HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 5 सहर्ष स्वीकारा है

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 5 सहर्ष स्वीकारा है Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 5 सहर्ष स्वीकारा है

HBSE 12th Class Hindi सहर्ष स्वीकारा है Textbook Questions and Answers

कविता के साथ

प्रश्न 1.
टिप्पणी कीजिए; गरबीली गरीबी, भीतर की सरिता, बहलाती सहलाती आत्मीयता, ममता के बादल।
उत्तर:
(क) गरबीली गरीबी कवि को अपने गरीब होने का कोई दुख नहीं है, बल्कि वह अपनी गरीबी पर भी गर्व करता है। उसे गरीबी के कारण न तो हीनता की अनुभूति होती है और न ही कोई ग्लानि। कवि स्वाभिमान के साथ जी रहा है।

(ख) भीतर की सरिता-इसका अभिप्राय यह है कि कवि के हृदय में असंख्य कोमल भावनाएँ हैं। नदी के पानी के समान ये कोमल भावनाएँ उसके हृदय में प्रवाहित होती रहती हैं।

(ग) बहलाती सहलाती आत्मीयता कवि के हृदय में प्रियतम की आत्मीयता है। इस आत्मीयता के दो विशेषण हैं बहलाती एवं सहलाती। यह आत्मीयता कवि को न केवल बहलाने का काम करती है, बल्कि उसके दुख-दर्द और
पीड़ा को सहलाती भी है और उसकी सहनशक्ति को बढ़ाती है।

(घ) ममता के बादल-जैसे ग्रीष्म ऋतु में बादल बरसकर हमें आनंदित करते हैं उसी प्रकार प्रेम की कोमल भावनाएँ कवि को आनंदानुभूति प्रदान करती हैं।

प्रश्न 2.
इस कविता में और भी टिप्पणी-योग्य पद-प्रयोग हैं। ऐसे किसी एक प्रयोग का अपनी ओर से उल्लेख कर उस पर टिप्पणी करें।
उत्तर:
(क) दक्षिणी ध्रुवी अंधकार-अमावस्या-जिस प्रकार दक्षिणी ध्रुव में अमावस्या जैसा धना काला अंधकार छाया रहता है, उसी प्रकार कवि अपने प्रियतम के वियोग रूपी घनघोर अंधकार में डूबना चाहता है। कवि की इच्छा है कि वियोग की गहरी अमावस उसके चेहरे, शरीर और हृदय में व्याप्त हो जाए।

(ख) विचार वैभव-यहाँ कवि स्पष्ट करता है कि धन का वैभव तो स्थायी नहीं होता, लेकिन विचारों की संपत्ति स्थायी होने के साथ-साथ मानवता का कल्याण करती है। कबीर, तुलसी, सूरदास आदि अपनी विचार संपदा के ही कारण महान कवि कहलाते हैं।

(ग) रमणीय उजेला-उजाला हमेशा प्रिय लगता है। कवि भी अपने प्रियतम के स्नेह उजाले से आच्छादित है। परंतु कवि के लिए यह मनोरम उजाला भी अब असहनीय हो गया है। कवि उससे मुक्त होना चाहता है।

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प्रश्न 3.
व्याख्या कीजिए-
जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!
उपर्युक्त पंक्तियों की व्याख्या करते हुए यह बताइए कि यहाँ चाँद की तरह आत्मा पर झुका चेहरा भूलकर अंधकार-अमावस्या में नहाने की बात क्यों की गई है?
उत्तर:
कवि उस अनंत सत्ता को संबोधित करता हुआ कहता है कि मुझे यह भी पता नहीं है कि तुम्हारे और मेरे बीच स्नेह का न जाने ऐसा कौन-सा रिश्ता और संबंध है कि मैं जितना भी अपने हृदय के स्नेह को व्यक्त करता हूँ अथवा लोगों में उसे बाँटता हूँ, उतना ही वह बार-बार भर जाता है। ऐसा लगता है कि मानों मेरे हृदय में कोई मधुर झरना है जिससे लगातार स्नेह की वर्षा होती रहती है अथवा मेरे भीतर प्रेम की कोई नदी (झरना) है जो हमेशा स्नेह रूपी जल से छलकती रहती है। मेरे हृदय में तो तुम्हारा ही प्रेम विद्यमान है। मेरे हृदय में तुम्हारा यह प्रसन्न चेहरा इस प्रकार विद्यमान रहता है, जैसे पृथ्वी पर रात के समय चंद्रमा मुस्कुराता रहता है अर्थात् जैसे चाँद रात को रोशनी देता है, उसी प्रकार हे मेरे ईश्वर! तुम मेरे हृदय को प्रेम से प्रकाशित करते रहते हो।

प्रश्न 4.
तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं
झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब
सहा नहीं जाता है।
(क) यहाँ अंधकार-अमावस्या के लिए क्या विशेषण इस्तेमाल किया गया है और उससे विशेष्य में क्या अर्थ जुड़ता है? (ख) कवि ने व्यक्तिगत संदर्भ में किस स्थिति को अमावस्या कहा है?

(ग) इस स्थिति से ठीक विपरीत ठहरने वाली कौन-सी स्थिति कविता में व्यक्त हुई है? इस वैपरीत्य को व्यक्त करने वाले शब्द का व्याख्यापूर्वक उल्लेख करें।

(घ) कवि अपने संबोध्य (जिसको कविता संबोधित है कविता का ‘तुम’) को पूरी तरह भूल जाना चाहता है, इस बात को प्रभावी तरीके से व्यक्त करने के लिए क्या युक्ति अपनाई है? रेखांकित अंशों को ध्यान में रखकर उत्तर दें।
उत्तर:
(क) कवि ने ‘अंधकार-अमावस्या के लिए दक्षिण ध्रुवी विशेषण का प्रयोग किया है। इस विशेषण के प्रयोग से विशेष्य अंधकार की सघनता का पता चलता है अर्थात् अंधकार घना और काला है। कवि अपने प्रियतम को भूलकर इसी घने अंधकार में लीन हो जाना चाहता है।

(ख) कवि ने व्यक्तिगत संदर्भ में अपने प्रियतम की वियोग-जन्य वेदना एवं निराशा की स्थिति को अमावस्या की संज्ञा दी है। अतः इस स्थिति के लिए ‘अमावस्या’ शब्द का प्रयोग सर्वथा उचित एवं सटीक है।

(ग) वर्तमान स्थिति है-दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या की। यह स्थिति कवि वियोगावस्था से उत्पन्न पीड़ा की परिचायक है। इसकी विपरीत स्थिति है-‘तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित रहने का रमणीय उजेला’ जो कि कवि के संयोग प्रेम को व्यंजित करता है। एक ओर कवि ने वियोग-जन्य निराशा को गहरी अमावस्या के माध्यम से व्यक्त किया है। प्रथम स्थिति निराशा को व्यक्त करती है। इसीलिए कवि ने अमावस के अंधकार की बात की है। द्वितीय स्थिति आशा को व्यक्त करती है जो कि प्रेम की संयोगावस्था से संबंधित है। इसलिए कवि ने ‘रमणीय उजेला’ की बात की है।

(घ) कवि अपने संबोध्य को पूरी तरह भूल जाना चाहता है। इस स्थिति की तुलना कवि ने अमावस्या के साथ की है जहाँ चंद्रमा नहीं होता बल्कि घना काला अंधकार होता है। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि कवि अपने प्रियतम रूपी चाँद से सर्वथा अलग-थलग एकाकी जीवन व्यतीत करना चाहता है। कवि अपने प्रियतम के बिना अंधकार में डूब जाना चाहता है। वह अब वियोग से उत्पन्न पीड़ा को झेलना चाहता है। इस स्थिति के लिए कवि ने ‘शरीर पर चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं झेलू मैं/ उसी में नहा लूँ मैं’ आदि शब्दों का प्रयोग किया है अर्थात् कवि विरह को अपने शरीर तथा हृदय में झेलना चाहता है, उसमें नहा लेना चाहता है। कवि अपने प्रियतम के वियोग की पीड़ा के अंधकार में नहा लेना चाहता है।

प्रश्न 5.
बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है-और कविता के शीर्षक ‘सहर्ष स्वीकारा है’ में आप कैसे अंतर्विरोध पाते हैं। चर्चा कीजिए।
उत्तर:
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता में कवि ने दो विपरीत स्थितियों की चर्चा की है। कवि अपने उस प्रियतम की प्रत्येक वस्तु अथवा दृष्टिकोण को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करता है। प्रथम स्थिति वह है जब कवि प्रेम के संयोग पक्ष को भोग रहा है। लेकिन अब कवि के लिए यह स्थिति असहनीय बन गई है। कवि प्रियतम की आत्मीयता को त्यागना चाहता है और उससे दूर रहकर वियोग आरोह (भाग 2) [गजानन माधव मुक्तिबोध] के अंधकार में डूब जाना चाहता है। अतः बहलाती सहलाती आत्मीयता से कवि दूर जाना चाहता है। यहाँ स्वीकार और अस्वीकार का भाव होने के कारण अंतर्विरोध है।

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कविता के आसपास

प्रश्न 1.
अतिशय मोह भी क्या त्रास का कारक है? माँ का दूध छूटने का कष्ट जैसे एक ज़रूरी कष्ट है, वैसे ही कुछ और ज़रूरी कष्टों की सूची बनाएँ।
उत्तर:
अतिशय मोह निश्चय से दुखदायक होता है। सांसारिक मोह-माया के कारण ही मनुष्य अनेक गलत काम कर बैठता है। संतान-मोह के कारण लोग भ्रष्ट तरीकों से धन कमाते हैं और प्रिया के कारण माँ-बाप को भी त्याग देते हैं।

बच्चा माँ का दूध छोड़ना नहीं चाहता है। लेकिन बच्चे को माँ का दूध छोड़ना पड़ता है। धीरे-धीरे बच्चा इस कष्ट को भूल जाता है। कुछ विद्यार्थी घर-परिवार त्यागकर दूर देश में शिक्षा-प्राप्ति के लिए जाते हैं। घर का मोह छोड़ना उन्हें पीड़ादायक लगता है, लेकिन भावी जीवन का निर्माण करने के लिए उन्हें यह कष्ट सहना पड़ता है। लोग रोजगार पाने के लिए विदेशों में जाते हैं। घर का मोह उन्हें भी कुछ समय के लिए कष्ट पहुंचाता है। इसी प्रकार सैनिक युद्ध में भाग लेने के लिए उत्साहित रहता है। परंतु घर त्यागते समय उसे भी कष्ट की अनुभूति होती है। लेकिन वह इस कष्ट की परवाह न करके युद्ध लड़ने के लिए जाता है और देश के लिए कभी अपने प्राण तक न्योछावर कर देता है।

प्रश्न 2.
‘प्रेरणा’ शब्द पर सोचिए और उसके महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए जीवन के वे प्रसंग याद कीजिए जब माता-पिता, दीदी-भैया, शिक्षक या कोई महापुरुष/महानारी आपके अँधेरे क्षणों में प्रकाश भर गए।
उत्तर:
प्रेरणा का अर्थ है-आगे बढ़ने अथवा उन्नति करने की भावना उत्पन्न करना। संसार का प्रत्येक महापुरुष किसी-न-किसी महान् व्यक्ति, शिक्षक अथवा माता-पिता से प्रेरणा प्राप्त करके महान् काम करने में सफल हुआ। वीर शिवाजी ने अपनी माता जीजाबाई से प्रेरणा प्राप्त करके औरंगजेब के अत्याचारों से देश के एक भाग को मुक्त कराया और मराठा राज्य की स्थापना की। हम सब किसी-न-किसी से प्रेरणा प्राप्त करके कोई अच्छा काम कर जाते हैं। श्रीराम का आदर्श आज भी हमारे लिए प्रेरणा-स्रोत है। मैंने अपने बड़े भाई से प्रेरणा प्राप्त करके ही पढ़ना शुरू किया। पहले मैं दिन-भर खेल-कूद में लगा रहता था। मेरी बड़ी बहन पिता जी से प्रेरणा प्राप्त करके डॉक्टर बन सकी। हम सभी किसी-न-किसी से प्रेरणा प्राप्त करके ही आगे बढ़ते हैं।

प्रश्न 3.
‘भय’ शब्द पर सोचिए। सोचिए कि मन में किन-किन चीजों का भय बैठा है? उससे निबटने के लिए आप क्या करते हैं और कवि की मनःस्थिति से अपनी मनःस्थिति की तुलना कीजिए।
उत्तर:
भय का अर्थ है-डर। भय के अनेक प्रकार हैं। आज के भौतिकवादी युग में भय कदम-कदम पर हमारे साथ लगा रहता है। भय का क्षेत्र अत्यधिक व्यापक एवं विस्तृत है। विद्यार्थियों को परीक्षा में फेल होने का भय लगा रहता है अथवा अच्छे अंक प्राप्त न करने का भी भय लगा रहता है। किसी विशेष विद्यालय अथवा महाविद्यालय में प्रवेश न मिलने का भय अथवा शिक्षा-प्राप्ति के पश्चात् उचित रोजगार न मिलने का भय हमारे पीछे लगा रहता है। लेकिन यदि हम जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण लेकर काम करते हैं तो भय से छुटकारा पाया जा सकता है। भय तो कदम-कदम पर हमारे सामने खड़ा है, लेकिन इसका डट कर सामना करना चाहिए। यदि हम सोच-समझकर योजनाबद्ध तरीके से काम करेंगे तो ही भय से बचा जा सकेगा। फिर भी हमें जीवन की प्रत्येक स्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। इस मनःस्थिति के साथ हम बुरे-से-बुरे परिणाम का भी सामना कर सकते हैं।

कवि की मनःस्थिति से हमारी मनःस्थिति सर्वथा अलग है। हमें आज के जीवन में कदम-कदम पर संघर्ष करना पड़ता है। लेकिन हम विद्यार्थी बुरी-से-बुरी स्थिति के लिए तैयार हैं। हमें तो आगे बढ़ना है, परिश्रम करना है और आने वाले काल में अपने देश के गौरव को ऊँचा उठाना है।

HBSE 12th Class Hindi सहर्ष स्वीकारा है Important Questions and Answers

सराहना संबंधी प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए
जिंदगी में जो कुछ है, जो भी है
सहर्ष स्वीकारा है;
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है।
गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब
यह विचार-वैभव सब
दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब
मौलिक है, मौलिक है

विशेष-

  1. यहाँ कवि स्पष्ट करता है कि जीवन के सुख-दुख, गरीबी, गंभीरता, वैचारिक मौलिकता आदि से कवि को इसलिए प्यार है क्योंकि उसका प्रिय भी इनसे प्यार करता है।
  2. कवि का प्रिय अज्ञात है।
  3. ‘गरबीली गरीबी’ का प्रयोग कवि के स्वाभिमान को व्यंजित करता है।
  4. ‘भीतर की सरिता’ एक सफल लाक्षणिक प्रयोग है जो कि कवि की गहन आंतरिक अनुभूतियों को व्यंजित करता है। ‘अभिनव’ विशेषण अनुभूतियों की मौलिकता की ओर संकेत करता है।
  5. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  6. शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  7. संपूर्ण पद्य में अनुप्रास अलंकार (सहर्ष स्वीकारा, गरबीली गरीबी, विचार-वैभव) की छटा दर्शनीय है।
  8. ‘भीतर की सरिता’ में रूपकातिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  9. संबोधनात्मक शैली है तथा मुक्त छंद का प्रयोग है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने अपने अज्ञात प्रिय के प्रति अपनी प्रेमानुभूति व्यक्त की है।
  2. संपूर्ण पद्य में प्रश्न तथा संदेह अलंकारों के प्रयोग के कारण रहस्यात्मकता का समावेश हो गया है।
  3. ‘भर-भर फिर’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
  4. ‘झरना’ तथा ‘मीठे पानी का सोता’ दोनों में रूपकातिशयोक्ति अलंकार है।
  5. ‘मुसकाता चाँद ……………….चेहरा है’ में उत्प्रेक्षा अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है।
  6. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है।
  7. शब्द-चयन सर्वथा सटीक एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  8. संबोधन शैली है तथा मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है।
  9. माधुर्य गुण है तथा श्रृंगार रस का परिपाक हुआ है।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
ममता के बादल की मँडराती कोमलता-
भीतर पिराती है
कमज़ोर और अक्षम अब हो गई है आत्मा यह
छटपटाती छाती को भवितव्यता डराती है
बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है!!

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने स्वीकार किया है कि उसके प्रिय की ममता उसके हृदय को पीड़ा पहुँचाने लगी है। अतः प्रिय का स्नेह उसके लिए असहय हो गया है।
  2. ‘ममता के बादल’ में रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  3. ‘आत्मीयता’ तथा ‘कोमलता’ दोनों भावनाओं का सुंदर मानवीकरण किया गया है।
  4. ‘छटपटाती छाती’ में अनुप्रास अलंकार है तथा संपूर्ण पद्यांश में स्वर मैत्री है।
  5. ‘मँडराती कोमलता भीतर पिराती’ में भी अनुप्रास अलंकार है।।
  6. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  7. शब्द-योजना सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  8. प्रसाद गुण है तथा मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊँ
पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में
धुएँ के बादलों में
बिलकुल मैं लापता
लापता कि वहाँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है !!

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने अपने प्रिय के प्रति पूर्णतया समर्पित होने का वर्णन किया है। उसके प्रेम में अनन्य गहराई है। लेकिन वह प्रेम के संयोग पक्ष को छोड़कर वियोग पक्ष को भोगना चाहता है।
  2. ‘दंड दो’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  3. ‘पाताली अँधेरे की गुहाओं …………………बादलों में’ में लाक्षणिकता है।
  4. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सरल प्रयोग हुआ है।
  5. शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  6. संबोधन शैली है तथा कवि की आत्मानुभूति की अभिव्यक्ति हुई है।
  7. मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है।

विषय-वस्तु पर आधारित लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘सहर्ष स्वीकारा है’ शीर्षक कविता का प्रतिपाद्य (उद्देश्य) मूलभाव संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
‘सहर्ष स्वीकारा है’ मुक्तिबोध की एक महत्त्वपूर्ण कविता है। इसमें कवि ने जीवन के सुख-दुख तथा कोमल-कठोर स्थितियों को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करने का वर्णन किया है। कवि कहता है कि वह स्वयं को हमेशा अपने प्रिय से जुड़ा हुआ अनुभव करता है। कारण यह है कि यह सब उसके प्रिय की ही देन है। उसका पूरा जीवन अपने प्रिय की संवेदनाओं से संबद्ध है। कवि के मन में प्रेम का जो झरना प्रवाहित हो रहा है, वह उसके प्रिय की ही देन है। परंतु कवि स्वयं को प्रिय के प्रेम को निभाने में असमर्थ अनुभव करता है, जिसके लिए वह दंड भोगना चाहता है। वह कहता है कि उसे अंधेरी गुफाओं का निर्वासन मिल जाए, जहाँ वह प्रिय से अलग होकर उसकी यादों के सहारे अपने जीवन को व्यतीत कर सकेगा। ऐसी स्थिति में भी वह अपने प्रिय से जुड़ सकेगा।

प्रश्न 2.
कवि ने किसे सहर्ष स्वीकारा है?
उत्तर:
कवि ने अपने जीवन के सुख-दुख, गरबीली गरीबी, जीवन के गहरे अनुभवों आदि सब को सहर्ष स्वीकार किया है। कवि ने अपने भीतर प्रवाहित होने वाली नूतन भावनाओं के प्रवाह और प्रिय के संयोग तथा वियोग दोनों को सहर्ष स्वीकार किया है।

प्रश्न 3.
कवि के पास जो अच्छा-बुरा है, उसमें कौन-सी विशिष्टता तथा मौलिकता है?
उत्तर:
कवि के पास अच्छा-बुरा बहुत कुछ है। उसके पास गरबीली गरीबी है। गहरे अनुभव तथा प्रौढ़ विचार भी हैं। इसके साथ-साथ उसके पास कुछ नूतन भावनाएँ भी हैं। कवि की ये सब उपलब्धियाँ मौलिक तथा विशिष्ट हैं। कारण यह है कि कवि ने इन्हें अपने प्रिय के प्रेम के कारण प्राप्त किया है। ये इसलिए भी मौलिक हैं कि कवि ने इनको अपने जीवन में खूब भोगा है।

प्रश्न 4.
मुसकाता चाँद किसका प्रतीक है?
उत्तर:
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता में चाँद कवि के प्रिय के आलोक अथवा उसके खिले हुए चेहरे का प्रतीक है। इसलिए कवि कहता है कि जिस प्रकार चाँद रात भर धरती पर अपना प्रकाश फैलाता है, उसी प्रकार प्रिय का चेहरा कवि को आनंद प्रदान करता है।

प्रश्न 5.
कवि पाताली अँधेरे की गुफाओं के विवरों में लापता होने का दंड क्यों भोगना चाहता है?
उत्तर:
कवि अब प्रिय के अत्यधिक प्रेम को सहन नहीं करना चाहता। वह सोचता है कि प्रिय के प्यार के बिना विरह-वेदना सहकर उसका व्यक्तित्व अत्यधिक सुदृढ़ हो जाएगा। प्रिय के प्रेम के संयोग पक्ष को भोगकर उसकी आत्मा तथा उसकी संकल्प-शक्ति दोनों ही कमजोर हो गए हैं। इसलिए वह विरह के पाताली अँधेरे की गुहाओं में लापता हो जाना चाहता है।

प्रश्न 6.
जितना भी उड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
इन पद्य पंक्तियों का भावार्थ क्या है?
उत्तर:
कवि यह कहना चाहता है कि उसने स्नेह को खुलकर लोगों में बाँटा है। लेकिन जितना वह इसे बाँटता है, उतना ही और बढ़ता जाता है। लगता है कि कवि के हृदय में प्रेम का एक झरना प्रवाहित हो रहा है। यह झरना मानों मीठे पानी का सोता है, जो भी नहीं सूखता। कवि अन्य लोगों में इस स्नेह को जितना अधिक बाँटता है, उतना ही वह झरना और भरता चला जाता है।

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प्रश्न 7.
कवि के लिए प्रेम का सुखद पक्ष असह्य क्यों बन गया है?
उत्तर:
कवि सोचता है कि प्रेम के सुखद पक्ष के कारण उसके मन में प्रिय की ममता बादलों के समान मँडराती रहती है जिससे उसकी आत्मा कमजोर और असमर्थ हो गई है। प्रिय के प्रेम के कारण उसका अपना व्यक्तित्व भी कमज़ोर होता जा रहा है। इसलि कवि प्रिय के वियोग का दंड भोगना चाहता है। वह यह भी सोचता है कि प्रिय की प्रेममयी यादें अकेलेपन में भी उसे प्रसन्न रखेंगी।

प्रश्न 8.
कवि ने अपने जीवन में सब कुछ सहर्ष क्यों स्वीकार किया है?
उत्तर:
कवि ने अपने जीवन में जो कुछ भी भोगा है अर्थात् सुख-दुख जो कुछ भी पाया है चाहे वह गरीबी हो या विचार वैभव; वह सब उसके प्रिय को भी प्यारा है। कवि की इन उपलब्धियों के पीछे उसके प्रिय की प्रेरणा काम करती रही है। इसलिए उसने अपने जीवन में सब कुछ सहर्ष स्वीकार किया है।

प्रश्न 9.
कवि पाताली अँधेरे की गुहाओं में और विवरों में तथा धुएँ के बादलों में लापता क्यों होना चाहता है?
उत्तर:
कवि अपने प्रिय के स्नेह के संयोग पक्ष से अब छुटकारा चाहता है। वह सोचता है कि उसके प्रेम में ग्लानि छिपी हुई है। अतः वह प्रिय के प्रेम के संयोग पक्ष के उजाले को सहन नहीं कर पाता। इसलिए वह पाताली अंधेरे की गुफाओं अर्थात् वियोग के धुएँ के बादलों में लापता हो जाना चाहता है।

प्रश्न 10.
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता के आधार पर सिद्ध कीजिए कि कवि एक स्वाभिमानी व्यक्ति है।
उत्तर:
कवि ने अपनी गरीबी को गरबीली कहा है। वह अपनी गरीबी के कारण स्वयं को लाचार अनुभव नहीं करता और न ही किसी की सहानुभूति चाहता है, बल्कि कवि ने गरीबी की बजाय अपनी मौलिक वैचारिकता को अधिक महत्त्व दिया है।

प्रश्न 11.
‘जाने क्या रिश्ता है?’ का गूढ़ अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर:
कवि और उसके प्रिय के बीच एक विचित्र प्रकार का संबंध है। जितना वह अपने प्रेम को व्यक्त करता है, उतना ही वह भर-भर आता है। भाव यह है कि कवि का प्रेम अनंत और गहरा है। कवि पूर्णतया अपने प्रिय के प्रति समर्पित है। उसका प्रेम प्रगाढ़ है।

प्रश्न 12.
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता के आधार पर कविवर मुक्तिबोध के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इस कविता के पढ़ने से पता चलता है कि मुक्तिबोध का व्यक्तित्व गंभीर, विचारशील, सुदृढ़ होने के साथ-साथ मौलिक चिंतन की छाप लिए हुए है। भले ही कवि गरीब है, लेकिन उसे अपनी गरीबी पर भी गर्व है। कवि ने धन का संग्रह करने के लिए अनुचित साधनों का कभी भी प्रयोग नहीं किया। वे विचार-वैभव की तुलना में धन-वैभव को तुच्छ मानते थे। उनके पास एक गहरी सोच और समृद्ध विचार सपंदा थी। कवि की अभिव्यक्ति पूर्णतया मौलिक थी।

प्रश्न 13.
क्या प्रेम के संयोग पक्ष के साथ-साथ वियोग पक्ष भी आवश्यक है? कविता के आधार पर सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता में मुक्तिबोध ने प्रेम के संयोग पक्ष के साथ-साथ वियोग पक्ष को भी आवश्यक माना है। इसीलिए तो वह कहता है कि “जो कुछ भी मेरा है, वह तुम्हें प्यारा है।” आगे चलकर कवि अपने विभिन्न रिश्ते की बात करता है। वह प्रिय के प्रसन्न चेहरे की तुलना मुसकाते चाँद के साथ करता है। परंतु अगली पंक्तियों में वह प्रिय को भूलने का दंड भोगना चाहता है। वह प्रिय के रमणीय उजाले को सहन नहीं कर पाता और उसके वियोग को पाना चाहता है, क्योंकि कवि को लगता है कि इस स्थिति में उसे प्रिय का सहारा प्राप्त होगा। कवि के विचारानुसार प्रेम के संयोग और वियोग दोनों पक्षों में ही प्रेम की संपूर्णता है।

प्रश्न 14.
ममता सदा हितकर क्यों नहीं होती?
उत्तर:
ममता मनुष्य को पंगु कर देती है। ममता देने वाला व्यक्ति अपने प्रिय को प्रेम के उजाले से आच्छादित कर देता है जिससे प्रिय-पात्र का आत्मविश्वास कमज़ोर पड़ जाता है। वह प्रिय की कृपा पर ही निर्भर हो जाता है। उसका आत्मबल नष्ट हो जाता है। अतः ममता के सहारे अधिक समय तक निर्भर न रहकर मनुष्य को अपने व्यक्तित्व को दृढ़ करना चाहिए।

प्रश्न 15.
कवि दंड किसे और क्यों कहता है?
उत्तर:
अपने प्रिय से वंचित होने के अनुभव को ही कवि ने दंड कहा है। इसीलिए कवि ने अपने प्रिय से विमुक्त होने की कामना की है। प्रथम स्थिति में कवि को प्रिय की आत्मीयता बहलाती और सहलाती है। उसे लगता है कि वह प्रिय के बिना जी नहीं पाएगा। अतः दूसरी स्थिति में वियोग का दंड भोगना चाहता है ताकि वह अपने व्यक्तित्व को सुदृढ़ कर सके।

प्रश्न 16.
छटपटाती छाती को भवितव्यता डराती है-इस पंक्ति का भावार्थ स्पष्ट करें।
उत्तर:
कवि को प्रिय के संयोग जनित प्रकाश अर्थात् सुखानुभूति से भविष्य की आशंकाएँ डराने लगी हैं। यह सोचकर कवि की छाती अर्थात् हृदय छटपटाने लगता है कि यदि भविष्य में उसे प्रिय का प्रेम नहीं मिलेगा तो वह कैसे जी सकेगा? प्रिय के बिना उसका क्या होगा?

प्रश्न 17.
कवि अपने प्रिय को क्यों नहीं भूल पाता?
उत्तर:
कवि अपने प्रिय को इसलिए नहीं भूल पाता, क्योंकि उसका जीवन प्रिय से अत्यधिक प्रभावित रहा है। प्रिय ने उसके जीवन की सभी कमजोरियों तथा उपलब्धियों को स्वीकार किया है और गरीबी में भी उसका साथ दिया है। कवि के प्रत्येक संवेदन को जागृत करने में उसके प्रिय का सहयोग रहा है। उसके बिना तो वह जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता।

प्रश्न 18.
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता किसको व क्यों स्वीकारने की प्रेरणा देती है?
उत्तर:
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता हमें जीवन के सुख-दुख, क्षमता अक्षमता तथा गरीबी-अमीरी आदि सभी उपलब्धियों को स्वीकार करने की प्रेरणा देती है। हमारा प्रेरणा-स्रोत अर्थात् प्रिय इन सब स्थितियों को स्वीकार कर लेता है। इसलिए हमारे प्रेरणा-स्रोत अर्थात् प्रिय हमारे लिए वरदान के समान हैं। अतः कवि के अनुसार गरबीली गरीबी, मौलिक विचार तथा गहरे अनुभव सभी स्वीकार करने योग्य हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. मुक्तिबोध का जन्म कब हुआ?
(A) 13 नवंबर, 1918
(B) 13 नवंबर, 1917
(C) 13 दिसंबर, 1920
(D) 10 नवंबर, 1922
उत्तर:
(B) 13 नवंबर, 1917

2. मुक्तिबोध का पूरा नाम क्या है?
(A) गजानन माधव मुक्तिबोध
(B) गजाधर मुक्तिबोध
(C) राम माधव मुक्तिबोध
(D) दयानंद माधव मुक्तिबोध
उत्तर:
(A) गजानन माधव मुक्तिबोध

3. मुक्तिबोध का जन्म किस प्रदेश में हुआ?
(A) उत्तरप्रदेश में
(B) दिल्ली में
(C) मध्यप्रदेश में
(D) राजस्थान में
उत्तर:
(C) मध्यप्रदेश में

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4. मुक्तिबोध का जन्म कहाँ हुआ?
(A) मुरैना जनपद के शिवपुर कस्बे में
(B) मुरैना जनपद के रामपुर कस्बे में
(C) ग्वालियर जनपद के श्योपुर में
(D) भिंड जनपद के कृष्णापुरा में
उत्तर:
(C) ग्वालियर जनपद के श्योपुर में

5. मुक्तिबोध के पिता का नाम क्या था?
(A) कृष्णकुमार मुक्तिबोध
(B) रामकुमार मुक्तिबोध
(C) कृष्णमाधव मुक्तिबोध
(D) माधव मुक्तिबोध
उत्तर:
(D) माधव मुक्तिबोध

6. मुक्तिबोध के पिता किस पद पर नियुक्त थे?
(A) आयकर इंस्पैक्टर
(B) पुलिस इंस्पैक्टर
(C) सिविल सप्लाई इंस्पैक्टर
(D) स्वास्थ्य इंस्पैक्टर
उत्तर:
(B) पुलिस इंस्पैक्टर

7. मुक्तिबोध ने किस विश्वविद्यालय से एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की?
(A) मुंबई विश्वविद्यालय
(B) इलाहाबाद विश्वविद्यालय
(C) नागपुर विश्वविद्यालय
(D) लखनऊ विश्वविद्यालय
उत्तर:
(C) नागपुर विश्वविद्यालय

8. मुक्तिबोध ने किस वर्ष एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की?
(A) सन् 1953 में
(B) सन् 1954 में
(C) सन् 1951 में
(D) सन् 1952 में
उत्तर:
(A) सन् 1953 में

9. मुक्तिबोध ने किस विषय में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की?
(A) अंग्रेज़ी
(B) भाषा विज्ञान
(C) इतिहास
(D) हिंदी
उत्तर:
(D) हिंदी

10. मुक्तिबोध का निधन कब हुआ?
(A) 12 सितंबर, 1963
(B) 11 सितंबर, 1964
(C) 18 जनवरी, 1960
(D) 11 सितंबर, 1965
उत्तर:
(B) 11 सितंबर, 1964

11. मुक्तिबोध का निधन किस रोग से हुआ?
(A) मलेरिया
(B) क्षय रोग
(C) मधुमेह
(D) मैनिनजाइटिस
उत्तर:
(D) मैनिनजाइटिस

12. मुक्तिबोध का निधन कहाँ हुआ?
(A) नयी दिल्ली
(B) नागपुर
(C) ग्वालियर
(D) मुरैना
उत्तर:
(A) नयी दिल्ली

13. मुक्तिबोध की आरंभिक रचनाएँ किस पत्रिका में प्रकाशित हुईं?
(A) नवजीवन
(B) दिनमान
(C) सरिता
(D) कर्मवीर
उत्तर:
(D) कर्मवीर

14. मुक्तिबोध ने कहाँ पर ‘मध्य भारत प्रगतिशील लेखक संघ’ की स्थापना की?
(A) नागपुर
(B) उज्जैन
(C) ग्वालियर
(D) मुरैना
उत्तर:
(B) उज्जैन

15. हँस पत्रिका’ के संपादकीय विभाग में मुक्तिबोध ने कब स्थान प्राप्त किया?
(A) सन् 1943 में
(B) सन् 1942 में
(C) सन् 1945 में
(D) सन् 1946 में
उत्तर:
(C) सन् 1945 में

16. मुक्तिबोध ने किस कॉलेज में प्राध्यापक के रूप में कार्य किया?
(A) दिग्विजय कॉलेज
(B) एस०डी० कॉलेज
(C) डी०ए०वी० कॉलेज
(D) नागपुर कॉलेज
उत्तर:
(A) दिग्विजय कॉलेज

17. ‘तार सप्तक’ में मुक्तिबोध की कितनी कविताएँ प्रकाशित हुईं?
(A) बारह कविताएँ
(B) सत्रह कविताएँ
(C) अट्ठाईस कविताएँ
(D) पंद्रह कविताएँ
उत्तर:
(B) सत्रह कविताएँ

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18. ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ में कुल कितनी कविताएँ सम्मिलित हैं?
(A) 18
(B) 16
(C) 28
(D) 27
उत्तर:
(C) 28

19. ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ के रचयिता हैं
(A) धर्मवीर भारती
(B) रघुवीर सहाय
(C) शमशेर बहादुर सिंह
(D) मुक्तिबोध
उत्तर:
(D) मुक्तिबोध

20. ‘भूरी-भूरी खाक धूल’ किस विधा की रचना है?
(A) कविता संग्रह
(B) प्रबंध काव्य
(C) नाटक
(D) निबंध
उत्तर:
(A) कविता संग्रह

21. ‘भूरी-भूरी खाक धूल’ के कवि का नाम है
(A) हरिवंश राय बच्चन
(B) मुक्तिबोध
(C) रघुवीर सहाय
(D) निराला
उत्तर:
(B) मुक्तिबोध

22. ‘काठ का सपना’ के रचयिता हैं
(A) अज्ञेय
(B) नागार्जुन
(C) मुक्तिबोध
(D) कुँवर नारायण
उत्तर:
(C) मुक्तिबोध

23. ‘सतह से उठता आदमी किस विधा की रचना है?
(A) नाटक
(B) काव्य संग्रह
(C) निबंध संग्रह
(D) कथा साहित्य
उत्तर:
(D) कथा साहित्य

24. ‘सहर्ष स्वीकारा है’ मुक्तिबोध की किस काव्य रचना में संकलित है?
(A) भूरी-भूरी खाक धूल
(B) चाँद का मुँह टेढ़ा है
(C) काठ का सपना
(D) विपात्र
उत्तर:
(A) भूरी-भूरी खाक धूल

25. ‘कामायनी-एक पुनर्विचार’ के रचयिता हैं
(A) हरिवंशराय बच्चन
(B) रघुवीर सहाय
(C) आलोक धन्वा
(D) मुक्तिबोध
उत्तर:
(D) मुक्तिबोध

26. ‘कामायनी-एक पुनर्विचार’ किस विधा की रचना है?
(A) उपन्यास
(B) कथा साहित्य
(C) आलोचना
(D) काव्य संग्रह
उत्तर:
(C) आलोचना

27. ‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता किसे संबोधित है?
(A) कवि के प्रिय को
(B) पाठकों को
(C) साहित्यकारों को
(D) ईश्वर को
उत्तर:
(A) कवि के प्रिय को

28. ‘भीतर की सरिता’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) उपमा
(B) रूपक
(C) अनुप्रास
(D) रूपकातिशयोक्ति
उत्तर:
(D) रूपकातिशयोक्ति

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29. ‘गरबीली गरीबी’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) उपमा
(B) अनुप्रास
(C) श्लेष
(D) रूपक
उत्तर:
(B) अनुप्रास

30. ‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता में किस छंद का प्रयोग हुआ है?
(A) चौपाई
(B) सवैया
(C) मुक्त
(D) दोहा
उत्तर:
(C) मुक्त

31. ‘मीठे पानी का सोता’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) अनुप्रास
(B) रूपकातिशयोक्ति
(C) रूपक
(D) उपमा
उत्तर:
(B) रूपकातिशयोक्ति

32. ‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता में कवि ने मुख्यतः किस शैली का प्रयोग किया है?
(A) वर्णनात्मक शैली
(B) संबोधन शैली
(C) आलोचनात्मक शैली
(D) गीति शैली
उत्तर:
(B) संबोधन शैली

33. ‘मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) अनुप्रास
(B) रूपक
(C) उपमा
(D) उत्प्रेक्षा
उत्तर:
(D) उत्प्रेक्षा

34. ‘ममता के बादल’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) रूपक
(B) उपमा
(C) रूपकातिशयोक्ति
(D) मानवीकरण
उत्तर:
(A) रूपक

35. ममता के बादल की मँडराती कोमलता कहाँ पिराती है?
(A) बाहर
(B) सर्वत्र
(C) भीतर
(D) बीच में
उत्तर:
(C) भीतर

36. ‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता में कवि ने गरीबी को कैसा बताया है?
(A) शर्मीली
(B) सुखदायक
(C) दुखभरी
(D) गरबीली
उत्तर:
(D) गरबीली

37. प्रस्तुत कविता में बहलाती सहलाती आत्मीयता क्या नहीं होती?
(A) बरदाश्त
(B) फालतू
(C) कम
(D) जहरीली
उत्तर:
(A) बरदाश्त

38. ‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता में कवि की आत्मा कैसी हो गई है?
(A) कमज़ोर
(B) दृढ़
(C) संवेदनशील
(D) सक्षम
उत्तर:
(A) कमज़ोर

39. ‘काठ का सपना’ किस विधा की रचना है?
(A) काव्य संग्रह
(B) कथा साहित्य
(C) नाटक
(D) निबंध संग्रह
उत्तर:
(B) कथा साहित्य

40. ‘सहर्ष स्वीकारा है। कविता में कवि कहाँ लापता होना चाहता है?
(A) वायु में
(B) आकाश में
(C) बादलों में
(D) धुएँ के बादलों में
उत्तर:
(D) धुएँ के बादलों में

41. ‘पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में यहाँ ‘विवरों का क्या अर्थ है?
(A) बादल
(B) बिल
(C) गुफा
(D) शिविर
उत्तर:
(B) बिल

42. ‘सहर्ष स्वीकारा है’ शीर्षक कविता में किस भाव की प्रधानता है?
(A) क्रूरता
(B) रुक्षता
(C) कठोरता
(D) विनय
उत्तर:
(D) विनय

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 5 सहर्ष स्वीकारा है

43. ‘परिवेष्टित’ शब्द का क्या अर्थ है?
(A) पगड़ी
(B) परिजन
(C) चारों ओर से घिरा हुआ
(D) परिक्रमा
उत्तर:
(C) चारों ओर से घिरा हुआ

44. भवितव्यता किसे डराती है?
(A) संपाती को
(B) छाती को
(C) बिलखाती को
(D) पराती को
उत्तर:
(B) छाती को

सहर्ष स्वीकारा है पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर |

[1] ज़िंदगी में जो कुछ है, जो भी है
सहर्ष स्वीकारा है।
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है वह तुम्हें प्यारा है।
गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब
यह विचार-वैभव सब
दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब
मौलिक है, मौलिक है
इसलिए कि पल-पल में
जो कुछ भी जाग्रत है अपलक है
संवेदन तुम्हारा है!! [पृष्ठ-30]

शब्दार्थ-जिंदगी = जीवन। सहर्ष = प्रसन्नता के साथ। स्वीकारा = मन से माना। गरबीली = अभिमान से भरी हुई। गंभीर = गहरा। विचार-वैभव = विचारों की संपत्ति। दृढ़ता = मजबूती। सरिता = नदी (भावनाओं का प्रवाह)। अभिनव = नया। मौलिक = नया। पल = क्षण। जाग्रत = जागा हुआ जीवित। अपलक = बिना पलकें झपकाए हुए। संवेदन = अनुभूति।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से अवतरित है। इसके कवि गजानन माधव मुक्तिबोध हैं। इस कविता में कवि यह बताना चाहता है कि जीवन में उसे जो कुछ प्राप्त हुआ है, उसने उसे बड़ी प्रसन्नता के साथ स्वीकार कर लिया है। कवि को किसी प्रकार की शिकायत नहीं है। यहाँ कवि ईश्वर को संबोधित करता हुआ कहता है कि

व्याख्या-मुझे जीवन में जो कुछ मिला है अथवा पाया है, उसे मैंने प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लिया है। मुझे जीवन की उपलब्धियों पर बहुत गर्व है। इसलिए जीवन में मेरा जो कुछ अपना है, वह सब उस अनंत सत्ता को भी प्रिय है। कवि पुनः स्पष्ट करता है कि यह मेरी गर्व भरी गरीबी, मेरे जीवन के गहरे अनुभव, मेरी यह विचार संपदा, मेरे मन की यह मजबूती और मेरे हृदय में जो भावनाओं का एक नया प्रवाह है, वह सब कुछ नया है और मौलिक है। भाव यह है कि उस ईश्वर के कारण ही मैं प्रत्येक स्थिति में खुशी-खशी जी रहा हूँ। तुमने ही मुझे अपनी गरीबी पर गर्व करना सिखाया है। मैंने जीवन के गंभीर अनुभवों तथा विचारों की संपन्नता तुमसे ही प्राप्त की है। मैं अपने इन मौलिक विचारों के साथ दृढ़तापूर्वक जी रहा हूँ। मेरे मन में नवीन विचारों की एक नदी हमेशा प्रवाहित होती रहती है। अतः प्रत्येक क्षण में जो कुछ मेरे अंदर जागता रहता है और लगातार मेरे जीवन को गतिशील बनाता है, उसके पीछे तुम्हारी प्रेरणा ही काम कर रही है। भाव यह है कि मैंने अपने जीवन में उस असीम सत्ता से प्रेरणा प्राप्त करके ही अपने व्यक्तित्व का निर्माण किया है।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने असीम सत्ता को संबोधित किया है। साथ ही जीवन में मिलने वाली उपलब्धियों तथा कमियों को सहर्ष स्वीकार किया है।
  2. रहस्यवादी भावना स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
  3. ‘भीतर की सरिता’ कवि की आंतरिक गहन अनुभूतियों का प्रतीक है।
  4. ‘भीतर की सरिता’ में रूपकातिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग है तथा ‘पल-पल’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  5. इस पद्य में कवि ने साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है जिसमें संस्कृत के तत्सम् शब्दों के अतिरिक्त उर्दू के शब्दों का मिश्रण किया गया है।
  6. संबोधनात्मक शैली है तथा संपूर्ण कविता में लाक्षणिक पदावली का भी प्रयोग है।
  7. मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस कविता में कवि ने किसे संबोधित किया है?
(ग) कवि अपने जीवन को सहर्ष स्वीकार क्यों करता है?
(घ) कवि अपनी उपलब्धियों के लिए किसे श्रेय देता है और क्यों?
(ङ) कवि अपनी किस उपलब्धि पर गर्व करता है?
उत्तर:
(क) कवि का नाम-गजानन माधव मुक्तिबोध कविता का नाम-सहर्ष स्वीकारा है।

(ख) इस कविता के द्वारा कवि असीम सत्ता को संबोधित करता है।

(ग) कवि अपनी प्रत्येक उपलब्धि को इसलिए प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करता है, क्योंकि असीम सत्ता की प्रेरणा से ही उसे यह सब प्राप्त हुआ है। दूसरा, उसकी प्रत्येक उपलब्धि उस असीम सत्ता को भी प्रिय लगती है।

(घ) कवि अपनी उपलब्धियों के लिए उस असीम सत्ता प्रियतम अर्थात् परमात्मा को श्रेय देता है। कारण यह है कि उसी से प्रेरणा पाकर ही कवि अपनी कविताओं में मौलिक अनुभव, विचार तथा अनुभूतियाँ प्राप्त कर पाया है। इसलिए कवि अपनी गरीबी के साथ इन सब पर गर्व करता है।

(ङ) कवि अपनी गरीबी, जीवन के गहरे अनुभव, गंभीर चिंतन, व्यक्तित्व की दृढ़ता तथा मन में प्रवाहित होने वाली भावनाओं की नदी पर गर्व करता है।

[2] जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उँडेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है! [पृष्ठ-30]

शब्दार्थ-रिश्ता = संबंध। उँडेलना = खाली करना, देना। सोता = झरना।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से अवतरित है। इसके कवि गजानन माधव मुक्तिबोध हैं। इसमें कवि स्वीकार करता है कि वह रहस्यात्मक शक्ति ही उसकी प्रेरणा का स्रोत है।

व्याख्या कवि उस अनंत सत्ता को संबोधित करता हुआ कहता है कि मुझे यह भी पता नहीं है कि तुम्हारे और मेरे बीच स्नेह का न जाने ऐसा कौन-सा रिश्ता और संबंध है कि मैं जितना भी अपने हृदय के स्नेह को व्यक्त करता हूँ अथवा लोगों में उसे बाँटता हूँ, उतना ही वह बार-बार भर जाता है। ऐसा लगता है कि मानों मेरे हृदय में कोई मधुर झरना है जिससे लगातार स्नेह की वर्षा होती रहती है अथवा मेरे भीतर प्रेम की कोई नदी (झरना) है जो हमेशा स्नेह रूपी जल से छलकती रहती है। मेरे हृदय में तो तुम्हारा ही प्रेम विद्यमान है। मेरे रा यह प्रसन्न चेहरा इस प्रकार विद्यमान रहता है, जैसे पृथ्वी पर रात के समय चंद्रमा मुस्कुराता रहता है अर्थात् जैसे चाँद रात को रोशनी देता है, उसी प्रकार हे मेरे ईश्वर! तुम मेरे हृदय को प्रेम से प्रकाशित करते रहते हो।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने परमात्मा को संबोधित किया है, क्योंकि वही कवि के लिए प्रेरणा का काम करता है।
  2. संपूर्ण पद्य में प्रश्न तथा संदेह अलंकारों का सफल प्रयोग हुआ है जिसके कारण रहस्यात्मकता उत्पन्न हो गई है।
  3. ‘झरना’ तथा ‘मीठे पानी का सोता’ में रूपकातिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  4. ‘मुसकाता चाँद’ ………………. चेहरा है’ में उत्प्रेक्षा अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है।
  5. ‘भर-भर फिर’ में अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकारों का सफल प्रयोग है। इसी प्रकार ‘धरती पर रात-भर’ में अनुप्रास अलंकार है।
  6. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है तथा साथ ही भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  7. संबोधन शैली का प्रयोग हुआ है तथा मुक्त छंद है।
  8. माधुर्य गुण होने के कारण शृंगार रस का परिपाक हुआ है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 5 सहर्ष स्वीकारा है

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) कवि ने अपने प्रिय अर्थात परमात्मा के प्रति अपने रिश्ते को किस प्रकार व्यक्त किया है?
(ग) ‘जितना भी उँडेलता हूँ, उतना ही भर-भर आता है’ से कवि का क्या अभिप्राय है?
(घ) कवि ने अपने दिल के झरने को ‘मीठे पानी का सोता’ क्यों कहा है?
(ङ) कवि ने कौन-से अटूट रिश्ते को प्रकट किया है?
उत्तर:
(क) कवि का नाम-गजानन माधव मुक्तिबोध कविता का नाम-सहर्ष स्वीकारा है।

(ख) कवि और परमात्मा के मध्य एक कथनीय प्रेम है। कवि ने उस अनंत सत्ता के प्रेम की तुलना एक झरने के साथ की है जो उसे बार-बार भिगोकर आनंद प्रदान करता रहता है। भाव यह है कि कवि का प्रेम रूपी झरना कभी सूखने वाला नहीं है।

(ग) यहाँ कवि यह कहना चाहता है कि वह अपने हृदय के स्नेह को जितना बाँटता है, वह उतना अधिक बढ़ता जाता है, वह कभी भी कम नहीं होता। इसलिए कवि ने स्वीकार किया है कि उसके हृदय में प्रेम का झरना प्रवाहित हो रहा है।

(घ) ‘मीठे पानी का सोता’ कहने का अभिप्राय यह है कि कवि को अपने मालिक (ईश्वर) के प्रति प्रगाढ़ प्रेम है जो कि कभी समाप्त नहीं हो सकता। यह प्रेम मधुर भी है।

(ङ) इन पंक्तियों में कवि ने आत्मा और परमात्मा के अटूट रिश्ते को प्रकट किया है।

[3] सचमुच मुझे दंड दो कि भूलूँ मैं भूलूँ मैं
तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं
झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब
सहा नहीं जाता है।
नहीं सहा जाता है।
ममता के बादल की मँडराती कोमलता-
भीतर पिराती है
कमज़ोर और अक्षम अब हो गई है आत्मा यह
छटपटाती छाती को भवितव्यता डराती है
बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है!! [पृष्ठ 30-31]

शब्दार्थ-दक्षिण ध्रवी अंधकार = दक्षिण ध्रुव पर गहरा अंधकार। अमावस्या = काली रात। अंतर = हृदय। परिवेष्टित = चारों ओर से घिरा हुआ। आच्छादित = ढका हुआ, छाया हुआ। रमणीय = सुंदर, मनोहर। उजेला = रोशनी, प्रकाश। ममता = मोह-प्रेम । मँडराती = फैली हुई। पिराती = पीड़ा पहुँचाती हुई। अक्षम = कमजोर। भवितव्यता = भविष्य की आशंका। बहलाती मन को प्रसन्न करती हुई। सहलाती = पीड़ा को कम करती हुई। आत्मीयता = अपनापन। बरदाश्त = सहन करना।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से अवतरित है। इसके कवि गजानन माधव मुक्तिबोध हैं। इस पद्यांश द्वारा कवि ने अपने परमात्मा से वियोग के दंड का वर्णन किया है। इसके साथ ही अपने आशीर्वाद रूपी प्रकाश को स्वयं से हटाने की बात की है।

व्याख्या-कवि अपने परमात्मा को संबोधित करता हुआ कहता है कि वह अपने जीवन में अहंकार के भाव में आकर उसे भूल गया था। अब वह उससे इस भूल की सजा पाना चाहता है। कवि स्वयं के लिए दक्षिणी ध्रुव पर अमावस की रात्रि के समान फैलने वाले अंधकार जैसी सजा पाना चाहता है। वह उस गहरे अंधकार को अपने शरीर, चेहरे और अन्तर्मन में झेलना चाहता है और इसी में नहाना चाहता है।

कवि सोचता है कि उसका वर्तमान जीवन उस ईश्वर के प्रेम से पूर्णतया घिरा हुआ है। उसके प्रेम का यह उजाला बड़ा ही मनोहर एवं आकर्षक है। परन्तु यह उजाला कवि के लिए असहनीय बन गया है। वह उसे सहन नहीं कर सकता। उस अनंत सत्ता की ममता कवि के मन में बादल के समान छाई हुई है जो उसके हृदय को पीड़ित करती है। इसलिए अब कवि की आत्मा दुर्बल और असमर्थ हो गई है। भविष्य की आशंका उसे डरा रही है और उसकी छाती छटपटा रही है। उस प्रियतम की ममता कवि के हृदय को बहलाती, सहलाती और अपनापन दिखाती है, वह कवि से अब सहन नहीं हो पा रही है। भाव यह है कि कवि अपने अहंकार की सजा पकार अपने पापों से मुक्त होना चाहता है।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने स्वीकार किया है कि वह अपने ही गर्व के बहाव में बहकर उस परमात्मा को भूल गया है जिसकी वह उस परमात्मा से सजा पाना चाहता है।
  2. ममता के बादल, तुमसे ही …………………. उजेला तथा दक्षिणी ध्रुवी अंधकार-अमावस्या आदि में रूपक अलंकार का सफल प्रयोग है।
  3. आत्मीयता तथा कोमल भावनाओं का सुंदर मानवीकरण किया गया है।
  4. ‘शरीर पर, चेहरे पर’, ‘मँडराती कोमलता-भीतर पिराती’ और ‘छटपटाती छाती’ में अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है।
  5. ‘ई’ स्वर के कारण स्वर मैत्री का प्रयोग है।
  6. यहाँ कवि ने संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है, साथ ही कुछ नवीन शब्दों का भी प्रयोग किया है।
  7. संबोधन शैली है तथा मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है।
  8. शांत रस का प्रयोग है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि अपने प्रियतम (परमात्मा) से कौन-सा दंड पाना चाहता है और क्यों?
(ख) कवि किस रमणीय उजाले की बात कर रहा है जो उसके लिए असहनीय है?
(ग) कौन-सी भावना कवि को पीड़ा पहुँचाती है?
(घ) कवि अपने भविष्य के प्रति आशंकित क्यों है?
(ङ) कवि ने अपने प्रियतम को भूलने के दुख की तुलना किससे की है? .
उत्तर:
(क) कवि अपने प्रियतम (परमात्मा) से वियोग का दंड पाना चाहता है। कवि को लगता है कि उस प्रियतम के प्रेम और कोमलता ने उसकी आत्मा को कमजोर बना दिया है। अतः अब वह उसकी ममता को सहन करने में असमर्थ हो गया है। त्ता का प्रेम ही कवि के लिए रमणीय उजाला है जिसे कवि अब सहन नहीं कर पा रहा है। इसलिए कवि अब वियोग का दंड भोगना चाहता है।

(ग) उस अनंत सत्ता की ममता उसके मन में बादल के समान छाई हुई है। यही भावना अब कवि को पीड़ा पहुँचाती है जिससे वह अब मुक्त होना चाहता है।

(घ) कवि अपने भविष्य के प्रति इसलिए आशंकित है, क्योंकि अपराधी होने के कारण उसकी आत्मा छटपटाती रहती है।

(ङ) कवि ने अपने प्रियतम को भूलने के दुख की तुलना दक्षिणी ध्रुवी अमावस्या के साथ की है, जहाँ हमेशा घना काला और गहरा अंधकार छाया रहता है।

[4] सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊँ
पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में
धुएँ के बादलों में
बिलकुल मैं लापता
लापता कि वहाँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है!
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
या मेरा जो होता-सा लगता है, होता-सा संभव है
सभी वह तुम्हारे ही कारण के कार्यों का घेरा है, कार्यों का वैभव है
अब तक तो जिंदगी में जो कुछ था, जो कुछ है
सहर्ष स्वीकारा है
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है। [पृष्ठ-32]

शब्दार्थ-पाताली अँधेरा = धरती के नीचे पाताल में पाया जाने वाला अंधकार। गुहा = गुफा। विवर = बिल। लापता होना = गायब हो जाना। कारण = मूल प्रेरणा। घेरा = फैलाव। वैभव = संपदा, समृद्धि।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से अवतरित है। इसके कवि गजानन माधव मुक्तिबोध हैं। इसमें कवि कहता है कि उसने अपने प्रियतम भाव परमात्मा की प्रेरणा से आज तक जो प्राप्त किया है उसे उसने प्रसन्नतापर्वक स्वीकार कर लिया है। प्रस्तत पद्यांश द्वारा कवि स्वयं को उस ईश्वर देता है।

व्याख्या-कवि अपनी उस अनंत सत्ता को संबोधित करता हुआ कहता है कि तुम मुझे अपने वियोग का ऐसा दंड दो कि मैं पाताल लोक की अंधेरी गुफाओं की सूनी सुरंगों में और दम घोंटने वाले धुएँ के बादलों में बिल्कुल खो जाऊँ अर्थात् उनमें विलीन हो जाऊँ। मेरा जीवन उस घुटन से भले ही समाप्त हो जाए, पर मुझे इसकी कोई चिंता नहीं है। मैं इस खो जाने वाले अकेलेपन में भी खुश रहूँगा, क्योंकि वहाँ भी मुझे तुम्हारा आश्रय मिलता रहेगा। तुम्हारी यादें हमेशा मेरे साथ रहेंगी। अतः मैंने अपने जीवन में जो कुछ प्राप्त किया है अर्थात् मेरी जो उपलब्धियाँ हैं अथवा स्थितियाँ हैं या जो संभव हो सकती हैं अर्थात् मेरे जीवन के विकास तथा ह्रास की जो संभावनाएँ हैं वे मुझे तुम्हारी ही प्रेरणास्वरूप प्राप्त हुई हैं। तुम्हारे प्रेम से प्रेरणा पाकर मैंने जो काम किए हैं या मेरे कामों का जो परिणाम है, मेरा जो कुछ बना है अथवा बिगड़ा है वह सब कुछ तुम्हारी ही देन है। मैं इन सभी स्थितियों को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करता हूँ कि मेरे जीवन के सुखों तथा दुखों से तुम्हें अत्यधिक प्यार है। अतः मैं खुशी-खुशी इनको स्वीकार
करता हूँ।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने अपने प्रियतम (परमात्मा) पर अत्यधिक विश्वास व्यक्त किया है तथा उसके प्रेम की अनन्यता को उजागर किया है।
  2. संपूर्ण पद्य में लाक्षणिक पदावली का सुंदर प्रयोग हुआ है।
  3. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  4. शब्द-चयन सर्वथा सटीक एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. मुक्त छंद का प्रयोग है तथा संबोधन शैली है।
  6. संपूर्ण पद्य में वियोग शृंगार का सुंदर परिपाक हुआ है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि अपने प्रियतम से दंड क्यों पाना चाहता है?
(ख) कवि ने अपने जीवन में उस अनंत सत्ता को क्या स्थान दिया है?
(ग) कवि पाताली अंधेरों की गुफाओं में क्यों लापता होना चाहता है?
(घ) कवि अपने जीवन के प्रत्येक सुख-दुख को प्रसन्नता से क्यों स्वीकार करना चाहता है?
उत्तर:
(क) कवि अपने प्रियतम से इसलिए दंड पाना चाहता है कि वह अपने उस मालिक के वियोग को सहन कर सके और उसके बिना भी जीना सीख सके।

(ख) कवि के जीवन में उस अनंत सत्ता का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वह सोचता है कि वियोगावस्था में भी वह उस परमात्मा की यादों के सहारे सुखद जीवन जी सकेगा और उसे वियोगजन्य पीड़ा दुख नहीं देगी।

(ग) कवि पाताल की अभेद्य अंधेरी गुफाओं में इसलिए विलीन होना चाहता है कि ताकि वह अपने प्रियतम के बिना अकेला रह सके और उसके वियोग को सह सके।

(घ) कवि अपने जीवन के प्रत्येक सुख-दुख को प्रसन्नता से स्वीकार करना चाहता है कि उसका सुख-दुख भी उस प्रियतम की देन है तथा वह भी उसके सुख-दुख से प्यार करता है। कवि भी उस प्रियतम की यादों के सहारे जीना चाहता है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 5 सहर्ष स्वीकारा है

सहर्ष स्वीकारा है Summary in Hindi

सहर्ष स्वीकारा है कवि-परिचय

प्रश्न-
गजानन माधव मुक्तिबोध का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
गजानन माधव मुक्तिबोध का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म मध्यप्रदेश के मुरैना जनपद के श्योपुर नामक कस्बे में 13 नवंबर, 1917 को हुआ। उनके किसी पूर्वज को मुक्तिबोध की उपाधि प्राप्त हुई थी। इसलिए कुलकर्णी के स्थान पर मुक्तिबोध कहलाने लगे। उनके पिता का नाम माधव मुक्तिबोध था, जो कि पुलिस इंस्पैक्टर थे। वे एक न्यायप्रिय अधिकारी होने के साथ-साथ धर्म तथा दर्शन में अत्यधिक रुचि रखते थे। गजानन माधव का पालन-पोषण बड़े लाड़-प्यार से हुआ। वे एक योग्य विद्यार्थी नहीं थे। 1930 में वे मिडिल की परीक्षा में असफल रहे तथा 1937 में प्रथम प्रयास में बी०ए० की परीक्षा भी उत्तीर्ण नहीं कर सके। उन्होंने सन् 1953 में नागपुर विश्वविद्यालय से एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। विद्यार्थी जीवन से ही वे काव्य रचना करने लगे थे। उनकी आरंभिक रचनाएँ माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा संपादित ‘कर्मवीर’ में प्रकाशित हुई थीं। आरंभ में उन्होंने ‘बड़नगर’ के मिडिल स्कूल में चार महीने तक अध्यापन का कार्य किया। तत्पश्चात् शुजालपुर में नगरपालिका के विद्यालय में एक सत्र तक पढ़ाते रहे। 1942 में उज्जैन चले गए और वहाँ रहते हुए उन्होंने ‘मध्य भारत प्रगतिशील लेखक संघ’ की स्थापना की। सन् 1945 में ‘हंस’ पत्रिका के संपादकीय विभाग में स्थान पाया। सन् 1946-47 में वे जबलपुर में रहे और 1948 में नागपुर चले गए। 1958 में मुक्तिबोध राजनांदगाँव के दिग्विजय कॉलेज में प्राध्यापक के रूप में कार्य करने लगे। 11 सितंबर, 1964 को इस प्रगतिशील कवि का निधन ‘मैनिनजाइटिस’ रोग के कारण दिल्ली में हुआ।

2. प्रमुख रचनाएँ मुक्तिबोध मुख्यतः कवि-रूप में प्रसिद्ध हुए लेकिन उन्होंने आलोचना, कहानी एवं डायरी लेखन में भी सफलता प्राप्त की। उनकी रचनाओं का विवरण इस प्रकार है-‘तार सप्तक’ में संकलित सत्रह कविताएँ (1943)–’चाँद का मुँह टेढ़ा है’, ‘भूरी-भूरी खाक धूल’ (कविता संग्रह), ‘काठ का सपना’, ‘विपात्र’, ‘सतह से उठता आदमी’ (कथा साहित्य); ‘कामायनी-एक पुनर्विचार’, ‘नयी कविता का आत्मसंघर्ष’, ‘नये साहित्य का सौंदर्यशास्त्र’, ‘समीक्षा की समस्याएँ’, ‘एक साहित्यिक की डायरी’ (आलोचना); तथा ‘भारत : इतिहास और संस्कृति’ आदि उनकी मुख्य अन्य रचनाएँ हैं। परंतु इनकी कीर्ति का आधार-स्तंभ ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ है, जिसमें कुल 28 कविताएँ संकलित हैं।

3. काव्यगत विशेषताएँ-उनकी काव्यगत विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(i) वैयक्तिकता तथा सामाजिकता का उद्घाटन मुक्तिबोध की अधिकांश कविताएँ छायावादी शिल्प लिए हुए हैं। लेकिन वे वैयक्तिकता से सामाजिकता की ओर प्रस्थान करते दिखाई देते हैं। इसलिए उनका कथ्य प्रगतिशील है। कवि की वैयक्तिकता सामाजिकता से जुड़ती प्रतीत होती है। परंतु कुछ कविताओं में कवि की निराशा तथा कुंठा अभिव्यक्त हुई है। ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ में कवि लिखता है-
“याद रखो
कभी अकेले में मुक्ति नहीं मिलती
यदि वह है तो सबके साथ ही।”
मुक्तिबोध ने स्वयं को विश्व-मानव के सुख-दुख के साथ जोड़ने का प्रयास किया है। कवि यत्र-तत्र आम आदमी की निराशा, कुंठा, अवसाद तथा वेदना का वर्णन करता हुआ दिखाई देता है। कवि स्वीकार करता है कि आज की व्यवस्था के नीचे दबा मानव नितांत निराश तथा हताश है। कवि कहता है-
“दुख तुम्हें भी है,
दुख मुझे भी है,
हम एक ढहे हुए मकान के नीचे
दबे हैं
चीख निकालना भी मुश्किल है।”

(ii) पूँजीवादी व्यवस्था का विरोध-आरंभ से ही मुक्तिबोध का झुकाव मार्क्सवाद की तरफ रहा है। कवि शोषण व्यवस्था से जुड़े व्यक्तियों से घृणा करता है। कवि का विचार है कि उसका जीवन पूँजीवादी व्यवस्था की देन है। जहाँ के लोग झूठी चमक-दमक तथा झूठी शान से निर्मित दोगली जिंदगी जी रहे हैं। कवि इस पूँजीवादी व्यवस्था को शीघ्र-से-शीघ्र नष्ट करना चाहता है तथा उसके स्थान पर समाजवाद लाना चाहता है।

(iii) शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति-मुक्तिबोध ने स्वयं अभावग्रस्त जीवन व्यतीत किया और गरीबों के जीवन को निकट से देखा। इसलिए कवि अपनी कविताओं में जहाँ एक ओर शोषित वर्ग के प्रति सहानभति व्यक्त करता है, वहीं दूसरी ओर शोषितों को आर्थिक तथा सामाजिक शोषण से मुक्त भी करना चाहता है। कवि ने अपनी कविताओं में शोषित समाज के अनेक चित्र अंकित किए हैं तथा जनहित के दृष्टिकोण को अपनाया है।

(iv) व्यंग्यात्मकता-मुक्तिबोध के काव्य में तीखा तथा चुभने वाला व्यंग्य देखा जा सकता है। कवि सामाजिक रूढ़ियों पर करारा व्यंग्य करता है और यथार्थ चित्रण में विश्वास रखता है। कवि का यह चित्रण अपना ही भोगा यथार्थ है।

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(v) वर्गहीन समाज की स्थापना पर बल-मुक्तिबोध एक ऐसा वर्गहीन समाज स्थापित करना चाहते थे जिसमें समाज तथा संस्कृति के लिए स्वस्थ मूल्यों का पोषण हो सके। वे स्वार्थपरता, संकीर्णता तथा भाई-भतीजावाद को समाप्त करना चाहते थे। में साम्यवाद की स्थापना अवश्य होगी और भारतवासी शोषण के चक्र से मुक्त हो सकेंगे। इसलिए कवि कहता है-
“कविता में कहने की आदत नहीं, पर कह दूँ,
वर्तमान समाज चल नहीं सकता,
पूँजी से जुड़ा हृदय बदल नहीं सकता,
स्वातंत्र्य व्यक्ति का वादी
छल नहीं सकता मुक्ति के मन को,
जन को”

4. भाषा-शैली-मुक्तिबोध के काव्य का कलापक्ष भी काफी समृद्ध है। परंतु बिंबात्मकता का अधिक सहारा लेने के कारण उनकी कविता कुछ स्थलों पर जटिल-सी हो गई है। वे अनेक प्रकार के कल्पना-चित्रों तथा फैटसियों का निर्माण करते हुए चलते हैं।

वस्तुतः मुक्तिबोध ने साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है। यदि इसमें संस्कृत के तत्सम् प्रधान शब्द हैं तो अंग्रेज़ी, उर्दू, फारसी के शब्द भी हैं। उनकी कविता प्रतीकों के लिए प्रसिद्ध है। उनके प्रतीक पारंपरिक भी हैं और नवीन भी। मुक्तिबोध ने अपनी काव्य भाषा में उपमा, मानवीकरण, रूपक, उत्प्रेक्षा तथा अनुप्रास आदि अलंकारों का स्वाभाविक रूप से वर्णन किया है। कवि शमशेर सिंह बहादुर ने उनकी काव्य कला के बारे में सही ही लिखा है-“अद्भुत संकेतों भरी, जिज्ञासाओं से अस्थिर, कभी दूर से शोर मचाती, कभी कानों में चुपचाप राज़ की बातें कहती चलती है। हमारी बातें हमको सुनाती हैं। हम अपने को एकदम चकित होकर देखते हैं और पहले से अधिक पहचानने लगते हैं।”

सहर्ष स्वीकारा है कविता का सार

प्रश्न-
गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता कविवर मुक्तिबोध की एक उल्लेखनीय कविता है। यह उनकी काव्य-रचना ‘भूरी-भूरी खाक धूल’ में संकलित है। यहाँ कवि ने असीम सत्ता को अपनी प्रेरणा का स्रोत माना है। कवि स्वीकार करता हुआ कहता है कि उसे प्रकृति से जो सुख-दुःख, राग-विराग आदि प्राप्त हुए हैं, उन्हें उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया है। कवि की गरबीली गरीबी, गंभीर अनुभूतियाँ, विचार, चिंतन तथा भावनाओं की नदी-सब कुछ मौलिक हैं। कवि अपने ईश्वर से पूर्णतयाः संबद्ध है। वह कहता है कि वह उस अनंत सत्ता के स्नेह को अपने भीतर से जितना उड़ेलता है, उतना ही वह फिर से भर जाता है। कवि को लगता है कि उसके भीतर कोई मधुर स्नेह रूपी झरना है। उसे ऐसा अनुभव होता है कि परमात्मा चाँद की तरह उसके हृदय को प्रकाशित करता रहता है।

कवि अपनी उस अनंत सत्ता से उसको भूलने की कठोर सजा पाना चाहता है। कवि के लिए उजाला असहनीय है। उसकी आत्मा कमजोर होने के कारण छटपटाती रहती है। वह धएँ के बादलों में लापता हो जाना चाहता है। कवि को आभास है कि उसके लापता होने पर ही उसे उस असीम सत्ता का सहारा प्राप्त होगा। अंत में कवि कहता है कि उसके पास जो कुछ भी है वह उस अनंत सत्ता को बहुत प्रिय है।

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