Haryana State Board HBSE 12th Class Physical Education Solutions Chapter 4 एथलेटिक देखभाल Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 12th Class Physical Education Solutions Chapter 4 एथलेटिक देखभाल
HBSE 12th Class Physical Education एथलेटिक देखभाल Textbook Questions and Answers
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न [Long Answer Type Questions]
प्रश्न 1.
एथलेटिक देखभाल से क्या अभिप्राय है? इसके मुख्य क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
एथलेटिक देखभाल का अर्थ (Meaning ofAthletic Care):
मानव जीवन अनेक मुश्किलों से भरा हुआ है और शारीरिक गतिविधियों में भाग लेना प्रत्येक व्यक्ति के लिए आसान नहीं है। शारीरिक गतिविधियों में अनेक चोटें या दुर्घटनाएँ होने की संभावना निरंतर बनी रहती है। यदि उचित देखभाल, सुरक्षा व सावधानी अपनाई जाए तो इनसे बचा जा सकता है। सावधानी हमेशा दवाइयों या औषधियों से बेहतर होती है। इसलिए सावधानी के तरीके खेलों में प्रयोग किए जाते हैं।
एथलेटिक देखभाल हमें यह जानकारी देती है कि कैसे खेल समस्याओं या चोटों को कम किया जाए, कैसे खेल के स्तर को सुधारा जाए। यदि खिलाड़ी की देखभाल पर ध्यान न दिया जाए तो खिलाड़ी का खेल-जीवन या कैरियर समाप्त हो सकता है। इसलिए हर खिलाड़ी के लिए एथलेटिक देखभाल एक महत्त्वपूर्ण पहलू है।
एथलेटिक देखभाल के क्षेत्र (Scope of Athletic Care):
एथलेटिक देखभाल के क्षेत्र निम्नलिखित हैं-
1. खेल चोटें (Sports Injuries):
प्रतिदिन प्रत्येक आयु के खिलाड़ी शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक तैयारी करते हैं, ताकि वे अपने खेल में अच्छी कुशलता दिखा सकें। खेलों में प्रायः चोटें लगती रहती हैं। कुछ चोटें सामान्य होती हैं तथा कुछ चोटें घातक होती हैं। साधारणतया चोटें उन खिलाड़ियों को लगती हैं जो परिपक्व नहीं होते। उनमें खेलों में आने वाले उतार-चढ़ाव की परिपक्वता नहीं होती और कई बार मैदान का स्तर भी उच्च-कोटि का नहीं होता जिसके कारण मोच, खिंचाव और फ्रैक्चर जैसी चोटें लग जाती हैं। इन चोटों से बचने के लिए एथलेटिक देखभाल जरूरी है। खिलाड़ी हर समय शारीरिक रूप से स्वस्थ रहे, इसके लिए हमेशा फिजियोथेरेपिस्ट उनके साथ रहते हैं। वे खिलाड़ियों को चोट लगने पर उपयुक्त सलाह तथा दवाई देते हैं ताकि खिलाड़ी स्वस्थ रहें।
2. पोषण (Nutrition):
उचित एवं पौष्टिक आहार से हमारा शरीर स्वस्थ रहता है। इससे न केवल खेलकूद के क्षेत्र में, बल्कि दैनिक जीवन में भी हमारी कार्यकुशलता एवं कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। उचित व पौष्टिक आहार से हमारा तात्पर्य उन पोषक तत्त्वों; जैसे वसा, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, खनिज-लवणों, विटामिनों एवं वसा आदि से है जो आहार में उचित मात्रा में उपस्थित होते हैं तथा शरीर का संतुलित विकास करते हैं। आजकल मोटापा एक गंभीर समस्या की भाँति फैल रहा है, जिसको उचित एवं पौष्टिक आहार लेने से तथा उचित व्यायाम करने से नियंत्रित किया जा सकता है। अगर खिलाड़ी को उपयुक्त और पौष्टिक आहार दिया जाए तो खेलों में उसके प्रदर्शन में अच्छा सुधार होगा।
3. प्रशिक्षण विधियाँ (Training Methods):
खिलाड़ियों की देखभाल में जिस प्रकार खेल चोटों से बचना और संतुलित व पौष्टिक आहार लेने का महत्त्व है उतना ही महत्त्व प्रशिक्षण विधियों का है। प्रशिक्षण की विभिन्न विधियाँ; जैसे निरंतर प्रशिक्षण विधि, अंतराल प्रशिक्षण विधि, वजन प्रशिक्षण विधि, सर्किट प्रशिक्षण विधि तथा फार्टलेक प्रशिक्षण विधि बहुत उपयोगी हैं, अगर इनको सही तरीके तथा उपयुक्त समय पर किया जाए तो इनसे खिलाड़ी शारीरिक रूप से तंदुरुस्त रहता है। अतः विभिन्न प्रशिक्षण विधियाँ एथलेटिक देखभाल में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
प्रश्न 2.
प्राथमिक सहायता या चिकित्सा की आवश्यकता तथा महत्ता पर प्रकाश डालिए।
अथवा
प्राथमिक चिकित्सा क्या है? इसकी आवश्यकता व उपयोगिता का वर्णन करें।
अथवा
प्राथमिक सहायता क्या होती है? इसकी हमें क्यों आवश्यकता पड़ती है?
उत्तर:
प्राथमिक सहायता का अर्थ (Meaning of First Aid):
वह सहायता जो किसी रोगी या जख्मी व्यक्ति को घटना स्थल पर डॉक्टर के आने से पहले नियमानुसार दी जाए, उसे प्राथमिक सहायता कहते हैं। किसी दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को वही प्राथमिक सहायता दे सकता है जिसे प्राथमिक सहायता का पूरा ज्ञान हो। परन्तु कई बार ऐसी परिस्थितियाँ भी आ जाती है कि किसी अनजान व्यक्ति को भी दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की प्राथमिक सहायता करनी पड़ सकती है। प्राथमिक सहायता प्रदान करने वाला व्यक्ति जख्मी व्यक्ति को तुरंत नजदीक के किसी डॉक्टर या अस्पताल में पहुचाएँ, ताकि जख्मी का तुरंत इलाज करवाया जा सकें।
प्राथमिक सहायता की आवश्यकता (Need of FirstAid):
आज की तेज रफ्तार जिंदगी में अचानक दुर्घटनाएं होती रहती हैं। साधारणतया घरों, स्कूलों, कॉलेजों, दफ्तरों तथा खेल के मैदानों में दुर्घटनाएँ देखने में आती हैं। मोटरसाइकिलों, बसों, कारों, ट्रकों आदि में टक्कर होने से व्यक्ति घायल हो जाते हैं। मशीनों की बढ़ रही भरमार और जनसंख्या में हो रही निरंतर वृद्धि ने भी दुर्घटनाओं को ओर अधिक बढ़ा दिया है। प्रत्येक समय प्रत्येक स्थान पर डॉक्टरी सहायता मिलना कठिन होता है।
इसलिए ऐसे संकट का मुकाबला करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को प्राथमिक सहायता का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है। यदि घायल अथवा रोगी व्यक्ति को तुरन्त प्राथमिक सहायता मिल जाए तो उसका जीवन बचाया जा सकता है। कुछ चोटें तो इस प्रकार की हैं, जो खेल के मैदान में लगती रहती हैं, जिनको मौके पर प्राथमिक सहायता देना बहुत आवश्यक है। यह तभी सम्भव है, यदि हमें प्राथमिक सहायता सम्बन्धी उचित जानकारी हो। इस प्रकार रोगी की स्थिति बिगड़ने से बचाने और उसके जीवन की रक्षा के लिए प्राथमिक सहायता की बहुत आवश्यकता होती है। इसलिए प्राथमिक सहायता की आज के समय में बहुत आवश्यकता हो गई है। प्रत्येक नागरिक को इसका ज्ञान होना चाहिए।
प्राथमिक सहायता की महत्ता (Importance of First Aid):
प्राथमिक सहायता रोगी के लिए वरदान की भाँति होती है और प्राथमिक सहायक भगवान की ओर से भेजा गया दूत माना जाता है। आज के समय में कोई किसी के दुःख-दर्द की परवाह नहीं करता। एक प्राथमिक सहायक ही है जो दूसरों के दर्द को समझने और उनके दुःख में शामिल होने की भावना रखता है। आज प्राथमिक सहायता की महत्ता बहुत बढ़ गई है; जैसे
(1) प्राथमिक सहायता द्वारा किसी दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की बहुमूल्य जान बच जाती है।
(2) प्राथमिक सहायता देने वाले व्यक्ति में दूसरों के प्रति स्नेह और दया की भावना और तीव्र हो जाती है।
(3) प्राथमिक सहायता प्राथमिक सहायक को समाज में सम्मान दिलाती है।
(4) प्राथमिक सहायता लोगों को दूसरों के काम आने की आदत सिखाती है जिससे मानसिक संतुष्टि मिलती है।
(5) प्राथमिक सहायता देने वाला व्यक्ति डॉक्टर के कार्य को सरल कर देता है।
(6) प्राथमिक सहायता द्वारा लोगों के आपसी रिश्तों में सहयोग की भावना बढ़ती है।
प्रश्न 3.
प्राथमिक सहायता के नियमों या सिद्धांतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राथमिक सहायता आज की तेज़ रफ्तार जिंदगी में बहुत महत्त्व रखती है। इसकी जानकारी बहुत आवश्यक है। प्राथमिक सहायता के नियम निम्नलिखित हैं
(1) रोगी अथवा घायल को विश्राम की स्थिति में रखना।
(2) घाव से बह रहे रक्त को बंद करना।
(3) घायल की सबसे जरूरी चोट की ओर अधिक ध्यान देगा।
(4) दुर्घटना के समय जिस प्रकार की सहायता की आवश्यकता हो तुरंत उपलब्ध करवाना।
(5) घायल की स्थिति को खराब होने से बचाना।
(6) घायल की अंत तक सहायता करना।
(7) घायल के नजदीक भीड़ एकत्रित न होने देना।
(8) घायल को हौसला देना। (9) घायल को सदमे से बचाकर रखना।
(10) प्राथमिक सहायता देते समय संकोच न करना।
(11) घायल को सहायता देते समय सहानुभूति और विनम्रता वाला व्यवहार करना।
(12) प्राथमिक सहायता देने के बाद शीघ्र ही किसी अच्छे डॉक्टर के पास पहुँचाने का प्रबंध करना।
(13) यदि घायल व्यक्ति की साँस नहीं चल रही हो तो उसे कृत्रिम श्वास (Artificial Respiration) देना चाहिए।
(14) रोगी को आराम से लेटे रहना देना चाहिए, जिससे उसकी तकलीफ़ ज़्यादा न बढ़ सके।
(15) यदि यह पता लगे कि रोगी ने जहर पी लिया है तो उसे उल्टी करवानी चाहिए।
(16) यदि घायल व्यक्ति को साँप या ज़हरीले कीट ने काट लिया हो तो काटे हुए स्थान को ऊपर की तरफ से कसकर बाँध देना चाहिए ताकि ज़हर सारे शरीर में न फैले।
(17) यदि घायल व्यक्ति पानी में डूब गया है तो उसे बाहर निकालकर सबसे पहले उसे पेट के बल लिटाकर पानी निकालना चाहिए तथा उसे कम्बल आदि में लपेटकर रखना चाहिए।
प्रश्न 4.
प्राथमिक सहायता का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा एक अच्छे प्राथमिक चिकित्सक या उपचारक (First Aider) के गुणों का वर्णन करें।
अथवा
प्राथमिक चिकित्सा देने वाले व्यक्ति में कौन-कौन-से गुण होने चाहिएँ?
उत्तर:
घायल या मरीज को तत्काल दी जाने वाली सहायता प्राथमिक सहायता कहलाती है। घायल व्यक्ति को गंभीर स्थिति में जाने से रोकने के लिए और उसका जीवन बचाने के लिए प्राथमिक सहायता देना बहुत आवश्यक है। यह तभी हो सकता है यदि प्राथमिक उपचारक बुद्धिमान और होशियार हो और प्राथमिक सहायता के नियमों से परिचित हो। प्राथमिक सहायता देने वाले व्यक्ति में निम्नलिखित गुण होने चाहिएँ
(1) प्राथमिक उपचारक चुस्त और बुद्धिमान होना चाहिए, ताकि घायल के साथ घटी हुई घटना के बारे में समझ सके।
(2) प्राथमिक उपचारक निपुण एवं सूझवान होना चाहिए, ताकि प्राप्त साधनों के साथ ही घायल को बचा सके।
(3) वह बड़ा फुर्तीला होना चाहिए, ताकि घायल व्यक्ति को शीघ्र संभाल सके।
(4) प्राथमिक उपचारक योजनाबद्ध व्यवहार कुशल होना चाहिए, जिससे वह घटना संबंधी जानकारी जल्द-से-जल्द प्राप्त करते हुए रोगी का विश्वास प्राप्त कर सके।
(5) उसमें सहानुभूति की भावना होनी चाहिए, ताकि वह घायल को आराम और हौसला दे सके।
(6) प्राथमिक उपचारक सहनशील, लगन और त्याग की भावना वाला होना चाहिए।
(7) प्राथमिक उपचारक अपने काम में स्पष्ट होना चाहिए, ताकि लोग उसकी सहायता के लिए स्वयं सहयोग करें।
(8) वह स्पष्ट निर्णय वाला होना चाहिए, ताकि वह निर्णय कर सके कि कौन-सी चोट का पहले इलाज करना है।
(9) प्राथमिक उपचारक दृढ़ इरादे वाला व्यक्ति होना चाहिए, ताकि वह असफलता में भी सफलता को ढूँढ सके।
(10) उसका व्यवहार सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए, ताकि घायल को ज़ख्मों से आराम मिल सके।
(11) प्राथमिक उपचारक दूसरों के प्रति विनम्रता वाला और मीठा बोलने वाला होना चाहिए।
(12) प्राथमिक उपचारक स्वस्थ और मजबूत दिल वाला होना चाहिए, ताकि मौजूदा स्थिति पर नियंत्रण पा सके।
प्रश्न 5.
प्राथमिक सहायता क्या है? एक प्राथमिक सहायक के कर्त्तव्यों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राथमिक सहायता का अर्थ (Meaning of First Aid):
किसी रोग के होने या चोट लगने पर किसी प्रशिक्षित या अप्रशिक्षित व्यक्ति द्वारा जो तुरंत सीमित उपचार किया जाता है, उसे प्राथमिक चिकित्सा या सहायता (First Aid) कहते हैं। यह अप्रशिक्षित व्यक्तियों द्वारा कम-से-कम साधनों में किया गया सरल व तत्काल उपचार है। कभी-कभी यह जीवन रक्षक भी सिद्ध होता है। अत: प्राथमिक सहायता का तात्पर्य उस सहायता से है जो कि रोगी अथवा जख्मी को चोट लगने पर अथवा किसी अन्य दुर्घटना के तुरंत बाद डॉक्टर के आने से पूर्व दी जाती है।
प्राथमिक सहायक के कर्त्तव्य (Duties of First Aider):
्राथमिक सहायक के प्रमुख कर्त्तव्य निम्नलिखित हैं
(1) प्राथमिक सहायक को आवश्यकतानुसार घायल का रोगनिदान करना चाहिए।
(2) उसको इस बात पर विचार करना चाहिए कि घायल को कितनी, कैसी और कहाँ तक सहायता दी जाए।
(3) प्राथमिक सहायक को रोगी या घायल को अस्पताल ले जाने के लिए उचित सहायता का उपयोग करना चाहिए।
(4) उसको घायल की पूरी देखभाल की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।
(5) प्राथमिक सहायक को घायल के शरीरगत चिह्नों; जैसे सूजन, कुरूपता आदि को अपनी ज्ञानेंद्रियों से पहचानना चाहिए और उचित सहायता देनी चाहिए।
(6) क्या हुआ, इसके बारे में समझने के लिए प्राथमिक सहायक को स्थिति का जल्दी व शांति से मूल्यांकन करना चाहिए। यदि आप स्थिति को सुरक्षित करने में असमर्थ हैं, तो आपातकालीन सहायता के लिए संपर्क करें।
(7) प्राथमिक सहायक को स्वास्थ्य संबंधी नियमों का पालन करना चाहिए, ताकि संक्रमण से बचा जा सके।
(8) प्राथमिक सहायक को सर्वप्रथम स्वयं को खतरे से सुरक्षित रखना चाहिए। कभी भी जोखिम में कार्य नहीं करना चाहिए।
(9) प्राथमिक सहायक को प्राथमिक सहायता देते समय विभिन्न परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। उसे मुश्किल-से-मुश्किल परिस्थितियों का सामना बड़ी हिम्मत के साथ करना चाहिए। यदि प्राथमिक सहायक ही हिम्मत हार जाए तो जख्मी या रोगी की हालत और भी बिगड़ सकती है। उसे जख्मी की हालत देखकर कभी भी घबराना नहीं चाहिए।
(10) प्राथमिक सहायक को कभी भी अपने आप को डॉक्टर नहीं समझना चाहिए अपितु उसे जख्मी या रोगी को डॉक्टर के आने या डॉक्टर तक पहुँचने से पहले अपेक्षित प्राथमिक सहायता प्रदान करनी चाहिए।
प्रश्न 6.
रगड़/खरोंच क्या है? इसके कारण, बचाव के उपाय तथा इलाज लिखें।
अथवा
खरोंच के कारण, लक्षण एवं उपचार के उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
रगड़ (Abrasion):
रगड़ त्वचा की चोट है। प्रायः रगड़ एक मामूली चोट होती है लेकिन कभी-कभी यह गंभीर भी साबित हो जाती है। अगर रगड़ का चोटग्रस्त क्षेत्र विस्तृत हो जाए और उसमें बाहरी कीटाणु हमला कर दें तो यह भयानक हो जाती है।
कारण (Causes):
रगड़ आने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
(1) कठोर धरातल पर गिर पड़ना।
(2) कपड़ों में रगड़ पैदा करने वाले तंतुओं के कारण।
(3) जूतों का पैरों में सही प्रकार से फिट न आना।।
(4) हैलमेट और कंधों के पैडों का असुविधाजनक होना।
लक्षण (Symptoms):
रगड़ के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं
(1) त्वचा पर रगड़ दिखाई देती है और वहाँ पर जलन महसूस होती है।
(2) रगड़ वाले स्थान से खून बहने लगता है।
(3) सत्काल दर्द शुरू हो जाता है जो पल-भर के लिए होता है।
बचाव के उपाय (Measures of Prevention):
रगड़ से बचाव के उपाय निम्नलिखित हैं
(1) सुरक्षात्मक कपड़े पहनने चाहिएँ, इनमें पूरी बाजू वाले कपड़े, बड़ी-बड़ी जुराबें, घुटनों व कुहनी के पैड शामिल हैं।
(2) खेल उपकरण अच्छी गुणवत्ता वाले होने चाहिएँ और प्रतियोगिता से पूर्व शरीर को गर्मा लेना चाहिए।
(3) फिट जूते पहनने चाहिएँ।
(4) ऊबड़-खाबड़ खेल के मैदान से बचना चाहिए।
इलाज (Treatment):
रगड़ के इलाज या उपचार के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाने चाहिएँ
(1) चोटग्रस्त स्थान को ऊँचा रखना चाहिए।
(2) चोटग्रस्त स्थान को जितनी जल्दी हो सके गर्म पानी व नीम के साबुन से धोना चाहिए।
(3) यदि रगड़ अधिक हो तो उस स्थान पर पट्टी करवानी चाहिए। पट्टी खींचकर नहीं बाँधनी चाहिए।
(4) चोटग्रस्त स्थान को प्रत्येक दिन गर्म पानी से साफ करना चाहिए।
(5) चोट के तुरंत बाद एंटी-टैटनस का टीका अवश्य लगवाना चाहिए।
(6) दिन के समय चोट पर पट्टी बाँधनी चाहिए और रात को चोट खुली रखनी चाहिए।
(7) चोट लगने के बाद, तुरंत नहीं खेलना चाहिए। अगर खिलाड़ी खेलता है तो उसे दोबारा उसी जगह पर चोट लग सकती है जो खतरनाक सिद्ध हो सकती है।
प्रश्न 7.
मोच (Sprain) क्या है? इसके कारण एवं उपचार के उपायों का वर्णन करें।
अथवा
मोच कितने प्रकार की होती है? इसके लक्षण व इलाज के बारे में बताएँ।
अथवा
मोच किसे कहते हैं? इसके लिए प्राथमिक सहायता क्या हो सकती है?
अथवा
मोच के कारणों, लक्षणों व बचाव एवं उपचार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मोच (Sprain):
किसी जोड़ के अस्थि-बंधक तन्तु (Ligaments) के फट जाने को मोच आना कहते हैं अर्थात् जोड़ के आसपास के जोड़-बंधनों तथा तन्तु वर्ग (Tissues) फट जाने या खिंच जाने को मोच कहते हैं। सामान्यतया घुटनों तथा गुटों में ज्यादा मोच आती है। इसकी प्राथमिक चिकित्सा जल्दी शुरू कर देनी चाहिए।
प्रकार (Types):
मोच तीन प्रकार की होती है जो निम्नलिखित है-
1. नर्म मोच (Mold or Minor Sprain): इसमें जोड़-बंधनों (Ligaments) पर खिंचाव आता है। जोड़ में हिल-जुल करने पर दर्द अनुभव होता है। इस हालत में कमजोरी तथा दर्द महसूस होता है।
2. मध्यम मोच (Medicate or Moderate Sprain): इसमें जोड़-बंधन काफी मात्रा में टूट जाते हैं । इस हालत में सूजन तथा दर्द बढ़ जाता है।
3. पूर्ण मोच (Complete or Several Sprain): इसमें जोड़ की हिल-जुल शक्ति समाप्त हो जाती है। जोड़-बंधन पूरी तरह टूट जाते हैं। इस हालत में दर्द असहनीय हो जाता है।
कारण (Causes):
मोच आने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
(1) खेलते समय सड़क पर पड़े पत्थरों पर पैर आने से मोच आ जाती है।
(2) किसी गीली अथवा चिकनी जगह पर; जैसे ओस वाली घास, खड़े पानी में पैर रखने से मोच आ जाती है।
(3) खेल के मैदान में यदि किसी गड्ढे में पैर आ जाए तो यह मोच का कारण बन जाता है।
(4) अनजान खिलाड़ी यदि गलत तरीके से खेले तो भी मोच आ जाती है।
(5) अखाड़ों की गुड़ाई ठीक तरह न होने के कारण भी मोच आ जाती है।
(6) असावधानी से खेलने पर भी मोच आ जाती है।
लक्षण (Symptoms): मोच के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं
(1) सूजन वाले स्थान पर दर्द शुरू हो जाता है।
(2) थोड़ी देर बाद जोड़ के मोच वाले स्थान पर सूजन आने लगती है।
(3) सुजन वाले भाग में कार्य की क्षमता कम हो जाती है।
(4) सख्त मोच की हालत में जोड़ के ऊपर की चमड़ी का रंग नीला हो जाता है।
बचाव (Prevention): खेलों में मोच से बचाव के उपाय निम्नलिखित हैं-
(1) पूर्ण रूप से शरीर के सभी जोड़ों को गर्मा लेना चाहिए।
(2) खेल उपकरण अच्छी गुणवत्ता के होने चाहिएँ।
(3) मैदान समतल व साफ होना चाहिए।
(4) सुरक्षात्मक कपड़े, जूते व उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए।
उपचार/इलाज (Treatment): मोच के उपचार हेतु निम्नलिखित प्राथमिक सहायता की जा सकती है
(1) मोच वाली जगह को हिलाना नहीं चाहिए। आरामदायक स्थिति में रखना चाहिए।
(2) मोच वाले स्थान पर पानी की पट्टी रखनी चाहिए तथा मालिश करनी चाहिए।
(3) यदि मोच टखने पर हो तो आठ के आकार की पट्टी बाँध देनी चाहिए। प्रत्येक मोच वाले स्थान पर पट्टी बाँध देनी चाहिए।
(4) मोच वाले स्थान पर भार नहीं डालना चाहिए बल्कि मदद के लिए कोई सहारा लेना चाहिए।
(5) हड्डी टूटने के शक को दूर करने के लिए एक्सरा करवा लेना चाहिए।
(6) मोच वाले स्थान का हमेशा ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि उसी स्थान पर बार-बार मोच आने का डर रहता है।
प्रश्न 8.
माँसपेशियों या पट्ठों का तनाव क्या होता है? यह किस कारण होता है?
अथवा
खिंचाव से क्या अभिप्राय है? इसके कारणों, लक्षणों व बचाव एवं उपचार का वर्णन कीजिए।
अथवा
माँसपेशियों के तनाव से आपका क्या अभिप्राय है? इसके चिह्न तथा इलाज के बारे में लिखें।
उत्तर:
माँसपेशियों का तनाव/खिंचाव (Pull in Muscles/Strain):
खिंचाव माँसपेशी की चोट है। खेलते समय कई बार खिलाड़ियों की मांसपेशियों में खिंचाव आ जाता है जिसके कारण खिलाड़ी अपना खेल जारी नहीं रख सकता। कई बार तो माँसपेशियाँ फट भी जाती हैं, जिसके कारण काफी दर्द महसूस होता है। प्रायः खिंचाव वाले हिस्से में सूजन आ जाती है। खिंचाव का मुख्य कारण खिलाड़ी का खेल के मैदान में अच्छी तरह गर्म न होना है। इसे पट्ठों का खिंच जाना भी कहते हैं।
कारण (Causes):
खिंचाव आने के निम्नलिखित कारण हैं
(1) शरीरं के सभी अंगों का आपसी तालमेल ठीक न होना।
(2) अधिक शारीरिक थकान।
(3) पट्ठों को तेज़ हरकत में लाना।
(4) शरीर में से पसीने द्वारा पानी का बाहर निकलना।
(5) खिलाड़ी द्वारा शरीर को बिना गर्म किए खेल में हिस्सा लेना।
(6) खेल का समान ठीक न होना।
(7) खेल का मैदान अधिक सख्त या नरम होना।
(8) माँसपेशियों तथा रक्त केशिकाओं का टूट जाना।
चिह्न/लक्षण (Symptoms):
माँसपेशियों या पट्ठों में खिंचाव आने के लक्षण निम्नलिखित हैं
(1) खिंचाव वाले स्थान पर बहुत तेज दर्द होता है।
(2) खिंचाव वाले स्थान पर माँसपेशियाँ फूल जाती हैं, जिसके कारण दर्द अधिक होता है।
(3) शरीर के खिंचाव वाले अंग को हिलाने से भी दर्द होता है।
(4) चोट वाला स्थान नरम हो जाता है।
(5) खिंचाव वाले स्थान पर गड्डा-सा दिखता है।
बचाव (Prevention):
खेल में खिंचाव से बचने के लिए निम्नलिखित उपायों का प्रयोग करना चाहिए
(1) गीले व चिकने ग्राऊंड, ओस वाली घास पर कभी नहीं खेलना चाहिए।
(2) ऊँची तथा लंबी छलाँग हेतु बने अखाड़ों की जमीन सख्त नहीं होनी चाहिए।
(3) खेलने से पहले कुछ हल्का व्यायाम करके शरीर को अच्छी तरह गर्म करना चाहिए। इससे खेलने के लिए शरीर तैयार हो जाता है।
(4) चोटों से बचने के लिए प्रत्येक खिलाड़ी को आवश्यक शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए।
(5) खिलाड़ी को सुरक्षात्मक कपड़े, जूते व उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए।
उपचार/इलाज (Treatment):
खिंचाव के उपचार के उपाय निम्नलिखित हैं
(1) खिंचाव वाली जगह पर पट्टी बाँधनी चाहिए।
(2) खिंचाव वाले स्थान पर ठंडे पानी अथवा बर्फ की मालिश करनी चाहिए।
(3) ‘माँसपेशियों में खिंचाव आ जाने के कारण खिलाड़ी को आराम करना चाहिए।
(4) खिंचाव वाले स्थान पर 24 घंटे बाद सेक देनी चाहिए।
(5) चोटग्रस्त क्षेत्र को आराम देने तथा सूजन कम करने के लिए मालिश करनी चाहिए।
प्रश्न 9.
जोड़ उतरना क्या है? इसके कारण, लक्षण तथा इलाज बताएँ।
अथवा
जोड़ उतरने के कारण, चिह्न तथा उपचार के उपायों का वर्णन करें।
अथवा
जोड़ों के विस्थापन (Dislocation) से आप क्या समझते हैं? इनके प्रकारों, कारणों, लक्षणों तथा बचाव व उपचार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जोड़ उतरना या जोड़ों का विस्थापन (Dislocation):
एक या अधिक हड्डियों के जोड़ पर से हट जाने को जोड़ उतरना कहते हैं। कुछ ऐसी खेलें होती हैं जिनमें जोड़ों की मज़बूती अधिक होनी चाहिए; जैसे जिम्नास्टिक, फुटबॉल, हॉकी, कबड्डी आदि। इन खेलों में हड्डी का उतरना स्वाभाविक है। प्रायः कंधे, कूल्हे तथा कलाई आदि की हड्डी उतरती है।
प्रकार (Types):
जोड़ों का विस्थापन मुख्यतः तीन प्रकार का होता है
(1) कूल्हे का विस्थापन।
(2) कन्धे का विस्थापन।
(3) निचले जबड़े का विस्थापन।
कारण (Causes):
जोड़ उतरने के निम्नलिखित कारण हैं
(1) खेल मैदान का ऊँचा-नीचा होना अथवा अधिक सख्त या नरम होना।
(2) खेल सामान का शारीरिक शक्ति से भारी होना।
(3) खेल से पहले शरीर को हल्के व्यायामों द्वारा गर्म न करना।
(4) खिलाड़ी का अचानक गिरने से हड्डी का हिल जाना।
लक्षण या चिह्न (Symptoms):
जोड़ उतरने के निम्नलिखित लक्षण हैं
(1) जोड़ों में तेज़ दर्द होती है तथा सूजन आ जाती है।
(2) जोड़ों का रूप बदल जाता है।
(3) जोड़ में खिंचाव-सा महसूस होता है।
(4) जोड़ में गति बन्द हो जाती है। थोड़ी-सी गति से दर्द होता है।
(5) उतरे हुए स्थान से हड्डी बाहर की ओर उभरी हुई नज़र आता है।
बचाव (Prevention):
इससे बचाव के उपाय निम्नलिखित हैं
(1) असमतल मैदान या जगह पर संभलकर चलना चाहिए।
(2) गीली या फिसलने वाली जगह पर कभी नहीं खेलना चाहिए।
(3) खेलने से पूर्व शरीर को गर्मा लेना चाहिए।
(4) प्रतियोगिता के दौरान सतर्क व सावधान रहना चाहिए।
उपचार/इलाज (Treatment):
जोड़ उतरने का इलाज निम्नलिखित है
(1) घायल को आरामदायक स्थिति में रखना चाहिए।
(2) घायल अंग को गद्दियों या तकियों से सहारा देकर स्थिर रखें। हड्डी पर प्लास्टिक वाली पट्टी बाँधनी चाहिए।
(3) उतरे जोड़ को चढ़ाने का प्रयास कुशल प्राथमिक सहायक को सावधानी से करना चाहिए।
(4) जोड़ पर बर्फ या ठण्डे पानी की पट्टी बाँधनी चाहिए।
(5) घायल को प्राथमिक सहायता के बाद तुरंत अस्पताल या डॉक्टर के पास ले जाएँ।
(6) चोट वाले स्थान पर भार नहीं पड़ना चाहिए।
(7) चोट वाले स्थान पर शलिंग (Sling) डाल देनी चाहिए, ताकि हड्डी न हिले।
प्रश्न 10.
फ्रैक्चर (Fracture) की कितनी किस्में होती हैं? सबसे खतरनाक कौन-सा फ्रैक्चर है?
अथवा
फ्रैक्चर क्या है? फ्रैक्चर या टूट कितने प्रकार की होती है? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
फ्रैक्चर का अर्थ (Meaning of Fracture):
किसी हड्डी का टूटना, फिसलना अथवा दरार पड़ जाना टूट (Fracture) कहलाता है। हड्डी पर जब दुःखदायी स्थिति में दबाव पड़ता है तो हड्डी से सम्बन्धित माँसपेशियाँ उस दबाव को सहन नहीं कर सकतीं, जिस कारण हड्डी फिसल अथवा टूट जाती है। अतः फ्रैक्चर का अर्थ है-हड्डी का टूटना या दरार पड़ जाना।
हड्डी टूटने या प्रैक्चर के प्रकार (Types of Fracture):
हड्डी टूटने या फ्रैक्चर के प्रकार निम्नलिखित हैं
1. साधारण या बंद फ्रैक्चर (Simple or Closed Fracture): जब हड्डी टूट जाए, परन्तु घाव न दिखाई दे, तो वह बंद टूट होता है।
2. जटिल फ्रैक्चर (Complicated Fracture):
इस फ्रैक्चर से कई बार हड्डी की टूट के साथ जोड़ भी हिल जाते हैं। कई बार हड्डी टूटकर शरीर के किसी नाजुक अंग को नुकसान पहुँचा देती है; जैसे रीढ़ की हड्डी की टूट मेरुरज्जु को, सिर की हड्डी की टूट दिमाग को और पसलियों की हड्डियों की टूट दिल, फेफड़े और जिगर को नुकसान पहुँचाती है। ऐसी स्थिति में टूट काफी जटिल टूट बन जाती है।
3. विशेष या खुली टूट या फ्रैक्चर (Compound or Open Fracture): जब हड्डी त्वचा को काटकर बाहर दिखाई दे तो वह खुली टूट होती है। इस स्थिति में बाहर से मिट्टी के रोगाणुओं को शरीर के अंदर जाने का रास्ता मिल जाता है।
4. बहुसंघीय या बहुखंड टूट या फ्रैक्चर (Comminuted or Multiple Fracture): जब हड्डी कई भागों से टूट जाए तो इसे बहुसंघीय या बहुखंड टूट कहा जाता है।
5. चपटा या संशोधित टूट या फ्रैक्चर (Impacted Fracture): जब टूटी हड्डियों के सिरे एक-दूसरे में घुस जाते हैं तो वह चपटी टूट कहलाती है।
6. कच्चा फ्रैक्चर (Green-stick Fracture): यह छोटे बच्चों में होता है क्योंकि छोटी आयु के बच्चों की हड्डियाँ बहुत नाजुक होती हैं जो शीघ्र मुड़ जाती हैं। यही कच्चा फ्रैक्चर होता है।
7. दबी हुई टूट या फ्रैक्चर (Depressed Fracture): सामान्यतया यह टूट सिर की हड्डियों में होती है। जब खोपड़ी के ऊपरी भाग या आस-पास से हड्डी टूट जाने पर अंदर फंस जाती है तो ऐसी टूट दबी हुई टूट कहलाती है।
सबसे अधिक खतरनाक टूट या फ्रैक्चर जटिल फ्रैक्चर होता है क्योंकि इसमें हड्डी टूटकर किसी नाजुक अंग को नुकसान पहुँचाती है। इस फ्रैक्चर में घायल की स्थिति बहुत नाजुक हो जाती है उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।
प्रश्न 11.
हड्डी टूटने (Fracture) के कारण, लक्षण, बचाव तथा इलाज या उपचार के बारे में लिखें।
अथवा
अस्थि-भंग (Fracture) कितने प्रकार के होते हैं? इनके कारणों, लक्षणों तथा बचाव व उपचार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अस्थि-भंग (Fracture) मुख्यतः सात प्रकार के होते हैं। फ्रैक्चर के कारण (Causes of Fracture):
हड्डी टूटने या फ्रैक्चर के कारण निम्नलिखित हैं
(1) हड्डी पर कोई भारी सामान गिरना।
(2) खेल का मैदान ऊँचा-नीचा होना अथवा असमतल होना।
(3) खेल सामान का शारीरिक शक्ति से भारी होना।
(4) खिलाड़ी के अचानक गिरने से हड्डी का हिल जाना।
(5) माँसपेशियों में कम शक्ति के कारण अकसर हड्डियाँ टूटना।
(6) किसी भी दशा में गिरने से सम्बन्धित जोड़ के पास की मांसपेशियों का सन्तुलन ठीक न होना।
लक्षण (Symptoms):
हड्डी टूटने के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं
(1) टूटी हुई हड्डी वाले स्थान पर दर्द होता है। ।
(2) टूटी हुई हड्डी वाले स्थान पर सूजन आ जाती है।
(3) टूटी हुई हड्डी के स्थान वाले अंग कुरूप हो जाते हैं।
(4) टूट वाले स्थान में ताकत नहीं रहती।
(5) हाथ लगाकर हड्डी की टूट की जाँच की जा सकती है।
बचाव के उपाय (Measures of Prevention):
अस्थि-भंग (फ्रैक्चर) से बचाव के उपाय निम्नलिखित हैं
(1) असमतल मैदान पर ठीक से चलना चाहिए।
(2) ‘फिसलने वाले स्थान पर सावधानी से चलना चाहिए।
(3) कभी भी अधिक भावुक होकर नहीं खेलना चाहिए।
(4) खेल-भावना तथा धैर्य के साथ खेलना चाहिए।
उपचार/इलाज (Treatment):
फ्रैक्चर के इलाज या उपचार के उपाय निम्नलिखित हैं-
(1) टूट वाले स्थान को हिलाना-जुलाना नहीं चाहिए।
(2) टूट के उपचार को करने से पहले रक्तस्राव एवं अन्य तीव्र घावों का उपचार करना चाहिए।
(3) टूटी हड्डी को पट्टियों व कमठियों के द्वारा स्थिर कर देना चाहिए।
(4) टूटी हड्डी पर पट्टियाँ पर्याप्त रूप से कसी होनी चाहिए। पट्टियाँ इतनी न कसी हो कि रक्त संचार में बाधा पैदा हो जाए।
(5) कमठियाँ इतनी लम्बी होनी चाहिएँ कि वे टूटी हड्डी का एक ऊपरी तथा एक निचला जोड़ स्थिर कर दें।
(6) घायल की पट्टियों को इस प्रकार से सही स्थिति में लाए कि उसको कोई तकलीफ न हो।
(7) घायल व्यक्ति को कम्बल या किसी कपड़े के द्वारा गर्म करना चाहिए, ताकि उसे कोई सदमा न पहुँचे।
(8) प्राथमिक सहायता या उपचार देने के बाद घायल व्यक्ति को अस्पताल पहुँचा देना चाहिए, ताकि उसका उचित उपचार किया जा सके।
प्रश्न 12.
भीतरी घाव या कंट्यूशन से क्या अभिप्राय है? इसके लक्षण तथा बचाव व उपचार के उपाय लिखें।
उत्तर:
भीतरी घाव या कंट्यूशन (Contusion):
भीतरी घाव को अंदरुनी चोट भी कहते हैं। यह माँसपेशी की चोट होती है। एक प्रत्यक्ष मुक्का या कोई खेल उपकरण शरीर को लग जाए तो कंट्यूशन का कारण बन सकता है। मुक्केबाजी, कबड्डी और कुश्ती आदि में कंट्यूशन होना स्वाभाविक है। कंट्यूशन में माँसपेशियों में रक्त कोशिकाएँ टूट जाती हैं और कभी-कभी माँसपेशियों से रक्त भी बहने लगता है। भीतरी घाव या कंट्यूशन की जगह पर अकड़न और सूजन आ जाना स्वाभाविक है। कई बार माँसपेशियाँ भी काम करना बंद कर देती हैं। कभी-कभी गंभीर दशा में माँसपेशियाँ पूर्णतया निष्क्रिय हो जाती हैं। कंट्यूशन से शरीर के अनेक अंगों; जैसे रक्त कोशिकाओं, माँसपेशियों, नाड़ियों तथा ऊतकों आदि को नुकसान पहुँचता है।
लक्षण (Symptoms):
भीतरी घाव के लक्षण निम्नलिखित हैं
(1) अंगों में सूजन आ जाना।
(2) अंगों में पीड़ा होना।
(3) शरीर को दबाने पर अकड़न का अनुभव होना।
(4) चमड़ी का रंग बदलना।
(5) शरीर के अंगों का शिथिल पड़ जाना।
बचाव व उपचार (Prevention and Treatment):
भीतरी घाव के बचाव व उपचार के उपाय निम्नलिखित हैं
(1) पी०आर०आई०सी०ई० (P.R.I.C.E.) प्रयोग के प्राथमिक सहायता निर्देशों का पालन करना चाहिए।
(2) चोटग्रस्त अंग पर पट्टी लपेट देनी चाहिए।
(3) प्रतिदिन 3-4 बार चोटग्रस्त अंग पर लगभग 10 मिनट तक बर्फ की मालिश करनी चाहिए।
(4) अगर 48 घंटे के बाद यह ठीक होने लगे तो बर्फ की बजाए गर्म पट्टी से सेकना चाहिए।
(5) गर्म लैंप, गर्म जुराबें तथा पैड का प्रयोग करना चाहिए।
(6) हृदय की ओर थपथपाना चाहिए।
(7) सुरक्षात्मक उपकरणों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
प्रश्न 13.
खेल के मैदान में किन-किन सावधानियों पर ध्यान देना चाहिए?
अथवा
खेल चोटों से बचने के लिए किन-किन बातों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए?
अथवा
हम खेल में आने वाली चोटों से कैसे बच सकते हैं? वर्णन करें।
उत्तर:
आजकल खेल के मैदान में जितना महत्त्वपूर्ण खेलना है, उतना ही महत्त्वपूर्ण है अपने-आपको चोटों से बचाना। खेल के मैदान में चोटों से बचाव हेतु निम्नलिखित सावधानियों/बातों पर ध्यान देना चाहिए
1. बचाव संबंधी सूचनाएँ (Instructions as Regards Protection):
खिलाड़ियों, प्रबंधकों तथा दर्शकों को बचाव के तरीकों के बारे में अच्छी तरह सूचनाएँ दी जानी चाहिएँ। ये सूचनाएँ लिखित रूप में भी भेजी जा सकती हैं और खेल शुरू होने से पहले मौखिक रूप से भी बतानी चाहिएँ। खिलाड़ियों को खेल खेलने के सही ढंग का पूरा-पूरा ज्ञान होना चाहिए। उनको यह भी अच्छी तरह बताना चाहिए कि कबड्डी में कैंची से, फुटबॉल में पाँव पर पाँव रख देने से और बॉक्सिंग में मुँह पर पड़ने वाले मुक्के से स्वयं को कैसे बचाना है। इसी तरह कुश्ती में खुद दाव लगाने तथा विरोधी दाव से बचने की पूरी-पूरी जानकारी होनी चाहिए। ऊँची और लंबी छलाँग लगाने में भी इस बात का पता होना चाहिए कि छलाँग लगाने के बाद धरती पर कैसे गिरना है।
2. खेल के मैदान की योजनाबंदी और प्रबंध (Planning and Management of Play Grounds):
खुली जगह में अलग-अलग खेलों के मैदान की योजनाबंदी करते समय भी खिलाड़ियों और दर्शकों के बचाव पर उचित ध्यान देना चाहिए। मैदान इस ढंग से बनाने चाहिएँ कि एक खेल का सामान दूसरे खेल के मैदान में न जाए। इसके लिए मैदानों के बीच तथा आस-पास काफी खुली जगह छोड़ी जानी चाहिए। मैदानों के लिए बाड़ या दीवार भी मैदान की सीमा रेखा से काफी दूर होनी चाहिएँ, ताकि तेज़ दौड़ने वाले खिलाड़ियों को बाड़ या दीवार से टकराकर चोट आदि न लग सके। खेल के मैदान में जाने के लिए एक रास्ता भी होना चाहिए, जिससे गुज़रते हुए व्यक्ति को चोट न लगे। मैदान को समय के अनुसार पानी देकर और फिर जरूरत के अनुसार रोलर फिराकर समतल रखा जाना चाहिए। मैदान में गड्डे और कंकर-पत्थर भी नहीं होने चाहिएँ । छलाँग वाले अखाड़ों को अच्छी तरह खोदना चाहिए। इस तरह मैदान की ठीक देखभाल करने से खिलाड़ियों को खतरनाक चोटों से बचाया जा सकता है।
3.सामान (Equipments):
खेल का सामान बढ़िया किस्म का ही खरीदना चाहिए। घटिया किस्म के सामान से खिलाड़ियों और दर्शकों को चोटें लगने का भय रहता है। बैट, पोल वॉल्ट के पोल, नेज़े, डिस्कस, हैमर, हर्डल, छलाँगों के स्टैंड और जिम्नास्टिक्स का सामान आदि सभी अच्छी किस्म के होने चाहिएँ। सामान को इस्तेमाल से पहले अच्छी तरह परखना चाहिए। नीकैप, थिनगार्ड, दस्ताने, बूट और जुराबें, लैग-गार्ड आदि निजी सामान खिलाड़ी के शरीर की रक्षा करते हैं। जिम्नास्टिक्स और कुश्ती के लिए बढ़िया किस्म के गद्दों का प्रबंध भी खिलाड़ियों के लिए होना चाहिए।
4. दर्शकों के लिए उचित प्रबंध (Fair Arrangement of Spectators):
मैच के समय दर्शकों के बैठने या खड़े होने का उचित प्रबंध किया जाना चाहिए। खेल के मैदान से बाहर कुछ दूरी पर किसी-न-किसी प्रकार की बनावटी हदबंदी बना लेनी चाहिए, ताकि दर्शक खिलाड़ियों से काफी दूर-दूर ही रहें। मैदान की हदबंदी के निकट साइकिल या स्कूटर आदि को खड़े करने की आज्ञा नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इनसे खिलाड़ियों को चोट लगने का डर रहता है।
5. खेल की निगरानी (Inspection of Sports):
खेलों के कोच, अध्यापक, रैफरी और अम्पायर भी योग्यता प्राप्त और अनुभवशील होने चाहिएँ, क्योंकि मैच में कमज़ोर रैफरियों या अम्पायरों से खेल काबू में नहीं रहते। कई बार हॉकी या फुटबॉल के मैच में लड़ाई हो जाती है, जिनमें खिलाड़ियों को चोटें भी लग जाती हैं। इसलिए रैफरी को चाहिए कि खिलाड़ियों से नियमों की पालना करवाकर उनका बचाव करे।
6. खिलाड़ियों को प्रशिक्षण (Training of Sportsmen):
खिलाड़ियों को अधिकतर खेल को खेल की दृष्टि से खेलने’ का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए न कि बदले की भावना से खेलने का। कमज़ोर टीमों को हँसते हुए हार स्वीकार करने का प्रशिक्षण मिलना चाहिए। खिलाड़ियों को बचाव वाली ड्रैस के बारे में भी जानकारी दी जानी चाहिए।
7.खेलने से पहले गर्म होना (Warming up before Playing):
खेलने से पहले हल्की कसरत करने से शरीर गर्म होकर चुस्त हो जाता है। इससे शरीर की सोई हुई शक्ति जाग पड़ती है। इस तरह शरीर का चोटों से बचाव हो जाता है। गर्म हुए शरीर की माँसपेशियों के फटने या खिंच जाने का कोई डर नहीं रहता।
8. डॉक्टरी परीक्षा (Medical Examination):
बहुत सख्त, तेज़ी से थका देने वाली और खतरनाक खेलों में भाग लेने वाले सारे खिलाड़ियों और एथलीटों की डॉक्टरी परीक्षा खेल आरंभ होने से पहले आवश्यक रूप से की जानी चाहिए। जिन खिलाड़ियों और एथलीटों को दिल की बीमारियाँ, खून का अधिक दबाव और हर्निया आदि बीमारियाँ हों, उन्हें इन खेलों के मुकाबले में भाग लेने की आज्ञा नहीं दी जानी चाहिए।
प्रश्न 14.
टखने की मोच के चिह्न, बचाव के उपाय तथा उपचार के बारे में लिखें।
अथवा
टखने की मोच (Sprain of Ankles) के कारण, लक्षण तथा रोकथाम व इलाज के बारे में लिखें।
उत्तर:
टखने की मोच के कारण (Causes of Sprain of Ankles):
टखने में मोच आने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं
(1) पाँव का अचानक फिसल जाना।
(2) चलते अथवा दौड़ते हुए अचानक पाँव का किसी गड्ढे में आना।
(3) खेल से पहले शरीर को अच्छी प्रकार से गर्म न करना।
(4) ‘खेल का मैदान समतल न होना।
(5) टखनों के जोड़ों के तंतुओं का मजबूत न होना।
(6) फुटबॉल को किक मारते हुए पाँव के पंजे का जोर से जमीन अथवा विरोधी खिलाड़ी के जूते से टकराना।
चिह्न/लक्षण (Symptoms):
टखने की मोच के लक्षण निम्नलिखित हैं
(1) मोच वाले स्थान पर दर्द होता है।
(2) मोच वाले स्थान पर सूजन आ जाती है।
(3) दर्द बढ़ जाता है तथा जोड़ों में काम करने की शक्ति कम हो जाती है।
(4) गंभीर मोच की स्थिति में ऊपरी चमड़ी का रंग नीला हो जाता है।
रोकथाम/बचाव के उपाय (Measures of Prevention):
इसकी रोकथाम या बचाव के उपाय निम्नलिखित हैं
(1) खेलने से पहले शरीर को अच्छी प्रकार गर्म कर लेना चाहिए।
(2) खेल का मैदान समतल होना चाहिए तथा खेल आरंभ करने से पहले मैदान से कंकड़, पत्थर आदि उठाकर बाहर फेंक देने चाहिएँ।
(3) खेल का सही प्रशिक्षण प्राप्त करने के पश्चात् ही खेलों में भाग लेना चाहिए।
उपचार/इलाज (Treatment):
टखने की मोच का इलाज निम्नलिखित अनुसार करना चाहिए
(1) पाँव के व्यायाम करने चाहिएँ।
(2) पहले 24 अथवा 48 घंटे तक गीले कपड़े की पट्टी रखनी चाहिए।
(3) मोच वाले स्थान पर आठ के आकार की पट्टी बाँधनी चाहिए।
(4) पैर के नीचे कोई वस्तु रखनी चाहिए ताकि बाहरी भाग ऊपर की ओर उठ सके।
(5) जिस व्यक्ति को मोच आई हो, उसके जूते उतार देने चाहिएँ।
(6) मोच को आरामदायक स्थिति में रखना चाहिए।
लघूत्तरात्मक प्रश्न [Short Answer Type Questions]
प्रश्न 1.
एथलेटिक देखभाल से आप क्या समझते हैं?
अथवा
एथलेटिक केयर का अर्थ व संप्रत्यय बताइए। अथवा
एथलेटिक केयर का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
एथलेटिक का अर्थ है-सभी प्रकार की खेलें तथा स्पोर्ट्स। एथलेटिक्स खेलों के प्रतिस्पर्धात्मक मुकाबलों में उन क्रियाओं (गतिविधियों) का प्रभुत्व रहता है जिनमें कुशल तथा योग्य खिलाड़ी भाग लेते हैं। एथलेटिक्स के विभिन्न क्षेत्र होते हैं, उदाहरणस्वरूप शिक्षण संस्थाएँ; जैसे स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय जहाँ पर युवा वर्ग एथलेटिक्स गतिविधियों में भाग लेते हैं। प्रत्येक खेल तथा स्पोर्ट्स की राष्ट्रीय फेडरेशन राष्ट्रीय स्तर पर एथलेटिक्स मुकाबले करवाती हैं और अंतर्राष्ट्रीय संघ या इकाई अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एथलेटिक्स मुकाबले करवाती हैं। जब कोई युवा एथलेटिक्स खेलों (प्रतिस्पर्धात्मक मुकाबलों) में भाग लेता है तो उसे एक अंतर्राष्ट्रीय पदक जीतने के लिए कई वर्षों तक कड़े परिश्रम की आवश्यकता पड़ती है। जैसे-जैसे प्रशिक्षण के भार की मात्रा तथा तीव्रता बढ़ती जाती है तो वैसे ही एथलीट के घायल होने का भय अधिक बढ़ जाता है।
एथलेटिक देखभाल या केयर हमें यह जानकारी देती है कि कैसे खेल समस्याओं या चोटों को कम किया जाए, कैसे खेल के स्तर को सुधारा जाए। यदि खिलाड़ी की देखभाल पर ध्यान न दिया जाए तो खिलाड़ी का खेल-जीवन या कैरियर समाप्त हो जाता है। इसलिए हर खिलाड़ी के लिए एथलेटिक देखभाल बहुत महत्त्वपूर्ण पहलू है।
प्रश्न 2.
आजकल प्राथमिक सहायता की पहले से अधिक आवश्यकता क्यों है?
उत्तर:
आज की तेज रफ्तार जिंदगी में अचानक दुर्घटनाएं होती रहती हैं । साधारणतया घरों, स्कूलों, कॉलेजों, दफ्तरों तथा खेल के मैदानों में दुर्घटनाएँ देखने में आती हैं। मोटरसाइकिलों, बसों, कारों, ट्रकों आदि में टक्कर होने से व्यक्ति घायल हो जाते हैं। मशीनों की बढ़ रही भरमार और जनसंख्या में हो रही निरंतर वृद्धि ने भी दुर्घटनाओं को ओर अधिक बढ़ा दिया है। प्रत्येक समय प्रत्येक स्थान पर डॉक्टरी सहायता मिलना कठिन होता है। इसलिए ऐसे संकट का मुकाबला करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति.को प्राथमिक सहायता का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है। यदि घायल अथवा रोगी व्यक्ति को तुरन्त प्राथमिक सहायता मिल जाए तो उसका जीवन बचाया जा सकता है। कुछ चोटें तो इस प्रकार की हैं, जो खेल के मैदान में बहुत लगती रहती हैं, जिनको मौके पर प्राथमिक सहायता देना बहुत आवश्यक है। यह तभी सम्भव है, यदि हमें प्राथमिक सहायता सम्बन्धी उचित जानकारी हो। इस प्रकार रोगी की स्थिति बिगड़ने से बचाने और उसके जीवन की रक्षा के लिए प्राथमिक सहायता की बहुत आवश्यकता होती है। इसलिए प्राथमिक सहायता की आज के समय में बहुत आवश्यकता हो गई है। प्रत्येक नागरिक को इसका ज्ञान होना चाहिए।
प्रश्न 3.
प्राथमिक सहायक को किन तीन मुख्य बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर:
प्राथमिक सहायता देने की विधि रोगी की स्थिति के अनुसार देनी चाहिए, जिसके लिए तीन बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है
1. चोट की स्थिति-ध्यान रखा जाए कि चोट से शरीर का कौन-सा अंग और कौन-सी प्रणाली प्रभावित हुई है। उसके अनुसार उपचार विधि अपनाई जाए।
2. चोट का ज़ोर-जहाँ चोट का अधिक ज़ोर हो, पहले उसको संभालने का प्रयत्न किया जाए।
3. प्राथमिक सहायता की विधि-जिस प्रकार की चोट लगी हो, उपचार विधि उसी के अनुसार अपनाई जाए। मौके पर उपलब्ध साधनों के अनुसार प्राथमिक सहायता देने की विधि अपनाई जानी चाहिए।
प्रश्न 4.
प्राथमिक सहायक या चिकित्सक के कर्तव्यों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्राथमिक सहायक या चिकित्सक के प्रमुख कर्त्तव्य निम्नलिखित हैं
(1) प्राथमिक सहायक या चिकित्सक को आवश्यकतानुसार घायल को रोगनिदान करना चाहिए।
(2) उसको इस बात पर विचार करना चाहिए कि घायल को कितनी, कैसी और कहाँ तक सहायता दी जाए।
(3) प्राथमिक चिकित्सक को रोगी या घायल को अस्पताल ले जाने के लिए योग्य सहायता का उपयोग करना चाहिए।
(4) उसको घायल की पूरी देखभाल की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।
(5) घायल के शरीरगत चिह्नों; जैसे सूजन, कुरूपता आदि को प्राथमिक चिकित्सक को अपनी ज्ञानेंद्रियों से पहचानकर उचित सहायता देनी चाहिए।
प्रश्न 5. खेलों में चोटों के प्राथमिक उपचार का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
खेलों में चोट लगने पर क्या उपचार करना चाहिए?
उत्तर:
खेलों में चोट लगने पर निम्नलिखित उपचार करने चाहिएँ
(1) खेलों में चोट लगने पर सबसे पहले बर्फ की मालिश करनी चाहिए। बर्फ सूजन और रक्त के बहाव को रोकती है।
(2) दबाव का प्रयोग करके भी सूजन को घटाया जा सकता है। बर्फ की मालिश के बाद पट्टी को उस स्थान पर इस प्रकार बाँधना चाहिए कि जिससे रक्त का प्रवाह भी न रुके तथा न ही इतनी ढीली होनी चाहिए जिससे कि दोबारा सूजन हो जाए।
(3) खेलों में चोट लगने पर यह जरूरी है कि आराम किया जाए। जब भी शरीर के किसी हिस्से पर चोट लगती है तो चोट वाले स्थान पर दर्द, सूजन जैसे चिह्न बन जाते हैं। इससे छुटकारा पाने के लिए आराम करना जरूरी है।
(4) चोट लगने पर उस स्थान का उसी के अनुसार इलाज करना चाहिए। यदि शरीर के निचली तरफ चोट लगी है तो उसे दर्द और सूजन से बचाने के लिए आराम और सोते समय चोट लगने वाला हिस्सा ऊँचा रखना चाहिए। यदि चोट शरीर के ऊपरी हिस्से में लगी है तो दर्द और सूजन से बचने के लिए ऊपरी हिस्सा थोड़ा ऊँचा कर देना चाहिए। इससे चोट वाले स्थान को आराम मिलता है।
प्रश्न 6.
खेल में खिंचाव से कैसे बचा जा सकता है?
अथवा
खिंचाव से बचाव की विधियाँ बताइए।
उत्तर:
खिंचाव मांसपेशी की चोट है। खेलते समय कई बार खिलाड़ियों की माँसपेशियों में खिंचाव आ जाता है। कई बार तों माँसपेशियाँ फट भी जाती हैं, जिसके कारण काफी दर्द होता है। प्रायः खिंचाव वाले हिस्से में सूजन आ जाती है।
खेल में खिंचाव से बचने के लिए निम्नलिखित उपायों का प्रयोग करना चाहिए
(1) गीले व चिकने ग्राऊंड, ओस वाली घास पर कभी नहीं खेलना चाहिए।
(2) खेलने से पहले कुछ हल्का व्यायाम करके शरीर को अच्छी तरह गर्म करना चाहिए। इससे खेलने के लिए शरीर तैयार हो जाता है।
(3) चोटों से बचने के लिए प्रत्येक खिलाड़ी को आवश्यक शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए।
(4) खिलाड़ी को सुरक्षात्मक कपड़े, जूते व उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए।
प्रश्न 7.
रगड़ लगने पर क्या इलाज किया जाना चाहिए?
अथवा
रगड़ की प्राथमिक चिकित्सा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रगड़ लगने पर इसके इलाज के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाने चाहिएँ
(1) चोटग्रस्त स्थान को जितनी जल्दी हो सके गर्म पानी व नीम के साबुन से धोना चाहिए।
(2) यदि रगड़ अधिक हो तो उस स्थान पर पट्टी करवानी चाहिए। पट्टी खींचकर नहीं बाँधनी चाहिए।
(3) चोट के तुरंत बाद एंटी-टैटनस का टीका अवश्य लगवाना चाहिए।
(4) दिन के समय चोट पर पट्टी बाँधनी चाहिए और रात को चोट खुली रखनी चाहिए।
(5) चोट लगने के बाद, तुरंत नहीं खेलना चाहिए। अगर खिलाड़ी खेलता है तो दोबारा उसी जगह पर चोट लग सकती है जो खतरनाक सिद्ध हो सकती है।
प्रश्न 8.
मोच कितने प्रकार की होती है? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मोच तीन प्रकार की होती है जो निम्नलिखित है-
1. नर्म मोच-इसमें जोड़-बंधनों (Ligaments) पर खिंचाव आता है। जोड़ में हिल-जुल करने पर दर्द अनुभव होता है। इस हालत में कमजोरी तथा दर्द महसूस होता है।
2. मध्यम मोच-इसमें जोड़-बंधन काफी मात्रा में टूट जाते हैं। इस हालत में सूजन तथा दर्द बढ़ जाता है।
3. पूर्ण मोच-इसमें जोड़ की हिल-जुल शक्ति समाप्त हो जाती है। जोड़-बंधन पूरी तरह टूट जाते हैं। इस हालत में दर्द असहनीय हो जाता है।
प्रश्न 9.
मोच (Sprain) क्या है? इसके बचाव की विधियाँ बताएँ।
अथवा
खेल में मोच से कैसे बचा जा सकता है?
उत्तर:
मोच-मोच लिगामेंट्स की चोट होती है। सामान्यतया मोच कोहनी के जोड़ या टखने के जोड़ पर अधिक आती है। किसी जोड़ के संधिस्थल के फट जाने को मोच आना कहते हैं।
बचाव की विधियाँ-मोच से बचाव की विधियाँ निम्नलिखित हैं
(1) पूर्ण रूप से शरीर के सभी जोड़ों को गर्मा लेना चाहिए।
(2) खेल उपकरण अच्छी गुणवत्ता के होने चाहिएँ।
(3) मैदान समतल व साफ होना चाहिए।
(4) थकावट के समय खेल रोक देना चाहिए।
(5) सुरक्षात्मक कपड़े, जूते व उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए।
प्रश्न 10.
खेल की चोटों को कम करने के आधारभूत चरण क्या हैं?
अथवा
क्या खेलों की चोटों में बचाव के पक्ष, उपचार से अधिक महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
खेल की चोटों को कम करने के आधारभूत चरण निम्नलिखित हैं
(1) प्रतियोगिता से पूर्व शरीर को गर्माना।
(2) सुरक्षात्मक उपकरण का प्रयोग खेल की आवश्यकता के अनुसार करना।
(3) तैयारी के समय उचित अनुकूलन बनाए रखना।
(4) प्रतियोगिता के दौरान सतर्क व सावधान रहना।
(5) सुरक्षात्मक कपड़ों व जूतों का प्रयोग करना।
इस प्रकार उपर्युक्त विवरण के आधार पर खेलों की चोटों में बचाव के पक्ष, उपचार से अधिक महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि हमेशा सावधानी सभी औषधियों या दवाइयों से बेहतर होती है।
प्रश्न 11.
खेलों में लगने वाली चोटों से बचाव के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
खेलों में लगने वाली चोटों से बचाव के महत्त्व निम्नलिखित प्रकार से हैं
(1) खिलाड़ी बिना किसी तकलीफ के खेलों में अच्छा प्रदर्शन कर सकता है।
(2) खेलों का संचालन अच्छा होता है।
(3) खिलाड़ी का शरीर स्वस्थ व संतुलित रहता है।
(4) अधिक समय तक खिलाड़ी अपने खेल में अच्छा प्रदर्शन कर सकता है।
(5) खिलाड़ी अपनी पूर्ण शक्ति या ऊर्जा से खेल जारी रख सकता है।
प्रश्न 12.
टखने की मोच (Sprain of Ankles) के कारण लिखें।
उत्तर:
टखने में मोच आने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं
(1) पाँव का अचानक फिसल जाना।
(2) चलते अथवा दौड़ते हुए अचानक पाँव का किसी गड्ढे में आना।
(3) खेल से पहले शरीर को अच्छी प्रकार से गर्म न करना।
(4) खेल का मैदान समतल न होना।
(5) टखनों के जोड़ों के तंतुओं का मजबूत न होना।
(6) फुटबॉल को किक मारते हुए पाँव के पंजे का जोर से जमीन अथवा विरोधी खिलाड़ी के जूते से टकराना।
प्रश्न 13.
घावों के प्राथमिक उपचार पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर:
घावों के प्राथमिक उपचार हेतु निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं
(1) सबसे पहले रोगी को अनुकूल आसन में बैठाए।
(2) रक्त बहते हुए अंग को थोड़ा ऊपर उठाकर रखें।
(3) घाव में यदि कोई बाहरी चीज दिखाई पड़े जो आसानी से हटाई जाए तो साफ पट्टी से हटा दीजिए।
(4) घाव को जहाँ तक हो सके खुला रखे अर्थात् कपड़े आदि से न ढके।
(5) घाव पर मरहम पट्टी लगाएँ और घायल अंग को स्थिर रखें। ।
(6) घाव पर पट्टी इस प्रकार से बाँधनी चाहिए जिससे बहता रक्त रुक सके।
(7) घायल के घाव को आयोडीन टिंक्चर या स्प्रिट से भली भाँति धो देना चाहिए।
(8) घायल को प्राथमिक उपचार के बाद तुरंत डॉक्टर के पास ले जाए।
प्रश्न 14.
जोड़ या हड्डी के उतर जाने (Dislocation) की प्राथमिक सहायता का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जोड़ या हड्डी के उतर जाने की प्राथमिक सहायता निम्नलिखित प्रकार से करनी चाहिए
(1) घायल को आरामदायक या सुखद स्थिति में रखना चाहिए।
(2) घायल अंग को गद्दियों या तकियों से सहारा देकर स्थिर रखें।
(3) उतरे जोड़ को चढ़ाने का प्रयास कुशल प्राथमिक सहायक को सावधानी से करना चाहिए।
(4) यदि दर्द अधिक हो तो गर्म पानी की टकोर करनी चाहिए।
(5) जोड़ पर बर्फ या ठण्डे पानी की पट्टी बाँधनी चाहिए।
(6) घायल को प्राथमिक सहायता के बाद तुरंत अस्पताल या डॉक्टर के पास ले जाएँ।
प्रश्न 15.
जोड़ों के विस्थापन से क्या तात्पर्य है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड्डी का अपने जोड़ वाले स्थान से हट जाना या खिसक जाना, जोड़ का विस्थापन कहलाता है। कुछ ऐसे खेल होते हैं जिनमें हड्डी का उतरना स्वाभाविक है। प्रायः कंधे, कूल्हे तथा कलाई आदि की हड्डी उतरती है। जोड़ों के विस्थापन निम्नलिखित प्रकार के होते हैं
1. निचले जबड़े का विस्थापन-सामान्यतया इस प्रकार का विस्थापन तब होता है, जब ठोडी किसी वस्तु से टकरा जाए। अधिक मुँह खोलने से भी निचले जबड़े का विस्थापन हो सकता है।
2. कन्धे के जोड़ का विस्थापन-कन्धे के जोड़ का विस्थापन अचानक झटके या कठोर सतह पर गिरने से हो सकता है। इस चोट में मांसल की हड्डी (Humerous) का सिरा सॉकेट से बाहर आ जाता है।
3. कूल्हे के जोड़ का विस्थापन-अनायास ही अधिक शक्ति लगाने से कूल्हे के जोड़ का विस्थापन हो सकता है। इस चोट में फीमर का ऊपरी सिरा सॉकेट से बाहर आ जाता है।
प्रश्न 16.
हड्डी टूटने या अस्थि-भंग (Fracture) के प्राथमिक उपचार या सहायता पर प्रकाश डालिए।
अथवा
टूटी हड्डी के उपचार हेतु किन-किन नियमों का पालन करना चाहिए?
उत्तर:
टूटी हड्डी के प्राथमिक उपचार के लिए निम्नलिखित उपायों या नियमों को अपनाना चाहिए
(1) टूटी हड्डी का उसी स्थान पर प्राथमिक उपचार करना चाहिए।
(2) टूट के उपचार को करने से पहले रक्तस्राव एवं अन्य तीव्र घावों का उपचार करना चाहिए।
(3) टूटी हड्डी को पट्टियों व कमठियों के द्वारा स्थिर कर देना चाहिए।
(4) टूटी हड्डी पर पट्टियाँ पर्याप्त रूप से कसी होनी चाहिए। पट्टियाँ इतनी न कसी हो कि रक्त संचार में बाधा पैदा हो जाए।
(5) कमठियाँ इतनी लम्बी होनी चाहिएँ कि वे टूटी हड्डी का एक ऊपरी तथा एक निचला जोड़ स्थिर कर दें।
(6) घायल की पट्टियों को इस प्रकार से सही स्थिति में लाए कि उसको कोई तकलीफ न हो।
(7) घायल व्यक्ति को कंबल या किसी कपड़े के द्वारा गर्म करना चाहिए ताकि उसे कोई सदमा न पहुंचे।
(8) प्राथमिक सहायता या उपचार देने के बाद घायल व्यक्ति को अस्पताल पहुँचा देना चाहिए, ताकि उसका उचित उपचार किया जा सके।
प्रश्न 17.
खेल चोटें क्या हैं? ये कितने प्रकार की होती हैं?
उत्तर:
खेल चोटें-प्रतिदिन प्रत्येक आयु के खिलाड़ी शारीरिक, मानसिक तथा भावात्मक तैयारी करते हैं, ताकि वे अपने खेल में अच्छी कुशलता दिखा सकें। खेलों में प्रायः चोटें लगती रहती हैं। साधारणतया चोटें उन खिलाड़ियों को लगती हैं जो परिपक्व नहीं होते। उनमें खेलों में आने वाले उतार-चढ़ाव की परिपक्वता नहीं होती और कई बार मैदान का स्तर भी उच्च-कोटि का नहीं होता जिसके कारण चोटें लग जाती हैं। ऐसी चोटों को खेल-चोटें कहा जाता है।
प्रकार-खेल चोटें मुख्यतः तीन प्रकार की होती हैं-
(1) मुलायम या कोमल ऊतकों की चोटें
(2) अस्थियों की चोटें
(3) जोड़ों की चोटें।
प्रश्न 18.
खेलों में चोट लगने के कोई चार कारण बताइए।
अथवा
खेल में चोटें कैसे लगती हैं?
उत्तर:
खेल के मैदान में खेलते समय चोट लगने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
(1) खेलों का घटिया सामान तथा घटिया निगरानी
(2) ऊँचे-नीचे या असमतल खेल के मैदान
(3) बचाव संबंधी उचित सामान की कमी
(4) खिलाड़ियों द्वारा लापरवाही तथा बदले की भावना से खेलना।
प्रश्न 19.
खिंचाव के प्रकार व प्रबन्ध का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
खिंचाव के प्रकार-
(1) सामान्य खिंचाव
(2) मध्यम खिंचाव
(3) गंभीर खिंचाव।
खिंचाव के प्रबन्ध-खिंचाव के प्रबन्ध इस प्रकार हैं-
(1) जिस जगह चोट लगी हो, उसे आरामदायक स्थिति में रखना चाहिए
(2) खिंचाव वाले स्थान पर ठण्डे पानी या बर्फ की मालिश करनी चाहिए। बर्फ का प्रयोग सीधे न करके किसी कपड़े में लपेटकर करना चाहिए
(3) पूर्ण रूप से आराम करना चाहिए
(4) चोट-ग्रस्त अंग को थोड़ा ऊपर रखना चाहिए
(5) अधिक दर्द होने की स्थिति में डॉक्टर की सलाहनुसार उचित दवा लेनी चाहिए।
प्रश्न 20.
चोटों के उपचार के लिए पी०आर०आई०सी०ई० (P.R.I.C.E.) प्रक्रिया का पालन क्यों करना चाहिए? स्पष्ट करें।
उत्तर:
1. सुरक्षा (Protection-P): इसका उद्देश्य घायल व्यक्ति को आगे लगने वाली चोट से सुरक्षा करना है तथा दूसरे एथलीटों और जोखिमों से दूर रखना है।
2. विश्राम (Rest-R): घायल अंग को स्थिरता प्राप्त कराने के यंत्र से स्थिर रखना चाहिए। व्यायाम में वापसी धीमी और क्रमिक होनी चाहिए, यदि घायल व्यक्ति प्रभावित क्षेत्र को बिना किसी दर्द के हिलाने की क्षमता रखता है।
3. बर्फ (Ice-I): खून के बहाव और तरल पदार्थ के नुकसान के कारण होने वाली सूजन और दर्द को चोट लगने के 72 घंटों के बाद बर्फ लगाकर कम किया जा सकता है।
4. संपीड़न (Compression-C): यह प्रारंभिक खून के बहाव को नियंत्रित करने में सहायता करता है और अवशिष्ट सूजन को कम करता है। संपीड़न साधारणतया लोचदार लपेटों के रूप में आता है।
5. ऊँचाई (Elevation-E): घायल अंग की ऊँचाई का दिल के स्तर से ऊपर होना ऊतक में खून के प्रारंभिक बहाव को कम करने में सहायता करता है, जब यह बर्फ और संपीड़न के साथ संयोजन में प्रयोग किया जाता है।
अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न [Very Short Answer Type Questions]
प्रश्न 1.
पराथमिक सहायता (First Aid) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्राथमिक सहायता का तात्पर्य उस सहायता से है जो कि रोगी अथवा जख्मी को चोट लगने पर अथवा किसी अन्य दुर्घटना के तुरंत बाद डॉक्टर के आने से पूर्व दी जाती है। इसको प्राथमिक चिकित्सा भी कहा जाता है।
प्रश्न 2.
प्राथमिक सहायता के उपकरण (First Aid Equipments) कैसे होने चाहिएँ?
उत्तर:
प्राथमिक सहायता के बॉक्स में जो उपकरण या सामग्री हो वह काम के अनुकूल होनी चाहिए। उसका आधार स्वास्थ्य के नियमों तथा समय की आवश्यकतानुसार ही होना चाहिए। प्राथमिक सहायता के बॉक्स में सभी आवश्यक उपकरण होने चाहिएँ।
प्रश्न 3.
प्राथमिक सहायता बॉक्स में कौन-कौन-से उपकरण या चीजें होनी चाहिएँ?
उत्तर:
(1) मिली-जुली चिपकने वाली पट्टियाँ,
(2) पतला कागज,
(3) आवश्यक दवाइयाँ,
(4) रूई का बंडल,
(5) कैंची,
(6) सेफ्टी पिन,
(7) तैयार की हुई आकार के अनुसार कीटाणुरहित पट्टियाँ,
(8) कमठियों का एक सैट,
(9) चिपकने वाली पलस्तर,
(10) मरहम पट्टियाँ,
(11) डैटॉल आदि।
प्रश्न 4.
प्राथमिक सहायक के कोई दो गुण बताएँ।
उत्तर:
(1) प्राथमिक सहायक में उचित निर्णय लेने का साहस होना चाहिए।
(2) उसमें सेवा भावना और सहानुभूति की भावना होनी चाहिए।
प्रश्न 5.
प्राथमिक सहायक किसे कहा जाता है?
उत्तर:
यद्यपि प्रारंभ में प्राथमिक सहायक’ की भूमिका के बारे में कोई वर्णन नहीं मिलता, परन्तु सन् 1994 के बाद प्राथमिक सहायक’ शब्द का प्रयोग शुरू हुआ। जिस व्यक्ति ने किसी आधिकारिक संस्था से प्राथमिक सहायता की शिक्षा प्राप्त की हो, उसे प्राथमिक सहायक कहा जाता है।
प्रश्न 6.
प्राथमिक सहायता के क्या उद्देश्य हैं?
उत्तर:
(1) रोगी की जिंदगी बचाना,
(2) रोगी की हालत को बिगड़ने से रोकना,
(3) रोगी की हालत को सुधारना,
(4) रोगी को समीप के अस्पताल में पहुँचाना या डॉक्टर के पास लेकर जाना।
प्रश्न 7.
खिंचाव से क्या अभिप्राय है?
अथवा
माँसपेशियों या पट्ठों का तनाव क्या है?
उत्तर:
खिंचाव या तनाव माँसपेशी की चोट है। खेलते समय कई बार खिलाड़ियों की माँसपेशियों या पट्ठों में खिंचाव आ जाता है जिसके कारण खिलाड़ी अपना खेल जारी नहीं रख सकता। कई बार तो माँसपेशियाँ फट भी जाती हैं, जिसके कारण काफी दर्द महसूस होता है। प्रायः खिंचाव वाले हिस्से में सूजन आ जाती है। खिंचाव का मुख्य कारण खिलाड़ी का खेल के मैदान में अच्छी तरह गर्म न होना है। इसे पट्ठों का खिंच जाना भी कहते हैं।
प्रश्न 8.
मोच से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
किसी जोड़ के अस्थि-बंधक तन्तु (Ligaments) के फट जाने को मोच आना कहते हैं अर्थात् जोड़ के आसपास के जोड़-बंधनों तथा तन्तु वर्ग (Tissues) फट जाने या खिंच जाने को मोच कहते हैं । सामान्यत: घुटनों, रीढ़ की हड्डी तथा गुटों में ज्यादा मोच आती है।
प्रश्न 9.
चोटों की देखरेख में पी०आर०आई०सी०ई० (P.R.I.C.E.) का क्या अर्थ है?
उत्तर:
चोटों की देखरेख में पी०आर०आई०सी०ई० (P.R.I.C.E.) का अर्थ है-P = Protection (सुरक्षा/बचाव), R=Rest (विश्राम), I = Ice (बर्फ),C=Compression (दबाना), E= Elevation (ऊँचा रखना)।अत: पी० आर०आई०सी०ई० का अर्थ है-सुरक्षा/बचाव करना, विश्राम करना, बर्फ लगाना, दबाना व ऊँचा रखना।
प्रश्न 10.
रगड़ या छिलना से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
रगड़ त्वचा की चोट है। खेलते समय त्वचा पर ऐसी चोटें लग जाती हैं। प्रायः रगड़ एक मामूली चोट होती है, लेकिन कभी-कभी यह गंभीर भी साबित हो जाती है। अगर रगड़ का चोटग्रस्त भाग अधिक घातक हो जाए और उसमें बाहरी कीटाणु हमला कर दें तो यह भयानक हो जाती है।
प्रश्न 11. रगड़ के क्या कारण हैं?
उत्तर:
(1) कठोर धरातल पर गिर पड़ना
(2) कपड़ों में रगड़ पैदा करने वाले तंतुओं के कारण
(3) जूतों का पैरों में सही प्रकार से फिट न आना
(4) हैलमेट और कंधों के पैडों का असुविधाजनक होना।
प्रश्न 12. घाव कितने प्रकार के होते हैं?
अथवा
जख्मों की कितनी किस्में होती हैं?
उत्तर:
घाव या जख्म चार प्रकार के होते हैं
(1) कट जाने से घाव
(2) फटा हुआ घाव
(3) छिपा हुआ घाव
(4) कुचला हुआ घाव।
प्रश्न 13.
जोड़ उतर जाने (Dislocation) से क्या अभिप्राय है? अथवा जोड़ उतरना क्या है?
उत्तर:
हड्डी का अपने जोड़ वाले स्थान से हट जाना या खिसक जाना, जोड़ उतरना कहलाता है। कुछ ऐसे खेल होते हैं जिनमें हड्डी का उतरना स्वाभाविक है। प्रायः कंधे, कूल्हे तथा कलाई आदि की हड्डी उतरती है।
प्रश्न 14.
अल्प चोटें (Minor Injuries) क्या होती हैं?
उत्तर:
अल्प चोटें वे चोटें होती हैं जिन्हें प्राथमिक चिकित्सा सहायता द्वारा कम समय में ठीक किया जा सकता है। ऐसी चोटें खेलों में खिलाड़ियों को अकसर लगती रहती हैं। ये अधिक घातक तो नहीं होतीं, पर समय पर प्राथमिक चिकित्सा न लिए जाने के कारण घातक सिद्ध हो सकती हैं।
प्रश्न 15.
गंभीर चोटें (Serious Injuries) क्या होती हैं?
उत्तर:
गंभीर चोटें वे चोटें होती हैं जिसके कारण खिलाड़ी या व्यक्ति अपनी पूरी क्षमता को खेल या कार्य में प्रयोग करने में असमर्थ हो जाता है। ऐसी चोटों में तुरंत डॉक्टरी जाँच की आवश्यकता होती है। कई बार ऐसी चोटें लगने से खिलाड़ियों का जीवन खतरे में पड़ जाता है।
प्रश्न 16.
जटिल फ्रैक्चर क्या होता है? गुंझलदार टूट (Complicated Fracture) क्या है?
उत्तर:
जटिल फ्रैक्चर से कई बार हड्डी की टूट के साथ जोड़ भी हिल जाते हैं। कई बार हड्डी टूटकर शरीर के किसी नाजुक अंग को नुकसान पहुँचा देती है; जैसे रीढ़ की हड्डी की टूट मेरुरज्जु को, सिर की हड्डी की टूट दिमाग को और पसलियों की हड्डियों की टूट दिल, फेफड़े और जिगर को नुकसान पहुँचाती हैं। ऐसी स्थिति में टूट काफी जटिल टूट बन जाती है।
प्रश्न 17.
हड्डी टूटने के दो लक्षण बताएँ। अथवा शरीर के भाग में फ्रैक्चर होने के किन्हीं दो सामान्य लक्षणों का उल्लेख करें।
उत्तर:
(1) टूटी हुई हड्डी वाले स्थान पर दर्द होता है
(2) टूटी हुई हड्डी वाले स्थान पर सूजन आ जाती है।
प्रश्न 18.
एथलेटिक देखभाल के विभिन्न कारकों या तत्त्वों के नाम बताएँ।
उत्तर:
(1) सुरक्षात्मक कपड़े व जूते
(2) सुरक्षात्मक उपकरण
(3) संतुलित आहार
(4) वैज्ञानिक ढंग से प्रशिक्षण
(5) सामान्य सजगता
(6) वातावरण
(7) गर्माना व ठंडा करना आदि।
प्रश्न 19.
खेलों के सामान्य चोटों के नाम बताइए।
अथवा
खेलों में लगने वाली चार चोटों के नाम लिखिए।
अथवा
उत्तर:
(1) मोच (Sprain)
(2) खिंचाव (Strain)
(3) हड्डी का उतर जाना (Dislocation)
(4) हड्डी का टूटना (Fracture)
(5) भीतरी घाव (Contusion)
(6) रगड़ (Abrasion)।
प्रश्न 20.
कंट्यूशन या भीतरी घाव से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कंट्यूशन माँसपेशी की चोट होती है। यदि एक प्रत्यक्ष मुक्का या कोई खेल उपकरण शरीर को लग जाए तो कंट्यूशन का कारण बन सकता है। मुक्केबाजी, कबड्डी और कुश्ती आदि में कंट्यूशन होना स्वाभाविक है। कंट्यूशन में माँसपेशियों में रक्त कोशिकाएँ टूट जाती हैं और कभी-कभी मांसपेशियों से रक्त भी बहने लगता है।
प्रश्न 21.
भीतरी घाव की रोकथाम के कोई दो उपाय बताएँ।
उत्तर:
(1) सुरक्षात्मक उपकरणों; जैसे दस्ताने, हैलमेट आदि का प्रयोग करके इससे बचा जा सकता है।
(2) अभ्यास या प्रतियोगिता में भाग लेने से पूर्व शरीर को गर्माकर इससे बचा जा सकता है।
प्रश्न 22.
नील (Bruise) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
ऊपरी त्वचा पर कोई निशान या चिह्न न पड़ने के कारण यह चोट स्पष्टतया दिखाई नहीं पड़ती, लेकिन आंतरिक ऊतक नष्ट हो जाते हैं। इस चोट से प्रभावित स्थान नीला पड़ जाता है अर्थात् त्वचा के नीचे रक्त फैल जाता है।
प्रश्न 23.
नील के क्या कारण हैं?
उत्तर:
(1) अभ्यास व प्रतियोगिता से पूर्व खिलाड़ियों द्वारा शरीर को न गर्माना
(2) खेल मैदान का समतल न होना
(3) खेलों में अच्छी गुणवत्ता के उपकरणों का प्रयोग न करना
(4) थकावट की स्थिति में खेल को जारी रखना।
प्रश्न 24.
खेलों में चोटें कितने प्रकार की होती हैं? उनके नाम लिखिए।
उत्तर:
खेलों में चोटें दो प्रकार की होती हैं-
(1). कोमल ऊतकों की चोटें
(2) कठोर ऊतकों की चोटें।
प्रश्न 25.
नील से बचाव के कोई दो उपाय बताएँ।
उत्तर:
(1) अभ्यास, प्रशिक्षण व प्रतियोगिता के दौरान खिलाड़ियों को सतर्क व सावधान रहना चाहिए।
(2) सुरक्षात्मक कपड़ों, जूतों व उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए।
प्रश्न 26.
जोड़ उतरने के कोई दो लक्षण बताएँ।
उत्तर:
(1) जोड़ों में तेज़ दर्द होती है तथा सूजन आ जाती है
(2) जोड़ में गति बन्द हो जाती है। थोड़ी-सी गति से दर्द होती है।
प्रश्न 27.
जोड़ उतरने के कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:(1) खेल मैदान का ऊँचा नीचा होना अथवा अधिक सख्त या नरम होना।
(2) अचानक गिरने से हड्डी का हिल जाना।
प्रश्न 28.
मोच के लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) सूजन वाले स्थान पर दर्द शुरू हो जाता है।
(2) थोड़ी देर बाद जोड़ के मोच वाले स्थान पर सूजन आने लगती है।
(3) सूजन वाले भाग में कार्य की क्षमता कम हो जाती है।
प्रश्न 29.
जोड़ों का विस्थापन (Dislocation) कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
जोड़ों का विस्थापन मुख्यतः तीन प्रकार का होता है-
(1) कूल्हे का विस्थापन,
(2) कन्धे का विस्थापन,
(3) निचले जबड़े का विस्थापन।
प्रश्न 30.
दबा हुआ फ्रैक्चर (Depressed Fracture) क्या होता है?
उत्तर:
सामान्यतया यह फ्रैक्चर सिर की हड्डियों में होता है। जब खोपड़ी के ऊपरी भाग या आस-पास से हड्डी टूट जाने पर अंदर फंस जाती है तो ऐसा फ्रैक्चर दबा हुआ फ्रैक्चर कहलाता है।
प्रश्न 31.
अस्थि-भंग के क्या कारण हैं? अथवा हड्डी टूटने के मुख्य कारण बताएँ।
उत्तर:
(1) यदि कोई भार तेजी से आकर हड्डी में लगे तो हड्डी अपने स्थान से खिसक जाती है
(2) खेल मैदान का ऊँचा-नीचा होना अथवा असमतल होना
(3) खेल सामान का शारीरिक शक्ति से भारी होना।
प्रश्न 32.
कन्धे के जोड़ का विस्थापन किसे कहते हैं ?
उत्तर:
कन्धे के जोड़ का विस्थापन एक ऐसी चोट है जिसमें आपकी ऊपरी बाजू की हड्डी कप के आकार की सॉकेट (Cup-shaped Socket) से निकलती है जो आपके कन्धे के जोड़ का हिस्सा है। कन्धे का जोड़ शरीर का ऐसा जोड़ है जो विस्थापन के लिए अति संवेदनशील होता है।
प्रश्न 33.
फ्रैक्चर का क्या अर्थ है? अथवा हड्डी का टूटना क्या है?
उत्तर:
किसी हड्डी का टूटना, फिसलना अथवा दरार पड़ जाना टूट (Fracture) कहलाता है। हड्डी पर जब दुःखदायी स्थिति में दबाव पड़ता है तो हड्डी से सम्बन्धित माँसपेशियाँ उस दबाव को सहन नहीं कर सकतीं, जिस कारण हड्डी फिसल अथवा टूट जाती है। अतः फ्रैक्चर का अर्थ है-हड्डी का टूटना या दरार पड़ जाना।
प्रश्न 34.
बहुसंघीय फ्रैक्चर या बहुखंडीय अस्थि-भंग (Comminuted or Multiple Fracture) क्या होता है?
उत्तर:
जब हड्डी कई भागों से टूट जाए तो इसे बहुसंघीय या बहुखंड फ्रैक्चर कहा जाता है।
प्रश्न 35.
पच्चड़ी अस्थि-भंग किसे कहते हैं?
उत्तर:
पच्चड़ी अस्थि-भंग (Impacted Fracture) को अन्य नामों से भी जाना जाता है; जैसे बहुसंघीय अस्थि-भंग, बहुखंड अस्थि-भंग, चपटा अस्थि-भंग आदि। जब किसी घायल व्यक्ति के टूटे अस्थि-भंगों (Fractures) के सिरे एक-दूसरे में घुस जाते हैं तो उसे पच्चड़ी अस्थि-भंग कहा जाता है।
प्रश्न 36.
कच्चा फ्रैक्चर (Greenstick Fracture) क्या होता है?
उत्तर:
यह छोटे बच्चों में होता है क्योंकि छोटी आयु के बच्चों की हड्डियाँ बहुत नाजुक होती हैं जो शीघ्र मुड़ जाती हैं। यही कच्चा फ्रैक्चर होता है।
HBSE 12th Class Physical Education एथलेटिक देखभाल Important Questions and Answers
वस्तुनिष्ठ प्रकार के प्रश्न [Objective Type Questions]
भाग-I : एक शब्द/वाक्य में उत्तर दें-
प्रश्न 1.
लिगामेंट्स की चोट कौन-सी होती है?
उत्तर:
लिगामेंट्स की चोट मोच होती है।
प्रश्न 2.
चोट के तुरंत बाद खिलाड़ी को कौन-सा टीका लगवाना चाहिए?
उत्तर:
चोट के तुरंत बाद खिलाड़ी को एंटी-टैटनस का टीका लगवाना चाहिए।
प्रश्न 3.
कंट्यूशन का प्राथमिक उपचार क्या है?
उत्तर:
पी०आर०आई०सी०ई० (P.R.I.C.E.) का पालन करना।
प्रश्न 4.
किस दुर्घटना में सेक (हीट) थेरेपी का बहुत महत्त्व है?
उत्तर:
भीतरी चोट लगने पर।
प्रश्न 5.
हड्डी की टूट का सही इलाज करवाने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर:
हड्डी की टूट का सही इलाज करवाने के लिए टूट वाली हड्डी का एक्सरा करवाना चाहिए।
प्रश्न 6.
कंट्यूशन किस अंग की चोट है?
उत्तर:
कंट्यूशन माँसपेशियों की चोट है।
प्रश्न 7.
खिलाड़ी को प्रशिक्षण व प्रतियोगिता से पूर्व शरीर को क्या करना चाहिए?
उत्तर:
खिलाड़ी को प्रशिक्षण व प्रतियोगिता से पूर्व शरीर को भली-भाँति गर्मा लेना चाहिए।
प्रश्न 8.
मुक्केबाजी में प्रायः कैसी चोट लगती है?
उत्तर:
मुक्केबाजी में प्रायः कंट्यूशन या भीतरी घाव नामक चोट लगती है।
प्रश्न 9.
खिंचाव कितने प्रकार की होती है?
उत्तर:
खिंचाव तीन प्रकार की होती है-
(1) सामान्य खिंचाव
(2) मध्यम खिंचाव
(3) गंभीर खिंचाव।
प्रश्न 10.
कच्ची अस्थि-भंग प्रायः किन्हें होता है?
उत्तर:
कच्ची अस्थि-भंग प्रायः बच्चों को होता है।
प्रश्न 11.
खिंचाव किस अंग की चोट है?
उत्तर:
खिंचाव माँसपेशियों की चोट है।
प्रश्न 12.
किस प्रकार की मोच में दर्द असहनीय होता है?
उत्तर:
पूर्ण मोच में दर्द असहनीय होता है।
प्रश्न 13.
इलाज से अच्छा क्या होता है?
उत्तर:
इलाज से अच्छा परहेज होता है।
प्रश्न 14.
टूटी हड्डी को हिलने से बचाने के लिए किस चीज़ का सहारा देना चाहिए?
उत्तर:
टूटी हड्डी को हिलने से बचाने के लिए पट्टियाँ और बाँस की फट्टियों का सहारा देना चाहिए।
प्रश्न 15.
कंट्यूशन में शीत दबाव दिन में कितनी बार करना चाहिए?
उत्तर:
कंट्यूशन में शीत दबाव दिन में 5 या 6 बार करना चाहिए।
प्रश्न 16.
किस प्रकार की टूट (Fracture) अधिक खतरनाक होती है?
उत्तर:
जटिल टूट अधिक खतरनाक होती है।
प्रश्न 17.
ऑस्टिओपोरोसिस (Oesteoporosis) के कारण किस प्रकार की चोट लग सकती है?
उत्तर:
फ्रैक्चर या हड्डी टूटना।
प्रश्न 18.
पट्टों (माँसपेशियों) में खिंचाव आने का कोई एक कारण बताएँ।
उत्तर:माँसपेशियों को अधिक तेज हरकत में लाना।
प्रश्न 19.
खेल चोटों से बचाव हेतु किस प्रकार का मैदान होना चाहिए?
उत्तर:
खेल चोटों से बचाव हेतु समतल व साफ-सुथरा मैदान होना चाहिए।
प्रश्न 20.
रगड़/खरोंच किस अंग की चोट है?
उत्तर:
रगड़/खरोंच त्वचा की चोट है।
प्रश्न 21.
प्राथमिक सहायता में ABC का पूरा नाम लिखें।
उत्तर:
A= Airways,
B = Breathing,
C = Compression
प्रश्न 22.
खेलों में दौड़ने, कूदने और फेंकने को क्या कहते हैं?
उत्तर:
खेलों में दौड़ने, कूदने और फेंकने को एथलेटिक्स कहते हैं।
प्रश्न 23.
हड्डी टूटने (Fracture) के कितने प्रकार हैं?
उत्तर:
हड्डी टूटने (Fracture) के सात प्रकार हैं।
प्रश्न 24.
कंट्यूशन चोट लगने पर शरीर को क्या नुकसान होता है?
उत्तर:
कंट्यूशन चोट से शरीर के अनेक अंगों या भागों; जैसे रक्त कणों, माँसपेशियों, नाड़ियों तथा ऊतकों को नुकसान होता है।
प्रश्न 25.
मोच से बचाव का कोई एक उपाय बताएँ।
उत्तर:
मोच से बचाव हेतु शरीर को पूर्णतया विशेष रूप से गर्मा लेना चाहिए।
प्रश्न 26.
सामान्य खेल चोटों के कोई दो उदाहरण दें।
उत्तर:
(1) नील पड़ना
(2) रगड़।
प्रश्न 27.
डॉक्टर के पहुंचने से पूर्व घायल व्यक्ति को कौन-सी सहायता दी जाती है?
अथवा
घायल या मरीज को तुरंत दी जाने वाली सहायता क्या कहलाती है?
उत्तर:
प्राथमिक सहायता या चिकित्सा।।
प्रश्न 28.
किस प्रकार के अस्थि-भंग में एक अस्थि दो या दो से अधिक टुकड़ों में टूट जाती है?
उत्तर:
बहुखंडीय टूट या फ्रैक्चर में एक अस्थि दो या दो से अधिक टुकड़ों में टूट जाती है।
प्रश्न 29.
किन खेलों में कंट्यूशन का खतरा अधिक होता है?
उत्तर:
सीधे संपर्क वाले खेलों में कंट्यूशन का खतरा अधिक होता है।
प्रश्न 30.
जोड़ उतरने का कोई एक चिह्न या लक्षण बताएँ।
उत्तर:
चोट वाले स्थान पर सूजन आ जाना।
प्रश्न 31.
सामान्यतया किन अंगों को ज्यादा मोच आती है?
उत्तर:
घुटनों तथा टखनों को।
प्रश्न 32.
मोच आने पर उस स्थान को कितने समय बाद गर्म करना (सेकना) चाहिए?
उत्तर:
मोच आने पर उस स्थान को 48 घंटे बाद गर्म करना (सेकना) चाहिए।
प्रश्न 33.
अस्थियों की चोटों (Bone Injuries) के कोई दो उदाहरण दें।
उत्तर:
(1) साधारण अस्थि -भंग (Simple Fracture)
(2) जटिल अस्थि -भंग (Complicated Fracture)।
प्रश्न 34.
जोड़ों की चोटों के कोई दो उदाहरण दें।
उत्तर:
(1) कूल्हे के जोड़ का विस्थापन,
(2) कंधे के जोड़ का विस्थापन।
प्रश्न 35.
किन खेलों में कंट्यूशन का खतरा अधिक होता है?
उत्तर:
सीधे संपर्क वाले खेलों; जैसे मुक्केबाजी में कंट्यूशन का खतरा अधिक होता है।
भाग-II: सही विकल्प का चयन करें
1. एथलेटिक का अर्थ है
(A) खेलकूद संबंधी
(B) मनोरंजन संबंधी
(C) पोषण संबंधी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) खेलकूद संबंधी
2. एथलेटिक देखभाल के मुख्य क्षेत्र कौन-कौन-से हैं?
(A) खेल चोटें
(B) पोषण
(C) प्रशिक्षण विधियाँ
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी
3. क्या खिंचाव की स्थिति में मालिश करनी चाहिए?
(A) नहीं
(B) हाँ
(C) कभी-कभी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) नहीं
4. किसी जोड़ के संधि-स्थल के फट जाने या लिगामेंट के टूटने को क्या कहते हैं?
(A) खिंचाव
(B) कंट्यूशन
(C) मोच
(D) रगड़
उत्तर:
(C) मोच
5. कंट्यूशन किसकी चोट है?
(A) हड्डी की
(B) दिमाग की
(C) जोड़ की
(D) माँसपेशी की
उत्तर:
(D) माँसपेशी की
6. मोच आने पर क्या इलाज अपनाना चाहिए?
(A) ठंडे पानी से धोना चाहिए
(B) बर्फ लगाना चाहिए
(C) पट्टी बाँधनी चाहिए
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी
7. खिंचाव किसकी चोट है?
(A) माँसपेशी की
(B) त्वचा की
(C) मुलायम ऊतकों की
(D) जोड़ों की
उत्तर:
(A) माँसपेशी की
8. खिंचाव वाले स्थान पर कितने घंटे बाद सेक देनी चाहिए?
(A) 24 घंटे बाद
(B) 36 घंटे बाद
(C) 48 घंटे बाद
(D) 2 घंटे बाद
उत्तर:
(C) 48 घंटे बाद
9. खिलाड़ी को खिंचाव आने पर क्या इलाज करवाना चाहिए?
(A) चोटग्रस्त अंग पर पट्टी बाँधनी चाहिए
(B) सूजन कम करने के लिए मालिश करनी चाहिए
(C) सामान्य क्रिया धीरे-धीरे जारी रखनी चाहिए
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी
10. पी० आर० आई० सी० ई० (P.R.I.C.E.) का क्या अर्थ है?
(A) सुरक्षा, बर्फ, विश्राम, दबाना और ऊँचा उठाना
(B) दबाना, ऊँचा रखना, विश्राम, बर्फ और सुरक्षा
(C) सुरक्षा, विश्राम, बर्फ, दबाना और ऊँचा रखना
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) सुरक्षा, विश्राम, बर्फ, दबाना और ऊँचा रखना
11. प्रत्यक्ष मुक्का या कोई खेल उपकरण शरीर में लग जाने से कौन-सी चोट लगती है?
(A) भीतरी घाव (कंट्यूशन)
(B) खिंचाव
(C) मोच
(D) रगड़
उत्तर:
(A) भीतरी घाव (कंट्यूशन)
12. किस दुर्घटना में सेक (हीट) थेरेपी का बहुत महत्त्व है?
(A) भीतरी चोट लगने पर
(B) करंट लगने पर
(C) बेहोश होने पर
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) भीतरी चोट लगने पर
13. खिंचाव आ जाने के कारण कई बार मांसपेशियाँ ………………… जाती हैं।
(A) फट
(B) सिकुड़
(C) फैल
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) फट
14. निम्नलिखित में से कौन-सा मोच का लक्षण नहीं है?
(A) जोड़ में दर्द होना
(B) माँसपेशियाँ फूल जाना
(C) चलने-फिरने में तकलीफ होना
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) माँसपेशियाँ फूल जाना।
15. सामान्य खेल चोटें कितने प्रकार की होती हैं?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच
उत्तर:
(B) तीन
16. खेल चोटों के प्रकार हैं
(A) मुलायम ऊतकों की चोटें
(B) अस्थियों की चोटें
(C) जोड़ों की चोटें
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी
17. कंट्यूशन, खिंचाव, मोच, रगड़ या खरोंच किस प्रकार की चोटें हैं?
(A) अस्थियों की चोटें
(B) मुलायम ऊतकों की चोटें
(C) जोड़ों की चोटें
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) मुलायम ऊतकों की चोटें
18. निम्नलिखित में से कौन-सा रगड़ का कारण नहीं है?
(A) कठोर धरातल पर गिर पड़ना
(B) खिलाड़ी द्वारा शरीर को बिना गर्म किए खेल में हिस्सा लेना
(C) जूतों का पैरों में सही प्रकार से फिट न आना
(D) हैलमेट और कंधों के पैडों का असुविधाजनक होना
उत्तर:
(B) खिलाड़ी द्वारा शरीर को बिना गर्म किए खेल में हिस्सा लेना
19. ऑस्टियोपोरोसिस के कारण किस प्रकार की चोट लग सकती है?
(A) खिंचाव
(B) मोच
(C) रगड़
(D) अस्थि-भंग
उत्तर:
(D) अस्थि-भंग
20. वह कौन-सा अस्थि-भंग है जिसमें टूटी हुई अस्थि आन्तरिक अंग या अंगों को भी हानि पहुँचा देती है?
(A) पच्चड़ी अस्थि-भंग
(B) साधारण अस्थि -भंग
(C) जटिल अस्थि-भंग
(D) कच्ची अस्थि-भंग
उत्तर:(C) जटिल अस्थि-भंग
21. निम्नलिखित में से किसे मुलायम ऊतकों की चोटों में शामिल किया जाता है?
(A) कंट्यूशन
(B) मोच
(C) रगड़
(D) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी
भाग-III: रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
1. खिंचाव वाले अंग को ………………… स्थिति में रखना चाहिए।
2. चोट लगने के बाद तुरंत ………………… का टीका लगवाना चाहिए।
3. कंट्यूशन से पीड़ित अंग को ………………… तक दबाना चाहिए।
4. खिंचाव आ जाने के कारण कई बार माँसपेशियाँ ………………… जाती हैं।
5. मोच ………………….. प्रकार की होती है।।
6. सुरक्षात्मक उपकरण का प्रयोग ……… की आवश्यकता के अनुसार करना चाहिए।
7. अभ्यास व प्रतियोगिता से पूर्व खिलाड़ी को अपने शरीर को ………………… लेना चाहिए।
8. मोच. ……………….. की चोट होती है।
9. रगड़ या छिलना ………………… की चोट है।
10. थकावट की स्थिति में खिलाड़ी को खेल ………………… रखना चाहिए।
11. घायल या मरीज को तत्काल दी जाने वाली सहायता ………………… कहलाती है।
12. खेल चोटें मुख्यतः …………….. प्रकार की होती है।
उत्तर:
1. आरामदायक
2. एंटी-टैटनस,
3. 72 घंटे
4. फट
5. तीन
6. खेल
7. गर्मा
8. लिगामेंट
9. त्वचा
10. जारी नहीं
11. प्राथमिक सहायता
12. तीन।
एथलेटिक देखभाल Summary
एथलेटिक देखभाल परिचय
एथलेटिक देखभाल या केयर (Athletic Care):
एथलेटिक का अर्थ है– सभी प्रकार की खेलें तथा स्पोर्ट्स। एथलेटिक्स खेलों के प्रतिस्पर्धात्मक मुकाबलों में उन क्रियाओं (गतिविधियों) का प्रभुत्व रहता है जिनमें कुशल तथा योग्य खिलाड़ी भाग लेते हैं। एथलेटिक्स के विभिन्न क्षेत्र होते हैं, उदाहरणस्वरूप शिक्षण संस्थाएँ; जैसे स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय जहाँ पर युवा वर्ग एथलेटिक्स गतिविधियों में भाग लेते हैं। प्रत्येक खेल तथा स्पोर्ट्स की राष्ट्रीय फेडरेशन राष्ट्रीय स्तर पर एथलेटिक्स मुकाबले करवाती हैं और अंतर्राष्ट्रीय संघ या इकाई अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एथलेटिक्स मुकाबले करवाती हैं। जब कोई युवा एथलेटिक्स खेलों (प्रतिस्पर्धात्मक मुकाबलों) में भाग लेता है तो उसे एक अंतर्राष्ट्रीय पदक जीतने के लिए कई वर्षों तक कड़े परिश्रम की आवश्यकता पड़ती है। जैसे-जैसे प्रशिक्षण के.भार की मात्रा तथा तीव्रता बढ़ती जाती है तो वैसे ही एथलीट के घायल होने का भय अधिक बढ़ जाता है।
एथलेटिक देखभाल हमें यह जानकारी देती है कि कैसे खेल समस्याओं या चोटों को कम किया जाए, कैसे खेल के स्तर को सुधारा जाए। यदि खिलाड़ी की देखभाल पर ध्यान न दिया जाए तो खिलाड़ी का खेल-जीवन या कैरियर समाप्त हो जाता है। इसलिए हर खिलाड़ी के लिए एथलेटिक देखभाल बहुत महत्त्वपूर्ण पहलू है।
प्राथमिक सहायता (First Aid):
आज की तेज रफ्तार ज़िंदगी में अचानक दुर्घटनाएं होती रहती हैं। साधारणतया घरों, स्कूलों, कॉलेजों, दफ्तरों तथा खेल के मैदानों में दुर्घटनाएँ देखने में आती हैं। मोटरसाइकिलों, बसों, कारों, ट्रकों आदि में टक्कर होने से व्यक्ति घायल हो जाते हैं। मशीनों की बढ़ रही भरमार और जनसंख्या में हो रही निरंतर वृद्धि ने भी दुर्घटनाओं को ओर अधिक बढ़ा दिया है। प्रत्येक समय प्रत्येक स्थान पर डॉक्टरी सहायता मिलना कठिन होता है। इसलिए ऐसे संकट का मुकाबला करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को प्राथमिक सहायता का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है। आज प्राथमिक सहायता की महत्ता बहुत बढ़ गई है। प्राथमिक सहायता रोगी के लिए वरदान की भाँति होती है और प्राथमिक सहायक भगवान की ओर से भेजा दूत माना जाता है। आज के समय में कोई किसी के दुःख-दर्द की परवाह नहीं करता। एक प्राथमिक सहायक ही है जो दूसरों के दर्द को समझने और उनके दुःख में शामिल होने की भावना रखता है।
खेलों में लगने वाली सामान्य चोटें (Some Common Injuries in Sports):
(1) भीतरी घाव या कंट्यूशन
(2) मोच
(3) खिंचाव
(4) रगड़
(5) हड्डी टूटना
(6) जोड़ उतरना।