Author name: Prasanna

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 5 धन का प्रबन्ध

Haryana State Board HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 5 धन का प्रबन्ध Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Home Science Solutions Chapter 5 धन का प्रबन्ध

अति लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
पारिवारिक आय से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
सभी प्रकार की आय का आयोजन नियंत्रण व मूल्यांकन करना, जिससे परिवार के लिए अधिकतम सन्तुष्टि की प्राप्ति हो सके, उसे पारिवारिक आय कहते हैं।

प्रश्न 2.
मौद्रिक आय किसे कहते हैं ?
उत्तर :
आय के कई साधन हैं। वेतन से प्राप्त मुद्रा, व्यापार से प्राप्त मुद्रा, ज़मीन मकान के किराये से प्राप्त मुद्रा आदि। किसी भी साधन से प्राप्त मुद्रा, मौद्रिक आय कहलाती है।

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प्रश्न 3.
आत्मिक आय से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
विभिन्न स्रोतों से प्राप्त मौद्रिक तथा वास्तविक आय के व्यय से प्राप्त होने वाली सन्तुष्टि आत्मिक आय कहलाती है।

प्रश्न 4.
आवश्यक व्यय कौन-कौन से हैं ? आवश्यकताओं के वर्ग भी बताइये।
उत्तर :
भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा एवं चिकित्सा पर किये व्यय आवश्यक व्यय माने जाते हैं। आवश्यकताओं के वर्ग निम्नलिखित हैं –

  1. अनिवार्य आवश्यकताएं (जीवन रक्षक आवश्यकताएँ)
  2. निपुणता-रक्षक आवश्यकताएँ
  3. प्रतिष्ठा-रक्षक आवश्यकताएँ
  4. आराम संबंधी आवश्यकताएँ
  5. विलासिता संबंधी आवश्यकताएँ।

प्रश्न 5.
व्यय किसे कहते हैं ?
उत्तर :
अपने परिवार के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु तथा आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए विभिन्न साधनों से आय को किस प्रकार और कितना विभिन्न आवश्यकताओं पर खर्च किया जाता है, उसे व्यय कहते हैं।

प्रश्न 6.
परिवार की आय को कौन-कौन-से दो भागों में बांटा जा सकता है ?
उत्तर :
परिवार की आय को दो भागों में विभाजित किया जाता है-प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष। प्रत्यक्ष आय वह है जो पैसे के रूप में प्राप्त होती है जैसे वेतन, दुकान की कमाई। अप्रत्यक्ष आय जो किसी नौकरी करने वाले व्यक्ति को सुविधाओं के रूप में मिलती है जैसे मकान, मुफ्त दवाइयाँ, डॉक्टरी सहायता आदि।

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प्रश्न 7.
खर्च कितने प्रकार के हो सकते हैं ?
उत्तर :
परिवार को भिन्न – भिन्न जगहों से आय प्राप्त होती है उसको कहां और कितना प्रयोग किया जाता है को खर्च कहा जाता है। खर्च तीन प्रकार के होते हैं –
1. निर्धारित खर्च जैसे मकान का किराया, बच्चों की फीस।
2. अर्द्ध-निर्धारित खर्च-जो बढ़ता-घटता रहता है; जैसे कपड़े, भोजन और दवाइयों का खर्च।
3. गैर-निर्धारित खर्च-जिनको घटाया या बिल्कुल बन्द किया जा सकता है; जैसे मनोरंजन, हार-शृंगार आदि।

प्रश्न 8.
बजट से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
पारिवारिक आय के अनुसार घर के खर्च का पहले से भी अनुमान लगाने को बजट कहा जाता है या आय और खर्च का लेखा-जोखा बजट कहलाता है। बजट लिखित या मौखिक भी हो सकता है।

प्रश्न 9.
खर्च की आवश्यक और अनावश्यक मदें कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर :
खर्च की आवश्यक और अनावश्यक मदें निम्नलिखित हैं –
(क) आवश्यक मदें-घर, भोजन और कपड़े।
(ख) कम आवश्यक मदें-घर को चलाने के लिए खर्चे बच्चों की पढाई, डॉक्टरी सहायता, मनोरंजन और अन्य फुटकर खर्च और बचत।
(ग) खर्च की अवश्यक मदें ये वे खर्चे हैं जिनसे आसानी से बचा जा सकता है। मनोरंजन का खर्च, हार-श्रृंगार का खर्च और धार्मिक खर्चे आदि।

प्रश्न 10.
बचत से आप क्या समझते हो ?
उत्तर :
घर की आय में से वह भाग जिसको प्रत्येक महीने आय में से बचा लिया जाता है उसको बचत कहते हैं। बचत प्रत्येक परिवार के लिए इसलिए आवश्यक है ताकि बीमारी, दुर्घटना, बुढ़ापे आदि के लिए पैसा इकट्ठा हो सके।

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प्रश्न 11.
बचत करने के किन्हीं चार ढंगों के बारे में बताएं।
उत्तर :
पुराने समय में गहने और सोने के रूप में ही बचत की जाती थी। परन्तु आजकल बचत करने के लिए नए ढंग हैं जो न केवल मनुष्य को बचत करने में सहायक होते हैं बल्कि वह बचत मनुष्य की आय का एक अन्य साधन भी बन जाती है; जैसे जीवन बीमा, निश्चित काल का जमा खाता, डाकघर बचत खाता और भविष्य निधि फण्ड योजना आदि।

प्रश्न 12.
व्यक्ति का व्यवसाय बजट पर कैसे प्रभाव डालता है ?
उत्तर :
कई व्यक्तियों को अपनी नौकरी या बिजनैस करके कई स्थानों पर जाना पड़ता है। इसलिए उनको कई ऐसी वस्तुओं पर खर्च करना पड़ता है जिनकी साधारण व्यक्ति को आवश्यकता नहीं होती जैसे सूटकेस, बढ़िया कपड़े और मोबाइल आदि। इन सभी बातों का प्रभाव बजट पर पड़ता है।

प्रश्न 13.
गृहिणी की योग्यता बजट पर कैसे प्रभाव डालती है ?
उत्तर :
समझदार गृहिणियां अपनी योग्यता और कुशलता से कम आय में परिवार की आवश्यकताएं पूर्ण करके बचत कर लेती हैं। जैसे घर कपड़े सिल कर,पुराने कपड़ों की मरम्मत करके, घर में आचार चटनियां बनाकर या घर में सब्जियां उगा कर पारिवारिक बजट को प्रभावित करती हैं।

प्रश्न 14.
बजट कितनी प्रकार का हो सकता है ?
उत्तर :
पारिवारिक बजट तीन प्रकार का होता है –

  1. बचत बजट (Surplus Budget) – इसमें आय अधिक और खर्च कम होता है।
  2. सन्तुलित बजट (Balanced Budget) – इसमें आय और खर्च बराबर होते हैं।
  3. घाटे का बजट (Deficit Budget) – इसमें आय कम और खर्च अधिक होता है।

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प्रश्न 15.
प्रतिदिन का हिसाब रखना बजट बनाने के लिए क्यों आवश्यक है ?
अथवा
प्रतिदिन का हिसाब-किताब रखना क्यों जरूरी है ?
उत्तर :
रोज़ाना खर्च का हिसाब रखने से गृहिणी को यह पता लगता है कि खर्च बजट के अनुसार हो रहा है। यदि किसी मद पर खर्च अधिक हो जाए तो किसी और से घटाकर उसको सन्तुलित किया जाता है।

प्रश्न 16.
बजट के प्रकार लिखिए, तथा बताइये कि सबसे अच्छा बजट कौन-सा माना जाता है ?
उत्तर :
पारिवारिक आय-व्यय के हिसाब से बजट तीन प्रकार के होते हैं –

  1. सन्तुलित बजट
  2. बचत का बजट
  3. घाटे का बजट।

बचत का बजट सर्वाधिक अच्छा बजट माना जाता है।

प्रश्न 17.
पारिवारिक बजट से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
पारिवारिक आय तथा व्यय में सन्तुलन लाने के लिए आय का सही उपयोग करना अत्यन्त आवश्यक है, इसलिए गृहिणी को धन व्यय करने से पहले परिवार में विभिन्न साधनों या स्रोतों से होने वाली पूरी आय (आमदनी) तथा इस आय को विभिन्न मदों पर खर्च करने की पूरी योजना बना लेनी चाहिए। इस प्रकार परिवार में किसी निश्चित अवधि के लिए पर्व अनुमानित आय-व्यय के विस्तत विवरण को पारिवारिक बजट कहते हैं।

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प्रश्न 18.
बजट योजना किन तत्त्वों पर निर्भर करती है ?
उत्तर :
बजट योजना निम्न चार तत्त्वों पर निर्भर करती है –

  1. परिवार की आय।
  2. परिवार का लक्ष्य।
  3. परिवार की तात्कालिक आवश्यकताएँ।
  4. परिवार की भावी आवश्यकताएँ।

प्रश्न 19.
बजट-निर्माण के मुख्य चरण क्या हैं ?
उत्तर :
बजट-निर्माण के मुख्य चरण निम्नलिखित हैं –

  1. परिवार के सभी स्रोतों से प्राप्त मासिक आय को जोड़ना।
  2. परिवार की आवश्यकताओं की सूची उनकी प्राथमिकता के आधार पर बना लेना।
  3. पारिवारिक परिस्थितियों के अनुसार प्रत्येक आवश्यकता के लिए आय का प्रतिशत निर्धारित करना और अन्त में कुल खर्च का अनुमान लगाना।
  4. कुछ धन भविष्य के लिए अथवा आकस्मिक खर्च के लिए बचाया जाना।

प्रश्न 20.
बजट सम्बन्धी ऐन्जिल का सिद्धान्त क्या है ?
उत्तर :
ऐन्जिल के सिद्धान्त के अनुसार जैसे-जैसे आय बढ़ती है –

  1. भोजन पर व्यय का प्रतिशत घटता है तथा अन्य आरामदेह वस्तुओं पर व्यय का प्रतिशत बढ़ता है।
  2. मकान, वस्त्र, विद्युत् पर व्यय उतना ही रहता है, उसमें परिवर्तन नहीं होता।
  3. विलासिता, शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन, सांस्कृतिक आवश्यकताओं पर व्यय का प्रतिशत बढ़ जाता है।

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प्रश्न 21.
निम्न व उच्च वर्ग के बजट में क्या अन्तर है ?
उत्तर :
निम्न व उच्च वर्ग के बजट में निम्नलिखित अन्तर है –

  1. निम्न वर्ग में भोजन की मद में अधिक खर्च होता है जबकि उच्च वर्ग में भोजन की मद पर खर्च का प्रतिशत कम रहता है।
  2. उच्च वर्ग में शिक्षा तथा मनोरंजन पर प्रतिशत व्यय अधिक होता है जबकि निम्न वर्ग में इन मदों का प्रतिशत व्यय कम रहता है।
  3. उच्च परिवार में बचत का प्रतिशत अधिक होता है, जबकि निम्न परिवार में बचत नहीं के बराबर ही होती है।

प्रश्न 22.
गृहिणी को परिवार के आय-व्यय का सन्तुलन बनाए रखने के लिए किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिए ?
उत्तर :
परिवार के आय-व्यय का सन्तुलन बनाए रखने के लिए अग्र बातों पर ध्यान देना चाहिए –

  1. परिवार की आय के साधन।
  2. आय को प्रभावित करने वाले तत्त्व।
  3. परिवार के आवश्यक व्यय।
  4. व्यय को प्रभावित करने वाले तत्त्व।
  5. आय के साधनों का सम्भावित विकास।
  6. आय के साधनों को विकसित कर व्यय-योजना द्वारा रहन-सहन का स्तर उन्नत करना।
  7. बुद्धिमत्तापूर्ण व्यय, बचत के लाभ तथा ऋण से हानियाँ।
  8. आय-व्यय का सन्तुलित बजट।
  9. घरेलू हिसाब रखना।
  10. बचत के साधन अपनाना।
  11. बचत का सही उपयोग।
  12. आवश्यक कागज़-पत्रों की सम्भाल।

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प्रश्न 23.
बचत के प्रमुख लक्ष्य क्या हैं ?
अथवा
बचत करना क्यों आवश्यक है ?
अथवा
बचत के लाभ लिखें।
उत्तर :
बचत के प्रमुख लक्ष्य निम्नलिखित हैं –

  1. आय बन्द हो जाने पर एक साधन-नौकरी छूट जाने या व्यवसाय में घाटा हो जाने पर बचत की राशि ही काम आती है।
  2. चोरी हो जाने, आग लग जाने एवं महंगाई बढ़ने पर बचत का सदुपयोग किया जाता है।
  3. आकस्मिक दुर्घटना या बीमारी तथा बुढ़ापे में कार्य करने की असमर्थता के समय बचत ही काम आती है।
  4. मकान खरीदने, बनवाने या जमीन खरीदने के लिए बचत का प्रयोग किया जाता है।
  5. बच्चों की ऊँची शिक्षा में बचत का उपयोग किया जाता है।
  6. सामाजिक तथा धार्मिक कार्यों पर भी बचत का उपयोग होता है।
  7. राष्ट्र के विकास तथा रक्षा के साधनों पर बचत का उपयोग होता है।
  8. मुद्रा-स्फीति पर नियंत्रण के लिए बचत करना आवश्यक है।

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प्रश्न 23.
(A). बचत क्यों की जानी चाहिए ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 23 का उत्तर।

प्रश्न 24.
बचत किसे कहते हैं ? बचत तथा विनियोग के साधनों के नाम लिखिए।
उत्तर :
धन को किसी भी समय इकट्ठा जमा करने या फिर नियमित समय के अन्तर पर धीरे-धीरे एकत्रित करने को बचत कहा जाता है। बचत तथा विनियोग के प्रमुख साधन अग्रलिखित हैं –

  1. बैंक (Banks)
  2. डाकघर बचत खाता (Post Office Savings Account)
  3. जीवन बीमा (Life Insurance)
  4. भविष्य निधि योजना (Provident Fund)
  5. यूनिट्स (Units)
  6. राष्ट्रीय बचत सर्टिफिकेट (National Savings Certificate)
  7. लॉटरी, चिट व्यवस्था आदि (Lottery and Chit System)
  8. सहकारी संस्थाएँ (Co-operative Societies)
  9. कम्पनियों में पैसा लगाना (Investing in Companies)।

प्रश्न 24. (A)
बचत किसे कहते हैं ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 24 का उत्तर।

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प्रश्न 25.
बचत के विनियोजन में किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक तथा लाभकारी होता है ?
अथवा
बचत किए हुए धन को निवेश करते समय आप किन-किन बातों को ध्यान में रखेंगे।
उत्तर :
बचत के विनियोजन में निम्न दो बातों का ध्यान रखना आवश्यक तथा लाभकारी होता है –
1. जिस संस्था में धन जमा करना है, वह विश्वसनीय हो।
2. विश्वसनीय संस्थाओं की ब्याज की दरें जानकर, जिस संस्था में ब्याज की दर अधिक हो, उसी में बचत का धन जमा करना चाहिए।

प्रश्न 26.
बचत के विनियोजन के लिए सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थाओं की सूची बनाइये।
उत्तर :
बैंक, डाकखाना, बीमा, प्रॉवीडेन्ट फण्ड, यूनिट ट्रस्ट, सहकारी समितियाँ, हिस्से (शेयर्स), चिट फण्ड कम्पनियाँ आदि।

प्रश्न 27.
बैंक में रुपया जमा करने के क्या लाभ हैं ?
उत्तर :
बैंक में रुपया जमा करने के निम्नलिखित लाभ हैं –

  1. बचत का धन सुरक्षित रहता है।
  2. आवश्यकता होने पर धन निकाला भी जा सकता है।
  3. बचत के धन पर ब्याज भी मिलता है।
  4. इस धन को देश के विकास के लिए विभिन्न उत्पादक कार्यों में लगाया जाता है।

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प्रश्न 28.
बचत खाता किसके नाम पर खोला जा सकता है ?
उत्तर :
बचत खाता निम्नलिखित नामों से खोला जा सकता है –

  1. किसी बालिग व्यक्ति के नाम पर।
  2. संरक्षता में किसी नाबालिग के नाम पर।
  3. दो या अधिक व्यक्तियों के नाम पर (संयुक्त खाता)। एक वर्ष से अधिक के नाबालिग बच्चे के नाम पर बचत खाते में धनराशि नकद, चैक या ड्राफ्ट के रूप में जमा कराई जा सकती है।

प्रश्न 29.
आवश्यकता पड़ने पर बैंक से धन किस प्रकार निकाला जा सकता है ? बचत खाते से धन निकालने के बैंक के क्या नियम होते हैं ?
उत्तर :
आवश्यकता पड़ने पर बैंक से चैक द्वारा या निकासी फार्म (Withdrawal form) की सहायता से धन निकाला जा सकता है। बैंक से धन निकालने के निम्न नियम होते हैं –

  1. जमाकर्ता अपने बचत खाते में 3 महीने में 30 बार धन निकाल सकता है।
  2. आवश्यकता पड़ने पर बैंक जमाकर्ता को 30 बार से अधिक बार धन निकालने की अनुमति दे सकता है।
  3. किसी भी समय यदि बचत खाते में पाँच सौ रुपये से कम होंगे तो जमाकर्ता से एक रुपया प्रति छः माह की दर से वसूल किया जाता है।
  4. जमाकर्ता द्वारा अपने बचत खाते से एक महीने में एक या अधिक बार निकाली गई कुल राशि 10,000 से अधिक नहीं होनी चाहिए।
  5. चैक बुक उन्हीं जमाकर्ता को दी जाती है जिनके बचत खाते में ₹ 500 या उससे अधिक रहते हैं।

प्रश्न 30.
पास बुक क्या होती है ?
उत्तर :
हर बचत खातेदार को एक पास बुक या पुस्तिका दी जाती है जिसमें बचत बैंक के नियम दिये होते हैं तथा खातेदार का नाम, पता तथा खाता नम्बर आदि विवरण होते हैं। बैंक से धन निकालते समय या जमा कराते समय पास बुक को साथ दिया जाता है जिससे राशि सम्बन्धी सभी आवश्यक विवरण बैंक द्वारा उसी समय दर्ज कर दिये जाते हैं।

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प्रश्न 31.
भविष्य निधि योजना से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
यह योजना नौकरी करने वाले सभी वर्ग के कर्मचारियों के लिए है। प्रत्येक कर्मचारी अपने वेतन में से अनिवार्य रूप से इस योजना में राशि विनियोजित करता है।

प्रश्न 32.
स्कूल बचत बैंक योजना क्या होती है ?
उत्तर :
स्कूल बचत बैंक योजना (संचायिका योजना) स्कूल के बच्चों का ऐसा बचत बैंक होता है जिसका नियमन वे स्वयं करते हैं। इससे बच्चों में नियमित बचत करने की आदत का विकास होता है, साथ ही उन्हें पैसे रखने का हिसाब भी आ जाता है। इस प्रकार स्कूली बच्चों द्वारा जमा की गई धनराशि का खाता विद्यालय के नाम से खोला जाता है।

प्रश्न 33.
यूनिट ट्रस्ट क्रय करके किस प्रकार बचत की जाती है ?
उत्तर :
भारतीय संसद् ने एक अधिनियम 1964 में लागू कर ‘यूनिट ट्रस्ट ऑफ़ इण्डिया’ की स्थापना की थी। यूनिट एक प्रकार की अंशपूँजी होती है। इसकी कीमत ₹ 10 होती है परन्तु इसका क्रय-विक्रय मूल्य कम व अधिक होता रहता है। ट्रस्ट को उद्योगों से जो लाभ होता है उसका 90% यूनिट क्रय करने वालों में लाभांश के रूप में प्रतिवर्ष 30 जून को बाँट दिया जाता है। सन् 1983 में विधवाओं, अपंगों और 55 वर्ष से अधिक आयु वाले व्यक्तियों को लाभांश प्रतिमास देने की सुविधा हो गई है। इसमें कम से-कम ₹ 5,000 जमा करने पड़ते हैं। इसका लाभ बैंक या डाकघर से प्राप्त किया जा सकता है।

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प्रश्न 34.
परिवार के लिए धन की बचत करने के कोई चार लाभ लिखें।
उत्तर :
देखें प्रश्न 7 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न का उत्तर।

प्रश्न 35.
बचत का निवेश करने की किन्हीं छः संस्थाओं की सूची बनाएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 8, दीर्घ उत्तरीय प्रश्न का उत्तर।

प्रश्न 36.
व्यय योजना बनाने से परिवार को होने वाले कोई दो लाभ लिखें।
उत्तर :
1. आकस्मिक खर्चों का अनुमान लगाना सरल हो जाता है।
2. व्यय योजना बनाने से बचत करने की प्रेरणा मिलती है।

प्रश्न 37.
बचत और विनियोग के दो साधन बताएं।
उत्तर :
बैंक, बीमा, शेयरस, यूनिट ट्रस्ट।

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प्रश्न 38.
आवश्यक व्यय तथा अनावश्यक व्यय कौन-कौन से हैं ? दो उदाहरण दें ?
उत्तर :
आवश्यक व्यय : बच्चों की फीस, घर का किराया। अनावश्यक व्यय : घूमने जाना, फिल्म देखने जाना।

प्रश्न 39.
अनावश्यक व्यय कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 40.
यूनिट ट्रस्ट ऑफ इण्डिया की स्थापना कब हुई ?
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्न।

लघ उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
धन के प्रबन्ध के महत्त्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर :
धन एक भौतिक साधन है। प्रत्येक परिवार के लिए इसकी मात्रा भिन्न-भिन्न होते हुए भी परिवार के लिए इसकी मात्रा सीमित भी होती है और यह परिवार पर ही निर्भर करता है कि वह किस प्रकार से अपने इस सीमित धन से अधिक-से-अधिक आवश्यकताएँ पूरी कर सकें। धन का जीवन में एक महत्त्वपूर्ण साधन है। प्रत्येक व्यक्ति को जीवन की विभिन्न सुख-सुविधाएँ जुटाने के लिए धन पर निर्भर रहना पड़ता है। दिन-प्रतिदिन मनुष्य को जीवन में अनेक आवश्यकताओं का अनुभव होता है। मनुष्य की आवश्यकताएं तीन प्रकारों में बाँटी जा सकती हैं; जैसे कि-अति आवश्यक आवश्यकताएँ (Needs or Essential Requirements); आरामदायक आवश्यकताएँ (Comforts) तथा विलासितापूर्ण आवश्यकताएँ (Luxuries)।

इन सभी आवश्यकताओं को मनुष्य अपनी सामर्थ्य के अनुसार पूर्ण करने का प्रयत्न करता है। परिवार की सम्पूर्ण व्यवस्था का संचालन धन पर ही निर्भर है। धन एक प्रकार का ऐसा सुविधाजनक साधन है जो कि मनुष्य को उन वस्तुओं को खरीदने में मदद करता है जिनके प्रयोग से उसकी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि होती है। धन के उचित उपयोग के लिए धन के प्रबन्ध’ (Money Management) का सही ज्ञान होना अति आवश्यक है।

धन-प्रबन्ध के द्वारा ही पारिवारिक आय का योजनाबद्ध उपयोग सम्भव है। धन प्रबन्ध इस प्रकार करना चाहिए कि आय तथा व्यय में सन्तुलन हो तथा थोड़ी बहुत बचत की जा सके जो कि भविष्य में काम आ सके और परिवार की आकस्मिक आवश्यकताओं को पूरा करने में भी सहायता दे सके। उचित धन प्रबन्ध परिवार के भविष्य को सुखमय तथा सुविधाजनक बनाने में सहायक होता है। इसके लिए आय के समस्त साधनों का पूरा ज्ञान होना अति आवश्यक है क्योंकि व्यय बहुत कुछ आय की राशि पर ही निर्भर करता है।

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प्रश्न 2.
पारिवारिक आय की क्या विशेषताएं हैं ?
उत्तर :
पारिवारिक आय की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. पारिवारिक आय राष्ट्रीय की आय पर निर्भर करती है।
  2. आय का वितरण देशवासियों में समान रूप से नहीं होता। समाज में आय की विषमताओं के कारण निम्न वर्ग, मध्यम वर्ग एवं उच्च वर्ग समाज बन जाता है।
  3. जिस वर्ग का व्यक्ति होता है उसके अनुसार उसकी आय निर्धारित होती है। जैसे-कृषक वर्ग, व्यापारी वर्ग, शिक्षक वर्ग, डॉक्टर या अभियन्ता वर्ग आदि।
  4. व्यक्ति की कुशलता एवं उसके व्यक्तिगत गुणों पर उसकी आय निर्भर करती है।
  5. पारिवारिक आय परिवार में आय अर्जित करने वाले सदस्यों की संख्या पर निर्भर करती है।
  6. शिक्षित व्यक्तियों की आय अशिक्षित व्यक्तियों से अधिक होती है।
  7. परिवार में सदस्यों की संख्या कम रहने पर एक निश्चित आय अधिक लगती है परन्तु परिवार में सदस्यों की संख्या यदि बढ़ जाती है तब वही निश्चित आय कम लगती है।
  8. एक परिवार के लिए जितनी आय पर्याप्त होगी इसकी कोई सीमा निश्चित नहीं होती।

प्रश्न 3.
आय वर्ग कितने प्रकार के हैं ? विवेचना कीजिए।
उत्तर :
हर परिवार की अलग-अलग आय होती है, जिसके आधार पर वह अपनी भिन्न-भिन्न जरूरतों को पूर्ण करने में सफल होते हैं। किसी भी परिवार के जीवन-स्तर का अनुमान उसकी पारिवारिक आय से सरलता से लगाया जा सकता है। आय की मात्रा के आधार पर परिवारों को मुख्यत: तीन आय-वर्गों में विभाजित किया जा सकता है –

  1. निम्न आय वर्ग (Low Income Group)
  2. मध्यम आय वर्ग (Middle Income Group)
  3. उच्च आय वर्ग (High Income Group)

सामान्यतः ये तीन आयु-वर्ग मान्य हैं, परन्तु इनमें कोई भी निश्चित विभाजन रेखा नहीं खींची जा सकती; जैसे कि निम्न और मध्यम वर्ग के बीच के वर्ग को निम्न-मध्यम आय वर्ग भी कहा जा सकता है और इससे उच्च और मध्यम वर्ग के बीच में उच्च-मध्यम आय-वर्ग आ सकता है। कितनी आय वाले परिवार को इनमें से किस वर्ग में रखा जाए यह भी पूरी तरह से निश्चित नहीं किया जाता है और यह समय-समय पर बदलता रहता है।

यही नहीं, विभिन्न अर्थशास्त्रियों के भी इसके बारे में भिन्न-भिन्न मत हैं। इसके साथ ही कोई परिवार कहाँ रहता है यानी रहने के स्थान पर, वस्तुओं की उपलब्धि तथा परिवार की उन्हें खरीदने की क्षमता (Purchasing Power) भी भिन्न-भिन्न होती है। उदाहरणार्थ बड़े शहरों में उसी धन की मात्रा से कम वस्तुएँ, सुख-सुविधाएँ तथा आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है, जबकि गाँवों या छोटे शहरों में उतने ही धन से अधिक पारिवारिक आवश्यकताओं को सुविधापूर्वक पूरा किया जा सकता है।

फिर भी मान्य नियमों के आधार पर परिवार की आय को देखते हुए विभिन्न परिवारों को निम्न, मध्यम व उच्च आय वर्गों में बाँटने के लिए आगे दी गई विभाजन सीमा ली जा सकती है –
निम्न आय वर्ग – ₹ 800 मासिक तक।
मध्यम आय वर्ग – ₹ 800 से ₹ 2,000 मासिक तक।
उच्च आय वर्ग – ₹ 2,000 या ₹ 2,500 से ऊपर।

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प्रश्न 4.
व्यय कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
जो कुछ भी हम खर्च करते हैं उसको तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है –
निर्धारित व्यय – निर्धारित व्यय प्रतिमाह करने पड़ते हैं। ऐसे खर्च की राशि प्रायः निश्चित रहती है, जैसे-मकान का किराया, बिजली का खर्च, बीमे की किस्तें, आय कर, शिक्षा शुल्क आदि। ऐसे व्यय में किसी प्रकार की कटौती करना असम्भव रहता है।

अर्ध-निर्धारित – व्यय-कछ ऐसे व्यय होते हैं जिनको करना अनिवार्य होता है पर इनकी धनराशि में कमी या वृद्धि की जा सकती है। कमी या वृद्धि परिवार के सदस्यों की आमदनी व परिस्थिति पर निर्भर करती है। आमदनी बढ़ने पर खाने तथा वस्त्र पर अधिक व्यय किया जा सकता है, इसके विपरीत आमदनी कम हो जाने पर सादा भोजन या सादा वस्त्रों पर जीवित रहा जा सकता है।

अन्य व्यय – कुछ ऐसे व्यय होते हैं जो व्यक्ति विशेष की आमदनी पर निश्चित होते हैं। धन की कमी होने पर ऐसे व्यय बन्द किए जा सकते हैं तथा आमदनी बढ़ने पर उन्हें फिर किया जा सकता है। मनोरंजन व सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर आय के अनुसार ही खर्च होने लगता है तथा आय कम होने पर उन्हें बन्द किया जा सकता है।

आकस्मिक व्यय – ये व्यय ऐसे होते हैं जो अतिथियों के आगमन, बीमारी, दुर्घटना आदि के कारण उत्पन्न हो जाते हैं। इनकी पूर्ति करना भी आवश्यक होता है।

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प्रश्न 5.
व्यय को सीमित रखने के लिए गृहिणी को किन बातों का ध्यान देना चाहिए ?
उत्तर :
व्यय को सीमित रखने के लिए गृहिणी को अग्रलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए –

  1. प्रत्येक गृहिणी को घर की आय का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए ताकि वह ठीक बजट बना सके और खर्च भी उसी के अनुसार कर सके।
  2. प्रत्येक गृहिणी को घर में परिस्थितियों का ज्ञान होना चाहिए। परिवार में व्यक्तियों की संख्या, उनकी उम्र, उनकी आवश्यकताएँ, बच्चों की शिक्षा-श्रेणी आदि का ज्ञान गृहिणी को होना चाहिए।
  3. गृहिणी को पारिवारिक बजट बनाने का ज्ञान होना चाहिए।
  4. प्रतिदिन के व्यय का हिसाब रखा जाना चाहिए जिससे यह पता रहे कि किस मद में कितना खर्च हो चुका है और कितना भाग शेष बचा है। इससे अनावश्यक खर्चों को रोका जा सकता है।
  5. थोक क्रय करना चाहिए। इससे पूरे माह का सामान क्रय हो जाता है। सामान का मूल्य भी सस्ता रहता है और सामान ढोने आदि का खर्च भी बच जाता है।
  6. गृहिणी को बाजार भाव का ज्ञान भी होना चाहिए जिससे ठगे जाने की सम्भावना नहीं रहती।
  7. आवश्यक वस्तुओं की खरीददारी ही करनी चाहिए।
  8. वस्तुओं को सदैव नकद खरीदना चाहिए। उधार खरीदने की आदत से व्यय असीमित हो जाता है।
  9. मितव्ययिता के साथ खर्च करने की आदत होनी चाहिए।

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प्रश्न 6.
व्यय को प्रभावित करने वाले तत्त्व कौन-से होते हैं ?
उत्तर :
परिवार पर किए गए व्यय निम्नलिखित तत्त्वों से प्रभावित होते हैं –
1. परिवार का ढाँचा – हमारे देश में दो प्रकार की परिवार व्यवस्था है। संयुक्त परिवार व्यवस्था तथा एकाकी परिवार व्यवस्था। संयुक्त परिवार में कुछ मदों जैसे मकान का किराया, नौकर का पारिश्रमिक, भोजन, विद्युत् आदि के खर्च सम्मिलित रूप से एक जगह हो जाते हैं। ऐसे परिवार में सम्मिलित व्यय का बोझ परिवार के सभी सदस्यों पर पड़ता है। एकाकी परिवार में सभी खर्चे एक ही व्यक्ति की आय से ही करने पड़ते हैं। संयुक्त परिवार में एकाकी की तुलना में अधिक बचत की जा सकती है।

2. परिवार के सदस्यों की संख्या – एक व्यक्ति की आय और परिवार में सदस्यों की अधिक संख्या वाली स्थिति में बचत की सम्भावना नहीं के बराबर होती है।

3. बच्चों की संख्या – जिस परिवार में बच्चे अधिक होते हैं, उसमें खर्च अधिक होते हैं। इसलिए कहते हैं-‘कम बच्चे सुखी, परिवार’।

4. रहन-सहन का स्तर – जिस परिवार के रहन-सहन का स्तर ऊँचा होता है वैसे परिवार को अपने स्तर को बनाए रखने के लिए अधिक खर्च करना पड़ता है।

5. परिवार के सदस्यों के व्यवसाय – परिवार के सदस्यों के व्यवसाय भी खर्च को प्रभावित करते हैं। व्यवसाय को सुचारू रूप से चलाने के लिए भी व्यवसाय में धन खर्च करते रहना पड़ता है।

6. सामाजिक तथा धार्मिक परम्पराएँ – प्रत्येक समाज तथा परिवार में ऐसी सामाजिक तथा धार्मिक परम्पराएँ होती हैं जिन्हें न चाहते हुए भी मानना पड़ता है और उन्हें निभाने में खर्च होता है। हमारे भारतीय समाज में आए दिन उत्सव होते हैं, जैसे-अन्नप्राशन, मुंडन, जनेऊ, विवाह, नामकरण, गृह-प्रवेश, मरणोपरान्त तेरहवीं आदि। इन उत्सवों को मनाने तथा सगे-सम्बन्धियों को भोज इत्यादि देने में बजट से अलग बहुत अधिक खर्च करना पड़ता है। आज ये सब खर्च व्यर्थ माने जाते हैं।

7. गृहिणी की योग्यता एवं कुशलता – बुद्धिमानी से खर्च करने पर परिवार को अधिक सुख-सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। यदि गृहिणी कुशल है और वह सोच-समझकर खर्च करती है तो वह परिवार को सुख व शान्ति दे सकती है।

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प्रश्न 7.
बचत के प्रमुख लक्षण क्या हैं ?
उत्तर :
बचत के प्रमुख लक्षण निम्न हैं –

  1. अन्य बन्द हो जाने पर, आय साधन-नौकरी छूट जाने या व्यवसाय में घाटा हो जाने पर बचत की राशि ही काम आती है।
  2. चोरी हो जाने, आग लग जाने एवं महँगाई बढ़ने पर बचत का सदुपयोग किया जाता है।
  3. आकस्मिक दुर्घटना या बीमारी तथा बुढ़ापे में कार्य की असमर्थता के समय बचत ही काम आती है।
  4. मकान खरीदने, बनवाने या जमीन खरीदने के लिए बचत का ही उपयोग किया जाता है।
  5. बच्चों की ऊँची शिक्षा में बचत का उपयोग किया जाता है।
  6. सामाजिक तथा धार्मिक कार्यों पर भी बचत का उपयोग होता है।
  7. राष्ट्र के विकास तथा रक्षा के साधनों पर बचत का उपयोग होता है।
  8. मुद्रा-स्फीति पर नियन्त्रण के लिए बचत करना आवश्यक है।

प्रश्न 8.
पारिवारिक बजट किस प्रकार बनाया जाता है?
उत्तर :
पारिवारिक बजट बनाने के लिए निम्न प्रकार तैयारी करते हैं
1. बजट बनाने से पूर्व निम्न सूचनाएँ एकत्रित की जाती हैं –

  • परिवार के सभी सदस्यों की संख्या (स्त्री, पुरुष, बच्चे, बूढ़े आदि)।
  • परिवार के सदस्यों की विभिन्न साधनों से होने वाली आय।
  • परिवार के बजट की अवधि-मासिक बजट बनाना है या वार्षिक।

2. सूचनाएँ एकत्रित करने के बाद खर्चों के बारे में अनुमान लगाया जाता है। यह देखना होता है कि किन-किन मदों पर खर्च होना है। उपभोग की जाने वाली वस्तुओं की मात्रा तथा संख्या की सूची बनाई जाती है। वस्तुओं के मूल्य तथा उन पर व्यय किए गए कुल धन का पता लगाया जाता है।

3. पूरी सूची तैयार करने के बाद यह देखते हैं कि विभिन्न मदों पर आय का कितना प्रतिशत खर्च किया गया है। अन्त में आय में से व्यय निकालकर कुल बचत हुई या नहीं, यह देखते हैं। यदि व्यय अधिक है तो इसे किस प्रकार पूरा किया जा सकता है, यह देखते हैं। बजट बनाते समय आय का विभाजन इस प्रकार करना चाहिए जिससे आवश्यकताओं की पूर्ति करने के बाद कुछ धन भावी आवश्यकताओं के लिए भी बच जाए।

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प्रश्न 9.
गृहिणी मितव्ययिता कैसे कर सकती है?
उत्तर :
घर में मितव्ययिता के लिए कुछ सुझाव निम्नलिखित हैं –

  1. अति आवश्यक वस्तुओं को ही खरीदना चाहिए।
  2. खरीददारी सदैव नगद करनी चाहिए, उधार कभी नहीं लेना चाहिए।
  3. सामान सदैव विश्वास की व अच्छी दुकानों से ही खरीदना चाहिए।
  4. पौष्टिक गुणों वाले सस्ते खाद्य-पदार्थ ही प्रयोग में लाने चाहिएं।
  5. फसल के समय अधिक सामग्री (जैसे-गेहूँ, चावल) खरीदकर उसे विधिपूर्वक सुरक्षित रखना चाहिए। फल व सब्जियों का संरक्षण करना चाहिए।
  6. प्रतिकूल मौसम में सस्ता सामान (जैसे-गर्मी में ऊन) खरीदना चाहिए।
  7. जल, ईंधन तथा बिजली का सावधानी से प्रयोग करना चाहिए। बेकार में इन्हें बरबाद नहीं करना चाहिए।
  8. घर की वस्तुओं की नियमपूर्वक देखभाल, सफ़ाई तथा मरम्मत करते रहना चाहिए।
  9. बच्चों के लिए ट्यूटर रखने के बजाय उन्हें परिवार के सदस्यों द्वारा खुद पढ़ाया जाना चाहिए।
  10. घर के कामों में भी सदस्यों को हाथ बँटाना चाहिए और नौकर कम-से-कम रखने चाहिए।

प्रश्न 10.
भारत में पारिवारिक बजट बनाने में क्या कठिनाइयाँ सामने आती हैं ?
उत्तर :
भारत में पारिवारिक बजट बनाने में निम्न कठिनाइयाँ सामने आती हैं
1. गृहिणियों में शिक्षा का अभाव – भारत में अधिकांश गृहिणियाँ या तो अशिक्षित हैं या बहुत कम पढ़ी-लिखी हैं। इस कारण उन्हें बजट बनाने का ज्ञान नहीं है।
2. बजट बनाने का आलस्य – बहुत-सी गृहिणियाँ बजट बनाने को एक अतिरिक्त कार्य समझती हैं। इस प्रकार आलस्य बजट बनाने में एक कठिनाई है।
3. गृहिणियों में व्याप्त अन्धविश्वास – भारत की अधिकांश गृहिणियाँ अन्धविश्वासों तथा कुप्रथाओं को मान्यता देती हैं, इस कारण वे परिवार की आय और व्यय की बातों को खुलकर नहीं कह पाती हैं।
4. उचित सम्पर्क का अभाव – सरकारी कर्मचारियों और साधारण जनता का सीधा सम्पर्क न होने के कारण जनता बजट बनाने की ओर विशेष ध्यान नहीं देती है।

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प्रश्न 11.
परिवार के लिए खरीदी जाने वाली वस्तुओं को कितनी श्रेणियों में बाँटा जा सकता है?
अथवा
क्रय के कितने स्वरूप हैं?
उत्तर :
परिवार के लिए क्रय की जाने वाली वस्तुओं के चार स्वरूप हैं जो अग्रलिखित –
1. दैनिक क्रय – दैनिक क्रय में वे सभी वस्तुएँ आती हैं जिन्हें हम इकट्ठा खरीदकर नहीं रख सकते। उन्हें प्रतिदिन ही खरीदना चाहिए, जैसे-दूध, दही, पनीर, मक्खन, फल, सब्जी, अण्डे आदि। बहुधा ये वस्तुएं नियमित रूप से एक-दो बेचने वालों से ही खरीदी जाती हैं। इनमें से बहुत से बेचने वाले घर पर ही सामान दे जाते हैं। फल तथा ये सभी वस्तुएं मिश्रित दुकानों से खरीदनी चाहिए क्योंकि अनेक दुकानों से खरीदने पर वस्तुएँ अच्छी मिलती हैं।

2. मासिक उपयोग का सामान या आवधिक क्रय – पूरे माह के लिए सामान खरीद लिया जाता है। इसमें वे सभी वस्तुएँ खरीद ली जाती हैं जिनके खराब होने की सम्भावना नहीं रहती है और जिन्हें बार-बार खरीदे जाने से समय, धन, श्रम अधिक लगता है, जैसे अनाज, दालें, गुड़, साबुन आदि। कपड़े भी साल में दो-तीन बार इकट्ठे ही क्रय करके बनवा लिये जाते हैं। इस क्रय का बजट में स्थान होता है। इन वस्तुओं को भी निश्चित और हमेशा एक दुकान से नहीं खरीदना चाहिए।

3. आकस्मिक क्रय – इसके अन्तर्गत वे सभी वस्तएँ आती हैं जो कि आकस्मिक स्थिति में खरीदी जाती हैं, जैसे-अचानक बीमार पड़ने पर दवाइयाँ, इन्जेकशन, किसी के यहाँ से शादी का निमन्त्रण आने पर उपहार, भेंट आदि आकस्मिक रूप से खरीदी जाती हैं।

4. कदाचित् क्रय – इसके अन्तर्गत वे वस्तुएँ आती हैं जो कि कभी-कभी खरीदी जाती हैं। कई परिवार तो उन्हें जीवन में एक ही बार खरीद सकते हैं, जैसे-मकान, जमीन, मोटर-कार, फ्रिज, आभूषण। इनका खरीदा जाना बचत पर निर्भर करता है।

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प्रश्न 12.
डाकघर बचत बैंक में खाता खोलने की विधि बताइये।
उत्तर :
खाता खोलने के लिए अपनी सुविधानुसार निकटतम डाकघर में जाकर निर्धारित फार्म भरकर तथा धनराशि (जो जमा करनी हो या कम-से-कम पाँच रुपये) देकर खाता खुलवाया जा सकता है। डाकघर का अधिकारी उस व्यक्ति के नाम पास बुक बना देता है तथा जमा की गई राशी को पास बुक में चढ़ाकर मोहर लगा देता है। अब इस पास बुक की सहायता से कभी भी रुपये जमा कराये जा सकते हैं। एक व्यक्ति द्वारा खोले गये खाते में अधिक-से-अधिक ₹ 25,000 तथा दो व्यक्तियों के संयुक्त खाते में अधिक-से-अधिक ₹ 50,000 जमा हो सकते हैं। पास बुक खो जाने पर खातेदान प्रार्थना-पत्र निर्धारित शुल्क देकर नई पास-बुक बनवा सकता है।

प्रश्न 13.
भविष्य निधि (प्रॉवीडेन्ट फण्ड) क्या होती है? यह कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर :
भविष्य निधि नौकरी करने वाले की अनिवार्य बचत योजना होती है। इस योजना के अन्तर्गत प्रति माह वेतन से निश्चित धनराशि काटकर जमा कर ली जाती है। यह दो प्रकार की होती है –
1. अनिवार्य भविष्य निधि योजना (Compulsory Provident Fund) यह योजना गैर-सरकारी, अर्द्ध-सरकारी स्कूलों, कॉलेजों, फैक्ट्रियों, फर्मों, कारखानों के कर्मचारियों पर लागू होती है। इसमें संस्था प्रत्येक कर्मचारी के वेतन से निश्चित हिसाब से पैसा काटकर भावी खाते में जमा कर देती है। कार्यरत रहने पर की गई जमा राशि का सेवा-निवृत्ति के बाद भुगतान कर दिया जाता है। यदि सेवक की। जाती है, तो उसके वारिसों को उक्त धनराशि दी जाती है। यदि उच्च शिक्षा, लम्बी बीमारी, आवास-गृह हेतु धन की आवश्यकता होती है तो उसे आंशिक भुगतान लेकर प्राप्त किया जा सकता है।

2. सामान्य भविष्य निधि योजना (General Provident Fund) यह योजना सरकारी कर्मचारियों पर लागू होती है। इसमें वेतन से निश्चित धन प्रति मास काटकर शासकीय कोष में जमा कर दिया जाता है। यदि कोई व्यक्ति अधिक राशि जमा करवाना चाहता है तो उसकी स्वेच्छा से अधिक काट लिया जाता है। शासकीय कर्मचारी की सेवा मुक्ति के बाद जमा राशि ब्याज सहित उसे वापस लौटा दी जाती है। यदि कर्मचारी की मृत्यु हो जाती है, तो उसके द्वारा उल्लेख किए गए वारिस को भुगतान कर दिया जाता है।

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प्रश्न 14.
परिवार की आय से आप क्या समझते हो? आय कितनी तरह की हो सकती है?
अथवा
पारिवारिक आय कितने प्रकार की होती है ? प्रत्येक का 2-2 पंक्तियों में वर्णन करें।
उत्तर :
परिवार की आय को दो भागों में विभाजित किया जाता है-प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष ।
प्रत्यक्ष आय – जो आय पैसे के रूप में घर आती है, उसको प्रत्यक्ष आय कहा जाता है। यह किसी दुकान से रोजाना की बचत, महीने का वेतन, छिमाही फसलों की कमाई या फैक्टरियों वालों का मुनाफ़ा आदि के रूप में हो सकती है। इसके अतिरिक्त अपने मकान का किराया, ज़मीन का वार्षिक ठेका (आय), बैंक का ब्याज आदि को भी प्रत्यक्ष आय कहा जाता है।

अप्रत्यक्ष आय – यह आय उन सुविधाओं के कारण होती है जो किसी भी नौकरी करने वाले को मिली हों और उनके न मिलने से घर वालों को आय में से खर्च करना पड़े जैसे कि सरकारी घर, मुफ्त दवाइयां या डॉक्टरी सहायता, बिना फ़ीस से बच्चों की पढ़ाई पर, सरकारी कार आदि।

प्रश्न 14. (A)
पारिवारिक आय कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 14 का उत्तर।

प्रश्न 15.
खर्च से आप क्या समझते हो? खर्च को कौन-कौन से भागों में बांटा जा सकता है?
उत्तर :
खर्च परिवार की आय और उसकी आवश्यकताओं पर निर्भर करता है। कुछ खर्च ऐसे होते हैं जो परिवार को चाहे आय आधिक हो या कम करने ही पड़ते हैं पर कुछ खर्चे ऐसे होते हैं जिनको आय बढ़ने या घटने से बढ़ाये या घटाये जा सकते हैं जैसे मनोरंजन और हार-श्रृंगार का खर्चा । खर्च को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है –
1. निश्चित खर्च-जैसे मकान का किराया, बिजली का बिल, स्कूल की फीस आदि वे खर्च हैं जो निश्चित होते हैं।
2. अर्द्ध-निश्चित खर्च-ये वे खर्च हैं जो आवश्यक होते हैं परन्तु इनमें परिवर्तन किया जा सकता है जैसे मकान का रख-रखाव, कपड़े और खाने पीने आदि का खर्च।
3. अतिरिक्त खर्च-ये वे खर्च हैं जो आय बढ़ने से बढ़ाए और घटने से घटाए या बन्द किए जा सकते हैं जैसे मनोरंजन और हार भंगार पर खर्च आदि।

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प्रश्न 15. (A)
निर्धारित व्यय व अर्धनिर्धारित व्यय में क्या अन्तर है ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 15 का उत्तर।

प्रश्न 16.
घर के खर्चों को तुम कौन-कौन से मदों में बांटोगे?
उत्तर :
घर में कई प्रकार की वस्तुओं पर खर्च किया जाता है। घर के खर्च को मुख्य रूप में दो सूचियों में विभाजित किया जा सकता है
1. आवश्यक सूची-इस सूची में घर, भोजन, कपड़े, दवाई, बच्चों की पढ़ाई पर खर्चा आदि शामिल हैं। यह खर्चा प्रत्येक स्थिति में करना ही पड़ता है जिससे परिवार के आवश्यक खर्चे पूरे हो सकें।

2. कम आवश्यक सूची-इस सूची में मनोरंजन, हार-शृंगार, सैर-सपाटा, सामाजिक और धार्मिक समागमों के खर्चे शामिल होते हैं। ये खर्चे ऐसे होते हैं जिनको कुछ समय के लिए टाला भी जा सकता है और पैसा न होने की सूरत में ये खर्चे बन्द भी किए जा सकते हैं।

प्रश्न 17.
बचत क्यों और कैसे की जा सकती है?
उत्तर :
परिवार की आय में से खर्च के पश्चात् जो बचता है उसको बचत कहा जाता है। प्रत्येक मनुष्य को अपनी आय का कुछ प्रतिशत भाग अवश्य बचाना चाहिए। निम्नलिखित कारणों से बचत करनी आवश्यक होती है
1. अचानक बीमारी – कई बार घर का कोई सदस्य अचानक किसी गम्भीर बीमारी का शिकार हो सकता है और उसका इलाज कराने के लिए काफ़ी धन की आवश्यकता पड़ती है और ऐसी स्थिति में बचत काम आती है।

2. परिवार पालक की मृत्यु – कई बार किसी दुर्घटना या बीमारी कारण पारिवारिक मुखिया की अचानक मृत्यु हो सकती है जिससे परिवार की आय बन्द या कम हो सकती है। ऐसी स्थिति में बचत काम आती है।

3. अचानक घाटा – व्यापार करने वाले लोगों को कई बार व्यापार में बहुत अधिक घाटा पड़ जाता है और उनके पास आय का साधन नहीं रहता। ऐसी स्थिति में बचत ही काम आती है।

4. भविष्य की आवश्यकताएं – प्रत्येक परिवार की अपनी भविष्य की आवश्यकताएं होती हैं जैसे बच्चों की उच्च शिक्षा, विवाह शादियों और मकान बनाने आदि के लिए धन की आवश्यकता पड़ती है। इन कामों के लिए बचाया हुआ धन प्रयोग किया जाता है।

5. सुरक्षित बुढ़ापे के लिए – बुढ़ापा एक कुदरती अवस्था है। इस अवस्था में मनुष्य कमाई करने के योग्य नहीं रहता, इसलिए इस समय उसको अपने खर्चे भोजन, कपड़े, आवास और दवाइयों के लिए धन की आवश्यकता होती है जोकि की गई बचत में से ही पूरी की जा सकती है।

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प्रश्न 18.
खर्च पर कौन-कौन से तत्त्व प्रभाव डालते हैं?
अथवा
व्यय को प्रभावित करने वाले तत्त्व लिखें।
उत्तर :
पारिवारिक आवश्यकताएं, मनोरंजन और अन्य सामाजिक और धार्मिक कार्यों पर प्रयोग की गई धन राशि को खर्च कहा जाता है। प्रत्येक परिवार के खर्चे भिन्न-भिन्न होते हैं। खर्च पर निम्नलिखित तत्त्व प्रभाव डालते हैं –
1. पारिवारिक सदस्यों की संख्या-यदि परिवार के सदस्यों की संख्या अधिक है तो खर्च भी अधिक होगा इसके अतिरिक्त सदस्यों की आयु और स्वास्थ्य से भी खर्च का सम्बन्ध है।

2. परिवार का सामाजिक स्तर-समाज में परिवार का क्या स्तर है इससे भी परिवार के खर्च पर प्रभाव पड़ता है। समाज में ऊँचा स्तर रखने वाले परिवारों को सामाजिक और धार्मिक कार्यों में अधिक योगदान देना पड़ता है।

3. व्यवसाय – व्यक्ति का व्यवसाय भी उनके खर्च को प्रभावित करता है जैसे राजनीतिज्ञ और व्यापार करने वाले लोगों को अपने व्यवसाय की सफलता के लिए क्लबों, मनोरंजन, महत्त्वपूर्ण लोगों की खातिरदारी पर खर्च करना पड़ता है।
इन तत्त्वों के अतिरिक्त व्यक्ति का स्वभाव, आदतें, दोस्ती का घेरा और मानसिक स्तर भी उसके खर्च को प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 19.
प्रतिदिन का हिसाब लिखना क्यों ज़रूरी है और कैसे रखा जाता है?
अथवा
प्रतिदिन का हिसाब-किताब रखना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर :
रोज़ाना हिसाब रखना सीमित आय वालों के लिए अति आवश्यक है, क्योंकि रोजाना हिसाब रखने से गृहिणी को यह पता चलता रहता है कि क्या खर्च बजट के अनुसार हो रहा है। यदि खर्चा बढ़ जाए तो गृहिणी को उसी दिन मालूम हो जाता है और दूसरे दिन वह जहां हो सके खर्चा कम कर के बजट को संतुलित कर सकती है। रोज़ाना हिसाब लिखने से गृहिणी परिवार के अन्य सदस्यों को साथ-साथ खर्चे के बारे में सावधान करती रहती है जिससे परिवार के दूसरे सदस्य भी फिजूलखर्ची नहीं करते।

हिसाब रखना-हर रोज़ का हिसाब रखने के लिए एक कापी या डायरी का प्रयोग किया जा सकता है। प्रतिदिन का हिसाब रखने के लिए हर रोज़ एक सफे (पेज) का प्रयोग करना चाहिए। पेज पर तारीख डाल कर चीज़ का ब्योरा अच्छी तरह देकर उसका रेट और कुल रकम लिखनी चाहिए। अगर किसी को सेवा फल के तौर पर कोई रकम दी जाए तो वह भी लिख लेनी चाहिए। महीने के अन्त में हर मद पर हुए खर्चे को अलग-अलग कर लेना चाहिए ताकि पता चल जाए कि किसी मद पर फजूल खर्च तो नहीं हुआ।

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प्रश्न 20.
खर्च की कौन-सी मदों से उच्च आय वालों का प्रतिशत खर्च कम आय वालों से अधिक होता है?
उत्तर :
खर्चे की मदें अमीर और ग़रीब दोनों की एक ही हैं परन्तु उच्च आय वर्ग, कम आय वालों से कई मदों पर अधिक खर्च करते हैं। जैसे भोजन, कपड़े, मनोरंजन और घर चलाना। भोजन में उच्च आय वर्ग महंगे भोजन पदार्थों का प्रयोग करते हैं और इसके साथ साथ उनका बाहर भोजन करने का खर्च अधिक होता है।

इस तरह कपड़ों और जूतों पर भी इस वर्ग का खर्च अधिक होता है। अमीर या उच्च आय वर्ग के लोग महंगे और संख्या में अधिक कपड़े बनाते हैं। इसके साथ ही जूते भी कपड़ों से मिलते या मेल खाते खरीदते हैं इसलिए इस तरह उनका कपड़ों के ऊपर कुल खर्चा अधिक हो जाता है। इसके अतिरिक्त उच्च आय वर्ग के लोग कम आय वालों से मनोरंजन पर अधिक खर्च करते हैं। वह सैर-सपाटे, फिल्मों, हार-शृंगार, सिगरेट, शराब आदि के खर्चे बढ़ा लेते हैं। इसके अतिरिक्त सामाजिक और धार्मिक कामों पर भी अधिक खर्च करते हैं। इसके साथ-साथ उनके नौकरों, पेट्रोल और टेलीफोनों के खर्चे भी बढ़ जाते हैं।

प्रश्न 21.
धन निवेश करने की किसी एक योजना के बारे में लिखें।
उत्तर :
देखें दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 8 का उत्तर।

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प्रश्न 22.
पारिवारिक व्यय का ब्योरा रखने के कोई दो लाभ बताएं।
उत्तर :
1. व्यय का ब्योरा रखने से मितव्ययिता आती है।
2. हिसाब रखने से बचत करने की प्रेरणा मिलती है।

प्रश्न 23.
कोई दो ऐसे तथ्य बतायें जो निवेश संस्था चुनने से पूर्व आप ध्यान में रखेंगे ?
उत्तर :
1. आयकर से छुटकारा-हमें वहां धन लगाना चाहिए जहां पर आयकर से छूट मिलती हो। विभिन्न बचत योजनाओं में आयकर छूट का प्रतिशत भिन्न-भिन्न होता है। अधिक प्रतिशत छूट वाला विकल्प उत्तम रहेगा।
2. आसान उपलब्धि-जैसे ही धन वापसी का समय आये तो धन वापसी आसान होनी चाहिए।

प्रश्न 24.
व्यय को प्रभावित करने वाले चार कारक बताएँ।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
पारिवारिक आय कितने प्रकार की होती है? उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर :
आय का मुख्य साधन है-‘काम के बाद प्राप्त होने वाला धन’। लेकिन इसके अतिरिक्त परिवार को अन्य स्रोतों से भी धन प्राप्त हो सकता है।
पारिवारिक आय को मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है –

  1. मौद्रिक आय (Money Income)
  2. वास्तविक आय (Real Income) प्रत्यक्ष आय
  3. आत्मिक आय (Psychic Income) अप्रत्यक्ष आय

मौद्रिक आय, ‘प्रत्यक्ष’ व ‘अप्रत्यक्ष’ दोनों तरह की वास्तविक आय तथा उनके उपभोग से प्राप्त मनोवैज्ञानिक सन्तुष्टि के योग को कुल आय (Total Income) कहते हैं।

1. मौद्रिक आय (Money Income) परिवार के सभी सदस्यों को किसी भी प्रकार से मुद्रा के रूप में प्राप्त हुई आय को मौद्रिक आय कहते हैं। इसके अन्तर्गत परिवार के सभी सदस्यों को सभी साधनों से प्राप्त वेतन, व्यापार, उद्योग-धन्धों से प्राप्त धन, मकान से प्राप्त किराया, बचत किए हुए धन से प्राप्त ब्याज या और किसी भी रूप में हुए लाभ आते हैं। इस प्रकार से प्राप्त धन परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किसी भी समय प्रयोग में लाया जा सकता है।

2. वास्तविक आय (Real Income) किसी भी समय पर मनुष्य की विभिन्न आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए उपलब्ध वस्तुएँ तथा सुख-सुविधाओं को वास्तविक आय कहा जा सकता है। यह आय समयानुसार परिवर्तनशील होती है। इसमें परिवार के किसी भी सदस्य को अपने कार्य-स्थल से धन के अतिरिक्त प्राप्त होने वाली वस्तुएँ तथा सुविधाएँ भी सम्मिलित होती हैं और इस प्रकार यह एक नियत समय के लिए निर्धारित होती है।

यह आय दो प्रकार की होती है –
(i) वास्तविक प्रत्यक्ष आय (Real Direct Income)
(ii) वास्तविक अप्रत्यक्ष आय (Real Indirect Income)

(i) वास्तविक प्रत्यक्ष आय – परिवार को वास्तविक प्रत्यक्ष रूप से होने वाली आय मुख्यतः वस्तुओं एवं सुविधाओं के रूप में ही प्राप्त होती है उदाहरणतः कई बार कार्य-स्थल से वेतन के अलावा कुछ ओर सुविधाएँ, जैसे कि रहने के लिए घर, कार, औषधि खर्चा, टेलीफोन का खर्चा, आने-जाने का खर्चा, यूनीफार्म (Uniform), नौकर आदि भी मिलते हैं और इस प्रकार यह परिवार के लिए प्रत्यक्ष आय का ही एक साधन है। इसी प्रकार गाँवों में किसानों की भूमि में खेती करने पर उनकी मेहनत के बदले उन्हें नगद पैसे के स्थान पर अधिकतर भूमि में हुई उपज में से एक हिस्सा दे दिया जाता है। यह भी परिवार के लिए प्रत्यक्ष आय ही है।

(ii) वास्तविक अप्रत्यक्ष आय-इस प्रकार की आय मुख्यतः परिवार के सदस्यों के ज्ञान व निपुणता के फलस्वरूप प्राप्त होती है उदाहरणार्थ परिवार को किसी सदस्य के बिजली व उपकरण ठीक करने के काम जानने से घर में बिजली या फिर कोई उपकरण बिगड़ जाने पर उसे ठीक करने के लिए बाहर से किसी व्यक्ति को बुलवाने पर होने वाले धन को बचाया जा सकता है। अन्य उदाहरणों में घर में बागबानी करके कुछ फल व सब्जियाँ आदि उगाकर तथा घर में ही कपड़े आदि सिलकर दर्जी को दी जाने वाली सिलाई से बचत की जा सकती है।

घर में इसी प्रकार से यदि गृहिणी अन्य कार्य, जैसे-घरेलू उपयोग के लिए फल-सब्जियों का संरक्षण करना, घर में कपड़े धोना आदि स्वयं करे तो वह परिवार के लिए एक प्रकार से अप्रत्यक्ष रूप से आय अर्जित कर रही है। इस प्रकार संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि वास्तविक आय वह आय होती है जो परिवार को सुविधाओं के रूप में प्राप्त होती है और जिनके प्राप्त न होने पर परिवार को अपनी मौद्रिक आय में से खर्च करना पड़ता है।

3. आत्मिक आय (Psychic Income) विभिन्न स्रोतों से प्राप्त मौद्रिक तथा वास्तविक आय के व्यय से प्राप्त होने वाली सन्तुष्टि आत्मिक आय कहलाती है, हालांकि इस प्रकार की आय का कोई भी मापदण्ड नहीं है क्योंकि किसी भी आय के व्यय से किसी मनुष्य को कितनी सन्तुष्टि होती है, इसका माप लगाना अति कठिन है। यही नहीं, हर मनुष्य या परिवार को एक निश्चित मात्रा में किए गए व्यय से प्राप्त सन्तुष्टि भिन्न-भिन्न होती है परन्तु फिर भी आत्मिक आय में वृद्धि के लिए धन-प्रबन्ध का समुचित उपयोग बहुत ही आवश्यक है।

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प्रश्न 1. (A)
मौद्रिक आय से आप क्या समझते हैं ?
(B) मौद्रिक आय के चार उदाहरण दें।
उत्तर :
देखें प्रश्न 1 का उत्तर।

प्रश्न 2.
पारिवारिक आय की सम्पूर्ति करने की आवश्यकता क्यों पड़ती है ? आय की सम्पूर्ति करने के विभिन्न तरीकों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर :
परिवार चाहे किसी भी आय वर्ग का हो, उसे धन को समझदारी से प्रयोग करना चाहिए। हमारी दिन प्रतिदिन की अनगिनत आवश्यकताएँ होती हैं और उन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आय के साधन सीमित होते हैं। इस कारण केवल पारिवारिक आय तथा व्यय में सन्तुलन लाना बहुत कठिन हो जाता है, अपितु बचत की तो गुंजाइश ही नहीं रह जाती। इन सबके अतिरिक्त परिवार की आकस्मिक आवश्यकताओं को पूरा करना भी बहुत ही आवश्यक हो जाता है जिसके लिए पारिवारिक आय की सम्पूर्ति की आवश्यकता पड़ती है। पारिवारिक आय की सम्पूर्ति निम्नलिखित तरीकों द्वारा की जा सकती है –

1. गृह-उद्योगों द्वारा (Through Household Production) – गृहिणी घर में कुछ साधारण उद्योगों द्वारा धन में वृद्धि कर सकती है। उदाहरणार्थ अगर गृहिणी सिलाई कढ़ाई में निपुण हो तो उसे चाहिए कि वह घर के सभी कार्यों को सम्पन्न कर कुछ खाली समय अवश्य निकाल ले। इस समय का सदुपयोग वह कपड़ों की सिलाई करके और उन कपड़ों को बेचकर, कुछ धन बचाकर आय की सम्पूर्ति अवश्य कर सकती है। इसी प्रकार मौसम में फल तथा सब्जियों का संरक्षण करके बाज़ार में बेचना, पापड़-बड़ियाँ आदि बनाकर बेचना भी कुछ अन्य उदाहरण हैं। न केवल गृहिणी ही, वरन् घर का कोई भी सदस्य अपनी कुशलता, निपुणता तथा क्षमता का सही उपयोग करके पारिवारिक आय की सम्पूर्ति करने में सहायक हो सकता है।

2. पार्ट-टाइम नौकरी द्वारा (Through Part-Time Jobs) – गृहिणी या घर का कोई भी अन्य सदस्य कोई पार्ट-टाइम नौकरी कर ले तो परिवार की आय में वृद्धि की जा सकती है और आर्थिक स्थिति में सुधार लाया जा सकता है। अत: गृहिणी को चाहिए कि गृह-संचालन में समय की उचित व्यवस्था करके कुछ समय बचाकर पार्ट-टाइम नौकरी करे जिससे कि परिवार का जीवन-स्तर ऊँचा उठाया जा सके।

3. परिवार की वास्तविक आय में बढ़ोत्तरी करना (Increase in the Real Income of the Family) परिवार की मौद्रिक आय के साथ-साथ वास्तविक आय में भी वृद्धि की जा सकती है। घर के आगे या पीछे पड़े खाली स्थान पर गृह-वाटिका बनाई जा सकती है, जिसमें विभिन्न प्रकार के फल तथा सब्जियाँ उगाई जा सकती हैं। इस प्रकार फल व सब्जियों पर व्यय होने वाले धन को बचाकर उसका उपयोग अन्य आवश्यक कार्यों के लिए किया जा सकता है।

उपरोक्त के अलावा पारिवारिक आय त में निम्नलिखित बातें भी सहायक होती हैं –

  1. समय का उचित विभाजन – गृह कार्यों का परिवार के सदस्यों में उचित विभाजन कर गृहिणी निर्धारित समय में गृह कार्य समाप्त कर बाहर भी कार्य कर सकती है या गृह उद्योग से आय को बढ़ा सकती है।
  2. श्रम एवं समय की बचत के साधनों का प्रयोग – इन साधनों द्वारा समय की बचत होती है जिसे अन्य गृह व्यवसाय में लगाकर धन उपार्जन किया जा सकता है।
  3. खाद्य – पदार्थों का संरक्षण एवं संग्रहीकरण-मौसम के अनुसार खाद्य-पदार्थों का संरक्षण तथा संग्रहीकरण कर व्यय में मितव्ययिता की जा सकती है जैसे – मौसम में अनाज सस्ते होते हैं, मौसमी फलों तथा सब्जियों को सॉस, चटनी, जैम, अचार, मुरब्बों आदि के रूप में संरक्षित करना।
  4. धन का मितव्यय-विवेकपूर्ण व्यय से बचत होती है।
  5. बचत किए हुए धन का उचित विनियोग-बचत के उचित विनियोग से धन में वृद्धि होती है। ब्याज के रूप में अतिरिक्त आय की वृद्धि होती है। अतः बचत का उचित विनियोग भी आवश्यक है। ब्याज से आय की कमी की पूर्ति होती है।

इस प्रकार उपरोक्त तरीकों से अर्जित सम्पूर्ण आय से परिवार की आवश्यकताओं को किसी सीमा तक पूरा किया जा सकता है, परन्तु साथ ही यह भी ज़रूरी है कि गृहिणी अपनी पारिवारिक आय का योजनापूर्वक उपयोग करे। अधिकतर गृहिणियाँ बिना योजना के ही धन का व्यय करती रहती है, जिसके कारण महीने के अन्त में कई महत्त्वपूर्ण कार्य अधूरे ही रह जाते हैं और परिवार के सभी लक्ष्यों की पूर्ति होना सम्भव नहीं हो पाता है। गृहिणी को चाहिए कि बचत का बजट बनाए जिससे पारिवारिक आय का कुछ अंश आकस्मिक आवश्यकताओं के लिए बचत के रूप में संग्रहित हो सके।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि पारिवारिक आय तथा व्यय में सन्तुलन लाने के लिए आय की सम्पूर्ति करना परिवार के लिए सहायक है। अत: किसी भी परिवार को सुखमय बनाने के लिए पारिवारिक आय का सही उपयोग तथा आवश्यकता पड़ने पर पारिवारिक आय को विभिन्न तरीकों से बढ़ाना भी अत्यन्त आवश्यक होता है।

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प्रश्न 2.A.
आय की सम्पूर्ति के तरीके बताएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 2 का उत्तर।

प्रश्न 3.
परिवार का हिसाब रखने के क्या लाभ होते हैं ?
अथवा
परिवार में आय-व्यय का विवरण रखना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
परिवार की अर्थ – व्यवस्था को ठीक बनाए रखने के लिए परिवार की आय तथा विभिन्न उद्देश्यों को ध्यान में रखकर बजट बना लेना ही पर्याप्त नहीं होता है, बल्कि विभिन्न मदों पर खर्च किए जाने वाले पैसे का हिसाब-किताब रखना भी बहुत ज़रूरी होता है। घर में इतने प्रकार के खर्चे होते हैं, ‘सभी को याद रखना सम्भव नहीं होता और मानसिक बोझ लदा रहता है। बाजार का हिसाब-किताब रखने के लिए अलग से कापी होनी चाहिए। कापी के ऊपर के पृष्ठ पर ‘बाज़ार का हिसाब’ लिखना चाहिए। प्रत्येक वस्तु का मूल्य अलग-अलग लिखकर उससे प्रतिदिन के खर्च का जोड़ रात को लिख लिया जाए।

कई दिन का हिसाब यदि एक साथ लिखा जाता है तो इसमें भूलने का भय रहता है। हिसाब लिखते समय पृष्ठ के ऊपर तिथि एवं दिन अवश्य लिखना चाहिए। प्रत्येक कापी के पृष्ठ पर केवल एक दिन का हिसाब लिखने से देखने में आसानी होती है। हिसाब की कापी भी एक निर्धारित स्थान पर ही रखनी चाहिए। इससे कापी ढूँढ़ने में व्यर्थ में समय नष्ट नहीं होता और ढूँढने में कठिनाई भी नहीं होती। महीने के शुरू में ही गृह-स्वामिनी को खर्च का ब्योरा बना लेने से सुविधा रहती है तथा व्यर्थ की मदों पर फ़िजूल खर्च का भी भय नहीं रहता।

परिवार में आय-व्यय के विवरण रखने से निम्नलिखित लाभ होते हैं –

1. विभिन्न मदों के लिए निश्चित की गई धनराशि की उपयुक्तता का पता चलता है। यदि धनराशि कम पड़ जाती है तो इस बात का ध्यान रखा जा सकता है कि अगली बार बजट बनाते समय उस मद के लिए अधिक धनराशि नियत की जा सके। इसके विपरीत यदि निर्धारित धनराशि अधिक हो तो उससे सही करने में सहायता मिलती है।
2. कई पदार्थ, जैसे-अखबार, दूध आदि का मूल्य नकद नहीं चुकाया जाता है और महीने के अन्त में ही रकम का भुगतान किया जाता है। यदि नियमित रूप से दैनिक हिसाब लिखा हुआ हो तो भुगतान करने में परेशानी नहीं होती।
3. परिवार के विभिन्न सदस्यों की इच्छाओं-आकांक्षाओं का पता चल जाता है।
4. नई गृहस्थी की पारिवारिक आवश्यकताओं का ज्ञान हो जाता है।
5. आकस्मिक खर्चों का अनुमान लगाना सरल हो जाता है।
6. महीने के प्रारम्भिक दिनों में हाथ में अधिक पैसा होने से अधिक खर्चा हो जाता है। यदि दैनिक हिसाब लिखा हो तो आगामी दिनों में व्यय को सीमित करके सन्तुलित किया जा सकता है।
7. महीने भर बाजार से उधार सामान लेते रहने वाले परिवार में तो हिसाब-किताब लिखना और भी आवश्यक हो जाता है, जिससे दुकानदार किसी प्रकार की हेराफेरी न कर सके।
8. खर्चे का हिसाब-किताब रखने से मितव्ययिता आती है।
9. हिसाब रखने से गृहिणी को बचत करने की प्रेरणा मिलती है।
10. हिसाब रखने से नौकर की चोरी की आदत को बढ़ावा नहीं मिलता।

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प्रश्न 4.
घरेलू हिसाब-किताब की विभिन्न विधियाँ कौन-सी हैं ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर :
परिवार में हिसाब-किताब की कुछ विधियाँ निम्नलिखित हैं –
1. पारिवारिक वित्त योजना – इसे बजट विधि भी कहते हैं। इस विधि के अन्तर्गत परिवार की सारी आय को एकत्रित करके बजट के अनुसार विभिन्न मदों में बाँट देते हैं। पूरा पैसा गहस्वामी या गृहिणी दोनों में से किसी के हाथ में होता है, या दोनों मिलकर खर्चा करते हैं।

2. आबंटन विधि – इस विधि में यह तय कर लिया जाता है कि आय का कितना भाग पारिवारिक खर्च के लिए है और वह गृहिणी को दे दिया जाता है। शेष अंश गृहस्वामी मकान के किराये तथा वैयक्तिक खर्चे के लिए अपने पास रख लेता है।

3. बराबर वेतन विधि – इस विधि में परिवार की आय में से परिवार के सभी प्रकार के खर्चों के लिए अपेक्षित धनराशि निकाल ली जाती है। शेष धन को पति-पत्नी वैयक्तिक खर्चे के लिए बराबर बाँट लेते हैं।

4. आय-व्यय की बराबर बाँट विधि-इस विधि के अन्तर्गत पूरी आय तथा खर्चों को दो बराबर-बराबर भागों में बाँट लिया जाता है। आय और व्यय का एक भाग पत्नी के तथा दूसरा भाग पति के हिस्से रहता है। जिन घरों में पति व पत्नी दोनों कमाते हैं, वहाँ इस पद्धति का प्रचलन अधिक है।

5. वितरण विधि – इस विधि में पूरी आय सामान्यतः गृहस्वामी के हाथ में रहती है और सभी उसी से अपनी आवश्यकतानुसार पैसा माँगते हैं।

6. अलग – अलग लिफाफों में पैसे रखना-खर्च के हिसाब-किताब की एक सरल विधि यह है कि बजट में जिस-जिस मद के लिए जितनी धनराशि निश्चित की गई है उसे अलग-अलग लिफाफों में डालकर लिफाफे पर मद का नाम लिख लिया जाता है। जिस समय जो खर्च करना होता है, उस समय उसी लिफाफे में से पैसे निकालकर खर्च कर लिया जाता है। इस विधि से महीने के अन्त में यह तो पता आसानी से चल जाता है कि किस मद में कितना खर्च हुआ है, परन्तु मद का पूरा हिसाब नहीं रखा जा सकता है।

7. अलग – अलग कार्ड बनाना-खर्चे का हिसाब-किताब रखने की यह अच्छी विधि है। इस विधि में विभिन्न प्रकार के खर्चों के लिए अलग-अलग कार्ड बना लिए जाते हैं, जैसे-दूध वाले के लिए कार्ड, धोबी के लिए अलग कार्ड, किराने वाले के लिए कार्ड आदि। इस विधि का दोष यह है कि कार्ड के खोने की सम्भावना रहती है और वर्ष भर में इतने कार्ड एकत्रित हो जाते हैं कि वार्षिक खर्च का आसानी से पता नहीं लगता।

8. खर्च की कापी बनाना – इस विधि में एक कापी, डायरी या रजिस्टर में प्रतिदिन विभिन्न मदों पर होने वाले खर्च को लिख लिया जाता है, जिससे प्रतिदिन का कुल व्यय निकल सकता है। दूध, अखबार, धोबी आदि के लिए महीने के शुरू में ही तारीख डालकर लेखा बना लिया जाता है तथा प्रतिदिन की मात्रा और मूल्यों को भर देते हैं। महीने के अन्त में इनका जोड़ निकाल लेते हैं।

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प्रश्न 5.
दूध का हिसाब रखना क्यों आवश्यक है ? इसके क्या नियम हैं ? दूध वाले के हिसाब-किताब का नमूना बनाइये।
उत्तर :
दूध का पैसा प्रतिदिन के हिसाब से भी चुकता किया जाता है, परन्तु इसमें असुविधा होती है। बड़े-बड़े शहरों में जहाँ सरकारी डेरियाँ होती हैं, वहां दूध की मात्रा प्रतिदिन के हिसाब से निर्धारित की जाती है। उपभोक्ता यदि इससे कम व अधिक लेना चाहता है तो नहीं ले सकता, अतः दूध का सीधा हिसाब होने से इसमें हिसाब रखने की आवश्यकता नहीं होती। भारतवर्ष में अधिकतर प्राइवेट डेरियों तथा दुकानों से दूध आता है। दूध ग्वालों द्वारा घरों में लाया जाता है जो कि अधिकतर अनपढ़ होते हैं। दूध का हिसाब रखना गृहिणी के लिए जरूरी हो जाता है। हिसाब न रखने से यह पता नहीं चल सकता कि किस दिन दूध कम या अधिक आया, किस दिन नहीं लिया गया तथा महीने में कुल दूध कितना लिया गया। इससे डेयरी वाला हिसाब में गड़बड़ी कर सकता है। दूध की मात्रा ज्यादा बतलाकर अधिक रुपये ले सकता है।

दूध का हिसाब रखने के नियम –

  1. दूध का हिसाब रखने के लिए अलग कापी हो।
  2. दूध का हिसाब प्रतिदिन लिख लेना चाहिए।
  3. हिसाब की कापी के प्रत्येक पृष्ठ का प्रयोग करें जिससे वह व्यर्थ में नष्ट न हो।
  4. इसके लिए हिसाब-किताब की तालिका अवश्य बनाई जाए।

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प्रश्न 6.
बचत की आवश्यकता क्यों होती है ?
उत्तर :
बचत की आवश्यकता निम्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए होती है –
1. आपात्कालीन स्थितियों के लिए-भविष्य अनिश्चित होता है तथा परिवार के लिए कई ऐसी स्थितियाँ आ सकती हैं जिनका सामना करने के लिए अतिरिक्त धन की आवश्यकता पड़ती है
(i) बीमारी-परिवार का कोई भी सदस्य जब किसी गम्भीर रोग से ग्रस्त हो जाता है तो उसकी चिकित्सा के लिए धन की आवश्यकता पड़ती है। ऐसी संकटकालीन स्थिति में परिवार द्वारा पहले से बचाया हुआ धन ही काम आता है।

(ii) किसी दुर्घटना के कारण असमर्थता-कई बार दुर्घटना से गृहस्वामी अपंग हो जाता है तथा काम करने योग्य नहीं रहता है। ऐसी स्थिति का सामना करने के लिए बचत किए गए धन की आवश्यकता होती है।

(iii) आय बन्द होना या कम होना-कई कारणों से, जैसे-नौकरी छूटना, व्यापार बन्द होना या व्यापार में घाटा होने से आय बन्द हो जाती है या कम हो जाती है लेकिन अन्य व्यय उतना ही रहता है। ऐसी स्थिति में बचत किया हुआ धन बहुत काम आता है और जब तक दूसरी नौकरी या व्यापार करते हैं तब तक इसी राशि से व्यय को सीमित करके काम चलाया जा सकता है।

(iv) गृहस्वामी का निधन हो जाने पर-मानव जीवन अस्थिर है। गृहस्वामी के निधन के बाद परिवार को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। ऐसी परिस्थिति से बचत की गई राशि, जैसे-जीवन बीमा आदि परिवार को आर्थिक संरक्षण प्रदान करती है।

(v) अन्य आकस्मिक दुर्घटनाएँ-घर में आग लग जाने के कारण या चोरी हो जाने के कारण परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है तथा इस क्षति को बचत किए गए धन द्वारा ही पूरा किया जा सकता है।

2. सुरक्षित भविष्य के लिए नौकरी से अवकाश – प्राप्ति के बाद जो निवृत्त वेतन मिलता है वह परिवार की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु काफ़ी नहीं होता है, अतः आर्थिक रूप से सुरक्षित भविष्य के लिए बचत करना बहुत आवश्यक है।

3. पारिवारिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए – प्रत्येक परिवार के जीवन लक्ष्य होते हैं, जैसे-बच्चों के लिए उच्च शिक्षा आदि। सीमित आय द्वारा इन लक्ष्यों की पूर्ति करना असम्भव-सा है। यदि पहले ही जब बच्चे छोटे हों और परिवार पर आर्थिक दबाव अधिक न हो, आय का कुछ अंश बचाकर उचित रूप से जमा करते जाएँ तो बच्चों के बड़े होने तक उनकी शिक्षा के लिए काफ़ी धन हो जाता है।

4. पारिवारिक जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के लिए – आज के भौतिक गुण में परिवार के जीवन स्तर की मापक कुछ भौतिक वस्तुएँ, जैसे-फ्रिज, रंगीन टी० वी०, कार आदि हैं। सीमित आय में इनको खरीदना तो कठिन है परन्तु बचत करके यदि धन इकट्ठा कर लिया जाए तो यह परिवार को उपलब्ध हो सकती हैं।

5. अन्य आकस्मिक खर्चों के लिए – परिवार के कई आकस्मिक खर्च, जैसे अतिथि आगमन, विवाह आदि के कारण होते हैं। ऐसी स्थिति में बचत की धनराशि ही काम आती है।

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प्रश्न 7.
परिवार द्वारा बचत कौन-कौन से माध्यम से की जाती है ? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
अथवा
बचत किए हुए धन के विनियोग के विभिन्न साधनों के बारे में लिखिए।
उत्तर :
परिवार के द्वारा बचाई गई धनराशि बचत कहलाती है। इसे गृहिणी को ऐसे काम में लगाना चाहिए जिससे कुछ आय भी अर्जित हो तथा धन भी सुरक्षित रहे। बचत विनियोग के विभिन्न साधन हैं। सुरक्षा तथा आय की दृष्टि से प्रमुख साधन अग्रलिखित हैं –

  1. बैंक
  2. बीमा
  3. डाकखाना
  4. राष्ट्रीय बचत प्रमाण-पत्र
  5. यूनिट ट्रस्ट क्रय करके।

1. बैंक – पहले समय में लोग बैंक में रुपया जमा करवाने से घबराते थे। उन्हें इस बात का डर रहता था कि बैंक फेल हो जाए और रकम न दे तो उनकी रकम डूब जाएगी, परन्तु आजकल ऐसा नहीं होता। आज प्रायः अधिकांश बैंकों का राष्ट्रीयकरण हो गया है और राष्ट्रीयकृत बैंकों पर भी रिज़र्व बैंक ऑफ़ इण्डिया का पूर्ण नियन्त्रण है। अत: बैंकों में जमा राशि की पूर्ण सुरक्षा रहती है।

बैंक एक ऐसी राष्ट्रीयकृत संस्था है जो मनुष्य की धन सम्बन्धी समस्याओं के निराकरण में सहयोग देती है। बैंक लोगों के धन को जमा करने का कार्य करती है। आवश्यकता पड़ने पर बैंक लोगों को अनेक कार्यों हेतु उधार रुपया देने की व्यवस्था करती है जिसके लिए ब्याज की दर बहुत कम होती है।

इसके अतिरिक्त बैंक में जमा रुपयों को समय-समय पर निकालने की सुविधा, औद्योगिक व्यवसायों के सम्पादन, कीमती वस्तुओं की सुरक्षा के लिए लॉकर्स की सुविधा, चैक, बिल, हुण्डी, ड्राफ्ट से भुगतान की सुविधा प्राप्त होती है।

2. जीवन बीमा – जीवन बीमा अनिवार्य रूप से बचत का उत्तम माध्यम है। यह व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करता है। जीवन बीमा एक ऐसा करार या बन्ध-पत्र होता है जिसमें भावी अनिश्चित विपत्तियों या विशेष घटना घटने पर बीमा धारक या उसके उत्तराधिकारी को एक पूर्व निश्चित धनराशि प्रदान की जाती है। इसके लिए उसे प्रति मास निश्चित किस्त देनी पड़ती है। बीमा निगम एक ऐसी संस्था है जो साधन एवं सुरक्षा प्रदान कर जोखिम को समाप्त करती है तथा अनिश्चित वातावरण को निश्चित वातावरण में परिवर्तित करती है।

3. डाकघर बचत बैंक – डाकघर बचत को सुरक्षित रखने तथा उसका पूर्ण लाभ उठाने में सहायक होता है। डाकघर में कम-से-कम राशि 2 रुपये तक जमा की जा सकती है। डाकघर, बैंक की भी भूमिका निभाते हैं। भारतीय सरकार ने डाकघर बचत बैंक की स्थापना इस दृष्टिकोण से की है कि लोग सरलतापूर्वक बचत कर सकें तथा उनमें बचत की आदत बन सके। इसमें दो व्यक्ति मिलकर रुपया जमा कर सकते हैं तथा नाबालिग बच्चों के नाम से भी माता-पिता खाता खोल सकते हैं।

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4. राष्ट्रीय बचत प्रमाण – पत्र-राष्ट्रीय बचत प्रमाण-पत्र की योजना 10 जून, 1966 से शुरू की गई है। ये बचत प्रमाण-पत्र ₹10, ₹ 100 तथा ₹ 1,000 की कीमत के डाकघर से खरीदे जा सकते हैं। अवधि की समाप्ति पर इस रकम पर ₹ 8 प्रति सैंकड़ा की दर से रुपया जमा करने वाले को वापस लौटा दिया जाता है। ये विभिन्न वर्षीय पत्र होते हैं।

5. यूनिट्स – भारतीय संसद् ने एक अधिनियम 1964 में लागू कर ‘यूनिट ट्रस्ट ऑफ़ इण्डिया’ की स्थापना की थी। यूनिट एक प्रकार की अंशपूँजी होती है। इसकी कीमत ₹ 10 होती है। इसके द्वारा यूनिट क्रय करके बचत की जाती है। पोस्ट ऑफिस में आवेदन-पत्र देकर यूनिट्स को क्रय किया जा सकता है। यूनिट से मिलने वाले धन को विभिन्न उद्योगों में विनिमय किया जा सकता है। इसका लाभ बैंक या डाकघर से प्राप्त विभिन्न उद्योगों में विनिमय किया जा सकता है। इसका लाभ बैंक या डाकघर से प्राप्त किया जा सकता है।

6. अनिवार्य समय बचत खाता – इसमें एक निश्चित समयावधि के लिए खाते में धन जमा करवाया जाता है। इससे जमाकर्ता को प्रतिवर्ष निर्धारित ब्याज मिलता रहता है। निश्चित अवधि के पश्चात् ही जमाराशि वापस मिलती है। यह जमा खाता अकेले व्यक्ति द्वारा, संयुक्त रूप से, अल्पवयस्क और विक्षिप्त व्यक्ति के अभिभावक द्वारा खोला जा सकता है।

7. उपहार कूपन्स – यह कूपन ₹ 500, ₹ 1,000, ₹ 5,000 तथा ₹ 10,000 के मिलते हैं। कोई भी व्यक्ति उपहार के रूप में इन्हें किसी अल्पवयस्क या वयस्क व्यक्ति को दे सकता है।

8. दस-वर्षीय रक्षा जमा बाण्ड – यह रिज़र्व बैंक तथा स्टेट बैंक की कुछ शाखाओं और शासकीय कोषालय से खरीदे जा सकते हैं। एक वयस्क अधिक-से-अधिक ₹ 35,000 के और दो वयस्क संयुक्त रूप से ₹ 70,000 के बाण्ड खरीद सकते हैं। इनकी क्रय करने की तिथि से एक वर्ष तक भुगतान नहीं होता है तथा इसके पश्चात् नियमानुसार कटौती काटकर इच्छा से राशि वापिस ली जा सकती है।।

9. प्रीमियम इनामी बाण्ड – ये इनामी बाण्ड ₹ 5 से लेकर ₹ 100 तक के होते हैं। इनकी राशि का भुगतान पाँच वर्ष से पहले नहीं हो सकता है। इन पर इनाम की राशि भी प्राप्त होती है। ये रिज़र्व बैंक, स्टेट बैंक की शाखाओं, शासकीय कोषालयों तथा डाकखानों से प्राप्त किए जा सकते हैं।

10. लॉटरी चिट व्यवस्था – इसमें जान-पहचान वाले व्यक्ति मिलकर प्रतिमास निश्चित राशि देकर कुछ धन इकट्ठा करते हैं। इनमें से जिन व्यक्तियों को धन की आवश्यकता होती है वह चिट पर नाम लिखकर डालते हैं। चिट उठाने पर जिसका नाम आता है, उसे ही धन मिल जाता है, लेकिन आगामी सभी किस्तें जमा करवाते रहनी पड़ती है।

11. कम्पनियों में हिस्सा खरीदना – कई कम्पनियाँ अपने शेयर बेचती हैं। ये शेयर खरीदने पर प्रतिवर्ष धनराशि के हिसाब से लाभांश (Dividend) मिलता रहता है।

12. सहकारी संस्थाएँ – कुछ व्यक्ति मिलकर सहकारी संस्थाएं बनाकर व्यापार आदि करते हैं। जो लाभ होता है उसे आपस में लगाई गई धनराशि के हिसाब से बाँट लेते हैं। सहकारी संस्थाओं को पंजीकृत होने के पश्चात् सरकार की ओर से भी कई प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त होती हैं।

नोट – यहां दी गई सभी रुपयों की सीमा अथवा दर सरकार की तथा बैंक या डाकखाने द्वारा तय किए नियमों अनुसार कम या अधिक हो सकती है।

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प्रश्न 7.
(A) बचत किए हुए धन के निवेश के किसी एक साधन के बारे में लिखिए।
(B) बचत करना क्यों आवश्यक है ? बचत के विभिन्न तरीकों के बारे में बताइए।
उत्तर :
देखें प्रश्न 7 का उत्तर।

प्रश्न 8.
डाकघर में किन-किन तरीकों से बचत की जाती है ?
उत्तर :
1. डाकघर बचत बैंक (Postal Saving Bank Account) डाकघर में भी रुपया जमा करके बचत की जाती है। सरकार ने डाकघर में बचत बैंक का निर्माण इसलिए किया है कि लोग सरलतापूर्वक रुपया जमा कर सकें तथा उनमें बचत की प्रवृत्ति पैदा हो सके। देहाती क्षेत्रों में जहाँ बैंक की शाखाएँ नहीं हैं, परिवारों के लिए यह सुविधा बहत कल्याणकारी है। डाकघर बचत बैंक में कोई भी व्यक्ति स्वयं के नाम पर नाबालिग के नाम पर जिसका संरक्षक है, खाता खोल सकता है। इसमें दो व्यक्ति संयुक्त रूप से भी खाता खोल सकते हैं। यह खाता पाँच रुपए जमा करवा कर खोला जा सकता है।

डाकघर बचत बैंक में ब्याज की दर बदलती रहती है। डाकघर बचत बैंक में खाता खोलने को प्रोत्साहित करने के लिए कई इनामी योजनाएं भी निकाली गई हैं। इनमें प्रत्येक ऐसे व्यक्ति को इनाम के लिए रखा जा सकता है जिसकी कम-से-कम ₹ 200 की राशि डाकघर में जमा हो। एक व्यक्ति के नाम में अधिक-से-अधिक ₹ 25,000 तथा संयुक्त खाते में ₹ 50,000 जमा हो सकते हैं। जमा राशि केवल उसी डाकघर से निकाली जा सकती है, जहाँ पर खाता खोला गया है। ब्याज 31 मार्च के बाद वर्ष में एक बार जोड़ा जाता है। बैंक की तरह डाकघर भी खाता खोलने वाले को पास बुक देता है जिसमें प्रत्येक जमा तथा निकाली गई राशि का लेखा होता है। माता-पिता या अभिभावक स्वयं नाबालिग के नाम पर खाता खोल सकते हैं।

2. डाकघर सावधि संचयी योजना (Cumulative Scheme) बैंक की तरह इसमें भी सी० टी० डी० जमा खाते खोले जाते हैं। ये 5, 10, 15 वर्ष के लिए खोले जाते हैं। इसमें प्रतिमाह ₹ 5 से ₹ 100 तक की राशि जमा की जा सकती है।

  • इस योजना के अन्तर्गत कोई भी एक व्यक्ति या दो व्यक्ति मिलकर खाता खोल सकते हैं।
  • यह जमा खाता निश्चित अवधि के लिए खोला जाता है। इसमें ब्याज की दरें बदलती रहती हैं।
  • ब्याज का भुगतान प्रति वर्ष किया जाता है परन्तु ब्याज की गणना छमाही की जाती है।

3. डाकघर मियादी खाता (Postal Fixed Deposit) – यह खाता डाकघर में अकेले या संयुक्त रूप में खोला जा सकता है। यह 1, 2, 3, 5 या 10 वर्ष तक के लिए खोला जा सकता है। इसमें ₹ 50 से लेकर ₹ 25,000 तक जमा किए जा सकते हैं।

4. राष्ट्रीय बचत प्रमाण – पत्र (National Saving Certificates) ये प्रमाण-पत्र 10, 100, 1,000 की कीमत के डाकघर से खरीदे जा सकते हैं। ये रकम 10 वर्ष के बाद ₹ 8 प्रति सैंकड़ा की दर से ब्याज सहित जमा करने वाले को दे दी जाती है।

5. बारह-वर्षीय राष्ट्रीय रक्षा – पत्र-ये रक्षा-पत्र ₹ 5, 10, 15, 50, 100, 500, 1000, 5,000 तथा ₹ 25,000 की कीमतों के डाकघर से खरीदे जा सकते हैं। इसमें वार्षिक दर से ब्याज दिया जाता है। एक व्यक्ति 35,000 के तथा दो व्यक्ति एक साथ मिलकर 50,000 के 12 वर्षीय राष्ट्रीय रक्षा-पत्र खरीद सकते हैं।

उपरोक्त के अलावा डाकघर की सहायता से विविध प्रकार के बचत प्रमाण-पत्र तथा खातों द्वारा बचत की जा सकती है। पाँच वर्षीय राष्ट्रीय विकास पत्र, सामाजिक सुरक्षा पत्र, राष्ट्रीय बचत वार्षिक पत्र आदि इसी प्रकार के बचत पत्र हैं।

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प्रश्न 9.
जीवन बीमा क्या है ? इसके प्रमुख उद्देश्य व लाभ बताइए।
उत्तर :
जीवन बीमा बचत का सर्वोत्तम साधन है। जीवन बीमा निगम द्वारा दिया गया एक बन्ध-पत्र होता है जिसमें भावी अनिश्चित आपत्तियों या घटना घटित होने पर बीमाधारक को या उसके उत्तराधिकारी को एक पूर्व निश्चित धनराशि निगम द्वारा दी जाती है।

जीवन बीमा के उद्देश्य व लाभ जीवन बीमा के मुख्य उद्देश्य या लाभ निम्नलिखित हैं –
1. परिवार को आर्थिक संरक्षण प्रदान करना – बीमेदार के निधन पर उसके द्वारा नियुक्त परिवार के सदस्य को बीमा की राशि दी जाती है जिससे परिवार आर्थिक संकट का सामना कर सके।

2. वृद्धावस्था में आर्थिक सुरक्षा – वृद्धावस्था में बीमे द्वारा प्राप्त धनराशि आर्थिक संरक्षता प्रदान करती है।

3. विवाह, शिक्षा आदि के लिए आर्थिक सहायता – जीवन बीमा अपनी विशेष पॉलिसी के द्वारा परिवार के विभिन्न उद्देश्यों, विवाह, शिक्षा आदि के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करता है।

4. बचत की आदत डालना – जीवन बीमा बचत के लिए विवश करके परिवार के सदस्यों में नियमित बचत करने की आदत डालता है।

5. सम्पत्ति कर चुकाना – बीमेदार के निधन के बाद सम्पत्ति कर चुकाने के लिए सम्पत्ति को बेचने की आवश्यकता नहीं पड़ती है, जीवन बीमा सम्पत्ति कर के लिए धन की व्यवस्था करता है।

6. बीमेदार को व्यापार आदि के लिए ऋण देना-आर्थिक संकट में या व्यापार आदि के लिए बीमा निगम बीमेदार की पॉलिसी की जमानत लेकर ऋण भी देता है।

7. अन्य बचत योजनाओं की अपेक्षा अधिक लाभ पहुँचाना-जीवन बीमा अन्य बचत योजनाओं से अधिक लाभ पहुंचाती है –

  • बीमेदार की मृत्यु के बाद उसके परिवार को आर्थिक सुरक्षा प्राप्त होती है।
  • बीमे में जमा करवाई गई धनराशि पर आयकर की छूट होती है।
  • बीमेदार ने यदि किसी से ऋण लिया हो, तब भी उसके निधन के बाद बीमे की राशि उत्तराधिकारी को दी जाती है और इस प्रकार यह राशि लेनदारों से पूर्ण रूप से सुरक्षित होती है।
  • बीमेदार के व्यवस्था करने पर उसके निधन के बाद बीमे की धनराशि उत्तराधिकारी को किस्तों में दी जाती है और जिससे पूर्ण राशि का एक साथ अपव्यय न हो।

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प्रश्न 10.
धन का सदुपयोग करने के लिए एक परिवार को क्या-क्या करना चाहिए (कोई तीन उपाय)?
उत्तर :
धन का सदुपयोग करने के लिए परिवार को निम्न कार्य करने चाहिए –

  1. धन से सोना चांदी खरीद कर रख लेना चाहिए।
  2. बैंक में बचत खाता खोल लेना चाहिएं।
  3. निश्चित अवधि जमा योजना में पैसे लगाने चाहिए।
  4. वस्तुएँ आवश्यकतानुसार खरीदनी चाहिएं ना कि दिखावे के लिए।
  5. डाकखाने की विभिन्न बचत योजनाओं में पैसा लगाना चाहिए जैसे किसान विकास पत्र, राष्ट्रीय बचत योजना, डाक घर मासिक आय योजना।
  6. भविष्य निधि, बीमा पॉलिसी आदि में भी धन लगाया जा सकता है।
  7. वस्तुओं को ऑफ सीजन में खरीद कर भी पैसे की बचत की जा सकती है।

प्रश्न 11.
(A) बचत करना क्यों आवश्यक है ? बचत के किन्हीं चार साधनों के नाम बताएं।
(B) बचत किसे कहते हैं ? इसके साधनों के नाम लिखें।
(C) बचत करना क्यों आवश्यक है ? बचत करने के विभिन्न तरीकों के बारे में बताइए।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

एक शब्द/एक वाक्य वाले प्रश्न –

(क) निम्न का उत्तर एक शब्द में दें –

प्रश्न 1.
मकान का किराया कैसा खर्च है ?
उत्तर :
निर्धारित खर्च।

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प्रश्न 2.
पारिवारिक आय व्यय के हिसाब से बजट कितने प्रकार का है ?
उत्तर :
तीन प्रकार का।

प्रश्न 3.
यूनिट ट्रस्ट ऑफ़ इण्डिया की स्थापना कब हुई ?
उत्तर :
1964.

प्रश्न 4.
आय को कितने भागों में बांटा जा सकता है ?
उत्तर :
तीन।

प्रश्न 5.
बजट योजना कितने तत्त्वों पर निर्भर है ?
उत्तर :
चार।

(ख) रिक्त स्थान भरो –

1. अवकाश काल का उचित प्रयोग करके हम आत्मिक आय, पारिवारिक आय तथा
………… आय को बढ़ा सकते हैं।
2. ………….. का बजट उत्तम रहता है।
3. खर्चे का हिसाब-किताब रखने से …………. आती है।
4. आयु बढ़ने के साथ-साथ खर्चों में …………. होती है।
उत्तर :
1. मौद्रिक
2. बचत
3. मितव्ययता
4. वृद्धि।

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(ग) निम्न में ठीक तथा गलत बताएं –

1. विवेकपूर्ण व्यय से बचत होती है।
2. हमारे देश में दो प्रकार की परिवार व्यवस्था है।
3. शिक्षित व्यक्तियों की आय अशिक्षित व्यक्तियों से अधिक होती है।
4. आवश्यक वस्तुओं की खरीददारी ही करनी चाहिए।
उत्तर :
1. ठीक
2. ठीक
3. ठीक
4. ठीक।

बहु-विकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
खर्च कितने प्रकार के होते हैं –
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार।
उत्तर :
तीन।

प्रश्न 2.
पारिवारिक बजट के प्रकार हैं –
(A) बचत बजट
(B) सन्तुलित बजट
(C) घाटे का बजट
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर :
उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 3.
यूनिट ट्रस्ट ऑफ़ इण्डिया की स्थापना कब की गई ?
(A) 1962
(B) 1964
(C) 1971
(D) 1980
उत्तर :
1964.

प्रश्न 4.
आय को मुख्यतः कितने भागों में बांट सकते हैं ?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार।
उत्तर :
तीन।

प्रश्न 5.
आत्मिक आय से आप क्या समझते हैं –
(A) विभिन्न स्रोतों से प्राप्त आय के व्यय से होने वाली सन्तुष्टि
(B) विभिन्न स्रोतों से प्राप्त धन
(C) प्राप्त सेवाएं और सुविधाएं
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
विभिन्न स्रोतों से प्राप्त आय के व्यय से होने वाली सन्तुष्टि।

प्रश्न 6.
परिवार की आय को कैसे बढ़ाया जा सकता है –
(A) अंशकालिक नौकरी करके
(B) परिवार की आय में बढ़ोत्तरी करके
(C) गृह उद्योगों की शुरुआत द्वारा
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

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प्रश्न 7.
अवकाश काल का उचित प्रयोग करके हम ……………. को बढ़ा सकते हैं।
(A) आत्मिक आय
(B) पारिवारिक आय
(C) मौद्रिक आय
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 8.
सुरक्षित भविष्य के लिए क्या करना चाहिए –
(A) बचत करना
(B) खुलकर खर्च करना
(C) उधार लेना
(D) धन का दान देना।
उत्तर :
बचत करना।

प्रश्न 9.
आयु बढ़ने के साथ-साथ खर्चों में ……… होती है।
(A) वृद्धि
(B) कमी
(C) कोई फ़र्क नहीं पड़ता
(D) उपरिलिखित में से कोई नहीं।
उत्तर :
वृद्धि।

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प्रश्न 10.
किस प्रकार का बजट उत्तम रहता है –
(A) घाटे का बजट
(B) बचत का बजट
(C) सन्तुलित बजट
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
बचत का बजट।

प्रश्न 11.
संयुक्त परिवार में खर्च …………… होता है।
(A) कम
(B) अधिक
(C) सामान्य
(D) कोई भी नहीं।
उत्तर :
कम।

प्रश्न 12.
खर्च की आवश्यक मद कौन-सी है –
(A) घर
(B) भोजन
(C) कपड़े
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

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प्रश्न 13.
खर्च कितने प्रकार के होते हैं –
(A) निर्धारित खर्च
(B) अर्द्ध-निर्धारित खर्च
(C) गैर-निर्धारित खर्च
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 14.
ऐन्जिल के सिद्धान्त के अनुसार जैसे-जैसे आय बढ़ती है, भोजन पर व्यय का प्रतिशत ……………. है।
(A) घटता
(B) बढ़ता
(C) उतना ही रहता है
(D) कोई भी नहीं।
उत्तर :
घटता।

प्रश्न 15.
निम्नलिखित में से कौन-सी प्राथमिक आवश्यकता नहीं है ?
(A) आवास
(B) भोजन
(C) कपड़ा
(D) शिक्षा।
उत्तर :
शिक्षा।

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प्रश्न 16.
बचत की आवश्यकता क्यों होती है ?
(A) सुरक्षित भविष्य के लिए
(B) आपात स्थिति का सामना करने के लिए
(C) परिवार के रहन-सहन का स्तर बढ़ाने के लिए
(D) उपर्युक्त सभी के लिए।
उत्तर :
उपर्युक्त सभी के लिए।

प्रश्न 17.
परिवार के द्वारा जिन साधनों और सुविधाओं का प्रयोग किया जाता है, वह उसकी कौन-सी आय कहलाती है ?
(A) आत्मिक आय
(B) वास्तविक आय
(C) मौद्रिक आय
(D) इनमें से कोई भी नहीं।
उत्तर :
आत्मिक आय

प्रश्न 18.
निम्नलिखित मदों में व्यय करने के लिए आप किसको सबसे अधिक प्राथमिकता देंगे ?
(A) विदेश यात्रा के लिए जाना
(B) सर्दियों के लिए पर्याप्त ऊनी कपड़ों की खरीददारी
(C) रेफ्रिजरेटर खरीदना
(D) नया सोफा सेट खरीदना।
उत्तर :
सर्दियों के लिए पर्याप्त ऊनी कपड़ों की खरीददारी।

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प्रश्न 19.
जीवन बीमा पॉलिसी कराना कहलाता है –
(A) निवेश
(B) व्यय करना
(C) बचत
(D) इनमें से कोई भी नहीं।
उत्तर :
बचत।

प्रश्न 20.
सुरक्षित भविष्य के लिए क्या करना चाहिए ?
(A) बचत करना
(B) खुलकर खर्च करना
(C) उधार लेना
(D) धन का दान देना।
उत्तर :
बचत करना।

प्रश्न 21.
निम्नलिखित मदों में से व्यय करने के लिए आप किसको सबसे अधिक प्राथमिकता देंगे ?
(A) छुट्टियाँ बिताने के लिए कहीं बाहर जाना
(B) बच्चों के लिए पौष्टिक भोजन की खरीद
(C) मिक्सर ग्राइंडर की खरीद
(D) साधारण पर्दे बदलने के लिए नए फैन्सी पर्दो की खरीद।
उत्तर :
बच्चों के लिए पौष्टिक भोजन की खरीद।

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प्रश्न 22.
निम्न में से कौन-सा कथन बचत से सम्बन्धित है ?
(A) आपकी माता द्वारा आपको दिए गए पैसे
(B) आपके पिता का वेतन
(C) आप प्रतिदिन दस रुपये एक डिब्बे में डालते हैं
(D) अण्डे बेचकर आपको धन मिलता है।
उत्तर :
आप प्रतिदिन दस रुपये एक डिब्बे में डालते हैं।

प्रश्न 24.
ऐंजिल के अनुसार, जैसे-जैसे आय बढ़ती है, मकान, वस्त्र, विद्युत् पर व्यय में ……………… ।
(A) परिवर्तन नहीं होता है
(B) परिवर्तन होता है
(C) लाभ होता है
(D) हानि होती है।
उत्तर :
परिवर्तन नहीं होता है।

प्रश्न 25.
संयुक्त परिवार में खर्च कम और आय …………. होती है।
(A) कम
(B) सामान्य
(C) अधिक
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
अधिक।

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प्रश्न 26.
कौन-सा बजट सबसे उत्तम रहता है ?
(A) घाटे का बजट
(B) बचत का बजट
(C) संतुलित बजट
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
बचत का बजट।

प्रश्न 27.
ऐंजिल के अनुसार, जैसे-जैसे आय बढ़ती है, भोजन पर व्यय का प्रतिशत
(A) घटता
(B) बढ़ता
(C) सामान्य
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
घटता।

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प्रश्न 28.
संयुक्त परिवार में खर्च आय अधिक होती है।
(A) ज्यादा
(B) कम
(C) सामान्य
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
कम।

प्रश्न 29.
परिवार की आय को कौन-कौन से दो भागों में बाँटा जा सकता है ?
(A) मौद्रिक आय व मानसिक रूप से प्राप्त आय
(B) प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष आय
(C) मौद्रिक आय व अप्रत्यक्ष आय
(D) अप्रत्यक्ष आय व मानसिक रूप से प्राप्त आय।
उत्तर :
मौद्रिक आय व मानसिक रूप से प्राप्त आय।

प्रश्न 30.
डाकखाने में कितने रुपयों से खाता खोला जा सकता है ?
(A) कम से कम ₹ 1000 से
(B) कम से कम ₹ 2000 से
(C) कम से कम ₹ 5000 से
(D) कम से कम ₹ 50 से।
उत्तर :
कम से कम ₹ 50 से।

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प्रश्न 31.
आमदनी में से ………… को बचत कहते हैं।
(A) खर्च की गई रकम
(B) उधार ली गई रकम
(C) बचाई गई रकम
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
बचाई गई रकम।

प्रश्न 32.
बजट योजना किस तत्त्व पर निर्भर करती है ?
(A) परिवार की आय
(B) परिवार का लक्ष्य
(C) परिवार की तत्कालीन आवश्यकताएँ
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

धन का प्रबन्ध HBSE 10th Class Home Science Notes

धन का प्रबन्ध –

→ परिवार की आय को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दो किस्मों में विभाजित किया जाता है।
→ घर की आवश्यकताओं के लिए प्रयोग की धन राशि को खर्च कहा जाता है।
→ खर्च निर्धारित और गैर-निर्धारित होता है।
→ पारिवारिक आमदन के अनुसार खर्च के अनुमान को बजट कहा जाता है।
→ आमदन में से बचाई गई रकम को बचत कहते हैं।
→ कुशल गृहिणी कम आमदन से भी बढ़िया घर चला सकती है।
→ बजट तीन किस्मों का होता है-बचत बजट, संतुलित बजट और घाटे का बजट।
→ बचत अवश्य करनी चाहिए। इसमें परिवार के सदस्यों की भलाई है।
→ संयुक्त परिवारों में खर्च कम और आय अधिक होती है।

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परिवार के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वह अपने वित्तीय साधनों का प्रयोग इस ढंग से करे कि अधिक-से-अधिक लाभ प्राप्त हो सके। प्रत्येक मनुष्य अपने ज्ञान, योग्यताओं का प्रयोग करके अपने जीवन का गुजारा करता है। एक विशेष समय में जैसे कि सप्ताह, महीना, साल में परिवार द्वारा कमाई गई आय को पारिवारिक आय कहा जाता है।

इस पारिवारिक आय को इस ढंग से खर्च करना चाहिए कि परिवार के सभी सदस्य सन्तुष्ट, खुश और तन्दुरुस्त रहें। इसलिए एक समझदार गृहिणी को आय और खर्च में सन्तुलन रखने के लिए बजट बनाना चाहिए।

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HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 4 परिवार के संसाधन

Haryana State Board HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 4 परिवार के संसाधन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Home Science Solutions Chapter 4 परिवार के संसाधन

अति लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
लक्ष्य क्या हैं ?
उत्तर :
लक्ष्य वे उद्देश्य हैं जिन्हें हम प्राप्त करना चाहते हैं जैसे एक विद्यार्थी का लक्ष्य होता है कि वह अच्छे अंक प्राप्त करे तथा शिक्षा पूर्ति के बाद अच्छा व्यापार या अच्छी नौकरी प्राप्त करे।

प्रश्न 2.
संसाधन किसे कहते हैं ?
उत्तर :
लक्ष्य प्राप्ति के लिए हम जिन चीजों तथा साधनों का प्रयोग करते हैं उन्हें संसाधन कहते हैं।

प्रश्न 3.
संसाधन कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
ये दो प्रकार के होते हैं-मानवीय एवं मानवेतर।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 4 परिवार के संसाधन

प्रश्न 4.
मानवीय व मानवेतर संसाधनों के कुछ उदाहरण दीजिए।
अथवा
निम्नलिखित साधनों का मानवीय व मानवेतर संसाधनों के अन्तर्गत सूचीकरण करें।समय, धन, ऊर्जा, भूमि, ज्ञान, भौतिक वस्तुएँ, कौशन व योग्यताएँ, सामुदायिक सुविधाएँ।
उत्तर :
HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 4 परिवार के संसाधन 1

प्रश्न 5.
मानवीय संसाधनों से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
मानवीय संसाधन व्यक्ति विशेष का अंश होते हैं। इन संसाधनों का प्रयोग केवल वही व्यक्ति विशेष कर सकता है। जैसे-समय, ऊर्जा आदि।

प्रश्न 6.
मानवेतर संसाधन क्या हैं ?
उत्तर :
ये इस तरह के संसाधन हैं जिनका प्रयोग कोई भी व्यक्ति कर सकता है। जैसे-धन, भूमि आदि।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 4 परिवार के संसाधन

प्रश्न 7.
संसाधनों की विशेषताएँ संक्षेप में समझाएँ।
उत्तर :
संसाधनों की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

  1. सभी संसाधन उपयोगी हैं क्योंकि इनके प्रयोग द्वारा ही मानव अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकता है।
  2. सभी संसाधन सीमित हैं अतः हमें इन्हें बर्बाद नहीं करना चाहिए। जैसे यदि आप धन या ऊर्जा को बर्बाद करते हैं तो आपको यह दुबारा अजित करने पड़ेंगे।
  3. सभी संसाधन एक-दूसरे से परस्पर जुडे हैं जैसे कि सब्जियाँ खरीदने के लिए न सिर्फ धन चाहिए बल्कि समय, ऊर्जा व कौशल भी चाहिए।

प्रश्न 8.
योजना बनाने के अतिरिक्त गहिणी को कौन-सी अन्य बातों का ज्ञान होना चाहिए जिससे समय तथा शक्ति बच सकती हो ?
अथवा
समय का प्रभावपूर्ण ढंग से प्रयोग करने के लिए आप गृहिणी को कोई दो सुझाव दें।
अथवा
समय का सदुपयोग करने के लिए एक गृहिणी को तीन सुझाव दें।
उत्तर :

  1. सभी चीज़ों को अपने स्थान पर रखो ताकि ज़रूरत पड़ने पर वस्तु को ढूंढ़ने में समय नष्ट न हो।
  2. काम करने के लिए सामान अच्छा तथा ठीक हालत में होना चाहिए।
  3. काम करने वाली जगह पर रोशनी का ठीक प्रबन्ध होना चाहिए।
  4. काम करने के सुधरे तरीकों का प्रयोग करना चाहिए।
  5. घर के सभी सदस्यों की मदद लेनी चाहिए। यदि फिर भी कार्य तथा आय के साधन ठीक हों तो कार्य बाहर से भी करवाया जा सकता है।
  6. काम करने वाली जगह की ऊंचाई अथवा वस्तुओं के हैण्डल ऐसे हों कि कन्धों पर अधिक भार न पड़े।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 4 परिवार के संसाधन

प्रश्न 9.
मूल्यांकन से क्या अभिप्राय है ? बच्चों के लिए यह क्यों ज़रूरी है?
उत्तर :
कुछ देर किसी योजना के अनुसार कार्य करते रहने के पश्चात् देखा जाता है कि नियत लक्ष्य प्राप्त हो रहे हैं, अथवा नहीं। यदि लक्ष्य प्राप्त न हो रहे हों तो योजना में फेर-बदल किया जाता है तथा इस तरह अपनी योजना का मूल्यांकन किया जाता है ताकि नियत लक्ष्यों की पूर्ति हो सके।
बच्चों के विकास तथा वृद्धि में किसी प्रकार की कमी न आए इसलिए उनका मूल्यांकन करना आवश्यक है।

प्रश्न 10.
पारिवारिक साधनों से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
पारिवारिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए परिवार में उपलब्ध साधनों का प्रयोग किया जाता है। इन साधनों को दो भागों में बांटा गया है –
(i) मानवीय साधन
(ii) भौतिक साधन।
दैनिक कार्यों में मौजूद साधनों का प्रयोग किया जाता है अथवा साधनों के प्रयोग से भी कार्य किया जाता है।

प्रश्न 11.
पारिवारिक साधनों का वर्गीकरण कैसे किया जा सकता है ?
उत्तर :
साधनों का वर्गीकरण दो भागों में किया जा सकता है –
1. मानवीय साधन
2. गैर-मानवीय अथवा भौतिक साधन।

(i) मानवीय साधन हैं – कुशलता, ज्ञान, शक्ति, दिलचस्पी, मनोवृत्ति तथा रुचियां आदि।
(ii) भौतिक साधन हैं – समय, धन, सामान, जायदाद, सुविधाएं आदि।

प्रश्न 12.
पारिवारिक साधनों की क्या विशेषताएं होती हैं ?
उत्तर :

  1. यह साधन सीमित होते हैं।
  2. साधन उपयोगी होते हैं तथा इनका प्रयोग कई रूपों में किया जा सकता है।
  3. साधनों का प्रभावशाली प्रयोग किसी भी व्यक्ति के जीवन स्तर को प्रभावित करता है।
  4. सभी साधनों का उचित प्रयोग परस्पर सम्बन्धित होता है तथा इस तरह उद्देश्यों की पूर्ति होती है।
  5. इन साधनों के उचित प्रयोग से हमारी इच्छाओं की पूर्ति होती है।

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प्रश्न 13.
मानवीय साधन कौन-से हैं और उनकी गृह-व्यवस्था में क्या महत्ता है ?
उत्तर :
ये वे साधन हैं जो मानव के अन्दर होते हैं। ये हैं – योग्यताएं, कुशलता, रुचियां, ज्ञान, शक्ति, समय, दिलचस्पी, मनोवृत्ति आदि।
इन साधनों का उचित प्रयोग करके गृह प्रबन्ध बढ़िया ढंग से किया जा सकता है। किसी कार्य को करने की योग्यता तथा कुशलता हो तो कार्य में रुचि तथा दिलचस्पी स्वयं पैदा हो जाती है। नए उपकरणों तथा मशीन आदि के बारे ज्ञान हो तो समय तथा शक्ति की बचत हो जाती है। घर के सदस्यों की शक्ति भी एक मानवीय साधन है।

प्रश्न 14.
भौतिक साधन कौन-से हैं और गृह-व्यवस्था के लिए कैसे लाभदायक हैं ?
अथवा
(A) भौतिक साधन क्या है? दो उदाहरण दें।
(B) कोई भी दो भौतिक साधन बताइये।
उत्तर :
गैर-मानवीय अथवा भौतिक साधन हैं-धन, समय, जायदाद, सुविधाएं आदि। इन सभी के उचित प्रयोग से गृह-व्यवस्था ठीक ढंग से की जा सकती है तथा परिवार के उद्देश्यों तथा ज़रूरतों की पूर्ति की जा सकती है।

प्रश्न 14. (A)
कोई भी दो भौतिक साधन बताइये।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्न।

प्रश्न 15.
समय तथा शक्ति की व्यवस्था से आप क्या समझते हो ?
उत्तर :
समय ऐसा साधन है जो कि सभी के लिए समान होता है। जब किसी कार्य को करने की शक्ति तथा समय का प्रयोग किया जाता है तो थकावट महसूस होती है। इसलिए समय तथा शक्ति दोनों साधनों को सही ढंग से प्रयोग करना चाहिए ताकि कार्य भी हो जाये तथा थकावट भी ज़रूरत से ज्यादा न हो तथा दोनों की बचत भी हो जाये।

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प्रश्न 16.
संसाधनों का प्रयोग समझदारी से करना चाहिए। इस कथन का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर :
इस कथन का अर्थ है कि सभी संसाधनों का प्रयोग समझदारी से करना चाहिए। संसाधन सीमित हैं यदि हम समझदारी से काम लेंगे तो हम संसाधनों का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग कर सकेंगे।

प्रश्न 17.
नीचे कुछ क्रियाएँ दी गई हैं। प्रत्येक क्रिया को करने के लिए आवश्यक संसाधन जो चाहिएं उनके नाम लिखें।
उत्तर :

  1. बाज़ार से सब्ज़ियाँ खरीदना – धन, कौशल, समय व ऊर्जा।
  2. कपड़े धोना – समय, ऊर्जा, कौशल।।
  3. भोजन पकाना – समय, ऊर्जा, कौशल व सब्जियाँ खरीदने के लिए धन।
  4. रेडियो सुनना – समय।
  5. गैस का चूल्हा चुनना – कौशल, ऊर्जा, समय, धन।
  6. चादर पर कढ़ाई करना – कौशल, समय, ऊर्जा ।

प्रश्न 18.
पार्क व डाक तार सेवा परिवार के किन संसाधनों के अन्तर्गत आते हैं ?
उत्तर :
भौतिक साधन।

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प्रश्न 19.
निम्नलिखित संसाधनों का मानवीय व मानवेतर संसाधनों के अन्तर्गत सूचीकरण करें –
(i) समय
(ii) कम्प्यू टर
(iii) पुस्तकें
(iv) ज्ञान।
उत्तर :
मानवीय संसाधन – ज्ञान।
मानवेतर संसाधन – समय, कम्प्यूटर, पुस्तकें।

प्रश्न 20.
एक गृहिणी की किन्हीं दो ऐसी निपुणताओं का उल्लेख करें, जो उसके परिवार के लिए संसाधन का कार्य कर सकती है। इन निपुणताओं की उपयोगिता बताएं।
उत्तर :
1. सिलाई-कढ़ाई
2. पाक कला।
गहिणी इन निपुणताओं का प्रयोग करके घर के माहौल को खुशगवार बना सकती है तथा इन्हीं निपुणताओं के प्रयोग से घर की आय में वृद्धि भी कर सकती है।

प्रश्न 21.
साधन कितनी प्रकार के हैं ? प्रत्येक का एक-एक उदाहरण दें।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

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प्रश्न 22.
कार्य सरलीकरण से आप क्या समझते हैं ?
अथवा
कार्य सरलीकरण किसे कहते हैं ?
उत्तर :
आज के इस नवीन युग में जबकि अधिकतर गृहिणियां घर की कार्य विधियों के साथ-साथ बाहर भी काम पर जाती हैं, कार्य-सरलीकरण (Work Simplification) बहुत ही आवश्यक है। ‘निर्धारित समय और शक्ति की मात्रा के उपयोग से अधिक कार्य सम्पादित करना’ अर्थात् ‘कार्य की निश्चित मात्रा को कम करने की प्रक्रिया’ को ही कार्य सरलीकरण कहा जाता है। कार्य के सरलीकरण में समय और शक्ति दोनों के प्रबन्ध को मिला दिया जाता है।

प्रश्न 23.
ज्ञान प्राप्ति के कोई चार साधन बताइये ?
उत्तर :
पुस्तकें, रेडियो, समाचार-पत्र, अनुभव।

लघु उत्तदीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
पारिवारिक साधनों को प्रभावित करने वाले तत्त्व कौन-से हैं ?
अथवा
पारिवारिक साधनों को प्रभावित करने वाले छः तत्त्व बताएँ।
उत्तर :
पारिवारिक साधनों को प्रभावित करने वाले तत्त्व हैं –
परिवार का आकार तथा रचना, जीवन-स्तर, घर की स्थिति, परिवार के सदस्यों की शिक्षा, गृह निर्माता की कुशलता तथा योग्यता, ऋतु आर्थिक स्थिति आदि।

प्रश्न 2.
योजना बनाकर समय और शक्ति के व्यय को कैसे कम किया जा सकता है ?
उत्तर :
योजना बनाकर कार्य किया जाये तो समय तथा शक्ति के खर्च को कम किया जा सकता है। योजना बनाने से पहले सारे कार्यों की सूची बनाई जाती है। इस तरह यह पता लगाया जाता है कि कौन-सा कार्य किस समय और कौन-से सदस्य द्वारा किया जाना है। योजना में अपने व्यक्तिगत कार्यों तथा मनोरंजन के लिए भी समय रखा जाता है। योजनाबद्ध ढंग से कार्य करने से रोज़ एक जैसी शक्ति का प्रयोग होता है। इस तरह अधिक थकावट भी नहीं होती। योजनाएं दैनिक कार्यों के अतिरिक्त साप्ताहिक तथा वार्षिक कार्यों के लिए भी तैयार की जाती हैं। इस तरह समय तथा शक्ति के खर्च को घटाया जा सकता है।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 4 परिवार के संसाधन

प्रश्न 3.
निर्णय लेने की प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
निर्णय अथवा फैसला लेने की प्रक्रिया को गृह-सम्बन्ध का अभिन्न अंग माना गया है। निर्णय लेने की क्रिया से अभिप्राय है किसी समस्या के हल के लिए विभिन्न विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव करना। किसी भी तरह का निर्णय लेने के लिए अग्रलिखित चरणों में से गुजरना पड़ता है –

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 4 परिवार के संसाधन 2

प्रश्न 4.
निर्णय लेने से पूर्व सोच-विचार करना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
जब परिवार में कोई समस्या आ जाये तो उसके हल के लिए सोच-विचार करके ही निर्णय लेना चाहिए। प्रत्येक समस्या के हल के लिए कई विकल्प होते हैं। विभिन्न विकल्पों की जानकारी प्राप्त करनी चाहिए तथा प्रत्येक विकल्प कई तत्त्वों का समूह होता है। इनमें से कई तत्त्व समस्या के हल के लिए सहायक होते हैं तथा कई नहीं, कई कम सहायक होते हैं तथा कई अधिक सहायक होते हैं।

इसलिए इन तत्त्वों की जानकारी प्राप्त करनी तथा कई स्थितियों में आपको किसी अन्य अनुभवी व्यक्ति की सलाह भी लेनी पड़ती है ताकि ठीक विकल्प का चुनाव हो सके जैसे मनोरंजन की समस्या के लिए कई विकल्प हैं जैसे सिनेमा जाना, कोई खेल खरीदना अथवा टेलीविज़न खरीदना। इन सभी विकल्पों के बारे जानकारी लेना तथा फिर एक उपयुक्त विकल्प जैसे कि टेलीविज़न का चुनाव किया जाता है क्योंकि एक लम्बे समय तक चलने वाला मनोरंजन का साधन है। इसके साथ परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए मनोरंजन के कार्यक्रम मिल सकते हैं। इसलिए इन सभी तत्त्वों को ध्यान में रखकर सभी विकल्पों के बारे में सोच समझकर ही निर्णय लेना चाहिए।

प्रश्न 5.
सही निर्णय गृह व्यवस्था में कैसे उपयोगी होता है ?
उत्तर :
सही निर्णय लिए जाएं तो समय, शक्ति, धन आदि की बचत हो सकती है। यदि घर की व्यवस्था सोच-समझकर तथा सही निर्णय न लेकर की जाए, तो घर अस्त-व्यस्त हो जाता है। घर के सदस्यों में मेल-मिलाप नहीं रहता। कोई भी कार्य समय पर नहीं होता तथा मानसिक तथा शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस तरह सभी निर्णय घर की व्यवस्था में बड़ा लाभदायक होता है।

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प्रश्न 6.
साधन क्या हैं ? ये कितने प्रकार के होते हैं ?
अथवा
साधन कितने प्रकार के होते हैं ? प्रत्येक के दो-दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
प्रबन्ध में विभिन्न साधनों का प्रयोग करके ही पारिवारिक लक्ष्यों की प्राप्ति की जाती है। व्यवस्था से सम्बन्धित निर्णय लेते समय यह भी ध्यान रखा जाता है कि विभिन्न पारिवारिक साधनों का प्रयोग किस प्रकार से किया जाए जिससे कि अधिक-से-अधिक लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सके।

ये साधन दो प्रकार के होते हैं –
(i) मनुष्य गत या मानवीय साधन (Human Resources)
(ii) अमानवीय या बिना मनुष्य के या भौतिक साधन (Non Human or Material Resources)

मानवीय साधनों के अन्तर्गत समय, शक्ति तथा ऊर्जा, अभिरुचि, ज्ञान, निपुणता तथा परिस्थिति के अनुरूप अपने आप को ढालने की क्षमता आती है, जबकि भौतिक साधन हैं-धन-सम्पत्ति, मकान-कपड़ा आदि। सामुदायिक सुविधाएं जैसे-अस्पताल, स्कूल, पार्क आदि भी बिना मनुष्य के साधनों के ही उदाहरण हैं।

प्रश्न 7.
मानवीय साधन कार्य निपुणता एवं कुशलता द्वारा लक्ष्यों को कैसे प्राप्त किया जा सकता है ?
उत्तर :
घर को ठीक प्रकार से चलाने के लिए गृहिणी का विभिन्न कार्यों जैसे भोजन बनाना, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई आदि में कुशल होना बहुत ही आवश्यक है। यदि गृहिणी वस्त्रों की सिलाई में निपुण है तो वह घर के सदस्यों के वस्त्र बाहर से न सिलवाकर, घर पर ही सिल सकती है जिससे एक प्रकार से अपने परिवार की आय की सम्पूर्ति कर सकती है। न केवल गृहिणी ही, वरन् घर के अन्य सदस्य भी अपनी कुशलता तथा निपुणता के बल से घर को उत्तम ढंग से व्यवस्थित करने में मदद कर सकते हैं। परिवार के सभी सदस्यों की अलग-अलग रुचि होती है। गृहिणी का यह कर्त्तव्य है कि वह घर को सुचारू रूप से चलाने के लिए सदस्यों की विभिन्न रुचियों की पुष्टि करने में मदद करे। इस प्रकार सदस्यों की रुचियों तथा कुशलता के आधार पर ही वह घर के विभिन्न कार्यों को उन पर सौंप सकती है।

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प्रश्न 8.
अमानवीय या भौतिक या पदार्थीय साधनों को परिभाषित करते हुए उन्हें उदाहरण सहित वर्णित कीजिए।
अथवा
पारिवारिक मानवेतर संसाधनों का वर्णन करो।
अथवा
अमानवीय साधनों के अन्तर्गत कौन-कौन से साधन सम्मिलित किए जा सकते हैं ?
उत्तर :
अमानवीय या भौतिक या पदार्थीय साधन वे होते हैं जोकि भौतिक रूप से व्यक्ति को प्राप्त होते हैं। ये साधन व्यक्ति द्वारा धारण, उपयोग तथा नियन्त्रित किए जाते हैं, उदाहरणार्थ-स्थिर सम्पत्ति, जैसे मकान, दुकान तथा ज़मीन आदि, तथा अस्थिर साधन वास्तव में हर प्रकार की भौतिक वस्तु जो कि परिवार को उपलब्ध हों-भौतिक या पदार्थीय साधन कहलाती है। ‘धन’ सबसे मुख्य भौतिक साधन है, क्योंकि इसी के द्वारा मनुष्य अन्य वस्तुओं को किसी भी आवश्यकतानुसार खरीद सकता है।

इसके साथ ही समाज द्वारा दी गई विभिन्न सुविधाएं, जैसे कि-अस्पताल, पार्क, खेल के मैदान, बाजार, समाज सदन तथा मन्दिर आदि, जिनका उपयोग परिवार के सभी सदस्य करते हैं-सभी भौतिक साधन हैं। वास्तव में मानवीय और भौतिक साधनों को पृथक् करना बहुत कठिन है। उपरोक्त सभी पारिवारिक साधनों में से कुछ साधन ऐसे हैं, जोकि मानवीय तथा भौतिक साधन दोनों कहलाते हैं।

उदाहरणार्थ-यदि एक गृहिणी सभी कार्य स्वयं अकेले नहीं कर सकती, तो वह हाथ बंटाने के लिए घरेलू नौकर को रख सकती है। इस स्थिति में वह अपने ‘धन’ को, ‘मनुष्य श्रम’ के बदले में परिवर्तित करती है। इसी प्रकार आज के वैज्ञानिक युग में हम देखते हैं, कि मानवीय शक्ति का स्थान विद्युत् तथा गैस द्वारा प्राप्त ऊर्जा ले रही है। इसी प्रकार समय भी मानवीय तथा भौतिक दोनों ही साधनों के अन्तर्गत आता है, क्योंकि यह सभी मनुष्यों के लिए स्थिर होता है। परन्तु इसका उपयोग किसी प्रकार किया जाए यह व्यक्ति पर निर्भर करता है।

प्रश्न 9.
‘समय-व्यवस्थापन’ से आप क्या समझते हैं ?
अथवा
समय का व्यवस्थापन करना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
समय एक बहुत महत्त्वपूर्ण साधन है। यही एक ऐसा साधन है जिसकी मात्रा प्रत्येक व्यक्ति के पास समान होती है, चाहे वह गरीब हो या अमीर, वह किसी भी जाति का हो, किसी भी लिंग का अथवा किसी भी आयु का। सभी के लिए एक दिन में होने वाले चौबीस घण्टे ही होते हैं जिनका उपयोग व्यक्ति किसी भी तरीके से कर सकता है। समय का उपयुक्त उपयोग बहुत ही आवश्यक है, क्योंकि बीता हुआ समय फिर वापिस नहीं मिल सकता।

समय का हमारे जीवन में विशेष महत्त्व है इसीलिए हम सबको यह प्रयत्न करना चाहिए कि समय का इस प्रकार प्रयोग किया जाये जिससे कि कम से कम समय में अधिक से अधिक कार्य हो सके तथा इसके साथ यह भी ज़रूरी है कि कार्य भली प्रकार से किया जाए। इस कम-से-कम समय में अधिक-से-अधिक व अच्छा कार्य करना ही “समय व्यवस्थापन” (Time Management) कहलाता है।

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प्रश्न 10.
गृहिणी के लिए ‘समय योजना’ करना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
परिवार में आरम्भ से ही बच्चों को उनकी विभिन्न क्रियाओं को सीमित समय में ही पूरा करना सिखाया जाता है, उसी प्रकार माता-पिता भी विभिन्न कार्यविधियों, जैसे कि सुबह उठना, भोजन करना तथा बिस्तर पर जाने आदि के लिए एक निश्चित समय निर्धारित कर लेते हैं। इस प्रकार हर व्यक्ति समय का प्रयोग करने के लिए एक विशेष ‘समय अनुबन्ध’ (Time Pattern) की पुष्टि कर लेता है, चाहे वह कार्यसाधक हो या नहीं। परिवार में गृहिणी को सीमित समय में अनेक कार्य-विधियों को पूरा करना काफ़ी कठिन होता है क्योंकि उसे घर के विभिन्न उत्तरदायित्वों को निभाना पड़ता है। पारिवारिक जीवनचक्र के प्रथम सोपान में जबकि बच्चे बहुत छोटे होते हैं, यह कार्य और भी अधिक जटिल हो जाता है।

परिवार के विभिन्न लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए समय की ठीक व्यवस्था करना गृहिणी के लिए अत्यन्त आवश्यक है। उसे समय को विभिन्न कार्यों को करने, सोने आराम करने तथा मनोरंजन के लिए सही प्रकार से विभाजित करना चाहिए। परिवार की विभिन्न आवश्यकताओं के अनुसार ही एक गृहिणी को कई कार्यों को सम्पन्न करने के लिए समय लगाना पड़ता है, जैसे घर की देख-रेख करना, खाना पकाना, बच्चों को खिलाना, शिक्षा तथा धन सम्बन्धी उत्तरदायित्वों को निभाना तथा अन्य कई सामाजिक तथा धार्मिक कार्य-विधियों में भाग लेना आदि।

गृहिणी को चाहिए कि वह अपने समय का आयोजन इस प्रकार करे कि वह उपलब्ध सीमित समय का अधिक-से-अधिक प्रयोग करके सभी कार्यों को सम्पन्न करने में सफल हो सके। इसके लिए गृहिणी को विभिन्न कार्यविधियों को करने के लिए “समय योजना” (Time Plan) बना लेनी चाहिए। एक अच्छी सोच विचार से बनाई गई योजना एक साधन का कार्य करती है जोकि समय तथा शक्ति की बचत करने में सहायक होती है।

प्रश्न 11.
(क) मानवीय साधन क्या हैं ? दो उदाहरण दें।
(ख) कोई दो मानवीय साधन बताइये।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

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प्रश्न 12.
शक्ति प्रबन्ध को परिभाषित करें।
उत्तर :
दैनिक कार्यों को ऐसी कुशलता, चतुराई और योजनाबद्ध तरीके से करना, जिससे कम से कम मात्रा में शक्ति के उपयोग से अधिक लाभप्रद कार्यों को सम्पन्न कर सके-‘शक्ति-प्रबन्ध’ कहलाता है। इस प्रकार शक्ति प्रबन्ध का मुख्य उद्देश्य है-किसी भी कार्य के लिए कम-से-कम शक्ति का व्यय करना जिससे कि गृहिणी काम को बिना थकान के ही कर सके।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
पारिवारिक साधन मानवीय उद्देश्यों को प्राप्त करने में कैसे सहायक होते हैं ? इन्हें प्रभावित करने वाले तत्त्व कौन-से हैं ?
उत्तर :
परिवार के लिए उपलब्ध साधन, पारिवारिक लक्ष्यों अथवा उद्देश्यों की पूति करने में सहायक होते हैं। दैनिक कार्यों में मौजूद साधनों का प्रयोग किया जाता है अथवा साधनों के प्रयोग से भी कार्य किया जाता है। साधनों के सफल प्रयोग को कई तत्त्व प्रभावित करते हैं
1. परिवार का आकार तथा रचना – जिन परिवारों में छोटे बच्चे अथवा बुजुर्ग होते हैं वहां गृहिणी को अधिक कार्य करना पड़ता है। परन्तु बच्चे बड़े होकर गृहिणी की मदद करने लग जाते हैं, तथा कई बुजुर्ग भी घर के काम-काज में मदद कर देते हैं।
2. जीवन-स्तर – सादा जीवन व्यतीत करने वालों के लक्ष्य आसानी से प्राप्त किये जा सकते हैं।
3. घर की स्थिति – यदि घर, स्कूल तथा कॉलेज, मार्कीट आदि के निकट हो, तो आने-जाने का काफ़ी समय तथा शक्ति बच जाती है। यदि घर बड़ी सड़क के नज़दीक हो तो धूल-मिट्टी काफ़ी आती है तथा सफ़ाई पर काफ़ी समय नष्ट हो जाता है।
4. आर्थिक स्थिति – यदि अधिक आय हो तो घर में नौकर रखे जा सकते हैं तथा कई कार्य बाहर से भी करवाये जा सकते हैं। यदि आय कम हो तो गृहिणी को सभी कार्य स्वयं ही करने पड़ते हैं।
5. परिवार के सदस्यों की शिक्षा – पढ़े-लिखे लोग आधुनिक साधनों का प्रयोग करके अपनी शक्ति तथा समय की काफ़ी बचत कर लेते हैं, जैसे एक पढ़ी-लिखी गृहिणी वाशिंग मशीन तथा मिक्सी आदि का प्रयोग करेगी जबकि अनपढ लोग पुराने परम्परागत साधनों तथा रिवाजों पर ही निर्भर रहते हैं।
6. ऋतु बदलना – गांवों में बिजाई-कटाई के समय कार्य अधिक करना पड़ता है और समय कम। शहरों में ऋतु बदलने पर गर्म-ठण्डे कपड़ों आदि को निकालना तथा रखना आदि कार्य बढ़ जाते हैं।
7. गृह निर्माता की कुशलता तथा योग्यताएं – एक कुशल गृहिणी अपनी योग्यता से समय तथा शक्ति की बचत कर सकती है।

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प्रश्न 2.
समय और शक्ति पारिवारिक साधन कैसे हैं ? योजना बनाकर उनके व्यय को कैसे कम किया जा सकता है ?
अथवा
समय और शक्ति के व्यय को कैसे कम किया जा सकता है ?
उत्तर :
समय सभी के लिए ही बराबर होता है। एक दिन में 24 घण्टे होते हैं। परन्तु शक्ति सभी के पास एक जैसी नहीं होती तथा आयु के साथ-साथ इनमें अन्तर पड़ता रहता है। जब कोई कार्य किया जाता है तो समय तथा शक्ति दोनों खर्च होते हैं। योजना बनाकर कार्य किया जाये तो इन दोनों की बचत की जा सकती है। एक समझदार गृहिणी को समय तथा शक्ति के खर्च को घटाने के लिए योजना बनाने में कोई मुश्किल नहीं आती।

योजना को लिखकर बनाना चाहिए तथा योजना में लचीलापन होना चाहिए ताकि आवश्यकता पड़ने पर इसको बदला जा सके। सभी कार्यों की सूची बनाने के पश्चात् योजना बनानी चाहिए। यह भी तय कर लेना चाहिए कि इनमें से कौन-से कार्य किस सदस्य ने तथा कब करने हैं। दैनिक कार्यों के अतिरिक्त साप्ताहिक तथा वार्षिक कार्यों की भी योजना बना लेनी चाहिए।

अधिक भारी कार्य के पश्चात् हल्के कार्य को स्थान देना चाहिए ताकि अधिक थकावट न हो। योजना में अपने व्यक्तिगत तथा मनोरंजन के कार्यों के लिए भी समय रखना चाहिए। योजना इस तरह बनाएं कि प्रतिदिन ज़रूरी कार्यों तथा मनोरंजन के कार्यों में लगभग एक जैसी शक्ति व्यय हो। इस तरह योजनाबद्ध तरीके से कार्य करके शक्ति तथा समय दोनों की बचत हो जाती है।

प्रश्न 3.
रसोई में श्रम व समय की बचत के लिए क्या सामान्य उपाय हो सकते हैं ?
उत्तर :
रसोई में गहिणी को अपेक्षाकृत कम शारीरिक श्रम तथा समय लगे इसके लिए निम्नलिखित उपाय उपयोग में लाये जा सकते हैं –

  1. रसोईघर में या इसके समीप ही जल प्राप्ति के साधन हों, ताकि गृहिणी को पानी के लिए बार-बार रसोईघर के बाहर न जाना पड़े।
  2. प्रत्येक दिन मसाला पीसने में काफ़ी समय और श्रम लगता है। उस बचाव के लिए पिसे हुए मसालों का प्रयोग करना चाहिए।
  3. खाना पकाने में कई मामलों तथा नमक आदि का प्रयोग होता है। रसोई पकाते समय ये सभी चीजें यथासम्भव हाथ के निकट रखी हों, ताकि गृहिणी को बार-बार उठकर उन्हें लाने के लिए भण्डार-घर में न जाना पड़े।
  4. रसोईघर के बेकार पदार्थ, जैसे सब्जी के छिलके, डण्ठल आदि को रखने के लिए खास बर्तन निकट में रखा हो, ताकि उन्हें फेंकने के लिए गृहिणी को बार-बार बाहर न जाना पड़े।
  5. रसोई पकाने में यथासम्भव ऐसे साधनों का प्रयोग करना चाहिए जिनसे कम धुआं निकलता हो। ईंधनों में यथासम्भव उपलों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। साधारण आय के परिवारों के लिए कोयले का उपयोग करना अधिक उपयुक्त होता है।
  6. मैले कपड़ों को साफ करने के लिए गृहिणी को काफी श्रम करना पड़ता है। यदि साफ करने वाले कपड़ों को पहले ही सादे या सोडा मिले गर्म जल में भिगो दिया जाये तो कपड़े आसानी से साफ हो जाते हैं।
  7. गृहिणी को घर की सफाई करने में काफी समय लग जाता है। अतः ध्यान रखना चाहिए कि घर कम-से-कम गन्दा हो जिसके लिए जूतों को कमरे के भीतर नहीं लाना चाहिए तथा घर में प्रवेश करने के पहले पांवदान पर जूते या पैरों को साफ करने के बाद ही कमरे में प्रवेश करना चाहिए।

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प्रश्न 4.
अवकाश काल के लिए विभिन्न प्रकार की क्रियाएं क्या हो सकती हैं ?
उत्तर :
अवकाश-काल में विभिन्न प्रकार की कलात्मक-क्रियाएं क्रियात्मक-क्रिया तथा संग्रहात्मक क्रियाएं की जा सकती हैं। इन क्रियाओं के प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं –
1. कलात्मक क्रियाएं – दिन-प्रतिदिन के कार्यों को करने के पश्चात् अवकाश काल में विभिन्न प्रकार की कलात्मक क्रियाएं गृहिणी के जीवन की नीरसता को दूर कर उसे आनन्द का अनुभव कराती है। इन क्रियाओं से मनोरंजन के साथ-साथ थकान भी दूर हो जाती है। इन क्रियाओं के अन्तर्गत विभिन्न कलाएं, जैसे चित्रकला जिससे कि घर को सजाया जा सकता है, संगीत तथा नृत्यकला–जिससे मनोरंजन हो सकता है, तथा मूर्तिकला आदि आती हैं।

2. क्रियात्मक क्रियाएं – ये क्रियाएं परिवार के सभी सदस्यों के लिए आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से उपयोगी होती हैं उदाहरणार्थ एक गृहिणी, गृह प्रबन्ध सम्बन्धी क्रियाएं अपने अवकाश-काल में कर सकती हैं, जैसे मसाले तथा अनाज साफ करना, अचार-मुरब्बे बनाना, सिलाई-कढ़ाई आदि। इसके अतिरिक्त परिवार के अन्य सदस्य सामुदायिक तथा धार्मिक क्रियाओं, बागबानी, पशुपालन व भ्रमण आदि में अपना समय व्यय कर सकते हैं।

3. संग्रहात्मक क्रियाएं – गृहिणी अपनी रुचि के आधार पर अपने अवकाश-काल में विभिन्न वस्तुओं का संग्रह कर अपना मनोरंजन कर सकती है उदाहरणार्थ विभिन्न देशों के टिकटों का संग्रह, मुद्रा का संग्रह, फूल-पत्तियों तथा पक्षियों के पंखों को एकत्रित करना आदि इसी के अन्तर्गत आते हैं। न केवल गृहिणी वरन् परिवार में बच्चे तथा अन्य सदस्य भी अपनी रुचि के आधार पर इन वस्तुओं को एकत्रित करने का चयन कर सकते हैं।

अन्त में यह कहा जा सकता है कि गृहिणी को अपनी समय-योजना बनाते समय अवकाश-काल के उपयुक्त उपयोग पर भी अवश्य ध्यान देना चाहिए। उसे अवकाश-काल की योजना बनाते समय यह देखना चाहिए कि उसमें ऐसी क्रियाएं हों जिससे कि उसका मनोरंजन हो तथा इसके साथ ही उसे नई कलाओं में रुचि क्षमता तथा निपुणता बढ़ाने का प्रोत्साहन मिले।

प्रश्न 5.
व्यर्थ में समय नष्ट न होने पाए, इसके लिए गृहिणी को आप क्या संकेत देंगी ?
उत्तर :
एक कुशल गृहिणी के लिए यह भी आवश्यक है कि वह अपने घर के काम काज को इस तरह से संभाले कि व्यर्थ में समय नष्ट न होने पाये। समय के अपव्यय को रोकने के लिए निम्नलिखित संकेत प्रत्येक गृहिणी के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं –
1. समय के अपव्यय को रोकने के लिए सर्वोत्तम विधि यह है कि घर के कार्यों को एक सुनिश्चित योजना के माध्यम से पूरा किया जाये।

2. समय के बचाव के लिए यह आवश्यक है कि काम-काज में आने वाली वस्तुओं को चालू हालत में रखा जाये। यदि सब्जी काटने के लिए प्रयोग में लाये जाने वाले चाकू या छुरी की मूठ टूट गई तो सब्जी काटने में निश्चय ही देर लगेगी। इसी प्रकार यदि स्टोव के लिए प्रतिदिन बाजार से मिट्टी का तेल लाया जायेगा तो समय व्यर्थ में नष्ट होगा। इसी प्रकार से दिन-प्रतिदिन प्रयोग में आने वाली ऐसी बहुत-सी वस्तुएं हैं जिन्हें एक साथ क्रय न करने पर समय और श्रम का व्यर्थ में ही अपव्यय होता है।

3. समय के बचाव के लिए यह भी आवश्यक है कि जिस कार्य को करना हो. उसे करने की विधि भी ज्ञात हो। यदि ऐसा नहीं है तो काम करने में देर ही नहीं लगेगी अपितु वह ठीक प्रकार से सम्पन्न भी न हो पाएगा।

4. प्रत्येक काम मन लगा कर करने से भी समय की बचत होती है। मन लगाकर किया गया कार्य जहां एक ओर समय की बचत कराने में सहायक होता है वहीं दूसरी ओर वह ठीक समय पर पूरा भी हो जाता है।

5. समय की बचत के लिए उन यन्त्रों से भी सहायता लेनी चाहिए जिनके द्वारा कार्य शीघ्रता से सम्पन्न हो जाता है।

6. समय बचाने का सर्वोत्तम साधन तो यह है कि किसी भी कार्य को करते समय अपनी सूझबूझ का पूरा-पूरा लाभ उठाया जाए। उदाहरण के लिये, यदि किसी व्यक्ति को भोजन कराते या चाय पिलाते समय चार-पांच वस्तुएं परोसनी हों तो उन्हें एक-एक करके ले जाने के स्थान पर किसी ट्रे में रखकर एक साथ ले जाना चाहिए।

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प्रश्न 6.
एक गृहिणी को अपने अवकाश काल के सदुपयोग के बारे में आप क्या सलाह देंगे ?
उत्तर :
गृहिणी को प्रतिदिन कई प्रकार के गृह-कार्यों को सम्पन्न करना होता है जिसमें उसका अधिकांश समय लग जाता है। सबह के समय वह काफी व्यस्त होती है, क्योंकि उस समय उसे घर के अधिकांश कार्य करने होते हैं। अगर गृहिणी अपने कार्यों की योजना ठीक प्रकार से बनाये तो वह दोपहर में अवकाश का समय निकाल सकती है, जिसमें वह कुछ आराम कर सकती है तथा साथ ही अपने अवकाश काल में कुछ ऐसी क्रियाएं कर सकती हैं जिससे उसमें नवस्फूर्ति जागृत हो सके और वह पुनः अपने दैनिक कार्यों को सुचारु रूप से चला सके।

‘अवकाश-काल’ वह समय होता है जबकि गृहिणी घर के विभिन्न कार्यों में खाली होती है, तथा ‘अवकाश काल की क्रियाएं’ वे होती हैं जो कि सिर्फ उसके अपने लिए ही ज़रूरी होती हैं। एक गृहिणी अपने लिए कितना-अवकाश काल रखती है यह बहुत सी बातों पर निर्भर करता है उदाहरणार्थ-अगर वह परिवार के विभिन्न सदस्यों या नौकरों आदि से घर के कुछ कार्य करने में मदद ले लेती है तो उसके पास अधिक अवकाश-काल होता है जबकि इसके विपरीत कुछ गृहिणियां जो बाहर भी काम पर आती हैं, या कोई व्यवसाय चलाती हैं तो उन्हें ज्यादा अवकाश-काल नहीं मिल पाता। इसके साथ ही शहर व गांव के जीवन में काफ़ी अन्तर होने के कारण ग्रामीण व शहरी गृहिणियों के अवकाश काल में भी काफी अन्तर पाया जाता है।

अवकाश-काल चाहे कम हो या अधिक गृहिणी इसका उपयोग किसी प्रकार करे। प्रायः देखा जाता है कि अधिकांश गृहिणियां अवकाश-काल को सोने, आराम करने, बात-चीत करने में फिर उपन्यास आदि पढ़ने में ही व्यतीत करती हैं। आजकल की महँगाई के बढ़ते हुए इस युग में, विशेषकर उन गृहिणियों को चाहिए, जिनका कि कार्यक्षेत्र घर की चार-दीवारी तक ही सीमित रहता है कि वह अपने अवकाश काल को कुछ ऐसे उपयोगी कार्यों में लगाएं, जिससे कि वे अपनी पारिवारिक आय को बढ़ाने में भी मदद कर सकें।

गृहिणियां अपनी रुचि व कुशलता के अनुसार अपने अवकाश-काल में कढ़ाई-सिलाई, बागवानी, चित्रकारी, गुड़ियां बनाना आदि कार्य कर सकती हैं। ऐसा करने से वे न केवल अपने परिवार की आय ही बढ़ा सकती हैं, बल्कि जीवन की नीरसता को भी किसी हद तक कम कर सकती हैं। इस प्रकार परिस्थितियों के अनुसार, गृहिणी को चाहिए कि वह अपने अवकाश-काल को इस प्रकार आयोजित करे कि वह आराम के साथ-साथ इस समय को उपयोगी कार्यों में भी लगा सके।

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प्रश्न 7.
ज्ञान को मानवीय साधन के रूप में क्यों देखा जाता है ?
उत्तर :
वैसे तो जो भी व्यक्ति घर की व्यवस्था या प्रबन्ध को चलाए वही गृहप्रबन्धक कहलाता है, परन्तु इसका मुख्य उत्तरदायित्व गृहस्वामिनी अथवा गृहिणी पर ही होता है। घर को उचित ढंग से चलाने के लिए यह बहुत आवश्यक है कि गृहिणी को घर के सभी कार्यों को सही रीति से करने तथा परिवार के साधनों का उचित उपयोग करने का पूरा ज्ञान हो। गृहिणी को निम्नलिखित कार्यों का ज्ञान तो आवश्यक ही होना चाहिए –

  1. घर को कैसे सजाया जाये।
  2. बच्चों की देख-रेख किस प्रकार की जाए।
  3. सन्तुलित भोजन किस प्रकार का होना चाहिए जिससे परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य ठीक रहे।
  4. खाना बनाने में इस प्रकार की दक्षता होनी चाहिए जिससे खाना बनाने में समय कम लगे और भोज्य पदार्थों की पौष्टिकता बनी रही। साथ ही खाना रुचिकर व स्वादिष्ट भी हो।
  5. खाना पकाने से पहले परिवार के सभी सदस्यों की रुचियों को ध्यान में रखकर योजना बना सके।
  6. बाजार से वस्तुएं खरीदने की कला का ज्ञान होना चाहिए।
  7. उसे ज्ञान होना चाहिए कि क्या खरीदना है, कहां से खरीदना है, कब खरीदना है और कितनी मात्रा में खरीदना है। इस सब के पीछे अर्थ यह है कि खरीददारी में धन का अपव्यय न होकर बचत हो।
  8. गृहिणी को बजट बनाने का ज्ञान भी होना चाहिए जिससे बचत भी हो सके।
  9. बचत किए गए पैसे का सही उपयोग भी अति आवश्यक है, इसके लिए गृहिणी को बैंक आदि में पैसे जमा करवाना तथा आवश्यकता के समय पैसे निकलवाने का ज्ञान भी होना चाहिए।

अत: ज्ञान ऐसा मानवीय साधन है जिसकी सहायता से इसके मानवीय तथा पदार्थाय या भौतिक साधनों में वृद्धि करके पारिवारिक लक्ष्यों की प्राप्ति कर सकते हैं।

प्रश्न 8.
सब प्रकार के साधनों की समान विशेषतायें क्या हैं ? वर्णन कीजिए।
अथवा
परिवारिक संसाधनों की विशेषताएं बताएं।
अथवा
साधनों में क्या समानताएँ पायी जाती हैं ?
उत्तर :
विभिन्न प्रकार के साधनों में निम्नलिखित विशेषतायें समान रूप से विद्यमान रहती हैं –
1. सभी साधन सीमित होते हैं सब प्रकार के साधनों की एक मुख्य विशेषता यह है कि ये सभी सीमित होते हैं। यदि उपलब्ध साधन सीमित न हों, तो उनकी व्यवस्था करने की कोई आवश्यकता ही नहीं होती। वस्तुत: व्यवस्था की आवश्यकता तभी अनुभव होती है जब हमें सीमित साधनों में ही निर्धारित लक्ष्यों तक पहुंचना होता है।

जिस परिवार में जो साधन अधिक सीमित होगा, उस परिवार के लिए वही सबसे महत्त्वपूर्ण होगा जिस परिवार के पास पर्याप्त धन तो उपलब्ध हों परन्तु उसके सदस्यों के पास पर्याप्त समय न हो तो उस परिवार के लिए समय ही महत्त्वपूर्ण साधन होगा। इसके विपरीत ऐसा परिवार जिसके पास धन कम हो, उसके लिए समय की अपेक्षा धन ही महत्त्वपूर्ण साधन होगा। साधनों की सीमितता दो प्रकार की हो सकती है – (क) संख्यात्मक (Quantitative), (ख) गुणात्मक (Qualitative)।

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(क) संख्यात्मक (Quantitative) – वैसे तो सभी साधन सीमित होते हैं, किन्तु इनमें कुछ ऐसे होते हैं जिनकी सीमाएं स्पष्ट दिखाई देती हैं। उदाहरणार्थ समय एक ऐसा साधन है जिसे पूर्णतः सीमित कहा जा सकता है। संसार के प्रत्येक मनुष्य के लिये एक दिन में चौबीस घंटे होते हैं, न कम और न अधिक। यह बात दूसरी है कि अपनी आवश्यकताओं तथा उपलब्ध सुविधाओं के फलस्वरूप किसी व्यक्ति के पास एक मिनट बात करने के लिए भी समय न हो और किसी व्यक्ति के पास घंटों तक व्यर्थ की बातें करने के लिये समय निकल आये। इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के पास धन भी सामान्यतः एक सीमित मात्रा में ही होता है।

(ख) गुणात्मक (Qualitative) – यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि विभिन्न कार्यों को करने के लिये संसार के सभी व्यक्तियों में एक जैसी कार्य-क्षमता एवं प्रतिभा नहीं होती। यह कार्यक्षमता उसकी आयु, लिंग, अवस्था व स्थितियों पर निर्भर करती है। कुछ लोगों में जन्मजात प्रतिभा भी होती है जिसके फलस्वरूप वे प्रत्येक कार्य को अत्यन्त कलात्मक ढंग से अति शीघ्र पूर्ण कर लेते हैं। कई व्यक्तियों में यह प्रतिभा जन्मजात तो नहीं होती किन्तु वे पर्याप्त परिश्रम करके विभिन्न कलाओं में निपुणता प्राप्त कर लेते हैं।

लेकिन जिन व्यक्तियों में कलात्मक अभिरुचि का सर्वथा अभाव होता है, वे चाहे कितना भी प्रशिक्षण क्यों न ले लें किन्तु उनके द्वारा किए गए कार्यों में कलात्मकता आने ही नहीं पाती। यही कारण है कि कुछ परिवार जहां बहुत मामूली फर्नीचर, पर्दे आदि को ऐसे कलात्मक ढंग से सजाते हैं कि वे प्रत्येक व्यक्ति को तुरन्त प्रभावित कर डालते हैं, वहां दूसरी ओर बहुत से लोग कलात्मक अभिरुचि न होने के कारण बहुमूल्य वस्तुओं को भी अत्यन्त फूहड़ ढंग से प्रयोग में लाते हैं।

2. सभी साधनों का परस्पर सम्बन्धित होना – गृह प्रबन्ध एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें सभी साधन चाहे वह भौतिक हों अथवा मानवीय का आपसी गहरा सम्बन्ध होता है। जब कोई गृहिणी अपनी ऊर्जा की उचित व्यवस्था करती है, तो उसके समय की स्वयं ही व्यवस्था हो जाती है। उदाहरणार्थ यदि कोई व्यक्ति कार खरीदना चाहता है, तो उसे या तो मौद्रिक आय में वृद्धि करनी होगी या परिवार की अन्य आवश्यकताओं पर होने वाले व्यय में कटौती करनी होगी।

यदि ऐसा न किया गया तो फिर कार खरीदने के लिए धन कहां से आयेगा ? यदि यह कहा जाये कि परिवार ने कार खरीदने के लिये पहले से ही पैसा एकत्रित कर लिया है तो ऐसा तभी हुआ होगा जब पहले इस कार्य के लिये पैसा इकट्ठा करने के लिये योजना बनाई गई होगी तथा परिवार के अन्य खर्चों में कटौती की गई होगी। मौद्रिक आय में वृद्धि के लिए कई बार गृहिणी या परिवार के अन्य सदस्य अपने मानवीय साधनों का प्रयोग करते हैं तथा मानवीय साधनों के प्रयोग से उन्हें भौतिक साधन प्राप्त होते हैं जिनका उपयोग वह अन्य भौतिक अथवा मानवीय साधनों को क्रय करने के लिए प्रयोग कर सकते हैं।

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3. सभी साधन उपयोगी होते हैं-सभी साधनों की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि वे हमारे जीवन के लिए उपयोगी होते हैं। वास्तव में वस्तु विशेष की उपयोगिता सिद्ध हो जाने के बाद ही उसकी गणना साधन के रूप में की जाती है। उदाहरणार्थ यदि बागवानी का ज्ञान साग सब्जी आदि उगाने में उपयोगी होता है, तो कलात्मक अभिरुचि विभिन्न कार्यों को कलात्मक ढंग से सम्पन्न करने में उपयोगी होती है। इसी प्रकार किसी गृहिणी की नाचने या गाने की कला की गणना तभी साधन के रूप में की जाएगी जब वह अपनी इस कला का उपयोग करेगी अन्यथा यह केवल कला मात्र ही है। इस कला का उपयोग बच्चों के लिए या फिर धन कमाने के लिए किया जा सकता है तथा यह साधन के रूप में प्रयोग की जा सकती है।

4. सभी साधनों की व्यवस्था करना – सभी साधनों की (चाहे वह भौतिक हो या मानवीय) व्यवस्था की जा सकती है। इनकी उचित व्यवस्था करके ही हम उत्तम गृह प्रबन्ध की कल्पना कर सकते हैं। इन साधनों के प्रयोग के लिए सर्वप्रथम उन्हें आयोजित करने की आवश्यकता होती है, जैसे कौन-सा साधन किस आवश्यकता की पूर्ति के लिए प्रयोग किया जाए। भौतिक आय की व्यवस्था करके ही हम ज्ञात कर सकते हैं कि कोई परिवार कितना भोजन पर, कितना कपड़ों पर तथा कितना अन्य आवश्यकताओं पर व्यय करे।

आयोजन के पश्चात् साधनों का प्रयोग करते समय नियन्त्रण रखना भी अति आवश्यक है जिससे साधनों का दुरुपयोग न हो। सभी साधनों का प्रयोग करने के पश्चात् हमें मूल्यांकन करना चाहिए जिससे हमें ज्ञान हो जाए कि साधनों के प्रयोग से हमारी आवश्यकता की पूर्ति हुई है या नहीं। जैसे धन की व्यवस्था करके जब हम आहार पर व्यय करते हैं और इस व्यय को नियन्त्रित भी रखते हैं तो अन्त में हमें देखना होगा कि मुद्रा के उपयोग से हमारी सन्तुलित आहार पाने की आवश्यकता पूर्ण हुई है अथवा नहीं ! यदि हमारी आवश्यकता पूर्ण नहीं हुई है, तो उसका क्या कारण है जिससे आगामी मास की व्यवस्था करते समय उन कारणों को दूर किया जा सके।

5. सभी साधनों के प्रयोग से लक्ष्य की प्राप्ति-सभी साधनों का प्रयोग, लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किया जाता है। यदि साधन लक्ष्यों की प्राप्ति न करे, तो वह अर्थहीन एवं निरर्थक हो जाते हैं। विभिन्न साधनों का व्यवस्थित उपयोग करके ही हम अपने लक्ष्यों की प्राप्ति कर सकते हैं। यदि किसी भौतिक वस्तु या मानवीय गुणता के कारण लक्ष्य प्राप्ति न हो, तो हम उन्हें साधन की संज्ञा नहीं दे सकते हैं।

प्रश्न 8. (A)
सभी साधन सीमित होते हैं ? इस कथन का विश्लेषण करें।
उत्तर :
देखें प्रश्न 8 का उत्तर।

प्रश्न 8 (B)
संसाधनों की तीन विशेषताएं बताएं।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 8. (C)
साधनों की सीमितता कितने प्रकार की हो सकती है ? उदाहरण से समझाएँ।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 9.
ज्ञान प्राप्ति किन-किन साधनों द्वारा हो सकती है ?
उत्तर :
कोई भी व्यक्ति निम्न साधनों द्वारा ज्ञान प्राप्त करता है –

  1. शिक्षा (Education)
  2. अनुभव (Experience)
  3. किताबों, पत्रिकाओं, समाचार-पत्रों, टेलीविज़न आदि द्वारा (From Books, Magazines, Newspapers, T.V. etc.)

1. शिक्षा (Education) – परिवार के सदस्यों की उचित शिक्षा द्वारा (चाहे वह विद्यालय में दी जाए या घर पर दी जाए) मानवीय साधन ज्ञान का विकास किया जाता है। यह व्यक्ति की मानसिक क्षमता एवं बुद्धिमत्ता पर निर्भर करता है कि शिक्षा द्वारा वह कितना ज्ञान प्राप्त करेगा। एक बुद्धिमान् व्यक्ति शिक्षा के माध्यम से अपनी बुद्धि का विकास बहुत तीव्र गति से करता है। इसके विपरीत एक मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति सिखाने पर भी बहुत कम सीखता है। स्कूल में दी गई नियमानुसार शिक्षा तथा घर पर दी गई शिक्षा दोनों का ही महत्त्व एक-दूसरे से कम नहीं है।

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2. अनुभव (Experience) – परिवार का प्रत्येक सदस्य समय-समय पर अनुभवों को ग्रहण करता है तथा इन्हीं अनुभवों की सहायता से वह ज्ञान प्राप्त करता है। जैसे-जैसे आयु की वृद्धि होती है अनुभव बढ़ते रहने से ज्ञान भी बढ़ता रहता है। अनुभवों की कोई चरम सीमा नहीं होती है। अत: जीवन भर प्रत्येक व्यक्ति नाना प्रकार के अनुभवों द्वारा ज्ञान प्राप्त करता रहता है।

3. किताबों, पत्रिकाओं, समाचार – पत्रों, टेलीविज़न आदि द्वारा (From Books Magazines, Newspapers, T.V. etc.) – जिन परिवार के सदस्यों की पढ़ाई में रुचि होती है वह किसी-न-किसी प्रकार की किताब, पत्रिका, समाचार-पत्र आदि पढ़ते रहते हैं और अपने ज्ञान में वृद्धि करते रहते हैं। बच्चों में ज्ञान वृद्धि के लिए यह सामग्री देते समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए कि सामग्री उचित हो और वह उनके द्वारा उत्तम ज्ञान को ग्रहण करे। कई बार अनुचित किताबों, पत्रिकाओं आदि का चयन करने के कारण बच्चों को अच्छी आदतों के स्थान पर बुरी आदतें घेर लेती हैं और वह अनुचित ज्ञान प्राप्त करते हैं। आज के युग में टेलीविज़न भी ज्ञान का एक बहुत उपयोगी माध्यम है। टेलीविज़न से बच्चों के ज्ञान में बहुत वृद्धि हुई है।

प्रश्न 9 (A)
मानवीय संसाधन कौन-कौन से हैं ? किसी एक मानवीय संसाधन के बारे में लिखिए।
उत्तर :
मानवीय साधन हैं-कुशलता, ज्ञान, शक्ति, दिलचस्पी, रुचि आदि। देखें प्रश्न 9 का उत्तर (ज्ञान एक मानवीय साधन हैं)।

प्रश्न 10.
‘समय-योजना निर्माण के विभिन्न चरणों के बारे में विस्तारपूर्वक लिखिए।
उत्तर :
एक कार्यसाधक समय योजना के बनाने के लिए यह आवश्यक है कि एक गृहिणी अपने सभी परिवार के सदस्यों की सहायता से यह निर्णय कर ले कि कौन-कौन से कार्य प्रतिपादन करने आवश्यक हैं, कौन-कौन से साप्ताहिक कार्य हैं तथा कौन-से ऐसे कार्य हैं जोकि इतने आवश्यक नहीं हैं और आवश्यकता पड़ने पर जिन्हें छोड़ा जा सके। यद्यपि घर के सभी कार्यों को करने के लिए सामान्य रूप के समय स्थिर ही होता है, परन्तु योजना ऐसी होनी चाहिए कि आवश्यकतानुसार उनमें परिवर्तन लाया जा सके।

परिवार के सामूहिक कार्यों के अलावा कुछ अन्य व्यक्तिगत कार्य भी सदस्यों को पूर्ण करने होते हैं, अतः इनके लिए भी निश्चित समय होना चाहिए। इसीलिए समय-योजना बनाते समय इन कार्यों को भी ध्यान में रखना चाहिए, क्योंकि ये भी गृहिणी के समय के उपयोग पर प्रभाव डालती हैं। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि समय-योजना इस प्रकार की होनी चाहिए कि व्यक्तिगत रुचियों और सामूहिक परिवारिक कार्यों के लिए भी समय निकल सके।

समय-योजना निर्माण के चरण (Steps in making a Time Plan) समय योजना का निर्माण पारिवारिक आवश्यकताओं पर निर्भर करता है। सभी परिवारों की परिस्थितियां अलग-अलग होती हैं। इसलिए कभी भी किन्हीं दो परिवारों की समय योजना समान नहीं हो सकती। उदाहरणार्थ एक परिवार, जिसमें कि छोटे बच्चे हों, उसकी समय-योजना निश्चित रूप से ही उस दूसरे परिवार से भिन्न होगी, जिसमें कि वयस्क सदस्य अधिक होंगे, परन्तु योजना बनाने में विभिन्न चरण सदैव समान रहे हैं। परिस्थितियां चाहे कैसे भी हों, समय-योजना सदा परिवार की आवश्यकताओं के अनुसार ही होनी चाहिए। योजना निर्माण के विभिन्न चरणों का विवरण निम्नलिखित है –

1. इसमें परिवार के विभिन्न दैनिक, साप्ताहिक, वार्षिक या मौसम के अनुसार नियत समय पर किए जाने वाले कार्यों की एक तालिका तैयार कर ली जाती है। उदाहरणार्थ दैनिक कार्यों के अन्तर्गत खाना पकाना, परोसना, बर्तन धोना, बिस्तर लगाना, आराम करना तथा बच्चों की देख-रेख इत्यादि आते हैं, जबकि दूसरी ओर कुछ कार्य जैसे-इस्त्री करना, कपड़ों की मरम्मत करना, घर की भली प्रकार सफाई करना, कोई विशेष खाना पकाना तथा खरीददारी आदि करना, साप्ताहिक कार्यों के अन्तर्गत आते हैं। इसी प्रकार घर के रंग-रोगन करवाना एक वार्षिक, तथा सर्दी के मौसम में गर्म कपड़ों को निकालना व उसके पश्चात् उन्हें सम्भालकर रखना मौसम के अनुसार नियत समय पर किए जाने वाले कार्य के उदाहरण हैं।

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2. इसके अन्तर्गत परिवार में दैनिक कार्य, जोकि नियमित रूप से निश्चित समय पर किए जाते हैं, उनकी योजना बना ली जाती है। इन नियमित रूप से किए जाने वाले कार्यों का प्रारूप तैयार करने के बाद ही बाकी योजना बनाई जाती है। प्रतिदिन किए जाने वाले हर कार्य के लिए समय निर्धारित कर दिया जाता है। दैनिक कार्यों के आयोजन के बाद ही साप्ताहिक कार्यों के लिए खाली समय छोड़ दिया जाता है।

3. इस चरण में साप्ताहिक योजना पूरी कर ली जाती है। दैनिक योजना बनाते वक्त जो समय साप्ताहिक कार्यों के लिए छोड़ा जाता है, उसी समय में साप्ताहिक तथा कुछ विशिष्ट कार्यों को स्थान दिया जाता है। कार्यों के लिए समय निर्धारित करते समय गृहिणी को चाहिए कि वह ध्यान रखे कि परिवार की महत्त्वपूर्ण साप्ताहिक आवश्यकताओं को किस दिन व किस समय पूरा किया जा सकता है और साथ ही उसे यह भी देखना चाहिए कि परिवार के सदस्य उस समय उस कार्य को करने के लिए खाली हों।

4. इस अन्तिम चरण में परिवार में सामूहिक चर्चा करके यह निर्णय किया जाता है कि कौन-सा सदस्य क्या कार्य करेगा ? ऐसा करने के लिए परिवार के हर सदस्य के उत्तरदायित्व को स्पष्ट कर दिया जाता है।

समय – आयोजन के क्रियान्वय का नियन्त्रण (Control of Time Activities) समय-योजन के निर्माण के बाद इसको बहुत ध्यानपूर्वक क्रियान्वित करना चाहिए। योजना चाहे मौखिक हो या लिखित, एक अच्छी योजना सदा पथ-प्रदर्शक का काम करती है। एक सफल योजना वही है जोकि अवरोधों के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली कठिनाइयों में भी कार्य को भली प्रकार सम्पन्न होने में मदद करे।

उदाहरणार्थ अगर कोई आपात्कालीन स्थिति आ पड़े, जैसे कि घर में कोई बीमार हो जाए तो गृहिणी को चाहिए कि कुछ अनावश्यक कार्यों को स्थगित कर दे या फिर अपनी कार्य करने की गति में तीव्रता लाकर सभी कार्यविधियों को योजना के अनुसार ही पूरा करे। गृहिणी अपनी योजना पर नियंत्रण रखने में तभी सफल हो सकती है, अगर वह आपत्-स्थिति में भी न घबराए, अपितु मानसिक स्थिरता के बल पर उनका सामना करे।

समय-योजना का मूल्यांकन (Evaluating Time-Plans) समय-योजनाओं को क्रियान्वित करने के बाद, अन्त मे उसका मूल्यांकन किया जाता है। इससे यह पता लग जाता है कि हमारा कार्य योजना के अनुसार है या नहीं। दिन में सभी कार्य करने के बाद अन्त में गृहिणी को अवश्य ही समय-योजना का मूल्यांकन करना चाहिए जिससे कि वह जान सके कि क्या वह सभी कार्यों को सम्पन्न करने में सफल हुई है या नहीं।

सारे दिन या सप्ताह का कार्य समाप्त करके गृहिणी को योजना का विश्लेषण करते समय यह देखना चाहिए कि क्या योजना व्यवहार युक्त थी ? क्या पारिवारिक आवश्यकताएं इससे पूर्ण हुई हैं ? अगर नहीं, तो असफलता के क्या कारण थे ? इस प्रकार इन सब कारणों को जानकर गृहिणी फिर भविष्य में अधिक सफलता के साथ समय-योजना बना सकती है। एक योजना तभी सफल कहलाई जा सकती है अगर व्यक्तिगत या पारिवारिक लक्ष्यों की प्राप्ति संतोषजनक विधि से हो सके।

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प्रश्न 11.
शक्ति प्रबन्ध (Energy Management) के बारे में चर्चा कीजिए।
अथवा
अपनी ऊर्जा का आप बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग कैसे करेंगे ?
उत्तर :
समय के साथ-साथ शक्ति भी एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण मानवीय साधन है। ‘समय’ तथा ‘शक्ति’ आपस में घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। एक का प्रबन्ध दूसरे पर बहुत प्रभाव डालता है, परन्तु ‘शक्ति प्रबन्ध’ समय के प्रबन्ध की अपेक्षा अधिक कठिन एवं जटिल कार्य है। शक्ति प्रबन्ध में लक्ष्यों का निश्चित होना आवश्यक है तथा इसके साथ ही लक्ष्य उसकी उपलब्ध शक्ति के अनुसार निर्धारित किए जा सकते हैं।

प्रत्येक घरेलू कार्य के लिए विभिन्न प्रकार की शक्ति खर्च होती है-जैसा कि अधिकतर कार्यों के लिए आंखों की शक्ति (Visual effort) खर्च होती है। कोई अन्य कार्य, जैसे सफाई करने, भोजन पकाने, बर्तन साफ करने, टेबल लगाने, कपड़े धोने आदि में ‘शारीरिक शक्ति’, (Manual Effort) खर्च होती है। इसके अतिरिक्त कुछ कार्य, जैसे कि चलने, दौड़ने व खड़े होने के लिए ‘पैरों की शक्ति’ (Pedal Effort), तथा अन्य कई कार्यों जैसे कि पढ़ना-लिखना आदि में ‘मानसिक-शक्ति’ (Mental Effort) खर्च होती है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि विभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग मात्रा में शक्ति खर्च होती है। यह कहा जा सकता है कि शक्ति का खर्च होना कार्य की प्रकृति पर निर्भर करता है। उदाहरणार्थ-कुछ हल्के कार्य, जैसा गाना सुनना, कढ़ाई करना, स्वेटर बुनना, कपड़ों की हाथ की सिलाई द्वारा मरम्मत करना, फर्नीचर झाड़ना आदि में कम शक्ति का व्यय होता है। कुछ अन्य कार्य, जैसे फर्नीचर पोंछने, इस्त्री करने, चित्रकारी आदि करने में हल्के कार्यों की अपेक्षा अधिक शक्ति खर्च होती है, जबकि तेज़ चलने, नाचने, कपड़े-धोने व सुखाने, आटा पीसने, कुएं से पानी खींचने जैसे भारी कामों में सबसे अधिक शक्ति खर्च करनी पड़ती है।

कार्य की प्रकृति के अलावा, शक्ति का व्यय इस बात पर भी निर्भर करता है कि गृहिणी अपने पारिवारिक जीवन-चक्र के किस सोपान से गुजर रही है। एकाकी परिवार के प्रारम्भिक सोपान में स्त्री को केवल पति-पत्नी, यानी कि दो व्यक्तियों की देखभाल पर ही शक्ति व्यय करनी होती है। दूसरे सोपान में बच्चों के पालन-पोषण का कार्य-भार, गृहिणी की शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों पर दबाव डालते हैं।

तीसरे सोपान में, जब बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे होते हैं, गृहिणी अपनी कुछ शक्ति मनोरंजन के कार्यों में व्यय करती है। पारिवारिक जीवन-चक्र के अंतिम सोपान में तो वैसे ही आयु के अनुसार शक्ति क्षीण होने लगती है। इस प्रकार गृहिणी की कार्यक्षमता उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य तथा शारीरिक रचना पर भी निर्भर करती है और किन्हीं दो व्यक्तियों की कार्य क्षमता एक जैसी नहीं होती।

दैनिक कार्यों को ऐसी कुशलता, चतुराई और योजना बद्ध तरीके से करना, जिससे कम से-कम मात्रा में शक्ति के उपयोग से अधिक लाभप्रद कार्यों को सम्पन्न कर सके ‘शक्ति-प्रबन्ध’ कहलाता है। इस प्रकार शक्ति प्रबन्ध का मुख्य उद्देश्य है-किसी भी कार्य के लिए कम-से-कम शक्ति का व्यय करना जिससे कि गृहिणी काम को बिना थकान के ही कर सके। ‘थकान’ या ‘थकावट’-गृहिणी के कार्य करने की विधि से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है। गृहिणी को चाहिए कि वह अपनी क्रियाओं को इस प्रकार से आयोजित करे जिससे कि वह कुछ समय तथा शक्ति बचत करके परिवार तथा समाज की कई अन्य गतिविधियों में भी भाग ले सके।

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प्रश्न 12.
‘थकान’ क्या है ? यह कितने प्रकार की होती है ? उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर :
जब कोई व्यक्ति अपनी शारीरिक व मानसिक क्षमता से अधिक भारी कार्य करता है तो उसकी शारीरिक व मानसिक शक्ति कम हो जाती है, जिसके फलस्वरूप एक ऐसी स्थिति आ जाती है कि व्यक्ति बिल्कुल भी कार्य नहीं कर पाता, यही स्थिति ‘थकान’ (Fatique) कहलाती है। अत्यन्त सरल परिभाषा के रूप में यह कहा जा सकता है कि अपनी कार्य-क्षमता से अधिक शक्ति का व्यय करने से ‘थकान’ उत्पन्न हो जाती है। थकावट के कारण व्यक्ति कार्य में रुचि नहीं रख पाता।
यदि कोई व्यक्ति ऐसा कार्य करे जिसमें कि उसकी रुचि न हो और वह उसे करने में आनन्द का अनुभव न करे तो भी उसे थकान हो जाती है।
कार्य का ठीक प्रकार से आयोजन न करने से भी थकान की उत्पत्ति होती है। थकान के प्रकार (Type of Fatigue)-थकान दो प्रकार की होती है –
1. शारीरिक थकान (Physiological Fatigue)
2. मानसिक या मनोवैज्ञानिक थकान (Psychological Fatigue)

1. शारीरिक थकान लगातार कार्य करने से शारीरिक शक्ति का ह्रास हो जाता है, और एक स्थिति आती है जिसमें व्यक्ति और कार्य करने के योग्य नहीं रहता। कार्य करते समय शारीरिक मांसपेशियों में ‘ग्लूकोज’ के ऑक्सीकरण से ‘कार्बनडाइ-ऑक्साइड’, ‘जल’ तथा ‘लैक्टिक अम्ल’ उत्पन्न होते हैं। यह ऑक्सीकरण की क्रिया तभी पूर्ण होती है अगर शरीर को ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा मिलती रहे।

ग्लूकोज + ऑक्सीजन → कार्बन-डाइ-ऑक्साइड + जल + लैक्टिक अम्ल।
प्रत्येक कार्य के पश्चात् कार्बन-डाइ-ऑक्साइड का शरीर से निष्कासन तथा लैक्टिक अम्ल का ऑक्सीकरण होना बहुत ही आवश्यक होता है। साधारण

स्थिति में तो कार्बन डाइ-ऑक्साइड (CO2) मांसपेशियों से रक्त द्वारा फेफड़ों में पहुंचाई जाती है तथा वहां से श्वास क्रिया द्वारा शरीर के बाहर निकाल दी जाती है और इसी प्रकार रक्त फेफड़ों से ऑक्सीजन को मांसपेशियों में पहुँचाता है जिससे कि लैक्टिक अम्ल का दोबारा से ऑक्सीकरण हो जाता है। अगर किन्हीं कारणों से ऑक्सीजन की कमी हो तो यह क्रिया लैक्टिक अम्ल स्थिति पर ही समाप्त हो जाती है और यह लैक्टिक अम्ल रुधिर में एकत्रित हो जाता है, जिससे थकान महसूस होती है। जब व्यक्ति निरंतर कार्य करता है तो ऑक्सीजन की कमी हो जाने से थकान उत्पन्न होती है। इसीलिए इस थकान को कम करने के लिए व्यक्ति को निरंतर कार्य न करते रहकर बीच-बीच में आराम भी करते रहना चाहिए ताकि शरीर को ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा में मिलती रहे और उसे थकान भी महसूस न हो। गृहिणी को भी अपने कार्यों का विभाजन इस प्रकार करना चाहिए कि उसे किसी भी प्रकार का कार्य करते हुए थकान का अनुभव न हो।

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2. मानसिक थकान – जीवन में दैनिक कार्यों से उत्पन्न होने वाली थकान में अधिक मात्रा मानसिक थकान की ही होती है। मानसिक थकान से व्यक्ति की कार्यक्षमता कम हो जाती है तथा वह उस कार्य को करने में रुचि नहीं दिखाता। यह दो प्रकार की होती है।

  1. बोरियत से होने वाली थकान (Boredom Fatique)
  2. निराशा से होने वाली थकान (Frustration Fatique)।

1. बोरियत से होने वाली थकान – इस थकान में काम करने की वास्तविक क्षमता में तो कोई परिवर्तन नहीं आता, परन्तु कुछ ऐसे अन्य लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं जो बोरियत पैदा करते हैं, जैसे –

  1. मन का ऊब जाना
  2. बेचैनी का अनुभव होना
  3. मस्तिष्क में भारीपन
  4. काम में रुचि न दिखाना
  5. सोचने-समझने की शक्ति कम हो जाना।

उपरोक्त सभी लक्षणों के कई कारण हो सकते हैं, जैसे कार्य को लम्बी अवधि के लिए करना, काम करने का प्रबन्ध ठीक न होना, काम को उचित समय पर न करना, तथा कई बार प्रतिकूल परिस्थितियों का होना।

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2. निराशा से होने वाली थकान-इस प्रकार की मनोवैज्ञानिक थकान सामान्यतः व्यक्तिगत कारणों से होती है। उदाहरणार्थ-कार्य करते समय व्यक्ति का सन्तुष्ट न होना कार्य में सफलता प्राप्त करने में कोई संदेह होना, काम पूरा करने में सफल न होना और परिवार के विभिन्न सदस्यों द्वारा सराहना का अभाव होना आदि।

थकान चाहे शारीरिक हो या मानसिक-इसको दूर करना बहुत ही आवश्यक होता है जिससे कि व्यक्ति की कार्यक्षमता पुनः बढ़ सके। थकान दूर रखने के सामान्य उपाय निम्नलिखित हैं –

  1. कार्य के अनुसार व्यक्ति की क्षमता के आधार पर कार्य के बीच में आराम काल का होना आवश्यक है।
  2. व्यक्ति को उत्साहित करना चाहिए। इसके लिए उसके काम की सराहना की जानी चाहिए।
  3. कार्य की प्रकृति में परिवर्तन होना चाहिए, जैसे कि, किसी भारी कार्य के बाद साधारण हल्का कार्य करना। ऐसा करने से व्यक्ति समय तथा शक्ति की बचत कर सकता है।
  4. समय और श्रम बचत के उपकरणों का उपयोग करना चाहिए, जिससे समय तथा श्रम की बचत हो सके और कार्य सरल हो जाए।

प्रश्न 13.
थकान कम करने के कौन-कौन से उपाय हैं ? संक्षेप में बताइये।
उत्तर :
थकान कम करने का सर्वोत्तम उपाय विश्राम है। कोई भी कार्य करते समय यदि बीच-बीच में थोड़ा सा विश्राम कर लिया जाये तो कार्य-क्षमता बढ़ जाती है और काम में भी मन लगता है। किस व्यक्ति के लिए कितने विश्राम की आवश्यकता है यह उस व्यक्ति की शारीरिक रचना तथा कार्य की प्रकृति पर निर्भर करता है। कुछ कार्य तो ऐसे होते हैं जिनमें अन्य कार्यों की अपेक्षा थकान कम होती है। इसी प्रकार कुछ लोगों की प्रकृति क्षमता ऐसी होती है कि वे थोड़े ही विश्राम से अपनी थकान दूर कर लेते हैं, जबकि अन्य व्यक्तियों को अधिक विश्राम की आवश्यकता होती है। इसके अलावा कार्य के सरलीकरण तथा श्रम बचत के साधनों का उपयोग करने से भी थकान कम होती है। इसके अलावा थकान से बचने के लिए निम्नलिखित साधन व संकेत भी लाभकारी हो सकते हैं –

1. थकान से बचने के लिए कम – से-कम चलना फिरना चाहिए। चलना-फिरना कम करने के लिए घर में सभी आवश्यक तथा समय-समय पर उपयोग में आने वाली वस्तुएं इस प्रकार रखनी चाहिए कि वे समय पर आसानी से मिल सकें तथा उन्हें खोजने के लिए आवश्यक भाग दौड़ न करनी पड़े। ऐसा करने के लिए यह उपयुक्त होता है कि एक प्रकार का सामान एक ही स्थान पर रखा जाए। उदाहरणार्थ सिलाई का सब सामान सिलाई मशीन के साथ ही एक डिब्बे में रखना चाहिए, खाने-पीने का सब सामान किसी एक निश्चित स्थान पर रखना चाहिए, खाना बनाने का सभी सामान रसोई घर में एक ही स्थान पर पास-पास रखना चाहिए। ऐसा करने से न तो ढूंढ़ने में समय ही नष्ट होता है और न इधर-उधर व्यर्थ में भाग दौड़ करनी पड़ती है। भाग-दौड़ न करने पर अनावश्यक थकान बहुत कम होती है।

2. थकान से बचने के लिए यह भी आवश्यक है कि किसी भी कार्य को करते समय अनावश्यक क्रियाओं को हटा देना चाहिए। उदाहरणार्थ यदि किसी अतिथि के आने पर भोजन अथवा चाय परोसनी हो तो सामान लाने के लिए रसोईघर में बार-बार आने-जाने के स्थान पर एक ट्रे में सब वस्तुओं को रख कर ले जाया जा सकता है।

3. थकान से बचने के लिए यह भी आवश्यक है कि एक साथ प्रयोग में आने वाली वस्तुओं को एक स्थान पर रखा जाए, यथा-चाय के डिब्बे में चम्मच, चीनी का डिब्बा चाय के पास ही, सभी मसाले एक साथ ही मसालेदानी में, धुलाई का सभी सामान धुलाई कक्ष में एक अलमारी में रखना चाहिए।

4. थकान से बचने के लिए सही मुद्रा अपनाना भी जरूरी है। गलत मुद्रा में काम करने से थकान जल्दी होती है। उदाहरणार्थ बैठकर भोजन पकाने से अधिक थकान होती है जबकि खड़े होकर भोजन पकाने से थकान कम होती है।

5. थकान से बचाव के लिए ठीक यन्त्रों का उपयोग भी आवश्यक है। श्रम बचत के साधनों के उपयोग से भी थकान बहुत कम होती है।

6. थकान से बचने के लिए खड़े या बैठते समय इस बात का ध्यान भी रखना चाहिए कि शरीर ऐसी स्थिति में रहे जिससे मांसपेशियों पर अधिक जोर न पड़े।

7. बहुत अधिक चिन्ता करने पर भी थकान हो जाती है। अतः प्रत्येक कार्य प्रसन्नचित्त रह कर करना चाहिए।

8. लगातार एक जैसा कार्य करने के कारण भी कभी-कभी थकान का अनुभव होने लगता है। अत: यह आवश्यक है कि गृहिणी अपने कार्यों का विभाजन इस प्रकार से करे कि कार्य करने से वह थकान का अनुभव न करे।

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प्रश्न 14.
कार्य सरलीकरण को परिभाषित कीजिए तथा मण्डल द्वारा दिये गए सिद्धान्तों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर :
आज के इस नवीन युग में जबकि अधिकतर गृहिणियां घर की कार्य विधियों के साथ-साथ बाहर भी काम पर जाती हैं, कार्य-सरलीकरण (Work Simplification) बहुत ही आवश्यक है। ‘निर्धारित समय और शक्ति की मात्रा के उपयोग से अधिक कार्य सम्पादित करना’ अर्थात् ‘कार्य की निश्चित मात्रा को कम करने की प्रक्रिया’ को ही कार्य सरलीकरण कहा जाता है। कार्य के सरलीकरण में समय और शक्ति दोनों के प्रबन्ध को मिला दिया जाता है।

कार्य के सरलीकरण के विभिन्न तरीकों को एम० एच० मण्डल (M.H. Mandel) ने पांच वर्गों में विभाजित किया है।

1. हाथ और देह की गतियों में परिवर्तन – कार्य-सरलीकरण का सबसे आसान तरीका हाथ और देह की गतियां कम करना है। कार्य करते समय बैकार की गतियों को हटा देना चाहिए। ऐसा करने से समय तथा श्रम की बचत की जा सकती है। उदाहरणार्थ बर्तनों को रसोईघर में उसी क्रम से लगाना, जिस क्रम में उनका प्रयोग किया जाना हो, बर्तन धोने के बाद खुली हवा में रखकर सुखा लेना, जिससे उन्हें पोंछने की आवश्यकता न पड़े, खाना परोसते समय सभी पात्रों को ट्रे में रखकर ले जाना आदि।

इसी प्रकार रसोईघर में काम करते समय सभी उपकरण तथा खाना पकाते समय प्रयोग में लाया जाने वाला सामान, कार्य-स्थल के पास ही होना चाहिए, जैसे सब्जी बनाते समय मसालों का डिब्बा आदि। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि प्रबन्ध ऐसा होना चाहिए जिससे कि किसी भी काम को करने के लिए शारीरिक गतियां कम हों जिससे कार्य का भी सरलीकरण हो सके।

2. कार्य-स्थल एवं उपकरण में परिवर्तन – समय तथा श्रम की बचत तभी हो सकती है अगर संग्रह तथा कार्य-स्थल भी भली प्रकार से आयोजित किए जाएं, जैसे कि बर्तन धोने के स्थान का आयोजन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि साफ बर्तनों को बेसिन (Sink) के बाईं तरफ रखा जाए। इससे गृहिणी सरलता से कार्य कर सकती है तथा श्रम भी कम व्यय होता है। इसके साथ ही कार्य-स्थल की ठीक ऊंचाई होना भी बहुत आवश्यक है।

उपकरणों को इस तरह से क्रम में रखना चाहिए कि उनको उठाते समय कम समय व श्रम व्यय हो। हल्की वस्तुओं को अलमारी में ऊपर के खानों तथा भारी वस्तुओं को नीचे रखना चाहिए। जिससे उन्हें प्रयोग करते समय अधिक कठिनाई न हो। सही प्रकार के उपकरण प्रयोग में लाए जाएं तो इससे कार्य सीमित समय में पूर्ण हो जाता है। उदाहरणार्थ पतीले के स्थान पर प्रैशर-कुकर का प्रयोग करना, सब्जियां छीलने के लिए ‘पीलर’ (Peelers) का प्रयोग करना आदि। इसी प्रकार समय व श्रम बचत उपकरणों, जैसे मिक्सी, ग्राइंडर, कपड़े धोने की मशीन आदि के प्रयोग से भी गृहिणी समय व श्रम की बचत कर सकती है।

3. कार्य के क्रम में परिवर्तन – विभिन्न घरेलू क्रियाओं की योजना इस प्रकार से करनी चाहिए कि कार्य काफी सुगमता से हो सके। किसी भी कार्य को करने के लिए सबसे सरल तथा छोटा तरीका अपनाना चाहिए, जिससे समय व श्रम की बचत की जा सके। एक प्रकार का कार्य करते हुए अचानक ही दूसरा कार्य शुरू कर देने से कार्य करने की वह गति नहीं रहती तथा अधिक थकान होती है।

उदाहरणार्थ – सफाई करते समय अगर सर्वप्रथम एक कमरे में की सभी वस्तुओं को झाड़ा जाए, फिर उसके फर्श को झाड़ दी जाए तथा अन्त में उसी कमरे में पोंछा लगाया जाए, तथा फिर दूसरे कमरे में भी इन सभी क्रियाओं को इसी क्रम से दोहराया जाए तो कार्य इतनी सरलता से नहीं हो पाता। इसके विपरीत अगर सभी कमरों की सभी वस्तुओं को पहले झाड़-पोंछ की जाए फिर सब कमरों में झाड़ दी जाए तथा अन्त में पोंछा लगाया जाए, तो कम समय लगता है, क्योंकि ऐसा करने से काम की एक ही गति बनी रहती है जिससे कम थकान का अनुभव होता है। इस प्रकार कार्य को सरल बनाने के लिए कार्य करने की विधि में भी परिवर्तन लाना बहुत आवश्यक होता है।

4. कच्ची सामग्री के प्रयोग में परिवर्तन – वैज्ञानिक आविष्कारों के फलस्वरूप आजकल बाज़ार में अनेकों वस्तुएं उपलब्ध हैं जिनके प्रयोग से कार्य सरल बनाया जा सकता है। अपने परिवार के रहन-सहन के स्तर के आधार पर एक गृहिणी इन वस्तुओं का प्रयोग कर सकती है। पुराने समय में गृहिणी को स्वयं घर में आटा, दाल, बेसन व मसाले आदि पीसने में काफी समय लगता था, परन्तु आजकल बाजार में ये चीजें पीसी पिसाई ही मिलती हैं।

यह नहीं आजकल बाजार में कई व्यंजन बनाने के लिए कुछ हद तक तैयार सामग्री (Readymade Mixtures) भी उपलब्ध हैं-जिनके प्रयोग से समय व श्रम की बचत हो सकती है। उदाहरणार्थ-इडली, डोसा, गुलाबजामुन आदि बनाने के लिए बाजार में कई प्रकार के तैयार सूखे मिश्रण उपलब्ध हैं जिनके प्रयोग से गृहिणी समय की बचत कर कार्य को सरलता से करने में सफल होती है।

5. तैयार सामग्री में परिवर्तन – कच्ची सामग्री में परिवर्तन के साथ तैयार सामग्री की प्रकृति बदलकर भी समय व श्रम की बचत की जा सकती है। उदाहरण के लिए एक गृहिणी घर में अधिक मेहमान आ जाने पर चपाती के स्थान पर पूरी या चावल परोस सकती है जिन्हें बनाने में चपाती की अपेक्षा कम समय लगता है। यहां पर और भी कई उदाहरण दिए जा सकते हैं-अगर परिवार में ज्यादा छोटे बच्चे नहीं हों, तो गृहिणी के लिए यह जरूरी नहीं है कि वह हर कमरे की प्रतिदिन सफाई करे। जो कमरे प्रतिदिन प्रयोग में लाये जाते हैं-उनको रोज़ साफ किया जा सकता है और बाकी कमरों को हफ्ते में दो या तीन बार।

सूती या अन्य कपड़े के बने टेबल मैट के स्थान पर प्लास्टिक या चटाई के मैट का प्रयोग करना, ताकि प्रयोग तथा सफाई आदि करने में आसानी रहे। हालांकि ‘मण्डल’ के कार्य सरलीकरण के ये पांच वर्ग काफी प्रचलित हैं, परन्तु “ग्रास वक्रैन्डल” ने इन ‘पांच वर्गों’ का संक्षिप्तीकरण करके उन्हें ‘तीन वर्गों में विभाजित किया है, जो इस प्रकार हैं –

  1. देह की गतिविधियों परिवर्तन (Changes in the activities of the body)
  2. घर के वातावरण में परिवर्तन जैसे कि कार्य स्थल एवं उपकरण में परिवर्तन
  3. उत्पादन में परिवर्तन-यानी ‘कच्ची’ तथा ‘तैयार’ सामग्री में परिवर्तन (Changes in the product)

इस प्रकार विभिन्न विधियों का उपयोग करके गृहिणी कार्य का सरलीकरण कर सकती है। इसके अतिरिक्त गृहिणी कार्य को अधिक रुचिकर बनाकर तथा उसमें निपुण होने से भी कार्य को सरल बना सकती है। कार्य करने के साथ-साथ पर्याप्त अवधि के आराम काल की योजना से भी गृहिणी थकान से बच जाती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि ‘कार्य-सरलीकरण’.-समय तथा श्रम की बचत के साथ-साथ अच्छा कार्य करने में भी सहायक है।

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प्रश्न 15.
कार्य-सरलीकरण क्या है ? रसोईघर के कार्यों का आप किस प्रकार सरलीकरण करेंगी ?
उत्तर :
कार्य-सरलीकरण क्या है ? देखें उपरोक्त प्रश्न के उत्तर का सम्बन्धित अंश।
रसोईघर में कार्य-सरलीकरण-पाकक्रिया से संबद्ध कार्यों के सम्पादन में गति, समय एवं पाक-प्रणाली का अध्ययन म्यूज, आर्मस्ट्रॉग, हेनरी, लिंडमैन, ग्रॉस आदि व्यक्तियों ने किया। इन लोगों ने तीन बुनियादी प्रकार के रसोईघरों की व्यवस्था तथा उपकरणों में परिवर्तन कर रसोईघर की व्यवस्था का तुलनात्मक अध्ययन किया।

रसोईघर की स्थिति तथा रसोईघर में प्रयुक्त होने वाले उपकरणों के आधार पर निष्कर्ष निकाले गये तथा निष्कर्ष के आधार पर निम्नलिखित सुझाव हैं –

  1. सब्जियां छीलते समय पीलर (Peelar) तथा काटते समय नोंक वाली छुरी या चाकू का व्यवहार करें।
  2. सब्जियों को मथने के लिए मैशी (Mashee) को प्रयुक्त करें।
  3. सब्जियों को धोने के लिए बड़े पात्र का प्रयोग करें तथा अधिक जल लें।
  4. काम शुरू करने के पूर्व सभी सामानों को गैस, स्टोव या चूल्हे के पास रख लें। इससे चलने की कम आवश्यकता होती है।
  5. हाथ से चलाने वाले तथा मिश्रण करने वाले उपकरणों के स्थान पर विद्युत् द्वारा चालित उपकरणों के प्रयोग से समय की बचत होती है।
  6. रसोईघर में पहियों वाली ट्रे का उपयोग करने के गृहिणी को चलने फिरने में सुविधा रहती है।
  7. रसोईघर तथा भंडार में वस्तुओं को संग्रह करने के लिए अधिक संख्या में अलग अलग खाने (Shelves) तथा अलमारियां बनानी चाहिए।
  8. अलमारियां तथा खाने (Shelves) पास-पास हों ताकि सामानों को निकालने एवं रखने में अधिक न चलना पड़े
  9. उपकरणों की कार्य-केन्द्र के आधार पर व्यवस्था करने से अधिक चलना नहीं पड़ता है और इस तरह समय एवं शक्ति की बचत होती है।
  10. काम करते समय दोनों हाथों का व्यवहार करना चाहिए।
  11. भोजन तालिका में परिवर्तन लाकर पाकक्रिया सहज बनाई जा सकती है।

रसोईघर की व्यवस्था उपयुक्त ढंग से रहने पर कम भाग-दौड़ करनी पड़ती है। अतः पाक-कक्ष में परिवर्तन लाकर कार्यों का सरलीकरण किया जा सकता है। इसके लिए कुछ सुझाव प्रस्तुत हैं –

  1. रसोईघर को आई-आकारगत (I-shaped), एल-आकारगत (L-shaped), यू आकारगत (U-shaped) अथवा समानान्तर दीवार वाले (Parallel wall) रसोईघर के रूप में व्यवस्थित करें।
  2. रसोईघर में सबसे अधिक चूल्हा और सिंक, सिंक और बर्तन रखने के स्थान और खाने की मेज के बीच चलना पड़ता है। अतः चूल्हे और सिंक के बीच की दूरी अधिक नहीं होनी चाहिए। सिंक और बर्तन रखने का स्थान पास-पास होना चाहिए।
  3. सब्जियों-फलों को काटने, चावल, दाल बीनने तथा आटा गूंथने के निमित कार्य क्षेत्र चूल्हे तथा सिंक के पास होना चाहिए।
  4. भण्डार व्यवस्था रसोईघर में ही होनी चाहिए।
  5. पाकक्रिया में प्रयुक्त होने वाली सामग्री को चूल्हे के पास रखें तथा बनाने वाले पात्रों एवं उपकरणों को भी पास ही रखें।
  6. पका हुआ भोजन खाने की मेज तक पहुंचाने में बड़ी ट्रे या ट्राली (Trolly) का व्यवहार करें।
  7. पाकक्रिया में प्रयुक्त होने वाले उपकरणों को अच्छी व्यवस्था में गैस स्टोव या चूल्हे के पास सजाकर रखें।
  8. बर्तन धोने का सिंक ऊंचाई पर रखें। गहरे सिंक में पानी निकलने का छिद्र ढक्कन से बन्द कर देने पर एक साथ अधिक बर्तन धोए जा सकते हैं।

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प्रश्न 16.
परिवार के मानवीय संसाधनों का वर्णन करें।
उत्तर :
मानवीय संसाधन इस प्रकार से हैं-ज्ञान, कौशल, योग्यता, ऊर्जा, अभिरुचि आदि।
1. ज्ञान – ज्ञान अथवा शिक्षा व्यक्ति के दिमाग में होता है जिसे आवश्यकता पड़ने पर प्रयोग किया जा सकता है। यह किसी व्यक्ति विशेष के पास मरते दम तक रहता है। ज्ञान के प्रयोग से धन भी कमाया जा सकता है जैसे अध्यापक, वकील, सी० ए० आदि अपने ज्ञान के बल पर धन अर्जित करते हैं।

2. ऊर्जा – ऊर्जा को शक्ति भी कहते हैं। यह प्रत्येक व्यक्ति के पास उसकी डील डौल शरीर तथा सोच पर निर्भर है। यह व्यक्ति विशेष का अंश होती है। जिनका मानसिक ऊर्जा का स्तर ऊँचा होता है वे कमज़ोर शरीर के रहते भी अधिक कार्य कर लेते हैं। यदि ऊर्जा का उपयोग योजनाबद्ध ढंग से किया जाए तो अधिक कार्य किया जा सकता है। एकदम से बहुत कार्य करने से ऊर्जा की क्षति होती है तथा थकावट हो जाती है।

3. योग्यता – किसी भी कार्य को कशलता से करने के सामर्थ्य को योग्यता कहते हैं। जैसे कुशल गृहिणी रोटी को पूरी तरह गोल बना लेती है। यह योग्यता अभ्यास द्वारा प्राप्त की जाती है। योग्यता भी मानवीय संसाधन है।

4. अभिरुचि – यह मनः स्थिति है जो हमें किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करती है या रोकती है। कई बार कई कार्य करने से हमें आनन्द मिलता है तथा जोश पूर्ण होता है। इसी प्रकार कई बार कार्य करते हुए हम बोरियत महसूस करते हैं।

प्रश्न 17.
कार्य सरलीकरण के तीन सिद्धान्त बताएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 14 का उत्तर।

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प्रश्न 18.
शक्ति प्रबन्ध से आप क्या समझते हैं ? शक्ति प्रबन्ध का मुख्य उद्देश्य क्या है ?

उत्तर :
देखें प्रश्न 11 का उत्तर।

प्रश्न 19.
शारीरिक थकान क्या होती है ? यह कैसे दूर की जा सकती है ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 12, 13 का उत्तर।

एक शब्द/एक वाक्य वाले प्रश्न –

(क) एक शब्द में उत्तर दें –

प्रश्न 1.
संसाधन कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
दो।

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प्रश्न 2.
भूमि कैसा संसाधन है ?
उत्तर :
मानवेतर।

प्रश्न 3.
ज्ञान कैसा संसाधन है ?
उत्तर :
मानवीय।

प्रश्न 4.
कौन-सा संसाधन सभी के पास एक जैसा होता है ?
उत्तर :
समय।

प्रश्न 5.
कपड़े धोने के लिए ऊर्जा, कौशल के इलावा कौन-सा संसाधन चाहिए ?
उत्तर :
समय।

प्रश्न 6.
एक भौतिक साधन का उदाहरण दें।
उत्तर :
धन।

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प्रश्न 7.
निपुणता कैसा संसाधन है ?
उत्तर :
मानवीय।

प्रश्न 8.
थकान कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर :
दो।

प्रश्न 9.
सभी के पास कितना समय है ?
उत्तर :
24 घण्टे प्रतिदिन।

प्रश्न 10.
अस्पताल, स्कूल कैसी सुविधा है ?
उत्तर :
सामुदायिक सुविधाएं।

(ख) रिक्त स्थान भरो –

1. ज्ञान ………… संसाधन है।
2. ………… भौतिक वस्तु है।
3. कार्य किसी ………….. की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
4. कार्य सरलीकरण द्वारा हम ………… और ………….. की बचत कर सकते हैं।
5. अनुभव से …………… प्राप्त होता है।
उत्तर :
1. मानवीय
2. धन
3. उद्देश्य
4. समय, शक्ति
5. ज्ञान।

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(ग) निम्न में ठीक अथवा गलत बताएं –

1. थकान मानसिक तथा शारीरिक होती हैं।
2. रसोईघर के समीप ही पानी होना चाहिए।
3. आराम करके हम ऊर्जा का पुन: संचार करते हैं।
4. सभी संसाधन सीमित हैं।
उत्तर :
1. ठीक
2. ठीक
3. ठीक
4. ठीक

बहु-विकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
संसाधन कितने प्रकार के होते हैं ?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार।
उत्तर :
दो।

प्रश्न 2.
हर व्यक्ति के जीवन में कोई-न-कोई ………. होता है
(A) संसाधन
(B) लक्ष्य
(C) ऊर्जा
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर :
लक्ष्य।

प्रश्न 3.
हमारे पास दिन में कितने घण्टे होते हैं ?
(A) 8
(B) 12
(C) 24
(D) 16.
उत्तर :
24.

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प्रश्न 4.
निम्न में मानवीय संसाधन है –
(A) समय
(B) कम्प्यू टर
(C) पुस्तकें
(D) ज्ञान।
उत्तर :
ज्ञान।

प्रश्न 5.
घर पर रेडियो सुनने के लिए निम्न संसाधन चाहिए
(A) समय
(B) धन
(C) भूमि
(D) कौशल।
उत्तर :
समय।

प्रश्न 6.
सामुदायिक सुविधाएं हैं –
(A) अस्पताल
(B) स्कूल
(C) पार्क
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर :
उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 7.
थकान के प्रकार हैं –
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार।
उत्तर :
दो।

प्रश्न 8.
कार्य के सरलीकरण के विभिन्न तरीकों को एम० एच० मण्डल ने कितने वर्गों में बांटा है ?
(A) एक
(B) तीन
(C) पांच
(D) छः।
उत्तर :
पांच।

प्रश्न 9.
किस साधन के प्रयोग से हम लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं ?
(A) ऊर्जा
(B) कौशल एवं योजना
(C) ज्ञान
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

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प्रश्न 10.
कार्य किसी ………… की पूर्ति के लिए किया जाता है –
(A) उद्देश्य
(B) मूल्य
(C) ऊर्जा
(D) समय।
उत्तर :
उद्देश्य।

प्रश्न 11.
संसाधन कितने प्रकार के होते हैं ?
(A) चार
(B) तीन
(C) दो
(D) पांच।
उत्तर :
दो।

प्रश्न 12.
कौन-सा मानवीय साधन का उदाहरण नहीं है ?
(A) ऊर्जा
(B) समय
(C) ज्ञान
(D) भौतिक वस्तुएँ।
उत्तर :
भौतिक वस्तुएँ।

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प्रश्न 13.
कार्य सरलीकरण के द्वारा हम ………. की बचत कर सकते हैं –
(A) समय
(B) शक्ति
(C) समय और शक्ति
(D) धन।
उत्तर :
समय और शक्ति।

प्रश्न 14.
आराम करके हम ………. का पुनः संचार कर सकते हैं –
(A) ऊर्जा
(B) समय
(C) बुद्धि
(D) धन।
उत्तर :
ऊर्जा।

प्रश्न 15.
एक ऐसे साधन का नाम बताओ जो हर एक व्यक्ति के पास समान मात्रा में उपलब्ध है –
(A) धन
(B) समय
(C) ऊर्जा
(D) ज्ञान।
उत्तर :
समय।

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प्रश्न 16.
किस साधन के प्रयोग से हम धन कमा सकते हैं ?
(A) ज्ञान
(B) कौशल एवं योग्यता
(C) ऊर्जा
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

प्रश्न 17.
समय और शक्ति के खर्च को कैसे कम किया जा सकता है।
(A) योजनाबद्ध ढंग से
(B) धीरे-धीरे काम करके
(C) आराम करके
(D) सो कर।
उत्तर :
योजनाबद्ध ढंग से।

प्रश्न 18.
ऐसा कौन-सा साधन है जिसका प्रयोग कोई अन्य व्यक्ति नहीं कर सकता ?
(A) ज्ञान
(B) धन
(C) जायदाद
(D) सार्वजनिक सुविधाएं।
उत्तर :
ज्ञान।

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प्रश्न 19.
कपड़े धोने में किस साधन का प्रयोग होता है ?
(A) समय
(B) ऊर्जा
(C) कौशल
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

प्रश्न 20.
पार्क व डाक-तार सेवा परिवार के किन संसाधनों के अन्तर्गत आते हैं ?
(A) भौतिक साधन
(B) मानवीय साधन
(C) मानवीय और भौतिक साधन
(D) कोई भी नहीं।
उत्तर :
भौतिक साधन।

प्रश्न 21.
ज्ञान प्राप्ति किन साधनों द्वारा की जा सकती है ?
(A) शिक्षा
(B) अनुभव
(C) किताबें और पत्रिकाएँ
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

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प्रश्न 22.
संसाधनों के दो प्रकार निम्न में से कौन-कौन-से हैं ?
(A) मानवीय व समय
(B) मानवीय व अमानवीय ।
(C) भौतिक व धन
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर :
मानवीय व अमानवीय।

प्रश्न 23.
कौन-सा मानवीय संसाधन का उदाहरण नहीं है ?
(A) समय
(B) ज्ञान
(C) ऊर्जा
(D) घरेलू उपाय।
उत्तर :
घरेलू उपाय।

प्रश्न 24.
निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है ?
(A) सभी साधन उपयोगी होते हैं
(B) सभी साधनों के प्रयोग से लक्ष्यों की प्राप्ति होती है
(C) सभी साधन सीमित होते हैं
(D) संसाधन परस्पर सम्बन्धित नहीं होते।
उत्तर :
संसाधन परस्पर सम्बन्धित नहीं होते।

प्रश्न 25.
निम्नलिखित में से कौन-सा मानवीय संसाधन का उदाहरण नहीं है ?
(A) समय
(B) ऊर्जा
(C) ज्ञान
(D) धन।
उत्तर :
धन।

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प्रश्न 26.
कपड़े धोने में किस संसाधन की आवश्यकता नहीं होती ?
(A) समय
(B) ऊर्जा
(C) कौशल
(D) सार्वजनिक सुविधाएँ।
उत्तर :
सार्वजनिक सुविधाएँ।

प्रश्न 27.
निम्नलिखित में से कौन-सा मानवीय संसाधन का उदाहरण है ?
(A) धन
(B) भूमि (जायदाद)
(C) सामुदायिक सुविधाएँ
(D) ज्ञान।
उत्तर :
ज्ञान।

प्रश्न 28.
मानवीय संसाधन व्यक्तियों की……..क्षमताएं तथा विशेषताएँ होती हैं।
(A) व्यक्तिगत
(B) सामूहिक
(C) मानसिक
(D) इनमें से कोई भी नहीं।
उत्तर :
व्यक्तिगत।

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प्रश्न 29.
………………….. भौतिक संसाधन नहीं है।
(A) ऊर्जा
(B) भूमि
(C) धन
(D) सामुदायिक वस्तुएं।
उत्तर :
ऊर्जा।

प्रश्न 30.
ज्ञान की प्राप्ति किन साधनों द्वारा की जा सकती है ?
(A) शिक्षा
(B) अनुभव
(C) किताब व पत्रिकाएं
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

परिवार के संसाधन HBSE 10th Class Home Science Notes

ध्यानार्थ तथ्य :

→ हर किसी के जीवन का कोई न कोई लक्ष्य (aim) होता है।

→ व्यक्ति अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने का निरन्तर प्रयास करता है।

→ अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कई चीजों की आवश्यकता होती है।

→ लक्ष्य प्राप्ति में प्रयुक्त सभी चीज़ों को संसाधन कहते हैं।

→ संसाधन दो प्रकार के होते हैं-मानवीय व मानवेतर।

→ मानवीय संसाधन व्यक्तियों की व्यक्तिगत क्षमताएँ तथा विशेषताएँ होती हैं। अर्थात् वह व्यक्ति विशेष का अपना अंश होते हैं तथा उनका प्रयोग केवल वही व्यक्ति कर सकता है।

→ मानवीय संसाधनों के उदाहरण हैं-ऊर्जा (Energy), समय (Time), ज्ञान (Knowledge) तथा कौशल व योग्यताएँ (Skills and abilities)।

→ मानवेतर संसाधन वे होते हैं जो हर किसी के प्रयोग के लिए उपलब्ध होते हैं जैसे-धन।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 4 परिवार के संसाधन

→ मानवेतर संसाधनों के उदाहरण हैं –

  • भूमि (land)
  • धन (money)
  • भौतिक वस्तुएँ
  • सामुदायिक सुविधाएँ (Community Facilities)

→ ऊर्जा-हर काम को करने के लिए हमें ऊर्जा चाहिए। बिना ऊर्जा के कार्य करना असम्भव है।

→ जब हम कार्य करने के पश्चात् थक जाते हैं तो इसका अर्थ है कि हमारी ऊर्जा खत्म हो गई है।

→ आराम करके हम ऊर्जा का पुनः संचार करते हैं। ऊर्जा बचा कर नहीं रखी जा सकती है।

→ समय-हमारे पास दिन के केवल 24 घण्टे ही हैं। अतः समय का सदुपयोग करना आवश्यक है।

→ हम एक दिन में कितना काम करते हैं यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम समय का सदुपयोग कितना करते हैं।

→ ऊर्जा की तरह समय को भी बचाकर नहीं रखा जा सकता।

→ ज्ञान-जीवन में अनेक चीजों का ज्ञान प्राप्त करना अति आवश्यक है।

→ ज्ञान द्वारा ही हम अपने सभी कामों को कर सकते हैं। यह एक ऐसा संसाधन है जिसे आप बांट तो सकते हैं परन्तु अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए केवल आप ही इसका उपयोग कर सकते हैं।

→ कौशल व योग्यताएँ – यह भी व्यक्ति विशेष का अपना अंश है और व्यक्ति स्वयं ही उनका प्रयोग कर सकता है।

→ कोई व्यक्ति कौशल सीख सकता है और निरन्तर अभ्यास द्वारा उसे सुधार भी सकता है।

→ कोई भी कौशल सीखने के पश्चात् व्यक्ति ही उसका इस्तेमाल कर सकता है।

→ कौशल द्वारा हम धन की बचत कर सकते हैं।

→ धन-यह एक ऐसा संसाधन है जिसे हम तब इस्तेमाल करते हैं जब हमारा लक्ष्य है कुछ खरीदना। इसके अलावा हम इस संसाधन को दूसरे को भी प्रयोग करने के लिए दे सकते हैं।

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→ संसाधन के रूप में धन सीमित है। अतः असीमित आवश्यकताओं को सीमित धन से पूरा करना पड़ता है।

→ भूमि-भूमि का प्रयोग अनेक प्रकार से कर सकते हैं जैसे मकान बनाना, सब्जियाँ उगाना आदि। यदि आवश्यकता हो तो उसे बेचकर धन कमाया जा सकता है।

→ भौतिक वस्तुएँ-इसका अर्थ है वे चीजें जिनका हम दैनिक जीवन में प्रयोग करते हैं। जैसे-मेज, चारपाई आदि। इन चीज़ों के इस्तेमाल से हमारा काम आसान हो जाता है।

→ सामुदायिक सुविधाएँ-ये सुविधाएँ समुदाय या सरकार द्वारा दी जाती हैं। इन्हें सार्वजनिक प्रयोग में लाया जाता है। जैसे-~~पार्क, स्कूल, अस्पताल, खेल का मैदान आदि।

→ सभी संसाधन उपयोगी हैं-चूंकि सभी संसाधन हमें अपना लक्ष्य प्राप्त कराने में मदद करते हैं अत: यह सभी उपयोगी हैं। ये हमारी लक्ष्य प्राप्ति के सहायक हैं और हमें इन्हें बर्बाद नहीं करना चाहिए।

→ सभी संसाधन सीमित हैं-हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जो संसाधन उपलब्ध हैं वे सभी सीमित हैं। सीमित संसाधनों को असीमित आवश्यकताओं को पूरा करना पड़ता है अतः इनका प्रयोग बड़े ध्यान से करना चाहिए।

→ सभी संसाधनों का परस्पर अर्थात् आपस में सम्बन्ध होता है- इसका अर्थ है कि संसाधन एक-दूसरे से जुड़े हैं। जैसे यदि गृहिणी के पास धन, समय और ऊर्जा तो है खाना पकाने के लिए, पर कौशल नहीं है तो वह खाना नहीं पका सकती। अतः संसाधन इस तरह आपस में जुड़े हैं कि एक के बिना दूसरे का कोई आस्तित्व नहीं है।

→ जैसा कि हम जानते हैं कि संसाधन सीमित होते हैं अत: आपको यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि कोई संसाधन बेकार न जाए चाहे फिर व मानवीय है या मानवेतर। आप संसाधनों का तभी अधिक-से-अधिक प्रयोग कर सकते हैं जब आप उन्हें बर्बादी से बचाएंगे।

→ परिवार के उद्देश्यों तथा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपलब्ध साधनों की सहायता ली जाती है।

→ पारिवारिक साधनों को दो भागों में बांटा गया है –

  • मानवीय साधन
  • भौतिक साधन।

→ कार्य करने की कुशलता, ज्ञान, शक्ति, समय, दिलचस्पी, मनोवृत्ति तथा रुचियां आदि मानवीय साधन हैं।

→ धन, सामान, जायदाद, सुविधाएं आदि गैर-मानवीय अथवा भौतिक साधन हैं।

→ समय ऐसा साधन है जो सभी के लिए बराबर होता है।

→ समय को तीन भागों में बांटा जा सकता है-कार्य, विश्राम, नींद आदि।

→ विभिन्न व्यक्तियों में शक्ति भी अलग-अलग होती है तथा एक ही व्यक्ति में सारी उम्र एक जैसी शक्ति नहीं रहती।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 4 परिवार के संसाधन

→ जब किसी कार्य को करने के लिए समय तथा शक्ति का प्रयोग किया जाता है तो थकावट अनुभव होती है।

→ परिवार का आकार तथा रचना, जीवन स्तर, घर की स्थिति, आर्थिक स्थिति, परिवार के सदस्यों की शिक्षा, गृह निर्माता की कुशलता तथा योग्यताएं, ऋतु बदलने से कार्य आदि पारिवारिक साधनों को प्रभावित करने वाले तत्त्व हैं।

→ योजनाबद्ध तरीके से कार्य करके समय तथा शक्ति के खर्च को कम किया जा सकता है।

→ रोज़ाना कार्यों के अतिरिक्त साप्ताहिक तथा वार्षिक कार्यों की भी योजना बनानी चाहिए।

→ यदि घर की आय के साधन ठीक हों तो घर के कार्य बाहर से करवाकर भी समय तथा शक्ति का बचाव किया जा सकता है।

→ जब किसी योजनाबद्ध तरीके से कार्य किया जाता है तो कुछ देर पश्चात् पता लग जाता है कि नियत लक्ष्यों की पूर्ति हो रही है अथवा नहीं।

→ यदि उद्देश्यों की पूर्ति न हो रही हो तो अपनी योजना में परिवर्तन कर लेना चाहिए ताकि आगे के लिए उद्देश्यों की पूर्ति हो सके।

→ ठीक निर्णय लिए जाएं तो कार्य अच्छी तरह तथा आसानी से हो जाते हैं।

→ घर का प्रबन्धक अथवा गृहिणी सोच-समझकर निर्णय न करे तो घर अस्त-व्यस्त हो जाता है।

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HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल

Haryana State Board HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल

अति लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
खेल के मापदण्ड क्या हैं?
उत्तर :
खेल एक –

  1. आनन्ददायक क्रिया है
  2. स्वतन्त्र क्रिया है
  3. आत्म-प्रेरित क्रिया है
  4. मानसिक प्रसन्नतादायिनी क्रिया है
  5. सद्गणों का विकास करने वाली क्रिया है।

प्रश्न 2.
खेल को प्रभावित करने वाले तत्त्व क्या हैं?
उत्तर :

  1. शारीरिक स्वास्थ्य
  2. आयु
  3. क्रियात्मक विकास
  4. लिंग भिन्नता
  5. बौद्धिक विकास
  6. मौसम
  7. अवकाश की अवधि
  8. खेल के साधन
  9. सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति
  10. खेल के साथी
  11. परम्परा
  12. वातावरण।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल

प्रश्न 3.
खेल की परिभाषा दीजिए।
उत्तर :
ग्यूलिक के अनुसार खेल की परिभाषा इस प्रकार दी गई है “जो कार्य हम अपनी इच्छा से स्वतन्त्र वातावरण में करते हैं वही खेल है।” थामसन के अनुसार, “खेल कुछ सुनिश्चित मूल प्रवृत्ति जन्य क्रियाओं को प्रकट करने की प्रवृत्ति है।”

प्रश्न 4.
बाल्य जीवन में खेल का क्या महत्त्व है?
उत्तर :
खेल का बाल्य जीवन में विशेष महत्त्व है। अभिभावकों की दृष्टि में खेलना समय को व्यर्थ गंवाना है। वे पढ़ने-लिखने और गृह-कार्य को महत्त्व देते हैं। बालक को खेल से दूर रखने से उसके शारीरिक और व्यक्तित्व का विकास ठीक से नहीं होता। इसलिए खेल और कार्य में सामान्य संतुलन होना चाहिए।

प्रश्न 5.
खेल कितने प्रकार के हैं? संक्षेप में लिखो।
उत्तर :

  1. साथियों की संख्या के आधार पर खेल तीन प्रकार के हैं –
    • समान्तर खेल
    • सहचरी खेल
    • सामूहिक खेल।
  2. घर के अन्दर खेले जाने वाले खेल-ताश, कैरम, लूडो, शतरंज, साँप-सीढ़ी आदि।
  3. घर के बाहर खेले जाने वाले खेल-क्रिकेट, फुटबाल, हॉकी, बैडमिंटन आदि।

प्रश्न 5.
(A) बच्चों के खेल कितने प्रकार के होते हैं ?
(B) घर में तथा घर से बाहर खेले जाने वाले दो-दो खेलों के बारे में लिखो।
(C) खेल कितने प्रकार के होते हैं ? प्रत्येक के दो-दो उदाहरण दीजिए ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 5 का उत्तर।

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प्रश्न 6.
खेल क्या है?
उत्तर :
खेल कोई भी ऐसी क्रिया है जिससे बच्चा आनन्द व सन्तोष प्राप्त करता है। बच्चा इसे स्वयं शुरू करता है। यह बच्चे पर थोपी नहीं जाती। जो चीज़ उसे पसन्द आ जाए वह उसकी खेल सामग्री बन जाती है अतः खेल अनायास, स्वाभाविक और आमतौर पर बिना किसी उद्देश्य के होता है। खेल बच्चे के लिए मज़ा है।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित क्रियाओं में से जो खेल हैं उन पर (✓) का चिह्न लगाएँ।
(i) मां द्वारा बच्चे से ज़बरदस्ती ढोलक बजवाना
(ii) बच्चे द्वारा गीली मिट्टी से चपाती बनाना
(iii) बच्चे द्वारा रेत के ढेर पर बैठकर घर बनाना
(iv) मां द्वारा बच्चे को कहा जाना कि वह सिर्फ ब्लाक्स से ही खेल सकता है
उत्तर :
(i) ✗ (ii) ✓ (iii) ✓ (iv) ✗

प्रश्न 8.
मनोरंजन के विभिन्न साधनों के नाम लिखो।
उत्तर :
मनोरंजन के विभिन्न साधन निम्नलिखित हैं –

  1. शिशु कविताएँ
  2. शिशु गीत
  3. लोरी
  4. कहानियाँ
  5. बालक साहित्य
  6. बाल-फिल्म
  7. खिलौने
  8. रेडियो
  9. टेलीविज़न
  10. संगीत
  11. खेल।

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प्रश्न 9.
खेल चिकित्सा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
चिकित्सा की दृष्टि से भी बालकों के जीवन में खेल का महत्त्व है। इनके द्वारा बालकों की समस्या का पता लगाकर समाधान किया जाता है।

प्रश्न 10.
बच्चे के जीवन में खेल के दो शारीरिक महत्त्व लिखें।
उत्तर :
1. तनाव व चिड़चिड़ापन दूर होता है।
2. बालक की मांसपेशियां सुचारू रूप से विकसित होती हैं।

प्रश्न 11.
बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है, क्या उसके खेल में अन्तर आता है ?
उत्तर :
आयु बढ़ने के साथ खेल क्रियाएँ कम होती हैं।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल

प्रश्न 12.
घर से बाहर खेले जाने वाले खेल कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
फुटबाल, हॉकी, क्रिकेट, बैंडमिंटन आदि।

लघ उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
बच्चों के मनोरंजन के विभिन्न साधन कौन-से हैं?
उत्तर :
बच्चों के मनोरंजन के विभिन्न साधन निम्नलिखित हैं
1. शिशु गीत – बच्चा नर्सरी गीतों को बहुत शीघ्र सीखता है और याद कर के सुनाता है।
2. लोरी – बच्चा जब रात्रि को सोते समय नखरा करता है, तो मां उसे लोरी सना कर सुलाती है। मां द्वारा गाई लोरी सुनकर बच्चे शीघ्र सो जाते हैं।
3. कहानी – बच्चा कहानी बड़े शौक से सुनता है। कहानियों का बच्चे के विकास पर गहरा प्रभाव पड़ता है, अत: बच्चे को जो भी कहानियां सुनाई जाएं, वे डरावनी न हों बल्कि शिक्षाप्रद हों।
4. बाल साहित्य – बच्चा जब थोड़ा बड़ा होकर पढ़ने की स्थिति में आता है तब बाल साहित्य उसके मनोरंजन का साधन होता है। बाल साहित्य का चयन करते समय बालक के शारीरिक विकास का ध्यान रखना चाहिए। महापुरुषों की कहानियाँ, जीव-जन्तु, पेड़-पौधों के बारे में तथा सांसारिक वस्तुओं की जानकारी देने वाला साहित्य होना चाहिए। साहित्य यदि चित्रों के रूप में हो, तो सोने पे सुहागा होता है।
5. खिलौने – खिलौनों से बच्चा शैक्षिक ज्ञान प्राप्त करता है। उसकी कल्पना शक्ति तथा विचार शक्ति में वृद्धि होती है।

प्रश्न 2.
बालकों के कार्य और खेल में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कार्य और खेल में निम्नलिखित अन्तर हैं –

बालकों के कार्यबालकों के खेल
1. कार्य किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है।1. खेल में किसी प्रकार का लक्ष्य नहीं रहता है।
2. कार्य में समय का बन्धन रहता है।2. खेल में स्वतन्त्रता रहती है।
3. कार्य प्रारम्भ से ही नियमबद्ध होते है।3. प्रारम्भिक अवस्था में खेल नियमबद्ध नहीं होते।
4. कार्य के सम्पन्न होने पर ही आनन्द की प्राप्ति होती है।4. खेल में खेलते समय ही आनन्द की प्राप्ति होती है, बाद में नहीं।
5. कार्य में वास्तविकता रहती है।5. खेल काल्पनिक होते हैं।
6. कार्य से अपेक्षित विकास होना आवश्यक विकास नहीं है।6. खेल से शारीरिक तथा मानसिक होता है।
7. कार्य में मस्तिष्क का नियन्त्रण आवश्यक होता है। सही रूप दिया जा सकता है।7. खेल में मस्तिष्क के नियंत्रण की इसी के आधार पर कार्य को अधिक आवश्यकता नहीं होती।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल

प्रश्न 3.
मनोरंजन का बालक के सामाजिक विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :
बालक को मनोरंजन की जितनी अधिक सुविधाएं प्राप्त होती हैं, उतना ही अधिक वह घूमने-फिरने, खेल-तमाशों और मित्रों के साथ व्यस्त रहता है। इस प्रकार सुविधाएँ अधिक प्राप्त होने पर बालक का स्वभाव हँसमुख प्रकार का हो जाता है। अपने इस स्वभाव के कारण उसे सामाजिक परिस्थितियों में सफल समायोजन करने में सहायता मिलती है। फलस्वरूप उसका सामाजिक विकास शीघ्र होता है। मनोरंजन के साधनों और अवसरों की बहुलता से बालक में समाज विरोधी व्यवहार के उत्पन्न होने की भी सम्भावना कम होती है। मनोरंजन की सुविधाओं के फलस्वरूप उसमें सामाजिक विकास सामान्य ढंग से होता है और सामाजिक प्रत्याशाओं के अनुरूप होता है।

प्रश्न 4.
बच्चों के खिलौनों के चयन में ध्यान रखने योग्य बातें बताइए।
अथवा
बच्चों के लिए खिलौने कैसे होने चाहिए ?
अथवा
बच्चों के खिलौनों के चयन में ध्यान रखने योग्य छ: बातें बताएं।
उत्तर :
बच्चों के लिए खिलौनों का चयन निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखकर करना चाहिए

  1. बच्चों के खिलौने उनकी आयु के अनुरूप होने चाहिएं।
  2. बच्चों के लिए बहुत महंगे खिलौने नहीं खरीदने चाहिएं।
  3. बच्चों के खिलौने बहुत बड़े व वज़न वाले नहीं होने चाहिएं।
  4. बच्चों के लिए खिलौने बहुत छोटे भी नहीं होने चाहिएं।
  5. खिलौने उत्तम धातु या सामग्री के बने होने चाहिएं।
  6. खिलौने शीघ्र टूटने वाले नहीं होने चाहिएं।
  7. खिलौने का रंग पक्का होना चाहिए।
  8. खिलौने धुल सकने वाले होने चाहिएं।
  9. खिलौने आकर्षक, सुन्दर व सुन्दर रंग के होने चाहिएं।
  10. खिलौने सुन्दर आकार, आकृति और स्वाभाविक एवं प्राकृतिक होने चाहिएं।
  11. खिलौने बच्चों के लिए सुरक्षित होने चाहिएं।
  12. खिलौने शिक्षाप्रद व ज्ञान अर्जन में सहायक होने चाहिएं।
  13. खिलौने मनोरंजन करने वाले होने चाहिएं।
  14. खिलौने ऐसे होने चाहिएं कि बच्चे आत्म-निर्भर बन सकें।
  15. खिलौने शारीरिक सन्तुलन व शारीरिक वृद्धि में सहायक होने चाहिएं।

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प्रश्न 5.
दैहिक दृष्टि से खेलों का क्या महत्त्व है?
अथवा आमोद-प्रमोद का शारीरिक विकास में क्या महत्त्व है?
उत्तर :
दैहिक दृष्टि से खेलों का महत्त्व –

  1. खेल से बालक का तनाव व चिड़चिड़ापन दूर होता है।
  2. खेल से बालक की मांसपेशियां सुचारु रूप से विकसित होती हैं।
  3. बालक की देह के सभी अवयवों का व्यायाम हो जाता है।
  4. आयु के साथ-साथ बालकों में वाद-विवाद, प्रतियोगिता, दूरदर्शन, चलचित्र निरीक्षण आदि में अभिव्यक्त होने लग जाती है। अभिभावकों के विपरीत होने पर उनके बालक भी विपरीत होंगे। वे अपनी दैहिक क्रियाओं को नहीं रोक पाएंगे।

प्रश्न 6.
नैतिक दृष्टि से खेल का क्या महत्त्व है?
अथवा
नैतिक दृष्टि से खेल के द्वारा बच्चों में किन-किन गुणों का विकास होता है ?
उत्तर :
नैतिक दृष्टि से खेल का महत्त्व इस प्रकार है –

  1. बालक में खेल के द्वारा सहनशीलता की भावना का भी विकास होता है।
  2. समुदाय के साथ खेलते हुए बालक आत्म-नियंत्रण, ईमानदारी, सत्य-भाषण, निष्पक्षता व सहयोगादि के गुणों को धारण करता है।
  3. बालक खेल के द्वारा यह सीख जाता है कि एक अच्छा खिलाड़ी हार जाने पर भी उत्साहहीन नहीं होता है और न ही उसमें द्वेष की भावना पनप पाती है।

प्रश्न 7.
बच्चों के सामाजिक विकास में खेलों का क्या महत्त्व है?
अथवा
खेलों का सामाजिक विकास की दृष्टि से क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
बच्चों के सामाजिक विकास में खेलों का महत्त्व इस प्रकार है –

  1. बच्चे जब दूसरे बच्चों के साथ खेलते हैं तो वे सामाजिकता का पाठ सीखते हैं।
  2. खेलों के द्वारा बालक में सहनशीलता की भावना आ जाती है और वह दूसरे के अधिकारों का आदर करने लगता है।।
  3. एक-दूसरे के साथ खेलने से बालकों को बड़ों की तरह व्यवहार करना और उनका सम्मान करना भी आ जाता है।
  4. खेलों से बच्चों में स्नेह, प्यार, सहयोग, नियम, निष्ठता की भावना का विकास होता है।

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प्रश्न 8.
आयु के साथ खेल में क्या-क्या परिवर्तन आते हैं ?
उत्तर :
बच्चों के खेल उम्र के साथ बदल जाते हैं। 0-2 महीने के बच्चे अपने आप से खेलना पसंद करते हैं। अपने हाथ पैर चलाते हैं।
2 महीने से 2 वर्ष का बच्चा खिलौनों में दिलचस्पी लेता है। वह खिलौनों से खेलना पसन्द करता है और अकेले होने पर भी वह खिलौनों से खेल कर खुश होता है।
2 साल से 6 वर्ष तक के बच्चों के खेल में अनेक परिवर्तन आते हैं। 2 साल के बच्चे समूह में बैठ कर खेलते तो हैं पर समूह का हर एक बच्चा अपनी धुन में मस्त रहता है।
कुछ बड़े होने पर बच्चे समूह के अर्थ समझते हैं और सामूहिक खेल खेलना शुरू कर देते हैं। वह साथ में खेलते हैं और एक ही खिलौने से भी खेलते हैं। धीरे-धीरे बच्चे नियम वाले खेल खेलना सीख जाते हैं।

प्रश्न 9.
घर पर उपलब्ध सामग्री से खिलौने बनाना ज्यादा श्रेयस्कर क्यों है ?
उत्तर :
ऐसा इसलिए है क्योंकि घर की सामग्री से बने खिलौने सुरक्षित होते हैं। इसके अलावा घर का काफ़ी फालतू सामान जैसे बचा हुआ कपड़ा, माचिस की डिब्बी आदि प्रयोग में आ जाते हैं। इन खिलौनों से बच्चा जैसे चाहे खेल सकता है। चूंकि ये महंगे नहीं हैं अतः आप को बच्चे को बार-बार ध्यान नहीं दिलाना पड़ता है कि वह ध्यान से खेले। अत: इन खिलौनों से बच्चा अपनी इच्छानुसार खेल सकता है।

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प्रश्न 10.
खेल और कार्य में दो अन्तर बताएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 2 का उत्तर।

प्रश्न 11.
खेल और कार्य में तीन अन्तर बताएं।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 12.
खेल चिकित्सा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
खेल चिकित्सा का प्रयोग 3 से 11 वर्ष के बच्चों पर किया जाता है। इसमें बच्चा खेलते-खेलते अपने मनो भावों को दर्शाता है। अपने अनुभवों, संवेगों, भावनाओं का प्रदर्शन करता है जिससे मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञ बच्चे को समझता है तथा उसका इलाज करता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
खेल के मापदण्ड क्या हैं ?
उत्तर :
खेल के मापदण्ड निम्नलिखित हैं –
1. खेल एक आनन्ददायक क्रिया है – जिस क्रिया से व्यक्ति को आनन्द की प्राप्ति होती है, वह उसके लिए खेल हो जाती है। बच्चे जब जाग्रतावस्था में रहते हैं, तो सदैव ऐसी क्रियाओं में व्यस्त रहते हैं जिनसे उन्हें आनन्द की प्राप्ति होती है। जिस क्रिया में बच्चों को आनन्द की प्राप्ति नहीं होती बच्चे उसे करना ही नहीं चाहते। अतः जो क्रिया बच्चा आनन्द प्राप्ति के लिए करता है वह उसके लिए खेल है। इस प्रकार खेल एक आनन्ददायक क्रिया है।

2. खेल एक स्वतन्त्र क्रिया है – खेल में बच्चे बिल्कुल स्वतन्त्र होते हैं। बच्चा अपनी इच्छानुसार खेलता है। इस पर किसी तरह की बाहरी दबाव नहीं होता। ऐसा देखा जाता है कि बच्चे अपनी इच्छा से दिनभर उछलते-कूदते रहते हैं फिर भी थकते नहीं हैं, किन्तु उसी खेल के लिए उन्हें यदि बाहरी दबाव दिया जाए तो उन्हें तुरन्त थकावट आ जाती है जैसे बच्चे जब इच्छा से पढ़ने वाला खेल खेलते हैं तो दो-तीन घण्टे तक भी उस खेल में लगे रहने पर भी उन्हें थकावट नहीं आती, परन्तु जब उन्हें स्कूल का होम-वर्क करने को कहा जाता है या वे करते हैं, तो शीघ्र ही वे थकावट से घिर जाते हैं। अत: खेल में स्वतन्त्रता रहती है। यदि खेल में स्वतन्त्रता न रहे तो वह खेल, खेल न होकर काम हो जाता है।

3. खेल एक आत्म – प्रेरित क्रिया है-खेल व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है। इसमें किसी उद्देश्य प्राप्ति की इच्छा नहीं होती है। वह बिलकुल निरुद्देश्य होता है; जैसे-बच्चा जब खेल के मैदान में गेंद खेलने जाता है, तो उस समय उसका कोई उद्देश्य नहीं होता, बच्चा केवल आत्म-प्रेरित होकर ही गेंद खेलता है। ऐसे खेल को ही खेल कहेंगे। किन्तु जब बच्चे में यह भावना आ जाए कि खेल के मैदान में अपने प्रतियोगी को हराना है तो वह खेल-खेल नहीं रह जाता। इसमें उद्देश्य आ गया और कोई भी उद्देश्यपूर्ण कार्य खेल नहीं होता बल्कि कार्य हो जाता है। अत: वे सभी क्रियाएं खेल हैं जिन्हें बच्चे स्वतन्त्रतापूर्वक आत्म-प्रेरित होकर आनन्द प्राप्ति के लिए करते हैं।

4. खेल एक मानसिक प्रसन्नतादायिनी क्रिया है-बच्चे प्रायः जब भी खेलते हैं तो वे बड़े प्रसन्न होते हैं। प्राय: देखा गया है कि कुशाग्र बुद्धि एवं मानसिक रूप से स्वस्थ बालक खूब खेल खेलते हैं। वे प्रत्येक कार्य को खेल समझकर ही करते हैं।

5. खेल द्वारा सद्गुणों का विकास होता है-बच्चों की रुचि, चरित्र, ज़िम्मेदारी तथा मिल-जुलकर काम करने की भावना का विकास खेल के मैदान में ही होता है। जो बच्चा खेल के प्रति उदासीन रहता है, उसका मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य सन्तोषजनक नहीं होता।

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प्रश्न 1. (A)
खेल के तीन मापदण्ड बताएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 1 का उत्तर।

प्रश्न 2.
बालकों के खेल की विशेषताएं क्या हैं ?
अथवा
बालकों के खेल की किन्हीं तीन विशेषताओं के बारे में लिखें।
उत्तर :
अध्ययन के पश्चात् यह ज्ञात हुआ है कि बालक के खेलों की कुछ विशेषताएं होती हैं। बालक के खेल, युवा के खेलों से भिन्न होते हैं। बालकों के खेल की विशेषताएं निम्नलिखित हैं –
1. बालक अपनी इच्छानुसार खेलता है – छोटे बालकों के खेल में स्वतन्त्रता का अंश अधिक होता है। जब वह चाहता है, तब खेलता है। जहां चाहता है, वहां खेलता है। जो खिलौने उसे पसन्द आते हैं, उन्हीं से खेलता है। खेलने के लिए समय और स्थान का कोई बन्धन बालक को मान्य नहीं है। आयु वृद्धि के साथ-साथ बालकों के खेल में औपचारिकता का अंश बढ़ता जाता है।

2. खेल परम्परा से प्रभावित होते हैं – यह देखा जाता है कि बालक अधिकतर वही खेल खेलते हैं जो उनके परिवार में खेले जाते हैं । शतरंज, ताश, क्रिकेट, बास्केटबॉल आदि खेल-कूद के विषय में यही देखा जाता है।

3. खेलों का निश्चित प्रतिमान होता है-बालक की आयु, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, देश व वातावरण को देखकर हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि बालक कौन-कौन से खेल खेलता होगा। आयु के अनुसार तीन महीने का बालक वस्तुओं को छू-छू कर खेल का अनुभव करता है। एक साल का बालक खिलौने से खेलना प्रारम्भ करता है। सात-आठ साल तक अधिकतर बच्चे खिलौना पसन्द करते हैं। जब बालक स्कूल जाता है तो खेल-कूद में भाग लेना प्रारम्भ कर देता है। दस साल के बाद अधिकतर बालक दिवास्वप्न देखने शुरू कर देते हैं। अब वह अपना अधिक समय खेल-कूद में न बिताकर कहानियां पढ़ने, अकेले में दिवास्वप्न देखने में व्यतीत करते हैं।

4. खेल की क्रियाएं आयु के साथ घटती हैं-जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, बालक की खेलों के प्रति रुचि घटती जाती है।

5. आयु वृद्धि के साथ-साथ बालक खेल का समय घटाता जाता है क्योंकि खेल के अलावा वह अपना समय अन्य कामों में व्यतीत करता है।

6. बड़े होने पर बालक की रुचि किसी एक विशेष खेल में हो जाती है और उसी में वह अपना समय व्यतीत करता है।

7. आयु के साथ-साथ खेल के साथियों की संख्या भी कम होती जाती है।

8. पाँच-छ: साल की आयु के बाद बालक अपने ही लिंग के बच्चों के साथ खेलना पसन्द करता है।

9. जन्म से छ: सात वर्ष की आयु तक बालक के खेल अनौपचारिक होते हैं। बाद में वह केवल औपचारिक खेल खेलना पसन्द करते हैं।

10. बड़े हो जाने पर बालक सिर्फ वही खेल खेलना अधिक पसन्द करते हैं जिनमें शारीरिक शक्ति कम खर्च होती है।

11. बालक खेल में जोखिम उठाते हैं। पेड़ों पर चढ़ना, साइकिल चलाना, तैरना आदि ऐसे ही खेल हैं। जोखिम भरे खेलों में बालकों को आनन्द आता है।

12. खेलों में आवृत्ति का अंश रहता है। बालक किसी खेल को बार-बार खेलना चाहता है।

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प्रश्न 3.
खेल के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
अथवा
बालक के खेलों के प्रकार लिखिए।
अथवा
कार्ल ग्रूस व हरलॉक के अनुसार खेल के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
बच्चों के खेलों में व्यक्तिगत विभिन्नता पाई जाती है। इसी भिन्नता के आधार पर खेलों का वर्गीकरण इस प्रकार किया गया है

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उपर्युक्त खेलों के अतिरिक्त कार्लस ने खेलों को क्रमशः पाँच भागों में बांटा है –

  1. परीक्षणात्मक खेल-इन खेलों का मूल आधार जिज्ञासा है। बालक वस्तुओं को उलट-पुलट कर देखते हैं। खिलौने को तोड़कर फिर जोड़ते हैं।
  2. गतिशील खेल-इन खेलों की क्रिया में उछलना-कूदना, दौड़ना, घूमना आदि आता है।
  3. रचनात्मक खेल-इन खेलों में बच्चों की रचनात्मक प्रवृत्ति कार्य करती है। इसके अन्तर्गत ध्वंस तथा निर्माण दोनों ही प्रकार के खेल आते हैं।
  4. लड़ाई के खेल-यह खेल व्यक्तिगत एवं सामूहिक दोनों प्रकार के होते हैं। इसमें हार और जीत प्रकट करने वाले खेल होते हैं।
  5. बौद्धिक खेल-इसमें बुद्धि का विकास करने वाले खेल सम्मिलित हैं, जैसे पहेलियां, शतरंज, बॅनो, मल्टिइलेक्ट्रो खेल आदि।

हरलॉक के अनुसार, खेल को निम्नलिखित प्रकारों में बाँटा जा सकता है –

  1. बालकों के स्वतन्त्र तथा स्वप्रेरित खेल
  2. कल्पनात्मक खेल
  3. रचनात्मक खेल
  4. क्रीड़ाएं।

1. स्वप्रेरित खेल – प्रारम्भ में बालक जो खेल खेलता है वे स्वप्रेरित होते हैं। कुछ महीनों का बालक अपने हाथ-पैरों को हिला-डुलाकर खेलता है। तीन महीनों के बाद उसके हाथों में इतनी शक्ति आ जाती है कि वह खिलौनों से खेल सके।

2. कल्पनात्मक खेल – बालक के कल्पनात्मक अभिनय का विशिष्ट समय 11-2 वर्ष की अवस्था है। प्रमुख कल्पनात्मक खेलों में घर बनाना, उसे सजाना, भोजन बनाना और परोसना, माता-पिता के रूप में छोटे-बड़े बालकों का पालन-पोषण करना, वस्तुएं खरीदना तथा बेचना, मोटर-गाड़ी, नाव आदि की सवारी करना, पुलिस का अफसर बनकर चोरों को पकड़ने का अभिनय करना, शत्रु को जान से मार डालने तथा मरने का अभिनय करना, सैनिक खेल आदि आते हैं।

3. रचनात्मक खेल – वास्तविकता कम तथा कल्पना के अधिक अंश वाले बालकों में रचनात्मक खेलों की प्रवृत्ति नहीं मिलती। रचनात्मक खेलों में गीली मिट्टी तथा बालू से मकान बनाना, मनकों से माला बनाना, कागज़ को कैंची से काटकर अनेक वस्तुएं बनाना, बालिकाओं में गुड़िया बनाना, गुड़ियों के रंग-बिरंगे कपड़े सीना, रंगदार कागज़ से रंग-बिरंगे फूल बनाना आदि खेल आते हैं।

4. क्रीड़ाएं – बालक 4-5 वर्ष की आयु में अपने पास-पड़ोस के बालक-बालिकाओं के साथ अनेकों क्रीड़ाएं करता है, जैसे-आँख-मिचौली, राम-रावण, चोर-सिपाही आदि।

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प्रश्न 3A.
खेल कितने प्रकार के होते हैं ? उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्न।

प्रश्न 3B.
बौद्धिक खेलों से आप क्या समझते हैं ? इन खेलों के दो उदाहरण दें।
उत्तर :
देखें प्रश्न 3.

प्रश्न 4.
खेल का बालक के विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
अथवा
खेलों का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
खेल-खेल शब्द का इतना अधिक सामान्य-सा प्रचलन हो गया है कि यह अपनी वास्तविक महत्ता खो बैठा है। खेल का मतलब परिणाम की चिन्ता किए बिना आनन्ददायक क्रिया में संलग्न रहने से है। इसका सम्बन्ध कार्य से नहीं है। कार्य का अर्थ किसी उद्देश्य की पूर्ति करना है। खेल एक सरल क्रिया है। बालक का खेल के माध्यम से सामाजिक, संवेगात्मक, नैतिक, भाषा आदि का सर्वांगीण विकास होता है। बेलेन्टीन के अनुसार, “खेल एक प्रकार का मनोरंजन है।” खेल का महत्त्व अग्रलिखित है

1. खेल का सामाजिक महत्त्व – खेल के माध्यम से बालकों में पारस्परिक सम्पर्क स्थापित होता है तथा इस मधुर सम्पर्क के परिणामस्वरूप जातिगत भेद-भाव, ऊँच-नीच के विचार एवं आपसी संघर्षों की सम्भावना कम होने लगती है। खेल में सदैव ही सहयोग की आवश्यकता होती है। खेल के समय विकसित हुई सहयोग की यह भावना जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी विकसित हो जाती है। इसके अतिरिक्त खेल के ही माध्यम से विभिन्न सद्गुणों का विकास होता है तथा बालक सम्भवतः अनुशासन, नियम पालन, नेतृत्व तथा उत्तरदायित्व आदि के प्रति सजग हो जाते हैं। इन सब आदतों, सद्गुणों एवं भावनाओं का जहाँ एक ओर सामान्य जीवन में लाभ है, वहीं शिक्षा के क्षेत्र में भी इनसे पर्याप्त लाभ होता है।

2. खेल का मानसिक एवं बौद्धिक क्षेत्र में महत्त्व – प्रत्येक बालक के लिए उसका मानसिक एवं बौद्धिक विकास भी अत्यधिक आवश्यक होता है। खेल से इस विकास में विशेष योगदान प्राप्त होता है। खेल से विभिन्न मानसिक शक्तियों जैसे कि प्रत्यक्षीकरण, स्मरणशक्ति, कल्पना तथा संवेदना आदि का समुचित विकास होता है। खेल के ही माध्यम से कुछ ऐसी योग्यताओं एवं क्षमताओं का विकास होता है जो मानसिक सन्तुलन, नियन्त्रण तथा रचनात्मकता के विकास में सहायक होती हैं। खेल द्वारा ही बालकों की शब्दावली तथा भाषा का भी विकास होता है।

3. खेल द्वारा संवेगात्मक विकास – बालक के उचित संवेगात्मक विकास में भी खेल से समुचित योगदान मिलता है। खेल द्वारा बालक अपने संवेगों को स्थिरता प्रदान करके नियन्त्रित रूप में रख सकते हैं। खेलों में समुचित रुचि लेने से बालकों में पायी जाने वाली कायरता, चिड़चिड़ापन, लज्जाशीलता तथा वैमनस्य के भावों को समाप्त किया जा सकता है। कुछ बालक विभिन्न कारणों से यथार्थ जीवन से पलायन करके दिवास्वप्नों में खोये रहने लगते हैं। वह प्रवृत्ति भी खेलों में भाग लेने से समाप्त की जा सकती है। समुचित संवेगात्मक विकास के परिणामस्वरूप बालक शिक्षा में भी सही रूप से विकास कर सकते हैं।

4. शारीरिक विकास में खेलों का महत्त्व – यह एक निर्विवाद सत्य है कि प्रत्येक बालक का समुचित शारीरिक विकास होना अनिवार्य है। शारीरिक स्वास्थ्य का विशेष महत्त्व है। शारीरिक स्वास्थ्य के लिए नियमित रूप से खेलों में भाग लेना विशेष महत्त्व रखता है। खेलों से जहाँ स्वास्थ्य का विकास होता है, वहीं साथ ही साथ व्यक्ति में पर्यावरण के साथ अनकूलन की क्षमता बढ़ती है तथा रोगों से बचने की प्रतिरोधक शक्ति भी विकसित होती है।

5. व्यक्तित्व के विकास में खेलों का महत्त्व – व्यक्तित्व के समुचित विकास में भी खेलों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। खेलों के माध्यम से व्यक्ति के व्यक्तित्व सम्बन्धी विभिन्न गुणों का विकास होता है तथा व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास होता है।

6. खेलों का शैक्षिक महत्त्व – विभिन्न दृष्टिकोणों से खेल के शैक्षिक महत्त्व को भी स्वीकार किया गया है। शिक्षा के क्षेत्र में अनुशासन की गम्भीर एवं महत्त्वपूर्ण समस्या है। अब यह माना जाने लगा है कि यदि बालक की पाश्विक मूल प्रवृत्तियों का शोधन हो जाये, तो वह सामान्य रूप से अनुशासित रह सकता है तथा खेल के माध्यम से इस उद्देश्य में सफलता प्राप्त की जा सकती है। ऐसा देखा गया है कि बच्चे खेल के मैदान में आज्ञा-पालन

सरलता से कर लेते हैं। आज्ञा-पालन की यह आदत अन्य क्षेत्रों में भी प्रकट होने लगती है। शिक्षा के क्षेत्र में वास्तविक ज्ञान प्रयोग करके ही प्राप्त किया जा सकता है अर्थात् प्रयोगात्मक कार्य उत्तम समझा जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में खेल के समावेश से यह उद्देश्य पूरा हो जाता है। शिक्षा के पाठ्यक्रम के निर्धारण में भी खेल के महत्त्व को स्वीकार किया गया है। खेल से बालकों में स्वतन्त्रता, स्वाभाविकता तथा स्फूर्ति का संचार होता है।

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प्रश्न 4. (A)
बच्चों के जीवन में खेल की दो उपयोगिताएं बताएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 4 का उत्तर।

प्रश्न 5.
जन्म से छ: साल तक के बच्चों के लिये खेल की सामग्री का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
बालक के खेलों के लिए खिलौनों की आवश्यकता होती है। प्रत्येक आयु की अपनी-अपनी माँग होती है। बच्चों को वही खिलौने देने चाहिएं जो कि उनके लिए उपयोगी हों।

1. जन्म से एक वर्ष तक के बच्चों के खिलौने – तीन से नौ महीने के बालक में प्रवृत्ति होती है कि वह प्रत्येक वस्तु को अपने मुँह में रखता है। अत: उनके लिए ऐसे खिलौने होने चाहिएं जो नरम हों, रबर, स्पंज, कपड़े आदि के बने हों। यह ध्यान रखना चाहिए कि खिलौना गन्दा न हो, उस पर धूल-मिट्टी न लगी हो। खिलौने की बनावट ऐसी हो कि यदि बच्चा उसे मुंह में रखे तो उसे कोई चोट न आए और सरलता से मुंह में रख सके। इस आयु में बच्चों को ध्वनि अच्छी लगती है। अतः उसे ध्वनि करने वाले खिलौने जैसे झुनझुना, सीटी लगे रबर के खिलौने भी दिये जा सकते हैं।

2. एक से दो साल के बच्चों के खिलौने – ऐसे बच्चों को रबर, लकड़ी, प्लास्टिक आदि के बने खिलौने जैसे जानवर, ट्रेन, मोटर, हवाई जहाज़ आदि खेलने के लिए देना चाहिए जिससे उनके वातावरण का ज्ञान बढ़े। एक-दूसरे में फंसने वाले खिलौने भी देने चाहिएं जिससे उनके स्नायुओं का विकास होता है तथा रचनात्मक कार्यों से मानसिक विकास भी होता है। दो साल के बच्चे में नकल करने की प्रवृत्ति पायी जाती है। ऐसे बच्चों को गुड़िया आदि खेलने के लिए दिए जा सकते हैं।

3. तीन-चार साल के बच्चों के खिलौने – इस अवस्था में बच्चों को मोटर, ट्रेन, हेलीकॉप्टर आदि चाबी से चलने वाले खिलौने देने चाहिएं। खेल-कूद का सामान भी देना चाहिए, जैसे-गेंद, बल्ला आदि। इसके अलावा बिल्डिग ब्लॉक, मीनार बनाने का सामान, सीढ़ी बनाने का सामान आदि। इसके द्वारा बालक का मानसिक, गत्यात्मक विकास होता है। अब बच्चा रंग और माडलिंग में विशेष रुचि लेने लगता है। वह फर्श, दीवार पर लकीरें खींचता है। बालक को माडलिंग के लिए मिट्टी व प्लास्टीसीन देना चाहिए।

4. पाँच साल का बालक चित्र बनाने लगता है। उसे रंग दिए जा सकते हैं। वह कैंची से कागज़ काट सकता है।

5. छ: साल का बालक छोटे – छोटे खिलौने जैसे बर्तन, गुड़िया, इंजन, सोफा सैट आदि पसन्द करता है। बालक अब छोटे-छोटे ड्रामा भी खेलता है। इसलिए उसे ड्रामा से सम्बन्धित सामग्री प्रदान करनी चाहिए। घरेलू खेलों में बालक को लूडो, साँप-सीढ़ी आदि खेलने को देना चाहिए। इस समय बच्चा ट्राइसिकल व बाइसिकिल भी चलाना सीख जाता है। चाबी वाले बड़े खिलौने भी बालकों को पसन्द आते हैं।

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प्रश्न 6.
खेल के गुण उदाहरण सहित स्पष्ट करें।
उत्तर :
खेल के निम्नलिखित गुण हैं –
1. खेल बच्चों को आनन्दित करता है।
उदाहरण – बच्चा रसोई में जाता है और कटोरी, चम्मच उठाकर उन्हें बजाने लगता है। उसे ध्वनि सुनने में मजा आता है। अतः वह उसे बजाता ही जाता है। वह यह खेल इसीलिए खेल रहा है क्योंकि उसे मजा आ रहा है।

2. खेल एक स्वाभाविक क्रिया है।
उदाहरण – एक बच्ची अपनी गुड़िया से खेल रही है। वह गुड़िया को नहलाती है, उसके बाल संवारती है, उससे बातें करती है, एवम् उसे थपकियां देकर सुलाती है। यह सब कुछ स्वाभाविक है। कोई उसे गुड़िया से इस तरह खेलना नहीं सिखाता।

3. खेल गम्भीर होता है।
उदाहरण – बच्चा किताब लेकर पढ़ता है। हालांकि उसने किताब उल्टी पकड़ी होती है पर फिर भी वह उसे गम्भीरता से पढ़ता है व एक काल्पनिक कहानी भी गढ़ लेता है।

4. खेल जिज्ञासा से पूर्ण होता है।
उदाहरण – जब भी बच्चे को नया खिलौना दिया जाता है वह उसे जिज्ञासापूर्ण नज़रों से देखता है। फिर वह उसे उलट-पुलट कर देखेगा और कभी तो खोलकर उसे अन्दर लगे कल-पुर्जी के बारे में जानने की कोशिश करेगा क्योंकि उसके अन्दर नई चीज़ के बारे में जानने की जिज्ञासा होती है।

5. खेल शान्त या चंचल होता है।
उदाहरण – कभी बच्चा चुपचाप कमरे के एक कोने में बैठ जाता है और अपने हाथ में पकड़ी हुई चीज़ से खेलता है; जैसे ताला-चाबी। वह चाबी से ताले को खोलने की कोशिश करता है। इस तरह वह शान्ति से खेल रहा है।
कभी-कभी बच्चा चारपाई पर कूदता है और इस हलचल का आनन्द लेता है। इस खेल में चंचलता है।

प्रश्न 7.
नीचे दिए गए खेलों को खेल के गुणों के आधार पर वर्गीकृत कीजिए। वर्गीकरण के लिए निम्नलिखित चिन्हों का प्रयोग करें
स्वः स्वाभाविक
च : चंचल
ग : गम्भीर
नि: निरुद्देश्य जि: जिज्ञासापूर्ण शां: शान्त –
1. पार्क पहुँचने पर बच्चा भागने लगता है।
2. अपने कमरे में बैठकर बच्चा ताश से खेलता है।
3. बच्चा फुटबाल खेल रहा है।
4. फिसल पट्टी पर बार-बार चढ़कर फिसलता है।
5. एक गिलास से दूसरे गिलास में पानी पलटता है।
6. किताब के पन्ने पलटता है।
7. खिलौना तोड़कर उसके अन्दर देखता है।
8. गुड़िया के टुकड़े-टुकड़े कर देता है।
9. झुनझुना बजाता जाता है।
10.  निरन्तर कूदता रहता है।
उत्तर :
1. स्व. 2. शां. 3. चं. 4. नि. 5. नि. 6. जि. 7. जि. 8. नि. 9. ग. 10. ग.।

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प्रश्न 8.
खेलों का बच्चों के विकास पर क्या लाभप्रद प्रभाव पड़ता है ?
अथवा
खेल की क्या आवश्यकता है ?
अथवा
बच्चों के जीवन में खेल के कोई दो महत्त्व लिखें।
उत्तर :
खेल इसीलिए आवश्यक है क्योंकि वह बच्चे के विकास के सभी क्षेत्रों को प्रभावित करता है। जैसे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक।
1. शारीरिक विकास – खेल शरीर के विकास को प्रभावित करते हैं। खेल से बच्चे की सभी मांसपेशियों का व्यायाम होता है। खेल से हाथों व आंखों के समन्वय में ताल-मेल बैठाता है। बचा शरीर को सन्तुलित करना सीखता है। इसके अलावा खेलते समय बच्चे अपने शरीर की मांसपेशियों और गति पर नियन्त्रण पाना सीखते हैं।

2. मानसिक विकास – खेल द्वारा बच्चा अपने आस-पास की वस्तुओं के बारे में सब कुछ जान लेता है जैसे रंग, आकार इत्यादि। वह विभिन्न चीज़ों को देखता है, छूता है, अनुभव करता है, चखता है और इस तरह से उन्हें जान लेता है।

3. सामाजिक विकास – बच्चे खेल द्वारा ओर सामाजिक बनते हैं अर्थात् वह सामाजिक व्यवहार सीखते हैं जैसे अपनी चीजें दूसरों के साथ बांटना, अपनी बारी का इन्तज़ार करना, दोस्तों के साथ ताल-मेल बिठाना आदि। इसके अलावा खेल द्वारा बच्चे नकल से वयस्कों (adults) की भूमिकाएं सीखते हैं।

4. भावनात्मक विकास – बच्चे खेल द्वारा अपनी भावनाओं पर नियन्त्रण करना सीखते हैं। उन्हें अपने रोने, हंसने, चिल्लाने पर काबू करना आ जाता है। उन्हें यह समझ आ जाती है कि अपने मन के भावों को किस तरह बाहर लाना है और उनकी दूसरों के सामने अभिव्यक्ति कैसे करनी है।

5. नैतिक विकास – खेल द्वारा बच्चे अनेक नैतिकता की बातें सीखते हैं जैसे सच्चाई, ईमानदारी, गुस्सा न करना, झूठ न बोलना आदि।

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प्रश्न 9.
कॉलम ” में दिए गए कथनों को कॉलम ‘II’ के कथनों से मिलाएं।

कॉलम – Iकॉलम – II
1. खेल से बच्चे1. सामाजिक व्यवहार सीखते हैं।
2. समूह में खेलते हुए बच्चे2. के शरीर की सभी मांसपेशियों का व्यायाम होता है।
3. यदि बच्चा हम-उम्र बच्चों के साथ खेलना चाहता है तो3. तो वह आकार के विषय में जानता है
4. फुटबाल खेलते समय बच्चे4. अपने मन की भावनाएं बाहर निकालते हैं।
5. जब बच्चा डिब्बों को उनके आकार के अनुसार सहेजता है5. उसे समूह के नियमों का पालना करना होगा
6. उसे स्कूल में खेलना होगा।

उत्तर :

कॉलम – Iकॉलम – II
1. खेल से बच्चे4. अपने मन की भावनाएं बाहर निकालते हैं।
2. समूह में खेलते हुए बच्चे1. सामाजिक व्यवहार सीखते हैं।
3. यदि बच्चा हम-उम्र बच्चों के साथ खेलना चाहता है तो5. उसे समूह के नियमों का पालना करना होगा
4. फुटबाल खेलते समय बच्चे2. के शरीर की सभी मांसपेशियों का व्यायाम होता है।
5. जब बच्चा डिब्बों को उनके आकार के अनुसार सहेजता है3. तो वह आकार के विषय में जानता है

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल

प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से उन कथनों पर (✓) का निशान लगाएं जो खेल के कार्यों को दर्शाते हैं और उन पर (✗) का निशान लगाएं जो खेल के कार्यों को नहीं दर्शाते।
1. लम्बाई में बढ़ोत्तरी
2. गत्यात्मक नियन्त्रण
3. गुस्से पर नियन्त्रण
4. आसन सुधरता है
5. भाषा का विकास
6. गणित के सवाल हल करना
7. बेहतर निबन्ध लिख पाना
8. अपनी बारी का इन्तजार करना
9. आऊट दिए जाने पर बिना बहस किए चले जाना
10. गलती से गेंद लगने पर न चिल्लाना।
उत्तर :
(1), (4), (6), (7) ✗ का चिन्ह क्योंकि वे खेल कार्यों को नहीं दर्शाते। (2), (3), (5), (8), (9) (10) ✓ का चिन्ह क्योंकि वे खेल कार्यों को दर्शाते हैं।

प्रश्न 11.
खिलौने खरीदते वक्त आप किन-किन बातों का ध्यान रखेंगे जिनके आधार पर आप खिलौनों का चयन करेंगे ?
अथवा
बच्चों के खिलौनों का चयन करते समय आप किन बातों को ध्यान में रखेंगे ?
अथवा
खिलौनों का चुनाव करते समय आप किन-किन बातों का ध्यान रखोगे ?
उत्तर :
खिलौने खरीदते समय या उनका चयन करते समय हम अग्रलिखित बातों का ध्यान रखेंगे –

1. बच्चे की उम्र – खिलौनों का चयन करते समय बच्चे की आयु का ध्यान अवश्य रखें; जैसे बहुत छोटे बच्चे के लिए झुनझुना खरीदें क्योंकि उसे आवाज़ अच्छी लगती है। एक साल के बच्चे के लिए ऐसा खिलौना खरीदें जिसे रस्सी से खींचा जा सकता है इत्यादि।
2. खिलौने का सुरक्षित होना – जो खिलौने आप बच्चे के लिए ले रहे हैं वह सुरक्षित होने चाहिएं। वह खुरदरे या नोकीले नहीं होने चाहिएं। उन पर लगे रंग आई० एस० आई० प्रमाणित होने चाहिएं। घटिया रंग ज़हरीले होते हैं।
3. खिलौने टिकाऊ हों – जहां तक सम्भव हो नाजुक और कमज़ोर खिलौने न खरीदें। प्लास्टिक के खिलौनों की अपेक्षा लकड़ी व रबड़ के खिलौने ज्यादा चलते हैं।
4. खिलौने महंगे न हों – खिलौने महंगे न हों अन्यथा आप सारा समय बच्चे को ध्यान से खेलने की हिदायत देते रहेंगे। इससे बच्चा ठीक से खेल नहीं पाएगा और खिलौने से खेलना छोड़ देगा।
5. खिलौने आकर्षक हों – बच्चे का खिलौना खरीदते समय यह देख लें कि खिलौना देखने में आकर्षक हो। यदि बच्चे को खिलौने का रंग या आकार पसन्द नहीं आएगा तो वह उससे नहीं खेलेगा।

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प्रश्न 12.
बच्चों के लिए खेल का क्या महत्त्व है ?
अथवा
खेल बच्चों के लिए क्यों जरूरी है ?
उत्तर :

  1. खेलने से बच्चे का शारीरिक तथा मानसिक विकास अधिक होता है।
  2. खेल द्वारा बच्चा अपने साथियों के साथ मिल-जुल कर रहना सीखता है।
  3. खेलों द्वारा बच्चे जिन्दगी में जीत तथा हार को सहना सीखते हैं।
  4. खेलों द्वारा बच्चे की काल्पनिक शक्ति भी विकसित होती है।।
  5. खेलों में व्यस्त रहने के कारण बच्चा बुरे कार्यों से बचा रहता है।
  6. खेलों द्वारा बच्चे अपने जीवन में भिन्न-भिन्न भूमिकाएं निभाना सीखते हैं।

जैसे लड़कियां गुड़िया के खेल द्वारा एक माँ, बहन तथा दोस्त की भूमिका निभाना सीखती हैं। इसी तरह लड़के खेलों द्वारा डॉक्टर पुलिस, फौजी, व्यापारी आदि बनना सीखते हैं।

प्रश्न 13.
(क) बच्चों के लिए भिन्न-भिन्न खेलों के लिए खेल सामग्री का चुनाव करते समय कौन-सी बातों को ध्यान में रखना चाहिए ?
(ख) तीन वर्षीय बालिका की माता को सुरक्षित खिलौना खरीदने के लिए कौन-कौन सी बातों का निरीक्षण करना होगा ?
उत्तर :
(क) 1. आयु वर्ग (Age Group) – प्रत्येक आयु में बच्चे का शरीर तथा मानसिक विकास एक जैसा नहीं होता। इस लिए बच्चे के खिलौनों का चुनाव उनकी आयु को ध्यान में रख कर करना चाहिए जैसे बहुत छोटे बच्चे के लिए भार में हल्के तथा आवाज़ पैदा करने वाले खिलौने लेने चाहिएं। जब बच्चा चलने लग जाए तो उस को चाबी वाले खिलौने तथा चलने वाले खिलौने पसंद आते हैं। इस के बाद 2-3 साल वर्ष के बच्चों के लिए भिन्न-भिन्न ब्लाक्स (blocks) का चुनाव किया जाना चाहिए। आजकल बाजार में प्रत्येक आयु वर्ग के बच्चों के मानसिक तथा शारीरिक विकास को ध्यान में रखते हुए कई तरह के खिलौने तथा गेम्स मिलती हैं जैसे बिज़नस गेम, विडियो गेम, कैरम बोर्ड आदि। कोई भी खेल या खिलौना खरीदते समय बच्चे की आयु को ध्यान में रखना चाहिए।

2. रंगदार (Colourful) – बच्चों के खिलौने भिन्न-भिन्न रंगों तथा आकर्षक होने चाहिए। प्राय: बच्चों को तेज़ रंग जैसे लाल, पीला, नीला, संगतरी आदि पसंद होते हैं। परन्तु यह ध्यान में रखें कि खिलौनों के रंग पक्के हों क्योंकि बच्चे को प्रत्येक वस्तु मुंह में डालने की आदत होती है। यदि रंग घुलनशील हो, तो बच्चे को हानि पहुँच सकती है।

3. अच्छी गुणवत्ता (Good Quality) – प्रायः खिलौने रबड़ तथा प्लास्टिक के बने होते हैं। खिलौने खरीदने के समय यह देखना आवश्यक है कि बढ़िया रबड़ या प्लास्टिक का प्रयोग किया गया हो जो जल्दी टूट न सके। घटिया गुणवत्ता के खिलौने शीघ्र टूट जाते हैं तथा बच्चे टूटे-फूटे टुकड़े उठा कर मुंह में डाल सकता है। जो बच्चे के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकते हैं।

4. शिक्षात्मक (Educational) – खिलौने शिक्षात्मक होने चाहिए ताकि बच्चा उनके साथ खेलता हुआ कुछ ज्ञान भी प्राप्त कर सके क्योंकि बच्चा खेलों द्वारा अधिक सीखता है। भिन्न-भिन्न रंगों, आकारों तथा संख्या का ज्ञान बच्चे को आसानी से खिलौनों की सहायता के साथ दिया जा सकता है।

5. सफाई में आसानी (Easy to Learn) – खिलौने ऐसी सामग्री के बने हों जिन्हें सरलता के साथ साफ किया जा सके जैसे प्लास्टिक तथा सिंथैटिक खिलौने सरलता से साफ हो सकते हैं।

6. सुरक्षित सामग्री (Safe Material) – खिलौनों का सामान मज़बूत नर्म, रंगदार तथा भार में हल्का होना चाहिए। खिलौनों के भिन्न-भिन्न भाग ठीक ढंग से मज़बूती के साथ जुड़े हो। इनकी नुक्करें तेज़ न हों नहीं तो यह बच्चे को खेल के समय हानि पहुंचा सकती हैं।

7. लड़के तथा लड़कियों के खिलौने (Boys and Girls Toys) – खिलौने लड़के तथा लड़कियों के लिए भिन्न-भिन्न खरीदने चाहिएं। लड़कियां अधिकतर गुड़िया, घरेलू सामान तथा श्रृंगार के सामान से खेलना पसन्द करती हैं जबकि लड़के कारों, बसों, ट्रैक्टर, बैटबाल, फुटबाल आदि के साथ खेलना पसन्द करते हैं। खिलौनों का चुनाव बच्चे की आयु तथा लिंग को ध्यान में रख कर करना चाहिए।

8. खिलौनों की कीमत (Cost of Toys) – अधिक महंगे खिलौने नहीं खरीदने चाहिएं क्योंकि महंगे खिलौने टूट जाने पर माँ-बाप बच्चों को डांटते हैं पर बच्चा सदा ही अपने ढंग से खेलना चाहता है। इसलिए खिलौना इतना महंगा न हो कि खराब होने पर दु:ख हो।

9. संभालने का स्थान (Storage Space) – खिलौनों को संभालने के लिए व्यापक स्थान होना चाहिए ताकि उनको ठीक ढंग से रखा जा सके तथा खिलौने टूट-फूट से बच सकें। इसलिए हर नया खिलौना खरीदने से पहले उस को सम्भालने के स्थान को ध्यान में रखना आवश्यक है।

10. खिलौने बहुत अधिक न खरीदें (Not to Buy too Many Toys) – यदि घर में बहुत अधिक खिलौने हों, तो बच्चा किसी भी खिलौने का पूरा लाभ नहीं उठाता इसलिए बहुत अधिक खिलौने नहीं खरीदने चाहिएं।

बच्चों के खेलने के लिए कौन-से भिन्न-भिन्न किस्म के खिलौने होते हैं –

  1. रंगदार तथा आवाज़ करने वाले खिलौने
  2. चलने वाले खिलौने
  3. चाबी वाले खिलौने
  4. भिन्न-भिन्न तरह के ब्लाक्स
  5. घर में खेलने वाली खेलें जैसे लुडो, कैरम-बोर्ड, बिजनैस, वीडियो गेम आदि।
  6. विशेषतः लड़कियों के लिए किचन सैट, डरैसिंग सैट, डॉक्टर सैट, गुड़िया आदि।
  7. घर से बाहर खेलने वाली खेल जैसे बैडमिंटन, बैटबाल, हॉकी, फुटबाल, रस्सी कूदना आदि।

(ख) देखें प्रश्न (क) का उत्तर।

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एक शब्द/रक वाक्य वाले प्रश्न –

(क) एक शब्द में उत्तर दें –

प्रश्न 1.
साथियों की संख्या के आधार पर खेल कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
तीन।

प्रश्न 2.
किसके अनुसार खेल कुछ सुनिश्चित मूल प्रवृत्ति जन्य क्रियाओं को प्रकट करने की प्रवृत्ति है ?
उत्तर :
थॉमसन के अनुसार।

प्रश्न 3.
गुड़िया के टुकड़े-टुकड़े कर देना कैसा खेल है ?
उत्तर :
निरुद्देश्य खेल।

प्रश्न 4.
फुटबॉल खेलना कैसा खेल हैं ?
उत्तर :
चंचल खेल।

प्रश्न 5.
पार्क पहुँचने पर बच्चा भागने लगता है कैसा खेल है ?
उत्तर :
स्वभाविक खेल।

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प्रश्न 6.
शतरंज कैसा खेल है ?
उत्तर :
शान्त तथा दिमागी।

(ख) रिक्त स्थान भरो –

1. लूडो ………… खेल है।
2. खिलौना तोड़कर उसके अन्दर देखना ……… खेल है।
3. खेलों से बच्चों को ………… की प्राप्ति होती है।
4. शुरू में बालक ……… खेल खेलता है।
उत्तर :
1. घरेलू
2. जिज्ञासापूर्ण
3. आनन्द
4. स्वप्रेरित।

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(ग) निम्न में गलत अथवा ठीक बताएं –

1. खेल की क्रियाएं आयु के साथ घटती हैं।
2. समूह में खेलते हुए बच्चे संवेगात्मक व्यवहार सीखते है।
3. जो बच्चा खेल के प्रति उदासीन होता है। उसका मानसिक व शारीरिक विकास सन्तोषजनक नहीं होता।
4. खिलौनों का रंग पक्का होना चाहिए।
5. बच्चे का पतंग लेकर भागना खेल नहीं है।
उत्तर :
1. ठीक
2. ठीक
3. ठीक
4. ठीक
5. गलत।

बहु-विकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
घर के अन्दर खेले जाने वाला खेल नहीं है –
(A) हॉकी
(B) ताश
(C) शतरंज
(D) कैरम।
उत्तर :
हॉकी।

प्रश्न 2.
निम्न में खेल नहीं है –
(A) बच्चे द्वारा गीली मिट्टी से चपाती बनाना
(B) बच्चे द्वारा रेत के ढेर पर बैठकर घर बनाना
(C) माँ द्वारा बच्चे से जबरदस्ती ढोलक बजवाना
(D) बच्चे का पतंग लेकर भागना।
उत्तर :
माँ द्वारा बच्चे से जबरदस्ती ढोलक बजवाना।

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प्रश्न 3.
कार्लग्रूस ने खेलों को कितने भागों में बांटा है –
(A) एक
(B) तीन
(C) पांच
(D) सात।
उत्तर :
पांच।

प्रश्न 4.
निम्न में चंचल खेल है –
(A) पार्क में पहुँचने पर बच्चा भागने लगता है
(B) फुटबाल खेलना
(C) गुड़िया के टुकड़े-टुकड़े कर देता है
(D) खिलौना तोड़ कर उसके अन्दर देखता है।
उत्तर :
फुटबाल खेलना।

प्रश्न 5.
निम्न में खेल कार्य नहीं है
(A) गणित के सवाल हल करना
(B) गत्यात्मक नियन्त्रण
(C) गुस्से पर नियन्त्रण
(D) गलती से गेंद लगने पर न चिल्लाना।
उत्तर :
गणित के सवाल हल करना

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प्रश्न 6.
ऑक्सीकरण की क्रिया कब पूर्ण होती है-
(A) हाइड्रोजन मिलने पर
(B) ऑक्सीजन मिलने पर
(C) नाइट्रोजन मिलने पर
(D) कार्बन डाइऑक्साइड मिलने पर।
उत्तर :
ऑक्सीजन मिलने पर।

प्रश्न 7.
समूह में खेलते हुए बच्चे ……………. सीखते हैं
(A) काल्पनिक व्यवहार
(B) सामाजिक व्यवहार
(C) संवेगात्मक व्यवहार
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 8.
कमरे में बैठकर ताश खेलने को खेल के गुणों के आधार पर किस प्रकार के खेल में वर्गीकृत किया जा सकता है –
(A) निरुद्देश्य खेल
(B) जिज्ञासापूर्ण खेल
(C) शान्त खेल
(D) गम्भीर खेल।
उत्तर :
शान्त खेल।

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प्रश्न 9.
खिलौने को खरीदते समय किस बात को ध्यान में रखना चाहिए :
(A) आयु वर्ग
(B) रंग-बिरंगे
(C) अच्छी गुणवत्ता
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 10.
नैतिक दृष्टि से खेलों का क्या महत्त्व है –
(A) सहनशीलता की भावना का विकास
(B) तनाव व चिड़चिड़ापन दूर होना
(C) व्यायाम होना
(D) कोई भी नहीं।
उत्तर :
सहनशीलता की भावना का विकास।

प्रश्न 11.
खेलों से बच्चों को …………. की प्राप्ति होती है –
(A) पैसों
(B) आनन्द
(C) ऊर्जा.
(D) समयः।
उत्तर :
आनन्द।

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प्रश्न 12.
जो बच्चा खेल के प्रति उदासीन रहता है, उसका ………… सन्तोषजनक नहीं होता
(A) मानसिक विकास
(B) शारीरिक विकास
(C) मानसिक और शारीरिक विकास
(D) सामाजिक विकास।
उत्तर :
मानसिक और शारीरिक विकास।

प्रश्न 13.
खेल की क्रियाएं आयु के साथ ………. हैं।
(A) घटती
(B) बढ़ती
(C) समान रहती
(D) सामान्य।
उत्तर :
घटती।

प्रश्न 14.
निम्नलिखित में से बौद्धिक खेल कौन-सा है ?
(A) हॉकी खेलना
(B) शतरंज
(C) दौड़ लगाना
(D) बैडमिंटन।
उत्तर :
शतरंज।

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प्रश्न 15.
शुरू में बालक कौन-से खेल खेलता है ?
(A) स्वप्रेरित
(B) कल्पनात्मक
(C) रचनात्मक
(D) क्रीड़ाएं।
उत्तर :
स्वप्रेरित।

प्रश्न 16.
क्रीड़ायें बच्चों के लिए फायदेमंद हैं, क्योंकि ये प्रदान करती हैं –
(A) मनोरंजन
(B) धन
(C) भोजन
(D) इनमें से कोई भी नहीं।
उत्तर :
मनोरंजन।

प्रश्न 17.
बालकों के जीवन में मनोरंजन का क्या महत्त्व है ?
(A) सहनशीलता, त्याग, सच्चाई जैसे गुण उत्पन्न होते हैं
(B) संवेगों का प्रकाशन और नियंत्रण
(C) नैतिक व मानसिक विकास में सहायक
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

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प्रश्न 18.
गतिशील खेल कौन-सा है ?
(A) खिलौनों से खेलना
(B) उछलना-कूदना
(C) पहेलियां बूझना
(D) शतरंज खेलना।
उत्तर :
उछलना-कूदना।

प्रश्न 19.
खेलने से बच्चों का………… विकास होता है।
(A) शारीरिक
(B) मानसिक
(C) सामाजिक
(D) शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक।
उत्तर :
शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक।

प्रश्न 20.
खेलों को कौन-सा तत्त्व प्रभावित करता है ?
(A) साधन
(B) ऋतु
(C) वातावरण
(D) ये सभी।
उत्तर :
ये सभी।

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प्रश्न 21.
घर के भीतर खेला जाने वाला कौन-सा खेल है ?
(A) ताश
(B) कैरम
(C) शतरंज
(D) ये सभी।
उत्तर :
ये सभी।

प्रश्न 22.
……………. से हड्डियों की मजबूती आती है।
(A) लोहा
(B) आयोडीन
(C) कैल्शियम
(D) वसा।
उत्तर :
कैल्शियम।

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प्रश्न 23.
घर के भीतर खेले जाने वाला खेल कौन-सा है ?
(A) शतरंज
(B) हॉकी
(C) फुटबाल
(D) बैडमिंटन।
उत्तर :
शतरंज।

खेल HBSE 10th Class Home Science Notes

ध्यानार्थ तथ्य।

→ बालकों का खेलना एक स्वाभाविक क्रिया है जो आत्म प्रेरित होती है और आनन्ददायक भी होती है।
→ खेल तथा मनोरंजन बालक के जीवन में प्रसन्नता, चंचलता, उत्साह, स्फूर्ति तथा स्वतन्त्रता के भाव उत्पन्न करते हैं।
→ खेल की अनेक विशेषताएं होती हैं जैसे यह एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है, यह एक आत्मप्रेरित, शारीरिक व मानसिक प्रवृत्ति है, खेल का कोई गुप्त लक्ष्य नहीं होता, खेल का मुख्य लक्ष्य आनन्द और आत्म विश्वास प्राप्त करना होता है, बालक खेल के अन्तिम परिणाम पर कोई विचार नहीं करते आदि।
→ खेल और कार्य में अन्तर होता है।
→ खेल का बालक के विकास में महत्त्वपूर्ण स्थान है। खेल के आधार पर बालक के अनेक शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा नैतिक आदि गुणों का विकास होता है।
→ खेल के साथियों की संख्या के आधार पर खेल तीन प्रकार के होते हैं

  • समानान्तर खेल
  • सहचारी खेल तथा
  • सामूहिक खेल।

→ खेल के स्थान के आधार पर खेल दो प्रकार के होते हैं –
(i) घर के भीतर खेले जाने वाले खेल (इनडोर गेम्स) – जैसे ताश, कैरम, लूडो, शतरंज, चायनीज चेकर, सांप-सीढ़ी आदि।
(ii) घर के बाहर खेले जाने वाले खेल (आउटडोर गेम्स) – जैसे क्रिकेट, फुटबाल, हाकी, बैडमिन्टन आदि।

→ ऐसा देखा गया है कि जो बालक पढ़ाई-लिखाई के अतिरिक्त खूब खेलता है, वह सामान्यतः कुशाग्र बुद्धि का होता है।

→ खेल एक ऐसी क्रिया है जो बच्चे को अच्छी लगती है। बच्चा उसे अपनी खुशी से शुरू करता है। उसे करते हुए वह आनन्द अनुभव करता है और जब चाहे उसे समाप्त कर देता है। बच्चे का सारा दिन खेल से भरा होता है।

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→ खेल के निम्नलिखित गुण हैं –

  • खेल अनायास व स्वाभाविक होता है।
  • खेल आमतौर पर बिना किसी उद्देश्य के होता है।
  • खेल की शुरुआत बच्चा स्वयं करता है।
  • खेल बच्चे के लिए मज़ा है।
  • खेल कभी-कभी गंभीर एवं जिज्ञासा से पूर्ण भी हो सकता है।
  • खेल चंचल या शांत भी हो सकता है।

→ खेल बच्चे के शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक संवेगों के विकास एवम् नैतिक विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है।
→ खेल से बच्चे का शारीरिक विकास होता है, उसे बहुत चीज़ों का ज्ञान मिलता है, वह नई चीजें बनाना सीखता है, वह सामाजिक होकर अपने दोस्तों से तालमेल बिठाना सीखता है और अपने भावों पर नियन्त्रण पाना सीखता है। इसके अलावा सच बोलना, ईमानदार बनना आदि नैतिक गुण भी वह अपनाता है।

→ आयु के साथ खेल भी बदलते हैं। बहुत छोटे बच्चे (0-2 महीने तक) अपने आप से खेलना पसन्द करते हैं। वह अपने हाथ-पैर चलाते रहते हैं।

→ 2 महीने से 2 वर्ष के बच्चे खिलौनों को देखना व उनसे खेलना पसन्द करते हैं। अकेले बैठे हुए भी वह अपने खिलौनों से खेलते रहते हैं। दो साल के बच्चे समूह में खेलना पसन्द करते हैं हालांकि समूह का प्रत्येक बच्चा अपनी धुन में मस्त होता है।

→ दो साल से छः साल के बच्चों के खेलों में और बदलाव आ जाता है। वह साथ-साथ खेलना शुरू कर देते हैं। वह एक खिलौने से भी खेल सकते हैं।

→ बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते हैं व अधिक सामाजिक बनते हैं। वह नए दोस्त बनाते हैं। उनके निर्धारित समूह होते हैं और वह नियम वाले खेल भी खेलते हैं। बड़े बच्चे अकेले भी खेल सकते हैं और समूह में भी।

→ खेलने के तरीके बदलने के साथ-साथ खिलौने भी बदल जाते हैं। अत: बच्चों को खिलौने खरीदते समय उनकी उम्र, खिलौने का टिकाऊपन, सुरक्षा, आकर्षणता, वृद्धि का स्तर आदि बातों का ध्यान अवश्य रखें।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल

→ यदि कीमती खिलौने खरीदने की बजाए आप बच्चों को घर के बने खिलौने देंगे जैसे कपड़े की बनी बिल्ली, माचिस की डिब्बी का झुनझुना आदि तो बच्चे इसे ज्यादा पसन्द करेंगे। ऐसे खिलौनों के साथ वह अपनी इच्छानुसार उठक-पटक कर सकते हैं। इस तरह वह नए विचार और खेल सोच पाते हैं।

→ यदि आप बच्चे को कीमती खिलौने देते हैं। तो आप सारा समय बच्चे को यही हिदायत देते हैं कि खिलौने टूट न जाएं। इस तरह बच्चा ठीक से खेल नहीं पाता और परिणामस्वरूप जल्द ही ऐसे खिलौने से खेलना छोड़ देता है। अतः घर पर उपलब्ध सामग्री से खिलौने बनाना ज्यादा श्रेयस्कर है।

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HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 2 विकास पर बाहरी वातावरण का प्रभाव

Haryana State Board HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 2 विकास पर बाहरी वातावरण का प्रभाव Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Home Science Solutions Chapter 2 विकास पर बाहरी वातावरण का प्रभाव

अति लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
बालकों के विकास पर घर के बाहर की किन-किन बातों का प्रभाव पड़ता
उत्तर :
पुस्तकों, संगीत, रेडियो, सिनेमा, टेलीविज़न, विज्ञापन आदि का।

प्रश्न 2.
खेल तथा मनोरंजन का संवेगात्मक विकास से क्या सम्बन्ध है?
उत्तर :
खेलों द्वारा बालक संवेगों का प्रकाशन तथा साथ-साथ संवेगात्मक नियंत्रण भी सीखता है।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 2 विकास पर बाहरी वातावरण का प्रभाव

प्रश्न 3.
जिन बालकों में संवेगात्मक नियंत्रण अधिक होता है, उनमें कैसे गुण अधिक पाए जाते हैं ?
उत्तर :
सहनशीलता, त्याग, सच्चाई और सहानुभूति आदि गुण।

प्रश्न 4.
खेल का शारीरिक महत्त्व क्या है?
उत्तर :

  1. इससे बच्चों की मांसपेशियां समुचित ढंग से विकसित होती हैं।
  2. इसके द्वारा बच्चों के शरीर के सभी अंगों का व्यायाम हो जाता है।
  3. बच्चों का तनाव व चिड़चिड़ापन कम हो जाता है।

प्रश्न 5.
खेल का सामाजिक विकास की दृष्टि से क्या महत्त्व है ?
उत्तर :

  1. बच्चे अपरिचित व्यक्तियों के साथ सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करना सीख लेते हैं।
  2. खेल-खेल में वे सहयोग करना सीख लेते हैं।
  3. बच्चों में नियम-निष्ठा की भावना आ जाती है।
  4. जो बच्चे परस्पर खेलते हैं, उनमें द्वेष की भावना नहीं रहती।
  5. बच्चे जब अपने माता-पिता या अन्य भाई-बहिनों के साथ खेलते हैं तो इससे परिवार में सौहार्द्र और स्नेह का वातावरण विकसित होता है।

प्रश्न 6.
नैतिक दृष्टि से खेल के द्वारा बच्चों में किन-किन गुणों का विकास होता
अथवा
बच्चों के नैतिक विकास में खेलों का क्या महत्त्व है ?
उत्तर :

  1. समूह के साथ खेलते हुए बच्चों में आत्म-नियन्त्रण, सच्चाई, दयानतदारी, निष्पक्षता तथा सहयोग आदि गुणों का विकास होता है।
  2. बच्चा सीखता है कि एक अच्छा खिलाड़ी हार जाने पर भी उत्साहहीन नहीं होता और न ही उसमें द्वेष का भाव आता है।
  3. खेल के द्वारा बच्चों में सहनशीलता की भावना का विकास होता है।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 2 विकास पर बाहरी वातावरण का प्रभाव

प्रश्न 7.
टेलीविज़न का बालक (बच्चों) के लिए क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
टेलीविज़न पर दिखाए जाने वाले शिक्षाप्रद कार्यक्रम, ऐतिहासिक घटनाएँ तथा अन्य बहुत से कार्यक्रम स्वस्थ मनोरंजन के साथ-साथ बालक के नैतिक व मानसिक विकास में सहायक होते हैं।

प्रश्न 8.
मनोरंजन के साधन बालक के लिए कब हानिकारक होते हैं ?
उत्तर :
रेडियो, टेलीविज़न, सिनेमा की ओर बालकों के बढ़ते हुए झुकाव के कारण उनकी खेलों के प्रति रुचि कम हो जाती है। परिणामस्वरूप शारीरिक विकास रुक जाता है। साथ ही उनका व्यक्तिगत और सामाजिक समायोजन बिगड़ जाता है।

प्रश्न 9.
बालकों की अभिव्यक्ति के अन्य साधन कौन-से हैं?
उत्तर :
बालकों की अभिव्यक्ति के अन्य साधन-

  • चित्रांकन
  • संगीत
  • लेखन
  • हस्तकौशल।

प्रश्न 10.
खेल के सिद्धान्त कौन-से हैं?
उत्तर :
खेल के सिद्धान्त –

  • अतिरिक्त शक्ति का सिद्धान्त
  • शक्तिवर्द्धन का सिद्धान्त
  • पुनरावृत्ति का सिद्धान्त
  • भावी जीवन की तैयारी का सिद्धान्त
  • रेचन का सिद्धान्त
  • जीवन की क्रियाशीलता।

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प्रश्न 11.
बालकों के खेलों की क्या विशेषताएं हैं?
अथवा
खेल की चार विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर :
बालकों के खेलों की निम्नलिखित विशेषताएं हैं –

  • बालक स्वेच्छा से खेलता है।
  • उम्र वृद्धि के साथ-साथ बालकों के खेल में दैहिक क्रियाओं की कमी आती है।
  • बालकों के खेल का निश्चित प्रतिरूप होता है।
  • बालक प्रत्येक खेल में जोखिम उठाता है।
  • बालक के खेलों में आवृत्ति का अंश रहता है।

प्रश्न 12.
बालकों के विकास पर घर के अलावा किन चीज़ों का प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :
पुस्तकों, संगीत, रेडियो, सिनेमा, टेलीविज़न, विज्ञापन इत्यादि।

प्रश्न 13.
खेल से संवेगात्मक विकास कैसे होता है?
उत्तर :
खेलों द्वारा बालक संवेगों का प्रसारण तथा संवेगों पर नियन्त्रण करना भी सीखता है। ऐसा बच्चा ज्यादा सहनशील, सत्यवादी और सहानुभूति प्रकट करने वाला होता है। उसके अंदर त्याग की भावना भी होती है।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 2 विकास पर बाहरी वातावरण का प्रभाव

प्रश्न 14.
खेलों का शारीरिक विकास में क्या योगदान है?
उत्तर :
खेलों द्वारा बच्चे का व्यायाम होता है, उसकी हडियां व मांसपेशियों का विकास होता है और उसका चिड़चिड़ापन कम हो जाता है।

प्रश्न 15.
मनोरंजन के अतिरिक्त बालक के जीवन में टेलीविजन की कोई एक अन्य उपयोगिता लिखें।
उत्तर :
देखें प्रश्न 7 का उत्तर।

प्रश्न 16.
बच्चों के खेल के दो महत्त्व लिखें।
उत्तर :
देखें प्रश्न 4, 5, 6 का उत्तर।

प्रश्न 17.
किताबों का बच्चों के लिए क्या महत्त्व है ?
उत्तर :

  • इनसे बालकों को पढ़ने की प्रेरणा मिलती है,
  • इनके द्वारा बच्चों के पढ़ने की योग्यता बढ़ाई जा सकती है,
  • इनके द्वारा बच्चों को नए शब्दों का ज्ञान होता है,
  • इनके पढ़ने से ‘रेचन’ द्वारा उनके संवेगात्मक तनाव निकल जाते हैं।

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लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
खेल का शैक्षिक महत्त्व क्या है?
उत्तर :

  1. बच्चे सभी प्रकार के खिलौनों से खेलते हैं। उन्हें भिन्न-भिन्न पदार्थों के आकार, रंग, भार तथा उनकी सतह का ज्ञान हो जाता है।
  2. जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, वैसे-वैसे खेल के द्वारा उनमें कई कौशलों का विकास होता है।
  3. बच्चे खेल के द्वारा सीखते हैं कि किस प्रकार पदार्थ-विशेष की जानकारी प्राप्त की जाए तथा वस्तुओं का संग्रह किस प्रकार से किया जाए।
  4. खेल के द्वारा बच्चे अपनी तथा अपने साथियों की क्षमताओं की भली-भांति तुलना कर सकते हैं। इस प्रकार उन्हें अपने रूप का वास्तविक ज्ञान हो जाता है।

प्रश्न 2.
विकास प्रक्रिया के निर्देशन में खेल का क्या महत्व है?
उत्तर :
पहले बालक खेल के माध्यम से ही विभिन्न प्रकार के क्रियात्मक विकासों को सीखता है। इसमें वह अपने क्रियात्मक कौशलों को और शब्दों को सीखता है। यह विकास वह अन्य बालकों के साथ खेलकर सीखता है। खेल में वह विभिन्न क्रियाओं को पसन्द के आधार पर भी सीखता है। प्रारम्भ के कुछ महीनों में वह कुछ अधिक तीव्र गति से सीखता है। वह अपने हाथों, कपड़े और खिलौने आदि के साथ भी खेलता है। बालक तीन साल की अवस्था में पहुंचकर अपने खेल के साथियों को अधिक महत्त्व देने लग जाता है। अत: विकास प्रक्रिया का निर्देशन खेल द्वारा भी किया जा सकता है। .

प्रश्न 3.
बालक के सामाजिक विकास में खेल की भूमिका समझाइए।
उत्तर :
खेल एक स्वाभाविक, स्वतन्त्र, उद्देश्यहीन एवं आनन्द की अनुभूति देने वाली क्रिया है। बालक के शारीरिक विकास के साथ-साथ सामाजिक विकास में खेल की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। खेल बालक की कल्पनाओं, सहयोग की भावना तथा दयानतदारी को दर्शाता है। खेल के द्वारा बालक में नियम पालन की भावना आती है। खेल में वह अपनी व्यक्तिगत सत्ता समष्टि में लीन करता है। इस प्रकार उसमें सामाजिक भावना का विकास भी होता है। आयु वृद्धि के साथ-साथ बालक के खेल में परिवर्तन आता रहता है। बचपन में बालक-बालिकाएं साथ-साथ खेलते हैं परन्तु बाद में दोनों की रुचियों में अन्तर आ जाता है।

रुचि में अन्तर –

  • बालकों में बालिकाओं की तुलना में अधिक शारीरिक शक्ति
  • बालिकाओं में शीघ्र परिपक्वता का आ जाना तथा
  • सामाजिक प्रतिबन्ध (किशोरावस्था में दोनों का मिलना ठीक नहीं समझा जाना) आदि के कारण होता है।

बालकों के खेल के संगी-साथी के मानसिक तथा बौद्धिक स्तर एवं आर्थिक स्तर का प्रभाव भी बालकों के सामाजिक विकास पर पड़ता है। कुशाग्र बुद्धि वाला बालक अपने से बड़े बालक के साथ खेलना पसन्द करता है। इसी प्रकार मन्द बुद्धि वाला बालक अपने से छोटे बालकों के साथ खेलना पसन्द करता है।

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प्रश्न 4.
खेल की क्या परिभाषा है?
उत्तर :
वास्तव में खेल ऐसी एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है जिसमें अनुकरण एवं रचनात्मक प्रवृत्तियों का सम्मिश्रण रहता है। वैलनटाइन ने इसकी परिभाषा इस प्रकार की है कि खेल वह क्रिया है जो खेल के लिए ही की जाती है। ग्यूलिक ने खेल की सुन्दर परिभाषा इस तरह की है कि जो कार्य हम अपनी इच्छा से स्वतंत्रतापूर्ण वातावरण में करते हैं, वही खेल है, यह परिभाषा सर्वमान्य है।

प्रश्न 5.
रेडियो की बच्चों के विकास में क्या भूमिका है?
उत्तर :
रेडियो की प्रसिद्धि पहले की अपेक्षा अब कम हो गई है। जबसे रंगीन टेलीविज़न आया है उसने रेडियो का स्थान ले लिया है। अब तो बच्चे रेडियो बहुत ही कम सुनते हैं। शहरों की अपेक्षा गांव के बच्चे रेडियो अधिक सुनते हैं। एक अध्ययन में यह देखा गया है कि जो बच्चे जितना अधिक समायोजित होते हैं व रेडियो उतना ही कम सुनते हैं। लगभग तीन वर्ष का बच्चा रेडियो में रुचि लेता है। रेडियो सुनने से भाषा का विकास होता है, भाषा सुधरती है, व्याकरण का ज्ञान बढ़ता है इत्यादि, पर आज रेडियो का स्थान टेलीविज़न ले चुका है।

प्रश्न 5. (A)
बच्चों के लिए रेडियो किस तरह उपयोगी हैं ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 5 का उत्तर।

प्रश्न 6.
बच्चों पर संगीत का क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
संगीत के माध्यम से बच्चे अपने आप को अभिव्यक्त करते हैं। बोलना सीखने से पूर्व बच्चा गाना सीख जाता है। सभी बच्चे गाते हैं चाहे उनमें गायन सम्बन्धी क्षमता हो या ना हो। शिशु का बबलाना (babbling) उसका गायन है क्योंकि इसमें भी एक लय है। इसे सुनकर बालक बहुत प्रसन्न होता है। वह गाने के साथ अनेक शारीरिक क्रियाएँ भी करता है। जैसे-जैसे बालक थोड़ा बड़ा होता है वह छोटी व आसान कविताएं लय व ताल में गा सकता है। अच्छा संगीत बच्चे के मनोरंजन के साथ उसके विकास पर भी प्रभाव डालता है।

प्रश्न 7.
विज्ञापन का बालक के विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है ? उदाहरण सहित वर्णन करें।
अथवा
बच्चों के जीवन पर विज्ञापनों का क्या प्रभाव पड़ता है ? उदाहरण सहित बताएं।
उत्तर :
विज्ञापन का बालकों के विकास में महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। जैसे-जैसे बालक बड़ा होता जाता है वह विभिन्न पत्रिकाओं एवं टेलीविज़न में विज्ञापनों को देखता है और उन पर अपने मन में गहरा विचार करता है। विभिन्न विद्वानों ने अपने अध्ययनों में सिद्ध कर दिया है कि विभिन्न प्रकार के विज्ञापन बालक एवं किशोर को सांसारिक वस्तुओं का परिचय करा कर उनके ज्ञान में विकास करते हैं। इस तरह बालक अपने आस-पास की वस्तुओं को बहुत सूक्ष्मता से देखता है और उन पर विचार करता है।

उदाहरण – टेलीविज़न में दिखाए जाने वाले विज्ञापनों को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर दिखाते हैं जो कि बालक को संदेह में डाल देते हैं और उनके विकास पर उल्टा प्रभाव डालते हैं। कई बार बालक विज्ञापनों को देखकर उनकी नकल करने की कोशिश करते हैं और अपनी जान से भी हाथ धो बैठते हैं।

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प्रश्न 8.
बच्चों के लिए किस प्रकार के टेलीविजन कार्यक्रम बनाए जाने चाहिएं ?
उत्तर :
बच्चों के लिए निम्नलिखित प्रकार के टेलीविज़न कार्यक्रम बनाए जाने चाहिएं –

  1. कार्यक्रम मनोरंजक हो. जिन्हें देख कर बच्चों को आनन्द तथा प्रसन्नता प्राप्त हो।
  2. कार्यक्रम द्वारा बच्चों को खेल-खेल में शिक्षा प्रदान होनी चाहिए।
  3. कार्यक्रम ऐसे न हों जिन्हें देख कर बच्चे असमंजस में पड़ जाएं।
  4. कार्यक्रमों में बच्चों की अधिकता होनी चाहिए।

प्रश्न 9.
साहित्य को समाज का दर्पण क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
साहित्य हमें जीवन को उचित ढंग से जीने का तरीका बताता है। इसमें ठीक तथा गलत का ज्ञान भी शामिल होता है। साहित्य में समाज में चल रही बातों की चर्चा होती है। साहित्य जिस भी काल में रचा गया हो उसी समय के रहन-सहन, समस्याओं, फैशन,
आदि को वर्णित करता है। इसलिए साहित्य को समाज का दर्पण कहते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
(क) व्यक्ति के विकास पर पुस्तकों, संगीत, रेडियो, सिनेमा तथा दूरदर्शन के प्रभावों की चर्चा कीजिए।
(ख) बालकों के जीवन पर टेलीविज़न व चलचित्रों का क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
(क) पुस्तकों का प्रभाव – पुस्तकों आदि का पढ़ना एक प्रकार का आनन्ददायक खेल है। इसमें बच्चे दूसरे की क्रियाशीलता का आनन्द लेते हैं। जब बच्चे अकेले होते हैं और शारीरिक खेल खेलने का उनका मन नहीं होता या थोड़े थके हुए होते हैं तब पुस्तकें पढ़ते हैं। घर में बच्चों को जब बाहर निकलने से मना किया जाता है या कमरे में बैठने के लिए बाध्य किया जाता है तब वे पढ़ते हैं। अध्ययनों में देखा गया है कि लड़कियां लड़कों की अपेक्षा अधिक पढ़ती हैं। एक अध्ययन में देखा गया है कि प्रतिभाशाली बच्चे अन्य बच्चों की तुलना में अधिक पढ़ते हैं। वे पढ़ने को खेल न समझकर कार्य समझते हैं। अधिकांश बच्चे परिचित व्यक्तियों और जानवरों के सम्बन्ध में कहानियां पढ़ना पसन्द करते हैं। आजकल के बच्चों में कॉमिक्स पढ़ने का बहुत शौक है।

कॉमिक्स पढ़ने से अनेक लाभ होते हैं – (i) इनसे बालकों को पढ़ने की प्रेरणा मिलती है, (ii) इनके द्वारा बच्चों के पढ़ने की योग्यता बढ़ाई जा सकती है, (iii) इनके द्वारा बच्चों को नए शब्दों का ज्ञान होता है, (iv) इनके पढ़ने से ‘रेचन’ द्वारा उनके संवेगात्मक तनाव निकल जाते हैं। अधिक कॉमिक्स पढ़ने से बच्चों को कुछ हानियां भी होती हैं, (i) बच्चे अच्छा साहित्य पढ़ने से कतराते हैं, (ii) अधिकांश कॉमिक्स में कहानियों की भाषा और शब्द निम्नकोटि के होते हैं, (iii) इनके अधिक पढ़ने से सैक्स, हिंसा व भय आदि का विकास होता है, (iv) इनके अधिक पढ़ने से बच्चे अपने वास्तविक जीवन से कुछ नीरस हो जाते हैं, (v) जो बच्चे कॉमिक्स अधिक पढ़ते हैं वे अन्य खेलों में कम रुचि लेते हैं जिससे उनके शारीरिक विकास में रुकावट आती है। अच्छा साहित्य पढ़ने से मनोरंजन के साथ-साथ बच्चों का मानसिक, बौद्धिक, चारित्रिक तथा नैतिक विकास होता है।

किशोरावस्था तक बालकों को कहानियां, उपन्यास पढ़ने का बहत शौक हो जाता है। बहुधा निम्न स्तर के उपन्यास और कहानियां किशोरों को अधिक पसन्द आते हैं। इस प्रकार की पाठ्य-सामग्री उनके नैतिक विकास को अवनति की ओर अग्रसर करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।

संगीत का प्रभाव-संगीत के माध्यम द्वारा भी बच्चे अपने आपको अभिव्यक्त करते हैं। बोलना सीखने से पूर्व ही बालक गाना सीख जाता है। सभी बच्चे गाते हैं। चाहे उनमें गायन सम्बन्धी क्षमता हो या न हो। शिशु का बबलाना उसका गायन है। बालक के बबलाने में भी एक लय होती है। इसे सुनकर बालक बड़ा प्रसन्न होता है। शुरू-शुरू में बालक गाते समय कई शारीरिक क्रियाएँ भी करता है।

4-5 वर्ष की आयु में बच्चे सरल कविताएं लय के अनुसार गा सकते हैं। वे जानते हैं कौन-सी कविता किस लय में गाई जाएगी। बड़े होते-होते बच्चों की रुचि देशभक्ति ज्ञान, लोक संगीत तथा शास्त्रीय संगीत में बढ़ती जाती है। बहुत से बच्चे धार्मिक भजनों में भी रुचि लेते हैं। फिशर का कथन है कि उच्च वर्ग तथा मध्यम वर्ग के बच्चों में संगीत की दृष्टि से कोई अन्तर नहीं पाया जाता है। संगीत मनोरंजन का साधन होने के साथ-साथ बच्चों के विकास पर भी प्रभाव डालता है।

रेडियो तथा टेलीविज़न का प्रभाव – लगभग तीन वर्ष का बालक रेडियो में थोड़ी-थोड़ी रुचि लेने लगता है। लड़के लड़कियों की अपेक्षा रेडियो अधिक सुनते हैं। प्रतिभाशाली बालक रेडियो सुनना कम पसन्द करते हैं। शहरों की अपेक्षा गांवों के बच्चे रेडियो अधिक सुनते हैं। एक अध्ययन से देखा गया है कि जो बच्चे जितने अधिक समायोजित होते हैं वे रेडियो उतना ही कम सुनते हैं। रेडियो से बच्चों को आनन्द ही प्राप्त नहीं होता है वरन् उन्हें इससे अनेक ज्ञान की बातों को सीखने का अवसर प्राप्त होता है। इसके सुनने से उनकी भाषा का विकास होता है, भाषा सुधर जाती है, उनकी व्याकरण सुधर जाती है तथा वे इससे आत्म उन्नति के लिए प्रेरित होते हैं। – रेडियो से घर बैठे हुए ही समाचार, संगीत, भाषण, चर्चा, लोकसभा या विधानसभा की समीक्षा, वाद-विवाद, नाटक, प्रहसन आदि सुनने से मनोरंजन होता है।

मनोरंजन शारीरिक व मानसिक विकास में बहुत अधिक सहायक होता है। परन्तु अधिक रेडियो सुनने से बच्चे शारीरिक खेल नहीं खेल पाते जिससे उनका शारीरिक विकास अवरुद्ध हो सकता है। विभिन्न अध्ययनों में देखा गया है कि जो बच्चे अधिक रेडियो सुनते हैं उनका व्यक्तिगत और सामाजिक समायोजन इसलिए बिगड़ जाता है कि उनका अधिकांश समय रेडियो सुनने में निकल जाता है। आज रेडियो का स्थान टेलीविज़न ने ले लिया है।

जिलने समय तक टेलीविज़न पर अच्छे-अच्छे प्रोग्राम, सीरियल आदि आते हैं, बच्चे उन्हें अवश्य ही देखना चाहते हैं। एक अध्ययन से पता लगा है कि अमेरिका में बच्चे लगभग अपने जागने के समय का लगभग 1/6 भाग टेलीविज़न देखने में व्यय करते हैं। छ: वर्ष की अवस्था तक उनमें टेलीविज़न देखने की अधिक प्रवृत्ति पाई जाती है। अधिक पढ़ने-लिखने वाले बच्चे कम टेलीविज़न देखते हैं। जो बच्चे कम समायोजित होते हैं, वे अधिक टेलीविज़न देखते हैं।

उच्च आर्थिक व सामाजिक स्तर वाले बच्चे कम टेलीविज़न देखते हैं। लड़कियों की अपेक्षा लड़के अधिक टेलीविज़न देखते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि कुल मिलाकर टेलीविज़न का प्रभाव बच्चों के विकास पर बहुत अधिक पड़ता है। एक ओर जहां अच्छे-अच्छे प्रोग्राम, शिक्षाप्रद कहानियां तथा देश-विदेश के समाचारों से बच्चों का मानसिक तथा चारित्रिक विकास होता है, दूसरी ओर अधिक T.V देखने से शारीरिक विकास अवरुद्ध भी होता है। इसके साथ ही वयस्कों को दिखाये जाने वाले कुछ प्रोग्राम जिन्हें वयस्क देखें या न देखें बच्चे अवश्य ही देखते हैं जिनका उनके बारित्रिक व संवेगात्मक विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

निश्चय ही आज के युग में टेलीविज़न मनोरंजन का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण साधन है। इसका उपयोग देश की प्रगति, शिक्षा के प्रसार तथा बच्चों के चरित्र निर्माण में अधिकाधिक किया जाना चाहिए।

चलचित्र (सिनेमा) का प्रभाव-आजकल छोटे-छोटे सभी आयु के बालक सिनेमा में दिखाई देते हैं। सिनेमा देखने वालों में किशोरों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। दुराचार, अपराध, नारी सौंदर्य, प्रेम आदि की चरम सीमाएं चलचित्रों में प्रदर्शित कर लोगों को

अधिक-से-अधिक मात्रा में आकर्षित किया जाता है। यद्यपि कुछ चलचित्रों की कहानी तथा उद्देश्य सराहनीय होते हैं परन्तु बालकों व किशोरों की मानसिक योग्यता सीमित होने के कारण यह सिनेमा के उद्देश्यों और कहानी को कम समझ पाते हैं। वे सिनेमा से गन्दी बातें ही अधिक सीखते हैं। सिनेमा का स्थान अब विडियो कैसेट प्लेयर या रिकार्डर लेता जा रहा है।

(ख) देखें प्रश्न 1 (क) का उत्तर।

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प्रश्न 2.
खेलों को कौन-कौन से तत्त्व प्रभावित करते हैं ?
अथवा
खेलों को प्रभावित करने वाले चार कारक बताएँ।
उत्तर :
खेलों को प्रभावित करने वाले तत्त्व निम्नलिखित हैं –
1. शारीरिक स्वास्थ्य-स्वस्थ बालक में शक्ति अधिक होती है, इसलिए वे खेलों में अधिक रुचि लेते हैं।
2. ऋतु-ऋतु का खेल पर विशेष प्रभाव होता है। जैसे ग्रीष्म ऋतु में बालकों को जल विहार व तैरना अच्छा लगता है तथा बसन्त ऋतु में साइकिल पर इधर-उधर घूमना। पहाड़ों पर रहने वाले जाड़े में बर्फ में खेलते हैं।
3. वातावरण-बालक के खेल पर वातावरण का विशेष प्रभाव पड़ता है। जैसे बालक अपने घर में क्षेत्र में खेलना ज्यादा पसन्द करता है।
4. क्रियात्मक विकास-खेलों का बालक के क्रियात्मक विकास पर प्रभाव पड़ता है। गेंद वाली खेलों में वहीं बालक भाग लेते हैं जो उसे पकड़ या फेंक सकते हैं। जोन्स के मतानुसार 21 मास की अवस्था वाला बालक चीजों को खींच सकता है और 24 मास की अवस्था वाला बालक खिलौने को खींच व फेंक सकता है। 29 मास की अवस्था वाला बालक किसी चीज़ को कम-से-कम 7- फ़ीट तक धकेल सकता है।

5. लिंग-भेद-प्रारम्भ में लड़के-लड़कियों के खेल में कोई अन्तर नहीं होता, परन्तु अवस्था वृद्धि के साथ इनके खेलों में विविधता पाई जाती है।

6. बौद्धिक क्षमता-खेलों पर बौद्धिक क्षमता का भी प्रभाव पड़ता है। कुशाग्र बुद्धि वाले बालक मन्द बुद्धि बालकों की अपेक्षा ज्यादा खेला करते हैं। कुशाग्र बुद्धि बालक नाटक, रचनात्मक खेलों व पुस्तकों में ज्यादा रुचि लेते हैं। ये पहेलियां और ताश का खेल आदि पसन्द करते हैं।

7. अवकाश की मात्रा-बालक थकने पर कम श्रम वाले खेल खेलता है। धनी परिवार के बच्चों के पास काफ़ी अवकाश होता है। निर्धन परिवार के बच्चों के पास कम। अत: वे समयानुसार ही खेलना पसन्द करते हैं।

8. सामाजिक-आर्थिक स्तर-धनी परिवार के बच्चे क्रिकेट, टेनिस, बैडमिन्टन आदि खेलना पसन्द करते हैं, जबकि ग़रीब के बच्चे गेंद व कबड्डी खेलना ही पसन्द करते हैं। निम्न वर्ग के बालक जन्माष्टमी व अन्य मेलों में जाना पसन्द करते हैं। धनी वर्ग के बालक नाटक, नृत्य, कला आदि समारोहों में जाना पसन्द करते हैं।

9. खेल सम्बन्धी उपकरण-यदि बालकों को खेलने के लिए लकड़ी के टुकड़े, हथौड़ी और कील आदि दिए जाएंगे, तो उनके खेल रचनात्मक होंगे। बड़े बालकों को भी उपयुक्त उपकरणों की आवश्यकता पड़ती है। इस स्थिति में बालक अपनी खेल सम्बन्धी रुचियों को दूसरी ओर मोड़ लेता है।

10. परम्पराएँ- परम्पराओं का भी बालक के खेलों पर प्रभाव पड़ता है। भारतीय परम्परा के अनुसार लड़कियां गुड्डे-गुड़ियों का खेल तथा लड़के आँख-मिचौनी और चोर-सिपाही का खेल खेलते हैं। उच्च वर्ग की अपेक्षा मध्यम वर्ग के बालक-बालिकाएँ परम्परागत खेल अधिक खेलते हैं।

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प्रश्न 3.
खेलों के अतिरिक्त बालकों की अभिव्यक्ति के कौन-कौन से साधन हैं?
उत्तर :
निम्न साधन बालकों की अभिव्यक्ति में मददगार हैं –
1. चित्रांकन – यह एक बहुत अच्छा साधन है। बालक अपने मन के भाव चित्रों द्वारा अभिव्यक्त करते हैं। उनका बनाया हुआ चित्र, रंगों का चयन इत्यादि उनके भावों को बखूबी प्रदर्शित करता है। छोटे बच्चों की तो खासकर रंगों में रुचि होती है।

2. संगीत – सभी बच्चे संगीत-प्रेमी होते हैं। अच्छी लय और ताल न केवल समा बांधती है बल्कि तनाव को भी काफ़ी हद तक कम करती है। छोटे बच्चे कविता गान से संगीत सीखना शुरू करते हैं और जैसे-जैसे वह बड़े होते हैं कविताओं का स्तर भी मुश्किल हो जाता है।

3. लेखन – लेखन कला बच्चों में कुछ समय पश्चात् आती है जब उन्हें भाषा, व्याकरण की समझ आ जाती है और वह लिखना पूर्णतया सीख जाते हैं। बच्चे अपने छोटे-छोटे अनुभवों को लिपिबद्ध करने में सक्षम हो जाते हैं। समय के साथ उनके अनुभव ओर पेचीदे हो जाते हैं और वह उन्हें लिपिबद्ध करने के लिए और अच्छी भाषा व व्याकरण की मदद लेते हैं।

4. हस्तकौशल-हाथ की चीजें बनाने का एक अपना ही आनंद है। अनेक वस्तुएं जैसे मिट्टी, धागे, कागज़, थर्माकोल आदि इस्तेमाल करके सुन्दर वस्तुएं बनाई जा सकती हैं। इससे छोटी मासपेशियों का विकास तो होता ही है अपितु आंख व हाथ का समन्वय (तालमेल) भी बहुत बढ़िया हो जाता है।

प्रश्न 4.
बालक पर पुस्तकों का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :
कहा जाता है कि पुस्तकें व्यक्ति की सच्ची साथी होती हैं। पुस्तकों द्वारा मनोरंजन, ज्ञानवर्धन, भाषा विकास सभी कुछ सम्भव है। छोटा बच्चा जो पढ़ नहीं सकता, उसे भी माता-पिता कहानी पढ़कर सुना सकते हैं। इससे वह ध्यान लगाना सीखता है। इसके अलावा नए शब्द और ज्ञान भी सीखता है। डांटने की अपेक्षा यदि उसे कहानी द्वारा कोई बात समझाई जाए, वह उसे जल्दी समझ में आती है। थोड़े बड़े बच्चे तो स्वयं ही किताबें पढ़ सकते हैं। इसके अनेक लाभ हैं जैसे –

  1. इनसे बालकों को पढ़ने की और प्रेरणा मिलती है।
  2. बच्चों की पढ़ने के प्रति रुचि जागृत होती है।
  3. बच्चों की योग्यता अच्छी पुस्तकों द्वारा बढ़ाई जा सकती है।
  4. बच्चों का ज्ञानवर्धन होता है।
  5. उनका भाषा का विकास भी होता है।

पुस्तकों के चयन में माता-पिता का काफ़ी सहयोग है। यदि वे अपने बच्चों को सही पुस्तकें चुनकर देते हैं, तो इसका अर्थ है कि वह उसके विकास में रुचि लेते हैं। यदि वह ऐसा नहीं करते तो बच्चे कभी कभी गलत पुस्तकों का चयन कर लेते हैं जो उनके विकास में हानिकारक सिद्ध होती हैं। ऐसी किताबें सदैव उन्हें अच्छा साहित्य पढ़ने से रोकती हैं। अत: किताबों का चयन बहुत सोच समझकर करना चाहिए।

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प्रश्न 5.
बच्चों के विकास में टेलीविज़न का क्या स्थान है?
अथवा
बालकों के जीवन पर टेलीविज़न का क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
टेलीविज़न का एक बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। कौन-सा घर आज ऐसा है जिसमें टेलीविज़न न हो। टेलीविज़न में अनेक तरह के शिक्षाप्रद व मनोरंजक कार्यक्रम दिखाए जाते हैं। चूंकि टेलीविज़न में न केवल आप सुनते हैं बल्कि देखते भी हैं अतः वो चीज़ आपको ज्यादा याद रहती है। केबल आने के बाद बच्चों का अधिकांश समय टेलीविज़न के आगे ही गुज़रता है । केबल द्वारा अनेक चैनल अब देखे जा सकते हैं। परन्तु यह माता-पिता का फर्ज़ है कि वह इस बात पर ध्यान दें कि उनके बच्चे कौन से चैनल ज्यादा देख रहे हैं। कुछ चैनल के कार्यक्रम केवल वयस्कों के लिए होते हैं।

यदि बच्चे उन्हें देखें, तो उनके विकास पर विपरीत असर अवश्य पड़ेगा। वैसे भी ज्यादा टेलीविज़न देखना आंखों के लिए हानिकारक है। इसके अलावा बच्चों का शारीरिक विकास रुक जाता है। अत: माता-पिता बच्चों को केवल चुने हुए चैनल ही देखने दें जो कि उनके काम के हैं। इसके अलावा कितना समय बच्चा टी० वी० देखेगा, उस पर भी नियन्त्रण रखें। वह इसीलिए क्योंकि सामूहिक विकास के लिए सभी क्रियाओं को करना अनिवार्य है।

प्रश्न 6.
बच्चों के मनोरंजन के लिए पुस्तकें तथा उनके चुनाव के बारे में बताएं।
उत्तर :
बच्चों की दुनिया अलग होती है इसलिए उनकी पढ़ने वाली पुस्तकें भिन्न तरह की होती हैं। बच्चों में पढ़ने की रुचि जागृत हो इसलिए पुस्तकों का चुनाव ध्यानपूर्वक करना चाहिए। छोटे बच्चों के लिए पुस्तकें रंगदार तस्वीरों तथा मोटी छपाई वाली होनी चाहिएं। इनकी जिल्द तथा पेज़ मज़बूत होने चाहिएं। बच्चों की पुस्तकों में कहानियां अच्छे मूल्यों को सिखाने वाली होनी चाहिए। बाल पुस्तकों में जंगली जानवरों, पौधों तथा अपने इर्द-गिर्द के लोगों के साथ मिल जुलकर रहने की शिक्षा होनी चाहिए। छोटी-छोटी शिक्षात्मक कहानियों वाली पुस्तकों का चुनाव करना चाहिए। बच्चों में पढ़ने की रुचि पैदा करनी अति आवश्यक है। इससे बच्चे की काल्पनिक शक्ति में वृद्धि होती है तथा बच्चा बुरी संगत से बचा रहता है।

प्रश्न 7.
बच्चों के मनोरंजन के लिए कहानियों तथा कविताओं के बारे में लिखें।
अथवा
तीन माह तक के बच्चों को सुनाए जाने वाले बाल गीत किस प्रकार के होने चाहिए ? इनका बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
कहानियाँ तथा कविताएँ (Stories and Nursery Rhymes)-खेलों तथा पुस्तकों के अलावा बच्चे का मनोरंजन कहानियां तथा कविताओं से भी होता है। जब परिवार में माता-पिता या दादा-दादी बच्चों को कहानियां सुनाते हैं तो बच्चों की काल्पनिक शक्ति तथा याद शक्ति का विकास होता है साथ ही उन की अपने बुर्जुगों से नज़दीकी बढ़ती है। बचपन में सुनी हुई कहानियां बच्चों पर बहुत प्रभाव डालती हैं तथा बड़े होने तक याद रहती हैं।

इसी तरह माँ छोटे से बच्चे को गोद में उठा कर झूले में डाल कर झुलाती है तथा लोरी गाती है। लोरी सुनने से बच्चा शांत हो जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि संगीत पौधों तथा जानवरों की वृद्धि तथा विकास को भी प्रभावित करता है। बच्चा तो एक इन्सान है वह भी संगीत का आनन्द मानता है। बाल गीत खुशी का साधन होते हैं तथा बच्चे के विकास पर गहरा प्रभाव डालते हैं। बाल गीत से बच्चे का उच्चारण शुद्ध तथा सामाजिक विकास भी होता है। बच्चों को प्यार, दया, हमदर्दी तथा अपने मन के गुणों की शिक्षा प्रदान की जाती है। बाल गीत तथा कहानियां बच्चों की आयु अनुसार होने चाहिएं। बाल गीतों द्वारा बतलाई बातें बच्चे के इर्द-गिर्द के वातावरण अनुसार चाहिए।

बाल गीत गा कर बच्चा अपने मन के भावों को प्रकट करता है तथा दूसरे के जीवन को अपने जीवन से मिला कर अन्तर देखने की कोशिश करता है। इसमें कोई शंका नहीं कि यह अन्तर जलदी पता नहीं चलता क्योंकि पहली अवस्था में तो बच्चा केवल अपने आप ही उस गीत, कविता तथा छोटी-छोटी कहानियां सुनाने तथा सुनने के लिए भावुक होता है। वह बाल गीत सुना कर बहुत खुशी महसूस करता है। यह खुशी ही उसका मनोरंजन है। कुछ बाल गीत नीचे दिए गए हैं

1. चंदा मामा दूर के, पूड़े पकाए नूर के,
आप खाए थाली में, मुझे दे प्याली में,
प्याली गई टूट, मुन्ना गया रूठ।

2. Jonny, Jonny, Yes Papa
Eating Sugar, No Papa,
Open Your Mouth Ha Ha Ha

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प्रश्न 7. (A).
शिशु गीतों का बच्चों के लिए क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 7 का उत्तर।

प्रश्न 8.
बालकों के जीवन में मनोरंजन का क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
मनोरंजन तथा खेल का बालक के जीवन में निम्नलिखित महत्त्व है –
1. बालक संवेगों का प्रकाशन तथा नियन्त्रण सीखता है।
2. सहनशीलता, त्याग, सच्चाई तथा सहानुभूति जैसे गुण उत्पन्न होते हैं।
3. बच्चों में नियम निष्ठा की भावना आ जाती है।
4. बच्चा सीखता है कि एक अच्छा खिलाड़ी हार जाने पर भी उत्साहहीन नहीं होता और न ही उसमें द्वेष का भाव आता है।
5. टेलीविज़न तथा रेडियो आदि में आने वाले शिक्षाप्रद कार्यक्रम, ऐतिहासिक घटनाएं तथा बहुत से कार्यक्रम स्वस्थ मनोरंजन के साथ-साथ बालक के नैतिक व मानसिक विकास में सहायक होते हैं।
6. रेडियो सनने से भाषा का विकास होता है, भाषा सधरती है, व्याकरण का ज्ञान बढ़ता है।
7. संगीत के प्रभाव में बच्चे कई शारीरिक क्रियाएं करते हैं जिससे व्यायाम तथा प्रसन्नता का भाव पैदा होता है।
8. पुस्तकें पढ़ने से नए-नए शब्दों का ज्ञान होता है तथा बच्चे की काल्पनिक शक्ति में वृद्धि होती है। इस प्रकार मनोरंजन के भिन्न-भिन्न साधनों का बच्चे के जीवन में कुछ-न-कुछ प्रभाव अवश्य ही पड़ता है। परन्तु कई बार किसी विशेष प्रकार की मनोरंजन क्रिया को अधिक करने से हानि भी हो सकती है।

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प्रश्न 9.
बच्चों के जीवन में पुस्तकों का क्या प्रभाव पड़ता है ? बाल साहित्य कैसा होना चाहिए ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 4 तथा 6 का उत्तर।

प्रश्न 9. (A).
बच्चों की पुस्तकें कैसी होनी चाहिए ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 9 का उत्तर।

प्रश्न 10.
बालक के विकास में वातावरण की भूमिका का उल्लेख करें।
उत्तर :
वातावरण का भाव ऐसी बाहरी परिस्थितियों से है जिनका प्रभाव बालक पर गर्भाधान से लेकर मत्य तक पडता रहता है। वातावरण, व्यक्ति की बौद्धिक आर्थिक नैतिक, सामाजिक, संवेगात्मक क्षमतायों को प्रभावित करता है।
1. भौतिक वातावरण-गर्मी, सर्दी, भोजन, घर, स्कूल आदि ऐसे कारक हैं जो व्यक्ति के विकास को प्रभावित करते हैं।
2. सामाजिक वातावरण-माता-पिता के आपसी सम्बन्ध, बच्चे के दोस्त, परिवार के सदस्य, अध्यापक, सम्बन्धी आदि भी विकास को प्रभावित करते हैं।
3. संवेगात्मक वातावरण-बालक के मित्र, माता-पिता, अध्यापक, सम्बन्धियों के साथ सम्बन्धों के कारण बच्चों में संवेगात्मक विकास भी होता है।
4. बौद्धिक वातावरण रेडियो, टी० वी०, पुस्तकें, खिलौने, स्कूल आदि से बच्चों का बौद्धिक विकास होता है।

एक शब्द/एक वाक्य वाले प्रश्न –

(क) निम्न का उत्तर एक शब्द में दें –

प्रश्न 1.
टेलीविज़न के द्वारा मनोरंजन के साथ-साथ किसका विकास होता ?
उत्तर :
बौद्धिक विकास।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 2 विकास पर बाहरी वातावरण का प्रभाव

प्रश्न 2.
बच्चों में बढ़िया आदतों का निर्माण कौन कर सकता है ?
उत्तर :
माँ-बाप।

प्रश्न 3. जोन्स के अनुसार कितने मास का बालक चीजों को खींच सकता
उत्तर :
21 मास।

प्रश्न 4.
बच्चों पर पुस्तकों का एक प्रभाव बताएं।
उत्तर :
भाषा का विकास।

प्रश्न 5.
सिनेमा में दिखाई जाने वाली असामाजिक बातों का किस विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
नैतिक विकास।

(ख) रिक्त स्थान भरो –
1. विज्ञापन ………….. का परिचय करवाते हैं।
2. खेलों द्वारा शरीर का ………… होता है।
3. पुस्तकें पढ़ने से बच्चों में ……….. शब्दों का ज्ञान होता है।
4. …………… से भाषा का ज्ञान होता है।
उत्तर :
1. चित्रांकन, संगीत तथा सांसारिक वस्तुओं
2. व्यायाम
3. नए
4. रेडियो सुनने।

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(ग) निम्न में ठीक अथवा गलत बताएं –
1. पुस्तकें पढ़ने से बच्चों में पढ़ने की रुचि नहीं रहती।
2. बालकों की अभिव्यक्ति केवल लेखन से ही होती है।
3. जो बच्चे परस्पर खेलते हैं, उनमें द्वेष की भावना नहीं रहती।
4. खेलों से चिड़चिड़ापन दूर होता है।
उत्तर :
1. गलत
2. गलत
3. ठीक
4. ठीक।

बहु-विकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
बालक के विकास पर घर के बाहर की निम्न बातों का प्रभाव पड़ता है –
(A) पुस्तकें
(B) रेडियो
(C) टेलीविज़न
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर :
उपरोक्त सभी।

प्रश्न 2.
खेलों का शारीरिक विकास में निम्न महत्त्व है –
(A) बच्चे का व्यायाम होता है
(B) चिड़चिड़ापन कम होता है
(C) सहनशीलता की भावना का विकास होता है
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर :
उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 3.
बालक के विकास पर सबसे अधिक प्रभाव किस बात का पड़ता है ?
(A) परिवार
(B) रेडियो
(C) चलचित्र
(D) संगीत।
उत्तर :
परिवार।

प्रश्न 4.
टेलीविज़न के द्वारा मनोरंजन के साथ-साथ किसका विकास होता है ?
(A) शारीरिक विकास
(B) बौद्धिक विकास
(C) मानसिक विकास
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
बौद्धिक विकास।

प्रश्न 5.
सिनेमा में दिखाई जाने वाली असामाजिक बातों का किस विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है ?
(A) नैतिक विकास
(B) शारीरिक विकास
(C) संवेगात्मक विकास
(D) सामाजिक विकास।
उत्तर :
नैतिक विकास।

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प्रश्न 6.
बच्चों में बढ़िया आदतों का निर्माण कौन कर सकता है ?
(A) दोस्त
(B) मां-बाप
(C) दादा-दादी
(D) चाचा-चाची।
उत्तर :
मां-बाप।

प्रश्न 7.
विज्ञापन ………….. का परिचय करवाते हैं
(A) चित्रांकन
(B) संगीत
(C) सांसारिक वस्तुओं
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

प्रश्न 8.
बच्चे में झूठ बोलने की आदत कैसे पैदा होती है ?
(A) अधिक सख़्ती
(B) अधिक लाड़-प्यार
(C) अधिक सख्ती और अधिक लाड़-प्यार
(D) कोई भी नहीं।
उत्तर :
अधिक सख्ती और अधिक लाड़-प्यार।

प्रश्न 9.
रेडियो व टेलीविज़न का बच्चों के लिए क्या उपयोग होता है ?
(A) मनोरंजन
(B) बौद्धिक विकास
(C) नैतिक विकास
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर :
उपर्युक्त सभी।

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प्रश्न 10.
तीन साल से छोटे बच्चों की पुस्तकें कैसी होनी चाहिए ?
(A) रंग-बिरंगे चित्रों वाली
(B) पढ़ाई से सम्बन्धित
(C) यथार्थ से सम्बन्धित कहानियों वाली
(D) इनमें से कोई भी नहीं।
उत्तर :
रंग-बिरंगे चित्रों वाली।

प्रश्न 11.
बालगीत (राइम) बच्चों के ……. के लिए जरूरी है ?
(A) भाषा विकास के लिए
(B) मनोरंजन हेतु
(C) बौद्धिक विकास के लिए
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर :
उपर्युक्त सभी।।

प्रश्न 12.
रेडियो तथा टेलीविज़न द्वारा बच्चों के मनोरंजन के साथ-साथ किसका विकास होता है ?
(A) भाषा विकास
(B) बौद्धिक विकास
(C) नैतिक विकास
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर :
उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 13.
बालकों की अभिव्यक्ति के क्या साधन हैं ?
(A) चित्रांकन
(B) संगीत
(C) हस्तकौशल
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

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प्रश्न 14.
टेलीविज़न का बालक के लिए क्या महत्त्व है ?
(A) शिक्षाप्रद
(B) ऐतिहासिक रूप से
(C) मनोरंजन
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

प्रश्न 15.
रेडियो और टेलीविजन सुनने से ……….. का विकास होता है।
(A) शरीर
(B) भाषा
(C) गत्यात्मक
(D) संवेगात्मक।
उत्तर :
भाषा।

विकास पर बाहरी वातावरण का प्रभाव HBSE 10th Class Home Science Notes

ध्यानार्थ तथ्य :

→ परिवार (घर) तथा विद्यालय के अलावा बालक के विकास पर विभिन्न बाहरी वातावरण तथा प्रक्रियाओं का भी बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।

→ बालक के विकास पर पुस्तकों, खेलों, संगीत, रेडियो, चलचित्र (सिनेमा), टेलीविज़न तथा विज्ञापनों का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।

→ बाहरी खेल उचित शारीरिक विकास में सहायक होते हैं। खेलों द्वारा बालकों के संवेगों का नियंत्रण हो जाता है। बाहरी मनोरंजनों द्वारा बच्चों को हँसमुख बनाकर संवेगात्मक रचना सम्भव है।

→ रेडियो, सिनेमा, टेलीविज़न द्वारा मनोरंजन के साथ-साथ बालकों का बौद्धिक विकास भी होता है। परन्तु सिनेमा में दिखाई जाने वाली हिंसा तथा अन्य अर्थहीन तथा असामाजिक बातों से बालकों के नैतिक विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

→ टेलीविज़न पर दिखाए जाने वाले शिक्षाप्रद कार्यक्रम, ऐतिहासिक घटनाएं तथा अन्य बहुत से कार्यक्रम स्वस्थ मनोरंजन के साथ-साथ बालक के मानसिक तथा नैतिक विकास में सहायक होते हैं। आज का बालक पहले के बालकों से कहीं अधिक स्मार्ट है। यह टेलीविज़न के कार्यक्रमों की ही देन है।

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→ संगीत का विकास में बहुत अधिक महत्त्व है। अच्छा संगीत मनोरंजन का एक अच्छा साधन है।

→ किसी भी चीज़ की अति बुरी होती है। यही बात आज रेडियो, टेलीविज़न, सिनेमा की ओर बालकों के बढ़ते झुकाव द्वारा प्रदर्शित होती है। आज का बालक टेलीविज़न के सभी कार्यक्रम देखना चाहता है जिससे उसकी खेलों में रुचि कम होती है और परिणामस्वरूप शारीरिक विकास रुक जाता है। साथ ही उनका व्यक्तिगत और सामाजिक समायोजन बिगड़ जाता है।

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HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 1 बाल विकास

Haryana State Board HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 1 बाल विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Home Science Solutions Chapter 1 बाल विकास

अति लघु उत्तरीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
विकास से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
विकास का अर्थ है कि अनेक कार्यों तथा कौशलों के लिए योग्यता अर्जित करना।

प्रश्न 2.
विकास कितने प्रकार का होता है ?
अथवा
विकास को कितनी श्रेणियों में बांटा गया है ?
उत्तर :
विकास निम्नलिखित प्रकार के होते हैं –

  1. शारीरिक
  2. गत्यात्मक
  3. सामाजिक
  4. संवेगात्मक
  5. भाषा
  6. ज्ञानात्मक।

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प्रश्न 3.
किन-किन कारणों के कारण बच्चों का विकास उचित प्रकार से नहीं हो सकता ?
अथवा
कोई चार कारण बताएं, जिस कारण बच्चों का विकास उचित प्रकार से नहीं हो सकता।
उत्तर :
बच्चों का विकास कई कारणों से ठीक तरह नहीं होता जैसे –

  1. बच्चों को विरासत से ही कुछ कमियां मिली हों जैसे-बच्चा मंद बुद्धि हो सकता है, अंगहीन हो सकता है।
  2. बच्चे में अच्छे गुण होने के बावजूद उनको अच्छा वातावरण न मिल सकने के कारण भी उसके विकास में रुकावट डाल सकता है।
  3. कई बार घरेलू झगड़े भी बच्चे के विकास में रुकावट डालते हैं।
  4. बच्चे की रुचि से विपरीत उससे ज़बरदस्ती कोई कार्य करवाना जैसे किसी बच्चे को गाने-बजाने का शौक है तो उसे ज़बरदस्ती खेलने को कहा जाए।
  5. बचपन में बच्चे को माता-पिता का प्यार तथा देख-रेख न मिल सकना।

प्रश्न 4.
परिवार की खुशी बच्चों के भविष्य के साथ कैसे जुड़ी है ?
उत्तर :
प्रत्येक परिवार की खुशी, उम्मीद तथा भविष्य बच्चों से जुड़ा होता है। बच्चे ही देश का भविष्य होते हैं तथा परिवार में बच्चे यदि शारीरिक तथा मानसिक तौर पर स्वस्थ हो तो परिवार के लिए खुशी का कारण बनते हैं। परिवार खुश हो, तो बच्चों के विकास के लिए सहायक रहता है। यदि परिवार में लड़ाई-झगड़े हों अथवा परिवार आर्थिक पक्ष से तंग हो, तो इन बातों का बच्चों के भविष्य पर बुरा प्रभाव होता है।

प्रश्न 5.
बचपन को कितनी अवस्थाओं में बांटा जा सकता है ?
उत्तर :
बचपन को निम्नलिखित अवस्थाओं में बांटा जा सकता है –

  1. जन्म से दो वर्ष तक
  2. दो से तीन वर्ष तक
  3. तीन से छः वर्ष का बच्चा
  4. छ: से किशोरावस्था तक।

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प्रश्न 6.
बच्चों को टीकों की बूस्टर दवा कब दिलाई जाती है ?
उत्तर :
छ: वर्ष का होने पर बच्चे को कई टीकों के बूस्टर डोज़ दिए जाते हैं ताकि उन्हें कई जानलेवा बीमारियों से बचाया जा सके।

प्रश्न 7.
कितनी आय का बच्चा कानुनी रूप से वयस्क समझा जाता है ?
उत्तर :
पहले 21 वर्ष के बच्चे को बालिग समझा जाता था, परन्तु अब 18 वर्ष के बच्चे को बालिग समझा जाता है जबकि 20 वर्ष की आयु तक उसका शारीरिक विकास होता रहता है।

प्रश्न 8.
समान-अन्तर खेल से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
दो वर्ष तक के बच्चे में सहयोग की भावना अभी पैदा नहीं हुई होती। यदि ऐसे बच्चों को एक साथ बिठा भी दिया जाये तो वे स्वयं ही खेलते रहते हैं; एक-दूसरे से नहीं खेलते। ऐसी खेल को समान-अन्तर खेल कहा जाता है।

प्रश्न 9.
टैम्पर टैंट्रम से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
कई बार बच्चे बहुत गुस्से हो जाते हैं तथा ज़मीन पर लेटते हैं। ऐसी अवस्था को टैम्पर टैंट्रम कहा जाता है।

प्रश्न 10.
माता-पिता बच्चे का सही मार्ग-दर्शन कैसे कर सकते हैं ?
उत्तर :
बच्चों में विभिन्न प्रकार की भावनाएं जैसे प्यार, गुस्सा, ईर्ष्या, डर, सहयोग आदि होती हैं। बच्चा अभी रो रहा होता है तथा अगले ही पल खिलखिला कर हंस रहा। होता है। उसकी भावनाएं बड़ी तेज़ी से बदलती हैं। उसकी बदलती भावनाओं को समझने के लिए हमें उनकी मनोवैज्ञानिक अवस्था को समझना आवश्यक है। बच्चों की विभिन्न भावनाओं को समझने के लिए मां-बाप उसका सही मार्ग-दर्शन कर सकते हैं।

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प्रश्न 11.
बच्चों में झूठ बोलना, खर्चीलापन अथवा अहंकारी होना जैसी बुरी आदतें कैसे पैदा हो जाती हैं ?
उत्तर :
कई बार कई मां-बाप बच्चों पर अधिक सख्ती करते हैं तथा कई ज़रूरत से अधिक लाड-प्यार करते हैं। इन दोनों हालातों में बच्चे में ग़लत आदतें जैसे झठ बोलना, खर्चीलापन अथवा चोरी करना अथवा अहंकारी होना आदि पैदा हो जाती हैं।

प्रश्न 12.
11 से 12 वर्ष की आयु में लड़के-लड़कियां कौन-से खेल खेलते हैं ?
उत्तर :
लड़के क्रिकेट, कंचे, गुल्ली-डंडा, बॉस्केट बाल आदि खेलते हैं जबकि लड़कियां स्टापू, छुपा-छिपी तथा गोटियां आदि खेलती हैं।

प्रश्न 13.
बालक की वृद्धि तथा आहार (पोषण) में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर :
जब वृद्धि की गति तेज़ होती है, तो बालक को पोषक आहार की अधिक आवश्यकता होती है। पोषक आहार न मिलने से बालक के अंगों का विकास रुक जाता है।

प्रश्न 14.
बालक को शारीरिक वृद्धि को कैसे बढ़ाया जा सकता है ?
उत्तर :
1. उचित पोषक आहार देकर।
2. प्रोत्साहन द्वारा-बैठने, खड़े होने, चलने आदि के लिए प्रेरणा देकर।

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प्रश्न 15.
‘संवेग’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
संवेग का अर्थ उन अनुभूतियों से लिया जाता है जो व्यक्तियों को विभिन्न प्रकार से उत्तेजित करती हैं और उसमें हर्ष, क्रोध, भय एवं स्नेह का भाव पैदा करती हैं।

प्रश्न 16.
सामान्य शारीरिक विकास का प्रभाव बालक के किन व्यवहार क्षेत्र पर पड़ता है ?
उत्तर :
शारीरिक विकास का बालक के व्यवहार की गुणात्मकता और मात्रात्मकता दोनों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह मुख्यतः चार क्षेत्रों पर पड़ता है –

  1. नाड़ी संस्थान
  2. मांसपेशियां
  3. अन्तः स्त्रावी ग्रंथियां
  4. शारीरिक संरचना।

प्रश्न 17.
बालक के सामान्य व्यवहार और शारीरिक विकास के विषय में कैरल का क्या मत है ?
उत्तर :
“बालक के दैहिक विकास और इसके सामान्य व्यवहार में घनिष्ठ सह-सम्बन्ध है। यदि हम समझना चाहते हैं कि भिन्न-भिन्न बालकों में क्या समानताएं हैं और क्या विषमताएं तथा आयु वृद्धि के साथ-साथ व्यक्ति में क्या-क्या परिवर्तन आते हैं तो हमें बालक के शारीरिक विकास का अच्छी प्रकार अध्ययन करना होगा।”

प्रश्न 18.
स्वस्थ बालक के लक्षण क्या हैं ?
उत्तर :
स्वस्थ बालक का चेहरा सदा खिला रहता है। उसकी आँखों में विशेष चमक रहती है। मन सदा कार्य के प्रति उत्साहित रहता है। शरीर क्रियाशील रहता है।

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प्रश्न 19.
शारीरिक विकास को कौन-कौन से कारक प्रभावित करते हैं ?
अथवा
शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले चार कारक बताएँ।
उत्तर :
शारीरिक विकास को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं-परिवार, भौतिक वातावरण, जलवायु, भोजन, खेल, रोग, लैंगिक भिन्नता, संवेगात्मक तनाव।

प्रश्न 20.
बालक के शारीरिक विकास की कितनी अवस्थाएं हैं ?
उत्तर :
बालक के शारीरिक विकास की निम्नलिखित चार अवस्थाएं हैं –

  1. बालक का जन्म से 2 वर्ष तक विकास तेज गति से होता है।
  2. किशोरावस्था से पूर्व तक विकास की गति मंद होती है।
  3. किशोरावस्था में विकास तेजी से होता है।
  4. किशोरावस्था के बाद परिपक्वास्था तक विकास पुनः धीमी गति से होता है।

प्रश्न 21.
बच्चों के लिए व्यायाम क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
बच्चों के शारीरिक विकास एवं हड्डियों की सुदृढ़ता के लिए व्यायाम आवश्यक होता है। व्यायाम से शरीर स्वस्थ रहता है। बच्चे की आयु के बढ़ने के साथ-साथ उसके व्यायाम करने का ढंग भी बदलता जाता है। प्रारम्भ में शिशु अपने बिस्तर पर ही लेटा हुआ अपनी टांगें तथा बांहें फेंककर व्यायाम करता है। जब घुटनों के बल चलने लगता है तो वह चलकर, भागकर अथवा कूदकर व्यायाम करता है। बच्चे की देखभाल करने वालों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चा हर रोज़ आवश्यकतानुसार व्यायाम करे ताकि उसका शरीर स्वस्थ रहे। व्यायाम करने से बच्चों को भूख भी अच्छी लगती है और वह रोगों से बचा रहता है।

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प्रश्न 22.
बालक का रोगी होना उसके साधारण व्यवहार को कैसे प्रभावित करता –
उत्तर :
रोगी होने पर बालक का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। बीमारी के पश्चात् वह हर समय कुछ-न-कुछ खाने की चीजें मांगता रहता है। इसलिए हमें बालक को स्वस्थ रखने का प्रयत्न करना चाहिए। रोगग्रस्त बालक का उचित उपचार करवाना चाहिए। स्वस्थ बालक का चेहरा प्रसन्न रहता है। उसकी आँखें चमकती रहती हैं तथा मन उत्साहित होता रहता है और शरीर क्रियाशील रहता है।

प्रश्न 23.
समुदाय में रहने पर बालक में कौन-कौन से अवगुण आ जाते हैं ?
उत्तर :
समुदाय में रहने पर बालक में निम्नलिखित अवगुण आ जाते हैं कसम खाना, गाली-गलौच करना, अश्लील व्यवहार करना, असत्य बोलना, बातों की उपेक्षा करना, नियमों का उल्लंघन करना, शरारत करना इत्यादि।

प्रश्न 24.
भाषा से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
भाषा अपने विचारों को दूसरे व्यक्तियों तक पहुंचाने की योग्यता है। इसमें विचार, अनुभूति तथा संदेशवाहन को प्रतीकों द्वारा व्यक्त किया जाता है। इसके अन्तर्गत बोलना, लिखना, सुनना, पढ़ना, चेहरे के भाव, मुख मुद्रा, कला, आदि आते हैं। बोलना भाषा का एक अंग है और संदेश वहन करने का एक पक्ष है।

प्रश्न 25.
भाषा की विशेषताएं क्या हैं ?
उत्तर :
भाषा की कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं –

  1. प्रत्येक प्राणी की अपनी भाषा होती है।
  2. भाषा किसी की पैतृक सम्पत्ति नहीं है और न ही किसी वर्ग, जाति तथा समुदाय का एकाधिकार।
  3. भाषा अर्जित है।
  4. यह परिवर्तनशील होती हैं। देश, काल तथा परिस्थितियों के कारण इसमें परिवर्तन होता रहता है।
  5. भाषा का सम्बन्ध परम्पराओं से होता है।

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प्रश्न 26.
भाषा विकास को प्रभावित करने वाले कारक क्या हैं ?
उत्तर :
भाषा विकास को प्रभावित करने वाले कारक हैं – व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषताएं, पारिवारिक सम्बन्ध, लिंग, सामाजिक-आर्थिक स्तर, निर्देशन, उत्प्रेरणा, सामाजिक अधिगम के स्तर हैं।

प्रश्न 27.
भाषा के विकास का स्वरूप क्या है ?
उत्तर :
भाषा को सामाजिक विकास का सबसे बड़ा साधन माना गया है। इसके विकास के स्वरूप को समझने के लिए निम्नलिखित बातों पर विचार करेंगे
1. संवेदनात्मक प्रतिक्रियाएँ-इसके अन्तर्गत देखना, सुनना आदि क्रियाएं आती हैं।
2. संवेदना क्रिया सम्बन्धी अनुक्रियाएँ-इसके अन्तर्गत बोलना, लिखना व चित्रांकन करना आदि आते हैं। बालक के मुख से सार्थक शब्द समूह को ही भाषा कहते हैं।

प्रश्न 28.
प्रयास और भूल द्वारा बच्चा किस प्रकार बोलना सीखता है ?
उत्तर :
अमेरिकन वैज्ञानिक डेशियल के अनुसार यदि बालक अनुकरण द्वारा बोलना सीखता, तो वह बहुत जल्दी सीख लेता। उनके अनुसार बालक प्रयास व भूल द्वारा बोलना सीखता है। जिस प्रकार बालक उंगलियों द्वारा किसी वस्तु को पकड़ने का प्रयत्न करता है, उसी प्रकार वह मुख से ध्वनियां निकालता है। माता-पिता उसे इन ध्वनियों का अनुकरण करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इस प्रकार वह प्रयास और भूल द्वारा बोलना सीख जाता है।

प्रश्न 28.
(A) प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में दाँत कितनी बार आते हैं ? उन्हें क्या कहते हैं ?
उत्तर :
शिशु के पहली बार दाँत छः से आठ महीने के मध्य निकलते हैं, इन्हें दूध के दाँत कहते हैं तथा दूसरी बार छः वर्ष की आयु में स्थायी दाँत निकलते हैं।

प्रश्न 29.
भाषा विकास का सीधा सम्बन्ध किससे है ?
उत्तर :
भाषा विकास का सीधा सम्बन्ध स्वर, यन्त्र, जीभ, गला और फेफड़ों की परिपक्वता से है। यदि बालक के ये अंग सामान्य रूप से विकसित होते हैं तो उसका भाषिक विकास संतोषजनक होता है। इसका सम्बन्ध दृष्टि, होंठ, ताल, दांत और नाक के विकास से भी है।

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प्रश्न 30.
साहित्य को समाज का दर्पण क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
भाषा सामाजिक सम्पर्क का सबसे बड़ा साधन है। इसके द्वारा सभी तरह की सांस्कृतिक उपलब्धियां सम्भव हो सकती हैं। इसके माध्यम से हम अपने विचार प्रकट कर सकते हैं। इससे ही साहित्य का आविर्भाव होता है। इसलिए साहित्य को समाज का दर्पण कहा गया है।

प्रश्न 31.
प्रेरणा द्वारा बालक किस प्रकार बोलना सीखता है ?
उत्तर :
बालक तब बोलता है जबकि बोले बिना उसका काम नहीं चलता। तोतली भाषा बोलने पर माता-पिता तो समझ लेते हैं। परन्तु बाहर जाने पर उसका मजाक उड़ाया जाता है। इसलिए वह शुद्ध बोलने का प्रयत्न करता है। दूसरे बालकों के साथ सामाजिक संबंध बनाने के लिए बालक अपनी आवश्यकताओं के पूरक शब्द को बोलने का प्रयास करता है।

प्रश्न 32.
बालक अनुकरण द्वारा किस प्रकार बोलना सीखता है ?
उत्तर :
बालक बबलाते समय मुँह से निकलने वाली ध्वनियों को दोहराता है। अन्य लोगों की मौजूदगी में वह उनकी बातों का अनुकरण करता है। छ: महीने की अवस्था के पश्चात् बालक ‘ना-ना-ना’, व ‘बा-बा-बा’ ध्वनियों का तथा ग्यारह महीने के पश्चात् बालक नाना, मामा, बाबा आदि शब्दों का अनुकरण करता है। इस प्रकार अनुकरण द्वारा बोलना सीख जाता है।

प्रश्न 33.
बच्चा सम्बद्धता द्वारा किस प्रकार अर्थ ग्रहण करता है ?
उत्तर :
बच्चे द्वारा बोले गये शब्द सम्बद्धता द्वारा निश्चित अर्थों को ग्रहण करते हैं। जिस प्रकार माता बच्चे के मुख से ‘बि’ सुनकर बिल्ली का खिलौना उसके पास लाकर “बिल्ली’ कहने के लिए उत्साहित करती है। बालक सामने बिल्ली देखता है और सुनता है। इस तरह निरर्थक ध्वनि ‘बि’ और ‘बिल्ली’ में सम्बद्धता स्थापित हो जाती है। माता की गैरहाज़िर में भी बालक बिल्ली को ‘बि’ पुकारता है।

प्रश्न 34.
बालक के क्रन्दन करने के क्या कारण हैं ?
उत्तर :
बालक के क्रन्दन करने के निम्नलिखित कारण हैं-भूख लगना, पेट में दर्द होना, सर्दी लगना, अधिक प्रकाश, अधिक अंधेरा आदि।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 1 बाल विकास

प्रश्न 35.
क्रन्दन ध्वनि (क्राइंग) क्या होती है ?
उत्तर :
बच्चों द्वारा रोने को क्रन्दन कहते हैं। बालक भूख, डर, पेट दर्द, अधिक प्रकाश, अधिक अंधेरा आदि होने पर क्रन्दन करता है।

प्रश्न 36.
समाजीकरण का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
समाजीकरण का अर्थ है कि बालक को समाज के रीति-रिवाज, विश्वास, सामाजिक रस्में, जीवन मूल्य आदि तथा समाज में रहने का ज्ञान होना चाहिए।

प्रश्न 37.
अभिवृद्धि किसे कहते हैं ?
उत्तर :
अभिवृद्धि का सम्बन्ध शारीरिक आकार में बढ़ौत्तरी से है जैसे बालक का भार बढ़ना, लम्बाई बढ़ना, आदि।

प्रश्न 38.
अभिवृद्धि और विकास में एक अन्तर बताएं।
उत्तर :
अभिवृद्धि का अर्थ है शारीरिक आकार में बढ़ोत्तरी। यह विकास का ही एक पहलू है। विकास एक बढ़े दायरे वाला शब्द है, इसमें अभिवृद्धि भी आ जाती है तथा अन्य प्रकार का विकास जैसे संवेगात्मक, ज्ञानात्मक, तार्किक विकास आदि शामिल हैं। इनमें एक सबसे बड़ा अन्तर है कि अभिवृद्धि एक समय पर आकर रुक जाती है जब कि विकास मनुष्य के अन्तिम श्वास तक होता रहता है। अभिवृद्धि को देखा तथा मापा जा सकता है परन्तु विकास को मापना इतना सरल नहीं है।

प्रश्न 39.
अभिवृद्धि और विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से
उत्तर :
अभिवृद्धि और विकास को प्रभावित करने वाले कारक है वंशानुक्रम तथा वातावरण।

प्रश्न 40.
बच्चों के किन्हीं दो संवेंगों के नाम लिखें। बालकों द्वारा उन्हें प्रदर्शित करने का कोई एक मुख्य तरीका भी बताएं।
उत्तर :
बच्चों के विभिन्न संवेग हैं-क्रोध, हर्ष, प्यार, डर आदि। शिशु चिल्लाकर या सांस रोककर अपने डर को प्रदर्शित करता है। हर्ष की स्थिति में बच्चा हंसता अथवा मुस्कराता है तथा ज़ोर से बाजू, टांगों को हिलाता है।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 1 बाल विकास

प्रश्न 41.
सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक कौन-से हैं ?
उत्तर :
सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक हैं-खेल, आर्थिक तथा सामाजिक स्तर, बाल समुदाय, शारीरिक व मानसिक विकास तथा परिवार आदि।

प्रश्न 42.
बचपनावस्था में शरीर की हड्डियों की संख्या …….. है जो कि किशोरावस्था तक ……….. रह जाती है।
उत्तर :
270, 206

प्रश्न 43.
बाल विकास बच्चों के कौन-से पहलू का अध्ययन करता है ?
उत्तर :
बाल विकास बच्चों की वृद्धि तथा विकास का अध्ययन है।

प्रश्न 44.
भाषा सीखने के प्रमुख अंग क्या हैं ?
उत्तर :
भाषा सीखने के प्रमुख अंग हैं-अनुकरण, वार्तालाप, कहानियां, प्रश्नोत्तर, खेल।

प्रश्न 45.
बाल्यावस्था के प्रमुख संवेगों को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर :
भय, शर्मीलापन, परेशानी, चिन्ता, क्रोध, ईर्ष्या, जिज्ञासा, स्नेह आदि।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 1 बाल विकास

प्रश्न 46.
मां का दूध बच्चे के लिए क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
मां का दूध बच्चे के लिए एक प्रकार से पूर्ण आहार का कार्य करता है। उसको रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का कार्य करता है। बच्चे की भूख मिटती है। बच्चे को भावनात्मक संतुष्टि मिलती है। बच्चा अपनी मां के साथ जुड़ाव महसूस करता है। प्यार, स्नेह की भावना उत्पन्न होती है। मां को भी संतुष्टि मिलती है। बच्चे का विकास ठीक ढंग से होता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
(क) बाल विकास से आप क्या समझते हो और पारिवारिक सम्बन्धों का महत्त्व बताएं।
(ख) वृद्धि एवं विकास दोनों कैसे अलग हैं ?
(ग) अभिवृद्धि और विकास में एक अन्तर बताएं।
उत्तर :
(क) बाल विकास बच्चों की वृद्धि तथा विकास का अध्ययन है। इसमें गर्भ अवस्था से लेकर बालिग होने तक की सम्पूर्ण वृद्धि तथा विकास का अध्ययन करते हैं। इनमें शारीरिक, मानसिक, व्यावहारिक एवं मनोवैज्ञानिक वृद्धि तथा विकास शामिल हैं। इसके अतिरिक्त बच्चों में पाई जाने वाली व्यक्तिगत भिन्नताएं, उनके साधारण तथा असाधारण व्यवहार तथा वातावरण का बच्चे पर प्रभाव को जानने की कोशिश भी की जाती है।

मनुष्य का बच्चा अपनी प्राथमिक आवश्यकताओं के लिए अपने आस-पास के लोगों पर अधिक समय के लिए निर्भर रहता है। बच्चे की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए परिवार होता है। इन ज़रूरतों को किस तरह पूरा किया जाता है, इसका बच्चे के व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है तथा इसका बड़े होकर पारिवारिक रिश्तों पर भी प्रभाव पड़ता है।

मनुष्य के पारिवारिक रिश्ते उसके सामाजिक जीवन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। क्योंकि हम इस समाज में ही विचरते हैं, इसलिए हमारे पारिवारिक रिश्ते तथा परिवार से बाहर के रिश्ते हमारे जीवन की खुशी का आधार होते हैं। इस तरह बच्चे के विकास में पारिवारिक सम्बन्ध काफ़ी महत्त्व रखते हैं।

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(ख) वृद्धि और विकास एक दूसरे से निम्नलिखित तरह से अलग हैं –

  1. शरीर के विभिन्न अंगों के आकार के बड़े होने को वृद्धि कहते हैं तथा गुणात्मक तत्त्वों के सुधार को विकास कहते हैं।
  2. वृद्धि विकास का ही एक हिस्सा है।
  3. विकास व्यक्तित्व के सभी क्षेत्रों में परिवर्तन लाता है।
  4. विकास के परिवर्तनों को मापना आसान नहीं है। परन्तु वृद्धि को देखा व मापा जा सकता है।
  5. विकास पूरा जीवन चलता है जबकि वृद्धि निर्धारित समय बाद रुक जाती है।

(ग) देखें भाग (ख)।

प्रश्न 2.
जन्म से दो वर्ष तक होने वाले शारीरिक विकास के पड़ावों का वर्णन करो।
उत्तर :
जन्म से दो वर्ष के दौरान होने वाले शारीरिक विकास निम्नलिखित अनुसार हैं

  1. 6 हफ्ते की आयु तक बच्चा मुस्कुराता है तथा किसी रंगीन वस्तु की ओर टिकटिकी लगाकर देखता है।
  2. 3 महीने की आयु तक बच्चा चलती-फिरती वस्तु से अपनी आँखों को घुमाने लगता है।
  3. 6 महीने का बच्चा सहारे से तथा 8 महीने का बच्चा बिना सहारे के बैठ सकता है।
  4. 9 महीने का बच्चा सहारे के बिना खड़ा हो सकता है।
  5. 10 महीने का बच्चा स्वयं खड़ा हो सकता है तथा सरल, सीधे शब्द जैसे-काका, पापा, मामा, टाटा आदि बोल सकता है।
  6. 1 वर्ष का बच्चा स्वयं उठकर खड़ा हो सकता है तथा उंगली पकड़कर अथवा स्वयं चलने लगता है।
  7. 12 वर्ष का बच्चा बिना किसी सहारे के चल सकता है तथा 2 वर्ष में बच्चा सीढ़ियों पर चढ़ सकता है।

प्रश्न 3.
स्कूल बच्चे के सामाजिक और मानसिक विकास में सहायक होता है। कैसे ?
उत्तर :
स्कूल में बच्चे अपने साथियों से पढ़ना तथा खेलना तथा कई बार बोलना भी सीखते हैं। इस तरह उनमें सहयोग की भावना पैदा होती है। बच्चा जब अपने स्कूल का कार्य करता है तो उसमें ज़िम्मेदारी का बीज बो दिया जाता है। जब वह अध्यापक का कहना मानता है तो उसमें बड़ों के प्रति आदर की भावना पैदा होती है। बच्चा स्कूल में अपने साथियों से कई नियम सीखता है तथा कई अच्छी आदतें सीखता है जो आगे चलकर उसके व्यक्तित्व को उभारने में सहायक हो सकती हैं।

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प्रश्न 4.
बच्चों से मित्रतापूर्वक व्यवहार रखने से उनमें कौन-से सद्गुण विकसित होते हैं ? विस्तारपूर्वक लिखो।
उत्तर :
बच्चे के व्यक्तित्व तथा भावनात्मक विकास में माता-पिता के प्यार तथा मित्रतापूर्वक व्यवहार की बड़ी महत्ता है। माता-पिता के प्यार से बच्चे को यह विश्वास हो जाता है कि उसकी प्राथमिक ज़रूरतें उसके माता-पिता पूरी करेंगे। माता-पिता की ओर से बच्चे द्वारा पूछे गये प्रश्नों के उत्तर देने पर बच्चे का दिमागी विकास होता है। उसे स्वयं पर विश्वास होने लगता है। माता-पिता द्वारा बच्चे को कहानियां सुनाने पर उसका मानसिक विकास होता है।

कई बार बच्चा मां का कहना नहीं मानना चाहता तथा ज़बरदस्ती करने पर गुस्सा होता है। ऊँची आवाज़ में रोता है, हाथ-पैर मारता है तथा जमीन पर लोटने लग जाता है। ऐसी हालत में बच्चे को डांटना नहीं चाहिए तथा शांत होने पर उसे प्यार से माता-पिता द्वारा समझाया जाना चाहिए कि वह ऐसे ग़लत करता है। इस तरह बच्चे को पता चल जाता है कि माता-पिता उससे किस तरह के व्यवहार की उम्मीद करते हैं।

बच्चे से दोस्ताना व्यवहार रखने पर बच्चों को अपनी समस्याओं का हल ढूँढने के लिए ग़लत रास्तों पर नहीं चलना पड़ता अपितु उनमें विश्वास पैदा होता है कि माता-पिता उसे सही मार्ग बताएंगे। वह ग़लत संगति से बच जाता है। उसमें अच्छी रुचियां जैसे ड्राईंग, पेंटिंग, संगीत, अच्छी किताबें पढ़ना आदि पैदा होती हैं। वह अपनी शक्ति का प्रयोग अच्छे कार्यों में करता है। इस तरह वह एक अच्छा व्यक्तित्व बन कर उभरता है।

प्रश्न 5.
प्रारम्भिक वर्षों में माता-पिता बच्चे के व्यक्तित्व के विकास में किस प्रकार योगदान डालते हैं ?
उत्तर :
बच्चे के व्यक्तित्व को बनाने में माता-पिता का बड़ा योगदान होता है क्योंकि बच्चा जब अभी छोटा ही होता है तभी माता-पिता की भूमिका उसकी ज़िन्दगी में आरम्भ हो जाती है। बच्चे के प्रारम्भिक वर्षों में बच्चे को भरपूर प्यार देना, उस द्वारा किये प्रश्नों के उत्तर देना, बच्चे को कहानियां सुनाना आदि से बच्चे का व्यक्तित्व उभरता है तथा माता-पिता इसमें काफ़ी सहायक होते हैं।

प्रश्न 6.
बच्चों को टीके लगवाने क्यों जरूरी हैं ? बच्चों को कौन-से टीके किस आयु में लगवाने चाहिएं तथा क्यों ?
उत्तर :
बच्चों को कई खतरनाक जानलेवा बीमारियों से बचाने के लिए उन्हें टीके लगाये जाते हैं। इन टीकों का सिलसिला जन्म के पश्चात् आरम्भ हो जाता है। बच्चों को 2 वर्ष की आयु तक चेचक, डिप्थीरिया, खांसी, टिटनस, पोलियो, हेपेटाइटस, बी०सी०जी० तथा टी०बी० आदि के टीके लगवाये जाते हैं। छः वर्ष में बच्चों को कई टीकों की बूस्टर डोज़ भी दी जाती है।

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प्रश्न 7.
बच्चे में तीन से छः वर्ष की आय तक होने वाले विकास का वर्णन करो।
उत्तर :
इस आयु में बच्चे की शारीरिक वृद्धि तेजी से होती है तथा उसकी भूख कम हो जाती है। वह अपना कार्य स्वयं करना चाहता है। बच्चे को रंगों तथा आकारों का ज्ञान हो जाता है तथा उसकी रुचि ड्राईंग, पेंटिंग, ब्लॉक्स से खेलने तथा कहानियां सुनने की ओर अधिक हो जाती है। बच्चा इस आयु में प्रत्येक बात की नकल करने लग जाता है।

प्रश्न 8.
दो से तीन वर्ष के बच्चे में होने वाले भावनात्मक विकास सम्बन्धी जानकारी दो।
उत्तर :
इस आयु के दौरान बच्चा मां की सभी बातें नहीं मानना चाहता। ज़बरदस्ती करने पर वह ऊंची आवाज़ में रोता है, ज़मीन पर लोटता है तथा हाथ-पैर मारने लगता है। कई बार वह खाना-पीना भी छोड़ देता है। माता-पिता को ऐसी हालत में चाहिए कि उसको न डांटें परन्तु जब वह शांत हो जाए तो उसे प्यार से समझाना चाहिए।

प्रश्न 9.
जन्म से दो वर्ष तक के बच्चे में सामाजिक तथा भावनात्मक विकास के बारे में आप क्या जानते हो ?
उत्तर :
इस आयु का बच्चा जिन आवाजों को सुनता है, उनका मतलब समझने की कोशिश करता है। वह प्यार तथा क्रोध की आवाज़ को समझता है। वह अपने आस-पास के लोगों को पहचानना आरम्भ कर देता है। जब बच्चे को अपने माता-पिता तथा परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा पूरा लाड़-प्यार मिलता है तथा उसकी प्राथमिक आवश्यकताएं पूरी की जाती हैं तो उसे विश्वास हो जाता है कि उसकी ज़रूरतें उसके माता-पिता पूरी करेंगे। उसका इस तरह भावनात्मक तथा सामाजिक विकास आरम्भ हो जाता है।

प्रश्न 10.
दो से तीन वर्ष के बच्चे के विकास के बारे में तुम क्या जानते हो ?
उत्तर :
शारीरिक विकास – 2 से 3 वर्ष के बच्चे की शारीरिक तौर पर वृद्धि तेजी से होती है। शारीरिक विकास के साथ ही उसका सामाजिक विकास इस समय बड़ी तेजी से होता है।

मानसिक विकास – इस आयु का बच्चा नई चीजें सीखने की कोशिश करता है। वह पहले से अधिक बातें समझना आरम्भ कर देता है। वह अपने आस-पास के बारे में कई प्रकार के प्रश्न पूछता है। इस समय माता-पिता का कर्तव्य है कि वह बच्चे के प्रश्नों के उत्तर जरूर दें। बच्चे को प्यार से पास बिठा कर कहानियां सुनाने से उसका मानसिक विकास होता है।

सामाजिक विकास – इस आयु में बच्चे को दूसरे बच्चों की मौजूदगी का अहसास होने लग जाता है। अपनी मां के अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों से भी प्यार करने लगता है। अब वह अपने कार्य जैसे भोजन करना, कपड़े पहनना, नहाना, बूट पालिश करना आदि स्वयं ही करना चाहता है।

भावनात्मक विकास – इस आयु में बच्चा मां की सभी बातें नहीं मानना चाहता। ज़बरदस्ती करने पर वह ऊँची आवाज़ में रोता, हाथ-पैर मारता तथा ज़मीन पर लेटने लगता है। कई-कई बार खाना-पीना भी छोड़ देता है। गुस्से की अवस्था में बच्चे को डांटना नहीं चाहिए तथा जब वह शांत हो जाये तो प्यार से उसे समझाना चाहिए। इस तरह बच्चे में माता-पिता के प्रति प्यार तथा विश्वास की भावना पैदा होती है तथा उसे यह अहसास होने लगता है कि उसके माता-पिता उससे किस तरह के व्यवहार की उम्मीद रखते हैं।

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प्रश्न 11.
बच्चों की भावनात्मक देख-भाल के क्या लाभ हैं ?
उत्तर :

  1. इससे बच्चों में सुरक्षा का अनुभव तथा आत्म-विश्वास की भावना उत्पन्न होती है।
  2. इससे बच्चा मानसिक रूप में स्वस्थ रहता है तथा वह अपने आपको स्कूल, समाज तथा अपने साथियों में आसानी से ढाल लेता है।
  3. इससे बच्चों की मानसिक तथा मनोवैज्ञानिक ज़रूरतें पूरी होती हैं जिससे बच्चे में प्रशंसा तथा सन्तुष्टि के भाव पैदा होते हैं।
  4. इससे बच्चों में अच्छे व्यावहारिक गुण पैदा होते हैं तथा वह समाज में विचरण योग्य बनते हैं।
  5. जिन परिवारों में मानसिक रूप में स्वस्थ माहौल बना होता है वहां बच्चों की रुचियों तथा योग्यताओं में वृद्धि होती है।

प्रश्न 12.
बच्चों की भावनाएं विशेष रूप से कैसी होती हैं ?
उत्तर :
1. छोटे बच्चों की भावनाएं काफ़ी तेज़ होती हैं। वह छोटी-सी घटना से ही ज़ोर से रोने लग जाते हैं अथवा डर जाते हैं।
2. प्रत्येक बच्चे का स्वभाव दूसरे बच्चे से अलग होता है। विभिन्न स्थितियों में अलग-अलग बच्चों की अलग-अलग प्रतिक्रियाएं होती हैं जैसे बादलों के ज़ोर से गर्जन तथा बिजली के चमकने पर कई बच्चे तो डरकर रोने लगते हैं तथा कुछ बाहर निकलकर इस नज़ारे को देखना पसंद करते हैं।
3. बच्चे की भावना थोडी-थोडी देर में उभरती तथा समाप्त होती रहती है।
4. बच्चे की भावनाएं बहुत जल्दी बदलती हैं जैसे कई बार रोने के पश्चात् तुरन्त फिर हंसना आरम्भ कर देता है अथवा ईर्ष्या जाहिर करने के पश्चात् फिर प्यार की भावना दर्शाता है।
5. बच्चों की भावनाओं में आयु से अन्तर आ जाता है। कई भावनाएं छोटे बच्चों में बड़ी तेज़ होती हैं, पर आयु के साथ धीरे-धीरे कम होकर मद्धम पड़ जाती हैं अथवा पूर्णत: समाप्त हो जाती हैं।
6. बच्चे अपनी भावनाओं को छपा नहीं सकते। बच्चों की आन्तरिक भावनाओं का पता उनके व्यवहार से लग जाता है जैसे परीक्षाओं के दिनों में बच्चों को डर से भूख नहीं लगती।

प्रश्न 13.
छोटे बच्चों में प्यार की भावना कैसे उत्पन्न होती है ? वे किस भावना को कैसे प्रकट करते हैं ?
उत्तर :
बच्चे में प्यार की भावना ऐसे व्यक्ति के लिए पैदा होती है जो उसकी देखभाल करता है, उसकी ज़रूरतों की पूर्ति करता है और उसका पालन-पोषण करता है। ऐसा पहला व्यक्ति साधारणतः बच्चे की मां ही होती है जिससे बच्चा प्यार की भावना प्रकट करता है। फिर मां की गैर-मौजूदगी में किसी सम्बन्धी के लिए बच्चा प्यार की भावना प्रकट कर सकता है जो कि मां की तरह उसकी ज़रूरतों को पूरी करता है।

बहुत छोटे बच्चे अपनी प्यार की भावना प्रकट करने के लिए मुस्कराते हैं, हंसते हैं, अपनी बांहें उठा कर बुलाते हैं तथा अपने साथ खेलने वाले के चुम्बन लेते हैं। जब बच्चे 3 से 5 वर्ष के हो जाएं तो फिर उनकी रुचि अन्य सदस्यों में हो जाती है जो उनके साथ खेलते हैं अथवा उनमें रुचि लेते हैं। इस आयु में बच्चों को खिलौनों तथा जानवरों से काफ़ी प्यार होता है। बड़े होकर बच्चे अपने प्यार का इजहार करने से शर्माते हैं। किशोरावस्था में उनका अधिक प्यार अपने दोस्तों के प्रति हो जाता है। इस आयु में लड़के-लड़कियों का आपसी आकर्षण भी बढ़ता है।

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प्रश्न 14.
माता-पिता बच्चों में मेल-जोल की भावना कैसे उत्पन्न कर सकते हैं ?
उत्तर :
जब बच्चा छोटा होता है तो उसमें सहयोग की भावना नहीं होती। यह भावना धीरे-धीरे उसमें विकसित होती है। जैसे-जैसे वह बड़ा होता जाता है उसको दूसरे बच्चों से चीजें, खिलौने आदि बांटने के बारे में पता चलता है। इस भावना को बच्चों में अच्छी तरह पैदा करने के लिए स्कूल में बच्चों को टोलियां बनाकर खेलने के लिए प्रेरित करना चाहिए। ऐसा ही घर में अथवा गली-मुहल्ले में जब बच्चा खेले तो करना चाहिए। मां-बाप को ‘मैं’ शब्द नहीं अपितु ‘हम’ शब्द सिखाना चाहिए। उसके आस-पास ऐसा माहौल बनाना चाहिए कि उसमें स्वयं सहयोग की भावना पैदा होनी चाहिए। ऐसी भावना रखने वाले बच्चे हमारे देश की धरोहर हैं।

प्रश्न 15.
बच्चों में क्रोध की भावना कब उत्पन्न होती है? इस पर कैसे नियन्त्रण किया जा सकता है ?
उत्तर :
बच्चों में गुस्सा तब पैदा होता है जब उन्हें उनकी मनपसंद वस्तु नहीं मिलती। वह तब भी गुस्सा करते हैं जब उनकी देखभाल करने वाला उनकी ओर ध्यान नहीं देता अथवा फिर उनसे उनकी मनपसंद वस्तु छीनने की कोशिश की जाती है। जब बच्चा स्कूल जाने लगता हो, वह धीरे-धीरे अपने गुस्से पर काबू पाना सीख लेता है तथा वह समाज में विचरण का तरीका सीख लेता है। कई बार बच्चा जब बहुत गुस्से होता है तो लोटने लगता है, तो उसे कुछ भी नहीं कहना चाहिए, जब वह शांत हो जाये, तो उसको प्यार से समझाना चाहिए।

इस तरह बच्चा स्वयं ही मां-बाप का व्यवहार देखकर शर्मिन्दगी महसूस करता है तथा स्वयं ही अपने आपको सुधारने की कोशिश करता है। घर में बच्चों पर अतिरिक्त रोक-टोक भी नहीं होनी चाहिए तथा न ही नाजायज़ सख्ती करनी चाहिए। इससे भी बच्चों में गैर-ज़रूरी गुस्सा तथा तनाव पैदा होता है। क्रोध एक नकारात्मक भावना है जहां तक हो सके कोशिश करो कि बच्चे में यह भावना न बढ़े-फूले।

प्रश्न 16.
विकास को प्रभावित करने वाले दो कारकों के नाम बताएँ।
उत्तर :
दो कारक हैं-आनुवंशिकता और वातावरण। आनुवंशिकता का अर्थ है वह लक्षण जो हमें माता-पिता से मिलते हैं जैसे आँखों का रंग, चेहरे की बनावट, लम्बाई, त्वचा का रंग आदि।

वातावरण का अर्थ है हमारे आसपास का वातावरण। यह दोनों ही कारक विकास में महत्त्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिए यदि बच्चा गूंगा पैदा हुआ है तो वातावरण चाहे कितना ही अच्छा क्यों न हो, बच्चे को बोलना नहीं सिखा सकता।

दूसरी तरफ अगर बच्चा बोल सकता है, पर उसका वातावरण ऐसा है कि जिसमें कोई भी उससे बोलता नहीं है। उसे बोलने के लिए प्रेरित नहीं करता, तो वह बोलने की क्षमता होते हुए भी बोलना नहीं सीख पाएगा। अत: व्यक्ति आनुवंशिकता एवं वातावरण दोनों का ही उत्पाद है।

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प्रश्न 17.
शारीरिक विकास का क्या अर्थ है ? बच्चे का तीन साल तक के शारीरिक विकास का वर्णन करें।
उत्तर :
बच्चे की लम्बाई, भार, सामर्थ्य और उनके अंग प्रत्यंग में होने वाले परिवर्तनों को शारीरिक विकास कहा जाता है।
एक भारतीय बच्चा जन्म के समय औसतन 2/2 कि० ग्रा० का तथा 17” -19” लम्बा होता है। शैशव काल में उसकी वृद्धि बड़ी तीव्र होती है।
5 महीने में शिशु का वज़न दुगुना और 1 वर्ष पर तिगुना हो जाता है। पहले वर्ष में शिशु की लम्बाई 10”-12” तक बढ़ती है।
दो वर्ष का होते-होते शिशु अपनी होने वाली पूरी वयस्क लम्बाई का करीब आधा लम्बा हो जाता है।
पहले दो वर्षों की तीव्र वृद्धि बाद में कम हो जाती है। अब एक वर्ष में लम्बाई 2′”-3” बढ़ती है और वज़न में 212 कि० ग्रा० की वृद्धि होती है।
जैसे-जैसे शिशु बड़ा होता है उसकी हड्डियों की संख्या व मज़बूती बढ़ती जाती
7-8 महीनों में उसके दांत निकलने लगते हैं और 27 वर्ष तक बच्चे के 20 दूध के दांत निकल आते हैं।

प्रश्न 18.
गत्यात्मक विकास को परिभाषित करें एवं तीन साल तक के गत्यात्मक विकास को स्पष्ट करें।
उत्तर :
गत्यात्मक विकास का अर्थ है शारीरिक संचलन जैसे चलना, दौड़ना, सीढ़ी चढ़ना, वस्तु को पकड़ना आदि पर नियन्त्रण कर सकना।

गत्यात्मक विकास का क्रम इस प्रकार है –
सिर का नियन्त्रण – एक महीने पर होता है।
पलटना – 2-3 माह का होने पर बच्चा बगल से चित होने की अवस्था में पलटता है। छ: माह का होने पर पूरी तरह से पलटता है।
बैठना – 4-5 महीने का बालक सहारे के साथ बैठता है जबकि 6-7 महीने का होते-होते वह बिना सहारे बैठता है।
पकड़ना – 6-7 महीने का होने पर ही बच्चा पकड़ना सीखता है, खासकर वस्तुएँ।
खिसकना व घुटनों के बल चलना – 8-10 महीने का बच्चा हाथ व पैरों के बल चलने लगता है।
खड़े होना और चलना – 8 महीने का बच्चा सहारे के साथ खड़ा होता है और 12 महीने (1 वर्ष) का होने तक चल पड़ता है।
सीढ़ी चढ़ना – 13-14 महीने का बच्चा अपने हाथों व घुटनों के बल सीढ़ी चढ़ लेता है। 18 महीने का होते-होते वह बिना किसी सहारे के उतर चढ़ लेता है।

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प्रश्न 18(A).
गत्यात्मक विकास का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 18 का उत्तर।

प्रश्न 19.
गत्यात्मक विकास को कौन-से कारक प्रभावित करते हैं ?
उत्तर :
वे कारक निम्नलिखित हैं –

  1. बालक सरल बातें पहले सीखता है और कठिन बाद में, जैसे बच्चा पहले घसीटे मारता है फिर लाइनें बनाता है और अन्त में स्वर या व्यंजन लिखना सीखता है।
  2. अभ्यास गत्यात्मक विकास को प्रभावित करता है अर्थात् यदि किसी क्रिया में बालक को काफ़ी अभ्यास मिलता है वह उसे जल्दी सीख जाता है।
  3. आंख हाथ का समन्वय बालक की वृद्धि के साथ आता है अर्थात् बच्चा जैसे जैसे बड़ा होता है उसके आंख व हाथ में समन्वय आता है और वह धीरे-धीरे कठिन काम भी कर पाता है।

प्रश्न 20.
सामाजिक विकास क्या है ? बच्चे में होने वाले तीन साल तक के सामाजिक विकास को स्पष्ट करें।
अथवा
शैशव काल में बालक के सामाजिक विकास का उल्लेख करें।
अथवा
बालकों के सामाजिक विकास का उल्लेख करें।
उत्तर :
बच्चे का समायोजित व्यवहार करना सीखना ही उसका सामाजिक विकास है।
जन्म के समय सामाजिक व्यवहार – जन्म के समय बालक की लोगों में कोई रुचि नहीं होती। जब तक उसकी शारीरिक आवश्यकताएं पूरी होती हैं वह खुश रहता है व मनुष्यों व अन्य आवाज़ों में फर्क नहीं कर पाता।
2-3 महीने पर – बच्चा मनुष्यों व निर्जीव वस्तुओं में फर्क करना सीख लेता है। वह लोगों के साथ रहकर खुश होता है और अकेला होने पर रोता है।
3-4 महीने पर – आपके बात करने पर इस उम्र का शिशु मुस्कराएगा। इसे सामाजिक मुस्कराहट कहते हैं। अब बच्चा चाहेगा कि आप उसे उठाएँ। वह घर के परिचित चेहरों को पहचानने लगता है, जैसे – माता-पिता, दादा-दादी आदि।
6-7 महीने पर – बच्चा मुस्कराहट व डांट पर अलग-अलग प्रतिक्रिया करता है। उसे स्नेही व गुस्से भरी आवाज़ में अन्तर समझ आ जाता है।
8-9 महीने पर – 8-9 महीने का बच्चा बड़ों की बोली, हाव-भाव आदि की नकल करने लगता है। अब यदि उसे कोई अजनबी गोद में उठा ले तो वह रोने लगता है। 18 महीने तक उसकी यह ‘अजनबी चिन्ता’ खत्म हो जाती है। 2 साल पर-बच्चा साधारण निर्देशों का पालन करने लगता है और कुछ सरल कार्य भी करने लगता है।

2. साल के बाद – बच्चा जैसे ही घर से बाहर प्रैप्रेटरी स्कूल में जाता है वह बाहर के लोगों से सम्पर्क बनाना व तालमेल बिठाना सीखता है।

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प्रश्न 21.
बालक के संवेगों के क्या लक्षण हैं ?
अथवा
बालकों के संवेंगों के लक्षण बताएं।
उत्तर :
बालक के संवेगों के निम्नलिखित लक्षण हैं –

  1. बच्चा संवेग अनुकरण द्वारा सीखता है अर्थात् देखकर सीखता है। यदि माँ बिल्ली से डरती है तो बच्चा भी डरेगा क्योंकि वह माँ का अनुकरण करता है।
  2. समान परिस्थितियों में बालकों का भिन्न संवेग प्रदर्शित होगा अर्थात् एक बालक अंधेरे से डरकर रोएगा, दूसरा दुबक कर बैठ जाएगा।
  3. बालकों के संवेग क्षणिक होते हैं अर्थात् बालक एक पल में रोता है तो दूसरे पल में हंसता है।
  4. बालकों के संवेग बहुत तीव्र होते हैं। अर्थात् वह छोटी-छोटी बातों पर रोते हैं या हंसते हैं।

प्रश्न 22.
आवश्यकता का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
बच्चे के शरीर या दिमाग की साधारण स्थिति में परिवर्तन या बेचैनी को आवश्यकता’ कहते हैं। जब भी बच्चे की साधारण स्थिति में कोई परिवर्तन आता है, वह उसे बेचैन कर देता है। अतः वह रोता है। जब वह पुरानी अवस्था में आ जाता है तो वह खुश हो जाता है। बच्चे की मुख्य आवश्यकताएं हैं – (i) शारीरिक (ii) भावनात्मक (iii) ज्ञानात्मक।

प्रश्न 23.
ज्ञानात्मक आवश्यकता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
बच्चों में प्राकृतिक जिज्ञासा होती है कि अपने चारों ओर जो भी वह देखते हैं उसके बारे में जानना चाहते हैं। अतः उन्हें खोजबीन अवश्य करने दें। ऐसा करके वह खुद बहुत सी चीजें सीख जाते हैं। यदि उन्हें ऐसा करने से रोका जाएगा, तो वे नए चीजों के बारे में जानने की कोशिश छोड़ देंगे। उनकी जिज्ञासा कम हो जाएंगी। वह मन्द बुद्धि भी हो सकते हैं। अत: बच्चे की रुचि बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि उसे नई चीजों के बारे में जानकारी हासिल करने दे परन्तु ध्यान रखें कि इस दौरान वह खुद को चोट न लगा ले।

प्रश्न 24.
शारीरिक विकास की अवस्थाएं बताइए।
उत्तर :
शारीरिक विकास की गति कभी तेज़ हो जाती है कभी मन्द। इसके निम्नलिखित चक्र होते हैं

  1. प्रथम चक्र – इसकी अवधि जन्म से 2 वर्ष तक होती है। इसमें वृद्धि की गति तेज़ होती है।
  2. द्वितीय चक्र – इसकी अवधि 2 वर्ष से यौवनारम्भ तक होती है। इसमें वृद्धि की गति मन्द होती है।
  3. तृतीय चक्र – इसकी अवधि यौवनारम्भ से लेकर 15-16 वर्ष की अवस्था तक होती है। इसमें वृद्धि की गति पुनः तेज़ हो जाती है।
  4. चतुर्थ चक्र-इसकी अवधि 16 वर्ष से परिपक्वावस्था तक होती है। इसमें वृद्धि की गति पुनः मन्द पड़ जाती है।

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प्रश्न 25.
आयु वृद्धि के साथ-साथ बालक में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं ?
उत्तर :
आयु वृद्धि के साथ – साथ बालक के स्नायु-मण्डल (नाड़ी संस्थान) तथा मांसपेशियों में विकास होता है जिसके फलस्वरूप उसकी क्रियात्मक क्षमताएं बढ़ती जाती हैं। जब बालक अपनी मांसपेशियों को नियंत्रित करना सीख जाता है, तब वह कई प्रकार के कार्यों को कर सकता है जैसे-खेलना, बैठना, खड़ा होना, सरकना, चलना, दौड़ना तथा कूदना आदि। इस नियन्त्रण शक्ति के आ जाने पर वह अपनी प्राण-रक्षा करने में सक्षम हो जाता है जैसे स्वयं मल-मूत्र का विसर्जन तथा हाथ-पैर के संचालन से अपने अन्य अंगों का बचाव इत्यादि।

प्रश्न 26.
बालक के विकास क्रम को प्रभावित करने वाले तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
बालक के विकास क्रम को प्रभावित करने वाले तत्त्व निम्नलिखित हैं –
1. परिवार – थॉमसन, क्रामगन आदि विद्वानों के अनुसार बालकों का कद, अस्थियों की वृद्धि, लैंगिक परिपक्वता, दाँतों का विकास व खराब होना आदि बातें अनेक परिवारों में एक समान पाई जाती हैं।
2. लैंगिक भिन्नता – लड़के और लड़कियों के विकास क्रम में भी भिन्नता पाई जाती है।
3. देह की लम्बाई – क्रामगन तथा नारवल विद्वानों के मतानुसार बड़े बालक की अपेक्षा छोटा बालक अधिक समय तक बढ़ता है।
4. संवेगात्मक तनाव – संवेगात्मक तनाव बालक के विकास को रोक देता है।
5. ऋतु – जुलाई से दिसम्बर तक बालक का वज़न बढ़ता है। सितम्बर से दिसम्बर तक बालक की वज़न-वृद्धि की गति बहुत तेज़ होती है। फरवरी से जून काल की अपेक्षा इस काल में बालक का वज़न चार गुना बढ़ जाता है। अप्रैल से अगस्त तक बालक के कद में बढ़ोतरी होती है।

प्रश्न 27.
संवेग से आप क्या समझते हैं ? यह कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
संवेग (Emotion) – संवेग अंग्रेज़ी शब्द इमोशन का पर्यायवाची है। इसका लेटिन रूप इमोवियर (emovere) है जिसका अर्थ है-हिला देना, उत्तेजित करना। जब भी संवेग की स्थिति आती है, व्यक्ति में बेचैनी आ जाती है। किसी भी परिस्थिति में व्यक्ति का व्यवहार, कोमलता, भय, क्रोध, विरोध, ईर्ष्या, ममता, सुख-दुःख आदि आन्तरिक वृत्तियों द्वारा प्रभावित होता है। इन्हीं आन्तरिक वृत्तियों को संवेग का नाम दिया जाता है।

संवेग निम्नलिखित प्रकार के होते हैं –

  1. भय
  2. क्रोध
  3. वात्सल्य
  4. घृणा
  5. करुणा
  6. आश्चर्य
  7. आत्माहीनता
  8. आत्माभिमान
  9. एकाकीपन
  10. भूख
  11. कामुकता
  12. कृतिभाव
  13. अधिकार भावना
  14. अमोद
  15. उत्साह
  16. आनन्द।

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प्रश्न 28.
बालक के संवेगात्मक व्यवहार की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
बालकों के संवेगात्मक व्यवहार की विशेषताएँ –

  1. बालकों के संवेग शारीरिक विकारों से सम्बन्धित रहते हैं।
  2. बालकों के संवेग थोड़ी देर ही रहते हैं।
  3. बालकों के संवेगों में उग्रता रहती है।
  4. बालकों के संवेग का रूप बदलता रहता है।
  5. बालकों के संवेग बार-बार प्रकट होते रहते हैं।
  6. भिन्न-भिन्न बालकों के संवेगात्मक व्यवहार में भिन्नता होती है।
  7. बालकों के संवेग जल्दी पहचान में आ जाते हैं।
  8. बालकों के संवेग आरोपित होते रहते हैं।
  9. बालकों के संवेगों की शक्ति में अन्तर आता रहता है।
  10. बालकों की संवेगात्मक अभिव्यक्ति में अन्तर आता रहता है।

प्रश्न 29.
संवेग की अवस्था में क्या परिवर्तन होते हैं ?
उत्तर :
क्रोध, भय, प्रेम, ईर्ष्या, जिज्ञासा, आनन्द, दया, संवेग की अवस्था में व्यक्ति में बाह्य और आन्तरिक दो प्रकार के परिवर्तन होते हैं।
1. बाह्य परिवर्तन – (1) इसके अन्तर्गत चेहरे की मुद्रा बदलना जैसे-हंसना, रोना, प्रेम आदि के भाव आते हैं। (2) शरीर के आसनों में परिवर्तन जैसे-खड़े होना, भागना, उछलना, हाथ-पैर फेंकना आदि आते हैं।
2. आन्तरिक परिवर्तन – इसके अन्तर्गत खून की गति में परिवर्तन, सांस का फूलना, हृदय की गति में परिवर्तन, पाचन क्रिया में गड़बड़ी आदि आते हैं।

प्रश्न 30.
बालक के विकास में संवेगों का योगदान बताइए।
उत्तर :
बालक के विकास में संवेगों का योगदान-शैशव काल में शिश में तीन प्रमुख संवेग दिखाई देते हैं-भय, क्रोध और प्रेम। भय और क्रोध की अभिव्यक्ति वह रो कर व्यक्त करता है। प्रेम-संवेग वह किलकारी मारकर व्यक्त करता है।

शिशु के प्रति स्नेह भाव के रूप में संवेग महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं। यदि शिशु की सुख-सुविधा का ख्याल रखा जाए तो उसके सामने भय-क्रोध की स्थिति नहीं आने पाती है। जब घर में दूसरे शिशु का जन्म हो तो यह ध्यान रखना चाहिए कि पहले बच्चे के मन में यह न आ जाए कि उसका महत्त्व घट गया है या वह प्रेम से वंचित हो गया है।

4 – 5 साल के बच्चों के संवेगों का पूर्ण विकास हो जाता है। यदि माता-पिता से पर्याप्त प्रेम व सहानुभूति प्राप्त होती रहे तो बच्चे संवेगों पर नियन्त्रण करना सीख लेते हैं और बालक का विकास अच्छी प्रकार होता रहता है। संवेग द्वारा जीवन रक्षा तथा संकट से उबारने का कार्य होता है। संवेग प्रेरक का कार्य भी करते हैं।

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प्रश्न 31.
उन कारकों का वर्णन करो जो बालक के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करते हैं।
उत्तर :
बालक के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक –

  1. अस्वस्थता – ज्वर, जुकाम, अपच, कुपोषण, दुखती आँख आदि के कारण बालक कमज़ोर और चिड़चिड़ा हो जाता है।
  2. थकान – बालक थकान की अवस्था में शीघ्र ही उत्तेजित हो जाता है।
  3. पारिवारिक स्थिति – माता-पिता के नौकरी करने से न चाहते हुए भी उसके बालक उपेक्षित रह जाते हैं।
  4. सामाजिक वातावरण – बालक परिवार में जैसा व्यवहार अपने बड़ों का देखता है, उसकी मनोवृत्ति भी वैसी ही हो जाएगी।
  5. बौद्धिक योग्यता – बुद्धिमान् बालकों में संवेगात्मक अस्थिरता अधिक पाई जाती है।

प्रश्न 32.
शारीरिक विकास और व्यवहार में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर :
शारीरिक विकास और व्यवहार में निम्नलिखित सम्बन्ध है –

  1. स्नायुमण्डल के विकास से मस्तिष्क का उचित विकास होता है। मस्तिष्क के विकास से मानसिक योग्यताओं का विकास होता है, जिससे अंगों के नियन्त्रण में सुविधा होती है।
  2. मांसपेशियों के विकास से बालक में गति करने की क्षमताएँ उत्पन्न होती हैं और अंगों में शक्ति बढ़ती है, इसलिए वह नए तरह के खेल-खेलकर खुशी प्राप्त कर सकता है।
  3. शारीरिक संरचना में परिवर्तन होने के परिणामस्वरूप बालक का व्यवहार बदल जाता है।
  4. स्वस्थ और अस्वस्थ शरीर वाले बालकों के व्यवहार में बहुत अन्तर आ जाता है। सामान्य स्वास्थ्य वाले बालक का व्यवहार ठीक होता है। अस्वस्थ बालक के व्यवहार में चिड़चिड़ापन, उदासी आदि आ जाती है।

प्रश्न 33.
पूर्व-विद्यालय काल में बच्चे के सामाजिक विकास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
पूर्व-विद्यालय काल में दो से छ: साल तक के बच्चे आते हैं। इस उम्र के बच्चे हम-उम्र बच्चों के साथ अपनी चीज़ों को बाँटना और एक-दूसरे के साथ सहयोग करना सीखते हैं। 1 से 2 साल के बच्चे अपने आप अकेले ही खेलना अधिक पसन्द करते हैं। 2 साल के पश्चात् बच्चा समूह में खेलना पसन्द करता है। इस उम्र में हम-उम्र का साथ पसन्द करने लगते हैं। इस अवस्था के बालकों में कुछ आक्रामक प्रकृति भी पाई जाती है। बच्चों में पारस्परिक होड़ की भावना भी विकसित हो जाती है।

प्रश्न 34.
इनाम और दण्ड बच्चे के सामाजिक विकास को किस प्रकार प्रभावित करते हैं।
उत्तर :
इनाम और दण्ड की क्रिया भी बच्चे के सामाजिक विकास पर प्रभाव डालती है। प्रत्येक छोटी-सी बात के लिए बच्चे को डाँट-फटकार करते रहेंगे, तो बच्चा अवश्य ही हीनता का शिकार हो जाएगा और वे हर काम को करने से डरेगा कि कहीं उसको माता पिता से दण्ड न मिले। प्रत्येक छोटे-से कार्य पर बच्चे को शाबाशी या इनाम देना भी बच्चे को बिगाड़ देता है। इस प्रकार से इनाम और दण्ड में सन्तुलन होना चाहिए। सभी काम को इनाम या दण्ड से नहीं तोलना चाहिए। जब बच्चे को कभी-कभी प्रशंसा या इनाम मिलता है तो वह समझ जाता है कि वह जो कर रहा है। वह ठीक है और वह बार-बार करता है। इस प्रकार बालक उस व्यवहार को सीख जाता है।

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प्रश्न 35.
(A) सीखने (Learning) की कुछ परिभाषाएं दीजिए।
(B) सीखना क्या है ?
(C) सीखने से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
सीखने की कुछ परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं –
1. जिस क्रिया से प्राणी अपने को वातावरण के अनुकूल बनाते हुए अनुभवों से अधिक लाभ उठाने की चेष्टा करता है, उसे सीखना कहते हैं। अतीत से लाभ उठाना सीखना है।
– डॉ० चौबे
2. सीखना वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति नवीन प्रकार के व्यवहारों को अर्जित करता है। सीखने में व्यक्ति या तो अपने जन्मजात व्यवहारों को परिवर्तित करता है या नवीन व्यवहार को अपनाता है।
– डगलस तथा हालैण्ड
3. सीखना व्यक्ति के कार्यों में स्थायी परिवर्तन लाना है जो निश्चित परिस्थितियों में या किसी इच्छा को प्राप्त करने अथवा किसी समस्या को सुलझाने के प्रयास में अभ्यास द्वारा लाया जाता है।
– बर्नहर्ट
4. अनुभव द्वारा व्यवहार में रूपान्तर लाना ही सीखना है।
– गेट्स

प्रश्न 36.
सीखने के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण बातें क्या हैं ?
उत्तर :
सीखने के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण बातें निम्नलिखित हैं –

  1. सीखने की प्रक्रिया बच्चे के जन्म से पूर्व माँ के भ्रूण (पेट) में ही आरम्भ हो जाती है।
  2. बाहरी वातावरण के आने पर बच्चा अधिकांश बातें सीख पाता है।
  3. अभ्यास द्वारा स्थायी परिवर्तन सीखता है।
  4. सीखने का क्रम चलता रहता है।
  5. कार्य के पूर्ण होने के द्वारा ही सीखने की क्रिया सम्भव हो पाती है।
  6. अतीत के अनुभवों से लाभ उठाना सीखना है।
  7. नवीन व्यवहारों को प्राप्त करना सीखना है।

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प्रश्न 37.
बोलना सीखने के लिए आवश्यक बातें क्या हैं ?
उत्तर :

  1. मस्तिष्क का साहचर्य क्षेत्र और स्वर तन्त्र दोनों परिपक्व हों।
  2. बालक को बोलने के लिए प्रेरणा, प्रोत्साहन एवं अवसर प्राप्त हों और उसके बोलने का अभ्यास चलता रहे।
  3. अभिभावकों, संरक्षकों एवं माता-पिता को भूलकर भी ऐसे बच्चों के रोने अथवा संकेतों पर ध्यान नहीं देना चाहिए जो टूटी-फूटी भाषा बोलने लगे हों। यदि उनके मौन संकेतों के आधार पर उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाएगी, तो उनका भाषा विकास कुछ अंश तक अवरुद्ध हो जाएगा।
  4. बालकों को शब्दों को सीखने के लिए उचित मार्गदर्शन या निर्देशन प्राप्त होना चाहिए।
  5. भाषा सिखाते समय निर्देशकों को चाहिए कि वे बालक के समक्ष “मॉडल शब्द” धीरे-धीरे, बारी-बारी से स्पष्ट एवं शुद्ध उच्चारण के साथ प्रस्तुत करें।

प्रश्न 38.
भाषा सीखने के प्रमुख अंग क्या हैं ?
उत्तर :
भाषा सीखने के प्रमुख अंग निम्नलिखित हैं –
1. अनुकरण – बच्चों में अनुकरण की प्रवृत्ति जन्म-जात होती है। यही कारण है कि माता-पिता, शिक्षक तथा अन्य साथियों की भाषा का बच्चे की भाषा पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार बच्चा अनुकरण से भाषा सीखता है।
2. वार्तालाप – थोड़ा बड़ा बच्चा अपने साथियों के साथ टूटी-फूटी भाषा का प्रयोग करने लग जाता है। एक ही उम्र के बच्चे आपसी वार्तालाप से पर्याप्त मात्रा में भाषा सीखते हैं।
3. कहानियां – बच्चे कहानी सुनने के बहुत शौकीन होते हैं। घर के बड़े-बूढ़े सदस्य बच्चों को कहानियां सुनाते हैं। कहानियों से उन्हें आनन्द तो मिलता ही है साथ ही वे भाषा का बहुत कुछ बोलना भी सीख जाते हैं। माता-पिता व अन्य सदस्यों को चाहिए कि कहानी सुनाते समय भाषा की शुद्धता का ध्यान रखें अन्यथा बच्चा भी अशुद्ध भाषा सीखेगा।
4. प्रश्नोत्तर – बच्चों को प्रश्न पूछने की बहुत आदत होती है। बच्चे अपने से बड़ों तथा साथियों से बहुत प्रश्न पूछते हैं। बच्चे को प्रश्न का उचित उत्तर अवश्य देना चाहिए। प्रश्नों के उत्तर बच्चों को भाषा सीखने में अत्यधिक सहायता करते हैं।
5. खेल – कुछ खेल भी इस प्रकार के होते हैं जिनके निरन्तर प्रयोग से बच्चे भाषा को बोलना सीख जाते हैं। बच्चों को ऐसे खेलों के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।

प्रश्न 39.
भाषा विकास के सहायक अंगों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
भाषा विकास के सहायक अंग हैं –
1. सुनने के द्वारा भाषा ज्ञान – बच्चे की सुनने की शक्ति जितनी अधिक प्रबल होगी, उतना ही भाषा को समझेगा। इस प्रकार लगातार सुनने और ज्ञान के आधार पर भाषा विकसित होती रहती है।
2. मुख के विभिन्न अंग – कंठ (गले) व जीभ के विकास पर भाषा का विकास निर्भर करता है। जैसे-जैसे बालक की आयु बढ़ती जाती है, उसके मुख के अंग भी विकसित होते जाते हैं। इन अंगों के पर्याप्त विकास के बाद बालक भाषा को समझने भी लगता है और बोलने भी लगता है।
3. अक्षर ज्ञान – पढ़ाई आरम्भ करने पर बच्चे को अक्षर ज्ञान कराया जाता है। विभिन्न ध्वनियों के लिए निश्चित अक्षर होते हैं और बच्चा इन्हें आँख के प्रयोग द्वारा सीखता है। लगातार वही अभ्यास करने पर वह जल्दी-जल्दी पढ़ने लगता है और आगे मौन रहकर भी पढ़ सकता है।
4. भाषा लेखन – पढ़ने के अभ्यास के बाद बच्चा उसी भाषा को लिखने का प्रयत्न करता है। लिखने में हाथ अंग का उपयोग होता है। बच्चा आँख से देखकर हाथ की शक्तियों से लिखता है। लेखन क्रिया में मानसिक शक्तियों का भी उपयोग होता है।

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प्रश्न 40.
भाषा विकास का अर्थ बताएँ और बच्चे के 3 साल तक के भाषा विकास का विवरण दें।
उत्तर :
भाषा का अर्थ है शब्दों द्वारा की गई सम्प्रेषणा। भाषा के द्वारा ही सूचना एक व्यक्ति से दूसरे तक पहुंचाई जाती है।
जन्म से लेकर एक माह तक शिशु सिर्फ रोने की आवाज़ ही निकाल पाता है। 5-6 महीने का बच्चा बाबा-मामा जैसी ध्वनियां दोहराता है। इसे बैबलिंग कहते हैं। बैबलिंग में समूचे विश्व के शिशु एक जैसी ध्वनियां निकालते हैं।
1 वर्ष का बच्चा एक शब्द का उच्चारण करके पूरी बात समझाने की कोशिश करता है। उसके द्वारा कहे गए शब्द प्रायः किसी चीज़ के नाम होते हैं जैसे पापा, मामा आदि।
2 वर्ष का बच्चा दो शब्द जोड़कर वाक्य बनाता है जैसे ‘पापा आफिस’ ‘माँ-दूध’ आदि।
3 वर्ष का होने पर बच्चे छोटे-छोटे वाक्य बना लेते हैं जोकि 3-4 शब्दों से बने होते हैं। जैसे ‘मम्मी पानी दो’।

प्रश्न 41.
भाषा विकास के महत्त्व पर टिप्पणी लिखो।
उत्तर :
भाषा सामाजिक सम्पर्क का सबसे बड़ा साधन है। इसके द्वारा सभी तरह की सांस्कृतिक उपलब्धियां सम्भव हैं। इसके माध्यम से हम अपने विचारों को व्यक्त कर सकते हैं। इससे ही साहित्य का जन्म होता है। इसीलिए साहित्य को समाज का दर्पण कहा गया है। जैसा समाज होगा वैसा ही उसका साहित्य होगा। प्रसिद्ध वैज्ञानिक एमविल के मतानुसार किसी जाति के भाषा विकास का इतिहास उसके बौद्धिक विकास का इतिहास है। दूसरे प्राणियों की अपेक्षा मानव भाषा के कारण ही अधिक श्रेष्ठ माना गया है।

भाषा व सभ्यता का विकास साथ-साथ चलता है। शुरू में बालक स्थूल वस्तुओं को ही इस्तेमाल में लेता है। तत्पश्चात् वह भाषा का व्यवहार करने लगता है। शिक्षा का एक प्रधान उद्देश्य बालक को भाषा का समुचित ज्ञान कराना है। किसी भी व्यक्ति की बौद्धिक योग्यता का सर्वश्रेष्ठ माप उसका शब्द भण्डार ही है।

प्रश्न 42.
वंशानुक्रम बालक के वृद्धि और विकास को किस प्रकार प्रभावित करता है ?
उत्तर :
कोई भी बच्चा जब जन्म लेता है तो उसमें उसके माता तथा पिता के गुण होने अनिवार्य हैं। अर्थात् बच्चे की शक्ल-सूरत, चेहरे का रंग, नैन-नक्श, बाल, बोलचाल आदि पर माता-पिता के गुणों का प्रभाव होता है। बच्चों की लम्बाई, भार, डील-डौल भी वंशानुक्रम द्वारा प्रभावित होती है। इस प्रकार अभिवृद्धि का सीधा सम्बन्ध वंशानुक्रम से है तथा बच्चे में क्षमताओं का पैदा होना जैसे गणित में अच्छा होना, तार्किक शक्ति अधिक होना, वाक चातुर्य होना, संगीत, कलात्मक गुणों का होना आदि विकास के विभिन्न प्रकार भी वंशानुक्रम से प्रभावित हैं।

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प्रश्न 43.
‘मील के पत्थर’ क्या है ? बाल्यावस्था में छोटे बच्चों के लिए इनका क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
शिशु का जैसे-जैसे विकास होता है इसे मनोवैज्ञानिकों ने विभिन्न चरणों में बांटा है जिन्हें मील के पत्थर कहते हैं। इस प्रकार किसी भी शिशु की अभिवृद्धि तथा विकास उचित हो रहा है या नहीं इसके बारे में स्पष्ट हो जाता है। जैसे कितनी आयु में बच्चा चलना शुरू करेगा, कब बोलेगा, कितनी आयु में उसकी लम्बाई अथवा भार कितना होगा आदि विभिन्न मील के पत्थर हैं तथा बच्चे का विकास ठीक ढंग से हो रहा इससे भी अवगत करवाते हैं।

प्रश्न 44.
क्रोध संवेग के कारण बताएं।
उत्तर :

  1. अन्याय तथा अनाधिकार चेष्ट के प्रतिरोध में बालक क्रोध प्रकट करता है।
  2. क्षमता से बड़ा कार्य सौंप देने से।
  3. अभिभावक की अधीरता या चिड़चिड़ाहट।
  4. कपड़े पहनने की विधि कष्टदायक होना।
  5. भाई-बहिन व साथियों द्वारा चिढ़ाने पर।
  6. अत्यधिक थकान होने पर।
  7. बालक के काम में अनावश्यक रुकावट होने पर।
  8. शारीरिक दुर्बलता व रोग होने पर।

प्रश्न 45.
बालक क्रोध की अभिव्यक्ति कैसे करता है ?
उत्तर :
बालक द्वारा क्रोध की अभिव्यक्ति-बालक अपने क्रोध को निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त कर सकता है –

  1. रोना
  2. चीखना-चिल्लाना
  3. दाँत पीसना
  4. सिर पटकना
  5. ज़मीन पर लेट जाना
  6. वस्तुओं को उठाकर फेंक देना
  7. गुस्से में मुख फाड़ना
  8. जीभ निकालना व थूकना।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
आधुनिक जीवन में बाल विकास का क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
1. बाल विकास से हमें पता चलता है कि साधारणतः एक बच्चे से एक अवस्था में क्या आशा रखी जाए। यदि कोई बच्चा इस आशा से बाहर जाए तो उसकी ओर हमें विशेष ध्यान देना होगा।

2. बाल विकास की पढ़ाई से हमें बच्चों की ज़रूरतों सम्बन्धी जानकारी प्राप्त होती है। हम बच्चे के मनोविज्ञान को अच्छी तरह समझ कर उसका पालन-पोषण कर सकते हैं जिससे उसका बहुपक्षीय विकास अच्छे ढंग से हो सकता है।

3. बाल विकास के अध्ययन से हमें यह जानकारी मिलती है कि साधारण बच्चों से भिन्न बच्चों को किस तरह का वातावरण प्रदान करें कि वह हीन भावना का शिकार न हो जाएं जैसे शारीरिक अथवा मानसिक तौर पर विकलांग बच्चे, मन्द बुद्धि वाले बच्चे अपनी शारीरिक तथा मानसिक कमजोरियों से ऊपर उठकर अपना बहुपक्षीय विकास कर सकें।

4. बाल विकास पढ़ने से हमें वंश तथा वातावरण सम्बन्धी जानकारी भी मिलती है। एक-दो ऐसे महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं जो बच्चे के विकास में बहुत योगदान डालते हैं। वंश से हमें बच्चे के उन गुणों के बारे पता चलता है जो बच्चों को अपने माता-पिता से जन्म से ही मिले होते हैं तथा जिन्हें बदला नहीं जा सकता जैसे नैन-नक्श, कद-काठ, बुद्धि आदि। बच्चे के इर्द-गिर्द को वातावरण कहा जाता है जैसे भोजन, अध्यापक, किताबें, खेलें, मौसम आदि। वातावरण बच्चे के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव डालता हैं। अच्छा वातावरण बच्चे के व्यक्तित्व को उभारने में मदद करता है।

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प्रश्न 2.
बाल विकास की शिक्षा के अन्तर्गत आपको किस के बारे में शिक्षा मिलती है ?
उत्तर :
बाल विकास के अध्ययन में बच्चों में पाई जाने वाली व्यक्तिगत भिन्नताएं, उनके साधारण तथा असाधारण व्यवहार तथा इर्द-गिर्द का बच्चे पर प्रभाव को जानने की कोशिश भी की जाती है।
प्रत्येक मनुष्य के व्यक्तित्व की जड़ें उसके बचपन में होती हैं। आजकल मनोवैज्ञानिक तथा समाज वैज्ञानिक किसी मनुष्य के व्यवहार को समझने के लिए उसके बचपन के हालातों की जांच-पड़ताल करते हैं। समाज वैज्ञानिक यह बात सिद्ध कर चुके हैं कि वे बच्चे जिन्हें बचपन में प्यार नहीं मिलता। बड़े होकर अपराधों की ओर रुचित होते हैं।

1. बच्चों की प्रवृत्ति को समझने के लिए-बाल विकास के अध्ययन से हम विभिन्न स्तरों पर बच्चों के व्यवहार तथा उनमें होने वाले परिवर्तनों से अवगत होते हैं। एक बच्चा विकास की विभिन्न स्थितियों से किस तरह गुज़रता है इसका पता बाल विकास के अध्ययन द्वारा ही चलता है।

2. बच्चे के व्यक्तित्व के विकास को समझने के लिए-बाल विकास अध्ययन बच्चे के व्यक्तिगत विकास तथा चरित्र निर्माण का ज्ञान उपलब्ध कराता है। ऐसे कौन-से तथ्य हैं जो भिन्न-भिन्न आयु के पड़ावों पर बच्चे के व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं तथा बच्चे के व्यक्तित्व के विकास में रुकावट डालने वाले कौन-से तत्त्व हैं, बाल विकास इनकी खोज करने के पश्चात् बच्चे की मदद करता है।

3. बच्चे के विकास के बारे जानकारी-गर्भ धारण से लेकर बालिग होने तक के शारीरिक विकास का अध्ययन बाल विकास का मुख्य भाग है। बाल विकास अध्ययन की मदद से बच्चे के शारीरिक विकास की रुकावटों तथा कारणों को अच्छी तरह समझ सकते हैं। बाल विकास बच्चे की शारीरिक विकास से सम्बन्धित समस्याओं को समझने में भी हमारी सहायता करता है।

4. बच्चे के लिए बढिया वातावरण पैदा करना-बच्चे के व्यवहार तथा रुचियों पर वातावरण का महत्त्वपूर्ण प्रभाव होता है। बाल विकास के अध्ययन से वातावरण के बच्चे पर पड़ रहे बुरे प्रभावों का पता चलता है। बच्चे के व्यक्तित्व के बढ़िया विकास के लिए बढ़िया वातावरण उत्पन्न करने सम्बन्धी मां-बाप तथा अध्यापकों को सहायता मिलती है।

5. बच्चों के व्यवहार को कन्ट्रोल करने के लिए-बच्चे का व्यवहार हर समय एक जैसा नहीं होता। बच्चे के व्यवहार से सम्बन्धित समस्याओं जैसे बिस्तर गीला करना, अंगूठा चूसना, डरना, झूठ बोलना आदि का कोई-न-कोई मनोवैज्ञानिक कारण अवश्य होता है। बाल विकास अध्ययन की सहायता से इन समस्याओं के कारणों को समझा तथा हल किया जा सकता है।

6. बच्चों का मार्ग-दर्शन-माता-पिता समय-समय पर बच्चों की रहनुमाई करते हैं। परन्तु आज-कल पढ़े-लिखे मां-बाप विशेषज्ञों से बच्चों का मार्ग-दर्शन करवाते हैं। यह मार्ग-दर्शन विशेषज्ञ मनोवैज्ञानिक विधियों द्वारा उसकी रुचियां, छुपी हुई क्षमता तथा झुकाव का पता लगाकर बच्चों का मनोवैज्ञानिक मार्ग-दर्शन करते हैं।

7. पारिवारिक जीवन को खुशियों भरा बनाने के लिए-बच्चे हर घर का भविष्य होते हैं। इसलिए उनका पालन-पोषण ऐसे वातावरण में होना चाहिए जो उनकी वृद्धि तथा विकास में सहायक हो। बाल विकास अध्ययन द्वारा हमें ऐसे वातावरण की जानकारी मिलती है। एक बढ़िया वातावरण में ही पारिवारिक प्रसन्नता तथा शान्ति उत्पन्न होती है।

उपरोक्त वर्णन से यह पता चलता है कि बाल विकास विज्ञान एक बहुत महत्त्वपूर्ण विषय है जिसकी सहायता से हम बच्चों के शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक विकास से सम्बन्धित अनेकों पहलुओं से अवगत होते हैं। बच्चों के बचपन को खुशियों भरा बनाने के लिए यह विज्ञान बहुत लाभदायक है। खुशियों भरे बचपन वाले बच्चे ही भविष्य में स्वस्थ तथा प्रसन्न समाज रचेंगे। इस महत्त्वपूर्ण कार्य में बाल विकास विज्ञान की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

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प्रश्न 3.
अभिवृद्धि और विकास के सिद्धान्तों को सूचीबद्ध करें व किन्हीं तीन का वर्णन करें। उदाहरण सहित स्पष्ट करें। .
अथवा
अभिवृद्धि और विकास के सिद्धान्त कौन-कौन से हैं ? उनमें से किन्हीं दो का वर्णन करें।
अथवा
विकास के सिद्धान्त उदाहरण सहित स्पष्ट करें।
उत्तर :
विकास कभी भी अव्यवस्थित तरीके से नहीं अपितु नियमानुसार चलता है। विकास के कुछ मुख्य सिद्धान्त इस प्रकार से हैं
1. विकास में परिवर्तन निहित है-विकास का अर्थ है परिवर्तन। हम परिवर्तन से ही ज्ञात कर सकते हैं कि शिशु में विकास हो रहा है। उदाहरणस्वरूप जब शिशु वयस्कता की ओर विकसित होता है। तब उसके शरीर की अपेक्षा उसका सिर छोटा हो जाता है जबकि जन्म पर सिर शरीर की तुलना से बड़ा होता है।

2. विभिन्न आयु स्तरों पर विकास की दर भिन्न होती है इसका अर्थ है कि कभी किसी उम्र में विकास तेजी से होता है। फिर धीमा पड़ जाता है और बाद में फिर तेजी पकड़ता है। उदाहरणस्वरूप पहले छः सालों में बच्चे का शारीरिक विकास बहुत तेजी से होता है। तत्पश्चात् 7-11 वर्ष तक विकास की गति कुछ धीमी हो जाती है। 12 वर्ष के बाद फिर तेज़ी से शारीरिक विकास होता है।

3. विकास क्रमागत और व्यवस्थित होता है-इसका अर्थ है कि विकास एक क्रम और व्यवस्था से चलता है। उदाहरण के लिए बच्चा पहले बैठना सीखता है, फिर खड़े होना और फिर चलना। बैठने से पहले वह चलना नहीं सीख सकता।

4. विकास सिर की ओर से प्रारम्भ होता है- इसका अर्थ है कि विकास सिर से शुरू होकर पैरों तक जाता है। उदाहरण के लिए बच्चा पहले सिर सम्भालना सीखता है, फिर बिस्तर पर लुढ़कना, बाद में बैठना, फिर खड़े होना और फिर चलना। अतः विकास प्रक्रिया सिर क्षेत्र से होती हुई धड़ तक जाती है और अन्त में निम्नतर क्षेत्र में जाती है अर्थात् पैरों में।

5. विकास केन्द्र से बाहर की ओर होता है-विकास प्रक्रिया पहले केन्द्र (Central portion) में होती है और तत्पश्चात् बाहर की ओर (Outside region)। उदाहरण के लिए बच्चा पहले चीज़ उठाने के लिए पूरी भुजा का प्रयोग करता है। फिर हाथ का, फिर उंगलियों का और अन्त में अंगूठे व उंगली का प्रयोग करता है।

6. विभिन्न व्यक्तियों में विकास की दर भिन्न होती है-दो बच्चे एक ही उम्र के . हो सकते हैं पर उनके विकास की दर एक सी कभी नहीं होती। उदाहरण के लिए आप दो चार साल के बच्चों को देखें। दोनों की लम्बाई में फर्क मिलेगा। दोनों का भाषा ज्ञान भिन्न होगा इत्यादि। यह अन्तर इसीलिए है क्योंकि दोनों की विकास की दर भिन्न है।

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प्रश्न 4.
संवेगात्मक विकास का क्या अर्थ है ? बच्चे की तीन साल तक के संवेगात्मक विकास को स्पष्ट करें।
उत्तर :
संवेगात्मक विकास का अर्थ है, अपने संवेगों पर नियन्त्रण प्राप्त करना और समाज द्वारा अनुमोदित ढंग से उनकी अभिव्यक्ति करना।
जन्म के समय सभी संवेग बालक में विद्यमान नहीं होते पर धीरे-धीरे अंकुरित होते हैं। जन्म के समय सिर्फ ‘साधारण उद्वेग’ बच्चे में संवेग के रूप में विद्यमान होता है।

5 माह – प्रसन्नता व तकलीफ नामक संवेग प्रकट हो जाते हैं। जब बच्चा आरामदायक परिस्थिति में होता है, तो वह प्रसन्न होता है अन्यथा तकलीफ में होता है अर्थात् अपनी तकलीफ की अभिव्यक्ति करता है।

6 माह – भय नामक संवेग प्रकट हो जाते हैं। बालक ऊंचे स्थानों से डरता है। हवा में उछाले जाने पर भी डरता है। बड़ा होने पर वह चमकती बिजली, जानवर, शोर आदि से डरता है।

1 वर्ष – प्यार व क्रोध नामक संवेग प्रकट हो जाते हैं। मना किए जाने पर वह क्रोधित होता है और माता-पिता से प्यार प्रकट करता है, उनसे लिपटता है। अगर बच्चे को यह महसूस होता है कि माता-पिता उसे प्यार नहीं करते तो वह असुरक्षित महसूस करता है।

18 महीने पर ईर्ष्या नामक संवेग का विकास होता है। जब माता-पिता ज्यादा ध्यान छोटे भाई बहन पर देते हैं, तो बच्चा उनसे ईर्ष्या करने लगता है।

प्रश्न 5.
सामाजिक व्यवहार को कौन-से कारक प्रभावित करते हैं ?
उत्तर :
निम्नलिखित कारक सामाजिक व्यवहार को प्रभावित करते हैं  –

  1. बच्चे बड़ों की नकल करके सीखते हैं। अत: बड़ों को सदा बच्चों के समक्ष अच्छा व्यवहार प्रदर्शित करना चाहिए।
  2. बालक इनाम व दण्ड द्वारा सीखते हैं। अतः अच्छे काम पर उन्हें इनाम दे। जैसे शाबाशी और गलत काम पर दण्ड दे ताकि वह उसे दुबारा न करे।
  3. माता – पिता का एक सम होना ज़रूरी है अर्थात् गलती पर दोनों ही बच्चे को रोकें और अच्छे काम के लिए दोनों ही शाबाशी दें।
  4. बहुत अधिक रोक-टोक बच्चे को आश्रित बना देती है। अतः हर काम के लिए बच्चे को मना न करें। उसे कुछ काम खुद करके सीखने दें।
  5. माता – पिता बच्चों का मार्ग-दर्शन प्यार से करें न कि डांट अथवा रोक-टोक के साथ।

माता-पिता बच्चों को समाज में सही व्यवहार करना सिखाते हैं। अतः वह समाजीकरण के कारक हैं। इसके अलावा बच्चे के दोस्त व नर्सरी स्कूल की अध्यापिका भी इसी श्रेणी में आते हैं।

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प्रश्न 6.
बच्चे की शारीरिक आवश्यकताओं को संक्षेप में समझाएं।
अथवा
भोजन की आवश्यकता के अतिरिक्त बच्चों की और क्या क्या शारीरिक आवश्यकताएं होती हैं व उन्हें कैसे पूरा करना चाहिए ?
उत्तर :
ऐसी आवश्यकताएं जो बच्चे को जीवित रखने में सहायक होती हैं, शारीरिक आवश्यकताएं कहलाती हैं। ये निम्नलिखित प्रकार की होती हैं
1. भोजन की आवश्यकता – नवजात बच्चे का भोजन दूध होता है। जैसे-जैसे वह बड़ा होता है वह अतिरिक्त आहार लेने लगता है। बच्चे के लिए अच्छा आहार आवश्यक है क्योंकि वह बच्चे को

  • स्वस्थ बनाता है।
  • वृद्धि व विकास में मदद करता है।
  • ऊर्जा प्रदान करता है।
  • रोग के कीटाणुओं से बचाता है।

बच्चे को सही समय पर व अच्छा भोजन देना चाहिए।

2. नींद की आवश्यकता – एक नवजात शिशु करीब 20 घण्टे सोता है। जैसे-जैसे बच्चा वयस्क बन जाता है तो उसे 6-8 घण्टे की नींद चाहिए होती है। बच्चे को नींद आवश्यकतानुसार लेनी चाहिए। सोने से उसे आराम मिलता है व खोई हुई शक्ति वापिस आ जाती है।

3. शारीरिक व्यायाम की आवश्यकता – बच्चे को तन्दुरुस्त रहने के लिए व्यायाम की आवश्यकता है। व्यायाम सही विकास में मदद करता है। अत: बच्चों को मुक्त रूप से खेलने देना चाहिए पर उन पर निगरानी अवश्य रखें।

4. कपड़ों की आवश्यकता – बच्चों को मौसम के अनुसार कपड़ों की आवश्यकता होती है। गर्मियों में कॉटन, सर्दी में ऊनी। अत: उन्हें सही कपड़े पहनाने चाहिए। सर्दी में बच्चे को सिर्फ माँ से एक ज्यादा स्वेटर पहनाएँ। बच्चे को ढीले कपड़े पहनाएं।

5. बीमारियों से सुरक्षा की आवश्यकता – बच्चे के सही विकास के लिए आवश्यक है कि उसे बीमारियों से बचाया जाए। अत: उसे व उसके वातावरण को स्वच्छ रखें और उसे सही समय पर टीके लगवाएं।

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प्रश्न 7.
बच्चों की भावनात्मक आवश्यकताएं कौन-सी हैं ?
उत्तर :
ये निम्नलिखित प्रकार की हैं –
1. प्यार की आवश्यकता – सभी बच्चों को स्नेह व प्यार की आवश्यकता होती है। अतः माता-पिता को अपने बच्चों को प्यार करना चाहिए। पर प्यार अन्धा नहीं होना चाहिए। माता-पिता से प्यार मिलने पर बच्चों में आत्म-विश्वास पैदा होता है। प्यार न मिलने पर बच्चे गैर-मिलनसार हो जाते हैं। अत: माता-पिता को अपने बच्चों के साथ अवश्य ही समय बिताना चाहिए। उसकी बातें सुननी चाहिए और उसे अच्छे कामों के लिए प्रेरित करना चाहिए। छोटे बच्चे के साथ शारीरिक सम्पर्क करना अति आवश्यक है।।

2. भावनात्मक सुरक्षा की आवश्यकता – बच्चे माता-पिता से यह समझना चाहते हैं कि वह क्या कर सकते हैं और क्या नहीं। अतः यदि माता-पिता उन्हें सही तरीके से समझाते हैं तो बच्चों में विश्वास व सुरक्षा की भावनाएं पैदा होती हैं। माता-पिता यदि बच्चों के अच्छे काम की प्रशंसा करते हैं व गलत काम की निन्दा करते हैं, तो वह बच्चे में सुरक्षा की भावना स्थापित करते हैं। यदि माता-पिता बच्चे के हर कार्य की उपेक्षा करते हैं और उनके कामों में उत्साह नहीं दिखाते तो बच्चे असुरक्षित महसूस करते हैं।

3. स्वतन्त्रता की आवश्यकता – स्वतन्त्रता का अर्थ है अपना काम खुद करना। बच्चे ज्यादातर अपना काम खुद करना चाहते हैं। बच्चों को अपने काम खुद करने दें। इससे उनमें आत्म-विश्वास पैदा होता है। अत: वह और भी कठिन कार्यों को करने की चेष्टा करते हैं। इससे उनका मानसिक विकास होता है। जब बच्चे कोई भी कार्य करें तो बड़े लोग आस-पास रह कर उन्हें देखते रहें ताकि बच्चे को चोट न लगे। यदि आप बच्चे को स्वतन्त्रता नहीं देंगे तो वह सदैव निर्भर रहेगा और उसका आत्म-विश्वास टूट जाएगा।

4. समायोजन की आवश्यकता – बच्चे धीरे-धीरे समायोजन (adjustment) सीखते हैं। धीरे-धीरे वह बड़े होते हैं तो ज्यादा समझदार होते हैं। वह अपनी चीजें दूसरों के साथ बांटकर खेलते हैं। जब बच्चा समायोजन स्थापित करता है तो –
1. वह अपने संवेगों पर नियन्त्रण करना सीख जाता है। दूसरे बच्चों के साथ खेलते हुए वह छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा नहीं होता।
2. वह औरों के साथ अपनी चीजें बांटना सीखता है और सहनशील बनता है।

प्रश्न 8.
संवेगों के विकास में माता-पिता व परिवार के अन्य सदस्य किस तरह सहायता करते हैं ?
अथवा
संवेगों के विकास में माता-पिता किस तरह सहायता करते हैं ?
उत्तर :
बालक के संवेगों के विकास में माता-पिता का महत्त्वपूर्ण स्थान है। बालक सबसे ज्यादा स्नेह शुरू में अपनी माता से करता है। अधिक स्नेह या कम स्नेह दोनों ही बालक के लिए घातक सिद्ध होते हैं। इसलिए माता-पिता का यह कर्त्तव्य हो जाता है कि समय-समय पर बच्चे के प्रति स्नेह प्रदर्शित करते रहें।

क्रोध में यदि आक्रामकता अधिक हो, तो वह बच्चे के लिए घातक सिद्ध होता है। माता-पिता को चाहिए कि वे बालक के असन्तोष का पता लगाएँ, उसमें सहयोग की भावना विकसित करें, बालक को नेतृत्व का अवसर प्रदान करें, समय-समय पर उन्हें सामाजिक मान्यता प्रदान करें तथा समय-समय पर बालक की प्रशंसा व निन्दा करें।

माता-पिता को चाहिए कि वह बालक में नई वस्तु की रचना करने की प्रवृत्ति को विकसित करें। यदि इस प्रवृत्ति का दमन किया जाता है, तो बालक अपना आत्म-विश्वास खो बैठता है और उसमें कुंठाएं उत्पन्न हो जाती हैं।जिज्ञासा समस्त ज्ञान की जननी है। अत: इसे विकसित करने के लिए माता-पिता को चाहिए कि –

  1. बालकों को प्रश्न करने के लिए प्रोत्साहित करें।
  2. प्रश्न पूछने पर समस्या का समाधान प्यार सहित किया जाए, डांट-फटकार कर नहीं।
  3. प्रश्न का उत्तर बालक की रुचि, क्षमता तथा मानसिक स्तर के अनुसार हो।
  4. बालक को अनुभव प्रदान कर कुछ करके सीखने पर बल दिया जाए।

भय में बालक आत्म-विश्वास खो बैठता है। माता-पिता को चाहिए कि वह उसमें पलायन की प्रवृत्ति विकसित न होने दें। बच्चों को किसी वस्तु-स्थिति का भय न दिखाएं। मनोवैज्ञानिक ढंग से भयप्रद स्थितियों का सामना कराएं। एकान्त या अन्धकार में डरने वाले बच्चे को कभी भी एकान्त या अन्धकार में न छोड़ें। बच्चों को हर समय डांटना-पीटना नहीं चाहिए।

बालकों में ईर्ष्या का होना अच्छा नहीं। इसके लिए माता-पिता को इस भावना को विकसित होने से पूर्व ही उसे स्वस्थ दिशा प्रदान करनी चाहिए। इसके लिए बालक के स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखना चाहिए। उसकी दिनचर्या नियमित होनी चाहिए। बालक को उसके दोष के कारण उसे चिढ़ाना नहीं चाहिए। जब भी यह महसूस हो कि बालक ईर्ष्या की भावना से ग्रस्त है, कारणों की खोज कर ईर्ष्या भाव को समाप्त करना चाहिए।

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प्रश्न 9.
भय क्या है ? भय को नियन्त्रित करने के मनोवैज्ञानिक उपाय दीजिए।
उत्तर :
भय (Fear) – भय की मूल प्रवृत्ति पलायन है जिसका प्रदर्शन बालक रोकर, चिल्लाकर, दौड़कर प्रकट करता है। बाल्यावस्था में भय तनाव के कारण होता है। प्रायः बजे नहाने, स्कूल जाने से, अप्रिय वस्तु खाने से डरते हैं। अधिक भय की प्रवृत्ति बालक के लिए हानिकारक होती है। पहले बच्चा प्रायः ऊंची आवाज़, अन्धेरा, अपरिचित व्यक्ति, जानवर, एकान्त, पीड़ा, पानी, ऊँचाई से डरता है। बड़े हो जाने पर भय काल्पनिक अधिक हो जाते हैं, जैसे- भूत का डर, चोर का डर, दुर्घटना का डर आदि।

भय को नियन्त्रित करने के मनोवैज्ञानिक उपाय –
1. मौखिक निराकरण विधि – इस विधि से बच्चे को समझाकर भयावह वस्त की निरर्थकता सिद्ध कर दी जाती है। समझाने पर बालक उस वस्तु या परिस्थिति से डरना छोड़ देता है।

2. ध्यानभंग विधि – इस विधि में बालक का ध्यान भयावह वस्तु से हटाकर किसी दूसरी जगह आकर्षित किया जाता है ताकि बच्चे के ध्यान से भयावह वस्तु हट जाए और वह दूसरी बातों की ओर सोचने लगे। जैसे यदि बच्चा किसी जानवर से डरता है, तो उसी क्षण बच्चे को कोई खिलौना देकर, मनोरम चित्र दिखाकर या किसी और वस्तु में ध्यान लगाकर उस जानवर का ध्यान हटाया जा सकता है।

3. अनाभ्यास विधि – इस विधि में बालक को भयावह परिस्थिति से उसी क्षण दूर ले जाकर उसकी उत्तेजना को समाप्त किया जाता है। इस सम्बन्ध में बच्चों को भूत-प्रेत की कहानियां नहीं सुनानी चाहिएं, अपितु वीरतापूर्ण कहानियां सुनाकर उसके भय की ग्रन्थि को दूर करना चाहिए।

4. प्रत्यक्ष साक्षात्कार – जो बच्चे किसी विशेष वस्तु या जानवर से डरते हैं, उन बच्चों को उसी विशेष वस्तु या जानवर के पास ले जाकर प्यार से, पुचकार कर साक्षात्कार कराना चाहिए। पहले उस जानवर का चित्र दिखाकर या खिलौना देकर उसे समझाना चाहिए फिर उस जानवर से साक्षात्कार कराकर उसके भय की ग्रन्थि का निवारण करना चाहिए।

प्रश्न 9.
(A) भय को नियंत्रित करने के दो मनोवैज्ञानिक उपाय बताएं।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्न।

प्रश्न 10.
ईर्ष्या क्या है ? ईर्ष्या के निवारण के उपाय लिखिए।
उत्तर :
ईर्ष्या-यह क्रोध की उपशाखा है। ईर्ष्या सामाजिक परिस्थिति में उत्पन्न होने वाला व्यवहार है। बालक जब किसी व्यक्ति के व्यवहार में प्यार की कमी देखता है तो उसमें ईर्ष्या उत्पन्न हो जाती है। जब किसी भाई-बहन या दोस्त के कारण बालक अपने प्यार या किसी काम में बाधा महसूस करता है तो उसमें ईर्ष्या की भावना उत्पन्न हो जाती है। शैशवावस्था में बालक ईर्ष्या को रोकर, बाल खींचकर, कपड़े फाड़कर, ज़मीन पर लेटकर व्यक्त करता है। बाल्यावस्था में वह बड़ों की आज्ञा का उल्लंघन करके अथवा रोक कर इसे प्रकट करता है। तीव्र बुद्धि वाले बालकों में मन्द बुद्धि वाले बालकों की अपेक्षा ईर्ष्या कम होती है।

ईर्ष्या का निवारण – ईर्ष्या की भावना बच्चे के लिए घातक सिद्ध होती है। इसके निवारण के लिए निम्नलिखित साधनों को अपनाना चाहिए –

  1. बच्चे के स्वास्थ्य व उनकी आवश्यकताओं का ध्यान रखना चाहिए।
  2. बच्चों को नकारात्मक आदेश नहीं देना चाहिए।
  3. बच्चे को अधिक नहीं छेड़ना चाहिए नहीं, तो वह चिड़चिड़े स्वभाव का हो जाता है,
  4. यदि कोई बच्चा अपराध करता है तो अपराध की बुराई करनी चाहिए न कि बच्चे की।
  5. बच्चे की वस्तु को उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी दूसरे बच्चे को नहीं देना चाहिए।
  6. बच्चे की दिनचर्या को मनोरंजक बनाना चाहिए। बच्चे को किसी-न-किसी खेल या कार्य में व्यस्त रखना चाहिए।
  7. अनावश्यक रूप से बच्चे की बुराई उसके सामने नहीं करनी चाहिए।

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प्रश्न 11.
क्रोध संवेग के क्या कारण हैं ? बालक क्रोध की अभिव्यक्ति किस प्रकार करता है ? क्रोध की उपयोगिता क्या है ?
अथवा
क्रोध संवेग के क्या कारण हैं ? बालक क्रोध की अभिव्यक्ति किस प्रकार करता
उत्तर :
क्रोध-किसी क्रिया की सन्तुष्टि में जब कोई बाधा आती है, तो क्रोध उत्पन्न होता है। क्रोध में आक्रामकता का भाव होता है। बालक जितना हताश होगा उतना ही आक्रामक होगा। शारीरिक दुर्बलता के कारण अथवा रोग की हालत में बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है। उसको अधिक क्रोध आता है। क्रोध सदैव हानिकारक ही नहीं होता, कुछ परिस्थिति में क्रोध लाभदायक भी सिद्ध होता है। जैसे भय को दूर करने के लिए क्रोध का प्रयोग किया जाता है।

क्रोध संवेग के कारण –

  1. अन्याय तथा अनाधिकार चेष्ट के प्रतिरोध में बालक क्रोध प्रकट करता है।
  2. क्षमता से बड़ा कार्य सौंप देने से।
  3. अभिभावक की अधीरता या चिड़चिड़ाहट।
  4. कपड़े पहनने की विधि कष्टदायक होना।
  5. भाई-बहिन व साथियों द्वारा चिढ़ाने पर।
  6. अत्यधिक थकान होने पर।
  7. बालक के काम में अनावश्यक रुकावट होने पर।
  8. शारीरिक दुर्बलता व रोग होने पर।

बालक द्वारा क्रोध की अभिव्यक्ति – बालक अपने क्रोध को निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त कर सकता है –

  1. रोना
  2. चीखना-चिल्लाना
  3. दाँत पीसना
  4. सिर पटकना
  5. ज़मीन पर लेट जाना
  6. वस्तुओं को उठाकर फेंक देना
  7. गुस्से में मुख फाड़ना
  8. जीभ निकालना व थूकना।

क्रोध की उपयोगिता – क्रोध केवल हानिकारक संवेग ही नहीं है वह उपयोगी भी होता है। जब क्रोध, दया व करुणा के साथ जागृत होता है, तो उपयोगी होता है। असामाजिक तत्त्वों तथा शत्रुओं के प्रति क्रोध प्रकट करना बालक की सामाजिक अच्छाई का रूप होता है। विपरीत परिस्थिति में क्रोध बालक को समुचित शक्ति भी प्रदान करता है।

प्रश्न 12.
संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए –
1. स्नेह एवं ममता, 2. जिज्ञासा, 3. आनन्द एवं सुख।
उत्तर :
1. स्नेह एवं ममता – यह बालक का प्रारम्भिक संवेग है जिसे वह माँ, आया या परिवार के अन्य सदस्य, जो उसके सम्पर्क में आते हैं, के प्रति प्रकट करता है। प्रारम्भ में बालक सजीव एवं निर्जीव दोनों वस्तुओं से स्नेह करता है, क्योंकि वह दोनों में भेद नहीं समझता है। सवा साल बाद वह वस्तु और व्यक्ति में भेद समझने लगता है और उन्हीं से अधिक स्नेह करता है जिनके सम्पर्क में अधिक आता है। स्नेह के कारण व व्यक्ति को देखकर हँसता है, गोदी में जाता है, चिपक जाता है, हाथ फैलाता है व प्यार करता है।

2. जिज्ञासा – जिज्ञासा के साथ आश्चर्य का संवेग जुड़ा रहता है। बालक में प्रारम्भ से ही जिज्ञासा होती है और इसी जिज्ञासा के कारण वह ज्ञान प्राप्त करता है। बड़े होने पर भी यह मूल प्रवृत्ति विद्यमान रहती है। यहि बालक की जिज्ञासा को शान्त न किया जाए तो बालक सीखने की क्रिया में कोई उत्साह नहीं दिखाता है।

3. आनन्द एवं सुख – आनन्द का संवेग शिशु में 3-4 माह की आयु में देखा जाता है। इच्छा पूर्ति इस संवेग को उत्पन्न करती है। बालक की भूख मिटने पर, गोद में लेने पर, घुमाने पर, नया खिलौना लेने पर, सुन्दर चित्र देखकर हर्ष प्रकट करता है। आनन्द की अभिव्यक्ति बच्चे हाथ-पैर फेंककर, उछलकर, मुस्कराकर, हँसकर व्यक्त करते हैं।

शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए आनन्द श्रेष्ठ संवेग है। यह एक सामाजिक गुण भी है। बच्चे में आत्माभिमान की वृद्धि होती है। तनावों की कमी से बच्चों के व्यक्तित्व में निखार आता है।

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प्रश्न 13.
सामाजिक विकास से आप क्या समझते हैं ? बालकों में सामाजिक विकास कब और कैसे विकसित होता है ?
उत्तर :
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जब बालक जन्म लेता है, तो वह अपनी हर आवश्यकता के लिए दूसरे व्यक्ति पर निर्भर रहता है। प्रत्येक सामाजिक प्राणी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एक-दूसरे पर निर्भर करता है। हरलॉक के अनुसार, “कोई भी बालक सामाजिक पैदा नहीं होता। वह दूसरों के होते हुए भी अकेला ही होता है। समाज में दूसरों के सम्पर्क में आकर समायोजन की प्रक्रिया को सीखता है। इसलिए समाजीकरण की प्रक्रिया बालक के विकास के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।”

विभिन्न प्रकार की रुचियां, आदतों व व्यवहार में परिपक्वता विकसित होने को सामाजिक विकास कहा जाता है। शारीरिक विकास के साथ-साथ सामाजिक परिपक्वता आती है। सामाजिक गुणों को सीखने की प्रक्रिया को सामाजिक विकास अथवा समाजीकरण कहते हैं। बालक का जन्म से लेकर किशोरावस्था तक सामाजिक विकास बड़ी तीव्र गति से होता है। जब बालक जन्म लेता है तो पूर्ण असामाजिक होता है। दूसरे व्यक्तियों के सम्पर्क में आकर सामाजिकता का आरम्भ होता है।

तीन माह के बच्चे में सामाजिक विकास स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं। इस समय वह अकेला रहने पर रोने लगता है और सबके बीच में प्रसन्न रहता है। व्यक्तियों की मुखमुद्रा को पहचानता है। दस माह का बालक बहुत कुछ सामाजिक प्रक्रिया सीख लेता है। हाथ मिलाना, नमस्ते करना। अब वह कुछ-कुछ अपना-पराया समझता है। पन्द्रह माह के बच्चे में सहयोग व भिन्नता दिखाई देने लगती हैं। वह अब संकेत पाकर आदेशों का पालन भी करने लगता है। दो साल का बालक खेलने के लिए अपनी साथी ढूँढता है और उसके व्यवहार में भी परिवर्तन। होने लगता है जो कि उसके सामाजिक विकास की ओर संकेत करते हैं। इस प्रकार से बालक का सामाजिक विकास जन्म के बाद प्रारम्भ होकर परिपक्वता तक विकसित होता है।

प्रश्न 14.
सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले तत्त्व लिखिए।
उत्तर :
सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले तत्त्व निम्नलिखित हैं –
1. नेतृत्व और सामाजिक विकास-बच्चों के किसी भी समूह में परस्पर का व्यवहार समानता का नहीं दिखाई पड़ता है। उनमें से एक अवश्य होता है, जो दूसरों का नेतृत्व करता है। लोकप्रियता और नेतृत्व साथ-साथ नहीं चलते। एक व्यक्ति लोकप्रिय होते हुए भी ज़रूरी नहीं कि नेता भी हो। परन्तु एक नेता सदैव लोकप्रिय होता है और समूह के अधिकांश लोग उसे जानते हैं।

नेतृत्व का प्रथम चिह्न 1 वर्ष की अवस्था में दिखाई देने लगता है। उदाहरण के लिए यदि एक खिलौना दूसरे बच्चे के पास है और एक बच्चे को वह अच्छा लगता है, तो उसे उससे छीनने का प्रयत्न करता है।

जिन बच्चों में नेतृत्व के गुण होते हैं, वे अन्य बच्चों से स्वभावतः बुद्धि, आकार और गुण में बड़े होते हैं। नेता बच्चा कड़ाई की प्रवृत्ति भी रखता है। नेतृत्व करने वाले बालकों को घर में स्वतन्त्रता मिली होती है।

2. संवेगात्मक व्यवहार और सामाजिक विकास-जो बालक चिड़चिड़े स्वभाव का तथा बात-बात पर रूठने वाला होता है, वह कभी भी लोकप्रिय नहीं हो सकता। इसके विपरीत हंसमुख तथा संवेगात्मक स्थिरता वाले बालक सभी को अपना मित्र बना लेते हैं। संवेगात्मक विकास तथा सामाजिक विकास साथ-साथ चलता है।

3. खेल और सामाजिक विकास-खेल बालक की कल्पनाओं, उसकी दया और सहयोग की भावना को दर्शाता है। खेल का प्रभाव बालक के सामाजिक जीवन पर प्रत्येक अवस्था में पड़ता है। कुशाग्र बुद्धि वाले अपने से बड़ों के साथ तथा मंद बुद्धि वाले अपने से छोटे के साथ खेलना पसन्द करते हैं। खेलने वाले सभी साथियों का प्रभाव भी बच्चे के सामाजिक विकास पर पड़ता है।

4. आर्थिक स्तर और सामाजिक विकास-माता-पिता के आर्थिक स्तर का बालक के सामाजिक विकास पर प्रभाव पड़ता है। निर्धन परिवार का बालक धनी परिवार के बच्चों के साथ रहते, पढ़ते हुए हीन भावना का शिकार हो जाता है। वह अपने कपड़ों की तुलना में हीनता का शिकार हो जाता है। आज हर बात का मूल्य पैसे से तोला जाता है तो निर्धन बालक के सामाजिक विकास का सन्तुलन कैसे रह सकता है।

5. बाल समुदाय और सामाजिक विकास-समुदाय में रहकर बालक समुदाय के नियमों का पालन करता है। वह बहुत-सी बातें सीखता है, जैसे – (i) अपनी आयु के बालकों के साथ समायोजन करना, (ii) ऐसा व्यवहार करना, जिन्हें लोग भी पसन्द करें, (iii) नवीन मूल्यों को ग्रहण करना, (iv) मित्रता, (v) संवेगात्मक सन्तोष द्वारा व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, (vi) सामूहिक क्रियाओं द्वारा सामाजिक जीवन का आनन्द उठाना। समुदाय में रहकर बालक अच्छे व बुरे गुण दोनों सीखता है।

अच्छे गुण जैसे – (i) प्रजातन्त्र की भावना, (ii) निस्वार्थपन, (iii) सहयोग की भावना, (iv) न्याय तथा ईमानदारी, (v) साहस, (vi) सहनशीलता, (vii) आत्म नियन्त्रण, (viii) सामूहिक जीवन, (ix) दूसरों की भावनाओं का आदर करना।

बुरे गुण जैसे – (i) झूठ, (ii) गाली, (iii) कसमें खाना, (iv) गन्दे-गन्दे मज़ाक, (v) नियम तोड़ने की प्रवृत्ति, (vi) भागने की वृत्ति, (viii) बड़ों का अनादर करना, (viii) अल्पमत वालों की उपेक्षा।

6. शारीरिक व मानसिक विकास-जिन बालकों का शारीरिक विकास ठीक प्रकार से होता है उनमें सभी सामाजिक गुण शीघ्र और अच्छी तरह से विकसित होते हैं। जिनका शारीरिक विकास ठीक-से नहीं होता, कमज़ोर होते हैं, उनमें हीनता की भावना के कारण समाज में समायोजन ठीक प्रकार से नहीं होता। इसी प्रकार जिन बालकों का मानसिक विकास ठीक प्रकार से नहीं होता है, उनका समाज में समायोजन भी ठीक प्रकार से नहीं होता है। यह देखा गया है कि जिन बालकों का बुद्धि का स्तर सामान्य होता है, वे समाज में ठीक से समायोजन कर लेते हैं। जिन बालकों की बुद्धि तीव्र होती है या मन्द बुद्धि होती है, उनको समाज में समायोजन के लिए बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है या वह समायोजन करने के लिए अपने को असमर्थ पाते हैं।

7. पारिवारिक प्रभाव-सामाजिक विकास में परिवार का बहुत बड़ा योगदान है। परिवार समाजीकरण का प्रमुख साधन है। परिवार के सदस्यों का भिन्न-भिन्न रूप होता है जो उसमें अनेक व्यक्तिगत एवं सामाजिक गुणों का विकास करते हैं। बहुत से सामाजिक गुण जैसे-सहानुभूति, प्रेम की भावना, उदारता, अनुदारता, न्याय-अन्याय, सत्य-असत्य आदि बालक परिवार से ही सीखता है।
उपरोक्त के अलावा माता-पिता का बालक के प्रति व्यवहार, बालकों का जन्म क्रम, प्रौढ़ सदस्यों की उपस्थिति, बालक का स्वास्थ्य, बालक का सौंदर्य, बालक की बुद्धि तथा विद्यालय का भी सामाजिक विकास पर प्रभाव पड़ता है।

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प्रश्न 14A.
सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कोई तीन कारक लिखें।
उत्तर :
देखें प्रश्न 14.

प्रश्न 15.
सामाजिक विकास की विशेषताएं लिखिए।
उत्तर :
सामाजिक विकास की विशेषताएं निम्नलिखित हैं –
1. आरम्भिक सामाजिक क्रियाएं-जन्म के बाद बालक का सामाजिक वातावरण उसकी माता व आस-पास का वातावरण होता है। वह माता का चेहरा देखकर मुस्कराता है। यही उसकी पहली सामाजिक अनुक्रिया है। बाद में अन्य व्यक्तियों के साथ उसका सम्पर्क बढ़ता है। अब वह अपने और पराये में अन्तर समझने लगता है और इस तरह से धीरे-धीरे बहुत-सी सामाजिक अनुक्रियाएं करने लगता है।

2. दसरे बालक के साथ अनक्रिया-दसरे बच्चों के सम्पर्क में आकर उनके व्यवहार के प्रति अनुक्रिया करता है। दो वर्ष का बालक देने-लेने वाले की अनुक्रिया समझने लगता है।

3. प्रतिरोधी व्यवहार नकारात्मक संवेगों के कारण बहुत से बालकों में प्रतिरोधी व्यवहार विकसित हो जाते हैं, जैसे-हठ करना, सिर हिला कर मना करना, अंगों में सख्ती से आना आदि।

4. सामाजिक प्रतिरोध – यह एक बौद्धिक प्रक्रिया है। बालक दूसरे व्यक्तियों के विचारों तथा अनुभूतियों को समझने लगता है व उनके प्रति उसमें संवेदना जागृत होती है। उसमें प्रतिद्वन्द्विता, सहयोग, अनिच्छापूर्वक कार्य करना आदि भाव विकसित हो जाते हैं।

5. लड़ाई-झगड़े – जैसे-जैसे बालक की सामूहिक क्रियाएं बढ़ती हैं उसमें लडाई झगडे की भावना का भी विकास होता है। कारण है उसके कार्यों की गति में अवरोध उत्पन्न होना। कभी-कभी बालक अपने सहयोगी के लिए या नकल के कारण लड़ाई झगड़ा कर बैठता है।

6. सहानुभूति – यह गुण प्रारम्भ से ही विकसित होने लगता है। सहानुभूति की भावना परिस्थिति के कारण उत्पन्न होती है। दूसरे बच्चे के शारीरिक या मानसिक दुःख को अनुभव कर बच्चा उसके प्रति सहानुभूति रखता है। सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार में आयु एवं मानसिक परिपक्वता के साथ-साथ व्यक्तिगत भिन्नता पाई जाती है।

7. प्रतिस्पर्धा – अपने को आगे बढ़ाने में बालक सदा ही लगा रहता है और इसी भावना से प्रेरित हो उसमें प्रतिस्पर्धा विकसित होती है। किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए यह गुण बहुत काम आता है।

8. सामहिक क्रियाएं – दो वर्ष का बालक खेलने के लिए साथ ढूंढने लगता है। बढ़ती अवस्था के साथ-साथ सामूहिक रूप से कार्य करने की प्रवृत्ति विकसित होती है। घर में भी अन्य सदस्यों के साथ मिलकर कार्य करना सीखता है।

9. सहयोग – सामाजिकता के लिए यह गुण अत्यन्त आवश्यक है। समूह में बिना सहयोग के गुण से व्यक्ति का समायोजन नहीं हो पाता। सहयोग की भावना से ही व्यक्ति में मित्र-शत्रु भाव उत्पन्न होता है।

10. नेतृत्व – यह एक सामाजिक गुण है। बालकों के समूह में उनका एक नेता अवश्य होता है। वही बालक नेता बनता है जिसका व्यक्तित्व अन्य सदस्यों से अच्छा होता है। जिस बालक में वीर-पूजा, कार्य-कुशलता गुण होते हैं तथा जिसका शारीरिक व मानसिक विकास ठीक होता है, भाषा-विकास अच्छा होता है ऐसे गुणों वाला बालक ही नेतृत्व को निभा पाता है। नेता बालक कई परिस्थितियों में नेतृत्व कर सकता है। उनमें सहयोग की भावना सबसे अधिक होती है।

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प्रश्न 16.
शिशु अवस्था में क्या शारीरिक परिवर्तन होते हैं ?
उत्तर :
शिशु अवस्था जन्म से 2 वर्ष तक मानी जाती है। इस अवस्था में अग्रलिखित शारीरिक परिवर्तन होते हैं –

1. हड्डियां (Bones) – नवजात शिशु में 270 हड्डियां होती हैं। प्रारम्भ में शिशु की हड्डियां बहुत नर्म तथा कोमल होती हैं। प्रथम वर्ष में हड्डियों का विकास तीव्र गति से होता है। दूसरे वर्ष में यह अपेक्षाकृत मन्द गति से होता है।
2. लम्बाई (Height) – जन्म के समय से 2 वर्ष तक शिशु की लम्बाई में निम्नलिखित प्रकार बढ़ोत्तरी होती है –

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3. वज़न (Weight) शिशु के वज़न का विकास निम्नलिखित प्रकार होता है –

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4. हाथ और पैरों का अनुपात (Proportions of Arms and Legs) – जन्म के समय शिशु के हाथ-पैर छोटे-छोटे होते हैं। दो वर्ष की अवस्था तक हाथों की लम्बाई का विकास जन्म की अपेक्षा 60-70 प्रतिशत तक हो जाता है। नवजात शिशु के पैर मुड़े हुए होते हैं। पैरों की लम्बाई बढ़ने के साथ-साथ पैर सीधे भी हो जाते हैं। दो वर्ष की अवस्था तक पैर जन्म की अपेक्षा 40 प्रतिशत विकसित हो जाते हैं।

5. दाँत (Teeth) शिशु के प्रथम बार दाँत छ: से आठ महीने के मध्य निकलते हैं।

6. पाचन तन्त्र (Digestive System) – प्रारम्भ में पाचन तन्त्र की क्षमता का विकास तीव्र गति से होता है।

7. श्वसन तन्त्र (Respiratory System) – जन्म के समय फेफड़े छोटे होते हैं। दो वर्ष की अवधि में छाती और सिर की परिधि बराबर हो जाती है।

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प्रश्न 17.
बाल्यावस्था में क्या शारीरिक परिवर्तन होते हैं ?
उत्तर :
(1) बाल्यावस्था 3 से 13 वर्ष तक होती है। इस अवस्था में अग्रलिखित शारीरिक परिवर्तन होते हैं –

1. हड्डियाँ (Bones) – बाल्यावस्था में अस्थिनिर्माण (Ossification) क्रिया चलती रहती है। इस अवस्था में हड़ियां काफ़ी कड़ी हो जाती हैं। इस अवस्था में प्रत्येक आयु स्तर पर लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की हड्डियां अधिक कड़ी होती हैं।

2. लम्बाई (Height) बाल्यावस्था में लम्बाई का विकास निम्नलिखित प्रकार बताया जा सकता है –

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लगभग 11 वर्ष की अवस्था में लड़कों की अपेक्षा लड़कियाँ कुछ अधिक लम्बी होती हैं।

3. वजन (Weight) बाल्यावस्था में वज़न का विकास निम्नलिखित प्रकार से होता है –

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लगभग 6-7 वर्ष की अवस्था तक लड़कियों की अपेक्षा लड़के कुछ अधिक भारी हो जाते हैं। बाद की बाल्यावस्था में लड़कों की अपेक्षा लड़कियां कुछ अधिक भारी रहती हैं।

मांसपेशियां (Muscles) – 5 वर्ष की अवस्था तक मांसपेशियों का विकास शारीरिक अनुपात के अनुसार बढ़ता है। लगभग 5-6 वर्ष की अवस्था में मांसपेशियों का विकास तीव्र गति से होता है।

धड़ (Trunk) – 5 वर्ष की अवस्था तक गर्दन पतली और लम्बी दिखाई देने लगती है। बालक का धड़ 6 वर्ष की अवस्था तक जन्म की अपेक्षा दुगुना हो जाता है।

हाथ और पैर (Arms and Legs) – बाल्यावस्था में हाथ पतले रहते हैं परन्तु वयसन्धि अवस्था के आरम्भ होते ही इनकी मोटाई कुछ बढ़ने लगती है।

आठ वर्ष की अवस्था तक पैर 56% विकसित हो जाते हैं।

दांत (Teeth) – छः वर्ष की अवस्था में स्थायी दांत निकलना आरम्भ हो जाते हैं। लड़कियों में स्थायी दांत लड़कों की तुलना में शीघ्र निकलते हैं।

हृदय (Heart) – छ: वर्ष की अवस्था तक हृदय का भार जन्म की अपेक्षा 4-5 गुना हो जाता है। बारह वर्ष तक हृदय का भार जन्म की अपेक्षा सात गुना हो जाता है।

पाचन-तन्त्र (Digestive System) – वयसन्धि अवस्था प्रारम्भ होने तक पाचन-तन्त्र का विकास मन्द गति से होता है।

श्वसन-तन्त्र (Respiratory System) – बाल्यावस्था के अन्त तक छाती और सिर का अनुपात 3 : 2 हो जाता है।

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प्रश्न 18.
बच्चों की शारीरिक आवश्यकताओं से आप क्या समझते हैं ? बच्चों की मुख्य शारीरिक आवश्यकताएं कौन-कौन सी हैं तथा इन्हें किस प्रकार पूरा किया जाना चाहिए ?
उत्तर :
बढते हए शिश की शारीरिक आवश्यकताएं निम्नलिखित हैं –
1. भोजन – जन्म से पूर्व भी बच्चे को भोजन की आवश्यकता होती है क्योंकि उसे जीवित रहना है और विकसित होना है। गर्भ में रहते हुए वह अपना भोजन बिना किसी परिश्रम के अपनी माता से प्राप्त करता रहता है। जन्म के बाद उसे अपनी हर आवश्यकता के लिए अभिभावकों पर निर्भर रहना पड़ता है और इन्हें पूरा करने के लिए स्वयं भी परिश्रम करना पड़ता है। भोजन बच्चे को शक्ति देता है, उसके दांत व हड्डियों को मजबूत बनाता है, खून एवं मांसपेशियों को बढ़ाता है और रोगों से शरीर की रक्षा करता है। मां का दूध बच्चे के लिए सर्वोत्तम आहार है। आयु बढ़ने के साथ-साथ दूध के अलावा कुछ अन्य प्रकार के भोज्य-पदार्थों की भी आवश्यकता होती है।

2. वस्त्र – शिशु के सर्वांगीण विकास में उसके वस्त्रों का भी समुचित स्थान है। वस्त्र बच्चे को मौसम के प्रतिकूल प्रभावों से बचाते हैं। गर्मी, सर्दी, बरसात के मौसम में अनुकूल वस्त्र पहनाए जाते हैं। कपड़ों से शरीर की सुन्दरता भी बढ़ती है। बच्चे को कोमल, हल्के, ढीले-ढाले तथा आरामदेह कपड़े पहनाने चाहिएं जिन्हें पहनकर वह स्वतन्त्रतापूर्वक हिल जुल सके।

3. शारीरिक सुरक्षा व स्वच्छता – बच्चे का शरीर आरम्भ में बहुत कमजोर होता . है। उसकी देख-भाल बहुत ही धैर्य और आराम से होनी चाहिए। बच्चे के शरीर को रोगों से सुरक्षित रखना चाहिए। उसकी देख-भाल स्वास्थ्यप्रद वातावरण में होनी चाहिए। उसके बाल, त्वचा, नाखून, दांत, नाक, कान तथा आंखों की आवश्यकतानुसार देख भाल होनी चाहिए। बच्चे के उचित पालन के लिए उसकी शारीरिक सफ़ाई की विशेष आवश्यकता होती है। बच्चे के लिए इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुयें, जैसे-तौलिया, दूध की बोतल, खाने के बर्तन, बिस्तर, ब्रुश, कंघा, खिलौने, लंगोट या पोतड़े आदि की पूरी स्वच्छता रखनी चाहिए।

4. नींद – शिशु के उत्तम स्वास्थ्य के लिए परमावश्यक है कि उसे अच्छी प्रकार से नींद आए। जो शिशु पूर्णतः स्वस्थ है वह अपनी पूरी नींद लेता है और सोते समय बार-बार उठता नहीं है। नींद से बच्चे के शरीर को आराम मिलता है और उसकी खोई हुई शक्ति वापस आती है। अत: नींद एक शारीरिक आवश्यकता है।

5. व्यायाम – बच्चा बड़ा हो या छोटा, उसे व्यायाम करना आवश्यक होता है। व्यायाम से शरीर स्वस्थ रहता है। बच्चे की आयु के बढ़ने के साथ-साथ उसके व्यायाम करने का ढंग भी बदलता जाता है। प्रारम्भ में शिशु अपने बिस्तर पर ही लेटा हुआ अपनी टांगें तथा बांहें फेंककर व्यायाम करता है। जब घुटनों के बल चलने लगता है तो वह चलकर, भागकर अथवा कूदकर व्यायाम करता है। बच्चे की देख-भाल करने वाले को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चा हर रोज़ आवश्यकतानुसार व्यायाम करे ताकि उसका शरीर स्वस्थ रहे।

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प्रश्न 19.
शिशु की भावनात्मक आवश्यकताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
भावनात्मक आवश्यकतायें बच्चे के व्यक्तित्व को बनाने में सहायक होती हैं इसलिए बच्चे के व्यक्तित्व को सन्तुलित बनाने के लिए इनकी पूर्ति करना अत्यन्त आवश्यक है। बच्चे की भावनात्मक आवश्यकतायें निम्नलिखित हैं –
1. अनुराग या प्रेम – बच्चे की यह भावनात्मक आवश्यकता बहुत गहरी होती है। प्रत्येक बच्चा अपने माता-पिता से प्यार तथा दुलार की आशा रखता है। माता-पिता या अभिभावक के प्यार भरे शब्द व मुस्कराहट बच्चे की इस आवश्यकता की पूर्ति करती है। बच्चे में इससे अपने प्रति विश्वास की भावना पैदा होती है। माता-पिता की डांट या थोड़ा सा भी अनादर बच्चे के इस विश्वास को ठेस पहुंचाता है और इसका प्रभाव उसके व्यक्तित्व पर पड़ता है।

2. भावनात्मक सुरक्षा – भावनात्मक सुरक्षा बच्चे को स्वतन्त्र एवं परिपक्व होने में सहायता देती है। अपने माता-पिता से मिले प्यार, दुलार, प्रशंसा, रुचि, आराम तथा दिलासा के आधार पर ही इस भावना का निर्माण होता है। कभी-कभी अधिक लाड़-प्यार से बच्चे बिगड़ भी जाते हैं। बच्चे को यह विश्वास बना रहना चाहिए कि उसके माता-पिता उसे प्यार करते हैं। उसे कभी यह अनुभव नहीं होना चाहिए कि घर में उसकी आवश्यकता नहीं है। कई घरों में विशेष रूप से ऐसा लड़कियों के साथ होता है।

3. सम्बद्धता – बच्चा अपने माता-पिता से प्रेम के साथ-साथ घर में अपना अस्तित्व भी चाहता है। वह घर में हर सदस्य से जुड़ा हुआ महसूस करना चाहता है। वह चाहता है कि घर के कार्यों में उसे भी सम्मिलित किया जाये। घर में उसकी ज़रूरत है इसका आभास उसे देते रहना चाहिए। कभी-कभी बच्चे से किसी बात की सलाह लेने से उसे खशी होती है।

4. अभिज्ञान – बच्चा भी आकर्षण केन्द्र बनकर लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करके आनन्द का अनुभव करता है। उसे भी इच्छा रहती है कि कोई उसकी प्रशंसा करे। वह वही कार्य करना चाहता है जिससे वह प्रशंसा का भागी बन सके। उसकी यह भावना सदैव उसके साथ रहती है और वह सदैव उसे पाने के लिए प्रयत्नशील रहता है।

5. स्वतन्त्रता – बच्चे को प्रारम्भ में संसार का कोई अनुभव नहीं होता परन्तु रे-धीरे वह बहुत-सी बातें सीखता है, उसमें खोजने की भावना जन्म लेती है। जब वह अपने आपको किसी काम को कर सकने योग्य पाता है तो उसके मन में अपने आपके प्रति एक विश्वास जागता है। इस विश्वास के साथ-साथ वह आगे बढ़ने का प्रयत्न करता है। वह पहले से अधिक कठिन कार्य करने की इच्छा व्यक्त करता है। इस प्रकार बच्चे में स्वावलम्बन पैदा होता है। उदाहरण के तौर पर छोटे बच्चों में इस प्रकार के व्यवहार अक्सर देखने को मिलते हैं, जैसे वह स्वयं खाना चाहता है, स्वयं कपड़े पहनना चाहता है। बच्चे की इन इच्छाओं को दबाना नहीं चाहिए बल्कि उसे स्वयं काम करने देना चाहिए। परन्तु साथ-साथ इस बात का ध्यान भी रखना चाहिए कि स्वयं कार्य करता हुआ बच्चा कभी अपने आपको चोट न पहुंचाये।

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प्रश्न 20.
शिश की सामाजिक आवश्यकताओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
बालक की प्रमुख सामाजिक आवश्यकताएँ कौन-कौन सी हैं ? वर्णन करो।
उत्तर :
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जब बालक जन्म लेता है तो वह अपनी हर आवश्यकता के लिए दूसरे व्यक्ति पर निर्भर करता है। प्रत्येक सामाजिक प्राणी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एक-दूसरे पर निर्भर करता है। हरलॉक के अनुसार, “कोई भी बालक सामाजिक पैदा नहीं होता। वह दूसरों के होते हुए भी अकेला ही होता है। समाज में दूसरों के सम्पर्क में आकर समायोजन की प्रक्रिया को सीखता है। इसलिए समाजीकरण की प्रक्रिया बालक के विकास के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।” बढ़ते हुए बच्चे की सामाजिक
आवश्यकतायें निम्नलिखित हैं

1. आश्रितता – जब बच्चा अकेला होता है, तो रोता है। जब उसे गोद में लिया जाता है तो वह चिपटता है। कई लोगों के बीच में भी बच्चा प्रसन्न रहता है। इस प्रकार बालक की यह आवश्यकता आश्रितता की ओर संकेत करती है।

2. अनुकरण – बच्चा पहले मुखाकृतियों का, फिर हाव-भाव का, फिर भाषा और अन्त में सम्पूर्ण व्यवहार प्रतिमान का अनुकरण करना सीखता है। अनुकरण वह प्रक्रिया है जिसकी सहायता से बच्चा आगे चलकर सामाजिक प्राणी बनता है।

3. सहयोग – लगभग 12 वर्ष की अवस्था में यद्यपि बच्चों में दूसरे बच्चों के प्रति सहयोग के लक्षण दिखाई देते हैं, परन्तु दूसरे बच्चों की अपेक्षा वयस्क लोगों के प्रति बच्चों में सहयोग की अधिक इच्छा होती है।

4. शर्माहट – बालक जब लगभग 1 वर्ष का होता है तब उसमें शर्म के लक्षण दिखाई देते हैं, विशेष रूप से जब बालक के सामने कोई अपरिचित व्यक्ति आता है।

5. सहानुभूति – यह गुण प्रारम्भ से ही विकसित होने लगता है। सहानुभूति की भावना परिस्थिति के कारण उत्पन्न होती है। दूसरे बच्चे के शारीरिक या मानसिक दुःख को अनुभव कर बच्चा उसके प्रति सहानुभूति रखता है। सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार में आयु एवं मानसिक परिपक्वता के साथ-साथ व्यक्तिगत भिन्नता पाई जाती है।

6. प्रतिस्पर्धा – अपने को आगे बढ़ाने में बालक सदा ही लगा रहता है और इसी भावना से प्रेरित हो उसमें प्रतिस्पर्धा विकसित होती है। किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए यह गुण बहुत काम आता है।

7. सामूहिक क्रियाएं – दो वर्ष का बालक खेलने के लिए साथी ढूँढ़ने लगता है। बढ़ती अवस्था के साथ-साथ सामूहिक रूप से कार्य करने की प्रवृत्ति विकसित होती है। घर में भी अन्य सदस्यों के साथ मिलकर कार्य करना सीखता है।

8. सामाजिक अनुमोदन की इच्छा – सम्भवतः जब बच्चा बोलना भी नहीं जानता, तभी वह यह समझने लगता है कि वह प्रशंसा और ध्यान का केन्द्र है। बालक को सामाजिक अनुमोदन जैसे-जैसे प्राप्त होता जाता है, उसे प्रसन्नता और आनन्द प्राप्त होता जाता है। बहुत छोटा बच्चा यद्यपि अनजान व्यक्तियों से शर्माता है, परन्तु कुछ बड़ा बच्चा इन अनजान व्यक्तियों से अपने माता-पिता की अपेक्षा अधिक अनुमोदन प्राप्त करना चाहता है। जिस बच्चे में सामाजिक अनुमोदन की जितनी अधिक इच्छा होती है वह सामाजिक समायोजन उतनी ही जल्दी कर लेता है। वह शीघ्र ही समाज की प्रत्याशाओं के अनुसार व्यवहार अपना लेता है।

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प्रश्न 21.
सामाजिक परिपक्वता के अध्ययन की कौन-कौन सी विधियाँ हैं ?
अथवा
सामाजिक परिपक्वता के अध्ययन की विधियों के नाम व उनके आविष्कारक बताएँ।
उत्तर :
प्रत्येक अवस्था में बालक को सामाजिक व्यवहार का अध्ययन अनेक विधियों द्वारा किया जाता है। ये विधियाँ दो प्रकार की हैं –
1. समाजमिति-इसके आविष्कारक श्री जे० एल० मोटनी हैं। इस नियम के अनुसार बालकों से पूछा जाता है कि वे किस प्रकार के बालकों के साथ बैठना या खेलना या काम करना पसन्द करेंगे। इसे एक रेखाचित्र पर अंकित करते हैं। एक वर्ष के बाद फिर इसी प्रकार का समाज रेखाचित्र तैयार करते हैं। इससे पता चलेगा कि उसका अन्य कौन-सा साथी लोकप्रिय बन गया है।

2. वाईनलैण्ड सामाजिक परिपक्वता माप-यह विधि प्रमाणीकृत कर ली गई है। इसके आविष्कारक डॉ० एडगर डोल हैं। इस नियम का प्रयोग विभिन्नावस्था के बालकों के सामाजिक व्यवहार का मापन करने के लिए किया जाता है। इसमें किशोरावस्था तक की 117 सामाजिक क्रियाओं को दिया गया है। इसके साथ ही सम्बन्धित रेखाचित्र भी दिए हैं जिसमें 31/2 वर्ष, 5 वर्ष, 8 वर्ष, 10 वर्ष तथा 12 से 15 वर्ष तक की अवस्था वाले बालकों की कार्यशक्ति प्रदर्शित की है।

31/2 वर्ष की अवस्था का बालक कैंची से कागज़ काटना, चम्मच का प्रयोग करना, पानी, गड्ढे और सीढ़ियों से अपने आप को बचाने आदि कार्य कर सकता है। 5 वर्ष की अवस्था का बालक वस्त्र पहनना, स्नानगृह में जाकर कपड़े उतारना, आँख-मिचौनी, कंकड पत्थर फेंकना और रस्सी कूदना आदि खेल खेलना तथा चित्र बनाना आदि कार्य कर सकता है। 8 वर्ष की अवस्था का बालक वयस्क के समान भोजन लेना, समय देखना, बाल संवारना तथा सामूहिक खेलों में भाग लेना शुरू कर देता है।

10 वर्ष की अवस्था का बालक दूध और आलू उबालना, जूस निकालना, बाजार से चीजें खरीदना, पैसे सुरक्षित रखना, सन्देश पहुँचाना आदि कार्य कर सकता है। 12 से 15 वर्ष की अवस्था का बालक कौशल सम्बन्धी खेलों में भाग लेना, साहित्यिक और सामाजिक समारोह में भाग लेना, ऋतु और अवसर के अनुसार कपड़े बदलना, घर और बगीचे सम्बन्धी कार्य करना आदि सभी कार्य करने की क्षमता रखता है।

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प्रश्न 22.
बालक के आन्तरिक अवयवों के विकास के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर :
बालक के आन्तरिक अवयवों के अन्तर्गत निम्नलिखित अवयव आते हैं –

  1. पाचन-तंत्र
  2. श्वसन-तंत्र
  3. हृदय
  4. मस्तिष्क
  5. परिवाही प्रणाली
  6. स्नायुमंडल
  7. मांसपेशियाँ
  8. चर्बी।

1. पाचन-तंत्र – बालक का पेट नालिका के आकार का होता है और एक वयस्क व्यक्ति का पेट थैली के आकार का होता है। वयस्क की अपेक्षा बालक को शीघ्र भूख लगती है क्योंकि बालकों की पाचन क्रिया तेज़ गति से चलती है। इसीलिए एक बालक को कई बार दूध पिलाना चाहिए। जन्म के समय बालक का पेट 1 औंस और 15 दिन के बाद 1/2 औंस और एक महीने के बाद 3 औंस वस्तु को ग्रहण करता है। बालकों के आहार में पौष्टिक तत्त्व 900 से 1200 कैलोरी तक होने चाहिएं।

2. श्वसन-तंत्र – नवजात बालक के फेफड़े छोटे आकार के होते हैं। दो साल की उम्र में फेफड़े व सिर दोनों का विकास समान होता है। परन्तु 13 साल के बालक के सीने का भार तो बढ़ता है परन्तु आकार वही रहता है। किशोरावस्था में फेफड़े का वज़न भी बढ़ जाता है। इस तरह श्वास लेने की क्षमता में भी वृद्धि होती है।

3. हृदय – नवजात बालक का हृदय छोटे आकार का होता है। लेकिन दैहिक भार के अनुपात में वह अधिक भारी होता है और किशोरावस्था तक शरीर का भार बढ़ जाता है। इस प्रकार किशोरावस्था में हृदय छोटा रह जाता है और नसें व नाड़ियाँ बढ़ जाती हैं। 6 साल की अवस्था में बालक के हृदय का भार जन्म से 4 से 5 गुना, 12 साल की उम्र में बालक के हृदय का भार जन्म से 7 गुना और वयस्कता की अवस्था में जन्म से 12 गुना हो जाता है।

4. मस्तिष्क – नवजात बालक के मस्तिष्क का भार 350 ग्राम होता है। जन्म से लेकर चार साल में बालक का मस्तिष्क अधिक तेज़ गति से विकास करता है। चार से आठ सालों में विकास धीमी गति से होता है और इसके पश्चात् किशोरावस्था तक मस्तिष्क के विकास की गति फिर तेज़ हो जाती है। 20 साल की आयु तक मस्तिष्क का पूर्ण विकास हो जाता है और इसलिए 20 साल के किशोर का मस्तिष्क सभी क्रियाएँ कर सकता है।

5. परिवाही प्रणाली – नवजात बालक की नाड़ी अधिक तेज़ गति से चलती है। जैसे जैसे बालक बड़ा होता है नाड़ी गति में कमी आ जाती है। बाल्यावस्था में रक्तचाप कम हो जाता है। उम्र वृद्धि के साथ रक्तचाप में भी वृद्धि आ जाती है। बाल्यावस्था में लड़के और लड़कियों का रक्तचाप समान रहता है। छोटे बालकों का तापमान भी स्थिर नहीं रहता है, वह बदलता रहता है। दोपहर व शाम की तुलना में सुबह तापमान कम रहता है।

6. स्नायुमंडल – स्नायुमंडल का निर्माण गर्भावस्था के पहले महीने से आरम्भ हो जाता है और गर्भ के छठे महीने तक एक अरब से ज्यादा स्नायुकोष मिलकर स्नायुमंडल का निर्माण करते हैं। जन्म से 3-4 सालों तक स्नायुमंडल का विकास तेज़ गति से होता है। उसके बाद विकास की गति धीमी पड़ जाती है। चार साल के बाद स्नायुमंडल का विकास मंद गति से होता रहता है।

7. मांसपेशियाँ – हृदय, पाचन-तंत्र और ग्रन्थियों का नियन्त्रण मांसपेशियों के द्वारा होता है। नवजात बालक की मांसपेशियों के तन्तु अविकसित होते हैं। नवजात बालक पराधीन एवं कमज़ोर होता है क्योंकि उसकी क्रियाओं में कोई तालमेल नहीं होता है। जन्म के समय मांसपेशियों का भार सम्पूर्ण दैहिक भार का 23% और 8 साल में दैहिक भार का 27%, 13 साल में दैहिक भार का 33% और 16 साल में सम्पूर्ण दैहिक भार का 44% हो जाता है। किशोरावस्था के पश्चात् लड़के एवं लड़कियों की मांसपेशियों में भिन्नता आ जाती है। लड़कों की मांसपेशियाँ ज्यादा मज़बूत और बड़ा होता है।

8. चर्बी – जन्म से लेकर नौ महीने तक चर्बी की मात्रा बहुत तेज़ गति से बढ़ती है। बालक के शरीर में चर्बी की मात्रा उसके वंशानुक्रम, शारीरिक रचना और भोजन पर निर्भर करती है। ग़रीब परिवारों के बालकों में चर्बी की मात्रा धीमी गति से बढ़ती है। एक साल के बाद 6 साल की उम्र तक चर्बी घटती है और 6 साल से 11 साल की उम्र तक चर्बी की मात्रा समान रहती है।

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प्रश्न 23.
ज्ञानात्मक विकास का क्या अर्थ है ? तीन साल के बच्चे के अन्दर हुए ज्ञानात्मक विकास का विवरण दो।
उत्तर :
ज्ञानात्मक विकास में बच्चे की सोचने, तर्क करने, समस्याओं को हल करने की क्षमताओं का विकास होता है। जन्म से 3 वर्ष तक का ज्ञानात्मक विकास-सभी नवजात शिशु व्यवहार को दोहराना सीखते हैं। जैसे 2-3 माह का शिशु अपने होठों को इस प्रकार हिलाता है जैसे चूस रहा हो। वह इस क्रिया को तब भी करता है जब वह भूखा नहीं होता क्योंकि ऐसा करना उसे अच्छा लगता है। इन बच्चों को यदि खिलौने दिए जाए तो वह उसे हाथ में लेकर देखते हैं, चूसते हैं, रगड़ते हैं आदि। इस प्रकार की क्रियाओं से वह वस्तुओं के बारे में ज्यादा जानते व समझते हैं।

वस्तु स्थायित्व –

एक 5-6 माह के बालक को यदि कोई खिलौना दिखाकर छुपाया जाए तो वह उसे ज्यादा नहीं ढूँढ़ता। वह इसीलिए क्योंकि वह यह समझता है कि जो वस्तु को वह देख नहीं सकता वह है ही नहीं।

परन्तु 1\(\frac{1}{2}\) साल के बच्चे के साथ यदि ऐसा किया जाए तो वह खिलौना तुरन्त ढूँढ निकालेगा या आपसे वापिस मांगेगा। अत: नजरों से दूर होते ही किसी खिलौने अथवा वस्तु का बालक द्वारा न भूल जाने को ‘वस्तु स्थायित्व’ कहते हैं। लगभग 2 साल तक बच्चा यह सीख लेता है।

3 साल के बच्चे ऐसा सोचते हैं कि निर्जीव वस्तुओं में भी जान होती है। वे समझते हैं कि वस्तुओं में मानवीय गुण जैसे गुड़िया के पेट में दर्द होता है, मेज़ को चोट लगती है आदि छोटे बच्चे दूसरों का दृष्टिकोण नहीं समझ पाते। उदाहरण के लिए हम रोहन व उसके माँ के बीच हुए वार्तालाप पर नजर डालते हैं। रोहन कमरे में है और माँ रसोई में माँ।

रोहन दूध खत्म किया ?
रोहन : (जवाब में हाँ का सिर हिला देता है)।
माँ फिर पूछती है और रोहन फिर से सिर हिलाता है। वह यह बात नहीं समझता कि माँ को रसोई में उसका हिलता हुआ सिर नहीं बल्कि उसकी आवाज़ सुनाई देगी।

प्रश्न 24.
सीखना (Learning) क्या है ?
अथवा
सीखने की क्रिया को कितने भागों में बाँटा गया है ? उदाहरण सहित बताएँ।
उत्तर :
सीखने की क्रिया बालक के जन्म से ही आरम्भ हो जाती है। बालक जब माता के गर्भ में रहता है, तभी से उसमें कुछ चेतना आ जाती है और वह कभी-कभी बाहरी वातावरण की प्रतिक्रियाओं से प्रभावित हो जाया करता है।
सीखने की क्रिया को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है –
1. जन्म-जात क्रिया
2. सीखना।
1. जन्म-जात क्रिया – ये वे क्रियायें हैं जो सभी प्राणियों में पाई जाती हैं। इन्हें सहज क्रियायें (Reflex actions) कहा जाता है। बालक पैदा होते ही छींकता है, खांसता है, मल त्याग आदि करता है, ये सभी क्रियाएं जन्मजात होती हैं। इन क्रियाओं को सीखने की क्रियाओं में नहीं रखा जा सकता क्योंकि इनके अर्जन में बच्चे को श्रम नहीं करना पड़ता
और वह इन्हें सीखने के लिए समाज के सहारे रहता है। वातावरण का प्रभाव इस क्रिया पर कुछ भी नहीं पड़ता।

2. सीखना – सीखना वह क्रिया है जिसके अभ्यास के फलस्वरूप बच्चे (या सीखने वाले) के व्यवहार में किसी प्रकार का स्थायी परिवर्तन होता है। इस परिवर्तन के फलस्वरूप ही वह अपने नये वातावरण में अभियोजित करने में समर्थ होता है।

इसे हम इस प्रकार समझ सकते हैं-यदि कोई बच्चा जलती लालटेन पर हाथ रखता है और जलन का अनुभव होते ही वह शीघ्र हाथ हटा लेता है, तो भविष्य में इस प्रकार की 2-4 गलतियों के बाद वह सीख जाता है कि जलती लालटेन पर उसका हाथ न पड़े। यहीं से बच्चे के सीखने की प्रक्रिया प्रारम्भ होती है। ऐसा ही उसके चलने-फिरने में भी होता है। जिस मार्ग में या वस्तु से टकराकर उसे चोट लगती है, वहां वह दुबारा नहीं जाना चाहता।

बालक जब पैदा होता है वह बोलना नहीं जानता। कुछ बड़ा होने पर वह बोलना सीख जाता है। बोलना सीख लेने पर उसके जीवन में एक नवीनता आती है और उसके व्यवहार में भी परिवर्तन आता है। इस प्रकार बच्चा चलना सीखता है और फिर चलने के द्वारा दौड़ना और उछलना सीखता है। इस प्रकार शारीरिक एवं मानसिक विकास के साथ-साथ उसका सीखने का क्रम भी चलता रहता है। बच्चा बार-बार गिरता है और चोट खाता है तब जाकर कहीं चलना सीखता है। अत: अपने को वातावरण के अनुकूल ढाल लेने की सफलता ही सीखना है।

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प्रश्न 25.
सीखने की विधियों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
सीखने की तीन विधियों का उल्लेख करें।
उत्तर :
बच्चा जब जन्म लेता है अर्थात् बाहरी वातावरण में प्रवेश करता है, उसी समय से वह विभिन्न विधियों द्वारा सीखना प्रारम्भ कर देता है। सीखने की विधियों द्वारा ही बच्चा चलना-फिरना, पढ़ना-लिखना और बोलना-चालना सीखता है। सीखने की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं –
1. अभ्यास विधि
2. अनुकरण विधि
3. सम्बन्धीकरण विधि
4. आन्तरिक सूझ विधि।

1. अभ्यास विधि – इसे प्रयास और भूल की विधि भी कहते हैं। बच्चा अपने प्रारम्भिक ज्ञान को इसी विधि द्वारा प्राप्त करता है। जब बच्चा चलना सीखता है तब बार-बार गिरता है और उठता है। बच्चे का प्रयास तब तक जारी रहता है जब तक वह चलना सीख नहीं लेता। इसी प्रकार वह बैठना, उठना, खेलना, बढ़ना आदि इसी विधि द्वारा सीखता है।

2. अनुकरण विधि – घर में माता-पिता व अन्य सदस्यों को खाते-पीते, चलते फिरते, बात करते देखकर बच्चा उसका अनुकरण करता है। बच्चा बहुत-सा ज्ञान अनुकरण द्वारा प्राप्त करता है।

3. सम्बन्धीकरण विधि – इस विधि में स्वाभाविकता का अनुभव होता है। जैसे रोता हुआ बालक किसी के आने की आहट से रोना बन्द कर देता है। किसी स्त्री को देखकर बच्चा प्रसन्न हो उठता है क्योंकि वह स्त्री को माता के रूप में सोचता है। बच्चे को मां के आने से सन्तोष मिलता है क्योंकि उसे दूध पीने को मिलता है और उसकी भूख शांत होती है। यह एक स्वाभाविक उत्तेजना होती है।

4. आन्तरिक सूझ विधि – सीखने की यह भी एक महत्त्वपूर्ण विधि है। बच्चा जब किसी घोर आवश्यकता या संकट में पड़ जाता है तब उसे स्वयं ही कोई उपाय सूझ जाता है। इसमें संकेत अथवा अनुकरण की आवश्यकता नहीं पड़ती।

प्रश्न 26.
सीखने की क्रिया को कौन-से तत्त्व प्रभावित करते हैं ?
अथवा
सीखने की क्रिया को प्रभावित करने वाले छः तत्त्व बताएं।
उत्तर :
सीखना एक कला है। सीखने की कला में बहुत-से तत्त्व सहायक होते हैं। सीखने की क्रिया को प्रभावित करने वाले तत्त्व अग्रलिखित हैं –
1. प्रेरणा – नए कार्यों को सीखने के पीछे वास्तव में कोई-न-कोई प्रेरणा कार्य करती है। प्रेरित होकर ही बच्चा कोई नया कार्य सीखना चाहता है और प्रयास करता है। प्रेरणा से बच्चा क्रियाशील बनता है।

2. रुचि – बिना रुचि के कोई कार्य नहीं सीखा जा सकता। बच्चों में अभिरुचि उत्पन्न करके ही उन्हें बहुत-सी बातें सिखाई जाती हैं।

3. आत्म प्रगति का ज्ञान – जब बच्चे को पता चल जाता है कि किसी कार्य को करने या उसमें हिस्सा लेने में प्रगति है, तो स्वयं ही उसे सीखने की कोशिश करता है।

4. पुरस्कार व दण्ड – पुरस्कार व प्रतिष्ठा की प्राप्ति की प्रेरणा से बालक अधिक और कठिन कार्य भी पूरे कर लेते हैं, जैसे परीक्षा में पोजीशन प्राप्त करने के लिए पढ़ाई में कड़ी – मेहनत करते हैं। दण्ड का भय बच्चों को गलत बात सीखने से रोकता है। ….

5. प्रशंसा – प्रशंसा के लालच में बच्चे बहुत कार्य करना सीख जाते हैं।

6. संवेदना और प्रत्यक्षीकरण – आँख, कान, नाक, त्वचा तथा जीभ ये पाँच इन्द्रियां संवेदना के पांच द्वार हैं। इन्हीं के द्वारा प्रत्यक्षीकरण होता है। यदि हमारा कोई संवेदन अंग दोषपूर्ण होगा, तो उस अंग से कुछ सीखना प्रायः कठिन होगा।

7. थकान – बच्चा जब थका होता है, तब भी उसे कोई बात सीखने में अत्यन्त कठिनाई होती है।

8. आयु – सीखने का सम्बन्ध आयु से भी है। छोटे बच्चे को यदि संगीत या डांस सिखाया जाए, तो वह वयस्कों की तुलना में जल्दी सीख जाते हैं।

9. समय – विभिन्न कार्यों को सीखने के लिए विभिन्न समय होते हैं। जैसे पढ़ाई करने का उत्तम समय प्रातःकाल का बताया जाता है। 10. वातावरण – सीखने की प्रक्रिया पर वातावरण पर प्रभाव पड़ता है जैसे शोर-गुल में पढ़ा नहीं जा सकता। अधिक गर्मी और अधिक नमी भी बच्चों की कार्य-क्षमता को कम कर देती है।

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प्रश्न 27.
बच्चे बोलना कैसे सीखते हैं ?
अथवा
बच्चे भाषा कैसे सीखते हैं ?
उत्तर :
बच्चा जिस समय पैदा होता है, वह जिह्वा से तो युक्त होता है परन्तु उसमें बोलने की क्षमता बिल्कुल नहीं होती। जन्म के बाद वह रोकर इस संसार में अपने आगमन की सूचना देता है। यह रोना ही उसकी वाक्-शक्ति की पहचान होती है। धीरे-धीरे उसके शारीरिक एवं मानसिक विकास के साथ-साथ उसकी वाक्-शक्ति का भी विकास होता है। सभी बच्चे एक ही अवस्था में बोलना नहीं सीखते। उनमें अन्तर होता है। बच्चे वाक्-शक्ति के विकास के पूर्व अपनी आवश्यकताओं को तीन रूपों में प्रकट करते हैं।
1. रुदन (रोना)
2. अस्पष्ट ध्वनि या अस्पष्ट शब्द बबलाना या बालालाप
3. संकेत या अंग विक्षेप या हाव-भाव

जीवन के प्रारम्भिक काल में शिशु अपनी आवश्यकता को रोकर ही प्रकट करता है। जब उसे भूख लगती है या जब वह गीले कपड़ों में लिपटा होता है या किसी रोग से पीड़ित होता है, तब वह अपनी व्यथा को रोकर ही व्यक्त करता है। भूख लगे रोते बच्चे को जब दूध पिलाया जाता है, तो वह तुरन्त प्रसन्न होकर हाथ-पैर चलाने लगता है। तीसरे सप्ताह के बाद बच्चे का रोना धीरे-धीरे कम हो जाता है।।

जब बच्चा डेढ़-दो मास का हो जाता है तब वह अपने कण्ठ से विशेष प्रकार की आवाज़ निकालता है जिसे बच्चे की किलकारी कहा जाता है। बाद में वह हा, हूँ तथा कुछ अस्पष्ट शब्दों का उच्चारण करने लगता है। परन्तु इस समय तक इन शब्दों का कोई अर्थ नहीं होता है। धीरे-धीरे खुशी की हालत में, जम्हाई लेते समय, छींकते समय तथा खांसते समय बच्चा कुछ ध्वनियां निकालता है। चार मास की आयु में ये ध्वनियां स्पष्ट सुनाई देने लगती हैं। बच्चे की ध्वनियों के विश्लेषण से ज्ञात होता है कि इन ध्वनियों में स्वर ही रहते हैं। जब बच्चे के सामने के दांत निकल आते हैं, तभी वह जीभ की नोंक, होंठों तथा दाँतों की सहायता से व्यंजन बोल सकने में समर्थ होता है।

एक वर्ष की आयु में बच्चा सभी स्वर तथा सीधे व्यंजन उच्चारित करने लगता है। धीरे-धीरे इन ध्वनियों की संख्या बढ़ती जाती है। इन ध्वनियों में एकरूपता भी आती जाती है। पहले पहल बच्चा व्यंजन और स्वर को मिलाकर बोलता है, जैसे-“ना” “मा” “गा” “दा” “बा”। बाद में अभ्यास के द्वारा बच्चा इन ध्वनियों को दोहराने लगता है जैसे-“ना-ना-ना-ना”, “मा-मा-मा-मा”, “दा-दा-दा-दा”, “गा-गा-गा-गा”, “बा बा-बा-बा” आदि। इसे बबलाना या बालालाप कहते हैं।

अभ्यास के द्वारा बच्चा अपनी आवाज़ को ऊँची या नीची भी कर सकता है। बबलाने की क्रिया द्वारा बच्चा अपने माता-पिता से वार्तालाप करने का प्रयास करता है। बबलाने से बच्चे को आनन्द की प्राप्ति भी होती है। इसके साथ-साथ बबलाने द्वारा बच्चा अपने स्वर यन्त्रों की मांसपेशियों को नियंत्रित करना भी सीखता है।

बोलना सीखने की तैयारी में तीसरी प्रधान क्रिया अंग विक्षेप या हाव-भाव है। बच्चा ध्वनियां निकालने के साथ-साथ अंग विक्षेप भी करता है। अंग विक्षेप में बच्चा सारा शरीर ही प्रयोग में लाता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, बच्चा अंग विक्षेप द्वारा अपनी बातें माता-पिता या बड़ों को समझाता है। यदि बच्चा इसमें सफल नहीं होता तो वह रोने लगता है उदाहरण के तौर पर भूख न होने पर मुँह से दूध बहने देना, मुस्कराना, हाथ फैलाना जिससे कोई गोदी में उठा ले, अनिच्छा प्रकट करने के लिए नहलाते या कपड़ा पहनाते समय रोना, कोई वस्तु पकड़ने के लिए हाथ आगे करना, गुस्से की अवस्था में हाथ-पैर पटकना या मुँह फुला लेना आदि।

जैसे-जैसे बच्चा बोलना सीखता है, अंग विक्षेपों की संख्या घटती जाती है, क्योंकि वह अब इन पर कम निर्भर करता है। 12 से 18 मास की आयु के बीच बच्चा बोलना सीखता है। एक वर्ष का बच्चा “ताता”, “पापा”, “दादा”, “मामा”, “बाबा” आदि शब्दों का अनुकरण कर सकता है। बाद में दो वर्ष की आयु तक वह दो-तीन संज्ञा शब्दों का वाक्य तोतली भाषा में बोलता है।

तीन वर्ष की आयु में बच्चा अपने बड़ों का अनुकरण करता हुआ पूरा वाक्य बोलने का प्रयत्न करता है। यही ऐसा समय होता है जब माता-पिता तथा परिवार के अन्य सदस्यों को शब्दों के उच्चारण व बोल-चाल का विशेष ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि बच्चा उन्हीं उच्चारण का अनुकरण करता है जो घर में बोले जाते हैं। इस आयु में बच्चे का शब्द भण्डार बढ़ जाता है। लगभग 1000 शब्द का भण्डार उसके पास हो जाता है। पांच वर्ष की आयु में वह कहानी सुन तथा कह सकता है। इस प्रकार इन थोड़े-से-वर्षों में बच्चों का भाषा ज्ञान बहुत तीव्र गति से बढ़ता है।

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प्रश्न 27(A).
बालालाप (बैबलिंग) क्या होती है ? बच्चे यह प्रायः किस आयु में शुरू करते हैं ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 27 का उत्तर।

प्रश्न 28.
भाषा विकास को कौन-कौन से कारक प्रभावित करते हैं ?
अथवा
भाषा विकास को प्रभावित करने वाले तत्त्व कौन-कौन से हैं ?
अथवा
बच्चों के भाषा विकास में विभिन्नताएँ क्यों पाई जाती हैं ?
अथवा
भाषा विकास को प्रभावित करने वाले छः कारक बताएं।
उत्तर :
बालक का भाषा विकास कैसे और कितना होगा यह निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है –
1. स्वास्थ्य – दो साल तक की आयु में यदि बच्चा अधिक बीमार रहता है, तो उसका भाषा विकास निश्चित समय से देर में होता है।

2. सामाजिक आर्थिक स्थिति – जिन बालकों का सामाजिक आर्थिक स्तर ऊंचा होता है यह देखा गया है कि उनका भाषा विकास जल्दी और अच्छा होता है। वह अपने विचार ज्यादा अच्छी तरह से व्यक्त कर सकते हैं क्योंकि उनको वातावरण सम्बन्धी वह सभी उपकरण मिल जाते हैं जो भाषा विकास में सहायक होते हैं।

3. लिंग – प्रत्येक आयु में यह देखा गया है कि भाषा विकास में लड़कियां, लड़कों से आगे रहती हैं, वह बोलना जल्दी सीखती हैं, शब्द साफ़ और वाक्य लम्बे बना लेती हैं।

4. पारिवारिक सम्बन्ध – यदि मां के साथ बच्चे के सम्बन्ध अच्छे हैं, तो बालक का भाषा विकास भी ठीक होगा। जिस परिवार में बच्चों की देखभाल ठीक प्रकार से नहीं होती उन बच्चों में हीनता की भाषा के कारण बहुत-से भावना दोष विकसित हो जाते हैं, जैसे हकलाना आदि।

जो बच्चा परिवार में अकेला होता है उसकी तरफ़ माता-पिता भी अधिक ध्यान देते हैं। इसलिए उसका भाषा विकास भी अच्छा होता है।

5. व्यक्तित्व – बुद्धि के अलावा जो बालक शर्माते हैं या अन्तर्मुखी होते हैं उनका भाषा विकास ठीक से नहीं होता। जिन बच्चों का सामाजिक समायोजन ठीक से होता है उनका भाषा विकास भी और बच्चों से अच्छा होता है।

6. बुद्धि – बालक की जितनी अधिक तीव्र बुद्धि होगी उतना ही उसका भाषा विकास अच्छा होगा। बुद्धि से भाषा विकास का सीधा सम्बन्ध है। जो बालक मन्द बुद्धि वाले होते हैं उनका भाषा विकास न के बराबर होता है।

7. निर्देशन – जिन बालकों को अच्छे शिक्षक एवं अभिभावक मिल जाते हैं वे जल्दी-जल्दी भाषा सीखते है क्योंकि वे मॉडल शब्दों के द्वारा भाषा ज्ञान कराते हैं।

8. उत्प्रेरणा – उत्प्रेरक बालक से इशारों से बातचीत नहीं करते बल्कि वे शब्दों के द्वारा बालकों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए प्रेरित करते हैं। ऐसी उत्प्रेरणा से प्रेरित होकर बालकों का भाषा विकास तेजी से होता है।

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प्रश्न 29.
भाषा विकास की अवस्थाओं का उल्लेख करो।
उत्तर :
भाषा विकास क्रम की अवस्थायें निम्नलिखित हैं –
1. ध्वनि पहचानना – नवजात शिशु ध्वनि को नहीं पहचान पाता। धीरे-धीरे वह ध्वनि को पहचानता है। उसके कानों में ध्वनि ग्रहण करने की शक्ति आ जाती है। 5-6 मास की अवस्था में पहुंचने पर शिशु ध्वनियों को पहचानने लगता है, जैसे धड़ाके की आवाज़ से वह चौंक पड़ता है और इधर-उधर देखने लगता है।

2. ध्वनि उच्चारण – ध्वनि को पहचानने के बाद ही ध्वनि उच्चारण करने की क्षमता आती है। 7-8 माह की अवस्था में बच्चा ध्वनि को पहचान कर मुस्कराता भी है। वह दूसरों के द्वारा बोले हुए शब्दों को सुन-सुनकर ही अधिकतर प्रयोग में आने वाले शब्दों को सीख लेता है।

3. शब्द उच्चारण की अवस्था – दो-तीन वर्ष की आयु में बच्चा कठिन शब्दों का उच्चारण भी करने लगता है। इसी अवस्था में माता-पिता उसे वस्तुओं की ओर संकेत करके उन वस्तुओं का नाम बताते हैं और खुद उच्चारण करके उससे कहलवाते हैं।

4. वाक्यों का प्रयोग – शब्दों के उच्चारण के बाद वाक्यों का नम्बर आता है। प्रारम्भ में बच्चा अस्पष्ट तथा असन्तुलित वाक्य बोलता है, किन्तु बाद में धीरे-धीरे वह स्पष्ट वाक्यों को भी बोलने लगता है।

5. लिखित भाषा का प्रयोग – बच्चा पहले बोलना सीखता है बाद में लिखना। लिखने से भाषा में परिपक्वता आती है। भाषा वही पूर्ण मानी जाती है जो बच्चा बोलना भी जानता हो और लिखना भी। भाषा की शुद्धता और सन्तुलन धीरे-धीरे बढ़ता जाता है।

6. भाषा विकास की पूर्ण अवस्था – भाषा विकास की पूर्णता का अर्थ है कि बालक भाषा को समझना, बोलना, पढ़ना और लिखना सभी कुछ जान जाए। भाषा की पूर्णता शीघ्र नहीं आती, धीरे-धीरे प्रयत्न तथा कोशिश के फलस्वरूप आती है। वैसे भाषा विकास से पूर्णता कभी नहीं आती, वह तो सदैव उन्नत अवस्था को प्राप्त होती रहती है।

प्रश्न 30.
भाषा के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाषा के महत्त्व को निम्नलिखित प्रकार व्यक्त किया जा सकता है –
1. प्रगति – भाषा, मानव जाति का इतिहास है। भाषा के माध्यम से व्यक्ति ने आज ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति की है। उसने भाषा की शक्ति के कारण स्वयं को समाज का सर्वोत्तम प्राणी सिद्ध किया है।

2. सामाजिक वंशक्रम की वाहक – आज हमारा प्राचीन साहित्य भाषा के माध्यम से ही सुरक्षित है।

3. सामाजिक सम्पर्क – भाषा सामाजिक सम्पर्क से विकसित होती है। भाषा के विकास के लिए समूह के सदस्य एक-दूसरे के प्रति प्रतिक्रिया करते हैं। क्रिया-प्रतिक्रिया के द्वारा ही समाज में प्रगति होती है।

4. सामाजिक तथा राष्ट्रीय एकता – भाषा सामाजिक तथा राष्ट्रीय एकता को बनाये रखने में एक कड़ी है। इसी से समाज तथा व्यक्ति एक राष्ट्र के रूप में जुड़े रहते हैं।

5. भाषा तथा विचार – भाषा तथा विचार का आपस में गहन सम्बन्ध है। विचार तभी विचार होता है जब उसकी मौखिक अथवा लिखित अभिव्यक्ति होती है।

6. मानव विकास की आधारशिला – भाषा ने व्यक्ति को विकास का आधार प्रदान किया है। जो व्यक्ति भाषा का संयत, संतुलित एवं प्रभावशाली उपयोग करना जानते हैं, वे अपने जीवन में विकास करते हैं।

7.संस्कृति का प्रतिबिम्ब – भाषा के विकास के साथ-साथ सभ्यता तथा संस्कृति भी विकसित हुई है। जिन समूहों की भाषा अविकसित है उनकी सभ्यता तथा संस्कृति भी अविकसित है। जनजातीय भाषा तथा संस्कृति इसके उदाहरण हैं।

8. साहित्य – भाषा और साहित्य का आपसी सम्बन्ध प्रगाढ़ है। किसी भी साहित्य को उसकी भाषा से आंका जाता है। भाषा ने ही वेद, वेदांग, उपनिषद् आदि महान् ग्रन्थ मानव समाज को दिये हैं।

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प्रश्न 31.
बालक में सामान्य भाषा-दोष कैसे उत्पन्न होते हैं ? उन्हें कैसे दूर किया जाता है?
उत्तर :
बहुत से कारणों से बालक में कई भाषा-दोष उत्पन्न हो जाते हैं जो निम्नलिखित हैं
1. तुतलाना – जब बालक के ओंठ, तालू, जीभ, कंठ, कपाल की मांसपेशियों में सामूहिक रूप में सह-कार्य नहीं हो पाता तो यह दोष उत्पन्न होता है। कुछ बालक नकल करने की वजह से तुतलाते हैं, फिर उनको आदत पड़ जाती है। इसमें बच्चे ‘ट’, ‘ठ’, ‘ड’, ‘ढ’, ‘ण’, ‘र’, आदि वर्गों का उच्चारण दोषपूर्ण करते हैं। इसके बदले ट-त, ठ-थ, ड-ध, ण न, न-ल बोलते हैं। बालक को उचित निर्देश देकर व अभ्यास से इस दोष को दूर कर सकते हैं।

2. अशुद्ध शब्द का प्रयोग – यह दोष बालक दूसरे लोगों से सीखते हैं, जैसे ‘नखलऊ, लखनऊ’ और ‘छिकला, छिलका’ को बार-बार अभ्यास द्वारा यह दोष दूर किया जा सकता है। बड़ों को चाहिए कि वह बच्चों के सामने ऐसे न बोलें।

3. रुक-रुक कर बोलना – बहुत से बालकों के शब्द भण्डार में कमी होती है और वे रुक-रुक कर बोलते हैं। बालक को बोलते समय झिड़क कर उसे निराश न करें, वरन् उसे उचित शब्दों के चयन की सलाह देते रहें तो वह दोष दूर हो सकता है।

4. अनुनासिक उच्चारण – कई बार लाड़-प्यार के कारण बालक प्रत्येक शब्द में अनुस्वार लगाकर बोलते हैं और वही आदत बन जाती है जैसे-“हम नहीं खायेंगे”। यह दोष उचित निर्देश व स्नेह से समझाकर सुधार सकते हैं।

5. हकलाना-हकलाने में या तो एक ही स्वर बार-बार दोहराया जाता है। जैसे-क क क कमल या पा पा पा पानी अथवा आवाज़ का एकदम रुक जाना और आगे का अक्षर उच्चारित होना होता है।

हकलाने के प्रमुख कारण हो सकते हैं –
(i) बोलने का गलत तरीका सीख लेना।
(ii) संवेगात्मक तनाव।
(iii) मस्तिष्क सम्बन्धी असन्तुलन।
(iv) ध्वन्यात्मक विस्मृति।
(v) वंशानुक्रम।
(vi) अन्तःस्रावी ग्रंथियों का असंतुलन।

प्रश्न 32.
भाषा विकास की मापन विधियां कौन-सी हैं?
उत्तर :
बालक का भाषा विकास का मापन कई विधियों से किया जा सकता है। ये विधियां निम्नलिखित हैं
1. निर्धारित समय में बालक द्वारा प्रयुक्त शब्दों की गणना – इसमें 15 मिनट तक चुपचाप बालक द्वारा प्रयुक्त शब्दों को लिखा जाता है। इस प्रकार दो-तीन तालिकाएँ बनाकर आपस में तुलना की जाती है। इस आधार पर 7 वर्षीय बालक 36 शब्दों का, 14 वर्षीय लड़का अनुमानत: 160 शब्दों का उच्चारण करता है। 7 वर्षीय बालक की सम्पूर्ण प्रयोग शब्दावली 800 शब्दों की पाई गई और 14 वर्षीय लड़के की 3600 शब्दों की।

2. प्रयुक्त शब्दों की गणना – यह विधि अत्यंत सरल है। इस विधि में बालक के दिनभर के प्रयुक्त शब्दों को एक कॉपी में लिखते जाइए। इससे बालक की पूर्ण प्रयोग शब्दावली का पता लग सकता है।

3. प्रश्नावली – यह भी बुद्धि मापक परीक्षाओं का ही एक अंश होती है। इसके द्वारा अल्प समय में बालक के भाषा विकास की जानकारी, शब्दों की निश्चित संख्या के आधार पर की जा सकती है। इसमें बालकों से प्रश्नों द्वारा शब्दों के अर्थ पूछे जाते हैं।

एक शब्द/एक वाक्य वाले प्रश्न –

(क) निम्न का उत्तर एक शब्द में दें –

प्रश्न 1.
बचपन को कितनी अवस्थाओं में बांटा गया है ?
उत्तर :
चार।

प्रश्न 2.
लड़का कब बालिक (वयस्क) होता है ?
उत्तर :
21 वर्ष की आयु में।

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प्रश्न 3.
जब बच्चा गुस्से से ज़मीन पर लोटता है, इसे क्या कहते हैं ?
उत्तर :
टैम्पर टैंट्रम।

प्रश्न 4.
भूख लगने अथवा पेट दर्द होने पर बच्चा क्या करता है ?
उत्तर :
क्रन्दन।

प्रश्न 5.
कितनी आयु में बच्चा बिना सहारे के चल सकता है ?
उत्तर :
12 वर्ष।

प्रश्न 6.
नवजात शिशु में कितनी हड्डियां होती हैं ?
उत्तर :
270.

प्रश्न 7.
शिशु के प्रथम बार दाँत कब निकल आते हैं ?
उत्तर :
छः से आठ महीने के मध्य।

प्रश्न 8.
नवजात बालक के मस्तिष्क का भार कितना होता है ?
उत्तर :
350 ग्राम।

प्रश्न 9.
जन्म के समय बालक का पेट कितनी वस्तु ग्रहण कर सकता है ?
उत्तर :
1 औंस।

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प्रश्न 10.
एक नवजात शिशु लगभग कितने घण्टे सोता है ?
उत्तर :
20 घण्टे।

प्रश्न 11.
नवजात शिशु का जन्म के समय औसत भार कितना होता है ?
उत्तर :
6 से 8 पौंड।

प्रश्न 12.
आँखों के लिए कौन-सा विटामिन ज़रूरी है ?
उत्तर :
विटामिन ‘ए’।

प्रश्न 13.
हड्डियों के लिए कौन-सा खनिज लवण ज़रूरी है ?
उत्तर :
कैल्शियम।

(ख) रिक्त स्थान भरें –

1. ………… माह का बच्चा सरल, सीधे शब्द जैसे काका, मामा आदि बोल सकता है।
2. हड्डियों की मजबूती ……….. से आती है।
3. बच्चों को टीकों की बूस्टर दवा ……….. वर्ष का होने पर देनी होती है।
4. वृद्धि ………… का एक हिस्सा है।
5. जन्म के समय बच्चे में …………. विकास नहीं होता।
6. जन्म के समय बच्चे की औसत लम्बाई ………. होती है।
7. ………….. शारीरिक विकास को प्रभावित करती है।
उत्तर :
1. 10
2. कैल्शियम
3. छ:
4. विकास
5. सामाजिक
6. 19 से 20 इंच
7. खेल।

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(ग) निम्न में ग़लत तथा ठीक बताएं –

1. समुदाय में रहने वाले बालक में अश्लील व्यवहार करना जैसे अवगुण आ जाते हैं।
प्रत्येक प्राणी की अपनी भाषा होती है। बच्चे दो-अढाई वर्ष तक शौच क्रिया पर नियन्त्रण कर लेते हैं।
हकलाने का एक कारण बोलने का ग़लत तरीका सीख लेना है।
5. बालकों के आहार में 5900 कैलोरी होनी चाहिए।
उत्तर :
1. ठीक
2. ठीक
3. ठीक
4. ठीक
5. गलत।

बहु-विकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
बच्चा कितनी आयु में वयस्क होता है –
(A) 15 वर्ष
(B) 21 वर्ष
(C) 18 वर्ष
(D) 25 वर्ष।
उत्तर :
18 वर्ष।

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प्रश्न 2.
भारतीय बच्चे का जन्म के समय लगभग भार होता है –
(A) 1 कि० ग्रा०
(B) 2.5 कि० ग्रा०
(C) 4 कि० ग्रा०
(D) 5 कि० ग्रा०।
उत्तर :
2.5 कि० ग्रा०।

प्रश्न 3.
……….. हड्डियों में मजबूती आती है –
(A) कैल्शियम से
(B) वसा से।
(C) लोहा से
(D) आयोडीन से।
उत्तर :
कैल्शियम से।

प्रश्न 4.
छोटे बच्चों में कौन-सी भावनाएं देखी जाती हैं –
(A) खुशी
(B) गुस्सा
(C) डर
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर :
उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 5.
बच्चे सहारा लेकर बैठने लगते हैं –
(A) 1 माह में
(B) 2 माह में
(C) 4 माह में
(D) 6 माह में।
उत्तर :
4 माह में।

प्रश्न 6.
शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक हैं –
(A) वातावरण
(B) भोजन
(C) खेल
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर :
खेल।

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प्रश्न 7.
ईर्ष्या नामक संवेग का विकास किस आयु में होता है –
(A) 1 माह
(B) 6 माह
(C) 18 माह
(D) 12 माह।
उत्तर :
18 माह।

प्रश्न 8.
बाल विकास किस बात का अध्ययन है :
(A) बच्चों की वृद्धि और विकास
(B) बच्चों का सामाजिक विकास
(C) बच्चों का संवेगात्मक विकास
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 9.
मानवीय जीवन का आरम्भ कब शुरू होता है :
(A) जन्म के बाद
(B) जन्म के एक साल बाद
(C) जन्म के पांच साल बाद
(D) मां के गर्भ में।
उत्तर :
मां के गर्भ में।

प्रश्न 10.
मानवीय विकास के कितने पड़ाव होते हैं :
(A) छः
(B) चार
(C) दो
(D) आठ।
उत्तर :
चार।

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प्रश्न 11.
टेम्पर टैंट्रम किसे कहा जाता है :
(A) खुश होकर ज़मीन पर लोटना
(B) गुस्सा जाहिर करने के लिए ज़मीन पर लोटना
(C) सोने से पहले ज़मीन पर लेटना
(D) नींद में जमीन पर लेटना।
उत्तर :
गुस्सा जाहिर करने के लिए ज़मीन पर लोटना।

प्रश्न 12.
मां का दूध बच्चे को क्यों पिलाना चाहिए :
(A) जीवित रहने के लिए
(B) बीमारियों से लड़ने की शक्ति पैदा करने के लिए
(C) भूख मिटाने के लिए
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 13.
भाषा विकास कब सन्तोषजनक होता है :
(A) स्वर की परिपक्वता
(B) जीभ
(C) गला
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 14.
वह कौन-सा कारण है जिससे बच्चे का विकास उचित प्रकार से नहीं होता :
(A) अच्छा वातावरण न होना
(B) मंदबुद्धि का होना
(C) माता-पिता का प्यार न मिलना
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

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प्रश्न 15.
बच्चों को बूस्टर दवा (खुराक) कब दी जाती है :
(A) छः वर्ष का होने पर
(B) एक साल का होने पर
(C) दो साल का होने पर
(D) पांच साल का होने पर।
उत्तर :
छः वर्ष का होने पर।

प्रश्न 16.
बच्चा किस प्रकार बोलना सीखता है :
(A) अनुकरण द्वारा
(B) प्रेरणा द्वारा
(C) प्रयास और भूल द्वारा
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 17.
वृद्धि ……………… का एक हिस्सा है :
(A) विकास
(B) व्यक्तित्व
(C) सीखने
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 18.
बचपन में शरीर की हड्डियों की संख्या क्या होती है :
(A) 270
(B) 206
(C) 220
(D) 240.
उत्तर :
270.

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प्रश्न 19.
वह कौन-सा कारक है जो शारीरिक विकास को प्रभावित करता है :
(A) वंशानुक्रम
(B) परिवार का आकार
(C) बुद्धि
(D) जन्म क्रम।
उत्तर :
वंशानुक्रम।

प्रश्न 20.
जन्म के समय बच्चे में सामाजिक विकास ……… होता है :
(A) पूर्ण
(B) नहीं
(C) सामान्य
(D) कम।
उत्तर :
नहीं।

प्रश्न 21.
जब बच्चे की आवश्यकताएं पूरी हो जाती हैं, तो क्या होता है :
(A) खुश
(B) रोना
(C) नाराज़
(D) गुस्सा होना।
उत्तर :
खुश।

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प्रश्न 22.
बालक की अभिव्यक्ति के अन्य साधन कौन-से हैं :
(A) चित्रांकन
(B) हस्तकौशल
(C) संगीत
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 23.
बच्चों की भावनाओं की क्या विशेषताएँ होती हैं :
(A) भावनाएं काफ़ी तेज़ होती हैं
(B) थोड़ी देर में उभरती और समाप्त होती हैं
(C) भावनाओं को छुपा नहीं सकते
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 24.
जन्म के समय बच्चे का औसत भार कितना होता है :
(A) 2\(\frac{1}{2}\) किलो
(B) 3\(\frac{1}{2}\) किलो
(C) 4.0 किलो
(D) 5 किलो।
उत्तर :
2\(\frac{1}{2}\) किलो।

प्रश्न 25.
जन्म के समय बच्चे की औसत लम्बाई कितनी होती है :
(A) 15” – 20′”
(B) 17” – 19″
(C) 10” – 15”
(D) 25” – 30′”
उत्तर :
17” – 19″

प्रश्न 26.
किस आयु में बच्चे में दूध के दांत निकल आते हैं :
(A) 2\(\frac{1}{2}\) साल।
(B) 4\(\frac{1}{2}\) साल
(C) 1\(\frac{1}{2}\) साल
(D) 3 साल।
उत्तर :
(A) 2\(\frac{1}{2}\) साल।

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प्रश्न 27.
दो वर्ष की आयु तक बच्चा कितने शब्द सीख लेता है :
(A) लगभग 272
(B) लगभग 400
(C) लगभग 500
(D) लगभग 1000.
उत्तर :
लगभग 272.

प्रश्न 28.
अभिवृद्धि का अर्थ है :
(A) शरीर के आकार और रूप में बढ़ोत्तरी
(B) बालक के क्रोध में बढ़ोत्तरी
(C) हस्तकला के क्षेत्र में बढ़ोत्तरी
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर :
शरीर के आकार और रूप में बढ़ोत्तरी।

प्रश्न 29.
विभिन्न आयु स्तरों पर बालक के विकास की दर :
(A) एक-सी होती है
(B) भिन्न होती है
(C) उपर्युक्त दोनों होती है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं होती।
उत्तर :
भिन्न होती है।

प्रश्न 30.
जन्म के समय एक बच्चे का औसत वजन कितना होता है ?
(A) 3.5 किग्रा
(B) 4 किग्रा
(C) 2.5 किग्रा
(D) 1.5 किग्रा।
उत्तर :
2.5 किग्रा।

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प्रश्न 31.
विकास सदैव घटित होता है :
(A) केन्द्र से बाहर की ओर
(B) बाहर से केन्द्र की ओर
(C) दायीं ओर से बायीं ओर
(D) बायीं ओर से दायीं ओर।
उत्तर :
केन्द्र से बाहर की ओर।

प्रश्न 32.
विकास किस ओर से प्रारम्भ होता है ?
(A) पैरों की ओर से
(B) सिर की ओर से
(C) सिर और पैर दोनों ओर से
(D) धड़ की ओर से।
उत्तर :
सिर की ओर से।

प्रश्न 33.
बच्चे में तर्क करने की योग्यता को क्या कहते हैं ?
(A) सामाजिक विकास
(B) भाषा विकास
(C) मानसिक विकास
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर :
मानसिक विकास।

प्रश्न 34.
बालकों के संवेगात्मक विकास के लक्षण क्या हैं ?
(A) भय
(B) प्यार
(C) क्रोध
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर :
उपर्युक्त सभी।

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प्रश्न 35.
वंशानुक्रम एवं वातावरण किसको प्रभावित करते हैं ?
(A) विकास को
(B) अभिवृद्धि को
(C) अभिवृद्धि और विकास को
(D) उपर्युक्त में से किसी को नहीं।
उत्तर :
अभिवृद्धि और विकास को।

प्रश्न 36.
अभिवृद्धि और विकास दोनों में क्या निहित है ?
(A) परिवर्तन
(B) सोचना
(C) योग्यता
(D) तर्क करना।
उत्तर :
परिवर्तन।

प्रश्न 37.
बच्चों को टीकों की बूस्टर दवा कब दिलाई जाती है ?
(A) छ: वर्ष का होने पर
(B) दो वर्ष का होने पर
(C) पाँच वर्ष का होने पर
(D) दस वर्ष का होने पर।
उत्तर :
छः वर्ष का होने पर।

प्रश्न 38.
किशोरावस्था में हड्डियों की संख्या कितनी होती है ?
(A) 206
(B) 216
(C) 236
(D) 276.
उत्तर :
206.

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प्रश्न 39.
सीखने की क्रिया को कौन-सा तत्त्व प्रभावित करता है ?
(A) प्रेरणा
(B) रुचि
(C) प्रशंसा
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

प्रश्न 40.
बचपन में शरीर की हड़ियों की संख्या कितनी होती है ?
(A) 270
(B) 260
(C) 250
(D) 240.
उत्तर :
270.

प्रश्न 41.
बच्चों का विकास उचित प्रकार से क्यों नहीं हो पाता ?
(A) मंद बुद्धि के कारण
(B) अच्छा वातावरण न होने के कारण
(C) घरेलू झगड़े के कारण
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

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प्रश्न 42.
जिन बालकों में संवेगात्मक नियंत्रण अधिक होता है, उनमें ……….. गुण अधिक पाए जाते हैं।
(A) सहनशीलता
(B) क्रोध
(C) जिज्ञासा
(D) प्यार।
उत्तर :
सहनशीलता।

प्रश्न 43.
बच्चों के शब्द भण्डार में व्यक्तिगत भिन्नता ……………. के कारण होती है।
(A) बुद्धि
(B) वातावरण
(C) प्रेरणा
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

प्रश्न 44.
यु का बच्चा कानूनी रूप से वयस्क समझा जाता है ?
(A) 21 वर्
कितनी आष
(B) 18 वर्ष
(C) 24 वर्ष
(D) 16 वर्ष।
उत्तर : 18 वर्ष।

प्रश्न 45.
बालक की शारीरिक वृद्धि को किस प्रकार बढ़ाया जा सकता है ?
(A) व्यायाम करने से
(B) आराम करने से
(C) उचित पौष्टिक आहार देकर
(D) कोई भी नहीं।
उत्तर :
उचित पौष्टिक आहार देकर।

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प्रश्न 46.
किस आयु में बच्चा सीढ़ियाँ चढ़ना सीख लेता है ?
(A) 2 वर्ष में
(B) 1 वर्ष में
(C) 212 वर्ष में
(D) 3 वर्ष में।
उत्तर :
2 वर्ष में।

प्रश्न 47.
बच्चा दूसरों पर निर्भर होता है।
(A) जन्म से लेकर एक वर्ष तक
(B) जन्म से लेकर दो वर्ष तक
(C) जन्म से लेकर तीन वर्ष तक
(D) जन्म से लेकर छ: महीने तक।
उत्तर :
जन्म से लेकर दो वर्ष तक।

प्रश्न 48.
स्कूल में बच्चे का ………. विकास होता है।।
(A) मानसिक
(B) सामाजिक
(C) संवेगात्मक
(D) मानसिक तथा सामाजिक।
उत्तर :
मानसिक तथा सामाजिक।

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प्रश्न 49.
बचपन में शरीर की हड्डियों की संख्या ……….. होती है।
(A) 240
(B) 270
(C) 276
(D) 280
उत्तर :
270.

प्रश्न 50.
बच्चे को कम-से-कम ………. महीने माँ का दूध अवश्य पिलाना चाहिए।
(A) दो
(B) छः
(C) चार
(D) आठ।
उत्तर :
छः।

प्रश्न 51.
………..वर्ष की अवस्था तक मस्तिष्क लगभग परिपक्व हो जाता है।
(A) 8
(B) 10
(C) 6
(D) 18
उत्तर :
8.

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प्रश्न 52.
………..बुद्धि वाले बच्चों के दाँत देर से निकलते हैं।
(A) कम
(B) मध्यम
(C) कुशल
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर :
कम।

प्रश्न 53.
भाषा विकास का सीधा सम्बन्ध………… के परिपक्वता से होता है।
(A) स्वर
(B) जीव
(C) गला
(D) ये सभी।
उत्तर :
ये सभी।

प्रश्न 54.
बच्चों को बूस्टर दवा कितने वर्ष पर दी जाती है ?
(A) दो वर्ष
(B) पाँच वर्ष
(C) छ: वर्ष
(D) ग्यारह वर्ष।
उत्तर :
छः वर्ष।

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प्रश्न 55.
वर्ष की अवस्था तक मस्तिष्क लगभग परिपक्व हो जाता है।
(A) 10
(B) 6
(C) 18
(D) 8
उत्तर :
8

प्रश्न 56.
…………. से विटामिन सी की प्राप्ति होती है।
(A) अण्डा
(B) दूध
(C) संतरा
(D) घी।
उत्तर :
संतरा।

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बाल विकास HBSE 10th Class Home Science Notes

→ शारीरिक तथा मानसिक तौर पर स्वस्थ बच्चे ही देश का भविष्य हैं।
→ बच्चे के पालन-पोषण की प्रारम्भिक ज़िम्मेदारी उसके मां-बाप की होती है।
→ बाल विकास बच्चों की वृद्धि तथा विकास का अध्ययन है।
→ बाल विकास तथा बाल मनोविज्ञान का आपस में गहरा सम्बन्ध है।
→ मनुष्य के पारिवारिक रिश्ते उसके सामाजिक जीवन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।
→ सभी रिश्ते तथा सम्बन्ध मिलकर हमारे जीवन को आरामदायक बनाते हैं।
→ मानवीय जीवन का आरम्भ मां के गर्भ में आने से होता है।
→ मानवीय विकास के विभिन्न पड़ाव होते हैं; जैसे – बचपन, किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था तथा वृद्धावस्था।
→ बच्चा जन्म से लेकर दो वर्ष तक बेचारा-सा तथा दूसरों पर निर्भर होता है।
→ 12 वर्ष का बच्चा स्वयं चल सकता है और 2 वर्ष में बच्चा सीढ़ियां चढ़-उतर सकता है।
→ दो वर्ष के बच्चों को कई प्रकार की बीमारियों से बचाने के लिए टीके लगाए जाते हैं।
→ दो से तीन वर्ष का बच्चा नई चीजें सीखने की कोशिश करता है।
→ छ: वर्ष तक बच्चे की खाने, पीने, सोने, मल त्यागने तथा शारीरिक सफ़ाई की आदतें पक्की हो जाती हैं।
→ स्कूल में बच्चे का मानसिक तथा सामाजिक विकास होता है।
→ कई बार बच्चा गुस्सा जाहिर करने के लिए जमीन पर लेटता है, इस अवस्था को टेम्पर टैंट्रम कहा जाता है।
→ छोटे बच्चे को कम-से-कम छ: महीने मां का दूध अवश्य पिलाना चाहिए क्योंकि यह बच्चे में बीमारियों से लड़ने की शक्ति पैदा करता है।
→ 3-4 महीने के बच्चे को मां के दूध के साथ और खुराक भी देनी आरम्भ कर देनी चाहिए।
→ बच्चों की अच्छी आदतों का निर्माण मां-बाप के यत्नों पर निर्भर करता है।
→ बच्चों को खिलौने उनकी आयु के अनुसार ही मिलने चाहिएं।
→ खेलने से बच्चों का शारीरिक तथा मानसिक विकास होता है।
→ शारीरिक विकास का बालक के व्यवहार की गुणात्मकता और मात्रात्मकता, दोनों पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
→ सामान्य शारीरिक विकास का प्रभाव बालक के व्यवहार के मुख्यतः चार क्षेत्रों पर पड़ता है –

  • नाड़ी संस्थान
  • मांसपेशियां
  • अन्त: स्रावी ग्रन्थियां तथा
  • शारीरिक संरचना।

→ बचपनावस्था में शरीर की हड्डियों की संख्या 270 होती है जो कि किशोरावस्था तक 206 रह जाती है।
→ वे बच्चे उन बच्चों की अपेक्षा अधिक लम्बे होते हैं जिनके परिपक्व होने की गति तीव्र होती है।
→ लगभग 17 वर्ष की अवस्था तक शरीर के विभिन्न अंगों का अनुपात वयस्क व्यक्तियों के समान हो जाता है।
→ प्रत्येक आयु के लड़कों के सिर लड़कियों की अपेक्षा कुछ बड़े होते हैं, परन्तु दोनों के विकास क्रम में कोई अन्तर नहीं होता है। 15 वर्ष के किशोर का सिर वयस्क व्यक्ति की अपेक्षा 98% होता है।
→ बालक के शरीर की लम्बाई और उसके पैरों की लम्बाई में हमेशा धनात्मक सह-सम्बन्ध होता है।
→ कम बुद्धि वाले बच्चों के दाँत देर से तथा अधिक बुद्धि वाले बच्चों के दाँत जल्दी निकलते हैं।
→आठ वर्ष की अवस्था तक मस्तिष्क लगभग परिपक्व हो जाता है। फिर भी मस्तिष्क का विकास किशोरावस्था तक चलता रहता है।
→शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक हैं-वंशानुक्रम, भौतिक वातावरण, आहार, रोग, अन्तः स्त्रावी ग्रन्थियां, लिंग, संवेगात्मक व्यवधान, पारिवारिक प्रभाव तथा सामाजिक-आर्थिक स्तर।
→ बाल संवेगात्मकता को प्रभावित करने वाले कारक हैं-शारीरिक स्वास्थ्य, बुद्धि, लिंग, पिता-पुत्र सम्बन्ध, सामाजिक वातावरण, जन्म क्रम, परिवार का आकार, सामाजिक-आर्थिक स्तर, व्यक्तित्व।
→ बाल्यावस्था के कुछ प्रमुख संवेग हैं-भय, शर्मीलापन, परेशानी, चिन्ता, क्रोध, ईर्ष्या, जिज्ञासा तथा स्नेह।
→ जन्म के समय शिशु न सामाजिक होता है और न ही असामाजिक। आयु बढ़ने के साथ-साथ वह सामाजिक गुणों से सुशोभित होता जाता है और कुछ ही वर्षों बाद वह सामाजिक प्राणी कहलाने लगता है।
→ सामाजिक विकास का अर्थ उस योग्यता को अर्जित करना है जिसके द्वारा सामाजिक प्रत्याशाओं के अनुसार व्यवहार किया जा सके।
→ बचपनावस्था के कुछ सामाजिक व्यवहार हैं-अनुकरण, आश्रितता, ईर्ष्या, सहयोग, शर्माहट, ध्यान आकर्षित करना, अवरोधी व्यवहार।
→ पूर्व बाल्यावस्था के सामाजिक व्यवहार के कुछ प्रकार हैं-आक्रामकता, झगड़ा, चिढ़ाना, निषेधात्मक व्यवहार, सहयोग, ईर्ष्या, उदारता, सामाजिक अनुमोदन की इच्छा, आश्रितता, बालकों में भिन्नता, सहानुभूति।
→ उत्तर बाल्यावस्था में सामाजिक व्यवहार के कुछ प्रतिमान हैं-सामाजिक अनुमोदन, सुझाव ग्रहणशीलता, स्पर्धा और प्रतियोगिता, खेल, पक्षपात और सामाजिक विभेदीकरण, उत्तरदायित्व, सामाजिक सूझ, यौन विरोध भाव।
→ सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक हैं-शारीरिक बनावट और स्वास्थ्य, परिवार, पड़ोस, विद्यालय, मनोरंजन, व्यक्तित्व आदि।
→ विकास को निम्नलिखित श्रेणियों में बांटा जाता है –

  • शारीरिक विकास
  • गत्यात्मक विकास
  • सामाजिक विकास
  • संवेगात्मक विकास
  • भाषा विकास
  • ज्ञानात्मक विकास।

→ बच्चे के शरीर या दिमाग की साधारण स्थिति में परिवर्तन या बेचैनी को ‘आवश्यकता’ कहते हैं। बच्चे की आवश्यकताएं निम्नलिखित प्रकार की होती –

  • शारीरिक
  • भावनात्मक
  • ज्ञानात्मक।

जब बच्चे की आवश्यकताएं पूरी हो जाती हैं, तो वह खुश हो जाता है।
→ भाषा सम्प्रेषण का माध्यम है, अत: इसका बालक के सामाजिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान है।
→ भाषा के द्वारा बालक अपने आसपास के लोगों में सम्पर्क स्थापित करता है, अपने मनोभावों को व्यक्त करता है तथा दूसरों के मनोभावों के प्रति अपनी प्रतिक्रियाएं दिखाता है।
→ भाषा विकास का सीधा सम्बन्ध स्वर, यन्त्र, जीभ, गला और फेफड़ों की परिपक्वता से है। यदि बालक के ये अंग सामान्य रूप से विकसित होते हैं तो उसका भाषिक विकास सन्तोषजनक होता है। इसका सम्बन्ध दृष्टि, होंठ, ताल, दांत और नाक के विकास से भी है।
→ उद्दीपन अनुक्रिया के बीच साहचर्य स्थापित कर बालक को नए शब्द सिखलाए जा सकते हैं। यदि बालक के सामने बार-बार कलम दिखाकर ‘कलम-कलम’ का उच्चारण किया जाए, तो थोड़ी देर ठहरकर पुन: उसे कलम दिखाई जाए तो वह ‘कलम’ शब्द बोल लेगा। वह ‘कलम’ एक उद्दीपक वस्तु है।
→ एन० चॉस्की के अनुसार प्रत्येक बालक के व्यक्तित्व में भाषा सीखने की एक प्रकृति प्रदत्त क्षमता होती है।
→ बालकों का क्रन्दन एक प्रकार की भाषा है, जिसके द्वारा वे अपनी शारीरिक पीड़ा को अभिव्यक्ति करते हैं।
→ बालकों के शब्द भण्डार में व्यक्तिगत भिन्नता, बुद्धि, वातावरण, प्रेरणा और अधिगम के कारण होती है।
→ भाषा विकास को प्रभावित करने वाले कारक हैं-व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषताएं, पारिवारिक सम्बन्ध, लिंग, सामाजिक-आर्थिक स्तर, निर्देशन, उत्प्रेरणा तथा सामाजिक अधिगम के स्तर हैं।

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HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 16 कचरा: संग्रहण एवं निपटान

Haryana State Board HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 16 कचरा: संग्रहण एवं निपटान Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 6th Class Science Solutions Chapter 16 कचरा: संग्रहण एवं निपटान

HBSE 6th Class Science कचरा: संग्रहण एवं निपटान InText Questions and Answers

बूझो/पहेली

प्रश्न 1.
पहेली यह जानने को उत्सुक है कि कचरा उपयोगी कैसे हो सकता है? फिर इसे फेंका ही क्यों गया? क्या इस कूड़े-कचरे में कुछ ऐसा भी है जो वास्तव में कचरा है ही नहीं?
उत्तर:
कचरे में अनेक उपयोगी चीजें भी हो सकती हैं। उपयोगी कचरे को फेंकना नहीं चाहिए। कचरे से प्लास्टिक, लोहे, कागज आदि की वस्तुओं को निकाल लेना चाहिए। इनका पुनः चक्रण करके प्रयोग में लाया जा सकता है। फलों के छिलके, सब्जियाँ आदि से कम्पोस्ट बनाया जा सकता है। अनुपयोगी कचरे का प्रयोग भराव क्षेत्र में किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
पहेली ने अपनी नोटबुक में लिखा-सरकार ने पत्तियों को जलाना चोरी क्यों नहीं माना?
उत्तर:
पहेली ने सुझाव दिया है कि सरकार को पत्तियों को जलाना एक जुर्म मानना चाहिए और इसके खिलाफ कानून बनाना चाहिए।

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HBSE 6th Class Science कचरा: संग्रहण एवं निपटान Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित के उत्तर दीजिए-
(क) लाल केंचुए किस प्रकार के कचरे को कम्पोस्ट में परिवर्तित नहीं करते?
(ख) क्या आपने अपने कम्पोस्ट-गड्ढे में लाल केंचुओं के अतिरिक्त किसी अन्य जीव को भी देखा है? यदि हाँ, तो उनका नाम जानने का प्रयास कीजिए।
उत्तर:
(क) काँच, प्लास्टिक की थैली, चूड़ियाँ, काँच के गिलास।
(ख) कभी-कभी हमें कीट, कीटाणु, मकड़ी आदि दिखाई पड़ते हैं। यहाँ अन्य सूक्ष्म जीव भी होते हैं।

प्रश्न 2.
चर्चा कीजिए-
(क) क्या कचरे का निपटान केवल सरकार का ही उत्तरदायित्व है?
(ख) क्या कचरे के निपटान से सम्बन्धित समस्याओं को कम करना सम्भव है?
उत्तर:
(क) नहीं, यह हमारा भी उत्तरदायित्व है कि हमें कचरा कम-से-कम उत्पन्न करना चाहिए। फेंकने से पहले हमें चीजों का उपयोग और पुन: उपयोग करना चाहिए।
(ख) हाँ, कचरे के निपटान से सम्बन्धित समस्याओं को कम करना सम्भव है। पुनः चक्रण योग्य सामग्री का उपयोग करके हम ऐसा कर सकते है।

प्रश्न 3.
(क) घर में बचे हुए भोजन का आप क्या करते है?
(ख) यदि आपको एवं आपके मित्रों को किसी पार्टी में प्लास्टिक की प्लेट अथवा केले के पत्ते में खाने का विकल्प दिया जाए, तो आप किसे चुनेंगे और क्यों ?
उत्तर:
(क) घर में बचे हुए भोजन को अन्य खाद्य के साथ तैयार करके इसका उपयोग करते हैं।
(ख) हम केले के पत्ते का चुनाव करेंगे क्योंकि इसमें कचरे के निपटान की कोई समस्या नहीं है।

प्रश्न 4.
(क) विभिन्न प्रकार के कागज के टुकड़े एकत्र कीजिए। पता कीजिए कि इनमें से किसका पुनःचक्रण किया जा सकता है?
(ख) लेंस की सहायता से कागजों के उन सभी टुकड़ों का प्रेक्षण कीजिए जिन्हें आपने उपरोक्त प्रश्न के लिए एकत्र किया था। क्या आप कागज की नई शीट एवं पुनः चक्रित कागज की सामग्री में कोई अन्तर देखते हैं ?
उत्तर:
(क) प्लास्टिक के कागज के अतिरिक्त अन्य सभी कागजों का पुनः चक्रण किया जा सकता है।
(ख) पुनः चक्रित कागज, कागज की नई शीट की तुलना में अधिक मोटा और भद्दा होता है।

प्रश्न 5.
(क) पैकिंग में उपयोग होने वाली विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ एकत्र कीजिए। इनमें से प्रत्येक का किस उद्देश्य के लिए उपयोग किया था ? समूहों में चर्चा कीजिए।
(ख) एक ऐसा उदाहरण दीजिए जिसमें पैकेजिंग की मात्रा कम की जा सकती थी।
(ग) पैकेजिंग से कचरे की मात्रा किस प्रकार बढ़ जाती है, इस विषय पर एक कहानी लिखिए।
उत्तर:
(क)

  • गत्ते का बोर्ड क्रॉकरी, मिठाइयाँ।
  • काँच का कवर सजावटी सामान।
  • लकड़ी की पट्टियाँ मशीनी उपकरण।
  • धर्मोकोल शीटें-काँच का सामान।
  • प्लास्टिक बैग वस्त्र, बिस्किट, नमकीन।

(ख) वस्त्र और पोशाकें।

(ग) एक दिन गौरव को अपने मित्र अभिषेक को उसके जन्मदिन पर उपहार देना था। गौरव ने एक कमीज खरीदी जो पहले प्लास्टिक और फिर गत्ते के डिब्बे में बन्द थी। गौरव ने दुकानदार से कहकर उसे एक चमकदार कागज में लिपटवाया। वह इस पैकेट को लेकर अभिषेक के पास पहुंचा और उसे कमीज गिफ्ट की। अभिषेक ने गौरव द्वारा लाये गये पैकेट को खोला और गौरव को धन्यवाद दिया। अभिषेक ने गौरव को समझाया कि वह कमीज को बिना पैक किये भी ला सकता था क्योंकि पॉलीथिन, गत्ता एवं रंगीन कागज व्यर्थ है। यदि गौरव चाहता तो इन व्यर्थ की चीजों से बच सकता था। इससे कचरे की मात्रा में कमी आती। अभिषेक की बातों से गौरव बहुत प्रभावित हुआ।

प्रश्न 6.
क्या आपके विचार में रासायनिक उर्वरक के स्थान पर अपेक्षाकृत कम्पोस्ट का उपयोग उत्तम होता है ?
उत्तर:

  • हाँ, रासायनिक उर्वरक के स्थान पर कम्पोस्ट का प्रयोग अपेक्षाकृत उत्तम होता है।
  • कम्पोस्ट बनाने में घरेलू अपशिष्ट का भी प्रयोग हो जाता है।
  • कम्पोस्ट के उपयोग से हम धन की बचत कर सकते हैं।

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HBSE 6th Class Science कचरा: संग्रहण एवं निपटान Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पी प्रश्न : निम्नलिखित प्रश्नों में सही विकल्प का चयन कीजिए

1. वह स्थान जहाँ व्यर्थ जमीन के गड्ढ़ों में कचरा फेंका जाता है, कहलाता है-
(क) भराव क्षेत्र
(ख) उर्वर क्षेत्र
(ग) बंजर क्षेत्र
(घ) कूड़ा घर
उत्तर:
(क) भराव क्षेत्र

2. कुछ पदार्थों के विगलित और खाद में परिवर्तित होने की प्रक्रिया कहलाती है-
(क) सड़ांध
(ख) कम्पोस्टिंग
(ग) निक्षालन
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) कम्पोस्टिंग

3. वर्मी कम्पोस्टिंग में प्रयुक्त होते हैं-
(क) कॉकरोच
(ख) चूहे
(ग) केचुआ
(घ) परजीवी
उत्तर:
(ग) केचुआ

4. पुनः चक्रण योग्य है-
(क) कागज
(ख) काँच की बोतल
(ग) प्लास्टिक के खिलौने
(घ) ये सभी
उत्तर:
(घ) ये सभी

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II. रिक्त स्थान : निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थान भरिए

1. ……………….. रंग के कूड़ेदान में पुन: उपयोग किए जा सकने वाले पदार्थ डालने चाहिए।
2. ……………….. रंग के कूड़ेदान में रसोई तथा अन्य पादप तथा जन्तु अपशिष्टों को डालना चाहिए।
3. लाल केंचुओं के दांत नहीं होते। इनमें एक विशेष प्रकार की संरचना ……………….. होती है।
4. कुछ प्रकार के ……………….. का पुनः चक्रण किया जा सकता है।
उत्तर:
1. नीले
2. हरे
3. गिजर्ड
4. प्लास्टिकों।

III. सुमेलन : कॉलम ‘A’ के शब्दों का मिलान कॉलम ‘B’ के शब्दों से कीजिए-

कॉलम ‘A’कॉलम ‘B’
1. कागज, प्लास्टिक(i) विगलन योग्य
2. फलों के छिलके(ii) पुन: चक्रण योग्य
3. वर्मी कम्पोस्ट(iii) भराव योग्य
4. कचरा(iv) केचुआ

उत्तर:

कॉलम ‘A’कॉलम ‘B’
1. कागज, प्लास्टिक(ii) पुन: चक्रण योग्य
2. फलों के छिलके(i) विगलन योग्य
3. वर्मी कम्पोस्ट(iv) केचुआ
4. कचरा(iii) भराव योग्य

IV. सत्य/असत्य : निम्नलिखित वाक्यों में सत्य एवं असत्य कथन छाँटिए

(i) वर्मी कम्पोस्ट बनाने में लाल केंचुओं का उपयोग किया जाता है।
(ii) केचुआ सड़ी-गली पत्तियाँ मिट्टी सहित खाते हैं।
(iii) नीले कूड़ेदान में सूखा कचरा तथा हरे कूड़ेदान में गीला कचरा डाला जाता है।
(iv) प्लास्टिक जलाने पर लाभदायक गैसें उत्पन्न करती हैं।
उत्तर:
1. सत्य
2. सत्य
3. सत्य
4. असत्य।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कूड़ा जिसे हम फेंक देते हैं, क्या कहलाता है?
उत्तर:
कचरा।

प्रश्न 2.
भराव क्षेत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
भूमि के व्यर्थ तथा निचले क्षेत्र जहाँ कूड़ा डाला जाता है, भराव क्षेत्र कहलाते हैं।

प्रश्न 3.
यदि हमारे घरों के आस-पास से कूड़ा न उठाया जाये तो क्या होगा?
उत्तर:
घर के आस-पास कूड़े के ढेर लग जायेंगे तथा वातावरण दुर्गन्धयुक्त हो जायेगा।

प्रश्न 4.
दो पुनः चक्रण योग्य व्यर्थ वस्तुओं के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. गत्ते के बड़े डिब्बे
  2. प्लास्टिक की बोतलें।

प्रश्न 5.
कम्पोस्टिंग किसे कहते हैं ?
उत्तर:
कुछ पदार्थों के विगलित और खाद में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को कम्पोस्टिंग कहते हैं।

प्रश्न 6.
कूड़े एवं पत्तियों को जलाना क्यों हानिकारक होता है ?
उत्तर:
इनके जलने से हानिकारक गैसें उत्पन्न होती हैं।

प्रश्न 7.
केंचुआ भोजन को कैसे पीसता है ?
उत्तर:
केंचुआ में गिजर्ड नामक संरचना होती है जिससे यह भोजन पीसता है।

प्रश्न 8.
वर्मी कम्पोस्ट का क्या प्रयोग है ?
उत्तर;
वर्मी कम्पोस्ट को पौधों के लिए खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 9.
पॉलीथिन से दो हानियाँ बताइए।
उत्तर:

  1. ये नालों को रोक देती हैं।
  2. पशुओं द्वारा निगलने पर उन्हें हानि पहुँचाती हैं।

प्रश्न 10.
हमें प्लास्टिक की थैली के विकल्प के रूप में क्या चुनना चाहिए?
उत्तर:
जूट या कपड़े के बने थैले या कागज/अखबार के थैले।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पुरानी तथा फेंकी जाने वाली काँच की बोतलें, प्लास्टिक की बोतलें, नारियल की भूसी, ऊन, चादरें, बधाई कार्ड तथा अन्य अनुपयोगी वस्तुएँ एकत्र कीजिए। क्या आप फेंकने के स्थान पर इनसे कुछ उपयोगी चीजें बना सकते हैं? प्रयास कीजिए। (क्रियाकलाप)
उत्तर:

  • प्लास्टिक के बड़े डिब्बे या बोतलें काटकर पौधे उगाने के लिए।
  • प्लास्टिक एवं काँच की बोतलें पेन स्टैण्ड बनाने के लिए।
  • ऊन का प्रयोग गुड़िया बनाने के लिए।
  • रंगीन कागज का प्रयोग गुलदस्ते बनाने के लिए।

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।
(क) ………….. कड़ा एकत्र करके ट्रकों द्वारा निचले खुले क्षेत्रों में जहाँ गहरे गड्ढे होते हैं, ले जाते हैं।
(ख) ………….. बहुत गर्म अथवा ठण्डे वातावरण में जीवित नहीं रह पाते हैं।
(ग) कचरे में ………….. और ………….. दोनों अवयव होते हैं।
(घ) व्यर्थ प्लास्टिक का ………….. किया जा सकता है।
उत्तर:
(क) सफाई कर्मचारी
(ख) लाल केंचुए
(ग) उपयोगी, अनुपयोगी
(घ) पुनः चक्रण।

प्रश्न 3.
सत्य तथा असत्य कथन छाँटिए
(क) हमें कम से कम कचरा निष्कासित करना चाहिए।
(ख) काँच की वस्तुओं का पुनः चक्रण नहीं किया जा सकता।
(ग) लाल केंचुए गिजर्ड द्वारा भोजन पीसते हैं।
(घ) कागज का पुनः और पुनः प्रयोग किया जा सकता है।
उत्तर:
(क) सत्य
(ख) असत्य
(ग) सत्य
(घ) सत्य।

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प्रश्न 4.
कम्पोस्ट क्या है ? यह कैसे तैयार किया जाता है? इसका एक उपयोग लिखिए।
उत्तर:
कम्पोस्ट:
रसोईघर से निकला अपशिष्ट पदार्थ, छिलके, सब्जियों, पशुओं के अपशिष्ट आदि पदार्थों को सड़ाकर तैयार किया गया पदार्थ कम्पोस्ट कहलाता है। उपरोक्त पदार्थों को जमीन में कुछ बड़े-बड़े गड्ढे खोदकर उसमें कूड़े को डालकर मिट्टी से दबा दिया जाता है। कुछ दिनों बाद कम्पोस्ट तैयार हो जाता है। कम्पोस्ट का प्रयोग खाद के रूप में पौधों के पोषण के लिए किया जाता है।

प्रश्न 5.
प्लास्टिक का प्रयोग हमारे लिए क्या समस्याएँ उत्पन्न कर रहा है ?
उत्तर:
हम अपने दैनिक जीवन में प्लास्टिक का अत्यधिक प्रयोग करते हैं। अनेक खाद्य सामग्रियाँ प्लास्टिक के बैगों में आती हैं। इसके अतिरिक्त वस्त्र, इलैक्ट्रॉनिक्स आदि सामग्री की पैकिंग, बाल्टी, बोतल, ब्रश, कंधे आदि अनेक वस्तुओं का प्रयोग करने के पश्चात् हम कचरे के रूप में फेंक देते हैं। यह कचरा नालों को बन्द कर देता है, पशु इनको खा जाते हैं। जब इन्हें खेतों में डाल दिया जाता है तो ये मृदा प्रदूषण करते हैं। इनके जलने से जहरीली गैस निकलती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विभिन्न प्रकार की अपशिष्ट वस्तुओं/कचरे को A, B, C तथा D चार ढेरियों में बाँटकर इन्हें भूमि में दबा दिया गया। 4 दिन से 4 सप्ताह के पश्चात् इनमें क्रमिक परिवर्तनों को बताइए।
ढेरी A – फल एवं सब्जी के छिलके, चाय की पत्तियाँ, अपशिष्ट भोजन
ढेरी B – समाचार पत्र, सूखी पत्तियाँ, कागज की थैलियाँ
ढेरी C – काँच की बोतल, प्लास्टिक की बोतल, चमड़े का सामान
ढेरी D – पुराने खिलौने, एल्युमिनियम रेपर, गुटखा पाउच, शैम्पू पाउच (क्रियाकलाप)
उत्तर:
सारणी कचरे की वेरियों में क्या परिवर्तन आये।

कचरे की ढेरा4 दिन बाद6 दिन बाद2 सप्ताह बाद4 सप्ताह बाद
Aकाला रंग, दुर्गन्ध नहीं, पूर्णतः विगलितथोड़ा बाकीथोड़ा बाकीपूरी तरह समाप्त
Bलगभग पूर्णतः विगलित, अभी भी दुर्गन्धयुक्तकाला रंग, कोई दुर्गन्ध नहीं, पूर्णतः विगलितपूर्णतः विगलितपूर्णतः विगलित
Cकोई परिवर्तन नहींकोई परिर्वतन नहींकोई परिवर्तन नहींकोई परिवर्तन नहीं
Dकोई परिवर्तन नहींकोई परिवर्तन नहींकोई परिवर्तन नहींकोई परिवर्तन नहीं

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 15 प्रकाश

प्रश्न 2.
केंचुओं से वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए एक क्रियाकलाप कीजिए।
उत्तर:
क्रियाकलाप मैदान में एक गड्ढा (लगभग 30 सेमी गहरा) खोदें अथवा कोई लकड़ी का बॉक्स किसी ऐसे स्थान पर रखें जो न तो बहुत गर्म हो और न बहुत ठण्डा ।
गहरे गड्ढे अथवा बॉक्स की तली में एक जाल अथवा मुर्गा जाली बिछा दीजिए। इसकी जगह आप रेत की 1-2 सेमी मोटी परत भी बिछा सकते हैं। अब रेत के ऊपर सब्जियों अथवा फलों के अपशिष्ट बिछा दीजिए।
आप हरी पत्तियाँ, पौधों की सूखी डंडियों के टुकड़े, भूसा अथवा समाचार पत्र की 1 इंच चौड़ी पट्टियाँ काटकर उन्हें रेत अथवा जाली के ऊपर बिछा सकते हैं। कुछ जल छिड़ककर इस परत को नम बनाइए। अब इस परत पर कुछ लाल केंचुए छोड़ दीजिए। अब इन्हें जूट की बोरी, पुरानी चादर अथवा घास से हल्के से टैंक दीजिए।
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 16 कचरा संग्रहण एवं निपटान -1
केंचुए उपरोक्त अपशिष्ट पदार्थों को खाते हैं तथा मल उत्पन्न करते हैं। इनके मल में लाभदायक कार्बनिक पदार्थ होते हैं। 3-4 सप्ताह बाद गड्ढों का निरीक्षण करते हैं। इसमें हमें गहरे रंग की मिट्टी मिलती है। यही वर्मी कम्पोस्ट है।

प्रश्न 3.
कागज का पुन: चक्रण कैसे किया जाता है ?
उत्तर:
इसके लिए हमें पुराने समाचार-पत्रों, लिफाफे, मैगजीन, रद्दी कॉपी व किताबें एवं अन्य बेकार कागजों की आवश्यकता होती है। कागजों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लिया जाता है। इन्हें एक बाल्टी या टब में रखकर जल डालिए। कागज के टुकड़ों को जल में एक दिन के लिए डूबा रहने दीजिए। अब इस भीगे कागज को काटकर गाढ़ी लुग्दी बनाइये।

अब फ्रेम पर जड़ी जाली पर गीली लुग्दी को फैलाइये। लुग्दी की परत को यथासम्भव एकसमान बनाने के लिए फ्रेम को धीरे ठोकिए। जल के बहकर निकल जाने तक प्रतीक्षा कीजिए। यदि आवश्यक हो तो फ्रेम पर पुराना कपड़ा अथवा समाचार-पत्र फैला दीजिए जिससे लुग्दी का अधिक से अधिक जल सोख लिया जाय। अब लुग्दी की इस परत को सावधानी से फ्रेम से अलग कर किसी पुराने समाचार-पत्र पर रखें समाचार-पत्र के किनारों पर कुछ भारी वस्तु रखें जिससे वे मुड़ न सकें। इसके सूखने पर हमें कागज का गत्ता प्राप्त होगा।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 15 प्रकाश

प्रश्न 4.
प्लास्टिक के अति उपयोग को निम्नतम करने के लिए हम क्या कर सकते हैं तथा इसके कचरे के निपटान के लिए हमें क्या करना चाहिए ?
उत्तर;

  1. हम प्लास्टिक की थैलियों का कम से कम उपयोग करें। जहाँ तक सम्भव हो हम इनके उपयोग से बचें।
  2. दुकानदारों से कागज के थैले उपयोग करने का आग्रह करें। खरीददारी के लिए बाजार जाते समय हम घर से कपड़े अथवा जूट का थैला लेकर जायें।
  3. हम खाद्य पदार्थों के संग्रहण के लिए प्लास्टिक की थैलियों का उपयोग न करें।
  4. हम उपयोग के पश्चात् प्लास्टिक की थैलियों को इधर-उधर न फेंकें।
  5. हम प्लास्टिक की थैलियों और अन्य प्लास्टिक की वस्तुओं को कभी न जलायें।
  6. हम प्लास्टिक एवं कागज को पुनः चक्रण के लिए भेजें।
  7. घरेलू कूड़े-करकट को प्लास्टिक बैगों में भरकर न फेंकें।
  8. अपने मित्रों एवं अन्य लोगों को प्लास्टिक सम्बन्धी हानियों से अवगत करायें।

कचरा: संग्रहण एवं निपटान Class 6  HBSE Notes in Hindi

→ हम अपने घरों, विद्यालयों, दुकानों एवं कार्यालयों से प्रतिदिन अत्यधिक मात्रा में कूड़ा-कचरा बाहर फेंकते हैं।
→ हम अपने दैनिक जीवन के क्रियाकलापों में अत्यधिक कचरा उत्पन्न करते रहते हैं।
→ सफाई कर्मचारी कूड़ा एकत्र करके ट्रकों द्वारा निचले खुले क्षेत्रों में, जहाँ गहरे गड्ढे होते हैं, ले जाकर फेंकते हैं। इन निचले खुले क्षेत्रों को भराव क्षेत्र कहते हैं।
→ कचरे में उपयोगी तथा अनुपयोगी दोनों प्रकार के अवयव होते हैं। अनुपयोगी अवयव को पृथक् कर लेते हैं और फिर इसे भराव क्षेत्र में फैलाकर मिट्टी की परत से टैंक देते हैं।
→ जब यह भराव क्षेत्र पूरी तरह से भर जाता है तब प्रायः इस पर पार्क अथवा खेल का मैदान बना देते हैं। लगभग अगले 20 वर्षों तक इस पर कोई भवन निर्माण नहीं किया जाता है।
→ रसोई घर के अपशिष्ट सहित पौधों एवं जन्तु अपशिष्टों को खाद में परिवर्तित करना कम्पोस्टिंग कहलाता है।
→ रसोईघर के कचरे को कृमि अथवा लाल केंचुओं द्वारा कंपोस्ट में परिवर्तित करना वर्मी कम्पोस्टिंग कहलाता है।
→ कागज का पुनः चक्रण किया जा सकता है तथा पुनः चक्रण द्वारा बने कागज से उपयोगी वस्तुएँ बनायी जा सकती हैं। कुछ प्रकार के प्लास्टिकों का पुनः चक्रण किया जा सकता है परन्तु सभी प्रकार के प्लास्टिकों का पुनः चक्रण नहीं किया जा सकता है।
→ सभी प्रकार के प्लास्टिक गर्म करने या जलाने पर हानिकारक गैसें मुक्त करते हैं। ये गैसें अनेक स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं उत्पन्न करती हैं जिनमें फेफड़े की बीमारियाँ एवं कैंसर भी सम्मिलित हैं।
→ जब प्लास्टिक की थैलियों को पशु निगल जाते हैं तो उनकी मृत्यु भी हो सकती है। प्लास्टिक की थैलियाँ बहुधा बहकर नालों अथवा सीवर प्रणाली में पहुँच जाती हैं जिससे नाले अवरुद्ध हो जाते हैं और गन्दा पानी सड़कों पर फैलने लगता है।
→ हमें कम से कम अपशिष्ट उत्पन्न करने की आवश्यकता है। हमें अपने चारों ओर बढ़ते कचरे से निपटने के उपाय खोजने चाहिए।
→ कचरा – कुछ अपशिष्ट वस्तुएँ जिनकी हमें आवश्यकता नहीं होती और हम उन्हें फेंक देते हैं; जैसे-खाली थैली, छिलके, गत्ते, पुराने खिलौने आदि।
→ भराव क्षेत्र – जमीन का निचला क्षेत्र जिसमें कूड़े-कचरे को फेंका जाता है।
→ अपशिष्ट – ये वे वस्तुएँ है, जिन्हें हम उपयोग के बाद फेंक देते हैं।
→ कम्पोस्ट – कचरे से बनायी गई खाद जिसका उपयोग पौधों के पोषण के लिए किया जाता है।
→ वर्मी कम्पोस्टिंग – रसोईघर के कचरे से लाल केंचुओं द्वारा खाद बनाने की प्रक्रिया।
→ पुनः चक्रण – वह प्रक्रम जिसके द्वारा उपयोग की गई वस्तुओं या चीजों का पुनर्प्रयोग हेतु परिवर्तन किया जाता है।

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HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 15 हमारे चारों ओर वायु

Haryana State Board HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 15 हमारे चारों ओर वायु Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 6th Class Science Solutions Chapter 15 हमारे चारों ओर वायु

HBSE 6th Class Science हमारे चारों ओर वायु InText Questions and Answers

बूझो/पहेली

प्रश्न 1.
बूझो आपसे यह पूछ रहा है कि चौराहे पर पलिसकर्मी अक्सर मुखौटा क्यों पहन लेते हैं?
उत्तर:
भीड़ भरे चौराहे पर पुलिसकर्मी मुखौटा पहनकर यातायात नियन्त्रित करता है, जिससे ईधन जलने के कारण उत्पन्न धुआँ और धूल के कण उसकी साँस में न जायें।।

प्रश्न 2.
पहेली जानना चाहती है कि अगर पारदर्शी शीशे की खिड़कियों को नियमित रूप से साफ न किया जाये तो वह धुंधली क्यों हो जाती हैं?
उत्तर:
वायु में जो धूल के कण उपस्थित होते हैं वे खिड़कियों के पारदर्शी शीशे पर जाकर चिपक जाते हैं और उन्हें धुंधला बना देते हैं।

प्रश्न 3.
बूझो जानना चाहता है कि आग लगने की घटना के समय जलती हुई वस्तु के ऊपर कम्बल लपेटने की सलाह क्यों दी जाती है?
उत्तर:
जब जलती हुई वस्तु के ऊपर कम्बल लपेटा जाता है तो वायु में उपस्थित ऑक्सीजन वस्तु तक कम्बल की वजह से नहीं पहुँच पाती है क्योंकि ऑक्सीजन वायु जलने में सहायता करती है और वायु के अभाव में वस्तु में लगी आग बुझ जाती है।

प्रश्न 4.
पहेली जानना चाहती है कि क्या ये छोटे-छोटे वायु के बुलबुले तब भी दिखाई देंगे, यदि हम वायुरोधी बोतल में रखे ठंडे किये हुये उबले हुये पानी को पुनः गर्म करके इस क्रियाकलाप को करते हैं। अगर आप इसका उत्तर नहीं जानते तो ऐसा कीजिए और देखिए।
उत्तर:
ये बुलबुले पानी में घुली हुई वायु के कारण बनते हैं। जब आप पानी गर्म करते हैं तो घुली हुई वायु बुलबुलों के रूप में बदल जाती है और बाहर आती है। यदि आप पानी को गर्म करते हैं तो पानी वाष्प में परिवर्तित हो जाता है और अन्ततः उबलने लगता है।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 15 हमारे चारों ओर वायु

HBSE 6th Class Science हमारे चारों ओर वायु Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
वायु के संघटक क्या हैं?
उत्तर:
वायु अनेक गैसों का मिश्रण है। वायु में मुख्यत: नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, जल वाष्प तथा कुछ अन्य गैसें होती हैं। वायु में नाइट्रोजन तथा ऑक्सीजन की मात्रा अधिक होती है। ये गैसें वायु का 99 प्रतिशत भाग बनाती हैं। शेष 1 प्रतिशत में अन्य गैसें तथा धूलकण होते हैं।

प्रश्न 2.
वायुमण्डल की कौन-सी गैस श्वसन के लिए आवश्यक होती है?
उत्तर:
ऑक्सीजन श्वसन के लिए आवश्यक होती है।

प्रश्न 3.
आप यह कैसे सिद्ध करेंगे कि वायु ज्वलन में सहायक होती है?
उत्तर:
क्रियाकलाप यह सिद्ध करने के लिए कि वायु ज्वलन में सहायक है, दो मोमबत्ती लेते हैं। एक मोमबत्ती को एक उथले पात्र के बीच में लगाकर जला देते है और इस पात्र में थोड़ा पानी डालते हैं। अब जलती मोमबत्ती को कांच के ‘गिलास से ढंक देते हैं। हम देखते हैं कि कुछ देर बाद मोमबत्ती बुझ जाती है और कांच के गिलास के अन्दर पानी का तल बढ़ गया है। दूसरी मोमबत्ती को भी इसी प्रकार पात्र में रखकर जलाते हैं किन्तु उसे बैंकते नहीं हैं। हम देखते हैं कि मोमबत्ती लगातार जलती रहती है। इससे सिद्ध होता है कि गिलास के अन्दर वाली मोमबत्ती को कम वायु मिली और वह बुझ गई जबकि दूसरी मोमबत्ती को काफी वायु मिली और वह जलती रही।

प्रश्न 4.
आप कैसे दिखाएँगे कि वायु जल में घुली होती
उत्तर:
जब किसी बर्तन या काँच के बीकर में जल उबालने से पहले हम सावधानीपूर्वक इन पात्रों के अन्दर की तली को देखते हैं तो इस पर हमें कुछ बुलबुले दिखाई देते हैं। ये बुलबुले पानी में घुली वायु से उत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 5.
रुई का ढेर जल में क्यों सिकुड़ जाता है?
उत्तर:
रुई का ढेर जल में सिकुड़ जाता है क्योंकि जल में इसकी सारी हवा निकल जाती है। इसकी परतें आपस में चिपक जाती हैं और ढेर सिकुड़ जाता है।

प्रश्न 6.
पृथ्वी के चारों ओर की वायु की परत ……………. कहलाती है।
उत्तर:
वायुमण्डल।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 15 हमारे चारों ओर वायु

प्रश्न 7.
हरे पौधों को भोजन बनाने के लिए वायु के अवयव ………… की आवश्यकता होती है।
उत्तर:
कार्बन डाईऑक्साइड।

प्रश्न 8.
पाँच क्रियाकलापों की सूची बनाइए जो वायु की उपस्थिति के कारण सम्भव हैं।
उत्तर;
वायु की उपस्थिति के कारण निम्नलिखित क्रियाकलाप सम्भव हैं-

  • पौधों में श्वसन व प्रकाश संश्लेषण।
  • पवनचक्की का चलना।
  • पतंग का उड़ना।
  • जल चक्र।
  • वाष्पोत्सर्जन।।

प्रश्न 9.
वायुमण्डल में गैसों के आदान-प्रदान में पौधे तथा जन्तु एक-दूसरे की किस प्रकार सहायता करते हैं?
उत्तर:
सभी हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में वायुमण्डल से कार्बन डाईऑक्साइड ग्रहण करते हैं तथा ऑक्सीजन वायुमण्डल में मुक्त करते रहते हैं। पौधे एवं सभी जीव-जन्तु श्वसन क्रिया में ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं तथा कार्बन डाईऑक्साइड निकालते हैं। ईंधन एवं अन्य पदार्थों के जलने पर भी कार्बन डाईऑक्साइड वायुमण्डल में मुक्त होती है।
इस प्रकार वायुमण्डल में गैसों का सन्तुलन बना रहता है। जन्तु व पौधे गैसों के आदान-प्रदान में एक-दूसरे की सहायता करते है।

HBSE 6th Class Science हमारे चारों ओर वायु Important Questions and Answers

I. बहुविकल्पी प्रश्न : निम्नलिखित प्रश्नों में सही विकल्प का चयन कीजिए

1. वायु बहने की दिशा बताने वाली युक्ति है-
(क) वात सूचक
(ख) दिक्सू चक
(ग) फिरकी
(घ) वायुमापी
उत्तर:
(क) वात सूचक

2. वायु में उपस्थित होती है-
(क) ऑक्सीजन
(ख) कार्बन डाईऑक्साइड
(ग) नाइट्रोजन
(घ) ये सभी
उत्तर:
(घ) ये सभी

3. कौन-कौन सी गैस वायुमण्डल का 99% भाग बनाती-
(क) ऑक्सीजन एवं कार्बन डाईऑक्साइड
(ख) ऑक्सीजन एवं नाइट्रोजन
(ग) जलवाष्प एवं ऑक्सीजन
(घ) नाइट्रोजन एवं कार्बन डाईऑक्साइड
उत्तर:
(ख) ऑक्सीजन एवं नाइट्रोजन

4. वायु प्रदूषित होती है
(क) धूल से
(ख) धुएँ से
(ग) निलम्बित कों से
(घ) इन सभी से
उत्तर:
(घ) इन सभी से

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 15 हमारे चारों ओर वायु

II. रिक्त स्थान : निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थान भरिए

1. हमारी पृथ्वी की सतह से कुछ किलोमीटर तक की वायु की परत ……….. कहलाती है।
2. प्रकृति में जलचक्र के लिए वायु में ………. का उपस्थित होना अनिवार्य है।
3. वायु का वह घटक जो जलने में सहायक है वह …….. कहलाता है।
4. वायु का एक बड़ा भाग ……… कहलाता है।
उत्तर:
1. वायुमण्डल
2. जलवाष्प
3. ऑक्सीजन
4. नाइट्रोजन।

III. सुमेलन : कॉलम ‘A’ के शब्दों का मिलान कॉलम ‘B’ के शब्दों से कीजिए-

कॉलम ‘A’कॉलम ‘B’
1. जलने में सहायक(क) कार्बन डाई ऑक्साइड
2. ईंधन जलने पर उत्पन्न(ख) नाइट्रोजन
3. वायु में सर्वाधिक मात्रा(ग) जलवाष्प
4. उबलते पानी से उत्पन्न(घ) ऑक्सीजन

उत्तर:

कॉलम ‘A’कॉलम ‘B’
1. जलने में सहायक(घ) ऑक्सीजन
2. ईंधन जलने पर उत्पन्न(क) कार्बन डाई ऑक्साइड
3. वायु में सर्वाधिक मात्रा(ख) नाइट्रोजन
4. उबलते पानी से उत्पन्न(ग) जलवाष्प

IV. सत्य/असत्य : निम्नलिखित वाक्यों में सत्य एवं असत्य कथन छाँटिए

(i) हमारे चारों ओर की वायु का एक छोटा अवयव कार्बन डाईऑक्साइड होता है।
(ii) धूल एवं धुआँ हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं।
(iii) जलीय जीव जल में घुली हुई ऑक्सीजन को साँस लेने में उपयोग करते हैं।
(iv) पवन चक्की वायु की तेज गति के कारण चलती है।
उत्तर:
1. सत्य
2. असत्य
3. सत्य
4. सत्य।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गतिशील वायु क्या कहलाती है?
उत्तर:
गतिशील वायु पवन कहलाती है।

प्रश्न 2.
फिरकी को वायु में आगे पीछे करने पर क्या होता है? (क्रियाकलाप)
उत्तर:
फिरकी घूमती है।

प्रश्न 3.
फिरकी को कौन घुमाता है? (क्रियाकलाप)
उत्तर:
फिरकी को वायु घुमाती है।।

प्रश्न 4.
खाली बोतल को उल्टा करके पानी में डुबाने पर पानी इसके अन्दर क्यों नहीं जाता? (क्रियाकलाप)
उत्तर:
क्योंकि बोतल के अन्दर हवा है जो पानी को अन्दर नहीं जाने देती।

प्रश्न 5.
बोतल को टेड़ा करके पानी में डुबाने पर क्या होता है?
उत्तर:
पानी बोतल के अन्दर जाने लगता है और वायु के बुलबुले बाहर निकलने लगते हैं।

प्रश्न 6.
वायुमण्डल क्या है?
उत्तर:
पृथ्वी की सतह के ऊपर विभिन्न गैरों का घेरा जो कई किलोमीटर तक पाया जाता है, वायुमण्डल कहलाता है।

प्रश्न 7.
पर्वतारोही जब ऊँचे पहाड़ों पर चढ़ते हैं तो एक गैस सिलेण्डर साथ ले जाते हैं। इस सिलेण्डर में कौन-सी गैस होती है? (क्रियाकलाप)
उत्तर:
ऑक्सीजन गैस होती है।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 15 हमारे चारों ओर वायु

प्रश्न 8.
वायु के उस अवयव का नाम बताइए जो जलने में सहायता करता है? (क्रियाकलाप)
उत्तर:
ऑक्सीजन।

प्रश्न 9.
पौधों के लिए वायु के दो उपयोग बताइए।
उत्तर:
(i) बीजों का अंकुरण
(ii) श्वसन।

प्रश्न 10.
वायु में सर्वाधिक गैस कौन-सी होती है ?
उत्तर:
नाइट्रोजन (78%)। वायु का लगभग 4/5वाँ भाग।

प्रश्न 11.
बंद कमरे में किसी छेद से आते हुए प्रकाश में आप क्या देखते हैं? (क्रियाकलाप)
उत्तर:
धूल के कण तेजी से घूमते हुए चमकते दिखाई देते हैं।

प्रश्न 12.
पानी गर्म करने पर सबसे पहले बर्तन की तली से कुछ बुलबुले ऊपर की ओर उठते दिखाई देते हैं। ये क्या होते हैं? (क्रियाकलाप)
उत्तर:
जल में घुली हुई वायु के बुलबुले।

प्रश्न 13.
पानी को तेज गर्म किया जाए तो क्या होता है?
उत्तर:
पानी जलवाष्प में बदलने लगता है।

प्रश्न 14.
वायु के दो गुण लिखिए।
उत्तर:
(i) इसका कोई रंग नहीं होता है।
(ii) यह स्थान घेरती है।

प्रश्न 15.
कार्बन डाईऑक्साइड आग बुझाने का काम करती है, कैसे सिद्ध करेंगे?
उत्तर:
गिलास के अन्दर मोमबत्ती जलाकर।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 15 हमारे चारों ओर वायु

प्रश्न 16.
हमें मुँह से साँस क्यों नहीं लेनी चाहिए ?
उत्तर:
धूल युक्त वायु हमारे फेफड़ों को नुकसान पहुँचा सकती है। नाक से साँस लेने पर धूल नासागुहा के श्लेष्म में चिपक जाती है तथा स्वच्छ वायु फेफड़ों में पहुँचती है।

प्रश्न 17.
जो जीव गहरी मिट्टी के अन्दर रहते हैं उन्हें साँस के लिए ऑक्सीजन कहाँ से प्राप्त होती है ?
उत्तर:
ऑक्सीजन मिट्टी के बीच के रन्धों से प्राप्त होती है।

प्रश्न 18.
एक साफ शीशे की खिड़की पर, जो एक खुले क्षेत्र की ओर खुलती हो, कागज की एक आयताकार पट्टी लगा दें। कुछ दिन बाद इस पट्टी को हटाएँ। क्या आप खिड़की के ढंके हुए आयताकार स्थान तथा बाकी खिड़की में कुछ अन्तर पाते हैं? (क्रियाकलाप)
उत्तर:
हाँ, कागज की आयताकार पट्टी से ढके स्थान से पट्टी हटाने पर अन्य स्थान से साफ दिखाई देता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘वायु में ऑक्सीजन है’ सिद्ध करने के लिए एक क्रियाकलाप कीजिए।
उत्तर:
अपने शिक्षक की उपस्थिति में दो उथले पात्रों में दो समान आकार की मोमबत्तियों को बीचों-बीच लगाइये। अब पात्रों में कुछ पानी डाल दें। अब मोमबत्तियाँ जलायें तथा चित्र के अनुसार प्रत्येक मोमबत्ती के ऊपर एक-एक गिलास उलट कर रख दें (एक गिलास दूसरे से बड़ा हो)।
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 15 हमारे चारों ओर वायु -1
छोटे गिलास के नीचे रखी मोमबत्ती पहले बुझती है और इसके नीचे पानी का स्तर गिलास में बढ़ जाता है। दूसरे गिलास की मोमबत्ती थोड़ी देर में बुझती है और इसके गिलास में भी पानी का स्तर बढ़ जाता है। चूंकि मोमबत्ती जलने पर ऑक्सीजन की मात्रा में कमी आती है। इससे सिद्ध होता है कि वायु में ऑक्सीजन है जो कि मोमबत्ती को जलाने में सहायक है।

प्रश्न 2.
पर्वतारोही ऊँचे पहाड़ों पर चढ़ते समय ऑक्सीजन का सिलेण्डर साथ क्यों ले जाते हैं?
उत्तर:
अधिक ऊँचाई पर जाने पर वायुमण्डल में गैसों की कमी होने लगती है। अधिक ऊँचाई पर ऑक्सीजन की उपलब्धता कम होती जाती है। ऑक्सीजन की कमी होने पर पर्वतारोही को सौंस लेने में कठिनाई होगी और ऑक्सीजन के अभाव में उसकी मौत भी हो सकती है। इसीलिए वे ऑक्सीजन के सिलेण्डर साथ ले जाते हैं ताकि वह श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त कर सकें।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 15 हमारे चारों ओर वायु

प्रश्न 3.
वायु की संरचना बताइए।
उत्तर:
वायु गैसों का मिश्रण है। इसमें नाइट्रोजन तथा ऑक्सीजन की कुल मात्रा 99% होती है। शेष 1% में कार्बन डाईऑक्साइड, कुछ अन्य गैसें, जलवाष्प तथा धूल के कण होते हैं।
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 15 हमारे चारों ओर वायु -2

प्रश्न 4.
वायु जल चक्र में किस प्रकार सहायता करती है?
उत्तर:
वायु के कारण ही जलवाष्प बनती है। वाष्पोत्सर्जन एवं वाष्पन के फलस्वरूप बनी जलवाष्प वायु में उड़कर ऊपर पहुँचती है जहाँ यह बादल बनाती है। बादल वायु द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाये जाते हैं और भिन्न-भिन्न स्थानों पर बरसते हैं। इससे जल चक्र चलता रहता है।

प्रश्न 5.
कारखानों में लम्बी चिमनियाँ क्यों लगायी जाती हैं?
उत्तर:
कारखानों में ऊर्जा प्राप्ति के लिए विभिन्न प्रकार के ईंधन जलाये जाते हैं। इन पदार्थों से तरह-तरह की हानिकारक गैसें उत्पन्न होती हैं। ये गैसें यदि हमारे शरीर में साँस के द्वारा प्रवेश कर जायेंगी तो शरीर को नुकसान हो सकता है। इसीलिए इन गैसों को अधिक ऊँचाई पर छोड़ने के लिए चिमनियाँ लम्बी बनाई जाती हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
यह सिद्ध करने के लिए कि मिट्टी में भी वायु होती है, एक क्रियाकलाप कीजिए। यह वायु क्यों उपयोगी है ? (क्रियाकलाप)
उत्तर:
क्रियाकलाप : एक बीकर या काँच के गिलास में सूखी मिट्टी का एक ढेला लेते हैं। इसमें पानी डालते हैं और अवलोकन करते हैं कि जैसे-जैसे मिट्टी में पानी डाला जाता है इसमें से बुलबुले निकलने लगते हैं। ये बुलबुले वायु के होते
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 15 हमारे चारों ओर वायु -3
जब मिट्टी के ढेले पर पानी डाला जाता है तो उसमें विद्यमान वायु विस्थापित हो जाती है जो बुलबुलों के रूप में दिखाई देती है। मिट्टी के अन्दर पाये जाने वाले जीव एवं पौध गों की जड़ें श्वसन के लिए इसी वायु का उपयोग करते हैं। मिट्टी के जीव गहरी मिट्टी में बहुत-सी माँद तथा छिद्र बना लेते हैं। इन छिद्रों के द्वारा वायु को अन्दर व बाहर जाने के लिए जगह उपलब्ध हो जाती है।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 15 हमारे चारों ओर वायु

प्रश्न 2.
पवनचक्की कैसे कार्य करती है ?
उत्तर:
पवनचक्की एक ऐसी युक्ति है जो वायु द्वारा चलती है तथा विभिन्न कार्यों को करने में सहायता करती है। पवनचक्की में बहुत ऊँचाई पर बड़े-बड़े पंखे लगाये जाते हैं। इसमें यह व्यवस्था की जाती है कि जिधर से हवा बहती है इसके पंखे उसी ओर घूम जाते हैं। जब वायु का दबाव पंखों पर पड़ता है तो ये घूमने लगते हैं। पंखों के घूमने के साथ ही इसकी पुलियाँ भी घूमती हैं। इन पुलियों के घूमने से आटा चक्की, ट्यूबवैल, बिजली बनाने का डायनमो आदि चलाये जा सकते हैं।
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 15 हमारे चारों ओर वायु -4

हमारे चारों ओर वायु Class 6  HBSE Notes in Hindi

→ वायु प्रत्येक स्थान पर मिलती है। हम वायु को देख नहीं सकते, केवल अनुभव कर सकते हैं।
→ वायु स्थान घेरती है, इसका कोई रंग नहीं होता तथा यह पारदर्शी होती है।
→ वायु की वह परत जो पृथ्वी को घेरे हुए है, उसे वायुमण्डल कहते हैं।
→ गतिशील वायु पवन कहलाती है।
→ जल तथा मिट्टी में भी वायु उपस्थित होती है।
→ वायु नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाईऑक्साइड,
→ जलवाष्प तथा कुछ अन्य गैसों का मिश्रण है। इसमें कुछ धूल कण भी हो सकते हैं। प्रकृति में जल चक्र के लिए वायु में जलवाष्प का उपस्थित होना अनिवार्य है। ऑक्सीजन ज्वलन में सहायक तथा श्वसन के लिए आवश्यक गैस है।
→ जलीय प्राणी श्वसन के लिए जल में घुली वायु का उपयोग करते हैं। .वायु का लगभग 4/5वाँ भाग नाइटोजन घेरती है।
→ हमारे चारों ओर की वायु का एक छोटा अवयव कार्बन डाईऑक्साइड होती है। पादप एवं जन्तु श्वसन प्रक्रिया में ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं और कार्बन डाईऑक्साइड बनाते हैं।
→ जब हम नाक द्वारा साँस लेते हैं तो हम वायु अन्दर खींचते हैं। इस वायु में धूल के कण भी हो सकते हैं। धूल के कणों को श्वसन तन्त्र में जाने से रोकने के लिए हमारी नाक में छोटे-छोटे बाल तथा श्लेष्मा उपस्थित होते है।
→ ईधन तथा पदार्थों के जलने से धुऔं भी उत्पन्न होता है।
→ धुएँ में कुछ गैसें एवं सूक्ष्म धूल कण होते हैं जो प्रायः हानिकारक होते हैं।
→ वायु से ऑक्सीजन तथा कार्बन डाईऑक्साइड के आदान प्रदान के लिए पौधे तथा जन्तु एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं।
→ वायु पवनचक्की को घुमाती है। पवनचक्की का उपयोग ट्यूबवैल से पानी निकालने तथा आटा-चक्की को चलाने में होता है।
→ वायु बहुत – से पौधों के बीजों तथा फूलों के परागकणों को इधर-उधर फैलाने में सहायक होती है।
→ वायुमण्डल – वायु की वह परत जो पृथ्वी को घेरे हुए है, उसे वायुमण्डल कहते हैं।
→ वायु की संरचना – वायु अनेक गैसों का मिश्रण है जिसमें नाइट्रोजन, कार्बन डाईऑक्साइड, ऑक्सीजन, जलवाष्प तथा अल्प मात्रा में अन्य गैसें होती हैं।
→ ऑक्सीजन – यह वायु का एक अवयव है। पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में कार्बन डाईऑक्साइड ग्रहण करते हैं तथा ऑक्सीजन मुक्त करते हैं।
→ नाइट्रोजन – यह वायु का एक अवयव है। यह वायुमण्डल में सर्वाधिक मात्रा में पायी जाती है।
→ कार्बन डाईऑक्साइड – यह वायु का एक छोटा अवयव है। जन्तु श्वसन क्रिया में ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं तथा कार्बन डाईऑक्साइड निकालते हैं।
→ धुआँ – ईधन तथा अन्य पदार्थों के जलने से विभिन्न गैसों का मिश्रण उत्पन्न होता है, इसे धुआँ कहते हैं। यह विभिन्न रंगों का हो सकता है।
→ पवन चक्की – पवनचक्की एक युक्ति है जिसमें बड़े-बड़े पंखे लगे होते हैं। वायु के प्रवाह से पंखे घूमते हैं। पवनचक्की का उपयोग कुओं से पानी निकालने, आटा चक्की को चलाने, बिजली बनाने आदि कार्यों में किया जाता है।

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HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 14 जल

Haryana State Board HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 14 जल Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 6th Class Science Solutions Chapter 14 जल

HBSE 6th Class Science जल InText Questions and Answers

बूझो/पहेली

प्रश्न 1.
बूझो जिज्ञासु है कि क्या हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को समान मात्रा में जल उपलब्ध होता है। क्या ऐसे भी क्षेत्र हैं जहाँ के लोगों को उचित मात्रा में जल नहीं मिलता है? वे अपना काम कैसे चलाते हैं?
उत्तर:
हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले सभी लोगों को समान मात्रा में जल उपलब्ध नहीं होता है। राजस्थान जैसे क्षेत्रों में लोगों को पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध नहीं होता है। वे अपना काम जल का उचित संग्रहण (भण्डारण) करक चलाते हैं।

प्रश्न 2.
बूझो चाहता है कि आप अपने जीवन में किसी ऐसे दिन की कल्पना करें जिस दिन जल की आपूर्ति टोटियों द्वारा नहीं हो रही हो। अतः आपको स्वयं बहुत दूर से जल लाना पड़ता है। तब क्या आप जल की उतनी ही मात्रा का उपयोग करेंगे जितनी अन्य दिनों में करते है?
उत्तर:
निश्चित रूप से हम ऐसे दिनों में जल की उतनी मात्रा का उपयोग नहीं करेंगे जितनी हम अन्य दिनों में करते हैं।

प्रश्न 3.
बूझो वाष्पोत्सर्जन के विषय में पढ़ता रहा है। उसने स्वयं से पूछा-एक किलोग्राम गेहूँ देने वाले, गेहूँ के पौधों से वाष्पोत्सर्जन द्वारा कितने जल की क्षति होती है? उसने पता लगाया कि यह क्षति लगभग 500 लीटर है जो कि अनुमानतः बड़े आकार की 25 बाल्टियों में भरे जल के बराबर है। क्या अब आप यह कल्पना कर सकते हैं कि वनों, फसलों तथा घास के मैदानों द्वारा कुल मिलाकर जल की कितनी मात्रा की क्षति होती है ?
उत्तर:
घास के मैदानों, फसलों एवं वनों से हजारों टन पानी की क्षति होती है।

प्रश्न 4.
पहेली ने सर्दियों में प्रातःकाल घास की पत्तियों पर ओस की बूंदें देखी हैं। क्या आपने भी कभी शीत ऋतु में प्रातःकाल पत्तियों या धातु के पृष्ठों जैसे लोहे की ग्रिल तथा दरवाजों पर इसी प्रकार की ओस की बूंदें देखी हैं ? क्या यह भी संघनन के कारण है? क्या आपने गर्मियों में भी प्रातः काल ऐसा होते देखा है?
उत्तर:

  1. हाँ, संघनन के कारण ऐसा होता है।
  2. गर्मियों में भी कभी-कभी प्रात:काल ऐसा होता है।

प्रश्न 5.
सर्दियों में प्रातःकाल धरती के पास बूझो ने कोहरा देखा है। वह विचार कर रहा है कि क्या यह भी ठंडी धरती के पास जलवाष्प का संघनन है। आप क्या सोचते हैं ?
उत्तर;
हाँ, यह भी ठण्डी धरती के पास का जलवाष्प का संघनन है।

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HBSE 6th Class Science जल Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
नीचे दिये गये स्थानों की पूर्ति कीजिए
(क) जल को वाष्प में परिवर्तित करने के प्रक्रम को ………………. कहते हैं।
(ख) जलवाष्य को जल में परिवर्तित करने के प्रक्रम को ………………. कहते है।
(ग) एक वर्ष या इससे अधिक समय तक वर्षा न होना उस क्षेत्र में ………………. लाता है।
(घ) अत्यधिक वर्षा से ………………. आती है।
उत्तर:
(क) वाष्पन
(ख) संघनन
(ग) सूखा
(घ) बाढ़।

प्रश्न 2.
नीचे लिखे में से प्रत्येक का क्या यह वाष्यन अथवा संघनन के कारण से है-
(क) ठंडे जल से भरे गिलास की बाहरी सतह पर जल की बूंदों का दिखना।
(ख) गीले कपड़ों पर इस्वी करने पर भाप का ऊपर उठना।
(ग) सर्दियों में प्रातःकाल कोहरे का दिखना।
(घ) गीले कपड़े से पोंछने के बाद श्यामपट्ट कुछ समय बाद सूख जाता है।
(ङ) गर्म छड़ के ऊपर जल छिड़कने से भाप का ऊपर उठना।
उत्तर:
(क) संघनन
(ख) वाष्पन
(ग) संघनन
(घ) वाष्पन
(ङ) वाष्पन।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य हैं ?
(क) वायु में जलवाष्य केवल मानसून के समय में उपस्थित रहती हैं।
(ख) जल महासागरों, नदियों तथा झीलों से वाष्पित होकर वायु में मिलता है परन्तु भूमि से वाष्पित नहीं होता।
(ग) जल के जलवाष्प में परिवर्तन की प्रक्रिया वाष्यन कहलाती है।
(घ) जल का वाष्पन केवल सूर्य के प्रकाश में ही होता
(ङ) वायु की ऊपरी परतों में, जहाँ यह और अधिक ठण्डी होती है, जलवाष्य संघनित होकर छोटी-छोटी जलकणिकाएँ बनाती है।
उत्तर:
(क) असत्य
(खा) असत्य
(ग) सत्य
(घ) असत्य
(ङ) सत्य।

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प्रश्न 4.
मान लीजिए कि आप अपनी स्कूल यूनिफार्म को वर्षा वाले दिन शीघ्र सुखाना चाहते हैं। क्या इसे किसी अँगीठी या हीटर के पास फैलाने पर इस कार्य में सहायता मिलेगी? यदि हाँ, तो कैसे ?
उत्तर:
हाँ, गीले कपड़े को अँगीठी या हीटर के पास ले जाकर सुखाने में सहायता मिलेगी क्योंकि अंगीठी या हीटर के आस-पास अधिक गर्मी (ऊष्मा) से कपड़े से वाष्पन अधिक होगा और वह शीघ्र सूखेगा।

प्रश्न 5.
एक जल की ठंडी बोतल रेफ्रिजरेटर से निकालिए और इसें मेज पर रखिए। कुछ समय पश्चात् आप इसके चारों ओर जल की छोटी-छोटी बूंदें देखेंगे। करण बताओ?
उत्तर:
ठंडी बोतल की बाहरी सतह भी ठंडी होती है जिससे बाहरी सतह के आस-पास की वायु – ठंडी हो जाती है। ऐसा होने से वायु में उपस्थित जलवाष्प का संघनन हो जाता है और इसकी छोटी-छोटी बूंदें बोतल पर जम जाती हैं।

प्रश्न 6.
चश्मों के लेंस साफ करने के लिए लोग उस पर हूँक मारते हैं तो लेंस भीग जाते हैं। लेंस क्यों भीग जाते है? समझाइए।
उत्तर:
मुँह से निकलने वाली वायु नम होती है जो लेंसों पर संघनित हो जाती है जिससे लेंस भीग जाते हैं।

प्रश्न 7.
बादल कैसे बनते हैं ?
उत्तर:
महासागरों, नदियों एवं तालाबों से जल का लगातार वाष्पन होता रहता है। इसके अतिरिक्त पौधे भी जल का वाष्प के रूप में उत्सर्जन (वाष्पोत्सर्जन) करते हैं। यह जल वायु में मिश्रित होता रहता है। जब जलवाष्प पृथ्वी से अधिक ऊँचाई पर पहुँचती है तो यह ठंडी होने लगती है क्योंकि पृथ्वी से ऊपर की ओर जाने पर ताप कम होता जाता है। अधिक ऊँचाई पर जलवाष्प संघनित होकर धुंभा जैसा रूप बना लेती हैं जिन्हें बादल कहते हैं। जब ये बादल अधिक ठण्डे होने लगते हैं तो जल की बूंदें बनने लगती हैं और वर्षा के रूप में पृथ्वी पर पुनः आ जाती है।

प्रश्न 8.
सूखा कब पड़ता है ?
उत्तर:
यदि किसी क्षेत्र में एक वर्ष या उससे भी अधिक समय तक वर्षा न हो तो वाष्पन एवं वाष्पोत्सर्जन द्वारा मृदा से लगातार जल की हानि होती रहती है क्योंकि यह वर्षा द्वारा वापस नहीं लाया जा रहा है। इसलिए मृदा जलविहीन होने लगती है। उस क्षेत्र के तालाबों और कुओं में जल का स्तर गिर जाता है। उनमें से कुछ सूख भी जाते हैं। भौम जल की भी कमी हो जाती है। इससे सूखा पड़ सकता है।

HBSE 6th Class Science जल Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पी प्रश्न : निम्नलिखित प्रश्नों में सही विकल्प का चयन कीजिए

1. कौन सा जल पीने योग्य नहीं होता है?
(क) नदियों का
(ख) कुएँ का
(ग) झील का
(घ) समुद्र का
उत्तर:
(घ) समुद्र का

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2. पृथ्वी का कितना भाग जल से घिरा हुआ है?
(क) \(\frac{1}{3}\) भाग
(ख) \(\frac{2}{3}\) भाग
(ग) \(\frac{1}{2}\) भाग
(घ) \(\frac{5}{2}\) भाग
उत्तर:
(ख) \(\frac{2}{3}\) भाग

3. जल को धूप में रखने पर वह वाष्य के रूप में उड़ने लगता है, यह प्रक्रम कहलाता है
(क) वाष्पन
(ख) वाष्पोत्सर्जन
(ग) संघनन
(घ) निष्कासन
उत्तर:
(क) वाष्पन

4. भूमि के अन्दर पाया जाने वाला जल कहलाता है
(क) सतह जल
(ख) बंधित जल
(ग) भौम जल
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) भौम जल

II. रिक्त स्थान : निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थान भरिए

1. ……………….. और ……………….. के जल में बहुत से लवण घुले होते हैं जिससे जल खारा होता है।
2. ……………….. अपने साथ लवणों का बहन नहीं करती है।
3. जलवाष्य के ……………….. के कारण बादलों से जल की बूंदों का निर्माण होता है।
4. वर्षा का जल एकत्र करने को ……………….. कहते हैं।
उत्तर:
1. समुद्र, महासागरों
2. जलवाष्प
3. संघनन
4. वर्षा जल संग्रहण।

III. सुमेलन : कॉलम ‘A’ के शब्दों का मिलान कॉलम ‘B’ के शब्दों से कीजिए-

कॉलम ‘A’कॉलम ‘B’
1. वाष्पन(i) वर्षा न होना
2. अतिवृष्टि(ii) जल का जमना
3. ओला(iii) जल का गैस में बदलना
4. सूखा(iv) बाढ़ आना

उत्तर:

कॉलम ‘A’कॉलम ‘B’
1. वाष्पन(ii) जल का जमना
2. अतिवृष्टि(iv) बाढ़ आना
3. ओला(iii) जल का गैस में बदलना
4. सूखा(i) वर्षा न होना

IV. सत्य/असत्य : निम्नलिखित वाक्यों में सत्य एवं असत्य कथन छाँटिए

(i) वर्षा होना, जल चक्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण कारक
(ii) वाष्पन एवं वाष्पोत्सर्जन का जल चक्र में कोई महत्व नहीं है।
(iii) जलवाष्प के संघनन के फलस्वरूप वर्षा होती है।
(iv) लम्बे समय तक वर्षा न होने के कारण सूखा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है।
उत्तर:
1. सत्य
2. असत्य
3. सत्य
4. सत्य।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जल किन-किन रूपों में पाया जाता है ?
उत्तर:
तीन रूपों में बर्फ, जल तथा जलवाष्प।

प्रश्न 2.
पृथ्वी का कितना भाग जल से घिरा हुआ है ?
उत्तर:
पृथ्वी का 2/3 भाग जल से घिरा हुआ है।

प्रश्न 3.
आपको पीने के लिए जल कहाँ से प्राप्त होता है?
उत्तर:
कुंओं, नदियों एवं नलकूपों से।

प्रश्न 4.
दो प्लेटों में जल लेकर एक को धूप में तथा दूसरी को छाया में रखा जाता है। कौन सी प्लेट का जल पहले गायब होगा? (क्रियाकलाप)
उत्तर:
धूप में रखी गई प्लेट का जल पहले गायब होगा।

प्रश्न 5.
प्लेट का जल क्यों गायब हुआ? (क्रियाकलाप)
उत्तर:
सूर्य के प्रकाश से जल गर्म होकर वाष्पीकृत होता है जिससे वह गायब हो जाता है।

प्रश्न 6.
जल के वाष्पीकरण और वाष्पोत्सर्जन के लिए ऊर्जा का मुख्य स्रोत क्या होता है? (क्रियाकलाप)
उत्तर:
सूर्य का प्रकाश।

प्रश्न 7.
समुद्र एवं सागरों का पानी पीने योग्य क्यों नहीं होता है?
उत्तर:
समुद्र एवं महासागरों के पानी में अत्यधिक लवण घुले होने के कारण यह खारा होता है।

प्रश्न 8.
पौधों द्वारा जल की क्षति को क्या कहते हैं ?
उत्तर:
बाष्पोत्सर्जन।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 14 जल

प्रश्न 9.
गीले कपड़ों को धूप में सुखाने पर इनका जल कहाँ गायब हो जाता है?
उत्तर:
गर्मी के कारण जल वाष्प बनकर उड़ जाता है।

प्रश्न 10.
जल कणिका किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जलवाष्प संघनित होकर छोटी-छोटी बूंदें बना लेती हैं, इन्हें जल कणिका कहते हैं।

प्रश्न 11.
पृथ्वी पर सर्वाधिक जल कहाँ उपस्थित है ?
उत्तर:
महासागरों में।

प्रश्न 12.
यदि भारी वर्षा हो तो क्या होगा?
उत्तर:
बाढ़ आने की सम्भावना बढ़ जाएगी।

प्रश्न 13.
क्या हम जल का संरक्षण कर सकते हैं ? किसी एक विधि का नाम लिखिए।
उत्तर:
हाँ, तालाब बनाकर।

प्रश्न 14.
‘जल की बचत’ विषय पर अपने स्वयं के कुछ नारे लिखिए। (क्रियाकलाप)
उत्तर:

  1. जल ही जीवन है।
  2. जल अनमोल है।
  3. जल बचाओ, जीवन बचाओ।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वर्षा जल संग्रहण की दो विधियाँ लिखिए।
उत्तर:
गौ जल संग्रहण की दो विधियाँ निम्न प्रकार हैं-
(1) छत के ऊपर वर्षा जल संग्रहण-इस विधि में भवनों की छत पर एकत्रित वर्षा के जल को भण्डारण टैंकों में पाइपों द्वारा पहुँचाया जाता है।
(2) जलाशय बनाना व्यर्थ बहते पानी को नालियों द्वारा तालाबों में एकत्र किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
संघनन की क्रिया को दर्शाने के लिए एक क्रियाकलाप लिखिए।
उत्तर:
क्रियाकलाप-जल से आधा भरा गिलास लीजिए। गिलास को बाहर से सूखे कपड़े से पॉछिए। जल में कुछ बर्फ डालिए। एक या दो मिनट तक प्रतीक्षा कीजिए। गिलास के बाहरी पृष्ठ में होने वाले परिवर्तनों का प्रेक्षण कीजिए।
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 14 जल -1
चित्र : बर्फ व जल से भरे गिलास के बाहरी पृष्ठ पर प्रकट जल की बूंदें
हम देखते हैं कि गिलास की बाहरी सतह पर कुछ बूंदें एकत्र हो जाती हैं। ऐसा संघनन की क्रिया के फलस्वरूप हुआ है। बर्फ युक्त जल से गिलास के बाहर की हवा ठण्डी होकर संघनित होकर गिलास की सतह पर जम जाती है।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 14 जल

प्रश्न 3.
जल के चार प्रमुख उपयोग लिखिए।
उत्तर:
जल के उपयोग-

  1. जल पीने में उपयोग होता है।
  2. जल का उपयोग, नहाने, कपड़े धोने में होता है।
  3. जल फसलों एवं पौधों की सिंचाई के लिए उपयोग होता है।
  4. बहुत से जीव जन्तु-जल के अन्दर रहते हैं।

प्रश्न 4.
धूप में फैलाने पर गीले कपड़े कैसे सूख जाते हैं?
उत्तर:
गीले कपड़ों को धूप में फैलाकर डालने से उनसे वाष्पन होने लगता है। कपड़ों में उपस्थित जल गर्मी पाकर वाष्प में बदलकर उड़ जाता है और कपड़े सूख जाते हैं।
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 14 जल -1HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 14 जल -2

प्रश्न 5.
तीन क्रियाकलापों की सूची बनाइए, जिससे आप जल बचा सकते हैं। प्रत्येक क्रियाकलाप को कैसे करेंगे, इसका उल्लेख कीजिए। (क्रियाकलाप)
उत्तर:

  1. बुश करते समय हमें नल बन्द कर देना चाहिए।
  2. हमें नहाने के लिए टब के स्थान पर बाल्टी का प्रयोग करना चाहिए।
  3. नलों की टोटियों को खुला नहीं छोड़ना चाहिए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी परिवार द्वारा एक दिन में उपयोग होने वाले जल की मात्रा का अनुमान लगाकर सारणी में लिखिए। (क्रियाकलाप)
उत्तर:
किसी परिवार द्वारा एक दिन में उपयोग होने वाले जल की मात्रा का अनुमान

क्रियाकलापउपयोग हुए जल की मात्रा
1. पीने में1/2 बाल्टी
2. ब्रुश करने में1/2 बाल्टी
3. नहाने में4 बाल्टी
4, बर्तन साफ करने में2 बाल्टी
5. कपड़े धोने में6 बाल्टी
6. शौचालय में4 बाल्टी
7. फर्श साफ करने में5 बाल्टी
8. कोई अन्य2 बाल्टी
परिवार में एक दिन में उपयोग जल की कुल मात्रा24 बाल्टी

प्रश्न 2.
जल चक्र किसे कहते हैं? आरेख बनाकर वर्णन कीजिए।
उत्तर-
जल चक्र:
जल का विभिन्न रूपों में बदलते हुए एक स्थान से अन्य स्थान पर पहुँचना तथा पुन: उसी स्थान पर लौटना जल चक्र कहलाता है। महासागर, समुद्र, नदियाँ, झीलें, तालाब आदि जल के प्रमुख स्रोत हैं। इसके अतिरिक्त जल की कुछ मात्रा मृदा में भी उपस्थित होती है। सूर्य की गर्मी से जल सतह से जलवाष्प के रूप में उड़ता है तथा पौधों द्वारा वाष्पोत्सर्जन द्वारा भी जल उड़ता है। यह जल बादलों का निर्माण करता है। बादल हवा द्वारा उड़ाकर एक स्थान से दूसरे स्थानों पर ले जाये जाते हैं। बादलों के बरसने पर जल पुन: पृथ्वी पर आ जाता है। कुछ जलवाष्प पहाड़ों पर बर्फ के रूप में गिरती है, जो पिघलकर जल बनाती है। जो नदियों में बहकर पुनः समुद्रों में पहुँच जाता है। वर्षा का कुछ जल पुनः जमीन में चला जाता है। इस प्रकार जल का चक्रण होता रहता है।

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प्रश्न 3.
जल संग्रहण क्या है ? यह क्यों आवश्यक है? जल संग्रहण की एक विधि लिखिए।
उत्तर:
जल संग्रहण : आज के समय में जल का अत्यधिक दोहन हो रहा है, जिससे पेयजल की दिन-प्रतिदिन कमी होती जा रही है, अत: जल को भविष्य के लिए बचाना अति आवश्यक है। वर्षा के जल को एकत्र करना और उसका भण्डारण करना ही वर्षा जल संग्रहण कहलाता है।

जल संग्रहण की आवश्यकता : हमारे देश में मुख्यतः मानसूनी वर्षा होती है अर्थात् वर्षभर वर्षा समान नहीं होती। वर्षा का अधिकांश जल नदियों से बहकर सागरों में चला जाता है, जो पीने योग्य नहीं रहता है। इस वर्षा जल को एकत्र करके वर्षभर सूखे की समस्या से बचा जा सकता है। जल संग्रहण करके सिंचाई की जा सकती है तथा वर्षभर पीने के पानी की व्यवस्था की जा सकती है। जल संग्रहण की विधि

छत के ऊपर वर्षा जल संग्रहण : इस विधि में भवनों की छत पर एकत्रित वर्षा के जल को भण्डारण टैंक में पाइपों द्वारा पहुँचाया जाता है। इस जल में छत पर उपस्थित मिट्टी के कण हो सकते हैं जिन्हें उपयोग करने से पहले निस्पंदित करना आवश्यक होता है।

जल Class 6 HBSE Notes in Hindi

→ जल जीवन के लिए अति आवश्यक है। जल का उपयोग केवल दैनिक कार्यों के लिए ही नहीं वरन् बहुत-सी वस्तुओं के उत्पादन के लिए भी होता है।
→ तालाब, नदी, कुएँ, झरने आदि जल के स्रोत हैं।
→ पृथ्वी का 2/3 भाग जल से घिरा हुआ है। इस जल का अधिकांश भाग समुद्रों और महासागरों में है।
→ गर्म करने पर या सूर्य की गर्मी से जल वाष्प में परिवर्तित होकर वायु में मिलता रहता है। इस प्रकार बनी जलवाष्प वायु का एक भाग बन जाती है।
→ वायु में वाष्पन और वाष्पोत्सर्जन से जलवाष्प मिलती रहती है।
→ जलवाष्प वायु में संघनित होकर छोटी-छोटी जल की बूंदें बनाती है जो बादल जैसे दिखाई देते हैं। बहुत-सी छोटी जल की बूंदें परस्पर मिलकर वर्षा, हिम अथवा ओले के रूप में गिरती हैं।
→ वर्षा का जल या बर्फ के पिघलने से बहता हुआ जल झीलों, तालाबों तथा नदियों को भर देता है। इस जल का कुछ भाग वाष्पन तथा वाष्पोत्सर्जन द्वारा वापस वायु में चला जाता है। शेष जल धीरे-धीरे भूमि के नीचे रिसता रहता है। इस जल का अधिकांश भाग हमें भूमिगत जल के रूप में उपलब्ध रहता है।
→ महासागरों तथा जलीय भागों के बीच जल के चक्रण को जल चक्र कहते हैं।
→ अत्यधिक वर्षा होने से बाढ़ आ जाती है जबकि लम्बे समय तक वर्षा न होने से सूखा पड़ सकता है।
→ पृथ्वी पर उपयोग करने योग्य जल की मात्रा सीमित है इसलिए जल के विवेकपूर्ण उपयोग की आवश्यकता है।
→ वर्षा के जल को एकत्र करना और उसका भण्डारण करके बाद में प्रयोग करना, वर्षा जल संग्रहण कहलाता है। वर्षा जल संग्रहण का मूलमंत्र यह है कि जल जहाँ गिरे वहीं एकत्र कीजिए।
→ जल वाष्प – जल का गैसीय रूप जल वाष्य कहलाता है। वाष्यन-जल का वाष्प में परिवर्तित होना वाष्पन कहलाता है।
→ संघनन – जल वाष्प के द्रव की बूंदों में बदलने की क्रिया को संघनन कहते हैं।
→ बादल – जल वाष्प वायु में संघनित होकर छोटी-छोटी जल बूंदें बनाती है जो बादल जैसी दिखाई देती है।
→ सूखा – किसी क्षेत्र में लम्बे समय तक वर्षा न होने पर सूखा पड़ सकता है।
→ वर्षा जल संग्रहण – वर्षा के जल को एकत्र करना और उसका भण्डारण करके बाद में प्रयोग करने को वर्षा जल संग्रहण कहते हैं।
→ जल चक्र – महासागरों तथा जलीय भागों के बीच जल के चक्रण को जल चक्र कहते हैं।
→ ओला – जल वाष्प का संघनन होकर पानी की बूंदें बन जाती हैं, जब ये बूंदें जमकर बर्फ की गोलियाँ बनकर जमीन पर गिरती हैं तो इन्हें ओला कहते हैं।
→ बाढ़ – अत्यधिक वर्षा से नदियों, झीलों तथा तालाबों का जल स्तर बढ़ जाता है और बाढ़ आ जाती है।
→ महासागर – जल का प्रमुख स्रोत जिसके जल में बहुत से लवण घुले होते हैं।

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HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 13 चुंबकों द्वारा मनोरंजन

Haryana State Board HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 13 चुंबकों द्वारा मनोरंजन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 6th Class Science Solutions Chapter 13 चुंबकों द्वारा मनोरंजन

HBSE 6th Class Science चुंबकों द्वारा मनोरंजन InText Questions and Answers

बूझो/पहेली

प्रश्न 1.
बूझो आपसे यह प्रश्न पूछना चाहता है। एक दर्जी कमीज में बटन टाँक रहा था। उसके हाथ से सुई फिसल कर फर्श पर गिर गई। क्या आप सुई ढूँढने में दर्जी की सहायता कर सकते हैं?
उत्तर:
हाँ, हम चुम्बक की सहायता से सुई को ढूंढ सकते हैं क्योंकि लोहे की बनी सुई चुम्बक पर चिपक जाएगी।

प्रश्न 2.
पहेली के पास आपके लिए एक समस्या है। आपको दो समान छड़ें दी गई हैं, जिन्हें देखने से प्रतीत होता है कि वे लोहे की बनी हुई हैं। उनमें से एक चुम्बक है जबकि दूसरी लोहे की साधारण छड़ है। आप कैसे ज्ञात करेंगे कि इनमें से कौन-सी छड़ चुम्बक है?
उत्तर:
लोहे की छड़ में धूव नहीं होते, अत: सभी जगह समान आकर्षण होगा। चुम्बक के दो ध्रुव होते हैं जहाँ सबसे अधिक आकर्षण होता है। इस प्रकार हम ज्ञात कर सकते है कि कौन-सी छड़ चुम्बक है।

प्रश्न 3.
आपके विद्यालय का मुख्य द्वार आपकी कक्षा से किस दिशा में स्थित है?
उत्तर:
विद्यार्थी अपने विद्यालय की स्थिति के अनुसार उत्तर लिखें।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 13 चुंबकों द्वारा मनोरंजन

HBSE 6th Class Science चुंबकों द्वारा मनोरंजन Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(क) कृत्रिम चुम्बक विभिन्न आकार के बनाए जाते हैं, जैसे …………………. तथा ………….।
(ख) जो पदार्थ चुम्बक की ओर आकर्षित होते हैं, वे ………… कहलाते हैं।
(ग) कागज एक …………… पदार्थ नहीं है।
(घ) प्राचीन काल में लोग दिशा ज्ञात करने के लिए …………… का टुकड़ा लटकाते थे।
(ङ) चुम्बक के सदैव ………….. ध्रुव होते हैं।
उत्तर:
(क) नाल चुम्बक, बेलनाकार चुम्बक,छड़चुम्बक।
(ख) चुम्बकीय
(ग) चुम्बकीय
(घ) चुम्बक
(ङ) दो।

प्रश्न 2.
बताइए निम्न कथन सही है अथवा गलत
(क) बेलनाकार चुम्बक में केवल एक ध्रुव होता है।
(ख) कृत्रिम चुम्बक का आविष्कार यूनान में हुआ था।
(ग) चुम्बक के समान ध्रुव एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं।
(घ) लोहे का बुरादा छड़ चुम्बक के समीप लाने पर इसके मध्य में अधिक चिपकता है।
(ङ) छड़ चुम्बक सदैव उत्तर-दक्षिण दिशा को दर्शाता है।
(च) किसी स्थान पर पूर्व-पश्चिम दिशा ज्ञात करने के लिए कम्पास का उपयोग किया जा सकता है।
(छ) रबड़ एक चुम्बकीय पदार्थ है।
उत्तर:
(क) गलत
(खा) गलत
(ग) सही
(घ) गलत
(ङ) सही
(च) सही
(छ) गलत।

प्रश्न 3.
यह देखा गया है कि पेंसिल छीलक (शार्पनर) यद्यपि प्लास्टिक का बना होता है, फिर भी यह चुम्बक के दोनों ध्रुवों से चिपकता है। उस पदार्थ का नाम बताइए जिसका उपयोग इसके किसी भाग के बनाने में किया गया है।
उत्तर:
पेंसिल छीलक में ब्लेड लोहे का बना होता है और जब वह चुम्बक के सम्पर्क में आता है तो लोहा चुम्बक से चिपक जाता है।

प्रश्न 4.
एक चुम्बक के एक ध्रुव को दूसरे चुम्बक के ध्रुव के समीप लाने की विभिन्न स्थितियाँ कॉलम 1 में दर्शाई गई हैं। कॉलम 2 में प्रत्येक स्थिति के परिणाम को दर्शाया गया है। रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-

कॉलम – 1कॉलम – 2
N – N_
N – _आकर्षण
S – N_
_ – Sप्रतिकर्षण

उत्तर:

कॉलम-1कॉलम-2
N – Nप्रतिकर्षण
N – Sआकर्षण
S – Nआकर्षण
S – Sप्रतिकर्षण

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 13 चुंबकों द्वारा मनोरंजन

प्रश्न 5.
चुम्बक के कोई दो गुण लिखिए।
उत्तर:
चम्बक के गुण:
1. चुम्बक लोहा, निकिल, कोबाल्ट जैसे कुछ पदार्थों को आकर्षित करता है।
2. चुम्बक को स्वतंत्रतापूर्वक लटकाने पर यह सदैव उत्तर-दक्षिण दिशा में रुकता है।

प्रश्न 6.
छड़ चुम्बक के ध्रुव कहाँ स्थित होते हैं?
उत्तर:
छड़ चुम्बक के ध्रुव उसके दोनों सिरों के नजदीक

प्रश्न 7.
छड़ चुम्बक पर धुवों की पहचान का कोई चिह्न नहीं है। आप कैसे ज्ञात करोगे कि किस सिरे के समीप उत्तरी ध्रुव स्थित है?
उत्तर:
छड़ चुम्बक के बीचों-बीच एक धागा बांधकर इसे लटकाने पर यह उत्तर-दक्षिण दिशा में ठहरता है। जो सिरा उत्तर में ठहरता है वह उत्तरी ध्रुव तथा जो सिरा दक्षिण की ओर होता है वह दक्षिणी ध्रुव कहलाता है।

प्रश्न 8.
आपको एक लोहे की पत्ती दी गई है। आप इसे चुम्बक कैसे बनाएँगे?
उत्तर:
सबसे पहले लोहे की पत्ती को मेज पर रखते हैं। अब एक छड़ चुम्बक का कोई एक ध्रुव लोहे की पत्ती के एक सिरे पर रखिए। चुम्बक को बिना हटाए इसे पत्ती के दूसरे सिरे तक ले जाइए। इस प्रक्रिया को लगभग 30-40 बार दोहराइए। इस प्रकार लोहे की पत्ती को चुम्बक बनाया जा सकता है।
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प्रश्न 9.
दिशा निर्धारण में कम्पास का किस प्रकार प्रयोग होता है?
उत्तर:
कम्पास की सुई सदैव उत्तर-दक्षिण दिशा में ठहरती है। सुई नोंक वाला सिरा उत्तर की ओर तथा इसके पीछे का सिरा दक्षिण दिशा बताता है। उत्तर-दक्षिण दिशाओं को जानकर पूर्व-पश्चिम दिशाओं का ज्ञान किया जा सकता है।

प्रश्न 10.
पानी के टब में तैरती एक खिलौना नाव के समीप विभिन्न दिशाओं से एक चुम्बक लाया गया। प्रत्येक स्थिति में प्रेक्षित प्रभाव कॉलम 1 में तथा सम्भावित कारण कॉलम 2 में दिये गये हैं। कॉलम 1 में दिये गये कथनों का मिलान कॉलम 2 में दिये गये कथनों से कीजिए।

कॉलम – 1कॉलम – 2
1. नाव चुम्बक की ओर आकर्षित हो जाती है।(क) नाव में चुम्बक लगा है जिसका उत्तरी धूव, नाव के अग्र भाग की ओर है।
2. नाव चुम्बक से प्रभावित नहीं होती।(ख) नाव में चुम्बक लगा है जिसका दक्षिणी ध्रुव, नाव के अग्र भाग की ओर है।
3. यदि चुम्बक का उत्तरी ध्रुव नाव के अग्र भाग के समीप लाया जाता है तो नाव चुम्बक के समीप आती है।(ग) नाव की लम्बाई के अनुदिश एक छोटा चुम्बक लगाया गया है।
4. जब उत्तरी ध्रुव नाव के अन भाग के समीप लाया जाता है तो नाव चुम्बक से दूर चली जाती है।(घ) नाव चुम्बकीय पदार्थ से निर्मित है।
5. नाव बिना दिशा बदले तैरती है।(ङ) नाव अचुम्बकीय पदार्थ से निर्मित है।

उत्तर:

कॉलम – 1कॉलम – 2
1. नाव चुम्बक की ओर आकर्षित हो जाती है।(घ) नाव चुम्बकीय पदार्थ से निर्मित है।
2. नाव चुम्बक से प्रभावित नहीं होती।(ङ) नाव अचुम्बकीय पदार्थ से निर्मित है।
3. यदि चुम्बक का उत्तरी ध्रुव नाव के अग्र भाग के समीप लाया जाता है तो नाव चुम्बक के समीप आती है।(ख) नाव में चुम्बक लगा है जिसका दक्षिणी ध्रुव, नाव के अग्र भाग की ओर है।
4. जब उत्तरी ध्रुव नाव के अन भाग के समीप लाया जाता है तो नाव चुम्बक से दूर चली जाती है।(क) नाव में चुम्बक लगा है जिसका उत्तरी धूव, नाव के अग्र भाग की ओर है।
5. नाव बिना दिशा बदले तैरती है।(ग) नाव की लम्बाई के अनुदिश एक छोटा चुम्बक लगाया गया है।

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HBSE 6th Class Science चुंबकों द्वारा मनोरंजन Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पी प्रश्न : निम्नलिखित प्रश्नों में सही विकल्प का चयन कीजिए

1. लोहे की वस्तुओं को अपनी ओर खींचने वाले पत्थर को क्या नाम दिया गया?
(क) मेग्नस
(ख) मेग्नेटाइट
(ग) हेमेटाइट
(घ) पाइराइट
(घ) पादार
उत्तर:
(ख) मेग्नेटाइट

2. वे पदार्थ जो चुम्बक की ओर आकर्षित होते हैं, कहलाते हैं-
(क) चुम्बकीय पदार्थ
(ख) अचुम्बकीय पदार्थ
(ग) प्रतिकर्षी पदार्थ
(घ) आकर्षी पदार्थ
उत्तर:
(क) चुम्बकीय पदार्थ

3. चुम्बक के ध्रुव होते हैं-
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार
उत्तर:
(ख) दो

4. चुम्बक अपना गुण खो देता है-
(क) गर्म करने पर
(ख) पीटने पर
(ग) ऊँचाई से गिराने पर
(घ) ये सभी
उत्तर:
(घ) ये सभी

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II. रिक्त स्थान : निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थान भरिए

1. लोहे के टुकड़े से चुम्बक बनाने की विधि का अविष्कार हुआ, इन्हें …………….. कहते हैं।
2. जो पदार्थ चुम्बक की ओर आकर्षित नहीं होते, वे …………….. कहलाते हैं।
3. चुम्बक के …………….. इसके सिरों के नजदीक होते हैं।
4. …………….. सामान्यतः काँच के ढक्कन वाली एक छोटी डिब्बी होती है।
उत्तर:
1. कृत्रिक चुम्बक
2. अचुम्बकीय
3. ध्रुव
4. कंपास।

III. सुमेलन : कॉलम ‘A’ के शब्दों का मिलान कॉलम ‘B’ के शब्दों से कीजिए

कॉलम ‘A’कॉलम ‘B’
1. मैग्नस(i) पत्थर का नाम
2. मेग्नीशिया(ii) एक स्थान का नाम
3. मेग्नेटाइट(iii) गड़रिया का नाम
4. दिक्सूची(iv) कंपास का नाम

उत्तर:

कॉलम ‘A’कॉलम ‘B’
1. मैग्नस(iii) गड़रिया का नाम
2. मेग्नीशिया(ii) एक स्थान का नाम
3. मेग्नेटाइट(i) पत्थर का नाम
4. दिक्सूची(iv) कंपास का नाम

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IV. सत्य/असत्य : निम्नलिखित वाक्यों में सत्य एवं असत्य कधन छोटिए

(i) निकिल, कोबाल्ट एवं लोहा चुम्बकीय पदार्थ हैं।
(ii) छड़ चुम्बक को बीच से धागे द्वारा स्वतंत्र लटकाने पर इसके सिरे पूर्व-परिचम की ओर ठहरते हैं।
(iii) चुम्बक के दो ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव होते हैं।
(iv) दो चुम्बकों के विपरीत ध्रुवों में आकर्षण होता है।
उत्तर:
1. सत्य
2. असत्य
3, सत्य
4. सत्य।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कबाड़ के ढेर से लोहे के टुकड़ों का चयन किसके द्वारा किया जा सकता है।
उत्तर:
चुम्बक द्वारा।

प्रश्न 2.
चुम्बक किस प्रकार की वस्तुओं को अपनी ओर खीचती हैं? (क्रियाकलाप)
उत्तर:
लोहा, निकिल और कोबाल्ट से बनी वस्तुओं को।

प्रश्न 3.
चुम्बक के प्रभाव वाले किसी सेल का नाम बताइए। (क्रियाकलाप)
उत्तर:
पेपर क्लिप को हवा में लटकाना।

प्रश्न 4.
एक प्राकृतिक चुम्बक का नाम लिखिए।
उत्तर:
मैग्नेटाइट एक प्राकृतिक चुम्बक है।

प्रश्न 5.
मेग्नस छड़ी के सिरे पर क्या लगा होता है? (क्रियाकलाप)
उत्तर:
चुम्बक।

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प्रश्न 6.
छड़ चुम्बक का वह सिरा जो लटकाने पर उत्तर की ओर ठहरता है, क्या कहलाता है?
उत्तर:
उत्तरी धूव।

प्रश्न 7.
ऐसे पदार्थ जो चुम्बक से आकर्षित नहीं होते हैं, क्या कहलाते हैं?
उत्तर:
अनुचुम्बकीय पदार्थ ।

प्रश्न 8.
ऐसे पदार्थ जो चुम्बक की ओर आकर्षित होते हैं, क्या कहलाते हैं?
उत्तर:
चुम्बकीय पदार्थ।

प्रश्न 9.
चुम्बक की खोज किसने की?
उत्तर:
मैग्नस ने।

प्रश्न 10.
क्या होता है जब छड़ चुम्बक को लोहे के बुरादे से होकर निकाला जाता है? (क्रियाकलाप)
उत्तर:
छड़ चुम्बक के दोनों सिरों पर लोहे का बुरादा समान रूप से चिपक जाता है।

प्रश्न 11.
दो ऐसे उपकरणों का नाम लिखिए जिनमें ‘चुम्बक पाया जाता है?
उत्तर:
(i) विद्युत घंटी
(ii) क्रेन।

प्रश्न 12.
पिन धारक में चुम्बक का क्या कार्य है?
उत्तर:
पिने पिन धारक के मुंह पर आ जाती हैं जिससे इन्हें उठाने में सरलता होती है।

प्रश्न 13.
कृत्रिम चुम्बक किस पदार्थ से बनाए जाते हैं?
उत्तर:
लोहे से।

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प्रश्न 14.
मिट्टी चुम्बकीय पदार्थ है या अनुचुम्बकीय ?
उत्तर:
अनुचुम्बकीय।

प्रश्न 15.
क्या होता है यदि चुम्बक को गर्म किया जाए या हथौड़े से पीटा जाए?
उत्तर:
चुम्बक अपना गुण खो देता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रेखांकित शब्दों को वाक्य के अनुसार शुद्ध कीजिए
(क) कागज एक चुम्बकीय पदार्थ है।
(ख) एनास्टिक एक चुम्बकीय पदार्थ है।
(ग) कृत्रिम चुम्बक का आविष्कार इंग्लैण्ड में हुआ।
(घ) चुम्बक का एक धुव होता है।
उत्तर:
(क) अनुचुम्बकीय
(ख) लोहा
(ग) यूनान
(घ) दो।

प्रश्न 2.
एक सरल कम्पास बनाने के लिए एक क्रियाकलाप लिखिए। (क्रियाकलाप)
उत्तर:
क्रियाकलाप:
छड़ चुम्बक के उपयोग से लोहे की सुई को चुम्बकित कीजिए। अब इसे किसी छोटी कॉर्क अथवा फोम के टुकड़े में निविष्ट कीजिए। इसे पानी से भरे प्याले अथवा टब में तैराइए। यह सुनिश्चित कीजिए कि सुई पानी को न छुए। अब आपकी कम्पास कार्य करने के लिए तैयार है। तैरती कॉर्क पर लगी सुई की दिशा नोट कीजिए। सुई लगी कॉर्क को विभिन्न दिशाओं में घुमाइए। जब बिना घुमाए कॉर्क तैरने लगे तो सुई की दिशा पुनः नोट कीजिए। कॉर्क का घूमना बंद होने पर सुई सदैव एक ही दिशा दर्शाती
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प्रश्न 3.
(a) आप रेत से लोहे के बुरादे को किस प्रकार अलग करेंगे।
(b) कुछ स्थानों का भ्रमण कर चुम्बक की सहायता से विभिन्न स्थानों की मिट्टी में लोहे की वस्तुओं (पिन, नट-बोल्ट, कील, लोहे का बुरादा) की संख्या की तुलना कीजिए। (क्रियाकलाप)
उत्तर:
(a) मिश्रण से होकर बार-बार चुम्बक गुजार ने पर लोहे का बुरादा चुम्बक से चिपक जाता है।
(b)

स्थानलोहे की वस्तुओं की संख्या
1. अपने घर के सामने कीथोड़ी सी वस्तुएं, पिन, नट, कील
2. कार मैकेनिक की दुकान के सामने की मिट्टीबहुत सी वस्तुएं, लोहे का बुरादा, कील, नट, बोल्ट आदि।
3. खेत की मिट्टीबिल्कुल नहीं

प्रश्न 4.
एक कागज की शीट पर लोहे का बुरादा फैलाइए। इस शीट के ऊपर एक छड़ चुम्बक रखिए। आप क्या देखते है? क्या लोहे का बुरादा चुम्बक के सभी स्थानों पर एक समान रूप से चिपकता है? क्या आप चुम्बक के किसी भाग में किसी अन्य भाग से अधिक लोहे का बुरादा चिपका हुआ देखते हैं ?
उत्तर:
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1. चुम्बक लोहे के बुरादे को अपनी ओर खींचती है।
2. बुरादा चुम्बक पर समान रूप से नहीं चिपकता।
3. चुम्बक के सिरों पर बुरादा अधिक चिपकता है।

प्रश्न 5.
चुम्बकों का रख-रखाव कैसे किया जाता है?
उत्तर:
चुम्बकों को कभी भी पीटना या गर्म नहीं करना चाहिए। इससे चुम्बक अपना चुम्बकत्व खो देती है।
छड़ चुम्बकों को सुरक्षित रखने के लिए उनके जोड़ों के असमान ध्रुवों को पास-पास रखा जाना चाहिए। इन चुम्बकों को लकड़ी के टुकड़ों HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 13 चुंबकों द्वारा मनोरंजन -4

प्रश्न 6.
कम्पास क्या होता है? इसका चित्र बनाइए।
उत्तर:
कम्पास (दिक्सूचक) काँच के ढक्कन वाली एक छोटी डिब्बी होती है जिसमें एक चुम्बकीय सुई अपनी धुरी पर स्वतंत्रतापूर्वक घूमती है। यह सुई सदैव उत्तर-दक्षिण दिशा में ठहरती है। इसकी नोंक उत्तर दिशा को तथा पीछे की ओर का भाग दक्षिण दिशा को दर्शाता है। इसका प्रयोग दिशा का ज्ञान करने के लिए किया जाता है।
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प्रश्न 7.
चुम्बक का प्रभाव दाने के लिए एक क्रियाकलाप कीजिए। (क्रियाकलाप)
उत्तर:
क्रियाकलाप:
प्लास्टिक अथवा कागज का एक प्याला लीजिए। इसे एक स्टैंड पर शिकंजे (क्लैम्प) की सहायता से कस दीजिए। जैसा कि चित्र में दर्शाया गया है। प्याले के अंदर एक चुम्बक रखिए तथा इसे कागज से ढंक दीजिए, जिससे कि चुम्बक दिखाई न दे। लोहे के बने एक क्लिप को एक धागे से बाँधिए। धागे के दूसरे सिरे को स्टैण्ड के आधार के साथ बाँध दीजिए। (ध्यान रखें, धागे की लम्बाई को पर्याप्त छोटा रखना यहाँ एक युक्ति है।) क्लिप को प्याले के आधार के समीप लाइए। क्लिप बिना किसी सहारे के एक पतंग की भाँति हवा में रुका रहता है।
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प्रश्न 8.
एक कम्पास का उपयोग करके, अपने कमरे की खिड़की तथा अपने घर या अपनी कक्षा के प्रवेश द्वार के खुलने की दिशा ज्ञात कीजिए। (क्रियाकलाप)
उत्तर:
कम्पास का उपयोग करके हमने ज्ञात किया कि हमारे कमरे की खिड़की और हमारे घर का प्रवेश द्वार उत्तर दिशा की ओर खुलते हैं जबकि हमारी कक्षा का प्रवेश द्वार दक्षिण दिशा में खलता है।

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प्रश्न 9.
समान माप के दो एक जैसे छड़ चुम्बकों को एक-दसरे के ऊपर इस प्रकार रखने का प्रयत्न कीजिए कि एक चुम्बक का उत्तरी ध्रुव दूसरे के उत्तरी ध्रुव पर हो। अवलोकन कीजिए क्या होता है और अपने प्रेक्षणों को अपनी नोटबुक में लिखिए। (क्रियाकलाप)
उत्तर:
जब हम समान माप के दो एक जैसे छड़ चुम्बकों को एक-दूसरे के ऊपर इस प्रकार रखते हैं कि एक चुम्बक का उत्तरी ध्रुव दुसरे चुम्बक के उत्तरी ध्रुव पर हो तो दोनों चम्बक एक-दूसरे से प्रतिकर्षित होते हैं। दो असमान धूव प्रतिकर्षित होते हैं तथा दो समान ध्रुव आकर्षित होते हैं। यह चुम्बक का गुण है।

प्रश्न 10.
बढ़ई के काम करते समय फर्श पर बहुत-सा लकड़ी का छीलन फैल जाता है तथा कुछ लोहे की कीलें एवं पेंच भी इनके साथ मिल जाते हैं। हाथों से ढूंढने में उसका बहुमूल्य समय नष्ट किये बिना आप कीलों तथा पेंचों को बुरादे तथा छीलन से पृथक् करने में उसकी सहायता कैसे करेंगे? (क्रियाकलाप)
उत्तर:
यदि बढ़ई चुम्बक का उपयोग करेगा तो लोहे के बने कील एवं पेंच चुम्बक से चिपक जायेंगे।

प्रश्न 11.
आप एक बुद्धिमान गुड़िया बना सकते हैं, जो अपनी पसंद का वस्तुएं चुनती है। एक गुड़िया लाजिए तथा इसके हाथ में एक छोटा चुम्बक बांध दीजिए। इस हाथ को दस्ताने से छुपा दीजिए, जिससे कि चुम्बक दिखाई न दे। अब आपकी बुद्धिमान गुड़िया तैयार है। अपने मित्रों से विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ गुड़िया के हाथ के पास लाने को कहिए। वस्तु के पदार्थ की जानकारी से आप पहले ही यह बता सकते हो कि गुड़िया इस वस्तु को पकड़ेगी या नहीं। (क्रियाकलाप)
उत्तर:
जब हम एक छोटा चुम्बक गुड़िया के दस्ताने में छिपा देते हैं तो वह स्वाभाविक रूप से लोहे, कोबाल्ट या निकिल से बनी वस्तुओं को अपनी ओर खींचती है। वास्तव में यह मजेदार खेल है।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मान लीजिए आप मेग्नस की भाँति मेग्नस छड़ी बनाकर भ्रमण पर निकले हैं। चुम्बक द्वारा आकर्षित होने वाली वस्तुओं की सूची बनाइए। (क्रियाकलाप)
उत्तर:
सारणी : चुम्बक द्वारा आकर्षित होने वाली वस्तुओं का पता लगाना

वस्तु का नामपदार्थ जिसकी वस्तु बनी है (कपड़ा/प्लास्टिक/एल्युमिनियम/ लकड़ी/काँच/लोहा/ अन्य कोई)मैग्नस छड़ी/चुम्बक द्वारा आकर्षित (हाँ/नही)
1. लोहे की गेंदलोहाहाँ
2. स्केलप्लास्टिकनहीं
3. जूताचमड़ानहीं
4. कीललोहाहाँ
5. चाकूलोहाहाँ
6. कुर्सीलकड़ीनहीं
7. चॉकचॉकनहीं
8. डस्टरलकड़ीनहीं
9. केंचीलोहाहाँ
10. मृर्तिनिकिलहाँ

प्रश्न 2.
“स्वतन्त्रतापूर्वक लटका चुम्बक सदैव एक ही दिशा में आकर रुकता है।” एक क्रियाकलाप द्वारा समझाइए।
उत्तर:
क्रियाकलाप:
एक छड़ चुम्बक लेते हैं। इसके एक सिरे पर पहचान के लिए एक चिन्ह बना देते हैं। अब एक धागे को चुम्बक के मध्य बिन्दु से बाँधते हैं जिससे कि इसे एक लकड़ी के स्टैण्ड पर चित्रानुसार लटकाया जा सके। यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि चुम्बक प्रत्येक दिशा में स्वतन्त्रतापूर्वक घूम सके। इसे विराम अवस्था में आने देते हैं।
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 13 चुंबकों द्वारा मनोरंजन -7
चुम्बक की विराम अवस्था में इसके दोनों सिरों की स्थिति दर्शाने के लिए धरती पर दो बिन्दु चिन्हित कीजिए। इन बिन्दुओं को एक रेखा से मिलाइए। यह रेखा उस दिशा को दर्शाती है, जिस दिशा में चुम्बक अपनी विरामावस्था की स्थिति में आकर रुकता है। अब चुम्बक के एक सिरे को आराम से धक्का देकर घुमाइए तथा इसे विरामावस्था में आने दीजिए। विरामावस्था में इसके सिरों की स्थिति को दोबारा चिन्हित कीजिए। हम देखते हैं कि चुम्बक पुन: अपनी पहली स्थिति में आकर ही रुकता है। चुम्बक को एक दूसरी दिशा में घुमाइए तथा इसके विराम में आने की दिशा नोट कीजिए।

चुम्बक पुनः अपनी पुरानी स्थिति में आकर रुकता है। इससे स्पष्ट है कि स्वतंत्रतापूर्वक लटका चुम्बक सदैव एक ही दिशा में आकर रुकता है।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 13 चुंबकों द्वारा मनोरंजन

प्रश्न 3.
क्या चुम्बक के असमान धुव आकर्षित होते हैं और समान धुव प्रतिकर्षित होते हैं। इसे समझाने के लिए एक खेल-खेल में क्रियाकलाप कीजिए।
उत्तर:
क्रियाकलाप दो छोटी खिलौना कारें लीजिए तथा उन पर A एवं B अंकित कीजिए। प्रत्येक कार के ऊपर लम्बाई के अनुदिश रबड़ बैण्ड से एक चुम्बक लगाइए। कार A में चुम्बक का उत्तरी ध्रुव अग्रभाग की ओर रखिए। कार B में चुम्बक विपरीत दिशा में रखिए। अब दोनों कारों को एक-दूसरे के समीप रखिए। आकर्षण एवं प्रतिकर्षण के प्रेक्षण निम्न तालिका में प्रस्तुत हैं।
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 13 चुंबकों द्वारा मनोरंजन -8

तालिका

कारों की स्थितिकारें कैसे चलती हैं? एक-दूसरे की ओर/एक-दूसरे से दूर/बिल्कुल नहीं
1. कार A का अग्र भाग कार B के अग्र भाग की ओरएक-दूसरे से दूर
2. कार A क पश्च भाग कार B के अग्र भाग की ओरएक-दूसरे की ओर
3. कार A को कार B के पीछे रखने परएक-दूसरे की ओर
4 कार B का पश्च भाग कार A के पश्च भाग की ओरएक-दूसरे से दूर

चुंबकों द्वारा मनोरंजन Class 6 HBSE Notes in Hindi

→ प्राकृतिक चुम्बक प्राचीन यूनान में मेग्नस नामक एक गड़रिये द्वारा खोजा गया।
→ मैग्नेटाइट एक प्राकृतिक चुम्बक है।
→ ऐसे पदार्थ जो लोहे से बनी वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित करते हैं, चुम्बक कहलाते हैं।
→ ऐसे पदार्थ जो चुम्बक की ओर आकर्षित होते हैं, चुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं। जैसे-लोहा, निकिल एवं कोबाल्ट।
→ ऐसे पदार्थ जो चुम्बक की ओर आकर्षित नहीं होते हैं, अनुचुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं।
→ चुम्बक के दो ध्रुव होते हैं-उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव। स्वतंत्रतापूर्वक लटकाने पर चुम्बक सदैव उत्तर-दक्षिण दिशा में आकर रुकता है।
→ चुम्बक का उपयोग दिशा-निर्धारण के लिए होता है। चुम्बक के उत्तर-दक्षिण में ठहरने के कारण एक युक्ति का विकास किया गया। यह युक्ति कम्पास कहलाती है।
→ कम्पास सामान्यतः कांच के ढक्कन वाली एक छोटी डिब्बी होती है जिसमें एक चुम्बकीय सुई डिब्बी के अन्दर लगी होती है। यह अपने अक्ष पर स्वतंत्रतापूर्वक घूम सकती है। विरामावस्था में सुई का तीर वाला सिरा उत्तर की ओर तथा पिछला भाग दक्षिण की ओर ठहरता है।
→ दो चुम्बकों के असमान ध्रुव एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं जबकि समान ध्रुवों में परस्पर प्रतिकर्षण होता है।
→ यदि चुम्बक को गर्म किया जाए व हथौड़े से पीटा जाए या ऊँचाई से गिराया जाए तो वह अपने गुण खो देता है।
→ चुम्बक – जिन पदार्थों में लोहे से बनी वस्तुओं को आकर्षित करने का गुण पाया जाता है, चुम्बक कहलाते हैं।
→ मैग्नेटाइट – एक प्राकृतिक चुम्बक जिसमें लोहा होता है।
→ उत्तरी ध्रुव – चुम्बक का उत्तर दिशा की ओर निर्देशित होने वाला सिरा उत्तरी ध्रुव कहलाता है।
→ दक्षिणी धूव – चुम्बक का दक्षिण दिशा की ओर निर्देशित होने वाला सिरा दक्षिणी ध्रुव कहलाता है।
→ कम्पास (द्विक्सूचक) – यह एक उपकरण है जो दिशा का निर्धारण करता है। इसमें लगी सुई सदैव उत्तर-दक्षिण दिशा में ठहरती है।

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HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ

Haryana State Board HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ

HBSE 6th Class Science विद्युत तथा परिपथ InText Questions and Answers

बूझो/पहेली

प्रश्न 1.
पहेली के पास बल्ब तथा सेल जोड़ने की दूसरी व्यवस्था है। क्या इस व्यवस्था में बल्ब जलेगा?
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -1
उत्तर:
नहीं, बल्ब फ्यूज होगा तो नहीं जलेगा क्योंकि फ्यूज बल्ब के तन्तु से विद्युत धारा प्रवाहित नहीं होगी।

प्रश्न 2.
बूझो ने चित्र (A) के अनुसार टॉर्च के आन्तरिक आरेख को चित्रित किया है। जब हम स्विच को ऑन करते हैं तो परिपथ पूरा होता है तथा बल्ब दीप्तमान होता है। क्या आप चित्र में बिन्दुकित विद्युत् गेला रेखा खींचकर पूरे परिपथ को इंगित कर सकते हैं?
उत्तर:
बिंदु कित रेखा से परिपथ इंगित है।
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -2
चित्र (A): टॉर्च का आन्तरिक आरेख

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ

HBSE 6th Class Science विद्युत तथा परिपथ Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(क) एक युक्ति जो परिपथ को तोड़ने के लिए उपयोग की जाती है, …………. कहलाती है।
(ख) एक विद्युत-सेल में ………… टर्मिनल होते हैं।
उत्तर:
(क) स्विच
(ख) दो।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित कथनों पर ‘सही’ या ‘गलत’ का चिन्ह लगाइए
(क) विद्युत-धारा धातुओं से होकर प्रवाहित हो सकती
(ख) विद्युत-परिपथ बनाने के लिए धातु के तारों के स्थान पर जूट की डोरी प्रयुक्त की जा सकती है।
(ग) विद्युत-धारा थर्मोकोल की शीट से होकर प्रवाहित हो सकती है।
उत्तर:
(क) सही
(ख) गलत
(ग) गलत।

प्रश्न 3.
व्याख्या कीजिए कि निम्न चित्र में दर्शाई गई व्यवस्था में बल्ब क्यों नहीं दीप्तिमान होता है?
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -3
उत्तर:
बल्ब इसलिए दीप्तिमान नहीं होता क्योंकि बीच में एक विद्युत रोधक उपस्थित है। (पेंचकस का प्लास्टिक का बना हत्था) जिससे परिपथ पूरा नहीं होता।

प्रश्न 4.
निम्न चित्र (A) में दर्शाए गये आरेख को पूरा कीजिए और बताइए कि बल्ब को दीप्तिमान करने के लिए तारों के स्वतन्त्र सिरों को किस प्रकार जोड़ना चाहिए?
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -4
उत्तर:
स्विच के एक स्वतन्त्र तार को बल्ब की नोंक से तथा एक स्वतंत्र तार को सेल की टोपी से जोड़ना चाहिए।
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -5

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ

प्रश्न 5.
विद्युत-स्विच को उपयोग करने का क्या प्रयोजन है? कुछ विद्युत-साधित्रों के नाम बताइए जिनमें स्विच उनके अन्दर ही निर्मित होते हैं।
उत्तर:

  1. विद्युत स्विच एक सरल युक्ति है जो विद्युत धारा के प्रवाह को रोकने या प्रारम्भ करने के लिए परिपथ को तोड़ता अथवा पूरा करता है।
  2. कुछ विद्युत साधित्र जिनके स्विच उनके अन्दर ही निर्मित होते हैं-माइक्रोवेव ऑवेन, स्वचालित लौह इस्तरी, पेटीज मेकर, टोस्टर, फ्रिज आदि।

प्रश्न 6.
चित्र (A) में सुरक्षा पिन की जगह यदि रबड़ लगा दें तो क्या बल्ब दीप्तिमान होगा?
उत्तर:
नहीं, क्योंकि रबड़ एक विद्युत रोधक वस्तु है।

प्रश्न 7.
क्या चित्र (B) में दिखाए गये परिपथ में बल्ब दीप्तिमान होगा?
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -6
चित्र (B)
उत्तर:
नहीं क्योंकि परिपथ पूरा नहीं है।

प्रश्न 8.
किसी वस्तु के साथ ‘चालक-परीक्षित्र’ का उपयोग करके यह देखा गया कि बल्ब दीप्तिमान होता है। क्या इस वस्तु का पदार्थ विद्युत-चालक है या विद्युतरोधक? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वस्तु का पदार्थ विद्यत चालक है क्योंकि विद्युत रा केवल विद्युत-चालक में से प्रवाहित हो सकती है न कि विद्युत रोधक पदार्थ से। बल्ब तभी दीप्तमान होगा जब वह पदार्थ विद्युत चालक हो।

प्रश्न 9.
आपके घर में स्विच की मरम्मत करते समय विद्युत मिस्त्री रबड़ के दस्ताने क्यों पहनता है?
उत्तर:
विद्युत मिस्त्री रबड़ के दस्ताने इसलिए पहनते हैं क्योंकि रबड़ विद्युत रोधक होता है। ये मिस्त्री को विद्युत को छूने पर लगने वाले झटके से बचाते हैं।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ

प्रश्न 10.
विद्युत मिस्त्री द्वारा उपयोग किये जाने वाले औजार, जैसे-पेचकस और प्लायर्स के हत्थों पर प्रायः प्लास्टिक या रबड़ के आवरण चढ़े होते हैं। क्या आप इसका कारण समझा सकते हैं ?
उत्तर:
रबड़ तथा प्लास्टिक दोनों ही विद्युत रोधक पदार्थ हैं। ये विद्युत झटकों से पकड़ने वाले को बचाते हैं। इसलिए पेचकस और प्लायर्स के हत्थों पर प्रायः प्लास्टिक या रबड़ के आवरण चढ़े होते हैं।

HBSE 6th Class Science जल Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पी प्रश्न : निम्नलिखित प्रश्नों में सही विकल्प का चयन कीजिए

1. विद्युत सेल का उपयोग किया जा सकता है-
(क) टार्च में
(ख) अलार्म घड़ी में
(ग) रेडियो में
(घ) इन सभी से
उत्तर:
(घ) इन सभी से

2. विद्युत सेल में संचित किए जाते हैं
(क) रासायनिक पदार्थ
(ख) जैविक पदार्थ
(ग) धातुएँ
(घ) सक्रियक
उत्तर:
(क) रासायनिक पदार्थ

3. विद्युत बल्ब में चमकने वाली महीन स्प्रिंग जैसी रचना कहलाती है
(क) तंतु
(ख) टर्मिनल
(ग) टोपी
(घ) धातु
उत्तर:
(क) तंतु

4. विद्युत परिपथ में धारा की दिशा होती है
(क) ऋण टर्मिनल से धन टर्मिनल की ओर
(ख) धन टर्मिनल से ऋण टर्मिनल की ओर
(ग) कभी धन टर्मिनल की ओर कभी ऋण टर्मिनल की ओर
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) धन टर्मिनल से ऋण टर्मिनल की ओर

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II. रिक्त स्थान : निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. …………………. विद्युत का स्रोत है।
2. …………………. प्रवाहित होने पर विद्युत बल्ब दीप्त होने लगता
3. हम …………………. का उपयोग कुँए से प्राप्त द्वारा जल को बाहर निकालने में करते हैं।
4. थर्मोकोल एक …………………. है।
उत्तर:
1. विद्युत सेल
2. विद्युत धारा
3. विद्युत
4. विद्युत रोधक

III. सुमेलन : कॉलम ‘A’ के शब्दों का मिलान कॉलम ‘B’ के शब्दों से कीजिए-

कॉलम ‘A’कॉलम ‘B’
1. विद्युत चालक(a) रासायनिक पदार्थों से विद्युत उत्पन्न करता है।
2. विद्युत रोधक(b) यह सेल के अन्दर ‘उत्पन्न होती है।
3. विद्युत सेल(c) थर्मोकोल और वायु
4. बल्ब(d) हमारा शरीर
5. विद्युत धारा(e) विद्युत प्रवाहित करने पर यह प्रकाश उत्पन्न करता है।

उत्तर:

कॉलम ‘A’कॉलम ‘B’
1. विद्युत चालक(d) हमारा शरीर
2. विद्युत रोधक(c) थर्मोकोल और वायु
3. विद्युत सेल(a) रासायनिक पदार्थों से विद्युत उत्पन्न करता है।
4. बल्ब(e) विद्युत प्रवाहित करने पर यह प्रकाश उत्पन्न करता है।
5. विद्युत धारा(b) यह सेल के अन्दर ‘उत्पन्न होती है।

IV. सत्य/असत्य : निम्नलिखित वाक्यों में सत्य एवं असत्य कथन छटिए

(i) विद्युत सेल में धातु की टोपी (+) सिरा तथा धातु की डिस्क (-) सिरा कहलाती हैं।
(ii) विद्युत बल्ब में भी दो टर्मिनल होते हैं।
(iii) कोई बल्ब तभी दीप्त होता है जब परिपथ में विद्युत धारा प्रवाहित होती हैं।
(iv)बल्ब में तंतु का खंडित होना बल्ब का फ्यूज होना कहलाता
उत्तर:
1. सत्य
2. सत्य,
3. सत्य
4. सत्य।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विद्युत सेल में कितने टर्मिनल होते हैं?
उत्तर:
दो टर्मिनल धन (+) तथा ऋण (-) होते हैं।

प्रश्न 2.
विद्युत सेल के दोनों टर्मिनलों के तारों को आपस में क्यों नहीं मिलाना चाहिए?
उत्तर:
दोनों टर्मिनलों के तारों को मिलाने से उसके रासायनिक पदार्थ खत्म हो जाते हैं।

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प्रश्न 3.
विद्युत सेल के दो उपयोग लिखिए।
उत्तर:

  1. टॉर्च में प्रकाश उत्पन्न करने के लिए।
  2. सेल घड़ी को चलाने के लिए।

प्रश्न 4.
विद्युत बल्ब का चमकने वाला भाग क्या कहलाता है?
उत्तर:
तन्तु या फिलामेंट।

प्रश्न 5.
विद्युत तार पर रबड़ या प्लास्टिक का आवरण क्यों चढ़ा रहता हैं? (क्रियाकलाप)
उत्तर:
अनावरित दोनों तारों के सम्पर्क में आने पर परिपथ भंग हो जाने से बचाने के लिए। इसके अतिरिक्त अधिक वोल्टेज वाले नग्न तार को छू जाने पर विद्युत आघात लगता है।

प्रश्न 6.
विद्युत बल्ब के दो टर्मिनलों को विद्युत सेल के दोनों टर्मिनलों से किस प्रकार जोड़ा जाता है? (क्रियाकलाप)
उत्तर:
विद्युत बल्ब का धन टर्मिनल सेल के धन टर्मिनल सेल से तथा बल्ब का ऋण टर्मिनल सेल के ऋण टर्मिनल से।

प्रश्न 7.
परिपथ में धारा किस प्रकार प्रवाहित होने लगती है? (क्रियाकलाप)
उत्तर:
जब विद्युत बल्ब के दोनों टर्मिनलों को विद्युत सेल के दोनों टर्मिनलों से सही क्रम में और भली प्रकार जोड़ा जाता है।

प्रश्न 8.
विद्युत चालक क्या है?
उत्तर:
वह पदार्थ जिससे विद्युत धारा प्रवाहित हो जाती है, विद्युत चालक कहलाता है।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ

प्रश्न 9.
विद्युत सेल में विद्युत कहाँ से आती है?
उत्तर:
विद्युत सेल में उपस्थित रासायनिक पदार्थ से विद्युत बनती है।

प्रश्न 10.
हमारा शरीर विद्युत का सुचालक है अथवा कुचालक ?
उत्तर:
सुचालक है।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित में से विद्युत चालक पदार्थ छाँटिए. प्लास्टिक का पेन, स्टीलकी चम्मच, कागज, लकड़ी, लोहे का चिमटा।
उत्तर:
विद्युत चालक- स्टील की चम्मच, लोहे का चिमटा।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
टार्च के बल्ब का आरेख बनाइए। इसमें दो टर्मिनल क्यों होते हैं? (क्रियाकलाप)
उत्तर:
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -7
क्रियाशील परिपथ तैयार करने के लिए बल्ब के दोनों टर्मिनलों को सेल के दोनों टर्मिनलों से जोड़ा जाता है।

प्रश्न 2.
निम्न चित्रों में विद्युत सेल तथा विद्युत बल्ब को जोड़ने की विभिन्न व्यवस्थाएँ दर्शायी गई हैं। कौन-सी व्यवस्थाओं में बल्य दीप्त हैं और क्यों? (क्रियाकलाप)
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -8
उत्तर:
उपरोक्त व्यवस्था में बल्ब a तथा f दीप्त है। अन्य बल्ब दीप्त नहीं होते हैं। दीप्त बल्बों के टर्मिनल सेल के टर्मिनलों से सही ढंग से जोड़े गये हैं।
व्यवस्था b तथा c में परिपथ पूर्ण नहीं है। व्यवस्था व तथा C में बल्ब के दोनों टर्मिनलों को सेल के एक ही टर्मिनल से जोड़ा गया है। इसलिए ये बल्ब दीप्त नहीं होते हैं।

प्रश्न 3.
घर में आप एक विद्युत बल्ब, एक तार एवं एक सेल से टॉर्च किस प्रकार तैयार करेंगे?(क्रियाकलाप)
उत्तर:
एक टॉर्च बल्ब तथा तार का एक टुकड़ा लीजिए। पहले की तरह तार के दोनों सिरों से प्लास्टिक आवरण हटाइए। चित्र में दर्शाए अनुसार तार के एक सिरे को बल्ब के धातु के ढाँचे के चारों ओर लपेटिए। तार के दूसरे सिरे को रबड़ बैंड की सहायता से विद्युत सेल के ऋणात्मक टर्मिनल से जोड़िए। अब बल्ब के आधार की नोंक अर्थात इसके टर्मिनल को विद्युत सेल के धनात्मक टर्मिनल पर रखिए।
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -9

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ

प्रश्न 4.
आपके द्वारा तैयार किये गये एक स्विच का चित्र बनाकर उसके दो कार्य लिखिए।
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -10
उत्तर:

  • यह विद्युत धारा को परिपथ में प्रवाहित होने देता है।
  • यह परिपथ में विद्युत धारा के प्रवाह को रोकता है।

प्रश्न 5.
स्विच सहित विद्युत परिपथ का चित्र बनाइए (क्रियाकलाप)
उत्तर:
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -11

प्रश्न 6.
निम्नलिखित के दो-दो उदाहरण लिखिए
(i) विद्युत-सुचालक
(ii) विद्युत रोधक।
उत्तर:
(i) विद्युत-सुचालक ताँबा, एल्युमिनियम।
(ii) विद्युत रोधक-प्लास्टिक, रबड़।

प्रश्न 7.
विद्युत धारा का प्रयोग करते समय क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए ?
उत्तर:

  1. विद्युत परिपथ के खुले तारों को कदापि नहीं छूना चाहिए।
  2. विद्युत परिपथ की मरम्मत सदैव प्लास्टिक के हत्थे लगे औजारों से ही करनी चाहिए।
  3. सदैव रबड़ के दस्ताने पहनने चाहिए।
  4. सुरक्षा टेप का प्रयोग करना चाहिए।

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विद्युत सेल का चित्र बनाकर वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विद्युत सेल: विद्युत सेल एक ऐसी युक्ति है जो – इसमें संचित रासायनिक ऊर्जा को विद्युत कर्जा में बदलती है। यह धातु की बनी बेलनाकार रचना है। इसमें ऊपर की ओर ६ पातु की टोपी तथा दूसरी ओर धातु की डिस्क (चक्रिका) होती है। धातु की टोपी को सेल का धन (+) टर्मिनल तथा चक्रिका को सेल का ऋण (-) टर्मिनल कहते हैं।

विद्युत सेल के अन्दर रासायनिक पदार्थ भरे होते हैं। इन्हीं पदार्थों से विद्युत ऊर्जा उत्पन्न होती है।
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -12
विद्युत सेल का उपयोग टॉर्च, अलार्म घड़ी, रेडियो, कैमरा, खिलौनों आदि में किया जाता है।

प्रश्न 2.
विद्युत सेल तथा विद्युत बल्ब में टर्मिनलों को कैसे जोड़ा जाता है? चित्र सहित समझाइए। (क्रियाकलाप)
उत्तर:
विभिन्न रंगों के प्लास्टिक का आवरण चढ़े विद्युत तार के चार टुकड़े लीजिए। प्रत्येक तार के टुकड़ों के दोनों सिरों से प्लास्टिक आवरण को हटा दीजिए। इस प्रकार दोनों सिरों पर धातु का तार अनावरित हो जाता। दोनों तारों के अनावरित भागों को विद्युत-सेल तथा दूसरे दो तारों को बल्ब से (चित्रानुसार) जोड़ दीजिए।
बल्ब के साथ तारों को जोड़ने के लिए आप विद्युत रोधी टेप (बिजली मिस्त्रियों द्वारा उपयोग की जाने वाली) और सेल के लिए रबड़ बैंड या टेप का उपयोग कर सकते हैं।
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -13

प्रश्न 3.
किसी परिपथ में विद्युत धारा के प्रवाह को प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर-किसी विद्युत परिपथ में चित्रानुसार, विद्युत धारा की दिशा विद्युत सेल के धन (+) टर्मिनल से ऋण (-) टर्मिनल की ओर होती है। जब बल्ब के टर्मिनलों को तार के द्वारा विद्युत सेल के टॉमनलो से जोड़ा जाता ह तो बल्बक वन्तु स होकर विद्युत धारा प्रवाहित होती है। यह बल्ब को दीप्तमान करती है।
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -14

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ

प्रश्न 4. आपको विभिन्न वस्तुएँ जैसे चाबी, माचिस की तीली, लोहे की कील इत्यादि दी गई है। साथ ही टॉर्च का एक बल्ब, एक सेल और तार दिया गया है। आप किस प्रकार इन वस्तुओं की चालकता ज्ञात करेंगे। विद्युत चालक एवं विद्युत रोधक वस्तुओं को छाँटिए। (क्रियाकलाप)
उत्तर:
चित्रानुसार परिपथ में उस वस्तु को चाबी के स्थान पर बारी-बारी से लगाने पर उनकी चालकता की जाँच कर सकते हैं।
HBSE 6th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ -15
जाँच करने के लिए विभिन्न प्रकार के पदार्थों जैसे- सिक्के, कार्क, रबड़, काँच, चाबियाँ, पिन, प्लास्टिक का स्केल, लकड़ी का गुटका, एल्युमिनियम की पत्ती, मोमबत्ती, सिलाई मशीन की सुई, थर्मोकोल, कागज तथा पेंसिल की लीड आदि एकत्रित कीजिए। चालक-परीक्षित्र के तारों के स्वतन्त्र छोरों को प्रत्येक नमूने से बारी-बारी से स्पर्श करें। ध्यान रखिए कि दोनों तार एक-दूसरे को स्पर्श न करें।

सारणी : विद्युत चालक एवं विद्युत रोधक

स्विच के स्थान पर उपयोग की गई वस्तुपद्रर्थ जिसका घह बना हैअलुज्ज जलता है या नहीं, हाँ/नहीं
1. चाबीधातुहाँ
2. रबड (इरेजर)रबड़नहीं
3. स्केलप्लास्टिकनहीं
4. माचिस की तीलीलकड़ीनहीं
5. काँच की चूड़ीकाँचनहीं
6. लोहे की कीललोहाहाँ

HBSE 7th Class Science Solutions Chapter 12 विद्युत तथा परिपथ

विद्युत तथा परिपथ Class 6 HBSE Notes in Hindi

→ हम विद्युत का प्रयोग अपने अनेक कार्यों को आसान करने के लिए करते है।
→ विद्युत से अनेक घरेलू यंत्रों को चलाया जाता है। विद्युत का प्रयोग प्रकाश तथा गर्मी उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।
→ विद्युत सेल विद्युत का स्रोत है। विद्युत सेल का उपयोग रेडियो, टॉर्च, कैमरा, घड़ी, अलार्म, खिलौनों आदि में किया जाता है।
→ विद्युत सेल में दो टर्मिनल होते हैं- एक धन टर्मिनल (+) तथा एक ऋण टर्मिनल (-)।
→ विद्युत सेल में भरे गए रासायनिक पदार्थों से सेल विद्युत उत्पन्न करता है।
→ विद्युत बल्ब सेल की रासायनिक ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा में बदलता है।
→ विद्युत बल्ब में एक फिलामेंट होता है जो इसके टर्मिनलों से जुड़ा होता है।
→ बल्य केवल तभी दीप्त होता है जब परिपथ में विद्युत धारा प्रवाहित होती है।
→ स्विच एक सरल युक्ति है जो परिपथ को जोड़ या काट सकती है। घरों में स्विच का उपयोग बल्ब को दीप्तमान करने तथा अन्य युक्तियों को चलाने के लिए किया जाता है।
→ ऐसे पदार्थ जो विद्युत धारा का प्रवाह होने देते हैं, विद्युत के सुचालक कहलाते हैं।
→ ऐसे पदार्थ जो विद्युत धारा का प्रवाह नहीं होने देते हैं, विद्युत अवरोधक या कुचालक कहलाते हैं।
→ विद्युत चालक तथा विद्युत रोधक हमारे लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है। स्विच, विद्युत प्लग, सॉकेट सुचालक पदाथों से बनाए जाते हैं तथा इनके कवर कुचालक पदार्थों से बनाए जाते हैं।
→ बल्य – एक गोलाकार काँच का बना खोखला गोला “जिसमें फिलामेण्ट लगा होता है और इसमें विद्युत प्रवाहित करने पर प्रकाश उत्पन्न करता है।
→ विद्युत – सेल यह एक युक्ति है जिससे रासायनिक पदार्थ से विद्युत प्राप्त होती है।
→ टर्मिनल – सेल या किसी अन्य विद्युत युक्ति के दो स्वतंत्र छोर टर्मिनल कहलाते हैं। इन्हें धन (+) तथा ऋण (-) टर्मिनल कहते हैं।
→ तन्तु – विद्युत बल्ब के अन्दर लगी तार की पतली स्प्रिंग जो विद्युत प्रवाहित करने पर चमकती है, तन्तु या फिलामेंट कहलाती है।
→ विद्युत-परिपथ – विद्युत परिपथ, विद्युत सेल के दोनों टर्मिनलों से लेकर विद्युत ऊर्जा खपत युक्ति तक के सम्पर्क को बताने वाला पथ है।
→ स्विच – यह एक सरल युक्ति है जो विद्युत धारा के प्रवाह को रोकने या प्रारम्भ करने के लिए परिपथ को जोड़ता है अथवा काटता है।
→ विद्युत-चालक – ऐसे पदार्थ जिनसे होकर विद्युत धारा प्रवाहित हो जाती है, विद्युत चालक कहलाते हैं।
→ विद्युत-रोधक – ऐसे पदार्थ जिनसे होकर विद्युत धारा प्रवाहित नहीं हो सकती, विद्युत रोधक कहलाते हैं।

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