Class 12

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. पूर्ण प्रतियोगिता उस दशा में पाई जाती है, जब प्रत्येक उत्पादन उपज की माँग
(A) अत्यधिक लोचदार होती है
(B) पूर्णतया लोचदार होती है
(C) पूर्णतया बेलोचदार होती है
(D) कम. बेलोचदार होती है
उत्तर:
(B) पूर्णतया लोचदार होती है

2. पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में कीमत समान रहती है, अतः AR रेखा की आकृति-
(A) U आकृति होती है
(B) आकृति होती है
(C) मूल बिंदु से 45° का कोण बनाती हुई सीधी रेखा होती है
(D) X-अक्ष के समानांतर होती है
उत्तर:
(D) X-अक्ष के समानांतर होती है

3. किस प्रकार के बाज़ार में एक फर्म कीमत स्वीकारक होती है?
(A) पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में
(B) एकाधिकार बाज़ार में
(C) एकाधिकारी प्रतिस्पर्धी बाज़ार में
(D) अल्पाधिकार बाज़ार में
उत्तर:
(A) पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का

4. पूर्ण प्रतियोगिता (प्रतिस्पर्धा) में वस्तु की कीमत का निर्धारण-
(A) अकेली वस्तु की माँग करती है
(B) अकेली वस्तु की पूर्ति करती है
(C) वस्तु की माँग और पूर्ति दोनों द्वारा होता है
(D) सरकार द्वारा किया जाता है
उत्तर:
(C) वस्तु की माँग और पूर्ति दोनों द्वारा होता है

5. फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन के कारण-
(A) फर्मे अधि-सामान्य लाभ अर्जित करती हैं
(B) फळं हानि उठाती हैं
(C) फर्मे सामान्य लाभ अर्जित करती हैं
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) फर्मे सामान्य लाभ अर्जित करती हैं

6. सही समीकरण चुनिए-
(A) TR = \(\frac { AR }{ Q }\)
(B) AR = \(\frac { MR }{ Q }\)
(C) MR = \(\frac{\Delta \mathrm{TR}}{\Delta \mathrm{Q}}\)
(D) AR = TR x Q
उत्तर:
(C) MR = \(\frac{\Delta \mathrm{TR}}{\Delta \mathrm{Q}}\)

7. फर्म के आगम का अर्थ है-
(A) उत्पादन की इकाइयों का मूल्य
(B) बिक्री से प्राप्त आगम
(C) बिक्री पर किया गया व्यय
(D) लागत एवं लाभ का अंतर
उत्तर:
(B) बिक्री से प्राप्त आगम

8. निम्नलिखित में से कौन-सा सत्य है?
(A) कुल आगम = बिक्री इकाइयाँ x सीमांत आगम
(B) कुल आगम = बिक्री इकाइयाँ x औसत आगम
(C) कुल आगम = कुल आगम – कुल लागत
(D) कुल आगम = कुल लागत – कुल आगम
उत्तर:
(B) कुल आगम = बिक्री इकाइयाँ – औसत आगम

9. उस स्थिति को क्या कहते हैं, जिसमें असामान्य लाभ शून्य होते हैं?
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 1
(A) लाभ-अलाभ बिंदु
(B) सम-विच्छेद बिंदु
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

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10. दिए गए रेखाचित्र में औसत आगम तथा सीमांत आगम वक्र किस बाज़ार में पाए जाते हैं?
(A) एकाधिकार
(B) पूर्ण प्रतियोगिता
(C) अल्पाधिकार
(D) एकाधिकारी प्रतियोगिता
उत्तर:
(B) पूर्ण प्रतियोगिता

11. दो इकाइयों की कुल आगम 100 इकाइयाँ हैं, तो औसत आगम होगी-
(A) 50
(B) 200
(C) 20
(D) 80
उत्तर:
(A) 50

12. पहली इकाई बेचने से मोहन को 20 रु० मिले, दूसरी इकाई बेचने से 16 रु० मिले। दोनों इकाइयों की औसत आगम (AR) होगी-
(A) 16 रु०
(B) 18 रु०
(C) 36 रु०
(D) 4 रु०
उत्तर:
(B) 18 रु०

13. पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में सीमांत आगम-
(A) औसत आगम के बराबर होती है
(B) औसत आगम से अधिक होती है
(C) औसत आगम से कम होती है
(D) औसत आगम के अंश के बराबर है
उत्तर:
(A) औसत आगम के बराबर होती है

14. औसत आगम (AR) के स्थिर रहने पर, MR और AR में क्या संबंध होता है?
(A) MR > AR
(B) AR < MR
(C) AR = MR
(D) AR # MR
उत्तर:
(C) AR = MR

15. औसत आगम हो सकती है-
(A) धनात्मक
(B) ऋणात्मक
(C) शून्य
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) धनात्मक

16. सीमांत आगम (MR) हो सकती है-
(A) धनात्मक
(B) ऋणात्मक
(C) शून्य
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

17. औसत आगम वक्र को कहा जाता है-
(A) माँग वक्र
(B). उत्पादन वक्र
(C) पूर्ति वक्र
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) माँग वक्र

18. पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में कीमत समान रहती है। अतः कुल आगम रेखा की आकृति निम्नलिखित में से कौन-सी होती है-
(A) X-अक्ष के समानांतर
(B) U आकृति की
(C) आकृति की
(D) मूल बिंदु से 45° का कोण बनाती हुई सीधी रेखा होती है
उत्तर:
(D) मूल बिंदु से 45° का कोण बनाती हुई सीधी रेखा होती है

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19. जब AR वक्र सीधी रेखा में होते हैं, तब AR से Y-अक्ष पर डाले गए लंब को MR वक्र-
(A) मध्य-बिंदु पर काटती है
(B) मध्य-बिंदु से बाईं ओर काटती है
(C) मध्य-बिंदु से दाईं ओर काटती है
(D) Y-अक्ष पर ही काटती है
उत्तर:
(D) Y-अक्ष पर ही काटती है

20. उत्पादक (फर्म) का उद्देश्य क्या होता है?
(A) अधिकतम लाभ प्राप्त करना
(B) व्यापार करना
(C) सामान्य लाभ प्राप्त करना
(D) हानि से बचना
उत्तर:
(A) अधिकतम लाभ प्राप्त करना

21. संतुलन की अवस्था में एक फर्म को-
(A) आवश्यक रूप से अधिकतम लाभ मिलता है
(B) आवश्यक रूप से न्यूनतम हानि होती है
(C) अधिकतम लाभ अथवा न्यूनतम हानि कुछ भी हो सकती है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) आवश्यक रूप से अधिकतम लाभ मिलता है

22. कुल आगम और कुल लागत के अंतर को क्या कहते हैं?
(A) कुल लाभ
(B) प्रति इकाई लाभ
(C) सामान्य लाभ
(D) असामान्य हानि
उत्तर:
(A) कुल लाभ

23. लाभ की अवस्था में एक फर्म का संतुलन तभी होता है जब-
(A) कुल आगम कुल लागत से अधिक हो
(B) कुल आगम और कुल लागत बराबर हो
(C) कुल आगम कुल लागत से कम हो
(D) कुल आगम कुल लागत से अधिक हो और इनमें अधिकतम अंतर हो
उत्तर:
(D) कुल आगम कुल लागत से अधिक हो और इनमें अधिकतम अंतर हो

24. हानि की अवस्था में एक फर्म का संतुलन तभी होता है जब
(A) कुल आगम कुल लागत से कम हो
(B) कुल आगम कुल लागत से कम हो और इनमें न्यूनतम अंतर हो
(C) कुल आगम और कुल लागत बराबर हों
(D) कुल आगम कुल लागत से अधिक हो
उत्तर:
(B) कुल आगम कुल लागत से कम हो और इनमें न्यूनतम अंतर हो

25. उत्पादक संतुलन की स्थिति में MR तथा MC होते हैं-
(A) अधिक
(B) कम
(C) बराबर
(D) शून्य
उत्तर:
(C) बराबर

26. पूर्ण प्रतियोगिता की अवस्था में फर्म संतुलन की अवस्था में होगी, जब-
(A) MR = 0
(B) MC = TR
(C) MC = MR
(D) AC = AR
उत्तर:
(C) MC = MR.

27. संतुलन की स्थिति में सीमांत लागत वक्र सीमांत आगम (MR) वक्र को कहाँ से काटता है?
(A) ऊपर से
(B) नीचे से
(C) कहीं से भी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) नीचे से

28. पूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म के संतुलन के लिए-
(A) सीमांत लागत और सीमांत आगम का बराबर होना आवश्यक है
(B) सीमांत लागत वक्र का सीमांत आगम वक्र को ऊपर से काटना आवश्यक है
(C) सीमांत लागत वक्र का सीमांत आगम वक्र का बराबर होना व नीचे से काटना आवश्यक है
(D) औसत आगम और औसत लागत का बराबर होना आवश्यक है
उत्तर:
(C) सीमांत लागत वक्र का सीमांत आगम वक्र का बराबर होना व नीचे से काटना आवश्यक है।

29. संलग्न रेखाचित्र में कौन-सा बिंदु फर्म का संतुलन बिंदु है?
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(A) A
(B) B
(C) C
(D) D
उत्तर:
(B) B

30. संलग्न रेखाचित्र में फर्म का संतुलन किस बिंदु पर होगा?
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 3
(A) बिंदु E1 पर
(B) बिंदु E2 पर
(C) बिंदु M पर
(D) उपर्युक्त किसी बिंदु पर नहीं
उत्तर:
(B) बिंदु E2 पर

31. पूर्ण प्रतियोगिता में दीर्घकाल की अवस्था में
(A) TR = TC
(B) फर्म न्यूनतम औसत लागत पर उत्पादन करती है
(C) फर्मों को उद्योग में प्रवेश या उद्योग को छोड़ने की प्रवृत्ति नहीं होती उत्पादन(निर्गत)
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) फर्म न्यूनतम औसत लागत पर उत्पादन करती है

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32. उद्योग में फर्मों के स्वतंत्र प्रवेश और निकासी का क्या प्रभाव पड़ता है?
(A) फर्मों के लाभों में वृद्धि
(B) फर्मों को दीर्घकाल में केवल सामान्य लाभ
(C) औसत लागत में वृद्धि
(D) फर्मों को दीर्घकाल में असामान्य हानि
उत्तर:
(B) फर्मों को दीर्घकाल में केवल सामान्य लाभ

33. फर्म को सामान्य लाभ तब उत्पन्न होते हैं, जब-
(A) AR > AC
(B) AR = AC
(C) AR < AC
(D) TR > TC
उत्तर:
(B) AR = AC

34. उत्पादन-बंद करने वाले बिंदु उस स्थिति में उत्पन्न होते हैं, जब-
(A) TR > TVC
(B) TR = TVC
(C) TR < TVC
(D) TR = Zero
उत्तर:
(B) TR = TVC

35. सम-स्तर बिंदु अथवा लाभ-अलाभ बिंदु क्या दर्शाता है?
(A) असामान्य लाभ
(B) असामान्य हानि
(C) अधिकतम लाभ
(D) न लाभ-न हानि
उत्तर:
(D) न लाभ-न हानि

36. पूर्ति से अभिप्राय है-
(A) वस्तु का स्टॉक
(B) वस्तु की उपभोग की जाने वाली मात्रा
(C) किसी कीमत पर वस्तु की बेची जाने वाली मात्रा
(D) वस्तु की उत्पादित मात्रा
उत्तर:
(C) किसी कीमत पर वस्तु की बेची जाने वाली मात्रा

37. कीमत और पूर्ति का सामान्यतया संबंध होता है-
(A) प्रत्यक्ष
(B) विलोम
(C) स्थिर।
(D) आनुपातिक
उत्तर:
(A) प्रत्यक्ष

38. पूर्ति वक्र होता है-
(A) नीचे से ऊपर दाईं ओर ढालू
(B) ऊपर से नीचे दाईं ओर ढालू
(C) Y-अक्ष के समानांतर
(D) X-अक्ष के समानांतर
उत्तर:
(A) नीचे से ऊपर दाईं ओर ढालू

39. कीमत के घटने पर पूर्ति-
(A) बढ़ती है
(B) घटती है
(C) स्थिर रहती है
(D) पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता
उत्तर:
(B) घटती है

40. एक निश्चित समय एवं कीमत पर उत्पादक द्वारा बिक्री के लिए प्रस्तुत की जाने वाली वस्तु की मात्रा को क्या कहते हैं?
(A) भंडार
(B) पूर्ति
(C) आगम
(D) लागत
उत्तर:
(B) पूर्ति

41. समविच्छेद बिन्दु पर फर्म की लाभ तथा हानि होती है
(A) शून्य
(B) धनात्मक
(C) ऋणात्मक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) शून्य

42. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?
(A) कीमत के बढ़ने के साथ-साथ पूर्ति घटती है
(B) कीमत के घटने से पूर्ति बढ़ती है
(C) कीमत के बढ़ने से पूर्ति बढ़ती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) कीमत के बढ़ने से पूर्ति बढ़ती है

43. पूर्ति वक्र का ढलान होता है-
(A) ऋणात्मक
(B) धनात्मक
(C) OX-अक्ष के समानांतर
(D) OY-अक्ष के समानांतर
उत्तर:
(B) धनात्मक

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44. पूर्ति में वृद्धि के कारण हैं-
(A) तकनीकी प्रगति
(B) उत्पादन साधनों की कीमत में कमी
(C) बाज़ार में फर्मों की संख्या में वृद्धि
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

45. पूर्ति का नियम पूर्ति एवं कीमत में कैसा संबंध दर्शाता है?
(A) सीधा
(B) उल्टा
(C) अप्रत्यक्ष
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) सीधा

46. पूर्ति की मात्रा में परिवर्तन कब होता है?
(A) वस्तु की अपनी कीमत में परिवर्तन के कारण
(B) तकनीकी में परिवर्तन
(C) आगतों की कीमत में परिवर्तन
(D) सरकारी नीति में परिवर्तन
उत्तर:
(A) वस्तु की अपनी कीमत में परिवर्तन के कारण

47. तकनीकी उन्नति से पूर्ति वक्र पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(A) यह बाईं ओर खिसक जाता है
(B) यह दाईं ओर खिसक जाता है
(C) यह स्थिर रहता है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) यह दाईं ओर खिसक जाता है

48. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है?
(A) पूर्ति स्टॉक का अंग है
(B) पूर्ति वक्र बाएँ से दाएँ ऊपर की ओर ढालू होता है
(C) पूर्ति की मात्रा में परिवर्तन और पूर्ति में परिवर्तन का समान अर्थ है
(D) प्रतिस्पर्धी फर्म P = MC स्तर के उत्पादन पर अधिकतम लाभ अर्जित करेगी
उत्तर:
(C) पूर्ति की मात्रा में परिवर्तन और पूर्ति में परिवर्तन का समान अर्थ है

49. जब किसी वस्तु की कीमत के अतिरिक्त अन्य तत्त्वों में परिवर्तन के कारण उसकी आपूर्ति में परिवर्तन होता है, तो उसे क्या कहते हैं?
(A) पूर्ति की मात्रा में परिवर्तन
(B) पूर्ति में परिवर्तन
(C) पूर्ति वक्र पर संचलन
(D) पूर्ति का विस्तार
उत्तर:
(B) पूर्ति में परिवर्तन

50. कौन-सा पूर्ति की कमी का कारण है?
(A) साधन कीमत में गिरावट
(B) अन्य वस्तुओं की कीमत में वृद्धि
(C) उत्पादन कर में वृद्धि
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) उत्पादन कर में वृद्धि

51. पूर्ति में विस्तार होने पर-
(A) पूर्ति वक्र में दाईं ओर खिसकाव आता है
(B) पूर्ति वक्र में बाईं ओर खिसकाव आता है
(C) उसी पूर्ति वक्र पर ऊपर की ओर संचरण होता है
(D) उसी पूर्ति वक्र पर नीचे की ओर संचरण होता है
उत्तर:
(C) उसी पूर्ति वक्र पर ऊपर की ओर संचरण होता है

52. कीमत के 5 रु० प्रति इकाई से बढ़कर 7 रु० प्रति इकाई हो जाने पर पूर्ति 50 से बढ़कर 60 हो जाती है। पूर्ति में यह परिवर्तन-
(A) पूर्ति में वृद्धि है
(B) पूर्ति में कमी है
(C) पूर्ति में संकुचन है
(D) पूर्ति में विस्तार है
उत्तर:
(D) पूर्ति में विस्तार है

53. पूर्ति वक्र का दाईं ओर खिसकाव पूर्ति में क्या दर्शाता है?
(A) कमी
(B) वृद्धि
(C) स्थिरता
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) वृद्धि

54. यदि अति अल्पकाल में सब्जी की कीमत बहुत बढ़ जाती है तो भी पूर्ति बढ़ाना असंभव होगा क्योंकि अति अल्पकाल में सब्जी का पूर्ति वक्र होगा-
(A) पूर्णतया लोचदार
(B) पूर्णतया बेलोचदार
(C) लोचदार
(D) बेलोचदार
उत्तर:
(B) पूर्णतया बेलोचदार

55. पूर्ति लोच का तात्पर्य है, पूर्ति में परिवर्तन निम्नलिखित के परिवर्तन के कारण होना-
(A) वस्तु की कीमत
(B) पूर्ति की अवस्था
(C) उपभोक्ता की रुचि
(D) वस्तु की माँग
उत्तर:
(A) वस्तु की कीमत

56. पूर्ति लोच का तात्पर्य है-
(A) ∆q/∆p x p0/q0
(B) ∆p/∆q x q0p0
(C) ∆q/∆p
(D) q0/p0
उत्तर:
(A) ∆q/∆p x p0/q0

57. पूर्ति की लोच का सूत्र कौन-सा है?
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(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

58. पूर्ति की लोच को मापने की विधि है-
(A) प्रतिशत विधि
(B) ज्यामितीय विधि
(C) (A) एवं (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) एवं (B) दोनों

59. यदि कीमत 10 रु० से बढ़कर 12 रु० हो गई, जिसके कारण पूर्ति 15 इकाइयों से बढ़कर 20 इकाइयाँ हो गईं तो पूर्ति की लोच होगी-
(A) इकाई से कम
(B) इकाई से अधिक
(C) इकाई के बराबर
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) इकाई से अधिक

60. पूर्ति की लोच को प्रभावित करने वाले कारक हैं-
(A) प्राकृतिक बाधाएँ
(B) वस्तु की प्रकृति
(C) उत्पादन लागत
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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61. जब कीमत में काफी परिवर्तन आने पर भी पूर्ति में कोई परिवर्तन न आए, तब पूर्ति कहलाती है-
(A) पूर्णतया लोचदार
(B) पूर्णतया बेलोचदार
(C) इकाई लोचदार
(D) इकाई से कम लोचदार
उत्तर:
(B) पूर्णतया बेलोचदार

62. पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति वक्र की लोच कितनी होगी?
(A) अनंत
(B) इकाई
(C) शून्य
(D) 1 से 10 तक
उत्तर:
(C) शून्य

63. पूर्ति की इकाई लोच की स्थिति में एक सरल रेखा पूर्ति वक्र-
(A) X-अक्ष को काटता है
(B) Y-अक्ष को काटता है
(C) मूल बिंदु से गुजरता है
(D) Y-अक्ष के समानांतर होता है
उत्तर:
(C) मूल बिंदु से गुजरता है

64. पूर्णतया लोचदार पूर्ति वक्र की लोच होती है
(A) es = ∞
(B) es = 1
(C) es = 0
(D) es = 1 to 10
उत्तर:
(A) es = ∞

65. इकाई लोचदार पूर्ति की स्थिति में, पूर्ति एवं कीमत में परिवर्तन कैसे होते हैं?
(A) समान दर से
(B) असमान दर से
(C) कीमत परिवर्तन पूर्ति परिवर्तन से अधिक होता है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) समान दर से

66. जब कीमत में थोड़ा परिवर्तन होने पर पूर्ति में अनंत परिवर्तन हो जाता है, तब वस्तु की पूर्ति होती है-
(A) पूर्णतया लोचदार
(B) पूर्णतया बेलोचदार
(C) इकाई से अधिक लोचदार
(D) इकाई से कम लोचदार
उत्तर:
(A) पूर्णतया लोचदार

67. किसी वस्तु की पूर्ति की मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन तथा उसकी कीमत में प्रतिशत परिवर्तन के अनुपात के माप को कहते-
(A) माँग की कीमत लोच
(B) पूर्ति की कीमत लोच
(C) पूर्ति की आय लोच
(D) माँग की तिरछी लोच
उत्तर:
(B) पूर्ति की कीमत लोच

68. पूर्ति की लोच का मूल्य हो सकता है
(A) 0 से ∞ के बीच
(B) -1 से +1 तक
(C) 0 से 1 तक
(D) 1 से 10 तक
उत्तर:
(A) 0 से ∞ के बीच

69. यदि एक सीधी पूर्ति रेखा X-अक्ष पर रूकती है तो पूर्ति लोच होती है-
(A) इकाई के बराबर
(B) इकाई से कम
(C) इकाई से अधिक
(D) शून्य
उत्तर:
(B) इकाई से कम

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. संतुलन बिंदु पर जहाँ MC = MR है वहाँ MC का ढाल …………. होना चाहिए। (धनात्मक/ऋणात्मक)
उत्तर:
धनात्मक

2. जब पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में कीमत समान होती है तो AR वक्र की आकृति ……….. के समानांतर होती है। (x-अक्ष/Y-अक्ष)
उत्तर:
X-अक्ष

3. …………. बाजार में एक फर्म कीमत स्वीकारक होती है। (अल्पाधिकार/पूर्ण प्रतिस्पर्धी)
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धी

4. पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार में सीमांत संप्राप्ति, औसत संप्राप्ति ……………. होती है। (से कम/के बराबर)
उत्तर:
के बराबर

5. औसत संप्राप्ति (आगम) वक्र को …………… कहा जाता है। (उत्पादन वक्र/माँग वक्र)
उत्तर:
माँग वक्र

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6. जब कीमत के बढ़ने पर पूर्ति बढ़ जाती है तो इसे ……………. कहते हैं। (पूर्ति का विस्तार पूर्ति में वृद्धि)
उत्तर:
पूर्ति का विस्तार

7. पूर्ति वक्र का दाईं ओर खिसकाव पूर्ति में ………… दर्शाता है। (कमी/वृद्धि)
उत्तर:
वृद्धि

8. एक फर्म तब संतुलन में होती है जब वह ……………. लाभ कमा रही होती है। (सामान्य/अधिकतम)
उत्तर:
अधिकतम

C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत

  1. फर्म का संतुलन निर्धारित करने के लिए AR तथा AC की आवश्यकता होती है।
  2. एक फर्म उस समय संतुलन की अवस्था में होती है जब AC तथा MC दोनों बराबर होते हैं।
  3. एक फर्म तब संतुलन में होती है जब MC = MR है तथा MC वक्र MR को नीचे से काटता है।
  4. संतुलन बिंदु पर जहाँ MC = MR है वहाँ MC का ढाल धनात्मक होना चाहिए।
  5. दीर्घकाल में, पूर्ण प्रतियोगिता में, संतुलन बिंदु इष्टतम उत्पादन बिंदु होता है।
  6. एक उद्योग संपूर्ण वस्तुओं का उत्पादन करने वाली फर्मों के समूह को कहा जाता है।
  7. औसत आगम कभी ऋणात्मक नहीं होती है।
  8. जब सीमांत आगम ऋणात्मक हो तो कुल आगम घटती है।
  9. सीमांत आय जब शून्य होती है, तो कुल आय अधिकतम होती है।
  10. पूर्ति वक्र की धारणा केवल पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में लागू होती है।
  11. एक उद्योग तब संतुलन स्थिति में होता है जब सभी फर्मे संतुलन की स्थिति में होती हैं।
  12. जब एक उद्योग संतुलन की स्थिति में होता है तो सभी फर्मों को असामान्य लाभ प्राप्त होता है।
  13. पूर्ण प्रतियोगिता में उत्पादन बन्द करने का बिंदु वह बिंदु है जिस पर कीमत औसत परिवर्तनशील लागत (AVC) के बराबर होती है।
  14. पूर्ति तथा स्टॉक में अन्तर नहीं होता है।
  15. पूर्ति स्टॉक से भी अधिक हो सकती है।
  16. जब पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में कीमत समान होती है तो AR वक्र की आकृति X-अक्ष के समानांतर होती है।
  17. अल्पाधिकार बाज़ार में एक फर्म कीमत स्वीकारक होती है।
  18. पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत सदैव सीमांत लागत के बराबर होती है।
  19. कीमत और पूर्ति का संबंध सामान्यतया प्रत्यक्ष होता है।
  20. पूर्ति वक्र का दाईं ओर खिसकाव पूर्ति में वृद्धि को दर्शाता है।

उत्तर:

  1. गलत
  2. गलत
  3. सही
  4. सही
  5. सही
  6. सही
  7. सही
  8. सही
  9. सही
  10. सही
  11. सही
  12. गलत
  13. सही
  14. सही
  15. गलत
  16. सही
  17. गलत
  18. गलत
  19. सही
  20. सही।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रतियोगिता की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता से अभिप्राय बाज़ार की उस स्थिति से है जिसमें किसी वस्तु के क्रेता व विक्रेता बहुत अधिक संख्या में होते हैं और समरूप वस्तुओं को बाज़ार में एक समान कीमत पर बेचा जाता है।

प्रश्न 2.
पूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म का माँग वक्र किस प्रकार का होता है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म का माँग वक्र X-अक्ष के समानांतर एक सीधी रेखा के रूप में होता है।

प्रश्न 3.
पूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म कीमत स्वीकारक क्यों होती है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म का उद्योग में अति नगण्य स्थान होता है और कीमत उद्योग द्वारा निर्धारित होती है अर्थात् एक फर्म उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत में परिवर्तन नहीं कर सकती।

प्रश्न 4.
आगम (Revenue) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
किसी वस्तु की बिक्री करने से एक फर्म को जो कुल आगम प्राप्त होती है, उसे फर्म की आगम कहते हैं।

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प्रश्न 5.
कुल आगम (TR) की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
एक फर्म द्वारा वस्तु की विशेष मात्रा बेचने से जो मुद्रा राशि प्राप्त होती है, उसे कुल आगम कहते हैं। अर्थात् TR = q x p – 1 अथवा कुल आगम = बेची गई मात्रा x कीमत

प्रश्न 6.
औसत आगम (AR) की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
बेची गई वस्तु की प्रति इकाई के आगम या आगम को औसत आगम कहते हैं।
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प्रश्न 7.
क्या औसत आगम (संप्राप्ति) कीमत के बराबर होता है?
उत्तर:
हाँ, औसत आगम कीमत के बराबर होता है।
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प्रश्न 8.
सीमांत आगम (MR) किसे कहते हैं?
उत्तर:
वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के बेचने से कुल आगम में जो वृद्धि होती है, उसे सीमांत आगम कहते हैं।
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प्रश्न 9.
क्या MR शून्य या ऋणात्मक हो सकता है?
उत्तर:
हाँ, MR शून्य या ऋणात्मक हो सकता है, जब एकाधिकार तथा एकाधिकारी प्रतियोगिता में कीमत कम हो रही होती है।

प्रश्न 10.
पूर्ण प्रतिस्पर्धी फर्म के लिए कीमत तथा सीमांत आगम में क्या संबंध है?
उत्तर:
किसी प्रतिस्पर्धी फर्म के लिए कीमत (AR) तथा सीमांत आगम (MR) दोनों परस्पर बराबर होते हैं।

प्रश्न 11.
एक फर्म का संतुलन कब होता है?
उत्तर:
एक फर्म का संतुलन उस समय होता है, जब उसे अधिकतम लाभ प्राप्त होता है।

प्रश्न 12.
एक फर्म के लाभ को अधिकतम करने की सामान्य शर्ते क्या हैं?
उत्तर:
TR और TC वक्रों के बीच अंतर अधिकतम होना चाहिए।

प्रश्न 13.
एक प्रतिस्पर्धी फर्म की अधिकतम लाभ की शर्त क्या है?
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतियोगिता फर्म के अधिकतम लाभ की स्थिति तब होगी. जब कीमत (P) सीमांत लागत (MC) के बराबर होगी अर्थात् P = MC।

प्रश्न 14.
संतुलन बिंदु पर MC बढ़ती हुई क्यों होनी चाहिए?
उत्तर:
गिरती MC का अर्थ है कि उत्पाद की एक अतिरिक्त इकाई का उत्पादन करने पर सीमांत लागत घटती है। वह स्थिति जिसमें कीमत स्थिर रहती है (जैसे पूर्ण प्रतियोगिता में), इसका अर्थ वह स्थिति होगी जिसमें फर्म का कुल लाभ TR-TC बढ़ रहा है। ऐसी स्थिति में फर्म अपना उत्पादन बढ़ाना चाहेगी और संतुलन में नहीं होगी। इसलिए फर्म केवल तब संतुलन अवस्था प्राप्त करेगी जब MC बढ़ रही होती है।

प्रश्न 15.
MC < MR होना उत्पादक संतुलन स्तर क्यों नहीं है?
उत्तर:
MC < MR अधिकतम लाभ की स्थिति नहीं है, क्योंकि उत्पादक इस स्थिति में उत्पादन बढ़ाकर अपना लाभ बढ़ा सकता है।

प्रश्न 16.
MC > MR होना उत्पादक के लिए लाभ अधिकतमीकरण की स्थिति क्यों नहीं है?
उत्तर:
MC > MR की स्थिति भी अधिकतम लाभ की स्थिति नहीं है, क्योंकि यदि ऐसी स्थिति में उत्पादक अधिक उत्पादन करता है तो उसके लाभों में कमी होती है।

प्रश्न 17.
क्या होता है यदि फर्म अपना उत्पादन बढ़ाती है जबकि MR = MC है?
उत्तर:
वह स्थिति जिसमें MR = MC उत्पादन में कोई भी वृद्धि का अर्थ होगा MC > MR ऐसा इसलिए क्योंकि MR को स्थिर मान लिया गया है (जैसे कि पूर्ण प्रतियोगिता में) और (संतुलन दु पर) MC बढ़ रही है। तब यह वह स्थिति होगी जिसमें TR = ∑MR तथा TVC = ∑MC के बीच के अंतर में घटने की प्रवृत्ति होती है अथवा फर्म का सकल लाभ कम होना शुरू हो जाता है।

प्रश्न 18.
फर्म के संतुलन की प्रथम क्रम की शर्त (Condition of First Order) क्या है?
उत्तर:
फर्म के संतुलन की प्रथम क्रम की शर्त यह है कि सीमांत आगम सीमांत लागत के बराबर (MR = MC) होनी चाहिए।

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प्रश्न 19.
फर्म के संतुलन की द्वितीय क्रम की शर्त (Condition of Second Order) क्या है?
उत्तर:
फर्म के संतुलन के लिए द्वितीय क्रम की शर्त यह है कि MC वक्र MR वक्र को नीचे से ऊपर की ओर काटती हो।

प्रश्न 20.
सामान्य लाभ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
सामान्य लाभ वह न्यूनतम लाभ है जो साहसी को व्यवसाय में बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 21.
पूर्ति की लोच को प्रभावित करने वाले कोई दो कारक बताएँ।
उत्तर:

  • उत्पादन लागत
  • वस्तु की प्रकृति।

प्रश्न 22.
असामान्य लाभ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
असामान्य लाभ का अभिप्राय कुल लागत (सामान्य लाभ सहित) पर कुल आगम के आधिक्य से है।
असामान्य लाभ = कुल आगम – कुल लागत

प्रश्न 23.
असामान्य हानि का क्या अर्थ है?
उत्तर:
असामान्य हानि का अभिप्राय कुल आगम पर कुल लागत के आधिक्य से है।
असामान्य हानि = कुल लागत कुल आगम

प्रश्न 24.
उत्पादन-बंद बिंदु (Shut-down Point) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उत्पादन-बंद बिंदु उत्पादन के उस स्तर को बताता है जहाँ फर्म अल्पकाल में हानि की स्थिति में उत्पादन बंद कर देगी। इस उत्पादन स्तर पर कीमत (p), औसत परिवर्ती लागत (AVC) के बराबर होती है।

प्रश्न 25.
यदि वर्तमान फर्मे असामान्य लाभ कमा रही हों, तो उद्योग में फर्मों की संख्या पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि वर्तमान फर्मे असामान्य लाभ कमा रही हों, तो उद्योग में फर्मों की संख्या में वृद्धि होगी।

प्रश्न 26.
यदि वर्तमान फर्मों को असामान्य हानि उठानी पड़ रही हो, तो उद्योग में फर्मों का किस प्रकार का परिवर्तन होगा?
उत्तर:
यदि वर्तमान फर्मों को असामान्य हानि उठानी पड़ रही हो, तो उद्योग में फर्मों की संख्या में कमी होगी।

प्रश्न 27.
दीर्घकालीन प्रतियोगिता संतुलन में सीमांत और औसत लागतों का क्या संबंध रहता है?
उत्तर:
दीर्घकालीन प्रतियोगिता संतुलन में सीमांत और औसत लागत बराबर होते हैं। इस प्रकार, औसत लागत (AC) = सीमांत लागत (MC)

प्रश्न 28.
पूर्ण प्रतिस्पर्धी उद्योग में दीर्घकालिक संतुलन की शर्ते बताइए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगी उद्योग में दीर्घकालिक संतुलन की शर्ते निम्नलिखित हैं कीमत (P) = दीर्घकालीन औसत लागत (LAC) = दीर्घकालीन सीमांत लागत (LMC)।

प्रश्न 29.
दीर्घकालिक संतुलन की दशा में पूर्ण प्रतिस्पर्धी फर्म अपने दीर्घकालीन औसत लागत वक्र के किस बिंदु पर उत्पादन करेगी?
उत्तर:
दीर्घकालिक संतुलन की दशा में पूर्ण प्रतियोगी फर्म अपने दीर्घकालीन औसत लागत (LAC) वक्र के न्यूनतम बिंदु पर उत्पादन करेगी।

प्रश्न 30.
‘लाभ-अलाभ बिंदु’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘लाभ-अलाभ बिंदु’ उत्पादन मात्रा के उस स्तर को बताता है, जिस पर फर्म की कुल आगम और कुल लागत बराबर होते हैं।

प्रश्न 31.
क्या एक फर्म ‘सम-स्तर बिंदु’ अर्थात् ‘लाभ-अलाभ बिंदु’ पर भी लाभ प्राप्त करती है?
उत्तर:
सम-स्तर बिंद’ अर्थात ‘लाभ-अलाभ बिंद’ से यह नहीं समझ लेना चाहिए कि उत्पादक (फर्म) का लाभ शन्य है। वास्तव में इस बिंदु पर भी फर्म को सामान्य लाभ प्राप्त होता है क्योंकि उसकी कुल आगम, कुल लागत के बराबर है और कुल लागत में उसका सामान्य लाभ शामिल होता है।

प्रश्न 32.
‘पूर्ति’ का अर्थ बताइए।
उत्तर:
एक निश्चित समय में, निश्चित कीमत पर उत्पादक द्वारा बिक्री के लिए प्रस्तुत की जाने वाली वस्तु की मात्रा को पूर्ति कहते हैं।

प्रश्न 33.
पूर्ति को प्रभावित (निर्धारित) करने वाले किन्हीं तीन तत्त्वों के नाम बताइए।
उत्तर:

  • उत्पादन के कारकों की कीमत
  • उत्पादन तकनीक तथा
  • प्राकृतिक तत्त्व।

प्रश्न 34.
पूर्ति तालिका की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
पूर्ति तालिका एक ऐसी तालिका है जो वस्तु की विभिन्न कीमतों पर बिक्री के लिए प्रस्तुत की जाने वाली विभिन्न मात्राओं को दर्शाती है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का

प्रश्न 35.
व्यक्तिगत पूर्ति की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
व्यक्तिगत पूर्ति से अभिप्राय किसी वस्तु की उस मात्रा से है जिसे एक विक्रेता एक विशेष समय में वस्तु की विभिन्न कीमतों पर बाज़ार में बेचने के लिए तैयार है।

प्रश्न 36.
बाज़ार पूर्ति की परिभाषा दीजिए अथवा बाज़ार आपूर्ति क्या है?
उत्तर:
बाज़ार पूर्ति से अभिप्राय किसी वस्तु की उस मात्रा से है जिसे सभी विक्रेता एक विशेष समय में वस्तु की विभिन्न. कीमतों पर बाज़ार में बेचने के लिए तैयार है।

प्रश्न 37.
पूर्ति के नियम का क्या अर्थ है?
उत्तर:
पूर्ति का नियम यह बताता है कि अन्य बातें समान रहने पर, वस्तु की कीमत बढ़ने पर पूर्ति बढ़ जाती है और कीमत कम होने पर पूर्ति कम हो जाती है।

प्रश्न 38.
एक काल्पनिक पूर्ति तालिका बनाइए।
उत्तर:

कीमत प्रति 1 किलो (रपाए)पूर्ति (किल्नो)
103,000
115,000
128,000

प्रश्न 39.
पूर्ति वक्र की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
पूर्ति वक्र वह वक्र है जो वस्तु की विभिन्न कीमतों पर बिक्री की जाने वाली विभिन्न मात्राएँ दर्शाता है।

प्रश्न 40.
एक पूर्ति वक्र बनाइए।
उत्तर:
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प्रश्न 41.
पूर्ति की मात्रा में परिवर्तन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पूर्ति की मात्रा में परिवर्तन से हमारा अभिप्राय वस्तु की अपनी कीमत में परिवर्तन के कारण पूर्ति की मात्रा में होने वाले परिवर्तन से है। इसे एक ही पूर्ति वक्र पर चलन भी कहते हैं।

प्रश्न 42.
पूर्ति में परिवर्तन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अन्य कारकों; जैसे तकनीकी परिवर्तन, आगतों की कीमत में परिवर्तन, उत्पादन कर की दर में परिवर्तन आदि के कारण पूर्ति वक्र का खिसकान (दाईं अथवा बाईं ओर) पूर्ति में परिवर्तन कहलाता है।

प्रश्न 43.
पूर्ति वक्र पर चलने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जब पूर्ति वक्र में होने वाले परिवर्तन को उसी पूर्ति वक्र पर दर्शाया जाता है, तो इसे हम पूर्ति वक्र पर चलना कहते हैं।

प्रश्न 44.
पूर्ति में विस्तार से क्या आशय है?
उत्तर:
वस्तु की कीमत में वृद्धि के फलस्वरूप पूर्ति की मात्रा में बढ़ोतरी को पूर्ति में विस्तार कहते हैं।

प्रश्न 45.
पूर्ति में संकुचन से क्या आशय है?
उत्तर:
वस्तु की कीमत में कमी के फलस्वरूप पूर्ति की मात्रा में कमी को पूर्ति में संकुचन कहते हैं।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का

प्रश्न 46.
पूर्ति वक्र पर खिसकने का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जब पूर्ति में होने वाले परिवर्तन को दूसरी पूर्ति वक्र से दर्शाया जाता है तो इसे हम पूर्ति वक्र पर खिसकना कहते हैं।

प्रश्न 47.
पूर्ति में वृद्धि से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वस्तु की कीमत में वृद्धि के अतिरिक्त अन्य कारकों; जैसे अन्य वस्तुओं की कीमतों में कमी, उत्पादन साधनों (कारकों) की लागत में कमी आदि से वस्तु की पूर्ति में होने वाली बढ़ोतरी को पूर्ति में वृद्धि कहते हैं।

प्रश्न 48.
पूर्ति में कमी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वस्तु की कीमत में कमी के अतिरिक्त अन्य कारकों; जैसे अन्य वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि, उत्पादन साधनों की लागत में वृद्धि आदि से वस्तु की पूर्ति में होने वाली गिरावट को पूर्ति में कमी क

प्रश्न 49.
आपूर्ति वक्र को खिसका सकने वाले तीन कारक बताएँ।
उत्तर:

  • तकनीकी सुधार
  • आगतों (Inputs) की कीमतों में परिवर्तन
  • उत्पादन शुल्क की दर में परिवर्तन।

प्रश्न 50.
ऐसे दो उदाहरण दें जिनमें तकनीकी प्रगति आपूर्ति वक्र को खिसका देती है।
उत्तर:

  • इंटरनेट का प्रयोग
  • फोटो कॉपी निकालने की मशीन (Duplicating Machine) का प्रयोग।

प्रश्न 51.
आगत कीमत की वृद्धि का आपूर्ति वक्र पर क्या प्रभाव होगा?
उत्तर:
आगत कीमतों में वृद्धि से आपूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाता है।

प्रश्न 52.
उत्पादन शुल्क दर में वृद्धि का आपूर्ति वक्र पर क्या प्रभाव होगा?
उत्तर:
उत्पादन शुल्क की दर में वृद्धि के परिणामस्वरूप आपूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाता है, क्योंकि परिवर्ती लागत में शुल्क जुड़ने से सीमांत लागत बढ़ जाती है।

प्रश्न 53.
फर्मों की संख्या में वृद्धि किस प्रकार बाज़ार पूर्ति वक्र को प्रभावित करेगी?
उत्तर:
जब किसी उद्योग में फर्मों की संख्या बढ़ जाती है तो उत्पाद का बाज़ार पूर्ति वक्र दाईं ओर खिसक जाएगा। यह पूर्ति में वृद्धि का सूचक है।

प्रश्न 54.
प्रौद्योगिकी/तकनीकी में परिवर्तन का पूर्ति पर प्रभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 9
प्रौद्योगिकी या तकनीकी विकास उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर सीमांत लागतों को कम कर देते हैं, जिससे वस्तु की पूर्ति में वृद्धि हो जाती है। लागतों में बचत करने वाले प्रौद्योगिकी परिवर्तन के कारण पूर्ति वक्र दाईं ओर खिसक जाता है।

प्रश्न 55.
एक ही पूर्ति वक्र पर ऊपर की ओर संचलन का क्या कारण होता है?
उत्तर:
किसी वस्तु के पूर्ति वक्र पर ऊपर की ओर संचलन का कारण वस्तु की अपनी कीमत में वृद्धि का होना है। यह पूर्ति के विस्तार की स्थिति है।

प्रश्न 56.
किसी वस्तु के पूर्ति वक्र पर नीचे की ओर संचलन का क्या कारण होता है?
उत्तर:
पूर्ति वक्र पर नीचे की ओर संचलन का कारण वस्तु की अपनी कीमत में कमी का होना है। यह पूर्ति के संकुचन की स्थिति होती है।

प्रश्न 57.
‘बाज़ार काल’ से क्या तात्पर्य है? बाज़ार काल में पूर्ति वक्र कैसा होता है?
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 10
बाजार काल वह अल्प अवधि होती है जिसमें फर्मे कीमत परिवर्तन के कारण अपना उत्पादन परिवर्तित नहीं कर पाती। बाज़ार काल में पूर्ति वक्र उदग्र (Vertical) होता है।

प्रश्न 58.
अल्पकाल तथा दीर्घकाल में किसी प्रतिस्पर्धी फर्म के पूर्ति वक्र में क्या अंतर है?
उत्तर:
अल्पकाल में AVC के न्यूनतम बिंदु के ऊपर MC पूर्ति वक्र है, जबकि दीर्घकाल में AC के न्यूनतम बिंदु के ऊपर LMC पूर्ति वक्र है।

प्रश्न 59.
‘पूर्ति की कीमत लोच’ की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
एक वस्तु की कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप उसकी पूर्ति में जिस दर से परिवर्तन आता है, उसे पूर्ति की कीमत लोच कहते हैं।

प्रश्न 60.
आपूर्ति की कीमत लोच किस चीज का मान निर्धारण/मापन करती है?
उत्तर:
आपूर्ति की कीमत लोच कीमत परिवर्तन के प्रति आपूर्ति की प्रतिक्रिया के परिमाण को व्यक्त करती है।

प्रश्न 61.
पूर्ति की कीमत लोच ज्ञात करने का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 11

प्रश्न 62.
यदि दो पूर्ति वक्र परस्पर काटते हैं तो प्रतिच्छेदन बिंदु पर कौन-सा वक्र अधिक लोचदार होगा?
उत्तर:
यदि दो पूर्ति वक्र परस्पर काट रहे हों तो प्रतिच्छेदन बिंदु पर जो वक्र कम ढलवाँ या अधिक चपटा (More Flatter) होगा, उसकी लोच अधिक होगी।

प्रश्न 63.
अधिक लोचदार पूर्ति कब होती है?
उत्तर:
जब कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप पूर्ति में तुलनात्मक अधिक परिवर्तन होता है, तब पूर्ति अधिक लोचदार कही जाएगी।

प्रश्न 64.
कम लोचदार पूर्ति से क्या आशय है?
उत्तर:
जब पूर्ति में प्रतिशत परिवर्तन, कीमत में प्रतिशत परिवर्तन की अपेक्षा कम हो, उसे कम लोचदार पूर्ति कहेंगे।

प्रश्न 65.
शून्य लोचदार पूर्ति (Zero Elastic Supply) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जब वस्तु की कीमत का उसकी पूर्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, तो उस वस्तु की पूर्ति शून्य लोचदार कहलाती है।

प्रश्न 66.
एक वस्तु की पूर्ति को लोचदार (Elastic) कब कहा जाता है?
उत्तर:
एक वस्तु की पूर्ति को लोचदार तब कहा जाता है, जब कीमत में प्रतिशत परिवर्तन की तुलना में पूर्ति में प्रतिशत परिवर्तन अधिक हो।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का

प्रश्न 67.
एक वस्तु की पूर्ति को बेलोचदार कब कहा जाता है?
उत्तर:
एक वस्तु की पूर्ति को बेलोचदार तब कहा जाता है, जब वस्तु की पूर्ति में होने वाला प्रतिशत परिवर्तन वस्तु की कीमत में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन से कम हो।

प्रश्न 68.
X-अक्ष के मूल बिंदु से गुजरने वाले सरल रेखीय (Straight line) पूर्ति वक्र की पूर्ति की लोच (e) क्या होती है?
उत्तर:
सरल रेखीय पूर्ति वक्र यदि अक्ष केंद्र (अर्थात् X-अक्ष के मूल बिंदु) से गुजरे तो उसकी लोच का मान सदा एक इकाई के बराबर (es =1) होता है।

प्रश्न 69.
यदि दो पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं तो प्रतिच्छेदित बिंदु पर किस पूर्ति वक्र (कम ढलवाँ या अधिक ढलवाँ) की लोच अधिक होती है?
उत्तर:
यदि दो पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते (intersect) हैं तो प्रतिच्छेदन बिंदु (point of intersection) पर कम ढलवाँ (Less flatter) पूर्ति वक्र की लोचशीलता (कम ढलवाँ माँग वक्र की भाँति) अधिक होती है।

प्रश्न 70.
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार की दो मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) विक्रेताओं और क्रेताओं की बड़ी संख्या पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या बहुत बड़ी होती है। प्रत्येक क्रेता या विक्रेता कुल उत्पादन का बहुत ही सूक्ष्म भाग खरीदता या बेचता है और इस प्रकार वह कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता।

(ii) समरूप वस्तु-पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में सभी फर्मे ही वस्तु का उत्पादन करती हैं। बाज़ार में सभी फर्मों द्वारा जो वस्तुएँ बेची जाती हैं। वे रंग-रूप, आकार व गुणवत्ता में एक-समान होती हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म का माँग वक्र पूर्णतया लोचदार क्यों होता है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार की वह स्थिति है जिसमें एक बड़ी संख्या में फर्मे समरूप वस्तु को बेचने की प्रतियोगिता करती हैं। पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार में वस्तु की कीमत उद्योग द्वारा निर्धारित होती है और एक फर्म को वही कीमत स्वीकार करनी पड़ती है। उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत पर फर्म जितना माल बेचना चाहे बेच सकती है। इसलिए पूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म का माँग वक्र पूर्णतया लोचदार होता है। इसे हम निम्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 12

प्रश्न 2.
पूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म मूल्य स्वीकारक क्यों होती है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार में समान कीमत का प्रचलन होता है। कीमत का निर्धारण समस्त उद्योग की माँग व पूर्ति द्वारा किया जाता है और सभी फर्मों को वह कीमत स्वीकार करनी पड़ती है। उद्योगों द्वारा निर्धारित मूल्य (P) फर्म के AR और MR वक्र होते हैं। इसीलिए पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग को कीमत निर्धारक और फर्म को कीमत स्वीकारक कहा जाता है। इसे हम निम्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 13
रेखाचित्र में DD बाज़ार माँग वक्र तथा SS बाज़ार पूर्ति वक्र है। ये दोनों E बिंदु पर काटते हैं। संतुलन कीमत OP है जिस पर बाज़ार माँग और बाज़ार पूर्ति दोनों बराबर हैं। एक फर्म OP प्रति इकाई कीमत पर जितना माल बेचना चाहे बेच सकती है। क्योंकि इस बाज़ार में विक्रेताओं की संख्या बहुत अधिक होती है। एक विक्रेता कुल बिक्री के अति सूक्ष्म भाग को बेचता है जिससे वह अपनी गतिविधियों से बाज़ार मूल्य को प्रभावित करने की स्थिति में नहीं होता। इस प्रकार विक्रेता को वस्तु का मूल्य अपनी इच्छानुसार निर्धारित करने की जरा भी स्वतंत्रता नहीं होती।

प्रश्न 3.
फर्म के लाभ अधिकतमीकरण (Profit Maximisation) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
फर्म का उद्देश्य केवल लाभ कमाना ही नहीं होता बल्कि लाभ का अधिकतमीकरण होता है। कुल लाभ मोटे तौर पर कुल आगम (TR) और कुल लागत (TC) का अंतर होता है। समीकरण के रूप में,
कुल लाभ = कुल आगम – कुल लागत
स्पष्ट है, लाभ अधिकतमीकरण का अर्थ है-कुल आगम और कुल लागत के अंतर को अधिकतम करना। यह अंतर जितना अधिक होगा, लाभ उतना ही अधिक होगा। अब प्रश्न उठता है कि उत्पादन (निर्गत) के किस स्तर पर फर्म का लाभ अधिकतम होगा? उत्पादन के उस स्तर (Level of Output) पर फर्म का लाभ अधिकतम होता है जहाँ एक अतिरिक्त इकाई की बिक्री से प्राप्त आगम (MR), अतिरिक्त इकाई की लागत (MC) के बराबर होता है अर्थात् जहाँ MR = MC । इसे फर्म की संतुलन स्थिति (State of Firm’s Equilibrium) भी कहा जाता है।

प्रश्न 4.
वस्तु के पूर्णतया समरूप होने का क्या अर्थ है? इसका बाज़ार में उत्पादकों द्वारा वसूल की जा रही कीमत पर क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
वस्तु के पूर्णतया समरूप होने का अर्थ यह है कि बाज़ार में बेची जाने वाली वस्तुएँ रंग-रूप, आकार तथा गुण में समान होती हैं। इस प्रकार एक विक्रेता द्वारा बेची गई वस्तु दूसरे विक्रेता द्वारा बेची गई वस्तु का पूर्ण स्थानापन्न होती है।

वस्तु के पूर्णतया समरूप होने का प्रभाव यह होता है कि बाज़ार में सभी फर्मों द्वारा वस्तु की समान कीमत वसूल की जाएगी। यदि एक विक्रेता उस वस्तु की कीमत उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत से अधिक वसूल करने का प्रयास करेगा तो कोई भी विक्रेता उससे वस्तु क्रय नहीं करेगा क्योंकि बाज़ार में अन्य विक्रेता उसी प्रकार की वस्तु बेचते हैं।

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प्रश्न 5.
समझाइए कि दीर्घकाल में प्रतिस्पर्धी उद्योग में फर्मों का निर्बाध प्रवेश और बहिर्गमन असामान्य लाभों को शून्य कैसे कर देती है?
उत्तर:
यदि अल्पकाल में फर्मों को असामान्य लाभ प्राप्त होता है तो यह स्थिति नयी फर्मों को बाज़ार में प्रवेश करने के निमंत्रण का कार्य करती है। नयी फर्मों के प्रवेश से पूर्ति वक्र अपने दाहिने ओर खिसक जाएगा, जिससे कीमत में गिरावट आएगी। इस प्रकार जो फर्मे असामान्य लाभ कमा रही थीं, उनका असामान्य लाभ समाप्त हो जाएगा।

यदि अल्पकाल में फर्मों को असामान्य हानि होती है तो यह स्थिति वर्तमान फर्मों को बाज़ार से निकासी के लिए प्रेरित करने का कार्य करती है। कुछ फर्मों की निकासी से पूर्ति वक्र अपने बाईं ओर खिसक जाएगा जिससे कीमत में बढ़ोतरी होगी। इस प्रकार जो फर्मे असामान्य हानि अर्जित कर रही थीं, उनकी असामान्य हानि समाप्त हो जाएगी।

प्रश्न 6.
अल्पकाल में, पूर्ण प्रतियोगिता में यदि नई फर्मे उद्योग में प्रवेश न पा सकें तथा पुरानी फर्मे उसे छोड़कर न जा सकें, तो क्या होता है?
उत्तर:
यदि उद्योग में वर्तमान में काम कर रही फर्मे असामान्य लाभ कमा रही हैं [कुल आगम (TR) > कुल लागत (TC)] अथवा [औसत आगम (AR) > औसत लागत (AC)] तो वे असामान्य लाभ प्राप्त करती रहेंगी, क्योंकि नई प्रतिस्पर्धी फमें उद्योग में प्रवेश नहीं पा सकती। इसके विपरीत यदि उद्योग में काम कर रही फर्में हानि उठा रही हैं [कुल आगम/आगम < कुल लागत] अथवा [औसत आगम/आगम < औसत लागत तो वे हानि को उठाती रहेंगी, क्योंकि वे उद्योग को छोड़कर नहीं जा सकती।

प्रश्न 7.
दीर्घकाल में, जब नई फर्मे उद्योग में प्रवेश कर सकती हैं और पुरानी फमें उद्योग को छोड़कर जा सकती हैं, तो क्या होता है?
उत्तर:
असामान्य लाभ की स्थिति में कई नई प्रतिस्पर्धी फर्मे उद्योग में प्रवेश कर जाएँगी। उनके आने से बाज़ार वस्तु की पूर्ति बहुत बढ़ जाएगी तथा बाजार कीमत (औसत आगम) गिर जाएगी। यह प्रक्रिया तब तक जारी रहेगी जब तक असामान्य लाभ समाप्त नहीं हो जाते। इनके विपरीत हानि की स्थिति में उद्योग में काम कर रही फळं उद्योग को छोड़ जाएँगी। फलस्वरूप बाज़ार में वस्तु की पूर्ति कम हो जाएगी तथ बाज़ार कीमत (औसत आगम) बढ़ जाएगी। यह प्रक्रिया तब तक जारी रहेगी जब तक कि फर्मों को होने वाली हानि समाप्त नहीं हो जाती।

प्रश्न 8.
पूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत एक फर्म की औसत आगम वक्र की प्रकृति की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
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पूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य का निर्धारण उद्योग द्वारा किया जाता है और फर्म को वह मूल्य स्वीकार करना पड़ता है। फर्म को इसी मूल्य पर अपना उत्पादन बेचना होता है। इसलिए पूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म की वस्तु की माँग पूर्णतया लोचदार (Perfectly Elastic) होती है। ऐसी स्थिति में औसत आगम वक्र जो की माँग रेखा भी है, X-अक्ष के समानांतर होगा। ऐसी स्थिति में औसत आगम और सीमांत आगम बराबर होते हैं। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।

प्रश्न 9.
एक प्रतियोगिता फर्म का AR सदा MR के समान क्यों होता है?
उत्तर:
एक प्रतियोगिता फर्म कीमत स्वीकारक होती है और उसे उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत को स्वीकार करना पड़ता है। फलस्वरूप एक फर्म को अपनी बिक्री एक ही कीमत पर करनी पड़ती है। इसलिए प्रतिस्पर्धी फर्म का AR और MR बराबर रहता है। इसे हम निम्नलिखित उदाहरण द्वारा व्यक्त कर सकते हैं-

बिक्री की इकाइयाँप्रति इकाई कीमतTRARMR
110101010
210201010
310301010
410401010
510501010

प्रश्न 10.
किसी प्रतिस्पर्धी फर्म का कुल आगम वक्र अक्ष केंद्र से गुजरने वाली सरल रेखा क्यों बन जाता है?
उत्तर:
एक प्रतिस्पर्धी फर्म मूल्य स्वीकारक होती है अर्थात् एक प्रतिस्पर्धी फर्म को एक दी हुई कीमत स्वीकार करनी पड़ती है। फर्म की बिक्री चाहे जितनी ही क्यों न हो, फर्म वस्तु की कीमत बदल नहीं सकती। कुल आगम कीमत और बेची गई इकाइयों का गुणनफल है। इसलिए कुल आगम वक्र एक सरल रेखा बन जाता है।
कुल आगम = कीमत x बेची गई इकाइयाँ
इसे निम्नलिखित तालिका तथा संलग्न रेखाचित्र द्वारा व्यक्त किया गया है-

कीमत (रु०)बेची गई इकाइयाँकुल आगम (रु०)
10110
10220
10330
10440

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 15

प्रश्न 11.
पूर्ण प्रतियोगिता में TR और MR में संबंध एक रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग कीमत निर्धारित करता है और फर्म कीमत स्वीकार करती है। अतः उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत पर फर्म वस्तु की जितनी भी इकाइयाँ बेचेंगी, उसे प्रत्येक इकाई से प्राप्त आगम अर्थात् MR, उस कीमत अर्थात् AR के बराबर होगी। अन्य शब्दों में, पूर्ण प्रतियोगिता में MR=AR, यदि कीमत AR स्थिर रहती है, तो MR (MR = AR) भी स्थिर रहता है। फलस्वरूप कुल आगम भी स्थिर दर या समान दर (= MR) से बढ़ेगी। रेखाचित्र में प्रदर्शन करने पर TR वक्र मूल बिंदु ‘O’ (शून्य) से शुरू होकर ऊपर की ओर ढलान वाली 45° एक सरल रेखा बनेगी। जैसे कि संलग्न रेखाचित्र में दिखाया गया है। क्योंकि कीमत =AR = MR हैं, इसलिए MR/AR वक्र X-अक्ष के समानांतर एक सरल समतल रेखा होगी।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 16

प्रश्न 12.
एक कीमत स्वीकारक फर्म का कुल आगम वक्र कैसा दिखाई देता है? यह ऐसा क्यों दिखाई देता है?
उत्तर:
कुल आगम उत्पादन की कीमत (p) तथा बिक्री की मात्रा (q) का गुणनफल है।
TR = p x q
एक प्रतिस्पर्धी बाज़ार में कीमत दी गई होती है और कोई फर्म इसे प्रभावित नहीं कर सकती। इसलिए जब कीमत दी गई है, कुल आगम बेची गई मात्रा के अनुरूप बढ़ेगी।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 17
उत्पादन के शून्य स्तर पर कुल आगम शून्य होगी। जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ता है, कुल आगम भी बढ़ती है समीकरण TR = p x q एक सीधी रेखा का समीकरण है। इसलिए TR वक्र ऊपर उठती हुई एक सीधी रेखा के रूप में होगा, जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दिखाया गया है।

प्रश्न 13.
पूर्ति क्या है? पूर्ति को प्रभावित करने वाले किन्हीं चार कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
किसी निश्चित अवधि में अलग-अलग कीमतों पर एक विक्रेता किसी वस्तु की जिन मात्राओं को बेचने के लिए तैयार है, उसे पूर्ति कहते हैं।
पूर्ति को प्रभावित करने वाले चार कारक निम्नलिखित हैं-

  • वस्तु की कीमत।
  • अन्य वस्तुओं की कीमतें।
  • उत्पादन तकनीक।
  • उत्पादन साधनों (Factors) की लागत।

प्रश्न 14.
एक फर्म का पूर्ति वक्र प्रायः बाएँ से दाएँ, नीचे से ऊपर की ओर ढलवाँ क्यों होता है?
उत्तर:
एक फर्म का पूर्ति वक्र प्रायः बाएँ से दाएँ, नीचे से ऊपर की ओर ढलवाँ होता है। इसका अर्थ है कि एक फर्म अधिक कीमत होने पर अधिक पूर्ति करने को तत्पर होगी और कम कीमत पर कम। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि एक विक्रेता अधिक त पर अधिक पूर्ति कर अधिक लाभ कमाने के लिए प्रेरित होता है। इस प्रकार वह कम कीमत होने पर कम पर्ति करने को तैयार होगा।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का

प्रश्न 15.
पूर्ति का नियम बताइए और इसकी मान्यताएँ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूर्ति का नियम वस्तु की कीमत और पूर्ति की मात्रा के बीच सीधे और प्रत्यक्ष संबंध को प्रदर्शित करता है। पूर्ति के नियम के अनुसार, “यदि अन्य बातें समान रहें तो नीची कीमत पर वस्तु की पूर्ति कम होगी और ऊँची कीमत पर वस्तु की पूर्ति अधिक होगी।”

पूर्ति के नियम की मान्यताएँ निम्नलिखित हैं-

  • उत्पादन के साधनों (Factors) की कीमत में परिवर्तन नहीं होता।
  • उत्पादन तकनीक में कोई परिवर्तन नहीं होता।
  • संबंधित वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन नहीं होता।
  • फर्म के उद्देश्यों में कोई परिवर्तन नहीं होता।

प्रश्न 16.
पूर्ति का नियम एक पूर्ति अनुसूची और पूर्ति वक्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
पूर्ति का नियम यह बताता है कि यदि अन्य कारक अपरिवर्तित रहें तो वस्तु की कीमत बढ़ने पर उसकी पूर्ति की मात्रा बढ़ जाएगी और कीमत घटने पर वस्तु की पूर्ति कम हो जाएगी। इस प्रकार पूर्ति का नियम पूर्ति और कीमत के धनात्मक संबंध को प्रदर्शित करता है। इसे हम निम्न तालिका और रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं

सेर्बों की कीमत
(रु० प्रति कि०ग्रा०)
सेबों की माँग
(कि०ग्रा०)
8200
9300
10400
11500

इस रेखाचित्र में हम देखते हैं कि OP कीमत पर वस्तु की पूर्ति OQ है। जैसे ही वस्तु की कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है तो वस्तु की पूर्ति OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 18

प्रश्न 17.
वस्तु की ऊँची कीमत पर अधिक पूर्ति क्यों की जाती है?
उत्तर:
ऊँची कीमत पर वस्तु की अधिक पूर्ति के दो निम्नलिखित कारण हैं-
(i) अन्य बातें समान रहने पर, ऊँची कीमत का अर्थ ऊँचा लाभ है। फलस्वरूप, उत्पादक अधिक उत्पादन करने तथा अधिक . मात्रा बेचने के लिए प्रोत्साहित होता है।

(ii) अधिक उत्पादन (अधिक पूर्ति के लिए) प्रायः ह्रासमान प्रतिफल नियम के अंतर्गत किया जाता है, जिसका अर्थ उत्पादन के बढ़ने पर सीमांत लागत (MC) का बढ़ना है। फलस्वरूप कीमत भी बढ़ेगी यदि अधिक पूर्ति के लिए उत्पादन को बढ़ाया जाता है।

प्रश्न 18.
उत्पादन के साधनों की कीमत या उत्पादन लागत का एक वस्तु की पूर्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
एक वस्तु का उत्पादन करने के लिए जिन साधनों को प्रयोग में लाया जाता है उनकी कीमत में वृद्धि से उत्पादन लागत बढ़ जाती है और लाभ कम होने लगता है। अतः उत्पादक ऐसी वस्तु का उत्पादन करने को तैयार नहीं होंगे। इसके विपरीत उत्पादन लागत में कमी उस वस्तु की पूर्ति में वृद्धि करती है। उत्पादन के साधनों की कीमत में परिवर्तन से विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन की सापेक्षिक लाभप्रदता बदल जाएगी। उदाहरण के लिए, भूमि की कीमत में कमी से कृषि उत्पाद की उत्पादन लागत कम हो जाएगी।

प्रश्न 19.
एक ही पूर्ति वक्र पर चलन से क्या तात्पर्य है? रेखाचित्र द्वारा समझाइए।
उत्तर:
जब उत्पादक एक ही पूर्ति वक्र पर ऊपर से नीचे अथवा नीचे से ऊपर पहुँचता है, तो इसे एक ही पूर्ति वक्र पर चलन कहते हैं। (रेखाचित्र देखिए)
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 19
पूर्ति में संकुचन ऊपर की ओर चलन अर्थात पूर्ति में विस्तार → बिंदु A से B की ओर चलन।
नीचे की ओर चलन अर्थात पूर्ति में संकुचन → बिंदु A से C की ओर चलन।

प्रश्न 20.
रेखाचित्र की सहायता से पूर्ति वक्र के खिसकाव का क्या अर्थ है? समझाइए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 20
जब पूर्ति में परिवर्तन कीमत के अलावा अन्य कारकों में परिवर्तन के कारण आता है तो उसे पूर्ति वक्र में खिसकाव कहते हैं। जब अन्य कारकों में परिवर्तन के कारण पूर्ति में वृद्धि आती है तो पूर्ति वक्र दाईं ओर खिसक जाता है, जबकि पूर्ति वक्र का बाईं ओर खिसकना पूर्ति में कमी को बताता है। जैसाकि है रेखाचित्र में दर्शाया गया है। रेखाचित्र में OP कीमत पर PA पूर्ति की जाती है। पूर्ति वक्र का SS से S1S1 की स्थिति में पहुंचना पूर्ति में वृद्धि तथा S2S2 की स्थिति में पूर्ति में कमी को बताता है।

प्रश्न 21.
पूर्ति में वृद्धि के तीन कारण बताइए।
अथवा
पूर्ति वक्र के दाईं ओर खिसकने के कोई तीन कारण बताइए।
उत्तर:
एक पूर्ति वक्र के दाईं ओर खिसकने के तीन कारण निम्नलिखित हैं-
1. अन्य सभी वस्तुओं की कीमत में कमी-यदि दूसरी सभी वस्तुओं की कीमतों में कमी होती है तो उत्पादकों को अन्य सभी वस्तुओं की पूर्ति करना अधिक लाभदायक नहीं लगेगा और वे इस दी गई वस्तु का उत्पादन व पूर्ति करना अधिक लाभदायक महसूस करेंगे। इस प्रकार जिस वस्तु की कीमत में कमी नहीं आई है, उसका पूर्ति वक्र दाई ओर खिसक जाएगा।

2. उत्पादन साधनों की कीमतों में कमी-उत्पादन साधनों की कीमतों में कमी होने से उस वस्तु की लागत अन्य वस्तुओं की तुलना में कम होगी। इस प्रकार उत्पादक उस वस्तु का उत्पादन अधिक करेंगे जिसकी लागत में कमी हुई है। इस प्रकार उस वस्तु का पूर्ति वक्र दाईं ओर खिसक जाएगा।

3. तकनीकी सुधार-जब नए अनुसंधान तथा नवप्रवर्तनों से उत्पादन तकनीक में सुधार होता है तो उससे वस्तु की पूर्ति बढ़ती है जिससे वस्तु का पूर्ति वक्र दाईं ओर खिसक जाएगा।

प्रश्न 22.
पूर्ति में कमी के तीन कारण बताइए।
अथवा
पूर्ति वक्र के बाईं ओर खिसकने के कोई तीन कारण बताइए।
उत्तर:
पूर्ति वक्र के बाईं ओर खिसकने (अर्थात् पूर्ति में कमी) के कारण निम्नलिखित हैं-
1. अन्य सभी वस्तुओं की कीमतें-अन्य सभी वस्तुओं की कीमतों का वस्तु की पूर्ति पर प्रभाव पड़ता है। यदि दूसरी वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं तो उत्पादकों को उन वस्तुओं का उत्पादन अधिक लाभदायक लगेगा और वे उन वस्तुओं का उत्पादन अधिक करेंगे। इस प्रकार जिस वस्तु की कीमत नहीं बढ़ी है, उसकी पूर्ति कम हो जाएगी।

2. उत्पादन साधनों की कीमतें-उत्पादन साधनों की कीमतों में वृद्धि होने से उस वस्तु की लागत अन्य वस्तुओं की तुलना में अधिक होगी। इस प्रकार उत्पादक उन वस्तुओं का उत्पादन अधिक करेंगे जिनकी लागत में वृद्धि या तो नहीं हुई है या कम हुई है। जिसकी लागत में अधिक वृद्धि हुई है, उस वस्तु की तुलना में अन्य वस्तुओं की पूर्ति बढ़ जाएगी और उस वस्तु की पूर्ति में कमी हो जाएगी जिसके फलस्वरूप पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाएगा।

3. तकनीकी अवनति-तकनीकी अवनति के कारण एक वस्तु की पूर्ति में कमी हो सकती है जिससे उसका पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाएगा।

प्रश्न 23.
पूर्ति की लोच को प्रभावित करने वाले तीन कारकों का वर्णन करो।
उत्तर:
पूर्ति की लोच को प्रभावित करने वाले तीन कारक निम्नलिखित हैं-
1. उत्पादन लागत-यदि एक वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई को उत्पादित करने की लागत बढ़ती जाती है तो उत्पादक वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर भी पूर्ति को नहीं बढ़ाएगा, इस स्थिति में पूर्ति बेलोचदार होगी। इसके विपरीत, यदि अतिरिक्त इकाई को उत्पादित करने की लागत लगातार कम हो जाती है, तो उत्पादकों को वस्तु की पूर्ति बढ़ाने से अधिक लाभ प्राप्त हो सकेंगे। इस स्थिति में आपूर्ति लोचदार हो जाएगी।

2. वस्तु की प्रकृति शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुओं की पूर्ति बेलोच होती है क्योंकि कीमत में परिवर्तनों के अनुसार वस्तु की पूर्ति को बढ़ाया या घटाया नहीं जा सकता। इसके विपरीत, टिकाऊ वस्तुओं की पूर्ति लोचदार होती है।

3. समय तत्त्व-समय जितना अधिक दीर्घ होगा, उतनी ही एक वस्तु की पूर्ति अधिक लोचदार होगी। इसका कारण है कि दीर्घकाल में वस्तु की पूर्ति को आसानी से घटाया या बढ़ाया जा सकता है। इसके विपरीत, अल्पकाल में पूर्ति बेलोचदार होगी।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का

प्रश्न 24.
पूर्ति की लोच के पाँच प्रकारों को सारणीबद्ध करें।
उत्तर:
पूर्ति की लोच के पाँच प्रकार, निम्नलिखित सारणीबद्ध हैं-

क्रम संख्यापूर्ति की लोचपूर्ति की लोच के प्रकारविवरण
1es = 0पूर्णतया बेलोचदार पूर्तिवस्तु की कीमत में परिवर्तन का उसकी पूर्ति पर कोई प्रभाव नहीं। पूर्ति में प्रतिशत परिवर्तन, कीमत में प्रतिशत परिवर्तन से कम । पूर्ति में प्रतिशत परिवर्तन, कीमत में प्रतिशत परिवर्तन के समान। पूर्ति में प्रतिशत परिवर्तन, कीमत में प्रतिशत परिवर्तन से अधिक। वस्तु की कीमत में परिवर्तन हुए बिना ही उसकी पूर्ति का घट अथवा बढ़ जाना।
2es < 0बेलोचदार पूर्ति
3es = 1पूर्ति में इकाई लोच
4es > 1लोचदार पूर्ति
5es = ∞पूर्ण लोचदार पूर्ति

प्रश्न 25.
रेखाचित्र की सहायता से शून्य उत्पादन की स्थिति समझाइए।
उत्तर:
अल्पकाल में एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी फर्म को हानि हो सकती है। एक फर्म की हानि का अर्थ है कुल लागत का कुल आगम से अधिक होना। कुल लागत के दो भाग होते हैं-

  • स्थिर लागत
  • परिवर्ती लागत

यदि उत्पादन को बंद करने या शून्य करने का निर्णय लिया जाता है, तो फर्म की हानि स्थिर लागत के बराबर होगी क्योंकि उत्पादन बंद करने से परिवर्ती लागत शून्य होगी। जब तक कीमत परिवर्ती लागत को पूरा करने में समर्थ है, तब तक फर्म उत्पादन करती रहेगी। जैसे ही कीमत परिवर्ती लागत को पूरा नहीं करती फर्म उत्पादन बंद कर देगी। इसे हम संलग्न चित्र द्वारा दिखा सकते हैं
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 21
संलग्न चित्र में फर्म का संतुलन बिंदु E है जहाँ वस्तु की प्रति इकाई लागत OD है और प्रति इकाई कीमत OL है। वस्तु की औसत परिवर्ती लागत OF है अर्थात् औसत स्थिर लागत NF है। चूँकि वस्तु की कीमत AVC से अधिक है, फर्म उत्पादन जारी रखेगी। यदि वस्तु की कीमत OF से कम होगी, तो फर्म उत्पादन बंद कर देगी। इस प्रकार R अथवा F उत्पादन-बंद बिंदु है।

प्रश्न 26.
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में एक फर्म के दीर्घकालीन संतुलन की स्थिति समझाइए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में दीर्घकाल में एक फर्म की संतुलन स्थिति के लिए निम्नलिखित शर्तों का होना आवश्यक है
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 22
(i) p (बाज़ार कीमत) = LRMC (दीर्घकालीन सीमांत लागत)

(ii) p (बाज़ार कीमत) = LRAC (दीर्घकालीन औसत लागत)
रेखाचित्र से स्पष्ट है कि फर्म का दीर्घकालीन संतुलन E बिंदु पर है। चूँकि यहाँ, (i) P = LRMC, (ii) P = तथा

(iii) दीर्घकालीन सीमांत लागत घटती हुई बढ़ रही होनी चाहिए। अर्थात् संतुलन बिंदु पर दीर्घकालीन सीमांत लागत (LRMC)। एक प्रतिस्पर्धी फर्म की दीर्घकालीन संतुलन स्थिति को हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।

रेखाचित्र से स्पष्ट है कि फर्म का दीर्घकालीन संतुलन E बिंदु पर है। चूँकि यहाँ (i), P = LRMC, (ii) P = LRAC तथा LRMC बढ़ती हुई है।

दीर्घकाल में लागत और आगम बराबर होते हैं जिसके फलस्वरूप एक फर्म को न तो असामान्य लाभ होगा और न असामान्य हानि। रेखाचित्र से फर्म का संतुलन बिंदु E पर केवल मात्र सामान्य लाभ ही प्राप्त होते हैं।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार की शर्ते बताइए। पूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत फर्म का माँग वक्र कैसा होता है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार के लिए निम्नलिखित शर्तों का होना आवश्यक है-
(i) क्रेताओं और विक्रेताओं की बहुत बड़ी संख्या, जिसके अंतर्गत प्रत्येक विक्रेता या खरीददार कुल उत्पादन का बहुत ही छोटा भाग बेचता या खरीद पाता है जिससे उस क्रय-विक्रय से कीमत अप्रभावित रहती है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 23
(ii) समरूप वस्तु, ताकि वस्तु और विक्रेता दोनों ही मानकीकृत हों और इस कारण वस्तु की एक इकाई या एक विक्रेता को अन्य इकाइयों या विक्रेताओं के मुकाबले में अधिक पसंद न किया जा सके।

(iii) बाज़ार में वस्तुओं और उत्पादन-साधनों की पूर्ण गतिशीलता।

(iv) क्रेताओं और विक्रेताओं द्वारा सामयिक तथा भविष्य की कीमतों एवं उत्पादन मूल्यों का पूर्ण ज्ञान होता है।

(v) पूर्ण प्रतियोगिता वाले उद्योग में फर्मों को आने-जाने की पूर्ण स्वतंत्रता रहती है यानी नई फर्में उद्योग में आना चाहें तो आ सकती हैं और
वस्तु की मात्रा पुरानी फर्मे बाहर जाना चाहें तो उद्योग से बाहर जा सकती हैं।

पूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म मूल्य स्वीकारक होती है। इसे उद्योग द्वारा निर्धारित मूल्य पर ही वस्तु की कम या अधिक मात्रा बेचनी है। अतः फर्म का माँग वक्र पूर्णतया लोचदार होता है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।

प्रश्न 2.
पूर्ण प्रतियोगिता का विक्रेता किस प्रकार कीमत स्वीकारक होता है? इस संदर्भ में बाज़ार की इस विशेषता का कि “विक्रेताओं की अधिक संख्या है” का क्या औचित्य है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता में क्रेता तथा विक्रेता बहुत अधिक संख्या में होते हैं और सभी विक्रेता समरूप वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। फर्मों के समूह को उद्योग कहा जाता है। पूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य निर्धारण उद्योग द्वारा कुल माँग और कुल पूर्ति की शक्तियों के आधार पर किया जाता है। एक व्यक्तिगत फर्म को यही कीमत स्वीकार करनी होती है और वह इसे प्रभावित नहीं कर सकती। उद्योगों द्वारा निर्धारित मूल्य Pफर्म के AR और MR वक्र होते हैं। इसे हम अग्रांकित रेखाचित्र द्वारा दिखा

पूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म कीमत स्वीकारक इसलिए होती है क्योंकि इस बाज़ार में विक्रेताओं की संख्या बहुत अधिक होती है। एक विक्रेता कुल बिक्री के अति सूक्ष्म भाग को बेचता है और इस तरह वह अपनी गतिविधियों से बाज़ार मूल्य को प्रभावित करने की स्थिति में नहीं होता। इस प्रकार विक्रेता को वस्तु का मूल्य अपनी इच्छानुसार निर्धारित करने की स्वतंत्रता नहीं होती।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 24

प्रश्न 3.
पूर्ति से क्या अभिप्राय है? इसे प्रभावित करने वाले तत्त्वों या कारकों की व्याख्या करें।
उत्तर:
पूर्ति का अर्थ-एक निश्चित समय में, निश्चित कीमत पर उत्पादक द्वारा बिक्री के लिए प्रस्तुत की जाने वाली वस्तु की मात्रा को पूर्ति कहते हैं।

पूर्ति को प्रभावित करने वाले तत्त्व या कारक-किसी वस्तु की पूर्ति को प्रभावित करने वाले मुख्य तत्त्व निम्नलिखित हैं-
1. कीमत-किसी वस्तु की कीमत के कम होने पर पूर्ति कम होती है और कीमत के बढ़ने पर पूर्ति बढ़ती है।

2. उत्पादन की लागत उत्पादन की लागत के कम होने से वस्तुओं की पूर्ति बढ़ जाती है और उत्पादन की लागत बढ़ जाने से वस्तुओं की पूर्ति कम हो जाती है।

3. उत्पादन के कारकों की उपलब्धि-यदि उत्पादन के कारक सस्ते तथा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हों, तो वस्तु की पूर्ति बढ़ जाएगी। यदि उत्पादन के साधन महँगे तथा कम हों, तो वस्तु की पूर्ति कम हो जाएगी।

4. फर्मों की संख्या किसी वस्तु की बाज़ार पूर्ति फर्मों की संख्या पर भी निर्भर करती है। फर्मों की संख्या अधिक होने पर पूर्ति अधिक तथा फर्मों की संख्या कम होने पर पूर्ति कम हो जाती है।

5. उत्पादकों के उद्देश्य-यदि उत्पादकों का उद्देश्य अधिकतम लाभ कमाना है तो केवल अधिक कीमत पर ही अधिक प्रति जाएगी। इसके विपरीत यदि उत्पादकों का उद्देश्य बिक्री, उत्पादन या रोज़गार को अधिकतम करना है अथवा सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करनी है तो वर्तमान कीमत पर भी अधिक पूर्ति की जाएगी।

6. प्राकृतिक तत्त्व-प्राकृतिक तत्त्वों; जैसे मौसम, वर्षा, सूखा, ओले इत्यादि का भी कृषि पदार्थों की पूर्ति पर काफी प्रभाव पड़ता है। मौसम ठीक रहने पर इनकी पूर्ति बढ़ जाती है और मौसम के खराब रहने पर इनकी पूर्ति कम हो जाती है।

7. यातायात तथा संचार के साधन-यातायात तथा संचार के साधनों; जैसे रेलें, मोटरें, ट्रक, टेलीफोन, डाक-तार इत्यादि की सहायता से पूर्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर सुगमता से कम लागत पर भेजा जा सकता है, जिससे वस्तु की पूर्ति बढ़ जाती है। यदि यातायात के साधन अविकसित होंगे, तो वस्तु की पूर्ति कम होगी।

8. सरकार की नीति-सरकार की नीति भी पूर्ति को प्रभावित करती है। सरकार जिन वस्तुओं के उत्पादन में रियायतें (Subsidies) देती है, उनकी पूर्ति बढ़ जाती है। इसके विपरीत, यदि सरकार किसी वस्तु पर कर (Taxes) लगाती है, तो उनकी पूर्ति कम हो जाती है। सरकार जिन वस्तुओं का आयात (Import) करती है, उनकी पूर्ति बढ़ जाती है और जिनका निर्यात (Export) करती है, उनकी पूर्ति कम हो जाती है।

प्रश्न 4.
रेखाचित्रों की सहायता से ‘पूर्ति के विस्तार’ तथा ‘पूर्ति में वृद्धि’ में अंतर बताइए।
उत्तर:
पूर्ति का विस्तार-अन्य बातें समान रहने पर, जब किसी वस्तु की कीमत बढ़ने से वस्तु की पूर्ति बढ़ जाती है, तो इसे पूर्ति का विस्तार कहते हैं।
उदाहरण के लिए-

पूर्ति का विस्तार
कीमतपूर्ति
110
550

दी गई तालिका से स्पष्ट है कि जब वस्तु की कीमत रु० 1 से बढ़कर रु० 5 हो जाती है, तो वस्तु की पूर्ति 10 इकाइयों से बढ़कर 50 इकाइयाँ हो जाती है तो इसे पूर्ति में विस्तार कहते हैं। चित्र में SS वस्तु का पूर्ति वक्र है। जब कीमत OP है तो वस्तु की पूर्ति OQ है और जब कीमत बढ़कर OP1 हो जाती है, तो वस्तु की पूर्ति बढ़कर OQ1 हो जाती है। वस्तु की पूर्ति में QQ1 की वृद्धि पूर्ति का विस्तार है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 25

पूर्ति में वृद्धि-जब वस्तु की कीमत के अतिरिक्त किन्हीं अन्य तत्त्वों; जैसे उत्पादन करने के ढंग में सुधार, सरकार की नीति, साधनों की लागत में कमी, यातायात और संचार साधनों के विकास, मौसम में परिवर्तन इत्यादि के कारण वस्तु की पूर्ति बढ़ जाती है, तो इसे पूर्ति में वृद्धि कहते हैं। अन्य शब्दों में, पूर्ति में वृद्धि से अभिप्राय है-

  • समान कीमत, अधिक पूर्ति (Same Price, More Supply)
  • कम कीमत, समान पूर्ति (Less Price, Same Supply)

पूर्ति वृद्धि को निम्नांकित उदाहरणों या तालिकाओं की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है-
(I)

समान कीमतअधिक पूर्ति
कीमतपूर्ति
3
3
30
40

(II)

कम कीमतसमान पूर्ति
कीमतपूर्ति
3
3
30
30

तालिका I से स्पष्ट है कि समान कीमत पर वस्तु की पूर्ति बढ़ जाती है और तालिका II से स्पष्ट है कि वस्तु की कम कीमत पर वस्तु की पूर्ति समान रहती है। पूर्ति में वृद्धि को चित्र की सहायता से भी स्पष्ट किया जा सकता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 26
चित्र में SS वस्तु की प्रारंभिक पूर्ति वक्र है जो यह स्पष्ट करता है कि जब वस्तु की कीमत OP है, तो वस्तु की पूर्ति OQ है। जब कीमत की अपेक्षा किन्हीं अन्य कारणों से वस्तु की अधिक पूर्ति की जाती है, तो प्रारंभिक पूर्ति वक्र SS दाईं ओर खिसककर S1S1 हो जाएगा। स्पष्ट है कि उसी कीमत OP1 पर वस्तु की पूर्ति OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है या फिर कम कीमत OP1 पर वस्तु की समान पूर्ति अर्थात् OQ ही रहती है। यह पूर्ति में वृद्धि को स्पष्ट करती है।

प्रश्न 5.
रेखाचित्रों की सहायता से पूर्ति के संकुचन और पूर्ति में कमी में भेदं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूर्ति का संकुचन-अन्य बातें समान रहने पर, जब किसी वस्तु की कीमत कम होने से वस्तु की पूर्ति कम हो जाती है, तो इसे पूर्ति का संकुचन कहते हैं। उदाहरण के लिए-

पूर्ति का संकुचन
कीमतपूर्ति
5
1
50
10

उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि जब वस्तु की कीमत 5 रुपए से घटकर 1 रुपया हो जाती है, तो वस्तु की पूर्ति 50 इकाइयों से घटकर 10 इकाइयाँ रह जाती हैं तो इसे पूर्ति का संकुचन कहते हैं। रेखाचित्र में SS वस्तु का पूर्ति वक्र है। जब कीमत OP है, तो वस्तु की पूर्ति OQ है और जब कीमत गिरकर OP1 हो जाती है, तो वस्तु की पूर्ति घटकर OQ1 रह जाती है। वस्तु की पूर्ति में Q1Q की कमी पूर्ति का संकुचन है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 27

पूर्ति में कमी-जब वस्तु की कीमत के अतिरिक्त किन्हीं अन्य तत्त्वों; जैसे कच्चे माल का न मिलना, बिजली की कमी, सरकारी नीति, साधनों की लागत में वृद्धि, मौसम में परिवर्तन इत्यादि के कारण वस्तु की पूर्ति कम हो जाती है, तो इसे पूर्ति में कमी कहते हैं। अन्य शब्दों में, पूर्ति में कमी से अभिप्राय है

  1. समान कीमत, कम पूर्ति (Same Price, Less Supply)
  2. अधिक कीमत, समान पूर्ति (More Price, Same Supply)

पूर्ति में कमी को निम्नांकित तालिकाओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
(I)

समान कीमतकम पूर्ति
कीमतपूर्ति
3
3
30
20

(II)

अधिक कीमतसमान पूर्ति
कीमतपूर्ति
3
4
30
30

तालिका (I) से स्पष्ट है कि समान कीमत पर वस्तु की पूर्ति घट जाती है और तालिका (II) से स्पष्ट है कि वस्तु की अधिक कीमत पर वस्तु की पूर्ति समान रहती है। पूर्ति में कमी को रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 28
संलग्न रेखाचित्र में SS वस्तु का प्रारंभिक पूर्ति वक्र है जो यह स्पष्ट करता है कि जब वस्तु की कीमत OP है, तो वस्तु की पूर्ति OQ है। जब कीमत की अपेक्षा किन्हीं अन्य कारणों से वस्तु की पूर्ति घट जाती है, तो प्रारंभिक पूर्ति वक्र SS बाईं ओर खिसककर S1S1 हो जाता है। स्पष्ट है कि उसकी कीमत OP पर पूर्ति OQ से घटकर OQ1 हो जाती है या फिर वस्तु की अधिक कीमत OP, पर वस्तु की पूर्ति उतनी ही OQ रहती है। यह पूर्ति में कमी को स्पष्ट करती है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का

प्रश्न 6.
पूर्ण प्रतियोगिता किसे कहते हैं? पूर्ण प्रतियोगिता में अल्पकाल में फर्म के संतुलन की सीमांत विधि द्वारा व्याख्या करें।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता का अर्थ-‘पूर्ण प्रतियोगिता’ बाज़ार की वह अवस्था है, जिसमें वस्तु के क्रेता तथा विक्रेता बहुत अधिक संख्या में होते हैं। सभी विक्रेता समरूप (Homogeneous) वस्तुओं का उत्पादन करते हैं, जिनकी बाज़ार में एक ही कीमत होती है। समरूप वस्तुओं का उत्पादन करने वाली सभी फर्मों के समूह को उद्योग कहा जाता है। उद्योग की कुल माँग तथा कुल पूर्ति द्वारा ही सन्तुलन कीमत का निर्धारण होता है। कोई भी व्यक्तिगत फर्म इस कीमत को प्रभावित नहीं कर सकती। प्रत्येक फर्म को यह कीमत स्वीकार करनी पड़ती है। पूर्ण प्रतियोगिता में इस कीमत पर एक फर्म जितना माल बेचना चाहे बेच सकती है।

फर्म के सन्तुलन का अर्थ–पूर्ण प्रतियोगी बाज़ार में कीमत का निर्धारण उद्योग द्वारा किया जाता है तथा व्यक्तिगत फर्मों को यह कीमत स्वीकार करनी पड़ती है। प्रत्येक फर्म को यह निर्णय लेना होता है कि बाज़ार में प्रचलित कीमत पर इसे कितना उत्पादन करना चाहिए। जिस स्थिति में फर्म या उत्पादक उत्पादन-सम्बन्धी निर्णय लेता है, उसे फर्म का सन्तुलन कहते हैं।

फर्म के सन्तुलन का निर्धारण-पूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म की सन्तुलन की स्थिति का वर्णन निम्नलिखित दो विधियों द्वारा किया जा सकता है

  • कुल आय तथा कुल लागत विधि
  • सीमान्त आय तथा सीमान्त लागत विधि।

यहाँ हम केवल सीमान्त विधि द्वारा एक फर्म का संतुलन निर्धारित करेंगे।
सीमान्त आय तथा सीमान्त लागत विधि-एक फर्म की सन्तुलन की स्थिति को सीमान्त आय (MR) और सीमान्त लागत (MC) की सहायता से भी स्पष्ट किया जा सकता है।

1. सीमान्त आय सीमान्त लागत के बराबर (MR = MC) पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म के सन्तुलन की MR = MC की अनिवार्य शर्त (Necessary Condition) चित्र द्वारा स्पष्ट की गई है। चित्र में, MC और MR वक्र एक-दूसरे को K बिन्दु पर काटते हैं। यह सन्तुलन बिन्दु है। यहाँ सन्तुलन मात्रा OQ है। यदि फर्म उत्पादन को घटाकर OQ1 कर देती है तो यहाँ सीमान्त आय, सीमान्त लागत से अधिक है। अतः इस उत्पादन मात्रा पर रुकने से फर्म को बिन्दांकित त्रिभुज के बराबर लाभ से वंचित रहना पड़ता है, क्योंकि OQ उत्पादन तक फर्म को प्रत्येक इकाई से लाभ मिल रहा है। दूसरी ओर, यदि फर्म उत्पादन को OQ से बढ़ाकर OQ2 कर देती है तो बिन्दु वाली त्रिभुज के समान हानि होती है, क्योंकि OQ मात्रा के पश्चात् सीमान्त लागत सीमान्त आय से अधिक है। इसलिए फर्म का उत्पादन सदैव उस बिन्दु पर होगा जहाँ MR व MC
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 29

2. सीमान्त लागत वक्र सीमान्त आय वक्र को नीचे से ऊपर की ओर काटने वाली शर्त पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में फर्म के सन्तुलन MC = MR वाली शर्त अनिवार्य (Necessary) तो है किन्तु, पर्याप्त (Sufficient) नहीं है। यहाँ फर्म की दूसरी शर्त है कि “MC वक्र MR वक्र को नीचे से ऊपर को काटता हो” भी पूरी होनी चाहिए। यदि MC वक्र MR वक्र को दो स्थानों पर काटता है तो सन्तुलन उस स्थान पर होगा जहाँ यह नीचे से ऊपर की ओर काटता है। इसे हम चित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 30

चित्र में MC वक्र MR वक्र को दो बिन्दुओं Z और K पर काट रहा है। दोनों बिन्दुओं पर MR = MC है, किन्तु दोनों बिन्दुओं में केवल K वाला बिन्दु ही सन्तुलन बिन्दु है, क्योंकि इस पर MR = MC भी है और MR, MC को नीचे से काट रही है जैसा कि तीर (Arrow) के चिह्न से स्पष्ट है। इसलिए सन्तुलन मात्रा OQ है। Z पर MC =MR तो है, परन्तु MC वक्र ऊपर से नीचे को आता हुआ MR को काट रहा है, जैसा कि तीर (Arrow) के चिह्न से स्पष्ट है। अतः OQ1 तक तो प्रत्येक इकाई की MC, MR से अधिक है और OQ1 से OQ तक प्रत्येक इकाई की MC, MR से कम है। अतः फर्म को उत्पादन बढ़ाने से लाभ होगा। इसलिए यह सन्तुलन बिन्दु नहीं हो सकता।

स्पष्ट है कि पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म तब सन्तुलन स्थिति में होगी जब (i) उसकी MR = MC हो, तथा (ii) उसका MC वक्र MR वक्र को नीचे से ऊपर काटे।

प्रश्न 7.
पूर्ति की कीमत लोच को मापने की प्रतिशत विधि को उदाहरण सहित सुस्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रतिशत या आनुपातिक विधि के अनुसार, पूर्ति की कीमत लोच को पूर्ति की मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन और वस्तु की कीमत में प्रतिशत परिवर्तन के अनुपात के रूप में मापा जाता है। इसे आनुपातिक विधि भी कहा जाता है। अन्य शब्दों में, पूर्ति की लोच मापने के लिए पूर्ति की मात्रा में हुए आनुपातिक परिवर्तन को कीमत में हुए आनुपातिक परिवर्तन से भाग देते हैं। यदि भाज्यफल एक से अधिक हो तो पूर्ति अधिक लोचदार, यदि एक के बराबर हो तो इकाई लोचदार और यदि एक से कम हो तो बेलोचदार कहलाती है। सूत्र के रूप में,
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 31
सांकेतिक रूप में,
es = \(\frac{\frac{\Delta q}{q^{0}} \times 100}{\frac{\Delta p}{p^{0}} \times 100}=\frac{\Delta q}{q^{0}} \times \frac{p^{0}}{\Delta p}=\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
यहाँ, ∆q = पूर्ति की मात्रा में परिवर्तन, q° = प्रारंभिक पूर्ति
∆p = कीमत में परिवर्तन, p° = प्रारंभिक कीमत
इस प्रकार पूर्ति की लोच को मापने का सूत्र है-
es = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
वैकल्पिक विधि
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 32
उदाहरण:
मान लो एक वस्तु का मूल्य 4 रु० है तो उसकी पूर्ति 2000 इकाइयाँ हैं। यदि वस्तु का मूल्य बढ़कर 5 रु० हो जाता है तो पूर्ति 3000 इकाइयाँ हो जाती है। वस्तु की पूर्ति लोच होगी
हल:
es = \(\frac{\frac{1000}{2000}}{\frac{1}{4}}\)
es = \(\frac{1000}{2000} \times \frac{4}{1}=\frac{4}{2}\) = 2
q0 = 2000
∆q = 1000
p0 = 4
∆q = 1.
अर्थात् es > 1 है। अतः पूर्ति अधिक लोचदार है।

प्रश्न 8.
पूर्ति की लोच को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक बताइए।
उत्तर:
पूर्ति की लोच को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
1. लागत-यदि वस्तु के उत्पादन पर बढ़ती लागतों का नियम लागू हो रहा है अर्थात् उत्पादन के बढ़ाने से प्रति इकाई लागत बढ़ती है तो उत्पादक वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर भी पूर्ति को नहीं बढ़ाएगा। अतः पूर्ति बेलोचदार होगी। इसके विपरीत, यदि उत्पादन लागत घटती है, तो उत्पादक को पूर्ति बढ़ाने से अधिक लाभ प्राप्त होगा। अतः पूर्ति लोचदार होगी।

2. समय तत्त्व-समय तत्त्व भी पूर्ति को प्रभावित करने वाला एक मुख्य तत्त्व है। समय जितना लंबा होगा, वस्तु की पूर्ति की लोच उतनी ही अधिक होगी और समय जितना कम होगा, वस्तु की पूर्ति की लोच उतनी ही अधिक बेलोचदार होगी।

3. उत्पादन प्रणाली-जिन वस्तुओं की उत्पादन प्रणाली सरल है और जिनमें अधिक पूँजी की आवश्यकता नहीं होती, उनकी पूर्ति लोचदार होती है, क्योंकि इनकी पूर्ति को कीमत में परिवर्तित करके सरलता से घटाया-बढ़ाया जा सकता है, परंतु स वस्तु की उत्पादन प्रणाली जटिल है और जिसमें अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है, उसकी पूर्ति बेलोचदार होती है।

4. वस्तु की प्रकृति-जो वस्तुएँ शीघ्र नष्ट होने वाली होती हैं, उनकी पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार होती है, क्योंकि कीमत में परिवर्तन करके उनकी पूर्ति को घटाया-बढ़ाया जा सकता है, परंतु जो वस्तुएँ टिकाऊ होती हैं, उनकी पूर्ति लोचदार होती है।

5. भावी कीमतों में परिवर्तन-यदि उत्पादक को भविष्य में वस्तु की कीमत के अधिक होने की आशा है तो वे वस्तु की वर्तमान पूर्ति में कमी कर देंगे, जिसके कारण पूर्ति बेलोचदार हो जाएगी। यदि भविष्य में कीमत कम होने की आशा है, तो उत्पादक . वर्तमान समय में अधिक मात्रा बेचने लगेंगे, जिनके कारण पूर्ति लोचदार हो जाएगी।

6. उत्पादन के नियम-जिस वस्तु के उत्पादन में घटते प्रतिफल अथवा बढ़ती लागतों का नियम लागू होता है, उसकी पूर्ति कम लोचदार होती है। इसके विपरीत, जिस वस्तु के उत्पादन में बढ़ते प्रतिफल अथवा घटती लागत का नियम लागू होता है, उसकी पूर्ति अधिक लोचदार होती है।

7. प्रकृति का प्रभाव-जिन वस्तुओं के उत्पादन पर प्रकृति का प्रभाव अधिक होता है उनकी पूर्ति बेलोचदार होती है; जैसे कृषि उत्पादन। इसके विपरीत, कारखाने में होने वाला उत्पादन मनुष्य के नियंत्रण
में है। यहाँ पर उत्पादन कई तरह से बढ़ाया जा सकता है। इसलिए कारखानों में बनी वस्तुओं का उत्पादन अपेक्षाकृत लोचदार होता है।

संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
यदि वस्तु की प्रत्येक इकाई 5 रु० में बिक रही हो तो इस तालिका की पूर्ति करें-

बिक्री की मात्राTRMRAR
1
2
3
4
5
6
7

हल:

बिक्री की मात्राTRMRAR
1555
21055
31555
42055
52555
63055
73555

प्रश्न 2.
एक फर्म की TR सारणी निम्नलिखित तालिका में दर्शाई गई है। फर्म के समक्ष बाज़ार में वस्तु की कीमत क्या है?

उत्पादनTR (रु०)
17
214
321
428
535

हल:

उत्पादनTR (रु०)AR (कीमत)
177
2147
3217
4287
5357

फर्म के समक्ष बाज़ार में वस्तु की कीमत औसत आगम के बराबर अर्थात् 7 रु० होगी।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित तालिका के आधार पर TR, AR, MR की गणना कीजिए

बिक्री (इकाई)345
कीमत (रु०)1098

हल:

बिक्री (इकाईकीमतTRARMR
3103010
493696
584084

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का

प्रश्न 4.
एक विक्रेता हीरे की तीन अंगूठियों को 12,000 रु० प्रति अंगूठी के हिसाब से बेच सकता है। यदि चार अंगूठियाँ बेचे तो उसकी सीमांत आय 10,500 रु० होगी। बताइए वह चार अंगूठियों को किस कीमत पर बेच सकता है?
हल:
3 अंगूठियों के बेचने से TR = 12,000 x 3 = 36,000 रु०
चौथी अंगूठी को बेचने से आगम = 10,500 रु०
चार अंगूठियों से TR = 36,000 + 10,500 = 46,500 रु०
प्रति अंगूठी आगम (कीमत) = 46,500 ÷ 4 = 11,625 रु०

प्रश्न 5.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए

बेची गई इकाइयाँकीमत = A RTRMR
10100
911
1296
713
1484
515
1664

हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 33

प्रश्न 6.
निम्नलिखित तालिका को पूरा करो-

औसत आगम या मूल्य (प्रति इकाई)बेची गई इकाइयों की संख्याकुल आगमसीमांत आगम
10100
119-1
1296-3
137-5
1484-7
155-9
1664-11

हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 34

प्रश्न 7.
मयंकदीप 10 वस्तुएँ 50 रु० प्रति वस्तु के हिसाब से बेचता है, यदि वह 11 वस्तुएँ 47 रु० प्रति वस्तु के हिसाब से बेचता है तो उसकी सीमांत आगम निकालिए।
हल:

वस्तुओं की बिक्रीकीमतकुल आगमसीमांत आगम
1050 रु०500 रु०
1147 रु०517 रु०17 रु०

प्रश्न 8.
निम्नलिखित तालिका से कुल आय (TR) तथा सीमांत आय (MR) निकालिए-

उत्पादन इकाइयाँऔसत कीमत आय (₹ )कुल आय (₹)सीमांत लागत (₹)
56______
47______
38______

हल:

उत्पादन इकाइयाँऔसत कीमत आय (₹ )कुल आय (₹)सीमांत लागत (₹)
5630_
4728-2
3824-4

प्रश्न 9.
कल्पना कीजिए कि मांग तथा पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित किसी वस्तु की बाज़ार कीमत 4 रु० प्रति इकाई है। इस कीमत के संदर्भ में किसी फर्म के विभिन्न उत्पादन स्तरों पर औसत, सीमांत तथा कुल आगम ज्ञात कीजिए। इस स्थिति में फर्म के समक्ष जो मांग वक्र होगी उसकी आकृति कैसी होगी?
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 35
फर्म के समक्ष मांग वक्र की आकृति OX-अक्ष के समानांतर होगी।

प्रश्न 10.
एक विक्रेता की कुल आगम (TR) अनुसूची नीचे दी गई है। इसके आधार पर 6 इकाइयों की AR और MR ज्ञात कीजिए। क्या यह विक्रेता पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार में बेच रहा है? अपने उत्तर के समर्थन में कारण दीजिए।

बेची गई इकाइयाँकुल आगम
5300
6330

हल:

बेची गई इकाइयाँTRARMR
530060
63305530

यह पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार नहीं है, क्योंकि यहाँ AR और MR भिन्न-भिन्न हैं।

प्रश्न 11.
कल्पना कीजिए कि किसी वस्तु की बाज़ार कीमत 5 रु० प्रति इकाई है, जो माँग व पूर्ति के नियमों के आधार पर निर्धारित हुई है। इस कीमत को लेकर किसी फर्म द्वारा उत्पादन के विभिन्न स्तरों से संबंधित AR, MR तथा TR के कक्रों का रेखाचित्र बनाइए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 36

प्रश्न 12.
एक प्रतिस्पर्धी फर्म की बाज़ार में कीमत 15 रु० है।
(क) इसकी कुल आगम तालिका का निर्माण करें, यदि बिक्री 0 से 10 इकाई तक हो।
(ख) मान लीजिए कि कीमत 17 रु० हो जाती है। क्या नए TR वक्र का ढाल पहले वाले से अधिक होगा या कम?
हल:
(क) कुल आगम तालिका

उत्पादन             कुल आगम
जब कीमत 15 रु० होजब कीमत 17 रु० हो
000
11517
23034
34551
46068
57585
690102
7105119
8120136
9135153
10150170

(ख) यदि कीमत 15 रु० से बढ़कर 17 रु० हो जाती है, तो TR वक्र का ढाल पहले वाले से अधिक तीखा होगा।

प्रश्न 13.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी फर्म की वस्तु की बाज़ार कीमत 10 रु० प्रति इकाई है, बिक्री के विभिन्न स्तरों के लिए TR अनुसूची व्युत्पन्न करें। यदि फर्म कुछ समय के लिए उत्पादन बंद करने का निर्णय लेती है, तो बाज़ार कीमत क्या होगी?
हल:

वस्तु की बिक्री (इकाइयाँ)कीमत (रु०)कुल आगम (रु०)
11010
21020
31030
41040
51050
61060
71070
81080
91090
1010100

यदि पूर्ण प्रतियोगी फर्म कुछ समय के लिए उत्पादन बंद करने का निर्णय लेती है, तो बाज़ार कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होगा क्योंकि पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में कोई अकेली फर्म बाज़ार में प्रचलित कीमत को प्रभावित नहीं कर सकती।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का

प्रश्न 14.
नीचे दी गई सारणी से कुल आगम, औसत आगम और माँग की कीमत लोच की गणना कीजिए
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 37a
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 37b
प्रयोग किए गए सूत्र-
(i) कुल आगम = सीमांत आगम, + सीमांत आगम, + …………… + सीमांत आगम,
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 37

प्रश्न 15.
निम्नलिखित तालिका से उत्पादन का वह स्तर ज्ञात कीजिए जिस पर उत्पादक संतुलन की स्थिति में है। कारण बताइए।

उत्पादन (इकाइयाँ)12345
कुल लागत (रु०)200300380540640
कुल आगम (रु०)180340480480600

हल:

उत्पादन (इकाइयाँ)TCTRलाभ (TR-TC)
1200180-20
230034040
3380480100
4500480-20
5640600-40

उत्पादन की 3 इकाइयों के स्तर पर उत्पादक संतुलन की स्थिति में है, क्योंकि इस स्तर पर लाभ अधिकतम अर्थात् 100 रु० है।

प्रश्न 16.
निम्नलिखित तालिका से उत्पादक के संतुलन का निर्धारण करें। तार्किक कारण दीजिए।

बेची गई मात्रा (इकाइयाँ)5678910
कुल आगम (रु०)152025303540
कुल लागत (रु०)182226273038

हल:

बेची गई मात्रा (इकाइयाँ)कुल आगम (रु०)कुल लागत

(रु०)

लाभ (रु०)
51518-3
62022-2
72526-1
830273
935305
1040382

9वीं इकाई उत्पादन स्तर पर लाभ अधिकतम होगा। इस स्तर पर TR एवं TC के बीच का अंतर अधिकतम है जो कि 5. है। इस प्रकार उत्पादक संतुलन 9वीं इकाई के उत्पादन स्तर पर होगा।

प्रश्न 17.
निम्नलिखित आँकड़ों के आधार पर कुल आगम (TR) व कुल लागत (TC) में तुलना करते हुए उत्पादक के अधिकतम लाभ वाली स्थिति बताइए।

उत्पादन इकाइयाँ12345
औसत आगम (AR) (र०)12111098
औसत लागत (AC) (रु०)79101112

हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 38a
उत्पादन के अधिकतम लाभ (अर्थात् 5 रु०) की स्थिति 1 इकाई के उत्पादन पर होगी।

प्रश्न 18.
निम्नलिखित तालिका को पूरी करें। अधिकतम लाभ वाली अवस्था भी बताइए।

उत्पादन (इकाइयाँ)कुल आगम (रु०)कुल लागत (रु०)लाभ (रु०)
168
29-1
3100
41211
5148

हल:

उत्पादन (इकाइयाँ)कुल आगम (रु०)कुल लागत (रु०)लाभ (रु०)
168-2
289-1
310100
412111
51486

उत्पादक के अधिकतम लाभ (अर्थात् 6 रु०) की स्थिति 5वीं इकाई के उत्पादन स्तर पर है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का

प्रश्न 19.
निम्नलिखित तालिका से बेची गई मात्रा के प्रत्येक स्तर पर लाभ ज्ञात करें।

बेची गई मात्रा (इकाइयाँ)कीमत (रु० प्रति इकाई)औसत लागत (रु०)
11515
21612
31710
41812
51914

हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 38

प्रश्न 20.
निम्नलिखित तालिका से TR-TC विधि द्वारा लाभ अधिकतम उत्पादन स्तर ज्ञात करें।

बेची गई मात्रा (इकाइयाँ)कुल आगम (रु०)सीमांत लागत
(रु०)
11215
2269
3346
4402
5423

हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 39
लाभ अधिकतम तब होगा, जब उत्पादन स्तर 4 है क्योंकि इस स्तर पर लाभ अधिकतम है, जो कि 8 है। इस उत्पादन स्तर के बाद लाभ घटने लगता है।

प्रश्न 21.
निम्नलिखित तालिका में सीमांत आगम (MR) और सीमांत लागत (MC) में तुलना करते हुए प्रतिस्पर्धी फर्म की संतुलन की स्थिति ज्ञात कीजिए।

उत्पादन (इकाइयाँ)23456
कीमत (र०)1010101010
सीमांत ज्ञागत (MC) (र०)678910

हल:
प्रतियोगी फर्म 6 इकाइयों के उत्पादन स्तर पर संतुलन की स्थिति में है, क्योंकि इस पर MR = MC = 10 रु० (पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत = AR = MR)।

प्रश्न 22.
कीमत 10 रु० से बढ़कर 12 रु० हो गई, जिसके फलस्वरूप पूर्ति 15 इकाइयों से बढ़कर 20 इकाइयाँ हो गईं। पूर्ति की लोच ज्ञात कीजिए।
हल:
इस उदाहरण में,
p0 = 10, ∆p = 2, q0 = 15, ∆q = 5
∴ es = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}=\frac{5}{2} \times \frac{10}{15}=\frac{5}{3}=1.66\)
पूर्ति की लोच इकाई से अधिक है।

प्रश्न 23.
मान लो जब आइसक्रीम की कीमत 5 रु० प्रति कप है तो 5 आइसक्रीम की पूर्ति की जाती है। यदि कीमत बढ़कर 10 रु० हो जाती है तो पूर्ति बढ़कर 10 हो जाती है। पूर्ति की कीमत लोच ज्ञात करें।
हल:
es = \(\frac{p^{0}}{q^{0}} \times \frac{\Delta q}{\Delta p}\)
p0 = 5 रु०, p1 = 10 रु०, ∆p = 10 – 5 = 5 रु०
q0 = 5, q1 = 10, ∆q = 10 – 5 = 5
es = \(\frac { 5 }{ 5 }\) x \(\frac { 5 }{ 5 }\) = 1 (इकाइ)

प्रश्न 24.
जब कीमत 4 रु० प्रति इकाई है तो गुड़िया बनाने वाली प्रतिदिन 8 गुड़ियों की पूर्ति करती है। कीमत 5 रु० प्रति गुड़िया होने पर वह प्रतिदिन 10 गुड़ियों को बेचने को तैयार है। गुड़िया की पूर्ति की लोच क्या होगी?
हल:
पूर्ति की लोच (e) = es = \(\frac{p^{0}}{q^{0}} \times \frac{\Delta q}{\Delta p}\)
p0 = 4 रु०, p1 = 5 रु०, ∆p = 5 – 4 = 1 रु०
q0 = 8 गुड़ियाँ, q1 = 10 गुड़ियाँ,
∆q = 10 – 8 = 2 गुड़ियाँ
es = \(\frac { 4 }{ 8 }\) x \(\frac { 2 }{ 1 }\) = 1 (इकाई)

प्रश्न 25.
वस्तु की कीमत 12 रु० प्रति इकाई पर वस्तु की पूर्ति 25 इकाइयाँ थीं। कीमत में 8 रु० प्रति इकाई की वृद्धि हो जाने से वस्तु की पूर्ति बढ़कर 35 इकाइयाँ हो गईं। पूर्ति की लोच ज्ञात कीजिए।
हल:
इस उदाहरण में,
p0 = 12 रु०, p1 = 20 रु०, ∆p = 20 – 12 = 8 रु०
q0 = 25, q1 = 35, ∆q= 35 – 25 = 10
∴ \(e_{s}=\frac{p^{0}}{q^{0}} \times \frac{\Delta q}{\Delta p}=\frac{12}{25} \times \frac{10}{8}=0.6\)
पूर्ति की लोच इकाई से कम है।

प्रश्न 26.
कीमत में 20% वृद्धि होने के फलस्वरूप पूर्ति 35 इकाइयों से बढ़कर 70 इकाइयाँ हो गईं। पूर्ति की लोच ज्ञात कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 40
पूर्ति की लोच इकाई से अधिक है।

प्रश्न 27.
जब किसी वस्तु की बाजार कीमत 4 रु० है तो विक्रेता 600 इकाइयाँ बेचने को तैयार है। यदि कीमत बढ़कर 5 रु० हो जाती है तो वह 850 इकाइयाँ बेचने को तैयार है। पूर्ति की लोच ज्ञात करें।
हल:
es = \(\frac{p^{0}}{q^{0}} \times \frac{\Delta q}{\Delta p}\)
p0 = 4 रु०, p1 = 5 रु०, ∆p = 5 – 4 = 1 रु०
q0 = 600, q1 = 850, ∆q = 850 – 600 = 250
es = \(\frac{4}{600} \times \frac{250}{1}=\frac{1000}{600}\) = 1 (इकाई)
= 1.6
पूर्ति की लोच इकाई से अधिक है।

प्रश्न 28.
निम्नलिखित सूचना के आधार पर पूर्ति की लोच ज्ञात कीजिए-

कीमत (रु०)बिक्री आगम (र०)
8224
12504

हल:
दिए गए उदाहरण में पहले हमें पूर्ति की मात्रा ज्ञात करनी होगी।

कीमत (रु०)बिक्री आगम (र०)पूर्ति (इकाइयाँ)
822428
1250442

\(e_{s}=\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{a^{0}}=\frac{14}{4} \times \frac{8}{28}\) = 1
अर्थात् इकाई पूर्ति की लोच।

प्रश्न 29.
एक फर्म को 50 रु० आगम की प्राप्ति हो रही थी, जब वस्तु की कीमत 10 रु० थी। कीमत बढ़कर 15 रु० हो जाने से फर्म को कुल आगम 150 रु० प्राप्त हो रहा है। फर्म की आपू की कीमत लोच क्या है?
हल:
\(q^{0}=\frac{50}{10}=5, q^{1}=\frac{150}{15}=10\)
∴ ∆q = q1-q0 = 10 – 5 = 5
P0 = 10, p1 = 15 ∴ ∆p = 15 – 10 = 5
∴ es = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}=\frac{5}{5} \times \frac{10}{5}=2\)

प्रश्न 30.
एक वस्तु की पूर्ति की कीमत लोच इकाई है। 5 रु० प्रति इकाई कीमत पर एक फर्म उस वस्तु की 25 इकाइयों की पूर्ति करती है। यदि इस वस्तु की कीमत बढ़कर 6 रु० प्रति इकाई हो जाती है तो वह फर्म उस वस्तु की कितनी इकाइयों की पूर्ति करेगी ?
हल:
पूर्ति की कीमत लोच =\(\frac{p^{0}}{q^{0}} \times \frac{\Delta q}{\Delta p}\)
यहाँ,
p° = प्रारंभिक कीमत q° = प्रारंभिक पूर्ति
= पूर्ति में परिवर्तन Ap = कीमत में परिवर्तन
इस प्रकार,
1 = \(\frac{5}{25} \times \frac{\Delta q}{1}\)
1 = \(\frac{\Delta q}{5}\)
∆q = 5
पूर्ति में परिवर्तन = 5
इस प्रकार, परिवर्तित पूर्ति = प्रारंभिक पूर्ति + पूर्ति में परिवर्तन
= 25 + 5
= 30 इकाइयाँ

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का

प्रश्न 31.
एक वस्तु की पूर्ति की लोच का गुणांक 3 है। 8 रु० प्रति इकाई कीमत पर एक विक्रेता इस वस्तु की 20 इकाइयाँ सप्लाई करता है। इस वस्तु की कीमत 2 रु० प्रति इकाई बढ़ने पर विक्रेता इसकी कितनी मात्रा सप्लाई करेगा?
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 41
मात्रा में परिवर्तन = 3 x 5 = 15
इस प्रकार विक्रेता वस्तु की 20 + 15 = 35 मात्रा सप्लाई करेगा।

प्रश्न 32.
जब एक वस्तु की कीमत 10 रु० से बढ़कर 11 रु० प्रति इकाई हो जाती है, तो उसकी पूर्ति मात्रा 100 इकाई बढ़ती है। इसकी पूर्ति की कीमत लोच 2 है। बढ़ी हुई कीमत पर इसकी पूर्ति मात्रा ज्ञात कीजिए।
हल:
पूर्ति की कीमत लोच (e) = 2
पूर्ति में परिवर्तन ∆q = 100
कीमत में परिवर्तन ∆p = 11 – 10 = 1
प्रारंभिक कीमत p0 = 10
प्रारंभिक पूर्ति q0 = ?
पूर्ति की कीमत लोच = \(\frac{p^{0}}{q^{0}} \times \frac{\Delta q}{\Delta p}\)
2 = \(\frac{10}{q^{0}} \times \frac{100}{1}\)
2q0 = 10 x 100 = 1,000
q0 = \(\frac { 1000 }{ 2 }\) = 500
प्रारंभिक पूर्ति = 500
नई पूर्ति = 500 + 100 = 600

प्रश्न 33.
एक वस्तु की पूर्ति कीमत लोच 2 है। जब इसकी कीमत 10 रु० से घटकर 8 रु० प्रति इकाई हो जाती है, तो इसकी पूर्ति मात्रा 500 इकाई कम हो जाती है। घटी हुई कीमत पर इसकी पूर्ति मात्रा ज्ञात कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 42
पूर्ति की नई मात्रा = प्रारंभिक पूर्ति + मात्रा में परिवर्तन
= 1250 + (-500) = 750 इकाइयाँ
मात्रा में परिवर्तन = मात्रा में गिरावट

प्रश्न 34.
X और Y वस्तुओं की पूर्ति की कीमत लोच बराबर है। X की कीमत में 20% वृद्धि होने से उसकी पूर्ति 400 इकाई से बढ़कर 500 इकाई हो जाती है। यदि Y की कीमत 8% घटती है, तो उसकी पूर्ति में होने वाली प्रतिशत कमी का परिकलन कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 43

प्रश्न 35.
एक फर्म 10 रु० प्रति इकाई कीमत पर उत्पाद की 1000 इकाई बेचती है। इसकी पूर्ति लोच 3 है। यदि कीमत गिर कर 7.50 रु० प्रति इकाई हो जाए तो फर्म कितनी इकाइयाँ बेचने योग्य होंगी ?
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 44
फर्म 250 = 1000 – 750 पूर्ति में परिवर्तन) इकाई बेचने योग्य होगी।

प्रश्न 36.
एक वस्तु की कीमत पूर्ति लोच 5 है। एक उत्पादक 5 रु० प्रति इकाई पर इस वस्तु की 500 इकाइयाँ बेचता है। 6 रु० प्रति इकाई पर वह कितनी मात्रा बेचना पसंद करेगा?
हल:
\(e_{s}=\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
\(5=\frac{q^{0}-500}{1(=6-5)} \times \frac{5}{500} \text { अथवा } \frac{5 q^{0}-2500}{500}\)
2500 = 5q0 – 2500 अथवा 5q0 अथवा q0 = 1000
उत्पादक 1000 इकाइयाँ बेचना पसंद करेगा।

प्रश्न 37.
एक वस्तु की कीमत 10रु० प्रति इकाई है और इस कीमत पर पूर्ति की मात्रा 500 इकाई है। यदि इसकी कीमत 10% कम हो जाती है तो इसकी पूर्ति की मात्रा घटकर 400 इकाई हो जाती है। इसकी पूर्ति की कीमत लोच का परिकलन कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 46

प्रश्न 38.
एक वस्तु की कीमत 8 रु० प्रति इकाई है और उसकी पूर्ति की मात्रा 200 इकाई है। इसकी कीमत पूर्ति लोच 1.5 है। यदि यह कीमत बढ़कर 10रु० प्रति इकाई हो जाती है तो नई कीमत पर इसकी पूर्ति मात्रा ज्ञात कीजिए।
हल:
\(e_{s}=\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\) या 1.5 =\(\frac{\Delta q}{2} \times \frac{8}{200}\) \(\frac { Δq }{ 50 }\) या
= Δq
= 75

प्रश्न 39.
एक वस्तु की पूर्ति की कीमत लोच 2.5 है। 5 रु० प्रति इकाई कीमत पर इसकी पूर्ति मात्रा 300 इकाई है। 4 रु० प्रति इकाई कीमत पर इसकी पूर्ति मात्रा कितनी होगी? ज्ञात कीजिए।
हल:
\(e_{s}=\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\) या 2.5 =\(\frac{\Delta q}{1} \times \frac{5}{300}\) या
\(\frac { Δq }{ 60 }\)
= Δq
= 150
पूर्ति की मात्रा = 300 – 150 = 150 इकाइयाँ (कीमत गिरने पर पूर्ति कम हो जाएगी।

प्रश्न 40.
एक वस्तु की कीमत 12 रु० प्रति इकाई है और इसकी पूर्ति 500 इकाई है। जब इसकी कीमत बढ़कर 15 रु० प्रति इकाई हो जाती है तो इसकी पूर्ति मात्रा बढ़कर 650 इकाई हो जाती है। इसकी पूर्ति की कीमत लोच ज्ञात कीजिए। क्या इसकी पूर्ति लोचदार है?
हल:
\(e_{s}=\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\) \(\frac{150}{3} \times \frac{12}{500}\) = 1.2
पूर्ति लोचदार है क्योंकि लोच इकाई से अधिक है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का

प्रश्न 41.
एक वस्तु की कीमत 8 रु० प्रति इकाई है और उसकी पूर्ति मात्रा 400 इकाई है। उसकी पूर्ति की कीमत लोच 2 है। वह कीमत ज्ञात कीजिए जिस पर उसकी पूर्ति मात्रा 600 इकाई होगी।
हल:
\(e_{s}=\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\) या 2 = \(\frac { 200(600-400) }{ Δp }\) या = Δp = 4 ÷ 2 = 2
नई कीमत = 8 + 2 = 10 रु० होगी (क्योंकि पूर्ति बढ़ गई है)।

प्रश्न 42.
जब एक वस्तु की कीमत 10 रु० प्रति इकाई से घटकर 9 रु० प्रति इकाई हो जाती है तो इसकी पूर्ति मात्रा 20% घट जाती है। इसकी पूर्ति की कीमत लोच ज्ञात कीजिए।
हल:
कीमत में % गिरावट =\(\frac{1(10-9)}{10} \times 100=10\)
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 47
= \(\frac{20}{10}\) = 2

प्रश्न 43.
एक वस्तु की कीमत 5 रु० प्रति इकाई है और उसकी पूर्ति मात्रा 600 इकाई है। यदि इसकी कीमत बढ़कर 6 रु० प्रति इकाई हो जाती है तो इसकी पूर्ति मात्रा 25% बढ़ जाती है। इसकी पूर्ति की कीमत लोच ज्ञात कीजिए।
हल:
कीमत में % गिरावट =\(\frac{1(6-5)}{5} \times 100\) = 20
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का 47
= \(\frac{25}{20}\) = 1.25

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HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. उत्पादन फलन होते हैं
(A) केवल अल्पकालीन
(B) केवल दीर्घकालीन
(C) अल्पकालीन व दीर्घकालीन दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) अल्पकालीन व दीर्घकालीन दोनों

2. अल्पकाल में उत्पादन कारक होते हैं
(A) स्थिर
(B) परिवर्ती
(C) स्थिर भी और परिवर्ती भी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) स्थिर भी और परिवर्ती भी।

3. दीर्घकाल में उत्पादन के सभी कारक होते हैं
(A) स्थिर
(B) परिवर्ती
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई भी नहीं
उत्तर:
(B) परिवर्ती

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

4. एक निश्चित अवधि में उत्पादित की गई वस्तुओं व सेवाओं की समान मात्रा क्या कहलाती है?
(A) औसत उत्पाद (AP)
(B) सीमांत उत्पाद (MP)
(C) कुल उत्पाद (TP)
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) कुल उत्पाद (TP)

5. श्रम तथा पूँजी की एक अधिक इकाई का प्रयोग करने से प्राप्त अतिरिक्त उत्पाद कहलाता है-
(A) औसत उत्पाद
(B) कुल उत्पाद
(C) सीमांत उत्पाद
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) सीमांत उत्पाद

6. श्रम की दो इकाइयाँ लगाने से कुल उत्पाद 38 इकाइयाँ हैं। तीसरी इकाई लगाने से कुल उत्पाद में 16 इकाइयों की वृद्धि होती है। इसलिए तीन इकाइयों की औसत उत्पाद है-
(A) 16
(B) 18
(C) 22
(D) 54
उत्तर:
(B) 18

7. जब सीमान्त उत्पादन शून्य होता है, तो कुल उत्पादन होगा-
(A) शून्य
(B) ऋणात्मक
(C) अधिकतम
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) अधिकतम

8. क्या औसत उत्पाद वक्र Ox-अक्ष को छू सकता है?
(A) हमेशा
(B) कभी-कभी
(C) कभी नहीं
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) कभी नहीं

9. MPP तथा APP का आकार कैसा होता है?
(A) U-आकार जैसा
(B) V-आकार जैसा
(C) L-आकार जैसा
(D) उल्टे-U (∩) आकार जैसा
उत्तर:
(D) उल्टे-U (∩) आकार जैसा

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

10. परिवर्ती अनुपातों के नियम को जिस दूसरे नाम से पुकारा जाता है, वह है
(A) ह्रासमान प्रतिफल का नियम
(B) पैमाने का ह्रासमान प्रतिफल नियम
(C) वर्धमान प्रतिफल का नियम
(D) पैमाने का वर्धमान प्रतिफल नियम
उत्तर:
(A) ह्रासमान प्रतिफल का नियम

11. वर्धमान प्रतिफल के नियम के अनुसार परिवर्ती कारक की मात्रा बढ़ाने पर उत्पादन निर्गत किस अनुपात में परिवर्तित होता है?
(A) बढ़ते हुए अनुपात में
(B) घटते हुए अनुपात में
(C) समान अनुपात में
(D) परिवर्ती अनुपात में
उत्तर:
(A) बढ़ते हुए अनुपात में

12. यदि श्रम की एक अतिरिक्त इकाई लगाने से सीमांत भौतिक उत्पाद घटता है तो यह स्थिति कहलाएगी-
(A) कारक का ह्रासमान प्रतिफल
(B) पैमाने का ह्रासमान प्रतिफल
(C) कारक का वर्धमान प्रतिफल
(D) कारक का स्थिर प्रतिफल
उत्तर:
(A) कारक का ह्रासमान प्रतिफल

13. पैमाने का प्रतिफल विश्लेषण निम्नलिखित में से किस मान्यता पर आधारित है?
(A) एक कारक स्थिर तथा दूसरा कारक परिवर्ती
(B) उत्पादन के अन्य सभी कारक स्थिर किंतु एक कारक परिवर्ती
(C) सभी कारकों में परिवर्तन किंतु उनके अनुपात में भी अंतर
(D) सभी कारकों के परस्पर अनुपात को स्थिर रखते हुए उनके पैमाने में परिवर्तन
उत्तर:
(D) सभी कारकों के परस्पर अनुपात को स्थिर रखते हुए उनके पैमाने में परिवर्तन

14. पैमाने में वृद्धि का अर्थ है
(A) सभी कारकों को एक ही अनुपात में बढ़ाना
(B) सभी कारकों को भिन्न-भिन्न अनुपातों में बढ़ाना
(C) एक कारक को स्थिर रखकर अन्य साधनों को बढ़ाना
(D) केवल एक कारक को बढ़ाना
उत्तर:
(A) सभी कारकों को एक ही अनुपात में बढ़ाना

15. अनुपात का संबंध है-
(A) अति अल्पकाल से
(B) अल्पकाल से
(C) दीर्घकाल से
(D) अति दीर्घकाल से
उत्तर:
(B) अल्पकाल से

16. पैमाने का संबंध है-
(A) अति अल्पकाल से
(B) अल्पकाल से
(C) दीर्घकाल से
(D) अति दीर्घकाल से
उत्तर:
(C) दीर्घकाल से

17. जब साधनों में 10% वृद्धि होने पर उत्पादन/निर्गत में 10% से अधिक वृद्धि हो जाए, तो ऐसी अवस्था को कहेंगे-
(A) पैमाने के स्थिर प्रतिफल की अवस्था
(B) पैमाने के वर्धमान प्रतिफल की अवस्था
(C) पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल की अवस्था
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) पैमाने के वर्धमान प्रतिफल की अवस्था

18. यदि उत्पादन के सभी साधनों को दुगुना करने से उत्पादन दुगुने से अधिक हो जाता है तो यह कहलाएगा-
(A) पैमाने का स्थिर प्रतिफल
(B) कारक का वर्धमान प्रतिफल
(C) पैमाने का वर्धमान प्रतिफल
(D) कारक का स्थिर प्रतिफल
उत्तर:
(C) पैमाने का वर्धमान प्रतिफल

19. निम्नलिखित में से कौन-सी बाहरी बचते हैं?
(A) तकनीकी बचतें
(B) प्रबन्धकीय बचतें
(C) जोखिम संबंधी बचतें
(D) सूचना संबंधी बचतें
उत्तर:
(D) सूचना संबंधी बचतें

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

20. आंतरिक तथा बाह्य बचतों का संबंध है-
(A) परिवर्ती कारकों के प्रतिफलों से
(B) पैमाने के प्रतिफलों से
(C) (A) और (B) दोनों से
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) पैमाने के प्रतिफलों से

21. अधिकतम लाभ कमाने की इच्छुक फर्म परिवर्ती अनुपात के नियम के कौन-से चरण में उत्पादन करना चाहेगी?
(A) पहले चरण में
(B) दूसरे चरण में
(C) तीसरे चरण में
(D) उपरोक्त किसी में भी नहीं
उत्तर:
(B) दूसरे चरण में

22. यदि 2L + 2K से 1000 इकाइयों का उत्पादन होता है तथा 3L + 3K से 2000 इकाइयों का उत्पादन होता है, तो बताइए कौन-से प्रतिफल प्राप्त हो रहे हैं?
(A) पैमाने के वर्धमान प्रतिफल
(B) पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल
(C) पैमाने के स्थिर (समान) प्रतिफल
(D) पैमाने के ऋणात्मक प्रतिफल
उत्तर:
(A) पैमाने के वर्धमान प्रतिफल

23. उत्पादन लागत है
(A) किसी वस्तु के उत्पादन में किया गया समस्त व्यय
(B) साहसी का लाभ
(C) पूँजी का ब्याज
(D) विक्रय मूल्य
उत्तर:
(A) किसी वस्तु के उत्पादन में किया गया समस्त व्यय

24. फैक्टरी का किराया तथा लाइसेंस फीस निम्नलिखित में से किन लागतों में शामिल की जाएगी?
(A) परिवर्ती लागतों में
(B) सीमांत लागतों में
(C) स्थिर (बँधी) लागतों में ।
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) स्थिर (बँधी) लागतों में

25. जब उत्पादन का स्तर शून्य होता है, तब स्थिर लागत होती है-
(A) धनात्मक
(B) ऋणात्मक
(C) शून्य
(D) परिवर्तनशील लागत के बराबर
उत्तर:
(A) धनात्मक

26. अल्पकाल में उत्पादन शून्य होने पर कौन-सी लागत शून्य हो जाती है?
(A) परिवर्ती लागत
(B) सीमांत लागत
(C) स्थिर (बँधी) लागत
(D) अवसर लागत
उत्तर:
(A) परिवर्ती लागत

27. अल्पकाल में कुल लागत में स्थिर लागत के साथ किस अन्य लागत को शामिल किया जाता है?
(A) स्पष्ट लागत
(B) औसत लागत
(C) सीमांत लागत
(D) परिवर्ती लागत
उत्तर:
(D) परिवर्ती लागत

28. यदि हम कुल स्थिर लागत एवं कुल परिवर्ती लागत को जोड़ दें तो हमें
(A) औसत लागत मालूम होगी
(B) सीमांत लागत मालूम होगी
(C) कुल लागत मालूम होगी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) कुल लागत मालूम होगी

29. औसत स्थिर लागत के प्रत्येक बिंदु से यदि X-अक्ष एवं Y-अक्ष पर लंब डाला जाए तो जो आयत बनेंगे, उन सभी का क्षेत्रफल-
(A) अलग-अलग होगा
(B) समान होगा
(C) जैसे-जैसे उत्पादन की मात्रा बढ़ेगी क्षेत्रफल घटेगा
(D) जैसे-जैसे उत्पादन की मात्रा बढ़ेगी क्षेत्रफल बढ़ेगा
उत्तर:
(B) समान होगा।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

30. जैसे-जैसे उत्पादन की मात्रा बढ़ेगी AC और AVC के बीच की दूरी-
(A) बढ़ेगी
(B) घटेगी
(C) स्थिर रहेगी
(D) दोनों समानांतर होगी
उत्तर:
(B) घटेगी

31. किसको मालूम करता है?
(A) AC
(B) TC
(C) MC
(D) AVC
उत्तर:
(C) MC

32. अंशकालिक या मौसमी रोज़गार प्राप्त श्रमिकों की मजदूरी पर किया गया व्यय-
(A) स्थिर लागत है
(B) परिवर्ती लागत है
(C) अवसर लागत है
(D) अल्पकालीन लागत है
उत्तर:
(B) परिवर्ती लागत है

33. स्थिर लागत वक्र सदैव-
(A) बाएँ से दाएँ व नीचे की ओर झुकता है
(B) सीधी रेखा X-अक्ष के समानांतर होता है
(C) सीधी रेखा Y-अक्ष के समानांतर होता है
(D) “U’ आकृति वक्र होता है
उत्तर:
(B) सीधी रेखा X-अक्ष के समानांतर होता है

34. MC वक्र, AC वक्र को उस स्थिति में काटता है, जब-
(A) AC वक्र नीचे की ओर गिर रहा होता है
(B) AC वक्र ऊपर की ओर उठ रहा होता है
(C) AC वक्र न्यूनतम होता है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) AC वक्र न्यूनतम होता है

35. अल्पकाल में एक फर्म अधिक से अधिक कितनी हानि उठाने को तत्पर हो जाती है?
(A) कुल लागत के बराबर
(B) परिवर्ती लागत के बराबर
(C) स्थिर लागत के बराबर
(D) सीमांत लागत के बराबर
उत्तर:
(C) स्थिर लागत के बराबर

36. लागत वक्रों की आकृति निम्नलिखित में से किन पर निर्भर करती है?
(A) माँग वक्र पर
(B) उत्पत्ति के नियमों पर
(C) बाजार की दशाओं पर
(D) साधनों के प्रतिफल पर
उत्तर:
(B) उत्पत्ति के नियमों पर

37. अल्पकाल में
(A) कुल उत्पाद लागत = कुल स्थिर लागत + कुल परिवर्ती लागत
(B) कुल उत्पाद लागत = कुल स्थिर लागत x कुल परिवर्ती लागत
(C) कुल उत्पाद लागत = कुल स्थिर लागत – कुल परिवर्ती लागत
(D) कुल उत्पाद लागत = कुल स्थिर लागत
उत्तर:
(A) कुल. उत्पाद लागत = कुल स्थिर लागत + कुल परिवर्ती लागत

38. कौन-सा वक्र ‘U’ आकार का होता है?
(A) अनधिमान (तटस्थता) वक्र
(B) समान मात्रा
(C) औसत लागत वक्र
(D) पूर्ति वक्र
उत्तर:
(C) औसत लागत वक्र

39. उत्पादन के कारकों (साधनों) पर किया जाने वाला व्यय क्या कहलाता है?
(A) आगत
(B) लागत
(C) आय/संप्राप्ति
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) लागत

40. कुल लागत का सूत्र है-
(A) AC xq
(B) AFC + AVC
(C) (A) एवं (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) एवं (B) दोनों

41. सीमांत लागत के घटने पर कुल लागत-
(A) घटती है
(B) बढ़ती है
(C) स्थिर रहती है
(D) बढ़ती दर पर बढ़ती है
उत्तर:
(A) घटती है

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

42. यदि कुल लागत 1200 रु० है, कुल स्थिर लागत 500 रु० है तो कुल परिवर्ती लागत कितनी होगी?
(A) 500
(B) 1700
(C) 700
(D) 600
उत्तर:
(C) 700

43. अल्पकाल में कौन-सी स्थिर लागत होती है?
(A) स्थायी कर्मचारियों का वेतन
(B) मशीन की घिसावट तथा ह्रास
(C) स्थायी पूँजी पर ब्याज
(D) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी

44. औसत लागत (AC) = ….
(A) \(\frac { TC }{ q }\)
(B) TC x q
(C) \(\frac{\Delta \mathrm{TC}}{\Delta q}\)
(D) \(\frac{\Delta \mathrm{TC}}{q}\)
उत्तर:
(A) \(\frac { TC }{ q }\)

45. औसत लागत वक्र ‘U’ आकार की क्यों होती है?
(A) परिवर्ती प्रतिफल के कारण
(B) स्थिर प्रतिफल के कारण
(C) लाभ के कारण
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) परिवर्ती प्रतिफल के कारण

46. कौन-सा वक्र ATC वक्र को उसके निम्नतम बिंदु पर प्रतिच्छेदित करता है?
(A) AVC ash
(B) AFC वक्र
(C) MC वक्र
(D) TC वक्र
उत्तर:
(C) MC वक्र

47. दिए गए सूत्र को पूरा करें : ……….
(A) AC
(B) MC
(C) AVC
(D) AFC
उत्तर:
(A) AC

48. निम्नलिखित में से किस लागत वक्र का आकार आयताकार अतिपरवलय (रेक्टैंगुलर हाईपरबोला) होता है-
(A) MC वक्र
(B) AC ash
(C) AFC वक्र
(D) AVC वक्र
उत्तर:
(C) AFC वक्र

49. MC की गणना संबंधी कौन-सा सूत्र सही है?
(A) MC = TCn – TCn-1
(B) MC = TVCn – TVCn-1
(C) MC = \(\frac{\Delta \mathrm{TC}}{\Delta q}\)
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

50. LAC वक्र-
(A) गिरता है जब LMC वक्र गिरता है
(B) बढ़ता है जब LMC वक्र बढ़ता है
(C) गिरता है जब LMC कम है LAC से तथा बढ़ता है जब LMC अधिक है LAC से
(D) उपर्युक्त सभी असत्य
उत्तर:
(C) गिरता है जब LMC कम है LAC से तथा बढ़ता है जब LMC अधिक है LAC से

51. जब सीमांत उत्पादन घटता है, तब कुल उत्पादन की क्या अवस्था होती है?
(A) अधिकतम
(B) स्थिर
(C) घटती दर से बढ़ता है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) घटती दर से बढ़ता है

52. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है
(A) LAC और LMC दोनों वक्र ‘U’ आकार के होते हैं
(B) LMC वक्र LAC वक्र को नीचे से, LAC के न्यूनतम बिंदु पर काटता है
(C) LAC और LMC दोनों SAC और SMC की भाँति ‘U’ आकार के होते हैं, परंतु ये कम उग्र और अधिक चपटे होते हैं
(D) उपर्युक्त सभी कथन सत्य हैं
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी कथन सत्य हैं

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. …………………… में स्थिर और परिवर्ती उत्पादन कारक होते हैं। (अल्पकाल/दीर्घकाल)
उत्तर:
अल्पकाल

2. दीर्घकाल में उत्पादन के सभी कारक ……………………. होते हैं। (स्थिर/परिवर्ती)
उत्तर:
परिवर्ती

3. एक निश्चित अवधि में उत्पादित की गई वस्तुओं व सेवाओं की समान मात्रा ……………………. कहलाती है। (औसत उत्पाद/कुल उत्पाद)
उत्तर:
कुल उत्पाद

4. श्रम तथा पूँजी की एक अधिक इकाई का प्रयोग करने से प्राप्त अतिरिक्त उत्पाद …………………… कहलाता है। (औसत उत्पाद/सीमांत उत्पाद)
उत्तर:
सीमांत उत्पाद

5. जब कुल उत्पाद अधिकतम होता है, तो सीमांत उत्पाद ………… होता है। (शून्य/अधिकतम)
उत्तर:
शून्य

6. वर्धमान प्रतिफल के नियम के अनुसार परिवर्ती कारक की मात्रा बढ़ाने पर उत्पादन ……………………. अनुपात में परिवर्तित होता है। (बढ़ते हुए/घटते हुए)
उत्तर:
बढ़ते हुए

7. किसी वस्तु के उत्पादन में किया गया समस्त व्यय …………………… कहलाता है। (उत्पादन लागत/सीमांत लागत)
उत्तर:
उत्पादन लागत

8. अल्पकाल में उत्पादन शून्य होने पर …………………… लागत शून्य नहीं होती। (परिवर्ती स्थिर)
उत्तर:
स्थिर

9. अल्पकाल में उत्पादन शून्य होने पर …………………… लागत शून्य हो जाती है। (परिवर्ती स्थिर)
उत्तर:
परिवर्ती

10. जब सीमान्त उत्पाद शून्य होता है तो …………………… उत्पाद अधिकतम होता है। (कुल/सीमान्त)
उत्तर:
कुल

11. जब कुल उत्पाद बढ़ती दर से बढ़ता तो …………………… भी बढ़ती दर से बढ़ता है। (कुल उत्पाद/सीमान्त उत्पाद)
उत्तर:
सीमान्त उत्पाद।

12. सीमान्त उत्पाद का सामान्य आकार …………………… आकृति का होता है। (‘U’/’V’)
उत्तर:
‘U’।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत

  1. उत्पादन प्रक्रिया आगत तथा निर्गत का संबंध है।
  2. सीमांत लागत वक्र औसत घटते-बढ़ते लागत वक्र को न्यूनतम बिंदु पर काटता है।
  3. औसत लागत वक्र ‘U’ आकार का होता है।
  4. औसत उत्पाद वक्र का आकार उल्टे ‘U’ जैसा होता है।
  5. अल्पकालीन औसत लागत वक्र औसत परिवर्तनशील लागत तथा सीमांत लागत का जोड़ होता है।
  6. घटते प्रतिफल का नियम तब लागू होता है जब सभी साधन (कारक) परिवर्तनशील होते हैं।
  7. परिवर्तनशील आनुपातिक प्रतिफल का नियम तब लागू होता है जब कम-से-कम एक साधन स्थिर रहता है।
  8. घटते प्रतिफल का नियम केवल कृषि पर लागू नहीं होता है।
  9. आंतरिक बचतें संपूर्ण उद्योग के विस्तार के कारण उत्पन्न होती हैं।
  10. यदि AC स्थिर है तो MC गिर रही होती है।
  11. आदर्श उत्पाद वह उत्पाद है जिस पर सीमांत आय सीमांत लागत के बराबर होती है।
  12. यदि सीमांत उत्पादन शून्य होता है तो कुल उत्पादन अधिकतम होता है।
  13. बंधी व घटती-बढ़ती लागत का अंतर अल्पकाल में पाया जाता है।
  14. परिवर्तनशील अनुपात के नियम का संबंध उपभोग से है।
  15. जब अल्पकाल में उत्पादन का स्तर शून्य हो, तो स्थिर लागतें भी शून्य होती हैं।
  16. किसी उद्योग का विस्तार होने से उसकी सभी फर्मों को प्राप्त होने वाली बचतें बाहरी बचतें कहलाती हैं।
  17. पैमाने के प्रतिफल दीर्घकाल में लागू होते हैं।
  18. अल्पकाल में उत्पादन के सभी साधन परिवर्तनशील होते हैं।
  19. परिवर्तनशील अनुपात के नियम अल्पकाल में लागू होते हैं।
  20. औसत बंधी लागत उत्पादन के विभिन्न स्तरों पर बढ़ती रहती है।
  21. कुल लागत = कुल बँधी लागत + कुल परिवर्तनशील लागत।

उत्तर:

  1. सही
  2. सही
  3. सही
  4. सही
  5. गलत
  6. गलत
  7. सही
  8. सही
  9. गलत
  10. गलत
  11. सही
  12. सही
  13. सही
  14. गलत
  15. गलत
  16. सही
  17. सही
  18. गलत
  19. सही
  20. गलत
  21. सही।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उत्पादन की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
उत्पादन का अर्थ निर्गत (output) की उस मात्रा से है जिसे दी हुई तकनीक और दिए हुए आगतों (inputs) की मात्रा से प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
आगत अथवा उत्पादन कारक का क्या अर्थ है? आगतों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
किसी वस्तु के उत्पादन के लिए जिन विभिन्न मदों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें आगत अथवा उत्पादन कारक कहते हैं। उदाहरण के लिए, (i) श्रम (ii) कच्चा माल (iii) मशीन।

प्रश्न 3.
आगतों का अनुकूलतम मिश्रण क्या है?
उत्तर:
आगतों का अनुकूलतम मिश्रण से अभिप्राय विभिन्न आगतों के उस मिश्रण से है जिससे अधिकतम उत्पादन प्राप्त होता है।

प्रश्न 4.
निर्गत का क्या अर्थ है?
उत्तर:
निर्गत उत्पादन प्रक्रिया का अंतिम परिणाम है। अन्य शब्दों में, निर्गत आगत का फलन है।
निर्गत = f (आगत)

प्रश्न 5.
उत्पादन प्रक्रिया क्या है?
उत्तर:
उत्पादन प्रक्रिया वह प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत आगतों का रूपांतरण निर्गत में किया जाता है।

प्रश्न 6.
उत्पादक या उत्पादन इकाई की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
उत्पादक या उत्पादन इकाई से अभिप्राय उस व्यक्ति या संस्था से है जो आगतों को जुटाकर उत्पादन प्रक्रिया संभव बनाता है।

प्रश्न 7.
उत्पादन फलन के समीकरण को व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
q = f (x1, x2)

प्रश्न 8.
उत्पादन फलन की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
उत्पादन फलन से अभिप्राय किसी उत्पादन की इकाई के भौतिक आगतों और निर्गतों के बीचे कार्यात्मक संबंध से है।

प्रश्न 9.
दो प्रकार के उत्पादन फलन के नाम बताइए।
उत्तर:

स्थिर अनुपात में आदानों का मिश्रण।
परिवर्ती अनुपात में आदानों का मिश्रण।

प्रश्न 10.
आदानों का अनुकूलतम मिश्रण क्या है?
उत्तर:
आदानों का अनुकूलतम मिश्रण से अभिप्राय विभिन्न आदानों के उस मिश्रण से है जिससे अधिकतम उत्पादन प्राप्त होता है।

प्रश्न 11.
उत्पादन के स्थिर कारकों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
उत्पादन के स्थिर कारकों से हमारा अभिप्राय उन उत्पादन कारकों से है जिनकी पूर्ति स्थिर है अर्थात् जिनकी मात्रा को अल्पकाल में बदला नहीं जा सकता।

प्रश्न 12.
उत्पादन के परिवर्ती कारकों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उत्पादन के परिवर्ती कारकों से अभिप्राय उन उत्पादन कारकों से है जिनकी पूर्ति को बदला जा सकता है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 13.
अल्पकाल तथा दीर्घकाल की संकल्पनाओं को समझाइए।
उत्तर:
अल्पकाल समय की वह अवधि है जिसमें उत्पाद के कुछ कारक स्थिर होते हैं और कुछ कारक परिवर्ती होते हैं जिनके फलस्वरूप उत्पादन में परिवर्तन एक सीमा में ही किया जा सकता है। दीर्घकाल समय की वह अवधि है जिसमें उत्पादन के सभी कारक परिवर्ती होते हैं जिसके फलस्वरूप उत्पादन में परिवर्तन वाँछित मात्रा में किया जा सकता है।

प्रश्न 14.
सीमांत उत्पाद की परिभाषा दीजिए। इसका गणना सूत्र भी लिखें।
उत्तर:
सीमांत उत्पाद से अभिप्राय एक परिवर्ती आगत की अतिरिक्त इकाई में परिवर्तन करने से कुल भौतिक उत्पाद में होने वाले परिवर्तन से है। सीमांत उत्पाद की गणना का सूत्र निम्नलिखित है-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 1

प्रश्न 15.
सीमांत उत्पाद वक्र का सामान्य आकार कैसा होता है? एक सीमांत उत्पाद वक्र खींचिए।
उत्तर:
सीमांत उत्पाद वक्र का सामान्य आकार उल्टा ‘U’ आकृति का होता है। जैसाकि रेखाचित्र में दर्शाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 2

प्रश्न 16.
औसत उत्पाद वक्र का सामान्य आकार कैसा होता है? एक औसत उत्पाद वक्र खींचिए।
उत्तर:
औसत उत्पाद वक्र का सामान्य आकार उल्टा ‘U’ आकार का होता है। जैसाकि रेखाचित्र में दर्शाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 3

प्रश्न 17.
औसत उत्पाद और सीमांत उत्पाद वक्र का आकार उल्टा ‘U’ आकार का क्यों होता है? एक कुल उत्पाद वक्र खींचिए।
उत्तर:
औसत उत्पाद और सीमांत उत्पाद वक्र का आकार उल्टा ‘U’ इसलिए होता है क्योंकि परिवर्ती अनुपातों के नियम के अनुसार उत्पादन पहले बढ़ता है और बाद में घटता है। एक कुल उत्पाद वक्र को निम्न रेखाचित्र द्वारा दर्शाया गया है-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 4

प्रश्न 18.
परिवर्ती अनुपात का नियम क्या है? यह किस अवधि में लागू होता है?
उत्तर:
परिवर्ती अनुपात का नियम यह बताता है कि जब स्थिर कारकों के साथ परिवर्ती कारक की मात्रा में है, तो पहले औसत तथा सीमांत उत्पाद एक सीमा तक बढ़ेंगे और उसके पश्चात् घटने लगेंगे। परिवर्ती अनुपात का नियम अल्पकाल – में लागू होता है।

प्रश्न 19.
परिवर्ती अनुपातों के नियम का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
परिवर्ती अनुपातों के नियम का मुख्य कारण स्थिर कारकों का अनुकूलतम उपभोग है। आरंभ में अधूरे उपयोग में लाए जाने वाले स्थिर कारक जैसे मशीन पर परिवर्ती कारक की इकाइयाँ बढ़ाने से कारक-मिश्रण आदर्श होता जाने से कारकों का श्रेष्ठ व पूर्ण उपयोग होने लगता है। फलस्वरूप उत्पाद बढ़ती दर से प्राप्त होता है। परंतु अनुकूलतम बिंदु प्राप्त होने के बाद भी परिवर्ती कारक की मात्रा बढ़ाने पर कारकों का आदर्श मिश्रण टूट जाता है, जिसमें ह्रासमान प्रतिफल शुरू हो जाता है।

प्रश्न 20.
परिवर्ती अनुपातों के नियम की तीन अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:

  1. कुल उत्पाद में वृद्धिमान दर से वृद्धि।
  2. कुल उत्पाद में ह्रासमान दर से वृद्धि।
  3. कुल उत्पाद में कमी।

प्रश्न 21.
अधिकतम लाभ कमाने की इच्छुक फर्म परिवर्ती अनुपात के कौन-से चरण में उत्पादन करना चाहेगी?
उत्तर:
अधिकतम लाभ कमाने की इच्छुक फर्म परिवर्ती अनुपात के दूसरे चरण में उत्पादन करना चाहेगी।

प्रश्न 22.
पैमाने का प्रतिफल क्या होता है?
उत्तर:
पैमाने का प्रतिफल वह उत्पादन फलन है जो यह बताता है कि यदि उत्पादन के सभी साधनों की इकाइयों को एक साथ बढ़ाया जाए, तो कुल उत्पादन पर इसकी क्या प्रतिक्रिया होगी। दूसरे शब्दों में, पैमाने के प्रतिफल यह स्पष्ट करते हैं कि किसी निर्दिष्ट पैमाना रेखा पर यदि सभी साधनों में आनुपातिक वृद्धि की जाए तो उत्पादन में किस अनुपात में वृद्धि होगी।

प्रश्न 23.
पैमाने के प्रतिफल किस समय अवधि में लागू होते हैं। पैमाने के प्रतिफल के तीन प्रकार बताइए।
उत्तर:
पैमाने के प्रतिफल दीर्घकाल में लागू होते हैं। इसके तीन प्रकार हैं (i) पैमाने के वर्धमान (बढ़ते) प्रतिफल, (ii) पैमाने के स्थिर प्रतिफल, (iii) पैमाने के ह्रासमान (घटते) प्रतिफल।

प्रश्न 24.
पैमाने के वर्धमान प्रतिफल का अर्थ बताइए।
उत्तर:
पैमाने के वर्धमान प्रतिफल से हमारा अभिप्राय उत्पादन फलन की उस स्थिति से है जिसमें कुल उत्पाद में उसी अनुपात से अधिक वृद्धि होती है, जिस अनुपात में आगत के कारकों को बढ़ाया जाता है।

प्रश्न 25.
पैमाने के स्थिर प्रतिफल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पैमाने के स्थिर प्रतिफल से हमारा अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें आगत (input) के सभी कारकों को निश्चित अनुपात में बढ़ाए जाने पर उत्पादन निर्गत में भी उसी अनुपात में वृद्धि होगी।

प्रश्न 26.
पैमाने के हासमान प्रतिफल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल से हमारा अभिप्राय उस स्थिति से है जिसके अंतर्गत आगत (input) के सभी कारकों को एक निश्चित अनुपात में बढ़ाने पर उत्पादन/निर्गत में उस अनुपात से कम वृद्धि होगी।

प्रश्न 27.
दीर्घकाल में पैमाने के वर्धमान प्रतिफलों के लिए उत्तरदायी दो कारक बताइए।
उत्तर:

  1. श्रम विभाजन
  2. विशिष्ट मशीनों का उपयोग।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 28.
श्रम विभाजन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
श्रम विभाजन से अभिप्राय उस कार्य पद्धति से है जिसके अंतर्गत श्रमिकों को उनकी योग्यता व क्षमता के अनुसार कार्य दिया जाता है।

प्रश्न 29.
अधिक खरीददारी पर कटौती (Volume Discount) क्या होती है?
उत्तर:
बड़ी मात्रा में एक साथ खरीददारी करने पर कीमत में जो कटौती या छूट (Discount) मिलती है, उसे अधिक खरीददारी पर कटौती या थोक की छूट कहते हैं।

प्रश्न 30.
समान मात्रा (iso-quant) की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
समान मात्रा दो आगतों के उन सभी संभावित कारकों को प्रकट करती है जो एक-समान कुल उत्पाद प्रदान करते हैं।

प्रश्न 31.
एक समान मात्रा वक्र ऋणात्मक ढाल वाला वक्र क्यों होता है?
उत्तर:
एक समान मात्रा वक्र ऋणात्मक ढाल वाला वक्र इसलिए होता है क्योंकि दो आगतों की मात्राओं में परिवर्तन विपरीत दिशा में होते हैं।

प्रश्न 32.
समान मात्रा मानचित्र (Iso-quant Map) क्या है? रेखाचित्र बनाकर दर्शाएँ।
उत्तर:
समान मात्रा वक्रों के समूह या परिवार को समान मात्रा मानचित्र कहते हैं। इसका रेखाचित्र नीचे दिया गया है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 5

प्रश्न 33.
उत्पादन की लागत से आपका क्या अभिप्राय है? उत्पादन की लागत के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
उत्पादन की लागत से हमारा अभिप्राय उन व्ययों से है जिनका संबंध एक वस्तु के उत्पादन से होता है। उत्पादन की लागत के दो उदाहरण निम्नलिखित हैं-(i) मजदूरी, (ii) कच्चे माल की लागत।

प्रश्न 34.
स्थिर लागतों से आपका क्या अभिप्राय है? स्थिर लागतों के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
स्थिर लागतों से हमारा अभिप्राय उन लागतों से है जो उत्पादन में परिवर्तन के परिणामस्वरूप परिवर्ती नहीं होतीं। स्थिर लागतें विभिन्न उत्पादन स्तरों पर एक समान रहती हैं। स्थिर लागतों के दो उदाहरण हैं-(i) भवन का किराया, (ii)बीमा किश्त।

प्रश्न 35.
एक फर्म का स्थिर लागत (FC) वक्र खींचिए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 6

प्रश्न 36.
परिवर्ती लागतों से आपका क्या अभिप्राय है? इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
परिवर्ती लागतों से हमारा अभिप्राय उन लागतों से है जो उत्पादन में परिवर्तन के साथ परिवर्तित होती हैं। उदाहरण के लिए, (i) कच्चे माल की लागत, (ii) बिजली-शक्ति पर व्यय।

प्रश्न 37.
कुल परिवर्ती लागत वक्र (TVC) खींचिए।
उत्तर:
TVC वक्र उल्टे S आकार जैसा होता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 7

प्रश्न 38.
स्थिर और परिवर्ती लागतों में भेद करें।
उत्तर:
स्थिर लागतें वे लागतें होती हैं जो उत्पादन की मात्रा घटाने-बढ़ाने पर घटती-बढ़ती नहीं है, बल्कि स्थिर रहती हैं। परिवर्ती लागतें वे लागतें होती हैं जो उत्पादन की मात्रा बढ़ाने पर बढ़ती हैं, उत्पादन की मात्रा घटाने पर घटती हैं और उत्पादन बंद होने पर बंद हो जाती हैं।

प्रश्न 39.
औसत लागत से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
औसत लागत से अभिप्राय उत्पादन (निर्गत) की प्रति इकाई कुल लागत से है। कुल लागत को उत्पादन की मात्रा से भाग देने पर औसत लागत प्राप्त होती है। सूत्र के रूप में,
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 8

प्रश्न 40.
सीमांत लागत से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सीमांत लागत से अभिप्राय किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई का उत्पादन (निर्गत) करने की लागत से है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 9

प्रश्न 41.
औसत स्थिर लागत से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
औसत स्थिर लागत से अभिप्राय प्रति इकाई स्थिर लागत से है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 10

प्रश्न 42.
औसत स्थिर लागत (AFC) वक्र खींचिए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 11

प्रश्न 43.
औसत परिवर्ती लागत से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
औसत परिवर्ती लागत से अभिप्राय प्रति इकाई परिवर्ती लागत से है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 12
AVC = \(\frac { TVC }{ q }\)

प्रश्न 44.
औसत परिवर्ती लागत (AVC) वक्र खींचिए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 13

प्रश्न 45.
सीमांत लागत (MC) सारणी से कुल परिवर्ती लागत (TVC) कैसे निकाली जाती है?
उत्तर:
सीमांत लागतों को जोड़कर कुल परिवर्ती लागत (TVC) निकाली जाती है।
TVC = ∑MC

प्रश्न 46.
सीमांत लागत (MC) वक्र से आप कुल परिवर्ती लागत (TVC) कैसे ज्ञात करेंगे?
उत्तर:
कुल परिवर्ती लागत सीमांत लागत वक्र तथा क्षैतिज अक्ष के बीच के क्षेत्रफल के समान होती है अर्थात् कुल परिवर्ती लागत सीमांत लागत वक्र के नीचे का क्षेत्रफल होती है। अन्य शब्दों में, MC वक्र के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रफल को मापकर TVC ज्ञात की जाती है।

प्रश्न 47.
AFC वक्र का सामान्य आकार कैसा होता है?
उत्तर:
AFC वक्र का सामान्य आकार ऊपर से नीचे की ओर ढलवाँ होता है। AFC वक्र आयताकार अतिपरवलय आकार का होता है।

प्रश्न 48.
जब औसत लागत बढ़ रही हो तो क्या औसत लागत सीमांत लागत से कम हो सकती है?
उत्तर:
हाँ, जब औसत लागत बढ़ रही हो तो औसत लागत सीमांत लागत से कम हो सकती है।

प्रश्न 49.
क्या ATC तथा AVC वक्र प्रतिच्छेदन करते हैं?
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 14
ATC तथा AVC वक्र कभी भी एक-दूसरे को प्रतिच्छेद नहीं करते। कारण
ATC = AFC + AVC
ATC > AVC. (चूँकि AFC >0)
अर्थात् ATC सदैव AVC से अधिक होती है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अल्पकालीन उत्पादन फलन तथा दीर्घकालीन उत्पादन फलन में भेद कीजिए। परिवर्ती अनुपात उत्पादन फलन तथा समान/स्थिर अनुपात उत्पादन फलन में अंतर बताइए।
अथवा
उत्तर:

अल्पकालीन (परिवर्ती अनुपात) उत्पादन फलनदीर्घकालीन (समान/स्थिर अनुपात) उत्पादन फलन
1. इस उत्पादन फलन में, उत्पादन के स्तर में परिवर्तन के साथ-साथ कारक आगत अनुपात में परिवर्तन होता है।1. इस उत्पादन फलन में, उत्पादन के स्तर में परिवर्तन के साथ-साथ कारक आगत अनुपात समान/स्थिर रहता है।
2. इसमें कुछ कारकों के स्थिर रहते हुए, केवल कुछ कारकों में परिवर्तन करके ही उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है।2. इसमें सभी कारक आगतों की मात्रा में वृद्धि करके उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है।
3. इसमें उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन होने से उत्पादन के पैमाने में परिवर्तन नहीं होता।3. इसमें उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन होने के साथ-साथ उत्पादन के पैमाने में भी परिवर्तन होता है।

प्रश्न 2.
MP वक्र AP वक्र को उसके उच्चतम बिंदु पर काटता है, क्यों?
उत्तर:
क्योंकि, जब AP में वृद्धि होती है, तब MP > AP होता है। जब AP में गिरावट आती है तब MP < AP होता है। जब AP अपने उच्चतम बिंदु पर स्थिर होता है, तब MP = AP होता है। अतः MP वक्र AP वक्र को उसके उच्चतम बिंदु पर काटता है।

प्रश्न 3.
सीमांत भौतिक उत्पादन में परिवर्तन आने पर कुल भौतिक उत्पादन में कैसे परिवर्तन आते हैं?
उत्तर:
सबसे पहले सीमांत भौतिक उत्पादन (MPP) बढ़ता है, जिसके कारण TPP कुल भौतिक उत्पाद (TPP) बढ़ती दर से बढ़ता है। इसके बाद जब MPP घटती दर से बढ़ता है तो TPP घटती दर पर बढ़ता है। उसके बाद MPP कम होता हुआ शून्य पर पहुँच जाता है तो TPP घटती दर पर बढ़ते हुए अधिकतम बिंदु पर पहुँचता है तथा स्थिर हो जाता है। इसके बाद जब MPP ऋणात्मक हो जाता है। तब TPP घटना आरंभ हो जाता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 15

प्रश्न 4.
TP और MP में संबंध बताइए।
उत्तर:

  1. जब TP बढ़ती दर से बढ़ता है, तो MP बढ़ता है।
  2. जब TP घटती हुई दर से बढ़ता है, तो MP घटता है।
  3. जब TP अधिकतम होता है, तो MP शून्य (zero) होता है।
  4. जब TP घट रहा होता है, तो MP ऋणात्मक (-) होता है।

प्रश्न 5.
AP और MP में संबंध बताइए।
उत्तर:

  1. AP तब तक बढ़ता है, जब MP > AP होता है।
  2. AP तब अधिकतम होता है, जब MP = AP होता है।
  3. AP तब गिरता है, जब MP < AP होता है।
  4. AP कभी भी शून्य नहीं होता, जबकि MP शून्य भी हो सकता है और ऋणात्मक भी।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 6.
एक कारक (साधन) के प्रतिफल का क्या अर्थ है? एक कारक के वर्धमान या बढ़ते प्रतिफल किस कारण से प्राप्त होते हैं?
उत्तर:
एक कारक (साधन) के प्रतिफल से हमारा अभिप्राय एक परिवर्ती कारक की एक इकाई में परिवर्तन करने से कुल भौतिक उत्पादन में होने वाले परिवर्तन से है, यदि अन्य सभी कारकों की इकाइयों को पूर्ववत (अपरिवर्तित) रखा जाए। उदाहरण के लिए, अन्य कारकों को स्थिर रखते हुए यदि श्रमिकों की इकाइयों में वृद्धि की जाती है तो कुल उत्पादन में होने वाली वृद्धि श्रम का प्रतिफल होगा।

एक कारक के बढ़ते प्रतिफल निम्नलिखित कारणों से होते हैं-
1. स्थिर कारकों का अनुकूलतम उपयोग-एक कारक के बढ़ते प्रतिफल का मुख्य कारण यह है कि परिवर्ती कारक की इकाइयों में वृद्धि से अविभाज्य स्थिर कारकों का अनुकूलतम व प्रभावी उपयोग होने लगता है।

2. श्रम विभाजन श्रम विभाजन से आशय उस कार्यपद्धति से है जिसके अंतर्गत श्रमिकों को उनकी योग्यता व क्षमता के अनुसार कार्य दिया जाता है।

3. थोक मात्र की कटौती-जब कच्चे माल को बड़ी मात्रा में क्रय किया जाता है तो क्रेता को अनेक बचतें व कटौतियाँ प्राप्त होती हैं।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित उत्पादन संबंधी आँकड़ों की सहायता से परिवर्ती अनुपात के नियम के विभिन्न चरणों की पहचान करें-

परिवर्ती आगत (इकाइयाँ)कुल उत्पाद
(इकाइयाँ)
00
18
220
328
428
520

उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 16

प्रश्न 8.
परिवर्ती अनुपात के नियम की तीन अवस्थाएँ रेखाचित्र द्वारा समझाइए। अथवा
दिए गए रेखाचित्र की सहायता से उत्पादन की तीन अवस्थाओं का स्पष्टीकरण कीजिए जब एक कारक आगत परिवर्तनीय हो।
उत्तर:
(i) प्रथम अवस्था-TP बढ़ती हुई दर से बढ़ता है। दूसरे शब्दों में, MP बढ़ता जाता है। यह अवस्था आरंभ से लेकर बिंदु क है जहाँ AP अधिकतम है AP=MP । इस अवस्था में AP और MP दोनों बढ़ते हैं। कुल उत्पाद (TP) बढ़ती हुई दर से बढ़त है। रेखाचित्र में TP वक्र A से B तक बढ़ता है। यह वर्धमान प्रतिफल की अवस्था कहलाती है।

(ii) द्वितीय अवस्था-TP घटती दर से बढ़ता है। दूसरे शब्दों में, MP गिरता जाता है। यह अवस्था बिंदु R से लेकर S तक जाता है। इस अवस्था में TP बढ़ता तो है, परंतु घटती दर से जैसाकि रेखाचित्र में B से C तक दिखाया गया है। इस अवस्था में AP और MP दोनों गिरते हैं और TP जब अधिकतम होता है तो MP शून्य होता है। यह ह्रासमान प्रतिफल की अवस्था कहलाती है और इस अवस्था में फर्म उत्पादन करना चाहेगी।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 17

(iii) तृतीय अवस्था इस अवस्था में TP गिरना शुरू हो जाता है अर्थात् दूसरे शब्दों में MP ऋणात्मक हो जाता है। यह शून्य से शुरू होकर वहाँ तक जाती है, जहाँ MP ऋणात्मक होता है। यहाँ TP घटना शुरू हो जाता है। यह ऋणात्मक प्रतिफल की अवस्था है।

प्रश्न 9.
हासमान सीमांत प्रतिफलों का नियम समझाइए। किसी कारक (साधन) का प्रयोग बढ़ाने पर उसका सीमांत उत्पाद कम क्यों होता है?
उत्तर:
अल्पकाल में उत्पादन के कछ कारक स्थिर होते हैं और कुछ कारक परिवर्ती। जब स्थिर कारकों के साथ परिवर्ती कारकों की मात्रा में वृद्धि की जाती है तो पहले प्रतिफल बढ़ने लगते हैं, परंतु एक अवस्था के पश्चात् प्रतिफल घटने लगते हैं। इस अवस्था को हम घटते प्रतिफल के सिद्धांत के कारण प्राप्त करते हैं। यह अवस्था परिवर्ती अनुपातों के नियम की अंतिम और आवश्यक अवस्था है। इस अवस्था में सीमांत प्रतिफल घटती दर से मिलता है जिसके कारण कुल प्रतिफल में वृद्धि घटती दर से या ऋणात्मक दर से होती है। जैसे ही एक उत्पादक संसाधनों के इष्टतम समायोजन की स्थिति प्राप्त कर लेता है, उसका कुल उत्पाद अधिकतम होता है। इस स्थिति के बाद यदि चल साधनों की मात्रा में वृद्धि होगी तो घटते प्रतिफल का सिद्धांत लागू होगा।

प्रश्न 10.
परिवर्ती अनुपात के नियम को कुल उत्पाद में होने वाले परिवर्तनों के रूप में समझाइए।
उत्तर:
परिवर्ती अनुपात का नियम (Law of Variable Proportions) – अल्पकाल में, अन्य कारकों को स्थिर रखते हुए जब परिवर्ती कारक (श्रम) की इकाइयाँ बढ़ाई जाती हैं, तो पहले कुल भौतिक उत्पाद (TPP) में बढ़ती दर से वृद्धि होती है। परंतु एक सीमा के बाद TPP में घटती दर से वृद्धि होती है। अन्ततः TPPघटने लगता है। TPP द्वारा प्रदर्शित इस व्यवहार को ‘परिवर्ती अनुपात का नियम’ कहा जाता है। इसे निम्न तालिका द्वारा सुस्पष्ट किया गया है-
उत्पादन तालिका
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 18

प्रश्न 11.
परिवर्ती अनुपात के नियम को सीमांत उत्पाद में होने वाले परिवर्तनों के रूप में समझाइए।
उत्तर:
परिवर्ती अनुपात का नियम (Law of Variable Proportions)-अल्पकाल में, अन्य कारकों को स्थिर रखते हुए जब परिवती कारक (श्रम) की इकाइयाँ बढ़ाई जाती हैं, तो पहले सीमांत भौतिक उत्पाद (MPP) में वृद्धि होती है। फिर MPP घटने लगता है लेकिन धनात्मक रहता है और शून्य तक पहुँच जाता है और अंत में MPPऋणात्मक हो जाता है। MPP द्वारा प्रदर्शित इसी व्यवहार को ‘परिवर्ती अनुपात का नियम’ कहा जाता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 19

प्रश्न 12.
पैमाने के वर्धमान प्रतिफल के अर्थ की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पैमाने के वर्धमान प्रतिफल (Increasing returns to scale)-पैमाने के वर्धमान प्रतिफल से हमारा अभिप्राय उस स्थिति से है जिसके अंतर्गत पैमाने में परिवर्तन की तुलना में उत्पादन में अधिक दर से परिवर्तन होता है। यह स्थिति पैमाने के प्रतिफल की पहली अवस्था है। पैमाने के वर्धमान प्रतिफल उत्पादन की मितव्ययिताओं के कारण होते हैं। इसे हम निम्न उदाहरण से समझा सकते हैं-

क्रम संख्याआगत्तों का पैमानाकुल उत्पाद (इकाइयाँ)सीमांत उत्पाद (इकाइयाँ)
12 श्रमिक + 1 मशीन200200
24 श्रमिक + 2 मशीन500300
36 श्रमिक + 3 मशीन900400
48 श्रमिक + 4 मशीन1,400500

प्रश्न 13.
पैमाने के प्रतिफल की विभिन्न अवस्थाओं को उत्पाद अनुसूची की सहायता से दिखाइए।
उत्तर:
पैमाने के प्रतिफल की निम्नलिखित तीन अवस्थाएँ हैं-

  • पैमाने के वर्धमान (बढ़ते) प्रतिफल (Increasing returns to scale)
  • पैमाने के स्थिर प्रतिफल (Constant returns to scale)
  • पैमाने के ह्रासमान (घटते) प्रतिफल (Decreasing returns to scale)

पैमाने के प्रतिफल (Returns to scale) की अवस्थाएँ निम्नलिखित उत्पाद अनुसूची में दर्शायी गई हैं

उत्पादन के पैमाने में वृद्धिकुल उत्पाद में वृद्धिपैमाने के प्रतिफल
की अवस्था
10 %15 %वर्धमान प्रतिफल
10 %10 %स्थिर प्रतिफल
10 %5 %हासमान प्रतिफल

प्रश्न 14.
पैमाने के वर्धमान प्रतिफल के कारण बताइए। अथवा
आंतरिक तथा बाह्य बचतें कौन-कौन सी होती हैं ?
उत्तर:
पैमाने के वर्धमान प्रतिफल के कारण पैमाने के वर्धमान प्रतिफल दीर्घकाल में, आंतरिक व बाह्य बचतों के कारण संभव होते हैं। ये बचतें छोटे पैमाने से बड़े पैमाने पर उत्पादन करने से उत्पन्न होती हैं।
I. आंतरिक बचतें-एक फर्म को अपने उत्पादन का पैमाना बढ़ाने के फलस्वरूप जो बचतें प्राप्त होती हैं, उन्हें आंतरिक बचतें कहते हैं। बिना उत्पादन बढ़ाए ये बचतें प्राप्त नहीं होती। ये वे बचतें होती हैं जो किसी फर्म विशेष को अपने निजी प्रयत्नों के फलस्वरूप प्राप्त होती हैं। ये बचतें अन्य फर्मों को प्राप्त नहीं होतीं, बल्कि केवल विशेष फर्म को प्राप्त होती हैं जिसके उत्पादन के
आकार में वृद्धि हुई है। मुख्य आंतरिक बचतें (Internal Economies) निम्नलिखित हैं

  • श्रम संबंधी बचतें बड़े पैमाने के उत्पादन से श्रम विभाजन से बचतें प्राप्त होती हैं।
  • तकनीकी बचतें तकनीकी उन्नति के कारण बचतें उपलब्ध होती हैं।
  • बाज़ार संबंधी बचतें बड़े पैमाने पर क्रय-विक्रय संबंधी बचतें मिलने लगती हैं।
  • प्रबंध संबंधी बचतें-उत्तम प्रबंध संबंधी बचतें प्राप्त होती हैं।
  • बड़ी मशीन संबंधी बचतें बड़ी मशीनों की अविभाज्यता के कारण भी बचतें प्राप्त होती हैं।

II. बाह्य बचतें बाह्य बचतें वे होती हैं जो समस्त उद्योग के विकसित होने व एक स्थान विशेष में केंद्रित सब फर्मों को उत्पादन का पैमाना बढ़ाने से प्राप्त होती हैं। एक क्षेत्र में उद्योगों के स्थानीयकरण (localisation) या केंद्रित होने से फर्मों को ये बाहरी बचतें (External Economies) प्राप्त होती हैं; जैसे

  • उत्तम परिवहन एवं संचार सुविधाओं की उपलब्धि
  • सहायक उद्योगों की स्थापना
  • बैंक तथा अन्य वित्त संस्थाओं की उपलब्धि
  • श्रमिकों के प्रशिक्षण केंद्र स्थापित होना
  • एक क्षेत्र का एक विशेष उद्योग के लिए प्रसिद्ध होना
  • चालक शक्ति का पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होना
  • विशेष प्रकार के श्रमिकों का केंद्र बन जाना
  • कच्चे माल का सुगमता से उपलब्ध होना।

प्रश्न 15.
पैमाने के हासमान प्रतिफल के कारण बताइए। अथवा
आंतरिक तथा बाह्य अवबचतें कौन-कौन-सी होती हैं?
उत्तर:
पैमाने के हासमान (घटते) प्रतिफल के कारण (Causes of Diminishing Returns to Scale)-पैमाने के ह्रासमान (घटते) प्रतिफल दीर्घकाल में आंतरिक व बाह्य अवबचतों (Internal and External Diseconomies) के कारण प्राप्त होते हैं।
I. आंतरिक अवबचतें आंतरिक अवबचतें वे हानियाँ हैं जो किसी विशेष फर्म के एक निश्चित सीमा से अधिक आकार बढ़ने के फलस्वरूप उत्पन्न होती हैं। इसका प्रभाव सारे उद्योग पर नहीं पड़ता। कुछ महत्त्वपूर्ण आंतरिक हानियाँ (Internal Diseconomies) निम्नलिखित हैं
1. प्रबंध की कठिनाइयाँ फर्म के अत्यधिक विस्तार से प्रबंध की देखभाल (Supervision) कठिन हो जाती है जिससे प्रबंधकीय कुशलता (Operational Efficiency) में गिरावट आती है।

2. तकनीकी हानियाँ-प्रत्येक मशीन की एक अनुकूलतम क्षमता (Optimum Capacity) होती है। फर्म का बहुत बड़ा आकार होने पर मशीन का अत्यधिक प्रयोग होने के कारण अनेक तकनीकी दोष पैदा होने लगते हैं।

3. लालफीताशाही-लालफीताशाही के कारण फर्म संबंधी निर्णय लेने में देरी होती है।

4. बाज़ार संबंधी हानियाँ-दूरस्थ स्थानों से कच्चे माल लाने और तैयार माल को दूर की मंडियों में बेचने का यातायात व्यय काफी बढ़ जाता है।

5. श्रम-संघ-फर्म या उद्योग का विस्तार होने से श्रमिकों की संख्या बढ़ जाने से श्रमिक अपनी माँगें मनवाने के लिए अपने श्रम-संघ बना लेते हैं जिससे औद्योगिक झगड़े शुरू हो जाते हैं।

II. बाह्य अवबचतें-बाह्य अवबचतें वे हानियाँ हैं जो किसी उद्योग के एक निश्चित सीमा से अधिक आकार बढ़ने के फलस्वरूप उत्पन्न होती हैं। इनका प्रभाव उद्योग की सभी फर्मों पर पड़ता है। कुछ महत्त्वपूर्ण बाहरी अवबचतें (External Diseconomies) निम्नलिखित हैं-

  • कच्चे माल का न मिलना।
  • विद्युत शक्ति का पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न होना।
  • यातायात की कठिनाइयाँ।
  • वित्त मिलने में कठिनाइयाँ।
  • औद्योगिक केंद्रों पर गंदी बस्तियों (Slums) तथा झुग्गी-झोंपड़ी कॉलोनियों (J.J. Colonies) का बन जाना आदि।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 16.
कारक/साधन के प्रतिफल और पैमाने के प्रतिफल में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

कारक/परिवर्ती साधन के प्रतिफलपैमाने के प्रतिफल
1. अन्य साधनों को स्थिर रखते हुए किसी परिवर्ती साधन (जैसे श्रम) की इकाइयाँ बढ़ाने से कुल भौतिक उत्पाद (TPP) में हुई वृद्धि को ‘साधन के प्रतिफल’ कहते हैं।1. उत्पादन के सभी साधनों की इकाइयों में समान अनुपात में वृद्धि करने से कुल भौतिक उत्पाद (TPP) में हुई वृद्धि को ‘पैमाने के प्रतिफल’ कहते हैं।
2. अन्य साधनों को स्थिर रखते हुए जब केवल एक ही साधन की इकाइयों में परिवर्तन किया जाता है तो परिवर्ती कारक और स्थिर कारकों का अनुपात बदल जाता है।2. उत्पादन के सभी साधनों में समान अनुपात में वृद्धि होने से साधनों का अनुपात स्थिर रहता है।
3. साधन के प्रतिफल अल्पकाल में लागू होते हैं।3. पैमाने के प्रतिफल दीर्घकाल में लागू होते हैं।

प्रश्न 17.
संख्यात्मक उदाहरण की सहायता से ‘एक कारक/साधन के प्रतिफल’ और ‘पैमाने के प्रतिफल’ में अंतर बताइए।
अथवा साधन के प्रतिफल और पैमाने के प्रतिफल में क्या अंतर है?
उत्तर:
कारक (साधन) के प्रतिफल से अभिप्राय उत्पादन के परिवर्ती कारक की एक अतिरिक्त इकाई के प्रयोग से प्राप्त होने वाली अतिरिक्त उत्पादन की मात्रा से है जैसाकि निम्नांकित तालिका से स्पष्ट होता है-

साधन/कारक (इकाइयाँ)कुल उत्पादसीमांत उत्पाद
3 श्रम +1 मशीन100
4 श्रम +1 मशीन12525
5 श्रम +1 मशीन14015

सीमांत उत्पाद साधन के प्रतिफल को व्यक्त करते हैं।
दीर्घकाल में ‘उत्पादन के पैमाने’ में वृद्धि संभव होती है। दीर्घकाल में सभी कारकों की मात्रा को समान अनुपात में बढ़ाया जाता है। इसके परिणामस्वरूप कुल उत्पाद पर जो प्रभाव होता है उसे पैमाने के प्रतिफल कहते हैं। निम्नांकित तालिका में इन्हें प्रस्तुत किया गया है। स्पष्ट है कि उत्पादन का पैमाना बढ़ाने से उत्पादन का स्तर बढ़ जाता है।

कारक (इकाइयाँ)कुल उत्पादसीमांत उत्पाद
3 श्रम + 1 मशीन100100
6 श्रम + 1 मशीन200110

प्रश्न 18.
नतिपरिवर्तक बिंदु (Point of Inflexion) क्या है?
अथवा
नीतिपरिवर्तक बिंदु के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
नतिपरिवर्तक बिंदु वह है, जहाँ TPP के ढाल में परिवर्तन होता है। इस बिंदु तक TPP बढ़ती दर से बढ़ती है। इस बिंदु के पश्चात् भी TPP में वृद्धि होती है किंतु घटती दर से। यह वह बिंदु है जहाँ उत्पादन की पहली अवस्था का अंत होता है। क्योंकि इस बिंदु पर MPP का बढ़ना रुक जाता है अथवा यह वह बिंदु है जो उत्पादन की दूसरी अवस्था के आरंभ (Beginning) को दर्शाता है, क्योंकि इस बिंदु के पश्चात् MPP घटने लगता है। संलग्न रेखाचित्र में K बिंदु को नतिपरिवर्तक बिंदु (Point of Inflexion) दर्शाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 20

प्रश्न 19.
कुल भौतिक उत्पाद अनुसूची की सहायता से पैमाने के वर्धमान (बढ़ते) और हासमान (घटते) प्रतिफल की अवधारणा को सुस्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कुल भौतिक उत्पाद अनुसूची (TPP)-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 21
पैमाने के प्रतिफल (Returns to Scale) – सभी कारकों को एक ही अनुपात में बढ़ाए जाने की दशा में होने वाली उत्पादन में वृद्धि ही पैमाने का प्रतिफल है। पैमाने के ये प्रतिफल निम्नलिखित तीन प्रवृत्ति वाले होते हैं
(i) पैमाने के वर्धमान (बढ़ते) प्रतिफल (IRS)-जैसा कि उपर्युक्त तालिका से सुस्पष्ट है, आगत संयोग 1 K + 2L, 2K+4 L तथा 3K +6L एक निश्चित अनुपात में बढ़ाए जा रहे हैं अर्थात् उत्पादन कारकों में शत-प्रतिशत वृद्धि हो रही है, लेकिन उत्पादन वृद्धि का अनुपात अधिक है, तात्पर्य यह है कि इन तीन संयोगों की तुलना में उत्पादन वृद्धि का अनुपात अधिक है (100% : 120%) तथा (50% : 63.63%)। इन प्रतिफलों को पैमाने के वर्धमान (बढ़ते) प्रतिफल (IRS) कहा जाता है।

(ii) पैमाने के स्थिर प्रतिफल (CRS) उपर्युक्त तालिका में आगत संयोग या कारक एक निश्चित अनुपात से ही बढ़ रहे हैं अर्थात् 4K +8L तथा 5K + 10L लेकिन इसमें उत्पादन का अनुपात साम्यावस्था में आ गया है अर्थात् कारकों के अनुपात में ही बढ़ रहा है। (33.3%: 33.3%)। ऐसे प्रतिफल पैमाने के स्थिर प्रतिफल कहे जाते हैं। उक्त दो संयोगों में समान अनुपात में उत्पादन
बढ़ रहा है।

(ii) पैमाने के ह्रासमान (घटते) प्रतिफल (DRS)-जब सभी कारक एक दिए हुए अनुपात में बढ़ाए जा रहे हों, लेकिन उत्पादन वृद्धि का अनुपात कम होने लगता है तो ऐसे प्रतिफलों को पैमाने के हासमान (घटते) प्रतिफल कहा जाता है। तालिका से स्पष्ट है कि आगत संयोग लगातार बढ़ रहे हैं अर्थात् (6K + 12L) तथा (7K+14L) लेकिन उत्पादन 16.6% एवं 14.28% तक ही बढ़ पा रहा है, जबकि इससे पहले के आगत संयोग में यह 25% तथा 33% था, दूसरे शब्दों में, TPP में वृद्धि 35 से 40 हो रही है, लेकिन उत्पादन वृद्धि का अनुपात 16.6% और 14.28% है।

प्रश्न 20.
स्थिर लागतों तथा परिवर्ती लागतों में अंतर बताइए। प्रत्येक के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
स्थिर लागतों से हमारा अभिप्राय उन लागतों से है जो उत्पादन की इकाइयों में परिवर्तन के परिणामस्वरूप परिवर्तित नहीं होतीं। इसके विपरीत परिवर्ती लागतों से हमारा अभिप्राय उन लागतों से है जो उत्पादन की इकाइयों में परिवर्तन के परिणामस्वरूप परिवर्तित होती हैं। स्थिर लागत वक्र X-अक्ष के समानांतर एक सीधी रेखा होता है, जबकि परिवर्ती लागत वक्र नीचे शून्य से शुरू होकर ऊपर उठता हुआ होता है अर्थात् शून्य उत्पादन पर VC शून्य होती है और उत्पादन की मात्रा जैसे-जैसे बढ़ती जाती है, VC वक्र भी ऊँचा उठता जाता है। चूँकि शुरू में VC वक्र घटती दर से और बाद में बढ़ती दर से उठता है, इसलिए यह उल्टे ‘S’ आकार का होता है। इसे हम निम्नांकित रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 22
स्थिर लागतों के दो उदाहरण-

  • भवन का किराया।
  • बीमा किश्त।

परिवर्ती लागतों के दो उदाहरण-

  • कच्चे माल की लागत।
  • उत्पादन में लगे श्रमिकों की मज़दूरी।

प्रश्न 21.
उत्पादन के शून्य स्तर पर (उत्पादन बंद करने) पर भी स्थिर लागत शून्य नहीं होती, क्यों?
उत्तर:
चूँकि स्थिर कारकों को उत्पादन के आरंभ से पहले खरीद लिया जाता है, इसलिए स्थिर या बँधी लागत उत्पादन के शून्य होने पर अथवा उत्पादन के बंद होने पर भी ज्यों-की-त्यों बनी रहती है।

प्रश्न 22.
उत्पादन की प्रारंभिक अवस्था में कुल परिवर्ती लागत (TVC) में घटती दर पर वृद्धि होती है, क्यों? कारण बताइए।
उत्तर:
एक फर्म के उत्पादन की प्रारंभिक अवस्था में कारक के वर्धमान प्रतिफल लागू होते हैं। यह वह अवस्था है जिसमें परिवर्ती कारक का सीमांत उत्पाद (MP) बढ़ने की प्रवृत्ति रखता है। बढ़ती सीमांत उत्पादकता का अर्थ है, घटती लागत। अतः जब अतिरिक्त इकाई उत्पन्न करने की लागत घट रही होती है, तब TVC में वृद्धि घटती दर पर ही होती है।

प्रश्न 23.
एक उपयुक्त रेखाचित्र की सहायता से TC, TFC और TVC के संबंध समझाइए।
उत्तर:
TC = TVC + TFC
TC कुल स्थिर लागत (TFC)X-अक्ष के समानांतर है। उत्पादन के स्तर में परिवर्तन होने पर भी यह लागत परिवर्तित नहीं होती अर्थात् स्थिर रहती है। जबकि कुल परिवर्ती लागत (TVC) उत्पादन के स्तर में वृद्धि होने से बढ़ती जाती है। जब उत्पादन का स्तर शून्य होता है तो TVC भी शून्य होती है। जबकि TFC उत्पादन के शून्य होने पर TFC शून्य नहीं होती। कुल लागत (TC) भी उत्पादन के स्तर में वृद्धि होने पर बढ़ती है। उत्पादन के शून्य स्तर पर कुल लागत TFC के बराबर होती है क्योंकि
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 23
TC = TVC + TFC
TC = 0+ TFC या TC = TFC
अतः उत्पादन के शून्य स्तर पर TC = TFC होती है। किंतु जब उत्पादन के बढ़ने पर TVC बढ़ती है तो TC भी TVC के साथ-साथ बढ़ती जाती है और TC वक्र TVC वक्र के समानांतर रहती है तथा TC और TVC का अंतर TFC के बराबर होता है।

प्रश्न 24.
AFC वक्र आयताकार अतिपरवलय (Rectangular Hyperbola) आकार का होता है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
AFC वक्र आयताकार अतिपरवलय (रक्टैंगुलर हाइपरबोला) है। इसका कारण यह है कि यदि हम उत्पादन के किसी भी स्तर Q.Q1 आदि को उससे संबंधित औसत स्थिर लागत (AFC) से गुणा करते हैं, तब हम सदैव एक स्थिर (समान) कुल स्थिर लागत प्राप्त करते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 24
रेखाचित्र में, AFC वक्र आयताकार अतिपरवलय है क्योंकि उत्पादन के स्तर पर आयत OQCF तथा उत्पादन के Q1 स्तर पर उत्पादन (निर्गत) आयत OQ1C1F1 हमें कुल स्थिर लागत के क्षेत्रफल देते हैं। ये दोनों क्षेत्रफल समान हैं।

प्रश्न 25.
क्या ATC तथा AVC वक्र एक-दूसरे को प्रतिच्छेदन करते हैं? अपने उत्तर के कारण बताइए।
उत्तर:
औसत कुल लागत (ATC) तथा औसत परिवर्ती लागत (AVC) कभी एक-दूसरे को प्रतिच्छेद नहीं करते हैं। इसका कारण यह है कि ATC = AFC + AVC
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 25
AFC कभी भी शून्य नहीं होती, उत्पादन के शून्य स्तर पर भी यह .. शून्य नहीं होती जबकि AVC उत्पादन के शून्य स्तर पर शून्य होती है। AFC के कभी शून्य न होने के कारण ATC सदैव AVC से अधिक होती है। चूंकि AVC सदैव ATC से कम होती है इसलिए ATC वक्र तथा AVC वक्र कभी एक-दूसरे को प्रतिच्छेद नहीं करते हैं।

प्रश्न 26.
सिद्ध करें कि MC की गणना TC अथवा TVC द्वारा किस प्रकार की जा सकती है?
उत्तर:
सीमांत लागत (MC) अतिरिक्त लागत होती है और अतिरिक्त लागत कभी स्थिर (बँधी) लागत नहीं हो सकती, यह सदा परिवर्ती लागत ही होती है। अतः निम्नलिखित सूत्र की सहायता से MC का अनुमान लगाया जा सकता है
MC = TCn – TCn-1
या
सीमांत लागत = ‘n’ इकाइयों की कुल लागत – ‘n-1’ इकाइयों की कुल लागत
या
MC = TVCn – TVCn-1
या
सीमांत लागत = ‘n’ इकाइयों की कुल परिवर्ती लागत – ‘n-1’ इकाइयों की कुल परिवर्ती लागत
प्रमाण (Proof):
MC = TCn – TCn-1
= (TFCn + TVCn) – (TFCn-1 + TVCn-1) (∵ TC = TFC + TVC)
= (TFCn + TVCn) – (TFCn-1 + TVCn-1)
= TVCn – TFCn-1
[TFCn = TFCn-1 क्योंकि TFC स्थिर (Constant) रहती है]

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 27.
अल्पकालीन MC वक्र ” आकार का क्यों होता है?
उत्तर:
अल्पकाल में MC वक्र ‘U’ आकार का इसलिए होता है क्योंकि शुरू में बढ़ते प्रतिफल का नियम लागू होता है जिससे MC घटती है। फिर स्थिर प्रतिफल का नियम लागू होने पर MC भी स्थिर रहती है। इसके पश्चात् MC बढ़ना शुरू करती है। अतः उत्पादन के आरंभ में सीमांत लागत कम हो रही है तथा इसके पश्चात् बढ़ रही है जिसके कारण MC वक्र ‘U’ आकार का होता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 26

प्रश्न 28.
एक रेखाचित्र की सहायता से दिखाइए कि MC वक्र के नीचे का क्षेत्रफल कुल परिवर्ती लागत (TVC) के बराबर होता है।
अथवा
उत्पादन के किसी निश्चित स्तर पर MC वक्र के नीचे का कुल क्षेत्र, उत्पादन के उस स्तर के TVC को मापता है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 27
सीमांत लागत केवल परिवर्ती लागत होती है क्योंकि MC निर्गत की एक अतिरिक्त इकाई उत्पन्न करने की एक अतिरिक्त लागत होती है। परिभाषा से ही सीमांत (अतिरिक्त) लागत स्थिर लागत नहीं हो सकती, यह केवल परिवर्ती लागत ही हो सकती है। इसके अनुसार, उत्पादन की विभिन्न इकाइयों के अनुरूप (1 से n इकाइयों तक) सीमांत लागत का कुल जोड़ TVC (कुल परिवर्ती लागत) हो जाता है। अतएव
\(\sum_{i=1}^{n}\)MC – TVC
ज्यामितीय दृष्टि से, उत्पादन के किसी भी स्तर के अनुरूप MC के नीचे का कुल क्षेत्र, उत्पादन के उस स्तर के TVC को मापता है। जैसे कि संलग्न रेखाचित्र यह प्रकट करता है कि उत्पादन के OQ स्तर के लिए, TVC = क्षेत्र OQCK =Oसे Q के बीच के उत्पादन की सभी इकाइयों के लिए ZMC है।

प्रश्न 29.
औसत लागत (AC) और सीमांत लागत (MC) के बीच संबंध बताइए।
उत्तर:
(1) औसत लागत (AC) और सीमांत लागत (MC) दोनों ही कुल लागत (TC) से ज्ञात की जा सकती हैं।
AC = \(\frac { TC }{ q }\) = तथा MC = TCn – TCn-1
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 28

(2) जब AC घटती है तो MC औसत लागत से कम होती है।

(3) जब AC बढ़ती है तब MC औसत लागत से अधिक होती है।

(4) MC वक्र AC वक्र को उसके न्यूनतम बिंदु पर काटता है।

(5) जब AC घट रही होती है तो MC बढ़ सकती है। ऐसा तब तक होता है, जब तक MC < AC हो।

प्रश्न 30.
सीमांत लागत और औसत परिवर्ती लागत के बीच क्या संबंध
उत्तर:
सीमांत लागत से अभिप्राय किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई का उत्पादन करने की लागत से है। सूत्र के रूप में,
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 29
सीमांत लागत और औसत परिवर्ती लागत में घनिष्ठ संबंध होता है। दोनों ही लागत वक्र ‘U’ आकार के होते हैं। संलग्न रेखाचित्र को देखने से यह स्पष्ट होता है कि प्रारंभिक अवस्था में औसत परिवर्ती लागत वक्र और सीमांत लागत वक्र नीचे गिरता हुआ होता है परंतु सीमांत लागत वक्र E बिंदु के बाद ऊपर उठने लगता है और औसत परिवर्ती लागत वक्र को उसके न्यूनतम बिंदु B पर काटता हुआ जाता है। इस प्रकार सीमांत लागत वक्र की गिरने और उठने की दर अधिक है।

प्रश्न 31.
एक लागत तालिका की सहायता से सीमांत लागत और औसत लागत के बीच संबंध समझाइए।
उत्तर:
सीमांत लागत तथा औसत लागत दोनों ही कुल लागत पर आधारित हैं। इसलिए सीमांत लागत और औसत लागत के बीच घनिष्ठ संबंध है। अग्रलिखित तालिका से हमें औसत लागत और सीमांत लागत के बीच संबंध का पता चलता है

उत्पादन इकाइयाँकुल लागत
(रुपए)
औसत लागत
(रुपए)
सीमांत लागत
(रुपए)
1120120120
220010080
32408040
43208080
545090130
6600100150

प्रारंभिक अवस्था में दोनों ही लागतें गिरती हुई होती हैं, लेकिन सीमांत लागत औसत लागत की तुलना में तेजी से गिरती है। जैसे-जैसे उत्पादन इकाइयों में वृद्धि होती है, दोनों ही लागतें बढ़ने लगती हैं परंतु सीमांत लागत औसत लागत से अधिक दर से बढ़ती है। औसत लागत सीमांत लागत के बाद ऊपर उठती है। सीमांत लागत चौथी उत्पादन इकाई से ऊपर उठती है, जबकि औसत लागत पाँचवीं इकाई से।

प्रश्न 32.
रेखाचित्र की सहायता से समझाइए कि फर्म के औसत लागत वक्र और सीमांत लागत वक्र के बीच क्या संबंध है। अथवा
स्पष्ट कीजिए कि जब औसत लागत गिर रही हो तो क्या सीमांत लागत बढ़ सकती है?
उत्तर:
औसत लागत वक्र तथा सीमांत लागत वक्र को कुल लागत वक्र से ज्ञात किया जाता है। इसलिए औसत लागत वक्र और सीमांत लागत वक्र में घनिष्ठ संबंध होता है। दोनों ही लागत वक्र उत्पादन फलन के कारण ‘U’ आकार के होते हैं। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 30
रेखाचित्र से यह स्पष्ट होता है कि प्रारंभिक अवस्था में औसत लागत वक्र और सीमांत लागत वक्र दोनों ही नीचे गिरते हुए होते हैं, लेकिन सीमांत लागत वक्र औसत लागत की तुलना में तेजी से गिरता है। सीमांत लागत वक्र औसत लागत वक्र की तुलना में अधिक ऊपर उठता है। ऊपर उठते हुए सीमांत लागत वक्र औसत लागत वक्र को उसके न्यूनतम बिंदु पर काटता है। जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ता जाता है, दोनों ही वक्र ऊपर उठते हैं परंतु सीमांत लागत वक्र तेजी से ऊपर उठता है।

प्रश्न 33.
TC और MC में संबंध बताइए।
उत्तर:

  1. सीमांत लागत की गणना निर्गत (उत्पादन) की दो अनुक्रमी इकाइयों की कुल लागत के अंतर द्वारा किया जाता है। अर्थात् MC = TCn – TCn-1
  2. जब TC घटती दर से बढ़ता है तो MC गिरता है।
  3. जब TC में वृद्धि दर गिरना बंद हो जाता है तो MC अपने न्यूनतम बिंदु पर होता है।
  4. जब TC बढ़ती दर से बढ़ता है, तो MC बढ़ता है।

प्रश्न 34.
एक रेखाचित्र की सहायता से ATC, AVC तथा MC: वक्रों के संबंध स्थापित कीजिए।
उत्तर:
संलग्न रेखाचित्र ATC, AVC तथा MC वक्रों के संबंध स्पष्ट करता है। तीनों लागत वक्र ‘U’ आकार के होते हैं। AVC, ATC तथा MC वक्र एक बिंदु तक तीनों गिरते हैं और उसके पश्चात् ऊपर उठते हैं।
(i) MC वक्र AVC वक्र की तुलना में तेजी से गिरता भी है और उठता भी है।

(ii) MC वक्र AVC वक्र और ATC वक्र को उनके न्यूनतम बिंदुओं B तथा C पर काटता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 31

प्रश्न 35.
“पैमाने के वर्धमान एवं ह्रासमान प्रतिफल ही क्रमशः दीर्घकालीन औसत लागत वक्र (LAC) के नीचे की ओर गिरते और ऊपर उठते हुए हिस्सों का कारण होते हैं।” इस कथन के पक्ष या विपक्ष में तर्क
LMC दीजिए।
उत्तर:
पैमाने के वर्धमान प्रतिफल दीर्घकालीन औसत लागत वक्र के नीचे की ओर तथा पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल दीर्घकालीन औसत लागत वक्र के ऊपर की ओर उठते हुए दिखाए जाते हैं। यह कथन सही है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 32
रेखाचित्र में दीर्घकालीन सीमांत लागत (LMC) वक्र दीर्घकालीन औसत लागत (LAC) वक्र को उसके न्यूनतम बिंदु E पर काटता है। उत्पादन के 0 से लेकर Q तक के स्तर में LAC घट रही है अर्थात् जिस प्रतिशत से उत्पादन बढ़ रहा है, उस प्रतिशत से कम औसत लागत बढ़ रही उत्पादन (निर्गत) है जो पैमाने के वर्धमान प्रतिफल को प्रकट कर रही है। Q से आगे उत्पादन का स्तर बढ़ने पर दीर्घकालीन लागत वक्र ऊपर की ओर उठ रहा है अर्थात् जिस अनुपात से उत्पादन का स्तर बढ़ रहा है उससे अधिक अनुपात में औसत लागत बढ़ रही है जो पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल को प्रकट करती है।

प्रश्न 36.
LAC वक्र के ‘U’ आकार होने के कारण बताइए।
उत्तर:
LAC वक्र का U आकार होने के कारण-संलग्न रेखाचित्र में LAC वक्र के तीन भाग अर्थात् शुरू में A बिंदु तक नीचे गिरने, फिर A बिंदु पर टिकने और अंत में ऊपर उठने के कारण क्रमशः पैमाने के वर्धमान, स्थिर और ह्रासमान प्रतिफल हैं। ध्यान रहे पैमाने के वर्धमान प्रतिफल का अर्थ है-औसत लागत में गिरावट आना, जबकि पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल का अर्थ है औसत लागत में वृद्धि होना।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 33
(a) आरंभ में जब कोई फर्म छोटे पैमाने से बड़े पैमाने पर उत्पादन करती है तो उसे वर्धमान या बढ़ते हुए प्रतिफल प्राप्त होते हैं। इसके मुख्य कारण बड़े पैमाने के उत्पादन से प्राप्त होने वाली बचतें (Economies of large scale) हैं। दो अति महत्त्वपूर्ण बचतें श्रम विभाजन (Division of Labour) और थोक की छूट (Volume Discount) हैं।
(i) फर्म द्वारा श्रमिकों में उनकी विशेष योग्यताओं के अनुसार कार्यों का बँटवारा, श्रम विभाजन कहलाता है। श्रम विभाजन से श्रमिकों की कार्यकुशलता बढ़ती है, समय और उपकरणों की बचत इष्टतम उत्पादन होती है और मशीनरी का अधिक उपयोग होता है जिसके फलस्वरूप फर्म की उत्पादन लागत गिर जाती है,

(ii) बड़ी मात्रा में एक साथ खरीदारी करने पर कीमत में जो कटौती या छूट (discount) मिलती है, उसे थोक की छूट कहते हैं। दूसरे शब्दों में, कच्चे माल की थोक या बड़े पैमाने पर खरीद, कम कीमत पर की जा सकती है। इससे भी फर्म की उत्पादन लागत कम हो जाती है। इन दो बचतों के अतिरिक्त बड़े पैमाने पर उत्पादन की अन्य बचतें हैं तकनीकी बचतें, प्रबंध संबंधी बचतें, वित्त संबंधी बचतें आदि।

(b) वर्धमान प्रतिफल के परिणामस्वरूप जब औसत लागत (AC) न्यूनतम हो जाती है तो फर्म को कुछ समय के लिए पैमाने के स्थिर प्रतिफल (Constant Returns) प्राप्त होते हैं; जैसे रेखाचित्र में A बिंदु पर स्थिति दर्शायी गई है। इस स्थिति में उत्पादन को, सबसे अधिक कुशलतापूर्वक किए जाने वाला उत्पादन माना जाता है, क्योंकि तब औसत लागत न्यूनतम होती है।

(c) फर्म जब A बिंदु से अधिक उत्पादन करती है तो उसे अवबचतों (diseconomies) के कारण ह्रासमान प्रतिफल प्राप्त होने लगते हैं जिससे लागत बढ़ती जाती है और औसत लागत वक्र ऊपर उठता जाता है। बड़े पैमाने के उत्पादन से अवबचतों के उदाहरण हैं प्रबंध की कठिनाइयाँ, विद्यत शक्ति का पर्याप्त मात्रा में न मिलना, यातायात व वित्त की कठिनाइयाँ. इन उपरोक्त कारणों से LAC वक्र ‘U’ आकार के होते हैं।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 37.
अल्पकालीन और दीर्घकालीन वक्रों की प्रकृति में अंतर बताइए।
उत्तर:
(i) जहाँ अल्पकाल में परिवर्ती अनुपात का नियम लागत वक्रों के आकार को निर्धारित करता है, वहाँ दीर्घकाल में पैमाने के प्रतिफलों का स्वरूप (Pattern) लागत वक्रों के ‘U’ आकार का निर्धारण करता है।

(ii) जहाँ परिवर्ती कारक के वर्धमान (बढ़ते) प्रतिफल की अवस्था के कारण SAC वक्र पहले गिरती है, फिर समान प्रतिफल के कारण SAC स्थिर रहती है, अंततः ह्रासमान (घटते) प्रतिफल के कारण SAC बढ़ती है। फलस्वरूप SAC वक्र ‘U’ आकार का हो जाता है। वहाँ बड़े पैमाने की बचतों (Economies of Scale) के कारण LAC वक्र पहले गिरता है और कुछ समय स्थिर रहने के बाद अवबचतों (Diseconomies) के कारण फिर ऊपर उठ जाता है। फलस्वरूप LAC वक्र ‘U’ आकार का हो जाता है।

(iii) LAC के ‘U’ आकार के कारण LMC भी ‘U’ आकार का हो जाता है अर्थात् LMC का ‘U’ आकार LAC के ‘U’ आकार के कारण बनता है जबकि अल्पकाल में स्थिति विपरीत रहती है, क्योंकि अल्पकाल में AC का ‘U’ आकार MC के ‘U’ आकार के कारण बनता है।

(iv) LAC वक्र SAC वक्र की तुलना में कम ढाल वाला अथवा अधिक चपटा (More Flatter) होता है।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक तालिका व रेखाचित्र की सहायता से TP, MP और AP में संबंध को स्पष्ट कीजिए। AP और MP में संबंध बताइए।
अथवा
उपयुक्त रेखाचित्र की सहायता से औसत उत्पाद तथा सीमांत उत्पाद के बीच संबंध की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
TP, AP और MP के परस्पर संबंध को निम्न तालिका व रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है TP, AP, MP की काल्पनिक तालिका

भूभि व पूँजी
(स्थिर कारक)
श्रम की इकाइयाँ
(परिवर्ती कारक)
TPAPMP
10O00
11222
12634
131246
142058
152555
16294.84
17314.42
18 313.90
19293.2-2

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 34
TP और MP में संबंध-

  • जब TP बढ़ती दर से बढ़ता है, तो MP बढ़ता है।
  • जब TP घटती हुई दर से बढ़ता है, तो MP घटता है।
  • जब TP अधिकतम होता है, तो MP शून्य होता है।
  • जब TP घट रहा होता है, तो MP ऋणात्मक (-) होता है।

AP और MP में संबंध-

  • जब AP बढ़ता है, तो MP, AP से अधिक होता है (तालिका की चौथी इकाई तक)।
  • AP उस समय अधिकतम होता है, जब MP, AP के बराबर होता है। (तालिका की 5वीं इकाई पर)।
  • AP तब गिरता है, जब MP, AP से कम होता है।
  • MP शून्य व ऋणात्मक हो सकता है, परंतु AP शून्य नहीं हो सकता।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पर नोट लिखिए (क) उत्पादन के स्थिर कारक (Fixed Factors) व परिवर्ती कारक (Variable Factors)। (ख) अल्पकाल तथा दीर्घकाल (Short Period and Long Period)।
उत्तर:
(क) उत्पादन के स्थिर व परिवर्ती कारक हम जानते हैं कि उत्पादन (निर्गत) कारकों के संयुक्त प्रयत्नों का परिणाम होता है। इन कारकों को हम अग्रलिखित दो श्रेणियों में बाँट सकते हैं-

  • स्थिर कारक तथा
  • परिवर्ती कारक।

1. स्थिर कारक-स्थिर कारक वे हैं जिनकी मात्रा अल्पकाल में स्थिर रहती है। अतः उत्पादन में परिवर्तन करने के लिए इनकी पूर्ति स्थिर रहती है। इसके अंतर्गत भूमि, उद्यमी तथा प्लांट आदि को शामिल किया जाता है, परंतु दीर्घकाल में इन कारकों को आवश्यकतानुसार बदला जा सकता है।

2. परिवर्ती कारक परिवर्ती कारकों से अभिप्राय, उन कारकों से है जिन्हें उत्पादन प्रक्रिया में आवश्यकतानुसार परिवर्तित किया जा सकता है। इसके अंतर्गत श्रम, कच्चा माल, बिजलीशक्ति आदि को शामिल किया जाता है। वे उत्पा ल बिजलीशक्ति आदि को शामिल किया जाता है। वे उत्पादन के स्तर के अनसार घटाए-बढ़ाए जा सकते हैं। उत्पादन बंद होने पर परिवर्ती कारकों का प्रयोग समाप्त हो जाता है।

किसी वस्त का उत्पादन बढ़ाने के लिए उत्पादन के कारकों की मात्रा बढ़ाई जाती है, इससे उस वस्तु का उत्पादन किस मात्रा में बढ़ता है, उसे उत्पादन के नियम (Laws of Production) कहा जाता है। यह ध्यान रहना चाहिए कि अल्पकाल (Short Period) में हम केवल परिवर्ती कारकों में परिवर्तन करके ही उत्पादन में परिवर्तन ला सकते हैं, जबकि दीर्घकाल में उत्पादन के सभी कारकों में परिवर्तन लाया जा सकता है।।

अतः दीर्घकाल में उत्पादन के पैमाने को कम या अधिक किया जा सकता है। इस प्रकार दीर्घकाल में पैमाने के प्रतिफल तथा अल्पकाल में कारक के प्रतिफल लागू होते हैं।

(ख) अल्पकाल तथा दीर्घकाल
1. अल्पकाल-अल्पकाल समय की वह अवधि होती है जिसमें उत्पादन का कम-से-कम एक या कुछ कारक स्थिर रहते हैं तथा बाकी के कारक परिवर्ती (Variable) होते हैं। अतः अल्पकाल में स्थिर तथा परिवर्ती दोनों प्रकार के कारक होते हैं। अल्पकाल में परिवर्ती कारक की मात्रा में परिवर्तन लाकर ही उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन लाया जा सकता है; जैसे यदि उत्पादक अल्पकाल में उत्पादन में वृद्धि करना चाहते हैं तो वे वर्तमान इमारत, प्लांट, मशीनों और उपकरणों के साथ कच्चे माल, श्रम आदि का अधिक मात्रा में प्रयोग करके ही कर सकते हैं। इसके विपरीत, यदि वे अल्पकाल में उत्पादन में कमी लाना चाहते हैं तो वे कम श्रमिकों और कच्चे माल का कम मात्रा में प्रयोग करके ऐसा कर सकते हैं, परंतु वे कारखाने की इमारत और प्लांट आदि में तुरंत परिवर्तन नहीं कर सकते।

2. दीर्घकाल-दीर्घकाल समय की वह अवधि होती है जिसमें उत्पादन के सभी कारक परिवर्ती होते हैं। दीर्घकाल में कोई कारक स्थिर नहीं होता, सभी कारक परिवर्ती होते हैं। दीर्घकाल में फैक्टरी, बिल्डिंग, प्लांट, मशीनरी आदि सभी में परिवर्तन लाकर उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन लाया जा सकता है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 3.
कारक/साधन के हासमान/घटते प्रतिफल के नियम को तालिका व रेखाचित्र की सहायता से समझाएँ।
अथवा
ह्रासमान सीमांत प्रतिफल का नियम क्या है? इस नियम के लागू होने के कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:
हासमान सीमांत प्रतिफल का नियम-हासमान सीमांत प्रतिफल का नियम यह बताता है कि, “अन्य कारकों का प्रयोग स्थिर रहने पर, यदि एक परिवर्ती कारक के प्रयोग में वृद्धि की जाती है, तो एक स्तर के बाद सीमांत भौतिक उत्पाद में कमी आने लगती है।” वास्तव में, केवल परंपरावादी अर्थशास्त्री ही इसे अलग नियम का रूप देते हैं अन्यथा आधुनिक अर्थशास्त्री इसे परिवर्ती अनुपात के प्रतिफल के नियम की मात्र एक अवस्था (घटते ह्रासमान प्रतिफल की अवस्था) मानते हैं। चूँकि परिवर्ती अनुपात के नियम में ह्रासमान प्रतिफलों की प्रधानता रहती है। इसीलिए इसे ह्रासमान प्रतिफल के नियम के रूप में प्रतिबिंबित किया जाता है। वास्तव में, एक उद्योग में वर्धमान प्रतिफल का नियम प्रकट हो या न हो, ह्रासमान प्रतिफल का नियम अन्ततः अवश्य प्रकट होता है।
हासमान सीमांत प्रतिफल का नियम
तालिका व रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शन-इस नियम को दी गई तालिका एवं रेखाचित्र की सहायता से अधिक स्पष्ट किया जा सकता है। मान लो, भूमि पर खेती करने में जब श्रम व पूँजी की मात्रा (इकाइयाँ) बढ़ाई जाती हैं तो कुल उत्पाद घटती दर से बढ़ता है अर्थात् सीमांत उत्पाद निरंतर घटता जाता है। तालिका का चित्रीकरण करने से MP वक्र के ढलान से स्पष्ट हो जाता है कि जैसे-जैसे पूँजी व श्रम की इकाइयाँ बढ़ाई जाती हैं वैसे-वैसे सीमांत उत्पाद (MP) गिरता जाता है और वक्र बाएँ से दाईं ओर नीचे गिरता है।
तालिका : हासमान प्रतिफल का नियम

स्थिर कारक (भूमि)श्रम व पूँजी की इकाइयाँकुल उत्पाद (TP)सीमांत उत्पाद (MP)
x15050
x29040
x312030
x414020

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 35

नियम लागू होने के कारण इस नियम के लागू होने के निम्नलिखित कारण हैं-
1. इष्टतम उत्पादन प्रत्येक स्थिर कारक का एक इष्टतम अथवा आदर्श बिंदु होता है जिस पर उसका श्रेष्ठतम उपयोग होता है। इस इष्टतम बिंदु के आ जाने के बाद जब स्थिर कारक के साथ परिवर्ती कारक (Variable Factor) की इकाई को बढ़ाया जाता है, तो सीमांत प्रतिफल कम होने लगते हैं।

2. अपूर्ण स्थानापन्न घटते हुए प्रतिफल का दूसरा मुख्य कारण साधनों की पूर्ण स्थानापन्नता का अभाव (Lack of Perfect Substitution) है; जैसे भूमि के स्थान पर श्रम व पूँजी का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।

3. उत्पादन के कुछ स्थिर कारक होते हैं इस नियम के लागू होने का एक कारण यह है कि उत्पादन का एक या कुछ कारक स्थिर रखे जाते हैं और इसके साथ परिवर्ती कारकों की मात्रा बढ़ाई जाती है, तो स्थिर कारक का अनुपात परिवर्ती कारकों की तुलना में कम हो जाता है। फलस्वरूप एक सीमा के बाद सीमांत उत्पाद घटने लगता है।

प्रश्न 4.
अल्पकालीन औसत लागत वक्र ‘U’ के आकार की क्यों होती है?
उत्तर:
अल्पकालीन औसत लागत वक्र ‘U’ आकार की होती है। पहले बाएँ से दाएँ नीचे की ओर गिरती है फिर एक न्यूनतम बिंदु पर पहुँचने के बाद बढ़ने लगती है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है।
अल्पकालीन औसत लागत वक्र के ‘U’ के आकार की होने के निम्नलिखित दो कारण होते हैं
1. औसत स्थिर लागत व औसत परिवर्ती लागत का व्यवहार (Behaviour of AFC and AVC) – औसत लागत, AFC और AVC का जोड़ होती है। उत्पादन में जैसे-जैसे वृद्धि होती जाती है, वैसे-वैसे AFC घटती जाती है और आरंभ में AVC भी घटती है। अतः आरंभ में AC भी घटती है। बाद में AFC के गिरने की दर कम हो जाती है और AVC तीव्रता से बढ़ने लगती है। परिणामस्वरूप AC भी बढ़ने लगती है। इसलिए औसत लागत वक्र ‘U’ के आकार की हो जाती है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 36

2. परिवर्ती अनुपात के नियम का लागू होना (Due to Operation of the Law of Variable Proportions) – आरंभ में स्थिर कारक के साथ जब परिवर्ती कारक की मात्रा बढ़ाई जाती
है तो स्थिर कारक का अधिक कुशलतापूर्वक प्रयोग होने के कारण AC कम होने लगती है। G बिंदु पर AC न्यूनतम हो जाती है। यह बिंदु आदर्श उत्पादन का बिंदु है। इसका अर्थ यह है कि स्थिर कारक का कुशलतम उपयोग हो रहा है। इसके बाद जब स्थिर कारक के साथ परिवर्ती कारक की मात्रा बढ़ाई जाती है तो इसकी कार्यकुशलता कम हो जाती है और इसके फलस्वरूप औसत लागत बढ़ने लगती है तथा ‘U’ के आकार की बन जाती है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 37

प्रश्न 5.
परिवर्ती अनुपात के नियम (Law of Variable Proportions) को तालिका व रेखाचित्र द्वारा समझाइए।
अथवा
परिवर्ती अनुपात के नियम की तालिका एवं रेखाचित्र सहित व्याख्या करें। एक फर्म (उत्पादक) के लिए नियम की किस अवस्था में उत्पादन करना उपयुक्त होगा?
अथवा
परिवर्ती अनुपात का नियम क्या है? यह नियम किन कारणों से लागू होता है?
उत्तर:
परिवर्ती अनुपात का नियम यह बतलाता है कि, “अल्पकाल में, जब अन्य कारकों को स्थिर रखते हुए एक परिवर्ती कारक की इकाइयाँ बढ़ाई जाती हैं, तो पहले कुल भौतिक उत्पाद (TPP) बढ़ती दर से बढ़ता है, एक सीमा के बाद कुल उत्पाद में वृद्धि घटती दर से होती है और अंततः कुल उत्पाद घटने लगता है अर्थात् पहले सीमांत भौतिक उत्पाद (MPP) बढ़ता है, फिर कम होने लगता है लेकिन धनात्मक रहता है और अंत में ऋणात्मक हो जाता है।”

परिवर्ती अनुपात का नियम
तालिका व रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शन-उपरोक्त नियम को निम्नांकित तालिका व रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
मान लो, जब स्थिर कारकों (जैसे 2 एकड़ भूमि या पूँजी की दो इकाइयों) पर किसी परिवर्ती कारक (जैसे श्रम) की इकाइयाँ बढ़ाई जाती हैं, तो कुल उत्पाद, औसत उत्पाद तथा सीमांत उत्पाद निम्नलिखित प्रकार से परिवर्तन होगा-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 38
परिवर्ती अनुपात के नियम की अवस्थाएँ-ऊपर दी गई तालिका व संलग्न रेखाचित्र से इस नियम की निम्नलिखित तीन अवस्थाएँ या चरण स्पष्ट होते हैं
1. पहली अवस्था-तालिका से स्पष्ट है कि आरंभ में जब श्रम की अधिकाधिक इकाइयाँ स्थिर कारक भूमि पर लगाई जाती हैं, तो श्रम की तीसरी इकाई तक सीमांत उत्पाद (MP) बढ़ता जाता है इस स्थिति में कल उत्पाद (TP) बढ़ती दर से बढ़ता है। कारक के वर्धमान (बढ़ते) प्रतिफल की है। रेखाचित्र में यह अवस्था उत्पादन स्तर O बिंदु से शुरू कर Q1 बिंदु पर समाप्त हो जाती है। इस अवस्था में कुल उत्पाद (TP) बढ़ती दर से बढ़ता है जैसाकि अग्रांकित रेखाचित्र में TP वक्र O से M तक बढ़ती दर से बढ़ रहा है। इस अवस्था को बढ़ते प्रतिफल की अवस्था कहा जाता है।

2. दूसरी अवस्था दूसरी अवस्था में, श्रम की चौथी इकाई पर ह्रासमान सीमांत प्रतिफल की स्थिति आरंभ हो जाती है। सीमांत उत्पाद (MP) घटने लगता है तथा कुल उत्पाद (TP) घटती दर से बढ़ता है। सीमांत उत्पाद घटते-घटते शून्य हो जाता है। जब सीमांत उत्पाद शून्य होता है तो कुल उत्पाद अधिकतम (30) हो जाता है। रेखाचित्र में (TP) वक्र बिंदु M से बिंदु N तक घटती दर से बढ़ता हुआ अपने अधिकतम बिंदु N पर स्थिर हो जाता है। इस अवस्था में MP गिरना शुरू कर देता है और घटते-घटते बिंदु Q2 पर शून्य हो जाता है। रेखाचित्र में दूसरी अवस्था उत्पादन स्तर के Q1 बिंदु से शुरू होकर Q2 पर समाप्त होती है। इस क्षेत्र को परिवर्ती अनुपात के नियम की ह्रासमान प्रतिफल की अवस्था कहा जाता है। कोई भी फर्म दूसरी अवस्था में ही कार्यशील होने का

नतिपरिवर्तक बिंदु-यह वह बिंदु है जहाँ TP के ढाल में परिवर्तन होता है। इस बिंदु तक TP बढ़ती दर से बढ़ता है और इसके बाद TP घटती दर से बढ़ता है। यह बिंदु पहली अवस्था के अंत को और दूसरी अवस्था के आरंभ को बताता है। रेखाचित्र में M बिंदु नतिपरिवर्तक बिंदु दिखाया गया है।

3. तीसरी अवस्था इस अवस्था में MP ऋणात्मक हो जाता है। MP के ऋणात्मक होने पर TP गिरना शुरू हो जाता है जैसाकि तालिका में 7वीं इकाई लगाने पर TP 30 से कम होकर 28 हो गया बिन्दु N है। फलस्वरूप TP वक्र नीचे की ओर ढलना शुरू हो जाता है। जैसाकि रेखाचित्र में TP वक्र बिंदु N से नीचे गिरता हुआ दिखाई देता है। MP ऋणात्मक (-) हो जाता है और MP वक्र X-अक्ष के नीचे चला जाता है। इस अवस्था को ऋणात्मक प्रतिफल की अवस्था कहते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 39
फर्म कौन-सी अवस्था में उत्पादन करेगी? कोई भी फर्म दूसरी अवस्था में उत्पादन करना चाहेगी। पहली अवस्था में फर्म आदर्श कारक आगत मिश्रण की ओर बढ़ने के कारण उत्पादन बंद करने की बजाए परिवर्ती कारक की इकाइयाँ बढ़ाती जाएगी। तीसरी अवस्था में आदर्श मिश्रण टूट जाने से सीमांत उत्पाद ऋणात्मक होने व कुल उत्पाद गिरने के कारण फर्म उत्पादन नहीं करेगी। अतः कोई भी सनझदार फर्म दूसरी अवस्था में अपने उत्पादन की मात्रा का निर्णय लेगी।

नियम लागू होने के कारण इस नियम के अंतर्गत पहले बढ़ते हुए प्रतिफल और बाद में घटते हुए प्रतिफल प्राप्त होने के कारण निम्नलिखित हैं
1.स्थिर कारकों (जैसे मशीनरी) का अनुकूलतम उपयोग-आरंभ में अधूरे उपयोग में लाए जाने वाले स्थिर कारक जैसे मशीन पर परिवर्ती कारक (साधन) की इकाइयाँ बढ़ाने से कारक-मिश्रण आदर्श हो जाने से कारकों का बेहतर व पूर्ण उपयोग होने लगता है। फलस्वरूप उत्पादन बढ़ती दर से प्राप्त होता है। परंतु अनुकूलतम बिंदु प्राप्त होने के बाद भी परिवर्ती कारक की मात्रा बढ़ाने पर कारकों का आदर्श मिश्रण टूट जाता है जिससे ह्रासमान (घटते) प्रतिफल शुरू हो जाता है।

2. श्रम विभाजन व विशिष्टीकरण-जैसे-जैसे श्रम की इकाइयाँ बढ़ाई जाती हैं वैसे-वैसे श्रम विभाजन और विशिष्टीकरण बढ़ता जाता है जिससे शुरू में बढ़ते प्रतिफल प्राप्त होते हैं, परंतु एक सीमा के बाद कुशलता गिरने लगती है जिससे घटते प्रतिफल आने लगते हैं।

3. थोक पर छूट-यह बड़ी मात्रा में एक साथ कच्चा माल आदि की खरीद पर कीमत में मिलने वाली छूट है जो वर्धमान प्रतिफल प्राप्त होने में सहायक होती है। संक्षेप में, कारकों का आदर्श मिश्रण प्राप्त होना और फिर छूट जाना ही परिवर्ती अनुपात के नियम लागू होने का मुख्य कारण है।

उल्लेखनीय है कि यद्यपि परिवर्ती अनुपात के प्रतिफल के अंतर्गत हमने तीन अवस्थाएँ वर्धमान, ह्रासमान और ऋणात्मक बतलाई हैं। परंतु परिवर्ती अनुपात के नियम को प्रायः ह्रासमान प्रतिफल का नियम कहा जाता है क्योंकि परिवर्ती अनुपात के नियम में मुख्य बात घटता हुआ (ह्रासमान) प्रतिफल है।

प्रश्न 6.
औसत लागत और सीमांत लागत की परिभाषा दीजिए। सीमांत लागत और औसत लागत के बीच संबंध बताइए।
अथवा
औसत लागत और सीमांत लागत से आप क्या समझते हैं? औसत लागत और सीमांत लागत के बीच पाए जाने वाले संबंध को तालिका एवं रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
औसत लागत औसत लागत से अभिप्राय उत्पादन (निर्गत) की प्रति इकाई कुल लागत से है। कुल लागत को उत्पादन की मात्रा से भाग देने पर औसत लागत प्राप्त होती है। सूत्र के रूप में,
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 40
सीमांत लागत-सीमांत लागत से अभिप्राय किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई का उत्पादन (निर्गत) करने की लागत से है। सूत्र के रूप में,
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 41
औसत तथा सीमांत लागत में संबंध-औसत और सीमांत लागत में घनिष्ठ संबंध पाया जाता है, जिसे निम्नलिखित प्रकार – से स्पष्ट किया गया है
(1) दोनों औसत लागत और सीमांत लागत की गणना कुल लागत से की जाती है जैसे कि
AC = \(\frac { TC }{ q }\) और MCn = TCn – TCn-1
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 42

(2) जब औसत लागत घटती है, तो सीमांत लागत भी घटती है। इस अवस्था में सीमांत लागत औसत लागत से कम होती है।

(3) जेब औसत लागत स्थिर रहती है तो सीमांत लागत औसत लागत के बराबर होती है।

(4) जब औसत लागत बढ़ती है, तो सीमांत लागत भी बढ़ती है। इस अवस्था में सीमांत लागत औसत लागत से अधिक रहती है।
AC और MC के बीच पाए जाने वाले दूसरे, तीसरे तथा चौथे संबंध को संलग्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 43

(5) सीमांत लागत का न्यूनतम बिंदु औसत लागत के न्यूनतम बिंदु से पहले आता है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दिखाया गया है-

(6) जब औसत लागत पहले गिर रही हो तथा बाद में बढ़ रही हो तो सीमांत लागत वक्र औसत लागत वक्र के न्यूनतम बिंदु से गुजरता है अर्थात् सीमांत लागत वक्र औसत लागत वक्र को उसके न्यूनतम बिंदु पर नीचे से काटता हुआ ऊपर को चला जाता है।
औसत और सीमांत लागत के बीच पाए जाने वाले संबंध को निम्नांकित तालिका एवं रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
तालिका

उत्पादन मात्रा (इकाइ) (Q)कुल लागत
(TC)
औसत लागत
(AC) = (TC + Q)
सीमांत लागत
(MC)
1202020
228148
33411.36
4389.54
5428.44
64886
75688
872916

तालिका से स्पष्ट है कि आरंभ में औसत तथा सीमांत लागत दोनों गिर रही हैं। उत्पादन की छठी इकाई तक औसत लागत गिर रही है तो सीमांत लागत औसत लागत से कम है। उत्पादन की 7वीं इकाई पर औसत लागत स्थिर है तो सीमांत लागत औसत लागत के बराबर है। 8वीं इकाई पर औसत लागत बढ़ रही है तो सीमांत लागत औसत लागत से अधिक है। तालिका से यह भी स्पष्ट है कि औसत लागत का न्यूनतम बिंदु 8वीं इकाई पर है, जबकि सीमांत लागत का न्यूनतम बिंदु 5वीं इकाई पर है। औसत व सीमांत लागत के संबंध को रेखाचित्र द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 44

रेखाचित्र में AC औसत लागत वक्र तथा MC सीमांत लागत वक्र है। स्पष्ट है कि जब औसत लागत वक्र नीचे की ओर गिर रहा है तो सीमांत लागत वक्र औसत लागत वक्र के नीचे रहता है। जब औसत लागत स्थिर है तो सीमांत लागत वक्र इसके बराबर होता हुआ इसके न्यूनतम बिंदु पर नीचे से काटता है और जब औसत लागत वक्र ऊपर की ओर उठ रहा है तो सीमांत लागत वक्र के ऊपर रहता है।

प्रश्न 7.
पैमाने के प्रतिफल के नियम से आप क्या समझते हैं? इसकी अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
उदाहरण देकर पैमाने के प्रतिफल के नियम को समझाइए। यह किन कारणों से लागू होता है?
उत्तर:
पैमाने के प्रतिफल का अर्थ-पैमाने के प्रतिफल का संबंध सभी कारकों/ साधनों की मात्रा में एक ही अनुपात से परिवर्तन करने के फलस्वरूप कुल उत्पादन में होने वाले परिवर्तन से है। अन्य शब्दों में, उत्पादन के सभी कारकों की इकाइयों में समान अनुपात में वृद्धि करने से कुल भौतिक उत्पाद (TPP) में हुई वृद्धि को ‘पैमाने के प्रतिफल’ कहते हैं। यह एक दीर्घकालीन धारणा है। पैमाने को प्रतिफल इसलिए कहा जाता है क्योंकि उत्पादन के सभी कारकों को बढ़ाने से उत्पाद का पैमाना (Scale of Production) ही बदल जाता है अर्थात् उत्पादन छोटे पैमाने से बड़े पैमाने पर होने लगता है। संक्षेप में, पैमाने के प्रतिफल बताते हैं कि सभी कारकों को एक निश्चित अनुपात में बढ़ाने से कुल उत्पाद पर क्या प्रभाव पड़ता है।

पैमाने के प्रतिफल के नियम की अवथाएँ-पैमाने के प्रतिफल में उत्पादन की तीन अवस्थाएँ देखने को मिलती हैं-
1. पैमाने के वर्धमान (बढ़ते) प्रतिफल-माना कि उत्पादन के दो ही कारक (साधन) हैं श्रम (L) तथा मशीन (K)। सभी कारकों का प्रयोग एक ही अनुपात में बढ़ाए जाने पर यदि कुल उत्पाद में उस अनुपात से अधिक वृद्धि होती है तो यह पैमाने के वर्धमान प्रतिफल की अवस्था होगी। कुल भौतिक उत्पाद (TPP) में बढ़ती दर से वृद्धि होती है अर्थात् सीमांत भौतिक उत्पाद (MPP) क्रमशः बढ़ता जाता है। सभी कारकों की इकाइयों को दुगुना करने से उत्पाद दुगुने से भी अधिक हो जाता है।

2. पैमाने के स्थिर (समानुपाती) प्रतिफल-सभी कारकों का प्रयोग एक ही अनुपात में बढ़ाए जाने पर यदि उत्पादन भी उसी अनुपात में बढ़े जिस अनुपात में सभी कारकों के प्रयोग में वृद्धि की गई है, तो यह पैमाने के स्थिर प्रतिफल की स्थिति होगी। TPP में स्थिर दर से वृद्धि होती है और MPP समान रहता है। यह संक्रमणकालीन अवस्था होती है जो वर्धमान प्रतिफल की समाप्ति और ह्रासमान प्रतिफल के आरंभ के बीच में पाई जाती है। कारकों को दुगुना करने पर उत्पादन भी दुगुना हो जाता है।

3. पैमाने के हासमान (घटते) प्रतिफल-सभी कारकों का प्रयोग एक ही अनुपात में बढ़ाए जाने पर यदि उत्पादन में उस अनुपात से कम वृद्धि हो तो पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल की अवस्था होगी। TPP में घटती दर से वृद्धि होती है तथा MPP घटता है। कारकों को दुगुना करने पर उत्पादन दुगुने से कम होता है।
पैमाने के प्रतिफलों की तीनों अवस्थाओं को निम्नलिखित तालिका द्वारा भी स्पष्ट किया गया है-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 45
1. तालिका के कॉलम (3) में दर्शाए गए साधनों (श्रम तथा पूँजी) में होने वाली % वृद्धि की गणना निम्नलिखित विधि द्वारा की गई है
पूँजी में % वृद्धि = \(\frac { 2-1 }{ 1 }\) x 100 = 100% ; = \(\frac { 3-2 }{ 2 }\) 100 = 50%
इसी प्रकार श्रम में प्रतिशत वृद्धि की गणना की गई है।
श्रम में % वृद्धि = \(\frac { 4-2 }{ 2 }\) x 100 = 100% ; = \(\frac { 6-4 }{ 4 }\) x 100 = 50%
यह स्पष्ट है कि श्रम तथा पूँजी में होने वाला % परिवर्तन एक-दूसरे के बराबर है, क्योंकि इन दोनों में समान अनुपात में परिवर्तन होता है।

2. तालिका के कॉलम (4) में प्रकट किए गए कुल भौतिक उत्पाद के % परिवर्तन की गणना निम्नलिखित विधि द्वारा की गई है-
= \(\frac { 30-10 }{ 10 }\) x 100 = 200%; = \(\frac { 60-30 }{ 30 }\) x 100 = 100%
तालिका से स्पष्ट है कि पैमाने की तीसरी वृद्धि तक उत्पादन में वृद्धि कारकों के अनुपात में हुई वृद्धि से अधिक है। यह पैमाने के वर्धमान (बढ़ते) प्रतिफल की स्थिति है। पैमाने की चौथी तथा पाँचवीं वृद्धि से स्पष्ट है कि उत्पादन में वृद्धि कारकों के अनुपात में होने वाली वृद्धि के बराबर है। यह पैमाने के समान प्रतिफल का प्रतीक है। पैमाने की 6वीं, 7वीं और 8वीं वृद्धि से स्पष्ट है कि उत्पादन में वृद्धि कारकों के अनुपात में होने वाली वृद्धि से कम है जो कि पैमाने के ह्रासमान (घटते) प्रतिफल को दर्शाती है।

पैमाने के प्रतिफल के कारण – पैमाने के प्रतिफल वास्तव में बचतों (किफायतों) और अवबचतों के कारण प्राप्त होते हैं। यहाँ तक कि पैमाने के वर्धमान प्रतिफल का दूसरा नाम पैमाने की बचतें (Economies of Scale) हैं और घटते हुए प्रतिफल का दूसरा नाम पैमाने की अवबचतें (Diseconomies of Scale) हैं।

संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-

श्रम की इकाइयाँकुल उत्पाद
(TP)
औसत उत्पाद
(AP)
सीमांत उत्पाद
(MP)
150
290
3120
4140
5150
6150
7140
8120

हल:

श्रम की इकाइयाँकुल उत्पाद
(TP)
औसत उत्पाद
(AP)
सीमांत उत्पाद
(MP)
1505050
2904540
31204030
41403520
51503010
6150250
714020-10
812015-20

प्रश्न 2.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-

श्रम की इकाइयाँकुल उत्पाद
(TP)
औसत उत्पाद
(AP)
सीमांत उत्पाद
(MP)
120
216
312
48
54
60
7-4
820

हल:

श्रम की इकाइयाँकुल उत्पाद
(TP)
औसत उत्पाद
(AP)
सीमांत उत्पाद
(MP)
1202020
2361816
3481612
456148
560124
660100
7568-4

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 3.
निम्नलिखित तालिका एक कारक (साधन) की APP को दर्शाती है। ऐसा मालूम है कि रोजगार के शून्य स्तर पर TPP शून्य होती है तथा MPP तालिका का निर्धारण कीजिए।

रोजगार का स्तर123456
APP504845423935

हल:

कारक (साधन) के
रोजगार का स्तर
APPTPPMPP
1505050
2489646
34513539
44216833
53919527
63521015

प्रश्न 4.
निम्नलिखित तालिका में कुल भौतिक उत्पाद (TPP) सारणी दी गई है। औसत भौतिक उत्पाद (APP) तथा सीमांत भौतिक उत्पाद (MPP) का आकलन करें-

कारक (साधन)01234567
TPP05122028354042

हल :

कारक (साधन)TPPAPPMPP
0000
1555
21267
3206.668
42878
53577
6406.665
74262

प्रश्न 5.
निम्नलिखित तालिका में एक कारक की MPP की जानकारी दी जा रही है। हम जानते हैं कि यदि कारक प्रयोग शून्य हो तो TPP भी शून्य रहता है। TPP तथा APP सारणियों की रचना करें-

कारक (साधन) रोजगार स्तर123456
MPP20221816146

हल:

कारक (साधन) रोजगार स्तरMPPTPPAPP
1202020
2224221
3186020
4167619
5149018
669616

प्रश्न 6.
निम्न तालिका को पूरा कीजिए

कारक (इकाइयाँ)कुल उत्पाद (₹)औसत उत्पादसीमांत उत्पाद
120
218
316
414
512
610

हल :

कारक (इकाइयाँ)कुल उत्पाद (₹)औसत उत्पादसीमांत उत्पाद
1202020
2381918
3541816
4681714
5801612
6901510

प्रश्न 7.
निम्नलिखित तालिका में एक फर्म की सकल लागत सारणी दी गई है-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 45a
(क) इस फर्म की कुल स्थिर लागत (TFC) क्या है?
(ख) फर्म की AFC,AVC, ATC तथा MC सारणियाँ बनाइए।
हल :
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 45b

प्रश्न 8.
निम्नलिखित तालिका उत्पादन के विभिन्न स्तरों पर एक फर्म की सीमांत लागत दर्शाती है। इसकी TFC 120 रु० है। उत्पादन के प्रत्येक स्तर की ATC तथा AVC ज्ञात कीजिए।

उत्पादन (इकाई में)123
MC (रुपए में)403026

हल :
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 45c

प्रश्न 9.
नीचे दी गई तालिका उत्पादन के विभिन्न स्तरों पर फर्म की कुल लागत दर्शाती है। उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर MC और AVC निकालिए।

उत्पादन (इकाइयों में)01234
TC (रुपयों में)100160212280356

हल :
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 45d

प्रश्न 10.
नीचे दी गई कुल लागत अनुसूची से औसत लागत और सीमांत लागत ज्ञात कीजिए-

उत्पादन की मात्रा (इकाइयों में)012
TC (रुपए में)101522

हल:
AC तथा MC की गणना
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 46

प्रश्न 11.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 47
हल :
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 48
[संकेत : TFC = TC (उत्पादन के शून्य स्तर पर)]

प्रश्न 12.
नीचे दिए गए फर्म के लागत फलन से निम्नलिखित के मान निकालिए (a) कुल स्थिर लागत, (b) कुल परिवर्ती लागत, (c) औसत स्थिर लागत, (a) औसत कुल लागत, (e) औसत परिवर्ती लागत, (f) सीमांत लागत।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 49
हल :
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 50

प्रश्न 13.
नीचे दी गई तालिका से सीमांत लागत निकालिए-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 51
हल : सीमांत लागत की गणना

उत्पादन की मात्रा
(कि०ग्रा०)
औसत परिवर्ती लागत
(AVC)
(रु०)
कुल परिवर्ती लागत
(TVC)
(रु०)
सीमांत लागत
(MC)
(रु०)
16060
2408020
3309010
426.2510515
52814035
63521070

[संकेत : सीमांत लागत की गणना TVC की सहायता से की जा सकती है।]

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 14.
एक फर्म की नीचे दी गई लागत अनुसूची से उसके उत्पादन के कुल लागत (TC) और औसत परिवर्ती लागत (AVC) का परिकलन कीजिए।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 54a
हल :
उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर TFC (q x AFC) स्थिर रहती है और TVC = EMCs.
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 53

प्रश्न 15.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 54
हल :
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 55

प्रश्न 16.
एक फर्म की कुल स्थिर लागत 10 रुपए है और उसकी लागत अनुसूची नीचे दी गई है। कुल परिवर्ती लागत (TVC) तथा ‘कुल लागत’ (TC) का परिकलन कीजिए।

उत्पादन (इकाइयों में)1234
सीमांत लागत (रुपयों में)6546

हल:

उत्पादन की इकाइयाँसीमांत लागत
(MC) (रु०)
कुल परिवर्ती लागत (TVC) (रु०)कुल स्थिर लागत (TFC) (रु०)कुल लागत
(TC) (रु०)
1661016
25111021
34151025
46211031

सूत्रों का प्रयोग (i) कुल परिवर्ती लागत = MC1 + MC2 + ………….
(ii) कुल लागत = कुल परिवर्ती लागत + कुल स्थिर लागत।

प्रश्न 17.
दिए गए आँकड़ों की सहायता से कुल बंधी लागत तथा कुल परिवर्तनशील लागत ज्ञात कीजिए

उत्पादन (इकाइयाँ)0123456
कुल लागत (ऊ०)100120140182198208232

हल :

उत्पादन (इकाइयाँ)कुल लागत
(रु०)
कुल बंधी लागत
(रु०)
कुल परिवर्तनशील
लागत (रु०)
01001000
112010020
214010040
318210082
419810098
5208100108
6232100132

प्रश्न 18.
एक फर्म के बारे में निम्नलिखित सूचनाएँ दी गई हैं। इस सूचना के आधार पर ज्ञात कीजिए
(i) 3 इकाइयाँ उत्पादित करने की AFC
(ii) 4 इकाइयाँ उत्पादित करने की AVC
(ii) न्यूनतम औसत लागत (AC) का उत्पादन स्तर
(iv) पाँचवीं इकाई उत्पादित करने की MC
(v) 6 इकाइयाँ उत्पादित करने की कुल परिवर्ती लागत (TVC)
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 56
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 57

  1. 3 इकाइयाँ उत्पादित करने की AFC = 50 रु०
  2. 4 इकाइयाँ उत्पादित करने की AVC = 160 रु०
  3. न्यूनतम AC का उत्पादन स्तर = 4 इकाई
  4. पाँचवीं इकाई उत्पादित करने की MC = 210 रु०
  5. 6 इकाइयाँ उत्पादित करने की TVC = 1110 रु०

प्रश्न 19.
यदि स्थिर लागत 20 रु० हो तो निम्नलिखित तालिका से TVC तथा TC का परिकलन कीजिए।

उस्पादन (इकाइयाँ)0123
सीमांत जागत (र०० में)0101525

हल :

उत्पादन (इकाइयाँ)FC (रु०)MC (रु०)TVC (रु०)TC(FC+TVC) (रु०)
0200020
120101030
220152545
320255070

प्रश्न 20.
उत्पादन के दिए गए प्रत्येक स्तर पर निम्नलिखित तालिका से TVC और MC का परिकलन कीजिए।

उस्पादन (इकाइयाँ)01234
कुल लागत (रु०)40607897124

हल:

उत्पादन (इकाइयाँ)TC (रु०)TFC (रु०)TVC (रु०)MC (रु०)
04040
160402020
278403818
397405719
4124408427

प्रश्न 21.
एक फर्म की TFC 12 रु० है। इसकी तालिका नीचे दी गई है। उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर TC और AVC ज्ञात कीजिए।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 58
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 59

प्रश्न 22.
निम्नलिखित तालिका उत्पादन के विभिन्न स्तरों पर एक फर्म की सीमांत लागत (MC) दर्शाती है। इसकी कुल स्थिर लागत (TFC) 120 रु० है। उत्पादन के प्रत्येक स्तर की औसत कुल लागत (ATC) और औसत परिवर्ती लागत (AVC) ज्ञात कीजिए।

उस्पादन (इकाइयाँ)123
सीमांत जागत (र०)403026

हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 60

प्रश्न 23.
निम्नलिखित तालिका उत्पादन के विभिन्न स्तरों पर एक फर्म की कुल लागत (TC) दर्शाती है। उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर औसत परिवर्ती लागत (AVC) और सीमांत लागत (MC) ज्ञात कीजिए।

उस्पादन (इकाइयाँ)0123
कुल लागत (रुपये)60100130150

हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 61

प्रश्न 24.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए-

उत्पदनकुल परिवर्ती लागतऔसत परिवर्ती लागतसीमांत लागत
112
220
1010
440

हल:

उत्पदनकुल परिवर्ती लागतऔसत परिवर्ती लागतसीमांत लागत
1121212
220108
3301010
4401010

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 25.
एक फर्म 20 इकाइयों का उत्पादन कर रही है। इस उत्पादन स्तर पर उसके ATC तथा AVC क्रमशः 40 रुपए तथा 37 रुपए हैं। फर्म की कुल स्थिर लागतें ज्ञात करें।
हल :
उत्पादन इकाइयों की संख्या = 20
ATC = 40 रुपए
AVC = 37 रुपए
TC = 20 x 40 = 800 रुपए
TVC = 20 x 37 = 740 रुपए
फर्म की कुल स्थिर लागत = TC – TVC
= 800 – 740 = 60 रुपए
वैकल्पिक हल
AFC = ATC – AVC
= 40 – 37 = 3 रुपए
कुल स्थिर लागत = उत्पादन इकाइयाँ x AFC
= 20 x 3 = 60 रुपए

प्रश्न 26.
एक फर्म के उत्पादन विभाग के एक सप्ताह के आँकड़े निम्नलिखित प्रकार हैं

सेवायोजित श्रमिकों की संख्या50
उत्पादन इकाइयों की संख्या100
प्रत्येक श्रमिक की साप्ताहिक मज़दूरी200 रुपए
शेड का साप्ताहिक किराया400 रुपए
प्रयुक्त कच्चा माल1,600 रुपए
शक्ति300 रुपए

कुल लागत एवं औसत परिवर्ती लागत का अनुमान कीजिए।
हल:
1. श्रमिकों का वेतन = 200 x 50 = 10,000 रुपए
2. साप्ताहिक शेड का किराया = 400 रुपए
3. कच्चा माल = 1,600 रुपए
4. शक्ति = 300 रुपए
कुल लागत = 1 + 2 + 3 + 4
= 12,300 रुपए
कुल परिवर्ती लागत = 1 + 3 + 4 = 11,900 रुपए
इसलिए औसत परिवर्ती लागत = \(\frac { 11,900 }{ 100 }\) = 119 रुपए

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HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. किसी वस्तु की अतिरिक्त इकाई की उपयोगिता को क्या कहते हैं?
(A) कुल उपयोगिता
(B) सीमांत उपयोगिता
(C) प्रारंभिक उपयोगिता
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) सीमांत उपयोगिता

2. सीमांत उपयोगिता से आशय है-
(A) कुल उपयोगिता-औसत उपयोगिता
(B) एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से कुल उपयोगिता में हुई वृद्धि की मात्रा
(C) कुल उपयोगिता-कुल वस्तुओं की मात्रा
(D) पहली इकाई से प्राप्त उपयोगिता
उत्तर:
(B) एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से कुल उपयोगिता में हुई वृद्धि की मात्रा

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

3. सीमांत उपयोगिता वक्र की आकृति होती है-
(A) X. अक्ष के समानांतर
(B) Y- अक्ष के समानांतर
(C) ऋणात्मक ढाल वाली
(D) धनात्मक ढाल वाली
उत्तर:
(C) ऋणात्मक ढाल वाली

4. कुल उपयोगिता अधिकतम होती है जब-
(A) सीमांत उपयोगिता शून्य होती है
(B) सीमांत उपयोगिता ऋणात्मक होती है
(C) सीमांत उपयोगिता धनात्मक होती है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) सीमांत उपयोगिता शून्य होती है

5. जैसे-जैसे उपभोक्ता किसी वस्तु की उत्तरोतर इकाई का उपभोग करता है, तो-
(A) सीमांत उपयोगिता बढ़ती जाती है
(B) सीमांत उपयोगिता घटती जाती है
(C) कुल उपयोगिता बढ़ती जाती है।
(D) कुल उपयोगिता घटती जाती है
उत्तर:
(B) सीमांत उपयोगिता घटती जाती है

6. एक उपभोक्ता का संतुलन उस बिंदु पर होता है जहाँ पर-
(A) सीमांत उपयोगिता = कीमत
(B) सीमांत उपयोगिता > कीमत
(C) सीमांत उपयोगिता < कीमत
(D) कुल उपयोगिता = कीमत
उत्तर:
(A) सीमांत उपयोगिता = कीमत

7. सीमांत उपयोगिता धनात्मक होने पर कुल उपयोगिता-
(A) घटती है
(B) बढ़ती है।
(C) ऋणात्मक होती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) बढ़ती है

8. कुल उपयोगिता घटनी कब प्रारंभ होती है?
(A) सीमांत उपयोगिता के धनात्मक होने पर
(B) सीमांत उपयोगिता के ऋणात्मक होने पर
(C) सीमांत उपयोगिता के शून्य होने पर
(D) सीमांत उपयोगिता की संतुष्टि होने पर
उत्तर:
(B) सीमांत उपयोगिता के ऋणात्मक होने पर

9. यदि उपभोक्ता अपनी आय को X और Y पर व्यय करता है, तो उसे अधिकतम संतुष्टि प्राप्त होगी जब-
(A) MUX = MUY
(B) MUX > MUY
(C) MUX ÷ MUY
(D) MUX + MUY
उत्तर:
(A) MUX = MUY

10. सीमांत उपयोगिता हो सकती है-
(A) धनात्मक
(B) ऋणात्मक
(C) शून्य
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

11. उपयोगिता विश्लेषण के संदर्भ में, दो वस्तुओं के लिए उपभोक्ता संतुलन की शर्त है-
(A) \(\frac{M U_{x}}{P_{x}}=\frac{M U_{y}}{P_{y}}=M U_{m}\)
(B) \(\frac{\mathrm{MU}_{\mathrm{x}}}{\mathrm{P}_{\mathrm{x}}}=\mathrm{MU}_{\mathrm{m}}\)
(C) \(\frac{\mathrm{MU}_{\mathrm{x}}}{\mathrm{MU}_{\mathrm{m}}}\)
(D) \(\frac{M U_{x}}{P_{x}}+\frac{M U_{y}}{P_{y}}=M U_{m}\)
उत्तर:
(A) \(\frac{M U_{x}}{P_{x}}=\frac{M U_{y}}{P_{y}}=M U_{m}\)

12. उपभोग की इकाइयाँ 1 व 2 हैं तथा कुल उपयोगिता 10 व 18 हैं, सीमांत उपयोगिता क्या होगी?
(A) 6
(B) 8
(C) 9
(D) 12
उत्तर:
(B) 8

13. सीमांत उपयोगिता ऋणात्मक होने पर कुल उपयोगिता
(A) घटती है
(B) बढ़ती है
(C) शून्य होती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) घटती है

14. कुल उपयोगिता से सीमांत उपयोगिता का आकलन किया जाता है
(A) MU = TU
(B) MU x TU
(C) MU = \(\frac{\Delta \mathrm{TU}}{\Delta \mathrm{X}}\)
(D) MU ÷ TU
उत्तर:
(C) MU = \(\frac{\Delta \mathrm{TU}}{\Delta \mathrm{X}}\)

15. अनधिमान/तटस्थता वक्र प्रदर्शित करता है
(A) दो वस्तुओं के ऐसे बंडल जिन्हें उपभोक्ता खरीद सकता है
(B) दो वस्तुओं के ऐसे बंडल जिन्हें उपभोक्ता पसंद करता है
(C) दो वस्तुओं के ऐसे विभिन्न बंडल (संयोग) जिन पर संतुष्टि समान होती है
(D) उपभोक्ता का संतुलन
उत्तर:
(C) दो वस्तुओं के ऐसे विभिन्न बंडल (संयोग) जिन पर संतुष्टि समान होती है

16. अनधिमान (तटस्थता) वक्र
(A) बायें से दायें एवं नीचे की ओर मुड़ता है
(B) दायें से बायें एवं ऊपर की ओर मुड़ता है
(C) दायें से बायें किंतु X-अक्ष के समानांतर होता है
(D) नीचे से ऊपर की ओर किन्तु Y. अक्ष के समानांतर होता है
उत्तर:
(A) बायें से दायें एवं नीचे की ओर मुड़ता है

17. अनधिमान वक्र-
(A) मूल बिंदु से नतोदर होते हैं
(B) मूल बिंदु से उन्नतोदर होते हैं
(C) एक सीधी रेखा की भांति होते हैं
(D) कोई निश्चित आकृति नहीं होती
उत्तर:
(B) मूल बिंदु से उन्नतोदर होते हैं

18. अनधिमान वक्र प्रत्येक बिंदु पर-
(A) घटती हुई संतुष्टि बताता है
(B) समान संतुष्टि बताता है
(C) असमान संतुष्टि बताता है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) समान संतुष्टि बताता है

19. अनधिमान वक्र प्राथमिकता विश्लेषण पर आधारित है जिसका दृष्टिकोण
(A) क्रमवाचक है
(B) संख्यात्मक है
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) क्रमवाचक है

20. दायीं ओर का अनधिमान वक्र संतुष्टि के
(A) समान स्तर को बताता है
(B) ऊँचे स्तर को बताता है
(C) निम्न स्तर को बताता है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) ऊँचे स्तर को बताता है

21. एक उपभोक्ता जब अनधिमान वक्र पर दायें नीचे की ओर चलता है, तो X वस्तु की सीमांत प्रतिस्थापन दर Y वस्तु के लिए
(A) घटती है
(B) बढ़ती है
(C) समान रहती है
(D) उपर्युक्त कोई भी नहीं
उत्तर:
(A) घटती है

22. कुछ घटिया वस्तुओं (Inferior Goods) की कीमत गिराने पर प्रायः उनकी माँग बढ़ने के बजाय घटती है, इसका कारण है-
(A) माँग का नियम
(B) गिफ्फन का विरोधाभास
(C) आय प्रभाव
(D) प्रतिस्थापन प्रभाव
उत्तर:
(B) गिफ्फन का विरोधाभास

23. वस्तु की कीमत तथा उसकी माँग के बीच विपरीत संबंध का कारण है-
(A) सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम
(B) आय प्रभाव
(C) प्रतिस्थापन प्रभाव
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

24. माँग का नियम बताता है-
(A) माँग, कीमत से विपरीत रूप से संबंधित होती है
(B) कीमत, माँग से विपरीत रूप से संबंधित होती है
(C) कीमत, पूर्ति से विपरीत रूप से संबंधित होती है
(D) पूर्ति, कीमत से विपरीत रूप से संबंधित होती है
उत्तर:
(A) माँग, कीमत से विपरीत रूप से संबंधित होती है

25. माँग में विस्तार एवं संकुचन में-
(A) माँग वक्र में परिवर्तन हो जाता है
(B) माँग वक्र में स्थान परिवर्तन हो जाता है
(C) माँग वक्र ऊपर की ओर स्थानांतरित हो जाता है
(D) माँग वक्र नीचे की ओर स्थानांतरित हो जाता है
उत्तर:
(B) माँग वक्र में स्थान परिवर्तन हो जाता है

26. आय एवं माँग के बीच सामान्यतया-
(A) विपरीत संबंध होता है
(B) सीधा संबंध होता है
(C) कोई संबंध नहीं होता है
(D) उपर्युक्त तीनों कथन गलत हैं
उत्तर:
(B) सीधा संबंध होता है

27. निम्नलिखित में से कौन-सा माँग वक्र के नीचे की ओर झुके होने का कारण है?
(A) घटती सीमांत उपयोगिता का नियम
(B) आय प्रभाव
(C) प्रतिस्थापन प्रभाव
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

28. गिफ्फन के विरोधाभास (Giffen’s Paradox) से अभिप्राय है-
(A) माँग वक्र का ढाल ऋणात्मक होना
(B) माँग वक्र का ढाल धनात्मक होना
(C) माँग वक्र का OX-अक्ष के समानांतर होना
(D) माँग वक्र का OY-अक्ष के समानांतर होना
उत्तर:
(B) माँग वक्र का ढाल धनात्मक होना

29. निम्नलिखित में से कौन-सा माँग के नियम का अपवाद नहीं है?
(A) प्रतिष्ठासूचक वस्तु
(B) गिफ्फन पदार्थ
(C) अज्ञानता
(D) सामान्य वस्तु
उत्तर:
(D) सामान्य वस्तु

30. निम्नकोटि की वस्तुओं से क्या अभिप्राय है?
(A) कीमत बढ़ने पर माँग कम होती है।
(B) कीमत कम होने पर माँग कम होती है
(C) कीमत में परिवर्तन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता
(D) कीमत कम होने से माँग बढ़ती है
उत्तर:
(B) कीमत कम होने पर माँग कम होती है

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

31. कीमत में कमी होने से माँग के बढ़ने को कहा जाता है
(A) माँग का विस्तार
(B) माँग का संकुचन
(C) माँग में वृद्धि
(D) माँग में कमी
उत्तर:
(A) माँग का विस्तार

32. पूरक वस्तु की कीमत में कमी होने पर वस्तु की माँग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(A) माँग बढ़ेगी
(B) माँग घटेगी
(C) माँग वही रहेगी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) माँग बढ़ेगी

33. माँग में वृद्धि की स्थिति में-
(A) माँग वक्र में नीचे बाईं ओर खिसकाव होता है
(B) माँग वक्र में ऊपर दाईं ओर खिसकाव होता है
(C) माँग वक्र पर नीचे की ओर चलन होता है
(D) माँग वक्र पर ऊपर की ओर चलन होता है
उत्तर:
(B) माँग वक्र में ऊपर दाईं ओर खिसकाव होता है

34. बाज़ार माँग व्यक्त करती है-
(A) बहुत-से व्यक्तियों की माँग को
(B) सभी व्यक्तियों की माँग को
(C) दो व्यक्तियों की माँग को
(D) एक व्यक्ति की माँग को
उत्तर:
(B) सभी व्यक्तियों की माँग को

35. माँग का नियम संबंध व्यक्त करता है-
(A) माँग और कीमत में
(B) माँग और आय में
(C) माँग और अन्य वस्तुओं की कीमत में
(D) माँग और व्यय राशि में
उत्तर:
(A) माँग और कीमत में

36. किन वस्तुओं की माँग आय के साथ प्रत्यक्ष रूप से संबंधित होती है?
(A) अनिवार्य वस्तुओं की।
(B) निकृष्ट वस्तुओं की
(C) विलासिता की वस्तुओं की
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) अनिवार्य वस्तुओं की

37. माँग वक्र के ऋणात्मक ढलान का कारण है-
(A) घटती सीमांत उपयोगिता का नियम
(B) आय प्रभाव
(C) प्रतिस्थापन प्रभाव
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) घटती सीमांत उपयोगिता का नियम

38. माँग में परिवर्तन किससे होता है?
(A) उपभोक्ता की आय से
(B) संबंध अथवा अन्य वस्तुओं की कीमत से
(C) अभिरुचियों एवं कीमत संभावना से
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

39. माँगी गई मात्रा में परिवर्तन का कारण है-
(A) वस्तु की अपनी कीमत में परिवर्तन
(B) आय में परिवर्तन
(C) जनसंख्या में परिवर्तन
(D) अन्य वस्तु की कीमत में परिवर्तन
उत्तर:
(A) वस्तु की अपनी कीमत में परिवर्तन

40. किन वस्तुओं पर माँग का नियम लागू होता है?
(A) गिफ्फन वस्तुओं पर
(B) सामान्य वस्तुओं पर
(C) स्थानापन्न वस्तुओं पर
(D) प्रतिष्ठासूचक वस्तुओं पर
उत्तर:
(B) सामान्य वस्तुओं पर

41. सामान्य वस्तुओं के माँग वक्र का ढलान कैसा होता है?
(A) धनात्मक
(B) ऋणात्मक
(C) स्थिर
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) ऋणात्मक

42. यदि आय वृद्धि के परिणामस्वरूप X वस्तु की माँग बढ़ जाती है, तो वस्तु का स्वरूप बताइए
(A) घटिया वस्तु
(B) सामान्य वस्तु
(C) स्थानापन्न वस्तु
(D) पूरक वस्तु
उत्तर:
(B) सामान्य वस्तु

43. माँग में कमी का कारण है
(A) स्थानापन्न वस्तु की कीमत में कमी
(B) पूरक वस्तु की कीमत में कमी
(C) उपभोक्ता की आय में वृद्धि
(D) निकट भविष्य में कीमत में वृद्धि की संभावना
उत्तर:
(A) स्थानापन्न वस्तु की कीमत में कमी

44. यदि x वस्तु की कीमत में वृद्धि के कारण Y वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है, तो इन वस्तुओं के बीच किस प्रकार का संबंध है?
(A) स्थानापन्न वस्तुओं का
(B) पूरक वस्तुओं का
(C) सामान्य वस्तुओं का
(D) घटिया वस्तुओं का
उत्तर:
(A) स्थानापन्न वस्तुओं का

45. गिफ्फन वस्तु के लिए माँग वक्र का ढलान कैसा होता है?
(A) सामान्य
(B) ऋणात्मक
(C) धनात्मक
(D) स्थिर
उत्तर:
(C) धनात्मक

46. माँग की कीमत लोच से अभिप्राय है-
(A) कीमत में परिवर्तन के कारण माँग में परिवर्तन
(B) माँग में परिवर्तन
(C) वास्तविक आय में परिवर्तन
(D) कीमत में परिवर्तन
उत्तर:
(A) कीमत में परिवर्तन के कारण माँग में परिवर्तन

47. एक ऐसा माँग वक्र जो X-अक्ष के समानांतर होता है। यह किस प्रकार की लोच प्रदर्शित करता है?
(A) अनंत
(B) इकाई से कम
(C) शून्य
(D) बेलोचदार माँग
उत्तर:
(A) अनंत

48. कीमत लोच गुणांक की गणना के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-
(A) \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
(B) \(\frac{\Delta p}{\Delta q} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
(C) \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{q^{0}}{p^{0}}\)
(D) \(\frac{\Delta p}{\Delta q} \times \frac{p^{0}}{p^{0}}\)
उत्तर:
(A) \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)

49. यदि कीमत में कमी के परिणामस्वरूप माँग में परिवर्तन न हो तो लोच गुणांक निम्नलिखित होगा
(A) शून्य
(B) अनंत
(C) इकाई के बराबर
(D) इकाई से अधिक
उत्तर:
(A) शून्य

50. निम्नलिखित सूत्र में-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 1
रिक्त-स्थान में लिखा जाएगा-
(A) माँग में परिवर्तन
(B) मूल कीमत
(C) माँगी गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन
(D) मूल माँग
उत्तर:
(C) माँगी गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन

51. यदि माँग में प्रतिशत परिवर्तन कीमत में प्रतिशत परिवर्तन से कम हो तो माँग की लोच ……………. होगी।
(A) इकाई
(B) इकाई से अधिक
(C) इकाई से कम
(D) शून्य
उत्तर:
(C) इकाई से कम

52. माँग की लोच प्रदर्शित करती है-
(A) माँगी गई मात्रा में परिवर्तन
(B) माँगी गई मात्रा में परिवर्तन की दर
(C) कीमत में परिवर्तन
(D) आय में परिवर्तन
उत्तर:
(B) माँगी गई मात्रा में परिवर्तन की दर

53. माँग की कीमत लोच की श्रेणियाँ कितनी होती हैं?
(A) सात
(B) पाँच
(C) बारह
(D) दो
उत्तर:
(B) पाँच

54. माँग की मूल्य लोच से अभिप्राय है
(A) कीमत तथा माँग में होने वाले परिवर्तन का अनुपात
(B) कीमत तथा आय में होने वाले परिवर्तन का अनुपात
(C) कीमत तथा संबंधित वस्तु की माँग में होने वाले परिवर्तन का अनुपात
(D) कीमत के बढ़ने से माँग में होने वाले परिवर्तन का अनुपात
उत्तर:
(A) कीमत तथा माँग में होने वाले परिवर्तन का अनुपात

55. जो वस्तुएँ बहुत सस्ती तथा महँगी होती हैं, उनकी माँग होती है-
(A) लोचदार
(B) पूर्ण लोचदार
(C) पूर्ण बेलोचदार
(D) बेलोचदार
उत्तर:
(D) बेलोचदार

56. ‘कार तथा पेट्रोल की माँग’ कहलाती है-
(A) पूरक
(B) स्थानापन्न
(C) इकाई
(D) शून्य
उत्तर:
(A) पूरक

57. जब वस्तु की 50 रुपए प्रति इकाई कीमत पर माँग 1,000 इकाइयाँ हैं तथा 30 रुपए कीमत पर माँग बढ़कर 4,000 इकाइयाँ हो जाती हैं, तो आनुपातिक विधि द्वारा माँग की मूल्य सापेक्षता होगी-
(A) 7.5 (> 1)
(B) 1/2 (< 1)
(C) 0 (शून्य)
(D) 1 (= 1)
उत्तर:
(A) 7.5 (> 1)

58. नीचे एक रेखाचित्र दिखाया गया है, जिसमें माँग वक्र AB बिंदु विधि द्वारा माँग की मूल्य सापेक्षता की मात्राएँ लिखी गई हैं, इनमें से कौन-सी गलत है?
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 2
(A) C
(B) D
(C) E
(D) B
उत्तर:
(B) D

59. संलग्न रेखाचित्र व्यक्त करता है-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 3
(A) कम लोचदार माँग
(B) अधिक लोचदार माँग
(C) पूर्णतया लोचदार माँग
(D) इकाई लोचदार माँग
उत्तर:
(C) पूर्णतया लोचदार माँग

60. एक सरल माँग वक्र के मध्य-बिंदु पर माँग की लोच होगी-
(A) 2
(B) 1/2
(C) 1
(D) 4
उत्तर:
(C) 1

61. जब माँग वक्र OY-अक्ष के समानांतर होता है, तो इससे प्रकट होता है-
(A) माँग की इकाई लोच
(B) पूर्णतया लोचदार माँग
(C) पूर्णतया बेलोचदार माँग
(D) अपेक्षाकृत अधिक लोचदार माँग
उत्तर:
(C) पूर्णतया बेलोचदार माँग

62. पूर्णतया बेलोचदार माँग वक्र पर माँग की कीमत लोच क्या होगी?
(A) अनंत
(B) इकाई
(C) शून्य
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) शून्य

63. माँग की कीमत लोच मापने की कौन-सी विधि है?
(A) प्रतिशत विधि
(B) कुल व्यय विधि
(C) ज्यामितीय विधि
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

64. निम्नलिखित में से कौन-सी जोड़ी प्रतिस्थापन वस्तुओं का उदाहरण है?
(A) कार और पेट्रोल
(B) कॉफी और दूध
(C) लिम्का, पेप्सी कोला
(D) ये सभी
उत्तर:
(C) लिम्का, पेप्सी कोला

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. तटस्थता वक्र मूल बिंदु की ओर ……………. होता है। (नतोदर/उन्नतोदर)
उत्तर:
उन्नतोदर

2. सीमांत उपयोगिता वक्र की आकृति …….. ढाल वाली होती है। (ऋणात्मक/धनात्मक)
उत्तर:
ऋणात्मक

3. कुल उपयोगिता अधिकतम होती है, जब सीमांत उपयोगिता ………… होती है। (धनात्मक/शून्य)
उत्तर:
शून्य

4. जैसे-जैसे उपभोक्ता किसी वस्तु की उत्तरोत्तर इकाई का उपभोग करता है, तो ……… घटती जाती है। (कुल उपयोगिता/सीमांत उपयोगिता)
उत्तर:
सीमांत उपयोगिता

5. किसी वस्तु की अतिरिक्त इकाई की उपयोगिता को …………….. कहते हैं। (कुल उपयोगिता/सीमांत उपयोगिता)
उत्तर:
सीमांत उपयोगिता

6. तटस्थता वक्र तकनीक का प्रतिपादन …………. द्वारा किया गया। (हिक्स/मार्शल)
उत्तर:
हिक्स

7. बजट रेखा को …………….. रेखा कहा जाता है। (लागत कीमत)
उत्तर:
कीमत

8. आय एवं माँग के बीच सामान्यतया ………… संबंध होता है। (विपरीत/सीधा)
उत्तर:
सीधा

9. जब सीमांत उपयोगिता (MU) घट रही होती है, तब कुल उपयोगिता…… दर से बढ़ती है। (घटती हुई/बढ़ती हुई)
उत्तर:
घटती हुई

10. जब माँग वक्र Ox-अक्ष के समानान्तर होती है, तब माँग की लोच ………… होती है। (शून्य/अनन्त)
उत्तर:
अनन्त

C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत

  1. किसी वस्तु की मात्रा और उसके तुष्टिगुण में सीधा संबंध होता है।
  2. किसी वस्तु की जितनी अधिक मात्रा हमारे पास होती है उतनी ही हम उसकी कम मात्रा प्राप्त करना चाहते हैं।
  3. माँग के विस्तार में चलन एक माँग वक्र से दूसरे माँग वक्र पर होता है।
  4. माँगी गई मात्रा में परिवर्तन और माँग में परिवर्तन एक नहीं होता।
  5. माँग की कीमत लोच (eD) = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
  6. जब माँग पूर्णतया लोचदार होती है तो लोच का गुणांक शून्य होता है।
  7. जब कीमत के कम होने पर कुल व्यय बढ़ता है तो माँग की लोच इकाई से अधिक कहलाती है।
  8. घटती सीमांत उपयोगिता का नियम मुद्रा पर लागू नहीं होता।
  9. घटती सीमांत उपयोगिता का नियम प्रगतिशील कर-प्रणाली का आधार है।
  10. बजट रेखा को सम-उत्पाद रेखा भी कहते हैं।
  11. तटस्थता वक्र पर उपयोगिता समान रहती है।
  12. उपयोगिता विचारधारा को गणनावाचक विचारधारा (Cardinal Approach) भी कहते हैं।
  13. तटस्थता वक्र वह वक्र है जिसके विभिन्न बिंदु अधिकतम सन्तुष्टि व्यक्त करते हैं।
  14. गिफ्फन वस्तु माँग के नियम का अपवाद है।
  15. स्थानापन्न वस्तु की कीमत में वृद्धि माँग में वृद्धि का कारण होती है।
  16. हमें अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त होती है जब कुल उपयोगिता बराबर होती है।
  17. गणनावाचक तुष्टिगुण विश्लेषण का संबंध घटते सीमांत तुष्टिगुण से है।
  18. दो तटस्थता वक्र एक-दूसरे को काट सकते हैं।
  19. किसी वस्तु की अतिरिक्त इकाइयों का उपभोग करने से यदि कुल उपयोगिता स्थिर रहती है तो सीमांत उपयोगिता शून्य होगी।
  20. गिफ्फन वस्तुओं पर माँग का नियम लागू होता है।

उत्तर:

  1. गलत
  2. सही
  3. गलत
  4. सही
  5. सही
  6. गलत
  7. सही
  8. गलत
  9. सही
  10. गलत
  11. सही
  12. सही
  13. गलत
  14. सही
  15. सही
  16. गलत
  17. सही
  18. गलत
  19. सही
  20. गलत।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
माँग का नियम क्या है?
उत्तर:
अन्य बातें समान रहने पर, माँग का नियम, वस्तु की कीमत और उसकी माँग में विपरीत संबंध बताता है।

प्रश्न 2.
माँग वक्र पर चलने का क्या अर्थ है?
उत्तर:
माँग वक्र पर चलने का अर्थ यह है कि एक उपभोक्ता की माँग में होने वाले परिवर्तनों को उसी माँग वक्र पर दिखाया जाता है।

प्रश्न 3.
माँग वक्र के खिसकने का क्या अर्थ है?
उत्तर:
माँग वक्र के खिसकने का अर्थ यह है कि एक उपभोक्ता की माँग में होने वाले परिवर्तनों को दूसरे माँग वक्र पर दिखाया जाता है।

प्रश्न 4.
माँग की मूल्य लोच से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप माँग की मात्रा में होने वाले परिवर्तन के माप को माँग की मूल्य लोच कहते हैं।

‘प्रश्न 5.
माँग के विस्तार का क्या अर्थ है?
उत्तर:
माँग के विस्तार का अर्थ माँग में होने वाली उस बढ़ोतरी से है, जो उस वस्तु की कीमत में कमी के फलस्वरूप होती है।

प्रश्न 6.
माँग का अर्थ बताइए।
उत्तर:
माँग वस्तु की वह मात्रा है जिसे विशेष कीमत व विशेष समय में क्रेता खरीदने को तैयार होता है।

प्रश्न 7.
व्यक्तिगत मॉग से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
व्यक्तिगत माँग से अभिप्राय वस्तु की विभिन्न कीमतों पर एक व्यक्ति विशेष द्वारा माँगी गई विभिन्न मात्राओं से है।

प्रश्न 8.
उपभोक्ता का संतुलन क्या है?
उत्तर:
उपभोक्ता का संतुलन वह स्थिति है जहाँ एक उपभोक्ता को एक दी हुई निश्चित आय और वस्तुओं की दी हुई कीमत परं अधिकतम संतुष्टि प्राप्त होती है और जहाँ से वह हटना नहीं चाहता।

प्रश्न 9.
बजट रेखा क्या है?
उत्तर:
बजट रेखा वह रेखा है जो दो वस्तुओं के ऐसे विभिन्न बंडलों को दिखाती है, जिन्हें उपभोक्ता दी हई कीमतों और दी हुई आय पर खरीद सकता है।

प्रश्न 10.
एक बजट सेट कब परिवर्तित होता है?
उत्तर:

  • जब दो वस्तुओं में से किसी एक या दोनों वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन होता है।
  • जब उपभोक्ता की आय में परिवर्तन हो।

प्रश्न 11.
बजट रेखा की प्रवणता (ढाल) क्या मापती है?
उत्तर:
बजट रेखा की प्रवणता (ढाल) उस दर को मापती है जिस पर उपभोक्ता X-वस्तु के बदले Y-वस्तु खरीदता है, जबकि वह अपनी पूरी आय व्यय कर देता है।

प्रश्न 12.
कुल उपयोगिता की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
वस्तु की कुल इकाइयों के उपभोग से प्राप्त सीमांत उपयोगिताओं के योग को कुल उपयोगिता कहते हैं। सूत्र के रूप में-
कुल उपयोगिता = सीमांत उपयोगिताओं का जोड़

प्रश्न 13.
सीमांत उपयोगिता की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से प्राप्त उपयोगिता को सीमांत उपयोगिता कहते हैं। वैकल्पिक रूप में इसे ऐसे भी परिभाषित कर सकते हैं-वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से कुल उपयोगिता में होने वाली वृद्धि को सीमांत उपयोगिता कहते हैं। सूत्र के रूप में-
सीमांत उपयोगिता = अतिरिक्त इकाई के उपभोग से प्राप्त उपयोगिता

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 14.
सीमांत उपयोगिता से कुल उपयोगिता का आकलन किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर:
कुल उपयोगिता = सीमांत उपयोगिताओं का जोड़ अर्थात्
TU = ∑ MU. 378121
TU = MU1 + MU2 + MU3 + ……….. + MUn

प्रश्न 15.
किसी वस्तु की कीमत में 7% कमी के कारण उसकी माँग में 3.5% वृद्धि हो गई, उस वस्तु की माँग की लोच के बारे में आप किस निष्कर्ष पर पहुंचेंगे?
उत्तर:
मांग की लोच (eD)= IMGG
अतः वस्तु की माँग की लोच इकाई से कम है।

प्रश्न 16.
ह्रासमान सीमांत उपयोगिता का नियम क्या है?
उत्तर:
ह्रासमान सीमांत उपयोगिता का नियम, “अन्य बातें स्थिर रहने पर जैसे-जैसे किसी वस्तु की अतिरिक्त इकाइयों का उपभोग किया जाता है, वैसे-वैसे उनसे प्राप्त होने वाली सीमांत उपयोगिता क्रमशः घटती जाती है।”

प्रश्न 17.
तटस्थता (अनधिमान) वक्र की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
तटस्थता वक्र से अभिप्राय उस वक्र से है जो दो वस्तुओं के विभिन्न बंडलों को प्रदर्शित करते हैं, जो बराबर संतुष्टि प्रदान करते हैं और जिनके बीच उपभोक्ता चयन करते समय तटस्थ रहता है।

प्रश्न 18.
तटस्थता वक्र की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • तटस्थता वक्र सदैव मूल बिंदु की ओर उन्नतोदर होता है।
  • इसका ढलान ऋणात्मक होता है।

प्रश्न 19.
एकदिष्ट अधिमान से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
एकदिष्ट अधिमान का अर्थ यह है कि एक उपभोक्ता दो वस्तुओं के विभिन्न बंडलों में से उस बंडल को अधिमान देता है, जिसमें इन वस्तुओं में से कम-से-कम एक वस्तु की अधिक मात्रा हो और दूसरे बंडल की तुलना में दूसरी वस्तु की मात्रा भी कम न हो।

प्रश्न 20.
स्थानापन्न वस्तु से क्या अभिप्राय है? उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर उसकी स्थानापन्न वस्तु की माँग भी बढ़ जाती है और कीमत कम होने पर स्थानापन्न वस्तु की माँग घट जाती है। उदाहरण के लिए, चाय और कॉफी, कार और स्कूटर, कोका कोला और लिम्का आदि स्थानापन्न वस्तुएँ हैं।

प्रश्न 21.
प्रतिस्थापन की सीमांत दर (MRS) क्या है?
उत्तर:
प्रतिस्थापन की सीमांत दर ‘Y’ वस्तु की वह मात्रा है जिसे उपभोक्ता ‘X’ वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई पाने के लिए छोड़ने को तैयार है। संक्षेप में,
MRS = (-) \(\frac { ∆Y }{ ∆Y }\)
प्रतिस्थापन की सीमांत दर (MRS) की प्रवृत्ति सदैव ऋणात्मक होती है।

प्रश्न 22.
निम्न कोटि या घटिया वस्तुएँ क्या होती हैं?
उत्तर:
निम्नस्तरीय या निम्न कोटि वस्तुएँ (Inferior Goods) ऐसी वस्तुओं को कहा जाता है जिनके लिए माँग उपभोक्ता की आय के विपरीत दिशा में जाती है। उपभोक्ता की आय बढ़ने पर इनकी माँग घटती है और आय घटने पर इनकी माँग बढ़ती है। उदाहरण के लिए, मोटे अनाज, मोटा कपड़ा, घटिया मार्क वाली वस्तुएँ, टोंड दूध आदि।

प्रश्न 23.
माँग फलन किसे कहते हैं?
उत्तर:
माँग फलन किसी वस्तु की माँग और उसको निर्धारित करने वाले विभिन्न कारकों के बीच संबंध को व्यक्त करने का गणितीय रूप है। दूसरे शब्दों में, माँग फलन से अभिप्राय है कि किसी वस्तु की माँगी गई मात्रा किन-किन कारकों का फल है अर्थात किन-किन तत्त्वों पर निर्भर करती है।

प्रश्न 24.
बजट रेखा की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  1. बजट रेखा एक उपभोक्ता द्वारा दो वस्तुओं की दी हुई कीमतों पर और उपभोक्ता की निश्चित आय पर दोनों वस्तुओं के ऐसे बंडलों या संयोगों को दर्शाता है, जिन्हें उपभोक्ता खरीद सकता है।
  2. बजट रेखा को कीमत रेखा भी कहा जाता है। यह बाएँ से दाएँ झुकती हुई एक सीधी रेखा होती है। वस्तुओं की कीमत में परिवर्तन या उपभोक्ता की आय में परिवर्तन से कीमत रेखा की स्थिति अथवा ढाल बदलती है।।

प्रश्न 25.
“यदि वस्तु की कीमत बढ़ती है तो परिवार को उस पर व्यय बढ़ाना ही पड़ेगा।” पक्ष या विपक्ष में तर्क दें।
उत्तर:
वस्तु की कीमत बढ़ने पर परिवार का वस्तु पर व्यय बढ़ भी सकता है और कम भी हो सकता है। व्यय उस स्थिति में बढ़ेगा, जब वस्तु की eD < 1 हो, लेकिन जब वस्तु की eD > 1 हो तो वस्तु की कीमत बढ़ने के फलस्वरूप परिवार का व्यय कम होगा। अतः वस्तु की कीमत बढ़ने के फलस्वरूप परिवार का व्यय आवश्यक रूप से नहीं बढ़ेगा।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उपयोगिता क्या है? इसकी मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
उपयोगिता का अर्थ-किसी वस्तु या सेवा में मानव-आवश्यकता को संतुष्ट करने की शक्ति को उपयोगिता कहते हैं। अन्य शब्दों में, पदार्थ का वह गुण जिससे किसी मानवीय आवश्यकता की संतुष्टि होती है, अर्थशास्त्र में उपयोगिता कहलाती है; जैसे रोटी में भूख मिटाने का गुण, पानी में प्यास बुझाने का गुण एवं अध्यापक में पढ़ाने का गुण उपयोगिता कहलाते हैं अर्थात् वस्तु या सेवा की आवश्यकतापूरक शक्ति को उपयोगिता कहते हैं।

उपयोगिता की विशेषताएँ-उपयोगिता की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • उपयोगिता व्यक्तिगत है अर्थात् व्यक्ति द्वारा अनुभव किया जाने वाला संतुष्टि गुण है।
  • वस्तु की उपयोगिता उपभोग की तीव्रता पर निर्भर करती है; जैसे प्यासे व्यक्ति के लिए पानी की उपयोगिता बहुत अधिक है, जबकि प्यास-रहित व्यक्ति के लिए पानी की उपयोगिता न के बराबर है।
  • उपयोगिता हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग होती है।

प्रश्न 2.
उपभोक्ता संतुलन का क्या अर्थ है? एक वस्तु की स्थिति में इसकी शर्त बताइए।
उत्तर:
उपभोक्ता संतुलन का अर्थ-उपभोक्ता संतुलन से अभिप्राय उस स्थिति से है जहाँ उपभोक्ता को अपनी निश्चित आय से अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो और वह उपभोग के इस तरीके में कोई परिवर्तन नहीं लाना चाहता हो।

एक वस्तु की स्थिति में उपभोक्ता संतुलन की शर्त-उपयोगिता विश्लेषण के अनुसार एक ही वस्तु की स्थिति में एक उपभोक्ता उस समय संतुलन पर होगा, जब वस्तु की सीमांत उपयोगिता का मौद्रिक मान और वस्तु की कीमत में समानता हो। अन्य शब्दों में, उपभोक्ता की संतुलन स्थिति में उसकी कुल उपयोगिता का मौद्रिक मान और कुल व्यय का अंतर अधिकतम होना चाहिए। इसके लिए निम्नलिखित शर्त पूरी होनी चाहिए-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 4

प्रश्न 3.
तालिका की सहायता से माँग के नियम की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
माँग का नियम वस्तु की कीमत तथा वस्तु की माँगी गई मात्रा के बीच विपरीत अर्थात् ऋणात्मक संबंध (Inverse or Negative Relationship) को व्यक्त करता है। माँग के नियम के अनुसार यदि अन्य बातें समान रहें तो नीची कीमत पर वस्तु की माँग अधिक होगी और ऊँची कीमत पर वस्तु की माँग कम होगी। इसे हम निम्नलिखित तालिका द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं-

सेबों की कीमत (रु०) मेंसेबों की माँग (कि०ग्रा०) में
15200
14300
13500
12800
111200

उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट होता है कि जब सेबों की कीमत 15 रुपए प्रति किलोग्राम है, तो बाज़ार में सेबों की माँग 200 किलोग्राम है। यदि सेबों की कीमत घटकर 14 रुपए प्रति किलोग्राम हो जाती है, तो बाज़ार में सेबों की माँग 300 किलोग्राम हो जाती है।

प्रश्न 4.
माँग के कोई तीन निर्धारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
माँग के तीन निर्धारक तत्त्व निम्नलिखित हैं-
1. वस्तु की कीमत-साधारणतया ‘अन्य बातें समान रहने पर’ वस्तु की कम कीमत पर अधिक माँग तथा अधिक कीमत पर कम माँग की जाती है।

2. संबंधित वस्तुओं की कीमतें-एक वस्तु विशेष की माँग अन्य संबंधित वस्तुओं की कीमतों पर भी निर्भर करती है। संबंधित वस्तुएँ दो प्रकार की होती हैं-(1) पूरक वस्तुएँ तथा (2) स्थानापन्न या प्रतियोगी वस्तुएँ। पूरक वस्तुएँ वे हैं, जिनकी माँग एक साथ की जाती है; जैसे पेट्रोल तथा कार की माँग। इनका संबंध इस प्रकार का होता है कि एक की कीमत में वृद्धि से दूसरे की माँग कम हो जाती है तथा एक की कीमत में कमी होने से दूसरे की माँग बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए, यदि कारों की कीमत कम हो जाती है तो पेट्रोल की माँग बढ़ जाती है। स्थानापन्न या प्रतियोगी वस्तुएँ वे हैं, जो कि एक-दूसरे के स्थान पर प्रयोग की जा सकती हैं; जैसे चाय के स्थान पर कॉफी। ऐसी दशा में यदि एक वस्तु की कीमत बढ़ जाती है तो इसकी प्रतियोगी वस्तु की माँग बढ़ जाती है।

3. उपभोक्ताओं की रुचि तथा प्राथमिकताएँ-उपभोक्ताओं की रुचि, फैशन, आदत (Taste, Fashion and Habits) आदि का माँग पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। जिन वस्तुओं के लिए उपभोक्ताओं की रुचि बढ़ जाती है उनकी माँग बढ़ जाती है। इसके विपरीत रुचि कम होने पर माँग कम हो जाती है। यदि लोग चाय की अपेक्षा कॉफी पसंद करने लगते हैं तो कॉफी की माँग बढ़ जाएगी और चाय की माँग कम हो जाएगी। इसी प्रकार फैशन में परिवर्तन होने पर पुराने डिज़ाइन वाले कपड़ों की माँग कम हो जाती है और नए डिज़ाइन वाले कपड़ों की मांग बढ़ जाती है।

प्रश्न 5.
माँग के संकुचन तथा माँग में कमी में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
माँग के संकुचन तथा माँग में कमी में अंतर निम्नलिखित हैं

माँग का संकुचनमाँग में कमी
1. यह वस्तु की अपनी कीमत में वृद्धि होने के कारण होता है।1. यह वस्तु की अपनी कीमत के अतिरिक्त अन्य तत्त्वों/कारकों; जैसे उपभोक्ता की आय में कमी, स्थानापन्न वस्तुओं की कीमत में कमी, पूरक वस्तुओं की कीमत में वृद्धि तथा उपभोक्ता की वस्तु के लिए रुचि तथा प्राथमिकता में कमी आदि के कारण होती है।
2. रेखाचित्रीय दृष्टिकोण से यह एक ही माँग वक्र के नीचे वाले बिंदु से ऊपर वाले बिंदु की ओर संचलन द्वारा प्रकट होता है।2. रेखाचित्रीय दृष्टिकोण से यह माँग वक्र के पीछे या बाईं ओर खिसकाव द्वारा प्रकट होती है।

प्रश्न 6.
माँग के विस्तार तथा माँग में वृद्धि में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
माँग के विस्तार तथा माँग में वृद्धि में अंतर निम्नलिखित हैं-

माँग का विस्तारमाँग में वृद्धि
1. यह केवल वस्तुं की अपनी कीमत में कमी होने के कारण होता है।1. यह वस्तु की अपनी कीमत के अतिरिक्त अन्य तत्त्वों/कारकों; जैसे कि उपभोक्ता की आय में वृद्धि, स्थानापन्न वस्तुओं की कीमत में वृद्धि, पूरक वस्तुओं की कीमत में कमी तथा उपभोक्ता की वस्तु के लिए रुचि तथा प्राथमिकता में वृद्धि आदि के कारण होती है।
2. रेखाचित्रीय दृष्टिकोण से यह माँग वक्र के दाईं या आगे की ओर खिसकाव द्वारा व्यक्त होती है।2. रेखाचित्रीय दृष्टिकोण से यह एक माँग वक्र के ऊपर के बिंदु से नीचे के बिंदु की ओर संचलन द्वारा व्यक्त होता है।

प्रश्न 7.
माँग के विस्तार तथा संकुचन और माँग में वृद्धि तथा कमी में अंतर बताइए।
उत्तर:
माँग के विस्तार तथा संकुचन और माँग में वृद्धि तथा कमी में अंतर निम्नलिखित हैं-

माँग का विस्तार तथा संकुचनमाँग में वृद्धि तथा कमी
1. कीमत में परिवर्तन के कारण होता है।1. कीमत की अपेक्षा अन्य तत्त्वों; जैसे आय, फैशन, रीति-रिवाज, मौसम, जनसंख्या आदि में परिवर्तन के कारण होती है।
2. इसे ‘माँगी गई मात्रा में परिवर्तन’ कहते हैं।2. इसे ‘माँग में परिवर्तन’ कहते हैं।
3. चलन एक ही माँग वक्र पर होता है।3. माँग वक्र में खिसकाव होता है अर्थात चलन भिन्न माँग वक्र पर होता है।

प्रश्न 8.
माँग में वृद्धि के मुख्य कारण बताइए।
उत्तर:
माँग में वृद्धि के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

  1. उपभोक्ता की आय में वृद्धि
  2. स्थानापन्न वस्तु की कीमत में वृद्धि
  3. पूरक वस्तु की कीमत में कमी
  4. वस्तु के लिए उपभोक्ता की पसंद तथा प्राथमिकता में वृद्धि
  5. क्रेताओं की संख्या में वृद्धि
  6. भविष्य में कीमत वृद्धि की संभावना
  7. भविष्य में उपभोक्ता की आय बढ़ने की संभावना।

प्रश्न 9.
“माँग वक्र जितना चपटा होगा, माँग की लोच उतनी ही अधिक होगी।” समझाइए।
उत्तर:
जब माँग वक्र एक ही बिंदु से निकल रही हो, तब माँग वक्र जितना चपटा होगा, माँग की लोच उतनी ही अधिक होगी। इस स्थिति को संलग्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 4a
रेखाचित्र में एक ही बिंदु P से निकल रही माँग वक्र D2 चपटी है इसलिए माँग वक्र D1 की तुलना में अधिक लोचदार है। यह इसलिए होता है कि यदि वस्तु की कीमत OP से कम होकर OP1 हो जाती है, तब माँग वक्र D1 शून्य (Zero) से OQ1 तक माँग की मात्रा में वृद्धि को दर्शाता है। जबकि माँग वक्र D2 शून्य से OQ2 माँग की मात्रा में वृद्धि को दर्शाता है। इसका अभिप्राय यह है कि कीमत में दिए हुए परिवर्तन के कारण D1 की तुलना में D2 में परिवर्तन D2 माँग की मात्रा अधिक है। अतः माँग वक्र D2 माँग वक्र D1 की तुलना में अधिक लोचदार है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 10.
सीमांत उपयोगिता ह्रासमान नियम को तालिका व रेखाचित्र द्वारा संक्षेप में समझाएँ।
उत्तर:
सीमांत उपयोगिता हासमान नियम के अनुसार जैसे-जैसे किसी व्यक्ति द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तु की इकाइयों में वृद्धि होती जाती है, वैसे-वैसे उसकी सीमांत उपयोगिता घटती जाती है। इसे निम्नांकित तालिका एवं रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया गया है-
तालिका : सीमांत उपयोगिता हासमान नियम

उपभोग की गईकुल उपयोगिता
(TU)
सीमांत उपयोगिता
(MU)
188
2146
3184
4202
5200
618-2

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 5
रेखाचित्र में ox-अक्ष पर वस्तु की इकाइयों को तथा 0Y-अक्ष पर उपयोगिता को दर्शाया गया है। MU वक्र सीमांत उपयोगिता को प्रकट करता है। यह वक्र बाएँ से दाएँ नीचे की ओर झुका है। इसका तात्पर्य यह है कि अगली इकाई की सीमांत उपयोगिता (MU) घटती जाती है।।

प्रश्न 11.
अनधिमान मानचित्र से क्या अभिप्राय है? रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
संतुष्टि के विभिन्न स्तरों को व्यक्त करने वाले अनधिमान वक्रों के समूह को अनधिमान (तटस्थता) मानचित्र कहते हैं। प्रत्येक अनधिमान वक्र विभिन्न संतुष्टि स्तर को दर्शाता है। इस प्रकार यह अनधिमान वक्रों का एक ऐसा परिवार है जो उपभोक्ता की दो वस्तुओं की संतुष्टि की पूर्ण तस्वीर पेश करता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 5a
संलग्न रेखाचित्र में दो वस्तुओं के विभिन्न बंडलों (संयोगों) की सहायता से तीन अनधिमान वक्र IC1, IC2, IC3 बनाए गए हैं। तीनों अनधिमान वक्रों को संयुक्त रूप से एक-साथ दर्शाने वाला रेखाचित्र अनधिमान मानचित्र कहलाएगा। इस संबंध में ध्यान देने योग्य बात यह है कि सबसे ऊँचा अनधिमान वक्र (जैसे कि रेखाचित्र में वक्र IC3) सर्वाधिक संतुष्टि का स्तर दर्शाता है, जबकि सबसे नीचा अनधिमान वक्र (जैसेकि रेखाचित्र में वक्र IC1) सबसे कम संतुष्टि स्तर को दर्शाता है। दूसरे शब्दों में, अनधिमान वक्र उद्गम बिंदु O से जैसे-जैसे दूर होता जाएगा वैसे-वैसे उनका संतुष्टि स्तर बढ़ता जाएगा क्योंकि ऊँचे वक्र पर वस्तु-X और वस्तु-Y की इकाइयों का उपभोग अधिक हो रहा है।

प्रश्न 12.
किसी वस्तु की आवश्यकता और माँग के बीच अंतर बताइए।
उत्तर:
किसी वस्तु की आवश्यकता से अभिप्राय यह होता है कि एक व्यक्ति उस वस्तु को प्राप्त करने का इच्छुक है। वस्तु की आवश्यकता के लिए यह आवश्यक नहीं है कि उस व्यक्ति के पास उस वस्तु को खरीदने के लिए क्रय-शक्ति भी हो। एक वस्तु की माँग से अभिप्राय यह है कि एक व्यक्ति उस वस्तु को प्राप्त करने का इच्छुक है, जिसे खरीदने के लिए उसके पास पर्याप्त क्रय-शक्ति है तथा खरीदने के लिए वह क्रय-शक्ति का त्याग करने के लिए तैयार है। इस प्रकार वस्तु की आवश्यकता माँग को जन्म देती है, परंतु आवश्यकता वस्तु की माँग नहीं बनाती।
वस्तु की माँग = वस्तु की आवश्यकता + व्यक्ति के पास समुचित क्रय-शक्ति होना + क्रय-शक्ति के त्याग की तत्परता

प्रश्न 13.
माँग वक्र का स्थानांतरण या माँग वक्र का खिसकाव या माँग में परिवर्तन क्या है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
माँग वक्र के खिसकाव से अभिप्राय है कि माँग वक्र प्रारंभिक माँग वक्र के ऊपर या नीचे खिसक जाती है। इस प्रकार का परिवर्तन तब आता है जब कीमत के अतिरिक्त अन्य कारकों; जैसे आय, फैशन आदि में परिवर्तन होने से माँग कम या अधिक हो जाती है। इसे माँग के स्तर में होने वाला परिवर्तन कहा जाता है। इन तत्त्वों में परिवर्तन आने से माँग के घटने को माँग में कमी तथा माँग के बढ़ने को माँग में वृद्धि कहा जाता है।

प्रश्न 14.
एक वस्तु के माँग वक्र के दाईं ओर खिसकने के कोई तीन कारण बताइए।
उत्तर:
एक वस्तु के माँग वक्र के दाईं ओर खिसकने के तीन कारण निम्नलिखित हैं-
1. आय में वृद्धि-जब किसी उपभोक्ता की आय में वृद्धि होती है, तो उसकी क्रय-शक्ति पहले की तुलना में अधिक हो जाती है। फलस्वरूप वह बाज़ार में अधिक मात्रा में वस्तु की माँग करेगा। इस प्रकार घटिया वस्तुओं के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं का माँग वक्र भी दाईं ओर खिसक जाता है।

2. रुचि और प्राथमिकता-जब उपभोक्ताओं की रुचि और प्राथमिकताओं में परिवर्तन किसी वस्तु के पक्ष में होता है, तो उस वस्तु की माँग बढ़ जाती है, जिसके कारण माँग वक्र दाईं ओर खिसक जाता है।

3. संबंधित वस्तुओं की कीमतें-यदि एक वस्तु की प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है, तो उस वस्तु का माँग वक्र दाईं ओर खिसक जाएगा। यदि एक पूरक वस्तु की कीमत में गिरावट होती है, तो भी उस वस्तु का माँग वक्र दाईं ओर खिसक जाएगा।

प्रश्न 15.
रेखाचित्रों की सहायता से माँग का संकुचन तथा माँग में कमी को समझाइए।
उत्तर:
माँग का संकुचन-जब कीमत में वृद्धि के कारण वस्तु की माँग में गिरावट आती है, तो इसे माँग का संकुचन कहते हैं। माँग के संकुचन में उसी माँग वक्र पर नीचे से ऊपर की ओर संचलन होता है; जैसे कि संलग्न रेखाचित्र (i) में दश कि जब वस्तु की कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है, तो वस्तु की माँग OQ से कम होकर OQ1 रह जाती है। अतः QQ1 वस्तु की माँग में संकुचन है।

माँग में कमी-जब वस्तु की कीमत में वृद्धि के अतिरिक्त अन्य कारणों से वस्तु की माँग में गिरावट होती है, तो इसे माँग , में कमी कहते हैं। माँग में कमी से माँग वक्र बाईं ओर खिसक जाता है; जैसे कि संलग्न रेखाचित्र (ii) में दर्शाया गया है माँग में कमी को संलग्न रेखाचित्र (ii) द्वारा स्पष्ट किया गया है। रेखाचित्र में, हम देखते हैं कि माँग वक्र बाईं ओर खिसककर D1D1 हो गया है अर्थात् माँग OQ से घटकर OQ1 हो गई है। अतः QQ1 माँग में कमी है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 6

प्रश्न 16.
एक वस्तु के माँग वक्र के बाईं ओर खिसकने के कोई तीन कारण बताइए।
उत्तर:
एक वस्तु के माँग वक्र के बाईं ओर खिसकने के तीन कारण निम्नलिखित हैं
1. आय में कमी-जब किसी उपभोक्ता की आय में कमी होती है, तो उसकी क्रय-शक्ति पहले की तुलना में कम हो जाती है। फलस्वरूप वह बाज़ार में कम मात्रा में वस्तु की माँग करेगा। इस प्रकार घटिया वस्तुओं के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं का माँग वक्र भी बाईं ओर खिसक जाता है।

2. रुचि और प्राथमिकता-जब उपभोक्ताओं की रुचि और प्राथमिकताओं में परिवर्तन किसी वस्तु के विरोध में होता है, तो उस वस्तु की माँग घट जाती है, जिसके कारण माँग वक्र बाईं ओर खिसक जाता है।

3. संबंधित वस्तुओं की कीमतें यदि एक स्थानापन्न वस्तु की कीमत में कमी होती है, तो उस वस्तु का माँग वक्र बाईं ओर खिसक जाएगा। यदि एक पूरक वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है, तो भी उस वस्तु का माँग वक्र बाईं ओर खिसक जाएगा।

प्रश्न 17.
यदि दो माँग वक्र एक-दूसरे को काटते हैं, तो कटाव (प्रतिच्छेदन) बिंदु पर किस वक्र की लोच अधिक होगी?
उत्तर:
जब दो माँग वक्र एक-दूसरे को काटते हैं, तो कटाव बिंदु पर कम ढाल वाले माँग वक्र की लोचशीलता अधिक होगी। इसे संलग्न रेखाचित्र द्वारा समझा जा सकता है। रेखाचित्र में DD तथा D1D1 दो माँग वक्र हैं और ये C बिंदु पर काट रहे हैं। इस बिंदु के अनुरूप कीमत P0 और दोनों वक्रों पर माँग की मात्रा Q0 है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 7
जब कीमत बढ़कर P1 हो जाती है तो कम ढाल वाले माँग वक्र DD पर माँग की मात्रा में गिरावट Q0Q2 के बराबर आती है जबकि अधिक ढाल वाले माँग वक्र D1D1 पर गिरावट Q0Q0 है। अतः दोनों माँग वक्रों के लिए कीमत में प्रतिशत वृद्धि तो समान है, परंतु माँग की मात्रा में गिरावट कम ढाल वाले माँग वक्र पर अधिक है। स्पष्ट है कि कम ढाल वाले माँग वक्र के प्रतिच्छेदन (कटाव) बिंदु पर लोचशीलता अधिक होती है।

प्रश्न 18.
नीचे ढालू सीधी माँग-वक्र पर कीमत लोच Y-अक्ष पर (∞) से आरंभ होकर X-अक्ष पर शून्य (0) हो जाती है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
माँग की लोच को मापने का सूत्र है- \(e_{\mathrm{D}}=\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 8
नीचे दाईं ओर ढालू माँग वक्र का ढाल (Slope) \(\frac { ∆p }{ ∆q }\) के समान है और यह सारी माँग वक्र पर एक समान रहता है। इसका ये भी अर्थ है कि ढाल का उल्टा (Reciprocal of the Slope) अर्थात् \(\frac { ∆q }{ ∆p }\) भी समान रहेगा। इसलिए, माँग की लोच \(\frac { p }{ q }\) में परिवर्तन को में परिवर्तन के आधार पर जाना जा सकता है। जैसा कि रेखाचित्र में दर्शाया गया है, जहाँ DD रेखा Y-अक्ष पर मिलती है वहाँ माँग (q) शून्य है, इसलिए \(\frac { p }{ q }\)(∞) के समान है। इसके विपरीत जहाँ DD रेखा X-अक्ष पर मिलती है, वहाँ कीमत शून्य (0) है, इसलिए \(\frac { p }{ q }\) शून्य (0) के समान है।

प्रश्न 19.
अनधिमान वक्र के ऊपर तथा नीचे स्थित बिंदु क्या स्पष्ट करते हैं?
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 9
अनधिमान वक्र के ऊपर तथा नीचे स्थित बिंदु अनधिमान वक्र के ऊपर के बिंदु उन बंडलों को दर्शाते हैं, जिन्हें अनधिमान वक्र पर स्थित बिंदुओं द्वारा प्रदर्शित बंडलों की अपेक्षा अधिमानता (Preference) दी गई है। अनधिमान वक्र पर स्थित बिंदओं द्वारा प्रदर्शित बंडलों को अनधिमान वक्र के नीचे स्थित बिंदओं द्वारा प्रदर्शित बंडलों की तलना में अधिमानता दी जाती है।

प्रश्न 20.
एक तालिका की सहायता से एक व्यक्ति की माँग और बाज़ार माँग के बीच भेद कीजिए।
उत्तर:
एक व्यक्ति की माँग अर्थात् व्यक्तिगत माँग से अभिप्राय वस्तु की विभिन्न कीमतों पर एक व्यक्ति विशेष द्वारा माँगी गई विभिन्न मात्राओं से है, जबकि बाज़ार माँग से अभिप्राय एक वस्तु की विभिन्न कीमतों पर बाज़ार के सभी व्यक्तिगत उपभोक्ताओं द्वारा माँगी गई विभिन्न मात्राओं से है। इस प्रकार सभी व्यक्तियों की माँग का जोड़ बाज़ार माँग है। इसे हम निम्नलिखित तालिका द्वारा व्यक्त कर सकते हैं-
तालिका

आइसक्रीम की कीमत (रु०)अजय की माँगरोहित की माँगगौरव की माँगबाज़ार की माँग
170150130350
260100100260
3506080190
4403070140
5301060100
620005070

प्रश्न 21.
माँग का नियम बताइए और इसकी मान्यताएँ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
माँग का नियम वस्तु की कीमत तथा वस्तु की माँगी गई मात्रा के बीच विपरीत संबंध (Inverse Relationship) को व्यक्त करता है। माँग का नियम बतलाता है कि यदि ‘अन्य बातें समान रहें’ तो वस्तु की कीमत बढ़ने पर उसकी माँग घट जाती है और वस्तु की कीमत घटने पर उसकी माँग बढ़ जाती है। इस प्रकार वस्तु की कीमत और माँग में विपरीत अर्थात् ऋणात्मक संबंध होता है।

मान्यताएँ माँग के नियम की परिभाषा में ‘अन्य बातें समान रहें’ वाक्यांश का प्रयोग किया गया है। इसका अर्थ यह है कि माँग का नियम कुछ मान्यताओं पर आधारित है; जैसे-

  • उपभोक्ताओं की आय में कोई परिवर्तन नहीं होता।
  • उपभोक्ताओं की प्राथमिकताओं अर्थात् रुचि, फैशन तथा आदत आदि में कोई परिवर्तन नहीं होता।
  • वस्तु की निकट भविष्य में कीमत परिवर्तन की संभावना नहीं होती।
  • संबंधित वस्तुओं जैसे स्थानापन्न तथा पूरक वस्तुओं की कीमतों में कोई परिवर्तन नहीं होता।
  • वस्तु सामान्य (Normal Goods) होनी चाहिए।

प्रश्न 22.
एक माँग वक्र की सहायता से माँग के नियम की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
माँग का नियम वस्तु की कीमत तथा वस्तु की माँगी गई मात्रा के बीच के संबंध को प्रदर्शित करता है। माँग के नियम के अनुसार, यदि अन्य बातें समान रहें, तो नीची कीमत पर वस्तु की माँग अधिक होगी और ऊँची कीमत पर वस्तु की माँग कम होगी। इस प्रकार माँग का नियम वस्तु की कीमत और माँग में विपरीत अथवा ऋणात्मक संबंध व्यक्त करता है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 10
इस चित्र में वस्तु की OP कीमत पर वस्तु की माँग OQ है। जब कीमत घटकर OP1 हो जाती है, तो वस्तु की माँग बढ़कर OQ1 हो जाती है।

प्रश्न 23.
माँग वक्र दाहिनी ओर ढलवाँ क्यों होता है?
उत्तर:
माँग वक्र दाहिनी ओर ढलवाँ होता है जो वस्तु की कीमत और वस्तु की माँग के ऋणात्मक संबंध को प्रदर्शित करता है। माँग वक्र के दाहिनी ओर ढलवाँ होने का मुख्य कारण ह्रासमान सीमांत उपयोगिता नियम है। ह्रासमान सीमांत उपयोगिता के अनुसार जैसे-जैसे व्यक्ति एक वस्तु की इकाइयों का उपभोग करता है, वैसे-वैसे उसकी सीमांत उपयोगिता घटती जाती है। एक उपभोक्ता वस्तु की उतनी ही इकाइयाँ खरीदेगा जितनी इकाइयाँ खरीदने पर उस वस्तु की सीमांत उपयोगिता का मौद्रिक मान तथा वस्तु की कीमत बराबर हो। परिणामस्वरूप उपभोक्ता वस्तु की अधिक मात्रा तभी खरीदेगा, जब उसकी कीमत कम होकर सीमांत उपयोगिता के बराबर हो जाए। चूँकि सीमांत उपयोगिता वक्र भी दाहिनी ओर ढलवाँ होता है और माँग वक्र भी दाहिनी ओर ढलवाँ होता है।

प्रश्न 24.
माँग के नियम के अपवाद. बताइए।
उत्तर:

  1. माँग का नियम गिफ्फन वस्तुओं पर लागू नहीं होता। गिफ्फन वस्तुएँ निकृष्ट वस्तुएँ होती हैं; जैसे मोटा अनाज, मोटा कपड़ा, डालडा घी, इमली आदि।
  2. माँग का नियम जीवनोपयोगी वस्तुओं (रोटी, नमक) आदि पर लागू नहीं होता।
  3. माँग का नियम उस समय लागू नहीं होगा जब उपभोक्ताओं को भविष्य में कीमत बढ़ने या घटने की आशंका हो।
  4. माँग का नियम दिखावे और प्रतिष्ठा वाली वस्तुओं पर लागू नहीं होता।

प्रश्न 25.
उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर वस्तु की माँग पर पड़ने वाले प्रभाव बताइए।
उत्तर:
उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर वस्त की माँग पर पड़ने वाले प्रभाव की निम्नलिखित स्थितियाँ हो सकती हैं
(1) अनिवार्य वस्तुएँ वे हैं जो मानव जीवन के लिए अति आवश्यक हैं; जैसे भोजन, वस्त्र, मकान आदि। आय में वृद्धि होने पर कुछ समय तक तो इनकी माँग बढ़ेगी और उसके पश्चात् स्थिर हो जाएगी।

(2) आरामदायक और विलासिताओं में उन वस्तुओं को शामिल किया जाता है जो हमारे जीवन को आनंदमय बनाती हैं। आय में वृद्धि होने के साथ ऐसी वस्तुओं की माँग बढ़ती है।

(3) निकृष्ट अथवा घटिया वस्तुएँ वे हैं जिनको उपभोग के क्रम में सबसे निम्न स्थान मिलता है; जैसे मोटा कपड़ा, मोटा अनाज आदि । उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर निकृष्ट वस्तुओं की माँग में कमी आएगी, क्योंकि वह इन वस्तुओं का प्रतिस्थापन उत्कृष्ट वस्तुओं से करना चाहेगा।

प्रश्न 26.
संबंधित वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन का वस्तु की माँग पर क्या प्रभाव पड़ता है? समझाइए।
उत्तर:
एक परिवार द्वारा एक वस्तु की माँग व अन्य वस्तुओं की कीमतों के बीच संबंधों को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) यदि वस्तुएँ एक-दूसरे की स्थानापन्न हैं, तो अन्य वस्तु की कीमत में गिरावट परिवार की वस्तु विशेष की माँग को कम करती है। उदाहरण के लिए, कॉफी की कीमत में कमी चाय की माँग को अपनी ओर आकर्षित कर चाय की माँग को कम कर देगी। इसी प्रकार कॉफी की कीमत में बढ़ोत्तरी से चाय की माँग में बढ़ोत्तरी होगी।

(2) यदि वस्तुएँ एक-दूसरे की पूरक हैं, तो अन्य वस्तुओं की कीमत में गिरावट परिवार की वस्तु विशेष की माँग को आकर्षित करती है। उदाहरण के लिए, पेन की कीमत में कमी के कारण उसकी माँग और साथ ही साथ स्याही की मांग भी बढ़ जाएगी।

(3) यदि वस्तुएँ असंबंधित हैं, तो अन्य वस्तुओं की कीमत में गिरावट या बढ़ोत्तरी परिवार की वस्तु विशेष की माँग को प्रभावित नहीं कर पाती। उदाहरण के लिए, कपड़ों की कीमत में कमी से बॉल पेनों की माँग अप्रभावित रहेगी।

प्रश्न 27.
कॉफी की कीमत में वृद्धि का चाय की माँग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
कॉफी और चाय स्थानापन्न (Substitute) वस्तुएँ हैं। कॉफी की कीमत में वृद्धि से कॉफी की माँग चाय की ओर जाने की प्रवृत्ति को जन्म देगी, जिसके कारण चाय की माँग में वृद्धि होगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 11
रेखाचित्र से स्पष्ट है कि जब कॉफी की कीमत OP से बढ़कर OP1 हो चाय की माँग जाती है, तो चाय की माँग OQ से बढ़कर OQ1 हो गई। इस प्रकार कॉफी की कीमत और चाय की माँग में धनात्मक संबंध होता है।

प्रश्न 28.
चाय की कीमत में वृद्धि का चीनी की माँग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 12
चाय और चीनी पूरक (Complementary) वस्तुएँ हैं। चाय की कीमत में वृद्धि से चाय की माँग कम हो जाएगी। फलस्वरूप चाय की माँग में कमी से चीनी की मांग भी कम हो जाएगी, क्योंकि चाय और चीनी दोनों पूरक वस्तुएँ हैं। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं। – रेखाचित्र से स्पष्ट है कि जब चाय की कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है, तो चीनी की माँग OQ से घटकर OQ1 रह जाती है। इस प्रकार चाय की कीमत और पूरक वस्तु चीनी की माँग में ऋणात्मक संबंध होता है।

प्रश्न 29.
सामान्य वस्तुओं और घटिया वस्तुओं के अर्थ समझाइए।
उत्तर:
सामान्य वस्तुओं अथवा श्रेष्ठ वस्तुओं से अभिप्राय उन वस्तुओं से है जिनकी माँग और उपभोक्ता की आय में सीधा संबंध होता है। घटिया (निकृष्ट) वस्तुओं से अभिप्राय उन वस्तुओं से है जिनकी माँग और उपभोक्ता की आय में विपरीत संबंध होता है। सामान्य वस्तुओं तथा घटिया वस्तुओं के आय माँग वक्र निम्नलिखित हैं-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 13
आय में वृद्धि से सामान्य और अच्छी वस्तुओं की माँग में वृद्धि होती है, लेकिन घटिया वस्तुओं की माँग में कमी होती है। घटिया वस्तु का आय-माँग वक्र नीचे दायीं ओर ढाल वाला होता है, जबकि सामान्य/श्रेष्ठ वस्तु का आय-माँग वक्र बाएं से दाएं ऊपर की ओर ढाल वाला होता है।

प्रश्न 30.
मान लीजिए कि वस्तु A वस्तु Bकी स्थानापन्न है। Bकी कीमत में वृद्धि का Aकी माँग वक्र पर क्या प्रभाव B की कीमत में वृद्धि होगा?
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 14
वस्तु A, वस्तु B की स्थानापन्न है जिसका अर्थ यह है कि वस्तु A और B दोनों एक ही प्रकार की आवश्यकता की संतुष्टि करते हैं अर्थात् वस्तु A को वस्तु B के स्थान पर D(नई माँग वक्र वस्तु A) प्रयोग में लाया जा सकता है। जब वस्तु B की कीमत में वृद्धि होती है, तो वह वस्तु A की तुलना में महँगी हो जाती है। उपभोक्ता वस्त B के स्थान पर वस्त A की ओर आकर्षित A की माँग होंगे। परिणामस्वरूप वस्तु B की कीमत में वृद्धि से वस्तु A का माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाएगा। इसे हम संलग्न रेखाचित्र वृद्धि द्वारा दिखा सकते हैं।

प्रश्न 31.
वस्तु A तथा वस्तु B के उपभोग में पूरकता है। A की कीमत में वृद्धि का B के माँग वक्र पर प्रभाव समझाइए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 15
वस्तु A तथा वस्तु B पूरक वस्तुएँ हैं जिसका अर्थ यह है कि वस्तु A और वस्तु B दोनों का उपभोग साथ-साथ किया जाता है। जब वस्तु A की कीमत में वृद्धि होती है, तो वस्तु A की माँग में कमी होना स्वाभाविक है। वस्तु A की माँग में कमी से वस्तु B की मांग भी हो जाएगी। परिणामस्वरूप वस्तु B का माँग वक्र बाईं ओर खिसक जाएगा।

प्रश्न 32.
रेखाचित्र की सहायता से माँग के विस्तार को समझाइए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 16
माँग का विस्तार-किसी वस्तु की कीमत में कमी होने से यदि वस्तु की माँग पहले से अधिक हो जाती है, तो इसे माँग का विस्तार कहते हैं। माँग के विस्तार की स्थिति में उपभोक्ता उसी माँग वक्र पर ऊपर से नीचे दायीं ओर संचलन करता है, जैसे कि संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है कि जब वस्तु की कीमत OP से घटकर OP1 हो जाती है, तो वस्तु की माँग OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है। QQ1 माँग का विस्तार है।

प्रश्न 33.
माँग में कमी के कारण बताइए।
उत्तर:
माँग में कमी के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

  1. उपभोक्ता की आय में कमी
  2. स्थानापन्न वस्तु की कीमत में कमी
  3. पूरक वस्तु की कीमत में वृद्धि
  4. वस्तु के लिए उपभोक्ता की पसंद व प्राथमिकता में कमी
  5. क्रेताओं की संख्या में कमी
  6. भविष्य में कीमत के कम होने की संभावना
  7. भविष्य में उपभोक्ता की आय कम होने की संभावना।

प्रश्न 34.
एक वक्रीय माँग वक्र के किन्हीं दो बिंदुओं पर माँग की लोच की गणना करके दर्शाएँ।
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 17a
संलग्न रेखाचित्र में DD एक वक्रीय माँग वक्र है। यदि हम वक्रीय माँग वक्र पर स्थित किसी बिंदु पर माँग की लोच ज्ञात करते हैं, तो उस बिंदु को स्पर्श करती हुई एक स्पर्श रेखा (Tangent line) खींचेंगे। अब माँग की लोच निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करके आसानी से निकाली जा सकती है
सूत्र के रूप में-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 17
स्पर्श रेखा का ऊपरी भाग रेखाचित्र में DD एक वक्रीय माँग वक्र है, जिस पर दो बिंदु P और P1 स्थित हैं।
अब हम इन बिंदुओं को स्पर्श करती हुई दो सीधी रेखाएँ AB व A1B1 खींचते हैं। AB स्पर्श रेखा माँग वक्र DD पर स्थित P बिंदु को स्पर्श करती है, जबकि A1B1 रेखा P1 बिंदु को स्पर्श करती है। अब रेखा के निचले भाग को ऊपरी भाग से (\(\frac { PB }{ PA }\)) विभाजित करने पर P1 बिंदु पर माँग की लोच इकाई से अधिक प्राप्त होगी। इसी प्रकार P, बिंदु पर भी माँग की लोच ज्ञात की जा सकती है

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बजट रेखा की अवधारणा समझाइए। किन परिस्थितियों में बजट रेखा खिसक जाती है? रेखाचित्रों का प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
बजट रेखा का अर्थ-बजट रेखा दो वस्तुओं के उन सभी बंडलों या संयोगों (Combinations) को दर्शाती है जिन्हें उपभोक्ता निश्चित आय और कीमतों पर अपनी समस्त आय से खरीद सकता है। दूसरे शब्दों में, बजट रेखा एक उपभोक्ता द्वारा दी हुई कीमतों और आय के आधार पर दो वस्तुओं पर व्यय की सभी संभावनाएँ दर्शाती है। इस प्रकार बजट रेखा उन संभावनाओं को प्रकट करती है जिन्हें एक उपभोक्ता अपनी दी हुई आय से खरीद सकता है। बजट रेखा का समीकरण निम्नलिखित है
P1x1 + P2 x2 = M
उदाहरण-उदाहरण के लिए, मान लो एक उपभोक्ता की आय (या बजट) 40 रु० है जिसे वह संतरों और सेबों के उपभोग पर व्यय करना चाहता है, जबकि सेब और संतरे की प्रति इकाई कीमत 10 रु० है। दी हुई आय और
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 18
कीमतों के आधार पर उपभोक्ता दो वस्तुओं के निम्नलिखित पाँच बंडलों या संयोगों को खरीद सकता है (0, 4), (1,3), (2, 2), (3, 1), (4,0) जिन पर व्यय, उसकी आय (40 रु०) के बराबर है।

जब ऐसे सभी बंडलों या संयोगों को ग्राफ पर अंकित कर जो बिंदु प्राप्त होते हैं उनको मिलाने से बजट रेखा निकल आती है; जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है। उपभोक्ता बजट रेखा सीमा पर या इसके भीतर ही खरीद सकता है बाहर नहीं क्योंकि बजट रेखा उपभोक्ता के बजट (आय) से नियन्त्रित होती है। उपभोक्ता की आय या वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर बजट रेखा का ढाल (Slope) या स्थिति बदल .. जाती है। ध्यान से देखें तो उक्त संयोजनों में सेबों की इकाइयाँ घटाकर ही संतरों की इकाइयाँ बढ़ाई गई हैं। इसे हम रेखाचित्र में । संतरों को X-अक्ष पर और सेबों को Y-अक्ष पर मापकर दिखा सकते हैं। दो वस्तुओं के विभिन्न बंडलों/संयोगों के प्रतीक A, B, C, D, E बिंदुओं को मिलाने से एक सरल रेखा बन गई है जिसे बजट रेखा कहते हैं। ध्यान रहे बजट रेखा को कीमत रेखा (Price Line) या आय रेखा भी कहा जाता है।

बजट रेखा में खिसकाव-बजट रेखा में खिसकाव निम्नलिखित दो कारकों पर निर्भर करता है-

  • उपभोक्ता की आय
  • दोनों वस्तुओं की कीमतें।

जब उपर्युक्त दोनों कारकों अथवा उनमें से किसी एक कारक में कोई परिवर्तन होता है, तो बजट रेखा खिसक जाती है। उपभोक्ता की आय में कमी होने पर बजट रेखा बाईं ओर और उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर बजट रेखा दाईं ओर खिसक जाती है। इसे हम निम्नांकित रेखाचित्र (i) द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।

जब उपभोक्ता की आय स्थिर है लेकिन X-वस्तु की कीमत में गिरावट आती है, तो बजट रेखा में परिवर्तन होगा क्योंकि. अब उपभोक्ता X-वस्तु की अधिक इकाइयाँ खरीद सकेगा। इसी प्रकार यदि X-वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है, तो बजट रेखा .. में परिवर्तन होगा क्योंकि अब उपभोक्ता X-वस्तु की कम इकाइयाँ खरीद सकेगा। इसे हम निम्नांकित रेखाचित्र (ii) द्वारा दिखा सकते हैं
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 19

प्रश्न 2.
यह समझाइए कि उपभोक्ता संतुलन वहीं क्यों होता है जहाँ उसकी किसी वस्तु से प्राप्त सीमांत उपयोगिता का मौद्रिक मान वस्तु की बाज़ार कीमत के समान है?
अथवा
एक ही वस्तु की स्थिति में, उपयोगिता तालिका (अनुसूची) की सहायता से उपभोक्ता के संतुलन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
उपभोक्ता के संतुलन से अभिप्राय उस स्थिति से है जहाँ उपभोक्ता को अपनी दी हुई आय से अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो। उपयोगिता विश्लेषण के अनुसार, एक ही वस्तु की स्थिति में एक उपभोक्ता उस समय संतुलन की स्थिति में होगा जब सीमांत उपयोगिता (Marginal Utility – MU) का मौद्रिक मान और वस्तु की कीमत में समानता होगी। उपभोक्ता के संतुलन की स्थिति में उसकी कुल उपयोगिता का मौद्रिक मान और कुल व्यय का अंतर अधिकतम होना चाहिए। इसके लिए अग्रलिखित शर्त पूरी होनी चाहिए-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 20
एक रुपए की सीमांत उपयोगिता और वस्तु की कीमत को स्थिर तथा दिया हुआ मान लिया जाता है, लेकिन वस्तु की सीमांत उपयोगिता घटती हुई होती है। उपभोक्ता संतुलन की स्थिति में उनकी कुल उपयोगिता का मौद्रिक मान और कुल व्यय का अंतर अधिकतम होना चाहिए। यदि वस्तु की कीमत गिरती है, तो उपभोक्ता को प्राप्त उपयोगिता अधिक होगी और उपभोक्ता उस समय तक उपभोग करता रहेगा जब तक कि सीमांत उपयोगिता का मौद्रिक मान वस्तु की कीमत के बराबर न हो।

उपभोक्ता के संतुलन को एक उदाहरण द्वारा भी समझाया जा सकता है। एक शीतल पेय की बोतल की कीमत 5 रुपए है – और 1 रुपए की सीमांत उपयोगिता 4 है। मोहिनी एक उपभोक्ता है जिसकी उपयोगिता तालिका निम्नलिखित है-

शीतल पेय की बोतलसीमांत उपयोगिता
160
240
320
410
500
610

मोहिनी तीसरी बोतल पर संतुलन की स्थिति में है और वह चौथी बोतल का उपयोग नहीं करेगी। तीसरी बोतल पर उपर्युक्त शर्त पूरी होती है। इस प्रकार,
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 21

प्रश्न 3.
माँग की कीमत लोच से आप क्या समझते हैं? माँग की कीमत लोच की विभिन्न श्रेणियों की चित्र सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
माँग की कीमत लोच का अर्थ-अन्य बातें समान रहते हुए, वस्तु की कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप वस्तु की माँग की मात्रा में जिस अनुपात या दर से परिवर्तन होता है, उसे माँग की कीमत लोच कहते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 22
संक्षेप में, कीमत में परिवर्तन के प्रति माँग की प्रतिक्रिया का माप माँग की लोच कहलाती है। माँग की लोच के संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि माँग की लोच सदैव ऋणात्मक होती है क्योंकि कीमत और माँग में विपरीत संबंध पाया जाता है। किंतु इसके लिए व्यवहार में ऋणात्मक चिह्न (-) का प्रयोग नहीं किया जाता।
माँग की कीमत लोच की श्रेणियाँ माँग की कीमत लोच की मुख्य रूप से निम्नलिखित पाँच श्रेणियाँ हैं-
1. पूर्णतया लोचदार माँग-जब किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन हुए बिना अथवा नाममात्र का परिवर्तन होने पर उस वस्तु की माँग में बहुत अधिक परिवर्तन हो जाए, तो वस्तु की माँग पूर्णतया लोचदार कहलाती है। गणित की भाषा में इसे e = ∞ कहते हैं। इस स्थिति में माँग वक्र OX-अक्ष के समानांतर होता है। जैसाकि चित्र में दर्शाया गया है कि DD माँग वक्र पर OP कीमत में परिवर्तन हुए बिना कभी माँग बढ़कर OQ1 और कभी घटकर OQ2 हो जाती है। इस प्रकार की स्थिति पूर्ण प्रतियोगिता (Perfect Competition) में देखने को मिलती है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 24
2. पूर्णतया बेलोचदार माँग-जब किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर उसकी माँगी जाने वाली मात्रा में कोई परिवर्तन न हो, तो वस्तु की माँग पूर्णतया बेलोचदार कहलाती है। गणित की भाषा में इसे e= 0 कहते हैं। इस स्थिति में माँग वक्र OY-अक्ष के समानांतर होता है। जैसाकि चित्र में दर्शाया गया है कि, DD माँग वक्र पर जब कीमत OP से बढ़कर OP1 या घटकर OP2 हो जाती है, तो माँग OQ ही रहती है। ऐसी स्थिति व्यवहार में बहुत कम देखने को मिलती है, हाँ यदि किसी वस्तु की माँग अत्यधिक आवश्यक हो; जैसे किसी विशेष दुर्लभ दवाई (Rare Medicine) की माँग अथवा किसी अत्यधिक व्यसनी की किसी अवांछनीय पदार्थ जैसे अफीम (Opium) आदि की माँग के लिए माँग वक्र उदग्र (Vertical) हो सकता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 25
3. इकाई लोचदार माँग-जब किसी वस्तु की माँग में ठीक उसी अनुपात में परिवर्तन होता है जिस अनुपात में वस्तु की कीमत में परिवर्तन हुआ है, तो उसे वस्तु की इकाई लोचदार माँग कहा जाता है। यदि किसी वस्तु की कीमत में 25% परिवर्तन होने पर उसकी माँग में भी 25% परिवर्तन आता है, तो उसे इकाई लोचदार माँग कहा जाएगा। गणित की भाषा में इसे e = 1 कहा जाता है। इस स्थिति में माँग वक्र 45° का कोण बनाता हुआ होता है। जैसाकि चित्र में दर्शाया गया है कि कीमत में होने वाला परिवर्तन PP1, माँग में होने वाले परिवर्तन QO1 के बराबर है अर्थात् ∆ P = ∆Q।
कीमत
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 26
माँग में % परिवर्तन = कीमत में % परिवर्तन
साधारणतया सुविधाओं (Comforts) के संदर्भ में माँग आनुपातिक लोचदार होती है।

4. अधिक लोचदार माँग-जब किसी वस्तु की कीमत में थोड़ा परिवर्तन होने से वस्तु की माँग में अधिक परिवर्तन होता है, तो उस वस्तु की माँग अधिक लोचदार कहलाती है। गणित की भाषा में इसे e > 1 कहते हैं। इस स्थिति में माँग वक्र अर्थ लेटी (Semi-Horizontal) अवस्था में होता है। जैसाकि चित्र में दर्शाया गया है कि कीमत में होने वाला परिवर्तन PP, थोड़ा है तथा माँग में होने वाला परिवर्तन QQ. अधिक है अर्थात् ∆P < ∆ Q। माँग में % परिवर्तन > कीमत में % परिवर्तन
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 27
साधारणतया विलासिताओं (Luxuries) के संदर्भ में माँग अधिक लोचदार होती है।

5. कम लोचदार माँग-जब किसी वस्तु की कीमत में अधिक परिवर्तन आने से वस्तु की माँग में थोड़ा परिवर्तन होता है, तो उस वस्तु की माँग कम लोचदार कहलाती है। गणित की भाषा में इसे e < 1 कहते हैं। इस स्थिति में माँग वक्र अर्ध-उदग्र (Semi-Vertical) सा होता है। जैसाकि चित्र में दर्शाया गया है कि कीमत में होने वाला परिवर्तन PP1 अधिक है जबकि माँग में होने वाला परिवर्तन QQ1 कम है अर्थात् ∆P > ∆Q1
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 28
माँग में % परिवर्तन < कीमत में %
परिवर्तन – साधारणतया अनिवार्यताओं (Necessaries) के संबंध में माँग कम लोचदार होती है।

प्रश्न 4.
माँग की कीमत लोच को प्रभावित करने वाले कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
माँग की कीमत लोच को प्रभावित करने वाले महत्त्वपूर्ण कारक माग निम्नलिखित हैं-
1. वस्तु की प्रकृति-किसी वस्तु की माँग की लोच अधिक होगी या कम, यह वस्तु विशेष की प्रकृति पर निर्भर करता है। यदि वस्तु अनिवार्य है; जैसे गेहूँ, तो उसकी कीमत में बहुत अधिक परिवर्तन आने से भी माँग में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आता। अतः अनिवार्य वस्तु की माँग कम लोचदार होती है। इसके विपरीत, विलासिता की वस्तुओं; जैसे एयरकंडीशन की माँग प्रायः अधिक लोचदार होती है। जैसे ही विलासिता की वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन होता है, उनकी माँग में कीमत में परिवर्तन के अनुपात से अधिक परिवर्तन होता है।

2. स्थानापन्न वस्तुओं की उपलब्धता-किसी वस्तु की यदि स्थानापन्न वस्तुएँ उपलब्ध हैं, तो उसकी माँग अधिक लोचदार होगी। उदाहरण के लिए, यदि ब्रुक बांड चाय की कीमत बढ़ जाती है, तो उपभोक्ता लिप्टन चाय का प्रयोग करना आरंभ कर देंगे तथा ब्रुक बांड चाय की माँग में काफी कमी आ जाएगी। दूसरी ओर, यदि एक वस्तु की स्थानापन्न वस्तु उपलब्ध नहीं है; जैसे कि नमक, तो इसकी माँग बेलोचदार या कम लोचदार होगी।

3. वस्तु के कई उपयोग-यदि किसी वस्तु का एक ही उपयोग संभव हो तो उसकी कीमत में परिवर्तन होने से उसकी माँग में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होगा। अतः इसकी माँग बेलोचदार या कम लोचदार होगी। दूसरी ओर, जिस वस्तु के कई उपयोग हैं; जैसे बिजली का उपयोग रोशनी के लिए, कमरा गर्म करने के लिए और भोजन पकाने के लिए किया जाता है, तो ऐसी वस्तु की कीमत के बढ़ने से माँग काफी कम हो जाती है तथा कीमत कम होने से माँग बढ़ जाती है। अतः इसकी माँग अधिक लोचदार मानी जाएगी।

4. उपभोग का स्थगित होना-यदि किसी वस्तु के उपभोग को कुछ समय के लिए स्थगित किया जाए तो उसकी माँग अधिक लोचदार होगी। गर्म कपड़े, टेलीविज़न, जूते आदि अनेक वस्तुओं के उपभोग को कुछ समय के लिए स्थगित करना संभव होता है। इन वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होने से इनकी माँग कम हो जाएगी क्योंकि उपभोक्ता कुछ समय के लिए इन वस्तुओं को नहीं खरीदेगा। फलस्वरूप इनकी माँग लोचदार होगी, लेकिन अनिवार्य वस्तुओं; जैसे अनाज, नमक, दवाइयाँ इत्यादि का उपभोग कुछ समय के लिए स्थगित करना संभव नहीं होता। अतः इनकी माँग बेलोचदार होती है।

5. कीमतें-किसी वस्तु की माँग की लोच उस वस्तु की कीमत द्वारा भी प्रभावित होती है, जिन वस्तुओं की कीमतें बहुत अधिक या बहुत कम होती हैं; जैसे डायमंड तथा माचिस । इनकी माँग सामान्यतः बेलोचदार या कम लोचदार होती है। इन वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन आने से इनकी माँग में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आता। सामान्य कीमत वाली वस्तुओं; जैसे बिजली का पंखा आदि की माँग लोचदार होती है क्योंकि इनकी कीमत में होने वाले परिवर्तनों का माँग पर अपेक्षाकृत अधिक प्रभाव पड़ता है।

6. वस्तु पर व्यय की जाने वाली आय का अनुपात-माँग की लोच इस बात से भी प्रभावित होती है कि उपभोक्ता अपनी कुल आय का कितना भाग वस्तु पर व्यय करता है। जिन वस्तुओं पर उपभोक्ता की आय का बहुत थोड़ा भाग व्यय होता है; जैसे माचिस, ब्लेड, साबुन आदि, तो इनकी माँग बेलोचदार या कम लोचदार होती है। इसका कारण यह है कि इन वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन आने से उपभोक्ता द्वारा व्यय किए जाने वाले अनुपात में परिवर्तन नहीं आता और वस्तुओं की मांग भी कम नहीं होती। इसके विपरीत, जिन वस्तुओं पर उपभोक्ता अपनी आय का अधिक भाग व्यय करता है; जैसे मकान का किराया, कपड़ों पर व्यय आदि, तो उनकी माँग अधिक लोचदार होती है।

7. आदतें माँग की लोच उपभोक्ता की आदतों पर भी निर्भर करती है। जिन वस्तुओं के उपभोग की उपभोक्ता को आदत पड़ जाती है; जैसे पान, सिगरेट, चाय इत्यादि तो इनकी माँग बेलोचदार या कम लोचदार होती है क्योंकि आदत संबंधी वस्तुओं की कीमत में कितनी भी वृद्धि होने पर माँग में कोई विशेष कमी नहीं आती।

8. समयावधि-माँग की लोच पर समयावधि का भी प्रभाव पड़ता है। अल्पकाल में वस्तु की माँग प्रायः कम लोचदार होती है, जबकि दीर्घकाल में माँग अधिक लोचदार होती है। इसका कारण यह है कि दीर्घकाल में वस्तु की माँग को कीमत के अनुरूप ढालने का काफी समय मिल जाता है, जबकि अल्पकाल में समय इतना कम होता है कि वस्तु की माँग को कीमतों के अनुरूप नहीं ढाला जा सकता।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 5.
एक वस्तु की माँग संबंधित वस्तुओं की कीमत में परिवर्तनों से कैसे प्रभावित होती है? रेखाचित्रों की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
एक वस्तु की माँग और संबंधित वस्तुओं की कीमतों के संबंध को हम निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं-
1. स्थानापन्न अथवा प्रतियोगी वस्तुएँ-यदि वस्तुएँ एक-दूसरे की स्थानापन्न हैं तो अन्य वस्तु की कीमत में गिरावट परिवार की वस्तु विशेष की माँग को कम करती है। उदाहरण के लिए, कॉफी की कीमत में कमी चाय की माँग को अपनी ओर आकर्षित कर चाय की माँग को कम कर देगी। इसी प्रकार कॉफी की कीमत में बढ़ोतरी से चाय की मांग में भी बढ़ोतरी होगी।

इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं- रेखाचित्र में दर्शाया गया है कि जब कॉफी की कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है तो चाय की माँग OQ से बढ़कर OQ1 हो गई। इस प्रकार कॉफी की कीमत और चाय की माँग में धनात्मक संबंध होता है।।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 29

2. पूरक वस्तुएँ यदि वस्तुएँ एक-दूसरे की पूरक हैं तो अन्य वस्तुओं की | कीमत में गिरावट परिवार की वस्तु विशेष की माँग को आकर्षित करती है। उदाहरण के लिए, कार की कीमत में कमी के कारण उसकी माँग और साथ-ही-साथ पेट्रोल की माँग भी बढ़ जाएगी। इसी प्रकार चाय की कीमत में वृद्धि के कारण चाय की माँग में कमी से चीनी की माँग भी कम हो जाएगी, क्योंकि चाय और चीनी दोनों पूरक वस्तुएँ हैं। इसे हम संलग्न रेखाचित्रों स्पष्ट कर सकते हैं
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 30
रेखाचित्र (i) से स्पष्ट है कि जब कार की कीमत OP से घटकर OP1 हो जाती है, तो पेट्रोल की माँग OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है। इसी प्रकार रेखाचित्र (ii) से स्पष्ट है कि जब चाय की कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है, तो चीनी की माँग OQ से घटकर OQ1 हो जाती है। इस प्रकार चाय की कीमत और चीनी की माँग में ऋणात्मक संबंध है।

प्रश्न 6.
उदाहरण की सहायता से माँग की कीमत लोच को मापने की कुल व्यय विधि बताइए।
उत्तर:
कुल व्यय विधि के अनुसार, माँग की लोच का माप वस्तु की कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप वस्तु पर किए गए कुल व्यय में होने वाले परिवर्तन के आधार पर किया जाता है। कुल व्यय की गणना वस्तु की कीमत को उसकी माँग की मात्रा से गुणा करके की जाती है अर्थात् TE = P x D । कुल व्यय विधि के अनुसार, माँग की लोच को तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है-
1. इकाई से अधिक लोच-यदि कीमत के घटने से वस्तु पर किया गया कुल व्यय बढ़ जाए और कीमत के बढ़ने से वस्तु पर किया गया कुल व्यय घट जाए, तो माँग की लोच इकाई से अधिक होती है। सांकेतिक रूप में
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 31

2. इकाई के बराबर लोच-यदि वस्तु की कीमत घटने अथवा बढ़ने से वस्तु पर किया गया कुल व्यय स्थिर रहता है, तो माँग की लोच इकाई के बराबर होती है। सांकेतिक रूप में
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 32

3. इकाई से कम लोच यदि वस्तु की कीमत के घटने से वस्तु पर किया गया कुल व्यय घट जाए और कीमत के बढ़ने से कुल व्यय बढ़ जाए तो माँग की लोच इकाई से कम होती है। सांकेतिक रूप में
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 33
कुल व्यय विधि को निम्नलिखित तालिका द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है
तालिका
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 34
तालिका में स्पष्ट किया गया है कि जब कीमत 10 रुपए प्रति इकाई है तो वस्तु पर कुल व्यय 10 रुपए किया जाता है, परंतु जब कीमत कम होकर 9 रुपए हो जाती है तो इस वस्तु पर कुल व्यय बढ़कर 18 रुपए तथा जब कीमत 8 रुपए हो जाती है तो – कुल व्यय 24 रुपए हो जाता है। अतः माँग की कीमत लोच (मूल्य सापेक्षता) इकाई से अधिक है। जब कीमत 6 रुपए प्रति इकाई से कम होकर 5 रुपए हो जाती है तो कुल व्यय 30 रुपए ही रहता है। अतः माँग की.

कुल व्यय वक्र कीमत लोच (मूल्य सापेक्षता) इकाई के बराबर है। जब कीमत 4 रुपए से 3 रुपए तथा 3 रुपए से 2 रुपए हो जाती है, तो कुल व्यय 28 रुपए से कम होकर 24 रुपए तथा फिर 18 रुपए हो जाता है। अतः माँग की कीमत लोच (मूल्य सापेक्षता) इकाई से कम है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 35
कल व्यय विधि को रेखाचित्र द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है। रेखाचित्र में OX-अक्ष पर कुल व्यय तथा OY-अक्ष पर कीमत मापी गई है। ABCD कुल व्यय रेखा है। इसका AB भाग इकाई से अधिक कीमत लोच (मूल्य सापेक्षता) को प्रकट करता है, क्योंकि इस स्थिति में कीमत के कम होने से कुल व्यय बढ़ता है। कुल व्यय रेखा का BC भाग इकाई लोचदार माँग को व्यक्त करता है, कुल व्यय क्योंकि कीमत परिवर्तन से कुल व्यय में कोई परिवर्तन नहीं होता। CD भाग इकाई से कम लोचदार माँग को व्यक्त करता है, क्योंकि इस अवस्था में कीमत के कम होने से कुल व्यय भी कम हो जाता है।

प्रश्न 7.
अनधिमान वक्र की सहायता से उपभोक्ता के इष्टतम चयन को समझाइए। रेखाचित्र का प्रयोग कीजिए।
अथवा
अनधिमान/तटस्थता वक्र की सहायता से उपभोक्ता तटस्थता की इष्टतम या संतुलन स्थिति को समझाइए।
उत्तर:
उपभोक्ता संतुलन की अवस्था को तब प्राप्त करता है, जब वह दी हुई आय और वस्तुओं की दी हुई कीमतों पर अपनी संतुष्टि को अधिकतम करता है। यहाँ सबसे महत्त्वपूर्ण बात दो वस्तुओं के उस संयोग (Combination) का चयन करना है जो उपभोक्ता को अधिकतम संतुष्टि प्रदान करता है। इसके लिए तीन जानकारियाँ जरूरी हैं-(i) उपभोक्ता की आय, (ii) वस्तुओं की कीमतें (इन दोनों सूचनाओं का प्रतिनिधित्व बजट रेखा करती है) और (iii) अधिमान सारणी (Preference Schedule) जिसे अनधिमान (तटस्थता) मानचित्र दर्शाता है। उपभोक्ता का संतुलन उस बिंदु पर होता है जहाँ बजट रेखा उच्चतम प्राप्य (Highest attainable) अनधिमान (तटस्थता) वक्र को स्पर्श करती है अर्थात् स्पर्श रेखा (Tangent) बन जाती है। इस बिंदु पर अनधिमान (तटस्थता) वक्र का ढाल (Slope) बजट रेखा के ढाल के बराबर होता है।

संलग्न अनधिमान (तटस्थता) मानचित्र (Indifference Map) में हम बजट रेखा (कीमत रेखा) M खींचते हैं। उपभोक्ता का लक्ष्य अनधिमान (तटस्थता) मानचित्र में सबसे ऊँचा वह बंडल (संयोग) (Combination) उपभोक्ता संतुलन प्राप्त करना है जो बजट रेखा के अंतर्गत संभव हो। वह केवल उस बिंदु प संतुलन प्राप्त करेगा जो बजट रेखा और सर्वोच्च प्राप्य अनधिमान (तटस्थता) वक्र में साझा (Common) बिंदु हो। दूसरे शब्दों में, जिस बिंदु पर बजट रेखा ऊँचे-से-ऊँचे अनधिमान (तटस्थता) वक्र को स्पर्श करती है वही संतुलन बिंदु होगा। रेखाचित्र में बिंदु P संतुलन बिंदु है जहाँ बजट रेखा M उच्चतम प्राप्य (Attainable) वक्र IC2 को स्पर्श करती है। अनधिमान (तटस्थता) वक्र IC3 पर स्थित बंडल (संयोग) बजट रेखा की सीमा से बाहर (ऊपर) होने के कारण अप्राप्य है, जबकि IC1 वक्र पर बंडल (संयोग) वक्र IC2 के बंडल (संयोग) से निश्चित रूप से घटिया है। अतः आदर्शतम या इष्टतम (Optimum) बंडल (संयोग) उस बिंदु पर स्थित है जिस पर बजट रेखा अनधिमान (तटस्थता) वक्र IC2 को स्पर्श (Tangent) करती है। यहाँ वह बिंदु P है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 36
संक्षेप में, उपभोक्ता संतुलन की दो शर्ते हैं-
(i) बजट रेखा को अनधिमान (तटस्थता) वक्र पर स्पर्श रेखा (Tangent) होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में, अनधिमान (तटस्थता) वक्र का ढाल = बजट रेखा का ढाल।
(ii) संतुलन बिंदु (यहाँ बिंदु P) पर अनधिमान (तटस्थता) वक्र उद्गम (Origin) बिंदु O की ओर उन्नतोदर (Convex) होना चाहिए अर्थात् सीमांत प्रतिस्थापन दर (Marginal Rate of Substitution) घटती हुई होनी चाहिए।

प्रश्न 8.
माँग वक्र क्या है? माँग वक्र का ढलान किन परिस्थितियों में धनात्मक होता है?
अथवा
माँग के नियमों के अपवादों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
माँग वक्र-माँग वक्र एक ऐसा वक्र होता है जो किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर माँगी जाने वाली विभिन्न मात्राएँ दर्शाता है। कई विशेष परिस्थितियों में माँग का नियम लागू नहीं होता अर्थात् कीमत और माँग में विपरीत संबंध देखने को नहीं मिलता। इन परिस्थितियों में कीमत बढ़ने पर माँग बढ़ती है और कीमत कम होने पर माँग कम हो जाती है। माँग के नियम के अपवाद की स्थिति में माँग वक्र का ढाल दाईं ओर ऊपर उठता हुआ होता है। जैसा कि संलग्न चित्र में दिखाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 37
माँग के नियम के अपवाद अथवा माँग वक्र के धनात्मक ढलान के कारण-माँग के नियम के कुछ महत्त्वपूर्ण अपवाद अथवा सीमाएँ निम्नलिखित हैं-
1. अनिवार्य वस्तुएँ -बेन्हम (Benham) के अनुसार जीवन की अनिवार्य वस्तुओं; जैसे गेहूँ, चावल, दालें, घी, आटा, नमक, चीनी, तेल, साबुन आदि पर यह नियम लागू नहीं होता। आटे की कीमत चाहे अधिक हो या कम, फिर भी उपभोक्ता उसकी माँग पहले जितनी ही करता है।

2. वस्तुओं की दुर्लभता का डर-बेन्हम (Benham) के अनुसार जब किसी वस्तु की आने वाले समय में (आपात्कालीन स्थिति; जैसे युद्ध, अकाल आदि) के कारण कमी (Scarcity) हो जाने का डर हो, तो वर्तमान में उसकी कीमत बढ़ने पर भी उसकी माँग बढ़ती जाती है; जैसे भारत में मिट्टी का तेल, डीजल, सीमेंट, रासायनिक खाद, कोयला आदि वस्तुओं की दुर्लभता का डर प्रत्येक समय बना रहता है। यदि इन वस्तुओं की कीमत बढ़ जाए, तो भी इनकी माँग बढ़ जाती है।

3. गिफ्फन वस्तुएँ सर रॉबर्ट गिफ्फन (Sir Robert Giffen) के अनुसार गिफ्फन वस्तुओं (Giffen Goods) पर माँग का नियम लागू नहीं होता। गिफ्फन वस्तुओं की कीमतें बढ़ने पर उनकी अधिक माँग और कीमत गिरने पर उनकी कम माँग की जाती है। उदाहरण के लिए, यदि ज्वार, बाजरा आदि मोटे अनाज की कीमतें कम हो जाती हैं तो आवश्यक नहीं कि उ अधिक मात्रा खरीदें। कीमत कम होने से उपभोक्ता की वास्तविक आय बढ़ जाती है, जिसका वह उत्तम अनाज-गेहूँ, चावल, आदि खरीदने में उपयोग करता है, जिससे मोटे अनाज की माँग कम हो जाएगी। इस प्रकार घटिया वस्तुओं पर यह नियम लागू नहीं होता।

भी घटिया वस्तुएँ माँग के नियम का अपवाद नहीं हैं अर्थात सभी घटिया वस्तुएँ गिफ्फन वस्तएँ नहीं हैं। वे सभी वस्तुएँ घटिया होती हैं जिनका आय प्रभाव ऋणात्मक होता है अर्थात् आय में परिवर्तन होने से जिनकी माँग में विपरीत दिशा में परिवर्तन होता है। परंतु माँग का नियम केवल उन घटिया वस्तुओं पर लागू नहीं होता जिनका धनात्मक प्रतिस्थापन प्रभाव, ऋणात्मक आय-प्रभाव से कम है। जिन घटिया वस्तुओं का ऋणात्मक आय प्रभाव धनात्मक प्रतिस्थापन प्रभाव से कम है, उन पर माँग का नियम लागू होता है।

4. उपभोक्ता की अज्ञानता-उपभोक्ता की अज्ञानता के कारण भी यह नियम लागू नहीं होता। कभी-कभी उपभोक्ता अज्ञानता के कारण यह सोचता है कि महँगी वस्तुएँ श्रेष्ठ और सस्ती वस्तुएँ निम्नकोटि की होती हैं। ऐसी स्थिति में वे कीमतें बढ़ने पर ही वस्तु की अधिक माँग करते हैं; जैसे क्रीम, पाउडर, लिपस्टिक आदि कॉस्मेटिक्स की बिक्री ऊँची कीमत के आधार पर होती है। सस्ती कीमत पर उपभोक्ता इन्हें घटिया समझकर नहीं खरीदता, परंतु महँगी कीमतों पर वह इन्हें बढ़िया समझकर खरीद लेता है।

5. प्रतिष्ठासूचक वस्तुएँ यह नियम मिथ्या आकर्षण (Snob Appeal) वाली वस्तुओं पर भी लागू नहीं होता। कुछ वस्तुएँ; जैसे आयातित कार, बहुमूल्य हीरे-जवाहरात, कीमती कालीन इत्यादि ऐसी होती हैं जो केवल दिखावे के लिए प्रयोग की जाती हैं और जिन्हें धनी व्यक्ति केवल मान-सम्मान पाने के लिए अपने पास रखना चाहते हैं। जैसे-जैसे इन वस्तुओं की कीमतें बढ़ती जाती हैं, उनकी माँग घटने के स्थान पर अधिक हो जाती है।

प्रश्न 9.
माँग वक्र क्या है? माँग वक्र का ढलान नीचे की ओर क्यों झुका होता है?
अथवा
माँग का नियम क्या है? यह नियम क्यों लागू होता है?
उत्तर:
माँग का नियम अर्थशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण नियम है। माँग का नियम कीमत तथा माँग में विपरीत संबंध (Inverse Relationship) व्यक्त करता है। माँग का नियम बतलाता है कि यदि ‘अन्य बातें समान रहें’ तो वस्तु की कीमत बढ़ने पर उसकी माँग घट जाती है और वस्तु की कीमत घटने पर उसकी माँग बढ़ जाती है। सांकेतिक रूप में माँग का नियम स्पष्ट करता है कि
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माँग के नियम को निम्नलिखित समीकरण द्वारा भी व्यक्त किया जा सकता है
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 39
इसे ऐसे भी पढ़ा जाता है कि X वस्तु की माँग X वस्तु की कीमत का फलन है जबकि संबंधित वस्तुओं की कीमत (P1), उपभोक्ता की आय (Y) तथा रुचि (T) आदि स्थिर रहते हैं अर्थात् किसी वस्तु की कीमत और माँग में विपरीत फलनात्मक संबंध (Inverse Functional Relationship) पाया जाता है। वस्तु की कीमत में कमी होने पर वस्तु की अधिक मात्रा और वस्तु की कीमत बढ़ने पर वस्तु की कम मात्रा खरीदी जाती है।

माँग के नियम को निम्नांकित तालिका व रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
तालिका

चीनी की कीमत
प्रति किलो
(र० में)
चीनी की माँग
(किलो में)
50100
40120
30150
20200
10300

रेखाचित्र-माँग के नियम को संलग्न रेखाचित्र द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है।

रेखाचित्र में DD वस्तु का बाज़ार माँग वक्र है जो तालिका में दिए गए आँकड़ों के आधार पर खींचा गया है। DD माँग वक्र बाएँ से दाएँ नीचे की ओर झुक रहा है, जो यह स्पष्ट करता है कि वस्तु की कम कीमत पर अधिक माँग और अधिक कीमत पर कम माँग की जाती है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 40
माँग वक्र माँग वक्र एक ऐसा वक्र होता है जो किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर माँगी जाने वाली विभिन्न मात्राएँ दर्शाता है।

माँग के नियम के लागू होने के कारण अथवा माँग वक्र के दाईं ओर झुकने के कारण-माँग के नियम के लागू होने अथवा माँग वक्र के माँग (किलोग्राम में) दाईं ओर नीचे झुकने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
1.हासमान सीमांत उपयोगिता का नियम-इस नियम के अनुसार जैसे-जैसे किसी व्यक्ति के पास एक विशेष वस्तु का स्टॉक बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे उसकी सीमांत उपयोगिता घटती जाती है, क्योंकि u = f (s)। उपयोगिता (u) स्टॉक (s) का फलन होती है। एक उपभोक्ता वस्तु की उतनी इकाइयाँ खरीदता है जितनी इकाइयाँ खरीदने से उस वस्तु की सीमांत उपयोगिता तथा कीमत बराबर हो जाए। परिणामस्वरूप उपभोक्ता वस्तु की अधिक मात्रा तभी खरीदेगा जब उसकी कीमत कम होकर सीमांत उपयोगिता के बराबर हो जाए। इसलिए कम कीमत पर अधिक माँग और अधिक कीमत पर कम माँग की जाती है।

2. आय प्रभाव आय प्रभाव के कारण भी माँग का नियम लागू होता है। एक वस्तु की कीमत में परिवर्तन का उपभोक्ता की वास्तविक आय (Real Income) पर जो प्रभाव पड़ता है, उसे आय प्रभाव कहते हैं। जब वस्तु की कीमत गिरती है, तो उपभोक्ता की वास्तविक आय (अर्थात् मौद्रिक आय की क्रय-शक्ति) बढ़ती है क्योंकि अब उपभोक्ता को पहले जितनी वस्तु की मात्रा खरीदने के लिए कम खर्च करना पड़ता है और इसी बची हुई राशि से उसके लिए अधिक मात्रा खरीदना संभव हो जाता है। अतः कीमत के गिरने से आय प्रभाव द्वारा वस्तु की माँग बढ़ेगी और कीमत के बढ़ने से आय प्रभाव द्वारा वस्तु की माँग गिरेगी।

3. स्थानापन्न प्रभाव-स्थानापन्न प्रभाव का संबंध दो वस्तुओं की सापेक्षिक कीमतों (Relative Prices) में परिवर्तन का वस्तु की माँग पर पड़ने वाले प्रभाव से है; जैसे चाय और कॉफी में से किसी एक वस्तु जैसे कॉफी की कीमत बढ़ जाने पर, जो लोग कॉफी के स्थान पर चाय की जितनी अधिक मात्रा खरीदेंगे, उसे प्रतिस्थानापन्न प्रभाव कहते हैं। जब दो संबंधित वस्तुओं की कीमत में ऐसा परिवर्तन होता है कि एक वस्तु सस्ती और दूसरी महँगी होती है, तो उपभोक्ता सस्ती वस्तु को महँगी वस्तु के लिए प्रतिस्थापित करेगा क्योंकि सस्ती वस्तु महँगी वस्तु की तुलना में अधिक मूल्य आकर्षक (Price Attractive) हो जाती है। परिणामस्वरूप जिस वस्तु की कीमत गिरती है, उसकी माँग बढ़ जाती है। अतः स्थानापन्न प्रभाव के कारण कम कीमत वाली वस्तु की अधिक माँग और अधिक कीमत वाली वस्तु की कम माँग की जाती है।

4. विभिन्न प्रयोग कुछ वस्तुओं के विभिन्न प्रयोग होते हैं। ऐसी वस्तु की कीमत गिरने से उसकी माँग अधिक होगी। उदाहरण के लिए, यदि बिजली की कीमत प्रति यूनिट गिर जाए तो लोग बिजली को अनेक प्रयोगों; जैसे प्रैस करने, कपड़े धोने की मशीन चलाने, पानी गर्म करने, हीटर जलाने इत्यादि में प्रयुक्त करेंगे। इससे बिजली की माँग बढ़ेगी। यदि बिजली महँगी हो तो लोग केवल रोशनी करने और पंखा चलाने में ही बिजली का प्रयोग करेंगे। इससे बिजली की माँग घटेगी। अतः विभिन्न प्रयोगों वाली । वस्तुओं की कीमत गिरने पर अधिक माँग और कीमत बढ़ने पर कम माँग की जाती है।

5. बाज़ार में नए उपभोक्ताओं का प्रवेश-किसी वस्तु की कीमत कम होने पर कई नए उपभोक्ता, जो पहले उस वस्तु को नहीं खरीद रहे थे, खरीदने लगते हैं और वस्तु की माँग बढ़ जाती है। मान लीजिए जब अंगूर रु० 50 प्रति किलो होता है तो केवल कुछ धनी व्यक्ति ही अंगूर खरीदेंगे और अंगूर की माँग कम होगी। यदि अंगूर की कीमत कम होकर रु० 10 प्रति किलो हो जाती है, तो कुछ नए उपभोक्ता भी अंगूर की माँग करने लगते हैं और अंगूर की माँग बढ़ जाती है। इसके विपरीत, वस्तु की कीमत बढ़ने पर पुराने उपभोक्ता भी उसे खरीदना बंद कर देते हैं और वस्तु की माँग कम हो जाती है।

प्रश्न 10.
माँग की कीमत लोच के माप की प्रतिशत विधि अथवा आनुपातिक विधि को उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
इस विधि के द्वारा माँग की लोच का माप वस्तु की माँग में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन को वस्तु की कीमत में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन से भाग देकर किया जाता है। इसके लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 41
यदि प्रतिशत परिवर्तन के स्थान पर आनुपातिक परिवर्तन ले लिए जाए तो भी माँग की कीमत लोच को मापा जा सकता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 42
[यहाँ q0 = वस्तु की आरंभिक माँग, q1 = वस्तु की नई माँग, p0 = वस्तु की आरंभिक कीमत, p1 = वस्तु की नई कीमत, ∆q = q1 – q0 (माँग में परिवर्तन), ∆p = p1 – p0 (कीमत में परिवर्तन) ∆ = डेल्टा (परिवर्तन का चिह्न)]
or eD = \(\frac{\Delta q}{q^{0}} \div \frac{\Delta p}{p^{0}}=\frac{\Delta q}{q^{0}} \times \frac{p^{0}}{\Delta p}\)
or eD = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
प्रतिशत और आनुपातिक विधियाँ दोनों एक हैं। यह निम्नलिखित विश्लेषण से स्पष्ट है-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 43
इस प्रकार इस विधि के अनुसार, माँग की लोच को मापने का सूत्र है- eD = \(\frac{\mathrm{p}^{0}}{\mathrm{q}^{0}} \times \frac{\Delta \mathrm{q}}{\Delta \mathrm{p}}\)

उदाहरण 

मान लीजिए चीनी की कीमत 10 रुपए प्रति किलोग्राम है, तो चीनी की माँग 100 किलोग्राम है। यदि चीनी की कीमत बढ़कर 11 रुपए प्रति किलोग्राम हो जाती है, तो माँग घटकर 80 किलोग्राम रह जाती है। इस उदाहरण में माँग की कीमत लोच … क्या है?
हल:

चीनी की कीमत माँग
(प्रति किलोग्राम)।
माँग
(किलोग्राम में)
10 रु०100
11 रु०80

(यहाँ, p0 = 10, p1 = 11, ∆p = 11 – 10 = 1
q0 = 100, q1 = 80, ∆q = 80 – 100 = – 20)
eD = \(\frac{\Delta \mathrm{q}}{\Delta \mathrm{p}} \times \frac{\mathrm{p}^{0}}{\mathrm{q}^{0}}=\frac{-20}{1} \times \frac{10}{100}\)
इस उदाहरण में माँग की लोचशीलता -2 है, (-) ऋणात्मक चिह्न हम छोड़ देते हैं। यह केवल कीमत और माँग में विपरीत संबंध का प्रतीक है। अतः माँग की लोच इकाई से अधिक है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 11.
माँग की कीमत लोच के माप की ज्यामितीक विधि समझाइए।
अथवा
माँग की मूल्य लोच के माप की बिंदु विधि को सुस्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बिंदु लोच विधि अथवा ज्यामितीक विधि-माँग की लोच को मापने की बिंदु विधि को रेखा गणितीय विधि (Geometrical Method) भी कहा जाता है। जब किसी वस्तु की कीमत एवं माँग में बहुत सूक्ष्म परिवर्तन हो तो ऐसी स्थिति में माँग वक्र के किसी एक विशेष बिंदु पर माँग की लोच ज्ञात की जाती है। इस विधि के अनुसार माँग वक्र पर स्थित किसी बिंदु पर माँग की लोच का माप निम्नलिखित सूत्र की सहायता से ज्ञात किया जाता है-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 44
यदि Lower Sector > Upper Sector हो तो e > 1 होगी।
यदि Lower Sector < Upper Sector हो तो e < 1 होगी।
यदि Lower Sector = Upper Sector हो तो e = 1 होगी।

इस सूत्र के द्वारा माँग की कीमत लोच का माप निम्न स्पष्ट है- संलग्न चित्र में AB एक सीधी रेखा है। इस माँग वक्र के P बिंदु पर माँग की लोच =\(\frac { PB }{ PA }\) होगी। यहाँ चूंकि PB = PA है इसलिए माँग की लोच इकाई के बराबर अर्थात् e = 1 है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 45
बिंदु विधि की सहायता से माँग वक्र के विभिन्न बिंदुओं पर माँग की लोच को मापा जा सकता है। जैसा कि चित्र से स्पष्ट है।

चित्र में AB माँग वक्र की लंबाई मान लो 4″ है। माँग वक्र पर तीन बिंदु N, M, L एक-दूसरे से एक-एक इंच की दूरी पर हैं। अतः

M बिंदु पर माँग की लोच = \(\frac{\mathrm{MB}}{\mathrm{MA}}=\frac{2^{\prime \prime}}{2^{\prime \prime}}\) अर्थात् e = 1 होगी।

N बिंदु पर माँग की लोच = \(\frac{\mathrm{NB}}{\mathrm{NA}}=\frac{3^{\prime \prime}}{1^{\prime \prime}}\) अर्थात् e > 1 होगी।

L बिंदु पर माँग की लोच = \(\frac{\mathrm{LB}}{\mathrm{LA}}=\frac{1^{\prime \prime}}{3^{\prime \prime}}\) अर्थात् e < 1 होगी।

बिंदु A पर माँग का निचला हिस्सा AB होगा तथा ऊपर का शून्य होगा, इसलिए
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 46
e = \(\frac{\mathrm{AB}}{0}=\frac{4^{\prime \prime}}{0}\)
अर्थात् e = ∞ (अनंत होगी)।
B बिंदु पर निचला हिस्सा शून्य है तथा ऊपर का हिस्सा AB है। इसलिए e = \(\frac{0}{\mathrm{AB}}=\frac{0}{4^{\prime \prime}}\) अर्थात् e = 0 होगी।
संक्षेप में, सीधी माँग वक्र के मध्य-बिंदु पर माँग की कीमत लोच इकाई के बराबर होगी। मध्य-बिंदु के बाईं ओर के बिंदुओं पर यह इकाई से अधिक होगी, जबकि उसके दाईं ओर स्थित बिंदुओं पर कीमत लोच इकाई से कम होगी। जिस बिंदु पर माँग वक्र OX-अक्ष को स्पर्श करता है, उस बिंदु पर कीमत लोच शून्य होगी, जबकि माँग वक्र के OY-अक्ष पर स्पर्शीय बिंदु पर कीमत लोच अनंत होगी।
संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी उपभोक्ता की कुल उपयोगिता सूची निम्नांकित तालिका में दिखाई जा रही है। उसकी सीमांत उपयोगिता सची की रचना करें।

उपभोग की इकाइयाँ012345
कुल उपयोगिता (TU)01025384855

हल:

उपभोग की इकाइयाँकुल उपयोगिता (TU)सीमांत उपयोगिता (MU)
000
11010 – 0 = 10
22525 – 10 = 15
33838 – 25 = 13
44848 – 38 = 10
55555 – 48 = 7

प्रश्न 2.
निम्नांकित तालिका में एक उपभोक्ता की सीमांत उपयोगिता सूची दी गई है। यदि शून्य उपभोग की दशा में कुल उपयोगिता भी शून्य हो तो उसकी कुल उपयोगिता सूची की रचना करें।

उपभोग की इकाइयाँ123456
सीमांत उपयोगिता (MU)7108630

हल:

उपभोग की इकाइयाँसीमांत उपयोगिता (MU)कुल उपयोगिता (TU)
000
177
2107 + 10 = 17
3817 + 8 = 25
4625 + 6 = 31
5331 + 3 = 34
6034 + 0 = 34

प्रश्न 3.
निम्नांकित तालिका को पूरा करें-

उपयुक्त इकाइयाँसीमांत उपयोगिता (MU)कुल उपयोगिता (TU)
15050
290?
3?30
4140?
5150?

हल:
कुल उपयोगिता (TU) : 50, 90, 120, 140, 150
सीमांत उपयोगिता (MU) : 50, 40, 30, 20, 10

प्रश्न 4.
निम्नांकित तालिका को पूरा करें-

उपयुक्त इकाइयाँकुल उपयोगिता (TU)सीमांत उपयोगिता (MU)
19
2
36
427
52
627

हल:
कुल उपयोगिता (TU) : 9, 16, 27, 27, 29, 27
सीमांत उपयोगिता (MU) : 9, 7, 6, 5, 2, -2

प्रश्न 5.
नीचे एक उपभोक्ता की वस्तु-X के लिए उपयोगिता तालिका दी हुई है। वस्तु-X की कीमत 6 रु० है। अपनी संतुष्टि को अधिकतम करने के लिए वह कितनी इकाइयों का उपभोग करेगा? (यह मान लीजिए कि उपयोगिता यूटिल्स में मापी जाती है और 1 यूटिल = 1 रु०) अपने उत्तर के लिए कारण दें।

उपयुक्त इकाइयाँकुल उपयोगिता
(यूटिल्स)
सीमांत उपयोगिता
(यूटिल्स)
11010
2188
3257
4316
5343
6340

हल:
उपभोक्ता संतुलन प्राप्त करता है जब-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 47
उपभोक्ता अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करने के लिए 4 इकाइयाँ खरीदेगा।

प्रश्न 6.
एक आइसक्रीम 20 रु० की बेची जाती है। रोहन जिसे आइसक्रीम पसंद है, 7 आइसक्रीम का उपभोग कर चुका है। उसके 1 रु० की सीमांत उपयोगिता 7 है। क्या वह आइसक्रीम का और उपभोग करेगा या उपभोग बंद कर देगा ?
हल:
एक उपभोक्ता संतुलन प्राप्त करता है जब
\(\frac{\mathrm{MU}_{\mathrm{X}}}{\mathrm{P}_{\mathrm{X}}}=\mathrm{MU}_{\mathrm{M}}\)
अथवा
\(\frac{\mathrm{MU}_{\mathrm{X}}}{\mathrm{MU}_{\mathrm{M}}}=\mathrm{P}_{\mathrm{X}}\)
यदि रोहन के लिए 1 रु० मूल्य की संतुष्टि 7 है तो वह 7वीं आइसक्रीम के उपभोग से 140 (=20 x 7) इकाइयों के बराबर संतुष्टि प्राप्त करेगा। अन्यथा वह आइसक्रीम नहीं खरीदेगा। मान लीजिए कि आइसक्रीम की 7वीं इकाई से रोहन को 140 इकाइयों की संतुष्टि प्राप्त होती है तब-
\(\frac{\mathrm{MU}_{\mathrm{X}}}{\mathrm{MU}_{\mathrm{M}}}=\mathrm{P}_{\mathrm{X}}=\frac{140}{7}=20\)
जो यह दर्शाता है कि संतुलन प्राप्त हो चुका है। अतः रोहन को और आइसक्रीम का उपभोग नहीं करना चाहिए। परंतु यदि MUx > 140, तो वह और अधिक आइसक्रीम का उपभोग करेगा तथा आइसक्रीम का उपभोग तब बंद करेगा जब MUx = 140।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित व्यक्ति-A की कुल उपयोगिता तालिका है
(यह मान लो कि शून्य इकाइयों के उपभोग की कुल उपयोगिता शून्य है)

उपभोग की इकाइयाँकुल उपयोगिता (TU)
1150
2280
3380
4430
5430
6370

(i) सीमांत उपयोगिता तालिका ज्ञात करें।
(ii) व्यक्ति-A का उपभोग स्तर ज्ञात करें जिस पर वह पूर्ण संतुष्टि/तृप्ति बिंदु पर पहुँचता है।
(iii) क्या इस स्थिति में व्यक्ति-A के लिए 6वीं इकाई का उपभोग उचित है।।
उत्तर:
(i) सीमांत उपयोगिता : 150, 130, 100, 50, 0, -60।

(ii) वस्तु की 5वीं इकाई के उपभोग पर व्यक्ति-A पूर्ण संतुष्टि/तृप्ति बिंदु पर पहुँचता है, चूंकि यहाँ पर सीमांत उपयोगिता शून्य है और कुल उपयोगिता अधिकतम है।

(iii) व्यक्ति-A 6वीं इकाई का उपभोग नहीं करेगा, चूँकि व्यक्ति-A को 6वीं इकाई से ऋणात्मक सीमांत उपयोगिता प्राप्त होती है।

प्रश्न 8.
मान लीजिए एक शीतल पेय की बोतल की कीमत 5 रु० है और 1 रु० की सीमांत उपयोगिता 4 है। निधि एक उपभोक्ता है, जिसकी उपयोगिता तालिका निम्नलिखित है-

शीतल पेय की बोतलसीमांत उपयोगिता (MU)
160
240
320
410
50
6-10

बताइए की निधि शीतल पेय की कौन-सी बोतल पर संतुलन अवस्था में होगी?
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 48

प्रश्न 9.
मान लो वस्तु Y की कीमत (P) 10 रुपये प्रति इकाई है। यह भी मान लो कि मुद्रा की सीमांत उपयोगिता (MUM) 8 है (और स्थिर है)। उपभोक्ता की निम्नलिखित सीमांत उपयोगिता तालिका का प्रयोग करते हुए उपभोक्ता के उपभोग का संतुलन स्तर तथा वस्तु Y पर होने वाला कुल व्यय ज्ञात करें।

उपभोग की इकाइयाँसीमांत उपयोगिता (MU)
1170
2130
3110
480
530
60

हल:
उपभोक्ता संतुलन की शर्त है
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 49
(i) यहाँ उपभोग का संतुलन स्तर, वस्तु Y की 4 इकाइयाँ हैं-
\(\frac { 80 }{ 10 }\) = 8 अथवा \(\frac { 80 }{ 8 }\) = 10

(ii) वस्तु Y पर कुल व्यय 10×4 = 40 रुपए होगा।

प्रश्न 10.
एक उपभोक्ता के पास वस्तु X तथा वस्तु Y पर खर्च करने के लिए 200 रु० हैं। x की कीमत 10 रु० तथा Yकी कीमत 20 रु० है। दी हुई आय से x तथा Y के खरीदे जाने वाले संभावित संयोगों का ग्राफ बनाइए।
हल:
(0, 10), (2,9), (4,8), (6, 7), (8,6), (10,5), (12, 4), (14,3), (16, 2), (18, 1),(20,0)

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 11.
मान लीजिए कि उपभोक्ता दो ऐसी वस्तुओं का उपभोग करना चाहता है जो केवल पूर्णांक इकाइयों में उपलब्ध हैं। दोनों वस्तुओं की कीमत 10 रु० के बराबर है तथा उपभोक्ता की आय 40 रु० है।
(i) वे सभी बंडल लिखिए जो उपभोक्ता के लिए उपलब्ध हैं।
(ii) जो बंडल उपभोक्ता के लिए उपलब्ध हैं उनमें से वे बंडल कौन-से हैं जिन पर उपभोक्ता के पूरे 40 रु० व्यय हो जाएँगे?
हल:
(i) जो बंडल उपभोक्ता खरीद सकता है, वे हैं-(0, 0), (0, 1), (0, 2), (0, 3), (0, 4), (1, 0), (1, 1), (1, 2), (1,3), (2,0), (2, 1), (2, 2) (3,0), (3, 1) तथा (4,0)।
(ii) वे बंडल जिन पर उपभोक्ता के पूरे 40 रु० व्यय होंगे, वे हैं-(0,4), (1,3), (2, 2), (3, 1), (4,0)।

प्रश्न 12.
मान लीजिए बाज़ार में अनार फल के लिए चार उपभोक्ता हैं। वे हैं-A, B, C, और D । अनार फल के लिए उनके माँग वक्र निम्नलिखित तालिका में दिए गए हैं। बाज़ार माँग वक्र बनाइए।

कीमत (रु०‘A’ द्वारा माँगी गई मात्रा‘B’ द्वारा

माँगी गई मात्रा

‘C’ द्वारा

माँगी गई मात्रा

‘D’ द्वारा

माँगी गई मात्रा

1167158
2116126
37594
44462
52330
61200

हल:

कीमत (रु०‘A’ द्वारा माँगी
गई मात्रा
‘B’ द्वारा

माँगी गई मात्रा

‘C’ द्वारा

माँगी गई मात्रा

‘D’ द्वारा

माँगी गई मात्रा

बाज़ार

माँग

116715846
211612635
3759425
4446216
5233008
6120003

चारों उपभोक्ताओं द्वारा माँगी गई मात्रा को जोड़कर हम बाज़ार माँग का निर्माण करते हैं और विभिन्न कीमतों पर बाज़ार माँग को चित्र में DM वक्र द्वारा दर्शाया जा सकता है-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 50

प्रश्न 13.
मान लीजिए कि एक बाज़ार विशेष में तीन उपभोक्ता हैं- X, Y और Z। उनकी माँग अनुसूची निम्नलिखित तालिका में दी गई है

कीमत (रु०)‘x’ द्वारा मांगी गई मात्रा‘y’ द्वारा माँगी गई मात्रा,‘Z’ द्वारा माँगी गई मात्रा
1605524
2504013
340255
430100
52000

(a) बाज़ार माँग अनुसूची बनाइए तथा बाज़ार माँग वक्र खींचिए।
(b) मान लीजिए, ‘Y’ बाज़ार से हट जाता है तब बाज़ार अनुसूची बनाइए।
(c) मान लीजिए, ‘Y’ बाज़ार में टिका रहता है और अन्य व्यक्ति ‘K’ बाज़ार में प्रवेश करता है, जिसके द्वारा माँगी गई मात्रा किसी विशेष कीमत पर ‘x’ की आधी है। नया बाज़ार माँग वक्र बनाइए।
हल:
(a)

कीमत (रु०)‘x’ द्वारा मांगी गई मात्रा‘y’ द्वारा माँगी गई मात्रा,‘Z’ द्वारा माँगी गई मात्राबाज़ार माँग
1605524139
2504013103
34025570
43010040
5200020

बाज़ार माँग वक्र (Market Demand Curve)
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 51

(b) जब ‘Y’ इस बाज़ार को छोड़ जाता है तो नयी बाज़ार अनुसूची निम्नलिखित होगी

कीमत (रु०)‘x’ की माँग‘Z’ की माँगबाजार माँग
1602484
2501363
340545
430030
520020

(c) जब नया ग्राहक ‘K’ बाज़ार में आता है तो नई बाजार अनुसूची निम्नलिखित होगी-

कीमत (रु०)‘X’ द्वारा माँगी गई मात्रा,‘y’ द्वारा माँगी गई मात्रा,‘Z’ द्वारा माँगी गई मात्रा‘K’ द्वारा माँगी गई मात्राबाज़ार माँग
160552430169
250401325128
3402552090
4301001555
520001030

नया बाज़ार मांग वक्र (New Market Demand Curve)
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 52

प्रश्न 14.
चॉकलेट के लिए मोहिनी के माँग वक्र को निम्नांकित चित्र में दर्शाया गया है। कीमत 5 रु०, 8 रु० तथा 10 रु० पर चॉकलेट की माँगी गई मात्रा का निर्धारण करें।
हल:
माँग वक्र DD के अनुसार कीमत तथा मात्रा के संयोग निम्नलिखित हैं-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 53
10 रु० पर 2 इकाइयाँ
9 रु० पर 4 इकाइयाँ
8 रु० पर 6 इकाइयाँ
7 रु० पर 8 इकाइयाँ
6 रु० पर 10 इकाइयाँ
5 रु० पर 12
इकाइयाँ इस प्रकार कीमत 5 रु०, 8 रु०, 10 रु० पर चॉकलेट की माँगी गई मात्रा क्रमशः 12, 6 एवं 2 इकाइयाँ है।

प्रश्न 15.
यदि मूल्य 2 रुपए प्रति इकाई से 3 रुपए हो जाए और माँगी गई मात्रा 300 इकाइयाँ प्रति सप्ताह से कम होकर 270 इकाइयाँ हो जाए तो माँग की कीमत लोच क्या होगी?
हल:
माँग की लोच(eD) = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
यहाँ p0 = 2 ∆p = 3 – 2 = 1
q0 = 300 ∆q = 300 – 270 = 30
∴ = \(\frac{30}{1} \times \frac{2}{300}\) = \(\frac { 60 }{ 300 }\) = 0.2
इस उदाहरण में माँग की लोच 0.2 या इकाई से कम (eD < 1) या कम लोचदार है।

प्रश्न 16.
कीमत में 40% की वृद्धि होती है, जिसके फलस्वरूप माँग 70 इकाइयों से घटकर 35 इकाइयाँ रह जाती है, माँग की कीमत लोच ज्ञात कीजिए।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 54
\(\frac{\frac{35}{70} \times 100}{40}\) = \(\frac { 50 }{ 40 }\) = 1.25
इस उदाहरण में माँग की कीमत लोच इकाई से अधिक (eD > 1) है।

प्रश्न 17.
एक उपभोक्ता उस वस्तु की 10 इकाइयाँ क्रय करता है जब उसकी कीमत 5 रु० प्रति इकाई थी। जब उस वस्तु की कीमत 4 रु० प्रति इकाई हो गई तो उसने उस वस्तु की 12 इकाइयाँ खरीदीं। उस वस्तु की उस कीमत पर माँग की लोचक्या है ?
हल:
माँग की लोच (eD) = \((-) \frac{p^{0}}{q^{0}} \times \frac{\Delta q}{\Delta p}\)
P0 = 5, p1 = 4, ∆p = 4 – 5 = -1
q0 = 10, q1 = 12, ∆q = 12 – 10 = 2
eD = (-) \(\frac { 5 }{ 10 }\) × \(\frac { 2 }{ -1 }\) = 1 (इकाई)
माँग की लोच इकाई है।

प्रश्न 18.
एकं वस्तु की कीमत 4 रु० प्रति इकाई होने पर एक उपभोक्ता उस वस्तु की 50 इकाइयाँ क्रय करता है। कीमत 25 प्रतिशत गिर जाने पर माँग बढ़कर 100 इकाइयाँ हो जाती है। माँग की कीमत लोच ज्ञात कीजिए।
हल:
प्रारंभिक कीमत (p0) = 4 रु०
कीमत में कमी = 4 × \(\frac { 25 }{ 100 }\) = 1 रु०
नई कीमत (p1) = 4 रु० – 1 रु० = 3 रु०
कीमत में परिवर्तन (∆p) = p1 – p0 = 3 रु० – 4 रु० = -1 रु०
प्रारंभिक माँग (q0) = 50, नई माँग (q1) = 100,
माँग में परिवर्तन (∆q) = q1 – q0
= 100 – 50 = 50
माँग की लोच (eD) = (-) \(\frac { p^0 }{ q^0 }\) × \(\frac { ∆q }{ ∆p }\) = (-) \(\frac { 4 }{ 50 }\) × \(\frac { 50 }{ -1 }\) = \(\frac { 4 }{ 1 }\) = 4
माँग की लोच = 4 (इकाई से अधिक)

प्रश्न 19.
कीमत 18 रुपए प्रति इकाई से घटकर 12 रुपए प्रति इकाई रह जाती है जिसके कारण माँग 30 इकाइयों से बढ़कर 45 इकाइयाँ हो जाती है। माँग की लोच ज्ञात कीजिए।
हल:
माँग की लोच (eD) = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
p0 = 18, ∆p = 6, q0 = 30, ∆q = 15
eD = \(\frac{15}{6} \times \frac{18}{30}=\frac{3}{2}\) = 1.5
माँग की लोच इकाई से अधिक है।

प्रश्न 20.
कीमत में 5 रुपए प्रति इकाई की वृद्धि होने से कीमत बढ़कर 20 रुपए प्रति इकाई हो गई जिसके फलस्वरूप माँग में 12 इकाइयों की कमी हुई और घटकर 52 इकाइयाँ हो गई। माँग की लोच ज्ञात कीजिए।
हल:
माँग की लोच (eD) = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
p0 = 15, ∆p = 5, q0 = 64, ∆q = 12
∴ \(\frac{12}{5} \times \frac{15}{64}=\frac{9}{16}\) = 0.562
माँग की लोच इकाई से कम है।

प्रश्न 21.
एक वस्तु की कीमत 10 प्रतिशत गिर जाने से इसकी माँग 100 इकाइयों से बढ़कर 120 इकाइयाँ हो जाती है। माँग की लोच ज्ञात कीजिए।
हल:
कीमत में प्रतिशत परिवर्तन = 10%
माँग में प्रतिशत परिवर्तन = (\(\frac { 120-100 }{ 100 }\) × 100)
= \(\frac { 20 }{ 100 }\) × 100 = 20%
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 55
माँग की लोच = 2 (इकाई से अधिक)

प्रश्न 22.
यदि किसी वस्तु की कीमत 10 रु० से घटकर 8 रु० हो जाती है, परिणामस्वरूप इसकी माँग 80 इकाई से बढ़कर 100 इकाई हो जाती है। कुल व्यय विधि के आधार पर इसकी कीमत माँग लोच के बारे में क्या कह सकते हैं?
हल:

कीमतमाँगकुल व्यय
10 रु०80800 रु०
8 रु०100800 रु०

क्योंकि कुल व्यय में कोई परिवर्तन नहीं आया, इसलिए माँग की लोच इकाई है।

प्रश्न 23.
एक उपभोक्ता किसी वस्तु पर 80 रु० व्यय करता है, जब उसकी कीमत 1 रु० प्रति इकाई है तथा 96 रु० व्यय करता है, जब उसकी कीमत 2 रु० प्रति इकाई है। वस्तु की माँग की कीमत लोच ज्ञात करें।
हल:

कीमत (रु०)कुल व्यय (रु०)माँग की लोच
180
296इकाई से कम

चूँकि कीमत के बढ़ने से कुल व्यय बढ़ जाता है, इसलिए माँग की लोच इकाई से कम है।

प्रश्न 24.
एक वस्तु की कीमत 5% गिर जाने के कारण उसकी माँग में 12% की वृद्धि हो जाती है। माँग की कीमत लोच ज्ञात कीजिए और बताइए कि माँग लोचदार है या बेलोचदार।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 56

माँग की लोच इकाई से अधिक 2.4 है अर्थात् माँग लोचदार है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 25.
एक वस्तु की कीमत 10 रु० प्रति इकाई से बढ़कर 12 रु० प्रति इकाई हो गई। परिणामस्वरूप उसकी माँग 120 इकाइयों से घटकर 100 इकाइयाँ रह जाती है। माँग की कीमत लोच निकालिए।
हल:
माँग की लोच (eD) = \(\frac{p^{0}}{q^{0}} \times \frac{\Delta q}{\Delta p}\)
p0 = 10, p1 = 12, ∆p = 12 – 10 = 2
q0 = 120, q1 = 100, ∆q = 120 – 100 = 20
माँग की लोच (eD) = \(\frac{10}{120} \times \frac{20}{64}=\frac{5}{6}\)
माँग की लोच इकाई से कम है।

प्रश्न 26.
निम्नलिखित तालिका में तीन वस्तुओं की कीमतें और उन पर कुल व्यय के आँकड़े दिए गए हैं। कुल व्यय विधि के अनुसार उनकी कीमत माँग की लोच ज्ञात कीजिए।

कीमत प्रति किलोग्राम (रुपयों में)कुल व्यय (रुपयों में)
वस्तु ‘अ’वस्तु ‘ब’वस्तु ‘स’
4121212
6121014
812816

हल:
(i) वस्तु ‘अ’ की कीमत में वृद्धि होने पर कुल व्यय अपरिवर्तित रहता है, इसलिए माँग की लोच इकाई के समान है।
(ii) वस्तु ‘ब’ की कीमत में वृद्धि होने से कुल व्यय में कमी होती है, इसलिए माँग की लोच इकाई से अधिक है।
(iii) वस्तु ‘स’ की कीमत में वृद्धि होने से कुल व्यय में वृद्धि होती है, इसलिए माँग की लोच इकाई से कम है।

प्रश्न 27.
वस्तु X और Y की माँग सारणियाँ नीचे दी गई हैं। कुल व्यय विधि के अनुसार X और Y वस्तुओं की माँग की लोच ज्ञात कीजिए।

वस्तु Xवस्तु Y
कीमतमात्राकीमतमात्रा
100 रु०1000200 रु०1000
102 रु०900198 रु०1010

दिए गए उदाहरण में माँग की लोच के अनुमान के लिए कुल व्यय को ज्ञात कीजिए।
हल:

कीमत (रु०)मात्राकुल व्यय (रु०)माँग लोच
वस्तु X 1001000100000इकाई से अधिक
10290091800
वस्तु Y 2001000200000इकाई से कम
1981010199980

प्रश्न 28.
एक वस्तु की कीमत 4 रु० से बढ़कर 5 रु० हो जाती है। परिणामस्वरूप, उसकी माँग 50 इकाइयों से घटकर 40 इकाइयाँ रह जाती है। प्रतिशत विधि द्वारा माँग की कीमत लोच ज्ञात करें।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 57
= 20/25 = 0.8 अर्थात् बेलोचदार माँग

प्रश्न 29.
निम्नलिखित सूचना के आधार पर माँग की लोच ज्ञात कीजिए-

कीमत (रु०)वस्तु की माँग (किलोग्राम)
1020
2015

हल:
इसमें प्रतिशत विधि का प्रयोग करते हुए माँग की मूल्य सापेक्षता निम्नलिखित प्रकार से ज्ञात की जा सकती है-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 58

[यहाँ माँग की लोच इकाई से कम है अर्थात् eD < 1]

प्रश्न 30.
नीचे दी गई सूचना से (i) कुल व्यय विधि तथा (ii) प्रतिशत विधि का प्रयोग करते हुए माँग की लोच ज्ञात करें-

कीमत (रुपए)कुल व्यय (रुपए)
101000
81200

हल:
(i) कुल व्यय विधि-इस विधि के अनुसार, यहाँ माँग की लोच इकाई से अधिक है, क्योंकि कीमत में कमी होने पर कुल व्यय में वृद्धि हुई है अर्थात् कीमत एवं कुल व्यय में विपरीत संबंध पाया जाता है। अतः यहाँ eD > 1 है।

(ii) प्रतिशत विधि-यहाँ हमें सर्वप्रथम कुल व्यय को कीमत से भाग देकर माँगी गई मात्रा ज्ञात करनी होगी-

कीमत (रु०) (p)माँगी गई मात्रा q = TE/Pकुल व्यय (रु०) TE
101001000
81501200

eD = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}=\frac{50}{2} \times \frac{10}{100}\) = 2.5
[ep = 2.5 अर्थात् eD > 1 है।]

प्रश्न 31.
माँग की कीमत लोच 2 है। कीमत में प्रतिशत परिवर्तन 5% रहा है। माँग की मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन का आकलन करें।
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 59
माँग की मात्रा में % परिवर्तन = कीमत लोच गुणांक × कीमत में % परिवर्तन
= 2 × 5 = 10
अतः माँग की मात्रा में % परिवर्तन = 10 है।

प्रश्न 32.
माँग की कीमत लोच 0.5 है। माँग की मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन 4 है। कीमत में प्रतिशत परिवर्तन क्या होगा?
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 60
अतः कीमत में प्रतिशत परिवर्तन = 8% है।

प्रश्न 33.
जब मूंगफली के पैकटों की कीमत में 5% की वृद्धि होती है तो मूंगफली के पैकटों की माँग में 8% की कमी होती है। मूंगफली के पैकटों की माँग की लोच क्या है?
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 61
माँग की लोच इकाई से अधिक है अर्थात् (eD > 1).

प्रश्न 34.
जब एक पदार्थ की कीमत में 7% की कमी होती है, तो इस पदार्थ पर किए जाने वाले कुल व्यय में 3.5% की वृद्धि होती है। हम इस पदार्थ की माँग की लोच के संबंध में क्या कहेंगे?
हल:
जैसा कि यहाँ पर कीमत एवं कुल व्यय में विपरीत संबंध पाया जाता है, तो वस्तु की माँग की लोच इकाई से अधिक होगी।
P ↓17% कुल व्यय ↑ 3.5%
∴ eD > 1 अर्थात् माँग की लोच इकाई से अधिक है।

प्रश्न 35.
फूलगोभी की बाज़ार कीमत 8% बढ़ती है तथा एक परिवार द्वारा फूलगोभी पर किए जाने वाले कुल व्यय में भी 8% वृद्धि होती है। हम इस परिवार की फूलगोभी की माँग की लोच के बारे में क्या कहेंगे?
हल:
फूलगोभी की कीमत के बढ़ने के फलस्वरूप परिवार का कुल व्यय भी बढ़ा है, अतः यहाँ माँग की लोच इकाई से कम होगी (अर्थात् e < 1)। क्योंकि यहाँ कीमत वृद्धि और कुल व्यय वृद्धि में सीधा संबंध पाया जाता है।

प्रश्न 36.
एक दांतों का डॉक्टर दांतों की सफाई के लिए 300 रुपए लेता था और वह प्रतिमास 30,000 रुपए की आय प्राप्त करता था। उसने पिछले महीने से दांतों की सफाई का रेट 350 रुपए कर दिया है। परिणामस्वरूप अब दांतों की सफाई के लिए कुछ कम ग्राहक आने लगे हैं। लेकिन अब उसकी कुल आय 33,250 रुपए है। इस उदाहरण से हम डॉक्टर की दांतों की सफाई सेवा की माँग की लोच के बारे में क्या निष्कर्ष निकालेंगे?
हल:

दांत सेवा की कीमत (रुपए)ग्राहकों का कुल व्यय (रुपए)ग्राहकों की संख्या TE/P
30030,000100
35033,25095

यद्यपि ग्राहकों की संख्या में (100 से 95) कमी आई है, लेकिन डॉक्टर की फीस बढ़ने पर ग्राहकों के कुल व्यय में (30,000 से 33250 रु० की) वृद्धि हो जाती है। इसलिए, चूँकि हमारे उदाहरण में कीमत में वृद्धि से कुल व्यय में वृद्धि हुई है, अतः यहाँ माँग की लोचशीलता इकाई से कम है।

प्रश्न 37.
मान लो, शुरु में 10 रु० कीमत पर किसी वस्तु की 1000 इकाइयाँ बिक रही थीं। कीमत 14 रु० होने पर उपभोक्ता केवल 500 इकाइयाँ खरीद रहे हैं। माँग की कीमत लोच ज्ञात करें।
हल:
माँग की लोच (eD) = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
p0 = 10 रुपए
p1 = 14 रुपए

q0 = 1000 इकाइयाँ
q1 = 500 इकाइयाँ

∆p = p1 – p0
= 14–10 = 4 रुपए

∆q = q1 – q0 इकाइयाँ
= 500 – 1000 = – 500
\(\frac{-500}{4} \times \frac{10}{1000}=\frac{-5000}{4000}=\frac{-5}{4}=-1.25\)
ऋणात्मक चिह्न (-) छोड़ देने पर माँग की कीमत लोच इकाई से अधिक होगी।

प्रश्न 38.
एक वस्तु की कीमत में 10% की वृद्धि होती है। परिणामस्वरूप इसकी माँग 4% गिर जाती है। माँग की कीमत लोच ज्ञात कीजिए। माँग लोचदार है या बेलोचदार?
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 62
अर्थात् माँग कम लोचदार है।

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HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. व्यष्टि अर्थशास्त्र का संबंध है
(A) व्यक्तिगत इकाइयों से
(B) सामूहिक कार्यों से
(C) एक फ़र्म से
(D) एक उद्योग से
उत्तर:
(A) व्यक्तिगत इकाइयों से

2. उत्पादन के संसाधनों पर सरकार का स्वामित्व किस अर्थव्यवस्था में होता है?
(A) बाज़ार अर्थव्यवस्था में
(B) योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था में
(C) बंद अर्थव्यवस्था में
(D) खुली अर्थव्यवस्था में
उत्तर:
(B) योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था में

3. यदि एक देश में साधनों की कार्यकुशलता बढ़ जाए तो उत्पादन संभावना वक्र (PPC) की क्या स्थिति होगी?
(A) उत्पादन संभावना वक्र दायीं ओर ऊपर को खिसक जाएगा
(B) उत्पादन संभावना वक्र बायीं ओर नीचे को खिसक जाएगा
(C) उत्पादन संभावना वक्र में कोई परिवर्तन नहीं होगा
(D) उपर्युक्त सभी ठीक हैं
उत्तर:
(A) उत्पादन संभावना वक्र दायीं ओर ऊपर को खिसक जाएगा

4. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का अध्ययन किसमें होता है? .
(A) व्यष्टि अर्थशास्त्र में
(B) समष्टि अर्थशास्त्र में
(C) लोक प्रशासन में
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) समष्टि अर्थशास्त्र में

5. उत्पादन संभावना वक्र मूल बिंदु की ओर होता है
(A) उन्नतोदर
(B) नतोदर.
(C) सीधी रेखा
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) नतोदर

6. यदि उत्पादन संभावना वक्र एक सीधी रेखा है तो यह बताती है
(A) वस्तुओं की स्थिर सीमांत प्रतिस्थापन दर को
(B) वस्तुओं की बढ़ती हुई सीमांत प्रतिस्थापन दर को
(C) वस्तुओं की घटती हुई सीमांत प्रतिस्थापन दर को
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) वस्तुओं की स्थिर सीमांत प्रतिस्थापन दर को

7. निम्नलिखित में से कौन-सा व्यष्टि अर्थशास्त्र का अध्ययन है?
(A) राष्ट्रीय आय
(B) समग्र माँग
(C) व्यापार चक्र
(D) माँग का सिद्धान्त
उत्तर:
(D) माँग का सिद्धान्त

8. किस अर्थव्यवस्था में आर्थिक निर्णय कीमत-तंत्र द्वारा लिए जाते हैं?
(A) केंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था में
(B) बाज़ार अर्थव्यवस्था में
(C) पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में
(D) बंद अर्थव्यवस्था में
उत्तर:
(B) बाज़ार अर्थव्यवस्था में

9. ‘क्या होना चाहिए’ की विषय-वस्तु है-
(A) वास्तविक विज्ञान
(B) आदर्शात्मक विज्ञान
(C) प्राकृतिक विज्ञान
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) आदर्शात्मक विज्ञान

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

10. आवश्यकताएँ होती हैं-
(A) असीमित
(B) सीमित
(C) शून्य
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) असीमित

11. साधन होते हैं-
(A) असीमित
(B) नगण्य
(C) सीमित
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) सीमित

12. यदि एक देश में साधनों की कार्यकुशलता घट जाए तो उत्पादन संभावना वक्र (PPC) की क्या स्थिति होगी?
(A) उत्पादन संभावना वक्र बायीं ओर नीचे को खिसक जाएगा।
(B) उत्पादन संभावना वक्र दायीं ओर ऊपर को खिसक जाएगा।
(C) उत्पादन संभावना वक्र में कोई परिवर्तन नहीं होगा।
(D) उपर्युक्त सभी ठीक हैं।
उत्तर:
(A) उत्पादन संभावना वक्र बायीं ओर नीचे को खिसक जाएगा।

13. निम्नलिखित में से कौन-सा समष्टि अर्थशास्त्र का अध्ययन है?
(A) व्यापार चक्र
(B) उपभोक्ता संतुलन
(C) फर्म का संतुलन
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) व्यापार चक्र

14. अवसर लागत का अर्थ है
(A) अगले वैकल्पिक प्रयोग की लागत
(B) वास्तविक लागत
(C) कुल लागत
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) अगले वैकल्पिक प्रयोग की लागत

15. आर्थिक समस्या का संबंध है-
(A) गरीबी से
(B) बेरोजगारी से
(C) काले धन से
(D) सीमित साधनों के चुनाव से
उत्तर:
(D) सीमित साधनों के चुनाव से

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. आर्थिक समस्या के उत्पन्न होने का प्रमुख कारण संसाधनों का …………………. होना है। (सीमित/असीमित)
उत्तर:
सीमित

2. उत्पादन संभावना वक्र की आकृति मूल बिंदु की ओर …………………. होती है। (उन्नतोदर/नतोदर)
उत्तर:
नतोदर

3. दुर्लभता का अर्थ …………………. (माँग > पूर्ति/पूर्ति > माँग)
उत्तर:
माँग > पूर्ति

4. यदि समूचे चीनी उद्योग की जाँच की जाए तो यह …………………. विश्लेषण कहलाएगा।(व्यष्टिपरक/समष्टिपरक)
उत्तर:
समष्टिपरक

5. सूती वस्त्र उद्योग का अध्ययन …………………. का अध्ययन है। (समष्टि अर्थशास्त्र/व्यष्टि अर्थशास्त्र)
उत्तर:
व्यष्टि अर्थशास्त्र

6. व्यष्टि अर्थशास्त्र का संबंध …………………. इकाइयों से है। (सामूहिक/व्यक्तिगत)
उत्तर:
व्यक्तिगत

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत

  1. व्यष्टि अर्थशास्त्र आय प्रमुख है जबकि समष्टि अर्थशास्त्र कीमत प्रमुख है।
  2. व्यष्टि अर्थशास्त्र मजदूरी दर निर्धारण से संबंधित है।
  3. उत्पादन सम्भावना वक्र को उत्पादन सीमा वक्र नहीं कहा जा सकता।
  4. उत्पादन सम्भावना वक्र मूल बिंदु की ओर उन्नतोदर (Convex) होती है।
  5. अंग्रेज़ी भाषा का ‘Micro’ शब्द ग्रीक के माइक्रोस (Mikros) से लिया गया है।
  6. साधन कीमत के सिद्धांत का अध्ययन समष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है।
  7. आय तथा रोज़गार का अध्ययन समष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है।
  8. ‘चयन की समस्या’ अथवा ‘निर्णय लेने की समस्या आर्थिक समस्या कहलाती है।
  9. आर्थिक समस्या का मुख्य कारण आवश्यकताओं की सीमितता है।
  10. एक पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्याओं का समाधान केंद्रीय अधिकारी द्वारा किया जाता है।
  11. “क्या उत्पादन किया जाए तथा कितना उत्पादन किया जाए” यह वितरण से संबंधित समस्या है।
  12. एक उद्योग का विश्लेषण व्यष्टि अर्थशास्त्र के अंतर्गत आता है।
  13. व्यष्टि अर्थशास्त्र का संबंध व्यक्तिगत अर्थव्यवस्था से है।
  14. समष्टि अर्थशास्त्र का संबंध रोज़गार के स्तर से है।।
  15. उत्पादन संभावना वक्र का आकार सीधी रेखा होता है।
  16. ‘Principles of Economics’ 1896 में प्रकाशित हुई थी।

उत्तर:

  1. गलत
  2. सही
  3. गलत
  4. गलत
  5. सही
  6. गलत
  7. सही
  8. सही
  9. गलत
  10. सही
  11. गलत
  12. सही
  13. सही
  14. सही
  15. गलत
  16. गलत।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था क्या है? अर्थव्यवस्था के मुख्य प्रकार बताएँ।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था लोगों के समूह अर्थात् किसी राज्य या देश की वह व्यवस्था है जिसमें आर्थिक समस्याओं का समाधान किया जाता है। (1) केंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था, (2) बाज़ार अर्थव्यवस्था तथा (3) मिश्रित अर्थव्यवस्था आदि अर्थव्यवस्था के मुख्य प्रकार हैं।

प्रश्न 2.
व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics) क्या है?
उत्तर:
व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics) आर्थिक सिद्धांत की वह शाखा हैं जिसमें अर्थव्यवस्था की व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 3.
बाज़ार अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
बाज़ार अर्थव्यवस्था से अभिप्राय उस अर्थव्यवस्था से है जिसके अंतर्गत सभी आर्थिक क्रियाकलापों का निर्धारण बाज़ार की स्थितियों के अनुसार होता है। इसमें केंद्रीय समस्याओं का हल कीमत-तंत्र द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 4.
केंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
केंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था से अभिप्राय उस अर्थव्यवस्था से है जिसके अंतर्गत सरकार उस अर्थव्यवस्था की सभी महत्त्वपूर्ण क्रियाओं को पूरा करती है। इसमें केंद्रीय समस्याओं का हल केंद्रीय अधिकारी अथवा नियोजन-तंत्र द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 5.
चयन की समस्या क्या होती है?
उत्तर:
हमारी आवश्यकताएँ अनंत हैं किंतु उनकी संतुष्टि के साधन सीमित हैं जिसके कारण हमें यह चयन करना पड़ता है कि किस आर्थिक आवश्यकता की संतुष्टि करें और किस आवश्यकता का त्याग करें या स्थगित कर दें। अतः चयन दुर्लभता का प्रतिफल है। चयन से अभिप्राय उपलब्ध सीमित विकल्पों में से चुनने की प्रक्रिया है।

प्रश्न 6.
‘क्या उत्पादन किया जाए?’ की समस्या का क्या अर्थ है?
उत्तर:
‘क्या उत्पादन किया जाए’ की समस्या के अंतर्गत यह पता चलता है कि उत्पादन प्रक्रिया में किन वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन हो, जिससे लोगों की अधिकतम आवश्यकताओं को संतुष्ट किया जा सके।

प्रश्न 7.
‘कैसे उत्पादन किया जाए?’ की समस्या में किस प्रकार का चुनाव निहित है?
उत्तर:
कैसे उत्पादन किया जाए’ की समस्या में उत्पादन तकनीक (श्रम-प्रधान तकनीक अथवा पूँजी-प्रधान तकनीक) का चुनाव निहित है।

प्रश्न 8.
‘किसके लिए उत्पादन किया जाए?’ की समस्या से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
किसके लिए उत्पादन किया जाए’ की समस्या से अभिप्राय उस केंद्रीय समस्या से है जिसके अंतर्गत यह निर्णय किया जाता है कि उत्पादन को उत्पादन के साधनों में किस प्रकार वितरित किया जाए।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

प्रश्न 9.
सकारात्मक आर्थिक विश्लेषण से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सकारात्मक आर्थिक विश्लेषण से हमारा अभिप्राय उस अध्ययन से है जिसका संबंध वास्तविक आर्थिक घटनाओं से होता है। सकारात्मक आर्थिक विश्लेषण के अंतर्गत हम यह अध्ययन करते हैं कि विभिन्न कार्यविधियाँ किस प्रकार कार्य करती हैं। सकारात्मक आर्थिक विश्लेषण ‘साध्य’ के प्रति तटस्थ होता है।

प्रश्न 10.
संसाधन क्या होते हैं?
उत्तर:
संसाधनों से अभिप्राय उन वस्तुओं या सेवाओं से है, जो किसी वस्तु का उत्पादन करने में प्रयोग में लाए जाते हैं; जैसे श्रम, भूमि, पूँजी तथा उद्यमी।।

प्रश्न 11.
अवसर लागत क्या होती है?
उत्तर:
किसी वस्तु की अवसर लागत अगले उत्तम विकल्प त्यागने के मूल्य के बराबर मानी जाती है। एक वस्तु (X) की अवसर लागत दूसरी वस्तु (Y) की वह मात्रा है जिसे X वस्तु की एक इकाई उत्पन्न करने के लिए त्यागना पड़ता है।

प्रश्न 12.
सीमांत अवसर लागत को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
उत्पादन संभावना वक्र पर कार्यरत किसी वस्तु की सीमांत अवसर लागत, दूसरी वस्तु की वह मात्रा है जो पहली वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई उत्पन्न करने के लिए त्यागी जाती है।

प्रश्न 13.
वस्तुओं से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वस्तुओं से अभिप्राय उन भौतिक अथवा मूर्त पदार्थों से है जिनका उपयोग लोगों की इच्छाओं तथा आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए किया जाता है; जैसे खाद्य पदार्थ, वस्त्र आदि।

प्रश्न 14.
सेवाओं से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सेवाओं से अभिप्राय उन अभौतिक अथवा अमूर्त वस्तुओं से है जिनमें मानवीय आवश्यकताओं को संतुष्ट करने की शक्ति निहित होती है; जैसे एक चिकित्सक द्वारा किया गया उपचार, एक अध्यापक का अध्यापन कार्य ।

प्रश्न 15.
उत्पादन संभावना वक्र (PPC) क्या होती है?
उत्तर:
उत्पादन संभावना वक्र दो वस्तुओं के उन विभिन्न संयोगों को दर्शाती है जिन्हें दिए गए निश्चित साधनों तथा तकनीकों उत्पन्न किया जा सकता है। इस वक्र से हमें उत्पादन की अधिकतम सीमाओं का भी पता चलता है। इसलिए इसे उत्पादन संभावना सीमा भी कहा जाता है।

प्रश्न 16.
सामूहिक आवश्यकताएँ क्या होती हैं?
उत्तर:
सामूहिक आवश्यकताएँ ऐसी वस्तुओं के लिए होती हैं जो वस्तुएँ अनेक उपयोगों में एक साथ प्रयुक्त हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, बिजली की आवश्यकता सामूहिक आवश्यकता कहलाएगी क्योंकि बिजली की आवश्यकता घर में रोशनी करने, पंखा चलाने, टी.वी. चलाने, कारखाने चलाने, रेलगाड़ी चलाने, ट्यूबवैल चलाने आदि अनेक उपयोगों के लिए होती है। अतः बिजली की आवश्यकता सामूहिक आवश्यकता कहलाएगी।

प्रश्न 17.
अर्थशास्त्र की धन संबंधी परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
अर्थशास्त्र एक ऐसा विज्ञान है जिसमें हम धन का अध्ययन करते हैं। एडम स्मिथ के अनुसार, “अर्थशास्त्र राष्ट्रों के धन की प्रकृत्ति तथा कारणों की खोज है।”

प्रश्न 18.
संसाधनों की वृद्धि के दो उदाहरण दें।
उत्तर:

नई व बेहतर तकनीक का उपलब्ध होना और
प्रशिक्षित व साधारण श्रमिकों की संख्या में वृद्धि होना।

प्रश्न 19.
किन कारकों से PP वक्र का स्थान परिवर्तित हो सकता है?
उत्तर:

  1. उपलब्ध संसाधनों में परिवर्तन होने से
  2. दी हुई तकनीक में परिवर्तन होने से PP वक्र का स्थान परिवर्तित हो सकता है।

प्रश्न 20.
तकनीकी प्रगति या संसाधनों की संवृद्धि के कारण PP वक्र दाहिनी ओर क्यों खिसक जाता है?
उत्तर:
क्योंकि इनसे उत्पादन क्षमता बढ़ जाती है और फलस्वरूप अर्थव्यवस्था के कुल उत्पादन में वृद्धि हो जाती है।

प्रश्न 21.
PP वक्र दाईं नीचे की ओर क्यों ढालू होता है?
उत्तर:
क्योंकि संसाधनों के पूर्ण उपयोग की स्थिति में एक वस्तु का उत्पादन बढ़ाने के लिए दूसरी वस्तु की कुछ मात्रा का उत्पादन घटाना (या त्यागना) पड़ता है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

प्रश्न 22.
PP वक्र मूल बिंदु की ओर अवतल/नतोदर (Concave) क्यों दिखाई देता है?
उत्तर:
बढ़ती हुई सीमांत अवसर लागत के कारण अर्थात् एक वस्तु की अतिरिक्त इकाई का उत्पादन करने के लिए दूसरी वस्तु की बढ़ती हुई इकाइयों का त्याग करना पड़ता है।

प्रश्न 23.
PP वक्र का दाईं ओर (या ऊपर) खिसकाव क्या दर्शाता है?
उत्तर:
यह संसाधनों में वृद्धि या उत्पादन तकनीक में सुधार से उत्पादकता में वृद्धि दर्शाता है।

प्रश्न 24.
PP वक्र के नीचे किसी बिंदु पर उत्पादन क्या दर्शाता है?
उत्तर:
PP वक्र के नीचे किसी बिंदु पर उत्पादन संसाधनों का अल्प या अकुशल उपयोग दर्शाता है।

प्रश्न 25.
किसी PP वक्र पर बढ़ती हुई सीमांत अवसर लागत का क्या अर्थ है?
उत्तर:
इसका अर्थ है दूसरी वस्तु की त्याग की दर बढ़ती जा रही है जिसके फलस्वरूप PP वक्र का आकार नतोदर (Concave) होता जाता है।

प्रश्न 26.
क्या उत्पादन PP वक्र पर ही होता है?
उत्तर:
यह जरूरी नहीं कि उत्पादन सदैव उत्पादन संभावना वक्र पर ही हो। यह तभी संभव होता है जब अर्थव्यवस्था में संसाधनों का पूर्ण तथा कुशलतापूर्वक उपयोग हो रहा हो। इसके विपरीत, जब संसाधनों का अपूर्ण व अकुशल उपयोग हो रहा हो, तो उत्पादन क्षमता कम हो जाने से उत्पादन PP वक्र के नीचे होगा।

प्रश्न 27.
सीमांत अवसर लागत क्यों बढ़ती है?
उत्तर:
सीमांत अवसर लागत इसलिए बढ़ती है, क्योंकि दूसरी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उत्पादन के लिए वस्तु की किए जाने वाले त्याग की मात्रा भी बढ़ती है।

प्रश्न 28.
अर्थशास्त्र की दुर्लभता सम्बन्धी परिभाषा दें।
उत्तर:
अर्थशास्त्र की दुर्लभता संबंधी परिभाषा रोबिन्स ने 1932 में अपनी प्रकाशित पुस्तक “An Essay on the Nature and Significance of Economic Science” में दी है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री रोबिन्स के अनुसार, “अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो विभिन्न उपयोगों वाले सीमित साधनों तथा उद्देश्यों से संबंध रखने वाले मानवीय व्यवहार का अध्ययन करता है।”

प्रश्न 29.
अर्थशास्त्र की भौतिक कल्याण सम्बन्धी परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
भौतिक कल्याण संबंधी परिभाषा डॉ० मार्शल ने 1890 में अपनी प्रकाशित पुस्तक ‘Principles of Economics’ में दी है। इस परिभाषा के अनुसार अर्थशास्त्र में उन कार्यों का अध्ययन किया जाता है जिन्हें सामाजिक मनुष्य अपना कल्याण बढ़ाने वाले भौतिक पदार्थों को प्राप्त करने तथा उनका उपयोग करने के लिए करते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक सामान्य अर्थव्यवस्था (Simple Economy) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था वह प्रणाली है जिसमें लोग अपनी जीविका (रोज़ी) कमाते हैं और आवश्यकताओं की संतुष्टि करते हैं। लोग रोजी या आय इसलिए कमाते हैं ताकि वे अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वस्तुओं व सेवाओं को खरीद सकें। इन से होता है। अतः अर्थव्यवस्था एक ऐसी प्रणाली है जो (i) वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में सहायक होती है और (ii) लोगों को वस्तुएँ और सेवाएँ खरीदने के लिए आय कमाने के अवसर प्रदान करती है। अन्य शब्दों में, रोज़गार देने वाली या उत्पादन करने वाली सभी संस्थाओं का सामूहिक नाम अर्थव्यवस्था है। इसमें वे सभी उत्पादन इकाइयाँ आती हैं, जो बाज़ार में बिक्री के लिए उत्पादन करती हैं; जैसे खेत-खलिहान, कल-कारखाने, बैंक, दुकानें, दफ़्तर, सिनेमा, रेल, स्कूल, कॉलेज, अस्पताल आदि। यहाँ लोग उत्पादन में योगदान देते हैं और रोज़ी कमाते हैं। इस प्रकार अर्थव्यवस्था एक निर्धारित भौगोलिक क्षेत्र में स्थित सब उत्पादन इकाइयों का समूह है; जैसे भारत की अर्थव्यवस्था से अभिप्राय भारत की घरेलू सीमा में स्थित समस्त उत्पादन इकाइयों के समूह से है। पुनः जिस अर्थव्यवस्था का अन्य देशों या शेष संसार से संबंध नहीं होता, उसे बंद अर्थव्यवस्था (Closed Economy) कहते हैं, जबकि जिस अर्थव्यवस्था का अन्य देशों से आर्थिक संबंध होता है, उसे खुली अर्थव्यवस्था (Open Economy) कहते हैं।

प्रश्न 2.
एक उदाहरण की सहायता से “क्या उत्पादन किया जाए?” की समस्या समझाइए।
उत्तर:
प्रत्येक अर्थव्यवस्था में संसाधनों के बँटवारे से संबंधित पहली प्रमुख समस्या यह है कि कौन-कौन-सी वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन किया जाए, जिससे लोगों की अधिकतम आवश्यकताओं को संतुष्ट किया जा सके। इस संबंध में यह निर्णय लेना पड़ता है कि उपभोक्ता वस्तुओं; जैसे चीनी, कपास, गेहूँ, घी आदि का अधिक उत्पादन किया जाए अथवा पूँजीगत वस्तुओं; जैसे मशीनों, ट्रैक्टरों आदि का। उपभोक्ता वस्तुओं का अधिक उत्पादन करने के लिए पूँजीगत वस्तुओं का त्याग करना पड़ेगा, क्योंकि उत्पादन के साधन सीमित हैं। इस समस्या का एक पहलू यह भी है कि कौन-सी वस्तुओं का कितनी मात्रा में उत्पादन किया जाए?

उदाहरण के लिए, एक अर्थव्यवस्था में उपलब्ध साधनों से गेहूँ और कपास के निम्नलिखित मिश्रणों का उत्पादन किया जा सकता है

उत्पादन संभावनाएँगेहूँ का उत्पादनकपास का उत्पादन
a0150
b10140
c20120
d30100
e4050
f500

अर्थव्यवस्था को इन संभावनाओं में से ही किसी एक संभावना का चुनाव करना होगा।

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प्रश्न 3.
‘उत्पादन कैसे किया जाए?’ की समस्या को समझाइए। यह समस्या क्यों उत्पन्न होती है?
उत्तर:
प्रत्येक अर्थव्यवस्था की एक मुख्य समस्या यह है कि उत्पादन कैसे किया जाए? इसका अर्थ यह है कि उत्पादन के लिए कौन-सी तकनीक को अपनाया जाए? जिससे कम-से-कम समय तथा लागत में अधिकतम उत्पादन हो सके। उत्पादन की सामान्यतया दो तकनीकें होती हैं

  • श्रम-प्रधान तकनीक
  • पूँजी-प्रधान तकनीक।

श्रम-प्रधान तकनीक वह तकनीक है जिसमें उत्पादन करने में श्रम-शक्ति का प्रयोग अधिक मात्रा में किया जाता है, जबकि पूँजी-प्रधान तकनीक में पूँजी का अधिक मात्रा में उपयोग किया जाता है। वास्तव में तकनीक के चुनाव की समस्या का साधनों की उपलब्ध मात्रा तथा पहली समस्या “क्या उत्पादन किया जाए?” के साथ संबंध है। यदि देश में पूँजी की अधिकता है तो पूँजी-प्रधान तकनीक को अपनाया जाएगा और यदि देश में श्रम की अधिकता है तो श्रम-प्रधान तकनीक को अधिक अपनाया जाएगा। इसके अतिरिक्त यदि उत्पादक पदार्थों के उत्पादन का निर्णय लिया जाता है, तो अधिकतर पूँजी-प्रधान तकनीक को अपनाया जाएगा।

परंतु यदि उपभोक्ता पदार्थ उत्पन्न करने का निर्णय लिया जाता है, तो श्रम-प्रधान तकनीक को अपनाया जाएगा। ‘कैसे उत्पादन किया जाए?’ की समस्या इसलिए उत्पन्न होती है क्योंकि एक अर्थव्यवस्था में संसाधनों की मात्रा मानवीय आवश्यकताओं की तुलना में सीमित है। यदि संसाधन सीमित या दुर्लभ नहीं होते तो उत्पादन के लिए कौन-सी तकनीक को अपनाया जाए? यह प्रश्न ही नहीं उठता।

प्रश्न 4.
‘किसके लिए उत्पादन किया जाए?’ की केंद्रीय समस्या को उदाहरण के साथ समझाइए।
उत्तर:
किसके लिए उत्पादन किया जाए?’ की केंद्रीय समस्या का संबंध राष्ट्रीय आय के वितरण से है। इस समस्या के दो पहलू हैं-

  • व्यक्तिगत वितरण
  • कार्यात्मक वितरण।

जहाँ तक व्यक्तिगत वितरण का प्रश्न है, समस्या यह है कि समाज में विभिन्न वर्गों के बीच राष्ट्रीय उत्पादन का वितरण किस प्रकार किया जाए? जहाँ तक कार्यात्मक वितरण का प्रश्न है, समस्या यह है कि राष्ट्रीय उत्पादन को उत्पादन के साधनों; जैसे भूमि, श्रम, पूँजी व उद्यम में किस प्रकार वितरित किया जाए। किसके लिए उत्पादन किया जाए? समस्या का समाधान अधिकतम सामाजिक कल्याण के संदर्भ में किया जाता है।

प्रश्न 5.
बाज़ार अर्थव्यवस्था के गुणों तथा दोषों की गणना कीजिए।
उत्तर:
बाज़ार अर्थव्यवस्था के गुण-

  • कीमत-तंत्र द्वारा केंद्रीय समस्याओं का स्वतः समाधान
  • उत्पादन की न्यूनतम लागत
  • नव-प्रवर्तन और अनुसंधान को प्रोत्साहन
  • पूँजी निर्माण को प्रोत्साहन
  • लोकतांत्रिक स्वरूप
  • उद्यम की भावना को बढ़ावा।

बाज़ार अर्थव्यवस्था के दोष-

  • आय की असमानताएँ
  • कीमतों में उतार-चढ़ाव
  • अमीरों द्वारा गरीबों का शोषण
  • बेरोज़गारी
  • एकाधिकार की प्रवृत्ति।

प्रश्न 6.
केंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था के गुणों तथा दोषों की गणना कीजिए।
उत्तर:
केंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था के गुण-

  • समाज का संतुलित विकास
  • आय का न्यायपूर्ण वितरण
  • व्यापार चक्रों और आर्थिक अस्थिरता का निराकरण
  • वर्ग-संघर्ष का निराकरण
  • सामाजिक सुरक्षा
  • संसाधनों का पूर्ण उपयोग।

केंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था के दोष-

  • उपभोक्ताओं की संप्रभुता का ह्रास
  • प्रेरणा का अभाव
  • व्यावसायिक स्वतंत्रता का अभाव
  • आर्थिक प्रणाली का केंद्रीयकरण
  • अफ़सरशाही के दोष
  • उत्पादन क्षमता व उत्पादकता का ह्रास।

प्रश्न 7.
मिश्रित अर्थव्यवस्था की विशेषताओं को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों की उपस्थिति-मिश्रित अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक व निजी क्षेत्र का सह-अस्तित्व पाया जाता है। निजी क्षेत्र लाभ के लिए कार्य करता है और सार्वजनिक क्षेत्र सामाजिक कल्याण के लिए कार्य करता है।

2. कीमत-तंत्र-मिश्रित अर्थव्यवस्था में कीमत-तंत्र कार्य करता है, परंतु यह कीमत-तंत्र सरकार द्वारा नियंत्रित होता है।

3. नियोजन मिश्रित अर्थव्यवस्था में आर्थिक नियोजन का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। सरकार निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन देकर नियोजन के उद्देश्यों को पूरा कराती हैं।

4. वैयक्तिक स्वतंत्रता सामान्यतया लोगों को उपभोग और व्यवसाय करने की स्वतंत्रता होती है।

प्रश्न 8.
व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics) क्या है? इसके एक-दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics) व्यष्टि अर्थशास्त्र आर्थिक सिद्धांत की वह शाखा है जिसके अंतर्गत अर्थव्यवस्था की व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन किया जाता है, जैसे व्यक्तिगत उपभोक्ता, व्यक्तिगत उत्पादक या उद्योग, व्यक्तिगत वस्तु या साधन का कीमत-निर्धारण, व्यक्तिगत आय आदि का अध्ययन। वैकल्पिक रूप में यूँ भी कह सकते हैं कि व्यष्टि अर्थशास्त्र का संबंध उपभोक्ता व उत्पादक जैसी आर्थिक इकाई को पेश आने वाली दुर्लभता (Scarcity) और चयन (Choice) की समस्याओं के विश्लेषण से है। यह चयन के पीछे कार्यरत सिद्धांतों का विवेचन करता है। इस प्रकार व्यष्टि अर्थशास्त्र के अंतर्गत व्यक्तिगत आर्थिक इकाइयों की समस्याओं का अध्ययन किया जाता है यथा उपभोक्ता का संतुलन, फर्म व उद्योग का संतुलन आदि।

एक उपभोक्ता अपनी सीमित आय से कैसे अधिकतम संतुष्टि प्राप्त कर सकता है अथवा एक फर्म (उत्पादक) कैसे अपना लाभ अधिकतम कर सकती है या श्रमिक की मजदूरी कैसे निर्धारित होती है; जैसे प्रश्नों का विश्लेषण व्यष्टि अर्थशास्त्र का विषय है। चूँकि कीमत-निर्धारण इसका महत्त्वपूर्ण अंग है, इसलिए व्यष्टि अर्थशास्त्र को कभी-कभी ‘कीमत सिद्धांत’ भी कहा जाता है। व्यष्टि अर्थशास्त्र ‘क्या, कैसे, किसके लिए उत्पादन’ की केंद्रीय समस्याओं का अध्ययन करता है। व्यष्टि आर्थिक अध्ययन के उदाहरण हैं व्यक्तिगत आय, व्यक्तिगत बचत, एक फर्म का उत्पाद, व्यक्तिगत व्यय, वस्तु की कीमत का निर्धारण, साधन की कीमत का निर्धारण आदि। उपमा देनी हो तो व्यष्टि अर्थशास्त्र संपूर्ण आर्थिक वन का अध्ययन करने की बजाय इसके वृक्षों अर्थात् व्यक्तिगत अंगों का अध्ययन करता है।

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प्रश्न 9.
आर्थिक समस्या से आप क्या समझते हैं?
अथवा
आर्थिक समस्या किस प्रकार की चयन की समस्या से उत्पन्न होती है? अथवा “अर्थशास्त्र का संबंध दुर्लभता की अवस्था में चयन करने से है।” समझाइए।
उत्तर:
अर्थशास्त्र दुर्लभता (Scarcity) की स्थिति में चयन (Choice) से संबंधित व्यवहार का अध्ययन है। कैसे? संसार में मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए साधनों व चीज़ों का अभाव है। साधनों की दुर्लभता के कारण चयन करने की समस्या पैदा होती है कि कैसे सीमित साधनों से असीमित आवश्यकताओं को पूरा किया जाए। यदि साधन प्रचुर मात्रा (Plenty) में उपलब्ध होते तो चयन की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि तब जो भी चीज़ चाहते मिल जाती। परंतु वास्तविक जीवन में यह सच नहीं है।

संसार में अमीर-से-अमीर व्यक्ति को भी किसी-न-किसी कमी (या अभाव) का सामना करना पड़ता है और कुछ नहीं तो व्यक्ति, जिसे अनेक काम करने होते हैं, के पास समय की कमी तो रहती ही है और उसे भी समय का चयन करना पड़ता है। इसी प्रकार प्रत्येक देश में रोटी, कपड़ा, मकान, पेयजल, शिक्षा व चिकित्सा जैसी अनेक वस्तुओं व सेवाओं की पूर्ति सीमित है। साधनों की कमी या दुर्लभता के कारण चयन करने को हमें मजबूर होना पड़ता है। दूसरे शब्दों में, दुर्लभता और चयन का संबंध अटूट है, क्योंकि चयन की समस्या पैदा ही तब होती है जब साधनों व चीज़ों की कमी का अभाव होता है। इन्हीं चयन संबंधी समस्याओं से जुड़े व्यवहार का अध्ययन ही अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु है।

संक्षेप में, “अर्थशास्त्र दुर्लभता जनित चयन की समस्याओं से संबंधित व्यवहार का अध्ययन है।” यह चयन संबंधी व्यवहार चाहे व्यक्तिगत या सामाजिक स्तर पर हो अथवा राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हो अर्थशास्त्र किसी-न-किसी सिद्धांत के रूप में वहाँ उपस्थित हो जाता है।

प्रश्न 10.
आर्थिक समस्या किसे कहते हैं? इसके कारणों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
आर्थिक समस्या को उत्पन्न करने वाले तीन कारकों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आर्थिक समस्या (Economic Problem) मानवीय आवश्यकताएँ असीमित हैं, साधन सीमित हैं जिनके वैकल्पिक प्रयोग संभव हैं। अतः प्रत्येक व्यक्ति को चुनाव करना पड़ता है। यह चुनाव की समस्या मुख्य रूप से आर्थिक समस्या है। लेफ्टविच (Leftwitch) के अनुसार, “आर्थिक समस्या का संबंध मनुष्य की वैकल्पिक आवश्यकताओं के लिए सीमित साधनों के उपयोग से है।” – आर्थिक समस्या को उत्पन्न करने वाले तीन कारक/कारण निम्नलिखित हैं
(i) असीमित आवश्यकताएँ-मानवीय आवश्यकताएँ अनंत हैं और आवश्यकताएँ संतुष्ट होने के बाद पुनः उत्पन्न हो जाती हैं। एक दिए गए समय पर मनुष्यों की आवश्यकताएँ असंतुष्ट रहती हैं।

(ii) सीमित साधन-मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि के साधन सीमित हैं।

(iii) साधनों के वैकल्पिक प्रयोग-साधनों के वैकल्पिक प्रयोग संभव हैं जिससे चयन की समस्या उत्पन्न होती है।

प्रश्न 11.
किसी अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्याएँ कौन-सी हैं? ये क्यों उत्पन्न होती हैं?
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था की तीन केंद्रीय समस्याएँ निम्नलिखित हैं
1. क्या उत्पादन किया जाए और कितनी मात्रा में?-संसाधन दुर्लभ है अतः उनके वैकल्पिक प्रयोग किए जा सकते हैं। इसलिए पहली केंद्रीय समस्या यह है कि क्या उत्पादन किया जाए और कितनी मात्रा में?

2. उत्पादन कैसे किया जाए?-साधारणतया वस्तुओं का उत्पादन एक से अधिक तरीकों से किया जा सकता है। इसलिए दूसरी केंद्रीय समस्या यह है कि उत्पादन कैसे करें। उत्पादन तकनीक पूँजी-प्रधान हो सकती है अथवा श्रम-प्रधान।

3. किसके लिए उत्पादन किया जाए?-उत्पादन के बाद वस्तुओं का वितरण उत्पादन के साधनों में किस प्रकार किया जाए, यह भी अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्या है। इसे क्रियात्मक वितरण का सिद्धांत कहते हैं।

ये समस्याएँ मानवीय आवश्यकताओं की तुलना में साधनों की कमी के कारण उत्पन्न होती हैं। मानव की आवश्यकताएँ अनंत हैं पर इन आवश्यकताओं की संतुष्टि के साधन सीमित हैं। इसलिए समाज के सामने आवश्यकताओं के चयन और उनकी पूर्ति के लिए साधनों के चयन की समस्या उत्पन्न होती है। इस प्रकार साधनों की दुर्लभता या सीमितता से ये केंद्रीय समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।

प्रश्न 12.
एक उत्पादन संभावना वक्र खींचिए और इसकी परिभाषा दीजिए। उत्पादन संभावना वक्र अक्ष केंद्र की ओर नतोदर (Concave) क्यों दिखाई देता है?
उत्तर:
एक उत्पादन संभावना वक्र निम्नलिखित प्रकार से खींचा जाता है-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र एक परिचय 1
एक उत्पादन संभावना वक्र से अभिप्राय उस वक्र से है जो अर्थव्यवस्था में उपलब्ध संसाधनों से प्राप्त होने वाली दो वस्तुओं की उत्पादन संभावनाओं को दिखाता है। एक अर्थव्यवस्था अपने दिए हुए साधनों और उत्पादन तकनीक की सहायता से वस्तुओं और सेवाओं को एक निश्चित मात्रा में ही उत्पादन कर सकती है। यदि अर्थव्यवस्था में किसी एक वस्तु विशेष का उत्पादन अधिक किया जाता है तो उसे दूसरी वस्तु के उत्पादन में कमी करनी होगी। त्याग की गई मात्रा की दर हर अतिरिक्त इकाई के साथ बढ़ती रहती है। इस कारण उत्पादन संभावना वक्र अक्ष के केंद्र की ओर नतोदर दिखाई देता है।

प्रश्न 13.
एक रेखाचित्र में, उत्पादन संभावना वक्र की सहायता से निम्नलिखित स्थितियाँ दर्शाइए-
(i) संसाधनों का पूर्ण उपयोग
(ii) संसाधनों का अल्प उपयोग तथा
(iii) संसाधनों का विकास।
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र एक परिचय 2
(i) उत्पादन संभावना वक्र PP संसाधनों का पूर्ण उपयोग दर्शाता विकास है। (X-बिंदु)

(ii) उत्पादन संभावना वक्र P0P0 संसाधनों का अल्प उपयोग दर्शाता है। (Y-बिंदु)

(iii) उत्पादन संभावना वक्र PP, संसाधनों का विकास प्रदर्शित करता है। (Z-बिंदु)

प्रश्न 14.
एक उत्पादन संभावना वक्र बनाइए। इस वक्र के नीचे कोई बिंदु क्या दर्शाता है?
अथवा
एक अर्थव्यवस्था में संसाधनों के अकुशल और कुशल प्रयोग की स्थितियाँ एक रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र एक परिचय 3
एक उत्पादन संभावना वक्र दो वस्तुओं के अधिकतम उत्पादन के उन विभिन्न संयोगों को दर्शाती है जिनका उत्पादन अर्थव्यवस्था में दिए गए साधनों से किया जा सकता है। अर्थव्यवस्था को अपनी उत्पादन संभावना वक्र अकुशल प्रयोग पर स्थित दो वस्तुओं के विभिन्न संयोगों के बीच चुनाव करना पड़ता है। यदि एक अर्थव्यवस्था इन संयोगों में से किसी एक संयोग बिंदु पर कार्य कर रही है तो इसे हम संसाधनों के कुशल प्रयोग की स्थिति कहेंगे। यदि एक अर्थव्यवस्था वस्तु-X किसी ऐसे संयोग का उत्पादन करती है जो उसकी उत्पादन संभावना वक्र के नीचे बाईं ओर स्थित है तो इसे हम. संसाधनों के अकुशल प्रयोग की स्थिति कहेंगे। निम्नलिखित रेखाचित्र में K बिंदु अकुशल प्रयोग की स्थिति में और a, b, c,d,e,f बिंदु कुशल प्रयोग की स्थिति दिखाते हैं।

प्रश्न 15.
संसाधनों के विकास और संसाधनों (या उत्पादन क्षमता) में गिरावट के तीन-तीन उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
संसाधनों  के विकास के तीन उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  • नए उपकरणों व मशीनरी की प्राप्ति
  • साधारण व प्रशिक्षित श्रमिकों की संख्या में वृद्धि
  • उत्पादन की नई व बेहतर तकनीक की उपलब्धि।

संसाधनों में गिरावट के तीन उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  • मशीनरी की टूट-फूट व चलन से बाहर हो जाना
  • उत्पादन तकनीक का पुराना या अप्रचलित हो जाना
  • किसी प्राकृतिक संसाधन का समाप्त हो जाना।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

प्रश्न 16.
उत्पादन संभावना वक्र की मान्यताएँ बताइए।
उत्तर:
उत्पादन संभावना वक्र की मान्यताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. संसाधनों की मात्रा दी हुई है
  2. संसाधनों का पूर्ण तथा कुशलतापूर्वक उपयोग किया जा रहा है
  3. उत्पादन तकनीक स्थिर और अपरिवर्तित है
  4. संसाधन सब प्रकार की वस्तुओं के उत्पादन में एक समान कुशल नहीं हैं।

प्रश्न 17.
‘अर्थव्यवस्थाएँ सदैव उत्पादन संभावना वक्र पर कार्य करती हैं, इसके भीतर नहीं’ पक्ष या विपक्ष में तर्क दें।
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र एक परिचय 4
एक उत्पादन संभावना वक्र (PPC) उत्पादन की केवल विभिन्न संभावनाओं को प्रकट करता है। यह इस बात को स्पष्ट नहीं करता कि एक अर्थव्यवस्था किस बिंदु पर उत्पादन करेगी। यदि एक अर्थव्यवस्था उत्पादन संभावना वक्र पर कार्य करती है तो इसका अर्थ यह है कि संसाधनों का पूर्ण एवं कुशल उपयोग हो रहा है। यह एक आदर्श स्थिति है। एक अर्थव्यवस्था का PPC पर ही उत्पादन करना या इसके भीतर उत्पादन करना व्यक्तियों की रुचि और पसंद पर निर्भर करता है। यदि एक अर्थव्यवस्था में बेरोज़गारी हो अथवा संसाधनों का पूर्ण उपयोग नहीं हो रहा हो अथवा हड़ताल के कारण उत्पादन बंद हो रहा हो तो ऐसी स्थिति में उत्पादन PPC के भीतर किसी बिंदु पर होगा। जैसाकि रेखाचित्र में बिंदु ‘K’ द्वारा दिखाया गया है।

प्रश्न 18.
तकनीकी प्रगति या संसाधनों की संवृद्धि के कारण उत्पादन संभावना वक्र दाहिनी ओर क्यों खिसक जाता है?
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र एक परिचय 5
उत्पादन संभावना वक्र की यह मान्यता है कि तकनीकी प्रगति और अर्थव्यवस्था में उपलब्ध संसाधन स्थिर व दिए हए हैं लेकिन तकनीकी प्रगति या संसाधनों की संवृद्धि से वर्तमान उत्पादन संभावना वक्र अपने दायीं ओर खिसक जाती है। ऐसा इसलिए होता है कि तकनीकी प्रगति या संसाधनों की संवृद्धि के फलस्वरूप अर्थव्यवस्था में दोनों वस्तुओं का उत्पादन पहले से अधिक हो सकता है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।

प्रश्न 19.
‘क्या उत्पादन किया जाए?’ की समस्या को एक उत्पादन संभावना वक्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
उत्पादन संभावना वक्र उन विभिन्न संभावनाओं को बताता है जिसमें एक अर्थव्यवस्था अपने सीमित साधनों से उत्पादन कर सकती है। निम्नलिखित तालिका में X वस्तु और Y वस्तु की विभिन्न उत्पादन संभावनाओं को दिखाया गया है-

उत्पादन संभावनाएँवस्तु-X का उत्पादनवस्तु-Y का उत्पादन
a015
b510
c107
d135
e153
f160

‘क्या उत्पादन किया जाए?’ की समस्या के अंतर्गत प्रत्येक अर्थव्यवस्था को उत्पादन संभावना वक्र पर दिए गए विभिन्न बिंदुओं में से किसी एक का चुनाव करना पड़ेगा। यह अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं की तीव्रता पर निर्भर करेगा कि वह X वस्तु अथवा Y वस्तु में से किसका अधिक मात्रा में उत्पादन करेगी।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र एक परिचय 6
यदि अर्थव्यवस्था में उपलब्ध समस्त संसाधनों का प्रयोग Y वस्तु के निर्माण के लिए किया जाता है तो अर्थव्यवस्था में X वस्तु का उत्पादन बिल्कुल नहीं होगा। इसी प्रकार यदि अर्थव्यवस्था में उपलब्ध समस्त संसाधनों का प्रयोग X वस्तु के लिए किया जाता है तो Y वस्तु का उत्पादन बिल्कुल नहीं होगा। सामान्यतया अर्थव्यवस्था b, c,d और e बिंदुओं में से किसी एक पर उत्पादन करेगी।

प्रश्न 20.
बाज़ार अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
बाज़ार अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. निजी स्वामित्व उत्पादन संसाधनों पर लोगों का स्वामित्व होता है। लोगों को उत्तराधिकार का अधिकार प्राप्त होता है।
    उद्यम की स्वतंत्रता-लोगों को अपना व्यवसाय चुनने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है।
  2. उपभोग की स्वतंत्रता-बाज़ार अर्थव्यवस्था में एक उपभोक्ता “राजा” होता है। उत्पादन की सभी क्रियाएँ उपभोक्ता की इच्छा के अनुकूल ही चलती हैं।
  3. कीमत-तंत्र-बाज़ार अर्थव्यवस्था में सभी आर्थिक निर्णय कीमत-तंत्र (प्रक्रिया) द्वारा लिए जाते हैं। कीमत-तंत्र सभी आर्थिक समस्याओं का समाधान करता है।
  4. लाभ का उद्देश्य-बाज़ार अर्थव्यवस्था में सभी आर्थिक क्रियाओं का उद्देश्य अपने निजी लाभ को अधिकतम करना होता है।

प्रश्न 21.
एक केंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
एक केंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था वह नियोजित अर्थव्यवस्था है जिसमें उत्पादन, उपभोग व वितरण संबंधी सभी महत्त्वपूर्ण निर्णय सरकार या केंद्रीय सत्ता द्वारा आर्थिक योजना के अनुसार लिए जाते हैं। ऐसी अर्थव्यवस्था में प्रमुख विचार या उद्देश्य सामाजिक कल्याण (Social Welfare) होता है। नियोजित अर्थव्यवस्था में सभी केंद्रीय समस्याएँ योजना-तंत्र द्वारा हल की जाती हैं।

प्रश्न 22.
केंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था की किन्हीं चार विशेषताओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
केंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था की चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. उत्पादन संसाधनों का सरकारी स्वामित्व केंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था में उत्पादन संसाधनों पर सरकार का स्वामित्व होता है। उत्पादन संसाधनों पर निजी स्वामित्व नहीं होता।
  2. नियोजन केंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था में सरकार केंद्रीकृत रूप से निर्णय लेने के लिए आर्थिक नियोजन तकनीक अपनाती है। नियोजन में बाज़ार शक्तियों के स्थान पर सरकार की प्राथमिकताओं के आधार पर आर्थिक कार्यक्रम बनाए जाते हैं।
  3. सामाजिक कल्याण केंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था में निजी लाभ के स्थान पर सामाजिक कल्याण का स्थान सर्वोपरि होता है।
    आर्थिक समानताएँ-केंद्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था में आय और संपत्ति की असमानताएँ बहुत कम होती हैं।

प्रश्न 23.
बाज़ार अर्थव्यवस्था में केंद्रीय समस्याओं का समाधान कैसे होता है?
उत्तर:
बाज़ार अर्थव्यवस्था में केंद्रीय समस्याओं का समाधान कीमत-तंत्र द्वारा होता है। वस्तु की बाज़ार कीमत ही यह निर्धारित करती है कि क्या, कैसे व किसके लिए उत्पादन किया जाए? एक उत्पादक उन्हीं वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करेगा जिसका लाभ उत्पादक को सबसे अधिक होगा। उपभोक्ताओं की प्राथमिकताएँ भी कीमत-तंत्र में दिखाई पड़ती हैं। कीमत-तंत्र की सहायता से संसाधनों के उपयोग को नियंत्रित किया जाता है। कीमत-तंत्र ही साधन-सेवाओं की कीमत का निर्धारण करती है।

प्रश्न 24.
एक योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था में केंद्रीय समस्याओं का समाधान किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर:
एक योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था में आर्थिक संसाधनों पर सरकार का स्वामित्व होता है। सरकार आर्थिक नियोजन द्वारा यह निर्णय लेती है कि इन संसाधनों का उपयोग किस प्रकार किया जाए। आर्थिक नियोजन में बाज़ार शक्तियों का कोई स्थान नहीं होता। क्या उत्पादन करना है, कितनी मात्रा में करना है, किन संसाधनों की सहायता से करना है आदि निर्णय अर्थव्यवस्था के व्यापक सर्वेक्षण तथा सामाजिक कल्याण के आधार पर किया जाता है। आर्थिक नियोजन में व्यक्तिगत स्वतंत्रता व लाभ का अभाव होता है।

प्रश्न 25.
एक मिश्रित अर्थव्यवस्था में केंद्रीय समस्याओं का समाधान किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था बाज़ार अर्थव्यवस्था और योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था का मिश्रण है। इसलिए मिश्रित अर्थव्यवस्था में केंद्रीय समस्याओं का समाधान आर्थिक नियोजन तथा कीमत-तंत्र के मिश्रण से किया जाता है। सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के लिए उत्पादन और निवेश के लक्ष्य निर्धारित करती है। निजी क्षेत्र के उद्यम अपने निर्णय स्वयं लेने के लिए स्वतंत्र होते हैं लेकिन सरकार मौद्रिक, राजकोषीय व अन्य उपायों द्वारा निजी क्षेत्र के निर्णयों को प्रभावित कर सकती है। इस प्रकार मिश्रित अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र नियंत्रित कीमत-तंत्र के अंतर्गत कार्य करते हैं।

प्रश्न 26.
सकारात्मक (वास्तविक) आर्थिक विश्लेषण (Positive Economic Analysis) से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सकारात्मक (वास्तविक) आर्थिक विश्लेषण में ‘जैसा है वैसा’ (As itis) का विश्लेषण किया जाता है। यह ‘वास्तविक अर्थात् यथार्थ’ का अध्ययन करता है, न कि ‘ऐसा होना चाहिए’ का अध्ययन। इसमें क्या था? (What was ?) व क्या है? (What is ?) या क्या होगा? (What would be ?) जैसे वास्तविक कथनों का विश्लेषण सत्यता के आधार पर किया जाता है कि कथन कहाँ तक ठीक या गलत है। अन्य शब्दों में, यह विश्लेषण किसी भी आर्थिक घटना के कारण-परिणाम की निष्पक्ष जाँच करता है परंतु उसकी अच्छाई-बुराई के पचड़े में नहीं पड़ता। ऐसे विश्लेषण के उदाहरण हैं भारत में जनसंख्या विस्फोट की स्थिति है, भारत मुद्रास्फीति (कीमतों में निरन्तर वृद्धि) से ग्रस्त है, देश में गरीबी व बेरोज़गारी बढ़ रही है आदि।

प्रश्न 27.
आदर्शक आर्थिक विश्लेषण (Normative Economic Analysis) से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
आदर्शक आर्थिक विश्लेषण में ‘क्या होना चाहिए?’ (What ought to be?) से संबंधित विश्लेषण किया जाता है। यह सुझाता है कि कोई आर्थिक समस्या कैसे हल की जानी चाहिए। यह आर्थिक निर्णयों के गलत-ठीक, उचित-अनुचित होने की परख करता है और लक्ष्य निर्धारित करने के साथ-साथ उन्हें प्राप्त करने के सुझाव भी देता है। उदाहरण के लिए देश में से आय की असमानताओं को दूर करने के उद्देश्य से अमीर लोगों पर अधिक कर (Tax) लगाने चाहिएँ, गरीबों को मुफ्त शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध की जानी चाहिएँ, निर्धन किसानों को ब्याज मुक्त ऋण दिया जाना चाहिए आदि।

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प्रश्न 28.
सकारात्मक (वास्तविक) आर्थिक विश्लेषण और आदर्शक आर्थिक विश्लेषण में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
केंद्रीय आर्थिक समस्याओं के समाधान की विभिन्न कार्यविधियाँ (Mechanism) हैं जिनके परिणाम भी विभिन्न हो सकते हैं। संभावित परिणामों का विश्लेषण दो तरीकों सकारात्मक(वास्तविक) आर्थिक विश्लेषण या आदर्शक आर्थिक विश्लेषण से किया जा सकता है। पहली कार्यविधि के अंतर्गत होने वाले कार्यों (Functions) का पता लगाया जाता है, जबकि दूसरी कार्यविधि में मूल्यांकन (Evaluation) पर जोर दिया जाता है। सकारात्मक (वास्तविक) आर्थिक विश्लेषण में ‘जैसा है वैसा’ (As it is) का अर्थात् ‘क्या है’, ‘क्या था’ या ‘क्या होगा’ आदि का विश्लेषण किया जाता है, जबकि आदर्शक आर्थिक विश्लेषण में ‘क्या होना चाहिए?’ (What ought to be ?) से संबंधित विश्लेषण किया जाता है।

सकारात्मक आर्थिक विश्लेषण के अंतर्गत हम यह अध्ययन करते हैं कि विभिन्न क्रियाविधियाँ किस प्रकार कार्य करती हैं, जबकि आदर्शक आर्थिक विश्लेषण में हम यह समझने का प्रयास करते हैं कि ये विधियाँ हमारे अनुकूल हैं भी या नहीं। सकारात्मक तथा आदर्शक विषय केंद्रीय आर्थिक समस्याओं के अध्ययन में निहित वे सकारात्मक और आदर्शक प्रश्न हैं जो एक-दूसरे से अत्यंत निकटता से संबंधित हैं तथा इनमें से किसी की पूर्णतया उपेक्षा करके दूसरे को ठीक से समझ पाना संभव नहीं है। वास्तव में, अर्थशास्त्र में दोनों प्रकार के विश्लेषण की आवश्यकता है तभी अधिकतम सामाजिक कल्याण का उद्देश्य पूरा हो सकता है।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उत्पादन संभावना वक्र क्या है? इसकी मान्यताएँ क्या हैं?
उत्तर:
उत्पादन संभावना वक्र (Production Possibility Curve)-एक PP वक्र केंद्रीय समस्या क्या उत्पादन करना है? को स्पष्ट करने की रेखाचित्रिय विधि है? यह निर्णय लेने के लिए कि क्या उत्पादन करना है और कितनी मात्रा में करना है, पहले यह जानना आवश्यक है कि क्या प्राप्य (Obtainable) है। PP वक्र प्राप्य संभावना को प्रदर्शित करता है।

मान्यताएँ-प्राप्य क्या है? निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है-

  • उपलब्ध संसाधनों की मात्रा स्थिर एवं दी हुई है।
  • उत्पादन तकनीक स्थिर और अपरिवर्तित है।
  • संसाधनों का पूर्ण तथा कुशलतम उपयोग किया जा रहा है।
  • संसाधन सभी प्रकार की वस्तुओं के उत्पादन में एक-समान कुशल नहीं है।

चित्रमय प्रदर्शन उत्पादन संभावना वक्र को प्रो० सैम्युअलसन के एक प्रसिद्ध उदाहरण (बंदूकें तथा मक्खन) द्वारा स्पष्ट किया गया है- कल्पना कीजिए कि अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधनों (भूमि, श्रम, पूँजी) की कुछ मात्रा है (जिसमें परिवर्तन संभव नहीं) जिनकी सहायता से दो वस्तुओं मक्खन या बंदूकों का उत्पादन किया जा सकता है। बंदूकें रक्षा-सामग्री की प्रतीक हैं, जबकि मक्खन उपभोक्ता वस्तु का प्रतीक है। इन साधनों के प्रयोग से दोनों वस्तुओं की विभिन्न उत्पादन संभावनाओं को निम्नांकित तालिका द्वारा दर्शाया गया है।

उत्पादन संभावना तालिका

उत्पादन संभावनाएँमक्खन का उत्पादन
(हजार किलोग्राम)
बंदूकों का उत्पादन
(हज़ार (000) में)
परिवर्तन की सीमांत दर = ∆बंदूक/∆ मक्खन
a0 +10___
b1 +91 मक्खन : 1 बंदूक
c2 +71 मक्खन : 2 बंदूक
d3 +41 मक्खन : 3 बंदूक
e4 +01 मक्खन : 4 बंदूक

उपरोक्त तालिका में 5 उत्पादन संभावनाएँ हैं जो उत्पादन साधनों के विभिन्न प्रयोग करके प्राप्त होती हैं। पहली व पाँचवीं चरम सीमा की संभावनाएँ हैं जिनसे केवल एक ही वस्तु प्राप्त होती है, दूसरी नहीं। बाकी तीन अन्य संभावनाएँ हैं जिनमें दोनों वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है। जैसे-जैसे हम मक्खन का उत्पादन बढ़ाते जाते हैं तो बंदूकों के उत्पादन में तेजी के साथ कमी होती जाती है। दूसरी अवस्था में, मक्खन का उत्पादन 1 हज़ार किलो बढ़ाने पर बंदूकों का उत्पादन 1 हज़ार गिरता है। तीसरी संभावना में 2 हज़ार तथा चौथी संभावना में 3 हज़ार और अंतिम संभावना में बंदूकों का उत्पादन 4 हज़ार गिरता है।

यहाँ एक बात ध्यान देने योग्य है कि जैसे-जैसे हम एक संभावना से दूसरी संभावना पर आते हैं, वैसे-वैसे बंदूकों के स्थान पर मक्खन प्राप्त नहीं करते, बल्कि उत्पादन के साधनों को बंदूकों के उत्पादन से हटाकर मक्खन के उत्पादन में लगाते हैं। यदि कोई साधन एक वस्तु से हटाकर दूसरी वस्तु में लगाया जाता है तो कुशलता गिर जाती है और लागत बढ़ जाती है। परिवर्तन की सीमांत दर (Marginal Rate of Transformation) इस लागत का माप है। जैसे-जैसे मक्खन का उत्पादन बढ़ता है, यह दर बढ़ती चली जाती है।

परिवर्तन की सीमांत दर-एक वस्तु की अतिरिक्त इकाई का उत्पादन करने पर दूसरी वस्तु की जितनी मात्रा का त्याग करना पड़ता है, वह परिवर्तन की सीमांत दर कहलाती है। बंदूक और मक्खन के हमारे उदाहरण के अनुसार, यह मक्खन की एक अतिरिक्त इकाई प्राप्त करने के लिए बंदूकों की त्यागी गई मात्रा का अनुपात है। सूत्र के रूप में,
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र एक परिचय 7
हमारे उदाहरण में इस दर में वृद्धि हो रही है। इसका अर्थ है कि हर बार मक्खन की एक अतिरिक्त इकाई प्राप्त करने के लिए बंदूकों का त्याग बढ़ती दर से करना पड़ता है।

उत्पादन संभावना वक्र:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र एक परिचय 8
उत्पादन संभावना तालिका को चित्रित करने पर उत्पादन संभावना वक्र प्राप्त हो जाता है। यह उत्पादन संभावना वक्र दो वस्तुओं के उन विभिन्न संयोगों को दर्शाती है जिन्हें दिए गए निश्चित साधनों तथा तकनीकों की. सहायता से उत्पन्न किया जा सकता है। रेखाचित्र में X-अक्ष पर मक्खन और Y-अक्ष पर बंदूकों के उत्पादन को दर्शाया गया है। a, b, c,d,e विभिन्न बिंदु हैं जो विभिन्न उत्पादन संभावनाओं को बताते हैं। इन विभिन्न बिंदुओं को मिलाने से जो वक्र बनता है, उसे उत्पादन संभावना वक्र कहते हैं। इस वक्र से पता चलता है कि दिए गए साधनों तथा तकनीकी ज्ञान से अर्थव्यवस्था में दो वस्तुओं के उत्पादन की विभिन्न संभावनाएँ क्या हैं?

इस वक्र से हमें उत्पादन की अधिकतम सीमाओं का भी पता चलता है। इसलिए इसे उत्पादन संभावना सीमा (Production Possibility Frontier or Boundary) भी कहा जाता है। रेखाचित्र के अनुसार अर्थव्यवस्था में अधिकाधिक संभव उत्पादन ae वक्र तक ही हो सकता है। यदि अर्थव्यवस्था ae के बाहर के बिंदु (जैसा कि ‘T’ बिंदु) को प्राप्त करना चाहे तो वह केवल दो दशाओं में ही इसे प्राप्त कर सकती है। (i) साधनों में वृद्धि होने से तथा (ii) तकनीकी विकास या कार्यकुशलता में वृद्धि होने से। इसके अतिरिक्त यदि उत्पादन किसी ऐसे बिंदु पर किया जाता है जो वक्र के अंदर है (जैसे कि बिंदु ‘U’) तो इसका अर्थ होगा कि अर्थव्यवस्था में या तो साधनों या जा रहा है या अर्थव्यवस्था में साधन बेरोज़गार हैं। इस अवस्था में बिना साधनों में वृद्धि किए दोनों वस्तुओं के उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।

उत्पादन संभावना वक्र की विशेषताएँ-उत्पादन संभावना वक्र की दो मुख्य विशेषताएँ हैं
1. बाएँ से दाएँ नीचे की ओर झुकती है-उत्पादन संभावना वक्र इस बात को स्पष्ट करता है कि समाज को यदि किसी वस्तु की अतिरिक्त मात्रा चाहिए तो उसे दूसरी वस्तु का उत्पादन कम करना होगा।

2. मूल बिंदु की ओर नतोदर-PP वक्र के मूल बिंदु की ओर नतोदर होने का कारण परिवर्तन की सीमांत दर (MRT) का निरंतर बढ़ना है अथवा बढ़ती हुई सीमांत अवसर लागत है।

प्रश्न 2.
सीमांत अवसर लागत से क्या अभिप्राय है? इसके बढ़ने के कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:
सीमांत अवसर लागत का अर्थ उत्पादन संभावना वक्र पर कार्यरत किसी वस्तु की सीमांत अवसर लागत दूसरी वस्तु की वह मात्रा है जिसका पहली वस्त की एक अतिरिक्त इकाई उत्पन्न करने के लिए त्याग किया जाता है। गेहँ और दाल के संदर्भ में सीमांत अवसर लागत (MOC) को हम यूँ भी परिभाषित कर सकते हैं कि किसी वस्तु (जैसे गेहूँ) की सीमांत अवसर लागत दूसरी वस्तु (जैसे दालों) की त्याग की मात्रा है जब पहली वस्तु का उत्पादन बढ़ाया जाता है। त्याग की यह दर बढ़ाई गई वस्तु की सीमांत अवसर लागत (Marginal Opportunity Cost) कहलाती है।

सीमांत अवसर लागत को निम्नलिखित तालिका द्वारा स्पष्ट किया गया है-
तालिका : उत्पादन संभावना वक्र पर कार्यरत सीमांत अवसर लागत

उत्पादन संभावनाएँ (संयोजन)गेहूँ (लाख टन में)दालें (लाख टन में)गेहूँ की सीमांत अवसर लागत (दालों में)
a015___
b11415 – 14 = 1
c21214 – 12 = 2
d3912 – 9 = 3
e459 – 5 = 4
f505 – 0 = 5

दी गई तालिका में एक निष्कर्ष स्पष्ट है कि जैसे-जैसे गेहूँ का उत्पादन बढ़ाया जाता है, वैसे-वैसे गेहूँ की सीमांत अवसर लागत दर दालों में कमी के रूप में बढ़ती जाती है, जैसाकि अंतिम कॉलम से स्पष्ट है। यथा संयोजन (Combination) a से संयोजन b में जाने पर 1 लाख टन गेहूँ का उत्पादन करने के लिए 1 लाख टन दालों का उत्पादन त्यागना पड़ता है अर्थात् 1 लाख टन गेहूँ की सीमांत अवसर लागत (MOC) 1 लाख टन दालें हैं। इसी प्रकार संयोजन c में 1 लाख टन गेहूँ का अतिरिक्त उत्पादन करने के लिए 2 (14-12) लाख टन दालों का उत्पादन छोड़ना पड़ता है अर्थात् 1 लाख टन गेहूँ की MOC अब 2 लाख टन दालें हैं। इसी रीति से संयोजन d,e,f में 1 लाख टन अतिरिक्त गेहूँ का उत्पादन करने की सीमांत अवसर लागत (MOC) क्रमशः 3, 4 और 5 लाख टन दालें हैं।

संक्षेप में, अतिरिक्त गेहूँ उत्पादन करने के लिए दालों के रूप में सीमांत अवसर लागत क्रमशः बढ़ती जाती है। बढ़ती हुई सीमांत अवसर लागत के फलस्वरूप उत्पादन संभावना वक्र का आकार मूल बिंदु की तरफ नतोदर (Concave) हो जाता है।

सीमांत अवसर लागत बढ़ने के कारण-सीमांत अवसर लागत बढ़ने के कारण हैं-
(1) PP वक्र ह्रासमान प्रतिफल नियम (अर्थात् वर्धमान लागत नियम) पर आधारित है। इसके अनुसार जब किसी वस्तु का उत्पादन बढ़ाया जाता है तो इसे उत्पादित करने वाले साधनों की सीमांत उत्पादकता कम होती जाती है। फलस्वरूप वस्तु का उत्पादन बढ़ाने के लिए साधन की अधिक इकाइयाँ जुटानी पड़ती हैं अर्थात् उत्पादन लागत बढ़ती जाती है। इसे हम यूँ भी कह सकते हैं कि एक वस्तु का उत्पादन बढ़ाने के लिए दूसरी वस्तु की अधिक इकाइयों का त्याग करना पड़ता है।

(2) सीमांत अवसर लागत तब भी बढ़ जाती है जब एक विशेष वस्तु (जैसे दालों) के उत्पादन में लगे निपुण साधनों (श्रमिकों) को हटाकर दूसरी वस्तु (जैसे गेहूँ) के उत्पादन में स्थानांतरित किया जाता है जहाँ के लिए वे इतने योग्य नहीं होते। इसका अर्थ है दूसरी वस्तु की अतिरिक्त इकाइयों के उत्पादन के लिए स्थानांतरित साधनों का अधिक मात्रा में प्रयोग करना अर्थात् उत्पादन लागत का अप्रत्यक्ष बढ़ना।

संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित PP अनुसूची से वस्तु-X की रूपांतरण की सीमांत दर (MRT) की गणना कीजिए।

उत्पादन संभावनाएँabcde
वस्तु-X का उत्पादन (इकाइयाँ)01234
वस्तु-Y का उत्पादन (इकाइयाँ)14131183

हल :
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र एक परिचय 9

वस्तु-X (इकाइयाँ)वस्तु-Y (इकाइयाँ)MRT = ∆Y/∆X
014__
1131 : 1 (1-0 = 1, 14-13 = 1)
2111 : 1
382 : 1
433 : 1

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प्रश्न 2.
मान लो कि एक अर्थव्यवस्था अपने संसाधनों और उपलब्ध प्रौद्योगिकी से दो वस्तुओं मशीनों और गेहूँ का उत्पादन करती है। अग्रलिखित तालिका में मशीनों तथा गेहूँ की उत्पादन संभावनाओं को दिखाया गया है। भिन्न-भिन्न संयोगों पर मशीनों की सीमांत अवसर लागत ज्ञात करें।

उत्पादन संभावनामशीनों का उत्पादन
(हज़ार)
गेहूँ का उत्पादन
(लाख टन)
a075
b170
c262
d350
e430
f50

हल :
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र एक परिचय 10

उत्पादन संभावनामशीनों का उत्पादन (हज़ार)गेहूँ का उत्पादन
(लाख टन)
मशीनों की सीमांत अवसर लागत (लाख टन)
a075___
b1705 वृद्धिमान
c2628 सीमांत
d35012 अवसर
e43020 लागत
f5030

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HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

पाठयपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
संतुलित व्यापार शेष और चालू खाता संतुलन में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यापार शेष वस्तुओं के आयात व निर्यात का लेखा होता है अर्थात् व्यापार शेष में केवल दृश्य मदों को सम्मिलित किया जाता है। इसमें सेवाओं; जैसे कि जहाज़रानी, बीमा, बैंकिंग, ब्याज एवं लाभांश भुगतान और पर्यटकों द्वारा व्यय आदि को सम्मिलित नहीं किया जाता। चालू खाते में वस्तुओं और सेवाओं के आयात और निर्यात और एक-पक्षीय हस्तांतरणों का ब्यौरा रखा जाता है। व्यापार शेष के निर्धारण में केवल दृश्य मदों पर ही विचार किया जाता है जबकि भुगतान शेष के चालू खाते में निम्नलिखित मदों को सम्मिलित किया जाता है

  1. वस्तुओं का आयात-निर्यात (दृश्य मदें)
  2. सेवाओं का आयात-निर्यात (अदृश्य मदें)
  3. एक-पक्षीय हस्तांतरण।

इस प्रकार व्यापार शेष एक संकुचित अवधारणा है और भुगतान शेष के चालू खाते का एक भाग है।

प्रश्न 2.
आधिकारिक आरक्षित निधि का लेन-देन क्या है? अदायगी-संतुलन में इनके महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आधिकारिक आरक्षित निधि (Official Reserve Transactions) के लेन-देन से अभिप्राय उन लेन-देनों से है जो विदेशी विनिमय बाज़ार में विदेशी मुद्रा के क्रय-विक्रय से संबंधित है। आधिकारिक आरक्षित निधि के लेन-देन भुगतान शेष की समस्या को हल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। घाटे की स्थिति में एक देश की सरकार विदेशी बाज़ार में विदेशी मुद्रा की बिक्री कर सकती है, जिसके फलस्वरूप विदेशी विनिमय की आरक्षित निधि कम हो जाएगी।

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प्रश्न 3.
मौद्रिक विनिमय दर और वास्तविक विनिमय दर में भेद कीजिए। यदि आपको घरेलू वस्तु अथवा विदेशी वस्तुओं के बीच किसी को खरीदने का निर्णय करना हो, तो कौन-सी दर अधिक प्रासंगिक होगी?
उत्तर:
मौद्रिक विनिमय दर से अभिप्राय देशी मुद्रा के रूप में विदेशी मुद्रा की एक इकाई की कीमत से है। इसके विपरीत, वास्तविक विनिमय दर देशी वस्तु के रूप में विदेशी वस्तुओं की सापेक्ष कीमत होती है। वास्तविक विनिमय दर मौद्रिक विनिमय दर के बराबर होती है, जोकि विदेशी कीमत स्तर में देशी कीमत स्तर से भाग देकर प्राप्त की जाती है। वास्तविक विनिमय दर से किसी देश की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का मूल्यांकन होता है। वास्तविक विनिमय दर को निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है-
वास्तविक विनिमय दर = \(\frac{e P_{f}}{P}\)
यहाँ,
P = देश का कीमत स्तर
Pf = विदेशी कीमत स्तर
e = मौद्रिक विनिमय दर इस प्रकार हम देखते हैं कि मौद्रिक विनिमय दर चालू कीमतों पर आधारित है, जबकि वास्तविक विनिमय दर स्थिर कीमतों पर आधारित है। यदि हमें घरेलू वस्तु अथवा विदेशी वस्तुओं के बीच किसी को खरीदने का निर्णय करना है तो वास्तविक विनिमय दर अधिक प्रासंगिक होगी।

प्रश्न 4.
यदि 1 रुपए की कीमत 1.25 येन है और जापान में कीमत स्तर 3 हो तथा भारत में 1.2 हो, तो भारत और जापान के बीच बास्तविक विनिमय दर की गणना कीजिए (जापानी वस्तु की कीमत भारतीय वस्तु के संदर्भ में)।
संकेत-रुपए में येन की कीमत के रूप में मौद्रिक विनिमय दर को पहले ज्ञात कीजिए।
हल:
वास्तविक विनिमय दर = \(\frac{e P_{f}}{P}\)
P= देश का कीमत स्तर = 1.2
Pf = विदेशी कीमत स्तर = 3
e = मौद्रिक विनिमय दर
= \(\frac { 1 }{ 1.25 }\)
= 0.8
वास्तविक विनिमय दर = \(\frac{0.8 \times 3}{1.2}\) = 2.4
= 2 उत्तर

प्रश्न 5.
स्वचालित युक्ति की व्याख्या कीजिए जिसके द्वारा स्वर्णमान के अंतर्गत अदायगी-संतुलन प्राप्त किया जाता था।
उत्तर:
स्वर्णमान के अंतर्गत सभी करेंसियाँ सोने के रूप में परिभाषित की जाती थीं। प्रत्येक देश एक निश्चित कीमत पर अपनी मुद्रा को मुफ़्त रूप से परिवर्तनीयता की गारंटी देने के लिए प्रतिबद्ध था। विनिमय दरों का निर्धारण सोने के रूप में उस मुद्रा के मूल्य द्वारा होता था जहाँ सोने की मुद्रा होती थी। दरों में एक ऊपरी सीमा और निचली सीमा के बीच उतार-चढ़ाव होता रहता था। अधिकृत समता को बनाए रखने के लिए प्रत्येक देश को सोने के पर्याप्त स्टॉक रखने की आवश्यकता होती थी। इस प्रकार स्वर्णमान के अंतर्गत अदायगी-संतुलन प्राप्त किया जाता था।

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प्रश्न 6.
नम्य विनिमय दर व्यवस्था में विनिमय दर का निर्धारण कैसे होता है?
उत्तर:
नम्य विनिमय दर व्यवस्था में विनिमय दर का निर्धारण विदेशी मुद्रा बाज़ार में होता है। विदेशी मुद्रा बाज़ार में संतुलन उस बिंदु पर निर्धारित होता है, जहाँ विदेशी मुद्रा का माँग वक्र और मुद्रा का पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हों। विदेशी मुद्रा का माँग वक्र ऊपर से नीचे दाईं ओर गिरता हुआ होता है जबकि विदेशी मुद्रा का पूर्ति वक्र नीचे से ऊपर दाईं ओर उठता हुआ होता है। संलग्न रेखाचित्र में विदेशी मुद्रा बाज़ार में संतुलन की स्थिति को दिखाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था समष्टि अर्थशास्त्र 1
संलग्न रेखाचित्र में माँग वक्र और पूर्ति वक्र एक-दूसरे को E बिंदु पर काटते हैं जहाँ संतुलन विनिमय दर OP है और संतुलन विदेशी मुद्रा की मात्रा OQ है।

प्रश्न 7.
अवमूल्यन और मूल्यहास में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अवमूल्यन (मूल्यवृद्धि) और मूल्यह्रास दोनों का संबंध देशीय मुद्रा के मूल्य में वृद्धि या कमी से है, जिससे विदेशी मुद्रा प्रभावित होती है। अवमूल्यन के अंतर्गत घरेलू मुद्रा की इकाइयों में विदेशी मुद्रा की कीमत कम हो जाती है और मूल्यह्रास के अंतर्गत घरेलू मुद्रा की इकाइयों में विदेशी मुद्रा की कीमत में वृद्धि हो जाती है।

प्रश्न 8.
क्या केंद्रीय बैंक प्रबंधित तिरती व्यवस्था में हस्तक्षेप करेगा? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रबंधित तिरती व्यवस्था (Managed Floating System) से अभिप्राय ऐसी व्यवस्था से है जिसमें केंद्रीय बैंक बाज़ार की शक्तियों के द्वारा विनिमय दर के निर्धारण की अनुमति प्रदान करता है, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में केंद्रीय बैंक विनिमय दरको प्रभावित करने के लिए हस्तक्षेप करता है।

प्रश्न 9.
क्या देशी वस्तुओं की माँग और वस्तुओं की देशीय माँग की संकल्पनाएँ एक-समान हैं?
उत्तर:
नहीं, देशी वस्तुओं की माँग और वस्तुओं की देशीय माँग की संकल्पनाएँ एक-समान नहीं होती। देशी वस्तुओं की माँग (Demand for Domestic Goods) में निवल निर्यात सम्मिलित नहीं होता। जब आय में वृद्धि होती है तो खुली अर्थव्यवस्था में बढ़ी हुई आमदनी का बड़ा भाग आयातों पर व्यय होता है और एक छोटा भाग ही देशी वस्तुओं की माँग बढ़ाता है। इस प्रकार विकासशील अर्थव्यवस्था में वस्तुओं की देशीय माँग (Domestic Demand for Goods) देशी वस्तुओं की माँग से अधिक होगी।

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प्रश्न 10.
जब M=60 + 0.06Y हो, तो आयात की सीमांत प्रवृत्ति क्या होगी? आयात की सीमांत प्रवृत्ति और समस्त माँग फलन में क्या संबंध है?
उत्तर
M = 60+ 0.06Y (दिया हुआ है)
M = \(\overline{\mathrm{M}}\) + mY
इस प्रकार, m = 0.06
यहाँ, m = आयात की सीमांत प्रवृत्ति
इसलिए आयात की सीमांत प्रवृत्ति = 0.06
आयात की सीमांत प्रवृत्ति और समस्त माँग फलन में धनात्मक संबंध होता है। आयात की सीमांत प्रवृत्ति बढ़ी हुई आय का वह भाग है जो आयात पर व्यय किया जाता है। यह आयात में परिवर्तन और आय में परिवर्तन का अनुपात है।
आयात की सीमांत प्रवृत्ति = \(\frac { ∆M }{ ∆Y }\)
आयात की माँग घरेलू आय और वास्तविक विनिमय दर पर निर्भर करती है। आय बढ़ने से माँग में वृद्धि होती है और बढ़ी हुई माँग का अधिकांश भाग आयातों के लिए होता है। फलस्वरूप आयात की सीमांत प्रवृत्ति में भी वृद्धि होती है।

प्रश्न 11.
खुली अर्थव्यवस्था के स्वायत्त व्यय (खर्च) गुणक बंद अर्थव्यवस्था के गुणक की तुलना में छोटा क्यों होता है?
उत्तर:
खुली अर्थव्यवस्था के स्वायत्त व्यय (खर्च) गुणक बंद अर्थव्यवस्था के स्वायत्त व्यय गुणक की तुलना में इसलिए छोटा होता है कि बंद अर्थव्यवस्था में व्यय गुणक केवल सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (c) पर निर्भर करता है जबकि खुली अर्थव्यवस्था में गुणक सीमांत उपभोग प्रवृत्ति और आयात की सीमांत प्रवृत्ति (m) दोनों के योग पर निर्भर करता है।
इस प्रकार, खुली अर्थव्यवस्था गुणक = \(\frac { 1 }{ 1-c+m }\)
बंद अर्थव्यवस्था गुणक =\(\frac { 1 }{ 1-c }\)

प्रश्न 12.
पाठ में एकमुश्त कर की कल्पना के स्थान पर आनुपातिक कर T = tY के साथ खुली अर्थव्यवस्था गुणक की गणना कीजिए।
उत्तर:
एकमुश्त कर की स्थिति में खुली अर्थव्यवस्था गुणक = \(\frac { 1 }{ 1-c+m }\)
आनुपातिक कर की स्थिति में खुली अर्थव्यवस्था गुणक = \(\frac{1}{1-c(1-t)+m}\)

प्रश्न 13.
मान लीजिए C = 40 + 0.8Y D, T = 50, I = 60, G = 40, x = 90, M = 50 + 0.05Y (a) संतुलन आय ज्ञात कीजिए, (b) संतुलन आय पर निवल निर्यात संतुलन ज्ञात कीजिए, (c) संतुलन आय और निवल निर्यात संतुलन क्या होता है, जब सरकार के क्रय में 40 से 50 की वृद्धि होती है?
हल:
(a) संतुलन आय (Y) = \(\overline{\mathrm{C}}\) + c(Y – T) + I + G + X – M
= 40 + 0.8(Y – 50) + 60 + 40 + 90 – (50 + 0.05Y)
= 40 + 0.8Y – 40 + 60 + 40 + 90 – 50 – 0.05Y
= 0.75Y + 230 – 90
= 0.75Y + 140
Y – 0.75Y = 140
0.25Y = 140
Y = 560
इस प्रकार संतुलन आय = 560 उत्तर

(b) निवल निर्यात = X – M
= 90 – (50 + 0.05Y)
= 90 – (50 + 0.05 x 560)
= 90 – (50 + 28)
= 90 – 78
= 12 उत्तर

(c) सरकार के क्रय में वृद्धि (∆G) = 50 – 40
संतुलन आय में परिवर्तन =\(\frac{1}{1-c+m} \Delta \mathrm{G}\)
= \(\frac{1}{1-0.8+0.05}\) x 10
= \(\frac{1}{0.25}\) x 10 = 40
नई संतुलन आय = पुरानी संतुलन आय + परिवर्तन
= 560 + 40 = 600
निवल निर्यात में परिवर्तन = X1 – M1
= 90 – (50 + 0.05 x 600)
= 90 – 50 + 30
= 90 – 80
= 10 उत्तर

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 14.
उपर्युक्त उदाहरण में यदि निर्यात में X = 100 का परिवर्तन हो, तो संतुलन आय और निवल निर्यात संतुलन में परिवर्तन ज्ञात कीजिए।
हल:
संतुलन आय में परिवर्तन (ΔY) = \(\frac{1}{1-c+m} \Delta \mathrm{X}\)
= \(\frac{1}{1-0.8+0.05}\) x 10
= \(\frac{1}{0.25}\) x 10
= 40
नई संतुलन आय = 560 + 40 = 600
निवल निर्यात में परिवर्तन = X1 – M1
= 100 – (50 + 0.05 x 600)
= 100 – (50 + 30)
= 100 – 80
= 20 उत्तर

प्रश्न 15.
व्याख्या कीजिए कि G – T = (Sg – I) – (X – M)।
उत्तर:
G – T = (Sg – I) – (X – M)
यहाँ, G = सरकारी व्यय
T = कर
G – T = निवल सरकारी व्यय
sg = सरकार की बचत
I = निवेश
Sg – I = निवल बचत
X = निर्यात
M = आयात
X – M = व्यापार शेष
दिए हुए समीकरण के अनुसार, निवल सरकारी व्यय निवल बचत और व्यापार शेष के योग के बराबर होता है। इसका अभिप्राय यह है कि निवल सरकारी व्यय की क्षतिपूर्ति सरकारी बचत और व्यापार घाटे से होती है।

प्रश्न 16.
यदि देश Bसे देश A में मुद्रास्फीति ऊँची हो और दोनों देशों में विनिमय दर स्थिर हो, तो दोनों देशों के व्यापार शेष का क्या होगा?
उत्तर:
यदि देश Bसे देश A में मुद्रास्फीति ऊँची है और दोनों देशों में विनिमय दर स्थिर है, तो देश A के व्यापार शेष में घाटा होगा जबकि देश Bका व्यापार शेष आधिक्य होगा। इसका कारण यह है कि मुद्रास्फीति के ऊँचे होने पर उस देश के आयात में वृद्धि होगी और निर्यात में कमी आएगी जिससे व्यापार शेष में घाटा होगा।

प्रश्न 17.
क्या चालू पूँजीगत घाटा खतरे का संकेत होगा? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यदि चालू पूँजीगत घाटे के फलस्वरूप निवेश में वृद्धि और भविष्य के निर्गत में वृद्धि होती है तो यह खतरे का संकेत (Cause for alarm) नहीं है। यदि चालू पूँजीगत घाटे के फलस्वरूप निजी अथवा सरकारी उपभोग में वृद्धि होती है तो यह खतरे का संकेत है।

प्रश्न 18.
मान लीजिए C = 100 + 0.75YD, I = 500, G = 750, कर आय का 20 प्रतिशत है, X = 150, M = 100 + 0.2Y, तो संतुलन आय, बजट घाटा अथवा आधिक्य और व्यापार घाटा अथवा आधिक्य की गणना कीजिए।
हल:
C = 100 + 0.75YD
I = 500
G = 750
आनुपातिक कर (T) = 20%
X = 150
M = 100 + 0.2Y
(a) संतुलन आय (Y) = \(\overline{\mathrm{C}}\) + c(Y – T)Y + I + G + X – M
= 100 + 0.75 (1-0.2)Y + 500 + 750 + 150 – (100 + 0.2Y)
= 100 + 0.75 (0.8)Y+ 500 +750 + 150-100-0.2Y
= 100 + 0.6Y+ 1300-0.2Y
= 1,400 + 0.4Y
Y – 0.4Y = 1,400
0.6Y = 1,400
Y = 2,333
संतुलन आय = 2,333 उत्तर

(b) बजट घाटा = सरकारी व्यय (G) – कर (T)
= 750 – 20%Y
= 750 – \(\frac { 20 }{ 100 }\) x 2,333
= 750 – 467 = 283 उत्तर

(c) व्यापार घाटा = M – X
= 100+ 0.2Y – X
= 100 + 0.2 x 2,333 – 150
= 100 + 467 – 150
= 417 उत्तर

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 19.
उन विनिमय दर व्यवस्थाओं की चर्चा कीजिए, जिन्हें कुछ देशों ने अपने बाह्य खाते में स्थायित्व लाने के लिए प्रयोग किया है।
उत्तर:
निम्नलिखित विनिमय दर व्यवस्थाओं को कई देशों ने अपने बाह्य खाते में स्थायित्व लाने के लिए प्रयोग किया है

स्वर्णमान-स्वर्णमान व्यवस्था के अंतर्गत प्रत्येक देश की मुद्रा सोने के मूल्य से संचालित होती है। विनिमय दरों का निर्धारण सोने के रूप में उस मुद्रा के मूल्य के द्वारा होता था।
स्थिर विनिमय दर-स्थिर विनिमय दर व्यवस्था के अंतर्गत देश अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा-कोष की अनुमति के बिना विनिमय दर में परिवर्तन नहीं कर सकता।
प्रबंधित तिरती कई देशों ने अपने केंद्रीय बैंकों को विनिमय दर नियंत्रित करने के लिए हस्तक्षेप करने की अनुमति दी है।
नम्य विनिमय दर-कई देशों ने स्वतंत्र कीमत प्रणाली का उपयोग किया है।

खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र HBSE 12th Class Economics Notes

→ विनिमय दर-विनिमय दर से अभिप्राय अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाज़ार (अथवा अंतर्राष्ट्रीय विनिमय बाज़ार) में एक करेंसी की अन्य करेंसियों के रूप में कीमत से है। उदाहरण के लिए, यदि 1 अमेरिकी डॉलर को खरीदने के लिए 50 रु० देने पड़ते हैं तो दोनों करेंसियों की विनिमय दर = 50 : 1 होगी।

→ विनिमय दर की प्रणालियाँ-मोटे तौर पर विनिमय दर को निर्धारित करने की दो प्रणालियाँ हैं-6) स्थिर विनिमय दर प्रणाली और (ii) नम्य (लोचशील) विनिमय दर प्रणाली।

→ स्थिर विनिमय दर प्रणाली स्वर्ण विनिमय दर तथा विनिमय दर की समंजनीय सीमा प्रणाली स्थिर विनिमय दर प्रणाली के दो महत्त्वपूर्ण परिवर्तित रूप हैं। विनिमय दर की समंजनीय सीमा प्रणाली (जिसे ब्रेटन वुडस प्रणाली भी कहते हैं। विनिमय में कछ सीमा तक समंजन की अनमति देती है. यह प्रणाली उतनी कठोर नहीं है जितनी स्वर्ण विनिमय दर प्रणाली।

→ नम्य विनिमय दर का निर्धारण-नम्य विनिमय दर का निर्धारण अंतर्राष्ट्रीय विनिमय बाज़ार में विभिन्न करेंसियों की माँग तथा पूर्ति की कीमतों द्वारा होता है।

→ संतुलित विनिमय दर-संतुलित विनिमय दर तब स्थापित होती है जब विदेशी विनिमय की पूर्ति = विदेशी विनिमय की माँग। विनिमय दर की मिश्रित प्रणालियाँ-विनिमय दर की मिश्रित प्रणालियाँ हैं-(i) विस्तृत सीमापट्टी, (ii) चलित सीमाबंध तथा (ii) प्रबंधित तरणशीलता। विनिमय दर की ये प्रणालियाँ, ‘स्थिर’ तथा ‘नम्य’ विनिमय दरों की दो चरम स्थितियों के बीच है।

→ विस्तृत सीमापट्टी प्रणाली-इस प्रणाली के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाज़ार में दो करेंसियों की ‘समता दर’ के बीच 10 प्रतिशत की कमी या वृद्धि करके अपने भुगतान शेष को ठीक करने की छूट होती है।

→ चलित (परिवर्तनशील) सीमाबंध-यह स्थिर (Fixed) विनिमय दर और नम्य (लचीली) (Flexible) विनिमय दर के बीच का एक समझौता (Compromise) है। इस प्रणाली में एक देश अपनी विनिमय दर घोषित कर उसमें 1 प्रतिशत तक उतार-चढ़ाव कर सकता है। प्रबंधित तरणशीलता-यह स्थिर विनिमय दर और लचीली (नम्य) विनिमय दर के प्रबंध की अंतिम संकर प्रजाति या मिश्रण है जो सरकार द्वारा प्रबंधित या नियंत्रित होती है। इसे प्रबंधित तरणशीलता कहते हैं, परंतु यह नियत दर समय-समय पर जरूरत के अनुसार मौद्रिक अधिकारी द्वारा संशोधित की जाती है।

→ हाज़िर (चालू) बाज़ार-हाज़िर बाज़ार वह बाज़ार है जिसमें विदेशी विनिमय का चालू क्रय-विक्रय होता है। इसमें तात्कालिक विनिमय दर का निर्धारण होता है।

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→ वायदा बाज़ार-वायदा बाज़ार का संबंध विदेशी विनिमय के ऐसे क्रय तथा विक्रय से है जिसमें लेन-देन के प्रपत्रों पर हस्ताक्षर तो आज किए जाते हैं, किंतु यह लेन-देन भविष्य में किसी दिन पूरा होता है। यह भविष्य की विनिमय दर को परिभाषित करता है।

→ भुगतान शेष भुगतान शेष एक देश तथा विश्व के बीच सभी आर्थिक सौदों का संक्षिप्त विवरण है।

→ व्यापार शेष व्यापार शेष दृश्य निर्यात और दृश्य आयात का अंतर है।

→ व्यापार शेष और भुगतान शेष में अंतर व्यापार शेष में केवल दृश्य मदों का रिकॉर्ड होता है। भुगतान शेष में दृश्य तथा अदृश्य मदों के अतिरिक्त पूँजी अंतरण का रिकॉर्ड भी पाया जाता है।

→ स्वप्रेरित तथा समायोजक मदें-स्वायत्त या स्वप्रेरित मदें उन सौदों से संबंधित होती हैं जिनका निर्धारण लाभ को ध्यान में रखकर किया जाता है। समायोजक मदों का निर्धारण लाभ को ध्यान में रखकर नहीं किया जाता है। इन मदों का ध्येय भुगतान शेष की समानता को पुनः स्थापित करना है।

→ भुगतान शेष में असंतुलन यह असंतुलन बचत वाला भी और घाटे वाला भी हो सकता है।

→ भुगतान शेष में असंतुलन के कारण-(i) आर्थिक कारक, (ii) राजनीतिक कारक और (iii) सामाजिक कारक।

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HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

पाठयपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
सार्वजनिक वस्तु सरकार के द्वारा ही प्रदान की जानी चाहिए, क्यों? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
निम्नलिखित कारणों से यह अनुभव किया जाता है कि सार्वजनिक वस्तु सरकार के द्वारा ही प्रदान की जानी चाहिए
(i) सार्वजनिक वस्तुओं का उपभोग सामूहिक रूप से किया जाता है। सार्वजनिक वस्तुएँ अप्रतिस्पर्धी (Non-rivalrous) होती हैं अर्थात् एक व्यक्ति दूसरे की संतुष्टि में कमी किए बगैर अपनी संतुष्टि में वृद्धि कर सकता है। सार्वजनिक वस्तुएँ अवर्ण्य (Non-excludable) होती हैं अर्थात् किसी को इन वस्तुओं का लाभ उठाने से वर्जित करने का कोई संभव तरीका नहीं है। इसे ही मुफ्तखोरी की समस्या कहा जाता है।

(ii) सार्वजनिक वस्तुओं के उपयोग का शुल्क संग्रह करना कठिन होता है, जबकि निजी उद्यम आमतौर पर ऐसी वस्तुओं को उपलब्ध नहीं कराते हैं।

प्रश्न 2.
राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय में भेद कीजिए।
उत्तर:
सरकारी बजट में राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय के बीच निम्नलिखित भेद हैं-

  1. राजस्व व्यय अल्पकालीन और बार-बार होने वाले व्यय हैं जबकि पूँजीगत व्यय दीर्घकालीन तथा आकस्मिक होने वाले व्यय हैं।
  2. राजस्व व्ययों की आवृत्ति अधिक होती है जबकि पूँजीगत व्ययों की आवृत्ति बहुत कम होती है।
  3. राजस्व व्यय से परिसंपत्तियों का निर्माण नहीं होता और न ही ये व्यय दायित्वों में कमी करते हैं। पूँजीगत व्ययों से या तो परिसंपत्तियों का निर्माण होता है या दायित्वों में कमी आती है।

राजस्व व्यय (Revenue Expenditure) के उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  1. सुरक्षा पर व्यय
  2. कानून व्यवस्था पर व्यय
  3. स्वास्थ्य पर व्यय।

पूँजीगत व्यय (Capital Expenditure) के उदाहरण निम्नलिखित हैं

  1. गैर-आवासीय इमारतों पर व्यय
  2. वैज्ञानिक अनुसंधान संगठनों पर व्यय
  3. सड़कों एवं पुलों पर व्यय।

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प्रश्न 3.
राजकोषीय घाटा से सरकार को ऋण-ग्रहण की आवश्यकता होती है, समझाइए।
उत्तर:
राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) से अभिप्राय उस घाटे से है जिसमें सरकार का कुल बजट व्यय उसकी राजस्व प्राप्तियों तथा गैर-ऋण पूँजीगत प्राप्तियों के जोड़ से अधिक होता है। अर्थात्

राजकोषीय घाटा = कुल बजट (राजस्व व्यय + पूँजीगत व्यय + सरकार द्वारा दिए गए शुद्ध ऋण) – राजस्व प्राप्तियाँ-गैर-ऋण पूँजीगत प्राप्तियाँ

इस प्रकार राजकोषीय घाटे में ऋण सम्मिलित नहीं होता। राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए सरकार के पास ऋण ग्रहण के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं होता। सरकार के पास ऋण ग्रहण के निम्नलिखित तीन स्रोत होते हैं-

  • लोगों से ऋण
  • केंद्रीय बैंक से ऋण
  • विदेशों से ऋण।

इस प्रकार,
राजकोषीय घाटा = सरकार का ऋणभार।

प्रश्न 4.
राजस्व घाटा और राजकोषीय घाटा में संबंध बताइए।
उत्तर:
राजस्व घाटा वह स्थिति है जिसमें सरकार का राजस्व व्यय उसकी राजस्व प्राप्तियों से अधिक होता है। अर्थात
राजस्व घाटा = राजस्व व्यय (चालू व्यय) – राजस्व प्राप्तियाँ (कर प्राप्तियाँ – गैर-कर प्राप्तियाँ)
राजकोषीय घाटा वह स्थिति है जिसमें सरकार का कुल व्यय (राजस्व व्यय + पूँजीगत व्यय) उसकी राजस्व प्राप्तियों तथा गैर-ऋण पूँजीगत प्राप्तियों से अधिक होता है। अर्थात्
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय (राजस्व व्यय + पूँजीगत व्यय) – राजस्व प्राप्तियाँ – गैर-ऋण पूँजीगत प्राप्तियाँ
राजकोषीय घाटा एक विस्तृत तथ्य है जबकि राजस्व घाटा एक संकुचित तथ्य है और यह राजकोषीय घाटा में सम्मिलित है।

प्रश्न 5.
मान लीजिए कि एक विशेष अर्थव्यवस्था में निवेश 200 के बराबर है, सरकार के क्रय की मात्रा 150 है, निवल कर (अर्थात् एकमुश्त कर से अंतरण को घटाने पर) 100 है और उपभोग C = 100 + 0.75 Y दिया हुआ है, तो (a) संतुलन आय का स्तर क्या है? (b) सरकारी व्यय गुणक और कर गुणक के मानों की गणना करें। (c) यदि सरकार के व्यय में 200 की बढ़ोत्तरी होती है, तो संतुलन आय में क्या परिवर्तन होगा?
हल:
उपभोग = C = 100 + 0.75Y
यहाँ पर,
\(\overline{\mathrm{C}}\) = 100
c = 0.75
निवल कर (T – \(\overline{\mathrm{T}}\)R) = 100
निवेश (I) = 260
सरकार का क्रय (G) = 150
(a) संतुलन आय का स्तर (Y) = \(\overline{\mathrm{C}}\) + c[Y – (T – \(\overline{\mathrm{T}}\)R)] + I + G
= 100 + 0.75 [Y – 100] + 200 + 150
= 100 + 0.75Y – 75 + 350
= 0.75Y + 375
Y – 0.75Y = 375
0.25Y = 375
Y = \(\frac{375 \times 100}{25}\)
संतुलन आय स्तर = 1,500 उत्तर

(b) सरकारी व्यय गुणक =\(\frac { 1 }{ 1-c }\)
= \(\frac { 1 }{ 1-0.75 }\)
= \(\frac { 1 }{ 0.25 }\) = 4
कर गुणक = \(\frac { -c }{ 1 – c }\)
= \(\frac { -0.75 }{ 1 – 0.75 }\)
= \(\frac { -0.75 }{ 0.25 }\)
= – 3 उत्तर

(c) संतुलन आय में परिवर्तन (∆Y) = \(\frac { 1 }{ 1-c }\)∆G
= सरकारी व्यय गुणक – सरकारी व्यय में परिवर्तन
= 4 x 200 = 800
यदि सरकारी व्यय में 200 की बढ़ोत्तरी होती है तो संतुलन आय में 800 की बढ़ोत्तरी होगी। उत्तर

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 6.
एक ऐसी अर्थव्यवस्था पर विचार कीजिए, जिसमें निम्नलिखित फलन हैं-
C = 20 + 0.80Y, I = 30, G = 50, TR = 100
(a) आय का संतुलन.स्तर और मॉडल में स्वायत्त व्यय गुणक ज्ञात कीजिए।
(b) यदि सरकार के व्यय में 30 की वृद्धि होती है, तो संतुलन आय पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(c) यदि एकमुश्त कर 30 जोड़ दिया जाए, जिससे सरकार के क्रय में बढ़ोत्तरी का भुगतान किया जा सके, तो संतुलन आय में किस प्रकार का परिवर्तन होगा?
हल:
उपभोग (C) = 20 + 0.80Y
यहाँ पर,
\(\overline{\mathrm{C}}\) = 20
c = 0.80
निवेश (I) = 30
सरकारी व्यय (G) = 50
अंतरण (T – \(\overline{\mathrm{T}}\)R) = 100
(a) आय का संतुलन स्तर (Y) = C + c[Y- (T – TR )] + I + G
Y = 20 + 0.80 [Y – (-100)] + 30 + 50
= 20 + 0.80 [Y + 100] + 80
= 20 + 0.08Y + 80 + 80
= 0.80Y + 180
Y – 0.80 = 180
0.20Y = 180
Y = 900
आय का संतुलन स्तर = 900
स्वायत्त व्यय गुणक = \(\frac { 1 }{ 1-c }\)
= \(\frac { 1 }{ 1-0.80 }\)
= \(\frac { 1 }{ 0.20 }\)
= 5 उत्तर

(b) संतुलन आय में वृद्धि (∆Y) = व्यय गुणक x व्यय में वृद्धि
= 5 x 30 = 150 उत्तर

(c) कर गुणक = \(\frac { -c }{ 1-c }\)
= \(\frac { -0.80 }{ 1-0.80 }\)
= \(\frac { -0.80 }{ 0.20 }\)
= – 4
संतुलन आय में परिवर्तन = कर गुणक x कर में वृद्धि
= – 4 x 30
= – 120
संतुलन आय में कमी = 120 उत्तर

प्रश्न 7.
उपर्युक्त प्रश्न में अंतरण में 10% की वृद्धि और एकमुश्त करों में 10% की वृद्धि का निर्गत पर पड़ने वाले प्रभाव की गणना करें। दोनों प्रभावों की तुलना करें।
हल:
अंतरण गुणक = \(\frac { c }{ 1-c }\)
= \(\frac { 0.80 }{ 1-0.80 }\)
= \(\frac { 0.80 }{ 0.20 }\) = 4
अंतरण में वृद्धि = 10%
निर्गत में अंतरण के कारण वृद्धि
= अंतरण गुणक x अंतरण में वृद्धि
= 4 x 10% = 40%
एकमुश्त कर में वृद्धि = 10%
निर्गत में एकमुश्त कर में वृद्धि के कारण कमी
= 4 x 10% = 40% उत्तर
अंतरण में वृद्धि से राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी और एकमुश्त कर में वृद्धि से राष्ट्रीय आय में कमी होगी। चूँकि अंतरण व कर में वृद्धि की मात्रा व गुणक एक बराबर हैं, अतः दोनों का मिश्रित प्रभाव शून्य होगा।

प्रश्न 8.
हम मान लेते हैं कि C = 70 + 0.70YD, 1 = 90, G = 100, T = 0.10Y (a) संतुलन आय ज्ञात कीजिए। (b) संतुलन आय पर कर राजस्व क्या है? क्या सरकार का बजट संतुलित बजट है?
हल:
(a) C = 70 + 0.70YD
यहाँ पर, \(\overline{\mathrm{C}}\) = 70
c = 0.70
I = 90 G = 100
T = 0.10Y
संतुलन आय (Y) = \(\overline{\mathrm{C}}\) + c[Y – (T – \(\overline{\mathrm{T}}\)R)] + I + G
Y = 70+ 0.70[Y – (0.10Y)] + 90 + 100
Y = 70+ 0.70[Y – 0.10Y] + 190
Y = 260 + 0.70Y – 0.07Y
Y = 260 + 0.63Y
Y – 0.63Y = 260
0.37Y = 260
Y = 703 (लगभग)
संतुलन आय = 703 उत्तर

(b) T = 0.10Y
T = 0.10 x 703
T = 70.3
कर राजस्व = 70.3
चूँकि सरकार द्वारा अर्जित कर राजस्व 70.3 है और सरकार द्वारा किया व्यय 100 है, इसलिए सरकार का बजट संतुलित नहीं है। संतुलित बजट के लिए यह आवश्यक है कि सरकारी व्यय और कर राजस्व दोनों ही एक-दूसरे के बराबर हों।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 9.
मान लीजिए कि सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है और आनुपातिक आय कर 20 प्रतिशत है। संतुलन आय में निम्नलिखित परिवर्तनों को ज्ञात करें
(a) सरकार के क्रय में 20 की वृद्धि
(b) अंतरण में 20 की कमी।
हल:
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 0.75
आनुपातिक आय कर (t) = 20%
सरकारी व्यय गुणक =\(\frac{1}{(1-c)(1-t)}\)
= \(\frac{1}{(1-0.75)(1-0.20)}\)
\(\frac{1}{0.25 \times 0.80}\) = 5
अंतरण गुणक = \(\frac { 1 }{ 1-c }\)
= \(\frac { 1 }{ 1-0.75 }\)
= \(\frac { 1 }{ 0.25 }\)
= 4
(a) सरकार के क्रय में वृद्धि = 20
संतुलन आय में वृद्धि = 20 x 5 = 100 उत्तर

(b) अंतरण में कमी = 20
संतुलन आय में कमी = 20 x 4 = 80 उत्तर
अतः दोनों का मिश्रित प्रभाव = संतुलन आय में 20 की वृद्धि

प्रश्न 10.
निरपेक्ष मूल्य में कर गुणक सरकारी व्यय गुणक से छोटा क्यों होता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यह कहना सही है कि निरपेक्ष मूल्य में कर गुणक सरकारी व्यय गुणक से छोटा होता है।
कर गुणक = \(\frac { -c }{ 1-c }\)
सरकारी व्यय गुणक = \(\frac { 1 }{ 1 – c }\)
‘इसका कारण यह है कि सरकारी व्यय में वृद्धि राष्ट्रीय आय को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है जबकि कर गुणक राष्ट्रीय आय को प्रयोज्य आय के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है।

प्रश्न 11.
सरकारी घाटे और सरकारी ऋण-ग्रहण में क्या संबंध है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सरकारी घाटे और सरकारी ऋण-ग्रहण में घनिष्ठ संबंध है। सरकारी घाटा प्रवाह अवधारणा है, लेकिन सरकारी घाटा ऋण के स्टॉक में वृद्धि करता है। यदि सरकार वर्ष प्रतिवर्ष ऋण ग्रहण करती है तो ब्याज के दायित्व में वृद्धि से बजट घाटे में भी वृद्धि करती है। इस प्रकार बजट घाटा ऋण का कारण और प्रभाव दोनों हैं।

प्रश्न 12.
क्या सार्वजनिक ऋण बोझ बनता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक ऋण हमेशा बोझ नहीं बनता, लेकिन निम्नलिखित परिस्थितियों में सार्वजनिक ऋण बोझ बन जाता है-

  1. सार्वजनिक ऋण का भार भावी पीढ़ी पर पड़ता है।
  2. विदेशियों से लिए गए ऋण के बदले में ब्याज की अदायगी के अनुरूप वस्तुएँ विदेश भेजनी पड़ती हैं।
  3. देश में कुल माँग में वृद्धि होती है जिससे मुद्रास्फीति में वृद्धि होती है।

प्रश्न 13.
क्या राजकोषीय घाटा आवश्यक रूप से स्फीतिकारी है?
उत्तर:
राजकोषीय घाटा आवश्यक रूप से स्फीतिकारी नहीं होता। यदि राजकोषीय घाटे के फलस्वरूप माँग में वृद्धि और निर्गत में वृद्धि होती है तो राजकोषीय घाटा स्फीतिकारी नहीं होता। यदि राजकोषीय घाटे के मूल्य से कम अर्थव्यवस्था में निर्गत होता है तो राजकोषीय घाटा स्फीतिकारी होता है।

प्रश्न 14.
घाटे में कटौती के विषय पर विमर्श कीजिए।
उत्तर:
घाटे में कटौती करने के बारे में दोनों प्रकार के तर्क दिए जाते हैं। घाटे में कटौती करना निम्नलिखित परिस्थितियों में उचित नहीं माना जाता

  • घाटे से महामंदी और बेरोज़गारी की समस्या का समाधान किया जा सकता है।
  • घाटे से अल्पविकसित देशों को अतिरिक्त संसाधन प्राप्त होते हैं जिससे आर्थिक विकास में सहायता मिलती है।
  • घाटे से सरकार सामाजिक कल्याण की गतिविधियाँ संचालित कर सकती है।

घाटे में कटौती करना निम्नलिखित परिस्थितियों में उचित माना जाता है-

  • घाटे के बजट से सरकार को ऋण लेने के लिए बाध्य होना पड़ता है जिससे सरकार के समक्ष ऋण के भुगतान की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
  • घाटे के बजट से मुद्रास्फीति की दर में वृद्धि होती है जिससे कीमतों में वृद्धि होती है।
  • घाटे का बजट सरकार को अनावश्यक व्यय करने की सुविधा देता है।

घाटे में कटौती निम्नलिखित प्रकार से की जा सकती है-

  • करों में वृद्धि
  • सार्वजनिक व्यय में कमी
  • विनिवेश।

सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था HBSE 12th Class Economics Notes

→ बजट-बजट एक वित्तीय वर्ष, जो 1 अप्रैल से अगले 31 मार्च तक चलता है, की अवधि में सरकार की अनुमानित प्राप्तियों (आय) और अनुमानित व्यय का ब्यौरा होता है।

→ बजट के संघटक बजट के दो मुख्य संघटक हैं-

  • बजट प्राप्तियाँ तथा
  • बजट व्यय।

→ बजट प्राप्तियाँ बज़ट प्राप्तियों से अभिप्राय उस मौद्रिक आय से है जो कि सरकार को आने वाले वित्तीय वर्ष में विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होने का अनुमान है। इसमें दो प्रकार की प्राप्तियाँ शामिल की जाती हैं

  • राजस्व प्राप्तियाँ
  • पूँजीगत प्राप्तियाँ।

→ राजस्व प्राप्तियाँ-राजस्व प्राप्तियाँ सरकार की वह प्राप्ति अथवा आय है जिसमें सरकार की कोई देनदारियाँ नहीं होती और न ही सरकार की परिसंपत्तियों में कोई कमी होती है। इसमें दो प्रकार की प्राप्तियाँ शामिल की जाती हैं

  • कर राजस्व प्राप्तियाँ
  • गैर-कर राजस्व प्राप्तियाँ।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

→ पूँजीगत प्राप्तियाँ-पूँजीगत प्राप्तियों में सरकार की वह आय आती है जो या तो देनदारियाँ पैदा करती है या सरकार की परिसंपत्तियों में कमी करती है। इनका विभाजन तीन भागों में किया गया है

  • ऋणों की वसूली
  • उधार तथा अन्य देयताएँ
  • अन्य प्राप्तियाँ।

→ कर-कर एक ऐसा भगतान है जोकि लोगों द्वारा सरकार को किया जाता है। इसके बदले में किसी सेवा-प्राप्ति की आशा – नहीं की जा सकती।

→ कर के प्रकार कर तीन प्रकार के होते हैं

  • प्रगतिशील कर तथा प्रतिगामी कर
  • मूल्यवृद्धि कर तथा वजन अनुसार कर
  • प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर।

→ प्रत्यक्ष कर वह कर, जिसका अंतिम भार उसी व्यक्ति को उठाना पड़ता है जो इसका भुगतान करता है। इसके उदाहरण हैं-आयकर, व्यवसाय कर, संपत्ति कर, उपहार कर आदि।

→ अप्रत्यक्ष कर वह कर जिसका प्रारंभिक भार एक व्यक्ति पर पड़ता है, परंतु उस भार को वह दूसरों पर टालने में सफल हो जाता है। इसके उदाहरण हैं-बिक्री कर, उत्पादन कर, सीमा शुल्क आदि।

→ बजट व्यय बजट व्यय से अभिप्राय सरकार द्वारा आने वाले वित्तीय वर्ष में विभिन्न मदों पर किए जाने वाले अनुमानित व्यय से है। इसमें दो प्रकार के व्यय शामिल किए जाते हैं-

  • राजस्व व्यय
  • पूँजीगत व्यय।

→ राजस्व व्यय-राजस्व व्यय से अभिप्राय सरकार द्वारा एक वित्तीय वर्ष में किए जाने वाले उस अनुमानित व्यय से है जिसके फलस्वरूप न तो सरकार की परिसंपत्तियों का निर्माण होता है और न ही देनदारियों में कमी होती है।

→ पूँजीगत व्यय-पूँजीगत व्यय सरकार का वह खर्च है जो या तो सरकार के लिए परिसंपत्तियाँ पैदा करता है या सरकारी देनदारियाँ कम करता है।

→ बजट के प्रकार बजट तीन प्रकार का होता है-

  • संतुलित बजट
  • बचत का बजट
  • घाटे का बजट।

→ संतुलित बजट-संतुलित बजट = कुल व्यय = कुल प्राप्तियाँ।

→ बचत का बजट-बचत का बजट = कुल व्यय < कुल प्राप्तियाँ। → घाटे का बजट-घाटे का बजट = कुल व्यय > कुल प्राप्तियाँ।

→ बजट घाटा-बजट घाटे का अर्थ उस स्थिति से है जिसमें सरकार का बजट व्यय सरकार की बजट प्राप्तियों से अधिक होता है। बजट घाटा तीन प्रकार का होता है-

  • राजस्व घाटा
  • राजकोषीय घाटा
  • प्राथमिक घाटा।

→ राजस्व घाटा-राजस्व घाटा = राजस्व व्यय > राजस्व प्राप्तियाँ।

→ राजकोषीय घाटा-राजकोषीय घाटा = कुल व्यय > (राजस्व प्राप्तियाँ + गैर ऋण पूँजीगत प्राप्तियाँ)

→ प्राथमिक घाटा-प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज की अदायगी।

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HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

पाठयपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति किसे कहते हैं? यह किस प्रकार सीमांत बचत प्रवृत्ति से संबंधित है?
उत्तर:
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति-आय में परिवर्तन के कारण उपभोग में परिवर्तन के अनुपात को सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) कहते हैं। यह बढ़ी हुई आय का वह भाग है जो उपभोग पर खर्च किया जाता है। उपभोग में परिवर्तन (AC) को आय में परिवर्तन (AY) से भाग करके MPC को ज्ञात किया जाता है। सूत्र के रूप में-
MPC = ∆C/∆Y
यहाँ, ∆C = उपभोग में परिवर्तन, ∆Y = आय में परिवर्तन।
सीमांत बचत प्रवृत्ति-आय में परिवर्तन के कारण बचत में परिवर्तन के अनुपात को सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) कहते हैं। यह बढ़ी हुई आय का वह भाग या अनुपात (Proportion) है जो उस बढ़ी हुई आय से बचाई गई है। बचत में परिवर्तन (∆S) को आय में परिवर्तन (∆Y) से भाग करके MPS को ज्ञात किया जा सकता है। सूत्र के रूप में-
MPS = \(\frac { ∆S }{ ∆Y }\)
यहाँ, ∆S = बचत में परिवर्तन, ∆Y = आय में परिवर्तन।
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति और सीमांत बचत प्रवृत्ति का योग (1) इकाई के बराबर होता है। इस प्रकार,
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति + सीमांत बचत प्रवृत्ति = 1 अर्थात्
MPC + MPS = 1

प्रश्न 2.
प्रत्याशित निवेश और यथार्थ निवेश में क्या अंतर है?
उत्तर:
प्रत्याशित अथवा इच्छित (नियोजित) निवेश वह निवेश है जो निवेशकर्ता किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आय तथा रोज़गार के विभिन्न स्तरों पर करने की इच्छा रखते हैं।

यथार्थ अथवा वास्तविक निवेश वह निवेश है जो निवेशकर्ता किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आय तथा रोज़गार के विभिन्न स्तरों पर वास्तव में करते हैं।

उदाहरण – मान लीजिए कि एक उत्पादक वर्ष के अंत तक अपने भंडार में, 100 रुपए के मूल्य की वस्तु जोड़ने की योजना बनाता है। अतः उस वर्ष में उसका प्रत्याशित (नियोजित) निवेश 100 रुपए है। किंतु बाज़ार में उसकी वस्तुओं की माँग में अप्रत्याशित वृद्धि होने के कारण उसकी विक्रय मात्रा में उस परिमाण से अधिक वृद्धि होती है, जितना कि उसने बेचने की योजना बनाई थी। इस अतिरिक्त माँग की पूर्ति के लिए उसे अपने भंडार से 30 रुपए के मूल्य की वस्तु बेचनी पड़ती है। अतः वर्ष के अंत में उसकी माल-सूची (Inventory) में केवल 100-30 रुपए = 70 रुपए की वृद्धि होती है। इस प्रकार, उसका प्रत्याशित (नियोजित) निवेश 100 रुपए है, जबकि उसका यथार्थ निवेश केवल 70 रुपए है।

प्रश्न 3.
‘किसी रेखा में पैरामेट्रिक शिफ्ट’ से आप क्या समझते हैं? रेखा में किस प्रकार शिफ्ट होता है जब इसकी (i) ढाल घटती है और (it) इसके अंतःखंड में वृद्धि होती है?
उत्तर:
किसी रेखा में पैरामेट्रिक शिफ्ट से अभिप्राय एक पैरामीटर (प्राचल) के मूल्य में परिवर्तन के कारण आलेख (ग्राफ) में शिफ्ट से होता है। इकाइयाँ है और m ग्राफ के पैरामीटर होते हैं। ये पैरामीटर परिवतों के समान प्रकट नहीं होतें, बल्कि आलेख (ग्राफ) की स्थिति को नियमित करने के लिए पृष्ठभूमि में कार्य करते हैं।
(i) जब रेखा की ढाल घटती है तो रेखा नीचे की ओर शिफ्ट होती है। इसे हम निम्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
निम्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि b = a+2 प्रारंभिक रेखा है। जब रेखा की ढाल घटती है तो यह रेखा b = 0.5a+2 में शिफ्ट हो जाती है। इसे इस रेखाचित्र का पैरामेट्रिक शिफ्ट कहते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 3

(ii) जब रेखा के अंतःखंड में वृद्धि होती है, तो सरल रेखा ऊपर की ओर समानांतर रूप से शिफ्ट होगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 4
संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि b = 0.5a +2 प्रारंभिक रेखा है। जब अंतःखंड (Intercept) में 2 से 3 तक वृद्धि होती है तो यह रेखा b = 0.5a + 3 रेखा के रूप में ऊपर की ओर समानांतर शिफ्ट हो जाती है। इसी तरह यदि अंतःखंड (Intercept) में 2 से 1 तक कमी होती है, तो यह रेखा b= 0.5a + 1 रेखा के रूप में नीचे की ओर समानांतर रूप में शिफ्ट हो सकती है।

प्रश्न 4.
‘प्रभावी माँग’ क्या है? जब अंतिम वस्तुओं की कीमत और व्याज की दर दी हुई हो, तब आप स्वायत्त व्यय गुणक कैसे प्राप्त करेंगे?
उत्तर:
प्रभावी माँग से अभिप्राय समस्त माँग के उस बिंदु से है जहाँ यह सामूहिक पूर्ति के बराबर होती है। प्रभावी माँग अर्थव्यवस्था की माँग का वह स्तर है जो समस्त पूर्ति से पूर्णतया संतुष्ट होता है और इसलिए इसमें उत्पादकों द्वारा उत्पादन बढ़ाने या घटाने की कोई प्रवृत्ति नहीं पाई जाती। अन्य शब्दों में, समग्र माँग का वह स्तर जो पूर्ण संतुलन उपलब्ध कराता है, प्रभावी माँग कहलाता है। वैकल्पिक रूप में, संतुलन के बिंदु पर समग्र माँग को प्रभावी माँग कहते हैं, क्योंकि राष्ट्रीय आय के निर्धारण में यह प्रभावी होती है। केज के अनुसार, “आय का साम्य (संतुलन) स्तर उस बिंदु पर निर्धारित होता है, जहाँ समग्र माँग, समग्र पूर्ति के बराबर होती है।”

जब अंतिम वस्तुओं की कीमत और ब्याज की दर दी हुई हो तो स्वायत्त व्यय गुणक (Autonomous ExpenditureMultiplier) की गणना निम्नलिखित प्रकार से की जाएगी-
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 1

प्रश्न 5.
जब स्वायत्त निवेश और उपभोग व्यय (A) 50 करोड़ रुपए हो और सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) 0.2 तथा आय का स्तर (Y) 4,000.00 करोड़ रुपए हो, तो प्रत्याशित समस्त माँग ज्ञात करें। यह भी बताएँ कि अर्थव्यवस्था संतुलन में है या नहीं (कारण भी बताएँ)।
उत्तर:
आय का स्तर (Y) = 4,000.00 करोड़ रुपए
स्वायत्त निवेश और उपभोग व्यय (A) = 50 करोड़ रुपए
सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) = 0.2
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 1 – 0.2 = 0.8 (∵ MPC = 1 – MPS)
Y = \(\overline{\mathrm{A}}\) + C.Y
= 50 + 0.8 x 4,000 (∵C = MPC)
= 50 + 3,200
= 3,250 करोड़ रुपए
प्रत्याशित समस्त माँग = 3,250 करोड़ रुपए
चूँकि वर्तमान आय का स्तर 4,000 करोड़ रुपए है जो प्रत्याशित समस्त माँग से 750 करोड़ रुपए अधिक है, तो यह स्थिति अधिपूर्ति की होगी। इसलिए अर्थव्यवस्था संतुलन में नहीं है।

प्रश्न 6.
मितव्ययिता के विरोधाभास की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मितव्ययिता के विरोधाभास से अभिप्राय यह है कि यदि अर्थव्यवस्था के सभी लोग अपनी आय से बचत के अनुपात को बढ़ा दें (अर्थात् यदि अर्थव्यवस्था की बचत की सीमांत प्रवृत्ति में वृद्धि होती है) तो अर्थव्यवस्था में बचत के कुल मूल्य में वृद्धि नहीं होगी। इसका कारण यह है कि सीमांत बचत प्रवृत्ति के बढ़ने से सीमांत उपभोग प्रवृत्ति कम हो जाती है और निवेश गुणक भी मैं कम हो जाता है। फलस्वरूप आय में वृद्धि की दर भी कम हो जाती है। इस प्रकार बचत बढ़ाने से कुल बचत का बढ़ना आवश्यक नहीं है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 2
संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि सीमांत उपभोग प्रवृत्ति के कम होने से समस्त माँग वक्र AD1 नीचे की ओर शिफ्ट होकर AD2 हो जाता है। फलस्वरूप राष्ट्रीय आय भी घटकर OY1 से OY2 हो जाती है, जिससे बचत फिर कम हो जाएगी। इस प्रकार बचत में वृद्धि नहीं हो सकेगी। राष्ट्रीय आय के घटने पर और सीमांत बचत प्रवृत्ति में वृद्धि होने पर बचत के कम होने या पूर्ववत रहने की संभावना है।

आय तथा रोजगार के निर्धारण HBSE 12th Class Economics Notes

→ उपभोग फलन अथवा उपभोग प्रवृत्ति-उपभोग फलन अथवा उपभोग प्रवृत्ति राष्ट्रीय आय और कुल उपभोग व्यय के संबंध को प्रकट करता है। आय के विभिन्न स्तरों पर किस प्रकार परिवर्तन होता है, इसी संबंध को उपभोग फलन अथवा उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।

→ बचत प्रवृत्ति-आय में परिवर्तन के कारण बचत में परिवर्तन की प्रवृत्ति को बचत की प्रवृत्ति कहते हैं।

→ निवेश-यह एक वर्ष की अवधि में उत्पादन के टिकाऊ यंत्रों, नए निर्माण तथा स्टॉक पर किया जाने वाला खर्च है।

→ निजी निवेश-निजी उद्यमियों द्वारा पूँजीगत वस्तुओं, मशीनों, इमारतों, प्लांट आदि पर किया जाने वाला खर्च है।

→ सार्वजनिक निवेश-सरकार द्वारा सार्वजनिक कल्याण पर किया जाने वाला खर्च सार्वजनिक निवेश कहलाता है। यह सड़क, बाँध, पुल, नहरों, बिजलीघरों आदि के निर्माण पर किया जाता है।

→ स्वायत्त अथवा स्वचालित निवेश-यह आय के स्तर अथवा ब्याज की दर से प्रभावित नहीं होता। सरकार द्वारा जन उपयोगी सेवाओं; जैसे रेलवे, सड़क, बिजली, डाक आदि में किया गया निवेश इसी श्रेणी या वर्ग से संबंधित है। यह निवेश सरकार द्वारा किया जाता है। स्वायत्त निवेश, तकनीक में परिवर्तन, नए संसाधनों की खोज, जनसंख्या वृद्धि आदि कारणों से किया जाता है।

→ केज़ का उपभोग का मनोवैज्ञानिक नियम केज के मनोवैज्ञानिक नियम के अनुसार, ‘लोगों की यह मनोवृत्ति होती है कि जब आय बढ़ती है तो उनका उपभोग बढ़ता है किंतु उतना नहीं जितनी कि आय बढ़ती है।

→ गुणक गुणक (K) निवेश में परिवर्तन (AI) तथा आय में परिवर्तन (AY) का अनुपात है अर्थात्
गुणक (K) = \(\frac { ∆Y }{ ∆I }\)

→ गुणक की अनुकूल प्रक्रिया-गुणक की अनुकूल प्रक्रिया से स्पष्ट होता है कि निवेश में होने वाली वृद्धि के फलस्वरूप आय में कई गुना अधिक वृद्धि होगी।

→ गुणक की प्रतिकूल प्रक्रिया-गुणक की प्रतिकूल प्रक्रिया से स्पष्ट होता है कि निवेश में प्रारंभिक कमी होने के फलस्वरूप आय में कई गुना अधिक कमी होती है।

→ न्यून (अभावी) माँग-न्यून (अभावी) माँग समग्र माँग का वह स्तर है जो अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार के लिए आवश्यक समग्र पूर्ति से कम (AD < AS) होता है।

→ अवस्फीतिक अंतराल अवस्फीतिक अंतराल (Deflationary Gap) उस कमी को कहते हैं जो पूर्ण रोज़गार के लिए आवश्यक समग्र माँग तथा वर्तमान समग्र माँग के बीच पाई जाती है।

→ अधिमांग अधिमाँग समग्र माँग का वह स्तर है जो पूर्ण रोज़गार के लिए आवश्यक समग्र पूर्ति के स्तर से अधिक (AD > AS) होता है।

→ स्फीतिक अंतराल–स्फीतिक अंतराल (Inflationary Gap) वह आधिक्य है जो वर्तमान समग्र माँग के पूर्ण रोज़गार के लिए आवश्यक समग्र माँग के अधिक होने के कारण उत्पन्न होता है।

→ अधिमाँग के कारण अधिमाँग (Excess Demand) की स्थिति उत्पन्न होने के मुख्य कारण हैं-

  • घाटे की वित्त व्यवस्था
  • उपभोग व्यय में वृद्धि
  • निर्यात माँग में वृद्धि
  • निवेश माँग में वृद्धि।

→ राजकोषीय नीति-राजकोषीय नीति वह नीति है जिसका संबंध सार्वजनिक आय तथा सार्वजनिक व्यय से है। इसका एक मुख्य उद्देश्य मुद्रास्फीति तथा अवस्फीतिक को नियंत्रित करना है।

→ मौद्रिक नीति मौद्रिक नीति वह नीति है जिसका संबंध अर्थव्यवस्था में साख के प्रवाह को नियंत्रित करना है।

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HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

पाठयपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
वस्तु-विनिमय प्रणाली क्या है? इसकी क्या कमियाँ हैं?
उत्तर:
वस्तु-विनिमय प्रणाली का अर्थ मुद्रा का आविष्कार होने से पूर्व, वस्तुओं एवं सेवाओं का लेन-देन प्रत्यक्ष रूप से विनिमय के आधार पर होता था। इसे ही वस्तु-विनिमय प्रणाली कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, वस्तु-विनिमय प्रणाली से अभिप्राय वस्तुओं के ऐसे व्यापार से है जहाँ बिना मुद्रा के प्रत्यक्ष रूप से एक वस्तु का दूसरी वस्तु के साथ लेन-देन किया जाता है। वस्तु-विनिमय प्रणाली के अंतर्गत अर्थव्यवस्था में वस्तुओं के बदले वस्तुएँ खरीदी जाती हैं। उदाहरणार्थ, गेहूँ के बदले कपड़ा प्राप्त करना, घोड़ों का विनिमय मकान से करना आदि। इसी प्रकार, एक अध्यापक को उसकी सेवाओं का भुगतान गेहूँ अथवा चावल के रूप में किया जा सकता है। ऐसी अर्थव्यवस्था जिसमें लेन-देन वस्तुओं के माध्यम से संपन्न होते हैं, वस्तु-विनिमय अर्थव्यवस्था (Barter Economy) अथवा C-C Economy कहलाती है।

वस्तु-विनिमय की कमियाँ-वस्तु-विनिमय की निम्नलिखित कमियाँ हैं-
1. मूल्य के सामान्य मापदंड का अभाव-वस्तु-विनिमय प्रणाली में ऐसी सामान्य इकाई का अभाव होता है, जिसके द्वारा वस्तुओं और सेवाओं का माप किया जा सके जैसे एक मीटर कपड़े के बदले में कितना अनाज देना चाहिए या एक मकान के बदले कितनी जमीन का टुकड़ा आता है या एक जोड़ी जूते के बदले कितना घी-दूध देना चाहिए, यह जानना चाहे असंभव न हो, परंतु
कठिन अवश्य है।

2. आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव-वस्तु का वस्तु के साथ विनिमय तभी संभव हो सकता है जब दो ऐसे व्यक्ति परस्पर विनिमय करें जिन्हें एक-दूसरे की आवश्यकता हो; जैसे एक व्यक्ति के पास भैंस है और उसे चने चाहिएँ तो उसे ऐसा व्यक्ति चाहिए जिसके पास चने हों। इस प्रकार दोहरे संयोग की समस्या उत्पन्न होती है।

3. वस्तु की अविभाज्यता-जो वस्तुएँ अविभाज्य होती हैं, उनकी विनिमय दर का निर्धारण करना विनिमय प्रणाली के अंतर्गत एक गंभीर समस्या उत्पन्न कर देता है; जैसे एक भैंस तथा कुत्तों का विनिमय करने में कठिनाई उपस्थित होती है।

4. संचय की समस्या-वस्तु-विनिमय प्रणाली के अंतर्गत वस्तुओं का संग्रह करके रखने की समस्या उत्पन्न होती है; जैसे अनाज, फल, सब्जियाँ आदि का संग्रह करके रखने की समस्या सामने आती है।

5. भविष्य में भुगतान करने की समस्या-वर्तमान में उधार ली गई वस्तुओं के भुगतान के संबंध में समस्या उत्पन्न हो सकती है। भुगतान की जाने वाली वस्तु की किस्म को लेकर विवाद उत्पन्न हो सकता है। ब्याज का भुगतान करने की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

प्रश्न 2.
मुद्रा के प्रमुख कार्य क्या-क्या हैं? मुद्रा किस प्रकार वस्तु-विनिमय प्रणाली की कमियों को दूर करती है?
उत्तर:
मुद्रा के चार प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

  • विनिमय का माध्यम।
  • मूल्य का मापक।
  • स्थगित भुगतान का आधार।
  • मूल्य संचय।

मुद्रा निम्नलिखित प्रकार से वस्तु-विनिमय प्रणाली की कमियों को दूर करती है-
1. विनिमय का माध्यम मुद्रा विनिमय के माध्यम के रूप में विनिमय सौदों को दो भागों क्रय और विक्रय में विभाजित करती है। मुद्रा का यह कार्य आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की कठिनाई को दूर करता है। लोग अपनी वस्तुओं को मुद्रा के बदले में बेचते हैं और बेचने से प्राप्त रकम से अन्य वस्तुओं व सेवाओं का क्रय करते हैं।

2. मूल्य मापक-मुद्रा एक सामान्य मूल्य मापक के रूप में काम करती है जिसमें सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य व्यक्त किए जाते हैं। मुद्रा में व्यक्त कीमतों के आधार पर दो वस्तुओं के सापेक्षिक मूल्यों की तुलना करना सरल हो जाता है। इस प्रकार मुद्रा विनिमय के सामान्य मापक के अभाव की समस्या हल कर देती है।

3. स्थगित भुगतान का मानक-चूँकि मुद्रा को निश्चित एवं मानकित इकाइयों में व्यक्त किया जा सकता है और सामान्यतः मुद्रा का मूल्य समय के साथ स्थिर रहता है। मुद्रा स्थगित भुगतान का मानक होती है। इस प्रकार मुद्रा ने वस्तु-विनिमय की उधार के लेन-देन की कठिनाई दूर करके भविष्य में भुगतान किए जाने वाले सौदों को संभव बना दिया है।

4. मूल्य के भंडार के रूप में जब मुद्रा को मूल्य की इकाई और भुगतान का माध्यम मान लिया जाता है तो मुद्रा सहज ही मूल्य के भंडार का कार्य करने लगती है। यद्यपि संपत्तियों को मुद्रा के अतिरिक्त किसी भी रूप में संचित किया जा सकता है, परंतु मुद्रा संपत्ति (क्रय-शक्ति) को संचय करने का सबसे किफायती व सुविधाजनक तरीका है। इस प्रकार मुद्रा ने मूल्य संचय के रूप में वस्तु-विनिमय के मूल्य संचय की कठिनाई दूर कर दी है।

प्रश्न 3.
संव्यवहार के लिए मुद्रा की माँग क्या है? किसी निर्धारित समयावधि में संव्यवहार मूल्य से यह किस प्रकार संबंधित है?
उत्तर:
संव्यवहार के लिए मुद्रा की माँग (Transaction Demand for Money) से अभिप्राय एक अर्थव्यवस्था में संव्यवहारों को पूरा करने के लिए मुद्रा की माँग से है।
सूत्र के रूप में, मुद्रा की संव्यवहार माँग \(\left(\mathrm{M}_{\mathrm{T}}^{d}\right)\) = k.T
यहाँ, k = धनात्मक अंश
T = एक इकाई समयावधि में संव्यवहारों का कुल मौद्रिक मूल्य (Total Value of Transactions Over Unit Period)
संव्यवहार के लिए मुद्रा की माँग और किसी निर्धारित समयावधि में संव्यवहार मूल्य में घनिष्ठ संबंध है। यदि अर्थव्यवस्था में किसी निर्धारित समयावधि में संव्यवहार मूल्य अधिक है तो मुद्रा की माँग भी अधिक होगी।

प्रश्न 4.
मान लीजिए कि एक बंधपत्र दो वर्षों के बाद 500 रुपए के वादे का वहन करता है, तत्काल कोई प्रतिफल प्राप्त नहीं होता है। यदि ब्याज दर 5% वार्षिक है, तो बंधपत्र की कीमत क्या होगी?
हल:
माना बंधपत्र की कीमत = A
ब्याज की दर = 5%
समय = 2 वर्ष
पहले वर्ष का ब्याज = (\(\frac{\mathrm{A} \times 5}{100}\)) = \(\frac { 5A }{ 100 }\)
दूसरे वर्ष के लिए बंधपत्र की कीमत = A + \(\frac { 5A }{ 100 }\)
= A + \(\frac { 5A }{ 100 }\)
= A + \(\frac { A }{ 20 }\)
= \(\frac { 21A }{ 20 }\)
दूसरे वर्ष का ब्याज = \(\frac{\frac{21 \mathrm{~A}}{20} \times 5}{100}\)
= \(\frac{21 \mathrm{~A}}{20} \times \frac{1}{20}=\frac{21 \mathrm{~A}}{400}\)
कुल ब्याज = \(\frac{5 \mathrm{~A}}{100}+\frac{21 \mathrm{~A}}{400}\)
= \(\frac{20 \mathrm{~A}+21 \mathrm{~A}}{400}=\frac{41 \mathrm{~A}}{400}\)
चूँकि, = \(\frac { 41A }{ 400 }\) = 500
A = \(\frac{500 \times 400}{41}\)
= 4,878
अतः बंधपत्र की कीमत = 4,878 रुपए उत्तर

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

प्रश्न 5.
मुद्रा की सट्टा माँग और ब्याज की दर में विलोम संबंध क्यों होता है?
उत्तर:
मुद्रा की सट्टा माँग और ब्याज की दर में विलोम संबंध होता है। इसका अर्थ यह है कि अधिक ब्याज दर पर मुद्रा की सट्टा माँग कम होगी और कम ब्याज दर पर मुद्रा की सट्टा माँग अधिक होगी। यदि ब्याज दर अधिक है तो लोग बंधपत्र अधिक खरीदेंगे और कम मुद्रा रखना चाहेंगे। यदि ब्याज दर कम है तो लोग बंधपत्र में निवेश कम अथवा नहीं करेंगे और अपने पास अधिक मुद्रा रखेंगे।

प्रश्न 6.
तरलता पाश क्या है?
उत्तर:
मुद्रा की सट्टे की माँग ब्याज की दर का ऋणात्मक फलन होती है। ब्याज की दर जितनी ऊँची होती है मुद्रा की सट्टे की माँग उतनी ही कम होगी, क्योंकि बहुत ऊँची ब्याज की दर पर लोग अपनी समस्त मुद्रा राशि आय अर्जित करने वाले बंधपत्र में परिवर्तित कर देते हैं। इसी प्रकार ब्याज की दर के घटने पर लोग बंधपत्र में निवेश कम करेंगे। ब्याज की दर मुद्रा अधिशेष की अवसर लागत अथवा कीमत है। यदि ब्याज की दर पहले से ही काफी निम्न है तो इस दर पर सट्टे की माँग पूर्णतया लोचदार बन जाती है क्योंकि लोग यह अनुभव करते हैं कि ब्याज की दर और नीचे नहीं गिरेगी। इस स्थिति में बंधपत्रों में मुद्रा निवेश करना अनाकर्षक और जोखिमपूर्ण हो जाता है। इस स्थिति को तरलता पाश (Liquidity Trap) कहते हैं। तरलता पाश को हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग 1
संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि ORH ऊँची ब्याज दर पर मुद्रा की सट्टा माँग शून्य है क्योंकि हर व्यक्ति बंधपत्रों में निवेश करना चाहेगा। जैसे-जैसे ब्याज दर कम होती जाती है, मुद्रा की सट्टा माँग बढ़ती जाएगी। जब ब्याज दर ORm पर निम्नतम होती है तो मुद्रा का सट्टा माँग वक्र एक सीधी रेखा बन जाता है और मुद्रा की सट्टा माँग अनंत (∞) अर्थात् पूर्ण लोचदार हो जाती है। जैसे संलग्न रेखाचित्र में माँग वक्र बिंदु L के बाद X-अक्ष के समानांतर हो जाता है। रेखांचित्र में LT तरलता पाश की स्थिति है।

प्रश्न 7.
भारत में मुद्रा पूर्ति की वैकल्पिक परिभाषाएँ क्या हैं?
उत्तर:
मुद्रा पूर्ति से अभिप्राय किसी समय बिंदु पर सभी प्रकार की मुद्राओं (कागज़ी मुद्रा, सिक्के, बैंक जमा) के उपलब्ध स्टॉक से है। भारत में भारतीय रिज़र्व बैंक मुद्रा पूर्ति की वैकल्पिक परिभाषाएँ निम्नलिखित चार रूपों में प्रकाशित करता है जिनके नाम क्रमशः M1, M2, M3 और M4 हैं। ये सभी निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किए जा सकते हैं
(i) M1 – M1 मुद्रा पूर्ति मापन का यह सबसे संकुचित दृष्टिकोण है। इस मत के अनुसार मुद्रा पूर्ति की गणना निम्नलिखित प्रकार से की जाती है
M1 = C + DD + OD
जहाँ, C = जनता के पास धारित करेंसी।
DD = बैंकों के पास निवल माँग जमाएँ।
OD = भारतीय रिज़र्व बैंक के पास संगृहीत समस्त जमाएँ।।

(ii) M2 – M2 को भी मुद्रा पूर्ति मापन का संकुचित मत माना जाता है। इस मत के अनुसार मुद्रा पूर्ति की गणना निम्नलिखित प्रकार से की जाती है
M2 = M1 + डाकघर बचत बैंकों में बचत जमाएँ।

(iii) M3 – M3 मुद्रा पूर्ति का सबसे अधिक प्रयोग होने वाला मापक है। M3 को समाज के समग्र मौद्रिक संसाधनों का नाम दिया जाता है। इसकी गणना निम्नलिखित प्रकार से की जाती है-
M3 = M1 + बैंकों के पास जमा निवल सावधि जमाएँ।

(iv) M4 – M1 को सर्वाधिक विस्तृत मुद्रा (Broad Money) का माप माना जाता है। इसकी गणना निम्नलिखित प्रकार से की जाती है-
M4 = M1 + डाकघर बचत संगठनों के पास कुल जमाएँ। (राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्रों (NSCs) को छोड़कर) उपरोक्त रचनाएँ स्पष्ट दर्शाती हैं कि M1 और M2 संकुचित मुद्रा (Narrow Money) के माप हैं। जबकि M3 और M4 विस्तृत मुद्रा (Broad Money) के माप हैं। इनमें M3 के पूर्ति के माप के रूप में सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है। इसी को समाज के समग्र मौद्रिक संसाधनों (Aggregate Monetary Resources) का नाम दिया जाता है। भारतीय रिज़र्व बैंक मुद्रा पूर्ति .के उपरोक्त चार मानों का तरलता के स्तर (Degree of Utility) के आधार पर भी वर्गीकृत करता है। M4 सर्वाधिक तरल है जबकि M4 सबसे कम तरल है। तरलता का अर्थ है किसी परिसंपत्ति को (मूल्य में घाटा उठाए बिना) तुरंत नकदी में बदलने की क्षमता।

प्रश्न 8.
वैधानिक पत्र क्या है? कागज़ी मुद्रा क्या है?
उत्तर:
वैधानिक पत्र अथवा वैधानिक मुद्रा (Legal Tender) से अभिप्राय उस मुद्रा से है जिसे विधि (कानून) का समर्थन प्राप्त है और कोई भी व्यक्ति इसे अस्वीकार नहीं कर सकता। उदाहरण के लिए, भारतवर्ष में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए गए 100 रुपए के नोटों को लेने से कोई व्यक्ति मना नहीं कर सकता और अगर कोई ऐसा करता है तो वह दंड का भागी होगा।

प्रादिष्ट मुद्रा (Fiat Money) भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी करेंसी नोट और सिक्कों को कहते हैं। इसका सोने और चाँदी के सिक्कों की तरह कोई आंतरिक मूल्य नहीं होता और यह सरकार के आदेश पर प्रचलित होती है। इस मुद्रा को आवेश मुद्रा के नाम से भी जाना जाता है; जैसे भारत में मौद्रिक प्राधिकरण (Monetory Authority) द्वारा जारी कागज़ी मुद्रा।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

प्रश्न 9.
उच्च शक्तिशाली मुद्रा क्या है?
उत्तर:
उच्च शक्तिशाली मुद्रा (High Powered Money) से अभिप्राय देश के मौद्रिक प्राधिकरण द्वारा निर्गमित की गई मुद्रा से है। इसे मौद्रिक आधार के नाम से भी जाना जाता है। उच्च शक्तिशाली मुद्रा में करेंसी तथा व्यावसायिक बैंक और भारत सरकार द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक में रखी गई जमाएँ आती हैं। उदाहरण के लिए, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्गमित किए गए करेंसी नोट को उसके सामने प्रस्तुत करने पर उसे अंकित मूल्य की राशि के बराबर भुगतान करना पड़ता है।

प्रश्न 10.
व्यावसायिक बैंक के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
व्यावसायिक बैंक के कार्य निम्नलिखित हैं-
1. जमाओं की स्वीकृति-व्यावसायिक बैंक व्यक्तियों, व्यावसायिक फर्मों और अन्य संस्थाओं से निम्नलिखित रूपों में जमाएँ स्वीकार करते हैं

  • चालू जमा खाता
  • बचत जमा खाता
  • सावधि जमा।

2. ऋण देना-व्यावसायिक बैंक सामान्यतया निम्नलिखित रूपों में ऋण प्रदान करते हैं-

  • नकद साख
  • माँग उधार
  • अल्पावधि ऋण
  • अधिविकर्ष (ओवरड्राफ्ट)
  • हुंडियों (बिलों) की कटौती।

3. जमा राशियों का निवेश-व्यावसायिक बैंक अपने पास संगृहीत धनराशियों का सरकारी व अनुमोदित प्रतिभूतियों में भी निवेश करते हैं।

4. एजेंसी कार्य-व्यावसायिक बैंक निम्नलिखित एजेंसी कार्य भी करता है-

  • नकद कोषों का हस्तांतरण।
  • नकद संग्रहण।
  • ग्राहकों की ओर से अंशपत्रों व अन्य प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय।
  • ग्राहकों की ओर से अंशपत्रों पर लाभांश और ऋणपत्रों पर ब्याज वसूलना।
  • ग्राहकों के निर्देश पर उनके भुगतान करना।
  • वसीयतों (Wills) के न्यासी (Executor) एवं प्रबंधकर्ता (Trustee) का दायित्व निभाना।
  • ग्राहकों को आय कर से संबंधित परामर्श देना।
  • ग्राहकों की ओर से माल के आवागमन (Transportation) संबंधित प्रलेखों की व्यवस्था करना।

5. अन्य कार्य-व्यावसायिक बैंक निम्नलिखित कार्य भी करता है

  • विदेशी मुद्रा का क्रय-विक्रय।
  • पर्यटक तथा उपहार चैक जारी करना।
  • कीमती वस्तुओं को लॉकरों में संभालकर रखना।
  • प्रतिभूतियों की बिक्री की व्यवस्था करना।

प्रश्न 11.
मुद्रा गुणक क्या है? इसका मूल्य आप कैसे निर्धारित करेंगे? मुद्रा गुणक के मूल्य के निर्धारण में किन अनुपातों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है?
उत्तर:
मुद्रा गुणक (Money Multiplier) से अभिप्राय अर्थव्यवस्था में मुद्रा के स्टॉक और शक्तिशाली मुद्रा के स्टॉक के अनुपात से है। इसे निम्नलिखित सूत्र द्वारा निर्धारित किया जाता है
मुद्रा गुणक = \(\frac { M }{ H }\)
यहाँ, M= मुद्रा का स्टॉक
H = शक्तिशाली मुद्रा
चूँकि मुद्रा का स्टॉक सामान्यतया शक्तिशाली मुद्रा के मूल्य से अधिक होता है, इसलिए मुद्रा गुणक का मूल्य 1 से अधिक होता है।
मुद्रा गुणक के मूल्य के निर्धारण में निम्नलिखित अनुपातों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है-
1. करेंसी जमा अनुपात करेंसी जमा अनुपात का सूत्र निम्नलिखित है-
करेंसी जमा अनुपात = \(\frac { CU }{ DD }\)
यहाँ, CU = लोगों के पास रखी हुई करेंसी
DD = व्यावसायिक बैंक की कोष्ठ नकदी

2. रिज़र्व जमा अनुपात-रिज़र्व जमा अनुपात का सूत्र निम्नलिखित है-
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग 2

प्रश्न 12.
भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति के कौन-कौन से उपकरण हैं? बाह्य आघातों के विरुद्ध भारतीय रिजर्व बैंक किस प्रकार मद्रा की पर्ति को स्थिर करता है?
उत्तर:
भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति के उपकरण निम्नलिखित हैं-
1. सदस्य बैंकों के रिज़र्व अनुपात में परिवर्तन कानून के अंतर्गत सभी व्यावसायिक बैंकों को अपने माँग जमा दायित्व का एक न्यूनतम प्रतिशत भारतीय रिज़र्व बैंक के पास नकदी के रूप में जमा रखना होता है। इस अनुपात में वृद्धि करके बैंकों के नकदी साधनों को कम किया जा सकता है और बैंकों को अपने ऋण को कम करने पर मजबूर किया जा सकता है।

2. बैंक दर या कटौती दर में परिवर्तन भारतीय रिज़र्व बैंक (जैसे थोक ऋण के व्यापारी) जिस दर पर व्यावसायिक बैंकों (जैसे परचून में ऋण का व्यापार करने वालों) को उधार देते हैं, उसे कटौती दर या बैंक दर कहते हैं। सदस्य बैंक दो प्रकार से भारतीय रिज़र्व बैंक से ऋण ले सकते हैं आरक्षित प्रोमिसरी नोट (I.O.U) देकर या ड्राफ्ट, हुंडियाँ तथा ग्राहकों के आरक्षित प्रोमिसरी नोटों की पुनः कटौती करके। बैंकों को ऋण की आवश्यकता अपने घटते हुए रिज़र्व को पूरा करने के लिए होती है। कटौती की दर बढ़ाकर भारतीय रिज़र्व बैंक बैंकों द्वारा ऋण की लागत को प्रत्यक्ष रूप से तथा ब्याज की दर और ऋण की स्थिति को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर सकता है।

3. खली बाजार प्रक्रिया-खली बाजार प्रक्रिया से अभिप्राय भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय से है। इन प्रक्रियाओं से नकदी आरक्षण की मात्रा पर प्रभाव पड़ता है और अंततः कुल लागत तथा ऋण की उपलब्धता पर भी प्रभाव पड़ता है। सरकारी प्रतिभूतियों के बेचने से बैंकों के पास नकदी रिज़र्व प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही तरीकों से कम हो जाती है जिससे जमाराशि भी कई गुना कम हो जाती है।

4. बाह्य आघातों के विरुद्ध भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा मुद्रा पूर्ति का स्थिरीकरण-बाह्य आघातों (Exogeneous Shocks) के विरुद्ध भारतीय रिज़र्व बैंक स्थिरीकरण के द्वारा मुद्रा की पूर्ति को स्थिर करता है। स्थिरीकरण से अभिप्राय भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विदेशी विनिमय अंतःप्रवाह में वृद्धि के विरुद्ध मुद्रा की पूर्ति को स्थाई रखने के लिए किए गए हस्तक्षेप से है। स्थिरीकरण के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक विदेशी विनिमय की मात्रा के बराबर की मात्रा में सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री खुले बाज़ार में करता है जिससे अर्थव्यवस्था में कुल मुद्रा पूर्ति अपरिवर्तित रहती है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

प्रश्न 13.
क्या आप ऐसा मानते हैं कि अर्थव्यवस्था में व्यावसायिक बैंक ही ‘मुद्रा का निर्माण करते’ हैं?
उत्तर:
हाँ, हम ऐसा मानते हैं कि अर्थव्यवस्था में व्यावसायिक बैंक ही मुद्रा का निर्माण करते हैं। व्यावसायिक बैंकों का महत्त्वपूर्ण कार्य जमाओं के रूप में नकदी को स्वीकार करना है और अपने ग्राहकों को ऋण देना है। जब एक बैंक ऋण प्रदान करता है तो बैंक ऋणी को नकदी नहीं देता, बल्कि उनके खाते में उनके लिए दावे (Claims) और निक्षेप (Advance) उत्पन्न कर देता है। इस प्रकार एक बैंक अपनी जमा राशि की तुलना में कई गुना अधिक साख निर्माण करता है। व्यावसायिक बैंक सरकारी बंधपत्रों और प्रतिभूतियों के क्रय में निवेश करके भी मुद्रा निर्माण करता है।

प्रश्न 14.
भारतीय रिज़र्व बैंक की किस भूमिका को अंतिम ऋणदाता कहा जाता है?
उत्तर:
अंतिम ऋणदाता (Lender of the Last Resort) से अभिप्राय उस स्थिति से होता है जब व्यावसायिक बैंक को अन्य किसी स्रोत से ऋण प्राप्त नहीं होता, तो ऐसे समय में भारतीय रिज़र्व बैंक व्यावसायिक बिलों की पुनःकटौती करके अथवा प्रतिभूतियों की जमानत पर ऋण प्रदान करता है। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब व्यावसायिक बैंक को अपने ग्राहकों की नकद मुद्रा की माँग के भुगतान के लिए कभी-कभी अधिक मात्रा में मुद्रा की आवश्यकता पड़ती है। ऐसी स्थिति में जब व्यावसायिक बैंक अपने ग्राहकों की माँग की पूर्ति अपने साधनों से नहीं कर पाते तो वे भारतीय रिज़र्व बैंक से सहायता की माँग करते हैं तथा भारतीय रिजर्व बैंक अंतिम ऋणदाता के रूप में अनिवार्य रूप से उनकी सहायता करता है।

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा व्यावसायिक बैंकों को इस प्रकार की साख देने के लाभ इस प्रकार हैं

  • व्यावसायिक बैंक थोड़े से ही नकद कोषों के आधार पर अपना व्यवसाय चला सकते हैं।
  • संकटकाल में व्यावसायिक बैंकों को आर्थिक सहायता उपलब्ध हो जाने पर बैंक संकट का सफलतापूर्वक मुकाबला कर सकते हैं।
  • व्यावसायिक बैंक उद्योग और व्यापार की वित्त संबंधी महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।
  • इससे भारतीय रिज़र्व बैंक को देश की बैंकिंग व्यवस्था पर नियंत्रण स्थापित करने का अच्छा अवसर मिल जाता है। भारत में
  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) केंद्रीय बैंक के रूप में अंतिम ऋणदाता की भूमिका निभाता है।

मुद्रा और बैंकिंग HBSE 12th Class Economics Notes

→ वस्तु विनिमय प्रणाली-जब एक वस्तु का लेन-देन प्रत्यक्ष रूप में दूसरी वस्तु से होता है, तो उसे वस्तु विनिमय कहते हैं। दूसरे शब्दों में, वस्तु विनिमय प्रणाली उस प्रणाली को कहा जाता है जिसमें वस्तु का लेन-देन (विनिमय) वस्तु से या वस्तु का वस्तु से व्यापार किया जाता है। जो अर्थव्यवस्था वस्तु विनिमय प्रणाली पर आधारित होती है उसे वस्तु-वस्तु अर्थव्यवस्था (Commodity for Commodity Economy) कहा जाता है।

→ वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाइयाँ-

  • आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव
  • विनिमय की समान इकाई का अभाव
  • भावी भुगतान के मान का अभाव
  • मूल्य के संचय का अभाव।

→ मुद्रा के कार्य-

  • यह एक विनिमय का माध्यम है
  • मुद्रा मूल्य का माप है
  • यह स्थगित भुगतानों का माप है
  • यह मूल्य का संचय है
  • भावी भुगतान का मान है
  • यह मूल्य के हस्तांतरण आदि का कार्य भी करती है।

→ भारतीय मौद्रिक प्रणाली-भारतीय मौद्रिक प्रणाली, पत्र मुद्रा मान पर आधारित है।

→ करेंसी का जारी करना भारत में जारी करेंसी न्यूनतम सुरक्षित प्रणाली पर आधारित है। भारत में जारी करेंसी अपरिवर्तनशील (Inconvertible) है। निर्गमन अधिकारी इसे सोने या चाँदी में परिवर्तित नहीं करेगा।

→ मुद्रा की माँग केज के अनुसार मुद्रा की माँग से अभिप्राय लोगों द्वारा मुद्रा को अपने पास तरल (नकदी) के रूप में रखने की इच्छा से है। इसे ही उन्होंने तरलता अधिमान कहा है।

→ मुद्रा की पूर्ति मुद्रा की पूर्ति एक स्टॉक अवधारणा है। किसी समय बिंदु पर जनता के पास उपलब्ध मुद्रा का स्टॉक ही मुद्रा की पूर्ति कहलाता है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

→ मुद्रा की पूर्ति के माप-M1, M2, M3 तथा M4। भारत में RBI के अनुसार मुद्रा की पूर्ति के चार मापक हैं
M1 = जनता के पास करेंसी + माँग जमाएँ + रिज़र्व बैंक के पास अन्य जमाएँ।
M2 = M1 + डाकघर बचत बैंकों में जमा राशियाँ
M3 = M1 + व्यावसायिक बैंकों की निवल सावधि जमाएँ
M4 = M3 + डाकघर बचत संगठनों की कुल जमा राशियाँ

  • M1 मुद्रा पूर्ति का बहुत तरल किंतु बहुत कम विस्तृत मापक है।
  • M2 को मुद्रा पूर्ति के माप के रूप में सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है।
  • M4 मुद्रा पूर्ति का बहुत विस्तृत किंतु सबसे कम तरल मापक है।

→ बैंक का अर्थ बैंक ऐसी संस्था है जो लाभ प्राप्त करने के लिए मुद्रा व साख में लेन-देन करती है।

→ व्यावसायिक बैंक ये ऐसी वित्तीय संस्थाएँ हैं जो लोगों से जमाएँ स्वीकार करने तथा उन्हें ऋण देने का कार्य करती हैं।

→ व्यावसायिक बैंकों के प्राथमिक कार्य-

  • जमा स्वीकार करना
  • ऋण प्रदान करना
  • साख निर्माण।

→ व्यावसायिक बैंकों के गौण कार्य-

  • बैंकों के एजेंसी कार्य
  • बैंकों की सामान्य उपयोगिता संबंधी सेवाएँ।

→ साख निर्माण-बैंकों द्वारा उनकी प्राथमिक जमाओं के आधार पर गौण जमाओं के विस्तार को साख निर्माण कहते हैं। बैंक अपनी प्राथमिक जमा से अधिक रुपया उधार देकर साख का निर्माण करते हैं।

→ केंद्रीय बैंक केंद्रीय बैंक एक देश की समस्त बैंकिंग प्रणाली का सिरमौर बैंक है। रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) भारत का केंद्रीय बैंक है।

→ केंद्रीय बैंक के कार्य-

  • नोट जारी करने का एकाधिकार
  • सरकार का बैंकर
  • बैंकों का बैंक
  • अंतिम ऋणदाता
  • देश के विदेशी मुद्रा कोषों का संरक्षक
  • साख नियंत्रण
  • समाशोधन गृह का कार्य
  • आँकड़े इकट्ठे करना।

→ मौद्रिक नीति-मौद्रिक नीति से अभिप्राय किसी देश के केंद्रीय बैंक की उस नीति से है जिसका उपभोग अर्थव्यवस्था में मुद्रा तथा साख की पूर्ति के नियंत्रण के लिए किया जाता है।

→ भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति के उपकरण-RBI की मौद्रिक नीति के उपकरण हैं-

  • खुली बाज़ार कार्रवाई
  • बैंक दर नीति
  • आरक्षित आवश्यकताओं में अंतर तथा
  • भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा बाह्य आघातों के विरुद्ध स्थिरीकरण।

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HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

पाठयपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
उत्पादन के चार कारक कौन-कौन से हैं और इनमें से प्रत्येक के पारिश्रमिक को क्या कहते हैं?
उत्तर:
उत्पादन के चार कारक (साधन) और उनके पारिश्रमिक निम्नलिखित हैं।

उत्पादन के कारकपारिश्रमिक
(i) भूमि (भूपति)किराया
(ii) श्रम (श्रमिक)मज़दूरी
(iii) पूँजी (पूँजीपति)ब्याज
(iv) (उद्यमी/साहसी)लाभ

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 2.
किसी अर्थव्यवस्था में समस्त अंतिम व्यय समस्त कारक अदायगी के बराबर क्यों होता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था में समस्त अंतिम व्यय समस्त कारक अदायगी के बराबर होता है क्योंकि आय का वर्तुल (चक्रीय) प्रवाह होता है। अंतिम व्यय और कारक अदायगी दोनों ही एक सिक्के के दो पहलू हैं। प्रत्येक अर्थव्यवस्था में मुख्य रूप से दो बाज़ार होते हैं

  • उत्पादन बाज़ार
  • संसाधन बाजार।

परिवार फर्मों को संसाधनों (जैसे म, पूँजी, उद्यमी आदि) की आपूर्ति करते हैं और फर्मे परिवारों से ये संसाधन क्रय करती हैं और बदले में लगान/किराया, मज़दूरी, ब्याज, लाभ के रूप में कारक अदायगी करती हैं। परिवारों को जो आय प्राप्त होती है उससे वे अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए फर्मों से अंतिम वस्तुएँ और सेवाएँ क्रय करते हैं। इस प्रकार, अर्थव्यवस्था में उत्पादकों का व्यय लोगों की आय और लोगों का व्यय उत्पादकों की आय बनता है।

एक अर्थव्यवस्था के दो बाज़ारों में चक्रीय प्रवाह को हम निम्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 1

प्रश्न 3.
स्टॉक और प्रवाह में भेद स्पष्ट कीजिए। निवल निवेश और पूँजी में कौन स्टॉक है और कौन प्रवाह? हौज में पानी के प्रवाह से निवल निवेश और पूँजी की तुलना कीजिए।
उत्तर:
स्टॉक और प्रवाह चर में भेद का आधार समयावधि (Period of Time) या समय बिंदु पर किया जाने वाला माप है। प्रवाह-वे चर जो समय की एक निश्चित अवधि के संदर्भ में पाए जाते हैं, प्रवाह चर कहलाते हैं। समयावधि घंटे, दिन, सप्ताह, मास या वर्ष हो सकती है। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय आय एक प्रवाह चर है क्योंकि यह एक वर्ष में देश में उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के शुद्ध प्रभाव को दर्शाता है। प्रवाह चर के अन्य उदाहरण हैं-आय, व्यय, बचत, ब्याज, आयात-निर्यात, मूल्यह्रास, माल-सूची में परिवर्तन आदि क्योंकि इन सभी चरों का संबंध एक निश्चित समयावधि से होता है।

स्टॉक-वे चर जो समय के किसी निश्चित बिंदु (Point of Time) के संदर्भ में पाए जाते हैं, स्टॉक चर कहलाते हैं; जैसे-दिन मार्च, 2016, वीरवार आदि। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय पूँजी स्टॉक चर है जो बताती है कि किसी समय बिंदु री, 2016) पर देश में पूँजी (मशीनें, औजार, इमारतें, सड़कें, पुल, कच्चे माल) का कितना स्टॉक है। स्टॉक चर के अन्य उदाहरण हैं संपत्ति, विदेशी ऋण, माल सूची (Inventory) खाद्यान्न भंडार आदि।

स्टॉक और प्रवाह के अंतर को निम्नलिखित सारणी द्वारा व्यक्त किया गया है-

अंतर का आधारस्टॉकप्रवाह
1. मापस्टॉक एक समय बिंदु या निश्चित समय पर मापा जाने वाला चर है।प्रवाह वह चर है जो एक निश्चित समयावधि पर मापा जाता है।
2. समय-कालस्टॉक का समय-काल नहीं होता है।प्रवाह का समय-काल होता है।
3. प्रकृतिस्टॉक की प्रकृति स्थाई (अचल) है।प्रवाह की प्रकृति गत्यात्मक (चल) है।
4. उदाहरण(i) संपत्ति, (ii) दूरी, (iii) टैंक में जल, (iv) मुद्रा की मात्रा(i) आय, (ii) गति, (iii) नदी में जल, (iv) मुद्रा का व्यय

निवल निवेश प्रवाह है और पूँजी स्टॉक है क्योंकि निवल निवेश का संबंध एक समय-काल से है जबकि पूँजी एक निश्चित समय पर एक व्यक्ति की संपत्ति का भंडार बताती है। पूँजी एक हौज़ के समान है जबकि निवल निवेश उस हौज में बहता हुआ पानी है। बहते हुए पानी का संबंध एक समय-काल से है जबकि हौज में पानी का स्तर एक निश्चित समय पर मापा जाता है।

प्रश्न 4.
नियोजित और अनियोजित माल-सूची संचय में क्या अंतर है? किसी फर्म की माल-सूची और मूल्यवर्धित के बीच संबंध बताइए।
उत्तर:
नियोजित माल-सूची पूर्व निश्चित और नियोजित (प्रत्याशित) तरीके से होता है जबकि अनियोजित माल-सूची संचय अप्रत्याशित और अनियोजित (यथार्थ) होता है। उदाहरण के लिए, आदिनाथ टैक्सटाइल्स लि०, जो कपड़ा बनाती है, अपनी माल-सूची को 1 लाख से 2 लाख मीटर तक करना चाहती है। यह माल-सूची का नियोजित संचय है। कारण 50 हज़ार मीटर कपड़ा नहीं बिक पाता है, तो आदिनाथ टैक्सटाइल्स के पास इच्छित माल-सूची के संचय के अलावा 50 हज़ार मीटर कपड़ा और बढ़ जाएगा। यह माल-सूची में अनियोजित संचय होगा।
मूल्यवर्धित से हमारा अभिप्राय वस्तुओं और सेवाओं के वर्तमान प्रवाह में फर्म के निवल योगदान से है। इस प्रकार,
सकल मूल्यवर्धित = कुल उत्पादन – मध्यवर्ती उपभोग
वैकल्पिक रूप से,
सकल मूल्यवर्धित = बिक्री + माल-सूची में परिवर्तन – मध्यवर्ती उपभोग
माल-सूची में परिवर्तन मूल्यवर्धित की मात्रा को दर्शाता है। यदि एक वर्ष में माल-सूची में परिवर्तन धनात्मक हैं तो मूल्यवर्धित अधिक होगा, क्योंकि माल-सूची में धनात्मक परिवर्तन वर्ष में हुए उत्पादन अथवा मूल्यवर्धित का ही परिणाम है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 5.
तीनों विधियों से किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद की गणना करने की कोई तीन निष्पत्तियाँ लिखिए। संक्षेप में यह भी बताइए कि प्रत्येक विधि से सकल घरेलू उत्पाद का एक-सा मूल्य क्या आना चाहिए?
उत्तर:
सकल घरेलू उत्पाद के आकलन की तीन विधियाँ और उसकी निष्पत्तियाँ (Identities) अग्रलिखित हैं-

विधियाँनिष्पत्तियाँ
(i) उत्पाद अथवा मूल्यवर्धित विधिGDP = \(\sum_{i-1}^{\mathrm{N}} \mathrm{GV} \mathrm{A}{ }_{i}\)
(ii) आय विधिGDP = \(\sum_{i-1}^{\mathrm{N}} \mathrm{RV}_{i}\)
= W + P + I + R
(iii) व्यय विधिGDP = \(\sum_{i-1}^{N} \mathrm{GV} \mathrm{A}_{i}\)
= C + I + G + X – M

प्रत्येक अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय के चक्रीय (वर्तुल) प्रवाह के तीन चरण-उत्पाद, आय और व्यय एक-दूसरे के बराबर होते हैं। इसलिए तीनों विधियाँ घरेलू उत्पाद का एक जैसा मूल्य ही प्रदान करेंगी।

प्रश्न 6.
बजटीय घाटा और व्यापार घाटा को परिभाषित कीजिए। किसी विशेष वर्ष में किसी देश की कुल बचत के ऊपर निजी निवेश का आधिक्य 2000 करोड़ रुपए था। बजटीय घाटे की राशि 1500 करोड़ रुपए थी। उस देश के बजटीय घाटे का परिमाण क्या था?
उत्तर:
बजटीय घाटे से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें सरकार का कुल व्यय उसकी कुल प्राप्तियों से अधिक होता है। व्यापार घाटे से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें एक देश का आयात उसके निर्यात से अधिक होता है। अर्थात्
बजटीय घाटा = सरकारी व्यय – सरकारी प्राप्तियाँ
व्यापार घाटा = आयात – निर्यात
एक अर्थव्यवस्था में बजटीय घाटा और व्यापार घाटा एक-दूसरे से संबंधित हैं। इस प्रकार बजटीय घाटे से हम व्यापार घाटा निकाल सकते हैं।
व्यापार घाटा = आयात (M) – निर्यात (X)
व्यापार घाटा = निवेश (I) – बचत (S)
इस प्रकार,
M – X = (I – S) + G – T
= 2,000 + 1,500 = 3,500 करोड़ रुपए
व्यापार घाटा = 3,500 करोड़ रुपए

प्रश्न 7.
मान लीजिए कि किसी विशेष वर्ष में किसी देश का सकल घरेलू उत्पाद बाज़ार कीमत पर 1100 करोड़ रुपए था। विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय 100 करोड़ रुपए था। अप्रत्यक्ष कर मूल्य-उपदान का मूल्य 150 करोड़ रुपए और राष्ट्रीय आय 850 करोड़ रुपए है, तो मूल्यहास के समस्त मूल्य की गणना कीजिए।
हल:
बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद = 1,100 करोड़ रुपए
विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय = 100 करोड़ रुपए
शुद्ध अप्रत्यक्ष कर = 150 करोड़ रुपए
राष्ट्रीय आय = 850 करोड़ रुपए
राष्ट्रीय आय = बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद + विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर – मूल्यह्रास 850
= 1,100 + 100 – 150 – मूल्यह्रास
मूल्यह्रास = 1,100 + 100 – 150 – 850
= 1,200 – 1,000
= 200 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 8.
किसी देश विशेष में एक वर्ष में कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद 1900 करोड़ रुपए है। फर्मों/सरकार के द्वारा परिवार को अथवा परिवार के द्वारा सरकार/फर्मों को किसी भी प्रकार की ब्याज अदायगी नहीं की जाती है, परिवारों की वैयक्तिक प्रयोज्य आय 1200 करोड़ रुपए है। उनके द्वारा अदा किया गया वैयक्तिक आय कर 600 करोड़ रुपए है और फर्मों तथा सरकार द्वारा अर्जित आय का मूल्य 200 करोड़ रुपए है। सरकार और फर्मों द्वारा परिवार को की गई अंतरण अदायगी का मूल्य क्या है?
हल:
वैयक्तिक प्रयोज्य आय = कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद – अवितरित लाभ – वैयक्तिक आय कर + सरकार और फर्मों द्वारा परिवार को की गई अंतरण अदायगी
1,200 = 1,900-600-200 + अंतरण अदायगी
1,200 = 1,100 + अंतरण अदायगी
अंतरण अदायगी = 1,200-1,100
= 100 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 9.
निम्नलिखित आँकड़ों से वैयक्तिक आय और वैयक्तिक प्रयोज्य आय की गणना कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(a) कारक लागत पर निवल घरेलू उत्पाद8000
(b) विदेर्शों से प्राप्त निवल कारक आय200
(c) अवितरित लाभ1000
(d) निगम कर500
(e) परिवारों द्वारा प्राप्त ब्याज1500
(f) परिवारों द्वारा भुगतान किया गया ब्याज1200
(g) अंतरण आय300
(h) वैयक्तिक कर500

हल:
वैयक्तिक आय = कारक लागत पर निवल घरेलू उत्पाद + विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय – अवितरित लाभ + परिवारों द्वारा प्राप्त ब्याज + अंतरण आय – परिवारों द्वारा भुगतान किया गया ब्याज – निगम कर
= 8,000 + 200 – 1,000 + 1,500 + 300 – 1,200 – 500
= 10,000 – 2,700
वैयक्तिक आय = 7,300 करोड़ रुपए उत्तर
वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय – वैयक्तिक कर
= 7,300 – 500
= 6,800 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 10.
हजाम राजू एक दिन में बाल काटने पर 500 रुपए का संग्रह करता है। इस दिन उसके उपकरण में 50 रुपए का मूल्यहास होता है। इस 450 रुपए में से राजू 30 रुपए बिक्री कर अदा करता है। 200 रुपए घर ले जाता है और 220 रुपए उन्नति और नए उपकरणों का क्रय करने के लिए रखता है। वह अपनी आय में से 20 रुपए आय कर के रूप में अदा करता है। इन पूरी सूचनाओं के आधार पर निम्नलिखित में राजू का योगदान ज्ञात कीजिए-(a) सकल घरेलू उत्पाद (b) बाज़ार कीमत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद (c) कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद (a) वैयक्तिक आय (e) वैयक्तिक प्रयोज्य आय।
उत्तर:
(a) सकल घरेलू उत्पाद बाज़ार कीमत पर
= कुल प्राप्ति
= 500 रुपए उत्तर
सकल घरेलू उत्पाद कारक लागत पर = सकल घरेलू उत्पाद बाज़ार कीमत पर – अप्रत्यक्ष कर
= 500 – 30
= 470 रुपए उत्तर

(b) बाज़ार कीमत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद
= सकल घरेलू उत्पाद बाज़ार कीमत पर – मूल्यह्रास
= 500 – 50
= 450 रुपए उत्तर

(c) कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद
= बाज़ार कीमत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद – अप्रत्यक्ष कर
= 450 – 30
= 420 रुपए उत्तर

(d) वैयक्तिक आय
= कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद – अवितरित लाभ
= 420 – 220
= 200 रुपए उत्तर

(e) वैयक्तिक’प्रयोज्य आय
= वैयक्तिक आय – वैयक्तिक कर
= 200 – 20
= 180 रुपए उत्तर

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 11.
किसी वर्ष एक अर्थव्यवस्था में मौद्रिक सकल राष्ट्रीय उत्पाद का मूल्य 2500 करोड़ रुपए था। उसी वर्ष, उस देश के सकल राष्ट्रीय उत्पाद का मूल्य किसी आधार वर्ष की कीमत पर 3000 करोड़ रुपए था। प्रतिशत के रूप में वर्ष के सकल घरेलू उत्पाद अवस्फीतिक के मूल्य की गणना कीजिए। क्या आधार वर्ष और उल्लेखनीय वर्ष के बीच कीमत स्तर में वृद्धि हुई?
हल:
सकल घरेलू उत्पाद अवस्फीतिक (GDP Deflator) का मूल्य-
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 2
चूंकि सकल घरेलू उत्पाद अवस्फीतिक का मान 100% से कम है तो इसका अभिप्राय यह है कि कीमत स्तर में कोई वृद्धि नहीं हुई है, बल्कि कीमत स्तर में गिरावट आई है।

प्रश्न 12.
किसी देश के कल्याण के निर्देशांक के रूप में सकल घरेलू उत्पाद की कुछ सीमाओं को लिखो।
उत्तर:
किसी देश के कल्याण के निर्देशांक के रूप में सकल घरेलू उत्पाद की सीमाएँ निम्नलिखित हैं
1. GDP की संरचना-यदि GDP में वृद्धि युद्ध सामग्री (टैंक, बम, अस्त्र-शस्त्र आदि) के उत्पादन में वृद्धि के कारण है या जैसे मशीनरी, उपस्कर आदि के उत्पादन में वृद्धि के फलस्वरूप है तो इससे आर्थिक कल्याण में वृद्धि नहीं होगी।

2. कीमतों में वृद्धि-यदि GDP में वृद्धि केवल कीमतों में वृद्धि के फलस्वरूप हुई है तो यह आर्थिक कल्याण का सूचक (या मापक) नहीं होगा।

3. जनसंख्या वृद्धि की दर-यदि जनसंख्या में वृद्धि की दर GDP वृद्धि की दर से अधिक है तो प्रति व्यक्ति वस्तुओं व सेवाओं की उपलब्धि और आर्थिक कल्याण कम हो जाएगा।

4. बाह्य कारण इससे तात्पर्य व्यक्ति या फर्म द्वारा की गई क्रियाओं से है जिनका बुरा (या अच्छा) प्रभाव दूसरों पर पड़ता है लेकिन इसके दोषी दंडित नहीं होते। उदाहरण के लिए कारखानों द्वारा छोड़े गए धुएँ से पर्यावरण का दूषित होना, तेलशोधक कारखानों के गंदे तरल पदार्थों का तटवर्ती नदी में बहना और जल प्रदूषित करना। इन हानिकारक प्रभावों का GDP में मूल्यांकन नहीं किया जाता।

5. GDP (या राष्ट्रीय आय) का वितरण-मात्र GDP में वृद्धि आर्थिक कल्याण में वृद्धि प्रकट नहीं कर सकती क्योंकि इसके वितरण से अमीर अधिक अमीर और गरीब अधिक गरीब हो गए हैं। GDP में वृद्धि आर्थिक कल्याण का सूचक तभी बन पाएगी जब गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों की संख्या में निरंतर कमी हो।

6. GDP में कई वस्तुओं व सेवाओं का शामिल न होना-GDP में आर्थिक कल्याण बढ़ाने वाली विशेष रूप से गैर-बाज़ारी सौदों (Non-market Transactions) को शामिल नहीं किया जाता; जैसे गृहिणी की सेवाएँ, घरेलू बगीचे में सब्जियाँ उगाना, अध्यापक द्वारा अपने बेटे को पढ़ाना आदि।

राष्ट्रीय आय का लेखांकन HBSE 12th Class Economics Notes

→ प्रवाह-प्रवाह (Flow) से अभिप्राय ऐसे आर्थिक चरों (आय, उपभोग, बचत आदि) से है जिनका संबंध एक समयावधि (Time Period); जैसे प्रति सप्ताह, प्रतिमास, प्रतिवर्ष से होता है। आय एक प्रवाह धारणा है चूँकि यह प्रतिमास या प्रतिवर्ष समयावधि के रूप में मापी जाती है।

→ स्टॉक-स्टॉक (Stock) से अभिप्राय ऐसे आर्थिक चरों (राष्ट्रीय पूँजी, संपत्ति, देश की जनसंख्या, विदेशी ऋण, माल-सूची, खाद्यान्न भंडार आदि) से है जिनका संबंध समय के एक निश्चित बिंदु से है।

→ आय का चक्रीय प्रवाह-आय/उत्पाद के चक्रीय (Circular Flow of Income) प्रवाह से अभिप्राय यह है कि अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में वस्तुओं और सेवाओं तथा मुद्रा का प्रवाहित होना। प्रत्येक प्रवाह से ज्ञात होता है कि एक क्षेत्र दूसरे क्षेत्र पर कैसे निर्भर करता है।

→ आय के चक्रीय प्रवाह के दो मूल सिद्धांत-

  • विनिमय की किसी प्रक्रिया में उत्पादक-विक्रेता को मिली राशियाँ उतनी ही होती हैं जितनी उपभोक्ता-क्रेता खर्च करता है
  • वस्तुओं और सेवाओं का प्रवाह एक दिशा में और मुद्रा का प्रवाह दूसरी दिशा में होता है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

→ अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रक-चक्रीय प्रवाह की दृष्टि से एक अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रक हैं-

  • गृहस्थ परिवार क्षेत्रक
  • उत्पादक क्षेत्रक
  • मुद्रा बाज़ार
  • सरकारी क्षेत्रक
  • शेष विश्व क्षेत्रक अथवा बाह्य क्षेत्रक।

→ दो क्षेत्रीय मॉडल-दो क्षेत्रीय मॉडल में अर्थव्यवस्था के दो क्षेत्रों-(i) परिवार क्षेत्र और (ii) उत्पादक क्षेत्र के बीच में होने वाली आय के चक्रीय प्रवाह का अध्ययन किया जाता है।

→ तीन क्षेत्रीय मॉडल-तीन क्षेत्रीय मॉडल में अर्थव्यवस्था के तीन क्षेत्रों (i) परिवार क्षेत्र, (ii) उत्पादक क्षेत्र और (iii) सरकारी क्षेत्र के बीच होने वाले आय के चक्रीय प्रवाह का अध्ययन किया जाता है।

→ चार क्षेत्रीय मॉडल-चार क्षेत्रीय मॉडल में अर्थव्यवस्था के चार क्षेत्रों-(i) परिवार क्षेत्र. (ii) उत्पादक क्षेत्र. (iii) सरकारी क्षेत्र और (iv) शेष विश्व क्षेत्र के बीच होने वाले आय के चक्रीय प्रवाह का अध्ययन किया जाता है।

→ चक्रीय प्रवाह के भरण-उपभोग, निवेश, निर्यात तथा सरकारी व्यय चक्रीय प्रवाह के महत्त्वपूर्ण भरण हैं। इन चरों में होने वाली वृद्धि अर्थव्यवस्था की आर्थिक क्रियाओं के स्तर में वृद्धि करती है।

→ चक्रीय प्रवाह के क्षरण-बचत, कर और आयात चक्रीय प्रवाह के मुख्य क्षरण हैं। इन चरों में होने वाली वृद्धि अर्थव्यवस्था की आर्थिक क्रियाओं के स्तर को कम कर देती है।

→ बंद अर्थव्यवस्था-ऐसी अर्थव्यवस्था जिसका शेष विश्व से कोई संबंध न हो, बंद अर्थव्यवस्था (Closed Economy) कहलाती है। यह एक अवास्तविक अवधारणा है।

→ खुली अर्थव्यवस्था-ऐसी अर्थव्यवस्था जिसका शेष विश्व से संबंध होता है, खुली अर्थव्यवस्था (Open Economy) कहलाती है। यह एक वास्तविक अवधारणा है। आयात आय के चक्रीय प्रवाह में छिद्र अथवा क्षरण का काम करते हैं तथा निर्यात भरण अथवा समावेश का कार्य करते हैं।

→ राष्ट्रीय आय लेखांकन-राष्ट्रीय आय लेखांकन राष्ट्रीय आय, उत्पाद तथा व्यय के संबंध का संख्यात्मक विवरण प्रस्तुत करने की विधि है।

→ पूँजीगत हस्तांतरण-ऐसे भुगतान देने वाले की संपत्ति और बचत से दिए जाते हैं तथा प्राप्तकर्ता की संपत्ति या बचत में जोड़ दिए जाते हैं। ये हस्तांतरण भुगतान पूँजी निर्माण के लिए दिए जाते हैं; जैसे सरकार द्वारा गृहस्थों को मकानों की क्षति के लिए मुआवजा और उद्यमों को निवेश अनुदान, दो देशों के बीच आर्थिक सहायता आदि।

→ पँजी उपभोग या मल्यहास-उत्पादन प्रक्रिया में जब पुँजीगत वस्तओं को बार-बार प्रयोग में लिया जाता है तो उसे सामान्य-फट और घिसावट के रूप में जाना जाता है। उत्पादक उत्पादन प्रक्रिया को लगातार चलाए रखने के लिए एक घिसावट कोष (Depreciation Fund) की स्थापना करता है।

→ विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय किसी देश के सामान्य निवासी विदेशों से जो कारक आय कमाते हैं तथा गैर-निवासी उस देश से जो कारक आय प्राप्त करते हैं, उसके अंतर को विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय (Net Factor Income Earned From Abroad-NFIA) कहते हैं।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

→ निवल अप्रत्यक्ष कर-निवल अप्रत्यक्ष कर (Net Indirect Taxes) अप्रत्यक्ष करों और आर्थिक सहायता (अनुदानों) का अंतर होता है अर्थात्
निवल अप्रत्यक्ष कर = अप्रत्यक्ष कर – आर्थिक सहायता

→ बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद-सकल घरेलू उत्पाद एक लेखा वर्ष में एक देश की घरेलू सीमा में सभी उत्पादकों द्वारा उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के बाज़ार मूल्य का जोड़ है।

→ बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद-यह किसी अर्थव्यवस्था की घरेलू सीमा में किसी देश के सामान्य निवासियों द्वारा उत्पादित अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं के बाज़ार मूल्य तथा विदेशों से निवल कारक आय का जोड़ है।

→ बाज़ार कीमत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद बाज़ार कीमत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद किसी अर्थव्यवस्था की घरेलू सीमा में एक लेखा वर्ष में सामान्य निवासियों द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के बाज़ार मूल्य और मूल्यह्रास के अंतर तथा विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय का जोड़ है।

→ बाज़ार कीमत पर निवल घरेलू उत्पाद यह एक देश की घरेलू सीमा में सामान्य निवासियों तथा गैर-निवासियों द्वारा एक लेखा वर्ष में उत्पादित अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं के बाज़ार मूल्य तथा मूल्यह्रास का अंतर है।

→ कारक लागत पर निवल घरेलू उत्पाद कारक लागत पर निवल घरेलू उत्पाद एक देश की घरेलू सीमा में भी सभी उत्पादकों द्वारा एक लेखा वर्ष में कारक लागत पर की गई निवल मूल्यवृद्धि है।

→ कारक लागत पर सकल घरेलू उत्पाद-यह एक लेखा वर्ष में किसी देश की घरेलू सीमा में सभी उत्पादकों द्वारा कारक लागत पर निवल मूल्यवृद्धि और अचल पूँजी के उपभोग के मूल्य का जोड़ है।

→ कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय आय-राष्ट्रीय आय एक देश के सामान्य निवासियों द्वारा देश की घरेलू सीमा तथा शेष विश्व से एक वर्ष में मजदूरी लगान, ब्याज और लाभ के रूप में अर्जित कारक आय के जोड़ से है तथा इसमें विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय सम्मिलित है।

→ आधार वर्ष-एक ऐसा वर्ष जिसमें कीमतें प्रायः स्थिर रही हों और कोई असाधारण घटनाएँ न हुई हों।

→ वैयक्तिक आय–वैयक्तिक आय व्यक्तियों द्वारा सभी स्रोतों से वास्तव में प्राप्त कारक आय तथा वर्तमान हस्तांतरण भुगतान का जोड़ है। वैयक्तिक प्रयोज्य आय-वैयक्तिक प्रयोज्य आय वह आय है जो परिवारों को सभी स्रोतों से वास्तव में प्राप्त होती है तथा उनके पास सरकार द्वारा उनकी आय तथा संपत्तियों पर लगाए गए सभी प्रकार के करों का भुगतान करने के बाद बचती है।

→ राष्ट्रीय आय को मापने की प्रमुख विधियाँ-

  • आय विधि (Income Method)
  • उत्पाद अथवा मूल्यवृद्धि विधि (Product or Value Added Method)
  • व्यय विधि (Expenditure Method)।

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HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

पाठयपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
व्यष्टि अर्थशास्त्र और समष्टि अर्थशास्त्र में क्या अंतर है?
उत्तर:
व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics) और समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics) में अग्रलिखित अंतर हैं-

व्यष्टि अर्थशास्त्रसमष्टि अर्थशास्त्र
1. इसमें व्यक्तिगत इकाई के आर्थिक व्यवहार का अध्ययन किया जाता है; जैसे एक उपभोक्ता, एक फर्म (उत्पादक) आदि।1. इसमें बड़े आर्थिक समूहों का अध्ययन व अंतर्संबंधों का विश्लेषण किया जाता है; जैसे समग्र माँग, समग्र पूर्ति, राष्ट्रीय आय।
2. यह अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार की मान्यता पर आधारित है।2. यह अर्थव्यवस्था में संसाधनों के अपूर्ण व अल्प रोज़गार पर आधारित है।
3. इसकी मुख्य समस्या कीमत निर्धारण है, इसलिए इसे ‘कीमत सिद्धांत’ भी कहा जाता है।3. इसकी मुख्य समस्या आय व रोज़गार का निर्धारण है। इसलिए इसे ‘आय व रोज़गार का सिद्धांत’ भी कहते हैं।
4. इसका उद्देश्य संसाधनों के सर्वोत्तम आबंटन से होता है।4. इसका उद्देश्य संसाधनों के पूर्ण रोज़गार व विकास से होता है।
5. इसमें ‘अन्य बातें पूर्ववत रहें’ की मान्यता के अनुसार सिद्धांत बनाए जाते हैं। अध्ययन को केवल महत्त्वपूर्ण तत्त्वों तक सीमित रखने के कारण इसे आंशिक संतुलन विधि कहा जाता है।5. इसमें ‘अन्य बातें पूर्ववत रहें’ जैसी कोई मान्यता तो नहीं है परंतु आर्थिक तत्त्वों के सभी समूहों की परस्पर निर्भरता जानने के कारण इसे सामान्य संतुलन विधि कहा जाता है।
6. इसमें कीमत आर्थिक समस्याओं का प्रमुख निर्धारक तत्त्व है।6. इसमें आय आर्थिक समस्याओं का प्रमुख निर्धारक तत्त्व है।

प्रश्न 2.
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था से अभिप्राय ऐसी अर्थव्यवस्था से है जिसमें आर्थिक क्रियाकलापों से संबंधित निम्नलिखित (विशेषताएँ) लक्षण पाए जाते हैं-

  1. उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व होता है।
  2. बाज़ार में निर्गत को बेचने के लिए ही उत्पादन किया जाता है।
  3. श्रमिकों की सेवाओं का क्रय-विक्रय एक निश्चित कीमत पर होता है, जिसे मज़दूरी की दर कहते हैं।
  4. पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में सभी आर्थिक क्रियाओं का मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक कल्याण न होकर निजी लाभ होता है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

प्रश्न 3.
समष्टि अर्थशास्त्र की दृष्टि से अर्थव्यवस्था के चार प्रमुख क्षेत्रकों का वर्णन करें।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र की दृष्टि से अर्थव्यवस्था के निम्नलिखित चार प्रमुख क्षेत्रक हैं-
1. पारिवारिक क्षेत्रक-परिवार से अभिप्राय एकल व्यक्तिगत उपभोक्ता अथवा कई व्यक्तियों के समूह से है जो अपने उपभोग संबंधित निर्णय अकेले अथवा संयुक्त रूप से लेते हैं। परिवार बचत भी करते हैं और सरकार को कर (Tax) का भुगतान भी करते हैं।

2. व्यापारिक क्षेत्रक-व्यापारिक क्षेत्र से अभिप्राय उत्पादन इकाइयों अथवा फर्मों से है। किसी फर्म के कारोबार के संचालन का दायित्व उद्यमियों पर होता है। उद्यमी ही श्रम, भूमि तथा पूँजी जैसे उत्पादन कारकों को नियोजित कर उत्पादन प्रक्रिया का संचालन करता है। उनका उद्देश्य वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन कर (जिसे निर्गत कहा जाता है) बाज़ार में लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से बेचना है। इस प्रक्रिया में उसे जोखिम एवं अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है।

3. सरकार-अर्थव्यवस्था में सरकार भी अनेक उत्पादन कार्य करती है। कर लगाने और सार्वजनिक आधारभूत संरचना के निर्माण पर व्यय करने के अतिरिक्त स्कूल, कॉलेज भी चलाए जाते हैं और स्वास्थ्य सेवाएँ भी प्रदान की जाती हैं।

4. बाह्य क्षेत्रक-विश्व के अन्य देशों से व्यापार करना, आयात-निर्यात करना अथवा विभिन्न देशों के बीच पूँजी प्रवाह होना।

प्रश्न 4.
1929 की महामंदी का वर्णन करें।
उत्तर:
विश्व में 1930 से पहले परंपरावादी अर्थशास्त्रियों (Classical Economists) की विचारधारा प्रचलित व मान्य थी कि “पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में सदा पूर्ण रोजगार की स्थिति पाई जाती है।” परंत 1929-33 की Depression) की घटना ने परंपरावादी मान्यता को चूर-चूर कर दिया। मंदी के कारण अमरीका औ आय व रोज़गार में भारी गिरावट आई। इसका प्रभाव दुनिया के अन्य देशों पर भी पड़ा। बाज़ार में वस्तुओं की माँग कम थी और कई कारखाने बेकार पड़े थे। श्रमिकों को काम से निकाल दिया गया था। संयुक्त राज्य अमरीका में 1929 से 1933 तक बेरोजगारी की दर 3 प्रतिशत से बढ़कर 25 प्रतिशत हो गई थीं। इस अवधि के दौरान अमरीका में समस्त उत्पादन में 33 प्रतिशत की गिरावट आई।

परंपरावादी अर्थशास्त्री उत्पादन, आय व रोज़गार में आई इस भारी गिरावट का जवाब नहीं दे सकें। मंदी की ऐसी गंभीर स्थिति ने अर्थशास्त्रियों को व्यष्टि की बजाय समष्टि स्तर पर सोचने को मजबूर कर दिया। तभी सन् 1936 ई० में इंग्लैंड के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जे०एम०केञ्ज ने अपनी पुस्तक ‘रोज़गार, ब्याज और मुद्रा का सामान्य सिद्धांत’ (The General Theory of Employment, Interest and Money) प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने परंपरावादी सिद्धांत की आलोचना करते हुए एक नया वैकल्पिक सिद्धांत प्रतिपादित किया, जिसे केज का सिद्धांत या समष्टि सिद्धांत कहते हैं। इस पुस्तक के प्रकाशन के बाद आर्थिक चिंतन में भारी क्रांति आई, जिसे केजीयन (Keynesian) क्रांति कहते हैं। केज के सिद्धांत को आधुनिक समष्टि स्तर पर चिंतन का आरंभिक बिंदु माना जाता है।

समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय HBSE 12th Class Economics Notes

→ समष्टि अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्र में संपूर्ण अर्थव्यवस्था का अध्ययन किया जाता है। इसमें हम समस्त माँग, समस्त पूर्ति, कुल उपभोग, कुल बचत, कुल निवेश, कुल आय अथवा राष्ट्रीय आय, कुल रोज़गार, सामान्य कीमत स्तर आदि तत्त्वों का अध्ययन करते हैं।

→ समष्टि अर्थशास्त्र का उद्भव (प्रादुर्भाव)-समष्टि अर्थशास्त्र का उद्भव 1930 के दशक में 1929-33 की विश्वव्यापी महामंदी के कटु अनुभव के उपरांत हुआ जब पूर्ण रोज़गार की स्थिति को स्वतः ही बनाए रखने के लिए परंपरावादी अर्थशास्त्रियों द्वारा सुझाए गए समाधान असफल सिद्ध हुए। केजीयन विचारधारा का विकास भी इसी समय हुआ।

→ समष्टिगत आर्थिक चर-समष्टि अर्थशास्त्र में संपूर्ण अर्थव्यवस्था के बड़े भागों और औसतों का अध्ययन किया जाता है; जैसे समस्त माँग, समस्त पूर्ति, कुल उपभोग, कुल बचत, कुल निवेश, सामान्य कीमत स्तर, सकल राष्ट्रीय उत्पाद तथा आय।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र : एक परिचय

→ व्यष्टि और समष्टि अर्थशास्त्र परस्पर प्रतियोगी नहीं बल्कि पूरक हैं व्यष्टि और समष्टि अर्थशास्त्र एक-दूसरे के प्रतियोगी न होकर पूरक हैं। एक का ज्ञान दूसरे के अध्ययन के लिए जरूरी है। अनेक बार व्यष्टिगत आर्थिक विश्लेषण के लिए समष्टिगत आर्थिक विश्लेषण पर निर्भर रहना पड़ता है। उदाहरण के लिए, व्यक्तिगत आय कुल राष्ट्रीय आय पर निर्भर करती है, जबकि कुल राष्ट्रीय आय व्यक्तियों, परिवारों, फर्मों और उद्योगों की आय का जोड़ होती है।

→ समष्टि आर्थिक विरोधाभास-समष्टि आर्थिक विरोधाभास से अभिप्राय है कि जो बात व्यक्तिगत स्तर पर सही है, आवश्यक नहीं है कि वह समष्टिगत स्तर पर भी सही हो।

→ केजीयन विचारधारा केजीयन विचारधारा पूर्ण रोज़गार की स्थिति को अर्थव्यवस्था की सामान्य स्थिति नहीं मानती। इसके अनुसार बेरोज़गारी और मंदी जैसी समस्याओं के समाधान के लिए सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है।

→ परंपरावादी विचारधारा-परंपरावादी विचारधारा स्वतंत्र पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार की स्थिति को एक सामान्य स्थिति मानती है, जोकि अर्थव्यवस्था में स्वचालित (स्वयंमेव) सामंजस्य के परिणामस्वरूप स्वतः ही बनी रहती है।

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