) मानवीय साधन
(C) मानवीय और भौतिक साधन
(D) कोई भी नहीं।
उत्तर :
भौतिक साधन।

प्रश्न 21.
ज्ञान प्राप्ति किन साधनों द्वारा की जा सकती है ?
(A) शिक्षा
(B) अनुभव
(C) किताबें और पत्रिकाएँ
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

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प्रश्न 22.
संसाधनों के दो प्रकार निम्न में से कौन-कौन-से हैं ?
(A) मानवीय व समय
(B) मानवीय व अमानवीय ।
(C) भौतिक व धन
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर :
मानवीय व अमानवीय।

प्रश्न 23.
कौन-सा मानवीय संसाधन का उदाहरण नहीं है ?
(A) समय
(B) ज्ञान
(C) ऊर्जा
(D) घरेलू उपाय।
उत्तर :
घरेलू उपाय।

प्रश्न 24.
निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है ?
(A) सभी साधन उपयोगी होते हैं
(B) सभी साधनों के प्रयोग से लक्ष्यों की प्राप्ति होती है
(C) सभी साधन सीमित होते हैं
(D) संसाधन परस्पर सम्बन्धित नहीं होते।
उत्तर :
संसाधन परस्पर सम्बन्धित नहीं होते।

प्रश्न 25.
निम्नलिखित में से कौन-सा मानवीय संसाधन का उदाहरण नहीं है ?
(A) समय
(B) ऊर्जा
(C) ज्ञान
(D) धन।
उत्तर :
धन।

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प्रश्न 26.
कपड़े धोने में किस संसाधन की आवश्यकता नहीं होती ?
(A) समय
(B) ऊर्जा
(C) कौशल
(D) सार्वजनिक सुविधाएँ।
उत्तर :
सार्वजनिक सुविधाएँ।

प्रश्न 27.
निम्नलिखित में से कौन-सा मानवीय संसाधन का उदाहरण है ?
(A) धन
(B) भूमि (जायदाद)
(C) सामुदायिक सुविधाएँ
(D) ज्ञान।
उत्तर :
ज्ञान।

प्रश्न 28.
मानवीय संसाधन व्यक्तियों की……..क्षमताएं तथा विशेषताएँ होती हैं।
(A) व्यक्तिगत
(B) सामूहिक
(C) मानसिक
(D) इनमें से कोई भी नहीं।
उत्तर :
व्यक्तिगत।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 4 परिवार के संसाधन

प्रश्न 29.
………………….. भौतिक संसाधन नहीं है।
(A) ऊर्जा
(B) भूमि
(C) धन
(D) सामुदायिक वस्तुएं।
उत्तर :
ऊर्जा।

प्रश्न 30.
ज्ञान की प्राप्ति किन साधनों द्वारा की जा सकती है ?
(A) शिक्षा
(B) अनुभव
(C) किताब व पत्रिकाएं
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

परिवार के संसाधन HBSE 10th Class Home Science Notes

ध्यानार्थ तथ्य :

→ हर किसी के जीवन का कोई न कोई लक्ष्य (aim) होता है।

→ व्यक्ति अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने का निरन्तर प्रयास करता है।

→ अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कई चीजों की आवश्यकता होती है।

→ लक्ष्य प्राप्ति में प्रयुक्त सभी चीज़ों को संसाधन कहते हैं।

→ संसाधन दो प्रकार के होते हैं-मानवीय व मानवेतर।

→ मानवीय संसाधन व्यक्तियों की व्यक्तिगत क्षमताएँ तथा विशेषताएँ होती हैं। अर्थात् वह व्यक्ति विशेष का अपना अंश होते हैं तथा उनका प्रयोग केवल वही व्यक्ति कर सकता है।

→ मानवीय संसाधनों के उदाहरण हैं-ऊर्जा (Energy), समय (Time), ज्ञान (Knowledge) तथा कौशल व योग्यताएँ (Skills and abilities)।

→ मानवेतर संसाधन वे होते हैं जो हर किसी के प्रयोग के लिए उपलब्ध होते हैं जैसे-धन।

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→ मानवेतर संसाधनों के उदाहरण हैं –

  • भूमि (land)
  • धन (money)
  • भौतिक वस्तुएँ
  • सामुदायिक सुविधाएँ (Community Facilities)

→ ऊर्जा-हर काम को करने के लिए हमें ऊर्जा चाहिए। बिना ऊर्जा के कार्य करना असम्भव है।

→ जब हम कार्य करने के पश्चात् थक जाते हैं तो इसका अर्थ है कि हमारी ऊर्जा खत्म हो गई है।

→ आराम करके हम ऊर्जा का पुनः संचार करते हैं। ऊर्जा बचा कर नहीं रखी जा सकती है।

→ समय-हमारे पास दिन के केवल 24 घण्टे ही हैं। अतः समय का सदुपयोग करना आवश्यक है।

→ हम एक दिन में कितना काम करते हैं यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम समय का सदुपयोग कितना करते हैं।

→ ऊर्जा की तरह समय को भी बचाकर नहीं रखा जा सकता।

→ ज्ञान-जीवन में अनेक चीजों का ज्ञान प्राप्त करना अति आवश्यक है।

→ ज्ञान द्वारा ही हम अपने सभी कामों को कर सकते हैं। यह एक ऐसा संसाधन है जिसे आप बांट तो सकते हैं परन्तु अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए केवल आप ही इसका उपयोग कर सकते हैं।

→ कौशल व योग्यताएँ – यह भी व्यक्ति विशेष का अपना अंश है और व्यक्ति स्वयं ही उनका प्रयोग कर सकता है।

→ कोई व्यक्ति कौशल सीख सकता है और निरन्तर अभ्यास द्वारा उसे सुधार भी सकता है।

→ कोई भी कौशल सीखने के पश्चात् व्यक्ति ही उसका इस्तेमाल कर सकता है।

→ कौशल द्वारा हम धन की बचत कर सकते हैं।

→ धन-यह एक ऐसा संसाधन है जिसे हम तब इस्तेमाल करते हैं जब हमारा लक्ष्य है कुछ खरीदना। इसके अलावा हम इस संसाधन को दूसरे को भी प्रयोग करने के लिए दे सकते हैं।

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→ संसाधन के रूप में धन सीमित है। अतः असीमित आवश्यकताओं को सीमित धन से पूरा करना पड़ता है।

→ भूमि-भूमि का प्रयोग अनेक प्रकार से कर सकते हैं जैसे मकान बनाना, सब्जियाँ उगाना आदि। यदि आवश्यकता हो तो उसे बेचकर धन कमाया जा सकता है।

→ भौतिक वस्तुएँ-इसका अर्थ है वे चीजें जिनका हम दैनिक जीवन में प्रयोग करते हैं। जैसे-मेज, चारपाई आदि। इन चीज़ों के इस्तेमाल से हमारा काम आसान हो जाता है।

→ सामुदायिक सुविधाएँ-ये सुविधाएँ समुदाय या सरकार द्वारा दी जाती हैं। इन्हें सार्वजनिक प्रयोग में लाया जाता है। जैसे-~~पार्क, स्कूल, अस्पताल, खेल का मैदान आदि।

→ सभी संसाधन उपयोगी हैं-चूंकि सभी संसाधन हमें अपना लक्ष्य प्राप्त कराने में मदद करते हैं अत: यह सभी उपयोगी हैं। ये हमारी लक्ष्य प्राप्ति के सहायक हैं और हमें इन्हें बर्बाद नहीं करना चाहिए।

→ सभी संसाधन सीमित हैं-हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जो संसाधन उपलब्ध हैं वे सभी सीमित हैं। सीमित संसाधनों को असीमित आवश्यकताओं को पूरा करना पड़ता है अतः इनका प्रयोग बड़े ध्यान से करना चाहिए।

→ सभी संसाधनों का परस्पर अर्थात् आपस में सम्बन्ध होता है- इसका अर्थ है कि संसाधन एक-दूसरे से जुड़े हैं। जैसे यदि गृहिणी के पास धन, समय और ऊर्जा तो है खाना पकाने के लिए, पर कौशल नहीं है तो वह खाना नहीं पका सकती। अतः संसाधन इस तरह आपस में जुड़े हैं कि एक के बिना दूसरे का कोई आस्तित्व नहीं है।

→ जैसा कि हम जानते हैं कि संसाधन सीमित होते हैं अत: आपको यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि कोई संसाधन बेकार न जाए चाहे फिर व मानवीय है या मानवेतर। आप संसाधनों का तभी अधिक-से-अधिक प्रयोग कर सकते हैं जब आप उन्हें बर्बादी से बचाएंगे।

→ परिवार के उद्देश्यों तथा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपलब्ध साधनों की सहायता ली जाती है।

→ पारिवारिक साधनों को दो भागों में बांटा गया है –

  • मानवीय साधन
  • भौतिक साधन।

→ कार्य करने की कुशलता, ज्ञान, शक्ति, समय, दिलचस्पी, मनोवृत्ति तथा रुचियां आदि मानवीय साधन हैं।

→ धन, सामान, जायदाद, सुविधाएं आदि गैर-मानवीय अथवा भौतिक साधन हैं।

→ समय ऐसा साधन है जो सभी के लिए बराबर होता है।

→ समय को तीन भागों में बांटा जा सकता है-कार्य, विश्राम, नींद आदि।

→ विभिन्न व्यक्तियों में शक्ति भी अलग-अलग होती है तथा एक ही व्यक्ति में सारी उम्र एक जैसी शक्ति नहीं रहती।

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→ जब किसी कार्य को करने के लिए समय तथा शक्ति का प्रयोग किया जाता है तो थकावट अनुभव होती है।

→ परिवार का आकार तथा रचना, जीवन स्तर, घर की स्थिति, आर्थिक स्थिति, परिवार के सदस्यों की शिक्षा, गृह निर्माता की कुशलता तथा योग्यताएं, ऋतु बदलने से कार्य आदि पारिवारिक साधनों को प्रभावित करने वाले तत्त्व हैं।

→ योजनाबद्ध तरीके से कार्य करके समय तथा शक्ति के खर्च को कम किया जा सकता है।

→ रोज़ाना कार्यों के अतिरिक्त साप्ताहिक तथा वार्षिक कार्यों की भी योजना बनानी चाहिए।

→ यदि घर की आय के साधन ठीक हों तो घर के कार्य बाहर से करवाकर भी समय तथा शक्ति का बचाव किया जा सकता है।

→ जब किसी योजनाबद्ध तरीके से कार्य किया जाता है तो कुछ देर पश्चात् पता लग जाता है कि नियत लक्ष्यों की पूर्ति हो रही है अथवा नहीं।

→ यदि उद्देश्यों की पूर्ति न हो रही हो तो अपनी योजना में परिवर्तन कर लेना चाहिए ताकि आगे के लिए उद्देश्यों की पूर्ति हो सके।

→ ठीक निर्णय लिए जाएं तो कार्य अच्छी तरह तथा आसानी से हो जाते हैं।

→ घर का प्रबन्धक अथवा गृहिणी सोच-समझकर निर्णय न करे तो घर अस्त-व्यस्त हो जाता है।

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