Author name: Prasanna

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 13 काले मेघा पानी दे

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 13 काले मेघा पानी दे Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 13 काले मेघा पानी दे

HBSE 12th Class Hindi काले मेघा पानी दे Textbook Questions and Answers

पाठ के साथ

प्रश्न 1.
लोगों ने लड़कों की टोली को मेढक-मंडली नाम किस आधार पर दिया? यह टोली अपने आपको इंदर सेना कहकर क्यों बुलाती थी?
उत्तर:
गाँव के लोग लड़कों को नंग-धडंग और कीचड़ में लथपथ देखकर बुरा मानते थे। उनका कहना था कि यह पिछड़ापन ढोंग और अंधविश्वास है। ऐसा करने से वर्षा नहीं होती। इसलिए वे उन्हें गालियाँ देते थे और उनसे घृणा करते थे। लोग इस इंदर सेना को मेढक-मंडली कहते थे।

परंतु गाँव के किशोरों की टोली इंद्र देवता से वर्षा की गुहार लगाती थी। बच्चों का कहना था कि भगवान इंद्र वर्षा करने के लिए लोगों से पानी का अर्घ्य माँग रहे हैं। वे तो उनका दूत बनकर लोगों को जल का दान करने की प्रेरणा दे रहे हैं। ऐसा करने से इंद्र देवता वर्षा का दान करेंगे और खूब वर्षा होगी।

प्रश्न 2.
जीजी ने इंदर सेना पर पानी फेंके जाने को किस तरह सही ठहराया?
उत्तर:
जीजी का कहना था कि देवता से कुछ पाने के लिए हमें कुछ दान और त्याग करना पड़ता है। किसान भी तीस-चालीस मन अनाज पाने के लिए पहले पाँच-छः सेर गेहूँ की बुवाई करता है। तब कहीं उसका खेत हरा-भरा होकर लहराता है। इंदर सेना लोगों को यह प्रेरणा देती है कि वे इंद्र देवता को अर्घ्य चढ़ाएँ। यदि लोग भगवान इंद्र को पानी का दान करेंगे तो वे भी झमाझम वर्षा करेंगे। अतः इंदर सेना एक प्रकार से वर्षा की बुवाई कर रही है। हमें इस परंपरा का पालन करना चाहिए।

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प्रश्न 3.
पानी दे, गुड़धानी दे मेघों से पानी के साथ-साथ गुड़धानी की माँग क्यों की जा रही है?
उत्तर:
गुड़धानी का अर्थ है-गुड़ और धान अर्थात् गुड़ और अनाज मिलाकर बनाए गए लड्डु। इंदर सेना के किशोर इंद्र देवता से पानी के साथ गुड़धानी भी माँग रहे हैं। बच्चों को पीने के लिए पानी और खाने के लिए गुड़धानी चाहिए। यह सब बादलों पर निर्भर करता है। यदि बादल बरसेंगे तो खेतों में गन्ना और अनाज खूब पैदा होंगे। इस प्रकार इंद्र देवता ही हमें गुड़धानी देने वाला देवता है। इसलिए बच्चे पानी के साथ-साथ गुड़धानी की माँग करते हैं।

प्रश्न 4.
गगरी फूटी बैल पियासा इंदर सेना के इस खेलगीत में बैलों के प्यासा रहने की बात क्यों मुखरित हुई है?
उत्तर:
बैल भारतीय कृषि व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी कहे जाते हैं। वे हमारे खेतों को जोतते हैं और अन्न पैदा करते हैं। किसान उन्हीं पर निर्भर हैं। यदि वे प्यासे रहेंगे तो हमारी फसलें नष्ट हो सकती हैं। सांकेतिक रूप में लेखक यही कहना चाहता है कि वर्षा न होने से हमारे खेत सूख रहे हैं और खेती के आधार कहे जाने वाले बैल प्यास से मर रहे हैं। वर्षा होने से हमारे खेत भी बच जाएँगे और बैल भी भूखे-प्यासे नहीं रहेंगे।

प्रश्न 5.
इंदर सेना सबसे पहले गंगा मैया की जय क्यों बोलती है? नदियों का भारतीय सामाजिक, सांस्कृतिक परिवेश में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
इंदर सेना सबसे पहले गंगा मैया की जय इसलिए बोलती है क्योंकि गंगा भारत की पवित्र नदी है। यह भारत के अधिकांश भाग को जल और अन्न प्रदान करती है। लोग इसकी मां के समान पूजा करते हैं। भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक तथा धार्मिक परिवेश में इसका विशेष महत्त्व है। यमुना, गोदावरी, कृष्णा, ब्रह्मपुत्र आदि नदियाँ भी हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक परिवेश से जुड़ी हुई हैं। प्राचीनकाल से भारत के बड़े-बड़े नगर इन्हीं नदियों के किनारे बसे हुए थे। इन्हीं नदियों के कारण हमारे समाज और सामाजिकता का विकास हुआ। अब भी लोग नदियों को प्रणाम करते हैं और अनेक पर्यों पर नदियों में स्नान करते हैं। हमारे अनेक पावन नगर; जैसे हरिद्वार, ऋषिकेश, काशी आदि गंगा नदी के किनारे बसे हुए हैं। जब भी हम अपनी संस्कृति का गान करते हैं तब गंगा, यमुना, कावेरी, कृष्णा, ब्रह्मपुत्र आदि नदियों के नाम अवश्य लेते हैं।

प्रश्न 6.
रिश्तों में हमारी भावना-शक्ति का बँट जाना विश्वासों के जंगल में सत्य की राह खोजती हमारी बुद्धि की शक्ति को कमजोर करती है। पाठ में जीजी के प्रति लेखक की भावना के संदर्भ में इस कथन के औचित्य की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
भावना की शक्ति मानव के लिए अत्यधिक उपयोगी है। इससे मनुष्य को स्नेह की जो खुराक मिलती है, वह जीवन के लिए अत्यधिक उपयोगी है जो बच्चा भावनात्मक रूप से सुरक्षित रहता है, वह हमेशा प्रसन्न रहता है और विकास की ओर अग्रसर होता है। यही नहीं, इससे मानव का बौद्धिक और शारीरिक विकास भी होता है। बौद्धिक विकास के कारण ही लेखक कुमार-सुधार सभा का उपमंत्री बना। लेकिन इस स्थिति में पहुँचकर अनुचित तथा उचित के विवेक का सहारा लेता है, लेकिन जीजी ने तर्कनिष्ठ लेखक को यह अहसास कराने का प्रयास किया कि तर्क और परिणाम ही सब कुछ नहीं होता। भावनात्मक सत्य का अपना महत्त्व होता है। भावनाएँ सूक्ष्म होती हैं और उनके परिणाम भी सूक्ष्म होते हैं। जीजी की आस्था और भावुकता ने लेखक को एक नए तथ्य की जानकारी दी। लेखक के सारे तर्क हार गए और उसे यह अनुभव हुआ कि भावनाओं और तर्कों में समन्वय आवश्यक है। यह तभी होगा जब मनुष्य तर्क शक्ति के साथ-साथ भावनाओं का भी ध्यान रखेगा।

पाठ के आसपास

प्रश्न 1.
क्या इंदर सेना आज के युवा वर्ग का प्रेरणास्रोत हो सकती है? क्या आपके स्मृति-कोश में ऐसा कोई अनुभव है जब युवाओं ने संगठित होकर समाजोपयोगी रचनात्मक कार्य किया हो, उल्लेख करें।
उत्तर:
इंदर सेना आज के युवा वर्ग के लिए प्रेरणा-स्रोत का काम कर सकती है। इंदर सेना के प्रयास को हमें अंधविश्वास नहीं मानना चाहिए, बल्कि यह रचनात्मक कार्य के लिए किया गया सामूहिक प्रयास है। सामूहिक प्रयास ही जन-शक्ति का प्रतीक है। इसी के कारण हमारे देश में बड़े-बड़े आंदोलन चले। जो युवक बादलों को वर्षा करने के लिए मजबूर कर सकते हैं, वे समाज की असंख्य समस्याओं का भी समाधान कर सकते हैं। यदि युवा शक्ति को किसी रचनात्मक आंदोलन से जोड़ दिया जाए तो देश की तस्वीर बदल सकती है। सन् 1975 में कांग्रेस ने देश में आपातकालीन की घोषणा की थी तब जयप्रकाश ने युवकों को संगठित करके जन आंदोलन चलाया था। इसी प्रकार महात्मा गाँधी ने भी युवकों का सहयोग लेकर सत्य का आंदोलन चलाया तत्पश्चात् हमारा देश आज़ाद हुआ।

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प्रश्न 2.
तकनीकी विकास के दौर में भी भारत की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है। कृषि-समाज में चैत्र, वैशाख सभी माह बहुत महत्त्वपूर्ण हैं पर आषाढ़ का चढ़ना उनमें उल्लास क्यों भर देता है?
उत्तर:
इस तथ्य से सभी परिचित हैं कि भारत कृषि प्रधान देश है। आषाढ़ से पहले जेठ मास में भयंकर गर्मी पड़ती है। पशु-पक्षी मानव आदि सभी प्राणी गर्मी के कारण व्याकुल हो उठते हैं। आषाढ़ मास लगते ही पहली बरसात होती है। लोग इस बरसात की बेचैनी से प्रतीक्षा करते हैं। आषाढ़ की वर्षा लोगों को राहत दिलाती है, लेकिन किसानों के लिए यह वर्षा एक वरदान समझी जाती है। वे अपने हल और बैल लेकर खेतों की ओर चल देते हैं। वे फसल उत्पन्न करने की तैयारी करते हैं। सावनी फसल हमारी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है और कृषक समाज में उत्साह भर देती है।

प्रश्न 3.
पाठ के संदर्भ में इसी पुस्तक में दी गई निराला की कविता बादल-राग पर विचार कीजिए और बताइए कि आपके जीवन में बादलों की क्या भूमिका है?
उत्तर:
“बादल राग” निराला जी की एक उल्लेखनीय कविता है। इसमें कवि ने बादल को क्रांति का रूप माना है। कवि बादल का आह्वान करते हुए कहता है कि वह वर्षा करे और गरीब किसानों को शोषण से मुक्त करे। यही नहीं, इस कविता के द्वारा कवि पुरानी जड़ परंपराओं को त्यागकर नव-निर्माण की ओर बढ़ने का संदेश देता है।

मेरे जीवन में बादलों की विशेष भूमिका रही है, क्योंकि मैं ग्रामीण जन-जीवन से जुड़ा हुआ हूँ। वर्षा हमारे जीवन को आनन्द प्रदान करती है और नीरस जीवन में रस भर देती है। मन करता है कि मैं नगर को छोड़कर फिर से खेतों में चला जाऊँ और हरे-भरे खेत देखकर आनन्द प्राप्त करूँ।

प्रश्न 4.
त्याग तो वह होता…. उसी का फल मिलता है। अपने जीवन के किसी प्रसंग से इस सूक्ति की सार्थकता समझाइए।
उत्तर:
यह सूक्ति हमारे जीवन से संबंधित है। हम विद्या प्राप्त करने के लिए खूब मेहनत करते हैं। अपनी नींद, भूख, इच्छा को त्याग कर खूब पढ़ते हैं। अन्ततः हम अपने इस त्याग का फल प्राप्त करते हैं। मेरे अपने जीवन का एक महत्त्वपूर्ण प्रसंग है। मैंने थोड़े-थोड़े पैसे जोड़कर एक कंबल खरीदा था। प्रातः की सैर करते समय मैं उस कम्बल को ओढ़ लेता था। एक दिन मैं पार्क में सैर कर रहा था। वहाँ एक गरीब आदमी ठंड से सिकुड़ कर लेटा हुआ था। उसके तन पर पूरे कपड़े भी नहीं थे। अचानक मैंने अपना कम्बल उतारकर उस गरीब व्यक्ति पर डाल दिया। उसने मेरी ओर हैरानी से देखा। मुझे लगा कि वह मुझे आशीर्वाद दे रहा है। घर लौटने पर पिता जी द्वारा पूछने पर मैंने सारी बात उन्हें बता दी। मेरे पिता जी बड़े प्रसन्न हुए और उसी दिन मेरे लिए एक नया गर्म शाल ले आए।

प्रश्न 5.
पानी का संकट वर्तमान स्थिति में भी बहुत गहराया हुआ है। इसी तरह के पर्यावरण से संबद्ध अन्य संकटों के बारे में लिखिए।
उत्तर:
पानी के संकट के साथ-साथ बिजली का संकट भी बढ़ता जा रहा है। खनिज तेलों और पेट्रोलियम पदार्थों की कमी हमारी अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही है। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से जंगल घटते जा रहे हैं और जनसंख्या वृद्धि से गाँव और नगरों का विस्तार होता जा रहा है। इससे ऑक्सीजन की मात्रा घट गई है। उद्योगों की जहरीली गैसों के कारण वायुमंडल की ओजोन परत में जगह-जगह छेद हो गए हैं। यही नहीं कारखाने और फैक्टरियाँ भी गंदे पानी से नदियों को प्रदूषित कर रही हैं। ग्लोबल वार्मिंग का खतरा सारे विश्व में मँडरा रहा है।

प्रश्न 6.
आपकी दादी-नानी किस तरह के विश्वासों की बात करती हैं? ऐसी स्थिति में उनके प्रति आपका रवैया क्या होता है? लिखिए।
उत्तर:
मेरी दादी-नानी दोनों का विश्वास है कि गंगा में स्नान करने से मोक्ष मिल जाता है। इसी प्रकार वे पूजा की राख और जली हुई बत्तियों को नदी में बहाने की आज्ञा देती रहती हैं। यही नहीं, वे पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाकर वहाँ खाद्य पदार्थ भी रख आती हैं। मैंने उन्हें समझाने का बहुत प्रयास किया कि ऐसा करने से नदी का जल प्रदूषित हो जाता है और पीपल के आस-पास गंदगी फैलती है, परंतु वे मेरी सलाह को नकार देती हैं। लेकिन ईश्वर में उनके विश्वास का मैं भी समर्थन करता हूँ। विद्यालय जाने से पहले भगवान का थोड़ा भजन कर लेता हूँ।

चर्चा करें

प्रश्न 1.
बादलों से संबंधित अपने-अपने क्षेत्र में प्रचलित गीतों का संकलन करें तथा कक्षा में चर्चा करें।
उत्तर:
अपने विद्यालय के पुस्तकालय से लोक-गीतों की पुस्तक को पढ़ें अथवा अपनी माँ, दादी, नानी या बुआ से पूछकर लोक गीतों का संग्रह कीजिए और कक्षा में अपने सहपाठियों के साथ इन गीतों पर चर्चा कीजिए।

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प्रश्न 2.
पिछले 15-20 सालों में पर्यावरण से छेड़-छाड़ के कारण भी प्रकृति-चक्र में बदलाव आया है, जिसका परिणाम मौसम का असंतुलन है। वर्तमान बाड़मेर (राजस्थान) में आई बाढ़, मुंबई की बाढ़ तथा महाराष्ट्र का भूकंप या फिर सुनामी भी इसी का नतीजा है। इस प्रकार की घटनाओं से जुड़ी सूचनाओं, चित्रों का संकलन कीजिए और एक प्रदर्शनी का आयोजन कीजिए, जिसमें बाज़ार दर्शन पाठ में बनाए गए विज्ञापनों को भी शामिल कर सकते हैं। और हाँ ऐसी स्थितियों से बचाव के उपाय पर पर्यावरण विशेषज्ञों की राय को प्रदर्शनी में मुख्य स्थान देना न भूलें।
उत्तर:
शिक्षक की सहायता से विद्यार्थी स्वयं करें।

विज्ञापन की दुनिया

प्रश्न 1.
‘पानी बचाओ’ से जुड़े विज्ञापनों को एकत्र कीजिए। इस संकट के प्रति चेतावनी बरतने के लिए आप किस प्रकार का विज्ञापन बनाना चाहेंगे?
उत्तर:
शिक्षक की सहायता से विद्यार्थी चित्र की रचना करें।
HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 13 काले मेघा पानी दे 1

HBSE 12th Class Hindi काले मेघा पानी दे Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
“काले मेघा पानी दे” नामक निबंध का उद्देश्य अथवा प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा
“काले मेघा पानी दे” पाठ के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
उत्तर:
मानव-जीवन में तर्क और आस्था का अपना-अपना महत्त्व है। तर्क हमेशा वैज्ञानिक तथ्य को स्वीकार करता है, परंतु आस्था हमारी भावनाओं से जुड़ी होती है। तर्क विनाशकारी होता है। जिसे वह सत्य नहीं समझता, उसे वह नष्ट करना चाहता है। दूसरी ओर आस्था और विश्वास हमारे जीवन को सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करता है और हम आशावादी होकर कर्म करते हैं। इस निबंध में एक संदेश यह भी दिया गया है कि हमें जीवन में पाने से पहले कुछ खोना भी पड़ता है। जो लोग दान और त्याग में विश्वास नहीं करते, वे भ्रष्टाचार में लिप्त होते हैं। ऐसे लोग ही सामाजिक और आर्थिक विषमता को अंजाम देते हैं व समाज में अव्यवस्था फैलाते हैं।

प्रश्न 2.
वर्षा न होने पर हमारी कृषि किस प्रकार प्रभावित होती है?
उत्तर:
वर्षा न होने पर खेतों की मिट्टी सूख जाती है और उसमें पपड़ियाँ जम जाती हैं। बाद में धरती में दरारें पड़ जाती हैं। पशु-पक्षी व मानव सभी व्याकुल हो जाते हैं। किसान के बैल भी प्यास के मारे मरने लगते हैं। वर्षा न होने पर कृषि पर संकट के बादल छा जाते हैं और देश की अर्थव्यवस्था गड़बड़ा जाती है।

प्रश्न 3.
वर्षा न होने पर गाँव के लोग क्या-क्या उपाय करते हैं?
उत्तर:
वर्षा न होने पर गाँव के लोग ईश्वर की भक्ति करते हैं। स्थान-स्थान पर पूजा-पाठ व कथा-कीर्तन होता है। कुछ लोग मीठे चावल बनाकर लोगों को खिलाते हैं। जब इन उपायों से भी वर्षा नहीं होती तो गाँव की युवा मंडली गाँव वालों से जल दान कराती है। उनका विश्वास है कि ऐसा करने से इंद्र देवता प्रसन्न होकर वर्षा करेंगे।

प्रश्न 4.
गाँव की इंद्र सभा के कार्यकलाप का वर्णन करें।
उत्तर:
जब सभी उपाय अपनाने पर भी वर्षा नहीं होती तब गाँव की युवा मंडली घर-घर जाकर पानी का दान मांगती है। इस मंडली में 12 से 18 वर्ष तक के नंग-धडंग युवा होते हैं जिन्होंने केवल एक लंगोटी धारण की होती है। ये युवा गंगा मैया की जय-जयकार करते हुए गाँव की गलियों में जाते हैं और दुमंजिले गाँव के मकानों पर खड़ी स्त्रियाँ पानी के घड़े व बाल्टियाँ उड़ेल देती हैं। युवा उस पानी से स्नान करते हैं, और मिट्टी व कीचड़ में लोट-पोट हो जाते हैं। इस अवसर पर वे इस लोकगीत का गान करते हैं-
काले मेघा पानी दे
गगरी फूटी बैल पियासा
पानी दे, गुड़धानी दे
काले मेघा पानी दे।

प्रश्न 5.
मेंढक-मंडली का शब्दचित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
मेंढक मंडली’ का एक और नाम भी है-इंदर सेना। इस मंडली में दस-बारह वर्ष से सोलह वर्ष तक की आयु के बच्चे होते हैं। जो लोग उनके नग्नरूप शरीर, उनकी उछल-कूद, उनके शोर-शराबे और उनके कारण होने वाली कीचड़ काँदों से चिढ़ते थे, वे उन्हें मेंढक-मंडली कहते थे। उनकी अगवानी गलियों में होती थी। उनमें से अधिकतर एक जांगिए या लंगोटी में होते थे। वे एक स्थान पर एकत्रित होकर पहला जयकारा लगाते थे-“बोल गंगा मैया की जय” । जयकारा सुनते ही लोग सावधान हो जाते थे। स्त्रियाँ घरों की छतों व खिड़कियों से झाँकने लगती थीं। वह विचित्र नंग-धडंग टोली उछलती-कूदती समवेत पुकार लगाती थी। यह टोली इन्द्र देवता को खुश करने के लिए ऐसा करती थी।

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प्रश्न 6.
ऋषि मुनियों के बारे में लेखक के क्या विचार हैं? दोनों के दृष्टिकोण को स्पष्ट करें।
उत्तर:
जीजी का विचार है, कि सब ऋषि मुनि यह कह गए हैं कि पहले तुम खुद त्याग करो तब देवता तुम्हें चार गुणा और आठ गुणा लौटाएँगे, परंतु लेखक ऋषि मुनियों के वचनों को आर्य समाज के संदर्भ में देखता है। वह स्वयं आर्यसमाजी है। उसे इस बात का दुख है कि अंधविश्वासों के साथ ऋषि मुनियों का नाम जोड़ा गया है। वह अपनी जीजी से कहता है “ऋषि मुनियों को काहे बदनाम करती हो जीजी, क्या उन्होंने कहा था कि जब मानव पानी की बूंद ६ को तरसे तब पानी कीचड़ में बहाओ।”

प्रश्न 7.
आपकी दृष्टि में जीजी की आस्था उचित है या लेखक का तर्क?
उत्तर:
इस निबंध को पढ़ने से जीजी की आस्था हमें अधिक प्रभावित करती है। कारण यह है कि जीजी की व्याख्या पूर्णतः तर्क संगत है और वह हमारी परंपराओं पर आधारित है। भले ही वह अनपढ़ है, लेकिन वह दान और त्याग के महत्त्व को भली प्रकार जानती है। यह एक कटु सत्य है कि जब तक हम त्याग और दान नहीं करेंगे तब तक समाज के लोग किस प्रकार जीवन-यापन कर सकेंगे। त्याग और दान भी समाजवाद की स्थापना करने का एक छोटा-सा प्रयास है।

प्रश्न 8.
पानी की बुआई से क्या तात्पर्य है? ‘काले मेघा पानी दे’ के आधार पर स्पष्ट करें।
उत्तर:
किसान भरपूर फसल पाने के लिए अपने खेतों में बीज की बुआई करता है। अधिक फसल पाने के लिए उसे कुछ बीजों का त्याग भी करना पड़ता है। इसी प्रकार बादलों से बरसात पाने के लिए गाँव के लोग अपने द्वारा संचित जल में से कुछ जल दान को जल की बआई कहते हैं। भले ही वैज्ञानिक दृष्टि से यह सत्य नहीं है, पर बनी हुई है। अनेक बार ऐसा करने से वर्षा हुई भी है।

प्रश्न 9.
‘काले मेघा पानी दे’ पाठ के आधार पर त्याग और दान की महिमा का वर्णन करें।
उत्तर:
‘काले मेघा पानी दे’ पाठ में लेखक ने त्याग और दान की महिमा पर प्रकाश डाला है। लेखक के अनुसार त्यागपूर्वक किया गया दान ही सच्चा दान है। यदि किसी व्यक्ति के पास लाखों-करोड़ों रुपये हैं और उसमें से वह सौ-पचास रुपये दान कर देता है तो इसे हम त्यागपूर्वक दान नहीं कह सकते। यदि आपको किसी वस्तु की अत्यधिक आवश्यकता है और आप उसी वस्तु का दान करते हैं तो वही त्यागपूर्वक दान कहा जाएगा। वस्तुतः स्वयं दुख उठाकर किया गया दान ही सच्चा दान कहा जाता है।

प्रश्न 10.
‘काले मेघा पानी दे’ संस्मरण में भ्रष्टाचार पर किस प्रकार से व्यंग्य किया गया है?
उत्तर:
यद्यपि ‘काले मेघा पानी दे’ संस्मरण में पानी माँगने व कीचड़ में नहाने की प्रथा व सूखे में पीने के पानी को बरबाद करना आदि पर भी व्यंग्य किया गया है। किन्तु लेखक ने समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार पर भी अत्यन्त तीक्ष्ण व्यंग्य किया है। लेखक कहता है कि आज हम हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी मांगें तो रखते हैं, किंतु देश के लिए त्याग का कहीं नामो-निशान नहीं है। हम सबका अपना स्वार्थ आज एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम चटखारे लेकर एक-दूसरे के भ्रष्टाचार की बातें करते हैं। क्या कभी हमने अपने भीतर भी झांककर देखा है कि कहीं हम भी उसी भ्रष्टाचार के अंग तो नहीं बन रहे हैं? आज समाज में विकास तो है किन्तु गरीब, गरीब ही रह गए हैं। यह सब भ्रष्टाचार के कारण ही है। लेखक ने इस पाठ के माध्यम से भ्रष्टाचार पर करारा व्यंग्य किया है।

प्रश्न 11.
धर्मवीर भारती की जीजी के संस्कारों का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
लेखक की जीजी एक वृद्धा थी। वह आस्थाशील नारी थी। इसलिए वह समाज की परम्पराओं के मर्म को समझती थी। उसका परम्पराओं में पूर्ण विश्वास था। लेखक के प्रति भी उसकी ममता थी। वह पूजा अनुष्ठानों का फल भी लेखक को देना चाहती थी। उसने लेखक के जीवन में भी शुभ संस्कारों को उत्पन्न करने का प्रयास किया है।

प्रश्न 12.
जीजी लेखक से पूजा अनुष्ठान के कार्य क्यों करवाती थी?
उत्तर:
जीजी को लेखक से अपने पुत्रों से भी अधिक स्नेह था। इसलिए वह लेखक से ही पूजा अनुष्ठान के कार्य करवाती थी। इन कार्यों का पुण्य लेखक को प्राप्त हो। वह लेखक का कल्याण चाहती थी।

प्रश्न 13.
‘काले मेघा पानी दे पाठ के आधार पर जीजी के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीजी वृद्धा की नारी थी। वह लेखक से अत्यधिक प्रेम करती थी। एक आस्थाशील नारी होने के कारण वह समाज की परंपराओं के मर्म को भली प्रकार से जानती थी। इन परंपराओं में उसका पूर्ण विश्वास था। लेखक के प्रति उसकी ममता थी। वह पूजा-अनुष्ठान के कार्यों का फल भी लेखक को देना चाहती थी। उसने भरसक प्रयास किया कि वह लेखक में शुभ संस्कारों को उत्पन्न कर सके।

प्रश्न 14.
‘काले मेघा पानी दे’ पाठ के आधार पर लेखक के चरित्र का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
लेखक एक सुशिक्षित और जागरूक युवक था। उसमें आर्य समाज के संस्कार थे। वह अंधविश्वासों का कट्टर विरोधी मार सभा का मंत्री था और उसमें नेतत्व शक्ति भी थी। वह प्रत्येक बात के बारे में वैज्ञानिक दृष्टि से सोचता था। इसलिए उसने इंदर सेना द्वारा बड़ी कठिनाई से संचित किए हुए पानी के दान में माँगने को अनुचित ठहराया और इस परंपरा का विरोध किया, परंतु अन्ततः वह जीजी के स्नेह और आस्था के आगे झुक गया। इस प्रकार उसने तर्क और आस्था में समन्वय स्थापित कर लिया।

प्रश्न 15.
इंदर सेना जेठ के अंतिम तथा आषाढ़ के प्रथम सप्ताह में ही पानी माँगने क्यों आती थी?
उत्तर:
जेठ के अंतिम तथा आषाढ़ के प्रथम सप्ताह में गर्मी अपनी चरम सीमा पर होती है। गर्म लू से पृथ्वी तप जाती है। आषाढ़ मास में ही वर्षा का आगमन होता है, लेकिन कभी-कभी इस मास में वर्षा नहीं होती। इसके फलस्वरूप जीव-जंतु पानी के बिना मरने लगते हैं। ज़मीन सूखकर पत्थर बन जाती है, और जगह-जगह से फट जाती है। इंदर सेना इंद्र देवता से ही वर्षा की याचना के लिए लोगों से पानी का दान माँगती है।

प्रश्न 16.
‘काले मेघा पानी दे’ संस्मरण की क्या विशेषता है?
उत्तर:
प्रस्तुत संस्मरण में लेखक ने लोक प्रचलित आस्था तथा विज्ञान के तर्क के संघर्ष का वर्णन किया है। विज्ञान हमेशा सत्य को महत्त्व देता है और यह तर्क आश्रित है। परंतु लोक प्रचलित विश्वास आस्था से जुड़ा हुआ है। इसमें कौन सही और गलत है, यह निर्णय कर पाना कठिन है। विज्ञान तो ग्लोबल वार्मिंग को अनावृष्टि का कारण मानता है, लेकिन लोक परंपरा इस तर्क को स्वीकार नहीं करती। वे लोक परंपराओं का अंधानुकरण करके जीवन-यापन कर रहे हैं।

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प्रश्न 17.
दिनों-दिन गहराते पानी के संकट से निपटने के लिए क्या आज का युवा वर्ग ‘काले मेघा पानी दे’ की इंद्र सेना की तर्ज़ पर कोई सामूहिक कार्य प्रारंभ कर सकता है? अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
पानी का गहराता संकट हमारे देश के लिए एक भयंकर समस्या बन चुका है। इस संकट को टालने के लिए ग्रामीण व शहरी युवक-युवतियाँ अत्यधिक सहयोग दे सकते हैं। युवा वर्ग देश के गाँवों में तालाब खुदवा सकता है, जहाँ पानी का भंडारण किया जा सकता है। इस पानी से जहाँ एक ओर खेतों की सिंचाई की जा सकती है, वहाँ दूसरी ओर भूमिगत जल के स्तर में भी सुधार लाया जा सकता है। युवक प्रत्येक घर में जाकर पानी को व्यर्थ बरबाद न करने का संदेश भी लोगों को दे सकते हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. ‘काले मेघा पानी दे’ पाठ के लेखक का नाम है
(A) जैनेंद्र कुमार
(B) महादेवी वर्मा
(C) रघुवीर सहाय
(D) धर्मवीर भारती
उत्तर:
(D) धर्मवीर भारती

2. धर्मवीर भारती का जन्म कब हुआ?
(A) 2 दिसंबर, 1926
(B) 11 दिसंबर, 1936
(C) 2 जनवरी, 1927
(D) 3 मार्च, 1928
उत्तर:
(A) 2 दिसंबर, 1926

3. धर्मवीर भारती के पिता का क्या नाम था?
(A) राम जी लाल
(B) चरंजीवी लाल
(C) मोहन लाल
(D) कृष्ण लाल
उत्तर:
(B) चरंजीवी लाल

4. धर्मवीर भारती की माता का क्या नाम था?
(A) सीता देवी
(B) राधा देवी
(C) चंदी देवी
(D) चंडी देवी
उत्तर:
(C) चंदी देवी

5. धर्मवीर भारती ने इंटर की परीक्षा कब उत्तीर्ण की?
(A) सन् 1940 में
(B) सन् 1939 में
(C) सन् 1941 में
(D) सन् 1942 में
उत्तर:
(D) सन् 1942 में

6. धर्मवीर भारती ने किस पाठशाला से इंटर की परीक्षा पास की?
(A) ब्राह्मण पाठशाला
(B) कायस्थ पाठशाला
(C) सनातन धर्म पाठशाला
(D) डी०ए०वी० पाठशाला
उत्तर:
(B) कायस्थ पाठशाला

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7. धर्मवीर भारती ने किस विश्वविद्यालय से बी०ए० की परीक्षा पास की?
(A) प्रयाग विश्वविद्यालय
(B) लखनऊ विश्वविद्यालय
(C) आगरा विश्वविद्यालय
(D) मेरठ विश्वविद्यालय
उत्तर:
(A) प्रयाग विश्वविद्यालय

8. सर्वाधिक अंक प्राप्त करने पर धर्मवीर भारती को कौन-सा पदक मिला?
(A) चिंतामणि पदक
(B) चिंतामणि घोष मंडल पदक
(C) प्रेमचंद पदक
(D) जयशंकर प्रसाद पदक
उत्तर:
(B) चिंतामणि घोष मंडल पदक

9. धर्मवीर भारती ने हिंदी में किस वर्ष एम०ए० की परीक्षा पास की?
(A) सन् 1946 में
(B) सन् 1948 में
(C) सन् 1947 में
(D) सन् 1949 में
उत्तर:
(C) सन् 1947 में

10. धर्मवीर भारती ने किस वर्ष पी०एच०डी० की उपाधि प्राप्त की?
(A) सन् 1950 में
(B) सन् 1951 में
(C) सन् 1952 में
(D) सन् 1954 में
उत्तर:
(D) सन् 1954 में

11. धर्मवीर भारती ने किस विषय में पी०एच०डी० की उपाधि प्राप्त की?
(A) सिद्ध साहित्य
(B) जैन साहित्य
(C) नाथ साहित्य
(D) संत साहित्य
उत्तर:
(A) सिद्ध साहित्य

12. धर्मवीर भारती किस पत्रिका के संपादक बने?
(A) नवजीवन
(B) धर्मयुग
(C) साप्ताहिक हिंदुस्तान
(D) दिनमान
उत्तर:
(B) धर्मयुग

13. धर्मवीर भारती ने इंग्लैंड की यात्रा कब की?
(A) सन् 1958 में
(B) सन् 1960 में
(C) सन् 1961 में
(D) सन् 1962 में
उत्तर:
(C) सन् 1961 में

14. धर्मवीर भारती ने इंडोनेशिया तथा थाईलैंड की यात्रा कब की?
(A) सन् 1962 में
(B) सन् 1963 में
(C) सन् 1964 में
(D) सन् 1966 में
उत्तर:
(D) सन् 1966 में

15. धर्मवीर भारती की ‘दूसरा सप्तक’ की कविताएँ कब प्रकाशित हुईं?
(A) सन् 1951 में
(B) सन् 1952 में
(C) सन् 1943 में
(D) सन् 1950 में
उत्तर:
(A) सन् 1951 में

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16. ‘ठंडा लोहा’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1951 में
(B) सन् 1952 में
(C) सन् 1953 में
(D) सन् 1949 में
उत्तर:
(B) सन् 1952 में

17. ‘कनुप्रिया’ के रचयिता हैं
(A) रघुवीर सहाय
(B) फणीश्वरनाथ रेणु
(C) धर्मवीर भारती
(D) जैनेंद्र कुमार
उत्तर:
(C) धर्मवीर भारती

18. ‘गुनाहों का देवता’ किस विधा की रचना है?
(A) कहानी
(B) काव्य
(C) एकांकी
(D) उपन्यास
उत्तर:
(D) उपन्यास

19. ‘गुनाहों का देवता’ का रचयिता कौन हैं?
(A) अज्ञेय
(B) धर्मवीर भारती
(C) रघुवीर सहाय
(D) नरेश मेहता
उत्तर:
(B) धर्मवीर भारती

20. ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ किस विधा की रचना है?
(A) उपन्यास
(B) कहानी
(C) निबंध
(D) रेखाचित्र
उत्तर:
(A) उपन्यास

21. ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ किसकी रचना है?
(A) ,महादेवी वर्मा
(B) फणीश्वर नाथ रेणु
(C) हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
(D) धर्मवीर भारती
उत्तर:
(D) धर्मवीर भारती

22. ‘ठेले पर हिमालय’ किस विधा की रचना है?
(A) निबंध
(B) कहानी
(C) रेखाचित्र
(D) संस्मरण
उत्तर:
(A) निबंध

23. ‘कहनी-अनकहनी’ के रचयिता का क्या नाम है?
(A) मुक्तिबोध
(B) जैनेंद्र कुमार
(C) धर्मवीर भारती
(D) फणीश्वर नाथ रेणु
उत्तर:
(C) धर्मवीर भारती

24. ‘मानव मूल्य और साहित्य, किस विधा की रचना है?
(A) एकांकी
(B) उपन्यास
(C) निबंध
(D) नाटक
उत्तर:
(C) निबंध

25. धर्मवीर भारती का निधन कब हुआ?
(A) सन् 1995 को
(B) सन् 1994 को
(C) सन् 1997 को
(D) सन् 1998 को
उत्तर:
(C) सन् 1997 को

26. ‘नदी प्यासी थी’ किस विधा की रचना है?
(A) काव्य
(B) एकांकी
(C) निबंध
(D) कहानी
उत्तर:
(B) एकांकी

27. धर्मवीर भारती को किस राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया गया?
(A) पदम् विभूषण
(B) पद्मश्री
(C) पदम् रत्न
(D) खेल रत्न
उत्तर:
(B) पद्मश्री

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28. ‘पदम्श्री’ के अतिरिक्त धर्मवीर भारती को कौन-सा पुरस्कार मिला?
(A) व्यास सम्मान
(B) प्रेमचंद सम्मान
(C) ज्ञानपीठ पुरस्कार
(D) कबीर सम्मान
उत्तर:
(A) व्यास सम्मान

29. ‘अंधा युग’ के रचयिता का क्या नाम है?
(A) महादेवी वर्मा
(B) धर्मवीर भारती
(C) फणीश्वर नाथ रेणु
(D) कुँवर नारायण
उत्तर:
(B) धर्मवीर भारती

30. ‘अंधा युग’ किस विधा की रचना है?
(A) उपन्यास
(B) कहानी
(C) एकांकी
(D) गीति नाट्य
उत्तर:
(D) गीति नाट्य

31. धर्मवीर भारती की किस रचना पर हिंदी में फिल्म बनी?
(A) सूरज का सातवाँ घोड़ा
(B) गुनाहों का देवता
(C) अंधायुग
(D) पश्यंती
उत्तर:
(A) सूरज का सातवाँ घोड़ा

32. ‘आषाढ़’ से सम्बद्ध ऋतु है:
(A) बसंत
(B) वर्षा
(C) शीत
(D) ग्रीष्म
उत्तर:
(B) वर्षा

33. ‘काले मेघा पानी दे’ किस विधा की रचना है?
(A) कहानी
(B) संस्मरण
(C) रेखाचित्र
(D) निबंध
उत्तर:
(B) संस्मरण

34. ‘इंदर सेना’ को लेखक ने क्या नाम दिया है?
(A) वानर सेना
(B) राम सेना
(C) मेढक-मंडली
(D) कछुआ मंडली
उत्तर:
(C) मेढक-मंडली

35. इंदर सेना द्वारा जल का दान माँगने को लेखक क्या कहता है?
(A) अंधविश्वास
(B) लोक विश्वास
(C) धार्मिक विश्वास
(D) लोक परंपरा
उत्तर:
(A) अंधविश्वास

36. वर्षा का देवता कौन माना गया है?
(A) इन्द्र
(B) वरुण
(C) सूर्य
(D) पवन
उत्तर:
(A) इन्द्र

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37. लोगों ने लड़कों की टोली को मेढक-मंडली नाम क्यों दिया?
(A) नंग-धडंग शरीर के साथ कीचड़-कांदों में लोटने के कारण
(B) अनावृष्टि में जल माँगने के कारण
(C) शोर-शराबे द्वारा गाँव की शांति भंग करने के कारण
(D) तालाब में मेंढकों के समान उछलने के कारण
उत्तर:
(A) नंग-धडंग शरीर के साथ कीचड़-कांदों में लोटने के कारण

38. किशोर अपने-आप को इंदर सेना क्यों कहते हैं?
(A) वर्षा के लिए इंद्र को प्रसन्न करने के लिए
(B) लोगों से जल माँगने के लिए
(C) इंद्र देवता से प्यार करने के लिए
(D) इंद्र के समान आचरण करने के लिए
उत्तर:
(A) वर्षा के लिए इंद्र को प्रसन्न करने के लिए

39. ‘गुड़धानी’ से क्या अभिप्राय है?
(A) अनाज
(B) पानी
(C) गुड़ और चने से बना लड्ड
(D) धन-संपत्ति
उत्तर:
(C) गुड़ और चने से बना लड्डू

40. लंगोटधारी युवक किसकी जय बोलते हैं?
(A) इंद्र देवता की
(B) गंगा मैया की
(C) भगवान की
(D) बादलों की
उत्तर:
(B) गंगा मैया की

41. जीजी की दृष्टि में किसके बिना दान नहीं होता?
(A) समृद्धि
(B) इच्छा
(C) आस्था
(D) त्याग
उत्तर:
(D) त्याग

42. बच्चों की टोली ‘पानी दे मैया’ कहकर किस सेना के आने की बात कहती है?
(A) वानर सेना
(B) बान सेना
(C) इंद्र सेना
(D) राम सेना
उत्तर:
(C) इंद्र सेना

43. जीजी लेखक के हाथों पूजा-अनुष्ठान क्यों कराती थी?
(A) अपने कल्याण के लिए
(B) लेखक के कल्याण के लिए
(C) समाज-कल्याण के लिए
(D) परिवार के कल्याण के लिए
उत्तर:
(B) लेखक के कल्याण के लिए

44. जन्माष्टमी पर बचपन में लेखक आठ दिनों तक झाँकी सजाकर क्या बाँटता था?
(A) पंजीरी
(B) लड्डू
(C) बतासे
(D) फल
उत्तर:
(A) पंजीरी

45. किन लोगों ने त्याग और दान की महिमा का गुणगान किया है?
(A) ऋषि-मुनियों ने
(B) देवताओं ने
(C) राजनीतिज्ञों ने
(D) शिक्षकों ने
उत्तर:
(A) ऋषि-मुनियों ने

46. हर छठ पर लेखक छोटी रंगीन कुल्हियों में क्या भरता था?
(A) भूजा
(B) मिठाई
(C) बूंदी
(D) पंजीरी
उत्तर:
(A) भूजा

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47. ‘काले मेघा पानी दे’ पाठ में किस लोक प्रचलित द्वंद्व का सुंदर चित्रण किया गया है?
(A) आस्था और अनास्था
(B) विश्वास और विज्ञान
(C) पाप और पुण्य
(D) आधुनिकता और पौराणिकता
उत्तर:
(B) विश्वास और विज्ञान

48. अंधविश्वास से क्या होता है?
(A) नुकसान
(B) लाभ
(C) प्रकाश
(D) ईश दर्शन
उत्तर:
(A) नुकसान

49. प्रस्तुत पाठ में ‘बोल गंगा मैया की जय’ का पहला नारा कौन लगाता था?
(A) मेढक मंडली
(B) ऋषि समूह
(C) गंगा स्नान करने वाले
(D) हरिद्वार जाने वाले
उत्तर:
(C) मेढक मंडली

50. प्रस्तुत पाठ में लेखक को कुमार-सुधार सभा का कौन-सा पद दिया गया?
(A) मंत्री
(B) महामंत्री
(C) उपमंत्री
(D) सहमंत्री
उत्तर:
(C) उपमंत्री

51. जीजी के लड़के ने पुलिस की लाठी किस आंदोलन में खाई थी?
(A) राष्ट्रीय आंदोलन
(B) भूदान आंदोलन
(C) विदेशी वस्त्र आंदोलन
(D) नमक आंदोलन
उत्तर:
(A) राष्ट्रीय आंदोलन

काले मेघा पानी दे प्रमुख गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

[1] उछलते-कूदते, एक-दूसरे को धकियाते ये लोग गली में किसी दुमहले मकान के सामने रुक जाते, “पानी दे मैया, इंदर सेना आई है।” और जिन घरों में आखीर जेठ या शुरू आषाढ़ के उन सूखे दिनों में पानी की कमी भी होती थी, जिन घरों के कुएँ भी सूखे होते थे, उन घरों से भी सहेज कर रखे हुए पानी में से बाल्टी या घड़े भर-भर कर इन बच्चों को सर से पैर तक तर कर दिया जाता था। ये भीगे बदन मिट्टी में लोट लगाते थे, पानी फेंकने से पैदा हुए कीचड़ में लथपथ हो जाते थे। हाथ, पाँव, बदन, मुँह, पेट सब पर गंदा कीचड़ मल कर फिर हाँक लगाते “बोल गंगा मैया की जय” और फिर मंडली बाँध कर उछलते-कूदते अगले घर की ओर चल पड़ते बादलों को टेरते, “काले मेघा पानी दे।” [पृष्ठ-100]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित संस्मरण ‘काले मेघा पानी दे’ से उद्धृत है। इसके लेखक डॉ० धर्मवीर भारती हैं। यह लेखक का एक प्रसिद्ध संस्मरण है जिसमें उन्होंने लोक प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वंद्व का सुंदर चित्रण किया है। लेखक अपने गाँव के एक प्रसंग का वर्णन करता है। गाँव में अनावृष्टि के कारण किशोर युवकों की इंदर सेना उछलती-कूदती हुई गलियों में सिर्फ एक लंगोटी पहने लोगों से दान में पानी माँगती थी। इसी प्रसंग की चर्चा करते हुए लेखक कहता है

व्याख्या-गाँव के कुछ नंग-धडंग किशोर एक लंगोटी बाँधे हुए गाँव की गलियों में लोगों से पानी की याचना करते थे। ये युवक उछलते-कूदते हुए एक-दूसरे को धक्का देते हुए आगे बढ़ते थे। ये किसी दुमंजिले मकान के सामने रुककर गुहार लगाते थे- हे माँ! तुम्हारे द्वार पर इंदर सेना आई है, इसे पानी दो मैया। प्रायः सभी घरों में जेठ माह के अंत में अथवा आषाढ़ के आरंभ में अनावृष्टि के कारण सूखा पड़ा रहता था और घरों में पानी की बड़ी कमी होती थी। जिन लोगों के घरों में प्रायः कुएँ थे, वे भी सूख जाते थे। सभी घर-परिवार पानी सँभाल कर रखते थे, क्योंकि पानी की बहुत कमी होती थी। तो भी लोग बचाकर रखे पानी से एक बाल्टी या घड़ा भरकर इंदर सेना पर उड़ेल देते थे जिससे वे सिर से पैर तक भीग जाते थे। भीगे शरीर से ये लोग मिट्टी में लोट जाते थे। पानी फैंकने से जो कीचड़ बन जाता था। उससे यह सेना लथपथ हो जाती थी। सभी के हाथों-पैरों, शरीर, मुख, पेट आदि पर गंदा कीचड़ लग जाता था, परंतु किसी को इसकी परवाह नहीं होती थी। सभी युवक जोर से नारा लगाते ‘बोल गंगा मैया की जय’ । तत्पश्चात् वे पुनः मंडली बनाकर उछलते-कूदते हुए अगले घर की तरफ चल देते थे। इसके साथ-साथ वे बादलों से पुनः पुकार लगाकर पानी माँगते और कहते-काले मेघा पानी दे। इस प्रकार यह इंदर सेना पूरे गाँव की गलियों में चक्कर लगाती हुई घूमती थी।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने अनावृष्टि के अवसर पर लड़कों द्वारा गठित इंदर सेना का यथार्थ वर्णन किया है, जो लोगों से दान में पानी माँगती थी।
  2. सहज, सरल तथा जन-भाषा का सफल प्रयोग किया गया है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. वर्णनात्मक शैली के साथ-साथ संबोधनात्मक शैली का भी सफल प्रयोग किया गया है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) किन दिनों पानी की कमी हो जाती थी?
(ग) उछलते-कूदते किशोर दुमहले मकान के सामने रुककर क्या कहते थे?
(घ) पानी की कमी के बावजूद इन बच्चों पर पानी क्यों डाला जाता था?
(ङ) इंदर सेना के किशोर बादलों को क्या टेर लगाते थे?
उत्तर:
(क) पाठ का नाम काले मेघा पानी दे
लेखक का नाम-धर्मवीर भारती

(ख) जेठ महीने के अंतिम काल अथवा आषाढ़ महीने के आरंभ के दिनों में पानी की कमी हो जाती थी और घरों के कुएँ भी सूख जाते थे।

(ग) उछलते-कूदते हुए किशोर दुमहले मकान के सामने रुककर कहते थे-“पानी दे मैया, इंदर सेना आई है”।

(घ) लोगों का विश्वास था यदि इंदर सेना के किशोरों पर पानी उड़ेला जाएगा तो इंद्र देवता प्रसन्न होकर वर्षा करेंगे।

(ङ) इंदर सेना के किशोर बादलों को टेर लगाते थे-काले मेघा पानी दे।

[2] वे सचमुच ऐसे दिन होते जब गली-मुहल्ला, गाँव-शहर हर जगह लोग गरमी में भुन-भुन कर त्राहिमाम कर रहे, होते, जेठ के दसतपा बीत कर आषाढ़ का पहला पखवारा भी बीत चुका होता पर क्षितिज पर कहीं बादल की रेख भी नहीं दीखती होती, कुएँ सूखने लगते, नलों में एक तो बहुत कम पानी आता और आता भी तो आधी रात को भी मानो खौलता हुआ पानी हो। शहरों की तुलना में गाँव में और भी हालत खराब होती थी। जहाँ जुताई होनी चाहिए वहाँ खेतों की मिट्टी सूख कर पत्थर हो जाती, फिर उसमें पपड़ी पड़ कर ज़मीन फटने लगती, लू ऐसी कि चलते-चलते आदमी आधे रास्ते में लू खा कर गिर पड़े। ढोर-ढंगर प्यास के मारे मरने लगते लेकिन बारिश का कहीं नाम निशान नहीं, ऐसे में पूजा-पाठ कथा-विधान सब करके लोग जब हार जाते तब अंतिम उपाय के रूप में निकलती यह इंदर सेना। वर्षा के बादलों के स्वामी, हैं इंद्र और इंद्र की सेना टोली बाँध कर कीचड़ में लथपथ निकलती, पुकारते हुए मेघों को, पानी माँगते हुए प्यासे गलों और सूखे खेतों के लिए। [पृष्ठ-100-101]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित संस्मरण ‘काले मेघा पानी दे’ से उद्धृत है। इसके लेखक डॉ० धर्मवीर भारती हैं। यह लेखक का एक प्रसिद्ध संस्मरण है जिसमें उन्होंने लोक प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वंद्व का सुंदर चित्रण किया है। लेखक अपने गाँव के उस प्रसंग का वर्णन करता है, जब गाँव में अनावृष्टि के कारण किशोर युवकों की इंदर सेना उछलती-कूदती हुई गलियों में सिर्फ एक लंगोटी पहने लोगों से दान में पानी माँगती थी। यहाँ लेखक भीषण गर्मी से उत्पन्न स्थिति का वर्णन करते हुए कहता है

व्याख्या-सच्चाई तो यह है कि ग्रीष्म ऋतु के वे दिन इस प्रकार के होते थे जब नगर-मोहल्ले, गाँव-नगर सभी स्थानों पर भयंकर गर्मी पड़ती थी तथा गर्मी में भुनते हुए लोग भगवान से यही प्रार्थना करते थे कि हमारी रक्षा करो। जेठ के महीने के दस दिनों का ताप व्यतीत हो चुका था और आषाढ़ का पहला पक्ष गुजर गया था, परंतु आकाश में कहीं पर भी बादलों का नामो-निशान नहीं था। प्रायः इस मौसम में कुएँ भी सूख जाते थे और नलकों में भी बहुत थोड़ा पानी आता था। आता भी था तो आधी रात को तथा उबलता हुआ। नगरों के मुकाबले गाँव में हालत और भी खराब हो जाती थी। भाव यह है कि पानी का अभाव नगरों में कम होता था, परंतु गाँव में बहुत अधिक होता था। जिन दिनों खेतों में जुताई की जाती थी, वहाँ मिट्टी सूखकर पत्थर बन जाती थी।

स्थान-स्थान पर पपड़ियाँ पड़ने से मिट्टी फट जाती थी। झुलसा देने वाली लू चलती थी जिसके फलस्वरूप रास्ते पर चलने वाला व्यक्ति आधे रास्ते चलने के बाद लू लगने से गिर पड़ता था। पानी की इतनी भारी कमी हो जाती थी कि प्यास के कारण पशु तक मरने लग जाते थे, परंतु दूर-दूर तक कहीं भी बरसात का नामो-निशान तक नहीं मिलता था। लोग ईश्वर की पूजा तथा कथाओं का वर्णन करके भी थक जाते थे और वर्षा बिल्कुल नहीं होती थी। आखिरी उपाय के रूप में यह इंदर सेना गाँव में निकल पड़ती थी। इंद्र को बादलों का स्वामी माना गया है। युवकों की यह टोली उसी की सेना मान ली जाती थी। इंदर सेना के किशोर कीचड़ से लथपथ होकर मेघों को पुकार लगाते थे और प्यासे लोगों तथा सूखे खेतों के लिए इंद्र देवता से पानी की याचना करते थे। कहने का भाव यह है कि अनावृष्टि के समय इंदर सेना के गठन का आयोजन अंतिम उपाय के रूप में अपनाया जाता था।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने ग्रीष्म ऋतु की भयंकर गर्मी का यथार्थ वर्णन किया है।
  2. लेखक यह भी बताता है कि लोग बारिश के लिए पूजा-पाठ तथा कथा-विधान करते थे, परंतु अंतिम उपाय के रूप में इंदर सेना निकलती थी।
  3. सहज, सरल, तथा जनभाषा का सफल प्रयोग है।
  4. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. वर्णनात्मक शैली का सफल प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) इस गद्यांश में किस ऋतु का वर्णन किया गया है?
(ख) लोग किस कारण से परेशान हो जाते थे?
(ग) गाँव में गर्मियों का क्या प्रभाव होता था?
(घ) गाँव के लोग वर्षा के लिए कौन-कौन से उपाय करते थे?
(ङ) ‘इंदर सेना’ किसे कहा गया है और वह क्या करती थी?
उत्तर:
(क) इस गद्यांश में ग्रीष्म ऋतु का वर्णन किया गया है।

(ख) आषाढ़ के महीने में लोग गर्मी तथा अनावृष्टि के कारण अत्यधिक परेशान हो जाते थे। कुएँ सूख जाते थे और नलों में पानी भी नहीं आता था। यदि आता भी था तो रात को उबलता हुआ पानी आता था। गर्मी के कारण पशु-पक्षी तथा लोग बेहाल हो जाते थे।

(ग) गाँव की हालत शहरों से भी बदतर होती थी। जुताई के खेतों की मिट्टी सूखकर पत्थर बन जाती थी। धीरे-धीरे उसमें पपड़ी पड़ने लगती थी और ज़मीन फट जाती थी। गर्म लू के कारण आदमी बेहोश होकर गिर पड़ता था और प्यास से पशु मरने लगते थे।

(घ) गाँव के लोग वर्षा के लिए इंदर भगवान से प्रार्थना करते थे। कहीं पूजा-पाठ होता था, तो कहीं कथा-विधान, जब ये सभी उपाय असफल हो जाते थे, तब कीचड़ तथा पानी से लथपथ होकर किशोरों की इंदर सेना गलियों में निकल पड़ती थी और इंद्र देवता से बरसात की गुहार लगाती थी।

(ङ) ‘इंदर सेना’ गाँव के उन युवकों को कहा गया है जो एक लंगोटी पहने नंग-धडंग भगवान इंद्र से वर्षा माँगने के लिए घूमते थे। गाँव के लोग मकानों के छज्जों से उन पर एक-आध घड़ा पानी डाल देते थे और वे उछलते-कूदते हुए बादलों को पुकार कर कहते थे काले मेघा पानी दे।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 13 काले मेघा पानी दे

[3] पानी की आशा पर जैसे सारा जीवन आकर टिक गया हो। बस एक बात मेरे समझ में नहीं आती थी कि जब चारों ओर पानी की इतनी कमी है तो लोग घर में इतनी कठिनाई से इकट्ठा करके रखा हुआ पानी बाल्टी भर-भर कर इन पर क्यों फेंकते हैं। कैसी निर्मम बरबादी है पानी की। देश की कितनी क्षति होती है इस तरह के अंधविश्वासों से। कौन कहता है इन्हें इंद्र की सेना? अगर इंद्र महाराज से ये पानी दिलवा सकते हैं तो खुद अपने लिए पानी क्यों नहीं माँग लेते? क्यों मुहल्ले भर का पानी नष्ट करवाते घूमते हैं, नहीं यह सब पाखंड है। अंधविश्वास है। ऐसे ही अंधविश्वासों के कारण हम अंग्रेज़ों से पिछड़ गए और गुलाम बन गए। [पृष्ठ-101-102]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित संस्मरण ‘काले मेघा पानी दे’ से उधृत है। इसके लेखक डॉ० धर्मवीर भारती हैं। यह लेखक का एक प्रसिद्ध संस्मरण है जिसमें उन्होंने लोक प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वंद्व का सुंदर चित्रण किया है। लेखक अपने गाँव के उस प्रसंग का वर्णन करता है जब गाँव में अनावृष्टि के कारण किशोर युवकों की इंदर सेना उछलती-कूदती हुई गलियों में सिर्फ एक लंगोटी पहने लोगों से दान में पानी माँगती थी। यहाँ लेखक इंदर सेना के गठन तथा गाँववालों द्वारा उन पर पानी फैंकने की परंपरा को अंधविश्वास घोषित करता है।

व्याख्या-लेखक का कथन है कि ऐसा लगता था कि मानों पानी की आशा पर ही सबका जीवन आकर टिक गया हो, परंतु लेखक अपनी जिज्ञासा को प्रकट करते हुए कहता है कि यह बात उसकी समझ में नहीं आ रही थी कि सब तरफ पानी की इतनी भारी कमी है, फिर भी लोग बड़ी कठिनाई से इकट्ठे किए गए पानी को इंदर सेना के किशोरों पर बाल्टी भर-भर कर डाल देते थे। यह तो निश्चय से पानी की बरबादी है। ऐसा करना सर्वथा अनुचित है। यह एक प्रकार का अंधविश्वास है जिसमें पूरे देश की हानि होती है। पता नहीं लोग इसे इंदर सेना क्यों कहते हैं। यदि लोग इंद्र देवता से पानी दिलवा सकते हैं तो उन्हें स्वयं उससे पानी माँग लेना चाहिए। लोगों के कठिनाई से इकट्ठे किए गए पानी को बरबाद नहीं करना चाहिए। ये लोग मुहल्ले भर का पानी बरबाद करते हुए गलियों में घूमते हैं और शोर-शराबा करते हैं, यह न केवल पाखंड है, अंधविश्वास भी है। इसी अंधविश्वास के कारण हमारा देश पिछड़ गया है। हम भारतवासी इन्हीं अंधविश्वासों के कारण अन्य देशों से पिछड़ गए और अंग्रेज़ शासकों के गुलाम बन गए। अतः इस प्रकार के अंधविश्वासों को छोड़कर हमें पानी के लिए और कोई उपाय अपनाने चाहिएँ।

विशेष-

  1. इसमें लेखक ने इंदर सेना के उपाय को अंधविश्वास का नाम दिया है।
  2. सहज, सरल तथा जनभाषा का सफल प्रयोग है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. विवेचनात्मक शैली का सफल प्रयोग है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) कौन-सी बात लेखक को समझ नहीं आती थी?
(ख) लेखक के अनुसार पानी की निर्मम बरबादी क्या है?
(ग) इंदर-सेना के विरोध में लेखक ने क्या तर्क दिया था?
(घ) लेखक की दृष्टि में पाखंड तथा अंधविश्वास क्या है?
(ङ) लेखक ने भारत की.गुलामी तथा अवनति का मूल कारण किसे माना है?
उत्तर:
(क) लेखक को यह बात समझ नहीं आती थी कि जब लोगों के घरों में पानी की इतनी कमी है तथा वे प्यास और अनावृष्टि के कारण व्याकुल हो रहे हैं, तब वे इंद्र सेना पर पानी का घड़ा उड़ेलकर उसे बरबाद क्यों कर रहे हैं।

(ख) लेखक के अनुसार नंग-धडंग किशोरों पर पानी डालना पानी की बरबादी है। जब पानी की इतनी कमी है तब लोगों को बूंद-बूंद पानी भी बचाना चाहिए।

(ग) इंदर-सेना के विरोध में लेखक यह तर्क देता है कि जब इंदर-सेना के युवक इंद्र भगवान से पानी दिलवा सकते हैं तो ये अपने लिए उनसे पानी क्यों नहीं माँग लेते। सेना लोगों का पानी क्यों बरबाद करती है?

(घ) लेखक की दृष्टि में इंद्र देवता को प्रसन्न करने के लिए इंद्र सेना के किशोरों पर घड़ा भर-भर पानी डालना गाँव वालों की नासमझी है। निश्चय से यह लोगों का अंधविश्वास है, ऐसा करने से वर्षा नहीं होती।

(ङ) लेखक ने पाखंडों तथा अंधविश्वासों को भारत की गुलामी तथा अवनति का मूल कारण माना है।

[4] मगर मुश्किल यह थी कि मुझे अपने बचपन में जिससे सबसे ज्यादा प्यार मिला वे थीं जीजी। यूँ मेरी रिश्ते में कोई नहीं थीं। उम्र में मेरी माँ से भी बड़ी थीं, पर अपने लड़के-बहू सबको छोड़ कर उनके प्राण मुझी में बसते थे। और वे थीं उन तमाम रीति-रिवाजों, तीज-त्योहारों, पूजा-अनुष्ठानों की खान जिन्हें कुमार-सुधार सभा का यह उपमंत्री अंधविश्वास कहता था, और उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकना चाहता था। पर मुश्किल यह थी कि उनका कोई पूजा-विधान, कोई त्योहार अनुष्ठान मेरे बिना पूरा नहीं होता था। [पृष्ठ-102]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित संस्मरण ‘काले मेघा पानी दे’ से उद्धृत है। इसके लेखक डॉ० धर्मवीर भारती हैं। यह लेखक का एक प्रसिद्ध संस्मरण है जिसमें उन्होंने लोक प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वंद्व का सुंदर चित्रण किया है। यहाँ लेखक जीजी के साथ अपने प्रगाढ़ संबंधों पर प्रकाश डालता है। लेखक अपनी जीजी का बड़ा आदर मान करता है। वह कहता है कि-

व्याख्या कठिनाई यह थी कि लेखक को बाल्यावस्था से ही सर्वाधिक प्यार अपनी जीजी से ही मिला था। उसके साथ लेखक का कोई गहरा रिश्ता नहीं था। वह लेखक की माँ से भी बड़ी थी, परंतु वह अपने लड़के तथा पुत्रवधू की अपेक्षा लेखक से अत्यधिक प्यार करती थी। वे समाज के सभी रीति-रिवाजों, तीज-त्योहारों, पूजा-पाठ तथा कर्मकाण्डों में पूरा विश्वास रखती थीं, परंतु लेखक आर्य समाज द्वारा स्थापित कुमार-सुधार सभा का उपमंत्री था और वह इंद्र सेना के इस कार्य को अंधविश्वास मानता था और वह चाहता था कि वह उसे जड़ से उखाड़ दे, लेकिन सबसे बड़ी कठिनाई यह थी कि लेखक के बिना जीजी का कोई भी पूजा-विधान, त्योहार-कार्य पूरा नहीं होता था। कहने का भाव यह है कि जीजी अपने प्रत्येक पूजा-विधान में लेखक का सहयोग लेती थी।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि जीजी के प्रति उसके मन में बड़ी आदर-भावना थी।
  2. सहज, सरल तथा जनभाषा का सफल प्रयोग है।
  3. वाक्य-विन्यास सार्थक व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. विश्लेषणात्मक शैली का सफल प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) लेखक के लिए मुश्किल की बात क्या थी?
(ख) लेखक किन्हें अंधविश्वास कहता था?
(ग) जीजी किन कार्यों में लेखक का सहयोग लेती थी?
उत्तर:
(क) लेखक के लिए मुश्किल बात यह थी कि बाल्यावस्था से ही उसे सर्वाधिक प्यार उसकी जीजी से प्राप्त हुआ था। वह रीति-रिवाज़ों तथा पूजा-अनुष्ठानों में पूरा विश्वास रखती थीं।

(ख) लेखक सभी रीति-रिवाज़ों, तीज-त्योहारों तथा पूजा-अनुष्ठानों को अंधविश्वास कहता था।

(ग) जीजी सभी प्रकार के पूजा-विधान, त्योहारों-अनुष्ठानों आदि में लेखक का पूरा सहयोग लेती थीं।

[5] लेकिन इस बार मैंने साफ इनकार कर दिया। नहीं फेंकना है मुझे बाल्टी भर-भर कर पानी इस गंदी मेढक-मंडली पर। जब जीजी बाल्टी भर कर पानी ले गईं उनके बूढ़े पाँव डगमगा रहे थे, हाथ काँप रहे थे, तब भी मैं अलग मुँह फुलाए खड़ा रहा। शाम को उन्होंने लड्डू-मठरी खाने को दिए तो मैंने उन्हें हाथ से अलग खिसका दिया। मुँह फेरकर ‘बैठ गया, जीजी से बोला भी नहीं। पहले वे भी तमतमाई, लेकिन ज्यादा देर तक उनसे गुस्सा नहीं रहा गया। पास आ कर मेरा सर अपनी गोद में लेकर बोली, “देख भइया रूठ मत। मेरी बात सुन। यह सब अंधविश्वास नहीं है। हम इन्हें पानी नहीं देंगे तो इंद्र भगवान हमें पानी कैसे देंगे?” मैं कुछ नहीं बोला। फिर जीजी बोलीं। “तू इसे पानी की बरबादी समझता है पर यह बरबादी नहीं है। यह पानी का अर्घ्य चढ़ाते हैं, जो चीज़ मनुष्य पाना चाहता है उसे पहले देगा नहीं तो पाएगा कैसे? इसीलिए ऋषि-मुनियों ने दान को सबसे ऊँचा स्थान दिया है।” [पृष्ठ-102]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित संस्मरण ‘काले मेघा पानी दे’ से उद्धृत है। इसके लेखक डॉ० धर्मवीर भारती हैं। यह लेखक का एक प्रसिद्ध संस्मरण है जिसमें उन्होंने लोक प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वंद्व का सुंदर चित्रण किया है। इस बार लेखक ने जीजी को साफ मना कर दिया कि वह इस गंदी मेढक-मंडली पर पानी नहीं डालेगा।

व्याख्या-लेखक कहता है कि जीजी ने उसे बहुत समझाया कि वह इंदर सेना पर पानी डाले. परंत लेखक ने स्पष्ट कह दिया कि वह इन गंदे युवकों की मंडली पर बाल्टी भर-भर कर पानी नहीं डालेगा। परंतु जीजी बाल्टी भरकर पानी ले आई। उस समय उसके बूढ़े पाँव डगमगा रहे थे और हाथ काँप रहे थे, परंतु लेखक ने उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया। वह जीजी से नाराज़ होकर एक तरफ खड़ा रहा। शाम को जीजी ने लेखक को खाने के लिए लड्ड और मठरी दी, परंतु लेखक ने अपने हाथ से खाने के सामान को दूर कर दिया और वह जीजी की ओर से मुँह फेर कर बैठ गया। यहाँ तक कि वह जीजी से बोला भी नहीं। लेखक की यह हरकत देखकर जीजी को पहले गुस्सा आया, परंतु यह गुस्सा क्षण भर का था।

जल्दी ही जीजी का गुस्सा दूर हो गया। उसने लेखक के सिर को अपनी गोद में लेते हुए कहा- देखो मैया, मुझसे इस तरह नाराज़ मत हो और मेरी बात को जरा ध्यान से सुनो। इंदर सेना पर पानी की बाल्टी भर कर डालना कोई अंधविश्वास नहीं है। यदि हम इंद्र भगवान को पानी दान नहीं करेंगे तो बदले में वे हमें पानी नहीं देंगे। यह सुनकर भी लेखक ने कोई उत्तर नहीं दिया। जीजी फिर कहने लगी कि जिसे तू पानी की बरबादी समझ रहा है, वह कोई बरबादी नहीं है। वह तो इंद्र देवता को जल चढ़ाना और पूजा करना है। मनुष्य अपने जीवन में जो वस्तु पाना चाहता है उसके बदले उसे पहले कुछ देना पड़ता है। यदि वह कुछ देगा नहीं तो पाएगा कैसे। यही कारण है कि हमारे देश में ऋषियों ने दान को जीवन में सर्वोत्तम स्थान दिया है। भाव यह है कि यदि हम कुछ दान करेंगे तो बदले में कुछ प्राप्त कर पाएँगे। अतः इंद्र देवता को जल चढ़ाना किसी भी दृष्टि से जल की बरबादी नहीं है। इंद्र देवता ही तो बाद में हमें वर्षा के रूप में बहुत-सा पानी देते हैं।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने दान के महत्त्व का प्रतिपादन करते हुए कहा है कि जीवन में त्याग से ही सख की प्राप्ति होती है।
  2. सहज एवं सरल भाषा का प्रयोग है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा सटीक व भावानुकूल है।
  4. संवादात्मक शैली का सफल प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) लेखक ने किस बात से साफ इंकार कर दिया?
(ख) जब जीजी बाल्टी भरकर पानी ले आई तो उनके शरीर की हालत कैसी थी?
(ग) लेखक ने लड्ड-मठरी को अलग से क्यों खिसका दिया?
(घ) जीजी ने क्या तर्क देकर सिद्ध किया कि इंद्र देवता को पानी देना पानी की बरबादी नहीं है?
उत्तर:
(क) लेखक ने इस बात से साफ इंकार कर दिया कि वह मेढक-मंडली पर बाल्टी भर-भर कर पानी नहीं डालेगा। क्योंकि वह इसे पानी की बरबादी मानता है।

(ख) जब जीजी बाल्टी भर कर पानी लाई तब उनके बूढ़े पैर डगमगा रहे थे और उनके हाथ काँप रहे थे।

(ग) लेखक जीजी से नाराज़ था। उसने स्पष्ट कह दिया था कि वह गंदी मेंढक-मंडली पर पानी नहीं फैंकेगा। इसलिए जब जीजी ने उसे खाने के लिए लड्ड, मठरी दिए तो लेखक ने उन्हें दूर खिसका दिया।

(घ) जीजी ने यह तर्क दिया कि यह पानी हम इंद्र देवता को अर्घ्य के रूप में चढ़ाते हैं। मनुष्य अपने जीवन में जो कुछ पाना चाहता है तो बदले में उसे पहले कुछ देना पड़ता है अन्यथा उसे कुछ नहीं मिलता, इसी को दान कहते हैं। ऋषि-मुनियों ने भी दान को जीवन में सर्वोत्तम स्थान दिया है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 13 काले मेघा पानी दे

[6] “देख बिना त्याग के दान नहीं होता। अगर तेरे पास लाखों-करोड़ों रुपये हैं और उसमें से तू दो-चार रुपये किसी को दे दे तो यह क्या त्याग हुआ। त्याग तो वह होता है कि जो चीज़ तेरे पास भी कम है, जिसकी तुझको भी ज़रूरत है तो अपनी ज़रूरत पीछे रख कर दूसरे के कल्याण के लिए उसे दे तो त्याग तो वह होता – है, दान तो वह होता है, उसी का फल मिलता है।” [पृष्ठ-103]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित संस्मरण ‘काले मेघा पानी दे से उद्धृत है। इसके लेखक डॉ० धर्मवीर भारती हैं। यह लेखक का एक प्रसिद्ध संस्मरण है जिसमें उन्होंने लोक प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वंद्व का सुंदर चित्रण किया है। यह कथन जीजी का है। वे लेखक को त्याग के महत्त्व के बारे में बताती हुई कहती है कि-

व्याख्या-त्याग के बिना दान नहीं हो सकता। यदि तुम्हारे पास लाखों-करोड़ों रुपयों की धन-राशि है और तुमने उसमें से दो-चार रुपये दान में दे भी दिए तो यह त्याग नहीं कहलाता। त्याग उस वस्तु का होता है जो पहले ही तुम्हारे पास कम मात्रा में है और तुम्हें उसकी नितांत आवश्यकता भी है। परंतु यदि तुम अपनी आवश्यकता की परवाह न करते हुए दूसरे व्यक्ति के भले के लिए उसे त्याग देते हो तो वही सच्चा दान कहलाता है। इस प्रकार के दान का ही हमें फल मिलता है। कहने का भाव यह है कि सच्चा दान उसी वस्तु का होता है, जो तुम्हारे पास बहुत कम है और तुम्हें भी उसकी ज़रूरत होती है लेकिन तुम अपनी ज़रूरत की चिंता न करते हुए दूसरे व्यक्ति के कल्याणार्थ उसे दे देते हो तो वही सच्चा दान कहा जाएगा।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने जीजी के माध्यम से त्याग व दान के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।
  2. सहज एवं सरल भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा सटीक व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. संवादात्मक शैली का प्रयोग है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) यह कथन किसने किसको कहा है? और क्यों कहा है?
(ख) लाखों-करोड़ों रुपये में से दो-चार रुपये का दान करने का क्या महत्त्व है?
(ग) सच्चा त्याग किसे कहा गया है?
(घ) किस प्रकार के दान का फल मिलता है?
उत्तर:
(क) यह कथन जीजी ने लेखक से कहा है। इस कथन द्वारा वह उसे सच्चे त्याग और दान से अवगत कराना चाहती है।

(ख) लाखों-करोड़ों रुपयों में से दो-चार रुपयों का किया गया दान कोई महत्त्व नहीं रखता। यह तो मात्र दान देने का ढकोसला है।

(ग) सच्चा त्याग वह होता है कि यदि किसी वस्तु की हमारे पास कमी हो और उसकी हमें ज़रूरत भी हो और परंतु फिर भी हम अपनी ज़रूरत को पीछे रखकर दूसरों के कल्याणार्थ उसे दान में दे देते हैं, वही सच्चा त्याग कहलाता है।

(घ) त्याग और कल्याण की भावना से किए गए दान का फल अवश्य मिलता है।

[7] फिर जीजी बोली, “देख तू तो अभी से पढ़-लिख गया है। मैंने तो गाँव के मदरसे का भी मुँह नहीं देखा। पर एक बात देखी है कि अगर तीस-चालीस मन गेहूँ उगाना है तो किसान पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ अपने पास से लेकर ज़मीन में क्यारियाँ बना कर फेंक देता है। उसे बुवाई कहते हैं। यह जो सूखे हम अपने घर का पानी इन पर फेंकते हैं वह भी बुवाई है। यह पानी गली में बोएँगे तो सारे शहर, कस्बा, गाँव पर पानीवाले बादलों की फसल आ जाएगी। हम बीज बनाकर पानी देते हैं, फिर काले मेघा से पानी माँगते हैं। सब ऋषि-मुनि कह गए हैं कि पहले खुद दो तब देवता तुम्हें चौगुना-अठगुना करके लौटाएँगे भइया, यह तो हर आदमी का आचरण है, जिससे सबका आचरण बनता है। यथा राजा तथा प्रजा सिर्फ यही सच नहीं है। सच यह भी है कि यथा प्रजा तथा राजा। यही तो गाँधी जी महाराज कहते हैं।” [पृष्ठ-103]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित संस्मरण ‘काले मेघा पानी दे’ से उद्धृत है। इसके लेखक डॉ० धर्मवीर भारती हैं। यह लेखक का एक प्रसिद्ध संस्मरण है जिसमें उन्होंने लोक प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वंद्व का सुंदर चित्रण किया है। यहाँ जीजी दान का महत्त्व समझाने के लिए एक और उदाहरण देती है। वह लेखक से कहती है कि

व्याख्या-तुम तो पढ़-लिखकर विद्वान बन गए हो, परंतु जहाँ तक मेरा प्रश्न है, मैं गाँव के स्कूल में आज तक नहीं गई। मुझे तो यह भी पता नहीं कि स्कूल कैसा होता है। लेकिन मैं एक बात जानती हूँ कि यदि किसान को अपने खेत में तीस-चालीस मन अनाज उगाना हो तो पहले वह अपने खेत में क्यारियाँ बनाकर पाँच-सेर गेहूँ उसमें बीज के रूप में डालता है। इसी को हम बुआई कहते हैं। इस समय यहाँ सूखा पड़ा हुआ है। हम जो अपने घर का पानी इंद्र सेना पर डालते हैं, वह एक प्रकार से बुआई है। हम अपनी गली में पानी बोएँगे जिससे सारे नगर-कस्बे, शहर में बादल वर्षा करेंगे। यह वर्षा ही हमारी फसल है।

हम बीज के रूप में पानी का दान करते हैं, बाद में काले बादल से पानी माँगते हैं। हमारे देश के ऋषि-मुनि भी यही कह गए हैं कि पहले तुम स्वयं दान करो, देवता तुम्हें चार गुणा और आठ गुणा करके वह दान वापिस करेंगे। यह आचरण प्रत्येक व्यक्ति का है। अन्य शब्दों में यह सबका आचरण बन जाता है। केवल यह सत्य नहीं है यथा राजा तथा प्रजा, बल्कि यह भी सत्य है कि यथा प्रजा तथा राजा। गाँधी जी ने भी इस बात का समर्थन किया था। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि लोग जैसा आचरण करते हैं, राजा को वैसा आचरण करना पड़ता है। हमारे देवता भी तो राजा हैं। जब लोग उनकी पूजा-अर्चना करेंगे, कुछ दान देंगे तो बदले में हमें भी बहुत

विशेष-

  1. यहाँ जीजी ने किसान के उदाहरण द्वारा दान की महिमा का प्रतिपादन किया है।
  2. जीजी ने तर्कसंगत भाषा में अपने विचारों को व्यक्त किया है।
  3. सहज, सरल भाषा का प्रयोग हुआ है।
  4. वाक्य-विन्यास सर्वथा सटीक व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. संवादात्मक शैली का प्रयोग है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) जीजी ने लोगों द्वारा पानी दान करने की परंपरा को उचित क्यों ठहराया है?
(ख) जीजी द्वारा पानी दान करने की समानता किससे की गई है?
(ग) ‘यथा राजा तथा प्रजा’ और ‘यथा प्रजा तथा राजा’ में क्या अंतर है?
(घ) गाँधी जी ने प्रजा और राजा के आचरण में किसे अधिक महत्त्वपूर्ण माना है?
(ङ) ऋषि-मुनि क्या कह गए हैं?
उत्तर:
(क) जीजी ने यह तर्क दिया है कि बादलों को पानी दान करने से बादलों से वर्षा का जल प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए वे इंदर सेना के लिए पानी दान करने की परंपरा को उचित ठहराती हैं।

(ख) जीजी द्वारा पानी दान करने की समानता किसानों से की गई है। जिस प्रकार किसान खेत में तीस-चालीस मन गेहूँ उगाने के लिए पाँच-छः सेर अच्छा गेहूँ बुआई के रूप में डालते हैं। किसान की यह बुआई ही एक प्रकार का दान है। इसी प्रकार काले मेघा से वर्षा पाने के लिए पानी की कुछ बाल्टियाँ दान करना मानों पानी की बुआई है।

(ग) ‘यथा राजा तथा प्रजा’ का अर्थ है-राजा जैसा आचरण करता है, प्रजा भी उसे देखकर वैसा ही आचरण करती है। ‘यथा प्रजा तथा राजा’ का अर्थ है जिस देश की प्रजा जैसा आचरण करती है। वहाँ का राजा भी वैसा ही आचरण करता है। अन्य शब्दों में जनता का आचरण राजा को अवश्य प्रभावित करता है।

(घ) गाँधी जी ने प्रजा के आचरण को अधिक महत्त्वपूर्ण माना है। उनका कहना था कि प्रजा के आचरण को देखकर राजा को अपना आचरण बदलना पड़ता है। गाँधी जी ने सत्याग्रह आंदोलन द्वारा इस उक्ति को चरितार्थ कर दिखाया था।

(ङ) ऋषि-मुनियों का कहना है कि मनुष्य को पहले स्वयं त्यागपूर्वक दान करना चाहिए तभी देवता उसे अनेक गुणा देते हैं।

[8] इन बातों को आज पचास से ज़्यादा बरस होने को आए पर ज्यों की त्यों मन पर दर्ज हैं। कभी-कभी कैसे-कैसे संदर्भो में ये बातें मन को कचोट जाती हैं, हम आज देश के लिए करते क्या हैं? माँगें हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी हैं पर त्याग का कहीं नाम-निशान नहीं है। अपना स्वार्थ आज एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम चटखारे लेकर इसके या उसके भ्रष्टाचार की बातें करते हैं पर क्या कभी हमने जाँचा है कि अपने स्तर पर अपने दायरे में हम उसी भ्रष्टाचार के अंग तो नहीं बन रहे है? काले मेघा दल के दल उमड़ते हैं, पानी झमाझम बरसता है, पर गगरी फूटी की फूटी रह जाती है, बैल पियासे के पियासे रह जाते हैं? आखिर कब बदलेगी यह स्थिति? [पृष्ठ-103]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित संस्मरण ‘काले मेघा पानी दे’ से उद्धृत है। इसके लेखक डॉ० धर्मवीर भारती हैं। यह लेखक का एक प्रसिद्ध संस्मरण है जिसमें उन्होंने लोक प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वंद्व का सुंदर चित्रण किया है। यहाँ लेखक ने जीजी के द्वारा दिए गए संदेश को स्वीकार करते हुए देश की वर्तमान दशा पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या लेखक कहता है कि इन बातों को गुजरे हुए पचास वर्ष हो चुके हैं। लेकिन जीजी की बातें आज भी मन पर अंकित हैं। ऐसे अनेक संदर्भ आते हैं जब ये बातें मन पर चोट पहुँचाती हैं। हम देश की वर्तमान हालत देखकर व्याकुल हो उठते हैं। लेखक कहता है कि हमने अपने देश के लिए कुछ भी नहीं किया। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हम देश के सामने अनेक माँगें प्रस्तुत करते हैं, परंतु हमारे अंदर त्याग तनिक भी नहीं है। हम सब स्वार्थी बन गए हैं और स्वार्थ पूरा करना ही हमारा एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम लोगों में व्याप्त भ्रष्टाचार की खूब चर्चा करते हैं। उनकी निंदा करके हमें बहुत आनंद आता है।

लेकिन हमने यह नहीं सोचा कि निजी स्तर पर हम अपने क्षेत्र में उसी भ्रष्टाचार का हिस्सा तो नहीं बन गए हैं। भाव यह है कि हम स्वयं तो भ्रष्टाचार से लिप्त हैं। भ्रष्ट उपाय अपनाकर हम अपना काम निकालते हैं। काले मेघा के समूह आज भी उमड़-घुमड़कर आते हैं। खूब पानी बरसता है। पर गगरी फूटी-की-फूटी रह जाती है और हमारे बैल प्यासे मरने लगते हैं। भाव यह है कि हमारे देश में धन और संसाधनों की कोई कमी नहीं है, फिर भी लोग अभावग्रस्त और गरीब हैं। भ्रष्टाचार के कारण ये संसाधन आम लोगों तक नहीं पहुंच पाते। लेखक अंत में सोचता है कि इस स्थिति में कब परिवर्तन होगा और हमारे देश में कब समाजवाद का उदय होगा?

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने देश में व्याप्त भ्रष्टाचार और उससे उत्पन्न स्थिति पर समुचित प्रकाश डाला है।
  2. सहज एवं सरल भाषा का प्रयोग है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा सटीक व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. विवेचनात्मक शैली का प्रयोग हुआ है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 13 काले मेघा पानी दे

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कौन-सी बात लेखक के मन में ज्यों-की-त्यों दर्ज है?
(ख) कौन-सी बात लेखक के मन को कचोट रही है?
(ग) भ्रष्टाचार के बारे में लोगों का आचरण कैसा है?
(घ) पानी बरसने पर भी गगरी क्यों फूटी रहती है? बैल क्यों प्यासे रह जाते हैं?-इन पंक्तियों में निहित अर्थ क्या है?
उत्तर:
(क) बचपन में जीजी ने लेखक को बताया था कि देवता से आशीर्वाद पाने के लिए हमें पहले स्वयं कुछ दान करना पड़ता है। इसीलिए तो बादलों से वर्षा पाने के लिए पानी का दान किया जाता है। इस बात ने लेखक के मन को अत्यधिक प्रभावित किया था। इसलिए यह बात आज भी लेखक के मन में अंकित है।

(ख) लेखक के मन को यह बात कचोटती है कि आज लोग सरकार के सामने बड़ी-बड़ी माँगें रखते हैं और अपने स्वार्थों को पूरा करने में संलग्न हैं किंतु न तो कोई देश के लिए त्याग करना चाहता है और न ही अपने कर्तव्य का पालन करना चाहता है।

(ग) भ्रष्टाचार को लेकर लोग चटखारे लेकर बातें करते हैं और भ्रष्ट लोगों की निंदा भी करते हैं किंतु वे स्वयं इस भ्रष्टाचार के अंग बन चुके हैं। आज हर आदमी किसी-न-किसी प्रकार से भ्रष्टाचार की दलदल में फंसा हुआ है।

(घ) इस कथन का आशय है कि हमारे देश में धन और संसाधनों की कोई कमी नहीं है, परंतु भ्रष्टाचार के कारण ये संसाधन लोगों तक नहीं पहुंच पाते जिसके फलस्वरूप लोग गरीब व अभावग्रस्त हैं।

काले मेघा पानी दे Summary in Hindi

काले मेघा पानी दे लेखिका-परिचय

प्रश्न-
धर्मवीर भारती का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
धर्मवीर भारती का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय धर्मवीर भारती का जन्म 2 दिसंबर, 1926 को इलाहाबाद के अतरसुईया मोहल्ले में हुआ। उनके पिता का नाम चरंजीवी लाल तथा माता का नाम चंदी देवी था। बचपन में ही उनके पिता का असामयिक निधन हो गया। फलस्वरूप बालक धर्मवीर को अनेक कष्ट झेलने पड़े। सन् 1942 में उन्होंने कायस्थ पाठशाला के इंटर कॉलेज से इंटर की परीक्षा पास की। इसके बाद उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया, जिसके कारण उनकी पढ़ाई एक वर्ष के लिए रुक गई। सन् 1945 में उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से बी०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। सर्वाधिक अंक प्राप्त करने के कारण इन्हें ‘चिंतामणिघोष मंडल’ पदक मिला। सन 1947 में उन्होंने हिंदी में एम०ए० की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। 1954 में उन्होंने ‘सिद्ध साहित्य’ पर पी०एच०डी० की उपाधि प्राप्त की और प्रयाग विश्वविद्यालय में ही प्राध्यापक नियुक्त हुए, परंतु शीघ्र ही वे “धर्मयुग” के संपादक उन्होंने “कॉमन वेल्थ रिलेशंस कमेटी” के निमंत्रण पर इंग्लैंड की यात्रा की। उन्हें पश्चिमी जर्मनी जाने का भी मौका मिला। सन् 1966 में भारतीय दूतावास के अतिथि बनकर इंडोनेशिया व थाईलैंड की यात्रा की। आगे चलकर उन्होंने भारत-पाक युद्ध के काल में बंगला देश की गुप्त यात्रा की और ‘धर्मयुग’ में युद्ध के रोमांच का वर्णन किया। साहित्यिक सेवाओं के कारण सन् 1972 में भारत सरकार ने उन्हें “पद्मश्री” से सम्मानित किया। 5 सितबर, 1997 को उनका निधन हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ-धर्मवीर भारती की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
काव्य रचनाएँ-‘दूसरा सप्तक की कविताएँ (1951), ‘ठंडा लोहा’ (1952) ‘सात-गीत वर्ष’, ‘कनुप्रिया’ (1959)।
उपन्यास-‘गुनाहों का देवता’, ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’।
गीति नाट्य-अंधा युग’।
कहानी-संग्रह-‘मुर्दो का गाँव’, ‘चाँद और टूटे हुए लोग’, ‘बंद गली का आखिरी मकान’।
निबंध-संग्रह-‘ठेले पर हिमालय’, ‘कहनी-अनकहनी’, ‘पश्यंती’, ‘मानव मूल्य और साहित्य’।
आलोचना-‘प्रगतिवाद’, ‘एक समीक्षा’।
एकांकी-संग्रह ‘नदी प्यासी थी’।

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3. साहित्यिक विशेषताएँ-धर्मवीर भारती स्वतंत्रता के बाद के साहित्यकारों में विशेष स्थान रखते हैं। उन्होंने हर उम्र और हर वर्ग के पाठकों के लिए अलग-अलग रचनाएँ लिखी हैं। उनके साहित्य में व्यक्ति स्वातंत्र्य, मानवीय संकट तथा रोमानी चेतना आदि प्रवृत्तियाँ देखी जा सकती हैं, परंतु वे सामाजिकता और उत्तरदायित्व को अधिक महत्त्व देते हैं। इनके आरंभिक काव्य में हमें रोमानी भाव-बोध देखने को मिलता है। “गुनाहों का देवता” इनका सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यास है। इसमें एक सरस और भावप्रवण प्रेम कथा है। ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ भी भारती जी का एक लोकप्रिय उपन्यास है, जिस पर एक हिंदी फिल्म भी बन चुकी है। ‘अंधा युग’ में कवि ने आज़ादी के बाद गिरते हुए जीवन मूल्यों, अनास्था, मोहभंग, विश्वयुद्धों से उत्पन्न भय आदि का वर्णन किया है।

‘काले मेघा पानी दे’ भारती जी का एक प्रसिद्ध संस्मरण है जिसमें उन्होंने लोक प्रचलित विश्वास तथा विज्ञान के द्वंद्व का चित्रण किया है। प्रस्तुत संस्मरण किशोर जीवन से संबंधित है। इसमें दिखाया गया है कि किस प्रकार गाँवों के बच्चों की इंदर सेना अनावृष्टि को दूर करने के लिए द्वार-द्वार पर पानी माँगती चलती है।

4. भाषा-शैली-भारती जी आरंभ से ही सरल भाषा के पक्षपाती रहे हैं। उन्होंने प्रायः जन-सामान्य की बोल-चाल की भाषा का ही प्रयोग किया है जिसमें तत्सम, देशज तथा विदेशी शब्दावली का उपयुक्त प्रयोग किया है। अपनी रचनाओं में वे उर्दू, फारसी तथा अंग्रेज़ी शब्दों के साथ-साथ तद्भव शब्दों का भी खुलकर मिश्रण करते हैं। विशेषकर, निबंधों में उनकी भाषा पूर्णतया साहित्यिक हिंदी भाषा कही जा सकती है। ‘काले मेघा पानी दे’ वस्तुतः भारती जी का एक उल्लेखनीय संस्मरण है जिसमें सहजता के साथ-साथ आत्मीयता भी है। बड़ी-से-बड़ी बात को वे वार्तालाप शैली में कहते हैं और पाठकों के हृदय को छू लेते हैं। अपने निबन्ध तथा रिपोर्ताज में उन्होंने सामान्य हिंदी भाषा का प्रयोग किया है। एक उदाहरण देखिए-

“मैं असल में था तो इन्हीं मेढक-मंडली वालों की उमर का, पर कुछ तो बचपन के आर्यसमाजी संस्कार थे और एक कुमार-सुधार सभा कायम हुई थी उसका उपमंत्री बना दिया गया था-सो समाज-सुधार का जोश कुछ ज्यादा ही था। अंधविश्वासों के खिलाफ तो तरकस में तीर रखकर घूमता रहता था।”

काले मेघा पानी दे पाठ का सार

प्रश्न-
धर्मवीर भारती द्वारा रचित संस्मरण ‘काले मेघा पानी दे’ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘काले मेघा पानी दे’ धर्मवीर भारती का एक प्रसिद्ध संस्मरण है, जिसे निबंध भी कहा जा सकता है। इसमें लोक-प्रचलित विश्वास तथा विज्ञान के द्वंद्व का सुंदर चित्रण किया गया है। विज्ञान तर्क के सहारे चलता है और लोक-जीवन विश्वास के सहारे। दोनों के अलग-अलग दृष्टिकोण हैं। लेखक ने इन दोनों पक्षों को प्रस्तुत किया है और यह निर्णय पाठकों पर छोड़ दिया है कि वे किसे ग्रहण करना चाहते हैं और किसे छोड़ना चाहते हैं।
1. अनावृष्टि और इंदर सेना का गठन-जब वर्षा की प्रतीक्षा करते-करते न केवल धरती, बल्कि लोगों के मन भी सूख जाते थे। तब इस अवसर पर गाँव के नंग-धडंग लड़के लंगोटीधारी युवकों की टोली का गठन करते हैं। ये किशोर ‘गंगा मैया की जय’ बोलते हुए गलियों में निकल पड़ते थे। वे प्रत्येक घर के बाहर जाकर आवाज़ लगाते थे “पानी दे मैया, इंदर सेना आई है”। घर की औरतें दुमंजिले के बारजे पर चढ़ जाती थी और वहाँ से उन पर घड़े का पानी उड़ेल देती थीं। वे बच्चे उस पानी से भीग कर नहाते थे और गीली मिट्टी में लोटते हुए कहते थे
“काले मेघा पानी दे
गगरी फूटी बैल पियासा
पानी दे, गुड़धानी दे
काले मेघा पानी दे।”
इस काल में सभी लोग गर्मी के मारे जल रहे होते थे। कुएँ तक सूख जाते थे और खेतों की मिट्टी सूखकर पत्थर बन जाती थी। पशु-पक्षी भी प्यास के मारे तड़पने लगते थे। परंतु आकाश में कहीं कोई बादल नज़र नहीं आता था। हार कर लोग पूजा-पाठ और कथा विधान भी बंद कर देते थे। इस अवसर पर इंदर सेना कीचड़ से लथपथ होकर काले बादलों को पुकारते हुए गलियों में हुड़दंग मचाती हुई निकलती थी।

2. लेखक द्वारा विरोध-लेखक भी इन किशोरों की आयु का ही था। वह बचपन से ही आर्यसमाज से प्रभावित था। वह कुमार-सुधार सभा का उपमंत्री भी था। इसलिए वह इसे अंधविश्वास मानता था और किशोरों की इस इंदर सेना को मेढक-मंडली का नाम देता था। उसका यह तर्क था कि जब पहले ही पानी की इतनी भारी कमी है तो फिर लोग कठिनाई से लाए हुए पानी को व्यर्थ में क्यों बरबाद कर रहे हैं। अगर यह किशोर सेना इंदर की है तो ये लोग सीधे-सीधे इंद्र देवता से गुहार क्यों नहीं लगाते। लेखक का विचार है कि इस प्रकार के अंधविश्वासों के कारण ही हमारा देश पिछड़ गया और गुलाम हो गया।

3. जीजी के प्रति लेखक का विश्वास-लेखक के मन में अपनी जीजी के प्रति बहुत विश्वास था। वह इंद्र सेना और अन्य विश्वासों को बहुत मानती थी। वह प्रत्येक प्रकार की पूजा और अनुष्ठान लेखक के हाथों करवाती थी, ताकि उसका फल लेखक को प्राप्त हो। जीजी चाहती थी कि लेखक भी इंदर सेना पर पानी फैंके, परंतु लेखक ने ऐसा करने से इंकार कर दिया। जीजी काफी वृद्ध हो चुकी थी, फिर भी उसने कांपते हाथों से बच्चों पर पानी की बाल्टी फेंकी। लेखक न तो जीजी से बोला और न ही उसके हाथों से लड्डू-मठरी खाई।

4. जीजी और लेखक के बीच विवाद-जीजी का कहना था कि यदि हम इंद्र भगवान को पानी नहीं देंगे, तो वह हमें कैसे पानी देंगे। परंतु लेखक का कहना था कि यह एक कोरा अंधविश्वास है। इसके विपरीत जीजी ने तर्क देते हुए कहा कि यह पानी की बरबादी नहीं है, बल्कि इंद्र देवता को चढ़ाया गया अर्घ्य है। यदि मानव अपने हाथों से कुछ दान करेगा तो ही वह कुछ पाएगा। हमारे यहाँ ऋषि-मुनियों ने भी त्याग और दान की महिमा का गान किया है। त्याग वह नहीं है जो करोड़ों रुपयों में से कुछ रुपये दान किए जाएँ, परंतु जो चीज़ तुम्हारे पास कम है उसमें से दान या त्याग करना महत्त्वपूर्ण है।

यदि वह दान लोक-कल्याण के लिए किया जाएगा, उसका फल अवश्य मिलेगा। लेखक इस तर्क से हार गया। फिर भी वह अपनी जिद पर अड़ा रहा। तब जीजी ने एक और तर्क दिया कि किसान तीस-चालीस मन गेहूँ पैदा करने के लिए पाँच-छः सेर गेहूँ अपनी ओर से बोता है। इसी प्रकार सूखे में पानी फैंकना, पानी बोने के समान है। जब हम इस पानी को बोएँगे तो आकाश में बादलों की फसलें लहराने लगेंगी। पहले हम चार गना वापिस लौटाएँगे। यह कहना सच नहीं है कि ‘यथा राजा तथा प्रजा’ किंत हमें यह कहना चाहिए कि “यथा प्रजा तथा राजा” गांधी जी ने भी इसी दृष्टिकोण का समर्थन किया था।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 13 काले मेघा पानी दे

5. लेखक का निष्कर्ष यह घटना लगभग पचास वर्ष पहले की है, लेकिन इसका प्रभाव लेखक के मन पर अब भी है। वह मन-ही-मन सोचता है कि हम देश के लिए क्या कर रहे हैं। हम सरकार के सामने बड़ी-बड़ी मांगें रखते हैं, लेकिन हमारे अंदर त्याग की कोई भावना नहीं है। भले ही हम लोग भ्रष्टाचार की बातें करते हैं, परंतु हम सभी भ्रष्टाचार से लिप्त हैं। यदि हम स्वयं को सुधार लें तो देश और समाज स्वयं सुधर जाएगा, परंतु इस दृष्टिकोण से कोई नहीं सोचता। काले मेघ अब भी पानी बरसाते हैं, लेकिन गगरी फूटी-की-फूटी रह जाती है। बैल प्यासे रह जाते हैं। पता नहीं यह हालत कब सुधरेगी?

कठिन शब्दों के अर्थ

मेघा = बादल। इंदर सेना = इंद्र के सिपाही। मेढक-मंडली = कीचड़ से लिपटे हुए मेढकों जैसे किशोर। नग्नस्वरूप = बिल्कुल नंगे। काँदो = कीचड़। अगवानी = स्वागत। सावधान = सचेत, जागरूक। छज्जा = मुंडेर। बारजा = मुंडेर के साथ वाला स्थान। समवेत = इकट्ठा, सामूहिक। गगरी = घड़ा। गुड़धानी = गुड़ और चने से बना एक प्रकार का लड्डू। धकियाना = धक्का देना। दुमहले = दो मंजिलों वाला। सहेज = सँभालना। तर करना = भिगोना। बदन = शरीर। हाँक = जोर की आवाज़। टेरते = पुकारते। त्राहिमाम = मुझे बचाओ। दसतपा = तपते हुए दस दिन। पखवारा = पंद्रह दिन का समय, पाक्षिक। क्षितिज = वह स्थान जहाँ धरती और आकाश मिलते हुए दिखाई देते हैं। खौलता हुआ = बहुत गर्म । जुताई = खेतों में हल चलाना। ढोर-ढंगर = पशु। कथा-विधान = धार्मिक कथाएँ कहना। निर्मम = कठोर। क्षति = हानि। पाखंड = ढोंग। संस्कार = आदतें। तरकस में तीर रखना = विनाश करने के लिए तैयार रहना। प्राण बसना = प्रिय होना। तमाम = सभी। पूजा-अनुष्ठान = पूजा का काम। खान = भंडार। जड़ से उखाड़ना = पूरी तरह नष्ट करना। सतिया = स्वास्तिक का चिह्न। पंजीरी = गेहूँ के आटे और गुड़ से बनी हुई मिठाई। छठ = एक पर्व का नाम। कुलही = मिट्टी का छोटा बर्तन। अरवा चावल = ऐसा चावल जो धान को बिना उबाले निकाला गया हो। मुँह फुलाना = नाराज़ होना। तमतमाना = क्रोधित होना। अर्घ्य = जल चढ़ाना। ढकोसला = दिखावा। किला पस्त होना = हारना। मदरसा = स्कूल । बुवाई = बीज होना। दर्ज होना = लिखना। कचोटना = बुरा लगना। चटखारे लेना = रस लेना, मजा लेना। दायरा = सीमा। अंग बनना = हिस्सा बनना। झमाझम = भरपूर।

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HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन

HBSE 12th Class Hindi बाज़ार दर्शन Textbook Questions and Answers

पाठ के साथ

प्रश्न 1.
बाज़ार का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर क्या-क्या असर पड़ता है?
उत्तर:
बाज़ार का जादू चढ़ने पर मनुष्य बाज़ार की आकर्षक वस्तुओं को खरीदने लगता है और अकसर अनावश्यक वस्तुएँ खरीद लेता है, परंतु जब बाज़ार का जादू उतर जाता है तो उसे पता चलता है कि जो वस्तुएँ उसने अपनी सुख-सुविधाओं के लिए खरीदी थीं, वे तो उसके आराम में बाधा उत्पन्न कर रही हैं।

प्रश्न 2.
बाज़ार में भगत जी के व्यक्तित्व का कौन-सा सशक्त पहलू उभरकर आता है? क्या आपकी नज़र में उनका आचरण समाज में शांति-स्थापित करने में मददगार हो सकता है?
उत्तर:
भगत जी चौक बाज़ार में चारों ओर सब कुछ देखते हुए चलते हैं, लेकिन वे बाज़ार के आकर्षण की ओर आकृष्ट नहीं होते। वे न तो बाजार को देखकर भौंचक्के हो जाते हैं और न ही बाजार की बनावटी चमक-दमक हुई अनेक प्रकार की वस्तुओं के प्रति न तो उन्हें लगाव होता है और न ही अलगाव, बल्कि वे तटस्थ भाव तथा संतुष्ट मन से सब कुछ देखते हुए चलते हैं। उन्हें तो केवल जीरा और काला नमक ही खरीदना होता है। इसलिए वे फैंसी स्टोरों पर न रुककर सीधे पंसारी की दुकान पर चले जाते हैं। उनके जीवन का यह पहलू सशक्त उभरकर हमारे सामने आता है।

निश्चय से भगत जी का यह आचरण समाज में शांति स्थापित करने में मददगार हो सकता है। अनावश्यक वस्तुओं का घर में संग्रह करने से घर-परिवार में अशांति ही बढ़ती है। यदि मनुष्य अपनी आवश्यकता के अनुसार ही वस्तुओं की खरीद करता है तो इससे बाज़ार में महंगाई भी नहीं बढ़ेगी और लोगों में संतोष की भावना उत्पन्न होगी जिससे समाज में शांति की व्यवस्था उत्पन्न होगी।

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प्रश्न 3.
‘बाज़ारूपन’ से क्या तात्पर्य है? किस प्रकार के व्यक्ति बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं अथवा बाज़ार की सार्थकता किसमें है?
उत्तर:
‘बाज़ारूपन’ का अर्थ है-ओछापन। इसमें दिखावा अधिक होता है और आवश्यकता बहुत कम होती है। इसमें गंभीरता नहीं होती केवल ऊपरी सोच होती है। जिन लोगों में बाजारूपन होता है, वे बाजार को निरर्थक बना देते हैं, उसके महत्त्व को घटा देते हैं।

परंतु जो लोग आवश्यकता के अनुसार बाज़ार से वस्तुएँ खरीदते हैं, वे ही बाज़ार को सार्थकता प्रदान करते हैं। ऐसे लोगों के कारण ही बाज़ार में केवल वही वस्तुएँ बेची जाती हैं जिनकी लोगों को आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में बाज़ार हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन बनता है। भगत जी जैसे लोग जानते हैं कि उन्हें बाज़ार से क्या खरीदना है। अतः ऐसे लोग ही बाज़ार को सार्थक बनाते हैं।

प्रश्न 4.
बाज़ार किसी का लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र नहीं देखता; वह देखता है सिर्फ उसकी क्रय शक्ति को। इस रूप में वह एक प्रकार से सामाजिक समता की भी रचना कर रहा है। आप इससे कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर:
यह कहना सही है कि बाज़ार किसी भी व्यक्ति का लिंग, जाति, धर्म अथवा क्षेत्र नहीं देखता। चाहे सवर्ण हो या अवर्ण, सूचित-अनुसूचित जातियों के लोग आदि सभी उसके लिए एक समान हैं। बाज़ार यह नहीं पूछता कि आप किस जाति अथवा धर्म से संबंधित हैं, वह तो केवल ग्राहक को महत्त्व देता है। ग्राहक के पास पैसे होने चाहिए, वह उसका स्वागत करता है। इस दृष्टि से बाज़ार निश्चय से सामाजिक समता की रचना करता है, क्योंकि बाज़ार के समक्ष चाहे ब्राह्मण हो या निम्न जाति का व्यक्ति हो, मुसलमान हो या ईसाई हो, सभी बराबर हैं। वे ग्राहक के सिवाय कुछ नहीं हैं। इस दृष्टिकोण से मैं पूर्णतया सहमत हूँ। दुकानदार के पास सभी प्रकार के लोग बैठे हुए देखे जा सकते हैं। वह किसी से यह नहीं पूछता कि वह किस जाति अथवा. धर्म को मानने वाला है, परंतु मुझे एक बात खलती है, आज बढ़ती हुई आर्थिक विषमता के कारण केवल अमीर व्यक्ति ही बाज़ार में खरीददारी कर सकता है। महंगाई के कारण गरीब व्यक्ति बाज़ार जाने का साहस भी नहीं करता। फिर भी यह सत्य है कि बाज़ार सामाजिक समता की स्थापना करता है।

प्रश्न 5.
आप अपने तथा समाज से कुछ ऐसे प्रसंग का उल्लेख करें (क) जब पैसा शक्ति के परिचायक के रूप में प्रतीत हुआ। (ख) जब पैसे की शक्ति काम नहीं आई।
उत्तर:
सचमुच पैसे में बड़ी शक्ति है। पैसे का हमारे जीवन में अत्यधिक महत्त्व है। जीवन में ऐसे अनेक अवसर आते हैं, जब हम पैसे के अभाव को महसूस करते हैं। लेकिन यह भी सही है कि जीवन में पैसा ही सब कुछ नहीं है।
(क) जब पैसा शक्ति के परिचायक के रूप में प्रतीत हुआ-भले ही हमारे देश में कहने को तो लोकतंत्र है, लेकिन गरीब व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता। आज के माहौल में विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए कम-से-कम दो करोड़ रुपये तो चाहिए ही। आम आदमी इतने पैसे कहाँ से जुटा सकता है। अतः हमारे चुनाव भी पैसे की शक्ति के परिचायक बन चुके हैं। अमीर तथा दबंग लोग ही चुनाव लड़ते हैं और जीतकर पैसे बनाते हैं। चाहे कोई एम०एल०ए० हो या संसद सदस्य सभी करोड़पति हैं। इसी से पैसे की शक्ति का पता चल जाता है।

(ख) जब पैसे की शक्ति काम नहीं आई-पैसे में पर्याप्त शक्ति होती है, लेकिन जीवन में अनेक अवसर ऐसे भी आते हैं जब पैसे की शक्ति काम नहीं आती। सेठ जी के पुत्र को कैंसर हो गया। सेठ जी ने उसके उपचार पर लाखों रुपये खर्च कर दिए। यहाँ तक कि वह उसे ईलाज के लिए अमेरिका भी ले गया, लेकिन उसका बेटा बच नहीं सका। सेठ जी के पैसे की शक्ति भी काम नहीं आई।

पाठ के आसपास

प्रश्न 1.
बाज़ार दर्शन पाठ में बाजार जाने या न जाने के संदर्भ में मन की कई स्थितियों का जिक्र आया है आप इन स्थितियों से जुड़े अपने अनुभवों का वर्णन कीजिए।
(क) मन खाली हो
(ख) मन खाली न हो
(ग) मन बंद हो
(घ) मन में नकार हो
उत्तर:
(क) मन खाली हो-एक बार मैं बिना किसी उद्देश्य से एक मॉल में प्रवेश कर गया। मेरी जेब में पैसे भी काफी थे। यहाँ-वहाँ भटकते हुए मैं यह निर्णय नहीं कर पाया कि मैं घर के लिए कौन-सी वस्तु खरीदकर ले जाऊँ। आखिर मैंने बड़ा-सा एक रंग-बिरंगा खिलौना खरीद लिया। घर पहुँचते ही पता चला कि वह खिलौना चीन का बना हुआ था। एक घंटे बाद ही वह खिलौना खराब हो गया। अतः अब वह हमारे स्टोर की शोभा बढ़ा रहा है। यह सब मन खाली होने का परिणाम है।

(ख) मन खाली न हो-सर्दी आरंभ हो चुकी थी। मेरी माँ ने कहा कि बेटा एक गर्म जर्सी खरीद लो। दो-चार दिन बाद मैं अपने पिता जी के साथ बाज़ार चला गया। हमने बाज़ार में अनेक वस्तुएँ देखीं, लेकिन कुछ नहीं खरीदा। मैंने तो सोच लिया कि मुझे केवल एक गर्म जर्सी ही खरीदनी है। अन्ततः हम लायलपुर जनरल स्टोर पर गए। मैंने वहाँ से मनपसंद जर्सी खरीद ली और मैं पिता जी के साथ घर लौट आया।

(ग) मन बंद हो-एक दिन सायंकाल मैं अपने मित्रों के साथ बाज़ार गया। लेकिन मेरा मन बड़ा ही उदास था। दुकानदारों की आवाजें मुझे व्यर्थ लग रही थीं। मुझे बाज़ार की रौनक से भी अपकर्षण हो गया। कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। मित्रों ने यहाँ-वहाँ से कछ सामान लिया लेकिन मैं खाली हाथ ही घर लौट आया।

(घ) मन में नकार हो मैं कुछ दिनों से दूरदर्शन पर जंकफूड के बारे में बहुत कुछ सुन रहा था। धीरे-धीरे मेरे मन में जंक फूड के प्रति घृणा-सी उत्पन्न हो गई। मैं अपने मित्रों के साथ एक अच्छे होटल में गया। वहाँ पर पीज़ा, बरगर, डोसा, चने-भटूरे आदि बहुत कुछ था। लेकिन मेरे मन में नकार की स्थिति बनी हुई थी। मेरा मन तो सादी दाल-रोटी खाने को कर रहा था। अतः मैं मित्रों के साथ वहाँ से भूखा ही लौटा और घर में अपनी माँ के हाथों से बनी सब्जी-रोटी ही खाई।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन

प्रश्न 2.
बाज़ार दर्शन पाठ में किस प्रकार के ग्राहकों की बात हुई है? आप स्वयं को किस श्रेणी का ग्राहक मानते/मानती हैं?
उत्तर:
बाज़ार दर्शन पाठ में दो प्रकार के ग्राहकों की बात की गई है। प्रथम श्रेणी में वे ग्राहक आते हैं, जिनके मन खाली हैं तथा जिनके पास खरीदने की शक्ति ‘पर्चेजिंग पावर’ भी है। ऐसे लोग बाजार की चकाचौंध के शिव से अनावश्यक सामान खरीदकर अपने मन की शांति भंग करते हैं। द्वितीय श्रेणी में वे ग्राहक आते हैं जिनका मन खाली नहीं होता अर्थात जो मन में यह निर्णय करके बाज़ार जाते हैं कि वे बाज़ार से अमुक आवश्यक वस्तु खरीदकर लाएँगे। ऐसे ग्राहक भगत जी के समान होते हैं। मैं द्वितीय श्रेणी की ग्राहक हूँ। मैं हमेशा मन में यह निर्णय करके बाज़ार जाती हूँ कि मुझे बाज़ार से क्या खरीद कर लाना है।

प्रश्न 3.
आप बाज़ार की भिन्न-भिन्न प्रकार की संस्कृति से अवश्य परिचित होंगे। मॉल की संस्कृति और सामान्य बाज़ार और हाट की संस्कृति में आप क्या अंतर पाते हैं? पर्चेजिंग पावर आपको किस तरह के बाज़ार में नज़र आती है?
उत्तर:
आज के महानगरों में विभिन्न प्रकार के बाज़ार हैं-साप्ताहिक बाज़ार सप्ताह में एक बार लगता है। इसी प्रकार थोक बाज़ार, कपड़ा बाज़ार और करियाना बाज़ार भी हैं। फर्नीचर बाज़ार से केवल फर्नीचर मिलता है और पुस्तक बाज़ार से पुस्तकें। ये सभी हमारे जीवन से जुड़े हुए हैं। लेकिन मॉल आम लोगों के लिए नहीं है। उनमें केवल वही लोग जा सकते हैं जिनके पास काला धन होता है। गरीब लोगों के लिए वहाँ पर कोई स्थान नहीं है। सामान्य बाज़ार तथा हाट में अमीर-गरीब सभी लोग जाते हैं, क्योंकि इन बाजारों में आवश्यक वस्तुएँ उचित मूल्य पर मिल जाती हैं। पर्चेजिंग पावर मॉल में ही देखी जा सकती है जहाँ लोग अपना स्टेट्स दिखाते हैं। अनाप-शनाप खाते हैं और अनावश्यक वस्तुएँ खरीदते हैं। पूंजीपतियों के पास ही क्रय शक्ति होती है।

प्रश्न 4.
लेखक ने पाठ में संकेत किया है कि कभी-कभी बाज़ार में आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
लेखक के अनुसार ‘पर्चेजिंग पावर’ दिखाने वाले पूँजीपति लोग ही बाज़ार के ‘बाज़ारूपन’ को बढ़ाते हैं। इन लोगों के कारण बाज़ार में छल-कपट तथा शोषण को बढ़ावा मिलता है। दुकानदार अकसर ग्राहक का शोषण करता हुआ नज़र आता है। लेकिन कभी-कभी हमारी आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है। हाल ही में आटा, चावल, चीनी, दालों तथा सब्जियों के दाम आकाश को छूने लग गए हैं। ये सभी वस्तुएँ हमारी नित्य-प्रतिदिन की आवश्यकता की वस्तुएँ हैं। लेकिन दुकानदार तथा बिचौलिए खुले आम हमारा शोषण कर रहे हैं। यदि घर में गैस का सिलिंडर नहीं है तो हम इसे अधिक दाम देकर खरीद लेते हैं और शोषण का शिकार बनते हैं। मैं लेखक के इस विचार से सहमत हूँ कि प्रायः आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है।

प्रश्न 5.
स्त्री माया न जोड़े यहाँ माया शब्द किस ओर संकेत कर रहा है? स्त्रियों द्वारा माया जोड़ना प्रकृति प्रदत्त नहीं, बल्कि परिस्थितिवश है। वे कौन-सी परिस्थितियाँ होंगी जो स्त्री को माया जोड़ने के लिए विवश कर देती हैं?
उत्तर:
माया जोड़ने का अर्थ है-घर के लिए आवश्यक वस्तुओं का संग्रह करना और चार पैसे जोड़ना। स्त्री ही घर-गृहस्थी है। उसे ही घर-भर की सुविधाओं का ध्यान रखना होता है। वह प्रायः घर के लिए वही वस्तुएँ खरीदती है जो नितांत आवश्यक होती हैं।

अनेक बार कुछ स्त्रियाँ देखा-देखी अनावश्यक वस्तुएँ भी खरीद लेती हैं। वे पुरुषों की नज़रों में सुंदर दिखने के लिए अपना बनाव-श्रृंगार भी करती हैं और इसके लिए आकर्षक वस्त्र तथा आभूषण भी खरीदती हैं। पुरुष-प्रधान समाज में स्त्री की यह मज़बूरी बन गई है कि वह माया को जोड़े अन्यथा उसका अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।

आपसदारी

प्रश्न 1.
ज़रूरत-भर जीरा वहाँ से ले लिया कि फिर सारा चौक उनके लिए आसानी से नहीं के बराबर हो जाता है भगत जी की इस संतुष्ट निस्पृहता की कबीर की इस सूक्ति से तुलना कीजिए-
चाह गई चिंता गई मनुआँ बेपरवाह
जाके कछु न चाहिए सोइ सहंसाह। कबीर
उत्तर:
भगत जी बाज़ार से उतना ही सामान खरीदते हैं, जितनी उनको आवश्यकता होती है। ज़रूरत-भर जीरा-नमक लेने के बाद उनके लिए सारा बाज़ार और चौक न के बराबर हो जाता है। लगभग यही भाव कबीर के दोहे में व्यक्त हुआ है। जब मनुष्य की इच्छा पूरी हो जाती है तो उसका मन बेपरवाह हो जाता है। उस समय वह एक बादशाह के समान होता है। भगत जी की संतुष्ट निस्पृहता कबीर की इस सूक्ति से सर्वथा मेल खाती है। कबीर ने तो यह लिखा है, लेकिन भगत जी ने इस दोहे की भावना को अपने जीवन में ही उतार लिया है।

प्रश्न 2.
विजयदान देथा की कहानी ‘दुविधा’ (जिस पर ‘पहेली’ फिल्म बनी है) के अंश को पढ़ कर आप देखेंगे/देखेंगी कि भगत जी की संतुष्ट जीवन-दृष्टि की तरह ही गड़रिए की जीवन-दृष्टि है, इससे आपके भीतर क्या भाव जगते हैं?
गड़रिया बगैर कहे ही उस के दिल की बात समझ गया, पर अँगूठी कबूल नहीं की। काली दाढ़ी के बीच पीले दाँतों की हँसी हँसते हुए बोला ‘मैं कोई राजा नहीं हूँ जो न्याय की कीमत वसूल करूँ। मैंने तो अटका काम निकाल दिया। और यह अंगूठी मेरे किस काम की! न यह अँगुलियों में आती है, न तड़े में। मेरी भेड़ें भी मेरी तरह गँवार हैं। घास तो खाती हैं, पर सोना सूंघती तक नहीं। बेकार की वस्तुएँ तुम अमीरों को ही शोभा देती हैं।’-विजयदान देथा
उत्तर:
निश्चय से भगत जी की संतुष्ट जीवन-दृष्टि गड़रिए की जीवन-दृष्टि से मेल खाती है। मानव जितना भौतिक सुखों के पीछे भागता है, उतना ही वह अपने लिए असंतोष तथा अशांति का जाल बुनता जाता है। इस जाल में फंसे हुए मानव की स्थिति मृग की तृष्णा के समान है। सुख तो मिलता नहीं, अलबत्ता वह धन-संग्रह के कारण अपने जीवन को नरक अवश्य बना लेता है। उसकी असंतोष की आग कभी नहीं बुझती। इस संदर्भ में कविवर कबीरदास ने कहा भी है
माया मुई न मन मुआ मरि मरि गया सरीर।
आसा तृष्णा ना मिटी कहि गया दास कबीर।

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प्रश्न 3.
बाज़ार पर आधारित लेख नकली सामान पर नकेल ज़रूरी का अंश पढ़िए और नीचे दिए गए बिंदुओं पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
(क) नकली सामान के खिलाफ जागरूकता के लिए आप क्या कर सकते हैं?
(ख) उपभोक्ताओं के हित को मद्देनज़र रखते हुए सामान बनाने वाली कंपनियों का क्या नैतिक दायित्व है?
(ग) ब्रांडेड वस्तु को खरीदने के पीछे छिपी मानसिकता को उजागर कीजिए।
नकली सामान पर नकेल ज़रूरी
अपना क्रेता वर्ग बढ़ाने की होड़ में एफएमसीजी यानी तेजी से बिकने वाले उपभोक्ता उत्पाद बनाने वाली कंपनियाँ गाँव के बाजारों में नकली सामान भी उतार रही हैं। कई उत्पाद ऐसे होते हैं जिन पर न तो निर्माण तिथि होती है और न ही उस तारीख का ज़िक्र होता है जिससे पता चले कि अमुक सामान के इस्तेमाल की अवधि समाप्त हो चुकी है। आउटडेटेड या पुराना पड़ चुका सामान भी गाँव-देहात के बाजारों मे खप रहा है। ऐसा उपभोक्ता मामलों के जानकारों का मानना है। नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेसल कमीशन के सदस्य की मानें तो जागरूकता अभियान में तेजी लाए बगैर इस गोरखधंधे पर लगाम कसना नामुमकिन है।

उपभोक्ता मामलों की जानकार पुष्पा गिरिमा जी का कहना है, ‘इसमें दो राय नहीं कि गाँव-देहात के बाजारों में नकली रीय उपभोक्ताओं को अपने शिकंजे में कसकर बहराष्ट्रीय कंपनियाँ, खासकर ज्यादा उत्पाद बेचने वाली कंपनियाँ, गाँव का रुख कर चुकी हैं। वे गाँववालों के अज्ञान और उनके बीच जागरूकता के अभाव का पूरा फायदा उठा रही हैं। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए कानून ज़रूर हैं लेकिन कितने लोग इनका सहारा लेते हैं यह बताने की ज़रूरत नहीं। गुणवत्ता के मामले में जब शहरी उपभोक्ता ही उतने सचेत नहीं हो पाए हैं तो गाँव वालों से कितनी उम्मीद की जा सकती है।

इस बारे में नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्रस रिड्रेसल कमीशन के सदस्य जस्टिस एस.एन. कपूर का कहना है, ‘टीवी ने दूर-दराज़ के गाँवों तक में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को पहुंचा दिया है। बड़ी-बड़ी कंपनियाँ विज्ञापन पर तो बेतहाशा पैसा खर्च करती हैं लेकिन उपभोक्ताओं में जागरूकता को लेकर वे चवन्नी खर्च करने को तैयार नहीं हैं। नकली सामान के खिलाफ जागरूकता पैदा करने में स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी मिलकर ठोस काम कर सकते हैं। ऐसा कि कोई प्रशासक भी न कर पाए।’

बेशक, इस कड़वे सच को स्वीकार कर लेना चाहिए कि गुणवत्ता के प्रति जागरूकता के लिहाज़ से शहरी समाज भी कोई ज़्यादा सचेत नहीं है। यह खुली हुई बात है कि किसी बड़े ब्रांड का लोकल संस्करण शहर या महानगर का मध्य या निम्नमध्य वर्गीय उपभोक्ता भी खुशी-खुशी खरीदता है। यहाँ जागरूकता का कोई प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि वह ऐसा सोच-समझकर और अपनी जेब की हैसियत को जानकर ही कर रहा है। फिर गाँववाला उपभोक्ता ऐसा क्योंकर न करे। पर फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि यदि समाज में कोई गलत काम हो रहा है तो उसे रोकने के जतन न किए जाएँ। यानी नकली सामान के इस गोरखधंधे पर विराम लगाने के लिए जो कदम या अभियान शुरू करने की ज़रूरत है वह तत्काल हो।
-हिंदुस्तान 6 अगस्त 2006, साभार
उत्तर:
(क) नकली सामान के खिलाफ जागरूकता उत्पन्न करना नितांत आवश्यक है। यह कार्य स्कूल तथा कॉलेज के विद्यार्थियों द्वारा मिलकर किया जा सकता है। इसी प्रकार समाचार पत्र, दूरदर्शन, रेडियो आदि संचार माध्यम भी नकली सामान के विरुद्ध अभियान चला सकते हैं। इसके लिए नुक्कड़ नाटक भी खेले जा सकते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि लोगों को नकली सामान के विरुद्ध सावधान किया जाए।

(ख) उपभोक्ताओं के हित को मद्देनज़र रखते हुए सामान बनाने वाली कंपनियों का यह दायित्व है कि ग्राहकों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सही वस्तुओं का उत्पादन करें। अन्यथा उनका व्यवसाय अधिक दिन तक नहीं चल पाएगा।

(ग) ब्रांडेड वस्तु को खरीदने के पीछे लोगों की यह मानसिकता है कि ब्रांडेड वस्तुएँ बनाने वाली कंपनियाँ ग्राहक के संतोष को ध्यान में रखती हैं, परंतु जो कंपनियाँ नकली सामान बनाती हैं, सरकार को भी उन पर नकेल करनी चाहिए।
टिप्पणी-इन सभी बिंदुओं पर विद्यार्थी अपनी कक्षा में अपने-अपने विचार प्रस्तुत कर सकते हैं, परंतु यह विचार-विमर्श शिक्षक की देख-रेख में होने चाहिए।
उपभोक्ता क्लब में भी इस गद्यांश का वाचन किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
प्रेमचंद की कहानी ईदगाह के हामिद और उसके दोस्तों का बाजार से क्या संबंध बनता है? विचार करें।
उत्तर:
ईदगाह कहानी में हामिद के सभी मित्र बाज़ार में चाट पकौड़ी और मिठाइयाँ खाते हैं। इसी प्रकार वे मिट्टी के खिलौने भी खरीदते हैं। इन बच्चों को घर से काफी पैसे ईदी के रूप में मिले थे। परंतु हामिद को तो बहुत कम पैसे मिले थे। हामिद के मुँह में भी पानी भर आया। लेकिन उसने मन में प्रतिज्ञा की थी कि वह अपनी दादी अमीना के लिए एक चिमटा खरीदकर ले जाएगा। हामिद के मित्र “बाज़ार दर्शन” के कपटी ग्राहकों के समान हैं। वे बाज़ार से अनावश्यक सामान खरीदते हैं और बाद में पछताते हैं, परंतु हामिद भगत जी के समान सब मित्रों के साथ घुलमिल कर रहता है, परंतु केवल आवश्यक वस्तु ही खरीदता है।

विज्ञापन की दुनिया

प्रश्न 1.
आपने समाचारपत्रों, टी.वी. आदि पर अनेक प्रकार के विज्ञापन देखे होंगे जिनमें ग्राहकों को हर तरीके से लुभाने का प्रयास किया जाता है। नीचे लिखे बिंदुओं के संदर्भ में किसी एक विज्ञापन की समीक्षा कीजिए और यह भी लिखिए कि आपको विज्ञापन की किस बात ने सामान खरीदने के लिए प्रेरित किया।
1. विज्ञापन में सम्मिलित चित्र और विषय-वस्तु
2. विज्ञापन में आए पात्र व उनका औचित्य
3. विज्ञापन की भाषा
HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन 1
उत्तर:
भारतीय जीवन बीमा निगम’ का उपरोक्त विज्ञापन सामान्य व्यक्ति को भी बीमा कराने की प्रेरणा देता है। इस विज्ञापन ने मुझे भी निम्नलिखित बिंदुओं में से प्रभावित किया है
(1) विज्ञापन में सम्मिलित चित्र और विषय वस्तु-विज्ञापन में दिखाया गया परिवार (पति-पत्नी तथा उनका बेटा-बेटी) बीमा कराने के बाद सुरक्षित एवं प्रसन्न दिखाई देता है। अतः यह विज्ञापन विषय-वस्तु तथा चित्र के सर्वथा अनुकूल एवं प्रभावशाली है।

(2) एक स्वस्थ एवं जागरूक परिवार हमेशा अपने भविष्य के प्रति चिंतित होता है। उपर्यक्त चित्र में परिवार के मुखिया ने अपनी पत्नी तथा बच्चों के भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिए ‘जीवन निश्चय’ बीमा करवाया है। यह एक एकल प्रीमियम प्लान है जोकि 5, 7, तथा 10 वर्ष की अवधि के बाद गांरटीयुक्त परिपक्वता लाभ दिलाता है।

(3) विज्ञापन की भाषा-प्रस्तुत विज्ञापन की भाषा ‘गांरटी हमारी, हर खुशी तुम्हारी’ मुझे अत्यधिक पसंद है जिसे सुनकर कोई भी समझदार व्यक्ति अपने परिवार के लिए यह बीमा अवश्य लेना चाहेगा। स्लोगन सुनकर या पढ़कर ही ग्राहक इसकी ओर आकर्षित हो जाता है।

प्रश्न 2.
अपने सामान की बिक्री को बढ़ाने के लिए आज किन-किन तरीकों का प्रयोग किया जा रहा है? उदाहरण सहित उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए। आप स्वयं किस तकनीक या तौर-तरीके का प्रयोग करना चाहेंगे जिससे बिक्री भी अच्छी हो और उपभोक्ता गुमराह भी न हो।
उत्तर:
आज के वैज्ञानिक युग में सामान की बिक्री बढ़ाने के लिए विज्ञापन का सहारा लेना ज़रूरी है। मैं अपने उत्पाद को ग्राहकों तक पहुँचाने के लिए निम्नलिखित उपाय करूँगा

  1. दूरदर्शन के लोकप्रिय सीरियल पर विज्ञापन दूंगा।
  2. किसी लोकप्रिय समाचार पत्र में अपने उत्पाद का विज्ञापन दूंगा। इसके लिए मैं अखबार में छपे हुए पर्चे भी डलवा सकता हूँ।
  3. मोबाइल पर एस०एम०एस० द्वारा भी विज्ञापन दे सकता हूँ।
  4. रेडियो पर भी उत्पाद का प्रचार-प्रसार किया जा सकता है।
  5. एजेंटों को घर-घर भेज कर भी उत्पाद का प्रचार किया जा सकता है।

मैं उपर्युक्त साधनों में से समाचार पत्र व दूरदर्शन पर विज्ञापन देना अधिक पसंद करूँगा। मैं उपभोक्ता की सुविधा को ध्यान में रखते हुए उत्पादित वस्तुओं की गुणवत्ता का विशेष ध्यान रखुंगा, ताकि लोगों तक अच्छी वस्तुएँ पहुँच सकें।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन

भाषा की बात

प्रश्न 1.
विभिन्न परिस्थितियों में भाषा का प्रयोग भी अपना रूप बदलता रहता है कभी औपचारिक रूप में आती है तो कभी अनौपचारिक रूप में। पाठ में से दोनों प्रकार के तीन-तीन उदाहरण छाँटकर लिखिए।
उत्तर:
(क) भाषा का औपचारिक रूप-

  • कोई अपने को न जाने तो बाज़ार का यह चौक उसे कामना से विकल बना छोडे………. असंतोष तृष्णा से घायल कर मनुष्य को सदा के लिए यह बेकार बना डाल सकता है।
  • उनका आशय था कि पत्नी की महिमा है, उस महिमा का मैं कायल हूँ।
  • एक और मित्र की बात है यह दोपहर के पहले गए और बाज़ार से शाम को वापिस आए।

(ख) भाषा का अनौपचारिक रूप-

  • यह देखिए, सब उड़ गया। अब जो रेल टिकट के लिए भी बचा हो।
  • बाज़ार है कि शैतान का जाल है? ऐसा सज़ा-सज़ा कर माल रखते हैं कि बेहया ही हो जो न फँसे।
  • बाज़ार को देखते क्या रहे?

लाए तो कुछ नहीं। हाँ पर यह समझ न आता था कि न लूँ तो क्या?

प्रश्न 2.
पाठ में अनेक वाक्य ऐसे हैं, जहाँ लेखक अपनी बात कहता है कुछ वाक्य ऐसे हैं जहाँ वह पाठक-वर्ग को संबोधित करता है। सीधे तौर पर पाठक को संबोधित करने वाले पाँच वाक्यों को छाँटिए और सोचिए कि ऐसे संबोधन पाठक से रचना पढ़वा लेने में मददगार होते हैं?
उत्तर:
पाठक को संबोधित करने वाले पाँच वाक्य:

  1. लेकिन ठहरिए। इस सिलसिले में एक और महत्त्व का तत्त्व है जिसे नहीं भूलना चाहिए।
  2. यहाँ एक अंतर चीन्ह लेना बहुत ज़रूरी है। मन खाली नहीं रहना चाहिए।
  3. क्या जाने उसे भोले आदमी को अक्षर-ज्ञान तक भी है या नहीं। और बड़ी बातें तो उसे मालूम क्या होंगी और हम न जाने कितनी बड़ी-बड़ी बातें जानते हैं।
  4. पर उस जादू की जकड़ से बचने का सीधा-सा उपाय है।
  5. कहीं आप भूल न कर बैठना।

इस प्रकार के वाक्य निश्चय से पाठक को सोचने के लिए मजबूर कर देते हैं। अतः इन वाक्यों की निबंध में विशेष उपयोगिता मानी गई है।

प्रश्न 3.
नीचे दिए गए वाक्यों को पढ़िए।
(क) पैसा पावर है।
(ख) पैसे की उस पर्चेजिंग पावर के प्रयोग में ही पावर का रस है।
(ग) मित्र ने सामने मनीबैग फैला दिया।
(घ) पेशगी ऑर्डर कोई नहीं लेते।
ऊपर दिए गए इन वाक्यों की संरचना तो हिंदी भाषा की है लेकिन वाक्यों में एकाध शब्द अंग्रेजी भाषा के आए हैं। इस तरह के प्रयोग को कोड मिक्सिंग कहते हैं। एक भाषा के शब्दों के साथ दूसरी भाषा के शब्दों का मेलजोल। अब तक आपने जो पाठ पढ़े उसमें से ऐसे कोई पाँच उदाहरण चुनकर लिखिए। यह भी बताइए कि आगत शब्दों की जगह उनके हिंदी पर्यायों का ही प्रयोग किया जाए तो संप्रेषणीयता पर क्या प्रभाव पड़ता है।
उत्तर:
कोड मिक्सिंग हिंदी भाषा में प्रायः होता रहता है। आधुनिक हिंदी भाषा देशज तथा विदेशज शब्दों को स्वीकार करती हुई आगे बढ़ रही है। पुस्तक के पठित पाठों के आधार पर निम्नलिखित उदाहरण उल्लेखनीय हैं

  1. दाल से एक मोटी रोटी खाकर मैं ठाठ से यूनिवर्सिटी पहुँची। (भक्तिन)
  2. पैसा पावर है। पर उस के सबूत में आस-पास माल-ढाल न जमा हो तो क्या वह खाक पावर है। पैसे को देखने के लिए बैंक हिसाब देखिए……..।
  3. वहाँ के लोग कैसे खूबसूरत होते हैं, उम्दा खाने और नफीस कपड़ों के शौकीन, सैर-सपाटे के रसिया, जिंदादिली की तस्वीर।
  4. बाज़ार है कि शैतान का जाल है।
  5. अपने जीवन के अधिकांश हिस्सों में हम चार्ली केटिली ही होते हैं।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन

प्रश्न 4.
नीचे दिए गए वाक्यों के रेखांकित अंश पर ध्यान देते हुए उन्हें पढ़िए
(क) निर्बल ही धन की ओर झुकता है।
(ख) लोग संयमी भी होते हैं।
(ग) सभी कुछ तो लेने को जी होता था।
ऊपर दिए गए वाक्यों के रेखांकित अंश ‘ही’, ‘भी’, ‘तो’ निपात हैं जो अर्थ पर बल देने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। वाक्य में इनके होने-न-होने और स्थान क्रम बदल देने से वाक्य के अर्थ पर प्रभाव पड़ता है, जैसे
मुझे भी किताब चाहिए। (मुझे महत्त्वपूर्ण है।)
मुझे किताब भी चाहिए। (किताब महत्त्वपूर्ण है।)
आप निपात (ही, भी, तो) का प्रयोग करते हुए तीन-तीन वाक्य बनाइए। साथ ही ऐसे दो वाक्यों का भी निर्माण कीजिए जिसमें ये तीनों निपात एक साथ आते हों।
उत्तर:
(क) ही
मित्र! केवल आप ही मेरी सहायता कर सकते हैं।
मैं ही तो तुम्हारे घर में था।
पिता जी ने आज ही दिल्ली जाना था।

(ख) भी
मैं भी तुम्हारे साथ सैर पर चलूँगा।
राधा ने भी स्कूल में प्रवेश ले लिया है।
तुम भी काम की तरफ ध्यान दो।

(ग) तो
यदि तुम मेरी सहायता नहीं करोगे तो मैं तुम्हारे साथ नहीं चलूँगा।
यूँ ही शोर मत करो। मेरी बात तो सुनो।
मैं यहीं तो खड़ा था।

(ग) ही, तो, भी
(1) यदि यह बात है तो तुम भी राधा के ही साथ चले जाओ।
(2) तुम भी तो हमेशा गालियाँ ही बकते रहते हो।

चर्चा करें

1. पर्चेजिंग पावर से क्या अभिप्राय है?
बाज़ार की चकाचौंध से दूर पर्चेजिंग पावर का सकारात्मक उपयोग किस प्रकार किया जा सकता है? आपकी मदद के लिए संकेत दिया जा रहा है-
(क) सामाजिक विकास के कार्यों में।
(ख) ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने में…….।
उत्तर:
विद्यार्थी शिक्षक के सहयोग से कक्षा में अपने सहपाठियों के साथ चर्चा करें तथा प्रत्येक विद्यार्थी को अपने विचार प्रकट करने का अवसर दिया जाए।

HBSE 12th Class Hindi बाज़ार दर्शन Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
प्रस्तुत पाठ में कितने प्रकार के ग्राहकों का उल्लेख किया गया है?
उत्तर:
इस पाठ में पहला ग्राहक लेखक का मित्र है, जो बाज़ार में मामूली सामान लेने गया था, परंतु बाज़ार से बहुत-से बंडल खरीदकर ले आया। लेखक का दूसरा मित्र दोपहर में बाज़ार गया, लेकिन सायंकाल को खाली हाथ घर लौट आया। उसके मन में बाज़ार से बहुत कुछ खरीदने की इच्छा थी, परंतु बाज़ार से खाली हाथ लौट आया।

तीसरा ग्राहक लेखक के पड़ोसी भगत जी हैं जो आँख खोलकर बाज़ार देखते हैं, पर फैंसी स्टोरों पर नहीं रुकते। वे केवल पंसारी की एक छोटी-सी दुकान पर रुकते हैं। जहाँ से काला नमक तथा जीरा खरीदकर वापिस लौट आते हैं। तीसरा ग्राहक अर्थात् भगत जी केवल आवश्यक वस्तुएँ ही खरीदते हैं।

प्रश्न 2.
‘बाज़ार दर्शन’ नामकरण की सार्थकता का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत निबंध में बाज़ार के बारे में समुचित प्रकाश डाला गया है। लेखक ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि कौन-सा ग्राहक किस दृष्टि से बाज़ार का प्रयोग करता है। लेखक ने इस निबंध में बाज़ार की उपयोगिता पर समुचित प्रकाश डाला है। जो लोग बाज़ार से अनावश्यक वस्तुएँ खरीदकर अपनी पर्चेज़िग पावर का प्रदर्शन करते हैं, वे बाज़ार को निरर्थक सिद्ध करते हैं, परंतु कुछ ऐसे ग्राहक हैं जो बाज़ार से आवश्यकतानुसार सामान खरीदते हैं और संतुष्ट रहते हैं। इस प्रकार के लोग बाज़ार को सार्थकता प्रदान करते हैं। यहाँ लेखक ने बाज़ार के सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला है, साथ ही दुकानदार तथा ग्राहक की मानसिकता का उद्घाटन किया है। अतः ‘बाज़ार-दर्शन’ नामकरण पूर्णतः सार्थक है।

प्रश्न 3.
‘मन खाली नहीं रहना चाहिए’, खाली मन होने से लेखक का क्या मन्तव्य है?
उत्तर:
‘मन खाली नहीं रहना चाहिए’ से अभिप्राय है कि जब हम बाज़ार में जाएँ तो मन में आवश्यक वस्तुएँ खरीदने के बारे में सोचकर ही जाएँ, बिना उद्देश्य के न जाएँ। जब कोई व्यक्ति निरुद्देश्य बाज़ार जाता है तो वह अनावश्यक वस्तुएँ खरीदकर लाता है। इससे बाज़ार में एक व्यंग्य-शक्ति उत्पन्न होती है। ऐसा करने से न तो बाजार को लाभ पहुँचता है, न ही ग्राहक को, बल्कि केवल प्रदर्शन की वृत्ति को ही बढ़ावा मिलता है।

प्रश्न 4.
‘बाज़ार का जादू सब पर नहीं चलता’। भगत जी के संदर्भ में इस कथन का विवेचन करें।
उत्तर:
बाज़ार में एक जादू होता है जो प्रायः ग्राहकों को अपनी ओर खींचता है, किंतु कुछ लोग ऐसे होते हैं कि जिनका मन भगत जी की तरह संतुष्ट होता है। बाज़ार का आकर्षण उनके मन को प्रभावित नहीं कर पाता। लेखक के पड़ोसी भगत जी दिन में केवल छः आने ही कमाते थे। वे इस धन-राशि से अधिक नहीं कमाना चाहते थे। उनके द्वारा बनाया गया चूरन बाज़ार में धड़ाधड़ बिक जाता था। जब उनकी छः आने की कमाई पूरी हो जाती तो बचे चूरन को वह बच्चों में मुफ्त बाँट देते थे। वे चाहते तो थोक में चूरन बनाकर बेच सकते थे। परंतु उनके मन में धनवान होने की कोई इच्छा नहीं थी। उनके सामने फैंसी स्टोर इस प्रकार दिखाई देते थे जैसे उनका कोई अस्तित्व नहीं है। वे केवल बाजार से अपनी आवश्यकता का सामान खरीदने के लिए जाते थे और बाजार की आकर्षक वस्तुओं की ओर नहीं ललचाते थे। इसलिए कह सकते हैं कि बाज़ार का जादू सब पर नहीं चलता।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन

प्रश्न 5.
लेखक के पड़ोस में कौन रहता है तथा उनके बारे में क्या बताया गया है?
उत्तर:
लेखक के पड़ोस में एक भगत जी रहते हैं जो चूरन बेचने का काम करते हैं। वे न जाने कितने वर्षों से चूरन बेच रहे हैं लेकिन उन्होंने छः आने से अधिक कभी नहीं कमाया। वे चौक बाज़ार में काफी लोकप्रिय हैं। जब उन्हें छः आने की कमाई हो जाती है तो वे बच्चों में मुफ्त चूरन बाँट देते हैं, परंतु भगत जी ने बाज़ार के गुर को नहीं पकड़ा अन्यथा वे मालामाल हो जाते। वे अपना चूरन न तो चौक में बेचते हैं न पेशगी ऑर्डर लेते हैं। लोगों की उनके प्रति बड़ी सद्भावना है। वे हमेशा स्वस्थ प्रसन्न तथा संतुष्ट रहते हैं। सच्चाई तो यह है कि चूरन वाले भगत जी पर बाज़ार का जादू नहीं चल सका।

प्रश्न 6.
लेखक ने भगत जी से मुलाकात होने पर उनसे क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की है?
उत्तर:
एक बार लेखक को बाज़ार चौक में भगत जी दिखाई दिए। लेखक को देखते ही उन्होंने जय-जयराम किया और लेखक ने भी उनको जय-जयराम किया। उस समय भगत जी की आँखें बंद नहीं थीं। बाज़ार में और भी बहुत-से लोग और बालक मिले। वे सभी भगत जी द्वारा पहचाने जाने के इच्छुक थे। भगत जी ने हँसकर सभी को पहचाना, सबका अभिवादन किया और सबका अभिवादन लिया। वे बाज़ार की सज-धज को देखते हुए चल रहे थे। परंतु भगत जी के मन में उनके प्रति अप्रीति नहीं थी विद्रोह भी नहीं था, बल्कि प्रसन्नता थी। वे खुली आँख, संतुष्ट और मग्न से बाज़ार चौक में चल रहे थे।

प्रश्न 7.
चौक बाज़ार में चलते हुए भगत जी कहाँ पर जाकर रुके और उन्होंने क्या किया?
उत्तर:
चौक बाज़ार में चलते हुए भगत जी एक पंसारी की दुकान पर रुके। बाज़ार में हठपूर्वक विमुखता उनमें नहीं थी। अतः उन्होंने पंसारी की दुकान से आवश्यकतानुसार काला नमक व जीरा लिया और वापिस लौट पड़े। इसके बाद तो सारा चौक उनके लिए नहीं के बराबर हो गया। क्योंकि वे जानते थे कि उन्हें जो कुछ चाहिए था वह उन्हें मिल गया है।

प्रश्न 8.
बाजार के जादू चढ़ने-उतरने पर मनुष्य पर क्या-क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
बाज़ार का जादू मनुष्य के सिर पर चढ़कर बोलता है। बाज़ार कहता है-मुझे लूटो, और लूटो। इस पर बाज़ार मनुष्य को विकल बना देता है और वह अपना विवेक खो बैठता है। बाज़ार का जादू उतरने पर मनुष्य को लगता है कि उसका बजट बिगड़ गया है। वह फिजूल की चीजें खरीद लाया है। यही नहीं, उसके सुख-चैन में भी खलल पड़ गया है।

प्रश्न 9.
लेखक ने किस बाज़ार को मानवता के लिए विडंबना कहा है और क्यों?
उत्तर:
लेखक ने उस बाज़ार को मानवता के लिए विडंबना कहा है, जिसमें ग्राहकों की आवश्यकता-पूर्ति के लिए क्रय-विक्रय नहीं होता, बल्कि अमीर लोगों की क्रय-शक्ति को देखते हुए अनावश्यक वस्तुएँ बेची जाती हैं। पूँजीपति अपनी क्रय-शक्ति का प्रदर्शन इस बाज़ार में करते हैं जिससे बाज़ार में छल-कपट तथा शोषण को बढ़ावा मिलता है। यही नहीं, सामाजिक सद्भाव भी नष्ट होता है। इस प्रकार के बाज़ार में ग्राहक और बेचक दोनों ही एक-दूसरे को धोखा देने का प्रयास करते हैं। अतः इस प्रकार का बाज़ार समाज के लिए हानिकारक है। यदि हम इसे मानवता के लिए विडंबना कहते हैं तो अनुचित नहीं होगा।

प्रश्न 10.
इस पाठ में बाज़ार को ‘जादू’ क्यों कहा गया है?
उत्तर:
प्रायः जादू दर्शक को मोहित कर लेता है। उसे देखकर हम ठगे से रह जाते हैं और अपनी सुध-बुध खो बैठते हैं। इसी प्रकार बाजार में भी बड़ी आकर्षक और सुंदर वस्तुएँ सजाकर रखी जाती हैं। ये वस्तुएँ हमारे मन में आकर्षण पैदा करती हैं। हम बाज़ार के रूप जाल में फँस जाते हैं और अनावश्यक वस्तुएँ खरीद लेते हैं। इसीलिए बाज़ार को ‘जादू’ कहा गया है।

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प्रश्न 11.
भगत जी की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भगत जी लेखक के पड़ोस में रहते थे। वे निर्लोभी तथा संतोषी व्यक्ति थे। वे न तो अधिक धन कमाना चाहते थे और न ही धन का संग्रह करना चाहते थे। वे चूरन बनाकर बाज़ार में बेचते थे। जब वे छः आने की कमाई कर लेते थे, तो बचा हुआ चूरन बच्चों में मुफ्त बाँट देते थे।

भगत जी पर बाज़ार के आकर्षण का कोई प्रभाव नहीं था। वे बाज़ार को आवश्यकता की पूर्ति का साधन मानते थे। इसीलिए वे पंसारी की दुकान से काला नमक और जीरा खरीदकर घर लौट जाते थे। भगत जी बाज़ार में सब कुछ देखते हुए चलते थे, लोगों का अभिवादन लेते थे और करते भी थे। वे हमेशा बाज़ार तथा व्यापारियों और ग्राहकों का कल्याण मंगल चाहते थे।

प्रश्न 12.
‘बाजार दर्शन’ पाठ के आधार पर बताइए कि पैसे की पावर का रस किन दो रूपों में प्राप्त होता है?
उत्तर:
पैसे की पावर का रस निम्नलिखित दो रूपों में प्राप्त होता है-

  1. अपना बैंक बैलेंस देखकर।
  2. अपना बंगला, कोठी, कार तथा घर का कीमती सामान देखकर।

प्रश्न 13.
भगत जी बाज़ार को सार्थक तथा समाज को शांत कैसे कर रहे हैं? ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर:
भगत जी निश्चित समय पर पेटी उठाकर चूरन बेचने के लिए बाज़ार में निकल पड़ते हैं। छः आने की कमाई होते ही वे चूरन बेचना बंद कर देते हैं और बचा हुआ चूरन बच्चों में मुफ्त बाँट देते हैं। वे पंसारी से आवश्यकतानुसार नमक और जीरा खरीद कर लाते हैं तथा सबको जय-जयराम कहकर सबका स्वागत करते हैं। वे बाज़ार की चमक-दमक से आकर्षित नहीं होते, बल्कि बड़े संतुष्ट और मग्न होकर बाजार में चलते हैं। इस प्रकार वे बाजार को सार्थक करते हैं और समाज को शांत रहने का उपदेश देते हैं।

प्रश्न 14.
कैपिटलिस्टिक अर्थशास्त्र को लेखक ने मायावी तथा अनीतिपूर्ण क्यों कहा है?
उत्तर:
लेखक के अनुसार कैपिटलिस्टिक अर्थशास्त्र धन को अधिक-से-अधिक बढ़ाने पर बल देता है। इसलिए यह मायावी तथा छली है। बाज़ार का मूल दर्शन आवश्यकताओं की पूर्ति करना है, लेकिन इस लक्ष्य को छोड़कर व्यापारी अधिकाधिक धन कमाने की कोशिश करते हैं। वे ग्राहक को आवश्यकता की उचित वस्तु सही मूल्य पर न देकर उससे अधिक दाम लेते हैं। इससे व्यापार में कपट बढ़ता है और ग्राहक की हानि होती है। यही नहीं, इससे शोषण को भी बल मिलता है जो कि अनीतिपूर्ण है। ऐसे पूँजीवादी बाज़ार से मानवीय प्रेम, भाईचारा तथा सौहार्द समाप्त हो जाता है। इसके साथ-साथ पूँजीवादी अर्थशास्त्र के कारण बाज़ार में फैंसी वस्तुओं को बेचने पर अधिक बल देता है जिससे लोग बिना आवश्यकता के उसके रूप-जाल में फँस जाते हैं। यह निश्चय से बाज़ार का मायावीपन है।

प्रश्न 15.
लेखक के दोनों मित्रों के स्वभाव में कौन-सी समानता है और कौन-सी असमानता है?
उत्तर:
समानता-लेखक के दोनों मित्र खाली मन से बाज़ार गए। पहला मित्र मन में थोड़ा-सा सामान लेने का लक्ष्य रखकर बाज़ार गया, लेकिन उसका मन कुछ भी खरीदने के लिए खाली था। दूसरा मित्र बिना उद्देश्य के बाज़ार में घूमने गया और उसके रूप-जाल में फँस गया। दोनों में से एक ने कुछ खरीदा और दूसरा केवल मन में सोचता ही रह गया।

असमानता-पहले मित्र के पास पैसा अधिक है। वह पैसा खर्च करना जानता है। परंतु दूसरा मित्र दुविधाग्रस्त है लेकिन शीघ्र निर्णय नहीं ले पाता।

प्रश्न 16.
लेखक के अनुसार परमात्मा और मनुष्य में क्या अंतर है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
लेखक के अनुसार परमात्मा स्वयं में पूर्ण है। उसमें कोई भी इच्छा शेष नहीं है। वह शून्य है, परंतु मनुष्य अपूर्ण है। प्रत्येक मानव में कोई-न-कोई इच्छा बनी रहती है। उसकी सभी इच्छाएँ कभी पूर्ण नहीं होतीं। इसका कारण स्वयं मनुष्य है। परंतु यदि मानव इच्छाओं से मुक्त हो जाए तो वह भी परमात्मा की तरह संपूर्ण हो सकता है।

प्रश्न 17.
भगत जी का चूरन हाथों-हाथ कैसे बिक जाता है?
उत्तर:
भगत जी शुद्ध चूरन बनाते थे और सब लोग उनका चूरन खरीदने के लिए उत्सुक रहते थे। लोग उन्हें सद्भावना देते थे और उनसे सद्भावना लेते थे। इसलिए भगत जी स्वयं लोगों में लोकप्रिय थे और उनका चूरन भी लोगों में प्रसिद्ध था।

प्रश्न 18.
प्रथम मित्र ने फालतू वस्तुएँ खरीदने के लिए किसे जिम्मेवार ठहराया, परंतु सच्चाई क्या है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रथम मित्र ने फालतू वस्तुएँ खरीदने के लिए अपनी पत्नी की इच्छा तथा बाज़ार के जादू भरे आकर्षण को दोषी माना है। परंतु असली दोषी तो पैसे की गर्मी तथा मन का खाली होना है। इन दोनों स्थितियों में बाजार का जादू भरा आकर्षण ग्राहक को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है।

प्रश्न 19.
खाली मन और बंद मन में क्या अंतर है?
उत्तर:
लेखक के अनुसार खाली मन का अर्थ है मन में कोई इच्छा धारण करके न चलना। परंतु बंद मन का अर्थ है-मन में किसी प्रकार की इच्छा को उत्पन्न न होने देना और मन को बलपूर्वक दबाकर रखना।

प्रश्न 20.
“चाँदनी चौक का आमंत्रण उन पर व्यर्थ होकर बिखर जाता है”-इसका आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यह गंद्य पंक्ति भगत जी के लिए कही गई है। भगत जी निस्पृही मनोवृत्ति वाले व्यक्ति हैं। वे अपने मन में सांसारिक आकर्षणों को संजोकर नहीं रखते। यही कारण है कि चाँदनी चौक का आकर्षण उनके मन को प्रभावित नहीं कर पाता। बाज़ार के जादू तथा आकर्षण के मध्य रहते हुए वे उसके मोहजाल से बच जाते हैं। वे एक संतुष्ट व्यक्ति हैं। इसलिए चाँदनी चौक का आकर्षण उनको प्रभावित नहीं कर पाता।

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प्रश्न 21.
पैसे की व्यंग्य-शक्ति किस प्रकार साधारण व्यक्ति को चूर-चूर कर देती है और किस व्यक्ति के सामने चूर-चूर हो जाती है?
उत्तर:
पैसे में बहुत व्यंग्य-शक्ति होती है। पैसे वाले व्यक्ति का बंगला, कोठी एवं कार को देखकर साधारण जन के हृदय में लालसा, ईर्ष्या तथा तृष्णा उत्पन्न होने लगती है। पैसे की कमी के कारण वह व्याकुल हो जाता है। वह सोचता है कि उसका जन्म किसी अमीर परिवार में क्यों नहीं हुआ।

परंतु भगत जी जैसे व्यक्ति में न अमीरों को देखकर ईर्ष्या होती है, न तृष्णा होती है। पैसे की व्यंग्य-शक्ति उन्हें छू भी नहीं हैं कहता है कि तुम मुझे ले लो, परंतु वे पैसे की परवाह नहीं करते, इसलिए भगत जी जैसे निस्पृह व्यक्ति के सामने पैसे की व्यंग्य-शक्ति चूर-चूर हो जाती है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. ‘बाज़ार दर्शन’ के रचयिता हैं
(A) महादेवी वर्मा
(B) फणीश्वर नाथ ‘रेणु’
(C) धर्मवीर भारती
(D) जैनेंद्र कुमार
उत्तर:
(D) जैनेंद्र कुमार

2. जैनेंद्र का जन्म किस प्रदेश में हुआ?
(A) उत्तर प्रदेश
(B) मध्य प्रदेश
(C) बिहार
(D) झारखंड
उत्तर:
(A) उत्तर प्रदेश

3. जैनेंद्र का जन्म उत्तर प्रदेश के किस नगर में हुआ?
(A) आगरा
(B) अलीगढ़
(C) मेरठ
(D) कानपुर
उत्तर:
(B) अलीगढ़

4. जैनेंद्र का जन्म कब हुआ?
(A) सन् 1907 में
(B) सन् 1908 में
(C) सन् 1905 में
(D) सन् 1906 में
उत्तर:
(C) सन् 1905 में

5. जैनेंद्र का जन्म अलीगढ़ के किस कस्बे में हुआ?
(A) कौड़ियागंज
(B) गौड़ियागंज
(C) लखीमपुर
(D) रामपुरा
उत्तर:
(A) कौड़ियागंज

6. जैनेंद्र कुमार ने उपन्यासों तथा कहानियों के अतिरिक्त किस विधा में सफल रचनाएँ लिखीं?
(A) एकांकी
(B) नाटक
(C) निबंध
(D) रेखाचित्र
उत्तर:
(C) निबंध

7. भारत सरकार ने जैनेंद्र कुमार को किस उपाधि से सुशोभित किया?
(A) पद्मश्री
(B) पद्मभूषण
(C) पद्मसेवा
(D) वीरचक्र
उत्तर:
(B) पद्मभूषण

8. जैनेंद्र कुमार को पद्मभूषण के अतिरिक्त कौन-कौन से दो प्रमुख पुरस्कार प्राप्त हुए?
(A) शिखर सम्मान और भारत-भारती सम्मान
(B) प्रेमचंद सम्मान और उत्तर प्रदेश सम्मान
(C) साहित्य अकादमी पुरस्कार और भारत-भारती पुरस्कार
(D) ज्ञान पुरस्कार और गीता पुरस्कार
उत्तर:
(C) साहित्य अकादमी पुरस्कार और भारत-भारती पुरस्कार

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन

9. जैनेंद्र कुमार के प्रथम उपन्यास ‘परख’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1930 में
(B) सन् 1931 में
(C) सन् 1932 में
(D) सन् 1929 में
उत्तर:
(D) सन् 1929 में

10. जैनेंद्र कुमार का निधन किस वर्ष में हुआ?
(A) सन् 1990 में
(B) सन् 1991 में
(C) सन् 1988 में
(D) सन् 1992 में
उत्तर:
(A) सन् 1990 में

11. ‘कल्याणी’ उपन्यास का प्रकाशन कब हआ?
(A) सन् 1939 में
(B) सन् 1932 में
(C) सन् 1928 में
(D) सन् 1931 में
उत्तर:
(A) सन् 1939 में

12. ‘त्यागपत्र’ उपन्यास का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1936 में
(B) सन् 1938 में
(C) सन् 1937 में
(D) सन् 1941 में
उत्तर:
(C) सन् 1937 में

13. जैनेंद्र की रचना ‘मुक्तिबोध’ किस विधा की रचना है?
(A) कहानी
(B) नाटक
(C) उपन्यास
(D) एकांकी
उत्तर:
(C) उपन्यास

14. जैनेंद्र के उपन्यास ‘सुनीता’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1938 में
(B) सन् 1932 में
(C) सन् 1937 में
(D) सन् 1935 में
उत्तर:
(D) सन् 1935 में

15. ‘अनाम स्वामी’ किस विधा की रचना है?’
(A) निबंध
(B) नाटक
(C) उपन्यास
(D) कहानी
उत्तर:
(C) उपन्यास

16. ‘वातायन’ किस विधा की रचना है?
(A) कहानी-संग्रह
(B) उपन्यास
(C) निबंध-संग्रह
(D) एकांकी-संग्रह
उत्तर:
(A) कहानी-संग्रह

17. ‘नीलम देश की राजकन्या’ कहानी-संग्रह का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1931 में
(B) सन् 1933 में
(C) सन् 1935 में
(D) सन् 1936 में
उत्तर:
(B) सन् 1933 में

18. ‘प्रस्तुत प्रश्न निबंध संग्रह का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1932 में
(B) सन् 1936 में
(C) सन् 1933 में
(D) सन् 1934 में
उत्तर:
(B) सन् 1936 में

19. ‘पूर्वोदय’ निबंध-संग्रह का प्रकाशन किस वर्ष हुआ?
(A) सन् 1951 में
(B) सन् 1950 में
(C) सन् 1952 में
(D) सन् 1953 में
उत्तर:
(A) सन् 1951 में

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20. ‘विचार वल्लरी’ निबंध-संग्रह का प्रकाशन वर्ष कौन-सा है?
(A) सन् 1950
(B) सन् 1951
(C) सन् 1952
(D) सन् 1954
उत्तर:
(C) सन् 1952

21. ‘मंथन’ के रचयिता कौन हैं?
(A) धर्मवीर भारती
(B) महादेवी वर्मा
(C) फणीश्वर नाथ ‘रेणु’
(D) जैनेंद्र कुमार
उत्तर:
(D) जैनेंद्र कुमार

22. ‘मंथन’ किस विधा की रचना है?
(A) उपन्यास
(B) निबंध
(C) कहानी
(D) रेखाचित्र
उत्तर:
(B) निबंध

23. ‘मंथन’ का प्रकाशन किस वर्ष में हुआ?
(A) सन् 1953 में
(B) सन् 1952 में
(C) सन् 1954 में
(D) सन् 1955 में
उत्तर:
(A) सन् 1953 में

24. ‘जड़ की बात’ का प्रकाशन वर्ष है?
(A) 1936
(B) 1937
(C) 1945
(D) 1946
उत्तर:
(C) 1945

25. ‘साहित्य का श्रेय और प्रेय’ के रचयिता हैं-
(A) महादेवी वर्मा
(B) कुंवर नारायण
(C) जैनेंद्र कुमार
(D) धर्मवीर भारती
उत्तर:
(C) जैनेंद्र कुमार

26. साहित्य का श्रेय और प्रेय की रचना कब हुई?
(A) 1952 में
(B) 1953 में
(C) 1951 में
(D) 1954 में
उत्तर:
(B) 1953 में

27. ‘सोच-विचार’ के रचयिता हैं-
(A) जैनेंद्र कुमार
(B) धर्मवीर भारती
(C) रघुवीर सहाय
(D) शमशेर बहादुर सिंह
उत्तर:
(A) जैनेंद्र कुमार

28. संचय की तृष्णा और वैभव की चाह में व्यक्ति की कौन-सी विशेषता प्रभावित होती है?
(A) निर्बलता
(B) सबलता
(C) संपन्नता
(D) धनाढ्यता
उत्तर:
(A) निर्बलता

29. बाजार चौक में भगतजी क्या बेचते थे?
(A) मिठाई
(B) चूरन
(C) सब्जी
(D) फल
उत्तर:
(B) चूरन

30. लेखक ने चूरन वाले को ‘अकिंचित्कर’ कहा है, जिसका अर्थ है-
(A) ठग
(B) अर्थहीन
(C) व्यापारी
(D) भिखारी
उत्तर:
(B) अर्थहीन

31. चूरन बेचने वाले महानुभाव को लोग किस नाम से पुकारते थे?
(A) फेरीवाला
(B) चूरन वाला
(C) मनि राम
(D) भगत जी
उत्तर:
(D) भगत जी

32. ‘बाज़ार दर्शन’ का प्रतिपाद्य है
(A) बाज़ार के उपयोग का विवेचन
(B) बाज़ार से लाभ
(C) बाज़ार न जाने की सलाह
(D) बाज़ार जाने की सलाह
उत्तर:
(A) बाज़ार के उपयोग का विवेचन

33. लेखक का मित्र किसके साथ बाज़ार गया था?
(A) अपने पिता के साथ
(B) मित्र के साथ
(C) पत्नी के साथ
(D) अकेला
उत्तर:
(C) पत्नी के साथ

34. क्या फालतू सामान खरीदने के लिए पत्नी को दोष देना उचित है?
(A) हाँ
(B) नहीं
(C) कह नहीं सकता
(D) बाज़ार का दोष है
उत्तर:
(B) नहीं

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन

35. लेखक के अनुसार पैसा क्या है?
(A) पावर है
(B) हाथ की मैल है
(C) माया का रूप है
(D) पैसा व्यर्थ है
उत्तर:
(A) पावर है

36. जैनेन्द्र जी ने केवल बाजार का पोषण करने वाले अर्थशास्त्र को क्या बताया है?
(A) नीतिशास्त्र
(B) सुनीतिशास्त्र
(C) अनीतिशास्त्र
(D) अधोनीतिशास्त्र
उत्तर:
(C) अनीतिशास्त्र

37. हमें किस स्थिति में बाज़ार जाना चाहिए?
(A) जब मन खाली हो
(B) जब मन खाली न हो
(C) जब मन बंद हो
(D) जब मन में नकार हो
उत्तर:
(B) जब मन खाली न हो

38. बाज़ार किसे देखता है?
(A) लिंग को
(B) जाति को
(C) धर्म को
(D) क्रय-शक्ति को
उत्तर:
(D) क्रय-शक्ति को

39. ‘बाज़ारूपन’ से क्या अभिप्राय है?
(A) बाज़ार से सामान खरीदना
(B) बाज़ार से अनावश्यक वस्तुएँ खरीदना
(C) बाज़ार से आवश्यक वस्तुएँ खरीदना
(D) बाज़ार को सजाकर आकर्षक बनाना
उत्तर:
(B) बाज़ार से अनावश्यक वस्तुएँ खरीदना

40. बाजार में जादू को कौन-सी इन्द्रिय पकड़ती है?
(A) आँख
(B) नाक
(C) हाथ
(D) मुँह
उत्तर:
(A) आँख

41. ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर धन की ओर कौन झुकता है?
(A) निर्धन
(B) विवश
(C) निर्बल
(D) असहाय
उत्तर:
(C) निर्बल

42. फिजूल सामान को फिजूल समझने वाले लोगों को क्या कहा गया है?
(A) स्वाभिमानी
(B) खर्चीला
(C) मूर्ख
(D) संयमी
उत्तर:
(D) संयमी

43. जैनेन्द्र कुमार के मित्र ने बाजार को किसका जाल कहा है?
(A) शैतान का जाल
(B) जी का जंजाल
(C) आलवाल
(D) प्रणतपाल
उत्तर:
(A) शैतान का जाल

बाज़ार दर्शन प्रमुख गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

[1] उनका आशय था कि यह पत्नी की महिमा है। उस महिमा का मैं कायल हूँ। आदिकाल से इस विषय में पति से पत्नी की ही प्रमुखता प्रमाणित है। और यह व्यक्तित्व का प्रश्न नहीं, स्त्रीत्व का प्रश्न है। स्त्री माया न जोड़े, तो क्या मैं जोई? फिर भी सच सच है और वह यह कि इस बात में पत्नी की ओट ली जाती है। मूल में एक और तत्त्व की महिमा सविशेष है। वह तत्त्व है मनीबैग, अर्थात पैसे की गरमी या एनर्जी। [पृष्ठ-86]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाज़ार दर्शन’ लेखक का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें उन्होंने उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यह निबंध बाज़ार के आकर्षण तथा क्रय-विक्रय की शक्ति पर समुचित प्रकाश डालता है।

व्याख्या-लेखक का मित्र अपनी पत्नी के साथ बाजार से बहुत-सा सामान लेकर लौटा था। इस पर लेखक ने उससे कहा कि यह सब क्या है। इस पर मित्र ने उत्तर दिया कि उसकी पत्नी जो साथ थी, इसलिए उसे बहुत-सा सामान लाना पड़ा। लेखक का कहना है कि मित्र के कहने का भाव था कि यह पत्नी की महत्ता का परिणाम है। कोई भी व्यक्ति पत्नी के कहने को टाल नहीं सकता। लेखक भी पत्नी के महत्त्व को स्वीकार करने वाला है। प्राचीनकाल से ही इस विषय को लेकर पति की अपेक्षा पत्नी को अधिक महत्त्व दिया जाता है। इससे यह सिद्ध होता है कि घर का सामान खरीदने में पत्नी की बात ही सुनी जाती है।

इसमें किसी के महत्त्व का प्रश्न नहीं है, बल्कि नारी का प्रश्न है। घर-गृहस्थी में प्रायः पत्नी की ही चलती है। लेखक कहता है कि स्त्री यदि धन-संपत्ति नहीं जोड़ेगी तो लेखक अर्थात् पुरुष तो नहीं जोड़ सकता। यह एक कड़वी सच्चाई है। हर आदमी इस बात में पत्नी का ही सहारा लेता है। परंतु बाज़ार से सामान खरीदने के लिए एक अन्य तत्त्व का भी विशेष महत्त्व है और वह है-धन से भरा हुआ थैला। अन्य शब्दों में हम इसे पैसे की गरमी भी कह सकते हैं। भाव यह है कि जिसके पास पैसे की गरमी होगी, वह निश्चय से सामान खरीदने में अपनी पत्नी का सहयोग करेगा।

विशेष-

  1. इसमें लेखक ने पत्नी की महिमा का प्रतिपादन किया है। बाज़ार से सामान खरीदने में भी पत्नी की ही महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है।
  2. इसके साथ-साथ लेखक ने धन के महत्त्व पर भी प्रकाश डाला है, क्योंकि धन के कारण ही मनुष्य की क्रय-शक्ति बढ़ती है।
  3. यहाँ लेखक ने सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है जिसमें तत्सम शब्दों के अतिरिक्त उर्द (कायल) एवं अंग्रेजी (मनीबैग, एनर्जी) शब्दों का संदर मिश्रण किया है।
  4. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. विश्लेषणात्मक शैली का प्रयोग हुआ है।

गद्यांश ,पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) बाज़ार से सामान खरीदने पर पुरुष पत्नी के नाम का ही सहारा क्यों लेते हैं?
(ग) लेखक के अनुसार बाज़ार से अनचाही वस्तुएँ खरीदने का क्या कारण है?
(घ) आदिकाल से पति-पत्नी में से किसे अधिक महत्त्व दिया जाता है?
उत्तर:
(क) पाठ का नाम बाज़ार दर्शन, लेखक-जैनेंद्र कुमार

(ख) बाज़ार से सामान खरीदने पर पुरुष हमेशा सारा दोष पत्नियों के सिर मढ़ देते हैं और साथ में यह तर्क देते हैं कि स्त्री माया का रूप है। अतः उसका स्वभाव ही माया जोड़ना है।

(ग) बाज़ार से अनचाही वस्तुएँ खरीदने का मुख्य कारण मनीबैग है अर्थात जिसके पास धन की शक्ति होती है वही व्यक्ति बाज़ार से चाही-अनचाही वस्तुएँ खरीदकर लाता है।

(घ) आदिकाल से सामान खरीदने के बारे में पति की अपेक्षा पत्नी को ही अधिक महत्त्व दिया जाता है। चाहे पुरुष बाज़ार से अनचाहा सामान खरीदकर लाए, परंतु वह सारा दोष पत्नी को ही देता है।

[2] पैसा पावर है। पर उसके सबूत में आस-पास माल-टाल न जमा हो तो क्या वह खाक पावर है! पैसे को देखने के लिए बैंक-हिसाब देखिए, पर माल-असबाब मकान-कोठी तो अनदेखे भी दीखते हैं। पैसे की उस ‘पर्चेजिंग पावर’ के प्रयोग में ही पावर का रस है। लेकिन नहीं। लोग संयमी भी होते हैं। वे फिजूल सामान को फिजूल समझते हैं। वे पैसा बहाते नहीं हैं और बुद्धिमान होते हैं। बुद्धि और संयमपूर्वक वह पैसे को जोड़ते जाते हैं, जोड़ते जाते हैं। वह पैसे की पावर को इतना निश्चय समझते हैं कि उसके प्रयोग की परीक्षा उन्हें दरकार नहीं है। बस खुद पैसे के जुड़ा होने पर उनका मन गर्व से भरा फूला रहता है। [पृष्ठ-86]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके लेखक सद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाजार दर्शन’ लेखक का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें उन्होंने उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यह निबंध बाज़ार के आकर्षण तथा क्रय-विक्रय की शक्ति पर समुचित प्रकाश डालता है। यहाँ लेखक पैसे की शक्ति पर प्रकाश डालता हुआ कहता है कि

व्याख्या-पैसा निश्चय से ही एक शक्ति है, परंतु वह शक्ति तभी दिखाई दे सकती है जब उसके परिणामस्वरूप घर में काफी सारा सामान एकत्रित किया गया हो! क्योंकि सामान के बिना पैसे की शक्ति का कोई महत्त्व नहीं है, क्योंकि किसी के पास पैसा है अथवा नहीं, यह उसके बैंक के हिसाब-किताब से जाना जा सकता है जो कि लोगों के लिए संभव नहीं है। यदि किसी के पास बहुत बड़ा मकान, आलीशान कोठी और घर में तरह-तरह का सामान होगा, कार होगी, तो बिना देखे ही उसका पैसा दिखाई देगा। लेखक कहता है कि यदि कोई पैसे की क्रय-शक्ति का प्रयोग करता है तो पैसे के प्रयोग में पैसे की शक्ति का आनंद लिया जा सकता है।

परंतु कुछ लोग ऐसे नहीं होते। वे संयम और नियम से काम लेते हैं। बेकार सामान को वे बेकार समझकर नहीं खरीदते। उसे खरीदना वे फिजूलखर्ची मानते हैं। वे पैसे को व्यर्थ में नष्ट नहीं करते। इसीलिए ऐसे लोग समझदार कहे जाते हैं। वे अपनी बुद्धि का प्रयोग करके और किफायत करते हुए धन का संग्रह करते हैं और इस प्रकार धन को जोड़ते हुए चले जाते हैं। उन्हें पैसे की शक्ति पर पूरा भरोसा होता है। परंतु वे पैसे के प्रयोग की कभी भी जाँच नहीं करते। केवल धन का संग्रह होने के कारण ही उनके मन में अभिमान भरा रहता है। वे गर्व के कारण फूले नहीं समाते। ऐसे लोग केवल धन का संग्रह करते हैं, उसे खर्च नहीं करते।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने स्पष्ट किया है कि पैसे की सार्थकता उसकी क्रय-शक्ति में निवास करती है। एक धनवान व्यक्ति के धनी होने का पता हमें उसके घर, मकान तथा उसके कीमती सामान को देखकर चलता है, न बैंक में रखे पैसे को देखकर।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है, जिसमें तत्सम, तद्भव, उर्दू (खाक, माल, असबाब, फिजूल) तथा अंग्रेज़ी (पर्चेजिंग पावर, बैंक) शब्दों का सुंदर मिश्रण हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. विश्लेषणात्मक तथा विवेचनात्मक शैलियों का सफल प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) पैसे को पावर कहने का क्या आशय है?
(ख) लोग पैसे की पावर का प्रयोग किस प्रकार करते हैं?
(ग) यहाँ ”संयमी’ किन लोगों को कहा गया है?
(घ) किन लोगों का मन गर्व से फूला हुआ रहता है?
उत्तर:
(क) पैसे को पावर कहने का आशय यह है कि धन ही मनुष्य की शक्ति का प्रतीक है। धन के द्वारा वह अनेक प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त कर सकता है और स्वयं को औरों से अधिक ताकतवर सिद्ध कर सकता है। धन से ही मनुष्य की क्रय-शक्ति बढ़ जाती है।

(ख) लोग पैसे की पावर का प्रयोग घर का सामान, बंगला, कोठी, कार आदि खरीदकर करते हैं। वे अन्य लोगों को अपनी क्रय-शक्ति दिखाकर अपने शक्तिशाली होने का प्रमाण देते हैं।

(ग) यहाँ ‘संयमी’ शब्द का प्रयोग उन लोगों के लिए किया गया है जो पैसे को खर्च नहीं करते। वस्तुतः इस शब्द में करारा व्यंग्य छिपा हुआ है। कंजूस लोग धन का संग्रह करके स्वयं को बुद्धिमान सिद्ध करते हैं। अतः यहाँ लेखक ने कंजूस अमीरों पर करारा व्यंग्य किया है।

(घ) अमीर लोगों का मन इकट्ठे किए गए धन के कारण गर्व से फूला हुआ रहता है। वे धन को खर्च करना नहीं जानते।

[3] मैंने मन में कहा, ठीक। बाज़ार आमंत्रित करता है कि आओ मुझे लूटो और लूटो। सब भूल जाओ, मुझे देखो। मेरा रूप और किसके लिए है? मैं तुम्हारे लिए हूँ। नहीं कुछ चाहते हो, तो भी देखने में क्या हरज़ है। अजी आओ भी। इस आमंत्रण में यह खूबी है कि आग्रह नहीं है आग्रह तिरस्कार जगाता है। लेकिन ऊँचे बाज़ार का आमंत्रण मूक होता है और उससे चाह जगती है। चाह मतलब अभाव। चौक बाज़ार में खड़े होकर आदमी को लगने लगता है कि उसके अपने पास काफी नहीं है और चाहिए, और चाहिए। मेरे यहाँ कितना परिमित है और यहाँ कितना अतुलित है ओह! [पृष्ठ-87]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाज़ार दर्शन’ लेखक का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें उन्होंने उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यह निबंध बाज़ार के आकर्षण तथा क्रय-विक्रय की शक्ति पर समुचित प्रकाश डालता है। यहाँ लेखक ने बाज़ार की प्रवृत्ति पर समुचित प्रकाश डाला है।

व्याख्या-इससे पूर्व लेखक का मित्र कहता है कि बाज़ार तो शैतान का जाल है, जिसमें सजा-सजाकर सामान रखा जाता है। इसलिए भोले-भाले लोग उसके जाल में फंस जाते हैं। इस पर लेखक मन-ही-मन सोचता है कि यह तो सर्वथा उचित है। बाजार मनुष्य को अपने प्रति आकर्षित करता है। मानों वह कहता है कि यहाँ आओ। मुझे आकर लूट लो। अन्य सब बातों को भूल जाओ और मेरी तरफ देखो, मैं जो यहाँ सजधज कर तैयार खड़ा हूँ किसी और के लिए नहीं अपितु तुम्हारे लिए खड़ा हूँ। यदि तुम कुछ भी खरीदना नहीं चाहते तो न खरीदो, परंतु मुझे देखने में क्या बुराई है। मेरे पास आओ और मुझे अच्छी तरह से देखो।

बाजार द्वारा दिया गया यह आमंत्रण विशेष प्रकार का है। यह आमंत्रण ऐसा है जिसमें कोई खुशामद नहीं है, क्योंकि खुशामद के कारण मनुष्य में अपमान की भावना उत्पन्न होती है। जो जितना बड़ा होता है, उसका आमंत्रण भी मौन रूप से होता है जिससे ग्राहक में सामान खरीदने की इच्छा पैदा होती है। इच्छा से अभिप्राय मनुष्य में किसी-न-किसी चीज की कमी है। जब मनुष्य बाज़ार में खड़ा हो जाता है तो उसे यह लगने लगता है कि उसके पास पर्याप्त मात्रा में सामान नहीं है। उसे और अधिक सामान खरीदना चाहिए। यह चाहत वस्तुएं खरीदने के लिए मजबूर करती है। वह सोचता है कि उसके पास सीमित साधन हैं जबकि बाज़ार में असंख्य और अनेक वस्तुएँ पड़ी हैं। इसलिए उसे अधिकाधिक वस्तुएँ खरीदनी चाहिएँ।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने बाज़ार की महिमा पर समुचित प्रकाश डाला है जो कि ग्राहक को स्वतः अपनी ओर आकर्षित कर लेती है।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है, जिसमें तत्सम, तद्भव, उर्दू (हर्ज, खूबी) आदि शब्दों का सुंदर मिश्रण हुआ है।
  3. छोटे-छोटे वाक्यों के कारण भाव स्वतः स्पष्ट होने लगता है।
  4. आत्मकथात्मक शैली द्वारा लेखक ने बाज़ार के आकर्षण पर समुचित प्रकाश डाला है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) बाज़ार में माल देखने के लिए आमंत्रण क्यों दिया जाता है?
(ख) कौन-सा आमंत्रण ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करता है और क्यों?
(ग) बाज़ार का चौक लोगों में किस प्रकार की भावना उत्पन्न करता है?
(घ) ग्राहक यह क्यों सोचने लगता है कि उसके पास कितना परिमित है और कितना अतुलित है?
उत्तर:
(क) बाज़ार में माल देखने के लिए आमंत्रण इसलिए दिया जाता है ताकि देखने वाले के मन में वस्तुएँ खरीदने की लालसा जागृत हो और वह बिना आवश्यकता के भी सामान खरीदने लग जाए।

(ख) बाज़ार का मौन-मूक आमंत्रण ही ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। बाज़ार किसी को आवाज़ देकर अपने पास नहीं बुलाता। वस्तुतः बाज़ार की आकर्षक वस्तुएँ ही ग्राहक को यह सोचने को मजबूर कर देती हैं कि वह भी बाज़ार से कुछ-न-कुछ खरीद कर अवश्य ले जाए।

(ग) बाज़ार का चौक लोगों में वस्तुएँ खरीदने की कामना को जागृत करता है। लोग उन वस्तुओं को भी खरीद लेते हैं जिनकी उन्हें आवश्यकता नहीं होती।

(घ) बाज़ार में वस्तुओं के भंडार को देखकर ग्राहक को लगता है कि उसके घर में बहुत कम वस्तुएँ हैं जबकि यहाँ तो असीमित और अपार सामान सजा है। अतः उसे भी यहाँ से और वस्तुएँ खरीद लेनी चाहिए।

[4] बाज़ार में एक जादू है। वह जादू आँख की राह काम करता है। वह रूप का जादू है पर जैसे चुंबक का जादू लोहे पर ही चलता है, वैसे ही इस जादू की भी मर्यादा है। जेब भरी हो, और मन खाली हो, ऐसी हालत में जादू का असर खूब होता है। जेब खाली पर मन भरा न हो, तो भी जादू चल जाएगा। मन खाली है तो बाज़ार की अनेकानेक चीजों का निमंत्रण उस तक पहुँच जाएगा। कहीं हुई उस वक्त जेब भरी तब तो फिर वह मन किसकी मानने वाला है! मालूम होता है यह भी लूँ, वह भी लूँ। सभी सामान ज़रूरी और आराम को बढ़ाने वाला मालूम होता है। पर यह सब जादू का असर है। जादू की सवारी उतरी कि पता चलता है कि फैंसी चीज़ों की बहुतायत आराम में मदद नहीं देती, बल्कि खलल ही डालती है। थोड़ी देर को स्वाभिमान को ज़रूर सेंक मिल जाता है पर इससे अभिमान की गिल्टी की और खुराक ही मिलती है। जकड़ रेशमी डोरी की हो तो रेशम के स्पर्श के मुलायम के कारण क्या वह कम जकड़ होगी? [पृष्ठ-88]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाज़ार दर्शन’ लेखक का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें उन्होंने उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यह निबंध बाज़ार के आकर्षण तथा क्रय-विक्रय की शक्ति पर समुचित प्रकाश डालता है। यहाँ लेखक ने स्पष्ट किया है कि बाज़ार में एक ऐसा जादू होता है जो ग्राहक को तत्काल मोहित कर लेता है।

व्याख्या-लेखक का कथन है कि बाजार की सजधज में एक ऐसा जादू है जो देखने वाले की आँखों के माध्यम से अपना प्रभाव छोड़ जाता है। वस्तुतः उसका जादू नई-नई वस्तुओं के सुंदर रूप पर निर्भर करता है। जिस प्रकार चुंबक का जादू केवल लोहे पर ही चलता है, ईंट व पत्थर पर नहीं, उसी प्रकार बाज़ार के जादू की एक सीमा होती है। यदि किसी व्यक्ति के पास बहुत सारा पैसा हो, परंतु उनका मन पूर्णतः खाली हो तो ऐसे लोगों पर बाज़ार के जादू का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। इसी प्रकार अगर किसी के पास पैसे नहीं हैं और उसके मन में वस्तुएँ खरीदने की इच्छाएँ हों तो उस पर भी बाज़ार का आकर्षण कारगर सिद्ध होता है। यदि किसी व्यक्ति के पास धन का अभाव है परंतु उसके मन में इच्छा है तो बाज़ार की सजी असंख्य वस्तुओं का आकर्षण उसे अपनी ओर आकर्षित कर लेता है।

भाव यह है कि व्यक्ति कहीं से भी उधार लेकर वस्तुएँ खरीदने में नहीं हिचकिचाएगा, परंतु यदि दुर्भाग्य से किसी ग्राहक के पास काफी सारे पैसे हों, तब उसका मन किसी की बात को नहीं सुनता। तब उस व्यक्ति का मन यह अनुभव करता है जो कुछ बाज़ार में है, मैं सब कुछ खरीद लूँ। मुझे बाज़ार की सभी वस्तुओं की इच्छा है। वह सोचता है कि बाज़ार की ये सब वस्तुएँ मेरे लिए आरामदायक सिद्ध होंगी, बाज़ार के जादू के प्रभाव के कारण मनुष्य ऐसे सोचने लगता है, जैसे ही बाज़ार का जादू अर्थात् आकर्षण उसके मन से उतर जाता है वैसे ही उसे यह महसूस होता है कि ये सब वस्तुएँ तो उसके लिए बेकार हैं। इन वस्तुओं की अधिकता उसे आराम देने में सहायक सिद्ध नहीं होगी, बल्कि उसके जीवन में बाधा उत्पन्न करेंगी। तब व्यक्ति में बाज़ार के आकर्षण के प्रति अपकर्षण उत्पन्न हो जाता है और वह सोचने लगता है कि मैंने ये वस्तुएँ व्यर्थ में ही खरीद ली हैं। मुझे तो उनकी आवश्यकता ही नहीं थी।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि बाज़ार का जादू भले ही आकर्षक होता है, परंतु उसका आकर्षण क्षणिक होता है।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है जिसमें हिंदी के तत्सम, तद्भव तथा उर्दू (बाज़ार, जादू, राह, असर, वक्त, जरूरी, सवारी, खलल) आदि शब्दों का सुंदर मिश्रण हुआ है।
  3. छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग भावाभिव्यक्ति में सफल रहा है।
  4. विवेचनात्मक शैली के प्रयोग से निबंध की भाषा में निखार आ गया है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) बाज़ार का जादू ‘रूप का जादू’ कैसे है?
(ख) ‘जेब भरी हो, और मन खाली हो’ का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
(ग) बाज़ार का जादू किस प्रकार के व्यक्तियों को प्रभावित करता है?
(घ) बाज़ार के जादू का असर खत्म होने पर क्या अनुभव होने लगता है?
उत्तर:
(क) बाज़ार में अनेक प्रकार की वस्तुओं को सजा-सजा कर प्रस्तुत किया जाता है। ग्राहक नई-नई वस्तुओं के सुंदर रूप को देखकर धोखा खा जाता है और उनके मन में वस्तुओं को खरीदने की इच्छा उत्पन्न होने लगती है।

(ख) जब व्यक्ति के मन में बाज़ार से कुछ भी खरीदने की इच्छा नहीं होती, तब उसके मन को खाली कहा जाता है, परंतु यदि उसके पास बहुत सारे पैसे होते हैं तो लोग अपने धन की शक्ति को दिखाने के लिए वस्तुओं का क्रय करते हैं। अतः जेब भरी होने का अर्थ है-बहुत सारा धन होना और मन खाली का अर्थ है कि कोई निश्चित सामान खरीदने की इच्छा न होना।

(ग) बाज़ार का जादू केवल उन व्यक्तियों को प्रभावित करता है जिनके पास पैसे की भरमार होती है, लेकिन मन में कोई वस्तु खरीदने की लालसा नहीं होती, परंतु बाज़ार की सजी-धजी वस्तुएँ ऐसे लोगों को अनावश्यक वस्तुएँ खरीदने के लिए मजबूर कर देती हैं।

(घ) जब बाज़ार के आकर्षण का प्रभाव समाप्त हो जाता है तब ग्राहक यह अनुभव करने लगता है कि जो लुभावनी वस्तुएँ उसने आराम के लिए खरीदी थीं, वे तो उसके किसी काम की नहीं हैं। वे आराम देने की बजाए उसके जीवन में बाधा उत्पन्न कर रही हैं और उसके मन की शांति को भंग कर रही हैं।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन

[5] पर उस जादू की जकड़ से बचने का एक सीधा-सा उपाय है। वह यह कि बाजार जाओ तो खाली मन न हो मन खाली हो, तब बाज़ार न जाओ। कहते हैं लू में जाना हो तो पानी पीकर जाना चाहिए। पानी भीतर हो, लू का लूपन व्यर्थ हो जाता है। मन लक्ष्य में भरा हो तो बाज़ार भी फैला-का-फैला ही रह जाएगा। तब वह घाव बिलकुल नहीं दे सकेगा, बल्कि कुछ आनंद ही देगा। तब बाज़ार तुमसे कृतार्थ होगा, क्योंकि तुम कुछ-न-कुछ सच्चा लाभ उसे दोगे। बाज़ार की असली कृतार्थता है। आवश्यकता के समय काम आना। [पृष्ठ-88]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाज़ार दर्शन’ लेखक का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें उन्होंने उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यह निबंध बाज़ार के आकर्षण तथा क्रय-विक्रय की शक्ति पर समुचित प्रकाश डालता है। यहाँ लेखक बाज़ार के जादू से बचने का एक श्रेष्ठ उपाय बताता है कि जब भी हम बाज़ार जाएँ, उस समय हमारा मन खाली नहीं होना चाहिए।

ख्या-जब भी बाजार जाना हो तो हमारे मन में किसी प्रकार का भटकाव एवं भ्रम नहीं होना चाहिए, बल्कि हमें एक निश्चित वस्तु का लक्ष्य रखकर ही बाज़ार जाना चाहिए। बाज़ार के जादू से बचने का सीधा-सरल उपाय यही है। यदि तुम्हारे मन में कोई वस्तु खरीदने का लक्ष्य न हो तो बाज़ार मत जाओ। लेखक एक उदाहरण देता हुआ कहता है कि लू से बचने का एक ही उपाय है कि पानी पीकर ही लू में बाहर जाना चाहिए। यदि शरीर में पानी होगा तो लू शरीर को किसी भी प्रकार से प्रभावित नहीं कर पाएगी। अतः यदि हमारे मन में किसी वस्तु को खरीदने का लक्ष्य है तो बाज़ार की व्यापकता और आकर्षण हमारे लिए किसी काम का नहीं रहेगा, वह हमें कोई पीड़ा नहीं दे सकेगा, बल्कि हम आनन्दपूर्वक बाज़ार का दर्शन कर सकेंगे। दूसरी ओर बाज़ार भी तुम्हारे प्रति कृतज्ञता का भाव रखेगा, क्योंकि तुमने उसे थोड़ा-बहुत सही लाभ पहुंचाया है। बाज़ार का सबसे बड़ा लाभ यह है कि वह आवश्यकता पड़ने पर हमारे काम आता है।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने बाज़ार के प्रभाव से बचने का एक सरल उपाय यह बताया है कि हमें मन में कोई निश्चित वस्तु खरीदने का लक्ष्य रखकर ही बाज़ार में जाना चाहिए, तभी हम बाज़ार के जादू से बच सकेंगे।
  2. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. विवेचनात्मक शैली के प्रयोग के कारण भाव पूरी तरह स्पष्ट हुए हैं।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) बाज़ार के जादू की जकड़ से बचने का सीधा उपाय क्या है?
(ख) लू में जाते समय हम पानी पीकर क्यों जाते हैं?
(ग) बाज़ार की सार्थकता किसमें है?
(घ) मन में लक्ष्य रखने का तात्पर्य क्या है?
(ङ) बाज़ार हमें किस स्थिति में आनंद प्रदान करता है?
उत्तर:
(क) बाज़ार के जादू से बचने का सीधा एवं सरल उपाय यह है कि हमें खाली मन के साथ बाज़ार नहीं जाना चाहिए, बल्कि किसी वस्तु को खरीदने का लक्ष्य रखकर ही बाज़ार जाना चाहिए।

(ख) हम लू में पानी पीकर इसलिए घर से बाहर जाते हैं ताकि हमारे शरीर में पानी हो। यदि हमारे शरीर में पानी होगा तो लू हमें किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँचा सकेगी।

(ग) बाज़ार की सार्थकता ग्राहकों की आवश्यकताएँ पूरी करने में है। जब ग्राहकों को अपनी ज़रूरत की वस्तुएँ बाजार से मिल जाती हैं तो बाज़ार अपनी सार्थकता को सिद्ध कर देता है।

(घ) मन में लक्ष्य भरने का तात्पर्य यह है कि उपभोक्ता बाज़ार जाते समय किसी निश्चित वस्तु को खरीदने का लक्ष्य बनाकर ही बाज़ार में जाए। यदि वह बिना लक्ष्य के बाज़ार जाएगा तो वह निश्चित रूप से बाज़ार से अनावश्यक वस्तुएँ खरीदकर ले आएगा, जो बाद में उसकी अशांति का कारण बनेंगी।

(ङ) जब उपभोक्ता बाज़ार से व्यर्थ की वस्तुएँ खरीदने की बजाय केवल अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ खरीदता है तो बाज़ार उसे आनंद प्रदान करने लगता है इससे बाज़ार भी कृतार्थ हो जाता है।

[6] यहाँ एक अंतर चीन्ह लेना बहुत ज़रूरी है। मन खाली नहीं रहना चाहिए, इसका मतलब यह नहीं है कि वह मन बंद रहना चाहिए। जो बंद हो जाएगा, वह शून्य हो जाएगा। शून्य होने का अधिकार बस परमात्मा का है जो सनातन भाव से संपूर्ण है। शेष सब अपूर्ण है। इससे मन बंद नहीं रह सकता। सब इच्छाओं का निरोध कर लोगे, यह झूठ है और अगर ‘इच्छानिरोधस्तपः’ का ऐसा ही नकारात्मक अर्थ हो तो वह तप झूठ है। वैसे तप की राह रेगिस्तान को जाती होगी, मोक्ष की राह वह नहीं है। [पृष्ठ-88-89]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाज़ार दर्शन’ लेखक का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें उन्होंने उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यह निबंध बाज़ार के आकर्षण तथा क्रय-विक्रय की शक्ति पर समुचित प्रकाश डालता है। यहाँ लेखक ने मन के खाली होने तथा बंद होने के अंतर को स्पष्ट करने का प्रयास किया है।

व्याख्या-लेखक का कथन है कि हमें इस अंतर को भली प्रकार से पहचान लेना चाहिए कि हमारा मन खाली है अथवा भरा हुआ है। मन को खाली रखने का मतलब यह नहीं है कि हम अपने मन को पूर्णतः बंद कर दें अर्थात् हम मन में सोचना ही बंद कर दें। यदि हमारा मन चिंतनहीन हो जाएगा तो वह निश्चय से शून्य हो जाएगा। इसका अर्थ है मन का मर जाना और उसकी इच्छाएँ समाप्त हो जाना। इस स्थिति पर अधिकार प्राप्त करने का अधिकार केवल ईश्वर को है, जो कि अपने अन्दर सनातन भाव को लिए है। ईश्वर के अतिरिक्त संपूर्ण सृष्टि अधूरी है, पूर्ण नहीं है, क्योंकि संपूर्णता केवल परमात्मा के पास है। इसलिए हमारा मन इच्छाओं से रहित नहीं हो सकता। यह कहना सरासर झूठ है कि कोई व्यक्ति सभी इच्छाओं को त्याग सकता है और यह कहना भी गलत है कि इच्छाओं का निरोध ही तपस्या है। यदि कोई इस प्रकार के नकारात्मक अर्थ को स्वीकार करके उसे तपस्या का नाम देता है, वह भी सरासर झूठ है। लेखक के अनुसार तपस्या का मार्ग रेगिस्तान के समान व्यर्थ और बेकार है। वह मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग नहीं है। आनंद पूर्ण साधना यही है कि मानव संसार में रहते हुए उसके बंधनों से बचने का प्रयास करे।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने यह कहने का प्रयास किया है कि मन को मारने की कोई आवश्यकता नहीं है। मन में इच्छाएँ तो होनी ही चाहिएँ।
  2. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है जिसमें ‘इच्छानिरोधस्तपः’ संस्कृत की सूक्ति का सफल प्रयोग किया गया है।
  3. वाक्य-विन्यास भावाभिव्यक्ति में पूरी तरह सहायक है।
  4. गंभीर विवेचनात्मक शैली का सफल प्रयोग किया गया है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) मन के खाली होने तथा बंद होने में क्या अंतर है?
(ख) लेखक ने ईश्वर और मानव की प्रकृति में क्या अंतर बताया है?
(ग) लेखक ने किस प्रवृत्ति को नकारात्मक कहा है?
(घ) लेखक ने तप के रास्ते को रेगिस्तान का गंतव्य क्यों कहा है? इसके पीछे कौन-सा व्यंग्य छिपा है?
उत्तर:
(क) मन के खाली होने का अर्थ है- मन में कोई निश्चित लक्ष्य अथवा कोई विशेष इच्छा न होना। दूसरी ओर मन के बंद होने का आशय है कि मन की सभी इच्छाओं का समाप्त हो जाना अर्थात् मर जाना। ये दोनों स्थितियाँ एक-दूसरे के विपरीत हैं।

(ख) ईश्वर और मानव की प्रकृति में मुख्य अंतर यह है कि ईश्वर अपने आप में संपूर्ण है। उसकी कोई भी इच्छा शेष नहीं है, परंतु मानव हमेशा अपूर्ण होता है। उसमें हमेशा इच्छाएँ उत्पन्न होती रहती हैं तथा नष्ट होती रहती हैं।

(ग) लेखक के अनुसार मानव द्वारा अपनी सब इच्छाओं पर नियंत्रण पा लेना ही नकारात्मक प्रवृत्ति है। जो लोग मन को मारने की प्रवृत्ति को तपस्या का नाम देते हैं, वे सर्वथा झूठ का आश्रय लेते हैं। कोई भी मनुष्य अपने मन की सब इच्छाओं पर काबू नहीं पा सकता।

(घ) तप का रास्ता एक सारहीन और व्यर्थ का रास्ता है। जो लोग यह समझते हैं कि इच्छाओं को मारकर ही तप किया जा सकता है, वे झूठ बोलते हैं। वस्तुतः संसार में रहकर उसके बंधनों से बचने का प्रयास करना ही मोक्ष है। जो कि आनंदपूर्वक साधना कही जा सकती है। रेगिस्तान की राह द्वारा लेखक यह व्यंग्य करता है कि सभी इच्छाओं को समाप्त करना संभव नहीं है। यह तो रेगिस्तान के मार्ग की तरह शुष्क तथा बेकार का परिश्रम है।

  1. [7] ठाठ देकर मन को बंद कर रखना जड़ता है। लोभ का यह जीतना नहीं है कि जहाँ लोभ होता है, यानी मन में, वहाँ नकार हो! यह तो लोभ की ही जीत है और आदमी की हार। आँख अपनी फोड़ डाली, तब लोभनीय के दर्शन से बचे तो क्या हुआ? ऐसे क्या लोभ मिट जाएगा? और कौन कहता है कि आँख फूटने पर रूप दीखना बंद हो जाएगा? क्या आँख बंद करके ही हम सपने नहीं लेते हैं? और वे सपने क्या चैन-भंग नहीं करते हैं? इससे मन को बंद कर डालने की कोशिश तो अच्छी नहीं। वह अकारथ है यह तो हठवाला योग है। शायद हठ-ही-हठ है, योग नहीं है। इससे मन कृश भले हो जाए और पीला और अशक्त जैसे विद्वान का ज्ञान। वह मुक्त ऐसे नहीं होता। इससे वह व्यापक की जगह संकीर्ण और विराट की जगह क्षुद्र होता है। इसलिए उसका रोम-रोम मूंदकर बंद तो मन को करना नहीं चाहिए। वह मन पूर्ण कब है? हम में पूर्णता होती तो परमात्मा से अभिन्न हम महाशून्य ही न होते? अपूर्ण हैं, इसी से हम हैं। सच्चा ज्ञान सदा इसी अपूर्णता के बोध को हम में गहरा करता है। सच्चा कर्म सदा इस अपूर्णता की स्वीकृति के साथ होता है। [पृष्ठ-89]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके नेर हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाज़ार दर्शन’ लेखक का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें उन्होंन उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यह निबंध बाज़ार के आकर्षण तथा क्रय-विक्रय की शक्ति पर समुचित प्रकाश डालता है। यहाँ लेखक स्पष्ट करता है कि मन की सभी इच्छाओं एवं उमंगों को मार डालना निर्जीवता है। इस संदर्भ में लेखक कहता है कि

व्याख्या-सुख-सुविधाएँ प्रदान करके मन को शांत रखना निर्जीवता ही कही जाएगी। ऐसा करके हम लोभ पर विजय प्राप्त नहीं करते। यदि हमारे मन में लोभ है तो हमारा दृष्टिकोण नकारात्मक हो जाएगा। जिस मन में लोभ पैदा होता है यदि हम उसे पूरी तरह बंद कर दें तो निश्चय से यह मनुष्य की हार कही जाएगी। यदि कोई व्यक्ति अपनी आँखों को ही नष्ट कर देगा और सोचेगा कि वह लोभ को प्रेरणा देने वाली वस्तु को देखने से बच जाएगा तो उसकी यह सोच व्यर्थ कही जाएगी। इससे तो उसकी अपनी हानि होगी। इस प्रकार से लोभ-लालच को मिटाया नहीं जा सकता। यह कहना सर्वथा अनुचित है कि आँखें नष्ट करने से सुंदर रूप दिखाई देना बंद हो जाएगा। इस तथ्य से सभी लोग परिचित हैं कि हम सभी आँखें बंद करके ही सपने लेते हैं। उनमें अनेक सपने ऐसे होते हैं जो हमारी सुख-शांति को भंग करते हैं और हमें आराम से नहीं बैठने देते। इसलिए मन को बंद करने की ऐसी कोशिश करना व्यर्थ ही कहा जाएगा। यह एक बेकार का कार्य है। इसे हम योग नहीं कह सकते, केवल हठ ही कह सकते हैं।

इससे हमारा मन उसी प्रकार शक्तिहीन तथा कमजोर होता है जैसे किसी विद्वान का ज्ञान शक्तिहीन या कमज़ोर होना। इससे मुक्ति नहीं मिलती। मन को बंद करने से मनुष्य की व्यापकता तथा विराटता समाप्त हो जाती है तथा क्षुद्रता एवं संकीर्णता उत्पन्न होती है। इसलिए लेखक का विचार है कि हमें मन की इच्छाओं को मारना नहीं चाहिए। इससे हमारा मन कभी भी पूर्ण नहीं बन सकता। यदि हमारे अन्दर पूर्णता होती तो हम परमात्मा से कभी अलग न होते। यह अपूर्णता ही हमारे जीवन का सबसे बड़ा आधार है। इसी के कारण हमारा अस्तित्व बना हुआ है। सच्चा ज्ञान वही है जो हमारी इस अपूर्णता के ज्ञान को और अधिक गहरा बनाता है। जब हम अपनी इस अपूर्णता को स्वीकार कर लेते हैं तो हम सच्चा कर्म करने में सक्षम होते हैं। अतः यह सोचना ही व्यर्थ है कि हम अपने मन को मारकर ईश्वर के समान पूर्ण हो जाएँगे।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने इस बात पर बल दिया है कि मनुष्य को अपने मन की इच्छाओं को समाप्त नहीं करना चाहिए। इसीलिए लेखक कहता है कि सच्चा ज्ञान अपूर्णता के बोध में है।
  2. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. गंभीर विवेचनात्मक शैली का सफल प्रयोग है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) लेखक मन को बंद रखने के विरुद्ध क्यों है?
(ख) किस स्थिति में लोभ की जीत और आदमी की हार होती है?
(ग) आँख फोड़ डालने के पीछे क्या व्यंग्य छिपा है?
(घ) आँख फोड़ डालने पर भी मनुष्य बेचैन तथा व्याकुल क्यों रहता है?
(ङ) लेखक ने किसे हठ योग कहा है?
(च) लेखक के अनुसार सच्चा ज्ञान क्या है?
उत्तर:
(क) लेखक का विचार है कि मन को बंद रखना अर्थात् मन की सभी इच्छाओं को समाप्त कर देना किसी भी स्थिति में उचित नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इच्छाओं को मार डालने से हमारा मन ही जड़ हो जाएगा और उर गतिशीलता नष्ट हो जाएगी।

(ख) जब मनुष्य अपने उस मन को पूरी तरह बंद कर देता है जिसमें लोभ उत्पन्न होता है तो उस स्थिति में लोभ की विजय होती है और आदमी की हार होती है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि मनुष्य ने लोभ से डर कर अपने मन के द्वार बंद कर दिए हैं। उसमें लोभ से संघर्ष करने की शक्ति नहीं रही।

(ग) ‘आँख फोड़ डालने’ का व्यंग्य यह है कि संसार की गतिविधियों को अनदेखा करना और उसकी ओर से मन को हटा लेना और मन में यह निर्णय ले लेना कि वह संसार के आकर्षणों की ओर ध्यान नहीं देगा।

(घ) जब मनुष्य संसार की सारी गतिविधियों को अनदेखा करने लगता है तब भी उसके मन में अनेक प्रकार के सपने बनते-बिगड़ते रहते हैं। अतः मनुष्य अपने उन सपनों के बारे में सोचता हुआ हमेशा बेचैन ही रहता है और उसके मन को शांति नहीं मिलती।

(ङ) संसार की सभी इच्छाओं, स्वादों और आनंदों का निषेध करना ही हठ योग कहलाता है। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि जब मनुष्य अपने मन में यह हठ कर लेता है कि वह संसार की गतिविधियों की ओर ध्यान नहीं देगा और अपनी इच्छाओं को मार लेगा, तभी वह हठ योग की ओर अग्रसर होने लगता है।

(च) लेखक के अनुसार सच्चा ज्ञान वही है जो हमें हमारी अपूर्णता का बोध कराता है। इस प्रकार के ज्ञान से हम पूर्णता प्राप्त करने के लिए प्रेरित होते हैं और कर्म करने लगते हैं।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन

[8] क्या जाने उस भोले आदमी को अक्षर-ज्ञान तक भी है या नहीं। और बड़ी बातें तो उसे मालूम क्या होंगी। और हम-आप न जाने कितनी बड़ी-बड़ी बातें जानते हैं। इससे यह तो हो सकता है कि वह चूरन वाला भगत हम लोगों के सामने एकदम नाचीज़ आदमी हो। लेकिन आप पाठकों की विद्वान श्रेणी का सदस्य होकर भी , मैं यह स्वीकार नहीं करना चाहता हूँ कि उस अपदार्थ प्राणी को वह प्राप्त है जो हम में से बहुत कम को शायद प्राप्त है। उस पर बाजार का जादू वार नहीं कर पाता। माल बिछा रहता है, और उसका मन अडिग र पैसा उससे आगे होकर भीख तक माँगता है कि मुझे लो। लेकिन उसके मन में पैसे पर दया नहीं समाती। वह निर्मम व्यक्ति पैसे को अपने आहत गर्व में बिलखता ही छोड़ देता है। ऐसे आदमी के आगे क्या पैसे की व्यंग्य-शक्ति कुछ भी चलती होगी? [पृष्ठ-90]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाज़ार दर्शन’ लेखक का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें उन्होंने उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यह निबंध बाज़ार के आकर्षण तथा क्रय-विक्रय की शक्ति पर समुचित प्रकाश डालता है। यहाँ लेखक चूरन बेचने वाले भगत जी की बात कर रहा है जो बिना आवश्यकता के बाज़ार में देखता तक नहीं।

व्याख्या-लेखक कहता है कि शायद उस भोले भगत जी को अक्षर-ज्ञान है या नहीं अर्थात् वह अनपढ़ व्यक्ति लगता है। इसलिए वह बड़ी-बड़ी बातें नहीं करना चाहता है और न ही उसे बड़ी-बड़ी बातों का पता है। अन्य लोग तो बड़ी-बड़ी बातें जानते भी हैं और करते भी हैं। इससे लोग यह निष्कर्ष भी निकाल सकते हैं कि भगत जी उनके सामने मामूली व्यक्ति हैं जिसका कोई महत्त्व नहीं है। भले ही लेखक पाठकों की पढ़ी-लिखी श्रेणी का ही व्यक्ति है, परंतु वह इस दृष्टिकोण को स्वीकार नहीं करता। भगत जी जैसे मामूली व्यक्ति को जो कुछ प्राप्त है, वह शायद हम में से बहुत कम लोगों को प्राप्त है। सत्य तो यह है कि भगत जी पर बाज़ार का जादू चल ही नहीं सकता। उसके सामने बाज़ार का माल फैला रहता है, परंतु उसका मन कभी चंचल नहीं होता। वह स्थिर रहता है।

पैसा उसके सामने भीख माँगता हुआ कहता है कि मुझे स्वीकार कर लो, परंतु भगत जी पैसे की माँग को ठुकरा देते हैं। उन्हें पैसे पर दया नहीं आती। जिससे पैसे का गर्व टूटकर बिखर जाता है। पैसे के संबंध में भगत जी एक कठोर हृदय वाले व्यक्ति हैं। ऐसा लगता है कि मानों पैसा उसके आगे रोने लगता है और भगत जी के स्वाभिमान के आगे नतमस्तक हो जाता है। इस प्रकार के व्यक्ति पर पैसे की व्यंग्य-शक्ति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता पैसे की व्यंग्य-शक्ति उसके आगे कुंठित हो जाती है और अपने आपको कोसने लगती है।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक यह स्पष्ट करता है कि यदि व्यक्ति के मन में संयम, विवेक और संतोष वृत्ति है तो सांसारिक आकर्षण उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। ऐसा व्यक्ति मायावी आकर्षणों की परवाह किए बिना आनंदपूर्वक जीवन व्यतीत करता
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. यहाँ विवेचनात्मक तथा विश्लेषणात्मक शैलियों का प्रयोग किया गया है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) यहाँ लेखक ने किस भोले आदमी की बात की है और किस बात में उसका भोलापन दिखाई देता है?
(ख) लेखक ने चूरन वाले भगत जी को अपदार्थ क्यों कहा है?
(ग) भगत जी के पास ऐसा क्या है जो बड़े-बड़े विद्वानों के पास नहीं है?
(घ) भगत जी पर बाज़ार के जादू का प्रभाव क्यों नहीं होता? (ङ) पैसे की व्यंग्य-शक्ति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
(क) यहाँ चूरन वाले भगत जी को भोला आदमी कहा गया है। दुनिया की नज़रों में वे बहुत सीधे और भोले व्यक्ति हैं। संसार के अन्य लोग तो अवसर मिलने पर बाज़ार की सभी वस्तुएँ खरीद लेना चाहते हैं, परंतु भगत जी आवश्यकता के बिना कुछ नहीं खरीदते। इसलिए उन्हें भोला व्यक्ति कहा गया है।

(ख) अपदार्थ का अर्थ है-बेचारा या अंकिचन संसार की नज़रों में भगत जी न अमीर हैं और न ही शिक्षित हैं, इसलिए लोग उन्हें अपदार्थ कहते हैं।

(ग) भगत जी एक संतोषी, विवेकशील तथा संयमी व्यक्ति हैं। ये गुण संसार के बड़े-बड़े विद्वानों में भी नहीं मिलते। संसार के अधिकांश लोग लोभी, लालची होते हैं।

(घ) भगत जी सीधा-सादा जीवन व्यतीत करते हैं। उनके मन में आकर्षक वस्तुएँ खरीदने की तृष्णा नहीं है। इसलिए बाज़ार का जादू उनको प्रभावित नहीं कर पाता। वे अपनी आवश्यकतानुसार जीरा व काला नमक लेकर घर लौट आते हैं।

(ङ) पैसे,की व्यंग्य-शक्ति का अभिप्राय है कि पैसे की शक्ति लोगों को लुभाती है, उन्हें लोभी बनाती है तथा तृष्णा से व्याकुल कर देती है, परंतु भगत जी पर पैसे की व्यंग्य-शक्ति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वे तो बाज़ार की अनावश्यक वस्तुओं को देखते तक नहीं। फलस्वरूप पैसे की व्यंग्य-शक्ति विफल हो जाती है।

[9] पैसे की व्यंग्य-शक्ति की सुनिए। वह दारुण है। मैं पैदल चल रहा हूँ कि पास ही धूल उड़ाती निकल गई मोटर। वह क्या निकली मेरे कलेजे को कौंधती एक कठिन व्यंग्य की लीक ही आर-से-पार हो गई। जैसे किसी ने आँखों में उँगली देकर दिखा दिया हो कि देखो, उसका नाम है मोटर, और तुम उससे वंचित हो! यह मुझे अपनी ऐसी विडंबना मालूम होती है कि बस पूछिए नहीं। मैं सोचने को हो आता हूँ कि हाय, ये ही माँ-बाप रह गए थे जिनके यहाँ मैं जन्म लेने को था! क्यों न मैं मोटरवालों के यहाँ हुआ! उस व्यंग्य में इतनी शक्ति है कि ज़रा में मुझे अपने सगों के प्रति कृतघ्न कर सकती है।। [पृष्ठ-90]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाज़ार दर्शन’ लेखक का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें उन्होंने उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यह निबंध बाज़ार के आकर्षण तथा क्रय-विक्रय की शक्ति पर समुचित प्रकाश डालता है। यहाँ लेखक ने पैसे की व्यंग्य-शक्ति के प्रभाव को स्पष्ट करने का प्रयास किया है।

व्याख्या-पैसे की व्यंग्य-शक्ति बडी विचित्र और कठोर है, लेखक उस शक्ति का वर्णन करता हआ कहता है कि एक व्यक्ति बाज़ार में पैदल जा रहा था। उसके पास से धूल उड़ाती एक मोटरकार निकल जाती है। उस मोटरकार के निकलते ही पैदल चलने वाले व्यक्ति के कलेजे को पार करती हुई एक कठोर व्यंग्य की लकीर निकल जाती है। उस व्यक्ति के हृदय में एक जलन-सी होने लगती है मानों कोई उसकी आँखों में उँगली डालकर यह दिखाने का प्रयास करता है कि तुम्हारे सामने से मोटरकार गुजर गई है। यह मोटरकार तुम्हारे पास नहीं है। इससे पैदल चलने वाले व्यक्ति को अपनी मजबूरी का पता चल जाता है और वह अपनी हालत के बारे में सोचने के लिए मजबूर हो जाता है। वह सोचने लगता है कि उसके पास इस प्रकार की मोटरकार क्यों नहीं है। बड़े दुख मैंने ऐसे माँ-बाप के यहाँ जन्म लिया जिनके पास मोटरकार नहीं है। मैं मोटरकारों वालों के यहाँ क्यों नहीं जन्मा? उस व्यंग्य में इतनी तीव्र शक्ति होती है कि मैं अपने सगे-संबंधियों से भी घृणा करने लगता हूँ और मेरे अन्दर अकृतज्ञता का भाव उत्पन्न हो जाता है।

विशेष-

  1. यहाँ पर लेखक यह बताना चाहता है कि पैसे की व्यंग्य-शक्ति मनुष्य में ईर्ष्या और द्वेष की भावना उत्पन्न करती है।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावानुकूल है।
  4. आत्मसंबोधनात्मक शैली के कारण भावाभिव्यक्ति पूर्णतः स्पष्ट हो गई है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) लेखक ने पैसे की व्यंग्य-शक्ति को दारुण क्यों कहा है?
(ख) पास ही धूल उड़ाती निकल गई मोटरकार का पैदल चलने वाले पर क्या प्रभाव पड़ा?
(ग) पैदल चलने वाला व्यक्ति क्या सोचने के लिए मजबूर हो जाता है?
(घ) पैदल चलने वाला व्यक्ति किन कारणों से सगे-संबंधियों के प्रति कृतघ्न हो जाता है?
उत्तर:
(क) पैसे की शक्ति को लेखक ने दारुण इसलिए कहा है क्योंकि वह आम आदमी में ईर्ष्या, जलन तथा तृष्णा को उत्पन्न करती है। अपने से अमीर व्यक्ति के समान वह भी सुख-सुविधाएँ प्राप्त करना चाहता है।

(ख) पास ही धूल उड़ाती निकली मोटरकार ने पैसे की व्यंग्य-शक्ति का प्रभाव दिखा दिया। पैदल चलने वाले व्यक्ति को यह तत्काल ही महसूस हो गया कि उसके पास मोटरकार नहीं है, इससे उसे अपनी हीनता महसूस होने लगी।

(ग) पैदल चलने वाला व्यक्ति यह सोचने के लिए मजबूर हो जाता है कि वह ऐसे माँ-बाप के यहाँ क्यों जन्मा, जिनके पास मोटरकार नहीं है। काश! मैं मोटरकार वाले माँ-बाप के यहाँ जन्म लेता।

(घ) पैदल चलने वाला व्यक्ति पैसे की व्यंग्य-शक्ति के कारण ही अपने सगे-संबंधियों के प्रति कृतघ्न हो जाता है। वह यहाँ तक सोचने लगता है कि उसका जन्म भी किसी अमीर परिवार में होता।

[10] उस बल को नाम जो दो; पर वह निश्चय उस तल की वस्तु नहीं है जहाँ पर संसारी वैभव फलता-फूलता है। वह कुछ अपर जाति का तत्त्व है। लोग स्पिरिचुअल कहते हैं; आत्मिक, धार्मिक, नैतिक कहते हैं। मुझे योग्यता नहीं कि मैं उन शब्दों में अंतर देखू और प्रतिपादन करूँ। मुझे शब्द से सरोकार नहीं। मैं विद्वान नहीं कि शब्दों पर अटकूँ। लेकिन इतना तो है कि जहाँ तृष्णा है, बटोर रखने की स्पृहा है, वहाँ उस बल का बीज नहीं है। बल्कि यदि उसी बल को सच्चा बल मानकर बात की जाए तो कहना होगा कि संचय की तृष्णा और वैभव की चाह में व्यक्ति की निर्बलता ही प्रमाणित होती है। निर्बल ही धन की ओर झुकता है। वह अबलता है। वह मनुष्य पर धन की और चेतन पर जड़ की विजय है। [पृष्ठ-90-91]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सप्रसिद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाजार दर्शन’ लेखक का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें उन्होंने उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यह निबंध बाज़ार के आकर्षण तथा क्रय-विक्रय की शक्ति पर समुचित प्रकाश डालता है। इससे पूर्व लेखक यह स्पष्ट कर चुका है कि लोक वैभव की व्यंग्य-शक्ति उस सामान्य चूरन वाले व्यक्ति के सामने चूर-चूर हो गई थी। उसमें ऐसा कौन-सा बल था जो इस तीखे व्यंग्य के सामने अजेय बना रहा। इस संदर्भ में लेखक कहता है कि

व्याख्या-उस बल को कोई भी नाम दिया जा सकता है। वह निश्चय से कोई ऐसी गहरी वस्तु नहीं है जिस पर खड़ा होकर संसार का धन-वैभव बढ़ता है। वह बल धन-संपत्ति को नहीं बढ़ाता और न ही वह उससे संबंधित है। वह तो एक अलग प्रकार का तत्त्व है जिसे लोग आध्यात्मिक शक्ति कहते हैं। उसे धार्मिक, नैतिक अथवा आत्मिक शक्ति भी कहा जा सकता है। लेखक स्वीकार करता है कि उसके पास ऐसी सोच-समझ नहीं है जिसके द्वारा वह गहराई में जाए और उस शक्ति की व्याख्या करे। लेखक यह भी स्वीकार करता है शब्दों में अंतर से उसका कोई संबंध नहीं है।

वह यह भी स्वीकार करता है कि वह ऐसा विद्वान नहीं है जो यहाँ-वहाँ भटकता फिरे। लेकिन फिर भी वह अपनी समझ से प्रकाश डालता हुआ कहता है कि जिन लोगों में धन प्राप्त करने की इच्छा है, धन का संग्रह करने की चाह है, ऐसे लोगों के पास वह बल नहीं है, परंतु उस बल को यदि सच्चा बल मान लिया जाए तो धन-संग्रह की इच्छा और धन-वैभव की चाह मनुष्य को कमज़ोर ही बनाती है और कमज़ोर व्यक्ति ही धन की ओर भागता है जिसे लेखक बलहीनता कहता है। अन्य शब्दों में लेखक कहता है ऐसी स्थिति में मनुष्य पर धन की विजय होती है अर्थात् वह धन का गुलाम हो जाता है। यह चेतन पर जड़ की विजय है। मनुष्य तो चेतनशील है, परंतु धन-वैभव जड़ है। फिर भी वह चेतनशील मनुष्य पर विजय प्राप्त कर लेता है।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने उस बल की चर्चा की है जो धन-वैभव के तीखे व्यंग्य के आगे अजेय बना रहता है।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावानुकूल है।
  4. आत्मविश्लेषणात्मक शैली द्वारा आध्यात्मिक शक्ति की विवेचना की गई है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) लोग किस बल को ‘स्पिरिचुअल’ कहते हैं। लेखक ने इस बल को और कौन-से नाम दिए हैं?
(ख) लेखक के अनुसार कौन व्यक्ति सबल है और कौन निर्बल है?
(ग) व्यक्ति की निर्बलता किस बात से प्रमाणित होती है?
(घ) मनुष्य पर धन की और चेतन पर जड़ की विजय से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
(क) सांसारिक वैभव के सामने न झुकने वाला बल ही स्पिरिचुअल है। लेखक ने इसे आत्मिक, धार्मिक और नैतिक बल कहा है।

(ख) जिस व्यक्ति में न तो संचय की तृष्णा है और न ही वैभव की चाह है, वह सबल है, परंतु जिसमें ये दोनों चीजें हैं वह निर्बल है। निर्बल व्यक्ति ही धन की ओर झुकता है, सबल नहीं।

(ग) व्यक्ति की निर्बलता इस बात से प्रमाणित होती है कि उसमें धन-संपत्ति का संचय करने की तृष्णा और वैभव की चाह होती है।

(घ) मनुष्य में जब धन का संग्रह करने की तष्णा पैदा होती है तो यह मनुष्य पर धन की विजय है। मनुष्य एक चेतनशील प्राणी है और धन जड़ और निर्जीव है। इसलिए यह जड़ पर चेतन की विजय कहलाती है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन

[11] एक बार चूरन वाले भगत जी बाज़ार चौक में दीख गए। मुझे देखते ही उन्होंने जय-जयराम किया। मैंने भी जयराम कहा। उनकी आँखें बंद नहीं थीं और न उस समय वह बाज़ार को किसी भाँति कोस रहे मालूम होते थे। राह में बहुत लोग, बहुत बालक मिले जो भगत जी द्वारा पहचाने जाने के इच्छुक थे। भगत जी ने सबको ही हँसकर पहचाना। सबका अभिवादन लिया और सबको अभिवादन किया। इससे तनिक भी यह नहीं कहा जा सकेगा कि चौक-बाज़ार में होकर उनकी आँखें किसी से भी कम खुली थीं। लेकिन भौंचक्के हो रहने की लाचारी उन्हें नहीं थी। व्यवहार में पसोपेश उन्हें नहीं था और खोए से खड़े नहीं वह रह जाते थे। भाँति-भाँति के बढ़िया माल से चौक भरा पड़ा है। उस सबके प्रति अप्रीति इस भगत के मन में नहीं है। जैसे उस समूचे माल के प्रति भी उनके मन में आशीर्वाद हो सकता है। विद्रोह नहीं, प्रसन्नता ही भीतर है, क्योंकि कोई रिक्त भीतर नहीं है। देखता हूँ कि खुली आँख, तुष्ट और मग्न, वह चौक-बाज़ार में से चलते चले जाते हैं। राह में बड़े-बड़े फैंसी स्टोर पड़ते हैं, पर पड़े रह जाते हैं। कहीं भगत नहीं रुकते। रुकते हैं तो एक छोटी पंसारी की दुकान पर रुकते हैं। वहाँ दो-चार अपने काम की चीज़ ली और चले आते हैं। बाजार से हठ पूर्वक विमुखता उनमें नहीं है। [पृष्ठ-91]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाज़ार दर्शन’ लेखक का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें उन्होंने उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यहाँ लेखक उस घटना का हवाला देता है जब उन्हें बाज़ार चौक में भगत जी दिखाई दिए थे। उस समय भी भगत जी संतुष्ट और प्रसन्न थे।

व्याख्या-लेखक कहता है कि एक बार उन्हें चूरन वाले भगत जी बाज़ार चौक में मिल गए। लेखक को देखते ही भगत जी ने उनसे जय-जयराम किया। लेखक ने भी उत्तर में उनका अभिवादन किया। उस समय भी उनकी आँखें पूरी तरह से खुली थीं। ऐसा लगता था कि वे किसी भी प्रकार बाज़ार की निंदा या आलोचना नहीं कर रहे थे। भाव यह था कि उनको बाज़ार से किसी प्रकार की आसक्ति नहीं थी। बाज़ार में बहुत-से लोग व बालक थे। वे चाहते थे कि भगत जी उन्हें पहचानें। भगत जी ने हँसते हुए सभी को पहचाना। सभी से अभिवादन लिया और सभी को अभिवादन किया। इससे पता चलता है कि भगत जी बहुत मिलनसार व्यक्ति थे। साथ ही यह भी सिद्ध होता है कि भगत जी चौक बाज़ार में चलते समय बाज़ार और वहाँ के लोगों की तरफ ध्यान न दे रहे हों। वे सब लोगों को देख रहे थे और बाज़ार की वस्तुओं को भी देख रहे थे, परंतु उनमें हैरान होने की मजबूरी नहीं थी। न ही उनके व्यवहार में किसी प्रकार का असमंजस था।

वे बाज़ार को हैरान होकर देखकर खड़े भी नहीं होते थे। बाज़ार चौक बढ़िया-से-बढ़िया वस्तुओं से भरा हुआ था। उन वस्तुओं में एक विचित्र आकर्षण भी था। परंतु भगत के मन में इन वस्तुओं के प्रति घृणा की भावना भी नहीं थी। ऐसा लगता था मानों वे बाज़ार के माल को मन-ही-मन आशीर्वाद दे रहे हों। उनके मन में विद्रोह की भावना नहीं थी, बल्कि प्रसन्नता की भावना थी। कारण यह है कि किसी का भी मन किसी समय खाली नहीं होता। कोई-न-कोई विचार मन में चलता रहता है। भगत जी का मन इस समय प्रसन्न था। लेखक ने देखा कि भगत जी खुली आँखों से संतुष्ट तथा निमग्न होकर चौक बाज़ार के बीचों-बीच चले जा रहे हैं। मार्ग में बड़े-बड़े फैंसी स्टोर भी हैं, परंतु भगत जी कहीं भी नहीं रुकते। वे निरंतर बाज़ार को देखते हुए आगे बढ़ते चले जाते हैं और अंत में पंसारी की एक छोटी-सी दुकान पर जाकर रुक जाते हैं। वहाँ से वे दो चार आने का सामान खरीद लेते हैं और लौट आते हैं। बाज़ार के प्रति उनके मन में कोई विद्रोह का भाव या विमुखता भी नहीं थी। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि बाज़ार के प्रति भगत जी का न तो कोई लगाव था, न अलगाव था। वे केवल अपनी आवश्यकता की वस्तु खरीदने के लिए बाज़ार में जाते हैं।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने भगत जी के माध्यम से यह समझाने का प्रयास किया है कि हमें केवल बाज़ार से आवश्यकता-पूर्ति का सामान ही खरीदना चाहिए, अनावश्यक सामान नहीं खरीदना चाहिए।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास बड़ा ही सटीक व भावानुकूल है।
  4. वर्णनात्मक शैली द्वारा भगत जी की चारित्रिक विशेषताओं का उद्घाटन किया गया है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) “भगत जी की आँखें बंद नहीं थीं” इससे क्या अभिप्राय है?
(ख) बाज़ार में भगत जी प्रसन्न और संतुष्ट क्यों दिखाई देते हैं?
(ग) रास्ते में लोग और बालक भगत जी द्वारा पहचाने जाने के इच्छुक क्यों थे?
(घ) भगत जी फैंसी माल को देखकर भी भौंचक्के क्यों नहीं होते? (ङ) भगत जी बाज़ार किसलिए जाते थे?
उत्तर:
(क) इस पंक्ति का अभिप्राय है कि भगत जी खुली आँखों से बाज़ार को देखते हुए चल रहे थे। उन्होंने बाज़ार की वस्तुओं के लोभ से बचने के लिए अपनी आँखें बंद नहीं की। इससे यह स्पष्ट होता है कि बाजार के प्रति उनके मन में न तिरस्कार की भावना थी, न निषेध की भावना थी।

(ख) भगत जी बाज़ार में प्रसन्न व संतुष्ट इसलिए दिखाई देते हैं क्योंकि उन्हें बाज़ार से अपनी आवश्यकतानुसार काला नमक व जीरा मिल जाता है। इसके अतिरिक्त बाज़ार की वस्तुओं के प्रति उनके मन में न तिरस्कार है और न ही उन्हें खरीदने की इच्छा है। बाज़ार का आकर्षण उनके मन में विकार उत्पन्न नहीं करता। इसलिए वह सहज भाव से प्रसन्न व संतुष्ट दिखाई देते हैं।

(ग) भगत जी रास्ते में चलते हुए सबसे जय-जयराम करते थे। वे सबसे हँसकर मिलते थे और उनका अभिवादन भी करते थे। कारण यह था कि वे बड़े मिलनसार व्यक्ति थे। इसलिए रास्ते के लोग चाहते थे कि भगत जी पहचान कर उनका अभिवादन करें।

(घ) बाज़ार की फैंसी वस्तुओं को देखकर वही लोग भौंचक्के होते हैं जिनके मन में उन वस्तुओं को खरीदने की इच्छा होती है। ऐसे लोग तृष्णा के कारण ही आकर्षक वस्तुओं को देखकर भौंचक्के होते हैं। भगत जी के मन में फैंसी माल के प्रति कोई तृष्णा नहीं थी और न ही उन्हें इसकी आवश्यकता थी। इसलिए वे फैंसी माल को देखकर भौंचक्के नहीं हुए।

(ङ) भगत जी बाज़ार में काला नमक व जीरा खरीदने के लिए जाते थे। इनसे वे चूरन बनाकर बाज़ार में बेचते थे।

[12] लेकिन अगर उन्हें जीरा और काला नमक चाहिए तो सारे चौक-बाज़ार की सत्ता उनके लिए तभी तक है, तभी तक उपयोगी है, जब तक वहाँ जीरा मिलता है। ज़रूरत-भर जीरा वहाँ से ले लिया कि फिर सारा चौक उनके लिए आसानी से नहीं बराबर हो जाता है। वह जानते हैं कि जो उन्हें चाहिए वह है जीरा नमक। बस इस निश्चित प्रतीति के बल पर शेष सब चाँदनी चौक का आमंत्रण उन पर व्यर्थ होकर बिखरा रहता है। चौक की चाँदनी दाएँ-बाएँ भूखी-की-भूखी फैली रह जाती है क्योंकि भगत जी को जीरा चाहिए वह तो कोने वाली पंसारी की दुकान से मिल जाता है और वहाँ से सहज भाव में ले लिया गया है। इसके आगे आस-पास अगर चाँदनी बिछी रहती है तो बड़ी खुशी से बिछी रहे, भगत जी से बेचारी का कल्याण ही चाहते हैं। [पृष्ठ-91]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाज़ार दर्शन’ लेखक का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें उन्होंने उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यह निबंध बाज़ार के आकर्षण तथा क्रय-विक्रय की शक्ति पर समुचित प्रकाश डालता है। यहाँ लेखक ने यह बताने का प्रयास किया है कि भगत जी के लिए बड़े-बड़े फैंसी स्टोरों का कोई महत्त्व नहीं है। उनके लिए केवल छोटी-सी पंसारी की दुकान का महत्त्व है।

व्याख्या-लेखक कहता है कि भगत जी के रास्ते में बड़े-बड़े फैंसी स्टोर हैं, पर भगत जी कहीं पर नहीं रुकते। भगत जी के सामने वे फैंसी स्टोर ज्यों-के-त्यों पड़े रह जाते हैं। क्योंकि भगत जी तो एक छोटी-सी पंसारी की दुकान पर जाकर रुकते हैं। जहाँ से वे दो-चार आने का सामान लेकर लौट पड़ते हैं। इस स्थिति में भगत जी के मन में न तो बाज़ार के लिए हठ है और न ही विमुखता। उन्हें तो केवल जीरा और काला नमक चाहिए था जिसे उन्होंने खरीद लिया। भगत जी के लिए चौक बाज़ार का अस्तित्व तब तक है जब तक उन्हें बाज़ार से जीरा व काला नमक उपलब्ध होता है। जब उन्होंने अपनी आवश्यकतानुसार जीरा खरीद लिया तो सारा चौक उनके लिए कोई महत्त्व नहीं रखता।

उनके लिए तो केवल जीरे और नमक का महत्त्व है, जो उन्हें बाज़ार से मिल गया। भगत जी के इसी निश्चित विश्वास के कारण शेष संपूर्ण चाँदनी चौक का निमंत्रण उनके लिए बेकार है। भगत जी उसकी ओर कोई ध्यान नहीं देते। चौक का आकर्षण दोनों दिशाओं में मानों भूख से व्याकुल होकर देखता रह जाता है। भगत जी को केवल जीरा ही चाहिए था जिसे उन्होंने केवल पंसारी की दुकान से बड़े सहज भाव से खरीद लिया। चाँदनी चौक के आकर्षण से न भगत जी को कोई लगाव है, न अलगाव है। चाँदनी चौक का संपूर्ण सौंदर्य उनके लिए फैला रहता है। भगत जी उस बाज़ार का भला ही चाहते हैं, परंतु उसके आकर्षण के प्रति आसक्त नहीं होते और अपनी ज़रूरत की वस्तुएँ खरीदकर लौट जाते हैं।

विशेष-

  1. इसमें लेखक ने चाँदनी चौक के आकर्षण के प्रति भगत जी के तटस्थ भाव का सजीव वर्णन किया है।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास बड़ा ही सटीक व भावानुकूल है।
  4. वर्णनात्मक शैली द्वारा भगत जी पर समूचा प्रकाश डाला गया है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) भगत जी बड़े-बड़े फैंसी स्टोरों के पास क्यों नहीं रुकते?
(ख) भगत जी एक छोटी पंसारी की दुकान पर क्यों रुकते हैं?
(ग) सारा चौक भगत जी के लिए नहीं के बराबर कब और क्यों हो जाता है?
(घ) चौक की चाँदनी भगत जी के लिए कोई महत्त्व क्यों नहीं रखती?
उत्तर:
(क) भगत जी बड़े-बड़े फैंसी स्टोरों के पास इसलिए नहीं रुकते क्योंकि उनके लिए फैंसी स्टोर का आकर्षक सामान अनावश्यक है। वे फैंसी स्टोर के आकर्षणों के शिकार नहीं होते और आगे बढ़ते चले जाते हैं।

(ख) भगत जी बाज़ार में बेचने के लिए चूरन तैयार करते हैं। अतः उन्हें अपनी आवश्यकता का सामान अर्थात् काला नमक व जीरा इसी छोटी-सी पंसारी की दुकान पर मिल जाता है। इसलिए वह पंसारी की दुकान पर रुक जाते हैं।

(ग) जब भगत जी बाज़ार से अपनी ज़रूरत के अनुसार जीरा और नमक खरीद लेते हैं तो सारा चौक तथा बाज़ार उनके लिए नहीं के बराबर हो जाता है, क्योंकि उन्हें जो कुछ चाहिए था, वह उसे लेकर लौट आते हैं।

(घ) भगत जी केवल अपनी ज़रूरत का सामान खरीदने ही चाँदनी चौक बाज़ार में जाते हैं। चाँदनी चौक का आकर्षण भगत जी को व्यामोहित नहीं कर पाता। इसलिए सारा चौक भगत जी के लिए कोई महत्त्व नहीं रखता।

[13] यहाँ मुझे ज्ञात होता है कि बाज़ार को सार्थकता भी वही मनुष्य देता है जो जानता है कि वह क्या चाहता है। और जो नहीं जानते कि वे क्या चाहते हैं, अपनी ‘पर्चेजिंग पावर’ के गर्व में अपने पैसे से केवल एक विनाशक शक्ति-शैतानी शक्ति, व्यंग्य की शक्ति ही बाज़ार को देते हैं। न तो वे बाज़ार से लाभ उठा सकते हैं, न उस बाज़ार को सच्चा लाभ दे सकते हैं। वे लोग बाज़ार का बाज़ारूपन बढ़ाते हैं। जिसका मतलब है कि कपट बढ़ाते हैं। कपट की बढ़ती का अर्थ परस्पर में सद्भाव की घटी। [पृष्ठ-91]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाजार दर्शन’ लेखक का एक महत्त उपभोक्तावाद तथा बाजारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यह निबंध बाज़ार के आकर्षण तथा क्रय-विक्रय की शक्ति पर समुचित प्रकाश डालता है। प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने बाज़ार की सार्थकता पर समुचित प्रकाश डाला है।

व्याख्या-लेखक का कथन है कि वही व्यक्ति बाज़ार को सार्थक बना सकता है जिसे पता है कि उसे बाज़ार से क्या खरीदना है, परंतु जो लोग यह नहीं जानते कि उन्हें क्या खरीदना है, उनका मन खाली होता है। वे अपनी क्रय-शक्ति के अभिमान में बाज़ार को केवल अपनी विनाशक शक्ति प्रदान करते हैं। लेखक इसे शैतानी-शक्ति अथवा व्यंग्य की शक्ति कहता है। कहने का भाव यह है कि इस प्रकार के लोग अपनी पर्चेजिंग पावर का अभिमान प्रकट करते हुए बाज़ार से अनावश्यक वस्तुएँ खरीद लेते हैं। उनकी यह शक्ति एक शैतानी शक्ति है जो कि समाज तथा बाज़ार का ही विनाश करती है। इस प्रकार के लोग न तो स्वयं बाज़ार से कोई लाभ उठा सकते हैं और न ही बाज़ार को सच्चा लाभ पहुंचा सकते हैं। इस प्रकार के लोगों के कारण बाज़ार के बाजारूपन को बढ़ावा मिलता है। यही नहीं, इससे छल-कपट की भी वृद्धि होती है और कपट बढ़ने का अर्थ यह है कि लोगों में सद्भाव घट जाता है अर्थात् अनावश्यक वस्तुएँ खरीदने वाले लोग बाज़ार में छल-कपट को बढ़ावा देते हैं तथा आपसी सद्भावना को नष्ट करते हैं।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने बाज़ार की सार्थकता को स्पष्ट करते हुए बाज़ार से अनावश्यक वस्तुएँ खरीदने वाले लोगों पर करारा व्यंग्य किया है।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. वर्णनात्मक शैली का प्रयोग है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) बाज़ार की सार्थकता से क्या अभिप्राय है?
(ख) किस प्रकार के लोग बाजारूपन को बढ़ावा देते हैं और कैसे?
(ग) धन की शक्ति बाज़ार को किस प्रकार प्रभावित करती है?
(घ) किन कारणों से बाज़ार में सद्भाव घटता है तथा कपट बढ़ता है?
उत्तर:
(क) लेखक के अनुसार वही बाज़ार सार्थक है जो ग्राहकों को आवश्यक सामान उपलब्ध कराता है। जो बाज़ार अनावश्यक तथा आकर्षक वस्तुओं का प्रदर्शन करता है, वह लोगों की इच्छाओं को भड़काकर अपनी निरर्थकता व्यक्त करता है।

(ख) जो लोग धन की ताकत के बल पर अनावश्यक वस्तुओं को बाजार से खरीदते हैं वे लोग ही बाजारूपन तथा छल-कपट को बढ़ावा देते हैं। इस प्रकार के लोग मानों “ह दिखाना चाहते हैं कि उनमें कितना कुछ खरीदने की ताकत है। इससे लोगों में अनावश्यक वस्तुएँ खरीदने की होड़ लग जाती है। फलस्वरूप वस्तुएँ आवश्यकता के लिए नहीं, बल्कि झूठी शान के लिए खरीदी जाती हैं जिससे छल-कपट तथा शोषण को बढ़ावा मिलता है।

(ग) धन की शक्ति बाज़ार में शैतानी-शक्ति को बढ़ावा देती है। अमीर लोग बाज़ार से अनावश्यक फैंसी वस्तुएँ खरीद कर अपनी शान का ढोल पीटते हैं। दूसरी ओर दुकानदार अर्थात् विक्रेता कपट का सहारा लेते हुए उसका शोषण करता है जिससे ग्राहक और दुकानदार में सद्भाव नष्ट हो जाता है। दुकानदार और ग्राहक एक-दूसरे को धोखा देने में लगे रहते हैं।

(घ) जब बाजार ग्राहकों की आवश्यकताओं को पूरा करने का साधन बनता है तब लोगों में सदभावना बढ़ती है, परंतु जब ग्राहक अपनी शान का डंका बजाने के लिए अनावश्यक वस्तुएँ खरीदने लगता है तो बाज़ार भी छल-कपट का सहारा लेने लगता है जिससे दुकानदार और ग्राहक में सद्भाव नहीं रहता। दोनों एक-दूसरे को धोखा देने की ताक में लगे रहते हैं।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन

[14] इस सद्भाव के हास पर आदमी आपस में भाई-भाई और सुहृद और पड़ोसी फिर रह ही नहीं जाते हैं और आपस में कोरे गाहक और बेचक की तरह व्यवहार करते हैं। मानो दोनों एक-दूसरे को ठगने की घात में हों। एक ही हानि में दूसरे का अपना लाभ दीखता है और यह बाज़ार का, बल्कि इतिहास का; सत्य माना जाता है ऐसे बाजार को बीच में लेकर लोगों में आवश्यकताओं का आदान-प्रदान नहीं होता; बल्कि शोषण होने लगता है तब कपट सफल होता है, निष्कपट शिकार होता है। ऐसे बाज़ार मानवता के लिए विडंबना हैं और जो ऐसे बाज़ार का पोषण करता है, जो उसका शास्त्र बना हुआ है; वह अर्थशास्त्र सरासर औंधा है वह मायावी शास्त्र है वह अर्थशास्त्र अनीति-शास्त्र है। [पृष्ठ-91-92]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाज़ार दर्शन’ लेखक का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें उन्होंने उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यह निबंध बाज़ार के आकर्षण तथा क्रय-विक्रय की शक्ति पर समुचित प्रकाश डालता है। यहाँ लेखक यह स्पष्ट करता है कि किस प्रकार दुकानदार तथा ग्राहक के बीच सदभाव का पतन होने लगता है।

व्याख्या-लेखक कहता है कि जब दुकानदार तथा ग्राहक के बीच सद्भाव नष्ट हो जाता है तो वे दोनों न तो आपस में भाई-भाई होते हैं, न मित्र होते हैं और न ही पड़ोसी होते हैं, बल्कि दोनों एक-दूसरे के साथ ग्राहक और बेचक जैसा व्यवहार करने लगते हैं। दुकानदार सौदेदारी करता है और ग्राहक भी मूल्य घटाने का काम करता है। ऐसा लगता है कि मानों दोनों एक-दूसरे को धोखा देने का प्रयास कर रहे हैं। यदि एक को हानि होती है तो दूसरे को लाभ पहुँचता है। जो कि बाज़ार का नियम नहीं है, बल्कि इतिहास का नियम है। यह कटु सत्य है कि इस प्रकार के बाज़ार में लोगों के बीच आवश्यकताओं का लेन-देन नहीं होता, केवल छल-कपट होता है। सच्चाई तो यह है कि दुकानदार शोषक बनकर ग्राहकों का शोषण करने लगता है जिससे छल-कपट को सफलता मिलती है तथा भोले-भाले लोग उसका शिकार बनते हैं। इस प्रकार का बाज़ार संपूर्ण मानव जाति के लिए सबसे बड़ा धोखा है। जो लोग इस प्रकार के बाज़ार को बढ़ावा देते हैं और उनके द्वारा जो शास्त्र बनाया गया है वह अर्थशास्त्र बिल्कुल उल्टा है। वह धोखे का शास्त्र है। इस प्रकार का अर्थशास्त्र अनीति पर टिका है जो कि ग्राहक का कदापि कल्याण नहीं कर सकता।

विशेष-

  1. इसमें लेखक ने छल तथा कपट को बढ़ावा देने वाले बाज़ार की भर्त्सना की है।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा सार्थक व सटीक है।
  4. विवेचनात्मक शैली का प्रयोग है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) लेखक किस सद्भाव के ह्रास की बात करता है?
(ख) लेखक ने किस अर्थशास्त्र को अनीति शास्त्र कहा है?
(ग) बाज़ार में शोषण क्यों होने लगता है?
(घ) लेखक ने किस प्रकार के बाज़ार को मानवता का शत्रु कहा है?
उत्तर:
(क) यहाँ लेखक ने दुकानदार तथा ग्राहक के बीच होने वाले सद्भाव की चर्चा की है। जब ग्राहक अपनी झूठी शान दिखाने के लिए अपनी पर्चेजिंग पावर के द्वारा बाज़ार से अनावश्यक वस्तुएँ खरीदता है तब बाज़ार में कपट को बढ़ावा मिलता है। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि ग्राहक और दुकानदार के बीच सद्भाव समाप्त हो जाता है।

(ख) लेखक ने उस अर्थशास्त्र को अनीतिशास्त्र कहा है जो कि बाज़ार में बाजारूपन तथा छल-कपट को बढ़ावा देता है। इस प्रकार का बाज़ार अनीति पर आधारित होता है और वह ग्राहकों से धोखाधड़ी करने लगता है।

(ग) जब बाजार में बाजारूपन बढ़ जाता है और छल-कपट बढ़ने लगता है तो दुकानदार और ग्राहक दोनों ही एक-दूसरे का शोषण करने लगते हैं। दुकानदार ग्राहक को ठगना चाहता है और ग्राहक दुकानदार को।

(घ) लेखक का कहना है कि जो बाज़ार छल-कपट तथा शोषण पर आधारित होता है वह मानवता का शत्रु है। इस प्रकार के बाज़ार में सीधे-सादे ग्राहक हमेशा ठगे जाते हैं। कपटी लोग निष्कपटों को अपना शिकार बनाते रहते हैं।

बाज़ार दर्शन Summary in Hindi

बाज़ार दर्शन लेखिका-परिचय

प्रश्न-
श्री जैनेंद्र कुमार का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
श्री जैनेंद्र कुमार का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-श्री जैनेंद्र कुमार सुप्रसिद्ध कथाकार थे, किंतु उन्होंने उच्चकोटि का निबंध-साहित्य लिखा। उनका जन्म सन् 1905 को अलीगढ़ जिले के कौड़ियागंज नामक गाँव में हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा हस्तिनापुर जिला मेरठ में हुई। उन्होंने 1919 ई० में पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात् उन्होंने काशी विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा के लिए प्रवेश लिया, किंतु गांधी जी के आह्वान पर पढ़ाई छोड़कर वे असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। गांधी जी जीवन-दर्शन का प्रभाव उनकी रचनाओं में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। जैनेंद्र जी ने कथा-साहित्य के साथ-साथ उच्चकोटि के निबंधों की रचना भी की है। सन् 1970 में उनकी महान् साहित्यिक सेवाओं के कारण भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया। दिल्ली विश्वविद्यालय ने भी सन् 1973 में इन्हें डी० लिट् की मानद उपाधि से विभूषित किया। जैनेंद्र कुमार को ‘साहित्य अकादमी’ तथा ‘भारत-भारती’ पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। सन् 1990 में उनका देहांत हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ-श्री जैनेंद्र कुमार की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

  • उपन्यास-परख’ (1929), ‘सुनीता’ (1935), ‘कल्याणी’ (1939), ‘त्यागपत्र’ (1937), ‘विवर्त’ (1953), ‘सुखदा’ (1953), ‘व्यतीत’ (1953), ‘जयवर्द्धन’ (1953), ‘मुक्तिबोध’।
  • कहानी-संग्रह-‘फाँसी’ (1929), ‘वातायन’, (1930), ‘नीलम देश की राजकन्या’ (1933), ‘एक रात’ (1934), ‘दो चिड़िया’ (1935), ‘पाजेब’ (1942), ‘जयसंधि’ (1929)।
  • निबंध-संग्रह-‘प्रस्तुत प्रश्न’ (1936), ‘जड़ की बात’ (1945), ‘पूर्वोदय’ (1951), ‘साहित्य का श्रेय और प्रेय’ (1953), ‘मंथन’ (1953), ‘सोच-विचार’ (1953), ‘काम, प्रेम और परिवार’ (1953), ‘ये और वे’ (1954), ‘साहित्य चयन’ (1951), ‘विचार वल्लरी’ (1952)।

3. साहित्यिक विशेषताएँ-जैनेंद्र कुमार ने प्रायः विचार-प्रधान निबंध ही लिखे हैं। उनके निबंधों में लेखक एक गंभीर चिंतक के रूप में हमारे सामने आता है। ये विषय साहित्य, समाज, राजनीति, संस्कृति, धर्म तथा दर्शन से संबंधित हैं। भले ही हिंदी साहित्य में वे एक मनोवैज्ञानिक उपन्यासकार तथा कहानीकार के रूप में प्रसिद्ध हैं, परंतु निबंध-लेखक के रूप में उन्हें विशेष प्रसिद्धि प्राप्त हुई है। वस्तुतः उनके निबंधों में वैचारिक गहनता के गुण देखे जा सकते हैं। एक गंभीर चिंतक होने के कारण वे अपने प्रत्येक निबंध के विषय में सभी पहलुओं पर समुचित प्रकाश डालते हैं।

इसके लिए हम उनके निबंध बाज़ार दर्शन को ले सकते हैं जिसमें उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा देखी जा सकती है। भले ही यह निबंध कुछ दशक पहले लिखा गया हो, परंतु आज भी इसकी उपयोगिता असंदिग्ध है। इसमें लेखक यह स्पष्ट करता है कि यदि हम अपनी आवश्यकताओं को ठीक-ठीक समझकर बाज़ार का उपयोग करेंगे तो निश्चय ही हम उससे लाभ उठा सकेंगे, परंतु यदि हम खाली मन के साथ बाज़ार में जाएँगे तो उसकी चमक-दमक में फँसकर अनावश्यक वस्तुएँ खरीदकर लाएँगे जो आगे चलकर हमारी शांति को भंग करेंगी।

वे अपने प्रत्येक निबंध में अपने दार्शनिक अंदाज में अपनी बात को समझाने का प्रयास करते हैं। परंतु फिर भी कहीं-कहीं उनके विचार अस्पष्ट और दुरूह बन जाते हैं जिसके फलस्वरूप साधारण पाठक का साधारणीकरण नहीं हो पाता।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन

4. भाषा-शैली-यद्यपि कथा-साहित्य में जैनेंद्र कुमार ने सहज, सरल तथा स्वाभाविक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है, परंतु निबंधों में उनकी भाषा दुरूह एवं अस्पष्ट बन जाती है। फिर भी वे संबोधनात्मक तथा वार्तालाप शैलियों का प्रयोग करते समय अपनी बात को सहजता तथा सरलता से करने में सफल हुए हैं। यद्यपि वे भाषा में प्रयुक्त वाक्यों के संबंध में व्याकरण के नियमों का पालन नहीं करते, फिर भी उनके द्वारा प्रयक्त वाक्यों की अशद्धि कहीं नहीं खटकती। उनकी भाषा में रोचकता आदि से अंत तक बनी रहती है। वे अपनी भाषा में प्रचलित शब्दों का ही प्रयोग करते हैं। यत्र-तत्र वे अंग्रेज़ी, उर्दू तथा देशज शब्दों का मिश्रण कर लेते हैं।

श्री तारा शंकर के शब्दों में-“जैनेंद्र की सबसे बड़ी विशेषता इनकी रचना का चमत्कार, कहने का ढंग या शैली है। उनकी भाषा के वाक्य प्रायः छोटे-छोटे, चलते, परंतु साथ ही मानों फूल बिखेरते चलते हैं। वे पारे की तरह ढुलमुल करते रहते हैं। जैनेंद्र को न तो उर्दू से घृणा है, न अंग्रेज़ी से परहेज है और न ही संस्कृत से दुराव है। इसलिए उनकी भाषा सहज, सरल तथा प्रवाहमयी है।” एक उदाहरण देखिए-“यहाँ मुझे ज्ञात होता है कि बाज़ार को सार्थकता भी वही मनुष्य देता है जो जानता है कि वह क्या चाहता है। और जो नहीं जानते कि वे क्या चाहते हैं, अपनी ‘पर्चेजिंग पावर’ के गर्व में अपने पैसे से केवल एक विनाशक शैतानी शक्ति, व्यंग्य की शक्ति ही बाज़ार को देते हैं। न तो वे बाज़ार से लाभ उठा सकते हैं, न उस बाज़ार को सच्चा लाभ दे सकते हैं।”

बाज़ार दर्शन पाठ का सार

प्रश्न-
जैनेंद्र कुमार द्वारा रचित ‘बाज़ार दर्शन’ नामक निबंध का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तत निबंध हिंदी के सप्रसिद्ध निबंधकार, कथाकार जैनेंद्र कमार का एक उल्लेखनीय निबंध है। इसमें लेखक ने बाज़ार के उपयोग तथा दुरुपयोग का सूक्ष्म विवेचन किया है। लेखक यह स्पष्ट करना चाहता है कि बाज़ार हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। हम बाज़ार से केवल वही वस्तुएँ खरीदें जिनकी हमें आवश्यकता है।
1. पैसे की गरमी का प्रभाव लेखक का एक मित्र अपनी पत्नी के साथ बाज़ार में गया। वहाँ से लौटते समय वह अपने साथ बहुत-से बंडल लेकर लौटा। लेखक द्वारा पूछने पर उसने उत्तर दिया कि श्रीमती जो उसके साथ गई थी। इसलिए काफी कुछ अनावश्यक वस्तुएँ खरीदकर लाया है। लेखक का विचार है कि पत्नी को दोष देना ठीक नहीं है। फालतू वस्तुओं को खरीदने के पीछे ग्राहक की पैसे की गरमी है। वस्तुतः पैसा एक पावर है जिसका प्रदर्शन करने के लिए लोग बंगला, कोठी तथा फालतू का सामान खरीद लेते हैं। दूसरी ओर कुछ लोग पैसे की पावर को समझकर उसे जोड़ने में ही लगे रहते हैं और मन-ही-मन बड़े प्रसन्न होते हैं। मित्र ने लेखक को बताया कि यह सब सामान खरीदने पर उसका सारा मनीबैग खाली हो गया है।

2. बाज़ार का प्रभावशाली आकर्षण-फालतू सामान खरीदने का सबसे बड़ा कारण बाज़ार का आकर्षण है। मित्र ने लेखक को बताया कि बाज़ार एक शैतान का जाल है। दुकानदार अपनी दुकानों पर सामान को इस प्रकार सजाकर रखते हैं कि ग्राहक फँस ही जाता है। वस्तुतः बाजार अपने रूप-जाल द्वारा ही ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। ब आग्रह नहीं होता। वह ग्राहकों को लूटने के लिए प्रेरणा देता है। यही कारण है कि लोग बाज़ार के आकर्षक जाल का शिकार बन जाते हैं। यदि कोई व्यक्ति खाली मन से बाज़ार जाता है तो वह निश्चय से लुट कर ही आता है।

लेखक का एक अन्य मित्र दोपहर के समय बाज़ार गया, परंतु वह शाम को खाली हाथ लौट आया। जब लेखक ने पूछा तो उसने बताया कि बाज़ार में सब कुछ खरीदने की इच्छा हो रही थी। परंतु वह एक भी वस्तु खरीदकर नहीं लाया। पूछने पर उसने बताया कि यदि मैं एक वस्तु खरीद लेता तो उसे अन्य सब वस्तुएँ छोड़नी पड़ती। इसलिए मैं खाली हाथ लौट आया। लेखक का विचार है कि यदि हम किसी वस्तु को खरीदने का विचार बनाकर बाज़ार जाते हैं तो फिर हमारी ऐसी हालत कभी नहीं हो सकती।

3. बाज़ार के जादू का प्रभाव-बाज़ार में रूप का जादू होता है। जब ग्राहक का मन खाली होता है, तब वह उस पर अपना असर दिखाता है। खाली मन बाज़ार की सभी वस्तुओं की ओर आकर्षित होता है और यह कहता है कि सभी वस्तुएँ खरीद ली जाएँ। परंतु जब बाज़ार का जादू उतर जाता है तब ग्राहक को पता चलता है कि उसने जो कुछ खरीदा है, वह उसे आराम पहुँचाने की बजाय बेचैनी पहुंचा रहा है। इससे मनुष्य में अभिमान बढ़ता है, परंतु उसकी शांति भंग हो जाती है। बाज़ार के जादू का प्रभाव रोकने का एक ही उपाय है कि हम खाली मन से बाज़ार न जाएँ बल्कि यह निर्णय करके जाएँ कि हमने अमुक वस्तु खरीदनी है। ऐसा करने से बाज़ार ग्राहक से कृतार्थ हो जाएगा। आवश्यकता के समय काम आना बाज़ार की वास्तविक कृतार्थता है।

4. खाली मन और बंद मन की समस्या-यदि ग्राहक का मन बंद है तो इसका अभिप्राय है कि मन शून्य हो गया है। मनुष्य का मन कभी बंद नहीं होता है। शून्य होने का अधिकार केवल ईश्वर का है। कोई भी मनुष्य परमात्मा के समान पूर्ण नहीं है, सभी अपूर्ण हैं। इसलिए मानव-मन में इच्छाएँ उत्पन्न होती रहती हैं। इच्छाओं का विरोध करना व्यर्थ है। यह तो एक प्रकार से ठाट लगाकर मन को बंद करना है। ऐसा करके हम लोभ को नहीं जीतते, बल्कि लोभ हमें जीत लेता है।

जो लोग मन को बलपूर्वक बंद करते हैं। वे हठयोगी कहे जा सकते हैं। इससे हमारा मन संकीर्ण तथा क्षुद्र हो जाता है। प्रत्येक मानव अपूर्ण है, हमें इस सत्य को स्वीकार करना चाहिए। सच्चा कर्म हमें अपूर्णता का बोध कराता है। अतः हमें मन को बलपूर्वक रोकना नहीं चाहिए अपितु बात को सुनना चाहिए। क्योंकि मन की सोच उद्देश्यपूर्ण होती है, परंतु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि हम मन को मनमानी करने की छूट दें, क्योंकि वह अखिल का एक अंग है। अतः हमें समाज का एक अंग बनकर रहना होता है।

5. भगत जी का उदाहरण लेखक के पड़ोस में चूरन बेचने वाले एक भगत जी रहते हैं। उनका यह नियम है कि वह प्रतिदिन छः आने से अधिक नहीं कमाएँगे। इसलिए वह अपना चूरन न थोक व्यापारी को बेचते हैं न ही ऑर्डर पर बनाते हैं। जब वे बाज़ार जाते हैं तो वह बाज़ार की सभी वस्तुओं को तटस्थ होकर देखते हैं। उनका मन बाज़ार के आकर्षण के कारण मोहित नहीं होता। वे सीधे पंसारी की दुकान पर जाते हैं जहाँ से वे काला नमक तथा जीरा खरीद लेते हैं और अपने घर लौट आते हैं।

भगत जी द्वारा बनाया गया चूरन हाथों-हाथ बिक जाता है। अनेक लोग भगत के प्रति सद्भावना प्रकट करते हुए उनका चूरन खरीद लेते हैं। जैसे ही भगत जी को छः आने की कमाई हो जाती है तो वे बचा हुआ चूरन बच्चों में बाँट देते हैं। वे हमेशा स्वस्थ रहते हैं। लेखक का कहना है कि भगत जी पर बाज़ार का जादू नहीं चलता। भले ही भगत जी अनपढ़ हैं और बड़ी-बड़ी बातें नहीं करते परंतु उस पर बाज़ार के जादू का कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता। पैसा मानों उनसे भीख माँगता है कि मुझे ले लो परंतु भगत जी का मन बहुत कठोर है और उन्हें पैसे पर दया नहीं आती। वह छः आने से अधिक नहीं कमाना चाहते।।

6. पैसे की व्यंग्य शक्ति का प्रभाव पैसों में भी एक दारुण व्यंग्य शक्ति है। जब हमारे पास से मोटर गुज़रती है तो पैसा हम पर एक गहरा व्यंग्य कर जाता है तब मनुष्य अपने आप से कहता है कि उसके पास मोटरकार क्यों नहीं है? वह कहता है कि उसने मोटरकार वाले माता-पिता के घर जन्म क्यों नहीं लिया? पैसे की यह व्यंग्य-शक्ति अपने सगे-संबंधियों के प्रति कृतघ्न बना देती है, परंतु चूरन बेचने वाले भगत जी पर इस व्यंग्य-शक्ति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। उसके सामने व्यंग्य-शक्ति पानी-पानी हो जाती है। भगत जी में ऐसी कौन-सी शक्ति है जो पैसे के व्यंग्य के समक्ष अजेय बनी रहती है। हम उसे कुछ भी नाम दे सकते हैं, परंतु यह भी एक सच्चाई है कि जिस मन में तृष्णा होती है, उसमें शक्ति नहीं होती। जिस मनुष्य में संचय की तृष्णा और वैभव की चाह है, वह मनुष्य निश्चय से निर्बल है। इसी निर्बलता के कारण वह धन-वैभव का संग्रह करता है।

7. बाज़ार के बारे में भगत जी का दृष्टिकोण एक दिन भगत जी की लेखक के साथ मुलाकात हुई। दोनों में राम-राम हुई। लेखक यह देखकर दंग रह गया कि भगत जी सबके साथ हँसते हुए बातें कर रहे हैं। वे खुली आँखों से बाज़ार में आते-जाते हैं। वे बाज़ार की सभी वस्तुओं को देखते हैं। बाज़ार के सामान के प्रति उनके मन में आदर की भावना है। मानों वे सबको दे रहे हैं क्योंकि उनका मन भरा हआ है। वे खली आँख तथा संतष्ट मन से सभी फैंसी स्टोरों को छोडकर पंसारी की दकान से काला नमक और जीरा खरीदते हैं। ये चीज़े खरीदने पर बाज़ार उनके लिए शून्य बन जाता है, मानों उनके लिए बाज़ार का अस्तित्व नहीं है। चाहे चाँदनी चौक का आकर्षण उन्हें बुलाता रहे या चाँदनी बिछी रहे, परंतु वे सभी का कल्याण, मंगल चाहते हुए घर लौट आते हैं। उनके लिए बाज़ार का मूल्य तब तक है, जब तक वह काला नमक और जीरा नहीं खरीद लेते।

8. बाज़ार की सार्थकता-लेखक के अनुसार बाज़ार की सार्थकता वहाँ से कुछ खरीदने पर है। जो लोग केवल अपनी क्रय-शक्ति के बल पर बाज़ार में जाते हैं, वे बाज़ार से कोई लाभ प्राप्त नहीं कर सकते और न ही बाज़ार उन्हें कोई लाभ पहुंचा सकता है। ऐसे लोगों के कारण ही बाज़ारूपन तथा छल-कपट बढ़ रहा है। यही नहीं, मनुष्यों में भ्रातृत्व का भाव भी नष्ट हो रहा है। इस मनोवृत्ति के कारण बाज़ार में केवल ग्राहक और विक्रेता रह जाते हैं। लगता है कि दोनों एक-दूसरे को धोखा देने का प्रयास कर रहे हैं। इस प्रकार का बाज़ार लोगों का शोषण करता है और छल-कपट को बढ़ावा देता है। अतः ऐसा बाज़ार मानव के लिए हानिकारक है। जो अर्थशास्त्र इस प्रकार के बाज़ार का पोषण करता है, वह अनीति पर टिका है। उसे एक प्रकार का मायाजाल ही कहेंगे। इसलिए बाज़ार की सार्थकता इसमें है कि वह ग्राहकों की आवश्यकताओं को पूरा करे और बेकार की वस्तुएँ न बेचे।

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कठिन शब्दों के अर्थ

आशय = प्रयोजन, मतलब। महिमा = महत्त्व, महत्ता। प्रमाणित = प्रमाण से सिद्ध । माया = धन-संपत्ति। मनीबैग = धन का थैला, पैसे की गरमी। पावर = शक्ति। माल-टाल = सामान। पजे ग पावर = खरीदने की शक्ति। फिजूल = व्यर्थ। असबाब = सामान। करतब = कला। दरकार = आवश्यकता, ज़रूरत। बेहया = बेशर्म, निर्लज्ज। हरज़ = हानि। आग्रह = खुशामद करना। तिरस्कार = अपमान। मूक = मौन। काफी = पर्याप्त। परिमित = सीमित। अतुलित = जिसकी तुलना न हो सके। कामना = इच्छा। विकल = व्याकुल । तृष्णा = लालसा। ईर्ष्या = जलन। त्रास = दुख, पीड़ा। बहुतायत = अधिकता। सेंक = तपन, गर्मी। खुराक = भोजन। कृतार्थ = अनुगृहीत। शून्य = खाली। सनातन = शाश्वत। निरोध = रोकना। राह = रास्ता, मार्ग।

अकारथ = व्यर्थ। व्यापक = विशाल, विस्तृत। संकीर्ण = संकरा। विराट = विशाल । क्षुद्र = तुच्छ, हीन। अप्रयोजनीय = बिना किसी मतलब के। खुशहाल = संपन्न। पेशगी = अग्रिम राशि। बँधे वक्त = निश्चित समय पर। मान्य = सम्माननीय। नाचीज़ = महत्त्वहीन, तुच्छ। अपदार्थ = महत्त्वहीन, जिसका अस्तित्व न हो। दारुण = भयंकर। निर्मम = कठोर। कुंठित = बेकार, व्यर्थ। लीक = रेखा। वंचित = रहित। कृतघ्न = अहसान को न मानने वाला। लोकवैभव = सांसारिक धन-संपत्ति। अपर = दूसरा। स्पिरिचुअल = आध्यात्मिक। प्रतिपादन = वर्णन। सरोकार = मतलब। स्पृहा = इच्छा। अकिंचित्कर = अर्थहीन। संचय = संग्रह। निर्बल = कमज़ोर। अबलता = निर्बलता, कमजोरी। कोसना = गाली देना। अभिवादन = नमस्कार। पसोपेश = असमंजस। अप्रीति = शत्रुता। ज्ञात = मालूम। विनाशक = नष्ट करने वाला, नाशकारी। सद्भाव = स्नेह तथा सहानुभूति की भावना। बेचक = बेचने वाला या व्यापारी। पोषण = पालन।

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HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 11 भक्तिन

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 11 भक्तिन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 11 भक्तिन

HBSE 12th Class Hindi भक्तिन Textbook Questions and Answers

पाठ के साथ

प्रश्न 1.
भक्तिन अपना वास्तविक नाम लोगों से क्यों छुपाती थी? भक्तिन को यह नाम किसने और क्यों दिया होगा?
उत्तर:
भक्तिन का वास्तविक नाम लछमिन अर्थात् लक्ष्मी था। लक्ष्मी धन-संपत्ति की देवी होती है। परंतु इस लक्ष्मी के भाग्य में धन तो नाममात्र भी नहीं था। उसे हमेशा गरीबी भोगनी पड़ी। केवल कुछ दिनों के लिए उसे भरपेट भोजन मिल सका, जब वह अपने पति के साथ परिवार से अलग होकर रहने लगी थी। अन्यथा आजीवन दुर्भाग्य ने उसका पीछा नहीं छोड़ा। अतः धन की देवी लक्ष्मी का मान रखने के लिए वह हमेशा अपने नाम को छुपाती रही। उसने केवल लेखिका को अपना सही नाम बताया, परंतु साथ ही यह भी निवेदन कर दिया कि वह उसे लछमिन (लक्ष्मी) नाम से कभी न पुकारे।

भक्तिन को लछमिन (लक्ष्मी) नाम उसके माता-पिता ने दिया होगा। इस नाम के पीछे उनकी स्नेह-भावना रही होगी। शायद उन्होंने यह भी सोचा होगा कि यह नाम रखने से उनके अपने घर में धन का आगमन होगा और विवाह के बाद वह किसी खाते-पीते परिवार में ब्याही जाएगी। अतः उन्होंने अपनी बेटी को लक्ष्मी स्वरूप मानकर उसका यह नाम रखा होगा।

प्रश्न 2.
दो कन्या-रत्न पैदा करने पर भक्तिन पुत्र-महिमा में अंधी अपनी जिठानियों द्वारा घृणा व उपेक्षा का शिकार बनी। ऐसी घटनाओं से ही अकसर यह धारणा चलती है कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है। क्या इससे आप सहमत हैं?
उत्तर:
भक्तिन ने दो नहीं, अपितु तीन कन्याओं को जन्म दिया था। कन्या-रत्न उत्पन्न करने के बावजूद भक्तिन पुत्र-महिमा में अंधी अपनी जिठानियों द्वारा घृणा व उपेक्षा का शिकार बनी रही। इससे यह सिद्ध होता है कि भारतीय समाज युगों से बेटियों की अपेक्षा बेटों को महत्त्व देता रहा है। भक्तिन की जिठानियाँ यह सोचकर स्वयं को भाग्यवान समझती रहीं और भक्तिन की उपेक्षा करती रहीं। भक्तिन के संदर्भ में यह धारणा सही प्रतीत होती है कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है। भक्तिन को उपेक्षा तथा घृणा घर की स्त्रियों से ही प्राप्त हुई। उसका पति तो उसे हमेशा सम्मान एवं आदर देता रहा।

सच्चाई तो यह है कि स्त्रियाँ स्वयं ही अपने-आप को पुरुषों से हीन समझती हैं। इसीलिए वे पुत्रवती होने की कामना करती हैं। इसके पीछे समाज की यह धारणा भी चली आ रही है कि बेटे ही वंश को आगे बढ़ाते हैं, बेटियाँ नहीं। कन्या भ्रूण हत्या के पीछे भी नारियों की सहमति हमेशा होती है। विशेषकर, सास ही बहू को इस काम के लिए उकसाती है। स्त्रियाँ ही लड़का-लड़की के भेदभाव को बढ़ावा देती हैं। वे ही दहेज की माँग रखती हैं। यही नहीं, बहू को कष्ट देने में सास की विशेष भूमिका रहती है। अतः यह कहना सर्वथा उचित होगा कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है।

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प्रश्न 3.
भक्तिन की बेटी पर पंचायत द्वारा ज़बरन पति थोपा जाना एक दुर्घटना भर नहीं, बल्कि विवाह के संदर्भ में स्त्री के मानवाधिकार (विवाह करें या न करें अथवा किससे करें) इसकी स्वतंत्रता को कुचलते रहने की सदियों से चली आ रही सामाजिक परंपरा का प्रतीक है। कैसे?
उत्तर:
भक्तिन की विधवा बेटी के साथ उसके ताऊ के लड़के के तीतरबाज़ साले ने जोर ज़बरदस्ती की, वह निश्चय से रेप था। उसे इस दुराचरण के लिए दंड मिलना चाहिए था। लेकिन गाँव की पंचायत ने न्याय न करके अन्याय किया और लड़की की अनिच्छा के बावजूद उसे तीतरबाज़ युवक की पत्नी घोषित कर दिया। विवाह के मामले में लड़की की रजामंदी की ओर हमारा समाज ध्यान नहीं देता। यह निश्चय से मानवाधिकार का हनन है। विशेषकर, गाँवों की पंचायतें हमेशा लड़कियों के स्वर को दबाने का काम करती रही हैं, जिससे भक्तिन की बेटी के समान कोई भी लड़की विरोध करने का साहस नहीं करती। अतः भक्तिन की बेटी पर पंचायत द्वारा ज़बरन पति थोपा जाना स्त्री के मानवाधिकार को कुचलना है।

प्रश्न 4.
भक्तिन अच्छी है, यह कहना कठिन होगा, क्योंकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं- लेखिका ने ऐसा क्यों कहा होगा?
उत्तर:
लेखिका को पता है कि भक्तिन में अनेक गुणों के बावजूद कुछ दुर्गुण भी हैं। भक्तिन के निम्नलिखित कार्य ही दुर्गुण कहे जा सकते हैं और लेखिका भी ऐसा ही मानती है।

  1. भक्तिन लेखिका के इधर-उधर पड़े पैसों को भंडार-घर की मटकी में छिपाकर रख देती है। पूछने पर वह इसे चोरी नहीं मानती, बल्कि तर्क देकर इसे पैसे सँभालकर रखना कहती है और लेखिका को ये पैसे लौटाती नहीं।
  2. जब उसकी मालकिन कभी उस पर क्रोधित होती है तो वह बात को इधर-उधर कर बताती है और इसे झूठ बोलना नहीं मानती।
    शास्त्रीय कथनों का वह इच्छानुसार व्याख्या करती है।।
  3. वह दूसरों के कहे को नहीं मानती, बल्कि दूसरों को भी अपने अनुसार बना लेती है।
  4. स्वामिनी द्वारा चले जाने के आदेश को वह हँसकर टाल देती है और लेखिका के घर को छोड़कर नहीं जाती।

प्रश्न 5.
भक्तिन द्वारा शास्त्र के प्रश्न को सुविधा से सुलझा लेने का क्या उदाहरण लेखिका ने दिया है?
उत्तर:
भक्तिन स्वयं को बहुत समझदार समझती है। वह प्रत्येक बात का अपने ढंग से अर्थ निकालना जानती है। जब लेखिका ने उसे सिर मुंडवाने से रोकना चाहा तो भक्तिन ने शास्त्रों की दुहाई दी और यह कहा कि शास्त्रों में स्पष्ट लिखा है-“तीरथ गए मँडाए सिद्ध”। लगता है यह उक्ति उसकी अपनी गढी हई है अथवा लोगों से सनी-सुनाई है।

प्रश्न 6.
भक्तिन के आ जाने से महादेवी अधिक देहाती कैसे हो गईं?
उत्तर:
भक्तिन स्वयं पूर्णतया देहाती थी। वह अपनी देहाती जीवन-पद्धति को नहीं छोड़ सकी। इसलिए उसने महादेवी को भी अपने साँचे में ढाल लिया। उसे जो कुछ सहज और सरल पकाना आता था, महादेवी को वही खाना पड़ता था। लेखिका को रात को बने मकई के दलिए के साथ मट्ठा पीना पड़ता था। बाजरे के तिल वाले पुए खाने पड़ते थे और ज्वार के भुने हुए भुट्टे की खिचड़ी भी खानी पड़ती थी। यह सब देहाती भोजन था और यही महादेवी को खाने के लिए मिलता था। अतः महादेवी भी भक्तिन के समान देहाती बन गई।

पाठ के आसपास

प्रश्न 1.
आलो आँधारि की नायिका और लेखिका बेबी हालदार और भक्तिन के व्यक्तित्व में आप क्या समानता देखते हैं?
उत्तर:
बेबी हालदार और भक्तिन दोनों ही नारी जाति के अधिकारों के लिए संघर्ष करती हैं। जिस प्रकार बेबी हालदार अपने बच्चों के पालन-पोषण के लिए सभी झुग्गी वालों का विरोध करती है और पति के अभाव में भी मेहनत द्वारा अपने बच्चों को पालती है, उसी प्रकार भक्तिन भी अपनी बेटियों के हक की लड़ाई लड़ते हुए अपने जेठ तथा जिठानियों के अन्याय का विरोध करती है। वह निरंतर संघर्ष करके अंत तक अपनी ज़मीन-जायदाद की हकदार बनी रहती है। पुनः ये दोनों नायिकाएँ दूसरे विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा देती हैं तथा सादा और सरल जीवन व्यतीत करती हैं।

प्रश्न 2.
भक्तिन की बेटी के मामले में जिस तरह का फैसला पंचायत ने सुनाया, वह आज भी कोई हैरतअंगेज़ बात नहीं है। अखबारों या टी०वी० समाचारों में आनेवाली किसी ऐसी ही घटना को भक्तिन के उस प्रसंग के साथ रखकर उस पर चर्चा करें।
उत्तर:
आज भी ग्राम पंचायतें रूढ़ियों एवं जड़-परंपराओं का ही पालन कर रही हैं। विशेषकर, बेटियों के मामले में हमारी पंचायतें रूढ़ियाँ ही अपनाती हैं। भले ही गाँव के दबंग लोग निम्न जाति की औरतों अथवा लड़कियों के साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती करें, लेकिन ग्राम पंचायतें उनके विरुद्ध कोई कदम नहीं उठा पातीं। अकसर अखबारों या टी०वी० पर इस प्रकार के समाचार पढ़ने या देखने को मिलते रहते हैं कि एक ही गाँव के युवक-युवती के विवाह को भाईचारे के नाम पर अवैध घोषित किया जाता है और उन्हें भाई-बहन बन कर रहना पड़ता है। जो भी पंचायत के तुगलकी फरमान का उल्लंघन करता है उसका वध तक कर दिया जाता है। अतः विवाह के मामले में हमारी पंचायतों का रुख आज भी रूढ़िवादी है।

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प्रश्न 3.
पाँच वर्ष की वय में ब्याही जानेवाली लड़कियों में सिर्फ भक्तिन नहीं है, बल्कि आज भी हज़ारों अभागिनियाँ हैं। बाल-विवाह और उम्र के अनमेलपन वाले विवाह की अपने आस-पास हो रही घटनाओं पर दोस्तों के साथ परिचर्चा करें।
उत्तर:
निम्नलिखित बिंदुओं पर विद्यार्थी अपने मित्रों के साथ परिचर्चा कर सकते हैं

  1. भले ही हमारे देश में बाल-विवाह तथा अनमेल विवाह के विरुद्ध कानून बने हुए हैं, लेकिन फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों में इन कानूनों का उल्लंघन होता रहता है।
  2. राजस्थान में एक विशेष पर्व के अवसर पर हज़ारों की संख्या में बाल-विवाह होते हैं।
  3. गाँवों में तो बाल-विवाह की बात आम है, परंतु शहरों में भी इस प्रकार के विवाह होते रहते हैं।
  4. लोगों में जागरूकता उत्पन्न करने के लिए सरकारी तथा गैर-सरकारी स्तर पर लोगों को बाल-विवाह तथा अनमेल विवाह के दुष्परिणामों से अवगत कराना आवश्यक है।

प्रश्न 4.
महादेवी जी इस पाठ में हिरनी सोना, कुत्ता बसंत, बिल्ली गोधूलि आदि के माध्यम से पशु-पक्षी को मानवीय वाली लेखिका के रूप में उभरती हैं। उन्होंने अपने घर में और भी कई पशु-पक्षी पाल रखे थे तथा उन पर रेखाचित्र भी लिखे हैं। शिक्षक की सहायता से उन्हें ढूँढ़कर पढ़ें। जो मेरा परिवार नाम से प्रकाशित है।
उत्तर:
पुस्तकालय से ‘मेरा परिवार’ गद्य रचना को लेकर विद्यार्थी स्वयं पढ़ें। इस गद्य रचना में गिल्लू, सोना, नीलकंठ, गोरा, कुत्ता बसंत, बिल्ली गोधूलि के बारे में विस्तार से पढ़ा जा सकता है।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
नीचे दिए गए विशिष्ट भाषा-प्रयोगों के उदाहरणों को ध्यान से पढ़िए और इनकी अर्थ-छवि स्पष्ट कीजिए
(क) पहली कन्या के दो संस्करण और कर डाले
(ख) खोटे सिक्कों की टकसाल जैसी पत्नी
(ग) अस्पष्ट पुनरावृत्तियाँ और स्पष्ट सहानुभूतिपूर्ण
उत्तर:
अर्थ-छवि:
(क) प्रथम पंक्ति का अर्थ है कि भक्तिन ने उसी प्रकार पहली कन्या के बाद दो अन्य कन्याओं को जन्म दिया, जैसे किसी पुस्तक के नए संस्करण प्रकाशित होते हैं।

(ख) टकसाल में सिक्के ढालने का काम होता है, परंतु हमारे समाज में लड़के को खरा सिक्का और लड़की को खोटा सिक्का माना गया है। ऐसा माना जाता है कि कन्या पराया धन होती है तथा उसके विवाह में दान-दहेज देना पड़ता है। यहाँ भक्तिन द्वारा एक-एक करके तीन लड़कियों को जन्म देने के कारण व्यंग्य रूप से उसे खोटे सिक्कों की टकसाल जैसी पत्नी कहा गया है।

(ग) वस्तुतः भक्तिन अपने पिता की बीमारी का पता करने के लिए अपने मायके गई तो उस समय गाँव की औरतों द्वारा फुसफुसाते हुए यह बात बार-बार कही गई ‘वो आई, लक्ष्मी आ गई’। औरतों की इस फुसफुसाहट में भक्तिन के प्रति स्पष्ट सहानुभूति प्रकट की जा रही थी। क्योंकि उसकी विमाता ने बीमारी के दौरान ज़मीन-जायदाद के चक्कर में उसे सूचना नहीं भेजी थी।

प्रश्न 2.
‘बहनोई’ शब्द ‘बहन (स्त्री.) + ओई’ से बना है। इस शब्द में हिंदी भाषा की एक अनन्य विशेषता प्रकट हुई है। पुंलिंग शब्दों में कुछ स्त्री-प्रत्यय जोड़ने से स्त्रीलिंग शब्द बनने की एक समान प्रक्रिया कई भाषाओं में दिखती है, पर स्त्रीलिंग शब्द में कुछ पुं. प्रत्यय जोड़कर पुंलिंग शब्द बनाने की घटना प्रायः अन्य भाषाओं में दिखलाई नहीं पड़ती। यहाँ पुं. प्रत्यय ‘ओई’ हिंदी की अपनी विशेषता है। ऐसे कुछ और शब्द और उनमें लगे पुं. प्रत्ययों की हिंदी तथा और भाषाओं में खोज करें।
उत्तर:
ननद शब्द स्त्रीलिंग है। इसमें ‘ओई’ (पुं. प्रत्यय) जोड़कर ‘ननदोई’ शब्द बनाया जाता है। जिसका अर्थ है- ननद का पति। विद्यार्थी शब्दकोश की सहायता से पुं. प्रत्ययों की जानकारी प्राप्त करें।

प्रश्न 3.
पाठ में आए लोकभाषा के इन संवादों को समझ कर इन्हें खड़ी बोली हिंदी में ढाल कर प्रस्तुत कीजिए।
(क) ई कउन बड़ी बात आय। रोटी बनाय जानित है, दाल राँध लेइत है, साग-भाजी /उक सकित है, अउर बाकी का रहा।
(ख) हमारे मालकिन तौ रात-दिन कितबियन माँ गड़ी रहती हैं। अब हमहूँ पढ़े लागब तो घर-गिरिस्ती कउन देखी-सुनी।
(ग) ऊ बिचरिअउ तौ रात-दिन काम माँ झुकी रहती हैं, अउर तुम पचै घूमती-फिरती हौ, चलौ तनिक हाथ बटाय लेउ।
(घ) तब ऊ कुच्छौ करिहैं धरि ना-बस गली-गली गाउत-बजाउत फिरिहैं।
(ङ) तुम पचै का का बताईयहै पचास बरिस से संग रहित है।
(च) हम कुकुरी बिलारी न होय, हमार मन पुसाई तौ हम दूसरा के जाब नाहिं त तुम्हार पचै की छाती पै होरहा पूँजब और राज करब, समुझे रहो।।
उत्तर:
(क) यह कौन-सी बड़ी बात है। रोटी बनाना जानती हूँ, दाल राँध (पका) लेती हूँ, साग-सब्जी छौंक सकती हूँ और बाकी क्या रहा।

(ख) हमारी मालकिन तो रात-दिन पुस्तकों में लगी रहती है। अब यदि मैं भी पढ़ने लग गई तो घर-गृहस्थी को कौन देखेगा।

(ग) वह बेचारी तो रात-दिन काम में लगी रहती है और तुम लोग घूमते-फिरते हो। जाओ, थोड़ा उनकी सहायता करो।

(घ) तब वह कुछ करता-धरता नहीं है, बस गली-गली में गाता-बजाता फिरता है।

(ङ) तुम लोगों को क्या बताऊँ पचास वर्षों से साथ रह रही हूँ।

(च) मैं कोई कुत्तिया या बिल्ली नहीं हूँ। मेरा मन करेगा तो मैं दूसरे के यहाँ जाऊँगी, नहीं तो तुम्हारी छाती पर बैठकर अनाज भूगूंगी और राज करूँगी, यह बात अच्छी तरह से समझ लो।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 11 भक्तिन

प्रश्न 4.
भक्तिन पाठ में पहली कन्या के दो संस्करण जैसे प्रयोग लेखिका के खास भाषाई संस्कार की पहचान कराता है, साथ ही ये प्रयोग कथ्य को संप्रेषणीय बनाने में भी मददगार हैं। वर्तमान हिंदी में भी कुछ अन्य प्रकार की शब्दावली समाहित हुई है। नीचे कुछ वाक्य दिए जा रहे हैं जिससे वक्ता की खास पसंद का पता चलता है। आप वाक्य पढ़कर बताएँ कि इनमें किन तीन विशेष प्रकार की शब्दावली का प्रयोग हुआ है? इन शब्दावलियों या इनके अतिरिक्त अन्य किन्हीं विशेष शब्दावलियों का प्रयोग करते हुए आप भी कुछ वाक्य बनाएँ और कक्षा में चर्चा करें कि ऐसे प्रयोग भाषा की समृद्धि में कहाँ तक सहायक है?
→ अरे! उससे सावधान रहना! वह नीचे से ऊपर तक वायरस से भरा हुआ है। जिस सिस्टम में जाता है उसे हैंग कर देता है।
→ घबरा मत! मेरी इनस्वींगर के सामने उसके सारे वायरस घुटने टेकेंगे। अगर ज़्यादा फाउल मारा तो रेड कार्ड दिखा के हमेशा के लिए पवेलियन भेज दूंगा।
→ जानी टेंसन नई लेने का वो जिस स्कूल में पढ़ता है अपुन उसका हैडमास्टर है।
उत्तर:
उपर्युक्त वाक्यों में कंप्यूटर, खेल जगत तथा मुंबई फिल्मी दुनिया की शब्दावली का प्रयोग देखा जा सकता है।
(i) वायरस, सिस्टम तथा हैंग तीनों ही कंप्यूटर-प्रणाली के शब्द हैं। इनके अर्थ हैं-

  • वायरस – दोष
  • सिस्टम – प्रणाली
  • हैंग – ठहराव

अथवा गतिरोध या बाधा इस वाक्य का अर्थ होगा कि अरे भाई उस व्यक्ति से खबरदार रहना, वह पूर्णतया दोषों से ग्रस्त है। जिसके यहाँ भी जाता है, वहाँ पर वह सारी व्यवस्था को खराब कर देता है।।

(ii) इनस्वींगर, फाउल, रेड कार्ड तथा पवेलियन, ये चारों शब्द क्रिकेट खेल जगत से संबंधित हैं।
इनस्वींगर – भीतर तक भेदने की कोशिश करना।

  • फाउल – दोषपूर्ण कार्य
  • रेड कार्ड – बाहर जाने का इशारा
  • पवेलियन – वापिस घर भेजना, बाहर कर देना।

इस वाक्य का अर्थ होगा कि घबरा मत! मैं इस प्रकार का कार्य करूँगा कि उसे भीतर तक चोट लगेगी और उसकी सारी हेकड़ी निकल जाएगी। यदि उसने अधिक गड़बड़ी की तो मैं बच्चू को ऐसी कानूनी कार्रवाई में फँसाऊँगा कि वह यहाँ से बाहर हो जाएगा।

(iii) जानी! (संबोधन), टेंसन, स्कूल, हैडमास्टर ये चारों शब्द मुंबई फिल्मी जगत के हैं।

  • जानी – हल्का-फुल्का संबोधन
  • टेसन – चिंता करना
  • स्कूल में पढ़ना – काम करना
  • हैडमास्टर होना – बढ़-चढ़ कर होना, उस्तादों का उस्ताद होना।

इस वाक्य का अर्थ होगा कि प्रिय मित्र! तुम किसी प्रकार की चिंता मत करो। वह जो कुछ भी कर रहा है, मैं उस काम का अच्छा जानकार हूँ। सब कुछ ठीक कर दूंगा।

HBSE 12th Class Hindi भक्तिन Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
भक्तिन के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भक्तिन महादेवी की प्रमुख सेविका थी। वह महादेवी की आयु से लगभग पच्चीस वर्ष बड़ी थी। इसलिए वह स्वयं को लेखिका की अभिभाविका समझती थी। उसकी सेवा-भावना में अभिभाविका जैसा अधिकार था, परंतु उसके हृदय में माँ की ममता भी थी। यद्यपि गृहस्थ जीवन में भक्तिन को अधिक सुख प्राप्त नहीं हुआ, लेकिन महादेवी के यहाँ रहते हुए उसे सुखद जीवन प्राप्त हुआ। भले ही वह स्वभाव से कर्कश तथा दुराग्रही थी। परंतु महादेवी के प्रति उसमें आदर-सम्मान तथा समर्पण की भावना थी। वह अपनी स्वामिन को सबसे महान मानती थी। उसने लेखिका की भलाई चाहने के लिए उसकी रुचि तथा आदतों में परिवर्तन कर दिया।

वह छाया के समान महादेवी के साथ लगी रहती थी, भले ही महादेवी के कुत्ते-बिल्ली तक सो जाते थे, परंतु भक्तिन तब तक नहीं सोती थी, जब तक उसकी मालकिन जागती रहती थी। जहाँ आवश्यकता पड़ती, वह तत्काल सहायता के लिए पहुँच जाती थी। यद्यपि भक्तिन युद्ध तथा जेल जाने से बहुत डरती थी, परंतु अपनी मालकिन के लिए वह जेल जाने को भी तैयार थी। जब नगर भर में युद्ध के बादल मंडरा रहे थे तो भी भक्तिन ने अपनी मालकिन का साथ नहीं छोड़ा। इसलिए भक्तिन ने जल्दी ही एक सच्ची अभिभाविका का पद प्राप्त कर लिया। इसके साथ-साथ भक्तिन संस्कारवान, परिश्रमी तथा मधुर स्वभाव की नारी भी थी। यही कारण है कि उसका पति उससे अत्यधिक प्रेम करता था।

प्रश्न 2.
भक्तिन का नामकरण किसने किया और क्यों?
उत्तर:
भक्तिन का असली नाम लछमिन (लक्ष्मी) था, परंतु महादेवी की सेवा करते हुए वह अपना मूल नाम छिपाना चाहती थी। क्योंकि यह नाम उसके जीवन के सर्वथा प्रतिकूल था। भक्तिन के हाव-भाव, चाल-चलन, घुटा हुआ सिर और कंठी माला को देखकर ही लेखिका ने उसका यह नामकरण किया।

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प्रश्न 3.
भक्तिन की पारिवारिक पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
उत्तर:
भक्तिन ऐतिहासिक गाँव झूसी के एक प्रसिद्ध शूरवीर अहीर की इकलौती पुत्री थी। उसका पिता उसको बहुत प्यार करता था। लेकिन उसे विमाता की देखरेख में आरंभिक जीवन व्यतीत करना पड़ा। पाँच वर्ष की आयु में उसका विवाह हँडिया गाँव के एक संपन्न गोपालक के सबसे छोटे बेटे के साथ हो गया। नौ वर्ष की आयु में उसका गौना कर दिया गया। उसके पिता का बेटी के प्रति अत्यधिक स्नेह होने के कारण विमाता ने उसकी बीमारी का समाचार उसके पास नहीं भेजा।

प्रश्न 4.
भक्तिन के ससुराल वाले उसकी उपेक्षा क्यों करते थे?
उत्तर:
पहली बात तो यह है कि भक्तिन सबसे छोटी बहू थी। इसलिए घर की सास और जिठानियाँ उसे दबाकर रखना चाहती थीं। दूसरा, भक्तिन ने एक के बाद एक तीन बेटियों को जन्म दिया। परंतु सास तथा जिठानियों ने केवल बेटों को जन्म दिया था। इसलिए लड़कियों को जन्म दिए जाने के कारण भक्तिन के ससुराल वाले उसकी उपेक्षा करते थे।

प्रश्न 5.
भारतीय ग्रामीण समाज में लड़के-लड़कियों में भेदभाव क्यों किया जाता है स्पष्ट करें।
उत्तर:
भारतीय ग्रामीण समाज में आज भी लड़का-लड़की में भेदभाव किया जाता है। गाँव के लोग लड़के को सोने का खरा सिक्का और लड़कियों को खोटा सिक्का कहते हैं। यही नहीं, लड़की को पराया धन भी कहा जाता है। लड़कियों को जन्म देने के कारण भक्तिन की ससुराल में उपेक्षा की गई और घर के सारे काम करवाए गए। परंतु घर के काले-कलूटे तथा निकम्में पुत्रों को जन्म देने वाली जिठानियाँ अपने पतियों से पिटकर भी घर में आराम करती थीं। उनके काले-कलूटे लड़कों को खाने में राब और मलाई मिलती थी और भक्तिन और उसकी लड़कियों को घर का सारा काम करने के बावजूद भी खाने में काले गुड़ की डली के साथ चना-बाजरा चबाने को मिलता था। आज भी हमारे भारतीय ग्रामीण समाज में अधिकांश लड़कियों को घर के काम-काज तक ही सीमित रखा जाता है और उन्हें उचित शिक्षा भी नहीं मिल पाती।

प्रश्न 6.
महादेवी ने भक्तिन के जीवन को कितने परिच्छेदों में बाँटा है? प्रत्येक का उल्लेख करें।
उत्तर:
महादेवी ने भक्तिन के जीवन को चार परिच्छेदों में व्यक्त किया है। प्रथम परिच्छेद भक्तिन के विवाह-पूर्व जीवन से संबंधित है। द्वितीय परिच्छेद ससुराल में सधवा के रूप से संबंधित है। तृतीय परिच्छेद का संबंध उसके वैधव्य तथा विरक्त जीवन से है। चतुर्थ परिच्छेद का संबंध उसके उस जीवनकाल से है, जिसमें वह महादेवी की सेवा करती है।

प्रश्न 7.
पति की मृत्यु के बाद ससुराल वाले उसका पुनर्विवाह क्यों करना चाहते थे?
उत्तर:
भक्तिन उनतीस वर्ष की आयु में ही विधवा हो गई थी। उसने अपनी मेहनत द्वारा अपने खेत और बाग हरे-भरे कर लिए थे। उसके पास दुधारू गाय और भैंस थी। उसके जेठ तथा जिठौत यह चाहते थे कि यदि भक्तिन का दूसरा विवाह हो जाएगा तो उसके घर तथा खेत-खलिहान पर उनका अधिकार स्थापित हो जाएगा। लेकिन भक्तिन उनके मंतव्य को अच्छी प्रकार समझ गई थी और उसने पुनर्विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

प्रश्न 8.
क्या ससुराल से अलग होकर भक्तिन ने सही किया?
उत्तर:
ग्रामीण संस्कृति की दृष्टि से भक्तिन का संयुक्त परिवार से अलग होना अनुचित कहा जा सकता है, परंतु व्यावहारिक दृष्टि से यह बिल्कुल सही है। ससुराल वालों ने भक्तिन को हर प्रकार से दबाया, अपमानित किया और उपेक्षित किया। सास और जिठानियों ने भक्तिन के साथ नौकरों जैसा व्यवहार किया। यहाँ तक कि उसकी बेटियों को भी चना-बाजरा खाकर गुजारा करना पड़ता था। इसलिए भक्तिन ने ससुराल वालों के अत्याचारों से तंग आकर अपना अलग घर बसाया। हालात को देखते हुए भक्तिन का यह निर्णय सर्वथा उचित कहा जाएगा।

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प्रश्न 9.
भक्तिन को बड़े बाप की बड़ी बात वाली बेटी क्यों कहा गया है?
उत्तर:
भक्तिन झूसी गाँव के एक शूरवीर अहीर की इकलौती बेटी थी। पिता ने ही उसका नाम लछमिन (लक्ष्मी) रखा था। पाँच वर्ष की अल्पायु में ही उसका विवाह कर दिया गया और नौ वर्ष की आयु में उसका गौना कर दिया गया। परंतु विमाता ने भक्तिन के पिता की मरणांतक बीमारी की सूचना नहीं दी। यहाँ तक कि संपत्ति की रक्षा के लिए विमाता ने उसके पिता की मृत्यु की बात को छिपाकर रखा। परंतु जब नैहर पहुँचकर भक्तिन को यह सब पता चला तो वह बड़े बाप की बेटी का सारा वैभव ठुकराकर एक चूंट पानी पिए बिना वापिस ससुराल लौट आई थी। यही कारण है कि उसे बड़े बाप वाली बेटी कहा गया है।

प्रश्न 10.
भक्तिन ने अपने वैधव्य को किस प्रकार व्यतीत करने का फैसला किया?
उत्तर:
भक्तिन अपने शूरवीर पिता की इकलौती पुत्री थी। उसमें अच्छे संस्कार भी थे। उसका पति भी उससे अत्यधिक प्रेम करता था। अतः उसने पति की यादों के सहारे अपना जीवन व्यतीत करने का फैसला किया। उसने यह भी सोच लिया कि वह सांसारिक मोह-माया से नाता तोड़कर अपनी गृहस्थी चलाएगी। अतः उसने शास्त्र की मर्यादानुसार अपने केश मुंडवा लिए।

प्रश्न 11.
‘भक्तिन’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि हमारे समाज में विधवा के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है?
उत्तर:
इस पाठ से स्पष्ट है कि हमारा समाज विधवा को अपना शिकार मानता है। आज भी हमारे समाज में विधवा को उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाता है। चाहे कोई उसका अपना हो या पराया। कोई भी उसे आदर-सम्मान न जेठ-जिठानियाँ तो उसे घर की संपत्ति से वंचित करना चाहते हैं। भक्तिन की बेटी जब विधवा हो गई, तब जेठ के लड़के ने अपने तीतरबाज़ साले को उस विधवा के साथ विवाह करने के लिए प्रेरित किया, ताकि उसकी संपत्ति को प्राप्त किया जा सके। इस प्रकार के घृणित कार्य में स्त्रियाँ भी पुरुषों का साथ देती हुई देखी गई हैं। यहाँ तक कि गाँव की पंचायतें भी विधवा की लाज की रक्षा नहीं करतीं। वे भी विधवाओं के लिए बेड़ियाँ तैयार करती हैं। ऐसी स्थिति में विधवाओं का सम्मानजनक पुनर्विवाह ही उचित होगा।

प्रश्न 12.
इस पाठ के आधार पर पंचायतों की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इस पाठ को पढ़ने से पता चलता है कि गाँव की पंचायतें गूंगी, अयोग्य तथा लाचार हैं। पंचायत के सभी सदस्य न्याय के आधार नहीं हैं। वे हमेशा शक्तिशाली का पक्ष लेते हैं। उनका न्याय केवल मज़ाक बनकर रह गया है। हमारी पंचायतें कलयुग की दुहाई देकर अत्याचारी की रक्षा करती हैं और पीड़ित व्यक्ति पर अत्याचार करती हैं। भक्तिन की विधवा बेटी के साथ कुछ ऐसा ही किया गया। भक्तिन की इच्छा के विरुद्ध पंचायत ने उसकी बेटी का विवाह उस तीतरबाज़ युवक से करने की घोषणा की कि जो कुछ भी काम-धाम नहीं करता था। यह तो मानों रावण के साथ सीता का विवाह करने वाली बात हो गई।

प्रश्न 13.
तीन कन्याओं को जन्म देने के बाद भी भक्तिन पुत्र की इच्छा में अंधी अपनी जिठानियों की घृणा तथा उपेक्षा की पात्र बनी रही। इस प्रकार के उदाहरण भारतीय समाज में अभी भी देखने को मिलते हैं। इसका कारण तथा समाधान प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
कारण-आज भी भारतीय समाज इस समस्या से ग्रस्त है। प्रायः लोग बेटी की अपेक्षा बेटे को अधिक महत्त्व देते हैं। लोग समझते हैं कि पुत्र कमाऊ होता है और बुढ़ापे का सहारा होता है। यही कारण है कि समाज में पुरुष को नारी की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली माना जाता है। विशेषकर, ग्रामीण समाज में कन्याओं को दबाकर रखा जाता है और उन्हें उचित शिक्षा भी नहीं दी जाती।

समाधान-यदि लड़कियों को उचित शिक्षा दी जाए और उन्हें नौकरी करने तथा व्यवसाय करने के अवसर प्रदान किए जाएँ तो इस समस्या का कुछ सीमा तक हल निकाला जा सकता है। मध्यवर्गीय परिवारों में यह प्रवृत्ति ज़ोर पकड़ती जा रही है कि बेटे तो अपनी बहुओं को लेकर अपने माँ-बाप से अलग हो जाते हैं, लेकिन बेटियाँ अंत तक अपने माता-पिता का साथ निभा सकती हैं। हमें लड़के-लड़की को ईश्वर की संतान मानकर उनमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 14.
भोजन के बारे में भक्तिन का क्या दृष्टिकोण था?
उत्तर:
भक्तिन एक ठेठ ग्रामीण नारी थी। वह सीधा-सादा भोजन ही पसंद करती थी। रसोई की पवित्रता पर वह विशेष ध्यान देती थी। इसलिए उसने महादेवी के घर आकर नहा-धोकर, स्वच्छ साड़ी पर जल छिड़क कर उसे धारण किया और रसोई में मोटे कोयले से रेखा खींचकर भोजन बनाया। उसे गर्व था कि वह साधारण और सरल भोजन बना सकती है। अतः वह नहीं चाहती थी कि कोई भी उसके द्वारा पकाए भोजन का तिरस्कार करे।

प्रश्न 15.
पति की मृत्यु के बाद भक्तिन के सामने कौन-कौन सी समस्याएँ पैदा हुईं?
उत्तर:
पति की मृत्यु के पश्चात भक्तिन के समक्ष कछ भयंकर समस्याएँ उत्पन्न हो गईं। अभी उसकी दो छोटी बेटियाँ कुँवारी बैठी थीं। दूसरा, सगे-संबंधी उसकी घर-संपत्ति पर आँखें गड़ाए बैठे थे। वे लोग चाहते थे कि भक्तिन दूसरा विवाह कर ले, ताकि उसकी संपत्ति उन्हें मिल जाए। परंतु भक्तिन ने इन मुसीबतों का डट कर सामना किया और अपनी मेहनत के बल पर सब कुछ संभाल लिया। तत्पश्चात् भक्तिन की बड़ी बेटी भी विधवा हो गई जिसके फलस्वरूप उसे कई कष्टों का सामना करना पड़ा।

प्रश्न 16.
किस घटना के फलस्वरूप भक्तिन को घर छोड़कर महादेवी के यहाँ नौकरी करनी पड़ी?
उत्तर:
जैसे-तैसे भक्तिन ने मेहनत करके अपने खेत-खलिहान, अमराई तथा गाय-भैंसों को अच्छी तरह से संभाल लिया था। उसने अपनी छोटी बेटियों का विवाह भी कर दिया और समझदारी दिखाते हुए बड़े दामाद को घर-जमाई बना लिया। परंतु दुर्भाग्य तो उसके पीछे लगा हुआ था। अचानक उसका दामाद गुजर गया। जिठौतों ने चाल चलकर बलपूर्वक अपने तीतरबाज़ साले को भक्तिन की विधवा बेटी के गले मड़ दिया। जिससे दिन-भर घर में कलह-क्लेश रहने लगा। धीरे-धीरे सारी धन-संपत्ति नष्ट होने लगी। लगान न देने के दंड के रूप में ज़मींदार ने भक्तिन को दिन-भर कड़ी धूप में खड़ा रखा। यह अपमान उसकी कर्मठता पर कलंक के समान था। अतः अगले दिन ही वह काम की तलाश में महादेवी के यहाँ पहुँच गई।

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प्रश्न 17.
“इस देहाती वृद्धा ने जीवन की सरलता के प्रति मुझे जाग्रत कर दिया था कि मैं अपनी असुविधाएँ छिपाने लगी।” महादेवी ने यह कथन किस संदर्भ में कहा है?
उत्तर:
महादेवी ने यह कथन भक्तिन के संदर्भ में कहा है। भक्तिन एक तर्कशील नारी थी और अपनी बात को सही सिद्ध थी। भक्तिन केवल पेट की भूख को शांत करने के लिए सीधा-सादा खाना बनाती थी। धीरे-धीरे महादेवी उसकी इस प्रवृत्ति से प्रभावित होने लगी। वह भी जीवन की सहजता और सरलता के प्रति आकर्षित हो गई और उसने अपनी असुविधाओं को छिपाना आरंभ कर दिया।

प्रश्न 18.
युद्ध के खतरे के बावजूद भक्तिन अपने गाँव क्यों नहीं लौटी?
उत्तर:
युद्ध के खतरे में भी भक्तिन अपनी मालकिन को अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी। उसने अपनी सुरक्षा की परवाह नहीं की और महादेवी के साथ रहना उचित समझा। उसने महादेवी से यह प्रार्थना की कि युद्ध के खतरे को टालने के लिए वह उसके गाँव में चल पड़े। वहाँ पर भी पढ़ने-लिखने तथा अन्य सुविधाओं की व्यवस्था हो जाएगी।

प्रश्न 19.
भक्तिन ने त्याग का कौन-सा उदाहरण प्रस्तुत किया?
उत्तर:
भक्तिन स्वभाव से बड़ी कंजूस औरत थी और एक-एक पाई पर अपनी जान देती थी। परंतु उसके त्याग की पराकाष्ठा उस समय देखी जा सकती है, जब उसने पाई-पाई करके जोड़ी हुई धन-राशि 105 रुपये महादेवी की सेवा में अर्पित कर दिए।

प्रश्न 20.
भक्तिन के मन में जेल के प्रति क्या भाव थे और उसने भय पर किस प्रकार विजय प्राप्त की?
उत्तर:
भक्तिन जेल का नाम सुनते ही काँप उठती थी। उसे लगता था कि ऊँची-ऊँची दीवारों में कैदियों को अनेक कष्ट दिए जाते हैं। परंतु जब उसे पता चला कि देश को स्वतंत्र कराने के लिए विद्यार्थी भी कारागार में जा रहे हैं और उसकी स्वामिन को भी जेल जाना पड़ सकता है तो उसका भय दूर हो गया और वह भी अपनी स्वामिन के साथ जेल जाने को तैयार हो गई।

प्रश्न 21.
“भक्तिन अच्छी है, यह कहना कठिन होगा, क्योंकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं।” महादेवी के इस कथन का क्या आशय है? .
उत्तर:
भक्तिन को अच्छी सेविका कहना उचित नहीं है, क्योंकि उसमें अनेक दुर्गुण भी थे। सत्य-असत्य के बारे में उसका अपना दृष्टिकोण था। उसका यह दृष्टिकोण लोक-व्यवहार पर खरा नहीं उतर सकता। इसलिए लेखिका भक्तिन को अच्छी नहीं कह सकती।

प्रश्न 22.
भक्तिन जीवन भर अपरिवर्तित रही-इसका क्या कारण है?
उत्तर:
भक्तिन अपनी आस्था और आदतों की पक्की थी। वह अपनी जीवन-पद्धति को ही सही मानती थी। अडिग रहकर वह अपने तौर-तरीके अपनाती रही। उसने कभी रसगुल्ला नहीं खाया और न ही शहरी शिष्टाचार को अपनाया। उसने ‘आँय’ कहने आदत को कभी भी ‘जी’ में नहीं बदला। उसने महादेवी को ग्रामीण परिवेश में बदल दिया, परंतु स्वयं नहीं बदली।

बहविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. भक्तिन’ पाठ की रचयिता हैं-
(A) जैनेंद्र कुमार
(B) महादेवी वर्मा
(C) सुभद्रा कुमारी चौहान
(D) रांगेय राघव
उत्तर:
(B) महादेवी वर्मा

2. ‘भक्तिन’ पाठ किस रचना में संकलित है?
(A) स्मृति की रेखाएँ
(B) अतीत के चलचित्र
(C) पथ के साथी
(D) मेरा परिवार
उत्तर:
(A) स्मृति की रेखाएँ

3. भक्तिन किस विधा की रचना है?
(A) निबंध
(B) कहानी
(C) संस्मरणात्मक रेखाचित्र
(D) आलोचना
उत्तर:
(C) संस्मरणात्मक रेखाचित्र

4. महादेवी वर्मा का जन्म कब हुआ?
(A) 1906 में
(B) 1908 में
(C) 1905 में
(D) 1907 में
उत्तर:
(D) 1907 में

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5. महादेवी वर्मा का जन्म किस प्रदेश में हुआ?
(A) मध्य प्रदेश
(B) उत्तर प्रदेश
(C) राजस्थान
(D) दिल्ली
उत्तर:
(B) उत्तर प्रदेश

6. महादेवी का जन्म किस नगर में हुआ?
(A) फर्रुखाबाद
(B) इलाहाबाद
(C) कानपुर
(D) लखनऊ
उत्तर:
(A) फर्रुखाबाद

7. कितनी आयु में महादेवी का विवाह हुआ?
(A) सात वर्ष में
(B) आठ वर्ष में
(C) नौ वर्ष में
(D) बारह वर्ष में
उत्तर:
(C) नौ वर्ष में

8. महादेवी वर्मा ने किस विषय में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की?
(A) अंग्रेज़ी
(B) हिंदी
(C) इतिहास
(D) संस्कृत
उत्तर:
(D) संस्कृत

9. महादेवी वर्मा ने किस विश्वविद्यालय से एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की?
(A) इलाहाबाद विश्वविद्यालय
(B) कानपुर विश्वविद्यालय
(C) बनारस विश्वविद्यालय
(D) आगरा विश्वविद्यालय
उत्तर:
(A) इलाहाबाद विश्वविद्यालय

10. महादेवी को किस शिक्षण संस्थान की प्रधानाचार्या नियुक्त किया गया?
(A) संस्कृत महाविद्यालय
(B) एस०डी० महाविद्यालय
(C) प्रयाग महिला विद्यापीठ
(D) वनस्थली विद्यापीठ
उत्तर:
(C) प्रयाग महिला विद्यापीठ

11. भारत सरकार ने महादेवी को किस पुरस्कार से सम्मानित किया?
(A) वीरचक्र
(B) शौर्यचक्र
(C) पद्मश्री
(D) पद्मभूषण
उत्तर:
(D) पद्मभूषण

12. किन विश्वविद्यालयों ने महादेवी को डी० लिट्० की मानद उपाधि से विभूषित किया?
(A) पंजाब विश्वविद्यालय तथा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
(B) विक्रम, कुमायूँ तथा दिल्ली विश्वविद्यालय
(C) आगरा विश्वविद्यालय तथा कानपुर विश्वविद्यालय
(D) मेरठ विश्वविद्यालय तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय
उत्तर:
(B) विक्रम, कुमायूँ तथा दिल्ली विश्वविद्यालय

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13. महादेवी वर्मा का देहांत कब हुआ?
(A) 12 सितंबर, 1986
(B) 11 दिसंबर, 1987
(C) 12 जनवरी, 1985
(D) 11 नवंबर, 1988
उत्तर:
(B) 11 दिसंबर, 1987

14. ‘अतीत के चलचित्र’ किसकी रचना है?
(A) महादेवी वर्मा की
(B) सुभद्राकुमारी चौहान की
(C) जयशंकर प्रसाद की
(D) मुक्तिबोध की
उत्तर:
(A) महादेवी वर्मा की

15. ‘श्रृंखला की कड़ियाँ’ किस विधा की रचना है?
(A) काव्य संग्रह
(B) निबंध संग्रह
(C) कहानी संग्रह
(D) रेखाचित्र संग्रह
उत्तर:
(B) निबंध संग्रह

16. ‘स्मृति की रेखाएँ’ की रचयिता है
(A) महादेवी वर्मा
(B) रांगेय राघव
(C) हरिवंशराय बच्चन
(D) रघुवीर सहाय
उत्तर:
(A) महादेवी वर्मा

17. ‘पथ के साथी’ किसकी रचना है?
(A) जैनेंद्र कुमार
(B) धर्मवीर भारती
(C) फणीश्वरनाथ रेणु
(D) महादेवी वर्मा
उत्तर:
(D) महादेवी वर्मा

18. भक्तिन कहाँ की रहने वाली थी?
(A) हाँसी।
(B) झाँसी
(C) झूसी
(D) अँझूसी
उत्तर:
(C) झूसी

19. भक्तिन महादेवी से कितने वर्ष बड़ी थी?
(A) पंद्रह वर्ष
(B) पच्चीस वर्ष
(C) तीस वर्ष
(D) बीस वर्ष
उत्तर:
(B) पच्चीस वर्ष

20. भक्तिन के सेवा-धर्म में किस प्रकार का अधिकार है?
(A) अभिभाविका जैसा
(B) स्वामी जैसा
(C) सेविका जैसा
(D) माँ जैसा
उत्तर:
(A) अभिभाविका जैसा

21. भक्तिन का स्वभाव कैसा है?
(A) कोमल और मधुर
(B) कर्कश और कठोर
(C) अभिमानी और क्रूर
(D) छल-कपट से पूर्ण
उत्तर:
(B) कर्कश और कठोर

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 11 भक्तिन

22. भक्तिन किसके समान अपनी मालकिन के साथ लगी रहती थी?
(A) छाया के समान
(B) धूप के समान
(C) वायु के समान
(D) पालतु पशु के समान
उत्तर:
(A) छाया के समान

23. भक्तिन का शूरवीर पिता किस गाँव का रहने वाला था?
(A) मूंसी
(B) लूसी
(C) झूसी
(D) हँडिया
उत्तर:
(C) झूसी

24. भक्तिन का वास्तविक नाम क्या था?
(A) भक्तिन
(B) लछमिन (लक्ष्मी)
(C) दासिन
(D) पार्वती
उत्तर:
(B) लछमिन (लक्ष्मी)

25. महादेवी वर्मा क्या पढ़ते-पढ़ते शहर और देहात के जीवन के अन्तर पर विचार किया करती थीं?
(A) पतंजलि सूत्र
(B) शाल्व सूत्र
(C) ज्ञान सूत्र
(D) न्याय सूत्र
उत्तर:
(D) न्याय सूत्र

26. भक्तिन का विवाह किस आयु में हुआ?
(A) सात वर्ष
(B) आठ वर्ष
(C) चार वर्ष
(D) पाँच वर्ष
उत्तर:
(D) पाँच वर्ष

27. भक्तिन का गौना किस आयु में हुआ?
(A) नौ वर्ष
(B) बारह वर्ष
(C) तेरह वर्ष
(D) दस वर्ष
उत्तर:
(A) नौ वर्ष

28. लेखिका के द्वारा पुकारी जाने पर भक्तिन क्या कहती थी?
(A) जी
(B) आई मालकिन
(C) आँय
(D) हाँ, जी
उत्तर:
(C) आँय

29. महादेवी को ‘यामा’ पर कौन-सा पुरस्कार प्राप्त हुआ?
(A) शिखर सम्मान
(B) साहित्य अकादमी पुरस्कार
(C) ज्ञानपीठ पुरस्कार
(D) पहल सम्मान
उत्तर:
(C) ज्ञानपीठ पुरस्कार

30. उत्तर प्रदेश संस्थान ने महादेवी को कौन-सा पुरस्कार प्रदान करके सम्मानित किया?
(A) भारत भारती पुरस्कार
(B) राहुल पुरस्कार
(C) प्रेमचंद पुरस्कार
(D) शिखर पुरस्कार
उत्तर:
(A) भारत भारती पुरस्कार

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 11 भक्तिन

31. महादेवी वर्मा को पद्मभूषण की उपाधि कब मिली?
(A) 1958 में
(B) 1957 में
(C) 1956 में
(D) 1960 में
उत्तर:
(C) 1956 में

32. भक्तिन की विचित्र समझदारी की झलक विद्यमान थी-
(A) ओठों के कोनों में
(B) छोटी आँखों में
(C) विश्वास भरे कंठ में
(D) ऊँची आवाज़ में
उत्तर:
(B) छोटी आँखों में

33. ‘कृषीवल’ शब्द का क्या अर्थ है?
(A) किसान
(B) मजदूर
(C) बैल
(D) अन्न
उत्तर:
(C) बैल

34. ससुराल में भक्तिन के साथ सद्व्यवहार किसने किया?
(A) जिठानियों ने
(B) पति ने
(C) सास ने
(D) ससुर ने
उत्तर:
(B) पति ने

35. भक्तिन के ओंठ कैसे थे?
(A) पतले
(B) मोटे
(C) कटे-फटे
(D) अवर्णनीय
उत्तर:
(A) पतले

36. भक्तिन के ससुराल वालों ने उसके पति की मृत्यु पर उसे पुनर्विवाह के लिए क्यों कहा?
(A) ताकि भक्तिन सुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत कर सके
(B) ताकि वे भक्तिन की घर-संपत्ति को हथिया सकें
(C) ताकि वे भक्तिन से छुटकारा पा सकें
(D) ताकि वे भक्तिन को पुनः समाज में सम्मान दे सकें
उत्तर:
(B) ताकि वे भक्तिन की घर-संपत्ति को हथिया सकें

37. हमारा समाज विधवा के साथ कैसा व्यवहार करता है?
(A) स्नेहपूर्ण
(B) असम्मानपूर्ण
(C) सहानुभूतिपूर्ण
(D) सम्मानपूर्ण
उत्तर:
(B) असम्मानपूर्ण

38. भक्तिन पाठ के आधार पर पंचायतों की क्या तस्वीर उभरती है?
(A) पंचायतें गूंगी, लाचार और अयोग्य हैं।
(B) वे सही न्याय नहीं कर पाती
(C) वे दूध का दूध और पानी का पानी करती हैं
(D) वे अपने स्वार्थों को पूरा करती हैं
उत्तर:
(A) पंचायतें गूंगी, लाचार और अयोग्य हैं

39. सेवक धर्म में भक्तिन किससे स्पर्धा करने वाली थी?
(A) शबरी
(B) सुग्रीव
(C) हनुमान
(D) लक्ष्मण
उत्तर:
(C) हनुमान

40. भक्तिन का शरीर कैसा था?
(A) मोटा
(B) दुबला
(C) लम्बा
(D) दिव्य
उत्तर:
(B) दुबला

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 11 भक्तिन

41. खोटे सिक्कों की टकसाल का अर्थ क्या है?
(A) निकम्मे काम करने वाली पत्नी
(B) बेकार पत्नी
(C) जिस टकसाल से खोटे सिक्के निकलते हैं
(D) कन्याओं को जन्म देने वाली पत्नी
उत्तर:
(D) कन्याओं को जन्म देने वाली पत्नी

42. महादेवी ने लछमिन को भक्तिन कहना क्यों आरंभ कर दिया?
(A) उसके व्यवहार को देखकर
(B) उसके वैराग्यपूर्ण जीवन को देखकर
(C) उसके गले में कंठी माला देखकर
(D) उसकी शांत मुद्रा को देखकर
उत्तर:
(C) उसके गले में कंठी माला देखकर

43. भक्तिन क्या नहीं बन सकी?
(A) गोरखनाथ
(B) एकनाथ
(C) सत्यवादी हरिश्चन्द्र
(D) मीराबाई
उत्तर:
(C) सत्यवादी हरिश्चन्द्र

44. भक्तिन किससे डरती थी?
(A) बादल से
(B) हिरन से
(C) कारागार से
(D) संसार से
उत्तर:
(C) कारागार से

45. भक्तिन के पति का जब देहांत हुआ तो भक्तिन की आयु कितने वर्ष थी?
(A) उन्नीस
(B) पच्चीस
(C) उनतीस
(D) तीस
उत्तर:
(C) उनतीस

भक्तिन प्रमुख गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

[1] सेवक-धर्म में हनुमान जी से स्पर्धा करने वाली भक्तिन किसी अंजना की पुत्री न होकर एक अनाम धन्या
गोपालिका की कन्या है-नाम है लछमिन अर्थात लक्ष्मी। पर जैसे मेरे नाम की विशालता मेरे लिए दुर्वह है, वैसे ही लक्ष्मी की समृद्धि भक्तिन के कपाल की कुंचित रेखाओं में नहीं बँध सकी। वैसे तो जीवन में प्रायः सभी को अपने-अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है; पर भक्तिन बहुत समझदार है, क्योंकि वह अपना समृद्धि-सूचक नाम किसी को बताती नहीं। केवल जब नौकरी की खोज में आई थी, तब ईमानदारी का परिचय देने के लिए उसने शेष इतिवृत्त के साथ यह भी बता दिया; पर इस प्रार्थना के साथ कि मैं कभी नाम का उपयोग न करूँ। [पृष्ठ-71]

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘भक्तिन’ नामक संस्मरणात्मक रेखाचित्र से अवतरित है। यह संस्मरणात्मक रेखाचित्र हिंदी साहित्य की महान कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा की रचना ‘स्मृति की रेखाएँ’ में संकलित है। इसमें लेखिका ने अपनी सेविका भक्तिन के अतीत और वर्तमान का परिचय देते हुए उसके व्यक्तित्व पर बहुत ही रोचक प्रकाश डाला है। इसमें लेखिका भक्तिन की तुलना रामभक्त हनुमान से करती हैं।

व्याख्या-लेखिका ने भक्तिन की कर्मठता एवं उनके प्रति लगाव तथा सेविका-धर्म की तुलना अंजनी-पुत्र महावीर हनुमान जी से की है। लेखिका कहती है कि सेवक-धर्म में रामभक्त हनुमान जी रामायण के एक महान पात्र हैं। भक्तिन सेवक-धर्म में उनका मुकाबला करने वाली एक नारी थी। वह किसी अंजना की बेटी न होकर एक संज्ञाहीन, परंतु धन्य माँ गोपालिका की बेटी थी। उसका नाम लछमिन अथवा लक्ष्मी था। भले ही वह एक अहीरन की पुत्री थी, परंतु वह बहुत ही कर्मनिष्ठ थी। लेखिका स्पष्ट करती है कि जिस प्रकार मेरे नाम का विस्तार मेरे लिए धारण न करने योग्य है, उसी प्रकार भक्तिन के मस्तक की सिकुड़ी रेखाओं में लक्ष्मी का धन-वैभव रुक नहीं पाया। भाव यह है कि भले ही मेरा नाम महादेवी है, परंतु मैं देवी के गुणों को धारण नहीं कर सकती।

उसी नाम भले ही लक्ष्मी था, परंतु उसके पास कोई धन-संपत्ति नहीं थी। नाम के गुण प्रायः लोगों में नहीं होते। यही कारण है कि अधिकांश लोगों को अपने नाम से विपरीत परिस्थितियों में जीवन-यापन करना पड़ता है; जैसे लोग नाम रख लेते हैं करोड़ीमल, परंतु उस करोड़ीमल के पास दो वक्त का भोजन नहीं होता। लेकिन भक्तिन बड़ी समझदार थी, इसलिए वह धन-संपत्ति को सूचित करने वाला नाम किसी को नहीं बताती थी। परंतु जब वह नौकरी खोजते-खोजते मेरे पास आई थी, तब उसने बड़ी ईमानदारी से अपना परिचय दिया। अपनी संपूर्ण जीवन-गाथा का विवरण देते हुए उसने यह भी बता दिया कि उसका मूल नाम लक्ष्मी है, परंतु साथ ही उसने मुझसे यह भी निवेदन कर दिया कि मैं कभी भी उसके इस नाम का प्रयोग न करूँ।

विशेष-

  1. इस गद्यांश में लेखिका ने भक्तिन के जीवन का संक्षिप्त परिचय देते हुए उसकी सेवा-भक्ति की तुलना हनुमान जी की सेवा-भक्ति के साथ की है।
  2. भक्तिन का नाम भले ही लक्ष्मी था, परंतु यह नाम उसकी गरीबी का मज़ाक उड़ाता था। इसलिए वह अपने इस नाम को छिपाने का प्रयास करती थी।
  3. सहज, सरल तथा संस्कृतनिष्ठ हिंदी भाषा का सफल प्रयोग किया गया है।
  4. वर्णनात्मक शैली का प्रयोग हुआ है तथा वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है। m गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) हनुमान जी और भक्तिन में क्या समानता थी?
(ग) लेखिका ने अपने नाम को दुर्वह क्यों कहा है?
(घ) भक्तिन अपने मूल नाम को छिपाना क्यों चाहती थी?
(ङ) ‘कपाल की कुंचित रेखाओं से क्या भाव है?
(च) अपने-अपने नाम के विरोधाभास का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
(क) पाठ का नाम-भक्तिन लेखिका का नाम-महादेवी वर्मा।

(ख) हनुमान जी और भक्तिन दोनों ही सच्चे सेवक होने के साथ-साथ भक्त भी थे। दोनों अपने-अपने स्वामी की सच्चे मन से सेवा करते रहे। जिस तरह से हनुमान ने राम की सेवा और भक्ति की, उसी प्रकार भक्तिन भी महादेवी की सेवा करती रही।

(ग) लेखिका का नाम महादेवी है। परंतु वे स्वीकार करती हैं कि वे चाहते हुए भी महादेवी का पद प्राप्त नहीं कर पाई। इसी कारण लेखिका ने अपने नाम को दुर्वह कहा।

(घ) भक्तिन का मूल नाम लक्ष्मी था लक्ष्मी अर्थात् धन-वैभव की देवी परंतु भक्तिन बहुत गरीब थी। यह नाम उसकी गरीबी का मज़ाक उड़ा. रहा था। इसलिए वह नहीं चाहती थी कि किसी को यह पता चले कि उसका नाम लक्ष्मी है। इसलिए वह अपने नाम को छिपाती रही।

(ङ) ‘कपाल की कुंचित रेखाओं का भाव है भाग्य की रेखाओं का बहुत छोटा होना। लेखिका यह स्पष्ट करना चाहती है कि भक्तिन का भाग्य खोटा था। उसे जीवन-भर सुख-समृद्धि प्राप्त नहीं हो सकी।

(च) अपने-अपने नाम का विरोधाभास से अभिप्राय है कि नाम के विपरीत जीवन का होना। प्रायः सभी लोगों को अपने-अपने नाम के विपरीत जीना पड़ता है। उदाहरण के रूप में किसी महिला का नाम सरस्वती होता है, परंतु वह एक अक्षर भी पढ़ना नहीं जानती। जैसे किसी पुरुष का नाम लखपतराय होता है, पर उसके पास न रहने को घर होता है और न ही खाने को दो वक्त का भोजन होता है। इसका एक ही कारण है कि हमारे नाम हमारे गुणों के अनुसार नहीं होते। इसीलिए सभी के नामों में विरोधाभास होता है।

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[2] पिता का उस पर अगाध प्रेम होने के कारण स्वभावतः ईर्ष्यालु और संपत्ति की रक्षा में सतर्क विमाता ने उनके मरणांतक रोग का समाचार तब भेजा, जब वह मृत्यु की सूचना भी बन चुका था। रोने-पीटने के अपशकुन से बचने के लिए सास ने भी उसे कुछ न बताया। बहुत दिन से नैहर नहीं गई, सो जाकर देख आवे, यही कहकर और पहना-उढ़ाकर सास ने उसे विदा कर दिया। इस अप्रत्याशित अनुग्रह ने उसके पैरों में जो पंख लगा दिए थे, वे गाँव की सीमा में पहुँचते ही झड़ गए। ‘हाय लछमिन अब आई’ की अस्पष्ट पुनरावृत्तियाँ और स्पष्ट सहानुभूतिपूर्ण दृष्टियाँ उसे घर तक ठेल ले गईं। पर वहाँ न पिता का चिह्न शेष था, न विमाता के व्यवहार में शिष्टाचार का लेश था। दुख से शिथिल और अपमान से जलती हुई वह उस घर में पानी भी बिना पिए उलटे पैरों ससुराल लौट पड़ी। सास को खरी-खोटी सुनाकर उसने विमाता पर आया हुआ क्रोध शांत किया और पति के ऊपर गहने फेंक-फेंककर उसने पिता के चिर विछोह की मर्मव्यथा व्यक्त की। [पृष्ठ-72]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘भक्तिन’ नामक संस्मरणात्मक रेखाचित्र से अवतरित है। यह संस्मरणात्मक रेखाचित्र हिंदी साहित्य की महान कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा की रचना ‘स्मृति की रेखाएँ में संकलित है। इसमें लेखिका भक्तिन के पिता के देहांत तथा उसकी विमाता के दुर्व्यवहार पर प्रकाश डालती है। लेखिका कहती है

व्याख्या-पिता के प्रति भक्तिन के मन में अत्यधिक प्रेमभाव था, परंतु उसकी विमाता न केवल उससे ईर्ष्या करती थी, बल्कि अपनी संपत्ति में से उसे कुछ भी देना नहीं चाहती थी। इसलिए विमाता ने उसके पिता के प्राणांतक रोग का समाचार भक्तिन के पास नहीं भेजा। जब उसकी मौत हो गई, तब ही उसे यह समाचार भेजा गया। इधर सास ने भी उसे उसके पिता की मृत्यु की खबर नहीं दी। वह नहीं चाहती थी कि भक्तिन यहीं पर रोना-पीटना शुरू कर दे, बल्कि यह कह दिया कि वह काफी दिनों से अपने मायके नहीं गई है, इसलिए उसे वहाँ जाकर सबसे मिल कर आना चाहिए। यह कहकर भक्तिन की सास ने उसे खूब सजा-पहनाकर मायके भेजा। भक्तिन को इस कृपा की आशा नहीं थी। परंतु जब उसे बैठे-बिठाए मायके जाने की अनुमति मिल गई, तब वह तीव्र गति से अपने मायके की ओर बढ़ने लगी। परंतु गाँव में घुसते ही उसकी गति तब मंद पड़ गई, जब लोग उसे देखकर कहने लगे कि बहुत दुख हुआ लछमिन तू इतने दिनों के बाद आई।

‘हाय लछमिन अब आई’। उसे ये शब्द बार-बार सुनने पड़े और लोगों की सहानुभूति लेनी पड़ी। जैसे-तैसे वह अपने घर पहुंची। वहाँ उसके पिता का कोई नामो-निशान नहीं था अर्थात् वह मर चुका था। विमाता का व्यवहार भी उसके प्रति अच्छा नहीं था। इस दुख से थकी-माँदी तथा अपमान की आग में जलती हुई उसने अपने मायके से एक गिलास पानी तक भी नहीं पिया। वह ज्यों-की-त्यों तत्काल अपने ससुराल वापिस आ गई। घर आते ही उसने सास को खूब भला-बुरा कहा और अपनी विमाता पर आए हुए क्रोध को शांत किया। यही नहीं, उसने अपने गहने उतारकर पति पर फेंक-फेंककर मारे और पिता से जीवन भर के वियोग की असहनीय पीड़ा को व्यक्त किया। भाव यह है कि भक्तिन के साथ उसकी विमाता और सास दोनों ने भारी धोखा किया। न तो विमाता ने यह सूचना भेजी कि उसका पिता मृत्यु देने वाले रोग से ग्रस्त है और न ही सास ने उसे सूचित किया कि उसके पिता का देहांत हो गया है।

विशेष-

  1. यहाँ लेखिका ने भक्तिन के पिता की घातक बीमारी और उनकी मृत्यु का संवेदनशील वर्णन किया है।
  2. भक्तिन को अपनी सास और विमाता दोनों से तिरस्कार और धोखा मिला।
  3. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  4. वाक्य-विन्यास सर्वथा विषयानुकूल है तथा वर्णनात्मक शैली का प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) भक्तिन की विमाता ने उसके पिता के मरणांतक रोग का समाचार क्यों नहीं भेजा?
(ख) भक्तिन की सास ने पहना-उढ़ाकर उसे नैहर क्यों भेजा?
(ग) सास के अनुग्रह को लेखिका ने अप्रत्याशित क्यों कहा है?
(घ) गाँव पहुंचते ही भक्तिन की आशा के पंख झड़ क्यों गए?
(ङ) भक्तिन ने किस प्रकार अपने पिता की मृत्यु के शोक को व्यक्त किया?
उत्तर:
(क) भक्तिन के पिता उसे अगाध प्रेम करते थे। इसी कारण विमाता भक्तिन से बहुत ईर्ष्या करती थी। उसके मन में यह भी डर था कि अपने पिता के प्राणांतक अर्थात् मृत्यु देने वाले रोग को देखकर कहीं वह उसके घर में धन-संपत्ति का झगड़ा न खड़ा कर दे। इसलिए उसने भक्तिन को उसके पिता की भयानक बीमारी का समाचार नहीं भेजा।

(ख) भक्तिन की सास मृत्यु के विलाप को अपशकुन मानती थी। वह नहीं चाहती थी कि भक्तिन अपने पिता की मृत्यु के समाचार को पाकर घर में रोना-धोना शुरू कर दे और आस-पड़ोस के लोग इकट्ठे हो जाएँ। इसलिए उसकी सास ने उसको यह कहकर मायके भेजा कि वह बहुत दिनों से अपने पिता के घर नहीं गई है। अतः वह जाकर उन्हें देख आए।

(ग) सास का भक्तिन को उसके मायके भेजना उसकी आशा के सर्वथा विपरीत था। भक्तिन को इस बात की आशा नहीं थी कि उसकी सास उसे माता-पिता से मिलने के लिए मायके भेज देगी। इसीलिए सास का यह आग्रह अप्रत्याशित ही कहा जाएगा।

(घ) जैसे ही भक्तिन अपने गाँव में पहुँची तो लोग उसे देखकर बड़ी सहानुभूति के साथ कहने लगे-‘हाय, लछमिन अब आई। लोगों की हाय को सुनकर भक्तिन का दिल बैठने लगा और उसके मन में आशा के जो पँख फड़फड़ाए थे, वह तत्काल झड़ गए।

(ङ) भक्तिन ने अपनी सास को खरी-खोटी बातें सुनाकर और अपने गहने उतारकर अपने पति पर फेंक-फेंककर अपने पितृ-शोक को व्यक्त किया।

[3] जीवन के दूसरे परिच्छेद में भी सुख की अपेक्षा दुख ही अधिक है। जब उसने गेहुँए रंग और बटिया जैसे मुख वाली पहली कन्या के दो संस्करण और कर डाले तब सास और जिठानियों ने ओठ बिचकाकर उपेक्षा प्रकट की। उचित भी था, क्योंकि सास तीन-तीन कमाऊ वीरों की विधात्री बनकर मचिया के ऊपर विराजमान पुरखिन के पद पर अभिषिक्त हो चुकी थी और दोनों जिठानियाँ काक-भुशंडी जैसे काले लालों की क्रमबद्ध सृष्टि करके इस पद के लिए उम्मीदवार थीं। छोटी बहू के लीक छोड़कर चलने के कारण उसे दंड मिलना आवश्यक हो गया। [पृष्ठ-72]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘भक्तिन’ नामक संस्मरणात्मक रेखाचित्र से अवतरित है। यह संस्मरणात्मक रेखाचित्र हिंदी साहित्य की महान कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा की रचना ‘स्मृति की रेखाएँ’ में संकलित है। इसमें लेखिका ने भक्तिन के गृहस्थ जीवन पर समुचित प्रकाश डाला है। लेखिका कहती है

व्याख्या-पिता की मृत्यु के बाद जहाँ उसे अपने मायके में दुख प्राप्त हुआ, वहीं अपने गृहस्थी जीवन में भी उसको सुख की बजाय दुख ही अधिक प्राप्त हुआ। उसकी पहली संतान एक लड़की थी, जो गेहुँए रंग की थी। इसके पश्चात् उसने दो और कन्याओं को जन्म दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि उसकी सास तथा जिठानियाँ उसकी उपेक्षा करने लगी। उस समय के हालात में यह सही भी था। कारण यह था कि भक्तिन की सास तीन बेटों को जन्म देकर घर की मुखिया बन चुकी थी। उसके तीनों बेटे कमाने वाले थे। दूसरी ओर, दोनों जिठानियों ने कौए जैसे काले पुत्रों को जन्म दिया और वे दोनों घर के मुखिया पद की दावेदार बन गईं। भक्तिन सबसे छोटी बहू थी। उसने अपनी सास तथा जिठानियों की परंपरा का पालन नहीं किया अर्थात् उसने बेटों को जन्म न देकर तीन बेटियों को जन्म दिया। इसलिए उसे उपेक्षा का दंड भोगना पड़ा। कहने का भाव यह है कि परिवार में भक्तिन की उपेक्षा इसलिए की जा रही थी, क्योंकि उसने बेटों की बजाय बेटियों को जन्म दिया था।

विशेष-

  1. इसमें लेखिका ने भक्तिन के वैवाहिक जीवन पर प्रकाश डाला है और साथ ही यह भी स्पष्ट किया है कि उस समय के समाज में लड़के की माँ होना सम्माननीय माना जाता था।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित और भावानुकूल है।
  4. वर्णनात्मक शैली का प्रयोग करते हए भक्तिन की व्यथा पर प्रकाश डाला गया है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 11 भक्तिन

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) इस गद्यांश में जीवन के दूसरे परिच्छेद से क्या अभिप्राय है?
(ख) सास और जिठानियों ने भक्तिन की उपेक्षा करनी क्यों आरंभ कर दी?
(ग) लेखिका द्वारा सास का भक्तिन की उपेक्षा करना उचित क्यों ठहराया गया है?
(घ) इस गद्यांश से नारी मनोविज्ञान का कौन-सा रहस्य प्रकट होता है?
(ङ) भारतीय परिवारों में सम्मानीय पुरखिन का पद किसे मिलता है?
उत्तर:
(क) जीवन के दूसरे परिच्छेद से अभिप्राय है-भक्तिन के वैवाहिक जीवन या गृहस्थ जीवन का आरंभ होना । लेखिका की दृष्टि में यह भक्तिन के जीवन का दूसरा अध्याय है।

(ख) भक्तिन ने एक के बाद एक तीन बेटियों को जन्म दिया, जबकि उसकी सास और जिठानियों ने बेटों को जन्म दिया था। इसीलिए सास और जिठानियाँ उसकी उपेक्षा करने लगी थीं।

(ग) वस्तुतः लेखिका का यह कथन व्यंग्यात्मक है। यहाँ लेखिका ने समाज की इस रूढ़ि पर कठोर प्रहार किया है। भारतीय समाज में लड़के की माँ होना सम्मानजनक माना जाता है और लड़की के जन्म को अशुभ कहा जाता है। भक्तिन की सास ने एक के बाद एक तीन बेटों को जन्म दिया था तो वह तीन बेटियों को जन्म देने वाली भक्तिन की उपेक्षा क्यों न करती? इसीलिए लेखिका ने उसे उचित ठहराया है।

(घ) इस गद्यांश में लेखिका ने नारी-मनोविज्ञान के इस रहस्य का उद्घाटन किया है कि नारी ही नारी की दुश्मन होती है। कुछ नारियाँ अपनी जिठानियों, देवरानियों, सासों और बहुओं के विरुद्ध ऐसे षड्यंत्र रच देती हैं कि सीधी-सादी नारी का जीना भी कठिन हो जाता है। यहाँ भक्तिन को घर की नारियों की उपेक्षा को सहन करना पड़ा। इस पाठ में लेखिका ने इस नारी-मनोविज्ञान की ओर संकेत किया है कि प्रायः नारी ही पुत्र को जन्म देकर खुश होती है और पुत्री के जन्म पर शोक मनाने लगती है। परंतु धीरे-धीरे अब यह धारणा समाप्त होती जा रही है।

(ङ) भारतीय परिवारों में सम्माननीय पुरखिन का पद केवल उसी नारी को प्राप्त होता है जो कमाऊ पुत्रों को जन्म देती है, बेटियों को नहीं।

[4] इस दंड-विधान के भीतर कोई ऐसी धारा नहीं थी, जिसके अनुसार खोटे सिक्कों की टकसाल-जैसी पत्नी से पति को विरक्त किया जा सकता। सारी चुगली-चबाई की परिणति, उसके पत्नी-प्रेम को बढ़ाकर ही होती थी। जिठानियाँ बात-बात पर धमाधम पीटी-कूटी जाती; पर उसके पति ने उसे कभी उँगली भी नहीं छुआई। वह बड़े बाप की बड़ी बात वाली बेटी को पहचानता था। इसके अतिरिक्त परिश्रमी, तेजस्विनी और पति के प्रति रोम-रोम से सच्ची पत्नी को वह चाहता भी बहुत रहा होगा, क्योंकि उसके प्रेम के बल पर ही पत्नी ने अलगौझा करके सबको अँगूठा दिखा दिया। काम वही करती थी, इसलिए गाय-भैंस, खेत-खलिहान, अमराई के पेड़ आदि के संबंध में उसी का ज्ञान बहुत बढ़ा-चढ़ा था। [पृष्ठ-72-73]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘भक्तिन’ नामक संस्मरणात्मक रेखाचित्र से अवतरित है। यह संस्मरणात्मक रेखाचित्र हिंदी साहित्य की महान कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा की रचना ‘स्मृति की रेखाएँ’ में संकलित है। इसमें लेखिका ने यह स्पष्ट किया है कि घर-परिवार में भले ही भक्तिन की उपेक्षा होती थी, परंतु उसक का पति उससे अत्यधिक प्यार करता था।

व्याख्या-संयुक्त परिवारों में बेटियों को जन्म देने वाली नारियों को उपेक्षा का दंड भोगना पड़ता है। लेकिन इस दंड-व्यवस्था कोई नियम नहीं था, जिसके अनुसार खोटे सिक्कों की टकसाल अर्थात कन्याओं को जन्म देने वाली पत्नी को उसके पति से अलग किया जा सके। भक्तिन की सास तथा जिठानियाँ प्रायः भक्तिन के पति के सामने उसकी चुगली करती रहती थीं। वे चाहती थीं कि उसका पति उसकी पिटाई करे। लेकिन इन चुगलियों का प्रभाव उल्टा हुआ और पति उससे और अधिक प्रेम करने लगा। दूसरी ओर, जिठानियों की छोटी-छोटी बातों पर पिटाई होती थी। जबकि भक्तिन के पति ने कभी उसे मारा नहीं था। वह इस बात को जानता था कि भक्तिन बड़े बाप की बेटी है और उसमें अच्छे संस्कार भी हैं। इसके साथ-साथ भक्तिन बड़ी मेहनती, तेजस्विनी और अपने पति के प्रति समर्पित नारी थी। अपने पति के प्रेम के बल पर ही उसने संयुक्त परिवार से अलग होकर अपनी अलग घर-गृहस्थी बसाकर अपनी जिठानियों को अँगूठा दिखा दिया। चूँकि घर का सारा काम भक्तिन ही करती थी, इसलिए गाय भैंस, खेल-खलिहान एवं आम के पेड़ों के बारे में उसका ज्ञान सबसे अधिक था।

विशेष-

  1. यहाँ लेखिका ने भक्तिन के पति-प्रेम का यथार्थ वर्णन किया है। भक्तिन ने अपने मधुर स्वभाव, अच्छे संस्कार और कार्य-कुशलता से पति को अपनी ओर आकर्षित कर लिया था।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावानुकूल है।
  4. वर्णनात्मक शैली द्वारा भक्तिन की चारित्रिक विशेषताओं का उद्घाटन किया गया है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) ‘खोटे सिक्कों की टकसाल’ से क्या अभिप्राय है?
(ख) घर-भर में उपेक्षित होकर भी भक्तिन सौभाग्यशालिनी क्यों थी?
(ग) ‘चगली-चबाई की परिणति पत्नी-प्रेम को बढ़ाकर ही होती थी’-इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
(घ) भक्तिन के किन गुणों के कारण उसका पति उससे प्रेम करता था?
(ङ) भक्तिन ने क्या करके ईर्ष्यालु जिठानियों को अँगूठा दिखा दिया? ।
उत्तर:
(क) लेखिका ने भक्तिन के लिए ही खोटे सिक्कों की टकसाल का प्रयोग किया है, क्योंकि उसने एक के बाद एक तीन बेटियों को जन्म दिया था। परंतु लेखिका के इस कथन में समाज पर करारा व्यंग्य है जो कन्याओं को ‘खोटा सिक्का’ मानता है और कन्याओं की माताओं को अपमानित करता है।

(ख) भक्तिन के ससुराल में सास तथा जिठानियाँ हमेशा उसकी उपेक्षा करती थीं। जिठानियाँ तो काले-कलूटे बेटों को जन्म देकर घर में आराम से बैठती थीं और भक्तिन को घर का सारा काम करना पड़ता था। फिर भी वह बहुत सौभाग्यशालिनी थी, क्योंकि उसकी जिठानियाँ अपने पतियों के द्वारा धमाधम पीटी जाती थी, परंतु उसका पति उससे बहुत प्यार करता था। उसने कभी भी उस पर हाथ नहीं उठाया था।

(ग) भक्तिन की सास तथा जिठानियाँ अकसर भक्तिन के पति से उसकी चुगलियाँ करती रहती थीं। वे चाहती थीं कि जैसे वे अपने पतियों द्वारा धमाधम पीटी जाती हैं, उसी प्रकार भक्तिन की भी पिटाई होनी चाहिए। परंतु उनकी चुगलियों का प्रभाव उल्टा ही पड़ा और भक्तिन का पति उससे और अधिक प्रेम करने लगा।

(घ) भक्तिन के मधुर स्वभाव, अच्छे संस्कार, मेहनत, तेज तथा कार्य-कुशलता के कारण उसका पति उससे अत्यधिक प्रेम करता था।

(ङ) भक्तिन अपनी ईर्ष्यालु जिठानियों की उपेक्षा से तंग आ चुकी थी। अतः उसने अपने पति-प्रेम के बल पर अपने परिवार से अलग होकर अपनी घर-गृहस्थी बसा ली। उसने उनको यह दिखा दिया कि यदि वे उसकी उपेक्षा करती रहेंगी तो वह भी उन्हें अपने जीवन से अलग कर सकती है।

[5] भक्तिन का दुर्भाग्य भी उससे कम हठी नहीं था, इसी से किशोरी से युक्ती होते ही बड़ी लड़की भी विधवा हो गई। भइयहू से पार न पा सकने वाले जेठों और काकी को परास्त करने के लिए कटिबद्ध जिठौतों ने आशा की एक किरण देख पाई। विधवा बहिन के गठबंधन के लिए बड़ा जिठौत अपने तीतर लड़ाने वाले साले को बुला लाया, क्योंकि उसका हो जाने पर सब कुछ उन्हीं के अधिकार में रहता। भक्तिन की लड़की भी माँ से कम समझदार नहीं थी, इसी से उसने वर को नापसंद कर दिया। बाहर के बहनोई का आना चचेरे भाइयों के लिए सुविधाजनक नहीं था, अतः यह प्रस्ताव जहाँ-का-तहाँ रह गया। तब वे दोनों माँ-बेटी खूब मन लगाकर अपनी संपत्ति की देख-भाल करने लगी और ‘मान न मान मैं तेरा मेहमान’ की कहावत चरितार्थ करने वाले वर के समर्थक उसे किसी-न-किसी प्रकार पति की पदवी पर अभिषिक्त करने का उपाय सोचने लगे। [पृष्ठ-73-74]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘भक्तिन’ नामक संस्मरणात्मक रेखाचित्र से अवतरित है। यह संस्मरणात्मक रेखाचित्र हिंदी साहित्य की महान कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा की रचना ‘स्मृति की रेखाएँ’ में संकलित है। इसमें लेखिका ने गाँव की एक अभावग्रस्त तथा गरीब भक्तिन का यथार्थ संस्मरणात्मक रेखाचित्र अंकित किया है। लेखिका भक्तिन के दुर्भाग्य पर प्रकाश डालती हुई लिखती है कि

व्याख्या – भक्तिन का दुर्भाग्य उससे भी अधिक हठी था। वह जितना भी दुर्भाग्य से लड़ती, उतना ही दुर्भाग्य उसके पीछे पड़ता जाता। यही कारण है कि किशोरावस्था से यौवनावस्था में कदम रखते ही भक्तिन की बड़ी बेटी के पति का देहांत हो गया और वह विधवा हो गई। उसके जेठ अपनी भाभी पर तो कोई नियंत्रण नहीं पा सके थे, परंतु उसकी बेटी के विधवा होने के कारण जेठों और उनके पुत्रों में आशा की एक किरण जाग गई। परिणाम यह हुआ कि विधवा बहन के पुनर्विवाह के लिए जेठ का बड़ा लड़का अपने उस साले को गाँव में ले आया, जो तीतर लड़ाने के अतिरिक्त कोई काम नहीं करता था।

बड़े जिठौत को यह लगा कि यदि उनकी विधवा बहन उसके साले की पत्नी बन जाएगी तो सारी संपत्ति पर उनका अधिकार हो जाएगा, लेकिन भक्तिन की बेटी अपनी माँ से अधिक समझदार निकली। वह सारी बात को अच्छी प्रकार समझ गई। उसने तीतर लड़ाने वाले वर को अस्वीकार कर दिया। दूसरे चचेरे भाइयों के लिए बाहर से किसी व्यक्ति का बहनोई बनकर आना उनके लिए कोई सुखद नहीं था। उनका विधवा बहन के विवाह का प्रस्ताव ज्यों-का-त्यों रह गया अर्थात् जिठौत के साले का प्रस्ताव लगभग समाप्त हो गया। माँ-बेटी दोनों मिलकर खूब परिश्रम करके अपनी संपत्ति की अच्छी तरह से देखभाल करने लगी।

परंतु तीतर लड़ाने वाले साले का समर्थन करने वाले जेठ के पुत्र ‘मान न मान, मैं तेरा मेहमान’ कहावत को सिद्ध करना चाहते थे अर्थात् वे बलपूर्वक विधवा बहन का किसी-न-किसी तरह विवाह करना चाहते थे। इसके लिए वे नए-नए उपाय खोजने लगे। कहने का भाव है कि जिठौतों ने यह फैसला कर लिया कि वे किसी-न-किसी तरह भक्तिन की विधवा बेटी का विवाह उस तीतर लड़ाने वाले से अवश्य करेंगे, ताकि वे भक्तिन की संपत्ति पर अपना अधिकार स्थापित कर सकें।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 11 भक्तिन

विशेष-

  1. यहाँ लेखिका ने यह स्पष्ट किया है कि भक्तिन के जेठ उसकी घर-संपत्ति पर किसी-न-किसी तरह अधिकार करना चाहते थे। इसलिए वे अपनी इच्छानुसार भक्तिन की विधवा बेटी का पुनर्विवाह कराना चाहते थे।
  2. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  3. वर्णनात्मक शैली का सफल प्रयोग हुआ है।
  4. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित और सटीक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) भक्तिन का दुर्भाग्य किससे अधिक हठी था और क्यों था?
(ख) जेठ भइयहू से पार क्यों नहीं पा रहे थे? उनका मंतव्य क्या था?
(ग) भक्तिन के जिठौतों को आशा की कौन-सी किरण दिखाई दी?
(घ) बड़ा जिठौत अपने साले के साथ भक्तिन की विधवा बेटी का पुनर्विवाह क्यों करना चाहता था?
(ङ) भक्तिन की विधवा बेटी ने क्या समझदारी दिखाई?
उत्तर:
(क) भक्तिन का दुर्भाग्य भक्तिन से भी अधिक हठी था। विधवा होने के बाद भक्तिन ने अपने सिर के बाल भी मुंडवा लिए थे। वह बड़ी दृढ़ता के साथ इस प्रतिज्ञा का पालन कर रही थी। परंतु उसका दुर्भाग्य भक्तिन की इस प्रतिज्ञा से अधिक कठोर निकला। भक्तिन के बड़े दामाद का निधन हो गया और उसकी बेटी यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही विधवा हो गई।

(ख) भक्तिन के जेठों की यह इच्छा थी कि भक्तिन की ज़मीन-जायदाद पर उनका अधिकार हो जाए। इसीलिए वे भक्तिन की बड़ी विधवा लड़की का पुनर्विवाह करना चाहते थे।

(ग) जब भक्तिन की बड़ी बेटी विधवा हो गई तो जेठ के लड़कों को लगा कि अब वे भक्तिन की ज़मीन-जायदाद पर अपना अधिकार स्थापित कर सकेंगे। इसलिए उन्होंने अपनी चचेरी बहन का पुनर्विवाह कराने का फैसला कर लिया। उनके लिए यह एक सबसे अच्छा उपाय था।

(घ) बड़ा जिठौत अपने साले के साथ भक्तिन की विधवा बेटी का पुनर्विवाह इसलिए करना चाहता था, ताकि वह भक्तिन की घर संपत्ति पर अपना अधिकार प्राप्त कर सके।

(ङ) भक्तिन की बड़ी लड़की बहुत समझदार थी। वह इस बात को अच्छी तरह जानती थी कि उसके चचेरे भाई उनकी ज़मीन-जायदाद पर अपना कब्जा जमाना चाहते हैं। यदि उसका विवाह तीतरबाज़ वर के साथ हो गया तो उसके चचेरे भाइयों को उसकी घर-संपत्ति पर कब्जा करने का मौका मिल जाएगा। इसलिए समझदारी दिखाते हुए उसने इस रिश्ते को ठुकरा दिया।

[6] तीतरबाज़ युवक कहता था, वह निमंत्रण पाकर भीतर गया और युवती उसके मुख पर अपनी पाँचों उँगलियों के उभार में इस निमंत्रण के अक्षर पढ़ने का अनुरोध करती थी। अंत में दूध-का-दूध पानी-का-पानी करने के लिए पंचायत बैठी और सबने सिर हिला-हिलाकर इस समस्या का मूल कारण कलियुग को स्वीकार किया। अपीलहीन फैसला हुआ कि चाहे उन दोनों में एक सच्चा हो चाहे दोनों झूठे पर जब वे एक कोठरी से निकले, तब उनका पति-पत्नी के रूप में रहना ही कलियुग के दोष का परिमार्जन कर सकता है। अपमानित बालिका ने ओठ काटकर लहू निकाल लिया और माँ ने आग्नेय नेत्रों से गले पड़े दामाद को देखा। संबंध कुछ सुखकर नहीं हुआ, क्योंकि दामाद अब निश्चित होकर तीतर लड़ाता था और बेटी विवश क्रोध से जलती रहती थी। इतने यत्न से सँभाले हुए गाय-ढोर, खेती-बारी जब पारिवारिक द्वेष में ऐसे झुलस गए कि लगान अदा करना भी भारी हो गया, सुख से रहने की कौन कहे। अंत में एक बार लगान न पहुंचने पर ज़मींदार ने भक्तिन को बुलाकर दिन भर कड़ी धूप में खड़ा रखा। यह अपमान तो उसकी कर्मठता में सबसे बड़ा कलंक बन गया, अतः दूसरे ही दिन भक्तिन कमाई के विचार से शहर आ पहुँची। [पृष्ठ-74]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘भक्तिन’ नामक संस्मरणात्मक रेखाचित्र से अवतरित है। यह संस्मरणात्मक रेखाचित्र हिंदी साहित्य की महान कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा की रचना ‘स्मृति की रेखाएँ में संकलित है। इसमें लेखिका ने गाँव की एक अभावग्रस्त तथा गरीब भक्तिन के कष्टों का वर्णन किया है। इसमें लेखिका ने उस प्रसंग को उठाया है जब बड़े जिगत का तीतरबाज साला विधवा बेटी के कमरे में बलपूर्वक घुस गया था और यह मामला पंचायत के सामने रखा गया। इस संदर्भ में लेखिका पंचायत के अन्यायपूर्ण निर्णय पर प्रकाश डालती हुई कहती है कि-

व्याख्या-तीतरबाज़ युवक ने पंचायत के सामने अपनी सफाई में कहा कि वह युवती का निमंत्रण पाकर ही उसकी कोठरी में गया था, परंतु युवती ने उसके इस कथन का विरोध करते हुए कहा कि तीतरबाज़ युवक के मुख पर उसकी पाँचों उँगलियों के उभरे निशान यह स्पष्ट करते हैं कि उसका दावा गलत है और वह बलपूर्वक उसकी कोठरी में घुस आया था। इसमें उसकी सहमति नहीं थी। आखिर सही न्याय करने के लिए पंचायत बिठाई गई। पंचायत के सभी सदस्यों ने सिर हिलाकर यह स्वीकार किया कि कलयुग ही इस समस्या का मूल कारण है। पंचायत ने एक ऐसा निर्णय किया, जिसमें कोई अपील नहीं हो सकती थी। पंचायत ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि उन दोनों में से चाहे एक सच्चा व्यक्ति हो, चाहे दोनों झूठे व्यक्ति हों, परंतु जब वे दोनों एक ही कोठरी से बाहर निकलकर आए हैं तो ऐसी स्थिति में उन दोनों को पति-पत्नी बनकर रहना पड़ेगा।

केवल यही हल ही कलयुग के इस दोष का निराकरण कर सकता है। इसके सिवाय अब कोई उपाय नहीं है। अन्ततः जिस लड़की का गाँव भर में अपमान हुआ था, वह अपने दाँतों से होंठ काटकर रह गई और भक्तिन ने भी क्रोधित दृष्टि से बलपूर्वक बने हुए उस दामाद को देखा और अपने क्रोध को अंदर-ही-अंदर पी लिया। यह रिश्ता भी अधिक सुखद नहीं हुआ। क्योंकि भक्तिन का दामाद अब बेफिक्र होकर तीतर लड़ाने लगा। बेटी मजबूर होकर क्रोध की आग में जलती रहती थी।

भक्तिन और उसकी बेटी ने बड़ी कोशिश करके अपने घर के पशुओं तथा खेती-बाड़ी को सँभाल रखा था, परंतु अब पारिवारिक झगड़ों में सब कुछ जल कर खत्म हो गया। सुखपूर्वक रहने की तो बात ही समाप्त हो गई। यहाँ तक कि लगान अदा करना भी मुश्किल हो गया। जब भक्तिन लगान अदा नहीं कर सकी तो ज़मींदार ने भक्तिन को अपने यहाँ बुलाकर दिन-भर कड़ी धूप में खड़ा रहने का दंड दिया। भक्तिन इस अपमान को सहन नहीं कर पाई। वह एक कर्त्तव्यपरायण नारी थी और यह दंड उसके लिए कलंक के समान सिद्ध हुआ। अगले ही दिन वह धन कमाने की इच्छा लेकर नगर में आ गई। भाव यह है कि तीतरबाज के साथ भक्तिन की विधवा बेटी का विवाह हो जाने पर उसकी सारी संपत्ति बरबाद हो गई।

विशेष-

  1. इसमें लेखिका ने जहाँ एक ओर गाँव की पंचायत के अन्याय पर प्रकाश डाला है, वहीं दूसरी ओर भक्तिन की जमीन-जायदाद की बर्बादी के कारणों का भी ब्यौरा दिया है।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है।
  3. वर्णनात्मक शैली द्वारा लेखिका ने भक्तिन की दयनीय स्थिति पर प्रकाश डाला है।
  4. वाक्य-विन्यास बहुत ही सटीक एवं विषयानुकूल है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) युवती ने पंचायत के सामने क्या तर्क दिया और पंचायत ने क्या फैसला लिया?
(ख) आपकी दृष्टि में क्या पंचायत का फैसला उचित है?
(ग) ज़बरदस्ती शादी कराने में कौन दोषी है? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
(घ) ज़बरदस्ती शादी कराने का क्या दुष्परिणाम हुआ?
(ङ) भक्तिन को काम करने के लिए शहर क्यों आना पड़ा?
उत्तर:
(क) युवती ने पंचायत के सामने कहा कि यह युवक उसकी कोठरी में बलपूर्वक घुस आया है। मैंने उसके मुँह पर थप्पड़ मारकर उसका विरोध किया और उसकी पिटाई भी की। यही कारण है कि मेरी पाँचों उँगलियों के निशान उसके गालों पर उभरे हुए हैं। पंचायत ने यह फैसला लिया कि भक्तिन की विधवा लड़की और जिठौत के साले के बीच जो घटना घटी है उसके लिए कलयुग ही दोषी है, क्योंकि दोनों एक ही कमरे में बंद हो चुके हैं, इसलिए अब उन्हें पति-पत्नी बनकर ही रहना पड़ेगा। इस प्रकार पंचायत के सदस्यों ने जबरदस्ती उन दोनों का विवाह करवा दिया।

(ख) पंचायत का फैसला अन्यायपूर्ण है। लेखिका ने इसके लिए ‘अपीलहीन’ शब्द का प्रयोग किया है जो यह सिद्ध करता है कि पंचायत का फैसला एक तरफा था। उन्होंने सच-झूठ का पता नहीं लगाया और लड़की के न चाहते हुए भी उस गुंडे तीतरबाज़ के साथ उसका विवाह करा दिया। किसी भी दृष्टि से यह फैसला उचित नहीं कहा जा सकता।

(ग) भक्तिन की विधवा लड़की का पुनर्विवाह कराने के लिए पंचायत ही दोषी है। भक्तिन के जिठौत तो संपत्ति को हथियाने के चक्कर में था और उसके साले ने लोभ और पागलपन में यह दुष्कर्म किया। परंतु पंचायत का काम न्याय करना होता है। उसे मामले के सभी पहलुओं पर विचार करके निर्णय करना चाहिए था। पंचायत का यह कर्त्तव्य था कि वह उस तीतरबाज़ को अपमानित करके उसे गाँव से निकाल देती, ताकि कोई व्यक्ति गाँव की बहू-बेटी के साथ दुष्कर्म न करे। इसके साथ-साथ जिठौत को भी दंड दिया जाना चाहिए था।

(घ) भक्तिन की विधवा बेटी की जबरदस्ती शादी कराने का यह दुष्परिणाम हुआ कि उसकी हरी-भरी गृहस्थी उजड़ गई। अनचाहे निकम्मे दामाद के कारण निरंतर कलह बढ़ने लगा, जिससे खेती-बाड़ी पर प्रभाव पड़ा। तीतरबाज़ दामाद ने घर की संपत्ति को उजाड़कर रख दिया। जिससे भक्तिन के पास लगान चुकाने के पैसे भी नहीं रहे। अन्ततः जमींदार से अपमानित होने के कारण भक्तिन ने कमाई के लिए शहर का रुख किया।

(ङ) भक्तिन को कमाई के लिए शहर इसलिए आना पड़ा, क्योंकि उसके दामाद तथा जिठौतों के दुष्कर्मों के कारण उसकी हरी-भरी खेती उजड़ गई थी। उसके पशु और खेत उसकी कमाई का साधन न रहकर बोझ बन गए थे।

[7] दूसरे दिन तड़के ही सिर पर कई लोटे औंधा कर उसने मेरी धुली थोती जल के छींटों से पवित्र कर पहनी और पूर्व के अंधकार और मेरी दीवार से फूटते हुए सूर्य और पीपल का, दो लोटे जल से अभिनंदन किया। दो मिनट नाक दबाकर जप करने के उपरांत जब वह कोयले की मोटी रेखा से अपने साम्राज्य की सीमा निश्चित कर चौके में प्रतिष्ठित हुई, तब मैंने समझ लिया कि इस सेवक का साथ टेढ़ी खीर है। अपने भोजन के संबंध में नितांत वीतराग होने पर भी मैं पाक-विद्या के लिए परिवार में प्रख्यात हूँ और कोई भी पाक-कुशल दूसरे के काम में नुक्ताचीनी बिना किए रह नहीं सकता। पर जब छूत-पाक पर प्राण देने वाले व्यक्तियों का बात-बात पर भूखा मरना स्मरण हो आया और भक्तिन की शंकाकुल दृष्टि में छिपे हुए निषेध का अनुभव किया, तब कोयले की रेखा मेरे लिए लक्ष्मण के धनुष से खींची हुई रेखा के सामने दुर्लंघ्य हो उठी। [पृष्ठ-74-75]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘भक्तिन’ नामक संस्मरणात्मक रेखाचित्र से अवतरित है। यह संस्मरणात्मक रेखाचित्र हिंदी साहित्य की महान कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा की रचना ‘स्मृति की रेखाएँ’ में संकलित है। इसमें लेखिका ने भक्तिन के जीवन के उस पड़ाव का वर्णन किया है, जब वह लेखिका के पास आकर नौकरी करना आरंभ करती है।

व्याख्या-अगले दिन सवेरा होते ही भक्तिन ने अपने सिर पर कई लोटे पानी उँडेलकर स्नान किया। तत्पश्चात् लेखिका की धुली धोती को पानी के छींटे मारकर पवित्र करके पहन लिया। पूर्व दिशा के अंधकार से सूर्योदय हो रहा था और लेखिका के घर की दीवार से पीपल का एक पेड़ फूट कर निकल आया था। भक्तिन ने दो लोटे जल चढ़ाकर सूर्य और पीपल का स्वागत किया। ने दो मिनट तक अपनी नाक को दबाकर रखा तथा जाप किया। इसके पश्चात उसने कोयले की मोटी रेखा खींचकर अपने क्षेत्र की सीमाओं को निश्चित कर दिया। इस प्रकार वह रसोई घर में प्रविष्ट हुई। यह सब देखकर लेखिका को समझने में तनिक भी देर नहीं हुई कि इस सेविका के साथ गुजारा करना बड़ा कठिन है।

लेखिका पुनः स्वीकार करती है कि भोजन के संबंध में वह पूर्णतया विरक्त है, फिर भी अपने परिवार में वह पाक-विद्या में निपुण मानी जाती है। जो व्यक्ति पाक-विद्या में निपुण होता है, वह दूसरे द्वारा बनाए गए भोजन में नुक्ताचीनी अवश्य करता है और लेखिका भी कोई अपवाद नहीं थी। परंतु जब लेखिका ने छूत-पाक पर अपनी जान देनेवाले व्यक्तियों तथा बात-बात पर भूखा मरने वालों को याद किया तो वे एकदम सावधान हो गईं। उसने भक्तिन की संदेहयुक्त नज़र में छिपी हुई मनाही को तत्काल अनुभव कर लिया। भाव यह है कि उसे इस बात का पता लग गया कि उसका रसोई-घर में जाना निषेध है। अंततः भक्तिन द्वारा खींची गई कोयले की रेखा लेखिका के लिए लक्ष्मण-रेखा के समान सिद्ध हो गई, जिसे वह पार नहीं कर सकती थी अर्थात् भक्तिन ने अपनी पूजा-अर्चना के बाद लेखिका की रसोई पर अपना पूर्ण आधिपत्य स्थापित कर लिया था।

विशेष-

  1. यहाँ लेखिका ने भक्तिन द्वारा रसोई-घर में प्रवेश करने की प्रक्रिया पर समुचित प्रकाश डाला है।
  2. भक्तिन रसोई को लेकर छूत को मानती थी और चूल्हे-चौके की पवित्रता पर पूरा ध्यान देती थी।
  3. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  4. वर्णनात्मक शैली द्वारा लेखिका ने भक्तिन के सुदृढ़ चरित्र पर प्रकाश डाला है।
  5. वाक्य-विन्यास बड़ा ही सटीक एवं सार्थक है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 11 भक्तिन

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) रसोई-घर में प्रवेश करने से पहले भक्तिन कौन-सा काम करती थी?
(ख) भक्तिन से निपटना लेखिका को टेढ़ी खीर क्यों लगा?
(ग) भक्तिन रसोई-घर में कोयले की मोटी रेखा क्यों खींचती थी?
(घ) किन कारणों से लेखिका भक्तिन की छुआछूत की प्रवृत्ति को सहन कर गई?
उत्तर:
(क) प्रतिदिन रसोई-घर में प्रवेश करने से पहले भक्तिन स्नान करती थी। तत्पश्चात् वह जल के छींटे मारकर अपने कपड़ों को पवित्र करती थी। सूर्य और पीपल को जल चढ़ाने के बाद वह दो मिनट तक नाक दबाकर जाप करती थी उसके बाद वह रसोई-घर में प्रवेश करती थी।

(ख) लेखिका को तत्काल पता चल गया कि भक्तिन एक दृढ़-निश्चय नारी है। उसे रसोई-घर की पवित्रता का पूरा ध्यान था। इस प्रकार के लोग अकसर पक्के इरादों वाले होते हैं। भक्तिन के द्वारा रसोई-घर में खींची गई कोयले की रेखा से लेखिका जान गई कि इससे निपटना टेढ़ी खीर है।

(ग) भक्तिन रसोई-घर में कोयले की रेखा खींच कर यह निश्चित करती थी कि रसोई बनाते समय कोई अन्य व्यक्ति रसोई-घर में घुसकर हस्तक्षेप न करे और न ही रसोई की पवित्रता को नष्ट करे।

(घ) लेखिका उन लोगों को याद करके भक्तिन की छुआछूत की प्रवृत्ति को सहन कर गई जो रसोई पकाने के मामले में ज़रा-सी भी चूक होने पर खाना-पीना छोड़ देते हैं अथवा अपने प्राण देने के लिए तैयार हो जाते हैं।

[8] भक्तिन अच्छी है, यह कहना कठिन होगा, क्योंकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं। वह सत्यवादी हरिश्चंद्र नहीं बन सकती; पर ‘नरो वा कुंजरो वा’ कहने में भी विश्वास नहीं करती। मेरे इधर-उधर पड़े पैसे-रुपये, भंडार-घर की किसी मटकी में कैसे अंतरहित हो जाते हैं, यह रहस्य भी भक्तिन जानती है। पर, उस संबंध में किसी . के संकेत करते ही वह उसे शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दे डालती है, जिसको स्वीकार कर लेना किसी तर्क-शिरोमणि के लिए संभव नहीं। यह उसका अपना घर ठहरा, पैसा-रुपया जो इधर-उधर पड़ा देखा, सँभालकर रख लिया। यह क्या चोरी है! उसके जीवन का परम कर्त्तव्य मुझे प्रसन्न रखना है-जिस बात से मुझे क्रोध आ सकता है, उसे बदलकर इधर-उधर करके बताना, क्या झूठ है! इतनी चोरी और इतना झूठ तो धर्मराज महाराज में भी होगा, नहीं तो वे भगवान जी को कैसे प्रसन्न रख सकते और संसार को कैसे चला सकते! [पृष्ठ-76]

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘भक्तिन’ नामक संस्मरणात्मक रेखाचित्र से अवतरित है। यह संस्मरणात्मक रेखाचित्र हिंदी साहित्य की महान कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा की रचना ‘स्मृति की रेखाएँ में संकलित है। इसमें लेखिका भक्तिन के स्वभाव के गुणों तथा अवगुणों का मूल्यांकन करती हुई उसके चरित्र पर समुचित प्रकाश डालती है। लेखिका कहती है कि

व्याख्या – यह निर्णय करना बड़ा कठिन है कि भक्तिन एक अच्छी नारी है। कारण यह है कि उसमें कई दुर्गुण भी हैं। उसकी तुलना सत्यवादी हरिश्चंद्र से नहीं की जा सकती। लेकिन वह इस बात में विश्वास नहीं करती थी कि कोई बात सत्य है या असत्य। इसके लिए लेखिका ने युधिष्ठिर द्वारा कहे गए वाक्य ‘नरो वा कुंजरो वा’ का उदाहरण दिया है। भक्तिन लेखिका के घर में इधर-उधर पड़े रुपये-पैसे को उठाकर भंडार घर की किसी मटकी में छिपा कर रख देती थी। वे पैसे-रुपये कहाँ पड़े हैं, इसका पता केवल भक्तिन को होता था।

इस संबंध में लेखिका यदि कोई आपत्ति करती तो वह शास्त्रार्थ करने लग जाती थी तथा बड़े से बड़ा तर्कशील व्यक्ति भी उसके तर्कों को सहन नहीं कर सकता था। फिर भी उसका यह कहना तर्क संगत था कि यह उसका अपना घर है। यदि उसने बिखरे पड़े पैसे-रुपये को संभालकर अपने पास रख लिया है तो यह कोई चोरी नहीं है, बल्कि यह तो उसका कर्तव्य है। उसके जीवन का सर्वोच्च कर्त्तव्य तो लेखिका को हमेशा प्रसन्न करना है।

उसका कहना था कि जिस बात पर लेखिका सकता है, उसे इधर-उधर बदलकर तथा थोडा-बहत तोड़ मरोड़ कर प्रस्तत करना कोई झठ नहीं है, बल्कि ऐसा करके वह लेखिका के क्रोध को दूर करती है। उसका तर्क यह था कि धर्मराज महाराज भी इतनी चोरी तो करते ही होंगे और इतना झूठ तो बोलते ही होंगे। यदि वे ऐसा नहीं करते तो वे भगवान को कैसे खुश कर पाते और संसार को कैसे चला पाते। भाव यह है कि भक्तिन हमेशा सच्चे-झूठे तर्क देकर इसमें सत्य सिद्ध करने में लगी रहती थी।

विशेष-

  1. यहाँ लेखिका ने भक्तिन के गुण-अवगुणों का सही मूल्यांकन किया है और उसकी तर्क देने की शक्ति पर प्रकाश डाला है।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वर्णनात्मक शैली द्वारा भक्तिन के चरित्र पर समुचित प्रकाश डाला गया है।
  4. वाक्य-विन्यास सर्वथा विषयानुकूल एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है। गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(क) लेखिका ने भक्तिन को अच्छा क्यों नहीं कहा?
(ख) सच-झूठ के बारे में भक्तिन का मूल दृष्टिकोण क्या था?
(ग) भक्तिन घर में इधर-उधर पडे रुपये-पैसे को भंडार-घर की मटकी में क्यों डाल देती थी?
(घ) भक्तिन का मूल लक्ष्य क्या था और वह उसे कैसे पूरा करती थी?
(ङ) भक्तिन रुपये-पैसे को मटकी में डालने को चोरी क्यों नहीं कहती थी?
उत्तर:
(क) भक्तिन के स्वभाव में गुणों के साथ-साथ कुछ अवगुण भी थे। सत्य-असत्य के बारे में उसकी अपनी राय थी। वह लोक-व्यवहार की कसौटी पर खरी नहीं उतरती थी। इसलिए लेखिका ने भक्तिन को अच्छा नहीं कहा।

(ख) सच-झूठ के बारे में भक्तिन आचरण करने वाले व्यक्ति की नीयत को अधिक महत्त्व देती थी। वह महादेवी के घर में इधर-उधर पड़े रुपये-पैसे को मटकी में सँभालकर रख देती थी। उसका कहना था कि रुपये-पैसे को सँभालकर रखना कोई चोरी नहीं है।

(ग) भक्तिन घर में पड़े रुपये-पैसे को सँभालकर रखने के उद्देश्य से भंडार-घर की मटकी में डाल देती थी।

(घ) भक्तिन का मूल लक्ष्य अपनी मालकिन को प्रसन्न रखना था। इसके लिए वह सच-झूठ का सहारा लेने के लिए भी तैयार रहती थी। यदि उसकी किसी बात पर मालकिन क्रोधित हो जाती थी तो वह उस बात को रफा-दफा कर देती थी।

(ङ) भक्तिन पैसों को मटकी में डालने को चोरी इसलिए नहीं कहती थी क्योंकि महादेवी के घर को सँभालना उसका काम था। इसलिए वह पैसे-रुपये को भी सँभालकर रखती थी। ऐसा करना वह चोरी नहीं समझती थी।

[9] पर वह स्वयं कोई सहायता नहीं दे सकती, इसे मानना अपनी हीनता स्वीकार करना है इसी से वह द्वार पर बैठकर बार-बार कुछ काम बताने का आग्रह करती है। कभी उत्तर:पुस्तकों को बाँधकर, कभी अधूरे चित्र को कोने में रखकर, कभी रंग की प्याली धोकर और कभी चटाई को आँचल से झाड़कर वह जैसी सहायता पहुँचाती है, उससे भक्तिन का अन्य व्यक्तियों से अधिक बुद्धिमान होना प्रमाणित हो जाता है। वह जानती है कि जब दूसरे मेरा हाथ बटाने की कल्पना तक नहीं कर सकते, तब वह सहायता की इच्छा को क्रियात्मक रूप देती है, इसी से मेरी किसी पुस्तक के प्रकाशित होने पर उसके मुख पर प्रसन्नता की आभा वैसे ही उद्भासित हो उठती है जैसे स्विच दबाने से बल्ब में छिपा आलोक।। [पृष्ठ-78]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘भक्तिन’ नामक संस्मरणात्मक रेखाचित्र से अवतरित है। यह संस्मरणात्मक रेखाचित्र हिंदी साहित्य की महान कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा की रचना ‘स्मृति की रेखाएँ’ में संकलित है। इसमें लेखिका ने यह स्पष्ट किया है कि भक्तिन महादेवी की एक अनन्य सेविका थी। जब महादेवी चित्रकला और कविता लिखने में व्यस्त होती थी, तो वह सहायता करने में असमर्थ होते हुए भी अपनी निष्ठा से कोई-न-कोई काम अवश्य ढूँढ़ लेती थी।

व्याख्या-जब महादेवी चित्रकला और काव्य-रचना में व्यस्त हो जाती थी, तो उस समय भक्तिन लेखिका का किसी प्रकार का सहयोग नहीं कर सकती थी। परंतु इस स्थिति को स्वीकार करना भक्तिन को अपनी हीनता स्वीकार करना था। इसलिए वह द्वार पर बैठ जाती थी। वह बार-बार लेखिका से कोई-न-कोई काम बताने के लिए हठ करती रहती थी। कभी वह उत्तर:पुस्तिकाओं को बाँधकर, कभी अधूरे चित्र को कोने में रखकर, कभी रंग की प्याली को धोकर और कभी चटाई को अपने आँचल से साफ कर लेखिका का सहयोग करती थी। लेखिका की बातों से यह स्वतः स्पष्ट हो जाता है कि वह सामान्य व्यक्तियों से अधिक समझदार थी।

वह इस बात को अच्छी प्रकार से समझती थी कि जब अन्य लोग लेखिका का सहयोग करने की बात सोच भी नहीं सकते थे, तब वह सक्रिय होकर अपने सहयोग की इच्छा को क्रियान्वित करती थी। यही कारण है कि जब लेखिका की कोई पुस्तक प्रकाशित होकर आती थी, तो उसके चेहरे पर प्रसन्नता की किरणें प्रकाशमान हो उठती थीं। यह लगभग ऐसी ही स्थिति थी जैसे कि बिजली का बटन दबाने से बल्ब में छिपा प्रकाश चारों ओर फैल जाता है। भाव यह है कि जब भी महादेवी की कोई रचना पूर्ण होकर छपकर सामने आती थी, तो भक्तिन अत्यधिक प्रसन्न हो जाती थी। शायद वह यह सोचती थी कि महादेवी के लेखन में उसका भी थोड़ा बहुत सहयोग रहा है।

विशेष-

  1. यहाँ लेखिका ने स्पष्ट किया है कि भक्तिन एक सच्ची सेविका के समान हमेशा उसका सहयोग करने के लिए तत्पर रहती थी।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास भावाभिव्यक्ति में सहायक है तथा ‘हाथ बँटाना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग हुआ है।
  4. वर्णनात्मक शैली द्वारा भक्तिन के चरित्र पर समूचा प्रकाश डाला गया है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) भक्तिन किस बात में स्वयं को हीन मानती है?
(ख) लेखिका की दृष्टि में भक्तिन अन्य सेवकों से अधिक बुद्धिमान कैसे है?
(ग) भक्तिन चित्रकला और कविता लिखने में लेखिका की किस प्रकार सहायता करती थी?
(घ) महादेवी की किसी पुस्तक के प्रकाशन पर भक्तिन कैसा अनुभव करती थी?
उत्तर:
(क) भक्तिन कभी खाली नहीं बैठ सकती थी। जब महादेवी चित्रकला और कविता लिखने में व्यस्त हो जाती थी, तो वह लेखिका की किसी प्रकार की सहायता नहीं कर सकती थी। यही सोचकर वह स्वयं को हीन समझने लगी थी।

(ख) महादेवी द्वारा चित्रकला और कविता लिखने के दौरान अन्य सेवक स्वयं को असमर्थ समझते थे, परंतु भक्तिन तो महादेवी की सच्ची सेविका थी। वह अपनी निष्ठा से कोई-न-कोई काम अवश्य ढूँढ लेती थी। इसलिए वह अन्य सेवकों की अपेक्षा अधिक बुद्धिमती थी।

(ग) भक्तिन चित्रकला और कविता लेखन के दौरान हमेशा महादेवी के पास ही बैठी रहती थी। वह हर प्रकार से महादेवी की सहायता करना चाहती थी। कभी तो वह अधूरे चित्र को कमरे के किसी कोने में रख देती थी, कभी चटाई को अपने आँचल से पोंछ देती थी। यही नहीं, वह दही का शरबत अथवा तुलसी की चाय देकर महादेवी की भूख को दूर करने का प्रयास करती रहती थी।

(घ) जब महादेवी की कोई रचना प्रकाशित होती थी, तो भक्तिन का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठता था। वह बार-बार पुस्तक को छूती थी और आँखों के निकट लाकर उसे देखती थी। वह यह सोचकर प्रसन्न होती थी कि इस पुस्तक के प्रकाशन में उसका भी थोड़ा-बहुत सहयोग है।

[10] मेरे भ्रमण की भी एकांत साथिन भक्तिन ही रही है। बदरी-केदार आदि के ऊँचे-नीचे और तंग पहाड़ी रास्ते में जैसे वह हठ करके मेरे आगे चलती रही है, वैसे ही गाँव की धूलभरी पगडंडी पर मेरे पीछे रहना नहीं भूलती। किसी भी समय, कहीं भी जाने के लिए प्रस्तुत होते ही मैं भक्तिन को छाया के समान साथ पाती हूँ। युद्ध को देश की सीमा में बढ़ते देख जब लोग आतंकित हो उठे, तब भक्तिन के बेटी-दामाद उसके नाती को लेकर बुलाने आ पहुँचे; पर बहुत समझाने-बुझाने पर भी वह उनके साथ नहीं जा सकी। सबको वह देख आती है; रुपया भेज देती है; पर उनके साथ रहने के लिए मेरा साथ छोड़ना आवश्यक है; जो संभवतः भक्तिन को जीवन के अंत तक स्वीकार न होगा। [पृष्ठ-78-79]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘भक्तिन’ नामक संस्मरणात्मक रेखाचित्र से अवतरित है। यह संस्मरणात्मक रेखाचित्र हिंदी साहित्य की महान कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा की रचना ‘स्मृति की रेखाएँ में संकलित है। यहाँ लेखिका ने यह स्पष्ट किया है कि भ्रमणकाल के दौरान भक्तिन हमेशा लेखिका के साथ रहती थी। दूसरा, जब देश पर युद्ध के बादल मडराने लगे, तब उसकी बेटी और दामाद उसे लेने के लिए आए परंतु भक्तिन ने महादेवी के साथ रहना ही स्वीकार किया।

व्याख्या-लेखिका स्वीकार करती है कि भ्रमणकाल के दौरान भक्तिन हमेशा उसके साथ ही भ्रमण पर जाती थी। जब बदरी-केदार के ऊँचे-नीचे तथा तंग पहाड़ी रास्ते आ जाते तो वह हठपूर्वक महादेवी के आगे-आगे चल पड़ती, ताकि लेखिका को बिना किसी बाधा के चलने का मौका मिले। गाँव की धूल भरी पगडंडी में भक्तिन महादेवी के पीछे-पीछे चलना स्वीकार करती, ताकि महादेवी को गाँव की धूल परेशान न करे। जब भी महादेवी किसी भी समय कहीं भी जाने के लिए तैयार होती तो भक्तिन छाया के समान उनके साथ चलती। भाव यह है कि भक्तिन हमेशा महादेवी की सेविका बनकर उनके साथ ही लगी रहती थी।

एक समय देश पर युद्ध के बादल मँडराने लगे थे, जिससे देश के सभी लोग भयभीत हो उठे थे। इस अवसर पर भक्तिन की बेटी और दामाद उसके नातियों को साथ लेकर भक्तिन को बुलाने के लिए महादेवी के घर आए। वे चाहते थे कि इस कष्ट के समय भक्तिन उनके साथ रहे, क्योंकि नगर युद्ध से अधिक प्रभावित होते हैं। इस अवसर पर भक्तिन को अनेक तर्क देकर समझाने-बुझाने का प्रयास किया गया, परंतु उसने किसी की बात नहीं सुनी और वह उनके साथ नहीं गई। वह समय-समय पर अपनी बेटी और उनके बच्चों को देख आती थी। यही नहीं, वह उनके पास रुपए भी भेज देती थी। यदि वह उनके साथ गाँव में जाकर रहती तो उसे लेखिका का साथ छोड़ना पड़ता। भक्तिन को यह कदापि स्वीकार नहीं था। वह तो जीवन के अंत तक महादेवी के साथ ही रहना चाहती थी।

विशेष-

  1. इसमें लेखिका ने भक्तिन की सच्ची सेवा-भक्ति पर प्रकाश डाला है जो हमेशा अपने सेवा-धर्म को निभाने के लिए छाया के समान उनके साथ लगी रहती थी।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. वर्णनात्मक शैली का प्रयोग हुआ है तथा ‘छाया के समान साथ रहना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) तंग पहाड़ी रास्तों पर भक्तिन महादेवी के आगे-आगे क्यों चलती थी?
(ख) गाँव की धूलभरी पगडंडी पर भक्तिन महादेवी के पीछे-पीछे क्यों चलती थी?
(ग) युद्ध के दिनों में भक्तिन ने अपने गाँव जाना स्वीकार क्यों नहीं किया?
(घ) सिद्ध कीजिए कि भक्तिन महादेवी की एक सच्ची सेविका थी।
उत्तर:
(क) तंग पहाड़ी रास्तों में भक्तिन महादेवी के आगे-आगे इसलिए चलती थी, ताकि कोई खतरा न हो अथवा फिसलन या गड्ढा हो तो वह स्वयं उसका सामना करे। महादेवी को किसी खतरे का सामना न करना पड़े।

(ख) गाँव की धूलभरी पगडंडी पर भक्तिन महादेवी के पीछे-पीछे इसलिए चलती थी, ताकि महादेवी को रास्ते की धूल परेशान न करे अथवा वह स्वयं उस धूल को अपने ऊपर झेल लेती थी।

(ग) युद्ध के दिनों में नगर के लोगों पर खतरा मँडराने लगा था। नगर के सभी लोग सुरक्षित स्थानों की ओर जा रहे थे। इसीलिए भक्तिन की बेटी और दामाद उसे गाँव में ले जाने के लिए आए थे। परंतु भक्तिन ने महादेवी को अकेला छोड़कर उनके साथ गाँव जाना स्वीकार नहीं किया और प्रत्येक स्थिति में महादेवी के साथ रहना पसंद किया।

(घ) निश्चय से भक्तिन महादेवी की एक सच्ची सेविका थी। वह अपने सेवा-धर्म में प्रवीण थी और छाया के समान अपनी स्वामिन के साथ रहती थी। तंग रास्तों पर वह महादेवी के आगे चलती थी, ताकि वह पहले खतरे का सामना कर सके। गाँव की धूलभरी पगडंडी पर वह महादेवी के पीछे चलती थी, ताकि महादेवी को गाँव की धूल-मिट्टी का सामना न करना पड़े। युद्ध के दिनों में भी उसने महादेवी के साथ रहना ही पसंद किया।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 11 भक्तिन

[11] भक्तिन और मेरे बीच में सेवक-स्वामी का संबंध है, यह कहना कठिन है। क्योंकि ऐसा कोई स्वामी नहीं हो सकता, जो इच्छा होने पर भी सेवक को अपनी सेवा से हटा न सके और ऐसा कोई सेवक भी नहीं सुना गया, जो स्वामी के चले जाने का आदेश पाकर अवज्ञा से हँस दे। भक्तिन को नौकर कहना उतना ही असंगत है, जितना अपने घर में बारी-बारी से आने-जाने वाले अँधेरे-उजाले और आँगन में फूलने वाले गुलाब और आम को सेवक मानना। वे जिस प्रकार एक अस्तित्व रखते हैं, जिसे सार्थकता देने के लिए ही हमें सुख-दुख देते हैं, उसी प्रकार भक्तिन का स्वतंत्र व्यक्तित्व अपने विकास के परिचय के लिए ही मेरे जीवन को घेरे हुए है। [पृष्ठ-79]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘भक्तिन’ नामक संस्मरणात्मक रेखाचित्र से अवतरित है। यह संस्मरणात्मक रेखाचित्र हिंदी साहित्य की महान कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा की रचना ‘स्मृति की रेखाएँ’ में संकलित है। इसमें लेखिका ने यह स्पष्ट किया है कि उसने भक्तिन को अपनी सेविका न मानकर अपनी सहयोगी स्वीकार किया है। लेखिका लिखती है कि

व्याख्या-यह कहना लगभग असंभव है कि भक्तिन और मेरे बीच सेवक और स्वामी का संबंध रहा होगा। संसार में ऐसा कोई स्वामी नहीं है, जो चाहने पर भी अपने सेवक को सेवा-कार्य से हटा न सके अर्थात् चाहने पर भी महादेवी भक्तिन को सेवा-कार्य से मुक्त नहीं कर सकी। इसी प्रकार संसार में ऐसा कोई सेवक भी नहीं हो सकता, जिसे स्वामी ने यह आदेश दिया हो कि वह काम छोड़कर चला जाए और वह स्वामी के आदेश को न मानता हुआ केवल हँस पड़े। जब भी महादेवी भक्तिन को काम छोड़कर जाने की आज्ञा देती थी, तो वह आगे से हँस देती थी, काम छोड़कर जाना तो एक अलग बात है।

महादेवी की दृष्टि में भक्तिन को घर का नौकर कहना सर्वथा अनुचित है। जिस प्रकार घर में बारी-बारी अंधेरा और उजाला आता रहता है, गुलाब खिलता रहता है और आम फलता रहता है, परंतु हम उन्हें नौकर नहीं कह सकते, यह उनका स्वभाव है। इन सबका अपना-अपना अस्तित्व है, जिसे सार्थक बनाने के लिए वह हमें सुख और दुख देते रहते हैं। उसी प्रकार भक्तिन का अस्तित्व भी स्वतंत्र था और वह अपने विकास का परिचय देने के लिए लेखिका को चारों ओर से घेरे हुए थी। भाव यह है कि भक्तिन महादेवी के जीवन का एक अनिवार्य अंग थी, अपने सुख-दुख दोनों के साथ जीवित रहने की अधिकारिणी थी।

विशेष-

  1. इसमें लेखिका ने भक्तिन और अपने जीवन के प्रगाढ़ संबंधों पर समुचित प्रकाश डाला है।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित तथा भावानुकूल है।
  4. वर्णनात्मक शैली द्वारा भक्तिन के जीवन-चरित्र पर समुचित प्रकाश डाला गया है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) महादेवी भक्तिन को अपनी सेविका क्यों नहीं मानती थी?
(ख) जब महादेवी ने भक्तिन को वहाँ से चले जाने का आदेश दिया तो भक्तिन ने कैसा व्यवहार किया?
(ग) भक्तिन और महादेवी के बीच किस प्रकार का संबंध था?
(घ) लेखिका ने अंधेरे, उजाले, गुलाब, आम द्वारा भक्तिन में क्या समानता खोजी है?
उत्तर:
(क) महादेवी भक्तिन को अपनी सेविका नहीं मानती थी, क्योंकि वह चाहकर भी उसको नौकरी से नहीं हटा सकती थी और यदि वह उसको ऐसा कहती तो भक्तिन हँसी में ही उसकी बात को टाल जाती थी। वह उसे छोड़ने की सोच भी नहीं पाती थी। इसलिए महादेवी उसको सेविका नहीं मानती थी।

(ख) जब महादेवी ने भक्तिन को नौकरी छोड़कर चले जाने का आदेश दिया तो उसने महादेवी के आदेश की अवज्ञा की और हँस दिया। वह तो स्वयं को महादेवी की संरक्षिका मानती थी। इसलिए वह उसे छोड़कर कैसे जा सकती थी।

(ग) भक्तिन और महादेवी के बीच प्रगाढ़ आत्मीयता थी। वस्तुतः भक्तिन स्वयं को महादेवी की संरक्षिका मानती थी, इसलिए वह उसे छोड़कर जाने को तैयार नहीं थी। लेखिका ने स्वीकार किया है कि उसके और भक्तिन के बीच सेविका और स्वामिन का संबंध नहीं था।

(घ) लेखिका का कहना है कि जिस प्रकार घर में अँधेरे, उजाले, गुलाब तथा आम का अलग-अलग अस्तित्व होता है, उसी प्रकार से भक्तिन का भी घर में अलग स्थान था। वह लेखिका की केवल सेविका नहीं थी, बल्कि सुख-दुख में साथ देने वाली अनन्य सहयोगी भी थी।

[12] मेरे परिचितों और साहित्यिक बंधुओं से भी भक्तिन विशेष परिचित है; पर उनके प्रति भक्तिन के सम्मान की मात्रा, मेरे प्रति उनके सम्मान की मात्रा पर निर्भर है और सद्भाव उनके प्रति मेरे सदभाव से निश्चित होता है। इस संबंध में भक्तिन की सहजबुद्धि विस्मित कर देने वाली है। वह किसी को आकार-प्रकार और वेश-भूषा से स्मरण करती है और किसी को नाम के अपभ्रंश द्वारा। कवि और कविता के संबंध में उसका ज्ञान बढ़ा है; पर आदर-भाव नहीं। किसी के लंबे बाल और अस्त-व्यस्त वेश-भूषा देखकर वह कह उठती है- ‘का ओहू कवित्त लिखे जानत हैं और तुरंत ही उसकी अवज्ञा प्रकट हो जाती है- तब ऊ कुच्छौ करिहैं-धरि, ना-बस गली-गली गाउत-बजाउत फिरिहैं। [पृष्ठ-80]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘भक्तिन’ नामक संर अवतरित है। यह संस्मरणात्मक रेखाचित्र हिंदी साहित्य की महान कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा की रचना ‘स्मृति की रेखाएँ’ में संकलित है। भक्तिन महादेवी के साहित्यिक बंधुओं पर पूरी नज़र रखती थी और यह जानने का प्रयास करती थी कि उनमें से कौन महादेवी का आदर-सम्मान करते थे।

व्याख्या-महादेवी लिखती है कि भक्तिन उसके साहित्यिक बंधुओं को अच्छी तरह जानती थी। लेकिन वह उन्हीं साहित्यिक बंधुओं को सम्मान देती थी, जो महादेवी का उचित सम्मान करते थे। उनके प्रति भक्तिन की सद्भावना इस बात पर निर्भर करती थी कि वे लेखिका के प्रति किस प्रकार की सोच रखते हैं। भक्तिन की इस प्रकार की सहज बुद्धि देखकर लेखिका स्वयं आश्चर्यचकित हो जाती। वह किसी साहित्यिक बंध के आकार-प्रकार और कपड़ों से उनको याद करती थी और किसी को उसके बिगड़े नाम से याद करती थी।

कवि और कविता के बारे में उसका ज्ञान बढ़ चुका था। परंतु वह हरेक का आदर-सम्मान नहीं करती थी। किसी कवि के लंबे-लंबे बाल तथा अस्त-व्यस्त कपड़े देखकर यह कह उठती थी कि क्या यह भी कविता लिखना जानता है। इसके साथ ही वह अपनी अवज्ञा को स्पष्ट करते हुए कहती थी कि क्या यह कुछ काम-धाम करता है या गली-गली में गाता बजाता फिरता है। भाव यह है कि लंबे-लंबे बालों वाले तथा अस्त-व्यस्त कपड़ों वालों को वह पसंद नहीं करती थीं।

विशेष-

  1. यहाँ लेखिका ने भक्तिन की सहज बुद्धि पर प्रकाश डाला है जो साहित्यिक बंधुओं द्वारा अपनी स्वामिनी के प्रति किए गए सम्मान को देखकर ही उनका मूल्यांकन करती है।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा सटीक एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. संवादात्मक तथा वर्णनात्मक शैलियों के द्वारा भक्तिन के चरित्र पर प्रकाश डाला गया है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) भक्तिन महादेवी के साहित्यिक बंधुओं का आदर-सम्मान किस प्रकार करती है?
(ख) भक्तिन साहित्यिक बंधुओं को किस नाम से याद करती है?
(ग) किन लोगों के प्रति भक्तिन अपनी अवज्ञा प्रकट करती है?
(घ) किस प्रकार के साहित्यिक मित्रों के प्रति भक्तिन सद्भाव रखती है?
उत्तर:
(क) भक्तिन महादेवी वर्मा के साहित्यिक बंधुओं का आदर-सम्मान इस आधार पर करती है कि वे लोग महादेवी का कितना सम्मान करते हैं। यदि कोई साहित्यकार महादेवी का अत्यधिक आदर-सम्मान करता है तो वह भी उसका अत्यधिक आदर-सम्मान करती है अन्यथा नहीं।

(ख) भक्तिन साहित्यिक बंधुओं को उनकी वेश-भूषा, रूप, आकार अथवा उनके नाम के बिगड़े हुए रूप से याद करती है।

(ग) जो साहित्यिक बंधु लंबे-लंबे बालों तथा अस्त-व्यस्त कपड़ों के साथ आते थे, उन्हें भक्तिन बेकार आदमी समझती थी। ऐसे व्यक्तियों के प्रति भक्तिन अपनी अवज्ञा प्रकट करती है।

(घ) जो साहित्यिक मित्र महादेवी के प्रति सद्भाव रखते थे, उन्हीं के प्रति भक्तिन भी सद्भाव रखती थी।

[13] भक्तिन के संस्कार ऐसे हैं कि वह कारागार से वैसे ही डरती है, जैसे यमलोक से। ऊँची दीवार देखते ही, वह आँख मूंदकर बेहोश हो जाना चाहती है। उसकी यह कमज़ोरी इतनी प्रसिद्धि पा चुकी है कि लोग मेरे जेल जाने की संभावना बता-बताकर उसे चिढ़ाते रहते हैं। वह डरती नहीं, यह कहना असत्य होगा; पर डर से भी अधिक महत्त्व मेरे साथ का ठहरता है। चुपचाप मुझसे पूछने लगती है कि वह अपनी कै धोती साबुन से साफ कर ले, जिससे मुझे वहाँ उसके लिए लज्जित न होना पड़े। क्या-क्या सामान बाँध ले, जिससे मुझे वहाँ किसी प्रकार की असुविधा न हो सके। ऐसी यात्रा में किसी को किसी के साथ जाने का अधिकार नहीं, यह आश्वासन भक्तिन के लिए कोई मूल्य नहीं रखता। वह मेरे न जाने की कल्पना से इतनी प्रसन्न नहीं होती, जितनी अपने साथ न जा सकने की संभावना से अपमानित। [पृष्ठ-80]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘भक्तिन’ नामक संस्मरणात्मक रेखाचित्र से अवतरित है। यह संस्मरणात्मक रेखाचित्र हिंदी साहित्य की महान कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा की रचना ‘स्मृति की रेखाएँ’ में संकलित है। इसमें लेखिका ने भक्तिन के चरित्र की एक अन्य प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला है। भले ही भक्तिन जेल जाने से बहुत डरती थी, लेकिन वह अपनी स्वामिनी के जेल जाने पर उनके साथ जेल जाने को तैयार हो जाती है।

व्याख्या-भक्तिन के मन में कुछ ऐसे संस्कार पड़ गए थे कि वह जेल को यमलोक मानकर अत्यधिक भयभीत हो जाती थी। ऊँची दीवार को देखते ही वह अपनी आँखें बंदकर बेहोश हो जाना चाहती थी। उसकी इस कमज़ोरी का सबको पता लग गया था। इसलिए प्रायः लोग उसे यह कहकर चिढ़ाते और डराते थे कि महादेवी को जेल की यात्रा करनी पड़ेगी। यह कहना तो झूठ होगा कि वह डरती नहीं थी। परंतु उसके लिए साथ रहने का महत्त्व डर से भी अधिक था। कभी-कभी वह चुपचाप लेखिका से पूछ लेती कि वह अपनी कितनी धोतियों को साफ कर ले, ताकि वहाँ जाने पर उसे शर्मिन्दा न होना पड़े।

कभी-कभी वह यह भी पूछ लेती कि जेल जाने के लिए उसे कौन-सा सामान बाँधकर तैयार कर लेना चाहिए, जिससे लेखिका को जेल जाने में कोई तकलीफ न हो। जेल-यात्रा में कोई किसी के साथ नहीं जा सकता, बल्कि उसे अकेले ही जेल जाना होता है, परंतु यह बात भक्तिन के लिए कोई महत्त्व नहीं रखती थी। महादेवी के जेल जाने की कल्पना से भक्तिन इतनी अधिक दुखी नहीं थी, जितनी कि इस बात को लेकर कि वह अपनी मालकिन के साथ जेल नहीं जा सकती। इस अपमान की संभावना से ही वह डर जाती थी, क्योंकि वह तो हमेशा अपनी मालकिन के साथ रहना चाहती थी। कहने का भाव यह है कि भक्तिन अपनी मालकिन के साथ जेल जाने को भी तैयार थी।

विशेष-

  1. इसमें लेखिका ने भक्तिन की एकनिष्ठ सेवा-भावना का संवेदनशील वर्णन किया है।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. वर्णनात्मक और संवादात्मक शैलियों के प्रयोग द्वारा भक्तिन के चरित्र पर समुचित प्रकाश डाला गया है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) भक्तिन कारागार से क्यों डरती थी?
(ख) डरते हुए भी भक्तिन कारागार जाने की तैयारी क्यों करने लगती है?
(ग) महादेवी को किन कारणों से कारागार जाना पड़ सकता था?
(घ) सिद्ध कीजिए भक्तिन एक सच्ची स्वामी-सेविका है?
उत्तर:
(क) भक्तिन ने बाल्यावस्था से ही जेल के बारे में बड़ी भयानक बातें सुन रखी थीं। इसलिए वह जेल के नाम से ही डरती थी। दूसरे शब्दों में, वह अपने संस्कारों के कारण भी जेल जाने से डरती थी।

(ख) भले ही भक्तिन जेल से बहुत डरती थी, परंतु अपनी मालकिन से अलग रहना उसके लिए अधिक कष्टकर था। इसलिए वह किसी भी स्थिति में लेखिका का साथ नहीं छोड़ सकती थी। अतः वह जेल जाने की तैयारी करने लगती है।

(ग) स्वतंत्रता आंदोलन के संदर्भ में लेखिका को कारागार जाना पड़ सकता था, क्योंकि उन दिनों देश में स्वतंत्रता आंदोलन ज़ोर-शोर से चल रहा था।

(घ) भक्तिन सही अर्थों में अपनी मालकिन की सच्ची सेविका है। वह निजी सुख-दुख अथवा कारागार के भय की परवाह न करके अपनी मालकिन की सेवा करना चाहती है। वह छाया के समान अपनी मालकिन के साथ लगी रहती है। जब उसे यह बताया जाता था कि महादेवी को जेल जाना पड़ सकता है तो वह भी जेल जाने को तैयार हो जाती थी।

भक्तिन Summary in Hindi

भक्तिन लेखिका-परिचय

प्रश्न-
महादेवी वर्मा का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा महादेवी वर्मा का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-महादेवी वर्मा का जन्म सन् 1907 में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद नगर के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा मिशन स्कूल, इंदौर में हुई। नौ वर्ष की अल्पायु में ही उन्हें विवाह के बंधन में बाँध दिया गया था, किंतु यह बंधन स्थाई न रह सका। उन्होंने अपना सारा समय अध्ययन में लगाना प्रारंभ कर दिया और सन् 1932 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। उनकी योग्यताओं से प्रभावित होकर उन्हें प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या के रूप में नियुक्त किया गया। उन्हें छायावादी हिंदी काव्य के चार स्तंभों में से एक माना जाता है। उन्हें विभिन्न साहित्यिक पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। सन् 1956 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण अलंकरण से सम्मानित किया। उन्हें 1983 में ‘यामा’ संग्रह के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला और उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का भारत भारती-पुरस्कार मिला। उन्हें विक्रम विश्वविद्यालय, कुमायूँ विश्वविद्यालय तथा दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा डी० लिट् की मानद उपाधि से विभूषित किया गया। 11 दिसंबर, 1987 को उनका देहांत हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ महादेवी वर्मा ने कविता, रेखाचित्र, आलोचना आदि अनेक साहित्यिक विधाओं में रचना की हैं। उन्होंने ‘चाँद’ और ‘आधुनिक कवि काव्यमाला’ का संपादन कार्य भी किया। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं
काव्य-संग्रह ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्यगीत’, ‘दीपशिखा’, ‘यामा’ आदि।
निबंध-संग्रह- शृंखला की कड़ियाँ’, ‘क्षणदा’, ‘संकल्पिता’, ‘भारतीय संस्कृति के स्वर’, ‘आपदा’।
संस्मरण/रेखाचित्र-संग्रह ‘अतीत के चलचित्र’, ‘स्मृति की रेखाएँ’, ‘पथ के साथी’, ‘मेरा परिवार’।
आलोचना-‘हिंदी का विवेचनात्मक गद्य’, ‘विभिन्न काव्य-संग्रहों की भूमिकाएँ।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 11 भक्तिन

3. साहित्यिक विशेषताएँ महादेवी वर्मा कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध हैं, लेकिन गद्य के विकास में भी उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने कहानी, संस्मरण, रेखाचित्र, निबंध आदि गद्य विधाओं पर सफलतापूर्वक लेखनी चलाई। उनके अधिकांश संस्मरण एवं रेखाचित्र कहानी-कला के समीप दिखाई पड़ते हैं। उनके संस्मरणों के पात्र अत्यंत सजीव एवं यथार्थ के धरातल पर विचरण करते हुए देखे जा सकते हैं। उनकी गद्य रचनाओं में अनुभूति की प्रबलता के कारण पद्य जैसा आनंद आता है। उनके संस्मरणों के मानवेत्तर पात्र भी बड़े सहज एवं सजीव बन पड़े हैं। उनके गद्य साहित्य की मूल संवेदना करुणा और प्रेम है। इसीलिए उनका गद्य साहित्य काव्य से भिन्न है। काव्य में वे प्रायः अपने ही सुख-दुख, विरह-वियोग आदि की बातें करती रही हैं, किंतु उन्होंने गद्य साहित्य में समाज के सुख-दुख का अत्यंत मनोयोग से चित्रण किया है। उनके द्वारा लिखे गए रेखाचित्रों में समाज के दलित वर्ग या निम्न वर्ग के लोगों के बड़े मार्मिक चित्र मिलते हैं। इनमें उन्होंने उच्च समाज द्वारा उपेक्षित, निम्न कहे जाने वाले उन लोगों का चित्रण किया है, जिनमें उच्च वर्ग के लोगों की अपेक्षा अधिक मानवीय गुण और शक्ति है। अतः स्पष्ट है कि उनका गद्य साहित्य समाजपरक है।

उनके गद्य साहित्य में तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक समस्याओं और परिस्थितियों का भी यथार्थ चित्रण हुआ है। नारी समस्याओं को भी उन्होंने अपनी कई रचनाओं के माध्यम से उठाया है। वे काव्य की भाँति गद्य की भी महान साधिका रही हैं। उनके गद्य साहित्य में उनका कवयित्री-रूप भी लक्षित होता है।

4. भाषा-शैली-महादेवी जी के गद्य की भाषा-शैली अत्यंत सहज एवं प्रवाहपूर्ण है। उनकी गद्य भाषा में तत्सम शब्दों की प्रचुरता है। महादेवी की गद्य-शैली वैसे तो उनकी काव्य-शैली के ही समान संस्कृतगर्भित, भाव-प्रवण, मधुर और सरस है, परंतु उसमें अस्पष्टता और दुरूहता नहीं है। इसे व्यावहारिक शैली माना जा सकता है। कहीं-कहीं विदेशी शब्दों का भी प्रयोग हुआ है, परंतु बहुत ही कम। उनकी रचनाओं की भाषा-शैली की सबसे बड़ी विशेषता उसकी मर्मस्पर्शिता है। वे भावुक होकर पात्रों की दीन-हीन दशा, उनके मानसिक भावों तथा वातावरण का बड़ा मार्मिक चित्रण करती हैं। उनका काव्य व्यंग्य और हास्य से शून्य है, परंतु वे अपनी गद्य-रचनाओं में समाज, धर्म, व्यक्ति और विशेष रूप से पुरुष जाति पर बड़े गहरे व्यंग्य कसती हैं। बीच-बीच में हास्य के छींटे भी उड़ाती चलती हैं। इन विशेषताओं ने उनके गद्य को बहुत आकर्षक, मधुर और प्रभावशाली बना दिया है। वे प्रायः व्यंजना-शक्ति से काम लेती हैं। वे अपनी इस आकर्षक गद्य-शैली द्वारा हमारे हृदय पर गहरा प्रभाव डालती हैं। संक्षेप में, उनकी गद्य-शैली में कल्पना, भावुकता, सजीवता और भाषा-चमत्कार आदि के एक-साथ दर्शन होते हैं। उसमें सुकुमारता, तरलता और साथ ही हृदय को उद्वेलित कर देने की अद्भुत शक्ति भी है।

भक्तिन पाठ का सार

प्रश्न-
महादेवी वर्मा द्वारा रचित ‘भक्तिन’ नामक संस्मरण का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
भक्तिन’ महादेवी वर्मा द्वारा रचित एक प्रसिद्ध संस्मरणात्मक रेखाचित्र है। यह उनकी प्रसिद्ध रचना ‘स्मृति की रेखाएँ’ में संकलित है। भक्तिन महादेवी वर्मा की एक समर्पित सेविका थी। उन्होंने इस रेखाचित्र में अपनी सेविका भक्तिन के अतीत और वर्तमान का परिचय दिया है। प्रस्तुत पाठ का सार इस प्रकार है
1. भक्तिन का व्यक्तिगत परिचय-भक्तिन छोटे कद की तथा दुबले शरीर की नारी थी। उसके होंठ बहुत पतले और आँखें छोटी थीं, जिनसे उनका दृढ़ संकल्प और विचित्र समझदारी झलकती थी। वह गले में कंठी माला पहनती थी। अहीर कुल में जन्मी इस नारी की आयु 75 साल के लगभग थी। उसका नाम लक्ष्मी (लछमिन) था, लेकिन उसने लेखिका से यह निवेदन किया कि उसे नाम से न पुकारा जाए। उसके गले में कंठी माला को देखकर ही लेखिका ने उसे ‘भक्तिन’ कहना शुरू कर दिया। अहीर कुल में जन्मी भक्तिन सेवा धर्म में अत्यधिक निपुण थी। लेखिका ने भक्तिन की कर्मठता, उनके प्रति लगाव व सेविका धर्म के कारण उसकी तुलना अंजनी-पुत्र महावीर हनुमान जी से की है। वह विनम्र स्वभाव की नारी थी।

2. भक्तिन के गृहस्थी जीवन का आरंभ-भक्तिन का जन्म ऐतिहासिक गाँव झूसी में हुआ था। वह एक अहीर की इकलौती बेटी थी तथा उसकी विमाता ने ही उसका लालन-पालन किया था। पाँच वर्ष की अल्पायु में लक्ष्मी का विवाह हँडिया ग्राम के एक संपन्न गोपालक के छोटे पुत्र के साथ कर दिया गया और नौ वर्ष की आयु में उसका गौना कर दिया गया। इधर भक्तिन के पिता का देहांत हो गया। लेकिन विमाता ने देर से मृत्यु का समाचार भेजा। सास ने रोने-धोने के अपशकुन के डर से लक्ष्मी को कुछ नहीं बताया। कुछ दिनों के बाद सास ने लक्ष्मी को अपने मायके जाकर अपने माता-पिता से मिल आने को कहा। घर पहुँचते ही विमाता ने उसके साथ बड़ा कटु व्यवहार किया। अतः लक्ष्मी वहाँ से पानी पिए बिना ही अपने ससुराल चली आई। ससुराल में अपनी सास को खरी-खोटी सुनाकर अपनी विमाता पर आए हुए गुस्से को शांत किया और अपने पति पर अपने गहने फेंकते हुए अपने पिता की मृत्यु का समाचार सुनाया। तब लक्ष्मी अपनी ससुराल में टिक कर रहने लगी।

भक्तिन को आरंभ से ही सुख नसीब नहीं हुआ। उसकी एक के बाद एक निरंतर तीन बेटियाँ उत्पन्न हुईं। फलतः सास तथा जिठानियाँ उसकी उपेक्षा करने लगीं। सास के तीन कमाने वाले.पुत्र थे और दोनों जिठानियों के भी पुत्र थे। धीरे-धीरे भक्तिन को घर के सारे काम-काज़ में लगा दिया गया। चक्की चलाना, कूटना-पीसना, खाना बनाना आदि सभी उसे करना पड़ता था। उसकी तीनों बेटियाँ गोबर उठाती और उपले पाथती थीं। खाने-पीने में भी बेटियों के साथ भेदभाव किया जाता था। जिठानियों तथा उनके बेटों को दूध मलाई युक्त पकवान मिलता था, परंतु भक्तिन तथा उसकी लड़कियों को काले गुड़ की डली और चने-बाजरे की घुघरी खाने को मिलती थी। यह सब होने पर भी भक्तिन खुश थी। क्योंकि उसका पति बड़ा मेहनती तथा सच्चे मन से उसे प्यार करता था। यही सोचकर भक्तिन अपने संयुक्त परिवार से अलग हो गई। परिवार से अलग होते ही उसको गाय-भैंस, खेत-खलिहान और अमराई के पेड़ मिल गए थे, पति-पत्नी दोनों ही मेहनती थे, अतः घर में खुशहाली आ गई।

3. भक्तिन के पति का देहांत-पति ने अपनी बड़ी बेटी का विवाह तो बड़े धूमधाम से किया, परंतु अभी दोनों छोटी लड़कियाँ विवाह योग्य नहीं थीं। अचानक भक्तिन पर प्रकृति की गाज गिर गई। उसके पति का देहांत हो गया। उस समय भक्तिन की आयु उनतीस वर्ष थी। संपत्ति के लालच में परिवार के लोगों ने उसके सामने दूसरे विवाह का प्रस्ताव रखा। परंतु वह सहमत नहीं हुई। उसने अपने सिर के बाल कटवा दिए और गुरुमंत्र लेकर गले में कंठी धारण कर ली। वह स्वयं अपने खेतों की देख-रेख करने लगी। दोनों छोटी बेटियों का विवाह करने के बाद उसने बड़े दामाद को घरजमाई बना लिया। परंतु बदकिस्मती तो भक्तिन के साथ लगी हुई थी। शीघ्र ही उसकी बड़ी लड़की भी विधवा हो गई। परिवार वालों की नज़र अब भी भक्तिन की संपत्ति पर थी। भक्तिन के जेठ का बना लड़का विधवा बहन का विवाह अपने तीतरबाज़ साले से कराना चाहता था। परंतु भक्तिन की विधवा लड़की ने अस्वीकार कर दिया। अब माँ-बेटी दोनों ही अपनी संपत्ति की देखभाल करने लगीं। एक दिन भक्तिन घर पर नहीं थी।

तीतरबाज बेटी की कोठरी में जा घुसा और उसने भीतर से द्वार बंद कर दिया। इसी बीच तीतरबाज़ के समर्थकों ने गाँव वालों को वहाँ बुला लिया। भक्तिन की बेटी ने तीतरबाज़ की अच्छी प्रकार पिटाई की और कुंडी खोल दी और उसे घर से निकाल दिया। लेकिन तीतरबाज़ ने यह तर्क दिया कि वह तो लड़की के बुलाने पर कमरे में दाखिल हुआ था। आखिर में गाँव में पंचायत बुलाई गई। भक्तिन की बेटी ने बार-बार तर्क दिया कि यह तीतरबाज़ झूठ बोल रहा है अन्यथा वह उसकी पिटाई क्यों करती। परंतु पंचों ने कलयुग को ही इस समस्या का मूल कारण माना और यह आदेश दे दिया कि वह अब दोनों पति-पत्नी के रूप में रहेंगे। भक्तिन और उसकी बेटी कुछ भी नहीं कर पाए। यह विवाह सफल नहीं हुआ। तीतरबाज़ एक आवारा किस्म का आदमी था और कोई काम-धाम नहीं करता था। अतः भक्तिन का घर गरीबी का शिकार बन गया। हालत यहाँ तक बिगड़ गई कि लगान चुकाना भी कठिन हो गया। जमींदार ने भक्तिन को भला-बुरा कहा और दिन-भर कड़ी धूप में खड़ा रखा। भक्तिन इस अपमान को सहन नहीं कर पाई और वह कमाई के विचार से दूसरे ही दिन शहर चली गई।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 11 भक्तिन

4. भक्तिन के जीवन के दुख का अंतिम पड़ाव-घुटी हुई चाँद, मैली धोती तथा गले में कंठी धारण करके भक्तिन जब पहली बार लेखिका के पास नौकरी के लिए उपस्थित हुई तो उसने बताया कि वह दाल-भात राँधना, सब्जी छौंकना, रोटी बनाना आदि रसोई के सभी काम करना जानती है। लेखिका ने शीघ्र ही उसे काम पर रख लिया। अब भक्तिन एक पावन जीवन व्यतीत करने लगी। नौकरी पर लगते ही उसने सवेरे-सवेरे स्नान किया। लेखिका की धुली हुई धोती को उसने जल के छींटों से पवित्र किया और फिर पहना। तत्पश्चात् उसने सूर्योदय और पीपल को जल चढ़ाया। दो मिनट तक जाप करने के बाद चौके की सीमा निर्धारित कर खाना बनाना आरंभ किया। वह छूत-पाक को बहुत मानती थी। अतः लेखिका को भी समझौता करना पड़ा। वह नाई के उस्तरे को गंगाजल से धुलवाकर अपना मुंडन करवाती थी। अपना खाना वह अलग से ऊपर के आले में रख देती थी।

5. भक्तिन की नौकरी का श्रीगणेश-भक्तिन ने जो भोजन बनाया, वह ग्रामीण अहीर परिवार के स्तर का था। उसने कोई सब्जी नहीं बनाई, केवल दाल बनाकर मोटी-मोटी रोटियाँ सेंक दी जो कुछ-कुछ काली हो गई थीं। लेखिका ने जब इस भोजन को प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा, तब भक्तिन ने लाल मिर्च और अमचूर की चटनी या गाँव से लाए हुए गुड़ का प्रस्ताव रख दिया। मजबूर होकर लेखिका ने दाल से एक रोटी खाई और विश्वविद्यालय चली गई। वस्तुतः लेखिका ने अपने बिगड़ते स्वास्थ्य तथा परिवार वालों की चिंता को दूर करने के लिए ही भक्तिन को अपने घर पर भोजन बनाने के लिए रखा था। परंतु उस वृद्धा भक्तिन की सरलता के कारण वह अपनी असुविधाओं को भूल गई।

6. विचित्र स्वभाव की नारी-भक्तिन का स्वभाव बड़ा ही विचित्र था। वह हमेशा दूसरों को अपने स्वभाव के अनुकूल बनाना चाहती थी और स्वयं बदलने को तैयार नहीं थी। स्वयं लेखिका भी भक्तिन की तरह ग्रामीण बन गई, किंतु भक्तिन ज्यों-की-त्यों ग्रामीण ही रही। शीघ्र ही उसने लेखिका को ग्रामीण खान-पान के अधीन बना दिया, किंतु स्वयं कभी भी रसगुल्ला नहीं खाया और न ही ‘आँय’ कहने की आदत बदलकर ‘जी’ कह सकी। भक्तिन बड़ी व्यावहारिक महिला थी। वह अकसर लेखिका के बिखरे पड़े पैसों को. मटकी में छिपाकर रख देती थी। उसके लिए यह कोई बुरा काम नहीं था।

उसका कहना था कि घर में बिखरा हुआ पैसा-टका उसने सँभालकर रख दिया है। कई बार वह लेखिका को प्रसन्न करने के लिए किसी बात को पलट भी देती थी। उसके विचारानुसार यह झूठ नहीं था। एक बार लेखिका ने उसे सिर मुंडाने से रोकने का प्रयास किया। तब उसने यह तर्क दिया “तीरथ गए मुँडाए सिद्ध।” भक्तिन पूर्णतः अनपढ़ थी। उसे हस्ताक्षर करना भी नहीं आता था। लेखिका ने जब उसे पढ़ने-लिखने को कहा, तब उसने यह तर्क दिया कि मालकिन तो हर समय पढ़ती रहती है, अगर वह भी पढ़ने लग गई तो घर का काम कौन देखेगा।

7. स्वामिनी के प्रति पूर्ण निष्ठावान-भक्तिन को अपनी मालकिन पर बड़ा गर्व था। उसकी मालकिन जैसा काम कोई भी करना नहीं जानता था, उसके कहने पर भी उत्तर:पुस्तिकाओं के परीक्षण कार्य में कोई भी मालकिन का सहयोग नहीं कर पाया। परंतु भक्तिन ने मालकिन की सहायता की। वह कभी उत्तर:पुस्तिकाओं को बाँधती, कभी अधूरे चित्रों को एक कोने में रखती, कभी रंग की प्याली धोकर साफ करती और कभी चटाई को अपने आँचल से झाड़ती थी। इसलिए वह समझती थी कि मालकिन दूसरों की अपेक्षा विशेष है। जब भी लेखिका की कोई पुस्तक प्रकाशित होती थी तो उसे अत्यधिक प्रसन्नता होती थी। वह सोचती थी कि प्रकाशित रचना में उसका भी सहयोग है।

अनेक बार लेखिका भक्तिन के बार-बार कहने पर भी भोजन नहीं करती थी। ऐसी स्थिति में भक्तिन अपनी मालकिन को कभी दही का शरबत पिलाती, कभी तुलसी की चाय। भक्तिन में सेवा-भावना कूट-कूट कर स्थिति में भक्तिन अपनी मालकिन को कभी दही का शरबत पिलाती, कभी तुलसी की चाय। भक्तिन में सेवा-भावना कूट-कूट कर भरी थी। छात्रावास की रोशनी बुझ जाने के बाद लेखिका के परिवारिक सदस्य सोना हिरनी, बसंत कुत्ता, गोधूलि बिल्ली आदि आराम करने लग जाते थे। परंतु भक्तिन मालकिन के साथ जागती रहती थी। वह आवश्यकता पड़ने पर मालकिन को पुस्तक पकड़ाती या स्याही लाकर देती या फाइल । यद्यपि भक्तिन देर रात को सोती थी, परंतु प्रातः मालकिन के जागने से पहले उठ जाती थी और वह सभी पशुओं को बाड़े से बाहर निकालती थी।

8. भक्तिन की मालकिन के प्रति भक्ति-भावना-भ्रमण के समय भी भक्तिन लेखिका के साथ रहती थी। बदरी-केदार के ऊँचे-नीचे तंग पहाड़ी रास्तों पर वह हमेशा अपनी मालकिन के आगे-आगे चलती थी। परंतु यदि गाँव की धूलभरी पगडंडी आ जाती तो वह लेखिका के पीछे चलने लगती। इस प्रकार वह हमेशा लेखिका के साथ अंग रक्षक के रूप में रहती थी। जब लोग युद्ध के कारण आतंकित थे तब भी वह अपनी बेटी और दामाद के बार-बार कहने पर लेखिका को नहीं छोड़ती थी।

जब उसे पता चला कि युद्ध में भारतीय सैनिक हार रहे हैं, तो उसने लेखिका को अपने गाँव चलने के लिए कहा और कहा कि उसे गाँव में हर प्रकार की सुविधा उपलब्ध होगी। भक्तिन स्वयं को लेखिका का अनिवार्य अंग मानती थी। उसका कहना था कि मालकिन और उसका संबं ध स्वामी-सेविका का संबंध नहीं है। वह कहती थी कि मालकिन उसे काम से हटा नहीं सकती। जब मालकिन उसे चले जाने की आज्ञा देती तो वह हँसकर टाल देती थी। इस प्रकार वह हमेशा छाया के समान लेखिका के साथ जुड़ी हुई थी। वह लेखिका के लिए अपना सर्वस्व लुटाने को तैयार रहती थी।

9. छात्रावास की बालिकाओं की सेवा भक्तिन छात्रावास की बालिकाओं को चाय बनाकर पिलाती थी। कभी-कभी वह उन्हें लेखिका के नाश्ते का स्वाद भी चखाती थी। जो परिचित लेखिका का सम्मान करते थे, उन्हीं के साथ वह अच्छा व्यवहार करती थी। लेखिका के परिचितों को वह नाम से या आकार-प्रकार, वेशभूषा से जानती थी। कवियों के प्रति उसके मन में कोई आदर-भाव नहीं था। परंत दूसरों के दख से वह अत्यधिक दुखी हो जाती थी। जब कभी उसे किसी विद्यार्थी के जेल जाने की खबर मिली तो वह अत्यंत दुखित हो उठी। उसे जेल से बहुत डर लगता था, किंतु लेखिका को जेल जाना पड़ा तो वह भी उनके साथ जाने को तैयार थी। उसका कहना था कि ऐसा करने के लिए उसे बड़े लाट से लड़ना पड़ा तो वह लड़ने से पीछे नहीं हटेगी। इस प्रकार लेखिका के साथ भक्तिन का प्रगाढ़ संबंध स्थापित हो चुका था। भक्तिन की कहानी को लेखिका ने अधूरा ही रखा है।

कठिन शब्दों के अर्थ

संकल्प = मज़बूत इरादा, पक्का निश्चय। जिज्ञासु = जानने का इच्छुक। चिंतन = सोच-विचार। मुद्रा = भाव-स्थिति। कंठ = गला। पचै = पचास । बरिस = वर्ष । संभवतः = शायद। स्पर्धा = मुकाबला। अंजना = हनुमान की माता। गोपालिका = अहीर की पत्नी अहीरन। दुर्वह = धारण करने में कठिन। समृद्धि = संपन्नता। कपाल = मस्तक। कुंचित = सिकुड़ी हुई। शेष इतिवृत्त = बाकी कथा। पूर्णतः = पूरी तरह से। अंशतः = थोड़ा-सा। विमाता = सौतेली माँ। किंवदंती = लोक प्रचलित कथन। ममता = स्नेह। वय = आयु। संपन्न = अमीर, धनवान। ख्याति = प्रसिद्धि। गौना = पति के घर दूसरी बार जाने की परिपाटी। अगाध = अत्यधिक गहरा। ईर्ष्यालु = ईर्ष्या करने वाली। सतर्क = सावधान। मरणांतक = मृत्यु देने वाला। नैहर = मायका। अप्रत्याशित = जिसकी आशा न हो। अनुग्रह = कृपा। अपशकुनी = बदशकुनी। पुनरावृत्तियाँ = बार-बार कही गई बातें। ठेल ले जाना = पहुँचाना। लेश = तनिक। शिष्टाचार = सभ्य व्यवहार। शिथिल = थकी हुई। विछोह = वियोग। मर्मव्यथा = हृदय को कष्ट देने वाली वेदना। विधात्री = जन्म देने वाली माँ। मचिया = छोटी चारपाई। पुरखिन = बड़ी-बूढ़ी। अभिषिक्त = विराजमान। काक-भुशंडी = कौआ।

सृष्टि = उत्पन्न करना। लीक = परंपरा। क्रमबद्ध = क्रमानुसार। विरक्त = विरागी। परिणति = परिणाम। धमाधम = ज़ोर-ज़ोर से। चुगली-चबाई = निंदा-बुराई। परिश्रमी = मेहनती। तेजस्विनी = तेजवान। अलगौझा = अलग होना। पुलकित = प्रसन्न। दंपति = पति-पत्नी। खलिहान = पकी हुई फसल को काटकर रखने का स्थान। कुकरी = कुतिया। बिलारी = बिल्ली। जिगतों = जेठ का पुत्र । घरौंदा = घर। बुढ़ऊ = बूढ़ा। होरहा = हरे अनाज का आग पर भूना रूप। अजिया ससुर = पति का बाबा। उपार्जित = कमाई। काकी = चाची। दुर्भाग्य = बदकिस्मती। भइयहू = छोटी भाभी। परास्त = हराना। गठबंधन = विवाह। निमंत्रण = बुलावा। परिमार्जन = शुद्ध करना। कर्मठता = कर्मशीलता। आहट = हल्की-सी आवाज । दीक्षित होना = स्वीकार करना। सम्मिश्रण = मिला-जुला रूप। अभिनंदन = स्वागत। उपरांत = बाद में। प्रतिष्ठित = स्थापित। टेढ़ी खीर = कठिन कार्य । वीतराग = विरक्त। पाक-विद्या = भोजन बनाने की विद्या। शंकाकुल दृष्टि = संदेह की नज़र। दुर्लध्य = पार न की जा सकने वाली। निरुपाय = उपायहीन। निर्दिष्ट = निश्चित। पितिया ससुर = पति के चाचा। आप्लावित = फैली हुई। आरोह (भाग 2) [भक्तिना सारगर्भित लेक्चर = संक्षिप्त भाषण। अरुचि = रुचि न रखना।

यूनिवर्सिटी = विश्वविद्यालय। चिंता-निवारण = चिंता दूर करना। उपचार = इलाज। असुविधाएँ = कठिनाइयाँ । प्रबंध = व्यवस्था। जाग्रत = सचेत । दुर्गुण = अवगुण। क्रियात्मक = क्रियाशील । दंतकथाएँ = परंपरा से चली आ रही किस्से-कहानियाँ। कंठस्थ करना = याद करना। नरो वा कुंजरों वा = हाथी या मनुष्य। मटकी = मिट्टी का बरतन। तर्क शिरोमणि = तर्क देने में सर्वश्रेष्ठ। सिर घुटाना = जड़ से बाल कटवाना। अकुंठित भाव से = संकोच के बिना। चूडाकर्म = सिर के बाल कटवाना। नापित = नाई। निष्पन्न = पूर्ण । वयोवृद्धता = बूढी उमर। अपमान = निरादर। मंथरता = धीमी गति। पटु = चतुर। पिंड छुड़ाना = पीछा छुड़वाना। अतिशयोक्तियाँ = बढ़ा-चढ़ाकर कही गई बातें। अमरबेल = एक ऐसी लता जो बिना जड़ के होती है और वृक्षों से रस चूसकर फैलती है। प्रमाणित = प्रमाण से सिद्ध। आभा = प्रकाश, रोशनी। उद्भासित = प्रकाशित। पागुर = जुगाली। निस्तब्धता = शांति, चुप्पी। प्रशांत = पूरी तरह शांत। आतंकित = डरा हुआ। नाती = बेटी का पुत्र। अनुरोध = आग्रह। मचान = टाँड। विस्मित = हैरान । अमरौती खाकर आना = अमरता लेकर आना। विषमताएँ = कठिनाइयाँ, बाधाएँ। सम्मान = आदर। अपभ्रंश = भाषा का बिगड़ा हुआ रूप । अवज्ञा = आज्ञा न मानना। कारागार = जेल। आश्वासन = भरोसा। माई = माँ। विषम = विपरीत। बड़े लाट = गवर्नर जनरल । प्रतिद्धन्द्धियों = एक दूसरे के विपरीत लोग। दुर्लभ = कठिन।

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HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 10 छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 10 छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 10 छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख

HBSE 12th Class Hindi छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख Textbook Questions and Answers

कविता के साथ

प्रश्न 1.
छोटे चौकोने खेत को कागज़ का पन्ना कहने में क्या अर्थ निहित है?
उत्तर:
कवि अपने कवि-कर्म को किसान के कर्म के समान बताना चाहता है अर्थात् कविता की रचना खेती करने जैसी है। इसीलिए कवि ने कागज़ के पन्ने को छोटा चौकोना खेत कहा है। जिस प्रकार खेत में बीज बोकर उसमें पानी और रसायन दिया जाता है और फिर उससे अंकुर और फल-फूल उत्पन्न होते हैं। उसी प्रकार कागज़ के पन्ने पर कवि के संवेदनशील भाव शब्दों का सहारा पाकर अभिव्यक्त होते हैं जिससे पाठक को आनंद प्राप्त होता है।।

प्रश्न 2.
रचना के संदर्भ में अंधड़ और बीज क्या हैं?
उत्तर:
अंधड़ का तात्पर्य है-संवेदनशील भावनाओं का आवेग। कवि के मन में अनजाने में कोई भाव जाग उठता है। जैसे एक दुबले-पतले भिक्षुक को देखकर निराला के मन में भावनाओं का अंधड़ उठ खड़ा हुआ था और उसने ‘भिक्षुक’ कविता की रचना की। बीज का अर्थ है-किसी निश्चित विषय-वस्तु का मन में जागना। जब कोई विषय कवि के मन को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है और वह बिंब के रूप में अभिव्यक्त होने के लिए कुलबुलाने लगता है तो उसे हम बीज रोपना कह सकते हैं।

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प्रश्न 3.
रस का अक्षयपात्र से कवि ने रचनाकर्म की किन विशेषताओं की ओर इंगित किया है?
उत्तर:
कवि की काव्य-रचना को रस का अक्षय पात्र कहा गया है। इसका तात्पर्य यह है कि कविता में निहित सौंदर्य, रस भाव आदि कभी नष्ट नहीं होते। वे अनंतकाल तक कविता में विद्यमान रहते हैं। किसी भी काल अथवा युग का पाठक उस कविता को पढ़कर आनन्दानुभूति प्राप्त कर सकता है। इसलिए कविता को कवि ने ‘रस का अक्षयपात्र’ कहा है।

व्याख्या करें

(1) शब्द के अंकुर फूटे,
पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष।

(2) रोपाई क्षण की
कटाई अनंतता की
लुटते रहने से ज़रा भी नहीं कम होती।
उत्तर:
(1) जब कवि के मन में भावों का कोई बीज जागता है तो उसे कल्पना का रसायन मिल जाता है। फलतः कवि अहम्मुक्त हो जाता है। धीरे-धीरे वह भाव शब्द रूपी अंकुरों के माध्यम से फूटकर बाहर आने लगता है। अंततः कवि के विशेष भाव पत्ते, फल-फूल के समान विकसित होने लगते हैं। जैसे पौधा फल-फूल से लदकर झुक जाता है, उसी प्रकार कविता पाठकों के लिए अपनी भाव संपदा समर्पित करती है।।

(2) कवि यह कहना चाहता है कि कविता में बीज तो क्षण भर में बोया जाता है। कवि के मन में भी भावनाओं के आवेग के कारण ही कविता किसी क्षण फूट पड़ती है परंतु उसकी फसल कभी नष्ट नहीं होती। वह अनंतकाल तक फल देती रहती है। कविता का रस कभी कम नहीं होता। किसी भी युग का कोई भी पाठक कविता का आनंद प्राप्त कर सकता है।

कविता के आसपास

प्रश्न 1.
शब्दों के माध्यम से जब कवि दृश्यों, चित्रों, ध्वनि-योजना अथवा रूप-रस-गंध को हमारे ऐन्द्रिक अनुभवों में साकार कर देता है तो बिंब का निर्माण होता है। इस आधार पर प्रस्तुत कविता से बिंब की खोज करें।
उत्तर:
इन कविताओं में चाक्षुष बिंबों की सुंदर योजना की गई है। ये बिंब इस प्रकार हैं

  1. छोटा मेरा खेत चौकोना
  2. कागज़ का एक पन्ना
  3. कोई अंधड़ कहीं से आया
  4. शब्द के अंकुर फूटे
  5. पल्लव-पुष्पों से नमित
  6. झूमने लगे फल
  7. अमृत धाराएँ फूटतीं
  8. नभ में पाँती-बँधी बगुलों की पाँखें
  9. कजरारे बादलों की छाई नभ छाया
  10. तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 10 छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख

प्रश्न 2.
जहाँ उपमेय में उपमान का आरोप हो, रूपक कहलाता है। इस कविता में से रूपक का चुनाव करें।
उत्तर:
इन कविताओं में निम्नलिखित रूपकों का प्रयोग हुआ है-

उपमेयउपमान
(1) (भावनात्मक जोश)अंधड़
(2) आनंदपूर्ण भावअमृत धाराएँ
(3) (रस)फल
(4) (विषय)बीज
(5) कागज़ का एक पन्नाछोटा मेरा खेत चौकोना
(6) कल्पनारसायन
(7) रस का अनुभव करनाकटाई
(8) अलंकार, सौंदर्यपल्लव-पुष्प
(9) शब्दअंकुर

कला की बात

प्रश्न 1.
बगुलों के पंख कविता को पढ़ने पर आपके मन में कैसे चित्र उभरते हैं? उनकी किसी भी अन्य कला माध्यम में अभिव्यक्ति करें।
उत्तर:
शिक्षक की सहायता से विद्यार्थी स्वयं करें। यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

HBSE 12th Class Hindi छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख Important Questions and Answers

सराहना संबंधी प्रश्न

प्रश्न-
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए
1. कल्पना के रसायनों को पी
बीज गल गया निःशेष;
शब्द के अंकुर फूटे,
पल्लव-पुष्पों से नमित हआ विशेष।
उत्तर:

  1. इन काव्य-पंक्तियों में कवि ने रूपक के माध्यम से विचारों के रचना रूप ग्रहण करने तथा अभिव्यक्ति का माध्यम बनने पर प्रकाश डाला है।
  2. रूपक अलंकार का सफल प्रयोग किया गया है।
  3. ‘पल्लव-पुष्पों में अनुप्रास अलंकार है।
  4. संपूर्ण पद्यांश में प्रतीकात्मता का समावेश है।
  5. तत्सम प्रधान साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  6. शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

2. झूमने लगे फल,
रस अलौकिक
अमृत धाराएँ फूटती
रोपाई क्षण की,
कटाई अनंतता की
लुटते रहने से जरा भी नहीं कम होती।
उत्तर:

  1. इस पद्यांश में कवि ने कविता की तुलना अनंतकाल तक रस देने वाले फल के साथ की है। यह तुलना बड़ी सटीक, सुंदर और सार्थक बन पड़ी है।
  2. ‘रस’ शब्द में श्लेष अलंकार का प्रयोग है। इसके दो अर्थ हैं-फलों का रस तथा काव्य-आनंद। कवि ने काव्य-रस को अलौकिक कहा है। इसलिए कविता का आनंद शाश्वत होता है।
  3. तत्सम प्रधान साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  4. शब्द-चयन सरल, उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है।

3. कजरारे बादलों की छाई नभ छाया,
तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया।
हौले हौले जाती मुझे बाँध निज माया से।
उसे कोई तनिक रोक रक्खो।
उत्तर:

  1. कजरारे बादलों में साँझ की तैरती काया की अभिव्यक्ति बगुलों के माध्यम से की गई है। इसमें उत्प्रेक्षा अलंकार है।
  2. ‘हौले हौले’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  3. सहज एवं सरल साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हआ है।
  4. शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक हैं।

विषय-वस्तु पर आधारित लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
छोटा मेरा खेत’ कविता में ‘बीज गल गया निःशेष’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
‘बीज गल गया’ निःशेष के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि जब कविता का मूल भाव कवि के मन में पूरी तरह से रच-बस जाता है अर्थात् वह उसे आत्मसात कर लेता है, तब वह अहममुक्त हो जाता है। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि जिस प्रकार बीज मिट्टी में गल कर अंकुर रूप धारण कर लेता है उसी प्रकार कविता का मूल भाव कवि के मन में आत्मसात् हो जाता है। कवि निजता से मुक्त हो जाता है। तभी उसके हृदय से कविता फूटती है।

प्रश्न 2.
‘छोटा मेरा खेत’ कविता का मूल भाव क्या है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
‘छोटा मेरा खेत’ कविता के माध्यम से कवि ने कविता की रचना प्रक्रिया पर प्रकाश डाला है। कविता का जन्म किसी अज्ञात प्रेरणा से विशेष क्षण में होता है। कोई विषय अचानक कवि की संवेदना को प्रभावित करता है। कवि अहंकारमुक्त होकर पूर्ण तन्यमता के साथ उस मूल भाव को अपने मन में बैठा लेता है। तत्पश्चात् शब्द, भाव, अलंकार आदि पौधे के पत्तों के समान स्वतः फूटने लगते हैं। जहाँ पौधे की फसल नश्वर होती है, वहाँ कविता का फल अर्थात् रस शाश्वत होता है। कविता का रस हम अनंत काल तक ले सकते हैं। यह कभी भी नष्ट नहीं होता। किसी भी काल अथवा युग का पाठक किसी भी समय कविता का आनंद प्राप्त कर सकता है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 10 छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख

प्रश्न 3.
‘छोटा मेरा खेत’ कविता की सार्थकता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘छोटा मेरा खेत’ कविता में कवि ने अपने कर्म और किसान की मेहनत को एक समान बताया है। कवि और किसान दोनों ही कठोर परिश्रम करते हैं। यदि किसान की कर्म-भूमि खेत है तो कवि की कर्म-भूमि कविता है। किसान खेत पर हल चलाता है, परंतु कवि कागज़ पर कलम चलाता है। अंतर केवल यह है कि किसान का खेत विशाल होता है जिससे वह अनाज पैदा करता है परंतु कवि का खेत छोटा होता है, जिस पर वह कविता रूपी खेती को उगाता है। छोटे-से खेत पर ही कविता का महल खड़ा किया जाता है। खेत से पैदा होने वाली फसल केवल एक बार पक कर तैयार होती है, परंतु कविता एक अमर रचना होती है। अनंत काल तक कविता का आनंद प्राप्त किया जा सकता है। अतः कविता का आनंद शाश्वत होता है।

प्रश्न 4.
‘रोपाई क्षण की कटाई अनंतता की’ पंक्तियों में कवि किस विरोधाभास को व्यक्त करना चाहता है?
उत्तर:
इस कथन का अर्थ यह है कि कविता की रचना थोड़े समय में हो जाती है। कविता का मूल भाव किसी विशेष क्षण में कवि के मन में जन्म लेता है। तत्पश्चात् कवि कविता की रचना करता है। अन्य शब्दों में, हम कह सकते हैं कि कविता की रचना में होती है उसकी अवधि बहुत छोटी होती है, परंतु अनंतकाल तक पाठक उसका रस लेते रहते हैं। उदाहरण के रूप में सूरदास ने ‘सूरसागर’ की रचना की। परंतु आज सैकड़ों वर्ष बीतने पर भी यह काव्य-ग्रंथ पाठकों को आनंदानुभूति प्रदान करता है। यह प्रक्रिया आगे भी चलती रहेगी। अतः कवि का यह कहना ‘रोपाई क्षण की कटाई अनंत’ उचित ही है।

प्रश्न 5.
‘छोटा मेरा खेत’ कविता में रस का अक्षय पात्र किसे कहा गया और क्यों?
उत्तर:
कवि के द्वारा कागज़ पर उकेरे गए काव्य को रस का पात्र कहा गया है। काव्य-रचना कभी भी नष्ट नहीं होती। अनेक पाठक और श्रोता काव्य से आनंद अनुभूति प्राप्त करते हैं। अतः काव्य का रस अनश्वर है। यह रस कभी घटता नहीं है और ज्यों-का-त्यों बना रहता है। संसार की महान काव्य-रचनाएँ आज भी पाठकों को उतनी ही रसानुभूति प्रदान करती हैं जितनी कि पहले के पाठकों को। निश्चय से कविता रस का अक्षय भंडार है। कविता का रस न मिटने वाला रस है।

प्रश्न 6.
‘बगुलों के पंख’ कविता के सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
‘बगुलों के पंख’ कविता में सहज और स्वाभाविक सुंदरता है। उसका भाव पक्ष जितना सुंदर है, उतना ही कला पक्ष भी प्राकृतिक सौंदर्य का एक अनूठा प्रयोग है। इसमें सायंकाल को काले बादलों के मध्य आकाश में बगुले पंक्तिबद्ध होकर विहार करते हैं जिसका कवि चित्रण करता है। यह चित्रण बड़ा ही मनोहारी और आकर्षक है।

कवि ने सहज, सरल और सुकोमल पदावली का प्रयोग किया है। शब्द छोटे-छोटे हैं। अनुनासिकता वाले शब्दों के कारण यह कविता बड़ी मधुर बन पड़ी है। ‘आँखें चुराना’ मुहावरे का सफल प्रयोग किया गया है। पांती बँधे, हौले हौले, बगुलों की पाँखें जैसे प्रयोग बड़े ही कोमल बन पड़े हैं। पुनरुक्ति प्रकाश तथा अनुप्रास अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है।

प्रश्न 7.
‘बगुलों के पंख’ कविता का मूलभाव लिखिए।
उत्तर:
इस लघु कविता में कवि ने प्रकृति सौंदर्य का मनोरम वर्णन किया है। आकाश में काले-काले बादल दिखाई दे रहे हैं। उन बादलों में सफेद पंखों वाले बगुले पंक्तिबद्ध होकर उड़े जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि सायंकाल में कोई श्वेत काया तैर रही है। बगुलों की पंक्तियों का यह सौंदर्य कवि की आँखों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। कवि चाहता है कि वह इन बगुलों को निरंतर देखता रहे। परंतु बगुले तो उड़े जा रहे हैं। यदि उन्हें कोई रोक ले तो कवि इस सौंदर्य को निरंतर देखता रह सकता है।

बहविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. ‘बगुलों के पंख’ के रचयिता का क्या नाम है?
(A) फ़िराक गोरखपुरी
(B) उमाशंकर जोशी
(C) विष्णु खरे
(D) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
उत्तर:
(B) उमाशंकर जोशी

2. उमाशंकर जोशी का जन्म कब हुआ?
(A) सन् 1910 में
(B) सन् 1912 में
(C) सन् 1911 में
(D) सन् 1913 में
उत्तर:
(C) सन् 1911 में

3. सन् 1947 में उमाशंकर जोशी ने किस पत्रिका का संपादन किया?
(A) दिनमान
(B) नवजीवन
(C) संस्कृति
(D) परंपरा
उत्तर:
(C) संस्कृति

4. उमाशंकर जोशी का निधन कब हुआ?
(A) सन् 1978 में
(B) सन् 1982 में
(C) सन् 1985 में
(D) सन् 1988 में
उत्तर:
(D) सन् 1988 में

5. उमाशंकर जोशी ने कालिदास के किस नाटक का गुजराती में अनुवाद किया?
(A) अभिज्ञान शाकुंतलम्
(B) विक्रमोवंशीयम्
(C) नागानंदन
(D) उपर्युक्त तीनों
उत्तर:
(A) अभिज्ञान शाकुंतलम्

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6. उमाशंकर जोशी ने भवभूति के किस नाटक का गुजराती में अनुवाद किया?
(A) मृच्छकटिकम्
(B) अभिज्ञान शाकुंतलम्
(C) उत्तररामचरित
(D) उपर्युक्त तीनों
उत्तर:
(C) उत्तररामचरित

7. ‘विश्व शांति’ के कवि का क्या नाम है?
(A) महादेवी वर्मा
(B) रवींद्रनाथ टैगोर
(C) उमाशंकर जोशी
(D) धर्मवीर भारती
उत्तर:
(C) उमाशंकर जोशी

8. ‘गंगोत्री’ के रचयिता का नाम क्या है?
(A) धर्मवीर भारती
(B) उमाशंकर जोशी
(C) रवींद्रनाथ टैगोर
(D) महादेवी वर्मा
उत्तर:
(B) उमाशंकर जोशी

9. ‘विसामो’ उपन्यास के लेखक का नाम क्या है?
(A) उमाशंकर जोशी
(B) फ़िराक गोरखपुरी
(C) विष्णु खरे
(D) हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
उत्तर:
(A) उमाशंकर जोशी

10. ‘शहीद’ किस विधा की रचना है?
(A) एकांकी
(B) कहानी
(C) काव्य
(D) उपन्यास
उत्तर:
(B) कहानी

11. ‘छोटा मेरा खेत’ कविता में किसके अंकुर फूटने की बात कही है?
(A) शब्द के
(B) गीत के
(C) वृक्ष के
(D) बीज के
उत्तर:
(A) शब्द के

12. ‘बगुलों के पंख’ कविता में किस वक्त की सतेज श्वेत काया तैरने की बात कही है?
(A) प्रातः
(B) दोपहर
(C) साँझ
(D) रात
उत्तर:
(C) साँझ

13. उमाशंकर जोशी को किस महत्त्वपूर्ण पुरस्कार से सम्मानित किया गया?
(A) साहित्य अकादमी
(B) भारतीय ज्ञानपीठ
(C) शिखर ज्ञानपीठ
(D) कबीर सम्मान
उत्तर:
(B) भारतीय ज्ञानपीठ

14. ‘छोटा मेरा खेत’ कविता में किसकी रोपाई की बात कही गई है?
(A) क्षण की
(B) फसल की
(C) खेत की
(D) बीज की
उत्तर:
(A) क्षण की

15. बगुलों के पंख काले बादलों के ऊपर तैरते हुए किसके समान प्रतीत होते हैं?
(A) प्रातःकाल की सिंदूरी काया
(B) साँझ की श्वेत काया
(C) साँझ की पीली काया
(D) रात्रि की काली काया
उत्तर:
(C) साँझ की पीली काया

16. कैसे बादल छाए हुए थे?
(A) धिकरारे
(B) कजरारे
(C) गोरे
(D) बिखरे
उत्तर:
(B) कजरारे

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17. बगुलों का कौन-सा सौंदर्य अपने आकर्षण में बाँध रहा है?
(A) काया रूपी सौंदर्य
(B) माया रूपी सौंदर्य
(C) रूप रूपी सौंदर्य
(D) पंक्तिबद्ध सौंदर्य
उत्तर:
(D) पंक्तिबद्ध सौंदर्य

18. ‘छोटे चौकोने खेत’ उपमान का प्रयोग किसके लिए किया गया है?
(A) फसल
(B) कागज़ का पन्ना
(C) पल्लव
(D) वर्गाकार
उत्तर:
(B) कागज़ का पन्ना

19. ‘छोटा मेरा खेत’ कविता में किसकी धाराएँ फूटने की बात कही गई है?
(A) नदी
(B) अमृत
(C) जंगल
(D) धूप
उत्तर:
(B) अमृत

20. ‘कागज़ का पन्ना’ के लिए कवि ने क्या उपमान दिया है?
(A) चौकोना खेत
(B) बीज
(C) रस का अक्षय पात्र
(D) अनाज का भंडार
उत्तर:
(A) चौकोना खेत

21. ‘छोटा मेरा खेत’ कविता में कौन झूमने लगे?
(A) पेड़
(B) शराबी
(C) गायक
(D) फल
उत्तर:
(D) फल

22. बगुलों के पंखों द्वारा क्या चुराने की बात कही गई है?
(A) हृदय
(B) बुद्धि
(C) मन
(D) आँख
उत्तर:
(D) आँख

23. रस का पात्र कैसा है?
(A) अक्षय
(B) कमजोर
(C) नीरस
(D) निन्दनीय
उत्तर:
(A) अक्षय

24. ‘नभ में पाँती-बाँधे बगुलों के पंख’ किसके लिए प्रसिद्ध हैं?
(A) प्रतीक के लिए
(B) बिंब के लिए
(C) अलंकार के लिए
(D) लक्ष्यार्थ के लिए
उत्तर:
(B) बिंब के लिए

25. ‘छोटा मेरा खेत’ कविता में कवि ने अपने खेत में कौन-सा बीज बोया?
(A) धान रूपी बीज
(B) विचार रूपी बीज
(C) प्रेम रूपी बीज
(D) शब्द रूपी बीज
उत्तर:
(D) शब्द रूपी बीज

26. आकाश में किसकी पंक्ति की सुन्दरता का चित्रण किया गया है?
(A) बगुलों
(B) हंसों
(C) बत्तखों
(D) कबूतरों
उत्तर:
(A) बगुलों

27. ‘छोटा मेरा खेत’ में किसकी कटाई की बात कही है?
(A) अनंतता की
(B) अंकुर की
(C) क्षण की
(D) फसल की
उत्तर:
(A) अनंतता की

28. बगुलों के पंखों का रंग कैसा है?
(A) मटमैला
(B) सफ़ेद
(C) काला
(D) नीला
उत्तर:
(B) सफेद

29. ‘छोटा मेरा खेत’ कविता में किस रस की अमृतधारा को अक्षय बताया गया है?
(A) साहित्य
(B) वात्सल्य
(C) करुण
(D) शृंगार
उत्तर:
(A) साहित्य

30. ‘छोटा मेरा खेत’ कविता में कवि ने निम्न में से किसे रसायन कहा है?
(A) दूरियाँ
(B) कल्पना
(C) शब्द
(D) साहित्य
उत्तर:
(B) कल्पना

31. ‘बगुलों के पंख’ कविता में साँझ की सतेज श्वेत काया क्या कर रही है?
(A) तैर रही है
(B) उड़ रही है
(C) भाग रही है
(D) नहा रही है
उत्तर:
(A) तैर रही है

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32. कवि ने अभिव्यक्ति रूपी बीज किस पर बोया था?
(A) कागज के पृष्ठ पर
(B) आँगन में
(C) छत पर
(D) खेत में
उत्तर:
(A) कागज के पृष्ठ पर

33. कवि का छोटा खेत किस आकार का था?
(A) चौकोना
(B) तिकोना
(C) आयताकार
(D) वक्र
उत्तर:
(A) चौकोना

34. लुटते रहने से जरा भी कम क्या नहीं होती?
(A) संपत्ति
(B) रस-धारा
(C) औषधि
(D) पुस्तक
उत्तर:
(B) रस-धारा

35. नभ में पंक्तिबद्ध कौन थे?
(A) हंस
(B) चातक
(C) बगुले
(D) पिक
उत्तर:
(C) बगुले

छोटा मेरा खेत पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1) छोटा मेरा खेत चौकोना
कागज़ का एक पन्ना,
कोई अंधड़ कहीं से आया क्षण का बीज वहाँ बोया गया।
कल्पना के रसायनों को पी
बीज गल गया निःशेष
शब्द के अंकुर फूटे,
पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष। [पृष्ठ-64]

शब्दार्थ-चौकोना = चार कोने वाला। अंधड़ = आँधी का तेज झोंका। क्षण = पल । रसायन = खाद। निःशेष = पूरी तरह से। अंकर = छोटा पौधा। पल्लव-पुष्प = कोमल पत्ते और फूल। नमित = झुका हुआ।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘छोटा मेरा खेत’ में से उद्धृत है। इसके कवि उमाशंकर जोशी हैं। इन पंक्तियों में कवि ने कवि-कर्म की तुलना किसान-कर्म से की है।

व्याख्या-कवि कहता है कि मैं भी एक किसान हूँ। कागज़ का एक पन्ना मेरे लिए चौकोर खेत के समान है। अंतर केवल इतना है कि किसान ज़मीन से फसल उगाता है और मैं कागज़ पर कविता उगाता हूँ। जिस प्रकार किसान चौकोर खेत में बीज बोता है, उसी प्रकार मेरे मन में भावना की आँधी ने कागज़ के पन्ने पर क्षण का बीज बो दिया। यह भाव रूपी बीज पहले मेरे मन रूपी खेत में बोया जाता है। जिस प्रकार खेत में बोया गया बीज विभिन्न प्रकार के रसायनों अर्थात् हवा, पानी, खाद आदि लेकर स्वयं को पूरी तरह से गला देता है और उसमें से अंकुरित पत्ते और फूल फूट कर निकलते हैं, उसी प्रकार कवि के मन के भाव कल्पना रूपी रसायन को पीकर सर्वजन का विषय बन जाते हैं। वे भाव मेरे न रहकर सभी पाठकों के भाव बन जाते हैं। उन भावों में से शब्द रूपी अंकुर फूटते हैं और ये भाव रूपी पत्तों से लदकर कविता विशेष रूप से झुक जाती है और सभी के आगे नतमस्तक हो जाती है अर्थात् उसे जो चाहे पढ़ सकता है।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने रूपक के द्वारा कवि-कर्म की तुलना किसान के कर्म के साथ की है।
  2. संपूर्ण पद में सांगरूपक अलंकार का सार्थक प्रयोग किया गया है।
  3. ‘पल्लव-पुष्प’ में रूपकातिशयोक्ति अलंकार है। इसी प्रकार ‘पल्लव-पुष्प’, ‘गल गया’ और ‘बोया गया’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हआ है।
  4. अंधड़ शब्द इस बात का द्योतक है कि कविता कभी भी पूर्व-नियोजित नहीं होती। अचानक कोई भाव कवि के मन में प्रस्फुटित होता है और वह कविता का रूप धारण कर लेता है।
  5. सहज, सरल साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग है।
  6. ‘बीज गल गया निःशेष’ यह सूचित करता है कि कवि के हृदय का भाव जब तक अहम्मुक्त नहीं होता तब तक वह कविता का रूप धारण नहीं कर सकता।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) कवि ने अपनी तुलना किसके साथ और क्यों की है?
(ग) अंधड़ किसका प्रतीक है? स्पष्ट करो।
(घ) इस पद्यांश के आधार पर कवि की रचना प्रक्रिया क्या है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
(क) कवि-उमाशंकर जोशी कविता ‘छोटा मेरा खेत’.

(ख) कवि ने अपनी तुलना एक किसान के साथ की है। जिस प्रकार किसान अपने खेत में बीज बोता है फिर उसे जल, खाद देकर फसलें उगाता है उसी प्रकार कवि भी कागज़ के पन्ने पर भाव रूपी बीजों को उगाकर कविता की रचना करता है। .

(ग) अंधड़ कवि के मन में अचानक उत्पन्न भावना का प्रतीक है। जिस प्रकार आँधी के साथ कोई बीज उड़कर खेत में गिरता है और अंकुरित होकर पौधा बन जाता है, उसी प्रकार कवि के हृदय में अचानक कोई भाव उमड़ता है जिससे कविता जन्म लेती है।

(घ) कविता की रचना-प्रक्रिया फसल उगाने के समान है। सर्वप्रथम कवि के मन में बीज रूपी भाव उमड़ता है। वह भाव कल्पना के रसायन से रंग-रूप धारण करता है। तब वह अहममुक्त होकर संप्रेषणीय बन जाता है। फिर कवि शब्दों के द्वारा अपनी भावनाओं को व्यक्त करता है और इस प्रकार कविता की रचना होती है।

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[2] झूमने लगे फल,
रस अलौकिक
अमृत धाराएँ फूटती
रोपाई क्षण की,
कटाई अनंतता की
लुटते रहने से जरा भी नहीं कम होती।
रस का अक्षय पात्र सदा का
छोटा मेर खेत चौकोना। [पृष्ठ-64]

शब्दार्थ-अलौकिक = दिव्य। अमृत धाराएँ = रस की धाराएँ। रोपाई = बुआई। अनंतता = हमेशा के लिए। अक्षय = कभी नष्ट न होने वाला। पात्र = बर्तन।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘छोटा मेरा खेत’ में से अवतरित है। इसके कवि उमाशंकर जोशी हैं। यहाँ कवि स्पष्ट करता है कि कविता किसी विशेष क्षण में उपजे भाव से उत्पन्न होती है।

व्याख्या कवि कहता है कि जब कवि के हृदय में पलने वाला भाव कविता रूपी फल के रूप में पक जाता है और झूमने लगता है तो उससे एक दिव्य रस टपकने लगता है। इससे आनंद की धाराएँ फूटने लगती हैं। भावों की बुआई तो एक क्षण भर में हुई थी, लेकिन कविता की कटाई अनंतकाल तक चलती रहती है अर्थात् अनंतकाल तक पाठक कविता के रस का आनंद प्राप्त करते रहते हैं। कविता रूपी फसल का आनंद अनंत है। उस रस को जितना भी लुटाओ कभी खाली नहीं होता अर्थात् कविता युगों-युगों तक रस प्रदान करती रहती है। कवि इसे रस का अक्षय पात्र कहता है। यह कविता कवि का चार कोनों वाला छोटा-सा खेत है। जिसमें नश्वर रस समाया हुआ है अर्थात् कविता शाश्वत होती है।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने स्पष्ट किया है कि कविता का आनंद शाश्वत होता है। अनंतकाल तक कविता से रसानुभूति प्राप्त की जा सकती है।
  2. रस शब्द में श्लेष अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  3. तत्सम् प्रधान संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है।
  4. शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. मुक्त छंद का सफल प्रयोग किया गया है। संपूर्ण पद में चाक्षुष बिंब की सुंदर योजना हुई है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबधी प्रश्नोत्त
प्रश्न-
(क) कवि ने छोटा मेरा खेत चौकोना किसे और क्यों कहा है?
(ख) फल, रस और अमृत धाराएँ किसका प्रतीक हैं?
(ग) कवि ने रस का अक्षय पात्र किसे और क्यों कहा है?
(घ) ‘रोपाई क्षण की कटाई अनंतता’ का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर:
(क) यहाँ कवि ने अपनी काव्य-रचना को छोटा मेरा खेत चौकोना कहा है। जिस प्रकार किसान चार कोनों वाले खेत में फसलें उगाता है, उसी प्रकार कवि कागज़ पर अपनी कविता लिखता है।

(ख) फल, रस और अमृत धाराएँ काव्य-रचना से प्राप्त होने वाले आनंद और रस का प्रतीक हैं।।

(ग) कवि ने कविता को ही रस का अक्षय पात्र कहा है। कारण यह है कि कविता का रस अनंत है। वह कभी समाप्त नहीं होता। किसी भी युग अथवा काल का व्यक्ति उसे पढ़कर आनंद प्राप्त कर सकता
है। इसीलिए वह रस का अक्षय पात्र कही गई है।

(घ) कविता अचानक भावनामय क्षण में लिखी जाती है परंतु वह अनंतकाल तक पाठकों को आनंदानुभूति प्रदान करती रहती है। कविता का आनंद चाहे जितना भी लुटाया जाए वह कभी समाप्त नहीं होता।

बगुलों के पंख पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] नभ में पाँती-बँधे बगुलों के पंख,
चुराए लिए जातीं वे मेरी आँखें।
कजरारे बादलों की छाई नभ छाया,
तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया।
हौले हौले जाती मुझे बाँध निज माया से।
उसे कोई तनिक रोक रक्खो।
वह तो चुराए लिए जाती मेरी आँखें
नभ में पाँती-बँधी बगुलों की पाँखें। [पृष्ठ-65]

शब्दार्थ-नभ = आकाश। पाँती = पंक्ति। कजरारे = काले। साँझ = सायंकाल। श्वेत = सफेद। सतेज = चमकीला। काया = शरीर। माया = जादू। तनिक = कुछ देर के लिए, थोड़ा।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित ‘बगुलों के पंख’ नामक कविता में से उद्धृत है। इसके कवि उमाशंकर जोशी हैं। यहाँ कवि ने प्रकृति के आलंबन रूप का मनोहारी वर्णन किया है।

व्याख्या कवि कहता है कि आकाश में बगुले अपने पंख फैलाकर पंक्तिबद्ध होकर उड़े चले जा रहे हैं। वे इतने आकर्षक और मनोहारी हैं कि मेरी आँखें एकटक उन्हीं को देख रही हैं। लगता है वे मेरी आँखों को चुराकर ले जा रहे हैं। आकाश में काले बादलों की छाया फैली हुई है। उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो सायंकाल की श्वेत, चमकीली काया आकाश में तैर रही है। यह साँझ धीरे-धीरे आकाश में विहार कर रही है और मुझे अपने जादू में बाँधे हुए है। कवि के मन में अचानक यह भय पैदा होता है कि कहीं यह रमणीय दृश्य उसकी आँखों से ओझल न हो जाए। इसीलिए वह कहता है कि कोई इसे थोड़ी देर तक रोक कर रखो। मैं इस सुंदर दृश्य को थोड़ी देर तक देखना चाहता हूँ। आकाश में पंक्तिबद्ध बगुलों के पंख मेरी आँखों को चुरा कर ले जा रहे हैं। मैं एकटक उन्हें देख रहा हूँ। इन्हें रोक लो। ताकि मैं इस सुंदर दृश्य का आनंद ले सकूँ।

विशेष –

  1. यहाँ कवि ने प्रकृति के आलंबन रूप का चित्रण करते हुए साँझ के आकाश में बगुलों की पंक्ति का मनोरम चित्रण किया है।
  2. प्रकृति का सुंदर मानवीकरण किया गया है। अतः मानवीकरण अलंकार है। पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास तथा उत्प्रेक्षा अलंकारों का सुंदर प्रयोग है।
  3. ‘आँखें चुराना’ मुहावरे का सुंदर प्रयोग है।
  4. तत्सम् प्रधान साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है। शब्द-चयन भावानुकूल और अर्थ की अभिव्यक्ति में सक्षम है।
  5. ‘पाँती बाँधी’ ‘हौले हौले’ आदि प्रयोग विशेष रूप से कोमल बन पड़े हैं
  6. संपूर्ण पद में चाक्षुष बिंब की सुंदर योजना हुई है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ख) कवि किस दृश्य पर मुग्ध हो गया है?
(ग) ‘आँखें चुराने’ का अर्थ क्या है?
(घ) कवि किसे रोके रखना चाहता है और क्यों?
उत्तर:
(क) कवि-उमाशंकर जोशी                                          कविता-बगुलों के पंख

(ख) कवि काले बादलों की छाई घटा में सायंकाल के समय आकाश में उड़ने वाले बगुलों की पंक्ति देखकर उस पर मुग्ध हो गया है, क्योंकि प्रकृति का यह दृश्य मनोहारी बन पड़ा है।

(ग) ‘आँखें चुराने’ का अर्थ है-ध्यान को आकृष्ट कर लेना जिससे देखने वाला व्यक्ति दृश्य पर मुग्ध हो जाए।

(घ) कवि सायंकाल में काले बादलों के बीच आकाश में उड़ते हुए बगुलों की पंक्तियों के दृश्य को रोकना चाहता है ताकि वह इस दृश्य को निरंतर निहार सके। प्रकृति के इस मनोरम दृश्य ने कवि को अपनी ओर भावुक कर लिया है।

छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख Summary in Hindi

छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख कवि-परिचय

प्रश्न-
उमाशंकर जोशी का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
उमाशंकर जोशी का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय – श्री उमाशंकर जोशी का जन्म 12 जुलाई, 1911 को गुजरात में हुआ। उन्होंने बीसवीं सदी की गुजराती कविता तथा साहित्य को नई भंगिमा और नया स्वर प्रदान किया। भारतीय साहित्य के लिए उनका साहित्यिक अवदान विशेष महत्त्व रखता है। उन्हें भारतीय संस्कृति और परंपरा का समुचित ज्ञान था। सर्वप्रथम उन्होंने कालिदास के ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ और भवभूति के ‘उत्तररामचरित’ का गुजराती भाषा में अनुवाद किया। एक कवि के रूप में उन्होंने गुजराती कविता को प्रकृति से जोड़ा और पाठक को आम जिंदगी के अनुभवों से परिचित कराया। जोशी जी में देश-प्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। भारत की आज़ादी की लड़ाई से उनका गहरा रिश्ता रहा है। इसके लिए उनको जेल भी जाना पड़ा। वे एक प्रसिद्ध कवि, विद्वान तथा लेखक के रूप में जाने जाते हैं। दिसंबर, 1988 में इस गुजराती साहित्यकार का निधन हो गया।

2. पुरस्कार – सन् 1968 में जोशी जी गुजराती साहित्य परिषद् के अध्यक्ष बने। 1978 से 1982 तक वे साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष रहे। सन् 1970 में वे गुजरात विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी बने। सन् 1967 में उन्हें गुजराती साहित्य के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ और सन् 1973 में सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार प्राप्त हुआ।

3. प्रमुख रचनाएँ –
(क) काव्य-संग्रह ‘विश्व शांति’, ‘गंगोत्री’, ‘निशीथ’, ‘प्राचीना’, ‘आतिथ्य’, ‘वसंत वर्षा’, ‘महाप्रस्थान’, ‘अभिज्ञा’ (एकांकी)।
(ख) कहानी-‘सापनाभारा’ तथा ‘शहीद’।
(ग) उपन्यास-‘श्रावणी मेणो’ एवं ‘विसामो’।
(घ) निबंध-‘पारकांजण्या’।
(ङ) संपादन-‘गोष्ठी’, ‘उघाड़ीबारी’, ‘क्लांतकवि’, ‘म्हारासॉनेट’, ‘स्वप्नप्रयाण’।

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4. काव्यगत विशेषताएँ-कवि उमाशंकर की कविता में प्रकृति का बड़ा ही सुंदर वर्णन किया गया है। उन्होंने प्रकृति के आलंबन, उद्दीपन तथा मानवीकरण रूपों का सुंदर एवं प्रभावशाली चित्रण किया है। वे जीवन के सामान्य प्रसंगों पर कविता लिखते रहे हैं। उदाहरण के रूप में ‘छोटा मेरा खेत’ में उन्होंने अपनी कविता रचना की प्रक्रिया की तुलना किसान के खेत के साथ की है। जिस प्रकार किसान अपने खेत में बीज बोता है और बीजों में से अंकुर फूटकर पौधों का रूप धारण करते हैं, उसी प्रकार कागज़ के पन्ने पर कवि रचना लिखता है, जिसमें से शब्दों के अंकुर निकलते हैं और अन्ततः रचना एक पूर्ण स्वरूप ग्रहण करती है। इसी प्रकार ‘बगुलों के पंख’ नामक कविता सुंदर दृश्यों की कविता कही जा सकती है। जिसका प्राकृतिक सौंदर्य पाठक को भी आकर्षित किए बिना नहीं रह सकता। जोशी जी आधुनिकतावादी भारतीय कवि थे। कविता के अतिरिक्त अन्य विधाओं में भी उन्होंने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। साहित्य की आलोचना में उनका विशेष स्थान रहा है। निबंधकार के रूप में वे गुजराती साहित्य में बेजोड़ माने जाते हैं।

5. भाषा-शैली-जोशी जी ने प्रायः सहज, सरल और साहित्यिक भाषा का ही प्रयोग किया है। कवि का शब्द-चयन पूर्णतया भावानुकूल तथा प्रसंगानुकूल है। वे प्रायः सटीक शब्दों का प्रयोग करते हैं। यत्र-तत्र वे अलंकार प्रयोग द्वारा अपनी काव्य-भाषा को सजाते भी हैं। वे जीवन के सामान्य प्रसंगों के लिए सामान्य बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते देखे गए हैं। इसलिए भाव और भाषा दोनों दृष्टियों से उनका साहित्य उच्चकोटि का है।

छोटा मेरा खेत कविता का सार

प्रश्न-
उमाशंकर जोशी द्वारा रचित ‘छोटा मेरा खेत’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
इस कविता में कवि ने रूपक का सहारा लेते हुए कवि कर्म को कृषक कर्म के समान सिद्ध किया है। किसान पहले अपने खेत में बीज बोता है। बीज फूटकर पौधा बन जाता है और फिर पुष्पित-पल्लवित होकर पक जाता है। तत्पश्चात् उसकी कटाई करके अनाज निकाला जाता है, जिससे लोगों का पेट भरता है। कवि के अनुसार कागज़ उसका खेत है जब उसके मन में भावनाओं की आंधी आती है तो उसमें बीज बोया जाता है। कल्पना का आश्रय पाकर बीज रूपी भाव विकसित हो जाता है। शब्दों के अंकुर निकलते ही रचना अपना स्वरूप ग्रहण करती है। इस रचना में एक अलौकिक रूप होता है जो अनंत काल तक पाठकों को आनंद प्रदान करती रहती है। कवि की खेती का रस कभी समाप्त नहीं होता।

बगुलों के पंख कविता का सार

प्रश्न-
उमाशंकर जोशी द्वारा रचित ‘बगुलों के पंख’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
इस लघु कविता में कवि ने प्रकृति सौंदर्य का मनोरम वर्णन किया है। आकाश में काले-काले बादल दिखाई दे रहे हैं। उन बादलों में सफेद पंखों वाले बगुले पंक्तिबद्ध होकर उड़े जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि सायंकाल में कोई श्वेत काया तैर रही है। बगुलों की पंक्तियों का यह सौंदर्य कवि की आँखों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। कवि चाहता है कि वह इन बगुलों को निरंतर देखता रहे। परंतु बगुले तो उड़े जा रहे हैं। यदि उन्हें कोई रोक ले तो कवि इस सौंदर्य को निरंतर देखता रह सकता है।

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HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 9 रुबाइयाँ, गज़ल

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 9 रुबाइयाँ, गज़ल Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 9 रुबाइयाँ, गज़ल

HBSE 12th Class Hindi रुबाइयाँ, गज़ल Textbook Questions and Answers

पाठ के साथ

प्रश्न 1.
शायर राखी के लच्छे को बिजली की चमक की तरह कहकर क्या भाव व्यंजित करना चाहता है?
उत्तर:
राखी एक पवित्र धागा है। इसे बहन अपने भाई की कलाई पर बाँधती है। भले ही यह कच्चा धागा है, परंतु इसका बंधन बहुत ही पक्का है। इसकी पावनता मन की प्रत्येक छटा को चीरकर चमकने लगती है। इसका आकर्षण बिजली जैसा है। जिस प्रकार आकाश में चमकने वाली बिजली की हम उपेक्षा नहीं कर सकते, उसी प्रकार राखी के धागे की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती। भले ही भाई-बहन एक-दूसरे से दूर रहते हों। परंतु राखी की पावन याद एक-दूसरे की याद दिलाती रहती है। राखी का यह पर्व वर्षा की ऋतु (सावन) में आता है। इसलिए कवि ने इस ऋतु को प्रभावशाली बनाने के लिए राखी को उपादान बनाया है। फलतः कवि की भाव-व्यंजना अधिक मनोरम और प्रभावशाली बन पड़ी है।

प्रश्न 2.
खुद का परदा खोलने से क्या आशय है?
उत्तर:
‘खुद का परदा’ खोलना मुहावरे का प्रयोग कवि ने उन लोगों के लिए किया है जो दूसरों की निंदा करते हैं अथवा बुराई करते हैं। सच्चाई तो यह है कि ऐसे लोग अपने घटियापन का उद्घाटन करते हैं। इससे हमें यह पता चल जाता है कि निंदा करने वाले लोग कैसे हैं और कितने पानी में हैं। बिना बताए ये लोग अपने चरित्र के बारे में हमें बता देते हैं। कवि यह कहना चाहता है कि निंदा करना बुरी बात है। फिर भी कबीरदास ने कहा है
निंदक नियरे राखिए आँगन कुटी छवाय ।
बिन साबुन पानी बिना निर्मल होत सुभाय।

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प्रश्न 3.
किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रो ले हैं इस पंक्ति में शायर की किस्मत के साथ तना-तनी का रिश्ता अभिव्यक्त हुआ है। चर्चा कीजिए।
उत्तर:
किस्मत और मानव का गहरा संबंध है। सर्वप्रथम हम इस बात पर चर्चा करते हैं कि किस्मत हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। हम और किस्मत एक-दूसरे के पूरक हैं। विधाता ने जो कुछ हमारे भाग्य में लिखा है, वही प्राप्त होगा। अतः किस्मत पर रोना व उसे कोसना व्यर्थ है। हमारा कर्तव्य है कि हम किस्मत की अधिक चिंता न करके अपना कर्म और परिश्रम करें। परिश्रम करने से हमें जीवन में सफलता अवश्य मिलती है।

चर्चा का एक-दूसरा रूप यह भी हो सकता है कि कुछ लोग अपनी किस्मत को कोसते रहते हैं। उनका यह कहना है कि मेहनत करने पर भी उन्हें पूरा फल नहीं मिलता। इसी कारण शायर कहता है कि हम किस्मत को रो लेते हैं और किस्मत हमें रुलाती है। कवि घोर निराशा से भरा हुआ है। इसलिए वह अपनी किस्मत को कोस रहा है।

टिप्पणी करें

(क) गोदी के चाँद और गगन के चाँद का रिश्ता।
(ख) सावन की घटाएँ व रक्षाबंधन का पर्व।
उत्तर:
(क) गोदी का चाँद शिशु के लिए प्रयुक्त हुआ है। प्रत्येक माँ के लिए उसकी संतान ही अनमोल है। वह अपने पुत्र को देखकर प्रसन्न होती है और उसी के सहारे जिंदा रहती है। जिस प्रकार आकाश में चाँद सुंदर लगता है, उसी प्रकार माँ को अपना शिशु सुंदर लगता है। इसीलिए शिशु को गोदी का चाँद कहा गया है। नन्हा अबोध शिशु जब आकाश में चाँद को देखता है तो वह अत्यधिक प्रसन्न होकर उसे पाना चाहता है। सूरदास के कृष्ण और तुलसीदास के राम चाँद के लिए हठ करते हुए वर्णित किए गए हैं। सूर का कृष्ण अपनी माता यशोदा से कहता है
मैया मैं तो चंद खिलौना लैहों।
लोरी में भी चाँद का जिक्र किया गया है “चंदा मामा दूर के” गीत द्वारा कवि ने अबोध बच्चों को चाँद की ओर आकर्षित किया है। लोक गीतों.तथा कविताओं में चाँद की बार-बार चर्चा की गई है। इसलिए गोदी के चाँद और गगन के चाँद का गहरा रिश्ता है।

(ख) रक्षाबंधन का पर्व सावन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। सावन मास में अकसर घने काले बादल आकाश को ढक लेते हैं, बिजली बार-बार चमकती है और मूसलाधार वर्षा होती है। अतः कवि ने सावन की घटाओं से रक्षाबंधन को जोड़कर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है। सावन के महीने में विवाहित युवतियाँ अपने-अपने मायके चली जाती हैं। वे अपनी सखी-सहेलियों से मिलकर झूला झूलती हैं और गीत गाती हैं। पूर्णिमा के दिन अपने भाइयों को राखी बाँधती हैं। इसी ऋतु में तीज का त्योहार भी आता है। इसलिए कवि ने रक्षाबंधन के पर्व को सावन की घटाओं के साथ जोड़कर एक सुंदर और खुशनुमा वातावरण का निर्माण किया है।

कविता के आसपास

प्रश्न 1.
इन रुबाइयों से हिंदी, उर्दू और लोकभाषा के मिले-जुले प्रयोगों को छाँटिए।
उत्तर:
फ़िराक गोरखपुरी ने अपनी कविताओं में हिंदी, उर्दू तथा देशज शब्दों का खुलकर प्रयोग किया है-
हिंदी के प्रयोग-
आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों पे झुलाती है उसे गोद-भरी
गूंज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी
रक्षाबंधन की सुबह रस की पुतली
छायी है घटा गगन की हलकी-हलकी
बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे
भाई के है बाँधती चमकती राखी
उर्दू के प्रयोग-
उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके
देख आईने में चाँद उतर आया है।
लोक भाषा के प्रयोग-
रह रह के हवा में जो लोका देती है
इसी प्रकार कवि ने आँगन, गोद, गूंज, दीवाली, निर्मल, रूपवती, नर्म आदि हिंदी के शब्दों का प्रयोग किया है। जिदयाया, आईना, शाम, सुबह, होशो-हवास, सौदा, कीमत, अदा, दीवाना आदि उर्दू के शब्दों का प्रयोग किया है। इसी प्रकार पे, घुटनियों, हई, दे के आदि देशज शब्दों का प्रयोग किया है।

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प्रश्न 2.
फिराक ने सुनो हो, रक्खो हो आदि शब्द मीर की शायरी के तर्ज पर इस्तेमाल किए हैं। ऐसी ही मीर की कुछ गज़लें ढूँढ़ कर लिखिए।
उत्तर:
विद्यार्थी शिक्षक की सहायता से स्वयं करें। यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

आपसदारी
कविता में एक भाव, एक विचार होते हुए भी उसका अंदाजे बयाँ या भाषा के साथ उसका बर्ताव अलग-अलग रूप में अभिव्यक्ति पाता है। इस बात को ध्यान रखते हुए नीचे दी गई कविताओं को पढ़िए और दी गई फिराक की गजल/रुबाई में से समानार्थी पंक्तियाँ ढूँदिए।
(क) मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों। -सूरदास
(ख) वियोगी होगा पहला कवि
आह से उपजा होगा गान
उमड़ कर आँखों से चुपचाप
बही होगी कविता अनजान -सुमित्रानंदन पंत
(ग) सीस उतारे भुईं धरे तब मिलिहैं करतार -कबीर
उत्तर:
(क) आँगन में ठुनक रहा है ज़िदयाया है
बालक तो हई चाँद पै ललचाया है
दर्पण उसे दे के कह रही है माँ
देख आईने में चाँद उतर आया है।

(ख) ये कीमत भी अदा करे हैं
हम बदुरुस्ती-ए-होशो-हवास
तेरा सौदा करने वाले
दीवाना भी हो ले हैं।

(ग) तेरे गम का पासे-अदब है
कुछ दुनिया का ख्याल भी है
सबसे छिपा के दर्द के मारे
चुपके-चुपके रो ले हैं

HBSE 12th Class Hindi रुबाइयाँ, गज़ल Important Questions and Answers

सराहना संबंधी प्रश्न

प्रश्न-
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए-
1. आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों पे झुलाती है उसे गोद-भरी
रह-रह के हवा में जो लोका देती है
गूंज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी
उत्तर:

  1. इस पद्यांश में कवि ने माँ द्वारा अपने बच्चे को झूला झुलाने और उछाल-उछालकर खिलाने का सुंदर वर्णन किया है।
  2. बच्चे को ‘चाँद का टुकड़ा’ कहना माँ के प्यार को व्यंजित करता है।
  3. रह-रह’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है तथा रूपक अलंकार की भी योजना हुई है।
  4. ‘लोका देना’ में ग्रामीण संस्कृति का सुंदर प्रयोग है।
  5. संपूर्ण पद में दृश्य-बिंब की सुंदर योजना हुई है।
  6. सहज, सरल तथा प्रवाहमयी हिंदी भाषा का प्रयोग किया गया है।
  7. शब्द-चयन उचित तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  8. वात्सल्य रस का परिपाक है तथा प्रसाद गुण है।

2. बालक तो हई चाँद पै ललचाया है।
दर्पण उसे दे के कह रही है माँ
देख आईने में चाँद उतर आया है
उत्तर:

  1. यहाँ कवि ने एक बालक की प्रवृत्ति का सहज और स्वाभाविक वर्णन किया है।
  2. आईने में चाँद उतर आना ग्रामीण संस्कृति का द्योतक है।
  3. प्रसाद गुण तथा वात्सल्य रस का परिपाक हुआ है।
  4. हिंदी एवं उर्दू मिश्रित भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।

3. दीवाली की शाम घर पुते और सजे
चीनी के खिलौने जगमगाते लावे
वो रूपवती मुखड़े पै इक नर्म दमक
बच्चे के घरौंदे में जलाती है दिए
उत्तर:

  1. यहाँ कवि ने दीवाली की जगमग, साज-सज्जा तथा रंग-रोगन आदि का प्रभावशाली वर्णन किया है।
  2. संपूर्ण पद में दृश्य-बिंब की योजना दर्शनीय है।
  3. यहाँ माँ की ममता तथा कोमलता का सुंदर और स्वाभाविक चित्रण किया गया है।
  4. सहज एवं सरल हिंदी भाषा का प्रयोग है जिसमें लोक-प्रचलित शब्दों का प्रयोग किया गया है।
  5. शब्द-चयन उचित तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

4. नौरस गुंचे पंखड़ियों की नाजुक गिरहें खोले हैं
या उड जाने को रंगो-ब गलशन में पर तोले हैं।
उत्तर:

  1. इस शेर में कवि ने प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया है।
  2. संदेह अलंकार का सफल प्रयोग किया गया है।
  3. रस और सुगंध में मानवीय भावना का आरोप है, अतः यहाँ मानवीकरण अलंकार का प्रयोग है।
  4. संपूर्ण शेर में उर्दू, फारसी तथा हिंदी का सुंदर मिश्रण देखा जा सकता है।
  5. शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

5. जो मुझको बदनाम करे हैं काश वे इतना सोच सकें
मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं
उत्तर:

  1. प्रस्तुत शेर में कवि ने निंदकों को आड़े हाथों लिया है।
  2. कवि का विचार है कि निंदा करने वाले ईर्ष्यालु होने के साथ-साथ बुरे लोग होते हैं।
  3. इस शेर की भाषा अत्यंत सरल और सहज है।
  4. शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. भाव प्रधान वर्णनात्मक शैली का सफल प्रयोग हुआ है।

6. सदके फिराक एजाजे-सुखन के कैसे उड़ा ली ये आवाज़
इन गज़लों के परदों में तो ‘मीर’ की गज़लें बोले हैं
उत्तर:

  1. इस शेर में कवि अपनी शायरी पर मुग्ध दिखाई देता है। अतः वह अपनी कविता को मीर जैसी कविता बताता है।
  2. ‘के कैसे’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  3. उर्दू, फारसी और हिंदी तीनों भाषाओं का मिश्रित प्रयोग है।
  4. भाव प्रधान वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।
  5. शब्द-चयन सर्वथा उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  6. उर्दू और फारसी के शेर छंद का सफल प्रयोग है।

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विषय-वस्तु पर आधारित लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
फ़िराक गोरखपुरी ने वात्सल्य का मनोरम और स्वाभाविक वर्णन किया है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
वात्सल्य भाव संसार के सभी प्राणियों में विद्यमान है। यह निर्मल, निश्चल और निःवार्थ प्रेम है। प्रथम रुबाई में कवि ने माँ के पुत्र को चाँद का टुकड़ा कहा है, जिसे लेकर माँ अपने घर के आँगन में खड़ी है। वह बार-बार उसे झुलाती है और हवा में उछालती है और तत्काल उसे पकड़कर अपने गले से लगा लेती है। इस प्रेम-क्रीड़ा में माँ और पुत्र दोनों को असीम आनंद की प्राप्ति होती है। एक अन्य रुबाई में कवि कहता है कि माँ अपने नन्हें शिशु को नहलाती है। फिर दुलार कर उसके बालों में कंघी करती है। ऐसा करते समय वह अपने पुत्र का मुख निहारती है। वह अपने घुटनों में दबाकर उसे कपड़े पहनाती है। नन्हा शिशु भी माँ के स्नेह को अच्छी प्रकार समझता है और वह प्यार से माँ के मुख को देखता है।

प्रश्न 2.
कवि ने दीवाली के किन पारंपरिक रिवाजों का वर्णन किया है?
उत्तर:
दीवाली हिंदुओं का एक पावन त्योहार है। यह प्रतिवर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। इससे पहले लोग अपने घरों को साफ-सुथरा करते हैं। वे घरों को सुंदर बनाने के लिए घरों की लिपाई-पुताई करते हैं और उन्हें सजाते हैं। इस अवसर पर लोग मिठाइयाँ बाँटते हैं और खाते हैं। सायंकाल को दीपक जलाए जाते हैं। इस दिन सभी लोग सजते-सँवरते हैं। घर में सभी जगह पर दीपक जलाए जाते हैं। माँ अपने शिशु के घरौंदे में भी दीपक जलाती है। कवि ने एक ही रुबाई में दीवाली की सभी परंपराओं का वर्णन करके गागर में सागर भर दिया है।

प्रश्न 3.
रुबाई के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि वात्सल्य और बाल-हठ का गहरा संबंध है।
उत्तर:
माता-पिता का संतान के प्रति गहरा स्नेह होता है। वे बालक की प्रत्येक इच्छा को पूरा करने का प्रयास करते हैं। कभी-कभी बालक इस स्नेह का अनुचित लाभ उठाने का प्रयास करता है और वह अनुचित वस्तु के लिए हठ कर बैठता है। प्रेम के वशीभूत होकर माता-पिता उसकी इच्छा पूरी करने का प्रयास करते हैं। मान लो बालक गुब्बारा, आइसक्रीम, खिलौना आदि की जिद करता है तो उसकी इच्छा पूरी कर दी जाती है। परंतु यदि बालक चाँद की माँग करे तो उसे कैसे पूरा किया जा सकता है। फिर भी माता-पिता बालक को खुश करने के लिए कोई-न-कोई उपाय निकाल लेते हैं। जैसे किसी थाली में पानी भरकर या कोई दर्पण में चाँद का प्रतिबिंब दिखाकर उसकी जिद को पूरा करने का प्रयास करते हैं। बच्चा केवल माता-पिता के वात्सल्य के कारण ही इस प्रकार की जिद करता है। वह किसी अन्य से जिद करके कुछ नहीं माँगता। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि वात्सल्य और बालहठ का गहरा संबंध है।

प्रश्न 4.
सिद्ध कीजिए कि फ़िराक की गज़ल वियोग श्रृंगार से संबंधित है।
उत्तर:
प्रस्तुत गज़ल में फ़िराक ने अपने वियोग श्रृंगार का सुंदर वर्णन किया है। कवि स्वयं की किस्मत को खराब मानता है क्योंकि उसे प्रिया का प्रेम नहीं मिल सका। प्रेम के कारण ही विवेकशील कवि को भी दीवाना बनना पड़ता है। वह प्रिया की याद में रोता है और आँखों से आँसू बहाता है। इस गज़ल में कवि की विरह-वेदना व्यक्त हुई है। कवि शराब की महफिल में बैठकर भी अपनी प्रेमिका को याद करता है। एक स्थल पर कवि कहता भी है
तेरे गम का पासे-अदब है कुछ दुनिया का खयाल भी है
सबसे छिपा के दर्द के मारे चुपके-चुपके रो ले हैं

प्रश्न 5.
कवि की गज़ल में प्रेम की दीवानगी व्यक्त हुई है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
फ़िराक की प्रस्तुत गज़ल में प्रेम की मस्ती और दीवानगी देखी जा सकती है। कवि प्रेम में इतना दीवाना हो चुका है कि वह सूनी रात में भी अपनी प्रिया को याद करता है।
तारे आँखें झपकावें हैं ज़र्रा-ज़र्रा सोये हैं
तुम भी सुनो हो यारो! शब में सन्नाटे कुछ बोले हैं
दीवानगी के कारण कवि को रात का सन्नाटा बोलता हुआ-सा लगता है। कवि स्वीकार करता है कि उसने सोच-समझकर प्रेम की दीवानगी को अपनाया है।
ये कीमत भी अदा करे हैं हम बदुरुस्ती-ए-होशो-हवास
तेरा सौदा करने वाले दीवाना भी हो ले हैं।
आरोह (भाग 2) फिराख गोरखपुरी

प्रश्न 6.
फ़िराक की गज़ल में प्रेम और मस्ती का वर्णन हुआ है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
फ़िराक की गज़ल प्रेम और मस्ती की गज़ल है। उनका प्रेम दीवानगी तक पहुँच जाता है। कवि सूनी रातों में अपनी प्रिया को याद करके समय व्यतीत करता है। कवि को लगता है कि रात में प्रकृति का कण-कण सो रहा है। तारे भी आँखें झपका रहे हैं, परंतु कवि कहता है कि सन्नाटा कुछ-कुछ बोलता हुआ लगता है। कवि दीवानगी के कारण ही यह समझता है कि सन्नाटा बोल रहा है, परंतु कवि स्वीकार करता है कि उसने सोच-समझकर ही प्रेम की दीवानगी को स्वीकार किया है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 9 रुबाइयाँ, गज़ल

प्रश्न 7.
‘गजल’ में निहित कवि की पीड़ा का चित्रण कीजिए।
उत्तर:
फिराक की गज़ल में प्रेम के वियोग की पीड़ा की अनुभूति सहज ही अनुभव की जा सकती है। वियोग की पीड़ा में कवि अपनी प्रेमिका की याद में रोता है और व्याकल हो उठता है अर्थात तडपता है। उसकी आँखों से आँस छलकते रहते हैं। इस गजल में कवि की यही पीड़ा व्यक्त हुई है। उदाहरणार्थ यह शेर देखिए तेरे गम का पासे-अदब है कुछ दुनिया का ख्याल भी है। सबसे छिपा के दर्द के मारे चुपके-चुपके रो लेते हैं।

प्रश्न 8.
‘गजल’ की मूल चेतना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
कवि फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित गज़ल की मूल चेतना कवि के हृदय की पीड़ा को शब्दों में ढालना है। प्रस्तुत गज़ल में कवि स्वयं की किस्मत को खराब बताता है क्योंकि उसे प्रेम के बदले प्रेम नहीं मिला। इसीलिए वह हर समय प्रिया की याद में चुपके-चुपके आँसू बहाता है-“सबसे छिपा के दर्द के मारे चुपके-चुपके रो ले हैं।” गज़ल में बताया गया है कि कवि प्रेम में इतना दीवाना हो चुका है कि रात के सन्नाटे में भी उसे प्रिया के ही शब्द सुनाई पड़ते हैं। अतः स्पष्ट है कि गज़ल की मूल चेतना कवि के प्रेम व विरह चेतना को उजागर करना है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. ‘रुबाइयाँ’ के रचयिता का क्या नाम है?
(A) उमाशंकर जोशी
(B) फ़िराक गोरखपुरी
(C) हरिवंशराय बच्चन
(D) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
उत्तर:
(B) फ़िराक गोरखपुरी

2. फिराक गोरखपुरी का मूल नाम क्या है?
(A) रघुपति सहाय
(B) रघुपति लाल
(C) रघुपति गुप्ता
(D) रघुपति राम
उत्तर:
(A) रघुपति सहाय

3. फिराक गोरखपुरी का जन्म कब हुआ?
(A) 28 अगस्त, 1896 में
(B) 28 अगस्त, 1897 में
(C) 28 अगस्त, 1898 में
(D) 28 अगस्त, 1899 में
उत्तर:
(A) 28 अगस्त, 1896 में

4. फिराक गोरखपुरी किस पद के लिए चुने गए थे?
(A) तहसीलदार
(B) पुलिस अधीक्षक
(C) डिप्टी कलेक्टर
(D) मुख्य सचिव
उत्तर:
(C) डिप्टी कलेक्टर

5. फिराक गोरखपुरी किस वर्ष डिप्टी कलेक्टर के पद के लिए चुने गए थे?
(A) सन् 1916 में
(B) सन् 1917 में
(C) सन् 1915 में
(D) सन् 1921 में
उत्तर:
(B) सन् 1917 में

6. फ़िराक गोरखपुरी ने डिप्टी कलेक्टर के पद से त्याग-पत्र क्यों दे दिया?
(A) बीमार होने के कारण
(B) पारिवारिक समस्या के कारण
(C) स्वराज आंदोलन के लिए
(D) शिक्षक बनने के लिए
उत्तर:
(C) स्वराज आंदोलन के लिए

7. फिराक गोरखपुरी ने किस वर्ष डिप्टी कलेक्टर के पद से त्याग-पत्र दिया?
(A) सन् 1918 में
(B) सन् 1917 में
(C) सन् 1919 में
(D) सन् 1920 में
उत्तर:
(A) सन् 1918 में

8. फिराक गोरखपुरी को जेल क्यों जाना पड़ा?
(A) चोरी करने के कारण
(B) लड़ाई करने के कारण
(C) स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने के कारण
(D) सरकार की आज्ञा न मानने के कारण
उत्तर:
(C) स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने के कारण

9. फिराक गोरखपुरी को कितने साल की जेल हुई?
(A) 1 वर्ष की
(B) 2 वर्ष की
(C) 1 वर्ष की
(D) 3 वर्ष की
उत्तर:
(C) 19 वर्ष की

10. फ़िराक गोरखपुरी को जेल कब जाना पड़ा?
(A) सन् 1920 में
(B) सन् 1921 में
(C) सन् 1922 में
(D) सन् 1923 में
उत्तर:
(A) सन् 1920 में

11. फिराक गोरखपुरी किस विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में अध्यापक नियुक्त हुए?
(A) मुंबई विश्वविद्यालय
(B) लखनऊ विश्वविद्यालय
(C) मेरठ विश्वविद्यालय
(D) इलाहाबाद विश्वविद्यालय
उत्तर:
(D) इलाहाबाद विश्वविद्यालय

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12. फिराक गोरखपुरी का निधन कब हुआ?
(A) सन् 1983 में
(B) सन् 1982 में
(C) सन् 1981 में
(D) सन् 1984 में
उत्तर:
(A) सन् 1983 में

13. फिराक गोरखपुरी को किस रचना के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिला?
(A) गुले-नग्मा के लिए
(B) बज्मे जिंदगी के लिए
(C) रंगे-शायरी के लिए
(D) उर्दू गज़लगोई के लिए
उत्तर:
(A) गुले-नग्मा के लिए

14. साहित्य अकादेमी पुरस्कार तथा सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड के अतिरिक्त फ़िराक गोरखपुरी को कौन-सा पुरस्कार मिला?
(A) शिखर सम्मान
(B) कबीर पुरस्कार
(C) प्रेमचंद पुरस्कार
(D) ज्ञानपीठ पुरस्कार
उत्तर:
(D) ज्ञानपीठ पुरस्कार

15. ‘बज्मे जिंदगी’ के रचयिता का नाम क्या है?
(A) उमा शंकर जोशी
(B) विष्णु खरे
(C) फ़िराक गोरखपुरी
(D) धर्मवीर भारती
उत्तर:
(C) फ़िराक गोरखपुरी

16. ‘रंगे-शायरी’ के रचयिता का क्या नाम है?
(A) फ़िराक गोरखपुरी
(B) रजिया सज्जाद जहीर
(C) उमा शंकर जोशी
(D) विष्णु खरे
उत्तर:
(A) फ़िराक गोरखपुरी

17. फिराक गोरखपुरी ने किस भाषा में काव्य रचना की है?
(A) हिंदी भाषा में
(B) उर्दू भाषा में
(C) गुजराती भाषा में
(D) बांग्ला भाषा में
उत्तर:
(B) उर्दू भाषा में

18. पाठ्यपुस्तक में संकलित फिराक की रुबाइयों में मुख्य भाव कौन-सा है?
(A) वात्सल्य भाव
(B) भक्ति भाव
(C) सख्य भाव
(D) माधुर्य भाव
उत्तर:
(A) वात्सल्य भाव

19. रुबाइयों में फिराक ने किस भाषा का प्रयोग किया है?
(A) फारसी भाषा का
(B) हिंदी भाषा का
(C) उर्दू भाषा का
(D) हिंदी-उर्दू भाषा का
उत्तर:
(C) उर्दू भाषा का

20. प्रस्तुत गज़ल में रात में कौन बोल रहे हैं?
(A) पक्षी।
(B) सन्नाटे
(C) उल्लू
(D) भूत
उत्तर:
(B) सन्नाटे

21. रुबाइयों में फिराक ने किस शैली का प्रयोग किया है?
(A) विचारात्मक शैली
(B) वर्णनात्मक शैली
(C) संबोधनात्मक शैली
(D) नाटकीय शैली
उत्तर:
(B) वर्णनात्मक शैली

22. राखी के लच्छे किस तरह चमक रहे हैं?
(A) सूरज
(B) चाँद
(C) बिजली
(D) दर्पण
उत्तर:
(C) बिजली

23. रात के सन्नाटे क्या कर रहे हैं?
(A) खामोश हैं
(B) जाग रहे हैं
(C) पसरे हैं
(D) कुछ बोल रहे हैं
उत्तर:
(D) कुछ बोल रहे हैं

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24. प्रस्तुत गज़ल के अनुसार आँखें कौन झपका रहे हैं?
(A) बच्चे
(B) पक्षी
(C) सूर्य-चन्द्रमा
(D) तारे
उत्तर:
(D) तारे

25. ‘गजल’ के रचयिता का क्या नाम है?
(A) उमाशंकर जोशी
(B) रज़िया सज्जाद फरीद
(C) फ़िराक गोरखपुरी
(D) विष्णु खरे
उत्तर:
(C) फ़िराक गोरखपुरी

26. ‘गोदी का चाँद’ से क्या अभिप्राय है?
(A) आकाश का चाँद
(B) सुंदर लड़का
(C) संतान
(D) सुंदर लड़की
उत्तर:
(C) संतान

27. ‘गजल’ कविता में कवि अपनी गज़लों को किनके प्रति समर्पित करता है?
(A) गुलाम अली
(B) मजरूह सुल्तानपुरी
(C) भीर
(D) मिर्जा गालिब
उत्तर:
(C) मीर

28. फ़िराक गोरखपुरी द्वारा रचित रुबाइयों में किस रस का परिपाक हुआ है?
(A) श्रृंगार रस
(B) वीर रस
(C) हास्य रस
(D) वात्सल्य रस
उत्तर:
(D) वात्सल्य रस

29. ‘फितरत का कायम है तवाजुन’-यहाँ ‘तवाजुन’ का अर्थ है-
(A) तराजू
(B) राज्य
(C) संतुलन
(D) स्थिरता
उत्तर:
(C) संतुलन

30. ‘गजल’ किस साहित्य में अधिक प्रसिद्ध है?
(A) उर्दू में
(B) लैटिन में
(B) ग्रीक में
(D) संस्कृत में
उत्तर:
(A) उर्दू में

31. ‘रात गए गर्दू पै फरिश्ते’ यहाँ ‘गर्दू’ का अर्थ है
(A) धरती
(B) आकाश
(C) इन्द्र
(D) भगवान
उत्तर:
(B) आकाश

32. कवि किस प्रकार अपना दुख कम करता है?
(A) अकेले में हँसकर
(B) अपने-आप में बात करके
(C) अकेले में रोकर
(D) कविता रचकर
उत्तर:
(C) अकेले में रोकर

33. फिराक गोरखपुरी की गज़लों में किसकी गज़लें बोलती जान पड़ती हैं?
(A) राही मासूमरज़ा की
(B) नजीर अकबराबादी की
(C) मीर की
(D) इल्तान हुसैन हाली की
उत्तर:
(C) मीर की

34. ‘फितरत’ शब्द का क्या अर्थ है?
(A) आकर्षण
(B) विकर्षण
(C) आदत
(D) सलामत
उत्तर:
(C) आदत

35. ‘तारे आँखें झपकावें हैं ज़र्रा-जर्रा सोये है’ यहाँ ‘जर्रा-जर्रा’ का अर्थ है-
(A) ज़रा-ज़रा
(B) ज़रा-सा
(C) क्षण-क्षण
(D) कण-कण
उत्तर:
(D) कण-कण

36. ‘सदके फिराक एजाजे-सुखन के कैसे उड़ा ली ये आवाज़’-पंक्ति में भाषा कौन-सी है?
(A) उर्दू-फ़ारसी
(B) ब्रजभाषा
(C) तत्सम प्रधान
(D) तद्भव प्रधान
उत्तर:
(A) उर्दू-फारसी

रुबाइयाँ पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों पे झुलाती है उसे गोद-भरी
रह-रह के हवा में जो लोका देती है
गूंज
उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी [पृष्ठ-58]

शब्दार्थ-चाँद का टुकड़ा = बहुत प्रिय बेटा। गोद-भरी = गोद में लेकर। लोका देती = उछाल-उछाल कर बच्चे के प्रति अपना स्नेह प्रकट करती।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘रुबाइयाँ’ में से अवतरित है। इसके शायर फ़िराक गोरखपुरी हैं। प्रस्तुत रुबाई में कवि ने एक माँ द्वारा अपने बच्चे को झुलाने तथा उसे ऊपर हवा में उछालने का सजीव वर्णन किया है।

व्याख्या-शायर कहता है कि एक माँ अपने प्रिय बेटे को गोद में लिए हुए घर के आँगन में खड़ी है। कभी वह उसे गोद में लेती है और कभी उसे अपने हाथों पर सुलाती है। वह बार-बार हवा में अपने शिशु को उछाल कर बड़ी प्रसन्न होती है। शिशु भी माँ के हाथों से झूले खाकर खिलखिलाता हुआ हँसने लगता है। भाव यह है कि शिशु अपनी माँ का प्यार पाकर प्रसन्न हो उठता है।

विशेष-

  1. प्रस्तुत पद्यांश में शायर ने एक माँ के पुत्र-प्रेम का स्वाभाविक वर्णन किया है जो उसे अपने हाथों से झुलाती है और पुनः हवा में उछालती है।
  2. पुनरुक्ति प्रकाश तथा स्वभावोक्ति अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग है।
  3. सहज एवं सरल साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है।
  4. शब्द-चयन सर्वथा उचित और सटीक है।
  5. ‘चाँद का टुकड़ा’ मुहावरे का सफल प्रयोग हुआ है।
  6. संपूर्ण पद्य में दृश्य तथा श्रव्य बिंबों का सुंदर प्रयोग हुआ है।
  7. प्रसाद गुण है तथा वात्सल्य रस की अभिव्यक्ति हुई है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ख) ‘चाँद के टुकड़े’ का प्रयोग किसके लिए और क्यों किया गया है?
(ग) इस पद में माँ द्वारा शिशु को खिलाने का दृश्य अंकित किया गया है। स्पष्ट करें।
(घ) बच्चा क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करता है?
(ङ) इस काव्यांश में किस रस का परिपाक हुआ है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
(क) कवि-फ़िराक गोरखपुरी कविता-रुबाइयाँ

(ख) यहाँ नन्हें शिशु के लिए ‘चाँद के टुकड़े मुहावरे का मनोरम प्रयोग किया गया है। इसका अर्थ है-प्यारा पुत्र। पुत्र माँ के लिए प्राणों से भी अधिक प्रिय है। इसीलिए अकसर माँ अपने पुत्र को चाँद का टुकड़ा कहती है।

(ग) माँ अपने शिशु को कभी तो गोद में लेकर झुलाती है तो कभी वह उसे हवा में बार-बार उछालती है। इस प्रकार माँ अपने नन्हें पुत्र के प्रति अपने वात्सल्य भाव को व्यक्त करती है।

(घ) बच्चा अपनी माँ की गोद में झूले लेकर प्रसन्न हो जाता है। वह झूले खाकर इतना खुश होता है कि खिलखिलाकर हँसने लगता है। उसके मुख से हँसी अपने आप फूट पड़ती है।

(ङ) इस पद में वात्सल्य रस की अभिव्यक्ति हुई है। माँ पुत्र को अपनी गोद में खिलाती है। उसे हवा में झुलाती है और नन्हा बेटा भी प्रसन्न होकर किलकारियाँ भरने लगता है। इन दृश्यों का संबंध वात्सल्य रस से है। अतः हम कह सकते हैं कि इस पद्यांश में कवि ने वात्सल्य रस का सही चित्रण किया है।

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[2] नहला के छलके छलके निर्मल जल से
उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके
किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को
जब घुटनियों में ले के है पिन्हाती कपड़े [पृष्ठ-58]

शब्दार्थ-छलके = ढुलक कर गिरना। निर्मल = स्वच्छ तथा पावन। गेसु = बाल। घुटनियाँ = घुटने। पिन्हाती = पहनाती।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘रुबाइयाँ’ में से अवतरित है। इसके शायर फिराक गोरखपुरी हैं। यहाँ कवि ने माँ और शिशु का सहज त

व्याख्या-सर्वप्रथम माँ ने अपने नन्हें पुत्र को स्वच्छ जल से छलका-छलका कर नहलाया। फिर उसने उसके उलझे हुए बालों में कंघी की। जब वह अपने घुटनों में अपने बच्चे को थाम कर उसे कपड़े पहनाती है तो वह शिशु बड़े प्यार से माँ के मुँह को देखता है। भाव यह है कि माँ अपने नन्हें पुत्र को स्वच्छ जल में नहलाकर उसे कंघी करती है। जब वह उसे कपड़े पहनाती है तो शिशु प्यार से माँ के मुँह को निहारता है।

विशेष-

  1. इस रुबाई में कवि ने माँ तथा उसके नन्हें बेटे की क्रियाओं का सहज तथा स्वाभाविक वर्णन किया है।
  2. अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश तथा स्वभावोक्ति अलंकारों का सफल प्रयोग हुआ है।
  3. संपूर्ण पद में दृश्य बिंबों का सफल प्रयोग किया गया है।
  4. प्रसाद गुण तथा वात्सल्य रस की अभिव्यक्ति हुई है।
  5. सहज, सरल तथा बोधगम्य हिंदी भाषा का प्रयोग है, जिसमें ‘गेसु’ जैसे उर्दू शब्द का भी मिश्रण है।
  6. शब्द-चयन सर्वथा उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक हैं।
  7. रुबाई छंद का सफल प्रयोग किया गया है।
  8. ‘घुटनियों’ तथा ‘पिन्हाती’ जैसे कोमल शब्दों के प्रयोग के कारण भाषा-सौंदर्य में निखार आ गया है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) बच्चे को नहलाने का दृश्य अपने शब्दों में लिखिए।
(ख) माँ बच्चे के बालों में किस प्रकार कंघी करती है?
(ग) बच्चा माँ को प्यार से क्यों देखता है?
(घ) माँ बेटे को किस प्रकार कपड़े पहनाती है?
उत्तर:
(क) माँ अपने बेटे को स्वच्छ जल में नहलाती है। पानी के छलकने के कारण उसका बेटा अत्यधिक प्रसन्न और उमंगित हो उठता है।
(ख) नहाने से शिशु के बाल उलझ जाते हैं। अतः माँ उसके उलझे हुए बालों में कंघी करती है।
(ग) माँ अपने नन्हें बेटे को अपने घुटनों में थामकर उसे कपड़े पहनाती है। उस समय शिशु के मन में माँ के प्रति प्यार उमड़ आता है और वह माँ को बड़े प्यार से निहारने लगता है।
(घ) माँ बेटे को कपड़े पहनाने से पहले उसे अपनी घुटनियों में थाम लेती है ताकि वह जमीन पर न गिरे। तत्पश्चात् वह उसे कपड़े पहनाती है।

[3] दीवाली की शाम घर पुते और सजे
चीनी के खिलौने जगमगाते लावे
वो रूपवती मुखड़े पै इक नर्म दमक
बच्चे के घरौंदे में जलाती है दिए [पृष्ठ-58]

शब्दार्थ-पुते = रंगे हुए। रूपवती = सुंदर। दमक = चमक। घरौंदा = बच्चों के द्वारा रेत पर बनाया गया घर। दिए = दीपक।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘रुबाइयाँ’ में से उद्धृत है। इसके शायर फ़िराक गोरखपुरी हैं। यहाँ कवि दीवाली के दृश्यों का सजीव वर्णन करता है।

व्याख्या दीपावली का सायंकाल है। सारा घर रंग-रोगन से पुता हुआ और सजा हुआ है। माँ अपने शिशु को प्रसन्न करने के लिए चीनी-मिट्टी के जगमगाते हुए सुंदर खिलौने लेकर आती है। माँ के सुंदर मुख पर एक कोमल चमक है। वह अत्यधिक प्रसन्न दिखाई देती है। बच्चों द्वारा रेत के बनाए हुए घर में वह एक दीपक जला देती है ताकि बच्चा प्रसन्न हो उठे।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने दीवाली के अवसर पर माँ के द्वारा की गई क्रियाओं का मनोरम वर्णन किया है।
  2. माँ की ममता और कोमलता का स्वाभाविक चित्रण है।
  3. प्रस्तुत पद्यांश में दृश्य बिंब की सुंदर योजना की गई है।
  4. पूरी रुबाई में ‘ए’ की मात्रा की आवृत्ति होने से सौंदर्य में वृद्धि हुई है।
  5. सहज, सरल तथा सामान्य हिंदी भाषा का प्रयोग किया गया है।
  6. शब्द-चयन उचित और सटीक है।
  7. प्रसाद गुण है तथा वात्सल्य रस की अभिव्यक्ति हुई है।
  8. रुबाई छंद का प्रयोग है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) दीवाली के दिन घर को कैसे सजाया गया है? (ख) दीवाली के दिन माँ अपने शिशु के लिए क्या लेकर आई?
(ग) बच्चों के लिए दिए जलाते समय माँ का चेहरा कैसा दिखाई देता है? (घ) माँ बच्चे के घरौंदे में दीपक क्यों जलाती है?
उत्तर:
(क) दीवाली के दिन सारे घर को साफ-सुथरा करके उसमें रंग-रोगन किया गया है और उसे अच्छे ढंग से सजाया गया है ताकि सारा घर सुंदर और आकर्षक लगे।

(ख) दीवाली के दिन माँ अपने बच्चे के लिए चीनी-मिट्टी के खिलौने लेकर आती है। वे खिलौने बड़े सुंदर और जगमगाते हैं और बच्चे के मन को आकर्षित करते हैं।

(ग) बच्चों के घरौंदे में दिए जलाते समय माँ के चेहरे पर कोमलता और चमक आ जाती है। इस चमक का कारण माँ के हृदय का वात्सल्य भाव है।

(घ) माँ अपने नन्हें पुत्र को प्रसन्न करने के लिए एक घरौंदा बनाती है जिसमें खिलौने सजे हुए हैं। दीवाली की शाम को वह उस घरौंदे में दिए जलाती हैं ताकि उसका नन्हा बेटा अपने घरौंदे को देखकर प्रसन्न हो जाए।

[4] आँगन में ठुनक रहा है ज़िदयाया है
बालक तो हई चाँद पै ललचाया है
दर्पण उसे दे के कह रही है माँ
देख आईने में चाँद उतर आया है। [पृष्ठ-58]

शब्दार्थ-ठुनक = ठुनकना, मचलना, झूठ-मूठ का रोना। जिदयाया = जिद के कारण मचलता हआ। हई = है ही। दर्पण = शीशा। आईना = शीशा।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘रुबाइयाँ’ में से उद्धृत है। इसके शायर फ़िराक गोरखपुरी हैं। इस पद में कवि ने शिशु के मचलने तथा उसकी जिद का बड़ा स्वाभाविक वर्णन किया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि देखो यह शिशु आँगन में झूठ-मूठ में रो रहा है और मचल रहा है। वह जिद्द किए बैठा है क्योंकि वह बालक ही तो है। वह माँ से चाँद लेने की जिद्द कर रहा है अर्थात् वह चाहता है कि आकाश में चमकता हुआ चाँद वह अपने हाथों में ले ले। माँ अपने नन्हें बेटे के हाथ में दर्पण देकर उसे कहती है कि देखो चाँद इस शीशे में उतर कर आ गया है। तुम इस दर्पण को अपने हाथों में ले लो। अब तुम इससे खेल सकते हो। क्योंकि यह चाँद तुम्हारा हो गया है।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने बच्चे की जिद तथा उसके मचलने का स्वाभाविक वर्णन किया है।
  2. संपूर्ण पद में स्वभावोक्ति अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है।
  3. इस पद का वर्णन गतिशील होने के साथ-साथ चित्रात्मक भी है।
  4. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है जिसमें उर्दू के शब्दों का सुंदर मिश्रण किया गया है।
  5. रुबाई में कोमलता लाने के लिए ‘ज़िदयाया’, ‘हई’ शब्दों का सुंदर प्रयोग किया गया है।
  6. प्रसाद गुण है तथा वात्सल्य रस का परिपाक हुआ है।
  7. रुबाई छंद का प्रयोग है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) बालक के ठुनकने तथा जिद करने का वर्णन कीजिए।
(ख) कवि ने बाल मनोविज्ञान का किस प्रकार उद्घाटन किया है?
(ग) माँ चाँद को कैसे दर्पण में उतारकर अपने नन्हें बेटे को दिखाती है?
उत्तर:
(क) बच्चा आकाश में चमकते हुए सुंदर चाँद को देखकर प्रसन्न हो जाता है। वह माँ के सामने जिद्द कर बैठता है कि उसे खेलने के लिए यही चाँद चाहिए। जब उसकी इच्छा पूरी नहीं होती तो वह मचल उठता है और जिद्द करने लगता है।

(ख) बाल मनोविज्ञान का उद्घाटन करने के लिए कवि ने ‘बालक तो हई’ शब्दों का प्रयोग किया है। जिसका अर्थ है कि बालक स्वभाव से जिद्दी तथा चंचल होते हैं। वे जिस पर रीझ जाते हैं, उसे पाने की जिद्द करते हैं। चाँद को देखकर बच्चा उस पर रीझ गया और उसे पाने की जिद्द करने लगा।

(ग) माँ अपने हाथ में एक दर्पण ले लेती है और उसमें चाँद का प्रतिबिंब उतार लेती है। तब वह उसे अपने बेटे को दिखाकर उसे प्रसन्न करती है।

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[5] रक्षाबंधन की सुबह रस की पुतली
छायी है घटा गगन की हलकी-हलकी
बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे
भाई के है बाँधती चमकती राखी [पृष्ठ-58]

शब्दार्थ-रस की पुतली = मीठी-मीठी बातें करने वाली बेटी। घटा = जल से भरे हुए काले बादलों का समूह। गगन = आकाश। लच्छे = तारों से बना हुआ गहना जो हाथों या पैरों में पहना जाता है।
आरोह (भाग 2) फिराख गोरखपुरी]

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘रुबाइयाँ’ में से उद्धृत है। इसके शायर फिराक गोरखपुरी हैं। इस पद्य में कवि ने रक्षाबंधन त्योहार की गतिविधियों का स्वाभाविक वर्णन किया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि आज रक्षाबंधन का त्योहार है। आकाश में काले-काले बादलों की हल्की घटाएँ छाई हुई हैं। मीठी-मीठी बातें करने वाली नन्हीं बालिका उमंग और खुशी से भरपूर है। उसके हाथों में राखी रूपी लच्छे बिजली के समान चमक रहे हैं। वह प्रसन्न होकर अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती है और प्रसन्न होती है।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने राखियों के रेशमी लच्छों की तुलना बिजली से की है।
  2. पुनरुक्ति प्रकाश तथा उपमा अलंकारों का सुंदर प्रयोग हुआ है।
  3. नन्हीं बालिका के लिए ‘रस की पुतली’ अत्यधिक सार्थक शब्द है।
  4. संपूर्ण पद में दृश्य-बिंब की सुंदर योजना हुई है।
  5. सहज, सरल तथा प्रवाहमयी हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  6. शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  7. रुबाई छंद का प्रयोग किया गया है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) ‘रस की पुतली’ किसे और क्यों कहा गया है?
(ख) राखी के दिन मौसम किस प्रकार का है?
(ग) ‘बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे का क्या आशय है?
(घ) राखी बाँधते समय नन्हीं बालिका की दशा कैसी है?
उत्तर:
(क) राखी बाँधने वाली बहन अर्थात् नन्हीं बालिका को ‘रस की पुतली’ कहा गया है। कारण यह है कि वह मीठी-मीठी बातें करती है और उसके मन में भाई के लिए अपार स्नेह है।
(ख) राखी का दिन है और आकाश में हल्के-हल्के बादलों की घटाएँ छाई हुई हैं। ऐसा लगता है कि हल्की-हल्की वर्षा होगी।
(ग) इसका आशय यह है कि बहन बिजली की तरह चमकते हुए लच्छों वाली राखी अपने भाई की कलाई पर बाँधती है।
(घ) राखी बाँधते समय बहन अत्यधिक प्रसन्न है। उसकी प्रसन्नता उसके द्वारा लाई गई चमकीली राखी से झलक रही है।

गज़ल पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] नौरस गुंचे पंखड़ियों की नाजुक गिरहें खोले हैं
या उड़ जाने को रंगो-बू गुलशन में पर तोले हैं। [पृष्ठ-59]

शब्दार्थ-नौरस = नया रस। गुंचे = कली। नाजुक = कोमल। गिरहें = गांठें। रंगो-बू = रंग और गंध । गुलशन = बाग। पर तोलना = पंख फैलाकर उड़ना।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित ‘गजल’ में से उद्धृत है। इसके कवि फ़िराक गोरखपुरी हैं। यहाँ कवि ने प्रकृति के सौंदर्य का आकर्षक वर्णन किया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि नवीन रस से भरी हुई कलियों की कोमल पंखुड़ियाँ अपनी गाँठों को खोल रही हैं अर्थात् कलियाँ खिलकर फूल बन रही हैं। उनमें से जो सुगंध उत्पन्न हो रही है, उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानों रंग और सुगंध दोनों आकाश में उड़ जाने के लिए अपने पंख फैला रहे हैं। भाव यह है कि कलियाँ खिलकर फूल बन रही हैं और चारों ओर उनकी मनोरम सुगंध फैल रही है।

विशेष-

  1. इस शेर में कवि ने प्रकृति के सौंदर्य का सजीव वर्णन किया है। यह शेर संयोग शृंगार की भूमिका के लिए लिखा गया है।
  2. इस शेर में संदेह अलंकार का प्रयोग तथा रस और सुगंध का मानवीकरण किया गया है।
  3. संपूर्ण शेर में उर्दू भाषा का सफल प्रयोग देखा जा सकता है। गुंचे, गिरहें, रंगों-बू, गुलशन आदि उर्दू के शब्द हैं।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ख) ‘नौरस’ विशेषण का क्या अभिप्राय है?
(ग) पंखुड़ियों की नाजुक गिरह खोलने का आशय क्या है?
(घ) इस शेर का मूल आशय क्या है?
उत्तर:
(क) कवि-फ़िराक गोरखपुरी कविता-गज़ल

(ख) ‘नौरस’ शब्द का प्रयोग नव रस के लिए किया गया है। इसका अर्थ है कि कलियों में नया रस भर आया है।

(ग) पंखुड़ियों की नाजुक गिरह खोलने का अर्थ है कि नन्हीं-नन्हीं कलियाँ धीरे-धीरे अपनी पंखुड़ियों को खोल रही हैं और उनमें से नव रस उत्पन्न होकर चारों ओर फैल रहा है।

(घ) इस शेर का आशय यह है कि कलियों की नन्हीं-नन्हीं पंखुड़ियाँ खिलने लगी हैं। उनमें से रंग और सुगंध निकलकर चारों ओर फैल रहे हैं जिससे आस-पास का वातावरण बड़ा मनोरम और आकर्षक बन गया है।

[2] तारे आँखें झपकावें हैं ज़र्रा-ज़र्रा सोये हैं
तुम भी सुनो हो यारो! शब में सन्नाटे कुछ बोले हैं [पृष्ठ-59]

शब्दार्थ-झपकावें = झपकना। ज़र्रा-ज़र्रा = कण-कण। शब = रात। सन्नाटा = मौन।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘गज़ल’ में से उद्धृत है। इसके कवि फिराक गोरखपुरी हैं। इस शेर में कवि ने प्रकृति के उद्दीपन रूप का वर्णन किया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि रात ढल रही है। तारे भी आँखें झपकाकर मानों सोना चाहते हैं। प्रकृति का कण-कण सोया हुआ है। ऐसा लगता है कि मानों रात सो रही है। यह चुप्पी मुझे मेरे प्रिय की याद दिलाती है। हे मेरे मित्रो! तुम भी तनिक सुनो। रात का यह सन्नाटा मेरे साथ कुछ बोल रहा है। भाव यह है कि रात का मौन केवल उसी के साथ वार्तालाप करता है जिसके दिल में प्रेम की पीड़ा होती है।

विशेष-

  1. इस शेर में कवि ने प्रकृति का उद्दीपन रूप में चित्रण करते हुए अपनी प्रेम-भावना को व्यक्त किया है।
  2. संपूर्ण शेर में प्रकृति का मानवीकरण किया गया है।
  3. सन्नाटा कुछ बोलता हुआ-सा प्रतीत होता है, अतः सन्नाटे का भी मानवीकरण किया गया है।
  4. ‘ज़र्रा-ज़र्रा’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग है।
  5. इस शेर का भाव और भाषा दोनों उर्दू भाषा से प्रभावित हैं।
  6. शब्द-चयन उचित और सटीक है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) ‘तारे आँखें झपकावें हैं’ का आशय स्पष्ट करें।
(ख) शब में सन्नाटा कैसे बोलता है?
(ग) कवि किस दृश्य का वर्णन करना चाहता है?
उत्तर:
(क) ‘तारे आँखें झपकावें हैं’ का आशय है-तारों का टिमटिमाना। अब रात ढलने जा रही है। लगता है कि तारे आँखें झपकाकर सोना चाहते हों। वे धीरे-धीरे बुझते जा रहे हैं।

(ख) रात के समय चारों ओर मौन और चुप्पी छाई हुई है। ऐसे में कवि को लगता है कि मानों सन्नाटा बोल रहा है। कवि को चुप्पी और मौन में से भी हल्की-हल्की आवाज़ सुनाई देती है। क्योंकि उस समय सन्नाटे के अतिरिक्त और कोई आवाज़ नहीं होती।

(ग) इस शेर में कवि रात्रिकालीन चुप्पी और मौन के दृश्य का चित्रण करना चाहता है और इस संबंध में कवि को पूर्ण सफलता भी मिली है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 9 रुबाइयाँ, गज़ल

[3] हम हों या किस्मत हो हमारी दोनों को इक ही काम मिला
किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रो ले हैं।
जो मुझको बदनाम करे हैं काश वे इतना सोच सकें
मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं। [पृष्ठ-59]

शब्दार्थ-किस्मत = भाग्य। इक = एक। लेवे = लेती है। बदनाम = निंदा फैलाना। परदा = राज।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठयपस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘गजल’ में से उदधत है। इसके कवि फिराक गोरखपुरी हैं। पहले शेर में कवि ने अपनी हृदयगत वेदना का वर्णन किया है और दूसरे शेर में कवि निंदकों को अपनी सीमा में रहने का संदेश देता है।

व्याख्या – कवि अपने भाग्य को और स्वयं को कोसता है। वह स्वीकार करता है कि वह स्वयं तथा उसका भाग्य अलग नहीं हैं, बल्कि एक जैसे हैं। दोनों एक ही काम करते हैं। कवि का मन अत्यधिक दुखी है। इसलिए वह कहता है कि भाग्य मुझ पर रोता है और मैं अपने भाग्य पर रोता हूँ। भाव यह है कि कवि घोर निराशा का शिकार बना हुआ है और वह स्वयं को कोसता है।

अगले शेर में कवि उन लोगों से अत्यधिक दुखी है जो उसे बदनाम करने का षड्यंत्र रचते रहते हैं। कवि कहता है कि काश वे निंदक ये सोच पाते कि वे मेरा पर्दाफाश कर रहे हैं, राज खोल रहे हैं या अपना राज खोल रहे हैं। भाव यह है कि निंदकों को इस बात का एहसास नहीं होता कि वे दूसरों की निंदा करके अपनी कमज़ोरी को प्रकट करते हैं। वे इस सच्चाई को नहीं जानते कि निंदा करने वालों को संसार बुरा ही कहता है। जिसकी वे निंदा करते हैं उसे लोग अच्छी प्रकार से जानते हैं। यदि हम किसी की निंदा करते हैं तो हमारी अपनी बुराई प्रकट हो जाती है।

विशेष-

  1. पहले शेर में कवि अपने भाग्य को कोसता हुआ प्रतीत होता है और दूसरे शेर में कवि निंदकों पर ज़ोरदार प्रहार करता है।
  2. पहले शेर में किस्मत का मानवीकरण किया गया है।
  3. इन शेरों में कवि ने उर्दू भाषा का सफल प्रयोग किया है। किस्मत, बदनाम, परदा आदि उर्दू के शब्द हैं।
  4. अभिव्यक्ति की दृष्टि से सभी शेर सरल और हृदयग्राही हैं।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि और उसकी किस्मत में क्या समानता है?
(ख) कवि को कौन बदनाम करते होंगे?
(ग) ‘मेरा परदा खोले है’ का आशय क्या है?
(घ) निंदा करने वाले क्या नहीं सोच पाते?
उत्तर:
(क) कवि और उसकी किस्मत में यह समानता है कि दोनों निराशा के शिकार हैं। यही कारण है कि किस्मत कवि को रोती है और कवि किस्मत को रोता है।

(ख) कवि के वे मित्र तथा संबंधी उसे बदनाम करते हैं जो उससे ईर्ष्या रखते हैं।

(ग) ‘मेरा परदा खोले है’ का आशय है कि कवि के विरोधी उसकी बदनामी करते हैं। वे कवि के दोषों का पर्दाफाश करना चाहते हैं। इस प्रकार के लोग निंदक हैं और वे कवि की निंदा करके उसे अपयश देना चाहते हैं।

(घ) निंदा करने वाले यह नहीं सोच पाते कि कवि के दोष निकालकर उसकी बदनामी करके वे अपनी बुराई को लोगों के सामने ला रहे हैं। ऐसा करने से कवि को कोई हानि नहीं होती, क्योंकि लोग निंदकों को अच्छी प्रकार से जानते हैं।

[4] ये कीमत भी अदा करे हैं हम बदुरुस्ती-ए-होशो-हवास
तेरा सौदा करने वाले दीवाना भी हो ले हैं
तेरे गम का पासे-अदब है कुछ दुनिया का खयाल भी है
सबसे छिपा के दर्द के मारे चुपके-चुपके रो ले हैं [पृष्ठ-59]

शब्दार्थ-कीमत = मूल्य। अदा करे = चुकाना। बदुरुस्ती = भली प्रकार। होशो-हवास = सचेत । सौदा = व्यापार। दीवाना = पागल। गम = दुख। अदब = मर्यादा। खयाल = विचार। दर्द = पीड़ा।।

प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘गजल’ में से अवतरित है। इसके कवि फिराक गोरखपुरी हैं। पहले शेर में कवि ने प्रेममय संपूर्ण समर्पण की बात कही है और दूसरे शेर में प्रेम और समाज के द्वंद्व पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या-कवि कहता है कि प्रिया मैं अपने होश-हवास में तुम्हारे प्रेम का मूल्य चुका रहा हूँ। जो व्यक्ति प्रेम में डूब जाता है और प्रेम का सौदा करता है वह पागल-सा हो जाता है। भाव यह है कि कवि भले ही प्रिया के प्रेम में दीवाना है, परंतु अभी तक उसने अपना विवेक नहीं खोया है।

कवि अपनी प्रिया से पुनः कहता है कि प्रिय! मेरे मन में तुम्हारे दुखों का पूरा ध्यान है। मैं हमेशा तुम्हारी चिंता करता हूँ। मुझे तुम्हारी फिक्र लगी रहती है, परंतु इसके साथ-साथ मुझे दुनियादारी की भी चिंता है। संसार यह नहीं चाहता है कि मैं तुम्हारे प्रेम में मग्न रहूँ। इसीलिए मैं सब लोगों से अपने दर्द को छिपा लेता हूँ और तुम्हारे प्रेम में मैं चुपचाप रोता रहता हूँ।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने अपने प्रेम की दीवानगी का संवेदनशील वर्णन किया है। दूसरे शेर में कवि प्रेम और समाज के संघर्ष पर प्रकाश डालता है।
  2. ‘चुपके-चुपके’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
  3. संपूर्ण पद में उर्दू भाषा का सहज और सरल प्रयोग किया गया है।
  4. शब्द-चयन सर्वथा उचित और भावानुकूल है।
  5. वियोग शृंगार का परिपाक हुआ है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि क्या कीमत चुकाता है?
(ख) कवि की मनोदशा पर प्रकाश डालिए।
(ग) कवि किस संघर्ष में उलझा हुआ है?
(घ) कवि छिपकर चुपके-चुपके क्यों रोता है?
उत्तर:
(क) कवि स्वयं को प्रिया के प्रेम पर न्योछावर कर देता है और वह दीवाना होकर प्रेम की कीमत चुकाता है।

(ख) कवि अपनी प्रिया के प्रेम में दीवाना है और उसने स्वयं को अपनी प्रिया पर पूर्णतया न्योछावर कर दिया है, परंतु वह पूरे होशो-हवास में रहते हुए अपने प्रेम की कीमत को चुका रहा है।

(ग) कवि संसार तथा प्रेम के संघर्ष में उलझा हुआ है। एक ओर कवि को सांसारिक दायित्व निभाने पड़ रहे हैं तो दूसरी ओर उसके मन में प्रेम की चाहत है। वह इन दोनों स्थितियों के बीच में झूल रहा है।

(घ) कवि संसार के सामने अपने प्रेम को प्रकट नहीं करना चाहता। यदि वह अपने प्रेम को प्रकट करेगा तो उसके अपने लोगों को ठेस लगेगी। इसलिए वह अपने मन में चुपके-चुपके रो लेता है और अपने-आप से अपना प्रेम प्रकट कर लेता है।

[5] फ़ितरत का कायम है तवाजुन आलमे-हुस्नो-इश्क में भी
उसको उतना ही पाते हैं खुद को जितना खो ले हैं
आबो-ताब अश्आर न पूछो तुम भी आँखें रक्खो हो
ये जगमग बैतों की दमक है या हम मोती रोले हैं [पृष्ठ-59]

शब्दार्थ-फ़ितरत = स्वभाव। कायम = बना हुआ। तवाजुन = संतुलन। आलमे हुस्नो-इश्क = प्रेम और सौंदर्य का संसार। आबो-ताब अश्आर = चमक-दमक के साथ। आँख रखना = देखने में समर्थ होना। बैत = शेर। दमक = चमक। मोती रोले = आँसू छलकना।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘गजल’ में से अवतरित है। इसके कवि फ़िराक गोरखपुरी हैं। यहाँ कवि प्रेम और सौंदर्य की चर्चा करता है तथा अपनी शायरी के सौंदर्य पर प्रकाश डालता है।

व्याख्या-प्रथम शेर में कवि कहता है कि सौंदर्य और प्रेम में मनुष्य की प्रवृत्ति अधिक महत्त्व रखती है। इस क्षेत्र में लेन-देन का संतुलन हमेशा बना रहता है। जो प्रेमी प्रेम में स्वयं को जितना अधिक समर्पित कर देता है, वह उतना ही अधिक प्रेम प्राप्त करता है। भाव यह है कि समर्पण से ही प्रेम की प्राप्ति होती है।

दूसरे शेर में कवि कहता है कि तुम मेरी शायरी की चमक-दमक और कलाकारी पर आसक्त न हो जाओ। मेरी कविता का सौंदर्य न तो बनावटी है और न ही सजावटी है। जो लोग मेरे शेरों को अच्छी प्रकार से जानते हैं उन्हें इस बात का पता है कि मेरे शेरों में जो सुंदरता है वह मेरी आँखों के आँसुओं से मिलती है। भाव यह है कि मैंने अपनी प्रिया के वियोग में जो आँसू बहाए हैं, उन्हीं के कारण मेरी कविता में चमक उत्पन्न हुई है।

विशेष –

  1. यहाँ कवि ने प्रेम तथा सौंदर्य के साथ-साथ अपने काव्य-सौंदर्य पर भी प्रकाश डाला है।
  2. कवि ने अपनी अनुभूति से प्रेरित होकर अपनी विरह-वेदना को व्यक्त किया है।
  3. यहाँ वियोग श्रृंगार की सुंदर अभिव्यक्ति हुई है।
  4. ‘मोती रोले’, ‘आँख रखना’ आदि मुहावरों का सफल प्रयोग हुआ है।
  5. पहले शेर में दुरूह भाषा का प्रयोग हुआ है परंतु दूसरे शेर की भाषा कुछ-कुछ सरल है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि किस फ़ितरत की बात करता है?
(ख) प्रेम को प्राप्त करने के कौन-से उपाय हैं?
(ग) ‘जगमग बैतों की दमक’ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
(घ) ‘या हम मोती रोले हैं’ का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर:
(क) यहाँ कवि मानव प्रकृति की बात करता है। साथ ही वह प्रकृति के मूल स्वभाव पर भी प्रकाश डालता है। प्रकृति का यह नियम है कि हमें कोई वस्तु प्राप्त करने के लिए उस वस्तु के बराबर की कीमत चुकानी पड़ती है।

(ख) प्रेम को पाने का केवल एक ही उपाय है। जो मनुष्य स्वयं को प्रेम में समर्पित कर देता है वही व्यक्ति प्रेम पा सकता है।

(ग) ‘जगमग बैतों की दमक’ का अर्थ है-कविता का आलंकारिक सौंदर्य अथवा कविता कहने का कलात्मक ढंग जिसके कारण कविता चमक उठती है और वह पाठक और श्रोता को मंत्र मुग्ध कर देती है।

(घ) “या हम मोती रोले हैं का आशय है कि मैंने अपनी कविता में विरह-वेदना के आँसू बहाए हैं। मेरी यह कविता मेरी अनुभूति पर आधारित है। अतः मैंने अपनी सच्ची विरह-वेदना प्रकट की है।

[6] ऐसे में तू याद आए है अंजुमने-मय में रिंदों को
रात गए गर्दू पै फ़रिश्ते बाबेगुनह जग खोले हैं
सदके फिराक एजाजे-सखन के कैसे उड़ा ली ये आवाज
इन गज़लों के परदों में तो ‘मीर’ की गज़लें बोले हैं [पृष्ठ-59]

शब्दार्थ-अंजुमने-मय = शराब की महफिल। रिंद = शराबी। गर्दू = आकाश। फ़रिश्ते = देवदूत। बाबे-गुनह = पाप का अध्याय। सदके = कुर्बान। एजाजे-सुखन = काव्य का सौंदर्य । परदों = शब्दों।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘गज़ल’ में से उद्धृत है। इसके कवि फ़िराक गोरखपुरी हैं। यहाँ कवि ने अपनी प्रेमिका की चर्चा करते हुए अपनी शायरी पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या-कवि कहता है कि जब रात को आकाश में देवता संसार के पापों का लेखा-जोखा कर रहे होते हैं और यह देखने का प्रयास करते हैं कि किस व्यक्ति ने कितने अधिक पाप किए हैं, उस समय हम शराब की महफिल में अपने गम को दूर करते हुए तुम्हें याद करते हैं। भाव यह है कि प्रेमी को अंधेरी रात में अपनी प्रिया की बहुत याद आती है। कभी-कभी वह अपनी विरह-वेदना को दूर करने के लिए शराब पीने लगता है।

दूसरे शेर में कवि कहता है कि अकसर लोग मेरी कविता पर आसक्त होकर मुझे कहते हैं कि हम तुम्हारी शायरी पर न्योछावर होते हैं। पता नहीं तुमने इतनी सुंदर और श्रेष्ठ शायरी कहाँ से सीख ली। तुम्हारी गजलों के शेरों में तो मीर की गज़लों की आवाज़ सुनाई देती है। भाव यह है कि तुम्हारी कविता मीर की कविता के समान सुघड़ और आकर्षक है।

विशेष-

  1. रात के समय प्रिय को अपनी प्रेमिका की अत्यधिक याद आती है।
  2. यहाँ कवि ने स्वयं अपनी शायरी की प्रशंसा की है। इस प्रकार की प्रवृत्ति संस्कृत तथा हिंदी के कवियों में दिखाई नहीं देती।
  3. प्रथम शेर में श्रृंगार रस का परिपाक हुआ है।
  4. संपर्ण पद में उर्द भाषा का सहज, स्पष्ट और प्रभावशाली प्रयोग हआ है।
  5. शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 9 रुबाइयाँ, गज़ल

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) प्रथम शेर में कवि ने किस प्रकार के वातावरण का प्रयोग किया है?
(ख) ‘तू’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है?
(ग) लोग फिराक की प्रशंसा किस प्रकार किया करते थे?
(घ) कवि ने स्वयं अपनी प्रशंसा किस प्रकार की है?
(ङ) ‘एजाजे-सुखन’ का क्या आशय है?
उत्तर:
(क) यहाँ कवि ने रात के सन्नाटे में शराबखाने का चित्रण किया है। प्रेमी शराब खाने में अपनी प्रेम-वेदना को दूर करने के लिए शराब पीता रहता है और अपनी प्रेमिका को याद करता रहता है।

(ख) यहाँ ‘तू’ शब्द का प्रयोग प्रेमिका के लिए किया गया है।

(ग) लोग फ़िराक की प्रशंसा करते हुए अकसर कहते थे कि उसकी शायरी उर्दू के प्रसिद्ध शायर मीर की मधुरता से घुल-मिल गई है।

(घ) कवि ने लोगों का हवाला देकर स्वयं के शेर में अपनी कविता की प्रशंसा की है। इसे हम आत्म-प्रशंसा का शेर कह सकते हैं। यह एक प्रकार से अपने मुँह मियाँ मिट्ठ बनने की बात है।

(ङ) “एजाज़े-सुखन’ का आशय है-काव्य का सौंदर्य अर्थात् कविता के भाव-पक्ष और कला-पक्ष का सौंदर्य । कविता की भाषा, छंद, अलंकार आदि ही उसके सौंदर्य का निर्माण करते हैं।

रुबाइयाँ, गज़ल Summary in Hindi

रुबाइयाँ, गज़ल कवि-परिचय

प्रश्न-
फिराक गोरखपुरी का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा फिराक गोरखपुरी का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-फिराक गोरखपुरी का मूल नाम रघुपति सहाय ‘फ़िराक’ है। उनका जन्म 28 अगस्त, सन् 1896 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में हुआ। वे एक अमीर परिवार से संबंधित थे। उर्दू कविता के प्रति उनके मन में छोटी आयु में ही रुझान था। बाल्यावस्था में ही उन्होंने उर्दू में कविता लिखनी आरंभ कर दी। वे साहिर, इकबाल, फैज़ तथा कैफी आज़मी से अत्यधिक प्रभावित हुए।

रामकृष्ण की कहानियों से आरंभ करने के बाद उन्होंने अरबी, फारसी और अंग्रेज़ी में शिक्षा ग्रहण की। पढ़ाई में वे बड़े ही योग्य विद्यार्थी थे। 1917 ई० में वे डिप्टी कलेक्टर के पद के लिए चुने गए, परंतु स्वराज्य आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्होंने 1918 में इस पद से त्यागपत्र दे दिया। 1920 ई० में स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने के कारण उनको डेढ़ वर्ष की जेल की यात्रा सहन करनी पड़ी। वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी के प्राध्यापक भी रहे। ‘गुले-नग्मा’ के लिए उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार प्राप्त हुआ। बाद में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार तथा सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड भी प्राप्त हुए। सन् 1983 में उनका निधन हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ–’गुले-नग्मा’, ‘बज़्मे ज़िंदगी’, ‘रंगे-शायरी’, ‘उर्दू गज़लगोई’।

3. काव्यगत विशेषताएँ-फिराक गोरखपुरी उर्दू के कवि के रूप में विख्यात हैं। प्रायः उर्दू साहित्य में रुमानियत, रहस्य और शास्त्रीयता देखी जा सकती है। उर्दू कवियों ने लोक जीवन तथा प्रकृति पर बहुत कम लिखा है परंतु नज़ीर अकबराबादी, इल्ताफ़ हुसैन, हाली जैसे कुछ कवियों ने इस परंपरा को तोड़ने का प्रयास किया। उनमें फ़िराक गोरखपुरी भी एक ऐसे शायर हैं। वे आजीवन धर्म-निरपेक्षता के पक्षधर रहे हैं। उनका कहना था कि उर्दू केवल मुसलमानों की ही भाषा नहीं है, बल्कि यह आम भारतवासियों की भाषा है। पं० जवाहरलाल नेहरू उनकी इस सोच से अत्यधिक प्रभावित हुए। उन्होंने फिराक को राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया। लगभग पचास वर्ष तक वे सांप्रदायिक सद्भाव के लिए काम करते रहे।

फ़िराक की कविता में कुछ स्थानों पर रुमानियत देखी जा सकती है। उन्होंने वियोग श्रृंगार के सुंदर चित्र अंकित किए हैं, परंतु उनका वियोग वर्णन व्यक्तिगत अनुभूति पर आधारित है। एक उदाहरण देखिए
तेरे गम का पासे-अदब है कुछ दुनिया का खयाल भी है
सबसे छिपा के दर्द के मारे चुपके-चुपके रो ले हैं।
भारतीय परंपरा और संस्कृति को भी उन्होंने अपनी शायरी में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया है। उन्होंने अपने जीवन में जो कुछ भोगा, उसे अपने काव्य में लिखा। अपनी कुछ रुबाइयों में फ़िराक साहब ने वात्सल्य का जो वर्णन किया है, वह बेमिसाल बन पड़ा है। लगता है कि कवि सूरदास और तुलसी से प्रभावित हुआ है। एक उदाहरण देखिए
आँगन में ठुनक रहा है ज़िदयाया
है बालक तो हई चाँद पै ललचाया है
दर्पण उसे दे के कह रही है माँ
देख आईने में चाँद उतर आया है
कहीं-कहीं कवि ने रक्षाबंधन, दीवाली जैसे, त्योहारों को भी अपनी कविता में स्थान दिया है। अन्यत्र कवि मजदूरों तथा शोषितों का भी पक्ष लेता हुआ दिखाई देता है। फिराक ने परंपरागत भाव-बोध और शब्द-भंडार का उपयोग करते हुए उसे नयी भाषा और नए विषयों से जोड़ा। उन्होंने सामाजिक दुख-दर्द, व्यक्तिगत अनुभूति को शायरी में ढाला है। इंसान के हाथों इंसान पर जो गुज़रती है उसकी तल्ख सच्चाई और आने वाले कल के प्रति एक उम्मीद, दोनों को भारतीय संस्कृति और लोकभाषा के प्रतीकों से जोड़कर फ़िराक ने अपनी शायरी का अनूठा महल खड़ा किया।

4. भाषा-शैली-उर्दू शायरी अपने लाक्षणिक प्रयोगों तथा चुस्त मुहावरेदारी के लिए प्रसिद्ध है। फ़िराक भी कोई अपवाद नहीं है। उन्होंने भी यत्र-तत्र न केवल मुहावरों का प्रयोग किया है, बल्कि लाक्षणिक प्रयोग भी किए हैं। उन्होंने साधारण-जन से अपनी बात कही है। यही कारण है कि उनकी शैली में प्रकृति, मौसम और भौतिक जगत के सौंदर्य का यथार्थ वर्णन हुआ है। जहाँ तक उर्दू भाषा का प्रश्न है, उन्होंने उर्दू के साथ-साथ फ़ारसी के शब्दों का भी सुंदर मिश्रण किया है। कही-कहीं वे हिंदी के साथ-साथ देशज भाषा का भी मिश्रण करते हैं। उनका शब्द-चयन सर्वथा उचित और भावानुकूल है। फ़िराक ने हिंदी में भी रुबाइयाँ लिखी हैं और इन रुबाइयों में सहज एवं सरल प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग किया है। एक उदाहरण देखिए

दीवाली की शाम घर पुते और सजे
चीनी के खिलौने जगमगाते लावे
वो रूपवती मुखड़े पै इक नर्म दमक
बच्चे के घरौंदे में जलाती है दिए

रुबाइयाँ कविता का सार

प्रश्न-
फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित ‘रुबाइयाँ’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत रुबाइयों में कवि ने नन्हें शिशु की अठखेलियों और माँ के वात्सल्य भाव का सुंदर वर्णन किया है। माँ अपने शिशु को लेकर अपने आँगन में खड़ी है। वह कभी उसे झुलाती है और कभी हवा में उछालती है। इससे बालक खिलखिलाकर हँसने लगता है। पुनः माँ अपने नन्हें बालक को पानी में नहलाती है और उसके उलझे बालों को कंघी से सुलझाती है। शिशु माँ के घुटनों में से माँ के मुख को देखता है। दीवाली की सायंकाल को सारा घर सजाया जाता है। चीनी के खिलौने घर में जगमगाते हैं। सुंदर माँ अपने दमकते मुख से बच्चे के घरौंदे में दीपक जलाती है। एक अन्य दृश्य में कवि कहता है कि बच्चा चाँद लेने की जिद करता है। माँ उसे दर्पण में चाँद का प्रतिबिंब दिखाती है और कहती है कि देखो चाँद शीशे में उतर आया है। रक्षाबंधन के पर्व के अवसर पर आकाश में हल्की-हल्की घटाएँ छा जाती हैं। एक छोटी-सी लड़की बिजली के समान चमकते लच्छों वाली राखी अपने भाई की कलाई पर बांधती है। इन रुबाइयों में कवि ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति का बड़ा मनोरम वर्णन किया है।

गज़ल कविता का सार

प्रश्न-
फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित ‘गज़ल’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘गज़ल’ में फ़िराक गोरखपुरी ने निजी प्रेम का वर्णन किया है। भले ही गज़ल का प्रत्येक शेर स्वतंत्र अस्तित्व रखता हो, परंतु इस गज़ल में एक संगति दिखाई देती है। कवि प्रकृति के उद्दीपन रूप का वर्णन करते हुए कहता है कि कलियों से नवरस छलकने लगा है और चारों ओर सुगंध फैल रही है। रात्रि के सन्नाटे में तारे आँखें झपका रहे हैं जिससे कवि को लगता है कि सन्नाटा कुछ बोल रहा है।
अगले शेर में कवि अपनी किस्मत को कोसता हुआ दिखाई देता है, क्योंकि उसे अपनी प्रिया का प्रेम प्राप्त नहीं हो सका। कवि के प्रेम को लेकर लोग उसकी निंदा और आलोचना करते हैं। लेकिन कवि का विचार है कि ऐसे निंदक लोग स्वयं बदनाम होते हैं। इससे कवि बदनाम नहीं होता।

कवि स्वीकार करता है कि प्रेम के कारण भले ही वह दीवानगी तक पहुंच गया है, फिर भी वह विवेकशील बना हुआ है। विरह की पीड़ा कवि को अत्यधिक व्यथित कर रही है, परंतु कवि को दुनियादारी का ध्यान है। इसलिए वह चुपचाप रोकर अपने दर्द को प्रकट करता है। पुनः कवि का कथन है कि प्रेम में प्रेमी की प्रकृति का विशेष महत्त्व होता है। जो प्रेमी जितना अधिक स्वयं को खो देता है, वह उतना ही गहरे प्रेम को प्राप्त करता है। कवि स्वीकार करता है कि विरह के कारण उसका प्रत्येक शेर आँसुओं में डूबा हुआ है। कवि कहता है कि रात्रि के समय देवता लोगों के पापों का लेखा-जोखा करते हैं। लेकिन कवि शराबखाने में बैठा हुआ अपनी प्रेयसी को याद करता है। अंत में कवि अपनी प्रशंसा करते हुए कहता है कि उसकी गज़लों पर मीर की गज़लों का प्रभाव है।

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HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 8 कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 8 कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 8 कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप

HBSE 12th Class Hindi कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप Textbook Questions and Answers

कविता के साथ

प्रश्न 1.
कवितावली के उद्धृत छंदों के आधार पर स्पष्ट करें कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है।
उत्तर:
भले ही तुलसीदास राम-भक्त कवि थे, परंतु अपने युग की परिस्थितियों से वे भली प्रकार परिचित थे। उन्होंने तत्कालीन लोगों की सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति को समीप से देखा था। इसलिए कवि ने यह स्वीकार किया है कि उस समय लोग बेरोज़गारी के शिकार थे। उनके पास कोई ऐसा काम-धंधा नहीं था जिससे वे अपना पेट भर सकें। आर्थिक विषमता के कारण अमीर

और गरीब में बहुत बड़ी खाई बन चुकी थी। लोगों में गरीबी और भुखमरी फैली हुई थी। मजदूर, किसान, व्यापारी, भिखारी, कलाकार आदि सभी काम न मिलने के कारण परेशान थे। गरीबी के कारण लोग छोटे-से-छोटा काम करने को तैयार थे। तुलसीदास ने लोगों की आर्थिक दुर्दशा को देखकर कवितावली के छंदों में आर्थिक विषमता का यथार्थ वर्णन किया है।

प्रश्न 2.
पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता है तुलसी का यह काव्य-सत्य क्या इस समय का भी युग-सत्य है? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
उत्तर:
तुलसीदास ने यह स्वीकार किया है कि मनुष्य की पेट की आग को ईश्वर भक्ति रूपी मेघ ही शांत कर सकते हैं। तुलसी का यह काव्य-सत्य प्रत्येक युग पर चरितार्थ होता है। भले ही माता-पिता बालक को जन्म देते हैं, परंतु ईश्वर ही उसे कर्मों के फल के रूप में भाग्य देता है। हम अपने चारों ओर देखते हैं कि करोड़ों लोग कोई-न-कोई व्यवसाय कर रहे हैं। कुछ लोगों को आशातीत सफलता प्राप्त होती है। परंतु कुछ लोग खूब मेहनत करके काम करते हैं, फिर भी उन्हें सफलता नहीं मिलती। अनेक लोग उद्योग-धंधे चला रहे हैं, लेकिन सभी अंबानी बंधु नहीं बन पाते। इसे हम ईश्वर की कृपा के सिवाय कुछ नहीं कह सकते। सच्चाई तो यह है कि मेहनत के साथ-साथ ईश्वर की अनुग्रह भी होनी चाहिए। सच ही कहा गया है-
गुणावंत न जामिये, जामिये भागावन्त
भागावन्त के द्वार में, खड़े रहे गुणवन्त

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 8 कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप

प्रश्न 3.
तुलसी ने यह कहने की ज़रूरत क्यों समझी?
धूत कहौ, अवधूत कही, रजपूतु कहौ, जोलहा कहौ कोऊ/काहू की बेटीसों से बेटा न ब्याहब, काहूकी जाति बिगार न सोऊ। इस सवैया में काहू के बेटासों बेटी न ब्याहब कहते तो सामाजिक अर्थ में क्या परिवर्तन आता?
उत्तर:
यदि तुलसीदास ‘काहू की बेटी से बेटा न ब्याहब’ की बजाय यह कहते कि काहू के बेटा से बेटी न ब्याहब तो सामाजिक अर्थ में बहुत अंतर आ जाता। प्रायः विवाह के बाद बेटी अपने पिता के कुल गोत्र को त्यागकर पति के कुल गोत्र को अपना लेती है। अतः यदि कवि के सामने अपनी बेटी के ब्याह का प्रश्न होता तो कुल गोत्र के बिगड़ने का भय भी होता जो लड़के वाले को नहीं होता।

प्रश्न 4.
धूत कहौ….. वाले छंद में ऊपर से सरल व निरीह दिखलाई पड़ने वाले तुलसी की भीतरी असलियत एक स्वाभिमानी भक्त हृदय की है। इससे आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर:
इस सवैये से कवि की सच्ची भक्ति-भावना तथा उनके स्वाभिमानी स्वभाव का पता चलता है। वे स्वयं को ‘सरनाम गुलाम है राम को’ कहकर अपनी दीनता-हीनता को प्रकट करते हैं। इससे यह पता चलता है कि वे राम के सच्चे भक्त हैं और उनमें। है। परंत धत कहौ….. छंद को पढ़ते ही पता चल जाता है कि वे एक स्वाभिमानी भक्त थे। उन्होंने किसी भी कीमत पर अपने स्वाभिमान को कम नहीं होने दिया। अपने स्वाभिमान को बचाने के लिए वे कुछ भी कर सकते थे। लोगों ने उन पर जो कटाक्ष किए, उसकी भी उन्होंने परवाह नहीं की। इसलिए वे अपने निंदकों को स्पष्ट कहते हैं कि उनके बारे में जिसे जो कुछ कहना है वह कहे। उन्हें किसी से कोई लेना-देना नहीं है।

व्याख्या करें-

प्रश्न 5.
(क) मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता।
जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। पितु बचन मनतेउँ नहिं ओहू॥
(ख) जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।
अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जौं जड़ दैव जिआवै मोही।
(ग) माँगि कै खैबो, मसीत को सोइबो, लैबोको एकु न दैबोको दोऊ॥
(घ) ऊँचे नीचे करम, धरम-अधरम करि, पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी॥
उत्तर:
(क) इस पद्य भाग में श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण को मूर्छित देखकर शोकग्रस्त हो जाते हैं। यद्यपि हनुमान संजीवनी लेने के लिए गए हुए हैं लेकिन अर्धरात्रि होने तक वे लौटकर नहीं आए। उपचार की अवधि प्रातःकाल तक है अतः अपने भाई लक्ष्मण के प्राणों पर खतरा देखकर वे भावुक हो उठे और अपने मूर्छित भाई लक्ष्मण से कहने लगे आई लक्ष्मण! तुमने मेरे लिए माता-पिता का त्याग किया और मेरे साथ वनवास के लिए चल पड़े। वन में रहते हुए तुमने असंख्य कष्टों को सहन किया, सर्दी-गर्मी आदि का सामना किया, परंतु मेरा साथ नहीं छोड़ा। यदि मुझे पता होता कि वन में आने से मुझसे मेरे भाई का वियोग हो जाएगा तो मैं पिता की आज्ञा का पालन न करता अर्थात् मैं कभी वनवास को स्वीकार न करता।

(ख) इस पद्य भाग में अपने मूर्छित भाई लक्ष्मण के प्रति मोह-भावना को व्यक्त करते हुए राम कहते हैं हे भाई लक्ष्मण! तुम्हारे बिना मेरी स्थिति दीन-हीन हो गई है, क्योंकि तुम ही मेरी ताकत थे। जैसे पंख के बिना पक्षी दीन हो जाते हैं, मणि के बिना सांप तथा सूंड के बिना हाथी हीन हो जाते हैं, उसी प्रकार जब भाग्य मुझे तुम्हारे बिना जीने के लिए मजबूर कर देगा तो मेरा जीवन भी तुम्हारे बिना वैसा ही हो जाएगा। भाव यह है कि तुम्हारे बिना मेरा जीना बड़ा दुखद और शोचनीय हो जाएगा।

(ग) प्रस्तुत पद्य पंक्ति में कविवर तुलसीदास ने अपने स्वाभिमान का निडरतापूर्वक वर्णन किया है। कवि कहता है कि मुझे निंदकों का कोई भय नहीं है और न ही मुझे अपने जीवन के बिगड़ने का भय है। मुझे किसी की धन-संपत्ति नहीं चाहिए, क्योंकि आ पेट भर लेता हूँ अर्थात् मुझे किसी प्रकार के काम-धंधे की चिंता नहीं है। मैं मस्जिद में सो लेता हूँ। मुझे न तो किसी से कुछ लेना है और न देना है। मेरी जिंदगी फक्कड़ है और मैं अपने आप में मस्त रहता हूँ।

(घ) प्रस्तुत पद्य पंक्ति में कवि ने तत्कालीन आर्थिक विषमता का यथार्थ वर्णन किया है। कवि का कहना है कि मनुष्य के सारे कार्य एवं व्यापार पेट की आग को शांत करने के लिए होते हैं। परंतु यह आग इतनी भयंकर होती है कि लोग ऊँचे-नीचे कर्म तथा धर्म-अधर्म कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। यहाँ तक कि अपनी भूख को मिटाने के लिए लोग बेटे-बेटियों तक को बेच देते हैं। यह स्थिति तुलसी के युग में थी और आज भी है।

प्रश्न 6.
भ्रातृशोक में हुई राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है। क्या आप इससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
उत्तर:
यह स्वतः स्पष्ट हो जाता है कि लक्ष्मण की मूर्छा पर शोकग्रस्त होकर विलाप करने वाले राम भगवान नहीं हो सकते। कवि का यह कहना सही प्रतीत नहीं होता कि वे भगवान के रूप में नर लीला कर रहे हैं। यदि वे ऐसा करते तो उनका प्रत्येक वचन मर्यादित होता। जब कोई मनुष्य अत्यधिक शोकग्रस्त होता है तब वह असहाय होकर दुख के कारण प्रलाप करने लगता है। राम के द्वारा यह कहना कि यदि उन्हें पता होता कि वन में भाई से उनका वियोग हो जाएगा, तो वे अपने पिता की आज्ञा को न मानते अथवा यह कहना कि पत्नी तो आती-जाती रहती है ये बातें तो सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में प्रकट हुई हैं। इसे हम नर लीला नहीं कह सकते।

प्रश्न 7.
शोकग्रस्त माहौल में हनुमान के अवतरण को करुण रस के बीच वीर रस का आविर्भाव क्यों कहा गया है?
उत्तर:
वैद्य सुषेण ने यह कहा था कि अगर प्रातः होने से पूर्व संजीवनी बूटी मिल गई तो लक्ष्मण बच सकता है अन्यथा उसकी मृत्यु हो जाएगी। अर्धरात्रि बीत चुकी थी और हनुमान अभी तक लौटकर नहीं आया था। संपूर्ण भालू और वानर सेना घबराई हुई थी। राम भी लक्ष्मण की मृत्यु के डर के कारण घबरा गए थे और वे भावुक होकर विलाप करने लगे। परंतु इसी बीच हनुमान संजीवनी बूटी लेकर पहुँच गए। हनुमान को देखकर राम के विलाप में आशा और उत्साह का संचार हो गया। करुणापूर्ण वातावरण में मानों वीर रस का समावेश हो गया। क्योंकि अब सभी को यह आशा बँध गई थी कि लक्ष्मण होश में आ जाएँगे और फिर रावण पर विजय प्राप्त की जा सकेगी।

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प्रश्न 8.
जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई। नारि हेतु प्रिय भाइ गँवाई॥ बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं। नारि हानि बिसेष छति नाहीं॥ भाई के शोक में डूबे राम के इस प्रलाप-वचन में स्त्री के प्रति कैसा सामाजिक दृष्टिकोण संभावित है?
उत्तर:
इस प्रकार के विलाप को सुनकर विलाप करने वाले की पत्नी को तो बुरा ही लगेगा। परंतु यह भी एक सच्चाई है कि इस प्रकार के प्रलाप का कोई अर्थ नहीं होता। यह शोक से व्यथित एक व्यक्ति की उक्ति है। इसे यथार्थ नहीं समझना चाहिए। सामाजिक दृष्टि से यह कथन बुरा लगता है परंतु यह भी एक यथार्थ है कि मनुष्य के लिए भाई और पत्नी में भाई का कोई विकल्प नहीं होता, पत्नी का विकल्प हो सकता है। उदाहरण के रूप में यदि किसी की पत्नी का देहांत हो जाता है तो वह दूसरा विवाह करके पत्नी ले आता है लेकिन भाई का देहांत होने पर वह दूसरा भाई नहीं ला सकता। इस उक्ति से यह भी अर्थ प्रकट हो सकता है कि प्रायः लोग पत्नी को भाई से अधिक महत्त्व देते हैं और कभी-कभी ऐसे उदाहरण देखे जाते हैं जहाँ लक्ष्मण जैसे भाई अपनी भाभी के लिए अपनी जान देने को तैयार रहते हैं। परंतु आज ऐसा भी देखने में आया है कि पुरुष अपनी पत्नी के लिए भाई तक को छोड़ देता है। अतः नारी के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण सर्वत्र एक-जैसा नहीं है।

कविता के आसपास

प्रश्न 1.
कालिदास के रघुवंश महाकाव्य में पत्नी (इंदुमती) के मृत्यु-शोक पर अज तथा निराला की सरोज-स्मृति में पुत्री (सरोज) के मृत्यु-शोक पर पिता के करुण उद्गार निकले हैं। उनसे भ्रातृशोक में डूबे राम के इस विलाप की तुलना करें।
उत्तर:
जहाँ तक कवि निराला का प्रश्न है, उन्होंने अपने ‘शोक-गीत’ सरोज-स्मृति में इसलिए प्रायश्चित किया है, क्योंकि वह पिता होने के कर्तव्य का ठीक से पालन नहीं कर पाए। दूसरा उनकी बेटी का आकस्मिक निधन हो गया। युवावस्था में ही वह स्वर्ग सिधारं गई। अतः निराला का विलाप बहत गहरा है जो बेटी की मृत्यु के कारण उत्पन्न हुआ है।

परंतु राम का विलाप निराला की तुलना में कुछ कम है, क्योंकि लक्ष्मण की मृत्यु नहीं हुई। उसके जीवित होने की आशा अभी बनी हुई है। हनुमान संजीवनी बूटी लेने गए हुए हैं और वे आ भी जाते हैं। अतः राम का विलाप निराला के विलाप की तुलना में अधिक गहन नहीं है।

प्रश्न 2.
पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी तुलसी के युग का ही नहीं आज के युग का भी सत्य है। भुखमरी में किसानों की आत्महत्या और संतानों (खासकर बेटियों) को भी बेच डालने की हृदय-विदारक घटनाएँ हमारे देश में घटती रही हैं। वर्तमान परिस्थितियों और तुलसी के युग की तुलना करें।
उत्तर:
गरीबी कोई आज की समस्या नहीं है, बल्कि यह प्रत्येक युग की समस्या रही है। समाज का पूँजीपति वर्ग हमेशा किसानों तथा मजदूरों का शोषण करके धन का संग्रह कर लेता है, जिससे नगरों के मज़दूर तथा गाँव के किसान गरीबी का शिकार बन जाते हैं और उन्हें अनेक बार अनापेक्षित संकटों का सामना करना पड़ता है। तुलसी के काल में भी देश में गरीबी थी। आज तो यह एक गंभीर समस्या बन चुकी है। गरीबी के अनेक कारण हो सकते हैं परंतु इसके परिणाम एक जैसे ही होते हैं। गरीबों को अपना मान-सम्मान एवं अभिमान यहाँ तक कि बेटे-बेटियों को भी बेचना पड़ सकता है। आज अनेक लोग गरीबी से तंग आकर आत्महत्या कर रहे हैं।

प्रश्न 3.
तुलसी के युग की बेकारी के क्या कारण हो सकते हैं? आज की बेकारी की समस्या के कारणों के साथ उसे मिलाकर कक्षा में परिचर्चा करें।
उत्तर:
तुलसी के युग में बेकारी के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं-

  • लोगों के पास कृषि के साधनों का अभाव रहा होगा।
  • तत्कालीन शासक लोगों से बेगार करवाते होंगे।
  • मज़दूरों को उचित मज़दूरी नहीं मिलती होगी।
  • कुछ लोग आलसी होंगे जो काम करना नहीं चाहते होंगे।
  • लोगों को पर्याप्त काम के अवसर प्राप्त नहीं होते होंगे।

आज की समस्या के कारण-

  • देश में बढ़ती हुई जनसंख्या।
  • पूँजीवादी अर्थव्यवस्था पर बल।
  • कृषि की ओर उचित ध्यान न देना।
  • अधिक लोगों का शिक्षित होना।
  • पढ़े-लिखे लोगों में नौकरी करने की इच्छा।
  • श्रम साध्य कामों से बचने का प्रयास करना।

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प्रश्न 4.
राम कौशल्या के पुत्र थे और लक्ष्मण सुमित्रा के। इस प्रकार वे परस्पर सहोदर (एक ही माँ के पेट से जन्मे) नहीं थे। फिर, राम ने उन्हें लक्ष्य कर ऐसा क्यों कहा-“मिलइ न जगत सहोदर भ्राता”? इस पर विचार करें।
उत्तर:
राम लक्ष्मण को अपना सहोदर ही मानते थे। वे लक्ष्मण की माता सुमित्रा को भी अपनी माता समझते थे। उनके मन में तीनों माताओं के लिए एक-जैसी भावना थी। दूसरा, लक्ष्मण का त्याग सहोदर भाई से भी अधिक था। वह भी राम को अपना सहोदर मानता था। यही कारण है कि राम ने लक्ष्मण को अपना सहोदर कहा है।

प्रश्न 5.
यहाँ कवि तुलसी के दोहा, चौपाई, सोरठा, कवित्त, सवैया-ये पाँच छंद प्रयुक्त हैं। इसी प्रकार तुलसी साहित्य में और छंद तथा काव्य-रूप आए हैं। ऐसे छंदों व काव्य-रूपों की सूची बनाएँ।
उत्तर:
तुलसीदास ने अपनी काव्य रचनाओं में दोहा, चौपाई, सोरठा, कवित्त, सवैया, छप्पय तथा हरिगीतिका छंदों का प्रयोग किया है।

  • काव्य रूप-प्रबंध काव्य, रामचरितमानस।
  • गेय पदशैली-गीतावली, श्रीकृष्ण गीतावली तथा विनय पत्रिका।
  • मुक्तक-विनय पत्रिका।

तुलसी द्वारा प्रयुक्त छंदों का परिचय-
(i) चौपाई-यह एक सममात्रिक छंद है। इसके चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में सोलह-सोलह मात्राएँ होती हैं तथा प्रत्येक चरण का अंतिम वर्ण गुरु होता है। पहले-दूसरे तथा तीसरे-चौथे चरणों की तुक मिलती है, यथा
सों अनुराग कहाँ अब भाई। उठहु न सुनि मम बच बिकलाई।
जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। पितु बचन मनतेउँ नहिं ओह।

(ii) दोहा-जिस छंद के विषम चरणों में तेरह मात्राएँ तथा सम चरणों में ग्यारह मात्राएँ होती हैं, उसे दोहा छंद कहते हैं। यह हिंदी का सर्वाधिक लोकप्रिय तथा प्रचलित छंद है, यथा
राम राज राजत सकल धरम निरत नर नारि। राग न रोष न दोष दुख सुलभ पदारथ चारि।

(iii) सोरठा-सोरठा छंद के सम चरणों में तेरह तथा विषम चरणों में ग्यारह मात्राएँ होती हैं। इसमें तुक प्रथम और तृतीय चरण के अंत में मिलती है। यह दोहा छंद का उल्टा है। गोस्वामी तुलसीदास ने सोरठा छंद का पर्याप्त प्रयोग किया है।
सुनत सुमंगल बैन, मन प्रमोद तन पुलक भर।
सरद सरोरुह नैन, तुलसी भरे स्नेह जल॥

(iv) कवित्त-कवित्त के प्रत्येक चरण में इकतीस वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण के सोलहवें और पंद्रहवें वर्ण पर इति रहती है। प्रत्येक चरण का अंतिम वर्ण गुरु होता है, यथा-
किसबी, किसान-कुल, बनिक, भिखारी, भाट,
चाकर, चपल नट, चोर, चार, चेटकी। पेटको पढ़त, गुन गढ़त चढ़त गिरि,
अटत गहन-गन अहन अखेटकी॥
ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि,
पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी।
‘तुलसी’ बुझाइ एक राम घनस्याम ही तें,
आगि बड़वागिते बड़ी है आगि पेटकी॥

(v) सवैया सवैया छंद के अनेक प्रकार होते हैं। ये प्रकार गणों के संयोजन के आधार पर किए जाते हैं। इनमें मत गयंद सवैया सर्वाधिक प्रसिद्ध है। इसे मालती सवैया भी कहते हैं। इसके प्रत्येक चरण में तेइस-तेइस वर्ण होते हैं, यथा
सेस महेस गनेस सुरेस दिनेसहु जाहि निरतंर गावै।
नारद से सुक व्यास हैं, पचि हारि रहे पुनि पार न पावै।
जाहि अनादि अनंत अखंड अबेद अभेद सुवेद बतावै।
ताहि अहीर की छोहरियाँ छछिया भर छाछ पे नाच नचावै।

HBSE 12th Class Hindi कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप Important Questions and Answers

सराहना संबंधी प्रश्न

प्रश्न-
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए-
1. ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि,
पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी।
‘तुलसी’ बुझाइ एक राम घनस्याम ही तें,
आगि बड़वागितें बड़ी है आगि पेट की॥
उत्तर:

  1. प्रस्तुत पद्य भाग में कविवर तुलसीदास ने तत्कालीन लोगों में व्याप्त गरीबी का यथार्थ वर्णन किया है।
  2. कवि ने गरीबी तथा पेट की आग के यथार्थ को स्वीकार करते हुए यह स्पष्ट किया है कि उस समय गरीब लोग अपना पेट भरने के लिए बेटे-बेटियों को भी बेच देते थे।
  3. संपूर्ण पद्यांश में अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।
  4. ‘राम-घनश्याम’ में रूपक अलंकार का प्रयोग है।
  5. ‘आगि बड़वागितें बड़ी है आगि पेटकी’ में गतिरेक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  6. सहज एवं सरल साहित्यिक ब्रजावधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  7. शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  8. प्रसाद गुण है तथा करुण रस का परिपाक हुआ है।
  9. कवित्त छंद का प्रयोग है।

2. धूत कही, अवधूत कही, रजपूतु कहौ, जोलहा कहौ कोऊ।
काहू की बेटी सों बेटा न ब्याहव, काहूकी जाति बिगार न सोऊ॥
तुलसी सरनाम गुलामु है राम को, जाको रुचै सो कहैं कछु ओऊ।
माँगि के खैबो, मसीत को सोइबो, लैबोको एकु न दैबको दोऊ।
उत्तर:

  1. इस पद से पता चलता है कि तुलसीदास को अपने जीवन में अनेक अपवादों तथा विरोधों का सामना करना पड़ा।
  2. कवि जातिवाद में विश्वास करता दिखाई देता है।
  3. संपूर्ण पद में अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है।
  4. ‘लेना एक न देना दो’ मुहावरे का सशक्त प्रयोग है।
  5. इस पद में दास्य भक्ति का भाव देखा जा सकता है।
  6. सहज एवं सरल साहित्यिक ब्रजावधी भाषा का सफल प्रयोग है।
  7. शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  8. सवैया छंद का प्रयोग है।

3. जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना॥
अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जौं जड़ दैव जिआवै मोही।
उत्तर:

  1. इन काव्य-पंक्तियों में कवि ने लक्ष्मण के मूर्छित होने पर बड़े भाई राम के विलाप का बड़ा ही संवेदनशील वर्णन किया है।
  2. अपने सहोदर लक्ष्मण के बिना वे स्वयं को पंख के बिना पक्षी, मणि के बिना सर्प तथा सूंड के बिना हाथी के समान समझते हैं।
  3. अनुप्रास तथा दृष्टांत अलंकारों का सुंदर और स्वाभाविक प्रयोग हुआ है।
  4. सहज एवं सरल साहित्यिक अवधी भाषा का प्रयोग है।
  5. शब्द-चयन उचित तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  6. प्रसाद गुण है तथा करुण रस का परिपाक हुआ है।
  7. चौपाई छंद का प्रयोग है।

4. बहु बिधि सोचत सोच बिमोचन।
स्रवत सलिल राजिव दल लोचन।
उत्तर:

  1. यहाँ कवि ने लक्ष्मण मूर्छा के प्रसंग में चिंताग्रस्त राम की स्थिति का भावपूर्ण वर्णन किया है।
  2. भले ही प्रभु राम लोगों की चिंताओं को दूर करने वाले हैं परंतु इस समय वे स्वयं चिंतित दिखाई दे रहे हैं।
  3. इन पद्य-पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।
  4. ‘राजिव दल लोचन’ में रूपक अलंकार का सफल प्रयोग है।
  5. सहज एवं सरल साहित्यिक अवधी भाषा का सफल प्रयोग है।
  6. शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  7. प्रसाद गुण है तथा करुण रस का परिपाक है।
  8. चौपाई छंद का प्रयोग है।

5. सो अनुराग कहाँ अब भाई। उठहु न सुनि मम बच बिकलाई।
जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। पितु बचन मनतेउँ नहिं ओह।
उत्तर:

  1. लक्ष्मण मूर्छा के लिए राम स्वयं को दोषी मानने लगे। इसलिए वे कहते हैं कि यदि मुझे भाई के वियोग का एहसास भी होता तो मैं पिता के वचनों को न मानता।
  2. यहाँ कवि ने राम के विलाप का कारुणिक वर्णन किया है।
  3. अनुप्रास अलंकार (बन-बंधु) का सफल प्रयोग हुआ है।
  4. सहज एवं सरल साहित्यिक अवधी भाषा का प्रयोग है।
  5. शब्द-चयन उचित तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  6. प्रसाद गुण है तथा करुण रस का परिपाक है।
  7. चौपाई छंद का प्रयोग है।

6. यह बृतांत दसानन सुनेऊ। अति बिषाद पुनि पुनि सिर धुनेऊ॥
व्याकुल कुंभकरन पहिं आवा। बिबिध जतन करि ताहि जगावा॥
उत्तर:

  1. यहाँ कवि ने यह स्पष्ट किया है कि लक्ष्मण के होश में आने के समाचार को सुनकर रावण अत्यधिक दुखी हो गया और वह पश्चात्ताप करने लगा।
  2. पुनि-पुनि में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग है।
  3. ‘सिर धुना’ मुहावरे का सफल प्रयोग है।
  4. साहित्यिक अवधी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  5. शब्द-चयन उचित तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  6. चौपाई छंद का प्रयोग है।

विषय-वस्तु पर आधारित लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
तुलसीकालीन सामाजिक और आर्थिक दुरावस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तुलसीकालीन समाज सामाजिक तथा आर्थिक दृष्टि से अत्यधिक पिछड़ा हुआ था। उस समय लोगों की आर्थिक दशा बड़ी खराब थी। लोगों के पास रोज़गार के उचित अवसर नहीं थे। मजदूर के पास काम नहीं था, किसान के पास खेती नहीं थी। व्यापारी के पास व्यापार नहीं था और भिखारी को भीख नहीं मिलती थी। चारण, भाट, नौकर, नट, चोर, दूत, बाज़ीगर आदि पेट भरने के लिए उल्टे-सीधे काम करते थे। पहाड़ों पर चढ़ते थे और जंगल में भटकते हुए शिकार करते थे। उन्हें ऊँचे-नीचे, धर्म-अधर्म के सभी प्रकार के काम करने पड़ते थे। यहाँ तक कि पेट भरने के लिए वे अपनी संतान को बेचने से भी नहीं हिचकिचाते थे। चारों ओर गरीबी का आलम था। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कवि ने तत्कालीन सामाजिक एवं आर्थिक दुरावस्था का यथार्थ वर्णन किया है।

प्रश्न 2.
‘तुलसी का युग बेरोजगारी और बेकारी का युग था’-सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
बेरोजगारी प्रत्येक युग की अहम समस्या है। तुलसी का युग भी बेरोज़गारी के संकट का सामना कर रहा था। उस समय बेरोजगारी इस प्रकार फैली हुई थी कि किसान के पास खेती का साधन नहीं था। भिखारी को भीख नहीं मिलती थी और नौकर के पास नौकरी नहीं थी। आजीविका विहीन दुखी होकर लोग एक-दूसरे से कहते थे कहाँ जाएँ और क्या करें। इस प्रकार दरिद्रता रूपी रावण ने लोगों को इस प्रकार दबा दिया था कि सभी त्राहि-त्राहि कर रहे थे। यही कारण है कि कवि तुलसीदास इस बेरोजगारी और गरीबी को दूर करने के लिए प्रभु राम से कृपा की याचना करते थे।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 8 कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप

प्रश्न 3.
‘लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ कविता का प्रतिपाद्य/मूलभाव लिखिए।
उत्तर:
इस प्रसंग में कवि ने लक्ष्मण के मूर्च्छित हो जाने पर बड़े भाई राम के विलाप का कारुणिक वर्णन किया है। लक्ष्मण को मूर्छित देखकर राम इतने व्याकुल हो जाते हैं कि वे सामान्य मानव की तरह विलाप करने लगते हैं। धीरे-धीरे उनका दिलाप प्रलाप में बदल जाता है। राम कहते हैं कि तुम तो मुझे कभी दुखी नहीं देख सकते थे। मेरे लिए तुमने माता-पिता को त्यागकर वनवास ले लिया। यदि मुझे पता होता कि वन में मेरा तुमसे वियोग हो जाएगा तो मैं पिता की आज्ञा को कभी न मानता। संसार में धन, स्त्री, मकान आदि बार-बार मिल जाते हैं, परंतु सहोदर भाई बार-बार नहीं मिलता है।

वे लक्ष्मण के स्वभाव और गुणों को याद करके अत्यंत भावुक हो उठते हैं और इस दशा के लिए स्वयं को दोषी मानने लगते हैं। वे कहते हैं कि उनकी स्थिति पंख के बिना पक्षी, मणि के बिना सर्प और सैंड के बिना हाथी के समान हो गई है। वे कहते हैं कि मैं क्या मुँह लेकर अयोध्या जाऊँगा। लोग मेरे बारे में कहेंगे कि मैंने पत्नी के लिए भाई को गँवा दिया। हे भाई! उठकर मझे बताओ कि मैं तुम्हारी माता सुमित्रा को क्या उत्तर दूँगा। इस प्रकार लोगों की चिंताओं को दूर करने वाले राम स्वयं चिंतित होकर रोने लगे। अंततः राम का दुख तब कम होता है जब हनुमान औषधि वाला पहाड़ लेकर पहुँच जाते हैं।

प्रश्न 4.
शोकग्रस्त माहौल में हनुमान के अवतरण को करुण रस के बीच वीर रस का आविर्भाव क्यों कहा गया है?
उत्तर:
मेघनाद की शक्ति के कारण लक्ष्मण घायल होकर मूर्च्छित हो गए थे। इससे राम अत्यधिक व्यथित हो गए। उनके करुण भाव को सुनकर संपूर्ण भालू और वानर सेना शोकग्रस्त हो गई थी। चारों ओर शोक का वातावरण व्याप्त था। राम अनेक प्रकार के वचन कहकर लक्ष्मण को होश में लाने का प्रयास कर रहे थे। अन्ततः वे विलाप करके रोने लगे जिससे सर्वत्र करुण रस का संचार होने लगा।

इसी बीच जामवंत के परामर्श से हनुमान लंका के वैद्य सुषेण को उठाकर ले आया। सुषेण ने एक पर्वत विशेष से संजीवनी लाने की सलाह दी और कहा कि यदि प्रभात वेला से पहले-पहले संजीवनी मिल जाएगी तो लक्ष्मण के प्राण बच सकते हैं, अन्यथा नहीं। यह कार्य हनुमान को सौंपा गया। वे अपनी वीरता के कारण उस विशेष पर्वत को उठाकर ले आए जिस पर औषधि थी। अतः हनुमान का यह कारनामा वीर रस का आविर्भाव करता है। यह दायित्व हनुमान के आगमन से करुण रस के बीच में वीर रस का प्रादुर्भाव हो गया। राम का विलाप बंद हो गया और सुषेण के उपचार से लक्ष्मण होश में आ गए। अतः कवि का कहना सर्वथा उचित है कि हनुमान का अवतरण करुण रस के बीच में वीर रस का आविर्भाव है।

प्रश्न 5.
‘लक्ष्मण-मूर्छा’ प्रसंग के आधार पर तुलसी की नारी दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
तुलसीयुग में भारतीय परिवार व्यवस्था काफी सुदृढ़ थी। उस समय संयुक्त परिवार की परंपरा चलती थी। सभी भाई और उनकी पत्नियाँ एक ही छत के नीचे रहते थे। यही कारण है कि उस समय पत्नी की अपेक्षा भाई का महत्त्व अधिक था। दूसरा भाई का संबंध व्यक्ति के अपने हाथ में नहीं होता लेकिन पत्नी का संबंध उसके अपने हाथ में होता है। वैसे भी भाई का संबंध जन्मजात होता है। यह संबंध काफी पुराना और प्राकृतिक है। परंतु पत्नी का संबंध व्यक्ति के साथ यौवनकाल में स्थापित होता है। तत्कालीन सामाजिक और पारिवारिक परंपरा को ध्यान में रखकर ही कविवर तुलसीदास ने नारी संबंधी अपना दृष्टिकोण व्यक्त किया है। इसीलिए हम तुलसीदास पर ही नारी दृष्टिकोण का दोष नहीं दे सकते। जहाँ तक नारी के सम्मान का प्रश्न है, कवि ने नारी को उचित मान-सम्मान दिया है। वन में रहते हुए भी राम, लक्ष्मण माँ की चिंता करते हैं। अतः कवि ने नारी के मातृरूप का अधिक सम्मान किया है।

प्रश्न 6.
राम के विलाप का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मेघनाद की शक्ति लगने से लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे। सुषेण वैद्य के कथनानुसार हनुमान संजीवनी लेने के लिए गए हुए थे। प्रभात से पहले-पहले लक्ष्मण का उपचार होना आवश्यक था अन्यथा वह मृत्यु को प्राप्त हो सकता था। अर्धरात्रि व्यतीत दर लक्ष्मण को मूर्छित देखकर विलाप करने लगे। भ्रातशोक के कारण वे अत्यधिक व्यथित और बेचैन थे। वे बार-बार लक्ष्मण के त्याग, समर्पण और स्नेह की चर्चा करने लगे। भ्रातृ शोक से व्याकुल होकर वे कहने लगे यदि मुझे पता होता कि वन में मेरा भाई से वियोग होगा तो मैं पिता की आज्ञा को न मानता। पुत्र, धन, मकान आदि बार-बार मिल सकते हैं लेकिन सहोदर भाई पुनः नहीं मिल सकता। वे अपनी स्थिति की तुलना पंखों के बिना पक्षी, मणि के बिना सर्प तथा सैंड के बिना हाथी से करते हैं। उन्हें इस बात का भी भय था कि वे अयोध्या लौटकर माँ सुमित्रा को क्या मुँह दिखाएँगे और अयोध्यावासी उनके बारे में क्या सोचेंगे। इस प्रकार राम विलाप करते-करते प्रलाप करने लगे।

प्रश्न 7.
लक्ष्मण के उपचार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लक्ष्मण के मूर्च्छित होने पर श्रीराम विलाप करने लगते हैं। सारा वातावरण निराशाजन्य हो जाता है। किन्तु ज्यों ही हनुमान संजीवनी लेकर वहाँ पहुँच जाते हैं तो निराशा हर्षोल्लास में बदल जाती है। श्रीराम हनुमान के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं। वहाँ उपस्थित वैद्य ने संजीवनी से लक्ष्मण का उपचार किया और वह होश में आ गया। वैद्य को ससम्मान वापिस पहुँचा दिया गया।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. तुलसीदास का जन्म कब हुआ?
(A) सन् 1532 में
(B) सन् 1544 में
(C) सन् 1543 में
(D) सन् 1534 में
उत्तर:
(A) सन् 1532 में

2. तुलसीदास का जन्म बांदा जिले के किस गाँव में हुआ?
(A) रजापुर में
(B) राजापुर में
(C) राजगढ़ में
(D) रामपुर में
उत्तर:
(B) राजापुर में

3. बांदा ज़िला भारत के किस प्रदेश में स्थित है?
(A) मध्य प्रदेश में
(B) पश्चिमी बंगाल में
(C) उत्तर प्रदेश में
(D) बिहार में
उत्तर:
(C) उत्तर प्रदेश में

4. तुलसीदास का निधन कब हुआ?
(A) सन् 1619 में
(B) सन् 1621 में
(C) सन् 1622 में
(D) सन् 1623 में
उत्तर:
(D) सन् 1623 में

5. तुलसीदास का निधन कहाँ पर हुआ?
(A) इलाहाबाद में
(B) काशी में
(C) लखनऊ में
(D) कानपुर में
उत्तर:
(B) काशी में

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 8 कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप

6. ‘रामचरितमानस’ के रचयिता का नाम लिखिए।
(A) तुलसीदास
(B) कबीरदास
(C) सूरदास
(D) केशवदास
उत्तर:
(A) तुलसीदास

7. ‘रामचरितमानस’ किस विधा की रचना है?
(A) मुक्तक काव्य
(B) गीति काव्य
(C) महाकाव्य
(D) खंड काव्य
उत्तर:
(C) महाकाव्य

8. ‘रामचरितमानस’ में कुल कितने कांड हैं?
(A) छह कांड
(B) सात कांड
(C) आठ कांड
(D) नौ कांड
उत्तर:
(B) सात कांड

9. ‘रामचरितमानस’ में किस भाषा का प्रयोग हुआ है?
(A) साहित्यिक अवधी
(B) साहित्यिक हिंदी
(C) भोजपुरी
(D) खड़ी बोली
उत्तर:
(A) साहित्यिक अवधी

10. ‘कवितावली’ के रचयिता का नाम क्या है?
(A) सूरदास
(B) केशवदास
(C) तुलसीदास
(D) कबीरदास
उत्तर:
(C) तुलसीदास

11. ‘रामचरितमानस’ में किस छंद का प्रयोग हुआ है?
(A) सवैया छंद
(B) कवित्त छंद
(C) हरिगीतिका छंद
(D) दोहा-चौपाई छंद
उत्तर:
(D) दोहा-चौपाई छंद

12. किसबी किसान कुल …………. तुलसीदास की किस काव्य-रचना से अवतरित है?
(A) रामचरितमानस
(B) कवितावली
(C) दोहावली
(D) विनयपत्रिका
उत्तर:
(B) कवितावली

13. ‘अस कहि आयसु पाई पद बंदि चलेऊ हनुमत’ यहाँ ‘आयसु’ का अर्थ है-
(A) आ गया
(B) अवज्ञा
(C) आज्ञा
(D) संकेत
उत्तर:
(C) आज्ञा

14. ‘कवितावली’ कविता के अनुसार लोगों में कौन-सी भावना नहीं रह गई है?
(A) धर्म-अधर्म
(B) दुःख-सुख
(C) अच्छे-बुरे
(D) रोजी-रोटी
उत्तर:
(A) धर्म-अधर्म

15. ‘आगि बड़वागिते बड़ी है आगि पेटकी’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) अनुप्रास
(B) उपमा
(C) व्यतिरेक
(D) विभावना
उत्तर:
(C) व्यतिरेक

16. वेदों और पुराणों के अनुसार संकट के समय कौन सहायता करता है?
(A) देवता
(B) प्रभु राम
(C) नेता लोग
(D) अफसर
उत्तर:
(B) प्रभु राम

17. ‘कवितावली’ में किस भाषा का प्रयोग किया गया है?
(A) अवधी
(B) ब्रज
(C) मैथिली
(D) ब्रजावधी
उत्तर:
(D) ब्रजावधी

18. ‘लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ रामचरितमानस के किस कांड में से लिया गया है?
(A) लंका कांड
(B) अयोध्या कांड
(C) सुन्दर कांड
(D) किष्किंधा कांड
उत्तर:
(A) लंका कांड

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 8 कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप

19. ‘लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ शीर्षक प्रसंग किस भाषा में रचित है?
(A) ब्रज।
(B) अवधी
(C) खड़ी बोली
(D) भोजपुरी
उत्तर:
(B) अवधी

20. ‘उमा एक अखंड रघुराई’ पंक्ति में ‘उमा’ शब्द का क्या अर्थ है?
(A) शची
(B) उर्वशी
(C) शारदा
(D) पार्वती
उत्तर:
(D) पार्वती

21. लक्ष्मण के जीवित होने की खबर सुनकर रावण किसके पास गया?
(A) मेघनाद
(B) विभीषण
(C) कुंभकरण
(D) सुषेण
उत्तर:
(C) कुंभकरण

22. कवितावली से उद्धृत दो कवित्तों में कवि ने किसका वर्णन किया है?
(A) सामाजिक स्थिति का
(B) धार्मिक स्थिति का
(C) आर्थिक विषमता का
(D) राजनीतिक स्थिति का
उत्तर:
(C) आर्थिक विषमता का

23. ‘सहेहु विपिन हिम आतप बाता’- यहाँ ‘आतप’ का अर्थ है-
(A) तपस्या
(B) धूप
(C) पवन
(D) शीत
उत्तर:
(B) धूप

24. श्रीराम ने लक्ष्मण को हृदय से लगाया तो कौन हर्षित हुए?
(A) हनुमान
(B) सुषेण वैद
(C) भालु-कपि-समूह
(D) लक्ष्मण
उत्तर:
(C) भालु-कपि-समूह

25. लक्ष्मण किसको दुःखी नहीं देख सकते थे?
(A) माता-पिता को
(B) हनुमान को
(C) श्रीराम को
(D) गुरु को
उत्तर:
(C) श्रीराम को

26. तुलसीदास के गुरु का नाम क्या था?
(A) रामानन्द
(B) नरहरिदास
(C) स्वामी वल्लभाचार्य
(D) सुखदेव
उत्तर:
(B) नरहरिदास

27. तुलसीदास ने किसके पास रहकर पंद्रह वर्षों तक वेदों का अध्ययन किया?
(A) नरहरिदास के पास
(B) रामानन्द के पास
(C) शेष सनातन के पास
(D) वल्लभाचार्य के साथ
उत्तर:
(C) शेष सनातन के पास

28. ‘जानकी मंगल’ किस प्रकार की रचना है?
(A) प्रबंध काव्य
(B) खंड काव्य
(C) गीति काव्य
(D) मुक्तक काव्य
उत्तर:
(C) गीति काव्य

29. तुलसी की कीर्ति का आधार स्तंभ है-
(A) कवितावली
(B) रामचरितमानस
(C) पार्वती मंगल
(D) विनय पत्रिका
उत्तर:
(B) रामचरितमानस

30. ‘नारि हानि विशेष छति नाहीं यहाँ ‘छति’ का अर्थ है-
(A) छाता
(B) हानि
(C) लाभ
(D) छत
उत्तर:
(B) हानि

31. ‘लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ में कवि ने राम के किस रूप का वर्णन किया है?
(A) ईश्वर रूप का
(B) देवता रूप का
(C) राजा रूप का
(D) मानव रूप का
उत्तर:
(D) मानव रूप का

32. हनुमान जी संजीवनी बूटी लेकर आए तो कवि ने करुण रस में किस रस के समावेश की कल्पना की है?
(A) वीर
(B) शांत
(C) श्रृंगार
(D) हास्य
उत्तर:
(A) वीर

33. ‘जगदंबा हरि आनि अब सठ चाहत कल्यान’ यह पंक्ति किसने कही?
(A) राम
(B) लक्ष्मण
(C) कुम्भकरण
(D) रावण
उत्तर:
(C) कुम्भकरण

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34. श्रीराम का विलाप सुनकर कौन विकल हो गए?
(A) हनुमान
(B) लक्ष्मण
(C) भालू
(D) वानर
उत्तर:
(D) वानर

35. राम जी के एकनिष्ठ भक्त कौन थे?
(A) नील
(B) जामवंत
(C) सुग्रीव
(D) हनुमान
उत्तर:
(D) हनुमान

36. ‘सहेहु विपिन हिम आतप बाता’-यहाँ बाता का अर्थ है-
(A) ‘धूप
(B) शीत
(C) धन
(D) हवा
उत्तर:
(D) हवा

37. ‘पुनि-पुनि’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार
(B) अनुप्रास अलंकार
(C) यमक अलंकार
(D) श्लेष अलंकार
उत्तर:
(A) पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार

38. जागने पर कुम्भकर्ण किसकी तरह देह धारण किए दिखाई दिया?
(A) राक्षस
(B) काल
(C) पशु
(D) जानवर
उत्तर:
(A) राक्षस

39. तुलसीदास की पत्नी का नाम क्या था?
(A) गीता
(B) पार्वती
(C) रत्नावली
(D) सावित्री
उत्तर:
(C) रत्नावली

40. ‘निज जननी के एक कुमारा’ पंक्ति किस पात्र ने कही है?
(A) भरत ने
(B) लक्ष्मण ने
(C) राम ने
(D) हनुमान ने
उत्तर:
(C) राम ने

41. तुलसी के पिता का नाम क्या था?
(A) आत्माराम दूबे
(B) परसराम दूबे
(C) मंगतराम दूबे
(D) सदाराम दूबे
उत्तर:
(A) आत्माराम दूबे

42. लक्ष्मण के मूर्छित होने पर सामान्य मनुष्य की तरह कौन विलाप करने लगता है?
(A) हनुमान
(B) सुग्रीव
(C) सीता
(D) राम
उत्तर:
(D) राम

43. भरत के बाहुबल एवं शील के प्रशंसक का नाम लिखिए-
(A) मयंद
(B) अंगद
(C) सुग्रीव
(D) पवन कुमार
उत्तर:
(D) पवन कुमार

44. श्रीराम के मतानुसार पंखों के बिना किसकी स्थिति दयनीय होती है?
(A) वानर की
(B) मछली की
(C) पक्षी की
(D) सर्प की
उत्तर:
(C) पक्षी की

45. ‘अर्ध राति गइ कपि नहिं आयउ’ काव्यांश में किस पात्र के न आने का वर्णन है?
(A) सुग्रीव
(B) मयंद
(C) अंगद
(D) हनुमान
उत्तर:
(D) हनुमान

46. ‘सहेह विपिन हिम आतप बाता’ पंक्ति में ‘आतप’ का क्या अर्थ है?
(A) आपदा
(B) सूर्य
(C) धूप
(D) तपस्या
उत्तर:
(C) धूप

कवितावली (उत्तर कांड से) पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] किसबी, किसान-कुल, बनिक, भिखारी, भाट,
चाकर, चपल नट, चोर, चार, चेटकी।
पेटको पढ़त, गुन गढ़त, चढ़त गिरि,
अटत गहन-गन अहन अखेटकी ॥
ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि,
पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी।
‘तुलसी’ बुझाइ एक राम घनस्याम ही तें,
आगि बड़वागितें बड़ी है आगि पेटकी॥ [पृष्ठ-48]

शब्दार्थ-किसबी = धंधा करने वाले। बनिक = व्यापारी। भाट = चारण। चाकर = नौकर। चपल नट = उछलने-कूदने वाले कलाकार। चार = दूत। चेटकी = बाजीगर। गुन गढ़त = कलाओं और विद्याओं को सीखते हैं। गिरि = पर्वत। अटत = घूमना। गहन-गन = घना जंगल। अहन = भिन्न। अखेटकी = शिकारी। अधरम = पाप। घनस्याम = काला बादल। बड़वागी = जंगल की आग। .

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘कवितावली’ के उत्तर कांड के पदों में से लिया गया है। इसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास हैं। प्रस्तुत कवित्त में कवि
तत्कालीन समाज की बेरोजगारी और गरीबी पर प्रकाश डालता हुआ कहता है कि-

व्याख्या-मेहनत करने वाले मजदूर, किसान, व्यापारी, भिखारी, चारण, नौकर, कुशल, नट, चोर, दूत तथा बाज़ीगर आदि पेट भरने के लिए तरह-तरह के गण गढ़ते हैं, ऊँचे पर्वतों पर चढ़ते हैं और दिन भर घने जंगलों में शिकार करते हुए घूमते रहते हैं। भाव यह है कि अपना पेट भरने के लिए लोग कलाएँ और विद्याएँ सीख रहे हैं। पहाड़ों पर चढ़कर आजीविका खोज रहे हैं अथवा जंगलों में शिकार करके अपना पेट भरना चाहते हैं। कवि पुनः कहता है कि लोग अपना पेट भरने के लिए ऊँचे-नीचे कर्म करते हैं और धर्म-अधर्म की परवाह न करके अच्छे-बुरे काम करते हैं। यहाँ तक कि लोग अपने पेट के लिए बेटा-बेटी को बेचने के लिए ‘मजबूर हो गए हैं। यह कटु सत्य है कि पेट की आग समुद्र की आग से भी अधिक शक्तिशाली होती है। तुलसीदास कहते हैं कि यह भूख राम रूपी घनश्याम की कृपा से ही दूर हो सकती है। भाव यह है कि उसने अपने दयालु राम की कृपा से ही भूख को मिटा दिया है, परंतु देश के अन्य लोग भूख और बेरोजगारी के कारण बड़े ही व्याकुल हैं।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने अपने युग की यथार्थता का प्रभावशाली वर्णन किया है।
  2. कवि का कथन है कि पेट की आग सर्वाधिक प्रबल आग है जो मनुष्य को बेटा-बेटी तक बेचने को मजबूर कर देती है।
  3. संपूर्ण पद में अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।
  4. ‘राम घनस्याम’ में रूपक अलंकार का प्रयोग है। ‘आगी-बड़वागितें बड़ी है आगि पेटकी’ में गतिरेक अलंकार का प्रयोग है।
  5. यहाँ सहज एवं सरल साहित्यिक ब्रजावधी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  6. शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  7. कवित्त छंद का प्रयोग है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ख) कौन लोग पेट भरने के लिए मारे-मारे भटक रहे हैं?
(ग) भूख और गरीबी का सर्वाधिक मार्मिक दृश्य कौन-सा है?
(घ) कवि की भूख कैसे शांत हुई?
(ङ) लोग दिनभर घने जंगलों में शिकार क्यों करते हैं?
उत्तर:
(क) कवि-गोस्वामी तुलसीदास                    कविता-कवितावली

(ख) मज़दूर, किसान, व्यापारी, भिखारी, चारण-भाट, नौकर, चंचल-नट, चोर, दूत तथा बाज़ीगर और शिकारी अपना पेट भरने के लिए मारे-मारे भटक रहे हैं।

(ग) भूख और गरीबी का मार्मिक दृश्य यह है कि पेट भरने के लिए लोग मजबूर होकर अपने बेटे-बेटियों को बेच रहे हैं।

(घ) कवि की भूख दयालु राम रूपी घनश्याम की कृपा से दूर हो गई है। भाव यह है कि राम ने बादल बनकर स्वयं कवि को भोजन दिया।

(ङ) लोग अपना पेट भरने के लिए दिनभर जंगलों में भटकते रहते हैं और शिकार करते हैं। m सप्रसंग व्याख्या

[2] खेती न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि,
बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी।
जीविका बिहीन लोग सीधमान सोच बस,
कहैं एक एकन सों ‘कहाँ जाई, का करी?’
बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत,
साँकरे सबै पै, राम! रावर कृपा करी।
दारिद-दसानन दबाई दुनी, दीनबंधु।
दुरित-दहन देखि तुलसी हहा करी ॥ [पृष्ठ-48]

शब्दार्थ-बनिज = व्यापार। सीद्यमान = परेशान, दुखी। बेदहूँ = वेद में भी। लोकहूँ = लोक में भी। साँकरे = संकट। रावरें = आपने। दारिद = दरिद्रता। दबाई = दबाया। दुरित = पाप। हहा करी = दुखी होना।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘कवितावली’ के उत्तर कांड के पदों में से लिया गया है। इसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास हैं। यहाँ कवि अपने समय की सामाजिक और आर्थिक दुर्दशा का यथार्थ वर्णन करता है। कवि कहता है कि उसके काल में लोग बेरोज़गारी के कारण अत्यधिक व्याकुल थे।

व्याख्या – कवि का कथन है कि ऐसा बुरा समय आ गया है कि देश में किसान के पास खेती करने के साधन नहीं हैं और भिखारी को भीख नहीं मिलती। व्यापारी को व्यापार नहीं मिलता और नौकर को नौकरी नहीं मिलती। भाव यह है कि न किसान के पास खेती है, न व्यापारी को व्यापार मिल रहा है और न ही नौकर को कोई अच्छी नौकरी मिल रही है। सभी लोग आजीविका न होने के कारण दुखी होकर एक-दूसरे से कहते हैं कि कहाँ जाएँ और क्या करें। कोई रास्ता दिखाई नहीं देता अर्थात् काम-धंधा न होने के कारण लोग व्याकुल और परेशान हैं।

कवि प्रभु राम में अपनी आस्था प्रकट करता हुआ कहता है हे राम! वेदों और पुराणों में यह बात लिखी हुई है और संसार में भी अकसर ऐसा ही देखा जाता है कि संकट के समय में आपकी कृपा से ही संकट दूर होता है। हे दीनबंधु राम! दरिद्रता रूपी रावण ने सारी दुनिया को दबा रखा है अर्थात् सभी लोग गरीबी के शिकार बने हुए हैं। चारों ओर पाप का जाल बिछा हुआ है। सभी लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। हे प्रभु! इस संकट के समय आप ही सहायता कर सकते हैं।

विशेष-

  1. इस कवित्त में कवि ने अपने समय की बेरोज़गारी की समस्या का यथार्थ वर्णन किया है।
  2. कवि ने श्रीराम को दीनबंधु और कृपालु कहकर अपनी दास्य भावना की अभिव्यक्ति को व्यक्त किया है।
  3. संपूर्ण पद में अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।
  4. ‘दारिद-दसानन’ तथा ‘दुरित-दहन’ में रूपक अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है।
  5. सहज एवं सरल साहित्यिक तथा ब्रजावधी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  6. शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  7. कवित्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 8 कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) किसान, भिखारी, व्यापारी तथा नौकर किसलिए परेशान हैं?
(ख) कवि ने दरिद्रता की तुलना किसके साथ की है और क्यों?
(ग) वेदों पुराणों में क्या लिखा हुआ है?
(घ) सब ओर त्राहि-त्राहि क्यों मची हुई है?
उत्तर:
(क) किसान, भिखारी, व्यापारी और नौकर रोज़गार न मिलने के कारण अत्यधिक परेशान हैं, क्योंकि रोज़गार के बिना वे अपना और अपने परिवार का पेट नहीं भर सकते।

(ख) कवि ने दरिद्रता की तुलना रावण के साथ की है। रावण ने भी सारे संसार को दबाकर रखा हुआ था और लोगों पर अनेक प्रकार के अत्याचार कर रहा था। उसी प्रकार दरिद्रता ने भी लोगों को दुखी और व्याकुल कर रखा है, अतः यह रूपक बड़ा ही सटीक बन पड़ा है।

(ग) वेदों और पुराणों में यह लिखा है कि संकट के समय राम ही अर्थात् भगवान ही कृपा करते हैं। इसलिए लोग भुखमरी और बेरोजगारी के अवसर पर राम की कृपा चाहते हैं।

(घ) बेरोजगारी, भुखमरी और गरीबी के कारण लोग बहुत परेशान और व्याकुल हैं। लोगों को पेट-भर भोजन नहीं मिलता। लोग दरिद्रता रूपी रावण के शिकार बने हुए हैं। इसलिए सब ओर त्राहि-त्राहि मची हुई है।

[3] धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूतु कहौ, जोलहा कहौ कोऊ।
काहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब, काहूकी जाति बिगार न सोऊ।
तुलसी सरनाम गुलामु है राम को, जाको रुचै सो कहै कछु ओऊ ॥
माँगि कै खैबो, मसीत को सोइबो, लैबोको एक न दैबको दोऊ। [पृष्ठ-48]

शब्दार्थ-धूत = धूर्त। अवधूत = वीतरागी (संन्यासी)। रजपूतु = क्षत्रिय। कोऊ = कोई। काहू = किसी की। ब्याहब = विवाह करना। बिगार = बिगाड़ना। सरनाम = प्रसिद्ध। गुलामु = दास। रुचै = अच्छा लगे। ओऊ = और। खैबो = खाना। मसीत = मस्जिद। लैबोको = लेना। दैबो = देना।

प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘कवितावली’ के उत्तर कांड के पदों में से लिया गया है। इसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास हैं। यहाँ कवि स्वीकार करता है कि वह राम की भक्ति में मस्त है। उसे लोक-निंदा की कोई परवाह नहीं है।।

व्याख्या – यहाँ गोस्वामी तुलसीदास दुनिया के लोगों को स्पष्ट कहते हैं कि यदि आप मुझे धूर्त और मक्कार कहें या संन्यासी कहें तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। चाहे मुझे राजपूत अर्थात् क्षत्रिय कहें या जुलाहा कहें, इन नामों की भी मुझे कोई परवाह नहीं है। मुझे किसी की बेटी के साथ अपने बेटे का विवाह नहीं करना जिससे किसी की जाति बिगड़ जाए। मैं तुलसीदास तो संसार में राम के दास के रूप में प्रसिद्ध हूँ, अतः मुझे किसी की कोई चिंता नहीं है। जिसको भी मेरे बारे में जो अच्छा लगता है वह बड़े शौक से कह सकता है। मुझे लोगों के द्वारा की गई प्रशंसा या निंदा से कुछ लेना-देना नहीं। मैं माँगकर रोटी खाता हूँ और मस्जिद में जाकर सो जाता हूँ। न मैं किसी से एक लेता हूँ और न किसी को दो देता हूँ। मैं हमेशा अपनी धुन में मस्त रहता हूँ।

विशेष-

  1. इस पद से पता चलता है कि तुलसीदास को अपने जीवन में अनेक अपवादों और विरोधों का सामना करना पड़ा था। परंतु कवि ने अपने विरोधियों की परवाह न करके राम-भक्ति में मस्त होकर अपना जीवन गुज़ार दिया।
  2. संपूर्ण पद में दास्य भक्तिभाव की अभिव्यक्ति हुई है।
  3. संपूर्ण पद में अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग देखा जा सकता है।
  4. ‘लेना एक न देना दो’ मुहावरे का प्रभावशाली प्रयोग देखा जा सकता है।
  5. सहज एवं सरल साहित्यिक तथा ब्रजावधी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  6. सवैया छंद का सफल प्रयोग हुआ है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि के स्वर में क्षोभ का क्या कारण हो सकता है?
(ख) कवि को किस बात पर गर्व है?
(ग) तुलसीदास अपना जीवन किस प्रकार चलाते थे?
(घ) क्या तुलसीदास एक फक्कड़ संत कवि थे?
उत्तर:
(क) इस पद से यह पता चलता है कि कवि को अपने जीवन काल में अनेक अपवादों और विरोधों का सामना करना पड़ा। लोग उनकी जाति को लेकर भली-बुरी बातें करते थे। यही कारण है कि कवि के स्वर में क्षोभ दिखाई दे रहा है।

(ख) कवि को इस बात का गर्व है कि वह राम का भक्त है और उसी की कृपा से वह जीवनयापन कर रहा है। उसने स्पष्ट लिखा भी है ‘तुलसी सरनाम गुलामु है राम को’।

(ग) कवि के पास आजीविका का कोई साधन नहीं था और न ही उसके पास रहने के लिए कोई घर था। इसलिए वे भीख माँग कर खा लेते थे और मस्जिद में जाकर सो जाते थे।

(घ) इस पद से पता चलता है कि तुलसीदास के पास कोई घर-गृहस्थी नहीं थी। उन्हें सांसारिक मान-मर्यादाओं की भी चिंता नहीं थी। उन्हें अपनी जाति की भी कोई चिंता नहीं थी। इसलिए वे कहते हैं कि मैंने किसी की बेटी के साथ अपने बेटे की शादी नहीं करनी। वे मान-अपमान से ऊपर उठ चुके थे और लोक-निंदा की भी परवाह नहीं करते थे। इसलिए वे कहते हैं कि जिसने मेरे बारे में जो कुछ भी कहना है, खुलकर कहो। मुझे किसी की चिंता नहीं है। इसलिए कवि को फक्कड़ संत कहा जा सकता है।

लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

दोहा
[1] तव प्रताप उर राखि प्रभु जैहऊँ नाथ तुरंत।
अस कहि आयसु पाइ पद बंदि चलेउ हनुमंत।।
भरत बाहु बल सील गुन प्रभु पद प्रीति अपार।
मन महुँ जात सराहत पुनि पुनि पवनकुमार॥ [पृष्ठ-49]

शब्दार्थ-तव = तुम्हारा। प्रताप = यश। उर = हृदय। राखि = रखकर। जैहऊँ = जाऊँगा। अस = इस प्रकार। आयसु = आज्ञा। पद = चरण। बंदि = वंदना करके। बाहु = भुजा। सील = सद्व्यवहार। प्रीति = प्रेम । महुँ = में। अपार = अत्यधिक। सराहत = प्रशंसा करना। पुनि पुनि = बार-बार। पवनकुमार = हनुमान।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित रामचरितमानस के लंका कांड के ‘लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ में से अवतरित है। इसके कवि गोस्वामी तुलसीदास हैं। यहाँ कवि उस प्रसंग का वर्णन करता है जब हनुमान मूर्छित लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी लेकर लौट रहे होते हैं और मार्ग में भरत अनर्थ की आशंका से उन्हें नीचे उतार लेते हैं।

व्याख्या – हनुमान ने भरत से कहा हे प्रभु! आप बड़े प्रतापी और यशस्वी हैं। इस बात को हृदय में धारण करके मैं शीघ्र ही प्रभु श्रीराम के पास चला जाऊँगा। यह कहकर हनुमान ने भरत के चरणों की वंदना की और उनकी आज्ञा पाकर लंका के लिए प्रस्थान कर दिया। हनुमान भरत के बाहु-बल (वीरता), उनके सद्व्यवहार, विविध गुणों तथा राम के चरणों से अपार प्रेम देखकर मन-ही-मन उनकी बार-बार सराहना करते हुए चले जा रहे थे।

विशेष –

  1. इन दोहों में कवि ने भरत की वीरता, प्रताप तथा उनके शील का सुंदर वर्णन किया है।
  2. अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकारों का सफल प्रयोग किया गया है।
  3. सहज एवं सरल साहित्यिक अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है।
  4. शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. दोहा छंद का सफल प्रयोग हुआ है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 8 कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ख) हनुमान भरत की किस बात से प्रभावित हुए?
(ग) भरत और राम के संबंध कैसे थे?
(घ) आपके विचार में भरत और हनुमान में कौन-सी समानता दिखाई देती है?
उत्तर:

  • कवि-गोस्वामी तुलसीदास                           कविता-लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप
  • हनुमान भरत के प्रताप, उनके बाहुबल, सद्व्यवहार तथा राम के चरणों के प्रति प्रेम को देखकर अत्यधिक प्रभावित हुए।
  • भरत राम से अत्यधिक प्रेम और स्नेह करते थे। उनके मन में राम के प्रति भक्ति-भावना भी थी।
  • भरत और हनुमान दोनों ही श्रीराम के सच्चे भक्त थे। भरत भी राम की भक्ति करते थे और हनुमान भी। दोनों में यही समानता है।

[2] उहाँ राम लछिमनहि निहारी। बोले बचन मनुज अनुसारी॥
अर्ध राति गइ कपि नहिं आयउ। राम उठाइ अनुज उर लायऊ॥
सकहु न दुखित देखि मोहि काऊ। बंधु सदा तव मूदुल सुभाऊ॥
मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता।
सो अनुराग कहाँ अब भाई। उठहु न सुनि मम बच बिकलाई।
जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। पितु बचन मनतेउँ नहिं ओहू। [पृष्ठ-49-50]

शब्दार्थ-उहाँ = वहाँ। निहारी = देखकर। मनुज = मानव। अर्ध = आधी। कपि = वानर/हनुमान। आयउ = आया। अनुज = छोटा भाई। उर = हृदय। सकहु = सकते। तव = तुम्हारा। मूल = कोमल। मम हित = मेरे लिए। बिपिन = जंगल। हिम = ठंड। आतप = गर्मी। बाता = वायु/आंकी। अनुराग = प्रेम। मम = मेरे। वच = वचन। बिकलाई = व्याकुल। जनतेउँ = जानता। बिछोहू = वियोग। मनतेउँ = मानता। ओहू = उसे।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित रामचरितमानस के ‘लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ में से अवतरित है। इसके कवि गोस्वामी तुलसीदास हैं। यहाँ कवि ने उस स्थिति का वर्णन किया है जब राम हनुमान द्वारा लाई जाने वाली संजीवनी की प्रतीक्षा करते हैं और अपने अनुज लक्ष्मण को मूर्छित देखकर विलाप करते हैं।

व्याख्या-वहाँ जब राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को मूर्च्छित देखा तो वे एक सामान्य मानव के समान विलाप करने लगे। भाव यह है कि लक्ष्मण की मूर्छा के कारण राम अत्यधिक व्याकुल हो चुके थे। इसलिए वे एक साधारण मानव के समान रोने लगे। विलाप करते हुए वे कहते हैं कि आधी रात व्यतीत हो चुकी है, परंतु हनुमान अभी तक नहीं आया। राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को अपनी छाती से लगा लिया और विलाप करते हुए कहने लगे कि तुम्हारा स्वभाव तो इतना कोमल था कि तुम मेरे दुख को भी देख नहीं सकते थे, तुमने हमेशा दुख में मेरा साथ दिया। मेरे लिए तुमने अपने माता-पिता का त्याग किया और वन में रहते हुए सर्दी, गर्मी और तूफान को सहन किया। भाव यह है कि लक्ष्मण ने अयोध्या नगरी का सुविधापूर्ण जीवन त्यागकर वनवास में राम का साथ दिया। श्रीराम कहते हैं हे भाई! मेरे प्रति तुम्हारा वह स्नेह कहाँ चला गया। तुम मेरे व्याकुल वचनों को सुनकर क्यों नहीं उठ खड़े होते। यदि मुझे पता होता कि वन में अपने भाई से मेरा वियोग होगा तो मैं पिता की आज्ञा कभी नहीं मानता। भाव यह है कि राम लक्ष्मण का वियोग एक क्षण के लिए भी सहन नहीं कर सकते।

विशेष –

  1. यहाँ राम के द्वारा बोले गए करुण वचन एक सामान्य मानव के समान हैं। राम के ये वचन भावपूर्ण होने के साथ-साथ लक्ष्मण के आदर्श चरित्र पर भी प्रकाश डालते हैं।
  2. अनुप्रास, पद-मैत्री तथा स्वर-मैत्री अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है।
  3. तत्सम् प्रधान साहित्यिक अवधी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  4. शब्द-चयन सर्वथा उचित और सटीक है।
  5. प्रस्तुत पद में चौपाई छंद का कुशल निर्वाह हुआ है तथा बिंब-योजना भी सुंदर बन पड़ी है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) तुलसीदास ने यहाँ राम के किस रूप का वर्णन किया है?
(ख) राम ने किस प्रकार अपनी चिंता और कातरता को व्यक्त किया?
(ग) मूर्छित लक्ष्मण को देखकर राम ने विलाप करते हुए क्या कहा?
(घ) लक्ष्मण ने राम के लिए क्या-क्या कष्ट सहन किए?
उत्तर:
(क) यूँ तो तुलसीदास ने राम को भगवान विष्णु का अवतार माना है और उनको मर्यादा पुरुषोत्तम कहा है, लेकिन यहाँ कवि ने राम का एक सामान्य मानव के रूप में चित्रण किया है। वे पृथ्वी पर अवतार लेकर अवतरित हुए और उन्होंने अपनी मानव लीला दिखाई। इसलिए ‘बोले बचन मनुज अनुसारी’ उपयुक्त शब्दों का प्रयोग किया गया है।

(ख) लक्ष्मण को मूर्च्छित देखकर राम पहले ही अत्यधिक चिंतित थे। उस पर हनुमान ने भी संजीवनी लाने में देर कर दी थी। इसलिए राम ने व्याकुल होकर लक्ष्मण को उठाकर अपने गले से लगा लिया और विलाप करते हुए लक्ष्मण से मोहपूर्ण बातें करने लगे।

(ग) लक्ष्मण को मूर्छित देखकर राम ने बड़े भावपूर्ण वचन कहे। राम ने कहा हे अनुज लक्ष्मण! तुम तो बड़े ही कोमल स्वभाव के रहे हो और तुमने मेरी दुख में भी रक्षा की है। मेरे लिए तुमने माता-पिता को त्याग दिया और वनवास में मेरे साथ रहते हुए सर्दी-गर्मी और आँधी-तूफान को सहन किया। तुम्हारा वह अनुराग अब कहाँ चला गया है। तुम मेरे व्याकुल वचनों को सुनकर क्यों नहीं उठ खड़े होते। यदि मुझे पता होता कि वन में आकर मैं तुमसे अलग हो जाऊँगा तो मैं कभी भी अपने पिता की आज्ञा को न मानता।

(घ) वस्तुतः केवल राम को ही वनवास मिला था, परंतु लक्ष्मण ने अयोध्या की सुख-सुविधाओं को त्यागकर राम के साथ वन-गमन का निश्चय किया। यही नहीं, उसने अपनी नव-विवाहित पत्नी उर्मिला का त्याग किया और राम के साथ वन में रहते हुए गर्मी-सर्दी तथा आँधी-तूफान के कष्टों को सहन किया।

[3] सुत बित नारि भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारहिं बारा।
अस बिचारि जिय जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता॥
जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।
अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जौं जड़ दैव जिआवै मोही॥
जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई। नारि हेतु प्रिय भाइ गँवाई॥
बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं। नारि हानि बिसेष छति नाहीं। [पृष्ठ-50]

शब्दार्थ-सुत = पुत्र। बित = धन। होहिं जाहिं = हो जाते हैं। बारहिं बारा = बार-बार। बिचारि = विचार करके। जिY = मन में। जागहु = जागो। ताता = प्रिय भाई। सहोदर = सगा भाई। जथा = जिस प्रकार। दीना = दुखी। फनि = साँप। करिबर = हाथी। हीना = से रहित। तोही = तेरे। जौ = यदि। जड़ = कठोर। दैव = भाग्य। जिआवै = जीवित रखे। जैहउँ = जाऊँगा। मुहँ लाई = मुँह लेकर। अपजस = कलंक। सहतेउँ = सहता रहँगा। माहीं = में। छति = नुकसान, हानि।।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित रामचरितमानस के ‘लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ में से उद्धृत है। इसके कवि गोस्वामी तुलसीदास हैं। यहाँ राम मूर्छित लक्ष्मण को संबोधित करते हुए पुनः कहते हैं कि

व्याख्या इस संसार में पुत्र, धन, पत्नी, भवन और परिवार बार-बार प्राप्त होते रहते हैं और नष्ट होते रहते हैं अर्थात् ये जीवन में आते हैं और चले भी जाते हैं, परंतु हे भाई! तुम अपने मन में यह विचार करके जाग जाओ कि सगा भाई पुनः प्राप्त नहीं होता। हे भाई लक्ष्मण! जिस प्रकार पंखों के बिना पक्षी दीन हो जाता है और मणि के बिना साँप तथा सूड के बिना हाथी दीन-हीन हो जाता है। यदि विधाता मुझे तुम्हारे बिना जीवित रखता है तो तुम्हारे बिना मेरी भी हालत ऐसी ही होगी।

हे प्रिय भाई! मैं अयोध्या में क्या मुँह लेकर जाऊँगा। मेरे बारे में लोग कहेंगे कि मैंने अपनी नारी के लिए प्रिय भाई को खो दिया। मैं नारी को खोने का अपयश तो सहन कर लूँगा क्योंकि लोग मुझे कायर कहेंगे, लेकिन मैं भाई को खोने का दुख बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगा। मेरे लिए पत्नी की हानि कोई बहुत बड़ी बात नहीं है, परंतु भाई की हानि बहुत बड़ी बात है।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने राम को मानव के रूप में प्रस्तुत करते हुए उनकी कथा और पीड़ा का मार्मिक वर्णन किया है।
  2. राम का भ्रातृ-प्रेम अधिक प्रशंसनीय है। वे पत्नी, पुत्र, धन, भवन आदि की तुलना में अपने भाई लक्ष्मण को अधिक महत्त्व देते हैं।
  3. राम ने अनेक दृष्टांत देकर अपने भ्रातृ-भाव पर प्रकाश डाला है।
  4. ‘जो पंख बिनु में उदाहरण अलंकार है।
  5. संपूर्ण पद में अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।
  6. सहज एवं सरल साहित्यिक अवधी भाषा का सफल प्रयोग है। शब्द-चयन सर्वथा सटीक और उचित है।
  7. चौपाई छंद तथा करुण रस का सुंदर परिपाक है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) राम ने सहोदर भ्राता के महत्त्व का प्रतिपादन किस प्रकार किया है?
(ख) लक्ष्मण के बिना राम स्वयं को कैसा अनुभव करते हैं?
(ग) राम को लक्ष्मण के बिना अयोध्या लौटकर किस प्रकार की ग्लानि सहन करनी पड़ेगी?
(घ) ‘नारि हानि बिसेष छति नाहीं राम के इस कथन के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
(क) राम ने अपने सहोदर भाई लक्ष्मण को पुत्र, पत्नी, धन और भवन से भी बढ़कर माना है। मनुष्य पत्नी के मरने के बाद पुनः विवाह करके पुत्र, मकान आदि सब कुछ प्राप्त कर सकता है। लेकिन सहोदर भाई का जन्म उसके वश में नहीं होता। इसलिए राम ने भाई की हानि को सबसे बड़ी हानि सिद्ध किया है।

(ख) लक्ष्मण के बिना राम स्वयं को असमर्थ और शक्तिहीन समझते हैं। इसलिए वे कहते हैं कि जिस प्रकार पंखों के बिना पक्षी, मणि के बिना साँप तथा सूंड के बिना हाथी दीन-हीन हो जाते हैं, उसी प्रकार लक्ष्मण के बिना वे भी दीन-हीन हो गए हैं।

(ग) अयोध्या लौटने पर राम को लोगों के अनेक व्यंग्य सहने पड़ेंगे। नगर के लोग उसे लक्ष्मण के बिना देखकर यही कहेंगे कि यह वही राम है जिसने अपनी पत्नी को पाने के लिए सगे भाई को खो दिया।

(घ) राम ने नारी के बारे में यह टिप्पणी की है कि नारी की हानि कोई विशेष हानि नहीं है। यह बात भावावेश की स्थिति में कही गई है। अपने भाई लक्ष्मण को मूर्छित देखकर राम विलाप करने लगते हैं। इस स्थिति में एक सामान्य व्यक्ति अकसर अनर्गल बातें करता है। वह विलाप करता हुआ चीखता तथा चिल्लाता है। यहाँ राम ने भी भ्रातृ-शोक के कारण ये वचन कहे हैं। ये वचन कोई नीति वचन नहीं हैं। आज नारी का वही स्थान है जो पुरुष का है। अतः आधुनिक युग बोध के संदर्भ में इस युक्ति का कोई विशेष महत्त्व नहीं है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 8 कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप

[4] अब अपलोकु सोकु सुत तोरा। सहिहि निठुर कठोर उर मोरा॥
निज जननी के एक कुमारा। तात तासु तुम्ह प्रान अधारा॥
सौंपेसि मोहि तुम्हहि गहि पानी। सब बिधि सुखद परम हित जानी॥
उतरु काह देहउँ तेहि जाई। उठि किन मोहि सिखावहु भाई।
बहु बिधि सोचत सोच बिमोचन। स्रवत सलिल राजिव दल लोचन॥
उमा एक अखंड रघुराई। नर गति भगत कृपाल देखाई॥
सोरठा
प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर
आइ गयउ हनुमान जिमि करुना मँह बीर रस॥ [पृष्ठ-50]

शब्दार्थ-अपलोकु = अपयश। सोकु = दुख। तोरा = तेरा। उर = हृदय। मोरा = मेरा। कुमारा = पुत्र । तासु = उसके लिए। प्रान अधारा = प्राणों के आधार । सौंपेसि = सौंपा था। गहि = पकड़कर। पानी = हाथ। सब बिधि = हर तरह से। परम हित = सच्चा हितैषी। उतरु = उत्तर। तेहि = वहाँ। किन = क्यों नहीं। बहु बिधि = अनेक प्रकार से। सोच बिमोचन = शोक से मुक्ति देने वाले राम। स्रवत = बहता है। राजिव दल लोचन = कमल के समान खिले हुए नेत्र। उमा = पार्वती। रघुराई = रघुकुल के राजा राम। कृपाल = कृपालु । प्रलाप = विलाप। बिकल = व्याकुल। बानर निकर = बंदरों का समूह। जिमि = जैसे। मँह = में।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित रामचरितमानस के ‘लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ में से उद्धृत है। इसके कवि गोस्वामी तुलसीदास हैं। यहाँ विलाप करते हुए राम अपने मूर्च्छित भाई लक्ष्मण को संबोधित करते हुए पुनः कहते हैं

व्याख्या – हे पुत्र लक्ष्मण! अब तो मेरे कठोर हृदय को पत्नी खोने का अपयश और तुम्हारा शोक ये दोनों दुख सहन करने पड़ेंगे। भाव यह है कि तुम्हारे बिना मैं अपनी पत्नी सीता को भी नहीं पा सकता। हे भाई! तुम अपनी माता के एक ही पुत्र हो और उसके प्राणों के आधार हो। तुम्हारी माता सुमित्रा ने सब प्रकार से तुम्हारा सुख और कल्याण समझकर तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में सौंपा था।
अब तुम ही बताओ मैं लौटकर उन्हें क्या उत्तर दूंगा। हे भाई! तुम उठकर मुझे समझाते क्यों नहीं।

इस प्रकार सांसारिक प्राणियों की चिंताओं को दूर करने वाले राम स्वयं अनेक चिंताओं में डूब गए। कमल के समान उनके विशाल नेत्रों से आँसू टपकने लगे। इस प्रकार कथावाचक शिवजी ने पार्वती से कहा जो राम स्वयं परिपूर्ण और अनंत हैं, वे ही अपने भक्तों को कृपा करके नर लीला दिखा रहे हैं। भले ही वे विष्णु के अवतार हैं, लेकिन इस समय वे सामान्य मानव के समान आचरण कर रहे हैं। प्रभु श्रीराम के विलाप को सुनकर वानरों का समूह दुख से अत्यधिक व्याकुल हो गया। उसी समय हनुमान जी अचानक ऐसे प्रकट हो गए जैसे करुण रस में वीर रस प्रकट हो जाता है। भाव यह है कि हनुमान के आते ही शोक का वातावरण वीरता में बदल गया।

विशेष-

  1. यहाँ मर्यादा पुरुषोत्तम राम एक सामान्य मानव के रूप में करुणापूर्ण विलाप करते हुए भावपूर्ण वचन कह रहे हैं।
  2. यहाँ कवि ने राम के लिए तीन विशेषणों का प्रयोग किया है सोच बिमोचन, राजिव दल लोचन तथा रघुराई।
  3. ‘सोच बिमोचन’ में यमक अलंकार तथा ‘स्रवत सलिल’ में अनुप्रास अलंकार है।
  4. अन्यत्र संपूर्ण पद में अनुप्रास अलंकार की छटा देखी जा सकती है।
  5. सहज एवं सरल साहित्यिक अवधी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  6. प्रसाद गुण है तथा करुण रस का परिपाक है।
  7. चौपाई छंद तथा संवादात्मक शैली का प्रयोग हुआ है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) लक्ष्मण के मूर्छित होने पर राम के भावपूर्ण विलाप का वर्णन कीजिए।
(ख) लक्ष्मण की माता को याद करके राम किस प्रकार बेचैन हो गए?
(ग) विलाप करते-करते राम की कैसी दशा हो गई?
(घ) कवि ने राम के लिए किन विशेषणों का प्रयोग किया है? क्या वे सार्थक हैं?
(ङ) उमा को संबोधित करते हुए किसने क्या कहा?
उत्तर:
(क) लक्ष्मण के मर्छित होने पर राम विलाप करते हए कहने लगे हे भाई! अब तो मेरे कठोर हृदय को अपनी पत्नी का अपयश और तुम्हारा शोक दोनों सहन करने पड़ेंगे। तुम तो अपनी माता के एक ही पुत्र हो। उसके प्राणों के आधार हो। तुम्हारा सब प्रकार से कल्याण समझकर उसने तुम्हें मुझे सौंपा था, अब मैं अयोध्या लौटकर उन्हें क्या उत्तर दूंगा।

(ख) लक्ष्मण की माता सुमित्रा को याद करके राम उनके दुख की कल्पना करने लगे। वे सोचने लगे कि उनका तो एक ही बेटा था। यदि वह भी संसार से चला जाएगा तो उनकी क्या हालत होगी और कौन उस दुखिया माँ को सांत्वना देगा।

(ग) लक्ष्मण के मूर्छित हो जाने पर राम विलाप करने लगे। उनके विशाल नेत्रों से आँसुओं की धारा प्रवाहित होने लगी। वे कभी लक्ष्मण को संबोधित करते थे और कभी उसकी माता सुमित्रा को। वे पूर्णतया शोक पीड़ित और अत्यधिक व्याकुल थे।

(घ) कवि,ने राम के लिए ‘सोच बिमोचन’, ‘राजिव दल लोचन’ तथा ‘रघुराई तीन विशेषणों का प्रयोग किया है। सोच बिमोचन का अर्थ है-संसार के प्राणियों को चिंता से मुक्त करने वाले, राजिव दल लोचन का अर्थ है-जिनके नेत्र कमल के समान खिले हुए हैं, रघुराई शब्द का प्रयोग करके राम को रघुकुल का राजा कहा है।

(ङ) प्रस्तुत रामकथा के वाचक भगवान शिव हैं। उन्होंने अपनी पत्नी उमा को संबोधित करते हुए कहा कि भले ही राम संसार के सभी प्राणियों की चिंताओं को दर करने वाले हैं. परन्त इस समय वे दुखी होकर कमल के समान नेत्रों से आँस बहा रहे हैं। भले ही वे अखंड, अद्वितीय और अनंत हैं परंतु भक्तों पर कृपा करने के लिए वे अपनी नर लीला दिखा रहे हैं।

[5] हरषि राम भेटेउ हनुमाना। अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना।
तुरत बैद तब कीन्हि उपाई। उठि बैठे लछिमन हरषाई।
हृदयँ लाइ प्रभु भेटेउ भ्राता। हरषे सकल भालु कपि ब्राता।
कपि पुनि बैद तहाँ पहुँचावा। जेहि बिधि तबहिं ताहि लइ आवा।।
यह बृतांत दसानन सुनेऊ। अति बिषाद पुनि पुनि सिर धुनेऊ॥
व्याकुल कुंभकरन पहिं आवा। बिबिध जतन करि ताहि जगावा॥ [पृष्ठ-50]

शब्दार्थ-हरषि = प्रसन्न होकर। भेटेउ = भेंट की। कृतग्य = आभारी। सुजाना = ज्ञानी। बैद = वैद्य। उपाई = उपाय। हरषाई = प्रसन्न होकर। सकल = सारे। भालु = भालू जाति के वनवासी। ब्राता = समूह। कपि = वानर जाति के वनवासी। जेहि बिधि = जिस ढंग से। लइ आवा = ले आया था। बृतांत = वर्णन। सुनेऊ = सुना। बिषाद = दुख। सिर धुनेऊ = पछताया। पहिं = के पास। बिबिध = अनेक प्रकार के। जतन = प्रयत्न। जगावा = जगाया।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित रामचरितमानस के ‘लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ में से उद्धृत है। इसके कवि गोस्वामी तुलसीदास हैं। यहाँ कवि ने उस स्थिति का वर्णन किया है जब शोक के में हनुमान जी का अवतरण होता है। वे लक्ष्मण के उपचार के लिए संजीवनी लेकर आते हैं। उस प्रसंग का वर्णन करते हुए कवि तुलसीदास कहते हैं,

व्याख्या-प्रसन्न होकर श्रीराम ने हनुमान से भेंट की। परम ज्ञानी होते हुए भी राम ने हनुमान के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की अर्थात् उन्होंने हनुमान का उपकार माना। संजीवनी प्राप्त होते ही वैद्य ने लक्ष्मण का उपचार किया और वे प्रसन्न होकर उठ तब प्रभु राम ने लक्ष्मण को अपने हृदय से लगा लिया। जिसे देखकर सभी भालू और वानर समूह अत्यधिक प्रसन्न हुए। इसके पश्चात् हनुमान ने वैद्य को वहाँ पहुँचाया, जहाँ से वह उन्हें सम्मानपूर्वक लाया था।

रावण ने यह सारा वृत्तांत सुना। वह अत्यधिक दुखी होकर अपना सिर धुन-धुन कर पछताने लगा। इसके बाद वह व्याकुल होकर अपने भाई कुंभकरण के पास आया और उसने अनेक प्रकार के प्रयत्न करके उसे गहरी नींद से जगाया।

विशेष-

  1. इस पद में कवि ने जहाँ एक ओर राम, लक्ष्मण, भालू तथा वानर सेना की प्रसन्नता का वर्णन किया है, वहीं दूसरी ओर रावण के विषाद का भी सजीव वर्णन किया है।
  2. मर्यादा पुरुषोत्तम होते हुए भी राम ने हनुमान के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की है।
  3. संपूर्ण पद्य में अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है।
  4. सहज एवं सरल साहित्यिक अवधी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  5. चौपाई छंद का प्रयोग है तथा वर्णनात्मक शैली है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) हनुमान को देखकर राम ने क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की?
(ख) लक्ष्मण की मूर्छा किस प्रकार दूर हुई?
(ग) लक्ष्मण के होश में आने पर राम और वानर दल की क्या प्रतिक्रिया थी?
(घ) वैद्य के साथ किस प्रकार का व्यवहार किया गया?
(ङ) इस पद्यांश के आधार पर हनुमान की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
(क) जब हनुमान संजीवनी लेकर राम के पास पहुँचे तो राम उसे देखकर अत्यधिक आनंदित हो उठे। उन्होंने हनुमान को अपने गले से लगा लिया और उसके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की अर्थात् उसके उपकार को माना। न जी ने संजीवनी लाकर वैद्य को दी और वैद्य ने उस संजीवनी से लक्ष्मण का उपचार किया. जिसके फलस्वरूप लक्ष्मण की मूर्छा दूर हो गई और वे उठकर बैठ गए।

(ग) लक्ष्मण के होश में आने पर राम ने प्रसन्न होकर अपने भाई को गले से लगा लिया। इस अवसर पर सभी भालू और वानर भी अत्यधिक प्रसन्न हो उठे, क्योंकि अब उन्हें आशा बँधी कि वे रावण को पराजित कर सकेंगे।

(घ) हनुमान जिस प्रकार वैद्य को आदर के साथ लाए थे उसी आदर के साथ उन्हें वापस पहुँचाकर आए।

(ङ) इस पद्यांश के आधार पर कहा जा सकता है कि हनुमान सच्चे राम भक्त थे। उन्होंने अपना सारा जीवन राम की सेवा में लगा दिया। वे असंभव काम को भी संभव बना देते थे। जब उन्हें संजीवनी नहीं मिली तो वे पूरे पहाड़ को उठाकर ले आए। इससे पता चलता है कि वे बड़े वीर और दृढ़-प्रतिज्ञ थे परंतु यह सब होते हुए भी वे बड़े विनम्र थे। उनके मन में अहंकार तो लेश-मात्र भी नहीं था। वे वैद्य को आदरपूर्वक उसके निवास स्थान पर छोड़ आए। इससे पता चलता है कि वे बड़े सज्जन और विनम्र थे।

[6] जागा निसिचर देखिअ कैसा। मानहुँ कालु देह धरि बैसा॥
कुंभकरन बूझा कहु भाई। काहे तव मुख रहे सुखाई।
कथा कही सब तेहिं अभिमानी। जेहि प्रकार सीता हरि आनी॥
तात कपिन्ह सब निसिचर मारे। महा महा जोधा संघारे॥
दुर्मुख सुररिपु मनुज अहारी। भट अतिकाय अकंपन भारी॥
अपर महोदर आदिक बीरा। परे समर महि सब रनधीरा॥ [पृष्ठ-50]

शब्दार्थ निसिचर = राक्षस । कालु = काला। देह धरि = शरीर धारण करके। कहु = कहौ । तव = तुम्हारा। तेहिं = तैसा। जेहि = जैसा। तात = भाई। कपिन्ह = वानरों ने। संघारे = मारे । जोधा = योद्धा। सुररिपु = देवशत्रु। मनुज अहारी = मानव खाने वाले। अतिकाय = भारी शरीर वाले। अपर = दूसरा। महोदर = एक राक्षस का नाम। समर = युद्ध। महि = पृथ्वी। रनधीरा = युद्ध में कुशल।

प्रस्तत – पद्यांश हिंदी की पाठयपस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित रामचरितमानस के ‘लक्ष्मण-मर्जा और राम का विलाप’ में से उद्धत है। इसके कवि गोस्वामी तुलसीदास हैं। यहाँ कवि ने उस प्रसंग को लिया है जब रावण ने अपने भाई कुंभकरण को नींद से जगाया और उसे सारी स्थिति से अवगत कराया। कवि लिखता है कि-

व्याख्या – नींद से जागने पर वह राक्षस कुंभकरण ऐसा लग रहा था मानों मृत्यु देह धारण करके बैठी हो अर्थात् कुंभकरण देखने में बहुत ही भयंकर था। तब कुंभकरण ने रावण से पूछा हे भाई! मुझे बताओ किस कारण से तुम्हारे मुख सूख गए हैं अर्थात् तुम घबराए हुए क्यों हो?

तब उस अभिमानी रावण ने वह सारी कथा कह सुनाई जिस प्रकार वह सीता का हरण करके लाया था। रावण ने कहा हे भाई! वानर सेना ने सारे राक्षसों को मार दिया है और मेरे बड़े-बड़े योद्धाओं का वध कर दिया है। दुर्मुख, देवशत्रु, मनुष्य भक्षक, महायोद्धा, अतिकाय, अकंपन, महोदर आदि मेरे असंख्य वीर योद्धा युद्ध-क्षेत्र में मारे गए हैं। भाव यह है कि मेरी सेना के बड़े-बड़े योद्धा वानर सेना ने मार गिराए हैं।

विशेष-

  1. यहाँ कुंभकरण ने निर्भीक होकर अभिमानी रावण पर टिप्पणी की है।
  2. रावण ने अपने भाई कुंभकरण के सामने अपनी पराजय का यथार्थ वर्णन किया है।
  3. अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है।
  4. संपूर्ण पद्य में साहित्यिक अवधी भाषा का प्रयोग देखा जा सकता है।
  5. चौपाई छंद का प्रयोग है तथा संवादात्मक शैली है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 8 कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कुंभकरण ने रावण से क्या पूछा?
(ख) उस समय रावण की मनोदशा कैसी थी?
(ग) रावण ने कुंभकरण के सामने अपनी पराजय का वर्णन किस प्रकार किया?
(घ) रावण के कौन-कौन से महायोद्धा मारे गए?
उत्तर:
(क) नींद से जागकर कुंभकरण ने रावण से पूछा कि उसके दसों मुख सूखे हुए क्यों हैं? तथा वह किस कारण से घबराया हुआ है।

(ख) कुंभकरण से मिलते समय रावण बुरी तरह से परेशान और घबराया हुआ था तथा उसका चेहरा मुरझाया हुआ था।

(ग) रावण ने कुंभकरण के सामने अपनी पराजय का वर्णन करते हुए कहा कि उसने किस प्रकार सीता का हरण किया और किस प्रकार राम की वानर सेना ने उसके बड़े-बड़े योद्धाओं को मार गिराया।

(घ) युद्ध-क्षेत्र में रावण के दुर्मुख, देवशत्रु, मनुष्य भक्षक, महायोद्धा अकंपन तथा महोदर आदि योद्धा मारे गए थे।

[7] सुनि दसकंधर बचन तब कुंभकरन बिलखान।
जगदंबा हरि आनि अब सठ चाहत कल्यान।। [पृष्ठ-51]

शब्दार्थ-दसकंधर = रावण। बिलखान = दुखी होकर। जगदंबा = जगत जननी सीता। हरि = हरण करके। सठ = दुष्ट।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित रामचरितमानस के लंका कांड के ‘लक्ष्मण-मूर्छा तथा राम का विलाप’ में से उद्धृत है। इसके कवि गोस्वामी तुलसीदास हैं। यहाँ कुंभकरण रावण को फटकारता हुआ कहता है

व्याख्या-रावण के वचनों को सुनकर कुंभकरण ने दुखी होकर कहा-हे दुष्ट रावण! तू जगत-माता सीता का हरण करके अब अपना कल्याण चाहता है। ऐसा कदापि नहीं हो सकता। अतः तेरा विनाश तो निश्चित ही है।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने कुंभकरण के मुख से रावण के प्रति घृणा-भाव का वर्णन किया है।
  2. अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है।
  3. साहित्यिक अवधी भाषा का प्रयोग है। शब्द-चयन उचित तथा भावानुकूल है।
  4. दोहा छंद का प्रयोग है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) रावण के वचन सुनकर कुंभकरण पर क्या प्रतिक्रिया हुई?
(ख) कुंभकरण ने रावण से क्या कहा?
उत्तर:
(क) रावण के वचन सुनकर कुंभकरण अत्यधिक दुखी हुआ और उसने रावण को कटु शब्द कहे।
(ख) कुंभकरण ने रावण को फटकार लगाते हुए कहा-अरे दुष्ट! तू जगत जननी सीता का अपहरण करके लाया, तब तेरा कल्याण कैसे हो सकता है अर्थात अब तेरा विनाश निश्चित है।

कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप Summary in Hindi

कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप कवि-परिचय

प्रश्न-
गोस्वामी तुलसीदास का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
गोस्वामी तुलसीदास का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-गोस्वामी तुलसीदास न केवल रामकाव्य के, अपितु संपूर्ण हिंदी-काव्य के श्रेष्ठ कवि हैं। वे एक कवि, आलोचक, दार्शनिक, लोकनायक, समाज-सुधारक, भक्त एवं उच्चकोटि के विद्वान हैं। उन्हें विश्व-कवि कहना भी अनुचित न होगा। उनका जन्म सन् 1532 में बाँदा ज़िला (उत्तर प्रदेश) के राजापुर गाँव में हुआ। कुछ विद्वान उनका जन्म-स्थान सोरों भी मानते हैं। उन्होंने अपना बचपन अत्यंत कष्टपूर्ण परिस्थितियों में बिताया। बचपन में ही उनका अपने माता-पिता से बिछोह हो गया और अत्यंत कठिनाइयों में अपना जीवन-यापन किया। अचानक उनकी भेंट स्वामी नरहरिदास से हुई। वे इन्हें अयोध्या ले गए। उन्हें राम-मंत्र की दीक्षा दी और विद्याध्ययन कराने लगे। तत्पश्चात् तुलसी ने काशी में शेष सनातन जी के पास रहकर पंद्रह वर्षों तक वेदों का अध्ययन किया। सन् 1623 में काशी में श्रावण शुक्ला तृतीया को असीघाट पर गोस्वामी तुलसीदास जी ने राम-राम करते हुए अपना शरीर त्याग दिया।

2. प्रमुख रचनाएँ-अब तक तुलसीदास के नाम से 36 रचनाएँ प्राप्त हुई हैं, किंतु वे सब प्रामाणिक नहीं हैं। उनमें से प्रामाणिक रचनाएँ निम्नलिखित हैं दोहावली’, ‘कवितावली’, ‘श्रीकृष्ण गीतावली’, ‘गीतावली’, ‘विनय-पत्रिका’, ‘रामचरितमानस’, ‘रामलला नहछू’, ‘बरवै रामायण’, ‘वैराग्य संदीपिनी’, ‘पार्वती मंगल’, ‘जानकी मंगल’ और ‘रामाज्ञा प्रश्न’। इनमें ‘रामचरितमानस’, ‘रामलला नहछू’, ‘पार्वती मंगल’ तथा ‘जानकी मंगल’ प्रबंध काव्य हैं। ‘गीतावली’, ‘श्रीकृष्ण गीतावली’ और ‘विनय-पत्रिका’ गीति काव्य हैं और अन्य रचनाएँ मुक्तक काव्य हैं। ‘रामचरितमानस’ तुलसी का ही नहीं, बल्कि समूचे हिंदी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है। इसे ‘भारत की बाईबल’ भी कहा गया है।

3. काव्यगत विशेषताएँ-तुलसीदास के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) विषय की व्यापकता महाकवि तुलसीदास ने अपने युग का गहन एवं गंभीर अध्ययन किया था। तुलसीदास ने जीवन के सभी पक्षों को अपने काव्य में स्थान दिया है। उनके काव्य में धर्म, दर्शन, संस्कृति, भक्ति, काव्य-कला आदि सभी का सुंदर समन्वय हुआ है। विभिन्न भावों और सभी रसों को उनकी रचनाओं में स्थान मिला है।

(ii) राम का स्वरूप महाकवि तुलसीदास ने अपने काव्य में राम को विष्णु का अवतार मानते हुए उसके सगुण एवं निर्गुण दोनों रूपों का उल्लेख किया है। उन्होंने राम को धर्म का रक्षक और अधर्म का विनाश करने वाला माना है। उन्होंने राम के चरित्र में शील, सौंदर्य एवं शक्ति का समन्वय प्रस्तुत किया है। उन्होंने राम की आराधना दास्य भाव से की है।

(iii) समन्वय की भावना-तुलसीदास के काव्य में समन्वय की भावना का अद्भुत चित्रण हुआ है। उन्होंने शैवों और वैष्णवों, शाक्तों और वैष्णवों, भक्ति और ज्ञान तथा कर्म के धार्मिक समन्वय के साथ सामाजिक, भाषा-क्षेत्र तथा साहित्य-क्षेत्र में सारग्राहिणी प्रतिभा और समन्वयात्मकता का परिचय दिया है।

(iv) प्रकृति-चित्रण-तुलसीदास ने प्रकृति का अत्यंत मनोरम चित्रण किया है। तुलसी काव्य में प्रकृति के विभिन्न रूपों का चित्रण किया गया है। उनके काव्य में वन, नदी, पर्वत, वृक्ष, पशु-पक्षी आदि के विस्तृत वर्णन मिलते हैं। प्रकृति-चित्रण के साथ-साथ तुलसी उपदेश भी देते चलते हैं।

(v) भाव एवं रस-महाकवि तुलसीदास के काव्य में सभी भावों एवं रसों का अत्यंत सफलतापूर्वक चित्रण किया गया है। तुलसीदास मानव-हृदय के सूक्ष्मातिसूक्ष्म भाव को समझने में निपुण थे। वे मानव मनोवृत्तियों के सच्चे पारखी थे। उन्होंने मानव-जीवन के विविध पक्षों को गहराई से देखा एवं परखा था। तुलसी काव्य में शांत रस के अतिरिक्त हास्य, रौद्र, वीभत्स, वीर आदि रसों का भी चित्रण हुआ है।

(vi) रचना-शैली-तुलसीदास ने अपने युग में प्रचलित सभी काव्य-शैलियों का प्रयोग किया है। उनके काव्य में वीर काव्य की ओजपूर्ण शैली, संत काव्य की दोहा शैली, सूरदास और विद्यापति की गीति-शैली, भाट कवियों की छप्पय-कवित्त आदि शैलियों के रूप देखे जा सकते हैं। इन सभी शैलियों का प्रयोग तुलसी काव्य में सफलतापूर्वक हुआ है।

4. भाषा-शैली-तुलसी के काव्य का भावपक्ष जितना समृद्ध है कलापक्ष भी उतना ही समुन्नत एवं विकसित है। काव्य-शैलियों की भाँति ही तुलसीदास ने तत्कालीन सभी काव्य-भाषाओं का साधिकार प्रयोग किया है। उन्होंने अवधी और ब्रज भाषा का अपने काव्य में समान रूप से प्रयोग किया है। ‘रामचरितमानस’ में अवधी और ‘विनय-पत्रिका’ में ब्रज भाषा का विकसित रूप मिलता है। तुलसी ने प्रसंगानुकूल भोजपुरी, बुंदेलखंडी, अरबी-फारसी आदि के शब्दों का भी प्रयोग किया है। उन्होंने ब्रज एवं अवधी भाषाओं में संस्कृत का पुट देकर उन्हें सुसंस्कृत बनाया है। तत्सम शब्दों की अधिकता होने पर भी तुलसी की भाषा में कहीं क्लिष्टता नहीं है। अलंकारों की छटा तो उनके काव्य में देखते ही बनती है। उन्होंने उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक आदि अलंकारों का ही अधिक प्रयोग किया है। अलंकारों की भाँति ही तुलसीदास ने छंदों का प्रयोग भी सफलतापूर्वक किया है। चौपाई, दोहा, छप्पय, सोरठा, कवित्त, बरवै आदि छंदों का प्रयोग उन्होंने अपने विभिन्न ग्रंथों में किया है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 8 कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप

कवितावली (उत्तर कांड से) कविता का सार

प्रश्न-
कविवर तुलसीदास द्वारा रचित ‘कवितावली’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. प्रथम कवित्त-यहाँ कविवर तुलसीदास राम-नाम की महिमा का गान करते हुए कहते हैं कि मज़दूर, किसान, व्यापारी, भिखारी, चाकर, नौकर, नट, चोर, दूत और बाजीगर सभी अपना पेट भरने के लिए ही ऊँचे-नीचे कर्म करते हैं, गुण गढ़ते हैं, पहाड़ों पर चढ़ते हैं और घने जंगलों में शिकार करते हुए भटकते रहते हैं। यही नहीं, वे अच्छे-बुरे कर्म करके धर्म अथवा अधर्म का पालन करते हुए अपना पेट भरने के लिए बेटे-बेटियों को भी बेच देते हैं। यह पेट की आग बड़वानल से भी अधिक भयंकर है। इसे तो केवल राम-नाम के कृपा रूपी बादल ही बुझा सकते हैं।

2. द्वितीय कवित्त-इस कवित्त में कवि अपने युग की गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी का वर्णन करते हुए लिखता है कि किसान के लिए खेती नहीं है और भिखारी को भीख नहीं मिलती। व्यापारी के लिए व्यापार नहीं है और नौकर को नौकरी नहीं मिलती। आजीविका-विहीन लोग दुखी होकर आपस में कहते हैं कि कहाँ जाएं और क्या करें। वेदों और पुराणों में यही बात कही गई है और संसार में भी देखा जा सकता है कि संकट के समय राम जी आप ही कृपा करते हैं। हे दीनबंधु राम! इस समय दरिद्रता रूपी रावण ने संसार को कुचला हुआ है। अतः पापों का नाश करने के लिए मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ।

3. सवैया यहाँ तुलसीदास लोगों के द्वारा की जा रही निंदा और आलोचना की परवाह न करते हुए कहते हैं कि चाहे मुझे कोई धूर्त कहे, योगी कहे, राजपूत या जुलाहा कहे, इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मुझे किसी की बेटी से अपने बेटे का विवाह नहीं करना, फसी की जाति में बिगाड़ हो जाए। मैं तुलसीदास तो राम का दास हूँ। इसीलिए मेरे बारे में जिसको जो अच्छा लगता है, वह कहो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं माँगकर खाता हूँ। मस्जिद में जाकर सो जाता हूँ। मुझे दुनिया से न कुछ लेना है और न देना है अर्थात् मुझे किसी की परवाह नहीं है।

लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप कविता का सार

प्रश्न-
कविवर तुलसीदास द्वारा रचित पद ‘लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
यह प्रसंग उस समय का है जब राम-रावण युद्ध के समय लक्ष्मण मेघनाद की शक्ति लगने से बेहोश हो गए और हनुमान जड़ी-बूटी लेने के लिए गए। परंतु हनुमान द्वारा की गई देरी के कारण राम अपने भाई लक्ष्मण के लिए चिंता करने लगे। जब हनुमान संजीवनी बूटी को न पहचानने के कारण पर्वत को उठाकर ले जा रहे थे तो भरत के मन में अनर्थ की आशंका हुई। इसलिए भरत ने हनुमान को नीचे उतार लिया। परंतु जब उसे वास्तविकता का पता चला तो हनुमान को शीघ्र ही श्रीराम के पास भेज दिया।

इधर राम आधी रात बीत जाने पर चिंता करने लगे। वे लक्ष्मण को बेहोश देखकर एक मानव के समान कहने लगे कि आधी रात बीत गई है, लेकिन हनुमान नहीं आया। यह कहकर राम ने अनुज लक्ष्मण को उठाकर अपनी छाती से लगा लिया और विलाप करते हुए कहने लगे कि लक्ष्मण तुम्हारा ऐसा स्वभाव है कि तुम मुझे कभी दुखी नहीं देख सकते थे। मेरे लिए तुमने माता-पिता को त्याग दिया और वन में सर्दी-गर्मी को सहन किया। हे भाई! तुम्हारा वह प्रेम कहाँ चला गया। मेरे व्याकुल वचनों को सुनकर तुम क्यों नहीं उठते।

यदि मुझे पता होता कि वन में भाई से वियोग होगा तो मैं अपने पिता के वचनों को कभी नहीं मानता। पुत्र, धन, पत्नी, भवन और परिवार, ये सब संसार में बार-बार प्राप्त हो सकते हैं, लेकिन सगा भाई संसार में फिर नहीं मिलता। यह विचार करके तुम जाग जाओ। जिस प्रकार पंख के बिना पक्षी, मणि के बिना साँप और सैंड के बिना हाथी दीन-हीन हो जाते हैं, उसी प्रकार तुम्हारे बिना मेरा जीवन अधूरा है। मैं क्या मुँह लेकर अयोध्या जाऊँगा। लोग मेरे बारे में कहेंगे कि मैंने पत्नी के लिए प्रिय भाई को खो दिया। भले ही मुझे संसार में अपयश सहन करना पड़ता। पत्नी की हानि भी कोई विशेष हानि नहीं है।

परंतु हे लक्ष्मण! अब तो मुझे अपयश और भाई दोनों शोक सहन करने पड़ेंगे। हे भ्राता! तुम अपनी माता के एक ही पुत्र हो और उसके प्राणों के आधार हो। तुम्हारी माँ ने मुझे हर प्रकार से हितैषी समझकर तुम्हारा हाथ मुझे सौंपा था। अब मैं जाकर उसे क्या उत्तर दूंगा। इस प्रकार संसार को चिंतामुक्त करने वाले भगवान राम स्वयं अनेक प्रकार की चिंताओं में डूब गए और उनकी आँखों से आँसू बहने लगे। तब शिवजी ने पार्वती से कहा कि देखो! वे राम स्वयं अखंड और अनंत हैं, परंतु अपने भक्तों पर कृपा करके नव लीला दिखा रहे हैं।

प्रभु के विलाप को सुनकर समूची वानर सेना व्याकुल हो गई। परंतु उस समय वहाँ हनुमान इस प्रकार प्रकट हो गए जैसे करुण रस में वीर रस प्रकट हो जाता है। श्रीराम ने प्रसन्न होकर हनुमान से भेंट की और वे हनुमान के प्रति कृतज्ञ हो गए। उसके बाद वैद्य ने तत्काल उपाय किया और लक्ष्मण प्रसन्न होकर उठ खड़े हुए। राम ने प्रसन्न होकर भाई को गले लगाया और सभी वानर और भालू प्रसन्न हो गए। इसके बाद हनुमान ने वैद्य को लंका वापस पहुँचा दिया। जब रावण ने यह सारा प्रस्ताव सुना तो वह दुखी होकर पछताने लगा और व्याकुल होकर कुंभकरण के पास गया।

उसने अनेक प्रयत्न करके कुंभकरण को जगाया। जागने पर कुंभकरण ऐसा लग रहा था कि मानों काल स्वयं शरीर धारण करके बैठा हो। कुभकरण ने रावण से पूछा कि तुम्हारा मुख घबराया हुआ क्यों है, तब अभिमानी रावण ने सारी कथा सुनाई कि किस प्रकार वह सीता को उठाकर लाया था। वह अपने भाई से कहने लगा कि हे भ्राता! राम सेना ने राक्षसी सेना के बड़े-बड़े योद्धाओं का संहार कर दिया है। दुर्मुख, देवशत्रु, मनुष्य भक्षक, महायोद्धा, अतिकाय, अकंपन तथा महोदर आदि सभी योद्धा युद्धक्षेत्र में मर गए हैं। रावण के वचनों को सुनकर कुंभकरण ने दुखी होकर कहा, तुमने जगत-जननी सीता का हरण किया है, अब तू अपना कल्याण चाहता है। यह तो किसी प्रकार से संभव नहीं है।

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HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 7 बादल राग

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 7 बादल राग Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 7 बादल राग

HBSE 12th Class Hindi बादल राग Textbook Questions and Answers

कविता के साथ

प्रश्न 1.
अस्थिर सुख पर दुख की छाया पंक्ति में दुख की छाया किसे कहा गया है और क्यों?
उत्तर:
अस्थिर सुख पर दुख की छाया पंक्ति में दुख की छाया क्रांति अथवा विनाश का प्रतीक है। सुविधा-भोगी लोगों के पास धन होते हैं। इसलिए वे क्रांति से हमेशा डरते रहते हैं। क्रांति से पूँजीपतियों को हानि होगी, गरीबों को नहीं। इसलिए कवि ने अमीर लोगों के सुखों को अस्थिर कहा है। क्रांति की संभावना ही दुख की वह छाया है जिससे वे हमेशा डरे रहते हैं। यही कारण है कि ‘दुख की छाया’ शब्दों का प्रयोग किया गया है।

प्रश्न 2.
‘अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर’ पंक्ति में किसकी ओर संकेत किया गया है?
उत्तर:
‘अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर’ पंक्ति में क्रांति विरोधी अभिमानी पूँजीपतियों की ओर संकेत किया गया है जो क्रांति को दबाने का भरसक प्रयास करते हैं परंतु क्रांति के वज्र के प्रहार से घायल होकर वे क्षत-विक्षत हो जाते हैं। जिस प्रकार बादलों के द्वारा किए गए अशनि-पात से पर्वतों की ऊँची-ऊँची चोटियाँ क्षत-विक्षत हो जाती हैं, उसी प्रकार क्रांति की मार-काट से बड़े-बड़े पूँजीपति, धनी तथा वीर लोग भी धरती चाटने लगते हैं।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 7 बादल राग

प्रश्न 3.
‘विप्लव-व से छोटे ही हैं शोभा पाते’ पंक्ति में विप्लव-रव से क्या तात्पर्य है? छोटे ही हैं शोभा पाते ऐसा क्यों कहा गया है?
उत्तर:
विप्लव-रव से तात्पर्य है क्रांति की गर्जना। क्रांति से समाज के सामान्यजन को ही लाभ प्राप्त होता है। उससे सर्वहारा वर्ग का विकास होता है क्योंकि क्रांति शोषकों और पूँजीपतियों के विरुद्ध होती है। संसार में जहाँ कहीं क्रांति हुई है, वहाँ पूँजीपतियों का विनाश हुआ है और गरीब तथा अभावग्रस्त लोगों की आर्थिक हालत सुधरी है। इसलिए कवि ने इस भाव के लिए ‘छोटे ही हैं शोभा पाते’ शब्दों का प्रयोग किया है।

प्रश्न 4.
बादलों के आगमन से प्रकृति में होने वाले किन-किन परिवर्तनों को कविता रेखांकित करती है?
उत्तर:
बादलों के आगमन से प्रकृति में असंख्य परिवर्तन होते हैं। पहले तो तेज हवा चलने लगती है और बादल गरजने लगते हैं। इसके बाद मूसलाधार वर्षा होती है। ओलों की वर्षा अथवा बिजली गिरने से ऊँचे-ऊँचे पर्वतों की चोटियाँ क्षत-विक्षत हो जाती हैं, परंतु छोटे-से-छोटे पौधे वर्षा का पानी पाकर प्रसन्नता से खिल उठते हैं। इसी प्रकार कमलों से पानी की बूंदें झरने लगती हैं।

व्याख्या कीजिए

1. तिरती हैं समीर-सागर पर
अस्थिर सुख पर दुख की छाया
जग के दग्ध हृदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया
उत्तर:
यहाँ कवि कहता है कि बादल वायु के रूप में सागर पर मंडराने लगते हैं। वे इस प्रकार उमड़-घुमड़कर सागर पर छा जाते हैं जैसे क्षणिक सखों पर दुखों की छाया मँडराने लगती है। पँजीपतियों के सख क्षणिक हैं. परंत दख की छाया स्थिर और लंबी होती है। इसलिए बादल रूपी क्रांति को देखकर पूँजीपतियों के अस्थिर सुखों पर दुख की छाया फैल जाती है। ये बादल संसार के दुखों से पीड़ित हृदय पर एक विनाशकारी क्रीड़ा करने जा रहे हैं। भाव यह है कि ये बादल संसार के शोषित और दुखी लोगों के दुखों को दूर करना चाहते हैं।

2. अट्टालिका नहीं है रे
आतंक-भवन
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव-प्लावन
उत्तर:
यहाँ कवि कहता है कि हमारे समाज में पूँजीपतियों के जो ऊँचे-ऊँचे भवन हैं, वे अट्टालिकाएँ नहीं हैं बल्कि वे तो आतंक के भवन हैं। क्रांति रूपी बादलों को देखकर उन भवनों में भय और त्रास का निवास है। अर्थात् समाज के धनिक लोग क्रांति से डरते रहते हैं। कवि पुनः कहता है कि बादलों की विनाशलीला तो हमेशा कीचड़ में ही होती है। उसमें बाढ़ और विनाश के दृश्य देखे जा सकते हैं। भाव यह है कि समाज के गरीब और शोषित लोग ही क्रांति में खुलकर भाग लेते हैं।

कला की बात

प्रश्न 1.
पूरी कविता में प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। आपको प्रकृति का कौन-सा मानवीय रूप पसंद आया और क्यों?
उत्तर:
संपूर्ण कविता में प्रकृति का सुंदर मानवीकरण किया गया है। कवि ने बादल को क्रांतिकारी वीर कहकर संबोधित किया है। मुझे बादल का वह रूप बहुत पसंद है जिसमें कवि उसे शोषित किसान की सहायता करने के लिए आह्वान करता है; जैसे
जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर,
तुझे बुलाता कृषक अधीर,
ऐ विप्लव के वीर!
चूस लिया है उसका सार,
हाड़-मात्र ही है आधार,
ऐ जीवन के पारावार!

प्रश्न 2.
कविता में रूपक अलंकार का प्रयोग कहाँ-कहाँ हुआ है? संबंधित वाक्यांश को छाँटकर लिखिए।
उत्तर:

  1. तिरती है समीर-सागर पर
  2. अस्थिर सुख पर दुख की छाया
  3. यह तेरी रण-तरी
  4. भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
  5. विप्लव के बादल
  6. जीवन के पारावार

प्रश्न 3.
इस कविता में बादल के लिए ऐ विप्लव के वीर!, ऐ जीवन के पारावार! जैसे संबोधनों का इस्तेमाल किया गया है। बादल राग कविता के शेष पाँच खंडों में भी कई संबोधनों का इस्तेमाल किया गया है। जैसे-अरे वर्ष के हर्ष!, मेरे पागल बादल!, ऐ निबंध!, ऐ स्वच्छंद!, ऐ उद्दाम!, ऐ सम्राट!, ऐ विप्लव के प्लावन!, ऐ अनंत के चंचल शिशु सुकुमार! उपर्युक्त संबोधनों की व्याख्या करें तथा बताएँ कि बादल के लिए इन संबोधनों का क्या औचित्य है? ।
उत्तर:
(i) अरे वर्ष के हर्ष-यहाँ कवि ने बादलों को साल भर की प्रसन्नता कहा है। यदि बादल अच्छी वर्षा करते हैं तो देश के लोगों को साल भर का पर्याप्त अनाज मिल जाता है और देश का व्यापार भी चलता रहता है।

(ii) मेरे पागल बादल-बादल को पागल कहने से उसकी मस्ती और उल्लास की ओर संकेत किया गया है।

(iii) ऐ निबंध-बादल किसी प्रकार के बंधन या बाधा को नहीं मानते। वे स्वच्छंदतापूर्वक आकाश में विचरण करते हैं। इसीलिए कवि ने बादल को ‘ऐ-स्वच्छंद’ तथा ‘ऐ-उद्दाम’ भी कहा है।

(iv) ऐ सम्राट कवि के अनुसार बादल एक राजा है जो सब पर राज करता है और सबको प्रभावित करता है।

(v) ऐ विप्लव के प्लावन-यहाँ कवि ने बादलों के भयंकर रूप की ओर संकेत किया है। जब बादल मूसलाधार वर्षा करते हैं तो वे अपने साथ विनाशकारी बाढ़ भी लाते हैं।

(vi) ऐ अनंत के चंचल शिशु सकुमार-यहाँ कवि ने बादल को सागर का चंचल एवं कोमल शावक कहा है क्योंकि बादलों को जन्म देने वाला सागर ही है। जब बादल उमड़ता-घुमड़ता हुआ आगे बढ़ता है तो उसमें शिशु जैसी चंचलता देखी जा सकती है।

प्रश्न 4.
कवि बादलों को किस रूप में देखता है? कालिदास ने मेघदूत काव्य में मेघों को दूत के रूप में देखा। आप अपना कोई काल्पनिक बिंब दीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी शिक्षक की सहायता से स्वयं करें। यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

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प्रश्न 5.
कविता को प्रभावी बनाने के लिए कवि विशेषणों का सायास प्रयोग करता है जैसे-अस्थिर सुख। सुख के साथ अस्थिर विशेषण के प्रयोग ने सुख के अर्थ में विशेष प्रभाव पैदा कर दिया है। ऐसे अन्य विशेषणों को कविता से छाँटकर खें तथा बताएं कि ऐसे शब्द-पदों के प्रयोग से कविता के अर्थ में क्या विशेष प्रभाव पैदा हुआ है?
उत्तर:
दग्ध हृदय-कवि ने हृदय के साथ ‘दग्ध’ विशेषण का प्रयोग किया है। इससे शोषित व्यक्ति के मन का संताप व्यक्त होता है। इस शब्द के द्वारा शोषण के फलस्वरूप गरीबों द्वारा झेली गई यातनाएँ सामने आ जाती हैं।

निर्दय विप्लव – यहाँ विप्लव अर्थात् विनाश के साथ निर्दय विशेषण का प्रयोग किया गया है जिससे पता चलता है कि विनाश और अधिक क्रूर हो गया है।

पुप्त अंकर – यहाँ कवि ने अंकुर के साथ सुप्त विशेषण का प्रयोग किया है। जो इस बात का द्योतन करता है कि अंकुर मिट्टी में दबे हुए हैं और वर्षा के बाद फूटकर बाहर आ जाते हैं।

घोर वज्र हुंकार – यहाँ कवि ने हुंकार शब्द के साथ घोर तथा वज्र दो विशेषणों का प्रयोग किया है। इससे यह पता चलता है कि बादल रूपी क्रांति की गर्जना बड़ी भयानक और क्रूर होती है।

क्षत-विक्षत-हत अचल-शरीर – यहाँ कवि ने शरीर के साथ क्षत-विक्षत और हत विशेषणों का प्रयोग किया है। जिससे उनकी दुर्दशा का पता चलता है।

प्रफुल्ल जलज – कमल के साथ प्रफुल्ल विशेषण का प्रयोग करने से कमल रूपी पूँजीपति की प्रसन्नता व्यक्त होती है।

रुद्ध कोष – कोष के साथ रुद्ध विशेषण का प्रयोग करने से यह पता चलता है कि पूँजीपतियों के खजाने भरे हुए हैं और उनके पास अपार धन है।

HBSE 12th Class Hindi बादल राग Important Questions and Answers

सराहना संबंधी प्रश्न

प्रश्न-
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए-
1. हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार-
शस्य अपार,
हिल-हिल
खिल-खिल
हाथ हिलाते,
तुझे बुलाते
विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।
उत्तर:

  1. इन काव्य-पंक्तियों में कवि ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि जिस प्रकार वर्षा से छोटे-छोटे पौधे लाभान्वित होकर हँसते और खिलते हैं, उसी प्रकार क्रांति होने से समाज के शोषित और सर्वहारा वर्ग को लाभ प्राप्त होता है और वे यह सोचकर प्रसन्न होते हैं कि अब उनके शोषण का अंत हो जाएगा।
  2. यहाँ कवि ने प्रकृति का सुंदर मानवीकरण किया है।
  3. हाथ हिलाना, बुलाना आदि में गतिशील बिंब है।
  4. पूरे पद में अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकारों का सुंदर एवं स्वाभाविक प्रयोग हुआ है।
  5. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है।
  6. शब्द-चयन सर्वथा उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  7. संपूर्ण पद में मुक्त छंद का सफल प्रयोग देखा जा सकता है।

2. रुद्ध कोष है, क्षुब्ध तोष
अंगना-अंग से लिपटे भी
आतंक अंक पर काँप रहे हैं।
धनी, वज्र-गर्जन से बादल!
उत्तर:

  1. यहाँ कवि स्पष्ट करता है कि समाज के पूँजीपतियों का खजाना भरा हुआ है, लेकिन फिर भी वे सदा असंतुष्ट रहते हैं।
  2. बादल रूपी क्रांति के कारण पूँजीपति अपनी पत्नी से लिपटे हुए भी डर के मारे काँपते रहते हैं।
  3. यहाँ बादल क्रांति का प्रतीक है।
  4. यह पद्यांश प्रगतिवाद का सूचक है। जोकि पूँजीपतियों पर करारा व्यंग्य करते हैं।
  5. ‘अंगना-अंग’ तथा ‘आतंक-अंक’ में अनुप्रास तथा स्वर मैत्री की छटा दर्शनीय है।
  6. सहज एवं सरल साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  7. शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  8. संपूर्ण पद में मुक्त छंद का सफल प्रयोग देखा जा सकता है।

3. अट्टालिका नहीं है रे
आतंक-भवन
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव-प्लावन,
क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से
सदा छलकता नीर,
उत्तर:

  1. यहाँ कवि यह स्पष्ट करता है कि समाज के ऊँचे-ऊँचे भवन, जहाँ पूँजीपति रहते हैं, उनमें भय और त्रास का निवास है, क्योंकि अमीर लोग सदा क्रांति से भयभीत रहते हैं।
  2. ‘क्षुद्र प्रफुल्ल जलज’ शोषित वर्ग का प्रतीक है।
  3. प्रतीकात्मक भाषा के प्रयोग के कारण भावाभिव्यक्ति बड़ी प्रभावशाली बन पड़ी है।
  4. अनुप्रास तथा पद मैत्री अलंकारों का सफल प्रयोग हुआ है।
  5. ‘अट्टालिका नहीं है रे आतंक भवन’ में अपहृति अलंकार है।
  6. सहज एवं सरल साहित्यिक हिंदी भाषा है तथा शब्द-चयन सर्वथा सटीक है।
  7. मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है।

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4. घन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
उर में पृथ्वी के, आशाओं से
नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,
ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल!
उत्तर:

  1. यहाँ कवि ने बादलों को क्रांति का प्रतीक तथा शोषित वर्ग की आशा का केंद्र सिद्ध किया है।
  2. पृथ्वी के गर्भ में छिपे बीज शोषित वर्ग का प्रतीक हैं जो क्रांति की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
  3. संपूर्ण पद्य में बादल का मानवीकरण किया गया है।
  4. अनुप्रास तथा रूपक अलंकारों का सफल प्रयोग है।
  5. ‘सिर ऊँचा करना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग है।
  6. तत्सम् प्रधान संस्कृतनिष्ठ हिंदी भाषा का प्रयोग किया गया है।
  7. शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  8. संबोधन शैली है तथा मुक्त छंद का प्रयोग किया गया है।

5. बार-बार गर्जन
वर्षण है मूसलधार,
हृदय थाम लेता संसार,
सुन-सुन घोर वज्र-हुंकार।
उत्तर:

  1. यहाँ कवि ने बादल को क्रांति का प्रतीक मानते हुए उसकी भयानकता का प्रभावशाली वर्णन किया है।
  2. मूसलाधार वर्षा का होना क्रांति की तीव्रता को व्यंजित करता है।
  3. ‘बार-बार’, ‘सुन-सुन’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  4. तत्सम् प्रधान साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है तथा शब्द-चयन उचित और भावानुकूल है।
  5. ओजगुण का समावेश किया गया है तथा मुक्त छंद है।

विषय-वस्तु पर आधारित लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘बादल राग’ कविता का प्रतिपाद्य/मूलभाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
बादल राग’ निराला जी की एक ओजस्वी कविता है, जिसमें कवि ने बादल को क्रांति का प्रतीक माना है। कवि शोषित वर्ग के कल्याण के लिए बादल का आह्वान करता है। क्रांति के प्रतीक बादलों को देखकर समाज का शोषक वर्ग भयभीत हो जाता है। लेकिन शोषित और सर्वहारा वर्ग उसे आशाभरी दृष्टि से देखता है। कवि स्पष्ट करता है कि क्रांति से समाज के धनिक वर्ग को हानि पहुँचती है, परंतु शोषित वर्ग को इससे लाभ होता है। समाज में शोषितों को उनका अधिकार दिलाने के लिए क्रांति नितांत आवश्यक है। प्रस्तुत कविता का मुख्य उद्देश्य देश में व्याप्त सामाजिक और आर्थिक वैषम्य का चित्रण करना है। कवि का विचार है कि इस विषमता को दूर करने के लिए क्रांति ही एकमात्र उपाय है। समाज का शोषित और पीड़ित वर्ग क्रांति की कामना करता है क्योंकि वह आर्थिक स्वतंत्रता और अपनी दशा में सुधार चाहता है।

प्रश्न 2.
विप्लवी बादल की रण-तरी की क्या-क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
विप्लवी बादल की रण-तरी अर्थात् युद्ध की नौका समीर-सागर पर तैरती है। वह असंख्य आकांक्षाओं से भरी हुई है और भेरी-गर्जन से सावधान है। कवि अपनी बात को स्पष्ट करता हुआ कहता है कि क्रांतिकारी बादल की युद्ध रूपी नौका पवन सागर पर ऐसे तैरती है जैसे जीवन के क्षणिक सुखों पर दुखों की छाया मँडराती रहती है। यह युद्ध रूपी नौका नगाड़ों की गर्जना के कारण अत्यधिक सजग है और क्रांति उत्पन्न करने के लिए निरंतर आगे बढ़ रही है। जिस प्रकार युद्ध की नौका में युद्ध का सामान भरा रहता है, उसी प्रकार क्रांतिकारी बादल रूपी इस युद्ध नौका में समाज के सर्वहारा वर्ग की इच्छाएँ और आकांक्षाएँ भरी हुई हैं। क्रांतिकारी बादल की युद्ध नौका को देखकर जहाँ शोषक वर्ग भयभीत हो जाता है, वहाँ शोषित वर्ग प्रसन्न हो उठता है।

प्रश्न 3.
सुप्त अंकुर किसकी ओर ताक रहे हैं और क्यों? सुप्त अंकुरों का प्रतीकार्थ क्या है?
उत्तर:
पृथ्वी के गर्भ में सोये हए अंकर लगातार बादलों की ओर ताकते रहते हैं। वे यह सोचकर आशावान बने हुए हैं कि अच्छी वर्षा होने से वे धरती में से फूटकर बाहर निकल आएँगे और उनके जीवन का विकास होगा। यहाँ सुप्त अंकुर समाज के पीड़ित और शोषित वर्ग का प्रतीक हैं जो सुख-समृद्धि और विकास के मार्ग पर आगे नहीं बढ़ सका। उनके मन में यह आशा है कि क्रांति होने से उनको उन्नति प्राप्त करने का अवसर मिलेगा क्योंकि क्रांति से पूँजीवाद वर्ग का विनाश होगा और सर्वहारा वर्ग का कल्याण होगा।

प्रश्न 4.
‘बादल राग’ कविता में अट्टालिका को आतंक-भवन क्यों कहा गया है?
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में अट्टालिका को आतंक का भवन इसलिए कहा गया है क्योंकि उसमें समाज का पूँजीपति वर्ग रहता है। समाज के शोषक और अमीर लोग हमेशा ऊँचे-ऊँचे भवनों और महलों में रहते हैं और जीवन की सुख-सुविधाओं को भोगते हैं परंतु इस पूँजीपति वर्ग को क्रांति का भय लगा रहता है। यदि अट्टालिकाएँ हमेशा सुरक्षित बनी रहें तो शोषक वर्ग हमेशा सुख-सुविधाओं को भोगता रहेगा और प्रसन्न रहेगा, परंतु अमीर और गरीब में जब बहुत बड़ी खाई बन जाती है तो गरीब क्रांति का आह्वान करता है। यही कारण है कि अपनी सुरक्षित अट्टालिकाओं में रहने वाला पूँजीपति क्रांति के परिणामों के फलस्वरूप हमेशा भयभीत रहता है। वह जानता है कि उसने शोषण और बेईमानी से सर्वहारा वर्ग का खून चूसा है। अतः यदि शोषित वर्ग क्रांति का मार्ग अपनाता है तो सर्वप्रथम पूँजीपतियों की धन-संपत्ति बलपूर्वक लूट ली जाएगी और उनके ऊँचे-ऊँचे भवन नष्ट-भ्रष्ट कर दिए जाएंगे। इसलिए कवि ने ऊँचे-ऊँचे भवनों को अट्टालिका न कहकर आतंक भवन की संज्ञा दी है।

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प्रश्न 5.
‘बादल राग’ में निहित क्रांति की भावना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
कविवर ‘निराला’ की ‘बादल राग’ कविता में उनकी समाज में हो रहे कृषक-शोषण के विरुद्ध क्रांति की भावना अभिव्यक्त हुई है। कृषक शोषण से पीड़ित होने के कारण अधीर होकर विप्लव (क्रांति) के बादल को बुला रहा है। जिस प्रकार बादल जल-प्लावन लाकर पृथ्वी के गर्भ में छिपे हुए बीजों को अंकुरित कर देते हैं उसी प्रकार क्रांति भी समाज में गरीबों तथा कृषकों का शोषण करने वाली व्यवस्था का विनाश कर देती है। जैसे बादल वर्षा द्वारा पौधों में पुनः जीवन का विकास कर देता है; वैसे ही क्रांति से शोषक वर्ग का विनाश हो जाता है और गरीब व कृषक वर्ग को फलने-फूलने का अवसर मिलता है। इसलिए निराला जी ने अपनी इस कविता द्वारा क्रांति का आह्वान किया है।

प्रश्न 6.
विप्लव के बादल की घोर-गर्जना का धनी वर्ग पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
विप्लव के बादल की घोर गर्जना को सुनकर समाज का अमीर और शोषक वर्ग आतंक से काँपने लगता है। वह त्रस्त होकर अपना मुँह ढक लेता है और आँखें बंद कर लेता है। वह भली प्रकार से जानता है कि उसने अपना शोषण चक्र चलाकर गरीबों और मजदूरों का खून चूस कर धन का संग्रह किया है। अतः यह क्रांति उसके लिए विनाशकारी हो सकती है, परंतु वह सोचता है कि क्रांति की अनदेखी करने से वह इसके दुष्प्रभाव से बच जाएगा। विप्लव के बादलों की घोर गर्जना और वज्रपात से पर्वतों की चोटियाँ तक गिर जाती हैं। इसी प्रकार क्रांति का बिगुल बजने से पूँजीपति वर्ग भी त्रस्त और भयभीत हो जाता है और वह इससे बचने का भरसक प्रयास करता है।

प्रश्न 7.
‘बादल राग’ कविता के आधार पर निराला की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भाषा-शैली की दृष्टि से ‘बादल राग’ निराला जी की एक प्रतिनिधि कविता कही जा सकती है। इसमें कवि ने तत्सम प्रधान संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग किया है। आदि से अंत तक इस कविता की भाषा में ओज गुण का समावेश किया गया है। समस्त पदों, संयुक्त व्यंजनों तथा कठोर वर्गों के कारण ओज गुण का सुंदर निर्वाह देखा जा सकता है। कवि द्वारा किया गया शब्द-चयन भावाभिव्यक्ति में पूर्णतया सफल हुआ है। एक उदाहरण देखिए-
अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर,
क्षत-विक्षत हत अचल-शरीर,
गगन-स्पर्शी स्पर्धा धीर
शब्दों की ध्वनि तथा उनका नाद सौंदर्य भी अभिव्यंजना में काफी सहायक सिद्ध हुआ है। शब्द अपनी ध्वनि से शब्द-चित्र प्रस्तुत कर देते हैं। उदाहरण के रूप में हिल-हिल, खिल-खिल शब्दों के जोड़े अपनी ध्वनि द्वारा लहलहाती हुई फसल का बिंब प्रस्तुत करते हैं।

संपूर्ण कविता अपने बिंबों, चित्रों तथा प्रतीकों के लिए प्रसिद्ध है। वर्षा का बिंब, वज्र से आहत क्षत-विक्षत पर्वत का बिंब तथा हँसते हुए सुकुमार पौधों का बिंब सभी इस कविता की काव्य भाषा को आकर्षक बनाते हैं। यहाँ बादल यदि क्रांति का प्रतीक है तो पंक शोषित वर्ग का और जलज पूँजीपति वर्ग का प्रतीक है। इसी प्रकार मुहावरों के प्रयोग से इस कविता की भाषा में अर्थ गम्भीर्य बढ़ गया है। भले ही इस कविता में मुक्त छंद का प्रयोग किया गया है, परंतु सर्वत्र लयात्मकता भी देखी जा सकती है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. ‘निराला’ का जन्म बंगाल की किस रियासत में हुआ?
(A) महिषादल
(B) सुंदरवन
(C) कोलकाता
(D) पटना
उत्तर:
(A) महिषादल

2. ‘निराला’ का जन्म कब हुआ?
(A) सन् 1888 ई० में
(B) सन् 1890 ई० में
(C) सन् 1899 ई० में
(D) सन् 1886 ई० में
उत्तर:
(C) सन् 1899 ई०

3. ‘निराला’ के पिता का क्या नाम था?
(A) रामदास त्रिपाठी
(B) राम सहाय त्रिपाठी
(C) राम लाल त्रिपाठी
(D) राम किशोर त्रिपाठी
उत्तर:
(B) राम सहाय त्रिपाठी

4. ‘निराला’ का विवाह किस आयु में हुआ?
(A) 15 वर्ष की आयु में
(B) 16 वर्ष की आयु में
(C) 17 वर्ष की आयु में
(D) 13 वर्ष की आयु में
उत्तर:
(D) 13 वर्ष की आयु में

5. ‘निराला’ की पत्नी का क्या नाम था?
(A) सुंदरी देवी
(B) गीता देवी
(C) मनोहर देवी
(D) लक्ष्मी देवी
उत्तर:
(C) मनोहर देवी

6. महावीर प्रसाद द्विवेदी ने निराला की किस कविता को लौटा दिया था?
(A) परिमल
(B) जूही की कली
(C) बादल राग
(D) ध्वनि
उत्तर:
(B) जूही की कली

7. ‘निराला’ का निधन किस वर्ष हुआ?
(A) सन् 1961 में
(B) सन् 1962 में
(C) सन् 1963 में
(D) सन् 1964 में
उत्तर:
(A) सन् 1961 में

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8. ‘निराला’ ने सन् 1933 में किस पत्रिका का संपादन किया?
(A) नवनीत
(B) मतवाला
(C) निराला
(D) बाला
उत्तर:
(B) मतवाला

9. ‘निराला’ की बेटी का क्या नाम था?
(A) सरला
(B) नीलम
(C) मनोज
(D) सरोज
उत्तर:
(D) सरोज

10. ‘बादल राग’ कविता के रचयिता का नाम क्या है?
(A) तुलसीदास
(B) जयशंकर प्रसाद
(C) सुमित्रानंदन पंत
(D) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
उत्तर:
(D) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

11. सरोज के निधन के बाद निराला ने बेटी के शोक में कौन-सा गीत लिखा?
(A) सरोज स्मृति
(B) आराधना
(C) अर्चना
(D) अणिमा
उत्तर:
(A) सरोज स्मृति

12. ‘राम की शक्ति पूजा’ के रचयिता का क्या नाम है?
(A) जयशंकर प्रसाद
(B) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
(C) महादेवी वर्मा
(D) राम कुमार वर्मा
उत्तर:
(B) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

13. ‘निराला’ ने किस छंद में रचनाएँ लिखीं?
(A) दोहा छंद
(B) चौपाई छंद
(C) मुक्त छंद
(D) सोरठा छंद
उत्तर:
(C) मुक्त छंद

14. ‘तुलसीदास’ के रचयिता का क्या नाम है?
(A) तुलसीदास
(B) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
(C) सूरदास
(D) कबीरदास
उत्तर:
(B) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

15. ‘बादल राग’ में बादल किसका प्रतीक है?
(A) शांति का
(B) क्रांति का
(C) प्रेम का
(D) सुख का
उत्तर:
(B) क्रांति का

16. ‘रुद्ध कोष है, क्षुब्ध तोष’-यहाँ रुद्ध का अर्थ है-
(A) क्रोधित
(B) रुका हुआ
(C) भरा हुआ
(D) खाली
उत्तर:
(B) रुका हुआ

17. ‘बादल राग’ कविता में बादल क्रांति के क्या हैं?
(A) वाहन
(B) दूत
(C) पोषक
(D) शोषक
उत्तर:
(B) दूत

18. प्रस्तुत कविता में ‘रण-तरी’ किससे भरी हुई है?
(A) धन
(B) आकांक्षाओं से
(C) नवजीवन
(D) गर्जन
उत्तर:
(B) आकांक्षाओं से

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19. शैशव का सुकुमार शरीर किसमें हँसता है?
(A) वर्षा
(B) घायलावस्था
(C) रोग-शोक
(D) गर्मी
उत्तर:
(C) रोग-शोक

20. ‘बादल राग’ कविता में क्रांति संसार में किसकी सृष्टि करती है?
(A) दुख और अशांति की
(B) सुख और शांति की
(C) सुख और अशांति की
(D) दुख और शांति की
उत्तर:
(B) सुख और शांति की

21. ‘रोग-शोक’ में भी किसका सकुमार शरीर हँसता है?
(A) यौवन
(B) शैशव
(C) धनी
(D) कृषक
उत्तर:
(B) शैशव

22. किसान का सार किसने चूस लिया है?
(A) सरकार ने
(B) नेता ने
(C) पत्नी और बच्चों ने
(D) पूँजीपति ने
उत्तर:
(D) पूँजीपति ने

23. ‘बादल राग’ कविता के अनुसार जल-विप्लव-प्लावन हमेशा किस पर होता है?
(A) वायु पर
(B) नभ पर
(C) जमीन पर
(D) कीचड़ पर
उत्तर:
(D) कीचड़ पर

24. ‘शीर्ण शरीर’ किसे कहा गया है?
(A) बालक को
(B) महिला को
(C) सैनिक को
(D) किसान को
उत्तर:
(D) किसान को

25. क्रांति का सबसे अधिक लाभ किस वर्ग को मिलता है?
(A) निम्न वर्ग
(B) धनी वर्ग
(C) पूँजीपति वर्ग
(D) सत्ताधारी वर्ग
उत्तर:
(A) निम्न वर्ग

26. ‘गगन स्पर्शी’, ‘स्पर्द्धा धीर’ किसे कहा गया है?
(A) वृक्षों को
(B) पर्वतों को
(C) बादलों को
(D) बिजली को
उत्तर:
(C) बादलों को

27. ‘बादल राग’ कविता में कवि ने सुखों को कैसा बताया है?
(A) चेतन
(B) जड़
(C) स्थिर
(D) अस्थिर
उत्तर:
(D) अस्थिर

28. ‘निराला’ ने अट्टालिकाओं को क्या कहा है?
(A) अजायबघर
(B) चिकित्सालय
(C) आतंक-भवन
(D) योग-भवन
उत्तर:
(C) आतंक-भवन

29. निराला ने ‘जीर्ण बाहु’ किसे कहा है?
(A) रोगी को
(B) वृद्ध को
(C) कृषक को
(D) बालक को
उत्तर:
(C) कृषक को

30. ‘विप्लव’ शब्द का अर्थ क्या है?
(A) क्षान्ति
(B) शान्ति
(C) भ्रान्ति
(D) क्रान्ति
उत्तर:
(D) क्रान्ति

31. क्रांति के बादलों की गर्जना सुनकर कौन-सा वर्ग भयभीत होता है?
(A) कृषक वर्ग
(B) श्रमिक वर्ग
(C) निम्न वर्ग
(D) पूँजीपति वर्ग
उत्तर:
(D) पूँजीपति वर्ग

बादल राग पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] तिरती है समीर-सागर पर
अस्थिर सुख पर दुख की छाया
जग के दग्ध हृदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया
यह तेरी रण-तरी
भरी आकांक्षाओं से,
घन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
उर में पृथ्वी के, आशाओं से
नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,
ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल!
फिर-फिर [पृष्ठ-41]

शब्दार्थ-सागर = समद्र। अस्थिर = अस्थायी। जग = संसार। दग्ध = दखी। निर्दय = क्रर। प्लावित = पानी से भरा हुआ। माया = खेल, क्रीड़ा। रण-तरी = युद्ध की नौका। आकांक्षा = इच्छा, कामना। भेरी-गर्जन = युद्ध में बजने वाले नगाड़ों की आवाज़। अंकुर = बीज। उर = हृदय, मन। नवजीवन = नया उत्साह । ताकना = अपेक्षा से निरंतर देखना।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘बादल राग’ से लिया गया है। इसके रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। यहाँ कवि ने बादलों को विप्लवकारी योद्धा के रूप में चित्रित किया है।

व्याख्या कवि कहता है कि बादल वायु के रूप में समुद्र पर मंडरा रहे हैं। वे इस प्रकार उमड़-घुमड़कर सागर पर छाए हुए हैं जैसे क्षणिक सुखों पर दुखों की छाया मंडराती रहती है। ये बादल संसार के दुखों से पीड़ित हृदय पर एक क्रूर विनाशकारी क्रीड़ा करने जा रहे हैं। भाव यह है कि ये संसार के प्राणी शोषण तथा अभाव के कारण अत्यधिक दुखी हैं। बादल क्रांति का दूत बनकर उन दुःखों को नष्ट करना चाहते हैं।

कवि बादल को संबोधित करता हुआ कहता है हे विनाशकारी बादल! तुम्हारी यह युद्ध रूपी नौका असंख्य संभावनाओं से भरी हुई है। तुम अपनी गर्जना तर्जना के द्वारा क्रांति उत्पन्न कर सकते हो और विनाश भी कर सकते हो परंतु तुम्हारी गर्जना के नगाड़े सुनकर पृथ्वी के गर्भ में छिपे हुए अंकुर नवजीवन की आशा लिए हुए सिर उठाकर तुम्हारी ओर बार-बार देख रहे हैं। कवि कहता है कि हे विनाश के बादल! तुम्हारी क्रांतिकारी वर्षा ही पृथ्वी में दबे हुए अंकुरों को नया जीवन दे सकती है अतः तुम बार-बार गर्जना करके वर्षा करो। इस पद्य से यह अर्थ भी निकलता है कि क्रांति से ही समाज के शोषितों, पीड़ितों तथा दलितों का उद्धार हो सकता है और पूँजीपतियों का विनाश हो सकता है। अतः सामाजिक और आर्थिक विषमता को दूर करने के लिए क्रांति अनिवार्य है।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने बादलों को विप्लवकारी योद्धा के रूप में चित्रित किया है।
  2. कविता का मूल स्वर प्रगतिवादी है।
  3. छायावादी कविता होने के कारण इस कविता में लाक्षणिक पदावली का अत्यधिक प्रयोग हुआ है।
  4. ‘समीर-सागर’, ‘रण-तरी’, ‘विप्लव के बादल’ तथा ‘दुःख की छाया’ में रूपक अलंकार का सुंदर प्रयोग हुआ है।
  5. अन्यत्र अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकारों का भी सफल प्रयोग हुआ है।
  6. संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग किया गया है।
  7. शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  8. अंकुरों द्वारा सिर ऊँचा करके बादलों की ओर ताकने में दृश्य-बिंब की सुंदर योजना देखी जा सकती है।
  9. मुक्त छंद का सफल प्रयोग किया गया है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 7 बादल राग

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) अस्थिर सुख पर दुःख की छाया से कवि का क्या अभिप्राय है?
(ग) ‘जग के दग्ध हृदय’ का प्रयोग किस अर्थ में किया गया है?
(घ) बादल निर्दय विप्लव की रचना क्यों कर रहे हैं?
(ङ) घन भेरी की गर्जना सुनकर सोये हुए अंकुरों पर क्या प्रतिक्रिया हुई है?
(च) पृथ्वी के गर्भ में सोये हुए अंकुर ऊँचा सिर करके क्यों ताक रहे हैं?
उत्तर:
(क) कवि-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’। कविता-बादल राग

(ख) वायु अस्थिर है और बादल घने हैं। इसी प्रकार सुख भी अस्थिर होते हैं परंतु दुःख स्थायी होते हैं। इसलिए कवि यह कहना चाहता है कि अस्थायी सुखों पर अनंत दुःखों की काली छाया मंडराती रहती है।

(ग) कवि का यह कहना है कि संसार के शोषित और गरीब लोग अभाव तथा शोषण के कारण दुखी और पीड़ित हैं। वे करुणा का जल चाहते हैं। इसलिए कवि ने बादल रूपी क्रांति से वर्षा करने की प्रार्थना की है।

(घ) बादल क्रांति का प्रतीक हैं। वह लोगों के निर्मम शोषण को देखकर ही विप्लव की रचना कर रहा है।

(ङ) बादलों की घनी गर्जना सुनकर पृथ्वी के गर्भ में अंकुर नवजीवन की आशा से जाग उठे हैं। वे पानी की आकांक्षा के कारण सिर ऊँचा करके बादलों को देख रहे हैं।

(च) पृथ्वी के गर्भ में सोये हुए अंकुर ऊँचा सिर करके इसलिए ताक रहे हैं क्योंकि उन्हें यह आशा है कि बादलों रूपी क्रांति के कारण उन्हें सुखद तथा नवीन जीवन की प्राप्ति होगी तथा उनके सारे कष्ट दूर हो जाएंगे।

[2] बार-बार गर्जन
वर्षण है मूसलधार,
हृदय थाम लेता संसार,
सुन-सुन घोर वज्र-हुंकार।
अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर,
क्षत-विक्षत हत अचल-शरीर,
गगन-स्पर्शी स्पर्धा धीर।
हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार
शस्य अपार,
हिल-हिल
खिल-खिल,
हाथ हिलाते,
तुझे बुलाते,
विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते। [पृष्ठ-41]

शब्दार्थ-गर्जन = गरजना। मूसलधार = मोटी-मोटी बारिश। हृदय थामना = डर जाना। घोर = घना, भयंकर। वज्र-हुंकार = वज्रपात के समान भीषण आवाज़। अशनि-पात = बिजली का गिरना। उन्नत = बड़ा, विशाल। शत-शत = सैकड़ों। क्षत-विक्षत = घायल। हत = मरा हुआ। अचल = पर्वत। गगन-स्पर्शी = आकाश को छूने वाला। स्पर्द्धा धीर = आगे बढ़ने की होड़ करने के लिए बेचैन। लघुभार = हल्के। शस्य = हरियाली। अपार = बहुत अधिक। विप्लव = क्रांति, विनाश। रख = शोर।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘बादल राग’ से लिया गया है। इसके रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी हैं। प्रस्तुत कविता में कवि ने बादलों के माध्यम से क्रांति का आह्वान किया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि हे बादल! तुम्हारे बार-बार गर्जने तथा मूसलाधार वर्षा करने से सारा संसार डर के कारण अपना कलेजा थाम लेता है क्योंकि तुम्हारी भयंकर गर्जन और वज्र जैसी घनघोर आवाज़ को सुनकर लोग काँप उठते हैं। सभी को तुम्हारी विनाश-लीला का डर लगा रहता है। भाव यह है कि क्रांति का स्वर सुनकर लोग आतंकित हो उठते हैं। कवि पुनः कहता है कि बादलों के भयंकर वज्रपात से उन्नति की चोटी पर पहुँचे हुए सैकड़ों योद्धा अर्थात् पूँजीपति भी पराजित होकर धूलि चाटने लगते हैं। आकाश को छूने की होड़ लगाने वाले ऊँचे-ऊँचे स्थिर पर्वत भी बादलों के भयंकर वज्रपात से घायल होकर खंड-खंड हो जाते हैं। अर्थात् जो पर्वत अपनी ऊँचाई के द्वारा आकाश से स्पर्धा करते हैं वे भी बादलों की बिजली गिरने से खंड-खंड होकर नष्ट हो जाते हैं। जो लोग जितने ऊँचे होते हैं उतने ही वे विनाश के शिकार बनते हैं। परंतु बादलों की इस विनाश-लीला में छोटे-छोटे पौधे हँसते हैं और मुस्कराते हैं, क्योंकि विनाश से उन्हें जीवन मिलता है। वे हरे-भरे होकर लहलहाने लगते हैं। वे छोटे-छोटे पौधे खिलखिलाते हुए और अपने हाथ हिलाते हुए तुम्हें निमंत्रण देते हैं। तुम्हारे आने से उन्हें एक नया जीवन मिलता है। हे बादल! क्रांति के विनाश से हमेशा छोटे तथा गरीब लोगों को ही लाभ होता है।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने बादल को क्रांति का प्रतीक सिद्ध किया है और उन्हें ‘विप्लव के वीर’ की संज्ञा दी है।
  2. कवि ने प्रतीकात्मक शब्दावली अपनाते हुए क्रांति की भीषणता की ओर संकेत किया है। ‘गर्जन’, ‘वज्र-हुंकार’, ‘छोटे-पौधे’ ‘अचल’ आदि सभी प्रतीक हैं।
  3. संपूर्ण पद में मानवीकरण अलंकार का सफल प्रयोग किया गया है तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  4. ‘हाथ हिलाते तुझे बुलाते’ गतिशील बिंब है।
  5. यहाँ कवि ने संस्कृतनिष्ठ शुद्ध साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है।
  6. शब्द-चयन उचित और भावानुकूल है।
  7. ओज गुण है तथा मुक्त छंद का प्रयोग किया गया है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) क्या आप बादल को क्रांति का प्रतीक मानते हैं?
(ख) बादलों की मूसलाधार वर्षा से सृष्टि पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(ग) बादलों के अशनि-पात से किसे हानि होती है और क्यों?
(घ) छोटे पौधे किसके प्रतीक हैं और वे क्यों हँसते हैं?
(ङ) कवि ने गगन-स्पर्शी स्पर्द्धा धीर किसे कहा है और क्यों?
उत्तर:
(क) निश्चित ही बादल क्रांति के प्रतीक हैं। कवि ने बादलों के क्रांतिकारी रूप को स्पष्ट करने के लिए उन्हें ‘विप्लव के वीर’ कहा है। जिस प्रकार क्रांति होने पर चारों ओर गर्जन-तर्जन और विनाश होता है उसी प्रकार विप्लवकारी बादल भी मूसलाधार वर्षा तथा अशनिपात से विनाश की लीला रचते हैं।

(ख) बादलों की मूसलाधार वर्षा से संसार के लोग घबरा जाते हैं और डर के मारे अपना हृदय थाम लेते हैं। बादलों की घोर वज्र हुंकार लोगों में भय उत्पन्न करती है।

(ग) बादलों के अशनि-पात अर्थात् बिजली गिरने से विशाल आकार के ऊँचे-ऊँचे पर्वतों को हानि होती है। निरंतर वर्षा होने से और ओले पड़ने से ये पर्वत क्षत-विक्षत हो जाते हैं।

(घ) छोटे पौधे शोषित तथा अभावग्रस्त लोगों के प्रतीक हैं। बादल रूपी क्रांति से शोषितों को ही लाभ पहुँचता है। पुनः वर्षा का जल पाकर गरीब किसान और मजदूर प्रसन्न हो जाते हैं क्योंकि इससे उन्हें एक नया जीवन मिलता है।

(ङ) कवि ने गगन-स्पर्शी स्पर्धा धीर शब्दों का प्रयोग पूँजीपतियों के लिए किया है। क्योंकि वे अपने धन-वैभव के कारण समाज में ऊँचा स्थान पा चुके हैं। उनके ऊँचे-ऊँचे भवन आकाश को स्पर्श करने में होड़ लगा रहे हैं। धन-वैभव को लेकर उनमें होड़ मची हुई है।

[3] अट्टालिका नहीं है रे
आतंक-भवन
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव-प्लावन,
क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से
सदा छलकता नीर,
रोग-शोक में भी हँसता है
शैशव का सुकुमार शरीर।
रुद्ध कोष है, क्षुब्ध तोष
अंगना-अंग से लिपटे भी
आतंक अंक पर काँप रहे हैं।
धनी, वज्र-गर्जन से बादल!
त्रस्त नयन-मुख ढाँप रहे हैं। [पृष्ठ-42-43]

शब्दार्थ-अट्टालिका = महल। आतंक-भवन = भय का निवास। पंक = कीचड़। प्लावन = बढ़ा। क्षुद्र = तुच्छ। रुद्ध = रुका हुआ। कोष = खजाना। अंगना = पत्नी। अंक = गोद। वज्र-गर्जन = वज्र के समान गर्जना। त्रस्त = डरा हुआ। नयन = नेत्र, आँख।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘बादल राग’ से लिया गया है। इसके रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। यहाँ कवि ने अट्टालिकाओं को आतंक भवन कहा है क्योंकि उनमें रहने वाले अमीर लोग गरीबों का खून चूसकर धन पर कुंडली मारे बैठे हैं। ऐसे लोग ही क्रांति के स्वर से डरते हैं।

व्याख्या कवि कहता है कि हमारे समाज में जो ऊँचे-ऊँचे भवन हैं, ये अट्टालिकाएँ नहीं हैं, बल्कि इनमें तो भय और त्रास का निवास है। इनमें रहने वाले अमीर लोग हमेशा क्रांति से आतंकित रहते हैं। बादलों की विनाश लीला तो हमेशा कीचड़ में ही होती है। उसी में बाढ़ और विनाश के दृश्य देखे जा सकते हैं। कवि के कहने का भाव है कि समाज के गरीब और शोषित लोग ही क्रांति करते हैं। अमीर लोग तो हमेशा भय के कारण डरे रहते हैं। गरीब लोगों को क्रांति से कोई फर्क नहीं पड़ता। कवि कहता है कि पानी में खिले हुए छोटे-छोटे कमलों से हमेशा पानी रूपी आँसू टपकते रहते हैं। यहाँ कमल पूँजीपतियों के प्रतीक हैं जो विप्लव से हमेशा डरते रहते हैं, परंतु समाज का गरीब वर्ग सुकुमार बच्चों के समान है जो रोग और शोक में भी हमेशा हँसता और मुस्कुराता रहता है। अतः क्रांति होने से उन्हें आनंद की प्राप्ति होती है।

परंतु पूँजीपति लोगों ने अपने खजाने को धन से परिपूर्ण करके उसे सुरक्षित रखा हुआ है। जिससे गरीब लोगों का संतोष उबलने को तैयार है। यही कारण है कि अमीर लोग हमेशा आतंकित रहते हैं और वे क्रांति रूपी बादल की गर्जना को सुनकर अपनी सुंदर स्त्रियों के अंगों से लिपटे हुए हैं लेकिन आतंक की गोद में वे काँप रहे हैं। बादलों की भयंकर गर्जना को सुनकर वे अपनी आँखें बंद किए हुए हैं और मुँह को छिपाए हुए हैं। भाव यह है कि क्रांति से पूँजीपति लोग ही डरते हैं, गरीब लोग नहीं डरते।

विशेष-

  1. इस पद में कवि ने समाज के शोषकों के प्रति अपनी घृणा को व्यक्त किया है और शोषितों के प्रति सहानुभूति दिखाई है।
  2. यहाँ कवि क्रांति के प्रभाव को दिखाने में सफल रहा है।
  3. संपूर्ण पद में प्रतीकात्मक शब्दावली का खुलकर प्रयोग किया गया है; जैसे ‘पंक’ निम्न वर्ग का प्रतीक है और ‘जलज’ धनी वर्ग का प्रतीक है।
  4. अनुप्रास, स्वर मैत्री तथा अपहति अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया गया है।
  5. तत्सम् प्रधान साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  6. शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  7. ओज गुण है तथा मुक्त छंद का सफल प्रयोग है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 7 बादल राग

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) ‘अट्टालिका नहीं है रे आतंक-भवन’ का आशय क्या है?
(ख) पंक और अट्टालिका किसके प्रतीक हैं?
(ग) रोग-शोक में कौन हँसता रहता है और क्यों?
(घ) ‘क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से सदा छलकता नीर’ का भावार्थ स्पष्ट करें।
(ङ) कौन लोग आतंक अंक पर काँप रहे हैं और डर कर अपने नयन-मुख ढाँप रहे हैं?
उत्तर:
(क) यहाँ कवि यह स्पष्ट करता है कि बड़े-बड़े पूंजीपतियों के भवन अट्टालिकाएँ नहीं हैं, बल्कि वे तो आतंक के भवन हैं अर्थात् क्रांति का नाम सुनते ही वे डर के मारे काँपने लगते हैं। महलों में रहते हुए भी वे घबराए रहते हैं।

(ख) पंक समाज के शोषित व्यक्ति का प्रतीक है और अट्टालिका शोषक पूँजीपतियों का प्रतीक है।

(ग) समाज का निम्न वर्ग रूपी सुकुमार शिशु ही रोग और शोक में हमेशा हँसता रहता है क्योंकि वह संघर्षशील और जुझारू होता है। क्रांति होने से ही उसे लाभ पहुंचने की संभावना है।

(घ) जब वर्षा रूपी क्रांति होती है तो जल में उत्पन्न कमल रोते हैं और आँसू बहाते हैं। भाव यह है कि क्रांति के फलस्वरूप सुविधाभोगी लोग घबराकर आँसू बहाने लगते हैं। उन्हें इस बात का डर होता है कि उनसे उनकी पूँजी छीन ली जाएगी।

(ङ) पूँजीपति लोग अपने महलों में अपनी पत्नियों से लिपटे हुए भी काँप रहे हैं। उनके मन में क्रांति का डर है। उन्हें इस बात का भय लगा हुआ है कि क्रांति के कारण उनकी सुख-सुविधाएँ छिन जाएँगी। इसलिए वे भयभीत होकर अपने नेत्रों और मुख को छिपाने का प्रयास कर रहे हैं।

[4] जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर,
तुझे बुलाता कृषक अधीर,
ऐ विप्लव के वीर!
चूस लिया है उसका सार,
हाड़-मात्र ही है आधार,
ऐ जीवन के पारावार! [पृष्ठ-43]

शब्दार्थ-जीर्ण = जर्जर। शीर्ण = कमज़ोर। कृषक = किसान। अधीर = बेचैन। विप्लव = विनाश। सार = प्राण। पारावार = सागर।

प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘बादल राग’ से लिया गया है। इसके रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी हैं। यहाँ कवि ने किसानों की दुर्दशा का यथार्थ वर्णन किया है। कवि बादलों का आह्वान करता हुआ कहता है कि वह मूसलाधार वर्षा करके गरीब तथा शोषित किसानों की सहायता करें।

व्याख्या कवि बादलों को संबोधित करता हुआ कहता है, हे जीवन के सागर! देखो, यह जर्जर भुजाओं तथा दुर्बल शरीर वाला किसान बेचैन होकर तुम्हें अपनी ओर बुला रहा है। हे विनाश करने में निपुण बादल! तुम वर्षा करके देश के गरीब तथा शोषित किसान की सहायता करो। उसकी भुजाएँ जर्जर हो चुकी हैं तथा शरीर कमज़ोर हो गया है। उसकी भुजाओं के बल को तथा उसके जीवन के रस को पूँजीपतियों ने चूस लिया है। भाव यह है कि देश के धनिक वर्ग ने ही किसान का शोषण करके उसकी बुरी हालत कर दी है। अब उस किसान में केवल हड्डियों का पिंजर शेष रह गया है। आज की पूँजीवादी शोषक अर्थव्यवस्था ने उसके खून और माँस को चूस लिया है। हे बादल! तुम तो जीवन के दाता हो, विशाल सागर के समान हो। तुम वर्षा करके एक ऐसी क्रांति पैदा कर दो जिससे कि वह किसान शोषण से मुक्त हो सके और सुखद जीवनयापन कर सके।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने भारतीय किसानों की दुर्दशा के लिए आज की शोषण-व्यवस्था को उत्तरदायी माना है। देश के पूँजीपतियों और महाजनों ने किसानों का भरपूर शोषण किया है।
  2. पस्तुत पद्यांश से प्रगतिवादी स्वर मुखरित हुआ है। कवि ने बादल को एक क्रांतिकारी योद्धा के रूप में प्रस्तुत किया है।
  3. संपूर्ण पद्य में बादल का सुंदर मानवीकरण किया गया है।
  4. तत्सम् प्रधान संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है। शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. प्रसाद गुण होने के कारण करुण रस का परिपाक हुआ है और मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर, शब्दों का प्रयोग किसके लिए किया गया है और क्यों?
(ख) कृषक को अधीर क्यों कहा गया है?
(ग) कवि ने ‘विप्लव के वीर’ किसे कहा है और क्यों?
(घ) जीवन के पारावर किसे कहा गया है और क्यों?
(ङ) ‘चूस लिया है उसका सार’ का आशय स्पष्ट करो।
उत्तर:
(क) यहाँ कवि ने जीर्ण बाहु और शीर्ण शरीर शब्दों का प्रयोग किसान के लिए किया है। शोषण तथा अभाव के कारण उसकी भुजाएँ जीर्ण हो चुकी हैं और शरीर दुर्बल और हीन हो चुका है। इसलिए कवि ने किसान के लिए जीर्ण बाहु और शीर्ण शरीर शब्दों का प्रयोग किया है।

(ख) शोषण तथा अभावों के कारण भारत का किसान दरिद्र और लाचार है। पूँजीपतियों ने उसका सब कुछ छीन लिया है। उसे आशा है कि क्रांति के फलस्वरूप परिवर्तन होगा और पूँजीवाद का विनाश होगा, इसलिए वह क्रांति के बादलों की ओर बड़ी बेचैनी से देख रहा है।

(ग) कवि ने बादलों को विप्लव के वीर कहा है क्योंकि कवि ने बादलों को क्रांति का प्रतीक माना है। जिस प्रकार बादल मूसलाधार वर्षा से समाज की व्यवस्था को भंग कर देते हैं, उसी प्रकार क्रांति भी पूँजीपतियों का विनाश कर देती है।

(घ) क्रांति रूपी बादल को ही जीवन का पारावार अर्थात् सागर कहा गया है। जिस प्रकार बादल वर्षा करके फसल को नया जीवन देते हैं, उसी प्रकार क्रांति भी पूँजीपतियों का विनाश करके गरीब लोगों को सहारा देती है और उनका विकास करती है।

(ङ) यहाँ कवि यह कहना चाहता है कि धनिक वर्ग ने किसान वर्ग का शोषण करके उसके शरीर के सारे रस को मानों चूस लिया है अर्थात् शोषण के कारण किसान की दशा बुरी हो चुकी है। अब तो किसान हड्डियों का पिंजर मात्र बनकर रह गया है।

बादल राग Summary in Hindi

बादल राग कवि-परिचय

प्रश्न-
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-महाकवि ‘निराला’ छायावाद के चार प्रमुख कवियों में से एक थे। आधुनिक हिंदी साहित्य के विकास में उनका महान योगदान है। उनका जन्म सन् 1899 में बंगाल के महिषादल नामक रियासत में बसंत पंचमी के दिन हुआ था। इनके पिता पं० रामसहाय त्रिपाठी उन्नाव जिले के रहने वाले थे, किंतु जीविकोपार्जन के लिए महिषादल नामक रियासत में आकर बस गए थे। बचपन में ही निराला जी की माता का स्वर्गवास हो गया था। उनके पिता अनुशासनप्रिय थे। इसलिए उनके इस स्वभाव के कारण बालक सूर्यकांत को अनेक बार मार खानी पड़ी। 13 वर्ष की आयु में ही निराला जी का विवाह मनोहर देवी नामक कन्या से कर दिया गया था, किंतु वह एक पुत्र और पुत्री को जन्म देकर स्वर्ग सिधार गई। निराला जी को साहित्य जगत् में भी आरंभ में अनेक विरोधों का सामना करना पड़ा। उनकी अनेक रचनाएँ व लेख अप्रकाशित ही लौटा दिए जाते थे। महावीर प्रसाद द्विवेदी ने उनकी ‘जूही की कली’ कविता लौटा दी थी, किंतु बाद में उनसे मिलने पर द्विवेदी जी भी उनकी प्रतिभा से प्रभावित हुए बिना रह न सके। सन् 1933 में निराला जी ने ‘मतवाला’ नामक पत्रिका का संपादन किया। इसके पश्चात् उन्होंने रामकृष्ण मिशन के दार्शनिक पत्र ‘समन्वय’ का भी संपादन किया। पुत्री सरोज के निधन ने निराला जी को बुरी तरह तोड़ दिया। जीवन के अंतिम दिनों में तो वे विक्षिप्त से हो गए थे। जीवन में संघर्ष करते हुए और माँ भारती का आँचल अपनी रचनाओं से भरते हुए निराला जी सन् 1961 में इस संसार से चल बसे।

2. प्रमुख रचनाएँ निराला जी बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी थे। उन्होंने साहित्य की विविध विधाओं पर सफलतापूर्वक लेखनी चलाई है और अनेक रचनाओं का निर्माण किया है। उनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं
(i) काव्य-संग्रह-‘परिमल’, ‘गीतिका’, ‘तुलसीदास’, ‘अनामिका’, कुकुरमुत्ता’, ‘अणिमा’, ‘बेला’, ‘नए पत्ते’, ‘अपरा’, ‘अर्चना’, ‘आराधना’ आदि।

(ii) कहानी-संग्रह ‘लिली’, ‘सखी’, ‘सुकुल की बीबी’, ‘चतुरी चमार’ आदि।

(iii) उपन्यास-‘अप्सरा’, ‘अलका’, ‘प्रभावती’, ‘निरुपमा’, ‘चोटी की पकड़’, ‘काले कारनामे’, ‘चमेली’ आदि।
‘कुल्ली भाट’ तथा ‘बिल्लेसुर बकरिहा’ उनके रेखाचित्र (आँचलिक उपन्यास) हैं। उन्होंने रेखाचित्र, आलोचना साहित्य, निबंध तथा जीवनी साहित्य की भी रचना की और अनुवाद कार्य भी किया।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 7 बादल राग

3. काव्यगत विशेषताएँ-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की काव्य यात्रा बहुत लंबी रही है। उन्होंने एक छायावादी, प्रगतिवादी तथा प्रयोगवादी कवि के रूप में हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। उनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं

(i) वैयक्तिकता की भावना-‘निराला’ जी के काव्य में वैयक्तिकता की भावना की प्रधानता है। ‘अपरा’ की अनेक कविताओं में कवि ने अपनी आंतरिक अनुभूतियों को व्यक्त किया है। यह प्रकृति उनकी ‘राम की शक्ति पूजा’, ‘जूही की कली’ आदि कविताओं में देखी जा सकती है। ‘सरोज स्मृति’ में कवि ने निजी दुख का वर्णन किया है
दुख ही जीवन की कथा रही
क्या कहूँ आज, जो नहीं कही।

(ii) विद्रोह का स्वर-छायावादी कवियों में ‘निराला’ एक ऐसे कवि हैं जिनके काव्य में विद्रोह का स्वर है। एक स्वच्छंदतावादी कवि होने के कारण उन्होंने पुरातन रूढ़ियों तथा जड़ परंपराओं को तोड़ने का प्रयास किया। काव्य जगत में उन्होंने सबसे पहले मुक्त छंद का प्रयोग किया। भले ही इसके लिए उनको तत्कालीन साहित्यकारों तथा संपादकों के विरोध को सहन करना पड़ा। ‘सरोज स्मृति’ नामक कविता में वे अपनी बेटी सरोज के वर से कहते हैं
तुम करो ब्याह, तोड़ता नियम
मैं सामाजिक योग के प्रथम
लग्न के पदँगा स्वयं मंत्र
यदि पंडित जी होंगे स्वतंत्र।

(iii) राष्ट्रीय चेतना-महाकवि ‘निराला’ के काव्य में देश-प्रेम की भावना देखी जा सकती है। वे सही अर्थों में राष्ट्रवादी कवि थे। ‘भारतीय वंदना’. ‘जागो फिर एक बार’, ‘तलसीदास’, ‘छत्रपति शिवाजी का पत्र’ आदि कविताओं में कवि ने देश-प्रेम की भावना को व्यक्त किया है। उनकी कुछ कविताएँ भारत की स्वतंत्रता का संदेश भी देती हैं। ‘खून की होली जो खेली’ उन युवकों के सम्मान में लिखी गई है जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। इसी प्रकार ‘जागो फिर एक बार’ कविता में कवि भारतवासियों को यह संदेश देता है कि वे गुलामी के बंधन तोड़कर देश को आजाद कराएँ। ‘जागो फिर एक बार’ से एक उदाहरण देखिए
समर अमर कर प्राण
गान गाए महासिंधु-से
सिंधु-नद-तीर वासी!
सैंधव तुरंगों पर
चतुरंग चमुसंग
सवा सवा लाख पर
एक को चढ़ाऊँगा,
गोबिंद सिंह निज
नाम जब कहलाऊँगा।

(iv) प्रकृति वर्णन छायावादी कवि होने के कारण ‘निराला’ जी ने प्रकृति के अनेक चित्र अंकित किए हैं। उन्होंने प्रकृति के आलम्बन, उद्दीपन, मानवीकरण आदि विभिन्न रूपों का सुंदर चित्रण किया है। बादलों से ‘निराला’ जी को विशेष लगाव था, अतः ‘बादल राग’ संबंधी उनकी छह कविताएँ उपलब्ध होती हैं। ‘बादल राग’ की पहली कविता में कवि ने प्रकृति के आलंबन रूप का वर्णन करते हुए लिखा है
बार-बार गर्जन
वर्षण है मूसलधार,
हृदय थाम लेता संसार,
सुन-सुन घोर वज्र-हुंकार।
इसी प्रकार ‘देवी सरस्वती’ नामक कविता में कवि ने सर्वथा नवीन शैली अपनाते हुए शरद् ऋतु का वर्णन किया है।

(v) प्रगतिवादी भावना–’निराला’ जी एक सच्चे प्रगतिवादी कवि थे। उन्होंने जहाँ एक ओर पूँजीपतियों के प्रति अपना तीव्र आक्रोश व्यक्त किया है वहाँ दूसरी ओर शोषितों के प्रति सहानुभूति की भावना भी दिखाई है। ‘कुकुरमुत्ता’, ‘तोड़ती पत्थर’, ‘भिक्षुक’, ‘विधवा’ आदि कविताओं में कवि ने प्रगतिवादी दृष्टिकोण को व्यक्त किया है। ‘भिक्षुक’ से एक उदाहरण देखिए
वह आता दो ट्रक कलेजे के करता, पछताता
पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी-भर दाने को-भूख मिटाने को,
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता

(vi) प्रेम और सौंदर्य का वर्णन-‘निराला’ जी ने अपने आरंभिक काव्य में प्रेम और सौंदर्य का खुलकर वर्णन किया है। ‘जूही की कली’ में कवि ने स्थूल श्रृंगार का वर्णन किया है, परन्तु अन्य कविताओं में उन्होंने बड़े उदात्त और पावन श्रृंगार का वर्णन किया है। कुछ स्थलों पर कवि का प्रेम-वर्णन लौकिक होने के साथ-साथ अलौकिक प्रतीत होने लगता है जिसके फलस्वरूप ‘निराला’ जी एक रहस्यवादी कवि प्रतीत होने लगते हैं। ‘तुम और मैं’, ‘यमुना के प्रति’ आदि कविताओं में कवि की रहस्यवादी भावना देखी जा सकती है।

4. कला-पक्ष-एक सफल छायावादी कवि होने के कारण ‘निराला’ जी ने तत्सम् प्रधान शुद्ध साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है। ‘निराला’ जी का भाषा के बारे में दृष्टिकोण बहुत उदार रहा है। यदि कुछ स्थलों पर वे समास बहुल संस्कृत के शब्दों का प्रयोग करते हैं तो अन्य स्थलों पर वे सामान्य बोलचाल की भाषा का भी प्रयोग करते हैं। उदाहरण के रूप में ‘राम की शक्ति पूजा’ की भाषा संस्कृतनिष्ठ है लेकिन ‘तोड़ती पत्थर’ की भाषा सहज, सरल और सामान्य बोलचाल की भाषा है। ‘कुकुरमुत्ता’ में कवि ने उर्दू तथा अंग्रेज़ी के शब्दों का खुलकर प्रयोग किया है। अन्यत्र कवि ने लाक्षणिक तथा प्रतीकात्मक पदावली का भी प्रयोग किया है। इसके साथ-साथ कवि ने अपनी भाषा में शब्दालंकारों के साथ-साथ अर्थालंकारों का भी प्रयोग किया है। अनुप्रास, यमक, श्लेष, उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपकातिशयोक्ति, विभावना आदि अलंकारों का प्रयोग उनके काव्य में देखा जा सकता है। पुनः निराला जी ने संपूर्ण काव्य मुक्त छंद में ही लिखा है। यही कारण है कि वे मुक्त छंद के प्रवर्तक माने गए हैं।

बादल राग कविता का सार

प्रश्न-
‘बादल राग’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘बादल राग’ नामक कविता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की एक उल्लेखनीय कविता है। इसमें बादल क्रांति का प्रतीक है। कवि कहता है कि वायु रूपी सागर पर क्रांतिकारी बादलों की सेना इस प्रकार छाई हुई है जैसे क्षणिक सुखों पर दुखों के बादल मंडराते रहते हैं। संसार के दुखी लोगों के लिए अनेक संभावनाएँ उत्पन्न होने लगी हैं। लगता है कि एक क्रूर क्रांति होने जा रही है। बादल युद्ध की नौका के संमान गर्जना-तर्जना करते हुए, नगाड़े बजाते हुए उमड़ रहे हैं। दूसरी ओर पृथ्वी की कोख में दबे हुए आशा रूपी नए अंकुर इन बादलों को देख रहे हैं। उन सोये हुए अंकुरों के मन में नवजीवन की आशा है। अतः वे अपना सिर ऊपर उठाकर बार-बार क्रांति के बादलों की ओर देख रहे हैं।

ऐ बादल तुम्हारी घनघोर गर्जन, मूसलाधार वर्षा तथा बिजली की ‘कड़कन’ को सुनकर बड़े-बड़े शूरवीर योद्धा भी धराशायी हो जाते हैं। उनके शरीर क्षत-विक्षत हो जाते हैं और चट्टानें खिसकने लगती हैं। जबकि बादल आपस में होड़ लगाकर निरंतर आगे बढ़ते हैं, परंतु छोटे-छोटे पौधे बादलों को देखकर अत्यधिक प्रसन्न होते हैं। वे बार-बार अपना हाथ हिलाकर बादलों को अपने पास बुलाते हैं। कवि कहता है कि क्रांति की गर्जना से छोटे अथवा गरीब लोगों को लाभ प्राप्त होता है। परंतु ऊँची-ऊँची अट्टालिकाएँ आतंक-भवन के समान हैं। उनमें रहने वाले अमीर लोग समाज का सारा पैसा इकट्ठा करके उस पर कुंडली मारकर बैठे हुए हैं। वे डर के मारे काँप रहे हैं, क्योंकि क्रांति की गर्जना सुनकर वे डर जाते हैं और अपनी पत्नी के अंगों से चिपटकर काँपने लगते हैं। परंतु दूसरी ओर कीचड़ में तो उत्सव मनाया जा रहा है। कीचड़ से पैदा होने वाले कमल से पानी छलकता रहता है क्योंकि वह कमल शोषित और गरीब का प्रतीक है। गरीबों के बच्चे रोग, शोक और इस विप्लव में हँसते रहते हैं। अब कवि भारतीय किसानों की चर्चा करता हुआ कहता है कि किसान की भुजाएँ दुबली-पतली हैं और शरीर कमज़ोर हो चुका है और वह बेचैन होकर बादल को अपने पास बुलाता है। पूँजीपति ने उसके जीवन के रस को छीन लिया है। अब तो उसके शरीर में मात्र हड्डियाँ बची हैं। अतः कवि बादलों को क्रांति का दूत मानकर किसानों की सहायता करने के लिए कहता है।

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Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 6 उषा Textbook Exercise Questions and Answers.

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HBSE 12th Class Hindi उषा Textbook Questions and Answers

कविता के साथ

प्रश्न 1.
कविता के किन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि ‘उषा’ कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्दचित्र है?
उत्तर:
कविता में वर्णित राख से लीपा हुआ चौका, काली सिल, स्लेट पर लाल खड़िया चाक आदि उपमानों से यह पता चलता है कि कवि ने गाँव के परिवेश को आधार बनाकर उषाकालीन प्रकृति का सुंदर चित्रण किया है। महानगरों में कहीं भी न तो लीपा हुआ चौका देखा जा सकता है, न ही स्लेट और न ही खड़िया चाक। ये सभी शब्द-चित्र गाँव से संबंधित हैं। गाँव के प्रत्येक घर में प्रातःकाल होने के बाद पहले चौका लीपा जाता है। तत्पश्चात् सिल का प्रयोग होता है फिर कुछ देर बाद बालक को स्लेट पट्टी दी जाती है। अतः यहाँ कवि ने ग्रामीण जन-जीवन के गतिशील चित्र अंकित किए हैं। इससे पता चलता है कि ये तीनों शब्दचित्र स्थिर न होकर गतिशील हैं क्योंकि एक क्रिया के समाप्त होने के बाद दूसरी क्रिया का आरंभ होता है।

प्रश्न 2.
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)
नई कविता में कोष्ठक, विराम चिह्नों और पंक्तियों के बीच का स्थान भी कविता को अर्थ देता है। उपर्युक्त पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में क्या विशेष अर्थ पैदा हुआ है? समझाइए।
उत्तर:
नई कविता अपने प्रयोगों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ कवि ने भाषा शिल्प के स्तर पर नए प्रयोग करके अर्थ की अभिव्यक्ति की है। सर्वप्रथम कवि ने कोष्ठक में ‘अभी गीला पड़ा है’ पंक्ति का प्रयोग किया है जो कि अतिरिक्त ज्ञान की सूचक है। यह पंक्ति आकाश रूपी चौके की ताज़गी और नमी को सूचित करती है। यह जानकारी पहले भी दी जा चुकी है। राख से लीपा हुआ चौका अपने आप में गीलेपन को सूचित करता है परंतु अतिरिक्त जानकारी के लिए कवि ने कोष्ठक का प्रयोग किया है जोकि गीलेपन को पूर्णतः स्पष्ट करता है।

अपनी रचना

अपने परिवेश के उपमानों का प्रयोग करते हुए सूर्योदय और सूर्यास्त का शब्दचित्र खींचिए।
उत्तर:
प्रातःकालीन सूर्योदय हो रहा है जिसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानों वह नीले सरोवर में स्नान करके बाहर निकला है। सूर्य लाल रंग का पक्षी है जो नीले आकाश के तारों को चुगकर खा जाता है और ओस कणों से अपनी प्यास बुझाता है। धीरे-धीरे यह सूर्य आकाश के मध्य विराजमान हो जाता है तथा अपने प्रकाश द्वारा संपूर्ण संसार को प्रकाशमान कर देता है। परंतु धीरे-धीरे यह सूर्य पर्वतों के शिखरों, वृक्षों, भवनों को पार करता हुआ पश्चिम दिशा की ओर अग्रसर होता है। लगता है कि सूर्य एक थका हुआ मुसाफिर है जो दिन भर यात्रा करने के बाद थक गया है तथा थकान के कारण उसका चेहरा लाल रंग का हो गया है। विश्राम करने के लिए वह पश्चिम दिशा रूपी गुफा में प्रवेश करने लगता है। उसकी गति मंद हो जाती है। अन्ततः वह अपनी थकान को दूर करने के लिए विश्राम करने लगता है तथा दूसरी ओर सूर्यास्त के बाद अँधेरा संसार को अपनी आगोश में ले लेता है।

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आपसदारी

सूर्योदय का वर्णन लगभग सभी बड़े कवियों ने किया है। प्रसाद की कविता ‘बीती विभावरी जाग री’ और अज्ञेय की ‘बावरा अहेरी’ की पंक्तियाँ आगे बॉक्स में दी जा रही हैं। ‘उषा’ कविता के समानांतर इन कविताओं को पढ़ते हुए नीचे दिए गए बिंदुओं पर तीनों कविताओं का विश्लेषण कीजिए और यह भी बताइए कि कौन-सी कविता आपको ज्यादा अच्छी लगी और क्यों ?
→ उपमान
→ शब्दचयन
→ परिवेश
बीती विभावरी जाग री!
अंबर पनघट में डुबो रही-
तारा-घट ऊषा नागरी।
खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लाई-
मधु मुकुल नवल रस गागरी।
अधरों में राग अमंद पिए,
अलकों में मलयज बंद किए
तू अब तक सोई है आली आँखों में भरे विहाग री। -जयशंकर प्रसाद
उत्तर:
उपमान-“अंबर पनघट में डुबो रही
तारा-घट ऊषा नागरी।”
यहाँ कवि ने आकाश को ‘पनघट’, तारों को ‘घट’ (घड़ा) तथा ऊषा को ‘नागरी’ कहा है।

शब्दचयन-यहाँ कवि ने शृंगारिक शब्दों का सुंदर प्रयोग किया है। प्रस्तुत गीत की शब्दावली पाठक के मन में प्रेम के संयोग और वियोग दोनों पक्षों को उभारती है। शब्दचयन बड़ा ही सटीक तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है। कविता को एक बार पढ़कर पुनः पढ़ने का मन करता है।

परिवेश-कविता पढ़कर ऐसा लगता है कि मानो किसी सुंदर उपवन में बैठकर कवि गीत लिख रहा है, वहीं पर सुंदर युवती सोई हुई है जिसे जगाने के लिए कवि प्रकृति को आधार बनाता है।
भोर का बावरा अहेरी
पहले बिछाता है आलोक की
लाल-लाल कनियाँ
पर जब खींचता है जाल को
बाँध लेता है सभी को साथः
छोटी-छोटी चिड़ियाँ, मँझोले परेवे, बड़े-बड़े पंखी
डैनों वाले डील वाले डौल के बेडौल
उड़ते जहाज़,
कलस-तिसूल वाले मंदिर-शिखर से ले
तारघर की नाटी मोटी चिपटी गोल धुस्सों वाली उपयोग-सुंदरी
बेपनाह काया कोः
गोधूली की धूल को, मोटरों के धुएँ को भी
पार्क के किनारे पुष्पिताग्र कर्णिकार की आलोक-खची तन्चि रूप-रेखा को
और दूर कचरा जलानेवाली कल की उदंड चिमनियों को, जो
धुआँ यों उगलती हैं मानो उसी मात्र से अहेरी को हरा देंगी। -सच्चिदानन्द हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
उत्तर:
उपमान बावरा अहेरी, चिड़ियाँ जाल, मंझोले परेवे, उड़ते जहाज़, उदंड चिमनियाँ आदि सर्वथा नवीन उपमान हैं।

शब्दचयन-यहाँ कवि ने सटीक तथा भावानुकूल शब्दों का चयन किया है जिससे कविता बड़ी सजीव बन पड़ी है। कविता का प्रत्येक शब्द बड़ा ही गतिशील एवं सक्रिय दिखाई देता है।

परिवेश-यह कविता नगरीय परिवेश का चित्रण करती है और सूर्य की किरणों द्वारा नगर पर फैलने का यथार्थ वर्णन करती है। दोनों कविताओं में से मुझे “बीती विभावरी जाग री” कविता अच्छी लगी है क्योंकि यह कविता महानगरों से दूर किसी ग्रामीण आँचल का सुंदर वर्णन करती है। इस कविता का प्रकृति वर्णन बहुत ही स्वाभाविक बन पड़ा है परंतु ‘बावरा अहेरी’ कविता शहरी जन-जीवन के धूल और धुएँ से ढकी हुई है। इसलिए यह कविता मुझे अच्छी नहीं लगती।

HBSE 12th Class Hindi उषा Important Questions and Answers

सराहना संबंधी प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
“प्रात नभ या बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)”
उत्तर:

  1. यहाँ कवि ने प्रातःकालीन प्रकृति का बहुत ही सूक्ष्म चित्रण किया है जिसमें सुंदर तथा नवीन उपमानों का प्रयोग किया है।
  2. ‘शंख जैसे’, ‘राख ………………. पड़ा है। दोनों में उपमा अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  3. इस पद्यांश में मौलिक कल्पना के साथ-साथ नवीन उपमानों का प्रयोग किया गया है।
  4. (अभी गीला पड़ा है) पंक्ति कोष्ठक में रखी गई है जो कि आकाश रूपी चौके की नमी तथा ताज़गी को सूचित करती है।
  5. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया गया है।
  6. शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  7. मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है।

2. “नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।”
उत्तर:

  1. इस पद्यांश में कवि ने सूर्योदय की बेला में क्षण-क्षण परिवर्तित प्रकृति का सूक्ष्म चित्रण किया है।
  2. ‘नीला जल’ नीले आकाश को सांकेतिक करता है और ‘गौर झिलमिल देह’ उगते हुए सूर्य के प्रकाश की ओर संकेत करती है।
  3. ‘नील जल’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  4. ‘नील जल ……………. हिल रही हो’ में उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  5. यहाँ नीले जल में झिलमिलाती गोरी देह उगते हुए सूर्य की द्योतक है।
  6. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  7. शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  8. मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है।

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3. “बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने”
उत्तर:

  1. इसमें कवि ने नीले नभ से उदित होते हुए सूर्य के सौंदर्य का बहुत ही मनोहारी वर्णन किया है।
  2. ‘बहुत काली सिल ……………. गई हो’ तथा ‘स्लेट पर …………… किसी ने’ में उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  3. ‘काली सिल’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  4. लाल केसर से धुली काली सिल, भोर कालीन गीले वातावरण में सूर्योदय की लालिमा का द्योतन करती है।
  5. ‘स्लेट पर लाल खड़िया चाक’ प्रातःकालीन गीले वातावरण में उगते हुए सूर्य के लिए प्रयुक्त किया गया है।
  6. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  7. शब्द-चयन सर्वथा अनुकूल व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  8. संपूर्ण पद्यांश में चित्रात्मक व बिंबात्मक शैलियों का प्रयोग हुआ है।
  9. मुक्त छंद का सफल प्रयोग है।

विषय-वस्तु पर आधारित लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भोर के नभ को राख से लीपा चौका क्यों कहा गया है?
उत्तर:
भोरकालीन आकाश गीली राख के रंग के समान गहरा स्लेटी रंग का होता है। उस समय के वातावरण में नमी के साथ-साथ पवित्रता भी होती है। अतः स्लेटी रंग को नमी तथा पवित्रता के कारण ही भोर के नभ की राख से लीपा गया गीला चौका कहा गया है। कवि सूर्योदयकालीन वातावरण की तुलना रसोई की पावनता के साथ करता है।

प्रश्न 2.
नील जल में हिलती झिलमिलाती देह के द्वारा कवि क्या स्पष्ट करना चाहता है?
उत्तर:
कवि ने नील जल शब्द का प्रयोग नीले आकाश के लिए किया है। जिस प्रकार नीले जल में कोई गौरवर्णी नारी धीरे-धीरे बाहर निकलकर आती है, उसी प्रकार नीले आकाश से सूर्य की श्वेत किरणें विकीर्ण होकर प्रकाश फैलाने लगती हैं।

प्रश्न 3.
स्लेट पर लाल खड़िया चाक मलने से क्या अभिप्राय है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
यदि काली स्लेट पर लाल खड़िया चाक को लीप दिया जाए तो वह गीली होने के साथ-साथ थोड़ी-सी लालिमा लिए हुए रहती है। उसका रंग भोरकालीन गहरे आकाश में सूर्य की लालिमा जैसा हो जाता है। यहाँ कवि का अभिप्राय उस नीले आकाश से है जिसमें सूर्य की लालिमा धीरे-धीरे व्याप्त होने लगती है।

प्रश्न 4.
सिल और स्लेट शब्दों का प्रयोग कहाँ तक सार्थक है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
सिल तथा स्लेट शब्दों का प्रयोग कवि ने भोरकालीन आकाश के गहरे नीले रंग के लिए किया है जिसमें सूर्योदय की थोड़ी-सी लालिमा भी मिली हुई होती है।

प्रश्न 5.
‘उषा’ कविता में निहित प्रकृति-सौंदर्य की विवेचना कीजिए। [H.B.S.E. March, 2019 (Set-B, C)]
उत्तर:
रात्रि के समय आकाश में कालिमा और नीली आभा फैली हुई होती है जिसमें झिलमिलाते हुए तारे अपना सौंदर्य बिखेरते हैं। सूर्योदय से पूर्व के काल में हल्का-हल्का प्रकाश चमकने लगता है और तारे लुप्त होने लगते हैं। इस अवसर पर आकाश में थोड़ी-सी नमी होती है तथा पौ फटने पर केसरिया रंग छिटक जाता है। फलस्वरूप पक्षी जाग जाते हैं और प्रकृति अंगड़ाई लेकर मुखरित होने लगती है। धीरे-धीरे लालिमा पूरे संसार पर छा जाती है। सूर्योदय के पश्चात् सारा संसार प्रकाश से जगमगाने लगता है और संसार के सभी प्राणी अपने-अपने क्रिया-कलाप आरंभ कर देते हैं।

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प्रश्न 6.
सूर्योदय से उषा का कौन-सा जादू टूट जाता है?
उत्तर:
सर्योदय के कारण उषा का अलौकिक रंग-रूप टने लगता है। सर्योदय से पहले प्रातःकालीन प्रकति क्षण-क्षण में परिवर्तित होती हुई दिखाई देती है। रात्रिकालीन कालिमा लुप्त हो जाती है और हल्की-हल्की लालिमा पूर्व दिशा में फैलने लगती है। इस प्रकार उषा का अद्वितीय रूप-सौंदर्य लुप्त हो जाता है और आकाश में सूर्य का प्रकाश फैलने लगता है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. शमशेर बहादुर सिंह का जन्म कब हुआ?
(A) 13 जनवरी, 1921
(B) 13 जनवरी, 1911
(C) 15 जनवरी, 1912
(D) 26 जनवरी, 1913
उत्तर:
(B) 13 जनवरी, 1911

2. शमशेर बहादुर सिंह का जन्म किस प्रदेश में हुआ?
(A) उत्तराखंड में
(B) मध्य प्रदेश में
(C) पंजाब में
(D) राजस्थान में
उत्तर:
(A) उत्तराखंड में

3. शमशेर बहादुर सिंह का जन्म किस जनपद में हुआ?
(A) हरिद्वार में
(B) ऋषिकेश में
(C) देहरादून में
(D) मसूरी में
उत्तर:
(C) देहरादून में

4. शमशेर बहादुर सिंह का निधन कब हुआ?
(A) सन् 1992 में
(B) सन् 1991 में
(C) सन् 1990 में
(D) सन् 1993 में
उत्तर:
(D) सन् 1993 में

5. ‘कुछ कविताएँ’ के रचयिता हैं-
(A) शमशेर बहादुर सिंह
(B) आलोक धन्वा
(C) हरिवंश राय बच्चन
(D) रघुवीर सहाय
उत्तर:
(A) शमशेर बहादुर सिंह

6. ‘बात बोलेगी’ के रचयिता हैं-
(A) कुंवर नारायण
(B) विष्णु खरे
(C) शमशेर बहादुर सिंह
(D) हरिवंश राय बच्चन
उत्तर:
(C) शमशेर बहादुर सिंह

7. शमशेर बहादुर सिंह को ‘दो मोती के दो चंद्रमा होते’ रचना पर कौन-सा राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ?
(A) ज्ञानपीठ
(B) साहित्य अकादेमी
(C) शिखर सम्मान
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) साहित्य अकादेमी

8. ‘उर्दू-हिंदी कोश’ के संपादक कौन थे?
(A) आलोक धन्वा
(B) हरिवंश राय बच्चन
(C) रघुवीर सहाय
(D) शमशेर बहादुर सिंह
उत्तर:
(D) शमशेर बहादुर सिंह

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9. ‘उषा’ कविता में किस काल की परिवर्तित प्रकृति का वर्णन किया गया है?
(A) सूर्योदय पूर्व काल की
(B) सूर्योदय के बाद की
(C) रात्रिकाल की
(D) सूर्योदय काल की
उत्तर:
(A) सूर्योदय पूर्व काल की

10. ‘उषा’ कविता के रचयिता हैं-
(A) कुँवर नारायण
(B) आलोक धन्वा
(C) शमशेर बहादुर सिंह
(D) रघुवीर सहाय
उत्तर:
(C) शमशेर बहादुर सिंह

11. ‘प्रातः नभ था बहुत नीला शंख जैसे’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) उपमा अलंकार
(B) रूपक अलंकार
(C) अनुप्रास अलंकार
(D) मानवीकरण अलंकार
उत्तर:
(A) उपमा अलंकार

12. ‘उषा’ कविता में किस छंद का प्रयोग हुआ है?
(A) दोहा छंद
(B) मुक्त छंद
(C) सवैया छंद
(D) कवित्त छंद
उत्तर:
(B) मुक्त छंद

13. ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ के अतिरिक्त शमशेर बहादुर सिंह को अन्य कौन-सा सम्मान प्राप्त हुआ?
(A) शिखर सम्मान
(B) ज्ञानपीठ पुरस्कार
(C) कबीर सम्मान
(D) तुलसी सम्मान
उत्तर:
(C) कबीर सम्मान

14. शमशेर बहादुर सिंह कहाँ पर पेंटिंग सीखने लगे?
(A) उकील बंधुओं के कला विद्यालय में
(B) साहित्य अकादमी में
(C) कला केंद्र में
(D) दिल्ली विश्वविद्यालय में
उत्तर:
(A) उकील बंधुओं के कला विद्यालय में

15. ‘चुका भी हूँ नहीं मैं’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1970 में
(B) सन् 1972 में
(C) सन् 1971 में
(D) सन् 1975 में
उत्तर:
(D) सन् 1975 में

16. ‘कुछ कविताएँ’ काव्य-संग्रह का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1960 में
(B) सन् 1959 में
(C) सन् 1958 में
(D) सन् 1957 में
उत्तर:
(B) सन् 1959 में

17. ‘शमशेर’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1970 में
(B) सन् 1969 में
(C) सन् 1971 में
(D) सन् 1972 में
उत्तर:
(C) सन् 1971 में

18. ‘इतने पास अपने’ के रचयिता हैं-
(A) कुँवर नारायण
(B) हरिवंश राय बच्चन
(C) आलोक धन्वा
(D) शमशेर बहादुर सिंह
उत्तर:
(D) शमशेर बहादुर सिंह

19. ‘इतने पास अपने का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1980 में
(B) सन् 1979 में
(C) सन् 1975 में
(D) सन् 1977 में
उत्तर:
(A) सन् 1980 में

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 6 उषा

20. ‘उषा’ कविता में किस रंग की खड़िया चाक मलने की बात कही गई है?
(A) लाल
(B) पीली
(C) सफेद
(D) नीली
उत्तर:
(A) लाल

21. ‘उषा’ दिन का कौन-सा समय होता है?
(A) प्रभात
(B) मध्याह्न
(C) संध्या
(D) रात्रि
उत्तर:
(A) प्रभात

22. कविता में चौका किससे लीपा हुआ होने की बात कही गई है?
(A) गोबर
(B) राख
(C) मिट्टी
(D) लाल खड़िया
उत्तर:
(B) राख

23. ‘उषा’ का जादू टूटने का समय क्या है?
(A) सूर्यास्त
(B) प्रदोश
(C) सूर्योदय
(D) प्रहर
उत्तर:
(C) सूर्योदय

24. कविता में राख से लीपा हुआ क्या बताया है?
(A) आकाश
(B) चन्द्र
(C) काली सिल
(D) चौका
उत्तर:
(D) चौका

25. ‘राख से लीपा हुआ चौका’ आकाश की किस स्थिति की व्यंजना करता है?
(A) पवित्रता की
(B) ताज़गी की
(C) विशालता की
(D) गंभीरता की
उत्तर:
(A) पवित्रता की

26. राख से लीपा हुआ चौका गीला पड़ा होने से क्या अभिप्राय है?
(A) वर्षा
(B) पानी
(C) वातावरण की नमी
(D) रात शेष रहना
उत्तर:
(C) वातावरण की नमी

27. ‘बहुत काली सिल’ से क्या अभिप्राय है?
(A) रसोई की काली सिल
(B) रात की कालिमा
(C) प्रातःकाल की कालिमा
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) रात की कालिमा

28. ‘लाल खड़िया चाक’ क्या व्यंजित करती है?
(A) सूर्योदय से पूर्व की लालिमा
(B) खड़िया चाक का लाल रंग
(C) सूर्यास्त के बाद की लालिमा
(D) दोपहर की लालिमा
उत्तर:
(A) सूर्योदय से पूर्व की लालिमा

29. ‘नील जल में …………… हिल रही हो’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) अनुप्रास अलंकार
(B) रूपक अलंकार
(C) उपमा अलंकार
(D) उत्प्रेक्षा अलंकार
उत्तर:
(D) उत्प्रेक्षा अलंकार

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30. शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित ‘उषा’ कविता में किस शैली का प्रयोग हुआ है?
(A) विवरणात्मक शैली का
(B) चित्रात्मक शैली का
(C) संबोधन शैली का
(D) वर्णनात्मक शैली का
उत्तर:
(B) चित्रात्मक शैली का

31. प्रातःकालीन आकाश का रंग कैसा था?
(A) लाल
(B) सुनहरा
(C) नीला
(D) काला
उत्तर:
(C) नीला

32. ‘लाल केसर से धुली काली सिल’ किसे कहा गया है?
(A) आकाश
(B) तारे
(C) सूर्य
(D) चंद्रमा
उत्तर:
(A) आकाश

33. नीले आकाश में उदय होता हुआ सूर्य किसके समान दिखाई देता है?
(A) गौरवर्णीय सुंदरी के समान
(B) शंख के समान
(C) झील के समान
(D) सिंदूर के समान
उत्तर:
(A) गौरवर्णीय सुंदरी के समान

34. ‘उषा’ कविता में प्रातःकालीन नीला आकाश किसके जैसा बताया गया है?
(A) केसर
(B) शंख
(C) सिंदूर
(D) झील
उत्तर:
(B) शंख

35. ‘लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने स्लेट पर’ पंक्ति में स्लेट क्या है?
(A) तारे
(B) सूर्य
(C) धरती
(D) आकाश
उत्तर:
(D) आकाश

36. ‘उषा’ कविता में बहुत काली सिल की किससे धुलने की बात कही गई है?
(A) खड़िया
(B) पानी
(C) लाल केसर
(D) वर्षा
उत्तर:
(C) लाल केसर

37. सूर्योदय से पहले किसका जादू होता है?
(A) उषा का
(B) निशा का
(C) निशिचर का
(D) भूत का
उत्तर:
(A) उषा का

उषा पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है) [पृष्ठ-36]

शब्दार्थ-भोर = सवेरा, सवेरा होने से पहले का झुटपुटा वातावरण। नभ = आकाश। चौका = रसोई बनाने का स्थान।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘उषा’ से अवतरित है। इसके कवि शमशेर बहादुर सिंह हैं। इस लघु कविता में कवि ने सूर्योदय से पूर्व की प्रकृति का बहुत ही मनोहारी वर्णन किया है।

व्याख्या-प्रातःकालीन सूर्योदय का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि पौ फटने से पहले आकाश का रंग गहरा नीला था। यह शंख के समान गहरा नीला दिखाई दे रहा था। जैसे शंख की कांति स्वच्छ व नीली होती है वैसे ही आकाश भी स्वच्छ और नीली आभा लिए हुए था। उसके बाद भोर हुई तथा आकाश का गहरा नीला रंग थोड़ा मंद पड़ गया और वातावरण में नमी आ गई। उस समय आकाश ऐसा लग रहा था कि मानों राख से लीपा हुआ कोई गीला चौका हो अर्थात् नमी के कारण उसमें थोड़ा गीलापन आ गया था, लेकिन अभी भी उसमें थोड़ा नीलापन और थोड़ा मटमैलापन था।

विशेष-

  1. इस पद्यांश में कवि ने भोर के वातावरण का बहुत ही सूक्ष्म तथा मनोहारी वर्णन किया है।
  2. ‘शंख जैसे’ और ‘राख से लीपा हुआ चौका’ में उपमा अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  3. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सहज प्रयोग हुआ है।
  4. शब्द-प्रयोग सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. प्रस्तुत पद्यांश नवीन उपमानों तथा मौलिक कल्पना के लिए प्रसिद्ध है।
  6. चित्रात्मक शैली है तथा मुक्त छंद का सफल प्रयोग किया गया है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) कवि ने प्रातःकालीन नभ की तुलना नीले शंख से क्यों की है?
(ग) भोर के नभ को राख से लीपा चौका क्यों कहा है?
(घ) चौके के गीले होने का प्रतीकार्थ क्या है?
(ङ) इस पद्यांश के आधार पर प्रातःकालीन प्रकृति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(क) कविता – उषा कवि – शमशेर बहादुर सिंह

(ख) भोरकालीन वातावरण न अधिक काला होता है और न ही उजला। इसलिए कवि ने उसकी तुलना नीले शंख के साथ की है जिसका रंग बुझा-बुझा-सा होता है।

(ग) भोरकालीन वातावरण सुरमयी रंग का होता है और राख से लीपे जाने पर भी आँगन का रंग गहरा सुरमयी हो जाता है। इसलिए कवि ने भोर के नभ को राख से लीपा हुआ चौका कहा है।

(घ) प्रातःकालीन वातावरण में ओस की नमी होती है तथा इसका रंग गहरा परमयी होता है। इसलिए कवि ने इसकी तुलना चौके के साथ की है जोकि बड़ा ही पवित्र माना गया है। अतः चौके के गीले होने का प्रतीकार्थ है-प्रातःकालीन वातावरण में पवित्रता का होना।

(ङ) प्रातःकालीन वातावरण बड़ा ही शांत तथा ओस की नमी के कारण कुछ-कुछ गीला होता है। उस समय आकाश की पूर्व दिशा में हल्की लालिमा होती है जिसमें पेड़-पौधे, खेत-खलिहान बड़े ही मनोहारी प्रतीत होते हैं। धीरे-धीरे सूर्य की लाल-लाल किरणें संपूर्ण प्रकृति पर फैल जाती हैं और कुछ देर बाद यह लालिमा उजाले में परिवर्तित हो जाती है।

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[2] बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने [पृष्ठ-36]

शब्दार्थ-सिल = मसाला, चटनी आदि पीसने वाला पत्थर जो रसोई में रखा जाता है। लाल केसर = फूल का सुगंधित पदार्थ, पराग = केसर के फूल का मध्य भाग जो औषधि में डाला जाता है।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘उषा’ से अवतरित है। इसके कवि शमशेर बहादुर सिंह हैं। इस लघु कविता में कवि ने सूर्योदय से पूर्व की प्रकृति का बहुत ही मनोहारी वर्णन किया है। यहाँ कवि उषा की लालिमा का वर्णन करते हुए कहता है कि

व्याख्या-भोर के अस्पष्ट अँधेरे में उगते हुए सूर्य की लाली का धीरे-धीरे मिश्रण होने लगता है। उस समय आकाश ऐसा लगता है कि मानों बहुत गहरी काली सिल लाल केसर से धुल गई हो अर्थात् संपूर्ण आकाश में सूर्य की लालिमा फैलकर उसको हल्के लाल रंग का बना देती है। उस समय यह वातावरण ऐसा दिखाई देता है कि मानों स्लेट पर लाल खड़िया चाक मिट्टी लगा दी गई है। यहाँ कवि ने नीले-काले आकाश की तुलना काली स्लेट के साथ की है और सूर्य की लालिमा की तुलना लाल खड़िया चाक के साथ की है।

विशेष-

  1. इस पद्यांश में कवि ने प्रातःकालीन प्रकृति के क्षण-क्षण बदलते हुए वातावरण का मनोहारी वर्णन किया है।
  2. रात की कालिमा, ओस का गीलापन तथा सूर्य की लालिमा तीनों का मिश्रण करके एक सुंदर चित्र प्रस्तुत किया है।
  3. ‘बहुत काली सिल …………….. गई हो’ तथा ‘स्लेट पर ……………. किसी ने दोनों में उत्प्रेक्षा अलंकार का सुंदर प्रयोग किया गया है।
  4. ‘काली सिल’ में अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग किया गया है।
  5. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग किया गया है।
  6. मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है तथा बिंब-योजना आकर्षक बन पड़ी है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद्यांश में कवि ने किस प्रकार के दृश्य का चित्रण किया है?
(ग) ‘काली सिल’, ‘स्लेट’ किस दृश्य को अंकित करती हैं?
(घ) ‘लाल केसर’ तथा ‘लाल खड़िया चाक’ से किस चित्र को अंकित किया गया है?
उत्तर:
(क) कवि – शमशेर बहादुर सिंह कविता – उषा

(ख) इस पद्यांश में कवि ने भोर के अँधेरे वातावरण में सूर्योदय की हल्की लालिमा के मिश्रण का दृश्य अंकित किया है जोकि बड़ा ही मनोहारी बन पड़ा है।

(ग) भोर के समय आकाश का रंग सुरमयी काला होता है। इस समय का अंधकार काली सिल या काली स्लेट जैसा होता है। इसलिए कवि ने काली सिल अथवा काली स्लेट द्वारा भोरकालीन सुरमयी अँधेरे का सुंदर चित्रण किया है।

(घ) ‘लाल केसर’ तथा ‘लाल खड़िया चाक’ सूर्योदय की लालिमा को चित्रित करने में समर्थ हैं। ये दोनों उपमान सर्वथा मौलिक तथा जनरुचि के अनुकूल हैं।

[3] नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।
और….
जादू टूटता है इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है। [पृष्ठ-36]

शब्दार्थ-नील जल = नीले रंग का पानी। गौर = गोरे रंग की। झिलमिल देह = चमकता हुआ शरीर। सूर्योदय = सूर्य का उदित होना।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘उषा’ से अवतरित है। इसके कवि शमशेर बहादुर सिंह हैं। इस लघु कविता में कवि ने सूर्योदय से पूर्व की प्रकृति का बहुत ही मनोहारी वर्णन किया है। यहाँ कवि सूर्योदय का वर्णन करते हुए कहता है कि-

व्याख्या-प्रातःकाल में पहले तो आकाश में गहरा नीला रंग होता है फिर सूर्य की श्वेत आभा दिखाई देने लगती है। उस समय का प्राकृतिक सौंदर्य ऐसा दिखाई देता है मानों किसी सुंदर युवती की गोरी देह नीले रंग के पानी में झिलमिला रही हो परंतु कुछ समय बाद आकाश में सूर्य उदित हो जाता है। पता भी नहीं लग पाता कि उषा का क्षण-क्षण में बदलता हुआ सौंदर्य लुप्त हो जाता है अर्थात् क्षण भर में ही आकाश में सूर्योदय हो जाता है और प्रकृति का सौंदर्य भी नष्ट हो जाता है।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने सूर्योदयकालीन प्राकृतिक शोभा का बहुत ही सूक्ष्म चित्रण किया है।
  2. ‘नील जल ……………….. हिल रही हो’ में उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  3. ‘नीला जल’, ‘हो रहा है’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  4. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है।
  5. शब्द-चयन सर्वथा सटीक व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  6. संपूर्ण पद्यांश चित्रात्मक भाषा के लिए प्रसिद्ध है।
  7. मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) नीले जल में गौर देह के झिलमिलाने में कौन सा दृश्य चित्रित किया है?
(ख) नीले जल द्वारा कवि प्रातःकाल के किस दृश्य का अंकन करना चाहता है?
(ग) गोरी देह की झिलमिलाने की समानता किस दृश्य से की गई है?
(घ) उषा का जादू टूटने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
(क) नीले जल में गौर देह के झिलमिलाने के माध्यम से कवि नीले आकाश में सूर्य की कांति के झिलमिलाने का दृश्य अंकित करता है। प्रातःकाल के समय आकाश नीला होता है तथा सूर्य की पहली किरणें झिलमिलाकर उसको अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं।

(ख) नीले जल के उपमान द्वारा कवि प्रातःकालीन नीले आकाश की निर्मलता और स्वच्छता को अंकित करता है।

(ग) प्रातःकाल में सूर्य की लालिमा धीरे-धीरे श्वेत होने लगती है। उस समय के वातावरण में कुछ नमी तथा कुछ चमक होती है। इसके लिए कवि ने नीले जल में स्नान करने वाली गोरी देह का वर्णन किया है जोकि सर्वथा उचित एवं प्रभावशाली बन पड़ा है।

(घ) उषा के जादू टूटने से अभिप्राय है प्रातःकालीन प्रकृति के अद्वितीय सौंदर्य का कम होना। उस समय प्रकृति क्षण-क्षण में परिवर्तित होती रहती है। भोर के समय आकाश नीला तथा काला होता है फिर पूर्व दिशा में हल्की लालिमा छा जाती है जिससे प्रकृति में नीलिमा व लालिमा का मिश्रण हो जाता है और अन्ततः दय के संपूर्ण आकाश में श्वेत लालिमा फैल जाती है।

उषा Summary in Hindi

उषा कवि-परिचय

प्रश्न-
शमशेर बहादुर सिंह का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा शमशेर बहादुर सिंह का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-नई कविता में शमशेर बहादुर सिंह का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनका काव्य तथा व्यक्तित्व बहुमुखी तथा विविधतापूर्ण है। उनका जन्म 13 जनवरी, 1911 ई० को देहरादून में एक जाट परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम बाबू सिंह था जोकि बडे ही निष्ठावान सरकारी नौकर थे। उनकी माता का नाम प्रभुदई था। वे बड़ी ही धार्मिक विचारों वाली स्त्री थी। माता के देहांत के बाद पूरा परिवार बिखर गया और पिता ने दूसरी शादी कर ली। शमशेर का विवाह धर्मवती से हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा देहरादून में हुई। उन्होंने 1928 ई० में हाई स्कूल तथा 1933 ई० में प्रयाग विश्वविद्यालय से बी०ए० की परीक्षाएँ उत्तीर्ण की। उन्होंने अंग्रेजी विषय में एम०ए० करनी चाही, परंतु सफल नहीं हो पाए। बाद में दिल्ली के उकील बंधुओं के ‘कला विद्यालय’ में पेंटिंग सीखने लगे, लेकिन शीघ्र ही वापिस देहरादून लौट गए और अपने ससुर की कैमिस्ट की दुकान में कंपाउडर का काम करने लगे। उनका संपूर्ण जीवन प्रायः अस्थिर ही रहा। 1993 ई० में अहमदाबाद में उनका देहांत हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ-शमशेर ने गद्य तथा पद्य दोनों में कुशलतापूर्वक लिखा है। ‘कुछ कविताएँ’ (1959), ‘शमशेर’ (1971), ‘चुका भी हूँ नहीं मैं’ (1975), ‘इतने पास अपने’ (1980), ‘उदिता’ (1980), ‘बात बोलेगी’ (1981) आदि उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। उन्होंने सन् 1932-33 में लिखना आरंभ किया था तथा उनकी आरंभिक रचनाएँ ‘सरस्वती’ तथा ‘रूपाभ’ में प्रकाशित हुईं। सन् 1951 में प्रकाशित दूसरे तार सप्तक में उनकी रचनाएँ भी सम्मिलित की गईं। सन् 1977 में उन्हें ‘दो मोती के दो चंद्रमा होते’ रचना पर साहित्य अकादेमी पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया गया।

3. काव्यगत विशेषताएँ-उनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(क) राष्ट्रीय चेतना-शमशेर जी की आरंभिक कविताओं में देश-प्रेम की भावना देखी जा सकती है। कवि ने स्वतंत्रता पूर्व अंग्रेज़ी शासकों के अत्याचारों को समीप से देखा था। उन्होंने अपनी कविताओं में अंग्रेज़ी राज्य की क्रूरता तथा हिंसा का यथार्थ वर्णन किया है। सन् 1944 में अंग्रेज़ी सरकार ने मजदूरों पर गोलियाँ चलवाई थीं। इस संदर्भ में कवि लिखता है
“ये शाम है
कि आसमान खेत है पके हुए अनाज का
लपक उठी लहू से भरी दरातियाँ
कि आग है धुआँ-धुआँ
सुलग रहा
ग्वालियर के मजूर का हृदय।”

(ख) मार्क्सवादी चेतना-शमशेर जी सन् 1938 में मार्क्सवाद की ओर आकृष्ट हुए थे और 1945 में कम्युनिस्ट पार्टी के कम्यून में रहे। वहीं पर रहते हुए उन्होंने ‘नया साहित्य’ का संपादन भी किया। वे मानवता के उज्ज्वल भविष्य के लिए मार्क्सवाद को आवश्यक मानते थे। इसीलिए एक स्थल पर वे लिखते हैं-
“वाम-वाम-वाम दिशा
समय साम्यवादी”

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(ग) सामाजिक चेतना-शमशेर जी के काव्य में सामाजिक चेतना भी देखी जा सकती है। उनका कहना था कि व्यक्ति अपने आप में समाज का ही एक अंश है। अतः कवि को अपनी भावनाएँ समाज के सत्य के संदर्भ में व्यक्त करनी चाहिएँ। इसीलिए वे समाज के कटुतम अनुभवों को अपनी कविताओं में प्रस्तुत करते हुए दिखाई देते हैं
“मैं समाज तो नहीं, न मैं कुल
जीवन,
कण-समूह में हूँ मैं केवल एक कण”।

(घ) वैयक्तिक अनुभूति-शमशेर जी ने अपनी कविताओं में अपनी निजी संवेदना को भी व्यक्त किया है। उन्होंने अपने जीवन में जो कुछ भोगा और जो कुछ पाया, उन्हीं अनुभूतियों को वे यत्र-तत्र अनुभव करते रहे। उन्होंने अपने प्रणय संबंधों को स्वीकार किया और प्रेमी तथा प्रेमिका के एकत्व की स्थापना पर बल दिया। वे एक स्थल पर लिखते हैं
“मैं तो साये में बँधा सा
दामन में तुम्हारे ही कहीं ग्रह सा
साथ तुम्हारे।”

(ङ) प्रेम और सौंदर्य मूलतः शमशेर जी प्रेम और सौंदर्य के कवि माने जाते हैं। उनकी कविता में प्रेम का रंग बड़ा ही गहरा है। वे प्रेम और सौंदर्य का परस्पर संबंध स्थापित करते नज़र आते हैं। वे प्रेयसी को जीवन का सर्वस्व मानते हैं तथा वादा करके मुकर भी जाते हैं।
“वो कल आयेंगे वादे पर
मगर कल देखिए कब हो?
गलत फिर हज़रते-दिल
आपका तख्मीना होना है।”

(च) मानवतावाद-शमशेर जी का काव्य देश और काल की सीमा में बँधा नहीं है। वे मानवीय चेतना में अधिक विश्वास रखते थे और विश्व-बंधुत्व की भावना को अधिक महत्त्व देते थे। कवि ने नवीन तथा प्राचीन और पूर्व-पश्चिम में कोई भेद स्वीकार नहीं किया। कारण यह था कि वे अपनी कविता में मानव को ही अधिक महत्त्व देते हैं। एक स्थल पर वे लिखते हैं
“बहुत हौले-हौले नाच रहा हूँ
सब संस्कृतियाँ मेरे सरगम में विभोर हैं
क्योंकि मैं हृदय की सच्ची सुख-शांति का राग हूँ
बहुत आदिम, बहुत अभिनव।”
इसी प्रकार कवि ने अपनी कविताओं में जहाँ एक ओर प्रकृति-चित्रण किया है वहीं दूसरी ओर बाह्य आडंबरों तथा रूढ़ियों का भी विरोध किया है। वे जीवन में मृत्यु की हस्ती को भी स्वीकार करते हैं और मृत्यु को अपनी प्रेमिका मानते हैं।

4. कला-पक्ष-शमशेर बहादुर सिंह ने अपने साहित्य में सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है। कहीं-कहीं वे उर्दू भाषा के शब्दों का अधिक प्रयोग करने लगते हैं। उन्होंने भाषा तथा छंद की दृष्टि से अनेक प्रयोग किए हैं। उनकी भाषा में चित्रात्मकता, ध्वन्यात्मकता, लयात्मकता, नाद-सौंदर्य आदि गुण देखे जा सकते हैं। मूलतः उनका काव्य प्रतीकों तथा बिंबों के लिए प्रसिद्ध है। उनके बारे में रंजना अरगड़े लिखती हैं-“शमशेर को कवियों का कवि इसी अर्थ में कहते हैं कि उनकी कविता में हिंदी भाषा की अभिव्यक्ति-क्षमता खिलती-खुलती नज़र आती है। ऐसी बात नहीं है कि उन्होंने हिंदी भाषा को अभिव्यक्ति के उच्चतम शिखर तक पहुँचा दिया है पर आने वाले कवियों के समक्ष उन्होंने अनेक संभावनाएँ खोल दी हैं।”

उषा कविता का सार

प्रश्न-
शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित कविता ‘उषा’ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘उषा’ कविता कविवर शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित एक लघु कविता है जिसमें कवि ने सूर्योदय से पूर्व पल-पल परिवर्तित प्रकृति का शब्द-चित्र प्रस्तुत किया है : भोर होने से पहले आकाश का रंग गहरा नीला होता है। इसकी तुलना कवि शंख के साथ करता है परंतु कुछ ही क्षणों के बाद उसमें नमी आ जाती है जिसमें वह राख से लीपे हुए चौके के समान दिखने लगता है। अगले क्षणों में उसमें सूर्य की लालिमा मिल जाती है जिसके फलस्वरूप ऐसा लगता है कि मानों लाल केसर से धुली काली सिल हो अथवा ऐसे लगता है कि मानों काली सिल पर किसी ने लाल खड़िया चाक लगा दी है। थोड़ी ही देर में सूर्य का प्रकाश प्रकट होने लगता है। इस स्थिति में ऐसा प्रतीत होता है कि मानों नीले जल में किसी की गोरी देह झिलमिला रही हो। इस प्रकार उषा का जादू समाप्त हो जाता है और सूर्योदय होने पर सारा आकाश प्रकाश से जगमगाने लगता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि उषा का सौंदर्य प्रति क्षण बदलता रहता है। यहाँ कवि ने उषा के सौंदर्य को देखने का प्रयास नहीं किया, बल्कि उसे पृथ्वी के परिवेश से जोड़कर प्रस्तुत किया है।

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कविता के साथ

प्रश्न 1.
टिप्पणी कीजिए; गरबीली गरीबी, भीतर की सरिता, बहलाती सहलाती आत्मीयता, ममता के बादल।
उत्तर:
(क) गरबीली गरीबी कवि को अपने गरीब होने का कोई दुख नहीं है, बल्कि वह अपनी गरीबी पर भी गर्व करता है। उसे गरीबी के कारण न तो हीनता की अनुभूति होती है और न ही कोई ग्लानि। कवि स्वाभिमान के साथ जी रहा है।

(ख) भीतर की सरिता-इसका अभिप्राय यह है कि कवि के हृदय में असंख्य कोमल भावनाएँ हैं। नदी के पानी के समान ये कोमल भावनाएँ उसके हृदय में प्रवाहित होती रहती हैं।

(ग) बहलाती सहलाती आत्मीयता कवि के हृदय में प्रियतम की आत्मीयता है। इस आत्मीयता के दो विशेषण हैं बहलाती एवं सहलाती। यह आत्मीयता कवि को न केवल बहलाने का काम करती है, बल्कि उसके दुख-दर्द और
पीड़ा को सहलाती भी है और उसकी सहनशक्ति को बढ़ाती है।

(घ) ममता के बादल-जैसे ग्रीष्म ऋतु में बादल बरसकर हमें आनंदित करते हैं उसी प्रकार प्रेम की कोमल भावनाएँ कवि को आनंदानुभूति प्रदान करती हैं।

प्रश्न 2.
इस कविता में और भी टिप्पणी-योग्य पद-प्रयोग हैं। ऐसे किसी एक प्रयोग का अपनी ओर से उल्लेख कर उस पर टिप्पणी करें।
उत्तर:
(क) दक्षिणी ध्रुवी अंधकार-अमावस्या-जिस प्रकार दक्षिणी ध्रुव में अमावस्या जैसा धना काला अंधकार छाया रहता है, उसी प्रकार कवि अपने प्रियतम के वियोग रूपी घनघोर अंधकार में डूबना चाहता है। कवि की इच्छा है कि वियोग की गहरी अमावस उसके चेहरे, शरीर और हृदय में व्याप्त हो जाए।

(ख) विचार वैभव-यहाँ कवि स्पष्ट करता है कि धन का वैभव तो स्थायी नहीं होता, लेकिन विचारों की संपत्ति स्थायी होने के साथ-साथ मानवता का कल्याण करती है। कबीर, तुलसी, सूरदास आदि अपनी विचार संपदा के ही कारण महान कवि कहलाते हैं।

(ग) रमणीय उजेला-उजाला हमेशा प्रिय लगता है। कवि भी अपने प्रियतम के स्नेह उजाले से आच्छादित है। परंतु कवि के लिए यह मनोरम उजाला भी अब असहनीय हो गया है। कवि उससे मुक्त होना चाहता है।

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प्रश्न 3.
व्याख्या कीजिए-
जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!
उपर्युक्त पंक्तियों की व्याख्या करते हुए यह बताइए कि यहाँ चाँद की तरह आत्मा पर झुका चेहरा भूलकर अंधकार-अमावस्या में नहाने की बात क्यों की गई है?
उत्तर:
कवि उस अनंत सत्ता को संबोधित करता हुआ कहता है कि मुझे यह भी पता नहीं है कि तुम्हारे और मेरे बीच स्नेह का न जाने ऐसा कौन-सा रिश्ता और संबंध है कि मैं जितना भी अपने हृदय के स्नेह को व्यक्त करता हूँ अथवा लोगों में उसे बाँटता हूँ, उतना ही वह बार-बार भर जाता है। ऐसा लगता है कि मानों मेरे हृदय में कोई मधुर झरना है जिससे लगातार स्नेह की वर्षा होती रहती है अथवा मेरे भीतर प्रेम की कोई नदी (झरना) है जो हमेशा स्नेह रूपी जल से छलकती रहती है। मेरे हृदय में तो तुम्हारा ही प्रेम विद्यमान है। मेरे हृदय में तुम्हारा यह प्रसन्न चेहरा इस प्रकार विद्यमान रहता है, जैसे पृथ्वी पर रात के समय चंद्रमा मुस्कुराता रहता है अर्थात् जैसे चाँद रात को रोशनी देता है, उसी प्रकार हे मेरे ईश्वर! तुम मेरे हृदय को प्रेम से प्रकाशित करते रहते हो।

प्रश्न 4.
तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं
झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब
सहा नहीं जाता है।
(क) यहाँ अंधकार-अमावस्या के लिए क्या विशेषण इस्तेमाल किया गया है और उससे विशेष्य में क्या अर्थ जुड़ता है? (ख) कवि ने व्यक्तिगत संदर्भ में किस स्थिति को अमावस्या कहा है?

(ग) इस स्थिति से ठीक विपरीत ठहरने वाली कौन-सी स्थिति कविता में व्यक्त हुई है? इस वैपरीत्य को व्यक्त करने वाले शब्द का व्याख्यापूर्वक उल्लेख करें।

(घ) कवि अपने संबोध्य (जिसको कविता संबोधित है कविता का ‘तुम’) को पूरी तरह भूल जाना चाहता है, इस बात को प्रभावी तरीके से व्यक्त करने के लिए क्या युक्ति अपनाई है? रेखांकित अंशों को ध्यान में रखकर उत्तर दें।
उत्तर:
(क) कवि ने ‘अंधकार-अमावस्या के लिए दक्षिण ध्रुवी विशेषण का प्रयोग किया है। इस विशेषण के प्रयोग से विशेष्य अंधकार की सघनता का पता चलता है अर्थात् अंधकार घना और काला है। कवि अपने प्रियतम को भूलकर इसी घने अंधकार में लीन हो जाना चाहता है।

(ख) कवि ने व्यक्तिगत संदर्भ में अपने प्रियतम की वियोग-जन्य वेदना एवं निराशा की स्थिति को अमावस्या की संज्ञा दी है। अतः इस स्थिति के लिए ‘अमावस्या’ शब्द का प्रयोग सर्वथा उचित एवं सटीक है।

(ग) वर्तमान स्थिति है-दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या की। यह स्थिति कवि वियोगावस्था से उत्पन्न पीड़ा की परिचायक है। इसकी विपरीत स्थिति है-‘तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित रहने का रमणीय उजेला’ जो कि कवि के संयोग प्रेम को व्यंजित करता है। एक ओर कवि ने वियोग-जन्य निराशा को गहरी अमावस्या के माध्यम से व्यक्त किया है। प्रथम स्थिति निराशा को व्यक्त करती है। इसीलिए कवि ने अमावस के अंधकार की बात की है। द्वितीय स्थिति आशा को व्यक्त करती है जो कि प्रेम की संयोगावस्था से संबंधित है। इसलिए कवि ने ‘रमणीय उजेला’ की बात की है।

(घ) कवि अपने संबोध्य को पूरी तरह भूल जाना चाहता है। इस स्थिति की तुलना कवि ने अमावस्या के साथ की है जहाँ चंद्रमा नहीं होता बल्कि घना काला अंधकार होता है। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि कवि अपने प्रियतम रूपी चाँद से सर्वथा अलग-थलग एकाकी जीवन व्यतीत करना चाहता है। कवि अपने प्रियतम के बिना अंधकार में डूब जाना चाहता है। वह अब वियोग से उत्पन्न पीड़ा को झेलना चाहता है। इस स्थिति के लिए कवि ने ‘शरीर पर चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं झेलू मैं/ उसी में नहा लूँ मैं’ आदि शब्दों का प्रयोग किया है अर्थात् कवि विरह को अपने शरीर तथा हृदय में झेलना चाहता है, उसमें नहा लेना चाहता है। कवि अपने प्रियतम के वियोग की पीड़ा के अंधकार में नहा लेना चाहता है।

प्रश्न 5.
बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है-और कविता के शीर्षक ‘सहर्ष स्वीकारा है’ में आप कैसे अंतर्विरोध पाते हैं। चर्चा कीजिए।
उत्तर:
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता में कवि ने दो विपरीत स्थितियों की चर्चा की है। कवि अपने उस प्रियतम की प्रत्येक वस्तु अथवा दृष्टिकोण को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करता है। प्रथम स्थिति वह है जब कवि प्रेम के संयोग पक्ष को भोग रहा है। लेकिन अब कवि के लिए यह स्थिति असहनीय बन गई है। कवि प्रियतम की आत्मीयता को त्यागना चाहता है और उससे दूर रहकर वियोग आरोह (भाग 2) [गजानन माधव मुक्तिबोध] के अंधकार में डूब जाना चाहता है। अतः बहलाती सहलाती आत्मीयता से कवि दूर जाना चाहता है। यहाँ स्वीकार और अस्वीकार का भाव होने के कारण अंतर्विरोध है।

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कविता के आसपास

प्रश्न 1.
अतिशय मोह भी क्या त्रास का कारक है? माँ का दूध छूटने का कष्ट जैसे एक ज़रूरी कष्ट है, वैसे ही कुछ और ज़रूरी कष्टों की सूची बनाएँ।
उत्तर:
अतिशय मोह निश्चय से दुखदायक होता है। सांसारिक मोह-माया के कारण ही मनुष्य अनेक गलत काम कर बैठता है। संतान-मोह के कारण लोग भ्रष्ट तरीकों से धन कमाते हैं और प्रिया के कारण माँ-बाप को भी त्याग देते हैं।

बच्चा माँ का दूध छोड़ना नहीं चाहता है। लेकिन बच्चे को माँ का दूध छोड़ना पड़ता है। धीरे-धीरे बच्चा इस कष्ट को भूल जाता है। कुछ विद्यार्थी घर-परिवार त्यागकर दूर देश में शिक्षा-प्राप्ति के लिए जाते हैं। घर का मोह छोड़ना उन्हें पीड़ादायक लगता है, लेकिन भावी जीवन का निर्माण करने के लिए उन्हें यह कष्ट सहना पड़ता है। लोग रोजगार पाने के लिए विदेशों में जाते हैं। घर का मोह उन्हें भी कुछ समय के लिए कष्ट पहुंचाता है। इसी प्रकार सैनिक युद्ध में भाग लेने के लिए उत्साहित रहता है। परंतु घर त्यागते समय उसे भी कष्ट की अनुभूति होती है। लेकिन वह इस कष्ट की परवाह न करके युद्ध लड़ने के लिए जाता है और देश के लिए कभी अपने प्राण तक न्योछावर कर देता है।

प्रश्न 2.
‘प्रेरणा’ शब्द पर सोचिए और उसके महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए जीवन के वे प्रसंग याद कीजिए जब माता-पिता, दीदी-भैया, शिक्षक या कोई महापुरुष/महानारी आपके अँधेरे क्षणों में प्रकाश भर गए।
उत्तर:
प्रेरणा का अर्थ है-आगे बढ़ने अथवा उन्नति करने की भावना उत्पन्न करना। संसार का प्रत्येक महापुरुष किसी-न-किसी महान् व्यक्ति, शिक्षक अथवा माता-पिता से प्रेरणा प्राप्त करके महान् काम करने में सफल हुआ। वीर शिवाजी ने अपनी माता जीजाबाई से प्रेरणा प्राप्त करके औरंगजेब के अत्याचारों से देश के एक भाग को मुक्त कराया और मराठा राज्य की स्थापना की। हम सब किसी-न-किसी से प्रेरणा प्राप्त करके कोई अच्छा काम कर जाते हैं। श्रीराम का आदर्श आज भी हमारे लिए प्रेरणा-स्रोत है। मैंने अपने बड़े भाई से प्रेरणा प्राप्त करके ही पढ़ना शुरू किया। पहले मैं दिन-भर खेल-कूद में लगा रहता था। मेरी बड़ी बहन पिता जी से प्रेरणा प्राप्त करके डॉक्टर बन सकी। हम सभी किसी-न-किसी से प्रेरणा प्राप्त करके ही आगे बढ़ते हैं।

प्रश्न 3.
‘भय’ शब्द पर सोचिए। सोचिए कि मन में किन-किन चीजों का भय बैठा है? उससे निबटने के लिए आप क्या करते हैं और कवि की मनःस्थिति से अपनी मनःस्थिति की तुलना कीजिए।
उत्तर:
भय का अर्थ है-डर। भय के अनेक प्रकार हैं। आज के भौतिकवादी युग में भय कदम-कदम पर हमारे साथ लगा रहता है। भय का क्षेत्र अत्यधिक व्यापक एवं विस्तृत है। विद्यार्थियों को परीक्षा में फेल होने का भय लगा रहता है अथवा अच्छे अंक प्राप्त न करने का भी भय लगा रहता है। किसी विशेष विद्यालय अथवा महाविद्यालय में प्रवेश न मिलने का भय अथवा शिक्षा-प्राप्ति के पश्चात् उचित रोजगार न मिलने का भय हमारे पीछे लगा रहता है। लेकिन यदि हम जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण लेकर काम करते हैं तो भय से छुटकारा पाया जा सकता है। भय तो कदम-कदम पर हमारे सामने खड़ा है, लेकिन इसका डट कर सामना करना चाहिए। यदि हम सोच-समझकर योजनाबद्ध तरीके से काम करेंगे तो ही भय से बचा जा सकेगा। फिर भी हमें जीवन की प्रत्येक स्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। इस मनःस्थिति के साथ हम बुरे-से-बुरे परिणाम का भी सामना कर सकते हैं।

कवि की मनःस्थिति से हमारी मनःस्थिति सर्वथा अलग है। हमें आज के जीवन में कदम-कदम पर संघर्ष करना पड़ता है। लेकिन हम विद्यार्थी बुरी-से-बुरी स्थिति के लिए तैयार हैं। हमें तो आगे बढ़ना है, परिश्रम करना है और आने वाले काल में अपने देश के गौरव को ऊँचा उठाना है।

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सराहना संबंधी प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए
जिंदगी में जो कुछ है, जो भी है
सहर्ष स्वीकारा है;
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है।
गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब
यह विचार-वैभव सब
दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब
मौलिक है, मौलिक है

विशेष-

  1. यहाँ कवि स्पष्ट करता है कि जीवन के सुख-दुख, गरीबी, गंभीरता, वैचारिक मौलिकता आदि से कवि को इसलिए प्यार है क्योंकि उसका प्रिय भी इनसे प्यार करता है।
  2. कवि का प्रिय अज्ञात है।
  3. ‘गरबीली गरीबी’ का प्रयोग कवि के स्वाभिमान को व्यंजित करता है।
  4. ‘भीतर की सरिता’ एक सफल लाक्षणिक प्रयोग है जो कि कवि की गहन आंतरिक अनुभूतियों को व्यंजित करता है। ‘अभिनव’ विशेषण अनुभूतियों की मौलिकता की ओर संकेत करता है।
  5. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  6. शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  7. संपूर्ण पद्य में अनुप्रास अलंकार (सहर्ष स्वीकारा, गरबीली गरीबी, विचार-वैभव) की छटा दर्शनीय है।
  8. ‘भीतर की सरिता’ में रूपकातिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  9. संबोधनात्मक शैली है तथा मुक्त छंद का प्रयोग है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने अपने अज्ञात प्रिय के प्रति अपनी प्रेमानुभूति व्यक्त की है।
  2. संपूर्ण पद्य में प्रश्न तथा संदेह अलंकारों के प्रयोग के कारण रहस्यात्मकता का समावेश हो गया है।
  3. ‘भर-भर फिर’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
  4. ‘झरना’ तथा ‘मीठे पानी का सोता’ दोनों में रूपकातिशयोक्ति अलंकार है।
  5. ‘मुसकाता चाँद ……………….चेहरा है’ में उत्प्रेक्षा अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है।
  6. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है।
  7. शब्द-चयन सर्वथा सटीक एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  8. संबोधन शैली है तथा मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है।
  9. माधुर्य गुण है तथा श्रृंगार रस का परिपाक हुआ है।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
ममता के बादल की मँडराती कोमलता-
भीतर पिराती है
कमज़ोर और अक्षम अब हो गई है आत्मा यह
छटपटाती छाती को भवितव्यता डराती है
बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है!!

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने स्वीकार किया है कि उसके प्रिय की ममता उसके हृदय को पीड़ा पहुँचाने लगी है। अतः प्रिय का स्नेह उसके लिए असहय हो गया है।
  2. ‘ममता के बादल’ में रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  3. ‘आत्मीयता’ तथा ‘कोमलता’ दोनों भावनाओं का सुंदर मानवीकरण किया गया है।
  4. ‘छटपटाती छाती’ में अनुप्रास अलंकार है तथा संपूर्ण पद्यांश में स्वर मैत्री है।
  5. ‘मँडराती कोमलता भीतर पिराती’ में भी अनुप्रास अलंकार है।।
  6. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  7. शब्द-योजना सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  8. प्रसाद गुण है तथा मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊँ
पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में
धुएँ के बादलों में
बिलकुल मैं लापता
लापता कि वहाँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है !!

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने अपने प्रिय के प्रति पूर्णतया समर्पित होने का वर्णन किया है। उसके प्रेम में अनन्य गहराई है। लेकिन वह प्रेम के संयोग पक्ष को छोड़कर वियोग पक्ष को भोगना चाहता है।
  2. ‘दंड दो’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  3. ‘पाताली अँधेरे की गुहाओं …………………बादलों में’ में लाक्षणिकता है।
  4. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सरल प्रयोग हुआ है।
  5. शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  6. संबोधन शैली है तथा कवि की आत्मानुभूति की अभिव्यक्ति हुई है।
  7. मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है।

विषय-वस्तु पर आधारित लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘सहर्ष स्वीकारा है’ शीर्षक कविता का प्रतिपाद्य (उद्देश्य) मूलभाव संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
‘सहर्ष स्वीकारा है’ मुक्तिबोध की एक महत्त्वपूर्ण कविता है। इसमें कवि ने जीवन के सुख-दुख तथा कोमल-कठोर स्थितियों को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करने का वर्णन किया है। कवि कहता है कि वह स्वयं को हमेशा अपने प्रिय से जुड़ा हुआ अनुभव करता है। कारण यह है कि यह सब उसके प्रिय की ही देन है। उसका पूरा जीवन अपने प्रिय की संवेदनाओं से संबद्ध है। कवि के मन में प्रेम का जो झरना प्रवाहित हो रहा है, वह उसके प्रिय की ही देन है। परंतु कवि स्वयं को प्रिय के प्रेम को निभाने में असमर्थ अनुभव करता है, जिसके लिए वह दंड भोगना चाहता है। वह कहता है कि उसे अंधेरी गुफाओं का निर्वासन मिल जाए, जहाँ वह प्रिय से अलग होकर उसकी यादों के सहारे अपने जीवन को व्यतीत कर सकेगा। ऐसी स्थिति में भी वह अपने प्रिय से जुड़ सकेगा।

प्रश्न 2.
कवि ने किसे सहर्ष स्वीकारा है?
उत्तर:
कवि ने अपने जीवन के सुख-दुख, गरबीली गरीबी, जीवन के गहरे अनुभवों आदि सब को सहर्ष स्वीकार किया है। कवि ने अपने भीतर प्रवाहित होने वाली नूतन भावनाओं के प्रवाह और प्रिय के संयोग तथा वियोग दोनों को सहर्ष स्वीकार किया है।

प्रश्न 3.
कवि के पास जो अच्छा-बुरा है, उसमें कौन-सी विशिष्टता तथा मौलिकता है?
उत्तर:
कवि के पास अच्छा-बुरा बहुत कुछ है। उसके पास गरबीली गरीबी है। गहरे अनुभव तथा प्रौढ़ विचार भी हैं। इसके साथ-साथ उसके पास कुछ नूतन भावनाएँ भी हैं। कवि की ये सब उपलब्धियाँ मौलिक तथा विशिष्ट हैं। कारण यह है कि कवि ने इन्हें अपने प्रिय के प्रेम के कारण प्राप्त किया है। ये इसलिए भी मौलिक हैं कि कवि ने इनको अपने जीवन में खूब भोगा है।

प्रश्न 4.
मुसकाता चाँद किसका प्रतीक है?
उत्तर:
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता में चाँद कवि के प्रिय के आलोक अथवा उसके खिले हुए चेहरे का प्रतीक है। इसलिए कवि कहता है कि जिस प्रकार चाँद रात भर धरती पर अपना प्रकाश फैलाता है, उसी प्रकार प्रिय का चेहरा कवि को आनंद प्रदान करता है।

प्रश्न 5.
कवि पाताली अँधेरे की गुफाओं के विवरों में लापता होने का दंड क्यों भोगना चाहता है?
उत्तर:
कवि अब प्रिय के अत्यधिक प्रेम को सहन नहीं करना चाहता। वह सोचता है कि प्रिय के प्यार के बिना विरह-वेदना सहकर उसका व्यक्तित्व अत्यधिक सुदृढ़ हो जाएगा। प्रिय के प्रेम के संयोग पक्ष को भोगकर उसकी आत्मा तथा उसकी संकल्प-शक्ति दोनों ही कमजोर हो गए हैं। इसलिए वह विरह के पाताली अँधेरे की गुहाओं में लापता हो जाना चाहता है।

प्रश्न 6.
जितना भी उड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
इन पद्य पंक्तियों का भावार्थ क्या है?
उत्तर:
कवि यह कहना चाहता है कि उसने स्नेह को खुलकर लोगों में बाँटा है। लेकिन जितना वह इसे बाँटता है, उतना ही और बढ़ता जाता है। लगता है कि कवि के हृदय में प्रेम का एक झरना प्रवाहित हो रहा है। यह झरना मानों मीठे पानी का सोता है, जो भी नहीं सूखता। कवि अन्य लोगों में इस स्नेह को जितना अधिक बाँटता है, उतना ही वह झरना और भरता चला जाता है।

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प्रश्न 7.
कवि के लिए प्रेम का सुखद पक्ष असह्य क्यों बन गया है?
उत्तर:
कवि सोचता है कि प्रेम के सुखद पक्ष के कारण उसके मन में प्रिय की ममता बादलों के समान मँडराती रहती है जिससे उसकी आत्मा कमजोर और असमर्थ हो गई है। प्रिय के प्रेम के कारण उसका अपना व्यक्तित्व भी कमज़ोर होता जा रहा है। इसलि कवि प्रिय के वियोग का दंड भोगना चाहता है। वह यह भी सोचता है कि प्रिय की प्रेममयी यादें अकेलेपन में भी उसे प्रसन्न रखेंगी।

प्रश्न 8.
कवि ने अपने जीवन में सब कुछ सहर्ष क्यों स्वीकार किया है?
उत्तर:
कवि ने अपने जीवन में जो कुछ भी भोगा है अर्थात् सुख-दुख जो कुछ भी पाया है चाहे वह गरीबी हो या विचार वैभव; वह सब उसके प्रिय को भी प्यारा है। कवि की इन उपलब्धियों के पीछे उसके प्रिय की प्रेरणा काम करती रही है। इसलिए उसने अपने जीवन में सब कुछ सहर्ष स्वीकार किया है।

प्रश्न 9.
कवि पाताली अँधेरे की गुहाओं में और विवरों में तथा धुएँ के बादलों में लापता क्यों होना चाहता है?
उत्तर:
कवि अपने प्रिय के स्नेह के संयोग पक्ष से अब छुटकारा चाहता है। वह सोचता है कि उसके प्रेम में ग्लानि छिपी हुई है। अतः वह प्रिय के प्रेम के संयोग पक्ष के उजाले को सहन नहीं कर पाता। इसलिए वह पाताली अंधेरे की गुफाओं अर्थात् वियोग के धुएँ के बादलों में लापता हो जाना चाहता है।

प्रश्न 10.
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता के आधार पर सिद्ध कीजिए कि कवि एक स्वाभिमानी व्यक्ति है।
उत्तर:
कवि ने अपनी गरीबी को गरबीली कहा है। वह अपनी गरीबी के कारण स्वयं को लाचार अनुभव नहीं करता और न ही किसी की सहानुभूति चाहता है, बल्कि कवि ने गरीबी की बजाय अपनी मौलिक वैचारिकता को अधिक महत्त्व दिया है।

प्रश्न 11.
‘जाने क्या रिश्ता है?’ का गूढ़ अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर:
कवि और उसके प्रिय के बीच एक विचित्र प्रकार का संबंध है। जितना वह अपने प्रेम को व्यक्त करता है, उतना ही वह भर-भर आता है। भाव यह है कि कवि का प्रेम अनंत और गहरा है। कवि पूर्णतया अपने प्रिय के प्रति समर्पित है। उसका प्रेम प्रगाढ़ है।

प्रश्न 12.
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता के आधार पर कविवर मुक्तिबोध के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इस कविता के पढ़ने से पता चलता है कि मुक्तिबोध का व्यक्तित्व गंभीर, विचारशील, सुदृढ़ होने के साथ-साथ मौलिक चिंतन की छाप लिए हुए है। भले ही कवि गरीब है, लेकिन उसे अपनी गरीबी पर भी गर्व है। कवि ने धन का संग्रह करने के लिए अनुचित साधनों का कभी भी प्रयोग नहीं किया। वे विचार-वैभव की तुलना में धन-वैभव को तुच्छ मानते थे। उनके पास एक गहरी सोच और समृद्ध विचार सपंदा थी। कवि की अभिव्यक्ति पूर्णतया मौलिक थी।

प्रश्न 13.
क्या प्रेम के संयोग पक्ष के साथ-साथ वियोग पक्ष भी आवश्यक है? कविता के आधार पर सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता में मुक्तिबोध ने प्रेम के संयोग पक्ष के साथ-साथ वियोग पक्ष को भी आवश्यक माना है। इसीलिए तो वह कहता है कि “जो कुछ भी मेरा है, वह तुम्हें प्यारा है।” आगे चलकर कवि अपने विभिन्न रिश्ते की बात करता है। वह प्रिय के प्रसन्न चेहरे की तुलना मुसकाते चाँद के साथ करता है। परंतु अगली पंक्तियों में वह प्रिय को भूलने का दंड भोगना चाहता है। वह प्रिय के रमणीय उजाले को सहन नहीं कर पाता और उसके वियोग को पाना चाहता है, क्योंकि कवि को लगता है कि इस स्थिति में उसे प्रिय का सहारा प्राप्त होगा। कवि के विचारानुसार प्रेम के संयोग और वियोग दोनों पक्षों में ही प्रेम की संपूर्णता है।

प्रश्न 14.
ममता सदा हितकर क्यों नहीं होती?
उत्तर:
ममता मनुष्य को पंगु कर देती है। ममता देने वाला व्यक्ति अपने प्रिय को प्रेम के उजाले से आच्छादित कर देता है जिससे प्रिय-पात्र का आत्मविश्वास कमज़ोर पड़ जाता है। वह प्रिय की कृपा पर ही निर्भर हो जाता है। उसका आत्मबल नष्ट हो जाता है। अतः ममता के सहारे अधिक समय तक निर्भर न रहकर मनुष्य को अपने व्यक्तित्व को दृढ़ करना चाहिए।

प्रश्न 15.
कवि दंड किसे और क्यों कहता है?
उत्तर:
अपने प्रिय से वंचित होने के अनुभव को ही कवि ने दंड कहा है। इसीलिए कवि ने अपने प्रिय से विमुक्त होने की कामना की है। प्रथम स्थिति में कवि को प्रिय की आत्मीयता बहलाती और सहलाती है। उसे लगता है कि वह प्रिय के बिना जी नहीं पाएगा। अतः दूसरी स्थिति में वियोग का दंड भोगना चाहता है ताकि वह अपने व्यक्तित्व को सुदृढ़ कर सके।

प्रश्न 16.
छटपटाती छाती को भवितव्यता डराती है-इस पंक्ति का भावार्थ स्पष्ट करें।
उत्तर:
कवि को प्रिय के संयोग जनित प्रकाश अर्थात् सुखानुभूति से भविष्य की आशंकाएँ डराने लगी हैं। यह सोचकर कवि की छाती अर्थात् हृदय छटपटाने लगता है कि यदि भविष्य में उसे प्रिय का प्रेम नहीं मिलेगा तो वह कैसे जी सकेगा? प्रिय के बिना उसका क्या होगा?

प्रश्न 17.
कवि अपने प्रिय को क्यों नहीं भूल पाता?
उत्तर:
कवि अपने प्रिय को इसलिए नहीं भूल पाता, क्योंकि उसका जीवन प्रिय से अत्यधिक प्रभावित रहा है। प्रिय ने उसके जीवन की सभी कमजोरियों तथा उपलब्धियों को स्वीकार किया है और गरीबी में भी उसका साथ दिया है। कवि के प्रत्येक संवेदन को जागृत करने में उसके प्रिय का सहयोग रहा है। उसके बिना तो वह जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता।

प्रश्न 18.
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता किसको व क्यों स्वीकारने की प्रेरणा देती है?
उत्तर:
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता हमें जीवन के सुख-दुख, क्षमता अक्षमता तथा गरीबी-अमीरी आदि सभी उपलब्धियों को स्वीकार करने की प्रेरणा देती है। हमारा प्रेरणा-स्रोत अर्थात् प्रिय इन सब स्थितियों को स्वीकार कर लेता है। इसलिए हमारे प्रेरणा-स्रोत अर्थात् प्रिय हमारे लिए वरदान के समान हैं। अतः कवि के अनुसार गरबीली गरीबी, मौलिक विचार तथा गहरे अनुभव सभी स्वीकार करने योग्य हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. मुक्तिबोध का जन्म कब हुआ?
(A) 13 नवंबर, 1918
(B) 13 नवंबर, 1917
(C) 13 दिसंबर, 1920
(D) 10 नवंबर, 1922
उत्तर:
(B) 13 नवंबर, 1917

2. मुक्तिबोध का पूरा नाम क्या है?
(A) गजानन माधव मुक्तिबोध
(B) गजाधर मुक्तिबोध
(C) राम माधव मुक्तिबोध
(D) दयानंद माधव मुक्तिबोध
उत्तर:
(A) गजानन माधव मुक्तिबोध

3. मुक्तिबोध का जन्म किस प्रदेश में हुआ?
(A) उत्तरप्रदेश में
(B) दिल्ली में
(C) मध्यप्रदेश में
(D) राजस्थान में
उत्तर:
(C) मध्यप्रदेश में

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4. मुक्तिबोध का जन्म कहाँ हुआ?
(A) मुरैना जनपद के शिवपुर कस्बे में
(B) मुरैना जनपद के रामपुर कस्बे में
(C) ग्वालियर जनपद के श्योपुर में
(D) भिंड जनपद के कृष्णापुरा में
उत्तर:
(C) ग्वालियर जनपद के श्योपुर में

5. मुक्तिबोध के पिता का नाम क्या था?
(A) कृष्णकुमार मुक्तिबोध
(B) रामकुमार मुक्तिबोध
(C) कृष्णमाधव मुक्तिबोध
(D) माधव मुक्तिबोध
उत्तर:
(D) माधव मुक्तिबोध

6. मुक्तिबोध के पिता किस पद पर नियुक्त थे?
(A) आयकर इंस्पैक्टर
(B) पुलिस इंस्पैक्टर
(C) सिविल सप्लाई इंस्पैक्टर
(D) स्वास्थ्य इंस्पैक्टर
उत्तर:
(B) पुलिस इंस्पैक्टर

7. मुक्तिबोध ने किस विश्वविद्यालय से एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की?
(A) मुंबई विश्वविद्यालय
(B) इलाहाबाद विश्वविद्यालय
(C) नागपुर विश्वविद्यालय
(D) लखनऊ विश्वविद्यालय
उत्तर:
(C) नागपुर विश्वविद्यालय

8. मुक्तिबोध ने किस वर्ष एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की?
(A) सन् 1953 में
(B) सन् 1954 में
(C) सन् 1951 में
(D) सन् 1952 में
उत्तर:
(A) सन् 1953 में

9. मुक्तिबोध ने किस विषय में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की?
(A) अंग्रेज़ी
(B) भाषा विज्ञान
(C) इतिहास
(D) हिंदी
उत्तर:
(D) हिंदी

10. मुक्तिबोध का निधन कब हुआ?
(A) 12 सितंबर, 1963
(B) 11 सितंबर, 1964
(C) 18 जनवरी, 1960
(D) 11 सितंबर, 1965
उत्तर:
(B) 11 सितंबर, 1964

11. मुक्तिबोध का निधन किस रोग से हुआ?
(A) मलेरिया
(B) क्षय रोग
(C) मधुमेह
(D) मैनिनजाइटिस
उत्तर:
(D) मैनिनजाइटिस

12. मुक्तिबोध का निधन कहाँ हुआ?
(A) नयी दिल्ली
(B) नागपुर
(C) ग्वालियर
(D) मुरैना
उत्तर:
(A) नयी दिल्ली

13. मुक्तिबोध की आरंभिक रचनाएँ किस पत्रिका में प्रकाशित हुईं?
(A) नवजीवन
(B) दिनमान
(C) सरिता
(D) कर्मवीर
उत्तर:
(D) कर्मवीर

14. मुक्तिबोध ने कहाँ पर ‘मध्य भारत प्रगतिशील लेखक संघ’ की स्थापना की?
(A) नागपुर
(B) उज्जैन
(C) ग्वालियर
(D) मुरैना
उत्तर:
(B) उज्जैन

15. हँस पत्रिका’ के संपादकीय विभाग में मुक्तिबोध ने कब स्थान प्राप्त किया?
(A) सन् 1943 में
(B) सन् 1942 में
(C) सन् 1945 में
(D) सन् 1946 में
उत्तर:
(C) सन् 1945 में

16. मुक्तिबोध ने किस कॉलेज में प्राध्यापक के रूप में कार्य किया?
(A) दिग्विजय कॉलेज
(B) एस०डी० कॉलेज
(C) डी०ए०वी० कॉलेज
(D) नागपुर कॉलेज
उत्तर:
(A) दिग्विजय कॉलेज

17. ‘तार सप्तक’ में मुक्तिबोध की कितनी कविताएँ प्रकाशित हुईं?
(A) बारह कविताएँ
(B) सत्रह कविताएँ
(C) अट्ठाईस कविताएँ
(D) पंद्रह कविताएँ
उत्तर:
(B) सत्रह कविताएँ

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18. ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ में कुल कितनी कविताएँ सम्मिलित हैं?
(A) 18
(B) 16
(C) 28
(D) 27
उत्तर:
(C) 28

19. ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ के रचयिता हैं
(A) धर्मवीर भारती
(B) रघुवीर सहाय
(C) शमशेर बहादुर सिंह
(D) मुक्तिबोध
उत्तर:
(D) मुक्तिबोध

20. ‘भूरी-भूरी खाक धूल’ किस विधा की रचना है?
(A) कविता संग्रह
(B) प्रबंध काव्य
(C) नाटक
(D) निबंध
उत्तर:
(A) कविता संग्रह

21. ‘भूरी-भूरी खाक धूल’ के कवि का नाम है
(A) हरिवंश राय बच्चन
(B) मुक्तिबोध
(C) रघुवीर सहाय
(D) निराला
उत्तर:
(B) मुक्तिबोध

22. ‘काठ का सपना’ के रचयिता हैं
(A) अज्ञेय
(B) नागार्जुन
(C) मुक्तिबोध
(D) कुँवर नारायण
उत्तर:
(C) मुक्तिबोध

23. ‘सतह से उठता आदमी किस विधा की रचना है?
(A) नाटक
(B) काव्य संग्रह
(C) निबंध संग्रह
(D) कथा साहित्य
उत्तर:
(D) कथा साहित्य

24. ‘सहर्ष स्वीकारा है’ मुक्तिबोध की किस काव्य रचना में संकलित है?
(A) भूरी-भूरी खाक धूल
(B) चाँद का मुँह टेढ़ा है
(C) काठ का सपना
(D) विपात्र
उत्तर:
(A) भूरी-भूरी खाक धूल

25. ‘कामायनी-एक पुनर्विचार’ के रचयिता हैं
(A) हरिवंशराय बच्चन
(B) रघुवीर सहाय
(C) आलोक धन्वा
(D) मुक्तिबोध
उत्तर:
(D) मुक्तिबोध

26. ‘कामायनी-एक पुनर्विचार’ किस विधा की रचना है?
(A) उपन्यास
(B) कथा साहित्य
(C) आलोचना
(D) काव्य संग्रह
उत्तर:
(C) आलोचना

27. ‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता किसे संबोधित है?
(A) कवि के प्रिय को
(B) पाठकों को
(C) साहित्यकारों को
(D) ईश्वर को
उत्तर:
(A) कवि के प्रिय को

28. ‘भीतर की सरिता’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) उपमा
(B) रूपक
(C) अनुप्रास
(D) रूपकातिशयोक्ति
उत्तर:
(D) रूपकातिशयोक्ति

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29. ‘गरबीली गरीबी’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) उपमा
(B) अनुप्रास
(C) श्लेष
(D) रूपक
उत्तर:
(B) अनुप्रास

30. ‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता में किस छंद का प्रयोग हुआ है?
(A) चौपाई
(B) सवैया
(C) मुक्त
(D) दोहा
उत्तर:
(C) मुक्त

31. ‘मीठे पानी का सोता’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) अनुप्रास
(B) रूपकातिशयोक्ति
(C) रूपक
(D) उपमा
उत्तर:
(B) रूपकातिशयोक्ति

32. ‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता में कवि ने मुख्यतः किस शैली का प्रयोग किया है?
(A) वर्णनात्मक शैली
(B) संबोधन शैली
(C) आलोचनात्मक शैली
(D) गीति शैली
उत्तर:
(B) संबोधन शैली

33. ‘मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) अनुप्रास
(B) रूपक
(C) उपमा
(D) उत्प्रेक्षा
उत्तर:
(D) उत्प्रेक्षा

34. ‘ममता के बादल’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) रूपक
(B) उपमा
(C) रूपकातिशयोक्ति
(D) मानवीकरण
उत्तर:
(A) रूपक

35. ममता के बादल की मँडराती कोमलता कहाँ पिराती है?
(A) बाहर
(B) सर्वत्र
(C) भीतर
(D) बीच में
उत्तर:
(C) भीतर

36. ‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता में कवि ने गरीबी को कैसा बताया है?
(A) शर्मीली
(B) सुखदायक
(C) दुखभरी
(D) गरबीली
उत्तर:
(D) गरबीली

37. प्रस्तुत कविता में बहलाती सहलाती आत्मीयता क्या नहीं होती?
(A) बरदाश्त
(B) फालतू
(C) कम
(D) जहरीली
उत्तर:
(A) बरदाश्त

38. ‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता में कवि की आत्मा कैसी हो गई है?
(A) कमज़ोर
(B) दृढ़
(C) संवेदनशील
(D) सक्षम
उत्तर:
(A) कमज़ोर

39. ‘काठ का सपना’ किस विधा की रचना है?
(A) काव्य संग्रह
(B) कथा साहित्य
(C) नाटक
(D) निबंध संग्रह
उत्तर:
(B) कथा साहित्य

40. ‘सहर्ष स्वीकारा है। कविता में कवि कहाँ लापता होना चाहता है?
(A) वायु में
(B) आकाश में
(C) बादलों में
(D) धुएँ के बादलों में
उत्तर:
(D) धुएँ के बादलों में

41. ‘पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में यहाँ ‘विवरों का क्या अर्थ है?
(A) बादल
(B) बिल
(C) गुफा
(D) शिविर
उत्तर:
(B) बिल

42. ‘सहर्ष स्वीकारा है’ शीर्षक कविता में किस भाव की प्रधानता है?
(A) क्रूरता
(B) रुक्षता
(C) कठोरता
(D) विनय
उत्तर:
(D) विनय

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 5 सहर्ष स्वीकारा है

43. ‘परिवेष्टित’ शब्द का क्या अर्थ है?
(A) पगड़ी
(B) परिजन
(C) चारों ओर से घिरा हुआ
(D) परिक्रमा
उत्तर:
(C) चारों ओर से घिरा हुआ

44. भवितव्यता किसे डराती है?
(A) संपाती को
(B) छाती को
(C) बिलखाती को
(D) पराती को
उत्तर:
(B) छाती को

सहर्ष स्वीकारा है पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर |

[1] ज़िंदगी में जो कुछ है, जो भी है
सहर्ष स्वीकारा है।
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है वह तुम्हें प्यारा है।
गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब
यह विचार-वैभव सब
दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब
मौलिक है, मौलिक है
इसलिए कि पल-पल में
जो कुछ भी जाग्रत है अपलक है
संवेदन तुम्हारा है!! [पृष्ठ-30]

शब्दार्थ-जिंदगी = जीवन। सहर्ष = प्रसन्नता के साथ। स्वीकारा = मन से माना। गरबीली = अभिमान से भरी हुई। गंभीर = गहरा। विचार-वैभव = विचारों की संपत्ति। दृढ़ता = मजबूती। सरिता = नदी (भावनाओं का प्रवाह)। अभिनव = नया। मौलिक = नया। पल = क्षण। जाग्रत = जागा हुआ जीवित। अपलक = बिना पलकें झपकाए हुए। संवेदन = अनुभूति।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से अवतरित है। इसके कवि गजानन माधव मुक्तिबोध हैं। इस कविता में कवि यह बताना चाहता है कि जीवन में उसे जो कुछ प्राप्त हुआ है, उसने उसे बड़ी प्रसन्नता के साथ स्वीकार कर लिया है। कवि को किसी प्रकार की शिकायत नहीं है। यहाँ कवि ईश्वर को संबोधित करता हुआ कहता है कि

व्याख्या-मुझे जीवन में जो कुछ मिला है अथवा पाया है, उसे मैंने प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लिया है। मुझे जीवन की उपलब्धियों पर बहुत गर्व है। इसलिए जीवन में मेरा जो कुछ अपना है, वह सब उस अनंत सत्ता को भी प्रिय है। कवि पुनः स्पष्ट करता है कि यह मेरी गर्व भरी गरीबी, मेरे जीवन के गहरे अनुभव, मेरी यह विचार संपदा, मेरे मन की यह मजबूती और मेरे हृदय में जो भावनाओं का एक नया प्रवाह है, वह सब कुछ नया है और मौलिक है। भाव यह है कि उस ईश्वर के कारण ही मैं प्रत्येक स्थिति में खुशी-खशी जी रहा हूँ। तुमने ही मुझे अपनी गरीबी पर गर्व करना सिखाया है। मैंने जीवन के गंभीर अनुभवों तथा विचारों की संपन्नता तुमसे ही प्राप्त की है। मैं अपने इन मौलिक विचारों के साथ दृढ़तापूर्वक जी रहा हूँ। मेरे मन में नवीन विचारों की एक नदी हमेशा प्रवाहित होती रहती है। अतः प्रत्येक क्षण में जो कुछ मेरे अंदर जागता रहता है और लगातार मेरे जीवन को गतिशील बनाता है, उसके पीछे तुम्हारी प्रेरणा ही काम कर रही है। भाव यह है कि मैंने अपने जीवन में उस असीम सत्ता से प्रेरणा प्राप्त करके ही अपने व्यक्तित्व का निर्माण किया है।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने असीम सत्ता को संबोधित किया है। साथ ही जीवन में मिलने वाली उपलब्धियों तथा कमियों को सहर्ष स्वीकार किया है।
  2. रहस्यवादी भावना स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
  3. ‘भीतर की सरिता’ कवि की आंतरिक गहन अनुभूतियों का प्रतीक है।
  4. ‘भीतर की सरिता’ में रूपकातिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग है तथा ‘पल-पल’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  5. इस पद्य में कवि ने साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है जिसमें संस्कृत के तत्सम् शब्दों के अतिरिक्त उर्दू के शब्दों का मिश्रण किया गया है।
  6. संबोधनात्मक शैली है तथा संपूर्ण कविता में लाक्षणिक पदावली का भी प्रयोग है।
  7. मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस कविता में कवि ने किसे संबोधित किया है?
(ग) कवि अपने जीवन को सहर्ष स्वीकार क्यों करता है?
(घ) कवि अपनी उपलब्धियों के लिए किसे श्रेय देता है और क्यों?
(ङ) कवि अपनी किस उपलब्धि पर गर्व करता है?
उत्तर:
(क) कवि का नाम-गजानन माधव मुक्तिबोध कविता का नाम-सहर्ष स्वीकारा है।

(ख) इस कविता के द्वारा कवि असीम सत्ता को संबोधित करता है।

(ग) कवि अपनी प्रत्येक उपलब्धि को इसलिए प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करता है, क्योंकि असीम सत्ता की प्रेरणा से ही उसे यह सब प्राप्त हुआ है। दूसरा, उसकी प्रत्येक उपलब्धि उस असीम सत्ता को भी प्रिय लगती है।

(घ) कवि अपनी उपलब्धियों के लिए उस असीम सत्ता प्रियतम अर्थात् परमात्मा को श्रेय देता है। कारण यह है कि उसी से प्रेरणा पाकर ही कवि अपनी कविताओं में मौलिक अनुभव, विचार तथा अनुभूतियाँ प्राप्त कर पाया है। इसलिए कवि अपनी गरीबी के साथ इन सब पर गर्व करता है।

(ङ) कवि अपनी गरीबी, जीवन के गहरे अनुभव, गंभीर चिंतन, व्यक्तित्व की दृढ़ता तथा मन में प्रवाहित होने वाली भावनाओं की नदी पर गर्व करता है।

[2] जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उँडेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है! [पृष्ठ-30]

शब्दार्थ-रिश्ता = संबंध। उँडेलना = खाली करना, देना। सोता = झरना।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से अवतरित है। इसके कवि गजानन माधव मुक्तिबोध हैं। इसमें कवि स्वीकार करता है कि वह रहस्यात्मक शक्ति ही उसकी प्रेरणा का स्रोत है।

व्याख्या कवि उस अनंत सत्ता को संबोधित करता हुआ कहता है कि मुझे यह भी पता नहीं है कि तुम्हारे और मेरे बीच स्नेह का न जाने ऐसा कौन-सा रिश्ता और संबंध है कि मैं जितना भी अपने हृदय के स्नेह को व्यक्त करता हूँ अथवा लोगों में उसे बाँटता हूँ, उतना ही वह बार-बार भर जाता है। ऐसा लगता है कि मानों मेरे हृदय में कोई मधुर झरना है जिससे लगातार स्नेह की वर्षा होती रहती है अथवा मेरे भीतर प्रेम की कोई नदी (झरना) है जो हमेशा स्नेह रूपी जल से छलकती रहती है। मेरे हृदय में तो तुम्हारा ही प्रेम विद्यमान है। मेरे रा यह प्रसन्न चेहरा इस प्रकार विद्यमान रहता है, जैसे पृथ्वी पर रात के समय चंद्रमा मुस्कुराता रहता है अर्थात् जैसे चाँद रात को रोशनी देता है, उसी प्रकार हे मेरे ईश्वर! तुम मेरे हृदय को प्रेम से प्रकाशित करते रहते हो।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने परमात्मा को संबोधित किया है, क्योंकि वही कवि के लिए प्रेरणा का काम करता है।
  2. संपूर्ण पद्य में प्रश्न तथा संदेह अलंकारों का सफल प्रयोग हुआ है जिसके कारण रहस्यात्मकता उत्पन्न हो गई है।
  3. ‘झरना’ तथा ‘मीठे पानी का सोता’ में रूपकातिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  4. ‘मुसकाता चाँद’ ………………. चेहरा है’ में उत्प्रेक्षा अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है।
  5. ‘भर-भर फिर’ में अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकारों का सफल प्रयोग है। इसी प्रकार ‘धरती पर रात-भर’ में अनुप्रास अलंकार है।
  6. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है तथा साथ ही भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  7. संबोधन शैली का प्रयोग हुआ है तथा मुक्त छंद है।
  8. माधुर्य गुण होने के कारण शृंगार रस का परिपाक हुआ है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 5 सहर्ष स्वीकारा है

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) कवि ने अपने प्रिय अर्थात परमात्मा के प्रति अपने रिश्ते को किस प्रकार व्यक्त किया है?
(ग) ‘जितना भी उँडेलता हूँ, उतना ही भर-भर आता है’ से कवि का क्या अभिप्राय है?
(घ) कवि ने अपने दिल के झरने को ‘मीठे पानी का सोता’ क्यों कहा है?
(ङ) कवि ने कौन-से अटूट रिश्ते को प्रकट किया है?
उत्तर:
(क) कवि का नाम-गजानन माधव मुक्तिबोध कविता का नाम-सहर्ष स्वीकारा है।

(ख) कवि और परमात्मा के मध्य एक कथनीय प्रेम है। कवि ने उस अनंत सत्ता के प्रेम की तुलना एक झरने के साथ की है जो उसे बार-बार भिगोकर आनंद प्रदान करता रहता है। भाव यह है कि कवि का प्रेम रूपी झरना कभी सूखने वाला नहीं है।

(ग) यहाँ कवि यह कहना चाहता है कि वह अपने हृदय के स्नेह को जितना बाँटता है, वह उतना अधिक बढ़ता जाता है, वह कभी भी कम नहीं होता। इसलिए कवि ने स्वीकार किया है कि उसके हृदय में प्रेम का झरना प्रवाहित हो रहा है।

(घ) ‘मीठे पानी का सोता’ कहने का अभिप्राय यह है कि कवि को अपने मालिक (ईश्वर) के प्रति प्रगाढ़ प्रेम है जो कि कभी समाप्त नहीं हो सकता। यह प्रेम मधुर भी है।

(ङ) इन पंक्तियों में कवि ने आत्मा और परमात्मा के अटूट रिश्ते को प्रकट किया है।

[3] सचमुच मुझे दंड दो कि भूलूँ मैं भूलूँ मैं
तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं
झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब
सहा नहीं जाता है।
नहीं सहा जाता है।
ममता के बादल की मँडराती कोमलता-
भीतर पिराती है
कमज़ोर और अक्षम अब हो गई है आत्मा यह
छटपटाती छाती को भवितव्यता डराती है
बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है!! [पृष्ठ 30-31]

शब्दार्थ-दक्षिण ध्रवी अंधकार = दक्षिण ध्रुव पर गहरा अंधकार। अमावस्या = काली रात। अंतर = हृदय। परिवेष्टित = चारों ओर से घिरा हुआ। आच्छादित = ढका हुआ, छाया हुआ। रमणीय = सुंदर, मनोहर। उजेला = रोशनी, प्रकाश। ममता = मोह-प्रेम । मँडराती = फैली हुई। पिराती = पीड़ा पहुँचाती हुई। अक्षम = कमजोर। भवितव्यता = भविष्य की आशंका। बहलाती मन को प्रसन्न करती हुई। सहलाती = पीड़ा को कम करती हुई। आत्मीयता = अपनापन। बरदाश्त = सहन करना।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से अवतरित है। इसके कवि गजानन माधव मुक्तिबोध हैं। इस पद्यांश द्वारा कवि ने अपने परमात्मा से वियोग के दंड का वर्णन किया है। इसके साथ ही अपने आशीर्वाद रूपी प्रकाश को स्वयं से हटाने की बात की है।

व्याख्या-कवि अपने परमात्मा को संबोधित करता हुआ कहता है कि वह अपने जीवन में अहंकार के भाव में आकर उसे भूल गया था। अब वह उससे इस भूल की सजा पाना चाहता है। कवि स्वयं के लिए दक्षिणी ध्रुव पर अमावस की रात्रि के समान फैलने वाले अंधकार जैसी सजा पाना चाहता है। वह उस गहरे अंधकार को अपने शरीर, चेहरे और अन्तर्मन में झेलना चाहता है और इसी में नहाना चाहता है।

कवि सोचता है कि उसका वर्तमान जीवन उस ईश्वर के प्रेम से पूर्णतया घिरा हुआ है। उसके प्रेम का यह उजाला बड़ा ही मनोहर एवं आकर्षक है। परन्तु यह उजाला कवि के लिए असहनीय बन गया है। वह उसे सहन नहीं कर सकता। उस अनंत सत्ता की ममता कवि के मन में बादल के समान छाई हुई है जो उसके हृदय को पीड़ित करती है। इसलिए अब कवि की आत्मा दुर्बल और असमर्थ हो गई है। भविष्य की आशंका उसे डरा रही है और उसकी छाती छटपटा रही है। उस प्रियतम की ममता कवि के हृदय को बहलाती, सहलाती और अपनापन दिखाती है, वह कवि से अब सहन नहीं हो पा रही है। भाव यह है कि कवि अपने अहंकार की सजा पकार अपने पापों से मुक्त होना चाहता है।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने स्वीकार किया है कि वह अपने ही गर्व के बहाव में बहकर उस परमात्मा को भूल गया है जिसकी वह उस परमात्मा से सजा पाना चाहता है।
  2. ममता के बादल, तुमसे ही …………………. उजेला तथा दक्षिणी ध्रुवी अंधकार-अमावस्या आदि में रूपक अलंकार का सफल प्रयोग है।
  3. आत्मीयता तथा कोमल भावनाओं का सुंदर मानवीकरण किया गया है।
  4. ‘शरीर पर, चेहरे पर’, ‘मँडराती कोमलता-भीतर पिराती’ और ‘छटपटाती छाती’ में अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है।
  5. ‘ई’ स्वर के कारण स्वर मैत्री का प्रयोग है।
  6. यहाँ कवि ने संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है, साथ ही कुछ नवीन शब्दों का भी प्रयोग किया है।
  7. संबोधन शैली है तथा मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है।
  8. शांत रस का प्रयोग है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि अपने प्रियतम (परमात्मा) से कौन-सा दंड पाना चाहता है और क्यों?
(ख) कवि किस रमणीय उजाले की बात कर रहा है जो उसके लिए असहनीय है?
(ग) कौन-सी भावना कवि को पीड़ा पहुँचाती है?
(घ) कवि अपने भविष्य के प्रति आशंकित क्यों है?
(ङ) कवि ने अपने प्रियतम को भूलने के दुख की तुलना किससे की है? .
उत्तर:
(क) कवि अपने प्रियतम (परमात्मा) से वियोग का दंड पाना चाहता है। कवि को लगता है कि उस प्रियतम के प्रेम और कोमलता ने उसकी आत्मा को कमजोर बना दिया है। अतः अब वह उसकी ममता को सहन करने में असमर्थ हो गया है। त्ता का प्रेम ही कवि के लिए रमणीय उजाला है जिसे कवि अब सहन नहीं कर पा रहा है। इसलिए कवि अब वियोग का दंड भोगना चाहता है।

(ग) उस अनंत सत्ता की ममता उसके मन में बादल के समान छाई हुई है। यही भावना अब कवि को पीड़ा पहुँचाती है जिससे वह अब मुक्त होना चाहता है।

(घ) कवि अपने भविष्य के प्रति इसलिए आशंकित है, क्योंकि अपराधी होने के कारण उसकी आत्मा छटपटाती रहती है।

(ङ) कवि ने अपने प्रियतम को भूलने के दुख की तुलना दक्षिणी ध्रुवी अमावस्या के साथ की है, जहाँ हमेशा घना काला और गहरा अंधकार छाया रहता है।

[4] सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊँ
पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में
धुएँ के बादलों में
बिलकुल मैं लापता
लापता कि वहाँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है!
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
या मेरा जो होता-सा लगता है, होता-सा संभव है
सभी वह तुम्हारे ही कारण के कार्यों का घेरा है, कार्यों का वैभव है
अब तक तो जिंदगी में जो कुछ था, जो कुछ है
सहर्ष स्वीकारा है
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है। [पृष्ठ-32]

शब्दार्थ-पाताली अँधेरा = धरती के नीचे पाताल में पाया जाने वाला अंधकार। गुहा = गुफा। विवर = बिल। लापता होना = गायब हो जाना। कारण = मूल प्रेरणा। घेरा = फैलाव। वैभव = संपदा, समृद्धि।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से अवतरित है। इसके कवि गजानन माधव मुक्तिबोध हैं। इसमें कवि कहता है कि उसने अपने प्रियतम भाव परमात्मा की प्रेरणा से आज तक जो प्राप्त किया है उसे उसने प्रसन्नतापर्वक स्वीकार कर लिया है। प्रस्तत पद्यांश द्वारा कवि स्वयं को उस ईश्वर देता है।

व्याख्या-कवि अपनी उस अनंत सत्ता को संबोधित करता हुआ कहता है कि तुम मुझे अपने वियोग का ऐसा दंड दो कि मैं पाताल लोक की अंधेरी गुफाओं की सूनी सुरंगों में और दम घोंटने वाले धुएँ के बादलों में बिल्कुल खो जाऊँ अर्थात् उनमें विलीन हो जाऊँ। मेरा जीवन उस घुटन से भले ही समाप्त हो जाए, पर मुझे इसकी कोई चिंता नहीं है। मैं इस खो जाने वाले अकेलेपन में भी खुश रहूँगा, क्योंकि वहाँ भी मुझे तुम्हारा आश्रय मिलता रहेगा। तुम्हारी यादें हमेशा मेरे साथ रहेंगी। अतः मैंने अपने जीवन में जो कुछ प्राप्त किया है अर्थात् मेरी जो उपलब्धियाँ हैं अथवा स्थितियाँ हैं या जो संभव हो सकती हैं अर्थात् मेरे जीवन के विकास तथा ह्रास की जो संभावनाएँ हैं वे मुझे तुम्हारी ही प्रेरणास्वरूप प्राप्त हुई हैं। तुम्हारे प्रेम से प्रेरणा पाकर मैंने जो काम किए हैं या मेरे कामों का जो परिणाम है, मेरा जो कुछ बना है अथवा बिगड़ा है वह सब कुछ तुम्हारी ही देन है। मैं इन सभी स्थितियों को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करता हूँ कि मेरे जीवन के सुखों तथा दुखों से तुम्हें अत्यधिक प्यार है। अतः मैं खुशी-खुशी इनको स्वीकार
करता हूँ।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने अपने प्रियतम (परमात्मा) पर अत्यधिक विश्वास व्यक्त किया है तथा उसके प्रेम की अनन्यता को उजागर किया है।
  2. संपूर्ण पद्य में लाक्षणिक पदावली का सुंदर प्रयोग हुआ है।
  3. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  4. शब्द-चयन सर्वथा सटीक एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. मुक्त छंद का प्रयोग है तथा संबोधन शैली है।
  6. संपूर्ण पद्य में वियोग शृंगार का सुंदर परिपाक हुआ है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि अपने प्रियतम से दंड क्यों पाना चाहता है?
(ख) कवि ने अपने जीवन में उस अनंत सत्ता को क्या स्थान दिया है?
(ग) कवि पाताली अंधेरों की गुफाओं में क्यों लापता होना चाहता है?
(घ) कवि अपने जीवन के प्रत्येक सुख-दुख को प्रसन्नता से क्यों स्वीकार करना चाहता है?
उत्तर:
(क) कवि अपने प्रियतम से इसलिए दंड पाना चाहता है कि वह अपने उस मालिक के वियोग को सहन कर सके और उसके बिना भी जीना सीख सके।

(ख) कवि के जीवन में उस अनंत सत्ता का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वह सोचता है कि वियोगावस्था में भी वह उस परमात्मा की यादों के सहारे सुखद जीवन जी सकेगा और उसे वियोगजन्य पीड़ा दुख नहीं देगी।

(ग) कवि पाताल की अभेद्य अंधेरी गुफाओं में इसलिए विलीन होना चाहता है कि ताकि वह अपने प्रियतम के बिना अकेला रह सके और उसके वियोग को सह सके।

(घ) कवि अपने जीवन के प्रत्येक सुख-दुख को प्रसन्नता से स्वीकार करना चाहता है कि उसका सुख-दुख भी उस प्रियतम की देन है तथा वह भी उसके सुख-दुख से प्यार करता है। कवि भी उस प्रियतम की यादों के सहारे जीना चाहता है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 5 सहर्ष स्वीकारा है

सहर्ष स्वीकारा है Summary in Hindi

सहर्ष स्वीकारा है कवि-परिचय

प्रश्न-
गजानन माधव मुक्तिबोध का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
गजानन माधव मुक्तिबोध का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म मध्यप्रदेश के मुरैना जनपद के श्योपुर नामक कस्बे में 13 नवंबर, 1917 को हुआ। उनके किसी पूर्वज को मुक्तिबोध की उपाधि प्राप्त हुई थी। इसलिए कुलकर्णी के स्थान पर मुक्तिबोध कहलाने लगे। उनके पिता का नाम माधव मुक्तिबोध था, जो कि पुलिस इंस्पैक्टर थे। वे एक न्यायप्रिय अधिकारी होने के साथ-साथ धर्म तथा दर्शन में अत्यधिक रुचि रखते थे। गजानन माधव का पालन-पोषण बड़े लाड़-प्यार से हुआ। वे एक योग्य विद्यार्थी नहीं थे। 1930 में वे मिडिल की परीक्षा में असफल रहे तथा 1937 में प्रथम प्रयास में बी०ए० की परीक्षा भी उत्तीर्ण नहीं कर सके। उन्होंने सन् 1953 में नागपुर विश्वविद्यालय से एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। विद्यार्थी जीवन से ही वे काव्य रचना करने लगे थे। उनकी आरंभिक रचनाएँ माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा संपादित ‘कर्मवीर’ में प्रकाशित हुई थीं। आरंभ में उन्होंने ‘बड़नगर’ के मिडिल स्कूल में चार महीने तक अध्यापन का कार्य किया। तत्पश्चात् शुजालपुर में नगरपालिका के विद्यालय में एक सत्र तक पढ़ाते रहे। 1942 में उज्जैन चले गए और वहाँ रहते हुए उन्होंने ‘मध्य भारत प्रगतिशील लेखक संघ’ की स्थापना की। सन् 1945 में ‘हंस’ पत्रिका के संपादकीय विभाग में स्थान पाया। सन् 1946-47 में वे जबलपुर में रहे और 1948 में नागपुर चले गए। 1958 में मुक्तिबोध राजनांदगाँव के दिग्विजय कॉलेज में प्राध्यापक के रूप में कार्य करने लगे। 11 सितंबर, 1964 को इस प्रगतिशील कवि का निधन ‘मैनिनजाइटिस’ रोग के कारण दिल्ली में हुआ।

2. प्रमुख रचनाएँ मुक्तिबोध मुख्यतः कवि-रूप में प्रसिद्ध हुए लेकिन उन्होंने आलोचना, कहानी एवं डायरी लेखन में भी सफलता प्राप्त की। उनकी रचनाओं का विवरण इस प्रकार है-‘तार सप्तक’ में संकलित सत्रह कविताएँ (1943)–’चाँद का मुँह टेढ़ा है’, ‘भूरी-भूरी खाक धूल’ (कविता संग्रह), ‘काठ का सपना’, ‘विपात्र’, ‘सतह से उठता आदमी’ (कथा साहित्य); ‘कामायनी-एक पुनर्विचार’, ‘नयी कविता का आत्मसंघर्ष’, ‘नये साहित्य का सौंदर्यशास्त्र’, ‘समीक्षा की समस्याएँ’, ‘एक साहित्यिक की डायरी’ (आलोचना); तथा ‘भारत : इतिहास और संस्कृति’ आदि उनकी मुख्य अन्य रचनाएँ हैं। परंतु इनकी कीर्ति का आधार-स्तंभ ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ है, जिसमें कुल 28 कविताएँ संकलित हैं।

3. काव्यगत विशेषताएँ-उनकी काव्यगत विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(i) वैयक्तिकता तथा सामाजिकता का उद्घाटन मुक्तिबोध की अधिकांश कविताएँ छायावादी शिल्प लिए हुए हैं। लेकिन वे वैयक्तिकता से सामाजिकता की ओर प्रस्थान करते दिखाई देते हैं। इसलिए उनका कथ्य प्रगतिशील है। कवि की वैयक्तिकता सामाजिकता से जुड़ती प्रतीत होती है। परंतु कुछ कविताओं में कवि की निराशा तथा कुंठा अभिव्यक्त हुई है। ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ में कवि लिखता है-
“याद रखो
कभी अकेले में मुक्ति नहीं मिलती
यदि वह है तो सबके साथ ही।”
मुक्तिबोध ने स्वयं को विश्व-मानव के सुख-दुख के साथ जोड़ने का प्रयास किया है। कवि यत्र-तत्र आम आदमी की निराशा, कुंठा, अवसाद तथा वेदना का वर्णन करता हुआ दिखाई देता है। कवि स्वीकार करता है कि आज की व्यवस्था के नीचे दबा मानव नितांत निराश तथा हताश है। कवि कहता है-
“दुख तुम्हें भी है,
दुख मुझे भी है,
हम एक ढहे हुए मकान के नीचे
दबे हैं
चीख निकालना भी मुश्किल है।”

(ii) पूँजीवादी व्यवस्था का विरोध-आरंभ से ही मुक्तिबोध का झुकाव मार्क्सवाद की तरफ रहा है। कवि शोषण व्यवस्था से जुड़े व्यक्तियों से घृणा करता है। कवि का विचार है कि उसका जीवन पूँजीवादी व्यवस्था की देन है। जहाँ के लोग झूठी चमक-दमक तथा झूठी शान से निर्मित दोगली जिंदगी जी रहे हैं। कवि इस पूँजीवादी व्यवस्था को शीघ्र-से-शीघ्र नष्ट करना चाहता है तथा उसके स्थान पर समाजवाद लाना चाहता है।

(iii) शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति-मुक्तिबोध ने स्वयं अभावग्रस्त जीवन व्यतीत किया और गरीबों के जीवन को निकट से देखा। इसलिए कवि अपनी कविताओं में जहाँ एक ओर शोषित वर्ग के प्रति सहानभति व्यक्त करता है, वहीं दूसरी ओर शोषितों को आर्थिक तथा सामाजिक शोषण से मुक्त भी करना चाहता है। कवि ने अपनी कविताओं में शोषित समाज के अनेक चित्र अंकित किए हैं तथा जनहित के दृष्टिकोण को अपनाया है।

(iv) व्यंग्यात्मकता-मुक्तिबोध के काव्य में तीखा तथा चुभने वाला व्यंग्य देखा जा सकता है। कवि सामाजिक रूढ़ियों पर करारा व्यंग्य करता है और यथार्थ चित्रण में विश्वास रखता है। कवि का यह चित्रण अपना ही भोगा यथार्थ है।

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(v) वर्गहीन समाज की स्थापना पर बल-मुक्तिबोध एक ऐसा वर्गहीन समाज स्थापित करना चाहते थे जिसमें समाज तथा संस्कृति के लिए स्वस्थ मूल्यों का पोषण हो सके। वे स्वार्थपरता, संकीर्णता तथा भाई-भतीजावाद को समाप्त करना चाहते थे। में साम्यवाद की स्थापना अवश्य होगी और भारतवासी शोषण के चक्र से मुक्त हो सकेंगे। इसलिए कवि कहता है-
“कविता में कहने की आदत नहीं, पर कह दूँ,
वर्तमान समाज चल नहीं सकता,
पूँजी से जुड़ा हृदय बदल नहीं सकता,
स्वातंत्र्य व्यक्ति का वादी
छल नहीं सकता मुक्ति के मन को,
जन को”

4. भाषा-शैली-मुक्तिबोध के काव्य का कलापक्ष भी काफी समृद्ध है। परंतु बिंबात्मकता का अधिक सहारा लेने के कारण उनकी कविता कुछ स्थलों पर जटिल-सी हो गई है। वे अनेक प्रकार के कल्पना-चित्रों तथा फैटसियों का निर्माण करते हुए चलते हैं।

वस्तुतः मुक्तिबोध ने साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है। यदि इसमें संस्कृत के तत्सम् प्रधान शब्द हैं तो अंग्रेज़ी, उर्दू, फारसी के शब्द भी हैं। उनकी कविता प्रतीकों के लिए प्रसिद्ध है। उनके प्रतीक पारंपरिक भी हैं और नवीन भी। मुक्तिबोध ने अपनी काव्य भाषा में उपमा, मानवीकरण, रूपक, उत्प्रेक्षा तथा अनुप्रास आदि अलंकारों का स्वाभाविक रूप से वर्णन किया है। कवि शमशेर सिंह बहादुर ने उनकी काव्य कला के बारे में सही ही लिखा है-“अद्भुत संकेतों भरी, जिज्ञासाओं से अस्थिर, कभी दूर से शोर मचाती, कभी कानों में चुपचाप राज़ की बातें कहती चलती है। हमारी बातें हमको सुनाती हैं। हम अपने को एकदम चकित होकर देखते हैं और पहले से अधिक पहचानने लगते हैं।”

सहर्ष स्वीकारा है कविता का सार

प्रश्न-
गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता कविवर मुक्तिबोध की एक उल्लेखनीय कविता है। यह उनकी काव्य-रचना ‘भूरी-भूरी खाक धूल’ में संकलित है। यहाँ कवि ने असीम सत्ता को अपनी प्रेरणा का स्रोत माना है। कवि स्वीकार करता हुआ कहता है कि उसे प्रकृति से जो सुख-दुःख, राग-विराग आदि प्राप्त हुए हैं, उन्हें उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया है। कवि की गरबीली गरीबी, गंभीर अनुभूतियाँ, विचार, चिंतन तथा भावनाओं की नदी-सब कुछ मौलिक हैं। कवि अपने ईश्वर से पूर्णतयाः संबद्ध है। वह कहता है कि वह उस अनंत सत्ता के स्नेह को अपने भीतर से जितना उड़ेलता है, उतना ही वह फिर से भर जाता है। कवि को लगता है कि उसके भीतर कोई मधुर स्नेह रूपी झरना है। उसे ऐसा अनुभव होता है कि परमात्मा चाँद की तरह उसके हृदय को प्रकाशित करता रहता है।

कवि अपनी उस अनंत सत्ता से उसको भूलने की कठोर सजा पाना चाहता है। कवि के लिए उजाला असहनीय है। उसकी आत्मा कमजोर होने के कारण छटपटाती रहती है। वह धएँ के बादलों में लापता हो जाना चाहता है। कवि को आभास है कि उसके लापता होने पर ही उसे उस असीम सत्ता का सहारा प्राप्त होगा। अंत में कवि कहता है कि उसके पास जो कुछ भी है वह उस अनंत सत्ता को बहुत प्रिय है।

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HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 4 कैमरे में बंद अपाहिज

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 4 कैमरे में बंद अपाहिज Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 4 कैमरे में बंद अपाहिज

HBSE 12th Class Hindi कैमरे में बंद अपाहिज Textbook Questions and Answers

कविता के साथ

प्रश्न 1.
कविता में कुछ पंक्तियाँ कोष्ठकों में रखी गई हैं आपकी समझ से इसका क्या औचित्य है?
उत्तर:
कोष्ठकों में रखी गई पंक्तियाँ अलग-अलग लोगों को संबोधित की गई हैं जैसे
(क) कैमरामैन का कथन –
(1) कैमरा दिखाओ इसे बड़ा-बड़ा

(2) कैमरा

  • बस करो
  • नहीं हुआ
  • रहने दो
  • परदे पर वक्त की कीमत है।

(ख) दर्शकों को कही गई पंक्तियाँ-

  • हम खुद इशारे से बताएंगे कि क्या ऐसा?
  • यह प्रश्न पूछा नहीं जाएगा।

(ग) स्वयं से कथन –

  • यह अवसर खो देंगे?
  • बस थोड़ी कसर रह गई।

ये पंक्तियाँ अलग-अलग लोगों को संबोधित की गई हैं जिससे यह कविता रोचक बन गई है तथा इसमें नाटकीयता उत्पन्न हो गई है।

प्रश्न 2.
कैमरे में बंद अपाहिज करुणा के मुखौटे में छिपी क्रूरता की कविता है-विचार कीजिए।
उत्तर:
कैमरे में बंद अपाहिज’ कार्यक्रम में जिस करुणा को दिखाने का प्रयास किया गया है, वह कृत्रिम है। इसका उद्देश्य चैनल के लिए एक लोकप्रिय तथा बिकाऊ कार्यक्रम तैयार करना है। कार्यक्रम-संचालक अपाहिज से बड़े बेहूदे तथा अस्वाभाविक प्रश्न पूछता है जिसमें करुणा लेशमात्र है, परंतु क्रूरता-ही-क्रूरता है। उदाहरण के रूप में अपाहिज से यह बार-बार कहना कि वह अपने दुख के बारे में जल्दी-जल्दी बताए, नहीं तो वह इस अवसर को खो देगा। नीचे कुछ पंक्तियाँ इसी बात को प्रमाणित करती हैं-

  1. तो आप क्या अपाहिज हैं?
  2. क्यों अपाहिज हैं?
  3. अपाहिजपन तो दुख देता होगा?
  4. दुख क्या है?
  5. अपाहिज होकर कैसा लगता है?

प्रश्न 3.
हम समर्थ शक्तिवान और हम एक दुर्बल को लाएँगे पंक्ति के माध्यम से कवि ने क्या व्यंग्य किया है?
उत्तर:
‘हम समर्थ शक्तिवान’ के माध्यम से कवि ने यह व्यंग्य किया है कि दूरदर्शनकर्मी स्वयं को शक्तिशाली और समर्थ समझते हैं। वे सोचते हैं कि वे चाहें तो किसी को भी ऊपर उठा सकते हैं और किसी को भी नीचे गिरा सकते हैं। वस्तुतः आज के समाचार चैनलों पर काम करने वाले व्यक्तियों की यही मानसिकता देखी जा सकती है। इसका एक अर्थ यह भी हो सकता है कि जो व्यक्ति अपंग नहीं हैं, वह अपाहिजों की तुलना में अधिक समर्थ व शक्तिशाली होता है।

‘हम दुर्बल को लाएँगे’ के माध्यम से यह व्यंग्य किया है कि दूरदर्शनकर्मी किसी अपंग व्यक्ति को दूरदर्शन के पर्दे पर दिखाकर उसकी मजबूरी का फायदा उठाने का प्रयास करते हैं। कभी-कभी तो लगता है कि वे दर्शकों के सामने अपाहिज व्यक्ति का मज़ाक उड़ा रहे हैं और उसकी व्यथा को द्विगुणित कर रहे हैं। उनके मन में न तो अपाहिज के प्रति सहानुभूति है और न ही वह उसकी सहायता करना चाहते हैं। वे तो केवल एक असहाय व्यक्ति को पर्दे पर दिखाकर धन कमाना चाहते हैं।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 4 कैमरे में बंद अपाहिज

प्रश्न 4.
यदि शारीरिक रूप से चुनौती का सामना कर रहे व्यक्ति और दर्शक, दोनों एक साथ रोने लगेंगे, तो उससे प्रश्नकर्ता का कौन-सा उद्देश्य पूरा होगा?
उत्तर:
यदि कोई अपाहिज और दर्शक एक साथ रोने लगेंगे तो प्रश्नकर्ता को यह लगने लगेगा कि उसका कार्यक्रम सफल रहा। क्योंकि उसने अपने कार्यक्रम में करुणा की स्थिति को उत्पन्न कर दिया है। वह यह चाहता है कि अपंग व्यक्ति का दुख-दर्द छलक कर दर्शकों के सामने आए और दर्शकों की आँखें भी नम हो जाएँ। ऐसा करने से उसका कार्यक्रम लोकप्रिय होगा। उसे खूब वाह-वाही मिलेगी और मीडिया को अधिक-से-अधिक विज्ञापन मिलेंगे जिससे उसकी अच्छी कमाई हो सकेगी।

प्रश्न 5.
परदे पर वक्त की कीमत है कहकर कवि ने पूरे साक्षात्कार के प्रति अपना नज़रिया किस रूप में रखा है?
उत्तर:
‘परदे पर वक्त की कीमत है’ इस कथन से कार्यक्रम-संचालक की सच्चाई का पता चल जाता है। उसके लिए कार्यक्रम दिखाने के बदले में मिलने वाले पैसे का अधिक महत्त्व है। दूरदर्शन पर एक-एक मिनट से भारी आय होती है। दूरदर्शनकर्मी धन कमाने के लिए ही दुखियों तथा अपंगों के दुख को दिखाने का प्रयास करते हैं। कवि यहाँ पर यह व्यंग्य करना चाहता है कि दूरदर्शनकर्मी व्यवसायी लोग हैं। उनके मन में दुखी लोगों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं है। पर्दे पर दिखाई जा रही करुणा तथा वेदना से उन्हें कोई सरोकार नहीं है। उनका एकमात्र लक्ष्य अधिक धन कमाना और अपने व्यवसाय को चमकाना है।

कविता के आसपास

प्रश्न 1.
यदि आपको शारीरिक चुनौती का सामना कर रहे किसी मित्र का परिचय लोगों से करवाना हो तो किन शब्दों में करवाएँगे?
उत्तर:
मैं शारीरिक चुनौती का सामना कर रहे अपने मित्र का परिचय लोगों को इस प्रकार दूँगा ये मेरे घनिष्ठ मित्र मोहनलाल शर्मा हैं। ये एक प्रतिभा सम्पन्न विद्यार्थी है और हमेशा कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करते हैं। एक सड़क-दुर्घटना के कारण इनका बायां हाथ कट गया था। इसके बावजूद भी ये हमेशा बड़े परिश्रम से काम करते हैं तथा अन्य विद्यार्थी इनका सहयोग प्राप्त करते हैं। ये हम सब को निःशुल्क पढ़ाते भी हैं और हर प्रकार से हमारी सहायता करते हैं। इन्हें अपने बाएं हाथ की कमी कभी नहीं खलती।

प्रश्न 2.
सामाजिक उद्देश्य से युक्त ऐसे कार्यक्रम को देखकर आपको कैसा लगेगा? अपने विचार संक्षेप में लिखें।
उत्तर:
सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम दिखाने का बहाना करके जो दूरदर्शनकर्मी लोगों की वाह-वाही लूटना चाहते हैं और धन कमाना चाहते हैं, मुझे उनकी बुद्धि पर तरस आता है। मेरा विचार है कि लोगों को इस प्रकार की मानसिकता का विरोध करना चाहिए और सच्चे हृदय से अपाहिजों की सहायता करनी चाहिए। इस प्रकार के कार्यक्रम दिखाने वाले चैनल को मैं देखना नहीं चाहूँगा।

प्रश्न 3.
यदि आप इस कार्यक्रम के दर्शक हैं तो टी०वी० पर ऐसे सामाजिक कार्यक्रम को देखकर एक पत्र में अपनी प्रतिक्रिया दूरदर्शन निदेशक को भेजें।
उत्तर:
सेवा में
निदेशक,
दूरदर्शन, प्रसार समिति
नई दिल्ली।
महोदय,
मैंने कल दूरदर्शन पर प्रसारित ‘पीड़ा’ नामक सामाजिक कार्यक्रम देखा। मुझे यह सब देखकर बड़ी निराशा हुई। कार्यक्रम-संचालक ने इस कार्यक्रम द्वारा अपंगों, अपाहिजों की करुणा को उभारने के लिए उनसे बड़े ही बेहूदे, बेतुके प्रश्न पूछे। ऐसा लगा कि मानों वह अपाहिजों तथा लूले-लंगड़ों का मज़ाक उड़ा रहा था। मैं समझती हूँ कि इस प्रकार के कार्यक्रम दिखाने से हमारे मन में अपाहिजों के प्रति करुणा की भावना उत्पन्न नहीं होती अपितु दूरदर्शनकर्मी के प्रति घृणा की भावना उत्पन्न होती है। कृपया अपने कार्यक्रम की प्रस्तुति का सही ढंग अपनाएँ। यदि किसी अपाहिज को पर्दे पर प्रस्तुत भी किया जाता है तो उसके दुख-दर्द के साथ उसकी उपलब्धियों की चर्चा भी की जानी चाहिए। यदि अपाहिजों की समस्या को सचमुच प्रस्तुत करना चाहते हैं तो किसी मनोवैज्ञानिक की सहायता लें। आशा है कि आप अपने कार्यक्रम के प्रस्तुतीकरण में आवश्यक सुधार करेंगे।
भवदीय
एकता खन्ना

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प्रश्न 4.
नीचे दिए गए खबर के अंश को पढ़िए और बिहार के इस बुधिया से एक काल्पनिक साक्षात्कार कीजिए
उम्र पाँच साल, संपूर्ण रूप से विकलांग और दौड़ गया पाँच किलोमीटर। सुनने में थोड़ा अजीब लगता है, लेकिन यह कारनामा कर दिखाया है पवन ने। बिहारी बुधिया के नाम से प्रसिद्ध पवन जन्म से ही विकलांग है। इसके दोनों हाथों का पुलवा नहीं है, जबकि पैर में सिर्फ एड़ी ही है।
पवन ने रविवार को पटना के कारगिल चौक से सुबह 8.40 पर दौड़ना शुरू किया। डाकबंगला रोड, तारामंडल और आर ब्लाक होते हुए पवन का सफ़र एक घंटे बाद शहीद स्मारक पर जाकर खत्म हुआ। पवन द्वारा तय की गई इस दूरी के दौरान ‘उम्मीद स्कूल’ के तकरीबन तीन सौ बच्चे साथ दौड़ कर उसका हौसला बढ़ा रहे थे। सड़क किनारे खड़े दर्शक यह देखकर हतप्रभ थे कि किस तरह एक विकलांग बच्चा जोश एवं उत्साह के साथ दौड़ता चला जा रहा है। जहानाबाद जिले का रहने वाला पवन नवरसना एकेडमी, बेउर में कक्षा एक का छात्र है। असल में पवन का सपना उड़ीसा के बुधिया जैसा करतब दिखाने का है। कुछ माह पूर्व बुधिया 65 किलोमीटर दौड़ चुका है। लेकिन बुधिया पूरी तरह से स्वस्थ है जबकि पवन पूरी तरह से विकलांग। पवन का सपना कश्मीर से कन्याकुमारी तक की दूरी पैदल तय करने का है। -9 अक्तूबर, 2006 हिंदुस्तान से साभार
उत्तर:
काल्पनिक साक्षात्कार में बुधिया से निम्नलिखित प्रश्न पूछे जा सकते हैं-

  1. आपका नाम क्या है?
  2. आप कहाँ के निवासी हैं?
  3. र्वप्रथम आपने दौड़ना कब शुरू किया?
  4. क्या आप जन्म से विकलांग हैं?
  5. आज आपने किस स्थान से दौड़ना आरंभ किया?
  6. आपकी यह दौड़ कितने घंटे बाद समाप्त हुई?
  7. आप किस कक्षा में पढ़ते हैं?
  8. आपको दौड़ने की प्रेरणा किससे मिली?
  9. पकी दौड़ कहाँ जाकर समाप्त हुई?
  10. आप बिहार के किस जनपद के रहने वाले हैं?
  11. आपके साथ लगभग तीन सौ बच्चे क्यों भाग रहे थे?
  12. भविष्य में आपका क्या सपना है?

HBSE 12th Class Hindi कैमरे में बंद अपाहिज Important Questions and Answers

सराहना संबंधी प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों में काव्य-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
हम दूरदर्शन पर बोलेंगे
हम समर्थ शक्तिवान
हम एक दुर्बल को लाएँगे
एक बंद कमरे में
उससे पूछेगे तो आप क्या अपाहिज हैं?
तो आप क्यों अपाहिज हैं?
आपका अपाहिजपन तो दुख देता होगा
देता है?
उत्तर:

  1. इसमें कवि ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि दूरदर्शनकर्मी समर्थ और शक्तिवान होते हैं। वे किसी असहाय और दुर्बल व्यक्ति की पीड़ा दिखाकर अपने कार्यक्रम को रोचक बनाना चाहते हैं और धन कमाना चाहते हैं।
  2. कवि ने दूरदर्शनकर्मियों की हृदयहीनता पर प्रकाश डाला है।
  3. ‘तो आप क्यों अपाहिज हैं?’ में प्रश्नालंकार का प्रयोग हुआ है।
  4. सहज, सरल तथा बोधगम्य हिंदी भाषा का प्रयोग है।
  5. शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  6. मुक्त छंद का प्रयोग है तथा संबोधनात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों में काव्य-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए
आप जानते हैं कि कार्यक्रम रोचक बनाने के वास्ते
हम पूछ-पूछकर उसको रुला देंगे
इंतजार करते हैं आप भी उसके रो पड़ने का
करते हैं?
(यह प्रश्न पूछा नहीं जाएगा)
उत्तर:

  1. यहाँ कवि ने दूरदर्शन के कार्यक्रम-संचालकों की कार्यप्रणाली पर करारा व्यंग्य किया है।
  2. कोष्ठकों में अंकित वाक्यों का प्रयोग एक अभिनव प्रयोग है।
  3. ‘पूछ-पूछकर’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  4. सहज, सरल एवं सामान्य हिंदी भाषा का प्रयोग है।
  5. शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  6. मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है तथा संबोधनात्मक शैली है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों में काव्य-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए-
फिर हम परदे पर दिखलाएँगे।
फूली हुई आँख की एक बड़ी तसवीर
बहुत बड़ी तसवीर
और उसके होंठों पर एक कसमसाहट भी।
उत्तर:

  1. यहाँ कवि ने स्पष्ट किया है कि दूरदर्शनकर्मी पर्दे पर अपाहिज की फूली आँख की बहुत बड़ी तसवीर दिखाकर अपने कार्यक्रम को रोचक बनाना चाहते हैं तथा धन कमाना चाहते हैं।
  2. कवि ने कार्यक्रम-संचालकों की व्यवसायी प्रवृत्ति पर करारा व्यंग्य किया है।
  3. ‘बहुत बड़ी तसवीर’ में अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग है।
  4. सहज, सरल तथा सामान्य हिंदी भाषा का प्रयोग है।
  5. शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  6. मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है।

विषय-वस्तु पर आधारित लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता में कवि रघुवीर सहाय ने दूरदर्शनकर्मियों की व्यवसायी प्रवृत्ति पर करारा व्यंग्य किया है। दूरदर्शनकर्मी दूरदर्शन के कार्यक्रमों द्वारा अपाहिजों के दुख-दर्द को बेचते हैं। उनके मन में न तो अपाहिजों के प्रति सहानुभूति है और न ही संवेदना। वे अपने कार्यक्रम को रोचक बनाने के लिए अपाहिजों से बेतुके प्रश्न पूछते हैं। कवि दूरदर्शनकर्मियों की इस मानसिकता का विरोध करता है।

प्रश्न 2.
दूरदर्शनकर्मी कैमरे के सामने अपाहिज व्यक्ति को क्यों लाते हैं?
उत्तर:
दूरदर्शनकर्मी इस कथ्य से भली प्रकार परिचित हैं कि प्रायः लोग किसी दुखी व्यक्ति को देखकर स्वयं भी दुखी हो जाते हैं। आम आदमी अधिक संवेदनशील होता है। दूरदर्शन वाले आम लोगों की संवेदना के माध्यम से धन कमाना चाहते हैं।

प्रश्न 3.
आपकी दृष्टि में अपाहिज से पूछे जाने वाले प्रश्न बेहूदे कैसे हैं?
उत्तर:
दूरदर्शनकर्मी द्वारा अपाहिज से ये प्रश्न पूछना कि क्या आप अपाहिज हैं? अथवा आप क्यों अपाहिज हैं? इससे आपको दुःख तो होता होगा? ये प्रश्न बेहूदे हैं। इनका कोई उत्तर नहीं है। दर्शक भी देख रहे हैं कि वह व्यक्ति अपाहिज है और किसी-न-किसी दुर्घटना के कारण वह अपाहिज हुआ होगा। इस प्रकार के बेहूदे तथा बेतुके प्रश्न पूछकर अपाहिज व्यक्ति का अपमान करना है। उससे यह पूछना कि वह अपाहिज क्यों है? सचमुच उसके प्रति किया गया क्रूर मज़ाक है और यह पूछना कि आपका अपाहिजपन आपको दुख तो देता होगा, सचमुच उसके जले पर नमक छिड़कने जैसा है। इस प्रकार के प्रश्न अपाहिज से नहीं पूछे जाने चाहिएँ, बल्कि उससे यह पूछा जाना चाहिए कि वह अपने दुख-दर्द का किस प्रकार सामना कर रहा है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 4 कैमरे में बंद अपाहिज

प्रश्न 4.
अपाहिज व्यक्ति अपने दुख को छिपाना चाहता है अथवा दिखाना चाहता है। सोचकर बताएँ।
उत्तर:
कोई भी अपाहिज व्यक्ति अपनी अपंगता को दिखाना नहीं चाहता और न ही उसकी चर्चा करना चाहता है। यदि हम अंधे व्यक्ति को अंधा कहते हैं तो वह हमारी बातों का बुरा मान जाता है। कुबड़े को कुबड़ा कहना या गंजे को गंजा कहना सर्वथा अनुचित है, अपाहिज व्यक्ति यही चाहता है कि लोग उसके साथ बराबरी का व्यवहार करें और समाज उसे ऐसा रोजगार दे जिससे वह अपने व अपने परिवार का लालन-पालन कर सके।

प्रश्न 5.
टेलीविजन कैमरे में बंद अपाहिज के माध्यम से कार्यक्रम को कैसे रोचक बनाया गया?
उत्तर:
टेलीविजन वाले लोग अपने कार्यक्रम को रोचक बनाना चाहते हैं। इसलिए वे जरूरी समझते हैं कि हम अपाहिज की पीड़ा को अच्छी तरह से समझें और लोगों को खुलकर बताएँ। मीडिया के कर्मचारियों को विकलांग व्यक्ति की पीड़ा और कष्ट मात्र एक कार्यक्रम नज़र आता है। इसलिए वे उससे इतने प्रश्न पूछते हैं कि वह रोने लगता है। इस प्रकार दूरदर्शन के लोग विकलांग के रो पड़ने की प्रतीक्षा करते हैं। दर्शक भी उसकी पीड़ा को ही देखना चाहते हैं।

प्रश्न 6.
कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता में समर्थ तथा शक्तिवान विशेषण किसके लिए प्रयुक्त किए गए हैं और क्यों?
उत्तर:
यहाँ कवि ने समर्थ तथा शक्तिवान विशेषण दूरदर्शनकर्मियों के लिए प्रयुक्त किए हैं। आज हमारा मीडिया अत्यधिक शक्तिशाली हो चुका है। बड़े-से-बड़े राजनीतिज्ञ भी इससे डरते हैं। दूरदर्शनकर्मी अपने चैनल द्वारा किसी भी व्यक्ति पर कीचड़ उछाल सकते हैं। ये लोग दुर्बल व्यक्ति को भी बलवान बना सकते हैं। यही नहीं, कभी-कभी तो ये लोग न्यायालय की भूमिका निभाने लगते हैं और मनमाने ढंग से किसी बेकसूर को भी अपराधी सिद्ध कर देते हैं।

प्रश्न 7.
अपाहिज के होंठों की कसमसाहट को दिखाने का लक्ष्य क्या है?
उत्तर:
सर्वप्रथम कार्यक्रम-संचालक अपाहिज से तरह-तरह के बेतुके प्रश्न पूछता है। तत्पश्चात् उसके होंठों की पीड़ा को दिखा कर दर्शक को यह बताने की कोशिश करता है कि वह अपनी अपंगता के कारण दुखी एवं निराश है। कार्यक्रम-संचालक ऐसा करके अपाहिज के लिए दर्शकों की सहानुभूति प्राप्त करना चाहता है तथा अपने लिए वाह-वाही तथा धन अर्जित करना चाहता है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. रघुवीर सहाय का जन्म कहाँ हुआ?
(A) सहारनपुर
(B) लखनऊ
(C) कानपुर
(D) इलाहाबाद
उत्तर:
(B) लखनऊ

2. रघुवीर सहाय का जन्म कब हुआ?
(A) 4 जनवरी, 1938
(B) 2 मार्च, 1937
(C) 9 दिसंबर, 1929
(D) 6 दिसम्बर, 1928
उत्तर:
(C) 9 दिसंबर, 1929

3. रघुवीर सहाय के पिता का नाम क्या था?
(A) राम सहाय
(B) कृष्ण सहाय
(C) मोहनदेव सहाय
(D) हरदेव सहाय
उत्तर:
(D) हरदेव सहाय

4. रघुवीर सहाय ने किस विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण की?
(A) आगरा विश्वविद्यालय
(B) लखनऊ विश्वविद्यालय
(C) कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
(D) दिल्ली विश्वविद्यालय
उत्तर:
(B) लखनऊ विश्वविद्यालय

5. रघुवीर सहाय ने किस वर्ष अंग्रेज़ी में स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण की?
(A) सन् 1951 में
(B) सन् 1957 में
(C) सन् 1954 में
(D) सन् 1953 में
उत्तर:
(A) सन् 1951 में

6. दिल्ली आकर रघुवीर सहाय किस पत्रिका के सहायक संपादक बन गए?
(A) दिनमान
(B) प्रतीक
(C) धर्मयुग
(D) आलोचना
उत्तर:
(B) प्रतीक

7. सन् 1949 में रघुवीर सहाय किस दैनिक समाचार-पत्र को अपनी सेवाएँ देने लगे?
(A) नवभारत
(B) दैनिक हिंदुस्तान
(C) नवयुग
(D) दैनिक नवजीवन
उत्तर:
(D) दैनिक नवजीवन

8. पहली बार रघुवीर सहाय ने आकाशवाणी को कब-से-कब तक सेवाएँ दी?
(A) 1953 से 1957 तक
(B) 1951 से 1953 तक
(C) 1954 से 1958 तक
(D) 1949 से 1953 तक
उत्तर:
(A) 1953 से 1957 तक

9. रघुवीर सहाय किस पत्रिका के संपादक मंडल के सदस्य बने?
(A) प्रतीक
(B) कल्पना
(C) नवजीवन
(D) धर्मयुग
उत्तर:
(B) कल्पना

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10. रघुवीर सहाय पुनः आकाशवाणी से कब जुड़े?
(A) सन् 1960 में
(B) सन् 1962 में
(C) सन् 1961 में
(D) सन् 1963 में
उत्तर:
(C) सन् 1961 में

11. सन् 1967 में रघुवीर सहाय किस प्रमुख पत्रिका को अपनी सेवाएँ देने लगे?
(A) धर्मयुग
(B) दैनिक हिंदुस्तान
(C) नवजीवन
(D) दिनमान
उत्तर:
(D) दिनमान

12. रघुवीर सहाय का निधन कब हुआ?
(A) सन् 1991 में
(B) सन् 1989 में
(C) सन् 1990 में
(D) सन् 1992 में
उत्तर:
(C) सन् 1990 में

13. रघुवीर सहाय ने किस काव्य-संग्रह के प्रकाशन द्वारा साहित्य में प्रवेश किया?
(A) प्रथम तार सप्तक द्वारा
(B) दूसरा सप्तक द्वारा
(C) दिनमान द्वारा
(D) नवजीवन द्वारा
उत्तर:
(B) दूसरा सप्तक द्वारा

14. ‘दूसरा सप्तक’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1951 में
(B) सन् 1949 में
(C) सन् 1953 में
(D) सन् 1950 में
उत्तर:
(A) सन् 1951 में

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15. ‘सीढ़ियों पर धूप में काव्य-संग्रह के रचयिता हैं
(A) भारत भूषण अग्रवाल
(B) केदारनाथ अग्रवाल
(C) रघुवीर सहाय
(D) आलोक धन्वा
उत्तर:
(C) रघुवीर सहाय

16. ‘सीढ़ियों पर धूप में’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1960 में
(B) सन् 1962 में
(C) सन् 1959 में
(D) सन् 1963 में
उत्तर:
(A) सन् 1960 में

17. ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ काव्य-संग्रह का प्रकाशन वर्ष कौन-सा है?
(A) सन् 1962
(B) सन् 1965
(C) सन् 1966
(D) सन् 1967
उत्तर:
(D) सन् 1967

18. ‘हँसो-हँसो जल्दी हँसो’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1971 में
(B) सन् 1973 में
(C) सन् 1975 में
(D) सन् 1974 में
उत्तर:
(C) सन् 1975 में

19. ‘लोग भूल गए हैं’ के रचयिता हैं
(A) मुक्ति बोध
(B) रघुवीर सहाय
(C) केदारनाथ अग्रवाल
(D) कुँवर नारायण
उत्तर:
(B) रघुवीर सहाय

20. ‘लोग भूल गए हैं’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1982 में
(B) सन् 1981 में
(C) सन् 1979 में
(D) सन् 1980 में
उत्तर:
(A) सन् 1982 में

21. ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1992 में
(B) सन् 1994 में
(C) सन् 1993 में
(D) सन् 1995 में
उत्तर:
(B) सन् 1994 में

22. रघुवीर सहाय का संपूर्ण साहित्य किस शीर्षक से प्रकाशित हुआ है?
(A) रघुवीर साहित्य
(B) रघुवीर काव्य
(C) रघुवीर का नया साहित्य
(D) रघुवीर सहाय रचनावली
उत्तर:
(D) रघुवीर सहाय रचनावली

23. ‘कुछ पते, कुछ चिट्ठियाँ’ के रचयिता हैं-
(A) निराला
(B) कुँवर नारायण
(C) रघुवीर सहाय
(D) हरिवंश राय बच्चन
उत्तर:
(C) रघुवीर सहाय

24. कार्यक्रम कैसा होना चाहिए?
(A) अद्भुत
(B) दिव्य
(C) रोचक
(D) अलौकिक
उत्तर:
(C) रोचक

25. कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता में किस पर व्यंग्य किया गया है?
(A) व्यवस्था पर
(B) दूरदर्शन वालों पर
(C) दर्शक पर
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) दूरदर्शन वालों पर

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26. ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता में किस शैली का प्रयोग हुआ है?
(A) नाटकीय शैली
(B) वर्णनात्मक शैली
(C) विवेचना शैली
(D) प्रतीकात्मक शैली
उत्तर:
(A) नाटकीय शैली

27. दूरदर्शन वाले बंद कमरे में किसे लाए थे?
(A) सबल को
(B) दुर्बल को
(C) बीमार को
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) दुर्बल को

28. ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता में दूरदर्शनकर्मियों की किस प्रवृत्ति का उद्घाटन किया गया है?
(A) संवेदनशीलता का
(B) दयालुता का
(C) दुर्बलता का
(D) संवेदनहीनता तथा क्रूरता का
उत्तर:
(D) संवेदनहीनता तथा क्रूरता का

29. ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ करुणा के मुखौटे में छिपी किसकी कविता है?
(A) दया की
(B) परोपकार की
(C) क्रूरता की
(D) वात्सल्य की
उत्तर:
(C) क्रूरता की

30. ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता में किस प्रकार की भाषा का प्रयोग हुआ है?
(A) संस्कृतनिष्ठ भाषा का
(B) सहज, सरल या सामान्य भाषा का
(C) साहित्यिक ब्रज भाषा का
(D) साहित्यिक अवधी भाषा का
उत्तर:
(B) सहज, सरल या सामान्य भाषा का

31. अपाहिज के होंठों पर कैसे भाव दिखाई देते हैं?
(A) आशा के
(B) पीड़ा के
(C) कसमसाहट के
(D) उत्साह के
उत्तर:
(C) कसमसाहट के

32. ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता में कैमरा एक-साथ क्या दिखाना चाहता है?
(A) नए और पुराने कार्यक्रम
(B) दर्शक और अपाहिज रोते हुए
(C) सामान्य व्यक्ति की दुर्दशा और खशी
(D) समाचार और खेल
उत्तर:
(B) दर्शक और अपाहिज रोते हुए।

33. ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता में ‘समर्थ शक्तिवान’ किसे कहा गया है?
(A) अपाहिज को
(B) कैमरामैन को
(C) दूरदर्शन वालों को
(D) निर्देशक को
उत्तर:
(C) दूरदर्शन वालों को

34. रघुवीर सहाय ने अपनी कविता ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ में किसे रेखांकित करने का तरीका अपनाया है?
(A) क्रूरता
(B) संवेदनहीनता
(C) प्रताड़ना
(D) हताशा
उत्तर:
(A) क्रूरता

कैमरे में बंद अपाहिज पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] हम दूरदर्शन पर बोलेंगे
हम समर्थ शक्तिवान
हम एक दुर्बल को लाएँगे
एक बंद कमरे में
उससे पूछेगे तो आप क्या अपाहिज हैं?
तो आप क्यों अपाहिज हैं?
आपका अपाहिजपन तो दुख देता होगा
देता है?
(कैमरा दिखाओ इसे बड़ा बड़ा)
हाँ तो बताइए आपका दुख क्या है
जल्दी बताइए वह दुख बताइए
बता नहीं पाएगा [पृष्ठ-23]

शब्दार्थ-समर्थ = शक्तिशाली। शक्तिवान = ताकतवर। दर्बल = कमजोर। अपाहिज = विकलांग।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ से अवतरित है। इसके कवि रघुवीर सहाय हैं। यह कविता उनके काव्य-संग्रह ‘लोग भूल गए हैं’ में से ली गई है। इस कविता में कवि ने दूरदर्शन कर्मियों की संवेदनहीनता तथा क्रूरता पर प्रकाश डाला है। इस पद्यांश में कवि दूरदर्शन के संचालक की क्रूरता का वर्णन करते हुए कहता है

व्याख्या-दूरदर्शनकर्मी स्वयं को समर्थ और शक्तिशाली समझते हैं, क्योंकि वे अपनी बात को सब लोगों तक पहुँचाने में समर्थ हैं। दूरदर्शन का संचालक अपने साथियों से कहता है कि हम स्टूडियो के बंद कमरे में एक कमजोर तथा मजबूर व्यक्ति को लेकर आएँगे। वह व्यक्ति एक विकलांग होगा जो अपनी आजीविका नहीं चला सकता। बंद कमरे में हम उससे पूछेगे कि क्या आप विकलांग हो? इससे पहले कि वह हमारे प्रश्न का उत्तर दे, इस पर हम एक और प्रश्न दाग देंगे कि आप विकलांग क्यों हुए? हमारा यह प्रश्न बेतुका होगा और वह अपाहिज कुछ समय तक चुप रहेगा। फिर से हम उसे कुरेदकर पूछेगे कि आपका विकलांग होना आपको दुख तो देता होगा। वह बेचारा इस पर भी चुप रहेगा। हम पुनः वही प्रश्न पूछेगे कि आपको अपाहिज होना क्या सचमुच दुख देता है? बताइए, क्या सचमुच आप विकलांग होने से दुखी हैं?

इस प्रश्न के साथ ही दूरदर्शन संचालक अपने साथी से कहेगा कि वह अपाहिज के दुखी चेहरे को और बड़ा करके दिखाए ताकि लोग उसके दुखी चेहरे को आसानी से व ध्यान से देख सकें। विकलांग को पुनः उत्तेजित करके पूछा जाएगा कि हाँ, उसे बताओ कि आपका दुख क्या है? समय बीता जा रहा है, हमें जल्दी से अपने दुख के बारे में बताओ। अन्ततः संचालक को लगेगा कि यह अपाहिज अपने दुख के बारे में कुछ नहीं बता सकता।

विशेष-

  1. प्रस्तुत पद्यांश में दूरदर्शनकर्मियों की संवेदनहीनता तथा हृदयहीन कार्य-शैली का यथार्थ वर्णन किया गया है।
  2. दूरदर्शन के चैनलों की बढ़ती स्पर्धा का वर्णन किया गया है जो अपाहिज की वेदना को कुरेदकर अपने कार्यक्रम को अधिक रोचक बनाना चाहते हैं।
  3. सहज, सरल तथा सामान्य भाषा का प्रयोग किया गया है।
  4. शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. संपूर्ण पद्य में प्रश्नालंकारों की छटा दर्शनीय है।
  6. नाटकीय शैली का सफल प्रयोग हुआ है।।
  7. मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 4 कैमरे में बंद अपाहिज

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस कविता के माध्यम से किस पर व्यंग्य किया गया है?
(ग) अपाहिज से पूछे गए प्रश्न क्या सिद्ध करते हैं?
(घ) समर्थ शक्तिवान लोग कौन हैं? और वे दूरदर्शन पर निर्बल को क्यों लाते हैं?
उत्तर:
(क) कवि का नाम-रघुवीर सहाय – कविता का नाम कैमरे में बंद अपाहिज।

(ख) इस कविता के माध्यम से दूरदर्शन कर्मियों की संवेदनहीनता और क्रूरता पर करारा व्यंग्य किया गया है। ये लोग अपने कार्यक्रम को आकर्षक और प्रभावशाली बनाने के लिए विकलांगों की पीड़ा से खिलवाड़ करते हैं तथा उनसे बेतुके सवाल पूछकर उनकी भावनाओं से खेलते हैं।

(ग) अपाहिज से पूछे गए प्रश्न यह सिद्ध करते हैं कि उनसे पूछे गए प्रश्न बेकार और व्यर्थ हैं तथा जो अपाहिजों को संवेदना प्राप्त करने के स्थान पर उनको पीड़ा पहुंचाते हैं।

(घ) समर्थ शक्तिवान लोग दूरदर्शन के संचालक हैं। वे विकलांगों तथा दुर्बलों की पीड़ाओं को दर्शक के सामने रखकर अपने कार्यक्रम को इसलिए रोमांचित बनाते हैं ताकि वे अधिक-से-अधिक पैसा कमा सकें।

[2]
सोचिए
बताइए
आपको अपाहिज होकर कैसा लगता है
कैसा
यानी कैसा लगता है
(हम खुद इशारे से बताएँगे कि क्या ऐसा?)
सोचिए
बताइए
थोड़ी कोशिश करिए
(यह अवसर खो देंगे?)
आप जानते हैं कि कार्यक्रम रोचक बनाने के वास्ते
हम पूछ-पूछकर उसको रुला देंगे।
इंतज़ार करते हैं आप भी उसके रो पड़ने का
करते हैं?
(यह प्रश्न नहीं पूछा जाएगा) [पृष्ठ 23-24]

शब्दार्थ-अपाहिज = विकलांग। यानी = अर्थात् । अवसर = मौका। रोचक = दिलचस्प। इंतज़ार = प्रतीक्षा।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ से अवतरित है। इसके कवि रघुवीर सहाय हैं। यह कविता उनके काव्य-संग्रह ‘लोग भूल गए हैं। में से ली गई है। इस पद्य में कवि उस स्थिति का वर्णन करता है जब कार्यक्रम संचालक अपने कार्यक्रम को रोचक बनाने के लिए अपाहिज से बेतुके सवाल पूछता है।

व्याख्या-कार्यक्रम-संचालक अपाहिज से पूछता है कि आप अच्छी प्रकार सोचकर हमें बताइए कि आपको विकलांग होना कैसा लगता है? अर्थात् क्या आपको विकलांग होने का दुख है, यदि है तो यह कैसा दुख है? आप सोचकर दर्शकों को बताइए कि आपको कितना दुख है और यह कितना बुरा लगता है। इस पर विकलांग व्यक्ति चुप रह जाता है। वह कुछ बोल नहीं पाता। वह मन-ही-मन बड़ा दुखी है। तब कार्यक्रम संचालक बेहूदे इशारे करके पूछता है कि आपका दुख कैसा है? फिर वह कहता है कि आप तनिक अच्छी तरह सोचिए, सोचने की कोशिश कीजिए तथा सोचकर हमें बताइए कि आपका दुख कैसा है? यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो यह मौका आपके हाथ से निकल जाएगा।

कार्यक्रम-संचालक पुनः कहता है कि हमें तो अपने कार्यक्रम को रोचक बनाना है। इसलिए यह जरूरी है कि हम अपाहिज की पीड़ा को अच्छी तरह समझें और लोगों को खुलकर बताएँ। इसलिए हम उससे इतने प्रश्न पूछेगे कि वह रोने लगेगा। इस प्रकार दूरदर्शन के व्यक्ति विकलांग व्यक्ति के रो पड़ने की प्रतीक्षा करते हैं। वे उस क्षण का इंतज़ार करते हैं जब अपाहिज अपनी पीड़ा बताते-बताते रो पड़े, क्योंकि दर्शक भी यही सब देखना चाहते हैं।

विशेष-

  1. इस पद्य में कवि ने दूरदर्शनकर्मियों की हृदयहीनता तथा क्रूरता का यथार्थ वर्णन किया है।
  2. दूरदर्शन के चैनलों की बढ़ती प्रतिस्पर्धा का वर्णन किया है जो विकलांगों से बेतुके प्रश्न पूछकर अपने कार्यक्रम को रोचक बनाना चाहते हैं।
  3. सहज, सरल तथा सामान्य भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  4. शब्द-योजना सटीक तथा भावानुकूल है।
  5. संपूर्ण पद्य में प्रश्नालंकारों का सफल प्रयोग किया गया है।
  6. मुक्त छंद का प्रयोग है तथा प्रसाद गुण है।
  7. कोष्ठकों में वाक्यों का प्रयोग करना एक अभिनव प्रयोग है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) यह कविता कवि के किस काव्य-संग्रह में संकलित है?
(ख) कार्यक्रम संचालक अपाहिजों के दुख को बार-बार प्रश्न पूछकर गंभीर क्यों बनाना चाहता है?
(ग) कार्यक्रम संचालक श्रोताओं को क्या विश्वास दिलाता है।
(घ) अपाहिजों के कार्यक्रम में दर्शक किस बात की प्रतीक्षा करते हैं?
(ङ) इस पद्यांश में कवि ने दूरदर्शन के संचालकों पर क्या व्यंग्य किया है?
उत्तर:
(क) प्रस्तुत कविता रघुवीर सहाय के लोग भूल गए हैं’ काव्य-संग्रह से संकलित है।

(ख) कार्यक्रम संचालक अपाहिज के दुखों के बारे में प्रश्न पूछकर उनके दुख को इसलिए गंभीर बनाना चाहता है ताकि वह अपने कार्यक्रमों को अधिक रोचक बना सके और कार्यक्रम द्वारा अधिकाधिक धन कमा सके।

(ग) कार्यक्रम का संचालक श्रोताओं को यह विश्वास दिलाता है कि विकलांग से इस प्रकार के प्रश्न पूछेगा कि वह अपनी पीड़ा को याद करके रोने लगेगा।

(ङ) इस पद्यांश के द्वारा कवि ने दूरदर्शन के कार्यक्रम-संचालकों की कार्य-शैली पर करारा व्यंग्य किया है। उनके मन में अपाहिजों के प्रति कोई संवेदनशीलता नहीं है। वे तो अपाहिजों से तरह-तरह के बेतुके प्रश्न पूछकर अपने कार्यक्रम को रोचक बनाना चाहते हैं ताकि वे अधिकाधिक धन प्राप्त कर सकें और लोकप्रियता अर्जित कर सकें।

[3] फिर हम परदे पर दिखलाएँगे
फूली हुई आँख की एक बड़ी तसवीर
बहुत बड़ी तसवीर
और उसके होंठों पर एक कसमसाहट भी
(आशा है आप उसे उसकी अपंगता की पीड़ा मानेंगे)
एक और कोशिश
दर्शक
धीरज रखिए
देखिए
हमें दोनों एक संग रुलाने हैं
आप और वह दोनों
(कैमरा
बस करो
नहीं हुआ
रहने दो
परदे पर वक्त की कीमत है)
अब मुसकुराएँगे हम आप देख रहे थे सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम (बस थोड़ी ही कसर रह गई) धन्यवाद। [पृष्ठ 24-25]

शब्दार्थ-कसमसाहट = पीड़ा, छटपटाहट। अपंगता = अपाहिज होना। धीरज = धैर्य। संग = साथ। वक्त = समय। सामाजिक उद्देश्य = समाज को बेहतर बनाने का लक्ष्य । युक्त = जुड़ा हुआ। कसर = कमी।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्य हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ से अवतरित है। इसके कवि रघुवीर सहाय हैं। यह कविता उनके काव्य-संग्रह ‘लोग भूल गए हैं’ में से ली गई है। इस पद्यांश में कार्यक्रम-संचालक अपाहिज की पीड़ा और व्यथा को उभारकर दर्शकों को दिखाने का प्रयास करता है। इस संदर्भ में कवि कहता है

व्याख्या-पहले तो कार्यक्रम-संचालक अपाहिज व्यक्ति से तरह-तरह के प्रश्न पूछकर उसकी पीड़ा से दर्शकों को अवगत कराना चाहते हैं। बाद में वे दूरदर्शन के पर्दे पर अपाहिज की सूजी हुई आँख की बहुत बड़ी तस्वीर दिखाने का प्रयास करते हैं। वे वस्तुतः अपाहिज की पीड़ा को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना चाहते हैं और वे उसके होंठों पर विद्यमान मजबूरी और छटपटाहट को भी उभारकर दिखाना चाहते हैं। उनका लक्ष्य होता है कि दर्शक अपंग व्यक्ति की पीड़ा को समझें। इसके बाद संचालक कहते हैं कि हम एक और कोशिश करके देखते हैं। वे दर्शकों से धैर्य रखने की अपील करते हैं।

कार्यक्रम-संचालक कहते हैं कि हमें अपाहिज के दर्द को इस प्रकार दिखाना है कि एक साथ अपाहिज और दर्शक रो पड़ें। परंतु ऐसा हो नहीं पाता। कार्यक्रम-संचालक अपने लक्ष्य में असफल रह जाते हैं। इसलिए वे कैमरामैन को आदेश देते हैं कि वह कैमरे को बंद कर दे। यदि अपाहिज रो नहीं सका तो न सही, क्योंकि पर्दे पर समय का अत्यधिक महत्त्व है। यहाँ तो एक-एक क्षण मूल्यवान होता है। समय के साथ-साथ धन का भी व्यय हो जाता है। इसलिए वे अपाहिज को दूरदर्शन के पर्दे पर दिखाना बंद कर देते हैं और दर्शकों से कहते हैं कि अब हम मुस्कुराएंगे और दर्शकों से कहेंगे कि आप इस समय सामाजिक पीड़ा को दिखाने वाला कार्यक्रम देख रहे थे। इसका लक्ष्य था कि हम और आप दोनों अपाहिजों की पीड़ा को समझें और अनुभव करें। लेकिन वे कार्यक्रम संचालक मन-ही-मन सोचते होंगे कि उसका कार्यक्रम पूर्णतया सफल नहीं हो सका क्योंकि वे अपाहिज और दर्शकों को संग-संग रुला नहीं सके।

यदि दोनों एक-साथ रो पड़ते तो निश्चय से उसका कार्यक्रम सफल हो जाता। अंत में कार्यक्रम-संचालक दर्शकों को धन्यवाद करके कार्यक्रम समाप्त कर देते हैं। इसके पीछे भी कवि का करारा व्यंग्य है। वह कार्यक्रम-संचालक की हृदयहीनता को स्पष्ट करना चाहता है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 4 कैमरे में बंद अपाहिज

विशेष-

  1. प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने दूरदर्शनकर्मियों की हृदयहीनता पर करारा व्यंग्य किया है और दूरदर्शन के सामाजिक कार्यक्रमों का पर्दाफाश किया है।
  2. दूरदर्शनकर्मी किसी सामाजिक समस्या को उभारने के चक्कर में निर्मम और कठोर हो जाते हैं और अपंग व्यक्ति की पीड़ा को समझ नहीं पाते।
  3. ‘बहुत बड़ी तसवीर’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  4. सहज, सरल तथा सामान्य हिंदी भाषा का सफल प्रयोग किया गया है।
  5. शब्द-योजना सर्वथा सटीक एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  6. प्रस्तुत पद्यांश में नाटकीय, संबोधनात्मक तथा व्यंग्यात्मक शैलियों का सफल प्रयोग किया गया है।
  7. प्रसाद गुण है तथा मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) प्रस्तुत पद्यांश में किस पर व्यंग्य किया गया है?
(ख) कार्यक्रम संचालक पर्दे पर अपाहिज व्यक्ति की फूली हुई आँख की तसवीर क्यों दिखाता है?
(ग) कार्यक्रम-संचालक एक साथ किसे और क्यों रुलाना चाहता है?
(घ) क्या कार्यक्रम संचालक अपने लक्ष्य में सफल रहा? यदि नहीं तो क्यों?
उत्तर:
(क) इस पद्यांश में दूरदर्शन के कार्यक्रम-संचालकों की हृदयहीनता पर करारा व्यंग्य किया गया है। वे अपंगों तथा दीन-दुखियों की पीड़ा को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना चाहते हैं ताकि उनका कार्यक्रम रोचक तथा लोकप्रिय बन सके धन कमा सकें।

(ख) कार्यक्रम-संचालक पर्दे पर अपाहिज व्यक्ति की फूली हुई आँख को बड़ा करके इसलिए दिखाता है ताकि वह लोगों के सामने अपाहिजों के दुख-दर्द को बढ़ा-चढ़ाकर दिखा सके और अपने कार्यक्रम को प्रभावशाली बना सके।

(ग) कार्यक्रम-संचालक अपाहिज तथा दर्शकों को एक साथ रुलाना चाहता है ताकि वह अपने कार्यक्रम को लोकप्रिय बना सके और लोगों में अपाहिजों के प्रति सहानुभूति उत्पन्न कर सके।

(घ) कार्यक्रम संचालक अपनी अनेक कोशिशों के बावजूद भी पर्दे पर अपाहिज को रोते हुए न दिखा सका। न उसकी आँखों में आँसू आए, न ही वह ज़ोर-ज़ोर से रोया। कारण यह था कि अपाहिज व्यक्ति भली प्रकार जानता था कि दूरदर्शनकर्मियों का उसके दुख-दर्द से कोई लेना-देना नहीं है, न ही उनके मन में अपाहिजों के प्रति सच्ची सहानुभूति की भावना है।

कैमरे में बंद अपाहिज Summary in Hindi

कैमरे में बंद अपाहिज कवि-परिचय

प्रश्न-
रघुवीर सहाय का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। अथवा रघुवीर सहाय का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-रघुवीर सहाय दूसरा सप्तक तथा बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध के एक महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उनका जन्म 9 दिसंबर, 1929 को लखनऊ में हुआ। उनके पिता हरदेव सहाय साहित्य के अध्यापक थे। सन् 1951 में कवि ने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण की। परंतु उनका रचना कार्य सन् 1946 से ही आरंभ हो चुका था। वे आरंभ से ही पत्रकारिता से जुड़ गए। 1949 में उन्होंने ‘दैनिक नवजीवन’ को अपनी सेवाएँ देनी आरंभ कर दीं। सन् 1951 तक वे इस दैनिक समाचार पत्र के संपादक तथा सांस्कृतिक संवाददाता के रूप में कार्य करते रहे। परंतु इसी वर्ष वे दिल्ली चले गए तथा ‘प्रतीक’ पत्रिका के सहायक संपादक बन गए। 1953 से 1957 तक वे आकाशवाणी में काम करते रहे। बाद में वे ‘कल्पना’ पत्रिका के संपादक मंडल के सदस्य बन गए। परंतु सन् 1961 में वे पुनः आकाशवाणी को अपनी सेवाएँ देने लगे। बाद में 1967 में वे ‘दिनमान’ साप्ताहिक पत्रिका से जुड़ गए। 1982 तक वे इसके प्रधान संपादक रहे, परंतु बाद में वे स्वतंत्र लेखन करने लगे। 30 दिसंबर, 1990 को उनका निधन हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ वस्तुतः रघुवीर सहाय सन् 1951 में अज्ञेय द्वारा संपादित ‘दूसरा सप्तक’ के कारण प्रकाश में आए। ‘सीढ़ियों पर धूप में इनका पहला काव्य-संग्रह है। उनकी उल्लेखनीय रचनाएँ हैं-
‘दूसरा सप्तक’ 1951 में संकलित कविताएँ-‘सीढ़ियों पर धूप में’ (1960), ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ (1967), ‘हँसो-हँसो जल्दी हँसो’ (1975), ‘लोग भूल गए हैं’ (1982), ‘कुछ पते, कुछ चिट्ठियाँ’ (1989), ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ (1994)। रघुवीर सहाय का संपूर्ण साहित्य ‘रघुवीर सहाय रचनावली’ के नाम से प्रकाशित है।।

3. काव्यगत विशेषताएँ-पहले बताया जा चुका है कि रघुवीर सहाय आजीवन पत्रकारिता से जुड़े रहे। इसलिए उनकी काव्य रचनाओं में राजनीतिक चेतना के अतिरिक्त आधुनिक युग की विभिन्न समस्याओं पर समुचित प्रकाश डाला गया है। उनकी काव्यगत विशेषताएँ इस प्रकार हैं
(i) राजनीतिक चेतना पत्रकारिता से जुड़े रहने के कारण रघुवीर सहाय की कविताओं में राजनीतिक चेतना सहज रूप में व्यक्त हुई है। कवि ने राजनीति की क्रूरताओं तथा गतिविधियों का सहज वर्णन किया है। कवि स्वीकार करता है कि राजनीति ने देश को अवसरवादिता, जातिवाद, हिंसा तथा भ्रष्टाचार जैसी बुराइयाँ प्रदान की हैं। इस संदर्भ में कवि के काव्य में मंत्री मुसद्दी लाल लोकतंत्र के भ्रष्टाचार का प्रतीक है। इसलिए डॉक्टर बच्चन सिंह ने रघुवीर सहाय को पोलिटिकल कवि कहा है। देश की दयनीय दशा देखकर कवि बड़े-से-बड़े राजनेता का नाम लेने में संकोच नहीं करता
“गया वाजपेयी जी से पूछ आया देश का हाल,
पर उढ़ा नहीं सका एक नंगी औरत को
कम्बल रेलगाड़ी में बीस अजनबियों के सामने।”

(ii) सामाजिक चेतना पत्रकार तथा संपादक होने के कारण रघुवीर सहाय के काव्य में सामाजिक चेतना भी देखी जा सकती है। कहीं-कहीं कवि जनसाधारण का पक्षधर दिखाई देता है। कवि ने अपनी अधिकांश कविताओं में सामाजिक विरोधों तथा अंतर्विरोधों एवं विसंगतियों का उद्घाटन किया है। कवि मध्यवर्गीय जीवन के दबाव और लोकतांत्रिक जीवन की विडंबना का यथार्थ वर्णन करता है। यही नहीं, वह आम आदमी के साथ खड़ा दिखाई देता है। इसलिए वह कहता है
“मैं तुम्हें रोटी नहीं दे सकता।।
न उसके साथ खाने के लिए गम्।
न मैं मिटा सकता हूँ ईश्वर के विषय में सब भ्रम।”

(iii) मानवीय संबंधों का वर्णन कवि ने अपनी कुछ कविताओं में मानवीय संबंधों का वर्णन करते हुए मानवीय व्यथा के विविध आयामों पर प्रकाश डाला है। कवि ने स्त्री जीवन की पीड़ा को अधिक मुखरित किया है। ‘बैंक में लड़कियाँ’ शीर्षक कविता में कवि स्त्री तथा पुरुष के मनोविज्ञान पर प्रकाश डालता है। इसी प्रकार ‘चेहरा’ कविता में गरीब लड़की का जो वर्णन किया है, वह बड़ा ही सजीव बन पड़ा है। कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता में कवि ने एक अपाहिज की पीड़ा के प्रति संवेदना व्यक्त की है।

(iv) आक्रोश और व्यंग्य का उद्घाटन-रघुवीर सहाय सामाजिक तथा राजनीतिक क्षेत्रों में व्याप्त विसंगतियों के प्रति अपने आक्रोश को व्यक्त करते हुए दिखाई देते हैं। कहीं-कहीं उनके व्यंग्य की धार बड़ी तीखी तथा चुभने वाली लगती है। आज की अवसरवादिता, समझौतापरस्ती, जातिवाद, मध्यवर्गीय आडंबर को देखकर कवि की वाणी में आक्रोश भर जाता है। कवि लोकतंत्र पर भी व्यंग्य करने से नहीं चूकता। इस संदर्भ में ‘रामदास’ नामक कविता विशेष महत्त्व रखती है जो कि समाज के ताकतवरों की बढ़ती हुई हैसियत का एहसास कराती है। लोकतंत्र पर व्यंग्य करता हुआ कवि कहता है-..
“अपराधी से आते हैं राज्यपाल, मुख्यमंत्री, विधायक
बख्शे हुए से जाते हैं।”

4. भाषा-शैली-अखबारों से जुड़े रहने के कारण रघुवीर सहाय की कविता में सहज, सरल तथा बोलचाल की भाषा का प्रयोग देखा जा सकता है। उनकी भाषा की अपनी शैली है। उसमें कहीं पर भी विद्वत्ता का मुलम्मा नहीं चढ़ा। परंतु इनकी बोलचाल की भाषा परिनिष्ठित हिंदी भाषा से जुड़ी हुई है। कुछ स्थलों पर कवि संस्कृतनिष्ठ शब्दों के साथ-साथ उर्दू के शब्दों का मिश्रण करते हुए चलते हैं। उदाहरण देखिए
“कितने सही हैं ये गुलाब कुछ कसे हुए और कुछ झरने-झरने को
और हल्की-सी हवा में और भी, जोखम से
निखर गया है उसका रूप जो झरने को है।”
कवि की आरंभिक कविताओं में प्रकृति के बिंब देखे जा सकते हैं, परंतु परवर्ती कविताओं में वे जनसाधारण के जीवन के चित्र उकेरते हैं। उनकी कविताओं में नेहरू, वाजपेयी, मोरारजी देसाई के नाम प्रतीक रूप में प्रयुक्त हुए हैं। आरंभ में उन्होंने छंद का निर्वाह करते हुए कविताएँ लिखीं। परंतु आगे चलकर वे छंद मुक्त कविता करने लगे।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि भाव और भाषा दोनों दृष्टियों से रघुवीर सहाय का काव्य नई कविता से लेकर समकालीन कविता की प्रवृत्तियाँ लिए हुए हैं। उनकी कविताएँ प्रेम, प्रकृति, परिवार, समाज तथा राजनीति का यथार्थ वर्णन करने में सक्षम रही हैं।

कैमरे में बंद अपाहिज कविता का सार

प्रश्न-
रघुवीर सहाय द्वारा रचित कविता कैमरे में बंद अपाहिज’ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता रघुवीर सहाय द्वारा रचित ‘लोग भूल गए हैं। काव्य-संग्रह में संकलित है। इस कविता में कवि ने साधारण भाषा-शैली में अपाहिज व्यक्ति की विडंबना को पकड़ने का प्रयास किया है। विकलांगता निश्चय से मनुष्य को कमजोर तथा दुखी कर देती है। परंतु हमारा आज का मीडिया दुखदायी विकलांगता को अपनी लोकप्रियता का माध्यम बनाना चाहता है। इसका प्रमुख कारण यह है कि मीडिया में लोकप्रियता प्राप्त करने की स्पर्धा लगी हुई है। वे विकलांग व्यक्ति को मीडिया के समक्ष रखकर उससे इस प्रकार के प्रश्न पूछते हैं कि जवाब देना भी कठिन हो जाता है। संवेदनहीन कार्यक्रम संचालक विकलांग क बढ़ा देता है। जब विकलांग की वेदना फूट पड़ती है तो दर्शक भी उसे देखकर रोने लगते हैं। ऐसी स्थिति में कार्यक्रम संचालक यह देखकर प्रसन्न हो जाता है कि उसका कार्यक्रम सफल रहा। मीडिया के कर्मचारियों को विकलांग व्यक्ति की पीड़ा और कष्ट मात्र एक कार्यक्रम ही नज़र आता है।

यह कविता दूरदर्शन तथा स्टूडियो की भीतरी दुनिया को रेखांकित करती है। कवि यह संदेश देना चाहता है कि पर्दे के पीछे तथा पर्दे के बाहर पीड़ा का व्यापार नहीं होना चाहिए। हमें उस स्थिति से बचना चाहिए जो दूसरों के मर्म को आहत करती है। विकलांग व्यक्ति के प्रति संवेदना तथा सहानुभूति रखनी चाहिए ताकि उसके आहत हृदय में आत्मविश्वास उत्पन्न हो सके।

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