Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण
पाठयपुस्तक के प्रश्न
प्रश्न 1.
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति किसे कहते हैं? यह किस प्रकार सीमांत बचत प्रवृत्ति से संबंधित है?
उत्तर:
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति-आय में परिवर्तन के कारण उपभोग में परिवर्तन के अनुपात को सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) कहते हैं। यह बढ़ी हुई आय का वह भाग है जो उपभोग पर खर्च किया जाता है। उपभोग में परिवर्तन (AC) को आय में परिवर्तन (AY) से भाग करके MPC को ज्ञात किया जाता है। सूत्र के रूप में-
MPC = ∆C/∆Y
यहाँ, ∆C = उपभोग में परिवर्तन, ∆Y = आय में परिवर्तन।
सीमांत बचत प्रवृत्ति-आय में परिवर्तन के कारण बचत में परिवर्तन के अनुपात को सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) कहते हैं। यह बढ़ी हुई आय का वह भाग या अनुपात (Proportion) है जो उस बढ़ी हुई आय से बचाई गई है। बचत में परिवर्तन (∆S) को आय में परिवर्तन (∆Y) से भाग करके MPS को ज्ञात किया जा सकता है। सूत्र के रूप में-
MPS = \(\frac { ∆S }{ ∆Y }\)
यहाँ, ∆S = बचत में परिवर्तन, ∆Y = आय में परिवर्तन।
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति और सीमांत बचत प्रवृत्ति का योग (1) इकाई के बराबर होता है। इस प्रकार,
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति + सीमांत बचत प्रवृत्ति = 1 अर्थात्
MPC + MPS = 1
प्रश्न 2.
प्रत्याशित निवेश और यथार्थ निवेश में क्या अंतर है?
उत्तर:
प्रत्याशित अथवा इच्छित (नियोजित) निवेश वह निवेश है जो निवेशकर्ता किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आय तथा रोज़गार के विभिन्न स्तरों पर करने की इच्छा रखते हैं।
यथार्थ अथवा वास्तविक निवेश वह निवेश है जो निवेशकर्ता किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आय तथा रोज़गार के विभिन्न स्तरों पर वास्तव में करते हैं।
उदाहरण – मान लीजिए कि एक उत्पादक वर्ष के अंत तक अपने भंडार में, 100 रुपए के मूल्य की वस्तु जोड़ने की योजना बनाता है। अतः उस वर्ष में उसका प्रत्याशित (नियोजित) निवेश 100 रुपए है। किंतु बाज़ार में उसकी वस्तुओं की माँग में अप्रत्याशित वृद्धि होने के कारण उसकी विक्रय मात्रा में उस परिमाण से अधिक वृद्धि होती है, जितना कि उसने बेचने की योजना बनाई थी। इस अतिरिक्त माँग की पूर्ति के लिए उसे अपने भंडार से 30 रुपए के मूल्य की वस्तु बेचनी पड़ती है। अतः वर्ष के अंत में उसकी माल-सूची (Inventory) में केवल 100-30 रुपए = 70 रुपए की वृद्धि होती है। इस प्रकार, उसका प्रत्याशित (नियोजित) निवेश 100 रुपए है, जबकि उसका यथार्थ निवेश केवल 70 रुपए है।
प्रश्न 3.
‘किसी रेखा में पैरामेट्रिक शिफ्ट’ से आप क्या समझते हैं? रेखा में किस प्रकार शिफ्ट होता है जब इसकी (i) ढाल घटती है और (it) इसके अंतःखंड में वृद्धि होती है?
उत्तर:
किसी रेखा में पैरामेट्रिक शिफ्ट से अभिप्राय एक पैरामीटर (प्राचल) के मूल्य में परिवर्तन के कारण आलेख (ग्राफ) में शिफ्ट से होता है। इकाइयाँ है और m ग्राफ के पैरामीटर होते हैं। ये पैरामीटर परिवतों के समान प्रकट नहीं होतें, बल्कि आलेख (ग्राफ) की स्थिति को नियमित करने के लिए पृष्ठभूमि में कार्य करते हैं।
(i) जब रेखा की ढाल घटती है तो रेखा नीचे की ओर शिफ्ट होती है। इसे हम निम्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
निम्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि b = a+2 प्रारंभिक रेखा है। जब रेखा की ढाल घटती है तो यह रेखा b = 0.5a+2 में शिफ्ट हो जाती है। इसे इस रेखाचित्र का पैरामेट्रिक शिफ्ट कहते हैं।
(ii) जब रेखा के अंतःखंड में वृद्धि होती है, तो सरल रेखा ऊपर की ओर समानांतर रूप से शिफ्ट होगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि b = 0.5a +2 प्रारंभिक रेखा है। जब अंतःखंड (Intercept) में 2 से 3 तक वृद्धि होती है तो यह रेखा b = 0.5a + 3 रेखा के रूप में ऊपर की ओर समानांतर शिफ्ट हो जाती है। इसी तरह यदि अंतःखंड (Intercept) में 2 से 1 तक कमी होती है, तो यह रेखा b= 0.5a + 1 रेखा के रूप में नीचे की ओर समानांतर रूप में शिफ्ट हो सकती है।
प्रश्न 4.
‘प्रभावी माँग’ क्या है? जब अंतिम वस्तुओं की कीमत और व्याज की दर दी हुई हो, तब आप स्वायत्त व्यय गुणक कैसे प्राप्त करेंगे?
उत्तर:
प्रभावी माँग से अभिप्राय समस्त माँग के उस बिंदु से है जहाँ यह सामूहिक पूर्ति के बराबर होती है। प्रभावी माँग अर्थव्यवस्था की माँग का वह स्तर है जो समस्त पूर्ति से पूर्णतया संतुष्ट होता है और इसलिए इसमें उत्पादकों द्वारा उत्पादन बढ़ाने या घटाने की कोई प्रवृत्ति नहीं पाई जाती। अन्य शब्दों में, समग्र माँग का वह स्तर जो पूर्ण संतुलन उपलब्ध कराता है, प्रभावी माँग कहलाता है। वैकल्पिक रूप में, संतुलन के बिंदु पर समग्र माँग को प्रभावी माँग कहते हैं, क्योंकि राष्ट्रीय आय के निर्धारण में यह प्रभावी होती है। केज के अनुसार, “आय का साम्य (संतुलन) स्तर उस बिंदु पर निर्धारित होता है, जहाँ समग्र माँग, समग्र पूर्ति के बराबर होती है।”
जब अंतिम वस्तुओं की कीमत और ब्याज की दर दी हुई हो तो स्वायत्त व्यय गुणक (Autonomous ExpenditureMultiplier) की गणना निम्नलिखित प्रकार से की जाएगी-
प्रश्न 5.
जब स्वायत्त निवेश और उपभोग व्यय (A) 50 करोड़ रुपए हो और सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) 0.2 तथा आय का स्तर (Y) 4,000.00 करोड़ रुपए हो, तो प्रत्याशित समस्त माँग ज्ञात करें। यह भी बताएँ कि अर्थव्यवस्था संतुलन में है या नहीं (कारण भी बताएँ)।
उत्तर:
आय का स्तर (Y) = 4,000.00 करोड़ रुपए
स्वायत्त निवेश और उपभोग व्यय (A) = 50 करोड़ रुपए
सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) = 0.2
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 1 – 0.2 = 0.8 (∵ MPC = 1 – MPS)
Y = \(\overline{\mathrm{A}}\) + C.Y
= 50 + 0.8 x 4,000 (∵C = MPC)
= 50 + 3,200
= 3,250 करोड़ रुपए
प्रत्याशित समस्त माँग = 3,250 करोड़ रुपए
चूँकि वर्तमान आय का स्तर 4,000 करोड़ रुपए है जो प्रत्याशित समस्त माँग से 750 करोड़ रुपए अधिक है, तो यह स्थिति अधिपूर्ति की होगी। इसलिए अर्थव्यवस्था संतुलन में नहीं है।
प्रश्न 6.
मितव्ययिता के विरोधाभास की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मितव्ययिता के विरोधाभास से अभिप्राय यह है कि यदि अर्थव्यवस्था के सभी लोग अपनी आय से बचत के अनुपात को बढ़ा दें (अर्थात् यदि अर्थव्यवस्था की बचत की सीमांत प्रवृत्ति में वृद्धि होती है) तो अर्थव्यवस्था में बचत के कुल मूल्य में वृद्धि नहीं होगी। इसका कारण यह है कि सीमांत बचत प्रवृत्ति के बढ़ने से सीमांत उपभोग प्रवृत्ति कम हो जाती है और निवेश गुणक भी मैं कम हो जाता है। फलस्वरूप आय में वृद्धि की दर भी कम हो जाती है। इस प्रकार बचत बढ़ाने से कुल बचत का बढ़ना आवश्यक नहीं है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि सीमांत उपभोग प्रवृत्ति के कम होने से समस्त माँग वक्र AD1 नीचे की ओर शिफ्ट होकर AD2 हो जाता है। फलस्वरूप राष्ट्रीय आय भी घटकर OY1 से OY2 हो जाती है, जिससे बचत फिर कम हो जाएगी। इस प्रकार बचत में वृद्धि नहीं हो सकेगी। राष्ट्रीय आय के घटने पर और सीमांत बचत प्रवृत्ति में वृद्धि होने पर बचत के कम होने या पूर्ववत रहने की संभावना है।
आय तथा रोजगार के निर्धारण HBSE 12th Class Economics Notes
→ उपभोग फलन अथवा उपभोग प्रवृत्ति-उपभोग फलन अथवा उपभोग प्रवृत्ति राष्ट्रीय आय और कुल उपभोग व्यय के संबंध को प्रकट करता है। आय के विभिन्न स्तरों पर किस प्रकार परिवर्तन होता है, इसी संबंध को उपभोग फलन अथवा उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।
→ बचत प्रवृत्ति-आय में परिवर्तन के कारण बचत में परिवर्तन की प्रवृत्ति को बचत की प्रवृत्ति कहते हैं।
→ निवेश-यह एक वर्ष की अवधि में उत्पादन के टिकाऊ यंत्रों, नए निर्माण तथा स्टॉक पर किया जाने वाला खर्च है।
→ निजी निवेश-निजी उद्यमियों द्वारा पूँजीगत वस्तुओं, मशीनों, इमारतों, प्लांट आदि पर किया जाने वाला खर्च है।
→ सार्वजनिक निवेश-सरकार द्वारा सार्वजनिक कल्याण पर किया जाने वाला खर्च सार्वजनिक निवेश कहलाता है। यह सड़क, बाँध, पुल, नहरों, बिजलीघरों आदि के निर्माण पर किया जाता है।
→ स्वायत्त अथवा स्वचालित निवेश-यह आय के स्तर अथवा ब्याज की दर से प्रभावित नहीं होता। सरकार द्वारा जन उपयोगी सेवाओं; जैसे रेलवे, सड़क, बिजली, डाक आदि में किया गया निवेश इसी श्रेणी या वर्ग से संबंधित है। यह निवेश सरकार द्वारा किया जाता है। स्वायत्त निवेश, तकनीक में परिवर्तन, नए संसाधनों की खोज, जनसंख्या वृद्धि आदि कारणों से किया जाता है।
→ केज़ का उपभोग का मनोवैज्ञानिक नियम केज के मनोवैज्ञानिक नियम के अनुसार, ‘लोगों की यह मनोवृत्ति होती है कि जब आय बढ़ती है तो उनका उपभोग बढ़ता है किंतु उतना नहीं जितनी कि आय बढ़ती है।
→ गुणक गुणक (K) निवेश में परिवर्तन (AI) तथा आय में परिवर्तन (AY) का अनुपात है अर्थात्
गुणक (K) = \(\frac { ∆Y }{ ∆I }\)
→ गुणक की अनुकूल प्रक्रिया-गुणक की अनुकूल प्रक्रिया से स्पष्ट होता है कि निवेश में होने वाली वृद्धि के फलस्वरूप आय में कई गुना अधिक वृद्धि होगी।
→ गुणक की प्रतिकूल प्रक्रिया-गुणक की प्रतिकूल प्रक्रिया से स्पष्ट होता है कि निवेश में प्रारंभिक कमी होने के फलस्वरूप आय में कई गुना अधिक कमी होती है।
→ न्यून (अभावी) माँग-न्यून (अभावी) माँग समग्र माँग का वह स्तर है जो अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार के लिए आवश्यक समग्र पूर्ति से कम (AD < AS) होता है।
→ अवस्फीतिक अंतराल अवस्फीतिक अंतराल (Deflationary Gap) उस कमी को कहते हैं जो पूर्ण रोज़गार के लिए आवश्यक समग्र माँग तथा वर्तमान समग्र माँग के बीच पाई जाती है।
→ अधिमांग अधिमाँग समग्र माँग का वह स्तर है जो पूर्ण रोज़गार के लिए आवश्यक समग्र पूर्ति के स्तर से अधिक (AD > AS) होता है।
→ स्फीतिक अंतराल–स्फीतिक अंतराल (Inflationary Gap) वह आधिक्य है जो वर्तमान समग्र माँग के पूर्ण रोज़गार के लिए आवश्यक समग्र माँग के अधिक होने के कारण उत्पन्न होता है।
→ अधिमाँग के कारण अधिमाँग (Excess Demand) की स्थिति उत्पन्न होने के मुख्य कारण हैं-
- घाटे की वित्त व्यवस्था
- उपभोग व्यय में वृद्धि
- निर्यात माँग में वृद्धि
- निवेश माँग में वृद्धि।
→ राजकोषीय नीति-राजकोषीय नीति वह नीति है जिसका संबंध सार्वजनिक आय तथा सार्वजनिक व्यय से है। इसका एक मुख्य उद्देश्य मुद्रास्फीति तथा अवस्फीतिक को नियंत्रित करना है।
→ मौद्रिक नीति मौद्रिक नीति वह नीति है जिसका संबंध अर्थव्यवस्था में साख के प्रवाह को नियंत्रित करना है।