Class 10

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल

Haryana State Board HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल

अति लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
खेल के मापदण्ड क्या हैं?
उत्तर :
खेल एक –

  1. आनन्ददायक क्रिया है
  2. स्वतन्त्र क्रिया है
  3. आत्म-प्रेरित क्रिया है
  4. मानसिक प्रसन्नतादायिनी क्रिया है
  5. सद्गणों का विकास करने वाली क्रिया है।

प्रश्न 2.
खेल को प्रभावित करने वाले तत्त्व क्या हैं?
उत्तर :

  1. शारीरिक स्वास्थ्य
  2. आयु
  3. क्रियात्मक विकास
  4. लिंग भिन्नता
  5. बौद्धिक विकास
  6. मौसम
  7. अवकाश की अवधि
  8. खेल के साधन
  9. सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति
  10. खेल के साथी
  11. परम्परा
  12. वातावरण।

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प्रश्न 3.
खेल की परिभाषा दीजिए।
उत्तर :
ग्यूलिक के अनुसार खेल की परिभाषा इस प्रकार दी गई है “जो कार्य हम अपनी इच्छा से स्वतन्त्र वातावरण में करते हैं वही खेल है।” थामसन के अनुसार, “खेल कुछ सुनिश्चित मूल प्रवृत्ति जन्य क्रियाओं को प्रकट करने की प्रवृत्ति है।”

प्रश्न 4.
बाल्य जीवन में खेल का क्या महत्त्व है?
उत्तर :
खेल का बाल्य जीवन में विशेष महत्त्व है। अभिभावकों की दृष्टि में खेलना समय को व्यर्थ गंवाना है। वे पढ़ने-लिखने और गृह-कार्य को महत्त्व देते हैं। बालक को खेल से दूर रखने से उसके शारीरिक और व्यक्तित्व का विकास ठीक से नहीं होता। इसलिए खेल और कार्य में सामान्य संतुलन होना चाहिए।

प्रश्न 5.
खेल कितने प्रकार के हैं? संक्षेप में लिखो।
उत्तर :

  1. साथियों की संख्या के आधार पर खेल तीन प्रकार के हैं –
    • समान्तर खेल
    • सहचरी खेल
    • सामूहिक खेल।
  2. घर के अन्दर खेले जाने वाले खेल-ताश, कैरम, लूडो, शतरंज, साँप-सीढ़ी आदि।
  3. घर के बाहर खेले जाने वाले खेल-क्रिकेट, फुटबाल, हॉकी, बैडमिंटन आदि।

प्रश्न 5.
(A) बच्चों के खेल कितने प्रकार के होते हैं ?
(B) घर में तथा घर से बाहर खेले जाने वाले दो-दो खेलों के बारे में लिखो।
(C) खेल कितने प्रकार के होते हैं ? प्रत्येक के दो-दो उदाहरण दीजिए ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 5 का उत्तर।

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प्रश्न 6.
खेल क्या है?
उत्तर :
खेल कोई भी ऐसी क्रिया है जिससे बच्चा आनन्द व सन्तोष प्राप्त करता है। बच्चा इसे स्वयं शुरू करता है। यह बच्चे पर थोपी नहीं जाती। जो चीज़ उसे पसन्द आ जाए वह उसकी खेल सामग्री बन जाती है अतः खेल अनायास, स्वाभाविक और आमतौर पर बिना किसी उद्देश्य के होता है। खेल बच्चे के लिए मज़ा है।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित क्रियाओं में से जो खेल हैं उन पर (✓) का चिह्न लगाएँ।
(i) मां द्वारा बच्चे से ज़बरदस्ती ढोलक बजवाना
(ii) बच्चे द्वारा गीली मिट्टी से चपाती बनाना
(iii) बच्चे द्वारा रेत के ढेर पर बैठकर घर बनाना
(iv) मां द्वारा बच्चे को कहा जाना कि वह सिर्फ ब्लाक्स से ही खेल सकता है
उत्तर :
(i) ✗ (ii) ✓ (iii) ✓ (iv) ✗

प्रश्न 8.
मनोरंजन के विभिन्न साधनों के नाम लिखो।
उत्तर :
मनोरंजन के विभिन्न साधन निम्नलिखित हैं –

  1. शिशु कविताएँ
  2. शिशु गीत
  3. लोरी
  4. कहानियाँ
  5. बालक साहित्य
  6. बाल-फिल्म
  7. खिलौने
  8. रेडियो
  9. टेलीविज़न
  10. संगीत
  11. खेल।

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प्रश्न 9.
खेल चिकित्सा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
चिकित्सा की दृष्टि से भी बालकों के जीवन में खेल का महत्त्व है। इनके द्वारा बालकों की समस्या का पता लगाकर समाधान किया जाता है।

प्रश्न 10.
बच्चे के जीवन में खेल के दो शारीरिक महत्त्व लिखें।
उत्तर :
1. तनाव व चिड़चिड़ापन दूर होता है।
2. बालक की मांसपेशियां सुचारू रूप से विकसित होती हैं।

प्रश्न 11.
बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है, क्या उसके खेल में अन्तर आता है ?
उत्तर :
आयु बढ़ने के साथ खेल क्रियाएँ कम होती हैं।

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प्रश्न 12.
घर से बाहर खेले जाने वाले खेल कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
फुटबाल, हॉकी, क्रिकेट, बैंडमिंटन आदि।

लघ उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
बच्चों के मनोरंजन के विभिन्न साधन कौन-से हैं?
उत्तर :
बच्चों के मनोरंजन के विभिन्न साधन निम्नलिखित हैं
1. शिशु गीत – बच्चा नर्सरी गीतों को बहुत शीघ्र सीखता है और याद कर के सुनाता है।
2. लोरी – बच्चा जब रात्रि को सोते समय नखरा करता है, तो मां उसे लोरी सना कर सुलाती है। मां द्वारा गाई लोरी सुनकर बच्चे शीघ्र सो जाते हैं।
3. कहानी – बच्चा कहानी बड़े शौक से सुनता है। कहानियों का बच्चे के विकास पर गहरा प्रभाव पड़ता है, अत: बच्चे को जो भी कहानियां सुनाई जाएं, वे डरावनी न हों बल्कि शिक्षाप्रद हों।
4. बाल साहित्य – बच्चा जब थोड़ा बड़ा होकर पढ़ने की स्थिति में आता है तब बाल साहित्य उसके मनोरंजन का साधन होता है। बाल साहित्य का चयन करते समय बालक के शारीरिक विकास का ध्यान रखना चाहिए। महापुरुषों की कहानियाँ, जीव-जन्तु, पेड़-पौधों के बारे में तथा सांसारिक वस्तुओं की जानकारी देने वाला साहित्य होना चाहिए। साहित्य यदि चित्रों के रूप में हो, तो सोने पे सुहागा होता है।
5. खिलौने – खिलौनों से बच्चा शैक्षिक ज्ञान प्राप्त करता है। उसकी कल्पना शक्ति तथा विचार शक्ति में वृद्धि होती है।

प्रश्न 2.
बालकों के कार्य और खेल में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कार्य और खेल में निम्नलिखित अन्तर हैं –

बालकों के कार्यबालकों के खेल
1. कार्य किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है।1. खेल में किसी प्रकार का लक्ष्य नहीं रहता है।
2. कार्य में समय का बन्धन रहता है।2. खेल में स्वतन्त्रता रहती है।
3. कार्य प्रारम्भ से ही नियमबद्ध होते है।3. प्रारम्भिक अवस्था में खेल नियमबद्ध नहीं होते।
4. कार्य के सम्पन्न होने पर ही आनन्द की प्राप्ति होती है।4. खेल में खेलते समय ही आनन्द की प्राप्ति होती है, बाद में नहीं।
5. कार्य में वास्तविकता रहती है।5. खेल काल्पनिक होते हैं।
6. कार्य से अपेक्षित विकास होना आवश्यक विकास नहीं है।6. खेल से शारीरिक तथा मानसिक होता है।
7. कार्य में मस्तिष्क का नियन्त्रण आवश्यक होता है। सही रूप दिया जा सकता है।7. खेल में मस्तिष्क के नियंत्रण की इसी के आधार पर कार्य को अधिक आवश्यकता नहीं होती।

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प्रश्न 3.
मनोरंजन का बालक के सामाजिक विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :
बालक को मनोरंजन की जितनी अधिक सुविधाएं प्राप्त होती हैं, उतना ही अधिक वह घूमने-फिरने, खेल-तमाशों और मित्रों के साथ व्यस्त रहता है। इस प्रकार सुविधाएँ अधिक प्राप्त होने पर बालक का स्वभाव हँसमुख प्रकार का हो जाता है। अपने इस स्वभाव के कारण उसे सामाजिक परिस्थितियों में सफल समायोजन करने में सहायता मिलती है। फलस्वरूप उसका सामाजिक विकास शीघ्र होता है। मनोरंजन के साधनों और अवसरों की बहुलता से बालक में समाज विरोधी व्यवहार के उत्पन्न होने की भी सम्भावना कम होती है। मनोरंजन की सुविधाओं के फलस्वरूप उसमें सामाजिक विकास सामान्य ढंग से होता है और सामाजिक प्रत्याशाओं के अनुरूप होता है।

प्रश्न 4.
बच्चों के खिलौनों के चयन में ध्यान रखने योग्य बातें बताइए।
अथवा
बच्चों के लिए खिलौने कैसे होने चाहिए ?
अथवा
बच्चों के खिलौनों के चयन में ध्यान रखने योग्य छ: बातें बताएं।
उत्तर :
बच्चों के लिए खिलौनों का चयन निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखकर करना चाहिए

  1. बच्चों के खिलौने उनकी आयु के अनुरूप होने चाहिएं।
  2. बच्चों के लिए बहुत महंगे खिलौने नहीं खरीदने चाहिएं।
  3. बच्चों के खिलौने बहुत बड़े व वज़न वाले नहीं होने चाहिएं।
  4. बच्चों के लिए खिलौने बहुत छोटे भी नहीं होने चाहिएं।
  5. खिलौने उत्तम धातु या सामग्री के बने होने चाहिएं।
  6. खिलौने शीघ्र टूटने वाले नहीं होने चाहिएं।
  7. खिलौने का रंग पक्का होना चाहिए।
  8. खिलौने धुल सकने वाले होने चाहिएं।
  9. खिलौने आकर्षक, सुन्दर व सुन्दर रंग के होने चाहिएं।
  10. खिलौने सुन्दर आकार, आकृति और स्वाभाविक एवं प्राकृतिक होने चाहिएं।
  11. खिलौने बच्चों के लिए सुरक्षित होने चाहिएं।
  12. खिलौने शिक्षाप्रद व ज्ञान अर्जन में सहायक होने चाहिएं।
  13. खिलौने मनोरंजन करने वाले होने चाहिएं।
  14. खिलौने ऐसे होने चाहिएं कि बच्चे आत्म-निर्भर बन सकें।
  15. खिलौने शारीरिक सन्तुलन व शारीरिक वृद्धि में सहायक होने चाहिएं।

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प्रश्न 5.
दैहिक दृष्टि से खेलों का क्या महत्त्व है?
अथवा आमोद-प्रमोद का शारीरिक विकास में क्या महत्त्व है?
उत्तर :
दैहिक दृष्टि से खेलों का महत्त्व –

  1. खेल से बालक का तनाव व चिड़चिड़ापन दूर होता है।
  2. खेल से बालक की मांसपेशियां सुचारु रूप से विकसित होती हैं।
  3. बालक की देह के सभी अवयवों का व्यायाम हो जाता है।
  4. आयु के साथ-साथ बालकों में वाद-विवाद, प्रतियोगिता, दूरदर्शन, चलचित्र निरीक्षण आदि में अभिव्यक्त होने लग जाती है। अभिभावकों के विपरीत होने पर उनके बालक भी विपरीत होंगे। वे अपनी दैहिक क्रियाओं को नहीं रोक पाएंगे।

प्रश्न 6.
नैतिक दृष्टि से खेल का क्या महत्त्व है?
अथवा
नैतिक दृष्टि से खेल के द्वारा बच्चों में किन-किन गुणों का विकास होता है ?
उत्तर :
नैतिक दृष्टि से खेल का महत्त्व इस प्रकार है –

  1. बालक में खेल के द्वारा सहनशीलता की भावना का भी विकास होता है।
  2. समुदाय के साथ खेलते हुए बालक आत्म-नियंत्रण, ईमानदारी, सत्य-भाषण, निष्पक्षता व सहयोगादि के गुणों को धारण करता है।
  3. बालक खेल के द्वारा यह सीख जाता है कि एक अच्छा खिलाड़ी हार जाने पर भी उत्साहहीन नहीं होता है और न ही उसमें द्वेष की भावना पनप पाती है।

प्रश्न 7.
बच्चों के सामाजिक विकास में खेलों का क्या महत्त्व है?
अथवा
खेलों का सामाजिक विकास की दृष्टि से क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
बच्चों के सामाजिक विकास में खेलों का महत्त्व इस प्रकार है –

  1. बच्चे जब दूसरे बच्चों के साथ खेलते हैं तो वे सामाजिकता का पाठ सीखते हैं।
  2. खेलों के द्वारा बालक में सहनशीलता की भावना आ जाती है और वह दूसरे के अधिकारों का आदर करने लगता है।।
  3. एक-दूसरे के साथ खेलने से बालकों को बड़ों की तरह व्यवहार करना और उनका सम्मान करना भी आ जाता है।
  4. खेलों से बच्चों में स्नेह, प्यार, सहयोग, नियम, निष्ठता की भावना का विकास होता है।

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प्रश्न 8.
आयु के साथ खेल में क्या-क्या परिवर्तन आते हैं ?
उत्तर :
बच्चों के खेल उम्र के साथ बदल जाते हैं। 0-2 महीने के बच्चे अपने आप से खेलना पसंद करते हैं। अपने हाथ पैर चलाते हैं।
2 महीने से 2 वर्ष का बच्चा खिलौनों में दिलचस्पी लेता है। वह खिलौनों से खेलना पसन्द करता है और अकेले होने पर भी वह खिलौनों से खेल कर खुश होता है।
2 साल से 6 वर्ष तक के बच्चों के खेल में अनेक परिवर्तन आते हैं। 2 साल के बच्चे समूह में बैठ कर खेलते तो हैं पर समूह का हर एक बच्चा अपनी धुन में मस्त रहता है।
कुछ बड़े होने पर बच्चे समूह के अर्थ समझते हैं और सामूहिक खेल खेलना शुरू कर देते हैं। वह साथ में खेलते हैं और एक ही खिलौने से भी खेलते हैं। धीरे-धीरे बच्चे नियम वाले खेल खेलना सीख जाते हैं।

प्रश्न 9.
घर पर उपलब्ध सामग्री से खिलौने बनाना ज्यादा श्रेयस्कर क्यों है ?
उत्तर :
ऐसा इसलिए है क्योंकि घर की सामग्री से बने खिलौने सुरक्षित होते हैं। इसके अलावा घर का काफ़ी फालतू सामान जैसे बचा हुआ कपड़ा, माचिस की डिब्बी आदि प्रयोग में आ जाते हैं। इन खिलौनों से बच्चा जैसे चाहे खेल सकता है। चूंकि ये महंगे नहीं हैं अतः आप को बच्चे को बार-बार ध्यान नहीं दिलाना पड़ता है कि वह ध्यान से खेले। अत: इन खिलौनों से बच्चा अपनी इच्छानुसार खेल सकता है।

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प्रश्न 10.
खेल और कार्य में दो अन्तर बताएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 2 का उत्तर।

प्रश्न 11.
खेल और कार्य में तीन अन्तर बताएं।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 12.
खेल चिकित्सा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
खेल चिकित्सा का प्रयोग 3 से 11 वर्ष के बच्चों पर किया जाता है। इसमें बच्चा खेलते-खेलते अपने मनो भावों को दर्शाता है। अपने अनुभवों, संवेगों, भावनाओं का प्रदर्शन करता है जिससे मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञ बच्चे को समझता है तथा उसका इलाज करता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
खेल के मापदण्ड क्या हैं ?
उत्तर :
खेल के मापदण्ड निम्नलिखित हैं –
1. खेल एक आनन्ददायक क्रिया है – जिस क्रिया से व्यक्ति को आनन्द की प्राप्ति होती है, वह उसके लिए खेल हो जाती है। बच्चे जब जाग्रतावस्था में रहते हैं, तो सदैव ऐसी क्रियाओं में व्यस्त रहते हैं जिनसे उन्हें आनन्द की प्राप्ति होती है। जिस क्रिया में बच्चों को आनन्द की प्राप्ति नहीं होती बच्चे उसे करना ही नहीं चाहते। अतः जो क्रिया बच्चा आनन्द प्राप्ति के लिए करता है वह उसके लिए खेल है। इस प्रकार खेल एक आनन्ददायक क्रिया है।

2. खेल एक स्वतन्त्र क्रिया है – खेल में बच्चे बिल्कुल स्वतन्त्र होते हैं। बच्चा अपनी इच्छानुसार खेलता है। इस पर किसी तरह की बाहरी दबाव नहीं होता। ऐसा देखा जाता है कि बच्चे अपनी इच्छा से दिनभर उछलते-कूदते रहते हैं फिर भी थकते नहीं हैं, किन्तु उसी खेल के लिए उन्हें यदि बाहरी दबाव दिया जाए तो उन्हें तुरन्त थकावट आ जाती है जैसे बच्चे जब इच्छा से पढ़ने वाला खेल खेलते हैं तो दो-तीन घण्टे तक भी उस खेल में लगे रहने पर भी उन्हें थकावट नहीं आती, परन्तु जब उन्हें स्कूल का होम-वर्क करने को कहा जाता है या वे करते हैं, तो शीघ्र ही वे थकावट से घिर जाते हैं। अत: खेल में स्वतन्त्रता रहती है। यदि खेल में स्वतन्त्रता न रहे तो वह खेल, खेल न होकर काम हो जाता है।

3. खेल एक आत्म – प्रेरित क्रिया है-खेल व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है। इसमें किसी उद्देश्य प्राप्ति की इच्छा नहीं होती है। वह बिलकुल निरुद्देश्य होता है; जैसे-बच्चा जब खेल के मैदान में गेंद खेलने जाता है, तो उस समय उसका कोई उद्देश्य नहीं होता, बच्चा केवल आत्म-प्रेरित होकर ही गेंद खेलता है। ऐसे खेल को ही खेल कहेंगे। किन्तु जब बच्चे में यह भावना आ जाए कि खेल के मैदान में अपने प्रतियोगी को हराना है तो वह खेल-खेल नहीं रह जाता। इसमें उद्देश्य आ गया और कोई भी उद्देश्यपूर्ण कार्य खेल नहीं होता बल्कि कार्य हो जाता है। अत: वे सभी क्रियाएं खेल हैं जिन्हें बच्चे स्वतन्त्रतापूर्वक आत्म-प्रेरित होकर आनन्द प्राप्ति के लिए करते हैं।

4. खेल एक मानसिक प्रसन्नतादायिनी क्रिया है-बच्चे प्रायः जब भी खेलते हैं तो वे बड़े प्रसन्न होते हैं। प्राय: देखा गया है कि कुशाग्र बुद्धि एवं मानसिक रूप से स्वस्थ बालक खूब खेल खेलते हैं। वे प्रत्येक कार्य को खेल समझकर ही करते हैं।

5. खेल द्वारा सद्गुणों का विकास होता है-बच्चों की रुचि, चरित्र, ज़िम्मेदारी तथा मिल-जुलकर काम करने की भावना का विकास खेल के मैदान में ही होता है। जो बच्चा खेल के प्रति उदासीन रहता है, उसका मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य सन्तोषजनक नहीं होता।

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प्रश्न 1. (A)
खेल के तीन मापदण्ड बताएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 1 का उत्तर।

प्रश्न 2.
बालकों के खेल की विशेषताएं क्या हैं ?
अथवा
बालकों के खेल की किन्हीं तीन विशेषताओं के बारे में लिखें।
उत्तर :
अध्ययन के पश्चात् यह ज्ञात हुआ है कि बालक के खेलों की कुछ विशेषताएं होती हैं। बालक के खेल, युवा के खेलों से भिन्न होते हैं। बालकों के खेल की विशेषताएं निम्नलिखित हैं –
1. बालक अपनी इच्छानुसार खेलता है – छोटे बालकों के खेल में स्वतन्त्रता का अंश अधिक होता है। जब वह चाहता है, तब खेलता है। जहां चाहता है, वहां खेलता है। जो खिलौने उसे पसन्द आते हैं, उन्हीं से खेलता है। खेलने के लिए समय और स्थान का कोई बन्धन बालक को मान्य नहीं है। आयु वृद्धि के साथ-साथ बालकों के खेल में औपचारिकता का अंश बढ़ता जाता है।

2. खेल परम्परा से प्रभावित होते हैं – यह देखा जाता है कि बालक अधिकतर वही खेल खेलते हैं जो उनके परिवार में खेले जाते हैं । शतरंज, ताश, क्रिकेट, बास्केटबॉल आदि खेल-कूद के विषय में यही देखा जाता है।

3. खेलों का निश्चित प्रतिमान होता है-बालक की आयु, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, देश व वातावरण को देखकर हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि बालक कौन-कौन से खेल खेलता होगा। आयु के अनुसार तीन महीने का बालक वस्तुओं को छू-छू कर खेल का अनुभव करता है। एक साल का बालक खिलौने से खेलना प्रारम्भ करता है। सात-आठ साल तक अधिकतर बच्चे खिलौना पसन्द करते हैं। जब बालक स्कूल जाता है तो खेल-कूद में भाग लेना प्रारम्भ कर देता है। दस साल के बाद अधिकतर बालक दिवास्वप्न देखने शुरू कर देते हैं। अब वह अपना अधिक समय खेल-कूद में न बिताकर कहानियां पढ़ने, अकेले में दिवास्वप्न देखने में व्यतीत करते हैं।

4. खेल की क्रियाएं आयु के साथ घटती हैं-जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, बालक की खेलों के प्रति रुचि घटती जाती है।

5. आयु वृद्धि के साथ-साथ बालक खेल का समय घटाता जाता है क्योंकि खेल के अलावा वह अपना समय अन्य कामों में व्यतीत करता है।

6. बड़े होने पर बालक की रुचि किसी एक विशेष खेल में हो जाती है और उसी में वह अपना समय व्यतीत करता है।

7. आयु के साथ-साथ खेल के साथियों की संख्या भी कम होती जाती है।

8. पाँच-छ: साल की आयु के बाद बालक अपने ही लिंग के बच्चों के साथ खेलना पसन्द करता है।

9. जन्म से छ: सात वर्ष की आयु तक बालक के खेल अनौपचारिक होते हैं। बाद में वह केवल औपचारिक खेल खेलना पसन्द करते हैं।

10. बड़े हो जाने पर बालक सिर्फ वही खेल खेलना अधिक पसन्द करते हैं जिनमें शारीरिक शक्ति कम खर्च होती है।

11. बालक खेल में जोखिम उठाते हैं। पेड़ों पर चढ़ना, साइकिल चलाना, तैरना आदि ऐसे ही खेल हैं। जोखिम भरे खेलों में बालकों को आनन्द आता है।

12. खेलों में आवृत्ति का अंश रहता है। बालक किसी खेल को बार-बार खेलना चाहता है।

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प्रश्न 3.
खेल के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
अथवा
बालक के खेलों के प्रकार लिखिए।
अथवा
कार्ल ग्रूस व हरलॉक के अनुसार खेल के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
बच्चों के खेलों में व्यक्तिगत विभिन्नता पाई जाती है। इसी भिन्नता के आधार पर खेलों का वर्गीकरण इस प्रकार किया गया है

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल 1

उपर्युक्त खेलों के अतिरिक्त कार्लस ने खेलों को क्रमशः पाँच भागों में बांटा है –

  1. परीक्षणात्मक खेल-इन खेलों का मूल आधार जिज्ञासा है। बालक वस्तुओं को उलट-पुलट कर देखते हैं। खिलौने को तोड़कर फिर जोड़ते हैं।
  2. गतिशील खेल-इन खेलों की क्रिया में उछलना-कूदना, दौड़ना, घूमना आदि आता है।
  3. रचनात्मक खेल-इन खेलों में बच्चों की रचनात्मक प्रवृत्ति कार्य करती है। इसके अन्तर्गत ध्वंस तथा निर्माण दोनों ही प्रकार के खेल आते हैं।
  4. लड़ाई के खेल-यह खेल व्यक्तिगत एवं सामूहिक दोनों प्रकार के होते हैं। इसमें हार और जीत प्रकट करने वाले खेल होते हैं।
  5. बौद्धिक खेल-इसमें बुद्धि का विकास करने वाले खेल सम्मिलित हैं, जैसे पहेलियां, शतरंज, बॅनो, मल्टिइलेक्ट्रो खेल आदि।

हरलॉक के अनुसार, खेल को निम्नलिखित प्रकारों में बाँटा जा सकता है –

  1. बालकों के स्वतन्त्र तथा स्वप्रेरित खेल
  2. कल्पनात्मक खेल
  3. रचनात्मक खेल
  4. क्रीड़ाएं।

1. स्वप्रेरित खेल – प्रारम्भ में बालक जो खेल खेलता है वे स्वप्रेरित होते हैं। कुछ महीनों का बालक अपने हाथ-पैरों को हिला-डुलाकर खेलता है। तीन महीनों के बाद उसके हाथों में इतनी शक्ति आ जाती है कि वह खिलौनों से खेल सके।

2. कल्पनात्मक खेल – बालक के कल्पनात्मक अभिनय का विशिष्ट समय 11-2 वर्ष की अवस्था है। प्रमुख कल्पनात्मक खेलों में घर बनाना, उसे सजाना, भोजन बनाना और परोसना, माता-पिता के रूप में छोटे-बड़े बालकों का पालन-पोषण करना, वस्तुएं खरीदना तथा बेचना, मोटर-गाड़ी, नाव आदि की सवारी करना, पुलिस का अफसर बनकर चोरों को पकड़ने का अभिनय करना, शत्रु को जान से मार डालने तथा मरने का अभिनय करना, सैनिक खेल आदि आते हैं।

3. रचनात्मक खेल – वास्तविकता कम तथा कल्पना के अधिक अंश वाले बालकों में रचनात्मक खेलों की प्रवृत्ति नहीं मिलती। रचनात्मक खेलों में गीली मिट्टी तथा बालू से मकान बनाना, मनकों से माला बनाना, कागज़ को कैंची से काटकर अनेक वस्तुएं बनाना, बालिकाओं में गुड़िया बनाना, गुड़ियों के रंग-बिरंगे कपड़े सीना, रंगदार कागज़ से रंग-बिरंगे फूल बनाना आदि खेल आते हैं।

4. क्रीड़ाएं – बालक 4-5 वर्ष की आयु में अपने पास-पड़ोस के बालक-बालिकाओं के साथ अनेकों क्रीड़ाएं करता है, जैसे-आँख-मिचौली, राम-रावण, चोर-सिपाही आदि।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल

प्रश्न 3A.
खेल कितने प्रकार के होते हैं ? उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्न।

प्रश्न 3B.
बौद्धिक खेलों से आप क्या समझते हैं ? इन खेलों के दो उदाहरण दें।
उत्तर :
देखें प्रश्न 3.

प्रश्न 4.
खेल का बालक के विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
अथवा
खेलों का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
खेल-खेल शब्द का इतना अधिक सामान्य-सा प्रचलन हो गया है कि यह अपनी वास्तविक महत्ता खो बैठा है। खेल का मतलब परिणाम की चिन्ता किए बिना आनन्ददायक क्रिया में संलग्न रहने से है। इसका सम्बन्ध कार्य से नहीं है। कार्य का अर्थ किसी उद्देश्य की पूर्ति करना है। खेल एक सरल क्रिया है। बालक का खेल के माध्यम से सामाजिक, संवेगात्मक, नैतिक, भाषा आदि का सर्वांगीण विकास होता है। बेलेन्टीन के अनुसार, “खेल एक प्रकार का मनोरंजन है।” खेल का महत्त्व अग्रलिखित है

1. खेल का सामाजिक महत्त्व – खेल के माध्यम से बालकों में पारस्परिक सम्पर्क स्थापित होता है तथा इस मधुर सम्पर्क के परिणामस्वरूप जातिगत भेद-भाव, ऊँच-नीच के विचार एवं आपसी संघर्षों की सम्भावना कम होने लगती है। खेल में सदैव ही सहयोग की आवश्यकता होती है। खेल के समय विकसित हुई सहयोग की यह भावना जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी विकसित हो जाती है। इसके अतिरिक्त खेल के ही माध्यम से विभिन्न सद्गुणों का विकास होता है तथा बालक सम्भवतः अनुशासन, नियम पालन, नेतृत्व तथा उत्तरदायित्व आदि के प्रति सजग हो जाते हैं। इन सब आदतों, सद्गुणों एवं भावनाओं का जहाँ एक ओर सामान्य जीवन में लाभ है, वहीं शिक्षा के क्षेत्र में भी इनसे पर्याप्त लाभ होता है।

2. खेल का मानसिक एवं बौद्धिक क्षेत्र में महत्त्व – प्रत्येक बालक के लिए उसका मानसिक एवं बौद्धिक विकास भी अत्यधिक आवश्यक होता है। खेल से इस विकास में विशेष योगदान प्राप्त होता है। खेल से विभिन्न मानसिक शक्तियों जैसे कि प्रत्यक्षीकरण, स्मरणशक्ति, कल्पना तथा संवेदना आदि का समुचित विकास होता है। खेल के ही माध्यम से कुछ ऐसी योग्यताओं एवं क्षमताओं का विकास होता है जो मानसिक सन्तुलन, नियन्त्रण तथा रचनात्मकता के विकास में सहायक होती हैं। खेल द्वारा ही बालकों की शब्दावली तथा भाषा का भी विकास होता है।

3. खेल द्वारा संवेगात्मक विकास – बालक के उचित संवेगात्मक विकास में भी खेल से समुचित योगदान मिलता है। खेल द्वारा बालक अपने संवेगों को स्थिरता प्रदान करके नियन्त्रित रूप में रख सकते हैं। खेलों में समुचित रुचि लेने से बालकों में पायी जाने वाली कायरता, चिड़चिड़ापन, लज्जाशीलता तथा वैमनस्य के भावों को समाप्त किया जा सकता है। कुछ बालक विभिन्न कारणों से यथार्थ जीवन से पलायन करके दिवास्वप्नों में खोये रहने लगते हैं। वह प्रवृत्ति भी खेलों में भाग लेने से समाप्त की जा सकती है। समुचित संवेगात्मक विकास के परिणामस्वरूप बालक शिक्षा में भी सही रूप से विकास कर सकते हैं।

4. शारीरिक विकास में खेलों का महत्त्व – यह एक निर्विवाद सत्य है कि प्रत्येक बालक का समुचित शारीरिक विकास होना अनिवार्य है। शारीरिक स्वास्थ्य का विशेष महत्त्व है। शारीरिक स्वास्थ्य के लिए नियमित रूप से खेलों में भाग लेना विशेष महत्त्व रखता है। खेलों से जहाँ स्वास्थ्य का विकास होता है, वहीं साथ ही साथ व्यक्ति में पर्यावरण के साथ अनकूलन की क्षमता बढ़ती है तथा रोगों से बचने की प्रतिरोधक शक्ति भी विकसित होती है।

5. व्यक्तित्व के विकास में खेलों का महत्त्व – व्यक्तित्व के समुचित विकास में भी खेलों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। खेलों के माध्यम से व्यक्ति के व्यक्तित्व सम्बन्धी विभिन्न गुणों का विकास होता है तथा व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास होता है।

6. खेलों का शैक्षिक महत्त्व – विभिन्न दृष्टिकोणों से खेल के शैक्षिक महत्त्व को भी स्वीकार किया गया है। शिक्षा के क्षेत्र में अनुशासन की गम्भीर एवं महत्त्वपूर्ण समस्या है। अब यह माना जाने लगा है कि यदि बालक की पाश्विक मूल प्रवृत्तियों का शोधन हो जाये, तो वह सामान्य रूप से अनुशासित रह सकता है तथा खेल के माध्यम से इस उद्देश्य में सफलता प्राप्त की जा सकती है। ऐसा देखा गया है कि बच्चे खेल के मैदान में आज्ञा-पालन

सरलता से कर लेते हैं। आज्ञा-पालन की यह आदत अन्य क्षेत्रों में भी प्रकट होने लगती है। शिक्षा के क्षेत्र में वास्तविक ज्ञान प्रयोग करके ही प्राप्त किया जा सकता है अर्थात् प्रयोगात्मक कार्य उत्तम समझा जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में खेल के समावेश से यह उद्देश्य पूरा हो जाता है। शिक्षा के पाठ्यक्रम के निर्धारण में भी खेल के महत्त्व को स्वीकार किया गया है। खेल से बालकों में स्वतन्त्रता, स्वाभाविकता तथा स्फूर्ति का संचार होता है।

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प्रश्न 4. (A)
बच्चों के जीवन में खेल की दो उपयोगिताएं बताएं।
उत्तर :
देखें प्रश्न 4 का उत्तर।

प्रश्न 5.
जन्म से छ: साल तक के बच्चों के लिये खेल की सामग्री का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
बालक के खेलों के लिए खिलौनों की आवश्यकता होती है। प्रत्येक आयु की अपनी-अपनी माँग होती है। बच्चों को वही खिलौने देने चाहिएं जो कि उनके लिए उपयोगी हों।

1. जन्म से एक वर्ष तक के बच्चों के खिलौने – तीन से नौ महीने के बालक में प्रवृत्ति होती है कि वह प्रत्येक वस्तु को अपने मुँह में रखता है। अत: उनके लिए ऐसे खिलौने होने चाहिएं जो नरम हों, रबर, स्पंज, कपड़े आदि के बने हों। यह ध्यान रखना चाहिए कि खिलौना गन्दा न हो, उस पर धूल-मिट्टी न लगी हो। खिलौने की बनावट ऐसी हो कि यदि बच्चा उसे मुंह में रखे तो उसे कोई चोट न आए और सरलता से मुंह में रख सके। इस आयु में बच्चों को ध्वनि अच्छी लगती है। अतः उसे ध्वनि करने वाले खिलौने जैसे झुनझुना, सीटी लगे रबर के खिलौने भी दिये जा सकते हैं।

2. एक से दो साल के बच्चों के खिलौने – ऐसे बच्चों को रबर, लकड़ी, प्लास्टिक आदि के बने खिलौने जैसे जानवर, ट्रेन, मोटर, हवाई जहाज़ आदि खेलने के लिए देना चाहिए जिससे उनके वातावरण का ज्ञान बढ़े। एक-दूसरे में फंसने वाले खिलौने भी देने चाहिएं जिससे उनके स्नायुओं का विकास होता है तथा रचनात्मक कार्यों से मानसिक विकास भी होता है। दो साल के बच्चे में नकल करने की प्रवृत्ति पायी जाती है। ऐसे बच्चों को गुड़िया आदि खेलने के लिए दिए जा सकते हैं।

3. तीन-चार साल के बच्चों के खिलौने – इस अवस्था में बच्चों को मोटर, ट्रेन, हेलीकॉप्टर आदि चाबी से चलने वाले खिलौने देने चाहिएं। खेल-कूद का सामान भी देना चाहिए, जैसे-गेंद, बल्ला आदि। इसके अलावा बिल्डिग ब्लॉक, मीनार बनाने का सामान, सीढ़ी बनाने का सामान आदि। इसके द्वारा बालक का मानसिक, गत्यात्मक विकास होता है। अब बच्चा रंग और माडलिंग में विशेष रुचि लेने लगता है। वह फर्श, दीवार पर लकीरें खींचता है। बालक को माडलिंग के लिए मिट्टी व प्लास्टीसीन देना चाहिए।

4. पाँच साल का बालक चित्र बनाने लगता है। उसे रंग दिए जा सकते हैं। वह कैंची से कागज़ काट सकता है।

5. छ: साल का बालक छोटे – छोटे खिलौने जैसे बर्तन, गुड़िया, इंजन, सोफा सैट आदि पसन्द करता है। बालक अब छोटे-छोटे ड्रामा भी खेलता है। इसलिए उसे ड्रामा से सम्बन्धित सामग्री प्रदान करनी चाहिए। घरेलू खेलों में बालक को लूडो, साँप-सीढ़ी आदि खेलने को देना चाहिए। इस समय बच्चा ट्राइसिकल व बाइसिकिल भी चलाना सीख जाता है। चाबी वाले बड़े खिलौने भी बालकों को पसन्द आते हैं।

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प्रश्न 6.
खेल के गुण उदाहरण सहित स्पष्ट करें।
उत्तर :
खेल के निम्नलिखित गुण हैं –
1. खेल बच्चों को आनन्दित करता है।
उदाहरण – बच्चा रसोई में जाता है और कटोरी, चम्मच उठाकर उन्हें बजाने लगता है। उसे ध्वनि सुनने में मजा आता है। अतः वह उसे बजाता ही जाता है। वह यह खेल इसीलिए खेल रहा है क्योंकि उसे मजा आ रहा है।

2. खेल एक स्वाभाविक क्रिया है।
उदाहरण – एक बच्ची अपनी गुड़िया से खेल रही है। वह गुड़िया को नहलाती है, उसके बाल संवारती है, उससे बातें करती है, एवम् उसे थपकियां देकर सुलाती है। यह सब कुछ स्वाभाविक है। कोई उसे गुड़िया से इस तरह खेलना नहीं सिखाता।

3. खेल गम्भीर होता है।
उदाहरण – बच्चा किताब लेकर पढ़ता है। हालांकि उसने किताब उल्टी पकड़ी होती है पर फिर भी वह उसे गम्भीरता से पढ़ता है व एक काल्पनिक कहानी भी गढ़ लेता है।

4. खेल जिज्ञासा से पूर्ण होता है।
उदाहरण – जब भी बच्चे को नया खिलौना दिया जाता है वह उसे जिज्ञासापूर्ण नज़रों से देखता है। फिर वह उसे उलट-पुलट कर देखेगा और कभी तो खोलकर उसे अन्दर लगे कल-पुर्जी के बारे में जानने की कोशिश करेगा क्योंकि उसके अन्दर नई चीज़ के बारे में जानने की जिज्ञासा होती है।

5. खेल शान्त या चंचल होता है।
उदाहरण – कभी बच्चा चुपचाप कमरे के एक कोने में बैठ जाता है और अपने हाथ में पकड़ी हुई चीज़ से खेलता है; जैसे ताला-चाबी। वह चाबी से ताले को खोलने की कोशिश करता है। इस तरह वह शान्ति से खेल रहा है।
कभी-कभी बच्चा चारपाई पर कूदता है और इस हलचल का आनन्द लेता है। इस खेल में चंचलता है।

प्रश्न 7.
नीचे दिए गए खेलों को खेल के गुणों के आधार पर वर्गीकृत कीजिए। वर्गीकरण के लिए निम्नलिखित चिन्हों का प्रयोग करें
स्वः स्वाभाविक
च : चंचल
ग : गम्भीर
नि: निरुद्देश्य जि: जिज्ञासापूर्ण शां: शान्त –
1. पार्क पहुँचने पर बच्चा भागने लगता है।
2. अपने कमरे में बैठकर बच्चा ताश से खेलता है।
3. बच्चा फुटबाल खेल रहा है।
4. फिसल पट्टी पर बार-बार चढ़कर फिसलता है।
5. एक गिलास से दूसरे गिलास में पानी पलटता है।
6. किताब के पन्ने पलटता है।
7. खिलौना तोड़कर उसके अन्दर देखता है।
8. गुड़िया के टुकड़े-टुकड़े कर देता है।
9. झुनझुना बजाता जाता है।
10.  निरन्तर कूदता रहता है।
उत्तर :
1. स्व. 2. शां. 3. चं. 4. नि. 5. नि. 6. जि. 7. जि. 8. नि. 9. ग. 10. ग.।

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प्रश्न 8.
खेलों का बच्चों के विकास पर क्या लाभप्रद प्रभाव पड़ता है ?
अथवा
खेल की क्या आवश्यकता है ?
अथवा
बच्चों के जीवन में खेल के कोई दो महत्त्व लिखें।
उत्तर :
खेल इसीलिए आवश्यक है क्योंकि वह बच्चे के विकास के सभी क्षेत्रों को प्रभावित करता है। जैसे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक।
1. शारीरिक विकास – खेल शरीर के विकास को प्रभावित करते हैं। खेल से बच्चे की सभी मांसपेशियों का व्यायाम होता है। खेल से हाथों व आंखों के समन्वय में ताल-मेल बैठाता है। बचा शरीर को सन्तुलित करना सीखता है। इसके अलावा खेलते समय बच्चे अपने शरीर की मांसपेशियों और गति पर नियन्त्रण पाना सीखते हैं।

2. मानसिक विकास – खेल द्वारा बच्चा अपने आस-पास की वस्तुओं के बारे में सब कुछ जान लेता है जैसे रंग, आकार इत्यादि। वह विभिन्न चीज़ों को देखता है, छूता है, अनुभव करता है, चखता है और इस तरह से उन्हें जान लेता है।

3. सामाजिक विकास – बच्चे खेल द्वारा ओर सामाजिक बनते हैं अर्थात् वह सामाजिक व्यवहार सीखते हैं जैसे अपनी चीजें दूसरों के साथ बांटना, अपनी बारी का इन्तज़ार करना, दोस्तों के साथ ताल-मेल बिठाना आदि। इसके अलावा खेल द्वारा बच्चे नकल से वयस्कों (adults) की भूमिकाएं सीखते हैं।

4. भावनात्मक विकास – बच्चे खेल द्वारा अपनी भावनाओं पर नियन्त्रण करना सीखते हैं। उन्हें अपने रोने, हंसने, चिल्लाने पर काबू करना आ जाता है। उन्हें यह समझ आ जाती है कि अपने मन के भावों को किस तरह बाहर लाना है और उनकी दूसरों के सामने अभिव्यक्ति कैसे करनी है।

5. नैतिक विकास – खेल द्वारा बच्चे अनेक नैतिकता की बातें सीखते हैं जैसे सच्चाई, ईमानदारी, गुस्सा न करना, झूठ न बोलना आदि।

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प्रश्न 9.
कॉलम ” में दिए गए कथनों को कॉलम ‘II’ के कथनों से मिलाएं।

कॉलम – Iकॉलम – II
1. खेल से बच्चे1. सामाजिक व्यवहार सीखते हैं।
2. समूह में खेलते हुए बच्चे2. के शरीर की सभी मांसपेशियों का व्यायाम होता है।
3. यदि बच्चा हम-उम्र बच्चों के साथ खेलना चाहता है तो3. तो वह आकार के विषय में जानता है
4. फुटबाल खेलते समय बच्चे4. अपने मन की भावनाएं बाहर निकालते हैं।
5. जब बच्चा डिब्बों को उनके आकार के अनुसार सहेजता है5. उसे समूह के नियमों का पालना करना होगा
6. उसे स्कूल में खेलना होगा।

उत्तर :

कॉलम – Iकॉलम – II
1. खेल से बच्चे4. अपने मन की भावनाएं बाहर निकालते हैं।
2. समूह में खेलते हुए बच्चे1. सामाजिक व्यवहार सीखते हैं।
3. यदि बच्चा हम-उम्र बच्चों के साथ खेलना चाहता है तो5. उसे समूह के नियमों का पालना करना होगा
4. फुटबाल खेलते समय बच्चे2. के शरीर की सभी मांसपेशियों का व्यायाम होता है।
5. जब बच्चा डिब्बों को उनके आकार के अनुसार सहेजता है3. तो वह आकार के विषय में जानता है

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से उन कथनों पर (✓) का निशान लगाएं जो खेल के कार्यों को दर्शाते हैं और उन पर (✗) का निशान लगाएं जो खेल के कार्यों को नहीं दर्शाते।
1. लम्बाई में बढ़ोत्तरी
2. गत्यात्मक नियन्त्रण
3. गुस्से पर नियन्त्रण
4. आसन सुधरता है
5. भाषा का विकास
6. गणित के सवाल हल करना
7. बेहतर निबन्ध लिख पाना
8. अपनी बारी का इन्तजार करना
9. आऊट दिए जाने पर बिना बहस किए चले जाना
10. गलती से गेंद लगने पर न चिल्लाना।
उत्तर :
(1), (4), (6), (7) ✗ का चिन्ह क्योंकि वे खेल कार्यों को नहीं दर्शाते। (2), (3), (5), (8), (9) (10) ✓ का चिन्ह क्योंकि वे खेल कार्यों को दर्शाते हैं।

प्रश्न 11.
खिलौने खरीदते वक्त आप किन-किन बातों का ध्यान रखेंगे जिनके आधार पर आप खिलौनों का चयन करेंगे ?
अथवा
बच्चों के खिलौनों का चयन करते समय आप किन बातों को ध्यान में रखेंगे ?
अथवा
खिलौनों का चुनाव करते समय आप किन-किन बातों का ध्यान रखोगे ?
उत्तर :
खिलौने खरीदते समय या उनका चयन करते समय हम अग्रलिखित बातों का ध्यान रखेंगे –

1. बच्चे की उम्र – खिलौनों का चयन करते समय बच्चे की आयु का ध्यान अवश्य रखें; जैसे बहुत छोटे बच्चे के लिए झुनझुना खरीदें क्योंकि उसे आवाज़ अच्छी लगती है। एक साल के बच्चे के लिए ऐसा खिलौना खरीदें जिसे रस्सी से खींचा जा सकता है इत्यादि।
2. खिलौने का सुरक्षित होना – जो खिलौने आप बच्चे के लिए ले रहे हैं वह सुरक्षित होने चाहिएं। वह खुरदरे या नोकीले नहीं होने चाहिएं। उन पर लगे रंग आई० एस० आई० प्रमाणित होने चाहिएं। घटिया रंग ज़हरीले होते हैं।
3. खिलौने टिकाऊ हों – जहां तक सम्भव हो नाजुक और कमज़ोर खिलौने न खरीदें। प्लास्टिक के खिलौनों की अपेक्षा लकड़ी व रबड़ के खिलौने ज्यादा चलते हैं।
4. खिलौने महंगे न हों – खिलौने महंगे न हों अन्यथा आप सारा समय बच्चे को ध्यान से खेलने की हिदायत देते रहेंगे। इससे बच्चा ठीक से खेल नहीं पाएगा और खिलौने से खेलना छोड़ देगा।
5. खिलौने आकर्षक हों – बच्चे का खिलौना खरीदते समय यह देख लें कि खिलौना देखने में आकर्षक हो। यदि बच्चे को खिलौने का रंग या आकार पसन्द नहीं आएगा तो वह उससे नहीं खेलेगा।

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प्रश्न 12.
बच्चों के लिए खेल का क्या महत्त्व है ?
अथवा
खेल बच्चों के लिए क्यों जरूरी है ?
उत्तर :

  1. खेलने से बच्चे का शारीरिक तथा मानसिक विकास अधिक होता है।
  2. खेल द्वारा बच्चा अपने साथियों के साथ मिल-जुल कर रहना सीखता है।
  3. खेलों द्वारा बच्चे जिन्दगी में जीत तथा हार को सहना सीखते हैं।
  4. खेलों द्वारा बच्चे की काल्पनिक शक्ति भी विकसित होती है।।
  5. खेलों में व्यस्त रहने के कारण बच्चा बुरे कार्यों से बचा रहता है।
  6. खेलों द्वारा बच्चे अपने जीवन में भिन्न-भिन्न भूमिकाएं निभाना सीखते हैं।

जैसे लड़कियां गुड़िया के खेल द्वारा एक माँ, बहन तथा दोस्त की भूमिका निभाना सीखती हैं। इसी तरह लड़के खेलों द्वारा डॉक्टर पुलिस, फौजी, व्यापारी आदि बनना सीखते हैं।

प्रश्न 13.
(क) बच्चों के लिए भिन्न-भिन्न खेलों के लिए खेल सामग्री का चुनाव करते समय कौन-सी बातों को ध्यान में रखना चाहिए ?
(ख) तीन वर्षीय बालिका की माता को सुरक्षित खिलौना खरीदने के लिए कौन-कौन सी बातों का निरीक्षण करना होगा ?
उत्तर :
(क) 1. आयु वर्ग (Age Group) – प्रत्येक आयु में बच्चे का शरीर तथा मानसिक विकास एक जैसा नहीं होता। इस लिए बच्चे के खिलौनों का चुनाव उनकी आयु को ध्यान में रख कर करना चाहिए जैसे बहुत छोटे बच्चे के लिए भार में हल्के तथा आवाज़ पैदा करने वाले खिलौने लेने चाहिएं। जब बच्चा चलने लग जाए तो उस को चाबी वाले खिलौने तथा चलने वाले खिलौने पसंद आते हैं। इस के बाद 2-3 साल वर्ष के बच्चों के लिए भिन्न-भिन्न ब्लाक्स (blocks) का चुनाव किया जाना चाहिए। आजकल बाजार में प्रत्येक आयु वर्ग के बच्चों के मानसिक तथा शारीरिक विकास को ध्यान में रखते हुए कई तरह के खिलौने तथा गेम्स मिलती हैं जैसे बिज़नस गेम, विडियो गेम, कैरम बोर्ड आदि। कोई भी खेल या खिलौना खरीदते समय बच्चे की आयु को ध्यान में रखना चाहिए।

2. रंगदार (Colourful) – बच्चों के खिलौने भिन्न-भिन्न रंगों तथा आकर्षक होने चाहिए। प्राय: बच्चों को तेज़ रंग जैसे लाल, पीला, नीला, संगतरी आदि पसंद होते हैं। परन्तु यह ध्यान में रखें कि खिलौनों के रंग पक्के हों क्योंकि बच्चे को प्रत्येक वस्तु मुंह में डालने की आदत होती है। यदि रंग घुलनशील हो, तो बच्चे को हानि पहुँच सकती है।

3. अच्छी गुणवत्ता (Good Quality) – प्रायः खिलौने रबड़ तथा प्लास्टिक के बने होते हैं। खिलौने खरीदने के समय यह देखना आवश्यक है कि बढ़िया रबड़ या प्लास्टिक का प्रयोग किया गया हो जो जल्दी टूट न सके। घटिया गुणवत्ता के खिलौने शीघ्र टूट जाते हैं तथा बच्चे टूटे-फूटे टुकड़े उठा कर मुंह में डाल सकता है। जो बच्चे के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकते हैं।

4. शिक्षात्मक (Educational) – खिलौने शिक्षात्मक होने चाहिए ताकि बच्चा उनके साथ खेलता हुआ कुछ ज्ञान भी प्राप्त कर सके क्योंकि बच्चा खेलों द्वारा अधिक सीखता है। भिन्न-भिन्न रंगों, आकारों तथा संख्या का ज्ञान बच्चे को आसानी से खिलौनों की सहायता के साथ दिया जा सकता है।

5. सफाई में आसानी (Easy to Learn) – खिलौने ऐसी सामग्री के बने हों जिन्हें सरलता के साथ साफ किया जा सके जैसे प्लास्टिक तथा सिंथैटिक खिलौने सरलता से साफ हो सकते हैं।

6. सुरक्षित सामग्री (Safe Material) – खिलौनों का सामान मज़बूत नर्म, रंगदार तथा भार में हल्का होना चाहिए। खिलौनों के भिन्न-भिन्न भाग ठीक ढंग से मज़बूती के साथ जुड़े हो। इनकी नुक्करें तेज़ न हों नहीं तो यह बच्चे को खेल के समय हानि पहुंचा सकती हैं।

7. लड़के तथा लड़कियों के खिलौने (Boys and Girls Toys) – खिलौने लड़के तथा लड़कियों के लिए भिन्न-भिन्न खरीदने चाहिएं। लड़कियां अधिकतर गुड़िया, घरेलू सामान तथा श्रृंगार के सामान से खेलना पसन्द करती हैं जबकि लड़के कारों, बसों, ट्रैक्टर, बैटबाल, फुटबाल आदि के साथ खेलना पसन्द करते हैं। खिलौनों का चुनाव बच्चे की आयु तथा लिंग को ध्यान में रख कर करना चाहिए।

8. खिलौनों की कीमत (Cost of Toys) – अधिक महंगे खिलौने नहीं खरीदने चाहिएं क्योंकि महंगे खिलौने टूट जाने पर माँ-बाप बच्चों को डांटते हैं पर बच्चा सदा ही अपने ढंग से खेलना चाहता है। इसलिए खिलौना इतना महंगा न हो कि खराब होने पर दु:ख हो।

9. संभालने का स्थान (Storage Space) – खिलौनों को संभालने के लिए व्यापक स्थान होना चाहिए ताकि उनको ठीक ढंग से रखा जा सके तथा खिलौने टूट-फूट से बच सकें। इसलिए हर नया खिलौना खरीदने से पहले उस को सम्भालने के स्थान को ध्यान में रखना आवश्यक है।

10. खिलौने बहुत अधिक न खरीदें (Not to Buy too Many Toys) – यदि घर में बहुत अधिक खिलौने हों, तो बच्चा किसी भी खिलौने का पूरा लाभ नहीं उठाता इसलिए बहुत अधिक खिलौने नहीं खरीदने चाहिएं।

बच्चों के खेलने के लिए कौन-से भिन्न-भिन्न किस्म के खिलौने होते हैं –

  1. रंगदार तथा आवाज़ करने वाले खिलौने
  2. चलने वाले खिलौने
  3. चाबी वाले खिलौने
  4. भिन्न-भिन्न तरह के ब्लाक्स
  5. घर में खेलने वाली खेलें जैसे लुडो, कैरम-बोर्ड, बिजनैस, वीडियो गेम आदि।
  6. विशेषतः लड़कियों के लिए किचन सैट, डरैसिंग सैट, डॉक्टर सैट, गुड़िया आदि।
  7. घर से बाहर खेलने वाली खेल जैसे बैडमिंटन, बैटबाल, हॉकी, फुटबाल, रस्सी कूदना आदि।

(ख) देखें प्रश्न (क) का उत्तर।

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एक शब्द/रक वाक्य वाले प्रश्न –

(क) एक शब्द में उत्तर दें –

प्रश्न 1.
साथियों की संख्या के आधार पर खेल कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
तीन।

प्रश्न 2.
किसके अनुसार खेल कुछ सुनिश्चित मूल प्रवृत्ति जन्य क्रियाओं को प्रकट करने की प्रवृत्ति है ?
उत्तर :
थॉमसन के अनुसार।

प्रश्न 3.
गुड़िया के टुकड़े-टुकड़े कर देना कैसा खेल है ?
उत्तर :
निरुद्देश्य खेल।

प्रश्न 4.
फुटबॉल खेलना कैसा खेल हैं ?
उत्तर :
चंचल खेल।

प्रश्न 5.
पार्क पहुँचने पर बच्चा भागने लगता है कैसा खेल है ?
उत्तर :
स्वभाविक खेल।

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प्रश्न 6.
शतरंज कैसा खेल है ?
उत्तर :
शान्त तथा दिमागी।

(ख) रिक्त स्थान भरो –

1. लूडो ………… खेल है।
2. खिलौना तोड़कर उसके अन्दर देखना ……… खेल है।
3. खेलों से बच्चों को ………… की प्राप्ति होती है।
4. शुरू में बालक ……… खेल खेलता है।
उत्तर :
1. घरेलू
2. जिज्ञासापूर्ण
3. आनन्द
4. स्वप्रेरित।

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(ग) निम्न में गलत अथवा ठीक बताएं –

1. खेल की क्रियाएं आयु के साथ घटती हैं।
2. समूह में खेलते हुए बच्चे संवेगात्मक व्यवहार सीखते है।
3. जो बच्चा खेल के प्रति उदासीन होता है। उसका मानसिक व शारीरिक विकास सन्तोषजनक नहीं होता।
4. खिलौनों का रंग पक्का होना चाहिए।
5. बच्चे का पतंग लेकर भागना खेल नहीं है।
उत्तर :
1. ठीक
2. ठीक
3. ठीक
4. ठीक
5. गलत।

बहु-विकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
घर के अन्दर खेले जाने वाला खेल नहीं है –
(A) हॉकी
(B) ताश
(C) शतरंज
(D) कैरम।
उत्तर :
हॉकी।

प्रश्न 2.
निम्न में खेल नहीं है –
(A) बच्चे द्वारा गीली मिट्टी से चपाती बनाना
(B) बच्चे द्वारा रेत के ढेर पर बैठकर घर बनाना
(C) माँ द्वारा बच्चे से जबरदस्ती ढोलक बजवाना
(D) बच्चे का पतंग लेकर भागना।
उत्तर :
माँ द्वारा बच्चे से जबरदस्ती ढोलक बजवाना।

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प्रश्न 3.
कार्लग्रूस ने खेलों को कितने भागों में बांटा है –
(A) एक
(B) तीन
(C) पांच
(D) सात।
उत्तर :
पांच।

प्रश्न 4.
निम्न में चंचल खेल है –
(A) पार्क में पहुँचने पर बच्चा भागने लगता है
(B) फुटबाल खेलना
(C) गुड़िया के टुकड़े-टुकड़े कर देता है
(D) खिलौना तोड़ कर उसके अन्दर देखता है।
उत्तर :
फुटबाल खेलना।

प्रश्न 5.
निम्न में खेल कार्य नहीं है
(A) गणित के सवाल हल करना
(B) गत्यात्मक नियन्त्रण
(C) गुस्से पर नियन्त्रण
(D) गलती से गेंद लगने पर न चिल्लाना।
उत्तर :
गणित के सवाल हल करना

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प्रश्न 6.
ऑक्सीकरण की क्रिया कब पूर्ण होती है-
(A) हाइड्रोजन मिलने पर
(B) ऑक्सीजन मिलने पर
(C) नाइट्रोजन मिलने पर
(D) कार्बन डाइऑक्साइड मिलने पर।
उत्तर :
ऑक्सीजन मिलने पर।

प्रश्न 7.
समूह में खेलते हुए बच्चे ……………. सीखते हैं
(A) काल्पनिक व्यवहार
(B) सामाजिक व्यवहार
(C) संवेगात्मक व्यवहार
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 8.
कमरे में बैठकर ताश खेलने को खेल के गुणों के आधार पर किस प्रकार के खेल में वर्गीकृत किया जा सकता है –
(A) निरुद्देश्य खेल
(B) जिज्ञासापूर्ण खेल
(C) शान्त खेल
(D) गम्भीर खेल।
उत्तर :
शान्त खेल।

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प्रश्न 9.
खिलौने को खरीदते समय किस बात को ध्यान में रखना चाहिए :
(A) आयु वर्ग
(B) रंग-बिरंगे
(C) अच्छी गुणवत्ता
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 10.
नैतिक दृष्टि से खेलों का क्या महत्त्व है –
(A) सहनशीलता की भावना का विकास
(B) तनाव व चिड़चिड़ापन दूर होना
(C) व्यायाम होना
(D) कोई भी नहीं।
उत्तर :
सहनशीलता की भावना का विकास।

प्रश्न 11.
खेलों से बच्चों को …………. की प्राप्ति होती है –
(A) पैसों
(B) आनन्द
(C) ऊर्जा.
(D) समयः।
उत्तर :
आनन्द।

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प्रश्न 12.
जो बच्चा खेल के प्रति उदासीन रहता है, उसका ………… सन्तोषजनक नहीं होता
(A) मानसिक विकास
(B) शारीरिक विकास
(C) मानसिक और शारीरिक विकास
(D) सामाजिक विकास।
उत्तर :
मानसिक और शारीरिक विकास।

प्रश्न 13.
खेल की क्रियाएं आयु के साथ ………. हैं।
(A) घटती
(B) बढ़ती
(C) समान रहती
(D) सामान्य।
उत्तर :
घटती।

प्रश्न 14.
निम्नलिखित में से बौद्धिक खेल कौन-सा है ?
(A) हॉकी खेलना
(B) शतरंज
(C) दौड़ लगाना
(D) बैडमिंटन।
उत्तर :
शतरंज।

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प्रश्न 15.
शुरू में बालक कौन-से खेल खेलता है ?
(A) स्वप्रेरित
(B) कल्पनात्मक
(C) रचनात्मक
(D) क्रीड़ाएं।
उत्तर :
स्वप्रेरित।

प्रश्न 16.
क्रीड़ायें बच्चों के लिए फायदेमंद हैं, क्योंकि ये प्रदान करती हैं –
(A) मनोरंजन
(B) धन
(C) भोजन
(D) इनमें से कोई भी नहीं।
उत्तर :
मनोरंजन।

प्रश्न 17.
बालकों के जीवन में मनोरंजन का क्या महत्त्व है ?
(A) सहनशीलता, त्याग, सच्चाई जैसे गुण उत्पन्न होते हैं
(B) संवेगों का प्रकाशन और नियंत्रण
(C) नैतिक व मानसिक विकास में सहायक
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

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प्रश्न 18.
गतिशील खेल कौन-सा है ?
(A) खिलौनों से खेलना
(B) उछलना-कूदना
(C) पहेलियां बूझना
(D) शतरंज खेलना।
उत्तर :
उछलना-कूदना।

प्रश्न 19.
खेलने से बच्चों का………… विकास होता है।
(A) शारीरिक
(B) मानसिक
(C) सामाजिक
(D) शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक।
उत्तर :
शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक।

प्रश्न 20.
खेलों को कौन-सा तत्त्व प्रभावित करता है ?
(A) साधन
(B) ऋतु
(C) वातावरण
(D) ये सभी।
उत्तर :
ये सभी।

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प्रश्न 21.
घर के भीतर खेला जाने वाला कौन-सा खेल है ?
(A) ताश
(B) कैरम
(C) शतरंज
(D) ये सभी।
उत्तर :
ये सभी।

प्रश्न 22.
……………. से हड्डियों की मजबूती आती है।
(A) लोहा
(B) आयोडीन
(C) कैल्शियम
(D) वसा।
उत्तर :
कैल्शियम।

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प्रश्न 23.
घर के भीतर खेले जाने वाला खेल कौन-सा है ?
(A) शतरंज
(B) हॉकी
(C) फुटबाल
(D) बैडमिंटन।
उत्तर :
शतरंज।

खेल HBSE 10th Class Home Science Notes

ध्यानार्थ तथ्य।

→ बालकों का खेलना एक स्वाभाविक क्रिया है जो आत्म प्रेरित होती है और आनन्ददायक भी होती है।
→ खेल तथा मनोरंजन बालक के जीवन में प्रसन्नता, चंचलता, उत्साह, स्फूर्ति तथा स्वतन्त्रता के भाव उत्पन्न करते हैं।
→ खेल की अनेक विशेषताएं होती हैं जैसे यह एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है, यह एक आत्मप्रेरित, शारीरिक व मानसिक प्रवृत्ति है, खेल का कोई गुप्त लक्ष्य नहीं होता, खेल का मुख्य लक्ष्य आनन्द और आत्म विश्वास प्राप्त करना होता है, बालक खेल के अन्तिम परिणाम पर कोई विचार नहीं करते आदि।
→ खेल और कार्य में अन्तर होता है।
→ खेल का बालक के विकास में महत्त्वपूर्ण स्थान है। खेल के आधार पर बालक के अनेक शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा नैतिक आदि गुणों का विकास होता है।
→ खेल के साथियों की संख्या के आधार पर खेल तीन प्रकार के होते हैं

  • समानान्तर खेल
  • सहचारी खेल तथा
  • सामूहिक खेल।

→ खेल के स्थान के आधार पर खेल दो प्रकार के होते हैं –
(i) घर के भीतर खेले जाने वाले खेल (इनडोर गेम्स) – जैसे ताश, कैरम, लूडो, शतरंज, चायनीज चेकर, सांप-सीढ़ी आदि।
(ii) घर के बाहर खेले जाने वाले खेल (आउटडोर गेम्स) – जैसे क्रिकेट, फुटबाल, हाकी, बैडमिन्टन आदि।

→ ऐसा देखा गया है कि जो बालक पढ़ाई-लिखाई के अतिरिक्त खूब खेलता है, वह सामान्यतः कुशाग्र बुद्धि का होता है।

→ खेल एक ऐसी क्रिया है जो बच्चे को अच्छी लगती है। बच्चा उसे अपनी खुशी से शुरू करता है। उसे करते हुए वह आनन्द अनुभव करता है और जब चाहे उसे समाप्त कर देता है। बच्चे का सारा दिन खेल से भरा होता है।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल

→ खेल के निम्नलिखित गुण हैं –

  • खेल अनायास व स्वाभाविक होता है।
  • खेल आमतौर पर बिना किसी उद्देश्य के होता है।
  • खेल की शुरुआत बच्चा स्वयं करता है।
  • खेल बच्चे के लिए मज़ा है।
  • खेल कभी-कभी गंभीर एवं जिज्ञासा से पूर्ण भी हो सकता है।
  • खेल चंचल या शांत भी हो सकता है।

→ खेल बच्चे के शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक संवेगों के विकास एवम् नैतिक विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है।
→ खेल से बच्चे का शारीरिक विकास होता है, उसे बहुत चीज़ों का ज्ञान मिलता है, वह नई चीजें बनाना सीखता है, वह सामाजिक होकर अपने दोस्तों से तालमेल बिठाना सीखता है और अपने भावों पर नियन्त्रण पाना सीखता है। इसके अलावा सच बोलना, ईमानदार बनना आदि नैतिक गुण भी वह अपनाता है।

→ आयु के साथ खेल भी बदलते हैं। बहुत छोटे बच्चे (0-2 महीने तक) अपने आप से खेलना पसन्द करते हैं। वह अपने हाथ-पैर चलाते रहते हैं।

→ 2 महीने से 2 वर्ष के बच्चे खिलौनों को देखना व उनसे खेलना पसन्द करते हैं। अकेले बैठे हुए भी वह अपने खिलौनों से खेलते रहते हैं। दो साल के बच्चे समूह में खेलना पसन्द करते हैं हालांकि समूह का प्रत्येक बच्चा अपनी धुन में मस्त होता है।

→ दो साल से छः साल के बच्चों के खेलों में और बदलाव आ जाता है। वह साथ-साथ खेलना शुरू कर देते हैं। वह एक खिलौने से भी खेल सकते हैं।

→ बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते हैं व अधिक सामाजिक बनते हैं। वह नए दोस्त बनाते हैं। उनके निर्धारित समूह होते हैं और वह नियम वाले खेल भी खेलते हैं। बड़े बच्चे अकेले भी खेल सकते हैं और समूह में भी।

→ खेलने के तरीके बदलने के साथ-साथ खिलौने भी बदल जाते हैं। अत: बच्चों को खिलौने खरीदते समय उनकी उम्र, खिलौने का टिकाऊपन, सुरक्षा, आकर्षणता, वृद्धि का स्तर आदि बातों का ध्यान अवश्य रखें।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 खेल

→ यदि कीमती खिलौने खरीदने की बजाए आप बच्चों को घर के बने खिलौने देंगे जैसे कपड़े की बनी बिल्ली, माचिस की डिब्बी का झुनझुना आदि तो बच्चे इसे ज्यादा पसन्द करेंगे। ऐसे खिलौनों के साथ वह अपनी इच्छानुसार उठक-पटक कर सकते हैं। इस तरह वह नए विचार और खेल सोच पाते हैं।

→ यदि आप बच्चे को कीमती खिलौने देते हैं। तो आप सारा समय बच्चे को यही हिदायत देते हैं कि खिलौने टूट न जाएं। इस तरह बच्चा ठीक से खेल नहीं पाता और परिणामस्वरूप जल्द ही ऐसे खिलौने से खेलना छोड़ देता है। अतः घर पर उपलब्ध सामग्री से खिलौने बनाना ज्यादा श्रेयस्कर है।

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HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 2 विकास पर बाहरी वातावरण का प्रभाव

Haryana State Board HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 2 विकास पर बाहरी वातावरण का प्रभाव Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Home Science Solutions Chapter 2 विकास पर बाहरी वातावरण का प्रभाव

अति लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
बालकों के विकास पर घर के बाहर की किन-किन बातों का प्रभाव पड़ता
उत्तर :
पुस्तकों, संगीत, रेडियो, सिनेमा, टेलीविज़न, विज्ञापन आदि का।

प्रश्न 2.
खेल तथा मनोरंजन का संवेगात्मक विकास से क्या सम्बन्ध है?
उत्तर :
खेलों द्वारा बालक संवेगों का प्रकाशन तथा साथ-साथ संवेगात्मक नियंत्रण भी सीखता है।

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प्रश्न 3.
जिन बालकों में संवेगात्मक नियंत्रण अधिक होता है, उनमें कैसे गुण अधिक पाए जाते हैं ?
उत्तर :
सहनशीलता, त्याग, सच्चाई और सहानुभूति आदि गुण।

प्रश्न 4.
खेल का शारीरिक महत्त्व क्या है?
उत्तर :

  1. इससे बच्चों की मांसपेशियां समुचित ढंग से विकसित होती हैं।
  2. इसके द्वारा बच्चों के शरीर के सभी अंगों का व्यायाम हो जाता है।
  3. बच्चों का तनाव व चिड़चिड़ापन कम हो जाता है।

प्रश्न 5.
खेल का सामाजिक विकास की दृष्टि से क्या महत्त्व है ?
उत्तर :

  1. बच्चे अपरिचित व्यक्तियों के साथ सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करना सीख लेते हैं।
  2. खेल-खेल में वे सहयोग करना सीख लेते हैं।
  3. बच्चों में नियम-निष्ठा की भावना आ जाती है।
  4. जो बच्चे परस्पर खेलते हैं, उनमें द्वेष की भावना नहीं रहती।
  5. बच्चे जब अपने माता-पिता या अन्य भाई-बहिनों के साथ खेलते हैं तो इससे परिवार में सौहार्द्र और स्नेह का वातावरण विकसित होता है।

प्रश्न 6.
नैतिक दृष्टि से खेल के द्वारा बच्चों में किन-किन गुणों का विकास होता
अथवा
बच्चों के नैतिक विकास में खेलों का क्या महत्त्व है ?
उत्तर :

  1. समूह के साथ खेलते हुए बच्चों में आत्म-नियन्त्रण, सच्चाई, दयानतदारी, निष्पक्षता तथा सहयोग आदि गुणों का विकास होता है।
  2. बच्चा सीखता है कि एक अच्छा खिलाड़ी हार जाने पर भी उत्साहहीन नहीं होता और न ही उसमें द्वेष का भाव आता है।
  3. खेल के द्वारा बच्चों में सहनशीलता की भावना का विकास होता है।

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प्रश्न 7.
टेलीविज़न का बालक (बच्चों) के लिए क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
टेलीविज़न पर दिखाए जाने वाले शिक्षाप्रद कार्यक्रम, ऐतिहासिक घटनाएँ तथा अन्य बहुत से कार्यक्रम स्वस्थ मनोरंजन के साथ-साथ बालक के नैतिक व मानसिक विकास में सहायक होते हैं।

प्रश्न 8.
मनोरंजन के साधन बालक के लिए कब हानिकारक होते हैं ?
उत्तर :
रेडियो, टेलीविज़न, सिनेमा की ओर बालकों के बढ़ते हुए झुकाव के कारण उनकी खेलों के प्रति रुचि कम हो जाती है। परिणामस्वरूप शारीरिक विकास रुक जाता है। साथ ही उनका व्यक्तिगत और सामाजिक समायोजन बिगड़ जाता है।

प्रश्न 9.
बालकों की अभिव्यक्ति के अन्य साधन कौन-से हैं?
उत्तर :
बालकों की अभिव्यक्ति के अन्य साधन-

  • चित्रांकन
  • संगीत
  • लेखन
  • हस्तकौशल।

प्रश्न 10.
खेल के सिद्धान्त कौन-से हैं?
उत्तर :
खेल के सिद्धान्त –

  • अतिरिक्त शक्ति का सिद्धान्त
  • शक्तिवर्द्धन का सिद्धान्त
  • पुनरावृत्ति का सिद्धान्त
  • भावी जीवन की तैयारी का सिद्धान्त
  • रेचन का सिद्धान्त
  • जीवन की क्रियाशीलता।

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प्रश्न 11.
बालकों के खेलों की क्या विशेषताएं हैं?
अथवा
खेल की चार विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर :
बालकों के खेलों की निम्नलिखित विशेषताएं हैं –

  • बालक स्वेच्छा से खेलता है।
  • उम्र वृद्धि के साथ-साथ बालकों के खेल में दैहिक क्रियाओं की कमी आती है।
  • बालकों के खेल का निश्चित प्रतिरूप होता है।
  • बालक प्रत्येक खेल में जोखिम उठाता है।
  • बालक के खेलों में आवृत्ति का अंश रहता है।

प्रश्न 12.
बालकों के विकास पर घर के अलावा किन चीज़ों का प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :
पुस्तकों, संगीत, रेडियो, सिनेमा, टेलीविज़न, विज्ञापन इत्यादि।

प्रश्न 13.
खेल से संवेगात्मक विकास कैसे होता है?
उत्तर :
खेलों द्वारा बालक संवेगों का प्रसारण तथा संवेगों पर नियन्त्रण करना भी सीखता है। ऐसा बच्चा ज्यादा सहनशील, सत्यवादी और सहानुभूति प्रकट करने वाला होता है। उसके अंदर त्याग की भावना भी होती है।

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प्रश्न 14.
खेलों का शारीरिक विकास में क्या योगदान है?
उत्तर :
खेलों द्वारा बच्चे का व्यायाम होता है, उसकी हडियां व मांसपेशियों का विकास होता है और उसका चिड़चिड़ापन कम हो जाता है।

प्रश्न 15.
मनोरंजन के अतिरिक्त बालक के जीवन में टेलीविजन की कोई एक अन्य उपयोगिता लिखें।
उत्तर :
देखें प्रश्न 7 का उत्तर।

प्रश्न 16.
बच्चों के खेल के दो महत्त्व लिखें।
उत्तर :
देखें प्रश्न 4, 5, 6 का उत्तर।

प्रश्न 17.
किताबों का बच्चों के लिए क्या महत्त्व है ?
उत्तर :

  • इनसे बालकों को पढ़ने की प्रेरणा मिलती है,
  • इनके द्वारा बच्चों के पढ़ने की योग्यता बढ़ाई जा सकती है,
  • इनके द्वारा बच्चों को नए शब्दों का ज्ञान होता है,
  • इनके पढ़ने से ‘रेचन’ द्वारा उनके संवेगात्मक तनाव निकल जाते हैं।

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लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
खेल का शैक्षिक महत्त्व क्या है?
उत्तर :

  1. बच्चे सभी प्रकार के खिलौनों से खेलते हैं। उन्हें भिन्न-भिन्न पदार्थों के आकार, रंग, भार तथा उनकी सतह का ज्ञान हो जाता है।
  2. जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, वैसे-वैसे खेल के द्वारा उनमें कई कौशलों का विकास होता है।
  3. बच्चे खेल के द्वारा सीखते हैं कि किस प्रकार पदार्थ-विशेष की जानकारी प्राप्त की जाए तथा वस्तुओं का संग्रह किस प्रकार से किया जाए।
  4. खेल के द्वारा बच्चे अपनी तथा अपने साथियों की क्षमताओं की भली-भांति तुलना कर सकते हैं। इस प्रकार उन्हें अपने रूप का वास्तविक ज्ञान हो जाता है।

प्रश्न 2.
विकास प्रक्रिया के निर्देशन में खेल का क्या महत्व है?
उत्तर :
पहले बालक खेल के माध्यम से ही विभिन्न प्रकार के क्रियात्मक विकासों को सीखता है। इसमें वह अपने क्रियात्मक कौशलों को और शब्दों को सीखता है। यह विकास वह अन्य बालकों के साथ खेलकर सीखता है। खेल में वह विभिन्न क्रियाओं को पसन्द के आधार पर भी सीखता है। प्रारम्भ के कुछ महीनों में वह कुछ अधिक तीव्र गति से सीखता है। वह अपने हाथों, कपड़े और खिलौने आदि के साथ भी खेलता है। बालक तीन साल की अवस्था में पहुंचकर अपने खेल के साथियों को अधिक महत्त्व देने लग जाता है। अत: विकास प्रक्रिया का निर्देशन खेल द्वारा भी किया जा सकता है। .

प्रश्न 3.
बालक के सामाजिक विकास में खेल की भूमिका समझाइए।
उत्तर :
खेल एक स्वाभाविक, स्वतन्त्र, उद्देश्यहीन एवं आनन्द की अनुभूति देने वाली क्रिया है। बालक के शारीरिक विकास के साथ-साथ सामाजिक विकास में खेल की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। खेल बालक की कल्पनाओं, सहयोग की भावना तथा दयानतदारी को दर्शाता है। खेल के द्वारा बालक में नियम पालन की भावना आती है। खेल में वह अपनी व्यक्तिगत सत्ता समष्टि में लीन करता है। इस प्रकार उसमें सामाजिक भावना का विकास भी होता है। आयु वृद्धि के साथ-साथ बालक के खेल में परिवर्तन आता रहता है। बचपन में बालक-बालिकाएं साथ-साथ खेलते हैं परन्तु बाद में दोनों की रुचियों में अन्तर आ जाता है।

रुचि में अन्तर –

  • बालकों में बालिकाओं की तुलना में अधिक शारीरिक शक्ति
  • बालिकाओं में शीघ्र परिपक्वता का आ जाना तथा
  • सामाजिक प्रतिबन्ध (किशोरावस्था में दोनों का मिलना ठीक नहीं समझा जाना) आदि के कारण होता है।

बालकों के खेल के संगी-साथी के मानसिक तथा बौद्धिक स्तर एवं आर्थिक स्तर का प्रभाव भी बालकों के सामाजिक विकास पर पड़ता है। कुशाग्र बुद्धि वाला बालक अपने से बड़े बालक के साथ खेलना पसन्द करता है। इसी प्रकार मन्द बुद्धि वाला बालक अपने से छोटे बालकों के साथ खेलना पसन्द करता है।

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प्रश्न 4.
खेल की क्या परिभाषा है?
उत्तर :
वास्तव में खेल ऐसी एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है जिसमें अनुकरण एवं रचनात्मक प्रवृत्तियों का सम्मिश्रण रहता है। वैलनटाइन ने इसकी परिभाषा इस प्रकार की है कि खेल वह क्रिया है जो खेल के लिए ही की जाती है। ग्यूलिक ने खेल की सुन्दर परिभाषा इस तरह की है कि जो कार्य हम अपनी इच्छा से स्वतंत्रतापूर्ण वातावरण में करते हैं, वही खेल है, यह परिभाषा सर्वमान्य है।

प्रश्न 5.
रेडियो की बच्चों के विकास में क्या भूमिका है?
उत्तर :
रेडियो की प्रसिद्धि पहले की अपेक्षा अब कम हो गई है। जबसे रंगीन टेलीविज़न आया है उसने रेडियो का स्थान ले लिया है। अब तो बच्चे रेडियो बहुत ही कम सुनते हैं। शहरों की अपेक्षा गांव के बच्चे रेडियो अधिक सुनते हैं। एक अध्ययन में यह देखा गया है कि जो बच्चे जितना अधिक समायोजित होते हैं व रेडियो उतना ही कम सुनते हैं। लगभग तीन वर्ष का बच्चा रेडियो में रुचि लेता है। रेडियो सुनने से भाषा का विकास होता है, भाषा सुधरती है, व्याकरण का ज्ञान बढ़ता है इत्यादि, पर आज रेडियो का स्थान टेलीविज़न ले चुका है।

प्रश्न 5. (A)
बच्चों के लिए रेडियो किस तरह उपयोगी हैं ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 5 का उत्तर।

प्रश्न 6.
बच्चों पर संगीत का क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
संगीत के माध्यम से बच्चे अपने आप को अभिव्यक्त करते हैं। बोलना सीखने से पूर्व बच्चा गाना सीख जाता है। सभी बच्चे गाते हैं चाहे उनमें गायन सम्बन्धी क्षमता हो या ना हो। शिशु का बबलाना (babbling) उसका गायन है क्योंकि इसमें भी एक लय है। इसे सुनकर बालक बहुत प्रसन्न होता है। वह गाने के साथ अनेक शारीरिक क्रियाएँ भी करता है। जैसे-जैसे बालक थोड़ा बड़ा होता है वह छोटी व आसान कविताएं लय व ताल में गा सकता है। अच्छा संगीत बच्चे के मनोरंजन के साथ उसके विकास पर भी प्रभाव डालता है।

प्रश्न 7.
विज्ञापन का बालक के विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है ? उदाहरण सहित वर्णन करें।
अथवा
बच्चों के जीवन पर विज्ञापनों का क्या प्रभाव पड़ता है ? उदाहरण सहित बताएं।
उत्तर :
विज्ञापन का बालकों के विकास में महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। जैसे-जैसे बालक बड़ा होता जाता है वह विभिन्न पत्रिकाओं एवं टेलीविज़न में विज्ञापनों को देखता है और उन पर अपने मन में गहरा विचार करता है। विभिन्न विद्वानों ने अपने अध्ययनों में सिद्ध कर दिया है कि विभिन्न प्रकार के विज्ञापन बालक एवं किशोर को सांसारिक वस्तुओं का परिचय करा कर उनके ज्ञान में विकास करते हैं। इस तरह बालक अपने आस-पास की वस्तुओं को बहुत सूक्ष्मता से देखता है और उन पर विचार करता है।

उदाहरण – टेलीविज़न में दिखाए जाने वाले विज्ञापनों को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर दिखाते हैं जो कि बालक को संदेह में डाल देते हैं और उनके विकास पर उल्टा प्रभाव डालते हैं। कई बार बालक विज्ञापनों को देखकर उनकी नकल करने की कोशिश करते हैं और अपनी जान से भी हाथ धो बैठते हैं।

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प्रश्न 8.
बच्चों के लिए किस प्रकार के टेलीविजन कार्यक्रम बनाए जाने चाहिएं ?
उत्तर :
बच्चों के लिए निम्नलिखित प्रकार के टेलीविज़न कार्यक्रम बनाए जाने चाहिएं –

  1. कार्यक्रम मनोरंजक हो. जिन्हें देख कर बच्चों को आनन्द तथा प्रसन्नता प्राप्त हो।
  2. कार्यक्रम द्वारा बच्चों को खेल-खेल में शिक्षा प्रदान होनी चाहिए।
  3. कार्यक्रम ऐसे न हों जिन्हें देख कर बच्चे असमंजस में पड़ जाएं।
  4. कार्यक्रमों में बच्चों की अधिकता होनी चाहिए।

प्रश्न 9.
साहित्य को समाज का दर्पण क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
साहित्य हमें जीवन को उचित ढंग से जीने का तरीका बताता है। इसमें ठीक तथा गलत का ज्ञान भी शामिल होता है। साहित्य में समाज में चल रही बातों की चर्चा होती है। साहित्य जिस भी काल में रचा गया हो उसी समय के रहन-सहन, समस्याओं, फैशन,
आदि को वर्णित करता है। इसलिए साहित्य को समाज का दर्पण कहते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
(क) व्यक्ति के विकास पर पुस्तकों, संगीत, रेडियो, सिनेमा तथा दूरदर्शन के प्रभावों की चर्चा कीजिए।
(ख) बालकों के जीवन पर टेलीविज़न व चलचित्रों का क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
(क) पुस्तकों का प्रभाव – पुस्तकों आदि का पढ़ना एक प्रकार का आनन्ददायक खेल है। इसमें बच्चे दूसरे की क्रियाशीलता का आनन्द लेते हैं। जब बच्चे अकेले होते हैं और शारीरिक खेल खेलने का उनका मन नहीं होता या थोड़े थके हुए होते हैं तब पुस्तकें पढ़ते हैं। घर में बच्चों को जब बाहर निकलने से मना किया जाता है या कमरे में बैठने के लिए बाध्य किया जाता है तब वे पढ़ते हैं। अध्ययनों में देखा गया है कि लड़कियां लड़कों की अपेक्षा अधिक पढ़ती हैं। एक अध्ययन में देखा गया है कि प्रतिभाशाली बच्चे अन्य बच्चों की तुलना में अधिक पढ़ते हैं। वे पढ़ने को खेल न समझकर कार्य समझते हैं। अधिकांश बच्चे परिचित व्यक्तियों और जानवरों के सम्बन्ध में कहानियां पढ़ना पसन्द करते हैं। आजकल के बच्चों में कॉमिक्स पढ़ने का बहुत शौक है।

कॉमिक्स पढ़ने से अनेक लाभ होते हैं – (i) इनसे बालकों को पढ़ने की प्रेरणा मिलती है, (ii) इनके द्वारा बच्चों के पढ़ने की योग्यता बढ़ाई जा सकती है, (iii) इनके द्वारा बच्चों को नए शब्दों का ज्ञान होता है, (iv) इनके पढ़ने से ‘रेचन’ द्वारा उनके संवेगात्मक तनाव निकल जाते हैं। अधिक कॉमिक्स पढ़ने से बच्चों को कुछ हानियां भी होती हैं, (i) बच्चे अच्छा साहित्य पढ़ने से कतराते हैं, (ii) अधिकांश कॉमिक्स में कहानियों की भाषा और शब्द निम्नकोटि के होते हैं, (iii) इनके अधिक पढ़ने से सैक्स, हिंसा व भय आदि का विकास होता है, (iv) इनके अधिक पढ़ने से बच्चे अपने वास्तविक जीवन से कुछ नीरस हो जाते हैं, (v) जो बच्चे कॉमिक्स अधिक पढ़ते हैं वे अन्य खेलों में कम रुचि लेते हैं जिससे उनके शारीरिक विकास में रुकावट आती है। अच्छा साहित्य पढ़ने से मनोरंजन के साथ-साथ बच्चों का मानसिक, बौद्धिक, चारित्रिक तथा नैतिक विकास होता है।

किशोरावस्था तक बालकों को कहानियां, उपन्यास पढ़ने का बहत शौक हो जाता है। बहुधा निम्न स्तर के उपन्यास और कहानियां किशोरों को अधिक पसन्द आते हैं। इस प्रकार की पाठ्य-सामग्री उनके नैतिक विकास को अवनति की ओर अग्रसर करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।

संगीत का प्रभाव-संगीत के माध्यम द्वारा भी बच्चे अपने आपको अभिव्यक्त करते हैं। बोलना सीखने से पूर्व ही बालक गाना सीख जाता है। सभी बच्चे गाते हैं। चाहे उनमें गायन सम्बन्धी क्षमता हो या न हो। शिशु का बबलाना उसका गायन है। बालक के बबलाने में भी एक लय होती है। इसे सुनकर बालक बड़ा प्रसन्न होता है। शुरू-शुरू में बालक गाते समय कई शारीरिक क्रियाएँ भी करता है।

4-5 वर्ष की आयु में बच्चे सरल कविताएं लय के अनुसार गा सकते हैं। वे जानते हैं कौन-सी कविता किस लय में गाई जाएगी। बड़े होते-होते बच्चों की रुचि देशभक्ति ज्ञान, लोक संगीत तथा शास्त्रीय संगीत में बढ़ती जाती है। बहुत से बच्चे धार्मिक भजनों में भी रुचि लेते हैं। फिशर का कथन है कि उच्च वर्ग तथा मध्यम वर्ग के बच्चों में संगीत की दृष्टि से कोई अन्तर नहीं पाया जाता है। संगीत मनोरंजन का साधन होने के साथ-साथ बच्चों के विकास पर भी प्रभाव डालता है।

रेडियो तथा टेलीविज़न का प्रभाव – लगभग तीन वर्ष का बालक रेडियो में थोड़ी-थोड़ी रुचि लेने लगता है। लड़के लड़कियों की अपेक्षा रेडियो अधिक सुनते हैं। प्रतिभाशाली बालक रेडियो सुनना कम पसन्द करते हैं। शहरों की अपेक्षा गांवों के बच्चे रेडियो अधिक सुनते हैं। एक अध्ययन से देखा गया है कि जो बच्चे जितने अधिक समायोजित होते हैं वे रेडियो उतना ही कम सुनते हैं। रेडियो से बच्चों को आनन्द ही प्राप्त नहीं होता है वरन् उन्हें इससे अनेक ज्ञान की बातों को सीखने का अवसर प्राप्त होता है। इसके सुनने से उनकी भाषा का विकास होता है, भाषा सुधर जाती है, उनकी व्याकरण सुधर जाती है तथा वे इससे आत्म उन्नति के लिए प्रेरित होते हैं। – रेडियो से घर बैठे हुए ही समाचार, संगीत, भाषण, चर्चा, लोकसभा या विधानसभा की समीक्षा, वाद-विवाद, नाटक, प्रहसन आदि सुनने से मनोरंजन होता है।

मनोरंजन शारीरिक व मानसिक विकास में बहुत अधिक सहायक होता है। परन्तु अधिक रेडियो सुनने से बच्चे शारीरिक खेल नहीं खेल पाते जिससे उनका शारीरिक विकास अवरुद्ध हो सकता है। विभिन्न अध्ययनों में देखा गया है कि जो बच्चे अधिक रेडियो सुनते हैं उनका व्यक्तिगत और सामाजिक समायोजन इसलिए बिगड़ जाता है कि उनका अधिकांश समय रेडियो सुनने में निकल जाता है। आज रेडियो का स्थान टेलीविज़न ने ले लिया है।

जिलने समय तक टेलीविज़न पर अच्छे-अच्छे प्रोग्राम, सीरियल आदि आते हैं, बच्चे उन्हें अवश्य ही देखना चाहते हैं। एक अध्ययन से पता लगा है कि अमेरिका में बच्चे लगभग अपने जागने के समय का लगभग 1/6 भाग टेलीविज़न देखने में व्यय करते हैं। छ: वर्ष की अवस्था तक उनमें टेलीविज़न देखने की अधिक प्रवृत्ति पाई जाती है। अधिक पढ़ने-लिखने वाले बच्चे कम टेलीविज़न देखते हैं। जो बच्चे कम समायोजित होते हैं, वे अधिक टेलीविज़न देखते हैं।

उच्च आर्थिक व सामाजिक स्तर वाले बच्चे कम टेलीविज़न देखते हैं। लड़कियों की अपेक्षा लड़के अधिक टेलीविज़न देखते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि कुल मिलाकर टेलीविज़न का प्रभाव बच्चों के विकास पर बहुत अधिक पड़ता है। एक ओर जहां अच्छे-अच्छे प्रोग्राम, शिक्षाप्रद कहानियां तथा देश-विदेश के समाचारों से बच्चों का मानसिक तथा चारित्रिक विकास होता है, दूसरी ओर अधिक T.V देखने से शारीरिक विकास अवरुद्ध भी होता है। इसके साथ ही वयस्कों को दिखाये जाने वाले कुछ प्रोग्राम जिन्हें वयस्क देखें या न देखें बच्चे अवश्य ही देखते हैं जिनका उनके बारित्रिक व संवेगात्मक विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

निश्चय ही आज के युग में टेलीविज़न मनोरंजन का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण साधन है। इसका उपयोग देश की प्रगति, शिक्षा के प्रसार तथा बच्चों के चरित्र निर्माण में अधिकाधिक किया जाना चाहिए।

चलचित्र (सिनेमा) का प्रभाव-आजकल छोटे-छोटे सभी आयु के बालक सिनेमा में दिखाई देते हैं। सिनेमा देखने वालों में किशोरों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। दुराचार, अपराध, नारी सौंदर्य, प्रेम आदि की चरम सीमाएं चलचित्रों में प्रदर्शित कर लोगों को

अधिक-से-अधिक मात्रा में आकर्षित किया जाता है। यद्यपि कुछ चलचित्रों की कहानी तथा उद्देश्य सराहनीय होते हैं परन्तु बालकों व किशोरों की मानसिक योग्यता सीमित होने के कारण यह सिनेमा के उद्देश्यों और कहानी को कम समझ पाते हैं। वे सिनेमा से गन्दी बातें ही अधिक सीखते हैं। सिनेमा का स्थान अब विडियो कैसेट प्लेयर या रिकार्डर लेता जा रहा है।

(ख) देखें प्रश्न 1 (क) का उत्तर।

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प्रश्न 2.
खेलों को कौन-कौन से तत्त्व प्रभावित करते हैं ?
अथवा
खेलों को प्रभावित करने वाले चार कारक बताएँ।
उत्तर :
खेलों को प्रभावित करने वाले तत्त्व निम्नलिखित हैं –
1. शारीरिक स्वास्थ्य-स्वस्थ बालक में शक्ति अधिक होती है, इसलिए वे खेलों में अधिक रुचि लेते हैं।
2. ऋतु-ऋतु का खेल पर विशेष प्रभाव होता है। जैसे ग्रीष्म ऋतु में बालकों को जल विहार व तैरना अच्छा लगता है तथा बसन्त ऋतु में साइकिल पर इधर-उधर घूमना। पहाड़ों पर रहने वाले जाड़े में बर्फ में खेलते हैं।
3. वातावरण-बालक के खेल पर वातावरण का विशेष प्रभाव पड़ता है। जैसे बालक अपने घर में क्षेत्र में खेलना ज्यादा पसन्द करता है।
4. क्रियात्मक विकास-खेलों का बालक के क्रियात्मक विकास पर प्रभाव पड़ता है। गेंद वाली खेलों में वहीं बालक भाग लेते हैं जो उसे पकड़ या फेंक सकते हैं। जोन्स के मतानुसार 21 मास की अवस्था वाला बालक चीजों को खींच सकता है और 24 मास की अवस्था वाला बालक खिलौने को खींच व फेंक सकता है। 29 मास की अवस्था वाला बालक किसी चीज़ को कम-से-कम 7- फ़ीट तक धकेल सकता है।

5. लिंग-भेद-प्रारम्भ में लड़के-लड़कियों के खेल में कोई अन्तर नहीं होता, परन्तु अवस्था वृद्धि के साथ इनके खेलों में विविधता पाई जाती है।

6. बौद्धिक क्षमता-खेलों पर बौद्धिक क्षमता का भी प्रभाव पड़ता है। कुशाग्र बुद्धि वाले बालक मन्द बुद्धि बालकों की अपेक्षा ज्यादा खेला करते हैं। कुशाग्र बुद्धि बालक नाटक, रचनात्मक खेलों व पुस्तकों में ज्यादा रुचि लेते हैं। ये पहेलियां और ताश का खेल आदि पसन्द करते हैं।

7. अवकाश की मात्रा-बालक थकने पर कम श्रम वाले खेल खेलता है। धनी परिवार के बच्चों के पास काफ़ी अवकाश होता है। निर्धन परिवार के बच्चों के पास कम। अत: वे समयानुसार ही खेलना पसन्द करते हैं।

8. सामाजिक-आर्थिक स्तर-धनी परिवार के बच्चे क्रिकेट, टेनिस, बैडमिन्टन आदि खेलना पसन्द करते हैं, जबकि ग़रीब के बच्चे गेंद व कबड्डी खेलना ही पसन्द करते हैं। निम्न वर्ग के बालक जन्माष्टमी व अन्य मेलों में जाना पसन्द करते हैं। धनी वर्ग के बालक नाटक, नृत्य, कला आदि समारोहों में जाना पसन्द करते हैं।

9. खेल सम्बन्धी उपकरण-यदि बालकों को खेलने के लिए लकड़ी के टुकड़े, हथौड़ी और कील आदि दिए जाएंगे, तो उनके खेल रचनात्मक होंगे। बड़े बालकों को भी उपयुक्त उपकरणों की आवश्यकता पड़ती है। इस स्थिति में बालक अपनी खेल सम्बन्धी रुचियों को दूसरी ओर मोड़ लेता है।

10. परम्पराएँ- परम्पराओं का भी बालक के खेलों पर प्रभाव पड़ता है। भारतीय परम्परा के अनुसार लड़कियां गुड्डे-गुड़ियों का खेल तथा लड़के आँख-मिचौनी और चोर-सिपाही का खेल खेलते हैं। उच्च वर्ग की अपेक्षा मध्यम वर्ग के बालक-बालिकाएँ परम्परागत खेल अधिक खेलते हैं।

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प्रश्न 3.
खेलों के अतिरिक्त बालकों की अभिव्यक्ति के कौन-कौन से साधन हैं?
उत्तर :
निम्न साधन बालकों की अभिव्यक्ति में मददगार हैं –
1. चित्रांकन – यह एक बहुत अच्छा साधन है। बालक अपने मन के भाव चित्रों द्वारा अभिव्यक्त करते हैं। उनका बनाया हुआ चित्र, रंगों का चयन इत्यादि उनके भावों को बखूबी प्रदर्शित करता है। छोटे बच्चों की तो खासकर रंगों में रुचि होती है।

2. संगीत – सभी बच्चे संगीत-प्रेमी होते हैं। अच्छी लय और ताल न केवल समा बांधती है बल्कि तनाव को भी काफ़ी हद तक कम करती है। छोटे बच्चे कविता गान से संगीत सीखना शुरू करते हैं और जैसे-जैसे वह बड़े होते हैं कविताओं का स्तर भी मुश्किल हो जाता है।

3. लेखन – लेखन कला बच्चों में कुछ समय पश्चात् आती है जब उन्हें भाषा, व्याकरण की समझ आ जाती है और वह लिखना पूर्णतया सीख जाते हैं। बच्चे अपने छोटे-छोटे अनुभवों को लिपिबद्ध करने में सक्षम हो जाते हैं। समय के साथ उनके अनुभव ओर पेचीदे हो जाते हैं और वह उन्हें लिपिबद्ध करने के लिए और अच्छी भाषा व व्याकरण की मदद लेते हैं।

4. हस्तकौशल-हाथ की चीजें बनाने का एक अपना ही आनंद है। अनेक वस्तुएं जैसे मिट्टी, धागे, कागज़, थर्माकोल आदि इस्तेमाल करके सुन्दर वस्तुएं बनाई जा सकती हैं। इससे छोटी मासपेशियों का विकास तो होता ही है अपितु आंख व हाथ का समन्वय (तालमेल) भी बहुत बढ़िया हो जाता है।

प्रश्न 4.
बालक पर पुस्तकों का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :
कहा जाता है कि पुस्तकें व्यक्ति की सच्ची साथी होती हैं। पुस्तकों द्वारा मनोरंजन, ज्ञानवर्धन, भाषा विकास सभी कुछ सम्भव है। छोटा बच्चा जो पढ़ नहीं सकता, उसे भी माता-पिता कहानी पढ़कर सुना सकते हैं। इससे वह ध्यान लगाना सीखता है। इसके अलावा नए शब्द और ज्ञान भी सीखता है। डांटने की अपेक्षा यदि उसे कहानी द्वारा कोई बात समझाई जाए, वह उसे जल्दी समझ में आती है। थोड़े बड़े बच्चे तो स्वयं ही किताबें पढ़ सकते हैं। इसके अनेक लाभ हैं जैसे –

  1. इनसे बालकों को पढ़ने की और प्रेरणा मिलती है।
  2. बच्चों की पढ़ने के प्रति रुचि जागृत होती है।
  3. बच्चों की योग्यता अच्छी पुस्तकों द्वारा बढ़ाई जा सकती है।
  4. बच्चों का ज्ञानवर्धन होता है।
  5. उनका भाषा का विकास भी होता है।

पुस्तकों के चयन में माता-पिता का काफ़ी सहयोग है। यदि वे अपने बच्चों को सही पुस्तकें चुनकर देते हैं, तो इसका अर्थ है कि वह उसके विकास में रुचि लेते हैं। यदि वह ऐसा नहीं करते तो बच्चे कभी कभी गलत पुस्तकों का चयन कर लेते हैं जो उनके विकास में हानिकारक सिद्ध होती हैं। ऐसी किताबें सदैव उन्हें अच्छा साहित्य पढ़ने से रोकती हैं। अत: किताबों का चयन बहुत सोच समझकर करना चाहिए।

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प्रश्न 5.
बच्चों के विकास में टेलीविज़न का क्या स्थान है?
अथवा
बालकों के जीवन पर टेलीविज़न का क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
टेलीविज़न का एक बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। कौन-सा घर आज ऐसा है जिसमें टेलीविज़न न हो। टेलीविज़न में अनेक तरह के शिक्षाप्रद व मनोरंजक कार्यक्रम दिखाए जाते हैं। चूंकि टेलीविज़न में न केवल आप सुनते हैं बल्कि देखते भी हैं अतः वो चीज़ आपको ज्यादा याद रहती है। केबल आने के बाद बच्चों का अधिकांश समय टेलीविज़न के आगे ही गुज़रता है । केबल द्वारा अनेक चैनल अब देखे जा सकते हैं। परन्तु यह माता-पिता का फर्ज़ है कि वह इस बात पर ध्यान दें कि उनके बच्चे कौन से चैनल ज्यादा देख रहे हैं। कुछ चैनल के कार्यक्रम केवल वयस्कों के लिए होते हैं।

यदि बच्चे उन्हें देखें, तो उनके विकास पर विपरीत असर अवश्य पड़ेगा। वैसे भी ज्यादा टेलीविज़न देखना आंखों के लिए हानिकारक है। इसके अलावा बच्चों का शारीरिक विकास रुक जाता है। अत: माता-पिता बच्चों को केवल चुने हुए चैनल ही देखने दें जो कि उनके काम के हैं। इसके अलावा कितना समय बच्चा टी० वी० देखेगा, उस पर भी नियन्त्रण रखें। वह इसीलिए क्योंकि सामूहिक विकास के लिए सभी क्रियाओं को करना अनिवार्य है।

प्रश्न 6.
बच्चों के मनोरंजन के लिए पुस्तकें तथा उनके चुनाव के बारे में बताएं।
उत्तर :
बच्चों की दुनिया अलग होती है इसलिए उनकी पढ़ने वाली पुस्तकें भिन्न तरह की होती हैं। बच्चों में पढ़ने की रुचि जागृत हो इसलिए पुस्तकों का चुनाव ध्यानपूर्वक करना चाहिए। छोटे बच्चों के लिए पुस्तकें रंगदार तस्वीरों तथा मोटी छपाई वाली होनी चाहिएं। इनकी जिल्द तथा पेज़ मज़बूत होने चाहिएं। बच्चों की पुस्तकों में कहानियां अच्छे मूल्यों को सिखाने वाली होनी चाहिए। बाल पुस्तकों में जंगली जानवरों, पौधों तथा अपने इर्द-गिर्द के लोगों के साथ मिल जुलकर रहने की शिक्षा होनी चाहिए। छोटी-छोटी शिक्षात्मक कहानियों वाली पुस्तकों का चुनाव करना चाहिए। बच्चों में पढ़ने की रुचि पैदा करनी अति आवश्यक है। इससे बच्चे की काल्पनिक शक्ति में वृद्धि होती है तथा बच्चा बुरी संगत से बचा रहता है।

प्रश्न 7.
बच्चों के मनोरंजन के लिए कहानियों तथा कविताओं के बारे में लिखें।
अथवा
तीन माह तक के बच्चों को सुनाए जाने वाले बाल गीत किस प्रकार के होने चाहिए ? इनका बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
कहानियाँ तथा कविताएँ (Stories and Nursery Rhymes)-खेलों तथा पुस्तकों के अलावा बच्चे का मनोरंजन कहानियां तथा कविताओं से भी होता है। जब परिवार में माता-पिता या दादा-दादी बच्चों को कहानियां सुनाते हैं तो बच्चों की काल्पनिक शक्ति तथा याद शक्ति का विकास होता है साथ ही उन की अपने बुर्जुगों से नज़दीकी बढ़ती है। बचपन में सुनी हुई कहानियां बच्चों पर बहुत प्रभाव डालती हैं तथा बड़े होने तक याद रहती हैं।

इसी तरह माँ छोटे से बच्चे को गोद में उठा कर झूले में डाल कर झुलाती है तथा लोरी गाती है। लोरी सुनने से बच्चा शांत हो जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि संगीत पौधों तथा जानवरों की वृद्धि तथा विकास को भी प्रभावित करता है। बच्चा तो एक इन्सान है वह भी संगीत का आनन्द मानता है। बाल गीत खुशी का साधन होते हैं तथा बच्चे के विकास पर गहरा प्रभाव डालते हैं। बाल गीत से बच्चे का उच्चारण शुद्ध तथा सामाजिक विकास भी होता है। बच्चों को प्यार, दया, हमदर्दी तथा अपने मन के गुणों की शिक्षा प्रदान की जाती है। बाल गीत तथा कहानियां बच्चों की आयु अनुसार होने चाहिएं। बाल गीतों द्वारा बतलाई बातें बच्चे के इर्द-गिर्द के वातावरण अनुसार चाहिए।

बाल गीत गा कर बच्चा अपने मन के भावों को प्रकट करता है तथा दूसरे के जीवन को अपने जीवन से मिला कर अन्तर देखने की कोशिश करता है। इसमें कोई शंका नहीं कि यह अन्तर जलदी पता नहीं चलता क्योंकि पहली अवस्था में तो बच्चा केवल अपने आप ही उस गीत, कविता तथा छोटी-छोटी कहानियां सुनाने तथा सुनने के लिए भावुक होता है। वह बाल गीत सुना कर बहुत खुशी महसूस करता है। यह खुशी ही उसका मनोरंजन है। कुछ बाल गीत नीचे दिए गए हैं

1. चंदा मामा दूर के, पूड़े पकाए नूर के,
आप खाए थाली में, मुझे दे प्याली में,
प्याली गई टूट, मुन्ना गया रूठ।

2. Jonny, Jonny, Yes Papa
Eating Sugar, No Papa,
Open Your Mouth Ha Ha Ha

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प्रश्न 7. (A).
शिशु गीतों का बच्चों के लिए क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 7 का उत्तर।

प्रश्न 8.
बालकों के जीवन में मनोरंजन का क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
मनोरंजन तथा खेल का बालक के जीवन में निम्नलिखित महत्त्व है –
1. बालक संवेगों का प्रकाशन तथा नियन्त्रण सीखता है।
2. सहनशीलता, त्याग, सच्चाई तथा सहानुभूति जैसे गुण उत्पन्न होते हैं।
3. बच्चों में नियम निष्ठा की भावना आ जाती है।
4. बच्चा सीखता है कि एक अच्छा खिलाड़ी हार जाने पर भी उत्साहहीन नहीं होता और न ही उसमें द्वेष का भाव आता है।
5. टेलीविज़न तथा रेडियो आदि में आने वाले शिक्षाप्रद कार्यक्रम, ऐतिहासिक घटनाएं तथा बहुत से कार्यक्रम स्वस्थ मनोरंजन के साथ-साथ बालक के नैतिक व मानसिक विकास में सहायक होते हैं।
6. रेडियो सनने से भाषा का विकास होता है, भाषा सधरती है, व्याकरण का ज्ञान बढ़ता है।
7. संगीत के प्रभाव में बच्चे कई शारीरिक क्रियाएं करते हैं जिससे व्यायाम तथा प्रसन्नता का भाव पैदा होता है।
8. पुस्तकें पढ़ने से नए-नए शब्दों का ज्ञान होता है तथा बच्चे की काल्पनिक शक्ति में वृद्धि होती है। इस प्रकार मनोरंजन के भिन्न-भिन्न साधनों का बच्चे के जीवन में कुछ-न-कुछ प्रभाव अवश्य ही पड़ता है। परन्तु कई बार किसी विशेष प्रकार की मनोरंजन क्रिया को अधिक करने से हानि भी हो सकती है।

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प्रश्न 9.
बच्चों के जीवन में पुस्तकों का क्या प्रभाव पड़ता है ? बाल साहित्य कैसा होना चाहिए ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 4 तथा 6 का उत्तर।

प्रश्न 9. (A).
बच्चों की पुस्तकें कैसी होनी चाहिए ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 9 का उत्तर।

प्रश्न 10.
बालक के विकास में वातावरण की भूमिका का उल्लेख करें।
उत्तर :
वातावरण का भाव ऐसी बाहरी परिस्थितियों से है जिनका प्रभाव बालक पर गर्भाधान से लेकर मत्य तक पडता रहता है। वातावरण, व्यक्ति की बौद्धिक आर्थिक नैतिक, सामाजिक, संवेगात्मक क्षमतायों को प्रभावित करता है।
1. भौतिक वातावरण-गर्मी, सर्दी, भोजन, घर, स्कूल आदि ऐसे कारक हैं जो व्यक्ति के विकास को प्रभावित करते हैं।
2. सामाजिक वातावरण-माता-पिता के आपसी सम्बन्ध, बच्चे के दोस्त, परिवार के सदस्य, अध्यापक, सम्बन्धी आदि भी विकास को प्रभावित करते हैं।
3. संवेगात्मक वातावरण-बालक के मित्र, माता-पिता, अध्यापक, सम्बन्धियों के साथ सम्बन्धों के कारण बच्चों में संवेगात्मक विकास भी होता है।
4. बौद्धिक वातावरण रेडियो, टी० वी०, पुस्तकें, खिलौने, स्कूल आदि से बच्चों का बौद्धिक विकास होता है।

एक शब्द/एक वाक्य वाले प्रश्न –

(क) निम्न का उत्तर एक शब्द में दें –

प्रश्न 1.
टेलीविज़न के द्वारा मनोरंजन के साथ-साथ किसका विकास होता ?
उत्तर :
बौद्धिक विकास।

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प्रश्न 2.
बच्चों में बढ़िया आदतों का निर्माण कौन कर सकता है ?
उत्तर :
माँ-बाप।

प्रश्न 3. जोन्स के अनुसार कितने मास का बालक चीजों को खींच सकता
उत्तर :
21 मास।

प्रश्न 4.
बच्चों पर पुस्तकों का एक प्रभाव बताएं।
उत्तर :
भाषा का विकास।

प्रश्न 5.
सिनेमा में दिखाई जाने वाली असामाजिक बातों का किस विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
नैतिक विकास।

(ख) रिक्त स्थान भरो –
1. विज्ञापन ………….. का परिचय करवाते हैं।
2. खेलों द्वारा शरीर का ………… होता है।
3. पुस्तकें पढ़ने से बच्चों में ……….. शब्दों का ज्ञान होता है।
4. …………… से भाषा का ज्ञान होता है।
उत्तर :
1. चित्रांकन, संगीत तथा सांसारिक वस्तुओं
2. व्यायाम
3. नए
4. रेडियो सुनने।

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(ग) निम्न में ठीक अथवा गलत बताएं –
1. पुस्तकें पढ़ने से बच्चों में पढ़ने की रुचि नहीं रहती।
2. बालकों की अभिव्यक्ति केवल लेखन से ही होती है।
3. जो बच्चे परस्पर खेलते हैं, उनमें द्वेष की भावना नहीं रहती।
4. खेलों से चिड़चिड़ापन दूर होता है।
उत्तर :
1. गलत
2. गलत
3. ठीक
4. ठीक।

बहु-विकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
बालक के विकास पर घर के बाहर की निम्न बातों का प्रभाव पड़ता है –
(A) पुस्तकें
(B) रेडियो
(C) टेलीविज़न
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर :
उपरोक्त सभी।

प्रश्न 2.
खेलों का शारीरिक विकास में निम्न महत्त्व है –
(A) बच्चे का व्यायाम होता है
(B) चिड़चिड़ापन कम होता है
(C) सहनशीलता की भावना का विकास होता है
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर :
उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 3.
बालक के विकास पर सबसे अधिक प्रभाव किस बात का पड़ता है ?
(A) परिवार
(B) रेडियो
(C) चलचित्र
(D) संगीत।
उत्तर :
परिवार।

प्रश्न 4.
टेलीविज़न के द्वारा मनोरंजन के साथ-साथ किसका विकास होता है ?
(A) शारीरिक विकास
(B) बौद्धिक विकास
(C) मानसिक विकास
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
बौद्धिक विकास।

प्रश्न 5.
सिनेमा में दिखाई जाने वाली असामाजिक बातों का किस विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है ?
(A) नैतिक विकास
(B) शारीरिक विकास
(C) संवेगात्मक विकास
(D) सामाजिक विकास।
उत्तर :
नैतिक विकास।

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प्रश्न 6.
बच्चों में बढ़िया आदतों का निर्माण कौन कर सकता है ?
(A) दोस्त
(B) मां-बाप
(C) दादा-दादी
(D) चाचा-चाची।
उत्तर :
मां-बाप।

प्रश्न 7.
विज्ञापन ………….. का परिचय करवाते हैं
(A) चित्रांकन
(B) संगीत
(C) सांसारिक वस्तुओं
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

प्रश्न 8.
बच्चे में झूठ बोलने की आदत कैसे पैदा होती है ?
(A) अधिक सख़्ती
(B) अधिक लाड़-प्यार
(C) अधिक सख्ती और अधिक लाड़-प्यार
(D) कोई भी नहीं।
उत्तर :
अधिक सख्ती और अधिक लाड़-प्यार।

प्रश्न 9.
रेडियो व टेलीविज़न का बच्चों के लिए क्या उपयोग होता है ?
(A) मनोरंजन
(B) बौद्धिक विकास
(C) नैतिक विकास
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर :
उपर्युक्त सभी।

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प्रश्न 10.
तीन साल से छोटे बच्चों की पुस्तकें कैसी होनी चाहिए ?
(A) रंग-बिरंगे चित्रों वाली
(B) पढ़ाई से सम्बन्धित
(C) यथार्थ से सम्बन्धित कहानियों वाली
(D) इनमें से कोई भी नहीं।
उत्तर :
रंग-बिरंगे चित्रों वाली।

प्रश्न 11.
बालगीत (राइम) बच्चों के ……. के लिए जरूरी है ?
(A) भाषा विकास के लिए
(B) मनोरंजन हेतु
(C) बौद्धिक विकास के लिए
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर :
उपर्युक्त सभी।।

प्रश्न 12.
रेडियो तथा टेलीविज़न द्वारा बच्चों के मनोरंजन के साथ-साथ किसका विकास होता है ?
(A) भाषा विकास
(B) बौद्धिक विकास
(C) नैतिक विकास
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर :
उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 13.
बालकों की अभिव्यक्ति के क्या साधन हैं ?
(A) चित्रांकन
(B) संगीत
(C) हस्तकौशल
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

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प्रश्न 14.
टेलीविज़न का बालक के लिए क्या महत्त्व है ?
(A) शिक्षाप्रद
(B) ऐतिहासिक रूप से
(C) मनोरंजन
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

प्रश्न 15.
रेडियो और टेलीविजन सुनने से ……….. का विकास होता है।
(A) शरीर
(B) भाषा
(C) गत्यात्मक
(D) संवेगात्मक।
उत्तर :
भाषा।

विकास पर बाहरी वातावरण का प्रभाव HBSE 10th Class Home Science Notes

ध्यानार्थ तथ्य :

→ परिवार (घर) तथा विद्यालय के अलावा बालक के विकास पर विभिन्न बाहरी वातावरण तथा प्रक्रियाओं का भी बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।

→ बालक के विकास पर पुस्तकों, खेलों, संगीत, रेडियो, चलचित्र (सिनेमा), टेलीविज़न तथा विज्ञापनों का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।

→ बाहरी खेल उचित शारीरिक विकास में सहायक होते हैं। खेलों द्वारा बालकों के संवेगों का नियंत्रण हो जाता है। बाहरी मनोरंजनों द्वारा बच्चों को हँसमुख बनाकर संवेगात्मक रचना सम्भव है।

→ रेडियो, सिनेमा, टेलीविज़न द्वारा मनोरंजन के साथ-साथ बालकों का बौद्धिक विकास भी होता है। परन्तु सिनेमा में दिखाई जाने वाली हिंसा तथा अन्य अर्थहीन तथा असामाजिक बातों से बालकों के नैतिक विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

→ टेलीविज़न पर दिखाए जाने वाले शिक्षाप्रद कार्यक्रम, ऐतिहासिक घटनाएं तथा अन्य बहुत से कार्यक्रम स्वस्थ मनोरंजन के साथ-साथ बालक के मानसिक तथा नैतिक विकास में सहायक होते हैं। आज का बालक पहले के बालकों से कहीं अधिक स्मार्ट है। यह टेलीविज़न के कार्यक्रमों की ही देन है।

HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 2 विकास पर बाहरी वातावरण का प्रभाव

→ संगीत का विकास में बहुत अधिक महत्त्व है। अच्छा संगीत मनोरंजन का एक अच्छा साधन है।

→ किसी भी चीज़ की अति बुरी होती है। यही बात आज रेडियो, टेलीविज़न, सिनेमा की ओर बालकों के बढ़ते झुकाव द्वारा प्रदर्शित होती है। आज का बालक टेलीविज़न के सभी कार्यक्रम देखना चाहता है जिससे उसकी खेलों में रुचि कम होती है और परिणामस्वरूप शारीरिक विकास रुक जाता है। साथ ही उनका व्यक्तिगत और सामाजिक समायोजन बिगड़ जाता है।

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HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 1 बाल विकास

Haryana State Board HBSE 10th Class Home Science Solutions Chapter 1 बाल विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Home Science Solutions Chapter 1 बाल विकास

अति लघु उत्तरीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
विकास से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
विकास का अर्थ है कि अनेक कार्यों तथा कौशलों के लिए योग्यता अर्जित करना।

प्रश्न 2.
विकास कितने प्रकार का होता है ?
अथवा
विकास को कितनी श्रेणियों में बांटा गया है ?
उत्तर :
विकास निम्नलिखित प्रकार के होते हैं –

  1. शारीरिक
  2. गत्यात्मक
  3. सामाजिक
  4. संवेगात्मक
  5. भाषा
  6. ज्ञानात्मक।

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प्रश्न 3.
किन-किन कारणों के कारण बच्चों का विकास उचित प्रकार से नहीं हो सकता ?
अथवा
कोई चार कारण बताएं, जिस कारण बच्चों का विकास उचित प्रकार से नहीं हो सकता।
उत्तर :
बच्चों का विकास कई कारणों से ठीक तरह नहीं होता जैसे –

  1. बच्चों को विरासत से ही कुछ कमियां मिली हों जैसे-बच्चा मंद बुद्धि हो सकता है, अंगहीन हो सकता है।
  2. बच्चे में अच्छे गुण होने के बावजूद उनको अच्छा वातावरण न मिल सकने के कारण भी उसके विकास में रुकावट डाल सकता है।
  3. कई बार घरेलू झगड़े भी बच्चे के विकास में रुकावट डालते हैं।
  4. बच्चे की रुचि से विपरीत उससे ज़बरदस्ती कोई कार्य करवाना जैसे किसी बच्चे को गाने-बजाने का शौक है तो उसे ज़बरदस्ती खेलने को कहा जाए।
  5. बचपन में बच्चे को माता-पिता का प्यार तथा देख-रेख न मिल सकना।

प्रश्न 4.
परिवार की खुशी बच्चों के भविष्य के साथ कैसे जुड़ी है ?
उत्तर :
प्रत्येक परिवार की खुशी, उम्मीद तथा भविष्य बच्चों से जुड़ा होता है। बच्चे ही देश का भविष्य होते हैं तथा परिवार में बच्चे यदि शारीरिक तथा मानसिक तौर पर स्वस्थ हो तो परिवार के लिए खुशी का कारण बनते हैं। परिवार खुश हो, तो बच्चों के विकास के लिए सहायक रहता है। यदि परिवार में लड़ाई-झगड़े हों अथवा परिवार आर्थिक पक्ष से तंग हो, तो इन बातों का बच्चों के भविष्य पर बुरा प्रभाव होता है।

प्रश्न 5.
बचपन को कितनी अवस्थाओं में बांटा जा सकता है ?
उत्तर :
बचपन को निम्नलिखित अवस्थाओं में बांटा जा सकता है –

  1. जन्म से दो वर्ष तक
  2. दो से तीन वर्ष तक
  3. तीन से छः वर्ष का बच्चा
  4. छ: से किशोरावस्था तक।

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प्रश्न 6.
बच्चों को टीकों की बूस्टर दवा कब दिलाई जाती है ?
उत्तर :
छ: वर्ष का होने पर बच्चे को कई टीकों के बूस्टर डोज़ दिए जाते हैं ताकि उन्हें कई जानलेवा बीमारियों से बचाया जा सके।

प्रश्न 7.
कितनी आय का बच्चा कानुनी रूप से वयस्क समझा जाता है ?
उत्तर :
पहले 21 वर्ष के बच्चे को बालिग समझा जाता था, परन्तु अब 18 वर्ष के बच्चे को बालिग समझा जाता है जबकि 20 वर्ष की आयु तक उसका शारीरिक विकास होता रहता है।

प्रश्न 8.
समान-अन्तर खेल से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
दो वर्ष तक के बच्चे में सहयोग की भावना अभी पैदा नहीं हुई होती। यदि ऐसे बच्चों को एक साथ बिठा भी दिया जाये तो वे स्वयं ही खेलते रहते हैं; एक-दूसरे से नहीं खेलते। ऐसी खेल को समान-अन्तर खेल कहा जाता है।

प्रश्न 9.
टैम्पर टैंट्रम से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
कई बार बच्चे बहुत गुस्से हो जाते हैं तथा ज़मीन पर लेटते हैं। ऐसी अवस्था को टैम्पर टैंट्रम कहा जाता है।

प्रश्न 10.
माता-पिता बच्चे का सही मार्ग-दर्शन कैसे कर सकते हैं ?
उत्तर :
बच्चों में विभिन्न प्रकार की भावनाएं जैसे प्यार, गुस्सा, ईर्ष्या, डर, सहयोग आदि होती हैं। बच्चा अभी रो रहा होता है तथा अगले ही पल खिलखिला कर हंस रहा। होता है। उसकी भावनाएं बड़ी तेज़ी से बदलती हैं। उसकी बदलती भावनाओं को समझने के लिए हमें उनकी मनोवैज्ञानिक अवस्था को समझना आवश्यक है। बच्चों की विभिन्न भावनाओं को समझने के लिए मां-बाप उसका सही मार्ग-दर्शन कर सकते हैं।

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प्रश्न 11.
बच्चों में झूठ बोलना, खर्चीलापन अथवा अहंकारी होना जैसी बुरी आदतें कैसे पैदा हो जाती हैं ?
उत्तर :
कई बार कई मां-बाप बच्चों पर अधिक सख्ती करते हैं तथा कई ज़रूरत से अधिक लाड-प्यार करते हैं। इन दोनों हालातों में बच्चे में ग़लत आदतें जैसे झठ बोलना, खर्चीलापन अथवा चोरी करना अथवा अहंकारी होना आदि पैदा हो जाती हैं।

प्रश्न 12.
11 से 12 वर्ष की आयु में लड़के-लड़कियां कौन-से खेल खेलते हैं ?
उत्तर :
लड़के क्रिकेट, कंचे, गुल्ली-डंडा, बॉस्केट बाल आदि खेलते हैं जबकि लड़कियां स्टापू, छुपा-छिपी तथा गोटियां आदि खेलती हैं।

प्रश्न 13.
बालक की वृद्धि तथा आहार (पोषण) में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर :
जब वृद्धि की गति तेज़ होती है, तो बालक को पोषक आहार की अधिक आवश्यकता होती है। पोषक आहार न मिलने से बालक के अंगों का विकास रुक जाता है।

प्रश्न 14.
बालक को शारीरिक वृद्धि को कैसे बढ़ाया जा सकता है ?
उत्तर :
1. उचित पोषक आहार देकर।
2. प्रोत्साहन द्वारा-बैठने, खड़े होने, चलने आदि के लिए प्रेरणा देकर।

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प्रश्न 15.
‘संवेग’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
संवेग का अर्थ उन अनुभूतियों से लिया जाता है जो व्यक्तियों को विभिन्न प्रकार से उत्तेजित करती हैं और उसमें हर्ष, क्रोध, भय एवं स्नेह का भाव पैदा करती हैं।

प्रश्न 16.
सामान्य शारीरिक विकास का प्रभाव बालक के किन व्यवहार क्षेत्र पर पड़ता है ?
उत्तर :
शारीरिक विकास का बालक के व्यवहार की गुणात्मकता और मात्रात्मकता दोनों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह मुख्यतः चार क्षेत्रों पर पड़ता है –

  1. नाड़ी संस्थान
  2. मांसपेशियां
  3. अन्तः स्त्रावी ग्रंथियां
  4. शारीरिक संरचना।

प्रश्न 17.
बालक के सामान्य व्यवहार और शारीरिक विकास के विषय में कैरल का क्या मत है ?
उत्तर :
“बालक के दैहिक विकास और इसके सामान्य व्यवहार में घनिष्ठ सह-सम्बन्ध है। यदि हम समझना चाहते हैं कि भिन्न-भिन्न बालकों में क्या समानताएं हैं और क्या विषमताएं तथा आयु वृद्धि के साथ-साथ व्यक्ति में क्या-क्या परिवर्तन आते हैं तो हमें बालक के शारीरिक विकास का अच्छी प्रकार अध्ययन करना होगा।”

प्रश्न 18.
स्वस्थ बालक के लक्षण क्या हैं ?
उत्तर :
स्वस्थ बालक का चेहरा सदा खिला रहता है। उसकी आँखों में विशेष चमक रहती है। मन सदा कार्य के प्रति उत्साहित रहता है। शरीर क्रियाशील रहता है।

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प्रश्न 19.
शारीरिक विकास को कौन-कौन से कारक प्रभावित करते हैं ?
अथवा
शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले चार कारक बताएँ।
उत्तर :
शारीरिक विकास को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं-परिवार, भौतिक वातावरण, जलवायु, भोजन, खेल, रोग, लैंगिक भिन्नता, संवेगात्मक तनाव।

प्रश्न 20.
बालक के शारीरिक विकास की कितनी अवस्थाएं हैं ?
उत्तर :
बालक के शारीरिक विकास की निम्नलिखित चार अवस्थाएं हैं –

  1. बालक का जन्म से 2 वर्ष तक विकास तेज गति से होता है।
  2. किशोरावस्था से पूर्व तक विकास की गति मंद होती है।
  3. किशोरावस्था में विकास तेजी से होता है।
  4. किशोरावस्था के बाद परिपक्वास्था तक विकास पुनः धीमी गति से होता है।

प्रश्न 21.
बच्चों के लिए व्यायाम क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
बच्चों के शारीरिक विकास एवं हड्डियों की सुदृढ़ता के लिए व्यायाम आवश्यक होता है। व्यायाम से शरीर स्वस्थ रहता है। बच्चे की आयु के बढ़ने के साथ-साथ उसके व्यायाम करने का ढंग भी बदलता जाता है। प्रारम्भ में शिशु अपने बिस्तर पर ही लेटा हुआ अपनी टांगें तथा बांहें फेंककर व्यायाम करता है। जब घुटनों के बल चलने लगता है तो वह चलकर, भागकर अथवा कूदकर व्यायाम करता है। बच्चे की देखभाल करने वालों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चा हर रोज़ आवश्यकतानुसार व्यायाम करे ताकि उसका शरीर स्वस्थ रहे। व्यायाम करने से बच्चों को भूख भी अच्छी लगती है और वह रोगों से बचा रहता है।

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प्रश्न 22.
बालक का रोगी होना उसके साधारण व्यवहार को कैसे प्रभावित करता –
उत्तर :
रोगी होने पर बालक का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। बीमारी के पश्चात् वह हर समय कुछ-न-कुछ खाने की चीजें मांगता रहता है। इसलिए हमें बालक को स्वस्थ रखने का प्रयत्न करना चाहिए। रोगग्रस्त बालक का उचित उपचार करवाना चाहिए। स्वस्थ बालक का चेहरा प्रसन्न रहता है। उसकी आँखें चमकती रहती हैं तथा मन उत्साहित होता रहता है और शरीर क्रियाशील रहता है।

प्रश्न 23.
समुदाय में रहने पर बालक में कौन-कौन से अवगुण आ जाते हैं ?
उत्तर :
समुदाय में रहने पर बालक में निम्नलिखित अवगुण आ जाते हैं कसम खाना, गाली-गलौच करना, अश्लील व्यवहार करना, असत्य बोलना, बातों की उपेक्षा करना, नियमों का उल्लंघन करना, शरारत करना इत्यादि।

प्रश्न 24.
भाषा से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
भाषा अपने विचारों को दूसरे व्यक्तियों तक पहुंचाने की योग्यता है। इसमें विचार, अनुभूति तथा संदेशवाहन को प्रतीकों द्वारा व्यक्त किया जाता है। इसके अन्तर्गत बोलना, लिखना, सुनना, पढ़ना, चेहरे के भाव, मुख मुद्रा, कला, आदि आते हैं। बोलना भाषा का एक अंग है और संदेश वहन करने का एक पक्ष है।

प्रश्न 25.
भाषा की विशेषताएं क्या हैं ?
उत्तर :
भाषा की कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं –

  1. प्रत्येक प्राणी की अपनी भाषा होती है।
  2. भाषा किसी की पैतृक सम्पत्ति नहीं है और न ही किसी वर्ग, जाति तथा समुदाय का एकाधिकार।
  3. भाषा अर्जित है।
  4. यह परिवर्तनशील होती हैं। देश, काल तथा परिस्थितियों के कारण इसमें परिवर्तन होता रहता है।
  5. भाषा का सम्बन्ध परम्पराओं से होता है।

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प्रश्न 26.
भाषा विकास को प्रभावित करने वाले कारक क्या हैं ?
उत्तर :
भाषा विकास को प्रभावित करने वाले कारक हैं – व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषताएं, पारिवारिक सम्बन्ध, लिंग, सामाजिक-आर्थिक स्तर, निर्देशन, उत्प्रेरणा, सामाजिक अधिगम के स्तर हैं।

प्रश्न 27.
भाषा के विकास का स्वरूप क्या है ?
उत्तर :
भाषा को सामाजिक विकास का सबसे बड़ा साधन माना गया है। इसके विकास के स्वरूप को समझने के लिए निम्नलिखित बातों पर विचार करेंगे
1. संवेदनात्मक प्रतिक्रियाएँ-इसके अन्तर्गत देखना, सुनना आदि क्रियाएं आती हैं।
2. संवेदना क्रिया सम्बन्धी अनुक्रियाएँ-इसके अन्तर्गत बोलना, लिखना व चित्रांकन करना आदि आते हैं। बालक के मुख से सार्थक शब्द समूह को ही भाषा कहते हैं।

प्रश्न 28.
प्रयास और भूल द्वारा बच्चा किस प्रकार बोलना सीखता है ?
उत्तर :
अमेरिकन वैज्ञानिक डेशियल के अनुसार यदि बालक अनुकरण द्वारा बोलना सीखता, तो वह बहुत जल्दी सीख लेता। उनके अनुसार बालक प्रयास व भूल द्वारा बोलना सीखता है। जिस प्रकार बालक उंगलियों द्वारा किसी वस्तु को पकड़ने का प्रयत्न करता है, उसी प्रकार वह मुख से ध्वनियां निकालता है। माता-पिता उसे इन ध्वनियों का अनुकरण करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इस प्रकार वह प्रयास और भूल द्वारा बोलना सीख जाता है।

प्रश्न 28.
(A) प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में दाँत कितनी बार आते हैं ? उन्हें क्या कहते हैं ?
उत्तर :
शिशु के पहली बार दाँत छः से आठ महीने के मध्य निकलते हैं, इन्हें दूध के दाँत कहते हैं तथा दूसरी बार छः वर्ष की आयु में स्थायी दाँत निकलते हैं।

प्रश्न 29.
भाषा विकास का सीधा सम्बन्ध किससे है ?
उत्तर :
भाषा विकास का सीधा सम्बन्ध स्वर, यन्त्र, जीभ, गला और फेफड़ों की परिपक्वता से है। यदि बालक के ये अंग सामान्य रूप से विकसित होते हैं तो उसका भाषिक विकास संतोषजनक होता है। इसका सम्बन्ध दृष्टि, होंठ, ताल, दांत और नाक के विकास से भी है।

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प्रश्न 30.
साहित्य को समाज का दर्पण क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
भाषा सामाजिक सम्पर्क का सबसे बड़ा साधन है। इसके द्वारा सभी तरह की सांस्कृतिक उपलब्धियां सम्भव हो सकती हैं। इसके माध्यम से हम अपने विचार प्रकट कर सकते हैं। इससे ही साहित्य का आविर्भाव होता है। इसलिए साहित्य को समाज का दर्पण कहा गया है।

प्रश्न 31.
प्रेरणा द्वारा बालक किस प्रकार बोलना सीखता है ?
उत्तर :
बालक तब बोलता है जबकि बोले बिना उसका काम नहीं चलता। तोतली भाषा बोलने पर माता-पिता तो समझ लेते हैं। परन्तु बाहर जाने पर उसका मजाक उड़ाया जाता है। इसलिए वह शुद्ध बोलने का प्रयत्न करता है। दूसरे बालकों के साथ सामाजिक संबंध बनाने के लिए बालक अपनी आवश्यकताओं के पूरक शब्द को बोलने का प्रयास करता है।

प्रश्न 32.
बालक अनुकरण द्वारा किस प्रकार बोलना सीखता है ?
उत्तर :
बालक बबलाते समय मुँह से निकलने वाली ध्वनियों को दोहराता है। अन्य लोगों की मौजूदगी में वह उनकी बातों का अनुकरण करता है। छ: महीने की अवस्था के पश्चात् बालक ‘ना-ना-ना’, व ‘बा-बा-बा’ ध्वनियों का तथा ग्यारह महीने के पश्चात् बालक नाना, मामा, बाबा आदि शब्दों का अनुकरण करता है। इस प्रकार अनुकरण द्वारा बोलना सीख जाता है।

प्रश्न 33.
बच्चा सम्बद्धता द्वारा किस प्रकार अर्थ ग्रहण करता है ?
उत्तर :
बच्चे द्वारा बोले गये शब्द सम्बद्धता द्वारा निश्चित अर्थों को ग्रहण करते हैं। जिस प्रकार माता बच्चे के मुख से ‘बि’ सुनकर बिल्ली का खिलौना उसके पास लाकर “बिल्ली’ कहने के लिए उत्साहित करती है। बालक सामने बिल्ली देखता है और सुनता है। इस तरह निरर्थक ध्वनि ‘बि’ और ‘बिल्ली’ में सम्बद्धता स्थापित हो जाती है। माता की गैरहाज़िर में भी बालक बिल्ली को ‘बि’ पुकारता है।

प्रश्न 34.
बालक के क्रन्दन करने के क्या कारण हैं ?
उत्तर :
बालक के क्रन्दन करने के निम्नलिखित कारण हैं-भूख लगना, पेट में दर्द होना, सर्दी लगना, अधिक प्रकाश, अधिक अंधेरा आदि।

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प्रश्न 35.
क्रन्दन ध्वनि (क्राइंग) क्या होती है ?
उत्तर :
बच्चों द्वारा रोने को क्रन्दन कहते हैं। बालक भूख, डर, पेट दर्द, अधिक प्रकाश, अधिक अंधेरा आदि होने पर क्रन्दन करता है।

प्रश्न 36.
समाजीकरण का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
समाजीकरण का अर्थ है कि बालक को समाज के रीति-रिवाज, विश्वास, सामाजिक रस्में, जीवन मूल्य आदि तथा समाज में रहने का ज्ञान होना चाहिए।

प्रश्न 37.
अभिवृद्धि किसे कहते हैं ?
उत्तर :
अभिवृद्धि का सम्बन्ध शारीरिक आकार में बढ़ौत्तरी से है जैसे बालक का भार बढ़ना, लम्बाई बढ़ना, आदि।

प्रश्न 38.
अभिवृद्धि और विकास में एक अन्तर बताएं।
उत्तर :
अभिवृद्धि का अर्थ है शारीरिक आकार में बढ़ोत्तरी। यह विकास का ही एक पहलू है। विकास एक बढ़े दायरे वाला शब्द है, इसमें अभिवृद्धि भी आ जाती है तथा अन्य प्रकार का विकास जैसे संवेगात्मक, ज्ञानात्मक, तार्किक विकास आदि शामिल हैं। इनमें एक सबसे बड़ा अन्तर है कि अभिवृद्धि एक समय पर आकर रुक जाती है जब कि विकास मनुष्य के अन्तिम श्वास तक होता रहता है। अभिवृद्धि को देखा तथा मापा जा सकता है परन्तु विकास को मापना इतना सरल नहीं है।

प्रश्न 39.
अभिवृद्धि और विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से
उत्तर :
अभिवृद्धि और विकास को प्रभावित करने वाले कारक है वंशानुक्रम तथा वातावरण।

प्रश्न 40.
बच्चों के किन्हीं दो संवेंगों के नाम लिखें। बालकों द्वारा उन्हें प्रदर्शित करने का कोई एक मुख्य तरीका भी बताएं।
उत्तर :
बच्चों के विभिन्न संवेग हैं-क्रोध, हर्ष, प्यार, डर आदि। शिशु चिल्लाकर या सांस रोककर अपने डर को प्रदर्शित करता है। हर्ष की स्थिति में बच्चा हंसता अथवा मुस्कराता है तथा ज़ोर से बाजू, टांगों को हिलाता है।

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प्रश्न 41.
सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक कौन-से हैं ?
उत्तर :
सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक हैं-खेल, आर्थिक तथा सामाजिक स्तर, बाल समुदाय, शारीरिक व मानसिक विकास तथा परिवार आदि।

प्रश्न 42.
बचपनावस्था में शरीर की हड्डियों की संख्या …….. है जो कि किशोरावस्था तक ……….. रह जाती है।
उत्तर :
270, 206

प्रश्न 43.
बाल विकास बच्चों के कौन-से पहलू का अध्ययन करता है ?
उत्तर :
बाल विकास बच्चों की वृद्धि तथा विकास का अध्ययन है।

प्रश्न 44.
भाषा सीखने के प्रमुख अंग क्या हैं ?
उत्तर :
भाषा सीखने के प्रमुख अंग हैं-अनुकरण, वार्तालाप, कहानियां, प्रश्नोत्तर, खेल।

प्रश्न 45.
बाल्यावस्था के प्रमुख संवेगों को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर :
भय, शर्मीलापन, परेशानी, चिन्ता, क्रोध, ईर्ष्या, जिज्ञासा, स्नेह आदि।

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प्रश्न 46.
मां का दूध बच्चे के लिए क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
मां का दूध बच्चे के लिए एक प्रकार से पूर्ण आहार का कार्य करता है। उसको रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का कार्य करता है। बच्चे की भूख मिटती है। बच्चे को भावनात्मक संतुष्टि मिलती है। बच्चा अपनी मां के साथ जुड़ाव महसूस करता है। प्यार, स्नेह की भावना उत्पन्न होती है। मां को भी संतुष्टि मिलती है। बच्चे का विकास ठीक ढंग से होता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
(क) बाल विकास से आप क्या समझते हो और पारिवारिक सम्बन्धों का महत्त्व बताएं।
(ख) वृद्धि एवं विकास दोनों कैसे अलग हैं ?
(ग) अभिवृद्धि और विकास में एक अन्तर बताएं।
उत्तर :
(क) बाल विकास बच्चों की वृद्धि तथा विकास का अध्ययन है। इसमें गर्भ अवस्था से लेकर बालिग होने तक की सम्पूर्ण वृद्धि तथा विकास का अध्ययन करते हैं। इनमें शारीरिक, मानसिक, व्यावहारिक एवं मनोवैज्ञानिक वृद्धि तथा विकास शामिल हैं। इसके अतिरिक्त बच्चों में पाई जाने वाली व्यक्तिगत भिन्नताएं, उनके साधारण तथा असाधारण व्यवहार तथा वातावरण का बच्चे पर प्रभाव को जानने की कोशिश भी की जाती है।

मनुष्य का बच्चा अपनी प्राथमिक आवश्यकताओं के लिए अपने आस-पास के लोगों पर अधिक समय के लिए निर्भर रहता है। बच्चे की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए परिवार होता है। इन ज़रूरतों को किस तरह पूरा किया जाता है, इसका बच्चे के व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है तथा इसका बड़े होकर पारिवारिक रिश्तों पर भी प्रभाव पड़ता है।

मनुष्य के पारिवारिक रिश्ते उसके सामाजिक जीवन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। क्योंकि हम इस समाज में ही विचरते हैं, इसलिए हमारे पारिवारिक रिश्ते तथा परिवार से बाहर के रिश्ते हमारे जीवन की खुशी का आधार होते हैं। इस तरह बच्चे के विकास में पारिवारिक सम्बन्ध काफ़ी महत्त्व रखते हैं।

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(ख) वृद्धि और विकास एक दूसरे से निम्नलिखित तरह से अलग हैं –

  1. शरीर के विभिन्न अंगों के आकार के बड़े होने को वृद्धि कहते हैं तथा गुणात्मक तत्त्वों के सुधार को विकास कहते हैं।
  2. वृद्धि विकास का ही एक हिस्सा है।
  3. विकास व्यक्तित्व के सभी क्षेत्रों में परिवर्तन लाता है।
  4. विकास के परिवर्तनों को मापना आसान नहीं है। परन्तु वृद्धि को देखा व मापा जा सकता है।
  5. विकास पूरा जीवन चलता है जबकि वृद्धि निर्धारित समय बाद रुक जाती है।

(ग) देखें भाग (ख)।

प्रश्न 2.
जन्म से दो वर्ष तक होने वाले शारीरिक विकास के पड़ावों का वर्णन करो।
उत्तर :
जन्म से दो वर्ष के दौरान होने वाले शारीरिक विकास निम्नलिखित अनुसार हैं

  1. 6 हफ्ते की आयु तक बच्चा मुस्कुराता है तथा किसी रंगीन वस्तु की ओर टिकटिकी लगाकर देखता है।
  2. 3 महीने की आयु तक बच्चा चलती-फिरती वस्तु से अपनी आँखों को घुमाने लगता है।
  3. 6 महीने का बच्चा सहारे से तथा 8 महीने का बच्चा बिना सहारे के बैठ सकता है।
  4. 9 महीने का बच्चा सहारे के बिना खड़ा हो सकता है।
  5. 10 महीने का बच्चा स्वयं खड़ा हो सकता है तथा सरल, सीधे शब्द जैसे-काका, पापा, मामा, टाटा आदि बोल सकता है।
  6. 1 वर्ष का बच्चा स्वयं उठकर खड़ा हो सकता है तथा उंगली पकड़कर अथवा स्वयं चलने लगता है।
  7. 12 वर्ष का बच्चा बिना किसी सहारे के चल सकता है तथा 2 वर्ष में बच्चा सीढ़ियों पर चढ़ सकता है।

प्रश्न 3.
स्कूल बच्चे के सामाजिक और मानसिक विकास में सहायक होता है। कैसे ?
उत्तर :
स्कूल में बच्चे अपने साथियों से पढ़ना तथा खेलना तथा कई बार बोलना भी सीखते हैं। इस तरह उनमें सहयोग की भावना पैदा होती है। बच्चा जब अपने स्कूल का कार्य करता है तो उसमें ज़िम्मेदारी का बीज बो दिया जाता है। जब वह अध्यापक का कहना मानता है तो उसमें बड़ों के प्रति आदर की भावना पैदा होती है। बच्चा स्कूल में अपने साथियों से कई नियम सीखता है तथा कई अच्छी आदतें सीखता है जो आगे चलकर उसके व्यक्तित्व को उभारने में सहायक हो सकती हैं।

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प्रश्न 4.
बच्चों से मित्रतापूर्वक व्यवहार रखने से उनमें कौन-से सद्गुण विकसित होते हैं ? विस्तारपूर्वक लिखो।
उत्तर :
बच्चे के व्यक्तित्व तथा भावनात्मक विकास में माता-पिता के प्यार तथा मित्रतापूर्वक व्यवहार की बड़ी महत्ता है। माता-पिता के प्यार से बच्चे को यह विश्वास हो जाता है कि उसकी प्राथमिक ज़रूरतें उसके माता-पिता पूरी करेंगे। माता-पिता की ओर से बच्चे द्वारा पूछे गये प्रश्नों के उत्तर देने पर बच्चे का दिमागी विकास होता है। उसे स्वयं पर विश्वास होने लगता है। माता-पिता द्वारा बच्चे को कहानियां सुनाने पर उसका मानसिक विकास होता है।

कई बार बच्चा मां का कहना नहीं मानना चाहता तथा ज़बरदस्ती करने पर गुस्सा होता है। ऊँची आवाज़ में रोता है, हाथ-पैर मारता है तथा जमीन पर लोटने लग जाता है। ऐसी हालत में बच्चे को डांटना नहीं चाहिए तथा शांत होने पर उसे प्यार से माता-पिता द्वारा समझाया जाना चाहिए कि वह ऐसे ग़लत करता है। इस तरह बच्चे को पता चल जाता है कि माता-पिता उससे किस तरह के व्यवहार की उम्मीद करते हैं।

बच्चे से दोस्ताना व्यवहार रखने पर बच्चों को अपनी समस्याओं का हल ढूँढने के लिए ग़लत रास्तों पर नहीं चलना पड़ता अपितु उनमें विश्वास पैदा होता है कि माता-पिता उसे सही मार्ग बताएंगे। वह ग़लत संगति से बच जाता है। उसमें अच्छी रुचियां जैसे ड्राईंग, पेंटिंग, संगीत, अच्छी किताबें पढ़ना आदि पैदा होती हैं। वह अपनी शक्ति का प्रयोग अच्छे कार्यों में करता है। इस तरह वह एक अच्छा व्यक्तित्व बन कर उभरता है।

प्रश्न 5.
प्रारम्भिक वर्षों में माता-पिता बच्चे के व्यक्तित्व के विकास में किस प्रकार योगदान डालते हैं ?
उत्तर :
बच्चे के व्यक्तित्व को बनाने में माता-पिता का बड़ा योगदान होता है क्योंकि बच्चा जब अभी छोटा ही होता है तभी माता-पिता की भूमिका उसकी ज़िन्दगी में आरम्भ हो जाती है। बच्चे के प्रारम्भिक वर्षों में बच्चे को भरपूर प्यार देना, उस द्वारा किये प्रश्नों के उत्तर देना, बच्चे को कहानियां सुनाना आदि से बच्चे का व्यक्तित्व उभरता है तथा माता-पिता इसमें काफ़ी सहायक होते हैं।

प्रश्न 6.
बच्चों को टीके लगवाने क्यों जरूरी हैं ? बच्चों को कौन-से टीके किस आयु में लगवाने चाहिएं तथा क्यों ?
उत्तर :
बच्चों को कई खतरनाक जानलेवा बीमारियों से बचाने के लिए उन्हें टीके लगाये जाते हैं। इन टीकों का सिलसिला जन्म के पश्चात् आरम्भ हो जाता है। बच्चों को 2 वर्ष की आयु तक चेचक, डिप्थीरिया, खांसी, टिटनस, पोलियो, हेपेटाइटस, बी०सी०जी० तथा टी०बी० आदि के टीके लगवाये जाते हैं। छः वर्ष में बच्चों को कई टीकों की बूस्टर डोज़ भी दी जाती है।

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प्रश्न 7.
बच्चे में तीन से छः वर्ष की आय तक होने वाले विकास का वर्णन करो।
उत्तर :
इस आयु में बच्चे की शारीरिक वृद्धि तेजी से होती है तथा उसकी भूख कम हो जाती है। वह अपना कार्य स्वयं करना चाहता है। बच्चे को रंगों तथा आकारों का ज्ञान हो जाता है तथा उसकी रुचि ड्राईंग, पेंटिंग, ब्लॉक्स से खेलने तथा कहानियां सुनने की ओर अधिक हो जाती है। बच्चा इस आयु में प्रत्येक बात की नकल करने लग जाता है।

प्रश्न 8.
दो से तीन वर्ष के बच्चे में होने वाले भावनात्मक विकास सम्बन्धी जानकारी दो।
उत्तर :
इस आयु के दौरान बच्चा मां की सभी बातें नहीं मानना चाहता। ज़बरदस्ती करने पर वह ऊंची आवाज़ में रोता है, ज़मीन पर लोटता है तथा हाथ-पैर मारने लगता है। कई बार वह खाना-पीना भी छोड़ देता है। माता-पिता को ऐसी हालत में चाहिए कि उसको न डांटें परन्तु जब वह शांत हो जाए तो उसे प्यार से समझाना चाहिए।

प्रश्न 9.
जन्म से दो वर्ष तक के बच्चे में सामाजिक तथा भावनात्मक विकास के बारे में आप क्या जानते हो ?
उत्तर :
इस आयु का बच्चा जिन आवाजों को सुनता है, उनका मतलब समझने की कोशिश करता है। वह प्यार तथा क्रोध की आवाज़ को समझता है। वह अपने आस-पास के लोगों को पहचानना आरम्भ कर देता है। जब बच्चे को अपने माता-पिता तथा परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा पूरा लाड़-प्यार मिलता है तथा उसकी प्राथमिक आवश्यकताएं पूरी की जाती हैं तो उसे विश्वास हो जाता है कि उसकी ज़रूरतें उसके माता-पिता पूरी करेंगे। उसका इस तरह भावनात्मक तथा सामाजिक विकास आरम्भ हो जाता है।

प्रश्न 10.
दो से तीन वर्ष के बच्चे के विकास के बारे में तुम क्या जानते हो ?
उत्तर :
शारीरिक विकास – 2 से 3 वर्ष के बच्चे की शारीरिक तौर पर वृद्धि तेजी से होती है। शारीरिक विकास के साथ ही उसका सामाजिक विकास इस समय बड़ी तेजी से होता है।

मानसिक विकास – इस आयु का बच्चा नई चीजें सीखने की कोशिश करता है। वह पहले से अधिक बातें समझना आरम्भ कर देता है। वह अपने आस-पास के बारे में कई प्रकार के प्रश्न पूछता है। इस समय माता-पिता का कर्तव्य है कि वह बच्चे के प्रश्नों के उत्तर जरूर दें। बच्चे को प्यार से पास बिठा कर कहानियां सुनाने से उसका मानसिक विकास होता है।

सामाजिक विकास – इस आयु में बच्चे को दूसरे बच्चों की मौजूदगी का अहसास होने लग जाता है। अपनी मां के अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों से भी प्यार करने लगता है। अब वह अपने कार्य जैसे भोजन करना, कपड़े पहनना, नहाना, बूट पालिश करना आदि स्वयं ही करना चाहता है।

भावनात्मक विकास – इस आयु में बच्चा मां की सभी बातें नहीं मानना चाहता। ज़बरदस्ती करने पर वह ऊँची आवाज़ में रोता, हाथ-पैर मारता तथा ज़मीन पर लेटने लगता है। कई-कई बार खाना-पीना भी छोड़ देता है। गुस्से की अवस्था में बच्चे को डांटना नहीं चाहिए तथा जब वह शांत हो जाये तो प्यार से उसे समझाना चाहिए। इस तरह बच्चे में माता-पिता के प्रति प्यार तथा विश्वास की भावना पैदा होती है तथा उसे यह अहसास होने लगता है कि उसके माता-पिता उससे किस तरह के व्यवहार की उम्मीद रखते हैं।

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प्रश्न 11.
बच्चों की भावनात्मक देख-भाल के क्या लाभ हैं ?
उत्तर :

  1. इससे बच्चों में सुरक्षा का अनुभव तथा आत्म-विश्वास की भावना उत्पन्न होती है।
  2. इससे बच्चा मानसिक रूप में स्वस्थ रहता है तथा वह अपने आपको स्कूल, समाज तथा अपने साथियों में आसानी से ढाल लेता है।
  3. इससे बच्चों की मानसिक तथा मनोवैज्ञानिक ज़रूरतें पूरी होती हैं जिससे बच्चे में प्रशंसा तथा सन्तुष्टि के भाव पैदा होते हैं।
  4. इससे बच्चों में अच्छे व्यावहारिक गुण पैदा होते हैं तथा वह समाज में विचरण योग्य बनते हैं।
  5. जिन परिवारों में मानसिक रूप में स्वस्थ माहौल बना होता है वहां बच्चों की रुचियों तथा योग्यताओं में वृद्धि होती है।

प्रश्न 12.
बच्चों की भावनाएं विशेष रूप से कैसी होती हैं ?
उत्तर :
1. छोटे बच्चों की भावनाएं काफ़ी तेज़ होती हैं। वह छोटी-सी घटना से ही ज़ोर से रोने लग जाते हैं अथवा डर जाते हैं।
2. प्रत्येक बच्चे का स्वभाव दूसरे बच्चे से अलग होता है। विभिन्न स्थितियों में अलग-अलग बच्चों की अलग-अलग प्रतिक्रियाएं होती हैं जैसे बादलों के ज़ोर से गर्जन तथा बिजली के चमकने पर कई बच्चे तो डरकर रोने लगते हैं तथा कुछ बाहर निकलकर इस नज़ारे को देखना पसंद करते हैं।
3. बच्चे की भावना थोडी-थोडी देर में उभरती तथा समाप्त होती रहती है।
4. बच्चे की भावनाएं बहुत जल्दी बदलती हैं जैसे कई बार रोने के पश्चात् तुरन्त फिर हंसना आरम्भ कर देता है अथवा ईर्ष्या जाहिर करने के पश्चात् फिर प्यार की भावना दर्शाता है।
5. बच्चों की भावनाओं में आयु से अन्तर आ जाता है। कई भावनाएं छोटे बच्चों में बड़ी तेज़ होती हैं, पर आयु के साथ धीरे-धीरे कम होकर मद्धम पड़ जाती हैं अथवा पूर्णत: समाप्त हो जाती हैं।
6. बच्चे अपनी भावनाओं को छपा नहीं सकते। बच्चों की आन्तरिक भावनाओं का पता उनके व्यवहार से लग जाता है जैसे परीक्षाओं के दिनों में बच्चों को डर से भूख नहीं लगती।

प्रश्न 13.
छोटे बच्चों में प्यार की भावना कैसे उत्पन्न होती है ? वे किस भावना को कैसे प्रकट करते हैं ?
उत्तर :
बच्चे में प्यार की भावना ऐसे व्यक्ति के लिए पैदा होती है जो उसकी देखभाल करता है, उसकी ज़रूरतों की पूर्ति करता है और उसका पालन-पोषण करता है। ऐसा पहला व्यक्ति साधारणतः बच्चे की मां ही होती है जिससे बच्चा प्यार की भावना प्रकट करता है। फिर मां की गैर-मौजूदगी में किसी सम्बन्धी के लिए बच्चा प्यार की भावना प्रकट कर सकता है जो कि मां की तरह उसकी ज़रूरतों को पूरी करता है।

बहुत छोटे बच्चे अपनी प्यार की भावना प्रकट करने के लिए मुस्कराते हैं, हंसते हैं, अपनी बांहें उठा कर बुलाते हैं तथा अपने साथ खेलने वाले के चुम्बन लेते हैं। जब बच्चे 3 से 5 वर्ष के हो जाएं तो फिर उनकी रुचि अन्य सदस्यों में हो जाती है जो उनके साथ खेलते हैं अथवा उनमें रुचि लेते हैं। इस आयु में बच्चों को खिलौनों तथा जानवरों से काफ़ी प्यार होता है। बड़े होकर बच्चे अपने प्यार का इजहार करने से शर्माते हैं। किशोरावस्था में उनका अधिक प्यार अपने दोस्तों के प्रति हो जाता है। इस आयु में लड़के-लड़कियों का आपसी आकर्षण भी बढ़ता है।

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प्रश्न 14.
माता-पिता बच्चों में मेल-जोल की भावना कैसे उत्पन्न कर सकते हैं ?
उत्तर :
जब बच्चा छोटा होता है तो उसमें सहयोग की भावना नहीं होती। यह भावना धीरे-धीरे उसमें विकसित होती है। जैसे-जैसे वह बड़ा होता जाता है उसको दूसरे बच्चों से चीजें, खिलौने आदि बांटने के बारे में पता चलता है। इस भावना को बच्चों में अच्छी तरह पैदा करने के लिए स्कूल में बच्चों को टोलियां बनाकर खेलने के लिए प्रेरित करना चाहिए। ऐसा ही घर में अथवा गली-मुहल्ले में जब बच्चा खेले तो करना चाहिए। मां-बाप को ‘मैं’ शब्द नहीं अपितु ‘हम’ शब्द सिखाना चाहिए। उसके आस-पास ऐसा माहौल बनाना चाहिए कि उसमें स्वयं सहयोग की भावना पैदा होनी चाहिए। ऐसी भावना रखने वाले बच्चे हमारे देश की धरोहर हैं।

प्रश्न 15.
बच्चों में क्रोध की भावना कब उत्पन्न होती है? इस पर कैसे नियन्त्रण किया जा सकता है ?
उत्तर :
बच्चों में गुस्सा तब पैदा होता है जब उन्हें उनकी मनपसंद वस्तु नहीं मिलती। वह तब भी गुस्सा करते हैं जब उनकी देखभाल करने वाला उनकी ओर ध्यान नहीं देता अथवा फिर उनसे उनकी मनपसंद वस्तु छीनने की कोशिश की जाती है। जब बच्चा स्कूल जाने लगता हो, वह धीरे-धीरे अपने गुस्से पर काबू पाना सीख लेता है तथा वह समाज में विचरण का तरीका सीख लेता है। कई बार बच्चा जब बहुत गुस्से होता है तो लोटने लगता है, तो उसे कुछ भी नहीं कहना चाहिए, जब वह शांत हो जाये, तो उसको प्यार से समझाना चाहिए।

इस तरह बच्चा स्वयं ही मां-बाप का व्यवहार देखकर शर्मिन्दगी महसूस करता है तथा स्वयं ही अपने आपको सुधारने की कोशिश करता है। घर में बच्चों पर अतिरिक्त रोक-टोक भी नहीं होनी चाहिए तथा न ही नाजायज़ सख्ती करनी चाहिए। इससे भी बच्चों में गैर-ज़रूरी गुस्सा तथा तनाव पैदा होता है। क्रोध एक नकारात्मक भावना है जहां तक हो सके कोशिश करो कि बच्चे में यह भावना न बढ़े-फूले।

प्रश्न 16.
विकास को प्रभावित करने वाले दो कारकों के नाम बताएँ।
उत्तर :
दो कारक हैं-आनुवंशिकता और वातावरण। आनुवंशिकता का अर्थ है वह लक्षण जो हमें माता-पिता से मिलते हैं जैसे आँखों का रंग, चेहरे की बनावट, लम्बाई, त्वचा का रंग आदि।

वातावरण का अर्थ है हमारे आसपास का वातावरण। यह दोनों ही कारक विकास में महत्त्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिए यदि बच्चा गूंगा पैदा हुआ है तो वातावरण चाहे कितना ही अच्छा क्यों न हो, बच्चे को बोलना नहीं सिखा सकता।

दूसरी तरफ अगर बच्चा बोल सकता है, पर उसका वातावरण ऐसा है कि जिसमें कोई भी उससे बोलता नहीं है। उसे बोलने के लिए प्रेरित नहीं करता, तो वह बोलने की क्षमता होते हुए भी बोलना नहीं सीख पाएगा। अत: व्यक्ति आनुवंशिकता एवं वातावरण दोनों का ही उत्पाद है।

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प्रश्न 17.
शारीरिक विकास का क्या अर्थ है ? बच्चे का तीन साल तक के शारीरिक विकास का वर्णन करें।
उत्तर :
बच्चे की लम्बाई, भार, सामर्थ्य और उनके अंग प्रत्यंग में होने वाले परिवर्तनों को शारीरिक विकास कहा जाता है।
एक भारतीय बच्चा जन्म के समय औसतन 2/2 कि० ग्रा० का तथा 17” -19” लम्बा होता है। शैशव काल में उसकी वृद्धि बड़ी तीव्र होती है।
5 महीने में शिशु का वज़न दुगुना और 1 वर्ष पर तिगुना हो जाता है। पहले वर्ष में शिशु की लम्बाई 10”-12” तक बढ़ती है।
दो वर्ष का होते-होते शिशु अपनी होने वाली पूरी वयस्क लम्बाई का करीब आधा लम्बा हो जाता है।
पहले दो वर्षों की तीव्र वृद्धि बाद में कम हो जाती है। अब एक वर्ष में लम्बाई 2′”-3” बढ़ती है और वज़न में 212 कि० ग्रा० की वृद्धि होती है।
जैसे-जैसे शिशु बड़ा होता है उसकी हड्डियों की संख्या व मज़बूती बढ़ती जाती
7-8 महीनों में उसके दांत निकलने लगते हैं और 27 वर्ष तक बच्चे के 20 दूध के दांत निकल आते हैं।

प्रश्न 18.
गत्यात्मक विकास को परिभाषित करें एवं तीन साल तक के गत्यात्मक विकास को स्पष्ट करें।
उत्तर :
गत्यात्मक विकास का अर्थ है शारीरिक संचलन जैसे चलना, दौड़ना, सीढ़ी चढ़ना, वस्तु को पकड़ना आदि पर नियन्त्रण कर सकना।

गत्यात्मक विकास का क्रम इस प्रकार है –
सिर का नियन्त्रण – एक महीने पर होता है।
पलटना – 2-3 माह का होने पर बच्चा बगल से चित होने की अवस्था में पलटता है। छ: माह का होने पर पूरी तरह से पलटता है।
बैठना – 4-5 महीने का बालक सहारे के साथ बैठता है जबकि 6-7 महीने का होते-होते वह बिना सहारे बैठता है।
पकड़ना – 6-7 महीने का होने पर ही बच्चा पकड़ना सीखता है, खासकर वस्तुएँ।
खिसकना व घुटनों के बल चलना – 8-10 महीने का बच्चा हाथ व पैरों के बल चलने लगता है।
खड़े होना और चलना – 8 महीने का बच्चा सहारे के साथ खड़ा होता है और 12 महीने (1 वर्ष) का होने तक चल पड़ता है।
सीढ़ी चढ़ना – 13-14 महीने का बच्चा अपने हाथों व घुटनों के बल सीढ़ी चढ़ लेता है। 18 महीने का होते-होते वह बिना किसी सहारे के उतर चढ़ लेता है।

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प्रश्न 18(A).
गत्यात्मक विकास का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 18 का उत्तर।

प्रश्न 19.
गत्यात्मक विकास को कौन-से कारक प्रभावित करते हैं ?
उत्तर :
वे कारक निम्नलिखित हैं –

  1. बालक सरल बातें पहले सीखता है और कठिन बाद में, जैसे बच्चा पहले घसीटे मारता है फिर लाइनें बनाता है और अन्त में स्वर या व्यंजन लिखना सीखता है।
  2. अभ्यास गत्यात्मक विकास को प्रभावित करता है अर्थात् यदि किसी क्रिया में बालक को काफ़ी अभ्यास मिलता है वह उसे जल्दी सीख जाता है।
  3. आंख हाथ का समन्वय बालक की वृद्धि के साथ आता है अर्थात् बच्चा जैसे जैसे बड़ा होता है उसके आंख व हाथ में समन्वय आता है और वह धीरे-धीरे कठिन काम भी कर पाता है।

प्रश्न 20.
सामाजिक विकास क्या है ? बच्चे में होने वाले तीन साल तक के सामाजिक विकास को स्पष्ट करें।
अथवा
शैशव काल में बालक के सामाजिक विकास का उल्लेख करें।
अथवा
बालकों के सामाजिक विकास का उल्लेख करें।
उत्तर :
बच्चे का समायोजित व्यवहार करना सीखना ही उसका सामाजिक विकास है।
जन्म के समय सामाजिक व्यवहार – जन्म के समय बालक की लोगों में कोई रुचि नहीं होती। जब तक उसकी शारीरिक आवश्यकताएं पूरी होती हैं वह खुश रहता है व मनुष्यों व अन्य आवाज़ों में फर्क नहीं कर पाता।
2-3 महीने पर – बच्चा मनुष्यों व निर्जीव वस्तुओं में फर्क करना सीख लेता है। वह लोगों के साथ रहकर खुश होता है और अकेला होने पर रोता है।
3-4 महीने पर – आपके बात करने पर इस उम्र का शिशु मुस्कराएगा। इसे सामाजिक मुस्कराहट कहते हैं। अब बच्चा चाहेगा कि आप उसे उठाएँ। वह घर के परिचित चेहरों को पहचानने लगता है, जैसे – माता-पिता, दादा-दादी आदि।
6-7 महीने पर – बच्चा मुस्कराहट व डांट पर अलग-अलग प्रतिक्रिया करता है। उसे स्नेही व गुस्से भरी आवाज़ में अन्तर समझ आ जाता है।
8-9 महीने पर – 8-9 महीने का बच्चा बड़ों की बोली, हाव-भाव आदि की नकल करने लगता है। अब यदि उसे कोई अजनबी गोद में उठा ले तो वह रोने लगता है। 18 महीने तक उसकी यह ‘अजनबी चिन्ता’ खत्म हो जाती है। 2 साल पर-बच्चा साधारण निर्देशों का पालन करने लगता है और कुछ सरल कार्य भी करने लगता है।

2. साल के बाद – बच्चा जैसे ही घर से बाहर प्रैप्रेटरी स्कूल में जाता है वह बाहर के लोगों से सम्पर्क बनाना व तालमेल बिठाना सीखता है।

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प्रश्न 21.
बालक के संवेगों के क्या लक्षण हैं ?
अथवा
बालकों के संवेंगों के लक्षण बताएं।
उत्तर :
बालक के संवेगों के निम्नलिखित लक्षण हैं –

  1. बच्चा संवेग अनुकरण द्वारा सीखता है अर्थात् देखकर सीखता है। यदि माँ बिल्ली से डरती है तो बच्चा भी डरेगा क्योंकि वह माँ का अनुकरण करता है।
  2. समान परिस्थितियों में बालकों का भिन्न संवेग प्रदर्शित होगा अर्थात् एक बालक अंधेरे से डरकर रोएगा, दूसरा दुबक कर बैठ जाएगा।
  3. बालकों के संवेग क्षणिक होते हैं अर्थात् बालक एक पल में रोता है तो दूसरे पल में हंसता है।
  4. बालकों के संवेग बहुत तीव्र होते हैं। अर्थात् वह छोटी-छोटी बातों पर रोते हैं या हंसते हैं।

प्रश्न 22.
आवश्यकता का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
बच्चे के शरीर या दिमाग की साधारण स्थिति में परिवर्तन या बेचैनी को आवश्यकता’ कहते हैं। जब भी बच्चे की साधारण स्थिति में कोई परिवर्तन आता है, वह उसे बेचैन कर देता है। अतः वह रोता है। जब वह पुरानी अवस्था में आ जाता है तो वह खुश हो जाता है। बच्चे की मुख्य आवश्यकताएं हैं – (i) शारीरिक (ii) भावनात्मक (iii) ज्ञानात्मक।

प्रश्न 23.
ज्ञानात्मक आवश्यकता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
बच्चों में प्राकृतिक जिज्ञासा होती है कि अपने चारों ओर जो भी वह देखते हैं उसके बारे में जानना चाहते हैं। अतः उन्हें खोजबीन अवश्य करने दें। ऐसा करके वह खुद बहुत सी चीजें सीख जाते हैं। यदि उन्हें ऐसा करने से रोका जाएगा, तो वे नए चीजों के बारे में जानने की कोशिश छोड़ देंगे। उनकी जिज्ञासा कम हो जाएंगी। वह मन्द बुद्धि भी हो सकते हैं। अत: बच्चे की रुचि बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि उसे नई चीजों के बारे में जानकारी हासिल करने दे परन्तु ध्यान रखें कि इस दौरान वह खुद को चोट न लगा ले।

प्रश्न 24.
शारीरिक विकास की अवस्थाएं बताइए।
उत्तर :
शारीरिक विकास की गति कभी तेज़ हो जाती है कभी मन्द। इसके निम्नलिखित चक्र होते हैं

  1. प्रथम चक्र – इसकी अवधि जन्म से 2 वर्ष तक होती है। इसमें वृद्धि की गति तेज़ होती है।
  2. द्वितीय चक्र – इसकी अवधि 2 वर्ष से यौवनारम्भ तक होती है। इसमें वृद्धि की गति मन्द होती है।
  3. तृतीय चक्र – इसकी अवधि यौवनारम्भ से लेकर 15-16 वर्ष की अवस्था तक होती है। इसमें वृद्धि की गति पुनः तेज़ हो जाती है।
  4. चतुर्थ चक्र-इसकी अवधि 16 वर्ष से परिपक्वावस्था तक होती है। इसमें वृद्धि की गति पुनः मन्द पड़ जाती है।

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प्रश्न 25.
आयु वृद्धि के साथ-साथ बालक में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं ?
उत्तर :
आयु वृद्धि के साथ – साथ बालक के स्नायु-मण्डल (नाड़ी संस्थान) तथा मांसपेशियों में विकास होता है जिसके फलस्वरूप उसकी क्रियात्मक क्षमताएं बढ़ती जाती हैं। जब बालक अपनी मांसपेशियों को नियंत्रित करना सीख जाता है, तब वह कई प्रकार के कार्यों को कर सकता है जैसे-खेलना, बैठना, खड़ा होना, सरकना, चलना, दौड़ना तथा कूदना आदि। इस नियन्त्रण शक्ति के आ जाने पर वह अपनी प्राण-रक्षा करने में सक्षम हो जाता है जैसे स्वयं मल-मूत्र का विसर्जन तथा हाथ-पैर के संचालन से अपने अन्य अंगों का बचाव इत्यादि।

प्रश्न 26.
बालक के विकास क्रम को प्रभावित करने वाले तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
बालक के विकास क्रम को प्रभावित करने वाले तत्त्व निम्नलिखित हैं –
1. परिवार – थॉमसन, क्रामगन आदि विद्वानों के अनुसार बालकों का कद, अस्थियों की वृद्धि, लैंगिक परिपक्वता, दाँतों का विकास व खराब होना आदि बातें अनेक परिवारों में एक समान पाई जाती हैं।
2. लैंगिक भिन्नता – लड़के और लड़कियों के विकास क्रम में भी भिन्नता पाई जाती है।
3. देह की लम्बाई – क्रामगन तथा नारवल विद्वानों के मतानुसार बड़े बालक की अपेक्षा छोटा बालक अधिक समय तक बढ़ता है।
4. संवेगात्मक तनाव – संवेगात्मक तनाव बालक के विकास को रोक देता है।
5. ऋतु – जुलाई से दिसम्बर तक बालक का वज़न बढ़ता है। सितम्बर से दिसम्बर तक बालक की वज़न-वृद्धि की गति बहुत तेज़ होती है। फरवरी से जून काल की अपेक्षा इस काल में बालक का वज़न चार गुना बढ़ जाता है। अप्रैल से अगस्त तक बालक के कद में बढ़ोतरी होती है।

प्रश्न 27.
संवेग से आप क्या समझते हैं ? यह कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
संवेग (Emotion) – संवेग अंग्रेज़ी शब्द इमोशन का पर्यायवाची है। इसका लेटिन रूप इमोवियर (emovere) है जिसका अर्थ है-हिला देना, उत्तेजित करना। जब भी संवेग की स्थिति आती है, व्यक्ति में बेचैनी आ जाती है। किसी भी परिस्थिति में व्यक्ति का व्यवहार, कोमलता, भय, क्रोध, विरोध, ईर्ष्या, ममता, सुख-दुःख आदि आन्तरिक वृत्तियों द्वारा प्रभावित होता है। इन्हीं आन्तरिक वृत्तियों को संवेग का नाम दिया जाता है।

संवेग निम्नलिखित प्रकार के होते हैं –

  1. भय
  2. क्रोध
  3. वात्सल्य
  4. घृणा
  5. करुणा
  6. आश्चर्य
  7. आत्माहीनता
  8. आत्माभिमान
  9. एकाकीपन
  10. भूख
  11. कामुकता
  12. कृतिभाव
  13. अधिकार भावना
  14. अमोद
  15. उत्साह
  16. आनन्द।

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प्रश्न 28.
बालक के संवेगात्मक व्यवहार की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
बालकों के संवेगात्मक व्यवहार की विशेषताएँ –

  1. बालकों के संवेग शारीरिक विकारों से सम्बन्धित रहते हैं।
  2. बालकों के संवेग थोड़ी देर ही रहते हैं।
  3. बालकों के संवेगों में उग्रता रहती है।
  4. बालकों के संवेग का रूप बदलता रहता है।
  5. बालकों के संवेग बार-बार प्रकट होते रहते हैं।
  6. भिन्न-भिन्न बालकों के संवेगात्मक व्यवहार में भिन्नता होती है।
  7. बालकों के संवेग जल्दी पहचान में आ जाते हैं।
  8. बालकों के संवेग आरोपित होते रहते हैं।
  9. बालकों के संवेगों की शक्ति में अन्तर आता रहता है।
  10. बालकों की संवेगात्मक अभिव्यक्ति में अन्तर आता रहता है।

प्रश्न 29.
संवेग की अवस्था में क्या परिवर्तन होते हैं ?
उत्तर :
क्रोध, भय, प्रेम, ईर्ष्या, जिज्ञासा, आनन्द, दया, संवेग की अवस्था में व्यक्ति में बाह्य और आन्तरिक दो प्रकार के परिवर्तन होते हैं।
1. बाह्य परिवर्तन – (1) इसके अन्तर्गत चेहरे की मुद्रा बदलना जैसे-हंसना, रोना, प्रेम आदि के भाव आते हैं। (2) शरीर के आसनों में परिवर्तन जैसे-खड़े होना, भागना, उछलना, हाथ-पैर फेंकना आदि आते हैं।
2. आन्तरिक परिवर्तन – इसके अन्तर्गत खून की गति में परिवर्तन, सांस का फूलना, हृदय की गति में परिवर्तन, पाचन क्रिया में गड़बड़ी आदि आते हैं।

प्रश्न 30.
बालक के विकास में संवेगों का योगदान बताइए।
उत्तर :
बालक के विकास में संवेगों का योगदान-शैशव काल में शिश में तीन प्रमुख संवेग दिखाई देते हैं-भय, क्रोध और प्रेम। भय और क्रोध की अभिव्यक्ति वह रो कर व्यक्त करता है। प्रेम-संवेग वह किलकारी मारकर व्यक्त करता है।

शिशु के प्रति स्नेह भाव के रूप में संवेग महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं। यदि शिशु की सुख-सुविधा का ख्याल रखा जाए तो उसके सामने भय-क्रोध की स्थिति नहीं आने पाती है। जब घर में दूसरे शिशु का जन्म हो तो यह ध्यान रखना चाहिए कि पहले बच्चे के मन में यह न आ जाए कि उसका महत्त्व घट गया है या वह प्रेम से वंचित हो गया है।

4 – 5 साल के बच्चों के संवेगों का पूर्ण विकास हो जाता है। यदि माता-पिता से पर्याप्त प्रेम व सहानुभूति प्राप्त होती रहे तो बच्चे संवेगों पर नियन्त्रण करना सीख लेते हैं और बालक का विकास अच्छी प्रकार होता रहता है। संवेग द्वारा जीवन रक्षा तथा संकट से उबारने का कार्य होता है। संवेग प्रेरक का कार्य भी करते हैं।

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प्रश्न 31.
उन कारकों का वर्णन करो जो बालक के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करते हैं।
उत्तर :
बालक के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक –

  1. अस्वस्थता – ज्वर, जुकाम, अपच, कुपोषण, दुखती आँख आदि के कारण बालक कमज़ोर और चिड़चिड़ा हो जाता है।
  2. थकान – बालक थकान की अवस्था में शीघ्र ही उत्तेजित हो जाता है।
  3. पारिवारिक स्थिति – माता-पिता के नौकरी करने से न चाहते हुए भी उसके बालक उपेक्षित रह जाते हैं।
  4. सामाजिक वातावरण – बालक परिवार में जैसा व्यवहार अपने बड़ों का देखता है, उसकी मनोवृत्ति भी वैसी ही हो जाएगी।
  5. बौद्धिक योग्यता – बुद्धिमान् बालकों में संवेगात्मक अस्थिरता अधिक पाई जाती है।

प्रश्न 32.
शारीरिक विकास और व्यवहार में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर :
शारीरिक विकास और व्यवहार में निम्नलिखित सम्बन्ध है –

  1. स्नायुमण्डल के विकास से मस्तिष्क का उचित विकास होता है। मस्तिष्क के विकास से मानसिक योग्यताओं का विकास होता है, जिससे अंगों के नियन्त्रण में सुविधा होती है।
  2. मांसपेशियों के विकास से बालक में गति करने की क्षमताएँ उत्पन्न होती हैं और अंगों में शक्ति बढ़ती है, इसलिए वह नए तरह के खेल-खेलकर खुशी प्राप्त कर सकता है।
  3. शारीरिक संरचना में परिवर्तन होने के परिणामस्वरूप बालक का व्यवहार बदल जाता है।
  4. स्वस्थ और अस्वस्थ शरीर वाले बालकों के व्यवहार में बहुत अन्तर आ जाता है। सामान्य स्वास्थ्य वाले बालक का व्यवहार ठीक होता है। अस्वस्थ बालक के व्यवहार में चिड़चिड़ापन, उदासी आदि आ जाती है।

प्रश्न 33.
पूर्व-विद्यालय काल में बच्चे के सामाजिक विकास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
पूर्व-विद्यालय काल में दो से छ: साल तक के बच्चे आते हैं। इस उम्र के बच्चे हम-उम्र बच्चों के साथ अपनी चीज़ों को बाँटना और एक-दूसरे के साथ सहयोग करना सीखते हैं। 1 से 2 साल के बच्चे अपने आप अकेले ही खेलना अधिक पसन्द करते हैं। 2 साल के पश्चात् बच्चा समूह में खेलना पसन्द करता है। इस उम्र में हम-उम्र का साथ पसन्द करने लगते हैं। इस अवस्था के बालकों में कुछ आक्रामक प्रकृति भी पाई जाती है। बच्चों में पारस्परिक होड़ की भावना भी विकसित हो जाती है।

प्रश्न 34.
इनाम और दण्ड बच्चे के सामाजिक विकास को किस प्रकार प्रभावित करते हैं।
उत्तर :
इनाम और दण्ड की क्रिया भी बच्चे के सामाजिक विकास पर प्रभाव डालती है। प्रत्येक छोटी-सी बात के लिए बच्चे को डाँट-फटकार करते रहेंगे, तो बच्चा अवश्य ही हीनता का शिकार हो जाएगा और वे हर काम को करने से डरेगा कि कहीं उसको माता पिता से दण्ड न मिले। प्रत्येक छोटे-से कार्य पर बच्चे को शाबाशी या इनाम देना भी बच्चे को बिगाड़ देता है। इस प्रकार से इनाम और दण्ड में सन्तुलन होना चाहिए। सभी काम को इनाम या दण्ड से नहीं तोलना चाहिए। जब बच्चे को कभी-कभी प्रशंसा या इनाम मिलता है तो वह समझ जाता है कि वह जो कर रहा है। वह ठीक है और वह बार-बार करता है। इस प्रकार बालक उस व्यवहार को सीख जाता है।

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प्रश्न 35.
(A) सीखने (Learning) की कुछ परिभाषाएं दीजिए।
(B) सीखना क्या है ?
(C) सीखने से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
सीखने की कुछ परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं –
1. जिस क्रिया से प्राणी अपने को वातावरण के अनुकूल बनाते हुए अनुभवों से अधिक लाभ उठाने की चेष्टा करता है, उसे सीखना कहते हैं। अतीत से लाभ उठाना सीखना है।
– डॉ० चौबे
2. सीखना वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति नवीन प्रकार के व्यवहारों को अर्जित करता है। सीखने में व्यक्ति या तो अपने जन्मजात व्यवहारों को परिवर्तित करता है या नवीन व्यवहार को अपनाता है।
– डगलस तथा हालैण्ड
3. सीखना व्यक्ति के कार्यों में स्थायी परिवर्तन लाना है जो निश्चित परिस्थितियों में या किसी इच्छा को प्राप्त करने अथवा किसी समस्या को सुलझाने के प्रयास में अभ्यास द्वारा लाया जाता है।
– बर्नहर्ट
4. अनुभव द्वारा व्यवहार में रूपान्तर लाना ही सीखना है।
– गेट्स

प्रश्न 36.
सीखने के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण बातें क्या हैं ?
उत्तर :
सीखने के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण बातें निम्नलिखित हैं –

  1. सीखने की प्रक्रिया बच्चे के जन्म से पूर्व माँ के भ्रूण (पेट) में ही आरम्भ हो जाती है।
  2. बाहरी वातावरण के आने पर बच्चा अधिकांश बातें सीख पाता है।
  3. अभ्यास द्वारा स्थायी परिवर्तन सीखता है।
  4. सीखने का क्रम चलता रहता है।
  5. कार्य के पूर्ण होने के द्वारा ही सीखने की क्रिया सम्भव हो पाती है।
  6. अतीत के अनुभवों से लाभ उठाना सीखना है।
  7. नवीन व्यवहारों को प्राप्त करना सीखना है।

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प्रश्न 37.
बोलना सीखने के लिए आवश्यक बातें क्या हैं ?
उत्तर :

  1. मस्तिष्क का साहचर्य क्षेत्र और स्वर तन्त्र दोनों परिपक्व हों।
  2. बालक को बोलने के लिए प्रेरणा, प्रोत्साहन एवं अवसर प्राप्त हों और उसके बोलने का अभ्यास चलता रहे।
  3. अभिभावकों, संरक्षकों एवं माता-पिता को भूलकर भी ऐसे बच्चों के रोने अथवा संकेतों पर ध्यान नहीं देना चाहिए जो टूटी-फूटी भाषा बोलने लगे हों। यदि उनके मौन संकेतों के आधार पर उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाएगी, तो उनका भाषा विकास कुछ अंश तक अवरुद्ध हो जाएगा।
  4. बालकों को शब्दों को सीखने के लिए उचित मार्गदर्शन या निर्देशन प्राप्त होना चाहिए।
  5. भाषा सिखाते समय निर्देशकों को चाहिए कि वे बालक के समक्ष “मॉडल शब्द” धीरे-धीरे, बारी-बारी से स्पष्ट एवं शुद्ध उच्चारण के साथ प्रस्तुत करें।

प्रश्न 38.
भाषा सीखने के प्रमुख अंग क्या हैं ?
उत्तर :
भाषा सीखने के प्रमुख अंग निम्नलिखित हैं –
1. अनुकरण – बच्चों में अनुकरण की प्रवृत्ति जन्म-जात होती है। यही कारण है कि माता-पिता, शिक्षक तथा अन्य साथियों की भाषा का बच्चे की भाषा पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार बच्चा अनुकरण से भाषा सीखता है।
2. वार्तालाप – थोड़ा बड़ा बच्चा अपने साथियों के साथ टूटी-फूटी भाषा का प्रयोग करने लग जाता है। एक ही उम्र के बच्चे आपसी वार्तालाप से पर्याप्त मात्रा में भाषा सीखते हैं।
3. कहानियां – बच्चे कहानी सुनने के बहुत शौकीन होते हैं। घर के बड़े-बूढ़े सदस्य बच्चों को कहानियां सुनाते हैं। कहानियों से उन्हें आनन्द तो मिलता ही है साथ ही वे भाषा का बहुत कुछ बोलना भी सीख जाते हैं। माता-पिता व अन्य सदस्यों को चाहिए कि कहानी सुनाते समय भाषा की शुद्धता का ध्यान रखें अन्यथा बच्चा भी अशुद्ध भाषा सीखेगा।
4. प्रश्नोत्तर – बच्चों को प्रश्न पूछने की बहुत आदत होती है। बच्चे अपने से बड़ों तथा साथियों से बहुत प्रश्न पूछते हैं। बच्चे को प्रश्न का उचित उत्तर अवश्य देना चाहिए। प्रश्नों के उत्तर बच्चों को भाषा सीखने में अत्यधिक सहायता करते हैं।
5. खेल – कुछ खेल भी इस प्रकार के होते हैं जिनके निरन्तर प्रयोग से बच्चे भाषा को बोलना सीख जाते हैं। बच्चों को ऐसे खेलों के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।

प्रश्न 39.
भाषा विकास के सहायक अंगों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
भाषा विकास के सहायक अंग हैं –
1. सुनने के द्वारा भाषा ज्ञान – बच्चे की सुनने की शक्ति जितनी अधिक प्रबल होगी, उतना ही भाषा को समझेगा। इस प्रकार लगातार सुनने और ज्ञान के आधार पर भाषा विकसित होती रहती है।
2. मुख के विभिन्न अंग – कंठ (गले) व जीभ के विकास पर भाषा का विकास निर्भर करता है। जैसे-जैसे बालक की आयु बढ़ती जाती है, उसके मुख के अंग भी विकसित होते जाते हैं। इन अंगों के पर्याप्त विकास के बाद बालक भाषा को समझने भी लगता है और बोलने भी लगता है।
3. अक्षर ज्ञान – पढ़ाई आरम्भ करने पर बच्चे को अक्षर ज्ञान कराया जाता है। विभिन्न ध्वनियों के लिए निश्चित अक्षर होते हैं और बच्चा इन्हें आँख के प्रयोग द्वारा सीखता है। लगातार वही अभ्यास करने पर वह जल्दी-जल्दी पढ़ने लगता है और आगे मौन रहकर भी पढ़ सकता है।
4. भाषा लेखन – पढ़ने के अभ्यास के बाद बच्चा उसी भाषा को लिखने का प्रयत्न करता है। लिखने में हाथ अंग का उपयोग होता है। बच्चा आँख से देखकर हाथ की शक्तियों से लिखता है। लेखन क्रिया में मानसिक शक्तियों का भी उपयोग होता है।

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प्रश्न 40.
भाषा विकास का अर्थ बताएँ और बच्चे के 3 साल तक के भाषा विकास का विवरण दें।
उत्तर :
भाषा का अर्थ है शब्दों द्वारा की गई सम्प्रेषणा। भाषा के द्वारा ही सूचना एक व्यक्ति से दूसरे तक पहुंचाई जाती है।
जन्म से लेकर एक माह तक शिशु सिर्फ रोने की आवाज़ ही निकाल पाता है। 5-6 महीने का बच्चा बाबा-मामा जैसी ध्वनियां दोहराता है। इसे बैबलिंग कहते हैं। बैबलिंग में समूचे विश्व के शिशु एक जैसी ध्वनियां निकालते हैं।
1 वर्ष का बच्चा एक शब्द का उच्चारण करके पूरी बात समझाने की कोशिश करता है। उसके द्वारा कहे गए शब्द प्रायः किसी चीज़ के नाम होते हैं जैसे पापा, मामा आदि।
2 वर्ष का बच्चा दो शब्द जोड़कर वाक्य बनाता है जैसे ‘पापा आफिस’ ‘माँ-दूध’ आदि।
3 वर्ष का होने पर बच्चे छोटे-छोटे वाक्य बना लेते हैं जोकि 3-4 शब्दों से बने होते हैं। जैसे ‘मम्मी पानी दो’।

प्रश्न 41.
भाषा विकास के महत्त्व पर टिप्पणी लिखो।
उत्तर :
भाषा सामाजिक सम्पर्क का सबसे बड़ा साधन है। इसके द्वारा सभी तरह की सांस्कृतिक उपलब्धियां सम्भव हैं। इसके माध्यम से हम अपने विचारों को व्यक्त कर सकते हैं। इससे ही साहित्य का जन्म होता है। इसीलिए साहित्य को समाज का दर्पण कहा गया है। जैसा समाज होगा वैसा ही उसका साहित्य होगा। प्रसिद्ध वैज्ञानिक एमविल के मतानुसार किसी जाति के भाषा विकास का इतिहास उसके बौद्धिक विकास का इतिहास है। दूसरे प्राणियों की अपेक्षा मानव भाषा के कारण ही अधिक श्रेष्ठ माना गया है।

भाषा व सभ्यता का विकास साथ-साथ चलता है। शुरू में बालक स्थूल वस्तुओं को ही इस्तेमाल में लेता है। तत्पश्चात् वह भाषा का व्यवहार करने लगता है। शिक्षा का एक प्रधान उद्देश्य बालक को भाषा का समुचित ज्ञान कराना है। किसी भी व्यक्ति की बौद्धिक योग्यता का सर्वश्रेष्ठ माप उसका शब्द भण्डार ही है।

प्रश्न 42.
वंशानुक्रम बालक के वृद्धि और विकास को किस प्रकार प्रभावित करता है ?
उत्तर :
कोई भी बच्चा जब जन्म लेता है तो उसमें उसके माता तथा पिता के गुण होने अनिवार्य हैं। अर्थात् बच्चे की शक्ल-सूरत, चेहरे का रंग, नैन-नक्श, बाल, बोलचाल आदि पर माता-पिता के गुणों का प्रभाव होता है। बच्चों की लम्बाई, भार, डील-डौल भी वंशानुक्रम द्वारा प्रभावित होती है। इस प्रकार अभिवृद्धि का सीधा सम्बन्ध वंशानुक्रम से है तथा बच्चे में क्षमताओं का पैदा होना जैसे गणित में अच्छा होना, तार्किक शक्ति अधिक होना, वाक चातुर्य होना, संगीत, कलात्मक गुणों का होना आदि विकास के विभिन्न प्रकार भी वंशानुक्रम से प्रभावित हैं।

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प्रश्न 43.
‘मील के पत्थर’ क्या है ? बाल्यावस्था में छोटे बच्चों के लिए इनका क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
शिशु का जैसे-जैसे विकास होता है इसे मनोवैज्ञानिकों ने विभिन्न चरणों में बांटा है जिन्हें मील के पत्थर कहते हैं। इस प्रकार किसी भी शिशु की अभिवृद्धि तथा विकास उचित हो रहा है या नहीं इसके बारे में स्पष्ट हो जाता है। जैसे कितनी आयु में बच्चा चलना शुरू करेगा, कब बोलेगा, कितनी आयु में उसकी लम्बाई अथवा भार कितना होगा आदि विभिन्न मील के पत्थर हैं तथा बच्चे का विकास ठीक ढंग से हो रहा इससे भी अवगत करवाते हैं।

प्रश्न 44.
क्रोध संवेग के कारण बताएं।
उत्तर :

  1. अन्याय तथा अनाधिकार चेष्ट के प्रतिरोध में बालक क्रोध प्रकट करता है।
  2. क्षमता से बड़ा कार्य सौंप देने से।
  3. अभिभावक की अधीरता या चिड़चिड़ाहट।
  4. कपड़े पहनने की विधि कष्टदायक होना।
  5. भाई-बहिन व साथियों द्वारा चिढ़ाने पर।
  6. अत्यधिक थकान होने पर।
  7. बालक के काम में अनावश्यक रुकावट होने पर।
  8. शारीरिक दुर्बलता व रोग होने पर।

प्रश्न 45.
बालक क्रोध की अभिव्यक्ति कैसे करता है ?
उत्तर :
बालक द्वारा क्रोध की अभिव्यक्ति-बालक अपने क्रोध को निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त कर सकता है –

  1. रोना
  2. चीखना-चिल्लाना
  3. दाँत पीसना
  4. सिर पटकना
  5. ज़मीन पर लेट जाना
  6. वस्तुओं को उठाकर फेंक देना
  7. गुस्से में मुख फाड़ना
  8. जीभ निकालना व थूकना।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
आधुनिक जीवन में बाल विकास का क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
1. बाल विकास से हमें पता चलता है कि साधारणतः एक बच्चे से एक अवस्था में क्या आशा रखी जाए। यदि कोई बच्चा इस आशा से बाहर जाए तो उसकी ओर हमें विशेष ध्यान देना होगा।

2. बाल विकास की पढ़ाई से हमें बच्चों की ज़रूरतों सम्बन्धी जानकारी प्राप्त होती है। हम बच्चे के मनोविज्ञान को अच्छी तरह समझ कर उसका पालन-पोषण कर सकते हैं जिससे उसका बहुपक्षीय विकास अच्छे ढंग से हो सकता है।

3. बाल विकास के अध्ययन से हमें यह जानकारी मिलती है कि साधारण बच्चों से भिन्न बच्चों को किस तरह का वातावरण प्रदान करें कि वह हीन भावना का शिकार न हो जाएं जैसे शारीरिक अथवा मानसिक तौर पर विकलांग बच्चे, मन्द बुद्धि वाले बच्चे अपनी शारीरिक तथा मानसिक कमजोरियों से ऊपर उठकर अपना बहुपक्षीय विकास कर सकें।

4. बाल विकास पढ़ने से हमें वंश तथा वातावरण सम्बन्धी जानकारी भी मिलती है। एक-दो ऐसे महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं जो बच्चे के विकास में बहुत योगदान डालते हैं। वंश से हमें बच्चे के उन गुणों के बारे पता चलता है जो बच्चों को अपने माता-पिता से जन्म से ही मिले होते हैं तथा जिन्हें बदला नहीं जा सकता जैसे नैन-नक्श, कद-काठ, बुद्धि आदि। बच्चे के इर्द-गिर्द को वातावरण कहा जाता है जैसे भोजन, अध्यापक, किताबें, खेलें, मौसम आदि। वातावरण बच्चे के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव डालता हैं। अच्छा वातावरण बच्चे के व्यक्तित्व को उभारने में मदद करता है।

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प्रश्न 2.
बाल विकास की शिक्षा के अन्तर्गत आपको किस के बारे में शिक्षा मिलती है ?
उत्तर :
बाल विकास के अध्ययन में बच्चों में पाई जाने वाली व्यक्तिगत भिन्नताएं, उनके साधारण तथा असाधारण व्यवहार तथा इर्द-गिर्द का बच्चे पर प्रभाव को जानने की कोशिश भी की जाती है।
प्रत्येक मनुष्य के व्यक्तित्व की जड़ें उसके बचपन में होती हैं। आजकल मनोवैज्ञानिक तथा समाज वैज्ञानिक किसी मनुष्य के व्यवहार को समझने के लिए उसके बचपन के हालातों की जांच-पड़ताल करते हैं। समाज वैज्ञानिक यह बात सिद्ध कर चुके हैं कि वे बच्चे जिन्हें बचपन में प्यार नहीं मिलता। बड़े होकर अपराधों की ओर रुचित होते हैं।

1. बच्चों की प्रवृत्ति को समझने के लिए-बाल विकास के अध्ययन से हम विभिन्न स्तरों पर बच्चों के व्यवहार तथा उनमें होने वाले परिवर्तनों से अवगत होते हैं। एक बच्चा विकास की विभिन्न स्थितियों से किस तरह गुज़रता है इसका पता बाल विकास के अध्ययन द्वारा ही चलता है।

2. बच्चे के व्यक्तित्व के विकास को समझने के लिए-बाल विकास अध्ययन बच्चे के व्यक्तिगत विकास तथा चरित्र निर्माण का ज्ञान उपलब्ध कराता है। ऐसे कौन-से तथ्य हैं जो भिन्न-भिन्न आयु के पड़ावों पर बच्चे के व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं तथा बच्चे के व्यक्तित्व के विकास में रुकावट डालने वाले कौन-से तत्त्व हैं, बाल विकास इनकी खोज करने के पश्चात् बच्चे की मदद करता है।

3. बच्चे के विकास के बारे जानकारी-गर्भ धारण से लेकर बालिग होने तक के शारीरिक विकास का अध्ययन बाल विकास का मुख्य भाग है। बाल विकास अध्ययन की मदद से बच्चे के शारीरिक विकास की रुकावटों तथा कारणों को अच्छी तरह समझ सकते हैं। बाल विकास बच्चे की शारीरिक विकास से सम्बन्धित समस्याओं को समझने में भी हमारी सहायता करता है।

4. बच्चे के लिए बढिया वातावरण पैदा करना-बच्चे के व्यवहार तथा रुचियों पर वातावरण का महत्त्वपूर्ण प्रभाव होता है। बाल विकास के अध्ययन से वातावरण के बच्चे पर पड़ रहे बुरे प्रभावों का पता चलता है। बच्चे के व्यक्तित्व के बढ़िया विकास के लिए बढ़िया वातावरण उत्पन्न करने सम्बन्धी मां-बाप तथा अध्यापकों को सहायता मिलती है।

5. बच्चों के व्यवहार को कन्ट्रोल करने के लिए-बच्चे का व्यवहार हर समय एक जैसा नहीं होता। बच्चे के व्यवहार से सम्बन्धित समस्याओं जैसे बिस्तर गीला करना, अंगूठा चूसना, डरना, झूठ बोलना आदि का कोई-न-कोई मनोवैज्ञानिक कारण अवश्य होता है। बाल विकास अध्ययन की सहायता से इन समस्याओं के कारणों को समझा तथा हल किया जा सकता है।

6. बच्चों का मार्ग-दर्शन-माता-पिता समय-समय पर बच्चों की रहनुमाई करते हैं। परन्तु आज-कल पढ़े-लिखे मां-बाप विशेषज्ञों से बच्चों का मार्ग-दर्शन करवाते हैं। यह मार्ग-दर्शन विशेषज्ञ मनोवैज्ञानिक विधियों द्वारा उसकी रुचियां, छुपी हुई क्षमता तथा झुकाव का पता लगाकर बच्चों का मनोवैज्ञानिक मार्ग-दर्शन करते हैं।

7. पारिवारिक जीवन को खुशियों भरा बनाने के लिए-बच्चे हर घर का भविष्य होते हैं। इसलिए उनका पालन-पोषण ऐसे वातावरण में होना चाहिए जो उनकी वृद्धि तथा विकास में सहायक हो। बाल विकास अध्ययन द्वारा हमें ऐसे वातावरण की जानकारी मिलती है। एक बढ़िया वातावरण में ही पारिवारिक प्रसन्नता तथा शान्ति उत्पन्न होती है।

उपरोक्त वर्णन से यह पता चलता है कि बाल विकास विज्ञान एक बहुत महत्त्वपूर्ण विषय है जिसकी सहायता से हम बच्चों के शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक विकास से सम्बन्धित अनेकों पहलुओं से अवगत होते हैं। बच्चों के बचपन को खुशियों भरा बनाने के लिए यह विज्ञान बहुत लाभदायक है। खुशियों भरे बचपन वाले बच्चे ही भविष्य में स्वस्थ तथा प्रसन्न समाज रचेंगे। इस महत्त्वपूर्ण कार्य में बाल विकास विज्ञान की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

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प्रश्न 3.
अभिवृद्धि और विकास के सिद्धान्तों को सूचीबद्ध करें व किन्हीं तीन का वर्णन करें। उदाहरण सहित स्पष्ट करें। .
अथवा
अभिवृद्धि और विकास के सिद्धान्त कौन-कौन से हैं ? उनमें से किन्हीं दो का वर्णन करें।
अथवा
विकास के सिद्धान्त उदाहरण सहित स्पष्ट करें।
उत्तर :
विकास कभी भी अव्यवस्थित तरीके से नहीं अपितु नियमानुसार चलता है। विकास के कुछ मुख्य सिद्धान्त इस प्रकार से हैं
1. विकास में परिवर्तन निहित है-विकास का अर्थ है परिवर्तन। हम परिवर्तन से ही ज्ञात कर सकते हैं कि शिशु में विकास हो रहा है। उदाहरणस्वरूप जब शिशु वयस्कता की ओर विकसित होता है। तब उसके शरीर की अपेक्षा उसका सिर छोटा हो जाता है जबकि जन्म पर सिर शरीर की तुलना से बड़ा होता है।

2. विभिन्न आयु स्तरों पर विकास की दर भिन्न होती है इसका अर्थ है कि कभी किसी उम्र में विकास तेजी से होता है। फिर धीमा पड़ जाता है और बाद में फिर तेजी पकड़ता है। उदाहरणस्वरूप पहले छः सालों में बच्चे का शारीरिक विकास बहुत तेजी से होता है। तत्पश्चात् 7-11 वर्ष तक विकास की गति कुछ धीमी हो जाती है। 12 वर्ष के बाद फिर तेज़ी से शारीरिक विकास होता है।

3. विकास क्रमागत और व्यवस्थित होता है-इसका अर्थ है कि विकास एक क्रम और व्यवस्था से चलता है। उदाहरण के लिए बच्चा पहले बैठना सीखता है, फिर खड़े होना और फिर चलना। बैठने से पहले वह चलना नहीं सीख सकता।

4. विकास सिर की ओर से प्रारम्भ होता है- इसका अर्थ है कि विकास सिर से शुरू होकर पैरों तक जाता है। उदाहरण के लिए बच्चा पहले सिर सम्भालना सीखता है, फिर बिस्तर पर लुढ़कना, बाद में बैठना, फिर खड़े होना और फिर चलना। अतः विकास प्रक्रिया सिर क्षेत्र से होती हुई धड़ तक जाती है और अन्त में निम्नतर क्षेत्र में जाती है अर्थात् पैरों में।

5. विकास केन्द्र से बाहर की ओर होता है-विकास प्रक्रिया पहले केन्द्र (Central portion) में होती है और तत्पश्चात् बाहर की ओर (Outside region)। उदाहरण के लिए बच्चा पहले चीज़ उठाने के लिए पूरी भुजा का प्रयोग करता है। फिर हाथ का, फिर उंगलियों का और अन्त में अंगूठे व उंगली का प्रयोग करता है।

6. विभिन्न व्यक्तियों में विकास की दर भिन्न होती है-दो बच्चे एक ही उम्र के . हो सकते हैं पर उनके विकास की दर एक सी कभी नहीं होती। उदाहरण के लिए आप दो चार साल के बच्चों को देखें। दोनों की लम्बाई में फर्क मिलेगा। दोनों का भाषा ज्ञान भिन्न होगा इत्यादि। यह अन्तर इसीलिए है क्योंकि दोनों की विकास की दर भिन्न है।

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प्रश्न 4.
संवेगात्मक विकास का क्या अर्थ है ? बच्चे की तीन साल तक के संवेगात्मक विकास को स्पष्ट करें।
उत्तर :
संवेगात्मक विकास का अर्थ है, अपने संवेगों पर नियन्त्रण प्राप्त करना और समाज द्वारा अनुमोदित ढंग से उनकी अभिव्यक्ति करना।
जन्म के समय सभी संवेग बालक में विद्यमान नहीं होते पर धीरे-धीरे अंकुरित होते हैं। जन्म के समय सिर्फ ‘साधारण उद्वेग’ बच्चे में संवेग के रूप में विद्यमान होता है।

5 माह – प्रसन्नता व तकलीफ नामक संवेग प्रकट हो जाते हैं। जब बच्चा आरामदायक परिस्थिति में होता है, तो वह प्रसन्न होता है अन्यथा तकलीफ में होता है अर्थात् अपनी तकलीफ की अभिव्यक्ति करता है।

6 माह – भय नामक संवेग प्रकट हो जाते हैं। बालक ऊंचे स्थानों से डरता है। हवा में उछाले जाने पर भी डरता है। बड़ा होने पर वह चमकती बिजली, जानवर, शोर आदि से डरता है।

1 वर्ष – प्यार व क्रोध नामक संवेग प्रकट हो जाते हैं। मना किए जाने पर वह क्रोधित होता है और माता-पिता से प्यार प्रकट करता है, उनसे लिपटता है। अगर बच्चे को यह महसूस होता है कि माता-पिता उसे प्यार नहीं करते तो वह असुरक्षित महसूस करता है।

18 महीने पर ईर्ष्या नामक संवेग का विकास होता है। जब माता-पिता ज्यादा ध्यान छोटे भाई बहन पर देते हैं, तो बच्चा उनसे ईर्ष्या करने लगता है।

प्रश्न 5.
सामाजिक व्यवहार को कौन-से कारक प्रभावित करते हैं ?
उत्तर :
निम्नलिखित कारक सामाजिक व्यवहार को प्रभावित करते हैं  –

  1. बच्चे बड़ों की नकल करके सीखते हैं। अत: बड़ों को सदा बच्चों के समक्ष अच्छा व्यवहार प्रदर्शित करना चाहिए।
  2. बालक इनाम व दण्ड द्वारा सीखते हैं। अतः अच्छे काम पर उन्हें इनाम दे। जैसे शाबाशी और गलत काम पर दण्ड दे ताकि वह उसे दुबारा न करे।
  3. माता – पिता का एक सम होना ज़रूरी है अर्थात् गलती पर दोनों ही बच्चे को रोकें और अच्छे काम के लिए दोनों ही शाबाशी दें।
  4. बहुत अधिक रोक-टोक बच्चे को आश्रित बना देती है। अतः हर काम के लिए बच्चे को मना न करें। उसे कुछ काम खुद करके सीखने दें।
  5. माता – पिता बच्चों का मार्ग-दर्शन प्यार से करें न कि डांट अथवा रोक-टोक के साथ।

माता-पिता बच्चों को समाज में सही व्यवहार करना सिखाते हैं। अतः वह समाजीकरण के कारक हैं। इसके अलावा बच्चे के दोस्त व नर्सरी स्कूल की अध्यापिका भी इसी श्रेणी में आते हैं।

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प्रश्न 6.
बच्चे की शारीरिक आवश्यकताओं को संक्षेप में समझाएं।
अथवा
भोजन की आवश्यकता के अतिरिक्त बच्चों की और क्या क्या शारीरिक आवश्यकताएं होती हैं व उन्हें कैसे पूरा करना चाहिए ?
उत्तर :
ऐसी आवश्यकताएं जो बच्चे को जीवित रखने में सहायक होती हैं, शारीरिक आवश्यकताएं कहलाती हैं। ये निम्नलिखित प्रकार की होती हैं
1. भोजन की आवश्यकता – नवजात बच्चे का भोजन दूध होता है। जैसे-जैसे वह बड़ा होता है वह अतिरिक्त आहार लेने लगता है। बच्चे के लिए अच्छा आहार आवश्यक है क्योंकि वह बच्चे को

  • स्वस्थ बनाता है।
  • वृद्धि व विकास में मदद करता है।
  • ऊर्जा प्रदान करता है।
  • रोग के कीटाणुओं से बचाता है।

बच्चे को सही समय पर व अच्छा भोजन देना चाहिए।

2. नींद की आवश्यकता – एक नवजात शिशु करीब 20 घण्टे सोता है। जैसे-जैसे बच्चा वयस्क बन जाता है तो उसे 6-8 घण्टे की नींद चाहिए होती है। बच्चे को नींद आवश्यकतानुसार लेनी चाहिए। सोने से उसे आराम मिलता है व खोई हुई शक्ति वापिस आ जाती है।

3. शारीरिक व्यायाम की आवश्यकता – बच्चे को तन्दुरुस्त रहने के लिए व्यायाम की आवश्यकता है। व्यायाम सही विकास में मदद करता है। अत: बच्चों को मुक्त रूप से खेलने देना चाहिए पर उन पर निगरानी अवश्य रखें।

4. कपड़ों की आवश्यकता – बच्चों को मौसम के अनुसार कपड़ों की आवश्यकता होती है। गर्मियों में कॉटन, सर्दी में ऊनी। अत: उन्हें सही कपड़े पहनाने चाहिए। सर्दी में बच्चे को सिर्फ माँ से एक ज्यादा स्वेटर पहनाएँ। बच्चे को ढीले कपड़े पहनाएं।

5. बीमारियों से सुरक्षा की आवश्यकता – बच्चे के सही विकास के लिए आवश्यक है कि उसे बीमारियों से बचाया जाए। अत: उसे व उसके वातावरण को स्वच्छ रखें और उसे सही समय पर टीके लगवाएं।

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प्रश्न 7.
बच्चों की भावनात्मक आवश्यकताएं कौन-सी हैं ?
उत्तर :
ये निम्नलिखित प्रकार की हैं –
1. प्यार की आवश्यकता – सभी बच्चों को स्नेह व प्यार की आवश्यकता होती है। अतः माता-पिता को अपने बच्चों को प्यार करना चाहिए। पर प्यार अन्धा नहीं होना चाहिए। माता-पिता से प्यार मिलने पर बच्चों में आत्म-विश्वास पैदा होता है। प्यार न मिलने पर बच्चे गैर-मिलनसार हो जाते हैं। अत: माता-पिता को अपने बच्चों के साथ अवश्य ही समय बिताना चाहिए। उसकी बातें सुननी चाहिए और उसे अच्छे कामों के लिए प्रेरित करना चाहिए। छोटे बच्चे के साथ शारीरिक सम्पर्क करना अति आवश्यक है।।

2. भावनात्मक सुरक्षा की आवश्यकता – बच्चे माता-पिता से यह समझना चाहते हैं कि वह क्या कर सकते हैं और क्या नहीं। अतः यदि माता-पिता उन्हें सही तरीके से समझाते हैं तो बच्चों में विश्वास व सुरक्षा की भावनाएं पैदा होती हैं। माता-पिता यदि बच्चों के अच्छे काम की प्रशंसा करते हैं व गलत काम की निन्दा करते हैं, तो वह बच्चे में सुरक्षा की भावना स्थापित करते हैं। यदि माता-पिता बच्चे के हर कार्य की उपेक्षा करते हैं और उनके कामों में उत्साह नहीं दिखाते तो बच्चे असुरक्षित महसूस करते हैं।

3. स्वतन्त्रता की आवश्यकता – स्वतन्त्रता का अर्थ है अपना काम खुद करना। बच्चे ज्यादातर अपना काम खुद करना चाहते हैं। बच्चों को अपने काम खुद करने दें। इससे उनमें आत्म-विश्वास पैदा होता है। अत: वह और भी कठिन कार्यों को करने की चेष्टा करते हैं। इससे उनका मानसिक विकास होता है। जब बच्चे कोई भी कार्य करें तो बड़े लोग आस-पास रह कर उन्हें देखते रहें ताकि बच्चे को चोट न लगे। यदि आप बच्चे को स्वतन्त्रता नहीं देंगे तो वह सदैव निर्भर रहेगा और उसका आत्म-विश्वास टूट जाएगा।

4. समायोजन की आवश्यकता – बच्चे धीरे-धीरे समायोजन (adjustment) सीखते हैं। धीरे-धीरे वह बड़े होते हैं तो ज्यादा समझदार होते हैं। वह अपनी चीजें दूसरों के साथ बांटकर खेलते हैं। जब बच्चा समायोजन स्थापित करता है तो –
1. वह अपने संवेगों पर नियन्त्रण करना सीख जाता है। दूसरे बच्चों के साथ खेलते हुए वह छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा नहीं होता।
2. वह औरों के साथ अपनी चीजें बांटना सीखता है और सहनशील बनता है।

प्रश्न 8.
संवेगों के विकास में माता-पिता व परिवार के अन्य सदस्य किस तरह सहायता करते हैं ?
अथवा
संवेगों के विकास में माता-पिता किस तरह सहायता करते हैं ?
उत्तर :
बालक के संवेगों के विकास में माता-पिता का महत्त्वपूर्ण स्थान है। बालक सबसे ज्यादा स्नेह शुरू में अपनी माता से करता है। अधिक स्नेह या कम स्नेह दोनों ही बालक के लिए घातक सिद्ध होते हैं। इसलिए माता-पिता का यह कर्त्तव्य हो जाता है कि समय-समय पर बच्चे के प्रति स्नेह प्रदर्शित करते रहें।

क्रोध में यदि आक्रामकता अधिक हो, तो वह बच्चे के लिए घातक सिद्ध होता है। माता-पिता को चाहिए कि वे बालक के असन्तोष का पता लगाएँ, उसमें सहयोग की भावना विकसित करें, बालक को नेतृत्व का अवसर प्रदान करें, समय-समय पर उन्हें सामाजिक मान्यता प्रदान करें तथा समय-समय पर बालक की प्रशंसा व निन्दा करें।

माता-पिता को चाहिए कि वह बालक में नई वस्तु की रचना करने की प्रवृत्ति को विकसित करें। यदि इस प्रवृत्ति का दमन किया जाता है, तो बालक अपना आत्म-विश्वास खो बैठता है और उसमें कुंठाएं उत्पन्न हो जाती हैं।जिज्ञासा समस्त ज्ञान की जननी है। अत: इसे विकसित करने के लिए माता-पिता को चाहिए कि –

  1. बालकों को प्रश्न करने के लिए प्रोत्साहित करें।
  2. प्रश्न पूछने पर समस्या का समाधान प्यार सहित किया जाए, डांट-फटकार कर नहीं।
  3. प्रश्न का उत्तर बालक की रुचि, क्षमता तथा मानसिक स्तर के अनुसार हो।
  4. बालक को अनुभव प्रदान कर कुछ करके सीखने पर बल दिया जाए।

भय में बालक आत्म-विश्वास खो बैठता है। माता-पिता को चाहिए कि वह उसमें पलायन की प्रवृत्ति विकसित न होने दें। बच्चों को किसी वस्तु-स्थिति का भय न दिखाएं। मनोवैज्ञानिक ढंग से भयप्रद स्थितियों का सामना कराएं। एकान्त या अन्धकार में डरने वाले बच्चे को कभी भी एकान्त या अन्धकार में न छोड़ें। बच्चों को हर समय डांटना-पीटना नहीं चाहिए।

बालकों में ईर्ष्या का होना अच्छा नहीं। इसके लिए माता-पिता को इस भावना को विकसित होने से पूर्व ही उसे स्वस्थ दिशा प्रदान करनी चाहिए। इसके लिए बालक के स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखना चाहिए। उसकी दिनचर्या नियमित होनी चाहिए। बालक को उसके दोष के कारण उसे चिढ़ाना नहीं चाहिए। जब भी यह महसूस हो कि बालक ईर्ष्या की भावना से ग्रस्त है, कारणों की खोज कर ईर्ष्या भाव को समाप्त करना चाहिए।

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प्रश्न 9.
भय क्या है ? भय को नियन्त्रित करने के मनोवैज्ञानिक उपाय दीजिए।
उत्तर :
भय (Fear) – भय की मूल प्रवृत्ति पलायन है जिसका प्रदर्शन बालक रोकर, चिल्लाकर, दौड़कर प्रकट करता है। बाल्यावस्था में भय तनाव के कारण होता है। प्रायः बजे नहाने, स्कूल जाने से, अप्रिय वस्तु खाने से डरते हैं। अधिक भय की प्रवृत्ति बालक के लिए हानिकारक होती है। पहले बच्चा प्रायः ऊंची आवाज़, अन्धेरा, अपरिचित व्यक्ति, जानवर, एकान्त, पीड़ा, पानी, ऊँचाई से डरता है। बड़े हो जाने पर भय काल्पनिक अधिक हो जाते हैं, जैसे- भूत का डर, चोर का डर, दुर्घटना का डर आदि।

भय को नियन्त्रित करने के मनोवैज्ञानिक उपाय –
1. मौखिक निराकरण विधि – इस विधि से बच्चे को समझाकर भयावह वस्त की निरर्थकता सिद्ध कर दी जाती है। समझाने पर बालक उस वस्तु या परिस्थिति से डरना छोड़ देता है।

2. ध्यानभंग विधि – इस विधि में बालक का ध्यान भयावह वस्तु से हटाकर किसी दूसरी जगह आकर्षित किया जाता है ताकि बच्चे के ध्यान से भयावह वस्तु हट जाए और वह दूसरी बातों की ओर सोचने लगे। जैसे यदि बच्चा किसी जानवर से डरता है, तो उसी क्षण बच्चे को कोई खिलौना देकर, मनोरम चित्र दिखाकर या किसी और वस्तु में ध्यान लगाकर उस जानवर का ध्यान हटाया जा सकता है।

3. अनाभ्यास विधि – इस विधि में बालक को भयावह परिस्थिति से उसी क्षण दूर ले जाकर उसकी उत्तेजना को समाप्त किया जाता है। इस सम्बन्ध में बच्चों को भूत-प्रेत की कहानियां नहीं सुनानी चाहिएं, अपितु वीरतापूर्ण कहानियां सुनाकर उसके भय की ग्रन्थि को दूर करना चाहिए।

4. प्रत्यक्ष साक्षात्कार – जो बच्चे किसी विशेष वस्तु या जानवर से डरते हैं, उन बच्चों को उसी विशेष वस्तु या जानवर के पास ले जाकर प्यार से, पुचकार कर साक्षात्कार कराना चाहिए। पहले उस जानवर का चित्र दिखाकर या खिलौना देकर उसे समझाना चाहिए फिर उस जानवर से साक्षात्कार कराकर उसके भय की ग्रन्थि का निवारण करना चाहिए।

प्रश्न 9.
(A) भय को नियंत्रित करने के दो मनोवैज्ञानिक उपाय बताएं।
उत्तर :
देखें उपरोक्त प्रश्न।

प्रश्न 10.
ईर्ष्या क्या है ? ईर्ष्या के निवारण के उपाय लिखिए।
उत्तर :
ईर्ष्या-यह क्रोध की उपशाखा है। ईर्ष्या सामाजिक परिस्थिति में उत्पन्न होने वाला व्यवहार है। बालक जब किसी व्यक्ति के व्यवहार में प्यार की कमी देखता है तो उसमें ईर्ष्या उत्पन्न हो जाती है। जब किसी भाई-बहन या दोस्त के कारण बालक अपने प्यार या किसी काम में बाधा महसूस करता है तो उसमें ईर्ष्या की भावना उत्पन्न हो जाती है। शैशवावस्था में बालक ईर्ष्या को रोकर, बाल खींचकर, कपड़े फाड़कर, ज़मीन पर लेटकर व्यक्त करता है। बाल्यावस्था में वह बड़ों की आज्ञा का उल्लंघन करके अथवा रोक कर इसे प्रकट करता है। तीव्र बुद्धि वाले बालकों में मन्द बुद्धि वाले बालकों की अपेक्षा ईर्ष्या कम होती है।

ईर्ष्या का निवारण – ईर्ष्या की भावना बच्चे के लिए घातक सिद्ध होती है। इसके निवारण के लिए निम्नलिखित साधनों को अपनाना चाहिए –

  1. बच्चे के स्वास्थ्य व उनकी आवश्यकताओं का ध्यान रखना चाहिए।
  2. बच्चों को नकारात्मक आदेश नहीं देना चाहिए।
  3. बच्चे को अधिक नहीं छेड़ना चाहिए नहीं, तो वह चिड़चिड़े स्वभाव का हो जाता है,
  4. यदि कोई बच्चा अपराध करता है तो अपराध की बुराई करनी चाहिए न कि बच्चे की।
  5. बच्चे की वस्तु को उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी दूसरे बच्चे को नहीं देना चाहिए।
  6. बच्चे की दिनचर्या को मनोरंजक बनाना चाहिए। बच्चे को किसी-न-किसी खेल या कार्य में व्यस्त रखना चाहिए।
  7. अनावश्यक रूप से बच्चे की बुराई उसके सामने नहीं करनी चाहिए।

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प्रश्न 11.
क्रोध संवेग के क्या कारण हैं ? बालक क्रोध की अभिव्यक्ति किस प्रकार करता है ? क्रोध की उपयोगिता क्या है ?
अथवा
क्रोध संवेग के क्या कारण हैं ? बालक क्रोध की अभिव्यक्ति किस प्रकार करता
उत्तर :
क्रोध-किसी क्रिया की सन्तुष्टि में जब कोई बाधा आती है, तो क्रोध उत्पन्न होता है। क्रोध में आक्रामकता का भाव होता है। बालक जितना हताश होगा उतना ही आक्रामक होगा। शारीरिक दुर्बलता के कारण अथवा रोग की हालत में बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है। उसको अधिक क्रोध आता है। क्रोध सदैव हानिकारक ही नहीं होता, कुछ परिस्थिति में क्रोध लाभदायक भी सिद्ध होता है। जैसे भय को दूर करने के लिए क्रोध का प्रयोग किया जाता है।

क्रोध संवेग के कारण –

  1. अन्याय तथा अनाधिकार चेष्ट के प्रतिरोध में बालक क्रोध प्रकट करता है।
  2. क्षमता से बड़ा कार्य सौंप देने से।
  3. अभिभावक की अधीरता या चिड़चिड़ाहट।
  4. कपड़े पहनने की विधि कष्टदायक होना।
  5. भाई-बहिन व साथियों द्वारा चिढ़ाने पर।
  6. अत्यधिक थकान होने पर।
  7. बालक के काम में अनावश्यक रुकावट होने पर।
  8. शारीरिक दुर्बलता व रोग होने पर।

बालक द्वारा क्रोध की अभिव्यक्ति – बालक अपने क्रोध को निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त कर सकता है –

  1. रोना
  2. चीखना-चिल्लाना
  3. दाँत पीसना
  4. सिर पटकना
  5. ज़मीन पर लेट जाना
  6. वस्तुओं को उठाकर फेंक देना
  7. गुस्से में मुख फाड़ना
  8. जीभ निकालना व थूकना।

क्रोध की उपयोगिता – क्रोध केवल हानिकारक संवेग ही नहीं है वह उपयोगी भी होता है। जब क्रोध, दया व करुणा के साथ जागृत होता है, तो उपयोगी होता है। असामाजिक तत्त्वों तथा शत्रुओं के प्रति क्रोध प्रकट करना बालक की सामाजिक अच्छाई का रूप होता है। विपरीत परिस्थिति में क्रोध बालक को समुचित शक्ति भी प्रदान करता है।

प्रश्न 12.
संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए –
1. स्नेह एवं ममता, 2. जिज्ञासा, 3. आनन्द एवं सुख।
उत्तर :
1. स्नेह एवं ममता – यह बालक का प्रारम्भिक संवेग है जिसे वह माँ, आया या परिवार के अन्य सदस्य, जो उसके सम्पर्क में आते हैं, के प्रति प्रकट करता है। प्रारम्भ में बालक सजीव एवं निर्जीव दोनों वस्तुओं से स्नेह करता है, क्योंकि वह दोनों में भेद नहीं समझता है। सवा साल बाद वह वस्तु और व्यक्ति में भेद समझने लगता है और उन्हीं से अधिक स्नेह करता है जिनके सम्पर्क में अधिक आता है। स्नेह के कारण व व्यक्ति को देखकर हँसता है, गोदी में जाता है, चिपक जाता है, हाथ फैलाता है व प्यार करता है।

2. जिज्ञासा – जिज्ञासा के साथ आश्चर्य का संवेग जुड़ा रहता है। बालक में प्रारम्भ से ही जिज्ञासा होती है और इसी जिज्ञासा के कारण वह ज्ञान प्राप्त करता है। बड़े होने पर भी यह मूल प्रवृत्ति विद्यमान रहती है। यहि बालक की जिज्ञासा को शान्त न किया जाए तो बालक सीखने की क्रिया में कोई उत्साह नहीं दिखाता है।

3. आनन्द एवं सुख – आनन्द का संवेग शिशु में 3-4 माह की आयु में देखा जाता है। इच्छा पूर्ति इस संवेग को उत्पन्न करती है। बालक की भूख मिटने पर, गोद में लेने पर, घुमाने पर, नया खिलौना लेने पर, सुन्दर चित्र देखकर हर्ष प्रकट करता है। आनन्द की अभिव्यक्ति बच्चे हाथ-पैर फेंककर, उछलकर, मुस्कराकर, हँसकर व्यक्त करते हैं।

शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए आनन्द श्रेष्ठ संवेग है। यह एक सामाजिक गुण भी है। बच्चे में आत्माभिमान की वृद्धि होती है। तनावों की कमी से बच्चों के व्यक्तित्व में निखार आता है।

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प्रश्न 13.
सामाजिक विकास से आप क्या समझते हैं ? बालकों में सामाजिक विकास कब और कैसे विकसित होता है ?
उत्तर :
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जब बालक जन्म लेता है, तो वह अपनी हर आवश्यकता के लिए दूसरे व्यक्ति पर निर्भर रहता है। प्रत्येक सामाजिक प्राणी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एक-दूसरे पर निर्भर करता है। हरलॉक के अनुसार, “कोई भी बालक सामाजिक पैदा नहीं होता। वह दूसरों के होते हुए भी अकेला ही होता है। समाज में दूसरों के सम्पर्क में आकर समायोजन की प्रक्रिया को सीखता है। इसलिए समाजीकरण की प्रक्रिया बालक के विकास के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।”

विभिन्न प्रकार की रुचियां, आदतों व व्यवहार में परिपक्वता विकसित होने को सामाजिक विकास कहा जाता है। शारीरिक विकास के साथ-साथ सामाजिक परिपक्वता आती है। सामाजिक गुणों को सीखने की प्रक्रिया को सामाजिक विकास अथवा समाजीकरण कहते हैं। बालक का जन्म से लेकर किशोरावस्था तक सामाजिक विकास बड़ी तीव्र गति से होता है। जब बालक जन्म लेता है तो पूर्ण असामाजिक होता है। दूसरे व्यक्तियों के सम्पर्क में आकर सामाजिकता का आरम्भ होता है।

तीन माह के बच्चे में सामाजिक विकास स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं। इस समय वह अकेला रहने पर रोने लगता है और सबके बीच में प्रसन्न रहता है। व्यक्तियों की मुखमुद्रा को पहचानता है। दस माह का बालक बहुत कुछ सामाजिक प्रक्रिया सीख लेता है। हाथ मिलाना, नमस्ते करना। अब वह कुछ-कुछ अपना-पराया समझता है। पन्द्रह माह के बच्चे में सहयोग व भिन्नता दिखाई देने लगती हैं। वह अब संकेत पाकर आदेशों का पालन भी करने लगता है। दो साल का बालक खेलने के लिए अपनी साथी ढूँढता है और उसके व्यवहार में भी परिवर्तन। होने लगता है जो कि उसके सामाजिक विकास की ओर संकेत करते हैं। इस प्रकार से बालक का सामाजिक विकास जन्म के बाद प्रारम्भ होकर परिपक्वता तक विकसित होता है।

प्रश्न 14.
सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले तत्त्व लिखिए।
उत्तर :
सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले तत्त्व निम्नलिखित हैं –
1. नेतृत्व और सामाजिक विकास-बच्चों के किसी भी समूह में परस्पर का व्यवहार समानता का नहीं दिखाई पड़ता है। उनमें से एक अवश्य होता है, जो दूसरों का नेतृत्व करता है। लोकप्रियता और नेतृत्व साथ-साथ नहीं चलते। एक व्यक्ति लोकप्रिय होते हुए भी ज़रूरी नहीं कि नेता भी हो। परन्तु एक नेता सदैव लोकप्रिय होता है और समूह के अधिकांश लोग उसे जानते हैं।

नेतृत्व का प्रथम चिह्न 1 वर्ष की अवस्था में दिखाई देने लगता है। उदाहरण के लिए यदि एक खिलौना दूसरे बच्चे के पास है और एक बच्चे को वह अच्छा लगता है, तो उसे उससे छीनने का प्रयत्न करता है।

जिन बच्चों में नेतृत्व के गुण होते हैं, वे अन्य बच्चों से स्वभावतः बुद्धि, आकार और गुण में बड़े होते हैं। नेता बच्चा कड़ाई की प्रवृत्ति भी रखता है। नेतृत्व करने वाले बालकों को घर में स्वतन्त्रता मिली होती है।

2. संवेगात्मक व्यवहार और सामाजिक विकास-जो बालक चिड़चिड़े स्वभाव का तथा बात-बात पर रूठने वाला होता है, वह कभी भी लोकप्रिय नहीं हो सकता। इसके विपरीत हंसमुख तथा संवेगात्मक स्थिरता वाले बालक सभी को अपना मित्र बना लेते हैं। संवेगात्मक विकास तथा सामाजिक विकास साथ-साथ चलता है।

3. खेल और सामाजिक विकास-खेल बालक की कल्पनाओं, उसकी दया और सहयोग की भावना को दर्शाता है। खेल का प्रभाव बालक के सामाजिक जीवन पर प्रत्येक अवस्था में पड़ता है। कुशाग्र बुद्धि वाले अपने से बड़ों के साथ तथा मंद बुद्धि वाले अपने से छोटे के साथ खेलना पसन्द करते हैं। खेलने वाले सभी साथियों का प्रभाव भी बच्चे के सामाजिक विकास पर पड़ता है।

4. आर्थिक स्तर और सामाजिक विकास-माता-पिता के आर्थिक स्तर का बालक के सामाजिक विकास पर प्रभाव पड़ता है। निर्धन परिवार का बालक धनी परिवार के बच्चों के साथ रहते, पढ़ते हुए हीन भावना का शिकार हो जाता है। वह अपने कपड़ों की तुलना में हीनता का शिकार हो जाता है। आज हर बात का मूल्य पैसे से तोला जाता है तो निर्धन बालक के सामाजिक विकास का सन्तुलन कैसे रह सकता है।

5. बाल समुदाय और सामाजिक विकास-समुदाय में रहकर बालक समुदाय के नियमों का पालन करता है। वह बहुत-सी बातें सीखता है, जैसे – (i) अपनी आयु के बालकों के साथ समायोजन करना, (ii) ऐसा व्यवहार करना, जिन्हें लोग भी पसन्द करें, (iii) नवीन मूल्यों को ग्रहण करना, (iv) मित्रता, (v) संवेगात्मक सन्तोष द्वारा व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, (vi) सामूहिक क्रियाओं द्वारा सामाजिक जीवन का आनन्द उठाना। समुदाय में रहकर बालक अच्छे व बुरे गुण दोनों सीखता है।

अच्छे गुण जैसे – (i) प्रजातन्त्र की भावना, (ii) निस्वार्थपन, (iii) सहयोग की भावना, (iv) न्याय तथा ईमानदारी, (v) साहस, (vi) सहनशीलता, (vii) आत्म नियन्त्रण, (viii) सामूहिक जीवन, (ix) दूसरों की भावनाओं का आदर करना।

बुरे गुण जैसे – (i) झूठ, (ii) गाली, (iii) कसमें खाना, (iv) गन्दे-गन्दे मज़ाक, (v) नियम तोड़ने की प्रवृत्ति, (vi) भागने की वृत्ति, (viii) बड़ों का अनादर करना, (viii) अल्पमत वालों की उपेक्षा।

6. शारीरिक व मानसिक विकास-जिन बालकों का शारीरिक विकास ठीक प्रकार से होता है उनमें सभी सामाजिक गुण शीघ्र और अच्छी तरह से विकसित होते हैं। जिनका शारीरिक विकास ठीक-से नहीं होता, कमज़ोर होते हैं, उनमें हीनता की भावना के कारण समाज में समायोजन ठीक प्रकार से नहीं होता। इसी प्रकार जिन बालकों का मानसिक विकास ठीक प्रकार से नहीं होता है, उनका समाज में समायोजन भी ठीक प्रकार से नहीं होता है। यह देखा गया है कि जिन बालकों का बुद्धि का स्तर सामान्य होता है, वे समाज में ठीक से समायोजन कर लेते हैं। जिन बालकों की बुद्धि तीव्र होती है या मन्द बुद्धि होती है, उनको समाज में समायोजन के लिए बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है या वह समायोजन करने के लिए अपने को असमर्थ पाते हैं।

7. पारिवारिक प्रभाव-सामाजिक विकास में परिवार का बहुत बड़ा योगदान है। परिवार समाजीकरण का प्रमुख साधन है। परिवार के सदस्यों का भिन्न-भिन्न रूप होता है जो उसमें अनेक व्यक्तिगत एवं सामाजिक गुणों का विकास करते हैं। बहुत से सामाजिक गुण जैसे-सहानुभूति, प्रेम की भावना, उदारता, अनुदारता, न्याय-अन्याय, सत्य-असत्य आदि बालक परिवार से ही सीखता है।
उपरोक्त के अलावा माता-पिता का बालक के प्रति व्यवहार, बालकों का जन्म क्रम, प्रौढ़ सदस्यों की उपस्थिति, बालक का स्वास्थ्य, बालक का सौंदर्य, बालक की बुद्धि तथा विद्यालय का भी सामाजिक विकास पर प्रभाव पड़ता है।

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प्रश्न 14A.
सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कोई तीन कारक लिखें।
उत्तर :
देखें प्रश्न 14.

प्रश्न 15.
सामाजिक विकास की विशेषताएं लिखिए।
उत्तर :
सामाजिक विकास की विशेषताएं निम्नलिखित हैं –
1. आरम्भिक सामाजिक क्रियाएं-जन्म के बाद बालक का सामाजिक वातावरण उसकी माता व आस-पास का वातावरण होता है। वह माता का चेहरा देखकर मुस्कराता है। यही उसकी पहली सामाजिक अनुक्रिया है। बाद में अन्य व्यक्तियों के साथ उसका सम्पर्क बढ़ता है। अब वह अपने और पराये में अन्तर समझने लगता है और इस तरह से धीरे-धीरे बहुत-सी सामाजिक अनुक्रियाएं करने लगता है।

2. दसरे बालक के साथ अनक्रिया-दसरे बच्चों के सम्पर्क में आकर उनके व्यवहार के प्रति अनुक्रिया करता है। दो वर्ष का बालक देने-लेने वाले की अनुक्रिया समझने लगता है।

3. प्रतिरोधी व्यवहार नकारात्मक संवेगों के कारण बहुत से बालकों में प्रतिरोधी व्यवहार विकसित हो जाते हैं, जैसे-हठ करना, सिर हिला कर मना करना, अंगों में सख्ती से आना आदि।

4. सामाजिक प्रतिरोध – यह एक बौद्धिक प्रक्रिया है। बालक दूसरे व्यक्तियों के विचारों तथा अनुभूतियों को समझने लगता है व उनके प्रति उसमें संवेदना जागृत होती है। उसमें प्रतिद्वन्द्विता, सहयोग, अनिच्छापूर्वक कार्य करना आदि भाव विकसित हो जाते हैं।

5. लड़ाई-झगड़े – जैसे-जैसे बालक की सामूहिक क्रियाएं बढ़ती हैं उसमें लडाई झगडे की भावना का भी विकास होता है। कारण है उसके कार्यों की गति में अवरोध उत्पन्न होना। कभी-कभी बालक अपने सहयोगी के लिए या नकल के कारण लड़ाई झगड़ा कर बैठता है।

6. सहानुभूति – यह गुण प्रारम्भ से ही विकसित होने लगता है। सहानुभूति की भावना परिस्थिति के कारण उत्पन्न होती है। दूसरे बच्चे के शारीरिक या मानसिक दुःख को अनुभव कर बच्चा उसके प्रति सहानुभूति रखता है। सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार में आयु एवं मानसिक परिपक्वता के साथ-साथ व्यक्तिगत भिन्नता पाई जाती है।

7. प्रतिस्पर्धा – अपने को आगे बढ़ाने में बालक सदा ही लगा रहता है और इसी भावना से प्रेरित हो उसमें प्रतिस्पर्धा विकसित होती है। किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए यह गुण बहुत काम आता है।

8. सामहिक क्रियाएं – दो वर्ष का बालक खेलने के लिए साथ ढूंढने लगता है। बढ़ती अवस्था के साथ-साथ सामूहिक रूप से कार्य करने की प्रवृत्ति विकसित होती है। घर में भी अन्य सदस्यों के साथ मिलकर कार्य करना सीखता है।

9. सहयोग – सामाजिकता के लिए यह गुण अत्यन्त आवश्यक है। समूह में बिना सहयोग के गुण से व्यक्ति का समायोजन नहीं हो पाता। सहयोग की भावना से ही व्यक्ति में मित्र-शत्रु भाव उत्पन्न होता है।

10. नेतृत्व – यह एक सामाजिक गुण है। बालकों के समूह में उनका एक नेता अवश्य होता है। वही बालक नेता बनता है जिसका व्यक्तित्व अन्य सदस्यों से अच्छा होता है। जिस बालक में वीर-पूजा, कार्य-कुशलता गुण होते हैं तथा जिसका शारीरिक व मानसिक विकास ठीक होता है, भाषा-विकास अच्छा होता है ऐसे गुणों वाला बालक ही नेतृत्व को निभा पाता है। नेता बालक कई परिस्थितियों में नेतृत्व कर सकता है। उनमें सहयोग की भावना सबसे अधिक होती है।

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प्रश्न 16.
शिशु अवस्था में क्या शारीरिक परिवर्तन होते हैं ?
उत्तर :
शिशु अवस्था जन्म से 2 वर्ष तक मानी जाती है। इस अवस्था में अग्रलिखित शारीरिक परिवर्तन होते हैं –

1. हड्डियां (Bones) – नवजात शिशु में 270 हड्डियां होती हैं। प्रारम्भ में शिशु की हड्डियां बहुत नर्म तथा कोमल होती हैं। प्रथम वर्ष में हड्डियों का विकास तीव्र गति से होता है। दूसरे वर्ष में यह अपेक्षाकृत मन्द गति से होता है।
2. लम्बाई (Height) – जन्म के समय से 2 वर्ष तक शिशु की लम्बाई में निम्नलिखित प्रकार बढ़ोत्तरी होती है –

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3. वज़न (Weight) शिशु के वज़न का विकास निम्नलिखित प्रकार होता है –

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4. हाथ और पैरों का अनुपात (Proportions of Arms and Legs) – जन्म के समय शिशु के हाथ-पैर छोटे-छोटे होते हैं। दो वर्ष की अवस्था तक हाथों की लम्बाई का विकास जन्म की अपेक्षा 60-70 प्रतिशत तक हो जाता है। नवजात शिशु के पैर मुड़े हुए होते हैं। पैरों की लम्बाई बढ़ने के साथ-साथ पैर सीधे भी हो जाते हैं। दो वर्ष की अवस्था तक पैर जन्म की अपेक्षा 40 प्रतिशत विकसित हो जाते हैं।

5. दाँत (Teeth) शिशु के प्रथम बार दाँत छ: से आठ महीने के मध्य निकलते हैं।

6. पाचन तन्त्र (Digestive System) – प्रारम्भ में पाचन तन्त्र की क्षमता का विकास तीव्र गति से होता है।

7. श्वसन तन्त्र (Respiratory System) – जन्म के समय फेफड़े छोटे होते हैं। दो वर्ष की अवधि में छाती और सिर की परिधि बराबर हो जाती है।

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प्रश्न 17.
बाल्यावस्था में क्या शारीरिक परिवर्तन होते हैं ?
उत्तर :
(1) बाल्यावस्था 3 से 13 वर्ष तक होती है। इस अवस्था में अग्रलिखित शारीरिक परिवर्तन होते हैं –

1. हड्डियाँ (Bones) – बाल्यावस्था में अस्थिनिर्माण (Ossification) क्रिया चलती रहती है। इस अवस्था में हड़ियां काफ़ी कड़ी हो जाती हैं। इस अवस्था में प्रत्येक आयु स्तर पर लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की हड्डियां अधिक कड़ी होती हैं।

2. लम्बाई (Height) बाल्यावस्था में लम्बाई का विकास निम्नलिखित प्रकार बताया जा सकता है –

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लगभग 11 वर्ष की अवस्था में लड़कों की अपेक्षा लड़कियाँ कुछ अधिक लम्बी होती हैं।

3. वजन (Weight) बाल्यावस्था में वज़न का विकास निम्नलिखित प्रकार से होता है –

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लगभग 6-7 वर्ष की अवस्था तक लड़कियों की अपेक्षा लड़के कुछ अधिक भारी हो जाते हैं। बाद की बाल्यावस्था में लड़कों की अपेक्षा लड़कियां कुछ अधिक भारी रहती हैं।

मांसपेशियां (Muscles) – 5 वर्ष की अवस्था तक मांसपेशियों का विकास शारीरिक अनुपात के अनुसार बढ़ता है। लगभग 5-6 वर्ष की अवस्था में मांसपेशियों का विकास तीव्र गति से होता है।

धड़ (Trunk) – 5 वर्ष की अवस्था तक गर्दन पतली और लम्बी दिखाई देने लगती है। बालक का धड़ 6 वर्ष की अवस्था तक जन्म की अपेक्षा दुगुना हो जाता है।

हाथ और पैर (Arms and Legs) – बाल्यावस्था में हाथ पतले रहते हैं परन्तु वयसन्धि अवस्था के आरम्भ होते ही इनकी मोटाई कुछ बढ़ने लगती है।

आठ वर्ष की अवस्था तक पैर 56% विकसित हो जाते हैं।

दांत (Teeth) – छः वर्ष की अवस्था में स्थायी दांत निकलना आरम्भ हो जाते हैं। लड़कियों में स्थायी दांत लड़कों की तुलना में शीघ्र निकलते हैं।

हृदय (Heart) – छ: वर्ष की अवस्था तक हृदय का भार जन्म की अपेक्षा 4-5 गुना हो जाता है। बारह वर्ष तक हृदय का भार जन्म की अपेक्षा सात गुना हो जाता है।

पाचन-तन्त्र (Digestive System) – वयसन्धि अवस्था प्रारम्भ होने तक पाचन-तन्त्र का विकास मन्द गति से होता है।

श्वसन-तन्त्र (Respiratory System) – बाल्यावस्था के अन्त तक छाती और सिर का अनुपात 3 : 2 हो जाता है।

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प्रश्न 18.
बच्चों की शारीरिक आवश्यकताओं से आप क्या समझते हैं ? बच्चों की मुख्य शारीरिक आवश्यकताएं कौन-कौन सी हैं तथा इन्हें किस प्रकार पूरा किया जाना चाहिए ?
उत्तर :
बढते हए शिश की शारीरिक आवश्यकताएं निम्नलिखित हैं –
1. भोजन – जन्म से पूर्व भी बच्चे को भोजन की आवश्यकता होती है क्योंकि उसे जीवित रहना है और विकसित होना है। गर्भ में रहते हुए वह अपना भोजन बिना किसी परिश्रम के अपनी माता से प्राप्त करता रहता है। जन्म के बाद उसे अपनी हर आवश्यकता के लिए अभिभावकों पर निर्भर रहना पड़ता है और इन्हें पूरा करने के लिए स्वयं भी परिश्रम करना पड़ता है। भोजन बच्चे को शक्ति देता है, उसके दांत व हड्डियों को मजबूत बनाता है, खून एवं मांसपेशियों को बढ़ाता है और रोगों से शरीर की रक्षा करता है। मां का दूध बच्चे के लिए सर्वोत्तम आहार है। आयु बढ़ने के साथ-साथ दूध के अलावा कुछ अन्य प्रकार के भोज्य-पदार्थों की भी आवश्यकता होती है।

2. वस्त्र – शिशु के सर्वांगीण विकास में उसके वस्त्रों का भी समुचित स्थान है। वस्त्र बच्चे को मौसम के प्रतिकूल प्रभावों से बचाते हैं। गर्मी, सर्दी, बरसात के मौसम में अनुकूल वस्त्र पहनाए जाते हैं। कपड़ों से शरीर की सुन्दरता भी बढ़ती है। बच्चे को कोमल, हल्के, ढीले-ढाले तथा आरामदेह कपड़े पहनाने चाहिएं जिन्हें पहनकर वह स्वतन्त्रतापूर्वक हिल जुल सके।

3. शारीरिक सुरक्षा व स्वच्छता – बच्चे का शरीर आरम्भ में बहुत कमजोर होता . है। उसकी देख-भाल बहुत ही धैर्य और आराम से होनी चाहिए। बच्चे के शरीर को रोगों से सुरक्षित रखना चाहिए। उसकी देख-भाल स्वास्थ्यप्रद वातावरण में होनी चाहिए। उसके बाल, त्वचा, नाखून, दांत, नाक, कान तथा आंखों की आवश्यकतानुसार देख भाल होनी चाहिए। बच्चे के उचित पालन के लिए उसकी शारीरिक सफ़ाई की विशेष आवश्यकता होती है। बच्चे के लिए इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुयें, जैसे-तौलिया, दूध की बोतल, खाने के बर्तन, बिस्तर, ब्रुश, कंघा, खिलौने, लंगोट या पोतड़े आदि की पूरी स्वच्छता रखनी चाहिए।

4. नींद – शिशु के उत्तम स्वास्थ्य के लिए परमावश्यक है कि उसे अच्छी प्रकार से नींद आए। जो शिशु पूर्णतः स्वस्थ है वह अपनी पूरी नींद लेता है और सोते समय बार-बार उठता नहीं है। नींद से बच्चे के शरीर को आराम मिलता है और उसकी खोई हुई शक्ति वापस आती है। अत: नींद एक शारीरिक आवश्यकता है।

5. व्यायाम – बच्चा बड़ा हो या छोटा, उसे व्यायाम करना आवश्यक होता है। व्यायाम से शरीर स्वस्थ रहता है। बच्चे की आयु के बढ़ने के साथ-साथ उसके व्यायाम करने का ढंग भी बदलता जाता है। प्रारम्भ में शिशु अपने बिस्तर पर ही लेटा हुआ अपनी टांगें तथा बांहें फेंककर व्यायाम करता है। जब घुटनों के बल चलने लगता है तो वह चलकर, भागकर अथवा कूदकर व्यायाम करता है। बच्चे की देख-भाल करने वाले को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चा हर रोज़ आवश्यकतानुसार व्यायाम करे ताकि उसका शरीर स्वस्थ रहे।

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प्रश्न 19.
शिशु की भावनात्मक आवश्यकताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
भावनात्मक आवश्यकतायें बच्चे के व्यक्तित्व को बनाने में सहायक होती हैं इसलिए बच्चे के व्यक्तित्व को सन्तुलित बनाने के लिए इनकी पूर्ति करना अत्यन्त आवश्यक है। बच्चे की भावनात्मक आवश्यकतायें निम्नलिखित हैं –
1. अनुराग या प्रेम – बच्चे की यह भावनात्मक आवश्यकता बहुत गहरी होती है। प्रत्येक बच्चा अपने माता-पिता से प्यार तथा दुलार की आशा रखता है। माता-पिता या अभिभावक के प्यार भरे शब्द व मुस्कराहट बच्चे की इस आवश्यकता की पूर्ति करती है। बच्चे में इससे अपने प्रति विश्वास की भावना पैदा होती है। माता-पिता की डांट या थोड़ा सा भी अनादर बच्चे के इस विश्वास को ठेस पहुंचाता है और इसका प्रभाव उसके व्यक्तित्व पर पड़ता है।

2. भावनात्मक सुरक्षा – भावनात्मक सुरक्षा बच्चे को स्वतन्त्र एवं परिपक्व होने में सहायता देती है। अपने माता-पिता से मिले प्यार, दुलार, प्रशंसा, रुचि, आराम तथा दिलासा के आधार पर ही इस भावना का निर्माण होता है। कभी-कभी अधिक लाड़-प्यार से बच्चे बिगड़ भी जाते हैं। बच्चे को यह विश्वास बना रहना चाहिए कि उसके माता-पिता उसे प्यार करते हैं। उसे कभी यह अनुभव नहीं होना चाहिए कि घर में उसकी आवश्यकता नहीं है। कई घरों में विशेष रूप से ऐसा लड़कियों के साथ होता है।

3. सम्बद्धता – बच्चा अपने माता-पिता से प्रेम के साथ-साथ घर में अपना अस्तित्व भी चाहता है। वह घर में हर सदस्य से जुड़ा हुआ महसूस करना चाहता है। वह चाहता है कि घर के कार्यों में उसे भी सम्मिलित किया जाये। घर में उसकी ज़रूरत है इसका आभास उसे देते रहना चाहिए। कभी-कभी बच्चे से किसी बात की सलाह लेने से उसे खशी होती है।

4. अभिज्ञान – बच्चा भी आकर्षण केन्द्र बनकर लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करके आनन्द का अनुभव करता है। उसे भी इच्छा रहती है कि कोई उसकी प्रशंसा करे। वह वही कार्य करना चाहता है जिससे वह प्रशंसा का भागी बन सके। उसकी यह भावना सदैव उसके साथ रहती है और वह सदैव उसे पाने के लिए प्रयत्नशील रहता है।

5. स्वतन्त्रता – बच्चे को प्रारम्भ में संसार का कोई अनुभव नहीं होता परन्तु रे-धीरे वह बहुत-सी बातें सीखता है, उसमें खोजने की भावना जन्म लेती है। जब वह अपने आपको किसी काम को कर सकने योग्य पाता है तो उसके मन में अपने आपके प्रति एक विश्वास जागता है। इस विश्वास के साथ-साथ वह आगे बढ़ने का प्रयत्न करता है। वह पहले से अधिक कठिन कार्य करने की इच्छा व्यक्त करता है। इस प्रकार बच्चे में स्वावलम्बन पैदा होता है। उदाहरण के तौर पर छोटे बच्चों में इस प्रकार के व्यवहार अक्सर देखने को मिलते हैं, जैसे वह स्वयं खाना चाहता है, स्वयं कपड़े पहनना चाहता है। बच्चे की इन इच्छाओं को दबाना नहीं चाहिए बल्कि उसे स्वयं काम करने देना चाहिए। परन्तु साथ-साथ इस बात का ध्यान भी रखना चाहिए कि स्वयं कार्य करता हुआ बच्चा कभी अपने आपको चोट न पहुंचाये।

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प्रश्न 20.
शिश की सामाजिक आवश्यकताओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
बालक की प्रमुख सामाजिक आवश्यकताएँ कौन-कौन सी हैं ? वर्णन करो।
उत्तर :
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जब बालक जन्म लेता है तो वह अपनी हर आवश्यकता के लिए दूसरे व्यक्ति पर निर्भर करता है। प्रत्येक सामाजिक प्राणी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एक-दूसरे पर निर्भर करता है। हरलॉक के अनुसार, “कोई भी बालक सामाजिक पैदा नहीं होता। वह दूसरों के होते हुए भी अकेला ही होता है। समाज में दूसरों के सम्पर्क में आकर समायोजन की प्रक्रिया को सीखता है। इसलिए समाजीकरण की प्रक्रिया बालक के विकास के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।” बढ़ते हुए बच्चे की सामाजिक
आवश्यकतायें निम्नलिखित हैं

1. आश्रितता – जब बच्चा अकेला होता है, तो रोता है। जब उसे गोद में लिया जाता है तो वह चिपटता है। कई लोगों के बीच में भी बच्चा प्रसन्न रहता है। इस प्रकार बालक की यह आवश्यकता आश्रितता की ओर संकेत करती है।

2. अनुकरण – बच्चा पहले मुखाकृतियों का, फिर हाव-भाव का, फिर भाषा और अन्त में सम्पूर्ण व्यवहार प्रतिमान का अनुकरण करना सीखता है। अनुकरण वह प्रक्रिया है जिसकी सहायता से बच्चा आगे चलकर सामाजिक प्राणी बनता है।

3. सहयोग – लगभग 12 वर्ष की अवस्था में यद्यपि बच्चों में दूसरे बच्चों के प्रति सहयोग के लक्षण दिखाई देते हैं, परन्तु दूसरे बच्चों की अपेक्षा वयस्क लोगों के प्रति बच्चों में सहयोग की अधिक इच्छा होती है।

4. शर्माहट – बालक जब लगभग 1 वर्ष का होता है तब उसमें शर्म के लक्षण दिखाई देते हैं, विशेष रूप से जब बालक के सामने कोई अपरिचित व्यक्ति आता है।

5. सहानुभूति – यह गुण प्रारम्भ से ही विकसित होने लगता है। सहानुभूति की भावना परिस्थिति के कारण उत्पन्न होती है। दूसरे बच्चे के शारीरिक या मानसिक दुःख को अनुभव कर बच्चा उसके प्रति सहानुभूति रखता है। सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार में आयु एवं मानसिक परिपक्वता के साथ-साथ व्यक्तिगत भिन्नता पाई जाती है।

6. प्रतिस्पर्धा – अपने को आगे बढ़ाने में बालक सदा ही लगा रहता है और इसी भावना से प्रेरित हो उसमें प्रतिस्पर्धा विकसित होती है। किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए यह गुण बहुत काम आता है।

7. सामूहिक क्रियाएं – दो वर्ष का बालक खेलने के लिए साथी ढूँढ़ने लगता है। बढ़ती अवस्था के साथ-साथ सामूहिक रूप से कार्य करने की प्रवृत्ति विकसित होती है। घर में भी अन्य सदस्यों के साथ मिलकर कार्य करना सीखता है।

8. सामाजिक अनुमोदन की इच्छा – सम्भवतः जब बच्चा बोलना भी नहीं जानता, तभी वह यह समझने लगता है कि वह प्रशंसा और ध्यान का केन्द्र है। बालक को सामाजिक अनुमोदन जैसे-जैसे प्राप्त होता जाता है, उसे प्रसन्नता और आनन्द प्राप्त होता जाता है। बहुत छोटा बच्चा यद्यपि अनजान व्यक्तियों से शर्माता है, परन्तु कुछ बड़ा बच्चा इन अनजान व्यक्तियों से अपने माता-पिता की अपेक्षा अधिक अनुमोदन प्राप्त करना चाहता है। जिस बच्चे में सामाजिक अनुमोदन की जितनी अधिक इच्छा होती है वह सामाजिक समायोजन उतनी ही जल्दी कर लेता है। वह शीघ्र ही समाज की प्रत्याशाओं के अनुसार व्यवहार अपना लेता है।

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प्रश्न 21.
सामाजिक परिपक्वता के अध्ययन की कौन-कौन सी विधियाँ हैं ?
अथवा
सामाजिक परिपक्वता के अध्ययन की विधियों के नाम व उनके आविष्कारक बताएँ।
उत्तर :
प्रत्येक अवस्था में बालक को सामाजिक व्यवहार का अध्ययन अनेक विधियों द्वारा किया जाता है। ये विधियाँ दो प्रकार की हैं –
1. समाजमिति-इसके आविष्कारक श्री जे० एल० मोटनी हैं। इस नियम के अनुसार बालकों से पूछा जाता है कि वे किस प्रकार के बालकों के साथ बैठना या खेलना या काम करना पसन्द करेंगे। इसे एक रेखाचित्र पर अंकित करते हैं। एक वर्ष के बाद फिर इसी प्रकार का समाज रेखाचित्र तैयार करते हैं। इससे पता चलेगा कि उसका अन्य कौन-सा साथी लोकप्रिय बन गया है।

2. वाईनलैण्ड सामाजिक परिपक्वता माप-यह विधि प्रमाणीकृत कर ली गई है। इसके आविष्कारक डॉ० एडगर डोल हैं। इस नियम का प्रयोग विभिन्नावस्था के बालकों के सामाजिक व्यवहार का मापन करने के लिए किया जाता है। इसमें किशोरावस्था तक की 117 सामाजिक क्रियाओं को दिया गया है। इसके साथ ही सम्बन्धित रेखाचित्र भी दिए हैं जिसमें 31/2 वर्ष, 5 वर्ष, 8 वर्ष, 10 वर्ष तथा 12 से 15 वर्ष तक की अवस्था वाले बालकों की कार्यशक्ति प्रदर्शित की है।

31/2 वर्ष की अवस्था का बालक कैंची से कागज़ काटना, चम्मच का प्रयोग करना, पानी, गड्ढे और सीढ़ियों से अपने आप को बचाने आदि कार्य कर सकता है। 5 वर्ष की अवस्था का बालक वस्त्र पहनना, स्नानगृह में जाकर कपड़े उतारना, आँख-मिचौनी, कंकड पत्थर फेंकना और रस्सी कूदना आदि खेल खेलना तथा चित्र बनाना आदि कार्य कर सकता है। 8 वर्ष की अवस्था का बालक वयस्क के समान भोजन लेना, समय देखना, बाल संवारना तथा सामूहिक खेलों में भाग लेना शुरू कर देता है।

10 वर्ष की अवस्था का बालक दूध और आलू उबालना, जूस निकालना, बाजार से चीजें खरीदना, पैसे सुरक्षित रखना, सन्देश पहुँचाना आदि कार्य कर सकता है। 12 से 15 वर्ष की अवस्था का बालक कौशल सम्बन्धी खेलों में भाग लेना, साहित्यिक और सामाजिक समारोह में भाग लेना, ऋतु और अवसर के अनुसार कपड़े बदलना, घर और बगीचे सम्बन्धी कार्य करना आदि सभी कार्य करने की क्षमता रखता है।

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प्रश्न 22.
बालक के आन्तरिक अवयवों के विकास के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर :
बालक के आन्तरिक अवयवों के अन्तर्गत निम्नलिखित अवयव आते हैं –

  1. पाचन-तंत्र
  2. श्वसन-तंत्र
  3. हृदय
  4. मस्तिष्क
  5. परिवाही प्रणाली
  6. स्नायुमंडल
  7. मांसपेशियाँ
  8. चर्बी।

1. पाचन-तंत्र – बालक का पेट नालिका के आकार का होता है और एक वयस्क व्यक्ति का पेट थैली के आकार का होता है। वयस्क की अपेक्षा बालक को शीघ्र भूख लगती है क्योंकि बालकों की पाचन क्रिया तेज़ गति से चलती है। इसीलिए एक बालक को कई बार दूध पिलाना चाहिए। जन्म के समय बालक का पेट 1 औंस और 15 दिन के बाद 1/2 औंस और एक महीने के बाद 3 औंस वस्तु को ग्रहण करता है। बालकों के आहार में पौष्टिक तत्त्व 900 से 1200 कैलोरी तक होने चाहिएं।

2. श्वसन-तंत्र – नवजात बालक के फेफड़े छोटे आकार के होते हैं। दो साल की उम्र में फेफड़े व सिर दोनों का विकास समान होता है। परन्तु 13 साल के बालक के सीने का भार तो बढ़ता है परन्तु आकार वही रहता है। किशोरावस्था में फेफड़े का वज़न भी बढ़ जाता है। इस तरह श्वास लेने की क्षमता में भी वृद्धि होती है।

3. हृदय – नवजात बालक का हृदय छोटे आकार का होता है। लेकिन दैहिक भार के अनुपात में वह अधिक भारी होता है और किशोरावस्था तक शरीर का भार बढ़ जाता है। इस प्रकार किशोरावस्था में हृदय छोटा रह जाता है और नसें व नाड़ियाँ बढ़ जाती हैं। 6 साल की अवस्था में बालक के हृदय का भार जन्म से 4 से 5 गुना, 12 साल की उम्र में बालक के हृदय का भार जन्म से 7 गुना और वयस्कता की अवस्था में जन्म से 12 गुना हो जाता है।

4. मस्तिष्क – नवजात बालक के मस्तिष्क का भार 350 ग्राम होता है। जन्म से लेकर चार साल में बालक का मस्तिष्क अधिक तेज़ गति से विकास करता है। चार से आठ सालों में विकास धीमी गति से होता है और इसके पश्चात् किशोरावस्था तक मस्तिष्क के विकास की गति फिर तेज़ हो जाती है। 20 साल की आयु तक मस्तिष्क का पूर्ण विकास हो जाता है और इसलिए 20 साल के किशोर का मस्तिष्क सभी क्रियाएँ कर सकता है।

5. परिवाही प्रणाली – नवजात बालक की नाड़ी अधिक तेज़ गति से चलती है। जैसे जैसे बालक बड़ा होता है नाड़ी गति में कमी आ जाती है। बाल्यावस्था में रक्तचाप कम हो जाता है। उम्र वृद्धि के साथ रक्तचाप में भी वृद्धि आ जाती है। बाल्यावस्था में लड़के और लड़कियों का रक्तचाप समान रहता है। छोटे बालकों का तापमान भी स्थिर नहीं रहता है, वह बदलता रहता है। दोपहर व शाम की तुलना में सुबह तापमान कम रहता है।

6. स्नायुमंडल – स्नायुमंडल का निर्माण गर्भावस्था के पहले महीने से आरम्भ हो जाता है और गर्भ के छठे महीने तक एक अरब से ज्यादा स्नायुकोष मिलकर स्नायुमंडल का निर्माण करते हैं। जन्म से 3-4 सालों तक स्नायुमंडल का विकास तेज़ गति से होता है। उसके बाद विकास की गति धीमी पड़ जाती है। चार साल के बाद स्नायुमंडल का विकास मंद गति से होता रहता है।

7. मांसपेशियाँ – हृदय, पाचन-तंत्र और ग्रन्थियों का नियन्त्रण मांसपेशियों के द्वारा होता है। नवजात बालक की मांसपेशियों के तन्तु अविकसित होते हैं। नवजात बालक पराधीन एवं कमज़ोर होता है क्योंकि उसकी क्रियाओं में कोई तालमेल नहीं होता है। जन्म के समय मांसपेशियों का भार सम्पूर्ण दैहिक भार का 23% और 8 साल में दैहिक भार का 27%, 13 साल में दैहिक भार का 33% और 16 साल में सम्पूर्ण दैहिक भार का 44% हो जाता है। किशोरावस्था के पश्चात् लड़के एवं लड़कियों की मांसपेशियों में भिन्नता आ जाती है। लड़कों की मांसपेशियाँ ज्यादा मज़बूत और बड़ा होता है।

8. चर्बी – जन्म से लेकर नौ महीने तक चर्बी की मात्रा बहुत तेज़ गति से बढ़ती है। बालक के शरीर में चर्बी की मात्रा उसके वंशानुक्रम, शारीरिक रचना और भोजन पर निर्भर करती है। ग़रीब परिवारों के बालकों में चर्बी की मात्रा धीमी गति से बढ़ती है। एक साल के बाद 6 साल की उम्र तक चर्बी घटती है और 6 साल से 11 साल की उम्र तक चर्बी की मात्रा समान रहती है।

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प्रश्न 23.
ज्ञानात्मक विकास का क्या अर्थ है ? तीन साल के बच्चे के अन्दर हुए ज्ञानात्मक विकास का विवरण दो।
उत्तर :
ज्ञानात्मक विकास में बच्चे की सोचने, तर्क करने, समस्याओं को हल करने की क्षमताओं का विकास होता है। जन्म से 3 वर्ष तक का ज्ञानात्मक विकास-सभी नवजात शिशु व्यवहार को दोहराना सीखते हैं। जैसे 2-3 माह का शिशु अपने होठों को इस प्रकार हिलाता है जैसे चूस रहा हो। वह इस क्रिया को तब भी करता है जब वह भूखा नहीं होता क्योंकि ऐसा करना उसे अच्छा लगता है। इन बच्चों को यदि खिलौने दिए जाए तो वह उसे हाथ में लेकर देखते हैं, चूसते हैं, रगड़ते हैं आदि। इस प्रकार की क्रियाओं से वह वस्तुओं के बारे में ज्यादा जानते व समझते हैं।

वस्तु स्थायित्व –

एक 5-6 माह के बालक को यदि कोई खिलौना दिखाकर छुपाया जाए तो वह उसे ज्यादा नहीं ढूँढ़ता। वह इसीलिए क्योंकि वह यह समझता है कि जो वस्तु को वह देख नहीं सकता वह है ही नहीं।

परन्तु 1\(\frac{1}{2}\) साल के बच्चे के साथ यदि ऐसा किया जाए तो वह खिलौना तुरन्त ढूँढ निकालेगा या आपसे वापिस मांगेगा। अत: नजरों से दूर होते ही किसी खिलौने अथवा वस्तु का बालक द्वारा न भूल जाने को ‘वस्तु स्थायित्व’ कहते हैं। लगभग 2 साल तक बच्चा यह सीख लेता है।

3 साल के बच्चे ऐसा सोचते हैं कि निर्जीव वस्तुओं में भी जान होती है। वे समझते हैं कि वस्तुओं में मानवीय गुण जैसे गुड़िया के पेट में दर्द होता है, मेज़ को चोट लगती है आदि छोटे बच्चे दूसरों का दृष्टिकोण नहीं समझ पाते। उदाहरण के लिए हम रोहन व उसके माँ के बीच हुए वार्तालाप पर नजर डालते हैं। रोहन कमरे में है और माँ रसोई में माँ।

रोहन दूध खत्म किया ?
रोहन : (जवाब में हाँ का सिर हिला देता है)।
माँ फिर पूछती है और रोहन फिर से सिर हिलाता है। वह यह बात नहीं समझता कि माँ को रसोई में उसका हिलता हुआ सिर नहीं बल्कि उसकी आवाज़ सुनाई देगी।

प्रश्न 24.
सीखना (Learning) क्या है ?
अथवा
सीखने की क्रिया को कितने भागों में बाँटा गया है ? उदाहरण सहित बताएँ।
उत्तर :
सीखने की क्रिया बालक के जन्म से ही आरम्भ हो जाती है। बालक जब माता के गर्भ में रहता है, तभी से उसमें कुछ चेतना आ जाती है और वह कभी-कभी बाहरी वातावरण की प्रतिक्रियाओं से प्रभावित हो जाया करता है।
सीखने की क्रिया को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है –
1. जन्म-जात क्रिया
2. सीखना।
1. जन्म-जात क्रिया – ये वे क्रियायें हैं जो सभी प्राणियों में पाई जाती हैं। इन्हें सहज क्रियायें (Reflex actions) कहा जाता है। बालक पैदा होते ही छींकता है, खांसता है, मल त्याग आदि करता है, ये सभी क्रियाएं जन्मजात होती हैं। इन क्रियाओं को सीखने की क्रियाओं में नहीं रखा जा सकता क्योंकि इनके अर्जन में बच्चे को श्रम नहीं करना पड़ता
और वह इन्हें सीखने के लिए समाज के सहारे रहता है। वातावरण का प्रभाव इस क्रिया पर कुछ भी नहीं पड़ता।

2. सीखना – सीखना वह क्रिया है जिसके अभ्यास के फलस्वरूप बच्चे (या सीखने वाले) के व्यवहार में किसी प्रकार का स्थायी परिवर्तन होता है। इस परिवर्तन के फलस्वरूप ही वह अपने नये वातावरण में अभियोजित करने में समर्थ होता है।

इसे हम इस प्रकार समझ सकते हैं-यदि कोई बच्चा जलती लालटेन पर हाथ रखता है और जलन का अनुभव होते ही वह शीघ्र हाथ हटा लेता है, तो भविष्य में इस प्रकार की 2-4 गलतियों के बाद वह सीख जाता है कि जलती लालटेन पर उसका हाथ न पड़े। यहीं से बच्चे के सीखने की प्रक्रिया प्रारम्भ होती है। ऐसा ही उसके चलने-फिरने में भी होता है। जिस मार्ग में या वस्तु से टकराकर उसे चोट लगती है, वहां वह दुबारा नहीं जाना चाहता।

बालक जब पैदा होता है वह बोलना नहीं जानता। कुछ बड़ा होने पर वह बोलना सीख जाता है। बोलना सीख लेने पर उसके जीवन में एक नवीनता आती है और उसके व्यवहार में भी परिवर्तन आता है। इस प्रकार बच्चा चलना सीखता है और फिर चलने के द्वारा दौड़ना और उछलना सीखता है। इस प्रकार शारीरिक एवं मानसिक विकास के साथ-साथ उसका सीखने का क्रम भी चलता रहता है। बच्चा बार-बार गिरता है और चोट खाता है तब जाकर कहीं चलना सीखता है। अत: अपने को वातावरण के अनुकूल ढाल लेने की सफलता ही सीखना है।

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प्रश्न 25.
सीखने की विधियों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
सीखने की तीन विधियों का उल्लेख करें।
उत्तर :
बच्चा जब जन्म लेता है अर्थात् बाहरी वातावरण में प्रवेश करता है, उसी समय से वह विभिन्न विधियों द्वारा सीखना प्रारम्भ कर देता है। सीखने की विधियों द्वारा ही बच्चा चलना-फिरना, पढ़ना-लिखना और बोलना-चालना सीखता है। सीखने की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं –
1. अभ्यास विधि
2. अनुकरण विधि
3. सम्बन्धीकरण विधि
4. आन्तरिक सूझ विधि।

1. अभ्यास विधि – इसे प्रयास और भूल की विधि भी कहते हैं। बच्चा अपने प्रारम्भिक ज्ञान को इसी विधि द्वारा प्राप्त करता है। जब बच्चा चलना सीखता है तब बार-बार गिरता है और उठता है। बच्चे का प्रयास तब तक जारी रहता है जब तक वह चलना सीख नहीं लेता। इसी प्रकार वह बैठना, उठना, खेलना, बढ़ना आदि इसी विधि द्वारा सीखता है।

2. अनुकरण विधि – घर में माता-पिता व अन्य सदस्यों को खाते-पीते, चलते फिरते, बात करते देखकर बच्चा उसका अनुकरण करता है। बच्चा बहुत-सा ज्ञान अनुकरण द्वारा प्राप्त करता है।

3. सम्बन्धीकरण विधि – इस विधि में स्वाभाविकता का अनुभव होता है। जैसे रोता हुआ बालक किसी के आने की आहट से रोना बन्द कर देता है। किसी स्त्री को देखकर बच्चा प्रसन्न हो उठता है क्योंकि वह स्त्री को माता के रूप में सोचता है। बच्चे को मां के आने से सन्तोष मिलता है क्योंकि उसे दूध पीने को मिलता है और उसकी भूख शांत होती है। यह एक स्वाभाविक उत्तेजना होती है।

4. आन्तरिक सूझ विधि – सीखने की यह भी एक महत्त्वपूर्ण विधि है। बच्चा जब किसी घोर आवश्यकता या संकट में पड़ जाता है तब उसे स्वयं ही कोई उपाय सूझ जाता है। इसमें संकेत अथवा अनुकरण की आवश्यकता नहीं पड़ती।

प्रश्न 26.
सीखने की क्रिया को कौन-से तत्त्व प्रभावित करते हैं ?
अथवा
सीखने की क्रिया को प्रभावित करने वाले छः तत्त्व बताएं।
उत्तर :
सीखना एक कला है। सीखने की कला में बहुत-से तत्त्व सहायक होते हैं। सीखने की क्रिया को प्रभावित करने वाले तत्त्व अग्रलिखित हैं –
1. प्रेरणा – नए कार्यों को सीखने के पीछे वास्तव में कोई-न-कोई प्रेरणा कार्य करती है। प्रेरित होकर ही बच्चा कोई नया कार्य सीखना चाहता है और प्रयास करता है। प्रेरणा से बच्चा क्रियाशील बनता है।

2. रुचि – बिना रुचि के कोई कार्य नहीं सीखा जा सकता। बच्चों में अभिरुचि उत्पन्न करके ही उन्हें बहुत-सी बातें सिखाई जाती हैं।

3. आत्म प्रगति का ज्ञान – जब बच्चे को पता चल जाता है कि किसी कार्य को करने या उसमें हिस्सा लेने में प्रगति है, तो स्वयं ही उसे सीखने की कोशिश करता है।

4. पुरस्कार व दण्ड – पुरस्कार व प्रतिष्ठा की प्राप्ति की प्रेरणा से बालक अधिक और कठिन कार्य भी पूरे कर लेते हैं, जैसे परीक्षा में पोजीशन प्राप्त करने के लिए पढ़ाई में कड़ी – मेहनत करते हैं। दण्ड का भय बच्चों को गलत बात सीखने से रोकता है। ….

5. प्रशंसा – प्रशंसा के लालच में बच्चे बहुत कार्य करना सीख जाते हैं।

6. संवेदना और प्रत्यक्षीकरण – आँख, कान, नाक, त्वचा तथा जीभ ये पाँच इन्द्रियां संवेदना के पांच द्वार हैं। इन्हीं के द्वारा प्रत्यक्षीकरण होता है। यदि हमारा कोई संवेदन अंग दोषपूर्ण होगा, तो उस अंग से कुछ सीखना प्रायः कठिन होगा।

7. थकान – बच्चा जब थका होता है, तब भी उसे कोई बात सीखने में अत्यन्त कठिनाई होती है।

8. आयु – सीखने का सम्बन्ध आयु से भी है। छोटे बच्चे को यदि संगीत या डांस सिखाया जाए, तो वह वयस्कों की तुलना में जल्दी सीख जाते हैं।

9. समय – विभिन्न कार्यों को सीखने के लिए विभिन्न समय होते हैं। जैसे पढ़ाई करने का उत्तम समय प्रातःकाल का बताया जाता है। 10. वातावरण – सीखने की प्रक्रिया पर वातावरण पर प्रभाव पड़ता है जैसे शोर-गुल में पढ़ा नहीं जा सकता। अधिक गर्मी और अधिक नमी भी बच्चों की कार्य-क्षमता को कम कर देती है।

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प्रश्न 27.
बच्चे बोलना कैसे सीखते हैं ?
अथवा
बच्चे भाषा कैसे सीखते हैं ?
उत्तर :
बच्चा जिस समय पैदा होता है, वह जिह्वा से तो युक्त होता है परन्तु उसमें बोलने की क्षमता बिल्कुल नहीं होती। जन्म के बाद वह रोकर इस संसार में अपने आगमन की सूचना देता है। यह रोना ही उसकी वाक्-शक्ति की पहचान होती है। धीरे-धीरे उसके शारीरिक एवं मानसिक विकास के साथ-साथ उसकी वाक्-शक्ति का भी विकास होता है। सभी बच्चे एक ही अवस्था में बोलना नहीं सीखते। उनमें अन्तर होता है। बच्चे वाक्-शक्ति के विकास के पूर्व अपनी आवश्यकताओं को तीन रूपों में प्रकट करते हैं।
1. रुदन (रोना)
2. अस्पष्ट ध्वनि या अस्पष्ट शब्द बबलाना या बालालाप
3. संकेत या अंग विक्षेप या हाव-भाव

जीवन के प्रारम्भिक काल में शिशु अपनी आवश्यकता को रोकर ही प्रकट करता है। जब उसे भूख लगती है या जब वह गीले कपड़ों में लिपटा होता है या किसी रोग से पीड़ित होता है, तब वह अपनी व्यथा को रोकर ही व्यक्त करता है। भूख लगे रोते बच्चे को जब दूध पिलाया जाता है, तो वह तुरन्त प्रसन्न होकर हाथ-पैर चलाने लगता है। तीसरे सप्ताह के बाद बच्चे का रोना धीरे-धीरे कम हो जाता है।।

जब बच्चा डेढ़-दो मास का हो जाता है तब वह अपने कण्ठ से विशेष प्रकार की आवाज़ निकालता है जिसे बच्चे की किलकारी कहा जाता है। बाद में वह हा, हूँ तथा कुछ अस्पष्ट शब्दों का उच्चारण करने लगता है। परन्तु इस समय तक इन शब्दों का कोई अर्थ नहीं होता है। धीरे-धीरे खुशी की हालत में, जम्हाई लेते समय, छींकते समय तथा खांसते समय बच्चा कुछ ध्वनियां निकालता है। चार मास की आयु में ये ध्वनियां स्पष्ट सुनाई देने लगती हैं। बच्चे की ध्वनियों के विश्लेषण से ज्ञात होता है कि इन ध्वनियों में स्वर ही रहते हैं। जब बच्चे के सामने के दांत निकल आते हैं, तभी वह जीभ की नोंक, होंठों तथा दाँतों की सहायता से व्यंजन बोल सकने में समर्थ होता है।

एक वर्ष की आयु में बच्चा सभी स्वर तथा सीधे व्यंजन उच्चारित करने लगता है। धीरे-धीरे इन ध्वनियों की संख्या बढ़ती जाती है। इन ध्वनियों में एकरूपता भी आती जाती है। पहले पहल बच्चा व्यंजन और स्वर को मिलाकर बोलता है, जैसे-“ना” “मा” “गा” “दा” “बा”। बाद में अभ्यास के द्वारा बच्चा इन ध्वनियों को दोहराने लगता है जैसे-“ना-ना-ना-ना”, “मा-मा-मा-मा”, “दा-दा-दा-दा”, “गा-गा-गा-गा”, “बा बा-बा-बा” आदि। इसे बबलाना या बालालाप कहते हैं।

अभ्यास के द्वारा बच्चा अपनी आवाज़ को ऊँची या नीची भी कर सकता है। बबलाने की क्रिया द्वारा बच्चा अपने माता-पिता से वार्तालाप करने का प्रयास करता है। बबलाने से बच्चे को आनन्द की प्राप्ति भी होती है। इसके साथ-साथ बबलाने द्वारा बच्चा अपने स्वर यन्त्रों की मांसपेशियों को नियंत्रित करना भी सीखता है।

बोलना सीखने की तैयारी में तीसरी प्रधान क्रिया अंग विक्षेप या हाव-भाव है। बच्चा ध्वनियां निकालने के साथ-साथ अंग विक्षेप भी करता है। अंग विक्षेप में बच्चा सारा शरीर ही प्रयोग में लाता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, बच्चा अंग विक्षेप द्वारा अपनी बातें माता-पिता या बड़ों को समझाता है। यदि बच्चा इसमें सफल नहीं होता तो वह रोने लगता है उदाहरण के तौर पर भूख न होने पर मुँह से दूध बहने देना, मुस्कराना, हाथ फैलाना जिससे कोई गोदी में उठा ले, अनिच्छा प्रकट करने के लिए नहलाते या कपड़ा पहनाते समय रोना, कोई वस्तु पकड़ने के लिए हाथ आगे करना, गुस्से की अवस्था में हाथ-पैर पटकना या मुँह फुला लेना आदि।

जैसे-जैसे बच्चा बोलना सीखता है, अंग विक्षेपों की संख्या घटती जाती है, क्योंकि वह अब इन पर कम निर्भर करता है। 12 से 18 मास की आयु के बीच बच्चा बोलना सीखता है। एक वर्ष का बच्चा “ताता”, “पापा”, “दादा”, “मामा”, “बाबा” आदि शब्दों का अनुकरण कर सकता है। बाद में दो वर्ष की आयु तक वह दो-तीन संज्ञा शब्दों का वाक्य तोतली भाषा में बोलता है।

तीन वर्ष की आयु में बच्चा अपने बड़ों का अनुकरण करता हुआ पूरा वाक्य बोलने का प्रयत्न करता है। यही ऐसा समय होता है जब माता-पिता तथा परिवार के अन्य सदस्यों को शब्दों के उच्चारण व बोल-चाल का विशेष ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि बच्चा उन्हीं उच्चारण का अनुकरण करता है जो घर में बोले जाते हैं। इस आयु में बच्चे का शब्द भण्डार बढ़ जाता है। लगभग 1000 शब्द का भण्डार उसके पास हो जाता है। पांच वर्ष की आयु में वह कहानी सुन तथा कह सकता है। इस प्रकार इन थोड़े-से-वर्षों में बच्चों का भाषा ज्ञान बहुत तीव्र गति से बढ़ता है।

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प्रश्न 27(A).
बालालाप (बैबलिंग) क्या होती है ? बच्चे यह प्रायः किस आयु में शुरू करते हैं ?
उत्तर :
देखें प्रश्न 27 का उत्तर।

प्रश्न 28.
भाषा विकास को कौन-कौन से कारक प्रभावित करते हैं ?
अथवा
भाषा विकास को प्रभावित करने वाले तत्त्व कौन-कौन से हैं ?
अथवा
बच्चों के भाषा विकास में विभिन्नताएँ क्यों पाई जाती हैं ?
अथवा
भाषा विकास को प्रभावित करने वाले छः कारक बताएं।
उत्तर :
बालक का भाषा विकास कैसे और कितना होगा यह निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है –
1. स्वास्थ्य – दो साल तक की आयु में यदि बच्चा अधिक बीमार रहता है, तो उसका भाषा विकास निश्चित समय से देर में होता है।

2. सामाजिक आर्थिक स्थिति – जिन बालकों का सामाजिक आर्थिक स्तर ऊंचा होता है यह देखा गया है कि उनका भाषा विकास जल्दी और अच्छा होता है। वह अपने विचार ज्यादा अच्छी तरह से व्यक्त कर सकते हैं क्योंकि उनको वातावरण सम्बन्धी वह सभी उपकरण मिल जाते हैं जो भाषा विकास में सहायक होते हैं।

3. लिंग – प्रत्येक आयु में यह देखा गया है कि भाषा विकास में लड़कियां, लड़कों से आगे रहती हैं, वह बोलना जल्दी सीखती हैं, शब्द साफ़ और वाक्य लम्बे बना लेती हैं।

4. पारिवारिक सम्बन्ध – यदि मां के साथ बच्चे के सम्बन्ध अच्छे हैं, तो बालक का भाषा विकास भी ठीक होगा। जिस परिवार में बच्चों की देखभाल ठीक प्रकार से नहीं होती उन बच्चों में हीनता की भाषा के कारण बहुत-से भावना दोष विकसित हो जाते हैं, जैसे हकलाना आदि।

जो बच्चा परिवार में अकेला होता है उसकी तरफ़ माता-पिता भी अधिक ध्यान देते हैं। इसलिए उसका भाषा विकास भी अच्छा होता है।

5. व्यक्तित्व – बुद्धि के अलावा जो बालक शर्माते हैं या अन्तर्मुखी होते हैं उनका भाषा विकास ठीक से नहीं होता। जिन बच्चों का सामाजिक समायोजन ठीक से होता है उनका भाषा विकास भी और बच्चों से अच्छा होता है।

6. बुद्धि – बालक की जितनी अधिक तीव्र बुद्धि होगी उतना ही उसका भाषा विकास अच्छा होगा। बुद्धि से भाषा विकास का सीधा सम्बन्ध है। जो बालक मन्द बुद्धि वाले होते हैं उनका भाषा विकास न के बराबर होता है।

7. निर्देशन – जिन बालकों को अच्छे शिक्षक एवं अभिभावक मिल जाते हैं वे जल्दी-जल्दी भाषा सीखते है क्योंकि वे मॉडल शब्दों के द्वारा भाषा ज्ञान कराते हैं।

8. उत्प्रेरणा – उत्प्रेरक बालक से इशारों से बातचीत नहीं करते बल्कि वे शब्दों के द्वारा बालकों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए प्रेरित करते हैं। ऐसी उत्प्रेरणा से प्रेरित होकर बालकों का भाषा विकास तेजी से होता है।

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प्रश्न 29.
भाषा विकास की अवस्थाओं का उल्लेख करो।
उत्तर :
भाषा विकास क्रम की अवस्थायें निम्नलिखित हैं –
1. ध्वनि पहचानना – नवजात शिशु ध्वनि को नहीं पहचान पाता। धीरे-धीरे वह ध्वनि को पहचानता है। उसके कानों में ध्वनि ग्रहण करने की शक्ति आ जाती है। 5-6 मास की अवस्था में पहुंचने पर शिशु ध्वनियों को पहचानने लगता है, जैसे धड़ाके की आवाज़ से वह चौंक पड़ता है और इधर-उधर देखने लगता है।

2. ध्वनि उच्चारण – ध्वनि को पहचानने के बाद ही ध्वनि उच्चारण करने की क्षमता आती है। 7-8 माह की अवस्था में बच्चा ध्वनि को पहचान कर मुस्कराता भी है। वह दूसरों के द्वारा बोले हुए शब्दों को सुन-सुनकर ही अधिकतर प्रयोग में आने वाले शब्दों को सीख लेता है।

3. शब्द उच्चारण की अवस्था – दो-तीन वर्ष की आयु में बच्चा कठिन शब्दों का उच्चारण भी करने लगता है। इसी अवस्था में माता-पिता उसे वस्तुओं की ओर संकेत करके उन वस्तुओं का नाम बताते हैं और खुद उच्चारण करके उससे कहलवाते हैं।

4. वाक्यों का प्रयोग – शब्दों के उच्चारण के बाद वाक्यों का नम्बर आता है। प्रारम्भ में बच्चा अस्पष्ट तथा असन्तुलित वाक्य बोलता है, किन्तु बाद में धीरे-धीरे वह स्पष्ट वाक्यों को भी बोलने लगता है।

5. लिखित भाषा का प्रयोग – बच्चा पहले बोलना सीखता है बाद में लिखना। लिखने से भाषा में परिपक्वता आती है। भाषा वही पूर्ण मानी जाती है जो बच्चा बोलना भी जानता हो और लिखना भी। भाषा की शुद्धता और सन्तुलन धीरे-धीरे बढ़ता जाता है।

6. भाषा विकास की पूर्ण अवस्था – भाषा विकास की पूर्णता का अर्थ है कि बालक भाषा को समझना, बोलना, पढ़ना और लिखना सभी कुछ जान जाए। भाषा की पूर्णता शीघ्र नहीं आती, धीरे-धीरे प्रयत्न तथा कोशिश के फलस्वरूप आती है। वैसे भाषा विकास से पूर्णता कभी नहीं आती, वह तो सदैव उन्नत अवस्था को प्राप्त होती रहती है।

प्रश्न 30.
भाषा के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाषा के महत्त्व को निम्नलिखित प्रकार व्यक्त किया जा सकता है –
1. प्रगति – भाषा, मानव जाति का इतिहास है। भाषा के माध्यम से व्यक्ति ने आज ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति की है। उसने भाषा की शक्ति के कारण स्वयं को समाज का सर्वोत्तम प्राणी सिद्ध किया है।

2. सामाजिक वंशक्रम की वाहक – आज हमारा प्राचीन साहित्य भाषा के माध्यम से ही सुरक्षित है।

3. सामाजिक सम्पर्क – भाषा सामाजिक सम्पर्क से विकसित होती है। भाषा के विकास के लिए समूह के सदस्य एक-दूसरे के प्रति प्रतिक्रिया करते हैं। क्रिया-प्रतिक्रिया के द्वारा ही समाज में प्रगति होती है।

4. सामाजिक तथा राष्ट्रीय एकता – भाषा सामाजिक तथा राष्ट्रीय एकता को बनाये रखने में एक कड़ी है। इसी से समाज तथा व्यक्ति एक राष्ट्र के रूप में जुड़े रहते हैं।

5. भाषा तथा विचार – भाषा तथा विचार का आपस में गहन सम्बन्ध है। विचार तभी विचार होता है जब उसकी मौखिक अथवा लिखित अभिव्यक्ति होती है।

6. मानव विकास की आधारशिला – भाषा ने व्यक्ति को विकास का आधार प्रदान किया है। जो व्यक्ति भाषा का संयत, संतुलित एवं प्रभावशाली उपयोग करना जानते हैं, वे अपने जीवन में विकास करते हैं।

7.संस्कृति का प्रतिबिम्ब – भाषा के विकास के साथ-साथ सभ्यता तथा संस्कृति भी विकसित हुई है। जिन समूहों की भाषा अविकसित है उनकी सभ्यता तथा संस्कृति भी अविकसित है। जनजातीय भाषा तथा संस्कृति इसके उदाहरण हैं।

8. साहित्य – भाषा और साहित्य का आपसी सम्बन्ध प्रगाढ़ है। किसी भी साहित्य को उसकी भाषा से आंका जाता है। भाषा ने ही वेद, वेदांग, उपनिषद् आदि महान् ग्रन्थ मानव समाज को दिये हैं।

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प्रश्न 31.
बालक में सामान्य भाषा-दोष कैसे उत्पन्न होते हैं ? उन्हें कैसे दूर किया जाता है?
उत्तर :
बहुत से कारणों से बालक में कई भाषा-दोष उत्पन्न हो जाते हैं जो निम्नलिखित हैं
1. तुतलाना – जब बालक के ओंठ, तालू, जीभ, कंठ, कपाल की मांसपेशियों में सामूहिक रूप में सह-कार्य नहीं हो पाता तो यह दोष उत्पन्न होता है। कुछ बालक नकल करने की वजह से तुतलाते हैं, फिर उनको आदत पड़ जाती है। इसमें बच्चे ‘ट’, ‘ठ’, ‘ड’, ‘ढ’, ‘ण’, ‘र’, आदि वर्गों का उच्चारण दोषपूर्ण करते हैं। इसके बदले ट-त, ठ-थ, ड-ध, ण न, न-ल बोलते हैं। बालक को उचित निर्देश देकर व अभ्यास से इस दोष को दूर कर सकते हैं।

2. अशुद्ध शब्द का प्रयोग – यह दोष बालक दूसरे लोगों से सीखते हैं, जैसे ‘नखलऊ, लखनऊ’ और ‘छिकला, छिलका’ को बार-बार अभ्यास द्वारा यह दोष दूर किया जा सकता है। बड़ों को चाहिए कि वह बच्चों के सामने ऐसे न बोलें।

3. रुक-रुक कर बोलना – बहुत से बालकों के शब्द भण्डार में कमी होती है और वे रुक-रुक कर बोलते हैं। बालक को बोलते समय झिड़क कर उसे निराश न करें, वरन् उसे उचित शब्दों के चयन की सलाह देते रहें तो वह दोष दूर हो सकता है।

4. अनुनासिक उच्चारण – कई बार लाड़-प्यार के कारण बालक प्रत्येक शब्द में अनुस्वार लगाकर बोलते हैं और वही आदत बन जाती है जैसे-“हम नहीं खायेंगे”। यह दोष उचित निर्देश व स्नेह से समझाकर सुधार सकते हैं।

5. हकलाना-हकलाने में या तो एक ही स्वर बार-बार दोहराया जाता है। जैसे-क क क कमल या पा पा पा पानी अथवा आवाज़ का एकदम रुक जाना और आगे का अक्षर उच्चारित होना होता है।

हकलाने के प्रमुख कारण हो सकते हैं –
(i) बोलने का गलत तरीका सीख लेना।
(ii) संवेगात्मक तनाव।
(iii) मस्तिष्क सम्बन्धी असन्तुलन।
(iv) ध्वन्यात्मक विस्मृति।
(v) वंशानुक्रम।
(vi) अन्तःस्रावी ग्रंथियों का असंतुलन।

प्रश्न 32.
भाषा विकास की मापन विधियां कौन-सी हैं?
उत्तर :
बालक का भाषा विकास का मापन कई विधियों से किया जा सकता है। ये विधियां निम्नलिखित हैं
1. निर्धारित समय में बालक द्वारा प्रयुक्त शब्दों की गणना – इसमें 15 मिनट तक चुपचाप बालक द्वारा प्रयुक्त शब्दों को लिखा जाता है। इस प्रकार दो-तीन तालिकाएँ बनाकर आपस में तुलना की जाती है। इस आधार पर 7 वर्षीय बालक 36 शब्दों का, 14 वर्षीय लड़का अनुमानत: 160 शब्दों का उच्चारण करता है। 7 वर्षीय बालक की सम्पूर्ण प्रयोग शब्दावली 800 शब्दों की पाई गई और 14 वर्षीय लड़के की 3600 शब्दों की।

2. प्रयुक्त शब्दों की गणना – यह विधि अत्यंत सरल है। इस विधि में बालक के दिनभर के प्रयुक्त शब्दों को एक कॉपी में लिखते जाइए। इससे बालक की पूर्ण प्रयोग शब्दावली का पता लग सकता है।

3. प्रश्नावली – यह भी बुद्धि मापक परीक्षाओं का ही एक अंश होती है। इसके द्वारा अल्प समय में बालक के भाषा विकास की जानकारी, शब्दों की निश्चित संख्या के आधार पर की जा सकती है। इसमें बालकों से प्रश्नों द्वारा शब्दों के अर्थ पूछे जाते हैं।

एक शब्द/एक वाक्य वाले प्रश्न –

(क) निम्न का उत्तर एक शब्द में दें –

प्रश्न 1.
बचपन को कितनी अवस्थाओं में बांटा गया है ?
उत्तर :
चार।

प्रश्न 2.
लड़का कब बालिक (वयस्क) होता है ?
उत्तर :
21 वर्ष की आयु में।

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प्रश्न 3.
जब बच्चा गुस्से से ज़मीन पर लोटता है, इसे क्या कहते हैं ?
उत्तर :
टैम्पर टैंट्रम।

प्रश्न 4.
भूख लगने अथवा पेट दर्द होने पर बच्चा क्या करता है ?
उत्तर :
क्रन्दन।

प्रश्न 5.
कितनी आयु में बच्चा बिना सहारे के चल सकता है ?
उत्तर :
12 वर्ष।

प्रश्न 6.
नवजात शिशु में कितनी हड्डियां होती हैं ?
उत्तर :
270.

प्रश्न 7.
शिशु के प्रथम बार दाँत कब निकल आते हैं ?
उत्तर :
छः से आठ महीने के मध्य।

प्रश्न 8.
नवजात बालक के मस्तिष्क का भार कितना होता है ?
उत्तर :
350 ग्राम।

प्रश्न 9.
जन्म के समय बालक का पेट कितनी वस्तु ग्रहण कर सकता है ?
उत्तर :
1 औंस।

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प्रश्न 10.
एक नवजात शिशु लगभग कितने घण्टे सोता है ?
उत्तर :
20 घण्टे।

प्रश्न 11.
नवजात शिशु का जन्म के समय औसत भार कितना होता है ?
उत्तर :
6 से 8 पौंड।

प्रश्न 12.
आँखों के लिए कौन-सा विटामिन ज़रूरी है ?
उत्तर :
विटामिन ‘ए’।

प्रश्न 13.
हड्डियों के लिए कौन-सा खनिज लवण ज़रूरी है ?
उत्तर :
कैल्शियम।

(ख) रिक्त स्थान भरें –

1. ………… माह का बच्चा सरल, सीधे शब्द जैसे काका, मामा आदि बोल सकता है।
2. हड्डियों की मजबूती ……….. से आती है।
3. बच्चों को टीकों की बूस्टर दवा ……….. वर्ष का होने पर देनी होती है।
4. वृद्धि ………… का एक हिस्सा है।
5. जन्म के समय बच्चे में …………. विकास नहीं होता।
6. जन्म के समय बच्चे की औसत लम्बाई ………. होती है।
7. ………….. शारीरिक विकास को प्रभावित करती है।
उत्तर :
1. 10
2. कैल्शियम
3. छ:
4. विकास
5. सामाजिक
6. 19 से 20 इंच
7. खेल।

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(ग) निम्न में ग़लत तथा ठीक बताएं –

1. समुदाय में रहने वाले बालक में अश्लील व्यवहार करना जैसे अवगुण आ जाते हैं।
प्रत्येक प्राणी की अपनी भाषा होती है। बच्चे दो-अढाई वर्ष तक शौच क्रिया पर नियन्त्रण कर लेते हैं।
हकलाने का एक कारण बोलने का ग़लत तरीका सीख लेना है।
5. बालकों के आहार में 5900 कैलोरी होनी चाहिए।
उत्तर :
1. ठीक
2. ठीक
3. ठीक
4. ठीक
5. गलत।

बहु-विकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
बच्चा कितनी आयु में वयस्क होता है –
(A) 15 वर्ष
(B) 21 वर्ष
(C) 18 वर्ष
(D) 25 वर्ष।
उत्तर :
18 वर्ष।

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प्रश्न 2.
भारतीय बच्चे का जन्म के समय लगभग भार होता है –
(A) 1 कि० ग्रा०
(B) 2.5 कि० ग्रा०
(C) 4 कि० ग्रा०
(D) 5 कि० ग्रा०।
उत्तर :
2.5 कि० ग्रा०।

प्रश्न 3.
……….. हड्डियों में मजबूती आती है –
(A) कैल्शियम से
(B) वसा से।
(C) लोहा से
(D) आयोडीन से।
उत्तर :
कैल्शियम से।

प्रश्न 4.
छोटे बच्चों में कौन-सी भावनाएं देखी जाती हैं –
(A) खुशी
(B) गुस्सा
(C) डर
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर :
उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 5.
बच्चे सहारा लेकर बैठने लगते हैं –
(A) 1 माह में
(B) 2 माह में
(C) 4 माह में
(D) 6 माह में।
उत्तर :
4 माह में।

प्रश्न 6.
शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक हैं –
(A) वातावरण
(B) भोजन
(C) खेल
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर :
खेल।

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प्रश्न 7.
ईर्ष्या नामक संवेग का विकास किस आयु में होता है –
(A) 1 माह
(B) 6 माह
(C) 18 माह
(D) 12 माह।
उत्तर :
18 माह।

प्रश्न 8.
बाल विकास किस बात का अध्ययन है :
(A) बच्चों की वृद्धि और विकास
(B) बच्चों का सामाजिक विकास
(C) बच्चों का संवेगात्मक विकास
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 9.
मानवीय जीवन का आरम्भ कब शुरू होता है :
(A) जन्म के बाद
(B) जन्म के एक साल बाद
(C) जन्म के पांच साल बाद
(D) मां के गर्भ में।
उत्तर :
मां के गर्भ में।

प्रश्न 10.
मानवीय विकास के कितने पड़ाव होते हैं :
(A) छः
(B) चार
(C) दो
(D) आठ।
उत्तर :
चार।

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प्रश्न 11.
टेम्पर टैंट्रम किसे कहा जाता है :
(A) खुश होकर ज़मीन पर लोटना
(B) गुस्सा जाहिर करने के लिए ज़मीन पर लोटना
(C) सोने से पहले ज़मीन पर लेटना
(D) नींद में जमीन पर लेटना।
उत्तर :
गुस्सा जाहिर करने के लिए ज़मीन पर लोटना।

प्रश्न 12.
मां का दूध बच्चे को क्यों पिलाना चाहिए :
(A) जीवित रहने के लिए
(B) बीमारियों से लड़ने की शक्ति पैदा करने के लिए
(C) भूख मिटाने के लिए
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 13.
भाषा विकास कब सन्तोषजनक होता है :
(A) स्वर की परिपक्वता
(B) जीभ
(C) गला
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 14.
वह कौन-सा कारण है जिससे बच्चे का विकास उचित प्रकार से नहीं होता :
(A) अच्छा वातावरण न होना
(B) मंदबुद्धि का होना
(C) माता-पिता का प्यार न मिलना
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

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प्रश्न 15.
बच्चों को बूस्टर दवा (खुराक) कब दी जाती है :
(A) छः वर्ष का होने पर
(B) एक साल का होने पर
(C) दो साल का होने पर
(D) पांच साल का होने पर।
उत्तर :
छः वर्ष का होने पर।

प्रश्न 16.
बच्चा किस प्रकार बोलना सीखता है :
(A) अनुकरण द्वारा
(B) प्रेरणा द्वारा
(C) प्रयास और भूल द्वारा
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 17.
वृद्धि ……………… का एक हिस्सा है :
(A) विकास
(B) व्यक्तित्व
(C) सीखने
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 18.
बचपन में शरीर की हड्डियों की संख्या क्या होती है :
(A) 270
(B) 206
(C) 220
(D) 240.
उत्तर :
270.

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प्रश्न 19.
वह कौन-सा कारक है जो शारीरिक विकास को प्रभावित करता है :
(A) वंशानुक्रम
(B) परिवार का आकार
(C) बुद्धि
(D) जन्म क्रम।
उत्तर :
वंशानुक्रम।

प्रश्न 20.
जन्म के समय बच्चे में सामाजिक विकास ……… होता है :
(A) पूर्ण
(B) नहीं
(C) सामान्य
(D) कम।
उत्तर :
नहीं।

प्रश्न 21.
जब बच्चे की आवश्यकताएं पूरी हो जाती हैं, तो क्या होता है :
(A) खुश
(B) रोना
(C) नाराज़
(D) गुस्सा होना।
उत्तर :
खुश।

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प्रश्न 22.
बालक की अभिव्यक्ति के अन्य साधन कौन-से हैं :
(A) चित्रांकन
(B) हस्तकौशल
(C) संगीत
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 23.
बच्चों की भावनाओं की क्या विशेषताएँ होती हैं :
(A) भावनाएं काफ़ी तेज़ होती हैं
(B) थोड़ी देर में उभरती और समाप्त होती हैं
(C) भावनाओं को छुपा नहीं सकते
(D) उपरिलिखित सभी।
उत्तर :
उपरिलिखित सभी।

प्रश्न 24.
जन्म के समय बच्चे का औसत भार कितना होता है :
(A) 2\(\frac{1}{2}\) किलो
(B) 3\(\frac{1}{2}\) किलो
(C) 4.0 किलो
(D) 5 किलो।
उत्तर :
2\(\frac{1}{2}\) किलो।

प्रश्न 25.
जन्म के समय बच्चे की औसत लम्बाई कितनी होती है :
(A) 15” – 20′”
(B) 17” – 19″
(C) 10” – 15”
(D) 25” – 30′”
उत्तर :
17” – 19″

प्रश्न 26.
किस आयु में बच्चे में दूध के दांत निकल आते हैं :
(A) 2\(\frac{1}{2}\) साल।
(B) 4\(\frac{1}{2}\) साल
(C) 1\(\frac{1}{2}\) साल
(D) 3 साल।
उत्तर :
(A) 2\(\frac{1}{2}\) साल।

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प्रश्न 27.
दो वर्ष की आयु तक बच्चा कितने शब्द सीख लेता है :
(A) लगभग 272
(B) लगभग 400
(C) लगभग 500
(D) लगभग 1000.
उत्तर :
लगभग 272.

प्रश्न 28.
अभिवृद्धि का अर्थ है :
(A) शरीर के आकार और रूप में बढ़ोत्तरी
(B) बालक के क्रोध में बढ़ोत्तरी
(C) हस्तकला के क्षेत्र में बढ़ोत्तरी
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर :
शरीर के आकार और रूप में बढ़ोत्तरी।

प्रश्न 29.
विभिन्न आयु स्तरों पर बालक के विकास की दर :
(A) एक-सी होती है
(B) भिन्न होती है
(C) उपर्युक्त दोनों होती है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं होती।
उत्तर :
भिन्न होती है।

प्रश्न 30.
जन्म के समय एक बच्चे का औसत वजन कितना होता है ?
(A) 3.5 किग्रा
(B) 4 किग्रा
(C) 2.5 किग्रा
(D) 1.5 किग्रा।
उत्तर :
2.5 किग्रा।

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प्रश्न 31.
विकास सदैव घटित होता है :
(A) केन्द्र से बाहर की ओर
(B) बाहर से केन्द्र की ओर
(C) दायीं ओर से बायीं ओर
(D) बायीं ओर से दायीं ओर।
उत्तर :
केन्द्र से बाहर की ओर।

प्रश्न 32.
विकास किस ओर से प्रारम्भ होता है ?
(A) पैरों की ओर से
(B) सिर की ओर से
(C) सिर और पैर दोनों ओर से
(D) धड़ की ओर से।
उत्तर :
सिर की ओर से।

प्रश्न 33.
बच्चे में तर्क करने की योग्यता को क्या कहते हैं ?
(A) सामाजिक विकास
(B) भाषा विकास
(C) मानसिक विकास
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर :
मानसिक विकास।

प्रश्न 34.
बालकों के संवेगात्मक विकास के लक्षण क्या हैं ?
(A) भय
(B) प्यार
(C) क्रोध
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर :
उपर्युक्त सभी।

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प्रश्न 35.
वंशानुक्रम एवं वातावरण किसको प्रभावित करते हैं ?
(A) विकास को
(B) अभिवृद्धि को
(C) अभिवृद्धि और विकास को
(D) उपर्युक्त में से किसी को नहीं।
उत्तर :
अभिवृद्धि और विकास को।

प्रश्न 36.
अभिवृद्धि और विकास दोनों में क्या निहित है ?
(A) परिवर्तन
(B) सोचना
(C) योग्यता
(D) तर्क करना।
उत्तर :
परिवर्तन।

प्रश्न 37.
बच्चों को टीकों की बूस्टर दवा कब दिलाई जाती है ?
(A) छ: वर्ष का होने पर
(B) दो वर्ष का होने पर
(C) पाँच वर्ष का होने पर
(D) दस वर्ष का होने पर।
उत्तर :
छः वर्ष का होने पर।

प्रश्न 38.
किशोरावस्था में हड्डियों की संख्या कितनी होती है ?
(A) 206
(B) 216
(C) 236
(D) 276.
उत्तर :
206.

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प्रश्न 39.
सीखने की क्रिया को कौन-सा तत्त्व प्रभावित करता है ?
(A) प्रेरणा
(B) रुचि
(C) प्रशंसा
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

प्रश्न 40.
बचपन में शरीर की हड़ियों की संख्या कितनी होती है ?
(A) 270
(B) 260
(C) 250
(D) 240.
उत्तर :
270.

प्रश्न 41.
बच्चों का विकास उचित प्रकार से क्यों नहीं हो पाता ?
(A) मंद बुद्धि के कारण
(B) अच्छा वातावरण न होने के कारण
(C) घरेलू झगड़े के कारण
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

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प्रश्न 42.
जिन बालकों में संवेगात्मक नियंत्रण अधिक होता है, उनमें ……….. गुण अधिक पाए जाते हैं।
(A) सहनशीलता
(B) क्रोध
(C) जिज्ञासा
(D) प्यार।
उत्तर :
सहनशीलता।

प्रश्न 43.
बच्चों के शब्द भण्डार में व्यक्तिगत भिन्नता ……………. के कारण होती है।
(A) बुद्धि
(B) वातावरण
(C) प्रेरणा
(D) ऊपरलिखित सभी।
उत्तर :
ऊपरलिखित सभी।

प्रश्न 44.
यु का बच्चा कानूनी रूप से वयस्क समझा जाता है ?
(A) 21 वर्
कितनी आष
(B) 18 वर्ष
(C) 24 वर्ष
(D) 16 वर्ष।
उत्तर : 18 वर्ष।

प्रश्न 45.
बालक की शारीरिक वृद्धि को किस प्रकार बढ़ाया जा सकता है ?
(A) व्यायाम करने से
(B) आराम करने से
(C) उचित पौष्टिक आहार देकर
(D) कोई भी नहीं।
उत्तर :
उचित पौष्टिक आहार देकर।

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प्रश्न 46.
किस आयु में बच्चा सीढ़ियाँ चढ़ना सीख लेता है ?
(A) 2 वर्ष में
(B) 1 वर्ष में
(C) 212 वर्ष में
(D) 3 वर्ष में।
उत्तर :
2 वर्ष में।

प्रश्न 47.
बच्चा दूसरों पर निर्भर होता है।
(A) जन्म से लेकर एक वर्ष तक
(B) जन्म से लेकर दो वर्ष तक
(C) जन्म से लेकर तीन वर्ष तक
(D) जन्म से लेकर छ: महीने तक।
उत्तर :
जन्म से लेकर दो वर्ष तक।

प्रश्न 48.
स्कूल में बच्चे का ………. विकास होता है।।
(A) मानसिक
(B) सामाजिक
(C) संवेगात्मक
(D) मानसिक तथा सामाजिक।
उत्तर :
मानसिक तथा सामाजिक।

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प्रश्न 49.
बचपन में शरीर की हड्डियों की संख्या ……….. होती है।
(A) 240
(B) 270
(C) 276
(D) 280
उत्तर :
270.

प्रश्न 50.
बच्चे को कम-से-कम ………. महीने माँ का दूध अवश्य पिलाना चाहिए।
(A) दो
(B) छः
(C) चार
(D) आठ।
उत्तर :
छः।

प्रश्न 51.
………..वर्ष की अवस्था तक मस्तिष्क लगभग परिपक्व हो जाता है।
(A) 8
(B) 10
(C) 6
(D) 18
उत्तर :
8.

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प्रश्न 52.
………..बुद्धि वाले बच्चों के दाँत देर से निकलते हैं।
(A) कम
(B) मध्यम
(C) कुशल
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर :
कम।

प्रश्न 53.
भाषा विकास का सीधा सम्बन्ध………… के परिपक्वता से होता है।
(A) स्वर
(B) जीव
(C) गला
(D) ये सभी।
उत्तर :
ये सभी।

प्रश्न 54.
बच्चों को बूस्टर दवा कितने वर्ष पर दी जाती है ?
(A) दो वर्ष
(B) पाँच वर्ष
(C) छ: वर्ष
(D) ग्यारह वर्ष।
उत्तर :
छः वर्ष।

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प्रश्न 55.
वर्ष की अवस्था तक मस्तिष्क लगभग परिपक्व हो जाता है।
(A) 10
(B) 6
(C) 18
(D) 8
उत्तर :
8

प्रश्न 56.
…………. से विटामिन सी की प्राप्ति होती है।
(A) अण्डा
(B) दूध
(C) संतरा
(D) घी।
उत्तर :
संतरा।

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बाल विकास HBSE 10th Class Home Science Notes

→ शारीरिक तथा मानसिक तौर पर स्वस्थ बच्चे ही देश का भविष्य हैं।
→ बच्चे के पालन-पोषण की प्रारम्भिक ज़िम्मेदारी उसके मां-बाप की होती है।
→ बाल विकास बच्चों की वृद्धि तथा विकास का अध्ययन है।
→ बाल विकास तथा बाल मनोविज्ञान का आपस में गहरा सम्बन्ध है।
→ मनुष्य के पारिवारिक रिश्ते उसके सामाजिक जीवन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।
→ सभी रिश्ते तथा सम्बन्ध मिलकर हमारे जीवन को आरामदायक बनाते हैं।
→ मानवीय जीवन का आरम्भ मां के गर्भ में आने से होता है।
→ मानवीय विकास के विभिन्न पड़ाव होते हैं; जैसे – बचपन, किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था तथा वृद्धावस्था।
→ बच्चा जन्म से लेकर दो वर्ष तक बेचारा-सा तथा दूसरों पर निर्भर होता है।
→ 12 वर्ष का बच्चा स्वयं चल सकता है और 2 वर्ष में बच्चा सीढ़ियां चढ़-उतर सकता है।
→ दो वर्ष के बच्चों को कई प्रकार की बीमारियों से बचाने के लिए टीके लगाए जाते हैं।
→ दो से तीन वर्ष का बच्चा नई चीजें सीखने की कोशिश करता है।
→ छ: वर्ष तक बच्चे की खाने, पीने, सोने, मल त्यागने तथा शारीरिक सफ़ाई की आदतें पक्की हो जाती हैं।
→ स्कूल में बच्चे का मानसिक तथा सामाजिक विकास होता है।
→ कई बार बच्चा गुस्सा जाहिर करने के लिए जमीन पर लेटता है, इस अवस्था को टेम्पर टैंट्रम कहा जाता है।
→ छोटे बच्चे को कम-से-कम छ: महीने मां का दूध अवश्य पिलाना चाहिए क्योंकि यह बच्चे में बीमारियों से लड़ने की शक्ति पैदा करता है।
→ 3-4 महीने के बच्चे को मां के दूध के साथ और खुराक भी देनी आरम्भ कर देनी चाहिए।
→ बच्चों की अच्छी आदतों का निर्माण मां-बाप के यत्नों पर निर्भर करता है।
→ बच्चों को खिलौने उनकी आयु के अनुसार ही मिलने चाहिएं।
→ खेलने से बच्चों का शारीरिक तथा मानसिक विकास होता है।
→ शारीरिक विकास का बालक के व्यवहार की गुणात्मकता और मात्रात्मकता, दोनों पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
→ सामान्य शारीरिक विकास का प्रभाव बालक के व्यवहार के मुख्यतः चार क्षेत्रों पर पड़ता है –

  • नाड़ी संस्थान
  • मांसपेशियां
  • अन्त: स्रावी ग्रन्थियां तथा
  • शारीरिक संरचना।

→ बचपनावस्था में शरीर की हड्डियों की संख्या 270 होती है जो कि किशोरावस्था तक 206 रह जाती है।
→ वे बच्चे उन बच्चों की अपेक्षा अधिक लम्बे होते हैं जिनके परिपक्व होने की गति तीव्र होती है।
→ लगभग 17 वर्ष की अवस्था तक शरीर के विभिन्न अंगों का अनुपात वयस्क व्यक्तियों के समान हो जाता है।
→ प्रत्येक आयु के लड़कों के सिर लड़कियों की अपेक्षा कुछ बड़े होते हैं, परन्तु दोनों के विकास क्रम में कोई अन्तर नहीं होता है। 15 वर्ष के किशोर का सिर वयस्क व्यक्ति की अपेक्षा 98% होता है।
→ बालक के शरीर की लम्बाई और उसके पैरों की लम्बाई में हमेशा धनात्मक सह-सम्बन्ध होता है।
→ कम बुद्धि वाले बच्चों के दाँत देर से तथा अधिक बुद्धि वाले बच्चों के दाँत जल्दी निकलते हैं।
→आठ वर्ष की अवस्था तक मस्तिष्क लगभग परिपक्व हो जाता है। फिर भी मस्तिष्क का विकास किशोरावस्था तक चलता रहता है।
→शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक हैं-वंशानुक्रम, भौतिक वातावरण, आहार, रोग, अन्तः स्त्रावी ग्रन्थियां, लिंग, संवेगात्मक व्यवधान, पारिवारिक प्रभाव तथा सामाजिक-आर्थिक स्तर।
→ बाल संवेगात्मकता को प्रभावित करने वाले कारक हैं-शारीरिक स्वास्थ्य, बुद्धि, लिंग, पिता-पुत्र सम्बन्ध, सामाजिक वातावरण, जन्म क्रम, परिवार का आकार, सामाजिक-आर्थिक स्तर, व्यक्तित्व।
→ बाल्यावस्था के कुछ प्रमुख संवेग हैं-भय, शर्मीलापन, परेशानी, चिन्ता, क्रोध, ईर्ष्या, जिज्ञासा तथा स्नेह।
→ जन्म के समय शिशु न सामाजिक होता है और न ही असामाजिक। आयु बढ़ने के साथ-साथ वह सामाजिक गुणों से सुशोभित होता जाता है और कुछ ही वर्षों बाद वह सामाजिक प्राणी कहलाने लगता है।
→ सामाजिक विकास का अर्थ उस योग्यता को अर्जित करना है जिसके द्वारा सामाजिक प्रत्याशाओं के अनुसार व्यवहार किया जा सके।
→ बचपनावस्था के कुछ सामाजिक व्यवहार हैं-अनुकरण, आश्रितता, ईर्ष्या, सहयोग, शर्माहट, ध्यान आकर्षित करना, अवरोधी व्यवहार।
→ पूर्व बाल्यावस्था के सामाजिक व्यवहार के कुछ प्रकार हैं-आक्रामकता, झगड़ा, चिढ़ाना, निषेधात्मक व्यवहार, सहयोग, ईर्ष्या, उदारता, सामाजिक अनुमोदन की इच्छा, आश्रितता, बालकों में भिन्नता, सहानुभूति।
→ उत्तर बाल्यावस्था में सामाजिक व्यवहार के कुछ प्रतिमान हैं-सामाजिक अनुमोदन, सुझाव ग्रहणशीलता, स्पर्धा और प्रतियोगिता, खेल, पक्षपात और सामाजिक विभेदीकरण, उत्तरदायित्व, सामाजिक सूझ, यौन विरोध भाव।
→ सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक हैं-शारीरिक बनावट और स्वास्थ्य, परिवार, पड़ोस, विद्यालय, मनोरंजन, व्यक्तित्व आदि।
→ विकास को निम्नलिखित श्रेणियों में बांटा जाता है –

  • शारीरिक विकास
  • गत्यात्मक विकास
  • सामाजिक विकास
  • संवेगात्मक विकास
  • भाषा विकास
  • ज्ञानात्मक विकास।

→ बच्चे के शरीर या दिमाग की साधारण स्थिति में परिवर्तन या बेचैनी को ‘आवश्यकता’ कहते हैं। बच्चे की आवश्यकताएं निम्नलिखित प्रकार की होती –

  • शारीरिक
  • भावनात्मक
  • ज्ञानात्मक।

जब बच्चे की आवश्यकताएं पूरी हो जाती हैं, तो वह खुश हो जाता है।
→ भाषा सम्प्रेषण का माध्यम है, अत: इसका बालक के सामाजिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान है।
→ भाषा के द्वारा बालक अपने आसपास के लोगों में सम्पर्क स्थापित करता है, अपने मनोभावों को व्यक्त करता है तथा दूसरों के मनोभावों के प्रति अपनी प्रतिक्रियाएं दिखाता है।
→ भाषा विकास का सीधा सम्बन्ध स्वर, यन्त्र, जीभ, गला और फेफड़ों की परिपक्वता से है। यदि बालक के ये अंग सामान्य रूप से विकसित होते हैं तो उसका भाषिक विकास सन्तोषजनक होता है। इसका सम्बन्ध दृष्टि, होंठ, ताल, दांत और नाक के विकास से भी है।
→ उद्दीपन अनुक्रिया के बीच साहचर्य स्थापित कर बालक को नए शब्द सिखलाए जा सकते हैं। यदि बालक के सामने बार-बार कलम दिखाकर ‘कलम-कलम’ का उच्चारण किया जाए, तो थोड़ी देर ठहरकर पुन: उसे कलम दिखाई जाए तो वह ‘कलम’ शब्द बोल लेगा। वह ‘कलम’ एक उद्दीपक वस्तु है।
→ एन० चॉस्की के अनुसार प्रत्येक बालक के व्यक्तित्व में भाषा सीखने की एक प्रकृति प्रदत्त क्षमता होती है।
→ बालकों का क्रन्दन एक प्रकार की भाषा है, जिसके द्वारा वे अपनी शारीरिक पीड़ा को अभिव्यक्ति करते हैं।
→ बालकों के शब्द भण्डार में व्यक्तिगत भिन्नता, बुद्धि, वातावरण, प्रेरणा और अधिगम के कारण होती है।
→ भाषा विकास को प्रभावित करने वाले कारक हैं-व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषताएं, पारिवारिक सम्बन्ध, लिंग, सामाजिक-आर्थिक स्तर, निर्देशन, उत्प्रेरणा तथा सामाजिक अधिगम के स्तर हैं।

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HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार

Haryana State Board HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार

HBSE 10th Class Economics उपभोक्ता अधिकार Textbook Questions and Answers

आओं-इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 78)

प्रश्न-1.
उपभोक्ता दलों द्वारा कौन-कौन से उपाय अपनाए जा सकते हैं?
उत्तर-

  1. उपभोक्ता के अधिकारों एवं कर्त्तव्य पर लेख लिखना।
  2. उपभोक्ता जागरूकता पर प्रदर्शनी की आयोजन करना।
  3. राशन की दुकानों में अनुचित कार्यो को देख-रेख करना।
  4. सड़क यात्री परिवहन में अत्यधिक भीड़भाड़ पर नजर रखना।
  5. उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ और अनुचित शैली में सुधार के लिए व्यावसायिक कंपनियों और सरकार दोनों पर दबाव डालना।

प्रश्न-2.
नियम और कानून होने के बावजूद उनका अनुपालन नहीं होता है। क्यों? विचार-विमर्श करें।
उत्तर-

  1. कानून लागू करने वाले कर्मचारी भ्रष्ट होते हैं। वे बेईमान व्यापारियों और दुकानदारों से रिश्वत लेकर उन्हें बच निकलने का अवसर देते हैं।
  2. दुकानदार भाई-भतीजावाद का सहारा लेकर भी नियमों और कानूनों को तोड़ते रहते हैं।
  3. अशिक्षा के कारण लोग अनभिज्ञ होते हैं यहाँ तक कि शिक्षित उपभोक्त भी वस्तुओं की कीमत, गुणवत्ता आदि के विषय में कोई परवाह नहीं करते हैं। इसलिए दुकानदारों के लिए संबंधित नियमों और कानूनों को जोड़ना आसान हो जाता
  4. यदि वस्तु की आपूर्ति उसकी मांग की अपेक्षा कम होती है तो उसकी कीमत बढ़ जाती है। इससे विक्रेताओं में जमाखोरी की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है।
  5. यदि किसी वस्तु का उतपादन कुछ कंपनियों ही करती हैं तो वह उसकी आपूर्ति कम कर उसकी कीमत बढद्या देती

आओ-इन पर विचार ( पृष्ठ संख्या 79)

प्रश्न-1.
निम्नलिखित उत्पादों/सेवाओं (आप सूची में नया नाम जोड़ सकते हैं) पर चर्चा करें कि इनमें उत्पादकों द्वारा किन सुरक्षा नियमों का पालन करना चाहिए?
(क) एल.पी.जी. सिलिडर, (ख) सिनेमा थिएटर, (ग) सर्कस, (घ) दवाइयाँ, (च) खाद्य तेल, (छ) विवाह पंडाल (ज) एक बहुमंजिली इमारत।
उत्तर-
(क) एल.पी.जी. सिलडर-सिलिंडर की गुणवत्ता एवं सही वजन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
(ख) सिनेमा थिएटर-निकास द्वार, अग्निशामक यंत्र आदि का समुचित प्रबंध होना चाहिए।
(ग) सर्कस-सर्कस मालिक को अग्निशामक यंत्र, जंगली जानवरों के लिए सुरक्षित पिंजड़ा, प्रशिक्षित कर्मचारी आदि का उचित प्रबंध कर लेना चाहिए।
(घ) दवाइयाँ-इन पर निर्माण की तारीख खराब होने की अंतिम तिथि, बैच संख्या अधिकता खुदरा औरवस्तु के अवयवों की छपाई होनी चाहिए।
(च) खाद्य तेल-इसमें किसी तरह की मिलावट नहीं होनी चाहिए। बोतल पर एगमार्क अवश्य होना चाहिए।
(छ) विवाह पंडाल-सुरक्षित पंडाल, अग्निशामक यंत्र, समुचित विकास द्वार आदि का उचित प्रबंध होना चाहिए।

प्रश्न-2.
आपने आपपास के लोगों के साथ हुई किसी दुर्घटना या लापरवाही की किसी घटना का पता कीजिए, जहाँ आपको लगता हो कि उसका जिम्मेदार उत्पादक हैं इस पर विचार-विमर्श करें।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

पाठ्गत प्रश्नात्तर

आओ-इन पर विचार( पृष्ठ संख्या 81)

प्रश्न-1.
‘जब हम वस्तुएँ खरीदते हैं तो पाते हैं, कि कभी-कभी पैकेट पर छपे मूल्य से अधिक या कम मूल्य लिया जाता है” इसके संभावित कारणों पर बात करें। क्या उपभोक्ता समूह इस मामले में कुछ कर सकते हैं? चर्चा करें।
उत्तर-
किसी वस्तु का अधिकतम खुदरा मूल्य से अधिक मूल्य लेने का संभावित कारण यह हो सकता है-विक्रेता अधि क लाभ कमाने के लिए अधिक मूल्य माँगते हैं। दूसरी ओर, किसी वस्तु का मल्य उपभोक्ता द्वारा मोल-जोल करने के कारण अधिकतम खुदरा मूल्य से कम मांगा जाता है। उपभोक्ता दलों को विक्रेताओं पर अधिकतम खुदरा मूल्य से कम मूल्य रखने के लिए दबाव डालना चाहिए।

प्रश्न-2.
कुछ डिब्बाबंद वस्तुओं के पैकेट को लें, जिन्हें आप खरीदना चाहते हैं, और उन पर दी गई जानकारियों की परीक्षण करें। और देखें कि वे किस प्रकार उपयोगी हैं। क्या आप सोचते हैं कि उन डिब्बाबंद वस्तुओं पर कुछ ऐसी जानकारियाँ दी जानी चाहिए, जो उन पर नहीं हैं? चर्चा करें।
उत्तर-

  1. प्रयोग किए गए अवयव-यदि यह प्रमाणित हो जाता है कि उत्पादक ने उन सभी अवयवों का प्रयोग नहीं किया है जिनकी चर्चा उसने पैकेट पर की है, तो उपभोक्ता शिकायत कर सकता हैं, मुआवजा पाने या वसतु बदलने की माँग कर सकता है।
  2. कीमत-विक्रेता अधिकतम खुदरा मूल्य से अधिक मूल्य नहीं ले सकता है।
  3. बैच संख्या-यह आसानी से समझा जा सकता है कि किसी विशेष बैच संख्या का उत्पाद दोषपूर्ण हैं।
  4. खराब होने की अंतिम तिथि-यदि लोग अंतिम तिथि समाप्त हो गई दवाओं को बेचते है।, तो उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जा सकती है।
  5. उत्पादक का पता-यदि वस्तुएँ दोषपूर्ण पाई जाती है, तो लोग उतपादक के पास पहुँचकर अपनी शिकायत कर सकते हैं।

प्रश्न-3.
लोग नागरिकों की समस्याओं जैसे-खराब सड़कों या दूषित पानी और स्वास्थ्य सुविधाओं के बारे में शिकायतें करते है, लेकिन कोई नहीं सुनता। अब कानून आपको प्रश्न पूछने का अधिकार देता है। क्या आप इससे सहमत हैं? विचार कीजिए।
उत्तर-
यह सत्य हैं कि RTI नागरिकों को प्रश्न पूछने का अधिकार देता है। यह कानून नागरिकों को सरकारी विभागों के कार्यकलापों की सभी सूचनाएँ पाने के अधिकार को सुनिश्चित करता है।

ओओ-इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 82)

प्रश्न-1.
यहाँ कुछ ऐसी वस्तुओं के लुभाने वाले विज्ञापन दिए गए हैं, जिन्हें हम बाजार से खरीदते है। इनमें वास्तव में क्या कोई विज्ञापन है, जो सचमुच में उपभोक्ताओं को लाभ पहुँचाता हो? इस पर विचार विमर्श कीजिए।
1. प्रत्येक 500 ग्राम के पैक पर 15 ग्राम की अतिरिक्त छुट।
2. अखबार के ग्राहक बनें, साल के अंत में उपहार पायें।
3. खुरचिये और 10 लाख तक का इनाम जीतिए।
4. 500 ग्राम ग्लूकोज डिब्बे के भीतर एक दूध का चाकलेट।
5. पैकेट के भीतर एक सोने का सिक्का ।
6. 2000 रुपये तक का जूता खरीदें और 500 रुपये तक का एक जोड़ी जूता मुफ्त पाएँ।
उत्तर-
1. प्रत्येक 500 ग्राम के पैक पर 15 ग्राम की अतिरिक्त छूट।
6. 2000 रुपये तक का जूता खरीदें और 500 रुपये तक का एक जोड़ी जूता पाएँ! आओ-इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 84)

प्रश्न-2.
निम्नलिखित को सही क्रम में रखें
(क) अरिता जिला उपभोक्ता अदालत में एक मुकदमा दायर करती है।
(ख) वह शिकायत के लिए पेशेवर व्यक्ति से मिलती है।
(ग) वह महसूस करती है। कि दुकानदार ने उसे एक दोषयुक्त सामग्री दी है।
(घ) वह अदालती कार्यवाहियों में भाग लेना शुरू कर देती है।
(ङ) वह शाखा कार्यालय जाती है। और डीलर के विरुद्ध शिकायत दर्ज करती हैं, लेकिन कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
(च) अदालत के समक्ष पहले उससे बिल और वारंटी प्रस्तुत करने को कहा गया।
(छ) वह एक खुदरा विक्रेता से दीवाल घड़ी खरीदती
(ज) कुछ ही महीनों के भीतर, न्यायालय ने खुदरा विक्रेता को आदेश दिया कि उसकी पुरानी दीवाल घड़ी की जगह बिना कोई अतिरिक्त मूल्य लिए उसे एक नीय घड़ी दी जाए।
उत्तर-

  1. (छ),
  2. (ख),
  3. (ग),
  4. (ङ)
  5. (क),
  6. (घ),
  7. (च),
  8. (ज)।

आओ-इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 86)

प्रश्न-1.
इस अध्याय के पोस्टों के कार्टूनों को देखें-एक उपभोक्ता के दृष्टिकोण से किसी वस्तु विशेष की उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर विचार करें। इसके लिए एक पोस्टर बनाएँ।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न-3.
उपभोक्ता संरक्षण परिषद और उपभोक्ता अदालत में क्या अंतर है?
उत्तर-
उपभोक्ता संरक्षण परिषद-भारत में उपभोक्ता आंदोलन ने विभिन्न ऐच्छिक संगठनों के निर्माण को प्रेरित किया है, जिन्हें सामान्यतया उपभोक्ता फोरम या उपभोक्ता संरक्षण परषिद् के नाम से जाना जाता है।
उपभोक्ता अदालत–उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत एक त्रिस्तरीय न्यायिक तत्र स्थापित किया गया है जिन्हें सामान्सतया जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर उपभोक्ता अदालतें कहा जाता है।

प्रश्न-4.
उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 एक उपभोक्ता को निम्नलिखित अधिकार प्रदान करता है
(क) चयन का अधिकार
(ख) सूचना का अधिकार
(म) निवारण का अधिकार
(घ) प्रतिनिधित्व का अधिकार
(च) सुरक्षा का अधिकार
(छ) उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार।
निम्नलिखित मामलों को उनके सामने दिए गए खानों में अलग शीर्षक और चिह्न के साथ श्रेणीबद्ध करें
उत्तर-
(क) लता को एक नये खरीदे गए आयरन-प्रेस से विद्यत का झटका लगा। उसने तुरंत दुकानदार से शिकायत की। (सुरक्षा का अधिकार)
(ख) जॉन विगत कुछ महीनों से एम.टी.एन.एल. द्वारा दी गई सेवाओं से असंतुष्ट है। उसने जिला स्तरीय उपभोक्ता फोरम में मुकदमा दर्ज किया। (निवारण का अधिकार)
(ग) तुम्हारे मित्र ने एक दवा खरीदी, जो समाप्ति तारीख (एक्सपायरी डेट) पार कर चुकी है और तुम उसे शिकायत दर्ज करने की सलाह दे रहे हों। (सूचना का अधिकार)
(घ) इकबाल कोई भी सामग्री खरीदने से पहले उसके आवरण पर दी गई सारी जानकारियों की जाँच करता है। (उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार)
(च) आप अपने क्षेत्र के केबल ऑपरेटर द्वारा दी जाने वाली सेवाओं से असंतुष्ट हैं, लेकिन आपके पास कोई विकल्प नहीं है। (चयन का अधिकार)
(छ) आपने ये महसूस किया कि दुकानदार ने आपको खराब कैमरा दे दिया है। आप मुख्य कार्यालय में दृढ़ता से शिकायत करते हैं। (प्रतिनिधित्व का अधिकार)

प्रश्न-5.
यदि मानकीकरण वस्तुओं की गुणवत्ता को सुनिश्चित करता हैं, तो क्यों बाजार में बहुत-सी वस्तुएँ बिना आई.एस.आई. अथवा एगमार्क प्रमाणन, के मौजूद
हैं।?
उत्तर-
बाजार में कई वस्तुएँ बिना आई.एस.आई. अथवा एगमार्क प्रमाणन के उपलब्ध होती हैं। क्योंकि सभी उत्पादकों के लिए मानकों को अपनाना और अपनी वस्तुओं को एगमार्क या आई.एस.आई. जैसे संस्थानों से प्रमाणित कराना अनिवार्य नहीं है।

प्रश्न-6.
हॉलमार्क या आई.एस.ओ. प्रमाणन उपलब्ध कराने वालों के बार में जानकारी प्राप्त करें।?
उत्तर-
भारतीय मानक ब्यरों (BIS) हॉलमार्क प्रमाणन प्रदान करते हैं। स्वर्ण आभूषणों के हॉलमार्क प्रमाणन संपूर्ण देश के प्रादेशिक और शाखा कार्थोलयों के BIS नेटवर्क द्वारा प्रदान किए जाते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (ISO) अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वस्तुओं के मानकों को प्रमाणित करता हैं, इसकी स्थापना 1974 में की गई थी। यह जेनेवा में स्थित है।
बी.आई.एस. अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगइन (आई.एस. ओ.) का एक कार्यशील सदस्य है इसलिए यह भारतीय व्यापार और उद्योग के हितों की सुरक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानकों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न-1.
बाजार में नियमों तथा विनियमों की आवश्यकता क्यों पड़ती हैं? कुछ उदाहरणों द्वारा समझाएँ।
उत्तर-
बाजार में सुरक्षा निम्नलिखित कारणों से जरूरी हैं
(क) बाजार में उपभोक्ता का कई तरीके से शोषण होता है। जैसे-व्यापारियों द्वारा उपभोक्ता को उचित तौल से कत वस्तु उपलब्ध कराना।
(ख) कुल मूल्य में उन शुल्कों को जोड़ दिया जाता है जिनका वर्णन पहले न किया गया हों।
(ग) कई बार व्यापारी मिलावटी अथवा दोषपूर्ण वस्तुएँ बेचते हैं।
(घ) जब उत्पादक शक्तिशाली होते हैं। और उपभोक्ता कम खरीददारी करते है।। तथा बिखरे होते हैं, तो बाजार उचित तरीके से काम नहीं करता है। कई बार बड़ी-बड़ी कंपनियाँ उपभोक्ताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए मीडिया तथा अन्य स्रोतों से गलत सूचना देती हैं। जैसे-एक कंपनी ने शिशुओं के लिए दूध पाउडर के अपने उत्पादन को माता के दूध से बेहतर बताकर कई वर्षों तक खूब बेचा। कई वर्षों के संघर्ष के बाद इस कंपनी ने यह स्वीकार किया कि वह झेठे दावे करती आ रही है।

प्रश्न-2.
भारत में उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत किन कारणों से हुई। इसके विकास के बारे में पता लगाएँ।
उत्तर-
(क) भारत में उपभोक्ता आंदोलन का जन्म, अनैतिक और अनुचित वसायिक कार्यो से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने तथा प्रोत्साहित करने के लिए हुआ।
(ख) हमारे देश में 1960 के दशक में व्यवस्थित रूप से उपभोक्ता आंदोलन का उदय खाद्यान्न की कमी, जमाखोरी, कालाबाजरी, खाद्य पदार्थो एवं खाद्य तेल में मिलावट के कारण हुआ।
(ग) 1970 के दशक में उपभोक्ता संस्थाओं न वृहत् सतर पर उपभोक्ता अधिकार से संबंधित आलेखों के लेखन तथा प्रदर्शनी लगाना शुरू किया। – (घ) उन्होंने सड़क यात्री परिवहन में अत्यधिक भीड़-भाड तथा राशन दुकानों में होने वाले अनुचित कार्यों पर नजर रखने के लिए उपभोक्ता दल बनाया। हाल के वर्षों में इन उपभोक्ता दलों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है।

प्रश्न-3.
दो उदारहण देकर उपभोक्ता जागरूकता की जरूरत का वणग्न करें।
उत्तर-
(क) उपभोक्ता जागरूकता अत्यन्त आवश्यक है जिससे कि व्यापारी उपभोक्ताओं का शोषण न कर सकें।
(ख) जागरूक उपभोक्ता; उपभोक्ता संरक्षण कार्यक्रमों तथा उपभोक्ता अदालतों का लाभ उठा सकते हैं।

प्रश्न-4.
कुछ ऐसे कारकों की चर्चा करें जिनसे उपभोक्ताओं का शोषण होता हैं?
उत्तर-
व्यापारियों द्वारा उपभोक्ताओं के शोष्क्षण के लिए निम्नलिखित तरीकों को अपनाया जाता है।

  • कम तौलकर-यह उपभोक्ताओं के शोषण का एक अति सामान्य तरीका है। जिसमें व्यापारी उपभोक्ता का उचित तौल से कम वस्तु उपलब्ध कराता है।
  • कम माप-मापी जाने वाली वस्तुओं मे कम माप देकर व्यापारियों द्वारा उपभोक्ताओं का शोषण किया जाता है।
  • अधिक कीमत-निर्धारित मूल्य से अधिक मूल्य वसूल करना व्यापारियों की एक प्रचलित प्रवृति है। उपभोक्ता भी उचित मूल्य की जानकारी के अभाव में व्यवसायियों द्वारा ठग लिए जाते हैं।
  • घटिया सामान-उपभोक्ताओं को मानकर स्तर से निम्न स्तर की सामग्री बेचा जाना भी शोषण का एक तरीका है।
  • नकली माल-असली पुर्जा के स्थान पर नकली पुर्जा और माल का बेचा जाना भी शोष्क्षण का एक सामान्य तरीका
  • मिलावटी व अशुद्ध माल-अनुचित लाभ के लिए व्यवसायियों द्वारा महँगे पदार्थो में सस्ते व अशुद्ध पदार्थो को मिलाना इस प्रकार के शोषण का उदारहण है।
  • सुरक्षा उपायों की अपर्याप्तता-विद्युत तंत्र आदि को मानक स्तर से कम स्तर का बेचना जिससे कि सुरक्षा संबंधी खतरा बना रहता है। इससे उपभोक्ताओं के साथ दुर्घटना होने की आशंका बनी रहती हैं।
  • कृत्रिम अभाव-व्यापारियों द्वारा जमाखेरी, कालाबाजारी आदि के माध्यम से कई बार आवश्यक वस्तुओं का कृत्रिम अभाव पैदा कर दिया जाता है। जिससे वे उन वस्तुओं को ऊँची कीमत पर बंच सकें। यह उपभोक्ता शोषण का एक बहुत ही प्रचलित लेकिन निंदनीय स्वरूप है।
  • अपूर्ण या मिथ्या आनकारी-कई बार उत्पादकों द्वारा उपभोक्ताओं को जानकारी को इस प्रकार तोड़ मरोड़कर या आधे अधूरे ढंग से प्रस्तुत किया जाता है कि उपभोक्ता के सामने वास्तविक स्थिति नहीं आ पाती और उपभोक्ता वस्तु की कमियों से रू-ब-रू नहीं हो पाता।
  • विक्रय के पश्चात् सेवा का प्रदान न किया जाना-यह भी उपभोक्ता शोषण का एक बहुप्रचलित रूप हैं, इसमें एक बार वसतु को बेच देने के बाद उत्पादक उपभोक्ता को यह सेवा प्रदान करने से या तो मना कर देता है या टालमटोल ओर आनाकानी करता है, जो उसे उपभोक्ता को उपलब्ध कराना चाहिए।

प्रश्न-5.
उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 के निर्माण की जरूरत क्यों पड़ी?
उत्तर-
(क) विक्रेताओं के कई अनुचित व्यवसायों में शामिल होने के कारण उपभोक्तओं में असंतोष फैल गया था।
(ख) बाजार में उपभोक्ता को शोषण से बचाने के लिए कोई कानूनी व्यवस्था उपलब्ध नहीं थीं।
(ग) 1960 के दशक में भारत में उपभोक्ता आंदोलन का उदय हुआ और अपने प्रयासों से यह आंदोलन उपभोक्ता हितों के खिलाफ और अनुचित व्यवसाय शैली में सुधार के लिये व्यापारिक कंपनियों व सरकार दोनों पर दबाव डालने में सफल हुआ।
(घ) परिणामस्वरूप भारत सरकार ने 1986 ई. में उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम बनाया।

प्रश्न-6.
अपने क्षेत्र के बाजार में जाने पर उपभोक्ता के रूप में अपने कछ कर्तव्यों का वर्णन करें।
उत्तर-
अधिकार और कर्त्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं। अधिकारों को ग्रहण करते समय यह दायित्व अपने _ आप उत्पन्न हो जाता है। कि कर्तव्यों का पालन किया जाए।
उपभोक्ताओं को जहाँ अधिकार मिले हुए हैं वहीं उनके कुछ दायित्व हैं जो निम्नलिखित हैं-

  1. किसी भी वस्तु को क्रय करते समय उपभोक्ताओं को सामान की गुणवत्ता का ख्याल रखना चाहिए।
  2. वस्तु क्रय करते समय उपभोक्ताओं को गांरटी कार्ड अवश्य लेना चाहिए।
  3. उपभोक्ता उन्हीं वस्तुओं को क्रय करें जिन पर आई. एस.आई. एगमार्क जैसे मानक चिन्ह दिये हुए हों।
  4. उपभोक्ता सामान या सेवा को खरीदने समय उसकी . रसीद अवश्य प्राप्त करें।
  5. उपभोक्ताओं का यह कर्त्तव्य बनता है कि वं ‘उपभोक्ता जागरूकता संगठन’ का गठन करें; साथ ही इस संगठन को सरकार तथा अन्य संस्थाओं द्वारा उपभोक्ताओं की समस्याओं के लिए स्थापित विभिन्न कमेटियों में प्रतिनिधित्व भी प्रदान करवायें।
  6. उपभोक्ता किसी वस्तु या सेवा में आने वाली समस्या के लिए शिकायत अवश्य दर्ज करायें चाहे वह समस्या छोटी हो या बड़ी।
  7. उपभोक्ता किसी सामग्री से सम्बन्धित शिकायत दर्ज कराने से यह सोचकर न रुकें कि वह वस्तु बहुत ही कम मूल्य वाली हैं।
  8. प्रत्येक उपभोक्ता का यह परम कर्तव्य है कि वह अपने लिए सुरक्षित अधिकारों के विषय में सम्पूर्ण जानकारी रखे और अपने अधिकारों का प्रयोग करें। साथ ही दूसरे उपभोक्ताओं को भी इनके बारे मे जानकारी दे, और उन्हें भी अपने अधिकारों के प्रयोग के लिए प्रेरित करें।

प्रश्न-7.
मान लीजिए, आप शहद का बोतल और एक बिस्किट का पैकेट खरीदते हैं। खरीदते समय आप कौन सा लोगों या चिन्ह देखेंग और क्यों?
उत्तर-
(क) शहद का बोतल या बिस्किट का पैकेट खरीदते समय हमें एगमार्क चिनहे देखना चाहिए।
(ख) क्योंकि कृषि उतपादों तथा खाद पदार्थो की गुणवत्ता मानकीकरण के आधकार पर जो उत्पाद मानकों को पूरा करते हैं उन्हें एगमार्क का चिन्ह प्रदान किया जाता है।

प्रश्न-8.
भारत में उपभोक्जाओं को समर्थ अनाने के लिए सरकार द्वारा किन कानूनी मानदंडों को लागू करना चाहिए?
उत्तर-
उपभोक्ताओं के अधिकारों तथा हितों की रक्षा के लिए मुख्यतः तीन प्रकार के उपाय अपनाये गये हैं

  1. कानूनी उपाय-इसके अंतर्गत उपभोक्ताओं के हितों के लिए कानून व अधिनियम आदि बनाना शमिल है।
  2. प्रशसनिक उपाय-उपभोक्ता के हितों की रक्षा के लिए जो सार्वजनिक वितरण व्यवस्था आरम्भ की गई है। वह प्रशासनिक उपाय का ही उदाहरण हैं
  3. तकनीकीउ उपाय-इसके अंतर्गत वस्तुओं का मनकीकरण किया जाना शामिल है। इन उपायों को निम्न बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है :

(क) उपभोक्ता हित सम्बन्धी कानून-उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण के लिए सरकार ने 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम बनाया। इसके द्वारा उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए तथा उनके झगड़ों के निपटारे के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता हितों की समितियाँ बनायी गई। इनके माध्यम से उपभोक्ताओं के हितों को तो संरक्षण दिया ही जाता है; साथ ही उनकी शिकायतों को सरल रूप से, तीव्रता से और कम खर्च में दूर किया जाता है। उपभोक्ता अदालतों को इस सम्बंध में यह आदेश दिया गया है कि वे शिकायतों का निपटारा तीन महीने के अन्दर-अन्दर कर दें।

(ख) सार्वजनिक वितरण प्रणाली-आय की दृष्टि से कमजोर वर्ग वाले लोगों को अनाज की उपलब्धता सुनिश्चित कराने हेतु सरकार ने सार्वजनिक वितरण व्यवस्था का आरम्भ किया है ताकि इस वर्ग के उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा हो सके और उन्हें आवश्यक वस्तुओं को प्राप्त करने में किसी प्राकर से शोषण का सामना न करना पड़े।
इस व्यवस्था के द्वारा जमाखोरी, कालाबाजारी और मुनाफाखोरी आदि पर अंकुश लगाना भी संभव हो सका है।

(ग) वस्तुओं का मानकीकरण-उपभोक्ता हितों को संरक्षण देने के लिए सरकार ने कुछ ऐसी संस्थाओं का निर्माण किया है जो वस्तुओं के मानक स्तर का निर्धारण करती है और जांच के माध्यम से यह सुनिश्चित भी करती हैं कि वस्तुएँ मानक स्तर के अनुरूप हैं कि नहीं। इसके बाद ये वस्तुओं को अपना चिन्ह प्रदान करती हैं जिसके चलते उपभोक्ताओं को यह जानकारी प्राप्त हो जाती है। कि वस्तु विश्वसनीय स्तर पर मानकीकृत है। मानकीकरण संस्थाएँ जिन वस्तुओं को अपना चिह्न प्रदान करती हैं उनकी किसी भी समय आकस्मिक रूप से जांच भी कर लेती हैं ताकि उन वस्तुओं की गुणवत्ता कम होने की कोई आशंका न हों।
इस प्रकार यह स्पष्ट हैं कि सरकार ने उपभोक्ता संरक्षण के लिए पर्याप्त उपाय किये हुए हैं। आवश्यकता बस इस बात की है कि उपभोक्ता स्वयं के अधिकारों के विषय में जागरूक हों।

प्रश्न-9.
उपभोक्ताओं के कुछ अधिकारों को बताएँ और प्रत्येक अधिकार पर कुछ पंक्तियाँ लिखें। .
उत्तर-
उपभोक्ताओं के निम्नलिखित अधिकारों को उपभोक्ताओं के साथ-साथ व्यापारी वर्ग की भी ध्यान में रखना चाहिए।

  1. सुरक्षा का अधिकार-व्यापारी वर्ग को चाहिए कि ऐसी वस्तुओं का उत्पादन न करें जो उपभोक्ताओं को समुचित सुरक्षा प्रदान न करें। उत्पादकों को केवल मानकीकृत और स्तरीय वस्तुओं का ही उत्पादन करना चाहिए। व्यापारी वर्ग ऐसी किसी भी वस्तु की बिक्री से अपने को बचाये रखें जो कि उपभोक्ताओं के जीवन तथा सम्पत्ति के लिए किसी भी रूप में खतरनाक हों।
  2. सूचना का अधिकार-व्यावसायिकों को चाहिए कि वे अपने उत्पादों पर गुणवत्ता, मात्रा, शुद्धात स्तर व मूल्य सम्बन्धी सम्पूर्ण सूचनाएँ प्रदान करें।
  3. चुनाव का अधिकार-उत्पादक वस्तुओं की इतनी विविध मात्र उलपब्ध करायें कि उपभोक्ताओं को चुनाव का सम्पूर्ण अवसर प्राप्त हो सके।
  4. सुनवाई का अधिकार-व्यापारी वर्ग को चाहिए कि उपभोक्ता हितों से जुड़ी संस्थाओं व संगठनों की कार्यवाहियों पर समुचित ध्यान व समय दें, साथ ही उनके निर्देशानुसार स्वयं के उत्पादों की गुणवत्ता में वृद्धि करते चलें।
  5. शिकायतों के निपटारे का अधिकार-व्यापारी वर्ग का यह नैतिक दायित्व बनता है कि उपभोक्ताओं के शोषण व अनुचित व्यापारिक क्रियाओं के विरुद्ध शिकायतों को पूरी तत्परता से निपटायें।
  6. उपभोक्ता शिक्षा-उपभोक्ताओं को तो स्वयं के अधि कारों के बारे में जानना ही हैं, साथ ही व्यापारी वर्ग को भी उपभोक्ताओं के हितों और अधिकारों की सम्पूर्ण जानकारी होनी चाहिए, जिससे कि वे उन कार्यो को न करें जिनसे
    उपभोक्ताओं के अधिकारों का उल्लंघन होता हों।

प्रश्न-10. उपभोक्ता अपनी एक जुटला का प्रदर्शन कैसे कर सकते हैं?
उत्तर-
(क) उपभोक्ता एकता के लिए उपभोक्ता जागरूकता अत्यन्त जरूरी है। उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों की पूर्ण जानकारी होनी चाहिए।
(ख) उपभोक्ताओं को वस्तुओं तथा सेवाओं के क्रय-विक्रय के व्यावसायिक पक्षों की जानकारी तो होनी ही चाहिए, साथ __ ही पदार्थों की गुणवत्ता की भी पूरी जानकारी होनी चाहिये।
(ग) उपभोक्ता जागरूकता से उपभोक्ता आंदोलन को मजबूत बनाया जा सकता है। उपभोक्ता मिलकर अपने अधि कारों की माँग कर सकते हैं तथा उपभोक्ता शोषण के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर सकते हैं।

प्रश्न-11.
भारत में उपभोक्ता आंदोलन की प्रगति की समीक्षा (आलोचनात्मक मुल्यांकन) करें।
उत्तर-
(क) उपभोक्ता आंदोलन उपभोक्ताओं के असतोष का परिणाम था, क्योंकि विक्रेता कई अनुचित व्यवसायों में शामिल होते थे। उपभोक्ता को बाजार में शोषण से रक्षा के लिए कोई कानून व्यवस्था मौजूद नहीं थी।
(ख) भारत में सामाजिक बल के रूप में उपभोक्ता आंदोलन का जन्म अनुचित एवं अनैतिक व्यावसायिक कार्यो से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के उद्देश्य से हुआ।
(ग) 1970 के दशक तक उपभोक्ता संस्थाएँ वृहत् स्तर पर उपभोक्ता अधिकार से संबंधित आलेखों के लेखन तथा प्रदर्शनी का आयोजन करने लगी थीं।
(घ) सड़क यात्री परिचहन में अत्यधिक भीड़-भाड़ तथा सरकारी राशन दुकानों में होने वाले अनुचित कार्यों पर नजर रखने के लिए उपभोक्ता दलों का निर्माण किया गया। धीरे-धरे हमारे देश में इन उपभोक्ता दलों की संस्था में काफी वृद्धि
(ङ) अपने सक्रिय प्रयासों से उपभोक्ता आंदोलन, उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ और अनुचित व्यवसाय शैली में सुधार के लिए व्यापारिक कंपनियों एवं सरकार दोनों पर दबाव डालने में सफल हुआ।
(च) भारत में उपभोक्ता आंदोलन को सबसे बड़ी सफलता 1986 ई. में मिली, जब भारत सरकार ने ‘उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम’ पारित किया।

प्रश्न-12.
निम्नलिखित का मिलान करें-
1. एक उत्पाद के घटकों का विवरण — (क) सुरक्षा का अधिकार
2. एगमार्क — (ख) उपभोक्ता मामलों में संबंध
3. स्कूटर में खराब इंजन के कारण हुई दुर्घटना — (ग) अनाजों और खाद्य तेल का प्रमाण पत्र
4. जिला उपभोक्ता विकसित विकसित करने वाली एजेंसी — (घ) उपभोक्ता कल्याण संगठनों की अंतराष्ट्रीय संस्था
5. उपभोक्ता इंटरनेशनल — (ड) सूचना का अधिकार
6. भारतीय मानक विभाग — (च) वस्तुओं औश्र सेवाओं के लिए मानक
उत्तर-
1-ड, 2-ग, 3-क, 4-ख, 5-3, 6-च।

प्रश्न-13.
सही/गलत बताएँ।

(क) कोपरा केवल सामानों पर लागू होता है।
उत्तर-
गलत।

(ख) भारत, विश्व के उन देशें में से एक है जिसके पास उपभोक्ताओं की सामयाओं के निवारण के लिए विशिष्ट अदालते हैं।
उत्तर-
सही।

(ग) जब उपभोक्ता को ऐसा लगे कि उसका शोषण हुआ हैं, तो उसे जिला उपभोक्ता अदालत में निश्चित रूप से मुकद्दमा मायर करना चाहिए।
उत्तर-
सही।

(घ) जब अधिक मूल्य का नुकसान हो सिर्फ, तभी उपभोक्ता अदालत में जाना लाभाद होता है।
उत्तर-
गलत।

(ङ) हालमार्क, आभूषणों की गुणवत्ता बनाए रखने वाला प्रमाण है।
उत्तर-
सही

(च) उपभोक्ता समस्याओं के निवारण की प्रक्रिया अत्यंय सरल और शीघ्र होती है।
उत्तर-
गलत

(छ) उपभोक्ता को मुआवजा पाने का अधिकार है, जो क्षति की मात्रा पर निर्भर करता है।
उत्तर-
सही।

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पाठ्गत-प्रश्नोत्तर

आओ-इस पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 57)

प्रश्न
यह दर्शाने के लिए निम्न कथन की पूर्ति करें कि वस्त्र उद्योग में उत्पादन-प्रक्रिया केसे विश्व-भर फैली हुई हैं।
उत्तर-
एक ब्रांड लेबल पर ‘में इन थाइलैण्ड’ लिखा है, परन्तु उसमें एक भी भाई उत्पाद नहीं है। हम विनिर्माण प्रक्रिया का विश्लेषण करते हैं और प्रत्येक चरा में सर्वोत्तम निर्माण को देखते हैं हम इसे विश्व स्तर पर कर रहे हैं जैसे, वस्त्र निर्माण में कंपनी कोरिया से सूत ले सकता है, चीन में कपडा का विनिर्माण कर सकती है तथा सम्पूर्ण विश्व में बेच सकती है।

आओ-इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 59)

निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :
एक अमेरिकी कंपनी फोर्ड मोटर्स विश्व के 26 देशों में प्रसार के साथ विश्व की सबसे बड़ी मोटरगाड़ी निर्मामा कंपनी है। फोर्ड मोटर्स 1995 में भारत आयी और चेन्नई के निकट 1, 700 करोड़ रूपए का निवेश करके एक विशाल संयंत्र की स्थापना की। यह संयंत्र भारत में जीपों एवं ट्रकों के प्रमुख निर्माता महिन्द्र एंड महिन्द्र के सहयोग से स्थापित किया गया। वर्ष 2004 तक फोर्ड मोटर्स भारतीय बाजारों में 27,000 कारें बेच रही थी, जबकि 24,000 कारों का निर्यात भारत से दक्षिण अक्रीका, मेक्सिको और ब्राजील किया गया। कंपनी विश्व के दूसरे देशों में अपने संयंत्रों के लिए फोर्ड इंडिया का विकास पुर्जा आपूर्ति केन्द्र के रूप में करना चाहती है।

प्रश्न 1.
क्या आप मानते हैं कि फोर्ड मोटर्स एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है? क्यों?
उत्तर-
फोर्ड मोटर्स एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है। क्योंकि यह एक से अधिक देश में उत्पादन का स्वामित्व अथवा नियंत्रण करती है इसका उत्पादन विश्व के 26 दिनों में 140 संयंत्रों के रूप में फैला हुआ है।

प्रश्न 2.
विदेशी निवेश क्या है? फोर्ड मोटर्स में कितना निवेश किया था?
उत्तर-
बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा किए गए निवेश को विदेशी निवेश कहते हैं फोर्ड मोटर्स भारत में 1700 करोड़ रुपये का निवेश किया।

प्रश्न 3.
भारत में उत्पादन संयंत्र स्थापित करके फोर्ड मोटर्स जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां केवल भारत जैसे देशों के विशाल बाजार का ही लाभ नहीं उठाती हैं, बल्कि कम उत्पादन लगात का भी लाभ प्राप्त करती हैं। कथन की व्याख्या करें।
उत्तर-
बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ उतपादन संयंत्र की स्थापना सामान्यत: वहाँ करती है। जहाँ:
(क) संभावित बाजार नजदीक हो।
(ख) कुशल और अकुशल श्रमिक कम लगातों पर उपलब्ध हों।
(ग) उत्पादन क अन्य कारकों की उपलब्धता सुनिश्चित हों।
(घ) संबंधित सरकारी नीतियाँ बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अनुकूल हो।
इसलिए भारत बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए एक मनपसंद देश है।

प्रश्न 4.
आपके विचार से कंपनी अपने वैश्विक कारोबार के लिए कार के पुजों के विनिर्माण केद्रं के रूप में भारत का विकास क्यों करना चाहती है? निम्न कारकों पर विचार करें-(अ) भारत में श्रम और अन्य संसाधनों पर लागत (ब) कई स्थानीय विनिर्माताओं की उपस्थिति, जो फोर्ड मोटर्स को कल-पुर्जो की आपूर्ति करते हैं। (स) अधिक संख्या में भारत और चीन के ग्राहकों से निकटता।
उत्तर-
(अ) भारत में श्रम और अन्य संसाधनों की लागत कम है। बड़ी संख्या में कुशल और अकुशल श्रमिक कम मजदूरी पर उपलब्ध होते हैं।
(ब) भारत में कई स्थानीय विनिर्माता फोर्ड मोटर्स को कल-पुर्जो की आपूर्ति करते हैं, जिनके पास कीमत, गुणवत्ता प्रदान करते और श्रम दशाओं को निर्धारित करने की अपार क्षमता होती है।
(स) यह कंपनी भारत को कार के पुों के विनिर्माण करने के लिए आधार के रूप में विकसित करना चाहती है, क्योंकि भारत और चीन में बड़ी संख्या में संभावित क्रेता हैं।

प्रश्न 5.
भारत में फोर्ड मोटर्स द्वारा कारों के निर्माण से उत्पादन किस प्रकार परस्पर संबंधित होगा?
उत्तर-
(क) फोर्ड मोटर्स ने भारत में जीपों एवं ट्रकों के प्रमुख निर्माता महिन्द्रा एंड महिन्द्रा के साथ संयुक्त रूप से उत्पादन संयंत्र स्थापित किया।
(ख) यह कंपनी भारत में छोटे उत्पादकों को उत्पादन हेतु आदेश देती है।
(ग) यह स्थानीय कंपनियों से निकट प्रतिस्पर्धा करती है।

प्रश्न 6.
बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, अन्य कंपनियों से किर प्रकार अलग हैं?
उत्तर-
बहुराष्ट्रीय कंपनी

  1. यह एक से अधिक देशों में उत्पादन का स्वामित्व या नियंत्रण रखती है।
  2. यह उन देशों में उत्पादन हेतु कारखाने या कार्यालय स्थापित करती है। जहाँ श्रम एवं अन्य संसाधन सस्ता होता है।
  3. बहुराष्ट्रीय कंपनी के लिए उत्पादन की लागत कम होती है, इसलिए यह अधिक लाभ कमाती है।

अन्य कंपनी

  1. यह एक देश के भीतर ही उत्पादन का स्वामित्व या नियंत्रण रखती है।
  2. इसके पास ऐसा कोई विकल्प नहीं होता है।
  3. इसके पास अधिक लाभ कमाने लिए ऐसी कोई संभावना नहीं होती है।

प्रश्न 7.
लगभग सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, अमेरिका, जापान या यूरोप की हैं जैसे, नोकिया, कोका-कोला, पेप्सी, होन्डा, नाइक। क्या आप अनुमान कर सकते हैं कि ऐसा क्यों हैं?
उत्तर-
बहुराष्ट्रीय कंपनियों को देश के बाहर अपने उत्पादन और बाजारों का विस्तार करने के लिए बड़ी मात्रा में धन की आवश्यकता होती है। इतना अधिक धन सामान्यतः अविकसित या विकासशील देशों की कंपनियों के पास नहीं होती है यही कारण है कि प्रायः सभी प्रमुख बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अमेरिका, जापान या यूरोप की हैं।

आओं-इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 61)

प्रश्न 1.
अतीत में देशों को जोड़ने वाला मुख्य माध्यम क्या था? अब यह अलग कैसे है?
उत्तर-
अतीत में देशों को जोड़ने वाला मुख्य माध्य विदेश व्यापार था। अतीत में विदेश व्यापार समुद्री मार्गो द्वारा किए जाते थे परतु अब यह कई मार्गो, जैसे-समुद्री मार्गो, वायु मार्गो, थल मार्गो अर्थात् सड़कों, दूरसंचार माध्यमों आदि के द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 2.
विदेश व्यापार और विदेशी निवेश में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-
विदेश व्यापार-इसका अर्थ विदेशों से वस्तुओं को खरीदना और बेचना है। यह उत्पादकों को घरेलू बाजारों के बाहर पहुँचने का अवसर प्रदान करता है। … विदेशी निवेश-अधिक लाभ कमाने के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा किए गए निवेश को विदेशी निवेश कहते हैं।

प्रश्न 3.
हाल के वर्षों में चीन, भारत से इस्पात आयात कर रहा है। व्याख्या करें कि चीन द्वारा इस्पात का आयात कैसे प्रभावित करेगा
(क) चीन की इस्पात कंपनियों को
(ख) भारत की इस्पात कंपनियों को
(ग) चीन में अन्य औद्योगिक वस्तुओं के उत्पादन के लिए इस्पात खरीदने वाले उद्योगों को
उत्तर-
(क) चीन की इस्पात कंपनियाँ उत्पादों को कम बेच पाएगी जिससे उन्हें घाटा हो सकता है।
(ख) भारत की स्टील कंपनियाँ अपने व्यवसायों का विस्तार करेंगी।
(ग) चीन में अन्य औद्योगिक वस्तुओं के उत्पादन के लिए इस्पात खरीदने वाले उद्योगों को इससे लाभ होगा क्योंकि उनहें कम कीमतों पर चुनाव का अवसर अधिक मिलेगा।

प्रश्न 4.
चीन के बाजारों में भारत से इस्पात का आयात किस प्रकार दोनों देशों के इस्पात-बाजार के एकीकरण में सहायता करेगा? व्याख्या करें।
उत्तर-
(क) भारतीय इस्पात घरेलू वाजार से चीन के बाजार तक पहुँचेगा।
(ख) बाजारों में इस्पातों के चुनाव में वृद्धि होगी।
(ग) दोनों बाजारों में समान गुणवत्ता वाले इस्पातों की कीमतें बराबर होंगी।
(घ) दोनों देशों के उत्पादक एक-दूसरे से निकट प्रतिस्पध f कर सकेंगे।

आओं-इन पर विचार करें। (पृष्ठ संख्या 62)

प्रश्न 1.
विदेश व्यापार के उदारीकरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
विदेश व्यापार और विदेशी निवेश पर सरकार द्वारा निर्धारित अवरोधकों एवं प्रतिबन्धों को हटाने की प्रक्रिया ही विदेश व्यापार का उदारीकरण कहलाता है।

प्रश्न 2.
आयात पर कर एक प्रकार का व्यापार अवरोधक है। सरकार आयात होने वाली वस्तुओं की संख्या भ्ज्ञी सीमित कर सकती हैं इसे कोटा कहते हैं। क्या आप चीन के खिलौनों के उदाहरण से व्याख्या कर सकते हैं कि व्यापार अवरोधक के रूप में कोटा का प्रयोग कैसे किया जा सकता हैं? आपके विचार से क्या इसका प्रप्रयोग किया जाना चाहिए? चर्चा करें। .
उत्तर-
यदि भारतीय सरकार चीन के खिलौफ पर कोटा लगाती है तो भारतीय बाजारों में इन खिलौनों की आपूर्ति कम हो जागीए। भारतीय क्रेताओं के पास सस्ती कीमतों पर चीन के खिलौने खरीदने का विकप्ल कम हो जाएगा। भारतीय खिलौना निर्माताओं को अधिक हानि नहीं उठानी पड़ेगी क्योंकि भारतीय खिलौनों की माँग मे थोड़ी मात्रा में ही गिरावट आएगी। इस प्रकार, कोटा का प्रयोग व्यापार अवरोधक के रूप में किया जा सकता है।
भारत में अब इसके प्रयोग की आवश्यकता नहीं है। बल्कि भारतीय उत्पादकों को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए।

आओ-इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 66)

प्रश्न 2.
आपके विचार से विभिन्न देशें के बीच अधिकाधिक न्यायसंगत व्यापार के लिए क्या किया जा सकता है?
उत्तर-
(क) विश्व व्यापार संगठन, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों को मजबूत बनाया जाना चाहिए।
(ख) विकासशील देशें को, अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के सामने मिलकर और मजबूती से अपना पक्ष प्रस्तुत करना चाहिए।

प्रश्न 3.
उपर्युक्त उदाहरण में, हमने देखा कि अमेरिकी सवरकार किसानों को उत्पादन के लिए भारी धन राशि देती है। कभी-कभी सरकार कुछ विशेष प्रकार की वस्तुओं जैसे पर्यावरण के अनुकूल वस्तुओं के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सहायता देती है। यह न्यायसंगत है या नहीं, चर्चा करें।
उत्तर-
यदि सरकारें कुछ विशेष प्रकार की वस्तुओं जैसे पर्यावरण के अनुकूल वस्तुओं के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सहायता देती है। तो वह अनुचित नहीं है। क्योंकि पर्यावरण समस्या सम्पूर्ण विश्व के लिए चिन्ता का विषय है इसलिए विश्व के सम्पूर्ण देशों के लिए समान कानून होना चाहिए।

आओ-इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 67)

प्रश्न 1.
प्रतिस्पर्धा से भारत के लोगों को कैसे लाभ हुआ है?
उत्तर-
(क) उपभोक्ताओं, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में रह रहे धनी वन के उपभोक्ताओं के समक्ष पहले से अधिक विकल्प हैं। वे अब अनेक वस्तुओं की उत्कृष्टता, गुणवत्ता और कम कीमत से लाभान्वित हो रहे हैं। परिणामतः ये लोग पहले की तुलना मे आज अपेक्षाकृत उच्चतर जीवन स्तर का उपभोग कर रहे हैं।
(ख) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ विशेषज्ञकर सेलफोन, मोटरगाडियां, इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों, ठंडे पेय पदार्थो और जंक खाद्य (fast food) पदार्थो जैसी वस्तुओं एवं बैंकिग जैसी सेवाओं में निवेश की हैं। अतः इन उद्योगों में रोजगार के नए अवसर भी पैदा हुए
(ग) इन उद्योगों की कच्चे माल आदि की आपूर्ति करने वाली स्थानीय कंपनियों का विकास हुआ है।
(घ) कई बड़ी कंपनियों ने उन्नत प्रौद्योगिकी और उत्पादन विधियों में निवेश कर अपना उत्पादन मानकों में वृद्धि की है।
(ङ) कुछ कंपनियों ने विदेशी कंपनियों के साथ सफलतापूर्वक सहयोग कर लाभ-अर्जित किया है।
(च) कुछ बड़ी भारतीय कंपनियां अपने काम-काज को विश्व-भर में फैलाकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के रूप में उभरी हैं। उदाहरण के लिए, टाटा मोटर्स, इंफोसिस, रैनबैक्सी आदि।

प्रश्न 2.
क्या और भारतीय कंपनियों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के रूप में उभारना चाहिए? इससे देश की जनता को क्या लाभ होगा?
उत्तर-
भारतीय कंपनियों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के रूप में अवश्य उभारना चाहिए। इससे देश की जनता को निम्नलिखित लाभ होगा
(क) भारतीयों को रोजगार के अधिक अवसर प्राप्त होंगे। (ख) ये कंपनियाँ नयी प्रौद्योगिकी लाएँगी।
(ग) ये कंपनियां सस्ती दरों पर गुणवत्ता वाली वस्तुएँ उपलब्ध कराएँगी।
(घ) ये अपने साथ देश के लिए विदेशी मुद्रा लाएँगी।

प्रश्न 3.
सरकारें अधिक विदेशी निवेश आकर्षित करने का प्रयास क्यों करती हैं?
उत्तर-
(क) विदेशी निवेशों से देश में रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।
(ख) यह स्थानीय कंपनियों को परिवहन एवं प्रशिक्षण एजेंटों जैसी सहायक सेवाओं में अधिक निवेश के लिए प्रोत्साहित करती है।
(ग) विदेशी निवेश से प्राप्त लाभों का एक हिस्सा प्रायः संबंधित उद्योगों के विस्तार एवं आधुनिकीकरण में निवेश किया जाता है।
(घ) सरकार विदेशी फर्मों के लाभ पर कर लगाकर राजस्व प्राप्त करती है।

आओ-इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 68)

प्रश्न 1.
रवि की लघु उत्पादन इकाई बढ़ती प्रतिस्पध से किस प्रकार प्रभावित हुई?
उत्तर-
(क) सरकार ने 2001 में विश्व व्यापार संगठन में हुए समझौते के अनुसार संधारित्रों के आयात पर से प्रतिबंधों को हटा लिया।
(ख) बहुराष्ट्रीय कंपनियों के ब्राड़ो से प्रतिस्पर्धा ने भारतीय टेलिविजन कंपनियों जो रवि के संधारित्रों की क्रेता थीं, को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए संयोजन कार्य करने के लिए विवश कर दिया।
(ग) इसक अतिरिक्त, कई टेलिविजन कंपनियों ने संध रित्रों का आयात करना अधिक लाभप्रद समझा क्योंकि आयातित सामानों की कीमत रवि जैसे लोगों द्वारा निर्धारित कीमत से आधी होती थी।
(घ) रवि अब पहले की अपेक्षा आधे से भी कम संध रित्रों का उतपादन करता है। साथ ही, अब उसके साथ केवल सात कर्मचारी काम कर रहे हैं।

प्रश्न 2.
दूसरे देशों के उत्पादकों की तुलना में उत्पादन लागत अधिक होने के कारण क्या रवि जैसे उत्पादकों को उत्पादन रोक देना चाहिए? आप क्या सोचते हैं?
उत्तर-
रवि जैसे उत्पादकों को उत्पादन नहीं रोकना चाहिए, बल्कि उन्नत प्रौद्योगिकी एवं उत्पादन विधियों को अपनाकर __ अपनी लागत घटानी चाहिए एवं उत्पादन मानकों में बढ़ोतरी करनी चाहिए।
इसके अलावा सरकार को ऐसे उत्पादकों को उचित ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध करानी चाहिए।

प्रश्न 3.
नवीनतम अध्ययनों ने संकेत किया है कि भारत के लघु उतपादकों को बाजार में बेहतर प्रतिस्पर्धा के लिए तीन चीजों की आवश्यकता हैं-
(अ) बेहतर सड़कें, बिजली, पानी, कच्चा माल, विपणन और सूचना तंत्र,
(ब) प्रौद्योगिकी में सुधार एवं आधुनिकीकरण और
(स) उचित ब्याज दर पर साख की समय पर उपलब्धता।
(i) क्या आप व्याख्या कर सकते हैं कि ये तीन चीजें भारतीय उत्पादकों को किस प्रकार मदद करेंगी?
(ii) क्या आप मानते हैं कि बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ इन क्षेत्रों में निवेश करने के लिए इच्छुक होंगी? क्यों?
(iii) क्या आप मानते हैं कि इन सुविधाओं को उपलब्ध कराने में सरकार की भूमिका हैं? क्यों?
(iv) क्या आप कोई ऐसा उपाय सुझा सकते है। जिसे कि सरकार अपना सके? चर्चा करें।
उत्तर-
(i) ये चीजें भारतीय उत्पादकों को निम्न प्रकार से मदद कगी

(अ) बेहतर सड़कें-ये कच्चे मालों एवं उत्पादित वस्तुओं के परिवहन में सहायता देंगी।
बिजली-यह मशीनों को चलाने के लिए अति आवश्यक जल-यह उत्पादन प्रक्रिया के लिए आवश्यक है।
कच्चा माल-यह वस्तुओं के उत्पादन के लिए मूलभूत आवश्यकता है। विपणन और सूचना तंत्र-उत्पादित वस्तुओं को बेचने के लिए अच्छे विपणन और सूचना तंत्र की आवश्यकता होती है।
(ब) प्रौद्योगिकी में सुधार एवं उसका आध निकीकरण-वस्तुओं की गुणवत्ता में वृद्धि करती है और उनकी लागतों को कम करती है।
(स) उचित ब्याज दरों एवं समय पर साख की उपलब्धता-उद्यमियों को नयी प्रौद्योगिकी एवं उत्पादन विधियों
में निवेश के लिए प्रेरित करती है। इससे वस्तुओं की गुणवता __ में वृद्धि होगी ओर कीमतों में कमी आएगी और छोटे उत्पादक बाजार में बेहतर प्रतिस्पर्धा की स्थिति में होंगे।
(ख) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ इन क्षेत्रों में निवेश करने के लिए इच्छुक होंगी। क्योंकि इन क्षेत्रों में निवेश करने से पूंजी विलम्ब से वासप प्राप्त होती है। और कमाई भी बहुत कम होती है।
(ग) इन सुविधाओं को उपलब्ध कराने में सरकार की मुख्य भूमिका होती है। क्योंकि इन सुविधाओं से सामाजिक कल्याण में वृद्धि होती हैं जो किसी भी सरकार का प्रमुख उद्दश्य होता है।
(घ) सरकार को अपने कार्यालयों से भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद आदि दूर करना चाहिए और उद्यमियों को और अधिक सुविधाएँ उपलब्ध करानी चाहिए।

आओ-इन पर विचार (पृष्ठ संख्या 70)

प्रश्न 1.
वस्त्र उद्योग के श्रमिकों, भारतीय निर्यातकों और विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को प्रतिस्पर्धा ने किस प्रकार प्रभावित किया हैं?
उत्तर-
(क) श्रमिक
(क) श्रमिक अब अस्थायी रूप से काम करते हैं।
(ख) उन्हें अधिक घंटे काम करने पड़ते हैं। उसके लिए अतिरिक्त भुगतान नहीं मिलता है।
(ग) उनहें व्यस्त मौसम में नियमित रूप से रात के समय में भ्ज्ञी काम करने पड़ते हैं।
(घ) मजदूरी कम हो गई है।

(ख) भारतीय निर्यातक
(क) उन्हें बहुराष्ट्रीय कंपनियों से सस्ती दरों पर उत्पादन आदेश प्राप्त होता हैं
(ख) उन्हें अपनी लागतों को कम करने के लिए कठिन प्रयास करना पड़ता है।
(ग) वे श्रम लागतों को कम करने के लिए विवश हैं। (घ) वे श्रमिकों को अस्थयी रूप से ही काम पर लगते
(ग) विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ
(क) वे अपने लाभ को बढ़ाने के लिए सस्ती वस्तुएँ प्राप्त करने में सक्षम होती है।
(ख) वस्त्र निर्यातकों में प्रतिस्पर्धा के फलस्वरूप इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अत्यधि लाभ प्राप्त हुआ है।

प्रश्न 2.
वैश्वीकरण से मिले लाभों में श्रमिकों को न्यायसंगत हिस्सा मिल सके, इसके लिए प्रत्येक निम्न वर्ग क्या कर सकता है?
(क) सरकार
(ख) निर्यातक फैक्ट्रियों के नियोक्ता
(ग) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ
(घ) श्रमिक
उत्तर-
(क) सरकार-श्रम कानून बनाकर और उन्हें उचित ढंग से लागू कर श्रमिकों को संरक्षण प्रदान कर सकती है।
(ख) निर्यातक फैक्ट्रियों के नियोक्ता-ये श्रमिकों को उचित मजदूरी और रोजगार सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं।
(ग) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ-इन्हें उन निर्यातकों को उत्पादन-आदेश देना चाहिए जो श्रम कानूनों का उचित रूप में पालन करते हों।
(घ) श्रमिक-मजदूर संघों की स्थापना कर उनके माध्यम से लाभ में अपना उचित हिस्सा प्राप्त करने हेतु निर्यातकों पर दबाव डाल सकते हैं।

प्रश्न 3.
वर्तमान समय में भारत में बहस है कि क्या कंपनियों को रोजगार नीतियों के मुद्दे पर लचीलापन अपनाना चाहिए। इस अध्याय के आधार पर नियोक्ताओं और श्रमिकों के पक्षों का संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर-
नियोक्ताओं का पक्ष
(क) वे श्रमिकों को अस्थायी रूप से काम पर लगाना पसंद करते हैं।
(ख) नियोक्ता प्रतिस्पर्धा के कारण अपनी लागतों को कम करने का भरपूर प्रयास करते हैं।
(ग) वे श्रमिकों को केवल अस्थायी रूप से रोजगार पर इसलिए लगाना चाहते हैं ताकि उन्हें श्रमिकों को पूरे वर्ष भुगतान न करना पड़े।

श्रमिकों का पक्ष-
(क) वे रोजगार की लचीली नीतियों के पक्ष में नहीं होते हैं। इसलिए रोजगार की यह दशा दर्शाती है कि श्रमिकों को वैश्वीकरण के लाभ का उचित हिस्सा नहीं मिला है।
(ख) उनकी आय पहले की अपेक्षा आधे से भी कम हो गई है उन्हें दैनिक मजदूरी के अलावा और कोई अन्य नहीं मिलता है।

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं? अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
वैश्वीकरण विभिन्न देशों के बीच तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया है। अधिकाधिक विदेशी निवेश और विदेश व्यापार के कारण यह संभव हो रहा है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया में बहुराष्ट्रीय कंपनियां मुख्य भूमिका निभा रही है। आधुनिक समय में उतपादन कार्य अत्यन्त जटिल तरीके से संपनन हो रहा है। इसका कारण यह है कि अधिकांश बहुराष्ट्रीरा कंपनियाँ विश्व के उन स्थानों की ओर जा रही हैं जो उकने उत्पादन के लिए सस्ता हो, जहाँ बाजार नजदीक हो और ससती दर पर श्रमिक उपलब्ध हों। कभी-कभी ये बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ स्थानीय कंपनियों के साथ गठजोड़ कर उत्पादन करती हैं, जिससे दोनों को फायदा होता है।

प्रश्न 2.
भारत सरकार द्वारा विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर अवरोधक लगाने के क्या कारण थे? इन अवरोधकों को सरकार क्यों हटाना चाहती थी?
उत्तर-
(क) 1947 ई. में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर प्रतिबंध लगा रखा था। क्योंकि घरेलू उत्पादकों को विदेशी प्रतिस्पर्धाक खिलाफ संरक्षण देने के लिए यह आवश्यक था।
(ख) 1950 एवं 1960 के दशक में जब उद्योगों की स्थापना हुई तो इन नवोदित उद्योगों को आयात से प्रतिस्पर्धा करने की अनुमति नहीं दी गई।
(ग) सन् 1991 में भारत सरकार ने यह निश्चय किया कि भारतीय उत्पादक विश्व-स्तरीय उत्पादकों से प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम हैं।
(घ) यह भी महसूस किया गया कि प्रतिस्पर्धा से देश के उत्पादकों के प्रदशन में सुधार आएगा और उत्पादों की गुणवत्ता में भी सुधार होगा। कई प्रभावशली अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों ने भी इस निर्णय का समर्थन किया। इसलिये सरकार ने इन अवरोध कों को हटाने का निश्चय किया।

प्रश्न 3.
श्रम कानूनों में लचीलापन कंपनियों को कैसे मदद करेगा?
उत्तर-
(क) भारत में विदेशी निवेश आकर्षित करने हेतु सरकार ने श्रम काननों में लचीलापन अपनाने की अनुमति दी है। हाल के वर्षों में सरकार न कंपनियों को अनेक नियमों से छूट लेने की अनुमति भी दी है।
(ख) अब नियमित आधार पर श्रमिकों को रोजगार देने के बजाय कंपनियाँ छोटी अवधि जब काम का बदाव धिक होता है।, के लिए श्रमिकों को रोजगार पर रखती हैं। इससे कंपनी की श्रम-लागत कम होती है और उनका लाभांश बढ़ता है। विश्वव्यापी नेटवक से युक्त बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अधि क लाभ अर्जित करने के लिए सस्ती वसतुओं की मांग करती हैं इससे उनहें प्रतिस्पर्धा में बनने रहने में सहायता मिलती है।

प्रश्न 4.
दूसरे देशों में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ किस प्रकार उत्पादन पर नियंत्रण स्थापित करती है?
उत्तर-
(क) सामान्यत: बहुराष्ट्रीय कंपनियां उसी स्थान पर उत्पादन कार्य शुरू करती हैं जहाँ बाजार नजदीक हो, सस्ते दर पर श्रमिक उपलब्ध हों और सरकारी नीतियां भ्ज्ञी उनके हितों के अनुकूल हों।
(ख) बहुराष्ट्रीय कंपनियों के निवेश का सामान्य तरीका होता हैं, स्थानीय कंपनियों को खरीदना, उसके बाद उतपादन का प्रसार करना।
(ग) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ एक अन्य तरीके से भी उत्पादन नियंत्रित करती हैं। विकसित देशों की बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां छोटे उत्पादकों को उत्पादन का आदेश देती हैं वस्त्र, जूत चप्पल एवं खेल के सामान आदि ऐसे उद्योग हैं। जिनका उत्पादन छोटे स्तर के उत्पादकों द्वारा किया जाता है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों को इन उतपादों की अपूर्ति कर दी जाती है। जो अपने ब्रांड नाम से बाजार में बेचती हैं।

प्रश्न 5.
विकसित देश, विकासशील देशों से उनके व्यापार और निवा का उदारीकरण क्यों चाहते हैं? क्या आप मानते हैं कि विकासशील देशों को भी बदले मे ऐसी मांग करनी चाहिए?
उत्तर-
(क) विकसित देशों की बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ प्रायः उन स्थानों पर उत्पादन कार्य संचालित करना चाहिए हैं जो बाजार के नजदीक हों, जहाँ कम लागत पर कुशल और अकुशल श्रम उपलब्ध हों तथा उस देश की सरकारी नीतियाँ भ्ज्ञी ऐसी हां जो उनके हितों के अनुरूप हों।
(ख) विकासशील देशों में ये सारी सुविधाएँ मौजूद हैं अतः विकसित देश विकासशील देशों से उनके व्यापार और -निवेश का उदारीकरण चाहते हैं।
(ग) विकासशील देशों को भी बदले में ऐसी मांग अवश्य करनी चाहिये क्योंकि विकसित देशों में अनुचित ढंग से व्यापार अवरोधकों को बरकरार रखा है। जबकि, विश्व व्यापर संगठन के नियमों के कारण विकासशील देश व्यापार अवरोधकों को हटाने के लिए विवश हुए हैं। कृषि उतपादों के व्यापार पर वर्तमान बहस इसका एक ज्वलंत उदाहरण हैं।

प्रश्न 6.
वैश्वीकरण का प्रभाव एक समान नहीं है। इस कथन की अपने शब्दो में व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
(क) वैश्वीकरण का लाभ धनी वर्ग के उपभोक्ताओं को अधिक हुआ है। इन उपभोक्ताओं के पास आज पहले की अपेक्षा ज्यादा विकल्प हैं। उत्पादों की उत्कृष्टता, गुणवता तथा कम कीमत का लाभ भी उन्हें मिल रहा है। इनका जीवन स्तर भी ऊँचा हुआ है।
(ख)विगत वर्षों में विदेशी निवेश उन्ही उद्योगों और सेवाओं में हुआ है, जिनमें निर्यात की संभावना ज्यादा है। इन श्रेत्रकों में नये उद्योगों की स्थापना भी हुई है और नये रोजगार का भी सृजन हुआ है इन उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति करने वाली स्थानीय कंपनियों का भी विस्तार हुआ है। और कुछ ने तो अपनी उत्पादन प्रक्रिया का आधुनिकीकरण भी किया।
(ग) दूसरी ओर वैश्वीकरण और प्रतिस्पर्धा के दबाव ने श्रमिकों के जीवन को व्यापक रूप से प्रभावित किया है। बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण अधिकांश नियोक्ता इन दिनों रोजगार देने में लचीलापन पंसद करते हैं। इस कारण श्रमिकों को रोजगार सुरक्षा का लाभ नहीं मिल पाता है।
(घ) अधिक लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से नियोक्ता श्रम लागत में कौती करने की कोशिश करते हैं। इसलिए श्रमिकों को अस्थायी रोजगार मिलता है। उनहें बहुत लंबे कार्य घंटों तक काम करना पड़ता है लेकिन मजदूरी कम मिलती है। इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि वैश्वीकरण का प्रभाव समान नहीं है।

प्रश्न 7.
व्यापार और निवेश नीतियों का उदारीकरण वैश्वीकरण प्रक्रिया में सहायता कैसे पहुँचाती हैं?
उत्तर-
(क) सरकारें विदेश व्यापार में बढ़ोत्तरी या कमी करने तथा देश में आयतित वस्तुओं की मात्रा निश्चित करने के लिए व्यापार अवरोधक लगाती हैं।
(ख) उपभोक्ताओं के लिए उचित मूल्य सुनिश्चित करना तथा घरेलू उत्पादकों को संरक्षण प्रदान करना भी इसका एक कारण हो सकता है।
(ग) विगत कुछ वर्षों में अनेक देशों के बीच अधिकाधि क व्यापार व निवेश में योगदान करने वाला मुख्य कारक हैं-अनेक प्रकार के व्यापार और निवेश अवरोधकों या प्रतिबंध ों में कटौती करना जैसे-पिछले दो दशकों में भारत सरकार ने व्यापार व निवेश अवरोधको में कमी की है।
(घ) परिणामतः वस्तुओं के आयात में सुविधा होती है। और विदेशी कंपनियाँ दूसरी जगहों पर अपने कार्यालय और कारखाने सथापित कर सकेंगी।
(ङ) व्यापार के उदारीकरण से व्यापारियों को मुक्म रूप से निर्णय लेने की अनुमति होती हैं, जिससे वह अपनी इच्छानुसार आयात-निर्यात कर सकते हैं।

प्रश्न 8.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
दो दशक पहले की तुलना में भारतीय खरीददारों के पास वस्तुओं के अधिक विकल्प है। यह ………. की प्रक्रिया से नजदीक से जुड़ा हुआ है। भारत के बाजारों में अनेक दूसरे देशों में उत्पादित वस्तुओं को बेचा जा रहा है। इसका अर्थ है कि अन्य देशों के साथ ………… बढ़ रहा है। इससे भी आगे भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियो द्वारा उत्पादित ब्रांडों की बढ़ती संख्या हम भारत के बाजारों में देखते हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भारत में निवेश कर रही है। क्योंकि ……..। जबकि बाजार में उपभोक्ताओं
के लिए अधिक विकल्प इसलिए बढ़ते …………..और …….. …..के प्रभाव का अर्थ है उत्पादकों के बीच अधिकतम …… ……।
उत्तर-
वैश्वीकरण; व्यापार; भारत एक बड़ा बाजार है; उत्पादन; वैश्वीकरण; प्रतिस्पर्धा।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए-
(क) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ छोटे उत्पादकों से सस्ते दरों पर खरीदती हैं।
(ख) आयात पर कम और कोटा का उपयोग व्यापार नियमन के लिए किया जाता है
(ग) विदेशों में निवेश करने वाली भारतीय
(घ) आई टी ने सेवाओं के उत्पादन के प्रसार में साहयता की है।
(ङ) अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने उत्पादन करने के लिए निवेश किया है।
उत्तर-
(क)-ब;
(ख)-य;
(ग)-द;
(घ)-स;
(ङ)-अ।

प्रश्न 10.
सही विकल्प का चयन कीजिए
(अ) वैश्वीकरण के विगत दो दशकों में द्रुत आवागमन देखा गया है
(क) देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं और लोगों का
(ख) देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं और निवेशों का
(ग) देशों के बीच वस्तुओं, निवेशों और लोगों का
उत्तर-
(ख) देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं और निवेशों का

(आ) विश्व के देशों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा निवेश का सबसे अधिक सामान्य मार्ग हैं।
(क) नये कारखानों की स्थापना
(ख) स्थानीय कंपनियों को खरीद लेना
(ग) स्थानीय कंपनियों से साझेदारी करना
उत्तर-
(ख) स्थानीय कंपनियों को खरीद लेना

(इ) वैश्वीकरण ने जीवन-स्तर के सुधार में सहायता पहुँचाई हैं।
(क) सभी लोगों के
(ख) विकसित देशों के लोगों के
(ग) विकासशील देशों के श्रमिकों के
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।

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HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

Haryana State Board HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख

HBSE 10th Class Economics मुद्रा और साख Textbook Questions and Answers

पाठ्यगत प्रश्नोत्तर (पृष्ठ संख्या 40)

प्रश्न 1.
मुद्रा के प्रयोग से वस्तुओं के विनिमय में सहूलियत कैसे आती है?
उत्तर-
वस्तु विनिमय प्रणाली में जहाँ वस्तुएँ सीधे आदान-प्रदान की जाती हैं, वहाँ आवश्यकताओं का दोहरा संयोग एक आवश्यक शत्र होती है। विनिमय के एक माध्यम के रूप में मुद्रा आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की आवश्यकता और वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाइयों को दूर करता है। इस तरह मुद्रा के प्रयोग से वस्तुओं के विनिमय में सहूलियत आती है।

प्रश्न .2.
क्या आप कुछ ऐसे उदाहरण सोच सकते हैं, जहाँ वस्तुओं तथा सेवाओं का विनिमय या मज़दूरी की अदायगी वस्तु विनिमय के ज़रिए हो रही है?
उत्तर-

  1. ग्रामीण क्षेत्रों में प्रायः अनाजों का विनिमय सीधे किया जाता है।
  2. खेतिहर मजदूरों को प्रायः नकद में नहीं बल्कि वस्तुओं के रूप में भुगतान किया जाता है।

आओ-इन पर विचार करें

प्रश्न 1.
एम. सलीम भुगतान के लिए 20, 000 रु. नकद निकालना चाहते हैं। इसके लिए वह चैक कैसे लिखेंगे?
उत्तर-
एम. सलीम दिए गए स्थान पर संबंधित तारीख लिखेंगे। वह बैंक को ‘स्वयं’ भुगतान करने का आदेश देंगे। वह रुपये से आगे ‘हजार मात्र’ भी लिखेंगे और दिए हुए बॉक्सों में रकम और खाता संख्या जैसे 29,000/- और 2101347298600035 भरेंगे। उन्हें चेक पर नीचे दाहिनी ओर अपने हस्ताक्षर करने पड़ेंगे। फिर वह इसे बैंक के निकासी काउन्टर पर जमा करेंगे और उन्हें रुपये मिल जाएँगे।

प्रश्न 2.
सही उत्तर पर निशान लगाए.
(क) सलीम के बैंक खाते में शेष बढ़ जाता है और प्रेम के बैंक खाते में शेष बढ़ जाता है।
(ख) सलीम के बैंक खाते में शेष घट जाता है और प्रेम के बैंक खाते में शेष बढ़ जाता है।
(ग) सलीम के बैंक खाते में शेष बढ़ जाता है और प्रेम के बैंक खाते में शेष घट जाता है।
उत्तर-
(ख) सलीम के बैंक खाते में शेष घट जाता है और प्रेम के बैंक खाते में शेष बढ़ जाता है।

प्रश्न 3.
माँग जमा को मुद्रा क्यों समझा जाता है?
उत्तर-
चूँकि माँग जमा व्यापक स्तर पर भुगतान का जरिया स्वीकार किए जाते हैं, इसलिए आधुनिक अर्थव्यवस्था में करेंसी के साथ-साथ इसे भी मुद्रा समझा जाता है।

(अ) सलीम और प्रेम के बीच लेन-देन के बाद आओ-इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 44)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित तालिका की पूर्ति कीजिए।
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख 1
उत्तर-
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख 2

प्रश्न 2.
मान लीजिए, सलीम को व्यापारियों से ऑर्डर मिलते रहते हैं। 6 साल बाद उसकी स्थिति क्या होगी?
उत्तर-
यदि सलीम को व्यापारियों से आर्डर मिलते रहते हैं तो वह अच्छा लाभ कमाएगा और 6 साल बाद बहुत बड़ा जूता निर्माता हो जाएगा।

प्रश्न 3.
कौन से कारण हैं, जो स्वप्ना की स्थिति को जोखिम भरा बनाते हैं? निम्नलिखित कारकों की चर्चा कीजिए- कीटनाशक दवाइयाँ, साहूकारों की भूमिका, मौसम।
उत्तर-
फसलों पर कीटों का प्रभाव, साहूकारों द्वारा शोषण और मानूसन का अभाव आदि वे कारण हैं जो स्वप्ना की स्थिति को जोखिम भरा बनाते हैं।

कीटनाशक दवाइयाँ-फसल पर कीटों के प्रभाव को कीटनाशक दवाइयों द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है।
साहूकारों की भूमिका-सामान्यतः साहूकार किसानों का शोषण करते हैं। वे उन्हें ऋण जाल में फँसा लेते हैं।
मौसम- हमारी कृषि भूमि का लगभग 60% भाग अभी भी असिंचित है। हमारे किसान वर्षा पर अत्यधिक निर्भर करते हैं। अत: मौसम कृषि में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

आओ-इन पर विचार करें (पृष्ठ संख 45)

प्रश्न 1.
उधारदाता उधार देते समय समर्थक ऋणाध पर’ की माँग क्यों करता है?
उत्तर-
उधारदाता ऋण के विरुद्ध सुरक्षा के रूप में समर्थक ‘ऋणाधार की माँग करता है। यदि कर्जदार यह उधार लौटा नहीं पाता तो उधारदाता को भुगतान प्राप्ति के लिए समर्थक ऋणाधार बेचने का अधिकार होता है।

प्रश्न 2.
हमारे देश की एक बहुत बड़ी आबादी निर्धन है। क्या यह उनके कर्ज लेने की क्षमता को प्रभावित करती है?
उत्तर-
निर्धनता कर्ज लेने की क्षमता को प्रभावित करती है। इसका कारण है कि कर्ज लेने के लिए लोगों को गारंटी रूप में समर्थक ऋणाधार देनी पड़ती है। निर्धन लोगों के पास उन संपत्तियों का अभाव होता है जो कर्ज लेने की उनकी क्षमता को प्रभावित करती है।

प्रश्न 3.
कोष्ठक में दिए गए सही विकल्पों का चयन कर रिक्त स्थानों की पूर्ति करें-
ऋण लेते समय कर्जदार आसान प्ण शतोछद्ध को देखता है। इसका अर्थ है …………. (निम्न/ उच्च) ब्याज दर, ……….. (आसान / कठिन) अदायगी की शतेछद्व, …………. (कम/अधिक) समर्थक ऋणामार एवं आवश्यक कागजात।
उत्तर-
ऋण लेते समय कर्जदार आसान ऋण शर्तों को देखता है। इसका अर्थ है निम्न ब्याज दर. आसान अदायगी की शर्ते, कम समर्थक ऋणाधार एवं आवश्यक कागजात।

आओ-इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 47)

प्रश्न 1.
सोनपुर में ऋण के विभिन्न पेतों की सूची बनाइए।
उत्तर-
1. ग्रामीण साहूकार,
2. खेतिहर व्यापारी,
3. बैंक और,
4. भूपति-मालिक।

प्रश्न 2.
ऊपर दिए हुए अनुच्छेदों में ऋण के विभिन्न प्रयोगों वाली पंक्तियों को रेखांकित कीजिए।
उत्तर-
संबंधित अनुच्छेदों में ऋण के निम्न प्रयोगों वाली पंक्तियाँ निम्न हैं

1. श्यामल का कहना है कि उसे अपनी 1.5 एकड़ जमीन को जोतने के लिए हर मौसम में उधार लेने की जरूरत पड़ती है।
2. अरूण सोनपुर के उन कुछ लोगों में से है. जिसे खेती के लिए बैंक से ऋण मिला है। ____ 3. साल में कई महीने रमा के पास कोई काम नहीं होता और उसे अपने रोजमर्रा के खर्चों के लिए कर्ज लेना पड़ता है। अचानक बीमार पड़ने पर या परिवार में किसी समारोह पर खर्च करने के लिए भी उसे कर्ज लेना पड़ता है।
4. इस पूँजी का इस्तेमाल सदस्यों को कर्ज देने के लिए किया जाता है।
5. कृषक सहकारी समिति कृषि उपकरण खरीदने, खेती तथा कृषि व्यापार करने, मछली मकड़ने, घर बनाने और अन्य विभिन्न प्रकार के खर्चों के लिए ऋण मुहैया कराती है।

प्रश्न 3.
सोनपुर के छोटे किसान, ममयम किसान और भूमिहीन कृषि मज़दूर के लिए ऋण की शतोचद्व की तुलना कीजिए।
उत्तर-
im 3

प्रश्न 4.
श्यामल की तुलना में अरुण को खेती से ज्यादा आय क्यों होगी?
उत्तर-
श्यामल की तुलना में अरुण को खेती से ज़्यादा आय होगी क्योंकि-

1. अरुण के पास 7 एकड़ भूमि है, जबकि श्यामल के पास 1.5 एकड़ भूमि है।
2. अरुण ने 8.5% प्रतिवर्ष की ब्याज दर पर बैंक ऋण प्राप्त किया। दूसरी ओर, श्यामल को 36% प्रतिशत की ब्याज दर पर ऋण प्राप्त हुआ है।
3. अरुण को अगले तीन वर्षों में किसी भी समय ऋण चुकाना है, जबकि श्यामल को 3-4 महीनों के भीतर ही ऋण चुकाना है।
4. श्यामल को खेतिहर व्यापारी को फसल बेचने का वायदा करना पड़ता है, जबकि अरुण के लिए ऐसी कोई शर्त नहीं है।

प्रश्न 5.
क्या सोनपुर के सभी लोगों को सस्ती ब्याज दरों पर कर्ज मिल सकता है? किन लोगों को मिल सकता है?
उत्तर-
नहीं, सोनपुर के सभी लोगों को सस्ती ब्याज दरों पर कर्ज नहीं मिल सकता है। इसका कारण है कि सस्ती ब्याज दरों पर बैंक ऋण लेने के लिए समर्थक ऋणाधार की आवश्यकता पड़ती है।
जो लोग समर्थक ऋणाधार और कागजात संबंधी आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं, उन्हें ही सस्ती ब्याज दरों पर बैंक से ऋण मिल सकता है।
6. सही उंनर पर निशान लगाइए-

(क) समय के साथ. रमा का पण

  1. बढ़ जाएगा
  2. समान रहेगा
  3. घट जाएगा

(ख) अरूण सोनपुर के उन लोगों में से है जो बैंक से उधार लेते हैं क्योंकि-

  1. गाँव के अन्य लोग साहूकारों से कर्ज़ लेना चाहते हैं।
  2. बैंक समर्थक ऋणाधार की माँग करते हैं जो कि हर किसी के पास नहीं होती।
  3. बैंक ऋण पर ब्याज दरें उतनी ही हैं जितना कि व्यापारी लेते हैं।

आओ-इन पर विचार करें ( पृष्ठ संख्या 50)

प्रश्न 1.
ऋण के औपचारिक और अनौपचारिक स्रोतों में क्या अंतर है?
उत्तर-
ऋण के औपचारिक और अनौपचारिक स्रोतों के बीच अंतर को निम्न तालिका से स्पष्ट किया जा सकता है-

HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख 3

पाठ्य-पुस्तक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
जोखिम वाली परिस्थितियों में ऋण कर्जदार के लिए और समस्याएँ खड़ी कर सकता है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
ऋण लेने से मदद मिलेगी कि नहीं, परिस्थिति के खतरों और हानि होने पर सहयोग की संभावना पर निर्भर करता हे। अन्यथा, अधिक जोखिम वाली परिस्थितियों में ऋण कर्जदार के लिए ओर समस्याएँ खड़ी कर सकता है।

उदहारण के तौर पर एक किसान खेती के लिए साहूकार से ऋण लेता है, इस उम्मीद पर कि फसल तैयार होने पर वह इस कर्ज को वापस कर देगा। परंतु, नाशक कीओं के हमले से फसल नष्ठ हो जाती हैं वह साहूकार का कर्ज अदा नहीं कर पाता और साल के अंदर यह कर्ज बड़ी रकम बन जाता हैं अगले साल वह पुनः कर्ज लेता है, इस साल फसल सामान्य रहती है, लेकिन इतनी कमाई नहीं होता कि वह अपना कर्ज उतार सके। इस तरह, वह कर्ज में फंस जाता है और कर्ज चुकाने के लिए उसे अपनी जीमन का कुछ हिस्सा बेचना पड़ता हैं ऐसी परिस्थिति में ऋण ने उसकी कमाई बढ़ाने के बजाय उसकी स्थिति खराब कर दी।

प्रश्न-2.
मुद्रा आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या को किस तरह सुलझाती है? अपनी ओर से उदाहरण देकर समझाइए
उत्तर-
मुद्रा की सहायता से वस्तुओं व सेवाओं की खरीद में आसानी होती है। इसलिए हर कोइ मुद्रा के रूप में भुगतान लेना पंसद करता है। फिर उस धन का उपयोग अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जाता है।
उदाहरण के लिए, यदि एक जूता निर्माता गेहूं खरीदना चाहता है। तो वह जूता बेचकर मुद्रा कमाएगा फिर इस मुद्रा से वह गेहूँ खरीद सकता है।
यदि किसी अर्थव्यवस्था में वस्तु विनिमय प्रणाली प्रचलन में हो तथा मुद्रा का प्रयोग न होता हो तो जूता निर्माता को गेहूं उगाने वाले किसान को खोजना पड़ता, जो न केवल गेहूँ बेचना चाहता हो बल्कि जूता खरीदने में भी रुचि रखता हो। अर्थात् दोनों पक्ष एक दूसरे से चीजें खरीदने व बेचने पर सहमति रखतें हों। इसे आवश्यकताओं का दोहरा संयोग कहते हैं। वस्तु विनिमय प्रणाली में माँगों का दोहरा संयोग होना लाजिमी विशिष्टता है।

ऐसा अर्थव्यवस्था में जहाँ मुद्रा को प्रयोग होता है; मुद्रा विनिमय प्रक्रिया मध्यस्थता का काम करती है और माँगों के दोहरे संयोग को खत्म कर देती है।

प्रश्न-3.
अतिरिक्त धन वाले और धन के जरूरतमंद लोगों के बीच बैकि किस तरह मध्यस्थता प्रदान करते हैं?
उत्तर-
(क) अतिरिक्त धनवाले लोग अपने धन बैंकों में जमा करते हैं जिस पर उन्हें ब्याज मिलता है।
(ख) विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के लिए कर्ज की बहुत मांग रहती है। बैंक उनके पास जमाराशि के प्रमुख भाग को कर्ज देने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
(ग) इस प्रकार, बैंक दो गुटों के बीच मध्यस्थता का काम करते हैं, एक गुट जिनके पास अतिरिक्त राशि है और दूसरा गुट जिसे इस राशि की जरूरत है।

प्रश्न-4.
रुपये के नोट को देखिये। उपर क्या लिखा है? क्या आप इस कथन की व्याख्या कर सकते हैं?
उत्तर-
इस रुपये के नोट पर लिखा होता है, ‘भारतीय रिजर्व बैंक’, केंद्रीय सरकार द्वारा प्रत्याभूत’ और ‘मै धारक को दस रुपये अदा करने का वचन देता हूँ।’ इस कथन के नीचे भारतीर रिजर्व बैंक के गवर्नर का हस्ताक्षर होता है। भारत में भारतीय रिजर्व बैंक केंद्रीय सरकार की तरफ से करेंसी नोट जारी करता है। भारतीय कानून के अनुसार किसी व्यक्ति या संस्था को मुद्रा जारी करने की इजाजत नहीं है। साथ ही कानून रुपयों को विनिमय का माध्यम जैसे उपयोग करने की वैधता _ प्रदान करता है। इसलिए, रुपया व्यापक स्तर पर विनिमय का माध्यम स्वीकार किया जाता हैं।
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 3 मुद्रा और साख 4

प्रश्न-5.
हमें भारत में ऋण के औपचारिक स्रोतों को बढ़ाने की क्यों जरूरत हैं?
उत्तर-
(क) औपचारिक स्तर पर ऋण देने वालों की तुलना में अनौपचारिक खण्ड के ज्यादातर ऋणदाता कहीं ज्यादा ब्याज वसूल करते हैं। इसलिए अनौपचारिक स्तर पर लिया गया ऋण कर्जदाता को कहीं अधिक हमँगा पड़ता है।
(ख) ऋण पर ऊँची ब्याज दारों के कारण कर्जदार की आय का अधिकतर हिस्सा ऋण उतारने में खर्च हो जाता है – और निजी खर्च के लिए उसके पस बहुत कम आय बच जाती
(ग) कुछ मामलों के कर्ज अदायगी की रकम कर्जदार की आय से भी अधिक हो जाती है और व्यक्ति ऋण के फंदे में जकड़ सकता है। (घ) इन कारणों से आवश्यक है कि लोगों को औपचारिक स्रोतों से अधिक ऋण मिले।

प्रश्न-6.
गरीबों के लिये आत्मनिर्भर गटों के संगठनों के पीछे मूल विचार क्या हैं? अपने शब्दों में बयान कीजिये।
उत्तर-
भारत में गरीब लोग ऋण के लिये अनौपचारिक स्रोतों पर ज्यादा निर्भर हैं। क्योंकि भारत के सभी ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक मौजूद नहीं हैं और जहाँ हैं भी वहां बैंक से कर्ज लेना साहूकारों से कर्ज लेने की अपेक्षा ज्यादा मुश्किल हैं। बैंक से ऋण लेने के लिए संपत्ति और तमाम अन्य कागजातों की जरूरत होती हैं। ऋणाधार नहीं होने के कारण गरीब परिवार के लोगों को बैंको से कर्ज नहीं मिल पाता है।दूसरी ओर माहजन और साहूकार इन लोगों को व्यक्तिगत स्तर पर जानते हैं और कई बार बिना ऋणाधार के ऋण दे देते हैं। लकिन ये साहूकार ब्याज’ की दरें काफी ऊँची रखतें हैं, कई बार कागजी कार्रवाई भी पूरी नहीं करते और लोगों की अशिक्षा का लाभ उठाते हुए उनका शोषण करते हैं गरीबों को इन समस्याओं से निजात दिलाने के उद्देश्य से आत्मनिर्भर गुटों का संगठन किया जाता है।

प्रश्न-7.
क्या कारण है कि बैंक कुछ कर्जदारों को कर्ज देने के लिए तैयार नहीं होते?
उत्तर-
ऋण देते समय बैंक ऋण के लिखाफ कर्जदार से कोई समर्थक ऋणाधार की मांग कर सकता है। समर्थक ऋणाधार ऐसी संपत्ति है जिसका मालिक कर्जदार होता है। जैसे-भूमि, मकान, गाडी, पशु आदि। इसका इस्तेमाल उध परदाता को गारंटी देने के रूप में करता हैं ऋणाधार की गैर-मौजूदगी के कारण कुछ गरीब परिवार बैंकों से ऋण नहीं ले पाते हैं।

प्रश्न-8.
भारतीय रिजर्व बैंक अन्य बैंकों की गतिविधि यों पर किस तरह नजर रखता है।? यह जरूरी क्यों हैं?
उत्तर-
(क) भारतीय रिजर्व बैंक अन्य बैंकों अन्य बैंकों की गतिविधियों पर नजर रखता हैं बैंक हमेशा अपने पास जमा पूंजी की एक न्यूनतम नकद अपने पास रखते हैं। आर.बी.आई. नजर रखता है कि बैंक वास्तव में नकद शेष बनाए हुए हैं।
(ख) आर.बी.आई. इस बात पर भीनजर रखता है कि बैंक केवल लाभ बनाने वाली इकाइयों व व्यापारियों को ही ऋण न दें बल्कि छोटे किसानों, छोटे उद्योगों, छोटे कर्जदारों आदि की भी ऋण मुहैया करवाए।
(ग) समय-समय पर बैंकों को आर.बी.आई. को यह जानकारी देनी पड़ती है कि वे कितना और किनकों ऋण दे रहे हैं और उसकी ब्याज दरें क्या हैं?
(घ) बैंकों की गतिविधियों पर नजर रखना जरूरी है जिससे वह ऋण के अनौपचारिक स्रोतों की तरह काम करना न शुरू कर दें।

प्रश्न-9.
विकास में ऋण की भूमिका का विश्लेषण किजिये।
उत्तर-
ऋण एक ऐसी सहमति है जहाँ उधारदाता कर्जदार को धन वस्ताएं या सेवाएँ प्रदान करता है बदले में भविष्य में कर्जदार से भुगतान का वादा लेता है। हमारी रोजमर्रा की जिदंगी में बहुत सी गतिविधियों ऐसी होती हैं, जहाँ किसी न किसी रूप में ऋण लेते है।। उद्योगपति और व्यापारी उत्पादन के लिए कार्यशील पूँजी की जरूरत को ऋण के जरिये पूरा करते हैं। ऋण उन्हें उतपादन के कार्यशील खर्चों तथा उत्पादन को समय पर खत्म करने में सहायता करता हैं, जिससे उनकी कमाई बढ़ती हैं
ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण की मुख्य माँग फसल उगाने के लिए होती हैं फसल उगाने में बीच, खाद, कीटनाशक दवाइयाँ, उपकारणों की मरम्मत आदि पर कापी खर्च आता है किसान
इन जरूरतों को पूरा करने के लिए ऋण लेतें हैं। फसल तैयार होने पर किसान ऋण उतार देते हैं।

प्रश्न-10.
मानव को एक छोटा व्यवसाय खोलने के लिये ऋण की जरूरत है। मानव किस आधार पर यह निश्चिय करेगा कि उसे यह ऋण बैंक से लेना चाहिए या साहूकार से? चर्चा कीजिये।
उत्तर-
भारत में बैंक ऋण के औपचारिक स्रोतों की श्रेणी में आते हैं जबकि साहूकार ऋण की अनौपचारिक श्रेणी में आता हैं भारतीय रिजर्व बैंक कों के औपचारिक स्रोतों की गतिविधियों पर नजर रखता हैं।

अनौपचारिक खण्ड में ऋणदाताओं की गतिविधियों की देख-रेख करने वाली कोई संस्था नहीं है। वें मनमर्जी दरों पर ऋण दें सकते है। उन्हें ना.. तरीकों से पैसे वापस लेने से कोई रोक नहीं सकता हैं। महाजन ब्याज की दरें बहुत ऊँची रखते हैं, कइ बार लिखा-पढ़ी भी पूरी नहीं करते और ऐसी परिस्थिति का फायदा उठाते हुए गरीबों कों सताते है। अनौपचारिक स्तर पर लिया गया ऋण कर्जदाता को कहीं अधिक महँग पड़ता है।
उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए मानव को फैसला करना चाहिए। वर्तमान स्थिति में औपचारिक स्रोतों से ऋण लेना मानव के लिए श्रेयकर हैं।

प्रश्न-11.
भारत में 80 प्रतिशत मिकसान छोटे किसान हैं जिन्हें खेती करने के लिए ऋण की जरूरत होती है।
(क) बैंक छोटे किसानों को ऋण देने से क्यों हिचकिचा सकते हैं?
उत्तर-
बैंक से कर्ज लेने के लिए संपत्ति और तमान किस्म के कागजातों की जरूरत पड़ती हैं । छोटे किसानों के पाय प्रायः ऋणाधार का अभाव होता है। अतः बैंक उन्हें ऋण देने से हिचकिचा सकते हैं।

(ख) वे दूसरे स्रोत से कोन हैं, जिनसे छोटे किसान कर्ज ले सकते हैं।
उत्तर-
छोटे किसान आमतौर पर महाजन, साहूकार, व्यापारी, मालिक, रिश्तेदार या मित्रों से कर्ज लेते हैं।

(ग) उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिये कि किस तरह ऋण की शर्ते छोटे किसानों के प्रतिकूल हो कसती हैं?
उत्तर-
ब्याज दर, संपत्ति और कागजात की मांग और भुगतान के तरीके इन सबकों मिलाकर ऋण की शर्ते कहा जाता हैं हरेक ऋण समझौते में ब्याज दर पहले ही स्पष्ट कर दी जाती है। इसके अलावा, उधाराता ऋण के खिलाफ कोई समर्थक ऋणाधार की मांग भी कर सकता है। समर्थक ऋणाध पर वह संपत्ति है जिसका मालिक कर्जदार होता है, जैसे, भूमि, मकान, गाड़ी, पशु, बैंकों में पूंजी आदि। वह इसका इस्तेमाल उधारदाता को गांरटी देने के रूप मे करता ह।, जब तक कि ऋण का भुगतान नहीं हो जाता। यदि कर्जदार उधार वापस नहीं कर पाता तो उधारदाता को अपनी रकम वापस पाने के लिए समर्थक ऋणाधार को बेचने का अधिकार होता है।

ग्रामीण क्षेत्रों में कर्ज की मांग मुख्यतः फसल उगाने के लिए होती है। यदि किसी कारणवश फसल बर्बाद हो जाय तो किसान कर्ज की आदायगी नहीं कर पाता है। अगले वर्ष फसल के लिए उसे पुनः ऋण लेना पड़ता है। इस तरह वह ऋण फंदे में फंस सकता है।

(घ) सुझाव दीजिये कि सि तरह छोटे किसानों को सस्टा ऋण उपलब्ध कराया जा सकता हैं?
उत्तर-
छोटे किसानों को ऋण के औपचारिक स्रोतों यथा बैंक और सहकारी समित्तियाँ से सस्ते दर पर ऋण उपलब्ध कराया जा सकता है। इस कार के लिए वे स्वयं को आत्मनिर्भर गुटों में संगठित कर सकते हैं इससे उन्हें ऋण मिलना आसान हो सकता है।

प्रश्न-12.
रिक्त स्थान भरियेः
(क) ……………परिवारों की ऋण की अधिकांश जरूरतें अनौपचारिक स्रोतों से पूरी होती हैं।
(ख) ऋण की लागत का ………ऋण का बोझ बढ़ाता
(ग) ………..केंद्रीय सरकार की ओर से करेंसी ोट जारी करता है।
(घ) बैंक ………… पर देने वाले ब्याज से ऋण पर अधिक ब्याज लेते हैं।
(ङ) …………..संपत्ति है जिसकी मलकियत कर्जदार के पास है जिसे वह ऋण लेने के लिए गांरटी के रूप में इस्तेमाल करता है जब तक ऋण चुकता नहीं हो जाता।
उत्तर-
(क) गरीब,
(ख) बढ़ना,
(ग) भारतीय रिजर्व बैंक,
(घ) जमा,
(ङ) समर्थक ऋणाधार वह।

प्रश्न-13.
सही उत्तर का चयन करें
1. स्वयं सहायता समूह में बचत और ऋण संबंधित अधिकतर निर्माण लिए जाते हैं
a. बैंक, b. सदस्य, c. गैर सरकारी संस्था द्वारा।
2. ऋण के औपचारिक स्रोतों में शमिल नहीं है।
a. बैंक, b. सहकारी समिति, c. नियोक्ता
उत्तर-
1-b;
2-c.

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HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

Haryana State Board HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक Textbook Exercise Questions and Answers.

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पाठगत प्रश्नोत्तर

आओ-इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 21)

प्रश्न 1.
विभिन्न क्षेत्रकों की परस्पर-निर्भरता दिखाते हुए उपर्युक्त सारणी को भरें।
उत्तर-
उदाहरण-

  1. कल्पना करें कि यदि किसान किसी चीनी मिल को गन्ना बेचने से इंकार कर दें, तो क्या होगा। मिल बंद हो जाएगी।
    कल्पना करें कि यदि कम्पनियाँ भारतीय बाज़ार से कपास नहीं खरीदती और अन्य देशों से कपास आयात करने का निर्णय करती हैं, तो कपास की खेती का क्या होगा? भारत में कपास की खेती कम लाभकारी रह जाएगी और यदि किसान शीघ्रता से अन्य फसलों की ओर उन्मुख नहीं होते हैं, तो वे दिवालिया भी हो सकते हैं तथा कपास की कीमत गिर जाएगी।
  2. किसान, ट्रैक्टर, पम्पसेट, बिजली, कीटनाशक और उर्वरक जैसी अनेक वस्तुएँ खरीदते हैं। कल्पना करें कि यदि उर्वरकों और पम्पसेटों की कीमत बढ़ जाती है, तो क्या होगा? खेती | पर लागत बढ़ जाएगी और किसानों का लाभ कम हो जाएगा।
  3. औद्योगिक और सेवा क्षेत्रकों में काम करने वाले लोगों को भोजन की आवश्यकता होती है। कल्पना करें कि यदि ट्रांसपोर्टरों ने हड़ताल कर दी है और ग्रामीण क्षेत्रों से सब्जियाँ, दूध इत्यादि ले जाने से इंकार कर दिया, तो क्या होगा? शहरी क्षेत्रों में भोजन की कमी हो जाएगी और किसान अपने उत्पाद बेचने में असमर्थ हो जायेंगे।

यह क्या प्रदर्शित करता है?

  1. यह द्वितीय या औद्योगिक क्षेत्रक का उदाहरण है, जो प्राथमिक क्षेत्रक पर निर्भर है।
    यह प्राथमिक या कृषि एवं संबंधित क्षेत्रक का द्वितीयक क्षेत्रक पर निर्भरता को प्रदेर्शित करता है।
  2. यह प्राथमिक क्षेत्रक का द्वितीयक क्षेत्रक पर निर्भरता को दर्शाता है।
  3. द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रक प्राथमिक क्षेत्रक पर निर्भर होते हैं। जबकि प्राथमिक क्षेत्रक तृतीयक क्षेत्रक पर निर्भर करता है। अर्थात् सभी क्षेत्रक अत्यधिक परस्पर निर्भर होते हैं।

प्रश्न 2.
पुस्तक में वर्णित उदाहरणों से भिन्न उदाहरणों के आधार पर प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रकों के अंतर की व्याख्या करें।
उत्तर-
प्राथमिक क्षेत्रक-जब हम प्राकृतिक संसाधनों का सीधे उपयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं तो इसे प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधि कहा जाता है।
उदाहरण के लिए, चावल और गेहूँ की खेती।
द्वितीयक क्षेत्रक-इस क्षेत्रक के अन्तर्गत वे क्रियाएँ शामिल होते हैं जो प्राकृतिक या प्राथमिक उत्पादों को विनिर्माण प्रक्रिया के माध्यम से अन्य रूपों में परिवर्तित करती हैं।
उदाहरण के लिए, बाँस एवं सबाई घास से कागज का निर्माण गन्ने से गुड़ बनाना आदि।
तृतीयक क्षेत्रक-इसके अन्तर्गत वे क्रियाएँ आती हैं जो प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रकों के विकास में मदद करती है। . उदाहरण के लिए, रेलवे, दूरसंचार, दुकानदार, वकील आदि।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित व्यवसायों को प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रकों में विभाजित करें:

  • दर्जी
  • टोकरी बुनकर
  • फूल की खेती करने वाला
  • दूध-विक्रेता
  • मछुआरा
  • पुजारी
  • कूरियर पहुँचाने वाला
  • दियासलाई कारखाना में श्रमिक
  • महाजन
  • माली
  • कॉल सेंटर कार्मचारी
  • मधुमक्खी पालन

उत्तर-
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 1

प्रश्न 4.
विद्यालय में छात्रों को प्रायः प्राथमिक और द्वितीयक अथवा वरिष्ठ और कनिष्ठ वर्गों में विभाजित किया जाता है। इस विभाजन की कसौटी क्या है? क्या आप मानते हैं कि यह विभाजन उपयुक्त है? चर्चा करें।
उत्तर-
(क) विद्यालय में छात्रों को प्राथमिक और द्वितीयक अथवा वरिष्ठ और कनिष्ठ वर्गों में विभाजन की कसौटी शिक्षा का स्तर है।
(ख) यह एक उपयुक्त वर्गीकरण है।
प्राथमिक शिक्षा-हमारे संविधान मे देश को 1960 ई. तक 14 वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था यह प्राथमिक शिक्षा के अन्तर्गत आता है।
द्वितीयक (माध्यमिक) शिक्षा-द्वितीयक या माध्यमिक स्तर की शिक्षा (14-18 आयु वर्ग) छात्रों को उच्च शिक्षा में प्रवेश के लिए तैयार करता है।

आओ-इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 23)

प्रश्न-1.
विकसित देशों का इतिहास क्षेत्रकों में हुए परिवर्तन के संबंध क्या संकेत करते हैं।
उत्तर-
(क) विकसित देशों का इतिहास यह संकेत करता है कि विकास के प्रारंभिक अवस्था में प्राथमिक क्षेत्रक आर्थिक क्रिया का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक था। जैसे-जैसे खेती की विधियों में परिवर्तन हुआ, कृषि क्षेत्रक पहले की अपेक्षा अधि क अनाज उत्पादित करने लगा और यह समृद्ध होने लगा। अधि कांश लोग इसी क्षेत्रक में कार्यरत थे।
(ख) सौ से अधिक वर्षों के बदा जब विनिर्माण की नई विधियाँ आई तो फैक्ट्रियों की स्थापना और विस्तार होने लगा। इस प्रकार, द्वितीयक क्षेत्रक धीरे-धीरे कुल उत्पादन और रोजगार में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हो गया।
(ग) विगत् 100 वर्षों के दौरान द्वितीयक से तृतीयक क्षेत्रक में परिवर्तन हो गया है। सेवा खेत्रक कुल उत्पादन और रोजगार की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है।
विकसित देशों में क्षेत्रकों के बीच परिवर्तन का यही सामान्य पैटर्न देखा गया है।

प्रश्न 2.
अव्यवस्थित वाक्यांश से जी.डी.पी. गणना हेतु महत्त्वपूर्ण पहलुओं को व्यवस्थित एवं सही करें।।
उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की गणना करने के लिए हम उनकी संख्याओं को जोड़ देते हैं। हम विगत पाँच वर्षों में उत्पादित सभी वस्तुओं की गणना करते हैं।
चूँकि हमें किसी चीज़ को छोड़ना नहीं चाहिए इसलिए हम इन वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य का योगफल प्राप्त करते हैं।
उत्तर-
जी.डी.पी. की गणना के लिए हम किसी विशेष वर्श के दौरान प्रत्येक क्षेत्रक में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्यों की गणना करते हैं। चूँकि हमें किसी चीज को छोड़ना नहीं चाहिए, इसलिए हम प्रत्येक क्षेत्रक में उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य का योगफल प्राप्त करते

आओ-इन पर विचार करे (पृष्ठ संख्या 24)

आरेख का अवलोकन करते हुए निम्नलिखित का उत्तर दें- .
आरेख 1-प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रक द्वारा जी.डी.पी.
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 2
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 3

प्रश्न 1.
1973 में सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्रक कौन था?
उत्तर-
1973 में सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्रक प्राथमिक क्षेत्रक था।

प्रश्न 2.
2003 में सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्रक कौन था?
उत्तर-
तृतीयक क्षेत्रक 2003 में सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्रक था।

प्रश्न 3.
क्या आप बता सकते हैं कि तीस वर्षों में किस क्षेत्रक में सबसे अधिक संवृद्धि हुई?
उत्तर-
इन तीस वर्षों में सबसे अधिक संवृद्धि तृतीयक क्षेत्रक में हुई।

प्रश्न 4.
2003 में भारत का जी.डी.पी. क्या था?
उत्तर-
2003 में भारत का जी.डी.पी. 2,10,000 करोड़ रुपये था।

आओ-इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 27)

प्रश्न 1.
आलेख 2 और 3 में दिए गए आँकड़े का प्रयोग कर सारणी की पूर्ति करें और नीचे दिए गए प्रश्नों का उत्तर दें।
तालिका 2.2 जी.डी.पी. और रोजगार में प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 4
उत्तर
तालिका 2.2 जी.डी.पी. और रोजगार में प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 5
इन तीस वर्षों में प्राथमिक क्षेत्रक में निम्नलिखित परिवर्तन देखा गया है
(क) जी.डी.पी. में प्राथमिक क्षेत्रक का हिस्सा 45% से घटकर 25% हो गया।
(ख) परन्तु रोजगार की दृष्टि से प्राथमिक क्षेत्रक में 73% से 61% तक की कमी हुई है।
(ग) देश के आधे से अधिक श्रमिक प्राथमिक क्षेत्रक में कार्य कर रहे हैं। परन्तु वे देश की जी.डी.पी. का लगभग एक चौथाई भाग ही उत्पादित करते हैं।
(घ) कृषि क्षेत्रक में आवश्यकता से अधिक लोग कार्य कर रहे हैं।

प्रश्न 2.
सही उनर का चयन करें-
अल्प बेरोजगारी तब होती है जब लोग-
(अ) काम करना नहीं चाहते हैं।
(ब) सुस्त ढंग से काम कर रहे हैं।
(स) अपनी क्षमता से कम काम कर रहे हैं।
(द) उनके काम के लिए भुगतान नहीं किया जाता है।
उत्तर-
(स) अपनी क्षमता से कम काम कर रहे हैं।

प्रश्न 3.
विकसित देशों में देखे गए लक्षण की भारत में हुए परिवर्तनों से तुलना करें और वैषम्य बतायें। भारत में क्षेत्रकों के बीच किस प्रकार के परिवर्तन वांछित थे, जो नहीं हुए?
उत्तर-
विकसित देश-

(क) विकास की प्रारंभिक अवस्था में प्राथमिक क्षेत्रक उत्पादन और रोजगार दोनों दृष्टि से आर्थिक क्रिया का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक था।
(ख) अर्थव्यवस्था के विकास के साथ द्वितीयक क्षेत्रक कुल उत्पादन और रोजगार की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हो गया।
(ग) जब देश विकास के उच्चतर स्तरों पर पहुँचता है तो जी.डी.पी. और रोजगार में सेवा क्षेत्रक की हिस्सेदारी सर्वाधिक होती है।

भारत-

(क) भारत में भी प्रारंभिक अवस्था में प्राथमिक क्षेत्रक कुल उत्पादन और रोजगार की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण था।
(ख) परंतु भारत में द्वितीयक क्षेत्रक अभी तक न तो उत्पदन ओर न ही रोजगार की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक हुआ है।
(ग) 1990 तक भारत के जी.डी.पी. में सेवा क्षेत्रक की हिस्सेदारी 40.59% हो गया जो अन्य दोनों क्षेत्रकों से अधिक था। परन्तु रोजगार की दृष्टि से अभी भी सर्वाधिक लोग प्राथमिक क्षेत्रक में नियोजित हैं।

(क) वह वांछित था कि अर्थव्यवस्था के विकास के साथ द्वितीयक क्षेत्रक प्राथमिक क्षेत्रक को प्रतिस्थापित कर जी.डी.पी. की दृष्टि से सर्वाधि महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक बन जाता लेकिन ऐसा भारत में नहीं हुआ। तृतीयक क्षेत्रक द्वितीयक क्षेत्रक से आगे बढ़ गया।

(ख) यह भी वांछित था कि विकास के साथ रोजगार में प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी कम होती और द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रकों की हिस्सेदारी बढ़कर अधिक हो जाती लेकिन भारत में ऐसा भी नहीं हुआ।

प्रश्न 4.
हमें अल्प बेरोजगारी के संबंध में क्यों विचार करना चाहिए?
उत्तर-
अल्प बेरोजगारी वह स्थिति है जब लोग नियोजित तो दिखाई देते हैं। परन्तु वास्तव में अल्पबेरोजगार होते हैं। इस स्थिति में आवश्यकता से अधिक लोग एक ही काम मे लगे रहते है। अर्थात् वे अपनी क्षमता से कम काम करते हैं। इस स्थिति को छुपी हुई या प्रछन्न बेरोजगारी भी कहा जाता है।
भारत में लाखों लोग अप्ल बेरोजगार हैं। यह स्थिति प्रायः कृषि क्षेत्र में पायी जाती है। इसके अतिरिक्त यह अन्य क्षेत्रों मे भी पायी जाती है। जैसे शहरी क्षेत्रों में सेवा क्षेत्रक में कार्यरत अनियत श्रमिक। यदि ये लोग और कहीं काम कर रहे होते तो उनके द्वारा अर्जित आय से उनकी कुल पारिवारिक आय में वृद्धि होती। अतः अल्प बरोजगारी भारत के लिए एक चिंता का विषय है। इस संबंध में विचार करना अति आवश्यक है।

पृष्ठ संख्या-28

प्रश्न-
आपके विचार से आपके क्षेत्र में किस समूह के लोग बेरोजगार अथवा अप्ल बेरोजगार हैं? क्या आप कुछ उपाय सुझा सकते हैं, जिन पर अमल किया जा सके?
उत्तर-हमारे क्षेत्र में निम्नलिखित समूह के लोग बेराजगार अथवा अप्ल बेरोजगार हैं-
(क) अनुसूचित जाति
(ख) अनुसूचित जनजाति
(ग) खेतिहर मजदूर
(घ) छोटे किसान आदि।
इनके लिए निम्नलिखित उपाय सुझाए जा सकते हैं
(क) रोजगार सृजन कार्यक्रमों को सम्पूर्ण लगन एवं ईमानदारी से लागू करना।
(ख) सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि।
(ग) स्वरोजगार हेतु बेरोजगार या अल्प बेरोजगार व्यक्तियों को आसान ब्याज दर पर ऋण सुविधाएँ प्रदान करना।

आओं-इन पर विचार करें। (पृष्ठ संख्या 29)

प्रश्न-1.
आपके विचार से एन.आर.ई.जी.ए.को ‘काम का अधिकार’ क्यों कहा गया हैं?
उत्तर-एन.आर.ई.जी.ए. 2005 को ‘कम अधिकार’ इसलिए कहा गया है। क्योंकि, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 प्रतिवर्ष प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिनों का रोजगार सुनिश्चित करता है। यदि किसी आवेदक को 15 दिनों के भीतर रोजगार प्रदान नहीं किया जाता है। तो वह दैनिक रोजगार भत्ता का अधिकारी होगा। इस कानून के अन्तर्गत प्रस्तावित रोजगार का एक-तिहाई भाग महिलाओं के लिए आरक्षित होगा।

प्रश्न-2.
कल्पना कीजिए, कि आप ग्राम के प्रधान हैं और उस हैसियत से कुछ ऐसे क्रियाकलापों का सुझाव दीजिए जिसे आप मानते हैं कि उससे लोगों की आय में वृद्धि होगी और उसे इस अधिनियम के अन्तर्गत शामिल किया जाना चाहिए। चर्चा करें।
उत्तर-
(क) सिंचाई सुविधाओं का विस्तार होना चाहिए। इसे कृषि क्षेत्रक मे आय एवं रोगार में वृद्धि होगी।
(ख) सार्वजनिक परिवहन पर निवेश में वृद्धि की जानी चाहिए।
(ग) लोगों को खेती की आधुनिक विधियाँ अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
(घ) ग्रामीणों का आसान ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
(ङ) गाँवों में लघु उद्योगों के विकास के लिए लोगों को उचित प्रशिक्षण की सुविध प्रदान की जानी चाहिए।

प्रश्न-3.
यदि किसानों को सिचाई और विपणन सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती है। जो रोजगार और आय में वृद्धि कैसे होगी?
उत्तर-
सिंचाई भारत के कई क्षेत्रों में वर्षा न केवल अपर्याप्त बल्कि अनिश्चित होती है इसलिए, इन क्षेत्रों में सिंचाई सुविधाएँ वर्ष में एक से अधिक फसल उपजान सहायक होगा। हम जितना अधिक फसल उपजाएँगे, एक ही भूखंड पर रोजगार और आय में उतनी वृद्धि होगी। इस तरह सिंचाई कृषि उत्पादन, रोजगार एवं आय में वृद्धि का एक महत्त्वपूर्ण साधन
विपणन-विपणन सुविधाओं के अन्तर्गत कृषि उत्पादों की भंडारण सुविधाएँ, अधिक समय तक उपज करने की क्षमता, व्यापक और सस्ती यातायात सुविधाएँ बाजार दशाओं के विषय में सूचना आदि शमिल होती है। इन सुविधाओं के मिलने से किसान क्षेती जारीरख सकता. है और अपनी ऊपज को आसानी से उचित मूल्य पर बेच सकता है।

प्रश्न-4.
शहरी क्षेत्री में रोजगार में वृद्धि कैसे की जा सकती है?
उत्तर-
(क) लघु एवं कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित की जानी चाहिए।
(ख) विद्युत आपूर्ति, कच्चे माल और यातायात से संबंधि त समस्याओं को दूर किया जाना चाहिए। उद्योग अपनी पूर्ण · उत्पादन क्षमता का उपयोग कर सकें।
(ग) व्यावसायिक शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
(घ) सरकार को चाहिए कि वह स्व-रोजगार को प्रोत्साहित करे।
(ङ) पर्यटन, सूचना एवं प्रौद्योगिकी जेसे सेवाक्षे?ा में रोजगार की व्यापार संभानाएँ है। इन क्षेत्रों में समुचित आयोजन और सरकारी सहायता कर आवश्यकता है।
(च) रोजगार सृजन कार्यक्रमों को ईमानदारी से लागू किया जाना चाहिए।

सारणी-संगठित और असंगठित क्षेत्रक मे श्रमिको की अनुमानित संख्या (दस लाख में)
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 6

(क) असंगठित क्षेत्रक में कृषि में लगे लोगों का प्रतिशत 64.86% है।
(ख) यह सत्य हे कि कृषि असंगठित क्षेत्रकी गतिविधि है। क्योंकि कृषि इकाइयों सरकार द्वारा पंजीकृत नहीं होती है।
यद्यपि यहाँ भी नियम और विनियम है परंतु इनका पालन नहीं होता है।
(ग) भारत में 92.96% श्रमिक असंगठित क्षेत्रक में हैं। भारत में लगभग7.04% श्रमिकों को ही संगठित क्षेत्रक में रोजगार उपलब्ध है।

पृष्ठ संख्या 33

प्रश्न-
हमारे चारों ओर अनेक आर्थिक गतिविधियाँ संचालित होती हैं। उन पर तर्कसंगत ढंग से विचार करने के लिए वर्गीकरण की प्रक्रिया अपरिहार्य है। हम क्या निष्कर्ष चाहते हैं, इस आधार पर वर्गीकरण की अनेक कसौटियाँ हो सकती है। वर्गीकरण की प्रक्रिया वस्तुस्थिति का मूल्यांकन करने में सहायता करती है।
आर्थिक गतिविधियों को तीन क्षेत्रकों-प्राथमिक, द्वितीयक ओर तृतीयक में विभाजित करने के लिए कार्य के स्वभाव को कसौठी के रूप में उपयोग किया गया। इस वर्गीकरण के अधार पर हम भारत मे कुल उतपादन _और रोजगार के पद्धति का विश्लेषण करने में समर्थ हुए।
इसी प्रकार, हमने आर्थिक गतिविधियों को संगठित और असंगठित क्षेत्रक में विभाजित किया और इस विभाजन का प्रयोग इन दो क्षेत्रकों में रोजगार की स्थिति देखने के लिए किया।

वर्गीकरण अभ्यास से व्युत्पन्न सबसे महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष संकेत किया गया? क्या आप जानकारियों को निम्ननिखित क्या थे। वे समस्याएँ और समाधान क्या थे, जिनकी ओर सारणी में संक्षिप्त रूप में व्यक्त कर सकते हैं?
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 7
उत्तर-
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 8

आओं-इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 31)

प्रश्न-1.
निम्नलिखित उदाहरणे को देखें। कया इनमें से कौन असंगठित क्षेत्रक की गतिविधियाँ हैं?
(क) विद्यालय में पढ़ाता एक शक्षक।
(ख) बाजार में अपनी पीठ पर सीमेंन्ट की बोरी ढोता हुआ एक श्रमिक
(ग) अपने खेत की सिंचाई करता एक किसान
(घ) अस्पताल में मरीज का इलाज करता एक डॉक्टर
(ङ) एक ठेकेदार के अधीन काम करता एक दैनिक मजदूरी वाला श्रमिक
(च) एक बड़े कारखाने में काम करने जाता एक कारखाना श्रमिक
(छ) अपने घर में काम करता एक करघा बनुकर।
उत्तर-
(क), (ख), (ग), और (छ)।

प्रश्न-2.
संगठित क्षेत्रक में नियमित काम करने वाले एक व्यक्ति और असंगठित क्षेत्रक में काम करने वाले किसी दूसरे व्यक्ति से बात करें। सर्भ पहलुओं पर उनकी कार्य-स्थितियों की तुलना करें।
उत्तर-
विनय कुमार एक सूचना एवं प्रौद्योगिकी कंपनी अर्थात् संगठित क्षेत्र स्थायी रूप से कार्य करता है। दीनाथ असंगठित क्षेत्र के अन्तर्गत दैनिक मजदूरी पर श्रमिक के रूप में कार्यरत है।
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 9

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न-1.
कोष्ठक में दिए गए सही विकल्प का प्रयोग कर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए—
(क) सेवा क्षेत्रक में रोजगार में उत्पादन के समान अनुपात में वृद्धि ………हुई हैं/नहीं हुई हैं)
(ख) ………..क्षेत्रक के सभी श्रमिकों को वर्ष भर के लिए रोजगार नहीं मिलता है। (ततीयक/कषि)
(ग) ………..क्षेत्रक के अधिकांश श्रमिकों को रोजगार-सुरक्षा प्राप्त होती है। (संगठित/असंगठित)
(घ) भारत में ………. संख्या में श्रमिक असंगठित क्षेत्रक में काम कर रहे हैं (बड़ी/छोटी)
(ङ) क्षेत्रक के धीमें प्रसार के कारण ………क्षेत्रक में आवश्यकता से अधिक लोग लगे हुए हैं (सेवा/कृषि, संगठित, असंगठित)
(च) कपास एक ……….उत्पादन है और कपड़ा एक ……….उत्पाद है। (कृतिक/विनिर्मित)
(छ) प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रक क्षेत्रक की गतिविधियाँ……….हैं। (स्वतंत्र/परस्पर निर्भर)
उत्तर-
(क) नहीं हुई है;
(ख) कृषि;
(ग) संगठित;
(घ) बड़ी;
(ङ)सेवा, कृषि;
(छ) प्राकृतिक, विनिर्मित;
(ज) परस्पर निर्भर।
उत्तर-

प्रश्न-2.
सही उत्तर का चयन करें।
(अ) सार्वजनिक और निजी क्षेत्रक के आधार पर विभाजित है। (एक का चयन करें।)
(क) रोजगार की शर्तो
(ख) आर्थिक गतिविधि के स्वभाव
(ग) उद्यमों के स्वामित्व
(घ) उद्यम में नियोजित श्रमिकों की संख्या
उत्तर-
(क) रोजगार की शर्तो

(ब) एक वस्तु का अधिकांशतः प्राकृतिक प्रक्रिया से उत्पादन …………..क्षेत्रक की गतिविधि है।
(क) प्राथमिक
(ख) द्वितीयक
(ग) तृतीयक
(घ) सूचना औद्योगिकी
उत्तर-
(ख) द्वितीयक

(स) किसी विशेष वर्ष में उत्पादित ……..के मूल्य के कुल योगफल को जी.डी.पी. कहते हैं।
(क) सभी वस्तुओं और सेवाओं
(ख) सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं
(ग) सभी मध्यवर्ती वस्तुओं और सेवाओं
(घ) सभी मध्यवर्ती एवं अंतिम वस्तुओं और सेवाओं
उत्तर-
(ग) सभी मध्यवर्ती वस्तुओं और सेवाओं

द) जी.डी.पी. के पदों में वर्ष 20003 में तृतीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी …………है।
(क) 20 प्रतिशत से 30 प्रतिशत के बीच
(ख) 30 प्रतिशत से 40 प्रतिशत के बीच
(ग) 50 प्रतिशत से 60 प्रतिशत के बीच
(घ) 70प्रतिशत
उत्तर-
(घ) 70प्रतिशत

प्रश्न-3.
निम्नलिखित को सुमेलित कीजिएकृषि क्षेत्रक की समस्याएँ
1. असिंचित भूमि
2. आय में उतार-चढ़ाव
3. कर्ज भार
4. मंदी काल में रोजगार नहीं
5. कटाई के तुरन्त बाद स्थानीय व्यापारियों को अपना आनाज बेचने को विवश

कुछ संभावित उपाय

(अ) कृषि-आधारित मिलों की स्थापना
(ब) सरकारी विपणन समिति
(स) सरकार द्वारा आनाजों की वसूली
(द) सरकार द्वारा नहारों का निर्माण
(य) कम ब्याज पर बैंकों द्वारा साख उपलबध कराना।
उत्तर-
1. (द);
2. (ब);
3. (द);
4. (अ);
5. (स)।

प्रश्न-4.
असंगत की पहचान करें और बताइए क्यों?
(क) मार्गदर्शक, धोबी, दर्जी, कुम्हार
(ख) शिक्षक, डॉक्टर, सब्जी विक्रेता, सौंदर्य प्रसाधक
(ग) डाकिया, कूरियर प्रदाता, सैनिक, पुलिस कॉस्टेबल
(घ) एम.टी.एन.एल. भारतीय रेल, एयर इण्डिया, सहारा एयरलाइन्स, ऑल इण्डिया रेडियो।
उत्तर-
(क) मार्गदर्शकः क्योंकि अन्य सभी सेवाएँ प्रदान करते हैं।
(ख) सब्जी विक्रेताः क्योंकि वह सामान बेचता है।
(ग) कूरियर प्रदाताः क्योंकि वह निजी क्षेत्रक के अंतर्गत कार्य करता है।
(घ) सहारा एयरलाइन्स : क्योंकि यह निजी क्षेत्रक __ अंतर्गत आती है।

प्रश्न-5.
एक शोध छात्र सूरत शहर में काम करने वाले लोगों से मिला और निम्न आँकड़े जुटाए-
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 10
तालिका-को पूरा कीजिए। इस शहर में असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों प्रतिशत क्या हैं?
उत्तर-
रोजगार की प्रकृति : संगठित, असंगठित, असंगठित, 50 प्रतिशत श्रमिकों का प्रतिशतः 70

प्रश्न-6.
क्या आप मानते हैं कि आर्थिक गतिविधियों का प्राथमिक द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र में विभाजन की उपयोगिता है? व्याख्या कीजिए कि कैसे?
उत्तर-
आर्थिक गतिविधियों को प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र में बाँटने की उपयोगिता है। इसका मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
(क) प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधियाँ प्राकृतिक संसाधनों के प्रत्यक्ष उपयोग पर निर्भर हैं। जैसे, कृषि, मछली पालन, खनन आदि।
(ख) द्वितीयक क्षेत्रक की गतिविधियों में प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रक्रिया द्वारा अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है। जैसे, कपास से कपड़ा बनाना, गन्ने से चीनी बनाना आदि।
(ग) तृतीयक क्षेत्रक की गतिविधियों प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रकों के विकास में मद्द करती है। जैसे, बैंकिग, बीमा, परिवहन, आदि।

प्रश्न 7.
इस अध्याय में आए प्रत्येक क्षेत्रक को रोजगार और सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) पर ही क्यों केन्द्रित करना चाहिए? क्या अन्य वाद-पदों का परीक्षण किया जा सकता है? चर्चा करें।
उत्तर-
इसका मुख्य कारण निम्नलिखित है-
(क) देश में संतुलित क्षेत्रीय विकास के खातिर
(ख) देश के लोगों के बीच आय एवं सम्पत्ति की समान वितरण के लिए
(ग) गरीबी उन्मूलन के लिए
(घ) प्रौद्योगिकी का आधुनिकीकरण हेतु
(ङ) देश की आत्म-निर्भरता।

प्रश्न 8.
जीविका के लिए काम करने वाले अपने आस-पास के वयस्कों के सभी कार्यों की लंबी सूची बनाइए। उन्हें आप किस तरीके से वर्गीकृत कर सकते हैं? अपने चयन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 11
इस प्रकार जीविकोपार्जन हेतु किए गए उपरोक्त कार्यों को निम्न आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता
(क) कार्यो की प्रकृति
(ख) रोजगार की स्थितियाँ
(ग) स्वामित्व।

आर्थिक क्रियाओं की प्रकृति के आधार पर इन्हें निम्न क्षेत्रकों के रूप में जा सकता है
(क) प्राथमिक क्षेत्रक-इसमें वे आर्थिक क्रियाएँ शामिल होती हैं जो सीधे प्राकृतिक संसाधनों के उप द्वारा की जाती है। जैसे, कृषि कार्य, मछली पालन, खनन आदि।
(ख) द्वितीयक क्षेत्रक-इकके अंतर्गत वे क्रियाएँ शामिल होती हैं जो प्रकृतिक या प्राथमिक उत्पादों विनिर्माण प्रक्रिया द्वार अन्य रूपों में परिवर्तित करती है। जैसे, गन्ने से चीनी निर्माण।
(ग) तृतीयक क्षेत्रक-इसके अंतर्गत वे क्रियाएं आती हैं जो प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रकों के विकास सहायक होती हैं। उदाहरण के लिए बैंकिग, बीमा, आदि।

प्रश्न 9.
तृतीयक क्षेत्रक अन्य क्षेत्रकों से कैसे भिन्न है? सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
तृतीय क्षेत्रक अन्य दो क्षेत्रकों से भिन्न है। क्योंकि अन्य दो क्षेत्रक वस्तुएँ उत्पादित करती हैं, जबकि यह क्षेत्रक कोई वस्तु उत्पादित नहीं करता है। इस क्षेत्रक में शामिल क्रिया प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रकों के विकास में सहायक होती है। जैसे परिवहन, संचार, बैंकिग, बीमा आदि।

प्रश्न 10.
प्रच्छन्न बेरोजगारी से आप क्या समझते हैं? शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों से उदाहरण देकर व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
प्रछन्न बेरोजगारी या छपी हुई बेरोजगारी के अंतर्गत लोग नियोजित लगते है लेकिन वास्तव में बेरोजगार होते हैं। इसके अंतर्गत किसी काम में लोग आवश्यकता से अधिक संख्या में लगे होते हैं।

ग्रातीण क्षेत्रों से उदाहरण-इस प्रकार की बेरोजगारी प्रायः कृषि क्षेत्र में पाई जाती है। उदाहरण के लिए 10 लोगों के एक परिवार के पास एक खेती योग्य भूखडं जहाँ वे सभी काम करमे हैं। यदि इनमें से 5 लोग हआ लिए जाते हैं तो भी उत्पादन में कोई कमी नहीं होती है। इसलिए ये 5 अतिरिक्त लोग प्रछनन रूप से नियोजित होते है।

शहरी क्षेत्रों से उदहारण-शहरी क्षेत्रों में छोटे-मोटे दुकानों एवं व्यवसायों में लगे परिवारों की स्थिति छूपी बेरोजगारी पाई जाती है।

प्रश्न 11.
खुली बेरोजगारी और प्रच्छन्न बेरोजगारी के बीच विभेद कीजिए।
उत्तर-
खुली बेरोजगारी-जब देश की श्रमशक्ति फायदे मंद रोजगार के अवसर प्राप्त नहीं कर पाती है तो इस स्थिति __ को खुली बेरोजगारी कहते हैं। इस प्रकार की बेरोजगारी प्रायः देश के औद्योगिक क्षेत्र में पाई जाती है।
प्रछन्न बेरोजगारी-जब लोग नियोजित लगते होते हैं, परंतु वास्तव में बेरोजगार होते हैं, तो इस स्थिति को प्रछन्न या छुपी बेरोजगार कहते है। इसके अंतर्गत किसी काम में लोग आवश्यकता से अधिक संख्या में लगे होते हैं इस प्रकार की बेरोजगारी प्रायः कृषि क्षेत्र में पाई जाती है।

प्रश्न 12.
“भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में तृतीयक क्षेत्रक कोई महन्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा रहा है।” क्या आप इससे सहमत है? अपने उनर के समर्थन में कारण दीजिए।
उत्तर-
यह कहना अनुचित है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में तृतीयक क्षेत्रक कोई महत्त्वूपर्ण भूमिका नहीं निभा रहा है।
जी.डी.पी. यह क्षेत्रक प्राथमिक क्षेत्रक के स्थान पर देश का सर्वाधिक उतपादक क्षेत्रक बन गया है। 1973 में जी.डी. पी. में तृतीयक क्षेत्रक का हिस्सा लगभग 35% था जो 2003 में बढ़कर 50% से अधिक हो गया। यद्धपि 1973 से 2003 के बीच के 30 वर्षों में तीनों क्षेत्रकों के उत्पादन में वृद्धि हुई है, परंतु तृतीयक क्षेत्र में यह वृद्धि सर्वाधिक रही है।
रोजगार इसी अवधि में तृतीयक क्षेत्रक के रोजगार में

वृद्धि दर लगभग 300% रही है जबकि द्वितीयक क्षेत्र में यह वृद्धि दर 250% रही। प्राथमिक क्षेत्रक में यही वृद्धि नहीं के बराबर रही।

प्रश्न 13.
“भारत में सेवा क्षेत्रक दो विभिन्न प्रकार के लोग नियोजित करता है।” ये लोग कौन हैं?
उत्तर-
भारत में सेवा क्षेत्रक निम्नलिखित दो भिन्न प्रकार के लोग नियोजित करता हैं
(क) उन सेवाओं में लगे लोग जो वस्तुओं के उत्पादन मे सीधे तौर पर सहायता कर सकते है। परविहन, संचार, बैंकिग, आदि क्षेत्रों में लगे लोग।
(ख) ऐसी सेवाओं में लगे लोग जो वस्तुओं के उत्पादन में सीधे तौर पर सहायता नहीं करते हैं। जैसे शिक्षक, डाक्टर, धोबी मोची, वकील आदि।.

प्रश्न 14.
“असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों का शोषण किया जाता है।” क्या आप इस विचार से सहमत हैं? अपने उनर के समर्थन में कारण दीजिए।
उत्तर-
(क) यह सत्य है कि असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों का शोषण किया जाता है। असंगठित क्षेत्र छोटी-छोटी और बिखरी इकाइयों से निर्मित होता है, जो अधिकांशतः सरकारी नियंत्रण से बाहर होती हैं।
(ख) इस क्षेत्रक में नियमों व विनियमों का अनुपालन नहीं होता है।
(ग) यहाँ वेतन कम मिलता है और प्रायः नियमित रोजगार नहीं मिलता है।
(घ) यहाँ अतिरिक्त समय में काम करने,सवेतन छुट्टी, अवकाश, बीमारी के कारण छुट्टी दे दी जाती है।
(ङ) बहुत से लोग नियोक्ता की पसंद पर निर्भर होते हैं।

प्रश्न 15.
अर्थव्यवस्था में गतिविधिया! रोजगार की परिस्थितियों के आधार पर कैसे वर्गीकृत की जाती हैं?
उत्तर-
रोजगार की परिस्थितियों के आधार पर आर्थिक गतिविधियों को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता हैं
(क) संगठित क्षेत्रक (ख) असंगठित क्षेत्रक।

प्रश्न 16.
संगठित और असंगठित क्षेत्रकों में विद्यमान रोजगार-परिस्थितियों की तुलना करें।
उत्तर
संगठित क्षेत्रक-

  1. ये क्षेत्रक सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं।
  2. ये सरकारी नियमों व विनियमों का पालन करते हैं।
  3. रोजगार की अवधि नियमित होती है तथा लोगों के पास सुनिश्चित काम होता है।
  4. कर्मचारियों को रोजगार-सुरक्षा का लाभ मिलता है।
  5. कर्मचारियों सवेतन छुट्टी अवकाश-भुगतान, भविष्य निधि, सेवानुदान आदि सुविधा का उपयोग करते हैं।
  6. कर्मचारियों को सेवानिवृत होने पर पेंशन भी मिलता है।

असंगठित क्षेत्रक-

  1. ये क्षेत्रक अधिकांशतः सरकारी नियंत्रण से बाहर होते
  2. ये सरकारी नियमों व विनियमों का पालन नहीं करते हैं।
  3. रोजगार की अविध अनियमित होती है तथा रोजगार में भारी अनिश्चितता है।
  4. इस क्षेत्रक में लोगों को रोजगार सुरक्षा का कोई आश्वासन नहीं होता है।
  5. यहाँ अतिरिक्त समय में काम करने, सवेतन छुट्टी, अवकाश, बीमारी के कारण छुट्टी आदि का प्रावधान नहीं होता है।
  6. सेवानिवृत्ति होने पर पेंशन आदि सुविधाओं का प्रावधान नहीं होता है।

प्रश्न 17.
रा. ग्रा. रो. गा. अ. 2005 (MGNREGA 2005) के उपेश्यों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी अधिनियम 2005 का मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित है-
(क) सभी सक्षम लोगों को जिन्हें काम की जरूरत है, उन्हें सरकार द्वारा वर्ष में 100 दिन रोजगार की गारंटी देना।
(ख) यदि सरकार रोजगार उपलब्ध न करा पाए तो लोगों को बेरोगारी भत्ता देना।
(ग) उन कामों को वरीयता देना, जिनसे भविष्य में भूमि से उत्पादन बढ़ाने में मदद मिले।

प्रश्न 18.
अपने क्षेत्र से उदाहरण लेकर सार्वजनिक और निजी क्षेत्रक की गतिविधियों एवं कायोच्चद्व की तुलना तथा वैषम्य कीजिए।
उत्तर-
निजी क्षेत्र के उद्यम

  1. निजी क्षेत्र के उद्यमों को चाले का दायित्व किसी एक व्यक्तियों के समूह पर होता है।
  2. इस प्रकार के उद्यमों का स्वामित्व एक व्यक्ति या अलग-अलग व्यक्तियों के समूह के पास होता है।
  3. इस प्रकार के उद्यमों का उद्देश्य निजी लाभ प्राप्त करना है।
  4. इस प्रकार के उद्यम पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधि त्व करते हैं।
  5. हिन्दुस्तान लीवर, बजाज, रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड आदि इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं

सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम

  1. इस प्रकार के उद्यमों को चलाने का दायित्व सरकार पर होता है।
  2. इस प्रकार के उद्यमों का स्वामित्व सरकार या राज्य के पास होता है।
  3. इस प्रकार के उद्यमों का उद्देश्य जनता के हितों की पूर्ति करना है।
  4. इस प्रकार के उद्यम सार्वजनिक अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  5. स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया, आई. सी., डी.. टी. सी. आदि इस वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं।

प्रश्न 19.
अपने क्षेत्र से एक-एक उदाहरण देकर निम्न तालिका को पूरा कीजिए और चर्चा कीजिए-
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 12
उत्तर-
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 13

प्रश्न 20.
सार्वजनिक क्षेत्रक की गतिविधियों के कुछ उदाहरण दीजिए और व्याख्या कीजिए कि सरकार द्वारा इन गतिविधियों का कार्यान्वयन क्यों किया जाता
उत्तर-
(क) रेलवे, डाकघर और इन्डियन ऑयल कारपोरेशन आदि सार्वजनिक क्षेत्रक की गतिविधियाँ है।
(ख) आधुनिक युग में सरकारें सभी तरह की गतिविधि यों पर व्यय करती है। कई वस्तुएँ और सेवाएँ ऐसी होती हैं जिनकी आवश्यकता समाज के सभी सदस्यों को होती है। लेकिन निजी क्षेत्रक उचित मूल्य पर उपलब्ध नहीं करा पाते हैं।
(ख) इनमें से कुछ चीजों पर बहुत अधिक व्यय करना होता है, जो निजी क्षेत्रक की क्षमता से बाहर होती है।
(ग) इन वस्तुओं को खरीदने की क्षमता भी कई लोगों के पास नहीं होती है।
(घ) फिर यदि वे इन चीजों को उपलब्ध कराते हैं तो इसकी ऊंची कीमत वसूलते हैं। जैसे, सड़कों, पुलों, पत्तनों, बिजली आदि का निर्माण और बाँध आदि से सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराना।
(ङ) इसीलिए सरकार ऐसे भारी व्यय स्वयं उठाती है। और सभी लोगों के लिए इन सुविधाओं को सुरक्षित करती है।

प्रश्न 21.
व्याख्या कीजिए कि एक देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्रक कैसे योगदान करता है?
उत्तर-
सार्वजनिक क्षेत्रक में अधिकांश परिसंपत्तियों पर सरकार का स्वामित्व होता है और सरकार ही सभी संवाएँ उपलब्ध कराती है। किसी देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्रक का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। आधुनिक सरकारें सभी तरह की गतिविधियों पर खर्च करती है। कुछ कार्य ऐसे हाते हैं जिन पर बहुत अधिक खर्च आता है। जैसे सड़कों, पुलों,
रेलवे, पत्तनों, बिजली आदि का निर्माण। इतना व्यय करना निजी क्षेत्रक की क्षमता से बाहर होता है। इसलिए सरकार ऐसे भारी व्यय स्वयं उठाती है। कुछ ऐसी गतिविधियाँ होती हैं, जिन्हें सरकारी समर्थन की जरूरत होती है। जैसे-उत्पादन मूल्य पर बिजली की बिक्री से औधोगिक उत्पादन लागत बढ़ सकती हे हो सकता है। कि कई लघु इाकइयाँ बंद हो जाएँ। ऐसी
स्थिति में सरकार उस दर पर बिजली उत्पादन ओर वितरण के लिए कदम उठाती है जिस पर ये उद्योग बिजली खरीद सकते हैं। सरकार लागत का कुछ अंश वहन करती है। इसी तरह, सरकार किसानों को उचित मूल्य दिलाने के लिए उनसे गेहूँ और चावल खरीदती है। और अपने गोदामों में भण्डारित करती है। इसके बाद राशन-दुकानों के माध्यम से उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर बेचती है। इस प्रकार सार्वजनिक क्षेत्रक देश के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान करता हैं

प्रश्न 22.
असंगठित क्षेत्रक के श्रमिकों को निम्नलिखित मुपों पर संरक्षण की आवश्यकता है-मजदूरी, सुरक्षा और स्वास्थ्य। उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
असंगठित क्षेत्रक के श्रमिकों को जमदूरी, सूरक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर संरक्षण की आवाश्यकता है। इसके निम्नलिखित करण हैं
मजदूरी-
(क) अतिरिक्त घंटे के लिए भुगतान के बिना ही दिन में 12 घंटों से भी अधिक काम करता पड़ता है।
(ख) उन्हें दैनिक मजदूरी के अतिरिक्त कोई अन्य भत्ता नहीं मिलता है।
(ग) उनहें रोजगार सुरक्षा प्राप्त नहीं होता है।
(घ) रोजगार में मजदूरी बहुत कम मिलती है।

सुरक्षा-चूंकि वे सामान्यतः ईट भट्ठी, खदान, पटाखे फैक्टरी जैसे कई जोखिम भेर उद्योगों में काम करते हैं, इसलिए उन्हें सरंक्षण की अति आवश्यकता है।

स्वारथ्य-उन्हें पौष्टिक भोजन नहीं मिलपाता है। परिणामस्वरूप, उनकी स्वारथ्य स्थिति बहुत कमजोर होती है अत: उनहें संरक्षण की सख्त आवश्यकता हैं

प्रश्न 23.
अहमदाबाद में किए गए एक अमययन में पाया गया कि नगर के 15,00,000 श्रमिकों में से 11,00,000 श्रमिक असंगठित क्षेत्रक में काम करते थे।
वर्ष 1997-98 में नगर की कुल आय 600 करोड़ रुपए थी इसमें से 320 करोड़ रुपए संगठित क्षेत्रक से बाप्त होती थी। इस आ!कड़े को तालिका में बदर्शित कीजिए। नगर में और अधिक रोजगार-सृजन के लिए किन तरीकों पर विचार किया जाना चाहिए?
उत्तर-
सारणी 1997-98 में अहमदाबाद में संगठित और असंगठित क्षेत्रकों में आय एवं रोजगार
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 14
नगर में और अधिक रोजगार-सृजन के लिए निम्न तरीकों पर विचार किया जाना चाहिए
(क) शिक्षा प्रणाली को रोजगारोन्मुख बनाया जाना चाहिए।
(ख) सरकार को लघु एवं कुटीर उद्योग को प्रोत्साहित करनी चाहिए।
(ग) सरकार को कम बयाज दरों एवं आसान शर्तो पर ऋण उपलब्ध करानी चाहिए जिससे लोग अपना व्यवसाय प्रारंभ कर सकें।

प्रश्न 24.
निम्नलिखित तालिका में तीनों क्षेत्रकों का सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) रुपए (करोड़) में दिया गया है-
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 15
(क) वर्ष 1950 एवं 2000 के लिए जी.डी.पी. में तीनों क्षेत्रकों की हिस्सेदारी की गणना कीजिए।
(ख) इन आँकड़ों को अध्याय में दिए आलेख-2 के समान एक दण्ड-आलेख के रूप में प्रदर्शित कीजिए।
(ग) दण्ड-आलेख से हम क्या निष्कर्ष बाप्त करते है?
उत्तर-
(क) निम्न तालिका वर्ष 1950 एवं 2000 के लिए जी.डी.पी. में तीन क्षेत्रकों की हिस्सेदारी को दर्शाता है-
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक 16

(ग) जी.डी.पी. में प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी कम हुई है जबकि इसमें द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रकों की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है।

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HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 1 विकास

Haryana State Board HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 1 विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 1 विकास

HBSE 10th Class Economics विकास Textbook Questions and Answers

पाठगत-प्रश्नोत्तर

आओ-इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 6)

प्रश्न 1.
अलग-अलग लोगों की विकास की ध परणाएँ अलग क्यों हैं? नीचे दी गई व्याख्याओं में कौन सी अधिक महत्त्वपूर्ण है और क्यों?
(क) क्योंकि लोग भिन्न होते हैं।
(ख) क्योंकि लोगों के जीवन की परिस्थितियाँ भिन्न हैं।
उत्तर-
(क) क्योंकि लोगों के जीवन की परिस्थितियाँ भिन्न हैं।
क्योंकि लोग उन्हीं वस्तुओं को चाहते हैं जो उनके लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होती हैं।

प्रश्न 2.
क्या निम्न दो कथनों का एक अर्थ है, कारण सहित उत्तर दीजिए।
(क) लोगों के विकास के लक्ष्य भिन्न होते हैं।
(ख) लोगों के विकास के लक्ष्यों में परस्पर विरोध होता है।
उत्तर-
उपरोक्त दोनों कथनों के अर्थ भिन्न हैं। इसे निम्न उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
शहरी अमीर परिवार का लड़का अच्छी शिक्षा और निवेश के लिए पूँजी चाहता है। दूसरी ओर, नर्मदा घाटी का आदिवासी
पुनर्वास और नियमित कार्य चाहता है। ये विकास के लक्ष्य भिन्न अवश्य हैं, परन्तु परस्पर विरोधी नहीं हैं।

प्रश्न 3.
कुछ ऐसे उदाहरण दीजिए, जहाँ आय के अतिरिक्त अन्य कारक हमारे जीवन के महत्त्वपूर्ण पहलू
उत्तर-
निम्नलिखित स्थितियों में आय के अतिरिक्त कुछ और कारक हमारे जीवन के महत्त्वपूर्ण पहलू होते हैं
(क) ग्रामीण महिला के लिए लिंग समानता, आय की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण होता है। __(ख) अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए सामाजिक समानता, सम्मान, आय से अधिक महत्त्वपूर्ण
(ग) अनियत श्रमिकों के लिए रोजगार सुरक्षा, आय से अधिक महत्त्वपूर्ण कारक है।

प्रश्न 4.
ऊपर दिये गए खण्ड के कुछ महत्त्वपूर्ण विचारों को अपनी भाषा में समझाइए।
उत्तर-
आय और अन्य लक्ष्य खण्ड के कुछ महत्त्वपूर्ण विचार निम्नलिखित है
(क) लोग नियमित कार्य, बेहतर मजदूरी और अपने उत्पादों के लिए अच्छी कीमतों द्वारा अधिक आय चहाते हैं।
(ख) आय के अतिरिक्त भी लोगों के अन्य विकास लक्ष्य होते हैं जैसे, समाज में बराबरी, स्वतंत्रता, सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, आत्म-सम्मान आदि।
(ग) यदि महिलाएँ वेतनभोगी कार्य करती हैं तो घर और समाज में उनका आदर बढ़ता है।
(घ) एक सुरक्षित वातावरण के कारण ज्यादा महिलाएँ विभिन्न प्रकार की नौकरियाँ या व्यापार कर सकती हैं।

आओ-इन विचार करें (पृष्ठ संख्या 7)

निम्नलिखित स्थितियों पर चर्चा कीजिए

प्रश्न 1.
दाहिनी ओर दिए गए चित्र को देखिए। इस प्रकार के क्षेत्र के विकासात्मक लक्ष्य क्या होने चाहिए?
उत्तर-
इस प्रकार के क्षेत्र के लिए विकासात्मक लक्ष्य निम्नलिखित होने चाहिए
(क) झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों के लिए पकके घर बनाए जाने चाहिए।
(ख) उनके लिए जल आपूर्ति और सफाई सुविधाओं का उचित प्रबन्ध।
(ग) नियमित कार्य और बेहतर मजदूरी के माध्यम से उनकी आय में वृद्धि।
(घ) उनके बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा व्यवस्था होनी चाहिए।

प्रश्न 2.
इस अखबार की रिपोर्ट देखिए और दिए गए प्रश्नों के उनर दीजिए।
एक जहाज ने 500 टन तरल जहरीले अवशेष एक शहर के खुले कूड़े घर और आसपास के समुद्र में डाल दिए। यह अफ्रीका देश के आइवरी कोस्ट में अबिदजान शहर में हुआ। इन ख़तरनाक जहरीले अवशेषों से निकलने वाले धुएँ से लोगों ने जी मितलाना, चमड़ी पर ददोरे पड़ना, बेहोश होना, दस्त लगना इत्यादि की शिकायतें की। एक महीने के बाद 7 लोग मारे गए, 20 अस्पताल में भरती हुए और विषाक्तता के कारण 26, 000 लोगों का इलाज किया गया।
पेट्रोल और धातुओं से संबंधित एक बहुराष्ट्रीय कंपनी ने आइवरी कोस्ट की एक स्थानीय कंपनी को अपने _जहाज़ से जहरीले पदार्थ फेंकने का ठेका दिया था।
(क) किन लोगों को लाभ हुआ और किन को नहीं?
(ख) इस देश के विकास के लक्ष्य क्या होने चाहिए?
उत्तर-
(क) स्थानीय कंपनी मालिक और बहुराष्ट्रीय कंपनी को इससे लाभ हुआ जबकि आइवरी कोस्ट, अफ्रीका के आबिदजान शहर के बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों को इस कार्य से हानि हुई।
(ख) इस देश के विकास के लक्ष्य औद्योगिक कचरों की उचित निकासी और जन-सामान्य के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविध होनी चाहिए।

प्रश्न 3.
आपके गाँव या शहर या स्थानीय इलाके के विकास के लक्ष्य क्या होने चाहिए?
उत्तर-
हमारे गाँव के विकास के लक्ष्य निम्न होने चाहिए
(क) रोजगार के अवसर।
(ख) स्थानीय विद्यालयों में अच्छी शिक्षा व्यवस्था।
(ग) गरीब परिवारों के लिए पक्के घर।
(घ) प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और अस्पताल।

कार्यकलाप 1

यदि विकास की धारणा में ही भिन्नता और परस्पर विरोध हो सकता है, तो निश्चित रूप से विकास के तरीकों में भी भिन्नता हो सकती है। अगर आप ऐसे किसी विवाद से परिचित हैं, तो आप विभिन्न व्यक्तियों के तर्क जानने का प्रयास कीजिए। यह आप लोगों से बातचीत करके या अख़बारों और टेलीविजन के मामयम से जान सकते हैं।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न
तालिका 1.2 में दिए आंकड़ों के अनुसार, दोनों देशों की औसत आय निकालिए। (पृष्ठ संख्या 9)
(क) क्या आप इन दोनों में रहकर समान रूप से सुखी होंगे?
(ख) क्या दोनों देश बराबर विकसित हैं?
उत्तर-
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 1 विकास 1

(क) नहीं, हमें दोनों देशों में रहने में बराबर खुशी नहीं होगी। इसका कारण कि देश ख में आय का वितरण समान
नहीं है।
(ख) नहीं, दोनों देश बराबर विकसित नहीं हैं। देश क में
नागरिकों में आया क वितरण समान है। दूसरी ओर, देश ख में 5 में से 4 नागरिक गरीब है।

आओ-इन पर विचार करें (पृष्ठ संख्या 9)

प्रश्न 1.
तीन उदाहरण दीजिए, जहाँ स्थितियों की तुलना के लिए औसत का प्रयोग किया जाता है।
उत्तर-
निम्न स्थितियों की तुलना के लिए औसत का इस्तेमाल किया जाता है
(क) क्रिकेट खिलाड़ियों के उपलब्धिों की तुलना के लिए।
(ख) अनियत श्रमिकों की आय की तुलना के लिए।
(ग) किसी परीक्षा में छात्रों की उपलब्धियों की तुलना के लिए।

प्रश्न 2.
आप क्यों सोचते हैं कि औसत आय विकास को समझने का एक महत्त्वपूर्ण मापदण्ड है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
विभिन्न देशों की जनसंख्या भिन्न-भिन्न होती है, इसलिए. कुल आय की तुलना करने में हमें यह पता नहीं चलता कि औसत व्यक्ति कितना कमा रहा है। यह औसत आय से ही जाना जा सकता है।

प्रश्न 3.
प्रतिव्यक्ति आय के माप के अतिरिक्त, । आय के कौन से अन्य लक्षण हैं जो दो या दो से अधिक देशों की तुलना के लिए महत्त्व रखते हैं?
उत्तर-
प्रति व्यक्ति आय के आकार के अतिरिक्त, आय का समान वितरण दो या दो से अधिक देशों की तुलना के लिए महत्त्व रखते हैं।

प्रश्न 4.
मान लीजिए कि रिकॉर्ड ये दिखाते हैं कि किसी देश की आय समय के साथ बढ़ती जा रही है। क्या इससे हम इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं कि अर्थव्यवस्था के सभी भाग बेहतर हो गए हैं? अपना उत्तर उदाहरण सहित दीजिए।
उत्तर-
समय के साथ किसी देश की औसत आय में वृद्धि का यह अर्थ नहीं होता है कि अर्थव्यवस्था के सभी भाग बेहतर हो गए हैं। जेसे भारत की औसत आय कुछ विशेष वर्षों को छोड़कर स्वतंत्रता के बाद से निरन्तर बढ़ रही है। परन्तु देश की कुल आय में कृषि का योगदान निरन्तर घट रहा है।

प्रश्न 5.
विश्व विकास रिपोर्ट 2012 के अनुसार निम्न-आय वाले देशों की प्रतिव्यक्ति आय ज्ञात कीजिए।
उत्तर-
विश्व विकास रिपोर्ट 2006 के अनुसार मध्य आय देशों की प्रति व्यक्ति आय आधार वर्ष के रूप में 2004 में 37,000 रुपये से 453,000 रुपये के बीच है।

प्रश्न 6.
एक अनुच्छेद लिखिए कि भारत को एक विकसित देश बनने के लिए क्या करना या प्राप्त करना चाहिए?
उत्तर-
एक विकसित देश बनने के लिए भारत को अपनी जी.डी.पी. में वृद्धि दर बढ़ानी चाहिए। कृशि एवं लघु उद्योगों के विकास पर अधिक ध्यान देने की जरूरत हैं।
भारत की कुल श्रम-शक्ति का 60% से भी अधिक भाग कृषि क्षेत्र में लगा हुआ है, जो भारतीय सकल राष्ट्रीय उत्पाद में केवल 27% का योगदान देता हैं वैश्वीकरण की प्रक्रिया में इस क्षेत्र की उपेक्षा के कारण इस क्षेत्र की वृद्धि दर में गिरावट आई है। अतः यह जरूरी है कि किसानों को कृषि आगतों,
प्रशिक्षण, ऋण एवं विपणन आदि सुविधाएँ प्रदान कर इस क्षेत्र की वृद्धि दर को बढ़ाया जाय।।
हमारी कुल श्रम-शक्ति का लगभग 16% भाग उद्योग क्षेत्र में है, जो भारत के जी.डी.पी. में लगभग 25% का ही योगदान देता हैं अतः हमें बुनियादी सरंचना, उत्पादन की श्रम-गहन तकनीक, प्रशिक्षण, ऋण एवं विपणन सुविधाओं में विस्तार करना चाहिए।

आओ-इन पर विचार करे (पृष्ठ संख्या 12)

प्रश्र 1.
तालिका 1.3 और 1.4 के आँकड़ों को देखिए। क्या हरियाणा केरल से साक्षरता दर आदि में उतना ही आगे है जितना कि प्रतिव्यक्ति आय के विषय में?
तालिका 1.3 चयनित राज्यों की प्रति-व्यक्ति आय
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 1 विकास 2

तालिका 1.4 हरियाणा, केरल और बिहार के कुछ तुलनात्मक आँकड़

HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 1 विकास 3
उत्तर-
नहीं, हरियाणा की प्रति व्यक्ति आय बिहार की प्रति व्यक्ति आय से लगभग पाँच गुणा अधिक हैं परन्तु हरियाण की साक्षरता दर (82%) बिहार की साक्षरता दर (62%) से लगभग डेढ़ गुण ही अधिक है।

प्रश्न 2.
ऐसे दूसरे उदाहरण सोचिए, जहाँ वस्तुएँ और सेवाएँ व्यक्तिगत स्तर की अपेक्षा सामूहिक स्तर पर उपलब्ध कराना अधिक सस्ता है।
उत्तर-
(क) अस्पताल-सामूहिक या सार्वजनिक असपताल निश्चय ही अधिक सस्ता और बेहतर है, क्योंकि प्रत्येक परिवार के लिए घर पर ये सुविधाएँ रखना संभव नहीं है।
(ख) बिजली-राज्य विद्युत बोर्ड से बिजली प्राप्त करना धार में जेनरेअर रखने से अधिक सस्ता है।
(ग) पानी-घरों में जल बोर्ड द्वारा पानी सप्लाई सस्ता है।

प्रश्न 3.
अच्छे स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं की उपलब्धता क्या केवल सरकार द्वारा इन सुविधाओं के लिए किए गए व्यय पर ही निर्भर करती है? अन्य कौन से कारक प्रासांगिक हो सकते हैं?
उत्तर-यद्यपि अच्छे स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं की उपलब्धाता इन सुविधाओं पर सरकार द्वारा व्यय की गई मुद्रा की रकम पर अत्यधिक निर्भर करती है, परन्तु यह केवल इसी कारक पर निर्भर नहीं करती है। अन्य महत्त्वपूर्ण कारक निम्नलितखत है-
(क) इन सुविधाओं के प्रति सरकार का समर्पण
(ख) इन क्षेत्रों में निजी सहभागिता
(ग) स्वास्थ्य और शिक्षा प्रति जनजागरण।

प्रश्न 4.
तमिलनाडु में ग्रामीण क्षेत्रों के 90 प्रतिशत लोग राशन की दुकानों का प्रयोग करते हैं, जबकि पश्चिम बंगाल में केवल 35 प्रतिशत ग्रामीण निवासी इसका प्रयोग करते हैं। कहाँ के लोगों का जीवन बेहतर होगा और क्यों?
उत्तर-
तमिलनाडु के लोग बेहतर स्थिति में होंगे। इसका कारण है कि यहाँ ग्रामीण क्षेत्रों के 75% लोग राशन की दुकानों का इस्तेमाल करते हैं। ये लोग राशन की दुकानों से खाद्यान्न, चीनी, मिट्टी का तेल आदि बाजार की कीमत से कम कीमत पर प्राप्त कर सकते हैं, राशन कार्ड के साथ कोई भी परिवार प्रत्येक महीना राशन की दुकान से इइ वस्तुओं की एक निध रित मात्रा खरीद सकता है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली दुकान या राशन की दुकान कम कीमतों पर गरीब उपभोक्ताओं को खाद्यान्न उपलब्ध कराने और कीमत स्थिर रखने में सरकारी नीति का सार्वधिक प्रभावी उपकरण साबित हुआ है।

कार्यकलाप 2

तालिका 1.5 को मयान से अमययन कीजिए और निम्न अनुच्छेदों में रिक्त स्थानों को भरिए। हो सकता है इसके लिए आपको तालिका के आधार पर कुछ गणना करनी पड़े।
तालिका 1.5 उत्तर प्रदेश की ग्रामीण जनसंख की शैक्षिक उपलब्धि श्रेणी
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 1 विकास 4
उत्तर-
(क) सभी आयु वर्गों की साक्षरता दर, जिसमें युवक और वृद्ध दोनों सम्मिलित हैं, ग्रामीण. पुरुषों के लिए 52% थी और ग्रामीण महिलाओं के लिए 19% थी। यही नहीं कि बहुत से वयस्क स्कूल ही नहीं जा पाए। 52.5% इस समय स्कूल में नहीं हैं।
(ख) 69% प्रतिशत ग्रामीण लड़कियाँ और 36% प्रतिशत ग्रामीण लड़के स्कूल नहीं जा रहे हैं। इसलिए, 10 से 14 की आयु के बच्चों में से 61% प्रतिशत ग्रामीण लड़कियाँ और 32% प्रतिशत ग्रामीण लड़के निरक्षर हैं। . (ग) हमारी स्वतंत्रता के 68 वर्षों के बाद भी, 10-14
आयु के वर्ग में इस उच्च स्तर की निरक्षरता बहुत चिंताजनक है। बहुत से अन्य राज्यों में भी 14 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों को निशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के संवैध निक लक्ष्य के निकट भी नहीं पहुँच पाए हैं, जबकि इस लक्ष्य को 1960 तक पूरा करना था।

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सामान्यतः किसी देश का विकास किस आधार पर निर्धारित किया जा सकता है-
उत्तर-
(क) प्रतिव्यक्ति आय
(ख) औसत साक्षरता स्तर
(ग) लोगों की स्वास्थ्य स्थिति
(घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पड़ोसी देशों में से मानव विकास के लिहाज से किस देश की स्थिति भारत से बेहतर है?
उत्तर-
(क) बांग्लादेश
(ख) श्रीलंका
(ग) नेपाल
(घ) पाकिस्तान

प्रश्न 3.
मान लीजिए कि एक देश में चार परिवार हैं। इन परिवारों की प्रतिव्यक्ति आय 5, 000 रुपये हैं। अगर तीन परिवारों की आय व्मशः 4, 000, 7, 000 और 3, 000 रुपये हैं, तो चौथे परिवार की आय क्या
उत्तर-
(क) 7, 500 रुपये
(ख) 3, 000 रुपये
(ग) 2, 000 रुपये
(घ) 6, 000 रुपये

प्रश्न 4.
विश्व बैंक विभिन्न वगोछद्व का वर्गीकरण करने के लिये किस प्रमुख मापदण्ड का प्रयोग करता है? इस मापदण्ड की, अगर कोई हैं, तो सीमाए! क्या हैं?
उत्तर-
(क) विश्व बैंक विभिन्न वर्गों का वर्गीकरण करने के लिए प्रति व्यक्ति अप जिसे औसत आय भी कहते हैं, को प्रमुख मापदण्ड के रूप इस्तेमाल करता है।
(ख) इस मापदण्ड की एक सीमा यह है कि हालाँकि औसत आय तुलना के लिए उपयोगी है परंतु इससे यह पता नहीं चलता कि यह आय लोगों में किस तरह वितरित है।

प्रश्न 5.
विकास मापने का यू.एन.डी.पी. का मापदण्ड किन पहलुओं में विश्व बैंक के मापदण्ड से अलग है?
उत्तर-
(क) यू. एन. डी. पी. द्वारा प्रकाशित मानव विकास रिपोर्ट देशों की तुलना लोगों के शैक्षिक, स्वास्थ्य स्तर एवं प्रति व्यक्ति आय के आधार पर करती है।
(ख) जबकि विश्व बैंक की विश्व विकास रिपोर्ट 2006 में, देशों का वर्गीकरण करने में प्रति व्यक्ति आय आ औसत आय का इस्तेमाल किया गया है।

प्रश्न 6.
हम औसत का प्रयोग क्यों करते हैं? इनके प्रयोग करने की क्या कोई सीमाए! हैं? विकास से जुड़े अपने उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) विभिन्न देशों के बीच तुलना के लिए कुल आय को अच्छा मापदण्ड नहीं माना जाता है। क्योंकि विभिन्न देशों की जनसंख्या अलग-अलग होती है। अतः कुल आय की तुलना करने से यह पता नहीं चल पाता है कि औसत व्यक्ति क्या कमा सकता है। इससे यह भी पता नहीं चल पाता है कि क्या एक देश के लोग दूसरे देश के लोगों से बेहतर परिस्थिति में हैं?
(ख) इसलिए औसत का प्रयोग किया जाता है, जिससे तुलना करने में आसानी होती है।
औसत आय = राष्ट्रीय आय
कुल जनसंख्या
(ग) औसतें तुलना के दृष्टिकोण से उपयोगी है, इससे असमानताएँ छुप जाती हैं। उदाहरण के लिए मान लीजिये देश A और B में पाँच-पाँच निवासी रहते हैं जिनकी मासिक औसत आय निम्नलिखित तालिका के अनुसार है।
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 1 विकास 5

इस तालिका से स्पष्ट है कि दोनों देश बराबर विकसित नहीं हैं। यदि हमें इन दो देशों में से किसी एक देश में रहने को कहा जाय तो हममें से कुछ लोग B देश में रहना पसंद करेंगे यदि हमें यह आश्वासन मिले कि हम उस देश के पाँचवें नागरिक होंगे। मगर यदि हमारी नागरिकता लॉटरी द्वारा निश्चित हो तो ज्यादातर लोग A देश में रहना चाहेंगे क्योंकि हालाँकि दोनों देशों की औसत आय लगभग एक समान है परंतु A देश के लोग न तो बहुत हमीर हैं न ही बहुत गरीब, पर B देश के हर पाँच नागरिक में सिर्फ एक अमीर है जबकि अन्य चार गरीब हैं।
(घ) हालाँकि औसत आय तुलना के लिए उपयोगी है लेकिन इससे यह पता नहीं चलता कि यह आय लोगों में किस तरह वितरित है।

प्रश्न 7.
प्रतिव्यक्ति आय कम होने पर भी केरल का मानव विकास क्रमांक हरियाणा से ऊँचा है। इसलिए प्रतिव्यक्ति आय एक उपयोगी मापदण्ड बिल्कुल नहीं है और राज्यों की तुलना के लिए इसका उपयोग नहीं करना चाहिए। क्या आप सहमत हैं? चर्चा कीजिए।
उत्तर-
प्रतिव्यक्ति आय विकास के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मापदंडों में से एक है। क्योंकि अर्थिक आय से अधिक से मात्रा में भौतिक वस्तुएँ उपलब्ध हो सकती हैं। विकास के मापदंड के रूप में प्रतिव्यक्ति आय का प्रयोग विश्व बैंक द्वारा भी किया जाता है। अतः यह कहना उचित नहीं है कि प्रतिव्यक्ति आय एक उपयोगी मापंदड नहीं है। परंतु इस मापंदड की निम्नलिखित सीमाएँ हैं
(क) प्रति व्यक्ति आय और मानव-विकास क्रमांक का अंर्तसंबंध किसी समरूपता का परिचायक नहीं है।
(ख) मुद्रा की सहायता से अच्छे जीवन के लिए आवश्यक सभी वस्तुएँ एवं सेवाएँ नहीं खरीदी जा सकती। जैसे-मृद्रा हमारे लिए प्रदूषण मुक्त पर्यावरण नहीं खरीद सकता है।
(ग) आय स्वयं में उन सेवाओं और वस्तुओं का पर्याप्त सूचक नहीं है जो लोग प्रयोग कर सकते हैं।

प्रश्न 8.
भारत के लोगों द्वारा ऊर्जा के किन पेतों का प्रयोग किया जाता है? ज्ञात कीजिए। अब से 50 वर्ष पश्चात् क्या संभावनाएँ हो सकती हैं?
उत्तर-
(क) परंपरागत स्त्रोत : (i) प्राकृतिक गैस, (ii) पेट्रोलियम, (iii) बिजली, (iv) कोयला
(ख) गैर-परंपरागत स्त्रोत : (i) पवन उर्जा, (ii) ज्वारीय उर्जा, (iii) सौर उर्जा, (iv) बायो गैस
ऐसी संभावना है कि अब से 50 पश्चात् भारत में उर्जा के गैर-परंपरागत स्त्रोतों को अधिकाधिक उपयोग हो रहा होगा। क्योंकि उर्जा के परंपरागत स्त्रोतों स्टॉक सीमित है।

प्रश्न 9.
धारणीयता का विषय विकास के लिए क्यों महन्वपूर्ण है?
उत्तर-
धारणीयता वह विकास है जो वर्तमान में पर्यावरण को क्षति पहुँचाए बिना होना चाहिए। इस क्रम में आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकताओं का ध्यान रखा जाना चाहिए।
निम्नलिखित कारणों से धारणीयता का विषय विकास के लिए महत्त्वपूर्ण है
(क) प्राकृतिक संसाधनों जैसे, कोयला, कच्चा तेल आदि का भंडार सीमित है।
इनके खत्म हो जाने पर भविष्य में विश्व में सभी देशों व विकास खतरे में पड़ सकती है।
(ख) कोयला, कच्चा तेल, खनिज पदार्थ आदि विकास के लिए आवश्यक है परंतु ये हमारे वातावरण को प्रदूषित करते है और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं।

प्रश्न 10.
धरती के पास सब लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पर्याप्त संसाधन हैं, लेकिन एक भी व्यक्ति के लालच को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। यह कथन विकास की चर्चा में कैसे प्रासंगिक है? चर्चा कीजिए।
उत्तर-
यह सत्य है कि पृथ्वी के पास सब लोगों की जरूरतें पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं लेकिन एक भी
व्यक्ति के लोभ को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। धरती के भीतर लौह खनिज जैसे-लौह आयस्क, मैंगनीज आयस्क, क्रोमाइट, पाइराइट, टंगस्टन, निकिल, कोबाल्ट; अलौह खनिज जैसे-सोना, चाँदी, सीसा, टिन, बॉक्साइट, मैग्नीशियम आदि तथा अधात्विक खनिज जैसे-पोटाश, अभ्रक, कोयला, जिप्सम, पेट्रोलियम आदि का भंडार है। इसके साथ प्रकृति ने हवा, पानी जंगल, विभिन्न प्रकार के जीव जंतु आदि उपलब्ध कराए हैं। इन सभी संसाधनों का उपयोगकर्ता मानव मात्र हैं। इन संसाधनों के सदुपयोग से मानव जीवन सुखी बन सकता है।

परंतु अपने लोभ के कारण मनुष्य प्रकृति के विनाश पर आमादा है। कई प्राकृतिक संसाधन नाशवान होते हैं। चूँकि ऐसे संसाधन एक बार उपयोग के बाद पुन: उपयोग में नहीं आ सकते अतः इनके समुचित प्रबंधन तथा संरक्षण की अतीव आवश्यकता है, जिससे उनका उपयोग लंबे समय तक किया जा सके। लेकिन वास्तविकता यह है कि अत्यधिक लाभ के लिए इन संसाधनों का दोहन इस तरह किया जा रहा है कि इनका भंडार तो खत्म हो ही रहा है साथ ही पर्यावरण संतुलन को भी खतरा उत्पन्न हो गया है।

प्रश्न 11.
पर्यावरण में गिरावट के कुछ ऐसे उदाहरणों की सूची बनाइए जो आपने अपने आस-पास देखे हों।
उत्तर-

(i) पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और जंगलों का विनाश।
(ii) शहर की गंदगी नदी में फेंकने के कारण नदी का जल प्रदूषण।
(iii) घर का कूड़ा इधर-उधर फेंकने के कारण गंदगी __ और बीमारियों के फैलने का खतरा।
(iv) फैक्टरियों के चिमनियों से निकलने वाले धुएँ के कारण वायु प्रदूषण।

प्रश्न 12.
तालिका 1.6 में दी गई प्रत्येक मद के लिए ज्ञात कीजिए कि कौन-सा देश सबसे। पर है और कौन-सा सबसे नीचे।
उत्तर-
(i) प्रतिव्यक्ति आय (अमरीकी डॉलर में)
a. सबसे ऊँचा-श्री लंका (4, 390)
b. सबसे नीचा-मयनमार (1, 027)
(ii) जन्म के समय संभावित आयु
a. सबसे ऊँचा-श्री लंका (74 वर्ष)
b. सबसे नीचा-मयनमार (61 वर्ष)
(iii) साक्षारता दर 15+ वर्ष की जनसंख्या के लिए
a. सबसे ऊँचा-श्री लंका (91)
b. सबसे नीचा-बांग्लादेश (41)
(iv) तीन स्तरों के लिए सकल नामांकत अनुपात
a. सबसे ऊँचा-श्री लंका (69%)
b. सबसे नीचा-पाकिस्तान (35%)
(v) विश्व में मानव विकास सूचकांक का क्रंमाक
a. सबसे ऊँचा-श्री लंका (93)
b. सबसे नीचा-मयनमार (138)।

प्रश्न 13.
नीचे दी गई तालिका में भारत में अल्प-पोषित व्यस्कों के अनुपात को दिखाया गया है। यह वर्ष 2001 में देश के विभिन्न राज्यों के एक सर्वेक्षण पर आधारित है। तालिका का अध्ययन कर निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दीजिये।
HBSE 10th Class Social Science Solutions Economics Chapter 1 विकास 6

(क) उपरोक्त आँकड़ों के आधार पर केरल और मध्य प्रदेश के लोगों के पोषण स्तरों की तुलना कीजिए।
उत्तर-
अपरोक्त आंकड़ों से स्पष्ट है कि केरल में पुरुष वर्ग में 22 लोग कुपोषित थे जबकि मध्यप्रदेश में यही संख्या 43 थी अर्थात् केरल की अपेक्षा लगभग दो गुना। इसी प्रकार महिला वर्ग में केरल में 19 महिलाएँ कुपोषित थीं जबकि मध्य प्रदेश में 42 महिलाएँ कुपोषित थीं। अर्थात् दो गुना से भी ज्यादा।

(ख) क्या आप अन्दाजा लगा सकते हैं कि देश के 40 प्रतिशत लोग अल्पपोषित क्यों है, यद्यपि यह तर्क दिया जाता है कि देश में पर्याप्त खाद्य है? अपने शब्दों में विवरण दीजिए।
उत्तर-
1970 के दशक में खाद्य सुरक्षा का अर्थ था-‘आध रिक खाद्य पदार्थों की सदैव पर्याप्त उपलब्धता’। अमर्त्य सेन ने खाद्य सुरक्षा में एक नया आयाम जोड़ा और हकदारियों के आध र पर खाद्य तक पहुँच पर जोर दिया। हकदारियों का अभिप्राय राज्य का सामाजिक रूप से उपलब्ध कराई गई अन्य पूर्तियों के साथ-साथ उन वस्तुओं से है, जिनका उत्पादन और विनिमय बाजार में किसी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है। तदनुसार, खाद्य सुरक्षा के अथ्र में काफी परिवर्तन हुआ है। विश्व खाद्य शिखर सम्मेलन, 1995 में यह घोषणा की गई कि ‘वैयक्तिक, पारिवारिक, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय तथ वैश्विक स्तर पर खाद्य सुरक्षा का अस्तित्व तभी है, तब सक्रिय और स्वस्थ जीवन व्यतीत करने के लिए आहार संबंधी जरूरतों और खाद्य पदार्थो को पूरा करने के लिए पर्याप्त, सुरक्षित एवं पौष्टिक खाद्य तक सभी लोगों की भौतिक एवं आर्थिक पहुँच सदैव हो।’ इसके अतिरिक्त घोषणा में यह भी स्वीकार किया गया कि “खाद्य तक पहुँच बढ़ाने में निर्धनता का उन्मूलन किया जाना परमावश्यक है।”

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HBSE 10th Class Social Science Solutions Civics Chapter 8 लोकतंत्र की चुनौतियाँ

Haryana State Board HBSE 10th Class Social Science Solutions Civics Chapter 8 लोकतंत्र की चुनौतियाँ Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Social Science Solutions Civics Chapter 8 लोकतंत्र की चुनौतियाँ

HBSE 10th Class Civics लोकतंत्र की चुनौतियाँ Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
इनमें से प्रत्येक कार्टून लोकतंत्र की एक चुनौती को देखता है। बताएं कि वह चुनौती क्या है? यह भी बताएं कि इस अध्याय में चुनौतियाँ की जो तीन श्रेणियाँ बताइ गई हैं, यह उनमें से किस श्रेणी की चुनौती है।
उत्तर-
(i) मुबारक फिर चुने गए
यह कार्टून चुनावों में सशक्त लोगों के प्रस्ताव को व्यक्त करता है। अनेक देशों में लोकतंत्र को मजबूत करने की जरूरत है। यह तीसरी प्रकार की चुनौती है:
लोकतात्रिक संस्थाओं को मजबूत करना।

(ii) लोकतंत्र पर नजर
यह कार्टून इस तथ्य पर जोर देता है कि ऐसे क्षेत्रों में जहाँ लोकतंत्र है ही नहीं, वहाँ लोकतंत्र को बुनियादी रूप से शुरू करने की जरूरत है। यह पहली प्रकार की चुनौती हैः
बुनियादी लोकतंत्रिक व्यवस्थाओं को आरंभ करना, जहाँ लोकतंत्र नहीं है।

(iii) उदारवादी लैंगिक समानता
यह कार्टून इस तथ्य पर जोर देता है कि लोकतंत्र के दायरे में महिलाओं की भागीदारी को सम्मिलित करने की जरूरत है। यह दूसरी प्रकार की चुनौती है।
लोकतंत्र का प्रसार लोकतांत्रिक संस्थाओं में अनेकों समूहों व महिलाओं के योगदान पर बल देना।

(iv) चुनाव अभियान का पैसा की भूमिका
यह कार्टून स्पष्ट करता है कि लोकतंत्र में चुनावों के दौरान धन का कितना अधिक महत्त्व होता है। अमीर व सशक्त व्यक्ति चुनावों में पैसा लगाकर अपने समर्थन के लोगों को निर्णय-निर्माण की स्थिति में ले आते हैं। यह तीसरी प्रकार की चुनौती है :
लोकतंत्र में किसी वर्ग विशेष का प्रभाव नहीं होना चाहिए। इससे लोकतंत्र कमजोर पड़ता है।

प्रश्न 2.
लोकतंत्र की अपनी यात्रा के सभी महत्त्वपूर्ण पड़ावों पर लौटने से हम हमारी यादें ताज़ा कर सकते हैं तथा उन पड़ावों पर लोकतंत्र के समाने वाली कौन-सी चुनौतियाँ देखते हैं?
उत्तर-
HBSE 10th Class Social Science Solutions Civics Chapter 8 लोकतंत्र की चुनौतियाँ 1
HBSE 10th Class Social Science Solutions Civics Chapter 8 लोकतंत्र की चुनौतियाँ 2
HBSE 10th Class Social Science Solutions Civics Chapter 8 लोकतंत्र की चुनौतियाँ 3
HBSE 10th Class Social Science Solutions Civics Chapter 8 लोकतंत्र की चुनौतियाँ 4

प्रश्न 3.
अब जबकि आपने इन सभी चुनौतियों को लिख डाला है तो आइए इन्हें कछ बड़ी श्रेणियों में डालें नीचे लोकतांत्रिक राजनीति में कुछ दायरों को खानों में रखा गया है। पिछले खंड में एक या एक से अधिक देशों में आपने कुछ चुनौतियाँ लक्ष्य की थी। कुछ कार्टूनों में भी आपने इन्हें देखा। आप चाहे तो नीचे दिए गए खानों के समाने मेल का ध्यान रखते हुए इन चुनौतियों को लिख सकते हैं। इनके अलावा भारत में भी इन खानों में भी दिए जाने वाले एक-एक उदाहरण दर्ज करें। अगर आपको कोई चुनौती इन खानों में फिट बैठती नहीं लगती तो आप नयी श्रेणियाँ बनाकर उनमें इन मुद्दों को रख सकते हैं।
उत्तर:
संवैधानिक बनावट
घाना : नए संविधान की आवश्यकता हैं
म्यांमार : लोकतांत्रिक की बहाली के लिए नया संविधान बनाया जाए।? सऊदी अरब : लोकतंत्र की स्थापना व समान अधिकार
भारत : संविधान का समय-समय पर मूल्यांकन।

लोकतांत्रिक अधिकार
दक्षिणी अफ्रीका : संविधान को लागू करके लोकतांत्रिक अधिकारों को प्रयोजन
चीली : कभी देशों से बाहर निकाले गए दलों की वापसी हो।
म्यांमार : सू को छोड़ा जाए।
भारत : महिलाओं के लिए केन्द्र व राज्यों में 33% आरक्षण की व्यवस्था।

संस्थाओं का काम काज
चीली : नागरिक नियंत्रण में वृद्धि
घानाः कार्यपालिका अध्यक्ष का नियमित व सामाजिक चुनाव व प्रभावकारी संस्थाओं की व्यवस्था।
भारत : राजकीय संस्थाओं में भ्रष्टाचार उन्मूलन के प्रयास किए जाएं।

चुनाव
पोलैंड : राजनीतिक दलों के दायरे में सामान्य चुनाव हो।
म्यांमार : बहुदलीय व्यवस्थाओं के दायरे में चुनाव कराए जाएं।
भारत : निपष्क्ष, नियमित, स्वतंत्र, सामायिक चुनाव।
पाकिस्तान : लोकतंत्र को बहाली के आम चुनाव हों।
इराक : बहुदलीय व्यवस्था का प्रयोजन व चुनाव

संघवाद विकेंद्रीकरण
घाना : संघीय सिद्धांतों का प्रयोजन व उनका सूचार कार्य संचालन
भारत : केन्द्र-राज्य संबंधों का सामाजिक मूल्यांकन तथा सूभावित सुझावों का कार्यरूप हो।

विविधता को समेटना
इराक, श्रीलंका, सऊदी अरब, यूगोस्लाविया, नेपाल आदि देशों में सामाजिक विविधताओं में परस्पर तालमेल हो। भारतः विभिन्न सामाजिक वर्गों के उत्थान के प्रयास किए जाएँ।

राजनीतिक संगठन
म्यांमार : में सामाजिक संगठनों को दल बनाने की अनुमति हो; नेपाल में संविधान सभा का निर्माण हो;
अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के महत्त्व का सम्मान हो।

कोई अन्य श्रेणी सामाजिक व आर्थिक विकास
भारत : सामाजिक संगठनों का भ्रष्टाचार नेताओं पर नियंत्रण हो। विभिन्न देशों में आर्थिक-सामाजिक विकास हेतु योजनाएं बनायी जाएं लोकतंत्रा की सफलता के लिए सामाजिक-आर्थिक नींव मजबूत होनी चाहिए। भारत के आधुनिकीकरण हेतु आर्थिक विकास पर जोर तथा सामाजिक तालमेल के महत्त्व पर बल दिया जाए। राष्ट्रीय एकता व अखण्डता किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था को सशक्त बनाती है। किसी देश में इनकी चुनौतियां गंभीर हो सकती है। अतः सभी देशों में सद्भावना, सहनशीलता
परस्पर संबंध आदि को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

कोई अन्य श्रेणी राष्ट्रीय एकता
भारत : एकता व अखंडता विकास की पूंजी है।

प्रश्न 4.
इन श्रेणियों का नया वर्गीकरण करें। इन बार इसके लिए हम उन मानकों को आधार बनाएंगे जिनकी चर्चा अध्याय के पहले हिस्से में हुई है। इन सभी श्रेणियों के लिए कम-से-कम एक उदाहरण भारत से भी खोजे।
उत्तर-
आधार तैयार करने की चुनौतियाँ – म्यांमार, सऊदी अरब तथा अन्य उन सभी देशों में जहाँ लोकतंत्र नहीं है, वहां लोकतंत्र की स्थापना के लिए बुनियादी वातावरण बनया जाए। पाकिस्तान में लोकतंत्र की
बहाली हो।
विस्तार की चुनौती – आयरलैण्ड, इराक, श्रीलंका, मैक्सिकों, इन जैसे अन्य देशों में लोकतंत्र के विस्तार हेतु बाधाएं दूर करायी जाएं तथा उसके विस्तार के लिए अधिकाधिक लोगों व समूहों को लोकतंत्र में सम्मिलित किया जाए।
लोकतंत्र को गहराई तक मजबूत बनाने की चुनौती –
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, बेल्जियम, दक्षिण अफ्रीका आदि देशों में लोकतंत्र के संचालन में पैसे, जोर-जबदस्ती, अपराधीकरणर आदि को रोका जाए। भारत में लोकतंत्र के संचालन के लिए संस्थात्मक बाधाएं व स्वच्छ शासन दिए जाने के प्रभाव हैं।

आइए, अब सिर्फ भारत के बारे में विचार करें। समकालीन भारत के लोकतंत्र के सामने मौजूद चुनौतियों पर गौर करें। इनमें से उन पाँच की सूची बनाइए जिन पर पहले ध्यान दिया जाना चाहिए। यह सूची प्राथमिकता को भी बताने वाली होनी चाहिए यानी आप जिस चुनौती को सबसे महत्त्वपूर्ण और भारी मानते हैं उसे सबसे ऊपर रखें। शेष को इसी फ्रम से बाद में। ऐसी चुनौती का एक उदाहरण दें और बताएं कि आपकी प्राथमिकता में उसे कोई खास जगह क्यों दी गई है।
उत्तर-
im

प्रश्न 5.
अच्छे लोकतंत्र को परिभाषित करने के लिए अपना मत दीजिए। (अपना नाम लिखें) क, ख, ग, की अच्छे लोकतंत्र की परिभाषा (अधिकतम 50 शब्दों में)
उत्तर-
लोकतंत्र शासन का वह रूप है जहाँ समस्त शासन की नींव लोगों की सहमति पर आधारित होती है, लोग सरकार बनाते हैं, लोग सरकार चलाते हैं। तथा सरकार भी लोगों के हित में काम करती है। लोकतंत्र शासन के रूप में अतिरिक्त एक स्वच्छ सामाजिक व्यवस्था है जहाँ सब वर्ग सद्भावना व सहयोग से एक-दूसरे के साथ रहते हुए सामुदायिक एकता को मजबूत बनाते हैं। विशेषाताएँ [सिर्फ बिंदुवार लिखें। जितने बिंदु आप बताना चाहें उतने बता सकते हैं। इसे कम-से-कम बिंदुओं में निपटने का प्रयास करें।]

  1. समानता लोकतंत्र की एक प्रमुख विशेषता है: लोगों का एक समान समझा जाना।
  2. स्वतंत्रता समानता के साथ मिल एक लोकतांत्रिक समाज बनती है। इस से अभिप्राय है : सरकार तक अपनी बात कहने की छूट।
  3. कल्याणकारिता लोकतंत्र की एक अन्य विशेषता है: लोकतांत्रिक सरकार सर्वहित व सर्वकल्याण हेतु शासन करती है।
  4. बन्धुत्व वह भाव है जो लोकतंत्र को सीमेंट प्रदान करता है। लोगों में एकता अखण्डता, सामंजस्य, सहनशीलता सहयोग।
  5. जनसहमति, जनमत, जागृति-लोकतांत्रिक की अन्य विशेषताएं।

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HBSE 10th Class Social Science Solutions Civics Chapter 7 लोकतंत्र के परिणाम

Haryana State Board HBSE 10th Class Social Science Solutions Civics Chapter 7 लोकतंत्र के परिणाम Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Social Science Solutions Civics Chapter 7 लोकतंत्र के परिणाम

HBSE 10th Class Civics लोकतंत्र के परिणाम Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
लोकतंत्र किस तरह उत्तरदायी, जिम्मेवार और वैध सरकार का गठन करता है?
उत्तर-
लोकतंत्र सरकार का उत्तरदायी, जिम्मेवार तथा वैध सरकार का गठन करता है। ऐसी व्यवस्था में शासन शासित लोगों द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा बनायी जाती है। यह निर्वाचित प्रतिनिधि अपने कार्यों के लिए लोगों के प्रति उत्तरदायी होते हैं। इस प्रकार लोकतंत्र में उत्तरदायी सरकार का गठन होता है। लोकतंत्र में शासन करने वाले शासन कार्यों को करते हुए अपनी जिम्मेवारी को समझते हैं। शासन करने वाले अन्य विचार रखने वाले लोगों के दृष्टिकोण को भी वजन देते हैं; अल्पसंख्यकों के हितों की अनदेखी नहीं करते; किए गए निर्णयों में सम्मति बाने का प्रयास करते हैं। लोकतंत्र में बनी सरकार इस दृष्टि से वैध होती है क्योंकि इसका गठन लोगों की सहमति पर होता है तथा लोगों के कल्याण में शासन चलाया जाता है।

प्रश्न 2.
लोकतंत्र किन परिस्थितियों में सामाजिक विविधता को सफलता है और उनके बीच सामंजस्य बैठाता है?
उत्तर-
लोकतंत्र केवल बहुमत का शासन मात्र नहीं होता।
प्रत्येक प्रकार के लोकतंत्र में बहुसंख्यक के साथ-साथ अल्पसंख्यक भी होते हैं। लोकतंत्र में अल्पसंख्यक की अनदेखी नहीं की जाती। साथ ही लोकतंत्र में अनेक प्रकार की अन्य सामाजिक, सांस्कृतिक, नस्लीय धार्मिक, भाषायी प्रकार की विविधताएँ भी होती हैं। लोकतांत्रिक सरकार इनमें विविधताओं में सामंजस्य बैठाने का प्रयास करता है तथा लिए जाने वाले निर्णयों में उनके हितों की अनदेखी नहीं करता।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित कथनों के पक्ष या विपक्ष में तर्क दें:
(क) औद्योगिक देश ही लोकतांत्रिक व्यवस्था का भार उठा सकते हैं पर गरीब देशों को आर्थिक विकास करने के लिए तानाशाही चाहिए।
(ख) लोकतंत्र अपने नागरिकों के बीच की असमानता को कम नहीं कर सकता।
(ग) गरीब देशों की सरकार को अपने ज्यादा संसाधन गरीबी को कम करने और आहार, कपड़ा, स्वास्थ्य तथा शिक्षा पर लगाने की जगह उद्योगों और बुनियादी आर्थिक ढाँचे पर खर्च करने चाहिए।
(घ) नागरिकों के बीच आर्थिक समानता अमीर और गरीब, दोनों तरह के लोकतांत्रिक देशों में है।
(ङ) लोकतंत्र में सभी को एक वोट का अधिकार है। इसका मतलब है कि लोकतंत्र में किसी का प्रभुत्व और टकराव नहीं होता।
उत्तर-
(क) लोकतांत्रिक सरकार खर्चीली सरकार आवश्यक होती है। परन्तु आवश्यक नहीं कि औद्योगिक देश ही लोकतांत्रिक बन सकता है। गरीब देश भी लोकतंत्र को अपनाकर विकास कर सकता है।
(ख) लोकतंत्र ही अपने नागरिकों के बीच अपमानता को कम कर सकता है। समानता लोकतंत्र की नींव होती है। _ (ग) गरीब देशों को सन्तुलित विकास करने के लिए उद्योगों व सामाजिक सेवाओं दोनों पर खर्च करने की आवश्यकता है। यह और बात है कि कुछेक मद्दों पर पहले चार्च किया जाता है तथा कुछेक पर बाद में।
(घ) आर्थिक समानता तो हर प्रकार के लोकतांत्रिक देश में होती है।
(ङ) ‘एक व्यक्ति, एक मत’ व्यवस्था में सामाजिक, आर्थिक व अन्य टकराव हो सकते हैं।

प्रश्न 4.
नीचे दिए गए ब्यौरों में लोकतंत्र की चुनौतियों की पहचान करें। ये स्थितियाँ किस तरह नागरिकों के गरिमापूर्ण, सुरक्षित और शांतिपूर्ण जीवन के लिए चुनौती पेश करती हैं। लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए नीतिगत-संस्थागत उपाय भी सुझाएँ
(i) उच्च न्यायालय के निर्देश के बाद ओड़िसा में दलितों और गैर-दलितों के प्रवेश के लिए अलग-अलग दरवाजा रखने वाले एक मंदिर को एक ही दरवाजे से सबको प्रवेश की अनुमति देनी पड़ी।
(ii) भारत के विभिन्न राज्यों में बड़ी संख्या में किसान आत्महत्या कर रहे हैं।
(iii) जम्मू-कश्मीर के गंडवारा में मुठभेड़ बताकर जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा तीन नागरिकों की हत्या करने के आरोप को देखते हुए इस घटना के जाँच के आदेश दिए गए।
उत्तर-
(i) उच्च न्यायालय का निर्देश लोकतांत्रिक भी है तथा संवैधानिक भी। भारत का संविधान छुआछूत को असंवैध निक व गैर-कानूनी कहता है। लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए समानता को लागू किया जाना तथा भेदभाव का भेदभाव का उन्मूलन आवश्यक है।
(i) लोकतंत्र लोक-कल्याण पर जोर देता है। यदि किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में जैसे कि भारत में ऐसी व्यवस्था विद्यमान है किसान बड़ी संख्या में आत्म-हत्या कर रहे हैं तो यह देश व सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। सरकार को ऐसी स्थिति से उबारने के लिए गम्भीर कदम उठाने चाहिए।
(iii) लोकतंत्र में शान्ति-व्यवस्था कायम करना पुलिस का कार्य है। परन्तु इस प्रक्रिया में यदि पुलिस कोई गैर-कानूनी (भले उसका नजर में ऐसी प्रक्रिया कानूनी क्यों न हो) उठाती है तो लोगों की माँग पर जाँच-पड़ताल कराए जाने के आदेश दिए जाने चाहिए।

प्रश्न 5.
लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के संदर्भ में इनमें से कौन-सा विचार सही है-लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं ने सफलतापूर्वकः
(क) लोगों के बीच टकराव को समाप्त कर दिया है। .
(ख) लोगों के बीच की आर्थिक असमानताएँ समाप्त कर दी हैं।
(ग) हाशिए के समूहों से कैसा व्यवहार हो, इस बारे में सारे मतभेद मिटा दिए हैं।
(घ) राजनीतिक गैर बराबरी के विचार को समाप्त कर दिया है।
उत्तर-
लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ लोगों में टकराव समाप्त करके सामाजिक सद्भावना का वातावरण बनाती है। आर्थिक असमानताओं के उन्मूलन की सम्भावना लोकतंत्रीय व्यवस्था में अधिक होती है। समस्त समूहों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार किया जाना चाहिए। लोकतंत्र विचारों को समाप्त नहीं करता, मतभेदों में मेल-मिलाप बैठाता है। (क), (ख), अपेक्षाकृत अधिक सही है।

प्रश्न 6.
लोकतंत्र के मूल्यांकन के लिहाज से इनमें कोई एक चीज लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के अनुरूप नहीं है। उसे चुनें:
(क) स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव (ख) व्यक्ति की गरिमा (ग) बहुसंख्यकों का शासन (घ) कानून से समक्ष समानता
उत्तर-
(ग) बहुसंख्यकों का शासन।

प्रश्न 7.
लोकतांत्रिक व्यवस्था के राजनीतिक और सामाजिक असमानताओं के बारे में किए गए अध्ययन बताते हैं कि
(क) लोकतंत्र और विकास साथ ही चलते हैं।
(ख) लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में असमानताएँ बनी रहती हैं।
(ग) तानाशाही में असमानताएँ नहीं होती।
उत्तर-
(क) लोकतंत्र और विकास साथ ही चलते हैं।

प्रश्न 8.
नीचे दिए गए अनुच्छेद को पढ़ें:
नन्नू एक दिहाड़ी मजदूर है। वह पूर्वी दिल्ली की एक झुग्गी बस्ती वेलकम मजदूर कॉलोनी में रहता है। उसका राशन कार्ड गुम हो गया और जनवरी 2006 में उसने डुप्लीकेट राशन कार्ड बनाने के लिए अर्जी दी। अगले तीन महीनों तक उसने राशन विभाग के दफ्तर कई चक्कर लगाए लेकिन वहाँ तैनात किरानी और अधिकारी उसका काम करने या उसके अर्जी की स्थिति बताने की कौन कहे उसको देखने तक के लिए तैयार न थे। आखिरकार उसने सूचना के अधिकार का उपयोग करते हुए अपनी अर्जी की दैनिक प्रगति का ब्यौरा देने का आवेदन किया। इसके साथ ही उसने इस अर्जी पर काम करने वाले अधिकारियों के नाम और काम न करने की सूरत में उनके खिलाफ होने वाली कार्रवाई का ब्यौरा भी माँगा। सूचना के अधिकार वाला आवेदन देने के हफ्ते भर के अंदर खाद्य विभाग का इस इंस्पेक्टर उसके घर आया और उसने नन्नू को बताया कि तुम्हारा राशन कार्ड तैयार है और तुम दफ्तर आकर उसे ले जा सकते हो। अगले दिन जब नन्नू राशन कार्ड लेने गया तो उस इलाके के खाद्य और आपूर्ति विभाग के सबसे बड़े अधिकारी ने गर्मजोशी से उसका स्वागत किया। इस अधिकारी ने उसे चाय की पेशकश की और कहा कि अब आपका काम हो गया है इसलिए सूचना के अधिकार वाला अपना आवेदन आप वापस ले लें।

नन्नू का उदाहरण क्या बताता है? नन्नू के इस आवेदन का अधिकारियों पर क्या असर हुआ? अपने माता-पिता से पूछिए कि अपनी समस्याओं के लिए सरकारी कर्मचारियों के पास जाने का उनका अनुभव कैसा रहा है।
उत्तर-
नन्नू के उदाहरण से स्पष्ट होता है कि यदि लोग अपने अधिकारों का प्रयोग करें तो वह सरकार व कर्मचारियों से अपनी समस्याओं का समाधान करा सकते हैं। सूचना के अधिकार के प्रयोग से लोग अपनी शिकायतों का निवारण कर सकते हैं। नन्नू के आवेदन पर अधिकारियों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। फलस्वरूप वह सभी अपने-अपने कार्यों को करने में व्यस्त हो गए। ऐसी अनेक समस्याएँ लोगों को झेलनी पड़ती है। यदि लोग सचेत हों तो वह सरकार से अपनी समस्याओं को हल कर सकते हैं।

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