Author name: Prasanna

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कौन-सा कथन असत्य है?
(A) भारत में जन्म दर मृत्यु दर घट रही है
(B) भारत में जनसंख्या वृद्धि दर घट रही है।
(C) भारत की कुल जनसंख्या बढ़ रही है
(D) भारत में स्त्रियों की संख्या पुरुषों से अधिक है।
उत्तर:
भारत में स्त्रियों की संख्या पुरुषों से अधिक है।

प्रश्न 2.
दीर्घकालिक प्रवसन-
(A) मौसमी होता है
(B) अस्थायी होता है
(C) स्थायी होता है
(D) उपर्युक्त कोई नहीं।
उत्तर:
स्थायी होता है।

प्रश्न 3.
कौन-सा कथन असत्य है?
(A) अकाल द्वारा जनसंख्या कम होती है
(B) परिवार नियोजन जनसंख्या नियंत्रित करता है
(C) परिवार नियोजन को भारत में आशातीत सफलता नहीं मिली है
(D) महामारी नियंत्रण द्वारा जनसंख्या कम होती है।
उत्तर:
महामारी नियंत्रण द्वारा जनसंख्या कम होती है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

प्रश्न 4.
परिवार नियोजन का कौन-सा नारा नवीनतम है?
(A) दो या तीन बच्चे, होते हैं घर में अच्छे
(B) दो ही काफी, और से माफी
(C) लड़की लड़का एक समान
(D) लड़का लड़की, एक समान।
उत्तर:
लड़का लड़की, एक समान।

प्रश्न 5.
जनसंख्या वृद्धि का देश पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(A) कम आर्थिक विकास
(B) बहुत-सी समस्याएं
(C) खाद्य समस्या
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
उपरोक्त सभी।

प्रश्न 6.
प्रति हज़ार पर प्रसूति में मरने वाली स्त्रियों की संख्या को क्या कहते हैं?
(A) प्रसूति मृत्यु-दर
(B) प्रसूति दर
(C) कुल प्रजनन दर
(D) प्रजनन दर।
उत्तर:
प्रसूति मृत्यु-दर।

प्रश्न 7.
हरियाणा का जनसंख्या घनत्व कितना है?
(A) 477 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर
(B) 460 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर
(C) 490 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर
(D) 500 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर।
उत्तर:
477 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर।

प्रश्न 8.
भारत में जन्म दर क्या है?
(A) 23%
(B) 24.5%
(C) 27%
(D) 19.8%
उत्तर:
19.8%.

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

प्रश्न 9.
जनांकिकीय परिप्रेक्ष्य किसके सिद्धांत पर आधारित है?
(A) माल्थस
(B) विलियम
(C) गुलियार्ड
(D) जॉन ग्रांट।
उत्तर:
माल्थस।

प्रश्न 10.
किसी क्षेत्र में 1000 पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की संख्या को क्या कहते हैं?
(A) लिंग अनुपात
(B) संख्या अनुपात
(C) स्त्री पुरुष अनुपात
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
लिंग अनुपात।

प्रश्न 11.
गाँव और शहर को परिभाषित करने का कौन-सा आधार सर्वाधिक सही है?
(A) जनसंख्या कम/अधिक
(B) जनसंख्या का घनत्व
(C) जनसंख्या की मानसिक विशेषताएं
(D) उपर्युक्त कोई नहीं।
उत्तर:
जनसंख्या कम/अधिक।

प्रश्न 12.
निम्न में से किस समुदाय को आप शहरी कहेंगे?
(A) कुल जनसंख्या 500 हो
(B) 75% लोग गैर-कृषि कार्य करते हों
(C) जनसंख्या घनत्व 40 व्यक्ति प्रति वर्ष कि० हो
(D) उपर्युक्त कोई नहीं।
उत्तर:
75% लोग गैर-कृषि कार्य करते हों।

प्रश्न 13.
नगर का कौन-सा मापदंड सही है?
(A) बड़ा आकार
(B) अधिक जनसंख्या घनत्व
(C) जटिल प्रशासनिक व्यवस्था
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 14.
निम्न में से किस शहर में उपनिवेशक भारतीय नगरों तथा पारंपरिक भारतीय नगरों का सम्मिश्रण देखा जा सकता है?
(A) पुरानी और नई दिल्ली में
(B) आगरा में
(C) फतेहपुर सीकरी में
(D) बंबई में।
उत्तर:
पुरानी और नई दिल्ली में।

प्रश्न 15.
कौन-सी विशेषता शहरी समुदाय से मेल नहीं खाती?
(A) कम जनसंख्या घनत्व
(B) खुला संगठन
(C) जटिल जीवन
(D) दवितीयक सामाजिक संबंध।
उत्तर:
कम जनसंख्या घनत्व।

प्रश्न 16.
कौन-सा कथन असत्य है?
(A) ग्रामीण समाज आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं
(B) ग्रामीण व्यवस्था कृषि व्यवसाय पर आधारित है
(C) ग्रामीण समाज में प्राथमिक संबंध कमज़ोर होते हैं
(D) ग्रामीण समाज सरल होते हैं।
उत्तर:
ग्रामीण समाज में प्राथमिक संबंध कमज़ोर होते हैं।

प्रश्न 17.
ग्रामीण समुदाय का किससे घनिष्ठ संबंध होता है?
(A) प्रकृति
(B) पड़ोस
(C) शहर
(D) महानगर।
उत्तर:
प्रकृति।

प्रश्न 18.
हमारे देश की कितने प्रतिशत जनसंख्या गांवों तथा शहरों में रहती है?
(A) 70% तथा 30%
(B) 32% तथा 68%
(C) 68% तथा 32%
(D) 25% तथा 75%
उत्तर:
68% तथा 32%.

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

प्रश्न 19.
एक जाति का जाल जो कई गांवों तक फैला हुआ होता है तो उसे क्या कहते हैं?
(A) चौखला
(B) आंगन
(C) त्रिजला
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
चौखला।

प्रश्न 20.
ग्रामीण नगरीय समुदाय की धारणा किसने दी थी?
(A) देसाई
(B) मजूमदार
(C) सोरोकिन तथा ज़िमरमैन
(D) मैकाइवर तथा पेज।
उत्तर:
सोरोकिन तथा ज़िमरमैन।

प्रश्न 21.
ग्रामीण क्षेत्रों में किस व्यवसाय की अधिकता पायी जाती है?
(A) उद्योग
(B) विभिन्न पेशे
(C) प्रौद्योगिकी
(D) कृषि।
उत्तर:
कृषि।

प्रश्न 22.
जजमानी व्यवस्था में सेवा प्रदान करने वाले को क्या कहा जाता है?
(A) जजमान
(B) प्रजा
(C) सेवक
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
सेवक।

प्रश्न 23.
शहरी इलाकों में लोगों में किस प्रकार के सांस्कृतिक संबंध पाये जाते हैं?
(A) एकरूपता
(B) बहुलता
(C) विविधता
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
विविधता।

प्रश्न 24.
जजमानी व्यवस्था में जो सेवा ग्रहण करते हैं उन्हें क्या कहा जाता है?
(A) राजा
(B) जजमान
(C) प्रजा
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
जजमान।

प्रश्न 25.
1991 में भारत की जनसंख्या कितनी थी?
(A) 80 करोड़
(B) 70 करोड़
(C) 83.39 करोड।
उत्तर:
83.39 करोड़।

प्रश्न 26.
विश्व में भारत का जनसंख्या के आधार पर कौन-सा स्थान है?
(A) दूसरा
(B) पहला
(C) तीसरा।
उत्तर:
दूसरा।

प्रश्न 27.
निम्न में से किससे जनांकिकी का संबंध नहीं है?
(A) जनसंख्या का आकार
(B) जनसंख्या का स्थानीय वितरण
(C) देश के क्षेत्रफल में परिवर्तन।
उत्तर:
देश के क्षेत्रफल में परिवर्तन।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

प्रश्न 28.
हरियाणा में पुरुष-स्त्री अनुपात क्या है?
(A) 600
(B) 815
(C) 861
उत्तर:
861

प्रश्न 29.
2001 की जनगणना के अनुसार भारत की साक्षरता कितने प्रतिशत है?
(A) 60%
(B) 65.38%
(C) 50%.
उत्तर:
65.38%.

प्रश्न 30.
भारत में अति जनसंख्या वृद्धि के कारण कौन-कौन सी प्रमुख समस्याएँ बढ़ रही हैं?
(A) निर्धनता
(B) अच्छा स्वास्थ्य
(C) अच्छे मकान।
उत्तर:
निर्धनता।

प्रश्न 31.
भारत के किसी एक नगर का नाम बताइये जिसकी जनसंख्या 10 लाख से अधिक है?
(A) रोहतक
(B) जयपुर
(C) मुंबई।
उत्तर:
मुंबई।

प्रश्न 32.
सन् 2001 की जनगणना के अनुसार भारत का जनसंख्या घनत्व क्या है?
(A) 300
(B) 315
(C) 324
उत्तर:
324

प्रश्न 33.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या लगभग कितने करोड़ हैं?
(A) 111
(B) 121
(C) 131
(D) 141
उत्तर:
121

प्रश्न 34.
2001 की जनगणना के अनुसार हरियाणा की जनसंख्या भारत की कुल जनसंख्या का लगभग कितना प्रतिशत है?
(A) 2
(B) 12
(C) 22
(D) 32
उत्तर:
2

प्रश्न 35.
2001 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार भारत के किस राज्य में लिंग अनुपात न्यूनतम है?
(A) हिमाचल प्रदेश
(B) दिल्ली
(C) हरियाणा
(D) केरल।
उत्तर:
हरियाणा।

प्रश्न 36.
भारत की दो तिहाई जनसंख्या निम्नोक्त में से किन क्षेत्रों में निवास करती है?
(A) जनजातीय
(B) नगरीय
(C) पर्वतीय
(D) ग्रामीण।
उत्तर:
ग्रामीण।

प्रश्न 37.
भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में निम्नलिखित में से आय का मुख्य स्रोत क्या है?
(A) कृषि
(B) उद्योग
(C) व्यापार
(D) दूध।
उत्तर:
कृषि।

प्रश्न 38.
किसी क्षेत्र को शहरी क्षेत्र घोषित करने के लिए वहाँ की न्यूनतम आबादी कितनी होनी चाहिए?
(A) 500
(B) 5,000
(C) 50,000
(D) 5,00,000
उत्तर:
5,000

प्रश्न 39.
पिछले 10 वर्षों (2001 से 2011) के दौरान भारत की जनसंख्या में कितने करोड़ की वृद्धि हुई?
(A) 8
(B) 18
(C) 28
(D) 38
उत्तर:
18

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

प्रश्न 40.
जनसंख्या के आधार पर भारत का सबसे बड़ा राज्य कौन-सा है?
(A) हरियाणा
(B) हिमाचल प्रदेश
(C) पंजाब
(D) उत्तर प्रदेश।
उत्तर:
उत्तर प्रदेश।

प्रश्न 41.
जनसंख्या के आधार पर भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है?
(A) प्रथम
(B) द्वितीय
(C) तृतीय
(D) चतुर्थ।
उत्तर:
द्वितीय।

प्रश्न 42.
भारत के नगरीय क्षेत्रों में लोगों की आय का प्रमुख स्रोत है?
(A) उद्योग एवं व्यापार
(B) कृषि
(C) सब्जियाँ
(D) दूध।
उत्तर:
उदयोग एवं व्यापार।

प्रश्न 43.
सन् 2001 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या लगभग कितने करोड़ थी?
(A) 84
(B) 103
(C) 121
(D) 139
उत्तर:
103

प्रश्न 44.
भारत के किस राज्य में लिंग अनुपात सबसे कम है?
(A) हरियाणा
(B) केरल
(C) हिमाचल प्रदेश
(D) उत्तराखंड।
उत्तर:
हरियाणा।

प्रश्न 45.
निम्नलिखित में से किन दो देशों की जनसंख्या विश्व के अन्य किन्हीं भी दो देशों से अधिक है?
(A) भारत एवं चीन
(B) पाकिस्तान एवं श्रीलंका
(C) रूस एवं अमेरिका
(D) इंग्लैंड एवं कनाडा।
उत्तर:
भारत एवं चीन।

प्रश्न 46.
भारत के निम्नोक्त में से किन क्षेत्रों में सबसे अधिक जनसंख्या निवास करती है?
(A) नगरीय
(B) जनजातीय
(C) ग्रामीण
(D) पर्वतीय।
उत्तर:
ग्रामीण।

प्रश्न 47.
भारत की जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या का लगभग कितना प्रतिशत है?
(A) 7%
(B) 17%
(C) 27%
(D) 37%
उत्तर:
17%.

प्रश्न 48.
भारत में किस राज्य की जनसंख्या सबसे अधिक है?
(A) उत्तर प्रदेश
(B) हिमाचल प्रदेश
(C) हरियाणा
(D) पंजाब।
उत्तर:
उत्तर प्रदेश।

प्रश्न 49.
साक्षरता दर के आधार पर भारत में प्रथम स्थान किस राज्य का है?
(A) बिहार
(B) झारखंड
(C) केरल
(D) उत्तराखंड।
उत्तर:
केरल।

प्रश्न 50.
जनसंख्या के आधार पर भारत का सबसे बड़ा शहर कौन-सा है?
(A) जम्मू
(B) श्रीनगर
(C) शिमला
(D) मुंबई।
उत्तर:
मुंबई।

प्रश्न 51.
जाति के आधार पर भारत में जनगणना कब हुई थी?
(A) 1981 में
(B) 1991 में
(C) 2001 में
(D) 2011 में।
उत्तर:
2011 में।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

प्रश्न 52.
निम्नलिखित में से किसकी जनसंख्या सबसे कम है?
(A) दिल्ली
(B) चंडीगढ़
(C) कोलकत्ता
(D) मुंबई।
उत्तर:
चंडीगढ़।

प्रश्न 53.
निम्नोक्त में से कौन-सा शहर महानगर नहीं है?
(A) चंडीगढ़
(B) दिल्ली
(C) चेन्नई
(D) कोलकाता।
उत्तर:
चंडीगढ़।

प्रश्न 54.
भारत में जाति के आधार पर नवीनतम जनगणना किस वर्ष हई?
(A) 1901
(B) 1951
(C) 2001
(D) 2011.
उत्तर:
2011

प्रश्न 55.
जनसंख्या के आधार पर भारत का सबसे छोटा राज्य कौन-सा है?
(A) सिक्किम
(B) बिहार
(C) महाराष्ट्र
(D) मध्य प्रदेश।
उत्तर:
सिक्किम।

प्रश्न 56.
भारत में लिंग अनुपात (1000 पुरुषों के पीछे महिलाओं की संख्या) क्या है?
(A) 940
(B) 1240
(C) 1540
(D) 1840
उत्तर:
940.

प्रश्न 57.
जनसंख्या के आधार पर भारत का विश्व में कौन सा स्थान है?
(A) पहला
(B) दूसरा
(C) छठा
(D) चौथा।
उत्तर:
दूसरा।

प्रश्न 58.
निम्न में से कौन सी विशेषता ग्रामीण समुदाय की नहीं है?
(A) प्राथमिक सम्बन्ध
(B) सामुदायिक भावना
(C) व्यक्तिवादिता
(D) कृषि मुख्य व्यवसाय।
उत्तर:
व्यक्तिवादिता।

प्रश्न 59.
भारत में प्रथम राष्ट्रीय जनसंख्या नीति कब शुरू हुई?
(A) सन् 1976
(B) सन् 2000
(C) सन् 1952
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
सन् 1976

प्रश्न 60.
इनमें से कौन सी नगरीय समुदाय की विशेषता नहीं है?
(A) व्यक्तिवादिता
(B) प्राथमिक सम्बन्ध
(C) प्रतिस्पर्धा
(D) अधिक जनसंख्या।
उत्तर:
प्राथमिक संबंध।

प्रश्न 61.
जनसंख्या वृद्धि का सिद्धांत देन है :
(A) डी० एन० मजूमदार का
(B) पी० एन० प्रभु का
(C) थामस रॉबर्ट माल्थस का
(D) दूबे का।
उत्तर:
थामस रॉबर्ट माल्थस का।

प्रश्न 62.
इनमें से भारत में नियमित जनगणना का वर्ष है :
(A) 1871
(B) 1881
(C) 1981
(D) 1991
उत्तर:
1871

प्रश्न 63.
इनमें से सर्वाधिक साक्षरता वाला राज्य है :
(A) उत्तर प्रदेश
(B) हरियाणा
(C) केरल
(D) बिहार।
उत्तर:
केरल।

प्रश्न 64.
राबर्ट माल्थस का जन्म किस वर्ष में हुआ?
(A) 1765 में
(B) 1833 में
(C) 1766 में
(D) 1834 में।
उत्तर:
1766 में।

प्रश्न 65.
2026 में कितने प्रतिशत 0-14 वय वर्ग में होंगे?
(A) 08%
(B) 38%
(C) 29%
(D) 63%.
उत्तर:
29%.

प्रश्न 66.
इनमें से कौन-सा देश जनसंख्या की दृष्टि से दूसरा स्थान रखता है?
(A) चीन
(B) भारत
(C) बांग्लादेश
(D) अमेरिका।
उत्तर:
भारत।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

प्रश्न 67.
इनमें से किस देश ने 1790 की आधुनिक जनगणना सबसे पहले करवाई?
(A) भारत
(B) चीन
(C) अमेरिका
(D) ब्रिटेन।
उत्तर:
अमेरिका।

प्रश्न 68.
जन्म दर और मृत्यु दर के बीच का अंतर कहलाता है :
(A) प्राकृतिक वृद्धि दर
(B) जनसंख्या संवृद्धि दर
(C) (A) + (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
जनसंख्या संवृद्धि दर।

प्रश्न 69.
निम्न में से किस राजनीतिक अर्थशास्त्री का नाम “जनसांख्यिकीय के जनसंख्या वृद्धि” के सिद्धांत से जुड़ा है?
(A) थॉमस रॉबर्ट माल्थस
(B) मार्क्स
(C) वेबर
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
थॉमस रॉबर्ट माल्थस।

प्रश्न 70.
जनगणना के माध्यम से सबसे महत्त्वपूर्ण सरकारी प्रयास किस विषय पर सूचना एकत्रित करता था?
(A) जनजाति
(B) अन्य पिछड़े वर्ग
(C) जाति
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
इनमें से कोई नहीं।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जनांकिकी में कौन महत्त्वपूर्ण होता है?
उत्तर:
जनसंख्या।

प्रश्न 2.
जनांकिकी का क्या अर्थ है?
अथवा
जनांकिकी का अर्थ बताएं।
अथवा
जनसांख्यिकी से आप क्या समझते हैं?
अथवा
जनांकिकी क्या है?
उत्तर:
मनुष्यों की जनसंख्या के वैज्ञानिक अध्ययन को जनांकिकी कहते हैं।

प्रश्न 3.
जनसंख्या घनत्व का क्या अर्थ है?
उत्तर:
किसी क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों की संख्या तथा उस क्षेत्र के क्षेत्रफल के आपसी अनुपात को जनसंख्या घनत्व कहते हैं।

प्रश्न 4.
जनसंख्या विस्फोट किसे कहते हैं?
उत्तर:
जनसंख्या के तेजी से बढ़ने को जनसंख्या विस्फोट कहते हैं।

प्रश्न 5.
कार्यशील जनसंख्या का क्या अर्थ है?
उत्तर:
वह जनसंख्या जो उत्पादन कार्यों में लगी हुई है उसे कार्यशील जनसंख्या कहते हैं।

प्रश्न 6.
माल्थस के अनुसार अधिक जनसंख्या किससे संबंधित है?
उत्तर:
माल्थस के अनुसार अधिक जनसंख्या आर्थिक तथा सामाजिक कारणों से संबंधित है।

प्रश्न 7.
जनसंख्या नीति का क्या अर्थ है?
उत्तर:
सरकार द्वारा जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए बनाई गई नीति को जनसंख्या नीति कहते हैं।

प्रश्न 8.
जनसंख्या नीति ……………… में लागू हुई थी।
उत्तर:
जनसंख्या नीति 1976 में लागू हुई थी।

प्रश्न 9.
कुल प्रजनन दर क्या है?
उत्तर:
स्त्रियों की कुल संख्या में प्रजनन क्षमता रखने वाली स्त्रियों की संख्या को कुल प्रजनन दर कहते हैं।

प्रश्न 10.
प्रसूति मृत्यु दर का क्या अर्थ है?
अथवा
मातृ मृत्यु दर क्या है?
उत्तर:
प्रति हज़ार पर प्रसूति में मरने वाली स्त्रियों की संख्या को प्रसूति मृत्यु दर कहते हैं।

प्रश्न 11.
अनुकूलतम जनसंख्या किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब किसी देश की जनसंख्या दवारा उस देश के आर्थिक संसाधनों का अधिक प्रयोग हो तो उसे अनुकूलतम जनसंख्या कहते हैं।

प्रश्न 12.
बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने के लिए, जीवन स्तर ऊँचा उठाने के लिए तथा सामाजिक समस्याओं को हल करने के लिए बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण आवश्यक है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

प्रश्न 13.
जन्म दर किसे कहते हैं?
उत्तर:
एक वर्ष में 1000 स्त्री पुरुषों द्वारा उत्पन्न की गई संतानों की संख्या को जन्म दर कहते हैं।

प्रश्न 14.
भारत में जन्म दर तथा मृत्यु दर कितनी है?
उत्तर:
जन्म दर 19.8% तथा मृत्यु दर 7.9% है।

प्रश्न 15.
………………… को जनांकिकी का पिता कहा जाता है।
उत्तर:
गुलियार्ड को जनांकिकी का पिता कहा जाता है।

प्रश्न 16.
भारत के किस शहर की जनसंख्या सबसे अधिक है?
उत्तर:
भारत के मुंबई शहर की जनसंख्या सबसे अधिक है।

प्रश्न 17.
हरियाणा का जनसंख्या घनत्व कितना है?
उत्तर:
477 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर।

प्रश्न 18.
भारत में कौन-सा व्यक्ति साक्षर होता है?
उत्तर:
भारत में जो व्यक्ति किसी भी भाषा में पढ़ या लिख सकता है उसे साक्षर कहते हैं।

प्रश्न 19.
स्त्री-पुरुष अनुपात क्या है?
अथवा
लिंग अनुपात क्या है?
उत्तर:
किसी क्षेत्र में 1000 पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की संख्या को स्त्री-पुरुष अनुपात कहते हैं।

प्रश्न 20.
आगबर्न तथा निमकॉफ के अनुसार गांवों का विकास कितने भागों में हुआ है?
उत्तर:
आगबर्न तथा निमकॉफ के अनुसार गांवों का विकास तीन चरणों में हुआ है।

प्रश्न 21.
आधुनिक गाँव का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जिस गाँव में लोगों की विचारधारा विज्ञान से प्रभावित हो गई हो, उसे आधुनिक गाँव कहते हैं।

प्रश्न 22.
संयुक्त परिवार का अर्थ बताएं।
उत्तर:
वह परिवार जिसमें दो या दो से अधिक पीढ़ियां रहती हों तथा खाना इकट्ठे खाती हों, उसे संयुक्त परिवार कहते हैं।

प्रश्न 23.
वस्तु विनिमय विधि का क्या अर्थ है?
उत्तर:
वस्तु से वस्तु के लेन-देन को वस्तु विनिमय विधि कहते हैं।

प्रश्न 24.
ज़मींदारी प्रथा कब शुरू हुई थी?
उत्तर:
ज़मींदारी प्रथा ब्रिटिश काल में शुरू हुई थी।

प्रश्न 25.
केंद्रीय परिवार का अर्थ बताएं।
उत्तर:
वह परिवार जिसमें पति-पत्नी तथा उनके बिन ब्याहे बच्चे रहते हों उसे केंद्रीय परिवार कहते हैं।

प्रश्न 26.
सामुदायिक विकास योजना (C.D.P.) ……………….. में शुरू हुई थी।
उत्तर:
सामुदायिक विकास योजना 1952 में शुरू हुई थी।

प्रश्न 27.
हरित क्रांति का अर्थ बताएं।
उत्तर:
नए बीजों, उर्वरकों तथा तकनीक की सहायता से कृषि क्षेत्र में लाए गए परिवर्तनों को हरित क्रांति कहते हैं।

प्रश्न 28.
ग्रामीण जीवन में एकरूपता का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जब किसी गाँव में एक ही संस्कृति वाले लोग रहते हों उसे ग्रामीण जीवन में एकरूपता कहते हैं।

प्रश्न 29.
चौखला का अर्थ बताएं।
उत्तर:
एक जाति का जाल जो कई गाँवों तक फैला हुआ होता है उसे चौखला कहते हैं।

प्रश्न 30.
औद्योगिक नगर की क्या विशेषता होती है?
उत्तर:
औद्योगिक नगर में फैक्टरी में उत्पादन, अधिक श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण होता है।

प्रश्न 31.
नगरीकरण का अर्थ बताएं।
उत्तर:
जब गांव के लोग शहरों के आदर्श, मूल्य, आदतें इत्यादि अपना लें तो इसे नगरीकरण कहते हैं।

प्रश्न 32.
गाँव तथा नगर में कोई दो मुख्य अंतर बताएं।
उत्तर:

  1. गाँवों की जनसंख्या कम तथा नगरों की जनसंख्या अधिक होती है।
  2. गांवों में सुविधाएं कम तथा नगरों में अधिक होती हैं।

प्रश्न 33.
गांवों में परिवर्तन क्यों आ रहे हैं?
उत्तर:
शिक्षा के बढ़ने से, कृषि के आधुनिक साधनों के प्रयोग से तथा औपचारिक संबंधों के बढ़ने से गांवों में परिवर्तन आ रहे हैं।

प्रश्न 34.
ग्रामीण समुदाय की कौन-सी विशेषता होती है?
उत्तर:
ग्रामीण समुदाय में प्राथमिक संबंध होते हैं, सरल जीवन होता है तथा कृषि वहां का मुख्य व्यवसाय होता है।

प्रश्न 35.
गाँवों में किस प्रकार के संबंध पाए जाते हैं?
उत्तर:
गाँवों में प्राथमिक संबंध पाए जाते हैं।

प्रश्न 36.
नगरीय समुदाय की कौन-सी विशेषता होती है?
उत्तर:
नगरीय समुदाय में अधिक जनसंख्या होती है, द्वितीयक संबंध होते हैं तथा वहां पर विभिन्न व्यवसायों की भरमार होती है।

प्रश्न 37.
जनसंख्या संरचना क्या होती है?
उत्तर:
जनसंख्या संरचना का अर्थ किसी देश की जनसंख्या का अलग-अलग क्षेत्रों में वितरण, जनसंख्या की घनता, जन्म तथा मृत्यु दर, आवास, प्रवास, शिक्षा, लिंग अनुपात इत्यादि से है। जनसंख्या संरचना में जनसंख्या से संबंधित अलग-अलग पहलुओं या जनसंख्या की विशेषताओं का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 38.
जनसंख्या घनत्व क्या होता है? यह कितने प्रकार का होता है?
अथवा
जनसंख्या घनत्व क्या है?
अथवा
जनसंख्या घनत्व से आप क्या समझते हैं?
अथवा
जन घनत्व क्या है?
उत्तर:
किसी देश या क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों की संख्या तथा उस देश या प्रदेश के क्षेत्र के क्षेत्रफल के आपसी अनपात को जनसंख्या घनत्व कहते हैं। यह प्रति वर्ग कि०मी० के क्षेत्र में रहने वाली जनसंख्या से पता चलती है। यह का होता है-आर्थिक घनत्व, अंक गणितीय घनत्व, पोषण घनत्व, कायिक घनत्व तथा कृषि घनत्व।

प्रश्न 39.
आर्थिक घनत्व क्या होता है?
उत्तर:
आर्थिक घनत्व से भाव उस देश या क्षेत्र के आर्थिक संसाधनों से है। इनमें संसाधनों की उत्पादन क्षमता तथा वहां रहने वाले मनुष्यों की संख्या का अनुपात होता है।

प्रश्न 40.
अत्यधिक जनसंख्या से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जब किसी देश की जनसंख्या उस देश की अधिकतम उत्पादन सीमा से ज्यादा हो जाती है तो उस देश की जनसंख्या को अत्यधिक जनसंख्या कहते हैं।

प्रश्न 41.
जीवन प्रत्याशा क्या होती है?
उत्तर:
जीवन प्रत्याशा का दूसरा नाम औसत आयु भी है। ज्यादातर लोगों के जीवित रहने की आयु की प्रत्याशा (expentancy) को औसत आयु कहते हैं। यह औसत के आधार पर पता चलती है।

प्रश्न 42.
जनसंख्या वृद्धि दर से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जनसंख्या वृद्धि दर से अभिप्राय किसी देश या क्षेत्र की बढ़ी हुई जनसंख्या की दर से है। इसमें जन्म दर में से मृत्यु दर निकाल कर बचे हुए अंतर तथा बाहर से आने वाली जनसंख्या को भी शामिल किया जाता है।

प्रश्न 43.
जनसंख्या विस्फोट से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जनसंख्या विस्फोट से अभिप्राय जनसंख्या के अप्रत्याशित रूप में ज़रूरत से ज्यादा बढ़ जाने से है। जनसंख्या विस्फोट का अर्थ जनसंख्या का इतना बढ़ जाना है कि उसके परिणाम विनाशकारी हों। भारत में भी इस प्रकार की स्थिति पैदा हो गई है।

प्रश्न 44.
अल्प जनसंख्या क्या होती है?
उत्तर:
जब किसी देश के प्राकृतिक संसाधनों के प्रयोग के लिए जनसंख्या काफ़ी कम हो तो उसे अल्प जनसंख्या कहते हैं। ऑस्ट्रेलिया इसकी उदाहरण है।

प्रश्न 45.
परिवार नियोजन क्या होता है?
अथवा
परिवार नियोजन कार्यक्रम क्या है?
उत्तर:
परिवार नियोजन का अर्थ है परिवार के आकार को छोटा रखना। परिवार को इस हद तक बढ़ाया जाए कि परिवार की आय व्यय से ज्यादा ही रहे। परिवार का खर्च आय से ज्यादा न हो जाए तथा जीवन स्तर ऊँचा बना रहे। बच्चों को अपनी इच्छा के अनुसार पैदा करना ही परिवार नियोजन है। परिवार में संतान अपनी इच्छा के अनसार तथा सीमित संख्या में पैदा की जाती है। इसी को परिवार नियोजन कहते हैं।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

प्रश्न 46.
देश की इष्टतम संख्या क्या होती है?
उत्तर:
किसी देश की ऐसी संख्या जो उसके हाथ में उपलब्ध साधनों के अनुसार होती है, इष्टतम संख्या कहलाती है। अधिक जनसंख्या पर नियंत्रण के लिए प्रयोग में किए जाने वाले तरीकों का उद्देश्य उस देश में इष्टतम संख्या को प्राप्त करना होता है।

प्रश्न 47.
जनसंख्या के घटने-बढ़ने का जैवकीय सिद्धांत क्या है?
उत्तर:
जनंसख्या के घटने-बढ़ने के जैवकीय सिद्धांत के समर्थकों के अनुसार जनसंख्या के घनत्व के बढ़ने से प्रजनन दर कम हो जाती है क्योंकि गर्भ धारण करके बच्चे पैदा करने की शक्ति कम हो जाती है जिससे जन्म दर कम हो जाती है।

प्रश्न 48.
जनसंख्या पर नियंत्रण के माल्थस के दो तरीके बताओ।
उत्तर:

  1. पहले तरीके को माल्थस ने निरोधात्मक कहा है। इसमें खुद पर संयम रख कर, सही उम्र में विवाह करके इस जनसंख्या बढ़ाने की बुराई से दूर रहने को कहा गया है।
  2. दूसरे तरीके को उन्होंने निश्चयात्मक नियंत्रण कहा है। इसके अनुसार भयंकर बीमारियों, जैसे महामारी, प्लेग, अकाल या युद्ध की वजह से लोग काफ़ी संख्या में मर जाते हैं जिससे जनसंख्या अपने आप नियंत्रण में आ जाती है।

प्रश्न 49.
माल्थस के जनसंख्या के सिद्धांत के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
माल्थस के अनुसार आय की प्रगति का स्तर अंक गणितीय तरीके से तथा जनसंख्या की वृद्धि रेखागणितीय तरीके से होती है अर्थात् जनसंख्या की वृद्धि आय या जीविका के स्तर में होने वाली वृद्धि के अनुसार चलती है।

प्रश्न 50.
जनसंख्या के संक्रमण सिद्धांत के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
यह सिद्धांत सभी समाजों के अनुभवों पर आधारित है। इसके अनुसार जन्म दर बढ़ती है तथा मृत्यु दर घटती है जिस कारण से जनसंख्या विस्फोट या जनसंख्या बहुत बढ़ जाती है। आधुनिक समाजों में भी यही सिद्धांत चल रहा है जहां मृत्यु दर पर तो काबू कर लिया गया है पर जन्म दर पर मृत्यु दर की तरह काबू नहीं पाया गया है जिससे जनसंख्या में काफ़ी बढ़ोत्तरी हुई है। इसी को जनसंख्या संक्रमण का सिद्धांत कहते हैं।

प्रश्न 51.
जन्म दर कम करने वाले कोई दो कारण बताओ।
उत्तर:

  1. शिक्षा-जब सभी को शिक्षा मिलने लग जाएगी तो सभी को ज्यादा जनसंख्या के नुकसान तथा कम जनसंख्या के फायदे पता चल जाएंगे तो वह जन्म दर कम रखने की कोशिश करेंगे।
  2. यदि लड़का-लड़की की विवाह करने की न्यूनतम आयु निश्चित कर दी जाए तो वह दिमागी तौर पर समझदार हो जाएंगे तथा कम बच्चे पैदा करेंगे जिससे जन्म दर नियंत्रण में रहेगी।

प्रश्न 52.
राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की विशेषताएं बताओ।
उत्तर:

  1. मृत्यु दर 9 प्रति हज़ार तक लाना।
  2. जन्म दर 21 प्रति हज़ार तक लाना।
  3. बाल मृत्यु दर 60 प्रति हजार से कम करना।
  4. जनसंख्या वृद्धि दर 1.2% प्रतिवर्ष तक लाना।

प्रश्न 53.
जनसांख्यिकी का शाब्दिक अर्थ बताएं।
उत्तर:
जनसांख्यिकी (Demography) जनसंख्या का व्यवस्थित अध्ययन है। यह अंग्रेजी शब्द:Demography का हिंदी रूपांतर है जो यूनानी भाषा के दो शब्दों demos तथा Graphin से मिलकर बना है जिसका अर्थ है लोगों का वर्णन।

प्रश्न 54.
भारत में सबसे पहले तथा अंतिम बार जनगणना कब हुई थी?
अथवा
भारत में जनगणना के कार्य को सर्वप्रथम किस दशक में प्रारंभ किया गया?
उत्तर:
भारत में सबसे पहली जनगणना 1872 में हुई थी तथा उसके बाद 1881 में हुई थी। उसके बाद हरेक 10 वर्षों के बाद जनगणना होती है। अंतिम बार भारत में जनगणना सन् 2011 में हुई थी।

प्रश्न 55.
पराश्रित जनसंख्या का अर्थ बताएं।
उत्तर:
जो जनसंख्या अपना जीवन जीने, खाने पीने, रहने इत्यादि के लिए और लोगों पर निर्भर होती है उसे पराश्रित जनसंख्या कहते हैं। भारत में 0-14 वर्ष की आयु के लोग तथा 60 वर्ष के ऊपर के लोग पराश्रित जनसंख्या के अंतर्गत आते हैं।

प्रश्न 56.
नगरीकरण तथा नगरीयवाद क्या होता है?
अथवा
नगरीकरण की प्रक्रिया क्या है?
उत्तर:
नगरीकरण का अर्थ है जब गाँव से जाकर लोग शहरों के आदर्श, मूल्य, आदतें इत्यादि अपना लें। इस गांव से नगरों में आने वाले परिवर्तन को नगरीकरण कहते हैं। नगरीयवाद मूल्यों की वह व्यवस्था है जिसमें व्यक्तियों के बीच का संबंध व्यक्तिवादी, स्वार्थपूर्ण तथा औपचारिक होता है।

प्रश्न 57.
नगरों की कोई दो विशेषताएं बताओ।
अथवा
नगरीय समुदाय की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  1. नगरों में श्रम विभाजन का पाया जाना।
  2. औपचारिक तथा स्वार्थपूर्ण संबंधों का पाया जाना।
  3. अधिक उद्योगों का पाया जाना।
  4. कृषि पर कम निर्भरता।

प्रश्न 58.
गाँव के लिए ग्राम पंचायत क्यों ज़रूरी है?
उत्तर:
भारत एक कृषि प्रधान देश है जहां 70% से अधिक आबादी कृषि के कार्यों में लगी हुई है। भारत सरकार ने शक्तियों का विकेंद्रीकरण किया है ताकि हर ग्राम का विकास हो सके तथा गांव की शांति, सुरक्षा तथा शासन प्रबंध अच्छी तरह चल सके। गांव में पंचों की बात सभी द्वारा मानी जाती है तथा उन्हें भगवान का दर्जा दिया जाता है। आजकल तो पंचायत के पास कर वसूलने तथा शांति बनाए रखने के भी अधिकार हैं। इसलिए ग्राम पंचायत बहुत ज़रूरी है।

प्रश्न 59.
कस्बा क्या होता है?
उत्तर:
जो क्षेत्र ग्राम से बड़ा हो पर नगर से छोटा हो उसे कस्बा कहते हैं। आमतौर पर 5000 से अधिक जनसंख्या, 400 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० से ज्यादा घनत्व तथा 75% से ज्यादा लोग गैर-कृषि व्यवसाय में लगे हों वह क्षेत्र कस्बा होता है।

प्रश्न 60.
ग्राम तथा कस्बे में कोई तीन अंतर बताओ।
उत्तर:

  1. ग्राम की जनसंख्या कम तथा कस्बे की अधिक होती है।
  2. ग्राम में शिक्षा, स्वास्थ्य संबंधी सेवाएं कम होती हैं पर कस्बे में अधिक होती हैं।
  3. ग्राम में ज़्यादातर लोग कृषि संबंधी कार्य करते हैं पर कस्बे में ज्यादातर लोग गैर-कृषि संबंधी कार्य करते हैं।

प्रश्न 61.
गाँव के लोग शहरों की तरफ क्यों भाग रहे हैं?
उत्तर:

  1. गाँव में शिक्षा, स्वास्थ्य संबंधी सेवाएं उपलब्ध नहीं होती।
  2. नगरों की चमक-दमक लोगों को आकर्षित करती है।
  3. नगरों में ज्यादा रोजगार के अवसर उपलब्ध होते हैं।

प्रश्न 62.
भारत में साक्षरता दर के बारे में बताएं।
उत्तर:
सन 2011 में भारत की साक्षरता दर 74% थी जिनमें से 82.1 साक्षरता दर 14% था जिनम स 82.1% पुरुष तथा 65.5 स्त्रिया साक्षर थीं। इस सारणी को देखकर सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा!

वर्षव्यक्तिपुरुषस्त्रियां
195118.327.28.9
196128.340.415.4
197134.546.022.0
198143.656.429.8
199152.264.139.3
200165.475.954.2
20117482.165.5

प्रश्न 63.
भारत में मिलने वाले मुख्य धर्म कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
भारत में इस समय सात प्रकार के मुख्य धर्म पाए जाते हैं तथा वे हैं-

  1. हिंदू – 79.5%
  2. मुसलमान – 13.4%
  3. ईसाई – 2.4%
  4. सिक्ख – 2.1%
  5. बौद्ध – 0.8%
  6. जैन – 0.8%
  7. पारसी तथा अन्य जनजातीय धर्म – 0.4%

प्रश्न 64.
आदिम गाँव किस प्रकार के होते थे?
उत्तर:
पुराने समय में क्योंकि संयुक्त परिवार हुआ करते थे इसलिए एक गांव में रक्त संबंधी रहा करते थे। ऊंच-नीच की भावना नहीं होती थी। चीज़ों का लेन-देनं होता था जिसको हम ‘Barter System’ कहते थे-मतलब एक चीज़ देकर दूसरी चीज़ प्राप्त की जा सकती थी। संबंध बहुत सीधे-सादें हुआ करते थे।

प्रश्न 65.
आधुनिक गाँव किस प्रकार का होता है?
उत्तर:
वह गाँव जहां लोगों की विचारधारा विज्ञान से प्रभावित हो गई हो, जहां पर वैज्ञानिक पद्धति का खूब प्रयोग होता हो, भाईचारे की भावना खत्म हो गई हो, त्याग, प्रेम, परोपकार इत्यादि देखने को न मिले तथा कृषि बाज़ार के लिए की जाती हो वह आधुनिक गाँव होता है।

प्रश्न 66.
संयुक्त परिवार क्या होता है?
उत्तर:
वह परिवार जहां दो या दो से ज्यादा पीढ़ियां एक साथ रहती हों, खाना-पीना एक साथ हो तथा आय-व्यय भी इकट्ठा हो उसे संयुक्त परिवार कहते हैं।

प्रश्न 67.
ग्रामीण जीवन में एकरूपता से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जब गाँवों में एक ही संस्कृति के लोग रहते हों, उनका खाना-पीना, रहन-सहन, पहरावा इत्यादि एक जैसा हो उसे ग्रामीण जीवन में एकरूपता कहते हैं। यहां पर शहरों की तरह अलग-अलग संस्कृतियों के लोग नहीं बसते।

प्रश्न 68.
ग्रामीण जीवन में परिवार का महत्त्व बताओ।
उत्तर:

  1. गाँव में परिवार में परिवार की प्रथाएं और परंपराएं बच जाती हैं।
  2. व्यक्ति अपने परिवार की स्थिति पर निर्भर होता है।
  3. गाँव में परिवार एक सामाजिक नियंत्रण का काम करता है।
  4. परिवार की वजह से काम-धंधे की कोई चिंता नहीं होती।

प्रश्न 69.
शहरी इलाकों में बेरोज़गारी का क्या कारण है?
उत्तर:
वैसे तो शहरी इलाकों में बेरोज़गारी के कई कारण होते हैं, परंतु इनमें सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कारण अधिक जनसंख्या है। नौकरियों की संख्या कम होती है तथा जनसंख्या अधिक होती है जिस कारण कम ही लोगों को नौकरी मिल पाती है। इस कारण अधिक लोग बेरोज़गार होते हैं।

प्रश्न 70.
ग्राम्य अर्थव्यवस्था किस प्रकार की होती है?
उत्तर:
ग्राम्य अर्थव्यवस्था साधारण होती है जिसमें चीज़ों के बदले चीजें अथवा चीज़ों के बदले पैसे दिए जाते हैं। कई बार तो सेवाओं का भी लेन-देन होता है।

प्रश्न 71.
शहरी समाजों की अर्थव्यवस्था किस प्रकार की होती है?
उत्तर:
शहरी समाजों की अर्थव्यवस्था समझौते पर आधारित होती है जिसमें समझौते करके कार्य पूर्ण किए जाते हैं। सेवाओं के स्थान पर पैसे का अधिक बोलबाला होता है।

प्रश्न 72.
गाँवों में जनसंख्या घनत्व कैसा होता है?
उत्तर:
गाँवों में जनसंख्या कम होती है जिस कारण जनसंख्या घनत्व भी काफ़ी कम होता है। इसका कारण है कि भूमि अधिक होती है तथा कम जनसंख्या होती है।

प्रश्न 73.
शहरी समाजों में किस प्रकार के व्यवसाय पाए जाते हैं?
उत्तर:
शहरी समाजों में हजारों प्रकार के व्यवसाय पाए जाते हैं जिनमें अध्यापक, वकील, डॉक्टर, दुकानदार, नौकरी पेशा लोग इत्यादि प्रमुख होते हैं।

प्रश्न 74.
भारत में – – – वर्ष के पश्चात् जनगणना की जाती है?
उत्तर:
भारत में 10 वर्ष के पश्चात् जनगणना की जाती है।

प्रश्न 75.
इक्कीसवीं शताब्दी के दौरान भारत में कुल – – – बार जनगणना की गई।
उत्तर:
इक्कीसवीं शताब्दी के दौरान भारत में कुल 10 बार जनगणना की गई।

प्रश्न 76.
भारत के ……………. राज्य में लिंग अनुपात भारत के सभी राज्यों से कम है।
उत्तर:
भारत के जम्मू कश्मीर राज्य में लिंग अनुपात भारत के सभी राज्यों से कम है।

प्रश्न 77.
सरकारी तौर पर 1952 में परिवार नियोजन कार्यक्रम अपनाने वाला ………………. विश्व का प्रथम देश है।
उत्तर:
सरकारी तौर पर 1952 में परिवार नियोजन कार्यक्रम अपनाने वाला भारत विश्व का प्रथम देश है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

प्रश्न 78.
भारत में कन्या भ्रूण हत्या के कारण शिशु लिंग अनुपात घट रहा है या बढ़ रहा है।
उत्तर:
भारत में कन्या भ्रूण हत्या के कारण शिशु लिंग अनुपात घट रहा है।

प्रश्न 79.
पंचायती राज संस्थाओं का गठन ग्रामीण तथा शहरी में से किन क्षेत्रों में किया जाता है?
उत्तर:
ग्रामीण क्षेत्रों में किया जाता है।

प्रश्न 80.
भारत में सबसे अधिक जनसंख्या ग्रामीण/नगरीय/जनजातीय समुदाय में से किसमें रहती है?
उत्तर:
भारत में सबसे अधिक जनसंख्या ग्रामीण समदाय में रहती है।

प्रश्न 81.
ग्रामीण तथा नगरीय समुदाय में से सामान्यतः किसकी जनसंख्या अधिक है?
उत्तर:
ग्रामीण समुदाय में सामान्यतः जनसंख्या अधिक होती है।

प्रश्न 82.
भारत में किस राज्य की जनसंख्या सबसे कम है?
उत्तर:
भारत में सिक्किम राज्य की जनसंख्या सबसे कम है।

प्रश्न 83.
भारत में परिवार नियोजन कार्यक्रम कब शुरू किया गया?
उत्तर:
भारत में परिवार नियोजन कार्यक्रम 1965 में शुरू किया गया।

प्रश्न 84.
ग्रामीण क्षेत्र में लोगों का मुख्य व्यवसाय ………… होता है।
उत्तर:
ग्रामीण क्षेत्र में लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि होता है।

प्रश्न 85.
भारत की जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या का लगभग कितना प्रतिशत है?
उत्तर:
भारत की जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या का लगभग 17% है।

प्रश्न 86.
भारत में जाति के आधार पर नवीनतम जनगणना किस वर्ष हुई?
उत्तर:
भारत में जाति के आधार पर नवीनतम जनगणना 2011 में हुई थी।

प्रश्न 87.
भारत में सबसे अधिक जनसंख्या किस समुदाय (ग्रामीण/शहरी/जनजातीय) में निवास करती है?
उत्तर:
भारत में सबसे अधिक जनसंख्या ग्रामीण समुदाय में निवास करती है।

प्रश्न 88.
जजमान किस व्यवस्था से संबंधित है?
उत्तर:
जजमान जजमानी व्यवस्था से संबंधित है।

प्रश्न 89.
2001 की जनगणना के अनुसार नगरीय जनसंख्या का प्रतिशत कितना है?
उत्तर:
2001 की जनगणना के अनुसार नगरीय जनसंख्या 32% था।

प्रश्न 90.
प्राकृतिक वृद्धि दर क्या है?
उत्तर:
प्राकृतिक वृद्धि दर या जनसंख्या संवृद्धि दर का अर्थ है जन्म दर तथा मृत्यु दर के बीच का अंतर।

प्रश्न 91.
जनसंख्या का प्रतिस्थापन स्तर से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जब जन्म दर तथा मृत्यु दर के बीच का अंतर शून्य हो जाता है तो यह जनसंख्या का प्रतिस्थापन स्तर होता है।

प्रश्न 92.
‘थॉमस राबर्ट माल्थस’ ने किस सिद्धांत का प्रतिपादन किया है?
उत्तर:
थॉमस रॉबर्ट माल्थस ने जनसंख्या वृद्धि का सिद्धांत दिया है।

प्रश्न 93.
सन् 2001 की जनगणनानुसार ग्रामीण जनसंख्या का प्रतिशत बताइए।
उत्तर:
सन् 2001 की जनगणनानुसार 72.2 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण थी।

प्रश्न 94.
सकल प्रजनन दर क्या है?
उत्तर:
सकल प्रजनन दर का अर्थ है ऐसे जीवित जन्म लेने वाले बच्चों की कुल संख्या जिन्हें कोई एक स्त्री जन्म देती यदि वह बच्चे पैदा करने के संपूर्ण आयु वर्ग में जीवित रहती और इस आयु वर्ग के प्रत्येक हिस्से में औसत उतने ही बच्चे पैदा करती जितने कि उस क्षेत्र में आयु विशेष की प्रजनन के अनुसार होने चाहिए।

प्रश्न 95.
प्रभु जाति क्या है?
अथवा
प्रबल जाति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
किसी गाँव में जिस जाति का अधिपत्य हो तथा वह शक्तिशाली हो, जाति कहा जाता है।

प्रश्न 96.
2001 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या ………………… करोड़ है।
उत्तर:
2001 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 102 करोड़ है।

प्रश्न 97.
2001 की जनगणना के अनुसार ………………. % आबादी हिंदुओं की है।
उत्तर:
2001 की जनगणना के अनुसार 80.5% आबादी हिंदुओं की है।

प्रश्न 98.
माल्थस ने अपनी किस पुस्तक में जनसंख्या वृद्धि का सिद्धांत स्पष्ट किया है?
उत्तर:
An Essay on the Principles of Population.

प्रश्न 99.
1918-1919 में किस महामारी के कारण 125 लाख लोग मृत्यु को प्राप्त हुए?
उत्तर:
Influenza के कारण।

प्रश्न 100.
सबसे अधिक लिंग अनुपात किस राज्य का है?
उत्तर:
सबसे अधिक लिंग अनुपात केरल राज्य का है।

प्रश्न 101.
2001 की जनगणना के अनुसार ……………… % ग्रामीण जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे रहती है।
उत्तर:
2001 की जनगणना के अनुसार 37% ग्रामीण जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे रहती है।

प्रश्न 102.
माल्थस का जनसंख्या वृद्धि का सिद्धांत निराशावादी था। सत्य या असत्य।
उत्तर:
माल्थस का जनसंख्या वृद्धि का सिद्धांत निराशावादी था-असत्य।

प्रश्न 103.
मृत्यु दर क्या है?
उत्तर:
किसी क्षेत्र में एक वर्ष में 100 लोगों के पीछे मरने वाले लोगों की संख्या को मृत्यु दर कहते हैं।

प्रश्न 104.
सबसे नई जनगणना का वर्ष बताइए।
उत्तर:
सबसे नई जनगणना सन् 2011 में हुई थी।

प्रश्न 105.
शिशु मृत्यु-दर क्या है?
उत्तर:
किसी क्षेत्र में एक वर्ष में नए जन्में 1000 बच्चों के पीछे एक वर्ष के अंदर मरने वाले बच्चों की संख्या को मृत्यु दर कहते हैं।

प्रश्न 106.
भारत में जनगणना के कार्य को सर्वप्रथम किस दशक में प्रारंभ किया गया?
उत्तर:
वैसे तो प्रथम बार जनगणना 1872 में हुई थी परंतु उसके पश्चात् 1881 में पहली बार नियमित जनगणना की शुरुआता हुई।

प्रश्न 107.
मातृ मृत्यु-दर क्या है?
उत्तर:
किसी क्षेत्र में एक वर्ष में 1000 स्त्रियों के पीछे बच्चे पैदा होते समय मरने वाली माताओं की संख्या को मातृ मृत्यु दर कहते हैं।

प्रश्न 108.
विश्वभर में जनगणना के लिये किए जाने का सबसे बड़ा कार्य किस देश का है?
उत्तर:
विश्व भर में जनगणना के लिये किये जाने का सबसे बड़ा कार्य भारत में होता है।

प्रश्न 109.
स्त्री-पुरुष अनुपात क्या है?
उत्तर:
किसी क्षेत्र में 1000 पुरुषों के पीछे मिलने वाली स्त्रियों की संख्या को स्त्री पुरुष अनुपात कहते हैं।

प्रश्न 110.
आप कार्यशील आयु वर्ग किसे मानते हैं?
उत्तर:
14-60 वर्ष के आयु वर्ग को ही कार्यशील आयु वर्ग माना जाता है क्योंकि इस आयु के लोग ही अधिक कार्य करते हैं।

प्रश्न 111.
पराश्रित वर्ग क्या है?
उत्तर:
0-14 वर्ष तथा 60 वर्ष से ऊपर वाले दोनों वर्गों को पराश्रित वर्ग माना जाता है क्योंकि यह कार्यशील वर्ग के ऊपर निर्भर होता है।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय जनसंख्या की विशेषताएं बताओ।
अथवा
भारत की जनसंख्या की नीति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सन् 2001 की जनगणना के अनुसार भारतीय जनसंख्या की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-

  1. 1951 में भारत में औसत जीवन अवधि 33 वर्ष के करीब थी पर 2001 में यह बढ़कर 63 वर्ष के करीब हो गई है।
  2. 1991 में भारत की साक्षरता दर 52-53% थी पर 2001 की जनगणना के अनुसार भारत की साक्षरता दर 65% तक हुँच गई जिसमें 75% पुरुष तथा 54% महिलाएं शामिल हैं।
  3. 1951 में पुरुष-स्त्री का अनुपात 1000 : 946 था पर 2001 में यह 1000 : 933 था।
  4. 1951 में भारत में जनसंख्या घनत्व 117 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर थी जो बढ़कर 2001 में 324 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० हो गया। पंजाब में यह 482 तथा हरियाणा में 477 व्यक्ति थी।
  5. शहरी जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। 1951 में 83% लोग गाँव में तथा 17% लोग शहरों में रहते थे। 1991 में यह 74% तथा 26% हो गए। 2001 में यह 72% तथा 28% हो गए हैं।

प्रश्न 2.
भारत में जन्म दर में कमी करना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर:

  1. जन्म दर के बढ़ने से जनसंख्या विस्फोट का खतरा पैदा हो जाता है।
  2. जन्म दर के ज्यादा होने से प्रति व्यक्ति आय तथा राष्ट्रीय आय कम हो जाएगी।
  3. जन्म दर के ज्यादा होने से खाद्य समस्या उत्पन्न हो जाएगी।
  4. जन्म दर के बढ़ने से बेरोज़गारी तथा निर्धनता में बढ़ोत्तरी होगी।
  5. ज्यादा निवेश की ज़रूरत पड़ेगी।
  6. पूंजी निर्माण की दर में कमी आएगी।

प्रश्न 3.
भारत में जन्म दर ऊँची होने के क्या कारण हैं?
अथवा
जनसंख्या विस्फोट के कारण बताइए।
अथवा
जनसंख्या वृद्धि के मूलभूत चरण कौन-से हैं?
अथवा
वर्तमान में जनसंख्या संवृद्धि के दो प्रमुख कारक बताइए।
उत्तर:

  1. लोगों का निर्धन होना।
  2. लोगों का अशिक्षित होना।
  3. मनोरंजन के साधनों का कम होना।
  4. स्त्रियों की निम्न स्थिति का होना।
  5. परिवार नियोजन तथा संतान निरोधक साधनों की कमी।
  6. बाल विवाह प्रथा का होना या छोटी उम्र में ही विवाह हो जाना।

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 में कौन-से निर्णय लिए गए थे?
उत्तर:

  1. प्रधानमंत्री के अधीन एक नया जनसंख्या तथा सामाजिक विकास आयोग बनाया गया। इसमें स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री के अलावा सभी राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल होंगे।
  2. सन् 2010 तक जनसंख्या वृद्धि दर 2% तक लाना है। इस दर से 2010 तक भारत की जनसंख्या 110 करोड़ हो जाएगी।
  3. जो राज्य जनसंख्या पर अंकुश नहीं लगा सकेंगे उनका 2026 तक लोकसभा में प्रतिनिधित्व नहीं बढ़ाया जाएगा। वैसे संविधान में 2001 में इस पर विचार करने का प्रावधान था।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

प्रश्न 5.
राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 की महत्त्वपूर्ण विशेषताओं के बारे में बताओ।
उत्तर:

  1. शिशु मृत्यु दर प्रति हज़ार 30 से नीचे लाना।
  2. मातृत्व मृत्यु दर प्रति एक लाख पर 100 से कम करना।
  3. कन्या विवाह को देरी से करने को बढ़ावा देना।
  4. जन्म, मृत्यु, विवाह का पूरा पंजीकरण करना।
  5. 14 वर्ष की आयु तक के बच्चों को मुफ्त तथा अनिवार्य शिक्षा देने के लिए कदम उठाना।
  6. एड्स प्रसार को रोकना। इसके लिए यौन संचार रोगों तथा राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन के बीच एकीकरण को बढ़ावा देना।
  7. गर्भ निरोधक तरीकों के व्यापक तरीकों का पता लगाना तथा लोगों को इसकी जानकारी देना।
  8. बुनियादी प्रजनन तथा शिशु सेवाओं, आपूर्तियों तथा आधारभूत ढांचे से संबंधित ज़रूरतों पर विशेष ध्यान देना।

प्रश्न 6.
प्रवास क्या होता है? इसके कितने प्रकार हैं?
उत्तर:
प्रवास शब्द अंग्रेजी के Migration शब्द का हिंदी रूपांतर है जिसका अर्थ है अपने मूल स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान पर जाना। इसका अर्थ है कि अपने जन्म के स्थान को छोड़कर कहीं और जाकर बस जाने को प्रवास कहते हैं, व्यक्ति कभी-कभी अपने मूल स्थान पर भी आ-जा सकता है। यह चार प्रकार का होता है। पहला है दैनिक प्रवास, जिसमें लोग काम, व्यवसाय या शिक्षा के लिए अपना गाँव या शहर छोड़ कर दूसरे बड़े शहर में जाते हैं तथा काम खत्म होने के बाद शाम को वापस आ जाते हैं।

दूसरा है मौसमी प्रवास जिसमें किसी खास मौसम में लोग एक जगह से दूसरी जगह चले जाते हैं फिर मौसम के खात्मे के बाद वापस आ जाते हैं; जैसे कि फसल की कटाई के समय पर। तीसरा है आकस्मिक प्रवास जिसमें कुछ विशेष हालात पैदा हो जाते हैं तो व्यक्ति को प्रवास करना पड़ जाता है; जैसे बीमारी या किसी और कारण से। चौथा और आखिरी प्रकारं है स्थायी प्रवास, जिसमें व्यक्ति अपना गांव, शहर या देश छोड़कर दूसरे गांव, शहर या देश में रहने चला जाता है।

प्रश्न 7.
भारत के संविधान में लिखित 22 भाषाएं कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. मणिपुरी
  2. नेपाली
  3. सिंधी
  4. संस्कृत
  5. बंगला
  6. तेलुगू
  7. गुजराती
  8. कन्नड़
  9. उड़िया
  10. असमी
  11. उर्दू
  12. कश्मीरी
  13. तमिल
  14. पंजाबी
  15. मराठी
  16. मलयालम
  17. हिंदी
  18. कोंकणी
  19. डोगरी
  20. संथाली
  21. मैथिली
  22. बोडो।

प्रश्न 8.
भारत में कितने-कितने लोग किस-किस धर्म को मानते हैं?
उत्तर:
भारत में 79.5% लोग हिंदू धर्म को, 13.4% लोग इस्लाम को, 2.4% लोग ईसाई धर्म को, 2.1% लोग सिक्ख धर्म को, 0.8% लोग बौद्ध धर्म को, 0.8% जैन धर्म को तथा 0.4% लोग पारसी तथा अन्य जनजातीय धर्मों को मानते हैं।

प्रश्न 9.
माल्थस ने जनसंख्या नियंत्रण के कौन-से दो अवरोध बताए हैं?
अथवा
कृत्रिम अवरोध क्या है?
अथवा
प्राकृतिक निरोध क्या है?
उत्तर:
माल्थस के अनुसार जनसंख्या नियंत्रण में दो प्रकार के अवरोध होते हैं-
(i) प्राकृतिक अवरोध-जो अवरोध प्रकृति की तरफ से लगाए जाते हैं उन्हें प्राकृतिक अवरोध कहते हैं। इसकी वजह से मृत्यु दर बढ़ जाती है। उदाहरण के तौर पर, युद्ध, बीमारी, अकाल, भूकंप, सुनामी, बाढ़ इत्यादि। यह प्राकृतिक अवरोध बेहद कष्टदायी होते हैं पर इनसे जनसंख्या में काफ़ी कमी आ जाती है। चाहे जनसंख्या के कम होने से जनसंख्या तथा खाद्य पदार्थों के बीच कुछ समय के लिए संतुलन आ जाता है पर यह स्थाई नहीं होता। जनसंख्या फिर बढ़ती है, फिर प्रकृति इसे कम कर देती है। यह चक्र चलता रहता है तथा इसे माल्थसियन चक्र कहते हैं।

(ii) प्रतिबंधक अवरोध-इस प्रकार के अवरोध को माल्थस ने मनुष्यों के द्वारा किया गया प्रयत्न कहा है। इसे दो भागों में बांटा है-नैतिकता तथा कृत्रिम साधनों द्वारा प्रतिबंध। नैतिक प्रतिबंध में माल्थस के अनुसार व्यक्ति अपने विवेक का प्रयोग करके जनसंख्या नियंत्रण के बारे में कहता है। कृत्रिम साधनों में माल्थस उन साधनों के बारे में बताता है जो व्यक्ति ने जनसंख्या को नियंत्रण में रखने के लिए कृत्रिम रूप से बनाए हैं। माल्थस नैतिक अवरोध को सही तथा कृत्रिम साधनों के प्रयोग को पाप तथा अधर्म मानता है।

प्रश्न 10.
भारत की सन् 1951 तथा 2001 में कुल जनसंख्या कितनी थी?
उत्तर:
भारत में 1951 में जनसंख्या 36.11 करोड़ थी जिसमें 29.9 करोड़ लोग ग्रामीण क्षेत्रों में तथा 6.2 करोड़ लोग शहरों में रहते थे। 2001 में भारत की जनसंख्या 102.70 करोड़ थी जिसमें 74.2 करोड़ लोग ग्रामीण क्षेत्रों में तथा 28.5 करोड़ लोग शहरों में रहते हैं।

प्रश्न 11.
हमारे रहन-सहन के निचले स्तर के लिए जनसंख्या विस्फोट कैसे ज़िम्मेदार है?
उत्तर:
यह ठीक है कि हमारे घटते रहन-सहन के लिए जनसंख्या विस्फोट ज़िम्मेदार है। जनसंख्या तो बढ़ गई है परंतु प्रति व्यक्ति आय उतनी नहीं बढ़ पाई है बल्कि कम हो गई है। अगर जनसंख्या ज्यादा बढ़ जाए तथा राष्ट्रीय आय उतनी न बढ़े तो विकास दर कम हो जाती है तथा देश ग़रीब हो जाता है। जनसंख्या तो बढ़ी है पर राष्ट्रीय आय नहीं बढ़ पाई है। प्रति व्यक्ति आय कम होने की वजह से व्यक्ति उपभोग कम कर पाता है जिस वजह से जीवन स्तर कम हो जाता है। इससे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है तथा कार्य क्षमता कम होती है।

प्रश्न 12.
बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण क्यों ज़रूरी है?
उत्तर:
बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण बहुत ज़रूरी है, क्योंकि-

  1. इससे प्रति व्यक्ति आय बढ़ती है।
  2. इससे बचत की मात्रा बढ़ती है तथा पूंजी निर्माण में वृद्धि होती है।
  3. इससे जीवन स्तर ऊँचा उठता है।
  4. इससे कई समस्याएं जैसे ग़रीबी, बेरोज़गारी इत्यादि हल हो जाती हैं।
  5. इससे कीमतों में कमी आती है तथा खाद्य समस्या हल हो जाती है।
  6. जनकल्याण पर ज्यादा पैसा खर्च हो सकता है।

प्रश्न 13.
बढ़ती जनसंख्या को कैसे कम किया जा सकता है? दो उपाय बताओ।
अथवा
जनसंख्या वृद्धि को कम करने के उपाय बताएँ।
उत्तर:

  1. देश में कृषि उत्पादन बढ़ा कर तथा उद्योगों का जल्दी विकास करना चाहिए ताकि प्रति व्यक्ति आय तथा राष्ट्रीय आय में वृद्धि हो। इससे जीवन स्तर ऊँचा उठेगा तथा लोग बच्चे कम पैदा करेंगे।
  2. ऊँचे जीवन स्तर के लिए शिक्षा देने की ज़रूरत है ताकि लोग कम बच्चे पैदा करने प्रति जागरूक रहें। इसके लिए वह परिवार नियोजन का सहारा लेंगे तथा जनसंख्या वृद्धि कम हो जाएगी।

प्रश्न 14.
जनसंख्या आर्थिक विकास को कैसे प्रभावित करती है?
उत्तर:
अगर जनसंख्या ज्यादा है तो उसका आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा क्योंकि उत्पादन से ज्यादा उपभोग करने वाले ज्यादा होंगे तो देश के संसाधन जल्दी खत्म हो जाएंगे जिससे देश की राष्ट्रीय आय कम हो जाएगी तथा देश ग़रीब हो जाएगा। अगर देश की जनसंख्या कम होगी तो उसका देश के आर्थिक विकास पर अनुकूल प्रभाव पड़ेगा क्योंकि उपभोग करने वालों से ज्यादा उत्पादन करने वाले होंगे। देश के संसाधन ज्यादा समय तक चल सकेंगे। देश में प्रति व्यक्ति आय बढ़ी रहेगी तथा राष्ट्रीय आय भी ज्यादा होगी। जीवन स्तर ऊँचा रहेगा। इस तरह देश की कम या ज्यादा जनसंख्या आर्थिक विकास पर प्रभाव डालती है।

प्रश्न 15.
जनसंख्या बढ़ने से क्या हानियां होती हैं?
उत्तर:

  1. जनसंख्या बढ़ने से बेरोज़गारी, ग़रीबी इत्यादि बढ़ती है।
  2. जनसंख्या बढ़ने से जीवन स्तर निम्न हो जाता है।
  3. इससे स्वास्थ्य हमेशा ख़राब रहता है।
  4. देश में खाद्य समस्या पैदा हो जाती है।
  5. आर्थिक विकास, राष्ट्रीय तथा प्रति व्यक्ति आय कम हो जाती है।

प्रश्न 16.
जनसंख्या घटने के क्या फायदे हैं?
उत्तर:

  1. इससे जीवन स्तर अच्छा होता है।
  2. इससे स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
  3. सभी को रोजगार मिल जाता है।
  4. रोजगार मिलने से निर्धनता कम हो जाती है।
  5. सभी की ज़रूरतों की पूर्ति हो जाती है।

प्रश्न 17.
भारत में पुरुष-स्त्री अनुपात के बारे में बताएं।
उत्तर:
अगर हम भारत में पुरुष-स्त्री अनुपात को देखें तो सभी के लिए काफ़ी चिंता का विषय है जो लगातार कम हो रहा है। लड़का प्राप्त करने की इच्छा में हम लड़कियों को जन्म लेने से पहले ही मार देते हैं जिस कारण स्त्रियों की संख्या लगातार कम हो रही है। हमारे देश में केरल जैसे केवल एक दो प्रदेश ही हैं जहां पर स्त्रियों की संख्या पुरुषों से अधिक है। निम्नलिखित तालिका से सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा।

वर्षस्त्री-पुरुष अनुपात
(सभी आयु वर्गों में)
1951946
1961941
1971930
1981934
1991927
2001933
2011940

प्रश्न 18.
भारत के मानचित्र पर बाल स्त्री-पुरुष अनुपात को समझाएं।
उत्तर:
HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना 1
इस मानचित्र को देखकर पता चलता है कि कई राज्यों में जैसे कि केरल, आंध्र प्रदेश इत्यादि में यह 950 से अधिक है तथा कई राज्यों जैसे कि पंजाब में यह 800 से भी कम है। इस मानचित्र से हमें पता में बाल स्त्री-पुरुष अनुपात में कितनी असमानता है।

प्रश्न 19.
भारत में परिवार नियोजन कार्यक्रम इतना अधिक सफल क्यों नहीं हो पाया है?
उत्तर:
(i) भारत के लोग धार्मिक विश्वासों में बंधे हुए हैं जो भाग्य पर विश्वास करते हैं कि भाग्य में जितने बच्चे हैं उतने तो होंगे ही। इसलिए वह परिवार नियोजन की तरफ ध्यान नहीं देते हैं।

(ii) हमारे देश में लोगों के पास पर्याप्त संतान निरोधकों की कमी है। लोगों के पास जितने भी संसाधन उपलब्ध हैं उनका भी वह ठीक से प्रयोग नहीं कर पा रहे हैं। इस कारण यह कार्यक्रम अधिक सफल नहीं हुआ है।

(iii) भारत में लोग अधिक पढ़े-लिखे नहीं हैं जिस वजह से यह छोटे परिवार के लाभों के बारे में ठीक तरह से नहीं जानते हैं। उन्हें नहीं पता है कि अधिक बच्चे होने से निर्धनता आती है तथा उनका भरण पोषण भी ठीक ढंग से नहीं हो पाता है।

(iv) परिवार कल्याण कार्यक्रम सरकार द्वारा चलाया जाता है तथा इसमें हमेशा ही वित्तीय संसाधनों की कमी होती है। जितना भी पैसा इस कार्यक्रम को दिया जाता है, वह संपूर्ण देश के लिए काफ़ी नहीं होता है।

प्रश्न 20.
परिवार नियोजन कार्यक्रम को कैसे सफल किया जा सकता है?
उत्तर:
(i) सबसे पहले तो विवाह की निम्नतम आयु को कठोरता से लागू करना चाहिए ताकि पढ़-लिखकर वह इस कार्यक्रम के लक्ष्य को समझ सकें।।

(ii) बच्चों को अधिक-से-अधिक पढ़ाना चाहिए तथा उन्हें सरकार द्वारा पढ़ने-लिखने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि उन्हें छोटे परिवार के लाभों तथा बड़े परिवार की हानियों का पता चल सके।

(iii) परिवार नियोजन कार्यक्रम का विस्तार किया जाना चाहिए तथा इसमें स्वैच्छिक संगठनों की सहायता ली जानी चाहिए।

(iv) जो परिवार इस प्रकार के कार्यक्रमों को अपनाएं उन्हें विशेष प्रकार की सुविधाएं दी जानी चाहिएं।

प्रश्न 21.
आगबर्न तथा निमकॉफ के अनुसार गाँवों का विकास कैसे हुआ?
उत्तर:
आगबर्न तथा निमकॉफ ने गाँवों के विकास को तीन भागों में बांटा है-
(i) उनके अनुसार पहले चरण में मानव जंगलों में रहा करता था। जानवरों का शिकार करता था या कंदमूल इकट्ठे करके अपना पेट भरता था। यह उसकी घुमंतू या खानाबदोश अवस्था थी। जहां उसे खाना मिलता था वह वहां चला जाता था। इस स्तर पर गाँव का विकास संभव नहीं था।

(ii) दूसरे चरण में व्यक्ति ने जानवरों का शिकार छोड़कर उन्हें पालना शुरू कर दिया था। इसलिए उन्हें जानवरों के लिए चारा चाहिए होता था। इसलिए जहां उन्हें चारा मिलता वहीं बस जाते थे तथा जब खत्म हो जाता था वो वह जगह छोड़ देते थे। यह भी एक खानाबदोश जैसा ही स्तर था। इसलिए इस चरण में भी गाँव का विकास मुमकिन नहीं था।

(iii) तीसरे चरण में व्यक्ति को उगाने का पता चल गया था। जब उसे फसल या खाने की चीजें उगाने का पता चल गया तो उसने एक जगह पर रहना शुरू कर दिया क्योंकि वह खाने के लिए ही घूमता था। जब उसे खाना एक ही जगह पर मिलना शुरू हो गया तो वह एक ही जगह पर रहने लग गया। इस तरह और लोग भी उसके साथ रहने लग गए। इस तरह गाँव हमारे सामने आया। इस तरह कृषि अवस्था के शुरू होने के बाद गांव सामने आए।

प्रश्न 22.
गाँव के विकास की कौन-सी तीन अवस्थाएं हैं?
उत्तर:
(i) आदिम गाँव-गाँव के विकास में सबसे पहले हमारे सामने आदिम गाँव आए। यह कृषि की प्रारंभिक अवस्था थी। गाँव में रहने वाले आम तौर पर रक्त संबंधी हुआ करते थे। परिवार का मुखिया ही गाँव का मुखिया हुआ करता था। बहुत सीधे-सादे संबंध हुआ करते थे। निजी संपत्ति की धारणा अभी शुरू नहीं हुई थी। वस्तुओं का लेन-देन हुआ करता था।

(ii) मध्यवर्ती गाँव-यह आदिम तथा आधुनिक के बीच की अवस्था थी। गाँव में रक्त संबंधियों के अलावा और लोग भी रहने लगे। सामुदायिक भावना टूटने लगी। स्वार्थ तथा जनसंख्या भी बढ़ने लगी। कृषि के तरीके पुराने हुआ करते थे।

(iii) आधुनिक गांव-इस अवस्था में आदिम तथा मध्यवर्ती गांव की विशेषताएं लुप्त हो चुकी हैं। कृषि व्यवसायीकरण हो चुका है। कृषि करने के आधुनिक तरीके मशीनों के साथ होते हैं। निजी संपत्ति तथा स्वार्थ की भावना का बोलबाला होता है। यातायात तथा संचार के साधनों का विकास हो चुका है तथा वह गांव तक पहुंच चुके हैं। जनसंख्या काफ़ी बढ़ चुकी है।

प्रश्न 23.
आप कैसे कह सकते हैं कि गाँव एक सामाजिक इकाई है?
उत्तर:
यह सच है कि गाँव एक सामाजिक इकाई है। अगर हम ध्यानपूर्वक भारतीय गाँवों का अध्ययन करें तो हमें यह पता चलता है कि गाँव ही भारत की संस्कृति का मूल आधार है। भारत की 70% से ज्यादा जनसंख्या गाँवों में रहती है तथा इतनी ही जनसंख्या कृषि से संबंधित कार्यों में लगी हुई है। चाहे गांवों में परिवर्तन आ रहे हैं पर फिर भी एक इकाई के रूप में यह क्रियाशील है। ग्रामीण समाज भारतीय समाज की संरचना का प्रमुख आधार रहा है। गाँव में लोग मिल-जुल कर रहते हैं। सभी त्योहार मिल-जुल कर मनाते हैं। दुःख-सुख बांटते हैं, उनके संबंध अत्यधिक तथा प्राथमिक होते हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि गांव एक सामाजिक इकाई है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

प्रश्न 24.
जजमानी प्रथा क्या होती है?
उत्तर:
भारतीय समाज में बहुत पुराने समय से एक प्रथा चली आ रही है जिसको जजमानी प्रथा का नाम दिया गया है। यह आम तौर पर गांवों में पाई जाती थी। ऑस्कर लेविस (Oscar Lewis) के अनुसार, “इस प्रथा के अंतर्गत एक गाँव में रहने वाले प्रत्येक जाति समूह से यह आशा की जाती है कि वह अन्य जातियों के परिवारों को कुछ प्रामाणिक सेवाएं उपलब्ध करें।”

इससे यह स्पष्ट है कि गाँवों में कुछ जाति समूह होते हैं जो दूसरी जातियों को अपनी सेवाएं देते हैं। इनको कमीन कहा जाता है। इस सेवा की एवज में सेवा लेने वाली जाति, जो कि जजमान कहलाती है, उन्हें अनाज, चावल इत्यादि देती थी ताकि वह अपना गुजारा कर सके। बारबर, धोबी, चर्मकार इत्यादि अपनी सेवा दिया करते थे। इसका यह फायदा था कि ऊँची निम्न जातियों में सद्भावना तथा अच्छे संबंध बने रहते थे। यह आमतौर पर परंपरागत हुआ करते थे। पिता के बाद उसका पुत्र काम किया करता था। अगर पत्र ज्यादा होते थे तो उनमें जजमान बंट जाया करते थे। कमीन को अनाज के साथ-साथ कभी-कभी पैसा भी मिलता था।

प्रश्न 25.
नगरीकरण में बढ़ोत्तरी क्यों हो रही है?
अथवा
गाँव से नगरों की ओर प्रवसन तेज़ी से हो रहा है। क्यों?
उत्तर:

  1. देश का औद्योगीकरण हो रहा है।
  2. नगरों में सुविधाएं ज्यादा हैं।
  3. नगरों में शिक्षा, स्वास्थ्य इत्यादि सेवाएं आसानी से प्राप्त हो जाती हैं।
  4. नगरों में रोजगार आसानी से प्राप्त हो जाता है।
  5. नगरों में सुरक्षा ज्यादा होती है।

प्रश्न 26.
गाँवों तथा नगरों में कछ समानताएं बताओ।
उत्तर:

  1. गाँवों तथा नगरों में भारत में समान चुनाव प्रणाली है।
  2. दोनों में राजनीतिक संबंध समान होते हैं।
  3. दोनों में अर्थव्यवस्था समान होती है।
  4. कानून दोनों के लिए समान हैं।
  5. पंचायतों तथा नगरपालिकाओं को समान अधिकार प्राप्त हैं।

प्रश्न 27.
ग्रामीण समुदाय में कौन-कौन से परिवर्तन आ रहे हैं?
उत्तर:

  1. अब गाँव के लोग शहरों की तरफ अधिक भाग रहे हैं।
  2. अब गाँव में भी शिक्षा प्राप्त करने की तरफ ध्यान दिया जाता है।
  3. अब कृषि करने के आधुनिक साधन प्रयोग हो रहे हैं।
  4. जाति प्रथा काफ़ी कमजोर पड़ गई है। उसकी जगह धीरे-धीरे वर्ग व्यवस्था सामने आ रही है।
  5. अब सामाजिक स्थिति जाति या परिवार के आधार पर नहीं बल्कि व्यक्तिगत गुणों के आधार पर होती है।
  6. अब व्यक्तिवादिता का बोलबाला हो रहा है।
  7. अनौपचारिक संबंधों की जगह औपचारिक संबंध बढ़ रहे हैं।
  8. मशीनीकरण के बढ़ने की वजह से कुटीर उद्योग नष्ट हो रहे हैं।

प्रश्न 28.
जनांकिकी का महत्त्व बताइए।
अथवा
जनांकिकी से आप क्या समझते हैं? इसके महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जनांकिकी मानव विज्ञान से संबंधित है जो जनसंख्या के वितरण पर ध्यान देती है। जनांकिकी में बहुत से तत्व शामिल किए जाते हैं जैसे कि मानवीय जनसंख्या का आकार, जनसंख्या की संरचना, उसका स्थानीय वितरण, जन्म दर, मृत्यु दर, विवाह, आवास, प्रवास, बेरोज़गारी, गतिशीलता इत्यादि। यदि सरकार को इन सभी आंकड़ों का ज्ञान हो तो सरकार जनता के कल्याण के लिए ठीक ढंग से प्रयास कर सकती है। सरकार इन आंकड़ों की सहायता से कई प्रकार की योजनाएं बना सकती है जिससे देश प्रगति कर सकता है। इसकी सहायता से देश में उत्पादन, उपभोग तथा वितरण को ठीक ढंग से संतुलित किया जा सकता है जिससे काफ़ी कुछ सामान खराब होने से बचाया जा सकता है।

प्रश्न 29.
जनसंख्या विस्फोट क्यों होता है?
उत्तर:
जनसंख्या विस्फोट का अर्थ है-जनसंख्या का अप्रत्याशित रूप से आवश्यकता से अधिक बढ़ जाना अर्थात् जनसंख्या का इतना अधिक बढ़ जाना कि उसके परिणाम विनाशकारी हों। यह वास्तव में उस समय होता है जब जन्म दर तथा मृत्यु दर में काफ़ी अधिक अंतर उत्पन्न हो जाए। सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं की सहायता से अलग अलग बिमारियों पर तो नियंत्रण कर लेती है तथा मृत्यु दर कम हो जाती है। परंतु इसके विपरीत जन्म दर में कमी नहीं आ पाती है जिस कारण जनसंख्या विस्फोट हो जाता है। इसके अतिरिक्त अनपढ़ लोगों को छोटा परिवार रखने के लाभ समझ में नहीं आते तथा वह बच्चे पैदा करते रहते हैं। इससे भी जनसंख्या विस्फोट हो जाता है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक जनांकिकी क्या होती है? जनांकिकी के क्षेत्र तथा विषय सामग्री के बारे में बताएं।
अथवा
जनांकिकी का महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
अथवा
जनांकिकी की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
Demography शब्द का हिंदी अर्थ जनांकिकी है। Demography शब्द ग्रीक भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ है जनसंख्या के बारे में लिखना। इस शब्द का प्रयोग सबसे पहले गुलियार्ड (एक फ्रांसीसी विद्वान्) ने 1885 में किया था। जनांकिकी का अर्थ जनसंख्या की विशेषताओं का अध्ययन तथा विश्लेषण करने वाला विज्ञान है। दूसरे शब्दों में, मानव जनसंख्या के अध्ययन को जनांकिकी कहते हैं।

अलग-अलग विद्वानों ने जनांकिकी की परिभाषाएं अपने-अपने दृष्टिकोण से दी हैं इसलिए एक ही परिभाषा पर पहुंचना कठिन है। फिर भी हम अलग अलग विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओं का वर्णन नीचे कर रहे हैं-
(1) गलियार्ड के अनुसार, “जनांकिकी एक गणितीय ज्ञान है जो जनसंख्या की समान गतियों, भौतिक, सामाजिक, बौद्धिक तथा नैतिक दशाओं का अध्ययन करती है और कहीं अधिक विस्तृत अर्थों में यह मानव जाति का प्राकृतिक और सामाजिक इतिहास है।”

(2) डोनाल्ड बोग के अनुसार, “जनांकिकी मानव जनसंख्या के आकार, संगठन, स्थानीय वितरण तथा उसमें प्रजनन, मृत्यु, विवाह, देशांतरण व सामाजिक गतिशीलता की पांच प्रक्रियाओं द्वारा समय-समय पर होने वाले परिवर्तनों का गणितीय तथा सांख्यिकीय अध्ययन है।”

(3) बेंजामिन के अनुसार, “जनांकिकी मानवीय जनसंख्या का एक समग्र के रूप में वृद्धि, विकास तथा गतिशीलता से संबंधित अध्ययन है।”

(4) हपिल के अनुसार, “जनांकिकी मानवीय जीवन का सांख्यिकीय अध्ययन है।”

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि जनांकिकी मानव विज्ञान से संबंधित है जो जनसंख्या के वितरण पर ध्यान देती है। जनांकिकी में जनसंख्या के गुणात्मक हिस्से तथा गणनात्मक हिस्से पर ध्यान दिया जाता है। अगर हम जनांकिकी के अर्थ विशाल अर्थों में लें तो इसमें कई प्रकार के तत्त्व शामिल किए जा सकते हैं जैसे मानवीय जनसंख्या का आकार, जनसंख्या की संरचना, उसका स्थानीय वितरण, जन्म दर, मृत्यु दर, विवाह, आवास, प्रवास, बेरोजगारी, गतिशीलता इत्यादि।

इन सब चीजों को हम जनांकिकी में शामिल कर सकते हैं क्योंकि ये सब चीजें जनांकिकी को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के तौर पर, जन्म दर के बढ़ने से जनसंख्या के आकार में बढ़ोत्तरी होगी तथा मृत्यु दर के बढ़ने से जनसंख्या के आकार में कमी आएगी। इस तरह जनांकिकी में वह सब चीजें सम्मिलित हो सकती हैं जो जनसंख्या के वितरण, उसके घनत्व को प्रभावित करती हैं।

जनांकिकी का क्षेत्र तथा विषय-सामग्री (Scope and Subject Matter)-जिस तरह किसी भी विषय के क्षेत्र तथा सामग्री के बारे में विद्वान् एक मत नहीं होते उसी तरह से जनांकिकी के क्षेत्र तथा विषय सामग्री के बारे में विद्वान् एक मत नहीं हैं। इसके बारे में हमें दो दृष्टिकोण व्यापक तथा संकुचित मिल जाते हैं। व्यापक दृष्टिकोण के समर्थकों में वांस, मूरे तथा स्पेंग्लर प्रमुख हैं तथा संकुचित दृष्टिकोण के समर्थकों में बर्कले, थाम्पसन एवं लेविस, हाऊजर एवं डंकन प्रमुख हैं। इन दोनों दृष्टिकोणों के कई अंतर हैं तथा इन अंतरों को स्पष्ट करने के लिए दो शब्दों का प्रयोग किया गया है जनांकिकी समष्टिभाव तथा जनांकिकी व्यष्टिभाव।

जनांकिकी व्यष्टिभाव में मनुष्य, उसके परिवार तथा समूह का अध्ययन विद्वान करते हैं जबकि जनांकिकी समष्टिभाव में मानव द्वारा निर्मित व्यवस्थाओं, उसकी संस्कृति तथा सामाजिक व्यवस्थाओं का अध्ययन किया जाता है। असल में, जनांकिकी में निगमन (Deductive) विधि का प्रयोग किया जाता है पर धीरे-धीरे इसमें आगमन (Inductive) विधि का प्रयोग होना शुरू हो गया है। इसीलिए जनांकिकी के क्षेत्र को समझने के लिए समष्टिभाव तथा व्यष्टिभाव का प्रयोग किया गया है। जनांकिकी को दो भागों में बांटा गया है

  • औपचारिक जनांकिकी प्रक्रियाएं जिनमें जन्म, मृत्यु, प्रवास, विवाह, तलाक आदि प्रक्रियाएं शामिल हैं।
  • अनौपचारिक जनांकिकी प्रक्रियाएं जिनमें विभिन्न आयु वर्ग, पुरुष-स्त्री अनुपात, जनसंख्या का आकार तथा मिश्रण को शामिल किया गया है।।

जनसंख्या से संबंधित आर्थिक तथा सामाजिक समस्याएं भी अनौपचारिक जनांकिकी में आते हैं। आजकल अनौपचारिक जनांकिकी सामाजिक जनांकिकी में बदल गई है क्योंकि जनांकिकी का एक विषय के रूप में धीरे-धीरे विकास हो रहा है। जनसंख्या का आकार, वितरण, बनावट, सामाजिक तथा आर्थिक कारक भी इसके क्षेत्र में आ गए हैं। जनांकिकी में परिवर्तन के साथ-साथ आजकल उन परिवर्तनों में कौन-से सामाजिक तथा आर्थिक कारण ज़िम्मेदार थे, उनका भी अध्ययन किया जाता है। जिस वजह से जनांकिकी का विश्लेषण अब वैज्ञानिक तरीके से हो रहा है।

सामाजिक जनांकिकी का आधार सामाजिक प्रक्रियाएं हैं तथा यह आधार सामाजिक संरचनाओं को नियमित करता है। सामाजिक प्रक्रियाओं में सामाजिक, सांस्कृतिक लेन-देन, मूल्य, रीति-रिवाज, विश्वास, शिक्षा, पारिवारिक संरचना, गतिशीलता, वर्ग, जाति, विवाह, व्यवसाय, नातेदारी आदि अनेक बदलाव शामिल किए जाते हैं। जो समाजशास्त्री जनांकिकी का अध्ययन करता है, वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इन ऊपर दी गई प्रक्रियाओं का भी अध्ययन करता है। वैसे आम तौर पर जनांकिकी में निम्नलिखित विषय शामिल किए जाते हैं-

  • जनसंख्या का वितरण (Distribution)-जनसंख्या का शहरों तथा गाँवों में वितरण, व्यवसाय तथा भौगोलिक वितरण इसमें शामिल है।
  • जनसंख्या का आकार-जनसंख्या का आकार कितना है, यह कौन-से कारकों से प्रभावित होता है। जन्म दर, मृत्यु दर, वृद्धि दर, आवास, प्रवास इत्यादि इसमें शामिल हैं।
  • जनसंख्या की विशेषता-जनसंख्या में कौन-कौन सी विशेषताएं हैं, और समाजों की जनसंख्या की विशेषताओं के साथ तुलनात्मक अध्ययन इसमें आता है।
  • जनसंख्या की संरचना-इसमें जनसंख्या की संरचना से संबंधित कई विषय; जैसे आयु संरचना, पुरुष-स्त्री लिंग अनुपात, शिक्षा, स्वास्थ्य का स्तर इत्यादि शामिल किए जाते हैं।
  • जनसंख्या में परिवर्तन-कौन-कौन से कारकों की वजह से जनसंख्या के आकार, संरचना इत्यादि में परिवर्तन आते हैं, सभी इसमें शामिल किए जाते हैं।
  • जनसंख्या की कई प्रकार की विशेषताएं होती हैं। इन विशेषताओं में क्यों परिवर्तन आते हैं, वह कौन-से कारक हैं, उन सब सामाजिक तथा आर्थिक कारकों का अध्ययन इसमें शामिल है।

इसके साथ-साथ अध्ययन करने की सुविधा की दृष्टि से निम्नलिखित विषयों से संबंधित विषय-सामग्री को भी इसमें शामिल किया जाता है।

  • जीवशास्त्र संबंधी-इसमें जन्म तथा मृत्यु दर, वृद्धि दर, मृत्यु तथा जन्म दर के कारण, लिंग अनुपात, आयु संरचना आदि चीजें शामिल की जाती हैं।
  • समाजशास्त्र संबंधी-इसमें वैवाहिक स्थिति, धर्म का स्वरूप, पारिवारिक संरचना, शिक्षा, जाति व्यवस्था, इत्यादि शामिल किए जाते हैं।
  • भूगोल संबंधी-इसमें जनंसख्या का भौगोलिक वितरण तथा उसके कारण शामिल किए जाते हैं।
  • अर्थशास्त्र संबंधी-इसमें रोजगार तथा बेरोज़गारी की स्थिति. जीवन-स्तर. आय का स्तर. खादय सामग्री का स्तर तथा वितरण, जनसंख्या की गतिशीलता, श्रम पूँजी का निर्माण, जनसंख्या की कार्य-क्षमता आदि शामिल हैं।

1954 के बाद से जनांकिकी के विषय को ज्यादा महत्त्व दिया जा रहा है, इसलिए इसके विषय में लगातार वृद्धि हो रही है। यही वजह है कि इसकी सीमा अभी कम है तथा इसको एक सीमा में बाँधना ठीक नहीं है।

प्रश्न 2.
भारत की बदलती जनांकिकी स्थिति के बारे में बताओ।
उत्तर:
भारत की बदलती सामाजिक जनांकिकी स्थिति को अच्छी तरह समझने के लिए अग्रलिखित कारकों को समझना ज़रूरी है-

  • जन्म दर एवं मृत्यु दर (Birth and Death Rate)
  • जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy)
  • लिंग अनुपात (Sex Ratio)
  • साक्षरता (Literacy)
  • जन घनत्व (Population Density)
  • ग्रामीण एवं नगरीय जनसंख्या (Rural and Urban Population)
  • आयु संरचना (Age Structure)
  • धर्म (Religion)

(i) जन्म दर एवं मृत्यु दर (Birth and Death Rate)-किसी भी देश की जनसंख्या का ज्ञान प्राप्त करने के लिए यह ज़रूरी है कि उस देश की जन्म-मृत्यु दर की जानकारी हो। इस भिन्नता के आधार पर देश की जनसंख्या में वृद्धि या कमी का पता चल जाता है।

YearBirth Rate per 1000Death Rate per 1000Difference
190145.844.41.4
192148.148.6-0.5
195139.927.412.5
197141.219.021.2
199132.511.421.1
200127.09.018.0
201120.977.4813.49

इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि आज़ादी के बाद जन्म दर में कमी आई पर साथ में स्वास्थ्य सेवाओं के बढ़ने की वजह से मृत्यु दर में भी काफ़ी कमी आई है। 1951 तक मृत्यु दर ज्यादा होने से जनसंख्या वृद्धि काफ़ी कम थी पर 1951-1991 में मृत्यु दर की अपेक्षा जन्म दर धीमी गति से कम हुई। देश में मृत्यु दर पर नियंत्रण पा लिया गया है। 1991 में मृत्यु दर 11.4 थी जो 2001 में 9 पर आ गई थी पर जन्म दर 27 थी इस वजह से जनसंख्या वृद्धि भी उच्च है। 2011 में जन्म दर 20.97% तथा मृत्यु दर 7.48% थी।

(ii) जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy)-जीवन प्रत्याशा से अभिप्राय है कि एक निश्चित समय पर पैदा हुए व्यक्ति की आम हालातों में कितने वर्ष तक जीवित रहने की संभावना है। मानव बिकास रिपोर्ट के अनुसार 1997 में जन्म के समय विकसित देशों में यह 77.7 वर्ष, विकासशील देशों में 64.4 वर्ष तथा अल्प विकसित देशों में 51.7 वर्ष है।

Decadeभारत में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा
MalesFemalesOverall
1911-2119.420.920.1
1931-4132.131.431.8
1951-6141.940.641.2
1971-8154.154.754
1991-200162.5
2001-201165.7767.9566.8

इससे यह स्पष्ट है कि 1911-21 में भारत में जीवन प्रत्याशा मात्र 20 वर्ष थी जोकि 1951 में 32 वर्ष हो गई। 1941-51 के दौरान यह 32 वर्ष हो गयी। स्वतंत्रता के बाद स्वास्थ्य सेवाओं में काफी सुधार हुआ जिस वजह से जीवन प्रत्याशा काफ़ी बढ़ गई है। सन् 2001 में यह बढ़कर 62.5 वर्ष हो गई है तथा 2011 में 66.8 वर्ष है।

(iii) लिंग अनुपात (Sex Ratio) लिंग अनुपात का अर्थ है 1000 पुरुषों के पीछे कितनी स्त्रियां हैं। 2001 में 53.1 करोड़ पुरुषों के पीछे 49.6 करोड़ महिलाएं थीं। इससे पता चलता है कि पुरुषों के पीछे औरतें काफ़ी कम हो रही हैं।

सन्आदमीऔरतें
19011000972
19111000964
19311000950
19511000946
19711000930
19911000927
20011000933
20111000940

इन आंकड़ों से पता चलता है कि 1901-2001 के 100 वर्षों में आम लिंगानुपात में कमी आई है। 1991 में महिलाएं कुछ बढ़ी हैं तथा 2001 में भी इसमें बढ़ोत्तरी हुई है। केरल ही एकमात्र राज्य है जहां यह अनुपात स्त्रियों के अनुकूल है। केरल में यह 1000 पुरुषों के बदले 1058 है। पांडिचेरी में यह अनुपात 1001 है। 2001 में हरियाणा में 861 तथा चंडीगढ़ में 773 था जो सब से कम है।

(iv) साक्षरता (Literacy)-साक्षरता जनसंख्या की संरचना का न केवल ज़रूरी तत्व है बल्कि यह उस देश के मानव विकास का सूचक भी है। 20वीं शताब्दी के शुरू में भारत में साक्षरता दर काफ़ी कम थी तथा 1947 तक इसमें धीमी गति से वृद्धि हुई। 1901 में साक्षरता दर 5.35% थी जिनमें पुरुष 9.83% तथा स्त्रियां 0.60% साक्षर थीं।

1951 में यह दर 27.16% पुरुष तथा 8.86% स्त्रियों की थी जबकि कुल साक्षरता दर 18.33% थी। 1951-2001 तक साक्षरता दर 18.33% से बढ़कर 65.38% हो गई है। 2001 की जनगणना के अनुसार यह दर 75.85% पुरुषों की तथा 54.16% स्त्रियों की थी तथा 2011 में यह 82.1% तथा 65.5% थी। इन दोनों के अंतर में निरंतर कमी आ रही है। 1991 तथा 2001 की जनगणना के अनुसार केरल, लक्षद्वीप में साक्षरता दर सब से अधिक है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

(v) जन घनत्व (Population Density)-जनसंख्या घनत्व भूमि एवं जनसंख्या में अनुपात दर्शाता है। जन घनत्व का अर्थ है औसतन एक वर्ग कि०मी० में रहने वाले व्यक्तियों की संख्या। देश की जनसंख्या में वृद्धि के कारण घनत्व भी बढ़ रहा है। 2011 की जनगणना के अनुसार यह 361.75 प्रति वर्ग कि०मी० है। 2001 में यह 324 तथा 1991 में 267 था। देश में कई क्षेत्रों में घनत्व काफी ज्यादा है तथा कई क्षेत्रों में काफी कम है। 2001 में पश्चिम बंगाल का जनसंख्या घनत्व 904 दर्ज किया गया था जो कि सबसे ज्यादा है जबकि अरुणाचल प्रदेश में सबसे कम 13 था। दिल्ली में यह 9294 था जबकि अंडमान तथा निकोबार में 43 व्यक्ति प्रति वर्ग कि० मी० था।

(vi) ग्रामीण एवं नगरीय जनसंख्या (Rural and Urban Population)-देश की जनसंख्या की संरचना को सही ढंग से समझने के लिए ग्रामीण एवं शहरी जनसंख्या की जानकारी ज़रूरी है। 1901 से 2001 के 100 वर्षों के दौरान शहरों की जनसंख्या लगातार बढ़ रही है।

वर्षजनसंख्या (करोड़ में)
ग्रामीणनगरीय
190124.32.6
192122.32.8
193124.63.3
195129.96.2
197143.910.9
199162.921.8
200174.228.5
201183.337.7

इन आंकड़ों को देखने से पता चलता है कि 1901 में केवल 10.8% लोग नगरों में रहते थे। 1951 में 82.7% लोग गांव तथा 17.3% लोग शहरों में रहते थे। 2001 में यह 72.2% तथा 27.8% हो गई तथा 2011 में यह 68.84% तथा 31.16% है। इससे पता चलता है कि धीरे-धीरे गांव के लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। 2001 में सबसे ज्यादा नगरों में लोग गोवा (49.77%) रहते थे। हिमाचल में केवल 9.79% लोग नगरों में रहते हैं।

(vii) आयु संरचना (Age Structure)-भारत की आयु संरचना देश की जनसंख्या का रोचक चित्र पेश करती है।
HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना 2
1991 की जनगणना के अनुसार 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों की संख्या 36% थी। 57% लोग 15-59 वर्ष की आयु वर्ग में थे जबकि 60 से ऊपर वाले 7% थे। विभिन्न जनगणनाओं से पता चलता है कि 14 वर्ष तक की आयु में निरंतर कमी हो रही है जबकि 60 व अधिक आयु वर्ग की जनसंख्या बढ़ रही है। यह जीवन प्रत्याशा के बढ़ने की वजह से है।

(vii) धर्म (Religion)-भारत में कई धर्मों के लोग रहते हैं। 1991 की जनगणना के अनुसार 82.4% लोग हिंदू थे। जनगणना के अनुसार 1961 में हिंदू 83.5% पर यह 1991 में घटकर 82.4% रह गए। हिंदू कम हो रहे हैं पर मुसलमानों की संख्या 1961 में 10.7% से बढ़कर 1991 में 11.7 पहुँच गई। इस तरह इस के दौरान हिंदुओं में 1% कमी आई है पर मुसलमान 1% बढ़े हैं। 1961-91 में ईसाइयों एवं जैनियों की जनसंख्या प्रतिशत में कमी आई है जबकि सिक्खों व बौद्धों की जनसंख्या बढ़ी है।

इस तरह हम देख सकते हैं कि भारत में जनांकिकी संख्या या जनांकिकी में लगातार परिवर्तन आ रहे हैं।

प्रश्न 3.
भारत की राष्ट्रीय जनसंख्या नीति-1976 तथा राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 के बारे में बताएं।
अथवा
भारत की जनसंख्या नीति-2000 का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
भारत की जनसंख्या में 1947 के बाद काफ़ी बढ़ोत्तरी हई क्योंकि आजादी के बाद स्वास्थ्य सेवाओं के बढ़ने से मृत्यु दर में कमी आयी। चाहे जन्म दर में भी कमी आयी पर इतनी तेजी से नहीं जितनी तेजी से मृत्यु दर में कमी आयी। इसलिए देश में दो बार राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 1976 तथा 2000 में बनी जिनका वर्णन निम्नलिखित है-

राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 1976-25 जून-1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश में आपात्काल की घोषणा कर दी जो कि 1977 तक चली। आपात्काल के दौरान 1976 में राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोषणा की गई जिसकी प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  • लड़कियों के विवाह की न्यूनतम आयु 15 वर्ष से बढ़ा कर 18 वर्ष तथा लड़कों की 18 वर्ष से 21 वर्ष कर दी गई।
  • सरकार स्त्री शिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिए विशेष प्रावधान करेगी।
  • पुरुष-स्त्री द्वारा परिवार नियोजन के लिए बंध्यीकरण (Sterlization) कराने के लिए मुआवजे की राशि में वृद्धि कर दी गई।

आपात्काल का लाभ उठाते हुए सरकार ने बंध्यीकरण को तेज़ कर दिया तथा लाखों लोगों का उनकी इच्छा के विरुद्ध बंध्यीकरण कर दिय 82 लाख लोगों को बंध्यीकरण किया गया जो कि अपने आप में एक रिकार्ड है।

राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000-सरकार ने अलग-अलग स्वैच्छिक संगठनों, विद्वानों तथा जनांकिकी में रुचि रखने वाले लोगों तथा सरकारी तंत्र से विचार-विमर्श करके राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 बनाई जिसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • शिशु मृत्यु दर प्रति हज़ार 30 से नीचे लाना।
  • मातृत्व मृत्यु दर प्रति एक लाख जन्मों पर 100 से कम लाना।
  • कन्या विवाह को देरी से करने को बढ़ावा देना।
  • जन्म-मृत्यु, विवाह व गर्भावस्था का शत-प्रतिशत पंजीकरण करना।
  • प्रजनन विनियमन के लिए सूचना, सलाह तथा सेवाओं को सब लोगों तक पहुंचाना।
  • गर्भ निरोधक तरीकों के व्यापक तरीकों का पता लगाना तथा लोगों को इसकी जानकारी देना।
  • 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों को मुफ्त तथा ज़रूरी शिक्षा के लिए कदम उठाना।
  • एड्स प्रसार को रोकना।
  • परिवार कल्याण तथा जन केंद्रित कार्यक्रमों में तालमेल बिठाना।

इस तरह इन दोनों नीतियों का मुख्य उद्देश्य जनंसख्या में कमी लाना है। कहा जाता है कि 1956-2000 के दौरान 25 करोड़ बच्चों को पैदा होने से रोका जा सका है।

प्रश्न 4.
भारतीय जनसंख्या नीति की विशेषताओं तथा उपलब्धियों के बारे में चदा
अथवा
भारत की जनसंख्या नीति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आज भारत की जनसंख्या 10 5 करोड़ से ऊपर हो चुकी है। यह दुनिया में सिर्फ चीन से कम है। कहा जाता है कि जिस रफ़्तार से भारत की जनसंख्या बढ़ रही है अगर उसी हिसाब से बढ़ती रही तो 292) तक भारत जनसंख्या के मामले में चीन को पीछे छोड़ देगा। भारत सरकार इस पक्ष से काफ़ी चिंतित है। इसलिए उसने समय समय पर कई प्रकार की जनसंख्या नीतियां बनाई हैं। इन सभी नीतियों की विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

जनसंख्या नीति की विशेषताएं-
(i) कम जन्म दर (Reduction of Birth Rate)-1947 के बाद से वर्तमान समय तक मृत्यु दर में काफ़ी कमी आयी है। जनसंख्या की वृद्धि को रोकने के लिए ज़रूरी है कि जन्म दर कम हो तभी जनसंख्या कम हो सकती है। इस को ध्यान में रखते हुए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कई विधियों को अपनाया जा रहा है। अप्रत्यक्ष तरीकों में गरीबी हटाओ कार्यक्रम, स्त्रियों में शिक्षा का विस्तार तथा साक्षरता दर में वृद्धि करना है। इसके साथ ही विवाह के लिए आयु निश्चित करने से भी जन्म दर कम हो सकती है।

(ii) विस्तृत विषय क्षेत्र (Wider Scope)-जनसंख्या नीति का विषय क्षेत्र अति व्यापक है। इसके अंतर्गत जनसंख्या नियंत्रण की विधियों के अलावा दूसरे कार्यक्रमों, जैसे स्वास्थ्य, माताओं तथा बच्चों के स्वास्थ्य को भी लिया जाता है। वास्तव में यह कार्यक्रम परिवार कल्याण कार्यक्रम में विकसित हो रहा है।

(iii) स्वैच्छिक नीति (Voluntary Policy)-भारत सरकार द्वारा अपनायी जनसंख्या संबंधी नीति एक स्वैच्छिक नीति है जिसका उद्देश्य लोगों की मदद से जनसंख्या पर नियंत्रण करना है। इसके अंतर्गत लोगों को छोटे परिवार के लाभों के बारे में बताया जाता है तथा उन्हें जन्म दर कम करने के लिए भी प्रेरित किया जाता है।

(iv) विभिन्न विधियाँ (Different Methods) इस नीति का उद्देश्य जन्म दर को कम करना है जिसके लिए कई विधियों को अपनाया जाता है। परिवार नियोजन केंद्रों में लोगों को जनसंख्या नियंत्रण के बारे में जानकारी दी जाती है ताकि लोगों को इन विधियों के प्रयोग में कोई परेशानी न आ सके।

(v) प्रचार (Propoganda) परिवार नियोजन कार्यक्रम एक बड़े पैमाने पर शुरू किया गया है। लोगों को मुफ्त या कम कीमत पर सामग्री बांटी जाती है। इसके साथ-साथ परिवार नियोजन कार्यक्रम का प्रचार दूरदर्शन, मैगज़ीन, रेडियो, समाचार-पत्र, किताबों इत्यादि की मदद से किया जाता है। इस कार्यक्रम की विधियों को लोगों को बताने के लिए डॉक्टरों तथा नसों को विशेष ट्रेनिंग दी जाती है।

(vi) संगठन एवं शोध (Organization and Research)-परिवार नियोजन कार्यक्रम संबंधी पैसे केंद्र सरकार देती है पर कार्यक्रम को राज्य सरकार लागू करती है। यह कार्यक्रम पंचायत से शुरू किया जाता है ताकि सभी को प्रतिनिधित्व तथा प्रशिक्षण मिल सके। जन्म दर को कम करने की विधियों की लोगों को जानकारी दी जाती है तथा इसके बारे में शोध भी जारी है।

जनसंख्या नीति की उपलब्धियाँ
(Achievements of India’s Population Policy)
भारत में जनसंख्या नीति की उपलब्धियाँ निम्नलिखित हैं:
(i) जन्म दर में कमी (Decline in Birth Rate)-आजादी के बाद भारत की जनसंख्या तेजी से बढ़ी क्योंकि मृत्यु दर में कमी आयी है। मृत्यु दर में कमी के साथ-साथ सरकार ने जन्म दर में कमी के लिए भी उपाय किए हैं। इसके लिए जनसंख्या नीति तैयार की गई। 1951 में जो जन्म दर 40 प्रति हज़ार थी वह 2001 में कम होकर 27 प्रति हज़ार रह गई है। इस तरह जन्म दर में कमी जनसंख्या नियंत्रण का एक महत्त्वपूर्ण उपाय है।

(ii) मृत्यु दर में कमी (Decline in Death Rate)-आजादी से पहले स्वास्थ्य सेवाओं की कमी थी क्योंकि सरकार विदेशी थी। आज़ादी के बाद अपनी सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं में तेजी से विस्तार किया जिस कारण मृत्यू दर में काफ़ी कमी आयी है। 1951 में मृत्यु दर 27.4 थी जो कि 2001 में कम होकर 9 रह गई है। भारत में मृत्यु दर दूसरे सभी विकासशील देशों से कम है।

(iii) जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) आज़ादी से पहले स्वास्थ्य सेवाओं की कमी की वजह से जीवन प्रत्याशा कम थी पर आज़ादी के बाद स्वास्थ्य सेवाओं में बढ़ोत्तरी तथा जनसंख्या नियंत्रण के लिए किए गए प्रयासों के कारण जीवन प्रत्याशा लगभग दुगुनी हो गई है। 1951 में व्यक्ति की जीवन प्रत्याशा 32 वर्ष थी जो कि 2001 में 62.5 वर्ष हो गई है। यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि पुरुषों की जगह महिलाओं में जीवन प्रत्याशा अधिक है जोकि 1951 से उलट है।

(iv) बंध्यीकरण (Sterlization)-बंध्यीकरण या नपुंसीकरण जन्म दर नियंत्रण का एक अच्छा, लोकप्रिय तथा हानि रहित तरीका है। यह एक प्रकार का छोटा-सा आप्रेशन होता है जिससे व्यक्ति की प्रजनन शक्ति को खत्म कर दिया जाता है। 1956 में यह संख्या 7153 थी जोकि 1967-68 में 18 लाख, 1976-77 में 80 लाख तथा 1999-2000 तक यह 6 करोड़ तक पहुंच गई थी।

(v) शिशु मृत्यु दर में कमी (Decline in Infant Mortality Rate)-आजादी के बाद से अब तक शिशु मृत्यु दर आधे से भी कम रह गई है। 1951 में यह दर 146 थी जोकि 2001 में कम होकर सिर्फ 70 रह गई है।

इस तरह इन सब को देखकर हम कह सकते हैं कि भारत में सरकार ने कई प्रकार के कार्यक्रम चला कर जनसंख्या को नियंत्रण में रखने की कोशिश की है तथा इसमें काफ़ी हद तक सफलता भी पाई है। चाहे मृत्यु दर की अपेक्षा जन्म दर आज भी काफ़ी ज्यादा है पर फिर भी सरकार इसको कम करने के प्रयास कर रही है।

प्रश्न 5.
भारत की जनसंख्या नीति की कमजोरियां तथा इसके बेहतर परिणामों के लिए अपने सुझाव दें।
अथवा
परिवार नियोजन कार्यक्रम की कमजोरियों तथा इसके बेहतर परिणामों के लिए सुझाव दें।
उत्तर:
भारत को आजाद हुए 60 वर्ष से अधिक हो चुके हैं तथा भारत की आबादी इस समय 105 करोड़ से ऊपर पहुंच चुकी है। आजादी से पहले जन्म दर तथा मृत्यु दर में ज्यादा अंतर नहीं था। अगर जन्म दर ज्यादा थी तो मृत्यु दर भी उसके आस-पास ही थी क्योंकि स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव था। आज़ादी के बाद सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं को उन्नत करने पर काफ़ी ध्यान दिया। अस्पताल, डिस्पैंसरी इत्यादि हज़ारों की संख्या में खोले गए ताकि लोग बीमारी की वजह से न मरें।

इन प्रयासों की वजह से मृत्यु दर में काफ़ी ज्यादा कमी आयी। 1951 में जो 27 थी वह 2001 में केवल 9 तक रह गयी। पर इसके साथ-साथ सरकार ने जन्म दर में भी कमी करने की कोशिश की। चाहे जन्म दर में भी कमी आयी है पर फिर भी उतनी तेजी से नहीं आयी है जितनी तेजी से यह मृत्यु दर में आयी है। सरकार के बहुत से प्रयासों के बावजूद परिणाम संतोषजनक नहीं रहे हैं। परिवार नियोजन के कार्यक्रम पूरी तरह सफल नहीं हो पाए हैं। इसके कई कारण हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है:
(i) उच्च जन्म दर (High Birth Rate) भारत में परिवार नियोजन कार्यक्रमों पर सरकार ने पिछले 50 वर्षों में अरबों रुपये खर्च कर दिए हैं। हर साल बजट में इन पर खर्च की जाने वाली रकम बढ़ा दी जाती है पर फिर भी यह 1951 में 40 से कम होकर 2001 में केवल 27 तक पहुँच पायी है जबकिं विकसित देशों अमेरिका, जापान, इत्यादि में यह केवल 10 प्रति हज़ार है।

(ii) निम्न जीवन प्रत्याशा (Low Life Expectancy)-1951 में भारत में जीवन प्रत्याशा 32 वर्ष थी जोकि स्वास्थ्य सेवाओं की वजह से 2001 में 62.5 वर्ष हो गई है। विश्व में यह 66 वर्ष, विकसित देशों में यह 78 वर्ष है तथा विकासशील देशों में यह 64 वर्ष है जोकि भारत से ज्यादा है। अतः औसत आयु के बढ़ने के बावजूद भी यह और देशों की तुलना में काफ़ी कम है।

(iii) उच्च शिशु मृत्यु दर (High Infant Mortality Rate)-भारत में शिशु मृत्यु दर भी काफ़ी उच्च है। देश में 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर 98 है जबकि दुनिया के 138 और देशों में यह भारत से काफ़ी कम है। यहां तक कि कई देशों में यह 10 से भी कम है।

(iv) यह केवल सरकारी कार्यक्रम बन कर रह गया है (It remained aGovernment Programme)-परिवार कल्याण तथा परिवार नियोजन कार्यक्रमों को सहायता पूरी तरह से केंद्र सरकार देती है पर यह सारे कार्यक्रम राज्य सरकारें कार्यान्वित करती हैं। इतने लंबे समय से चले आ रहे कार्यक्रमों को अभी भी जनता से नहीं जोड़ा जा सका है। फलस्वरूप लोग इसे सरकारी कार्यक्रम मानते हैं तथा इसके साथ नहीं जुड़ते।

(v) खर्च पर अधिक ध्यान (More Care on Spending)-भारत की जनसंख्या नीति की यह कमज़ोरी रही है कि इन कार्यक्रमों के लिए जो पैसा दिया जाता है, उसे समय से पहले ही खर्च करने पर बल दिया जाता है। इस बात को नहीं देखा जाता कि जिन लोगों के ऊपर धन खर्च किया जा रहा है उन पर खर्च करना ज़रूरी है या नहीं।

इसके अलावा लोगों की अनपढ़ता, ग़रीबी इन कार्यक्रमों को अपनाने के प्रति संकोच भी इन नीतियों की कमजोरी का एक कारण रही है।

बेहतर परिणामों के लिए सुझाव:
भारत सरकार द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रमों से बेहतर परिणाम प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं:

  • युवाओं को देरी से विवाह करने के लिए प्रेरित करना ताकि वह समझदार हो जाएं तथा ज्यादा बच्चों के होने के नुकसान के बारे में समझ सकें।
  • महिलाओं को संतानोत्पति के अलावा और आर्थिक कामों में भागीदार बनाना ताकि वह आर्थिक तौर पर खुद ही सुदृढ़ हो सकें तथा परिवार के आकार के बारे में खुद फैसला कर सकें।
  • शत-प्रतिशत शिक्षा दर को प्राप्त करना ताकि लोग पढ़-लिख कर सरकार द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रमों को समझ कर अपना सकें।
  • जिन जातियों या धार्मिक समूहों में उच्च जन्म दर है उन पर परिवार नियोजन के विशेष कार्यक्रमों को लागू करना ताकि उनकी उच्च जन्म दर को नीचे लाया जा सके।
  • विवाह, जन्म तथा मृत्यु का पूरी तरह पंजीकरण करना ताकि सरकार को सही आंकड़े मिल सकें।
  • जनसंचार के माध्यमों के माध्यम से परिवार कल्याण तथा परिवार नियोजन के तरीकों का प्रचार करना ताकि लोग इनको अपना कर जन्म दर को कम कर सकें।

प्रश्न 6.
जनसंख्या वृद्धि के माल्थस के सिद्धांत तथा जनसांख्यिकीय संक्रमण के सिद्धांत का वर्णन करें।
अथवा
माल्थस के जनसंख्या के सिद्धांत को स्पष्ट करें।
उत्तर:
जनसंख्या वृद्धि का माल्थस का सिद्धांत-जनसांख्यिकी के सबसे अधिक प्रसिद्ध सिद्धांतों में से एक सिद्धांत अंग्रेज़ राजनीतिक अर्थशास्त्री थॉमस माल्थस के नाम से जुड़ा है। माल्थस का कहना था कि जनसंख्या उस तुलना में अधिक तेजी से बढ़ती है जिस दर पर मनुष्य के भरण-पोषण के साधन बढ़ सकते हैं। इस कारण ही मनुष्य निर्धनता की स्थिति में रहने को बाध्य होता है क्योंकि जनसंख्या की वृद्धि की दर से अधिक होती है।

क्योंकि जनसंख्या वृद्धि दर कृषि उत्पादन की वृद्धि दर अधिक होती है इसलिए समाज की समृद्धि को एक ढंग से बढ़ाया जा सकता है तथा वह है जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रण में रखा जाए। या तो मनुष्य अपनी इच्छा से जनसंख्या को नियंत्रण में रख सकते हैं या फिर प्राकृतिक आपदाओं से माल्थस का मानना था कि अकाल तथा महामारी जैसी विनाशकारी घटनाएं जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए अपरिहार्य होती हैं। इन्हें प्राकृतिक निरोध कहा जाता है क्योंकि यह ही बढ़ती जनसंख्या तथा खाद्य आपूर्ति के बीच बढ़ते असंतुलन को रोकने का प्राकृतिक उपाय है।

माल्थस के अनुसार जनसंख्या नियंत्रण में दो प्रकार के अवरोध होते हैं-
(i) प्राकृतिक अवरोध-जो अवरोध प्रकृति की तरफ से लगाए जाते हैं उन्हें प्राकृतिक अवरोध कहते हैं। इसके कारण मृत्यु दर बढ़ जाती है। उदाहरण के तौर पर युद्ध, बीमारी, अकाल, भूकंप, सुनामी, बाढ़ इत्यादि। यह प्राकृतिक अवरोध बेहद कष्टदायी होते हैं पर इनसे जनसंख्या में काफ़ी कमी आ जाती है। चाहे जनसंख्या के कम होने से जनसंख्या तथा खाद्य पदार्थों के बीच कुछ समय के लिए संतुलन आ जाता है पर यह स्थाई नहीं होता। जनसंख्या फिर बढ़ती है, फिर प्रकृति इसे कम कर देती है। यह चक्र चलता रहता है तथा इसे माल्थसियन चक्र कहते हैं।

(ii) प्रतिबंधक अवरोध-इस प्रकार के अवरोध को माल्थस ने मनुष्यों द्वारा किया गया प्रयत्न कहा है। इसे दो भागों में बांटा है-नैतिकता तथा कृत्रिम साधनों द्वारा प्रतिबंध। नैतिक प्रतिबंध में माल्थस के अनुसार व्यक्ति अपने विवेक का प्रयोग करके जनसंख्या नियंत्रण के बारे में कहता है। कृत्रिम साधनों में माल्थस उन साधनों के बारे में बताता है जो व्यक्ति ने जनसंख्या को नियंत्रण में रखने के लिए कृत्रिम रूप से बनाए हैं। माल्थस नैतिक अवरोध को सही तथा कृत्रिम साधनों के प्रयोग को पाप तथा अधर्म मानता है।

जनसांख्यिकीय संक्रमण का सिद्धांत–जनसांख्यिकीय विषय में एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत जनसांख्यिकीय संक्रमण का सिद्धांत है। इसका अर्थ है कि जनसंख्या में वृद्धि आर्थिक विकास के सभी स्तरों के साथ जुड़ी होती है तथा हरेक समाज विकास से संबंधित जनसंख्या वृद्धि के एक निश्चित स्वरूप के अनुसार चलता है। जनसंख्या वृद्धि के तीन मुख्य स्तर होते हैं। पहले स्तर में जनसंख्या वृद्धि कम होती है क्योंकि समाज कम विकसित तथा तकनीकी रूप से पिछड़ा होता है।

वृद्धि दर के कम होने के कारण जन्म दर तथा मृत्यु दर काफ़ी ऊँचे होने के कारण कम अंतर होता है। तीसरे चरण में भी विकसित समाजों में भी जनसंख्या वृद्धि दर कम होती है क्योंकि जन्म दर तथा मृत्यु दर दोनों ही कम होते हैं। इसलिए उनमें अंतर भी काफ़ी कम होता है। इन दोनों स्तरों के बीच एक तीसरी संक्रमणकालीन अवस्था होती है जब समाज पिछड़ी अवस्था से उस अवस्था में पहुँच जाता है जब जनसंख्या वृद्धि दर काफ़ी अधिक होती है।

संक्रमण अवधि जनसंख्या विस्फोट से इसलिए जुड़ी होती है क्योंकि मृत्यु दर को रोग नियंत्रण, स्वास्थ्य सुविधाओं से तेज़ी से नीचे कर दिया जाता है। परंतु जन्म दर इतनी तेजी से कम नहीं होती तथा जिस कारण वृद्धि दर ऊँची हो जाती है। बहुत-से देश जन्म दर को घटाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, परंतु वह कम नहीं हो पा रही है।

प्रश्न 7.
ग्रामीण समुदाय क्या होता है? इसकी उत्पत्ति और विकास के बारे में बताओ।
अथवा
ग्रामीण समुदाय क्या है?
उत्तर:
भारत गाँवों का देश है। क्योंकि देश की आबादी की कुल जनसंख्या का तीन चौथाई भाग ग्रामीण क्षेत्रों में ही निवास करता है। 2001 की जनसंख्या के अंतरिम (Interim) आंकड़ों के अनुसार 72 प्रतिशत लोग गाँवों में और 28 प्रतिशत लोग शहरों में निवास करते हैं। जीवन पद्धति आर्थिक क्रियाओं, सामाजिक जीवन, राजनैतिक व्यवस्थाओं या जनांकिक कारकों के आधार पर भारतीय समाज में मुख्यतः तीन प्रकार के समुदाय, ग्रामीण, नगरीय और जनजातीय पाए जाते हैं।

प्रत्येक समुदाय की भिन्न-भिन्न विशेषताएं हैं। यह माना जाता है कि जब से मानव ने अपने घुमंतू जीवन को छोड़कर एक स्थान पर रहकर कृषि कार्य को स्थायी रूप से अपनाया है तभी से गाँव का विकास हुआ है। इससे पहले मनुष्य अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए झुंड बना कर एक स्थान से दूसरे स्थान में जाता था और अपना जीवन व्यतीत करता था। गांवों का वर्तमान स्वरूप तथा विशेष ग्रामीण जीवन शैली हजारों वर्षों के गाँवों के उविकास का परिणाम है।

ग्रामीण समुदाय का अर्थ (Meaning of Village Community) विद्वानों ने गाँव या ग्रामीण शब्द की अनेक आधारों पर व्याख्या की है। कुछ विद्वानों का कहना है कि गाँव का अर्थ “किसानों की बस्तियों’ से है तथा कुछ इसे क्षेत्रीय समूह मानते हैं। कई विचारकों का मत है कि जहां पर आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से पिछड़े लोग रहते हैं उस स्थान को गाँव माना जाता है जबकि कुछ विचारकों के मतानुसार ग्रामीण शब्द की व्याख्या नगरीय शब्द के विपरीत की जानी चाहिए।

अतः नगरीय समुदाय की विशेषताओं के विपरीत विशेषताओं वाले समुदाय को ग्रामीण समझ लेना चाहिए। लोग जहां मुख्यतः कृषि व कृषि से संबंधित कार्यों को करते हैं। अनेक मतों के बावजूद ग्रामीण समुदाय की सही प्रकृति को दर्शाने के उद्देश्य से विभिन्न विचारकों की परिभाषाएं अग्रलिखित हैं

के० एन० श्रीवास्तव (K.N. Shrivastva) के अनुसार, “एक ग्रामीण क्षेत्र वह है जहां लोग किसी प्राथमिक उद्योग में लगे हए हों या प्रकृति के सहयोग से वस्तुओं का प्रथम बार उत्पादन करते हों।”

मैरिल तथा एलरिज (Merill and Elridge) के मतानुसार, “ग्रामीण समुदाय एक ऐसा समूह है जिसमें व्यक्ति व संस्थाएं एक छोटे से केंद्र के चारों ओर संगठित होती हैं तथा जिसके अंतर्गत सभी सदस्य सामान्य व प्राथमिक हितों द्वारा एक दूसरे से परस्पर बंधे रहते हैं।”

भारत सरकार द्वारा प्रकाशित भारत 1969 (India 1969) में लिखा है, “ग्रामीण जीवन से तात्पर्य वह सामुदायिक जीवन है जो अनौपचारिक, प्राथमिकता, सरल तथा परंपरागत संबंधों पर आधारित होता है और जो कृषि या कुटीर उद्योगों के द्वारा समाज की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।’

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि गांव या ग्रामीण समुदाय प्रकृति से निकटता वाला समुदाय है जिसमें प्राथमिक संबंधों की बहुलता होती है, कृषि व्यवसाय की प्रधानता होती है व कम जनसंख्या, गतिशीलता का अभाव व सामाजिक एकरूपता, सामान्य दृष्टिकोण व सहमति जैसी विशेषताएं पाई जाती हैं।

ग्रामीण समुदाय अथवा ग्राम की उत्पत्ति और विकास – (Origin and Development of Rural Community or Village):
ग्रामीण समुदाय प्राचीनतम समुदाय है। बोगार्डस (Bogardus) ग्रामीण समुदाय के संदर्भ में लिखते हैं कि “मानव समाज का पालन-पोषण ग्रामीण समुदाय में हुआ है।” ग्रामीण समुदाय का विकास मानव प्रकृति के अनुकूल की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप धीरे-धीरे हुआ है।

ऑगबर्न और निमकॉफ (Ogburm and Nimkaff) ने ग्रामीण समुदाय के विकास में निम्नलिखित भागों का उल्लेख किया है-
1. कृषि अवस्था (Agricultural Stage)-वास्तव में गांव का स्पष्ट रूप उस समय सामने आया जब मानव ने कृषि अर्थ-व्यवस्था आरंभ की। इस अवस्था में मानव ने कृषि करना सीखा व चलायमान जीवन त्याग कर एक स्थान पर रहकर स्थायी जीवन व्यतीत करना आरंभ किया। यह माना जाता है कि कृषि व्यवसाय का ज्ञान सर्वप्रथम स्त्रियों को हुआ चूंकि पुरुष शिकार की खोज में जंगलों में चले जाते थे जबकि स्त्रियां फूल-फल एकत्र करने व बच्चों के पालन-पोषण का कार्य करती थीं।

इसी कारण स्त्रियों को यह ज्ञान हुआ कि गुठली या बीज से दोबारा पौधा उग जाता है। इसी कारण आदिकाल में समाजों में स्त्रियां कृषि कार्य में निपुण होती थीं। कृषि कार्य के प्रारंभ होने के साथ ही मानव एक निश्चित भू-भाग या भूमि से बंध गया, परिणामस्वरूप गांव का सूत्रपात हुआ। कृषि को ग्रामीण समुदाय उत्पत्ति का मूलाधार भी कहा जा सकता है। कृषि व्यवस्था के प्रारंभ के पश्चात् भी ग्रामीण समुदाय के विकास के तीन चरण हैं

(i) आदिम गांव (Primitive Village)-आदिम गांव ग्रामीण समुदाय के विकास का प्रारंभिक स्तर था चूंकि इस स्तर में मानव को कृषि का ज्ञान नया-नया ही हुआ था। ये गांव कुटुंब के रूप में छोटे-छोटे गांव थे। इस गांव में नातेदारी की अहम भूमिका थी। ग्रामीण समुदाय 15-20 परिवारों का एक समूह होता था। भूमि सबकी साझी संपत्ति होती थी व संपूर्ण समुदाय की धरोहर मानी जाती थी।

गांव पर मुखिया का नियंत्रण होता था। विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अदल-बदल की व्यवस्था (Barter System) प्रचलित थी। आधुनिक काल में भी भारत की अनेक जनजातियों में गांवों के इसी प्रारंभिक स्वरूप के दर्शन होते हैं। जैसे कि बंगाल की संथाल, बिहार के मुंडा, राजस्थान की भील तथा गोंड जनजातियों इत्यादि में इस प्रकार के गांव देखने को मिलते हैं।

(ii) मध्यकालीन गांव (Medieval Village)-मध्यकालीन गांव आदिम काल के गांव से कुछ भिन्न था। इस काल तक पहुंचते गांव की आदिम काल की अनेक विशेषताएं होने लगीं। ग्रामीण समुदाय, जो रक्त संबंधों के आधार पर आधारित था तथा भाईचारे की भावना से बंधा हुआ था।

ये संबंध ढीले पड़ने लगे व भाईचारे की भावना में कमी आने लगी, इस काल में गांव की जनसंख्या में वृद्धि हुई व साथ ही साथ निजी संपत्ति व स्वार्थ की भावना पनपने लगी। गांवों का आकार विस्तृत हुआ तथा समाज दो वर्गों भू-स्वामी वर्ग तथा भूमिहीन वर्ग में बंट गया। इस काल में कृषि कार्यों को अधिक महत्त्व नहीं दिया गया जिससे कृषि व्यवसाय पिछड़ता गया।

(iii) आधुनिक गांव (Modern Village)-आधुनिक गांव, गांव के विकास का विकसित स्तर है। ग्रामीण समुदाय की जनसंख्या बढ़ने के कारण इनके आकार में भी वृद्धि हुई है तथा सामुदायिक भावना लोप हो रही है। आधुनिक ग्रामीण समुदाय नगरों के संपर्क में आ रहे हैं इससे इनकी संस्कृति व जीवन शैली दिन-ब-दिन प्रभावित हो रही है।

कृषि कार्य के लिए आधुनिक तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है व उत्पादन बड़ी-बड़ी मशीनों से हो रहा है। भूमि पर व्यक्तिगत अधिकार हो रहा है। गांव में भी लोग नगरों की सुविधाओं का लाभ उठाने लगे हैं। आधुनिक समय में जो गांव नगरों के समीप हैं वह गांव आधुनिक गांव श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।

2. शिकार करने व फल-फूल एकत्र करने की अवस्था (Hunting and Food Collection Stage)-यह अवस्था मानव जीनव की प्रारंभिक अवस्था है। इसमें मानव फल-फूल एकत्र करता था व जंगली जानवरों का शिकार आदि करके अपनी भोजन संबंधी आवश्यकता की पूर्ति करता था। इस अवस्था में मानव को घर व वस्त्र आदि का तनिक भी ज्ञान न था। वह झुंड बनाकर भोजन की तलाश में जगह-जगह घूमता रहता था। इस तरह से मानव के जीवन में स्थिरता की कमी थी।

स्थिरता की कमी होने के कारण ग्रामीण समुदाय का तो प्रश्न ही नहीं उठता था। इस प्रकार का सामाजिक आर्थिक स्तर भारत की अनेक जन-जातियों में देखने को मिलता है। अस कुकी तथा कोनयक, हैदराबाद के चेचूं, बिहार के विरहोर तथा खड़िया जनजातियां इस अवस्था को प्रकट करती हैं।

3. पशु-पालन अवस्था (Pastoral Stage) यह अवस्था प्रथम अवस्था का कुछ विकसित रूप है। यहां मानव ने पशुओं का शिकार करने के स्थान पर उन्हें पालना शुरू कर दिया। मानव ने पशुओं के चारे के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना आरंभ किया जहां चारा उपलब्ध होता था वहीं मानव रहना शुरू कर देते थे। इस अवस्था में जीवन कम घुमंतू होने के कारण सामाजिक, पारिवारिक व राजनीतिक आदि संगठनों का विकास होने लगा। इस प्रकार इस अवस्था में पहुंचते-पहुंचते मानव जीवनयापन साधनों में वृद्धि हुई व जनसंख्या में भी वृद्धि हुई।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

प्रश्न 8.
ग्रामीण समुदाय की प्रमुख विशेषताओं को विस्तार से लिखो।
अथवा
ग्रामीण समुदाय की कोई दो विशेषताएं दें।
उत्तर:
ग्रामीण समुदाय को इसकी विशेषताओं के आधार पर एक अलग समुदाय के रूप में जाना जाता है। इसकी मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. प्राथमिक संबंध (Primary Relations)-ग्रामी में व्यक्तियों में प्राथमिक संबंध पाए जाते हैं। गाँव का आकार लघु व सीमित होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से जानता व पहचानता है। ग्रामवासियों में आपस के संबंध प्रत्यक्ष, घनिष्ठ व समीपता के होते हैं। इन संबंधों का आधार परिवार, पड़ोस व नातेदारी होती है। ग्रामवासियों के संबंध औपचारिकता व कृत्रिमता व दिखावे से दूर होते हैं। लोगों में परस्पर सहयोग की भावना होती है व उन पर प्राथमिक नियंत्रण होता है।

2. कृषि मुख्य व्यवसाय (Agriculture as the main Occupation)-भारतीय ग्रामीण समुदाय की मुख्य विशेषता कृषि व्यवसाय है। यहां पर 70% से अधिक लोग प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से कृषि व्यवसाय के आधार पर निर्भर हैं। गाँव में कृषि व्यवसाय मुख्य व्यवसाय होता है, परंतु इसके साथ ही कुछ लोग दूसरे व्यवसाय जैसे, मिट्टी के बर्तन, गुड़, रस्सी, चटाई व वस्त्र बनाने का काम भी करते हैं। भारतवर्ष की कृषि प्रकृति के साधनों पर निर्भर रती है। यदि प्राकृतिक परिस्थितियां अनुकूल हों तो फसल का उत्पादन अच्छा होता है अन्यथा प्रतिकूल परिस्थिति में उत्पादन कम व किसान की मेहनत अधिक होती है। कृषि भारत वर्ष की अर्थव्यवस्था का मूल आधार है।

3. सीमित आकार (Limited Size)-ग्रामीण समुदाय में व्यक्ति प्रकृति के ऊपर निर्भर रहते हैं। प्रकृति पर प्रत्यक्ष निर्भरता ही इस समुदाय के आकार को छोटा व सीमित बनाती है। कृषि जन-जाति के जीवन-यापन का मुख्य आधार है व कृषि कार्य के लिए भूमि का अधिक मात्रा में होना अनिवार्य है। पर्याप्त भूमि के चारों ओर लोग अपना अपना घर बनाते हैं। इसलिए गांवों का आकार बहुत बड़ा नहीं होता है।

4. संयुक्त परिवार (Joint Family) संयुक्त परिवार प्रथा भारतीय गाँवों की मुख्य विशेषता है। संयुक्त परिवार में तीन या चार पीढ़ियों के लोग एक साथ एक घर में रहते हैं। इन सब लोगों का भोजन, संपत्ति व भूमि साझी होती है। ऐसे परिवारों का संचालन परिवार के वृद्ध व्यक्ति द्वारा होता है। परिवार का मुखिया ही परिवार का निर्णय लेता है व प्रत्येक सदस्य मुखिया की आज्ञा का पालन करता है। भारतवर्ष में परिवारों का आरंभिक रूप रेवार प्रणाली ही था। वर्तमान में बदलती परस्थितियों के साथ परिवार के स्वरूप में भी परिवर्तन आया है। संयुक्त परिवार एकांगी परिवारों में परिवर्तित हो रहे हैं। इन परिवारों में एक साथ दो पीढ़ियों के लोग अर्थात् पति-पत्नी व उनके अविवाहित बच्चे एक साथ रहते हैं।

5. सरल जीवन (Simple Living)-ग्रामीण व्यक्तियों का जीवन सरल व सादा होता है। प्रकृति के प्रत्यक्ष संपर्क के कारण गाँवों के व्यक्ति सीधे, सरल व छल रहित स्वभाव के होते हैं। गाँव के लोग नगरों की तड़क-भड़क व चमक-दमक के बनावटी जीवन से दूर होते हैं। गांव के लोग अपने परिवार व समुदाय के आदर्शों की रक्षा करता है। इन लोगों की आवश्यकताएं सीमित होती हैं। इनमें संघर्ष व मानसिक तनाव भी कम पाया जाता है। गाँव के लोग नगरों के जीवन को पसंद नहीं करते हैं उनकी पसंद साधारण भोजन, शुद्ध हवा व प्रेम सादगीपूर्ण व्यवहार है।

6. जजमानी व्यवस्था (Jajmani System)-जजमानी व्यवस्था भी भारतीय ग्रामीण समुदाय की एक महत्त्वपूर्ण व्यवस्था है। यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अंतर्गत विभिन्न जातियां अपने-अपने परंपरागत व्यवसाय के द्वारा एक दूसरे की सहायता या सेवा करती हैं। ब्राह्मण विवाह, उत्सव व त्यौहारों के समय दूसरी जातियों के यहां धार्मिक क्रियाओं को पूरा करवाते हैं इसी तरह धोबी कपड़ा धोने, लुहार लोहे के औजार बनाने, बारबर बाल काटने, जुलाहा कपड़ा बुनने, कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाने व चर्मकार जूता इत्यादि बनाने का कार्य एक दूसरे के लिए करते हैं। इसके अंतर्गत एक जाति दूसरी जाति की सेवा करती है। इन सेवाओं के बदले में उन्हें अनाज व पैसे दिए जाते हैं। जो व्यक्ति सेवा प्रदान करता है उसे ‘प्रजानन’ या ‘कमीन’ या ‘सेवक’ कहा जाता है। जिन व्यक्तियों को सेवाएं प्रदान की जाती हैं उन्हें ‘जजमान’ कहा जाता है। इस प्रकार यह व्यवस्था पारस्परिक सहयोग के आधार पर विकसित व्यवस्था है।

7. सामुदायिक भावना (Community Feeling) ग्रामीण समुदाय का आकार सीमित होता है। अतः सदस्यों में अपने गांव के प्रति लगाव व हम की भावना (We Feeling) व भाईचारे की भावना पाई जाती है। ग्रामीण व्यक्ति संपूर्ण गांव या समुदाय के कल्याण के बारे में सोचते हैं। सभी लोग प्राकृतिक विपदाओं जैसे-बाढ़, भूकंप, सूखा, अकाल, महामारी आदि में सामूहिक रूप से मिलकर मुकाबला करते हैं। सब लोग मिलकर पूजा-पाठ व हवन यज्ञ आदि करते हैं तथा प्राकृतिक शक्तियों को खुश करने का प्रयास करते हैं। गांवों में व्यक्ति खुद को गांव से संबंधित करके गौरव महसूस करता है। बदलती परिस्थितियों के साथ ग्रामवासियों में सामुदायिक भावना में कमी आ रही है।

8. प्रकृति से घनिष्ठ संबंध (Close Contact with Nature)-ग्रामीण समुदाय का प्रकृति से समीपता का संबंध पाया जाता है। ग्रामीण लोग शुद्ध वायु, रोशनी, जल, सर्दी व गर्मी आदि प्राकृतिक दशा में जीवन व्यतीत करते हैं। इन लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि होता है। इसके अतिरिक्त मछली पकड़ना, पशु-पालन, शिकार व भोजन इकट्ठा करना आदि क्रियाएं भी ये लोग करते हैं।

इन सब कार्यों के लिए व्यक्ति को प्रकृति के प्रत्यक्ष संपर्क में रहना पड़ता है। किसान खेतों में काम करते समय हवा, धूप, छाया, वर्षा आदि से प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होते हैं। ग्रामवासी ठंडी हवा व पानी को प्राप्त करने के लिए कृत्रिम संसाधनों का सहारा नहीं लेते हैं। ग्रामीण व्यक्ति अपने आपको मौसम के अनुकूल ढालते हैं व प्राकृतिक वातावरण में अपना जीवन निर्वाह करते हैं।

9. स्त्रियों की निम्न स्थिति (Lower status of Women) ग्रामीण य में स्त्रियों की सामाजिक व आर्थिक स्थिति निम्न रही है। अशिक्षा व अज्ञानता के कारण स्त्रियों को अबला एवं दासी के रूप में समझा जाता रहा है। स्त्रियों की निम्न स्थिति के लिए गांव का सामाजिक आकार, जाति व्यवस्था, प्रथाएं व परंपराएं, लोकरीतियां, रूढिर उत्तरदायी रही हैं। शिक्षा की कमी के कारण रूढ़िवादी व भाग्यवादी दृष्टिकोण विकसित हुआ।

धार्मिक अंधविश्वासों के कारण सती प्रथा, पर्दा प्रथा, बाल-विवाह प्रथा, विधवा पुनर्विवाह पर प्रतिबंध, दहेज प्रथा इत्यादि का विकास उतरोत्तर बढ़ता गया जिसका नकारात्मक प्रभाव स्त्रियों पर पड़ा। इन सब कारणों से स्त्री मुख्य रूप से ग्रामीण स्त्री की स्थिति शोचनीय ही होती चली गई। आधुनिक समाज में अनेक परिवर्तनों के कारण स्त्रियों की स्थिति में कुछ सुधार हुआ है।

10. जाति-प्रथा (Caste System)-जाति प्रथा भारतीय समाज की एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक संस्था है। जाति व्यवस्था सामाजिक स्तरीकरण का मुख्य आधार है। यह संस्था जातीय आधार पर व्यक्तियों को विभिन्न स्तरों में बांट देती है। प्राचीन काल में भारत में चार मुख्य जातियां ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र पाई जाती थीं।

लेकिन आजकल ये जातियां तीन हजार से अधिक जातियों-उपजातियों में विभाजित हो गई हैं। जाति की सदस्यता जन्म पर आधारित होती है। प्रत्येक जाति के सदस्य को जातीय आधार पर परंपरागत व्यवसाय को अपनाना पड़ता है। जाति के अंतर्गत अंतर्विवाही प्रथा (Endogamy) प्रचलित है।

व्यक्ति को अपनी ही जाति के अंदर विवाह करना होता है। जाति की एक पंचायत होती है जो व्यक्तियों के जीवन को नियंत्रित व निर्देशित करती है। समाज में जातीय आधार पर सदस्यों के लिए खान-पान संबंधी व सामाजिक सहवास के नियमों की भी व्यवस्था होती है। जाति के नियमों का उल्लंघन करने पर व्यक्ति को जाति से या तो बहिष्कृत कर दिया जाता है या उसे दंड दिया जाता है।

जाति व्यवस्था के अनुसार ब्राहमण को समाज में सर्वोच्च स्थान दिया जाता है व शद्र को निम्न स्थान प्राप्त है। क्षत्रिय व वैश्य को ब्राह्मण की अपेक्षा निम्न दर्जा प्राप्त है। जातियों के बीच में परस्पर भेदभाव व छुआछूत की भावना का भी विकास हुआ है। ग्रामीण समुदाय में जाति व्यवस्था का गहरा प्रभाव है।

11. सामुदायिक भावना (Community Feeling)-भारतीय ग्रामीण समुदाय अपेक्षाकृत आकार में छोटे होते हैं जिसके कारण व्यक्तियों में एक दूसरे के साथ प्रत्यक्ष व व्यक्तिगत संपके रहता है। गांव के सदस्य अपनी सीमित आवश्यकताओं की पूर्ति परस्पर सहयोग के आधार पर ही पूरी कर लेते हैं। इस प्रकार निकटता व समीपता के संपर्क के परिणामस्वरूप ग्रामवासियों में ‘हम की भावना’ (We Feeling) का विकास होना स्वाभाविक ही है।

प्रश्न 9.
नगरीय समुदाय क्या होता है? इसकी विशेषताओं के बारे में बताओ।
अथवा
नगरीय समुदाय किसे कहते हैं?
अथवा
नगरीय समुदाय को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
भारत में नगरों की संख्या और नागरिक संख्या में बहुत तेजी से वृद्धि हो रही है। वर्तमान समय में देश में पांच हजार से भी अधिक नगर एवं कस्बे हैं। शहरी क्षेत्रों में लगातार जनसंख्या में वृद्धि होने के कारण वहां के लोगों का जीवन क्षेत्र प्रभावित हुआ है। औद्योगीकरण, आधुनिकीकरण, यातायात व दूरसंचार के विकास, शैक्षणिक, तकनीकी तथा वैज्ञानिक संस्थाओं के विकास से शहरों के निवासियों में नवीन जीवनशैली विकसित हुई है। मध्यम एवं उच्च वर्ग के लोगों की आवश्यकताएं पूर्ति में विशेष समस्या नहीं आती जबकि निम्न वर्ग के लोगों के लिए आजीविका अर्जित करना काफ़ी मुश्किल होता है। नगरों में जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ने के लिए अपार अवसर उपलब्ध होते हैं।

नगर या नगरीय समुदाय का अर्थ। – (Meaning of City or Urban Community):
साधारण शब्दों में नगर से अभिप्राय एक ऐसे औपचारिक और विस्तृत समुदाय से है, जिसका निर्धारण एक विशेष क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों के जीवन स्तर तथा नगरीय विशेषताओं के आधार पर होता है। शाब्दिक रूप में नगर शब्द अंग्रेजी भाषा के सिटी (City) का रूपांतर है और सिटी शब्द लैटिन भाषा के सिविटाज़ (Civitas) से बना है जिसका अर्थ है नागरिकता।

इसी तरह अंग्रेजी भाषा का Urban शब्द भी लैटिन भाषा के Urbans शब्द से बना है जिसका अर्थ है शहर। लैटिन भाषा के Urbs शब्द का तात्पर्य भी City अर्थात् शहर है। इस प्रकार नगर या शहर दोनों धारणाएं एक ही हैं। नगर के अर्थ को अधिक रूप से स्पष्ट रूप से समझने के लिए अनेक विचारकों ने अनेक आधारों पर परिभाषाएं दी हैं-

जनसंख्या के आधार पर परिभाषा (Definition on the basis of Population)-अमेरिका के जनगणना ब्यूरो के अनुसार नगर ऐसे स्थान हैं जिनकी जनसंख्या 25,000 हो या उससे अधिक हो। इस तरह फ्रांस में 2,000 और मिस्र में 11,000 से अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्रों को नगर की संज्ञा दी जाती है। भारतवर्ष में 5,000 या इससे अधिक जनसंख्या वाले समुदाय को शहरी क्षेत्र कहा जाता है, जिसका जन घनत्व 400 या इससे अधिक होता तथा 75 प्रतिशत या इससे अधिक पुरुष सदस्य गैर-कृषि कार्य करते हैं।

विलिकाक्स (Willicox) के अनुसार, “नगर का तात्पर्य उन सभी क्षेत्रों से है जहां प्रति वर्ग मील में जनसंख्या का घनत्व एक हज़ार व्यक्तियों से अधिक हो तथा व्यावहारिक रूप से कृषि न की जाती हो।”

व्यवसाय के आधार पर परिभाषा (Definition on the basis of Occupation)-व्यवसाय के आधार पर ऐसे क्षेत्र जहां पर व्यक्तियों का व्यवसाय कृषि से संबंधित नहीं है, उनको नगर कहा जाता है।

बर्गल (Bergal) के शब्दों में, “नगर एक ऐसी संस्था है जहां के अधिकतर निवासी कृषि कार्य के अतिरिक्त अन्य उद्योगों में व्यस्त हों।”

नगरीय समुदाय की विशेषताएँ – (Characteristics of Urban Community):
1. विभिन्न व्यवसाय (Different Occupation) नगरों का विकास विभिन्न प्रकार के व्यवसायों के आधार पर होता है। नगरों में अनेक उद्योग, धंधे एवं संस्थान पाए जाते हैं, जिसमें अनेक व्यक्ति विभिन्न प्रकार के कार्यों को करते हैं। इंजीनियर, डॉक्टर, वैज्ञानिक, मैनेजर, कुशल एवं अकुशल आदि असंख्य नये-नये पदों का सृजन होता है। अनेक व्यवसायों को पूरा करने के लिए अधिक जनसंख्या का पाया जाना भी आवश्यक है।

2. व्यक्तिवादिता (Individualism) व्यक्तिवादिता का रूप भी नगरीय समुदाय में देखने को मिलता है। यहां पर सामुदायिक भावना की तुलना में व्यक्तिवादिता की भावना अधिक देखने को मिलती है। नगर में हर एक व्यक्ति अपने हितों के बारे में विचार करता है। व्यक्ति प्रत्येक क्षेत्र में साधन संपन्नता और अधिक-से-अधिक धन संग्रह को ही जीवन का अंतिम उददेश्य मानता है। व्यक्तिवादिता का गण आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है बल्कि पारंपरिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में भी इसका विकास हो चका है।

3. जनसंख्या की अधिकता (Large Population)-जनसंख्या की बहुलता नगरीय क्षेत्र की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है। जनसंख्या का घनत्व अर्थात् नगरों में प्रति वर्ग किलोमीटर में काफ़ी अधिक व्यक्ति निवास करते हैं। 2001 दिल्ली में जनसंख्या का घनत्व 9,294 था। जनसंख्या की अधिकता के आधार पर ही नगरों का विकास विभिन्न श्रेणियों जैसे नगर व उपनगर में किया जाता है।

दिल्ली तथा मुंबई की जनसंख्या एक-दो करोड़ से ऊपर है, जबकि भारत के 13 राज्यों की जनसंख्या 1 करोड़ से कम है। नगर में औद्योगिक संस्थानों, शिक्षण संस्थानों तथा व्यापार व वाणिज्य केंद्रों के बाहुल्य के कारण जनसंख्या का घनत्व अधिक पाया जाता है। जनसंख्या की अधिकता ने ही नगरों में गंदी बस्तियों, अपराध, प्रशासन, ग़रीबी, बेकारी, भूखमरी, भिक्षावृत्ति आदि अनेक समस्याओं को पैदा किया है।

4. आर्थिक वर्ग विभाजन (Division in Economic Classes) नगरीय समुदाय में व्यक्ति की जाति, धर्म अथवा व्यवसाय को कोई महत्त्व नहीं होता लेकिन आर्थिक आधार पर जनसंख्या अनेक वर्गों में विभाजित हो जाती है। नगरों में केवल पूंजीपति और श्रमिक 2 वर्गों में ही जनसंख्या का विभाजन नहीं होता है बल्कि अनेक छोटे-छोटे अन्य वर्ग व उपवर्ग भी आर्थिक स्थिति के आधार पर पाये जाते हैं। वर्गीय आधार पर ऊंच-नीच का भेद पाया जाता है।

5. प्रतिस्पर्धा (Competition)-नगरीय समुदाय में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ने के अनेक अवसर उपलब्ध होते हैं लेकिन शिक्षित एवं योग्य व्यक्तियों की भी कमी नहीं होती। इसलिए शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश नौकरियों तथा पदोन्नति के लिये प्रतिस्पर्धा होती है। औद्योगिकीकरण के विकास से तो नगरों में गलाकाट (Throatent) प्रतियोगिता बढ़ी है।

6. दुवैतीयक संबंध (Secondary Relations) जनसंख्या की अधिकता नगरीय समुदाय की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। अतः यहां पर सब लोगों के साथ प्राथमिक संबंध पर आमने-सामने के नहीं होते हैं। नगर के लोगों में अधिकतर संबंध औपचारिक रूप में विकसित होते हैं। ये संबंध अस्थायी प्रकृति के होते हैं। व्यक्ति आवश्यकता पूर्ति हेतु इन संबंधों का विकास करता है तथा आवश्यकता पूर्ति के पश्चात् इन संबंधों को तोड़ देता है। इस प्रकार नगरीय जीवन का आधार द्वैतीयक तथा औपचारिकता पूर्ण संबंध होता है।

7. आवास की कमी (Lack of Home)-मकान की कमी भी नगरीय समुदाय की एक विशेषता है। बड़े-बड़े नगरों में आवासीय समस्या एक अति गंभीर समस्या होती है। अनेक निम्न वर्ग के लोग सड़कों के किनारे, वृक्षों के नीचे या झुग्गी-झोंपड़ियों में रहकर अपनी रातें व्यतीत करते हैं। नगरीय समुदाय में मध्यवर्गीय लोग एक या दो कमरों में रहकर ही अपना जीवन व्यतीत करते हैं। इनके बच्चों के लिए न तो खेलने-कूदने के लिये खुली जगह, न ही पढ़ने के लिये अलग से कमरे होते हैं।

8. सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility)-नगरों में सामाजिक और भौगोलिक गतिशीलता भी अधिक पाई जाती है। नगरों में लोग अत्यधिक लाभ हेतु एक स्थान को छोड़कर दूसरे स्थानों पर जाने के लिए तैयार रहते हैं। स्थानीय गतिशीलता के साथ-साथ सामाजिक गतिशीलता भी देखने को मिलती है। कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति की योग्यता के आधार पर ही उसके जीवन में अनेक बार समाज में उसकी स्थिति ऊंची या नीची होती रहती है।

9. स्त्रियों की उच्च स्थिति (Higher Status of Woman)-नगरीय समुदाय में स्त्रियों की स्थिति अपेक्षाकृत ऊंची होती है। इन समुदाय में स्त्री-पुरुष के समान ही समाज के प्रत्येग वर्ग में काम करती हुई देखी जा सकती है। इन समाजों में अनेक सामाजिक कुरीतियों जैसे—पर्दा प्रथा, बाल-विवाह, स्त्री शिक्षा के ऊपर प्रतिबंध इत्यादि कम ही देखने को मिलते हैं जिसके कारण स्त्रियों के व्यक्तित्व के विकास में कोई कमी नहीं आती और स्त्रियां समाज के प्रत्येक क्षेत्र में पुरुषों के साथ भूमिका निभाती नज़र आती हैं।

10. पारिवारिक नियंत्रण में कमी (Decline in Family Control)-नगरीय समुदाय में प्राथमिक संबंधों और सामुदायिक भावना की कमी पाई जाती है। नगर में रहते हुए व्यक्ति को खाना बनाने की सुविधा, कपड़े-धोने की सुविधा तथा बच्चों की देख-रेख आदि के लिये शिशु ग्रह इत्यादि सुविधाएं मिल जाती हैं, जिससे उसे इन सब आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये परिवार के अन्य सदस्यों पर निर्भर नहीं होना पड़ता। इन समुदायों में स्त्रियां भी आर्थिक गतिविधियों में भाग लेती हैं जिससे स्त्रियों की जो परिवार या बच्चों के प्रति ज़िम्मेदारियां अन्य संस्थाओं के ऊपर आ जाती हैं। इस प्रकार पारिवारिक संबंधों का स्थान वर्तमान में पैसे ने ले लिया है। इन सबके कारण पारिवारिक संबंधों में नियंत्रण में कमी आना स्वाभाविक है।

11. तकनीकी एवं आविष्कार (Technology and Invention)-नगरीय समुदाय में विकसित तकनीकी, शिक्षा एवं परीक्षण पाया जाता है। नगर के लोगों को अनेक नयी-नयी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिसके लिए वे नये-नये आविष्कारों व प्रविधियों की खोज करते रहते हैं। नगरों में उच्च शैक्षणिक, तकनीकी तथा वैज्ञानिक संस्थाओं में विज्ञान एवं तकनीक का विकास करते रहते हैं।

12. सामाजिक समस्याओं का केंद्र (Centre of Social Problems)-नगरों ने समाज में अनेक समस्याओं को प्रोत्साहन देने में विशेष भूमिका निभाई है। वर्तमान समय में समाज जिन प्रमुख समस्याओं से जूझ रहा है उनमें से अधिकांश समस्याओं का केंद्र नगर है। समाज में अपराध, भिक्षावृत्ति, भ्रष्टाचार, वर्ग संघर्ष, मद्यपान, वेश्यावृत्ति, युवा तनाव, बेकारी, बेरोजगारी, निर्धनता, पारिवारिक विघटन, नैतिक मूल्यों का ह्रास इत्यादि सभी प्रकार नगरों की समस्याएं नगरों की ही देन हैं। नगरीय जनसंख्या प्रविधियों आकार में वृद्धि जिस दर से बढ़ती जा रही है ये समस्याएं दिन-प्रतिदिन और गंभीर रूप धारण करती जा रही हैं।

13. धर्म का कम प्रभाव (Decreasing Influence of Religion)-नगरीय समुदायों में व्यक्ति शिक्षित होता है। इन समुदायों में व्यक्ति अंधविश्वासों व रूढ़िवादियों या भाग्यवादिता के आधार पर अपना जीवन व्यतीत नहीं करता है। व्यक्ति अपनी बात को तर्क व वैज्ञानिकता के आधार पर करता है और धार्मिक मूल्यों को भी तर्क की कसौटी पर समझना चाहता है। इस प्रकार धर्म की प्राथमिकता को सिद्ध न कर पाने के कारण उसका विश्वास व आस्था धर्म पर कम होती जा रही है।

प्रश्न 10.
ग्रामीण तथा नगरीय समुदायों में अंतर बताओ।
अथवा
ग्रामीण नगरीय विभिन्नताओं की विवेचना कीजिए।
अथवा
ग्रामीण तथा नगरीय समुदाय में अंतर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भारत में ग्रामीण व नगरीय समुदाय में अंतर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
ग्रामीण नगरीय भिन्नताओं पर अपने विचार व्यक्त करें।
अथवा
ग्रामीण नगरीय विभिन्नताएं बताइए।
अथवा
ग्रामीण नगरीय भिन्नताओं पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
विभिन्न विद्वानों द्वारा प्रस्तुत ग्रामीण व नगरीय अंतर को निम्न आधारों पर स्पष्ट किया गया है-
1. वैवाहिक आधार पर अंतर (Difference based on Marriage) ग्रामीण समुदायों में विवाह को दो परिवारों को जोड़ने की कड़ी माना जाता है। यहां पर विवाह व्यक्ति अपनी ही जाति (Endogames) या उपजाति में करता है विवाह के निर्धारण में परिवार के सदस्यों तथा सगे-संबंधियों की महत्त्वपर्ण भमिका है विपरीत नगरीय समुदायों में विवाह दो व्यक्तियों का व्यक्तिगत मामला होता है।

विवाह तय करते समय लड़के व लड़की की पसंद या नापसंद को अधिक महत्त्व दिया जाता है। नगरों में मुख्यतया प्रेम-विवाह, अंतर्जातीय विवाह (Exogamy), तलाक तथा विधवा पुनर्विवाह की मात्रा गांवों की अपेक्षा अधिक पाई जाती है। गाँवों में बाल-विवाह एवं बेमेल विवाह होने की अधिक संभावना होती है जबकि नगरों में कम।

2. गतिशीलता के आधार पर अंतर (Difference based on Mobility) सामाजिक गतिशीलता के आधार पर भी ग्रामीण व नगरीय समुदाय अत्यधिक भिन्न हैं। ग्रामीण समुदायों में स्थिरता व स्थायित्व का गुण पाया जाता है। ग्रामीण व्यक्ति परिवर्तन के प्रति उदासीन रहते हैं। उनकी उदासीनता का कारण उनमें प्रशिक्षित भारतीय परंपराएं, प्रथाएं व रूढ़ियां हैं जिनसे उनका जीवन पूर्ण रूप से घुल-मिल जाता है। इसके विपरीत नगरीय समुदाय का महत्त्वपूर्ण गुण गतिशीलता का अधिक पाया जाना है।

नगरीय जीवन में व्यावसायिक अवसरों की अधिकता होने के कारण व्यक्ति शीघ्रता के साथ परिवर्तन के लिए सदैव तैयार रहता है। इस संदर्भ में ‘सोरोकिन तथा जिमरमैन’ का यह कथन सत्य प्रतीत होता है कि, “ग्रामीण समुदाय एक घड़े में भरे हुए शांत जल के समान है, जबकि नगरीय समुदाय केतली में उबलते हुए पानी के समान हैं, एक विशेष लक्षण स्थायित्व है जबकि दूसरे की विशेषता गतिशीलता है।”

3. पारिवारिक जीवन (Family Life)-ग्रामीण व नगरीय समुदायों के अंतर को अनेक विद्वानों ने पारिवारिक संबंधों तथा स्थिति के आधार पर भी व्यक्त किया है। ग्रामीण समुदाय में परिवार एक प्रभुत्वशाली व आत्म निर्भर इकाई है। यहां पर परिवार के प्रति सभी में सीमित उत्तरदायित्व की भावना होती है। परिवारों की संरचना संयुक्त परिवार (Joint Family) ही होती है तथा कर्ता की सत्ता सर्वोपरि एवं महत्वपर्ण होती है। परिवार की नैतिकता को व्यक्ति की नैतिकता माना जाता है।

विवाह, खानपान व सामाजिक संपर्क के क्षेत्र में व्यक्ति परिवार के नियमों की अवहेलना नहीं कर सकता है। इसके विपरीत नगरों में परिवार और व्यक्ति दो भिन्न इकाइयां बन गई हैं। आमतौर पर व्यक्ति की उच्च व निम्न स्थिति के आधार पर ही परिवार की स्थिति का बोझा होता है। इन समुदायों में एकाकी परिवार (Nuclear family) देखने को मिलते हैं। परिवार के सदस्यों के बीच संबंध औपचारिकता के होते हैं। संपत्ति व्यक्तिगत ही होती है। सभी व्यक्ति सामाजिक संपर्क में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आधार पर भाग लेते हैं। पारिवारिक सदस्यों के ऊपर परिवार का कोई नियंत्रण नहीं होता है।

4. विशेषीकरण के आधार पर अंतर (Difference based on Specialization)-विशेषीकरण की विशेषता मुख्य रूप से नगरीय समुदाय की है। ग्रामीण समुदाय में व्यक्ति के जीवन का कोई भी क्षेत्र विशेषीकृत नहीं होता है। व्यक्ति अपने जीवन से संबंधित सभी आवश्यकताओं को पूरा करने के बारे में थोड़ा बहुत ज्ञान अवश्य रखता है। ग्रामीण समुदाय का जीवन सामान्य जीवन होता है लेकिन नगरीय जीवन में विशेषीकरण का गुण अपनी चरम सीमा तक पहुंच गया है।

जैसे-जैसे प्रतिस्पर्धा बढ़ती जा रही है वैसे-वैसे प्रत्येक व्यक्ति एक विशेष क्षेत्र में विशेष योग्यता व कुशलता प्राप्त करने की कोशिश करता है। नगरों में आर्थिक क्षेत्र में ही नहीं बल्कि भौतिक संरचना में भी एक विशेषीकरण होता है। कहने का अभिप्राय यह है कि यहां पर विभिन्न व्यवसायों तथा विभिन्न स्थिति समूहों के स्थानीय क्षेत्र भी एक दूसरे से अलग होते हैं। इन समुदायों में यहां तक कि निम्न मध्यम एवं उच्च वर्ग के व्यक्तियों के निवास स्थान भी एक-दूसरे से अलग होते हैं।

5. सामाजिक दृष्टिकोण में अंतर (Difference in Social Attitude)-गांवों की अपेक्षा नगरों में सामाजिक विघटन अधिक देखा जाता है। गांव के लोग अधिकतर भाग्यवादी होते हैं। वे प्रकृति व ईश्वर के ऊपर विश्वास करते हैं जबकि नगरवासी अपने श्रम के ऊपर ही विश्वास करते हैं तथा श्रम को अधिक महत्त्व देते हैं। गांव में धर्म को अधिक माना जाता है जबकि नगर में तर्क व वृद्धि एवं विवेक को मुख्य माना जाता है। गांव के लोग सरल व सादे होते हैं। उनका जीवन दिखावे या बनावटीपन से दूर होता है जबकि नगरीय लोगों का जीवन कृत्रिमता पूर्ण व दिखावे से भरपूर होता है। इस प्रकार दोनों समुदायों की विचारधारा में दिन-रात का अंतर देखने को मिलता है।

6. जनसंख्या के आधार पर अंतर (Difference based of Population)-ग्रामीण व नगरीय समुदायों में सबसे बड़ा अंतर जनसंख्या का है। ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा नगरीय क्षेत्रों में अधिक जनसंख्या पाई जाती है। जनसंख्या कम व अधिक होने के कारण ही ग्राम का आकार सीमित व छोटा होता है व नगर विस्तृत व बड़े आकार के होते हैं।

नगरों में लोगों की शिक्षा, रोज़गार तथा स्वास्थ्य संबंधी सभी सुविधाएं प्राप्त होती हैं। इस कारण भी यहां पर जनसंख्या का अधिक दबाव रहता है। लोग अधिक विकसित सुविधाएं प्राप्त करने के लिए ग्रामों में शहरों की तरफ आते हैं। अतः ग्रामों की जनसंख्या कम व शहरों की जनसंख्या में वृदधि होती रहती है।

7. सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification)-सामाजिक स्तरीकरण के आधार पर भी ग्रामीण व नगरीय समुदाय में बहुत अंतर देखने को मिलता है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्तरीकरण का आधार जाति है। यहां पर अधिकांश लोग कृषि व्यवसाय से संबंधित हैं। परिणामस्वरूप स्तरीकरण का एक आधार कृषि व्यवस्था भी है।

इस व्यवस्था में एक वर्ग किसान का होता है व दूसरा ज़मींदार का। जमींदार की स्थिति किसान की अपेक्षा गांव में उच्च मानी जाती है जबकि नगरों में स्तरीकरण जातीय आधार पर नहीं होता है। वहां पर वर्ग व्यवस्था के आधार पर स्तरीकरण होता है। नगरों में भी दो वर्ग अधिक प्रसिद्ध होते हैं।

एक तरफ पूंजीपति वर्ग जिसके पास पूंजी अधिक होती है तथा दूसरी ओर मज़दूर या श्रमिक वर्ग जो दिन-रात अपना श्रम बेचकर अर्थात् मेहनत-मजदूरी कर अपनी दो वक्त की रोटी कमाता है। प्रो० बोगार्डस (Prof. Bogardus) के अनुसार, “अधिकतर वर्ग विषमताएं नगर का लक्षण है।” ग्रामों में नगरों की भांति वर्ग-विषमताएं अर्थात् वर्ग संघर्ष नहीं होता है। इन समुदायों में तो आये दिन पूंजीपतियों व मजदूरों के बीच संघर्ष चले रहते हैं।

8. मनोवैज्ञानिक आधार पर अंतर (Difference based on Psychology)-ग्रामीण व शहरी लोगों में मनोवैज्ञानिकता के आधार पर भी स्पष्ट भेद देखा जा सकता है। ग्रामीण लोगों में सामुदायिक व भाईचारे की भावना पाई जाती है। इन लोगों में प्रेम, त्याग, बलिदान व सहनशीलता की भावना देखने को मिलती है। यह सब मिल-जुल कर अपनी आवश्यकताओं को परस्पर सहयोग के आधार पर पूरा करते हैं। इसके विपरीत नगर के लोगों में व्यक्तिवादिता की भावना पाई जाती है। नगरीय लोग सामुदायिक या सामूहिकता के आधार पर एक दूसरे से संबंधित नहीं होते बल्कि व्यक्तिगत हितों को अधिक महत्त्व देते हैं।

9. सांस्कृतिक जीवन में अंतर (Difference in Cultural Life)-ग्रामीण संस्कृति में स्थिरता व स्थायित्व पाया जाता है। यह सांस्कृतिक स्थिरता समाज में अंधविश्वासों, रूढ़िवादिता एवं कूप मंडूकता को जन्म देती है। ग्रामीण संस्कृति में परंपराओं व प्रथाओं का मुख्य स्थान होता है। नगरों की संस्कृति में परिवर्तनशीलता का गुण पाया जाता है। नगरों में सांस्कृतिक परिवर्तन को प्रगति का आधार माना जाता है। नगरों में व्यक्ति फ़ैशन व नवीनता को अधिक महत्त्व देते हुए इसे अपनाते हैं।

10. स्त्रियों की स्थिति में अंतर (Difference in the Status of Women)-ग्रामीण समुदायों में शिक्षा की कमी, बाल-विवाह, पर्दा-प्रथा आदि के कारण स्त्रियों की स्थिति बहुत निम्न होती है। स्त्री-शिक्षा का अभाव होने के कारण स्त्रियां खुद को घर की चारदीवारी तक ही सीमित रखती हैं व अपने जीवन को घर के काम-काज व बच्चों के पालन-पोषण व पति सेवा में ही व्यतीत कर देती हैं। परिणामस्वरूप वे अपने अधिकारों से अनभिज्ञ रहती हैं व अपनी स्थिति को बद से बदतर बनाती चली जाती हैं।

नगरीय समुदायों में स्त्रियों की स्थिति ग्रामीण समुदायों से विपरीत है। यहां पर स्त्रियां अधिक शिक्षित एवं स्वतंत्र होती हैं। स्त्रियां स्वयं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होती हैं व अपने जीवन के अनेक महत्त्वपूर्ण फैसले स्वतंत्रतापूर्वक लेने में समर्थ होती हैं। इन समुदायों में महिलाएं अपनी इच्छानुसार किसी भी क्षेत्र में योग्यता व कुशलता के आधार पर प्रवेश कर सकती हैं उनके ऊपर किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं होता।

11. सामाजिक विघटन में अंतर (Difference between Social Disorganisation) ग्रामीण समाजों में व्यक्ति सामूहिकता के साथ बंधा होता है। यही कारण है कि यहां पर विघटन कम देखने को मिलता है। इन समाजों में अपराध व बाल अपराध जैसी घटनाएं, हत्याएं, चोरी, बलात्कार, डकैती, बाल अपराध आदि घटनाएं साधारण बात होती हैं। इस प्रकार ग्रामों की अपेक्षा नगरों में सामाजिक विघटन के अधिक तत्त्व पाए जाते हैं।

वास्तव में ग्रामीण एवं नगरीय समुदाय को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है। नगरों में ग्रामीण समुदाय के तत्त्व पाये जाते हैं तथा गांवों में नगरीय समुदाय के तत्त्व विद्यमान होते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों का विकास, यातायात व दूरसंचार की सुविधा, समाचार-पत्रों, फोन, मोबाइल, रेडियो, दूरदर्शन व उच्च शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना से ग्रामीण समुदाय नगरीय समुदाय के अधिक निकट हो गया है। उद्योगों में निर्मित वस्तुओं की ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्धता से गांवों के लोगों की जीवन शैली शहरी जीवन शैली की तरह विकसित होने लगी है। दूसरी ओर नगरीय समुदायों में भी झुग्गी-झोंपड़ियों औद्योगिक मजदूरों व निम्न वर्गों का जीवन कृषि मज़दूरों व छोटे किसानों से काफ़ी मिलता-जुलता है।

12. सामाजिक नियंत्रण में अंतर (Difference in Social Control)-ग्रामीण व नगरीय समुदाय में सामाजिक नियंत्रण के साधनों के प्रकारों में भी पर्याप्त अंतर पाया जाता है। गांवों में सामाजिक नियंत्रण अनौपचारिक साधनों के माध्यम जैसे परिवार, धर्म, प्रथा, जाति, परंपरा, पंचायत, नैतिकता, जनरीति, लोकाचार तथा जनमत आदि को आधार पर रखा जाता है। ग्रामीण समुदाय में व्यक्ति के प्राथमिक व आमने-सामने के संबंध होते हैं, जिनके कारण हर व्यक्ति अपने-अपने कार्य के प्रति सदैव सचेत रहता है।

इन समुदायों में प्रथा राजा का काम करती है तथा रीति रिवाज व रूढ़ियां व्यक्ति के व्यवहार को नियंत्रित करती हैं। इसके विपरीत नगरीय समुदायों में नियंत्रण को बनाये रखने के लिए औपचारिक साधनों; जैसे-सरकार, गुप्तचर, पुलिस, कानून, न्यायालय, विभाग संविधान एवं वैतीयक समूहों का सहारा लिया जाता है। नगर में हर व्यक्ति के संबंध व्यक्तिगत होते हैं। सब व्यक्ति एक-दूसरे के लिए अपरिचित होते हैं। कोई किसी की परवाह नहीं करता है। नगरों में व्यक्ति अपने निजी हित को प्राप्त करने के लिए दूसरे व्यक्तियों से संघर्ष करता रहता है व व्यस्तता का जीवन जीता चला जाता है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

13. आर्थिक जीवन में अंतर (Difference in Economic Life)–नगरों तथा ग्रामों के व्यक्तियों के आर्थिक जीवन में भी पर्याप्त अंतर पाया जाता है। गांव मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर होते हैं। ग्रामवासियों की आवश्यकताएं सीमित होती हैं व आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन भी सीमित हो जाते हैं। ग्रामों में श्रम विभाजन वे विशेषीकरण कम मात्रा में मिलता है। ग्राम के लोग मितव्ययी व कम खर्चीले होते हैं। वे विलासितापूर्ण वस्तुओं से जहां तक हो सके दूर ही रहते हैं। इसके विपरीत नगरों में व्यक्तियों की आवश्यकताएं व इन्हें पूरा करने के साधन भी असीमित होते हैं। यहां पर श्रम विभाजन व विशेषीकरण चरम सीमा तक विकसित होता है। नगरों के लोग विलासितापूर्ण वस्तुओं के ऊपर फिजूलखर्ची अधिक करते हैं। रॉस के शब्दों में, “ग्रामीण जीवन सुझाव देता है ‘बचाओ’, नगरीय जीवन सुझाता है-खर्च करो।”

प्रश्न 11.
ग्रामीण समुदाय में कौन-कौन से परिवर्तन आ रहे हैं? .
उत्तर:
ग्रामीण समुदाय में परिवर्तन स्वाभाविक हैं। क्योंकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है तथा यह सामाजिक विकास के लिए आवश्यक भी है। भारतीय ग्रामीण समुदाय काफ़ी समय तक ग्रामीण गणराज्य के रूप में प्रतिष्ठित रहा लेकिन अनेक परिवर्तनों ने धीरे-धीरे इसकी आत्म-निर्भरता को प्रभावित किया। ग्रामीण समुदाय में परिवर्तन की गति नगरीय समुदाय की उपेक्षा कम होती है। ग्रामीण समुदाय में निम्न क्षेत्रों में परिवर्तन देखा जा सकता है-
1. सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन (Changes in Social Values)-ग्रामीण समुदाय सामाजिक मूल्यों में भी पर्याप्त परिवर्तन हुआ है। पहले इन समुदाय में रहने वाले व्यक्ति भाग्यवादी होते थे, व्यक्ति की स्थिति का निर्धारण जन्म के आधार पर होता था, लेकिन वर्तमान समय में सरकार के प्रयासों से धर्म, जाति तथा वंश संबंधी भेदभाव को काफ़ी हद तक कम कर दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप गांवों में भी समानता के प्रति जागरुकता की शुरुआत हुई है। अब ग्रामवासी अंधविश्वास में रहकर जादू-टोने या अलौकिक शांति को प्रसन्न करने के लिए धार्मिक क्रियाओं को नहीं करता बल्कि तार्किकता के आधार पर अपने कार्यों को पूरा करने लगे हैं।

2. जाति प्रथा में परिवर्तन (Changes in Caste System)-प्राचीन काल में ग्रामीण समुदाय में व्यक्तिगत व्यवहारों तथा पारस्परिक संबंधों का निर्धारण जातीय आधार पर होता था। जाति ही व्यक्ति की सामाजिक स्थिति व व्यवसाय का निर्धारण करती थी लेकिन ब्रिटिश शासन ने इस व्यवस्था को काफ़ी आघात पहुंचाया। ब्रिटिश शासकों ने अपनी कानूनी नीतियों और कानूनों के अंतर्गत विभिन्न जातियों को अपने व्यवसाय छोड़कर विभिन्न प्रकार के व्यवसायों के लिए प्रेरित किया। इससे जातीय प्रतिबंध ढीले पड़े और जाति व्यवस्था का प्रभाव भी समाज में कम हुआ। अब व्यक्ति की सामाजिक स्थिति उसकी जाति के आधार पर नहीं अपितु उसकी व्यक्तिगत उपलब्धियों से निर्धारित होती है।

3. परिवार व्यवस्था में परिवर्तन (Changes in Family System)-ग्रामीण समुदाय में मुख्यतः संयुक्त परिवार प्रथा पाई जाती है। अब इसकी संरचना में काफ़ी हद तक परिवर्तन हो चुका है। अब इन परिवारों के स्थान पर एकाकी परिवार प्रथा प्रचलित हो गई है। संयुक्त परिवार में जहां पूरे परिवार के ऊपर मुखिया का नियंत्रण होता था। आज इसका नियंत्रण कम होता जा रहा है। सदस्य अपनी इच्छा अनुसार अपने अधिकारों का प्रयोग करने लगे। परिवार अब आर्थिक इकाई भी नहीं रहा। ग्रामीण समुदाय में स्त्रियों को पहले से अधिक अधिकार प्राप्त हैं। परिवार के बीच कर्तव्य व अधिकारों का विभाजन परंपरागत तरीकों से नहीं बल्कि योग्यता व कार्य-कुशलता के आधार पर होता है।

4. यजमानी व्यवस्था में परिवर्तन (Changes in Jajmani System) यजमानी व्यवस्था ग्रामीण समाज की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता रही है। वर्तमान समय में निम्न जातियों की परिस्थिति को ऊपर उठाने के लिए सरकारी प्रयासों तथा नगरीकरण व शहरीकरण के प्रभाव के कारण यह व्यवस्था दिन-प्रतिदिन लुप्त होती जाती है। अब ग्रामवासियों द्वारा अपनाये गये व्यवसाय जातीय आधार पर नहीं हैं और न ही निम्न जातियों द्वारा सेवाओं का भुगतान अनाज या वस्तुओं के रूप में होता है। अब अधिकांश सेवाओं का भुगतान नगद मुद्रा द्वारा ही किया जाता है। अब भी कुछ क्षेत्रों में यह व्यवस्था प्रचलित है, परंतु अब काफ़ी परिवर्तन आ चुके हैं।

5. शिक्षा क्षेत्र के परिवर्तन (Changes In field of Education)-गांवों में अब शैक्षणिक संस्थाओं का अभूतपूर्व विकास हुआ है। थोड़ी-थोड़ी दूरी पर विद्यालयों और महाविद्यालयों के खुलने से गाँवों की साक्षरता दर में वृद्धि हुई है। लड़कों के साथ-साथ लड़कियों की शिक्षा के प्रति भी विशेष ध्यान दिया जाने लगा है। यातायात के साधनों के विकास के कारण गांवों से लोग शिक्षा प्राप्त करने हेतु शहरों में जाने लगे हैं। शिक्षा में ग्रामवासियों की जागरूकता बढ़ी है।

6. विवाह प्रथा में परिवर्तन (Changes in Marriage System)-ग्रामीण समुदायों में विवाहों में भी परिवर्तन होने लग पड़े हैं। गांवों में आमतौर पर अंतर्विवाही प्रथा प्रचलित थी। यद्यपि आज भी यही प्रथा पाई जाती है। आज भी माता-पिता अपनी संतान के लिये वर-वधु का चयन स्वयं करते हैं और अपनी जाति में करते हैं परंतु वर्तमान समय में ग्रामीण समुदायों में प्रेम-विवाह, बहिर्विवाह तथा विवाह-विच्छेद की अवधारणा विकसित हो चुकी है।

वर्तमान समय में विवाह, साथियों की शिक्षा, व्यक्तिगत विशेषताओं, आर्थिक व्यवसाय पर अधिक ध्यान दिया जाता है। विवाह की रीतियों में व्यय में भी कटौती कर देता है। भारतीय सरकार ने विवाह हिंदू अधिनियम के अंतर्गत लड़के की आयु 21 वर्ष और लड़की की आयु 18 वर्ष निर्धारित कर दी है। इसके साथ ही विधवा पुनः विवाह प्रतिबंध को भी हटा दिया है। दहेज विरोधी अधिनियम भी पास कर दिया है जिससे दहेज जैसी कुरीति भी समाप्त हो रही

7. ग्रामीण नारी स्थिति में परिवर्तन (Changes in the status of Rural Woman)-ग्रामीण स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन भी इससे अछूता नहीं रहा। पहले गांवों में स्त्रियों की स्थिति नगरीय स्त्रियों की स्थिति से बहुत निम्न होती र्तमान समय में सरकारी प्रयासों और स्त्रियों को अपनी जागरूकता के कारण इनकी स्थिति में काफी परिवर्तन हआ है। नारी अब पढ़ लिखकर अपने अधिकारों के प्रति सचेत हो गई है। आज ग्रामीण महिलाएं शिक्षित होकर सरकारी पदों पर नौकरी प्राप्त कर रही हैं।

आज हमें अनेक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में महिलाएं काम करती दिखाई देती हैं। इससे उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार का अंदाजा लगाया जा सकता है। राजनीतिक क्षेत्रों में स्त्रियों की भागीदारी बढ़ी है। सरकार ने इनके स्तर को ऊपर उठाने के लिए ग्राम पंचायतों में 33% स्थान आरक्षित कर दिये हैं। इसी तरह बी० डी० एस० की सदस्य चैयरमैन एम० एल० ए० तथा एम० पी० के रूप में स्त्रियां अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।

8. जीवन स्तर में परिवर्तन (Changes in Living Standards)-ग्रामीण व्यक्तियों के जीवन स्तर में भी परिवर्तन आ रहा है। गांवों में भी भोजन, वस्त्र, सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग, बिजली की सुविधा, जल की व्यवस्था तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का विकास उत्तरोतर बढ़ रहा है। ग्रामीण विकास हेतु अनेक शिक्षण संस्थानों को खोला जा रहा है जिसके माध्यम से ग्रामवासियों को शिक्षित किया जाता है। अब ग्रामीण व्यक्ति भी उच्च शिक्षा को प्राप्त करने हेतु कालेज व महाविश्वविद्यालयों में दाखिला ले रहे हैं। कुछ गांवों में स्नातक व स्नातकोत्तर शिक्षण संस्थाओं को खोला गया है, जिसके माध्यम से ज्ञान अर्जित कर ग्रामीण व्यक्ति शहर में जाकर अच्छी नौकरी प्राप्त कर रहे हैं। इस प्रकार ग्रामीण व्यक्तियों के स्तर में दिन-प्रतिदिन प्रगति हो रही है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना Read More »

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 8 सामाजिक आंदोलन

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 8 सामाजिक आंदोलन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Solutions Chapter 8 सामाजिक आंदोलन

HBSE 12th Class Sociology सामाजिक आंदोलन Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
एक ऐसे समाज की कल्पना कीजिए जहाँ कोई सामाजिक आंदोलन न हुआ हो, चर्चा करें। ऐसे समाज की कल्पना आप कैसे करते हैं, इसका भी आप वर्णन कर सकते हैं।
उत्तर:
इस प्रश्न का उत्तर विद्यार्थी अपने अध्यापक की सहायता से स्वयं दें।

प्रश्न 2.
निम्न पर लघु टिप्पणी लिखें (i) महिलाओं के आंदोलन (i) जनजातीय आंदोलन
अथवा
जनजातीय आंदोलनों की संक्षेप में चर्चा कीजिए।
अथवा
महिला आंदोलन पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
(i) महिलाओं के आंदोलन-प्राचीन समय से ही महिलाओं से संबंधित बहुत सी कुरीतियां भारतीय समाज में व्यापत थीं। 20वीं शताब्दी की शुरुआत में राष्ट्रीय तथा स्थानीय स्तर के कई महिला संगठन सामने आए। विमेंस इंडिया एसोसिएशन 1971 आल-इंडिया विमेंस 1926, नेशनल कांऊसिल फॉर विमेंन इन इंडिया इत्यादि कई प्रमुख महिला संगठन थे। इनमें से कईयों की शुरुआत सीमित कार्यक्षेत्र में हुई परंतु इनका कार्यक्षेत्र समय के साथ साथ विस्तृत हो गया।

उदाहरण के लिए ए० आई० डब्ल्यू० सी० का कहना था कि महिला कल्याण तथा राजनीति का आपस में कोई संबंध नहीं है। कुछ सालों के बाद उसके अध्यक्ष ने कहा था कि, “क्या भारतीय पुरुष तथा स्त्री स्वतंत्र हो सकते हैं यदि भारत गुलाम रहे ? हम अपनी राष्ट्रीय स्वतंत्रता, जोकि सभी महान् सुधारों का आधार है के बारे में चुप कैसे रह सकते हैं ?” यह तर्क दिया जा सकता हैं कि सक्रियता का यह काल सामाजिक आंदोलन नहीं था। इसका विरोध भी किया जा सकता था।

आम तौर पर यह माना जाता है कि केवल मध्य वर्ग की पढ़ी-लिखी स्त्रियां ही सामाजिक आंदोलन में भाग लेती हैं। संघर्ष का एक भाग स्त्रियों के भाग लेने के अविश्वसनीय इतिहास को याद करता रहा है। अंग्रेजों के राज्य में कबाइली तथा ग्रामीण क्षेत्रों में शुरू होने वाले संघर्षों तथा क्रांतियों में महिलाओं ने मर्दो के साथ भाग लिया। उदाहरण के लिए बंगाल में विभागा आंदोलन, निज़ाम के पूर्वशासन का तेलंगाना सशस्त्र संघर्ष तथा महाराष्ट्र में वरली जनजाति के बंधुआ दासत्व के विरुद्ध क्रांति।

एक मुद्दा जो साधारणतया उठाया जाता है कि अगर स्वतंत्रता से पहले महिला आंदोलन चल रहे थे तो स्वतंत्रता के बाद उसका क्या हुआ। इसके पक्ष में यह कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय आंदोलन में हिस्सा लेने वाली बहुत सी महिलाएँ राष्ट्र निर्माण के कार्यों में लग गईं। परंतु कई लोग विभाजन के आघात को इस आंदोलन के रुकने के लिए उत्तरदायी मानते हैं। 1970 के दशक के मध्य में भारत में महिला आंदोलन दोबारा चले। कुछ लोग इसे भारतीय महिला आंदोलन का दूसरा दौर कहते हैं।

चाहे बहुत सी समस्याएँ उसी प्रकार बनी रहीं परंतु फिर भी विचारधाराओं तथा संगठनात्मक राजनीति में कई परिवर्तन आए। स्वायत्त महिला आंदोलन कहे जाने वाले आंदोलन बढ़ गए। स्वायत्त का अर्थ उन महिला संगठनों से है जिनके संबंध राजनीतिक दलों से थे। यह स्वायत्तशासी अथवा राजनीतिक दलों से स्वतंत्र थी। यह महसूस किया गया कि राजनीतिक दलों की प्रवृत्ति महिलाओं के मुद्दों को अलग-अलग रखने की है।

संगठनात्मक परिवर्तन के अतिरिक्त कई और मुद्दों पर भी ध्यान दिया गया। उदाहरण के लिए महिलाओं के विरुदध हिंसा के बारे में वर्षों से कई अभियान चलाए गए हैं। आपने देखा होगा कि स्कूल के प्रर्थाना पत्र पर माता पिता दोनों के नाम होते हैं, यह आंदोलन के कारण ही हुआ है। इसी तरह महिलाओं के आंदोलन के कारण बहुत से महत्त्वपूर्ण कानूनी परिवर्तन हुए हैं। भूमि के स्वामित्व, रोज़गार के मुद्दों की लड़ाई, यौन उत्पीड़न तथा दहेज के विरुद्ध अधिकारों की माँग के साथ लड़ी गई हैं।

(ii) जनजातीय आंदोलन-देश भर में फैले अलग-अलग जनजातीय समूहों के मुद्दे समान हो सकते हैं परंतु उनके अंतर भी उतने ही महत्त्वपूर्ण हैं। जनजातीय आंदोलन मुख्यता मध्य भारत की जनजातीय बैल्ट में ही बने रहे जैसे कि छोटा नागपुर व संथाल परगना में स्थित संथाल, हो, ओरांव व मुंडा। नया गठित झारखंड राज्य भी इन्ही से बना है।

सन् 2000 में झारखंड राज्य को दक्षिण बिहार से काटकर बनाया गया था। इस राज्य की स्थापना के पीछे एक सदी से अधिक का विरोध है। बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के विरुद्ध एक बड़े विद्रोह का नेतृत्व किया था। उसके बाद वह इस आंदोलन का मुख्य प्रतीक बन गया। उसकी कहानियाँ तथा गीत पूरे झारखंड में पाए जाते हैं। ईसाई मिशनरियों ने इनके क्षेत्र में साक्षरता का प्रसार किया तथा साक्षर आदिवासियों ने अपने इतिहास बारे शोध करना शुरू किया। उन्होंने जनजातीय प्रथाओं के बारे में जानकारी एकत्र करके लिखी। इससे उन्हें संगठित चेतना तथा साझी पहचान मिली।

पढ़े-लिखे आदिवासियों को सरकारी नौकरियाँ प्राप्त हुईं जिससे एक मध्यवर्गीय आदिवासी बुद्धिजीवी वर्ग सामने आया। इसने अलग राज्य की माँग उठायी तथा इसका भारत और विदेशों में प्रचार किया। दक्षिण बिहार के आदिवासी इलाकों में प्रवासी व्यापारी तथा महाजन (दिक्कु) आकर बस गए तथा उन्होंने मूल निवासियों की संपदा पर अधिकार कर लिया।

मूल आदिवासी दिक्कुओं से घृणा करते थे। इन खनिज संपन्न क्षेत्रों में उद्योगों से मिलने वाले अधिकतर लाभ दिक्कु प्राप्त कर लेते थे। आदिवासियों ने इसे अलग-थलग करने की प्रक्रिया तथा अन्याय के बोध को समझा तथा झारखंड की सांझी पहचान बनाने के लिए सामूहिक कार्यवाही शुरू की। इस कारण ही अतः पृथक् राज्य का निर्माण हुआ।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 8 सामाजिक आंदोलन

प्रश्न 3.
भारत में पुराने तथा नए सामाजिक आंदोलनों में स्पष्ट भेद करना कठिन है। क्यों?
उत्तर:
भारत में कृषकों, महिलाओं, दलितों, जनजातीय तथा और सभी प्रकार के सामाजिक आंदोलन हुए हैं। क्या इन आंदोलनों को नए सामाजिक आंदोलन कहा जा सकता है? गेल ऑमवेट ने अपनी पुस्तक रीइन्वेंटिंग रिवोल्यूशन में कहा है कि सामाजिक असमानता तथा संसाधनों के बारे में असमान वितरण के बारे में चिंताएँ इन आंदोलनों के आवश्यक तत्त्व थे।

कृषक आंदोलनों ने अपने उत्पाद के अधिक मूल्य तथा कृषि से संबंधित सब्सिडी हटाए जाने के विरुद्ध लोगों को गतिशील किया था। दलित आंदोलन में मजदूरों ने यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया कि उच्च जातियों के ज़मींदार तथा महाजन उनका शोषण न कर सकें। महिलाओं के आंदोलनों ने लिंग भेद के मुद्दे पर दफतरों तथा परिवार के अंदर जैसे अलग-अलग दायरों में कार्य किया है।

इसके साथ ही यह नए सामाजिक आंदोलन आर्थिक असमानता के पुराने मुद्दों के बारे में नहीं हैं तथा न ही यह वर्ग के आधार पर संगठित हैं। इनके आवश्यक तत्त्व हैं पहचान की राजनीति, सांस्कृतिक चिंताएँ तथा इच्छाएँ। हम इनकी उत्पत्ति को वर्ग आधारित असमानता में नहीं ढूँढ़ सकते। आमतौर पर यह सामाजिक आंदोलन वर्ग की सीमाओं के आर-पार से भागीदारों को एक जुट करते हैं।

उदाहरण के लिए महिलाओं के आंदोलन में ग्रामीण, नगरीय, गरीब, कृषक, पढ़ी-लिखी, अनपढ़ महिलाओं ने भाग लिया है। अलग राज्य की माँग करने वाले क्षेत्रीय आंदोलन लोगों के ऐसे अलग समूहों को अपने साथ मिलाते हैं जो एक ही जाति से संबंध नहीं रखते। सामाजिक आंदोलन में सामाजिक असमानता के प्रश्न, दूसरे समान रूप में महत्त्वपूर्ण मुद्दों को शामिल किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
पर्यावरणीय आंदोलन प्रायः आर्थिक एवं पहचान के मुद्दों को भी साथ लेकर चलते हैं। विवेचना कीजिए।
उत्तर:
आधुनिक समय में सबसे अधिक जोर विकास तथा प्रगति पर दिया गया है। सदियों से ही संसाधनों का अनियंत्रित प्रयोग हो रहा है जिससे प्राकृतिक संसाधनों का अत्याधिक शोषण हो रहा है तथा यह ही चिंता का एक विषय बना हुआ है। विकास के इस प्रतिरूप की आलोचना का एक और कारण यह भी है कि यह मानता है कि विकास का सभी लोगों को समान लाभ प्राप्त होगा।

परंतु बड़े बाँध लोगों को उनके घरों तथा जीवन जीने के स्रोतों से दूर कर देते हैं तथा उद्योग किसानों को उनके घरों तथा खेतों से। औद्योगिक प्रदूषण की तो एक अलग ही कहानी है। यहाँ हम पारिस्थितिकीय आंदोलन से जुड़े विभिन्न मुद्दों का पता करने के लिए उसका केवल एक उदाहरण ले रहे है।

रामचंद्र गुहा की पुस्तक अनक्वाइट वुड्स में लिखा है कि गाँव के लोग अपने गाँवों के नज़दीक के ओक तथा रोहो डेंड्रोन के जंगलों को कटने से बचाने के लिए इक्ट्ठे होकर आगे आए। जब जंगल के ठेकेदार पेड़ों को काटने के लिए आए वो गाँवों के लोग, विशेषतया महिलाएँ, पेड़ों से चिपक गए ताकि वे पेड़ न काट सकें।

यहाँ पर गाँव के लोगों के जीवन जीने के साधन दाँव पर थे। सभी लोग जंगलों पर लकड़ी, चारा तथा और दैनिक ज़रूरतों के लिए निर्भर थे। इस संघर्ष के कारण गाँव वाले सरकार की जंगलों से राजस्व कमाने की इच्छा के आगे खड़े हो गए। यहां पर जीवन जीने की अर्थव्यवस्था मुनाफा कमाने की अर्थव्यवस्था के सामने आ खड़ी हुई।

सामाजिक असमानता के इस मुद्दे के साथ चिपको आंदोलन के रूप में पारिस्थितिकीय सुरक्षा का मुद्दा भी जुड़ गया। जंगलों को काटना प्रकृति का विनाश था जिसके परिणामस्वरूप गाँव में बाढ़ आयी तथा भूस्खलन हुए। गाँव के लोगों के लिए यह लाल तथा हरे मुद्दे अंतः संबंधित थे।

उनकी जीविका जंगलों पर निर्भर थी तथा वे जंगलों का सभी को लाभ देने वाली संपदा के रूप में आदर करते थे। इसके साथ ही चिपको आंदोलन ने दूर मैदानी क्षेत्रों के सरकारी दफतरों में बैठे अफसरों के प्रति अपना रोष तथा चिंताएँ प्रकट की। इस प्रकार चिपको आंदोलन के मुख्य आधार अर्थव्यवस्था, पारिस्थितिकीय तथा राजनीतिक प्रतिनिधित्व की चिताएँ थीं।

प्रश्न 5.
कृषक एवं नव किसान आंदोलनों के मध्य अंतर बताइए।
उत्तर:
कृषक आंदोलनों में जो मुद्दे उठे वह थे ज़मींदारी का उन्मूलन, भू-सुधार, किसानों का शोषण बंद करना, हदबंदी कानून इत्यादि तथा यह आंदोलन स्वतंत्रता से पहले चले थे। पंरतु नव किसान आंदोलन स्वतंत्रता के बाद चले थे तथा इनके मुख्य मुद्दे थे अपने उत्पादों का अधिक मूल्य प्राप्त करना, किसानों को मिलने वाली सब्सिडियां खत्म न होने देना, किसानों की खुशहाली तथा उनके कर्जे माफ करना। इस प्रकार कृषक तथा नव किसान आंदोलनों में उनकी प्रकृति के कारण अंतर पाया जाता है।

सामाजिक आंदोलन HBSE 12th Class Sociology Notes

→ आज के समय में सभी व्यक्तियों को सामान्य जीवन जीने के लिए कुछ अधिकार प्राप्त हैं। परंतु कम लोगों को ही यह पता है कि यह अधिकार लंबे संघर्ष तथा किसी न किसी सामाजिक आंदोलन के कारण लोगों को प्राप्त हुआ है।

→ सामाजिक आंदोलन न केवल समाज को बदलते हैं बल्कि यह अन्य सामाजिक आंदोलनों को भी प्रेरणा देते हैं। सामाजिक आंदोलन में एक लंबे समय तक निरंतर सामूहिक गतिविधियों की आवश्यकता होती है तथा मुख्यतः यह किसी जनहित मामले में परिवर्तन लाने के उद्देश्य से उत्पन्न होते हैं। उदाहरण के लिए राजा राम मोहनराय ने सती प्रथा के विरुद्ध लंबे समय तक आंदोलन चलाया तथा सती प्रथा को गैर-कानूनी घोषित करवा कर ही दम लिया।

→ सामाजिक आंदोलनों के कई प्रकार होते हैं जैसे कि सुधारवादी, प्रतिदानात्मक तथा क्रांतिकारी। सुधारवादी आंदोलन समाज में सुधार लाना चाहते हैं। प्रतिदानात्मक आंदोलन अपने व्यक्तिगत सदस्यों में व्यक्तिगत चेतना तथा गतिविधियों में परिवर्तन लाना चाहते हैं। क्रांतिकारी आंदोलन सामाजिक संबंधों के आमूल रूपांतरण का प्रयास करते हैं।

→ हमारे देश में समय-समय पर बहुत से आंदोलन चले। किसान आंदोलन वैसे तो 10वीं शताब्दी में शुरू हुए परंतु आज तक यह चल रहे हैं। इनका मुख्य उद्देश्य किसानों तथा कृषकों की स्थिति में सुधार लाना तथा उनकी माँगें सरकार के सामने उठा कर उन्हें सरकार द्वारा मनवाना होता है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 8 सामाजिक आंदोलन

→ कामगारों का आंदोलन कारखानों, फैक्टरियों में कार्य कर रहे मजदूरों की माँगों के लिए आवाज़ उठाना था ताकि उनकी निम्न स्थिति में कुछ सुधार किया जा सके।

→ इसी प्रकार दलित आंदोलन तथा पिछड़े वर्ग एवं जातियों के आंदोलन भी चले। इनका भी मुख्य उद्देश्य दलितों तथा पिछड़े वर्गों की सामाजिक स्थिति को ऊँचा उठाना तथा उन्हें समाज में ऊँचा स्थान दिलाना था।

→ दक्षिण बिहार को काटकर नवंबर 2000 में झारखंड राज्य का निर्माण किया गया था। इस राज्य का निर्माण लंबे समय तक चले जनजातीय आंदोलन का परिणाम था। इसी प्रकार पूर्वोत्तर राज्यों में जनजातीय आंदोलन चले तथा इनका मुख्य मुद्दा था जनजातीय लोगों का वन-भूमि से विस्थापन।

→ हमारे समाज में प्राचीन समय से ही महिलाओं से संबंधित बहुत सी कुरीतियां व्याप्त थीं। इन सब कुरीतियों को दूर करने के लिए तथा समाज में स्त्रियों की सामाजिक स्थिति को ऊँचा उठाने के लिए समय-समय पर महिला आंदोलन चले।

इस प्रकार अगर हम अपने देश के इतिहास की तरफ देखें तो हमें पता चलता है कि समय-समय पर देश में अलग-अलग प्रकार के सामाजिक आंदोलन चले ताकि देश के दबे, कुचले तथा निम्न वर्गों की स्थिति को ऊपर उठाया जा सके।

→ सार्वभौमिक वयस्क-प्रत्येक वयस्क के वोट देने के अधिकार को सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार कहते हैं।

→ प्रतिरोधी आंदोलन-सामाजिक आंदोलन के विरोध में तथा यथास्थिति बना कर रखने के लिए चलाए गए आंदोलन।

→ प्रतिदानात्मक सामाजिक आंदोलन-वह सामाजिक आंदोलन जिनका उद्देश्य अपने व्यक्तिगत सदस्यों की व्यक्तिगत चेतना तथा गतिविधियों में परिवर्तन लाना होता है।

→ सुधारवादी आंदोलन-वह आंदोलन जो परंपरागत मान्यताओं में सुधार लाने के लिए चलाए गए थे।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 8 सामाजिक आंदोलन Read More »

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 जनसंपर्क साधन और जनसंचार

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 जनसंपर्क साधन और जनसंचार Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 जनसंपर्क साधन और जनसंचार

HBSE 12th Class Sociology जनसंपर्क साधन और जनसंचार Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
समाचार-पत्र उद्योग में जो परिवर्तन हो रहे हैं, उनकी रूपरेखा प्रस्तुत करें। इन परिवर्तनों के बारे में आपकी क्या राय है?
उत्तर:
हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम में समाचार-पत्र तथा पत्रिकाओं ने काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। अकसर ऐसा कहा जाता है कि टेलीविज़न तथा इंटरनेट के विकास से प्रिंट मीडिया का महत्त्व कम हो जाएगा परंतु हमने यह देखा है कि भारत में समाचार-पत्रों का प्रसार बढ़ रहा है। नयी प्रौद्योगिकी के विकास से समाचार-पत्रों के उत्पादन तथा प्रसार को काफ़ी सहायता मिली है। इस कारण ही बहुत-सी चमकदार पत्रिकाएं बाज़ार में रोज़ आ रही हैं।

असल में भारतीय भाषाओं के समाचार-पत्रों की इस अचानक वृद्धि के बहुत-से कारण हैं। पहला तो यह कि बहुत-से पढ़े-लिखे लोग शहरों की ओर प्रवास कर रहे हैं। सन् 2003 में हिंदी दैनिक हिंदुस्तान के दिल्ली में 64,000 प्रतियां छपती थीं जो 2005 में बढ़कर 4,25,000 हो गई थी। इसका कारण यह है कि दिल्ली के डेढ़ करोड़ की जनसंख्या में से आधे से अधिक लोग उत्तर प्रदेश तथा बिहार जैसे हिंदी भाषी क्षेत्रों से आए हैं। इनमें से 47% लोग ग्रामीण पृष्ठभूमि के हैं तथा उनमें से 60% लोग 40 वर्ष से कम उम्र के हैं।

दूसरा कारण यह है कि गाँवों तथा कस्बों के पढ़ने वालों की ज़रूरतें शहरी पढ़ने वालों से अलग होती हैं। अलग अलग भारतीय भाषाओं के समाचार-पत्र उन ज़रूरतों को पूर्ण करते हैं। मलयाली मनोरमा तथा ईनाडु जैसे भारतीय भाषाओं के प्रमुख पत्रों ने स्थानीय समाचारों की संकल्पना को एक महत्त्वपूर्ण रीति से जिला संस्करणों तथा आवश्यकता के अनुसार ब्लाक संस्करणों की सहायता से शुरू किया। एक और तमिल ‘दिन तंती’ ने हमेशा तथा लोगों की बोल-चाल की भाषा का प्रयोग किया है। भारतीय समाचार-पत्रों ने उन्नत प्रौद्योगिकी को अपना कर पाठकों को अलग-अलग अंक देने के प्रयास किए हैं।

समाचार-पत्रों ने कई प्रकार की रणनीतियाँ अपनायी हैं ताकि अधिक-से-अधिक पाठकों तक पहुँचा जा सके। अंग्रेजी भाषा के समाचार-पत्रों को राष्ट्रीय दैनिक कहा जाता है तथा यह सभी क्षेत्रों में पढ़े जाते हैं। भारतीय भाषाओं के समाचार-पत्रों का प्रसार ग्रामीण क्षेत्रों में काफ़ी अधिक बढ़ गया है। समाचार-पत्रों, विशेष तथा अंग्रेजी तथा हिंदी, ने अपनी न केवल कीमतें घटा दी हैं बल्कि यह तो कई केंद्रों से अलग-अलग संस्करण निकालने शुरू कर दिए हैं।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 जनसंपर्क साधन और जनसंचार

प्रश्न 2.
क्या एक जनसंचार के माध्यम के रूप में रेडियो ख़त्म हो रहा है? उदारीकरण के बाद भी भारत में एफ० एम० स्टेशनों के सामर्थ्य की चर्चा करें।
उत्तर:
भारत में सबसे पहला रेडियो प्रसारण का कार्यक्रम 1925 में शरू हआ था जब रेडियो क्लब ऑफ़ बंबई द्वारा एक कार्यक्रम पेश किया गया था। उसके बाद से लेकर अब तक रेडियो अमीरों तथा निर्धन लोगों के मनोरंजन का महत्त्वपूर्ण साधन रहा है। समाचार-पत्रों के बाद रेडियो ही एक ऐसा साधन है जो हरेक व्यक्ति की पहुँच में है।

यहाँ तक कि निर्धन से निर्धन व्यक्ति भी ₹ 100-150 में रेडियो खरीद कर अपना मनोरंजन कर सकता है। चाहे टी० वी० चैनलों की बाढ़ आने से रेडियो का प्रभाव थोड़ा-सा कम हो गया था परंतु एफ० एम० स्टेशनों के चलने से रेडियो का क्रेज फिर बढ़ गया है। देश के दूर-दूर से इलाकों में जहां मनोरंजन का कोई और साधन नहीं पहुँच सकता वहां रेडियो पहुँच सकता है।

आज के उदारीकरण के समय में एफ०एम० स्टेशनों का सामर्थ्य काफ़ी बढ़ गया है। रेडियो स्टेशनों के अधिक निजीकरण तथा समुदाय के स्वामित्व वाले रेडियो स्टेशनों के सामने आने से रेडियो स्टेशनों का अधिक विकास हो रहा है। लोग स्थानीय समाचारों को सुनना पसंद करते हैं।

देश में एफ० एम० चैनलों को सुनने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है क्योंकि यह चैनल जनता के मनोरंजन के नए-नए कार्यक्रम पेश करते हैं। इसके साथ ही यह जनता को कार्यक्रम के दौरान प्रश्न पूछ कर उपहार भी देते हैं। इस प्रकार एफ० एम० रेडियो चैनल देश भर में प्रसिद्ध हो रहे हैं। 92.7 एफ० एम० रेडियो स्टेशन ने तो सारे देश में अपनी शाखाएं खोली हुई हैं।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 जनसंपर्क साधन और जनसंचार

प्रश्न 3.
टेलीविज़न के माध्यम में जो परिवर्तन होते रहे हैं, उनकी रूपरेखा प्रस्तुत करें। चर्चा करें।
उत्तर:
देश में सबसे पहले 1959 में दिल्ली के आकाशवाणी भवन में टेलीविज़न को प्रयोग के तौर पर चलाया गया। भारत सरकार द्वारा चलाए जा रहे दूरदर्शन की सेवा विश्व की संचार की सेवाओं में सबसे बड़ी सेवाओं में से एक है। सबसे पहले दूरदर्शन का प्रसारण सप्ताह में तीन दिन होता था। फिर धीरे-धीरे रोजाना समाचार प्रणाली शुरू हुई। 1975-76 में भारत में उपग्रह से संबंधित पहला प्रयोग साईट के द्वारा किया गया।

लोगों को सामाजिक शिक्षा देने के लिए तकनीकी सहायता से यह पहला प्रयास था। देश में दूसरा टी०वी० केंद्र 1972 में खोला गया। 1973 में तो कई स्थानों पर ऐसे केंद्र खोले गए। 1976 में दूरदर्शन को ऑल इंडिया रेडियो से अलग करके अलग विभाग बना दिया गया। रंगीन टी० वी० की शुरुआत सबसे पहले 1982 के एशियाई खेलों के दौरान हुई।

1984 में दिल्ली दूरदर्शन के साथ डी० डी० मैट्रो को जोड़ दिया गया। पहले तो मैट्रो केवल दिल्ली, मुंबई, कोलकाता तथा चेन्नई में ही दिखाया जाता था परंतु कुछ समय पश्चात् यह संपूर्ण भारत में दिखाया जाने लगा। 1999 में खेलों के लिए डी०डी० स्पोर्टस नामक खेल चैनल भी शुरू किया गया ताकि दुनिया भर में चल रही खेलों को दिखाया जा सके।

आज भारत के 9 करोड़ से भी अधिक लोगों के साथ टेलीविज़न उपलब्ध है। इस समय दूरदर्शन देश की 87% आबादी तथा 70% भौगोलिक क्षेत्र तक अपने चैनलों को पहुँचा चुका है। देश के 49 शहरों में तो दूरदर्शन के प्रोडक्शन स्टूडियो हैं। दूरदर्शन से शिक्षा संबंधी कई कार्यक्रम प्रस्तुत होते हैं। IGNOU के माध्यम से तथा U.G.C. के माध्यम से उच्च शिक्षा के लिए कई कार्यक्रम दूरदर्शन पर चलाए जा रहे हैं।

1995 में दूरदर्शन ने डी०डी० वर्ल्ड नामक एक चैनल चलाया था पर 2002 में इसे डी० डी० इंडिया का नाम दिया गया। 1991 में उदारीकरण की प्रक्रिया शुरू होने के बाद देश में प्राईवेट चैनलों की तो बाढ़ सी आ गई है। दूरदर्शन के अतिरिक्त सोनी, जी, मैक्स, स्टार, ई०एस०पी०एन०, न्यूज़ चैनल, खेलों के चैनल, व्यापार के चैनल, संगीत के चैनल इत्यादि से संबंधित सैंकड़ों ऐसे चैनल चल रहे हैं जो दिन-रात चल रहे हैं तथा लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं। अब तो D.T.H. (Direct to Home) सेवा शुरू हो गई है जिसने तो इस क्षेत्र में क्रांति ला दी है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि 1959 से लेकर अब तक टेलीविज़न के माध्यम में ज़मीन आसमान का अंतर आ चुका है तथा हम घर पर बैठ कर संसार भर के समाचार तथा हरेक प्रकार के कार्यक्रम देख सकते हैं।

जनसंपर्क साधन और जनसंचार HBSE 12th Class Sociology Notes

→ मास मीडिया का अर्थ है जनसंपर्क के साधन। यह कई प्रकार के होते हैं जैसे कि टी० वी०, समाचार-पत्र, फिल्में, पत्रिकाएँ, रेडियो, विज्ञापन, सीडी इत्यादि। इन्हें मास मीडिया इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि यह एक साथ बहुत बड़ी संख्या में लोगों तक पहुँचते हैं।

→ मास मीडिया हमारे दैनिक जीवन का एक अंग है। लाखों लोग सुबह उठ कर या तो समाचार-पत्र देखते हैं, या टी० वी० पर ख़बरें देखते हैं या फिर फोन पर मिस्ड कॉल देखते हैं। इस प्रकार मास मीडिया हमारे जीवन में काफ़ी महत्त्वपूर्ण हो गया है।

→ हाल ही के वर्षों में सभी प्रकार के जनसंचार के साधनों का चमत्कारिक रूप से विस्तार हुआ है। टी० वी०, डी० टी० एच०, समाचार-पत्रों की बाढ़, न्यूज़ चैनलों की बाढ़, मनोरंजन के कार्यक्रम इतने अधिक हो गए हैं कि व्यक्ति को समझ ही नहीं आता कि वह क्या देखे तथा क्या न देखे।

→ भारत में मुद्रण की शुरुआत चाहे अंग्रेजों के समय में हुई थी परंतु अंग्रेजों ने समाचार-पत्रों को हमेशा दबा कर रखा। उन्हें डर था कि कहीं समाचार-पत्र लोगों में बग़ावत की भावना न फैला दें। परंतु स्वतंत्रता के बाद इसने अत्यधिक प्रगति की तथा इसे लोकतंत्र का पहरेदार भी कहा गया।

→ रेडियो, टी० वी० तथा प्रिंट मीडिया ऐसे माध्यम हैं जो जनता में किसी मुद्दे पर जागृति उत्पन्न करते हैं तथा यह राष्ट्र निर्माण में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं। आजकल तो भूमंडलीकरण के कारण संचार के क्षेत्र में बहुत बड़ी क्रांति सी आ गई है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 जनसंपर्क साधन और जनसंचार

→ भारत में आजकल हज़ारों समाचार-पत्र रोज़ाना छपते हैं तथा इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। बहुत से लोगों को डर था कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के उत्थान से प्रिंट मीडिया के प्रसार में गिरावट आएगी परंतु ऐसा नहीं हुआ।

→ 1991 में भारत में केवल राज्य नियंत्रित दूरदर्शन चैनल चलता था जो अब बढ़ कर 200-250 के करीब प्राइवेट चैनल हो गए हैं। मनोरंजन के चैनल, समाचार के चैनल, खेलों के चैनल, संगीत के चैनल, फिल्मों के चैनल, शिक्षावर्धक चैनलों की तो बाढ़ सी आ गई है। केबल टी० वी० तथा डी० टी० एच० सेवा ने तो इसमें क्रांति ही ला दी है।

→ रेडियो मनोरंजन का एक ऐसा साधन है जिसे कोई भी कहीं भी सुन सकता है। पहले केवल सरकारी चैनल ही हुआ करते थे परंतु आजकल एफ०एम० चैनल आ गए हैं जो दिन-रात लोगों का मनोरंजन करते हैं। यह एक मनोरंजन का सस्ता साधन भी है जिसको सुनने के लिए केवल रेडियो की कीमत ही अदा करनी पड़ती है।

→ इसमें कोई शक नहीं है कि मास मीडिया आज हमारे व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक जीवन का एक आवश्यक अंग बन गया है। मास मीडिया आजकल अनेकों नए आयाम स्थापित करने में लगा है।

→ जन संचार-जब व्यक्तियों के समूह के साथ आमने-सामने की बातचीत के स्थान पर किसी यांत्रिक माध्यम की सहायता से एक विशाल वर्ग से बातचीत की जाती है तो इसे जनसंचार कहा जाता है।

→ प्रिंट मीडिया-समाचार-पत्र तथा पत्रिकाओं को प्रिंट मीडिया के साधन कहा जाता है।

→ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया-टी० वी० तथा रेडियो को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साधन कहा जाता है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 जनसंपर्क साधन और जनसंचार Read More »

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 भूमंडलीकरण और सामाजिक परिवर्तन

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 भूमंडलीकरण और सामाजिक परिवर्तन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 भूमंडलीकरण और सामाजिक परिवर्तन

HBSE 12th Class Sociology भूमंडलीकरण और सामाजिक परिवर्तन Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
अपनी रुचि का कोई भी विषय चुनें और यह चर्चा करें कि भूमंडलीकरण ने उसे किस प्रकार प्रभावित किया है। आप सिनेमा, कार्य, विवाह अथवा कोई भी अन्य विषय चुन सकते हैं।
उत्तर:
इस प्रश्न को विदयार्थी अपने अध्यापक की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 2.
एक भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्था के विशिष्ट लक्षण क्या हैं? चर्चा करें।
उत्तर:
भूमंडलीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक देश की अर्थव्यवस्था का संबंध अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं से जोड़ा जाता है। अन्य शब्दों में एक देश के अन्य देशों के साथ वस्त, सेवा, पंजी तथा श्रम से अप्रतिबंधित आदान प्रदान को भूमंडलीकरण कहते हैं। इस प्रक्रिया के माध्यम से विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे के संपर्क में आती हैं। व्यापार का देशों के बीच मुक्त आदान-प्रदान होता है। इस तरह विश्व अर्थव्यवस्थाओं के एकीकरण की प्रक्रिया को वैश्वीकरण कहा जाता है। भूमंडलीकरण के द्वारा सारी दुनिया एक विश्व ग्राम बन गई है।

भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्था के विशिष्ट लक्षण-
(i) भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्था मुक्त बाज़ार के सिद्धांत पर आधारित है। मुक्त बाज़ार से प्रतिस्पर्धा उत्पन्न होती है तथा कार्य दक्षता बढ़ती है। यह चीज़ नियंत्रित बाजारों में नहीं होती। अधिक कार्यदक्षता से सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ती है।

(ii) भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्था में किसी देश की आंतरिक अर्थव्यवस्था में अधिक विदेशी निवेश होता है। अधिक विदेशी निवेश से कमजोर अर्थव्यवस्थाओं को मज़बूती प्राप्त होती है।

(iii) विदेशी पूंजी और वस्तुओं के अनियंत्रित प्रवाह के लिए मुक्त द्वारा नीति का प्रयोग किया जाता है तथा यह समझा जाता है कि इससे तीसरी दनिया की अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी।

(iv) यह समझा जाता है कि भूमंडलीकरण से बेरोज़गारी जैसी गंभीर समस्या का समाधान हो जाएगा। भूमंडलीकरण से रोज़गार के अवसर बढ़ते हैं तथा रोज़गार बढ़ने से आर्थिक विकास बढ़ता है।

(v) भूमंडलीकरण से अर्थव्यवस्थाओं का एकीकरण होता है जिससे सामाजिक न्याय की समस्या भी सुलझ जाती है। यह भी कहा जाता है कि अर्थव्यवस्था के उदारीकरण से वंचित समूहों को भी कई प्रकार की सुविधाएं प्राप्त होती हैं।

(vi) भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्था से अलग-अलग देशों के बीच आदान-प्रदान बढ़ता है जिससे विश्व शांति बढ़ती है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 भूमंडलीकरण और सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 3.
संस्कृति पर भूमंडलीकरण के प्रभाव की संक्षेप में चर्चा करें।
उत्तर:
संस्कृति कई प्रकार से मूंडलीकरण से प्रभावित होती है। सदियों से भारत ने सांस्कृतिक प्रभावों के प्रति खुला दृष्टिकोण अपनाया हुआ है तथा इसके कारण ही भारत सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध होता रहा है। पिछले दशक में बहुत से छोटे-बड़े सांस्कृतिक परिवर्तन हुए हैं जिनसे लोगों में यह भय उत्पन्न हो गया है कि कहीं हमारी अपनी स्थानीय संस्कृतियां पीछे ही न रह जाएं। हमारी सांस्कृतिक परंपरा जीवनभर कुएं के भीतर रहने वाले उस मेंढ़क की स्थिति से सावधान रहने की शिक्षा देती रही है जो कुएं से बाहर के संसार के बारे में कुछ नहीं जानता तथा हरेक बाहरी वस्तु के प्रति शंकालु बना रहता है।

वह किसी से बात नहीं करता तथा न ही किसी से किसी विषय पर बातचीत करता है। वह तो केवल बाहरी संसार पर शक करना जानता है। सौभाग्य से हम आज भी अपनी परंपरागत खुली अभिवृत्ति अपनाए हुए हैं। इसलिए हमारे समाज में राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों पर बहस नहीं होती बल्कि कपड़ों, शैलियों, संगीत, भाषा, फिल्म, हाव-भाव इत्यादि से ऊपर बहस होती है।

19वीं सदी के समाज सुधारक तथा शुरुआती राष्ट्रवादी नेता भी संस्कृति तथा परंपरा पर बातचीत किया करते थे। चाहे मुद्दे आज भी कुछेक तो वैसे ही तथा कुछेक भिन्न हैं परंतु अंतर शायद यही है कि अब परिवर्तन की व्यापकता और गहनता अलग है।

प्रश्न 4.
भूस्थानीकरण क्या है? क्या यह बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा अपनाई गई बाज़ार संबंधी रणनीति है अथवा वास्तव में कोई सांस्कृतिक संश्लेषण हो रहा है, चर्चा करें।
उत्तर:
मुख्य रूप से यह कहा जाता है कि सभी संस्कृतियां एक समान अर्थात् सजातीय हो जाएंगी। कुछ और लोगों का कहना है कि संस्कृति के भूस्थानीकरण की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। भूस्थानीकरण का अर्थ है भूमंडलीय के साथ स्थानीय का मिश्रण। यह पूरी तरह अपने आप परवर्तित नहीं होता तथा न ही भूमंडलीकरण के वाणिज्यिक हितों से इसका संबंध पूर्णतया विच्छेद नहीं किया जा सकता।

यह एक ऐसी रणनीति है जो आमतौर पर विदेशी कंपनियां अपना बाज़ार बढ़ाने के लिए स्थानीय परंपराओं के साथ व्यवहार में लाई जाती है। टी०वी० चैनल जैसे कि स्टार, एम०टी०वी०, चैनल वी, कार्टून नेटवर्क इत्यादि सभी विदेशी टी०वी० चैनल हैं परंतु भारत में यह भारतीय भाषाओं का प्रयोग करते हैं।

यहां तक कि मैक्डॉनाल्डस भी भारत में अपने निरामिष और चिकन के उत्पाद ही बेचता है, गोमांस के उत्पाद नहीं जो विदेशों में बहुत लोकप्रिय है। नवरात्रि पर्व के समय तो मैक्डॉनाल्डस भी चिकन बेचना छोड़कर विशुद्ध निरामिष हो जाता है। संगीत के क्षेत्र में भांगड़ा पॉप, इंडिपॉप, फ्युजन म्यूज़िक तथा रीमिक्स गीतों की लोकप्रियता बढ़ रही है। इसे भी भूस्थानीकरण का ही एक रूप कहा जा सकता है।

भूमंडलीकरण और सामाजिक परिवर्तन HBSE 12th Class Sociology Notes

→ यह अध्याय हमें भूमंडलीकरण तथा उसके अलग-अलग आयामों के बारे में बताता है। इस अध्याय से हमें यह भी पता चलता है कि भूमंडलीकरण के कारण अलग-अलग क्षेत्रों में कौन-कौन से परिवर्तन आए हैं।

→ भूमंडलीकरण की प्रक्रिया इतनी व्यापक है कि अलग-अलग विषयों को भूमंडलीकरण के कारणों तथा परिणामों को समझने के लिए, एक-दूसरे से अधिकाधिक जानकारी लेनी पड़ती है।

→ भूमंडलीकरण के प्रभावों के बारे में लोगों के विचार एकमत नहीं हैं। कई लोग कहते हैं कि विश्व को बेहतर बनाने के लिए भूमंडलीकरण आवश्यक है। कुछ लोग कहते हैं कि अमीर लोगों को तो इससे लाभ होगा परंतु निर्धन लोगों की स्थिति बद से बदत्तर हो जाएगी।

→ भूमंडलीकरण की प्रक्रिया हमारे देश के लिए नयी नहीं है। प्राचीन समय में रेशम मार्ग की सहायता से हमारे देश का अलग-अलग देशों के साथ व्यापार होता था तथा उस समय संसार के अलग-अलग देशों के लोग यहां पर व्यापारी, प्रवासी तथा विजेता के रूप में यहां पर आए।

→ भूमंडीलकरण का अर्थ संपूर्ण संसार में सामाजिक तथा आर्थिक संबंधों के विस्तार के कारण संसार में विभिन्न लोगों, क्षेत्रों एवं देशों के बीच अंतःनिर्भरता की वृद्धि से है। यह प्रक्रिया सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों के विकास से ही सबसे आगे बढ़ी है।

→ भूमंडलीकरण के कारण उदारीकरण की प्रक्रिया को बल मिला है। अर्थव्यवस्था के उदारीकरण का अर्थ है भारतीय व्यापार को नियमित करने वाले नियमों और वित्तीय नियमनों को हटा देना। इन्हें आर्थिक सुधार भी कहा जाता है। भूमंडलीकरण को प्रेरित व संचालित करने में परराष्ट्रीय निगम महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह निगम एक-से-अधिक देशों में माल का उत्पादन करते हैं तथा एक-से-अधिक देशों में माल बेचते हैं। इसके साथ ही भूमंडलीकरण में बढ़ोत्तरी इलेक्ट्रॉनिक अर्थव्यवस्था के कारण बढ़ा है।

→ इन सब के साथ-साथ भूमंडलीकरण संचार व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं। अब बाहरी दुनिया से संबंध बनाए रखने के अनेकों साधन मौजूद हैं जैसे कि टेलीफोन, मोबाइल, फैक्स, केबल टी०वी०, ई-मेल, इंटरनेट इत्यादि।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 भूमंडलीकरण और सामाजिक परिवर्तन

→ भूमंडलीकरण के कारण नया श्रम विभाजन सामने आया है जिसमें तीसरी दुनिया के शहरों में अधिकाधिक नियमित निर्माण उत्पादन और रोज़गार किया जाता है। अलग-अलग देशों में अलग-अलग पुों का उत्पादन करके एक देश में मुख्य वस्तु को निर्मित किया जाता है।

→ आजकल के समय में संस्कृति का भूस्थानीकरण बढ़ रहा है। भूस्थानीकरण का अर्थ है भूमंडलीय के साथ स्थानीय का मिश्रण। यह पूर्णतः स्वतः परिवर्तित नहीं होता तथा न ही भूमंडलीकरण के वाणिज्यिक हितों से इसका पूरी तरह संबंध-विच्छेद किया जा सकता है।

→ चाहे भूमंडलीकरण के कारण विश्व अर्थव्यवस्था विकसित हो रही है तथा देशी बाजारों में विदेशी सामान उपलब्ध हो रहे हैं परंतु इसका अनेकों स्वदेशी शिल्पों, साहित्यिक परंपराओं और ज्ञान व्यवस्थाओं को खतरा उत्पन्न हो रहा है। यह सभी नष्ट होने की कगार पर जा खड़े हैं।

→ उदारीकरण-देशी बाजार को विश्व के बाजारों के लिए खोले जाने की प्रक्रिया को उदारीकरण कहा जाता है।

→ आर्थिक सुधार-वह सुधार जो अर्थव्यवस्था में किए गए तथा जिससे नियंत्रित अर्थव्यवस्था में लचकीलापन लाया गया।

→ परराष्ट्रीय निगम-वह निगम या कंपनियां जो एक-से-अधिक राष्ट्रों में अपने माल का उत्पादन करती हैं तथा एक-से-अधिक देशों में चीज़ों को बेचती हैं।

→ भार रहित अर्थव्यवस्था-वह अर्थव्यवस्था जिसके उत्पाद सूचना पर आधारित होते हैं जैसे कंप्यूटर, सॉफ्टवेयर, मीडिया तथा इंटरनेट सेवाएं।

→ ज्ञानात्मक अर्थव्यवस्था-वह अर्थव्यवस्था जिसमें अधिकांश कार्य-बल वस्तुओं के वास्तविक भौतिक उत्पादन अथवा वितरण में संलग्न नहीं होता बल्कि उनके डिज़ाइन, विकास, प्रौद्योगिकी, विपणन, बिक्री और सर्विस इत्यादि में लगा रहता है।

→ निर्यातोन्मुखी आर्थिकी-अर्थव्यवस्था का वह प्रकार जिसमें अधिकतर उत्पादन निर्यात, व्यापार तथा सेवाओं के लिए किया जाता है तथा जिसे अधिक विदेशी मुद्रा अर्जित करने के लिए अपनाया जाता है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 भूमंडलीकरण और सामाजिक परिवर्तन Read More »

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास

HBSE 12th Class Sociology औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
अपने आसपास वाले किसी भी व्यवसाय को चुनिए-और इसका वर्णन निम्नलिखित पंक्तियों में कीजिए-
(क) कार्य शक्ति का सामाजिक संघटन-जाति, लिंग, आयु, क्षेत्र;
(ख) मज़दूर प्रक्रिया-काम किस तरह किया जाता है;
(ग) वेतन एवं अन्य सुविधाएँ;
(घ) कार्यवस्था-सुरक्षा, आराम का समय, कार्य के घंटे इत्यादि।
अथवा
ईंटें बनाने के, बीड़ी रोल करने के, सॉफ्टवेयर इंजीनियर या खदान के काम जो बॉक्स में वर्णित किए गए हैं के कामगारों के सामाजिक संघटन का वर्णन कीजिए। कार्यावस्थाएँ कैसी हैं और उपलब्ध सुविधाएँ कैसी हैं? मधु जैसी लड़कियाँ अपने काम के बारे में क्या सोचती हैं?
उत्तर:
मैंने अध्यापन व्यवसाय का चुनाव किया है।
(i) कार्यशक्ति का सामाजिक संघटन-जिस स्कूल में मैं पढ़ाता हूँ वहां पर सभी जातियों तथा दोनों लिंगों के लोग कार्य करते हैं। स्त्री-पुरुष इकठे मिलकर कार्य करते हैं तथा जाति से संबंधित कोई भेदभाव नहीं किया जाता है। वृद्ध युवा इत्यादि सभी इकट्ठे मिलकर कार्य करते हैं। वृद्ध अध्यापक युवा अध्यापकों को दिशा दिखाते हैं ताकि वह ठीक ढंग से पढ़ा सकें।

(ii) मज़दूर प्रक्रिया-सवेरे सभी अध्यापक स्कूल जाते हैं। सभी को अपनी-अपनी क्लास, टाईम टेबल के बारे में पता होता है। सभी समय तथा पीरियड के अनुसार अपनी-अपनी कक्षाएं लेते हैं। विद्यार्थियों तथा अध्यापकों को दूर-दराज के क्षेत्रों से लाने के लिए स्कूल की बसें भी चलती हैं। अध्यापकों को उनकी योग्यता तथा अनुभव के अनुसार ही परिश्रम दिया जाता है।

(iii) आराम का समय-अध्यापकों को पढ़ाने के पीरियडों के बीच आराम भी दिया जाता है ताकि वह अधिक थक न जाएं।

(iv) कार्य के घंटे-स्कूल में अध्यापकों को लगभग 7 घंटे बिताने पड़ते हैं तथा बच्चों को पढ़ाना पड़ता है।
अथवा
इस प्रश्न का उत्तर विद्यार्थी स्वयं दें।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास

प्रश्न 2.
उदारीकरण ने रोज़गार के प्रतिमानों को किस प्रकार प्रभावित किया है?
उत्तर:
हमारा देश एक कषि प्रधान देश है। उदारीकरण के कारण अधिक-से-अधिक लोग सेवा क्षेत्र जैसे कि दुकानों, बैंक, आई.टी., उद्योग, होटल्स तथा और सेवाओं के क्षेत्रों में आ रहे हैं। इससे नगरों में मौजूद मध्यवर्ग की संख्या भी बढ़ रही है। शहरों में मौजूद मध्यवर्ग के साथ उन मूल्यों की भी बढ़ौतरी हो रही है जो हमें टी.वी. सीरियलों तथा फिल्मों में दिखाई देते हैं। परन्तु हमें यह दिखाई देता है कि देश में काफ़ी कम लोगों के पास सुरक्षित रोजगार हैं तथा जिनके पास है वह भी अनुबंधित श्रमिकों के कारण असुरक्षित हो रहे हैं।

अब तक सरकारी नौकरियां ही अधिकतर लोगों के कल्याण करने का बड़ा रास्ता थी परंतु अब वह भी कम होती जा रही हैं। कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुसार विश्वव्यापी उदारीकरण तथा निजीकरण के साथ व्यक्तियों की आय के बीच असमानताएँ भी बढ़ती जा रही हैं। इसके साथ-साथ बड़े-बड़े उद्योगों में सुरक्षित रोज़गार के मौके कम होते जा रहे हैं।

सरकार बड़े-बड़े उद्योग लगवाने के लिए किसानों की भूमि अधिग्रहण कर रही है। यह उद्योग उस क्षेत्र के लोगों को रोजगार नहीं देते क्योंकि उद्योगों के लिए पेशेवर तथा सिलाई प्राप्त कामगारों की आवश्यकता होती है बल्कि यह तो वहाँ पर हरेक प्रकार का जबरदस्त प्रदूषण फैलाते हैं।

बहुत से किसानों, जिनमें से मुख्य आदिवासी हैं, ने जमीन की कम कीमत देने का विरोध किया है। इन्हें मजबूरी में दिहाड़ीदार मज़दूर बनना पड़ा तथा इन्हें बड़े उद्योगों के फुटपाथ पर कार्य करते हुए देखा जा सकता है। इस प्रकार उदारीकरण ने रोज़गार के प्रतिमानों को कई प्रकार से प्रभावित किया है।

औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास HBSE 12th Class Sociology Notes

→ यह अध्याय मुख्यतः हमें औद्योगीकरण तथा उदारीकरण के प्रभावों के बारे में बता रहा है कि किस प्रकार औद्योगीकरण ने हमारे समाज को प्रभावित किया है। यह अध्याय हमें यह भी बताता है कि किस प्रकार प्रौदयोगिकी में होने वाले परिवर्तनों से उदयोगों तथा सामाजिक संबंधों में परिवर्तन आते हैं।

→ औद्योगीकरण एक ऐसी धारणा है जिसमें मशीनों का सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान है। बड़े-बड़े उद्योगों में क मशीनों तथा श्रम विभाजन की सहायता से कार्य किया जाता है। हरेक श्रमिक एक छोटा सा पुर्जा बनाता है तथा वह मुख्य उत्पाद को देख तक नहीं पाता है।

→ सन् 2000 में भारत के लगभग 60% लोग प्राथमिक क्षेत्र, 17% द्वितीयक क्षेत्र तथा 23% लोग तृतीयक क्षेत्र के कार्यों से जुड़े हुए थे। इस समय में कृषि कार्यों के हिस्से में काफ़ी तेजी से कमी आयी तथा औद्योगिक क्षेत्र से जुड़ने वाले लोग तेज़ी से बढ़ गए।

→ भारत में स्वतंत्रता से पहले औद्योगिक प्रगति न के बराबर थी। चाहे स्वतंत्रता के बाद सरकार ने उद्योगों की तरफ विशेष ध्यान दिया परंतु इतनी तेज़ी से उद्योग विकसित न हो पाए। परंतु 1990 के दशक में सरकार ने उदारीकरण की नीति को अपनाया जिससे लाइसेंस नीति को खत्म किया गया। इसके बाद भारत में उद्योग तेजी से विकसित हुए।

→ 1991 के बाद सरकार ने विनिवेश की नीति अपनायी जिसमें सार्वजनिक कंपनियों को निजी उद्योगों को बेचा गया। निजी कंपनियों ने अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए कर्मचारियों की छंटनी शुरू की। यह छंटनी केवल भारत में ही नहीं बल्कि संपूर्ण संसार में ही हो रही है।

→ आजकल उद्योगों में कर्मचारियों को पक्के तौर पर नहीं बल्कि ठेके या संविदा के अनुसार रखा जाता है। कर्मचारी को निश्चित समय के लिए निश्चित तनखाह पर रखा जाता है। अगर उसका कार्य अच्छा हो तो ठेका आगे बढ़ा दिया जाता है नहीं तो नौकरी से निकाल दिया जाता है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास

→ आजकल उद्योगों में मैनेजर रखे हुए होते हैं जिनका मुख्य कार्य है कामगारों को नियंत्रित रखना तथा उनसे अधिक काम करवाना। उनके कार्य के घंटों में वृद्धि कर दी जाती है तथा कार्य को संगठित रूप से करवाकर उत्पादन भी बढ़ा लिया जाता है। उद्योगों में श्रमिकों से काफ़ी अधिक काम लिया जाता है तथा विश्राम का काफ़ी कम समय दिया जाता है। रोज़ाना इतना अधिक कार्य करते-करते श्रमिक इतना थक जाते हैं कि 40 वर्ष की आयु तक पहुँचते पहुँचते वह निढाल हो जाते हैं।

→ उद्योगों में कार्य करने की अवस्थाएं शोषण से भरपूर होती हैं। उदाहरण के तौर पर कोयले की खानों में कार्य करने के स्पष्ट नियम बनाए गए हैं परंतु ठेकेदार इनका पालन नहीं करते। दुर्घटना के समय किसी को मुआवजा नहीं दिया जाता तथा गड्ढ़ों को भरा नहीं जाता।

→ घरों पर किया जाने वाला कार्य आर्थिकी का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है जो महिलाओं तथा बच्चों द्वारा किया जाता है। उन्हें कच्चा माल पर पीस के हिसाब से दे दिया जाता है तथा उनसे प्रत्येक पीस के हिसाब से उत्पादित माल ले लिया जाता है तथा पैसे दे दिए जाते हैं।

→ बहुत बार काम की बुरी दशाओं के कारण श्रमिक हड़ताल भी कर देते हैं। वे काम पर नहीं जाते हैं, तालाबंदी हो जाती है तथा बिना वेतन के कामगारों के लिए रहना मुश्किल हो जाता है।

→ औद्योगीकरण-देश में उद्योगों के बढ़ने की प्रक्रिया।

→ मिश्रित आर्थिक नीति-वह आर्थिक नीति जिसमें कुछ क्षेत्र सरकार के लिए आरक्षित होते हैं तथा कुछ निजी क्षेत्रों के लिए खुले होते हैं।

→ उदारीकरण-वह प्रक्रिया जिसमें विदेशी फर्मों को देश में निवेश करने के लिए प्रोत्सहित किया जाता है।

→ विनिवेश-सार्वजनिक कंपनियों के शेयर्स को निजी क्षेत्र की कंपनियों को बेचने की प्रक्रिया।

→ विस्थापति-वह लोग जिन्हें अपनी भूमि से बेदखल कर कहीं और बसाने का प्रयास किया जाता है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास Read More »

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 4 ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 4 ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Solutions Chapter 4 ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन

HBSE 12th Class Sociology ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
दिए गए गद्यांश को पढ़े तथा प्रश्नों का उत्तर दें।
अयनबीद्या में मजदूरों की कठिन कार्य दशा, मालिकों की एक वर्ग के रूप में आर्थिक शक्ति तथा प्रबल जाति के रूप में अपरिमित शक्ति के संयुक्त प्रभाव का परिणाम थी। मालिकों की सामाजिक शक्ति का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष, राज्य के विभिन्न अंगों का अपने हितों के पक्ष में हस्तक्षेप करवा सकने की क्षमता थी। इस प्रकार प्रबल तथा निम्न वर्ग के मध्य खाई को चौड़ा करने में राजनीतिक कारकों का निर्णयात्मक योगदान रहा है।
(i) मालिक राज्य की शक्ति को अपने हितों के लिए कैसे प्रयोग कर सके, इस बारे में आप क्या सोचते हैं?
(ii) मज़दूरों की कार्य दशा कठिन क्यों थी?
उत्तर:
(i) मालिक राज्य की शक्ति को अपने हितों के लिए प्रयोग कर सकते थे क्योंकि उनकी सामाजिक शक्ति का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष यह था कि वह राज्य के अलग-अलग अंगों को अपने हितों के पक्ष में हस्तक्षेप करवा सकने की क्षमता रखते थे।

(ii) मज़दूरों की कार्य दशा कठिन थी क्योंकि मालिकों के पास आर्थिक शक्ति थी तथा वह प्रबल जाति से संबंध रखते थे। इसलिए मालिक मजदूरों का शोषण करते थे तथा मजदूरों के पास इसको सहने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं था।

प्रश्न 2.
भूमिहीन कृषि मजदूरों तथा प्रवसन करने वाले मजदूरों के हितों की रक्षा करने के लिए आपके अनुसार सरकार ने क्या उपाय किए हैं, अथवा क्या किए जाने चाहिए?
उत्तर:
स्वतंत्रता से पहले भूमिहीन कृषि मज़दूरों तथा प्रवसन करने वाले मजदूरों की दशा काफ़ी दयनीय थी। स्वतंत्रता के बाद सरकार ने इनकी स्थिति सुधारने तथा इनके हितों की रक्षा करने के लिए प्रयास करने शुरू किए। इसलिए सरकार ने कई प्रकार के भूमि सुधार कार्यक्रम शुरू किए जिनका वर्णन इस प्रकार है-

  • जिन ज़मीनों पर भूमिहीन किसान कृषि करते थे, उन्हें उस भूमि का स्वामित्व प्रदान किया गया तथा उन्हें ज़मीन का मालिक बना दिया गया।
  • ज़मींदारी प्रथा समाप्त कर दी गई तथा ज़मींदारों की अतिरिक्त भूमि जब्त करके उसे भूमिहीन किसानों तथा मज़दूरों में बांट दिया गया।
  • बिचौलियों तथा मध्यस्थों को समाप्त कर दिया गया।
  • भूमि की चकबंदी कर दी गई तथा हरेक किसान के लिए जोतने वाली भूमि की सीमा निर्धारित कर दी गई।
  • भूमि से संबंधित रिकार्डों को दुरुस्त किया गया तथा उन्हें ठीक ढंग से बनाकर रखा गया। इस प्रकार सरकार ने भूमिहीन कृषि मज़दूरों तथा प्रवास करने वाले मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए कई उपाय किए।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 4 ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन

प्रश्न 3.
कृषि मजदूरों की स्थिति तथा उनकी सामाजिक-आर्थिक उध्वर्गामी गतिशीलता के अभाव के बीच सीधा संबंध है। इनमें से कुछ के नाम बताइए।
उत्तर:
निर्धनता, बेरोजगारी, ऋणग्रस्तता, प्रवास करना, भूमि का न होना, सरकारी नीतियों की जानकारी का अभाव, नई तकनीक का पता न होना इत्यादि ऐसे कारक हैं जो कषि मज़दरों की स्थिति तथा उनकी सामाजिक आर्थिक उर्ध्वगामी गतिशीलता के बीच रुकावटें हैं।

प्रश्न 4.
वे कौन-से कारक हैं जिन्होंने कुछ समूहों के नव धनाढ्य, उद्यमी तथा प्रबल वर्ग के रूप में परिवर्तन को संभव किया है? क्या आप अपने राज्य में इस परिवर्तन के उदाहरण के बारे में सोच सकते हैं?
उत्तर:
1960 के दशक में हरित क्रांति आयी जिसके बहुत से दूरगामी परिणाम सामने आए। हरित क्रांति से न केवल खाद्यान उत्पादन बढ़ा बल्कि इससे बहुत से परिवर्तन भी आए। हरित क्रांति के कारण भारत में ग्रामीण समाज में आर्थिक असमानता बढ़ गई। हरित क्रांति के कारण नई मशीनें, नई तकनीक, नए बीज, उवर्रक, सिंचाई के साधन, कीटनाशक दवाएं सामने आयी परंतु यह छोटे किसानों की पहुंच से बाहर थी।

अमीर किसानों ने तो इन सभी चीज़ों को अपना लिया परंतु छोटे और सीमांत किसान इन्हें न अपना सकें क्योंकि इनको अपनाने की उनमें क्षमता नहीं थी। इसलिए हरित क्रांति के कारण अमीर तथा छोटे किसानों के बीच आर्थिक असमानता बढ़ गई। अमीर किसानों ने उन्नत तकनीक अपना कर अधिक लाभ कमाने का ढंग पता कर लिया जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक असमानता तथा अंसतोष बढ़ गया। इस कारण ही ग्रामीण क्षेत्रों में संघर्ष शुरू हो गए।

इस असंतोष के कारण कृषि की नई व्यवस्था सामने आ रही है। हरित क्रांति के लाभ निर्धन किसानों, भूमिहीन कृषि मजदूरों इत्यादि को प्राप्त न हुए। इस प्रकार जब तक सभी को उस क्रांति का लाभ नहीं मिलेगा तब तक समाज के सभी वर्गों की आर्थिक तथा सामाजिक प्रगति नहीं हो पाएगी। यह ठीक है कि हरित क्रांति के कारण देश में खाद्यान्न उत्पादन काफ़ी बढ़ गया परंतु यह उत्पादन देश के सभी क्षेत्रों में एक समान न बढ़ा।

पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र इत्यादि जैसे प्रदेशों में तो खाद्यान्न उत्पादन काफ़ी बढ़ गया परंतु देश के और भागों में हरित क्रांति का प्रभाव कम ही पड़ा। इस कारण ही राज्यों की आर्थिक असमानता भी बढ़ गई। हरित क्रांति के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में पूंजीपूति किसानों का एक वर्ग सामने आया जो कृषि क्षेत्र में पैसा निवेश करके अधिक पैसा कमाने लगा। हरित क्रांति से लाभांवित हुए प्रदेशों में स्त्री पुरुष अनुपात में

प्रश्न 5.
हिंदी तथा क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्में अक्सर ग्रामीण परिवेश में होती हैं। ग्रामीण भारत पर आधारित किसी फिल्म के बारे में सोचिए तथा उसमें दर्शाएं गए कृषक समाज और संस्कृति का वर्णन कीजिए। उसमें दिखाए गए दृश्य कितने वास्तविक है? क्या आपने हाल में ग्रामीण क्षेत्र पर आधारित कोई फिल्म देखी है? यदि नहीं तो आप इसकी व्याख्या किस प्रकार करेंगे?
उत्तर:
भारतीय सिनेमा की बहुत-सी फिल्मों में ग्रामीण भारत अर्थात् गांवों के दृश्य देखने को मिल जाते हैं। इन फिल्मों में ग्रामीण समाज की संस्कृति को ठीक ढंग से दिखाने का प्रयास किया जाता है। चाहे फिल्म निर्माता किसी गांव में शूटिंग न करके मुंबई के किसी स्टूडियो में ही गांव का सैट लगाकर उसे वास्तविक बनाने का प्रयास करते हैं। परंतु हम यह कह सकते हैं कि जो गाँव फिल्मों में दिखाया जाता है वह वास्तविक गाँव से तो भिन्न होता ही है।

पूरे भारत में गाँव अलग-अलग प्रकृति के हैं। कोई छोटे गाँव, कोई मध्यम प्रकार के तथा कई गाँव तो इतने बड़े हैं कि किसी छोटे-मोटे कस्बे का रूप ही ले लें। इन गांवों में सुविधाएं भी अलग प्रकार की ही मिलती हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश जैसे प्रदेशों में कृषि करने के ढंग अभी भी प्राचीन ही हैं। परंतु उत्तर भारत के प्रदेशों, पंजाब, हरियाणा इत्यादि में कृषि करने के आधुनिक सामान मिल जाते हैं।

इन गाँवों में साफ़-सफ़ाई का भी अधिक ध्यान रखा जाता है। इसके अतिरिक्त किसानों के जीवन जीने के ढंगों का भी अंतर होता है। हमने हाल ही में ग्रामीण परिवेश से संबंधित कई फिल्में देखी हैं जैसे कि अमिताभ बच्चन तथा धर्मेंद्र की शोले, आमिर खान की लगान इत्यादि। इन फिल्मों में ग्रामीण परिवेश को दिखाया गया है। इन फिल्मों में जो मुद्दे दिखाए गए हैं वह वास्तविक ग्रामीण समाज से बिल्कुल ही अलग हैं। इसलिए अगर फिल्मों में ग्रामीण परिवेश को दिखाना है तो उसका वास्तविक चित्रण ही दिखाना चाहिए न कि कृत्रिम चित्रण।

प्रश्न 6.
अपने पड़ोस में किसी निर्माण स्थल, ईंट के भट्टे या किसी अन्य स्थान पर जाएं जहाँ आपको प्रवासी मज़दूरों के मिलने की सम्भावना हो, पता लगाइए कि वे मज़दूर कहां से आए हैं? उनके गाँव से उनकी भर्ती किस प्रकार की गई, उनका मुकादम कौन है? अगर वे ग्रामीण क्षेत्र से हैं तो गाँवों में उनके जीवन के बारे में पता लगाइए तथा उन्हें काम ढूँढने के लिए प्रवासन करके बाहर क्यों जाना पड़ा?
उत्तर:
अगर हम अपने पड़ोस में किसी निर्माण स्थल, ईंट के भट्टे या किसी अन्य स्थान पर जाएं तो हमें हरेक स्थान पर प्रवासी मज़दूर मिल जाएंगे। इनसे बातचीत करके पता चलता है कि यह उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड जैसे प्रदेशों से आए हैं जहां पर जीवन जीने के साधन इतनी आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। वहां पर मज़दूरी काफ़ी कम है इसलिए वह अपने प्रदेशों को छोड़कर हमारे प्रदेश में आए हैं ताकि अधिक धन कमा कर अपने परिवार का पालन-पोषण किया जा सके।

यह लोग स्वयं ही अपने मित्रों रिश्तेदारों के साथ हमारे प्रदेश में आए हैं। मुख्यतः यह लोग ग्रामीण क्षेत्रों से ही हैं तथा उनके गाँवों में जीवनयापन के लिए पैसा कमाना काफ़ी कठिन है। इसका सबसे पहला कारण यह है कि उनके पास कृषि करने योग्य भूमि या तो है ही नहीं, अगर है तो वह भी काफ़ी कम है। उससे गुजारा चलाना काफ़ी कठिन है। दूसरा इनके क्षेत्रों में मजदूरी करने के लिए बहुत अधिक लोग हैं जिस कारण मजदूरी काफ़ी कम है।

इन लोगों का खाना-पीना काफ़ी साधारण होता है। यह लोग तो नमक तथा प्याज़ के साथ रोटी खाकर भी गुजारा कर लेते हैं। कृषि करने के प्राचीन साधन हैं जिस कारण उत्पादन काफ़ी कम है। उन्हें काम ढूँढने के लिए प्रवासन करके बाहर जाना पड़ता है क्योंकि उनके यहाँ पर प्रति व्यक्ति आय इतनी कम है कि व्यक्ति का घर का गुजारा चलाना काफ़ी मुश्किल होता है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 4 ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन

प्रश्न 7.
अपने स्थानीय फल विक्रेता के पास जाएँ और उससे पूछे कि वे फल जो वह बेचता है, कहाँ से आते हैं, और उनका मूल्य क्या है? पता लगाइए कि भारत के बाहर में फलों के आयात (जैसे कि ऑस्ट्रेलिया से सेब) के बाद स्थानीय उत्पाद के मूल्यों का क्या हुआ? क्या कोई ऐसा आयतित फल है जो भारतीय फलों से सस्ता है?
उत्तर:
अगर हम अपनी फलों की मार्कीट में जाएं तो हमें फलों की दुकानों पर कई प्रकार के फल मिल जाते हैं। इनमें से बहुत से ऐसे फल होते हैं जो मौसमी होते हैं अर्थात् उस विशेष मौसम में ही पाए जाते हैं। परंतु आजकल तो बहुत-से बेमौसमी फल भी मिल जाते हैं। अगर फल विक्रेता से पूछे तो उसका जवाब होता है कि यह फल बाहर का है अर्थात् यह आयातित फल है। उदाहरण के लिए सर्दियों में वैसे तो आम उपलब्ध नहीं होता परंतु फिर भी आम मौजूद होता है जोकि आयातित होता है।

इसी प्रकार बाज़ार में सेब, अंगूर, नाशपाती, कीवी फल, तरबूज़ इत्यादि ऐसे फल हैं जो आयात किए जाते हैं तथा हरेक मौसम में उपलब्ध होते हैं। वैसे तो इनका मूल्य स्थानीय फलों की तुलना में काफ़ी अधिक होता है परंतु जब मौसमी फल सस्ते हो जाते हैं तो इनके दामों में भी कमी आ जाती है। हमारे ख्याल में शायद कोई ऐसा आयातित फल नहीं है जो कि भारतीय फलों से सस्ता हो।

प्रश्न 8.
ग्रामीण भारत में पर्यावरण स्थिति के विषय में जानकारी एकत्र पर एक रिपोर्ट लिखें। उदाहरण के लिए विषय, कीटनाशक, घटता जल स्तर, तटीय क्षेत्रों में झींगें की खेती का प्रभाव, भूमि का लवणीकरण तथा नहरी सिंचित क्षेत्रों में पानी का जमाव, जैविक विविधता का ह्रास।
उत्तर:
ग्रामीण भारत में पर्यावरण की स्थिति काफ़ी चिंताजनक बनी हुई है। ग्रामीण क्षेत्र संपूर्ण देश के लिए खाद्यान्न का उत्पादन करते हैं। इसके लिए वह नए बीजों, उन्नत उर्वरकों, कीटनाशकों इत्यादि का प्रयोग करते हैं ताकि अधिक-से-अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सके। परंतु इसका पर्यावरण पर काफ़ी बुरा प्रभाव पड़ रहा है। कैमिकल उर्वरक, कीटनाशक इत्यादि खाद्यान्न को दूषित कर देते हैं। यूरिया के प्रयोग के बिना फ़सल नहीं होती परंतु यूरिया का व्यक्ति के शरीर पर ग़लत प्रभाव पड़ता है।

कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है जिससे न केवल भूमि की उत्पादन क्षमता कम होती है बल्कि इनका शरीर पर भी ग़लत प्रभाव पड़ता है। किसान अधिक पानी प्राप्त करने के लिए भूमिगत जल स्रोत का प्रयोग करते हैं जिससे भूमिगत जल स्तर दिन-प्रतिदिन नीचे जा रहा है। यह सब कुछ खरीदने के लिए किसानों को कर्जा उठाना पड़ता है।

एक किसान अगर एक बार कर्जे के चक्कर में पड़ गया तो उस चक्कर से वह तमाम आयु निकल नहीं सकता। आजकल तो कर्जे से डर कर किसानों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। रोज़ अखबार में किसानों द्वारा आत्महत्या करने की ख़बरें पढ़ने को मिल जाती हैं कि जोकि एक चिंता का विषय है।

ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन HBSE 12th Class Sociology Notes

→ हमारा देश भारत मुख्यतः एक कृषि प्रधान देश है जहां पर 68% के जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है तथा 70% के लगभग जनसंख्या कृषि या उससे संबंधित कार्यों में लगी हुई है। इसलिए ही बहुत से भारतीयों के लिए भूमि उत्पादन का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन तथा संपत्ति का एक महत्त्वपूर्ण प्रकार है।

→ हमारे देश में कृषि तथा संस्कृति का काफ़ी गहरा संबंध है। अलग-अलग क्षेत्रों में कृषि की संस्कृति तथा ढंग अलग-अलग पाए जाते हैं जो अलग-अलग क्षेत्रों की संस्कृतियों को दर्शाते हैं। ग्रामीण भारत की सांस्कृतिक तथा सामाजिक संरचना दोनों ही कृषि से जुड़े हुए हैं।

→ हमारे देश के ग्रामीण क्षेत्रों में केवल कृषि ही नहीं बल्कि उससे संबंधित कार्य भी साथ जुड़े हुए हैं जैसे कि कुम्हार, कृषक, जुलाहे, लोहार, सुनार इत्यादि। यह भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न हिस्सा है।

→ ग्रामीण भारत की कृषक संरचना कुछ अलग सी है। बहुत से लोगों के पास या तो कृषि योग्य भूमि है ही नहीं या फिर बहुत ही कम है। मध्य वर्ग के किसानों के पास थोड़ी बहुत भूमि तो होती है परंतु उससे उनका केवल गुज़ारा ही चलता है। अमीर या उच्च वर्गीय किसान अपनी अनंत ज़मीनों को किराए पर देकर स्वयं ऐश करते हैं। गांवों में प्रबल जाति काफ़ी महत्त्वपूर्ण तथा शक्तिशाली होती है।

→ औपनिवेशिक काल में अंग्रेजों ने भूमि से अधिक-से-अधिक कर उगाहने के लिए कई प्रकार के प्रबंध चलाए जैसे कि ज़मींदारी प्रथा, रैय्यतवाड़ी प्रथा, महलवारी प्रथा। इन प्रबंधों के कारण किसानों का ज़मींदारों तथा विदेशी सरकार द्वारा इतना अधिक शोषण हुआ कि आज तक किसान उस कर्जे से उबर नहीं सके हैं।

→ भारत की स्वतंत्रता के बाद देश के नेताओं ने कृषि की उन्नति के लिए बहुत से महत्त्वपूर्ण सुधार किए। सभी भूमि प्रबंधों को खत्म कर दिया गया। पट्टेदारी का उन्मूलन कर दिया गया, मध्यस्थ खत्म कर दिए गए तथा भूमि की हदबंदी की गई। चाहे इन कानूनों में कुछ कमियां थी तथा बहुत से लोगों ने इन कमियों का फायदा भी उठाया परंतु फिर भी इन सुधारों से किसानों के जीवन में काफ़ी खुशहाली आई।

→ 1960-70 के दशक में देश को खाद्यानों के क्षेत्र में आत्म निर्भर बनाने के लिए हरित क्रांति का कार्यक्रम चलाया गया जिसमें कृषि को आधुनिक मशीनों, नए बीजों, उर्वरकों इत्यादि की सहायता से करवाना शुरू किया गया। इससे कृषि उत्पादकता बढ़ गई तथा बहुत से किसान खुशहाल हो गए। चाहे हरित क्रांति जहाँ-जहाँ आई वहां पर काफ़ी खुशहाली आई परंतु जहाँ पर हरित क्रांति न आ पाई वहां पर स्थिति जस की तस ही रही। कृषि के ढंग वहां पर अविकसित रहे तथा गाँव की संरचना वैसी ही बनी रही। छोटे किसानों का अमीर किसानों द्वारा शोषण जारी रहा।

→ देश में स्वतंत्रता के बाद ग्रामीण समाज में बहुत से परिवर्तन आए। कृषि मजदूर बढ़ गए, अनाज का नगद भुगतान होने लगा, प्राचीन जजमानी संबंध बदलने लग गए, मुक्त दिहाड़ीदार मज़दूर सामने आए। किसान सीधे विश्व बाज़ार से जुड़ गए तथा ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार द्वारा बहुत-सी सुविधाएं दी गईं। इस समय में ही मज़दूरों का संचार भी शुरू हुआ। पिछड़े हुए प्रदेशों के लोग कार्य की तलाश में उन क्षेत्रों की ओर जाने लगे जहाँ पर कृषि क्षेत्र में कार्य उपलब्ध था। लाखों की तादाद में मज़दूर एक स्थान से दूसरे स्थान की तरफ गए जिससे जनसंख्या संरचना में काफी दिक्कतें आईं।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 4 ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन

→ इस समय में ही भूमंडलीकरण तथा उदारीकरण की प्रक्रियाएं शुरू हुईं जिनका प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों पर भी पड़ा। कृषि का भूमंडलीकरण शुरू हुआ जिससे संविदा खेती पद्धति सामने आई।

→ कृषि क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आने से एक तरफ तो बहुत से किसान खुशहाल हो गए परंतु दूसरी तरफ सूखे, अकाल तथा ऋण वापिस न कर पाने के कारण किसानों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति भी बढ़ती जा रही है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में अनुभव किए जाने वाले महत्त्वपूर्ण संकट की तरफ संकेत करता है।

→ प्रबल जाति : ग्रामीण क्षेत्रों का समूह जो काफी शक्तिशाली होता है तथा आर्थिक और राजनीतिक रूप से वह स्थानीय लोगों पर प्रभुत्व बना कर रखता है।

→ बेगार : मुफ्त मज़दूरी करने की प्रथा से बेगार कहा जाता है।

→ रैय्यतवाड़ी व्यवस्था : कृषि के भूमि प्रबंध की वह व्यवस्था जिसमें कृषक स्वयं ही सरकार को टैक्स चुकाने के लिए ज़िम्मेदार होता था।

→ जीविका : व्यक्ति के जीवन जीने के लिए जरूरी कार्य या रोज़गार जिससे कि धन की प्राप्ति हो सके।

→ विभेदीकरण : हरित क्रांति की अंतिम परिणीत जिसमें अमीर और अमीर हो गए तथा कई निर्धन पूर्ववत रहे या अधिक निर्धन हो गए।

→ संविदा खेती : कृषि करने का वह ढंग जिसमें कंपनियाँ उगाई जाने वाली फसलों की पहचान करती हैं, बीज तथा अन्य वस्तुएँ निवेश के रूप में उपलब्ध करवाती हैं तथा साथ ही जानकारी और अक्सर कार्यकारी पूँजी भी देती हैं।

→ कृषि का भूमंडलीकरण : कृषि को विस्तृत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में शामिल किए जाने की प्रक्रिया।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 4 ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन Read More »

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ

HBSE 12th Class Sociology भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
हित समूह प्रकार्यशील लोकतंत्र के अभिन्न अंग हैं। चर्चा कीजिए।
उत्तर:
दबाव समूह या हित समूह संगठित अथवा असंगठित समूह होते हैं जो सरकार की नीतियां प्रभावित करते या हित समूह है तथा अपने हितों को बढ़ावा देते हैं। यह विभिन्न स्तरों पर अपने सदस्यों के हितों की रक्षा करते हैं। यह प्रकार्यशील लोकतंत्र का निम्नलिखित ढंग से अभिन्न अंग होते हैं-
(i) यह हित समह किसी विशेष मददे पर आंदोलन चलाते हैं ताकि जनता का समर्थन हासिल किया जा सके। दोनों ही संचार माध्यमों की सहायता लेते हैं ताकि जनता का ध्यान अधिक से अधिक अपनी ओर खींचा जा सके।

(ii) यह साधारणतया हड़तालें करवाते हैं, रोषमार्च निकालते हैं तथा सरकारी कार्यों में बाधा पहुँचाने का प्रयास करते हैं। यह हड़ताल की घोषणा करते हैं तथा धरने पर बैठते हैं ताकि अपनी आवाज़ उठा सकें। अधिकतर फैडरेशन तथा यूनियनें सरकारी नीतियों को प्रभावित करने के लिए इन्हीं ढंगों का प्रयोग करते हैं।

(iii) साधारण तथा व्यापारी समूह लॉबी का निर्माण करते हैं जिसके कुछ आम हित होते हैं ताकि सरकार पर उसकी नीतियाँ बदलने के लिए दबाव बनाया जा सके।

(iv) यह समूह समाचार पत्रों को निकालते हैं तथा उन्हें अपने नियंत्रण में रखते हैं ताकि जनता में अपने हितों का प्रचार करके उन्हें अपने पक्ष में किया जा सके।

प्रश्न 2.
संविधान सभा की बहस के अंशों का अध्ययन कीजिए। हित समूहों को पहचानिए। समकालीन भारत में किस प्रकार के हित समूह हैं? वे कैसे कार्य करते हैं?
उत्तर:
संविधान सभा की बहस के अंश पाठ्य पुस्तक में दिए गए हैं। इसका अध्ययन करने के बाद हमें यह पता चलता है कि हमारे देश में कई प्रकार के आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, व्यपारिक हित समूह पाए जाते हैं। यह सभी हित समूह अपने सदस्यों के हितों की पूर्ति के लिए कार्य करते हैं। यह अपने हितों की पूर्ति के लिए सरकार पर कई प्रकार से दबाव डालते हैं तथा अपनी मांगें मनवाते हैं। ट्रेड यूनियन, किसान संघ इसकी उदाहरणे हैं।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ

प्रश्न 3.
विद्यालय में चुनाव लड़ने के समय अपने आदेशपत्र के साथ एक फड़ बनाइए। (यह पाँच लोगों के एक छोटे समूह में भी किया जा सकता है, जैसा पंचायत में होता है।)
उत्तर:
इस प्रश्न को विद्यार्थी स्वयं अपने अध्यापक की सहायता से करें।

प्रश्न 4.
क्या आपने बाल मजदूर और मज़दूर किसान संगठन के बारे में सुना है? यदि नहीं तो पता कीजिए और उनके बारे में 200 शब्दों में एक लेख कीजिए।
उत्तर:
(i) बाल मज़दूर-अगर किसी की आयु 14 वर्ष से कम है तथा वह मजदूरी करता है तो इसे बाल मजदूरी कहते हैं। हमारे देश में यह एक बहुत बड़ी समस्या है। चाहे हमारे देश में बाल मजदूरी कानूनन जुर्म है तथा इसके लिए सज़ा का भी प्रावधान है परंतु फिर भी यह समस्या कम होने की बजाए बढ़ रही है। इसका कारण है अत्यधिक निर्धनता तथा अधिक जनसंख्या।

निर्धन लोगों के पास बच्चों को पढ़ाने के लिए पैसा नहीं होता जिस कारण वह अपने बच्चों को छोटी आयु में ही कार्य करने को लगा देते हैं जिससे बाल अपराध बढ़ता है। इस समस्या को दूर करने के लिए निःशुल्क शिक्षा तथा मुफ्त किताबों का प्रबन्ध किया है, दोपहर के खाने का भी प्रबन्ध किया है ताकि बच्चे बाल मज़दूरी को छोड़ कर शिक्षा को अपनाएं तथा जीवन में प्रगति करें।

(ii) किसान संगठन-हमारा देश कषि प्रधान देश है जहाँ पर 70% के लगभग जनसंख्या कषि या उससे संबंधित कार्यों से जुड़ी हुई है। इस प्रकार के कृषि प्रधान देश में किसान संगठनों का होना लाज़मी है जो किसानों के हितों के लिए कार्य करते हैं। कृषि बहुल प्रदेशों जैसे कि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश इत्यादि में तो इनकी स्थिति काफ़ी महत्त्वपूर्ण है।

यह प्रदेशों की राजनीति को काफ़ी हद तक प्रभावित करते हैं। यह संगठन किसानों की समस्याओं को सरकार के सामने लाते हैं, सरकार पर दबाव बनाते हैं ताकि किसानों की समस्याओं को दूर किया जा सके। यह किसान संगठन एक प्रकार से दबाव समूह अथवा हित समूहों की तरह ही कार्य करते हैं।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ

प्रश्न 5.
ग्रामीणों की आवाज़ को सामने लाने में 73वाँ संविधान संशोधन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। चर्चा कीजिए।
उत्तर:
1992 में 73वां संवैधानिक संशोधन हुआ जिससे प्रारंभिक स्तर पद लोकतंत्र तथा विकेंद्रीकृत शासन का पता चलता है। इस संशोधन से पंयाचती राज संस्थाओं को संवैधानिक स्थिति प्राप्त हुई। अब स्थायी स्वशासन के सदस्यों का गाँवों तथा नगरों में हरेक 5 वर्षों बाद चुना जाना जरूरी हो गया। इसके साथ ही स्थानीय संसाधनों पर चुने हुए निकायों का नियंत्रण स्थापित हो गया। इसकी विशेषताएं हैं-
(i) ग्राम स्तर पर सबसे पहले ग्राम सभा स्थापित की गई जिसके सदस्य गाँव के सभी बालिग होते हैं। यही सभा स्थानीय सरकार का चुनाव करके उसे निश्चित उत्तरदायित्व सौंपती है। ग्राम सभा में गांव के विकास कार्यों की चर्चा होती है तथा यह गाँव के सदस्यों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में भागीदार बनती है।

(ii) इस संशोधन से 20 लाख से अधिक जनसंख्या वाले हरेक राज्य में तीन स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई।

(iii) अब हरेक पाँच वर्षों बाद इसके सदस्यों का चुनाव करना ज़रूरी हो गया।

(iv) इस संशोधन से इन संस्थाओं में महिलाओं के लिए 33% स्थान तथा अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुसार स्थान आरक्षित रखे गए।

(v) इसने पूरे जिले के विकास को प्रारूप निर्मित करने के लिए जिला योजना समिति गठित की।

73वें तथा 74वें संवैधानिक संशोधन से ग्रामीण तथा नगरीय स्वःशासन की संस्थाओं में 33% स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित रखे गए जिनमें से 17% सीटें अनूसूचित जातियों तथा जनजातियों की महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। इससे महिलाओं को स्थानीय स्तर पर पहली बार निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल किया गया। यह प्रावधान 1992-93 से सम्पूर्ण देश में लागू है।

प्रश्न 6.
एक निबंध लिखकर उदाहरण देते हुए उन तरीकों को बताइए जिनसे भारतीय संविधान ने साधारण जनता में दैनिक महत्त्वपूर्ण समस्याओं का अनुभव किया है?
अथवा
संविधान द्वारा भारतीय समाज में क्या-क्या परिवर्तन लाए गए?
अथवा
संविधान से भारतीय समाज में क्या-क्या परिवर्तन आए हैं? सविस्तार प्रतिपादित करें।
अथवा
भारतीय संविधान लोगों के दैनिक जीवन से जुड़ा है। उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
(i) भारतीय संविधान ने अपने सभी नागरिकों को समानता का अधिकार दिया है कि कानून के सामने सभी समान हैं। किसी भी व्यक्ति के साथ किसी भी आधार अर्थात् जन्म, जाति, प्रजाति, लिंग, रंग इत्यादि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। इससे निम्न जातियों की स्थिति उच्च जातियों के समान हो गई है।

(ii) भारतीय संविधान ने अपने नागरिकों को अच्छा जीवन जीने के लिए कुछ मौलिक अधिकार दिए हैं। ये सभी को बिना किसी भेदभाव के दिए गए हैं। इस प्रकार निम्न जातियों के लोग पहले की अपेक्षा अच्छा जीवन जी सकते हैं, जो कि भारतीय संविधान द्वारा दिया गया है।

(iii) हमारे संविधान ने देश को एक लोकतांत्रिक देश बनाया है। इसका अर्थ यह है कि यहां पर किसी प्रकार की तानाशाही का कोई स्थान नहीं है तथा जनता अपना शासक स्वयं चुनती है तथा सर्वोच्च अधिकार रखती है। इस प्रकार सत्ता जनता के हाथों में होती है तथा इससे जनता का रोज़ाना जीवन काफी हद तक प्रभावित हुआ है।

(iv) भारत एक ऐसा देश है जहां पर कई धर्मों के लोग रहते हैं। इन सभी धर्मों में धार्मिक हिंसा को टालना अति आवश्यक था। इसलिए ही हमारे संविधान ने देश को एक धर्म निष्पक्ष राज्य बनाया है अर्थात् राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है। इसका अर्थ यह है कि सभी धर्मों को समान स्थिति प्रदान की गई है। इसने भी जनता के रोज़ाना जीवन को प्रभावित किया है।

भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ HBSE 12th Class Sociology Notes

→ दिवंगत अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने कहा था कि लोकतंत्र जनता की, जनता के लिए तथा जनता के द्वारा चुनी हुई सरकार होती है। प्रत्यक्ष लोकतंत्र में सभी नागरिक बिना किसी चयनित या मनोनीत अधिकारी की मध्यस्थता के, सार्वजनिक निर्णयों में स्वयं भाग लेते हैं।

→ हमारे देश में सहभागी लोकतंत्र तथा शक्तियों के विकेंद्रीकरण की व्यवस्था की गई है। सहभागी लोकतंत्र एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें समूह या समुदाय के सभी सदस्य महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने में भाग लेते हैं। विकेंद्रीकृत व्यवस्था में शक्तियों का ऊपर से नीचे तक बँटवारा किया गया है।

→ भारतीय संविधान को 1946 में संविधान सभा ने बनाना शुरू किया तथा इसे बनते-बनते लगभग तीन वर्ष लग गए। 26 जनवरी, 1950 को यह लागू भी हो गया। इसमें देश के सभी नागरिकों को समानता, मौलिक अधिकार तथा मौलिक कर्तव्य दिए गए हैं तथा भेदभाव का इसमें कोई स्थान नहीं रखा गया है।

→ संविधान में कुछ मूल उद्देश्य शामिल किए गए हैं जिन्हें भारतीय राजनीति में न्यायोचित माना जाता है। निर्धन तथा पिछड़े हुए लोगों को सक्षम बनाना, निर्धनता उन्मूलन, जातिवाद समाप्त करने तथा सभी के प्रति समानता का व्यवहार करने के लिए यह कुछ सकारात्मक चरण हैं।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ

→ हमारे देश में पंचायती राज की व्यवस्था की गई है। इसका शाब्दिक अर्थ है पाँच व्यक्तियों का शासन। यह विचार विदेश से नहीं बल्कि देश में ही शक्तियों को बाँटने की इच्छा के कारण आया। परंपरागत पंचायतों को चुनी हुई पंचायतों में परिवर्तित करने का उद्देश्य था शक्तियों में सभी को भागीदार बनाकर उनके क्षेत्रों का विकास करना।

→ 1992 के 73वें संवैधानिक संशोधन से पंचायती राज्य संस्थाओं को संवैधानिक परिस्थति प्रदान की तथा अब स्थानीय स्वः शासन के सदस्य गाँवों तथा नगरों में प्रत्येक 5 वर्ष बाद चुने जाते हैं। इसके साथ ही स्थानीय संसाधनों पर चुने हुए निकायों का नियंत्रण होता है।

→ पंचायतों को अपने क्षेत्रों का विकास करने के लिए बहुत सी शक्तियाँ दी गई हैं और जैसे कि योजनाएं बनाना, जुर्माना या शुल्क लगाकर एकत्र करना, गाँवों के विकास के लिए पैसा सरकार से प्राप्त करना इत्यादि। इनके लिए तो सरकार ने कई कार्यक्रम भी चला रखे थे जैसे कि C.D.P., I.R.D.P., J.R.Y. NREGA, MNREGA इत्यादि।

→ चाहे संविधान ने सभी को समानता का अधिकार दिया है परंतु फिर भी लोकतंत्र और असमानता का गहरा संबंध है। बहुत से मामलों में गाँव के कुछ विशेष समूहों को न तो शामिल किया जाता है तथा न ही उन्हें बताया जाता है। अमीर लोग ग्राम सभा को नियंत्रित करते हैं तथा बहुसंख्यक उन्हें केवल देखते ही रह जाते है।

→ राजनीतिक दल एक ऐसा संगठन होता है जो सत्ता हथियाने तथा सत्ता का उपयोग कुछ विशिष्ट कार्यों को संपन्न करने के उद्देश्य से स्थापित करता है। लोकतंत्र में राजनीतिक दल तथा उनके निर्णयों को प्रभावित करने वाले दबाव समूह काफ़ी महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं क्योंकि लोकतंत्र इन्हीं के कारण ही तो चलता है।

→ प्रत्यक्ष लोकतंत्र-लोकतंत्र का वह रूप जिसमें सभी नागरिक बिना किसी मनोनीत मध्यस्थ के सार्वजनिक निर्णयों में भाग लेते हैं।

→ सहभागी लोकतंत्र-एक ऐसी व्यवस्था जिसमें महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए समूदाय के सभी सदस्य एक साथ भाग लेते हैं।

→ विकेंद्रीकरण-वह प्रक्रिया जिसमें राज्य की शक्तियों को ऊपर से लेकर नीचे तक विभाजित किया जाता है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ

→ संविधान-एक ऐसा दस्तावेज जिससे किसी राष्ट्र के सिद्धांतों का निर्माण होता है।

→ पंचायत-पाँच व्यक्तियों के शासन को पंचायत कहते हैं।

→ दबाव समूह-वह शक्तिशाली समूह जो सरकार से अपनी बात मनवाने के लिए किसी न किसी प्रकार से दबाव डालते हैं।

→ राजनीतिक दल-ऐसा संगठन जिसकी स्थापना सत्ता हथियाने और सत्ता का उपयोग कुछ विशिष्ट कार्यों को संपन्न करने के उद्देश्य से होती है।

→ निजीकरण-सरकारी उद्यमों को निजी व्यक्तियों या समूहों को बेचने की प्रक्रिया।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ Read More »

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

HBSE 12th Class Sociology सांस्कृतिक परिवर्तन Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
संस्कृतिकरण पर एक आलोचनात्मक लेख लिखें।
अथवा
भारतीय समाज में संस्कृतिकरण की अवधारणा की आलोचनात्मक व्याख्या करें।
उत्तर:
संस्कृतिकरण एक प्रक्रिया है जिसमें निम्न जाति का व्यक्ति सांस्कृतिक रूप से प्रसिद्ध समूहों के रीति रिवाजों तथा नाम का अनुकरण करके अपनी स्थिति ऊँची करता है। जिनका अनुकरण किया जा रहा होता है वह आर्थिक रूप से बेहतर होते हैं। जब अनुकरण करने वाले व्यक्ति या समूह की आर्थिक स्थित अच्छी होने लग जाए तो उसे भी प्रतिष्ठित समूह का दर्जा प्राप्त हो जाता है।

आलोचना-
(i) सबसे पहले तो इसमें कहा जाता है कि इसमें सामाजिक गतिशीलता निम्न जाति का सामाजिक स्तरीकरण में उर्ध्वगामी परिवर्तन करती है, इस बात को काफ़ी बढ़ा-चढ़ा कर कहा गया है। इस प्रक्रिया से केवल कुछ व्यक्तियों की स्थिति परिवर्तित होती है संरचनात्मक परिवर्तन नहीं होता है। इससे कुछ व्यक्ति तो असमानता वाली संरचना में अपनी स्थिति सुधार लेते हैं परंतु समाज में से भेदभाव तथा असमानता खत्म नहीं होते।

(ii) इस प्रक्रिया की आलोचना का दूसरा तथ्य यह है कि इस प्रक्रिया में उच्च जाति की जीवन शैली ऊँची तथा निम्न जाति की जीवन शैली निम्न होती है। इसलिए उच्च जाति के लोगों की जीवन शैली अपनाने की इच्छा को प्राकृतिक ही मान लिया जाता है जो सभी में होती है।

(iii) तीसरी आलोचना यह है कि संस्कृतिकरण की प्रक्रिया ऐसी व्यवस्था को ठीक मानती है जो असमानता तथा भेदभाव पर आधारित है। इससे यह संकेत मिलता है कि पवित्रता तथा अपवित्रता के पक्षों को ठीक मान लिया जाए तथा उच्च जातियों द्वारा निम्नजातियों के प्रति भेदभाव उनका विशेषाधिकार है। इस प्रकार के दृष्टिकोण वाले समाज में समानता की कल्पना तो की ही नहीं जा सकती है। इस प्रकार असमानता पर आधारित समाज लोकतंत्र विरोधी ही है।

(iv) चौथी आलोचना में कहा गया है कि इस प्रक्रिया से उच्च जातियों के रिवाजों, अनुष्ठानों तथा व्यवहार को स्वीकृति मिल जाती है तथा लड़कियों, महिलाओं की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है। इस कारण ही कन्या मूल्य की जगह दहेज प्रथा तथा और समूहों के साथ जातिगत भेदभाव बढ़ गए है।

(V) इस प्रक्रिया के कारण निम्न जातियों की संस्कृति तथा समाज के मूलभूत पक्षों को भी पिछड़ा हुआ मान लिया जाता था। जैसे कि उन द्वारा किए जाने वाले कार्यों को निम्न, शर्मनाक माना जाता था तथा सभ्य नहीं माना जाता था। उनसे जुड़े सभी कार्यों जैसे कि शिल्प तकनीकी योग्यता, अलग-अलग दवाओं की जानकारी, पर्यावरण तथा कृषिका ज्ञान इत्यादि को औद्योगिक युग में उपयोगी नहीं माना जाता।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

प्रश्न 2.
पश्चिमीकरण का साधारणतः मतलब होता है पश्चिमी पोशाकों व जीवन शैली का अनुकरण। क्या पश्चिमीकरण के दूसरे पक्ष भी हैं? क्या पश्चिमीकरण का मतलब आधुनिकीकरण है? चर्चा करें।
उत्तर:
भारत के प्रसिद्ध समाजशास्त्री एम० एन० श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण का संकल्प दिया है। उनके अनुसार, “पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में भारतीय समाज तथा संस्कृति में लगभग 150 वर्षों के अंग्रेज़ी शासन के परिणाम स्वरूप आए परिवर्तन है जिसमें विभिन्न पहलू आते हैं …………….. जैसे कि प्रौद्योगिकी, संस्था, विचारधारा तथा मूल्य।”

पश्चिमीकरण के कई प्रकार रहे हैं। एक प्रकार के पश्चिमीकरण का अर्थ उस पाश्चात्य उप सांस्कृतिक प्रतिमान से है जिसे भारतीयों के उस छोटे से समूह ने अपनाया जो पहली बार पाश्चात्य संस्कृति के संपर्क में आए हैं। इसमें भारतीय लोगों की उपसंस्कृति भी शामिल थी। इन्होंने पश्चिमी प्रतिमान चिंतन के प्रकारों, स्वरूपों तथा जीवन शैली को अपनाने के साथ-साथ इनका समर्थन तथा विस्तार भी किया।

इस प्रकार हम देखते हैं कि कुछेक लोग ही थे जिन्होंने पश्चिमी जीवन शैली को अपनाया तथा पश्चिमी दृष्टिकोण से सोचना शुरू कर दिया। इसके अतिरिक्ति नए उपकरणों का प्रयोग, कपड़ों, खाने पीने की चीज़ों, आदतों तथा तौर तरीकों में भी परिवर्तन थी। इस प्रकार हम देखते हैं कि संपूर्ण भारत के मध्य वर्ग का बड़ा हिस्सा पश्चिमी चीज़ों का प्रयोग करता है। यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि पश्चिमीकरण में किसी विशेष संस्कृति के बाहरी तत्त्वों की नकल करने की प्रवृत्ति होती है। परंतु यह आवश्यक नहीं है कि वह प्रजातंत्र तथा सामाजिक समानता जैसे आधुनिक मूल्यों को भी मानते हों।

पश्चिमी संस्कृति का भारतीयों की जीवनशैली तथा चिंतन के अतिरिक्त भारतीय कला तथा साहित्य पर भी प्रभाव पड़ा। बहुत से कलाकार जैसे कि रवि वर्मा, अविंद्रनाथ टैगोर, चंदूमेनन तथा बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने औपनिवेशिक स्थितियों के साथ कई प्रकार की प्रतिक्रियाएँ कीं।

इस प्रकार हम देख सकते हैं कि विभिन्न स्तरों पर सांस्कृतिक परिवर्तन हआ तथा औपनिवेशिक काल में हमारा पश्चिम से संपर्क स्थापित हुआ। अगर हम कहें कि आज के समय में दो पीढ़ियों के विचारों में अंतर पाया जाता है तो यह पश्चिमीकरण का ही परिणाम है।पश्चिमीकरण के कारण हमारे जीवन के हरेक पक्ष में परिवर्तन आया।

पश्चिमीकरण का अर्थ आधुनिकीकरण नहीं है क्योंकि आधुनिकीकरण पूर्व में भी हो सकता है परंतु पश्चिमीकरण का अर्थ केवल पश्चिम के कारण आए परिवर्तनों से है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

प्रश्न 3.
लघु निबंध लिखें

  • संस्कार और पंथनिरपेक्षीकरण
  • जाति और पंथीनिरपेक्षीकरण।

उत्तर:
(i) संस्कार और पंथनिरपेक्षीकरण-आजकल के आधुनिक समय में हम सामाजिक सांस्कृतिक व्यवहार को आमतौर पर परंपरा तथा आधुनिकता का मिश्रण कह देते हैं परंतु इसके अपने ही निर्धारित तत्त्व है। इस जटिल कार्य को आसान बनाने की आदत ठीक नहीं है।

असल में इससे यह भ्रांति भी पैदा हो जाती है कि भारत में एक ही प्रकार की परंपराएं पाई जाती है या थी। भारत में इन परंपराओं को दो प्रकार के गुणों से पहचाना जाता है-बाहुलता तथा तर्क-वितर्क की परंपरा। भारतीय परंपराओं तथा संस्कारों में लगातार परिवर्तन होते रहते हैं तथा उन्हें बार-बार दोबारा परिभाषित किया जाता है। ऐसा 19वीं सदी के समाज सुधारकों ने किया तथा आज भी यह प्रक्रियाएं मौजूद है।

आधुनिक समाजों में पश्चिमीकरण का अर्थ ऐसी प्रक्रिया से ही जिससे धर्म का प्रभाव कम हो जाता है। आधुनिकीकरण में सभी विचारक यह कहते हैं किस आधुनिक समाज अधिक पंथनिरपेक्ष होते है । में धार्मिक विचारों का ह्रास हो जाता है, धार्मिक संस्कारों में कमी आ जाती है तथा भौतिकता का प्रभाव बढ़ जाता है। यह कहा जाता है कि आधुनिक समाज में धार्मिक संस्थानों तथा लोगों के बीच दूरी बढ़ रही है।

(ii) जाति और पंथनिरक्षीकरण-अगर ध्यान से देखा जाए तो जाति तथा पंथनिरपेक्षीकरण एक-दूसरे के विरोधी हैं। जाति प्रथा में धार्मिक विचारों को काफ़ी महत्त्व दिया जाता है। यह कहा जाता है कि धर्म तथा धार्मिक ग्रंथों ने ही व्यक्तियों के कार्यों तथा समूहों को बाँट दिया था जिस कारण जाति प्रथा अस्तित्व में आयी। जाति प्रथा में जो व्यक्ति धार्मिक कार्यों को करता था उसे समाज में सबसे उच्च स्थिति प्राप्त थी तथा निम्न जातियों को धार्मिक कार्यों से दूर रखा जाता था।

इस प्रकार अगर हम कहें कि जाति प्रथा के आधार ही धर्म तथा व्यवसाय थे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। परंतु पंथनिरपेक्षीकरण में धर्म को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता है बल्कि धार्मिक संस्कारों में काफ़ी कमी आ जाती है। इसमें लोग धार्मिक कार्यों को समय देने की अपेक्षा अपने कार्य तथा पैसे कमाने को समय देना अधिक पसंद करते हैं।

सांस्कृतिक परिवर्तन HBSE 12th Class Sociology Notes

→ पिछले अध्याय में हमने उपनिवेशवाद के बारे में पढ़ा। उपनिवेशवाद के शुरू होने के बाद से ही भारत में सांस्कृतिक परिवर्तन आने शुरू हो गए। विदेशियों की संस्कृति का हमारी संस्कृति पर इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि हमारे समाज का सामाजिक परिवर्तन तेज़ी से शुरू हो गया।

→ प्राचीन समय से ही भारतीय समाज में बहुत-सी कुरीतियां चली आ रही थीं जैसे कि सती प्रथा, विधवा विवाह पर प्रतिबंध, जाति प्रथा, बहुविवाह, पर्दा प्रथा, उच्च शिक्षा की कमी, निम्न जातियों का शोषण इत्यादि। इन सबके विरुद्ध देश के अलग-अलग क्षेत्रों से आवाजें उठीं जिन्हें समाज सुधार आंदोलन का नाम दिया गया।

→ भारत में समाज सुधार आंदोलनों की 19वीं शताब्दी में शुरुआत राजा राम मोहन राय ने की जिन्हें ‘आधनिक भारत का पिता’ भी कहा जाता है। उन्हीं के प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिंक ने सती प्रथा को समझा तथा इस अमानवीय प्रथा को गैर-कानूनी करार दिया।

→ ज्योतिबा फूले जाति प्रथा के विरुद्ध थे तथा साथ ही साथ स्त्रियों के शोषण के भी विरुद्ध थे। इसलिए ही उन्होंने सत्य शोधक समाज की स्थापना की तथा कई कन्या विद्यालय खोले।

→ सर सैय्यद अहमद खान मुसलमानों में सुधारों के काफ़ी बड़े पक्षधर थे। वह मुसलमानों में प्रचलित कई बुराइयों जैसे कि बहुविवाह, प्रर्दा प्रथा, स्त्रियों की निम्न स्थिति, अशिक्षा इत्यादि के विरोधी थे। इसलिए उन्होंने मुस्लिम समाज से इन बुराइयों को दूर करने के प्रयास किए। उन्होंने तो अलीगढ़ में एक कॉलेज भी स्थापित किया जो बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बन गया।

→ इन सब के साथ ईश्वर चंद्र विद्यासागर, केशवचंद्र सेन, विरेश लिंगम, स्वामी दयानंद सरस्वती, विवेकानंद इत्यादि ने भारतीय समाज में व्यापत बुराइयों की कड़ी आलोचना की तथा इनके विरुद्ध कार्य करने के लिए कई संगठन बनाए जैसे कि ब्रह्म समाज, आर्य समाज, सत्य शोधक समाज इत्यादि।

→ चाहे सभी समाज सुधारक देश के अलग-अलग हिस्सों से संबंधित थे तथा इन सभी ने अलग-अलग बुराइयों का विरोध किया परंतु इन सभी सुधारकों का मुख्य उद्देश्य भारतीय समाज में व्यापत बुराइयों को दूर करना था।

→ अगर हमारे देश में सामाजिक परिवर्तन हुआ है तो इसमें सांस्कृतिकरण, आधुनिकीकरण, पंथनिरपेक्षीकरण अथवा धर्म निष्पक्षता तथा पश्चिमीकरण जैसी प्रक्रियाओं का काफ़ी बड़ा हाथ है। चाहे सांस्कृतिकरण की प्रक्रिया भारतीय समाज में पहले से ही व्याप्त थी परंतु और प्रक्रियाएं अंग्रेजों के समय में सामने आयी तथा इन्होंने भारतीय समाज का स्वरूप ही परिवर्तित कर दिया।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

→ संस्कृतिकरण की प्रक्रिया जाति प्रथा से संबंधित है। जब निम्न जाति के लोग उच्च जाति के रहने सहने के ढंग, उठन बैठने के ढंग तथा उनका नाम अपानाकर अपने आपको उच्च जाति का कहना शुरू कर दें अथवा उच्च जाति की जीवन पद्धति, अनुष्ठान मूल्य, आदर्श, विचारधाराओं का अनुकरण करना शुरू कर दें तो इसे संस्कृतिकरण की प्रक्रिया कहा जाता है। यह जाति प्रथा के कारण सामने आयी।

→ पश्चिमीकरण की प्रक्रिया पश्चिमी समाज के अनुकरण से संबंधित है। श्रीनिवास के अनुसार पश्चिमी समाज के साथ लगभग 150 सालों के संपर्क के बाद कई परिवर्तन हमारे सामने आए और जैसे कि प्रौद्योगिकी, संस्था, विचारधारा, मूल्य इत्यादि। इस परिवर्तन की प्रक्रिया को ही पश्चिमीकरण कहा जाता है।

→ आधुनिकीकरण की प्रक्रिया 19वीं तथा 20वीं शताब्दी के दौरान सामने आयी। इसके अनुसार यह विकास का वह ढंग है जो पश्चिमी यूरोप या उत्तरी अमेरिका ने अपनाया। इसके अनुसार व्यक्ति के विचार, व्यवहार के ढंग, जीवन के सभी पहलू बदल जाते हैं तथा व्यक्ति अपने आपको पूर्णतया आधुनिक महसूस करता है।

→ धर्म निष्पक्षता अथवा पंथनिरपेक्षीकरण का अर्थ ऐसी प्रक्रिया से है जिसमें धर्म के प्रभाव में कमी आती है तथा आधुनिक विचार धार्मिक विचारों को दबा लेते हैं। व्यक्ति का दृष्टिकोण धार्मिक न होकर आधुनिक हो जाता है। वह धार्मिक संस्थाओं से दूर हो जाता है तथा उसके पास धार्मिक कार्यों के लिए समय ही नहीं होता।

→ सांस्कृतिकरण-वह प्रक्रिया जिसके अंतर्गत निम्न समूह उच्च समूहों के विचारों, आदर्शों, जीवन जीने के ढंगों का अनुकरण करके उनका नाम तक अपना लेते हैं।

→ धर्मनिरपेक्षीकरण अथवा पंथनिरपेक्षीकरण-सामाजिक परिवर्तन की वह प्रक्रिया जिसमें सार्वजनिक जीवन में धर्म का प्रभाव कम हो जाता है तथा आधुनिकता का प्रभाव बढ़ जाता है।

→ पश्चिमीकरण-वह प्रक्रिया जिसमें भारतीय समाज के सभी आदर्श विचार, संस्थाएं इत्यादि पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव के अधीन आ गए।

→ आधुनिकीकरण-सामाजिक परिवर्तन की वह प्रक्रिया जिसमें प्राचीन पंरपराओं का त्याग करके नए तथा आधुनिक विचारों को ग्रहण किया जाता है।

→ सती प्रथा-वह प्रथा जिसमें विधवा स्त्री अपने पति की चिता के साथ जीवित ही जला दी जाती थी।

→ बहुविवाह-विवाह का वह प्रकार जिसमें एक पति की कई पत्नियां अथवा एक पत्नी के कई पति होते हैं।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन Read More »

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 संरचनात्मक परिवर्तन

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 संरचनात्मक परिवर्तन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 संरचनात्मक परिवर्तन

HBSE 12th Class Sociology संरचनात्मक परिवर्तन Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
उपनिवेशवाद का हमारे जीवन पर किस प्रकार का प्रभाव पड़ा है? आप या तो किसी एक पक्ष जैसे संस्कृति या राजनीति में केंद्र में रखकर या सारे पक्षों को जोड़कर विश्लेषण कर सकते हैं।
उत्तर:
उपनिवेशवाद-एक स्तर पर, एक देश के द्वारा दूसरे देश पर राजनीतिक रूप से शासन करने को उपनिवेशवाद कहा जाता है। आधुनिक समय को पश्चिमी उपनिवेशवाद ने सबसे अधिक प्रभावित किया है। भारत का इतिहास देखने से यह पता चलता है कि यहाँ काल तथा स्थान के अनुसार अलग-अलग प्रकार के समूहों का उन अलग-अलग क्षेत्रों पर शासन रहा है जो आज के आधुनिक भारत का निर्माण करते हैं। परंतु औपनिवेशिक शासन किसी और शासन तथा प्रणाली से अलग तथा ज्यादा प्रभावशाली रहा है। इसलिए जो भी परिवर्तन आए वह काफ़ी गहरे तथा भेदभाव से भरपूर थे।

संस्कृति तथा राजनीति पर प्रभाव-आधुनिक समय में भारत में मौजूद संसदीय, विधि तथा शिक्षा व्यवस्था ब्रिटिश प्रारूपों पर आधारित है। अगर हम सड़कों पर बाईं ओर चलते हैं तो यह भी ब्रिटिश अनुकरण हैं। हमें सड़कों के किनारे रेहड़ियों तथा गाड़ियों पर कटलेट तथा ब्रेड, ऑमलेट जैसी चीजें साधारणतया खाने को मिल जाती है। यहाँ तक कि एक प्रसिद्ध बिस्कुट बनाने वाली कंपनी का नाम भी ब्रिटेन से संबंधित है। बहुत से स्कूलों में ‘नेक-टाई ड्रैस का एक ज़रूरी हिस्सा है।

हमारे दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाली चीजें कितनी अधिक पश्चिम से संबंधित है, हम सोच भी नहीं सकते। हम न केवल पश्चिम की प्रशंसा करते हैं बल्कि उसकी आलोचना भी करते हैं। हमें इस बात की कई उदाहरणे अपने रोज़ाना जीवन में देखने को मिल जाएंगी। इस सबसे पता चलता है कि आज भी ब्रिटिश उपनिवेशवाद हमारे जीवन का एक जटिल अंग है।

यहाँ तक अंग्रेज़ी भाषा की उदाहरण ले सकते हैं जिसके बहुत अधिक तथा विरोधात्मक प्रभाव है। हम केवल अंग्रेज़ी भाषा को प्रयोग ही नहीं करते बल्कि कई भारतीयों ने अंग्रेजी भाषा में उत्तम साहित्यिक रचनाएं भी की हैं। अंग्रेजी भाषा के ज्ञान की वजह से ही भारत को भूमंडलीकृत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में काफ़ी ऊँचा स्थान प्राप्त है।

परंतु इसके साथ ही हम भी नहीं भल सकते कि अंग्रेज़ी को आज भी विशेषाधिकारों का सचक माना जाता है। अगर किसी को अंग्रेजी भाषा नहीं आती हैं या कम आती है तो उसे रोज़गार प्राप्त करने में परेशानी होती है। परंतु कई वंचित समूहों के लिए अंग्रेज़ी भाषा की जानकारी एक वरदान साबित हुई है। यह बात निम्न जातियों के संदर्भ में बिल्कुल ही उपयुक्त है जो औपचारिक शिक्षा तथा अंग्रेजी शिक्षा ग्रहण करके अपनी सामाजिक स्थिति ऊंची कर रहे हैं।

प्रश्न 2.
औद्योगीकरण और नगरीकरण का परस्पर संबंध हैं, विचार करें।
उत्तर:
यह सच है कि औद्योगीकरण तथा नगरीकरण परस्पर संबंधित हैं। आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से न केवल औद्योगीकरण बढ़ता है बल्कि नगरीकरण का भी विकास होता है। इस कारण तकनीक का विकास होता है तथा नए नए और बड़े उद्योग स्थापित हो जाते हैं। उद्योगों के इर्द-गिर्द नगर विकसित हो जाते हैं।

उद्योग लगने से गांव की जनसंख्या उनकी तरफ भागने लगती है ताकि उनमें रोजगार प्राप्त किया जा सके। इस प्रकार उद्योगों के इर्द-गिर्द पहले बस्तियां तथा फिर शहर बन जाते हैं। शहरों में हजारों पेशे पाए जाते हैं तथा बहुत-सी सुविधाएं भी। तथा यातायात के साधन भी इस प्रक्रिया के कारण विकसित हो जाते हैं। इस प्रकार नगरों के विकसित होने तथा नगरीकरण की प्रक्रिया के बढ़ने में औद्योगीकरण का बहुत बड़ा हाथ होता है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 संरचनात्मक परिवर्तन

प्रश्न 3.
किसी ऐसे शहर या नगर को चुनें जिससे आप भली-भाँति परिचित हैं। उस शहर/नगर के इतिहास, उसके उद्भव और विकास तथा समसामयिक स्थिति का विवरण दें।
उत्तर:
हम दिल्ली शहर से भली-भाँति परिचित हैं। वैसे तो दिल्ली को बसे सैंकड़ों वर्ष हो चुके हैं परंतु दिल्ली को महत्त्व प्राप्त हुआ दिल्ली के सुलतानों के समय जब उन्होंने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया। उसके बाद तो जैसे दिल्ली पर अधिकार जमाने के लिए संघर्ष ही छिड़ गया। यह माना जाने लगा कि जिसका दिल्ली पर अधिकार है वह ही हिन्दुस्तान का राजा है।

इस कारण ही समय-समय पर दिल्ली पर अधिकार जमाने के लिए साजिशें होती रहीं। जिस किसी विदेशी मणकारी ने भारत पर आक्रमण किया उसने सबसे पहले दिल्ली को अपना निशाना बनाया। मुगल बादशाह बाबर ने भारत पर कई बार आक्रमण किया, परंतु अपने अंतिम आक्रमण में उसने दिल्ली पर अधिकार कर ही लिया। उसके बाद दिल्ली सत्ता का केंद्र बन गया। मुग़ल बादशाहों के समय सारे देश की सत्ता दिल्ली से ही चलती थी।

परंतु अंग्रेजों के आने के पश्चात् मुग़ल साम्राज्य का पतन होना शुरू हो गया। इस कारण ही दिल्ली का महत्त्व धीरे-धीरे कम होता चला गया। दिल्ली के स्थान पर कलकत्ता, मद्रास तथा बम्बई जैसे नए शहरों का महत्त्व बढ़ गया। 1857 के विद्रोह का मुख्य केंद्र दिल्ली था। विद्रोह खत्म होने के पश्चात् अंग्रेजों ने दिल्ली को खूब लूटा, हज़ारों लोगों को मारा तथा शहर को पूर्णतया ध्वस्त कर दिया। परंतु दिल्ली धीरे-धीरे फिर बस गया।

अंग्रेजी साम्राज्य कलकत्ता से चलता रहा। परंतु 20वीं शताब्दी की शुरूआत में अंग्रेजों ने कलकत्ता के स्थान पर दिल्ली को अपनी राजधानी बना लिया। उन्होंने पुरानी दिल्ली के साथ नई दिल्ली को भी विकसित किया। इंग्लैंड से वास्तुकार बुलाए गए ताकि नई दिल्ली को विकसित किया जा सके। उसके बाद तो दिल्ली का महत्त्व बढ़ने लग गया। उसके बाद से अब तक दिल्ली देश की राजधानी है।

समसामयिक स्थिति से दिल्ली का स्थान देश में सबसे महत्त्वपूर्ण है क्योंकि देश की राजधानी का देश में सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। यदि देश की राजधानी पर ही विदेशी आक्रमण तथा अधिकार हो जाए तो देश पर ही विदेशी अधिकार हो जाता है। इस प्रकार दिल्ली देश का सबसे महत्त्वपूर्ण शहर है। सम्पूर्ण देश की सत्ता दिल्ली से ही चलती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि यदि हमारे देश में सबसे महत्त्वपूर्ण शहर है तो वह है दिल्ली।

प्रश्न 4.
आप एक छोटे कस्बे में या बहुत बड़े शहर या अर्धनगरीय स्थान या एक गाँव में रहते हैं-

  • जहाँ आप रहते हैं उस जगह का वर्णन करें।
  • वहाँ की विशेषताएं क्या है, आपको क्यों लगता है कि वह एक कस्बा है शहर नहीं, एक गाँव है कस्बा नहीं या शहर हैं गाँव नहीं?
  • जहाँ आप रहते हैं वहाँ क्या कोई कारखाना है?
  • क्या लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती है?
  • क्या व्यवसाय वहां निर्णायक रूप में प्रभावशाली है?
  • क्या वहाँ इमारतें हैं?
  • क्या वहाँ शिक्षा की सुविधाएँ उपलब्ध हैं?
  • लोग कैसे रहते और व्यवहार करते हैं?
  • लोग किस तरह बात करते और कैसे कपड़े पहनते हैं?

उत्तर:
इस प्रश्न का उत्तर विद्यार्थी अपने अध्यापक की सहायता से तथा अपने इर्द-गिर्द के स्थानों की तरफ देख कर स्वयं ही दें।

संरचनात्मक परिवर्तन HBSE 12th Class Sociology Notes

→ वर्तमान को समझने के लिए अतीत को जानना जरूरी होता है। भारत के आधुनिक रूप से समझने के लिए इसके इतिहास को समझने की आवश्यकता है। भारत की आधुनिक संस्थाएं तथा इसका नया रूप औपनिवेशिक शासन की देन है। उपनिवेशवाद के कारण भारत को आधुनिक विचारों का पता चला।

→ एक स्तर पर, एक देश के द्वारा दूसरे देश पर शासन को उपनिवेशवाद माना जाता है। भारत के इतिहास से यह पता चलता है कि यहाँ काल और स्थान के अनुसार विभिन्न प्रकार के समूहों का उन अलग-अलग क्षेत्रों पर शासन रहा जो आज के आधुनिक भारत का निर्माण करते हैं।

→ प्राचीन भारतीय अर्थव्यवस्था लेन-देन पर आधारित थी परंतु ब्रितानी उपनिवेशवाद पूँजीवादी व्यवस्था पर आधारित था। इसने भारतीय अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर हस्तक्षेप किया जिससे ब्रितानी पूँजीवाद का विस्तार हुआ और उसे सुदृढ़ता मिली।

→ उपनिवेशवाद से भारत में बहुत से परिवर्तन आए जिनमें प्रशासन में मूलभूत बदलाव, यातायात तथा संचार के साधनों का विकास, पूँजीवाद का बढ़ना, संस्कृति में परिवर्तन इत्यादि प्रमुख थे। अंग्रेज़ों ने चाहे अपने लाभ के लिए भारत में उद्योग लगाने शुरू किए परंतु इसने अप्रत्यक्ष रूप से भारत का विकास करना शुरू कर दिया। भारत का औद्योगीकरण शुरू हुआ जिससे नगरीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहन मिला तथा नये नगर विकसित होने शुरू हो गए। इससे पुराने शहरों का अस्तित्व कमज़ोर होता चला गया।

→ अंग्रेजों के जाने के पश्चात् स्वतंत्र भारत में तेजी से औद्योगीकरण शुरू हुआ। भारत सरकार ने पंचवर्षीय योजनाएं बनाई जिनका मुख्य उद्देश्य ही भारत का औद्योगीकरण करना था। भारत में भारी मशीनीकृत उद्योगों का विकास हुआ। स्वतंत्रता के बाद भारत में नगर भी तेजी से विकसित हुए। बड़े शहर और बड़े हो गए तथा छोटे-छोटे कस्बे शहरों में परिवर्तित हो गए। बड़े-बड़े गाँव शहरों में परिवर्तित हो गए। इससे भारत में नगरीकरण की प्रक्रिया तेज़ी से विकसित हुई।

→ अगर देखा जाए तो भारत में औद्योगीकरण तथा नगरीकरण का विकास ब्रिटिश शासन की ही देन है। अंग्रेजों ने अपने लाभ के लिए उद्योगों तथा नगरों का विकास करना शुरू किया जिससे भारतीयों ने भी उससे काफ़ी लाभ प्राप्त किया।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 संरचनात्मक परिवर्तन

→ औद्योगिकरण से सामाजिक परिवर्तन काफी तेजी से होता है। स्वतंत्रता के बाद भारत में तेजी से औद्योगीकरण शुरू हुआ जिसमें सरकारी तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों ने काफ़ी बड़ी भूमिका निभाई। आज उदारीकरण तथा भूमंडलीकरण के समय में तो यह और तेज़ी से बढ़ रहे हैं। औद्योगीकरण तथा नगरीकरण प्रत्यक्ष रूप से एक-दूसरे से संबंधित हैं। जहां पर उद्योग विकसित होते हैं वहां पर उद्योगों के आस-पास नगर भी विकसित हो जाते हैं। इस प्रकार इन दोनों के कारण सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिवर्तन भी होने शुरू हो जाते हैं।

→ उपनिवेशवाद-एक स्तर पर, एक देश के द्वारा देश पर शासन को उपनिवेशवाद माना जाता है।

→ राष्ट्र राज्य-एक ऐसा राष्ट्र जिसमें लोगों को स्वतंत्रता तथा और सभी प्रकार के अधिकार प्राप्त होते हैं तथा जिन्हें अपनी संप्रभुता प्रयोग करने का अधिकार प्राप्त होता है।

→ औद्योगिक क्षरण-पुराने बसे औद्योगिक क्षेत्रों में से उद्योगों का पतन।

→ औद्योगीकरण-देश में उद्योगों का अधिक-से-अधिक विकास होना।

→ नगरीकरण-छोटे नगरों का बड़े नगरों में परिवर्तन होना तथा गाँवों और कस्बों का छोटे नगरों में परिवर्तित होना।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 संरचनात्मक परिवर्तन Read More »

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव

HBSE 12th Class Sociology परियोजना कार्य के लिए सुझाव Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निरीक्षण विधि की विशेषताएं बताएं।
(A) वैज्ञानिक सूक्षमता संभव है
(B) अपने आप निरीक्षण करना
(C) विश्वास योग्य
(D) a + b + c
उत्तर:
a + b + c

प्रश्न 2.
निरीक्षण के कितने प्रकार हैं?
(A) दो
(B) पाँच
(C) तीन
(D) चार।
उत्तर:
पाँच।

प्रश्न 3.
सहभागी निरीक्षण में वैज्ञानिक किसका भाग बन जाता है?
(A) समूह का
(B) समाज का
(C) घर का
(D) देश का।
उत्तर:
समूह का।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव

प्रश्न 4.
किस निरीक्षण में निरीक्षणकर्ता कई प्रकार से समूह का अंग बनता है?
(A) सहभागी
(B) असहभागी
(C) अर्ध-सहभागी
(D) अनियंत्रित।
उत्तर:
सहभागी।

प्रश्न 5.
किस निरीक्षण में वैज्ञानिक तटस्थ भाव से निरीक्षण करता है?
(A) सहभागी
(B) असहभागी
(C) अर्ध-सहभागी
(D) अनियंत्रित।
उत्तर:
असहभागी।

प्रश्न 6.
किस प्रकार के निरीक्षण में वैज्ञानिक समूह की कुछ गतिविधियों में भाग लेता है?
(A) सहभागी
(B) असहभागी
(C) अर्ध-सहभागी
(D) अनियंत्रित।
उत्तर:
अर्ध-सहभागी।

प्रश्न 7.
जब वैज्ञानिक स्वाभाविक रूप में तथा स्वाभाविक स्थान पर निरीक्षण करते हैं तो उसे क्या कहते हैं?
(A) अनियंत्रित निरीक्षण
(B) नियंत्रित निरीक्षण
(C) सहभागी निरीक्षण
(D) अर्ध-सहभागी निरीक्षण।
उत्तर:
अनियंत्रित निरीक्षण।

प्रश्न 8.
नियंत्रण कितने प्रकार का होता है?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार।
उत्तर:
दो।

प्रश्न 9.
निरीक्षण विधि का गुण बताएं।
(A) विश्वासयोग्य
(B) आसान
(C) सर्वव्यापक
(D) a + b + c
उत्तर:
a + b + c

प्रश्न 10.
साक्षात्कार का क्या अर्थ है?
(A) घटना से संबंधित व्यक्ति से औपचारिक वार्तालाप
(B) व्यक्ति से मिलना
(C) a+b
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
घटना से संबंधित व्यक्ति से औपचारिक वार्तालाप।

प्रश्न 11.
यह शब्द किसके हैं, “साक्षात्कार एक ऐसी क्रमबद्ध विधि है जिसके द्वारा व्यक्ति करीब-करीब अपनी कल्पना की मदद से अपेक्षाकृत अपरिचित के जीवन में प्रवेश करता है।”
(A) गुड तथा हॉट
(B) बोगार्डस
(C) पी० वी० यंग
(D) मोज़र।
उत्तर:
पी० वी० यंग।।

प्रश्न 12.
साक्षात्कार के कितने प्रकार होते हैं?
(A) दो
(B) चार
(C) आठ
(D) पाँच।
उत्तर:
चार।

प्रश्न 13.
इनमें से साक्षात्कार विधि का गुण बताएं।
(A) ज्यादा समय
(B) ग़लत रिपोर्ट
(C) मनोवैज्ञानिक अध्ययन
(D) अच्छे साक्षात्कारों को न मिलना।
उत्तर:
मनोवैज्ञानिक अध्ययन।

प्रश्न 14.
Interview Guide किस प्रकार का प्रलेख है?
(A) मौखिक
(B) निबंधात्मक
(C) लघूत्तरात्मक
(D) लिखित।
उत्तर:
लिखित।

प्रश्न 15.
साक्षात्कार की तैयारी का सबसे पहला चरण क्या है?
(A) साक्षात्कार प्रदर्शिका का निर्माण
(B) समस्या का ज्ञान
(C) साक्षी का चुनाव
(D) पता नहीं।
उत्तर:
समस्या का ज्ञान।

प्रश्न 16.
साक्षात्कार की सीमा बताओ।
(A) उच्चकोटि की चतुरता न होना
(B) व्यक्तियों का झूठ बोलना
(C) साक्षी को साक्षात्कार के लिए राजी करना
(D) a + b + c
उत्तर:
a + b + c

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव

प्रश्न 17.
साक्षात्कार विधि का गुण बताएं।
(A) सबसे लचीली विधि
(B) भावात्मक स्थितियों का अध्ययन
(C) अधिक उपयोगी
(D) a + b + c
उत्तर:
a + b + c

प्रश्न 18.
आँकड़ों तथा द्वितीयक स्त्रोत कौन-से हैं?
(A) सरकारी तथा गैर-सरकारी
(B) निजी तथा व्यक्तिगत
(C) सरकारी तथा अर्ध-सरकारी
(D) पता नहीं।
उत्तर:
सरकारी तथा गैर-सरकारी।

प्रश्न 19.
‘साक्षात्कार’ किस स्तर पर किया जाता है?
(A) व्यक्तिगत
(B) सार्वजनिक
(C) (A) व (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) व (B) दोनों।

प्रश्न 20.
परियोजना कार्य किस पर आधारित होता है?
(A) गुणात्मक तथ्य पर
(B) परिमाणात्मक तथ्य पर
(C) उपरोक्त दोनों पर
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
उपरोक्त दोनों पर।

प्रश्न 21.
शोध कार्य के लिए हम छात्रों से सीधे प्रश्न किस पद्धति के तहत पूछ सकते हैं?
(A) प्रेक्षण
(B) सर्वेक्षण
(C) साक्षात्कार
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
साक्षात्कार।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
परियोजना कार्य के लिए किस विधि का अनुसरण किया जाता है?
उत्तर:
परियोजना कार्य के लिए सामाजिक सर्वेक्षण विधि का अनुसरण किया जाता है।

प्रश्न 2.
परियोजना कार्य विधि के मुख्य समर्थक तथा जन्मदाता कौन हैं?
उत्तर:
परियोजना कार्य विधि के मुख्य समर्थक तथा जन्मदाता किलपैट्रिक (W.H. Kilpatric) को माना जाता है।

प्रश्न 3.
परियोजना कार्य का क्या अर्थ है?
अथवा
परियोजना कार्य क्या है?
अथवा
परियोजना का अर्थ बताएं।
उत्तर:
परियोजना कार्य एक नया अनुभव तथा ज्ञान प्राप्त करने का एक समस्यामूलक ढंग है तथा यह योजना की कार्य प्रणाली से संबंधित है।

प्रश्न 4.
परियोजना कार्य का मुख्य उद्देश्य क्या होता है?
उत्तर:
परियोजना कार्य का मुख्य उद्देश्य ज्ञान प्राप्त करना होता है।

प्रश्न 5.
परियोजना कार्य विधि में रिपोर्ट कौन तैयार करता है?
उत्तर:
परियोजना कार्य विधि में रिपोर्ट विद्यार्थी द्वारा लिखी जाती है।

प्रश्न 6.
परियोजना कार्य के कितने स्तर होते हैं?
उत्तर:
परियोजना कार्य के चार स्तर होते हैं।

प्रश्न 7.
परियोजना कार्य का पहला स्तर कौन-सा होता है?
उत्तर:
परियोजना कार्य का पहला स्तर परियोजना कार्य का आयोजन होता है।

प्रश्न 8.
परियोजना कार्य का अंतिम स्तर कौन-सा होता है?
उत्तर:
परियोजना कार्य का अंतिम स्तर तथ्यों का प्रदर्शन होता है तथा रिपोर्ट लिखना होता है।

प्रश्न 9.
नियोजन क्या होता है?
उत्तर:
जब व्यक्ति अपने किसी लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश करते समय अपने साधनों की व्यवस्था तैयार करता है तो उसे नियोजन कहते हैं।

प्रश्न 10.
नियोजन के कितने प्रकार हैं?
उत्तर:
नियोजन के दो प्रकार हैं-सामाजिक नियोजन तथा आर्थिक नियोजन।

प्रश्न 11.
अवलोकन पद्धति क्या है?
अथवा
प्रेक्षण का अर्थ बताएं।
अथवा
प्रेक्षण क्या है?
उत्तर:
जब हम किसी घटना को अपनी आँखों से देखते हैं तथा उसका विश्लेषण करते हैं तो उसे अवलोकन कहते हैं।

प्रश्न 12.
अपनी आँखों का प्रयोग करने वाली विधि को क्या कहते हैं?
उत्तर:
घटना का विश्लेषण करने के लिए अपनी आँखों का प्रयोग करने वाली विधि को अवलोकन अथवा प्रेक्षण कहते हैं।

प्रश्न 13.
सहभागी निरीक्षण क्या होता है?
उत्तर:
जब अनुसंधानकर्ता समूह का सदस्य बनकर निरीक्षण करता है तो उसे सहभागी निरीक्षण कहते हैं।

प्रश्न 14.
अर्धसहभागी निरीक्षण क्या होता है?
उत्तर:
जब निरीक्षणकर्ता समूह की कुछ क्रियाओं में भाग लेता है तथा बाकी का अनुसंधानकर्ता के तौर पर निरीक्षण करता है तो उसे अर्ध सहभागी निरीक्षण कहते हैं।

प्रश्न 15.
अनियंत्रित निरीक्षण क्या होता है?
उत्तर:
जब अनुसंधानकर्ता स्वयं घटनास्थल पर जाकर घटना का उसके वास्तविक हालातों में निरीक्षण करता है तो उसे अनियंत्रित निरीक्षण कहते हैं। .

प्रश्न 16.
नियंत्रित निरीक्षण क्या होता है?
उत्तर:
जब घटना को कृत्रिम रूप में दोबारा घटित करके या अपने आपको नियंत्रण में रखकर अवलोकन किया जाए तो उसे नियंत्रित निरीक्षण कहते हैं।

प्रश्न 17.
सामूहिक निरीक्षण क्या होता है?
उत्तर:
जब एक ही सामाजिक घटना का अवलोकन एक से अधिक अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किया जाता है तथा अलग-अलग रिपोर्ट तैयार की जाती है तो उसे सामूहिक निरीक्षण कहते हैं।

प्रश्न 18.
सहभागी निरीक्षण का एक गुण बताओ।
अथवा
प्रेक्षण पद्धति का एक लाभ लिखिए।
उत्तर:
इस निरीक्षण में अनुसंधानकर्ता अध्ययन किए जाने वाले वर्ग के काफ़ी समीप आ जाता है जिससे ज्यादा सूक्ष्म अध्ययन का अवसर मिलता है।

प्रश्न 19.
सहभागी निरीक्षण का एक दोष बताओ।
उत्तर:
इसमें अनुसंधान को वैज्ञानिक के साथ-साथ समूह का सदस्य बनना पड़ता है जिससे दोनों में संतुलन रखना कठिन होता है।

प्रश्न 20.
असहभागी निरीक्षण का एक गुण बताओ।
उत्तर:
अनुसंधानकर्ता पूर्णतया वैज्ञानिक बनकर निरीक्षण करता है जिससे निरीक्षण में निष्पक्षता आ जाती है।

प्रश्न 21.
असहभागी निरीक्षण का एक दोष बताओ।
उत्तर:
पूर्णतया अलग होकर निरीक्षण करने से समूह की प्रत्येक चीज़ का निरीक्षण नहीं हो सकता जिससे सदस्यों – में बनावटीपन आ जाता है।

प्रश्न 22.
नियंत्रण कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
नियंत्रण दो प्रकार का होता है-घटना पर नियंत्रण तथा निरीक्षण कार्य पर नियंत्रण।

प्रश्न 23.
सबसे पहले सहभागी निरीक्षण शब्द का प्रयोग किसने किया था?
उत्तर:
सहभागी निरीक्षण शब्द का प्रयोग सबसे पहले Lindeman ने 1924 में अपनी पुस्तक Social Discovery में किया था चाहे विधि के रूप में इसका प्रयोग बहुत पहले ही हो चुका था।

प्रश्न 24.
निरीक्षण विधि की विशेषताएं बताओ।
उत्तर:

  1. निरीक्षण विधि एक ऐसी विधि है जिसमें व्यक्ति अपनी ज्ञानेंद्रियों का प्रयोग करके सूचना इकट्ठी करता है।
  2. निरीक्षण विधि एक प्रत्यक्ष अध्ययन की विधि है जिसमें निरीक्षणकर्ता स्वयं ही अपनी आँखों का प्रयोग करके सूचना एकत्रित करता है।

प्रश्न 25.
सर्वेक्षण किसे कहते हैं?
अथवा
सर्वेक्षण पद्धति क्या है?
उत्तर:
सर्वेक्षण का अर्थ ऐसी अनुसंधान प्रणाली से है जिसमें अनुसंधानकर्ता घटनास्थल पर जाकर घटना का वैज्ञानिक निरीक्षण करता है तथा उस घटना के संबंध में खोज करता है।

प्रश्न 26.
सर्वेक्षण विधि का सबसे बड़ा लाभ क्या है?
अथवा
सर्वेक्षण पद्धति का एक लाभ लिखिए।
उत्तर:
इसमें अनुसंधानकर्ता घटना के प्रत्यक्ष संपर्क में रहता है जिससे निष्कर्षों में वैषयिकता (Objectivity) आ जाती है।

प्रश्न 27.
क्या सामाजिक सर्वेक्षण तथा सामाजिक अनुसंधान एक ही है?
उत्तर:
जी नहीं। यह दोनों एक नहीं है। सामाजिक सर्वेक्षण सामाजिक अनुसंधान की केवल एक विधि है।

प्रश्न 28.
सामाजिक सर्वेक्षण के कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर:
सामाजिक सर्वेक्षण के चार प्रकार होते हैं।

प्रश्न 29.
सामाजिक सर्वेक्षण का क्या महत्त्व है?
अथवा
सर्वेक्षण प्रणाली का मुख्य लाभ बताइए।
उत्तर:
सामाजिक सर्वेक्षण से हमें व्यावहारिक सूचना प्राप्त हो जाती है तथा घटना का अच्छे ढंग से वर्णन हो जाता है।

प्रश्न 30.
सामाजिक सर्वेक्षण किस चीज़ पर जोर देता है?
उत्तर:
सा जिक सर्वेक्षण में विस्तृत अध्ययन पर बल दिया जाता है तथा समस्या के बारे में हरेक प्रकार की सूचना इकट्ठी की जाती है।

प्रश्न 31.
क्या एक अनुसंधानकर्ता सर्वेक्षण विधि का प्रयोग कर सकता है?
उत्तर:
जी नहीं, इस विधि में कई व्यक्तियों को मिल कर कार्य करना पड़ता है।

प्रश्न 32.
सामाजिक सर्वेक्षण में किन चीज़ों का अध्ययन हो सकता है?
उत्तर:
मोज़र के अनुसार सर्वेक्षण में सामाजिक घटनाओं, सामाजिक दशाओं, संबंधों अथवा व्यवहार इत्यादि का अध्ययन हो सकता है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव

प्रश्न 33.
मोज़र ने सामाजिक सर्वेक्षण के कितने विभाग दिए हैं?
उत्तर:
मोज़र ने सामाजिक सर्वेक्षणों के चार विभाग दिए हैं।

प्रश्न 34.
नियमित सर्वेक्षण क्या होते हैं?
उत्तर:
नियमित सर्वेक्षण वह सर्वेक्षण होते हैं जो लगातार तथा समय-समय पर होते रहते हैं।

प्रश्न 35.
विशिष्ट सर्वेक्षण क्या होते हैं?
उत्तर:
इस प्रकार के सर्वेक्षण समस्या प्रधान होते हैं जो किसी विशेष उपकल्पना के आधार पर होते हैं।

प्रश्न 36.
सर्वेक्षण का शाब्दिक अर्थ बताएं।
उत्तर:
शब्द सर्वेक्षण अंग्रेजी भाषा के शब्द Survey का हिंदी रूपांतर है। शब्द स्वयं Sur अथवा Sor तथा Veeir अथवा Veoir से मिलकर बना है। Sur का अर्थ है ऊपर तथा Veeir का अर्थ है देखना। इस तरह शब्द Survey का शाब्दिक अर्थ है किसी घटना को ऊपर से देखना अथवा बाहर से अवलोकन करना है।

प्रश्न 37.
सामान्य तथा विशिष्ट सर्वेक्षण क्या होते हैं?
उत्तर:
सामान्य सर्वेक्षण वह होते हैं जिसमें सर्वेक्षण का कोई विशेष उद्देश्य नहीं होता, बल्कि इसे किसी घटना के संबंध में सूचना इकट्ठी करने के लिए प्रयोग किया जाता है। विशिष्ट सर्वेक्षण किसी विशेष घटना का सर्वेक्षण ता है तथा घटना से संबंधित लोगों से संपर्क किया जाता है और निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

प्रश्न 38.
साक्षात्कार क्या है?
उत्तर:
साक्षात्कार में किसी घटना के प्रत्यक्षदर्शी से प्रभावपूर्ण तथा औपचारिक वार्तालाप और विचार-विमर्श होता है।

प्रश्न 39.
साक्षात्कार के कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर:
साक्षात्कार में चार प्रकार होते हैं।

प्रश्न 40.
साक्षात्कार प्रदर्शिका का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
साक्षात्कार प्रदर्शिका एक डायरी होती है जिसकी सहायता से साक्षात्कार एक निश्चित दिशा में आगे बढ़ता है तथा स्मरण शक्ति पर अधिक जोर नहीं देना पड़ता।

प्रश्न 41.
साक्षात्कार प्रदर्शिका किसे कहते हैं?
उत्तर:
साक्षात्कार प्रदर्शिका एक लिखित प्रलेख होती है जिसमें साक्षात्कार की योजना का संक्षिप्त वर्णन होता है।

प्रश्न 42.
साक्षियों का चुनाव कैसे किया जाता है?
उत्तर:
साक्षियों का चुनाव निर्देशन प्रणाली अथवा सैंपल प्रणाली की मदद से किया जाता है।

प्रश्न 43.
साक्षात्कार में सबसे पहला कार्य क्या होता है?
उत्तर:
साक्षात्कार का सबसे पहला कार्य साक्षी से संपर्क स्थापित करना होता है।

प्रश्न 44.
अन्वेषक प्रश्न क्या होते हैं?
उत्तर:
जब साक्षी अनजाने में या जान-बूझकर किसी महत्त्वपूर्ण पक्ष को छोड़ देता है तो उस पक्ष को याद दिलाने के लिए पूछे गए अन्वेषक प्रश्न होते हैं।

प्रश्न 45.
साक्षात्कार का निर्देशन कौन करता है?
उत्तर:
साक्षात्कार का निर्देशन साक्षात्कारकर्ता करता है।

प्रश्न 46.
साक्षात्कार विधि की एक सीमा बताओ।
उत्तर:
इस विधि में हमें साक्षी पर पूर्णतया निर्भर रहना पड़ता है तथा वह झूठ भी बोल सकता है।

प्रश्न 47.
साक्षात्कार विधि में साक्षात्कारकर्ता के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर:
इस विधि में साक्षात्कारकर्ता के लिए चतुर होना बहुत आवश्यक है क्योंकि उसे अपने मतलब की जानकारी निकालना आना चाहिए।

प्रश्न 48.
फील्डवर्क क्या होता है?
उत्तर:
फील्डवर्क क्षेत्र में जाकर लोगों के बीच रहकर उनके बारे में जानकारी प्राप्त करने की विधि है। इसमें अध्ययनकर्ता समूह के बीच जाकर रहता है, उस समूह का हिस्सा बनकर उनके बारे में जानकारी प्राप्त करता है तथा फिर अंत में निष्कर्ष निकालता है। इस प्रकार फील्डवर्क क्षेत्र में जाकर कार्य करने की एक विधि है।

प्रश्न 49.
मानव विज्ञान को सामाजिक विज्ञान के रूप में स्थापित करने में सबसे बड़ा योगदान किसका था?
उत्तर:
मानव विज्ञान को सामाजिक विज्ञान के रूप में स्थापित करने में सबसे बड़ा योगदान फील्डवर्क का था।

प्रश्न 50.
शुरू के मानवशास्त्री किस चीज़ के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करते थे?
उत्तर:
शुरू के मानवशास्त्री प्राचीन संस्कृतियों के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करते थे।

प्रश्न 51.
शुरू के मानवशास्त्री कहां से प्राचीन संस्कृतियों का ज्ञान इकट्ठा करते थे?
उत्तर:
शुरू के मानवशास्त्री लिखी हुई किताबों अथवा यात्रियों, मिशनरियों या साम्राज्यवादी प्रशासकों की लिखी रिपोर्टों से प्राचीन संस्कृतियों का ज्ञान इकट्ठा करते थे।

प्रश्न 52.
1920 के बाद किस चीज़ को सामाजिक मानवविज्ञान की ट्रेनिंग का अभिन्न अंग माना जाने लगा?
उत्तर:
1920 के बाद सहभागी निरीक्षण अथवा फील्डवर्क को सामाजिक मानव विज्ञान की ट्रेनिंग का अभिन्न अंग माना जाने लगा।

प्रश्न 53.
किसने फील्डवर्क को सामाजिक मानव विज्ञान में एक महत्त्वपूर्ण विधि के रूप में स्थापित किया?
उत्तर:
मैलिनोवस्की ने फील्डवर्क को सामाजिक मानव विज्ञान में एक महत्त्वपूर्ण विधि के रूप में स्थापित किया।

प्रश्न 54.
Geneology क्या होती है?
उत्तर:
Geneology उस समुदाय की जनसंख्या की संरचना के बारे में जानकारी होती है जिसका कि अध्ययन करना होता है।

प्रश्न 55.
मानवशास्त्री फील्डवर्क को कहाँ से शुरू करते हैं?
उत्तर:
मानवशास्त्री फील्डवर्क को समुदाय की जनसंख्या के बारे में जानकारी लेने से शुरू करते हैं।

प्रश्न 56.
समाजशास्त्री कहाँ पर जाकर फील्डवर्क कहते हैं?
उत्तर:
समाजशास्त्री समुदाय में रहकर ही फील्डवर्क करते हैं।

प्रश्न 57.
मानवशास्त्री कहाँ पर जाकर फील्डवर्क करते हैं?
उत्तर:
मानवशास्त्री दूर जाकर कहीं जंगलों, पहाड़ों, दुर्गम क्षेत्रों में रह रहे कबीलों, आदिवासियों में जाकर फील्डवर्क करते हैं।

प्रश्न 58.
भारतीय समाजशास्त्रियों ने अधिकतर फील्डवर्क कहाँ किया है?
उत्तर:
अधिकतर भारतीय समाजशास्त्रियों ने गाँवों में जाकर, लोगों के बीच रहकर फील्डवर्क किया है तथा उनके बारे में जानकारी प्राप्त की है।

प्रश्न 59.
सर्वेक्षण में उत्तरदाता कौन होता है?
उत्तर:
जिस व्यक्ति का नाम सैंपल विधि से चुना जाता है वह उत्तरदाता होता है।

प्रश्न 60.
परियोजना कार्य में तथ्यों का संकलन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जब उत्तरदाता से सूचना एकत्र की जाती है तो इसे तथ्यों का संकलन कहा जाता है।

प्रश्न 61.
सर्वेक्षण कार्य को शीघ्रता से निपटाने के लिए आप क्या करेंगे?
उत्तर:
सर्वेक्षण कार्य को शीघ्रता से निपटाने के लिए या तो सैंपल को छोटा रखेंगे या फिर अधिक संख्या में लोगों को सूचना एकत्र करने के लिए लगाएंगे।

प्रश्न 62.
सर्वेक्षण क्षेत्र में जाकर किया जाता है। सत्य या असत्य।
उत्तर:
सर्वेक्षण क्षेत्र में जाकर किया जाता है-सत्य।

प्रश्न 63.
साक्षात्कार लेने वाले व्यक्ति को ………………… कहते हैं।
उत्तर:
साक्षात्कार लेने वाले व्यक्ति को साक्षात्कारकर्ता कहते हैं

प्रश्न 64.
परियोजना कार्य एक सैद्धांतिक कार्य है। सत्य या असत्य।
उत्तर:
परियोजना कार्य एक सैद्धांतिक काय है-सत्य।

प्रश्न 65.
वह व्यक्ति जो साक्षात्कार देता है, उसे ………………….. कहा जाता है।
उत्तर:
वह व्यक्ति जो साक्षात्कार देता है, उसे साक्षी कहते हैं।

प्रश्न 66.
साक्षात्कार पद्धति का एक लाभ लिखिए।
उत्तर:
इस पद्धति से प्रभावशाली डाटा एकत्र हो जाता है।

प्रश्न 67.
प्रेक्षण पद्धति का एक लाभ लिखिए।
उत्तर:
इससे अनुसंधानकर्ता स्वयं अपनी आँखों से घटना को देखकर आँकड़े एकत्रित करता है जिसमें गलती को गुंजाइश नहीं रहती।

प्रश्न 68.
साक्षात्कार विधि की एक कमज़ोरी बताइए।
उत्तर:
इसमें हमें सूचनादाता के ऊपर निर्भर रहना पड़ता है जोकि झूठ भी बोल सकता है।

प्रश्न 69.
शोध विषय पर कार्य करने के लिए एक निर्धारित प्रश्न चुन लेने के बाद अगला कदम उपयुक्त पद्धति का चयन करना है। (सही/गलत)
उत्तर:
सही।

प्रश्न 70.
साक्षात्कार और सर्वेक्षण में एक भिन्नता लिखिए।
उत्तर:
साक्षात्कार एक व्यक्ति या कुछेक व्यक्तियों का होता है जबकि सर्वेक्षण में बहुत से लोगों की राय के बारे में पूछा जाता है।

प्रश्न 71.
सर्वेक्षण प्रणाली में हम काफ़ी बड़ी संख्या में लोगों के विचार जान सकते हैं। (सही/गलत)
उत्तर:
सही।

प्रश्न 72.
किस पद्धति में एक साथ ज्यादा लोगों को शामिल नहीं किया जा सकता?
उत्तर:
साक्षात्कार पद्धति में।

प्रश्न 73.
वह कौन-सी शोध पद्धति है, जिसके तहत हम किसी छात्र से सीधे प्रश्न पूछ सकते हैं?
उत्तर:
साक्षात्कार पद्धति।

प्रश्न 74.
वह कौन-सी प्रणाली है जिसमें 1000, 2000 या इससे भी अधिक संख्या में लोगों से प्रश्न पूछे जाते?
उत्तर:
सर्वेक्षण विधि।

प्रश्न 75.
परियोजना कार्य का एक गुण बताइए।
उत्तर:
इस विधि द्वारा निकाले गए परिणाम वास्तविक होते हैं।

प्रश्न 76.
वार्तालाप के द्वारा सूचनाएँ एकत्र करना क्या कहलाता है?
उत्तर:
साक्षात्कार।

प्रश्न 77.
बड़े पैमाने पर अध्ययन करने के लिए कौन-सी पदधति का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
सर्वेक्षण विधि।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रोजेक्ट कार्य विधि या परियोजना कार्य विधि के चार उद्देश्य बताओ।
उत्तर:

  1. विद्यार्थियों को उनके विकास करने में अवसर प्रदान करना।
  2. विद्यार्थियों को व्यावहारिक ज्ञान (Practical Knowledge) देना।
  3. विद्यार्थियों को समाज की समस्याओं तथा लोगों की मानसिकता के बारे में ज्ञान देना।
  4. विद्यार्थियों का समाज तथा उसके सदस्यों से संपर्क स्थापित करवाना।

प्रश्न 2.
परियोजना कार्य विधि के कितने तथा कौन-से चरण हैं?
उत्तर:

  1. परियोजना कार्य का आयोजन।
  2. तथ्यों अथवा सामग्री का संकलन।
  3. तथ्यों का विश्लेषण तथा निर्वाचन।
  4. तथ्यों का प्रदर्शन।

प्रश्न 3.
परियोजना कार्य विधि की रिपोर्ट तैयार करते समय कौन-सी बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:

  1. रिपोर्ट लिखने वाली भाषा सरल होनी चाहिए ताकि सभी को समझ आ सके।
  2. तथ्यों को तार्किक ढंग से पेश करना तथा विचारों की सरलता होनी चाहिए।
  3. तकनीकी शब्दों की स्पष्ट तथा सरल परिभाषा दी जानी चाहिए।
  4. तथ्यों को दोबारा नहीं लिखना चाहिए।
  5. आवश्यक शीर्षक, उपशीर्षक तथा आवश्यकता के अनुसार पाद टिप्पणियां भी देनी चाहिए।

प्रश्न 4.
परियोजना कार्य विधि के चार गुण बताओ।
अथवा
परियोजना कार्य के कोई दो गुण बताइए।
उत्तर:

  1. इससे विद्यार्थियों को आत्म विकास करने का अवसर प्राप्त होता है।
  2. सभी कार्यकर्ताओं या विद्यार्थियों को विकास के समान अवसर प्राप्त होते हैं।
  3. इससे कार्यकर्ताओं में सामाजिक भावना का विकास होता है।
  4. इससे कार्यकर्ताओं के सामाजिक संपर्क बढ़ते हैं।
  5. इस विधि द्वारा निकाले परिणाम वास्तविक होते हैं।

प्रश्न 5.
परियोजना कार्य के दोष बताओ।
अथवा
परियोजना कार्य के दो प्रमुख दोष बताइए।
उत्तर:

  1. इसमें ज्यादा धन की खपत होती है अर्थात् यह एक खर्चीली विधि है।
  2. हमें उचित परियोजना कार्य को ढूंढ़ने में कठिनाई होती है।
  3. इससे क्रमबद्ध अध्ययन नहीं हो सकता।
  4. इस विधि में समय बहुत ज्यादा लगता है।
  5. यह विधि स्कूलों की स्थिति के अनुसार नहीं होती।

प्रश्न 6.
निरीक्षण विधि क्या होती है?
उत्तर:
अनुसंधान के लिए वैसे तो कई विधियां प्रचलित हैं जैसे कि प्रश्नावली, साक्षात्कार इत्यादि परंतु निरीक्षण विधि सबसे प्रचलित विधि है। जब अनुसंधानकर्ता किसी सामाजिक घटना या समूह का स्वयं अपनी आँखों में अवलोकन करता है तथा संबंधित आंकड़े इकट्ठे करता है तो उस विधि को निरीक्षण विधि का नाम दिया जाता है। इसका अर्थ है कि अपनी आँखों से किए गए अवलोकन को निरीक्षण कहते हैं।

प्रश्न 7.
निरीक्षण कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
निरीक्षण दो प्रकार का होता है-

  1. सहभागी निरीक्षण
  2. असहभागी निरीक्षण
  3. अर्धसहभागी निरीक्षण।
  4. अनियंत्रित निरीक्षण
  5. नियंत्रित निरीक्षण।

प्रश्न 8.
सहभागी निरीक्षण क्या होता है?
उत्तर:
सहभागी निरीक्षण में अनुसंधानकर्ता समूह में एक अजनबी की तरह न रहकर उसका एक अंग बनकर रहता है। यह ज़रूरी नहीं है कि वह समूह की सभी क्रियाओं में भाग ले, परंतु वह समूह में एक निरीक्षणकर्ता की हैसियत से नहीं रहता है। इस तरह वह समूह का सदस्य बन कर रहता है तथा समूह की संपूर्ण नहीं तो ज्यादातर क्रियाओं में भाग लेकर उनका निरीक्षण करता है तथा संबंधित आंकड़े इकट्ठे करता है। इससे ज्यादा सच्चे आंकड़े इकट्ठे करने में मदद मिलती है।

प्रश्न 9.
सहभागी निरीक्षण के गुण बताओ।
उत्तर:

  1. इस प्रकार के निरीक्षण में अनुसंधानकर्ता अध्ययन किए जाने वाले वर्ग के काफ़ी समीप आ जाता है। इस तरह उसे ज्यादा सूक्ष्म अध्ययन करने का अवसर प्राप्त होता है।
  2. सहभागी निरीक्षण में निरीक्षणकर्ता को समूह में अलग-अलग व्यवहारों, आपसी संबंधों तथा रिवाजों को अच्छी तरह समझने की शक्ति प्राप्त होती है।
  3. जब लोगों को पता चलता है कि उनका निरीक्षण किया जा रहा है तो उनके व्यवहार में बनावटीपन आ जाता है जिससे सही सूचना प्राप्त नहीं होती है। समूह का सदस्य बन जाने से बनावटीपन खत्म हो जाता है तथा सच्ची सूचना प्राप्त होती है।

प्रश्न 10.
सहभागी निरीक्षण के दोष बताओ।
उत्तर:

  1. जब निरीक्षक का भावात्मक एकीकरण हो जाता है तो निरीक्षण की स्थूलता खत्म हो जाती है। वह अपने आपको समूह का सदस्य समझने लग जाता है जिससे उसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण खत्म हो जाता है।
  2. कई बार क्रियाओं के साथ नज़दीकी भी बाधक सिद्ध होती है। जब अनेक क्रियाओं से नज़दीकी परिचय हो जाता है तो हम उनमें से बहत को आम मानकर बिना निरीक्षण किए ही छोड़ देते हैं।
  3. कई बार लोग अपरिचित व्यक्ति के सामने या तो ज्यादा खुलकर व्यवहार करते हैं या फिर बिल्कुल ही नहीं करते हैं। इससे भी निरीक्षण में कठिनाई आ जाती है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव

प्रश्न 11.
असहभागी निरीक्षण क्या होता है?
उत्तर:
जब अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिक की भांति तटस्थ भाव से निरीक्षण करता है तो उसे असहभागी निरीक्षण कहते हैं। इस तरह के अनुसंधान में अनुसंधानकर्ता की स्थिति पूर्णतया निरीक्षक की होती है। वह समूह की क्रियाओं से अलग रह कर उनका निरीक्षण करता है। वह चाहे स्थान तथा व्यक्ति रूप से समूह में रहता है परंतु सामाजिक दृष्टि से उस समूह का अंग नहीं बन जाता तथा उससे अलग भी रहता है। वह स्वयं उनसे खेलने नहीं लग जाता बल्कि दूर रहकर निरीक्षण करता है तथा आंकड़े इकट्ठे करता है।

प्रश्न 12.
अर्धसहभागी निरीक्षण क्या होता है?
उत्तर:
सामाजिक समूह के निरीक्षण में असहभागी निरीक्षण संभव नहीं है। ऐसी स्थिति की कल्पना काफ़ी कठिन होती है जब अनुसंधानकर्ता हर समय मौजूद रहता है परंतु समूह की क्रियाओं में भाग न लेता हो। साथ ही पूर्ण सहभागी निरीक्षण भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उचित नहीं होता। इसलिए विद्वानों ने एक बीच की स्थिति की कल्पना की है जिसमें अनुसंधानकर्ता कुछ साधारण कार्यों में ही भाग लेता है परंतु ज्यादातर वह तटस्थ भाव से समूह का अध्ययन करता है। इस तरह वह समूह का सदस्य भी बन जाता है तथा एक वैज्ञानिक भी रहता है। यदि उचित रीति पालन किया जाए तो इस प्रणाली में सहभागी तथा असहभागी दोनों ही प्रणालियों के लाभ प्राप्त हो सकते हैं।

प्रश्न 13.
अनियंत्रित निरीक्षण क्या हो सकता है?
उत्तर:
जब हम किसी घटना को उसके स्वाभाविक रूप में और स्वाभाविक स्थान पर निरीक्षण करते हैं तो उसे अनियंत्रित निरीक्षण कहते हैं। इस प्रकार के निरीक्षण में घटना या निरीक्षणकर्ता पर किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं रहता। यह निरीक्षण प्रणाली का शुरुआती रूप है। विज्ञान के आरंभिक काल में वैज्ञानिकों ने स्वाभाविक रूप से घटनाओं का निरीक्षण करके ही नतीजे निकाले। इस तरह जब घटना को स्वाभाविक स्थल पर निरीक्षण किया जाए तो अनियंत्रित निरीक्षण कहा जाता है।

प्रश्न 14.
नियंत्रित निरीक्षण क्या होता है?
उत्तर:
समाज विज्ञान में प्रगति के साथ अब इसकी विधियों में भी सुधार हो गया है। अब निरीक्षण नियंत्रित भी हो सकता है। नियंत्रण दो प्रकार का होता है-घटना पर नियंत्रण तथा निरीक्षण कार्य पर नियंत्रण। जब घटना कृत्रिम रूप से घटित की जाती है तथा उसका अध्ययन किया जाता है तो उसे घटना पर नियंत्रण कहते हैं। कई बार घटना कृत्रिम रूप से घटित नहीं हो सकती तो निरीक्षणकर्ता अपने आप पर नियंत्रण रखकर निरीक्षण कर सकता है ताकि निरीक्षण सही तरीके से हो सके। इसके लिए निरीक्षण की योजना बनाकर, यंत्रों का प्रयोग करके गलतियों को दूर किया जाता है।

प्रश्न 15.
अंतिम तथा आवृत्तिपूर्ण सर्वेक्षण क्या होते हैं?
उत्तर:
कुछ सर्वेक्षणों में बार-बार सूचना इकट्ठी नहीं करनी पड़ती। एक बार इकट्ठी की गई सूचना के आधार पर निष्कर्ष निकाल दिए जाते हैं तथा सर्वेक्षण खत्म हो जाते हैं। उसे अंतिम सर्वेक्षण कहते हैं। आवृत्तिपूर्ण सर्वेक्षण में सूचना बार-बार एकत्र की जाती है तथा उस बार-बार एकत्र की की गई सूचना के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं। यह प्रायोगिक विधि में प्रयोग होते हैं।

प्रश्न 16.
सर्वेक्षण की प्रक्रिया के कितने भाग होते हैं?
उत्तर:
इसके 8 भाग होते हैं जो इस प्रकार हैं-

  • सर्वेक्षण का उद्देश्य
  • सूचना प्राप्त करने के स्रोत का निर्धारण करना
  • सर्वेक्षण के प्रकार, इकाइयों इत्यादि का निर्धारण करना
  • प्रश्नावली तथा अनुसूची का निर्माण करना
  • इकट्ठी की गई सामग्री का संपादन करना
  • इकट्ठी की गई सूचना का वर्गीकरण तथा सारणीकरण करना
  • सूचना का विश्लेषण करना
  • सूचना का निर्वाचन करना तथा अंतिम रिपोर्ट तैयार करना।

प्रश्न 17.
सर्वेक्षण विधि क्या होती है?
उत्तर:
सर्वेक्षण विधि को सामाजिक अनुसंधानों में एक विशेष विधि के तौर पर प्रयोग किया जाता है। सर्वेक्षण से अर्थ ऐसी अनुसंधान प्रणाली से है जिसमें अनुसंधानकर्ता घटना के घटनास्थल पर जाकर किसी विशेष घटना का वैज्ञानिक तरीके से निरीक्षण करता है तथा उस घटना के संबंध में खोज करता है। इस विधि में अनुसंधानकर्ता घटना के प्रत्यक्ष संपर्क में आता है तथा उसके निष्कर्षों में ज्यादा वैषयिकता रहती है।

प्रश्न 18.
सर्वेक्षण विधि की दो परिभाषाएं दें।
उत्तर:
मोज़र (Moser) के अनुसार, “समाजशास्त्री के लिए सर्वेक्षण क्षेत्र का अनुसंधान करने, अध्ययन के विषय से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से संबंधित आंकड़े एकत्र करने का ऐसा अति उपयोगी साधन है जिससे समस्या पर प्रकाश पड़ सके।” मोर्स (Morse) के अनुसार, “संक्षेप में सर्वेक्षण किसी प्रस्तुत सामाजिक परिस्थिति, समस्या अथवा जनसंख्या के विशिष्ट उद्देश्यों के लिए वैज्ञानिक तथा क्रमबद्ध रूप में की गई विवेचना की विधि मात्र है।”

प्रश्न 19.
सर्वेक्षण विधि के कौन-से उद्देश्य होते हैं?
उत्तर:

  • सर्वेक्षण विधि में व्यक्ति घटना के संपर्क में प्रत्यक्ष रूप से आता है जिससे उसे व्यावहारिक सूचना प्राप्त हो जाती है।
  • इस विधि के प्रयोग से समाज में बने पहले सिद्धांतों की परीक्षा भी हो जाती है।
  • इस विधि से पहले से बनाई हुई उपकल्पना की परीक्षा भी हो जाती है।
  • इस विधि की मद से सामाजिक घटना का वर्णन आसानी से हो जाता है क्योंकि अनुसंधानकर्ता घटना में प्रत्यक्ष संपर्क में आता है तथा घटना के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करता है।

प्रश्न 20.
मोज़र ने सामाजिक सर्वेक्षणों के कितने विभाग दिए हैं?
उत्तर:
मोज़र ने सामाजिक सर्वेक्षणों के चार विभाग दिए हैं-

  • जनसंख्यात्मक विशेषताएं
  • सामाजिक पर्यावरण
  • सामाजिक क्रियाएं
  • विचार तथा प्रवृत्तियां।

प्रश्न 21.
सर्वेक्षण प्रणाली के गुण बताओ।
उत्तर:

  • सर्वेक्षण विधि में अनुसंधानकर्ता घटना के सीधे संपर्क में आ जाता है तथा उसे उस घटना से संबंधित सभी चीजों, व्यक्तियों का ज्ञान हो जाता है।
  • इस विधि में कोई व्यक्तिगत ग़लती आने की संभावना नहीं होती क्योंकि जो कुछ भी वह प्रत्यक्ष रूप से देखता है उसको ही नोट करता है तथा अपनी तरफ से कुछ नहीं जोड़ता है।
  • सर्वेक्षण विधि वैज्ञानिक विधि के बहुत ज्यादा नज़दीक है क्योंकि इसमें उसे घटना को उसके स्वाभाविक स्थल पर जाकर निरीक्षण करना पड़ता है।

प्रश्न 22.
सर्वेक्षण विधि की सीमाएं बताओ।
उत्तर:

  • इसके लिए घटना का आंखों के सामने घटित होना आवश्यक है, परंतु आमतौर पर सामाजिक घटनाएं इस प्रकार का मौका नहीं देती हैं।
  • इसके द्वारा संपूर्ण समाज का निरीक्षण संभव नहीं है। हम समाज के सिर्फ एक भाग का ही अवलोकन कर सकते हैं।
  • सर्वेक्षण आमतौर पर असंबंधित तथा बिखरे हुए होते हैं। उनसे उस समय तक किसी सिद्धांत का निर्माण नहीं हो सकता जब तक उन्हें किसी निश्चित योजना के अनुसार न किया गया हो।

प्रश्न 23.
सामाजिक सर्वेक्षण तथा सामाजिक अनुसंधान में तीन अंतर बताओ।
उत्तर:

  • सामाजिक सर्वेक्षण विशेष व्यक्तियों, समस्याओं तथा हालातों से संबंधित होते हैं, अनुसंधान सामान्य तथा अमूर्त समस्याओं से संबंधित होते हैं।
  • सामाजिक सर्वेक्षणों का उद्देश्य व्यक्ति के जीवन में सुधार करके उसे उन्नति के मार्ग पर चलाना होता है परंतु सामाजिक अनुसंधान का उद्देश्य मनुष्य के ज्ञान में बढ़ोत्तरी करना तथा अनुसंधान के तरीकों में सुधार करना होता है।
  • सामाजिक सर्वेक्षणों के निष्कर्षों से सामाजिक सुधार करने के तरीके पता किए जा सकते हैं, परंतु सामाजिक अनुसंधान से पुराने सिद्धांतों को सुधारा जाता है या नए सिद्धांतों का निर्माण होता है।

प्रश्न 24.
साक्षात्कार विधि क्या होती है?
उत्तर:
साक्षात्कार का अर्थ उन व्यक्तियों से है जो प्रभावपूर्ण तथा औपचारिक वार्तालाप एवं विचार-विमर्श करने से होता है जो किसी विशेष घटना से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित होता है। यह वार्तालाप तथा विचार-विमर्श किसी विशेष उद्देश्य के लिए होता है। परंतु वह पूर्व नियोजित होता है तथा किसी निश्चित क्षेत्र तक ही सीमित होता है। विचार विमर्श एक अच्छे वातावरण में होता है। जिसमें साक्षी अपने दिल की बात खुलकर करता है।

प्रश्न 25.
साक्षात्कार के दो उद्देश्य बताएं।
उत्तर:

  • साक्षात्कार का पहला उद्देश्य संबंधित व्यक्ति से सूचना प्राप्त करना होता है जो किसी और साधन से प्राप्त न की जा सके। इसके लिए साक्षात्कारकर्ता एक विषय चुन लेता है तथा साक्षी उसके बारे में वर्णन करता है।
  • साक्षात्कार का दूसरा उद्देश्य इस बात का पता करना है कि कोई विशेष व्यक्ति किसी विशेष परिस्थिति में किस प्रकार का व्यवहार करता है। इसके लिए साक्षात्कार के समय साक्षी के हाव-भाव हार का भी ध्यान रखता है।

प्रश्न 26.
साक्षात्कार के कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर:
साक्षात्कार के चार प्रकार होते हैं-

  • नियंत्रित साक्षात्कार
  • अनियंत्रित साक्षात्कार
  • केंद्रित साक्षात्कार
  • आवृत्तिपूर्ण साक्षात्कार।

प्रश्न 27.
नियंत्रित साक्षात्कार क्या होता है?
उत्तर:
इस प्रकार के साक्षात्कार में अनुसूची का प्रयोग किया जाता है। इसमें शुरू से लेकर अंत तक सभी क्रियाएं निश्चित होती हैं तथा साक्षात्कारकर्ता पूर्व नियोजित क्रम के अनुसार चलता है। अनुसूची में प्रश्न दिए होते हैं तथा साक्षात्कारकर्ता उनको पूछता है तथा जानकारी प्राप्त करता है। वह उत्तरों को नोट कर लेता है। इस प्रकार का साक्षात्कार आम तौर पर प्रश्न उत्तर के रूप में होता है। इसे निर्देशित या नियोजित साक्षात्कार भी कहा जाता है।

प्रश्न 28.
अनियंत्रित साक्षात्कार क्या होता है?
उत्तर:
इस प्रकार के साक्षात्कार में निश्चित प्रश्न नहीं होते बल्कि साक्षी को एक विषय दे दिया जाता है तथा उसे विषय के बारे में बोलने को कहा जाता है। साक्षी उस विषय के बारे में सभी घटनाओं प्रतिक्रियाओं को एक कहानी के रूप में वर्णन करता है। यह नियंत्रित नहीं होता बल्कि साक्षी खुल कर अपने दिल की बात करता है। यह एक स्वतंत्र वार्तालाप के रूप में होता है। साक्षात्कार अंत में उस घटना के बारे में कोई प्रश्न पूछ सकता है। इसको मुक्त स्वतंत्र या कहानी टाइप साक्षात्कार कहते हैं।

प्रश्न 29.
केंद्रित टाइप साक्षात्कार क्या होता है?
उत्तर:
इस प्रकार के साक्षात्कार को किसी फिल्म या रेडियो के प्रोग्राम के प्रभाव को जानने के लिए किया जाता है। इससे यह ज़रूरी है कि साक्षी अनुसंधान के विषय की निश्चित परिस्थिति से संबंध रख चुका हो। साक्षी उस घटना से संबंधित भावनाओं, विचारों इत्यादि आदि का वर्णन करता है। यह भी एक स्वतंत्र वर्णन के रूप में होता है तथा साक्षी घटना का वर्णन करने के लिए स्वतंत्र होता है। यह एक स्वतंत्र साक्षात्कार के समान होता है।

प्रश्न 30.
आवृत्तिपूर्ण साक्षात्कार क्या होता है?
उत्तर:
इस प्रकार के साक्षात्कार को उस समय प्रयोग किया जाता है जब किसी सामाजिक अथवा मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया द्वारा पड़ने वाले क्रमिक प्रभाव का अध्ययन करना होता है। इसके लिए सिर्फ एक बार ही साक्षात्कार करने से काम नहीं चलता बल्कि बार-बार साक्षात्कार लिया जाता है ताकि समय बीतने के साथ उस प्रक्रिया के पड़ने वाले प्रभाव को जाना जा सके। प्रभाव ज्यादा समय में पड़ता है इसलिए साक्षात्कार कुछ समय बाद फिर साक्षात्कार लिया जाता है। जैसे किसी गांव में सड़क बनाने के गांव पर क्या प्रभाव पड़े। इस तरह बार-बार साक्षात्कार लेने को आवृत्तिपूर्ण साक्षात्कार कहते हैं।

प्रश्न 31.
साक्षात्कार प्रदर्शिका क्या होती है?
उत्तर:
साक्षात्कार प्रदर्शिका एक लिखित प्रलेख होता है जिसमें साक्षात्कार की योजना का संक्षिप्त वर्णन होता है। इसमें साक्षात्कार की विधि, संबंधित विषय तथा विशेष परिस्थितियों के लिए ज़रूरी निर्देश दिए होते हैं। इसमें विभिन्न इकाइयों की परिभाषाएं तथा अर्थ भी दिए होते हैं ताकि इकाइयों को समझने में विभिन्नता न आए। इस तरह साक्षात्कार प्रदर्शिका में साक्षात्कार से संबंधित दिशा निर्देश तथा विषय से संबंधित ज्ञान होता है ताकि साक्षात्कार करते समय साक्षात्कारकर्ता कहीं भटक न जाए।

प्रश्न 32.
साक्षात्कार प्रदर्शिका का क्या महत्त्व है?
अथवा
साक्षात्कार का मुख्य लाभ बताइए।
उत्तर:

  1. साक्षात्कार प्रदर्शिका के होने से संबंधित समस्या के किसी पहलू के छूट जाने की संभावना नहीं होती जोकि वर्णन विधि में हो सकती है।
  2. इसकी मदद से साक्षात्कारकर्ता को अपने दिमाग पर जोर नहीं देना पड़ता क्योंकि सारा कुछ ही लिखा हुआ होता है। इसके न होने से कोई महत्त्वपूर्ण पहलू छूट भी सकता है।
  3. इसकी मदद से अलग-अलग लोगों द्वारा साक्षात्कार करने में एकरूपता रहती है तथा प्राप्त सूचना की तुलना की जा सकती है।

प्रश्न 33.
साक्षात्कार विधि के तीन गुण बताएं।
उत्तर:

  1. यह विधि उन घटनाओं का अध्ययन करने में भी सक्षम है जो प्रत्यक्ष अवलोकन के अयोग्य हैं तथा जिनके बारे में साक्षी के अलावा किसी और को पता नहीं है।
  2. यह विधि अमूर्त स्थितियों जैसे विचार, भावनाओं और प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करने के लिए बहुत बढ़िया है क्योंकि सभी तथ्यों का प्रत्यक्ष अवलोकन नहीं हो सकता।
  3. इस विधि की मदद से भूतकाल में हुई घटनाओं तथा उनके प्रभावों का अध्ययन भी हो सकता है क्योंकि बहुत-सी घटनाएं ऐसी होती हैं जो दोबारा नहीं हो सकतीं।
  4. यह अनुसंधान की सबसे लचीली विधि है क्योंकि इसमें साक्षात्कारकर्ता अपनी मर्जी से विधि में हेर-फेर कर सकता है जिसका कोई नुकसान भी नहीं होता है।

प्रश्न 34.
साक्षात्कार विधि की तीन सीमाएं बताएं।
उत्तर:

  1. सबसे पहली सीमा इस विधि में यह होती है कि साक्षी को साक्षात्कार के लिए राजी करना बहुत मुश्किल होता है। अगर वह राज़ी न हुआ तो अनुसंधान ही नहीं हो पाएगा।
  2. इसमें साक्षात्कारकर्ता का चतुर होना बहुत ज़रूरी है ताकि अपने मतलब की जानकारी निकाली जा सके। अगर वह चतुर न हुआ तो वह साक्षी द्वारा बोले गए झूठ को पकड़ नहीं पाएगा तथा अनुसंधान में ग़लती पैदा हो जाएगी।
  3. यह विधि भावनाओं से काफी ज्यादा प्रभावित होती है क्योंकि इसमें बताया गया वर्णन प्रमाणित नहीं हो सकता तथा लोग अपनी मर्जी से घटना का वर्णन करते हैं। यह एक तरफा भी हो सकता है।
  4. इस प्रकार के वर्णन से वर्गीकरण तथा समीकरण में भी कठिनाई आती है।

प्रश्न 35.
सामाजिक मानवशास्त्री कहां से फील्ड फर्क की शुरुआत करते हैं?
अथवा
सहभागी प्रेक्षण के दौरान समाजशास्त्री और नृजातिविज्ञानी क्या कार्य करते हैं?
उत्तर:
मानवशास्त्री अथवा अध्ययनकर्ता फील्ड फर्क की शुरुआत करते हैं। उस समुदाय की जनसंख्या के बारे में जानने से जिसका कि वह अध्ययन करने जा रहे हैं। वह उस समुदाय में रहने वाले लोगों की एक लंबी चौड़ी लिस्ट बनाते हैं, उनके लिंग, उम्र, परिवार इत्यादि के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। फिर उनके घरों के बारे में भी जानकारी प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 36.
Geneology क्या होती है?
उत्तर:
Geneology एक विस्तृत परिवार के वृक्ष का चित्र होता है जिस में पीढ़ी-दर-पीढ़ी पारिवारिक रिश्तों की जानकारी होती है। इस तरह हम कह सकते हैं कि Geneology किसी विस्तृत परिवार का वृक्ष समान चित्र होता है जिससे हमें उस परिवार के रक्त संबंधों की जानकारी प्राप्त होती है। इसमें ∆ से मर्द को तथा O से स्त्री को दर्शाता जाता है। उदाहरण के तौर पर
HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव 1

प्रश्न 37.
Geneology का मानवशास्त्री के लिए क्या महत्त्व है?
उत्तर:
Geneology का मानवशास्त्री के लिए बहुत महत्त्व है। इसके चित्र से अध्ययनकर्ता को परिवार के बारे में, उसकी जनसंख्या के बारे में, परिवार में पाए जाने वाले रिश्तों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। अगर उसमें परिवार के सदस्यों की तस्वीरें हों तो उन सबके बारे में आसानी से जानकारी प्राप्त हो जाती है तथा उस परिवार के बारे में जानकारी प्राप्त करने में आसानी होती है।

प्रश्न 38.
जानकारी देने वाला या Informant या Principal Informant या Native Informant कौन होता है?
उत्तर:
Informant वह व्यक्ति होता है जो अध्ययनकर्ता को उस क्षेत्र, समुदाय के बारे में हरेक प्रकार की जानकारी देता है जिसका कि अध्ययन करना है। Informent मानव शास्त्री के अध्यापक के रूप में कार्य करता है तथा पूरे फील्डवर्क में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उसे native informant भी कहते हैं तथा उसे समुद’ के बारे में प्रत्येक प्रकार की जानकारी होती है।

प्रश्न 39.
समाजशास्त्र तथा मानवशास्त्र में फील्डवर्क में क्या अंतर है?
उत्तर:

  1. समाजशास्त्र में अध्ययनकर्ता को अपना समूह छोड़कर नहीं जाना पड़ता बल्कि वह समूह में रहकर ही फील्डवर्क करता है परंतु मानवशास्त्री अपने समुदाय से दूर किसी दुर्गम क्षेत्र में जाकर फील्डवर्क करता है।
  2. समाजशास्त्री हरेक प्रकार के समुदाय में जाकर फील्डवर्क करता है परंतु मानवशास्त्री सिर्फ प्राचीन संस्कृतियों वाले समूहों में जाकर फील्डवर्क करता है।
  3. समाजशास्त्री को उन समुदायों में जाकर रहने की ज़रूरत नहीं होती बल्कि अध्ययन होने वाले समूहों के साथ अपना ज्यादा से ज्यादा समय बिताने की ज़रूरत होती है परंतु मानवशास्त्री को उन समुदायों में जाकर रहना पड़ता है।

प्रश्न 40.
समाजशास्त्र में फील्डवर्क में क्या मुश्किलें आती हैं?
उत्तर:

  1. समाजशास्त्री को अपने समुदाय में रह कर ही फील्डवर्क करना पड़ता है तथा उसके समुदाय के व्यक्ति पढ़े-लिखे होते हैं। उनमें से कुछ व्यक्ति उसके अनुसंधान कार्य ही रिपोर्ट पढ़ सकते हैं जिससे फील्डवर्क में बाधा आ सकती है।
  2. जब लोगों को पता चलेगा कि उनके बीच रह कर ही कोई उ का ही निरीक्षण कर रहा है तो उनके व्यवहार में बनावटीपन आ जाता है जिससे फील्डवर्क में मुस्किलें आ सकती हैं।
  3. जब व्यक्ति अपने ही समुदाय का निरीक्षण करता है तो लोगों को उसके कार्य के बारे में पता होता है। इस पता होने के कारण निरीक्षण में अभिनति आ सकती है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
परियोजना कार्य विधि अथवा प्रोजैक्ट कार्य से क्या अभिप्राय है? परिभाषाओं सहित स्पष्ट करो।
अथवा
परियोजना कार्य की कोई एक परिभाषा दीजिए।
अथवा
परियोजना कार्य का संक्षिप्त वर्णन करें।
अथवा
परियोजना कार्य क्या है?
अथवा
परियोजना कार्य की सविस्तार सहित व्याख्या कीजिए।
अथवा
परियोजना कार्य पर निबंध लिखिए।
उत्तर:
समाज शास्त्र में होने वाले अनुसंधानों में तथ्यों को इकट्ठा करने के लिए बहुत सारी विधियों का प्रयोग किया जाता है तथा उन तथ्यों के आधार पर कई निष्कर्ष निकाले जाते हैं। समाज शास्त्र की नज़र से इसलिए परियोजना कार्य की धारणा बहुत महत्त्वपूर्ण तथा विस्तृत है। इस परियोजना कार्य के अंतर्गत किसी भी सामाजिक समस्या की प्रकृति को जानने के लिए अध्ययनकर्ता स्वयं ही संबंधित क्षेत्र में जाता है तथा वैज्ञानिक विधि का प्रयोग करके तथ्यों को एकत्र करता है।

तथ्यों को इकट्ठा करने के बाद तथ्यों का एक निश्चित क्रम में निरीक्षण, वर्गीकरण तथा परीक्षण किया जाता है ताकि निष्कर्ष निकाले जा सकें। इसके लिए सामाजिक सर्वेक्षण विधि के अनुसार कार्य किया जाता है जोकि सामाजिक विज्ञानों में अध्ययन करने की एक महत्त्वपूर्ण पद्धति है। इस विधि में वैज्ञानिकता के आधार पर सामाजिक समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। परियोजना कार्य में हमें उपयोगी तथा व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त होता है। इसका आखिरी उद्देश्य भी उपयोगितावादी होता है।

किलपैट्रिक (W.H. Kilpatric) को इस विधि का जन्मदाता माना जाता है। परियोजना को योजना अथवा प्रोजैक्ट भी कहा जाता है जो कि वास्तविक सामाजिक परिवेश में नया ज्ञान तथा अनुभव प्राप्त करने का एक ढंग है। इसका मुख्य लक्ष्य व्यावहारिक स्तर पर ज्ञान प्राप्त करना है। परियोजना कार्य, दो शब्दों ‘परियोजना’ तथा ‘कार्य’ से मिलकर बना है। ‘परियोजना’ का अर्थ है ‘योजना’ तथा कार्य का अर्थ है कार्य प्रणाली अथवा विधि है। इस तरह परियोजना कार्य का शाब्दिक अर्थ है योजना की कार्य प्रणाली। किलपैट्रिक (Kilpatric) के अनुसार, “परियोजना वह सहृदय उद्देश्यपूर्ण कार्य है जो पूर्ण संलग्नता से सामाजिक वातावरण में किया जाता है।”

प्रो० स्टीवेन्सन (Prof. Stevanson) के अनुसार, “परियोजना एक समस्यामूलक कार्य है, जो अपनी स्वाभाविक परिस्थितियों में पूर्णता प्राप्त करना है।” बेलार्ड (Ballard) के अनुसार, “परियोजना वास्तविक जीवन का एक भाग है जिसका प्रयोग विद्यालय में किया जाता है।”

इस तरह इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि परियोजना कार्य ज्ञान प्राप्त करने का एक ढंग है जिससे व्यक्ति को व्यावहारिक ज्ञान तथा अनुभव प्राप्त होता है। इसमें अध्ययनकर्ता किसी सामाजिक समस्या को लेता है तथा उसका सर्वेक्षण करता है। इस सर्वेक्षण के बीच तथ्यों को इकट्ठा किया जाता है तथा उन तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं। इसमें अंत में कार्यकर्ताओं द्वारा अध्ययनकर्ता के निर्देशन के अंदर रिपोर्ट तैयार की जाती है। इसम् विद्यार्थी अथवा अध्ययनकर्ता स्वयं ही क्षेत्र में जाकर तथ्य इकट्ठे करता है जिससे उसे सामाजिक परिवेश का ज्ञान तथा व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त होता है और समस्या के बारे में उसे संपूर्ण जानकारी प्राप्त हो जाती है।

प्रश्न 2.
परियोजना कार्य के कितने स्तर हैं? उनका विस्तार से वर्णन करो।
अथवा
परियोजना कार्य का आयोजन कैसे किया जाता है? व्याख्या करें।
अथवा
परियोजना कार्य का सविस्तार वर्णन कीजिए।
उत्तर:
किसी भी कार्य को करने के लिए सबसे पहला कार्य होता है उस कार्य से संबंधित योज ।। नाना क्योंकि अगर हम बिना किसी योजना के कार्य करना शुरू कर देंगे तो हमें बहुत ज्यादा परिश्रम व्यर्थ ही करना पड़ेगा तथा समय भी ज्यादा लगेगा। योजना बनाने से समय, धन तथा परिश्रम की बचत होती है तथा कार्य भी जल्दी हो जाता है। परियोजना कार्य की संपूर्ण प्रक्रिया चार चरणों से होकर गुज़रती है जोकि निम्नलिखित हैं:

  • परियोजना कार्य का आयोजन (Planning of Project Work)
  • तथ्यों का संकलन (Collection of data or facts)
  • तथ्यों का विश्लेषण व निर्वाचन (Analysis and interpretation of facts)
  • तथ्यों का प्रदर्शन (Presentation of data)।

अब हम इनका वर्णन विस्तार से करेंगे :
1. परियोजना कार्य का आयोजन (Planning of Project Work)-परियोजना कार्य के आयोजन के कई स्तर होते हैं तथा उन स्तरों का वर्णन इस प्रकार है :
(i) समस्या का चुनाव (Selection the Problem)-किसी भी परियोजना को शुरू करने का सबसे पहला कार्य होता है समस्या का चुनाव करना। किस समस्या का अध्ययन करना है तथा किस समस्या के बारे में तथ्य इकट्ठे करने हैं। समस्या का चुनाव करने में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

  • ऐसी समस्या का चुनाव करना चाहिए जिसमें अध्ययनकर्ता की रुचि हो ताकि वह ज्यादा परिश्रम से काम कर सके।
  • अध्ययनकर्ता को उस समस्या तथा उससे संबंधित अन्य पक्षों का पहले से ही ज्ञान होना चाहिए ताकि परियोजना कार्य अच्छी तरह हो सके।
  • समस्या को चुनते समय उद्देश्य को भी ध्यान में रखना चाहिए।
  • विषय का चुनाव साधनों की सीमा के अंदर ही होना चाहिए।

(ii) लक्ष्य का निर्धारण (Determination of Objective)-आयोजन के दूसरे स्तर पर आता है लक्ष्य निर्धारण। जब लक्ष्य निर्धारित हो जाता है तो उसमें प्रयोग होने वाली पद्धतियों तकनीकों के बारे में सोचा जा सकता है। उद्देश्य या लक्ष्य को निर्धारित करने से Design of Survey आसानी से बनाया जा सकता है।

(iii) सर्वेक्षण का संगठन (Organization)-समस्या तथा लक्ष्य को निर्धारित करने के बाद उस कार्य के लिए उचित संगठन बनाए जाने की आवश्यकता होती है। संगठन के लिए एक सर्वेक्षण समिति को बनाया जाता है जिसमें सर्वेक्षण के निर्देशक, प्रमुख सर्वेक्षक इत्यादि होते हैं। इस संगठन बनाने से उद्देश्य प्राप्त करने में आसानी होती है तथा एकरूपता आती है।

(iv) अध्ययन क्षेत्र को परिसीमित करना (Delimitation of the field of study)-अगर अध्ययनकर्ता अपने अध्ययन में वस्तुनिष्ठता (Objectivity) लाना चाहता है तो उसके लिए यह ज़रूरी है कि वह सभी तथ्यों को एकत्रित न करे बल्कि सिर्फ उन्हीं तथ्यों को एकत्रित करे जो उसके अध्ययन के लिए जरूरी हैं। यह जरूरी नहीं कि सभी तथ्य उसके अध्ययन से संबंधित हों। इसलिए उसको अपने अध्ययन क्षेत्र को परिसीमित करना चाहिए।

(v) प्रारंभिक तैयारियां (Preliminary Preparations)-अध्ययनकर्ता ने अध्ययन करने के लिए सर्वेक्षण के संबंध में कुछ प्रारंभिक तैयारियां भी रखी होती हैं जैसे सर्वेक्षण से संबंधित विषयों का ज्ञान प्राप्त करना, विशेषज्ञों से मिलना, अध्ययन में आने वाली मुश्किलों के बारे में सोचना, लोगों से अनौपचारिक बातचीत करना।

(vi) सैंपल का चुनाव (Selection of Sample)-अगर अध्ययन करने वाली इकाइयों के सैंपल का चुनाव सही या गलत है तो यह भी अध्ययन को प्रभावित कर सकता है। सैंपल का सही चुनाव अध्ययनकर्ता की बुद्धिमता पर निर्भर करता है। सर्वेक्षण की सफलता असफलता सैंपल के चुनाव पर निर्भर करती है क्योंकि सैंपल का चुनाव करने से सर्वेक्षण का क्षेत्र सीमित हो जाता है, धन, समय तथा परिश्रम की बचत होती है। अध्ययनकर्ता अपने समय को और चीजों पर केंद्रित कर सकता है।

(vii) बजट बनाना (Preparation of Budget)-अगला स्तर होता है बजट बनाने का जोकि सर्वेक्षण के लिए बहुत ज़रूरी है। अगर सर्वेक्षण को सुचारु रूप से चलाना है तो एक संतुलित बजट की ज़रूरत होती है। बजट को अपने सर्वेक्षण तथा साधनों को ध्यान में रखकर बनाया जाता है नहीं तो सर्वेक्षण बीच में ही रुक जाता है।

(viii) समय सूची का बनाना (Preparation of Time Schedule)-सर्वेक्षण में समय का निर्धारण बहुत ज़रूरी है क्योंकि ज्यादा समय सर्वेक्षण की उपयोगिता को खराब कर सकता है। समय सूची सर्वेक्षण की प्रकृति सर्वेक्षण के उद्देश्य तथा सर्वेक्षण में लगे कार्यकर्ताओं की संख्या पर निर्भर करता है।

(ix) अध्ययन पद्धतियों का चुनाव (Selection of the Methods of Study)-परियोजना कार्य में अध्ययन पद्धतियां हमेशा समय, धन, सर्वेक्षण की प्रकृति, कार्यकर्ताओं को ध्यान में रख कर चुनी जाती हैं। अलग-अलग विषयों में अलग-अलग पद्धतियों को प्रयोग किया जाता है। एक ही सर्वेक्षण में दो पद्धतियां भी प्रयोग की जा सकती हैं, परंतु इनका चुनाव पहले से ही होना चाहिए।

(x) अध्ययन में यंत्रों का निर्माण (Preperation of study tools)-किसी भी सर्वेक्षण कार्य के सफल-असफल होने में उसमें प्रयोग होने वाले यंत्रों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। प्रश्नावली, साक्षात्कार, अनुसूची, अवलोकन इत्यादि जैसे यंत्रों को सावधानी से तैयार करना चाहिए नहीं तो सर्वेक्षण असफल हो जाएगा। इसलिए सर्वेक्षण की सफलता के लिए यंत्रों का ही निर्माण होना जरूरी होता है।

(xi) कार्यकर्ताओं का चुनाव तथा प्रशिक्षण (Selection and training of field workers)-क्षेत्र में कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं का चुनाव तथा प्रशिक्षण भी सर्वेक्षण को प्रभावित करता है। यंत्रों के निर्माण के साथ-साथ ईमानदार तथा निष्ठावान कार्यकर्ताओं का चुनाव करना चाहिए। उनको प्रशिक्षण भी देना चाहिए ताकि अध्ययन कार्य में एकरूपता तथा वैषयिकता लाई जा सके।

(xii) पूर्व परीक्षण तथा पूर्वगामी सर्वेक्षण (Pretesting and Pilot study)-यह भी सर्वेक्षण के लिए बहुत ज़रूरी है। पूर्व परीक्षण से हमें प्रयोग किए जाने वाले यंत्रों की उपयोगिता का पता चलता है। पूर्वगामी सर्वेक्षण से हमें सर्वेक्षण में आने वाली कठिनाइयों का पता चल जाता है। इस तरह पूर्व परीक्षण तथा पूर्वगामी सर्वेक्षण से अध्ययन की कमियों का पता चल जाता है तथा उन्हें समय रहते ही सुधारा जा सकता है।

(xiii) समुदाय को परियोजना कार्य के लिए तैयार करना (To prepare community for project)-सर्वेक्षण कार्य को शुरू करने से पहले समाचार-पत्रों, रेडियो, प्रचार के माध्यमों से लोगों को सर्वेक्षण के लिए तैयार करना तथा सर्वेक्षण के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करना बहुत ज़रूरी होता है ताकि लोग मानसिक रूप से सर्वेक्षण में सहयोग देने को तैयार हो सके।

2. तथ्यों का संकलन-तथ्यों का संकलन कार्य क्षेत्र में होता है तथा इसमें लोगों से व्यक्तिगत संपर्क स्थापित करना पड़ता है ताकि उनसे प्रश्न पूछ कर तथ्य इकट्ठे किए जा सके। यह कार्य बहुत सावधानी भरा है तथा इसमें निम्नलिखित स्तरों से गुजरना पड़ता है

  • सबसे पहले सैंपल में आए सूचनादाताओं से संपर्क स्थापित करना पड़ता है।
  • फिर सूचनादाताओं से प्रश्न पूछ कर सूचना एकत्रित की जाती है।
  • परियोजना कार्य में लगे कार्यकर्ताओं की देख-रेख करना ताकि वह अपना कार्य-निष्ठा तथा ईमानदारी से कर सकें।

3. तथ्यों का विश्लेषण तथा निर्वचन (Analysis and Interpretation of Data)-तथ्यों को इकट्ठे करने के बाद का स्तर है उनका विश्लेषण तथा निर्वचन। इसके लिए तीन निम्नलिखित चरण हैं-
(i) तथ्यों को तोलना (Weighting of data)-हरेक सर्वेक्षण में कुछ कसौटियां रखी जाती हैं जिन पर इन तथ्यों को रखकर परखा जाता है तथा उनके सही या ग़लत होने का पता लगाया जाता है।

(ii) संपादन (Editing)-अगला स्तर है तथ्यों का संपादन करना। सबसे पहले यह देखा जाता है कि हरेक तरफ से सूचना आ गई है या नहीं इसके बाद उत्तरों की जांच की जाती है ताकि कोई उत्तर भरने से रह न गया हो। इसके साथ गैर ज़रूरी तथ्यों को हटा दिया जाता है तथा एक जैसे तथ्यों को कोड नंबर दे दिया जाता है। कोड के लिए कोई संख्या इत्यादि को रखा जाता है।

(iii) वर्गीकरण तथा सारणीयन (Classification and Tabulation)-जब तथ्यों का संपादन हो जाता है तो तथ्यों को समानता तथा भिन्नता के आधार पर उन्हें अलग-अलग समूहों तथा वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है। इस वर्गीकरण करने से तथ्य संक्षिप्त रूप में आ जाते हैं। तथ्यों के इस वर्गीकरण को अच्छी तरह समझने के लिए उन्हें तालिकाओं में लिखा दिया जाता है जिसे सारणीयन कहते हैं। परियोजना कार्य में वर्गीकरण तथा सारणीयन बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इससे हम बहुत ही जल्दी तथ्यों के बारे में पता कर सकते हैं।

4. तथ्यों का प्रदर्शन (Presentation of data)-तथ्यों को दो प्रकार से प्रदर्शित किया जाता है।
(i) चित्रमयी प्रदर्शन (Diagramatic representation)-तथ्यों को आसानी से प्रकट करने के लिए चित्रों का . प्रयोग किया जाता है तथा तथ्यों को चित्रों की सहायता से दर्शाया जाता है। चित्रों की मदद से कम समय में मुख्य बातों को दिखाया जा सकता है।

(ii) रिपोर्ट का निर्माण तथा प्रकाशन (Preperation and Publication of Report)-संपूर्ण अध्ययन प्रक्रिया के पूरा होने के बाद परियोजना कार्य का अंतिम चरण होता है संपूर्ण प्रक्रिया की रिपोर्ट तैयार करना तथा उसे प्रकाशित करना। रिपोर्ट तैयार करते समय सरल भाषा का प्रयोग करना चाहिए ताकि वह सभी के समझ आ सके।

तथ्यों को तार्किक ढंग से पेश करना चाहिए तथा विचारों को स्पष्ट करना चाहिए। तकनीकी शब्दों को स्पष्ट तथा परिभाषित करना चाहिए। तथ्यों को दोबारा भी नहीं लिखना चाहिए। आवश्यक शीर्षक तथा उपशीर्षक भी देने चाहिए। जहां ज़रूरत हो पाद टिप्पणियां भी देनी चाहिए। चित्र तथा तालिकाओं का भी प्रयोग करना चाहिए ताकि आँकड़े आसानी से समझ में आ सकें। इस के बाद रिपोर्ट को प्रकाशित किया जाता है तथा उसे पेश कर दिया जाता है।

इस तरह परियोजना कार्य की संपूर्ण प्रक्रिया कई स्तरों से होकर गुज़रती है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव

प्रश्न 3.
परियोजना कार्य के गुणों तथा दोषों का वर्णन करो।
अथवा
परियोजना कार्य के लाभ व हानियाँ बताइए।
उत्तर:
परियोजना कार्य के गुण – (Merits of Project Work):
परियोजना कार्य के बहुत गुण होते हैं जिस कारण इसका समाज के अध्ययन में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसके अनलिखित गुण हैं-
1. आत्म विकास का अवसर (Opportunity of Self Development)-परियोजना कार्य कार्यकर्ताओं तथा विद्यार्थियों में आत्म विकास करने का काफ़ी महत्त्वपूर्ण साधन है। इसमें विद्यार्थी स्वयं सोचते हैं, कार्य करते हैं तथा ज़रूरत पड़ने पर अध्ययनकर्ता से निर्देश लेते हैं। इस तरह परियोजना कार्य विद्यार्थियों में आत्म-विश्वास जगाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

2. सामाजिक भावना का विकास (Development of Social Feeling)-कोई भी परियोजना कार्य एक या दो व्यक्ति पूरा नहीं कर सकते हैं बल्कि यह बहुत सारे व्यक्तियों के सहयोग से पूर्ण होता है। इस तरह परियोजना कार्य से सामाजिक भावना विकसित होती है तथा व्यक्तियों में एक-दूसरे के साथ कार्य करने से सामुदायिक भावना भी विकसित होती है।

3. विकास के समान अवसर (Equal Opportunity of Development)-परियोजना कार्य करते समय सभी कार्यकर्ताओं को समान अवसर दिया जाता है। किसी के साथ किसी भी आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता। इससे सभी को विकसित होने के समान अवसर प्राप्त होते हैं।

4. व्यावहारिक ज्ञान (Practical Knowledge)-परियोजना कार्य से सभी कार्यकर्ताओं को व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त होता है। इसमें अलग-अलग समस्याओं को लेकर योजना बनाई जाती है तथा उनका अध्ययन किया जाता है। क्षेत्र में जाकर तथ्य इकट्ठे किए जाते हैं जिस के कारण हमें हरेक प्रकार का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त हो जाता है।

5. मनोवैज्ञानिक संतुष्टि (Psychological Satisfaction)-इस कार्य को करने से व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक संतुष्टि प्राप्त होती है। इस में कार्य करने से व्यक्ति को ज्ञान प्राप्त होता है तथा डर नहीं लगता और ज्ञान को दबाव में नहीं बल्कि खुल कर ग्रहण किया जाता है।

परियोजना कार्य के दोष-(Demerits of Project Work):
1. अधिक खर्च (More Expensive)-परियोजना कार्य में योजना बनाई जाती है तथा उस योजना के अनुसार कार्य किया जाता है। इस को करने के लिए बहुत सारे कार्यकर्ताओं की आवश्यकता होती है। ज्यादा कार्यकर्ताओं के होने के कारण उनके रहने, खाने-पीने, खर्चे के कारण बहुत ज्यादा खर्च हो जाता है तथा यह इसका एक बहुत बड़ा दोष है।

2. उचित परियोजना कार्य ढूंढ़ने की मुश्किल (Difficulty in finding right project work)-सबसे पहले सही समस्या अथवा परियोजना कार्य को ढूंढ़ने की आवश्यकता होती है जोकि काफी मुश्किल है। अगर सही परियोजना कार्य न मिल पाए तो अध्ययन के ज्यादा लाभ नहीं होते हैं।

3. क्रमबद्ध अध्ययन का न होना (Absence of seuqal study)-इस कार्य को करने के लिए कार्य से संबंधित समस्या का क्रमबद्ध अध्ययन भी ज़रूरी है जोकि इस में नहीं होता है। यह एक बहुत बड़ी कमी है।

प्रश्न 4.
निरीक्षण अथवा अवलोकन क्या होता है? इसकी परिभाषाओं तथा विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर:
सामाजिक अनुसंधान में सूचना इकट्ठी करने के लिए वैसे तो अनुसूची, प्रश्नावली और इंटरव्यू आदि विधियों का प्रयोग किया जाता है। पर ये सब सूचना संबंधित आदमी से प्रश्न पूछकर ली जाती है। अनुसूची द्वारा इंटरव्यू में उत्तर देने वाला अनुसूची में दिए हुए प्रश्नों के उत्तर अनुसंधानकर्ता को देता है, जो उन्हें नोट कर लेता है और प्रश्नावली में उन जवाबों को लिखकर आप ही भेज देता है।

विवरणात्मक इंटरव्यू में सूचनाओं का स्रोत संबंधित व्यक्ति होता है। अनुसंधानकर्ता को इस तरह दूसरों द्वारा दी सूचनाओं पर निर्भर रहना पड़ता है। निरीक्षण विधि में अनुसंधानकर्ता आप घटना का निरीक्षण करता है। वह सूचना के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहता। इसलिए निरीक्षण विधि अथवा अवलोकन विधि और सब विधियों से ज्यादा विश्वसनीय मानी जाती है।

परिभाषाएँ-(Definitions):
अवलोकन शब्द अंग्रेज़ी शब्द Observation का रूपांतर है। Observation का अर्थ है आपसी संबंध को जानने के लिए स्वाभाविक रूप में घटने वाली घटनाओं का सूक्ष्म निरीक्षण। पी० वी० यंग ने इन्हें आंखों द्वारा एक उद्देश्यपूर्ण अध्ययन का नाम दिया है। पी० वी० यंग ने लिखा है कि “निरीक्षण आंखों द्वारा उद्देश्यपूर्ण अध्ययन है जिसकी सामूहिक व्यवहार और जटिल सामाजिक संस्थाओं के साथ ही एक समग्रता का निरीक्षण करने वाली अलग-अलग इकाइयों या सूक्ष्म अध्ययन करने वाली एक विधि के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।”।

(According to P.V. Young, “Observation is a deliberate study through the eye may be used as one of the methods for scrutinizing collective behaviour and complex social institutions as well as the separate units composing a totality.”’)

मोज़र (Moser) के अनुसार, “सही अर्थों में, निरीक्षण में कानों या ध्वनि के प्रयोग की जगह आंखों के प्रयोग के साथ है।”
(“In the strict sense, observation implies the use of the eyes rather than the ears and. the voice.”)
इस प्रकार निरीक्षण में निम्नलिखित परिणामों का सार है-
(1) इसमें घटना का ज्ञान आंखों द्वारा प्राप्त किया जाता है। चाहे हम कानों और वाक्य शक्ति का प्रयोग भी कर सकते हैं पर इनका प्रयोग उसकी जगह पर कम महत्त्वपूर्ण होता है।

(2) निरीक्षण हमेशा उद्देश्यपूर्ण और सूक्ष्म होता है। यही उसकी आम लोगों से भिन्नता होती है। हम सचेत अवस्था में बराबर, कुछ न कुछ देखते ही रहते हैं, पर उसे निरीक्षण नहीं कहा जा सकता। निरीक्षण एक विशेष उद्देश्य होता है, इसलिए यही ज्यादा सूक्ष्म और गहरा होता है।

नतीजा निकालने के लिए इसकी बहुत ज़रूरत होती है। सामाजिक घटनाएं तो सबके सामने घटित ही रहती है। एक व्यक्ति उसमें से सिद्धांत की खोज कर लेता है पर दूसरे को इसमें कोई विशेषता नहीं लगती। इस अंतर का कारण निरीक्षण की सूक्ष्मता और गहराई ही है। बिना उद्देश्य के अनुसंधानकर्ता भटकता रहता है और वह तथ्यों की गहराई तक नहीं पहुंच सकता।

दी गई परिभाषाओं के आधार पर हम संक्षेप में निरीक्षण विधि में निम्नलिखित विशेषताओं का जिक्र कर सकते हैं।

  • निरीक्षण सामाजिक अनुसंधान में घटना के बारे में पहले तथ्य इकट्ठे करने की प्रमुख विधि है।
  • इस विधि में अनुसंधानकर्ता को किसी तथ्य को इकट्ठे करने के लिए दूसरे पर निर्भर नहीं रहना पड़ता बल्कि उसे अपनी इंद्रियों का प्रयोग करने का अवसर मिलता है जिसके साथ तथ्य अधिक विश्वसनीय होते हैं।
  • निरीक्षण विधि घटना के सूक्ष्म निरीक्षण का मौका देती है।
  • इस विधि द्वारा इकट्ठे किए हुए तथ्य किसी भी दूसरी विधि द्वारा इकट्ठे किए तथ्यों से अधिक विश्वसनीय होते हैं।
  • यह एक सामने दिखने वाली प्रणाली है जिनमें अनुसंधानकर्ता किसी दूसरे स्रोत पर आश्रित न रहकर आप ही घटना का सामने से ही निरीक्षण करके अध्ययन करता है।
  • इस विधि द्वारा वैज्ञानिक सूक्ष्मता संभव होती है।
  • यह विधि सबसे सरल है।
  • अनुसंधानकर्ता स्वयं ही घटना को अपनी आंखों से देखने के बाद तथ्य इकट्ठे करता है।
  • यह एक प्रचलित विधि है जिसका प्रयोग प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञानों में एक जैसा ही होता है।
  • यह प्रणाली सबसे सस्ती, स्पष्ट, सरल और वैज्ञानिक है।

प्रश्न 5.
सहभागी निरीक्षण अथवा सहभागी अवलोकन से आप क्या समझते हैं? संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर:
1. सहभागी निरीक्षण-सहभागी निरीक्षण का प्रयोग सबसे पहले Lindeman ने 1924 में अपनी पुस्तक Social Discovery में किया था। चाहे विधि के रूप में इसका प्रयोग बहुत पहले ही हो चुका था। उसने लिखा “सहभागी निरीक्षण इस सिद्धांत पर आधारित है कि किसी घटना का निरीक्षण तभी करीब-करीब शुद्ध हो सकता है जब वह बाहरी और अंदरूनी दृष्टिकोण से मिलकर बना हो।

इस प्रकार उस व्यक्ति का दृष्टिकोण जिसने घटना में भाग लिया और जिसकी इच्छाओं और स्वार्थ किसी-न-किसी रूप में जुड़े हुए हो, उस आदमी के दृष्टिकोण से निश्चित ही अलग होगा जो सहभागी न होकर सिर्फ देखने वाला या विवेचनकर्ता के रूप में रहा है।”

सहभागी निरीक्षण की परिभाषा देते हुए ‘मैज’ ने लिखा है “जब देखने वाले के दिल की धड़कनें समूह के दूसरे व्यक्तियों की धड़कनों के साथ मिल जाती हैं और वह किसी दूर की प्रयोगशाला से आए हुए तटस्थ प्रतिनिधि के समान नहीं रह जाता, तब यह समझना चाहिए कि उसने सहभागी देखने वाला कहलाने का अधिकार प्राप्त कर लिया है।

मैज ने इस प्रकार समूह के साथ निरीक्षणकर्ता के रागात्मक एकीकरण पर ही जोर दिया है। उसके निरीक्षणकर्ता को सहभागी तब ही कहेंगे जब वह निरीक्षण किए जाने वाले समूह में अपनापन, अनुभव करने लगे, उसका दृष्टिकोण समूह के दृष्टिकोण के साथ मिल जाए और उसकी भावनाएं समूह की भावनाओं के साथ मिलकर एक हो जाएं।

विद्वानों ने इस प्रकार के पूरे एकीकरण को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से दोषपूर्ण बताया है। उन्होंने सहभागी निरीक्षणकर्ता की और ज्यादा खुली परिभाषा दी है। गुड एंड हॉट के अनुसार “निरीक्षणकर्ता सहभागी कहलाने का हकदार उस समय हो जाता है जब वह समह के एक मैंबर/सदस्य के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है।”

यहां मंजरी उस समूह से आती है जिसका निरीक्षण किया जाता है। देखने वाले के विचारों, भावनाओं और दृष्टिकोण में परिवर्तन ज़रूरी नहीं है। पी० वी० यंग ने इसी प्रकार के विचार व्यक्त किए हैं। उसके अनुसार भी सहभागी निरीक्षणकर्ता “अध्ययन किए जाने वाले समूह में रहता है या दूसरी तरह से उनके जीवन में भाग लेता है।”

अब यह परिणाम निकलता है कि सहभागी निरीक्षण के लिए ज़रूरी है कि अनुसंधानकर्ता समूह में एक अजनबी की तरह न रहकर उसका एक अंग बनकर रहे। यह कोई ज़रूरी नहीं है कि वह उनकी सभी क्रियाओं में भाग ले, पर निश्चित ही वह वहां निरीक्षणकर्ता की हैसियत से नहीं रहता। इसी प्रकार यह भी ज़रूरी नहीं कि वह समह के बीच बराबर साथ साथ रहा हो। वह समय-समय बारी-बारी उनके बीच रहा। पर उसका उस समूह के साथ बहुत करीब का क्रियात्मक संपर्क होना बहुत ज़रूरी है।

सहभागी निरीक्षण के साथ निरीक्षणकर्ता अनेक प्रकार से समूह का अंग बन सकता है। वह ऐसा कोई भी काम हाथ में ले सकता है। जिससे वह अध्ययन में किए जाने वाले समूह के बराबर संपर्क में रहे। उदाहरण के लिए विद्यार्थियों के अध्ययन के लिए पढ़ाई का काम। जिस प्रकार से समाज का अध्ययन करना है और जिस प्रकार का अध्ययन करना है, अनुसंधानकर्ता को उसी के अनुरूप पद भी लेना चाहिए। प्रयास इस बात का करना चाहिए कि उसे समूह की क्रियाओं को ज्यादा से ज्यादा करीब से देखने का मौका अथवा अवसर मिल सके।

प्रश्न 6.
सहभागी निरीक्षण के गुणों तथा दोषों का वर्णन करें।
उत्तर:
सहभागी निरीक्षण के गण-
(1) इस निरीक्षण में अनुसंधानकर्ता अध्ययन किए जाने वाले वर्ग के काफ़ी समीप आ जाता है। इस तरह उसे ज्यादा सूक्ष्म अध्ययन का अवसर मिलता है। किसी व्यक्ति के परिवार के जीवन का सब से बढ़िया और सच्चा परिचय उस व्यक्ति को होगा, जो उसके साथ या उसके घर में रहा हो।

(2) सहभागी निरीक्षण में निरीक्षणकर्ता को समूह के अलग व्यवहारों, आपसी संबंधों और रिवाजों का सच्चा समझने की शक्ति प्राप्त होती है। अधिकतर क्रियाएं सामाजिक संगठनों और हालातों से अच्छी तरह प्रभावित होती हैं। किसी समाज में कोई परंपरा क्यों प्रचलित है? इसका अनुभव कोई बाहर से देखकर नहीं कर सकता। इस तरह असहभागी निरीक्षण में घटना का केवल वर्णन होता है जबकि सहभागी अंदरूनी स्वरूप को समझने में सहायक होता है।

(3) सहभागी निरीक्षण स्वाभाविक हालात में संभव है। जब लोगों को पता लग जाता है कि उनका निरीक्षण किया जा रहा है तो उनके व्यवहार में अस्वाभाविकता आ जाती है और बनावटीपन भी। इस तरह निरीक्षणकर्ता द्वारा ईमानदारी और सावधानी बरतने पर भी उचित सूचना प्राप्त नहीं होती। इसलिए स्वाभाविक हालातों/परिस्थितियों में निरीक्षण के लिए सहभागी निरीक्षण ज़रूरी है।

(4) सहभागी निरीक्षण देखने वाले की नज़र को ज्यादा सूक्ष्म बना देता है जिससे वह जल्द ही उचित नतीजों को ग्रहण कर सके। निरीक्षण के लिए एक विशेष ज्ञान ज़रूरी है। इसके बिना कोई भी सूक्ष्म व्यवहारों का सही निरीक्षण नहीं कर सकता। एक इंजीनियर दो कारखानों में लगी मशीनों का तुलनात्मक अध्ययन जितनी आसानी सरलता से जल्दी ही कर लेता है उतना एक अपरिचित व्यक्ति नहीं।

यही बात सामाजिक समूह से संबंध में भी सत्य है। समूह में कुछ समय रहने के पश्चात् निरीक्षणकर्ता इसकी क्रियाओं और व्यवहारों से परिचित हो जाता है और उनमें मिलने वाली सूक्ष्म ग़लती या नकली धन भी उसका ध्यान खींच लेता है।

(5) सहभागी असहभागी निरीक्षण की जगह ज्यादा सुविधाजनक होता है। निरीक्षण की एक आवश्यक शर्त यह भी है कि संबंधित व्यक्ति या समूह अनुसंधानकर्ता को निरीक्षण करने का अवसर दे। सहभागी निरीक्षण में अनुसंधानकर्ता एक निरीक्षण के रूप में नहीं जाता। बाहरी रूप से उसका उद्देश्य सरा ही होता है। इस तरह संबंधित व्यक्ति या समूह से किसी विरोध की संभावना नहीं रहती।

सहभागी निरीक्षण के दोष-
(1) इसमें अनुसंधानकर्ता को दो पार्ट एक साथ अदा करने पड़ते हैं-वह एक वैज्ञानिक भी होता है और अध्ययन किए जाने वाले समाज का सदस्य भी। संतुलन कायम रखना बहुत कठिन होता है।

(2) जब निरीक्षक का भावात्मक एकीकरण हो जाता है तो निरीक्षण की स्थूलता खत्म हो जाती है। एक तटस्थ देखने वाले के स्थान पर वह अपने आप को एक वर्ग का अंग मानने लगता है। उसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण खत्म हो जाता है। इसमें बहुत सारी घटनाओं को इसी तरह देखने लगता है। वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए एक प्रकार का Bias बहुत हानिकारक है।

(3) समाज की क्रियाओं में नज़दीकी के परिचय हमारे सूक्ष्म निरीक्षण में कभी-कभी बाधक भी सिद्ध होते हैं। जब समूह की अनेक क्रियाओं के साथ हमारा नज़दीकी परिचय हो जाता है तो हम उनमें से बहुत को इसी तरह ही मान लेते हैं। बहुत सारी घटनाओं को आम मानकर छोड़ देते हैं। समूह में एकदम अपरिचित होने से उसकी प्रत्येक क्रिया हमारे लिए नई और आदर्शक होती है। इसलिए निरीक्षण ज्यादा सूक्ष्म और खुला होता है।

(4) कभी-कभी यह भी देखा गया है कि लोग अपरिचित व्यक्ति के समक्ष ज्यादा खुलकर व्यवहार करते हैं क्योंकि उन्हें इसमें किसी भी प्रकार की सामाजिक प्रसिद्धि को हानि की संभावना नहीं होती पर जब कोई अपरिचित व्यक्ति निरीक्षक के रूप में साथ होता है तो उनके व्यवहार में बनावटीपन आ जाता है। इसी प्रकार सहभागी निरीक्षण उचित और सही सूचना प्राप्त करने में सहायता के स्थान पर मुस्किल अथवा कठिनाई उत्पन्न करता है।

(5) सहभागी अनुसंधानकर्ता आमतौर पर अपने आपको समाज से अलग अथवा पृथक नहीं रख सकता। कभी-कभी वह किसी विशेष समूह या दल में विशेष रुचि लेने लगता है या किसी वर्ग के साथ विशेष संपर्क बढ़ा लेता है। इस तरह निरीक्षक की वैज्ञानिकता समाप्त हो जाती है।

इसके अतिरिक्त यदि उसने समाज में कोई प्रसिद्ध स्थान प्राप्त कर लिया है तो उसे अनुसंधान से अधिक अपनी प्रसिद्धि का ध्यान अधिक रहता है। तो सकता है कि उस स्थान पर रहकर वह अपना प्रभाव लोगों के व्यवहारों और क्रियाओं पर डाल सकता है। इसके साथ भी अध्ययन में कठिनाई उत्पन्न होती है।

प्रश्न 7.
निरीक्षण विधि के गुणों तथा सीमाओं का वर्णन करें।
उत्तर:
निरीक्षण विधि के गुण
(Merits of Observation)
(i) विश्वास योग्य-इस बात में कोई संदेह नहीं है कि निरीक्षण से प्राप्त सूचना और विधियों द्वारा प्राप्त सूचना से ज्यादा विश्वसनीय होते हैं। इसमें वैज्ञानिक उत्तरदाता पर आश्रित नहीं होता बल्कि वह सूचना खुद ही इकट्ठी करता है। अनुसूची तथा प्रश्नावली में वह उत्तरदाता पर आश्रित होता है परंतु इसमें वह सब कुछ अपने आप ही देखता है। यदि वैज्ञानिक चालाक है तो वह सही सूचना प्राप्त कर सकता है।

(ii) आसान-निरीक्षण विधि बहुत ही आसान है। साक्षात्कार, अनुसूची इत्यादि में उत्तरदाता से अपने मतलब की सूचना निकलवाने के लिए बहुत चतुरता की जरूरत होती है परंतु निरीक्षण में चतुरता की कोई जरूरत नहीं होती। हम सिर्फ चीजों को देखकर ही उनके बारे में अनुमान लगा सकते हैं।

(iii) सर्वव्यापक विधि-निरीक्षण विधि सर्वव्यापक तथा सर्वप्रचलित होती है। यह सभी विज्ञानों, देशों में समान रूप से उपयोगी होती है। प्रश्नावली, साक्षात्कार सिर्फ सामाजिक खोज में ही उपयोग होते हैं। परंतु निरीक्षण सभी विज्ञानों में उपयोग होती है।

(iv) सत्य की जांच करने की सुविधा-इस विधि से प्राप्त सूचना की दोबारा जांच भी हो सकती है। यदि निरीक्षणकर्ता से कोई ग़लती हो जाती है तो उस चीज़ का दोबारा निरीक्षण हो सकता है। हमें यह सुविधा साक्षात्कार, अनुसूची या प्रश्नावली में नहीं होती। उनमें उत्तरदाता झूठ बोल सकता है परंतु इसमें ऐसी कोई समस्या नहीं होती है।

निरीक्षण विधि की सीमाएं-(Limitations of Observation):
(i) निरीक्षणकर्ता का न होना-निरीक्षण विधि में सबसे बड़ी समस्या यह है कि हो सकता है कि घटना के घटित होते समय निरीक्षक उस जगह पर ही हो। सामाजिक घटनाओं की प्रकृति अनिश्चित होती है तथा वह कभी भी घटित हो सकती है। यह ज़रूरी नहीं है कि व्यक्ति उस समय मौजूद ही हो। उसकी गैर-मौजूदगी के कारण निरीक्षण संभव नहीं है। उदाहरण के तौर पर, पति-पत्नी की लड़ाई।

(ii) घटनाएं निरीक्षण का मौका नहीं देतीं-यह समस्या भी निरीक्षण में हो सकती है। हो सकता है कि घटना के घटित होते समय उसका पता ही न चले या फिर संबंधित व्यक्ति निरीक्षण का अवसर ही न दें।

सामाजिक घटनाओं के निरीक्षण के लिए यह ज़रूरी है कि संबंधित व्यक्ति इसका अवसर दें परंतु काफ़ी हद तक ऐसा मुमकिन नहीं होता जैसे कि पति-पत्नी के आंतरिक संबंधों के निरीक्षण का मौका कोई भी नहीं देगा। इस प्रकार कई बार घटनाएं भी निरीक्षण का समय नहीं देती हैं।

(iii) निरीक्षण विधियों का असहयोग-काफ़ी सारे सामाजिक अनुसंधान भावनाओं, विचारों जैसे अमूर्त तथ्यों से संबंधित होते हैं। इन अमूर्त तथ्यों का निरीक्षण नहीं हो सकता। हमें इस बात का पता नहीं चल सकता कि कोई व्यक्ति क्या सोच रहा है या किसी चीज़ के बारे में उसके वास्तविक विचार क्या हैं? इसलिए व्यक्ति खुद ही निरीक्षण करने की बजाए संबंधित व्यक्ति से पूछकर ही चला जाता है।

प्रश्न 8.
सामाजिक सर्वेक्षण का क्या अर्थ है? परिभाषाओं सहित स्पष्ट करें।
उत्तर:
सामाजिक अनुसंधान की विधियों में सर्वेक्षण विधि बहुत महत्त्वपूर्ण है। सर्वेक्षण अंग्रेजी भाषा के शब्द Survey का हिंदी रूपांतर है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है किसी घटना को ऊपर से देखना, परंतु सामाजिक अनुसंधान में इसका एक विधि के रूप में बहुत ही विशिष्ट अर्थ है।

सर्वेक्षण का अर्थ एक ऐसी अनुसंधान की विधि से होता है जिसमें अनुसंधानकर्ता घटनास्थल पर जाकर घटना का वैज्ञानिक तरीके से निरीक्षण करता है तथा उस घटना के संबंध में खोज करता है। इस विधि में अनुसंधानकर्ता को अपनी कल्पना से कुछ नहीं करना पड़ता बल्कि वह घटना के साथ प्रत्यक्ष रूप में संपर्क में आता है तथा उसमें से अपने मतलब की चीज़ निकाल लेता है। इससे उसके निष्कर्षों में ज्यादा वैयक्तिता आती है तथा वह सच के बहुत करीब होते हैं।

परिभाषाएं (Definitions)-
1. मोज़र (Moser) के अनसार. “समाजशास्त्री के लिए सर्वेक्षण क्षेत्र का अनसंधान करने. अध्ययन के विषय से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से संबंधित आंकड़े एकत्र करने का एक ऐसा अति उपयोगी साधन है जिससे समस्या पर प्रकाश पड़ सके।”

2. मोर्स (Morse) के अनुसार, “संक्षेप में सर्वेक्षण किसी प्रस्तुत सामाजिक परिस्थिति, समस्या अथवा जनसंख्या के विशिष्ट उद्देश्यों के लिए वैज्ञानिक तथा क्रमबद्ध रूप में की गई विवेचना की विधि मात्र है।”

3. बर्जेस (Burgess) के अनुसार, “एक सर्वेक्षण समुदाय की दशाओं एवं आवश्यकताओं का सामाजिक विकास की रचनात्मक योजना प्रस्तुत करने के उद्देश्य से किया गया वैज्ञानिक अध्ययन है।”

4. एब्रम्स (Abrams) के अनुसार, “सामाजिक सर्वेक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा समाज के संगठन तथा क्रियाओं के सामाजिक पक्ष के संबंध में संख्यात्मक तथ्य संकलित किए जाते हैं।”

इस तरह इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि सामाजिक सर्वेक्षण सामाजिक घटनाओं तथा सामाजिक समस्याओं से संबंधित होते हैं। इसमें किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र में अनुसंधान के विषय से संबंधित घटनाओं का निरीक्षण किया जाता है तथा उस निरीक्षण से ही सूचना इकट्ठी की जाती है। फिर इस सूचना से निष्कर्ष निकाले जाते हैं। यह विधि वैज्ञानिक विधि के बहुत ज्यादा करीब होती है क्योंकि इस विधि में अभिनीत आने के मौके बहुत ही कम होते हैं। सामाजिक अनुसंधानों में यह विधि बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।

प्रश्न 9.
सामाजिक सर्वेक्षण विधि के उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
सामाजिक सर्वेक्षण विधि के बहुत से उद्देश्य हो सकते हैं, परंतु हम उन्हें निम्नलिखित भागों में विभाजित कर रहे हैं-
1. व्यावहारिक सूचना प्राप्त करना-ज्यादातर सर्वेक्षण लोगों को सूचना देने के लिए होते हैं चाहे वह लोग सरकारी हों या गैर-सरकारी। इस तरह का सर्वेक्षण कोई संस्था अपने या किसी और के लिए भी करवा सकती है। इस तरह के व्यावहारिक उपयोग से उस संस्था को अपना विकास करने में मदद मिलती है।

सर्वेक्षण का उपयोग अब आर्थिक तथा व्यापारिक क्षेत्र में भी काफ़ी हो रहा है। अब ऐसी संस्थाएं भी बन गई हैं जो दूसरों के लिए सर्वेक्षण का कार्य करती हैं। बहुत सारी व्यापारिक संस्थाएं अपने उत्पाद की बिक्री के संबंध में सर्वेक्षण करवाती हैं। उद्योगपति अपने माल के लिए तथा कार्यक्षमता की वृद्धि के लिए भी सर्वेक्षण करवाते हैं। इस तरह सर्वेक्षण की मदद से अब सिर्फ सिद्धांत ही नहीं बनते बल्कि उनका व्यावहारिक उपयोग भी हो रहा है। इस तरह सर्वेक्षण की मदद से व्यावहारिक सूचना प्राप्त हो जाती है।

2. उपकल्पना की जांच-बहुत-से सर्वेक्षणों का उद्देश्य अलग-अलग उपकल्पनाओं की जांच करना होता है। रोज़ाना जीवन की घटनाओं को देखकर हमारे मन में बहुत-सी उपकल्पनाएं पैदा हो सकती हैं। उन उपकल्पनाओं में सच की पहचान तभी हो सकती है जब वैज्ञानिक तरीके से तथ्यों को इकट्ठा किया जाए तथा उन तथ्यों की उचित विवेचना की जाए। इसलिए बहुत से सर्वेक्षण उपकल्पनाओं की जांच के लिए किए जाते हैं।

3. सामाजिक सिद्धांतों के सच की पहचान-हमारा समाज प्रगतिशील है जिस कारण वह लगातार बदलता रहता है। इसलिए आज से कुछ समय पहले बने सिदधांतों में बदलाव आना भी जरूरी होता है। उ ले सकते। इसलिए बदले हुए हालात के अनुसार सामाजिक सिद्धांतों तथा नियमों के सच की पहचान ज़रूरी होती है।

इसलिए पुराने सिद्धांतों के सच की पहचान इस विधि से हो जाती है। इसके साथ ही अनुसंधान की तकनीकें भी समय के साथ बदलती रहती है। पुराने सिद्धांतों की नई तकनीकों के आधार पर जांच करने की ज़रूरत होती है। बहुत से सर्वेक्षण पुराने सिद्धांतों में सच की पहचान के लिए भी होते हैं।

4. कार्य करण संबंध का पता करना-बहुत से सर्वेक्षण का उद्देश्य वर्णन की जगह घटना की व्याख्या करना होता है। समाज में होने वाली घटनाओं को देखकर व्यक्ति के मन में उन घटनाओं के कारणों को जानने की इच्छा पैदा होती है। इनको निगमन विधि से पहले से बने सिद्धांतों से पता किया जा सकता है या फिर आगमन विधि से सर्वेक्षण हाला pr का MBD SOCIOLOGY (XII HR.) करके पता किया जा सकता है। सर्वेक्षण से घटना से संबंधित अलग-अलग तथ्यों को इकट्ठा किया जाता है तथा उनके आधार पर उन घटनाओं के कारणों की खोज की जाती है।

5. सामाजिक घटनाओं का वर्णन-सामाजिक सर्वेक्षणों का उद्देश्य वर्णनात्मक भी हो सकता है, जैसे सामाजिक संबंधों या व्यवहार का अध्ययन। कई बार सर्वेक्षण किसी विशेष उद्देश्य को लेकर सिर्फ सामाजिक घटना के वर्णन के लिए होता है। सरकारी सर्वेक्षण सिर्फ साधारण सूचना इकट्ठी करने के लिए किये जाते हैं। वह किसी विशेष उद्देश्य के लिए नहीं होते बल्कि अनुसंधानकर्ता को उचित सामग्री प्रदान करने तथा उसके कार्य को सरल बनाने के लिए होते हैं।

प्रश्न 10.
सामाजिक सर्वेक्षणों के कितने प्रकार होते हैं? उनका वर्णन करो।
उत्तर:
सामाजिक सर्वेक्षणों को अलग-अलग आधारों पर अलग-अलग भागों में बांटा जा सकता है। उनमें से कुछ प्रकार निम्नलिखित हैं-
1. सामान्य तथा विशेष सर्वेक्षण-जब सर्वेक्षण किसी विशेष उद्देश्य के लिए नहीं होते बल्कि घटना के संबंध में सूचना इकट्ठी करने के लिए होते हैं तो उन्हें सामान्य सर्वेक्षण कहा जाता है। यह किसी उपकल्पना के आधार पर नहीं होते बल्कि इनमें तो अनुसंधान के विषय तथा क्षेत्र को निर्धारित कर दिया जाता है। इस तरह के सर्वेक्षण सरकार द्वारा किए जाते हैं।

विशेष सर्वेक्षण में अनुसंधान किसी विशेष उपकल्पना के आधार पर होता है। इनमें किसी समूह या स्थान का सर्वेक्षण नहीं होता बल्कि किसी विशेष घटना का सर्वेक्षण होता है। इसे उन लोगों से संपर्क बनाया जाता है जो उस विशेष घटना से संबंधित हैं तथा निष्कर्ष निकालने में मदद दे सकते हैं। इस तरह सामान्य सर्वेक्षण किसी वर्ग या स्थान से जुड़ा हुआ होता है। वहीं पर विशेष सर्वेक्षण घटना या समस्या से जुड़ा हुआ होता है।

2. अंतिम तथा आवृत्तिपूर्ण सर्वेक्षण-कई सर्वेक्षण इस तरह से होते हैं जिनमें सूचना को दोबारा-दोबारा इकट्ठा करना नहीं पड़ता बल्कि एक बार ही सूचना इकट्ठी करने के बाद उसके आधार पर निष्कर्ष निकाल दिए जाते हैं तथा सर्वेक्षण खत्म हो जाता है। इन्हें अंतिम सर्वेक्षण कहा जाता है।

कछ सर्वेक्षण ऐसे होते हैं जिनमें सचना को बार-बार इकटठा करना पड़ता है। यह प्रायोगिक विधि के अंदर आते हैं। जिस वर्ग का निरीक्षण करना होता है, उसे कोई प्रेरक तत्त्व दे दिया जाता है तथा उस प्रभाव के अंतर्गत संबंधित आंकड़े इकट्ठे किए जाते हैं। इस तरह बार-बार कोई प्रेरक तत्त्व देकर उस तत्त्व के प्रभाव के अंतर्गत सूचना को एकत्र किया जाता है तथा अंत में निष्कर्ष निकाले जाते हैं। आर्थिक सर्वेक्षण इस प्रकार के होते हैं।

3. नियमित तथा काम चलाऊ सर्वेक्षण-वह सर्वेक्षण जो नियमित रूप से तथा समय-समय पर बार-बार होते हैं उन्हें नियमित सर्वेक्षण कहते हैं। कामचलाऊ सर्वेक्षण वह होते हैं जो किसी विशेष उद्देश्य को पूरा करने के लिए एक-आध बार होते हैं। आमतौर पर कामचलाऊ सर्वेक्षण नियमित सर्वेक्षण से पहले होता है जिस वजह से इसको अग्रगामी सर्वेक्षण भी कहा जाता है।

काम चलाऊ सर्वेक्षण का उद्देश्य नियमित सर्वेक्षण की योजना की जांच करना होता है। कामचलाऊ सर्वेक्षण को अनुसूची, प्रश्नावली इत्यादि का परीक्षण करने के लिए भी किया जाता है। इस कामचलाऊ सर्वेक्षण को उस समय भी प्रयोग किया जाता है जब किसी अनुसंधान के लिए पूर्व सूचना उपलब्ध न हो। इस तरह काम चलाऊ सर्वेक्षण को नियमित सर्वेक्षण के लिए प्रयोग किया जाता है।

4. संगणना सर्वेक्षण तथा सैंपल सर्वेक्षण-सर्वेक्षण को समग्र इकाइयों के संबंध में संगणना विधि दवारा किया जाता है। इसमें अगर किसी विशेष वर्ग के संबंध में खोज करनी है तो उस वर्ग के हरेक व्यक्ति से संपर्क स्थापित किया जाता है तथा उनसे सूचना एकत्र की जाती है। इस तरह के सर्वेक्षण को संगणना सर्वेक्षण कहा जाता है।

परंतु अगर वर्ग बड़ा हो तथा वर्ग के हरेक व्यक्ति से संपर्क स्थापित करना मुमकिन न हो तो उस वर्ग में से थोड़े से व्यक्तियों का एक सैंपल ले लिया जाता है तथा उनसे सूचना प्राप्त की जाती है। उस सूचना से निष्कर्ष निकाले जाते हैं तथा उन्हें संपूर्ण समूह पर लागू किया जाता है। इस तरह के सर्वेक्षण को सैंपल सर्वेक्षण कहा जाता है। सामाजिक सर्वेक्षणों में इस विधि का प्रयोग ज्यादा हो रहा है। इसका कारण यह है कि एक तो संपूर्ण समाज से संपर्क स्थापित करना कठिन होता है तथा संगणना में बहुत सारे धन तथा समय की ज़रूरत होती है। सैंपल विधि से निकले निष्कर्ष ज्यादातर ठीक होते हैं। अगर कोई अशुद्धि भी हो तो भी उसे पता किया जा सकता है।

प्रश्न 11.
सर्वेक्षण की प्रक्रिया का वर्णन करो।
उत्तर:
जिस तरह सामाजिक अनुसंधान की प्रक्रिया होती है, उस तरह सर्वेक्षण की प्रक्रिया भी होती है। सर्वेक्षण की प्रक्रिया के शुरू से लेकर अंत तक कई स्तर होते हैं। इन स्तरों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार हैं-

  • सर्वेक्षण का उद्देश्य तथा क्षेत्र
  • सूचना इकट्ठी करने के स्त्रोत का निर्धारण
  • सर्वेक्षण के प्रकार
  • प्रश्नावली या अनुसूची की रचना तथा सूचना का संकलन
  • इकट्ठी सूचना का संपादन
  • सूचना का वर्गीकरण तथा सारणीकरण
  • सूचना का विश्लेषण
  • सूचना का निर्वाचन तथा अंतिम रिपोर्ट तैयार करना।

इन सभी स्तरों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है:
1. सर्वेक्षण का विषय या उद्देश्य-सबसे पहले सर्वेक्षण का विषय निर्धारित करना ज़रूरी होता है जिस पर सर्वेक्षण होता है। विषय सर्वेक्षण विधि के अनुसार होना चाहिए। अगर विषय इस विधि के अनुसार नहीं हैं तो सर्वेक्षण करने में काफ़ी कठिनाई आ सकती है।

2. स्रोत का निर्धारण-विषय के निर्धारण के पश्चात् अगला स्तर है सूचना इकट्ठी करने के स्रोत का निर्धारण। यह स्रोत प्रश्नावली, अनुसूची, साक्षात्कार, अवलोकन इत्यादि कुछ भी हो सकता है। अगर हम इस विधि का निर्धारण ही न कर पाएं तो सूचना एकत्रित कैसे होगी। इसलिए इस स्रोत का निर्धारण करना पहले से ही आवश्यक होता है।

3. सर्वेक्षण के प्रकार-तीसरा स्तर होता है सर्वेक्षण के प्रकार को निर्धारण करने का। असल में सर्वेक्षण के विषय से ही सर्वेक्षण के प्रकार का निर्धारण हो जाता है। यह सर्वेक्षण सामान्य है अथवा विशेष एक ही बार होगा या बार बार। यदि सर्वेक्षण में संगणना विधि का प्रयोग किया गया है तो बहुत समय तथा धन की आवश्यकता होती है।

अगर सैंपल विधि का प्रयोग किया जाएगा तो सैंपल किस प्रकार निकाला जाएगा। सामाजिक सर्वेक्षण लो है। इसलिए हमें इस बात का ध्यान रखना पड़ेगा कि विषय से संबंधित कौन लोग हैं वह कहां रहते हैं तथा उनको कैसे मिला जा सकता है।

4. प्रश्नावली अथवा अनुसूची की रचना-सर्वेक्षण के प्रकार को निर्धारित करने के पश्चात् यह ज़रूरी है कि अगर सर्वेक्षण में प्रश्नावली या अनुसूची विधि का प्रयोग हो रहा है तो उनका निर्माण किया जाए। प्रश्नावली या अनुसूची का निर्माण बड़ी सावधानी से किया जाना चाहिए। प्रश्नों को सावधानी से निर्मित किया जाना चाहिए क्योंकि अगर प्रश्न ठीक न हआ तो उत्तरदाता उत्तर देना बंद भी कर सकता है।

इसके बाद का स्तर होता है सचना एकत्रित करने का। अगर सूचना को साहित्य से एकत्रित करना है तो उसे भी देख लेना चाहिए। अगर सर्वेक्षण का क्षेत्र बड़ा है तो कार्यकर्ताओं को नियुक्त करना पड़ता है तथा कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण तथा देख-रेख का ध्यान भी रखना पड़ता है। सूचना एकत्र हो जाने के पश्चात् सारी सूचना को एक जगह पर इकट्ठा कर लेना चाहिए।

5. इकट्ठी सूचना का संपादन-सूचना इकट्ठी करने के पश्चात् अगला स्तर होता है एकत्रित सूचना के संपादन का। सबसे पहले प्राप्त सूचना का संपादन किया जाता है। गलत या भ्रमपूर्ण सूचना को बाहर निकाल दिया जाता है ताकि निष्कर्ष निकालते समय ग़लती न हो। सूचना के संपादन से हमारे सामने सही तथा संभव सचना अ जिससे निष्कर्ष निकालने आसान हो जाते हैं।

6. सूचना का वर्गीकरण तथा सारणीकरण-सूचना के संपादन के बाद सूचना का वर्गीकरण तथा सारणीकरण किया जाता है। प्राप्त सूचना को अलग-अलग वर्गों में रखा जाता है तथा उन वर्गों से सारणियां बनाई जाती हैं। वर्गीकरण तथा सारणीकरण करने से सूचना को समझने में आसानी हो जाती है तथा देखने वाला एक ही नज़र में निष्कर्ष निकाल लेता है।

7. सूचना का विश्लेषण-सूचना को वर्गों तथा सारणियों में डालने के पश्चात् उस सूचना का अलग-अलग कोणों से विश्लेषण किया जाता है। कई प्रकार की क्रियाओं से उसकी तुलना की जाती है तथा समन्वय की कोशिश की जाती है। उपलब्ध सिद्धांतों के आधार पर उस सूचना को तोला जाता है तथा उसके आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

8. निर्वाचन तथा अंतिम रिपोर्ट तैयार करना-सर्वेक्षण का अंतिम स्तर होता है रिपोर्ट तैयार करना तथा ग्राफ, चित्रों से सूचना को प्रकट करना। सर्वेक्षण चाहे किसी संस्था के लिए किया गया हो या अनुसंधानकर्ता के लिए, खोज रिपोर्ट को लिखना बहुत जरूरी होता है। रिपोर्ट के साथ ग्राफ तथा चित्र भी होने ज़रूरी है ताकि सूचना का महत्त्व स्पष्ट हो जाए तथा एक सामान्य व्यक्ति भी उसे आसानी से समझ सके।

इस तरह सर्वेक्षण प्रक्रिया इन ऊपर लिखे स्तरों से होकर गुज़रती है।

प्रश्न 12.
सर्वेक्षण प्रणाली के गुणों तथा सीमाओं का वर्णन करो।
अथवा
सर्वेक्षण पद्धति की कमजोरियों का वर्णन करें।
उत्तर:
सर्वेक्षण प्रणाली के गुण सर्वेक्षण प्रणाली के सामाजिक अनुसंधान की ओर विधियों की अपेक्षा कुछ गुण हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-
1. इस विधि से अनुसंधान में किसी प्रकार की व्यक्तिगत अभिनीत नहीं आती हैं। असल में किसी भी व्यक्ति के विचार उसकी परंपराओं, संस्कारों, हालातों इत्यादि से प्रभावित होते हैं जिस कारण हम अनुसंधान में कई बार उन हालातों की कल्पना करते हैं जिन्हें सिर्फ हमारा दिमाग स्वीकार करता है।

हम उसके अलावा और किसी स्थिति के बारे में सोचते भी नहीं। अगर हमें अनुसंधान में वैषयिकता लानी है तथा अभिनीतियों को समाप्त करना है तो सर्वेक्षण विधि ही उपयुक्त है क्योंकि इसमें व्यक्ति को अपने विचारों को अनुसंधान में लाने का मौका ही नहीं देता।

2. इस विधि से अनुसंधानकर्ता सीधा अनुसंधान के विषय में संपर्क में आता है। अगर वह उत्तरदाता से सीधे संपर्क में नहीं आता है तो वह या पूर्व निर्मित सिद्धांतों से या अपने व्यक्तिगत अनुभवों से समस्या का समाधान निकालने की कोशिश करता है जो कि ग़लत है। सैद्धांतिक ज्ञान के आधार पर समाज की सही स्थिति का पता नहीं कर सकते हैं। सर्वेक्षण विधि से हरेक प्रकार के हालात तथा हरेक प्रकार के व्यक्ति तथा व्यवहार का पता चल जाता है। इस कारण ही सर्वेक्षण विधि द्वारा प्राप्त निष्कर्ष अधिक विश्वास योग्य होते हैं।

3. सर्वेक्षण विधि वैज्ञानिक विधि के सबसे करीब होती है चाहे इसमें अनसंधानकर्ता का घटना पर नियंत्रण रखना संभव नहीं होता। उसे घटना का निरीक्षण घटनास्थल पर जाकर ही करना पड़ता है, परंतु फिर भी सैद्धांतिक ज्ञान की अपेक्षा इस आधार पर इकट्ठी की गई सूचना ज्यादा विश्वसनीय होती है। इस विधि में अनुसंधानकर्ता को अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं करना पड़ता बल्कि प्रत्यक्ष अवलोकन से आंकड़े इकट्ठे करने पड़ते हैं। इस तरह प्राप्त सूचना से निकाले गए निष्कर्ष सच्चे माने जाते हैं।

4. सामाजिक क्षेत्र में नए हालात पैदा होते रहते हैं जो कि हमें किसी भी सिद्धांत में नहीं मिलते। इन नए हालातों से समाज में भारी परिवर्तन आ जाता है तथा कई प्रकार उपलब्ध ज्ञान से हमें सही स्थितियों का पता नहीं चलता। उदाहरण के तौर पर भारत में 1947 से पहले तथा बाद के हालातों में काफ़ी अंतर था। इन हालातों में हमें समाज के सही हालातों का ज्ञान वैज्ञानिक अध्ययन से लोगों के बीच जाकर ही हो सकता है तथा उसके लिए सर्वेक्षण विधि सबसे उपयुक्त है।

सर्वेक्षण विधि की सीमाएं-चाहे सर्वेक्षण विधि के कुछ गुण हैं, परंतु इस विधि की कुछ सीमाएं भी हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-
1. इस विधि में सबसे जरूरी यह है कि घटना आंखों के सामने ही घटित हो, परंतु ज्यादातर सामाजिक घटनाओं में यह मुमकिन नहीं है। यह ज़रूरी नहीं है कि घटना के घटित होते समय अनुसंधानकर्ता वहां पर उपस्थित हों।

बहुत सारी घटनाएं व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन से संबंधित होती हैं जोकि कोई और व्यक्ति कैसे देख सकता है। इन हालातों में हमें संबंधित व्यक्ति से पूछ कर ही काम चलाना पड़ता है जोकि विश्वसनीय नहीं हैं। कई बार लोग झूठ भी बोल देते हैं जिससे इस प्रणाली पर विश्वास नहीं किया जा सकता।

2. इस विधि से संपूर्ण समाज का अध्ययन संभव नहीं है। इससे हम समाज के सिर्फ एक भाग का ही अवलोकन कर सकते हैं। जब हम किसी घटना का प्रत्यक्ष अवलोकन करते हैं तो इसे ही सत्य समझ बैठते हैं जबकि वह ग़लत भी हो सकता है। इससे ऐसे सिद्धांत बन सकते हैं जो समय की सीमा से दूर होते हैं। इससे प्राप्त सूचना अंशकालीन होती है दीर्घकालीन नहीं।

3. सर्वेक्षण विधि को हम पूरी तरह विश्वास योग्य नहीं मान सकते हैं। किसी भी चीज़ का अवलोकन करते समय हमारी नज़र हमारे विचारों, संस्कारों से प्रभावित होती है। हम घटना में सिर्फ वह चीज़ देखते हैं जो हम देखना चाहते हैं। हम उन चीज़ों को देखते भी नहीं, जो हमें पसंद नहीं हैं। आमतौर पर किसी घटना के अवलोकन से ही हम निष्कर्ष निकाल लेते हैं। हम औरों से सूचना प्राप्त करते हैं जिससे ग़लती की संभावना ज्यादा हो जाती है।

4. सर्वेक्षण विधि में सैंपल प्रणाली का आमतौर पर प्रयोग होता है। सैंपल प्रतिनिधित्वपूर्ण हैं या नहीं, इसके बारे ह नहीं सकते। यह हो सकता है कि सैंपल का चुनाव करते समय अनुसंधानकर्ता ने अपनी रुचि का भी ध्यान रखा है। इन हालातों में सैंपल से निकाले गए निष्कर्ष प्रतिनिधित्वपूर्ण नहीं हो सकते। यह निष्कर्ष हर समय लागू नहीं हो सकते। सैंपल में अभिनीत आने का भी खतरा होता है जो कि वैज्ञानिक विधि के लिए ठीक नहीं है।

5. सर्वेक्षण विधि में खर्चा बहुत होता है तथा समय भी बहुत अधिक लगता है। इस कारण से ही यह व्यक्तिगत अनुसंधानों में मुमकिन नहीं है। यह तो सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा ही प्रयोग होती है। इसलिए इसका प्रयोग बहुत ही सीमित है।

अंत में हम कह सकते हैं कि चाहे इस विधि में कुछ दोष हैं, परंतु फिर भी अगर इस विधि को सावधानी से प्रयोग किया जाए तो इससे बहुत ही विश्वसनीय निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।

प्रश्न 13.
साक्षात्कार किसे कहते हैं? इसके उद्देश्यों तथा प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर:
साक्षात्कार सामाजिक अनुसंधान की एक महत्त्वपूर्ण रीति है। साक्षात्कार का अर्थ उन व्यक्तियों से है जो किसी विशेष घटना से संबंधित होते हैं। मिलन तथा उस घटना के संबंध में औपचारिक वार्तालाप होता है। वार्तालाप एक निश्चित क्षेत्र में मतलब उस घटना के साथ संबंधित होता है पर यह स्वतंत्र तता अच्छे वातावरण में होता है।

इसें साक्षी (उत्तरदाता) अपने दिल की बात कहता है। इसमें शोधकर्ता किसी घटना से संबंधित व्यक्ति के आमने सामने बैठकर बातचीत करता है तथा उससे प्रश्न पूछकर सूचना प्राप्त करता है। उस सूचना के आधार पर वह उस घटना या विषय के संबंध में निष्कर्ष बना लेता है।

पी०वी०यंग (P.V. Young) के अनुसार, “साक्षात्कार एक ऐसी क्रमबद्ध विधि है जिसके द्वारा व्यक्ति करीब करीब अपनी कल्पना की मदद से अपेक्षाकृत अपरिचित के जीवन में प्रवेश करता है।” ।

(“The interview may be regarded as a systematic method by which one person enters more or less, imaginatively into the inner life of another who is generally a comparative stranger to him.”‘)
गूड तथा हाट (Goode and Hatt) के अनुसार, “साक्षात्कार आधारभूत रूप में एक सामाजिक प्रक्रिया है।” (“Interview is fundamentally a process of social interaction.”)।

संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि साक्षात्कार सूचना इकट्ठी करने की एक क्रमबद्ध विधि है जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति किसी उद्देश्य को सामने रखकर आपस में बातचीत या संवाद करते हैं तथा सूचना एकत्र की जाती है। यह दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच वार्तालाप होता है तथा शोध से संबंधित सूचना एकत्रित की जाती है।

साक्षात्कार के उद्देश्य-(Aims of Interview): साक्षात्कार के आम तौर से दो उद्देश्य होते हैं-
1. घटना से संबंधित व्यक्ति से ऐसी सूचना प्राप्त करना जो सिर्फ उसे पता हो तथा किसी और साधन से उसे प्राप्त न किया जा सकता हो।
इस बात का पता करना कि किन्हीं विशेष हालातों में व्यक्ति किस प्रकार का शाब्दिक व्यवहार करता है।

2. पहले उद्देश्य के लिए शोधकर्ता कोई विषय चुन कर उत्तरदाता से उस विषय से संबंधित घटना या प्रक्रियाओं के बारे में पूछता है तथा सुनता है। शोधकर्ता उस को ध्यान से सुनता है तथा यह जानने की कोशिश करता है कि उसकी उपकल्पना सही है या ग़लत। दूसरे उद्देश्य के लिए शोधकर्ता उत्तरदाता की सूचना के साथ-साथ उसके चेहरे के हाव-भाव को ध्यान से देखता है। यहां शोधकर्ता समाजशास्त्री की जगह सामाजिक मनोवैज्ञानिक होता है तथा घटना की जगह उसकी भाषा शैली तथा हाव-भाव में होने वाले परिवर्तनों पर ध्यान रखता है।

यह दोनों उद्देश्य साथ-साथ चलते हैं। फ़र्क सिर्फ इतना होता है कि शोध की प्रकृति के अनुसार किसी उद्देश्य पर जोर देना पड़ता है। दूसरा उद्देश्य सूचना की सच्चाई पता करने के लिए होता है।

साक्षात्कार के प्रकार-(Types of Interview):
1. नियंत्रित साक्षात्कार (Structured Interview)-इसे नियोजित साक्षात्कार भी कहा जाता है। इसमें अनुसूची का प्रयोग होता है। सारी प्रक्रियाएं नियोजित होती हैं तथा शोधकर्ता नियोजन के अनुसार चलता है। साक्षात्कार प्रश्न उत्तर के रूप में होता है। उत्तरदाता प्रश्नों के उत्तर देता है तथा शोधकर्ता अनुसूची में भरता जाता है। प्रश्नों के उत्तर के अलावा कुछ भी न तो नोट किया जाता है तथा न ही उसका महत्त्व होता है।

2. अनियंत्रित साक्षात्कार (Unstructured Interview) इसे कहानी टाइप साक्षात्कार भी कहते हैं। इसमें निश्चित प्रश्न नहीं होते। शोधकर्ता सिर्फ विषय के बारे में बता देता है तथा उत्तरदाता उस विषय से संबंधित घटना या प्रतिक्रिया को एक कहानी की तरह बताता है। उसे अपने विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता होती है तथा साक्षात्कारी पूरी तरह स्वतंत्र होता है। ज्यादा-से-ज्यादा घटना से संबंधित कोई प्रश्न पूछा जा सकता है।

3. केंद्रित साक्षात्कार (Focused Interview) इस प्रकार का साक्षात्कार रेडियो या फिल्म के प्रभाव को पता करने के लिए होता है। शोधकर्ता सिर्फ इस बात का ध्यान रखता है कि किसी घटना का किसी व्यक्ति प्रभाव पड़ा। उत्तरदाता अपने विचारों, मनोभावों को बताता है। इसके लिए Interview Guide की मदद भी ली जा सकती है। यह भी स्वतंत्र रूप में वर्णित किया जाता है।

4. आवृत्तिपूर्ण साक्षात्कार-इस प्रकार का साक्षात्कार किसी सामाजिक या मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया द्वारा पड़ने वाले क्रमिक प्रभाव को जानने के लिए होता है। कई घटनाओं का प्रभाव ज्यादा देर रहता है। इसलिए इस को पता करने के लिए एक ही साक्षात्कार से काम नहीं चलता तो यह बार-बार किया जाता है।

इस प्रकार के साक्षात्कार में पैसा तथा समय काफ़ी खर्च होता है। इसलिए व्यक्तियों की संख्या कम होनी चाहिए।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव

प्रश्न 14.
साक्षात्कार की तैयारी की पूर्ण प्रक्रिया का संक्षिप्त वर्णन दें।
उत्तर:
अगर साक्षात्कार अच्छे तरीके से करना है तो उसके लिए कुछ तैयारी की ज़रूरत है जिसका वर्णन इस प्रकार है-
1. समस्या का ज्ञान-साक्षात्कार शुरू करने से पहले उत्तरदाता को साक्षात्कार करने के लिए राजी करना होता है। शोधकर्ता को उत्तरदाता की शंका निवारण के लिए कई प्रकार के प्रश्नों का उत्तर देना पड़ता है।

इसलिए सबसे पहले शोधकर्ता या कार्यकर्ताओं को समस्या तथा उसके अलग-अलग पहलुओं का पूरा ज्ञान होना ज़रूरी है। अगर समस्या का ठीक तरीके से पता न हो तो आम तौर पर लोग साक्षात्कार देने से इंकार कर देते हैं। इसलिए सबसे पहले शोधकर्ता को समस्या का सही ज्ञान होना जरूरी है ताकि वह शंकाओं का निवारण कर सके।

2. साक्षात्कार प्रदर्शिका का निर्माण (Making of Interview Guide) समस्या का ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् दूसरा काम Interview guide को तैयार करना होता है। Interview Guide एक लिखित आलेख होता है जिसमें Interview की योजना का संक्षेप वर्णन होता है। इसमें अनुसूची या प्रश्नावली की भांति निश्चित प्रश्न नहीं होते पर Interview की साधारण विधि समस्या के विभिन्न पक्षों जिन पर सूचना प्राप्त करनी है व विशेष स्थिति नर्देश होती है।

समस्या से संबंधित भिन्न इकाइयों की सही परिभाषा व अर्थ भी दिया जाता है ताकि इकाइयों का अर्थ समझने में विभिन्नता न हो। सारांश यह है कि Interview Guide इस काम के लिए भेजी ज कि उनके क्रम में एकरूपता रहे। इसलिए Interview लेने वाले के वर्णन को नोट करने की विधि का उल्लेख भी Guide में होना चाहिए।

3. Interview लेने वालों का चुनाव (साक्षी)-समस्या के अध्ययन व Interview Guide के निर्माण के पश्चात् उन व्यक्तियों का चुनाव करना पड़ता है जिनसे Interview की जानी है। इसके लिए निर्देशन प्रणालियों में किसी एक को अपनाया जा सकता है। इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है कि चुने हुए व्यक्तियों को अनुसंधान के विषय से संबंधित होने से Interview के लिए उपलब्ध हो सकें। इसके लिए उनके पते का होना भी ज़रूरी है। इस प्रकार के Interview में समय अधिक लगता है। इसलिए चुने हुए व्यक्तियों की संख्या कम होनी चाहिए।

4. Interview देने वालों के संबंध में सूचना-यदि पैनल विधि का उपयोग नहीं किया गया तो Interview देने वाले नए हैं तो उनके संबंध में आरंभिक ज्ञान प्राप्त कर लेना अधिक उपयोगी है। इसके लिए साक्षियों में स्वभाव, मिलनसारता, रुचियां, पेशे फुर्सत के समय आदि का ठीक-ठीक पता कर लेना आमतौर से Interview के काम में बहुत सहायक होता है।

इसको जांच लेने से Interview लेने वाला सजग व सावधान रहता है व ऐसे हालात नहीं पैदा होने देता जिससे कि साक्षी नाराज़ हो जाए। इसके सिवा उससे उचित समय पर मिला जा सकता है। इस प्रकार के ज्ञान के अभाव में कभी-कभी Interview लेने वाला ऐसी भूल कर जाता है जिससे Interview समाप्त हो जाता है या ऐसी स्थिति का एक दम से सामना करना पड़ता है कि जिसके लिए वह बिल्कुल तैयार नहीं होता।

5. Interview के समय का पूर्व निर्धारण-आमतौर पर Interview के लिए पहले ही, समय व स्थान निश्चित कर लेना अधिक उपयोगी होता है। इससे एक तो साक्षी समझता है कि अनुसंधानकर्ता से उसके समय का महत्त्व पता है व उसके अहम को चोट नहीं लगती। इसके अलावा जब अनुसंधानकर्ता साक्षी के घर पहुंचता है तो वह एकदम अचानक नहीं पहंच जाता। साक्षी एक प्रकार से उसके इन्तज़ार में रहता है व उसके लिए उचित प्रबंध कर लेता है।

साथ ही साथ उसको संबंधित विषय पर सोचने का मौका मिल जाता है। एकदम पहुंचने से साक्षी कभी-कभी बिगड़ जाते हैं व Interview देने से मना कर सकता है या कम-से-कम दोबारा आने के लिए कह सकता है। इसके सिवा समय का पूर्व निर्धारण कर लेने से Interview लेने वाला सही समय पर पहुंचता है। एकदम ग़लत समय पर पहुंचने का भी कभी-कभी ग़लत प्रभाव पड़ता है व साक्षी हमेशा के लिए अनुसंधानकर्ता के संबंध में गलत धारणा बना लेता है जिसका प्रभाव Interview व सूचना पर भी पड़ता है।

यदि ऐसा न हो तो एक ही व्यक्ति के पास बार-बार जाने से बहुत समय बर्बाद होता है। एकदम बिना पूर्व सूचना के पहुंच जाने से यह भी हो सकता है कि साक्षी घर पर ही न हो या बहुत Busy होने पर Interview करने की मनोस्थिति में न हो। ऐसी दशा में वह अनुसंधानकर्ता को फिर आने के लिए कहेगा तो व्यर्थ ही इस प्रकार बहुत समय बर्बाद होगा। समय का पूर्व निर्धारण पत्र के द्वारा व टेलीफोन के द्वारा किया जा सकता है।

प्रश्न 15.
साक्षात्कार विधि की सीमाओं का वर्णन करो।
उत्तर:
साक्षात्कार विधि की सीमाएं-(Limitations of Interview Method):
(1) इस प्रकार के Interview के संचालन के लिए उच्च कोटि की चतुरता या बुद्धि ज़रूरी है। Interview लेने वाले का व्यक्तिगत पूरा शक्तिशाली होना चाहिए ताकि वह सफलतापूर्वक साक्षी से सच कहला सके। जो काम करने वाले इस काम के लिए नियुक्त किए जाते हैं उनमें शायद ही यह गुण पाया जाता है। इसका फल यह होता है कि पूरी अविश्वासी विषय से संबंधित व झूठी सामग्री एकत्र हो जाती है।

(2) इस विधि में बहुत कुछ व्यक्ति प्रधानता होती है। साक्षी जो कुछ कहता है वह बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि उसको सुनने वाला कौन है। इसलिए उसका वर्णन भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के साथ बदलता रहता है। इसके अलावा किसी घटना के लोग अपने-अपने दृष्टिकोण से समझते व वर्णन करते हैं। इसके लिए एक ही घटना के भिन्न वर्णन हो सकते हैं।

(3) इस विधि द्वारा प्राप्त सामग्री का सच सदा शक होता है। उसमें ग़लती के अनेक कारण हो सकते हैं। Invalidity को दूर रखने के जो प्रतिबंध प्रयोग किए गए हैं वह अभी तक पूरी तरह प्रभावशाली सिद्ध नहीं हुए हैं। अनुसूची द्वारा जो सूचना छोटे-छोटे प्रश्न उत्तरों के रूप में ली जाती है उसकी जगह वर्णात्मक कथन में ग़लती, झूठ आदि बातें कहने को अधिक उत्साह मिलता है। व्यक्ति की कल्पना को इससे ज्यादा बल प्राप्त होता है व अधिकतर अंश काल्पनिक ही होते हैं।

(4) इस विधि में Interview के लिए राजी करना भी एक समस्या है। अनुसूची में लिखित साधारण प्रश्न को उत्तर की संक्षेप में लोग भी दे देते हैं। पर खुल कर खुले दिल से अपने साथ बीती घटनाओं का सिलसिला व सही विवरण सुनाना बहुत कम लोग स्वीकार करते हैं। यह मुश्किल उस समय और भी बढ़ जाती है जब अनुसंधान का विषय साक्षी के व्यक्तिगत जीवन से संबंधित किसी भावात्मक घटना के बारे में होता है। जैसे प्रेम ववाह या तलाक संबंधी अनुसंधान।

(5) इस विधि में Interview लेने वाला पूरी तरह साक्षी की कृपा पर निर्भर रहता है। प्रत्यक्ष अवलोकन के अभाव में इस बात का निर्णय बहुत मुश्किल हो जाता है कि वर्णन में झूठ का अंश कितना है। साक्षी यदि ईमानदार है तो ही यह संभव है कि उसकी समझने की शक्ति (याददाशत) ठीक न हो, उसमें घटना की गहराई देखने से समझने की शक्ति न हो या घटना का ठीक-ठीक वर्णन न कर पाता हो।

(6) इस प्रकार के वर्णन भावनाओं की पूरी सीमा तक प्रभावित होते हैं। वह प्रमाणित नहीं होते व लोग मनमाने ढंग से वर्णन करते हैं। इसलिए सामग्री के वर्गीकरण व सारणी या सांख्यिकी विवेचन में मुश्किल होती है। आमतौर पर साक्षी व Interview लेने वाला ही अलग वातावरण व समाज दर्शन की कल्पना करते हैं व किसी विशेष सामाजिक घटना के संबंध में उनके विचार भिन्न हो सकते हैं यदि उनके विचार एक जैसे भी हो तो भी संभव हो सकता है कि जाने या अनजाने साक्षी अपने महत्त्वपूर्ण अनुभवों में कुछ को छोड़ देने पर इस तरह उसका वर्णन एक प्रकार से केवल एक तरफा, अपूर्ण व व्यर्थ का ही रह जाए।

प्रश्न 16.
साक्षात्कार विधि के गुणों का वर्णन करें।
उत्तर:
साक्षात्कार विधि के गुण
(Merits of Interview Method)
(1) Interview विधि अनुसंधान की सबसे लचीली विधि है। यदि साक्षात्कारों के प्रश्न समझ में न आएं तो उन्हें और शब्दों में पूछा जा सकता है, प्रश्नों को दोबारा पूछा जा सकता है व उनके महत्त्व को समझा जा सकता है। इसके अलावा Interview लेने वाले को भी इस बात का मौका मिलता है कि वह दिए गए उत्तरों की जांच कर ले।

वह साक्षी के भाव, बोलने के ढंग से ही पता लगा लेता है कि साक्षी सच कह रहा है झूठ। यदि साक्षी कुछ विरोधी बातें कहता है तो यह इनकी जांच कर सकता है। कहने का मतलब यह है कि Interview द्वारा वर्णन को शुदधि करने का मौका मिलता है व सूचना अधिक विश्वास योग्य होती है।

(2) सामाजिक अनुसंधान में उपयोग की जाने वाली विधियों की तुलना में Interview विधि अधिक उपयोगी है। जैसे प्रश्नावली में हम केवल उन्हीं व्यक्तियों को अपने अध्ययन में चुने गए Sample की इकाई के रूप में शामिल करते हैं जोकि आमतौर पर शिक्षाप्रद हो और प्रश्नावली में दिए गए प्रश्नों को स्पष्ट रूप में समझता हो तो ही वह संतोषजनक उत्तर देगा पर Interview विधि में सभी वर्गों व स्तर के लोगों का अध्ययन कर प्रभावित तथ्य इकट्ठे कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त यह विधि नीरस या बोर नहीं होती बल्कि Interview लेने वाले व देने वाले Interview के दौरान एक-दूसरे के लिए नियंत्रक व आपसी प्रेरणा के रूप में काम करते हैं।

(3) Interview विधि द्वारा हम उन घटनाओं का भी अध्ययन कर सकते हैं जो प्रत्यक्ष अवकोलन के अयोग्य हैं व जिनका पता साक्षी के अलावा किसी को नहीं है। अधिकतर सामाजिक घटनाएं विषय श्रेणी की होती हैं। इसलिए Interview ही सामाजिक अनुसंधान की सबसे बढ़िया विधि है।

(4) भावात्मक स्थितियों में जैसे, विचार, भावनाओं व प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करने के लिए यह बढ़िया विधि है। सभी तथ्य प्रत्यक्ष अवलोकन के लिए ठीक नहीं होते। किसी घटना से किसी व्यक्ति की मानसिक दशा पर क्या प्रभाव पड़ा इसको वही व्यक्ति जान सकता है, जो उसके संपर्क में रहा हो। इसलिए Interview द्वारा हम इसका पता आसानी से लगा सकते हैं। इस दृष्टिकोण से यह पद्धति सबसे गहरी मानी जा सकती है।

(5) Interview द्वारा हम किसी सामाजिक घटना का अध्ययन उसकी ऐतिहासिक भावनात्मक पृष्ठभूमि से कर सकते हैं। इसकी सहायता के बिना उनका असली महत्त्व जानना मुश्किल होता है। हमारी अधिकतर क्रियाएं भावनाओं द्वारा प्रभावित होती हैं और परिस्थितियों व भावनाओं को जाने बिना हमारा किसी घटना का अध्ययन अधूरा रहेगा। वर्णात्मक Interview में इस प्रकार हमें किसी घटना का सारा सच्चा स्वरूप पता लग सकता है।

(6) Interview द्वारा प्राप्त सूचना पर यदि उचित नियंत्रण का उपयोग किया जाए तो वह पूरी सीमा तक सही पाया जाता है। असल में जिन विशेष परिस्थितियों के लिए उसका उपयोग किया जाता है उसके लिए यह एकमात्र संभव विधि है।

प्रश्न 17.
ब्रोनिस्लाव मैलिनोवस्की द्वारा फील्डवर्क के आविष्कार पर चर्चा करें।
उत्तर:
मैलिनोवस्की को फील्डवर्क का आविष्कार माना जाता है। चाहे उससे पहले भी फील्डवर्क के अलग-अलग प्रकार प्रयोग में लाए जा चुके थे परंतु मैलिनोवस्की को इस बात का श्रेय दिया जाता है कि उसने फील्डवर्क को एक विधि के रूप में मानवशास्त्र में स्थापित किया। 1914 में जब यूरोप में पहला विश्व युद्ध शुरू हो गया था तो मैलिनोवस्की उस समय ऑस्ट्रेलिया में था। उस समय ऑस्ट्रेलिया ब्रिटिश साम्राज्य का एक हिस्सा था तथा मैलिनोवस्की पोलैंड का नागरिक था।

क्योंकि पोलैंड को जर्मनी ने जीत लिया था इसलिए पोलैंड को ब्रिटेन द्वारा दुश्मन देश घोषित कर दिया गया था। मैलिनोवस्की उसकी पोलिश नागरिकता के कारण दुश्मन समझा गया। मैलिनोवस्की लंडन ऑफ इकोनोमिक्स का एक प्रसिद्ध प्रोफैसर जिस वजह से उसके ब्रिटिश तथा ऑस्ट्रेलियाई अधिकारियों से अच्छे संबंध थे। परंतु क्योंकि तकनीकी रूप से वह शत्रु था इसलिए या तो उसे नज़रबंद करना चाहिए था या फिर किसी विशेष जगह तक ही उसे सीमित कर देना चाहिए था।

मैलिनोवस्की ऑस्ट्रेलिया में कई जगह घूमता रहा। अंत में वह अपनी मानवी शास्त्रीय खोज के लिए South Pacific के द्वीपों पर जाना चाहता था। इसलिए उसने उच्च अधिकारियों से इस बारे में बात की कि उसे Tribriand के द्वीपों पर जाने की इजाजत दी जाए जोकि ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा थे। सरकार ने न सिर्फ इस बात की इजाजत दी बल्कि उसको वहां जाने तथा कार्य करने के लिए पैसा भी दिया। उसने उन द्वीपों पर डेढ़ साल बिताया।

वह वहां के गांवों में टैंटों में रहा, वहां की भाषा सीखी तथा उनकी संस्कृति को जानने के लिए उनके साथ नज़दीकी से अंतर्किया की। उसके अपने निरीक्षण का एक विस्तृत तथा सावधानी भरा रिकार्ड रखा तथा उसमें एक रोज़ाना डायरी भी रखी। उसने बाद में Trobriand संस्कृति पर कुछ किताबें भी लिखी, जोकि उसकी रोजाना की डायरियों तथा फील्ड नोट पर आधारित थी। बाद में यह किताबें काफ़ी मशहूर हो गईं तथा आज भी उन्हें काफ़ी महत्त्वपूर्ण समझा जाता है।

Trobriand के अनुभव से पहले ही मैलिनोवस्की को एक पक्का विश्वास हो गया था कि मानवशास्त्र का भविष्य स्थानीय संस्कृति तथा मानवीशास्त्रीय के बीच सीधे संबंध में छुपा हुआ है। उसको पता चल गया था कि यह विषय उस समय तक तरक्की नहीं कर सकता जब तक कि मानवशास्त्रीय अपने आपको सीधे निरीक्षण से नहीं जोड़ लेता अध्ययन किए जाने वाले समह की भाषा को नहीं सीख लेता।

यह निरीक्षण इस दृष्टि से हो कि मानवशास्त्री उस समूह के बीच रहे, उनके जीवन का अवलोकन करे ताकि उसका उद्देश्य हल हो सके। उसको स्थानीय भाषा सीखनी चाहिए ताकि किसी मध्यस्थ की ज़रूरत न पड़े तथा वह उनके जीवन को सही दृष्टि से देख सके।

उसकी Trobriand की यात्रा तथा अध्ययन ने मानवशास्त्र में फील्डवर्क की ज़रूरत को बल दिया तथा इसके बाद मानवशास्त्र में फील्डवर्क होना शुरू हो गया। इस तरह फील्डवर्क की मदद से मानवशास्त्र को एक विज्ञान के रूप में स्थापित करने में बहुत सहायता मिली।

प्रश्न 18.
भारतीय समाजशास्त्र में फील्डवर्क की महत्ता के बारे में चर्चा करें।
उत्तर:
भारतीय समाजशास्त्र में गांवों के अध्ययन के लिए फील्डवर्क को एक विधि के रूप में प्रयोग किया गया। 1950 के दशक में समाजशास्त्रियों तथा मानवशास्त्रियों, देसी तथा विदेशी, दोनों ने ग्रामीण जीवन का अध्ययन करना शुरू किया। गांव ने कबाईली समुदाय के जैसा कार्य किया। गांव को भी एक बंधा हुआ समुदाय माना गया जोकि इतना छोटा होता है कि एक व्यक्ति द्वारा अकेले भी अध्ययन हो सकता है।

एक व्यक्ति ग्रामीण जीवन के प्रत्येक पक्ष का आसानी से अध्ययन कर सकता है। इसके साथ ही भारतीय पढ़े-लिखे वर्ग में यह महसूस किया गया कि मानवशास्त्र साम्राज्यवाद की नीतियों के अनुसार चलता है। इसलिए गांवों को अध्ययन करने के लिए समाजशास्त्र ही ठीक है।

भारत में ग्रामीण क्षेत्रों का अध्ययन महत्त्वपूर्ण था क्योंकि इससे अभी-अभी स्वतंत्र हुए भारत को काफ़ी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती थी। सरकार भी ग्रामीण भारत को विकसित करने की पक्षधर थी। देश का राष्ट्रीय आंदोलन तथा गांधी जी भी ग्रामीण क्षेत्रों को ऊपर उठाने के कार्यक्रम चलाने के पक्षधर थे। इसके साथ पढ़े-लिखे तथा शहरों में रहने वाले लोग भी ग्रामीण जीवन को ऊंचा उठाने के पक्षधर थे। क्योंकि उनके परिवार के कुछ सदस्य अभी भी गांवों में रहते थे तथा उनके गांवों से ऐतिहासिक Links थे।

इसके अलावा भारत की बहुत ज्यादा जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती थी। इन सभी कारणों के कारण गांवों का अध्ययन बहुत महत्त्वपूर्ण हो गया तथा भारतीय समाजशास्त्र का एक अभिन्न अंग बन गया। इन सब के साथ फील्डवर्क ग्रामीण जीवन को समझने के लिए एक अच्छी विधि थी। इसलिए फील्डवर्क की समाजशास्त्र में महत्ता काफ़ी बढ़ गई। वैसे फील्डवर्क की समाजशास्त्र में महत्ता निम्नलिखित भी है-
(1) फील्डवर्क से अनुसंधानकर्ता को अध्ययन किए जाने वाले समूह के काफ़ी नज़दीक जाने का अवसर प्राप्त होता है जिससे वह ज्यादा सूक्ष्म रूप से अध्ययन कर सकता है। किसी व्यक्ति के परिवार के जीवन का सबसे बढ़िया तथा सच्चा परिचय उसको होगा जो उसके साथ उसके घर में रहा हो।

(2) फील्डवर्क में निरीक्षणकर्ताओं को समूह के अलग-अलग व्यवहारों, आपसी संबंधों तथा रिवाजों को अच्छी तरह समझने की शक्ति प्राप्त होती है। कोई भी बाहर से रीति-रिवाजों, व्यवहार को नहीं समझ सकता। उसके लिए समूह के अंदर जाना पड़ता है तथा फील्डवर्क में यह मुश्किल है।

(3) फील्डवर्क स्वाभाविक हालात में संभव है। जब लोगों को पता चलता है कि कोई उनका निरीक्षण कर रहा है तो उनके व्यवहार में अस्वाभाविकता आ जाती है तथा बनावटीपन भी आ जाता है। इससे निरीक्षणकर्ता को सही सूचना प्राप्त नहीं होती। इसलिए सही सूचना प्राप्त करने के लिए फील्डवर्क बहुत ज़रूरी है।

(4) फील्डवर्क देखने वाले की नज़र को ज्यादा सूक्ष्म बना देता है ताकि वह जल्दी-से-जल्दी उचित नतीजों को ग्रहण कर सके। समूह में रहने के बाद निरीक्षणकर्ता समूह की क्रियाओं तथा व्यवहार से परिचित हो जाता है तथा छोटी-सी ग़लती भी उसका ध्यान खींच लेती है।

(5) फील्डवर्क ज्यादा सुविधाजनक होता है। इसमें व्यक्ति समूह में उसके सदस्य के रूप में जाता है न कि निरीक्षणकर्ता के रूप में चाहे उसका उद्देश्य दूसरा होता है। संबंधित व्यक्ति भी इसका विरोध नहीं करते। इस तरह फील्डवर्क निरीक्षणकर्ता को ज्यादा सुविधा देता है।

इस तरह हम कह सकते हैं कि समाजशास्त्र में फील्डवर्क की बहुत महत्ता है। किसी समूह या संस्था के बारे में विस्तृत जानकारी फील्डवर्क की मदद से ही संभव है।

परियोजना कार्य के लिए सुझाव HBSE 12th Class Sociology Notes

→ इस अध्याय में हमें कुछ छोटी-छोटी अनुसंधान परियोजनाओं के बारे में पता चलेगा जिन पर हम कार्य कर सकते हैं। वास्तव में अनुसंधान के बारे में पढ़ने तथा उसे वास्तव में करने में बहुत अंतर होता है तथा यह अध्याय हमें इसके बारे में ही बताता है।

→ प्रत्येक अनुसंधान प्रश्न पर कार्य करने के लिए एक उपयुक्त अनुसंधान पद्धति की आवश्यकता होती है तथा एक प्रश्न का उत्तर अक्सर एक से अधिक पद्धतियों से दिया जा सकता है। परंतु यह ज़रूरी नहीं है कि एक अनुसंधान पद्धति सभी प्रश्नों के लिए उपयुक्त हो। इसे बहुत ही सावधानीपूर्वक चुनना पड़ता है। अनुसंधान पद्धति के चुनाव के लिए व्यावहारिकता को ध्यान में रखना चाहिए। व्यावहारिकता में कई बातें शामिल होती हैं जैसे कि अनुसंधान के लिए उपलब्ध समय की मात्रा, लोगों एवं सामग्री दोनों के रूप में उपलब्ध संसाधन, वह हालात जिनमें शोध किया जाना है इत्यादि।

→ शोध में बहुत-सी पद्धतियां प्रयोग की जा सकती हैं। सबसे पहली पद्धति है सर्वेक्षण प्रणाली जिसमें सामान्यतः निर्धारित प्रश्नों को अपेक्षाकृत बड़ी संख्या में लोगों से पूछा जाता है। इसमें उत्तरदाता प्रश्न सुनकर उत्तर देता है तथा अन्वेषक उन उत्तरों को लिख लेता है। इसे प्रश्नावली विधि में भी प्रयोग किया जा सकता है।

→ शोध में साक्षात्कार प्रणाली को भी प्रयोग किया जाता है जिसमें उत्तरदाता से आमने-सामने बैठ कर प्रश्न पूछे जाते हैं तथा अन्वेषक उन उत्तरों को या तो रिकार्ड कर लेता है या लिख लेता है। साक्षात्कार लेते समय तक भी चल सकता है।

→ प्रेक्षण पद्धति में शोधकर्ता अपने शोधकार्य के लिए निर्धारित परिस्थिति या संदर्भ में क्या कुछ हो रहा है इस पर बारीकी से नज़र रखता है तथा उसका अभिलेख तैयार करता है। चाहे वह कार्य काफ़ी सरल दिखाई देता है परंतु यह होता नहीं है। परियोजना कार्य पर शोध करने के लिए एक से अधिक पदधतियों का सम्मिश्रण भी किया जा सकता है तथा इसके लिए अक्सर सिफ़ारिश भी की जा जाती है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव Read More »