HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 6 उषा

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 6 उषा Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 6 उषा

HBSE 12th Class Hindi उषा Textbook Questions and Answers

कविता के साथ

प्रश्न 1.
कविता के किन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि ‘उषा’ कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्दचित्र है?
उत्तर:
कविता में वर्णित राख से लीपा हुआ चौका, काली सिल, स्लेट पर लाल खड़िया चाक आदि उपमानों से यह पता चलता है कि कवि ने गाँव के परिवेश को आधार बनाकर उषाकालीन प्रकृति का सुंदर चित्रण किया है। महानगरों में कहीं भी न तो लीपा हुआ चौका देखा जा सकता है, न ही स्लेट और न ही खड़िया चाक। ये सभी शब्द-चित्र गाँव से संबंधित हैं। गाँव के प्रत्येक घर में प्रातःकाल होने के बाद पहले चौका लीपा जाता है। तत्पश्चात् सिल का प्रयोग होता है फिर कुछ देर बाद बालक को स्लेट पट्टी दी जाती है। अतः यहाँ कवि ने ग्रामीण जन-जीवन के गतिशील चित्र अंकित किए हैं। इससे पता चलता है कि ये तीनों शब्दचित्र स्थिर न होकर गतिशील हैं क्योंकि एक क्रिया के समाप्त होने के बाद दूसरी क्रिया का आरंभ होता है।

प्रश्न 2.
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)
नई कविता में कोष्ठक, विराम चिह्नों और पंक्तियों के बीच का स्थान भी कविता को अर्थ देता है। उपर्युक्त पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में क्या विशेष अर्थ पैदा हुआ है? समझाइए।
उत्तर:
नई कविता अपने प्रयोगों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ कवि ने भाषा शिल्प के स्तर पर नए प्रयोग करके अर्थ की अभिव्यक्ति की है। सर्वप्रथम कवि ने कोष्ठक में ‘अभी गीला पड़ा है’ पंक्ति का प्रयोग किया है जो कि अतिरिक्त ज्ञान की सूचक है। यह पंक्ति आकाश रूपी चौके की ताज़गी और नमी को सूचित करती है। यह जानकारी पहले भी दी जा चुकी है। राख से लीपा हुआ चौका अपने आप में गीलेपन को सूचित करता है परंतु अतिरिक्त जानकारी के लिए कवि ने कोष्ठक का प्रयोग किया है जोकि गीलेपन को पूर्णतः स्पष्ट करता है।

अपनी रचना

अपने परिवेश के उपमानों का प्रयोग करते हुए सूर्योदय और सूर्यास्त का शब्दचित्र खींचिए।
उत्तर:
प्रातःकालीन सूर्योदय हो रहा है जिसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानों वह नीले सरोवर में स्नान करके बाहर निकला है। सूर्य लाल रंग का पक्षी है जो नीले आकाश के तारों को चुगकर खा जाता है और ओस कणों से अपनी प्यास बुझाता है। धीरे-धीरे यह सूर्य आकाश के मध्य विराजमान हो जाता है तथा अपने प्रकाश द्वारा संपूर्ण संसार को प्रकाशमान कर देता है। परंतु धीरे-धीरे यह सूर्य पर्वतों के शिखरों, वृक्षों, भवनों को पार करता हुआ पश्चिम दिशा की ओर अग्रसर होता है। लगता है कि सूर्य एक थका हुआ मुसाफिर है जो दिन भर यात्रा करने के बाद थक गया है तथा थकान के कारण उसका चेहरा लाल रंग का हो गया है। विश्राम करने के लिए वह पश्चिम दिशा रूपी गुफा में प्रवेश करने लगता है। उसकी गति मंद हो जाती है। अन्ततः वह अपनी थकान को दूर करने के लिए विश्राम करने लगता है तथा दूसरी ओर सूर्यास्त के बाद अँधेरा संसार को अपनी आगोश में ले लेता है।

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आपसदारी

सूर्योदय का वर्णन लगभग सभी बड़े कवियों ने किया है। प्रसाद की कविता ‘बीती विभावरी जाग री’ और अज्ञेय की ‘बावरा अहेरी’ की पंक्तियाँ आगे बॉक्स में दी जा रही हैं। ‘उषा’ कविता के समानांतर इन कविताओं को पढ़ते हुए नीचे दिए गए बिंदुओं पर तीनों कविताओं का विश्लेषण कीजिए और यह भी बताइए कि कौन-सी कविता आपको ज्यादा अच्छी लगी और क्यों ?
→ उपमान
→ शब्दचयन
→ परिवेश
बीती विभावरी जाग री!
अंबर पनघट में डुबो रही-
तारा-घट ऊषा नागरी।
खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लाई-
मधु मुकुल नवल रस गागरी।
अधरों में राग अमंद पिए,
अलकों में मलयज बंद किए
तू अब तक सोई है आली आँखों में भरे विहाग री। -जयशंकर प्रसाद
उत्तर:
उपमान-“अंबर पनघट में डुबो रही
तारा-घट ऊषा नागरी।”
यहाँ कवि ने आकाश को ‘पनघट’, तारों को ‘घट’ (घड़ा) तथा ऊषा को ‘नागरी’ कहा है।

शब्दचयन-यहाँ कवि ने शृंगारिक शब्दों का सुंदर प्रयोग किया है। प्रस्तुत गीत की शब्दावली पाठक के मन में प्रेम के संयोग और वियोग दोनों पक्षों को उभारती है। शब्दचयन बड़ा ही सटीक तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है। कविता को एक बार पढ़कर पुनः पढ़ने का मन करता है।

परिवेश-कविता पढ़कर ऐसा लगता है कि मानो किसी सुंदर उपवन में बैठकर कवि गीत लिख रहा है, वहीं पर सुंदर युवती सोई हुई है जिसे जगाने के लिए कवि प्रकृति को आधार बनाता है।
भोर का बावरा अहेरी
पहले बिछाता है आलोक की
लाल-लाल कनियाँ
पर जब खींचता है जाल को
बाँध लेता है सभी को साथः
छोटी-छोटी चिड़ियाँ, मँझोले परेवे, बड़े-बड़े पंखी
डैनों वाले डील वाले डौल के बेडौल
उड़ते जहाज़,
कलस-तिसूल वाले मंदिर-शिखर से ले
तारघर की नाटी मोटी चिपटी गोल धुस्सों वाली उपयोग-सुंदरी
बेपनाह काया कोः
गोधूली की धूल को, मोटरों के धुएँ को भी
पार्क के किनारे पुष्पिताग्र कर्णिकार की आलोक-खची तन्चि रूप-रेखा को
और दूर कचरा जलानेवाली कल की उदंड चिमनियों को, जो
धुआँ यों उगलती हैं मानो उसी मात्र से अहेरी को हरा देंगी। -सच्चिदानन्द हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
उत्तर:
उपमान बावरा अहेरी, चिड़ियाँ जाल, मंझोले परेवे, उड़ते जहाज़, उदंड चिमनियाँ आदि सर्वथा नवीन उपमान हैं।

शब्दचयन-यहाँ कवि ने सटीक तथा भावानुकूल शब्दों का चयन किया है जिससे कविता बड़ी सजीव बन पड़ी है। कविता का प्रत्येक शब्द बड़ा ही गतिशील एवं सक्रिय दिखाई देता है।

परिवेश-यह कविता नगरीय परिवेश का चित्रण करती है और सूर्य की किरणों द्वारा नगर पर फैलने का यथार्थ वर्णन करती है। दोनों कविताओं में से मुझे “बीती विभावरी जाग री” कविता अच्छी लगी है क्योंकि यह कविता महानगरों से दूर किसी ग्रामीण आँचल का सुंदर वर्णन करती है। इस कविता का प्रकृति वर्णन बहुत ही स्वाभाविक बन पड़ा है परंतु ‘बावरा अहेरी’ कविता शहरी जन-जीवन के धूल और धुएँ से ढकी हुई है। इसलिए यह कविता मुझे अच्छी नहीं लगती।

HBSE 12th Class Hindi उषा Important Questions and Answers

सराहना संबंधी प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
“प्रात नभ या बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)”
उत्तर:

  1. यहाँ कवि ने प्रातःकालीन प्रकृति का बहुत ही सूक्ष्म चित्रण किया है जिसमें सुंदर तथा नवीन उपमानों का प्रयोग किया है।
  2. ‘शंख जैसे’, ‘राख ………………. पड़ा है। दोनों में उपमा अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  3. इस पद्यांश में मौलिक कल्पना के साथ-साथ नवीन उपमानों का प्रयोग किया गया है।
  4. (अभी गीला पड़ा है) पंक्ति कोष्ठक में रखी गई है जो कि आकाश रूपी चौके की नमी तथा ताज़गी को सूचित करती है।
  5. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया गया है।
  6. शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  7. मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है।

2. “नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।”
उत्तर:

  1. इस पद्यांश में कवि ने सूर्योदय की बेला में क्षण-क्षण परिवर्तित प्रकृति का सूक्ष्म चित्रण किया है।
  2. ‘नीला जल’ नीले आकाश को सांकेतिक करता है और ‘गौर झिलमिल देह’ उगते हुए सूर्य के प्रकाश की ओर संकेत करती है।
  3. ‘नील जल’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  4. ‘नील जल ……………. हिल रही हो’ में उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  5. यहाँ नीले जल में झिलमिलाती गोरी देह उगते हुए सूर्य की द्योतक है।
  6. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  7. शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  8. मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है।

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3. “बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने”
उत्तर:

  1. इसमें कवि ने नीले नभ से उदित होते हुए सूर्य के सौंदर्य का बहुत ही मनोहारी वर्णन किया है।
  2. ‘बहुत काली सिल ……………. गई हो’ तथा ‘स्लेट पर …………… किसी ने’ में उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  3. ‘काली सिल’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  4. लाल केसर से धुली काली सिल, भोर कालीन गीले वातावरण में सूर्योदय की लालिमा का द्योतन करती है।
  5. ‘स्लेट पर लाल खड़िया चाक’ प्रातःकालीन गीले वातावरण में उगते हुए सूर्य के लिए प्रयुक्त किया गया है।
  6. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  7. शब्द-चयन सर्वथा अनुकूल व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  8. संपूर्ण पद्यांश में चित्रात्मक व बिंबात्मक शैलियों का प्रयोग हुआ है।
  9. मुक्त छंद का सफल प्रयोग है।

विषय-वस्तु पर आधारित लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भोर के नभ को राख से लीपा चौका क्यों कहा गया है?
उत्तर:
भोरकालीन आकाश गीली राख के रंग के समान गहरा स्लेटी रंग का होता है। उस समय के वातावरण में नमी के साथ-साथ पवित्रता भी होती है। अतः स्लेटी रंग को नमी तथा पवित्रता के कारण ही भोर के नभ की राख से लीपा गया गीला चौका कहा गया है। कवि सूर्योदयकालीन वातावरण की तुलना रसोई की पावनता के साथ करता है।

प्रश्न 2.
नील जल में हिलती झिलमिलाती देह के द्वारा कवि क्या स्पष्ट करना चाहता है?
उत्तर:
कवि ने नील जल शब्द का प्रयोग नीले आकाश के लिए किया है। जिस प्रकार नीले जल में कोई गौरवर्णी नारी धीरे-धीरे बाहर निकलकर आती है, उसी प्रकार नीले आकाश से सूर्य की श्वेत किरणें विकीर्ण होकर प्रकाश फैलाने लगती हैं।

प्रश्न 3.
स्लेट पर लाल खड़िया चाक मलने से क्या अभिप्राय है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
यदि काली स्लेट पर लाल खड़िया चाक को लीप दिया जाए तो वह गीली होने के साथ-साथ थोड़ी-सी लालिमा लिए हुए रहती है। उसका रंग भोरकालीन गहरे आकाश में सूर्य की लालिमा जैसा हो जाता है। यहाँ कवि का अभिप्राय उस नीले आकाश से है जिसमें सूर्य की लालिमा धीरे-धीरे व्याप्त होने लगती है।

प्रश्न 4.
सिल और स्लेट शब्दों का प्रयोग कहाँ तक सार्थक है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
सिल तथा स्लेट शब्दों का प्रयोग कवि ने भोरकालीन आकाश के गहरे नीले रंग के लिए किया है जिसमें सूर्योदय की थोड़ी-सी लालिमा भी मिली हुई होती है।

प्रश्न 5.
‘उषा’ कविता में निहित प्रकृति-सौंदर्य की विवेचना कीजिए। [H.B.S.E. March, 2019 (Set-B, C)]
उत्तर:
रात्रि के समय आकाश में कालिमा और नीली आभा फैली हुई होती है जिसमें झिलमिलाते हुए तारे अपना सौंदर्य बिखेरते हैं। सूर्योदय से पूर्व के काल में हल्का-हल्का प्रकाश चमकने लगता है और तारे लुप्त होने लगते हैं। इस अवसर पर आकाश में थोड़ी-सी नमी होती है तथा पौ फटने पर केसरिया रंग छिटक जाता है। फलस्वरूप पक्षी जाग जाते हैं और प्रकृति अंगड़ाई लेकर मुखरित होने लगती है। धीरे-धीरे लालिमा पूरे संसार पर छा जाती है। सूर्योदय के पश्चात् सारा संसार प्रकाश से जगमगाने लगता है और संसार के सभी प्राणी अपने-अपने क्रिया-कलाप आरंभ कर देते हैं।

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प्रश्न 6.
सूर्योदय से उषा का कौन-सा जादू टूट जाता है?
उत्तर:
सर्योदय के कारण उषा का अलौकिक रंग-रूप टने लगता है। सर्योदय से पहले प्रातःकालीन प्रकति क्षण-क्षण में परिवर्तित होती हुई दिखाई देती है। रात्रिकालीन कालिमा लुप्त हो जाती है और हल्की-हल्की लालिमा पूर्व दिशा में फैलने लगती है। इस प्रकार उषा का अद्वितीय रूप-सौंदर्य लुप्त हो जाता है और आकाश में सूर्य का प्रकाश फैलने लगता है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. शमशेर बहादुर सिंह का जन्म कब हुआ?
(A) 13 जनवरी, 1921
(B) 13 जनवरी, 1911
(C) 15 जनवरी, 1912
(D) 26 जनवरी, 1913
उत्तर:
(B) 13 जनवरी, 1911

2. शमशेर बहादुर सिंह का जन्म किस प्रदेश में हुआ?
(A) उत्तराखंड में
(B) मध्य प्रदेश में
(C) पंजाब में
(D) राजस्थान में
उत्तर:
(A) उत्तराखंड में

3. शमशेर बहादुर सिंह का जन्म किस जनपद में हुआ?
(A) हरिद्वार में
(B) ऋषिकेश में
(C) देहरादून में
(D) मसूरी में
उत्तर:
(C) देहरादून में

4. शमशेर बहादुर सिंह का निधन कब हुआ?
(A) सन् 1992 में
(B) सन् 1991 में
(C) सन् 1990 में
(D) सन् 1993 में
उत्तर:
(D) सन् 1993 में

5. ‘कुछ कविताएँ’ के रचयिता हैं-
(A) शमशेर बहादुर सिंह
(B) आलोक धन्वा
(C) हरिवंश राय बच्चन
(D) रघुवीर सहाय
उत्तर:
(A) शमशेर बहादुर सिंह

6. ‘बात बोलेगी’ के रचयिता हैं-
(A) कुंवर नारायण
(B) विष्णु खरे
(C) शमशेर बहादुर सिंह
(D) हरिवंश राय बच्चन
उत्तर:
(C) शमशेर बहादुर सिंह

7. शमशेर बहादुर सिंह को ‘दो मोती के दो चंद्रमा होते’ रचना पर कौन-सा राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ?
(A) ज्ञानपीठ
(B) साहित्य अकादेमी
(C) शिखर सम्मान
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) साहित्य अकादेमी

8. ‘उर्दू-हिंदी कोश’ के संपादक कौन थे?
(A) आलोक धन्वा
(B) हरिवंश राय बच्चन
(C) रघुवीर सहाय
(D) शमशेर बहादुर सिंह
उत्तर:
(D) शमशेर बहादुर सिंह

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9. ‘उषा’ कविता में किस काल की परिवर्तित प्रकृति का वर्णन किया गया है?
(A) सूर्योदय पूर्व काल की
(B) सूर्योदय के बाद की
(C) रात्रिकाल की
(D) सूर्योदय काल की
उत्तर:
(A) सूर्योदय पूर्व काल की

10. ‘उषा’ कविता के रचयिता हैं-
(A) कुँवर नारायण
(B) आलोक धन्वा
(C) शमशेर बहादुर सिंह
(D) रघुवीर सहाय
उत्तर:
(C) शमशेर बहादुर सिंह

11. ‘प्रातः नभ था बहुत नीला शंख जैसे’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) उपमा अलंकार
(B) रूपक अलंकार
(C) अनुप्रास अलंकार
(D) मानवीकरण अलंकार
उत्तर:
(A) उपमा अलंकार

12. ‘उषा’ कविता में किस छंद का प्रयोग हुआ है?
(A) दोहा छंद
(B) मुक्त छंद
(C) सवैया छंद
(D) कवित्त छंद
उत्तर:
(B) मुक्त छंद

13. ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ के अतिरिक्त शमशेर बहादुर सिंह को अन्य कौन-सा सम्मान प्राप्त हुआ?
(A) शिखर सम्मान
(B) ज्ञानपीठ पुरस्कार
(C) कबीर सम्मान
(D) तुलसी सम्मान
उत्तर:
(C) कबीर सम्मान

14. शमशेर बहादुर सिंह कहाँ पर पेंटिंग सीखने लगे?
(A) उकील बंधुओं के कला विद्यालय में
(B) साहित्य अकादमी में
(C) कला केंद्र में
(D) दिल्ली विश्वविद्यालय में
उत्तर:
(A) उकील बंधुओं के कला विद्यालय में

15. ‘चुका भी हूँ नहीं मैं’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1970 में
(B) सन् 1972 में
(C) सन् 1971 में
(D) सन् 1975 में
उत्तर:
(D) सन् 1975 में

16. ‘कुछ कविताएँ’ काव्य-संग्रह का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1960 में
(B) सन् 1959 में
(C) सन् 1958 में
(D) सन् 1957 में
उत्तर:
(B) सन् 1959 में

17. ‘शमशेर’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1970 में
(B) सन् 1969 में
(C) सन् 1971 में
(D) सन् 1972 में
उत्तर:
(C) सन् 1971 में

18. ‘इतने पास अपने’ के रचयिता हैं-
(A) कुँवर नारायण
(B) हरिवंश राय बच्चन
(C) आलोक धन्वा
(D) शमशेर बहादुर सिंह
उत्तर:
(D) शमशेर बहादुर सिंह

19. ‘इतने पास अपने का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1980 में
(B) सन् 1979 में
(C) सन् 1975 में
(D) सन् 1977 में
उत्तर:
(A) सन् 1980 में

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20. ‘उषा’ कविता में किस रंग की खड़िया चाक मलने की बात कही गई है?
(A) लाल
(B) पीली
(C) सफेद
(D) नीली
उत्तर:
(A) लाल

21. ‘उषा’ दिन का कौन-सा समय होता है?
(A) प्रभात
(B) मध्याह्न
(C) संध्या
(D) रात्रि
उत्तर:
(A) प्रभात

22. कविता में चौका किससे लीपा हुआ होने की बात कही गई है?
(A) गोबर
(B) राख
(C) मिट्टी
(D) लाल खड़िया
उत्तर:
(B) राख

23. ‘उषा’ का जादू टूटने का समय क्या है?
(A) सूर्यास्त
(B) प्रदोश
(C) सूर्योदय
(D) प्रहर
उत्तर:
(C) सूर्योदय

24. कविता में राख से लीपा हुआ क्या बताया है?
(A) आकाश
(B) चन्द्र
(C) काली सिल
(D) चौका
उत्तर:
(D) चौका

25. ‘राख से लीपा हुआ चौका’ आकाश की किस स्थिति की व्यंजना करता है?
(A) पवित्रता की
(B) ताज़गी की
(C) विशालता की
(D) गंभीरता की
उत्तर:
(A) पवित्रता की

26. राख से लीपा हुआ चौका गीला पड़ा होने से क्या अभिप्राय है?
(A) वर्षा
(B) पानी
(C) वातावरण की नमी
(D) रात शेष रहना
उत्तर:
(C) वातावरण की नमी

27. ‘बहुत काली सिल’ से क्या अभिप्राय है?
(A) रसोई की काली सिल
(B) रात की कालिमा
(C) प्रातःकाल की कालिमा
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) रात की कालिमा

28. ‘लाल खड़िया चाक’ क्या व्यंजित करती है?
(A) सूर्योदय से पूर्व की लालिमा
(B) खड़िया चाक का लाल रंग
(C) सूर्यास्त के बाद की लालिमा
(D) दोपहर की लालिमा
उत्तर:
(A) सूर्योदय से पूर्व की लालिमा

29. ‘नील जल में …………… हिल रही हो’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) अनुप्रास अलंकार
(B) रूपक अलंकार
(C) उपमा अलंकार
(D) उत्प्रेक्षा अलंकार
उत्तर:
(D) उत्प्रेक्षा अलंकार

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30. शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित ‘उषा’ कविता में किस शैली का प्रयोग हुआ है?
(A) विवरणात्मक शैली का
(B) चित्रात्मक शैली का
(C) संबोधन शैली का
(D) वर्णनात्मक शैली का
उत्तर:
(B) चित्रात्मक शैली का

31. प्रातःकालीन आकाश का रंग कैसा था?
(A) लाल
(B) सुनहरा
(C) नीला
(D) काला
उत्तर:
(C) नीला

32. ‘लाल केसर से धुली काली सिल’ किसे कहा गया है?
(A) आकाश
(B) तारे
(C) सूर्य
(D) चंद्रमा
उत्तर:
(A) आकाश

33. नीले आकाश में उदय होता हुआ सूर्य किसके समान दिखाई देता है?
(A) गौरवर्णीय सुंदरी के समान
(B) शंख के समान
(C) झील के समान
(D) सिंदूर के समान
उत्तर:
(A) गौरवर्णीय सुंदरी के समान

34. ‘उषा’ कविता में प्रातःकालीन नीला आकाश किसके जैसा बताया गया है?
(A) केसर
(B) शंख
(C) सिंदूर
(D) झील
उत्तर:
(B) शंख

35. ‘लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने स्लेट पर’ पंक्ति में स्लेट क्या है?
(A) तारे
(B) सूर्य
(C) धरती
(D) आकाश
उत्तर:
(D) आकाश

36. ‘उषा’ कविता में बहुत काली सिल की किससे धुलने की बात कही गई है?
(A) खड़िया
(B) पानी
(C) लाल केसर
(D) वर्षा
उत्तर:
(C) लाल केसर

37. सूर्योदय से पहले किसका जादू होता है?
(A) उषा का
(B) निशा का
(C) निशिचर का
(D) भूत का
उत्तर:
(A) उषा का

उषा पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है) [पृष्ठ-36]

शब्दार्थ-भोर = सवेरा, सवेरा होने से पहले का झुटपुटा वातावरण। नभ = आकाश। चौका = रसोई बनाने का स्थान।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘उषा’ से अवतरित है। इसके कवि शमशेर बहादुर सिंह हैं। इस लघु कविता में कवि ने सूर्योदय से पूर्व की प्रकृति का बहुत ही मनोहारी वर्णन किया है।

व्याख्या-प्रातःकालीन सूर्योदय का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि पौ फटने से पहले आकाश का रंग गहरा नीला था। यह शंख के समान गहरा नीला दिखाई दे रहा था। जैसे शंख की कांति स्वच्छ व नीली होती है वैसे ही आकाश भी स्वच्छ और नीली आभा लिए हुए था। उसके बाद भोर हुई तथा आकाश का गहरा नीला रंग थोड़ा मंद पड़ गया और वातावरण में नमी आ गई। उस समय आकाश ऐसा लग रहा था कि मानों राख से लीपा हुआ कोई गीला चौका हो अर्थात् नमी के कारण उसमें थोड़ा गीलापन आ गया था, लेकिन अभी भी उसमें थोड़ा नीलापन और थोड़ा मटमैलापन था।

विशेष-

  1. इस पद्यांश में कवि ने भोर के वातावरण का बहुत ही सूक्ष्म तथा मनोहारी वर्णन किया है।
  2. ‘शंख जैसे’ और ‘राख से लीपा हुआ चौका’ में उपमा अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  3. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सहज प्रयोग हुआ है।
  4. शब्द-प्रयोग सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. प्रस्तुत पद्यांश नवीन उपमानों तथा मौलिक कल्पना के लिए प्रसिद्ध है।
  6. चित्रात्मक शैली है तथा मुक्त छंद का सफल प्रयोग किया गया है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) कवि ने प्रातःकालीन नभ की तुलना नीले शंख से क्यों की है?
(ग) भोर के नभ को राख से लीपा चौका क्यों कहा है?
(घ) चौके के गीले होने का प्रतीकार्थ क्या है?
(ङ) इस पद्यांश के आधार पर प्रातःकालीन प्रकृति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(क) कविता – उषा कवि – शमशेर बहादुर सिंह

(ख) भोरकालीन वातावरण न अधिक काला होता है और न ही उजला। इसलिए कवि ने उसकी तुलना नीले शंख के साथ की है जिसका रंग बुझा-बुझा-सा होता है।

(ग) भोरकालीन वातावरण सुरमयी रंग का होता है और राख से लीपे जाने पर भी आँगन का रंग गहरा सुरमयी हो जाता है। इसलिए कवि ने भोर के नभ को राख से लीपा हुआ चौका कहा है।

(घ) प्रातःकालीन वातावरण में ओस की नमी होती है तथा इसका रंग गहरा परमयी होता है। इसलिए कवि ने इसकी तुलना चौके के साथ की है जोकि बड़ा ही पवित्र माना गया है। अतः चौके के गीले होने का प्रतीकार्थ है-प्रातःकालीन वातावरण में पवित्रता का होना।

(ङ) प्रातःकालीन वातावरण बड़ा ही शांत तथा ओस की नमी के कारण कुछ-कुछ गीला होता है। उस समय आकाश की पूर्व दिशा में हल्की लालिमा होती है जिसमें पेड़-पौधे, खेत-खलिहान बड़े ही मनोहारी प्रतीत होते हैं। धीरे-धीरे सूर्य की लाल-लाल किरणें संपूर्ण प्रकृति पर फैल जाती हैं और कुछ देर बाद यह लालिमा उजाले में परिवर्तित हो जाती है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 6 उषा

[2] बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने [पृष्ठ-36]

शब्दार्थ-सिल = मसाला, चटनी आदि पीसने वाला पत्थर जो रसोई में रखा जाता है। लाल केसर = फूल का सुगंधित पदार्थ, पराग = केसर के फूल का मध्य भाग जो औषधि में डाला जाता है।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘उषा’ से अवतरित है। इसके कवि शमशेर बहादुर सिंह हैं। इस लघु कविता में कवि ने सूर्योदय से पूर्व की प्रकृति का बहुत ही मनोहारी वर्णन किया है। यहाँ कवि उषा की लालिमा का वर्णन करते हुए कहता है कि

व्याख्या-भोर के अस्पष्ट अँधेरे में उगते हुए सूर्य की लाली का धीरे-धीरे मिश्रण होने लगता है। उस समय आकाश ऐसा लगता है कि मानों बहुत गहरी काली सिल लाल केसर से धुल गई हो अर्थात् संपूर्ण आकाश में सूर्य की लालिमा फैलकर उसको हल्के लाल रंग का बना देती है। उस समय यह वातावरण ऐसा दिखाई देता है कि मानों स्लेट पर लाल खड़िया चाक मिट्टी लगा दी गई है। यहाँ कवि ने नीले-काले आकाश की तुलना काली स्लेट के साथ की है और सूर्य की लालिमा की तुलना लाल खड़िया चाक के साथ की है।

विशेष-

  1. इस पद्यांश में कवि ने प्रातःकालीन प्रकृति के क्षण-क्षण बदलते हुए वातावरण का मनोहारी वर्णन किया है।
  2. रात की कालिमा, ओस का गीलापन तथा सूर्य की लालिमा तीनों का मिश्रण करके एक सुंदर चित्र प्रस्तुत किया है।
  3. ‘बहुत काली सिल …………….. गई हो’ तथा ‘स्लेट पर ……………. किसी ने दोनों में उत्प्रेक्षा अलंकार का सुंदर प्रयोग किया गया है।
  4. ‘काली सिल’ में अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग किया गया है।
  5. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग किया गया है।
  6. मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है तथा बिंब-योजना आकर्षक बन पड़ी है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद्यांश में कवि ने किस प्रकार के दृश्य का चित्रण किया है?
(ग) ‘काली सिल’, ‘स्लेट’ किस दृश्य को अंकित करती हैं?
(घ) ‘लाल केसर’ तथा ‘लाल खड़िया चाक’ से किस चित्र को अंकित किया गया है?
उत्तर:
(क) कवि – शमशेर बहादुर सिंह कविता – उषा

(ख) इस पद्यांश में कवि ने भोर के अँधेरे वातावरण में सूर्योदय की हल्की लालिमा के मिश्रण का दृश्य अंकित किया है जोकि बड़ा ही मनोहारी बन पड़ा है।

(ग) भोर के समय आकाश का रंग सुरमयी काला होता है। इस समय का अंधकार काली सिल या काली स्लेट जैसा होता है। इसलिए कवि ने काली सिल अथवा काली स्लेट द्वारा भोरकालीन सुरमयी अँधेरे का सुंदर चित्रण किया है।

(घ) ‘लाल केसर’ तथा ‘लाल खड़िया चाक’ सूर्योदय की लालिमा को चित्रित करने में समर्थ हैं। ये दोनों उपमान सर्वथा मौलिक तथा जनरुचि के अनुकूल हैं।

[3] नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।
और….
जादू टूटता है इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है। [पृष्ठ-36]

शब्दार्थ-नील जल = नीले रंग का पानी। गौर = गोरे रंग की। झिलमिल देह = चमकता हुआ शरीर। सूर्योदय = सूर्य का उदित होना।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘उषा’ से अवतरित है। इसके कवि शमशेर बहादुर सिंह हैं। इस लघु कविता में कवि ने सूर्योदय से पूर्व की प्रकृति का बहुत ही मनोहारी वर्णन किया है। यहाँ कवि सूर्योदय का वर्णन करते हुए कहता है कि-

व्याख्या-प्रातःकाल में पहले तो आकाश में गहरा नीला रंग होता है फिर सूर्य की श्वेत आभा दिखाई देने लगती है। उस समय का प्राकृतिक सौंदर्य ऐसा दिखाई देता है मानों किसी सुंदर युवती की गोरी देह नीले रंग के पानी में झिलमिला रही हो परंतु कुछ समय बाद आकाश में सूर्य उदित हो जाता है। पता भी नहीं लग पाता कि उषा का क्षण-क्षण में बदलता हुआ सौंदर्य लुप्त हो जाता है अर्थात् क्षण भर में ही आकाश में सूर्योदय हो जाता है और प्रकृति का सौंदर्य भी नष्ट हो जाता है।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने सूर्योदयकालीन प्राकृतिक शोभा का बहुत ही सूक्ष्म चित्रण किया है।
  2. ‘नील जल ……………….. हिल रही हो’ में उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  3. ‘नीला जल’, ‘हो रहा है’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  4. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है।
  5. शब्द-चयन सर्वथा सटीक व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  6. संपूर्ण पद्यांश चित्रात्मक भाषा के लिए प्रसिद्ध है।
  7. मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) नीले जल में गौर देह के झिलमिलाने में कौन सा दृश्य चित्रित किया है?
(ख) नीले जल द्वारा कवि प्रातःकाल के किस दृश्य का अंकन करना चाहता है?
(ग) गोरी देह की झिलमिलाने की समानता किस दृश्य से की गई है?
(घ) उषा का जादू टूटने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
(क) नीले जल में गौर देह के झिलमिलाने के माध्यम से कवि नीले आकाश में सूर्य की कांति के झिलमिलाने का दृश्य अंकित करता है। प्रातःकाल के समय आकाश नीला होता है तथा सूर्य की पहली किरणें झिलमिलाकर उसको अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं।

(ख) नीले जल के उपमान द्वारा कवि प्रातःकालीन नीले आकाश की निर्मलता और स्वच्छता को अंकित करता है।

(ग) प्रातःकाल में सूर्य की लालिमा धीरे-धीरे श्वेत होने लगती है। उस समय के वातावरण में कुछ नमी तथा कुछ चमक होती है। इसके लिए कवि ने नीले जल में स्नान करने वाली गोरी देह का वर्णन किया है जोकि सर्वथा उचित एवं प्रभावशाली बन पड़ा है।

(घ) उषा के जादू टूटने से अभिप्राय है प्रातःकालीन प्रकृति के अद्वितीय सौंदर्य का कम होना। उस समय प्रकृति क्षण-क्षण में परिवर्तित होती रहती है। भोर के समय आकाश नीला तथा काला होता है फिर पूर्व दिशा में हल्की लालिमा छा जाती है जिससे प्रकृति में नीलिमा व लालिमा का मिश्रण हो जाता है और अन्ततः दय के संपूर्ण आकाश में श्वेत लालिमा फैल जाती है।

उषा Summary in Hindi

उषा कवि-परिचय

प्रश्न-
शमशेर बहादुर सिंह का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा शमशेर बहादुर सिंह का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-नई कविता में शमशेर बहादुर सिंह का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनका काव्य तथा व्यक्तित्व बहुमुखी तथा विविधतापूर्ण है। उनका जन्म 13 जनवरी, 1911 ई० को देहरादून में एक जाट परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम बाबू सिंह था जोकि बडे ही निष्ठावान सरकारी नौकर थे। उनकी माता का नाम प्रभुदई था। वे बड़ी ही धार्मिक विचारों वाली स्त्री थी। माता के देहांत के बाद पूरा परिवार बिखर गया और पिता ने दूसरी शादी कर ली। शमशेर का विवाह धर्मवती से हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा देहरादून में हुई। उन्होंने 1928 ई० में हाई स्कूल तथा 1933 ई० में प्रयाग विश्वविद्यालय से बी०ए० की परीक्षाएँ उत्तीर्ण की। उन्होंने अंग्रेजी विषय में एम०ए० करनी चाही, परंतु सफल नहीं हो पाए। बाद में दिल्ली के उकील बंधुओं के ‘कला विद्यालय’ में पेंटिंग सीखने लगे, लेकिन शीघ्र ही वापिस देहरादून लौट गए और अपने ससुर की कैमिस्ट की दुकान में कंपाउडर का काम करने लगे। उनका संपूर्ण जीवन प्रायः अस्थिर ही रहा। 1993 ई० में अहमदाबाद में उनका देहांत हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ-शमशेर ने गद्य तथा पद्य दोनों में कुशलतापूर्वक लिखा है। ‘कुछ कविताएँ’ (1959), ‘शमशेर’ (1971), ‘चुका भी हूँ नहीं मैं’ (1975), ‘इतने पास अपने’ (1980), ‘उदिता’ (1980), ‘बात बोलेगी’ (1981) आदि उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। उन्होंने सन् 1932-33 में लिखना आरंभ किया था तथा उनकी आरंभिक रचनाएँ ‘सरस्वती’ तथा ‘रूपाभ’ में प्रकाशित हुईं। सन् 1951 में प्रकाशित दूसरे तार सप्तक में उनकी रचनाएँ भी सम्मिलित की गईं। सन् 1977 में उन्हें ‘दो मोती के दो चंद्रमा होते’ रचना पर साहित्य अकादेमी पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया गया।

3. काव्यगत विशेषताएँ-उनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(क) राष्ट्रीय चेतना-शमशेर जी की आरंभिक कविताओं में देश-प्रेम की भावना देखी जा सकती है। कवि ने स्वतंत्रता पूर्व अंग्रेज़ी शासकों के अत्याचारों को समीप से देखा था। उन्होंने अपनी कविताओं में अंग्रेज़ी राज्य की क्रूरता तथा हिंसा का यथार्थ वर्णन किया है। सन् 1944 में अंग्रेज़ी सरकार ने मजदूरों पर गोलियाँ चलवाई थीं। इस संदर्भ में कवि लिखता है
“ये शाम है
कि आसमान खेत है पके हुए अनाज का
लपक उठी लहू से भरी दरातियाँ
कि आग है धुआँ-धुआँ
सुलग रहा
ग्वालियर के मजूर का हृदय।”

(ख) मार्क्सवादी चेतना-शमशेर जी सन् 1938 में मार्क्सवाद की ओर आकृष्ट हुए थे और 1945 में कम्युनिस्ट पार्टी के कम्यून में रहे। वहीं पर रहते हुए उन्होंने ‘नया साहित्य’ का संपादन भी किया। वे मानवता के उज्ज्वल भविष्य के लिए मार्क्सवाद को आवश्यक मानते थे। इसीलिए एक स्थल पर वे लिखते हैं-
“वाम-वाम-वाम दिशा
समय साम्यवादी”

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 6 उषा

(ग) सामाजिक चेतना-शमशेर जी के काव्य में सामाजिक चेतना भी देखी जा सकती है। उनका कहना था कि व्यक्ति अपने आप में समाज का ही एक अंश है। अतः कवि को अपनी भावनाएँ समाज के सत्य के संदर्भ में व्यक्त करनी चाहिएँ। इसीलिए वे समाज के कटुतम अनुभवों को अपनी कविताओं में प्रस्तुत करते हुए दिखाई देते हैं
“मैं समाज तो नहीं, न मैं कुल
जीवन,
कण-समूह में हूँ मैं केवल एक कण”।

(घ) वैयक्तिक अनुभूति-शमशेर जी ने अपनी कविताओं में अपनी निजी संवेदना को भी व्यक्त किया है। उन्होंने अपने जीवन में जो कुछ भोगा और जो कुछ पाया, उन्हीं अनुभूतियों को वे यत्र-तत्र अनुभव करते रहे। उन्होंने अपने प्रणय संबंधों को स्वीकार किया और प्रेमी तथा प्रेमिका के एकत्व की स्थापना पर बल दिया। वे एक स्थल पर लिखते हैं
“मैं तो साये में बँधा सा
दामन में तुम्हारे ही कहीं ग्रह सा
साथ तुम्हारे।”

(ङ) प्रेम और सौंदर्य मूलतः शमशेर जी प्रेम और सौंदर्य के कवि माने जाते हैं। उनकी कविता में प्रेम का रंग बड़ा ही गहरा है। वे प्रेम और सौंदर्य का परस्पर संबंध स्थापित करते नज़र आते हैं। वे प्रेयसी को जीवन का सर्वस्व मानते हैं तथा वादा करके मुकर भी जाते हैं।
“वो कल आयेंगे वादे पर
मगर कल देखिए कब हो?
गलत फिर हज़रते-दिल
आपका तख्मीना होना है।”

(च) मानवतावाद-शमशेर जी का काव्य देश और काल की सीमा में बँधा नहीं है। वे मानवीय चेतना में अधिक विश्वास रखते थे और विश्व-बंधुत्व की भावना को अधिक महत्त्व देते थे। कवि ने नवीन तथा प्राचीन और पूर्व-पश्चिम में कोई भेद स्वीकार नहीं किया। कारण यह था कि वे अपनी कविता में मानव को ही अधिक महत्त्व देते हैं। एक स्थल पर वे लिखते हैं
“बहुत हौले-हौले नाच रहा हूँ
सब संस्कृतियाँ मेरे सरगम में विभोर हैं
क्योंकि मैं हृदय की सच्ची सुख-शांति का राग हूँ
बहुत आदिम, बहुत अभिनव।”
इसी प्रकार कवि ने अपनी कविताओं में जहाँ एक ओर प्रकृति-चित्रण किया है वहीं दूसरी ओर बाह्य आडंबरों तथा रूढ़ियों का भी विरोध किया है। वे जीवन में मृत्यु की हस्ती को भी स्वीकार करते हैं और मृत्यु को अपनी प्रेमिका मानते हैं।

4. कला-पक्ष-शमशेर बहादुर सिंह ने अपने साहित्य में सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है। कहीं-कहीं वे उर्दू भाषा के शब्दों का अधिक प्रयोग करने लगते हैं। उन्होंने भाषा तथा छंद की दृष्टि से अनेक प्रयोग किए हैं। उनकी भाषा में चित्रात्मकता, ध्वन्यात्मकता, लयात्मकता, नाद-सौंदर्य आदि गुण देखे जा सकते हैं। मूलतः उनका काव्य प्रतीकों तथा बिंबों के लिए प्रसिद्ध है। उनके बारे में रंजना अरगड़े लिखती हैं-“शमशेर को कवियों का कवि इसी अर्थ में कहते हैं कि उनकी कविता में हिंदी भाषा की अभिव्यक्ति-क्षमता खिलती-खुलती नज़र आती है। ऐसी बात नहीं है कि उन्होंने हिंदी भाषा को अभिव्यक्ति के उच्चतम शिखर तक पहुँचा दिया है पर आने वाले कवियों के समक्ष उन्होंने अनेक संभावनाएँ खोल दी हैं।”

उषा कविता का सार

प्रश्न-
शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित कविता ‘उषा’ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘उषा’ कविता कविवर शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित एक लघु कविता है जिसमें कवि ने सूर्योदय से पूर्व पल-पल परिवर्तित प्रकृति का शब्द-चित्र प्रस्तुत किया है : भोर होने से पहले आकाश का रंग गहरा नीला होता है। इसकी तुलना कवि शंख के साथ करता है परंतु कुछ ही क्षणों के बाद उसमें नमी आ जाती है जिसमें वह राख से लीपे हुए चौके के समान दिखने लगता है। अगले क्षणों में उसमें सूर्य की लालिमा मिल जाती है जिसके फलस्वरूप ऐसा लगता है कि मानों लाल केसर से धुली काली सिल हो अथवा ऐसे लगता है कि मानों काली सिल पर किसी ने लाल खड़िया चाक लगा दी है। थोड़ी ही देर में सूर्य का प्रकाश प्रकट होने लगता है। इस स्थिति में ऐसा प्रतीत होता है कि मानों नीले जल में किसी की गोरी देह झिलमिला रही हो। इस प्रकार उषा का जादू समाप्त हो जाता है और सूर्योदय होने पर सारा आकाश प्रकाश से जगमगाने लगता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि उषा का सौंदर्य प्रति क्षण बदलता रहता है। यहाँ कवि ने उषा के सौंदर्य को देखने का प्रयास नहीं किया, बल्कि उसे पृथ्वी के परिवेश से जोड़कर प्रस्तुत किया है।

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