Author name: Prasanna

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 7 मद्यपान, धूम्रपान तथा नशीले पदार्थों के दुष्प्रभाव

Haryana State Board HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 7 मद्यपान, धूम्रपान तथा नशीले पदार्थों के दुष्प्रभाव Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Physical Education Solutions Chapter 7 मद्यपान, धूम्रपान तथा नशीले पदार्थों के दुष्प्रभाव

HBSE 9th Class Physical Education मद्यपान, धूम्रपान तथा नशीले पदार्थों के दुष्प्रभाव Textbook Questions and Answers

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न [Long Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
नशे (Drugs) क्या हैं? नशा करने के कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:
नशा या ड्रग्स (Drugs):
नशा या ड्रग्स एक ऐसा पदार्थ है जिसके सेवन के बाद व्यक्ति अपने दिमाग की चेतनता खो बैठता है। माँसपेशियाँ सुन्न होने के कारण व्यक्ति को दर्द का अहसास नहीं होता। वह दिमाग और शरीर से अपना नियंत्रण खो बैठता है। व्यक्ति को कोई सुध नहीं रहती, जिसके कारण वह स्वयं, अपने परिवार तथा समाज के लोगों को नुकसान पहुंचाता है।

नशा करने के कारण (Causes of Drugs): नशा करने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
(1) मानसिक दबाव के कारण; जैसे पढ़ाई का बोझ, किसी समस्या का सामना न कर पाने की स्थिति में कई बार युवा डिप्रेशन में चले जाते हैं, ऐसी स्थिति में वे नशे का सहारा लेते हैं।

(2) कई बार माता-पिता या समाज द्वारा विद्यार्थी या खिलाड़ी को अनदेखा किया जाता है। बच्चे या खिलाड़ी को लगता है कि उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा, इसलिए वह दूसरों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए ऐसे गलत तरीकों का प्रयोग करते हैं।

(3) कुछ अभिभावकों द्वारा बच्चे को समय नहीं दिया जाता या बच्चा घर में अधिक समय अकेला ही बिताता है। इस एकाकीपन को दूर करने के लिए वह नशे का सहारा लेता है।

(4) बेरोज़गारी या बेगारी के कारण व्यक्ति द्वारा नशा किया जाता है। कई बार जब किसी अधिक पढ़े-लिखे नौजवान या खिलाड़ी को समय पर नौकरी नहीं मिलती तो वह निराशा व तनाव से ग्रस्त हो जाता है और अपने तनाव को घटाने के लिए नशों का प्रयोग करने लग जाता है। इससे उसके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

(5) युवा वर्ग नशे के दुष्प्रभावों की जानकारी के अभाव के कारण भी नशे का आदी हो जाता है।

(6) युवा लड़के और लड़कियाँ मौज-मस्ती के लिए भी नशीली दवाइयों का प्रयोग करते हैं। धीरे-धीरे वे इन नशीली दवाइयों के आदी होने लगते हैं।

(7) गलत संगत के कारण भी व्यक्ति या नौजवान नशे के आदी हो जाते हैं।

(8) घर में किसी सदस्य द्वारा किसी नशे का प्रयोग किया जाता है तो बच्चे में भी उसको जानने की इच्छा पैदा होती है। इसी इच्छा के कारण बच्चे नशे का सेवन करते हैं और धीरे-धीरे वे नशे की जकड़ में आ जाते हैं।

प्रश्न 2.
नशीली वस्तुओं या पदार्थों का खिलाड़ी की खेल निपुणता या कुशलता पर क्या प्रभाव पड़ता है? वर्णन करें।
अथवा
नशीले पदार्थों के प्रयोग से खिलाड़ियों तथा खेल पर क्या-क्या बुरे प्रभाव पड़ते हैं?
अथवा
मादक पदार्थों का खिलाड़ियों के खेल पर क्या-क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
नशीली वस्तुओं के खिलाड़ी की खेल निपुणता या कुशलता पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं

1. पाचन क्रिया पर प्रभाव (Effect on Digestion Process):
नशीली वस्तुओं के प्रयोग के कारण पाचन क्रिया पर अधिक दुष्प्रभाव पड़ता है क्योंकि नशीले पदार्थों में तेजाबी अंश अधिक होते हैं। इन अंशों के कारण आमाशय के कार्य करने की शक्ति कम हो जाती है तथा पेट के रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

2. सोचने की शक्ति पर प्रभाव (Effect on Thinking Power):
नशीली वस्तुओं का प्रयोग करने से खिलाड़ी की विचार-शक्ति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। वह अच्छी तरह बोलने की अपेक्षा तुतलाता है। वह संतुलित नहीं रह पाता। नशा-ग्रस्त कोई खिलाड़ी खेल में आने वाली अच्छी बातों के विषय में नहीं सोच पाता तथा न ही उस स्थिति से लाभ उठा पाता है।

3. तालमेल तथा फूर्ति की कमी (Loss of Co-ordination and Alertness):
अच्छे खेल के लिए आवश्यक है कि खिलाड़ी में तालमेल और फूर्ति हो। वह खेल के दौरान फुर्तीला तथा चुस्ती वाला हो, परंतु नशीले पदार्थों के सेवन से कोई भी अपनी फूर्ति एवं चुस्ती खो देता है।

4. एकाग्रता की कमी (Loss of Concentration):
नशे से ग्रस्त कोई भी खिलाड़ी एकाग्रता खो देता है। वह खेल के समय ऐसी गलतियाँ करता है जिसके परिणामस्वरूप उसकी टीम को हार का मुँह देखना पड़ता है।

5. लापरवाह होना (Carelessness):
नशे से ग्रस्त खिलाड़ी लापरवाह तथा बेफिक्र होता है। उसे अपनी ताकत का अंदाजा नहीं होता। वह अपनी समझ की अपेक्षा अधिक जोश से काम लेता है। परिणामस्वरूप जोश व लापरवाही के कारण वह चोट खा बैठता है। ऐसा खिलाड़ी हमेशा के लिए खेल से बाहर हो सकता है। उसको उम्र भर पछताने के सिवाय कुछ भी प्राप्त नहीं होता।

6. खेल का मैदान लड़ाई का अखाड़ा बनना (Playground becomes Battlefield):
नशे से ग्रस्त खिलाड़ी अपने मन के संतुलन को नियंत्रण में नहीं रख सकता। वह अपनी बुद्धि का प्रयोग किए बिना व्यर्थ में बहस करता है। ऐसा व्यक्ति दलील से काम नहीं लेता, जिसके फलस्वरूप खेल के मैदान में अच्छे खेल की जगह लड़ाई शुरू हो जाती है।

7.खेल-भावना का अभाव (Lack of Sportsmanship):
नशीले पदार्थों का प्रयोग करने वाले खिलाड़ी में खेल की भावना का अभाव हो जाता है। नशे से ग्रस्त खिलाड़ी की स्थिति लगभग बेहोशी की हालत जैसी होती है जिसके फलस्वरूप उसका मानसिक संतुलन ठीक नहीं रहता। इस प्रकार उसमें अच्छे खिलाड़ी होने की भावना समाप्त हो जाती है और खेल कुशलता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

8. नियमों की उल्लंघना (Breaking of Rules):
नशे से ग्रस्त खिलाड़ी खेल के समय अपनी सफाई ही पेश करता है, दूसरे की नहीं सुनता। वह नियमों का पालन करने की अपेक्षा उल्लंघन करता है। अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी की ओर से नशीली वस्तु खाकर खेलने की मनाही है। यदि खेलते समय कोई खिलाड़ी नशे की हालत में पकड़ा जाए तो उसका जीता हुआ अवॉर्ड वापिस ले लिया जाता है। अतः प्रत्येक खिलाड़ी के लिए यह जरूरी है कि वह नशे से दूर रहकर अपनी प्राकृतिक खेल निपुणता को सक्षम बनाए। नशे के स्थान पर कठिन परिश्रम के सहारे अच्छे खेल का प्रदर्शन करके वह अपने देश का नाम खेल जगत् में ऊँचा करे।

प्रश्न 3.
तम्बाकू के सेवन से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों का वर्णन कीजिए। अथवा धूम्रपान (Smoking) का व्यक्ति व समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है? वर्णन करें।
अथवा
तम्बाकू का हमारे शरीर पर क्या दुष्प्रभाव पड़ता है? वर्णन करें।
उत्तर:
तम्बाकू किसी ज़हर से कम नहीं होता, परंतु दुःख की बात यह है कि लोग जानते हुए भी इसका प्रयोग निरंतर कर रहे हैं। वर्तमान में तम्बाकू या सिगरेट पीने की आदत नौजवानों में अधिक बढ़ गई है जो चिंता का विषय है। तम्बाकू में निकोटिन नामक हानिकारक पदार्थ होता है, जो शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है। व्यक्तियों द्वारा सिगरेट, बीड़ी, पान, गुटखा और जर्दे के रूप में तम्बाकू का प्रयोग किया जाता है। हर साल लाखों व्यक्तियों की मौत तम्बाकू के प्रयोग से होती है, जिनमें से एक-तिहाई मौतें हमारे देश में होती हैं। तम्बाकू या धूम्रपान के व्यक्ति व समाज पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव निम्नलिखित हैं

1. हृदय पर प्रभाव (Effect on Heart):
हृदय मनुष्य के शरीर का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है। तम्बाकू का सीधा प्रभाव हृदय पर पड़ता है। तम्बाकू में निकोटिन (Nicotine) होती है जो रक्त-वाहिनियों में कई प्रकार की हानि पैदा कर देती है। इससे हृदय को अपना काम ठीक प्रकार से करने में मुश्किल आती है, जिस कारण रक्त के दबाव में बढ़ोतरी हो जाती है।

2. कैंसर का मुख्य कारण (Main Cause of Cancer):
तम्बाकू पीने से कैंसर होने का भय रहता है। सामान्यतया यह देखने में आया है कि तम्बाकू न पीने वालों के मुकाबले तम्बाकू पीने वालों में कैंसर ज्यादा होता है। गले, पेट और आहारनली में कैंसर का मुख्य कारण तम्बाकू ही होता है।

3. खेल निपुणता पर प्रभाव (Effect on Sports Performance):
तम्बाकू पीने से खिलाड़ियों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। तम्बाकू पीने का सीधा प्रभाव नाड़ी संस्थान पर पड़ता है। खेल में निपुणता प्राप्त करने के लिए खिलाड़ी का नाड़ी संस्थान मजबूत होना बहुत जरूरी है। अगर खिलाड़ी तम्बाकू का सेवन करता है तो वह कभी भी खेल में निपुणता नहीं ला सकता। तम्बाकू पीने से हृदय कमजोर होता है और त्वचा, कैंसर की बीमारियाँ हो जाती हैं। इस तरह खिलाड़ी तम्बाकू पीकर अपने खेल के स्तर को नीचे गिरा लेता है।

4. श्वसन संस्थान पर प्रभाव (Effect on Respiratory System):
तम्बाकू के सेवन से शरीर की कोमल झिल्लियों में सूजन आ जाती है, जिसके फलस्वरूप लगातार खाँसी आने लगती है। धूम्रपान क्षयरोग को बढ़ाता है। धूम्रपान के कारण बोलने वाले अंग एवं हलक (Larynx) संक्रमित हो जाते हैं। धूम्रपान करने वालों को धूम्रपान न करने वालों की अपेक्षा फेफड़ों का कैंसर प्रायः अधिक होता है। अधिक धूम्रपान करने से कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है। सिगरेट के पैकेट पर चेतावनी लिखी जाती है; जैसे ‘सिगरेट से कैंसर होता है’ या ‘सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।’ लेकिन धूम्रपान करने वाले इस प्रकार की चेतावनियों की परवाह नहीं करते। इसी कारण वे कैंसर जैसी भयानक बीमारी को आमंत्रित करते हैं।

5. रक्त-संचार संस्थान पर प्रभाव (Effect on Circulatory System):
एक सिगरेट में अनेक हानिकारक पदार्थ होते हैं जो रक्त में मिलकर हृदय (Heart) की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करते हैं। शरीर का तापमान कम हो जाता है। रक्त की नाड़ी का आकार ‘भी कम हो जाता है तथा उनमें रक्त के संचार में भी कमी आ जाती है।

6. पाचन संस्थान पर प्रभाव (Effect on Digestive System):
धूम्रपान करने से अम्लीयता (Acidity) बढ़ जाती है। अम्लता के कारण आमाशय में अल्सर (Ulcer) भी हो सकता है। धूम्रपान से पेट में कैंसर भी हो जाता है।

7. स्नायु संस्थान पर प्रभाव (Effect on Nervous System):
तंत्रिकाओं पर भी धूम्रपान का बुरा प्रभाव होता है। ये प्रायः निष्क्रिय हो जाती हैं। धूम्रपान से मस्तिष्क की कोशिकाएँ खराब होने लगती हैं। इससे माँसपेशियों को लकवा (Paralysis) हो जाता है। माँसपेशी मुड़ने (Convulsion) भी लगती है। धूम्रपान करने से केंद्रीय स्नायु संस्थान में गड्ढा-सा बन जाता है। धूम्रपान करने से उत्तेजना क्षण-भर के लिए होती है। लेकिन इसके तुरंत बाद ही यह प्रक्रिया ढीली हो जाती है। जो व्यक्ति लगातार धूम्रपान करते हैं उनकी स्मरण-शक्ति (Memory Power) बहुत कम हो जाती है। धूम्रपान से नसें कमजोर हो जाती हैं और फिर नींद न आने जैसी तकलीफें घेर लेती हैं।

8. जीवन अवधि पर प्रभाव (Effect on Longevity):
सिगरेट पीने से व्यक्ति की जीवन अवधि कम होती जाती है। अतः यह कहा जा सकता है कि सिगरेट पीने या अन्य साधनों द्वारा धूम्रपान करने से व्यक्ति की उम्र पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

9. परिवार व समाज पर प्रभाव (Effect on Family and Society):
धूम्रपान का दुष्प्रभाव केवल व्यक्तिगत नहीं होता, बल्कि उसके परिवार व समाज पर भी पड़ता है। धूम्रपान की आदत अन्य बुरी आदतों को भी जन्म देती है। धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों के परिवारों के सदस्यों व समाज के अन्य व्यक्तियों पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 4.
एल्कोहल (Alcohol) क्या है? इसके दुष्प्रभावों का वर्णन करें।
अथवा
मद्यपान के शारीरिक संस्थानों व स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों का वर्णन करें।
अथवा
शराब के हमारे शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
एल्कोहल या मद्यपान (Alcohol):
एल्कोहल या मद्यपान हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है। यह एक ऐसा पेय पदार्थ है जिसको पीने से व्यक्ति के शरीर में उत्तेजना उत्पन्न होती है। इसमें ऐसे रासायनिक पदार्थ होते हैं जिनकी बनावट एक-सी होती है। यह भिन्न-भिन्न अम्लों से मिलकर एस्टर्स (Esters) नामक पदार्थ बनाती है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इसे इथॉइल, एल्कोहल, शराब व एथानॉल आदि नामों से भी जाना जाता है। जॉनसन के अनुसार, “मद्यपान वह स्थिति है जिसमें एक व्यक्ति शराब लेने की मात्रा पर नियंत्रण खो बैठता है जिससे कि वह पीना आरंभ करने के पश्चात् उसे बंद करने में सदैव असमर्थ रहता है।”

एल्कोहल यां मद्यपान के प्रभाव (Effects of Alcohol):
इसमें कोई संदेह नहीं है कि शराब न केवल व्यक्ति पर बुरा प्रभाव डालती है, अपितु यह परिवार व समाज पर भी बुरा प्रभाव डालती है। इसके निम्नलिखित दुष्प्रभाव पड़ते हैं

1. व्यक्ति पर प्रभाव (Effects on Individual):
एल्कोहल (शराब) पीने से व्यक्ति के स्वास्थ्य व शारीरिक संस्थानों पर अनेक दुष्प्रभाव पड़ते हैं, जिनका वर्णन निम्नलिखित है
(i) स्नायु संस्थान पर प्रभाव (Effect on Nervous System):
प्रतिदिन अधिक एल्कोहल का सेवन करने से निश्चित रूप से व्यक्ति के स्नायु संस्थान पर बुरा प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति का मस्तिष्क और तंत्रिकाएँ कमजोर हो जाती हैं। इन तंत्रिकाओं का माँसपेशियों पर नियंत्रण आमतौर पर समाप्त हो जाता है। ध्यान को केंद्रित करने की शक्ति में गिरावट आ जाती है। स्नायु तथा माँसपेशियों के संतुलन में भी कमी आ जाती है।

(ii) पाचन संस्थान पर प्रभाव (Effect on Digestive System):
पाचन संस्थान के कोमल अंगों पर एल्कोहल का बुरा प्रभाव पड़ता है। पाचक अंगों की झिल्ली (Membrane) मोटी हो जाती है। पाचक रस, जो पाचन क्रिया में सहायक होते हैं, कम मात्रा में पैदा होने लगते हैं, जिसके परिणामस्वरूप भोजन का पाचन ठीक तरह से नहीं हो पाता। भूख में भी प्रायः धीरे-धीरे कमी होने लगती है। पाचन संस्थान के खराब होने से शरीर का विकास रुक जाता है।

(iii) माँसपेशी संस्थान पर प्रभाव (Effect on Muscular System):
प्रतिदिन मद्यपान करने से व्यक्ति की माँसपेशियों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे माँसपेशियों में सिकुड़न व प्रसार की क्षमता में कमी आ जाती है। माँसपेशियों की अधिकतम शक्ति की सीमा में भी कमी आ जाती है। हृदय की माँसपेशियाँ भी उचित ढंग से कार्य नहीं कर पातीं। व्यक्ति काफी कमजोर हो जाता है।

(iv) उत्सर्जन संस्थान पर प्रभाव (Effect on Excretory System):
मद्यपान करने से उत्सर्जन संस्थान के अंग भी बुरी तरह प्रभावित होते हैं। उनकी कार्यक्षमता में कमी आ जाती है और इसी के परिणामस्वरूप व्यर्थ के पदार्थ; जैसे एसिड फॉस्फेट व लैक्टिक अम्ल (Lactic Acid) आदि का जमाव अधिक होने लगता है। शरीर से इन पदार्थों का निष्कासन ठीक तरह से नहीं हो पाता। ऐसे व्यक्तियों के गुर्दे प्रायः खराब हो जाते हैं। शराब के सेवन से यकृत भी खराब हो जाता है।

2. परिवार व समाज पर प्रभाव (Effect on Family and Society):
प्रायः मद्यपान करने वाले व्यक्तियों के परिवार अशांत होते हैं। यदि परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न हो तो भी शराबी व्यक्ति, किसी भी तरह शराब पीने के लिए पैसे बटोरता है। इसके लिए व्यक्ति अपनी पत्नी व बच्चों को भी पीट डालता है। ऐसे व्यक्ति अपने परिवार के जीवन-स्तर को कभी ऊँचा नहीं उठा पाते। उनका पारिवारिक जीवन नरक बन जाता है। ऐसे व्यक्ति अपने देश व समाज के लिए बोझ होते हैं क्योंकि राष्ट्रहित में उनका कुछ भी योगदान नहीं होता। वे अच्छे नागरिक नहीं बन पाते।

117 समाज में शराबी व्यक्तियों को कोई न तो पसंद करता और न ही सम्मान देता है। वे तनावग्रस्त तथा निष्क्रिय हो जाते हैं। ऐसे व्यक्ति प्रायः अपराध में संलिप्त हो जाते हैं। लंबे समय तक अधिक मात्रा में शराब पीने से स्मरण शक्ति भी समाप्त होने लगती है। अंत में यही कहा जा सकता है कि ऐसे व्यक्ति स्वयं पर ही बोझ नहीं बल्कि परिवार व समाज पर भी बोझ होते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न [Short Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
नशीले पदार्थों का सेवन करने से खिलाड़ियों पर क्या दुष्प्रभाव पड़ता है? उल्लेख कीजिए।
अथवा
मादक पदार्थों का खिलाड़ियों के खेल पर क्या-क्या दुष्प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
मादक/नशीले पदार्थों का सेवन करने से खिलाड़ियों पर निम्नलिखित दुष्प्रभाव पड़ते हैं
(1) कुछ खिलाड़ी अपनी शारीरिक या मानसिक क्षमता को बढ़ाने के लिए नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं परन्तु इनके सेवन का उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
(2) कई बार खिलाड़ियों को राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर नशीले पदार्थों के सेवन के कारण खेल से बाहर होना पड़ता है। इसके कारण उनके सम्मान एवं आदर को ठेस पहुँचती है।।
(3) कुछ खिलाड़ी बिना किसी प्रकार की जानकारी के अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाने हेतु नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं, परन्तु बाद में उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है।
(4) मादक पदार्थों का सेवन करने से खिलाड़ी के खेल पर बुरा प्रभाव पड़ता है। उसका खेल का स्तर कम होता जाता है।

प्रश्न 2.
तम्बाकू शरीर के लिए क्यों हानिकारक है?
उत्तर:
तम्बाकू में अनेक हानिकारक पदार्थ होते हैं, जो शरीर पर बुरा प्रभाव डालते हैं। इसके प्रयोग से शरीर में फेफड़ों, जीभ, गला, तालु, मसूड़ों का कैंसर, श्वास की बीमारियाँ; जैसे दमा, टी०बी०, खाँसी और बलगम आदि बीमारियों का प्रभाव बढ़ जाता है। यह दिमाग की नसों को कठोर, रक्त की नाड़ियों को लचकहीन कर देता है। रक्त में ऑक्सीजन की कमी महसूस होने लगती है। अतः तम्बाकू के कारण शरीर अनेक रोगों से ग्रस्त हो जाता है। इसलिए यह शरीर के लिए हानिकारक है।

प्रश्न 3.
मद्यपान या एल्कोहल का पाचन संस्थान पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
पाचन संस्थान के कोमल अंगों पर मद्यपान का बुरा प्रभाव पड़ता है। पाचक अंगों की झिल्ली (Membrane) मोटी हो जाती है। पाचक रस, जो पाचन क्रिया में सहायक होते हैं, कम मात्रा में पैदा होने लगते हैं, जिसके परिणामस्वरूप भोजन का पाचन ठीक तरह से नहीं हो पाता। भूख में भी प्रायः धीरे-धीरे कमी होने लगती है। पाचन संस्थान के खराब होने से शरीर का विकास रुक जाता है।

प्रश्न 4.
मद्यपान या एल्कोहल का उत्सर्जन संस्थान या मल निकास प्रणाली पर क्या दुष्प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
मद्यपान या एल्कोहल से उत्सर्जन संस्थान या मल निकास प्रणाली के अंग बुरी तरह प्रभावित होते हैं। उनकी कार्यक्षमता में कमी आ जाती है और इसी के परिणामस्वरूप व्यर्थ के पदार्थ; जैसे एसिड फॉस्फेट व लैक्टिक अम्ल (Lactic Acid) आदि का जमाव अधिक होने लगता है। शरीर से

प्रश्न 6.
धूम्रपान का श्वसन संस्थान पर क्या दुष्प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
धूम्रपान के सेवन से शरीर की कोमल झिल्लियों में सूजन आ जाती है, जिसके फलस्वरूप लगातार खाँसी आने लगती है। धूम्रपान क्षयरोग को बढ़ाता है। धूम्रपान के कारण बोलने वाले अंग एवं हलक (Larynx) संक्रमित हो जाते हैं। धूम्रपान करने वालों को धूम्रपान न करने वालों की अपेक्षा फेफड़ों का कैंसर प्रायः अधिक होता है। अधिक धूम्रपान करने से कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है। सिगरेट के पैकेट पर चेतावनी लिखी जाती है; जैसे सिगरेट से कैंसर होता है या सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। लेकिन धूम्रपान करने वाले इस प्रकार की चेतावनियों की परवाह नहीं करते, इसी कारण वे कैंसर जैसी भयानक बीमारी को आमंत्रित करते हैं।

प्रश्न 7.
“तम्बाकू स्वास्थ्य के लिए एक जहर है।” इस कथन को स्पष्ट करें। अथवा व्यक्ति के स्वास्थ्य पर धूम्रपान का क्या प्रभाव पड़ता है? ।
उत्तर:
तम्बाकू स्वास्थ्य के लिए एक ज़हर है। इसमें निकोटिन नामक हानिकारक पदार्थ होता है, जो शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है। तम्बाकू या धूम्रपान के हमारे शरीर पर निम्नलिखित हानिकारक प्रभाव पड़ते हैं
(1) कैंसर का मुख्य कारण तम्बाकू है। इसके प्रयोग से फेफड़े, मुँह, जीभ, गला, तालु और मसूड़ों के कैंसर हो जाते हैं।
(2) तम्बाकू का प्रयोग दमा, टी०बी०, खाँसी और बलगम आदि पैदा करता है।
(3) तम्बाकू के सेवन से दिल का दौरा, उच्च रक्तचाप, रक्त की नाड़ियाँ कठोर और रक्त में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है।
(4) तम्बाकू का प्रयोग करने वाली गर्भवती स्त्रियों का बच्चा कमजोर और कम भार वाला होता है। तम्बाकू के नशे से ग्रस्त माताओं के बच्चे कई बार जन्म के बाद मर जाते हैं।

प्रश्न 8.
धूम्रपान का स्नायु संस्थान पर क्या दुष्प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
धूम्रपान का स्नायु संस्थान या नाड़ियों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। ये प्रायः निष्क्रिय हो जाती हैं। धूम्रपान से मस्तिष्क की कोशिकाएँ खराब होने लगती हैं। इससे माँसपेशियों को लकवा हो जाता है और माँसपेशी मुड़ने भी लगती है। धूम्रपान करने से केंद्रीय स्नायु संस्थान में गड्ढा-सा बन जाता है। धूम्रपान करने से उत्तेजना क्षण-भर के लिए होती है। लेकिन इसके तुरंत बाद ही यह प्रक्रिया ढीली हो जाती है। जो व्यक्ति लगातार धूम्रपान करते हैं उनकी स्मरण-शक्ति बहुत कम हो जाती है।

प्रश्न 9.
खेल में हार नशीली वस्तुओं के उपयोग के कारण भी हो सकती है, स्पष्ट करें।
उत्तर:
खेल में हार नशीली वस्तुओं के प्रयोग के कारण भी हो सकती है। यह बात निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट हो जाती है
(1) नशे से ग्रस्त खिलाड़ी खेल के दौरान ऐसी गलतियाँ करता है, जिसके परिणामस्वरूप उसकी टीम को पराजय का मुँह देखना पड़ता है।

(2) नशे से ग्रस्त खिलाड़ी अपनी टीम के लिए पराजय का कारण बन जाता है।

(3) नशीली वस्तुओं के प्रयोग के कारण खिलाड़ी के रक्त का दबाव अधिक होता है, जिसके फलस्वरूप वह चिड़चिड़े स्वभाव का हो जाता है। वह दूसरों के विचारों को नहीं सुनता, बल्कि अपनी मनमानी करता है। इस कारण वह अपने साथी खिलाड़ियों से सही तालमेल नहीं बिठा पाता और अपनी टीम के लिए पराजय का कारण बन जाता है।

(4) यदि कोई खिलाड़ी खेलते समय नशीली वस्तुओं का प्रयोग करता हुआ पकड़ा जाता है, तो उसका जीता हुआ पुरस्कार वापिस ले लिया जाता है। इस प्रकार खिलाड़ी की विजय भी पराजय में बदल जाती है।

(5) नशे में खेलते समय खिलाड़ी अपनी टीम से संबंधी बहुत-से ऐसे गलत कार्य कर देता है जिससे टीम हार जाती है।

प्रश्न 10.
तम्बाकू या धूम्रपान से खेल निपुणता या कुशलता पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
तम्बाकू पीने से खिलाड़ियों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। तम्बाकू पीने का सीधा प्रभाव नाड़ी संस्थान पर पड़ता है। खेल में निपुणता प्राप्त करने के लिए खिलाड़ी का नाड़ी संस्थान मजबूत होना बहुत जरूरी है। अगर खिलाड़ी तम्बाकू का सेवन करता है तो वह कभी भी खेल में निपुणता नहीं ला सकता। तम्बाकू पीने से हृदय कमजोर होता है और त्वचा के कैंसर की बीमारियाँ हो जाती हैं। आँखों की नजर कमजोर होने, फेफड़ों की ताकत में कमी होने एवं माँसपेशियों में हानिकारक पदार्थ इकट्ठे होने के कारण उसकी कार्यक्षमता में कमी आ जाती है। इस तरह खिलाड़ी तम्बाकू पीकर अपने खेल के स्तर को नीचे गिरा लेता है।

प्रश्न 11.
शराब या एल्कोहल का परिवार व समाज पर क्या दुष्प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
एल्कोहल का सेवन करने वाले व्यक्तियों के परिवार प्रायः अशांत होते हैं। यदि परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न हो तो भी शराबी व्यक्ति, किसी भी तरह शराब पीने के लिए पैसे बटोरता है। इसके लिए व्यक्ति अपनी पत्नी व बच्चों को भी पीट डालता है। ऐसे व्यक्ति अपने परिवार के जीवन-स्तर को कभी ऊँचा नहीं उठा पाते। उनका पारिवारिक जीवन नरक बन जाता है। ऐसे व्यक्ति अपने देश व समाज के लिए बोझ बन जाते हैं क्योंकि राष्ट्रहित में उनका कुछ भी योगदान नहीं होता। वे अच्छे नागरिक नहीं बन पाते।

समाज में शराबी व्यक्तियों को कोई न तो पसंद करता और न ही सम्मान देता है। वे तनावग्रस्त तथा निष्क्रिय हो जाते हैं। ऐसे व्यक्ति प्रायः अपराध में संलिप्त हो जाते हैं। कई व्यक्तियों में तो आत्महत्या करने की प्रवृत्ति भी आ जाती है। लंबे समय तक अधिक मात्रा में शराब पीने से स्मरण-शक्ति भी समाप्त होने लगती है। अंत में यही कहा जा सकता है कि ऐसे व्यक्ति स्वयं पर ही बोझ नहीं बल्कि परिवार व समाज पर भी बोझ होते हैं।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न [Very Short Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
डोपिंग किसे कहते हैं?
उत्तर:
डोपिंग का अर्थ कुछ ऐसी मादक दवाओं या तरीकों का प्रयोग करना है जिसके माध्यम से खेल-प्रदर्शन को बढ़ाया जा सकता है। डोपिंग का अधिक रुझान खिलाड़ियों में पाया जाता है। जब कुछ खिलाड़ियों द्वारा खेलों के दौरान अपने प्रदर्शन को बढ़ाने या मजबूत करने के लिए प्रतिबंधित पदार्थों या तकनीकों का सेवन या प्रयोग किया जाता है तो उसे डोपिंग कहते हैं।

प्रश्न 2.
मद्यपान या एल्कोहल (Alcohol) क्या है?
उत्तर:
मद्यपान या एल्कोहल हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है। यह एक ऐसा पेय पदार्थ है जिसको पीने से व्यक्ति के शरीर में उत्तेजना उत्पन्न होती है। यह गेहूँ, चावल, जौं और फलों आदि से बनाई जाती है। इसमें ऐसे रासायनिक पदार्थ होते हैं जिनकी बनावट एक-सी होती है। यह भिन्न-भिन्न अम्लों से मिलकर एस्टर्स (Esters) नामक पदार्थ बनाती है। इसे इथाइल, एल्कोहल व एथानॉल आदि भी कहा जाता है।

प्रश्न 3.
नशीली वस्तुओं (पदार्थों) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
नशीली वस्तुओं का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इनके सेवन से न केवल स्वास्थ्य खराब होता है, बल्कि कैरियर भी तबाह हो जाता है। जो खिलाड़ी नशीली वस्तुओं का सेवन करते हैं वे डोपिंग के आदी हो जाते हैं, जिससे उसकी क्रियाशीलता उत्तेजित होती है। इस प्रकार नशीले पदार्थ वे पदार्थ हैं जिनके सेवन से शरीर में किसी-न-किसी प्रकार की उत्तेजना उत्पन्न होती है जिससे क्रियाविहीनता की दशा उत्पन्न होती है।

प्रश्न 4.
नशा अथवा डोपिंग खिलाड़ी के शरीर पर क्या प्रभाव डालते हैं?
उत्तर:
नशा अथवा डोपिंग खिलाड़ी की शारीरिक क्षमता धीरे-धीरे समाप्त कर देते हैं। कई बार डोपिंग करके खेल रहा खिलाड़ी मौत के मुँह में भी जा सकता है। खिलाड़ी की शारीरिक और मानसिक दोनों शक्तियों को नशा समाप्त कर देता है। खिलाड़ी बलहीन, सोचहीन, असमर्थ क्रियाविहीन और चिड़चिड़ा हो जाता है।

प्रश्न 5.
नशे से ग्रस्त खिलाड़ी खेल के मैदान में कैसा व्यवहार करता है?
उत्तर: नशे से ग्रस्त खिलाड़ी खेल के मैदान में बिना कारण जोर-जबरदस्ती करता है। वह सोचहीन खेल खेलता है। विरोधियों और रैफ़रियों के साथ झगड़ता है। गलत शब्दों का प्रयोग करता है। वह स्वयं अथवा दूसरों को चोट लगवा बैठता है।

प्रश्न 6.
नशा-रहित और नशा-ग्रस्त खिलाड़ी में क्या अंतर होता है?
उत्तर:
नशा-रहित खिलाड़ी चुस्ती-स्फूर्ति और सोचवान खेल खेलने वाला होता है। वह खेल के दौरान अनुशासित रहता है। वह मुसीबत के समय दूसरे खिलाड़ियों की सहायता करता है। इसके विपरीत नशे से ग्रस्त खिलाड़ी लापरवाह, सोचहीन, झगड़ालू और अनुशासनहीन होता है। वह अपनी टीम को हमेशा कठिनाइयों में डाले रखता है और वह विश्वास योग्य नहीं होता।

प्रश्न 7.
नशे से ग्रस्त खिलाड़ी की मानसिक स्थिति कैसी होती है?
उत्तर:
नशे से ग्रस्त खिलाड़ी की मानसिक स्थिति अर्द्ध-बेहोशी वाली होती है। उसका मन संतुलन में नहीं रहता। खेल के समय वह दूसरों की बात नहीं सुनता, केवल अपनी सफाई देता है। वह रैफरी के निर्णयों से संतुष्ट नहीं होता, नियमों की पालना नहीं करता, जिसके फलस्वरूप मैदान से बाहर बैठने के लिए मजबूर हो जाता है।

प्रश्न 8. ड्रग्स के प्रकारों/रूपों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) शराब,
(2) तम्बाकू,
(3) अफीम,
(4) हेरोइन,
(5) मेथाडोन,
(6) भाँग,
(7) कैरीन,
(8) कैफीन,
(9) गाँजा आदि।

प्रश्न 9.
मद्यपान या एल्कोहल के नशे में होने वाले कोई दो अपराध बताएँ।
उत्तर:
(1) यौन सम्बन्धी अपराध करना,
(2) घर या बाहर मारपीट या हिंसा करना।

प्रश्न 10.
सरकार द्वारा नशे की बुराई को दूर करने के लिए क्या प्रयास किए गए हैं?
उत्तर:
सरकार द्वारा नशे की बुराई (Evil of Drugs) को दूर करने के लिए निम्नलिखित प्रयास किए गए हैं
(1) सार्वजनिक स्थानों पर नशीले पदार्थों का सेवन करना निषेध है।
(2) सरकार द्वारा नशे के आदी लोगों को इस बुराई से छुटकारा पाने हेतु अनेक योजनाएँ लागू की गई हैं और अनेक संस्थाएँ स्थापित की गई हैं।
(3) नशे की बुराई को दूर करने के लिए सरकार द्वारा अनेक नशा निषेध कानून बनाए गए हैं जिनका सख्ती से पालन किया जाता है।

प्रश्न 11.
धूम्रपान छोड़ने के कोई दो सामान्य उपाय बताएँ।
उत्तर:
(1) मन से निश्चय कर लें कि हमें इसके सेवन से दूर रहना है।
(2) हमेशा अच्छी संगत में रहना चाहिए।

प्रश्न 12.
मद्यपान से क्या हानियाँ होती हैं?
उत्तर:
(1) मद्यपान से शारीरिक संस्थानों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इनमें अनेक प्रकार के विकार उत्पन्न हो जाते हैं।
(2) मद्यपान करने वाले का घर, परिवार एवं समाज में सम्मान नहीं होता।
(3) मद्यपान से अनेक सामाजिक बुराइयों को बढ़ावा मिलता है।
(4) मद्यपान करने से स्मरण-शक्ति कमजोर होती है।

प्रश्न 13.
नशीली वस्तुओं के सेवन से शरीर को क्या नुकसान होते हैं?
उत्तर:
(1) शरीर में स्फूर्ति और तालमेल नहीं रहता।
(2) अनियंत्रण की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
(3) पाचन क्रिया पर अधिक दुष्प्रभाव पड़ता है।
(4) स्मरण-शक्ति कम हो जाती है।

HBSE 9th Class Physical Education मद्यपान, धूम्रपान तथा नशीले पदार्थों के दुष्प्रभाव Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न [Objective Type Questions]

प्रश्न 1.
मनुष्य नशीली वस्तुओं का प्रयोग कब से करता आ रहा है?
उत्तर:
मनुष्य आदिकाल से नशीली वस्तुओं का प्रयोग करता आ रहा है।

प्रश्न 2.
खेलों में मादक पदार्थों का सेवन या तरीका क्या कहलाता है?
उत्तर:
खेलों में मादक पदार्थों का सेवन या तरीका डोपिंग (Doping) कहलाता है।

प्रश्न 3.
शराब के सेवन से परिवार पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
शराब के सेवन से परिवार में झगड़ा, मारपीट, गाली-गलौच जैसी घटनाएँ बढ़ जाती हैं।

प्रश्न 4.
मद्यपान या शराबखोरी किसकी सूचक है?
उत्तर:
मद्यपान या शराबखोरी वैयक्तिक विघटन की सूचक है।

प्रश्न 5.
धूम्रपान कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
धूम्रपान मुख्यतः सात प्रकार का होता है।

प्रश्न 6.
सिगरेट के धुएँ में कौन-सा विषैला पदार्थ पाया जाता है?
अथवा
तम्बाकू में कौन-सा पदार्थ नशा उत्पन्न करता है?
उत्तर:
निकोटिन नामक पदार्थ।

प्रश्न 7.
किन्हीं दो नशीले पदार्थों के नाम बताएँ। अथवा किसी एक नशीली वस्तु का नाम लिखें।
उत्तर:
(1) अफीम,
(2) गाँजा।

प्रश्न 8.
खेल प्रदर्शन को बढ़ाने वाले किन्हीं तीन पदार्थों के नाम लिखें।
उत्तर:
(1) एनाबोलिक स्टीरायड्स,
(2) बीटा-2 एगोनिस्ट्स,
(3) कैन्नाबाइनायड्स।

प्रश्न 9.
नशीली वस्तुओं का सेवन करने वाले व्यक्ति के पैरों का तापमान सामान्य व्यक्ति से कितना कम होता है?
उत्तर:
नशीली वस्तुओं का सेवन करने वाले व्यक्ति के पैरों का तापमान 1.8 सैंटीग्रेड तक कम होता है।

प्रश्न 10.
नशे से ग्रस्त खिलाड़ी को साथी खिलाड़ी क्या समझते हैं?
उत्तर:
नशे से ग्रस्त खिलाड़ी को साथी खिलाड़ी झगड़ालू और गैर-जिम्मेदार खिलाड़ी समझते हैं।

प्रश्न 11.
WADA का पूरा नाम लिखें।
उत्तर:
World Anti Doping Agency.

प्रश्न 12.
चरस, अफीम, भाँग व कोकीन कैसे पदार्थ हैं?
उत्तर:
चरस, अफीम, भाँग व कोकीन नशीले पदार्थ हैं।

प्रश्न 13.
कैंसर का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
कैंसर का मुख्य कारण तम्बाकू है।

प्रश्न 14.
आदिकाल में मनुष्य नशीली वस्तुओं का प्रयोग क्यों करता था?
उत्तर:
आदिकाल में मनुष्य शरीर को बीमारियों से बचाने के लिए नशीली वस्तुओं का प्रयोग करता था।

प्रश्न 15.
किस पदार्थ के सेवन से रोग निवारक क्षमता कम होती है?
उत्तर:
तम्बाकू के सेवन से रोग निवारक क्षमता कम होती है।

प्रश्न 16.
नशीली वस्तुओं का प्रयोग शरीर पर क्या प्रभाव डालता है?
अथवा
मादक पदार्थों के सेवन से शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है? ।
उत्तर:
नशीली वस्तुओं का प्रयोग मनुष्य की विचार-शक्ति, पाचन शक्ति, माँसपेशी संस्थान, हृदय, फेफड़े और रक्त वाहिकाओं को कमजोर कर देता है।

प्रश्न 17.
तम्बाकू में कौन-सा पदार्थ नशा करता है?
उत्तर:
तम्बाकू में निकोटिन पदार्थ नशा करता है।

प्रश्न 18.
अफीम किस पौधे से तैयार होती है?
उत्तर:
अफीम पैपेवर सोम्नीफेरम (Papaver Somniferum) पौधे से तैयार होती है।

प्रश्न 19.
तम्बाकू के प्रयोग से कौन-कौन से रोग हो जाते हैं?
उत्तर:
तम्बाकू के प्रयोग से शरीर को दमा, कैंसर और श्वास के रोग हो जाते हैं।

प्रश्न 20.
नशीली वस्तुओं का कोई एक दोष बताएँ।
उत्तर:
मानसिक संतुलन बिगड़ना।

प्रश्न 21.
डोपिंग मुख्यतः कितने प्रकार की होती है?
उत्तर:
डोपिंग मुख्यतः दो प्रकार की होती है।

प्रश्न 22.
किस प्रकार के मादक पदार्थ ज्यादा खतरनाक होते हैं?
उत्तर:
एनाबोलिक स्टीरॉयड्स, ऐमफैंटेमिन, बीटा एगोनिस्ट्स, बीटा ब्लार्क्स आदि।

प्रश्न 23.
एक अच्छी खेल के लिए खिलाड़ी को किस चीज़ की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
एक अच्छी खेल के लिए खिलाड़ी को तालमेल, फूर्ति और अडौल शरीर की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 24.
खेलों में नशीली वस्तुओं का प्रयोग करके खेलना किस कमेटी की ओर से मना किया गया है?
उत्तर:
खेलों में नशीली वस्तुओं का प्रयोग करके खेलना अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक कमेटी की ओर से मना किया गया है।

प्रश्न 25.
खिलाड़ी की ओर से जीता अवार्ड कब वापिस ले लिया जाता है?
उत्तर:
खेल के दौरान नशे का प्रयोग करके जीता अवार्ड सिद्ध होने के बाद वापिस ले लिया जाता है।

प्रश्न 26.
शराब के सेवन से व्यक्ति के किस संस्थान पर अधिक दुष्प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
शराब के सेवन से व्यक्ति के स्नायु-तंत्र संस्थान पर अधिक दुष्प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 27.
विश्व तम्बाकू निषेध दिवस प्रतिवर्ष कब मनाया जाता है?
उत्तर:
विश्व तम्बाकू निषेध दिवस प्रतिवर्षे 31 मई को मनाया जाता है।

प्रश्न 28.
प्राचीनकाल में मदिरा का प्रयोग किस रूप में होता था?
उत्तर:
प्राचीनकाल में मदिरा का प्रयोग सोमरस के रूप में होता था।

प्रश्न 29.
तम्बाकू के सेवन से शरीर के किस अंग पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
तम्बाकू के सेवन से फेफड़ों पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 30.
व्यक्तियों द्वारा तम्बाकू के रूप में किन-किन पदार्थों का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
(1) बीड़ी,
(2) सिगरेट,
(3) पान,
(4) गुटखा,
(5) जर्दा आदि।

बहुविकल्पीय प्रश्न [Multiple Choice Questions]

प्रश्न 1.
मनुष्य द्वारा पैदा की गई मुश्किलों में सम्मिलित है
(A) मद्यपान
(B) नशीले पदार्थों का सेवन
(C) धूम्रपान
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 2.
मद्यपान या शराबखोरी किसका सूचक है?
(A) राष्ट्र विघटन का
(B) वैयक्तिक विघटन का
(C) राजनीतिक विघटन का
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) वैयक्तिक विघटन का

प्रश्न 3.
शराबखोरी किस प्रकार की समस्या है?
(A) गंभीर
(B) दीर्घकालिक
(C) समाज विरोधी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 4.
मद्यपान या एल्कोहल भिन्न-भिन्न अम्लों से मिलकर कौन-सा पदार्थ बनाती है?
(A) एस्टर
(B) एथानॉल
(C) एल्कोहल
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) एस्टर

प्रश्न 5.
धूम्रपान करने वाले व्यक्ति में रक्त-दाब कितना बढ़ जाता है?
(A) 1 से 20 mm/Hg
(B) 5 से 20 mm/Hg
(C) 3 से 20 mm/Hg
(D) 7 से 30 mm/Hg
उत्तर:
(A) 1 से 20 mm/Hg

प्रश्न 6.
तम्बाकू के धुएँ में टॉर होते हैं जिसके कारण रोग हो जाते हैं-
(A) दमा
(B) कैंसर
(C) श्वास के रोग
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 7.
“एल्कोहल की असामान्य बुरी आदत ही मद्यपान है।” यह कथन है
(A) फेयरचाइल्ड का
(B) जॉनसन का
(C) डॉ० डरफी का
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) फेयरचाइल्ड का

प्रश्न 8.
मानव शरीर पर दुष्प्रभाव डालने वाला मादक पदार्थ है
(A) शराब
(B) हीरोइन
(C) अफीम,
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 9.
तम्बाकू का सेवन करने से होने वाला रोग है
(A) दमा
(B) कैंसर
(C) टी०बी०
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 10.
शराब, तम्बाकू और नशीले पदार्थों का सेवन स्वास्थ्य के लिए …………….है।
(A) लाभदायक
(B) आनंदमय
(C) हानिकारक
(D) प्रभावशाली
उत्तर:
(C) हानिकारक

प्रश्न 11.
निम्नलिखित में से अधिक खतरनाक मादक पदार्थ है
(A) एनाबोलिक एटीरॉयड्स
(B) ऐमफैंटेमिन
(C) बीटा ब्लास
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से कैंसर का मुख्य कारण है
(A) शराब
(B) अफीम
(C) तम्बाकू
(D) भाँग
उत्तर:
(C) तम्बाकू

मद्यपान, धूम्रपान तथा नशीले पदार्थों के दुष्प्रभाव Summary

मद्यपान, धूम्रपान तथा नशीले पदार्थों के दुष्प्रभाव परिचय

मद्यपान (Drinking):
मद्यपान या शराबखोरी वैयक्तिक विघटन का सूचक है क्योंकि शराबखोरी व्यक्ति को मजबूर कर देती है कि वह शराब पिए। शराबी व्यक्ति किसी भी साधन से शराब प्राप्त करने का प्रयत्न करता है और उसकी दैनिक दिनचर्या में शराब सम्मिलित हो जाती है, जिससे उसका स्वास्थ्य गिरता रहता है, मानसिक शांति व स्थिरता जाती रहती है, पारिवारिक जीवन विषमय हो जाता है और सामाजिक जीवन में अनेक समस्याएँ पैदा हो जाती हैं। जॉनसन (Johnson) के अनुसार, “मद्यपान वह स्थिति है जिसमें एक व्यक्ति शराब लेने की मात्रा पर नियंत्रण खो बैठता है जिससे कि वह पीना आरंभ करने के पश्चात् उसे बंद करने में सदैव असमर्थ रहता है।” … धूम्रपान (Smoking)- तम्बाकू किसी जहर से कम नहीं होता, परंतु दुःख की बात यह है कि लोग जानते हुए भी इसका प्रयोग निरंतर कर रहे हैं। वर्तमान में तम्बाकू के नशे की आदत नौजवानों में अधिक बढ़ गई है जो चिंता का विषय है। तम्बाकू में निकोटिन नाम का जहरीला पदार्थ होता है, जो शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है। व्यक्तियों द्वारा सिगरेट, बीड़ी, पान, गुटखा और जर्दे के रूप में तम्बाकू का प्रयोग किया जाता है। हर साल लाखों व्यक्तियों की मौत तम्बाकू के प्रयोग से होती है, जिनमें से एक तिहाई मौतें हमारे देश में होती हैं।

नशीले पदार्थ (Intoxicants or Drugs):
मनुष्य आदिकाल से नशीली वस्तुओं का प्रयोग करता आ रहा है। चाहे यह प्रयोग मन की उत्तेजना के लिए हो या बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए। परंतु जब भी इनका अधिक प्रयोग किया गया, इनके भयानक परिणाम देखने में आए। आधुनिक वैज्ञानिक युग में अनेक नई-नई नशीली वस्तुएँ अस्तित्व में आईं। इनके प्रयोग ने मानव जगत् को चिंता में डाल दिया है। इन नशीली वस्तुओं का प्रयोग करके चाहे थोड़े समय के लिए अधिक काम लिया जा सकता है, परंतु इनका अधिक प्रयोग करने से मानवीय शरीर रोग-ग्रस्त होकर सदा की नींद सो जाता है। इसलिए हमें नशीली वस्तुओं एवं दवाइयों से स्वयं को व समाज को बचाना चाहिए, ताकि हम समाज या खेल के क्षेत्र में आदर एवं सम्मान प्राप्त कर सकें।

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HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 6 शारीरिक शिक्षा में विभिन्न प्रतियोगितात्मक खेलकूदों का योगदान

Haryana State Board HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 6 शारीरिक शिक्षा में विभिन्न प्रतियोगितात्मक खेलकूदों का योगदान Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Physical Education Solutions Chapter 6 शारीरिक शिक्षा में विभिन्न प्रतियोगितात्मक खेलकूदों का योगदान

HBSE 9th Class Physical Education शारीरिक शिक्षा में विभिन्न प्रतियोगितात्मक खेलकूदों का योगदान Textbook Questions and Answers

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न [Long Answer Type Questions] 

प्रश्न 1.
प्रतियोगिता क्या है? विभिन्न खेलकद प्रतियोगिताओं की उपयोगिता पर प्रकाश डालें। अथवा शारीरिक शिक्षा व खेलकूद में प्रतियोगिताओं के महत्त्व का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रतियोगिता का अर्थ (Meaning of Competition);
जब दो या दो से अधिक खिलाड़ी या टीम ऐसे लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उद्यत हों जिसे केवल एक खिलाड़ी या टीम को ही प्रदान किया जा सकता हो तो ऐसी स्थिति से प्रतियोगिता का जन्म होता है। एक ही वातावरण में रहने वाले जीवों के बीच सहज रूप से ही प्रतियोगिता विद्यमान होती है।

प्रतियोगितात्मक खेलकूदों का महत्त्व (Importance of Competitive Games & Sports):
वर्तमान में खेलकूद दैनिक जीवन के एक महत्त्वपूर्ण अंग बनते जा रहे हैं। प्रतिस्पर्धा के इस युग में आज पढ़ाई के साथ-साथ खेलों की भी उपयोगिता निरंतर बढ़ती जा रही है। हमारे लिए खेलकूद प्रतियोगिताओं के महत्त्व निम्नलिखित हैं

1. आत्म-विश्वास (Self-confidence):
खेलकूद मनुष्य में आत्म-विश्वास का गुण विकसित करते हैं। यही आत्म-विश्वास उसे विपत्तियों का निडरता से सामना करने में सहायक होता है। आत्म-विश्वास के माध्यम से हम आसानी से बड़ी-से-बड़ी मुश्किलों का सामना कर सकते हैं। अत: खेलकूद प्रतियोगिताएँ हमारे अन्दर आत्म-विश्वास की भावना जगाती हैं।

2. आदर्श खेल की भावना (Spirit of Fair Play):
अच्छा खिलाड़ी खेल को खेल की भावना से खेलता है, हार-जीत के लिए नहीं। वह हेरा-फेरी से या फाउल खेलकर जीतना नहीं चाहता, जिससे उसमें आदर्श खेल की भावना आ जाती है।

3. संवेगों का निकास (Egress of Emotions):
दिन, हफ्ते और महीने से काम करने के पश्चात् व्यक्ति के मन में कुछ उलझनें तथा संवेग रह जाते हैं और मन अशांत रहता है। खेल प्रतियोगिता में भाग लेने से मनुष्य के मन से संवेगों का निकास हो जाता है जिससे व्यक्ति राहत महसूस करता है।

4. मुकाबले की प्रेरणा (Inspiration of Competition):
खेल प्रतियोगिताएँ मनुष्य में मुकाबले की प्रेरणा पैदा करती हैं। प्रत्येक खिलाड़ी विरोधी खिलाड़ी से अच्छा खेलने का प्रयत्न करता है। पहले खेलों में फिर जीवन में वे दूसरों से डटकर मुकाबला करते हैं। डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम के अनुसार, “हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए और हमें कभी मुश्किलों को खुद पर हावी होने का मौका नहीं देना चाहिए।”

5. खिलाड़ी की योग्यता निखारने में सहायक (Helpful in Polish the Talent of Player):
खेल प्रतियोगिताएँ किसी खिलाड़ी की साल-भर में सीखी गई खेल-कला के प्रदर्शन को निखारने में सहायक होती हैं।

6. शारीरिक विकास (Physical Growth):
खेल प्रतियोगिता में भाग लेने वाले खिलाड़ी का शरीर मजबूत एवं सुडौल होता है। उसमें चुस्ती और स्फूर्ति रहती है।

7. नस्ल-भेद की समाप्ति (To Abolish the Communalism):
भिन्न-भिन्न जातियों तथा मजहबों के खिलाड़ी खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेते हैं। खेलते समय खिलाड़ी जात-पात अथवा धर्म का अंतर भूलकर आपस में घुल-मिलकर खेलते हैं।

8. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहन (Incitement to International Co-operation):
अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में एक देश के खिलाड़ी दूसरे देशों के खिलाड़ियों के साथ खेलते हैं और उनके संपर्क में आते हैं, जिससे उन्हें एक-दूसरे को समझने का अवसर मिलता है और इससे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहन मिलता है।

9. समय का पाबंद (Punctuality):
खिलाड़ी को समय पर खेलने जाना पड़ता है। थोड़ी देर से पहुँचने पर वह मैच में भाग नहीं ले सकता। इस प्रकार खेल प्रतियोगिता मनुष्य को समय का पाबंद बनाती है।

10. दृढ़-संकल्प (Resolution):
खेल प्रतियोगिता द्वारा खिलाड़ी में दृढ़ संकल्प की भावना आती है। वह सही समय पर सही निर्णय लेना सीख जाता है। इससे वह अपनी टीम की हार को भी जीत में बदल सकता है। दृढ़-संकल्पी व्यक्ति को कभी असफलता का मुँह नहीं देखना पड़ता।

11. पथ-प्रदर्शन तथा नेतृत्व (Guidance and Leadership):
खेलकूदखेलकूद व्यक्ति में पथ-प्रदर्शन व नेतृत्व का गुण विकसित करते हैं। नेतृत्व करने वाला कप्तान जीवन में भी नेतृत्व करने की कला सीख जाता है।

12. आत्म-अभिव्यक्ति (Self-Manifestation) :
खेलकूद प्रतियोगिता में खिलाड़ी को आत्म-अभिव्यक्ति करने का अवसर मिलता है। मैदान में प्रत्येक खिलाड़ी अपने गुणों, कला तथा कुशलता को दर्शकों के सामने प्रकट करता है। खेल के मैदान ने हमें बहुत अनुशासन प्रिय, आत्म-संयमी और देश पर मर-मिटने वाले नागरिक व सैनिक दिए हैं। इसीलिए तो ड्यूक ऑफ विलिंग्टन ने वाटरलू के युद्ध में नेपोलियन महान् को हराने के पश्चात् कहा था, “वाटरलू का युद्ध तो एटन तथा हैरो के खेल के मैदान में जीता गया था।”

13. खाली समय का सदुपयोग (Proper use of Leisure Time):
एक प्रसिद्ध कहावत है-खाली दिमाग शैतान का घर होता है। खेलों में भाग लेने से खिलाड़ी बुरे कामों से बचा रहता है और खाली समय का सदुपयोग भी हो जाता है।

14. नए नियमों की जानकारी (Knowledge of New Rules):
खेल प्रतियोगिता से खिलाड़ी को नए नियमों की जानकारी मिलती है जिससे वे अपने खेल के स्तर को ऊँचा कर सकते हैं।

15. देश की प्रतिष्ठा (Dignity of Country):
आज अमेरिका, जापान, फ्रांस, जर्मनी, रूस, ऑस्ट्रेलिया, चीन आदि देश औद्योगिक व वैज्ञानिक प्रगति के कारण ही महान् नहीं माने जाते, बल्कि खेलों के क्षेत्र में भी इन देशों ने बड़ा नाम कमाया है। हम अपने राष्ट्र की प्रतिष्ठा में अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताएँ जीतकर और अधिक वृद्धि कर सकते हैं।

16. मनोरंजन (Entertainment):
सारा दिन काम करते-करते व्यक्ति के जीवन में उकताहट आ जाती है। खेलों में भाग लेने से मनुष्य का मनोरंजन होता है और वह उकताहट व थकावट से छुटकारा पा लेता है।

17. आज्ञा पालन का गुण (Quality of Obedience):
खेल प्रतियोगिता द्वारा खिलाड़ी में आज्ञा पालन का गुण विकसित हो जाता है। खेलते समय खिलाड़ी को अपने रैफरी, कोच या कप्तान के आदेशों का पालन करना पड़ता है। इससे उसमें आज्ञा पालन की आदत पड़ जाती है।

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 6 शारीरिक शिक्षा में विभिन्न प्रतियोगितात्मक खेलकूदों का योगदान

प्रश्न 2.
राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित की जाने वाली मुख्य खेल प्रतियोगिताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत में आयोजित होने वाली प्रमुख खेलकूद प्रतियोगिताओं पर एक नोट लिखें।
उत्तर:
प्रत्येक व्यक्ति में प्रतियोगिता की भावना होती है। यही भावना उसे उन्नति के मार्ग पर आगे कदम बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। यही भावना उसे सम्मान देने में सहायता करती है। वर्तमान युग में खेल प्रतियोगिताओं की भावना से व्यक्ति के संवेगों की संतुष्टि होती है। इससे व्यक्ति को न केवल कार्यकुशलता की प्राप्ति होती है, बल्कि वह इनसे दक्षता भी ग्रहण कर लेता है। इस प्रकार वह सर्वश्रेष्ठ खेल प्रदर्शन करने में सफल होता है। खेल प्रतियोगिताएँ मनोरंजन प्रदान करने के साथ-साथ मनुष्य को स्वस्थ रखती हैंतथा रोग या बीमारी से दूर रखती हैं। प्राचीनकाल में घुड़सवारी, भाला फेंकना, मल्लयुद्ध, तीरंदाजी आदि खेलें ही लोकप्रिय थीं और इन्हीं खेलों का आयोजन किया जाता था। मगर समय में बदलाव के कारण इन खेलों का स्थान अन्य खेलों ने ले लिया। इनमें प्रमुख हॉकी, बैडमिंटन, फुटबॉल, क्रिकेट, टेनिस, वॉलीबॉल आदि हैं। आज इन खेलों का आयोजन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किया जाता है। भारत में आयोजित की जाने वाली विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं का वर्णन निम्नलिखित है

1. रंगास्वामी कप राष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिता (Rangaswami Cup/National Hockey Championship):
भारतीय हॉकी एसोसिएशन ने राष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिता सन् 1927 में आरंभ करवाई। इस प्रतियोगिता में मोरिस नामक न्यूजीलैण्ड के निवासी को सन् 1935 में तथा सन् 1946 में पंजाब एसोसिएशन के सचिव बख्शीश अलीशेख को शील्ड प्रदान की गई। लेकिन विभाजन के कारण यह शील्ड पाकिस्तान में ही रह गई, क्योंकि बख्शीश अलीशेख पाकिस्तान में रहने लगा था। विभाजन के पश्चात् मद्रास के समाचार-पत्र ‘हिंद’ तथा ‘स्पोर्ट्स एंड पास्टाइम’ के मालिकों ने अपने संपादक श्री रंगास्वामी के नाम पर राष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिता के लिए एक नया कप प्रदान किया। इस कारण इस प्रतियोगिता को ‘रंगास्वामी कप’ के नाम से जाना जाता है। सन् 1947 से ‘रंगास्वामी कप’ के नाम से यह प्रतियोगिता आयोजित की जा रही है। यह प्रतियोगिता नॉक आउट स्तर पर करवाई जाती है।

2. आगा खाँ कप (Agha Khan Cup):
सर आगा खाँ ने पहली बार इस प्रतियोगिता के लिए कप दिया। उन्हीं के नाम पर सन् 1896 से यह प्रतियोगिता नॉक आउट स्तर पर करवाई जा रही है। सर्वप्रथम इस कप को जीतने का श्रेय मुंबई के जिमखाना को प्राप्त है। इस प्रतियोगिता का आयोजन आगा खाँ टूर्नामेंट कमेटी करती है।

3. अखिल भारतीय नेहरू सीनियर हॉकी प्रतियोगिता (All India Nehru Senior Hockey Competition):
सन् 1964 में स्वर्गीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की पुण्य-तिथि की याद में नई दिल्ली में इस प्रतियोगिता का आरंभ हुआ। इस प्रतियोगिता का नाम उनके नाम पर ही रखा गया। यह प्रतियोगिता नॉक आउट-कम-लीग आधार पर करवाई जाती है। जीतने वाली टीम को राष्ट्रपति के द्वारा पुरस्कारों का वितरण किया जाता है और खिलाड़ियों को सम्मानित किया जाता है।

4. अखिल भारतीय नेहरू जूनियर हॉकी प्रतियोगिता (All India Nehru Junior Hockey Competition):
यह हर वर्ष नई दिल्ली में आयोजित की जाती है, जिसमें 18 वर्ष से कम आयु वाले खिलाड़ी भाग लेते हैं। विभिन्न राज्यों की टीमें इसमें भाग लेने के लिए आती हैं । इस प्रतियोगिता का फाइनल मुकाबला भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्व० पं० जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन 14 नवंबर को आयोजित किया जाता है अर्थात् यह प्रतियोगिता 1 नवम्बर से शुरू होकर पंडित जवाहरलाल नेहरू जी के जन्म दिवस 14 नंवबर को समाप्त होती है।

5. डूरंड कप (Durand Cup):
इस कप का यह नाम ब्रिटिश इंडिया के विदेश सचिव सर मोर्टीमोर डूरंड के नाम पर रखा गया। यह प्रतियोगिता पहले ‘शिमला टूर्नामेंट’ के नाम से विख्यात थी। सन् 1931 से इस प्रतियोगिता में सेना के अतिरिक्त असैनिक टीमें भी भाग लेने लगी हैं। सर्वप्रथम इस प्रतियोगिता में भाग लेने का सौभाग्य ‘पटियाला टाइगर’ को प्राप्त हुआ। यह प्रतियोगिता हर वर्ष नॉक आउट-कम-लीग स्तर पर करवाई जाती है।

6. रोवर्ज़ कप (Rovers Cup)-यह खेल प्रतियोगिता फुटबॉल खेल से संबंधित है, जिसका आयोजन प्रतिवर्ष रोवर्ज कप टूर्नामेंट कमेटी की ओर से किया जाता है। इस प्रतियोगिता में देश के विभिन्न भागों से टीमें भाग लेने आती हैं।

7. सुबोटो मुखर्जी कप (Subroto Mukherjee Cup):
सुब्रोटो मुखर्जी कप प्रतियोगिता को ‘जूनियर डूरंड प्रतियोगिता’ के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रतियोगिता का आयोजन एयर मार्शल सुब्रोटो मुखर्जी की याद में किया जाता है। डूरंड कमेटी पिछले कई वर्षों से सीनियर वर्ग के लिए फुटबॉल की इस प्रतियोगिता का आयोजन कर रही है। यह प्रतियोगिता प्रतिवर्ष नवंबर और दिसंबर के महीने में नई दिल्ली में आयोजित होती है। इस प्रतियोगिता में किसी राज्य की एक ही स्कूल की सर्वोत्तम टीम भाग ले सकती है। इसमें 17 वर्ष की आयु तक के खिलाड़ी भाग लेते हैं। विजयी टीम को एक आकर्षक ट्रॉफी दी जाती है और अच्छे खिलाड़ियों को वजीफे भी दिए जाते हैं।

8. संतोष ट्रॉफी (Santosh Trophy):
संतोष ट्रॉफी कूच बिहार के महाराजा संतोष जी ने राष्ट्रीय फुटबॉल प्रतियोगिता के लिए दी थी। यह प्रतियोगिता भारतीय फुटबॉल एसोसिएशन द्वारा प्रतिवर्ष अपने किसी प्रांतीय सदस्य एसोसिएशन की तरफ से करवाई जाती है। इस प्रतियोगिता में भारत के सभी प्रांतों की फुटबॉल टीमें, सैनिक और रेलवे की टीमें भाग लेती हैं। यह प्रतियोगिता, नॉक आउट-कम-लीग पर करवाई जाती है।

9. रणजी ट्रॉफी (Ranji Trophy):
पटियाला के महाराजा भूपेंद्र सिंह ने क्रिकेट के महान् खिलाड़ी रणजीत सिंह के नाम पर क्रिकेट में राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए ट्रॉफी भेंट की। यह प्रतियोगिता हर साल क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड द्वारा आयोजित की जाती है, जिसमें Role of Various Competitive Games & Sports in Physical Education भिन्न-भिन्न प्रांतों की टीमें भाग लेती हैं। यह प्रतियोगिता लीग स्तर पर करवाई जाती है। क्षेत्रीय प्रतियोगिता में विजेता टीम आगे नॉक आउट स्तर पर खेलती है।

10. सी०के० नायडू ट्रॉफी (C.K. Naidu Trophy):
सी०के० नायडू प्रतियोगिता स्कूल गेम्स फेडरेशन की तरफ से प्रत्येक वर्ष करवाई जाती है। भारत के सुप्रसिद्ध खिलाड़ी सी०के० नायडू के नाम पर इस ट्रॉफी का नाम रखा गया है। इस प्रतियोगिता में स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे ही भाग ले सकते हैं। यह प्रतियोगिता नॉक आउट स्तर पर प्रतिवर्ष आयोजित की जाती है। जो टीम एक बार मैच हार जाती है, उसे प्रतियोगिता से बाहर होना पड़ता है।

प्रश्न 3.
एक अच्छे खिलाड़ी में कौन-कौन-से गुण होने चाहिएँ? वर्णन करें।
अथवा
स्पोर्ट्समैनशिप क्या है? एक अच्छे स्पोर्ट्समैन के गुण लिखें।
अथवा
खेल-भावना से आपका क्या अभिप्राय है? एक अच्छे खिलाड़ी के गुणों या विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
खेल-भावना स्पोर्ट्समैनशिप का अर्थ (Meaning of Sportmanship):
स्पोर्ट्समैनशिप खिलाड़ी के अन्दर छुपी हुई वह खेल-भावना है, जो खेलों को पवित्र कार्य का दर्जा देती है। इस भावना के अन्तर्गत एक खिलाड़ी खेलों से सम्बन्धित प्रत्येक वस्तु को स्नेह
और आदर करता है। वह खिलाड़ियों को खेल देवता और खेल मैदानों को धार्मिक स्थानों जैसा सम्मान देता है। एक अच्छा स्पोर्ट्समैन कभी भी विरोधी टीम के खिलाड़ियों को अपना शत्रु नहीं समझता, बल्कि उनकी ओर से दिखाई गई अच्छी खेल की प्रशंसा करता है।

स्पोर्ट्समैनशिप एक ऐसी भावना है, जो व्यक्ति के अन्दर जागृत होती है। यह वंशानुगत नहीं, अपितु लहर और जज्बे की भान्ति मनुष्य के अन्दर से उठती है। प्रत्येक शारीरिक शिक्षा के अध्यापक का यह भरसक प्रयास होता है कि वह इस भावना को और उजागर करने में सहायता करें, क्योंकि ऐसी भावना वाले खिलाड़ी अथवा व्यक्ति का सम्मान समाज में अधिक होता है। यह तो जन्म के साथ-साथ चलती है और जैसे-जैसे व्यक्ति बड़ा होता है, वैसे-वैसे सुदृढ़ होकर निखरती जाती है। इस भावना के अंतर्गत स्पोर्ट्समैन खेलों के नियमों का पालन करता है। वह हर समय खेलों के विकास के लिए सहयोग देने के लिए तैयार रहता है।

एक अच्छे स्पोर्ट्समैन खिलाड़ी के गुण (Qualities of Good Sportsman)-एक अच्छे खिलाड़ी में निम्नलिखित गुणों का विकास होना आवश्यक है
1. सहनशीलता (Tolerance):
सहनशीलता खिलाड़ी का एक महत्त्वपूर्ण गुण है। खेल के दौरान अनेक ऐसे अवसर आते हैं, जब विजयी होने से बहुत प्रसन्नता मिलती है और हार जाने पर उदासी के बादल छा जाते हैं, परंतु अच्छा खिलाड़ी वही होता है जो विजयी . होने पर भी हारी हुई टीम अथवा खिलाड़ी को उत्साहित करे और हार जाने पर विजयी टीम को पूरे मान-सम्मान के साथ बधाई दे।

2. समानता की भावना (Spirit of Equality):
समानता की भावना खिलाड़ी के गुणों में एक महत्त्वपूर्ण गुण है। एक अच्छा खिलाड़ी खेल के दौरान जाति-पाति, धर्म, रंग, संस्कृति और सभ्यता के भेदभाव से दूर होकर प्रत्येक खिलाड़ी के साथ समानता का व्यवहार करता है।

3. सहयोग की भावना (Spirit of Co-operation):
एक अच्छे खिलाड़ी का महत्त्वपूर्ण गुण सहयोग की भावना है। यह भावना ही खेल के मैदान में सभी टीमों के खिलाड़ियों को एकजुट करती हैं। वे अपने कप्तान के अधीन रहकर विजय के लिए संघर्ष करते ‘ हैं और विजय का श्रेय केवल कप्तान अथवा किसी एक खिलाड़ी को नहीं जाता, बल्कि यह सारी टीम को जाता है।

4. अनुशासन की भावना (Spirit of Discipline):
एक अच्छे खिलाड़ी का मुख्य गुण यह है कि वह नियमपूर्वक अनुशासन में कार्य करे। वास्तविक स्पोर्ट्समैनशिप वही होती है, जिसमें खेल के सभी नियमों की पालना बहुत ही अच्छे ढंग से की जाए।

5. चेतनता (Consciousness or Awareness):
किसी भी खेल के दौरान चेतन या सचेत रहकर प्रत्येक अवसर का लाभ उठाना ही स्पोर्ट्समैनशिप है। खेल में थोड़ी-सी लापरवाही भी विजय को पराजय में और सावधानी पराजय को विजय में बदल देती है। अन्य शब्दों में, प्रत्येक क्षण की चेतनता स्पोर्ट्समैन का महत्त्वपूर्ण अंग है।

6. ईमानदार और परिश्रमी (Honest and Hard Working):
एक अच्छे स्पोर्ट्समैन का ईमानदार और परिश्रमी होना सबसे मुख्य गुण है। अच्छा स्पोर्ट्समैन कठोर परिश्रम का सहारा लेता है। वह उच्च खेल की प्राप्ति के लिए अनुचित साधनों का प्रयोग नहीं करता, बल्कि टीम के मान-सम्मान और देश की शान के लिए आगे बढ़ता है। .

7. हार-जीत में अंतर न समझना (No Difference between Victory and Defeat):
एक अच्छा खिलाड़ी वही माना जाता है जो खेल के नियमों का पालन करता है और वफादारी के साथ खेल में भाग लेता है। यदि खेल के अच्छे प्रदर्शन से उसकी टीम विजयी होती है तो खुशी में वह विरोधी टीम अथवा खिलाड़ी को मज़ाक का हिस्सा नहीं बनाता, अपितु वह दूसरे पक्ष को अच्छे प्रदर्शन के लिए बधाई देता है। यदि वह पराजित हो जाता है तो वह निराश होकर अपना मानसिक संतुलन नहीं गँवाता।

8. ज़िम्मेदारी की भावना (Spirit of Responsibility):
एक अच्छा खिलाड़ी अपनी ज़िम्मेदारी को अच्छी तरह समझता है और उसको ठीक ढंग से निभाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ता। उसे इस बात का एहसास होता है कि यदि वह अपनी जिम्मेदारी से थोड़ा-सा भी पीछे हटा तो उसकी टीम की पराजय निश्चित है। परिणामस्वरूप खिलाड़ी अपनी जिम्मेदारी को पूरी तरह निभाते हुए खेल में शुरू से लेकर अंत तक पूरी शक्ति से भाग लेता है।

9. मुकाबले की भावना (Spirit of Competition):
एक अच्छा खिलाड़ी वही है, जो अपनी जिम्मेदारी को समझता है। वह प्रत्येक कठिनाई में साथी खिलाड़ियों को हौसला देता है और अच्छा खेलने, उत्साह और अन्य प्रयत्न करने की प्रेरणा देता है। वास्तव में खेल की विजय का सारा रहस्य मुकाबले की भावना में होता है। वह करो या मरो की भावना से खेल के मैदान में जूझता है, परन्तु यह भावना बिना किसी वैर-विरोध के होती है। इस भावना में किसी टीम अथवा खिलाड़ी के प्रति बुरी भावना नहीं रखी जाती।

10. त्याग की भावना (Spirit of Sacrifice):
एक अच्छे खिलाड़ी में यह गुण होना भी अनिवार्य है। किसी भी टीम में खिलाड़ी केवल अपने लिए ही नहीं खेलता, अपितु उसका मुख्य लक्ष्य सारी टीम को विजयी करने का होता है। इससे स्पष्ट है कि प्रत्येक खिलाड़ी निजी स्वार्थ को त्यागकर पूरी टीम के लिए खेलता है। वह अपनी टीम को विजयी करने के लिए बहुत संघर्ष करता है। वह अपनी टीम की विजय को अपनी विजय समझता है और उसका सिर सम्मान से ऊँचा हो जाता है। परिणामस्वरूप त्याग की भावना रखने वाला खिलाड़ी ही वास्तव में अच्छा खिलाड़ी होता है। ऐसी भावना वाले खिलाड़ी ही अपनी टीम, स्कूल, प्रांत, क्षेत्र, देश और राष्ट्र के नाम को चार चाँद लगाते हैं।

11. आत्म-विश्वास की भावना (Spirit of Self-confidence):
यह गुण खिलाड़ी का बड़ा ही महत्त्वपूर्ण गुण है। खेल वही खिलाड़ी जीत सकता है, जिसमें आत्म-विश्वास की भावना है। आत्म-विश्वास के बिना खेलना असंभव है। अच्छा खिलाड़ी संतुष्ट और शांत स्वभाव वाला दिखाई देता है। इससे उसका आत्म-विश्वास ज़ाहिर होता है।

12. भ्रातृभाव की भावना (Spirit of Brotherhood):
स्पोर्ट्समैन में भ्रातृभाव की भावना का होना बहुत आवश्यक है। वह जाति-पाति, रंग-भेद, धर्म, संस्कृति और सभ्यता को अपने रास्ते में नहीं आने देता और सभी व्यक्तियों से एक-जैसा व्यवहार करता है। वह सबको एक प्रभु की संतान मानता है और इस कारण वे सभी भाई-भाई हैं।

प्रश्न 4.
टूर्नामेंट करवाने के लिए कौन-कौन-सी प्रणालियाँ अपनाई जाती हैं? वर्णन कीजिए।
अथवा
खेलकूद प्रतियोगिताएँ करवाने के लिए आमतौर पर हम किन-किन प्रणालियों को अपनाते हैं?
उत्तर:
टूर्नामेंट खेलकूद प्रतियोगिताएँ करवाने के लिए निम्नलिखित प्रणालियाँ अपनाई जाती हैं.

1. नॉक-आउट प्रणाली (Knock-out System):
नॉक-आउट प्रणाली के अंतर्गत टीमों की गिनती देखकर विगत चार वर्षों की विजयी टीमों को बारी दी जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि इनमें से कोई टीम पहले चरण में एक-दूसरे से मुकाबला करके हार न जाए। सामान्यतया विगत वर्ष की विजयी टीम को सबसे ऊपर, रनर-अप टीम को सबसे नीचे और तीसरे व चौथे स्थान पर रहने वाली टीम को कहीं बीच में रखा जाता है। शेष टीमों को उनकी स्थिति या पर्चियाँ डालकर जोड़ियों में बदला जाता है। फाइनल में जीतने वाली टीम को विजेता और हारने वाली या दूसरे नंबर पर आने वाली टीम को उपविजेता (रनर-अप) घोषित किया जाता है और सेमी-फाइनल में हारने वाली टीमों को तीसरा व चौथा स्थान मिलता है।

2. लीग-कम-नॉक-आउट प्रणाली (League-cum-Knock-out System):
लीग-कम-नॉक-आउट प्रणाली में खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाली टीमों के ग्रुप बना दिए जाते हैं। किसी भी ग्रुप में टीमों की संख्या तीन से कम नहीं होती। ग्रुप प्रणाली में मैच लीग प्रणाली के आधार पर खेले जाते हैं। हर ग्रुप में प्रथम स्थान पर आने वाली टीम नॉक-आउट प्रणाली द्वारा खेलती है ताकि पहले चार स्थानों को सुनिश्चित किया जा सके। लेकिन जब ग्रुपों की संख्या दो हो तो प्रत्येक ग्रुप की दो विजेता टीमें अन्तिम चार में स्थान प्राप्त करती हैं और यहाँ ये आपस में एक दूसरे ग्रुप की टीमों से खेलती हैं। ये टीमें पहले दो स्थानों के लिए आपस में खेलती हैं। पहले ग्रुप की विजयी टीम दूसरे ग्रुप की रनर-अप टीम के साथ खेलती है। हारने वाली टीमें तीसरे तथा चौथे स्थान के लिए खेलती हैं। यदि टीमों को चार ग्रुपों (A, B, C, D) में बाँटा जाए तो प्रत्येक ग्रुप की विजेता टीम को लिया जाता है। A-ग्रुप की विजयी टीम C-ग्रुप की विजयी टीम से खेलेगी। B-ग्रुप की विजयी टीम D-ग्रुप की विजयी टीम के साथ खेलेगी। जो दो टीमें विजयी होंगी वे आपस में फाइनल में आमने-सामने होंगी।

3. नॉक-आउट-कम-लीग प्रणाली (Knock-out-cum League System):
इस प्रणाली में नॉक-आउट प्रणाली द्वारा सेमी-फाइनल (Semi-final) में पहुँचने वाली टीमों को पुनः लीग के अनुसार खेलना पड़ता है। अंकों के आधार पर प्रथम चार स्थानों का निर्णय किया जाता है।

4. लीग प्रणाली (League System):
लीग टूर्नामेंट वह टूर्नामेंट है जिसमें भाग लेने वाली प्रत्येक टीम एक-दूसरे के खिलाफ खेलती हैं। इस टूर्नामेंट में विजयी टीम को 2 अंक, मैच को ड्रॉ करवाने वाली टीमों को 1 – 1 अंक और हारने वाली टीम को शून्य दिया जाता है। लीग प्रणाली में सर्वाधिक अंक अर्जित करने वाली टीम को विजयी घोषित कर ईनाम दिया जाता है। यदि दो टीमों के अंक बराबर हों तो ऐसी स्थिति में उनके द्वारा किए गए प्रदर्शन के आधार पर विजेता टीम का फैसला किया जाता है।

5. लीग-कम-लीग प्रणाली (League-cum-League System):
इस प्रणाली में आयोजित टूर्नामेंट के विभिन्न पूलों (वर्गों) में विजयी टीमों को एक-दूसरे के खिलाफ खेलना पड़ता है।

6. दोहरी लीग प्रणाली (Double League System):
दोहरी लीग प्रणाली में पूल नहीं बनाए जाते। सभी टीमें एक-दूसरे के साथ आपस में खेलती हैं। सभी टीमें आपस में बिना पूल के दो बार खेलती हैं। जो टीम दोनों बार अधिक-से-अधिक अंक प्राप्त करती है तो अधिक अंक प्राप्त करने वाली टीम को विजयी घोषित कर दिया जाता है।

प्रश्न 5.
खेल प्रतियोगिताओं से खिलाड़ी में किन-किन गुणों का विकास होता है? व्याख्या कीजिए।
अथवा
खेल प्रतियोगिताओं से खिलाड़ी या व्यक्ति में कौन-कौन-से गुण विकसित होते हैं? विस्तृत वर्णन करें। अथवा “खेलकूद से व्यक्ति का सर्वांगीण विकास संभव होता है।” इस कथन का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
खेलों का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है, क्योंकि इनसे व्यक्ति को न केवल शारीरिक शक्ति प्राप्त होती है, बल्कि ये उसके सम्मान में भी वृद्धि करने में सहायक होते हैं। इनसे व्यक्तियों या खिलाड़ियों में विभिन्न प्रकार के नैतिक एवं सामाजिक गुणों का विकास होता है। ये उनके सर्वांगीण विकास में सहायक होते हैं। अत: खेल प्रतियोगिताओं से खिलाड़ी में विकसित होने वाले गुण निम्नलिखित हैं

1. आत्म-विश्वास (Self-confidence):
खेल एक व्यक्ति में आत्म-विश्वास (Self-confidence) का गुण विकसित करते हैं। जब वह जीत जाता है तो उसे लगता है कि वह कुछ भी कर सकता है। अतः खेलों से खिलाड़ी में आत्म-विश्वास बढ़ता है।

2. आज्ञा पालन की भावना (Feeling of Obedience):
खेल प्रतियोगिता द्वारा खिलाड़ी में आज्ञा पालन की भावना विकसित हो जाती है। खेलते समय खिलाड़ी को अपने रैफरी, कोच या कप्तान के आदेशों का पालन करना पड़ता है। इससे उसे आज्ञा पालन की आदत पड़ जाती है।

3. उत्तरदायित्व की भावना (Feeling of Responsibility):
खिलाड़ी को हर समय ध्यान रखना पड़ता है कि उसकी लापरवाही से टीम पराजित हो सकती है। खेलों से उसमें उत्तरदायित्व की भावना आ जाती है।

4. त्याग की भावना (Feeling of Sacrifice):
खेल के समय खिलाड़ी अपने हितों को त्यागकर टीम के हितों का ध्यान रखता है। उसमें त्याग का गुण विकसित हो जाता है।

5. दृढ़-संकल्प की भावना (Feeling of Resolution):
खिलाड़ी जीतने के लिए जी-तोड़ मेहनत करता है। जीतने की इच्छा उसमें दृढ़-संकल्प की भावना उत्पन्न करती है।

6. समय का पाबंद (Punctuality):
खिलाड़ी को समय पर खेलने जाना पड़ता है। थोड़ी देर से पहुँचने पर वह मैच में भाग नहीं ले सकता। इस प्रकार खेल प्रतियोगिता मनुष्य को समय का पाबंद बनाती है।

7. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की भावना (Feeling of International Co-operation):
अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में एक देश के खिलाड़ी दूसरे देशों के खिलाड़ियों के साथ खेलते हैं और उनके संपर्क में आते हैं, जिससे उन्हें एक-दूसरे को समझने का अवसर मिलता है और उनमें अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की भावना उत्पन्न होती है।

8. दूसरों की सहायता की भावना (Feeling of Co-operation):
खिलाड़ी को अन्य खिलाड़ियों के साथ मिलकर खेलना पड़ता है। उसमें दूसरों की सहायता करने की भावना उत्पन्न हो जाती है।

9. आदर्श खेल की भावना (Spirit of Fair Play):
अच्छा खिलाड़ी खेल को खेल के लिए खेलता है, न कि हार-जीत के लिए। वह हेरा-फेरी से या फाउल खेलकर जीतना नहीं चाहता, जिससे उसमें आदर्श खेल की भावना आ जाती है।

10. अनुशासन का गुण (Quality of Discipline):
प्रत्येक खेल नियमों में बंधे होते हैं। इन नियमों की पालना हर खिलाड़ी को करनी होती है। यदि वह इन नियमों की अवहेलना करता है तो उसे खेल से बाहर कर दिया जाता है। इसलिए खिलाड़ी इन नियमों की पालना करता है जिससे उसमें अनुशासन का गुण विकसित हो जाता है।

11. चरित्र का विकास (Development of Character):
खेलों से खिलाड़ी के चरित्र का विकास भी होता है क्योंकि खिलाड़ी के पास खाली समय न होने के कारण उसमें बुरी आदतें नहीं पनप पातीं।

12. भावनाओं पर नियंत्रण (Control on Emotions):
एक व्यक्ति खेलते समय खेल में इतना मग्न हो जाता है कि वह जीवन की चिंताओं व झंझटों की ओर कोई ध्यान नहीं देता। वह खेलों के माध्यम से क्रोध, चिन्ता, भय आदि भावनाओं पर नियन्त्रण पा लेता है।

13. सहनशीलता एवं धैर्य की भावना (Feeling of Tolerance and Patience):
खेलों से खिलाड़ी में सहनशीलता एवं धैर्य की भावना विकसित होती है। यह भावना उसके जीवन को गति प्रदान करती है और उसके सम्मान में भी वृद्धि करती है।

प्रश्न 6.
लीग टूर्नामेंट किसे कहते हैं? इस टूर्नामेंट में फिक्सचर/आरेखण देने की प्रक्रिया का उल्लेख करें।
अथवा
लीग टूर्नामेंट में फिक्सचर तैयार करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली विधियों का वर्णन करें।
उत्तर:
लीग टूर्नामेंट का अर्थ (Meaning of League Tournament):
लीग टूर्नामेंट वह टूर्नामेंट है जिसमें भाग लेने वाली प्रत्येक टीम एक-दूसरे के खिलाफ खेलती हैं। लीग टूर्नामेंट में सर्वाधिक अंक अर्जित करने वाली टीम को विजयी घोषित कर ईनाम दिया जाता है। यदि दो टीमों के अंक बराबर हों तो ऐसी स्थिति में उनके द्वारा किए गए प्रदर्शन के आधार पर विजेता टीम का फैसला किया जाता है।

लीग टूर्नामेंट में फिक्सचर देने की प्रक्रिया (Drawing the Fixture in League Tournament):
लीग टूर्नामेंट में फिक्सचर तैयार करने के तीन मुख्य तरीके निम्नलिखित हैं…

1. सीढ़ीनुमा विधि (Staircase Method)किसी भी टीम को कोई बाई नहीं दी जाती और इसमें टीमों की संख्या सम हो या विषम हो, कोई समस्या नहीं होती।
उदाहरण-11 टीमों का फिक्सचर (Fixture) निम्नानुसार होगा
HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 6 शारीरिक शिक्षा में विभिन्न प्रतियोगितात्मक खेलकूदों का योगदान 1
खेले जाने वाले मैचों की कुल संख्या
= \(\frac{N(N-1)}{2}\) = \(\frac{11(11-1)}{2}\) = \(\frac{11(10)}{2}\) = \(\frac{110}{2}\) = 55

2. चक्रीय/साइक्लिक विधि (Cyclic Method):
इस पद्धति में एक टीम को स्थिर रखा जाता है और अन्य टीमें एक विशेष . दिशा में आगे बढ़ती हैं। यदि टीमों की संख्या सम होती है तो कोई बाई नहीं दी जाती, लेकिन अगर भाग लेने वाली टीमों की संख्या विषम हो, तो प्रत्येक दौर (राउंड) में एक बाई दी जाती है।
उदाहरण-8 टीमों का फिक्सचर (सम संख्या)
कुल टीमें = 8

मैचों की संख्या = \(\frac{\mathrm{N}(\mathrm{N}-1)}{2}\) = \(\frac{8(8-1)}{2}\) = \(\frac{8(7)}{2}\) = \(\frac{56}{2}\) = 28
राउंड की संख्या = N – 1 = 8 – 1 =7
8 टीमों का फिक्सचर:
HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 6 शारीरिक शिक्षा में विभिन्न प्रतियोगितात्मक खेलकूदों का योगदान 2

3. सारणी बंध/टैबूलर विधि (Tabular Method):
इस विधि में टैबूलर की तरह फिक्सचर पाया जाता है अर्थात् टेढ़ी व खड़ी रेखाएँ बनाकर फिक्सचर पाया जाता है। यदि टीमों की कुल संख्या समान (Even) हो तो खानों/वर्गों में कुल संख्या = N + 1 होगी। यदि टीमों की कुल संख्या विषम (Odd) हो तो खानों/वर्गों की कुल संख्या = N + 2 होगी। खानों की अपेक्षित संख्या बना लेने के बाद चौरस के ऊपर वाले कोने को उसके उलट नीचे वाले कोने से मिला देना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि 6 टीमों का फिक्सचर पाना है तो कुल टीमें 6 + 1 = 7 खाने कुल राउंड = 5.
6 टीमों का फिक्सचर
HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 6 शारीरिक शिक्षा में विभिन्न प्रतियोगितात्मक खेलकूदों का योगदान 3

प्रश्न 7.
फिक्सचर/आरेखण क्या है? नॉक-आउट टूर्नामेंट के आधार पर 19 टीमों का एक फिक्सचर तैयार करें।
उत्तर:
(1) फिक्सचर का अर्थ (Meaning of Fixture):
फिक्सचर या स्थिरता एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से टीमों/ खिलाड़ियों के बीच प्रतियोगिता टॉस आदि द्वारा निश्चित की जाती है। यह टीमों को उनकी टीम द्वारा खेले जाने वाले मैच का समय, स्थान और तिथि,के बारे में सूचित करता है।

(2) नॉक-आउट टूर्नामेंट में फिक्सचर तैयार करना (Drawing the Fixture in Knock-out Tournament):
नॉक-आउट टूर्नामेंट के आधार पर 19 टीमों का फिक्सचर इस प्रकार होगा

ऊपरी अर्ध-भाग की टीमें = \(\frac{\mathrm{N}+1}{2}\)
= \(\frac{19+1}{2}\) = \(\frac{20}{2}\) = 10

निचले अर्ध-भाग की टीमें =\(\frac{\mathrm{N}-1}{2}\)
= \(=\frac{19-1}{2}\) = \(\frac{18}{2}\) = 9

दी जाने वाली बाईज़ की संख्या (टीमों की संख्या को 2 की पावर (घात) वाले अगले उच्च अंक में से घटाएँ) अर्थात् 32 – 19 = 13
ऊपरी अर्ध-भाग में दी जाने वाली बाईज़ की संख्या = = \(\frac{N b-1}{2}\) = \(\frac{13-1}{2}\) = \(\frac{12}{2}\) = 6
निचले अर्ध-भाग में दी जाने वाली बाईज़ की संख्या = \(\frac{N b+1}{2}\) = \(\frac{13+1}{2}\) = \(\frac{14}{2}\) = 7
HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 6 शारीरिक शिक्षा में विभिन्न प्रतियोगितात्मक खेलकूदों का योगदान 4

लघूत्तरात्मक प्रश्न [Short Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
टूर्नामेंट क्या है? इसको आयोजित करते समय किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर:
टूर्नामेंट-टूर्नामेंट एक प्रतिस्पर्धा है जिसमें अपेक्षाकृत बड़ी संख्या में प्रतियोगी भाग लेते हैं। अत: टूर्नामेंट विभिन्न टीमों के बीच कई दौरों की एक बड़ी प्रतियोगिता है। यह एक निश्चित कार्यक्रम के अनुसार किसी विशेष गतिविधि में विभिन्न टीमों के बीच आयोजित एक प्रतियोगिता है जहाँ विजेता का फैसला किया जाता है। टूर्नामेंट आयोजित करवाते समय ध्यान देने योग्य बातें-टूर्नामेंट आयोजित करवाते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए

(1) किसी टूर्नामेंट का आयोजन करने हेतु अपेक्षित समय होना चाहिए।
(2) टूर्नामेंट के दौरान प्रयोग होने वाले अपेक्षित सामान व उपकरणों की व्यवस्था टूर्नामेंट से पहले ही करनी चाहिए।
(3) टूर्नामेंट में शामिल होने वाली टीमों को समय रहते टूर्नामेंट आयोजन की जानकारी देनी चाहिए, ताकि सभी टीमें अपनी आवश्यक तैयारी कर सकें।
(4) टूर्नामेंट को आयोजित करने वाले अच्छे अधिकारियों एवं कर्मचारियों की पहले ही व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि टूर्नामेंट का आयोजन सही ढंग से हो सके।
(5) टूर्नामेंट संबंधी आवश्यक समितियों की व्यवस्था पहले ही कर लेनी चाहिए और उनको जिम्मेवारियाँ बाँट देनी चाहिए।
(6) टूर्नामेंट पर खर्च होने वाली राशि का पूर्व अनुमान कर लेना चाहिए, ताकि धन की कमी के कारण टूर्नामेंट के बीच में कोई बाधा उत्पन्न न हो।

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 6 शारीरिक शिक्षा में विभिन्न प्रतियोगितात्मक खेलकूदों का योगदान

प्रश्न 2.
खेल मुकाबलों से क्या-क्या लाभ होते हैं? संक्षेप में वर्णन करें। अथवा खेल प्रतियोगिताओं के लाभ बताइए।
उत्तर खेलों का जन्म मनुष्य के जन्म के साथ ही हुआ। खेल प्रतियोगिताएँ आधुनिक मनुष्य के जीवन का अटूट अंग हैं । ये हमारे लिए निम्नलिखित प्रकार से लाभदायक हैं
(1) खेल प्रतियोगिता मनुष्य में आत्म-विश्वास का गुण विकसित करती है। यह आत्म-विश्वास उसे विपत्तियों का निडरता से सामना करने में सहायक होता है।
(2) दिन-भर काम करने के पश्चात् उसमें कुछ अतिरिक्त शारीरिक शक्ति बच जाती है। इस बची हुई शक्ति का खेल प्रतियोगिता में भाग लेने से ठीक प्रयोग हो जाता है।
(3) खेल प्रतियोगिता में भाग लेने से मनुष्य के मन के संवेगों का निकास हो जाता है, जिससे वह राहत महसूस करता है।
(4) खेल प्रतियोगिताएँ मनुष्य में मुकाबले की भावना पैदा करती हैं।
(5) खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने से मनुष्य का मनोरंजन होता है और वह उकताहट व थकावट से छुटकारा पा लेता है।
(6) खेल प्रतियोगिता में भाग लेने वाले खिलाड़ी का शरीर बलवान रहता है। उसमें चुस्ती और स्फूर्ति रहती है तथा स्वास्थ्य ठीक रहता है।
(7) अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में एक देश के खिलाड़ी दूसरे देशों के खिलाड़ियों के साथ खेलते हैं और उनके संपर्क में आते हैं, जिससे उन्हें एक-दूसरे को समझने का अवसर मिलता है और उनमें अंतर्राष्ट्रीय भावना उत्पन्न होती है।
(8) खेल प्रतियोगिता द्वारा व्यक्ति में दृढ़-संकल्प आता है। वह सही समय पर सही निर्णय लेना सीख जाता है। इससे वह अपनी टीम की हार को भी जीत में बदल सकता है।
(9) खेल प्रतियोगिता से खिलाड़ियों को नए नियमों की जानकारी मिलती है जिससे वे अपने खेल के स्तर को ऊँचा कर सकते हैं।
(10) खेल प्रतियोगिताओं से अनेक नैतिक एवं सामाजिक गुण विकसित होते हैं।

प्रश्न 3.
प्रतियोगितात्मक खेलकूदों के मुख्य उद्देश्य बताएँ। अथवा खेलों के प्रमुख उद्देश्यों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रतियोगितात्मक खेलकूदों के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं
(1) शारीरिक विकास में सहायता करना।
(2) आत्म-अभिव्यक्ति का अवसर देना।
(3) नेतृत्व का गुण विकसित करना।
(4) आदर्श खेल भावना का विकास करना।
(5) त्याग एवं सहयोग की भावना का विकास करना।
(6) समय के प्रति जागरूकता की भावना पैदा करना।
(7) प्रतिस्पर्धा की भावना का विकास करना।
(8) देश-भक्ति की भावना का विकास करना।

प्रश्न 4.
रंगास्वामी कप या राष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिता पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
भारतीय हॉकी एसोसिएशन ने राष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिता सन् 1927 में आरंभ करवाई। इस प्रतियोगिता में मोरिस नामक न्यूजीलैंड के निवासी को सन् 1935 में तथा सन् 1946 में पंजाब एसोसिएशन के सचिव बख्शीश अलीशेख को शील्ड प्रदान की गई। लेकिन विभाजन के कारण यह शील्ड पाकिस्तान में ही रह गई, क्योंकि बख्शीश अलीशेख पाकिस्तान में रहने लगा था। विभाजन के पश्चात् मद्रास के समाचार-पत्र ‘हिंद’ तथा ‘स्पोर्ट्स एंड पास्टाइम’ के मालिकों ने अपने संपादक श्री रंगास्वामी के नाम पर राष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिता के लिए एक नया कप प्रदान किया। इस कारण इस प्रतियोगिता को ‘रंगास्वामी कप’ के नाम से जाना जाता है। यह प्रतियोगिता ‘नॉक-आउट’ स्तर पर करवाई जाती है।

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प्रश्न 5.
सुबोटो मुखर्जी कप टूर्नामेंट पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
डूरंड कमेटी पिछले कई वर्षों से सीनियर वर्ग के लिए फुटबॉल का टूर्नामेंट करवा रही है। इस कमेटी ने स्कूल के बच्चों के लिए खेल की महत्ता को.मुख्य रखते हुए सुब्रोटो मुखर्जी फुटबॉल टूर्नामेंट शुरू किया है। यह टूर्नामेंट प्रतिवर्ष नवंबर और दिसंबर के महीने में दिल्ली में खेला जाता है। इस टूर्नामेंट में किसी राज्य की एक ही स्कूल की सर्वोत्तम टीम भाग ले सकती है। इस टूर्नामेंट में भाग लेने वाले खिलाड़ी की आयु 16 वर्ष तक की होनी चाहिए। विजयी टीम को एक आकर्षक ट्रॉफी दी जाती है और अच्छे खिलाड़ियों को वजीफे भी दिए जाते हैं।

प्रश्न 6.
खेल एक व्यक्ति में किस प्रकार नेतृत्व का गुण उत्पन्न करने में सहायक होते हैं?
उत्तर:
खेल एक व्यक्ति में नेतृत्व का गुण उत्पन्न करने में सहायक होते हैं। खेलकूद में नेतृत्व करने वाला व्यक्ति जीवन में भी नेतृत्व करने की कला सीख जाता है। देश के लिए अच्छा नेता वरदान सिद्ध होता है। इतिहास साक्षी है कि खेल के मैदानों ने हमें अनुशासन-प्रिय, आत्म-त्यागी, आत्म-संयमी, ईमानदार और देश के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले नागरिक व सैनिक प्रदान किए हैं। इसीलिए तो ड्यूक ऑफ विलिंग्टन ने वाटरलू के युद्ध में नेपोलियन महान् को पराजित करने के पश्चात् कहा था, “वाटरलू का युद्ध तो ऐटन और हैरो के खेल के मैदान में जीता गया था।”

प्रश्न 7.
नॉक-आउट प्रणाली का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नॉक-आउट के अंतर्गत विगत चार वर्षों की विजयी टीमों को बारी दी जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि इनमें से कोई टीम पहले चरण में एक-दूसरे से मुकाबला करके हार न जाए। सामान्यतया विगत वर्ष की विजयी टीम को सबसे ऊपर, रनर-अप टीम को सबसे नीचे और तीसरे व चौथे स्थान पर रहने वाली टीम को कहीं बीच में रखा जाता है। शेष टीमों को उनकी स्थिति या पर्चियाँ डालकर जोड़ियों में बाँटा जाता है। फाइनल में जीतने वाली टीम को विजेता और हारने वाली या दूसरे नंबर पर आने वाली टीम को उपविजेता (रनर-अप) घोषित किया जाता है।

प्रश्न 8.
खेल प्रतियोगिताएँ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की भावना को कैसे बढ़ाती हैं?
उत्तर:
अंतर्राष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिताओं में एक देश के खिलाड़ी दूसरे देशों के खिलाड़ियों के साथ खेलते हैं और उनके संपर्क में आते हैं, जिससे उन्हें एक-दूसरे को समझने का अवसर मिलता है। इससे दोनों देशों के खिलाड़ियों में मित्रता व सूझ–बूझ बढ़ती है। इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की भावना विकसित होती है। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की भावना से विश्व में शांति स्थापित करने में सहायता मिलती है।

प्रश्न 9.
खेल मुकाबले व्यक्ति के चरित्र-विकास में कैसे सहायक होते हैं?
उत्तर:
खेल मुकाबले व्यक्ति के चरित्र-विकास में सहायक होते हैं। कई बार हम देखते हैं कि कुछ व्यक्ति खेलों में विजय प्राप्त करने के लिए दूसरी टीम के खिलाड़ियों को धन का लोभ देते हैं। प्रभावित खिलाड़ी प्रायश्चित करने के बाद भी अपना खोया हुआ सम्मान वापिस प्राप्त नहीं कर पाता। एक अच्छा खिलाड़ी साफ-सुथरा खेलते हुए खेल में विजय प्राप्त करने का प्रयास करता है। वह विजय के लिए किसी गलत ढंग का सहारा नहीं लेता। खेल मुकाबलों से उसमें अनेक सामाजिक व नैतिक गुण विकसित होते हैं; जैसे सहयोग, सहनशीलता, अनुशासन, बंधुत्व व आत्मविश्वास आदि। अतः स्पष्ट है कि खेलों से व्यक्ति/खिलाड़ी में अनेक चारित्रिक गुण विकसित होते हैं।

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प्रश्न 10.
राष्ट्र को खेल मुकाबलों से क्या लाभ होते हैं? अथवा
किसी भी राष्ट्र के लिए खेलों का क्या महत्त्व है? उत्तर-राष्ट्र को खेल मुकाबले से निम्नलिखित लाभ होते हैं

1. राष्ट्रीय एकता:
खेलों के माध्यम से व्यक्तियों में राष्ट्रीय एकता का विकास होता है। एक राज्य के खिलाड़ी दूसरे राज्यों के खिलाड़ियों से खेलने के लिए आते-जाते रहते हैं। उनके परस्पर समन्वय से राष्ट्रीय भावना उत्पन्न होती है।

2. अंतर्राष्ट्रीय भावना:
एक देश की टीमें दूसरे देशों में मैच खेलने जाती हैं। इससे दोनों देशों के खिलाड़ियों में मित्रता और सूझ-बूझ बढ़ती है, जिससे परस्पर भेदभाव मिट जाते हैं। इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय भावना विकसित होती है। अंतर्राष्ट्रीय भावना के विकास से शांति स्थापित होती है।

3. अच्छे और अनुभवी नेता:
खेलों के द्वारा अच्छे नेता पैदा होते हैं क्योंकि खेल के मैदान में खिलाड़ियों को नेतृत्व के बहुत से अवसर मिलते हैं। खेलों के ये खिलाड़ी बाद में अच्छी तरह से अपने देश की बागडोर संभालने में सक्षम हो सकते हैं।

4. अच्छे नागरिक गुणों का विकास:
खेलें खिलाड़ियों में आज्ञा-पालन, नियम-पालन, जिम्मेदारी निभाना, आत्म-विश्वास, सहयोग आदि गुणों का विकास करती हैं। इन गुणों से युक्त व्यक्ति श्रेष्ठ नागरिक बन जाता है। श्रेष्ठ और अच्छे नागरिक ही देश की बहुमूल्य संपत्ति होते हैं।

प्रश्न 11.
विद्यार्थी जीवन में खेलकूद का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
विद्यार्थी जीवन में खेलकूद का विशेष महत्त्व है। विद्यार्थी शुरू से ही खेलों में रुचि लेते हैं तथा पढ़ाई के साथ उनकी यह रुचि और बढ़ जाती है। विद्यार्थियों के मानसिक विकास के साथ-साथ शारीरिक विकास का भी होना अति आवश्यक है। स्वस्थ मस्तिष्क स्वस्थ शरीर में ही निवास करता है। अत: खेलकूद एवं व्यायाम शरीर को स्वस्थ बनाए रखते हैं। इनसे विद्यार्थियों का सर्वांगीण व्यक्तित्व विकसित होता है। खेलों का न केवल शारीरिक विकास की दृष्टि से अधिक महत्त्व है, बल्कि बौद्धिक, शैक्षिक, सामाजिक, संवेगात्मक विकास आदि के लिए भी इनका उतना ही महत्त्व है।

प्रश्न 12.
एक अच्छे स्पोर्ट्समैन में कौन-कौन-से गुण होने चाहिएँ?
उत्तर:
एक अच्छे स्पोर्ट्समैन में निम्नलिखित गुण होने चाहिएँ
(1) एक अच्छे स्पोर्ट्समैन में खेल भावना अवश्य होनी चाहिए।
(2) उसमें सहनशीलता एवं धैर्यता होनी चाहिए। उसको हार-जीत को अपने पर हावी नहीं होने देना चाहिए। हारने पर आवश्यकता से अधिक उत्साहित नहीं होना चाहिए और जीतने पर खुशी में मस्त होकर विरोधी टीम या खिलाड़ी का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए।
(3) उसमें अनुशासन, आत्म-विश्वास, सहयोग, समानता, त्याग आदि की भावना होनी चाहिए।
(4) उसे ईमानदार एवं परिश्रमी होना चाहिए।
(5) उसमें प्रतिस्पर्धा और जिम्मेदारी की भावना होनी चाहिए।
(6) उसमें भातृत्व की भावना भी होनी चाहिए। रंग, रूप, आकार, धर्म आदि के नाम पर किसी से कोई मतभेद नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 13.
खेलों से खिलाड़ी या व्यक्ति में विकसित होने वाले प्रमुख गुण बताएँ। उत्तर-खेलों से खिलाड़ी या व्यक्ति में निम्नलिखित प्रमुख गुण विकसित होते हैं
1. आत्म:
विश्वास-खेलें मनुष्य में आत्म-विश्वास का गुण विकसित करती हैं। यही आत्म-विश्वास उसे विपत्तियों का निडरता से सामना करने में सहायक होता है।

2. आदर्श खेल की भावना:
अच्छा खिलाड़ी खेल को खेल की भावना से खेलता है, हार-जीत के लिए नहीं। वह हेरा-फेरी से या फाउल खेलकर जीतना नहीं चाहता, जिससे उसमें आदर्श खेल की भावना आ जाती है।

3. मुकाबले की भावना:
खेल मनुष्य में मुकाबले की भावना पैदा करते हैं। प्रत्येक खिलाड़ी विरोधी खिलाड़ी से अच्छा खेलने का प्रयत्न करता है। वे पहले खेलों में फिर जीवन में दूसरों से डटकर मुकाबला करना सीखते हैं।

4. दूसरों की सहायता की भावना:
खिलाड़ी को हर समय दूसरों के साथ मिलकर खेलना पड़ता है। अतः उसमें दूसरों की सहायता करने की भावना उत्पन्न हो जाती है।

5. त्याग की भावना:
खेलों से खिलाड़ी में त्याग का गुण विकसित हो जाता है।

प्रश्न 14.
खेलों द्वारा बच्चे कौन-से अच्छे गुण सीखते हैं?
उत्तर:
खेलों द्वारा बच्चे निम्नलिखित गुण सीखते हैं
(1) बड़ों, अध्यापकों तथा कोचों की आज्ञा का पालन करना।
(2) नियमों की पालना तथा समय का पाबंद होना।
(3) दूसरों के साथ मिलकर चलना तथा सहयोगी बनना।
(4) मन में पक्का इरादा तथा स्व-विश्वास पैदा करना।

प्रश्न 15.
एथलेटिक्स में कितने प्रकार के इवेंट्स होते हैं? उल्लेख कीजिए।
अथवा
एथलेटिक्स में फील्ड इवेंट्स कौन-कौन-से होते हैं?
अथवा
एथलेटिक्स में छलाँग एवं श्री इवेंट्स का उल्लेख करें।
उत्तर:
एथलेटिक्स में दो प्रकार के इवेंट्स होते हैं
1. ट्रैक इवेंट्स-ट्रैक इवेंट्स या दौड़ें निम्नलिखित प्रकार की होती हैं
(1) छोटी दूरी की दौड़,
(2) मध्यम दूरी की दौड़,
(3) लम्बी दूरी की दौड़,
(4) बाधा दौड़ या हर्डल्ज,
(5) रिले दौड़।

2. फील्ड इवेंट्स-एथलेटिक्स में फील्ड इवेंट्स निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं
(1) छलाँग इवेंट्स-छलाँग या कूदने वाले इवेंट्स में निम्नलिखित इवेंट्स शामिल होते हैं
(i) ऊँची छलाँग,
(ii) लम्बी छलाँग,
(iii) ट्रिप्पल जंप,
(iv) पोल वॉल्ट।।

(2) थ्रो इवेंट्स-थ्रो इवेंट्स में निम्नलिखित इवेंट्स शामिल होते हैं
(i) जैवलिन थ्रो,
(ii) डिस्कस थ्रो,
(ii) शॉट पुट,
(iv) हैमर थ्रो।

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प्रश्न 16.
लीग टूर्नामेंट के मुख्य लाभ बताएँ।
उत्तर:
लीग टूर्नामेंट के मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं
(1) यह टूर्नामेंट के एक योग्य विजेता को प्रस्तुत करता है।
(2) यह सभी प्रतियोगियों को रैंकिंग देता है।
(3) यह अंत तक रुचि को बनाए रखता है क्योंकि सभी प्रतिभागियों को लीग के अंत तक खेलना होता है।
(4) यह सभी टीमों या खिलाड़ियों को संतुष्ट करता है, क्योंकि सभी टीमों को एक-दूसरे के विरुद्ध खेलने का समान अवसर मिलता है।
(5) टीमों द्वारा अधिक संख्या में मैच खेले जा सकते हैं।
(6) अधिकतम संख्या में मैचों के कारण लीग टूर्नामेंट के माध्यम से खेलों को और अधिक लोकप्रिय बनाया जा सकता है।

प्रश्न 17.
बाई को निर्धारित करने का तरीका स्पष्ट करें।
उत्तर:
जब प्रतियोगिता में कुल टीमों की संख्या 2 की घात (Power) में न हो तो बाई दी जाती है। बाई देने का तरीका है
(1) सबसे पहले बाई निचले अर्ध-भाग की अन्तिम टीम को दी जाती है।
(2) दूसरी बाई ऊपरी अर्ध-भाग की पहली टीम को दी जाती है।
(3) तीसरी बाई निचले अर्ध-भाग की सबसे ऊपरी टीम को दी जाती है।
(4) चौथी बाई ऊपरी अर्ध-भाग की सबसे नीचे वाली टीम को दी जाती है।
(5) अन्य बाई इसी क्रम से निर्धारित की जाती है।

प्रश्न 18.
सीढ़ीनुमा विधि का अनुसरण करते हुए लीग टर्नामेंट के आधार पर 9 वॉलीबॉल टीमों का एक फिक्सचर बनाएँ।
उत्तर:
9 वॉलीबॉल टीमों का फिक्सचर निम्नानुसार होगा
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खेले जाने वाले मैचों की कुल संख्या:
=\(\frac{\mathrm{N}(\mathrm{N}-1)}{2}\) = \( \frac{9(9-1)}{2}\) = \(\frac{9(8)}{2}\) = \( \frac{72}{2} \) = 36

प्रश्न 19.
लीग टूर्नामेंट की टैबूलर विधि के आधार पर 7 टीमों का फिक्सचर बनाएँ।
उत्तर:
यदि 7 टीमों का फिक्सचर बनाना है, तो कुल टीमें 7 + 2 = 9 खाने
कुल राउंड =7
7 टीमों का फिक्सचर
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पहला राउंडदूसरा राउंडतीसरा राउंडचौथा राउंडपाँचवाँ राउंडछठा राउंडसातवाँ राउंड
A × BA × CB × CB × DC × DC × ED × E
D × FE × FA × DA × EB × EB × FC × F
C × GD × GE × GF × GA × FA × GB × G
E  × बाईB × बाईF  × बाईC  × बाईG  × बाईD  × बाईA  × बाई

प्रश्न 20.
नॉक-आउट के आधार पर टूर्नामेंट में भाग लेने वाली 11 फुटबॉल टीमों का एक फिक्सचर बनाएँ।
उत्तर
टीमों की संख्या = 11
ऊपरी अर्ध-भाग की टीमें = \(\frac{\mathrm{N}+1}{2}\) = \(\frac{11+1}{2}\) = \(\frac{12}{2}\) = 6
निचले अर्ध-भाग की टीमें = \(\frac{\mathrm{N}-1}{2}\) = \(\frac{11-1}{2}\) = \(\frac{10}{2}\) = 5
बाईज़ की कुल संख्या = (24 – N)
16 – 11 = 5

N (टीमों की संख्या) को अगले उच्चतम मूल्य 24 (अर्थात् 16) में से घटाया जाना चाहिए।
बाईज़ की संख्या 16 – 11 = 5
ऊपरी अर्ध-भाग में दी जाने वाली बाईज़ की संख्या
= \(\frac{\mathrm{N} b-1}{2}\) = \(\frac{5-1}{2}\) = \(\frac{4}{2}\) = 2 (Nb = बाईज़ की संख्या)
निचले अर्ध-भाग में दी जाने वाली बाईज़ की संख्या = \(\frac{\mathrm{N} b+1}{2}\) = \(\frac{5+1}{2}\) = \(\frac{6}{2}\) = 3
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प्रश्न 21.
नॉक-आउट टूर्नामेंट के आधार पर 13 टीमों का आरेखण/फिक्सचर बनाएँ।
उत्तर:
यदि टूर्नामेंट में 13 टीमें भाग ले रही हैं तो फिक्सचर तैयार होगा
कुल मैचों की संख्या = कुल टीमों की संख्या = 1
कुल राउंड = 2 × 2 × 2 × 2 संख्या 2 की पुनरावृत्ति चार बार हुई, इसलिए 4 राउंड खेले जाएंगे।
कुल बाई = 2 की अगली घात – कुल टीमों की संख्या 16 – 13 = 03

ऊपरी अर्ध-भाग (Upper half) में टीमों की संख्या
HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 6 शारीरिक शिक्षा में विभिन्न प्रतियोगितात्मक खेलकूदों का योगदान 9= \(\frac{13 + 1}{2}\) = \(\frac{14}{2}\) = 07

निचले अर्ध-भाग (Lower half) में टीमों की संख्या
HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 6 शारीरिक शिक्षा में विभिन्न प्रतियोगितात्मक खेलकूदों का योगदान 11= \(\frac{13 – 1}{2}\) =\(\frac{12}{2}\) = 06
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अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न [Very Short Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
खेल-भावना (Sportsmanship) से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
खेल-प्रतियोगिताओं में प्रत्येक खिलाड़ी व टीम जीतने के लिए खेलती है, लेकिन जीत केवल एक खिलाड़ी या एक टीम समूह की ही होती है। जो खिलाड़ी या टीम अपने प्रतिद्वन्द्वी के प्रति वैर-विरोध न करके एक-दूसरे के प्रति सद्भावनापूर्ण व्यवहार से खेलता/खेलती है, खिलाड़ी या टीम के ऐसे आचरण को ही खेल भावना कहते हैं । इस भावना के अंतर्गत स्पोर्ट्समैन खेलों के नियमों का आदर करता है। वह हर समय खेलों के विकास के लिए सहयोग देने के लिए तैयार दिखाई देगा।

प्रश्न 2.
दोहरी लीग-प्रणाली से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
यह ऐसी प्रणाली है जिसमें पूल नहीं बनाए जाते। प्रत्येक टीम एक-दूसरे के विरुद्ध खेलती है। प्रत्येक टीम एक-दूसरे से दो-दो बार खेलती है। जो टीम अधिक-से-अधिक अंक प्राप्त करती है उसे विजेता टीम घोषित किया जाता है।

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प्रश्न 3.
खेलों द्वारा मनोभावों पर काबू पाने का ढंग कैसे आता है?
अथवा
खिलाड़ी खेलों में अपने संवेगों को कैसे नियंत्रित करता है?
उत्तर:
खेल में मग्न होकर खिलाड़ी अपनी जिंदगी के सभी गम तथा चिंताएँ भूल जाता है जिससे खिलाड़ी को मानसिक बल मिलता है। खेलें खेलते समय खिलाड़ी को बहुत-से मानसिक उतार-चढ़ावों से गुजरना पड़ता है। वह सफलता-असफलता के समय अपने मानसिक या भावनात्मक संतुलन को हमेशा बनाए रखता है। सहजता रखता हुआ वह अपनी उत्पन्न हुई मानसिक समस्याओं या संवेगों का उचित हल ढूँढ लेता है। इस प्रकार खेलें खिलाड़ी को मनोभावों या संवेगों पर काबू पाने की शिक्षा देती हैं।

प्रश्न 4.
एथलेटिक्स क्या है?
उत्तर:
एथलेटिक्स (Athletics) शब्द ग्रीक भाषा का शब्द है। एथलेटिक्स ऐसी खेलें होती हैं जिसमें दौड़ने (Running), कूदने (Jumping) एवं फेंकने (Throwing) आदि से संबंधित इवेंट्स होते हैं।

प्रश्न 5.
फर्राटा दौड़ें (Sprint Races) किसे कहते हैं? उदाहरण दें।
उत्तर:
फर्राटा दौड़ें वे दौड़ें होती हैं जो धावक द्वारा अत्यधिक तेज गति से दौड़ी जाती हैं। उदाहरण के लिए, 100 मी०, 200 मी० की दौड़ें आदि।

प्रश्न 6.
खेलों में किन मुख्य भावनाओं का होना अति आवश्यक है?
अथवा
खेल खेलते समय खिलाड़ी में किन दो भावनाओं का होना आवश्यक होता है?
उत्तर:
(1) अनुशासन की भावना,
(2) सहनशीलता व धैर्यता की भावना,
(3) आत्म-विश्वास की भावना।

प्रश्न 7.
बड़ी खेल (Major Games) किसे कहते हैं? उदाहरण दें।
उत्तर:
बड़ी खेल (Major Games) वे होती हैं जो नियमों के अनुसार खेली जाती हैं। इनके नियमों में समय, स्थान के आधार पर कोई बदलाव नहीं होता। इनका राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व होता है। इनका किसी देश की ख्याति में बहुत महत्त्व होता है। बड़ी खेलें फुटबॉल, हॉकी, वॉलीबॉल, हैंडबॉल, बास्केटबॉल, सॉफ्टबॉल, बेसबॉल, कबड्डी, बैडमिंटन, लॉन टेनिस, टेबल-टेनिस, मुक्केबाजी आदि हैं।

प्रश्न 8.
छोटी खेल (Minor Games) किसे कहते हैं? उदाहरण दें।
उत्तर:
छोटी खेल (Minor Games) वे होती हैं जो मनोरंजन के लिए खेली जाती हैं तथा जिनके नियम समय तथा स्थान के अनुसार बदले जा सकते हैं। ये खेलें हैं-कोकला छपाकी, रूमाल उठाना, लीडर ढूँढना, लुडो, कैरम बोर्ड, बिल्ली-चूहा, मथौला घोड़ा, चक्कर वाली खो-खो, गुल्ली-डंडा आदि।

प्रश्न 9.
खेलकूद आत्म-अभिव्यक्ति में कैसे सहायक होते हैं?
उत्तर:
खेलकूद में खिलाड़ी या व्यक्ति को आत्म-अभिव्यक्ति को प्रकट करने का अवसर मिलता है। खेल के मैदान में प्रत्येक खिलाड़ी अपने गुणों, कला व कुशलता को प्रदर्शित करता है। हम खेलों के माध्यम से ही अपने सभी व्यक्तिगत गुणों को दर्शकों के सामने प्रदर्शित कर सकते हैं।

प्रश्न 10.
लीग-प्रणाली के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
लीग-प्रणाली में प्रत्येक टीम एक-दूसरे के विरुद्ध खेलती है। सबसे अधिक अंक प्राप्त करने वाली टीम को विजेता करार दिया जाता है। मैच खेलने के बाद बराबर रहने पर दोनों टीमों को एक-एक अंक मिलता है। जीतने पर दो अंक और हारने पर शून्य अंक मिलता है। दोनों टीमों के अंक बराबर रहने पर उनके द्वारा किए गए प्रदर्शन के आधार पर जीत का फैसला किया जाता है।

प्रश्न 11.
शीत ऋतु खेल कब करवाए जाते हैं? इनमें कौन-कौन-सी खेलें होती हैं?
उत्तर:
शीत ऋतु खेल दिसंबर या जनवरी में करवाए जाते हैं। इनमें हॉकी, बैडमिंटन, बास्केटबॉल, जिम्नास्टिक, एथलेटिक्स आदि खेल होते हैं।

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प्रश्न 12.
पतझड़ ऋतु खेल कब करवाए जाते हैं? इनमें कौन-कौन-सी खेलें होती हैं?
उत्तर:
पतझड़ ऋतु खेल सितंबर या अक्तूबर में करवाए जाते हैं। इनमें फुटबॉल, वॉलीबॉल, टेबल-टेनिस, कबड्डी, खो-खो, तैराकी आदि खेल होते हैं।

प्रश्न 13.
प्रतियोगिता से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जब दो या दो से अधिक खिलाड़ी या टीम ऐसे लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उद्यत हों जिसे केवल एक खिलाड़ी या टीम को ही प्रदान किया जा सकता हो तो ऐसी स्थिति से प्रतियोगिता का जन्म होता है। एक ही वातावरण में रहने वाले जीवों के बीच सहज रूप से ही प्रतियोगिता विद्यमान होती है।

प्रश्न 14.
रिले दौड़ें क्या हैं? ये कितने प्रकार की होती हैं?
उत्तर:
रिले दौड़ें वे दौड़ें होती हैं जिनमें एक टीम के चार खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं और प्रत्येक टीम का एक खिलाड़ी बैटन हाथ में लेकर 100 मीटर तक दौड़ता है। ये मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं
(1) 4 × 100 मीटर,
(2) 4 × 400 मीटर।

प्रश्न 15.
ट्रैक इवेंट्स कौन-कौन-से होते हैं?
अथवा
दौड़ें कितने प्रकार की होती हैं?
उत्तर:
ट्रैक इवेंट्स या दौड़ें निम्नलिखित प्रकार की होती हैं
(1) छोटी दूरी की दौड़,
(2) मध्यम दूरी की दौड़,
(3) लम्बी दूरी की दौड़,
(4) बाधा दौड़ या हर्डल्ज,
(5) रिले दौड़।

प्रश्न 16.
एक अच्छा स्पोर्ट्समैन कैसा होता है?
उत्तर:
एक अच्छा स्पोर्ट्समैन मेल-जोल और मित्रता वाला होता है। वह जीत के समय अक्कड़ नहीं दिखाता, बल्कि जीत का. श्रेय टीम के सांझे प्रयास को बताता है। उसके अंदर सांझेदारी और अपने कोच, खेल अधिकारियों, बड़ों और साथियों के प्रति आदर की भावना होती है।

प्रश्न 17.
खेलकूद किसे कहते हैं?
अथवा
खेल से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
खेल आधुनिक मनुष्य के जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग हैं। शायद ही कोई ऐसा मनुष्य हो जो इनके बारे में कुछ-न-कुछ न जानता हो। जब मनुष्य अपनी दैनिक क्रियाओं से ऊब जाता है तो वह नई प्रकार की क्रियाएँ करता है। इन्हीं क्रियाओं के आधार पर वह प्रसन्नता व आनंद का अनुभव करता है। इस प्रकार की क्रियाएँ खेलकूद कहलाती हैं। क्रो एवं क्रो के अनुसार, “खेल वह क्रिया है जिसमें व्यक्ति उस समय भाग लेता है, जब वह काम को करने के लिए स्वतंत्र होता है जो वह करना चाहता है।” .

प्रश्न 18.
खेल प्रतियोगिता से खिलाड़ी में अनुशासन का गुण कैसे विकसित होता है?
उत्तर:
खेल प्रतियोगिता हमेशा नियम में बंधी होती है। प्रत्येक प्रतियोगी को उन नियमों का पालन करना होता है। यदि वह इन नियमों की पालना नहीं करेगा तो उसकी प्रतियोगिता से बाहर होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए खिलाड़ी प्रतियोगिता को जीतने के लिए इसके सारे नियमों की पालना करता है। ये सभी बातें खिलाड़ी में अनुशासन के गुण को विकसित करती हैं।

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प्रश्न 19.
खेल प्रतियोगिता से राष्ट्रीय एकता का विकास कैसे होता है?
अथवा
खेल प्रतियोगिताएँ राष्ट्र की प्रगति में कैसे सहायक होती हैं?
उत्तर:
खेल प्रतियोगिताएँ राष्ट्र की प्रगति में सहायक होती हैं। इनसे राष्ट्रीय एकता का विकास होता है। एक राज्य की टीमें दूसरे राज्यों में मैच खेलने जाती हैं। इससे विभिन्न राज्यों के खिलाड़ी आपस में एक-दूसरे से मिलते हैं। उनमें मित्रता एवं सहयोग की भावना का विकास होता है। इन सभी गुणों के कारण उनमें राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास होता है।

प्रश्न 20.
बाधा (हर्डल) दौड़ क्या है? उदाहरण दें।
उत्तर:
वह दौड़ जिसमें थोड़ी-थोड़ी दूरी पर रुकावटें होती हैं अर्थात् बाधाएँ उत्पन्न की जाती हैं, बाधा या हर्डल दौड़ कहलाती है। उदाहरण के लिए 100 मीटर, 200 मीटर की हर्डल दौड़ आदि।

प्रश्न 21.
क्या खेल का मैदान अच्छी नागरिकता की प्रयोगशाला है?
उत्तर:
हाँ, खेल का मैदान अच्छी नागरिकता की प्रयोगशाला है। खेल के मैदान में खेलते हुए खिलाड़ी में एक अच्छे नागरिक के गुण विकसित होते हैं; जैसे आज्ञा पालन करना, समय का सदुपयोग करना, नियमों का पालन करना, अनुशासनमयी होना, जिम्मेवार बनना, अधिकारों तथा कर्तव्यों को समझना आदि। ये गुण एक अच्छे नागरिक में होने बहुत जरूरी हैं और ये गुण खेल का मैदान खिलाड़ी को सिखाता है।

प्रश्न 22.
पेंटाथलोन से आपका क्या अभिप्राय है? उदाहरण दें।
अथवा
पेंटाथलोन (Pantathlon) में कौन-कौन-से इवेंट्स होते हैं?
उत्तर:
ऐसे खेल जिनमें पाँच इवेंट्स हों, उन्हें पेंटाथलोन कहते हैं। पेंटाथलोन में लम्बी छलाँग, जैवलिन थ्रो, 200 मीटर की · दौड़, डिस्कस-थ्रो तथा 800/1500 मीटर की दौड़ सम्मिलित हैं।

प्रश्न 23.
हेप्टेथलोन (Heptathlon) में कौन-कौन-से इवेंट्स होते हैं? उत्तर-हेप्टेथलोन में निम्नलिखित सात इवेंट्स होते हैं
(1) 100 मी० बाधा (हर्डल) दौड़,
(2) लम्बी कूद,
(3) शॉट पुट,
(4) ऊँची कूद,
(5) 200 मी० की दौड़,
(6) जैवलिन-थ्रो तथा
(7) 800 मी० की दौड़।

प्रश्न 24.
डिकैथलोन (Decathlon) में कौन-कौन-से इवेंट्स होते हैं?
अथवा
डिकैथलोन में कितने इवेंट्स होते हैं? नाम बताएँ।
उत्तर:
डिकैथलोन में दस इवेंट्स होते हैं जो दो दिन खेले जाते हैं

प्रथम दिन:
(1) 100 मी० की दौड़,
(2) लम्बी कूद,
(3) गोला फेंकना,
(4) ऊँची कूद,
(5) 400 मी० की दौड़।

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दूसरे दिन:
(1) 110 मी० की हर्डल,
(2) डिस्कस-थ्रो,
(3) पोल वॉल्ट,
(4) जैवलिन थ्रो,
(5) 1500 मी० की दौड़।

प्रश्न 25.
संतोष ट्रॉफी के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
संतोष ट्रॉफी कूच बिहार के महाराजा संतोष जी ने राष्ट्रीय फुटबॉल प्रतियोगिता के लिए दी थी। यह प्रतियोगिता भारतीय फुटबॉल एसोसिएशन द्वारा प्रतिवर्ष अपने किसी प्रांतीय सदस्य एसोसिएशन की तरफ से करवाई जाती है। इस प्रतियोगिता में भारत के सभी प्रांतों की फुटबॉल टीमें, सैनिक और रेलवे की टीमें भाग लेती हैं। यह प्रतियोगिता नॉक-आउट-कम-लीग पर करवाई जाती है।

प्रश्न 26.
फिक्सचर/आरेखण (Fixture) को परिभाषित करें।
उत्तर:
फिक्सचर या आरेखण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से टीमों/खिलाड़ियों के बीच प्रतियोगिता टॉस आदि द्वारा निश्चित की जाती है। यह टीमों को उनकी टीम द्वारा खेले जाने वाले मैच का समय, स्थान और तिथि के बारे में सूचित करता है।

प्रश्न 27.
सीडिंग किसे कहते हैं?
उत्तर:
सीडिंग या क्रम देना एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा अच्छी टीम फिक्सचर (Fixture) में इस प्रकार रखी जाती है कि मजबूत टीमें टूर्नामेंट की शुरुआत में एक-दूसरे के साथ न खेलें।

प्रश्न 28.
बाई (Bye) क्या है?
उत्तर;
बाई आमतौर पर एक टीम को दिया जाने वाला लाभ है, जो पहले दौर में मैच खेलने पर टीम को छूट देता है।

प्रश्न 29.
बाईज़ (Byes) देने का सूत्र लिखें।
उत्तर:
बाईज़ (Byes) की संख्या अगली उच्च संख्या (2 की घात) में से टीमों की संख्या घटाकर तय की जाती है। उदाहरण. के लिए, यदि 12 टीमों ने टूर्नामेंट के लिए प्रवेश किया है, तो 12 से ऊपर की अगली उच्च संख्या जोकि 2 की घात 16 (24) है तथा दी जाने वाली बाईज़ (Byes) की संख्या 16 – 12 = 4 है

प्रश्न 30.
टूर्नामेंट से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
टूर्नामेंट एक प्रतिस्पर्धा है जिसमें अपेक्षाकृत बड़ी संख्या में प्रतियोगी भाग लेते हैं। अन्य शब्दों में टूर्नामेंट विभिन्न टीमों के बीच कई दौरों की एक बड़ी प्रतियोगिता है।

प्रश्न 31.
विभिन्न प्रकार के टूर्नामेंट्स के नाम लिखें। .
उत्तर:
(1) नॉक-आउट या ऐलिमिनेशन टूर्नामेंट,
(2) लीग या राउंड रॉबिन टूर्नामेंट,
(3) मिश्रित/संयोजन टूर्नामेंट,
(4) चुनौती/चैलेंज टूर्नामेंट। ..

प्रश्न 32.
नॉक-आउट टूर्नामेंट के कोई दो लाभ बताएँ।
उत्तर:
(1) यह टूर्नामेंट कम खर्चीला होता है, क्योंकि जो टीम पराजित हो जाती है, वह टूर्नामेंट से बाहर हो जाती है।
(2) यह खेलों का स्तर बढ़ाने में सहायक होता है, क्योंकि प्रत्येक टीम हार से बचने के लिए उत्कृष्ट प्रदर्शन करने का प्रयास करती है।

प्रश्न 33.
नॉक-आउट टूर्नामेंट के कोई दो दोष बताएँ।
उत्तर:
(1) अच्छी टीमों के प्रथम या द्वितीय राउंड में टूर्नामेंट से बाहर हो जाने के अधिक अवसर होते हैं। इसलिए अच्छी टीमें अंतिम राउंड में नहीं पहुंच पाती।
(2) अंतिम राउंड में कमज़ोर टीमों के पहुंचने की संभावना रहती है।

प्रश्न 34.
लीग टूर्नामेंट के कोई दो दोष बताएँ।
उत्तर:
(1) इसमें बहुत पैसा, समय और सुविधाएँ शामिल होती हैं।
(2) उत्कृष्ट या प्रसिद्ध शीर्ष टीमों के लिए वरीयता का कोई प्रावधान नहीं होता।

HBSE 9th Class Physical Education शारीरिक शिक्षा में विभिन्न प्रतियोगितात्मक खेलकूदों का योगदान Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न [Objective Type Questions]

प्रश्न 1.
रोवर्ज कप किस खेल से संबंधित है?
उत्तर:
रोवर्ज़ कप फुटबॉल से संबंधित है।

प्रश्न 2.
रणजी ट्रॉफी किस खेल से संबंधित है?
उत्तर:
रणजी ट्रॉफी क्रिकेट से संबंधित है।

प्रश्न 3.
संतोष ट्रॉफी किस खेल से संबंधित है?
उत्तर:
संतोष ट्रॉफी फुटबॉल से संबंधित है।

प्रश्न 4.
सी० के० नायडू ट्रॉफी किस खेल से संबंधित है?
उत्तर:
सी० के० नायडू ट्रॉफी क्रिकेट से संबंधित है।

प्रश्न 5.
खेलों से किन राष्ट्रीय गुणों को बढ़ावा मिलता है?
उत्तर:
खेलों से राष्ट्रीय एकता, अच्छी नागरिकता, देशभक्ति और अंतर्राष्ट्रीय भावना को बढ़ावा मिलता है।

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प्रश्न 6.
वह दौड़, जिसमें थोड़ी-थोड़ी दूरी पर रुकावटें होती हैं, उसे कौन-सी दौड़ कहते हैं?
उत्तर:
वह दौड़, जिसमें थोड़ी-थोड़ी दूरी पर रुकावटें होती हैं, उसे हर्डल रेस या बाधा दौड़ कहते हैं।

प्रश्न 7.
ओलंपिक खेल कितने वर्ष के अंतराल पर होते हैं?
उत्तर:
ओलंपिक खेल चार वर्ष के अंतराल पर होते हैं।

प्रश्न 8.
एशियाई खेल कितने वर्ष के अंतराल पर होते हैं?
उत्तर:
एशियाई खेल चार वर्ष के अंतराल पर होते हैं।

प्रश्न 9.
स्टैंडर्ड ट्रैक कितने मीटर लंबा होता है?
उत्तर:
स्टैंडर्ड ट्रैक 400 मीटर लंबा होता है।

प्रश्न 10.
हेप्टेथलोन में कितने इवेंट्स होते हैं?
उत्तर:
हेप्टेथलोन में 7 इवेंट्स होते हैं।

प्रश्न 11.
खेलकूद में जातीय भेदभाव कैसे समाप्त होते हैं?
उत्तर:
जब सभी खिलाड़ी इकट्ठे मिलकर जीतने के लिए खेलते हैं तो जातीय भेदभाव समाप्त हो जाता है।

प्रश्न 12.
चार ऐसे खेलों के नाम लिखें जो टीम बनाकर खेले जाते हैं।
उत्तर:
(1) हॉकी,
(2) क्रिकेट,
(3) फुटबॉल,
(4) वॉलीबॉल।

प्रश्न 13.
छोटी दौड़ों के कोई दो उदाहरण लिखें।
उत्तर;
(1) 100 मीटर की दौड़,
(2) 200 मीटर की दौड़।

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प्रश्न 14.
बाधा दौड़ों के कोई दो उदाहरण लिखें।
उत्तर:
(1) 100 मीटर की दौड़,
(2) 200 मीटर की दौड़।

प्रश्न 15.
रिले दौड़ में एक टीम में कितने खिलाड़ी एक-साथ भाग लेते हैं?
उत्तर:
रिले दौड़ में एक टीम में चार खिलाड़ी एक-साथ भाग लेते हैं।

प्रश्न 16.
दस इवेंट्स वाली खेल क्या कहलाती हैं?
उत्तर:
दस इवेंट्स वाली खेल डिकैथलोन कहलाती हैं।

प्रश्न 17.
शीत ऋतु खेल किन महीनों में करवाए जाते हैं?
उत्तर:
शीत ऋतु खेल दिसंबर या जनवरी महीनों में करवाए जाते हैं।

प्रश्न 18.
पतझड़ ऋतु खेल किन महीनों में करवाए जाते हैं?
उत्तर:
पतझड़ ऋतु खेल सितंबर या अक्तूबर महीनों में करवाए जाते हैं।

प्रश्न 19.
किन्हीं दो कूद इवेंट्स के नाम बताएँ।
उत्तर:
(1) लम्बी कूद,
(2) ऊँची कूद।।

प्रश्न 20.
राष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिता कब आरंभ हुई?
उत्तर:
राष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिता सन् 1927 में आरंभ हुई।

प्रश्न 21.
राष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिता ‘रंगास्वामी कप’ के नाम से कब से आयोजित की जा रही है?
उत्तर:
राष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिता ‘रंगास्वामी कप’ के नाम से सन् 1947 से आयोजित की जा रही है।

प्रश्न 22.
भारत का राष्ट्रीय खेल कौन-सा है?
उत्तर:
भारत का राष्ट्रीय खेल हॉकी है।

प्रश्न 23.
‘रंगास्वामी कप’ प्रतियोगिता किस स्तर पर करवाई जाती है?
उत्तर:
‘रंगास्वामी कप’ प्रतियोगिता राष्ट्रीय स्तर पर करवाई जाती है।

प्रश्न 24.
सुब्रोटो मुखर्जी कप किस खेल से संबंधित है?
उत्तर:
सुब्रोटो मुखर्जी कप फुटबॉल से संबंधित है।

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प्रश्न 25.
बड़ी खेलों के कोई दो उदाहरण दें।
उत्तर:
(1) क्रिकेट,
(2) हॉकी।

प्रश्न 26.
छोटी खेलों के कोई दो उदाहरण दें।
उत्तर:
(1) कैरम बोर्ड,
(2) गुल्ली -डंडा।

प्रश्न 27.
सीडिंग की कितने किस्में होती हैं?
उत्तर:
सीडिंग की दो किस्में होती हैं
(1) सामान्य सीडिंग,
(2) विशेष सीडिंग।

प्रश्न 28.
क्या सीडिंग वाली टीम पहले राउंड में मैच खेलती है?
उत्तर:
नहीं, सीडिंग वाली टीम पहले राउंड में मैच नहीं खेलती।

प्रश्न 29.
नॉक-आउट टूर्नामेंट कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
नॉक-आउट टूर्नामेंट मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं।

प्रश्न 30.
लीग टूर्नामेंट कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
लीग टूर्नामेंट दो प्रकार के होते हैं-
(1) सिंगल लीग टूर्नामेंट,
(2) डबल लीग टूर्नामेंट।

बहुविकल्पीय प्रश्न [Multiple Choice Questions]

प्रश्न 1.
वह दौड़ जिसमें थोड़ी-थोड़ी दूरी पर रुकावटें होती हैं, कहलाती है
(A) रिले दौड़
(B) मध्यम दूरी की दौड़
(C) हर्डल रेस या बाधा दौड़
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) हर्डल रेस या बाधा दौड़

प्रश्न 2.
डिकैथलोन में कितने इवेंट्स होते हैं?
(A) चार
(B) पाँच
(C) दस
(D) आठ
उत्तर:
(C) दस

प्रश्न 3.
शरीर और मन के तालमेल को खेलों में क्या कहा जाता है?
(A) योग
(B) प्राणायाम
(C) प्राण
(D) आसन
उत्तर:
(A) योग

प्रश्न 4.
ऐसा खेल जिसमें पाँच इवेंट्स सम्मिलित हों, कहलाता है
(A) डिकैथलोन
(B) पेंटाथलोन
(C) हेप्टेथलोन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) पेंटाथलोन

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प्रश्न 5.
खेलकूद के क्षेत्र में सम्मिलित क्रियाएँ हैं
(A) दौड़
(B) कूद
(C) फेंकना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 6.
खेल में किस भावना का होना आवश्यक है?
(A) अनुशासन
(B) सहनशीलता
(C) आत्म-विश्वास
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 7.
प्रतिदिन के कार्य से हटकर ऐसी क्रियाएँ जिनसे मनोरंजन हो, कहलाती हैं
(A) योग,
(B) व्यायाम
(C) खेलकूद
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) खेलकूद

प्रश्न 8.
खेल प्रतियोगिताओं से खिलाड़ी में विकसित होने वाले गुण हैं-
(A) आत्म-विश्वास
(B) त्याग की भावना
(C) सहयोग की भावना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 9.
डिकैथलोन खेल कितने दिन में पूरी होती हैं?
(A) एक सप्ताह में
(B) दस दिन में
(C) दो दिन में
(D) पंद्रह दिन में
उत्तर:
(C) दो दिन में

प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से कौन-सी प्रतियोगिता हॉकी से संबंधित नहीं है?
(A) रणजी ट्रॉफी
(B) रंगास्वामी कप
(C) आगा खाँ कप
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) रणजी ट्रॉफी

प्रश्न 11.
प्रतियोगितात्मक खेलकूदों का उद्देश्य निम्नलिखित है
(A) आदर्श खेल भावना विकसित करना
(B) प्रतिस्पर्धा की भावना विकसित करना
(C) देश-भक्ति की भावना विकसित करना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 12.
पाँच एथलेटिक इवेंट्स के समूह को क्या कहते हैं?
(A) डिकैथलोन
(B) हेप्टेथलोन
(C) पेंटाथलोन
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) पेंटाथलोन

प्रश्न 13.
एथलेटिक्स में तीन बार कूदने वाले इवेंट को क्या कहते हैं?
(A) तिहरी कूद
(B) बाँस कूद
(C) ऊँची कूद
(D) लंबी कूद
उत्तर:
(A) तिहरी कूद

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प्रश्न 14.
रिले की टीम में कितने खिलाड़ी होते हैं?
(A) 3
(B) 4
(C) 6
उत्तर:
(B) 4

शारीरिक शिक्षा में विभिन्न प्रतियोगितात्मक खेलकूदों का योगदान Summary

शारीरिक शिक्षा में विभिन्न प्रतियोगितात्मक खेलकूदों का योगदान परिचय

खेलकूद प्रतियोगिताएँ मनुष्य के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास करती हैं। वे मनुष्य को शारीरिक दृष्टिकोण से मज़बूत, शक्तिशाली और कार्यशील, मानसिक दृष्टिकोण से तेज़, मनोभावुक दृष्टिकोण से संतुलित, बौद्धिक दृष्टिकोण से सुशील और सामाजिक दृष्टिकोण से स्वस्थ बनाती हैं। आज विश्व का प्रत्येक देश खेलों में एक-दूसरे से आगे निकलने की कोशिश कर रहा है और सफलता मिलने पर वह गौरव व सम्मान प्राप्त करता है। यही कारण है कि खेलकद प्रतियोगिताएँ आज के का अंग बन गए हैं। खेलकूद प्रतियोगिताओं को नियमबद्ध और वैज्ञानिक ढंग से करवाया जाना चाहिए ताकि लोगों की रुचि खेलों के प्रति और बढ़ सके।खेलकूद मनुष्य के साथ प्राचीन समय से ही चले आ रहे हैं। पहले खेल केवल मनोरंजन तथा आवश्यकता के लिए खेले जाते थे। तब मनुष्य को अपने बचाव के लिए तेज दौड़ना, शिकार के लिए भाला फेंकना, तीर चलाना आदि सीखना आवश्यक था। आज यही आवश्यकताएँ खेलों में परिवर्तित हो गई हैं। खेलों को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद प्रतियोगिताओं का महत्त्व भी दिन-प्रतिदिन निरंतर बढ़ता जा रहा है।

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HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 5 योग का अर्थ, परिभाषा एवं महत्त्व

Haryana State Board HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 5 योग का अर्थ, परिभाषा एवं महत्त्व Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Physical Education Solutions Chapter 5 योग का अर्थ, परिभाषा एवं महत्त्व

HBSE 9th Class Physical Education योग का अर्थ, परिभाषा एवं महत्त्व Textbook Questions and Answers

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न [Long Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
“योग भारत की एक विरासत है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
योग का इतिहास उतना ही प्राचीन है, जितना कि भारत का इतिहास। इस बारे में अभी तक ठीक तरह पता नहीं लग सका है कि योग की उत्पत्ति कब हुई? लेकिन प्राम.?णक रूप से यह कहा जा सकता है कि योग का इतिहास भारत के इतिहास जितना ही पुराना है अर्थात् योग भारत की ही देन या विरासत है। इसलिए हमें योग की उत्पत्ति के बारे में जानने के लिए भारतीय इतिहास के कालों को जानना होगा, जिनसे स्पष्ट हो जाएगा कि योग भारत की एक विरासत है। भारतीय इतिहास के विभिन्न कालों का उल्लेख निम्नलिखित है

1. पूर्व वैदिक काल (Pre-Vedic Period):
हड़प्पा सभ्यता के दो प्रसिद्ध नगरों-हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त मूर्तियों व प्रतिमाओं से पता चलता है कि उस काल के दौरान भी योग किसी-न-किसी रूप में प्रचलित था।

2. वैदिक काल (Vedic Period):
वैदिक काल में रचित वेद ‘ऋग्वेद’ में लिखित ‘युनजते’ शब्द से यह अर्थ स्पष्ट होता है कि लोग इंद्रियों को नियंत्रित करने के लिए योग क्रियाएँ किया करते थे। हालांकि वैदिक ग्रंथों में ‘योग’ और ‘योगी’ शब्दों का स्पष्ट रूप से प्रयोग नहीं किया गया है।

3. उपनिषद् काल (Upnishad Period):
योग की उत्पत्ति का वास्तविक आधार उपनिषदों में पाया जाता है। उपनिषद् काल में रचित कठोपनिषद्’ में योग’ शब्द का प्रयोग तकनीकी रूप से किया गया है। उपनिषदों में यौगिक क्रियाओं का भी वर्णन किया गया है।

4. काव्य काल (Epic Period):
काव्य काल में रचित महाकाव्यों में योग के विभिन्न रूपों या शाखाओं के नामों का उल्लेख किया गया है। महाकाव्यों; जैसे ‘रामायण’ व ‘महाभारत’ में यौगिक क्रियाओं के रूपों की महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। रामायण के समय योग प्रक्रिया काफी प्रसिद्ध थी। भगवद्गीता’ में भी योग के तीन प्रकारों का वर्णन है।

5. सूत्र काल (Sutra Period):
योग का पितामह महर्षि पतंजलि को माना जाता है, जिन्होंने योग पर आधारित प्रथम पुस्तक ‘योगसूत्र’ की रचना की। उन्होंने इस पुस्तक में योग के अंगों का व्यापक वर्णन किया है।

6. मध्यकाल (Medieval Period):
इस काल में दो संप्रदाय; जैसे नाथ और संत काफी प्रसिद्ध थे जिनमें यौगिक क्रियाएँ काफी प्रचलित थीं। नाथ हठ योग का और संत विभिन्न यौगिक क्रियाओं का अभ्यास करते थे। इस प्रकार इन संप्रदायों या पंथों में योग काफी प्रसिद्ध था।

7.आधुनिक या वर्तमान काल (Modern or Present Period):
इस काल में स्वामी विवेकानंद, स्वामी योगेन्द्र, श्री अरबिन्दो और स्वामी रामदेव आदि ने योग के ज्ञान को न केवल भारत में बल्कि भारत से बाहर भी फैलाने का प्रयास किया है। स्वामी रामदेव जी आज भी योग को सारे विश्व में लोकप्रिय बनाने हेतु निरंतर प्रयास कर रहे हैं।

निष्कर्ष (Conclusion):
उपर्युक्त वर्णित कालों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि योग भारतीय विरासत है। योग की उत्पत्ति भारत में ही हुई। आज योग विश्व के विभिन्न देशों में फैल रहा है। इसी फैलाव के कारण 21 जून, 2015 को पहला अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया।

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 5 योग का अर्थ, परिभाषा एवं महत्त्व

प्रश्न 2.
योग के बारे में आप क्या जानते हैं? इसका क्या उद्देश्य है?
अथवा
योग का अर्थ, परिभाषा तथा उद्देश्य पर प्रकाश डालें।
अथवा
योग क्या है? इसकी परिभाषाएँ बताइए।
उत्तर:
योग का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Yoga):
‘योग’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत की मूल धातु ‘युज’ से हुई है जिसका अर्थ है-जोड़ या एक होना। जोड़ या एक होने का अर्थ है-व्यक्ति की आत्मा को ब्रह्मांड या परमात्मा की चेतना या सार्वभौमिक आत्मा के साथ जोड़ना। महर्षि पतंजलि (योग के पितामह) के अनुसार, ‘युज’ धातु का अर्थ है-ध्यान-केंद्रण या मनःस्थिति को स्थिर करना और आत्मा का परमात्मा से ऐक्य । साधारण शब्दों में, योग व्यक्ति की आत्मा का परमात्मा से मिलन का नाम है। योग का अभ्यास मन को परमात्मा पर केंद्रित करता है। यह व्यक्ति के गुणों व शक्तियों का आपस में मिलना है।

1. कठोपनिषद् (Kathopnishad):
के अनुसार, “जब हमारी ज्ञानेंद्रियाँ स्थिर अवस्था में होती हैं, जब मस्तिष्क स्थिर अवस्था में होता है, जब बुद्धि भटकती नहीं, तब बुद्धिमान कहते हैं कि इस अवस्था में पहुँचने वाले व्यक्ति ने सर्वोत्तम अवस्था वाले चरण को प्राप्त कर लिया है। ज्ञानेंद्रियों व मस्तिष्क के इस स्थायी नियंत्रण को ‘योग’ की परिभाषा दी गई है। वह जो इसे प्राप्त कर लेता है, वह भ्रम से मुक्त हो जाता है।”

2. महर्षि पतंजलि (Maharshi Patanjali):
के अनुसार, “योग: चित्तवृति निरोधः” अर्थात् “मनोवृत्ति के विरोध का नाम ही योग है।”

3. श्री याज्ञवल्क्य (Shri Yagyavalkya):
के अनुसार, “जीवात्मा से परमात्मा के मिलन को योग कहते हैं।”

4. महर्षि वेदव्यास (Maharshi Vedvyas):
के अनुसार, “योग समाधि है।”

5. डॉ० संपूर्णानंद (Dr. Sampurnanand):
के अनुसार, “योग आध्यात्मिक कामधेन है।”

6. श्रीमद्भगवद् गीता (Shrimad Bhagvad Gita):
के अनुसार, “बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते। तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्।” अर्थात् समबुद्धि युक्त मनुष्य इस जीवन में ही अच्छे और बुरे कार्यों से अपने को मुक्त कर लेता है। अत: योग के लिए प्रयत्न करो क्योंकि सारा कार्य-कौशल यही है।

7. भगवान श्रीकृष्ण (Lord Shri Krishna):
ने कहा-“योग कर्मसु कौशलम्।” अर्थात् कर्म को कुशलतापूर्वक करना ही योग है।

8. स्वामी कृपालु जी (Swami Kripaluji):
के अनुसार, “हर कार्य को बेहतर कलात्मक ढंग से करना ही योग है।”

इस प्रकार योग आत्मा एवं परमात्मा का संयोजन है। योग का अभ्यास मन को परमात्मा पर केंद्रित करता है और संपूर्ण शांति प्रदान करता है। योग हमें उन कष्टों का इलाज करने की सीख देता है जिनको भुगतने की जरूरत नहीं है और उन कष्टों का इलाज करता है जिनको ठीक नहीं किया जा सकता। बी०के०एस० आयंगर (B.K.S. Iyengar): के अनुसार, “योग वह प्रकाश है जो एक बार जला दिया जाए तो कभी कम नहीं होता। जितना अच्छा आप अभ्यास करेंगे, लौ उतनी ही उज्ज्वल होगी।”

योग का उद्देश्य (Objective of Yoga):
योग का उद्देश्य जीवात्मा का परमात्मा से मिलाप करवाना है। इसका मुख्य उद्देश्य शरीर को नीरोग, फुर्तीला, जोशीला, लचकदार और विशिष्ट क्षमताओं या शक्तियों का विकास करके मन को जीतना है। यह ईश्वर के सम्मुख संपूर्ण समर्पण हेतु मन को तैयार करता है। योग व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक उद्देश्यों की पूर्ति वैज्ञानिक ढंगों से करता है।

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 5 योग का अर्थ, परिभाषा एवं महत्त्व

प्रश्न 3.
अष्टांग योग क्या है? अष्टांग योग के विभिन्न अंगों या अवस्थाओं का वर्णन करें।
अथवा
महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग के कौन-कौन से आठ अंग बताए हैं? उनके बारे में संक्षेप में लिखें। अथवा अष्टांग योग के आठ अंगों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
अष्टांग योग का अर्थ (Meaning of Asthang Yoga):
महर्षि पतंजलि ने ‘योग-सूत्र’ में जिन आठ अंगों का उल्लेख किया है, उन्हें ही अष्टांग योग कहा जाता है। अष्टांग योग का अर्थ है-योग के आठ पथ या अंग। वास्तव में योग के आठ पथ योग की आठ अवस्थाएँ (Stages) होती हैं जिनका पालन करते हुए व्यक्ति की आत्मा या जीवात्मा का परमात्मा से मिलन हो सकता है। अष्टांग योग का अनुष्ठान करने से अशुद्धि का नाश होता है, जिससे ज्ञान का प्रकाश चमकता है और विवेक (ख्याति) की प्राप्ति होती है।

अष्टांग योग के अंग (Components of Asthang Yoga): महर्षि पतंजलि ने इसकी आठ अवस्थाएँ (अंग) बताई हैं; जैसे.
1. यम (Yama, Forbearance):
यम योग की वह अवस्था है जिसमें सामाजिक व नैतिक गुणों के पालन से इंद्रियों व मन को आत्म-केंद्रित किया जाता है। यह अनुशासन का वह साधन है जो प्रत्येक व्यक्ति के मन से संबंध रखता है। इसका अभ्यास करने से व्यक्ति अहिंसा, सच्चाई, चोरी न करना, पवित्रता तथा त्याग करना सीखता है।

2. नियम (Niyama, Observance):
नियम से अभिप्राय व्यक्ति द्वारा समाज स्वीकृत नियमों के अनुसार ही आचरण करना है। जो व्यक्ति नियमों के विरुद्ध आचरण करता है, समाज उसे सम्मान नहीं देता। इसके विपरीत जो व्यक्ति समाज द्वारा स्वीकृत नियमों के अनुसार आचरण करता है, समाज उसको सम्मान देता है। नियम के पाँच भाग होते हैं-शौच या शुद्धि (Purity), संतोष (Contentment), तप (Endurance), स्व-अध्याय (Self-Study) और ईश्वर प्राणीधान (Worship with Complete Faith)। इन पर अमल करके व्यक्ति परमात्मा को पा लेता है और आचारिक रूप से शक्तिशाली बनता है। .

3. आसन (Asana, Posture):
जिस अवस्था में शरीर ठीक से बैठ सके, वह आसन है। आसन का अर्थ है-बैठना। योग की सिद्धि के लिए उचित आसन में बैठना बहुत आवश्यक है। महर्षि पतंजलि के अनुसार, “स्थिर सुख आसनम्।” अर्थात् जिस रीति से हम स्थिरतापूर्वक, बिना हिले-डुले और सुख के साथ बैठ सकें, वह आसन है। ठीक मुद्रा में रहने से मन शांत रहता है।

4. प्राणायाम (Pranayama, Control of Breath):
प्राणायाम में दो शब्द हैं-प्राण व आयाम । प्राण का अर्थ है- श्वास और आयाम का अर्थ है-नियंत्रण व नियमन। इस प्रकार जिसके द्वारा श्वास के नियमन व नियंत्रण का अभ्यास किया जाता है, उसे प्राणायाम कहते हैं अर्थात् साँस को अंदर ले जाने व बाहर निकालने पर उचित नियंत्रण रखना ही प्राणायाम है। इसके तीन भाग हैं
(1) पूरक (Inhalation),
(2) रेचक (Exhalation) और
(3) कुंभक (Holding of Breath)।

5. प्रत्याहार (Pratyahara, Restraint of the Senses):
अष्टांग योग प्रत्याहार से अभिप्राय ज्ञानेंद्रियों व मन को अपने नियंत्रण में रखने से है। साधारण शब्दों में, प्रत्याहार का अर्थ मन व इन्द्रियों को उनकी संबंधित क्रियाओं से हटकर परमात्मा की ओर लगाना है। प्रत्याहार द्वारा हम अपनी पाँचों ज्ञानेंद्रियों (देखना, सुनना, सूंघना, छूना और स्वाद) को नियंत्रित कर लेते हैं।

6. धारणा (Dharna, Steadying of the mind):
अपने मन के निश्चल भाव को धारणा कहते हैं। अष्टांग योग में धारणा’ का बहुत महत्त्व है। धारणा का अर्थ मन को किसी इच्छित विषय में लगाना है। धारणा की स्थिति में हमारा मस्तिष्क बिल्कुल शांत होता है। इस प्रकार की प्रक्रिया से व्यक्ति में एक महान् शक्ति उत्पन्न हो जाती है, साथ ही उसके मन की इच्छा भी पूरी हो जाती है।

7. ध्यान (Dhyana, Contemplation):
धारणा से आगे आने वाली और ऊपरी स्थिति को ध्यान कहते हैं । जब मन पूरी तरह से नियंत्रण में हो जाता है तो ध्यान लगना आरंभ हो जाता है अर्थात् मस्तिष्क की पूर्ण एकाग्रता ही ध्यान कहलाती है। .

8. समाधि (Samadhi, Trance):
समाधि योग की सर्वोत्तम अवस्था है। यह सांसारिक दुःख-सुख से ऊपर की अवस्था है। समाधि योग की वह अवस्था है जिसमें साधक को स्वयं का भाव नहीं रहता। वह पूर्ण रूप से अचेत अवस्था में होता है। इस अवस्था में वह उस लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है जहाँ आत्मा व परमात्मा का मिलन होता है। प्राचीन काल में ऋषि-मुनि काफी लम्बे समय तक समाधि में बैठते थे। इस विधि द्वारा हम दिमाग पर पूरी तरह अपना नियंत्रण कर सकते हैं।

प्रश्न 4.
योग स्वास्थ्य का साधन है, इस विषय में अपने विचार प्रकट करें। अथवा “योगाभ्यास तंदुरुस्ती का साधन है।” इस कथन पर अपने विचार प्रकट करें। अथवा योगासन की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
योग स्वास्थ्य या तंदुरुस्ती का साधन है। इसका उद्देश्य है कि व्यक्ति को शारीरिक तौर पर तंदुरुस्त, मानसिक स्तर पर दृढ़ और चेतन, आचार-विचार में अनुशासित करना है। इसकी मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) योगाभ्यास करने वाले व्यक्ति की मानसिक जटिलताएँ मिट जाती हैं। वह मानसिक तौर से संतुष्ट और शक्तिशाली हो जाता है।
(2) शरीर के आंतरिक अंगों की सफाई के लिए योगाभ्यास में खास क्रिया विधि अपनाई जाती है। धौती क्रिया से जिगर, बस्ती क्रिया से आंतड़ियों व नेती क्रिया से पेट की सफाई की जाती है।

(3) योग द्वारा कई बीमारियों का इलाज किया जा सकता है; जैसे चक्रासन द्वारा हर्निया रोग, शलभासन द्वारा मधुमेह का रोग दूर किए जाते हैं। योगाभ्यास द्वारा रक्त के उच्च दबाव (High Blood Pressure) तथा दमा (Asthma) जैसे रोग ठीक हो जाते हैं।

(4) योगाभ्यास द्वारा शारीरिक विकृतियों अर्थात् आसन को ठीक किया जा सकता है; जैसे रीढ़ की हड्डी का कूबड़, घुटनों का आपस में टकराना, टेढ़ी गर्दन, चपटे पैर आदि विकृतियों को दूर करने में योगासन लाभदायक हैं।

(5) योगासनों द्वारा मनुष्य को अपने संवेगों और अन्य अनुचित इच्छाओं पर नियंत्रण पाने की शक्ति मिलती है।

(6) योगाभ्यास द्वारा शारीरिक अंगों में लचक आती है; जैसे धनुरासन तथा हलासन रीढ़ की हड्डी में लचक बढ़ाते हैं।

(7) योग का शारीरिक संस्थानों की कार्यक्षमता पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। यह इनकी कार्यक्षमता को सुचारु करता है।

(8) योगाभ्यास करने से बुद्धि तीव्र होती है। शीर्षासन करने से दिमाग तेज़ और स्मरण-शक्ति बढ़ती है।

(9) योगासन करने से शरीर में चुस्ती और ताजगी पैदा होती है।

(10) योगासन मन को प्रसन्नता प्रदान करता है। मन सन्तुलित रहता है। जहां भोजन शरीर का आहार है, वहीं प्रसन्नता मन का आहार है। शारीरिक स्वास्थ्य के लिए दोनों की आवश्यकता होती है।

(11) योगाभ्यास द्वारा शरीर ताल में आ जाता है और योगाभ्यास करने वाले व्यक्ति की कार्यक्षमता बढ़ जाती है।

(12) योगाभ्यास करने वाला व्यक्ति देर तक कार्य करते रहने तक भी थकावट अनुभव नहीं करता। वह अधिक कार्य कर सकता है और अपने लिए अच्छे आहार के बढ़िया साधन प्राप्त कर सकता है। अत: योग शारीरिक तथा मानसिक थकावट दूर करने में सहायक होता है। अतः योग शारीरिक तथा मानसिक थकावट दूर करने में सहायक होता है।

प्रश्न 5.
योग क्या है? योग के प्रमुख सिद्धांत कौन-कौन से हैं?
अथवा
योगासन करते समय किन-किन मुख्य बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
अथवा
योगासन करते समय कौन-कौन सी सावधानियाँ बरतनी चाहिएँ?
उत्तर:
योग का अर्थ (Meaning of Yoga):
योग एक विभिन्न प्रकार के शारीरिक व्यायामों व आसनों का संग्रह है। यह ऐसी विधा है जिससे मनुष्य को अपने अंदर छिपी हुई शक्तियों को बढ़ाने का अवसर मिलता है। योग धर्म, दर्शन, शारीरिक सभ्यता और मनोविज्ञान का समूह है।

योगासन के सिद्धांत/सावधानियाँ (Principles/Precautious of Yoga): योगासन या योगाभ्यास करते समय अग्रलिखित सिद्धांतों अथवा बातों को ध्या

(1) योगासन का अभ्यास प्रात:काल करना चाहिए।
(2) योगासन एकाग्र मन से करना चाहिए, इससे अधिक लाभ होता है।
(3) योगासन का अभ्यास धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए।
(4) योगासन करते समय शरीर पर कम-से-कम कपड़े होने चाहिएँ, परन्तु सर्दियों में उचित कपड़े पहनने चाहिएँ।
(5) योगासन खाली पेट करना चाहिए। योगासन करने के दो घण्टे पश्चात् भोजन करना चाहिए।
(6) योगासन प्रतिदिन करना चाहिए।
(7) योगासनों का अभ्यास प्रत्येक आयु में कर सकते हैं, परन्तु अभ्यास करने से पहले किसी अनुभवी व्यक्ति से जानकारी ले लेनी चाहिए।
(8) यदि शरीर अस्वस्थ या बीमार है तो आसन न करें।
(9) प्रत्येक आसन निश्चित समयानुसार करें।
(10) योग आसन करने वाला स्थान साफ-सुथरा और हवादार होना चाहिए।
(11) योग आसन किसी दरी अथवा चटाई पर किए जाएँ। दरी अथवा चटाई समतल स्थान पर बिछी होनी चाहिए।
(12) योगाभ्यास शौच क्रिया के पश्चात् व सुबह खाना खाने से पहले करना चाहिए।
(13) प्रत्येक अभ्यास के पश्चात् विश्राम का अंतर होना चाहिए। विश्राम करने के लिए शवासन करना चाहिए।
(14) प्रत्येक आसन करते समय फेफड़ों के अंदर भरी हुई हवा बाहर निकाल दें। इससे आसन करने में सरलता होगी।
(15) योग करते समय जब भी थकावट हो तो शवासन या मकरासन कर लेना चाहिए।
(16) योग आसन अपनी शक्ति के अनुसार ही करना चाहिए।
(17) योग अभ्यास से पूरा लाभ उठाने के लिए शरीर को पौष्टिक व संतुलित आहार देना बहुत जरूरी है।
(18) आसन करते समय श्वास या साँस हमेशा नाक द्वारा ही लें।
(19) हवा बाहर निकालने (Exhale) के उपरांत श्वास क्रिया रोकने का अभ्यास किया जाए।
(20) एक आसन करने के पश्चात् दूसरा आसन उस आसन के विपरीत किया जाए; जैसे धनुरासन के पश्चात् पश्चिमोत्तानासन करें। इस प्रकार शारीरिक ढाँचा ठीक रहेगा।

प्रश्न 6.
दैनिक जीवन में योग के महत्त्व का विस्तारपूर्वक वर्णन करें। अथवा आधुनिक संदर्भ में योग की महत्ता या उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आधुनिक संदर्भ में योग के महत्त्व या उपयोगिता का वर्णन निम्नलिखित है
(1) हमारा मन चंचल और अस्थिर होता है। योग मन के विकारों को दूर कर उसे शांत करता है। योग का सतत् अभ्यास करके और लोभ एवं मोह को त्याग कर मन को शांत एवं निर्विकार बनाया जा सकता है।

(2) कर्म स्वयं में एक योग है। कर्त्तव्य से विमुख न होना ही कर्म योग है। पूरी एकाग्रता एवं निष्ठा के साथ कर्म करना ही योग का उद्देश्य है। अत: योग से कर्म करने की शक्ति मिलती है।

(3) हमारी वाणी से जो विचार निकलते हैं, वे मन एवं मस्तिष्क की उपज होते हैं। यदि मन में कलुष भरा है तो हमारे विचार भी कलुषित होंगे। जंब हम योग से मन को नियंत्रित कर लेते हैं तो हमारे विचार सकारात्मक रूप में हमारी वाणी से प्रवाहित होने लगते हैं। योग से नकारात्मक विचार सकारात्मक प्रवृत्ति में बदल जाते हैं।

(4) योग शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक पहलुओं में एकीकरण करने में सहायक होता है।

(5) योग में सर्वस्व कल्याण हित है। यह धर्म-मजहब से परे की विधा है।
(6) योग से शरीर की आंतरिक शुद्धता बढ़ती है।

(7) योग हमें उन कष्टों का इलाज करने की सीख देता है जिनको सहन करने की जरूरत नहीं है और उन कष्टों का इलाज करता है जिनको ठीक नहीं किया जा सकता।

(8) योग हमारे जीवन का आधार है। यह हमारी अंतर चेतना जगाकर विपरीत परिस्थितियों से लड़ने की हिम्मत देता है। यह हमारी जीवन-शैली में बदलाव करने में सहायक है।

(9) योग धर्म, जाति, वर्ग, सम्प्रदाय, ऊँच-नीच तथा अमीर-गरीब आदि से परे है। किसी के साथ किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं करता।

(10) योग स्वस्थ रहने की कला है। आज सभी का मूल फिट रहना है और यही चाह सभी को योग के प्रति आकर्षित करती है, क्योंकि योग हमारी फिटनेस में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

(11) योग मन एवं शरीर में सामंजस्य स्थापित करता है अर्थात् यह शरीर एवं मस्तिष्क के ऐक्य का विज्ञान है।
(12) योग से शरीर में रक्त का संचार तीव्र होता है। इससे शरीर का रक्तचाप व तापमान सामान्य रहता है।
(13) योग मोटापे को नियन्त्रित करने में मदद करता है।
(14) योग से शारीरिक मुद्रा (Posture) में सुधार होता है।
(15) योग से मानसिक तनाव व चिंता दूर होती है। इससे मनो-भौतिक विकारों में सुधार होता है।
(16) योग रोगों की रोकथाम व बचाव में सहायता करता है।
(17) यह शारीरिक संस्थानों की कार्यक्षमता को सुचारु रखने में सहायक होता है।
(18) योग आत्म-विश्वास बढ़ाने तथा मनोबल निर्माण में सहायता करता है।

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 5 योग का अर्थ, परिभाषा एवं महत्त्व

प्रश्न 7.
वज्रासन की विधि तथा इसके लाभों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वज्रासन (Vajrasana):
‘वज्र’ शब्द का अर्थ है-दृढ़ एवं कठोर । वज्र के साथ आसन जुड़ने से ‘वज्रासन’ बनता है। इस आसन में पैर की दोनों जंघाओं को ‘वज्र’ के समान दृढ़ करके बैठा जाता हैं । वज्रासन हमेशा बैठकर किया जाता है। स्वच्छं कम्बल या दरी पर बैठकर इस आसन का अभ्यास करें।

विधि (Procedure):
समतल भूमि पर जंघाओं तथा पिंडलियों को परस्पर मिलाकर और पीछे की ओर मोड़कर बैठें। पाँवों के दोनों तलवे आपस में सटाकर रखें। बाईं तथा दाईं हथेलियों को। बाएँ-दाएँ पाँवों के घुटनों पर रखें। कमर, ग्रीवा एवं सिर बिल्कुल सीधे रखें। घुटने मिले हुए हों और, हाथों को घुटनों पर रखें। धीरे-धीरे शरीर को ढीला छोड़े। श्वसन क्रिया करते रहें। वज्रासन को जितना। संभव हो, उतनी देर करें। विशेष रूप से भोजन के तुरंत बाद पाचन क्रिया को बढ़ाने के लिए कम-से-कम 5 मिनट के लिए इस आसन का अभ्यास जरूर करें।
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लाभ (Benefits): वज्रासन करने के लाभ निम्नलिखित हैं
(1) वज्रासन ध्यान केन्द्रित करने वाला आसन है। इससे मन की चंचलता दूर होती है तथा वज्रासन चित्त एकाग्र हो जाता है।
(2) इस आसन को नियमित रूप से करने से जाँघों की माँसपेशियाँ कठोर एवं मजबूत होती हैं।
(3) यह एक ऐसा आसन है जिसे भोजन के बाद किया जाता है। इसे करने से अपच, अम्लपित्त, गैस, कब्ज आदि रोग दूर हो जाते हैं।
(4) इससे पाचन-शक्ति में वृद्धि होती है।
(5) यह मन को एकाग्र करने में सहायक होता है।
(6) इसे करने से रक्त प्रवाह ठीक रहता है।
(7) इस आसन को नियमित रूप से करने से आसन संबंधी विकार दूर हो जाते हैं।
(8) इसे करने से स्मरण-शक्ति बढ़ जाती है।
(9) इसे करने से मोटापा कम होता है।
(10) इसे करने से मेरुदण्ड शक्तिशाली व सुदृढ़ हो जाता है।

प्रश्न 8.
ताड़ासन क्या है? इसकी विधि तथा इसके लाभों का उल्लेख करें।
उत्तर:
ताड़ासन (Tadasana):
ताड़ासन में खड़े होने की स्थिति में धड़ को ऊपर की ओर किया जाता है। इस आसन में शरीर की स्थिति ताड़ के वृक्ष जैसी प्रतीत होती है, इसीलिए इसे ताड़ासन कहा जाता है। यह ऐसा आसन है जो न केवल बड़ी माँसपेशियों को ही बल्कि सूक्ष्म-से-सूक्ष्म माँसपेशियों को भी काफी हद तक लचीला बनाता है। ताड़ासन को विभिन्न नामों से जाना जाता है।

विधि (Procedure):
सबसे पहले आप समतल जमीन पर सीधे खड़े हो जाएँ। फिर अपने दोनों पैरों को मिला लें। आपका शरीर स्थिर रहना चाहिए। आपके दोनों पैरों पर शरीर का वजन बराबर होना चाहिए। अब धीरे-धीरे हाथों को कन्धों के समानांतर लाएँ। दोनों हाथों को ऊपर उठाकर अंगुलियों को सीधे ऊपर की ओर रखें। अब साँस भरते हुए अपने हाथों को ऊपर की ओर खींचें और पंजों

Meaning, Definition and Values of Yoga के बल अधिक-से-अधिक ऊपर उठने का प्रयास करें। इस दौरान आपकी गर्दन सीधी होनी चाहिए। इस अवस्था को कुछ देर के लिए बनाए रखें और श्वसन क्रिया करते रहें। फिर साँस छोड़ते हुए धीरे-धीरे अपने हाथों और शरीर को पहले वाली अवस्था में ले आएँ। इस क्रिया को इसी क्रम में कम-से-कम 7-8 बार दोहराएँ।

लाभ (Benefits)-ताड़ासन करने से होने वाले लाभ निम्नलिखित हैं
(1) ताड़ासन पैरों की समस्याओं को दूर करता है। यह पैरों को मजबूती प्रदान करता है।
(2) इससे एकाग्रता में वृद्धि होती है।
(3) यह पाचन क्रिया को ठीक करता है।
(4) इससे शरीर स्वस्थ, लचीला और सुडौल बनता है।
(5) इससे कमर पतली और लचीली बनती है।
(6) यह पेट के भारीपन को कम करके चर्बी घटाने में सहायक होता है। इससे मोटापा कम होता है।
(7) इसे करने से नाड़ियों एवं माँसपेशियों का दर्द कम होता है। यह आसन नाड़ियों के साथ-साथ माँसपेशियों को मजबूत एवं सबल बनाता है।
(8) यह आसन बवासीर के रोगियों के लिए लाभदायक है।
(9) यह उच्च रक्त-चाप को नियंत्रित करने में सहायक होता है। ताड़ासन
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प्रश्न 9.
निम्नलिखित आसनों पर संक्षिप्त नोट लिखें
(क) चक्रासन
(ख) भुजंगासन
(ग) शीर्षासन
(घ) हलासन
(ङ) धनुरासन।
उत्तर:
(क) चक्रासन (Chakrasana):
कमर के बल ज़मीन पर लेट जाएँ।दोनों टाँगों को पूरी तरह फैलाकर पैरों को थोड़ा-सा खोलें। फिर दोनों कोहनियों को सिर के दोनों ओर ज़मीन पर जमाएँ। इस अवस्था में हाथों की हथेलियाँ धरती से लगनी चाहिएँ। फिर धीरे-धीरे कमर को ऊपर की ओर उठाते हुए शरीर को गोल करें, परन्तु पैर धरती से ही लगे रहने चाहिएँ। कुछ समय तक इस अवस्था में रहें।
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लाभ (Benefits):
(1) इससे शरीर में लचक पैदा होती है।
(2) इस आसन से पेट की चर्बी कम होती है।
(3) इससे रीढ़ की हड्डी लचकदार बनती है।
(4) इस आसन द्वारा घुटने, हाथ, पैर, कन्धे और बाजू की माँसपेशियाँ चक्रासन मज़बूत हो जाती हैं।
(5) इससे पेट की बहुत-सी बीमारियाँ दूर होती हैं।

(ख) भुजंगासन (Bhujangasana):
पेट के बल लेट जाएँ और दोनों पैरों को आपस में मिलाकर पूरी तरह धरती से लगाएँ। अपने पैरों की उंगलियों से लेकर नाभि तक का शरीर धरती से लगाएँ। हाथों को कन्धों के सामने धरती से लगाकर धड़ के ऊपरी भाग को पूरी तरह ऊपर की ओर उठाएँ। इस प्रकार कमर का ऊपरी भाग फनियर साँप जैसा बन जाएगा।
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लाभ (Benefits):
(1) यह आसन रीढ़ की हड्डी को लचीला और छाती को चौड़ा बनाता है। भुजंगासन
(2) यह आसन गर्दन, कन्धों, छाती और सिर को अधिक क्रियाशील बनाता है।
(3) यह रक्त-संचार को तेज़ करता है।
(4) यह मोटापे को कम करता है।
(5) इससे शरीर में शक्ति और स्फूर्ति का संचार होता है।
(6) इस आसन से जिगर के रोग दूर होते हैं।

(ग) शीर्षासन (Shirshasana)-
घुटने के बल बैठकर दोनों हाथों की अंगुलियाँ ठीक ढंग से बाँध लें और आसन पर रखें। सिर का आगे वाला भाग ज़मीन पर इस प्रकार रखें कि दोनों हाथ सिर के पीछे हों। टाँगों को धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठाएँ। पहले एक टाँग को सीधा करें, फिर दूसरी को सीधा करने के पश्चात् शरीर को सीधा करें। सारा वज़न सिर और भुजाओं पर रहे।
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लाभ (Benefits):
(1) शीर्षासन से मोटापा कम होता है।
(2) यह आसन भूख बढ़ाता है और जिगर ठीक प्रकार से कार्य करता है।
(3) इस आसन से स्मरण-शक्ति बढ़ती है।
(4) इससे पेट ठीक रहता है। शीर्षासन

(घ) हलासन (Halasana):
इस आसन में सबसे पहले अपने पैर फैलाकर पीठ के बल ज़मीन परं लेट जाओ। हाथों की हथेलियों को बगल में जमाएँ। कमर के निचले भाग को ज़मीन से धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठाएँ और इतना ऊपर ले जाएँ कि दोनों पैरों के अंगूठे सिर के पीछे ज़मीन पर लग जाएँ।
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लाभ (Benefits):
(1) इससे आँखों की रोशनी बढ़ती है।
(2) इस आसन से मोटापा दूर होता है।
(3) यह आसन रक्त संचार को समान करता है।
(4) इस आसन से रीढ़ की हड्डी लचीली होती है। हलासन
(5) यह आसन शरीर को तन्दुरुस्त बनाता है।

(ङ) धनुरासन (Dhanurasana):
इस आसन का आकार धनुष जैसा होता है। इस आसन में सबसे पहले पेट के बल लेट जाएँ। अपने दोनों हाथों के साथ दोनों पैरों की पिण्डलियों को पकड़ें। छाती और पेट के ऊपरी भाग को खींचें। हर्निया के रोगी को यह आसन नहीं करना चाहिए।
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लाभ (Benefits):
(1) यह आसन रीढ़ की हड्डी में लचीलापन लाता है।
(2) यह आसन मूत्र में शर्करा रोग को रोकता है।
(3) इस आसन द्वारा पेट अथवा कमर के आस-पास आया धनुरासन मोटापा दूर होता है।
(4) इस आसन द्वारा कब्ज़ और पेट संबंधी बीमारियाँ दूर होती हैं।
(5) यह आसन पीठ दर्द और कमर दर्द को दूर करता है।
(6) यह आसन करने से बाजुओं और टांगों की माँसपेशियाँ शक्तिशाली बनती हैं।
(7) इससे श्वासनली और फेफड़ों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।
(8) यह आसन पेट, आंतड़ियों और जनन के रोगों को दूर करता है।

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प्रश्न 10.
पद्मासन की विधि तथा इसके लाभों का वर्णन करें।
उत्तर:
पद्मासन (Padamasana):
पद्मासन का विशेष महत्त्व है क्योंकि अधिकांश आसन सर्वप्रथम पद्मासन लगाने के बाद ही किए जाते हैं। पद्मासन में पालथी लगाकर बैठा जाता है। किसी साफ-सुथरे कम्बल या दरी पर बैठकर इसका अभ्यास किया जाता है। इस आसन में शरीर की आकृति बहुत हद तक कमल के फूल जैसी हो जाती है। इस कारण इसको ‘Lotus Pose’ भी कहा जाता है।

विधि (Procedure):
समतल स्थान पर चटाई या कम्बल बिछाकर चौकड़ी लगाकर बैठे। बाएँ पाँव की एडी को दाईं जाँघ पर और दाएँ पाँव की एडी को बाईं जाँघ पर रखें। पाँव के तलवे ऊपर की ओर होने चाहिएँ। सामने देखते हुए कमर के ऊपरी भाग को सीधा रखें। दोनों हाथों को ज्ञान-मुद्रा की स्थिति में रखें। रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें। धीरे-धीरे श्वसन क्रिया करें। 1 से 10 मिनट तक शांत-भाव से इसी मुद्रा में रहने का अभ्यास करें।

लाभ (Benefits)”
पद्मासन के लाभ निम्नलिखित हैं
(1) यह आसन करने से मन की एकाग्रता बढ़ती है।
(2) इसे करने से घुटनों के जोड़ों का दर्द दूर होता हैं।
(3) इसे करने से पेट सम्बन्धी बीमारियाँ दूर होती है और पाचन-शक्ति में वृद्धि होती है।
(4) इसे करने से माँसपेशियाँ मजबूत होती हैं। पद्मासन
(5) इसे नियमित रूप से करने से रीढ़ की हड्डी मजबूत एवं लचीली बनती है।
(6) यह आसन करने से स्मरण-शक्ति, विचार-शक्ति व तर्क-शक्ति बढ़ती है।
(7) इसके नियमित अभ्यास से चित्त में स्थिरता आती है और वीर्य में वृद्धि होती है।
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प्रश्न 11.
सर्वांगासन की विधि तथा इसके लाभों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सर्वांगासन (Sarvangasana):
सर्वांगासन में कंधों के बल शरीर को खड़ा किया जाता है। किसी साफ-सुथरे कम्बल या दरी पर पीठ के बल लेट जाएँ। हथेलियों को नीचे की ओर करके शरीर से सटाए रखें।
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विधि (Procedure):
समतल ज़मीन पर शांत-भाव से पीठ के बल सीधे लेटकर पाँव आपस में मिला लें। धीरे-धीरे पाँवों को ऊपर ले जाते हुए शरीर को भी ऊपर उठाएँ। पाँव इस तरह ऊपर उठाएँ कि टाँगें और नितम्ब कमर के साथ 90 डिग्री का कोण बनाएँ। कुछ देर तक इसी स्थिति में ठहरने के बाद धीरे-धीरे शरीर को नीचे लाकर वापिस सामान्य स्थिति में आ जाएँ। 1 से 5 मिनट तक इस आसन का अभ्यास करें।

लाभ (Benefits):
सर्वांगासन करने के लाभ निम्नलिखित हैं
(1) यह आसन दमा के रोगियों के लिए दवा का कार्य करता है।
(2) इसे करने से शरीर में रक्त का प्रवाह तेज हो जाता है।
(3) कब्ज, गैस तथा पेट के अन्य रोग भी इस आसन से ठीक हो जाते हैं।
(4) यह आसन भूख में वृद्धि करता है।
(5) इसे करने से पेट की माँसपेशियाँ मजबूत बनती हैं। सर्वांगासन
(6) यह आसन पाचन-शक्ति में वृद्धि करता है।

प्रश्न 12.
शलभासन क्या है? इसकी विधि तथा इससे होने वाले लाभ बताएँ।
उत्तर:
शलभासन (Shalabhasana):
संस्कृत भाषा में ‘शलभ’ टिड्डी नामक कीट को कहते हैं। जिस प्रकार टिड्डी का पिछला भाग ऊपर की ओर उठा रहता है, उसी प्रकार नाभि से निचला भाग ऊपर की ओर उठा होने के कारण इसे शलभासन कहते हैं।
HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ एवं महत्त्व 8

विधि (Procedure):
सबसे पहले पेट के बल ज़मीन पर लेट जाएँ। अपनी हथेलियों को जाँघों के नीचे रखें। अब गहरा श्वास भरकर ठुड्डी, हाथ एवं शलभासन छाती पर शरीर का भार संभालते हुए दोनों पैरों को धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठाएँ। पैर मिले हुए और घुटने सीधे रखें। श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे पूर्व स्थिति में आ जाएँ। इस तरह से आप यह क्रिया 3 से 5 बार दोहराएँ।

लाभ (Benefits):
शलभासन के लाभ निम्नलिखित हैं
(1) इस आसन से रक्त-संचार की क्रिया तेज होती है।
(2) इससे रीढ़ की हड्डी में लचीलापन आता है।
(3) इससे पेट के कई रोग; जैसे गैस बनना, भूख न लगना और अपच या बदहजमी आदि दूर हो जाते हैं। इससे कमर-दर्द भी दूर होता है।
(4) इससे आँखों की रोशनी बढ़ती है।
(5) इससे रीढ़ की हड्डी मजबूत होती है।
(6) इससे शरीर का संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है।

प्रश्न 13.
प्राणायाम से क्या अभिप्राय है? इसकी उपयोगिता या महत्ता पर प्रकाश डालिए। अथवा ‘प्राणायाम’ की परिभाषा देते हुए इसके महत्त्व का वर्णन कीजिए। अथवा प्राणायाम का अर्थ व परिभाषा लिखें। वर्तमान में इसकी आवश्यकता पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
प्राणायाम का अर्थ (Meaning of Pranayama):
प्राणायाम में दो शब्द हैं-प्राण व आयाम। प्राण का अर्थ हैश्वास और आयाम का अर्थ है-नियंत्रण व नियमन। इस प्रकार जिसके द्वारा श्वास के नियमन व नियंत्रण का अभ्यास किया जाता है, उसे प्राणायाम कहते हैं। अर्थात् साँस को अंदर ले जाने व बाहर निकालने पर उचित नियंत्रण रखना ही प्राणायाम है। महर्षि पतंजलि के अनुसार, “श्वास-प्रश्वास की स्वाभाविक गति को रोकना ही प्राणायाम है।”

प्राणायाम की आवश्यकता एवं महत्त्व (Need and Importance of Pranayama):
वर्तमान समय में श्री श्री रविशंकर ने जीवन जीने की जो शैली सुझाई है, वह प्राणायाम पर आधारित है। आधुनिक जीवन में प्राणायाम की आवश्यकता एवं महत्त्व निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट हो जाती है

(1) प्राणायाम से शरीर का रक्तचाप व तापमान सामान्य रहता है।
(2) इससे शरीर की आंतरिक शुद्धता बढ़ती है।
(3) इससे मन की चंचलता दूर होती है।
(4) इससे सामान्य स्वास्थ्य व शारीरिक कार्य-कुशलता का विकास होता है।
(5) इससे मानसिक तनाव व चिंता दूर होती है।
(6) इससे हमारी श्वसन प्रक्रिया में सुधार होता है।
(7) इससे आँखों व चेहरे में चमक आती है और आवाज़ मधुर हो जाती है।
(8) इससे आध्यात्मिक व मानसिक विकास में मदद मिलती है।
(9) इससे कार्य करने की शक्ति में वृद्धि होती है।
(10) इससे फेफड़ों का आकार बढ़ता है और श्वास की बीमारियों तथा गले, मस्तिष्क की बीमारियों से छुटकारा मिलता है।
(11) इससे इच्छा शक्ति व स्मरण-शक्ति बढ़ती है।
(12) इससे श्वास-संस्थान मज़बूत होता है।
(13) प्राणायाम करने से पेट तथा छाती की मांसपेशियाँ मज़बूत बनती हैं।
(14) श्वास ठीक ढंग से आने के कारण शरीर को ऑक्सीजन अधिक मात्रा में मिलने लगती है और ऑक्सीजन बढ़ने से रक्त साफ होता है।
(15) इससे रक्त के तेज़ दबाव से नाड़ी संस्थान की शक्ति में वृद्धि होती है।

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प्रश्न 14.
प्राणायाम करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? एक योगसाधक के लिए आवश्यक निर्देश बताएँ।
उत्तर:
ध्यान रखने योग्य बातें (Things to keep in Mind): प्राणायाम करते समय निम्नलिखि बातों का ध्यान रखना चाहिए
(1) प्राणायाम धीरे-धीरे करना चाहिए।
(2) प्राणायाम का अभ्यास प्रात:काल करना अधिक लाभदायक होता है।
(3) प्राणायाम शुरू करने से पहले अपने योग शिक्षक की सलाह अवश्य लेनी चाहिए।
(4) प्राणायाम करते समय श्वास क्रिया नाक से करनी चाहिए।
(5) प्राणायाम करते समय किसी भी तरह का तनाव नहीं होना चाहिए।
(6) प्राणायाम के समय श्वसन क्रिया करते समय श्वसन की आवाज जोर से नहीं करनी चाहिए। श्वास की क्रिया लयात्मक व स्थिर होनी चाहिए।
(7) यदि आप बहुत थके हुए हो तो प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
(8) प्राणायाम के बाद किसी भी तरह का जोरदार अभ्यास नहीं करना चाहिए।
(9) प्राणायाम को जल्दबाजी में नहीं करना चाहिए।
(10) प्राणायाम हमेशा खुले वातावरण में करना अधिक लाभदायक होता है या एक अच्छे हवादार कमरे में करना चाहिए जिसमें आदि न लगा हो।

एक योगसाधक के लिए आवश्यक निर्देश (Important Instructions of a Yoga Instructor) एक योगसाधक के लिए आवश्यक निर्देश निम्नलिखित हैं
(1) प्राणायाम शुरू करने से पहले योगसाधक को अपनी आंत को साफ कर देना चाहिए।
(2) स्वच्छ एवं हवादार कमरे में प्राणायाम का अभ्यास करें। यदि आप किसी शोरगुल वातावरण में अभ्यास करते हैं तो आपका मन विचलित हो सकता है।
(3) प्राणायाम करने से पहले 2 या 3 घंटे तक कुछ भी न खाएँ।
(4) प्राणायाम का अभ्यास एक ही समय में करना चाहिए अर्थात् प्राणायाम में नियमितता होनी चाहिए।
(5) प्राणायाम करने के लिए आप पदमासन, वज्रासन, सिद्धासन व सुखासन में बैठ सकते हैं।
(6) प्राणायाम करते समय अपनी पीठ बिल्कुल सीधी रखनी चाहिए।
(7) टी०बी० व उच्च रक्तचाप के मरीजों को प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
(8) प्राणायाम के लिए सभी बुनियादी दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिए।
(9) प्राणायाम करते समय अपने जीवन की चिंताओं व तनाव आदि को भूल जाएँ और अपनी साँस पर ध्यान केन्द्रित करने का प्रयास करें।
(10) यदि आपको श्वास से संबंधित कोई बीमारी हो तो अपने चिकित्सक की सलाह या परामर्श से प्राणायाम का अभ्यास करें।

लघूत्तरात्मक प्रश्न [Short Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
योग के इतिहास पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
योग का इतिहास उतना ही प्राचीन है, जितना कि भारत का इतिहास। इस बारे में अभी तक ठीक तरह पता नहीं लग सका कि योग कब शुरू हुआ? परंतु योग भारत की ही देन या विरासत है। भारत में योग लगभग तीन हजार ईसा पूर्व पहले शुरू हुआ। हजारों वर्ष पहले हिमालय में कांति सरोवर झील के किनारे पर आदि योगी ने अपने योग सम्बन्धी ज्ञान को पौराणिक सात ऋषियों को प्रदान किया। इन ऋषियों ने योग का विश्व के विभिन्न भागों में प्रचार किया। परन्तु व्यापक स्तर पर योग को सिन्धु घाटी सभ्यता के एक अमिट सांस्कृतिक परिणाम के रूप में समझा जाता है। महर्षि पतंजलि द्वारा योग पर प्रथम पुस्तक ‘योग-सूत्र’ लिखी गई, जिसमें उन्होंने योग की अवस्थाओं एवं प्रकारों का विस्तृत उल्लेख किया है। हिंदू धर्म के ग्रंथ ‘उपनिषद्’ में योग के सिद्धांतों या नियमों का वर्णन किया गया है। महर्षि पतंजलि के बाद अनेक योग गुरुओं एवं ऋषियों ने इसके विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। आधुनिक काल में महर्षि पतंजलि को योग का आदि गुरु माना जाता है। भारत के मध्यकालीन युग में कई योगियों ने योग के बारे में विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। इसने मानवता के भौतिक और आध्यात्मिक विकास में अहम् भूमिका निभाई है।
HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 5 योग का अर्थ, परिभाषा एवं महत्त्व 8

प्रश्न 2.
योग करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? अथवा योगासन करते समय ध्यान में रखी जाने वाली मुख्य बातें बताएँ।
उत्तर:
योगासन करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए
(1) योगासन का अभ्यास प्रातः करना चाहिए। योग करते समय हमेशा नाक से साँस लेनी चाहिए।
(2) योगासन, शान्त जगह पर और खुली हवा में करना चाहिए।
(3) योगासन एकाग्र मन से करना चाहिए। इससे अधिक लाभ होता है।
(4) योगासन करते समय शरीर पर कम-से-कम कपड़े होने चाहिएँ, परन्तु सर्दियों में उचित कपड़े पहनने चाहिएँ।
(5) योगासनों का अभ्यास प्रत्येक आयु में कर सकते हैं, परन्तु अभ्यास करने से पहले किसी अनुभवी व्यक्ति से जानकारी ले लेनी चाहिए।
(6) योगासन खाली पेट करना चाहिए। इसके करने के दो घण्टे पश्चात् भोजन करना चाहिए।
(7) योगासन किसी दरी या चटाई पर किए जाएँ। दरी या चटाई किसी समतल जगह पर बिछी होनी चाहिए।

प्रश्न 3.
योग के लाभों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। अथवा योग अभ्यास का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है?
अथवा
योग आसन के मुख्य लाभ लिखें।
उत्तर:
योग धर्म-मजहब से परे की विधा है। जिस तरह से सूर्य अपनी रोशनी करने में किसी भी प्रकार का कोई भेद नहीं करता, उसी प्रकार से योग करके कोई भी इसका लाभ प्राप्त कर सकता है। दुनिया के हर इंसान को योग के लाभ समभाव से प्राप्त होते हैं; जैसे
(1) योग मस्तिष्क को शांत करने का अभ्यास है अर्थात् इससे मानसिक शान्ति प्राप्त होती है।
(2) योग से बीमारियों से छुटकारा मिलता है और हमारे स्वास्थ्य में सुधार होता है।
(3) योग एक साधना है जिससे न सिर्फ शरीर बल्कि मन भी स्वस्थ रहता है।
(4) योग आसन से मानसिक तनाव को भी दूर किया जा सकता है।
(5) योग आसन से सकारात्मक प्रवृत्ति में वृद्धि होती है।
(6) योग आसन तन-मन, चित्त-वृत्ति और स्वास्थ्य-सोच को विकार मुक्त करता है।
(7) योग आसन से आत्मिक सुख एवं शान्ति प्राप्त होती है।
(8) योग आसन से कर्म करने की शक्ति विकसित होती है।

प्रश्न 4.
नियम के भागों को सूचीबद्ध करें।
उत्तर:
नियम के भाग निम्नलिखित हैं
1. शौच-शौच का अर्थ है-शुद्धता। हमें हमेशा अपना शरीर आंतरिक व बाहरी रूप से साफ व स्वस्थ रखना चाहिए।
2. संतोष-संतोष का अर्थ है-संतुष्टि। हमें उसी में संतुष्ट रहना चाहिए जो परमात्मा ने हमें दिया है।
3. तप-हमें प्रत्येक स्थिति में एक-सा व्यवहार करना चाहिए। जीवन में आने वाली मुश्किलों व परिस्थितियों को धैर्यपूर्वक सहन करना तथा लक्ष्य-प्राप्ति की ओर निरंतर आगे बढ़ते रहना तप कहलाता है।
4. स्वाध्याय-ग्रंथों, वेदों, उपनिषदों, गीता व अन्य महान् पुस्तकों का निष्ठा भाव से अध्ययन करना स्वाध्याय कहलाता है।
5. ईश्वर प्राणीधान-ईश्वर प्राणीधान नियम की महत्त्वपूर्ण अवस्था है। ईश्वर को अपने सभी कर्मों को अर्पित करना ईश्वर प्राणीधान कहलाता है।

प्रश्न 5.
यम क्या है? यम के भागों को सूचीबद्ध करें।
उत्तर:
यम-यम योग की वह अवस्था है जिसमें सामाजिक व नैतिक गुणों के पालन से इंद्रियों व मन को आत्म-केंद्रित किया जाता है। यह अनुशासन का वह साधन है जो प्रत्येक व्यक्ति के मन से संबंध रखता है। इसका अभ्यास करने से व्यक्ति अहिंसा, सच्चाई, चोरी न करना, पवित्रता तथा त्याग करना सीखता है। महर्षि पतंजलि के अनुसार यम पाँच होते हैं

1. सत्य-सत्य से अभिप्राय मन की शुद्धता या सच बोलने से है। हमें हमेशा अपने विचार, शब्द, मन और कर्म से सत्यवादी होना चाहिए।
2. अहिंसा-मन, वचन व कर्म आदि से किसी को भी शारीरिक-मानसिक स्तर पर कोई हानि या आघात न पहुँचाना अहिंसा कहलाता है। हमें हमेशा हिंसात्मक और नकारात्मक भावनाओं से दूर रहना चाहिए।

प्रश्न 2.
योग करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? अथवा योगासन करते समय ध्यान में रखी जाने वाली मुख्य बातें बताएँ। उत्तर-योगासन करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए
(1) योगासन का अभ्यास प्रातः करना चाहिए। योग करते समय हमेशा नाक से साँस लेनी चाहिए।
(2) योगासन, शान्त जगह पर और खुली हवा में करना चाहिए।
(3) योगासन एकाग्र मन से करना चाहिए। इससे अधिक लाभ होता है।
(4) योगासन करते समय शरीर पर कम-से-कम कपड़े होने चाहिएँ, परन्तु सर्दियों में उचित कपड़े पहनने चाहिएँ।
(5) योगासनों का अभ्यास प्रत्येक आयु में कर सकते हैं, परन्तु अभ्यास करने से पहले किसी अनुभवी व्यक्ति से जानकारी ले लेनी चाहिए।
(6) योगासन खाली पेट करना चाहिए। इसके करने के दो घण्टे पश्चात् भोजन करना चाहिए।
(7) योगासन किसी दरी या चटाई पर किए जाएँ। दरी या चटाई किसी समतल जगह पर बिछी होनी चाहिए।

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 5 योग का अर्थ, परिभाषा एवं महत्त्व

प्रश्न 3.
योग के लाभों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
अथवा
योग अभ्यास का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है?
अथवा
योग आसन के मुख्य लाभ लिखें।
उत्तर:
योग धर्म-मजहब से परे की विधा है। जिस तरह से सूर्य अपनी रोशनी करने में किसी भी प्रकार का कोई भेद नहीं करता, उसी प्रकार से योग करके कोई भी इसका लाभ प्राप्त कर सकता है। दुनिया के हर इंसान को योग के लाभ समभाव से प्राप्त होते हैं; जैसे

(1) योग मस्तिष्क को शांत करने का अभ्यास है अर्थात् इससे मानसिक शान्ति प्राप्त होती है।
(2) योग से बीमारियों से छुटकारा मिलता है और हमारे स्वास्थ्य में सुधार होता है।
(3) योग एक साधना है जिससे न सिर्फ शरीर बल्कि मन भी स्वस्थ रहता है।
(4) योग आसन से मानसिक तनाव को भी दूर किया जा सकता है।
(5) योग आसन से सकारात्मक प्रवृत्ति में वृद्धि होती है।
(6) योग आसन तन-मन, चित्त-वृत्ति और स्वास्थ्य-सोच को विकार मुक्त करता है।
(7) योग आसन से आत्मिक सुख एवं शान्ति प्राप्त होती है।
(8) योग आसन से कर्म करने की शक्ति विकसित होती है।

प्रश्न 4.
नियम के भागों को सूचीबद्ध करें। उत्तर-नियम के भाग निम्नलिखित हैं

1. शौच-शौच का अर्थ है-शुद्धता। हमें हमेशा अपना शरीर आंतरिक व बाहरी रूप से साफ व स्वस्थ रखना चाहिए।
2. संतोष-संतोष का अर्थ है-संतुष्टि। हमें उसी में संतुष्ट रहना चाहिए जो परमात्मा ने हमें दिया है।
3. तप-हमें प्रत्येक स्थिति में एक-सा व्यवहार करना चाहिए। जीवन में आने वाली मुश्किलों व परिस्थितियों को धैर्यपूर्वक सहन करना तथा लक्ष्य-प्राप्ति की ओर निरंतर आगे बढ़ते रहना तप कहलाता है।
4. स्वाध्याय-ग्रंथों, वेदों, उपनिषदों, गीता व अन्य महान् पुस्तकों का निष्ठा भाव से अध्ययन करना स्वाध्याय कहलाता है।
5. ईश्वर प्राणीधान-ईश्वर प्राणीधान नियम की महत्त्वपूर्ण अवस्था है। ईश्वर को अपने सभी कर्मों को अर्पित करना ईश्वर प्राणीधान कहलाता है।

प्रश्न 5.
यम क्या है? यम के भागों को सूचीबद्ध करें।
उत्तर:
यम-यम योग की वह अवस्था है जिसमें सामाजिक व नैतिक गुणों के पालन से इंद्रियों व मन को आत्म-केंद्रित किया जाता है। यह अनुशासन का वह साधन है जो प्रत्येक व्यक्ति के मन से संबंध रखता है। इसका अभ्यास करने से व्यक्ति अहिंसा, सच्चाई, चोरी न करना, पवित्रता तथा त्याग करना सीखता है। महर्षि पतंजलि के अनुसार यम पाँच होते हैं

1. सत्य-सत्य से अभिप्राय मन की शुद्धता या सच बोलने से है। हमें हमेशा अपने विचार, शब्द, मन और कर्म से सत्यवादी होना चाहिए।
2. अहिंसा-मन, वचन व कर्म आदि से किसी को भी शारीरिक-मानसिक स्तर पर कोई हानि या आघात न पहुँचाना अहिंसा कहलाता है। हमें हमेशा हिंसात्मक और नकारात्मक भावनाओं से दूर रहना चाहिए।
3. अस्तेय-मन, वचन व कर्म से दूसरों की कोई वस्तु या चीज न चाहना या चुराना अस्तेय कहलाता है।
4. अपरिग्रह-इंद्रियों को प्रसन्न रखने वाले साधनों तथा धन-संपत्ति का अनावश्यक संग्रह न करना, कम आवश्यकताओं व इच्छाओं के साथ जीवन व्यतीत करना, अपरिग्रह कहलाता है। हमें कभी भी न तो गलत तरीकों से धन कमाना चाहिए और न ही एकत्रित करना चाहिए।
5. ब्रह्मचर्य-यौन संबंधों में नियंत्रण, चारित्रिक संयम ब्रह्मचर्य है। इसके अंतर्गत हमें कामवासना का पूर्णतः त्याग करना पड़ता है।

प्रश्न 6.
योग का आध्यात्मिक विकास (Spiritual Development): में क्या महत्त्व है? अथवा व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास में योग की महत्ता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
योग का अर्थ है-व्यक्ति की आत्मा को परमात्मा की चेतना या सार्वभौमिक आत्मा के साथ जोड़ना। योग तन, मन और आत्मा को एक साथ लाने का कार्य करता है। योग का अभ्यास मन को परमात्मा पर केंद्रित करता है और आत्मिक शांति प्रदान करता है। इसके द्वारा ईश्वर या परमात्मा को प्राप्त करने की दिशा में प्रयास किया जाता है। योग को नियमित रूप से करने से व्यक्ति को अपने मन पर नियंत्रण प्राप्त करने की योग्यता या क्षमता प्राप्त होती है। मन की शुद्धता एवं स्वच्छता से उसे परमात्मा की ओर लगाया जा सकता है। हमारे शास्त्रों में लिखा है कि जैसे आग में तपाते-तपाते लोहा आग जैसा ही हो जाता है, वैसे ही निरंतर योग का अभ्यास करने से योगी स्वयं को भूलकर परमात्मा में लीन हो जाता है। उसको परमात्मा के अलावा कुछ भी याद नहीं रहता। इस प्रकार योग आध्यात्मिक विकास में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। आध्यात्मिक विकास हेतु व्यक्ति को योग के साथ-साथ पद्मासन व सिद्धासन आदि भी करने चाहिएँ।

प्रश्न 7.
हमारे जीवन के लिए योग क्यों आवश्यक हैं?
उत्तर:
योग उन्नति का द्योतक है। यह चाहे शारीरिक उन्नति हो या आध्यात्मिक। अध्यात्म की मान्यताओं की बात करें तो यह कहा जाता है कि संसार पाँच महाभूतों/तत्त्वों; जैसे पृथ्वी, जल, आकाश, अग्नि और वायु के मिश्रण या संयोग से बना है। हमारा शरीर भी पाँच महाभूतों के संयोग से बना है। अत: योग विकास का मूल मंत्र है जिससे हमारे अंतस्थ की उन्नति संभव है। योग से मन की एकाग्रता को बढ़ाया जाता है। योग हमारे भीतर की चेतना को जगाकर हमें ऊर्जावान एवं हृष्ट-पुष्ट बनाता है। योग मन को मौन करने की प्रक्रिया है। जब यह संभव हो जाता है, तब हमारा मूल प्राकृतिक स्वरूप सामने आता है। अतः आज हमारे जीवन के लिए योग बहुत आवश्यक है।

प्रश्न 8.
सूर्य नमस्कार क्या है?
उत्तर:
‘सूर्य’ से अभिप्राय है-‘सूरज’ और ‘नमस्कार’ से अभिप्राय है-‘प्रणाम करना’। इससे अभिप्राय है कि क्रिया करते हुए सूरज को प्रणाम करना। यह एक आसन नहीं है बल्कि कई आसनों का मेल है तथा शरीर और मन को स्वस्थ रखने का उत्तम तरीका है। प्रतिदिन सूर्य को नमस्कार करने से व्यक्ति में बल और बुद्धि का विकास होता है और इसके साथ व्यक्ति की उम्र भी बढ़ती है। सूर्य उदय के समय सूर्य नमस्कार करना अति उत्तम होता है, क्योंकि यह समय पूर्ण रूप से शांतिमय होता है। …

प्रश्न 9.
योग के रक्षात्मक एवं चिकित्सीय प्रभावों का वर्णन करें।
अथवा
योग के बचावात्मक व उपचारात्मक प्रभावों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
योग एंक शारीरिक व्यायाम ही नहीं, बल्कि जीवन का दर्शनशास्त्र भी है। यह वह क्रिया है जो शारीरिक क्रियाओं तथा . आध्यात्मिक क्रियाओं में संतुलन बनाए रखती है। वर्तमान भौतिक समाज आध्यात्मिक शून्यता के बिना रह रहा है, जहाँ योग सहायता कर सकता है। आधुनिक समय में योग के निम्नलिखित उपचार तथा रोकथाम संबंधी प्रभाव पड़ते हैं

(1) योग पेट तथा पाचन तंत्र की अनेक बीमारियों की रोकथाम में सहायता करता है।
(2) योग क्रियाओं के द्वारा कफ़, वात व पित्त का संतुलन बना रहता है।
(3) यौगिक क्रियाएँ शारीरिक अंगों को शुद्ध करती हैं तथा साधक के स्वास्थ्य में सुधार लाती हैं।
(4) योग के माध्यम से मानसिक शांति व स्व-नियंत्रण उत्पन्न होता है। योग से मानसिक शांति तथा संतुलन बनाए रखा जा सकता है।
(5) योग अनेक मुद्रा-विकृतियों को ठीक करने में सहायता करता है।
(6) नियमित व निरंतर यौगिक क्रियाएँ, मस्तिष्क के उच्चतर केंद्रों को उद्दीप्त करती हैं, जो विभिन्न प्रकार के विकारों की रोकथाम करते हैं।

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प्रश्न 10.
प्राणायाम करने की विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राणायाम श्वास पर नियंत्रण करने की एक विधि है। प्राणायाम की तीन अवस्थाएँ होती हैं-
(1) पूरक (श्वास को अंदर खींचना),
(2) रेचक (श्वास को बाहर निकालना),
(3) कुंभक (श्वास को कुछ देर अंदर रोकना)।

प्राणायाम में श्वास अंदर की ओर खींचकर रोक लिया जाता है और कुछ समय रोकने के पश्चात् फिर श्वास बाहर निकाला जाता है। इस तरह श्वास को धीरे-धीरे नियंत्रित करने का समय बढ़ा लिया जाता है। अपनी बाईं नाक को बंद करके दाईं नाक द्वारा श्वास खींचें और थोड़े समय तक रोक कर छोडें। इसके पश्चात् दाईं नाक बंद करके बाईं नाक द्वारा पूरा श्वास बाहर निकाल दें। अब फिर दाईं नाक को बंद करके बाईं नाक द्वारा श्वास खींचें और थोड़े समय तक रोक कर छोडें। इसके पश्चात् दाईं नाक बंद करके पूरा श्वास बाहर निकाल दें। इस प्रकार इस प्रक्रिया को कई बार दोहराना चाहिए।

प्रश्न 11.
प्राणायाम की महत्ता पर टिप्पणी कीजिए।
अथवा
प्राणायाम की आवश्यकता एवं महत्ता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
वर्तमान समय में श्री श्री रविशंकर जी ने जीवन जीने की जो शैली सुझाई है, वह प्राणायाम पर आधारित है। आधुनिक जीवन में प्राणायाम की आवश्यकता एवं महत्त्व निम्मलिखित तथ्यों से स्पष्ट हो जाती है
(1) प्राणायाम से शरीर का रक्तचाप व तापमान सामान्य रहता है।
(2) इससे रक्त के तेज़ दबाव से नाड़ी संस्थान की शक्ति में वृद्धि होती है।
(3) इससे मानसिक तनाव व चिंता दूर होती है। इससे आध्यात्मिक व मानसिक विकास में मदद मिलती है।
(4) इससे आँखों व चेहरे में चमक आती है और आवाज़ मधुर हो जाती है।
(5) इससे फेफड़ों का आकार बढ़ता है और श्वास की बीमारियों तथा गले, मस्तिष्क की बीमारियों से छुटकारा मिलता है।
(6) इससे इच्छा-शक्ति व स्मरण-शक्ति बढ़ती है।
(7) प्राणायाम करने से पेट तथा छाती की मांसपेशियाँ मज़बूत बनती हैं।

प्रश्न 12.
योग और प्राणायाम में अंतर स्पष्ट कीजिए। उत्तर-योग और प्राणायाम में निम्नलिखित अंतर हैं
(1) योग एक व्यापक विधा है जबकि प्राणायाम योग का ही एक अंग है।
(2) योग केवल शारीरिक व्यायामों व आसनों की एक प्रणाली ही नहीं, बल्कि यह संपूर्ण और भरपूर जीवन जीने की कला भी है। यह शरीर और मन का मिलन है। प्राणायाम श्वास लेने व छोड़ने की विभिन्न विधियों का संग्रह है।
(3) नियमित योग करने से विभिन्न प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं तथा शरीर में रक्त प्रवाह उचित रहता है। नियमित प्राणायाम से शरीर की विभिन्न कोशिकाओं को ऊर्जा मिलती है। प्राणायाम दमा, सर्दी-जुकाम, गले के रोगों आदि को दूर करने में विशेष रूप से लाभदायक है।

प्रश्न 13.
शवासन करने की विधि बताइए।
उत्तर:
शवासन में शव + आसन शब्दों का मेल है। शव का अर्थ है-मृत शरीर और आसन का अर्थ है-मुद्रा। अतः इस आसन में शरीर मृत शरीर जैसा लगता है, इसलिए इसको शवासन कहा जाता है।
सबसे पहले फर्श पर पीठ के बल सीधे लेट जाएँ। हाथों को आराम की अवस्था में शरीर से कुछ दूरी पर रखें। हथेलियाँ ऊपर की ओर रखें। पैरों के बीच 1 या 2 फुट दूरी रखें। आँखें धीरे-धीरे बंद करें और लयात्मक व यौगिक श्वसन क्रिया करें। श्वसन और आत्मा पर ध्यान केंद्रित करें। इस आसन का अभ्यास प्रत्येक आसन के शुरू में एवं अंत में करना बहुत लाभदायक होता है।
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शवासन

प्रश्न 14.
पश्चिमोत्तानासन की विधि तथा इसके लाभ बताइए।
उत्तर:
विधि-सर्वप्रथम, हम दोनों पैरों को आगे की ओर खींचेंगे, जबकि हम फर्श पर बैठे होंगे। तत्पश्चात् पैरों के दोनों अंगूठों को हाथों से पकड़ते हुए धीरे-धीरे श्वास को छोड़ेंगे तथा मस्तक को घुटनों के साथ लगाने का प्रयास करेंगे। फिर, धीरे-धीरे साँस लेते हुए और सिर को ऊपर उठाते हुए, हम पहले वाली स्थिति में लौट आएंगे। पश्चिमोत्तानासन
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लाभ – (1) यह आसन जाँघों को सशक्त बनाता है।
(2) इससे रीढ़ की हड्डी में लचक आती है।
(3) इससे मोटापा घटता है।

प्रश्न 15.
अष्टांग योग में ध्यान का क्या महत्त्व है?
अथवा
ध्यान के हमारे लिए क्या-क्या लाभ हैं? उत्तर-ध्यान के हमारे लिए लाभ या महत्त्व निम्नलिखित हैं
(1) ध्यान हमारे भीतर की शुद्धता के ऊपर पड़े क्रोध, ईर्ष्या, लोभ, कुंठा आदि के आवरणों को हटाकर हमें सकारात्मक बनाता है।
(2) ध्यान से हमें शान्ति एवं प्रसन्नता की प्राप्ति होती है।
(3) ध्यान सर्वस्व प्रेम की भावना एवं सृजन शक्ति को जगाता है।
(14) ध्यान से मन शान्त एवं शुद्ध होता है।

प्रश्न 16.
खिलाड़ियों के लिए योग किस प्रकार लाभदायक है? एक खिलाड़ी की योग किस प्रकार सहायता करता है?
उत्तर:
खिलाड़ियों के लिए योग निम्नलिखित प्रकार से लाभदायक है
(1) योग खिलाड़ियों को स्वस्थ एवं चुस्त रखने में सहायक होता है।
(2) योग से उनके शरीर में लचीलापन आ जाता है।
(3) योग से उनकी क्षमता एवं शक्ति में वृद्धि होती है।
(4) योग उनके मानसिक तनाव को भी कम करने में सहायक होता है।
(5) योग उनके मन की एकाग्रता को बढ़ाता है। इसके फलस्वरूप वह अपने संवेगों को नियंत्रण में रख सकते हैं।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न [Very Short Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
योग क्या है? अथवा योग से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘योग’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत की मूल धातु ‘युज’ से हुई है जिसका अर्थ है-जोड़ या एक होना। जोड़ या एक होने का अर्थ है-व्यक्ति की आत्मा को ब्रह्मांड या परमात्मा की चेतना या सार्वभौमिक आत्मा के साथ जोड़ना। महर्षि पतंजलि (योग के पितामह) के अनुसार, ‘युज’ धातु का अर्थ है-ध्यान-केंद्रण या मनःस्थिति को स्थिर करना और आत्मा का परमात्मा से ऐक्य । साधारण शब्दों में, योग व्यक्ति की आत्मा का परमात्मा से मिलन का नाम है।

प्रश्न 2.
योग को परिभाषित कीजिए।
अथवा
‘श्रीमद्वद् गीता’ में भगवान् श्रीकृष्ण ने योग के बारे में क्या कहा है? उत्तर-योग छिपी हुई शक्तियों का विकास करता है। यह धर्म, दर्शन, मनोविज्ञान तथा शारीरिक सभ्यता का समूह है।
1. श्रीमद्भगवद्गीता’ में भगवान् श्रीकृष्ण ने योग के बारे में कहा है, “योगकर्मसुकौशलम्” अर्थात् कर्म को कुशलतापूर्वक करना ही योग है।
2. महर्षि पतंजलि ने योग के संबंध में कहा-“योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः” अर्थात् चित्तवृत्तियों को रोकने का नाम योग है।

प्रश्न 3.
योग का उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
योग का उद्देश्य आत्मा का परमात्मा से मिलाप करवाना है। इसका मुख्य उद्देश्य शरीर को नीरोग, फुर्तीला रखना और छिपी हुई शक्तियों का विकास करके, मन को जीतना है। यह शरीर, मन तथा आत्मा की आवश्यकताएँ पूर्ण करने का एक अच्छा साधन है।

प्रश्न 4.
योग के कोई दो सिद्धांत लिखें।
उत्तर:
(1) योगासन एकाग्र मन से करना चाहिए, इससे अधिक लाभ होता है।
(2) योगासन का अभ्यास धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए।

प्रश्न 5.
योग के प्रमुख प्रकारों का नामोल्लेख कीजिए। अथवा योग को किस प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है?
उत्तर
भारतीय दर्शन शास्त्रों में 40 प्रकार के योगों का उल्लेख है। श्रीमद्भगवद् गीता में 18 प्रकार के योगों का वर्णन किया गया है। योग के इन विभिन्न प्रकारों में से प्रमुख प्रकार हैं
(1) कर्म योग,
(2) राज योग,
(3) ज्ञान योग,
(4) ध्यान योग
(5) सांख्य योग,
(6) हठ योग,
(7) कुंडलिनी योग,
(8) समाधि योग,
(9) नित्य योग,
(10) भक्ति योग,
(11) नाद योग,
(12) अष्टांग योग,
(13) बुद्धि योग,
(14) मन्त्र योग आदि।

प्रश्न 6.
योग को पूर्ण तंदुरुस्ती का साधन क्यों माना जाता है?
उत्तर:
योगाभ्यास को पूर्ण तंदुरुस्ती का साधन माना जाता है, क्योंकि इस अभ्यास द्वारा जहाँ शारीरिक शक्ति या ऊर्जा पैदा होती है, वहीं मानसिक शक्ति का भी विकास होता है। इस अभ्यास द्वारा शरीर की आंतरिक सफाई और शुद्धि की जा सकती है। व्यक्ति मानसिक तौर पर संतुष्ट, संयमी और त्यागी हो जाता है जिस कारण वह सांसारिक उलझनों से बचा रहता है।

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प्रश्न 7.
योग के कोई दो लाभ लिखें।
उत्तर:
(1) मानसिक व आत्मिक शांति व प्रसन्नता प्राप्त होना,
(2) शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य हेतु लाभदायक।

प्रश्न 8.
विद्यार्थियों के लिए योग व प्राणायाम क्यों आवश्यक हैं?
उत्तर:
योग चित्तवृत्तियों को रोकने का नाम है और प्राणायाम श्वास पर नियंत्रण व नियमन करने की प्रक्रिया है। विद्यार्थी जीवन में मन चंचल होता है और उन्हें ज्ञान अर्जित करने हेतु स्मरण शक्ति की विशेष आवश्यकता होती है। योग व प्राणायाम से मन को एकाग्र करके स्मरण-शक्ति को बढ़ाया जा सकता है। साथ ही उनका शारीरिक और मानसिक विकास किया जा सकता है।

प्रश्न 9.
योगासन करते समय श्वास क्रिया किस प्रकार करनी चाहिए?
उत्तर:
योगासन करते समय श्वास नाक द्वारा लें। आसन आरंभ करते समय फेफड़ों की अंदरुनी सारी हवा बाहर निकाल दें, इससे आसन आरंभ करने में सरलता होगी। हवा बाहर निकालने के उपरांत श्वास क्रिया रोकने का अभ्यास अवश्य करना चाहिए।

प्रश्न 10.
प्राणायाम से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्राणायाम में दो शब्द हैं-प्राण व आयाम। प्राण का अर्थ है-श्वास और आयाम का अर्थ है-नियंत्रण व नियमन । इस प्रकार जिसके द्वारा श्वास के नियंत्रण व नियमन का अभ्यास किया जाता है, उसे प्राणायाम कहते हैं अर्थात् साँस को अंदर ले जाने व बाहर निकालने पर उचित नियंत्रण रखना ही प्राणायाम है।

प्रश्न 11.
ध्यानात्मक आसन से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
ध्यानात्मक आसन वे आसन होते हैं जिनको करने से व्यक्ति की ध्यान करने की क्षमता विकसित होती है अर्थात् ध्यान करने की शक्ति बढ़ती है। इस प्रकार के आसन बहुत ही सावधानीपूर्वक करने चाहिएँ। इनको शांत एवं स्वच्छ वातावरण में स्थिर होकर ही करना चाहिए।

प्रश्न 12.
अष्टांग योग का क्या अर्थ है? अथवा अष्टांग योग से क्या भाव है?
उत्तर:
महर्षि पतंजलि ने ‘योग-सूत्र’ में जिन आठ अंगों का उल्लेख किया है, उन्हें ही अष्टांग योग कहा जाता है। अष्टांग योग का अर्थ है-योग के आठ पथ या अंग। वास्तव में योग के आठ पथ योग की आठ अवस्थाएँ (Stages) होती हैं जिनका पालन करते हुए व्यक्ति की आत्मा या जीवात्मा का परमात्मा से मिलन हो सकता है। अष्टांग योग का अनुष्ठान करने से अशुद्धि का नाश होता है, जिससे ज्ञान का प्रकाश चमकता है और विवेक (ख्याति) की प्राप्ति होती है। .

प्रश्न 13.
आरामदायक या विश्रामात्मक आसन से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
आरामदायक आसन वे आसन हैं जो कि शरीर को पूरी तरह आराम की स्थिति में लाकर शरीर के सभी अंग दिमाग और मन को शांत करते हैं। विश्रामात्मक आसन करने से शारीरिक एवं मानसिक थकावट दूर होती है और शरीर को पूर्ण विश्राम मिलता है।

प्रश्न 14.
अष्टांग योग में आसन का क्या भाव है?
अथवा
आसन का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जिस अवस्था में शरीर ठीक से बैठ सके, वह आसन है।आसन का अर्थ है-बैठना। योग की सिद्धि के लिए उचित आसन में बैठना बहुत आवश्यक है। महर्षि पतंजलि के अनुसार, “स्थिर सुख आसनम्।” अर्थात् जिस रीति से हम स्थिरतापूर्वक, बिना हिले-डुले और सुख के साथ बैठ सकें, वह आसन है। ठीक मुद्रा में रहने से मन शांत रहता है। आसन करने से शरीर और दिमाग दोनों चुस्त रहते हैं।

प्रश्न 15.
अष्टांग योग में नियम का क्या भाव है?
उत्तर:
अष्टांग योग में नियम से अभिप्राय व्यक्ति द्वारा समाज स्वीकृत नियमों के अनुसार ही आचरण करना है। जो व्यक्ति नियमों के विरुद्ध आचरण करता है, समाज उसे सम्मान नहीं देता। इसके विपरीत जो व्यक्ति समाज द्वारा स्वीकृत नियमों के अनुसार आचरण करता. है, समाज उसको सम्मान देता है। नियम के पाँच भाग होते हैं। इन पर अमल करके व्यक्ति परमात्मा को पा लेता है।

प्रश्न 16.
अष्टांग योग में प्रत्याहार से क्या भाव है?
उत्तर:
अष्टांग योग प्रत्याहार से अभिप्राय ज्ञानेंद्रियों व मन को अपने नियंत्रण में रखने से है। साधारण शब्दों में, प्रत्याहार का अर्थ है-मन व इन्द्रियों को उनकी संबंधित क्रियाओं से हटकर परमात्मा की ओर लगाना है।

प्रश्न 17.
अष्टांग योग में समाधि से क्या भाव है?
उत्तर:
समाधि योग की वह अवस्था है जिसमें साधक को स्वयं का भाव नहीं रहता। वह पूर्ण रूप से अचेत अवस्था में होता है। इस अवस्था में वह उस लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है जहाँ आत्मा व परमात्मा का मिलन होता है।

प्रश्न 18.
अष्टांग योग में यम से क्या भाव है?
उत्तर:
यम योग की वह अवस्था है जिसमें सामाजिक व नैतिक गुणों के पालन से इंद्रियों व मन को आत्म-केंद्रित किया जाता है। यह अनुशासन का वह साधन है जो प्रत्येक व्यक्ति के मन से संबंध रखता है। इसका अभ्यास करने से व्यक्ति अहिंसा, सच्चाई, चोरी न करना, पवित्रता तथा त्याग करना सीखता है।

प्रश्न 19.
प्राणायाम के शारीरिक मूल्य क्या हैं?
उत्तर:
प्राणायाम के मुख्य शारीरिक मूल्य हैं-प्राणायाम करने से शारीरिक कार्यकुशलता का विकास होता है। इससे मोटापा नियंत्रित होता है। इससे आँखों व चेहरे पर चमक आती है और शारीरिक मुद्रा (Posture) सही रहती है। .

प्रश्न 20.
आसन कितनी देर तक करने चाहिएँ?
उत्तर:
एक आसन की पूर्ण स्थिति दो मिनट से पाँच मिनट तक बनाकर रखनी चाहिए। आरंभ में आसन शारीरिक क्षमता के अनुसार किए जा सकते हैं। प्रत्येक आसन के पश्चात् और कुल आसन करने के पश्चात् विश्राम का अंतर अवश्य लेना चाहिए।

प्रश्न 21.
पी०टी० (P.T.) का क्या अर्थ है?
उत्तर:
पी०टी० (PT.) को अंग्रेजी में ‘Physical Theraphy’ या ‘Physical Training’ अर्थात् शारीरिक चिकित्सा या परीक्षण कहते हैं। शारीरिक चिकित्सा या परीक्षण संबंधित कसरतें समूह या व्यक्तिगत दोनों रूपों में की जाती हैं। इस प्रकार की कसरतों में किसी भी प्रकार के सामान या उपकरण की आवश्यकता नहीं होती।

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 5 योग का अर्थ, परिभाषा एवं महत्त्व

प्रश्न 22.
किन-किन परिस्थितियों में आसन करना वर्जित है?
उत्तर:
निम्नलिखित परिस्थितियों में आसन करना वर्जित है
(1) गर्भावस्था में आसन नहीं करना चाहिए।
(2) बीमारी व कमजोरी में आसन नहीं करना चाहिए।
(3) हृदय रोगियों व उच्च रक्तचाप वाले व्यक्तियों को आसन नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 23.
प्राणायाम के आधार या चरण बताएँ। अथवा प्राणायाम की अवस्थाओं के नाम बताएँ।
उत्तर:
प्राणायाम के आधार या चरण निम्नलिखित हैं
(1) पूरक: श्वास को अंदर खींचने की प्रक्रिया को पूरक (Inhalation) कहते हैं।
(2) रेचक: श्वास को बाहर निकालने की क्रिया को रेचक (Exhalation) कहते हैं।
(3) कुंभक: श्वास को अंदर खींचकर कुछ समय तक अंदर ही रोकने की क्रिया को कुंभक (Holding of Breath) कहते हैं।

प्रश्न 24.
पद्मासन के कोई दो लाभ बताएँ।
उत्तर:
(1) इससे मन की एकाग्रता बढ़ती है।
(2) इसे करने से घुटनों के जोड़ों का दर्द दूर होता है।

प्रश्न 25.
शलभासन के कोई दो लाभ बताएँ।
उत्तर:
(1) शलभासन से रक्त-संचार क्रिया सही रहती है।
(2) इससे रीढ़ की हड्डी में लचक आती है।

प्रश्न 26.
चक्रासन के कोई दो लाभ बताएँ।
उत्तर:
(1) इससे पेट की चर्बी कम होती है।
(2) इससे पेट की बीमारियाँ दूर होती हैं।

प्रश्न 27.
शवासन के कोई दो लाभ बताएँ।
उत्तर:
(1) शवासन से रक्तचाप ठीक रहता है,
(2) इससे तनाव, निराशा व थकान दूर होती है।

प्रश्न 28.
ताड़ासन के कोई दो लाभ बताइए।
उत्तर:
(1) ताड़ासन से शरीर का मोटापा कम होता है,
(2) इससे कब्ज दूर होती है।

प्रश्न 29.
सर्वांगासन के कोई दो लाभ बताइए।
उत्तर:
(1) सर्वांगासन से कब्ज दूर होती है,
(2) इससे भूख बढ़ती है और पाचन क्रिया ठीक रहती है।

प्रश्न 30.
धनुरासन के कोई दो लाभ बताएँ।
उत्तर:
(1) यह कब्ज, अपच, और जिगर की गड़बड़ी को दूर करने में लाभकारी होता है,
(2) इससे रीढ़ की हड्डी को मजबूती मिलती है।

प्रश्न 31.
शीर्षासन के कोई दो लाभ बताइए।
उत्तर:
(1) शीर्षासन से मोटापा कम होता है,
(2) इससे स्मरण-शक्ति बढ़ती है।

प्रश्न 32.
मयूरासन के कोई दो लाभ बताएँ।
उत्तर:
(1) यह कब्ज एवं अपच को दूर करता है,
(2) यह आँखों के दोषों को दूर करने में उपयोगी होता है।

प्रश्न 33.
सिद्धासन के कोई दो लाभ बताएँ।
उत्तर:
(1) इससे मन एकाग्र रहता है,
(2) यह मानसिक तनाव को दूर करता है।

प्रश्न 34.
मत्स्यासन के कोई दो लाभ लिखें।
उत्तर:
(1) इससे माँसपेशियों में लचकता बढ़ती है,
(2) इससे पीठ की मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं।

प्रश्न 35.
भुजंगासन के कोई दो लाभ लिखें।
उत्तर:
(1) यह रीढ़ की हड्डी में लचक बढ़ाता है
(2) यह रक्त संचार को तेज करता है।

प्रश्न 36.
मोटापे को कम करने के किन्हीं चार आसनों के नाम बताइए।
उत्तर:
(1) त्रिकोणासन,
(2) पद्मासन,
(3) भुजंगासन,
(4) पश्चिमोत्तानासन।

HBSE 9th Class Physical Education योग का अर्थ, परिभाषा एवं महत्त्व Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न [Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
‘योग’ शब्द की उत्पत्ति किस भाषा से हुई?
उत्तर:
‘योग’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई।

प्रश्न 2.
महर्षि पतंजलि के अनुसार योग क्या है?
उत्तर:
महर्षि पतंजलि के अनुसार-“मनोवृत्ति के विरोध का नाम योग है।”

प्रश्न 3.
भारत में योग का इतिहास कितना पुराना है?
उत्तर:
भारत में योग का इतिहास लगभग 3000 ईसा पूर्व पुराना है।

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प्रश्न 4.
प्रसिद्ध योगी पतंजलि ने योग की कितनी अवस्थाओं का वर्णन किया है?
उत्तर:
प्रसिद्ध योगी पतंजलि ने योग की आठ अवस्थाओं का वर्णन किया है।

प्रश्न 5.
किस आसन से स्मरण शक्ति बढ़ती है?
अथवा
बुद्धि और याददाश्त किस आसन से बढ़ते हैं?
उत्तर:
स्मरण शक्ति या बुद्धि और याददाश्त शीर्षासन से बढ़ते हैं।

प्रश्न 6.
अष्टांग योग की रचना किसके द्वारा की गई?
उत्तर:
अष्टांग योग की रचना महर्षि पतंजलि द्वारा की गई।

प्रश्न 7.
अष्टांगयोग में यम के अभ्यास द्वारा व्यक्ति क्या सीखता है?
उत्तर:
यम का अभ्यास व्यक्ति को अहिंसा, सच्चाई, चोरी न करना, पवित्रता और त्याग करना सीखाता है।

प्रश्न 8.
अपनी इंद्रियों को नियंत्रण में रखने को क्या कहते हैं?
उत्तर:
अपनी इंद्रियों को नियंत्रण में रखने को प्रत्याहार कहते हैं।

प्रश्न 9.
श्वास पर नियंत्रण रखने की प्रक्रिया को क्या कहते हैं?
उत्तर:
श्वास पर नियंत्रण रखने की प्रक्रिया को प्राणायाम कहते हैं।

प्रश्न 10.
“योग कर्मसु कौशलम्।” योग की यह परिभाषा किसने दी?
उत्तर:
योग की यह परिभाषा भगवान् श्रीकृष्ण ने दी।

प्रश्न 11.
“योग समाधि है।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
यह कथन महर्षि वेदव्यास का है।

प्रश्न 12.
योग आत्मा किसे कहा जाता है?
उत्तर:
योग आत्मा प्राणायाम को कहा जाता है।

प्रश्न 13.
आसन कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर;
आसन तीन प्रकार के होते हैं
(1) ध्यानात्मक आसन,
(2) विश्रामात्मक आसन,
(3) संवर्धनात्मक आसन।

प्रश्न 14.
रेचक किसे कहते हैं?
उत्तर:
श्वास को बाहर निकालने की क्रिया को रेचक कहते हैं।

प्रश्न 15.
पूरक किसे कहते हैं?
उत्तर:
श्वास को अंदर खींचने की क्रिया को पूरक कहते हैं।

प्रश्न 16.
कुम्भक किसे कहते हैं?
उत्तर:
श्वास को अंदर खींचकर कुछ समय तक अंदर ही रोकने की क्रिया को कुम्भक कहते हैं। \

प्रश्न 17.
‘वज्रासन’ कब करना चाहिए?
उत्तर:
वज्रासन भोजन करने के बाद करना चाहिए।

प्रश्न 18.
योग का जन्मदाता किस देश को माना जाता है?
उत्तर:
योग का जन्मदाता भारत को माना जाता है।

प्रश्न 19.
प्राणायाम में कितनी अवस्थाएँ होती हैं? उत्तर-प्राणायाम में तीन अवस्थाएँ होती हैं।

प्रश्न 20.
अभ्यास करते समय श्वास किससे लेना चाहिए?
उत्तर:
अभ्यास करते समय श्वास नाक से लेना चाहिए।

प्रश्न 21.
मधुमेह रोग को ठीक करने वाले किन्हीं दो आसनों के नाम बताइए।
उत्तर;
(1) शलभासन,
(2) वज्रासन।

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प्रश्न 22.
किस आसन से बुढ़ापा दूर होता है?
उत्तर:
चक्रासन आसन से बुढ़ापा दूर होता है।

प्रश्न 23.
एक आसन करने के पश्चात् दूसरा कौन-सा आसन करना चाहिए? उत्तर-एक आसन करने के पश्चात् दूसरा आसन पहले आसन के विपरीत करना चाहिए; जैसे धनुरासन के बाद पश्चिमोत्तानासन करना।

प्रश्न 24.
योग किसकी प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन है?
उत्तर:
योग स्व-विश्वास और आंतरिक शांति की प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन है।

प्रश्न 25.
किन्हीं चार आसनों के नाम लिखें।
उत्तर:
(1) हलासन,
(2) धनुरासन,
(3) भुजंगासन,
(4) ताड़ासन।

प्रश्न 26.
यौगिक व्यायाम में किस प्रकार के कपड़े पहनने चाहिएँ?
उत्तर:
यौगिक व्यायाम करते समय हल्के कपड़े पहनने चाहिएँ।

प्रश्न 27.
भुजंगासन में शरीर की स्थिति कैसी होती है?
उत्तर:
भुजंगासन में शरीर की स्थिति फनियर सर्प के आकार जैसी होती है।

प्रश्न 28.
कौन-सा आसन करने से मधुमेह रोग नहीं होता?
उत्तर:
शलभासन करने से मधुमेह रोग नहीं होता।

प्रश्न 29.
आसन करने वाली जगह कैसी होनी चाहिए?
उत्तर:
आसन करने वाली जगह साफ-सुथरी और हवादार होनी चाहिए।

प्रश्न 30.
योग के आदि गुरु कौन हैं?
उत्तर:
योग के आदि गुरु महर्षि पतंजलि हैं।

प्रश्न 31.
योग अभ्यास करने से शरीर में कौन-सी शक्तियाँ आती हैं?
उत्तर;
योग अभ्यास करने से शरीर में एकाग्रता, सहनशीलता, सहजता, संयमता, त्याग और अहिंसा जैसी शक्तियों का विकास होता है। .

प्रश्न 32.
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस प्रतिवर्ष कब मनाया जाता है?
उत्तर:
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस प्रतिवर्ष 21 जून को मनाया जाता है।

प्रश्न 33.
पद्मासन में कैसे बैठा जाता है?
उत्तर:
पद्मासन में टाँगों की चौकड़ी लगाकर बैठा जाता है।

प्रश्न 34.
ताड़ासन में शरीर की स्थिति कैसी होनी चाहिए?
उत्तर;
ताड़ासन में शरीर की स्थिति ताड़ के वृक्ष जैसी होनी चाहिए।

प्रश्न 35.
शीर्षासन में शरीर की स्थिति कैसी होती है?
उत्तर:
शीर्षासन में सिर नीचे और पैर ऊपर की ओर होते हैं।

प्रश्न 36.
शवासन में शरीर की स्थिति कैसी होती है?
उत्तर:
शवासन में पीठ के बल सीधा लेटकर शरीर को पूरी तरह ढीला छोड़ा जाता है।

प्रश्न 37.
पेट के बल किए जाने वाले आसन का नाम बताइए।
उत्तर:
धनुरासन पेट के बल किए जाने वाले आसन है।

प्रश्न 38.
क्या योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है?
उत्तर:
हाँ, योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का कार्य होता है।

प्रश्न 39.
सांसारिक चिन्ताओं से छुटकारा पाने के उत्तम साधन कौन-से हैं?
उत्तर:
सांसारिक चिन्ताओं से छुटकारा पाने के उत्तम साधन योग एवं ध्यान हैं।

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प्रश्न 40.
भारतीय व्यायाम की प्राचीन विधा कौन-सी है?
उत्तर:
भारतीय व्यायाम की प्राचीन विधा योग आसन है।

प्रश्न 41.
योग व्यक्ति को किस प्रकार का बनाता है?
उत्तर:
योग व्यक्ति को शक्तिशाली, नीरोग और बुद्धिमान बनाता है।

प्रश्न 42.
योग किन मानसिक व्यधाओं या रोगों का इलाज है?
उत्तर :
योग तनाव, चिन्ताओं और परेशानियों का इलाज है।

प्रश्न 43.
योग आसन कब नहीं करना चाहिए?
उत्तर:
किसी बीमारी की स्थिति में योग आसन नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 44.
कब्ज दूर करने में कौन-से आसन अधिक लाभदायक हैं? \
उत्तर:
(1) गरुड़ासन,
(2) चक्रासन,
(3) ताड़ासन,
(4) सर्वांगासन।

प्रश्न 45.
शवासन कब करना चाहिए?
उत्तर:
प्रत्येक आसन करने के उपरान्त शरीर को ढीला करने के लिए शवासन करना चाहिए।

प्रश्न 46.
प्रथम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस कब मनाया गया?
उत्तर:
21 जून, 2015 को प्रथम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया।

प्रश्न 47.
पेट की बीमारियाँ दूर करने में सहायक कोई दो आसन बताएँ।
उत्तर :
(1) चक्रासन,
(2) हलासन।।

प्रश्न 48.
हमारे ऋषि मुनि किन क्रियाओं द्वारा शारीरिक शिक्षा का उपयोग करते थे?
उत्तर:
योग क्रियाओं द्वारा।

प्रश्न 49.
21 जून, 2019 को कौन-सा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया?
उत्तर:
21 जून, 2019 को पाँचवाँ अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया।

प्रश्न 50.
योग के विभिन्न पहलू बताएँ।
उत्तर:
(1) आसन,
(2) प्राणायाम,
(3) प्राण।

प्रश्न 51.
‘प्राणायाम’ किस भाषा का शब्द है?
उत्तर:
‘प्राणायाम’ संस्कृत भाषा का शब्द है।

प्रश्न 52.
राज योग, अष्टांग योग, कर्म योग क्या हैं?

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उत्तर:
राज योग, अष्टांग योग, कर्म योग, योग के प्रकार हैं।

प्रश्न 53.
‘योग-सूत्र’ पुस्तक किसने लिखी?
उत्तर:
‘योग-सूत्र’ पुस्तक महर्षि पतंजलि ने लिखी।

प्रश्न 54.
योग किन शक्तियों का विकास करता है?
उत्तर:
योग व्यक्तियों में मौजूद आंतरिक शक्तियों का विकास करता है।

प्रश्न 55.
योग किसका मिश्रण है?
उत्तर:
योग धर्म, दर्शन, मनोविज्ञान और शारीरिक सभ्यता का मिश्रण है।

प्रश्न 56.
योग से किस पर नियंत्रण होता है? .
उत्तर:
योग से मनो-भौतिक विकारों पर नियंत्रण होता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न [Multiple Choice Questions]

प्रश्न 1.
‘युज’ का क्या अर्थ है?
(A) जुड़ना
(B) एक होना
(C) मिलन अथवा संयोग
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 2.
“मनोवृत्ति के विरोध का नाम ही योग है।” यह परिभाषा दी
(A) महर्षि पतंजलि ने
(B) महर्षि वेदव्यास ने
(C) भगवान् श्रीकृष्ण ने
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) महर्षि पतंजलि ने

प्रश्न 3.
प्रसिद्ध योगी पतंजलि ने योग की कितनी अवस्थाओं का वर्णन किया है?
(A) पाँच
(B) आठ
(C) सात
(D) चार
उत्तर:
(B) आठ

प्रश्न 4.
योग आत्मा कहा जाता है-
(A) आसन को
(B) प्राणायाम को
(C) प्राण को
(D) व्यायाम को
उत्तर :
(B) प्राणायाम को

प्रश्न 5.
श्वास को अंदर खींचने की क्रिया को कहते हैं
(A) पूरक
(B) कुंभक
(C) रेचक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) पूरक

प्रश्न 6.
श्वास को अंदर खींचने के कुछ समय पश्चात् श्वास को अंदर ही रोकने की क्रिया को कहते हैं
(A) पूरक
(B) कुंभक
(C) रेचक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) कुंभक

प्रश्न 7.
श्वास को बाहर निकालने की क्रिया को कहते हैं.
(A) पूरक
(B) कुंभक
(C) रेचक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) रेचक

प्रश्न 8.
“योग समाधि है।” यह कथन है
(A) महर्षि वेदव्यास का
(B) महर्षि पतंजलि का
(C) भगवान् श्रीकृष्ण का
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) महर्षि वेदव्यास का

प्रश्न 9.
“योग आध्यात्मिक कामधेनु है।” योग की यह परिभाषा किसने दी?
(A) ,भगवान श्रीकृष्ण ने
(B) महर्षि पतंजलि ने
(C) महर्षि वेदव्यास ने
(D) डॉ० संपूर्णानंद ने
उत्तर:
(D) डॉ० संपूर्णानंद ने
(B) श्वास प्रणाली से

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प्रश्न 10.
योग से कब्ज दूर होती है। इसका संबंध किस प्रणाली से है?
(A) रक्त संचार प्रणाली से
(C) माँसपेशी प्रणाली से
(D) पाचन प्रणाली से
उत्तर:
(D) पाचन प्रणाली से

प्रश्न 11.
“योग मस्तिष्क को शांत करने का अभ्यास है।” यह किसने कहा?
(A) महर्षि वेदव्यास ने
(B) महर्षि पतंजलि ने
(C) भगवान श्रीकृष्ण ने .
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) महर्षि पतंजलि ने

प्रश्न 12.
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस प्रतिवर्ष मनाया जाता है
(A) 22 दिसम्बर को
(B) 21 जून को
(C) 30 जनवरी को
(D) 8 नवम्बर को
उत्तर:
(B) 21 जून को

प्रश्न 13.
प्रथम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया
(A) 21 जून, 2014 को
(B) 21 जून, 2013 को
(C) 21 जून, 2015 को
(D) 21 जून, 2016 को
उत्तर:
(C) 21 जून, 2015 को

प्रश्न 14.
“श्वास-प्रश्वास की स्वाभाविक गति को रोकना ही प्राणायाम है।” प्राणायाम की यह परिभाषा किसने दी?
(A) महर्षि वेदव्यास ने
(B) महर्षि पतंजलि ने
(C) भगवान श्रीकृष्ण ने
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) महर्षि पतंजलि ने 15. 21 जून, 2018 में कौन-सा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया था?
(A) पहला
(B) दूसरा
(C) तीसरा
(D) चौथा
उत्तर:
(D) चौथा

प्रश्न 16.
निम्नलिखित में से अष्टांग योग का अंग है
(A) यम
(B) नियम
(C) प्राणायाम
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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प्रश्न 17.
योग के आदि गुरु हैं
(A) महर्षि वेदव्यास
(B) महर्षि पतंजलि
(C) डॉ० संपूर्णानंद
(D) स्वामी रामदेव
उत्तर:
(B) महर्षि पतंजलि 18. 21 जून, 2020 में कौन-सा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाएगा?
(A) चौथा
(B) पाँचवाँ
(C) छठा
(D) सातवाँ
उत्तर:
(C) छठा

योग का अर्थ, परिभाषा एवं महत्त्व Summary

योग का अर्थ, परिभाषा एवं महत्त्व परिचय

योग का इतिहास उतना ही प्राचीन है, जितना कि भारत का इतिहास। इस बारे में अभी तक ठीक तरह से पता नहीं लग सका कि योग कब शुरू हुआ? परंतु योग भारत की ही देन है। सिंधु घाटी में मोहनजोदड़ो की खुदाई से पता चलता है कि 3000 ईसा पूर्व में इस घाटी के लोग योग का अभ्यास करते थे। महर्षि पतंजलि द्वारा योग पर प्रथम पुस्तक ‘योग-सूत्र’ लिखी गई, जिसमें उन्होंने योग की अवस्थाओं एवं प्रकारों का विस्तृत उल्लेख किया है। हिंदू धर्म के ग्रंथ ‘उपनिषद्’ में योग के सिद्धांतों या नियमों का वर्णन किया गया है। भारत के मध्यकालीन युग में कई योगियों ने योग के बारे में विस्तारपूर्वक वर्णन किया है।

हमारे जीवन में शारीरिक तंदुरुस्ती का अपना विशेष महत्त्व है। शरीर को स्वस्थ एवं नीरोग रखने में योग महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। योग एक ऐसी विधा है, जो शरीर तथा दिमाग पर नियंत्रण रखती है। वास्तव में योग शब्द संस्कृत भाषा के ‘युज’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ है-जोड़ या मेल । योग वह क्रिया है जिसमें जीवात्मा का परमात्मा से मेल होता है। भारतीय संस्कृति, साहित्य तथा हस्तलिपि के अनुसार, योग जीवन के दर्शनशास्त्र के बहुत नजदीक है। बी०के०एस० आयंगर के अनुसार, “योग वह प्रकाश है जो एक बार जला दिया जाए तो कभी कम नहीं होता। जितना अच्छा आप अभ्यास करेंगे, लौ उतनी ही उज्ज्वल होगी।”

योग का उद्देश्य जीवात्मा का परमात्मा से मिलाप करवाना है। इसका मुख्य उद्देश्य शरीर को नीरोग, फुर्तीला, जोशीला, लचकदार और विशिष्ट क्षमताओं या शक्तियों का विकास करके मन को जीतना है। यह ईश्वर के सम्मुख संपूर्ण समर्पण हेतु मन को तैयार करता है।

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HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 व्यक्ति एवं समाज के विकास में शारीरिक शिक्षा का योगदान

Haryana State Board HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 व्यक्ति एवं समाज के विकास में शारीरिक शिक्षा का योगदान Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 व्यक्ति एवं समाज के विकास में शारीरिक शिक्षा का योगदान

HBSE 9th Class Physical Education व्यक्ति एवं समाज के विकास में शारीरिक शिक्षा का योगदान Textbook Questions and Answers

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न [Long Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
व्यक्ति और समाज के विकास में शारीरिक शिक्षा क्या भूमिका निभाती है? वर्णन करें। अथवा
व्यक्ति एवं समाज के विकास में शारीरिक शिक्षा किस प्रकार से अपना योगदान प्रदान करती है?
अथवा
शारीरिक शिक्षा व्यक्ति एवं समाज के विकास को किस प्रकार से प्रभावित करती है?
अथवा
शारीरिक शिक्षा से व्यक्ति में कौन-कौन से गुण विकसित होते हैं? वर्णन करें।
उत्तर:
आदिकाल से मनुष्य ने खेलों को अपने जीवन का सहारा बनाया है। आदिमानव ने तीरंदाजी तथा नेज़ाबाजी के साथ शिकार करके अपनी भूख की पूर्ति की है अर्थात् अपना पेट भरा है। खेलें न केवल दिल बहलाने का साधन हैं, अपितु आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक हृष्टता-पुष्टता, जोश, जज्बात और शक्ति के दिखावे के लिए खेली गईं। आजकल शारीरिक शिक्षा पर काफी बल दिया जाता है। शारीरिक शिक्षा विभिन्न व्यक्तिगत एवं सामाजिक गुणों का विकास करती है जिससे व्यक्ति एवं समाज का विकास संभव होता है

1. अनुशासन की भावना (Spirit of Discipline):
आदिकाल की खेलों और आधुनिक खेलों में चाहे अन्तर है, परंतु इन खेलों के पीछे एक भावना है। प्राचीनकाल के व्यक्ति ने इनको दूसरों पर शासन और हुकूमत करने आदि के लिए प्रयोग किया, परन्तु आज के व्यक्ति ने खेलों के नियमों की पालना करते हुए अनुशासन में रहकर इनसे जीवन की खुशी प्राप्त की।

2. अच्छे नागरिक की भावना (Spirit of Good Citizen):
पुरातन समय की क्रियाएँ; जैसे नेज़ा फेंकना, भागना और मुक्केबाजी चाहे लड़ाई की तैयारी के लिए मानी जाती थीं परंतु शारीरिक शिक्षा के अंतर्गत आधुनिक खेलें व्यक्ति में अनेक अच्छे गुणों का विकास करती हैं जिससे वह देश का अच्छा नागरिक बनकर देश की उन्नति में अपना योगदान देता है।

3. व्यक्तित्व का विकास (Development of Personality):
शारीरिक शिक्षा से व्यक्ति में सहनशीलता और मेल-जोल की रुचि बढ़ती है। इसके फलस्वरूप व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है और वह समाज में अपना स्थान बनाता है। इससे दोनों का विकास होता है।

4. शारीरिक विकास (Physical Development):
शारीरिक शिक्षा में विभिन्न खेलों से शारीरिक विकास होता है। इससे . शरीर में ऑक्सीजन की खपत की मात्रा बढ़ती है और शरीर में से व्यर्थ पदार्थ और जहरीले कीटाणु बाहर निकलते हैं। शरीर में पौष्टिक आहार पचाने की शक्ति बढ़ती है। इस प्रकार शरीर नीरोग, स्वस्थ, शक्तिशाली और फुर्तीला रहता है।

5. सहयोग की भावना (Spirit of Co-operation):
शारीरिक शिक्षा प्रत्येक खिलाड़ी को प्रत्येक छोटे-बड़े खिलाड़ी के साथ मिल-जुलकर खेलना सिखाती है। वह अपने विचारों को दूसरों पर ज़बरदस्ती नहीं थोपता, बल्कि विचार-विमर्श द्वारा मैच के दौरान साझी विचारधारा बनाता है। इस प्रकार उसमें सहयोग की भावना पैदा होती है जिससे समाज उन्नति की ओर अग्रसर होता है।

6. चरित्र का विकास (Development of Character):
शारीरिक शिक्षा ऐसी क्रिया है, जिसमें खिलाड़ी अपनी प्रत्येक छोटी-से-छोटी हरकत द्वारा विभिन्न लोगों; जैसे अध्यापक, खेल के समय देखने वाले दर्शक, विरोधी और साथी खिलाड़ियों के मन पर अपना प्रभाव डालता है। इस प्रकार खिलाड़ी का आचरण उभरकर सामने आता है। इस प्रकार शारीरिक शिक्षा व्यक्ति में अनेक चारित्रिक गुणों का विकास करती है।

7.आज्ञा का पालन (Obedience):
शारीरिक शिक्षा के कारण ही खेलों में भाग लेने वाला व्यक्ति प्रत्येक बड़े-छोटे खिलाड़ी की आज्ञा का पालन करता है। खेल एक ऐसी क्रिया है जिसमें रैफ़री की आज्ञा और नियमों का पालन करना बड़ा आवश्यक है। इस प्रकार खिलाड़ी आज्ञा का पालन करने वाला बन जाता है।

8. सहनशीलता (Tolerance):
खेलों में भाग लेने वाला दूसरों के विचारों का आदर करता है और खेल में रोक-टोक नहीं करता, अपितु सहनशीलतापूर्वक दूसरों के विचारों का आदर करता है। वह जीतने पर अपना आपा नहीं गंवाता और हार जाने पर निराश नहीं होता। इस प्रकार इसमें इतनी सहनशीलता आ जाती है कि हार-जीत का उस पर कोई प्रभाव नहीं होता।

9. खाली समय का उचित प्रयोग (Proper Use of Leisure Time):
यदि बेकार समय का प्रयोग सही ढंग से न किया जाए तो मनुष्य दिमागी बुराइयों में फंस जाता है। इसलिए शारीरिक शिक्षा के अंतर्गत खेलों में भाग लेने वाला व्यक्ति अपने अतिरिक्त समय का प्रयोग खेलों में भाग लेकर करता है। इस प्रकार वह अपने अतिरिक्त समय में बुरी आदतों और विचारों से दूर रहता है। इस प्रकार वह अपने जीवन को सुखमय बनाता है और समाज का जिम्मेदार नागरिक बनता है।

10. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहन (Promotion of International Co-operation):
ऐसे समय भी आते हैं, जब खिलाड़ियों को भिन्न-भिन्न देशों और अनेक खिलाड़ियों से मिलने का अवसर मिलता है। इस प्रकार शारीरिक शिक्षा के कारण एक-दूसरे के मेल-जोल से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहन मिलता है।

11. जातीय भेदभाव का अंत (End of Racial Difference):
शारीरिक शिक्षा जातीय भेदभाव का अंत करके राष्ट्रीय एकता की भावना पैदा करती है। खेल एक ऐसी क्रिया है, जिसमें बिना धर्म, मज़हब और श्रेणी के आधार पर भाग लिया जाता है।

12. परिवार एवं समाज का स्वास्थ्य (Family and Social Health):
परिवार एवं समाज के स्वास्थ्य में भी शारीरिक शिक्षा का महत्त्वपूर्ण योगदान है। शारीरिक शिक्षा मनुष्य को न केवल अपने स्वास्थ्य को ठीक रखने की कुशलता प्रदान करती है, अपितु यह उसे अपने परिवार एवं समाज के स्वास्थ्य को ठीक रखने में भी सहायता करती है। इस तरह से शारीरिक शिक्षा के द्वारा मनुष्य स्वयं अपने समाज के स्वास्थ्य की देखभाल भली-भाँति कर सकता है।

13. जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक (Helpful in Achieving Aim of Life):
शारीरिक शिक्षा अपने कार्यक्रमों द्वारा मनुष्य को अपने जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति के मौके प्रदान करती है। यदि मनुष्य को अपने लक्ष्य का ज्ञान हो तो शारीरिक शिक्षा उसे ऐसे मौके प्रदान करती है जिनकी मदद से वह अपने लक्ष्य की ओर बढ़ सकता है।

14. मुकाबले की भावना (Spirit of Competition):
शारीरिक शिक्षा में खेली जाने वाली खेलें व्यक्ति के भीतर मुकाबले की भावना उत्पन्न करती हैं। प्रत्येक खिलाड़ी अपने विरोधी खिलाड़ी से बढ़िया खेलने का प्रयास करता है। मुकाबले की यह भावना खिलाड़ी को हमेशा विकास की मंजिल की ओर ले जाती है और वह निरंतर आगे बढ़ता जाता है। व्यक्ति के आगे बढ़ने से समाज पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है।

15. आत्म-अभिव्यक्ति (Self-expression):
शारीरिक शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति को आत्म-अभिव्यक्ति का अवसर देती है। खेल का मैदान आत्म-अभिव्यक्ति का गुण सिखाने का प्रारम्भिक स्कूल है, क्योंकि खेल का मैदान ही एक ऐसा साधन है, जहाँ खिलाड़ी खुलकर अपने गुणों, कला और निपुणता को दर्शकों के समक्ष उजागर कर सकता है।

निष्कर्ष (Conclusion): शारीरिक शिक्षा समाजीकरण का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। व्यक्ति किसी भी खेल में खेल के नियमों का पालन करते हुए तथा अपनी टीम के हित को सामने रखते हुए भाग लेता है। वह अपनी टीम को पूरा सहयोग देता है। वह हार-जीत को समान समझता है। उसमें अनेक सामाजिक गुण; जैसे सहनशीलता, धैर्यता, अनुशासन, सहयोग आदि विकसित होते हैं। इस प्रकार. शारीरिक शिक्षा व्यक्ति व समाज के विकास में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 व्यक्ति एवं समाज के विकास में शारीरिक शिक्षा का योगदान

प्रश्न 2.
शारीरिक शिक्षा समूचे व्यक्तित्व का विकास करती है स्पष्ट कीजिए।
अथवा
शारीरिक शिक्षा पूर्ण व्यक्तित्व के विकास में सबसे आवश्यक है। विस्तारपूर्वक लिखें।
अथवा
“शारीरिक शिक्षा संपूर्ण व्यक्त्वि की शिक्षा होती है।” इस कथन पर विचार करें। यह कहाँ तक तर्क-संगत है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास को अपना उद्देश्य बनाती है। शारीरिक क्रियाओं द्वारा व्यक्ति में त्याग, निष्पक्षता, मित्रता की भावना, सहयोग, स्व-नियंत्रण, आत्म-विश्वास और आज्ञा की पालना करने जैसे गुणों का विकास होता है। शारीरिक शिक्षा द्वारा सहयोग करने की भावना में वृद्धि होती है। परिणामस्वरूप यह स्वस्थ समाज की स्थापना होती है। संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि शारीरिक शिक्षा मनुष्य के संपूर्ण विकास में सहायक होती है। यह बात निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट होती है..

1. नेतृत्व का विकास (Development of Leadership):
शारीरिक शिक्षा में नेतृत्व करने के अनेक अवसर प्राप्त होते हैं; जैसे क्रिकेट टीम में टीम का कैप्टन, निष्पक्षता, सूझबूझ और भावपूर्ण ढंग से खेल की रणनीति तैयार करता है। जब किसी खेल के नेता को खेल से पहले शरीर गर्माने के लिए नियुक्त किया जाता है, तब भी नेतृत्व की शिक्षा दी जाती है। कई बार प्रतिस्पर्धाओं का आयोजन करना भी नेतृत्व के विकास में सहायता करता है।

2. अनुशासन का विकास (Development of Discipline):
शारीरिक शिक्षा हमें अनुशासन का अमूल्य गुण भी सिखाती है। हमें अनुशासन में रहते हुए और खेल के नियमों का पालन करते हुए खेलना पड़ता है। इस प्रकार खेल अनुशासन के महत्त्व में वृद्धि करते हैं। यह भी एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक गुण है। खेल में अयोग्य करार दिए जाने के डर से खिलाड़ी अनुशासन भंग नहीं करते। वे अनुशासन में रहकर ही खेलते हैं।

3. सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार का विकास (Development of Sympathetic Attitude):
खेल के दौरान यदि कोई खिलाड़ी घायल हो जाता है तो दूसरे सभी खिलाड़ी उसके प्रति हमदर्दी की भावना रखते हैं। ऐसा हॉकी अथवा क्रिकेट खेलते समय देखा भी जा सकता है। यह गुण व्यक्तित्व निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

4. राष्ट्रीय एकता का विकास (Development of National Integration):
शारीरिक शिक्षा एक ऐसा माध्यम है, जिससे राष्ट्रीय एकता में वृद्धि की जा सकती है। खेलें खिलाड़ियों में सांप्रदायिकता, असमानता, प्रांतवाद और भाषावाद जैसे अवगुणों को दूर करती है। इसमें नागरिकों को ऐसे अनेक अवसर मिलते हैं, जब उनमें सहनशीलता, सामाजिकता, बड़ों का सत्कार, देश-भक्ति और राष्ट्रीय आचरण जैसे गुण विकसित होते हैं । ये गुण व्यक्ति में राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देते हैं और उसके व्यक्तित्व को विकसित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

5. व्यक्तित्व का विकास (Development of Personality):
मीड के अनुसार खेलें बच्चों के आत्म-विकास में बहुत सहायता करती हैं। बचपन में बच्चा कम आयु वाले बच्चों के साथ खेलता है परंतु जब वह बड़ा हो जाता है तो क्रिकेट, फुटबॉल अथवा वॉलीबॉल आदि खेलता है। ये खेलें व्यक्तित्व का विकास करती हैं। इनके द्वारा बच्चे के भीतरी गुण बाहर आते हैं । जब बच्चे मिलजुल कर खेलते हैं तो उनमें सहयोग का गुण विकसित हो जाता है।

6. शारीरिक विकास (Physical Development):
शारीरिक शिक्षा संबंधी क्रियाएँ शारीरिक विकास का माध्यम हैं। शारीरिक क्रियाएँ माँसपेशियों को मजबूत, रक्त का बहाव ठीक रखने, पाचन शक्ति में बढ़ोत्तरी और श्वसन क्रिया को ठीक रखने में सहायक हैं। शारीरिक क्रियाएँ न केवल भिन्न-भिन्न प्रणालियों को स्वस्थ और ठीक रखती हैं, बल्कि उनके आकार, शक्ल और कुशलता में भी बढ़ोत्तरी करती हैं।

7. उच्च नैतिकता की शिक्षा (Lesson of High Morality):
शारीरिक शिक्षा व्यक्ति में खेल भावना (Sportsman Spirit) उत्पन्न करती है। यह इस बात में भी सहायता करती है कि खिलाड़ी का स्तर नैतिक दृष्टि से ऊँचा रहे तथा वह पूरी ईमानदारी और मेहनत के साथ अपने उद्देश्य की ओर अग्रसर होता रहे।

8. भावनात्मक संतुलन (Emotional Balance):
भावनात्मक संतुलन भी व्यक्तित्व के पूर्ण विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शारीरिक शिक्षा अनेक प्रकार से भावनात्मक संतुलन बनाए रखती है। बच्चे को बताया जाता है कि वह विजय प्राप्त करने के बाद आवश्यकता से अधिक प्रसन्न न हो और हार के गम को भी सहज भाव से ले। इस तरह भावनात्मक संतुलन एक अच्छे व्यक्तित्व के लिए अत्यावश्यक है।
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9. सामाजिक विकास (Social Development):
शारीरिक शिक्षा समूचे व्यक्तित्व का विकास इस दृष्टि से भी करती है कि व्यक्ति में अनेक प्रकार के सामाजिक गुण आ जाते हैं। उदाहरणतया सहयोग, टीम भावना, उत्तरदायित्व की भावना और नेतृत्व जैसे गुण भी बच्चे में खेलों द्वारा ही उत्पन्न होते हैं। ये गुण बड़ा होने पर अधिक विकसित हो जाते हैं। फलस्वरूप बच्चा एक अच्छा नागरिक बनता है।

10. खाली समय का उचित उपयोग (Proper Use of Leisure Time):
शारीरिक शिक्षा व्यक्ति को उसका अतिरिक्त समय . सही ढंग से व्यतीत करना सिखाती है। यह आदत एक बार घर कर जाने से जीवन भर उसके साथ रहती है। यह आदत व्यक्ति को नियमित सामाजिक प्राणी बनाती है।

निष्कर्ष (Conclusion): संक्षेप में हम कह सकते हैं कि शारीरिक शिक्षा बच्चों में न केवल भीतरी गुणों को ही व्यक्त करती है, अपितु यह उनके व्यक्तित्व के विकास में भी सहायक होती है। यह बच्चे में कई प्रकार के सामाजिक गुण पैदा करती है और उसमें भावनात्मक संतुलन बनाए रखती है। यही कारण है कि शारीरिक शिक्षा सामाजिक-वैज्ञानिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 3.
शारीरिक शिक्षा किस प्रकार व्यक्ति के अंदर छिपे हुए गुणों को बाहर निकालकर उसके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास करने में सहायता करती है? वर्णन करें।
अथवा
शारीरिक शिक्षा व्यक्ति की आत्म अनुभूति के विकास में किस प्रकार से अपना योगदान देने में सहायक होती है? .
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा व्यक्ति के अंदर छिपे हुए गुणों (Latent Qualities) को बाहर निकाल कर उसके व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास करने में सहायता करती है। यह मनुष्य में आत्म-अनुभूति का गुण उत्पन्न करके उसे आधुनिक युग की जरूरतों के अनुसार ढालने की योग्यता प्रदान करती है। शारीरिक शिक्षा व्यक्ति के अंदर निम्नलिखित गुणों का विकास करती है

1. स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान (Knowledge Related to Health):
शारीरिक शिक्षा मनुष्य को स्वास्थ्य संबंधी नियमों का ज्ञान देती है। इससे हमें रोगों संबंधी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। इसके अलावा शारीरिक शिक्षा हमें संतुलित एवं पौष्टिक भोजन संबंधी जानकारी देती है। स्वास्थ्य संबंधी नियमों का पालन करके हम अपने-आपको रोगों से बचा सकते हैं और स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकते हैं।

2. मानसिक स्फूर्ति या चुस्ती (Mental Alertness or Agility):
शारीरिक शिक्षा मनुष्य के मन को चुस्त एवं दुरुस्त बनाती है। शारीरिक शिक्षा मनुष्य को उचित समय पर फौरन निर्णय लेने के काबिल बनाती है। इसके परिणामस्वरूप मनुष्य यह विचार कर सकता है कि वह अपनी कार्य-कुशलता और कार्यक्षमता में किस प्रकार वृद्धि करे। एक चुस्त एवं फुर्तीले मन वाला व्यक्ति ही अपने जीवन में कामयाब हो सकता है।

3. संवेगों एवं भावनाओं को नियंत्रित करना (Control Over Emotions and Feelings):
शारीरिक शिक्षा मनुष्य को अपने संवेगों एवं भावनाओं को काबू करना सिखाती है। मनुष्य अपनी समस्याओं को हंसी-खुशी सुलझा लेता है। वह शोक, घृणा, उन्माद, उल्लास, खुशी आदि को अधिक महत्त्व नहीं देता। उसके लिए सफलता या असफलता का कोई महत्त्व नहीं होता। वह असफल होने पर साहस नहीं त्यागता और अपने कार्य में लगा रहता है। इस प्रकार वह अपना कीमती समय एवं शक्ति को अवांछनीय कार्यों में व्यर्थ नहीं गंवाता और अपने समय का सदुपयोग करता है।

4. आदर्श नागरिकता का निर्माण (Formation of Ideal Citizenship):
शारीरिक शिक्षा मनुष्यों में ऐसे गुण उत्पन्न करती है जिनकी मदद से वे आदर्श खिलाड़ी एवं आदर्श दर्शक बन सकते हैं। शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हुए खिलाड़ियों में अनेक ऐसे गुण पैदा हो जाते हैं जो भविष्य में उन्हें आदर्श नागरिक बनने में मदद देते हैं।

5. प्रभावशाली वक्ता (Effective Orator or Speaker):
शारीरिक शिक्षा मनुष्य का शारीरिक विकास करके उसमें पढ़ने-लिखने की क्षमता का भी विकास करती है। स्वस्थ मनुष्य प्रत्येक वस्तु में रुचि लेता है और उसे अपने ढंग से देखता है। इससे पढ़ने-लिखने की कुशलता में बढ़ोतरी होती है। दूसरे, स्वस्थ एवं हृष्ट-पुष्ट व्यक्ति ही एक अच्छा वक्ता हो सकता है। शारीरिक शिक्षा मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास करती है जिससे वह दूसरे लोगों को प्रभावित कर सकता है। इस प्रकार शारीरिक शिक्षा मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास करके उसे एक अच्छा वक्ता बनने के मौके प्रदान करती है।

6. सौंदर्य और कला प्रेमी (Beauty and Art Loving)शारीरिक शिक्षा मनुष्य में सौंदर्य तथा कला के प्रति प्रेम की भावना को जगाती है। आमतौर पर देखने में आता है कि जब कोई खिलाड़ी उत्कृष्ठ खेल प्रदर्शन करता है तो लोग उसकी प्रशंसा किए बिना नहीं रहते। एक सुंदर और सुडौल शरीर प्रत्येक व्यक्ति को अच्छा लगता है। प्रत्येक मनुष्य अपने शरीर को अधिक-से-अधिक सुंदर एवं सुडौल बनाने का प्रयत्न करता है।

7. खाली समय का सदुपयोग (Proper Use of Leisure Time):
शारीरिक शिक्षा मनुष्य को अपने खाली समय का सदुपयोग करना सिखाती है। आधुनिक मशीनी युग में मशीनों की सहायता से दिनों का काम घंटों में तथा घंटों का काम मिनटों में हो जाता है। इस प्रकार दिनभर का काम पूरा करने के पश्चात् मनुष्य के पास पर्याप्त समय शेष बच जाता है। खाली समय को बिताना उसके लिए एक समस्या बन जाता है। शारीरिक शिक्षा उनकी इस समस्या का समाधान करने में मदद करती है।

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 व्यक्ति एवं समाज के विकास में शारीरिक शिक्षा का योगदान

प्रश्न 4.
नेतृत्व को परिभाषित कीजिए। शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में एक नेता के गुणों का वर्णन कीजिए। अथवा नेतृत्व क्या है? शारीरिक शिक्षा में एक नेता के गुणों की व्याख्या करें।
उत्तर:
नेतृत्व का अर्थ व परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Leadership):
मानव में नेतृत्व की भावना आरंभ से ही होती है। किसी भी समाज की वृद्धि या विकास उसके नेतृत्व की विशेषता पर निर्भर करती है। नेतृत्व व्यक्ति का वह गुण है जिससे वह दूसरे व्यक्तियों के जीवन के विभिन्न पक्षों में मार्गदर्शन करता है। नेतृत्व को विद्वानों ने निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है

1. मॉण्टगुमरी (Montgomery):
के अनुसार, “किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए व्यक्तियों को इकट्ठा करने की इच्छा व योग्यता को ही नेतृत्व कहा जाता है।”

2. ला-पियरे वफावर्थ (La-Pierre and Farnowerth):
के अनुसार, “नेतृत्व एक ऐसा व्यवहार है जो लोगों के व्यवहार पर अधिक प्रभाव डालता है, न कि लोगों के व्यवहार का प्रभाव उनके नेता पर।”

3. पी० एम० जोसेफ (P. M. Joseph):
के अनुसार, “नेतृत्व वह गुण है जो व्यक्ति को कुछ वांछित काम करने के लिए, मार्गदर्शन करने के लिए पहला कदम उठाने के योग्य बनाता है।” .

एक अच्छे नेता के गुण (Qualities of aGood Leader):
प्रत्येक समाज या राज्य के लिए अच्छे नेता की बहुत आवश्यकता होती है क्योंकि वह समाज और राज्य को एक नई दिशा देता है। नेता में एक खास किस्म के गुण होते हैं जिनके कारण वह सभी को एकत्रित कर काम करने के लिए प्रेरित करता है। शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में अच्छे नेता का होना बहुत आवश्यक है क्योंकि शारीरिक क्रियाएँ किसी योग्य नेता के बिना संभव नहीं हैं। किसी नेता में निम्नलिखित गुण या विशेषताएँ होमा आवश्यक है।

1. ईमानदारी एवं कर्मठता (Honesty and Energetic):
शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में ईमानदारी एवं कर्मठता एक नेता के महत्त्वपूर्ण गुण हैं। ये उसके व्यक्तित्व में निखार और सम्मान में वृद्धि करते हैं।

2. वफादारी एवं नैतिकता (Loyality and Morality):
शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में वफादारी एवं नैतिकता एक नेता के महत्त्वपूर्ण गुण हैं। उसे अपने शिष्यों या अनुयायियों (Followers) के प्रति वफादार होना चाहिए और विपरीत-से-विपरीत परिस्थितियों में भी उसे अपनी नैतिकता का त्याग नहीं करना चाहिए।

3. सामाजिक समायोजन (Social Adjustment):
एक अच्छे नेता में अनेक सामाजिक गुणों; जैसे सहनशीलता, धैर्यता, सहयोग, सहानुभूति व भाईचारा आदि का समावेश होना चाहिए।

4. बच्चों के प्रति स्नेह की भावना (Affection Feeling towards Children):
नेतृत्व करने वाले में बच्चों के प्रति स्नेह की भावना होनी चाहिए। उसकी यह भावना बच्चों को अत्यधिक प्रभावित करती है।

5. तर्कशील एवं निर्णय-क्षमता (Logical and Decision-Ability):
उसमें समस्याओं पर तर्कशील ढंग से विचार-विमर्श करने की योग्यता होनी चाहिए। वह एक अच्छा निर्णयकर्ता भी होना चाहिए। उसमें उपयुक्त व अनायास ही निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए।

6. शारीरिक कौशल (Physical Skill):
उसका स्वास्थ्य अच्छा होना चाहिए। वह शारीरिक रूप से कुशल एवं मजबूत होना चाहिए, ताकि बच्चे उससे प्रेरित हो सकें।

7. बुद्धिमान एवं न्यायसंगत (Intelligent and Fairness):
एक अच्छे नेता में बुद्धिमता एवं न्यायसंगतता होनी चाहिए। एक बुद्धिमान नेता ही विपरीत-से-विपरीत परिस्थितियों का समाधान ढूँढने की योग्यता रखता है। एक अच्छे नेता को न्यायसंगत भी होना । चाहिए ताकि वह निष्पक्ष भाव से सभी को प्रभावित कर सके।

8. शिक्षण कौशल (Teaching Skill):
नेतृत्व करने वाले को विभिन्न शिक्षण कौशलों का गहरा ज्ञान होना चाहिए। उसे विभिन्न शिक्षण पद्धतियों में कुशल एवं निपुण होना चाहिए। इसके साथ-साथ उसे शारीरिक संकेतों व हाव-भावों को व्यक्त करने में भी कुशल होना चाहिए।

9. सृजनात्मकता (Creativity):
एक अच्छे नेता में सृजनात्मकता या रचनात्मकता की योग्यता होनी चाहिए ताकि वह नई तकनीकों या कौशलों का प्रतिपादन कर सके।

10. समर्पण व संकल्प की भावना (Spirit of Dedication and Determination):
उसमें समर्पण व संकल्प की भावना होना बहुत महत्त्वपूर्ण है। उसे विपरीत-से-विपरीत परिस्थिति में भी दृढ़-संकल्पी या दृढ़-निश्चयी होना चाहिए। उसे अपने व्यवसाय के प्रति समर्पित भी होना चाहिए।

11. अनुसंधान में रुचि (Interest in Research):
एक अच्छे नेता की अनुसंधानों में विशेष रुचि होनी चाहिए।

12. आदर भावना (Respect Spirit):
उसमें दूसरों के प्रति आदर-सम्मान की भावना होनी चाहिए। यदि वह दूसरों का आदर नहीं करेगा, तो उसको भी दूसरों से सम्मान नहीं मिलेगा।

13. पेशेवर गुण (Professional Qualities):
एक अच्छे नेता में अपने व्यवसाय से संबंधित सभी गुण होने चाहिएँ।

14. भावनात्मक संतुलन (Emotional Balance):
नेतृत्व करने वाले में भावनात्मक संतुलन का होना बहुत आवश्यक है। उसका अपनी भावनाओं पर पूर्ण नियंत्रण होना चाहिए।

15. तकनीकी रूप से कुशल (Technically Skilled):
उसे तकनीकी रूप से कुशल या निपुण होना चाहिए।

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 व्यक्ति एवं समाज के विकास में शारीरिक शिक्षा का योगदान

प्रश्न 5.
नेतृत्व (Leadership) क्या है? इसके महत्त्व का विस्तार से वर्णन करें।
अथवा
शारीरिक शिक्षा में नेतृत्व प्रशिक्षण की उपयोगिता पर विस्तार से प्रकाश डालें।
उत्तर:
नेतृत्व का अर्थ (Meaning of Leadership):
मानव में नेतृत्व की भावना आरंभ से ही होती है। किसी भी समाज की वृद्धि व विकास उसके नेतृत्व की विशेषता पर निर्भर करते हैं। नेतृत्व व्यक्ति का वह गुण है जिससे वह दूसरे व्यक्तियों के जीवन के विभिन्न पक्षों में मार्गदर्शन करता है।

नेतृत्व का महत्त्व (Importance of Leadership):
नेतृत्व की भावना को बढ़ावा देना शारीरिक शिक्षा का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है, क्योंकि इस प्रकार की भावना से मानव के व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास होता है। क्षेत्र चाहे सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, वैज्ञानिक अथवा शारीरिक शिक्षा का हो या अन्य, हर क्षेत्र में नेता की आवश्यकता पड़ती है। शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होता है, जिससे उसकी शारीरिक शक्ति, सोचने की शक्ति, व्यक्तित्व में निखार और कई प्रकार के सामाजिक गुणों का विकास होता है। मानव में शारीरिक क्षमता बढ़ने के कारण निडरता आती है जो नेतृत्व का एक विशेष गुण माना जाता है। इसी प्रकार खेलों के क्षेत्र में हम दूसरों के साथ सहयोग के माध्यम से लक्ष्य प्राप्त करना सीख जाते हैं। व्यक्तिगत एवं सामूहिक खेलों में व्यक्ति को अच्छे नेता के सभी गुणों को ग्रहण करने का अवसर मिलता है।
अध्यापक शारीरिक शिक्षा के माध्यम से नेतृत्व की भावना व शारीरिक शिक्षा का विस्तार करने तथा प्रशिक्षण देने में अपने शिष्यों को कई अवसर प्रदान कर सकता है। कक्षा, शिविरों में और शारीरिक शिक्षा कार्यक्रमों के आयोजन के अन्य अवसरों पर ध्यान देने से अच्छे परिणाम सामने आ सकते हैं। इस क्षेत्र के कुछ उचित अवसर इस प्रकार हैं

(1) खेल मैदान की तैयारी और खेल सामग्री की देखभाल की समितियों के सदस्य बनाना।
(2) सामूहिक व्यायाम का नेता बमाना।
(3) खेल-खिलाने तथा अन्य अवसरों पर अधिकारी बनाना।
(4) विद्यालय की टीम का कप्तान बनाना।
(5) कक्षा का मॉनीटर अथवा टोली का नेता बनाना।
(6) छोटे-छोटे खेलों को सुचारु रूप से चलाने के अवसर प्रदान करना।
(7) विद्यालय की विभिन्न समितियों के सदस्य नियुक्त करना।

प्राचीनकाल में बच्चों तथा व्यक्तियों को मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, शारीरिक तथा नैतिक विशेषताओं तथा आवश्यकताओं का ज्ञान नहीं था। आज के वैज्ञानिक युग में पूर्ण व्यावसायिक योग्यता के बिना काम नहीं चल सकता, क्योंकि नेताओं की योग्यता पर ही किसी व्यवसाय की उन्नति निर्भर करती है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए शारीरिक शिक्षा के क्षेत्रों में कई प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए गए हैं; जैसे ग्वालियर, चेन्नई, पटियाला, चंडीगढ़, लखनऊ, हैदराबाद, मुंबई, अमरावती और कुरुक्षेत्र आदि। इन केंद्रों में शारीरिक शिक्षा के अध्यापकों को इस क्षेत्र के नेताओं के रूप में प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि वे शारीरिक शिक्षा की ज्ञान रूपी ज्योति को अधिक-से-अधिक

फैला सकें और अपने नेतृत्व के अधीन अधिक-से-अधिक विद्यार्थियों में नेतृत्व के गुणों को विकसित कर सकें। विद्यार्थी देश का भविष्य होते हैं और एक कुशल व आदर्श अध्यापक ही शारीरिक शिक्षा के द्वारा अच्छे समाज व राष्ट्र के निर्माण में सहायक हो सकता है। शारीरिक शिक्षा का क्षेत्र और मैदान नेतृत्व के गुण को उभारने में कितना महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है यह प्रस्तुत कथन से सिद्ध होता है”The battle of Waterloo was won in the play fields of Eton.” अर्थात् वाटरलू का प्रसिद्ध युद्ध, ईटन के खेल के मैदान में जीता गया। यह युद्ध अच्छे नेतृत्व के कारण जीता गया। इस प्रकार स्पष्ट है कि नेतृत्व का हमारे जीवन में विशेष महत्त्व है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न [Short Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
समाज (Society) से आपका क्या अभिप्राय है?
अथवा
समाज की अवधारणा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
व्यावहारिक रूप से समाज (Society) शब्द का प्रयोग मानव समूह के लिए किया जाता है परन्तु वास्तविक रूप से समाज मानव समूह के अंतर्गत व्यक्तियों के संबंधों की व्यवस्था का नाम है। समाज स्वयं में एक संघ है जो सामाजिक व औपचारिक संबंधों का जाल है। मानव बुद्धिजीवी है इसलिए हमें सामाजिक प्राणी कहा जाता है। परिवार सामाजिक जीवन की सबसे छोटी एवं महत्त्वपूर्ण इकाई है। परिवार,के बाद दूसरी महत्त्वपूर्ण इकाई विद्यालय है। विद्यालय बच्चों को देश-विदेश के इतिहास, भाषा, विज्ञान, गणित, कला एवं भूगोल की जानकारी प्रदान करते हैं।

कॉलेज, विश्वविद्यालय और अन्य संस्थान व्यक्ति को मुख्य विषयों के बारे में जानकारी देते हैं। ‘परिवार और शिक्षण संस्थाओं के बाद व्यक्ति के लिए उसका पड़ोस और आस-पास का क्षेत्र आता है। पड़ोस अलग-अलग जातीय समुदाय से संबंधित हो सकते हैं। परन्तु पड़ोस में रहने वाले सभी व्यक्तियों का कल्याण इस बात में है कि वे मिल-जुल कर शान्ति से रहें, पड़ोस में आमोद-प्रमोद का स्वच्छ वातावरण बनाएँ और एक-दूसरे के दुःख-दर्द में शामिल हों। जैसे-जैसे पारिवारिक पड़ोस में वृद्धि होती जाती है वैसे-वैसे सामाजिक क्षेत्र का दायरा बढ़ता जाता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि समाज की धारणा व्यापक एवं विस्तृत है।

प्रश्न 2.
शारीरिक शिक्षा किस प्रकार सामाजिक मूल्यों को बढ़ाती है?
अथवा
शारीरिक शिक्षा सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार, सहनशीलता, सहयोग व धैर्यता बढ़ाने में किस प्रकार सहायक होती है?
अथवा
शारीरिक शिक्षा से मनुष्य में कौन-कौन-से सामाजिक गुण विकसित होते हैं?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा सामाजिक मूल्यों को निम्नलिखित प्रकार से बढ़ाती है

1. सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार;
खेल के दौरान यदि कोई खिलाड़ी घायल हो जाता है तो दूसरे सभी खिलाड़ी उसके प्रति हमदर्दी की भावना रखते हैं। ऐसा हॉकी अथवा क्रिकेट खेलते समय देखा भी जा सकता है। जब भी किसी खिलाड़ी को चोट लगती है तो सभी खिलाड़ी हमदर्दी प्रकट करते हुए उसकी सहायता के लिए दौड़ते हैं। यह गुण व्यक्तित्व निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

2. सहनशीलता व धैर्यता:
मानव के समुचित विकास के लिए सहनशीलता व धैर्यता अत्यन्त आवश्यक मानी जाती है। जिस व्यक्ति में सहनशीलता व धैर्यता होती है वह स्वयं को समाज में भली-भाँति समायोजित कर सकता है। शारीरिक शिक्षा अनेक ऐसे अवसर प्रदान करती है जिससे उसमें इन गुणों को बढ़ाया जा सकता है।

3. सहयोग की भावना:
समाज में रहकर हमें एक-दूसरे के साथ मिलकर कार्य करना पड़ता है। शारीरिक शिक्षा के माध्यम से सहयोग की भावना में वृद्धि होती है। सामूहिक खेलों या गतिविधियों से व्यक्तियों या खिलाड़ियों में सहयोग की भावना बढ़ती है। यदि कोई खिलाड़ी अपने खिलाड़ियों से सहयोग नहीं करेगा तो उसका नुकसान न केवल उसको होगा बल्कि उसकी टीम को भी होगा। शारीरिक शिक्षा इस भावना को सुदृढ़ करने में सहायक होती है।

4. अनुशासन की भावना:
अनुशासन को शारीरिक शिक्षा की रीढ़ की हड्डी कहा जा सकता है। अनुशासन की सीख द्वारा शारीरिक शिक्षा न केवल व्यक्ति के विकास में सहायक है, बल्कि यह समाज को अनुशासित नागरिक प्रदान करने में भी सक्षम है।

प्रश्न 3.
नेतृत्व (Leadership) से आप क्या समझते हैं? कोई दो परिभाषाएँ बताएँ।
अथवा
नेतृत्व की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मानव में नेतृत्व की भावना आरंभ से ही होती है। किसी भी समाज की वृद्धि या विकास उसके नेतृत्व की विशेषता पर निर्भर करती है। नेतृत्व व्यक्ति का वह गुण है जिससे वह दूसरे व्यक्तियों के जीवन के विभिन्न पक्षों में मार्गदर्शन करता है।
1. मॉण्टगुमरी के अनुसार, “किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए व्यक्तियों को इकट्ठा करने की इच्छा तथा योग्यता को ही नेतृत्व कहा जाता है।”
2. ला-पियरे व फा!वर्थ के अनुसार, “नेतृत्व एक ऐसा व्यवहार है जो लोगों के व्यवहार पर अधिक प्रभाव डालता है न कि लोगों के व्यवहार का प्रभाव उनके नेता पर।”

प्रश्न 4.
हमें एक नेता की आवश्यकता क्यों होती है?
अथवा
एक नेता के मुख्य कार्य बताइए।
अथवा
एक अच्छे नेता के महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर:
प्रत्येक समाज या देश के लिए एक अच्छा नेता बहुत महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि वह समाज और देश को एक नई दिशा देता है। नेता जनता का प्रतिनिधि होता है। वह जनता की समस्याओं को सरकार या प्रशासन के सामने प्रस्तुत करता है। वह सरकार या प्रशासन को लोगों की आवश्यकताओं व समस्याओं से अवगत करवाता है। वह लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु प्रयास करता है। एक नेता के माध्यम से ही जनता अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु एवं समस्याओं के निवारण हेतु प्रयास करती है। इसलिए हमें अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु एवं समस्याओं के निवारण हेतु एक नेता की आवश्यकता होती है।

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प्रश्न 5.
एक अच्छे नेता में कौन-कौन से गुण होने चाहिएँ?
उत्तर:
नेता में एक खास किस्म के गुण होते हैं जिनके कारण वह सभी को एकत्रित कर काम करने के लिए प्रेरित करता है। एक अच्छे नेता में निम्नलिखित गुण होने चाहिएँ-
(1) एक अच्छे नेता में पेशेवर प्रवृत्तियों का होना अति आवश्यक है। अच्छी पेशेवर प्रवृत्तियों का होना न केवल नेता के लिए आवश्यक है बल्कि समाज के लिए भी अति-आवश्यक है।
(2) एक अच्छे नेता की सोच सकारात्मक होनी चाहिए, ताकि बच्चे और समाज उससे प्रभावित हो सकें।
(3) उसमें ईमानदारी, निष्ठा, समय-पालना, न्याय-संगतता एवं विनम्रता आदि गुण होने चाहिएँ।
(4) उसके लोगों के साथ अच्छे संबंध होने चाहिएँ।
(5) उसमें भावनात्मक संतुलन एवं सामाजिक समायोजन की भावना होनी चाहिए।
(6) उसे खुशमिजाज तथा कर्मठ होना चाहिए।
(7) उसमें बच्चों के प्रति स्नेह और बड़ों के प्रति आदर-सम्मान की भावना होनी चाहिए।
(8) उसका स्वास्थ्य भी अच्छा होना चाहिए, क्योंकि अच्छा स्वास्थ्य अच्छी आदतें विकसित करने में सहायक होता है।
(9) उसका मानसिक दृष्टिकोण सकारात्मक एवं उच्च-स्तर का होना चाहिए।

प्रश्न 6.
शारीरिक शिक्षा में नेतृत्व के अवसर कब-कब प्राप्त होते हैं? वर्णन करें।
अथवा
शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में नेतृत्व का गुण कैसे विकसित किया जा सकता है? ।
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रम में कभी-कभी ऐसे अवसर आते हैं, जहाँ विद्यार्थी को नेतृत्व की जरूरत होती है। विद्यार्थी को नेतृत्व करने के अवसर निम्नलिखित क्षेत्रों में दिए जा सकते हैं
(1) विद्यार्थियों द्वारा शारीरिक शिक्षा में प्रशिक्षण क्रियाओं या अभ्यास क्रियाओं का नेतृत्व करना।
(2) समूह खेलों का आयोजन करवाकर नेतृत्व का गुण विकसित करना।
(3) खेल मैदान की तैयारी और खेल सामग्री की देखभाल की समितियों के सदस्य बनाना।
(4) सामूहिक व्यायाम का नेता बनाना।
(5) खेल-खिलाने तथा अन्य अवसरों पर अधिकारी बनाना।
(6) विद्यालय की टीम का कप्तान बनाना।
(7) कक्षा का मॉनीटर बनाना।
(8) छोटे-छोटे खेलों को सुचारु रूप से चलाने के अवसर प्रदान करना।
(9) विद्यालय की विभिन्न समितियों के सदस्य नियुक्त करना।

इस तरह अध्यापक विद्यार्थियों में नेतृत्व का गुण विकसित करने में सहायता करता है। इससे विद्यार्थी नेता में स्वाभिमान की भावना पैदा होती है। विद्यार्थी देश का भविष्य होते हैं। एक आदर्श अध्यापक ही शारीरिक शिक्षा के द्वारा अच्छे समाज व राष्ट्र के निर्माण में सहायक हो सकता है।

प्रश्न 7.
नेतृत्व अथवा नेता के विभिन्न प्रकार कौन-कौन से हैं? उत्तर-नेतृत्व/नेता के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं
1. संस्थागत नेता:
इस प्रकार के नेता संस्थाओं के मुखिया होते हैं। स्कूल, कॉलेज, परिवार, फैक्टरी या दफ्तर आदि को मुखिया की आज्ञा का पालन करना पड़ता है।

2. प्रभुता:
संपन्न या तानाशाही नेता-इस प्रकार का नेतृत्व एकाधिकारवाद पर आधारित होता है। इस प्रकार का नेता अपने आदेशों का पालन शक्ति से करवाता है और यहाँ तक कि समूह का प्रयोग भी अपने हित के लिए करता है। यह नेता नियम और आदेशों को समूह में लागू करने का अकेला अधिकारी होता है। स्टालिन, नेपोलियन और हिटलर इस प्रकार के नेता के उदाहरण हैं।

3. आदर्शवादी या प्रेरणात्मक नेता:
इस प्रकार का नेता समूह पर अपना प्रभाव तर्क-शक्ति से डालता है और समूह अपने नेता के आदेशों का पालन अक्षरक्षः (ज्यों-का-त्यों) करता है। समूह के मन में अपने नेता के प्रति सम्मान होता है। नेता समूह या लोगों की भावनाओं का आदर करता है। महात्मा गाँधी, अब्राहम लिंकन, जवाहरलाल नेहरू और लालबहादुर शास्त्री इस तरह के नेता थे।

4. विशेषज्ञ नेता:
समूह में कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनको किसी विशेष क्षेत्र में कुशलता हासिल होती है और वे अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ होते हैं। ये नेता अपनी कुशल सेवाओं को समूह की बेहतरी के लिए इस्तेमाल करते हैं और समूह इन कुशल सेवाओं से लाभान्वित होता है। इस तरह के नेता अपने विशेष क्षेत्र; जैसे डॉक्टरी, प्रशिक्षण, इंजीनियरिंग तथा कला-कौशल के विशेषज्ञ होते हैं।

प्रश्न 8.
शारीरिक शिक्षा या खेलकूद का व्यक्ति के व्यक्तित्व पर क्या प्रभाव पड़ता है?
अथवा
व्यक्ति के विकास में शारीरिक शिक्षा का क्या योगदान है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा या खेलकूद का लक्ष्य मानव के व्यक्तित्व का विकास इस प्रकार करना है कि वह जीवन की जटिलताओं के उतार-चढ़ाव को सहन कर सके तथा समाज का सम्मानित नागरिक बन सके। व्यक्ति का व्यक्तित्व तीन पक्षों पर आधारित है
(1) मानसिक पक्ष,
(2) शारीरिक पक्ष,
(3) सामाजिक पक्ष।

इन तीनों पक्षों के विकास से ही अच्छे नागरिक का निर्माण होता है। शारीरिक शिक्षा या खेलकूद के माध्यम से शारीरिक व्यक्तित्व निखरता है, इस बात को सभी मानते हैं। शारीरिक व्यक्तित्व का अर्थ है-अच्छा स्वास्थ्य व स्वस्थ दिमाग। अतः शारीरिक व्यक्तित्व के निखरने पर मानसिक पक्ष पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार मनुष्य अच्छे-बुरे को समझने की क्षमता रखने लगता है। यही क्षमता उसके सामाजिक व्यक्तित्व का निर्माण करती है। अतः प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से खेलकूद व्यक्ति के व्यक्तित्व पर अमिट प्रभाव डालते हैं जो उसके भावी जीवन का आधार बनते हैं।

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प्रश्न 9.
दर्शक कैसे अच्छे खिलाड़ी बन सकते हैं?
उत्तर:
दर्शन को अच्छा खिलाड़ी बनने के लिए निम्नलिखित गुण अपनाने आवश्यक हैं
(1) यदि रैफरी अथवा अंपायर उनकी इच्छानुसार निर्णय न दे तो वह अपना रोष प्रकट करने के लिए अनुचित ढंग न प्रयोग करें।
(2) वे अपने साथी दर्शकों के साथ इस कारण ही न लड़ाई-झगड़ा करें, क्योंकि वे विरोधी टीम के पक्ष में हैं।
(3) वे बढ़िया खेल को उत्साहित करने में किसी प्रकार का व्यवधान न डालें।
(4) वे जिस टीम के पक्ष में हैं, यदि वह मैच हार रही है तो दुर्व्यवहार का प्रदर्शन न करें और न ही खेल के मैदान में पत्थर, कंकर, बोतलें अथवा कूड़ा-कर्कट फेंककर खेल में रुकावट डालें।

प्रश्न 10.
आदिकाल में खेलों को मनुष्य ने अपने जीवन का सहारा क्यों बनाया?
उत्तर:
आदिकाल में मनुष्य भागना, कूदना और उछलना जैसी क्रियाएँ करता था। ये मौलिक क्रियाएँ आधुनिक खेलों की आधार हैं। आदिकाल में मनुष्य ये क्रियाएँ अपने जीवन निर्वाह के लिए शिकार करने और निजी सुरक्षा के लिए करता था। मनुष्य की आवश्यकता ने नेज़ा मारने का अभ्यास, तीरंदाजी और पत्थर मारने जैसी खेलों को जन्म दिया। ये आदिकालीन खेलें जहाँ मनुष्य के जीवन निर्वाह के लिए जरूरी थीं, वहीं उनको आत्मिक प्रसन्नता भी देती थीं।

प्रश्न 11.
मानव का विकास समाज से संभव है। व्याख्या करें। अथवा मनुष्य और समाज का परस्पर क्या संबंध है?
उत्तर:
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। आधुनिक युग में मानव-संबंधों की आवश्यकता पहले से अधिक अनुभव की जाने लगी है। कोई भी व्यक्ति अपने-आप में पूर्ण नहीं है। किसी-न-किसी कार्य के लिए उसे दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता है। इन्हीं जरूरतों के कारण समाज में अनेक संगठनों की स्थापना की गई है। समाज द्वारा ही मनुष्य की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। अतः मनुष्य समाज पर आश्रित रहता है तथा इसके द्वारा ही उसका विकास संभव है।

प्रश्न 12.
शारीरिक शिक्षा हानिकारक मानसिक प्रभावों को किस प्रकार कम करती है? अथवा शारीरिक शिक्षा मनोवैज्ञानिक व्याधियों को कम करती है, कैसे?
उत्तर:
आधुनिक युग में व्यक्ति का अधिकतर काम मानसिक हो गया है। उदाहरण के रूप में, प्रोफेसर, वैज्ञानिक, दार्शनिक, गणित-शास्त्री आदि सभी बुद्धिजीवी मानसिक कार्य अधिक करते हैं। मानसिक कार्यों से हमारे नाड़ी तंत्र (Nervous System) पर दबाव पड़ता है। इस दबाव को कम करने या समाप्त करने के लिए हमें अपने काम में परिवर्तन लाने की जरूरत है। यह परिवर्तन मानसिक सुख पैदा करता है। सबसे लाभदायक परिवर्तन शारीरिक व्यायाम है। जे०बी० नैश का कहना है कि जब कोई विचार उसके दिमाग में आता है तो परिस्थिति बदल जाने पर भी वह विचार उसके दिमाग में चक्कर काटने लगता है तो इससे पीछा छुड़वाने के लिए अपने आपको दूसरे कामों में लगा लेता हूँ ताकि उसका दिमाग तसेताजा हो सके। इसलिए सभी लोगों को मानसिक उलझनों से छुटकारा पाने के लिए खेलों में भाग लेना चाहिए, क्योंकि खेलें मानसिक तनाव को दूर करती हैं। इस प्रकार हानिकारक प्रभावों को कम करने में शारीरिक शिक्षा एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

प्रश्न 13.
शारीरिक शिक्षा किस प्रकार रोगों की रोकथाम में सहायता करती है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा निम्नलिखित प्रकार से रोगों की रोकथाम में सहायता करती है
(1) शारीरिक शिक्षा व्यक्ति को शारीरिक रूप से मजबूत बनाने में सहायता करती है और मजबूत एवं सुडौल शरीर किसी भी प्रकार की बीमारी से लड़ सकता है।

(2) शारीरिक शिक्षा व्यक्तियों व छात्रों को शारीरिक संस्थानों का ज्ञान प्रदान करती है। शारीरिक संस्थानों की जानकारी होने से वे अपने शरीर एवं स्वास्थ्य के प्रति सक्षम रहते हैं।

(3) शारीरिक शिक्षा अच्छी आदतों को विकसित करने में सहायता करती है; जैसे हर रोज दाँतों पर ब्रश करना, भोजन करने से पहले हाथ साफ करना, सुबह-शाम सैर करना आदि।

(4) शारीरिक शिक्षा पौष्टिक एवं संतुलित आहार के महत्त्व के बारे में जानकारी देती है। पौष्टिक एवं संतुलित आहार करने से हमारे शरीर की कार्यक्षमता और रोग निवारक क्षमता बढ़ती है।

(5) शारीरिक क्रियाएँ माँसपेशियों को मजबूत, रक्त के प्रवाह को ठीक और पाचन शक्ति में बढ़ोत्तरी करने में सहायक होती हैं।

(6) शारीरिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को शारीरिक रूप से स्वस्थ बनाना है। इसलिए यह व्यक्तियों को अनेक रोगों के लक्षण, कारण एवं नियंत्रण के उपायों से अवगत करवाती है।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न [Very Short Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
समाज क्या है?
उत्तर:
व्यावहारिक रूप से समाज (Society):
शब्द का प्रयोग मानव समूह के लिए किया जाता है परन्तु वास्तविक रूप से समाज मानव समूह के अंतर्गत व्यक्तियों के संबंधों की व्यवस्था का नाम है। समाज स्वयं में एक संघ है जो सामाजिक व औपचारिक संबंधों का जाल है।

प्रश्न 2.
समाज की कोई दो परिभाषाएँ दीजिए। अथवा समाज को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
1. राइट के अनुसार, “समाज व्यक्तियों का एक समूह ही नहीं है, बल्कि यह समूह के व्यक्तियों के बीच पाए जाने वाले संबंधों की व्यवस्था है।”
2. गिडिंग्स के अनुसार, “समाज स्वयं वह संगठन व औपचारिक संबंधों का योग है जिसमें सहयोग देने वाले व्यक्ति परस्पर बंधे रहते हैं।”

प्रश्न 3.
क्या मध्यकाल में खेलें केवल मन बहलाने के लिए ही खेली जाती थीं?
उत्तर:
मध्यकाल में खेलें मन बहलाने का साधन थीं परंतु यह हृष्टता-पुष्टता, जोश, ज़ज्बात और शक्ति के दिखावे के लिए भी खेली जाती थीं। खेलों का प्रचलन शक्तिशाली और जोशीले सैनिक तैयार करना भी था। रोमवासियों ने खेलों के हिंसक रूप को भी अपनाया हुआ था। यूनानवासियों ने खेलों को आपसी प्यार और मित्रता में वृद्धि करने के लिए खेला।

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प्रश्न 4.
शारीरिक शिक्षा परिवार व समाज के स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करती है?
उत्तर:
परिवार एवं समाज के स्वास्थ्य में शारीरिक शिक्षा का महत्त्वपूर्ण योगदान है। शारीरिक शिक्षा मनुष्य को न केवल अपने स्वास्थ्य को ठीक रखने की कुशलता प्रदान करती है, अपितु यह उसे अपने परिवार एवं समाज के स्वास्थ्य को भी ठीक रखने में सहायता करती है। इस तरह से शारीरिक शिक्षा के द्वारा मनुष्य स्वयं अपने परिवार एवं अपने समाज के स्वास्थ्य की देखभाल भली-भाँति कर सकता है।

प्रश्न 5.
एक अच्छा खिलाड़ी सफलता के लिए क्या-क्या करता है?
उत्तर:
एक अच्छा खिलाड़ी सफलता के लिए कठोर परिश्रम का सहारा लेता है। वह सफलता के लिए अयोग्य तरीकों का प्रयोग नहीं करता, अपितु देश की आन और खेल की मर्यादा के लिए दूसरों को परिश्रम करने और साफ-सुथरा खेल खेलने के लिए प्रेरित करता है। वह विरोधी खिलाड़ियों को भी अपने साथी समझता है।

प्रश्न 6.
खेलें खिलाड़ी में कौन-कौन से गुण पैदा करती हैं?
उत्तर:
खेलें खिलाड़ी को आज्ञा पालन करने वाला, समय का सदुपयोग करने वाला, दूसरों के विचारों का सम्मान करने वाला, सहनशील, स्वस्थ और फुर्तीला खिलाड़ी बना देती हैं। खेलों के द्वारा खिलाड़ियों में दूसरों के साथ मिलकर रहना, उनको अपने बराबर समझना जैसे सामाजिक गुण आ जाते हैं। खिलाड़ी सत्य बोलने वाले, चरित्रवान, नैतिक मूल्यों का पालन करने वाले बन जाते हैं।

प्रश्न 7.
खेलों में भाग लेने से शरीर नीरोगी कैसे होता है?
उत्तर:
खेलों में भाग लेने से शरीर के निरंतर गतिशील रहने से अधिक भूख लगती है और शरीर में नया खून, शक्ति और तंदुरुस्ती पैदा होती है।

प्रश्न 8.
शारीरिक शिक्षा किन नैतिक गुणों का विकास करती है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा व्यक्ति में ईमानदारी, वफादारी, सच बोलना, दूसरों की सहायता करना, आत्म-त्याग आदि नैतिक गुणों . का विकास करती है। .

प्रश्न 9.
नेता का प्रमुख गुण क्या होना चाहिए? ‘
उत्तर:
सर्वप्रथम तो एक नेता को अच्छा नागरिक होना चाहिए, फिर एक अच्छा वक्ता व प्रशिक्षक तथा उसके बाद एक विशेषज्ञ होना चाहिए। उसे ईमानदार, समय का पाबंद और कर्मठ होना चाहिए।

प्रश्न 10.
मॉण्टगुमरी के अनुसार नेतृत्व को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
मॉण्टगुमरी के अनुसार, “किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए व्यक्तियों को इकट्ठा करने की इच्छा व योग्यता को ही नेतृत्व कहा जाता है।” ..

प्रश्न 11.
समूह क्या है?
उत्तर:
समूह एक ऐसी सामाजिक अवस्था है जिसमें सभी इकट्ठे होकर कार्य करते हैं और अपने-अपने विचारों या भावनाओं को संतुष्ट करते हैं। इसके द्वारा एकीकरण, मित्रता, सहयोग व सहकारिता के विचारों को बढ़ावा मिलता है। समूह में समान उद्देश्य की पूर्ति हेतु इकट्ठे होकर कार्य किया जाता है।

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प्रश्न 12.
प्राथमिक समूह किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्राथमिक समूह वह पारिवारिक समूह है जिसमें भावनात्मक संबंध, घनिष्ठता एवं प्रेम-भाव प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इसमें सशक्त समाजीकरण, अच्छे चरित्र तथा आचरण का विकास होता है। इस समूह के सदस्य एक-दूसरे से अपनी गतिविधियों व संस्कृति संबंधी वार्तालाप करते हैं।

प्रश्न 13.
द्वितीयक समूह किसे कहते हैं?
उत्तर:
द्वितीयक समूह प्राथमिक समूह से अधिक विस्तृत होता है। यह एक ऐसा समूह है जिसमें अप्रत्यक्ष, प्रभावरहित, औपचारिक संबंध होते हैं । इस समूह में सम्मिलित सदस्यों में कोई भावनात्मक संबंध नहीं होता। ऐसे समूहों में स्वार्थ प्रवृत्तियाँ अधिक पाई जाती हैं।

प्रश्न 14.
आदर्शवादी या प्रेरणात्मक नेता किसे कहा जाता है?
उत्तर:
इस प्रकार का नेता समूह पर अपना प्रभाव तर्क-शक्ति से डालता है और समूह अपने नेता के आदेशों का पालन अक्षरक्षः (ज्यों-का-त्यों) करता है। समूह के मन में अपने नेता के प्रति सम्मान होता है। नेता समूह या लोगों की भावनाओं का आदर करता है। महात्मा गाँधी, अब्राहम लिंकन, जवाहरलाल नेहरू और लालबहादुर शास्त्री इस तरह के नेता थे।

HBSE 9th Class Physical Education व्यक्ति एवं समाज के विकास में शारीरिक शिक्षा का योगदान Important Questions and Answers

वस्तनिष्ठ प्रश्न [Objective Type Questions]

प्रश्न 1.
व्यक्ति के विकास में शारीरिक शिक्षा का कोई एक योगदान बताएँ।
उत्तर:
अच्छी आदतों का विकास करना।

प्रश्न 2.
समाज के विकास में शारीरिक शिक्षा का कोई एक योगदान बताएँ।
उत्तर:
सामाजीकरण में सहायक सामाजिक गुणों; जैसे सहयोग, बंधुत्व व अच्छे नागरिक की भावना का विकास करना।

प्रश्न 3.
शारीरिक शिक्षा व्यक्ति के शरीर को कैसा बनाती है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा व्यक्ति के शरीर को मजबूत एवं तंदुरुस्त बनाती है।

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प्रश्न 4.
एक अच्छे नेता का कोई एक गुण बताएँ।
उत्तर:
एक अच्छा नेता ईमानदार होता है।

प्रश्न 5.
खेल के मैदान में खिलाड़ी का व्यवहार कैसा होना चाहिए?
उत्तर:
खेल के मैदान में खिलाड़ी का व्यवहार शांत एवं धैर्यपूर्ण होना चाहिए।

प्रश्न 6.
एक नेता कैसा होना चाहिए?
उत्तर-एक
नेता ईमानदार, कर्मठ तथा अच्छा वक्ता होना चाहिए।

प्रश्न 7.
एक योग्य व्यक्ति में नेतृत्व के अलावा कौन-कौन से आवश्यक गुण होते हैं?
उत्तर:
एक योग्य व्यक्ति में नेतृत्व के अलावा ईमानदारी, सहनशीलता, सहयोग की भावना, आज्ञा पालन की भावना और नैतिक गुण होते हैं।

प्रश्न 8.
शारीरिक शिक्षा द्वारा विकसित कोई एक सामाजिक मूल्य बताएँ।
उत्तर:
सामाजिक सहयोग की भावना विकसित होना।

प्रश्न 9.
समूह कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर;
समूह दो प्रकार के होते हैं।

प्रश्न 10.
किस प्रकार के समूह में भावनात्मक संबंध पाया जाता है?
उत्तर:
प्राथमिक समूह में भावनात्मक संबंध पाया जाता है।

प्रश्न 11.
आदिकाल में मनुष्य किस प्रकार की खेलें खेलता था?
उत्तर:
तीरंदाजी, नेज़ाबाजी और पत्थरों को फेंकना।

प्रश्न 12.
प्राचीनकाल में मनुष्य के लिए खेलों का मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
जीवन-निर्वाह और शिकार खेलने के लिए युक्ति सीखना।

प्रश्न 13.
समाज किसका जाल है?
उत्तर:
समाज सामाजिक संबंधों का जाल है।

प्रश्न 14.
“नेतृत्व एक ऐसा व्यवहार है जो लोगों के व्यवहार पर अधिक प्रभाव डालता है, न कि लोगों के व्यवहार का प्रभाव उनके नेता पर।” यह परिभाषा किसने दी? . .
उत्तर:
यह परिभाषा ला-पियरे व फा!वर्थ ने दी।

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प्रश्न 15.
“मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
अरस्तू का।

बहुविकल्पीय प्रश्न [Multiple Choice Questions]

प्रश्न 1.
“समाज के बिना मानव पशु है या देवता।” यह कथन है
(A) मैजिनी का
(B) क्लेयर का
(C) अरस्तू का
(D) मजूमदार का
उत्तर:
(C) अरस्तू का

प्रश्न 2.
“बच्चा नागरिकता का प्रथम पाठ माता के चुंबन और पिता के दुलार से सीखता है।” यह कथन किसका है?
(A) क्लेयर का
(B) मैजिनी का
(C) मजूमदार का
(D) ईलियट और मैरिल का
उत्तर:
(B) मैजिनी का

प्रश्न 3.
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के अनुसार एक अच्छे नागरिक में अच्छे समाज के निर्माण के लिए गुण होने चाहिएँ
(A) सत्य
(B) अहिंसा
(C) निर्भीकता
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 4.
अरस्तू के अनुसार एक अच्छे नागरिक के गुण होते हैं
(A) शारीरिक सौंदर्य
(B) तीव्र बुद्धि व ज्ञान
(C) शुद्ध आचरण व व्यवहार
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 5.
आदिकाल में मनुष्य के पसंदीदा खेल थे-
(A) तीरंदाजी
(B) नेज़ा मारने का अभ्यास
(C) पत्थर फेंकना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 6.
शारीरिक शिक्षा समाज के विकास में योगदान देती है
(A) जातीय भेदभाव का अंत करना
(B) सहयोग की भावना का विकास करना
(C) आदर्श नागरिकों का निर्माण करना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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प्रश्न 7.
खिलाड़ी का व्यवहार होना चाहिए.
(A) धैयपूर्ण
(B) सहनशील
(C) शांत
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 8.
खिलाड़ी का चयन किस आधार पर किया जाता है?
(A) सामाजिक आधार पर
(B) आर्थिक आधार पर
(C) खेल कला एवं योग्यता के आधार पर
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) खेल कला एवं योग्यता के आधार पर

प्रश्न 9.
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शारीरिक शिक्षा बढ़ावा देती है’
(A) मित्रता को
(B) सद्भावना को
(C) अंतर्राष्ट्रीय शांति को
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 10.
“हमें खेल जीतने के लिए नहीं, बल्कि अच्छा प्रदर्शन करने के लिए खेलना चाहिए।” यह कथन है
(A) अरस्तू का .
(B) बैरन-डी-कोबर्टिन का
(C) प्लेटो का
(D) सुकरात का
उत्तर:
(B) बैरन-डी-कोबर्टिन का

प्रश्न 11.
“समाज स्वयं वह संगठन व औपचारिक संबंधों का योग है जिसमें सहयोग देने वाले व्यक्ति परस्पर बंधे रहते हैं।” यह कथन है
(A) अरस्तू का
(B) सुकरात का
(C) प्लेटो का
(D) गिडिंग्स का
उत्तर:
(D) गिडिंग्स का

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प्रश्न 12.
“मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।” यह कथन है
(A) अरस्तू का
(B) सुकरात का.
(C) प्लेटो का
(D) गिडिंग्स का
उत्तर:
(A) अरस्तू का

व्यक्ति एवं समाज के विकास में शारीरिक शिक्षा का योगदान Summary

व्यक्ति एवं समाज के विकास में शारीरिक शिक्षा का योगदान परिचय

शारीरिक शिक्षा (Physical Education):
शारीरिक शिक्षा द्वारा केवल बुद्धि तथा शरीर का ही विकास नहीं होता, बल्कि इससे व्यक्ति के स्वभाव, चरित्र एवं आदतों के निर्माण में भी सहायता मिलती है। अत: शारीरिक शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति के संपूर्ण (शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक) व्यक्तित्व का विकास होता है। मॉण्टेग्यू (Montague) के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा न तो मस्तिष्क का और न ही शरीर का प्रशिक्षण करती है, बल्कि यह सम्पूर्ण व्यक्ति का प्रशिक्षण करती है।”

समाज (Society):
व्यावहारिक रूप से समाज (Society) शब्द का प्रयोग मानव समूह के लिए किया जाता है परन्तु वास्तविक रूप से समाज मानव समूह के अंतर्गत व्यक्तियों के संबंधों की व्यवस्था का नाम है। समाज स्वयं में एक संघ है जो सामाजिक व औपचारिक संबंधों का जाल है। राइट (Wright) के अनुसार, “समाज व्यक्तियों का एक समूह ही नहीं है, बल्कि यह समूह के व्यक्तियों के बीच पाए जाने वाले संबंधों की व्यवस्था है।”

नेतृत्व (Leadership):
मानव में नेतृत्व की भावना आरंभ से ही होती है। किसी भी समाज की वृद्धि या विकास उसके नेतृत्व की विशेषता पर निर्भर करती है। नेतृत्व व्यक्ति का वह गुण है जिससे वह दूसरे व्यक्तियों के जीवन के विभिन्न पक्षों में मार्गदर्शन करता है। मॉण्टगुमरी (Montgomery) के अनुसार, “किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए व्यक्तियों को इकट्ठा करने की इच्छा व योग्यता को ही नेतृत्व कहा जाता है।”

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HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक शिक्षा का अर्थ, लक्ष्य एवं उद्देश्य

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Haryana Board 9th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक शिक्षा का अर्थ, लक्ष्य एवं उद्देश्य

HBSE 9th Class Physical Education शारीरिक शिक्षा का अर्थ, लक्ष्य एवं उद्देश्य Textbook Questions and Answers

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न [Long Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
शारीरिक शिक्षा से आप क्या समझते हैं? इसके लक्ष्यों पर प्रकाश डालिए। अथवा शारीरिक शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषाएँ बताएँ। इसके लक्ष्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Physical Education):
शारीरिक शिक्षा ऐसी शिक्षा है जो वैयक्तिक जीवन को समृद्ध बनाने में प्रेरक सिद्ध होती है। शारीरिक शिक्षा, शारीरिक विकास के साथ शुरू होती है और मानव-जीवन को पूर्णता की ओर ले जाती है, जिसके परिणामस्वरूप वह एक हृष्ट-पुष्ट और मजबूत शरीर, अच्छा स्वास्थ्य, मानसिक योग्यता और सामाजिक एवं भावनात्मक संतुलन रखने वाला व्यक्ति बन जाता है। ऐसा व्यक्ति किसी भी प्रकार की चुनौतियों अथवा परेशानियों से प्रभावी तरीके से लड़ने में सक्षम होता है। शारीरिक शिक्षा के विषय में विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों के विचार निम्नलिखित हैं

1. सी० ए० बूचर (C.A. Bucher):
के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा, संपूर्ण शिक्षा पद्धति का एक अभिन्न अंग है, जिसका उद्देश्य नागरिक को शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक तथा सामाजिक रूप से शारीरिक गतिविधियों के माध्यम से, जो गतिविधियाँ उनके परिणामों को दृष्टिगत रखकर चुनी गई हों, सक्षम बनाना है।”

2. सी० सी० कोवेल (C.C.Cowell):
के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा व्यक्ति-विशेष के सामाजिक व्यवहार में वह परिवर्तन है जो बड़ी माँसपेशियों तथा उनसे संबंधित गतिविधियों की प्रेरणा से उपजता है।”

3. जे० बी० नैश (J. B. Nash):
के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा, शिक्षा के संपूर्ण क्षेत्र का वह भाग है जो बड़ी माँसपेशियों से होने वाली क्रियाओं तथा उनसे संबंधित प्रतिक्रियाओं से संबंध रखता है।”

4. ए० आर० वेमैन (A. R. Wayman):
के मतानुसार, “शारीरिक शिक्षा, शिक्षा का वह भाग है जिसका संबंध शारीरिक गतिविधियों द्वारा व्यक्ति के संपूर्ण विकास एवं प्रशिक्षण से है।” ।

5. आर० कैसिडी (R. Cassidy):
के अनुसार, “शारीरिक क्रियाओं पर केंद्रित अनुभवों द्वारा जो परिवर्तन मानव में आते हैं, वे ही शारीरिक शिक्षा कहलाते हैं।”

6. जे० एफ० विलियम्स (J. E. Williams):
के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा मनुष्य की उन शारीरिक क्रियाओं को कहते हैं, जो किसी विशेष लक्ष्य को लेकर चुनी और कराई गई हों।”

7. सी० एल० ब्राऊनवैल (C.L. Brownwell):
के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा उन परिपूर्ण एवं संतुलित अनुभवों का जोड़ है जो व्यक्ति को बहु-पेशीय प्रक्रियाओं में भाग लेने से प्राप्त होते हैं तथा उसकी अभिवृद्धि और विकास को चरम-सीमा तक बढ़ाते हैं।”

8. निक्सन व कोजन (Nixon and Cozan):
के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा, शिक्षा की पूर्ण क्रियाओं का वह भाग है जिसका संबंधशक्तिशाली माँसपेशियों की क्रियाओं और उनसे संबंधित क्रियाओं तथा उनके द्वारा व्यक्ति में होने वाले परिवर्तनों से है।”

9. डी०ऑबरटियूफर (D. Oberteuffer):
के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा उन अनुभवों का जोड़ है जो व्यक्ति की शारीरिक गतिविधियों से प्राप्त हुई है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि शारीरिक शिक्षा, शिक्षा का वह महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी पहलू है जिसमें शारीरिक गतिविधियों या व्यायामों द्वारा व्यक्ति के विकास के प्रत्येक पक्ष प्रभावित होते हैं। यह व्यक्ति के व्यवहार और दृष्टिकोण में आवश्यक परिवर्तन करती है। इसका उद्देश्य न केवल व्यक्ति का शारीरिक विकास है, बल्कि यह मानसिक विकास, सामाजिक विकास, भावनात्मक विकास, बौद्धिक विकास, आध्यात्मिक विकास एवं नैतिक विकास में भी सहायक होती है अर्थात् यह व्यक्ति का संपूर्ण या सर्वांगीण विकास करती है। संक्षेप में, विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओं का तुलनात्मक अध्ययन करने से हमें निम्नलिखित जानकारी प्राप्त होती है

(1) शारीरिक शिक्षा साधारण शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण अंग है।
(2) शारीरिक शिक्षा का माध्यम शिक्षा के साथ-साथ क्रियाएँ हैं। जब तक ये क्रियाएँ शक्तिशाली नहीं होंगी, शरीर के सारे अंगों का पूरी तरह से विकास नहीं हो सकता।
(3) शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य केवल शारीरिक विकास ही नहीं, बल्कि सामाजिक, मानसिक और भावनात्मक विकास करना भी है।
(4) आज की शारीरिक शिक्षा वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित है। इसमें क्रियाओं का चुनाव इस प्रकार किया जाता है जिससे इसके उद्देश्य की पूर्ति की जा सके।
(5) शारीरिक शिक्षा संबंधी क्रियाओं द्वारा व्यक्ति अपने शरीर में सुधार करता है और इसे मजबूत बनाता है।
(6) यह शिक्षा शरीर की कार्य-कुशलता व क्षमता में वृद्धि करती है।

शारीरिक शिक्षा के लक्ष्य (Aims of Physical Education)-शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य विद्यार्थी को इस प्रकार तैयार करना है कि वह एक सफल एवं स्वस्थ नागरिक बनकर अपने परिवार, समाज व राष्ट्र की समस्याओं का समाधान करने की क्षमता या योग्यता उत्पन्न कर सके और समाज का महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनकर सफलता से जीवनयापन करते हुए जीवन का पूरा आनंद उठा सके। विभिन्न विद्वानों के अनुसार शारीरिक शिक्षा के लक्ष्य निम्नलिखित हैं

1.जे० एफ० विलियम्स (J. E. Williams):
के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य एक प्रकार का कुशल नेतृत्व तथा पर्याप्त समय प्रदान करना है, जिससे व्यक्तियों या संगठनों को इसमें भाग लेने के लिए पूरे-पूरे अवसर मिल सकें, जो शारीरिक रूप से आनंददायक, मानसिक दृष्टि से चुस्त तथा सामाजिक रूप से निपुण हों।”

2. जे० आर० शर्मन (J.R. Sherman):
के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य है कि व्यक्ति के अनुभव को इस हद तक प्रभावित करे कि वह अपनी क्षमता से समाज में अच्छे से रह सके, अपनी जरूरतों को बढ़ा सके, उन्नति कर सके तथा अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए सक्षम हो सके।”

3. केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय (Central Ministry of Education):
के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा को प्रत्येक बच्चे को शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक रूप से स्वस्थ बनाना चाहिए और उसमें ऐसे व्यक्तिगत एवं सामाजिक गुणों का विकास करना चाहिए ताकि वह दूसरों के साथ प्रसन्नता व खुशी से रह सके और एक अच्छा नागरिक बन सके।”

दी गई परिभाषाओं का अध्ययन करने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करना है। इसके लक्ष्य पर प्रकाश डालते हुए जे०एफ० विलियम्स (J.E. Williams) ने भी कहा है कि “शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य मनुष्य के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना है।”

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक शिक्षा का अर्थ, लक्ष्य एवं उद्देश्य

प्रश्न 2.
शारीरिक शिक्षा से आपका क्या अभिप्राय है? इसके उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा का अर्थ (Meaning of Physical Education):
शारीरिक शिक्षा, शिक्षा का वह अभिन्न अंग है, जो खेलकूद तथा अन्य शारीरिक क्रियाओं के माध्यम से व्यक्ति में एक चुनी हुई दिशा में परिवर्तन लाने का प्रयास करता है। इससे केवल बुद्धि तथा शरीर का ही विकास नहीं होता, बल्कि यह व्यक्ति के स्वभाव, चरित्र एवं आदतों के निर्माण में भी सहायक होती है।

शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य (Objectives of Physical Education):
उद्देश्य, लक्ष्य की तरह अदृश्य या अपूर्ण नहीं है, बल्कि ये साधारण भाषा में लिखे जाते हैं। ये किसी भी मापक द्वारा तोले जा सकते हैं। ये गिनती में बहुत अधिक हैं तथा किसी मुख्य स्थान पर जाने के लिए निर्धारक का काम करते हैं। नि:संदेह इनकी प्राप्ति व्यक्तियों तथा सिद्धांतों द्वारा ही होती है, परंतु प्रत्येक हालत में सब उद्देश्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसका भाव यह नहीं है कि उद्देश्यों का कोई महत्त्व ही नहीं है, इनके द्वारा ही बच्चों या विद्यार्थियों के आचरण में कई तरह के परिवर्तन तथा सुधार किए जा सकते हैं। विभिन्न विद्वानों ने शारीरिक शिक्षा के भिन्न-भिन्न उद्देश्य बताएँ हैं, जो निम्नलिखित प्रकार से हैं

1. हैगमैन तथा ब्राऊनवैल (Hagman and Brownwell) के अनुसार, शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य निम्नलिखित हैं
(i) शारीरिक स्वास्थ्य में बढ़ोतरी करना (Increase in Physical Health)
(ii) गति या तकनीकी योग्यताओं में बढ़ोतरी करना (Increase in Motor Skills)
(iii) ज्ञान में वृद्धि करना (Increase in Knowledge)
(iv) अभिरुचि में सुधार लाना (Improvement in Aptitude)।

2. जे०बी०नैश (J. B. Nash) के अनुसार, शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य निम्नलिखित हैं
(i) शारीरिक अंगों का विकास (Development of Organic)
(ii) नाड़ी-माँसपेशियों संबंधी विकास (Neuro Muscular Development)
(iii) अर्थ समझने की योग्यता का विकास (Development of Inter-pretative Ability)
(iv) भावनात्मक विकास (Emotional Development)।

3. बॅक वाल्टर (Buck Walter) ने शारीरिक शिक्षा के उद्देश्यों को तीन भागों में विभाजित किया है
(i) सेहत या स्वास्थ्य में सुधार करना (Improvement in Health),
(ii) खाली समय का उचित प्रयोग (Proper or Worthy use of Leisure Time),
(iii) नैतिक आचरण (Ethical Character)।

4. लास्की (Laski) के अनुसार शारीरिक शिक्षा के पाँच उद्देश्य निम्नलिखित हैं
(i) शारीरिक विकास (Physical Development),
(ii) नाड़ी-माँसपेशियों के समन्वय में विकास (Development of Neuro-Muscular Co-ordination),
(iii) भावनात्मक विकास (Emotional Development),
(iv) सामाजिक विकास (Social Development),
(v) बौद्धिक विकास (Intellectual Development)।

5. इरविन (Irwin) के अनुसार शारीरिक शिक्षा के पाँच उद्देश्य निम्नलिखित हैं
(i) शारीरिक विकास (Physical Development),
(ii) भावनात्मक विकास (Emotional Development),
(iii) सामाजिक विकास (Social Development),
(iv) मानसिक विकास (Mental Development),
(v) मनोरंजक गतिविधियों में निपुणता या मनोरंजक विकास (Skill in Recreation Activities or Development of Recreation)।

6. चार्ल्स ए० बूचर (Charles A. Bucher) ने अपनी पुस्तक ‘शारीरिक शिक्षा की बुनियाद’ में शारीरिक शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य बताए हैं
(i) शारीरिक विकास (Physical Development),
(ii) गतिज विकास (Motor Development),
(iii) मानसिक विकास (Mental Development),
(iv) मानवीय संबंधों का विकास (Development of Human Relations)।

उपर्युक्त वर्णित उद्देश्यों के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि शारीरिक शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं
1.शारीरिक विकास (Physical Development):
शारीरिक शिक्षा संबंधी क्रियाएँ शारीरिक विकास का माध्यम हैं । शारीरिक क्रियाएँ माँसपेशियों को मजबूत करने, रक्त का बहाव ठीक रखने, पाचन-शक्ति में बढ़ोतरी करने और श्वसन क्रिया को ठीक रखने में सहायक होती हैं। शारीरिक क्रियाएँ न केवल भिन्न-भिन्न प्रणालियों को स्वस्थ और ठीक रखती हैं, बल्कि उनके आकार, शक्ल और कुशलता में भी बढ़ोतरी करती हैं। शारीरिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को शारीरिक तौर पर स्वस्थ बनाना और उसके व्यक्तित्व के प्रत्येक पहलू को निखारना है।

2. मानसिक विकास (Mental Development):
शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास भी होना चाहिए।शारीरिक शिक्षा ऐसी क्रियाएँ प्रदान करती हैं, जो व्यक्ति के दिमाग को उत्तेजित करती हैं। उदाहरणस्वरूप बास्केटबॉल की खेल के दौरान एक टीम के खिलाड़ियों ने विरोधी टीम के खिलाड़ियों से बॉल बचा कर रखनी होती है। इसके साथ अपना निशाना भी देखना होता है और अपनी शक्ति का अन्दाज़ा लगाकर बॉल को ऊपर बास्केट में डालना होता है। जो खिलाड़ी केवल शारीरिक तौर पर शक्तिशाली हो और मानसिक तौर पर उसकी प्रफुल्लता पूरी न हो, वह कभी अच्छा खिलाड़ी नहीं बन सकता। इसलिए खेल खेलने वाले व्यक्ति का शारीरिक विकास के साथ मानसिक विकास भी हो जाता है। शारीरिक शिक्षा मानसिक विकास के लिए उचित वातावरण प्रदान करती है।

3. संवेगात्मक या भावनात्मक विकास (Emotional Development):
शारीरिक तौर पर स्वस्थ और मानसिक तौर पर चुस्त व्यक्ति भी कई बार बहुत भावुक हो जाते हैं। ये जीवन में साधारण समस्याओं को हंसते-हंसते सुलझा देने के स्थान पर उनको एक बड़ी समस्या बनाकर उनमें उलझ जाते हैं। वे अपनी खुशी, दुःख, पसन्द और ईर्ष्या को ज़रूरत से अधिक महत्ता देते हैं। ऐसा करने से उनका बहुमूल्य समय और शक्ति व्यर्थ चले जाते हैं और वे अच्छे परिणाम प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं। खेलें शारीरिक भावनाओं पर नियन्त्रण करने की कला सिखाती हैं। शारीरिक शिक्षा कई प्रकार के ऐसे अवसर पैदा करती है, जिनसे शरीर का भावनात्मक या संवेगात्मक विकास होता है। खेल में बार-बार जीतना या हारना दोनों हालातों में भावनात्मक पहलू प्रभावित होते हैं। इससे खिलाड़ियों में भावनात्मक स्थिरता उत्पन्न होती है। इसलिए उन पर जीत-हार का बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता। शारीरिक शिक्षा खिलाड़ियों को अपनी भावनाओं पर काबू रखना सिखाती है।

4. सामाजिक विकास (Social Development):
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसे समाज में मिल-जुलकर रहना पड़ता है। शारीरिक शिक्षा भिन्न-भिन्न प्रकार के लोगों को एक स्थान पर इकट्ठा करती है। उनमें एकता व एकबद्धता लाती है। खेल में धर्म, जाति, श्रेणी, वर्ग या क्षेत्र आदि के आधार पर किसी भी तरह का कोई भेदभाव नहीं किया जाता। इस तरह से शारीरिक शिक्षा कई ऐसे अवसर प्रदान करती है जिससे सामाजिक एकता को बढ़ावा मिलता है और सामाजिक व नैतिक विकास में वृद्धि होती है; जैसे एक-दूसरे से. मिलकर रहना, एक-दूसरे का सम्मान करना, दूसरों की आज्ञा का पालन करना, बड़ों का सम्मान करना, नियमों का पालन करना आदि।

5. सांस्कृतिक विकास (Cultural Development)”
शारीरिक शिक्षा संबंधी खेल और क्रियाकलापों के दौरान विभिन्न संस्कृतियों के व्यक्ति व खिलाड़ी आपस में मिलते हैं और एक-दूसरे के बारे में जानते हैं व उनके रीति-रिवाजों, परंपराओं और जीवन-शैली के बारे में परिचित होते हैं, जिससे सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा मिलता है।

6. चरित्र या नैतिक निर्माण (Character or Moral Development):
यदि सभी व्यक्तियों को अपने आस-पास के सभी नियमों को निभाते हुए सरलता से जीवन जीना आ जाता है तो वे सुलझे हुए इंसान बन जाते हैं। खेलें खेलते हुए यदि खिलाड़ियों को रैफ़री का निर्णय पसन्द न भी आए तो भी वे उसकी आज्ञा का पालन हैं और कोई दुर्व्यवहार नहीं करते। इस प्रकार खेल के मैदान में ही आज्ञा पालन, सत्य बोलना, समय के पाबन्द रहना, अनुशासन में रहना, बड़ों का कहना मानना, छोटों से प्यार करना, पड़ोसियों के साथ मेल-जोल से रहना, आदि गुण सीखे जाते हैं।

7. गतिज विकास (Motor Development):
शारीरिक शिक्षा संबंधी क्रियाएँ शरीर में ज्यादा-से-ज्यादा तालमेल बनाती हैं। अगर शारीरिक शिक्षा में उछलना, दौड़ना, फेंकना आदि क्रियाएँ न हों तो कोई भी उद्देश्य पूरा नहीं किया जा सकता। मानवीय शरीर में सही गतिज विकास तभी हो सकता है जब नाड़ी प्रणाली और माँसपेशीय प्रणाली का संबंध ठीक रहे। इससे कम थकावट और अधिक-से-अधिक कुशलता प्राप्त करने में सहायता मिलती है।

निष्कर्ष (Conclusion)-दिए गए विवरण से स्पष्ट है कि शारीरिक शिक्षा के उद्देश्यों का क्षेत्र बहुत विशाल है। शारीरिक शिक्षा, एक सामान्य शिक्षा के रूप में शारीरिक शिक्षा के उद्देश्यों को पूरा करने में सहायक होती है। यह व्यक्ति या छात्र में आंतरिक कुशलताओं का विकास करती है और उसमें अनेक प्रकार के छुपे हुए गुणों को बाहर निकालती है।

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक शिक्षा का अर्थ, लक्ष्य एवं उद्देश्य

प्रश्न 3.
शिक्षा के क्षेत्र में शारीरिक शिक्षा क्यों आवश्यक है? वर्णन करें। अथवा हमें शारीरिक शिक्षा की आवश्यकता किन कारणों से पड़ती है? वर्णन करें।
उत्तर:
शिक्षा के क्षेत्र में शारीरिक शिक्षा की आवश्यकता या उपयोगिता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। वर्तमान युग में शारीरिक शिक्षा पूरे विश्व के स्कूल-कॉलेजों में पाठ्यक्रम का महत्त्वपूर्ण अंग बन गई है। एच०सी० बॅक (H.C. Buck) के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा सामान्य शिक्षा कार्यक्रम का वह भाग है जो माँसपेशियों के क्रियाकलापों के माध्यम से बच्चों की वृद्धि, विकास तथा शिक्षा से संबंधित है।” आज के मनुष्य को योजनाबद्ध खेलों और शारीरिक शिक्षा की बहुत आवश्यकता है। आधुनिक संदर्भ में शारीरिक शिक्षा की आवश्यकता या उपयोगिता निम्नलिखित प्रकार से है

1. शारीरिक विकास (Physical Development):
शारीरिक विकास शारीरिक क्रियाओं के माध्यम से होता है। शारीरिक क्रियाएँ माँसपेशियों को मजबूत, रक्त का संचार सही, पाचन-शक्ति में बढ़ोतरी तथा श्वसन क्रिया को ठीक रखती हैं। शारीरिक क्रियाएँ अलग-अलग प्रणालियों को स्वस्थ और ठीक रखती हैं । शारीरिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य मनुष्य को शारीरिक तौर पर स्वस्थ बनाना है। नियमित रूप में किया जाने वाला व्यायाम एक स्वस्थ जीवन व्यतीत करने वाले व्यक्ति की निपुणता और सामर्थ्य में वृद्धि करता है। इस कारण शारीरिक क्रियाकलाप शारीरिक वृद्धि और विकास के लिए बहुत आवश्यक है।

2. नियमबद्ध वृद्धि एवं विकास (Harmonious Growth and Development):
नियमित रूप से वृद्धि और विकास शारीरिक शिक्षा का सबसे महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है। सभी सजीव वस्तुएँ वृद्धि करती हैं। जैसे एक छोटा-सा बीज बड़ा होकर एक भारी पेड़ बन जाता है। शारीरिक शिक्षा का संबंध भी वृद्धि और विकास से है। व्यायाम करने से माँसपेशियाँ मजबूत बनती हैं। नियमित रूप से किया जाने वाला शारीरिक अभ्यास विभिन्न अंगों में वृद्धि एवं विकास करता है। इसलिए आज हमें इसकी बहुत आवश्यकता है।

3. अच्छे नागरिक के गुणों का विकास (Development of Qualities of Good Citizen):
शारीरिक शिक्षा खेलकूद के माध्यम से अच्छे नागरिकों के गुणों को विकसित करती है; जैसे खेलों के नियमों की पालना करना, खेलों में आपसी तालमेल बनाना, हार व जीत में संयम रखना, दूसरों का आदर करना, देशभक्ति की भावना आदि।

4. मानसिक विकास (Mental Development):
शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य का विकास भी होना चाहिए। शारीरिक और मानसिक दोनों के मिलाप से ही व्यक्ति के व्यक्तित्व में निखार आता है। जब कोई व्यक्ति शारीरिक क्रियाओं में भाग लेता है तो उसके शारीरिक विकास के साथ-साथ उसका मानसिक विकास भी होता है।

5. नेतृत्व का विकास (Development of Leadership):
शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में नेतृत्व करने के अनेक अवसर होते हैं। उदाहरणतया, हॉकी की टीम के कैप्टन को निष्पक्षता और समझदारी से खेलना पड़ता है। कई बार प्रतियोगिताओं का आयोजन करना भी नेतृत्व के गुणों के विकास में सहायक होता है। इसलिए हमें शारीरिक शिक्षा की आवश्यकता पड़ती है।

6. गतिज विकास (Motor Development):
शारीरिक क्रियाएँ शरीर में अधिक-से-अधिक तालमेल बढ़ाती हैं। यदि शारीरिक क्रियाओं में कूदना, दौड़ना, फेंकना आदि न हो तो कोई भी लक्ष्य पूरा नहीं किया जा सकता। मानवीय शरीर में सही गतिज विकास तभी हो सकता है जब नाड़ी प्रणाली और माँसपेशी प्रणाली का संबंध ठीक रहे। शारीरिक शिक्षा विभिन्न शारीरिक प्रणालियों की कार्यक्षमता को सुचारु करने में सहायक होती है।

7. भावनात्मक विकास (Emotional Development):
शारीरिक क्रियाएँ कई प्रकार के ऐसे अवसर पैदा करती हैं जिनसे भावनात्मक विकास होता है। खेल में बार-बार विजयी होना या हारना, दोनों अवस्थाओं में भावनात्मक स्थिरता आती है। इसलिए खिलाड़ी पर जीत-हार का अधिक प्रभाव नहीं पड़ता। शारीरिक शिक्षा व्यक्ति को अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना सिखाती है। जिस व्यक्ति का अपने संवेगों पर नियंत्रण होता है वह सफलता की ओर अग्रसर होता है। इसलिए हमें शारीरिक शिक्षा की अधिक आवश्यकता है।

8. सामाजिक विकास (Social Development):
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज में मिल-जुलकर सम्मानपूर्वक जीना चाहता है। शारीरिक शिक्षा की क्रियाओं द्वारा व्यक्ति का सामाजिक विकास होता है जैसे कि एक-दूसरे को सहयोग देना, दूसरों का सम्मान करना और आज्ञा का पालन करना, अनुशासन, वफादारी, सहनशीलता, सदाचार, नियमों व कर्त्तव्यों की पालना, नियमबद्धता इत्यादि। ये सभी गुण मित्रता और भाईचारे में वृद्धि करते हैं। इसलिए शारीरिक शिक्षा हमारे लिए उपयोगी एवं आवश्यक है।

9. स्वास्थ्य शिक्षा का ज्ञान (Knowledge of Health Education):
स्वस्थ जीवन के लिए स्वास्थ्य संबंधी विस्तृत जानकारी होना आवश्यक है। शारीरिक शिक्षा व्यक्ति को एक अच्छा जीवन व्यतीत करने का मार्ग दर्शाती है। शारीरिक शिक्षा, स्वास्थ्य शिक्षा के
अंतर्गत जन-संपर्क के रूप में कार्य करती है, जो सेहत और रोगों से संबंधी जानकारी प्रदान करती है। यह लोगों को अपनी आदतों और जीवन व्यतीत करने के तौर-तरीकों का विकास करने की प्रेरणा देती है।

निष्कर्ष (Conclusion)-उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि शारीरिक गतिविधियाँ नियमित रूप से वृद्धि करने में सहायक होती हैं। इसलिए शिक्षा के क्षेत्र में हमें शारीरिक शिक्षा की अति आवश्यकता पड़ती है। इसकी उपयोगिता देखते हुए इसका क्षेत्र दिन-प्रतिदिन विस्तृत होता जा रहा है। अतः हम यह कह सकते हैं कि शारीरिक शिक्षा को हमें विशाल स्तर पर सर्व-प्रिय बनाना चाहिए और इसे न केवल शिक्षा के क्षेत्र तक सीमित रखना चाहिए बल्कि इसे ग्रामीण या अन्य क्षेत्रों तक भी पहुँचाना चाहिए।

प्रश्न 4.
आधुनिक संदर्भ में शारीरिक शिक्षा के महत्त्व का वर्णन कीजिए। अथवा शारीरिक शिक्षा का क्या महत्त्व है? वर्णन करें।
उत्तर:
आज का युग एक मशीनी व वैज्ञानिक युग है, जिसमें मनुष्य स्वयं मशीन बनकर रह गया है। इसकी शारीरिक शक्ति खतरे में पड़ गई है। मनुष्य पर मानसिक तनाव और कई प्रकार की बीमारियों का संक्रमण बढ़ रहा है। मनुष्य को नीरोग एवं स्वस्थ रखने में शारीरिक शिक्षा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शारीरिक शिक्षा की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए रूसो (Rousseau) ने कहा”शारीरिक शिक्षा शरीर का एक मजबूत ढाँचा है जो मस्तिष्क के कार्य को निश्चित तथा आसान करता है।” शारीरिक शिक्षा के महत्त्व को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है

1. शारीरिक शिक्षा स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है (Physical Education is Useful for Health):
अच्छा स्वास्थ्य अच्छी जलवायु की उपज नहीं, बल्कि यह अच्छी खुराक, व्यक्तिगत स्वच्छता, उचित आराम, अनावश्यक चिंताओं से मुक्ति और रोग-रहित जीवन है। आवश्यक डॉक्टरी सहायता भी स्वास्थ्य को अच्छा रखने के लिए ज़रूरी है। बहुत ज्यादा कसरत करना, परन्तु आवश्यक खुराक न खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। जो व्यक्ति खेलों में भाग लेते हैं, उनका स्वास्थ्य ठीक रहता है। खेलों में भाग लेने से शरीर की सारी शारीरिक प्रणालियाँ सही ढंग से काम करने लग जाती हैं। ये प्रणालियाँ शरीर में हुई थोड़ी-सी कमी या बढ़ोतरी को भी सहन कर लेती हैं। इसलिए जरूरी है कि प्रत्येक व्यक्ति खेलों में अवश्य भाग ले। आधुनिक युग में शारीरिक शिक्षा की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए डॉ० राधाकृष्णन (Dr. Radha Krishanan) ने कहा है, “मजबूत शारीरिक नींव के बिना कोई राष्ट्र महान नहीं बन सकता।”.

2. शारीरिक शिक्षा हानिकारक मनोवैज्ञानिक व्याधियों को कम करती है (Physical Education decreases Harmful Psychological Disorders):
आधुनिक संसार में व्यक्ति का ज्यादा काम दिमागी हो गया है। जैसे प्रोफैसर, वैज्ञानिक, गणित-शास्त्री, दार्शनिक आदि सारे व्यक्ति मानसिक कामों से जुड़े हुए हैं। मानसिक काम से हमारे स्नायु संस्थान (Nervous System) पर दबाव बढ़ता है। इस दबाव को कम करने के लिए काम में परिवर्तन आवश्यक है। यह परिवर्तन मानसिक शांति पैदा करता है। सबसे लाभदायक परिवर्तन शारीरिक कसरतें हैं। जे०बी० नैश (J.B. Nash) का कहना है कि “जब कोई विचार दिमाग में आ जाता है तो हालात बदलने पर भी दिमाग में चक्कर लगाता रहता है।” अतः स्पष्ट है कि शारीरिक क्रियाएँ करने से हमारी मानसिक थकान कम होती है।

3. शारीरिक शिक्षा भीड़-भाड़ वाले जीवन के दुष्प्रभाव को कम करती है (Physical Education decreases the side effects of Congested Life):
आजकल शहरों में जनसंख्या निरंतर बढ़ रही है। इस बढ़ी हुई जनसंख्या के कारण कई समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं। शहरों में यातायात वाहनों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। मोटरों, गाड़ियों और फैक्टरियों का धुआँ निरंतर पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है। अतः शारीरिक शिक्षा से लोगों की स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है। विभिन्न क्षेत्रों में शारीरिक शिक्षा संबंधी खेल क्लब बनाकर लोगों को अपने स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।

4. शारीरिक शिक्षा सुस्त जीवन के बुरे प्रभावों को कम करती है (Physical Education corrects the harmful effects of Lazy Life):
आज का युग मशीनी है। दिनों का काम कुछ घण्टों में हो जाता है. जिसके कारण. मनुष्य के पास काफी समय बच जाता है जो गुजारना बहुत मुश्किल होता है। बिना काम के जीवन सुस्त और क्रिया-रहित हो जाता है। ऐसी हालत में लोगों को दौड़ने-कूदने के मौके देकर उनका स्वास्थ्य ठीक रखा जा सकता है। जब तक व्यक्ति योजनाबद्ध तरीके से खेलों और शारीरिक क्रियाओं में भाग नहीं लेगा, तब तक वह अपने स्वास्थ्य को अधिक दिनों तक तंदुरुस्त नहीं रख पाएगा।

5. शारीरिक शिक्षा सम्पूर्ण व्यक्तित्व बनाने में सहायता करती है (Physical Education helps in making Proper Personality):
शारीरिक शिक्षा मनुष्य के सम्पूर्ण व्यक्तित्व में बढ़ोतरी करती है। यह बहु-पक्षीय प्रगति करती है। इससे शरीर के प्रत्येक पक्ष का विकास होता है, जिससे मनुष्य का सम्पूर्ण व्यक्तित्व बनता है।

6. शारीरिक शिक्षा मनोरंजन प्रदान करती है (Physical Education provides the Recreation):
मनोरंजन जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग है। मनोरंजन व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक खुशी प्रदान करता है। इसमें व्यक्ति निजी प्रसन्नता और संतुष्टि के कारण अपनी इच्छा से भाग लेता है। शारीरिक शिक्षा और मनोरंजन में गहरा संबंध है। शारीरिक शिक्षा मनुष्य को कई प्रकार की क्रियाएँ प्रदान करती है जिससे उसको मनोरंजन प्राप्त होता है।

7. शारीरिक शिक्षा शारीरिक संस्थानों का ज्ञान प्रदान करती है (Physical Education Provides the Knowledge of Human Body System):
शारीरिक शिक्षा मानवीय शरीर की सभी प्रणालियों का ज्ञान प्रदान करती है। यह किसी भी व्यक्ति के . शरीर की विभिन्न प्रणालियों पर व्यायाम द्वारा पड़ने वाले प्रभावों के बारे में जानकारी देती है। यह विभिन्न रोगों से व्यक्ति को अपने शारीरिक अंगों की रक्षा करने संबंधी जानकारी देती है।

8. खाली समय का सही उपयोग (Proper Use of Leisure Time):
शारीरिक शिक्षा खाली समय के सही उपयोग में सहायक होती है। खाली समय में व्यक्ति शारीरिक क्रियाकलापों द्वारा कोई अच्छा कार्य कर सकता है। जैसे कि वह खाली समय में कोई खेल, खेल सकता है। यदि वह बाहर जाकर नहीं खेल सकता तो घर में ही खेल सकता है जिससे व्यक्ति का मन सामाजिक कुरीतियों की तरफ नहीं जाता।

9. अच्छे नागरिक के गुणों का विकास (Development Qualities of Good Citizen):
शारीरिक शिक्षा खेलकूद के माध्यम से अच्छे नागरिकों के गुणों को विकसित करती है। जैसे खेलों के नियमों की पालना करना, खेलों में आपसी तालमेल बनाना, हार व जीत में संयम रखना, दूसरों के प्रति आदर व सम्मान की भावना, देशभक्ति की भावना जो लोकतांत्रिक जीवन में आवश्यक है, को विकसित करती है। 1

10. सांस्कृतिक विकास (Cultural Development):
शारीरिक शिक्षा खेल व शारीरिक गतिविधियों की प्रक्रिया है। खेलों और क्रियाकलापों के दौरान विभिन्न संस्कृतियों के खिलाड़ी आपस में मिलते हैं और एक-दूसरे के बारे में जानते हैं। वे एक-दूसरे के रीति-रिवाज़ों, परंपराओं और जीवन-शैली से परिचित होते हैं, जिससे सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा मिलता है।

11. राष्ट्रीय एकता का विकास (Development of National Integration):
शारीरिक शिक्षा एक ऐसा माध्यम है, जिससे राष्ट्रीय एकता में वृद्धि की जा सकती है। खेलें खिलाड़ियों में सांप्रदायिकता, असमानता, प्रांतवाद और भाषावाद जैसे अवगुणों को दूर करती है। इसमें खिलाड़ियों को ऐसे अनेक अवसर मिलते हैं, जब उनमें सहनशीलता, सामाजिकता, बड़ों का सत्कार और देश-भक्ति की भावना जैसे गुण विकसित होते हैं। ये गुण उनमें राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देते हैं और उनके व्यक्तित्व को विकसित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस प्रकार खेलकूद में भाग लेने से मातृत्व या राष्ट्रीयता की भावना विकसित होती है। ..

12. शारीरिक शिक्षा और सामाजिक एकता (Physical Education and Social Cohesion):
सामाजिक जीवन में कई तरह की भिन्नताएँ होती हैं; जैसे अलग भाषा, अलग संस्कृति, रंग-रूप, अमीरी-गरीबी, शक्तिशाली-कमज़ोर आदि । इन भिन्नताओं के बावजूद मनुष्य को सामाजिक इकाई में रहना पड़ता है। शारीरिक शिक्षा भिन्न-भिन्न प्रकार के लोगों को एक स्थान पर इकट्ठा करती है। उनमें एकता व एकबद्धता लाती है।खेल में धर्म, जाति, श्रेणी, वर्ग या क्षेत्र आदि के आधार पर किसी भी तरह का कोई भेदभाव नहीं किया जाता। इस तरह से शारीरिक शिक्षा कई ऐसे अवसर प्रदान करती है जिससे सामाजिक एकता को बढ़ावा मिलता है और सामाजिक व नैतिक विकास में वृद्धि होती है; जैसे एक-दूसरे से मिलकर रहना, एक-दूसरे का सम्मान करना, दूसरों की आज्ञा का पालन करना, बड़ों का सम्मान करना, नियमों का पालन करना आदि।

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक शिक्षा का अर्थ, लक्ष्य एवं उद्देश्य

प्रश्न 5.
शारीरिक शिक्षा के मुख्य सिद्धांतों का वर्णन करें। उत्तर-शारीरिक शिक्षा के मुख्य सिद्धांत निम्नलिखित हैं
(1) शारीरिक शिक्षा सामान्य शिक्षा का एक अभिन्न अंग है जो व्यक्ति के संपूर्ण विकास में सहायक होता है।

(2) शारीरिक शिक्षा के अंतर्गत ऐसे कार्यक्रमों को शामिल किया जाता है जिनमें भाग लेकर छात्र या व्यक्ति अपनी भावनाओं पर नियंत्रण करने में समर्थ हो सके। इससे अच्छे संवेगों का विकास होता है और बुरे संवेगों का निकास होता है।

(3) शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रम या गतिविधियाँ ज्ञान संबंधी तथ्यों को सीखने में योगदान देती हैं।

(4) शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रम गतिक कौशल, शारीरिक सुयोग्यता एवं पुष्टि तथा स्वास्थ्य में सुधार करने वाले होने चाहिएँ। .

(5) शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रम छात्रों की रुचियों, आवश्यकताओं एवं पर्यावरण पर आधारित होने चाहिएँ।

(6) शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रमों में छात्रों का पूर्ण चिकित्सा-परीक्षण किया जाना चाहिए, क्योंकि बिना चिकित्सा परीक्षण के किसी को यह पता नहीं चल सकता कि छात्र किस प्रकार की असमर्थता का सामना कर रहा है।

(7) शारीरिक शिक्षा का महत्त्वपूर्ण माध्यम शारीरिक क्रियाएँ हैं। जब तक ये क्रियाएँ व्यवस्थित एवं प्रभावशाली नहीं होंगी, तब तक व्यक्ति या छात्रों के सभी अंगों का पूरी तरह से विकास नहीं हो सकता।

(8) शारीरिक शिक्षा के सिद्धांत वैज्ञानिक प्रक्रिया पर आधारित हैं। इसमें क्रियाओं का चुनाव इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि इसके उद्देश्यों की पूर्ति पूर्णत: की जा सके।

(9) शारीरिक शिक्षा की गतिविधियों द्वारा छात्रों के आचरण में कई प्रकार के महत्त्वपूर्ण परिवर्तन एवं सुधार किए जा सकते हैं; जैसे नियमों की पालना करना, सहयोग देना, दूसरों की भावनाओं का सम्मान करना आदि।

(10) शारीरिक शिक्षा के बारे में जानकारी सामान्य भाषा में देनी चाहिए और यह जानकारी भरपूर होनी चाहिए।

(11) शारीरिक शिक्षा के अंतर्गत ऐसे कार्यक्रमों को भी शामिल करना चाहिए जिनमें छात्रों की स्वाभाविक इच्छाओं एवं आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके।

(12) शारीरिक क्रियाओं का चयन छात्रों की आयु, लिंग के अनुसार होना चाहिए।

प्रश्न 6.
संपूर्ण व्यक्तित्व के विकास में शारीरिक शिक्षा का क्या योगदान है? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास को अपना उद्देश्य बनाती है। संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि शारीरिक शिक्षा मनुष्य के संपूर्ण विकास में सहायक होती है। यह बात निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट होती है
1. नेतृत्व का विकास (Development of Leadership):
शारीरिक शिक्षा में नेतृत्व करने के अनेक अवसर प्राप्त होते हैं; जैसे क्रिकेट टीम में टीम का कैप्टन, निष्पक्षता, सूझ-बूझ और भावपूर्ण ढंग से खेल की रणनीति तैयार करता है। जब किसी खेल के नेता को खेल से पहले शरीर गर्माने के लिए नियुक्त किया जाता है, तब भी नेतृत्व की शिक्षा दी जाती है। कई बार प्रतिस्पर्धाओं का आयोजन करना भी नेतृत्व के विकास में सहायता करता है।

2. अनुशासन का विकास (Development of Discipline):
शारीरिक शिक्षा हमें अनुशासन का अमूल्य गुण भी सिखाती है। हमें अनुशासन में रहते हुए और खेल के नियमों का पालन करते हुए खेलना पड़ता है। इस प्रकार खेल अनुशासन की भावना में वृद्धि करते हैं। खेल में अयोग्य करार दिए जाने के डर से खिलाड़ी अनुशासन भंग नहीं करते। वे अनुशासन में रहकर ही खेलते हैं।

3. सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार का विकास (Development of Sympathetic Attitude):
खेल के दौरान यदि कोई खिलाड़ी घायल हो जाता है तो दूसरे सभी खिलाड़ी उसके प्रति हमदर्दी की भावना रखते हैं। ऐसा फुटबॉल अथवा क्रिकेट खेलते समय देखा भी जा सकता है। जब भी किसी खिलाड़ी को चोट लगती है तो सभी खिलाड़ी हमदर्दी प्रकट करते हुए उसकी सहायता के लिए दौड़ते हैं। यह गुण व्यक्तित्व निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

4. अच्छे नागरिक के गुणों का विकास (Development of Qualities of Good Citizen):
शारीरिक शिक्षा खेलकूद के माध्यम से अच्छे नागरिकों के गुणों को विकसित करती है। जैसे खेलों के नियमों की पालना करना, खेलों में आपसी तालमेल बनाना, हार व जीत में संयम रखना, दूसरों के प्रति आदर व सम्मान की भावना, देशभक्ति की भावना आदि।

5.शारीरिक विकास (Physical Development):
शारीरिक शिक्षा संबंधी क्रियाएँ शारीरिक विकास का माध्यम हैं। शारीरिक क्रियाएँ माँसपेशियों को मजबूत, रक्त का बहाव ठीक रखने, पाचन-शक्ति में बढ़ोतरी और श्वसन क्रिया को ठीक रखने में सहायक हैं। शारीरिक क्रियाओं से खिलाड़ी या व्यक्ति का शरीर मजबूत, शक्तिशाली, लचकदार और प्रभावशाली बनता है।

6. मानसिक विकास (Physical Development):
शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य का विकास भी होना चाहिए। शारीरिक और मानसिक दोनों के मिलाप से ही व्यक्ति के व्यक्तित्व में निखार आता है। जब कोई व्यक्ति शारीरिक क्रियाओं में भाग लेता है तो उसके शारीरिक विकास के साथ-साथ उसका मानसिक विकास भी होता हैं।

7. उच्च नैतिकता की शिक्षा (Lesson of High Morality):
शारीरिक शिक्षा व्यक्ति में खेल-भावना (Sportsmanship) उत्पन्न करती है। यह इस बात में भी सहायता करती है कि खिलाड़ी का स्तर नैतिक दृष्टि से ऊँचा रहे तथा वह पूरी ईमानदारी और मेहनत के साथ अपने उद्देश्य की ओर अग्रसर होता रहे। संक्षेप में, शारीरिक शिक्षा खिलाड़ी का उच्च स्तर का नैतिक विकास करने में सहायक होती है।

8. भावनात्मक संतुलन (Emotional Balance):
भावनात्मक संतुलन भी व्यक्तित्व के पूर्ण विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह शारीरिक शिक्षा और खेलों द्वारा पैदा होता है। शारीरिक शिक्षा खिलाड़ी में अनेक प्रकार से भावनात्मक संतुलन बनाए रखने में सहायक होती है। बच्चे को बताया जाता है कि वह विजय प्राप्त करने के बाद आवश्यकता से अधिक प्रसन्न न हो और हार के गम को भी । सहज भाव से ले। इस तरह भावनात्मक संतुलन एक अच्छे व्यक्तित्व के लिए अत्यावश्यक है।

9. सामाजिक विकास (Social Development):
शारीरिक शिक्षा समूचे व्यक्तित्व का विकास इस दृष्टि से भी करती है कि व्यक्ति में अनेक प्रकार के सामाजिक गुण आ जाते हैं। उदाहरणतया सहयोग, टीम भावना, उत्तरदायित्व की भावना और नेतृत्व जैसे गुण भी बच्चे में खेलों द्वारा ही उत्पन्न होते हैं। ये गुण बड़ा होने पर अधिक विकसित हो जाते हैं। फलस्वरूप बच्चा एक अच्छा नागरिक बनता है।

10. अच्छी आदतों का विकास (Development of Good Habits):
अच्छी आदतें व्यक्तित्व की कुंजी होती हैं । शारीरिक शिक्षा से खिलाड़ी.या व्यक्ति में अच्छी आदतों का विकास होता है; जैसे दूसरों का आदर व सम्मान करना, बड़ों का आदर करना, समय का पाबंद होना, नियमों का पालन करना, समय पर भोजन करना, व्यक्तिगत स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना आदि। ये सभी संपूर्ण व्यक्तित्व के विकास के लिए बहुत आवश्यक हैं।

निष्कर्ष (Conclusion)-उपर्युक्त विवरण से हम कह सकते हैं कि शारीरिक शिक्षा व्यक्तियों या बच्चों में न केवल भीतरी गुणों को ही व्यक्त करती है, अपितु यह उनके व्यक्तित्व के विकास में भी सहायक होती है। यह उनमें कई प्रकार के सामाजिक व नैतिक गुण पैदा करती है और उनमें भावनात्मक संतुलन बनाए रखती है। शारीरिक क्रियाओं द्वारा व्यक्ति में कुर्बानी, निष्पक्षता, मित्रता की भावना, सहयोग, स्व-नियंत्रण, आत्म-विश्वास और आज्ञा की पालना करने जैसे गुणों का विकास होता है।

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक शिक्षा का अर्थ, लक्ष्य एवं उद्देश्य

प्रश्न 7.
शारीरिक शिक्षा के अध्यापक के व्यक्तिगत गुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा के अध्यापक के व्यक्तिगत गुण निम्नलिखित हैं

1. व्यक्तित्व (Personality):
अच्छा व्यक्तित्व शारीरिक शिक्षा के अध्यापक का सबसे बड़ा गुण है, क्योंकि व्यक्तित्व बहुत सारे गुणों का समूह है। एक अच्छे व्यक्तित्व वाले अध्यापक में अच्छे गुण; जैसे कि सहनशीलता, पक्का इरादा, अच्छा चरित्र, सच्चाई, समझदारी, ईमानदारी, मेल-मिलाप की भावना, निष्पक्षता, धैर्य, विश्वास आदि होने चाहिएँ।

2. चरित्र (Character):
शारीरिक शिक्षा का अध्यापक एक अच्छे चरित्र वाला व्यक्ति होना चाहिए, क्योंकि उसका सीधा संबंध विद्यार्थियों से होता है। यदि उसके अपने चरित्र में कमियाँ हैं तो वह कभी भी विद्यार्थियों के चरित्र को ऊँचा नहीं उठा पाएगा।

3. नेतृत्व के गुण (Qualities of Leadership):
शारीरिक शिक्षा के अध्यापक में एक अच्छे नेता के गुण होने चाहिएँ क्योंकि उसने ही विद्यार्थियों से शारीरिक क्रियाएँ करवानी होती हैं और उनसे क्रियाएँ करवाने के लिए सहयोग लेना होता है। यह तभी संभव है जब शारीरिक शिक्षा का अध्यापक अच्छे नेतृत्व वाले गुण अपनाए।

4. दृढ़ इच्छा शक्ति (Strong Will Power):
शारीरिक शिक्षा का अध्यापक दृढ़ इच्छा शक्ति या पक्के इरादे वाला होना चाहिए। वह विद्यार्थियों में दृढ़ इच्छा शक्ति की भावना पैदा करके उन्हें मुश्किल-से-मुश्किल प्रतियोगिताओं में भी जीत प्राप्त करने के लिए प्रेरित करे।

5. अनुशासन (Discipline):
अनुशासन एक बहुत महत्त्वपूर्ण गुण है और इसकी जीवन के हर क्षेत्र में जरूरत है। शारीरिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य भी बच्चों में अनुशासन की भावना पैदा करना है। शारीरिक शिक्षा का अध्यापक बच्चों में निडरता, आत्मनिर्भरता, दुःख में धीरज रखना जैसे गुण पैदा करता है। इसलिए जरूरी है कि शारीरिक शिक्षा का अध्यापक खुद अनुशासन में रहकर बच्चों में अनुशासन की आदतों का विकास करे ताकि बच्चे एक अच्छे समाज की नींव रख सकें।

6. आत्म-विश्वास (Self-confidence):
किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए आत्म-विश्वास का होना बहुत आवश्यक है। शारीरिक शिक्षा का अध्यापक बच्चों में आत्म-विश्वास की भावना पैदा करके उन्हें निडर, बलवान और हर दुःख में धीरज रखने वाले गुण पैदा कर सकता है।

7. सहयोग (Co-operation):
शारीरिक शिक्षा के अध्यापक का सबसे बड़ा गुण सहयोग की भावना है। शारीरिक शिक्षा के अध्यापक का संबंध केवल बच्चों तक ही सीमित नहीं है बल्कि मुख्याध्यापक, बच्चों के माता-पिता और समाज से भी है।

8. सहनशीलता (Tolerance):
शारीरिक शिक्षा का अध्यापक बच्चों से अलग-अलग क्रियाएँ करवाता है। इन क्रियाओं में बच्चे बहुत सारी गलतियाँ करते हैं। उस वक्त शारीरिक शिक्षा के अध्यापक को सहनशील रहकर उनकी गलतियों पर गुस्सा न करते हुए गलतियाँ दूर करनी चाहिएँ। यह तभी हो सकता है अगर शारीरिक शिक्षा का अध्यापक सहनशीलता जैसे गुण का धनी हो।

9.त्याग की भावना (Spirit of Sacrifice):
शारीरिक शिक्षा के अध्यापक में त्याग की भावना का होना बहुत जरूरी है। त्याग की भावना से ही अध्यापक बच्चों को प्राथमिक प्रशिक्षण अच्छी तरह देकर उन्हें अच्छे खिलाड़ी बना सकता है। –

10. न्यायसंगत (Fairness):
शारीरिक शिक्षा का अध्यापक न्यायसंगत या न्यायप्रिय होना चाहिए, क्योंकि अध्यापक को न केवल शारीरिक क्रियाएँ ही करवानी होती हैं बल्कि अलग-अलग टीमों में खिलाड़ियों का चुनाव करने जैसे निर्णय भी लेने होते हैं। न्यायप्रिय और निष्पक्ष रहने वाला अध्यापक ही बच्चों से सम्मान प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 8.
शारीरिक शिक्षा के बारे में क्या-क्या गलत धारणाएँ या भ्रांतियाँ प्रचलित हैं? वर्णन करें।
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा, शिक्षा का वह अभिन्न अंग है, जो खेलकूद तथा अन्य शारीरिक क्रियाओं के माध्यम से व्यक्ति में एक चुनी हुई दिशा में परिवर्तन लाने का प्रयास करता है। इससे केवल बुद्धि तथा शरीर का ही विकास नहीं होता, बल्कि यह व्यक्ति के स्वभाव, चरित्र एवं आदतों के निर्माण में भी सहायक होती है। अत:शारीरिक शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति के संपूर्ण (शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं संवेगात्मक आदि) व्यक्तित्व का विकास होता है।

शारीरिक शिक्षा के बारे में गलत धारणाएँ (Misconception about Physical Education):
शारीरिक शिक्षा के बारे में लोगों की अलग-अलग धारणाएँ हैं। कुछ लोग शारीरिक शिक्षा को क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल, एथलेटिक्स आदि समझ लेते हैं। इसके कारण इस विषय संबंधी गलत धारणाएँ प्रचलित हो जाती हैं। इस विषय संबंधी कुछ भ्रांतियाँ या गलत धारणाएँ निम्नलिखित हैं

(1) यह एक आम भ्रांति है कि शारीरिक प्रशिक्षण और शारीरिक शिक्षा एक ही वस्तु है। परंतु ये दोनों भिन्न शब्द हैं। प्रशिक्षण वह कार्यक्रम है जो सेना में सैनिकों को शक्ति या शौर्य प्रदर्शन हेतु दिया जाता है। दूसरी ओर शारीरिक शिक्षा का अर्थ है-अभिव्यक्ति, आत्म-अनुशासन, कल्पनाशील विचार, आयोजन में भाग लेना आदि।

(2) लोगों की यह आम धारणा है कि शारीरिक शिक्षा के द्वारा शरीर को ही स्वस्थ बनाया जा सकता है। शारीरिक शिक्षा का संबंध केवल शारीरिक स्फूर्ति को बनाए रखने वाली शारीरिक क्रियाओं अथवा व्यायाम से ही है। अत: कोई भी इस प्रकार की क्रिया जिसका उद्देश्य व्यायाम करने से या शरीर को स्फूर्ति प्रदान करना हो, शारीरिक शिक्षा के अंतर्गत मानी जाती है। परन्तु
यह धारणा गलत है।

(3) कुछ लोग मानते हैं कि शारीरिक शिक्षा द्वारा वे अपने बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल नहीं कर सकते। उनका मानना है कि यह समय एवं पैसे की बर्बादी है जो कि ग़लत धारणा है। वास्तव में शारीरिक शिक्षा से बच्चों को आगे बढ़ने की शक्ति एवं प्रेरणा मिलती है। यह उनका पूर्ण रूप से शारीरिक विकास करने में सहायक होती है जिसके कारण वे सभी कार्य अधिक कुशलता एवं क्षमता से करने में समर्थ होते हैं।

(4) कुछ लोग यह सोचते हैं कि शारीरिक शिक्षा व्यक्ति या खिलाड़ी के लिए कोई कैरियर या व्यवसाय नहीं है। परन्तु यह गलत है, क्योंकि वर्तमान में विभिन्न सरकारी विभागों में खिलाड़ियों के लिए नौकरियों में आरक्षण दिया जा रहा है। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में खिलाड़ियों के चयन की ओर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।

(5) कुछ लोगों की धारणा है कि शारीरिक शिक्षा केवल खेल है। खेल के लिए किसी प्रकार के निर्देश की आवश्यकता नहीं होती और न ही निरीक्षण आवश्यक होता है परन्तु यह एक नकारात्मक अवधारणा है।

(6) कुछ लोग शारीरिक शिक्षा को पी०टी० कहते हैं। वास्तव में पी०टी० अंग्रेजी में फिजिकल ट्रेनिंग शब्दों के प्रथम दो अक्षर – हैं। ये शब्द सेना में प्रयोग किए जाते हैं जो प्रात:काल सैनिकों को स्वस्थ रखने के लिए कराए जाते हैं। शारीरिक शिक्षा को पूर्ण से पी०टी० कहना गलत है।

(7) कुछ लोग शारीरिक शिक्षा को सामूहिक ड्रिल कहते हैं परन्तु सामूहिक ड्रिल और शारीरिक शिक्षा में बहुत अंतर है। शारीरिक शिक्षा से सर्वांगीण विकास होता है और सामूहिक ड्रिल से केवल शारीरिक विकास होता है। शारीरिक शिक्षा में स्वतंत्रता व विविधता रहने से वातावरण आनंददायी बनता है और सामूहिक ड्रिल में पुनरावृत्ति अधिक होने से थकान और उदासीन वृत्ति आ जाती है।

(8) कुछ लोग जिम्नास्टिक को शारीरिक शिक्षा कहते हैं। जिम्नास्टिक के द्वारा तो केवल शरीर को अधिक लचीला बनाया जाता है। परन्तु शारीरिक शिक्षा संपूर्ण विकास का पहलू है।

(9) कुछ लोगों की धारणा है कि शारीरिक शिक्षा संबंधी गतिविधियों से विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता फैलती है परन्तु यह गलत धारणा है। एक खिलाड़ी खेल गतिविधियों से अनेक आवश्यक नियमों की जानकारी प्राप्त करता है। एक अच्छा खिलाड़ी सदा अनुशासित ढंग से व्यवहार करता है और खेलों के नियमों के अनुसार खेलता है। वह न केवल खेल के मैदान में नियमों का अनुसरण करता है बल्कि अपने वास्तविक जीवन में भी नियमों का अनुसरण करता है।

(10) कुछ लोग यह सोचते हैं कि शारीरिक शिक्षा का अर्थ केवल खेलों में भाग लेना है। परन्तु वास्तव में शारीरिक गतिविधियों में भाग लेकर व्यक्ति या खिलाड़ी शारीरिक रूप से मजबूत एवं सुडौल बनता है और इन गतिविधियों का उसके स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

(11) कुछ लोगों की धारणा है कि वीडियो गेम शारीरिक शिक्षा की गतिविधि है जिससे शारीरिक विकास होता है परन्तु यह गलत धारणा है। वीडियो गेम से मनोरंजन तो हो सकता है परन्तु शारीरिक विकास नहीं।

(12) कुछ लोगों की धारणा है कि शारीरिक शिक्षा की गतिविधियों में भाग केवल सक्षम व धनी व्यक्ति/खिलाड़ी ही लेते हैं, परन्तु यह गलत धारणा है। खेल गतिविधियों में कोई भी भाग ले सकता है। इनमें अमीरी-गरीबी आदि प्रवृत्तियों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। सभी अपना, अपने माता-पिता और देश का नाम रोशन समान रूप से करते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न [Short Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
शारीरिक शिक्षा की परम्परागत अवधारणा को आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा की अवधारणा व्यक्तियों के लिए कोई नई नहीं है। वास्तव में इसकी जड़ें बहुत प्राचीन हैं। प्राचीन समय में विचारों के आदान-प्रदान का सर्वव्यापी माध्यम शारीरिक गतिविधियों एवं शारीरिक अंगों का हाव-भाव था। प्राचीन समय में दौड़ने, कूदने, छलांग लगाने, युद्ध करने तथा शिकार करने आदि को ही शारीरिक शिक्षा का अभिन्न अंग माना जाता है। उस समय मानव इन सभी क्रियाओं का प्रयोग अपनी रक्षा करने और आजीविका कमाने के लिए करता है। पुरातन समय में कुशल, योद्धा एवं योग्य नागरिक बनाने के लिए जो शारीरिक क्रियाएँ करवाई जाती थीं, वे शारीरिक प्रशिक्षण कहलाती थीं। इन गतिविधियों या क्रियाओं का मुख्य उद्देश्य शारीरिक विकास था अर्थात् व्यक्ति को शारीरिक रूप से मजबूत एवं शक्तिशाली बनाना था।

प्रश्न 2.
शारीरिक शिक्षा की आधुनिक अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा की आधुनिक अवधारणा के अंतर्गत शारीरिक शिक्षा न केवल शारीरिक विकास करती है बल्कि यह मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक विकास भी करती है अर्थात् इसका उद्देश्य व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करना है। इस अवधारणा के अनुसार शारीरिक शिक्षा का मुख्य लक्ष्य शिक्षा है न कि स्वास्थ्य, शारीरिक क्रियाएँ या प्रशिक्षण। शिक्षाशास्त्रियों के अनुसार यह शिक्षा का ही एक महत्त्वपूर्ण एवं अभिन्न अंग है क्योंकि शारीरिक क्रियाओं व खेलों द्वारा बच्चों का सर्वांगीण विकास किया जाता है। चार्ल्स ए० बूचर के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा समस्त शिक्षा प्रणाली का ही एक आधारभूत अंग है।”

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक शिक्षा का अर्थ, लक्ष्य एवं उद्देश्य

प्रश्न 3.
शारीरिक शिक्षा समाजीकरण की प्रक्रिया को किस प्रकार से प्रभावित करती है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा समाजीकरण का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। व्यक्ति किसी भी खेल में खेल के नियमों का पालन करते हुए तथा अपनी टीम के हित को सामने रखते हुए भाग लेता है। वह अपनी टीम को पूरा सहयोग देता है। वह हार-जीत को समान समझता है। उसमें अनेक सामाजिक गुण; जैसे सहनशीलता, धैर्यता, अनुशासन, सहयोग आदि विकसित होते हैं। इतना ही नहीं, प्रत्येक पीढ़ी कुछ-न-कुछ खास परंपराएँ व नियम भावी पीढ़ी के लिए छोड़ जाती है जिससे विद्यार्थियों को शारीरिक शिक्षा के माध्यम से परिचित करवाया जाता है। इस प्रकार शारीरिक शिक्षा व्यक्ति के समाजीकरण में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

प्रश्न 4.
शारीरिक शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु एक शिक्षक क्या भूमिका निभा सकता है?
उत्तर:
वर्तमान में स्कूल ही एकमात्र ऐसी प्राथमिक संस्था है, जहाँ शारीरिक शिक्षा प्रदान की जाती है। विद्यार्थी स्कूलों में स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान शिक्षकों से सीखते हैं। मुख्याध्यापक व शिक्षक-वर्ग विद्यार्थियों के लिए शारीरिक शिक्षा का कार्यक्रम बनाकर उन्हें शिक्षा देते हैं जिनसे विद्यार्थी यह जान पाते हैं कि किन तरीकों और साधनों से वे अपने शारीरिक संस्थानों व स्वास्थ्य को सुचारु व अच्छा बनाए रख सकते हैं। शिक्षकों द्वारा ही उनमें अपने शरीर व स्वास्थ्य के प्रति एक स्वस्थ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित किया जा सकता है और उनको अच्छे स्वास्थ्य हेतु प्रेरित किया जा सकता है।

प्रश्न 5.
शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य क्या हैं?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य निम्नलिखित हैं
(1) शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को शारीरिक तौर पर स्वस्थ बनाना अर्थात् संपूर्ण शारीरिक विकास करना है ताकि वह – अपने जीवन को सफल बना सके।

(2) शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास भी बहुत आवश्यक होता है। अतः शारीरिक शिक्षा मानसिक विकास में भी सहायक होती है। बुद्धि के बल पर हम बड़ी-से-बड़ी समस्या का समाधान कर सकते हैं।

(3) सामाजिक, नैतिक, चारित्रिक एवं गत्यात्मक विकास भी शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य हैं। इन उद्देश्यों की पूर्ति होने पर हम अपने लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं और समाज व देश के अच्छे नागरिक बनकर देश की उन्नति में भागीदार बन सकते हैं।

प्रश्न 6.
“आधुनिक शिक्षा को पूरा करने के लिए शारीरिक शिक्षा की आवश्यकता है।”इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्राचीनकाल में विद्या का प्रसार बहुत कम था। उस समय पिता ही पुत्र को पढ़ा देता था या शिक्षा आचार्य दे दिया करते थे। परंतु वर्तमान युग में प्रत्येक व्यक्ति के पढ़े-लिखे होने की आवश्यकता है। बच्चा विभिन्न क्रियाओं में भाग लेकर अपना शारीरिक विकास करता है। इसलिए बच्चों को खेलों में भाग लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए। शारीरिक शिक्षा केवल शारीरिक निर्माण तक ही सीमित नहीं है, वास्तव में यह बच्चे का मानसिक, भावनात्मक, नैतिक और सामाजिक पक्ष का भी विकास करती है। आधुनिक शिक्षा को पूरा करने के लिए शारीरिक शिक्षा की आवश्यकता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।

प्रश्न 7.
“शारीरिक शिक्षा बढ़ रहे स्कूली दायित्व को पूरा करती है।” इस कथन की व्याख्या करें।
उत्तर:
प्राचीनकाल में शिक्षा का प्रसार बहुत कम था। बच्चा प्राथमिक शिक्षा अपने माता-पिता और भाई-बहनों से प्राप्त करता था। स्कूलों तथा कॉलेजों का प्रचलन बिल्कुल नहीं था। परंतु आधुनिक युग में शिक्षा का क्षेत्र बहुत बढ़ गया है। जगह-जगह पर स्कूल-कॉलेज खुल गए हैं। आज के युग में बच्चे को छोटी आयु में ही स्कूल भेज दिया जाता है। घर में बच्चा अनुसरण करके अथवा गलतियाँ करके बहुत कुछ सीख जाता है। अभिभावक व स्कूल के अध्यापक उसकी गलतियों में सुधार करते हैं । बच्चा सहयोग और सहायता करना सीख जाता है। पाठ्यक्रम में शारीरिक शिक्षा का मिश्रण सीखने की क्रिया को ओर आसान और रुचिपूर्ण बनाता है। परिणामस्वरूप शारीरिक शिक्षा बढ़ रहे स्कूली दायित्व को पूरा करती है।

प्रश्न 8.
शारीरिक शिक्षा, स्वस्थ जीवन व्यतीत करने में कैसे सहायता करती है?
उत्तर:
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसे समाज के साथ रहना पड़ता है। यदि व्यक्ति को सफल जीवन व्यतीत करना है तो उसे स्वयं को पूर्ण रूप से स्वस्थ रखना होगा। इस कार्य में शारीरिक शिक्षा उसको महत्त्वपूर्ण सहायता प्रदान करती है। शारीरिक शिक्षा व्यक्ति के प्रत्येक पहलू को प्रभावित करती है और उन्हें विकसित करने में सहायक होती है। शारीरिक शिक्षा कई ऐसे अवसर प्रदान करती है जिससे व्यक्ति में अनेक सामाजिक एवं नैतिक गुणों का विकास होता है। इसके माध्यम से वह अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहता है, एक-दूसरे को सहायता करता है, दूसरों की भावनाओं की कदर करता है और मनोविकारों व बुरी आदतों से दूर रहता है। इस प्रकार शारीरिक शिक्षा, स्वस्थ जीवन व्यतीत करने में सहायता करती है।

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक शिक्षा का अर्थ, लक्ष्य एवं उद्देश्य

प्रश्न 9.
शारीरिक शिक्षा स्वास्थ्य के लिए कैसे लाभदायक है?
उत्तर:
अच्छा स्वास्थ्य अच्छी जलवायु की उपज नहीं, बल्कि यह अच्छी खुराक, व्यक्तिगत स्वच्छता, उचित आराम, अनावश्यक ज़्यादा कसरत करना, परन्तु आवश्यक खुराक न खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। जो व्यक्ति खेलों में भाग लेते हैं, उनका स्वास्थ्य ठीक रहता है। खेलों में भाग लेने से शरीर की सारी शारीरिक प्रणालियाँ सही ढंग से काम करने लग जाती हैं। ये प्रणालियाँ शरीर में हुई थोड़ी-सी कमी या बढ़ोतरी को भी सहन कर लेती हैं। इसलिए जरूरी है कि प्रत्येक व्यक्ति खेलों में अवश्य भाग ले।

प्रश्न 10.
शारीरिक शिक्षा राष्ट्रीय एकता में कैसे सहायक होती है?।
असमानता, प्रांतवाद और भाषावाद जैसे अवगुणों को दूर करती हैं। इसमें खिलाड़ियों को ऐसे अनेक अवसर मिलते हैं, जब उनमें सहनशीलता, सामाजिकता, बड़ों का सत्कार, देश-भक्ति और राष्ट्रीय आचरण जैसे गुण विकसित होते हैं। ये गुण उनमें राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देते हैं और उनके व्यक्तित्व को विकसित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अतः खेलकूद में भाग लेने से मातृत्व या राष्ट्रीयता की भावना विकसित होती है।

प्रश्न 11.
शारीरिक शिक्षा घरेलू तथा पारिवारिक जीवन में क्या योगदान देती है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा घरेलू तथा पारिवारिक जीवन में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है। शारीरिक शिक्षा व्यक्ति को न केवल अपने स्वास्थ्य को ठीक रखने की कुशलता प्रदान करती है, बल्कि यह उसे अपने परिवार एवं समाज के स्वास्थ्य को ठीक रखने में भी सहायता करती है। किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य जितना अच्छा होगा, उसका पारिवारिक जीवन भी उतना ही अच्छा होगा। शारीरिक शिक्षा अनेक सामाजिक व नैतिक गुणों जैसे सहनशीलता, धैर्यता, अनुशासन, सहयोग, बंधुत्व, आत्मविश्वास, अच्छा आचरण आदि को विकसित करने में सहायक होती है। शारीरिक शिक्षा अवसाद, चिन्ता, दबाव व तनाव को कम करती है। यह अनेक रोगों से बचाने में सहायक होती है, क्योंकि इसकी गतिविधियों द्वारा रोग निवारक क्षमता बढ़ती है। ये सभी विशेषताएँ घरेलू तथा पारिवारिक जीवन में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं।

प्रश्न 12.
खाली समय का सदुपयोग किस प्रकार किया जा सकता है? संक्षेप में लिखें। अथवा “शारीरिक शिक्षा खाली समय का सदुपयोग करना सिखाती है।” समझाइए।
उत्तर:
किसी ने ठीक ही कहा है कि “खाली दिमाग शैतान का घर होता है।” (An idle brain is a devil’s workshop.) यह आमतौर पर देखा जाता है कि खाली या बेकार व्यक्ति को हमेशा शरारतें ही सूझती हैं। कभी-कभी तो वह इस प्रकार के अनैतिक कार्य करने लग जाता है, जिनको सामाजिक दृष्टि से उचित नहीं समझा जा सकता। खाली या बेकार समय का सदुपयोग न करके उसका दिमाग बुराइयों में फंस जाता है। शारीरिक शिक्षा में अनेक शारीरिक क्रियाएँ शामिल होती हैं। इन क्रियाओं में भाग लेकर हम अपने समय का सदुपयोग कर सकते हैं। अतः शारीरिक शिक्षा व्यक्ति को खाली समय का सदुपयोग करना सिखाती है।

खाली समय का प्रयोग यदि खेल के मैदान में खेलें खेलकर किया जाए तो व्यक्ति के हाथ से कुछ नहीं जाता, बल्कि वह कुछ प्राप्त ही करता है। खेल का मैदान जहाँ खाली समय का सदुपयोग करने का उत्तम साधन है, वहीं व्यक्ति की अच्छी सेहत बनाए रखने का भी उत्तम साधन है। इसके अतिरिक्त व्यक्ति को एक अच्छे नागरिक के गुण भी सिखा देता है। इसलिए हम दावे के साथ कह सकते हैं कि खाली समय का सदुपयोग करने के लिए खेल का मैदान ही योग्य साधन है।

प्रश्न 13.
शारीरिक शिक्षा के मुख्य क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा का क्षेत्र बहुत विशाल है। इसके मुख्य क्षेत्रों का वर्णन निम्नलिखित है
1. शोधक क्रियाएँ-इन क्रियाओं द्वारा विद्यार्थियों के शारीरिक अंगों की कमजोरियों में सुधार किया जा सकता है। प्रायः ये कमज़ोरियाँ माँसपेशियों के अवगुणों के कारण होती हैं।

2. खेल-कूद क्रियाएँ-इन क्रियाओं में एथलेटिक्स, टेबल टेनिस, हॉकी, फुटबॉल, बास्केटबॉल, तैरना और किश्ती चलाना आदि शामिल हैं।

3. मौलिक क्रियाएँ-इस क्षेत्र में शरीर का संतुलन ठीक रखने के लिए चलना-फिरना, भागना, चढ़ना और उतरना इत्यादि क्रियाएँ शामिल हैं।

4. लयबद्ध क्रियाएँ-नाचना और गाना मनुष्य का स्वभाव है। इस स्वभाव से मनुष्य अपनी खुशी और पीड़ा को प्रकट करता है। शारीरिक शिक्षा में लोक-नाच और ताल-भरी क्रियाओं का विशेष स्थान है। टिपरी, डम्बल, लोक-नाच, लेजियम, उछलना और जिम्नास्टिक्स जैसी क्रियाएँ शामिल हैं।

5. यौगिक क्रियाएँ-यौगिक क्रियाएँ केवल खेलों और बीमारी के उपचार के लिए ही लाभदायक नहीं हैं, बल्कि इन क्रियाओं द्वारा शरीर और आत्मा का निर्माण भी किया जा सकता है।

6. मनोरंजन-शारीरिक शिक्षा में मनोरंजन का विशेष स्थान है। विकसित देशों में शारीरिक शिक्षा के अध्यापक को मनोरंजन की शिक्षा अवश्य दी जाती है। इसमें नाच, नाटक, पहाड़ों की सैर, कैंप लगाने, लंबी सैर, मछली पकड़ना, बागवानी और कुदरत के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है। इन क्रियाओं से व्यक्ति का विकास आसानी से हो सकता है।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न [Very Short Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
शारीरिक शिक्षा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा, शिक्षा का वह अभिन्न अंग है, जो खेलकूद तथा अन्य शारीरिक क्रियाओं के माध्यम से, व्यक्तियों में एक चुनी हुई दिशा में, परिवर्तन लाने का प्रयास करता है। इससे केवल बुद्धि तथा शरीर का ही विकास नहीं होता, बल्कि यह व्यक्ति के स्वभाव, चरित्र एवं आदतों के निर्माण में भी सहायक होती है।शारीरिक शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति के संपूर्ण (शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक) व्यक्तित्व का विकास होता है।

प्रश्न 2.
शारीरिक शिक्षा को परिभाषित कीजिए। अथवा . शारीरिक शिक्षा की कोई दो परिभाषाएँ लिखें।
उत्तर:
1. ए०आर० वेमैन के मतानुसार, “शारीरिक शिक्षा, शिक्षा का वह भाग है जिसका संबंध शारीरिक गतिविधियों द्वारा व्यक्ति के संपूर्ण विकास एवं प्रशिक्षण से है।”
2. आर० कैसिडी के अनुसार, “शारीरिक क्रियाओं पर केंद्रित अनुभवों द्वारा जो परिवर्तन मानव में आते हैं, वे ही शारीरिक शिक्षा कहलाते हैं।”

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक शिक्षा का अर्थ, लक्ष्य एवं उद्देश्य

प्रश्न 3.
प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री जे०एफ०विलियम्स के अनुसार शारीरिक शिक्षा क्या है?
उत्तर:
जे० एफ० विलियम्स के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य एक प्रकार का कुशल नेतृत्व तथा पर्याप्त समय प्रदान करना है, जिससे व्यक्तियों या संगठनों को इसमें भाग लेने के लिए पूरे-पूरे अवसर मिल सकें, जो शारीरिक रूप से आनंददायक, मानसिक दृष्टि से चुस्त तथा सामाजिक रूप से निपुण हों।”

प्रश्न 4.
शारीरिक शिक्षा का प्रमुख लक्ष्य क्या है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा का प्रमुख लक्ष्य विद्यार्थी को इस प्रकार तैयार करना है कि वह एक सफल एवं स्वस्थ नागरिक बनकर अपने परिवार, समाज व राष्ट्र की समस्याओं का समाधान करने की क्षमता या योग्यता उत्पन्न कर सके और समाज का महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनकर सफलता से जीवनयापन करते हुए जीवन का पूरा आनंद उठा सके। .

प्रश्न 5.
सैन्ट्रल मिनिस्ट्री ऑफ एजुकेशन के अनुसार शारीरिक शिक्षा का क्या लक्ष्य है?
उत्तर:
सैन्ट्रल मिनिस्ट्री ऑफ एजुकेशन के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा को प्रत्येक बच्चे को शारीरिक, मानसिक एवं भावात्मक रूप से स्वस्थ बनाना चाहिए और उसमें ऐसे व्यक्तिगत एवं सामाजिक गुणों का विकास करना चाहिए ताकि वह प्रसन्नता एवं खुशी से रह सके और एक अच्छा नागरिक बन सके।”

प्रश्न 6.
राष्ट्रीय योजना के अनुसार शारीरिक शिक्षा किसे कहते हैं?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा वह शिक्षा है जो बच्चों के सम्पूर्ण व्यक्तित्व तथा उसकी शारीरिक प्रक्रियाओं द्वारा उसके शरीर, मन और आत्मा के पूर्ण-रूपेण विकास हेतु दी जाती है। अतः शारीरिक शिक्षा केवल शरीर की शिक्षा ही नहीं अपितु संपूर्ण शरीर का ज्ञान है।

प्रश्न 7.
हमें बेकार या खाली समय का सदुपयोग कैसे करना चाहिए?
उत्तर:
हमें बेकार या खाली समय का सदुपयोग खेलें खेलकर करना चाहिए। खेलें खेलने से जहाँ बेकार समय का सदुपयोग हो जाता है, वहीं खेलों द्वारा शारीरिक रूप से अभ्यस्त होकर शरीर में सुंदरता, शक्ति और चुस्ती-स्फूर्ति आ जाती है। शरीर की कार्यकुशलता बढ़ जाती है और शरीर नीरोग रहता है।

प्रश्न 8.
बेकार व्यक्ति का मन शैतान का घर क्यों कहलाता है?
उत्तर:
बेकार व्यक्ति आमतौर पर बुरे व्यक्तियों की संगत में बैठते हैं, जिसके फलस्वरूप वे कई प्रकार की समाज विरोधी बुराइयों में फंस जाते हैं। बेकार व्यक्ति को शरारतें ही दिखाई देती हैं । चोरी, हेरा-फेरी और नशे की आदत बेकार व्यक्तियों में अधिकतर पाई जाती है। बेकार व्यक्ति लोगों का विश्वास गंवा बैठता है। इसलिए बेकार व्यक्ति का मन शैतान का घर कहलाता है।

प्रश्न 9.
शारीरिक शिक्षा के कोई दो सिद्धांत बताएँ।
उत्तर:
(1) शारीरिक शिक्षा सामान्य शिक्षा का एक अभिन्न अंग है जो व्यक्ति के संपूर्ण विकास में सहायक होता है।
(2) शारीरिक शिक्षा के अंतर्गत ऐसे कार्यक्रमों को शामिल किया जाता है जिनमें भाग लेकर छात्र या व्यक्ति अपनी भावनाओं पर नियंत्रण करने लगे। इससे अच्छे संवेगों का विकास होता है और बुरे संवेगों का निकास होता है।

प्रश्न 10.
मानसिक विकास में शारीरिक शिक्षा या क्रियाओं का क्या योगदान है?
उत्तर:
एक कथन के अनुसार, “स्वस्थ शरीर में स्वस्थ दिमाग का वास होता है।” भाव यह है कि शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य का विकास भी होना चाहिए। शारीरिक और मानसिक दोनों के मिलाप से ही व्यक्ति के व्यक्तित्व में निखार आता है। जब कोई व्यक्ति शारीरिक क्रियाओं में भाग लेता है तो उसके शारीरिक विकास के साथ-साथ उसका मानसिक विकास भी होता है। शारीरिक क्रियाओं से व्यक्ति की कल्पना-शक्ति, तर्क-शक्ति एवं स्मरण-शक्ति बढ़ती है।

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक शिक्षा का अर्थ, लक्ष्य एवं उद्देश्य

प्रश्न 11.
शारीरिक शिक्षा का ज्ञान व्यक्ति को अच्छा कार्यक्रम बनाने में कैसे सहायता करता है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा व्यक्ति को शरीर से संबंधित विभिन्न गतिविधियों और उसे करने की सही तकनीकों की जानकारी प्रदान करती है। शारीरिक शिक्षा व्यक्ति को उसके विभिन्न पक्षों; जैसे शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक आदि का ज्ञान प्रदान करती है। इसलिए शारीरिक शिक्षा का ज्ञान व्यक्ति को अच्छा कार्यक्रम बनाने में सहायता करता है।

प्रश्न 12.
शारीरिक शिक्षा सांस्कृतिक विकास को कैसे बढ़ावा देती है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा खेल व शारीरिक गतिविधियों की प्रक्रिया है। खेलों और शारीरिक क्रियाकलापों के दौरान विभिन्न संस्कृतियों के खिलाड़ी आपस में मिलते हैं और एक-दूसरे के बारे में जानते हैं। वे एक-दूसरे के रीति-रिवाजों, परंपराओं और जीवन-शैली से परिचित होते हैं, जिससे सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा मिलता है।

प्रश्न 13.
शारीरिक शिक्षा नेतृत्व का विकास कैसे करती है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में नेतृत्व करने के अनेक अवसर होते हैं। जब किसी खिलाड़ी को शरीर गर्माने के लिए नियुक्त किया जाता है तो उस समय भी नेतृत्व की शिक्षा दी जाती है। कई बार प्रतियोगिताओं का आयोजन करना भी नेतृत्व के गुणों के विकास में सहायता करता है। उदाहरणतया, हॉकी की टीम के कैप्टन को निष्पक्षता और समझदारी से खेलना पड़ता है। …

प्रश्न 14.
शारीरिक शिक्षा अनुशासन की भावना कैसे विकसित करती है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा हमें अनुशासन की अमूल्य भावना सिखाती है। हमें अनुशासन में रहते हुए और खेल के नियमों का पालन करते हुए खेलना पड़ता है। इस प्रकार खेल अनुशासन की भावना में वृद्धि करते हैं। खेल में अयोग्य करार दिए जाने के डर से खिलाड़ी अनुशासन भंग नहीं करते। वे अनुशासन में रहकर ही खेलते हैं।

प्रश्न 15.
चार्ल्स बूचर के अनुसार शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य बताएँ।
उत्तर:
चार्ल्स बूचर ने अपनी पुस्तक ‘शारीरिक शिक्षा की बुनियाद’ में शारीरिक शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य बताए हैं
(1) शारीरिक विकास,
(2) गतिज विकास,
(3) मानसिक विकास,
(4) मानवीय संबंधों का विकास।

प्रश्न 16.
जे० बी० नैश के अनुसार शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य बताएँ।
उत्तर:
जे० बी० नैश के अनुसार शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य निम्नलिखित हैं
(1) शारीरिक अंगों का विकास,
(2) नाड़ी-माँसपेशियों संबंधी विकास,
(3) अर्थ समझने की योग्यता का विकास,
(4) भावनात्मक विकास।

प्रश्न 17.
इरविन के अनुसार शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य बताएँ।
उत्तर:
इरविन के अनुसार शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
(1) शारीरिक विकास,
(2) भावनात्मक विकास,
(3) सामाजिक विकास,
(4) मानसिक विकास,
(5) मनोरंजक गतिविधियों में निपुणता या मनोरंजक विकास।

प्रश्न 18.
लास्की के अनुसार शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य बताएँ।
उत्तर:
लास्की के अनुसार शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य निम्नलिखित हैं
(1) शारीरिक विकास,
(2) नाड़ी-माँसपेशियों के तालमेल में विकास,
(3) भावनात्मक विकास,
(4) सामाजिक विकास,
(5) बौद्धिक विकास। .

प्रश्न 19.
शारीरिक शिक्षा भावनात्मक संतुलन में किस प्रकार सहायक है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा अनेक प्रकार से भावनात्मक संतुलन बनाए रखने में सहायक होती है। बच्चे को बताया जाता है कि वह विजय प्राप्त करने के बाद आवश्यकता से अधिक प्रसन्न न हो और हार के गम को भी सहज भाव से ले। शारीरिक शिक्षा व्यक्ति की अपने भावों को नियंत्रित करने में सहायता करती है।

प्रश्न 20.
खेलों या शारीरिक शिक्षा द्वारा व्यक्ति का सामाजिक व नैतिक विकास कैसे होता है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा भिन्न-भिन्न प्रकार के लोगों को एक स्थान पर इकट्ठा करती है। उनमें एकता व एकबद्धता लाती है। खेल में धर्म, जाति, श्रेणी, वर्ग या क्षेत्र आदि के आधार पर किसी भी तरह का कोई भेदभाव नहीं किया जाता। इस तरह से शारीरिक शिक्षा कई ऐसे अवसर प्रदान करती है जिससे सामाजिक एकता को बढ़ावा मिलता है और सामाजिक व नैतिक विकास में वृद्धि होती है; जैसे एक-दूसरे से मिलकर रहना, एक-दूसरे का सम्मान करना, दूसरों की आज्ञा का पालन करना, बड़ों का सम्मान करना, नियमों का पालन करना आदि।

HBSE 9th Class Physical Education शारीरिक शिक्षा का अर्थ, लक्ष्य एवं उद्देश्य Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न [Objective Type Questions]

प्रश्न 1.
जे०बी० नैश के अनुसार शारीरिक शिक्षा को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
जे० बी० नैश के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा, शिक्षा के बड़े क्षेत्र का वह अंग है जो बड़ी माँसपेशियों से होने वाले कार्य तथा उनसे संबंधित प्रतिक्रियाओं से संबंध रखता है।”

प्रश्न 2.
आर० कैसिडी के अनुसार शारीरिक शिक्षा को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
आर० कैसिडी के अनुसार, “शारीरिक क्रियाओं पर केंद्रित अनुभवों द्वारा जो परिवर्तन मानव में आते हैं, वे ही शारीरिक शिक्षा कहलाते हैं।”

प्रश्न 3.
ए० आर० वेमैन के अनुसार शारीरिक शिक्षा को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
ए० आर० वेमैन के मतानुसार, “शारीरिक शिक्षा, शिक्षा का वह भाग है जिसका संबंध शारीरिक गतिविधियों द्वारा व्यक्ति के संपूर्ण विकास एवं प्रशिक्षण से है।”

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक शिक्षा का अर्थ, लक्ष्य एवं उद्देश्य

प्रश्न 4.
“शारीरिक शिक्षा शरीर का एक मजबूत ढाँचा है जो मस्तिष्क के कार्य को निश्चित एवं आसान करता है।” यह कथन किसका है?.
उत्तर:
यह कथन रूसो का है।

प्रश्न 5.
“शारीरिक क्रियाओं पर केंद्रित अनुभवों द्वारा जो परिवर्तन मानव में आते हैं, वे ही शारीरिक शिक्षा कहलाते हैं?” यह कथन किसने कहा? .. .
उत्तर:
यह कथन आर० कैसिडी ने कहा।

प्रश्न 6.
मध्यकाल में शारीरिक शिक्षा कहाँ दी जाती थी?
उत्तर:
मध्यकाल में शारीरिक शिक्षा गुरुकुल में दी जाती थी।

प्रश्न 7.
शारीरिक शिक्षा किन अनुभवों का अध्ययन है? उ
त्तर:
शारीरिक शिक्षा उन सभी शारीरिक अनुभवों का अध्ययन है, जो शारीरिक अभ्यास द्वारा प्रकट होते हैं।

प्रश्न 8.
सामाजिक रूप से शारीरिक क्रियाएँ मनुष्य को किस प्रकार का बनाती हैं?
उत्तर:
सामाजिक रूप से शारीरिक क्रियाएँ मनुष्य को सक्षम बनाती हैं।

प्रश्न 9.
शारीरिक शिक्षा को पहले कौन-कौन-से नामों से जाना जाता था?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा को शारीरिक सभ्यता, शारीरिक प्रशिक्षण, खेल और कोचिंग आदि नामों से जाना जाता था।

प्रश्न 10.
शारीरिक रूप से शारीरिक क्रियाएँ मनुष्य को किस प्रकार का बनाती हैं?
उत्तर:
शारीरिक रूप से शारीरिक क्रियाएँ मनुष्य को स्वस्थ एवं मजबूत बनाती हैं।

प्रश्न 11.
किस प्रकार की शिक्षा मानसिक विकास के लिए उचित वातावरण प्रदान करती है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा मानसिक विकास के लिए उचित वातावरण प्रदान करती है।

प्रश्न 12.
शारीरिक शिक्षा व मनोरंजन के केन्द्रीय सलाहाकार बोर्ड की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा व मनोरंजन के केन्द्रीय सलाहाकार बोर्ड की स्थापना सन् 1950 में हुई।

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक शिक्षा का अर्थ, लक्ष्य एवं उद्देश्य

प्रश्न 13.
“मजबूत शारीरिक नींव के बिना कोई राष्ट्र महान् नहीं बन सकता।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
यह कथन डॉ० राधाकृष्णन का है।

प्रश्न 14.
शारीरिक शिक्षा व्यक्ति के शरीर को कैसा बनाती है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा व्यक्ति के शरीर को मजबूत एवं तंदुरुस्त बनाती है।

प्रश्न 15.
सफल जीवन व्यतीत करने के लिए किसकी सबसे अधिक जरूरत है?
उत्तर:
सफल जीवन व्यतीत करने के लिए सुडौल, मजबूत व स्वस्थ शरीर की सबसे अधिक जरूरत है।

प्रश्न 16.
मनुष्य किस प्रकार का प्राणी है?
उत्तर:
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।

प्रश्न 17.
शारीरिक शिक्षा व्यक्ति के किन पक्षों का विकास करती है?
अथवा
शारीरिक शिक्षा किस क्षेत्र के विकास में मदद करती है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा मानसिक, शारीरिक, सामाजिक, व्यक्तिगत, बौद्धिक आदि पक्षों का विकास करती है।

प्रश्न 18.
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शारीरिक शिक्षा का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा मित्रता, सद्भावना तथा अंतर्राष्ट्रीय शांति को बढ़ावा देती है।

प्रश्न 19.
शारीरिक शिक्षा का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा का शाब्दिक अर्थ है-शरीर की शिक्षा।

प्रश्न 20.
शारीरिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
शारीरिक वृद्धि एवं विकास करना।

बहुविकल्पीय प्रश्न [Multiple Choice Questions]

प्रश्न 1.
मनुष्य कैसा प्राणी है?
(A) अलौकिक
(B) सामाजिक
(C) प्राकृतिक
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) सामाजिक

प्रश्न 2.
जे०बी० नैश के अनुसार शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य निम्नलिखित हैं
(A) शारीरिक अंगों का विकास
(B) नाड़ी-माँसपेशीय संबंधी विकास
(C) भावनात्मक विकास
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 3.
“शारीरिक शिक्षा शरीर का मजबूत ढाँचा है जो मस्तिष्क के कार्य को निश्चित एवं आसान करता है।” यह कथन है
(A) रूसो का
(B) अरस्तू का
(C) प्लेटो का
(D) सुकरात का
उत्तर:
(A) रूसो का

प्रश्न 4.
लयात्मक क्रियाओं में शामिल हैं
(A) नाचना
(B) लो क-नृत्य
(C) लेजियम
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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प्रश्न 5.
शारीरिक शिक्षा किस विकास में मदद करती है?
(A) मानसिक विकास में ।
(B) भावनात्मक विकास में ।
(C) सामाजिक विकास में
(D) सर्वांगीण विकास में
उत्तर:
(D) सर्वांगीण विकास में

प्रश्न 6.
हैगमैन और ब्राऊनवैल ने शारीरिक शिक्षा के उद्देश्यों को कितने भागों में बाँटा है?
(A) तीन
(B) चार
(C) पाँच
(D) छह
उत्तर:
(B) चार

प्रश्न 7.
जे०बी० नैश ने शारीरिक शिक्षा के उद्देश्यों को कितने भागों में बाँटा है?
(A) चार
(B) तीन
(C) पाँच
(D) छह
उत्तर:
(A) चार

प्रश्न 8.
बी० वाल्टर ने शारीरिक शिक्षा के उद्देश्यों को कितने भागों में बाँटा है?
(A) चार
(B) दो
(C) पाँच
(D) तीन
उत्तर:
(D) तीन

प्रश्न 9.
लास्की ने शारीरिक शिक्षा के उद्देश्यों को कितने भागों में बाँटा है?
(A) तीन
(B) चार
(C) पाँच
(D) छह
उत्तर:
(C) पाँच

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक शिक्षा का अर्थ, लक्ष्य एवं उद्देश्य

प्रश्न 10.
‘शारीरिक शिक्षा की बुनियाद’ (Foundation of Physical Education) नामक पुस्तक लिखी है
(A) चार्ल्स ए० बूचर ने
(B) लास्की ने
(C) जे०बी० नैश ने
(D) बी० वाल्टर ने
उत्तर:
(A) चार्ल्स ए० बूचर ने

प्रश्न 11.
शारीरिक शिक्षा का क्षेत्र है
(A) विकट
(B) सरल
(C) सीमित
(D) विशाल
उत्तर:
(D) विशाल

प्रश्न 12.
शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में सम्मिलित गतिविधियाँ हैं
(A) एथलेटिक्स
(B) जिम्नास्टिक्स
(C) मनोरंजनात्मक गतिविधियाँ
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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शारीरिक शिक्षा का अर्थ, लक्ष्य एवं उद्देश्य Summary

शारीरिक शिक्षा का अर्थ, लक्ष्य एवं उद्देश्य परिचय

शारीरिक शिक्षा की अवधारणा बहुत प्राचीन है। प्राचीन समय में इसका प्रयोग अव्यवस्थित रूप से था जो आज पूर्णत: व्यवस्थित हो चुका है। इसलिए शिक्षाशास्त्रियों ने शारीरिक शिक्षा की अवधारणा को पुनः परिभाषित किया है। शारीरिक शिक्षा की आधुनिक अवधारणा के अंतर्गत शारीरिक शिक्षा न केवल शारीरिक विकास करती है, बल्कि यह मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक आदि विकास भी करती है अर्थात् इसका उद्देश्य व्यक्ति या छात्र का सर्वांगीण विकास करना है। शिक्षाशास्त्रियों के अनुसार शारीरिक शिक्षा, शिक्षा का ही एक महत्त्वपूर्ण एवं अभिन्न अंग है क्योंकि शारीरिक क्रियाओं व खेलों द्वारा बच्चों का सर्वांगीण विकास होता है।

चार्ल्स ए० बूचर (Charles A. Bucher) के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा समस्त शिक्षा प्रणाली का ही एक आधारभूत अंग है।” आज शारीरिक क्रियाएँ या गतिविधियाँ न केवल मनोरंजन या शक्ति प्रदर्शन के ही साधन मानी जाती हैं, बल्कि ये बालक के विकास के विभिन्न पक्षों को प्रभावित कर उनके विकास में सहायक होती हैं। आज यह माना जाने लगा है कि शारीरिक शिक्षा की आधुनिक अवधारणा से न केवल व्यक्ति की मूल भावनाओं या संवेगों को एक नई दिशा मिलती है, बल्कि उसमें अनेक नैतिक एवं मूल्यपरक गुणों का भी विकास होता है। इससे मानसिक एवं बौद्धिक क्षमता में भी वृद्धि होती है। आज शारीरिक शिक्षा न केवल शारीरिक प्रशिक्षण, शारीरिक सुयोग्यता एवं सामूहिक ड्रिल की प्रक्रिया है, बल्कि यह बहु-आयामी एवं उपयोगी प्रक्रिया है जो जीवन एवं स्वास्थ्य के प्रत्येक पहलू के लिए अति आवश्यक है।

संक्षेप में, शारीरिक शिक्षा, शिक्षा का वह अभिन्न अंग है, जो खेलकूद तथा अन्य शारीरिक क्रियाओं के माध्यम से व्यक्ति में एक चुनी हुई दिशा में परिवर्तन लाने का प्रयास करता है। इससे केवल बुद्धि तथा शरीर का ही विकास नहीं होता, बल्कि यह व्यक्ति के स्वभाव, चरित्र एवं आदतों के निर्माण में भी सहायक होती है। अतः शारीरिक शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति के संपूर्ण (शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं संवेगात्मक आदि) व्यक्तित्व का विकास होता है।

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HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 2 व्यक्तिगत स्वास्थ्य का अर्थ एवं महत्त्व

Haryana State Board HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 2 व्यक्तिगत स्वास्थ्य का अर्थ एवं महत्त्व Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Physical Education Solutions Chapter 2 व्यक्तिगत स्वास्थ्य का अर्थ एवं महत्त्व

HBSE 9th Class Physical Education व्यक्तिगत स्वास्थ्य का अर्थ एवं महत्त्व Textbook Questions and Answers

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न [Long Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
व्यक्तिगत स्वास्थ्य से क्या अभिप्राय है? इसके आवश्यक नियमों का वर्णन कीजिए। अथवा व्यक्तिगत स्वास्थ्य क्या है? इसको सुधारने वाले तरीकों का वर्णन कीजिए।
अथवा
व्यक्तिगत स्वास्थ्य में सुधार करने वाले साधनों या ढंगों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
व्यक्तिगत स्वास्थ्य का अर्थ (Meaning of Personal Health):
व्यक्तिगत स्वास्थ्य दो शब्दों से मिलकर बना है’व्यक्ति’ एवं स्वास्थ्य’। इससे स्पष्ट होता है कि स्वास्थ्य की सफाई के सिद्धांत जो व्यक्ति द्वारा व्यक्तिगत स्तर पर व्यवहार में लाए जाते हैं। इसके लिए व्यक्ति को स्वयं ही प्रयत्नशील होना पड़ता है। व्यक्तिगत स्वास्थ्य संबंधी आचरण; जैसे शरीर की स्वस्थता, दाँतों की सफाई,Meaning and Importance of Personal Health आँखों की सफाई, बालों की सफाई, हाथों की सफाई, भोजन या आहार, व्यायाम तथा मद्यपान संबंधी नियमों का पालन आदि इसके अंतर्गत आते हैं। इनके प्रति लापरवाही हमारे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल सकती है। उदाहरण के लिए, दाँतों की सफाई न करने से दाँतों पर जमे रोगाणुओं से दाँतों में कृमि एवं अन्य विकार पैदा हो सकते हैं। इसलिए हमें व्यक्तिगत स्वास्थ्य की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।

व्यक्तिगत स्वास्थ्य के आवश्यक नियम या तरीके (Important Rules or Methods of Personal Health)-व्यक्तिगत स्वास्थ्य को ठीक तथा स्वस्थ रखने के लिए हमें अपने जीवन में स्वास्थ्य संबंधी नियमों का पालन करने की आदत डालनी चाहिए। ये नियम देखने में बड़े साधारण-से लगते हैं लेकिन इनका पालन करना हमारे जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है। स्वास्थ्य मानव जीवन की आधारशिला होती है। केवल, एक स्वस्थ व्यक्ति ही अपने जीवन को सफलता के पथ पर अग्रसर कर सकता है। स्वस्थ व्यक्ति के लिए असंभव कार्य भी संभव हो जाता है, जबकि अस्वस्थ व्यक्ति के लिए ऐसा करना कठिन होता है। अतः व्यक्ति को हमेशा व्यक्तिगत रूप से स्वयं को स्वस्थ बनाने के लिए प्रयासशील रहना चाहिए। इसलिए हमें अपने व्यक्तिगत स्वास्थ्य में सुधार करने के लिए निम्नलिखित तरीकों या नियमों को अपनाना चाहिए

1. शारीरिक स्वस्थता (Physical Fitness):
हमें अपने शरीर की सफाई का पूरा ध्यान रखना चाहिए। प्रतिदिन ताजे पानी से नहाना चाहिए। स्वास्थ्य हेतु शुद्ध जल, शुद्ध वायु एवं संतुलित आहार के साथ-साथ शारीरिक स्वस्थता पर नियमित रूप से ध्यान देना चाहिए।

2. दाँतों की सफाई (Cleanliness of Teeth):
सुबह स्नान करने से पहले तथा रात्रि को सोने से पहले अपने दाँतों को मंजन, दातुन या ब्रश से साफ करना चाहिए। .

3. नाखूनों की सफाई (Cleanliness of Nails):
हमें अपने नाखूनों को समय-समय पर काटते रहना चाहिए। यदि इनमें मैल होगी तो वह खाते समय भोजन के साथ हमारे शरीर के अंदर चली जाएगी और हमारे शरीर को नुकसान पहुंचाएगी।

4. कपड़ों की सफाई (Cleanliness of Clothes):
हमें कपड़े साफ-सुथरे, मौसम के अनुसार तथा ढीले पहनने चाहिएँ। गंदे कपड़े साफ शरीर को भी गंदा कर देते हैं।

5. नाक द्वारा साँस लेना (Breathing by Nose):
साँस हमेशा नाक द्वारा ही लेनी चाहिए। नाक से साँस लेने से वायु एक तो साफ होकर अंदर जाती है और दूसरे फेफड़ों तक पहुँचते-पहुँचते थोड़ा गर्म भी हो जाती है।

6. भोजन का उचित समय (Proper Time of Diet/Food):
भोजन प्रतिदिन उचित समय पर ही करना चाहिए। भोजन अच्छी तरह चबाकर और धीरे-धीरे करना चाहिए। भोजन संतुलित एवं पौष्टिक होना चाहिए।

7. मादक वस्तुओं का सेवन निषेध (No use of Drugs or Intoxicants):
मादक वस्तुओं के प्रयोग से सदैव बचना चाहिए। इससे शरीर को नुकसान होता है। सिग्रेट, तम्बाकू, शराब आदि पीने की आदत कभी नहीं डालनी चाहिए।

8. खुले वातावरण में व्यायाम (Exercise in Open Environment):
अपनी अवस्था, काम और स्वास्थ्य के अनुसार प्रतिदिन खुले वातावरण में व्यायाम अवश्य करना चाहिए। इससे शरीर चुस्त एवं गठीला बनता है।

9. जल्दी सोना और जल्दी उठना (Early to bed and Early to rise):
हमें रात को जल्दी सोना तथा प्रातः जल्दी उठना चाहिए। इससे स्वास्थ्य ठीक रहता है। बेंजामिन फ्रैंकलिन के अनुसार, “जल्दी सोना और जल्दी उठना, व्यक्ति को समृद्ध, स्वस्थ एवं बुद्धिमान बनाता है।”

10. शुद्ध एवं संतुलित भोजन (Pure and Balanced Diet):
हमारा भोजन शुद्ध एवं सादा होना चाहिए। हमें सदैव संतुलित भोजन करना चाहिए।

11. उचित मुद्रा (Correct Posture):
चलते-फिरते, काम करते समय, पढ़ते समय एवं सोते समय उचित मुद्रा (आसन) का ध्यान रखना चाहिए। ऊपर वर्णित नियमों का पालन करने से प्रत्येक व्यक्ति अपने-आपको स्वस्थ रख सकता है। अपने-आपको स्वस्थ रखना भी एक महान् देश सेवा है।

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 2 व्यक्तिगत स्वास्थ्य का अर्थ एवं महत्त्वव

प्रश्न 2.
आँखों की सफाई और संभाल या देखभाल हेतु हमें किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
आँखें मनुष्य के शरीर का कोमल अंग हैं। सुंदर आँखें सुंदरता की निशानी हैं। इनकी सफाई और रक्षा ध्यान से करनी चाहिए। आँखों को कई प्रकार के रोग हो जाते हैं; जैसे आँखों का फ्लू, कुकरे, आँखों की सूजन और आँखों की खुजली आदि। आँखों की सफाई और संभाल निम्नलिखित प्रकार से की जा सकती है

(1) तेज प्रकाश और अंधेरे में आँखों से काम नहीं लेना चाहिए। नंगी आँख से सूर्यग्रहण नहीं देखना चाहिए।
(2) बहुत कम और बहुत तेज प्रकाश में तथा नीचे को झुककर कभी नहीं पढ़ना चाहिए। .
(3) पुस्तक को बहुत निकट रखकर नहीं पढ़ना चाहिए। पढ़ते समय पुस्तक आँखों से लगभग 30 सेंटीमीटर की दूरी पर होनी चाहिए।
(4) आँखों में पसीना नहीं पड़ने देना चाहिए। आँखों को हमेशा स्वच्छ व शुद्ध पानी से नियमित रूप से धोना चाहिए।
(5) बहुत देर तक एक स्थान पर नजर नहीं टिकानी चाहिए।
(6) आँखों की सफाई करने के लिए स्वयं का स्वच्छ रूमाल प्रयोग में लेना चाहिए।
(7) पढ़ते समय कुर्सी और मेज व्यक्ति के कद के अनुसार होना चाहिए।
(8) खसरा और छोटी माता जैसी बीमारियों के दौरान बच्चों की आँखों का ध्यान रखना चाहिए।
(9) खट्टी चीजें, तेल, लाल मिर्च, तम्बाकू, शराब और अफीम आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
(10) सिनेमा और टेलीविजन अधिक निकट बैठकर नहीं देखना चाहिए।
(11) प्रतिदिन आँखों पर ठंडे पानी के छीटें मारने चाहिएँ।
(12) तेज धूप एवं धूल से बचने के लिए धूप के चश्मे का प्रयोग अधिक लाभदायक है।
(13) आँखों की निकट एवं दूर की दृष्टि की जाँच नेत्र चिकित्सक से कराकर चिकित्सक की सलाह के अनुसार चश्मे आदि का प्रयोग करना चाहिए।
(14) आँखों के लिए विटामिन ‘ए’ युक्त खाद्य पदार्थों; जैसे गाजर, पपीता, पत्तेदार सब्जियाँ, दूध, मक्खन, घी, आम आदि का प्रयोग करना चाहिए।
(15) सुबह सूर्य निकलने के समय दो मिनट तक सूर्य की ओर अवश्य देखना चाहिए, परंतु तेज रोशनी में नहीं देखना चाहिए।
(16) आँखों को बिना गर्दन हिलाए चारों ओर घुमाना चाहिए।
(17) चलती बस या ट्रेन में कभी नहीं पढ़ना चाहिए। इससे आँखों पर अधिक दबाव पड़ता है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित का संक्षेप में वर्णन कीजिए
(क) व्यक्तिगत स्वास्थ्य विज्ञान
(ख) त्वचा की सफाई
(ग) नाक की देखभाल।
उत्तर:
(क) व्यक्तिगत स्वास्थ्य विज्ञान (Personal Health Science):
व्यक्तिगत स्वास्थ्य विज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है जो हमें तंदुरुस्ती और नीरोग रहने की शिक्षा देती है। व्यक्तिगत स्वास्थ्य विज्ञान में अरोग्यता प्राप्त करने के लिए स्वास्थ्य संबंधी नियमों का पालन करने पर बल दिया गया है। जिंदगी केवल जीवित रहने के लिए नहीं, अपितु रोग-रहित रहने के लिए भी है। रोग-रहित रहना ही व्यक्तिगत अरोग्यता प्राप्त करना है। स्वास्थ्य विज्ञान में व्यक्तिगत अरोग्यता एक ऐसी धारा है, जिसके नियमों को अपनाकर मनुष्य अरोग्य रह सकता है। बचपन मनुष्य की संपूर्ण जिंदगी का आधार होता है। इस कारण निजी अरोग्यता नियमों का पालन मनुष्य को बचपन से ही करना चाहिए।

व्यक्तिगत स्वास्थ्य विज्ञान के मौलिक नियम निम्नलिखित हैं
(1) अंगों और कपड़ों की सफाई
(2) अंगों और कपड़ों का सही प्रयोग
(3) अंगों की सुरक्षा
(4) संतुलित व पौष्टिक भोजन का प्रयोग
(5) शारीरिक बीमारियों से बचने के लिए उचित प्रबंध आदि।

व्यक्तिगत स्वास्थ्य विज्ञान मनुष्य को रहन-सहन, खाने-पीने, शारीरिक और मानसिक तंदुरुस्ती के लिए व्यायाम करने का ढंग बताता है। व्यक्तिगत स्वास्थ्य विज्ञान का उद्देश्य है कि मनुष्य को दवाइयों के प्रयोग के बिना स्वस्थ बनाना। इसलिए व्यक्ति को खाने-पीने की वस्तुओं के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों का ज्ञान प्राप्त करना बहुत आवश्यक है। पर्यावरण को साफ कैसे रखना है, कौन-सी वस्तु का प्रयोग स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है आदि का ज्ञान व्यक्तिगत स्वास्थ्य विज्ञान से मिलता है।

(ख) त्वचा की सफाई (Cleanliness of Skin):
त्वचा हमारे शरीर की चारदीवारी है। यह हमारे शरीर के आंतरिक अंगों को ढकती है और उसकी रक्षा करती है। यह हमारे शरीर का तापमान ठीक रखती है। इसके द्वारा हमारे शरीर में से पसीना और अन्य बदबूदार पदार्थों का निकास होता है। इसको स्पर्श करने से ही किसी बाहरी वस्तु के गुण और लक्षणों का ज्ञान होता है। त्वचा शरीर को सुंदरता प्रदान करती है। इसलिए हमें अपनी त्वचा की नियमित सफाई करनी चाहिए और इसकी सफाई का सबसे उत्तम ढंग प्रतिदिन स्वच्छ पानी से स्नान करना या नहाना है। नहाने के लिए निम्नलिखित नियमों का पालन करना बहुत आवश्यक है

(1) नहाने से पहले पेट साफ और खाली होना चाहिए।
(2) खाने के तुरंत पश्चात् नहीं नहाना चाहिए।
(3) व्यायाम अथवा बहुत थकावट के एकदम पश्चात् नहीं नहाना चाहिए।
(4) सर्दियों में नहाने से पहले धूप में शरीर की मालिश करें। यह शरीर को विटामिन ‘डी’ देने के लिए उपयोगी होता है।
(5) ताजे और स्वच्छ पानी से नहाना लाभदायक होता है।
(6) नहाने के लिए साबुन का प्रयोग कम करना चाहिए। नहाने के लिए उपयुक्त साबुन, जिसमें क्षार की मात्रा कम हो, प्रयोग में लेना हितकर है।
(7) नहाने के पश्चात् शरीर को साफ तौलिए या साफ कपड़े से पौंछकर स्वच्छ कपड़े पहनने चाहिए।
(8) शरीर को पौंछने के लिए अपने स्वयं का ही तौलिया काम में लाना चाहिए।

(ग) नाक की देखभाल (Care of Nose):
नाक श्वास लेने और सूंघने की शक्ति रखती है। नाक की संभाल शरीर के बाकी अंगों की तरह करनी चाहिए। इसको बीमारी से बचाने के लिए साफ वायु में श्वास लेना चाहिए। जिस व्यक्ति को जुकाम लगा हो, उसके पास नहीं बैठना चाहिए। नाक में उँगली नहीं मारनी चाहिए और किसी का रूमाल भी प्रयोग नहीं करना चाहिए। नाक को जोर से साफ नहीं करना चाहिए। इसकी सफाई हेतु स्वच्छ रूमाल का प्रयोग करना चाहिए। हमें हमेशा नाक द्वारा श्वास लेना चाहिए। नाक में छोटे-छोटे बाल होते हैं। वायु के कीटाणु और मिट्टी इनमें रुक जाती हैं जिससे हमारे अंदर साफ वायु जाती है। नाक के बालों को कभी भी काटना और तोड़ना नहीं चाहिए। यदि हमारे नाक के अंदर ये बाल न हों तो हमारे शरीर के अंदर गंदी हवा प्रवेश कर जाएगी और हमारा शरीर रोग का शिकार हो जाएगा। इसलिए हमें नाक की देखभाल की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।

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प्रश्न 4.
व्यक्तिगत स्वास्थ्य संबंधित नियमों के बारे में लिखिए तथा बालों की सही प्रकार से सफाई करने की विधि बताइए।
उत्तर:
व्यक्तिगत स्वास्थ्य संबंधित नियम (Rules related to Personal Health)-व्यक्तिगत स्वास्थ्य संबंधित प्रमुख नियम निम्नलिखित हैं
(1) शरीर के आंतरिक अंगों; जैसे दिल, फेफड़े, जिगर, आमाशय, तिल्ली, गुर्दे और बाहरी अंग; जैसे हाथ, आँख, कान, नाक, त्वचा, पैर और बाल आदि की नियमित सफाई व संभाल करनी चाहिए।
(2) समय-समय पर अपने शरीर का नियमित डॉक्टरी परीक्षण करवाना चाहिए।
(3) हमेशा खुश व प्रसन्न रहना चाहिए।
(4) हमेशा साफ-सुथरे कपड़े पहनने चाहिएँ। पहनावा ऋतु और मौसम के अनुसार होना चाहिए।
(5) खुले एवं स्वच्छ वातावरण में रहना चाहिए। घर हमेशा साफ-सुथरा होना चाहिए।
(6) हमेशा नाक द्वारा श्वास लेनी चाहिए।
(7) नियमित शारीरिक क्रियाएँ या व्यायाम करने चाहिएँ।
(8) हमें हमेशा संतुलित एवं पौष्टिक आहार का सेवन करना चाहिए।
(9) हमें पर्याप्त विश्राम करना चाहिए और उचित समय तक सोना चाहिए।

बालों की सफाई करने की विधि (Method of Cleanliness of Hair):
पुराने समय में बालों के रख-रखाव व निखार के लिए महिलाएँ अनेक प्राकृतिक तरीके इस्तेमाल करती थीं, जिनसे उनके बाल वास्तव में ही काले, घने, मजबूत और चमकदार होते थे। आज के युग में कई तरह के साबुन और अन्य चीजों से बालों को धोने या साफ करने के लिए प्रयोग में लाया जाने लगा है। इनसे बाल पोषक तत्त्व हासिल करने के स्थान पर समय से पूर्व टूट कर गिरने लगते हैं, साथ ही सफेद होने लगते हैं। हमें भूलकर भी बालों के साथ ज्यादा प्रयोग नहीं करने चाहिएँ। ऐसा करने से बाल कमजोर होकर असमय टूटने लगते हैं। इसलिए बालों की सही प्रकार से सफाई करनी चाहिए, ताकि ये मजबूत, काले व चमकदार बने रहें। बालों की सफाई हेतु निम्नलिखित विधि अपनानी चाहिए

(1) खट्टी दही में चुटकी भर फिटकरी मिला लें, साथ ही थोड़ी-सी हल्दी भी मिला लें। इस मिश्रण को सिर के बालों में लगाने से सिर की गंदगी तो दूर होती ही है, साथ ही बाल भी निखर जाते हैं।
(2) बालों को धोने के बाद गोलाकार कंघी से बालों में भली प्रकार से ब्रश करना चाहिए। इसके बाद सिर के बालों की जड़ों में उंगली घुमाते हुए अपना हाथ ऊपर से नीचे की ओर फिराएँ। ऐसा करने से बाल हमेशा मुलायम बने रहते हैं।
(3) धूल-मिट्टी के प्रभाव से सिर के बाल रूखे एवं बेजान से हो जाते हैं । इनसे छुटकारा पाने के लिए उत्तम किस्म के शैम्पू से बालों को धोना चाहिए।
(4) कुदरती साधनों के इस्तेमाल से बालों को सुंदर बनाया जा सकता है। बालों को अच्छी तरह धोने के बाद बालों में ताजी मेहंदी पीसकर लगानी चाहिए। कुछ समय बाद बालों को पानी से धो लेना चाहिए।
(5) बालों को पानी में भीगे आँवलों से धोना चाहिए। बालों को आँवले से धोने से बाल चमकदार व मुलायम बनते हैं।
(6) पसीना बालों की जड़ों में पहुंचने पर बालों को नुकसान होता है। इसलिए नियमित अंतराल पर उचित विधि द्वारा बालों को साफ करना चाहिए।
(7) बालों को गर्म पानी में धोने से ये कमजोर होते हैं। इसलिए बालों को हमेशा गुनगुने पानी से ही धोना चाहिए।
(8) कंघी हमेशा बालों को सुखाने के बाद ही करनी चाहिए। गीले बालों में कंघी करने से बाल कमजोर हो सकते हैं।

प्रश्न 5.
दाँतों की सफाई पर विस्तृत नोट लिखें। अथवा दाँतों की देखभाल हेतु हमें किन-किन बातों की ओर ध्यान देना चाहिए?
उत्तर:
दाँतों के न रहने से मुँह का स्वाद चला जाता है और चेहरे की खूबसूरती भी समाप्त हो जाती है। गंदे दाँतों से स्वयं को और दूसरों को बदबू भी आती है। यदि दूध के दाँतों का ध्यान अच्छी प्रकार न रखा जाए तो पक्के दाँत शुरू से कमजोर हो सकते हैं जोकि टूटने के उपरांत टेढ़े-मेढ़े निकलते हैं। दाँत साफ न रहने के कारण इनके ऊपर जो इनैमल और इंटीन की तह होती है, वह दाँत गंदे रहने से नष्ट हो जाती है। फिर दाँतों के नीचे तक कीटाणु चले जाते हैं और मसूड़े कमजोर हो जाते हैं। इसलिए हमें नियमित रूप से दाँतों की सफाई करनी चाहिए। दाँतों की संभाल और सफाई निम्नलिखित प्रकार से की जा सकती है

(1) हमें मिठाई, चीनी, टॉफियाँ आदि अधिक नहीं खानी चाहिएँ।
(2) दाँतों में कभी भी कोई तीखी चीज़ नहीं मारनी चाहिए।
(3) कठोरै बोतलों के ढक्कन अथवा कठोर खाने वाली चीजें दाँतों से न खोलें/तोड़ें।
(4) हमें बहुत अधिक गर्म और ठंडी चीजों का भी सेवन नहीं करना चाहिए।
(5) किसी दूसरे का ब्रश प्रयोग में नहीं लाना चाहिए।
(6) दाँतों को रेत, कोयले की राख आदि से साफ नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे दाँतों की ऊपरी परत को हानि पहुँचती है।
(7) पान, गुटका, तम्बाकू आदि दाँतों एवं मसूड़ों के लिए घातक होते हैं। इसलिए इनका सेवन नहीं करना चाहिए।
(8) यदि दाँत खराब हो जाएँ तो निकलवा लेने चाहिएँ ताकि छूत के कारण दूसरे दाँत भी खराब न हो जाएँ।।
(9) प्रतिदिन सुबह उठकर और रात को सोने से पहले ब्रश करना चाहिए और खाना खाने के पश्चात् कुल्ला करना चाहिए।
(10) दाँतों की मजबूती के लिए कैल्शियम एवं विटामिन-सी युक्त खाद्य पदार्थों; जैसे गाजर, मूली, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, … आँवला, नींबू, टमाटर, बन्दगोभी आदि का सेवन करना चाहिए।

प्रश्न 6.
कानों एवं नाखूनों की सफाई पर संक्षिप्त नोट लिखें। अथवा कानों तथा नाखूनों की सफाई करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
कानों की सफाई (Cleanliness of Ears):
कान सुनने की शक्ति रखते हैं। कान की बाहरी बनावट टेढ़ी और कठोर दिखाई देती है परंतु अंदर इसका पर्दा नाजुक होता है। यदि कान में कोई फोड़ा अथवा फुसी हो जाए तो डॉक्टर को दिखाना चाहिए। कोई तेज दवाई डालने से कान के पर्दे को नुकसान पहुँच सकता है। कान में कभी भी कोई नुकीली चीज़ नहीं मारनी चाहिए। इससे कान में चोट लग सकती है। यदि कान में दर्द है तो समय पर इसका इलाज करवाना चाहिए, नहीं तो पीब (Pus) पड़ने का डर होता है और पर्दा भी गल सकता है। कान को साफ करने के लिए खुरदरे और मोटे तिनके पर अच्छी प्रकार से रूई लपेटकर हाइड्रोजन परऑक्साइड में भिगोकर साफ करें। यह सप्ताह में एक बार अवश्य करें। नहाने के पश्चात् कान के बाहरी भाग को जरूर साफ करना चाहिए। स्वयं को शोरगुल से दूर रखना चाहिए।

नाखूनों की सफाई (Cleanliness of Nails):
हाथों व पैरों की उँगलियों के आगे कठोर बढ़ा हुआ भाग नाखून होता है। इसकी सफाई मनुष्य के शरीर के बाकी अंगों की भाँति बहुत जरूरी है। नाखूनों को साफ न करने से कई हानियाँ हो सकती हैं। अतः नाखूनों की सफाई के लिए निम्नलिखित कार्य करने चाहिएँ
(1)नाखून बढ़ने नहीं देने चाहिएँ अर्थात् समय-समय पर बढ़े हुए नाखूनों को काटते रहना चाहिए, ताकि इनमें मैल आदि न जमा हो सके।
(2) खाना खाने से पहले और बाद में हाथ साबुन आदि से धोने चाहिएँ।
(3) नाखून दाँतों से नहीं तोड़ने चाहिए। इससे नाखूनों के बीच वाली मैल मुँह द्वारा हमारे शरीर के अंदर पहुँच जाती है और कई प्रकार की बीमारियाँ पैदा करती है।
(4) नाखून ब्लेड और कैंची से भी नहीं काटने चाहिएँ, बल्कि इनको नेलकटर से काटना चाहिए।
(5) नाखूनों को सोडियम कार्बोनेट के पानी से धोना चाहिए।
(6) कठोर, खुरदरे, पीले, काले अथवा सफेद धब्बों वाले नाखून डॉक्टर को जरूर दिखा लेने चाहिएँ।
(7) कई फैशन के तौर पर अपने नाखून बढ़ा लेते हैं परंतु ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।
(8) पैरों के नाखून भी काटने आवश्यक हैं। इनको न काटने से उँगलियों में दर्द होना शुरू हो जाता है।

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प्रश्न 7.
व्यायाम क्या है? व्यायाम करने से हमें क्या-क्या लाभ होते हैं?
अथवा
व्यायाम हमारे लिए क्यों आवश्यक है? इसके क्या-क्या फायदे हैं?
उत्तर:
व्यायाम का अर्थ (Meaning of Exercise):
कुछ विशेष तथा तेज शारीरिक क्रियाएँ जो मनुष्य अपनी इच्छानुसार करता है, व्यायाम कहलाता है। जिस प्रकार भोजन, जल और वायु जीवन के लिए आवश्यक हैं उसी प्रकार व्यायाम भी शरीर के लिए बहुत आवश्यक है। व्यायाम न करने से शरीर आलसी एवं रोगी हो जाता है, जबकि व्यायाम करने से शरीर चुस्त, फुर्तीला व सक्रिय बनता है। व्यायाम करने से शरीर नीरोग रहता है। बुद्धि व स्मरण शक्ति तेज होती है, जिससे मनुष्य दिन-प्रतिदिन उन्नति करता है। व्यायाम से अनेक प्रकार की दुर्बलताएँ दूर हो जाती हैं। इसलिए हमारे लिए व्यायाम बहुत आवश्यक है।
व्यायाम करने के लाभ या फायदे (Advantages of doing Exercise)-व्यायाम करने से होने वाले लाभ. निम्नलिखित हैं

(1) व्यायाम करने से शरीर की माँसपेशियाँ लचकदार तथा मजबूत बनती हैं। शरीर में कार्य करने की क्षमता बढ़ जाती है।
(2) व्यायाम करने से शरीर हृष्ट-पुष्ट रहता है और बुढ़ापा देर से आता है।
(3) व्यायाम करने से भूख अधिक लगती है और पाचन क्रिया ठीक रहती है।
(4) व्यायाम करने से क्षयरोग, दमा और कब्ज आदि नहीं हो सकते। अत: व्यायाम करने से शरीर नीरोग रहता है।
(5) व्यायाम करने से रात को नींद अच्छी आती है।
(6) व्यायाम करने से रक्त का संचार तेज होता है। वृक्क (Kidneys) में रक्त के अधिक पहुँचने से उसके सारे विषैले पदार्थ मूत्र के द्वारा बाहर निकल जाते हैं।
(7) व्यायाम करने से शरीर के सभी अंग सुचारु रूप से कार्य करते हैं।
(8) व्यायाम करने से नाड़ी प्रणाली स्वस्थ रहती है। ज्ञानेंद्रियों की शक्ति बढ़ जाती है।
(9) व्यायाम करने से फेफड़ों में ऑक्सीजन अधिक पहुँचती है और कार्बन-डाइऑक्साइड भी बाहर निकलती है।
(10) व्यायाम शरीर की बहुत-सी कमियों तथा जोड़ों के रोगों को दूर करने में सहायक होता है।
(11) व्यायाम से हृदय बलशाली हो जाता है तथा धमनियाँ, शिराएँ और केशिकाएँ आदि मजबूत बनती हैं।
(12) व्यायाम करने से टूटी कोशिकाओं को ऑक्सीजन तथा ताजा रक्त मिलता है। इस प्रकार इनकी मुरम्मत हो जाती है।
(13) व्यायाम करने से शरीर में फूर्ति बढ़ती है और आलस्य दूर होता है।
(14) व्यायाम करने से स्मरण शक्ति, तर्क शक्ति एवं कल्पना शक्ति बढ़ती है।

प्रश्न 8.
सोते समय हमें क्या-क्या सावधानियाँ रखनी चाहिएँ?
उत्तर:
थकान को दूर करने के लिए तथा व्यय हुई शक्ति को पुनः प्राप्त करने के लिए हमें आराम के साथ-साथ नींद की नितांत आवश्यकता होती है। इसलिए परमात्मा ने काम के लिए दिन और विश्राम के लिए रात को बनाया। जब हम प्रकृति के इस नियम का उल्लंघन करते हैं तो अनेक प्रकार के कष्ट सहते हैं। पूरी नींद लेने से थकी माँसपेशियाँ और दिमाग भी ताजा हो जाता है। इसलिए गहरी नींद में सोना भोजन से भी अधिक आवश्यक है।

सोते समय हमें निम्नलिखित सावधानियाँ रखनी चाहिएँ
(1) सोने का कमरा साफ-सुथरा तथा हवादार होना चाहिए।
(2) खिड़कियाँ व रोशनदान हवादार होने चाहिएँ।
(3) प्रतिदिन नियमित समय पर सोना चाहिए।
(4) सोने से दो घंटे पहले कुछ नहीं खाना चाहिए।
(5) मुँह ढककर कभी नहीं सोना चाहिए। ऐसा करने से कार्बन-डाइऑक्साइड फेफड़ों में चली जाती है और ऑक्सीजन नहीं मिलती।
(6) सोने के कमरे में कोयले की अंगीठी जलती हुई छोड़कर कभी नहीं सोना चाहिए।
(7) रात को जल्दी सोना चाहिए और प्रातः जल्दी उठना चाहिए।
(8) रात को सोने से पूर्व चाय या कॉफी के स्थान पर दूध पीना चाहिए।
(9) गर्मियों में सोने से पहले स्नान करना चाहिए। सर्दियों में गर्म पानी से मुँह-हाथ धो लेने चाहिएँ।
(10) सोने वाले स्थान के पास पशु नहीं बाँधने चाहिएँ।
(11) सोते समय शरीर पर हल्के कपड़े होने चाहिएँ।
(12) रात को वृक्षों के नीचे सोना हानिकारक है। इसका कारण यह है कि रात के समय वृक्ष कार्बन-डाइऑक्साइड गैस छोड़ते हैं और ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं। इसलिए ऐसे वातावरण में साँस लेना हानिकारक है।
(13) चिंता, क्रोध तथा दुःखों को भूलकर बिना किसी तनाव के सोना चाहिए।
(14) गर्मी के मौसम में यदि बाहर सोना हो तो मच्छरदानी का प्रयोग करें।
(15) पलंग या चारपाई कद के अनुसार होनी चाहिए। इस पर बिछा हुआ बिस्तर मौसम के अनुसार तथा साफ-सुथरा होना चाहिए।
(16) चारपाई खटमल रहित होनी चाहिए क्योंकि वे मनुष्य का रक्त चूसते हैं तथा गहरी नींद नहीं सोने देते।

प्रश्न 9.
अच्छी मुद्रा या आसन (Good Posture) के लाभों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शरीर की किसी एक स्थिति को मुद्रा नहीं कहा जाता। हम अपने शरीर को कई अलग-अलग ढंगों से टिकाते हैं। शरीर को स्थिर रखने की स्थितियों को मुद्रा या आसन कहा जाता है। शरीर को बिना तकलीफ उठाना, बैठाना, घुमाना आदि मुद्रा में ही आते हैं । शरीर की प्रत्येक प्रकार की स्थिति ठीक हो अथवा गलत मुद्रा ही कहलाएगी। परंतु गलत और ठीक मुद्रा में बहुत
अंतर होता है। ठीक मुद्रा देखने में सुंदर व आकर्षक लगती है। इससे शरीर की माँसपेशियों पर अतिरिक्त भार नहीं पड़ता। ठीक मुद्रा वाला व्यक्ति काम करने, चलने-फिरने में चुस्त और फुर्तीला लगता है। भद्दी मुद्रा व्यक्ति के शरीर के लिए अनावश्यक बोझ बन जाती है। इसलिए हमेशा शरीर की स्थिति प्रत्येक प्रकार का आसन (Posture) प्राप्त करते समय ठीक रखनी चाहिए। संक्षेप में, अच्छी मुद्रा के निम्नलिखित लाभ हैं
(1) शरीर को अच्छी स्थिति में रखने से हिलाना-डुलाना आसान हो जाता है और शरीर के दूसरे भागों पर भी भार नहीं पड़ता।
(2) अच्छी मुद्रा शरीर में आत्मविश्वास पैदा करती है।
(3) अच्छी मुद्रा मन को प्रसन्नता एवं खुशी प्रदान करती है।
(4) अच्छी मुद्रा वाले व्यक्ति की कार्य करने में शक्ति कम लगती है।
(5) अच्छी मुद्रा हड्डियों और माँसपेशियों को संतुलित रखती है।
(6) अच्छी मुद्रा वाले व्यक्ति को बीमारियाँ कम लगती हैं।

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प्रश्न 10.
भद्दी मुद्रा के कारणों का उल्लेख करते हुए मुद्रा ठीक करने के ढंगों का वर्णन कीजिए। अथवा मुद्रा संबंधी विकार बताइए। मुद्रा संबंधी विकार ठीक करने के तरीकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मुद्रा संबंधी विकार या विकृतियाँ (Postural Deformities): मुद्रा संबंधी विकार या विकृतियाँ निम्नलिखित हैं
(1) कूबड़पन,
(2) कमर का आगे निकलना,
(3) रीढ़ की हड्डी का टेढ़ा होना,
(4) दबी हुई छाती होना,
(5) घुटनों अथवा टखनों का भिड़ना,
(6) गोल कंधे,
(7) टेढ़ी गर्दन,
(8) चपटे पैर आदि।

भद्दी मुद्रा के कारण (Cause of Incorrect Posture): भद्दी मुद्रा के निम्नलिखित कारण हैं
(1) भोजन की कमी के कारण शरीर कमजोर हो जाता है, इस कारण मुद्रा भी ठीक नहीं रहती।
(2) व्यायाम न करने से मुद्रा भद्दी हो जाती है।
(3) घर अथवा स्कूल में सही ढंग से बैठने का प्रबंध न होना।
(4) भारी बैग को ठीक ढंग से न पकड़ना।
(5) तंग कपड़े और तंग जूते पहनना भी मुद्रा के लिए हानिकारक हैं।
(6) पढ़ते समय बैठने के लिए सही कुर्सी या मेज का न होना और कुर्सी पर ठीक से न बैठना।

मुद्रा ठीक रखने के ढंग या तरीके (Methods of Keep Right to Posture): मुद्रा ठीक करने के ढंग निम्नलिखित हैं
(1) बच्चों को ठीक मुद्रा के बारे में जानकारी देनी चाहिए। स्कूल में अध्यापकों और घर में माँ-बाप का कर्त्तव्य है कि बच्चों
की खराब मुद्रा को ठीक करने के लिए निरंतर प्रयास करें।
(2) भोजन की कमी के कारण आई कमजोरी को ठीक करना चाहिए।
(3) बच्चों को न तो तंग कपड़े डालने चाहिएँ और न ही तंग जूते।
(4) हमें गलत ढंग से न तो चलना चाहिए और न ही पढ़ना और बैठना चाहिए।
(5) हमें उचित और पूरी नींद लेनी चाहिए।
(6) बच्चों के स्कूल बैग का भार हल्का होना चाहिए।
(7) आवश्यकतानुसार डॉक्टरी परीक्षण करवाते रहना चाहिए ताकि मुद्रा-त्रुटि को समय पर ठीक किया जा सके।
(8) हमारे घरों, स्कूलों और कॉलेजों में ठीक मुद्रा की जानकारी देने वाले चित्र लगे होने चाहिएँ।
(9) घरों और स्कूलों में पूरे कद वाला शीशा लगा होना चाहिए जिसके आगे खड़े होकर बच्चा अपनी मुद्रा देख सके।
(10) सोते समय शरीर को अधिक मोड़ना नहीं चाहिए।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित आसनों या मुद्राओं (Postures) पर संक्षिप्त नोट लिखें
(क) बैठने की मुद्रा
(ख) खड़े होने की मुद्रा
(ग) चलने की मुद्रा
(घ) लेटने की मुद्रा।
उत्तर:
(क) बैठने की मुद्रा (Posture of Sitting):
कई कामों में हमें अधिक देर तक बैठना पड़ता है। अधिक देर बैठने से धड़ की माँसपेशियाँ थक जाती हैं और धड़ में कई दोष आ जाते हैं। बैठते समय रीढ़ की हड्डी सीधी, छाती आमतौर पर खुली, कंधे समतल, पेट स्वाभाविक तौर पर अंदर की ओर, सिर और धड़ सीधी स्थिति में होने चाहिए। बच्चे स्कूल में अधिक समय बैठते हैं परंतु घर में चलते-फिरते रहते हैं। बैठने वाला स्थान हमेशा खुला और समतल होना चाहिए। बैठने वाला स्थान साफ-सुथरा हो। देखा जाता है कि कई व्यक्ति सही ढंग से बैठकर नहीं पढ़ते। पढ़ते समय हमें ऐसी मुद्रा में बैठना चाहिए जिससे आँखों व शरीर पर कम-से-कम दबाव पड़े। लिखने के लिए मेज या डैस्क का झुकाव आगे की ओर होना चाहिए। हमें कभी भी सिर झुकाकर न तो पढ़ना चाहिए और न ही लिखना चाहिए। इससे हमारी रीढ़ की हड्डी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। गलत ढंग से बैठने से शरीर में कई विकार पैदा हो सकते हैं।

(ख) खड़े होने की मुद्रा (Posture of Standing):
गलत ढंग से खड़े होने अथवा चलने से भी शरीर में थकावट आ जाती है। खड़े होने के दौरान शरीर का भार दोनों पैरों पर बराबर होना चाहिए। खड़े होने के दौरान पेट सीधा, छाती फैली हुई और धड़ सीधा होना चाहिए। ठीक ढंग से खड़े होने से हमारे शरीर में रक्त की गति ठीक रहती है। यदि आपको अधिक देर खड़े होना पड़े तो दोनों पैरों पर बदल-बदल कर खड़े होना चाहिए ताकि प्रत्येक टाँग पर शरीर का भार बारी-बारी पड़े।

(ग) चलने की मुद्रा (Posture of Walking):
हमारी चाल हमेशा सही होनी चाहिए। ठीक चाल से अच्छा प्रभाव पड़ता है। चलते समय पंजे और एड़ियों पर ठीक भार पड़ना चाहिए। अच्छी चाल वाला व्यक्ति प्रत्येक मनुष्य को अपनी ओर आकर्षित करता है। चलते समय पैरों का अंतर समान रहना चाहिए। हाथ आगे पीछे आने-जाने चाहिएँ। घुटने आपस में टकराने नहीं चाहिएँ। चलते समय पैरों की रेखाएँ चलने की दिशा की रेखा के समान होनी चाहिएँ।

(घ) लेटने की मुद्रा (Posture of Lying):
लेटते समय हमारा शरीर विश्राम अवस्था में और शांत होना चाहिए। सोते समय शरीर प्राकृतिक तौर पर टिका होना चाहिए। हमें सोते समय कभी भी गलत ढंग से नहीं लेटना चाहिए। इससे हमारे रक्त के संचार पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे श्वास क्रिया भी रुक जाने का खतरा पैदा हो सकता है। गर्दन अथवा अन्य किसी भाग की. नाड़ी आदि चढ़ जाने का खतरा रहता है।

प्रश्न 12.
व्यक्तिगत स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारकों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
व्यक्तिगत स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं
1. व्यायाम (Exercises):
व्यक्तिगत स्वास्थ्य को व्यायाम अर्थात् शारीरिक गतिविधियाँ काफी प्रभावित करती हैं। व्यायाम करने से शरीर की उचित वृद्धि एवं विकास होता है। व्यायाम शरीर के सभी अंगों की कार्यक्षमता को सुचारू करने में सहायक होता है। व्यायाम करने से न केवल हमारे व्यक्तिगत स्वास्थ्य का विकास होता है बल्कि यह सर्वांगीण विकास में सहायक होता है।

2. भोजन (Food):
हमारे व्यक्तिगत स्वास्थ्य को सबसे अधिक भोजन प्रभावित करता है। यदि हमारे भोजन में सभी आवश्यक तत्त्व पर्याप्त मात्रा में हैं तो इनका हमारे व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। हमारे शारीरिक अंगों की कार्यक्षमता बढ़ती है। इसलिए हमारा भोजन संतुलित एवं पौष्टिक होना चाहिए।

3. नशीले पदार्थों से परहेज (Away from Intoxicants):
हमारे स्वास्थ्य के लिए नशीले पदार्थों का सेवन सबसे अधिक हानिकारक है। इन पदार्थों के सेवन से हमारे शरीर के सभी पहलुओं या पक्षों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इनके सेवन से हमारा शरीर अनेक रोगों से ग्रस्त हो जाता है। इसलिए व्यक्तिगत स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए इन पदार्थों के सेवन से स्वयं को बचाना चाहिए।

4. भोजन संबंधी आदतें (Food Related Habits):
व्यक्तिगत स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए भोजन करने संबंधी आदतें भी महत्त्वपूर्ण होती हैं। खाने-पीने की आदतें जितनी उचित होंगी, व्यक्ति का स्वास्थ्य भी उतना अच्छा होगा।

5. चिकित्सा जाँच (Medical Checkup):
नियमित चिकित्सा जाँच स्वास्थ्य के सभी पक्षों को प्रभावित करती है। नियमित चिकित्सा जाँच से हमारा स्वास्थ्य अच्छा रहता हैं और शारीरिक अंग रोगमुक्त रहते हैं।

6. आसन (Posture):
आसन भी हमारे व्यक्तिगत स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। इसलिए हमें उचित आसन की आदत डालनी चाहिए।

7. विश्राम एवं निद्रा (Rest and Sleep):
विश्राम एवं निद्रा न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं बल्कि सभी प्रकार के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। सामान्य तौर पर व्यक्ति को आठ घंटे तक सोना चाहिए। लंबी अवधि तक कार्य करने के बीच में थोड़ा-बहुत विश्राम कर लेना चाहिए।

8. अच्छी आदतें (Good Habits):
व्यक्तिगत स्वास्थ्य को अच्छी आदतें भी प्रभावित करती हैं। अच्छी आदतें हमारी दिनचर्या को प्रभावित करती हैं; जैसे जल्दी सोना, जल्दी उठना, दाँतों पर नियमित ब्रश करना, स्नान करने के बाद नाश्ता करना आदि। अच्छी आदतों से हमारा आसन और स्वास्थ्य भी ठीक रहता है।

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 2 व्यक्तिगत स्वास्थ्य का अर्थ एवं महत्त्वव

प्रश्न 13.
व्यक्तित्व के विकास में स्वास्थ्य की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अधिकांश लोग स्वास्थ्य के महत्त्व को नहीं समझते। हम जब भी स्वास्थ्य की बात करते हैं तो हमारा ध्यान शारीरिक स्वास्थ्य तक ही सीमित रहता है। हम शरीर के अन्य पहलुओं के बारे में नहीं सोचतें। अच्छे स्वास्थ्य की आवश्यकता हम सभी को है। एक व्यक्ति को स्वस्थ तभी कहा जाता है जब उसका शरीर स्वस्थ एवं मन साफ व शांत हो। वास्तव में अच्छे स्वास्थ्य की कल्पना संपूर्ण स्वास्थ्य का नाम है जिसमें शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य, व्यक्तिगत स्वास्थ्य, सामाजिक स्वास्थ्य एवं बौद्धिक स्वास्थ्य आदि शामिल हैं। स्वास्थ्य का व्यक्ति के व्यक्तित्व को सुधारने में भी महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। स्वास्थ्य निम्नलिखित प्रकार से व्यक्तित्व में अपना योगदान देता है

(1) स्वास्थ्य जीवन को बढ़ाने के लिए कौशल और ज्ञान को विकसित करने की क्षमता बढ़ाता है। हमारी बौद्धिक क्षमता हमारी रचनात्मकता को प्रोत्साहित करती है जिससे हमारा व्यक्तित्व आकर्षिक बनता है।
(2) अच्छे स्वास्थ्य का हमारे शरीर के प्रत्येक पहलू पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। हमारा शरीर चुस्त, फुर्तीला एवं मजबूत बनता है जिससे हमारा व्यक्तित्व काफी आकर्षित लगता है।
(3) स्वास्थ्य संबंधी जानकारी होने से शरीर नीरोग रहता है जो शरीर रोगमुक्त होता है और उसका जीवनकाल भी अधिक होता है अर्थात् शरीर को विकारों से मुक्त बनाए रखता है और हमेशा अच्छा महसूस कराता है।
(4) अच्छे स्वास्थ्य से खुशी एवं प्रसन्नता महसूस होती है। प्रसन्नता एवं खुशी से व्यक्ति के व्यक्तित्व का पता चलता है।
(5) किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व को उसका स्वभाव सबसे अधिक प्रभावित करता है। जो व्यक्ति शारीरिक रूप से कमजोर एवं बीमार होता है उसमें अनेक विकार पैदा हो जाते हैं; जैसे क्रोध करना, चिंता करना, घृणा करना आदि। परन्तु जो व्यक्ति शारीरिक रूप से स्वस्थ या रोगमुक्त होता है वह अपने मनोविकारों पर नियंत्रण करने में समर्थ होता है। इस प्रकार स्वास्थ्य व्यक्ति के स्वभाव को सुधारने में सहायक होता है जिससे उसका व्यक्तित्व अन्य व्यक्तियों से अधिक आकर्षित एवं अच्छा होता है।
(6) अच्छे स्वास्थ्य से शारीरिक सुंदरता में वृद्धि होती है। शारीरिक सुंदरता का आकर्षण व्यक्तित्व के विकास में योगदान देता है लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि आप सुंदर नहीं हैं तो आपका व्यक्तित्व आकर्षक नहीं हो सकता।
(7) अच्छा स्वास्थ्य व्यक्ति के आत्मविश्वास को बढ़ाता है और आत्मविश्वास व्यक्तित्व की कुंजी है।

निष्कर्ष (Conclusion):
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि अच्छा स्वास्थ्य व्यक्तित्व की कुंजी है। आकर्षित व्यक्तित्व से कोई भी व्यक्ति किसी को भी प्रभावित कर सकता है। स्वास्थ्य न केवल व्यक्तित्व के विकास में सहायक होता है बल्कि यह शरीर के प्रत्येक पहलू के विकास में सहायक होता है। इसलिए हमें स्वास्थ्य के बारे में संपूर्ण जानकारी होनी चाहिए।

लघूत्तरात्मक प्रश्न [Short Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
कानों की सफाई करते समय किन-किन बातों की ओर ध्यान देना चाहिए?
उत्तर:
कान सुनने की शक्ति रखते हैं। कान की बाहरी बनावट टेढ़ी और कठोर दिखाई देती है परंतु अंदर इसका पर्दा नाजुक होता है। यदि कान में कोई फोड़ा अथवा फुसी हो जाए तो डॉक्टर को दिखाना चाहिए। कोई तेज दवाई डालने से कान के पर्दे को .. नुकसान पहुंच सकता है। कान में कभी भी कोई नुकीली चीज़ नहीं मारनी चाहिए। इससे कान में चोट लग सकती है। यदि कान में दर्द है तो समय परं इसका इलाज करवाना चाहिए, नहीं तो पीब (Pus) पड़ने का डर होता है और पर्दा भी गल सकता है। कान को साफ करने के लिए खुरदरे और मोटे तिनके पर अच्छी प्रकार से रूई लपेटकर हाइड्रोजन परऑक्साइड में भिगोकर साफ करें। यह सप्ताह में एक बार अवश्य करें। नहाने के पश्चात् कान के बाहरी भाग को जरूर साफ करना चाहिए। स्वयं को शोरगुल से दूर रखना चाहिए।

प्रश्न 2.
नाखूनों की सफाई करते समय किन-किन बातों की ओर ध्यान देना चाहिए?
उत्तर:
नाखूनों की सफाई के लिए हमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-
(1) नाखून बढ़ने नहीं देने चाहिएँ अर्थात् समय-समय पर बढ़े हुए नाखूनों को काटते रहना चाहिए, ताकि इनमें मैल आदि न जमा हो सके।
(2) खाना खाने से पहले और बाद में हाथ साबुन आदि से धोने चाहिएँ।
(3) नाखून दाँतों से नहीं तोड़ने चाहिएँ। इससे नाखूनों के बीच वाली मैल मुँह द्वारा हमारे शरीर के अंदर पहुँच जाती है और कई प्रकार की बीमारियाँ पैदा करती है।
(4) नाखून ब्लेड और कैची से भी नहीं काटने चाहिएँ, बल्कि इनको नेलकटर से काटना चाहिए।
(5) नाखूनों को सोडियम कार्बोनेट के पानी से धोना चाहिए।
(6) कठोर, खुरदरे, पीले, काले अथवा सफेद धब्बों वाले नाखून डॉक्टर को जरूर दिखा लेने चाहिएँ।
(7) कई फैशन के तौर पर अपने नाखून बढ़ा लेते हैं परंतु ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।

प्रश्न 3.
व्यायाम करने के कोई पाँच लाभ बताएँ। उत्तर-व्यायाम करने से होने वाले लाभ निम्नलिखित हैं
(1) व्यायाम करने से शरीर की माँसपेशियाँ लचकदार तथा मजबूत बनती हैं। शरीर में कार्य करने की क्षमता बढ़ जाती है।
(2) व्यायाम करने से शरीर हृष्ट-पुष्ट रहता है और बुढ़ापा देर से आता है।
(3) व्यायाम करने से भूख अधिक लगती है और पाचन क्रिया ठीक रहती है।
(4) व्यायाम करने से रात को नींद अच्छी आती है।
(5) व्यायाम करने से रक्त का संचार तेज होता है। वृक्क (Kidneys) में रक्त के अधिक पहुंचने से उसके सारे विषैले पदार्थ मूत्र के द्वारा बाहर निकल जाते हैं।

प्रश्न 4.
बालों की सफाई न रखने या करने से होने वाली हानियाँ बताएँ। उत्तर-यदि बालों को सही ढंग से साफ न किया जाए तो इससे निम्नलिखित हानियाँ हो सकती हैं
(1) बालों की सफाई न करने से सिर में सिकरी (Dandruff) हो जाती हैं।
(2) बालों की नियमित सफाई न करने से ये कमजोर हो जाते हैं।
(3) सिर में जुएँ आदि हो जाती हैं।
(4) बालों की सफाई न करने से बाल सड़ने लगते हैं।
(5) समय से पहले बाल सफेद होने लगते हैं।

प्रश्न 5.
भद्दी मुद्रा के मुख्य कारण बताएँ।
उत्तर:
भद्दी मुद्रा के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
(1) भोजन की कमी के कारण शरीर कमजोर हो जाता है, इस कारण मुद्रा भी ठीक नहीं रहती।
(2) व्यायाम न करने से मुद्रा भद्दी हो जाती है।
(3) घर अथवा स्कूल में सही ढंग से बैठने का प्रबंध न होना।
(4) भारी बैग को ठीक ढंग से न पकड़ना।
(5) तंग कपड़े और तंग जूते पहनना भी मुद्रा के लिए हानिकारक हैं।
(6) पढ़ते समय बैठने के लिए सही कुर्सी या मेज का न होना और कुर्सी पर ठीक से न बैठना।

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 2 व्यक्तिगत स्वास्थ्य का अर्थ एवं महत्त्वव

प्रश्न 6.
व्यक्तिगत स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले किन्हीं चार कारकों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
व्यक्तिगत स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले चार कारक निम्नलिखित हैं
(1) व्यक्तिगत स्वास्थ्य को व्यायाम अर्थात् शारीरिक गतिविधियाँ काफी प्रभावित करती हैं। व्यायाम करने से शरीर की उचित वृद्धि एवं विकास होता है। व्यायाम शरीर के सभी अंगों की कार्यक्षमता को सुचारु करने में सहायक होता है। व्यायाम करने से न केवल हमारे व्यक्तिगत स्वास्थ्य का विकास होता है बल्कि यह सर्वांगीण विकास में सहायक होता है।

(2) हमारे व्यक्तिगत स्वास्थ्य को सबसे अधिक भोजन प्रभावित करता है। यदि हमारे भोजन में सभी आवश्यक तत्त्व पर्याप्त मात्रा में हैं तो इनका हमारे व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। हमारे शारीरिक अंगों की कार्यक्षमता बढ़ती है। इसलिए हमारा भोजन संतुलित एवं पौष्टिक होना चाहिए।

(3) हमारे स्वास्थ्य के लिए नशीले पदार्थों का सेवन सबसे अधिक हानिकारक है। इन पदार्थों के सेवन से हमारे शरीर के सभी पहलुओं या पक्षों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इनके सेवन से हमारा शरीर अनेक रोगों से ग्रस्त हो जाता है। इसलिए व्यक्तिगत स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए इन पदार्थों के सेवन से स्वयं को बचाना चाहिए।

(4) व्यक्तिगत स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए भोजन करने संबंधी आदतें भी महत्त्वपूर्ण होती हैं। खाने-पीने की आदतें जितनी उचित होंगी, व्यक्ति का स्वास्थ्य भी उतना अच्छा होगा।

प्रश्न 7.
हमें व्यक्तिगत स्वास्थ्य की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
उत्तर:
हमें व्यक्तिगत स्वास्थ्य की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से पड़ती है
(1) एक अच्छा, स्वस्थ व सुडौल शरीर बनाने के लिए।
(2) माँसपेशियों में निरंतर शक्ति संचार बनाए रखने के लिए।
(3) दाँतों को नष्ट होने से बचाने के लिए।
(4) त्वचा को साफ-सुथरा व स्वस्थ रखने तथा रोगों से मुक्त रखने के लिए।
(5) संक्रमण रोगों की रोकथाम एवं बचाव करने के लिए।
(6) आँख, कान एवं नाक को स्वस्थ तथा रोगों से मुक्त रखने के लिए।
(7) व्यक्ति में ऊर्जा या शक्ति को बनाए रखने तथा कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए।
(8) शरीर में रोगों से लड़ने की शक्ति को बनाए रखने के लिए।

प्रश्न 8.
व्यक्तिगत स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर:
व्यक्तिगत स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिएँ
(1) आयु और आवश्यकतानुसार व्यायाम अथवा सैर करें।
(2) पौष्टिक और संतुलित भोजन खाएँ।
(3) प्रतिदिन स्नान करके साफ व स्वच्छ कपड़े पहनें।
(4) समय-समय पर शरीर का डॉक्टरी परीक्षण करवाएँ।
(5) अच्छी आदतों को अपनाएँ।

प्रश्न 9.
त्वचा के हमारे शरीर के लिए क्या लाभ हैं?
अथवा
त्वचा के प्रमुख कार्य क्या हैं?
उत्तर:
त्वचा के हमारे शरीर के लिए निम्नलिखित लाभ या कार्य हैं-
(1) त्वचा शरीर को ढककर रखती है।
(2) यह शरीर का तापमान स्थिर रखती है।
(3) यह शरीर के अंदर बीमारी के कीटाणुओं को प्रवेश होने से रोकती है।
(4) त्वचा शरीर को सुंदरता प्रदान करती है।

प्रश्न 10.
त्वचा की सफाई के लिए किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? अथवा नहाते समय हमें किन नियमों की पालना करनी चाहिए?
उत्तर:
त्वचा हमारे शरीर की चारदीवारी है। यह हमारे शरीर के आंतरिक अंगों को ढकती है और उसकी रक्षा करती है। यह हमारे शरीर का तापमान ठीक रखती है। इसके द्वारा हमारे शरीर में से पसीना और अन्य बदबूदार पदार्थों का निकास होता है। इसको स्पर्श करने से ही किसी बाहरी वस्तु के गुण और लक्षणों का ज्ञान होता है। त्वचा शरीर को सुंदरता प्रदान करती है। इसलिए हमें अपनी त्वचा की नियमित सफाई करनी चाहिए और इसकी सफाई का सबसे उत्तम ढंग प्रतिदिन स्वच्छ पानी से स्नान करना या नहाना है। नहाने के लिए निम्नलिखित नियमों का पालन करना बहुत आवश्यक है
(1) नहाने से पहले पेट साफ और खाली होना चाहिए।
(2) खाने के तुरंत पश्चात् नहीं नहाना चाहिए।
(3) व्यायाम अथवा बहुत थकावट के एकदम पश्चात् नहीं नहाना चाहिए।
(4) सर्दियों में नहाने से पहले धूप में शरीर की मालिश करें। यह शरीर को विटामिन ‘डी’ देने के लिए उपयोगी होता है।
(5) ताजे और स्वच्छ पानी से नहाना लाभदायक होता है।
(6) नहाने के लिए साबुन का प्रयोग कम करना चाहिए। नहाने के लिए उपयुक्त साबुन, जिसमें क्षार की मात्रा कम हो, प्रयोग में लेना हितकर है।
(7) नहाने के पश्चात् शरीर को साफ तौलिए या साफ कपड़े से पौंछकर स्वच्छ कपड़े पहनने चाहिएँ।
(8) शरीर को पौंछने के लिए अपने स्वयं का ही तौलिया काम में लाना चाहिए।

प्रश्न 11.
बालों की सफाई और संभाल कैसे करनी चाहिए?
उत्तर:
बालों की सफाई और संभाल निम्नलिखित प्रकार से करनी चाहिए
(1) नहाने के पश्चात् बालों को तेल लगाएँ परंतु बाल बहुत चिकने न हों।
(2) प्रतिदिन सुबह और सोने से पहले बालों में कंघी करनी चाहिए।
(3) हमें कभी भी गिले बालों में कंघी नहीं करनी चाहिए।
(4) बालों को हमेशा हर्बल व प्राकृतिक शैंपू से ही धोना चाहिए।
(5) बालों पर कंघी करने के बाद इसको साफ कर लेना चाहिए और दूसरों की कंघी कभी भी प्रयोग नहीं करनी चाहिए।
(6) बालों की चमक एवं मजबूती हेतु सप्ताह में एक बार बालों पर तेल की मालिश जरूर करनी चाहिए।

प्रश्न 12.
व्यायाम करते समय कौन-कौन-सी सावधानियाँ अपनानी चाहिएँ? उत्तर-व्यायाम करते समय निम्नलिखित सावधानियाँ अपनानी चाहिएँ
(1) व्यायाम सदैव खुली हवा, खुली जगह पर करना चाहिए अर्थात् खुले एवं स्वच्छ वातावरण में करना चाहिए। इससे रक्त में अधिक ऑक्सीजन जाती है।
(2) व्यायाम करने के शीघ्र बाद नहाना नहीं चाहिए। इससे स्वास्थ्य बिगड़ने का डर रहता है।
(3) व्यायाम प्रात:काल या सायंकाल करना चाहिए। खाना खाने के तुरंत बाद किसी भी प्रकार का व्यायाम लाभदायक नहीं होता।
(4) शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्तियों एवं वृद्धों को आसान व्यायाम करने चाहिएँ।
(5) व्यायाम के बाद थोड़ा विश्राम करना चाहिए।
(6) व्यायाम करने के पश्चात् कुछ समय शरीर को ढीला छोड़कर लंबे तथा गहरे साँस लेने चाहिएँ।
(7) बीमारी में या बीमारी से उठने के शीघ्र बाद व्यायाम नहीं करना चाहिए।
(8) व्यायाम करते समय न अधिक तंग और न अधिक खुले कपड़े पहनने चाहिएँ।
(9) व्यायाम सदा सावधानी से और नियमों के अनुसार ही करना चाहिए।

प्रश्न 13.
दाँतों की संभाल कैसे की जानी चाहिए?
उत्तर:
दाँतों की संभाल अच्छी सेहत के लिए बहुत जरूरी है, इसलिए इनकी संभाल के लिए निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिएँ.
(1) प्रतिदिन सुबह-शाम ब्रश करना चाहिए।
(2) बहुत गर्म और बहुत ठंडी चीजें खाने से परहेज करें।
(3) यदि दाँत में खोल हो जाए तो तुरंत भरवा लेना चाहिए।
(4) प्रतिदिन कीकर, नीम और फलाही या टाहली की दातुन यदि संभव हो तो करें।
(5) प्रतिदिन खाने के पश्चात् साफ पानी से कुल्ला करें और सुबह-शाम दंत-मंजन करें।

प्रश्न 14.
व्यक्तिगत स्वास्थ्य की महत्ता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
हमारे लिए व्यक्तिगत स्वास्थ्य बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह हमारे लिए निम्नलिखित प्रकार से उपयोगी होता है
(1) जो व्यक्ति अपने व्यक्तिगत स्वास्थ्य के प्रति सजग रहता है उसका व्यक्तित्व आकर्षित एवं प्रभावित होता है।
(2) शरीर की छवि आत्म-सम्मान, आत्म-विश्वास आदि को प्रभावित करती है। अत: व्यक्तिगत स्वास्थ्य से आत्मविश्वास में बढोत्तरी होती है।
(3) व्यक्तिगत स्वास्थ्य के कारण अनेक प्रकार की बीमारियों से बचा जा सकता है।
(4) व्यक्तिगत स्वास्थ्य के कारण शारीरिक अंगों; जैसे आँख, नाक, कान, त्वचा, दाँत आदि पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
(5) व्यक्तिगत स्वास्थ्य के कारण हमारी कार्यक्षमता एवं योग्यता में वृद्धि होती है।
(6) व्यक्तिगत स्वास्थ्य के कारण हमारा शरीर नीरोग रहता है। हमारे शरीर की रोग निरोधक क्षमता पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है।
(7) व्यक्तिगत स्वास्थ्य हमारे आसन को ठीक करने में सहायक होता है।
(8) यह हमारी हीन भावनाओं को दूर करने में सहायक होता है।
(9) यह हमारे व्यक्तित्व को आकर्षक एवं प्रभावशाली बनाने में हमारी सहायता करता है।
(10) यह हमारी अच्छी आदतों को विकसित करने में सहायता करता है।

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प्रश्न 15.
लेटते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
लेटते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए
(1) लेटते समय शरीर विश्राम की स्थिति में होना चाहिए।
(2) तकिया बहुत बड़ा नहीं होना चाहिए।
(3) सोते समय शरीर प्राकृतिक रूप से टिका होना चाहिए।
(4) सोते समय कठोर गद्दे का प्रयोग करना चाहिए। ऐसे गद्दे पर लेटने से शरीर का आसन सही रहता है।
(5) कभी भी लेटकर नहीं पढ़ना चाहिए।

प्रश्न 16.
मुद्रा ठीक रखने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर:
मुद्रा ठीक रखने के लिए निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिएँ
(1) बच्चों को ठीक मुद्रा के बारे में जानकारी देनी चाहिए। स्कूल में अध्यापकों और घर में माँ-बाप का कर्तव्य है कि बच्चों की खराब मुद्रा को ठीक करने के लिए निरंतर प्रयास करें।
(2) भोजन की कमी के कारण आई कमजोरी को ठीक करना चाहिए।
(3) बच्चों को न तो तंग कपड़े पहनने चाहिएँ और न ही तंग जूते।
(4) हमें गलत ढंग से न तो चलना चाहिए और न ही पढ़ना और बैठना चाहिए।
(5) उचित और पूरी नींद लेनी चाहिए।
(6) बच्चों के स्कूल बैग का भार हल्का होना चाहिए।
(7) आवश्यकतानुसार डॉक्टरी परीक्षण करवाते रहना चाहिए ताकि मुद्रा-त्रुटि को समय पर ठीक किया जा सके।
(8) हमारे घरों, स्कूलों और कॉलेजों में ठीक मुद्रा की जानकारी देने वाले चित्र लगे होने चाहिएँ।
(9) घरों और स्कूलों में पूरे कद वाला शीशा लगा होना चाहिए जिसके आगे खड़े होकर बच्चा अपनी मुद्रा देख सके।
(10) सोते समय शरीर को अधिक मोड़ना नहीं चाहिए।

प्रश्न 17.
व्यक्तिगत स्वास्थ्य के प्रमुख नियमों का उल्लेख कीजिए। उत्तर-व्यक्तिगत स्वास्थ्य के प्रमुख नियम निम्नलिखित हैं
(1) शरीर के आंतरिक अंगों; जैसे दिल, फेफड़े, जिगर, आमाशय, तिल्ली, गुर्दे और बाहरी अंग; जैसे हाथ, आँख, कान, नाक, दाँत, त्वचा, पैर और बाल आदि की जानकारी प्राप्त करके इनकी संभाल करनी चाहिए।
(2) अपनी आयु के अनुसार और समय पर नींद लेनी चाहिए।
(3) समय-समय पर अपने शरीर का डॉक्टरी परीक्षण करवाना चाहिए।
(4) सदा साफ-सुथरे कपड़े पहनने चाहिएँ और संतुलित भोजन का प्रयोग करना चाहिए।
(5) कपड़ों और घर को सदा साफ रखना चाहिए।
(6) सदा प्रसन्न रहना चाहिए।
(7) ऋतु और मौसम के अनुसार पहनावा पहनना चाहिए।
(8) खुले एवं स्वच्छ वातावरण में रहना चाहिए।
(9) सदा नाक द्वारा श्वास लेनी चाहिए।

प्रश्न 18.
हाथों की सफाई करने की विधि बताइए।
उत्तर:
हाथ हमारे शरीर के ऐसे अंग हैं, जिनके द्वारा प्रत्येक कार्य किए जाते हैं; जैसे-खाना-पीना, लिखना, घरेलू कार्य करना आदि। हमें खाना खाते समय, खाना खाने के बाद तथा किसी भी कार्य को करने के बाद अच्छी तरह हाथ साफ करने चाहिएँ। हाथ साफ करने की विधि निम्नलिखित हैं
(1) पानी के बहाव को समायोजित करें जिससे यह छलके न।
(2) अपने हाथों को गीला करें।
(3) अपने गीले हाथों पर साबुन लगाकर अच्छे से रगड़ें।
(4) हथेलियों, हाथों के पिछले भाग और कलाइयों पर झाग मलें। अपने हाथों को सभी तरफ, अपनी उंगलियों के बीच और अपने नाखूनों के आस-पास कम-से-कम 20 सेकिण्ड तक रगड़ें। अपने नाखूनों के नीचे और आस-पास सफाई करने के लिए नाखून के ब्रश या किसी पुराने टूथब्रश का इस्तेमाल कर सकते हैं।
(5) अपने हाथों को चलते पानी से अच्छी तरह से धोएँ।
(6) पानी के नल को बन्द करने के लिए अपने हाथ में कागज़ या साफ तौलिए का उपयोग करें। इससे आपका साफ हाथ नल के हैंडल, जो साफ नहीं होता, से छूने से बचा रहता है।
(7) अब अपने हाथों को सुखा लें।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न  [Very Short Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
व्यक्तिगत स्वास्थ्य से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
व्यक्तिगत स्वास्थ्य दो शब्दों से मिलकर बना है-‘व्यक्ति’ एवं स्वास्थ्य’। इससे स्पष्ट होता है कि स्वास्थ्य की सफाई के सिद्धांत जो व्यक्ति द्वारा व्यक्तिगत स्तर पर व्यवहार में लाए जाते हैं। इसके लिए व्यक्ति को स्वयं ही प्रयत्नशील होना पड़ता है। व्यक्तिगत स्वास्थ्य संबंधी आचरण; जैसे शरीर की स्वस्थता, दाँतों की सफाई, आँखों की सफाई, बालों की सफाई, हाथों की सफाई, भोजन, आहार, व्यायाम तथा मद्यपान संबंधी नियमों का पालन आदि इसके अंतर्गत आते हैं। इनके प्रति लापरवाही हमारे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल सकती है। उदाहरण के लिए, दाँतों की सफाई न करने से दाँतों पर जमे रोगाणुओं से दाँतों में कृमि एवं अन्य विकार पैदा हो सकते हैं। इसलिए हमें व्यक्तिगत स्वच्छता की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।

प्रश्न 2.
त्वचा की सफाई रखनी क्यों आवश्यक है? अथवा त्वचा की सफाई की क्या आवश्यकता है?
उत्तर:
यदि त्वचा की सफाई न रखी जाए तो पसीना और त्वचा में से निकले हुए बदबूदार पदार्थ शरीर पर जम जाते हैं, जिसके कारण शरीर को त्वचा की बीमारियाँ लगने का डर रहता है। इसलिए त्वचा की सफाई रखना उतना ही आवश्यक है, जितना कि जीवित रहने के लिए भोजन।

प्रश्न 3.
अच्छी मुद्रा क्या है?
उत्तर:
अच्छी मुद्रा का अर्थ, व्यक्ति के सही एवं उचित संतुलन से है जब वह बैठा हो, खड़ा हो, पढ़ रहा हो, पैदल चल रहा हो, भाग रहा रहो या कोई क्रिया कर रहा हो। इसका अर्थ यह है कि अच्छी मुद्रा शरीर की वह स्थिति है जिससे व्यक्ति को थकान महसूस नहीं होती या बहुत कम होती है।

प्रश्न 4.
बालों की सफाई क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
बालों की सफाई करने से बाल मजबूत और स्वस्थ बने रहते हैं। बालों को हमेशा हर्बल या प्राकृतिक शैंपू से साफ करना चाहिए, क्योंकि इससे बालों को आवश्यक पोषण मिलता है और लम्बे समय तक बाल सुरक्षित रहते हैं।

प्रश्न 5.
गीले बालों में कंघी क्यों नहीं करनी चाहिए?
उत्तर:
गीले बालों में कंघी करने से बाल कमजोर होकर टूटने लगते हैं। इसलिए गीले बालों में कंघी नहीं करनी चाहिए। गीले बालों को सुखाने के बाद ही कंघी करनी चाहिए।

प्रश्न 6.
कान के पर्दे के बचाव के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर:
कान का पर्दा एक नर्म झिल्ली का बना हुआ होता है, जिसका बचाव बहुत आवश्यक होता है। इसलिए गले की बीमारियों और जुकाम का तुरंत इलाज किया जाए। कान में कोई सख्त और तीखी चीज न डाली जाए। कान में दर्द होने पर कानों में बोरिक एसिड ग्लिसरीन में मिलाकर डालें। मोटे तिनके पर रूई लपेटकर हाइड्रोजन परऑक्साइड में भिगोकर कान साफ करें।

प्रश्न 7.
क्या ठीक चाल शरीर को आकर्षक बनाती है?
अथवा
व्यक्तिगत स्वास्थ्य में चलने की उचित मुद्रा किस प्रकार से सहायक है?
अथवा
चलने की सही मुद्रा क्या है?
उत्तर:
अंग्रेजी भाषा में इसको गेट और पंजाबी में चाल अथवा तोर आदि कहा जाता है। हमारी चाल हमेशा सही होनी चाहिए। ठीक चाल से अच्छा प्रभाव पड़ता है। चलते समय पंजे और एड़ियों पर ठीक भार पड़ना चाहिए। अच्छी चाल वाला व्यक्ति प्रत्येक मनुष्य को अपनी ओर आकर्षित करता है। चलते समय पैरों का अंतर समान रहना चाहिए। हाथ आगे-पीछे आने-जाने चाहिए। घुटने आपस में टकराने नहीं चाहिएँ। चलते समय पैरों की रेखाएँ चलने की दिशा की रेखा के समान होनी चाहिएँ।

प्रश्न 8.
नाक के बाल किस प्रकार से लाभदायक हैं?
उत्तर:
हमें हमेशा नाक द्वारा श्वास लेना चाहिए। नाक में छोटे-छोटे बाल होते हैं। वायु के कीटाणु और मिट्टी इनमें रुक जाती हैं जिससे हमारे अंदर साफ वायु जाती है। नाक के बालों को कभी भी काटना और तोड़ना नहीं चाहिए। यदि हमारे नाक के अंदर ये बाल न हों तो हमारे शरीर के अंदर गंदी हवा प्रवेश कर जाएगी और हमारा शरीर रोग का शिकार हो जाएगा।

प्रश्न 9.
हमें किस आसन में लेटना चाहिए? अथवा व्यक्तिगत स्वास्थ्य में लेटने की उचित मुद्रा किस प्रकार से सहायक है? अथवा लेटने की सही मुद्रा क्या है?
उत्तर:
लेटते समय हमारा शरीर विश्राम अवस्था में और शांत होना चाहिए। सोते समय शरीर प्राकृतिक तौर पर टिका होना चाहिए। हमें सोते समय कभी भी गलत ढंग से नहीं लेटना चाहिए। इससे हमारे रक्त के संचार पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे श्वास क्रिया भी रुक जाने का खतरा पैदा हो सकता है। गर्दन अथवा अन्य किसी भाग की नाड़ी आदि चढ़ जाने का खतरा रहता है।

प्रश्न 10.
व्यक्तिगत स्वास्थ्य में संतुलित एवं पौष्टिक भोजन किस प्रकार सहायक है?
उत्तर:
स्वस्थ जीवन जीने के लिए भोजन ही मुख्य आधार होता है। वास्तव में हमें भोजन की आवश्यकता न केवल शरीर की खोई हुई शक्ति को पुनः प्राप्त करने के लिए होती है, बल्कि शरीर की वृद्धि एवं विकास के लिए और शरीर को नीरोग रखने के लिए भी होती है। इसलिए इन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु व्यक्ति को संतुलित एवं पौष्टिक भोजन का सेवन करना चाहिए। ऐसा भोजन करने से शारीरिक अंगों की कार्यक्षमता पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 2 व्यक्तिगत स्वास्थ्य का अर्थ एवं महत्त्वव

प्रश्न 11.
व्यक्तिगत स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले किन्हीं तीन कारकों के नाम बताएँ।
उत्तर:
(1) व्यायाम,
(2) उचित आसन,
(3) विश्राम एवं निद्रा।

प्रश्न 12.
व्यक्तिगत स्वास्थ्य हेतु.हमें कौन-कौन-सी सफाई करनी चाहिए?
उत्तर:
(1) कपड़ों की सफाई,
(2) आँखों की सफाई,
(3) कान, नाक की सफाई,
(4) दाँतों की सफाई,
(5) मुँह की सफाई,
(6) नाखूनों की सफाई,
(7) त्वचा व बालों की सफाई आदि।

प्रश्न 13.
व्यक्तिगत सफाई (Personal Cleanliness) क्या है?
उत्तर:
व्यक्तिगत सफाई या स्वच्छता से अभिप्राय व्यक्ति का तन, मन और आत्मा से शुद्ध और निर्मल होना है। इसमें व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्वच्छता शामिल है। व्यावहारिक रूप में व्यक्तिगत सफाई का तात्पर्य शरीर के अंगों की साफ-सफाई से है।

प्रश्न 14.
नाक साफ न करने से क्या हानि हो सकती है?
उत्तर:
नाक साफ न करने से हमारे शरीर के अंदर गंदी हवा व धूल-कण प्रवेश कर जाएँगे और हमारा शरीर रोगग्रस्त हो जाएगा; जैसे जुकाम आदि हो जाना।

प्रश्न 15.
आराम और नींद में क्या अंतर है?
उत्तर:
आराम और नींद दोनों ही हमारी खोई हुई ऊर्जा या शक्ति को पुनः प्राप्त करने के लिए बहुत ही आवश्यक हैं। आराम या विश्राम के लिए हमारी आखें कभी-कभी बंद रहती हैं, परन्तु हमारा मस्तिष्क सचेत अवस्था में होता है और सक्रिय रूप से कार्य करता है। आराम की अवस्था में हमें आस-पास की गतिविधियों की जानकारी रहती है। दूसरी ओर, नींद की अवस्था में हमारा मस्तिष्क सक्रिय रूप से कार्य नहीं करता। इस अवस्था में हमें आस-पास के वातावरण व गतिविधियों के बारे में कोई चेतना नहीं रहती।

HBSE 9th Class Physical Education व्यक्तिगत स्वास्थ्य का अर्थ एवं महत्त्व Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न [Objective Type Questions]

प्रश्न 1.
हमें अपने बढ़े हुए नाखून किससे काटने चाहिएँ?
उत्तर:
हमें अपने बढ़े हुए नाखून नेलकटर से काटने चाहिएँ।

प्रश्न 2.
हमें शुद्ध और साफ वायु कैसे प्राप्त हो सकती है?
उत्तर:
खुली वायु में रहने और नाक द्वारा श्वास लेने से शुद्ध और साफ वायु प्राप्त हो सकती है।

प्रश्न 3.
त्वचा शरीर में से अनावश्यक पदार्थों का निकास किस रूप में करती है?
उत्तर:
त्वचा शरीर में से अनावश्यक पदार्थों का निकास पसीने के रूप में करती है।

प्रश्न 4.
त्वचा शरीर को क्या प्रदान करती है?
उत्तर:
त्वचा शरीर को सुंदरता प्रदान करती है।

प्रश्न 5.
त्वचा की सफाई का सबसे उत्तम ढंग कौन-सा होता है?
उत्तर:
ताजे पानी से स्नान करना।

प्रश्न 6.
बालों की सुंदरता के लिए बालों का किस प्रकार का होना आवश्यक है?
उत्तर:
घना, मजबूत व चमकदार।

प्रश्न 7.
बालों की सफाई न रखने से बालों में क्या पड़ जाती हैं?
उत्तर:
बालों की सफाई न रखने से बालों में सिकरी व जुएँ पड़ जाती हैं।

प्रश्न 8.
व्यक्तिगत स्वास्थ्य का कोई एक नियम बताएँ।
उत्तर:
खुले एवं स्वच्छ वातावरण में रहना।

प्रश्न 9.
नाक द्वारा श्वास क्यों लेना चाहिए?
उत्तर:
नाक द्वारा श्वास लेने से हवा कीटाणुरहित, गर्म होकर व छनकर फेफड़ों में प्रवेश करती है।

प्रश्न 10.
दाँतों की संभाल के लिए क्या नहीं खाना चाहिए?
उत्तर:
दाँतों की संभाल के लिए अधिक मिठाइयाँ, ठंडी चीजें व अधिक गर्म चीजें नहीं खानी चाहिएँ।

प्रश्न 11.
त्वचा की कितनी परतें होती हैं?
उत्तर:
त्वचा की दो परतें होती हैं।

प्रश्न 12.
व्यक्तिगत स्वास्थ्य हेतु कोई एक अच्छी आदत बताएँ।
उत्तर:
जल्दी सोना और जल्दी उठना।

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प्रश्न 13.
हमें कैसे वातावरण में सैर करनी चाहिए?
उत्तर:
हमें स्वच्छ एवं खुले वातावरण में सैर करनी चाहिए।

प्रश्न 14.
हमें किस प्रकार का भोजन करना चाहिए?
उत्तर:
हमें पौष्टिक एवं संतुलित भोजन करना चाहिए।

प्रश्न 15.
कान की सफाई किस प्रकार करनी चाहिए?
उत्तर:
कान की सफाई खुरदरे तिनके पर रुई लपेटकर ग्लिसरीन का प्रयोग करके करनी चाहिए।

प्रश्न 16.
हमें दाँतों की सफाई कब करनी चाहिए?
उत्तर:
हमें दाँतों की सफाई सुबह स्नान करने से पहले और रात को सोने से पहले करनी चाहिए।

प्रश्न 17.
हमें कपड़े किसके अनुसार पहनने चाहिएँ?
उत्तर:
हमें कपड़े मौसम के अनुसार पहनने चाहिएँ।

प्रश्न 18.
हमें कब नहीं नहाना चाहिए?
उत्तर:
हमें व्यायाम करने और खाना खाने के तुरंत बाद नहीं नहाना चाहिए।

प्रश्न 19.
वयस्क व्यक्ति को कितने घंटे सोना चाहिए?
उत्तर:
वयस्क व्यक्ति को लगभग 8 घंटे सोना चाहिए।

प्रश्न 20.
व्यक्तिगत स्वास्थ्य को बढ़ावा कैसे दिया जा सकता है?
उत्तर:
शरीर के अंगों की उचित सफाई करके व्यक्तिगत स्वास्थ्य को बढ़ावा दिया जा सकता है।

प्रश्न 21.
आँखों की सफाई न करने से कौन-सा रोग सामान्यतया हो सकता है?
उत्तर:
सामान्यतया आँखों की सफाई न करने से फ्लू नामक रोग हो सकता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न [Multiple Choice Questions]

प्रश्न 1.
आँखों की सफाई न रखने से कौन-से रोग हो जाते हैं?
(A) आँखों का फ्लू
(B) आँखों की जलन
(C) कुकरे
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 2.
व्यक्ति के जीवन की अनमोल वस्तु कौन-सी है?
(A) आराम
(B) पैसा
(C) स्वास्थ्य
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) स्वास्थ्य

प्रश्न 3.
व्यक्तिगत स्वच्छता संबंधी नियमों की पालना कब से आरंभ की जानी चाहिए?
(A) युवावस्था से
(B) प्रौढ़ावस्था से
(C) बुढ़ापे में
(D) बचपन से
उत्तर:
(D) बचपन से

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प्रश्न 4.
हमें स्नान कब करना चाहिए?
(A) शौचादि के पश्चात्
(B) खाना खाने से पहले
(C) (A) और (B) दोनों ।
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

प्रश्न 5.
व्यायाम अथवा कार्य करने के पश्चात् कब नहाना चाहिए?
(A) तुरंत
(B) 5 मिनट बाद…
(C) शरीर को ठंडा करने के बाद
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) शरीर को ठंडा करने के बाद

प्रश्न 6.
नहाने से पहले धूप में बैठकर शरीर की मालिश किस मौसम में करनी चाहिए?
(A) गर्मियों में
(B) सर्दियों में
(C) वर्षा में
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) सर्दियों में

प्रश्न 7.
आँखों की सफाई हेतु हमें ध्यान देना चाहिए
(A) आँखों की नियमित सफाई की ओर
(B) आँखों के लिए आवश्यक खाद्य पदार्थ की ओर
(C) आँखों की नियमित चिकित्सा जाँच की ओर
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 8.
शरीर का सबसे कोमल अंग कौन-सा है?
(A) नाक
(B) कान
(C) आँख
(D) सिर
उत्तर:
(C) आँख

प्रश्न 9.
नंगी आँख से सूर्य की ओर कब बिल्कुल नहीं देखना चाहिए?
(A) सूर्योदय के समय
(B) सूर्यास्त के समय
(C) सूर्यग्रहण के समय
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) सूर्यग्रहण के समय

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प्रश्न 10.
पढ़ते समय किताब आँखों से कितनी दूर रखनी चाहिए?
(A) लगभग 40 सेंटीमीटर
(B) लगभग 60 सेंटीमीटर
(C) लगभग 30 सेंटीमीटर
(D) लगभग 50 सेंटीमीटर
उत्तर:
(C) लगभग 30 सेंटीमीटर

प्रश्न 11.
दाँतों के लिए कौन-से वृक्ष की दातुन करना लाभदायक होता है?
(A) नीम की
(B) कीकर की
(C) फलाही या टाहली की
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 12.
कान का कौन-सा भाग बहुत नर्म झिल्ली का बना होता है?
(A) बाह्य कान
(B) आंतरिक कान
(C) कान का पर्दा
(D) कर्णपट उ
त्तर:
(C) कान का पर्दा

प्रश्न 13.
व्यक्तिगत स्वास्थ्य के नियम निम्नलिखित हैं
(A) नियमित डॉक्टरी परीक्षण करवाना चाहिए
(B) स्वच्छ वातावरण में रहना चाहिए
(C) संतुलित एवं पौष्टिक भोजन खाना चाहिए
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 14.
“जल्दी सोना और जल्दी उठना, व्यक्ति को समृद्ध, स्वस्थ एवं बुद्धिमान बनाता है।” यह कथन है
(A) बेंजामिन फ्रैंकलिन का
(B) स्वामी विवेकानंद का
(C) गाँधी जी का
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) बेंजामिन फ्रैंकलिन का

प्रश्न 15. कान की सफाई करनी चाहिए
(A) सिर की सूई से
(B) खुरदरे मोटे तिनके पर रूई लपेटकर
(C) कठोर एवं नोकदार सिलाई से
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) खुरदरे मोटे तिनके पर रूई लपेटकर

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प्रश्न 16.
खाना खाते समय क्या करना चाहिए?
(A) खाना खाने से पहले हाथ और नाखून साबुन से धोने चाहिएँ
(B) भोजन चबाकर खाना चाहिए
(C) भोजन बिना बोले करना चाहिए
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 17.
व्यक्तिगत स्वास्थ्य हेतु निम्नलिखित कथन सही है
(A) प्रतिदिन उठने के बाद साफ पानी से मुँह धोना चाहिए
(B) शौच से निवृत्त के बाद दाँतों की सफाई करनी चाहिए
(C) हमेशा हाथ धोकर ही भोजन करना चाहिए
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 18.
हमें त्वचा की देखभाल हेतु करना चाहिए
(A) नियमित रूप से ताजे पानी से नहाना चाहिए
(B) स्वयं को धूल भरे वातावरण से दूर रखना चाहिए
(C) त्वचा की नियमित सफाई करनी चाहिए।
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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व्यक्तिगत स्वास्थ्य का अर्थ एवं महत्त्व Summary

व्यक्तिगत स्वास्थ्य का अर्थ एवं महत्त्व परिचय

प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन का पूरी तरह आनंद लेना चाहता है। जीवन का पूरा आनंद तभी लिया जा सकता है जब व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा हो। अच्छा स्वास्थ्य आचरण व नियमों पर निर्भर करता है। हमारा दैनिक आचरण, रहन-सहन, खान-पान, व्यवहार विचार आदि हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।

व्यक्तिगत स्वास्थ्य (Personal Health):
व्यक्तिगत स्वास्थ्य से अभिप्राय है कि हम कैसे अपने-आपको मेहनत करने के योग्य, स्वस्थ तथा नीरोग बना सकते हैं जिससे हम अपने जीवन का अधिक-से-अधिक लाभ समाज और देश को दे सकें तथा अपने-आपको नीरोग बना सकें। अतः हम कह सकते हैं कि स्वास्थ्य ही व्यक्ति की सबसे बड़ी संपत्ति है। व्यक्तिगत स्वास्थ्य दो शब्दों से मिलकर बना है- ‘व्यक्ति’ एवं ‘स्वास्थ्य’। इससे स्पष्ट होता है कि स्वास्थ्य की सफाई के सिद्धांत जो व्यक्ति द्वारा व्यक्तिगत स्तर पर व्यवहार में लाए जाते हैं। इसके लिए व्यक्ति को स्वयं ही प्रयत्नशील होना पड़ता है। व्यक्तिगत स्वास्थ्य संबंधी आचरण; जैसे शरीर की स्वस्थता, दाँतों की सफाई, आँखों की सफाई, बालों की सफाई, हाथों की सफाई, भोजन या आहार, व्यायाम तथा मद्यपान संबंधी नियमों का पालन आदि इसके अंतर्गत आते हैं। इनके प्रति लापरवाही हमारे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल सकती है।

व्यक्तिगत स्वास्थ्य की आवश्यकता (Importance of Personal Health):
व्यक्तिगत स्वास्थ्य व्यक्ति को निम्नलिखित बातों में सहायता करता है
(1) एक अच्छा, स्वस्थ व सुडौल शरीर बनाने में।
(2) मांसपेशियों में निरंतर शक्ति संचार बनाए रखने में।।
(3) दाँतों को नष्ट होने से बचाने में।
(4) त्वचा को साफ-सुथरा व स्वस्थ रखने तथा रोगों से मुक्त रखने में।
(5) संक्रमण रोगों की रोकथाम एवं बचाव करने में। आँख, कान एवं नाक को स्वस्थ तथा रोगों से मुक्त रखने में।
(6) व्यक्ति में ऊर्जा या शक्ति को बनाए रखने तथा कार्यक्षमता बढ़ाने में।
(7) शरीर में रोगों से लड़ने की शक्ति को बनाए रखने में।

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HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ एवं महत्त्व

Haryana State Board HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ एवं महत्त्व Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Physical Education Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ एवं महत्त्व

HBSE 9th Class Physical Education स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ एवं महत्त्व Textbook Questions and Answers

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न [Long Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
स्वास्थ्य का अर्थ व परिभाषा बताएँ। इसका हमारे लिए क्या महत्त्व है? अथवा स्वास्थ्य की अवधारणा से आप क्या समझते हैं? इसकी हमारे जीवन में क्या उपयोगिता है?
उत्तर:
स्वास्थ्य का अर्थ (Meaning of Health):
स्वास्थ्य से सभी परिचित हैं। सामान्यतया पारस्परिक व रूढ़िगत संदर्भ में स्वास्थ्य से अभिप्राय बीमारी की अनुपस्थिति से लगाया जाता है, परंतु यह स्वास्थ्य का विस्तृत अर्थ नहीं है। स्वास्थ्य व्यक्ति का वह गुण है, जिसमें वह मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ होता है तथा जिसके सभी शारीरिक संस्थान व्यवस्थित रूप से सुचारु होते हैं। इसका अर्थ न केवल बीमारी अथवा शारीरिक कमजोरी की अनुपस्थिति है, अपितु शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक रूप से पूर्णत: स्वस्थ होना भी है। यह एक ऐसी अवस्था है जिसमें व्यक्ति का मन या आत्मा प्रसन्नचित्त और शरीर रोग-मुक्त रहता है।

स्वास्थ्य की परिभाषाएँ (Definitions of Health): विद्वानों ने स्वास्थ्य को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है
1. जे०एफ० विलियम्स (J.E. Williams) के अनुसार, “स्वास्थ्य जीवन का वह गुण है, जिससे व्यक्ति दीर्घायु होकर उत्तम सेवाएं प्रदान करता है।”

2. विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-W.H.O.) के अनुसार, “स्वास्थ्य केवल रोग या विकृति की अनुपस्थिति को नहीं, बल्कि संपूर्ण शारीरिक, मानसिक व सामाजिक सुख की स्थिति को कहते हैं।”

3. वैबस्टर्स विश्वकोष (Webster’s Encyclopedia) के कथनानुसार, “उच्चतम जीवनयापन के लिए व्यक्तिगत, भावनात्मक और शारीरिक स्रोतों को संगठित करने की व्यक्ति की अवस्था को स्वास्थ्य कहते हैं।”

4. रोजर बेकन (Roger Bacon) के अनुसार, “स्वस्थ शरीर आत्मा का अतिथि-भवन और दुर्बल तथा रुग्ण शरीर आत्मा का कारागृह है।”

स्वास्थ्य का महत्त्व या उपयोगिता (Importance or Utility of Health)-अच्छे स्वास्थ्य के बिना कोई भी व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार काम नहीं कर सकता। अस्वस्थ व्यक्ति समाज की एक लाभदायक इकाई होते हुए भी बोझ बन जाता है। एक प्रसिद्ध कहावत है- “Health is Wealth.” अर्थात् स्वास्थ्य ही धन है। यदि हम संपूर्ण रूप से स्वस्थ हैं तो हम जिंदगी में बहुत-सा धन कमा सकते हैं। अच्छे स्वास्थ्य का न केवल व्यक्ति को लाभ होता है, बल्कि जिस समाज या देश में वह रहता है, उस पर इसका अनुकूल प्रभाव पड़ता है। अतः स्वास्थ्य का हमारे जीवन में निम्नलिखित प्रकार से भी विशेष महत्त्व है

(1) स्वास्थ्य मानव व समाज का आधार स्तंभ है। यह वास्तव में खुशी, सफलता और आनंदमयी जीवन की कुंजी है।
(2) अच्छे स्वास्थ्य वाले व्यक्ति समाज व राष्ट्र के लिए उपयोगी होते हैं।
(3) स्वास्थ्य के महत्त्व के बारे में अरस्तू ने कहा-“स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क वास करता है।” अतः इस कथन से भी हमारे जीवन में स्वास्थ्य की उपयोगिता व्यक्त हो जाती है।
(4) स्वास्थ्य व्यक्ति के व्यक्तित्व को सुधारने व निखारने में सहायक होता है।
(5) अच्छे स्वास्थ्य से हमारा जीवन संतुलित रहता है।
(6) किसी भी देश के नागरिकों के स्वास्थ्य व आर्थिक विकास में प्रत्यक्ष संबंध पाया जाता है। यदि किसी देश के नागरिक शारीरिक रूप से स्वस्थ होंगे तो उस देश का आर्थिक विकास भी उचित दिशा में होगा।
(7) स्वास्थ्य की महत्ता बताते हुए गाँधी जी ने कहा-“स्वास्थ्य ही असली धन है न कि सोने एवं चाँदी के टुकड़े।”

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ एवं महत्त्व

प्रश्न 2.
स्वास्थ्य से आप क्या समझते हैं? स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं का वर्णन कीजिए। अथवा स्वास्थ्य के विभिन्न रूपों अथवा आयामों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वास्थ्य का अर्थ (Meaning of Health)-स्वास्थ्य व्यक्ति का वह गुण है, जिसमें वह मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ होता है तथा जिसके सभी शारीरिक संस्थान व्यवस्थित रूप से सुचारु होते हैं। स्वास्थ्य का अर्थ न केवल बीमारी अथवा शारीरिक कमजोरी की अनुपस्थिति है, अपितु शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ होना भी है। यह ऐसी अवस्था . है जिसमें व्यक्ति का मन या आत्मा प्रसन्नचित और शरीर रोग-मुक्त रहता है।
स्वास्थ्य के विभिन्न आयाम या पहलू (Dimensions or Aspects of Health) स्वास्थ्य के विभिन्न आयाम या पहलू निम्नलिखित हैं

1. शारीरिक स्वास्थ्य (Physical Health):
शारीरिक स्वास्थ्य संपूर्ण स्वास्थ्य का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। इसके अंतर्गत हमें व्यक्तिगत स्वास्थ्य की जानकारी प्राप्त होती है। शारीरिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति के लिए आवश्यक है कि उसके सभी शारीरिक संस्थान सुचारु रूप से कार्य करते हों। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को न केवल शरीर के विभिन्न अंगों की रचना एवं उनके कार्यों की जानकारी होनी चाहिए, अपितु उनको स्वस्थ रखने की भी जानकारी होनी चाहिए। शारीरिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति समाज व देश के विकास एवं प्रगति में भी सहायक होता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को अपने शारीरिक स्वास्थ्य को उत्तम बनाने हेतु संतुलित एवं पौष्टिक भोजन, व्यक्तिगत सफाई, नियमित व्यायाम, चिकित्सा जाँच और नशीले पदार्थों के निषेध आदि की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।

2. मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health):
मानसिक या बौद्धिक स्वास्थ्य के बिना सभी स्वास्थ्य अधूरे हैं, क्योंकि मानसिक स्वास्थ्य का संबंध मन की प्रसन्नता व शांति से है अर्थात् इसका संबंध तनाव व दबाव मुक्ति से है। यदि व्यक्ति का मन चिंतित एवं अशांत रहेगा तो उसका कोई भी विकास पूर्ण नहीं होगा। आधुनिक युग में मानव जीवन इतना व्यस्त हो गया है कि उसका जीवन निरंतर तनाव, दबाव व चिंताओं से घिरा रहता है। परन्तु जिन व्यक्तियों का मानसिक स्वास्थ्य उत्तम होता है वे आधुनिक संदर्भ में भी स्वयं को चिंतामुक्त अनुभव करते हैं। मानसिक अस्वस्थता के कारण न केवल मानसिक रोग हो जाते हैं बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य भी गिर जाता Meaning and Importance of Health Education है और शारीरिक कार्य-कुशलता में भी कमी आ जाती है। अत: व्यक्ति को अपने मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए तनाव व दबाव से दूर रहना चाहिए, उचित विश्राम करना चाहिए और सकारात्मक सोच रखनी चाहिए।

3. सामाजिक स्वास्थ्य (Social Health):
सामाजिक स्वास्थ्य भी स्वास्थ्य का एक महत्त्वपूर्ण रूप है। यह व्यक्ति की सामाजिक सुरक्षा पर निर्भर करता है। व्यक्ति सामाजिक प्राणी होने के नाते समाज के नियमों, मान-मर्यादाओं आदि का पालन करता है। यदि एक व्यक्ति अपने परिवार व समाज के प्रति अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत है तो उसे सामाजिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति कहा जाता है। सामाजिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति सैद्धांतिक, वैचारिक, आत्मनिर्भर व जागरूक होता है। वह अनेक सामाजिक गुणों; जैसे आत्म-संयम, धैर्य, बंधुत्व, आत्म-विश्वास आदि से पूर्ण होता है। समाज, देश, परिवार व जीवन के प्रति उसका दृष्टिकोण रचनात्मक व सकारात्मक होता है।

4. संवेगात्मक या भावनात्मक स्वास्थ्य (Emotional Health):
संवेगात्मक स्वास्थ्य में व्यक्ति के अपने संवेग; जैसे डर, गुस्सा, सुख, क्रोध, दुःख, प्यार आदि शामिल होते हैं। इसके अंतर्गत स्वस्थ व्यक्ति का अपने संवेगों पर पूर्ण नियंत्रण होता है। वह प्रत्येक परिस्थिति में नियंत्रित व्यवहार करता है। हार-जीत पर वह अपने संवेगों को नियंत्रित रखता है और अपने परिवार, मित्रों व अन्य व्यक्तियों से मिल-जुल कर रहता है।

5. आध्यात्मिक स्वास्थ्य (Spiritual Health):
आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति उसे कहा जाता है जो नैतिक नियमों का पालन करता हो, दूसरों के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करता हो, सत्य व न्याय में विश्वास रखने वाला हो और जो दूसरों को किसी भी प्रकार का कोई नुकसान न पहुँचाए आदि। ऐसा व्यक्ति व्यक्तिगत मूल्यों से संबंधित होता है। दूसरों के प्रति सहानुभूति एवं सहयोग की भावना रखना, सहायता करने की इच्छा आदि आध्यात्मिक स्वास्थ्य के महत्त्वपूर्ण पहलू हैं। आध्यात्मिक स्वास्थ्य की प्राप्ति हेतु मुख्यतः योग व ध्यान सबसे उत्तम माध्यम हैं। इनके द्वारा आत्मिक शांति व आंतरिक प्रसन्नता प्राप्त की जा सकती है।

प्रश्न 3.
स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा बताएँ तथा इसके प्रमुख उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा
स्वास्थ्य शिक्षा को परिभाषित करते हुए इसके उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Health Education)-स्वास्थ्य शिक्षा मनुष्य को स्वास्थ्य के उन सभी मौलिक सिद्धांतों या पहलुओं के बारे में जानकारी देती है जो स्वस्थ जीवन के अच्छे ढंगों, आदतों और व्यवहार का निर्माण करके मनुष्य को आत्मनिर्भर बनाने में सहायता करते हैं। स्वास्थ्य शिक्षा के बारे में विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने विचार निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किए हैं

1. डॉ० थॉमस वुड (Dr. Thomas Wood):
के अनुसार, “स्वास्थ्य शिक्षा उन अनुभवों का समूह है, जो व्यक्ति, समुदाय और सामाजिक स्वास्थ्य से संबंधित आदतों, व्यवहारों और ज्ञान को प्रभावित करते हैं।”

2. प्रसिद्ध स्वास्थ्य शिक्षक ग्राऊंट (Grount):
के अनुसार, “स्वास्थ्य शिक्षा से अभिप्राय है कि स्वास्थ्य के ज्ञान को शिक्षा द्वारा व्यक्तिगत और सामाजिक व्यवहार में बदलना है।”

3.विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation):
के अनुसार, “स्वास्थ्य शिक्षाशारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ रहने की स्थिति को कहते हैं न कि केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ या रोगमुक्त होने को।”

इस प्रकार स्वास्थ्य शिक्षा से अभिप्राय उन सभी बातों और आदतों से है जो व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य के बारे में ज्ञान देती हैं। स्वास्थ्य शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य (Main Objectives of Health Education)-स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्य निम्नलिखित हैं

1. सामाजिक गुणों का विकास (Development of Social Qualities):
स्वास्थ्य शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति में अच्छे सामाजिक गुणों का विकास करके अच्छा नागरिक बनाना है। स्वास्थ्य शिक्षा जहाँ सर्वपक्षीय विकास करके अच्छे व्यक्तित्व को निखारती है, वहीं कई प्रकार के गुण; जैसे सहयोग, त्याग-भावना, साहस, विश्वास, संवेगों पर नियंत्रण एवं सहनशीलता आदि का भी विकास करती है।

2. सर्वपक्षीय विकास (All Round Development):
सर्वपक्षीय विकास से अभिप्राय व्यक्ति के सभी पक्षों का विकास करना है। वह शारीरिक पक्ष से बलवान, मानसिक पक्ष से तेज, भावात्मक पक्ष से संतुलित, बौद्धिक पक्ष से समझदार और सामाजिक पक्ष से स्वस्थ हो। सर्वपक्षीय विकास से व्यक्ति के व्यक्तित्व में बढ़ोत्तरी होती है। वह परिवार, समाज और राष्ट्र की संपत्ति बन जाता है।

3. उचित मनोवृत्ति का विकास (Development of Right Attitude):
स्वास्थ्य शिक्षा का मुख्य उद्देश्य केवल निर्देश देकर ही पूरा नहीं किया जा सकता बल्कि इसे पूरा करने के लिए सकारात्मक सोच की अति-आवश्यकता होती है। स्वास्थ्य संबंधी उचित मनोवृत्ति का विकास तभी हो सकता है, जब प्रत्येक व्यक्ति अपनी आदतें और व्यवहार इस प्रकार परिवर्तित करे कि वे उसकी आवश्यकताओं का अंग बन जाएँ।

4. स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान (Knowledge about Health):
पुराने समय में बच्चों और जन-साधारण में स्वास्थ्य संबंधी बहुत अज्ञानता थी, परन्तु समय बदलने से रेडियो, टी०वी०, अखबारों और पत्रिकाओं ने संक्रामक बीमारियों और उनकी रोकथाम, मानसिक चिंताओं और उन पर नियंत्रण और संतुलित भोजन के गुणों के बारे में वैज्ञानिक ढंग से जानकारी साधारण लोगों तक पहुँचाई है। यह ज्ञान उन्हें अपने स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए प्रेरित करता है।

5. स्वास्थ्य संबंधी नागरिक ज़िम्मेदारी का विकास (To Develop Civic Sense related Health):
स्वास्थ्य शिक्षा का उद्देश्य छात्रों या व्यक्तियों में स्वास्थ्य संबंधी नागरिक ज़िम्मेदारी या उत्तरदायित्व की भावना का विकास करना है।

6. आर्थिक कुशलता का विकास (Development of Economic Efficiency):
आर्थिक कुशलता का विकास तभी हो सकता है अगर स्वस्थ व्यक्ति अपने कामों को सही ढंग से करें। अस्वस्थं मनुष्य अपनी आर्थिक कुशलता में बढ़ोत्तरी नहीं कर सकता। स्वस्थ व्यक्ति जहाँ अपनी आर्थिक कुशलता में बढ़ोत्तरी करता है, वहीं उससे देश की आर्थिक कुशलता में भी बढ़ोत्तरी होती है। इसीलिए स्वस्थ नागरिक समाज व देश के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं । उनको देश की बहुमूल्य संपत्ति कहना गलत नहीं होगा।

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ एवं महत्त्व

प्रश्न 4.
स्वास्थ्य शिक्षा से क्या अभिप्राय है? इसकी महत्ता पर प्रकाश डालिए। अथवा स्वास्थ्य शिक्षा क्या है? इसकी हमारे जीवन में क्या उपयोगिता है? वर्णन करें।
अथवा
स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा बताते हुए उसके महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning of Health Education and Definition):
स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ उन सभी आदतों से है जो किसी व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य के बारे में ज्ञान देती हैं । यह शिक्षा मनुष्य को स्वास्थ्य के उन सभी मौलिक सिद्धांतों के बारे में जानकारी देती है जो स्वस्थ जीवन के अच्छे ढंगों, आदतों और व्यवहार का निर्माण करके मनुष्य को आत्म-निर्भर बनने में सहायता करते हैं। अतः स्वास्थ्य शिक्षा एक ऐसी शिक्षा है जिसके बिना मनुष्य की सारी शिक्षा अधूरी रह जाती है। इस प्रकार स्वास्थ्य शिक्षा से अभिप्राय उन सभी बातों और आदतों से है जो व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य के बारे में ज्ञान देती हैं। विश्व “स्वास्थ्य संगठन के शारीरिक रूप से स्वस्थ या रोगमुक्त होने को।”

स्वास्थ्य शिक्षा की महत्ता या उपयोगिता (Importance or Utility of Health Education):
स्वास्थ्य की हमारे जीवन में विशेष उपयोगिता है। स्वस्थ व्यक्ति ही समाज, देश आदि के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है। अरस्तू ने कहा था कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है। इसलिए हमें अपने स्वास्थ्य की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। स्वास्थ्य शिक्षा व्यक्ति को स्वास्थ्य से संबंधित विशेष जानकारियाँ प्रदान करती है, जिनकी पालना करके व्यक्ति स्वच्छ एवं सुखदायी जीवन व्यतीत कर सकता है। अतः स्वास्थ्य शिक्षा हमारे लिए निम्नलिखित कारणों से महत्त्वपूर्ण व उपयोगी है

1. मानवीय संबंधों को सुधारना (Improvement in Human Relations):
स्वास्थ्य शिक्षा अच्छे मानवीय संबंधों का निर्माण करती है। स्वास्थ्य शिक्षा विद्यार्थियों को यह ज्ञान देती है कि किस प्रकार वे अपने दोस्तों, पड़ोसियों, रिश्तेदारों व समुदाय के

2. बीमारियों से बचाववरोकथाम के विषय में सहायक (Helpful Regarding Prevention and Control of Diseases):
स्वास्थ्य शिक्षा संक्रामक-असंक्रामक बीमारियों से बचाव व उनकी रोकथाम के विषय में हमारी सहायता करती है। इन बीमारियों के फैलने के कारण, लक्षण तथा उनसे बचाव व इलाज के विषय में जानकारी स्वास्थ्य शिक्षा से ही मिलती है।

3. शारीरिक विकृतियों को खोजने में सहायक (Helpful in Discovering Physical Deformations):
स्वास्थ्य शिक्षा शारीरिक विकृतियों को खोजने में सहायक होती है। यह विभिन्न प्रकार की शारीरिक विकृतियों के समाधान में सहायक होती है।

4. स्वास्थ्य संबंधी आवश्यक आदतों को बढ़ाने में सहायक (Helpful in increase the Desirable Health Habits):
स्वास्थ्य शिक्षा जीवन के सिद्धांतों एवं स्वास्थ्य की अच्छी आदतों का विकास करती है; जैसे स्वच्छ वातावरण में रहना।

5. सामाजिक गुणों का विकास (Development of Social Qualities):
स्वास्थ्य शिक्षा व्यक्ति में सामाजिक गुणों का विकास करके उसे अच्छा नागरिक बनाने में सहायक होती है। स्वास्थ्य शिक्षा जहाँ सर्वपक्षीय विकास करके अच्छा व्यक्तित्व निखारती है, वहीं इसके साथ-साथ यह और कई प्रकार के गुण; जैसे सहयोग, त्याग-भावना, साहस, विश्वास, संवेगों पर नियंत्रण एवं सहनशीलता आदि का भी विकास करती है।

6. स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान (Knowledge about Health):
पुराने समय में बच्चों और साधारण लोगों में स्वास्थ्य संबंधी बहुत अज्ञानता थी, परन्तु समय बदलने से रेडियो, टी०वी०, अखबारों और पत्रिकाओं ने शारीरिक बीमारियों और उनकी रोकथाम, मानसिक चिंताओं और उन पर नियंत्रण और संतुलित भोजन के गुणों के बारे में वैज्ञानिक ढंग से जानकारी साधारण लोगों तक पहुँचाई है। स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान के कारण व्यक्तियों का जीवन सुखमय व आरामदायक हुआ है।.

7. स्वास्थ्यप्रद आदतों का विकास (Development of Healthy Habits):
आदत बालक के साथ जीवनपर्यन्त चलती हैं। अत: बालक को स्वास्थ्यप्रद आदतों को अपनाने की कोशिश करनी चाहिए। उदाहरण के तौर पर साफ-सफाई का ध्यान, सुबह जल्दी उठना, रात को जल्दी सोना, खाने-पीने तथा शौच का समय निश्चित होना ऐसी स्वास्थ्यप्रद आदतों को अपनाने से व्यक्ति स्वस्थ तथा दीघार्यु रह सकता है। यह स्वास्थ्य शिक्षा द्वारा ही सम्भव है।

8. प्राथमिक चिकित्सा की जानकारी प्रदान करना (Provide the Knowledge of FirstAid):
स्वास्थ्य शिक्षा द्वारा व्यक्ति को प्राथमिक चिकित्सा प्रदान की जा सकती है जिसके अंतर्गत व्यक्तियों को प्राथमिक चिकित्सा के सामान्य सिद्धांतों की तथा विभिन्न परिस्थितियों में; जैसे साँप के काटने पर, डूबने पर, जलने पर, अस्थि टूटने आदि पर प्राथमिक चिकित्सा की जानकारी प्रदान की जाती है। इस प्रकार की दुर्घटनाएँ कहीं पर भी तथा किसी के भी साथ घट सकती हैं तथा व्यक्ति का जीवन खतरे में पड़ सकता है। ऐसी जानकारी स्वास्थ्य शिक्षा द्वारा ही दी जा सकती है।

9. जागरूकता एवं सजगता का विकास (Development of Awareness and Alertness):
स्वास्थ्य शिक्षा द्वारा एक स्वस्थ व्यक्ति सजग एवं जागरूक रह सकता है। उसके चारों तरफ क्या घटित हो रहा है उसके प्रति वह हमेशा सचेत रहता है। ऐसा व्यक्ति अपने कर्तव्यों एवं अधिकारों के प्रति सजग एवं जागरूक रहता है।

10. सकारात्मक दृष्टिकोण (Positive View):
स्वास्थ्य शिक्षा से व्यक्ति की सोच काफी विस्तृत होती है। वह दूसरे व्यक्तियों को भली-भांति समझता है। उसकी सोच संकीर्ण न होकर व्यापक दृष्टिकोण वाली होती है।

प्रश्न 5.
स्वास्थ्य शिक्षा संबंधी कार्यक्रमों के विभिन्न सिद्धांतों या नियमों का ब्योरा दें। अथवा स्वास्थ्य शिक्षा के कार्यक्रमों के लिए किन-किन बातों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए? अथवा आप अपने स्कूल में स्वास्थ्य शिक्षण कार्यक्रम को कैसे अधिक प्रभावशाली बनाएँगे?
अथवा
स्वास्थ्य शिक्षा के मुख्य सिद्धांतों का विस्तारपूर्वक वर्णन करें।
उत्तर:
स्वास्थ्य शिक्षा संबंधी सिद्धांत अथवा नियम निम्नलिखित हैं
(1) स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम बच्चों की आयु और लिंग के अनुसार होना चाहिए।
(2) स्वास्थ्य शिक्षा के बारे में जानकारी देने का तरीका साधारण और जानकारी से भरपूर होना चाहिए।
(3) स्वास्थ्य शिक्षा पढ़ने-लिखने तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए अपितु उसकी प्राप्तियों के बारे में कार्यक्रम बनाने चाहिएँ।
(4) स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम लोगों या छात्रों की आवश्यकताओं, रुचियों और पर्यावरण के अनुसार होना चाहिए।
(5) मनुष्य का व्यवहार ही उसका सबसे बड़ा गुण है, जिसमें उसकी रुचि ज्यादा है वह उसे सीखने और करने के लिए तैयार रहता है। इसलिए कार्यक्रम बनाते समय बच्चों की उत्सुकता, रुचियों और इच्छाओं का ध्यान रखना चाहिए।
(6) स्वास्थ्य शिक्षा के बारे में जानकारी देते समय जीवन से संबंधित मुश्किलों पर भी बातचीत होनी चाहिए।
(7) स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्तर के अनुसार बनाना चाहिए।
(8) स्वास्थ्य शिक्षा के कार्यक्रम ऐसे होने चाहिएँ जो बच्चों की अच्छी आदतों को उत्साहित कर सकें ताकि वे अपने सोचने के तरीके को बदल सकें।
(9) स्वास्थ्य शिक्षा संबंधी कार्यक्रमों में बुरी आदतों को छोड़ने और अच्छी आदतों को ग्रहण करने हेतु फिल्में, चार्ट, टी०वी०, रेडियो आदि माध्यमों के प्रयोग द्वारा बच्चों को प्रेरित किया जाना चाहिए।
(10) स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम केवल स्कूलों तक ही सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का अंग होना चाहिए।
(11) स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम रुचिपूर्ण, शिक्षा से भरपूर और मनोरंजनदायक होना चाहिए।
(12) स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम प्रस्तुत करते समय लोगों में प्रचलित भाषा का प्रयोग करना चाहिए। यह भाषा उनकी आयु और समझने की क्षमता के अनुसार होनी चाहिए।
(13) स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम बनाते समय संक्रामक-असंक्रामक बीमारियों के बारे में व उनकी रोकथाम के उपायों के बारे में जानकारी देनी चाहिए।
(14) स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम केवल एक व्यक्ति तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि इसका क्षेत्र विशाल होना चाहिए।
(15) स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम लोगों की आंतरिक भावनाओं को जानकर ही बनाना चाहिए।
(16) स्वास्थ्य शिक्षा के कार्यक्रम में पारिवारिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय स्तर के विषय शामिल होने चाहिएँ।

प्रश्न 6.
स्कूली स्वास्थ्य कार्यक्रम के विभिन्न तत्त्व या घटक कौन-कौन-से हैं? वर्णन कीजिए।
अथवा
स्वास्थ्य शिक्षा के मुख्य क्षेत्रों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वास्थ्य शिक्षा का क्षेत्र बहुत विशाल है। यह केवल स्वास्थ्य तक ही सीमित नहीं है। इसमें स्वास्थ्य ज्ञान के अतिरिक्त और बहुत-से घटक शामिल हैं, जिनका आपस में गहरा संबंध होता है। ये सभी घटक बच्चों के स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव डालते हैं। स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम के विभिन्न घटक या क्षेत्र निम्नलिखित हैं

1. स्वास्थ्य सेवाएँ (Health Services):
छात्रों को शिक्षा देने के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य की रक्षा करना भी विद्यालय का मुख्य उत्तरदायित्व माना जाता है। स्वास्थ्य सेवाएँ वे सेवाएँ हैं जिनके माध्यम से छात्रों के स्वास्थ्य की जाँच की जाती है और उनमें पाए जाने वाले दोषों से माता-पिता को अवगत करवाया जाता है ताकि समय रहते उन दोषों का उपचार किया जा सके। इन सेवाओं के अंतर्गत स्कूल के अन्य कर्मचारियों एवं अध्यापकों के स्वास्थ्य की भी जाँच की जाती है।

आधुनिक युग में स्वास्थ्य सेवाओं की बहुत महत्ता है। स्वास्थ्य सेवाओं की सहायता से बच्चे और वयस्क अपने स्वास्थ्य का स्तर , ऊँचा उठा सकते हैं। साधारण जनता को ये सेवाएँ सरकार की ओर से मिलनी चाहिएँ, जबकि स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को स्कूल की ओर से ये सुविधाएँ मिलनी चाहिएँ। स्वास्थ्य सेवाओं का कार्य बच्चों में संक्रामक रोगों को ढूँढकर उनके माता-पिता की सहायता से ठीक करना है। इस कार्य को पूर्ण करने के लिए डॉक्टर, नर्स, मनोरोग चिकित्सक और अध्यापक विशेष योगदान दे सकते हैं।

2. स्वास्थ्यपूर्णस्कूली जीवन या वातावरण (HealthfulSchool Living or Environment):
स्वास्थ्यपूर्ण स्कूली वातावरण का अर्थ है कि स्कूल में संपूर्ण स्वच्छ वातावरण का होना या ऐसे वातावरण का निर्माण करना जिससे छात्रों की सभी क्षमताओं एवं योग्यताओं को विकसित किया जा सके। स्कूल का स्वच्छ वातावरण ही छात्रों के सामाजिक-भावनात्मक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और साथ-ही-साथ उन्हें अधिक-से-अधिक सीखने हेतु प्रेरित करता है।

बच्चे के स्कूल का वातावरण, रहने का स्थान और काम करने का स्थान स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। जिस देश के बच्चे और नवयुवक स्वस्थ होते हैं वह देश प्रगति के रास्ते पर अग्रसर होता है, क्योंकि आने वाला भविष्य उनसे बंधा होता है। बच्चा अपना अधिकांश समय स्कूल में गुजारता है। बच्चे का उचित विकास स्कूल के वातावरण पर निर्भर करता है । यह तभी संभव हो सकता है, अगर साफ़-सुथरा व स्वच्छ स्कूल अर्थात् वातावरण हो। स्वच्छ वातावरण बच्चे और वयस्क दोनों को प्रभावित करता है। स्वच्छ वातावरण केवल छात्रों के लिए ही नहीं, बल्कि अन्य लोगों के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, भावात्मक और नैतिक विकास में भी सहायक होता है।

3. स्वास्थ्य अनुदेशन या निर्देशन (Health Instructions):
स्वास्थ्य निर्देशन का आशय है-स्कूल के बच्चों को स्वास्थ्य संबंधी जानकारी देना। बच्चों को स्वास्थ्य संबंधी ऐसी जानकारी देना कि वे स्वयं को स्वच्छ एवं नीरोग बना सकें।स्वास्थ्य निर्देशन स्वास्थ्य संबंधी अच्छी आदतों एवं दृष्टिकोणों का विकास करते हैं। ये बच्चों को अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाते हैं । इनका मुख्य उद्देश्य बच्चों को स्वास्थ्य संबंधी सभी महत्त्वपूर्ण पहलुओं से अवगत कराना है ताकि वे स्वयं को स्वस्थ रख सकें। स्वास्थ्य संबंधी निर्देशन में वे सभी बातें आ जाती हैं जो स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होती हैं; जैसे अच्छी आदतें, स्वास्थ्य को ठीक रखने के तरीके और सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना आदि। शरीर की बनावट एवं संरचना, संक्रामक रोगों के लक्षण एवं कारण, इनकी रोकथाम या बचाव के उपायों के लिए बच्चों को फिल्मों या तस्वीरों आदि के माध्यम से अपने स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। स्वास्थ्य निर्देशन की जानकारी प्राप्त कर बच्चे अनावश्यक विकृतियों या कमजोरियों का शिकार होने से बच सकते हैं।

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ एवं महत्त्व

प्रश्न 7.
स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए।
अथवा
स्वास्थ्य के प्रमुख निर्धारक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक या तत्त्व निम्नलिखित हैं

1. वंशानुक्रमण (Heredity):
व्यक्ति के मानसिक व शारीरिक गुण जीन (Genes) द्वारा निर्धारित होते हैं। जीन या गुणसूत्र को ही वंशानुक्रमण (Heredity) की इकाई माना जाता है। अतः वंशानुक्रमण द्वारा व्यक्ति का स्वास्थ्य प्रभावित होता है। बहुत-सी बीमारियाँ हैं जो वंशानुक्रमण द्वारा आगामी पीढ़ी को भी हस्तान्तरित हो जाती हैं।

2. वातावरण (Environment):
अच्छे स्वास्थ्य के लिए स्वच्छ वातावरण का होना बहुत आवश्यक होता है। यदि वातावरण प्रदूषित है तो ऐसे वातावरण में व्यक्ति अनेक बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं।

3. संतुलित व पौष्टिक भोजन (Balanced and Nutritive Diet):
भोजन शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है और शरीर को विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बचाता है। यदि हमारा भोजन संतुलित एवं पौष्टिक है तो इसका हमारे स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा

4. सामाजिक-सांस्कृतिक कारक (Social and Cultural Factors):
वातावरण के अतिरिक्त व्यक्ति का अपना सामाजिक व सांस्कृतिक वातावरण भी उसके स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। यदि व्यक्ति और उसके सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण के बीच असामंजस्य है तो इसका उसके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसीलिए व्यक्ति को अपने अच्छे स्वास्थ्य हेतु सामाजिक व सांस्कृतिक वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करना चाहिए। इसमें न केवल उसका कल्याण है बल्कि समाज व देश का भी कल्याण है।

5. आर्थिक कारक (Economic Factors):
स्वास्थ्य आर्थिक कारकों से भी प्रभावित होता है। यदि किसी व्यक्ति की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है अर्थात् गरीब है तो वह अपने परिवार के सदस्यों के लिए न तो संतुलित आहार की व्यवस्था कर पाएगा और न ही उन्हें चिकित्सा सुविधाएँ दे पाएगा। इसके विपरीत यदि किसी व्यक्ति की आर्थिक स्थिति अच्छी है तो वह अपने परिवार के सदस्यों की सभी आवश्यकताएँ पूर्ण कर पाएगा।

प्रश्न 8.
स्वस्थ रहने के लिए व्यक्ति को किन-किन नियमों का पालन करना चाहिए? अथवा अच्छे स्वास्थ्य हेतु हमें किन-किन नियमों का पालन करना चाहिए? उत्तर-स्वस्थ रहने के लिए हमें निम्नलिखित आवश्यक नियमों का पालन करना चाहिए

1. शारीरिक संस्थानों या अगों का ज्ञान (Knowledge of Body Systems or Organs):
हमें अपने शरीर के संस्थानों या अंगों; जैसे दिल, आमाशय, फेफड़े, तिल्ली, गुर्दे, कंकाल संस्थान, माँसपेशी संस्थान, उत्सर्जन संस्थान आदि का ज्ञान होना चाहिए।

2. डॉक्टरी जाँच (Medical Checkup):
समय-समय पर अपने शरीर की डॉक्टरी जाँच भी करवानी चाहिए।

3. पर्याप्त निद्रा व विश्राम (Proper Sleep and Rest):
रात को समय पर सोना चाहिए और शरीर को पूरा विश्राम देना आवश्यक है।

4. व्यायाम (Exercises):
प्रतिदिन व्यायाम या सैर आदि करनी आवश्यक है। हमें नियमित योग एवं आसन आदि भी करने चाहिएँ।

5. नाक से साँस लेना (Breathing by Nose):
हमें हमेशा नाक द्वारा साँस लेनी चाहिए। नाक से साँस लेने से हमारे शरीर को शुद्ध हवा प्राप्त होती है, क्योंकि नाक के बाल हवा में उपस्थित धूल-कणों को शरीर के अंदर जाने से रोक लेते हैं।

6. साफ वस्त्र (Clean Cloth):
हमें हमेशा साफ-सुथरे और ऋतु के अनुसार कपड़े पहनने चाहिएँ।

7. शुद्ध एवं स्वच्छ वातावरण (Pure and Clean Environment):
हमें हमेशा शुद्ध एवं स्वच्छ वातावरण में रहना चाहिए।

8. संतुलित भोजन (Balanced Diet):
हमें ताजा, पौष्टिक और संतुलित भोजन खाना चाहिए।

9. शुद्ध आचरण (Good Conduct):
हमेशा अपना आचरण व विचार शुद्ध व सकारात्मक रखने चाहिएँ और हमेशा खुश एवं सन्तुष्ट रहना चाहिए। कभी भी किसी की बुराई नहीं करनी चाहिए। हमेशा बड़ों का आदर करना चाहिए।

10. मादक वस्तुओं से परहेज (Away from Intoxicants):
अफीम, शराब, चरस, गाँजा, तंबाकू और दूसरी नशीली वस्तुओं के प्रयोग से बचना चाहिए।

11. उचित मनोरंजन (Proper Recreation):
आज के इस दबाव एवं तनाव-युक्त युग में स्वास्थ्य को बनाए रखने हेतु मनोरंजनात्मक क्रियाओं का होना अति आवश्यक है। हमें मनोरंजनात्मक क्रियाओं में अवश्य भाग लेना चाहिए। इनसे हमें आनंद एवं संतुष्टि की प्राप्ति होती है।

12. नियमित दिनचर्या (Daily Routine):
समय पर उठना, समय पर सोना, समय पर खाना, ठीक ढंग से खड़े होना, बैठना, चलना, दौड़ना आदि क्रियाओं से व्यक्ति स्वस्थ रहता है। कपड़ों की सफाई व आस-पास की सफाई दिनचर्या के आवश्यक अंग होने चाहिएँ।

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ एवं महत्त्व

प्रश्न 9.
छात्रों के स्वास्थ्य संबंधी सुधार हेतु शारीरिक शिक्षा का अध्यापक क्या भूमिका निभा सकता है? अथवा शारीरिक शिक्षा का अध्यापक विद्यार्थियों के स्वास्थ्य निर्माण में क्या भूमिका निभाता है? वर्णन करें।
उत्तर:
छात्र अपना अधिकांश समय स्कूल में व्यतीत करते हैं। जितना वे स्कूल के वातावरण में सीखते हैं उतना शायद ही कहीं ओर सीखते हैं। स्कूल के वातावरण में सबसे अधिक वे अध्यापकों से प्रभावित होते हैं । उनको अपना आदर्श मानते हैं। स्कूल में शारीरिक शिक्षा के अध्यापक का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। वह विद्यार्थियों को अच्छे स्वास्थ्य हेतु प्रेरित करता है। शारीरिक शिक्षा का अध्यापक बच्चों के स्वास्थ्य को सुधारने के लिए निम्नलिखित उपाय कर अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देता है या दे सकता है

(1) शारीरिक शिक्षा का अध्यापक छात्रों को उनके व्यक्तिगत स्वास्थ्य हेतु प्रेरित करता है। वह व्यक्तिगत स्वास्थ्य के महत्त्व को ब्रताकर उनके स्वास्थ्य में सुधार कर सकता है।

(2) वह विद्यार्थियों को नियमित दिनचर्या के महत्त्व बताता है। वह छात्रों को नियमित समय पर सोने एवं उठने के लिए प्रोत्साहित करता है। जो छात्र नियमित समय पर सोते एवं उठते हैं वे हमेशा चुस्त एवं फुर्तीले होते हैं। उनमें आलस्य नहीं होता।

(3) वह छात्रों को स्वास्थ्य की महत्ता बताकर उनको अपने स्वास्थ्य हेतु जागरूक करता है। “स्वास्थ्य ही धन है।” यह कथन इस प्रक्रिया में बहुत महत्त्वपूर्ण है।

(4) वह अभिभावकों को भी स्वास्थ्य संबंधी महत्त्वपूर्ण जानकारी देकर अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है ताकि अभिभावक अपने बच्चों के स्वास्थ्य की ओर विशेष रूप से ध्यान दे सकें।

(5) वह स्कूल में स्वास्थ्य संबंधी अनेक कार्यक्रमों का आयोजन करवाकर भी छात्रों के स्वास्थ्य में सुधार कर सकता है।

(6) अधिकांश शारीरिक शिक्षा के अध्यापक चुस्त एवं फुर्तीले होते हैं। वे अपने व्यक्तित्व से भी छात्रों को प्रभावित कर सकते हैं।
(7) वह छात्रों को संक्रामक बीमारियों के कारणों से अवगत करवाता है तथा उनकी रोकथाम के उपाय से भी परिचित करवाता है।
(8) वह छात्रों को भोजन के आवश्यक तत्त्वों की महत्ता के बारे में बताता है। यदि भोजन में सभी आवश्यक तत्त्व पर्याप्त मात्रा में विद्यमान होंगे तो इसका इनके स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा।

(9) वह विद्यार्थियों को नशीले पदार्थों के दुष्परिणामों से अवगत करवाता है।
(10) वह विद्यार्थियों को स्वास्थ्य संबंधी अच्छी आदतों को विकसित करने में सहायता करता है।
(11) शारीरिक शिक्षा का अध्यापक स्कूल में अनेक शारीरिक क्रियाएँ करवाता है जिनका छात्रों के स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 10.
स्वास्थ्य शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आज के बच्चे कल के भविष्य हैं। उनको इस बात का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है कि वे अपने तन व मन को किस प्रकार से स्वस्थ रख सकते हैं। एक पुरानी कहावत है-“स्वास्थ्य ही जीवन है।” अगर धन खो दिया तो कुछ खास नहीं खोया, लेकिन यदि स्वास्थ्य खो दिया तो सब कुछ खो दिया। अतः सुखी व प्रसन्नमय जीवन व्यतीत करने के लिए उत्तम स्वास्थ्य का होना बहुत आवश्यक है। एक स्वस्थ व्यक्ति अपने परिवार, समाज तथा देश के लिए हर प्रकार से सेवा प्रदान कर सकता है, जबकि अस्वस्थ या बीमार व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकता। तन व मन को स्वस्थ व प्रसन्न रखने में स्वास्थ्य शिक्षा महत्त्वपूर्ण योगदान देती है, क्योंकि स्वास्थ्य शिक्षा में वे सभी क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं जिनसे व्यक्ति में स्वास्थ्य के प्रति सजगता बढ़ती है और इनके परिणामस्वरूप उसका स्वास्थ्य तंदुरुस्त रहता है। स्वास्थ्य शिक्षा को बहुत-से कारक प्रभावित करते हैं जिनमें से प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं

1. संतुलित भोजन (Balanced Diet):
संसार में प्रत्येक व्यक्ति स्वस्थ जीवन व्यतीत करना चाहता है और स्वस्थ जीवन हेतु भोजन ही मुख्य आधार है। वास्तव में हमें भोजन की जरूरत न केवल ऊर्जा या शक्ति की पूर्ति हेतु होती है बल्कि शरीर की वृद्धि, उसकी क्षतिपूर्ति और उचित शिक्षा प्राप्त करने हेतु भी होती है। अतः स्पष्ट है कि संतुलित भोजन स्वास्थ्य शिक्षा को प्रभावित करता है।

2. शारीरिक व्यायाम (Physical Exercise):
स्वास्थ्य शिक्षा द्वारा व्यक्ति अपने शरीर को शारीरिक व्यायामों द्वारा लचीला एवं सुदृढ़ बनाता है। शारीरिक व्यायाम की क्रियाओं द्वारा पूरे शरीर को तंदुरुस्त बनाया जा सकता है। कौन-से व्यायाम कब करने चाहिएँ और कब नहीं करने चाहिएँ, का ज्ञान स्वास्थ्य शिक्षा द्वारा प्राप्त होता है।

3. आदतें (Habits):
आदतें भी स्वास्थ्य शिक्षा को प्रभावित करती हैं। प्रत्येक व्यक्ति का स्वभाव व आदतें अलग-अलग होती हैं । बालक की स्वास्थ्य शिक्षा उसके स्वभाव एवं आदत पर निर्भर करती है। बच्चों में अच्छी आदतों का विकास किया जाए, ताकि वह एक सफल नागरिक बन सके। अच्छी आदतों वाला व्यक्ति उचित मार्ग पर अग्रसर होकर तरक्की करता है। स्वास्थ्य शिक्षा अच्छी आदतों का विकास करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।

4. बीमारी (Illness):
स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा है कि “एक कमजोर आदमी जिसका शरीर या मन कमजोर है वह कभी भी मज़बूत काया का मालिक नहीं बन सकता।” अत: बीमारी भी स्वास्थ्य शिक्षा को प्रभावित करती है। एक बीमार बालक कोई भी शिक्षा प्राप्त करने में पूर्ण रूप से समर्थ नहीं होता। स्वास्थ्य शिक्षा के माध्यम से एक स्वस्थ व्यक्ति या बालक प्रायः बीमारियों से मुक्त रहता है।

5. जीवन-शैली (Life Style):
जीवन-शैली जीवन जीने का एक ऐसा तरीका है जो व्यक्ति के नैतिक गुणों या मूल्यों और दृष्टिकोणों को प्रतिबिम्बित करता है। यह किसी व्यक्ति विशेष या समूह के दृष्टिकोणों, व्यवहारों या जीवन मार्ग का प्रतिमान है। स्वास्थ्य शिक्षा का ज्ञान प्राप्त करने हेतु एक स्वस्थ जीवन-शैली बहुत आवश्यक होती है। एक स्वस्थ जीवन-शैली व्यक्तिगत रूप से पुष्टि के स्तर को बढ़ाती है। यह हमें बीमारियों से बचाती है और हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करती है। इसके माध्यम से आसन संबंधी विकृतियों में सुधार होता है। इसके माध्यम से मनोवैज्ञानिक शक्ति या क्षमता में वृद्धि होती है जिससे तनाव, दबाव व चिंता को कम किया जाता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि एक स्वस्थ जीवन-शैली स्वास्थ्य शिक्षा को प्रभावित करती है।

6. वातावरण (Environment):
स्वास्थ्य शिक्षा का ज्ञान प्राप्त करने हेतु स्वच्छ वातावरण का होना बहुत आवश्यक है। वातावरण दो प्रकार के होते हैं-
(i) आन्तरिक वातावरण,
(ii) बाह्य वातावरण। दोनों प्रकार के वातावरण बालक को प्रभावित करते हैं।
शिक्षा प्राप्त करने हेतु स्कूली वातावरण विद्यार्थियों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। बिना वातावरण के कोई भी विद्यार्थी किसी प्रकार का ज्ञान अर्जित नहीं कर सकता। इसलिए स्कूल प्रबन्धों को स्कूली वातावरण की ओर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए, ताकि विद्यार्थी बिना किसी बाधा के ज्ञान अर्जित कर सकें।

लघूत्तरात्मक प्रश्न [Short Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्यों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वास्थ्य शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य हैं

(1) विद्यालय में स्वास्थ्यपूर्ण वातावरण बनाए रखना।
(2) बच्चों में ऐसी आदतों का विकास करना जो स्वास्थ्यप्रद हों।
(3) रोगों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करना तथा प्राथमिक चिकित्सा की जानकारी देना।
(4) सभी विद्यार्थियों के स्वास्थ्य का निरीक्षण करना व निर्देश देना।
(5) सभी विद्यार्थियों में स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान तथा अभिव्यक्ति का विकास करना।
(6) व्यक्तिगत सफाई तथा स्वच्छता के बारे में जानकारी देना।
(7) स्वास्थ्य संबंधी आदतों का विकास करना।
(8) रोगों से बचने का उपाय करना और शारीरिक रोगों की जांच करना।
(9) निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि स्वास्थ्य शिक्षा के उपर्युक्त उद्देश्यों को अपनाते हुए हम इस लक्ष्य को प्राप्त करते हुए प्रत्येक व्यक्ति के स्वास्थ्य के स्तर को ऊपर उठा सकते हैं।

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ एवं महत्त्व

प्रश्न 2.
स्वास्थ्य शिक्षा के अंतर्गत हमें किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर:
स्वास्थ्य शिक्षा का ज्ञान स्वयं में ही सरल उपाय है जिसके द्वारा रोगों को फैलने से रोका जा सकता है। हमें स्वास्थ्य शिक्षा । के अंतर्गत निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए तथा उनका प्रचार करना चाहिए

  1. विभिन्न खाद्य-पदार्थों में कौन-कौन-से पोषक तत्त्व उपलब्ध होते हैं?
  2. विभिन्न रोगों के क्या कारण होते हैं? वे किस प्रकार फैलते हैं तथा उनसे बचने के तरीके क्या हैं?
  3. स्वास्थ्य संबंधी व्यक्तिगत स्तर पर अच्छी आदतों का ज्ञान तथा सामुदायिक स्तर पर अच्छी परंपराओं की आवश्यकता।
  4. विभिन्न नशीले व मादक पदार्थों के सेवन से होने वाले कुप्रभावों तथा दुष्परिणामों की जानकारी।
  5. खाद्य-पदार्थों को पकाने तथा उन्हें संगृहीत करने की विधियाँ।
  6. वातावरण को किस प्रकार स्वच्छ रखा जा सकता है?
  7. घरेलू या औद्योगिक स्तर पर उत्पन्न अपशिष्ट पदार्थों के निपटान की विधियाँ।

प्रश्न 3.
स्वास्थ्य शिक्षा का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है? अथवा – स्वास्थ्य शिक्षा हमारे लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
स्वास्थ्य शिक्षा की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था-“एक कमजोर आदमी जिसका शरीर या मन कमजोर है वह कभी भी मजबूत काया का मालिक नहीं बन सकता।” अतः स्वास्थ्य शिक्षा हमारे लिए निम्नलिखित कारणों से महत्त्वपूर्ण है.

(1) स्वास्थ्य शिक्षा अच्छे मानवीय संबंधों में वृद्धि करती है। स्वास्थ्य शिक्षा विद्यार्थियों को यह ज्ञान भी देती है कि किस प्रकार वे अपने दोस्तों, पड़ोसियों, रिश्तेदारों व समुदाय के अच्छे स्वास्थ्य के लिए कार्य कर सकते हैं।

(2) स्वास्थ्य शिक्षा कई प्रकार की बीमारियों के बचाव व रोकथाम के विषय में हमारी सहायता करती है। विभिन्न प्रकार की बीमारियों के फैलने के कारण, लक्षण, उनसे बचाव व इलाज के विषय में जानकारी स्वास्थ्य शिक्षा से ही मिलती है।

(3) स्वास्थ्य शिक्षा व्यक्ति में सामाजिक गुणों का विकास करके उसे अच्छा नागरिक बनाने में सहायक होती है। स्वास्थ्य शिक्षा जहाँ सर्वपक्षीय विकास करके अच्छा व्यक्तित्व निखारती है, वहीं इसके साथ-साथ यह और कई प्रकार के गुण; जैसे . सहयोग, त्याग-भावना, साहस, विश्वास, संवेगों पर नियंत्रण एवं सहनशीलता आदि का भी विकास करती है।

प्रश्न 4.
स्वस्थ व्यक्ति किसे कहते हैं? अच्छे स्वास्थ्य के कोई दो लाभ बताएँ। .
उत्तर:
स्वस्थ व्यक्ति-स्वस्थ व्यक्ति के शरीर के सभी अंगों की बनावट और उनके कार्य ठीक-ठाक होते हैं। वह हर प्रकार के मनोवैज्ञानिक, मानसिक व सामाजिक तनावों से मुक्त होता है। केवल शारीरिक रोगों से मुक्त व्यक्ति पूर्ण स्वस्थ नहीं होता, बल्कि स्वस्थ व्यक्ति को रोग घटकों से भी मुक्त होना चाहिए।
अच्छे स्वास्थ्य के लाभ:
(1) अच्छे स्वास्थ्य से व्यक्ति का जीवन सुखमय व आनंदमय होता है।
(2) अच्छे स्वास्थ्य का न केवल व्यक्तिगत लाभ होता है, बल्कि इसका सामूहिक लाभ भी होता है। इसका समाज व देश पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। अच्छे स्वास्थ्य वाला व्यक्ति ही देश के आर्थिक विकास में सहायक हो सकता है।

प्रश्न 5.
अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने में स्वास्थ्य शिक्षा किस प्रकार सहायक होती है?
उत्तर:
अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक तौर पर विकारों तथा तनावों को दूर करने की आवश्यकता है, परंतु भारतवर्ष में बहुत-से लोग इस बात से भी अनभिज्ञ हैं कि कौन-कौन-से रोग किस-किस कारण से होते हैं? उनकी रोकथाम कैसे की जा सकती है तथा उनके बचाव के क्या उपाय हैं? केवल रोगों के निदान से ही स्वास्थ्य कायम नहीं होता। इसके लिए बाह्य कारक; जैसे प्रदूषण तथा सूक्ष्म-जीवों के संक्रमण से भी बचाव अत्यंत आवश्यक है। स्वास्थ्य शिक्षा संतुलित आहार और उनमें पौष्टिक तत्त्व की कितनी-कितनी मात्रा होनी चाहिए आदि की जानकारी देने में हमारी सहायता करती है। स्वास्थ्य शिक्षा के द्वारा ही हमें किसी रोग के कारण, लक्षण और उनकी रोकथाम के उपायों का पता चलता है। स्वास्थ्य शिक्षा ही हमें पर्यावरण से संबंधित आवश्यक जानकारी देती है।

प्रश्न 6.
स्वास्थ्य शिक्षा के प्रमुख सिद्धांतों का उल्लेख करें।
उत्तर:
स्वास्थ्य शिक्षा के प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं

  1. स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम व पाठ्यक्रम बच्चों की आयु और रुचि के अनुसार होना चाहिए।
  2. स्वास्थ्य शिक्षा के बारे में जानकारी देने का तरीका साधारण और जानकारी से भरपूर होना चाहिए।
  3. स्वास्थ्य शिक्षा पढ़ने-लिखने तक ही सीमित नहीं रखनी चाहिए अपितु उसकी प्राप्तियों के बारे में कार्यक्रम बनाने चाहिएँ।
  4. स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम छात्रों की आवश्यकताओं, इच्छाओं और पर्यावरण के अनुसार होना चाहिए।
  5. स्वास्थ्य शिक्षा में स्वास्थ्य के सभी पक्षों की विस्तृत जानकारी दी जानी चाहिए।

प्रश्न 7.
स्वास्थ्यपूर्ण विद्यालयी वातावरण हेतु किन मुख्य बातों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए?
उत्तर:
स्वास्थ्यपूर्ण विद्यालयी वातावरण हेतु निम्नलिखित बातों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए

(1) अध्यापकों को अपना पाठ्यक्रम बच्चों की इच्छाओं, आवश्यकताओं एवं रुचियों के अनुसार बनाना चाहिए। इसके लिए अध्यापक को अपने अनुभव का प्रयोग करना चाहिए।
(2) बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए विद्यालय का भवन रेलवे स्टेशनों, सिनेमाघरों, कारखानों, यातायात सडकों आदि से दूर होना चाहिए।
(3) बच्चों के संपूर्ण विकास हेतु अध्यापकों एवं छात्रों में सहसंबंध होना चाहिए।
(4) विद्यालय की समय-सारणी का विभाजन छात्रों के स्तर के अनुसार होना चाहिए।

प्रश्न 8.
स्कूल स्वास्थ्य सेवाओं के प्रमुख उपाय या अभिकरण बताएँ। अथवा आजकल स्कूलों में बच्चों को अपने परिवेश के बारे में जागरूक बनाने हेतु अपनाए गए प्रमुख तरीके बताएँ।
उत्तर:
वर्तमान समय में स्कूलों में स्वास्थ्य के प्रति बच्चों को जागरूक बनाने के लिए नए-नए तरीके या उपकरण अपनाए जा रहे हैं। इनका विवरण निम्नलिखित है
1. मेडिकल निरीक्षण:
अनेक स्कूल सर्वप्रथम तो उस समय निरीक्षण की माँग करते हैं, जब बच्चे स्कूल में प्रवेश पाते हैं और उसके बाद वे नियमित अंतराल के बाद मेडिकल निरीक्षण करवाने पर जोर डाल सकते हैं । इसके अंतर्गत वे शारीरिक माप, स्वास्थ्य जाँच, बोलने एवं सुनने की जाँच तथा खून की जाँच करवाते हैं। इसके अतिरिक्त दाँतों की देखभाल, संचरणीय रोगों के लक्षण, कारण एवं इसकी रोकथाम के उपायों आदि की जानकारी भी सेमिनारों के माध्यम से दी जाती है।

2. रोगों से मुक्ति के कार्यक्रम:
अधिकतर स्कूल अनेक रोगों से मुक्ति के कार्यक्रम चलाते हैं; जैसे पल्स पोलियो, टी०बी०, मलेरिया, हेपेटाइटिस-बी, चेचक आदि।

3. एड्स जागरूकता संबंधी कार्यक्रम:
स्कूल राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अधिकतर भयानक बीमारियों; जैसे एड्स को नियंत्रण करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

4. प्राथमिक सहायता और आपातकालीन सेवाओं के पाठ्यक्रम:
स्कूलों के आधुनिक तरीकों के अंतर्गत विद्यार्थियों को कक्षाओं तथा पाठ्यक्रम के माध्यम से प्राथमिक सहायता तथा आपातकालीन सेवाओं की जानकारी दी जाती है।

प्रश्न 9.
स्वास्थ्य शिक्षा में सुधार के प्रमुख उपाय बताएँ। उत्तर-स्वास्थ्य शिक्षा में सुधार के प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं

  1. स्वास्थ्य शिक्षा का पाठ्यक्रम बच्चों की आवश्यकताओं एवं रुचियों के अनुसार होना चाहिए।
  2. स्वास्थ्य शिक्षा संबंधी कार्यक्रम व्यावहारिक जीवन से संबंधित होने चाहिएँ।
  3. स्वास्थ्य शिक्षा के अंतर्गत स्वास्थ्य संबंधी आदतें, पर्यावरण प्रदूषण, प्राथमिक उपचार, बीमारियों की रोकथाम आदि को चित्रों या फिल्मों की सहायता से समझाया या दिखाया जाना चाहिए।
  4. स्वास्थ्य शिक्षा में वाद-विवाद और भाषण आदि को अधिक बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  5. स्वास्थ्य शिक्षा के अंतर्गत स्वास्थ्यपूर्ण कार्यक्रमों को अधिक-से-अधिक बढ़ावा दिया जाना चाहिए, ताकि बच्चों को नियमित डॉक्टरी जाँच और अन्य सुविधाओं से लाभ हो सके।
  6. स्वास्थ्य शिक्षा में उन सभी पक्षों को शामिल करना चाहिए, जो छात्रों के सर्वांगीण विकास में सहायक हों।

प्रश्न 10.
हमारे जीवन में अच्छे स्वास्थ्य की महत्ता या उपयोगिता पर प्रकाश डालिए। अथवा स्वास्थ्य (Health) का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
अच्छे स्वास्थ्य के बिना कोई भी व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार काम नहीं कर सकता। अस्वस्थ व्यक्ति समाज की एक लाभदायक इकाई होते हुए भी बोझ बन जाता है। अतः स्वास्थ्य का हमारे जीवन में निम्नलिखित प्रकार से विशेष महत्त्व है

(1)स्वास्थ्य मानव व समाज का आधार स्तंभ है। यह असल में खुशी, सफलता और आनंदमयी जीवन की कुंजी है।
(2)अच्छे स्वास्थ्य वाले व्यक्ति समाज व राष्ट्र के लिए उपयोगी होते हैं।
(3) स्वास्थ्य के महत्त्व के बारे में अरस्तू ने कहा था-“स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क वास करता है।” अतः इस कथन से भी हमारे जीवन में स्वास्थ्य की उपयोगिता व्यक्त हो जाती है।
(4) स्वास्थ्य व्यक्ति के व्यक्तित्व को सुधारने व निखारने में सहायक होता है।
(5) स्वास्थ्य हमारे जीवन को उचित व संतुलित बनाने में सहायक होता है।
(6) किसी भी देश के नागरिकों के स्वास्थ्य व आर्थिक विकास में प्रत्यक्ष संबंध पाया जाता है यदि किसी देश के नागरिक स्वस्थ होंगे तो आर्थिक विकास भी अच्छा होगा।

प्रश्न 11.
स्कूल के स्वास्थ्य कार्यक्रम में शिक्षक की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
स्कूल के स्वास्थ्य कार्यक्रम में शिक्षक निम्नलिखित प्रकार से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है

  1. शिक्षक छात्रों को स्वास्थ्य कार्यक्रम की उपयोगिता बताकर उन्हें अपने स्वास्थ्य हेतु प्रेरित कर सकता है।
  2. वह छात्रों को व्यक्तिगत सफाई के लिए प्रेरित कर सकता है, ताकि छात्र स्वयं को नीरोग एवं स्वस्थ रख सकें।
  3. शिक्षक छात्रों को संक्रामक रोगों के कारणों एवं रोकथाम के उपायों की जानकारी दे सकता है।
  4. शिक्षक को चाहिए कि वह स्वास्थ्य शिक्षा की विषय-वस्तु से संबंधित विभिन्न सेमिनारों का आयोजन करे।
  5. वह छात्रों को अच्छी आदतें अपनाने के लिए प्रेरित करे।

प्रश्न 12.
स्वास्थ्य अनुदेशन या निर्देशन से आप क्या समझते हैं? अथवा विद्यालयी स्वास्थ्य निर्देशन पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
स्वास्थ्य निर्देशन का आशय है-स्कूल के बच्चों को स्वास्थ्य संबंधी ऐसी जानकारी देना कि वे स्वयं को स्वस्थ एवं नीरोग बना सकें। स्वास्थ्य निर्देशन स्वास्थ्य संबंधी अच्छी आदतों एवं दृष्टिकोणों का विकास करते हैं। ये बच्चों को अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाते हैं । इनका मुख्य उद्देश्य बच्चों को स्वास्थ्य संबंधी सभी महत्त्वपूर्ण पहलुओं से अवगत कराना है ताकि वे स्वयं को स्वस्थ रख सकें। स्वास्थ्य संबंधी निर्देशन में वे सभी बातें आ जाती हैं जो स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होती हैं; जैसे अच्छी आदतें, सेहत को ठीक रखने के तरीके और सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना आदि। शरीर की बनावट एवं संरचना, संक्रामक रोगों के लक्षण एवं कारण, इनकी रोकथाम या बचाव के उपायों के लिए बच्चों को फिल्मों या तस्वीरों आदि के माध्यम से अपने स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। स्वास्थ्य निर्देशन की जानकारी प्राप्त कर बच्चे अनावश्यक विकृतियों या कमजोरियों का शिकार होने से बच सकते हैं।

प्रश्न 13.
शारीरिक शिक्षा एवं स्वास्थ्य शिक्षा में क्या अंतर है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा एवं स्वास्थ्य शिक्षा में परस्पर अटूट संबंध है। दोनों एक-दूसरे के पूरक माने जाते हैं, क्योंकि आज एक ओर जहाँ स्वास्थ्य शिक्षा को शारीरिक शिक्षा के अंतर्गत पढ़ाया जाता है, वहीं दूसरी ओर स्वास्थ्य शिक्षा के अध्ययन में भी शारीरिक शिक्षा के पक्षों पर जोर दिया जाता है। फिर भी इनमें कुछ अंतर है। शारीरिक शिक्षा के अंतर्गत शारीरिक गतिविधियों या क्रियाओं पर विशेष बल दिया जाता है, जबकि स्वास्थ्य शिक्षा के अंतर्गत स्वास्थ्य संबंधी पहलुओं पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ एवं महत्त्व

प्रश्न 14.
अभिभावकों को शिक्षित करके बच्चों में होने वाले रोगों की रोकथाम किस प्रकार की जा सकती है?
अथवा
माता-पिता किस प्रकार बच्चों की रोगों से बचाव हेतु सहायता कर सकते हैं?
उत्तर:
अभिभावकों को शिक्षित करके बच्चों में होने वाले रोगों की रोकथाम निम्नलिखित उपायों द्वारा की जा सकती है

  1. अभिभावकों को उचित एवं संतुलित आहार तथा विशेष परिस्थितियों में भोजन की आवश्यकताओं का ज्ञान कराने से बच्चों में कुपोषण से होने वाले रोगों की रोकथाम की जा सकती है।
  2. बच्चों के जन्म के समय मृत्यु होने की घटनाएँ बहुत अधिक होती हैं। इससे बचने के लिए गर्भवती स्त्री को गर्भकाल में पौष्टिक आहार देना चाहिए तथा टैटनस के टीके भी लगवाने चाहिएँ।
  3.  जन्म के बाद बच्चों में रोगों के कारण मृत्यु होने की घटनाएँ अधिक संख्या में होती हैं। इनकी रोकथाम के लिए आवश्यक है कि अभिभावक अपने बच्चों को समय-समय पर प्रतिरक्षी टीके लगवाएँ।
  4. बच्चों के रोगी होने का एक प्रमुख कारण माताओं द्वारा स्तनपान न कराना है। महिलाओं को यह ज्ञान कराना आवश्यक है कि बच्चे के लिए माँ का दूध सर्वोत्तम आहार है। इससे बच्चे को सभी पोषक तत्त्व तथा प्रतिजैविक पदार्थ प्राप्त होते हैं।
  5. अभिभावकों को विभिन्न रोगाणुओं से संक्रमण के तरीके तथा उनसे बचाव के उपायों की शिक्षा देकर भी बच्चों को इनसे होने वाले रोगों से बचाया जा सकता है।

प्रश्न 15.
स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम के महत्त्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर:
स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम से बच्चे अनेक बीमारियों की रोकथाम तथा उपचार के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। स्वास्थ्य तथा स्वच्छता की जानकारी स्वस्थ समाज के निर्माण में सहायक है। स्कूल के दिनों में बच्चों में जिज्ञासा की प्रवृत्ति अति तीव्र होती है। उनकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए ये कार्यक्रम अति आवश्यक होते हैं। सभी स्कूली छात्र कक्षा के अनुसार समान आयु के होते हैं, इसलिए उनकी समस्याएँ भी लगभग एक-जैसी होती हैं और उनके निदान के प्रति दृष्टिकोण भी एक-जैसा ही होता है। इसलिए स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम सभी छात्रों के लिए समान रूप से उपयोगी होते हैं। स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत बच्चों को पोषक तत्त्वों एवं खनिज-लवणों की जानकारी की महत्ता बताई जाती है जो उनकी संपूर्ण जिंदगी में सहायक होती है। स्कूल के दिनों के दौरान विद्यालयी स्वास्थ्य कार्यक्रम अनेक अच्छी आदतों के निर्माण में सहायक हैं जो समाज के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 16.
स्कूल में स्वास्थ्य निर्देशन के मुख्य उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
स्कूल में स्वास्थ्य निर्देशन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  1. बच्चों को व्यक्तिगत स्वास्थ्य की जानकारी देना।
  2. बच्चों को स्वास्थ्य के विषय में पर्याप्त ज्ञान देना।
  3. स्वास्थ्य संबंधी महत्त्वपूर्ण नियमों या सिद्धांतों की जानकारी देना।
  4. संक्रामक रोगों की रोकथाम के उपायों की जानकारी देना।
  5. बच्चों को अपने स्वास्थ्य की ओर ध्यान देने हेतु प्रेरित करना।
  6. अच्छी आदतें एवं सेहत को ठीक रखने के उपाय बताना।

प्रश्न 17.
विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाओं पर संक्षिप्त नोट लिखें। अथवा विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाओं से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
छात्रों को शिक्षा देने के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य की रक्षा करना भी विद्यालय का मुख्य उत्तरदायित्व माना जाता है। विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाएँ, वे सेवाएँ हैं जिनके माध्यम से छात्रों के स्वास्थ्य की जाँच की जाती है और उनमें पाए जाने वाले दोषों से माता-पिता को अवगत करवाया जाता है ताकि समय रहते उन दोषों का उपचार किया जा सके। इन सेवाओं के अंतर्गत स्कूल के अन्य कर्मचारियों एवं अध्यापकों के स्वास्थ्य की भी जाँच की जाती है। इनके अंतर्गत छाों को स्वास्थ्य संबंधी शिक्षा प्रदान की जाती है और उन्हें सभी प्रकार की बीमारियों के लक्षणों, कारणों, रोकथाम या बचाव के उपायों की जानकारी प्रदान की जाती है। स्कूल/विद्यालय में ऐसी सुविधाओं को विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाएँ (School Health Services) कहा जाता है। आधुनिक युग में इन सेवाओं की बहुत आवश्यकता है।

प्रश्न 18.
प्रो० एण्डर्सन के अनुसार स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
प्रो० एण्डर्सन (Prof. Anderson) के अनुसार स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  1. सभी तरह के रोगों के कारणों व लक्षणों का पता लगाना तथा इलाज व रोकथाम के उपाय ढूंढना।
  2. छात्रों की स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं को समझना।
  3. छात्रों का नियमित डॉक्टरी निरीक्षण करवाना।
  4. छात्रों को स्वास्थ्य संबंधी आवश्यक परीक्षण देना।
  5. छात्रों में अपने स्वास्थ्य हेतु जागरूकता पैदा करना।
  6. छात्रों को पर्यावर्णिक स्वास्थ्य या आस-पास के स्वास्थ्य की महत्ता समझाना।
  7. छात्रों को व्यक्तिगत व पर्यावरण की स्वच्छता या सफाई की उपयोगिता बताना।
  8. छात्रों में स्वास्थ्य संबंधी अभिरुचियों का विकास करना।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न [Very Short Answer Type Questions]

प्रश्न 1.
स्वास्थ्य से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
स्वास्थ्य व्यक्ति का वह गुण है, जिसमें वह मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ होता है तथा जिसके सभी शारीरिक संस्थान व्यवस्थित रूप से सुचारु होते हैं। इसका अर्थ न केवल बीमारी अथवा शारीरिक कमजोरी की अनुपस्थिति है, अपितु शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ होना भी है। यह एक ऐसी अवस्था है जिसमें व्यक्ति का मन या आत्मा प्रसन्नचित और शरीर रोग-मुक्त रहता है।

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प्रश्न 2.
स्वास्थ्य की कोई दो परिभाषा लिखें।
उत्तर:
(1) जे०एफ० विलियम्स के अनुसार, “स्वास्थ्य जीवन का वह गुण है, जिससे व्यक्ति दीर्घायु होकर उत्तम सेवाएँ प्रदान करता है।”
(2) विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, “स्वास्थ्य केवल रोग या विकृति की अनुपस्थिति को नहीं, बल्कि संपूर्ण शारीरिक, मानसिक व सामाजिक सुख की स्थिति को कहते हैं।”

प्रश्न 3.
विद्यालयी स्वास्थ्य कार्यक्रम के विभिन्न अंग कौन-कौन-से हैं?
उत्तर:
(1) स्वास्थ्य सेवाएँ,
(2) स्वास्थ्यपूर्ण स्कूली वातावरण,
(3) स्वास्थ्य निर्देश।

प्रश्न 4.
सर्वपक्षीय विकास से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सर्वपक्षीय विकास से अभिप्राय व्यक्ति के सभी पक्षों का विकास करना है। वह शारीरिक पक्ष से बलवान, मानसिक पक्ष से तेज़, भावात्मक पक्ष से संतुलित, बौद्धिक पक्ष से समझदार और सामाजिक पक्ष से स्वस्थ हो। सर्वपक्षीय विकास से व्यक्ति के व्यक्तित्व में बढ़ोत्तरी होती है। वह परिवार, समाज और राष्ट्र की संपत्ति बन जाता है।

प्रश्न 5.
स्वास्थ्य शिक्षा के कार्यक्रम मुख्यतः कैसे होने चाहिएँ?
उत्तर:
स्वास्थ्य शिक्षा के कार्यक्रम रुचिकर, मनोरंजक तथा शिक्षाप्रद होने चाहिएँ, ताकि इनमें सभी बढ़-चढ़कर भाग ले सकें। ये बच्चों की रुचि, स्वास्थ्य के स्तर तथा वातावरण की आवश्यकता के अनुसार तथा व्यावहारिक भी होने चाहिएँ, ताकि इनसे स्वास्थ्य संबंधी सभी पहलुओं की उचित जानकारी प्राप्त हो सके।

प्रश्न 6.
स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ लिखते हुए कोई एक परिभाषा लिखें।
अथवा
डॉ० थॉमस वुड के अनुसार स्वास्थ्य शिक्षा को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
स्वास्थ्य शिक्षा मनुष्य को स्वास्थ्य के उन सभी मौलिक सिद्धांतों या पहलुओं के बारे में जानकारी देती है जो स्वस्थ जीवन के अच्छे ढंगों, आदतों और व्यवहार का निर्माण करके मनुष्य को आत्मनिर्भर बनने में सहायता करते हैं। डॉ० थॉमस वुड के अनुसार, “स्वास्थ्य शिक्षा उन अनुभवों का समूह है, जो व्यक्ति, समुदाय और सामाजिक स्वास्थ्य से संबंधित आदतों, व्यवहारों और ज्ञान को प्रभावित करते हैं।”

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प्रश्न 7.
अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के आवश्यक कारक बताएँ।
उत्तर:
(1) व्यक्तिगत तथा पर्यावरण स्वच्छता,
(2) व्यायाम तथा उचित विश्राम,
(3) भोजन में पौष्टिक तत्त्व एवं खनिज-लवण,
(4) स्वच्छ भोजन व जल का उपयोग।

प्रश्न 8.
विद्यालयी स्वास्थ्य निर्देशन के कोई दो उद्देश्य लिखें।
उत्तर:
(1) बच्चों को व्यक्तिगत स्वास्थ्य की महत्ता की जानकारी देना,
(2) बच्चों को स्वास्थ्य के विषय में पर्याप्त ज्ञान देना।

प्रश्न 9.
स्वास्थ्यपूर्ण विद्यालयी जीवन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
स्वास्थ्यपूर्ण स्कूली जीवन का अर्थ है कि स्कूल में संपूर्ण स्वच्छ वातावरण का होना या ऐसे वातावरण का निर्माण करना जिससे छात्रों की सभी क्षमताओं एवं योग्यताओं को विकसित किया जा सके। स्कूल का स्वच्छ वातावरण ही छात्रों के सामाजिक-भावनात्मक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और साथ-ही-साथ उन्हें अधिक-से-अधिक सीखने हेतु प्रेरित करता है।

प्रश्न 10.
स्वास्थ्य अनुदेशन के कोई दो मार्गदर्शक सिद्धांत बताइए।
उत्तर:
(1) स्वास्थ्य संबंधी किसी विषय पर वाद-विवाद प्रतियोगिता करवाना।
(2) स्वास्थ्य के सभी पहलुओं से संबंधित साहित्य स्कूल पुस्तकालय में उपलब्ध करवाना।

प्रश्न 11.
विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाओं के कोई तीन उद्देश्य लिखें।
उत्तर:
(1) छात्रों को स्वास्थ्य संबंधी जानकारी देना,
(2) उन्हें स्वास्थ्य के नियमों से अवगत कराना,
(3) उन्हें संक्रामक व असंक्रामक रोगों के कारणों और उनकी रोकथाम या बचाव के उपायों की जानकारी देना।

प्रश्न 12.
स्वस्थ व्यक्ति के कोई दो गुण लिखें।
उत्तर:
(1) स्वस्थ व्यक्ति का व्यक्तित्व आकर्षक एवं सुंदर होता है,
(2) वह चुस्त एवं फुर्तीला होता है।

प्रश्न 13.
पोषण किसे कहते हैं?
उत्तर:
जीव की वृद्धि, विकास, अनुरक्षण एवं सभी सजीव प्रक्रमों को सुचारु रूप से चलाने के लिए आवश्यक सभी पदार्थों (पोषकों) के अधिग्रहण को पोषण कहते हैं।

प्रश्न 14.
स्वस्थ व्यक्ति की क्या पहचान है?
अथवा
स्वस्थ व्यक्ति की मुख्य विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
(1) स्वस्थ व्यक्ति अपने सभी कार्य अच्छे से एवं तीव्रता से करने में समर्थ होता है।
(2) उसके शरीर में फूर्ति एवं लचकता होती है।
(3) उसके शारीरिक संस्थान सुचारु रूप से कार्य करते हैं और उनकी कार्यक्षमता अधिक होती है।
(4) उसका मन शांत और शरीर स्वस्थ होता है।

प्रश्न 15.
विद्यार्थियों के लिए स्वस्थ रहना क्यों अधिक महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
विद्यार्थी का मुख्य उद्देश्य शिक्षा प्राप्त करना होता है। शिक्षा प्राप्त करने हेतु विद्यार्थी का स्वास्थ्य बहुत महत्त्वपूर्ण होता है, इसलिए विद्यार्थियों के लिए स्वस्थ रहना अधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि अस्वस्थ विद्यार्थी के लिए शिक्षा प्राप्त करना कठिन होता है। किसी ने ठीक ही लिखा है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क वास करता है। अच्छे स्वास्थ्य के द्वारा ही विद्यार्थी अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकता है। अच्छी शिक्षा प्राप्त करके वह देश के विकास में अपना योगदान देता है।

प्रश्न 16.
स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
बच्चे राष्ट्र की धरोहर हैं । स्कूल में जाने वाले बच्चे किसी राष्ट्र को सशक्त व मजबूत बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समस्त राष्ट्र का उत्तरदायित्व उनके कोमल कंधों पर टिका होता है। इसलिए स्कूल के बच्चों का स्वास्थ्य ही स्कूल प्रणाली का महत्त्वपूर्ण तथा प्राथमिक मुद्दा है। अतः स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम वह ग्रहणित प्रक्रिया है जिसको स्कूली स्वास्थ्य सेवाओं, स्वास्थ्यप्रद स्कूली जीवन और स्वास्थ्य निर्देश में बच्चों के स्वास्थ्य के विकास के लिए अपनाया जाता है।

HBSE 9th Class Physical Education स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ एवं महत्त्व Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न [Objective Type Questions]

प्रश्न 1.
“स्वास्थ प्रथम पूँजी है।” यह किसका कथन है?
उत्तर:
यह कथन इमर्जन का है।

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प्रश्न 2.
किसके बिना मानसिक स्वास्थ्य अधूरा है?
उत्तर:
शारीरिक स्वास्थ्य के बिना मानसिक स्वास्थ्य अधूरा है।

प्रश्न 3.
सोफी के अनुसार, स्वास्थ्य शिक्षा किसे कहते हैं?
उत्तर:
सोफी के अनुसार, “स्वास्थ्य शिक्षा लोगों के स्वास्थ्य से जुड़े व्यवहार से संबंधित है।”

15 प्रश्न 4.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, स्वास्थ्य शिक्षा किसे कहते हैं?
उत्तर:
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, “स्वास्थ्य शिक्षा शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ रहने की स्थिति को कहते हैं न कि केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ या रोगमुक्त होने को।”

प्रश्न 5.
“स्वस्थ शरीर आत्मा का अतिथि-भवन और दुर्बल तथा रुग्ण शरीर आत्मा का कारागृह है।” यह कथन किसने कहा?
उत्तर:
यह कथन रोजर बेकन ने कहा।

प्रश्न 6.
“स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क वास करता है।” यह कथन किसने कहा?
उत्तर:
यह कथन अरस्तू ने कहा।

प्रश्न 7.
किसी देश का कल्याण किसके स्वास्थ्य पर निर्भर करता है?
उत्तर:
किसी देश का कल्याण उस देश के नागरिकों के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है।

प्रश्न 8.
स्वास्थ्य सेवाओं के अंतर्गत आने वाले कोई दो कार्यक्रमों के नाम बताएँ।
उत्तर:
(1) एड्स जागरूकता संबंधी कार्यक्रम,
(2) मेडिकल निरीक्षण कार्यक्रम।

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प्रश्न 9.
प्राचीनकाल में स्वास्थ्य शिक्षा का संबंध किससे था?
उत्तर:
प्राचीनकाल में स्वास्थ्य शिक्षा का संबंध स्वास्थ्य निर्देशन से था।

प्रश्न 10.
विश्व स्वास्थ्य दिवस प्रतिवर्ष कब मनाया जाता है?
उत्तर:
विश्व स्वास्थ्य दिवस प्रतिवर्ष 7 अप्रैल को मनाया जाता है।

प्रश्न 11.
‘प्रोटीन’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया?
उत्तर:
प्रोटीन’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम जे० बरजेलियास ने किया।

प्रश्न 12.
“एक कमजोर आदमी जिसका शरीर या मन कमजोर है वह कभी भी मजबूत काया का मालिक नहीं बन सकता।” यह कथन किसने कहा?
उत्तर:
यह कथन स्वामी विवेकानंद जी ने कहा।

प्रश्न 13.
W.H.O. का पूरा नाम लिखें।
उत्तर:
World Health Organisation

प्रश्न 14.
स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम तीन प्रकार के होते हैं।

प्रश्न 15.
ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य संबंधी कोई एक समस्या बताएँ।
उत्तर:
डॉक्टरों व अस्पतालों का अभाव।

प्रश्न 16.
शहरों में स्वास्थ्य संबंधी प्रमुख समस्या क्या है?
उत्तर:
यातायात वाहनों की अधिकता के कारण प्रदूषण बढ़ना।

प्रश्न 17.
जन-साधारण को स्वास्थ्य-संबंधी उपयोगी जानकारी देने वाले माध्यम या साधन बताएँ।
उत्तर:
टेलीविजन, रेडियो, वार्तालाप, भाषण, अखबार आदि।

प्रश्न 18.
अच्छे स्वास्थ्य वाले व्यक्ति का व्यक्तिगत जीवन कैसा होता है?
उत्तर:
अच्छे स्वास्थ्य वाले व्यक्ति का व्यक्तिगत जीवन शांत एवं सुखमय होता है।

प्रश्न 19.
आनन्दमय जीवन की कुंजी क्या है?
उत्तर:
आनन्दमय जीवन (Felicitious Life) की कुंजी स्वस्थ शरीर अर्थात् स्वास्थ्य है।

प्रश्न 20.
वंशानुक्रम क्या है? उत्तर-जो गुण या विशेषता हम अपने जन्म के समय प्राप्त करते हैं, उसे ही वंशानुक्रम कहते हैं।

प्रश्न 21.
स्वास्थ्य का कोई एक पहलू बताएँ।
उत्तर:
शारीरिक स्वास्थ्य।

प्रश्न 22.
मानसिक स्वास्थ्य का क्या अर्थ है?
उत्तर:
दबाव व तनाव से मुक्ति।

बहुविकल्पीय प्रश्न [Multiple Choice Questions]

प्रश्न 1.
स्वास्थ्य का शाब्दिक अर्थ है
(A) स्वस्थ शरीर
(B) स्वस्थ दिमाग
(C) स्वस्थ आत्मा
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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प्रश्न 2.
स्वास्थ्य हृष्ट-पुष्ट होने की एक दशा है।” यह कथन किसके अनुसार है?
(A) यूनिसेफ के
(B) विश्व स्वास्थ्य संगठन के
(C) अंग्रेज़ी पद के
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) अंग्रेजी पद के

प्रश्न 3.
स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम किसको ध्यान में रखकर तय करना चाहिए?
(A) बच्चों की आयु और लिंग को
(B) बच्चे के स्वास्थ्य को
(C) बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक स्तर को
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 4.
“स्वास्थ्य ही असली धन है, न कि सोने एवं चाँदी के टुकड़े।” यह कथन है
(A) महात्मा गाँधी का
(B) डॉ० थॉमस वुड का
(C) हरबर्ट स्पेंसर का
(D) जे०एफ०विलियम्स का
उत्तर:
(A) महात्मा गाँधी का

प्रश्न 5.
स्कूल स्वास्थ्य के चरण हैं
(A) स्वास्थ्य सेवाएँ
(B) स्कूली वातावरण
(C) स्वास्थ्य निर्देश
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 6.
स्वास्थ्य के आयाम हैं
(A) शारीरिक स्वास्थ्य
(B) मानसिक स्वास्थ्य
(C) सामाजिक व आध्यात्मिक स्वास्थ्य
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 7.
किसने स्वास्थ्य को प्रथम पूँजी’ कहा?
(A) स्वामी विवेकानंद ने
(B) इमर्जन ने
(C) गाँधी जी ने
(D) डॉ० थॉमस वुड ने
उत्तर:
(B) इमर्जन ने

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प्रश्न 8.
स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्य हैं
(A) स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान देना
(B) उचित मार्गदर्शन करना
(C) स्वास्थ्य संबंधी अच्छी आदतों का विकास करना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 9.
प्राचीनकाल में स्वास्थ्य शिक्षा का संबंध किससे था?
(A) स्वास्थ्य सेवाओं से
(B) स्वास्थ्य अनुदेशन से
(C) स्वास्थ्य निरीक्षण से
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) स्वास्थ्य अनुदेशन से

प्रश्न 10.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) का मुख्यालय कहाँ स्थित है?
(A) न्यूयार्क में
(B) पेरिस में
(C) जेनेवा में
(D) लंदन में
उत्तर:
(C) जेनेवा में

प्रश्न 11.
साधारण जनता को स्वास्थ्य संबंधी जानकारी दी जाती है
(A) रेडियो द्वारा
(B) टेलीविजन द्वारा
(C) अखबार द्वारा
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 12.
स्कूल स्वास्थ्य प्रणाली का सबसे महत्त्वपूर्ण एवं प्राथमिक मुद्दा है
(A) स्कूल का प्रबंधन
(B) बच्चों का स्वास्थ्य
(C) बच्चों की पढ़ाई
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) बच्चों का स्वास्थ्य

प्रश्न 13.
स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम मुख्यतः कितने प्रकार का होता है?
(A) 2
(B) 3
(C) 4
(D) 5.
उत्तर:
(B) 3

प्रश्न 14.
स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम होना चाहिए
(A) रुचिपूर्ण
(B) शिक्षा से भरपूर
(C) मनोरंजनात्मक
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

HBSE 9th Class Physical Education Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ एवं महत्त्व

प्रश्न 15.
अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए उत्तरदायी कारक है
(A) व्यक्तिगत तथा घरेलू स्वच्छता
(B) व्यायाम तथा विश्राम
(C) संतुलित व पौष्टिक आहार
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 16.
विश्व स्वास्थ्य दिवस प्रतिवर्ष कब मनाया जाता है?
(A) 7 अप्रैल को
(B) 8 मार्च को
(C) 14 अप्रैल को
(D) 15 मार्च को
उत्तर:
(A) 7 अप्रैल को

प्रश्न 17.
W.H.0. का पूरा नाम है
(A) Organisation of World Health
(B) World Health Organisation
(C) World Healthy Organisation
(D) Health World Organisation
उत्तर:
(B) World Health Organisation

प्रश्न 18.
व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक क्षमता की पूर्णरूपेण समन्वित स्थिति को क्या कहते हैं?
(A) स्वास्थ्य
(B) स्वस्थता
(C) सुयोग्यता
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) स्वास्थ्य

स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ एवं महत्त्व Summary

स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ एवं महत्त्व परिचय

स्वास्थ्य (Health):
अच्छा स्वास्थ्य होना जीवन की सफलता के लिए बहुत आवश्यक है, क्योंकि अच्छे स्वास्थ्य से कोई व्यक्ति किसी निर्धारित उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल हो सकता है। आरोग्य व्यक्ति को स्वस्थ कहना बहुत बड़ी भूल है। स्वस्थ व्यक्ति उसे कहा जाता है जिसकी सभी शारीरिक प्रणालियाँ ठीक ढंग से कार्य करती हों और वह स्वयं को वातावरण के अनुसार ढालने में सक्षम हो। प्रत्येक व्यक्ति के लिए स्वास्थ्य का अर्थ भिन्न-भिन्न होता है। कुछ लोगों के लिए यह बीमारी से छुटकारा है तो कुछ के लिए शरीर और दिमाग का सुचारु रूप से कार्य करना। स्वास्थ्य का शाब्दिक अर्थ स्वस्थ शरीर, दिमाग तथा मन से चुस्त-दुरुस्त होने की अवस्था है, विशेष रूप से किसी बीमारी या रोग से मुक्त होना है। अत: स्वास्थ्य कोई लक्ष्य नहीं, बल्कि जीवन में उपलब्धि प्राप्त करने का साधन है। महात्मा गौतम बुद्ध (Mahatma Gautam Budh) ने स्वास्थ्य के बारे में कहा- “हमारा कर्तव्य है कि हम अपने शरीर को स्वस्थ रखें अन्यथा हम अपने मन को सक्षम और शुद्ध नहीं रख पाएंगे।”

विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-W.H.O.):
के अनुसार, “स्वास्थ्य केवल रोग या विकृति की अनुपस्थिति को नहीं, बल्कि संपूर्ण शारीरिक, मानसिक व सामाजिक सुख की स्थिति को कहते हैं।” अतः स्वास्थ्य के नए दर्शन-शास्त्र को निम्नलिखित बातों से समझा जा सकता है

(1) स्वास्थ्य एक आधारभूत अधिकार है।
(2) स्वास्थ्य समस्त संसार का सामाजिक ध्येय है।
(3) स्वास्थ्य विकास का अभिन्न अंग है।
(4) स्वास्थ्य जीवन की गुणवत्ता की धारणा का केंद्र बिंदु है।

स्वास्थ्य शिक्षा (Health Education):
स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ उन सभी आदतों से है जो किसी व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य के बारे में ज्ञान देती हैं। इसका संबंध मनुष्य के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से है। यह शिक्षा मनुष्य को स्वास्थ्य के उन सभी मौलिक सिद्धांतों के बारे में जानकारी देती है जो स्वस्थ जीवन के अच्छे ढंगों, आदतों और व्यवहार का निर्माण करके मनुष्य को आत्म-निर्भर बनाने में सहायता करते हैं। अत: यह एक ऐसी शिक्षा है जिसके बिना मनुष्य की सारी शिक्षा अधूरी रह जाती है।

डॉ० थॉमस वुड (Dr. Thomas Wood):
के अनुसार, “स्वास्थ्य शिक्षा उन अनुभवों का समूह है, जो व्यक्ति, समुदाय और सामाजिक स्वास्थ्य से संबंधित आदतों, व्यवहारों और ज्ञान को प्रभावित करते हैं।”

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HBSE 12th Class Physical Education Solutions Haryana Board

Haryana Board HBSE 12th Class Physical Education Solutions

HBSE 12th Class Physical Education Solutions in Hindi Medium

HBSE 12th Class Physical Education Solutions in English Medium

  • Chapter 1 Physical Fitness and Wellness
  • Chapter 2 Training Methods
  • Chapter 3 Health Education
  • Chapter 4 Athletic Care
  • Chapter 5 Sociological Aspects of Physical Education
  • Chapter 6 Family Life Education
  • Chapter 7 Yoga Education
  • Chapter 8 Olympic Movement
  • Chapter 9 National Sports Awards

HBSE 12th Class Physical Education Syllabus

Class: XII
Subject: Physical Education

1. Unit I: Physical Fitness & Wellness
Part-A: Meaning & Definition of Physical Fitness, Method of Fitness development, Components of Physical Fitness, Factor affecting Physical Fitness, Means of Fitness development
Part-B: Practical – Athletics
History of Athletics, Track & Field (Sector) Measurements, Rules & Regulations of different Track & Field Events

2. Unit II: Training Method
Part-A: Meaning & Concept of Training, Different training methods, Methods of strength development: isometric, isotonic, isokinetic exercise, Methods of endurance development: Continuous training, Fartlek training & Interval training method, Methods of speed development: Acceleration & Pace Running, Meaning of Warming-up & Limbering down, Importance of Warming-up & Limbering down, Types & Methods of Warming-up
Part-B: Practical – Foot Ball & KHO-KHO
History of Foot Ball & KHO-KHO, Ground Measurements of Foot Ball & KHO-KHO, Rules & Regulations of Foot Ball & KHO-KHO

3. Unit III: Health Education
Part-A: Meaning & Definition of Health Education, Objectives of Health Education, Meaning of School Health Programme, Importance of School Health Programme, Components of School Health Programme – Healthful School Living – Health Services – Health Instruction, Role of teacher in School Health Programme
Part-B: Practical – Hockey & Kabaddi
Ground Measurements of Hockey & Kabaddi, Rules & Regulations of Hockey & Kabaddi

4. Unit IV: Athletic Care
Part-A: Meaning of Athletic Care, Meaning & Definition of first aid, Qualities & duties of a first aider, Common sports injuries: Causes, Symptoms & their treatment – sprain, strain, fracture, dislocation, confusion, abrasion
Part-B: Practical – Cricket & Judo
History of Cricket & Judo, Ground Measurements of Cricket & Judo, Rules & Regulations of Cricket & Judo

5. Unit V: Sociological Aspects of Physical Education
Part-A: Meaning & Definition of Sociology, Importance of Sociology in Physical Education, Meaning of Socialization, Role of Physical Education in Socialization, Effects of Social Institution on individual behaviour, Game & sports as men Cultural Heritage
Part-B: Practical – Hand Ball, Basket Ball
History of Hand Ball & Basket Ball, Ground Measurements of Hand Ball & Basket Ball, Rules & Regulations of Hand Ball & Basket Ball

6. Unit VI: Family Life Education
Part-A: Meaning of Family, Types of Family, Importance of Family as a social institution, Role of parents in child care, Preparation of Marriage, Meaning of Adolescence, Problem & Management of adolescence Problem
Part-B: Practical – VolleyBall & Wrestling
History of Volley Ball & Wrestling, Ground Measurements of Volley Ball & Wrestling, Rules & Regulations of Volley Ball &
Wrestling

7. Unit VII: Yoga Education
Part-A: Meaning & Definition of Yoga, Importance of Yoga, Elements of Yoga (Ashtanga Yog), Meaning & Types of Pranayam
Part-B: Practical – Yogic Exercise
History of Yoga, Different Asanas

8. Unit VIII: Olympic Movements
Part-A: History of Ancient & Modern Olympic Games, Rules of Participations in Modern Olympic Games, Objectives of Modern Olympic Games, Short Notes on – Olympic oath, Olympic flag, Olympic Motto, Olympic Prize, Meaning of Olympic movement
Part-B: Practical – Badminton & Table Tennis
History of Badminton & Table Tennis, Ground Measurements of Badminton & Table Tennis, Rules & Regulations of Badminton & Table Tennis

9. Unit IX: National Sports Awards
Part-A: Meaning of National sports awards, Explain the following in detail – Rajiv Gandhi Khel Ratna award – Arjuna award, Dronacharya award, Bhim award
Part-B: Practical – Boxing, Judo
History of Boxing & Judo, Ground Measurements of Boxing & Judo, Rules & Regulations of Boxing & Judo

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HBSE 9th Class Physical Education Solutions Haryana Board

Haryana Board HBSE 9th Class Physical Education Solutions

HBSE 9th Class Physical Education Solutions in Hindi Medium

HBSE 9th Class Physical Education Solutions in English Medium

  • Chapter 1 Meaning and Importance of Health Education
  • Chapter 2 Meaning and Importance of Personal Health
  • Chapter 3 Meaning, Aims and Objectives of Physical Education
  • Chapter 4 Role of Physical Education in the Development of Individual and Society
  • Chapter 5 Meaning, Definition and Values of Yoga
  • Chapter 6 Role of Various Competitive Games & Sports in Physical Education
  • Chapter 7 Effects of Drinking, Smoking and Abuses of Drugs
  • Chapter 8 Safety Education and First Aid

HBSE 9th Class Physical Education Question Paper Design

Class: 9th
Subject: Health & Physical Education
Paper: Annual or Supplementary
Marks: 60
Time: 3 Hours

1. Weightage to Objectives:

ObjectiveKUATotal
Percentage of Marks403525100
Marks24211560

2. Weightage to Form of Questions:

Forms of QuestionsESAVSAOTotal
No. of Questions3761228
Marks Allotted1521121260
Estimated Time70702515180

3. Weightage to Content:

Units/Sub-UnitsMarks
1. Meaning & Importance of Health Education11
2. Meaning & Importance of Personal Health6
3. Meaning, aims and objectives of Physical Education7
4. Role of Physical Education in the development of Individual and Society7
5. Meaning, Definition and Values of Yoga9
6. Role of Various Competitive Games and Sports in Physical Education4
7. Effects of Drinks, Smoking and Abuse of Drugs7
8. Safety Education and First Aid9
Total60

4. Scheme of Sections:

5. Scheme of Options: Internal Choice in Long Answer Question, i.e. Essay Type

6. Difficulty Level:
Difficult: 10% marks
Average: 50% marks
Easy: 40% marks

Abbreviations: K(Knowledge), U(Understanding), A(Application), S(Skill), E(Essay Type), SA(Short Answer Type), VSA(Very Short Answer Type), O(Objective Type).

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HBSE 10th Class English Solutions Footprints without Feet Chapter 9 Bholi

Haryana State Board HBSE 10th Class English Solutions Footprints without Feet Chapter 9 Bholi Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class English Solutions Footprints without Feet Chapter 9 Bholi

HBSE 10th Class English Bholi Textbook Questions and Answers

Read and Find Out (Page – 54)

1. Why is Bholi’s father worried about her?
Answer:
Bholi’s father was worried about her as she had neither good looks nor intelligence. He did not know how he would find a suitable groom for her.

2. For what unusual reasons is Bholi sent to school?
Answer:
The Tehsildar had performed the opening ceremony of the primary school for girls that had just opened in Randal’s village. He told Ramlal that as he was a representative of the government in the village, he should set an example for the villagers by sending his daughters to the school. When Ramlal discussed this matter with his wife, she said that if girls were sent to school, no one would marry them. Since Ramlal did not have the courage to disobey the Tehsildar, his wife suggested that they should send Bholi to the school. She felt that as there were little chances of her getting married with her ugly face and lack of sense, she might as well go to the school.

Read and Find Out (Page – 55)

1. Does Bholi enjoy her first day at school?
Answer:
Bholi found everything new at the school. She felt glad to see many girls of her age present there. She was fascinated by the bright colours of the pictures on the walls. She cried when she kept stammering on being asked her name. However, she saw how kind the teacher was and finally, managed to speak her name. She was given a book by the teacher. The teacher behaved with her like no one had ever done, thereby filling her with confidence. At the end of her first day at school, her heart was throbbing with a new hope and a new life.

HBSE 10th Class English Solutions Footprints without Feet Chapter 9 Bholi

2. Does she find her teacher different from the people at home?
Answer:
Yes, she found her teacher different from the people at home. Her teacher was very kind and spoke to her affectionately. She did not scold or command her, but encouraged her in a soothing voice. She told her that in time, she would be more learned than anyone else in the village, and no one would ever be able to laugh at her. People would listen to her and respect her. This filled Bholi with a new hope.

Read and Find Out (Page – 58)

1. Why do Bholi’s parents accept Bishamber’s marriage proposal?
Answer:
Bholi’s parents believed that nobody would ever marry Bholi because of her black pock-mark ridden face and lack of sense. They were anxious by the thought of not knowing what to do with her for the rest of their life. When Bishamber’s marriage proposal arrived, Bholi’s parents felt that if they did not accept Bishamber’s proposal, she might remain unmarried all her life. Her mother said that they were lucky that Bishamber was from another village and hence, did not know about Bholi’s pock-marks and her lack of sense. Moreover, he had not even asked for any dowry. Hence, Bholi’s parents accepted the marriage proposal.

2. Why does the marriage not take place?
Answer:
The marriage did not take place because Bholi refused to marry Bishamber. When the groom saw that her face was covered with pock-marks, he declared that he would marry her only if her father paid him a dowry of five thousand rupees. Bishamber did not budge from his stand in spite of repeated pleadings by Ramlal. Finally, Ramlal placed the dowry amount at the groom’s feet. Consequently, when Bishamber was about to place the garland around Bholi’s neck, she struck out her hand and the garland was flung into the fire. She said that she was willing to marry that man only because of her father’s honour. However, on seeing that the man was mean, greedy and contemptible, she decided not to go ahead with the marriage.

Think about It

1. Bholi had many apprehensions about going to school. W hat made her feel that she was going to a better place than her home?
Answer:
Bholi felt that she was going to a better place than her home when she got the treatment that she had never got before. New clothes had never been made for Bholi. The old dresses of her sisters were passed on to her. No one cared to mend or wash her clothes. However, before being sent off to the school, she received a clean dress. She was even bathed, and oil was rubbed into her dry and matted hair. It was then that she began to believe that she was being taken to a place better than her home.

2. How did Bholi’s teacher play an important role in changing the course of her life?
Answer:
Bholi’s teacher played a very important role in changing her life. She was the first one to
have spoken to her affectionately. She encouraged her to speak out her name without any fear. She gave her a book, thereby aiming to inculcate in her the desire to learn. She told her that in time, she would be more learned than anyone else in the village, and no one would ever be able to laugh at her. People would listen to her and respect her. This filled Bholi with a new hope.

3. Why did Bholi at first agree to an unequal match? Why did she later reject the marriage? What does this tell us about her?
Answer:
At first, Bholi had agreed to marry an old man because of her father’s honour, thereby placing her family’s interest over her own. However, she later refused to marry him because she saw how mean, greedy and contemptible he was. By demanding a hefty dowry, he took advantage of her bad looks and the desperateness of her father to get her married. This is why she rejected the marriage and silenced everybody else who called her shameless. This tells us that Bholi had grown in confidence and could very well speak for herself.

4. Bholi’s real name is Sulekha. We are told this right at the beginning. But only in the last but one paragraph of the story is Bholi called Sulekha again. Why do you think she is called Sulekha at that point in the story?
Answer:
Sulekha was called Bholi because everyone considered her to be a backward child and a simpleton. The name Bholi thus symbolises her under confidence and ignorance. After mentioning her real name at the beginning of the story, the author mentions it again only in the second-last paragraph. This is a deliberate attempt on the part of the author to show that Sulekha has finally attained her true identity by literally throwing aside the veil that hid her personality.

HBSE 10th Class English Solutions Footprints without Feet Chapter 9 Bholi

5. Bholi’s story must have moved you. Do you think girl children are not treated at par with boys? You are aware that the government has introduced a scheme to save the girl child as the sex ratio is declining. The scheme is called Beti Bachao Beti Padhao, Save the Girl Child. Read about the scheme and design a poster in groups of four and display on the school notice board.
Answer:
Do it yourself.

Talk about It

1. Bholi’s teacher helped her overcome social barriers by encouraging and motivating her. How do you think you can contribute towards changing the social attitudes illustrated in this story?
Answer:
This chapter explains the social discrimination against a girl child, through a well presented story. The teacher, in this story, helps Bholi to overcome her fear and disability of stammering. In society, these evil practices still prevail. To futher my efforts in eradicating these practices, I will organise ‘nukkad natak’ with a theme based on that of the chapter. If I find any violence or discrimination at a place, I will report it to the concerned authority. Today, the government has initiated so many plans to empower women, to educate girl child, to act legally on dowry
cases, sanitation programmes, etc. I will volunteer for the drive for empowering women and will spread awareness among the people.

2. Should girls be aware of their rights, and assert them? Should girls and boys have the same rights, duties and privileges? What are some of the ways in which society treats them differently? When we speak of ‘human rights’, do we differentiate between girls’ rights and boys’ rights?
Answer:
Girls should be aware of their rights and simultaneously they must be empowered to assert these rights. In today’s scenario, our society is taking a great leap to bring the discriminatory wall of notions down and thus removing the barriers from a girl’s life. The ways in which our society treats the girls differently are, not allowing the girl cadet to fly a fighter plane in combat, not allowing them to step out in night, not giving them a right in paternal property. But above ways are changing now. The Indian Air Force has recently got its first all women fighter crew, recently a boat of all women crew of Indian Navy sailed the entire globe and now there is a legal right which a girl has in her paternal property. While speaking of ‘human rights’, boys and girls are all equal for the constitution, hence the rights are same for both.

3. Do you think the characters in the story were speaking to each other in English? If not, in which language were they speaking? (You can get clues from the names of the persons and the non-English words used in the story?)
Answer:
The characters in the story were not speaking in English, rather they were conversing in Hindi. This can be seen from various instances in the story, like, names of the character, the places, names, the job position of the girl’s father and calling father by ‘Pitaji’.

HBSE 10th Class English Solutions Footprints without Feet Chapter 9 Bholi

HBSE 10th Class English Bholi Important Questions and Answers

Very Short Answer Type Questions

Question 1.
How did Bholi persuade her father of not marrying?
Answer:
Bholi told her father not to worry. She consoled him by saying that she would serve him and the mother in their old age. She would start teaching in the same school where she had learnt so much.

HBSE 10th Class English Solutions Footprints without Feet Chapter 9 Bholi

Question 2.
Why is Sulekha called ‘Bholi’?
Answer:
Sulekha is called ‘Bholi’ because she is a simpleton due to her suffering from some brain damage after falling off a cot when she was ten months old. As a result, she is not as smart as children of her age.

Question 3.
What happened to Bholi when she was two years old?
Answer:
Bholi fell a victim to small pox at the age of two years. Her face and body became full of pock-marks. She was still fortunate as her eyes had remained untouched and were fine.

Question 4.
How did Bholi react when the teacher asked her name?
Answer:
Bholi stammered when she spoke and could not tell her name completely when the teacher asked her to do so. So, she broke into tears.

Question 5.
Why do Bholi’s parents accept Bishamber’s marriage proposal? [CBSE 2015]
Answer:
Bholi’s parents accepted Bishamber’s marriage proposal because they were happy that he was well off and had not asked for dowry.

Question 6.
The last line of the text talks about an artist and the masterpiece. Elaborate.
Answer:
The ‘artist’ is the teacher and the ‘masterpiece’ is Bholi. It was her teacher who had turned Bholi into a strong and independent girl who was aware of her place in society.

Short Answer Type Questions

Question 1.
What did Bholi do when Bishamber saw the face of Bholi and demanded five thousand rupees?
Answer:
When Bishamber demanded five thousand rupees after seeing the face of Bholi, she flung the garland into the fire. Then she got up and threw away the veil. There was a cold contempt in her eyes and she straight away denied marrying the lame old man Bishamber.

Question 2.
What was the teacher’s basis of reposing so much confidence in Bholi that she said she would be more learned than anyone else in the village?
Answer:
When the teacher asked Bholi’s name, she was not able to pronounce it due to her stammering. But gradually, after trying she finally pronounced her name. Observing her never say die attitude, the teacher reposed this much confidence in her. Moreover, she wanted to encourage Bholi to come to school everyday.

HBSE 10th Class English Solutions Footprints without Feet Chapter 9 Bholi

Question 3.
Bholi was fascinated by the walls of the classroom. Why?
Answer:
The walls of the classroom had bright and colourful pictures of a horse, a goat, a parrot and a cow. They all looked familiar to Bholi and were like the ones in the village. That is why she was fascinated to see those pictures.

Question 4.
Bholi found her teacher to be different from others. How?
Answer:
Others had always neglected Bholi. They made fun of her all the time. But, she found her teacher to be different. Her voice was calm, her manner comforting and touch was full of affection.

Question 5.
What filled Bholi, a dumb cow, with a new hope in her? [CBSE2015]
Answer:
Bholi’s first day of school brought her a hope of a new life. She had found a loving and kind
teacher. The teacher had inspired her and given her a book and had made Bholi feel confident about herself.

Question 6.
In what way did the village change over time?
Answer:
The village changed into a small town over a period of time. The primary school had become a high school. The village had a cinema and a cotton ginning mill. The mail train also stopped at the village railway station.

Question 7.
What objections does Ramlal have to Bishamber’s proposal?
Answer:
Ramlal was not very happy with the proposal. He did not like the fact that Bishamber was of his age. He had a limp and his children were quite grown up. It was not a very satisfactory proposition.

Question 8.
Why were Bholi’s sisters envious of her luck?
Answer:
Bishamber Nath was quite prosperous. The procession for Bholi’s marriage had a brass band and the groom rode a decorated horse. Such pomp and show impressed everyone. All this made her sisters envious of her.

Question 9.
Why did Bishamber’s marriage with Bholi not take place? [CBSE2013]
Answer:
Bishamber’s marriage with Bholi did not take place because he had demanded a dowry of five thousand rupees from her father for the marriage. Seeing that how greedy, mean and contemptible he was, Bholi refused to marry him.

Question 10.
Why was Ramlal thunderstruck?
Answer:
Ramlal had always taken his daughter to be dumb. He was thunderstruck when she loudly asked him to take back the money and declared that she was not going to marry Bishamber because of his greed.

HBSE 10th Class English Solutions Footprints without Feet Chapter 9 Bholi

Question 11.
What kind of mother was Ramlal’s wife? [CBSE 2014]
Answer:
Ramlal’s wife was a traditional housewife who believed that daughters should not be
educated, as it would be difficult to find husbands for them. She neglected looking after her daughter Bholi because she was a slow learner.

Essay Type Questions

Question 1.
‘Dowry is negation of the girl’s dignity’. Discuss with reference to the story ‘Bholi’.
Answer:
A girl is an individual in her own right. Equal opportunities in life can help her become
independent and strong. She is not a burdensome object to be given away with money as compensation. Thus dowry negates the girl’s dignity and self respect.
The story ‘Bholi’ shows this in a dramatic manner. Bholi is thought to be ugly and dumb by her parents. Therefore, they are willing to pay dowry to an old man with a limp so that he marries her. Bholi, on the other hand, refuses to marry that man. She is educated; assertive and capable of taking care of herself. She dedicates her life to the service of her parents and teaching at school.

Question 2.
Bholi chose a dignified life of service rather than surrendering herself to a greedy old
man for the rest of her life. Education provides the required stimulus to overcome one’s personal barriers. Explain the role of education in shaping the life of a child with respect to the lesson ‘Bholi’. [CBSE 2012]
Answer:
Education is the answer to all social ills. Illiteracy and ignorance bring nothing but poverty, suffering and misery. Bholi lacks confidence initially because of her disabilities. She is silent, timid and weak in mind. Her ugliness and stammer do not let her progress. She is afraid to speak as others make fun of her.
School changes her life completely. It opens a new world of hope for her. Her teacher treats her with love and kindness. Her affection and support help Bholi to have faith in herself. She studies and grows into a confident young woman. She knows her rights and she asserts them as well. She refuses to marry a man who demands dowry. Thus, being educated changes the life of Bholi.

Question 3.
The chapter ‘Bholi’ highlights the discrimination against the girl child. Analyse.
Answer:
Nature does not discriminate, but society does. From time immemorial the world has
discriminated against the girl child. The chapter, ‘Bholi’ throws up many such instances. Ramlal’s sons go to school and college. His daughters are not educated but married off. Her mother does not think it necessary to take Bholi’s consent for her marriage. The groom is old and lame. Still he demands dowry. Her father is also ready to pay him. It is the girl herself who raises her voice against this marriage. She is criticised and humiliated for standing up for her dignity. But she is firm and decides the course of her life.

Question 4.
Bholi is a child different from others. This difference makes her an object of neglect and laughter. Elaborate.
Answer:
Society does not tolerate difference very easily. Bholi is not like others. She is slow for her age. She stammers when she speaks. Small pox leaves her all covered with pock-marks. As a result, she has to suffer a lot.
Her parents do not even bathe her. She is ignored and neglected. They take her only as a burden. People laugh at her. Children imitate her when she speaks. So, she remains silent most of the time. She has no confidence or self esteem.
Society must realise that it must accept those who are different. They must be treated with the same love and respect as others.

Question 5.
“Put the fear out of your heart and you will be able to speak like anyone else” These words of encouragement from the teacher highlight that change of social attitude and encouragement can help a child like Bholi to become confident and face the world bravely. Taking help from the lesson ‘Bholi’ write how the social attitude towards Bholi made her an introvert. What should be done to help such children to face the world bravely?
Answer:
Bholi suffered a weak mind due to her accident (falling from her cot) during her infancy. She also started to stammer while speaking. Then she became ugly due to pock-marks on her face and body on contracting the small pox disease. All these made her family and other children treat her badly, resulting in her becoming an introvert. To help such children face the world bravely, we must treat them with love and affection and encourage them to join mainstream society. We must not mock their disabilities; instead we should give them hope that they can be as good as the other children by motivating and uplifting them.

Bholi Summary

‘Bholi’ Introduction

About the Author

Khwaja Ahmad Abbas (7 June 1914 – 1 June 1987), popularly known as K. A. Abbas, was an Indian film director, screenwriter, novelist, and a journalist in the Urdu, Hindi and English languages.
He won four National Film Awards in India. As a director and screenwriter, Khwaja Ahmad Abbas is considered one of the pioneers of Indian parallel or neo-realistic cinema, and as a screenwriter he is also known for writing Raj Kapoor’s best films.

Asa screenwriter, he penned a number of neo-realistic films, such as Dharti Ke Lai (which he directed), Neecha Nagar (1946) which won the Palme d’or at the first Cannes Film Festival, Naya Sansar (1941), Jagte Raho (1956), and Saat Hindustani (which he also directed). He is also known for writing the best of Raj Kapoor’s films, including the Palme d’or nominated Awaara (1951), as well as Shree 420 (1955), Mera Naam Joker (1970), Bobby (1973) and Henna (1991).

Pardesi (1957) was nominated for the Palme d’or at the Cannes Film Festival. Shehar Aur Sapna (1963) won the National Film Award for Best Feature Film, while Saat Hindustani (1969) and Do Boond Pani (1972) both won the National Film Awards for Best Feature Film on National Integration.

His column Hast Page’ holds the distinction of being one of the longest-running columns in the history of Indian journalism. The column began in 1935, in The Bombay Chronicle, and moved to the Blitz after the Chronicle’s closure, where it continued until his death in 1987. He was awarded the Padma Shri by the Government of India in 1969.

HBSE 10th Class English Solutions Footprints without Feet Chapter 9 Bholi

Gist of the Story

The story is about a simple village girl named Bholi. Her real name was Sulekha. Fate had deceived her when she was ten months old when she fell off the cot damaging some part of her brain. At birth, she was fair and pretty but at the age of two she had an attack of small-pox that left her with black spots all over the body. She picked up speech only after five years of age along with stammer. The other children often made fun of her and mimicked her.

Bholi was seven years old when a primary school opened in their village. The tehsildar came to perform the opening ceremony of the school. He told Ramlal that as a revenue official and as a representative of the government in the village, he should send his daughter to the school and set an example before the villagers. Despite his wife’s disapproval, Ramlal decided to send Bholi to the school.

Next day, Ramlal dropped her off in the school where she sat in a corner in the class. When her teacher asked her name, she stammered and the children started laughing. At this Bholi started weeping. But the teacher encouraged her and finally she told her full name. Then the teacher told her that if she would come daily to school, she would speak without a stammer and would become the most educated girl in the village.

Years passed and the village turned into a small town. One night Ramlal consulted his wife about the marriage proposal made by Bishamber, a grocer in the neighbouring village. His wife readily agreed to it. On the day of the marriage, when the bridegroom was about to garland Bholi, some lady pulled her veil down showing her face to him. The bridegroom asked Ramlal to give him five thousand rupees as dowry in order to marry that ugly girl. After some arguments, Ramlal handed over the money to Bishamber. But Bholi asked his father to take the money back from him as she did not want to marry that old lame and greedy person. Everybody was surprised because Bholi was not stammering at all. The bridegroom went back with his baraat. Ramlal could not lift his head due to shame and grief. He worried as who will marry her daughter now. Bholi pacified her father and told him that she would serve her parents in their old age and teach in the same school where she had learnt so much.

‘Bholi’ Summary

Brief introduction: Bholi was the fourth daughter of Numberdar Ramlal. Her real name was Sulekha. But since her childhood, every one called her Bholi.

Suffered from numerous problems in childhood days: When Bholi was ten months old, she had fallen off the cot on her head. It damaged some part of her brain. At birth, she was very fair and pretty but at the age of two years, she had to suffer an attack of small-pox. Her body was completely disfigured by deep black pock-marks.

Family details of Ramlal: RamlaTs family was prosperous. He had plenty to eat and drink. He had three sons and four daughters. Except Bholi, all the children were healthy and good looking. But Bholi had neither good looks nor intelligence. So, Ramlal always remained worried about her.

Bholi sent to school: The Tehsildar Sahib inaugurated a new primary school for girls in the village. He told Ramlal to send her daughters to school and set an example for other people of the village. Since Ramlal had no courage to disobey the Tehsildar, he sent Bholi to school. She did not know what a school was like. She was taken to school by Ramlal.

School environment: The environment of the school was good. The children were in their classrooms. There were several rooms. Children were either reading from books or writing on slates. There were so many girls similar to her age.

Generous teacher: Her teacher was very generous. Bholi was not able to understand what she was saying. The colours on the wall impressed her very much. When the teacher asked her name, she stammered a lot. The teacher’s voice was soft and soothing. After a lot of persuasion, she said “Bh-Bh-Bho-Bholi”. The teacher patted her affectionately. Bholi was even given the book full of pictures. It was really very attractive.

Marriage plan of Bholi: Years passed and Bholi’s father made a plan of her marriage. The offer of marriage for Bholi came from Bishamber Nath, a well-to-do grocer. He was similar to the age of Bholi’s father. He was from another village and did not know about the pock-marks and her lack of sense. Bholi’s parents were happy at the only thing that their daughter was going to get married.

Adequate arrangement of wedding made: Elaborate and adequate arrangement of wedding was made. Bishamber came with a big party of friends and relatives with him for the wedding. A decorated horse, a brass-band playing a popular tune from an Indian film, etc., were properly arranged. Ramlal had never dreamt that Bholi’s marriage would get solemnised at such a grand wedding.

Auspicious moment came: Ultimately, the auspicious moment came. Bholi was clad in a red silken bridal dress. There was a garland in her hand. In the meantime, a woman slipped back the silken veil of Bholi. Bishamber also took a quick glance and the garland remained poised in his hands. He shouted loudly that she had pock-marks on her face. So, if he was to marry her, Ramlal would have to pay five thousand rupees as dowry. At last, Ramlal went in, opened the safe and counted the notes and put them at the feet of Bishamber Nath. Now, he was ready to tie a nuptial knot with Bholi.

Drastic change in Bholi’s behaviour: After Bishamber Nath got agreed, there came a drastic change in Bholi’s behaviour. He raised the garland to place it around Bholi’s neck but Bholi struck out her hand like a streak of lightning. The garland was flung into the fire. She threw away the veil and spoke loudly before her parents and relatives. She told her father to take the money back. Ramlal called Bholi crazy and also advised not to do so for the prestige of the family. At this, Bholi replied that she would not marry to such a mean, greedy and contemptible coward man. Bishamber returned with his relatives and friends. Now, Bholi said in a loud voice that there was no need to worry about her. She would teach in the same school where she had studied. She would also take proper care of her parents.

HBSE 10th Class English Solutions Footprints without Feet Chapter 9 Bholi

Lesson at a Glance

  • Bholi was the fourth daughter of Numberdar Ramlal.
  • When she was ten months old, she had fallen off the cot on her head and some part of her brain got damaged.
  • She was very fair and pretty when she was a child.
  • She had an attack of small-pox when she was barely two years old. Due to this, her body was disfigured by black pock-marks.
  • She used to stammer while speaking.
  • All other children mimicked and made fun of her.
  • Except Bholi, all the members of the family were healthy and strong.
  • Bholi had neither good looks nor intelligence.
  • The Tehsildar inaugurated a primary school for girls.
  • Ramlal was a revenue official in the government.
  • The Tehsildar told him to send his daughter Bholi to government school for education and set an example before the villagers.
  • Although Bholi’s mother was against this, Ramlal could not disobey the order of Tehsildar.
  • The next day, Ramalal took Bholi to school. She did not know what the school was all about.
  • Bholi had never worn new dress. She had only worn the old dresses of her sisters.
  • That day Bholi was given a clean dress. She was bathed and oil was rubbed into her dry and matted hair.
  • Bholi was not even acquainted with school. But she was glad to be present amidst girls of her age.
  • When the teacher asked her name she stammered a lot. Even then she could not pronounce her name properly.
  • She kept her head down and did not even dare to look up at the girls of her class.
  • Hearing her sobbing, the teacher told her in a friendly manner to get up.
  • Bholi was very happy to see the book full of nice pictures.
  • The teacher encouraged her to read more and be more learned than anyone else in the village.
  • The years passed and the village became a small town. All the things of the village changed drastically.
  • Now, the offer for marriage came from a prosperous grocer, Bishamber, for Bholi.
  • He was a man of fifty-five or fifty years of age. It was the perception of Ramlal that Bishamber was from other village so he did not know about the pock-marks of Bholi.
  • Bholi was like a dumb cow.
  • Bishamber was a rich grocer. So, he came with a big party of friends and relatives with him for the wedding. All the arrangements were properly done.
  • It was really a wonderful moment for Ramlal. He was more enthusiastic to see such pomp and splendour.
  • Ramlal never thought that her fourth daughter would get married in such a way.
  • When Bishamber was ready to garland Bholi, he saw her pock-marked face.
  • He put a condition before Ramlal that he would not marry to his daughter unless he was paid five thousand rupees.
  • Then Ramlal went and placed his turban at Bishamber’s feet and told him to take two thousand rupees.
  • In the end, Ramlal went inside and came out with a bundle of notes and placed it at the bridegroom’s feet.
  • Bishamber got agreed to marry. As he was about to put garland in her neck, Bholi had only the feeling of cold contempt towards her prospective husband.
  • She flung the garland into the fire.
  • She could now speak in a clear loud voice. She said before all the members that she was not going to marry that lame old man.
  • Ramlal called her crazy and asked what she would do as no one would ever marry her.
  • Bholi said that she would serve the parents in their old age. She would also teach in the same school where she had learnt.
  • There was a deep satisfaction on Bholi’s face.

Character Sketch

Bholi: Sulekha had been called Bholi the simpleton since her childhood. She was the fourth daughter of Numberdar Ramlal. She suffered from an attack of small pox in her childhood when she was two-years old. There were pock-marks over her face and body. She was sent to study in school. Her teacher encouraged her a lot and taught how to read and write. One day, her father Ramlal decided to get her married to Bishamber Nath, a rich grocer. But he was a very greedy and mean person. He demanded five thousand rupees from Ramlal to get married to Bholi. But she told her father not to do this as she did not want to marry to a mean and contemptible person. All this shows that Bholi was now not a dumb cow. She had become bold and courageous and could take decision on her own terms.

HBSE 10th Class English Solutions Footprints without Feet Chapter 9 Bholi

Ramlal: Ramlal was the father of Bholi. He had seven children. All his children were good and healthy except Bholi. He was very much worried about her. She was neither good looking nor intelligent. Ramlal was a numberdar of the village. So he had much prestige and honour in the society.

‘Bholi’ Word-Meanings

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