Author name: Prasanna

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. ट्रिवार्था के वर्गीकरण में वर्षण पर आधारित जलवायु वर्ग का नाम लिखो-
(A) A वर्ग
(B) C वर्ग
(C) B वर्ग
(D) H वर्ग
उत्तर:
(C) B वर्ग

2. अमेजन बेसिन में कौन-सी जलवायु पाई जाती है?
(A) भूमध्यरेखीय
(B) सवाना
(C) ध्रुवीय
(D) मानसूनी
उत्तर:
(A) भूमध्यरेखीय

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3. विश्व की जलवायु के वर्गीकरण को कितने प्रकारों में बाँटा जा सकता है?
(A) 2
(B) 3
(C) 4
(D) 5
उत्तर:
(A) 2

4. वे काल्पनिक रेखाएँ जो समुद्रतल के अनुसार समानीत ताप वाले स्थानों को मिलाती हैं-
(A) समदाब रेखाएँ
(B) समताप रेखाएँ
(C) समान रेखाएँ
(D) सम समुद्रतल रेखाएँ
उत्तर:
(B) समताप रेखाएँ

5. वायुमंडल में उपस्थित ग्रीन हाऊस गैसों में सबसे अधिक सांद्रण किस गैस का है?
(A) CO2
(B) CFCs
(C) CHA
(D) NO
उत्तर:
(A) CO2

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6. उपोष्ण मरुस्थलीय जलवायु दोनों गोलार्डों में कितने अक्षांशों के बीच पाई जाती है?
(A) 5°- 20°
(B) 15°- 30°
(C) 15°- 35°
(D) 30°- 40°
उत्तर:
(B) 15°- 30°

7. भारत में किस प्रकार की जलवायु पाई जाती है?
(A) उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु
(B) उष्ण कटिबन्धीय मानसून जलवायु
(C) उपोष्ण कटिबन्धीय स्टैपीज
(D) भूमध्य सागरीय जलवायु
उत्तर:
(B) उष्ण कटिबन्धीय मानसून जलवायु

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
ट्रिवार्था ने विश्व की जलवायु को कितने प्रकारों में विभाजित किया है?
उत्तर:
16 प्रकारों में।

प्रश्न 2.
ट्रिवार्था के जलवायु वर्गीकरण का क्या आधार था?
उत्तर:
तापमान तथा वर्षण।

प्रश्न 3.
ट्रिवार्था ने विश्व की जलवायु को कितने मुख्य भागों में बाँटा?
उत्तर:
छह।

प्रश्न 4.
ट्रिवार्था के वर्गीकरण में वर्षण पर आधारित जलवायु वर्ग का नाम लिखो।
उत्तर:
B वर्ग।

प्रश्न 5.
अमेज़न बेसिन में कौन-सी जलवायु पाई जाती है?
उत्तर:
भूमध्य रेखीय जलवायु।

प्रश्न 6.
टैगा जलवायु में कौन-से वन मिलते हैं?
उत्तर:
शंकुधारी टैगा वन।

प्रश्न 7.
टैगा जलवायु में न्यूनतम तापमान कहाँ नापा गया है?
उत्तर:
वल्यान्सक (-50° सेल्सियस)।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जलवायु वर्गीकरण की पद्धतियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
जलवायु का वर्गीकरण तीन वृहद उपागमों द्वारा किया गया है जो निम्नलिखित हैं-

  1. आनुभविक
  2. जननिक और
  3. अनुप्रयुक्त।

प्रश्न 2.
यूनानियों ने संसार को कौन-कौन से ताप कटिबन्धों में विभाजित किया था?
उत्तर:

  1. उष्ण
  2. शीतोष्ण तथा
  3. शीतकटिबन्ध।

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प्रश्न 3.
विश्व की जलवायु का वर्गीकरण करने वाले तीन वैज्ञानिकों के नाम बताओ।
उत्तर:
कोपेन, थार्नथ्वेट तथा ट्रिवार्था।

प्रश्न 4.
विश्व के सभी जलवायु वर्गीकरणों को कितने प्रकारों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर:
दो प्रकारों में-

  1. आनुभविक वर्गीकरण
  2. जननिक वर्गीकरण।

प्रश्न 5.
कोपेन ने अपने वर्गीकरण के लिए जलवायु के किन तत्त्वों को आधार बनाया?
उत्तर:

  1. तापमान
  2. वर्षा तथा
  3. वर्षा के मौसमी स्वभाव को।

प्रश्न 6.
थानथ्वेट ने अपने वर्गीकरण के लिए जलवायु के किन तत्त्वों को आधार बनाया?
उत्तर:

  1. वर्षण प्रभाविता
  2. तापीय दक्षता
  3. वर्षा का मौसमी वितरण।

प्रश्न 7.
ट्रिवार्था ने सवाना जलवायु तथा भूमध्य सागरीय जलवायु के लिए किन संकेताक्षरों का उपयोग किया है?
उत्तर:
A, C, D, E, H तथा B क्रमशः Aw तथा Cs।

प्रश्न 8.
प्रमुख ग्रीन हाऊस गैसों के नाम बताइए।
उत्तर:
कार्बन-डाइऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरो कार्बन, ओज़ोन व जलवाष्प।

प्रश्न 9.
भूमण्डलीय तापन क्या होता है?
उत्तर:
पृथ्वी के तापमान का औसत से अधिक होना।

प्रश्न 10.
ट्रिवार्था के जलवायु वर्गीकरण में ताप पर आधारित पाँच वर्ग कौन-से हैं?
उत्तर:
A, C, D, E तथा H वर्ग।

प्रश्न 11.
Aw प्रकार की जलवायु कौन-सी होती है?
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय सवाना जलवायु।

प्रश्न 12.
Bwh प्रकार की जल न-सी होती है?
उत्तर:
उष्ण तथा उपोष्ण कटिबन्धीय गर्म मरुस्थल।

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प्रश्न 13.
किन्हीं दो उष्ण मरुस्थलों के नाम लिखो।
उत्तर:

  1. सहारा तथा
  2. थार।

प्रश्न 14.
ध्रुवीय जलवायु के कौन से दो प्रकार हैं?
उत्तर:

  1. टुण्ड्रा और
  2. ध्रुवीय हिमाच्छादित जलवायु।

प्रश्न 15.
उष्ण कटिबन्ध में पाई जाने वाली तीन प्रकार की जलवायु का नाम बताओ।
उत्तर:

  1. भूमध्य रेखीय
  2. सवाना
  3. मानसूनी।

प्रश्न 16.
भूमध्य सागरीय प्रदेश में सर्दियों में वर्षा होने का प्रमुख कारण क्या है?
उत्तर:
पवन पेटियों का खिसकना।

प्रश्न 17.
टैगा जलवायु कहाँ पाई जाती है?
उत्तर:
केवल 50° से 70° उत्तरी अक्षांशों में, दक्षिणी गोलार्द्ध में नहीं।

प्रश्न 18.
टैगा जलवायु में वार्षिक तापान्तर कितना होता है?
उत्तर:
65.5° सेल्सियस तथा इससे ज्यादा वार्षिक तापान्तर कहीं नहीं मिलता।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
ग्रीनहाऊस गैसों से आपका क्या अभिप्राय है? ग्रीनहाऊस प्रभाव बढ़ाने वाले प्रमुख तत्त्वों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
ग्रीनहाऊस गैसें ऐसी गैसें जो धरती पर एक आवरण बनाकर कम्बल की भाँति काम करती हैं और धरती की ऊष्मा को बाहर जाने से रोकती हैं, ग्रीनहाऊस गैसें कहलाती हैं। ये पृथ्वी के तापमान को बढ़ाने में सहायक हैं। कार्बन-डाइ-ऑक्साइड के अतिरिक्त भूमण्डलीय तापन की प्रक्रिया को तेज करने वाले कुछ अन्य तत्त्व निम्नलिखित हैं
1. जलवाष्प तापमान बढ़ने से जल की वाष्पन दर बढ़ जाती है। ज्यादा जलवाष्प तापमान को और ज्यादा बढ़ाते हैं क्योंकि जलवाष्प एक प्राकृतिक ग्रीन हाऊस गैस है।

2. नाइट्रस ऑक्साइड-कृषि में नाइट्रोजन उर्वरकों के प्रयोग, पेड़-पौधों को जलाने, नाइट्रोजन वाले ईंधन को जलाने आदि के कारण वायुमण्डल में नाइट्रस ऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है। इसका प्रत्येक अणु कार्बन डाइ-ऑक्साइड की तुलना में 250 गुना अधिक ताप प्रगृहित करता है।

3. मीथेन गैस-मीथेन गैस सागरों, ताजे जल, खनन कार्य, गैस ड्रिलिंग तथा जैविक पदार्थों के सड़ने से उत्पन्न होती है। पशु व दीमक आदि को भी मीथेन गैस छोड़ने का जिम्मेदार माना गया है।

4. क्लोरो-फ्लोरो कार्बन-ये संश्लेषित यौगिकों का समूह है जो वातानुकूलन व प्रशीतन की मशीनों, आग बुझाने के उपकरणों तथा छिड़काव यन्त्रों में प्रणोदक के रूप में प्रयुक्त होते हैं।

प्रश्न 2.
जलवायु परिवर्तन के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जलवायु परिवर्तन के कारणों को दो वर्गों में बाँटा गया है-

  • खगोलीय कारण
  • पार्थिव कारण।

(1) खगोलीय कारणों में सौर कलंक जलवायु परिवर्तन का एक प्रमुख कारण है। सौर कलंक सूर्य पर काले धब्बे होते हैं जो एक चक्रीय ढंग से घटते-बढ़ते रहते हैं। मौसम वैज्ञानिक के अनुसार सौर कलंकों की संख्या बढ़ने पर मौसम ठण्डा और आर्द्र हो जाता है और तूफानों की संख्या बढ़ जाती है।

(2) पार्थिव कारणों में ज्वालामुखी क्रिया जलवायु परिवर्तन का एक अन्य प्रमुख कारण है। ज्वालामुखी उभेदन के दौरान वायुमण्डल में बड़ी मात्रा में ऐरोसोल छोड़ दिए जाते हैं। ये ऐरोसोल वायुमण्डल में लम्बे समय तक रहते हैं और पृथ्वी की सतह पर पहुंचने वाले सौर विकिरण को कम करते हैं, जिससे पृथ्वी का औसत तापमान कुछ हद तक कम हो जाता है।

इसके अतिरिक्त ग्रीनहाऊस गैसों का सान्द्रण जलवाय को सबसे अधिक प्रभावित करता है। इससे पथ्वी का ता

प्रश्न 3.
भूमण्डलीय तापन में मनुष्य की भूमिका पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
वर्तमान युग में बढ़ता भूमण्डलीय तापन संसाधनों के अनियोजित उपयोग और हमारी भोगवादी जीवन शैली की देन है। चूल्हे से धमन भट्टी तक तथा जुगाड़ से रॉकेट तक हुआ तकनीकी विकास, बढ़ता औद्योगीकरण, नगरीकरण, परिवहन तथा कृषि के क्षेत्र में आए क्रान्तिकारी बदलावों, भूमि की जुताई तथा वनों के विनाश जैसी मनुष्य की गतिविधियों ने वायुमण्डल में ग्रीन हाऊस गैसों की मात्रा जरूरत से ज्यादा बढ़ा दी है। ये गैसें वायुमण्डल में एक कम्बल या काँच घर (Glass House) का कार्य करती हैं, जिसमें गर्मी आ तो जाती है पर आसानी से जाने नहीं पाती।

प्रश्न 4.
भूमण्डलीय तापन के दुष्परिणामों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूमण्डलीय तापन के प्रमुख दुष्परिणाम निम्नलिखित हैं-

  1. विश्व में औसत तापमान बढ़ने से हिमाच्छादित क्षेत्रों में हिमानियाँ पिघलेंगी।
  2. समुद्र का जल-स्तर ऊँचा उठेगा जिससे तटवर्ती प्रदेश व द्वीप जलमग्न हो जाएँगे। करोड़ों लोग शरणार्थी बन जाएँगे।
  3. वाष्पीकरण की प्रक्रिया तेज़ होगी। पृथ्वी का समस्त पारिस्थितिक तन्त्र प्रभावित होगा। शीतोष्ण कटिबन्धों में वर्षा बढ़ेगी और समुद्र से दूर उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में वर्षा की मात्रा घटेगी।।
  4. आज के ध्रुवीय क्षेत्र पहले की तुलना में अधिक गर्म हो जाएँगे।
  5. जलवायु के दो तत्त्वों तापमान और वर्षा में जब परिवर्तन होगा तो निश्चित रूप से धरातल की वनस्पति का प्रारूप (Patterm) बदलेगा।
  6. हरित गृह प्रभाव के कारण कृषि क्षेत्रों, फसल प्रारूप तथा कृषि प्राकारिकी (Topology) में परिवर्तन होना निश्चित है।

प्रश्न 5.
भूमण्डलीय जलवायविक परिवर्तन से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वायुमण्डलीय दशाएँ केवल एक स्थान से दूसरे स्थान पर ही नहीं बदलती वरन् ये समय के साथ-साथ भी बदल जाती हैं। अतः जलवायु परिवर्तन से आशय 30-35 वर्षों में या हजारों वर्षों में मिलने वाली जलवायवी भिन्नताओं के अध्ययन से नहीं है। वरन् इसमें लाखों वर्षों से चले आ रहे समय मापकों में होने वाली जलवायु की भिन्नताओं का अध्ययन शामिल किया जाता है।

प्रश्न 6.
जलवायु परिवर्तन के पार्थिव कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जलवायु परिवर्तन के पार्थिव कारक निम्नलिखित हैं-
1. महाद्वीपीय विस्थापन-भू-गर्भिक काल में महाद्वीपों के विखण्डन व विभिन्न दिशाओं में संचलन के कारण विभिन्न भू-खण्डों में जलवायु परिवर्तन हुए हैं। ध्रुवीय क्षेत्रों के समीप स्थित भू-भागों का भू-मध्य रेखा के निकट आने पर जलवायु परिवर्तन होना एक सामान्य प्रक्रिया है। दक्षिणी भारत में हिमनदों के चिह्नों तथा अंटार्कटिका में कोयले का मिलना इस जलवायु परिवर्तन के प्रमुख प्रमाण हैं।

2. पर्वत निर्माण प्रक्रिया यह जलवायु को दो प्रकार से प्रभावित करती है-(a) पर्वतों के उत्थान तथा घिसकर उनके नीचे हो जाने से स्थलाकृतियों की व्यवस्था भंग हो जाती है। इसका प्रभाव पवन प्रवाह, सूर्यातप तथा मौसमी तत्त्वों; जैसे तापमान एवं वर्षा के वितरण पर पड़ता है। (b) पर्वत निर्माण की प्रक्रिया से ज्वालामुखी उद्गार की सम्भावनाएँ प्रबल हो जाती हैं। ज्वालामुखी उद्गार से भारी मात्रा में वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार की गैसें और जलवाष्प निष्कासित होते हैं। इससे वायुमण्डल की पारदर्शिता (Transparency) प्रभावित होती है, जिसका सीधा प्रभाव प्रवेशी सौर्य विकिरण तथा पार्थिव विकिरण पर पड़ता है। ये सभी प्रक्रियाएँ पृथ्वी के ऊष्मा सन्तुलन (Heat Balance) को भंग कर जलवायु परिवर्तन की भूमिका तैयार करती हैं।

3. मनुष्य के क्रिया-कलाप मनुष्य अपनी विकासात्मक गतिविधियों से हरित-गृह गैसों (कार्बन-डाइ-ऑक्साइड, ओजोन, जलवाष्प) की मात्रा वायुमण्डल में बढ़ाता रहता है। वायुमण्डल में इन अवयवों के प्राकृतिक संकेन्द्रण में भिन्नता आने से भूमण्डलीय ऊष्मा सन्तुलन प्रभावित होता है। इससे वायुमण्डल की सामान्य प्रणाली, जिस पर जलवायु भी निर्भर करती है, प्रभावित होती है।

प्रश्न 7.
जलवायु परिवर्तन के खगोलीय कारकों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जलवायु परिवर्तन से जुड़े खगोलीय कारक तीन तथ्यों पर आधारित हैं-
1. पृथ्वी की कक्षा की उत्केन्द्रीयता (Ecentricity) में परिवर्तन-पृथ्वी की उत्केन्द्रीयता में लगभग 92 हजार वर्षों में परिवर्तन आ जाता है अर्थात् सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के परिक्रमण पथ की आकृति कभी अण्डाकार तो कभी गोलाकार हो जाती है। उदाहरणतः वर्तमान में पृथ्वी की सूर्य के निकटतम रहने की स्थिति–उपसौर (Perihelion) जनवरी में आती है। यह उपसौर स्थिति 50 हजार वर्ष बाद जुलाई में आने लगेगी। इसका परिणाम यह होगा कि आगामी 50 हजार वर्षों में उत्तरी गोलार्द्ध में ग्रीष्मकाल अधिक गर्म व शीतकाल अधिक ठण्डा हो जाएगा।

2. पृथ्वी की काल्पनिक धुरी के कोण में परिवर्तन सूर्य की परिक्रमा करते समय पृथ्वी की धुरी (Axes) अपने कक्षा-पथ के साथ एक कोण बनाती है। वर्तमान युग में यह कोण 239° का है, लेकिन प्रत्येक 41-42 हजार वर्षों के बाद पृथ्वी की धुरी के कोण में 1.5° का अन्तर आ जाता है। कभी यह झुकाव 22° तो कभी 241/2° हो जाता है। पृथ्वी के झुकाव में परिवर्तन से मौसमी दशाओं व तापमान में तो अन्तर होंगे ही साथ ही भौगोलिक पेटियों की भिन्नताएँ कम या विलुप्त हो जाएँगी।

3. विषुव का पुरस्सरण (Precession)-वर्तमान में चार मौसमी दिवसों की स्थितियाँ इस प्रकार हैं-21 मार्च-बसन्त विषव, 23 सितम्बर-शरद विषुव, 21 जून-कर्क संक्रांति तथा 22 दिसम्बर मकर संक्रांति। प्रत्येक 22 हजार वर्षों में इन स्थितियों में परिवर्तन आता है जिसका सीधा प्रभाव जलवायु पर पड़ता है।

प्रश्न 8.
जलवायु परिवर्तन के प्रमुख प्रमाणों का संक्षिप्त ब्योरा दीजिए।
उत्तर:
जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी प्रमाणों को भी निम्नलिखित दो वर्गों में रखा जा सकता है-
1. भू-वैज्ञानिक अतीत काल में हुए जलवायु परिवर्तन के प्रमाण

  • अवसादी चट्टानों में प्राणियों और वनस्पति के जीवाश्म
  • गहरे महासागरों के अवसादों से प्राप्त प्राणियों और वनस्पति के जीवाश्म
  • वृक्षों के वलय
  • झीलों के अवसाद
  • चट्टानों की प्रकृति
  • हिमनदियों के आकार में परिवर्तन
  • समुद्रों तथा झीलों के जल-स्तर में परिवर्तन
  • भू-आकारों के प्रमाण।

2. ऐतिहासिक काल में हुए जलवायु परिवर्तन के प्रमाण-

  • अभिलेखों में जलवायु परिवर्तन के उल्लेख
  • पुराने पुस्तकालयों में मौसम सम्बन्धी जानकारी
  • फसलों के बोने तथा काटने के मौसम
  • सूखे व बाढ़ से जुड़ी लोक कथाएँ
  • पत्तनों के जल का जम जाना
  • सूखी झीलें, नदियाँ व नहरे
  • पुरानी बस्तियों के खण्डहर
  • लोगों का बड़े पैमाने पर प्रवास
  • लुप्त वन तथा अतीत में वनस्पति का वितरण।

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प्रश्न 9.
मनुष्य और जलवायु में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
प्राचीनकाल से ही मनुष्य और वातावरण का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है। मानव का रहन-सहन, उसके अधिवास, आर्थिक क्रिया-कलाप आदि पर जलवायु का विशेष प्रभाव पड़ता है। यह प्रत्यक्ष तथा परोक्ष रूप से मानव के प्रत्येक क्रिया-कलाप को प्रभावित करता है। विश्व के कई क्षेत्रों में मनुष्य की लापरवाही से वनों की कटाई के कारण मृदा अपरदन होता है जिससे अधिकतर अकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। कुछ शताब्दियों से कोयले और तेल की खपत बढ़ जाने से वायुमण्डल में कार्बन-डाइऑक्साइड में वृद्धि हो गई है जिससे वायुमण्डल का तापमान भी अधिक हो गया है।

प्रश्न 10.
विश्व के मुख्य ताप कटिबन्धों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संसार की जलवायु के वर्गीकरण का संभवतः सबसे पहला प्रयास प्राचीन यूनानियों ने किया था। उन्होंने ताप को आधार मानते हुए संसार को तीन ताप अथवा जलवायु कटिबन्धों में बाँटा था

  • उष्ण कटिबन्ध-यह भूमध्य रेखा के दोनों और 23 1/2° उत्तर तथा 23 1/2° दक्षिण अक्षांशों के मध्य स्थित है। यहाँ सारा वर्ष ऊँचा तापमान रहता है।
  • शीतोष्ण कटिबन्ध-यह कटिबन्ध दोनों गोलार्डों में 23 1/2° उत्तर से 66 1/2° उत्तर तथा 23 1/2° दक्षिण से 66 1/2° दक्षिण अक्षांशों के मध्य स्थित है।
  • शीत कटिबन्ध यह कटिबन्ध उत्तर तथा दक्षिण में 66 1/2° से ध्रुवों तक फैला हुआ है। ध्रुवीय क्षेत्रों में तापमान वर्ष भर कम रहता है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जलवायु का मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है? विस्तारपूर्वक उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्राकतिक पर्यावरण की रचना वायमण्डल, जलमण्डल, स्थलमण्डल और जैवमण्डल से मिलकर होती है। जलवाय इस प्राकृतिक पर्यावरण का एक महत्त्वपूर्ण घटक (Constituent) होता है। जलवायु का प्रभाव मानव की समस्त क्रियाओं पर देखा जा सकता है।
1. मृदा-निर्माण-मूल चट्टान को मृदा में बदलने में जलवायु अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मिट्टी का रंग, संरचना, बनावट, उपजाऊपन, कटाव और निक्षालन (Leaching) इत्यादि गुण जलवायु पर निर्भर करते हैं। मृदा ही अन्य कारकों के साथ कृषि की उत्पादकता का स्तर निर्धारित करती है।

2. वनस्पति और प्राणी-वनस्पतियों और प्राणियों का धरातल पर वितरण जलवायु ही करती है। इसी कारण वनस्पति को जलवायु का दर्पण (Mirror of Climate) कहा जाता है। मनुष्य के जीवन की बहुत सारी आवश्यकताएँ वनों और प्राणियों से पूरी होती हैं।

3. कृषि-कृषि, जो मानव और पशुओं के भोजन का आधार तथा अनेक उद्योगों के लिए कच्चे माल का स्रोत है। केवल अनुकूल जलवायुवी दशाओं में ही की जा सकती है।

4. जनसंख्या का वितरण-प्रतिकूल जलवायु वाले प्रदेशों में जनसंख्या विरल होती है, जबकि अनुकूल जलवायु वाले क्षेत्रों में जनसंख्या का सर्वाधिक सान्द्रण पाया जाता है।

5. आर्थिक उन्नति-जलवायु अपनी विशेषताओं के आधार पर मानव के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, जिसका अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक-आर्थिक उन्नति पर प्रभाव पड़ता है। यूरोप व उत्तरी अमेरिका की शीत व शीतोष्ण जलवायु में व्यक्ति फुर्तीला रहता है, जबकि भूमध्यरेखीय उष्ण व आर्द्र जलवायु में आदमी आलस्यपूर्ण हो जाता है।

6. शारीरिक बनावट-जलवायु के प्रकार शरीर की बनावट व चमड़ी के रंग को प्रभावित करते हैं। मध्य अफ्रीका में रहने वाली जन-जातियों का रंग काला और यूरोप में रहने वाली जन-जातियों का रंग गोरा जलवायु का ही परिणाम है।

7. सभ्यताओं का उदय-निर्बाध जलापूर्ति, उपजाऊ मिट्टी के साथ-साथ अनकल जलवायु ने विश्व में अनेक प्राचीन सभ्यताओं के उदय में भूमिका निभाई है। सामाजिक, सांस्कृतिक व वैज्ञानिक उन्नति में सुखद जलवायु का अत्यन्त महत्त्व होता है।

इनके अतिरिक्त सिंचाई, वन प्रबन्धन, भूमि उपयोग, परिवहन, भवन निर्माण तथा अनेकानेक आर्थिक कार्यक्रम प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जलवायु द्वारा प्रभावित होते हैं।

प्रश्न 2.
कोपेन द्वारा प्रस्तुत जलवायु वर्गीकरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रसिद्ध जलवायुवेत्ता डॉ० व्लाडिमीर कोपेन का जलवायु वर्गीकरण अत्यधिक प्रचलित है। उन्होंने 1918 ई० में संसार की जलवायु का वर्गीकरण मूल रूप में प्रस्तुत किया जिसको बाद में उन्होंने संशोधित कर 1936 ई० में उसे अन्तिम रूप दिया। उनका उद्देश्य वर्गीकरण की एक ऐसी विधि विकसित करना था जो जलवायु तत्त्वों का संख्यात्मक आधार पर प्रदेशों का सीमांकन कर सके। उन्होंने तापमान, वर्षा और उनकी मौसमी विशेषताओं को महत्त्वपूर्ण स्थान देकर प्रदेशों का सीमांकन किया। उन्होंने अपना वर्गीकरण प्राकृतिक वनस्पति के वितरण को मद्देनज़र रखते हुए किया। उनका कहना था कि प्राकृतिक वनस्पति वर्षा की मात्रा तथा तापमान से प्रभावित होती है। जैसा कि उन्होंने कहा है, “Natural Vegetation is considered to be the best expression of the totality of the climate.”

कोपेन के वर्गीकरण को निम्नलिखित पाँ वर्गों में बाँटा गया है जिन्हें उन्होंने अंग्रेजी के बड़े अक्षरों के रूप में व्यक्त किया है-

कोपेन का वर्गीकरण
A – आर्द्र उष्ण कटिबन्धीय जलवायु1. उष्ण कटिबन्धीय प्रचुर वर्षा वाले क्षेत्र
2. सवाना जलवायु (Af)
3. मानसूनी जलवायु (Aw)
B – शुष्क जलवायु1. मरुस्थलीय जलवायु (BW)
2. स्टेपी जलवायु (BS)
C – आर्द्र शीतोष्ण कटिबन्धीय जलवायु1. भूमध्य सागरीय जलवायु (Cf)
2. चीनी प्रकार की जलवायु (Cs)
3. पश्चिमी यूरोपीय जलवायु (CW)
D – आर्द्र शीतोष्ण जलवायु1. टैगा जलवायु (Df)
2. शीत पूर्वी जलवायु (Dw)
3. महाद्वीपीय जलवायु (Dfb)
E – ध्रुवीय जलवायु
H – उच्च पर्वतीय जलवायु
1. टुण्ड्रा जलवायु (ET)
2. हिमाच्छादित प्रदेश जलवायु (Ef)
हिमाच्छादित उच्च भूमियाँ (H)

A – आर्द्र उष्ण कटिबन्धीय जलवायु।
B – शुष्क जलवायु।
C – आर्द्र शीतोष्ण कटिबन्धीय जलवायु [मृदु शीतकाल]।
D – आर्द्र शीतोष्ण जलवायु [कठोर शीतकाल]।
E – ध्रुवीय जलवायु।
इन अक्षरों के अतिरिक्त कुछ अन्य अक्षरों का भी प्रयोग किया गया है जोकि वर्षा की अवधि को प्रदर्शित करते हैं।
f- वर्ष भर वर्षा
s – ग्रीष्मकाल शुष्क
S – अर्द्ध-शुष्क या स्टेपी जलवायु।
W – शुष्क ऋतु।
आधुनिक समय में भी कोपेन का जलवायु वर्गीकरण सर्वमान्य है। जलवायु के मुख्य वर्ग अंग्रेजी के बड़े अक्षरों द्वारा तथा उप-वर्ग छोटे अक्षरों द्वारा दर्शाए गए हैं। यह एक सरल, महत्त्वपूर्ण तथा लाभदायक विधि है। वायुमण्डल परिसंचरण के अनुसार भी यह विधि उचित तथा सही है, परन्तु इस वर्गीकरण में भी कुछ निम्नलिखित त्रुटियाँ हैं जिससे विपक्षीय विचार प्रकट होते हैं

  • यह वर्गीकरण केवल वर्षा की प्रभावशीलता पर आधारित है।
  • इसमें समुद्री धाराओं, पवनों आदि जलवायु तत्वों के प्रभाव को ध्यान में नहीं रखा गया।
  • कोपेन ने जलवायु वर्गीकरण में कृषि जैसे महत्त्वपूर्ण कारक की अवहेलना की है।

प्रश्न 3.
ग्रीन हाऊस प्रभाव क्या होता है? विस्तारपूर्वक उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
“भू-तल के परावर्तित विकिरण द्वारा वायुमण्डल का अप्रत्यक्ष रूप से गर्म होना ग्रीन हाऊस प्रभाव कहलाता है।” अत्यधिक ठण्डे देशों में उष्ण कटिबन्धीय पौधों को सुरक्षित रखने अथवा फल या सब्जियाँ उगाने के लिए काँच या पारदर्शी प्लास्टिक की दीवारों वाले घर बनाए जाते हैं। काँच ऊष्मा का अवशोषण तो करता है, लेकिन तापमान को बाहर नहीं जाने देता, जिसमें ठण्डे देशों में भी उच्च ताप प्राप्त कर पौधे जीवित रहते हैं, हरे रहते हैं, इसलिए उन्हें हरित-गृह कहते हैं। हम सभी जानते हैं कि सूर्य से पृथ्वी पर आने वाली विकिरण ऊर्जा, जिसे हम सूर्यातप (Insolation) कहते हैं, लघु तरंगों (Short-waves) के रूप में होती है। इस प्रवेशी सौर विकिरण से पृथ्वी गर्म होती है, वायुमण्डल तो इस ऊर्जा का केवल 20 प्रतिशत भाग ही अवशोषित कर पाता है।

सरल शब्दों में, सूर्य की किरणों से वायुमण्डल सीधे गर्म नहीं होता, बल्कि पहले पृथ्वी गर्म होती है। जब पृथ्वी को प्राप्त यह ऊष्मा दीर्घ तरंगों (Long waves) के रूप में वापस लौटने लगती है तो वायुमण्डल में उपस्थित कुछ गैसें इसे अवशोषित कर लेती हैं और पृथ्वी का तापमान 15° सेल्सियस तक बनाए रखती हैं। इस प्रकार वायुमण्डल को गर्म करने का मुख्य स्रोत पार्थिव विकिरण (Terrestrial Radiation) है।

वायुमण्डल की इसी गर्मी के कारण धरती पर जीव-जन्तु, पेड़-पौधे इत्यादि जीवित रह सकते हैं। पृथ्वी पर वनस्पतियों तथा प्राणियों के जीने योग्य तापक्रम बनाए रखने की इस प्राकृतिक व्यवस्था को ही ग्रीन हाऊस प्रभाव कहा जाता है। वे सभी गैसें जो इस प्रक्रिया में सहायक होती हैं, ‘ग्रीन हाऊस गैसें’ कहलाती हैं। इनमें प्रमुख स्थान कार्बन-डाइऑक्साइड का है। अन्य प्रमुख गैसें मीथेन व सी०एफ०सी० गैसें तथा जलवाष्प हैं।

प्रश्न 4.
भू-वैज्ञानिक अतीतकाल तथा ऐतिहासिक काल में होने वाले भूमण्डलीय जलवायविक परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अभिप्राय (Meaning)-वायुमण्डल स्थिर न रहकर सदा गतिशील रहता है। वायुमण्डल की यह गत्यात्मकता इसके निचले स्तरों में बहुत ज्यादा जटिल है। वायमुण्डलीय विशेषताएँ केवल एक स्थान से दूसरे स्थान पर ही नहीं बदलती वरन् ये समय के साथ-साथ भी बदल जाती हैं। पृथ्वी का भू-गर्भिक इतिहास इस बात का साक्षी है कि अतीत में हर युग की अपनी विशिष्ट जलवायुवी दशाएँ रही हैं। स्पष्ट है कि यहाँ जलवायु परिवर्तन से आशय 30-35 वर्षों में या हजारों वर्षों में मिलने वाली जलवायुवी भिन्नताओं के अध्ययन से नहीं है वरन् इसमें लाखों वर्षों से चले आ रहे समय मापकों में होने वाली जलवायु की भिन्नताओं का अध्ययन शामिल किया जाता है।

ध्यान देने योग्य बात यह है कि जब से वायुमण्डल बना है तब से जलवायु में परिवर्तन हो रहे हैं, लेकिन ये परिवर्तन स्थायी कभी नहीं रहे। एक परिवर्तन दूसरे परिवर्तन के लिए जगह बनाता आया है।

विश्व में जलवायुवी परिवर्तनों की पड़ताल दो खण्डों में की जा सकती है-

  • भू-वैज्ञानिक अतीत काल (Geological Past Period)
  • ऐतिहासिक काल (Historical Period)।

(A) भू-वैज्ञानिक अतीत काल (Geological Past Period)-
1. अनुमान है कि आज से 425 करोड़ साल पूर्व वायुमण्डल का तापमान 37° सेल्सियस रहा होगा। लगभग 250 करोड़ साल पहले ये तापमान घटकर 25° सेल्सियस हो गया। तापमान घटने का यह सिलसिला जारी रहा और 250 करोड़ से 180 करोड़ वर्ष पहले की अवधि के दौरान हिमयुग आया। हिमयुग के आने का संकेत हमें उस समय की हिमनदियों से बनी स्थलाकृतियों से मिलता है।

2. इसके बाद आने वाले 95 करोड़ वर्षों तक जलवायु उष्ण रही और हिमनदियाँ लुप्त हो गईं।

3. वैज्ञानिक अध्ययन प्रमाणित करते हैं कि कैम्ब्रियन युग (लगभग 60 करोड़ वर्ष पूर्व) से पहले भू-पटल से अधिकांश भागों पर हिम की चादर बिछी हुई थी, जिस कारण भू-पटल पर शीत जलवायु का प्रभुत्व था।

4. ओरडोविशियन कल्प (50 करोड़ वर्ष पहले) तथा सिल्युरियन कल्प (44 करोड़ वर्ष पहले) में जलवायु गर्म रही। यह जलवायु हमारी वर्तमान जलवायु जैसी थी।

5. इसी प्रकार जुरैसिक कल्प (18 करोड़ वर्ष पहले) में पृथ्वी की जलवायु वर्तमान समय की जलवायु की तुलना में अधिक गर्म थी।

6. इयोसीन युग (6 करोड़ वर्ष पहले) शीतोष्ण वनस्पति ध्रुवीय भागों के अधिक निकट थी। इसी प्रकार 60° अक्षांश रेखा पर प्रवालों के अवशेष प्रदर्शित करते हैं कि इयोसीन काल में इन अक्षांशीय क्षेत्रों के महासागरीय जल का तापमान वर्तमान तापमान से 10°F अधिक था।

7. प्लीस्टोसीन अर्थात् अत्यन्त नूतन युग (30 लाख साल पहले) में हिमनदियों का विस्तार हुआ। वर्तमान युग की हिम की टोपियाँ इस समय के हिम के अवशेष हैं।

8. विगत 20 लाख वर्षों में कई ठण्डी और गर्म जलवायु आईं और गईं।

9. उत्तरी गोलार्द्ध में अन्तिम हिमनदन का अन्तिम दौर आज से 18,000 वर्ष पहले अपनी चरम सीमा पर था। उस समय समुद्र तल आज की तुलना में 85 मीटर नीचे था।

(B) ऐतिहासिक काल (Historical Period)
1. अब से 16,000 वर्ष पूर्व हिम ने पिघलना शुरू किया। तापमान ऊँचा और वर्षा पर्याप्त होने लगी। 7,000 से 10,000 साल पहले जलवायु आज की तुलना में गर्म थी। आज जहाँ टुण्ड्रा प्रदेश है, वहाँ उस समय वन उगे हुए थे।

2.  सन् 1450 से 1850 के बीच की अवधि को लघु हिमयुग (Little Ice Age) कहा जाता है। इस युग में आल्पस पर्वतों पर हिमनदियों का विस्तार हुआ।

3. औद्योगिक क्रान्ति (सन 1780) के बाद मानव की बढती गतिविधियों के कारण ग्रीन हाऊस गैसों के सान्द्रण से वायुमण्डल का तापमान बढ़ने लगा है।

एल्सवर्थ हंटिंगटन (E. Huntington) ने अपनी पुस्तक सभ्यता एवं जलवायु (Civilization and Climate) में ऐतिहासिक काल में हुए भूमण्डलीय जलवायु परिवर्तन के तीन सन्दर्भ दिए हैं-

  • उन मरुस्थलीय भागों में जहाँ आज काफिले (Caravans) भी नहीं जा सकते, पुराने नगरों के अवशेष देखने को मिलते हैं।
  • अफ्रीका तथा अमेरिका के ऐसे भागों में नगरों के खण्डहर देखने को मिलते हैं, जहाँ इस समय पीने का पानी भी उपलब्ध नहीं हैं।
  • आज कई ऐसे क्षेत्रों में कृषि, सिंचाई तथा नहरों के चिह्न देखने को मिलते हैं, जहाँ जल का अभाव है और वर्तमान में अति न्यून वर्षा होती है।

प्रश्न 5.
पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जलवायु परिवर्तन के कारकों को निम्नलिखित तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

  • पार्थिव कारक (Terrestrial Factors)
  • खगोलीय कारक (Astronomical Factors)
  • पार्थिवेत्तर कारक (Extra Terrestrial Factors)।

(A) पार्थिव कारक (Terrestrial Factors)
1. महाद्वीपीय विस्थापन भू-गर्भिक काल में महाद्वीपों के विखण्डन व विभिन्न दिशाओं में संचलन के कारण विभिन्न भू-खण्डों में जलवायु परिवर्तन हुए हैं। ध्रुवीय क्षेत्रों के समीप भू-भागों का भूमध्य रेखा के निकट आने पर जलवायु परिवर्तन होना एक सामान्य प्रक्रिया है। दक्षिणी भारत में हिमनदों के चिह्नों तथा अंटार्कटिका में कोयले का मिलना इस जलवायु परिवर्तन के प्रमुख प्रमाण हैं।

2. पर्वत निर्माण प्रक्रिया-यह जलवायु को दो प्रकार से प्रभावित करती हैं-
(a) पर्वतों के उत्थान तथा घिसकर उनके नीचे हो जाने से स्थलाकृतियों की व्यवस्था भंग हो जाती है। इसका प्रभाव पवन प्रवाह, सूर्यातप तथा मौसमी तत्त्वों; जैसे तापमान एवं वर्षा के वितरण पर पड़ता है।

(b) पर्वत निर्माण की प्रक्रिया से ज्वालामुखी उद्गार की सम्भावनाएँ प्रबल हो जाती हैं। ज्वालामुखी उद्गार से भारी मात्रा में वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार की गैसें और जलवाष्प निष्कासित होते हैं। इससे वायुमण्डल की पारदर्शिता (Transparency) प्रभावित होती है, जिसका सीधा प्रभाव प्रवेशी सौर विकिरण तथा पार्थिव विकिरण पर पड़ता है। ये सभी प्रक्रियाएँ पृथ्वी के ऊष्मा सन्तुलन (Heat Balance) को भंग कर जलवायु परिवर्तन की भूमिका तैयार करती हैं।

3. मनुष्य के क्रिया-कलाप मनुष्य अपनी विकासात्मक गतिविधियों से हरित-गृह गैसों (कार्बन-डाइऑक्साइड, आज़ोन, जलवाष्प) की मात्रा वायुमण्डल में बढ़ाता रहता है। वायुमण्डल में इन अवयवों के प्राकृतिक संकेन्द्रण में भिन्नता आने से भूमण्डलीय ऊष्मा सन्तुलन प्रभावित होता है। इससे वायुमण्डल की सामान्य प्रणाली, जिस पर जलवायु भी निर्भर करती है, प्रभावित होती है।

(B) खगोलीय कारक (Astronomical Factors) जलवायु परिवर्तन से जुड़े खगोलीय कारक तीन तथ्यों पर आधारित हैं
1. पृथ्वी की कक्षा की उत्केन्द्रीयता (Ecentricity) में परिवर्तन-पृथ्वी की उत्केन्द्रीयता में लगभग 92 हजार वर्षों में परिवर्तन आ जाता है अर्थात् सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के परिक्रमण पथ की आकृति कभी अण्डाकार तो कभी गोलाकार हो जाती है। उदाहरणतः वर्तमान में पृथ्वी की सूर्य के निकटतम रहने की स्थिति-उपसौर (Perihelion) जनवरी में आती है। यह उपसौर स्थिति 50 हजार वर्ष बाद जुलाई में आने लगेगी। इसका परिणाम यह होगा कि आगामी 50 वर्षों में उत्तरी गोलार्द्ध में ग्रीष्मकाल अधिक गर्म व शीतकाल अधिक ठण्डा होता जाएगा।

2. पृथ्वी की काल्पनिक धरी के कोण में परिवर्तन सर्य की परिक्रमा करते समय पृथ्वी की धरी (Axes) अपने कक्षा-पथ के साथ कोण बनाती है। वर्तमान युग में यह कोण 23/2° का है, लेकिन प्रत्येक 41-42 हजार वर्षों के बाद पृथ्वी की धुरी के कोण में 1.5° का अन्तर आ जाता है। कभी यह झुकाव 22° तो कभी 24% हो जाता है। पृथ्वी के झुकाव में परिवर्तन से मौसमी दशाओं व तापमान में तो अन्तर होंगे ही, साथ ही भौगोलिक पेटियों की भिन्नताएँ कम या विलुप्त हो जाएँगी।

3. विषुव का पुरस्सरण (Precession) वर्तमान में चार मौसमी दिवसों की स्थितियाँ इस प्रकार हैं-21 मार्च-बसन्त विषुव, 23 सितम्बर-शरद विषुव, 21 जून कर्क संक्रांति तथा 22 दिसम्बर मकर संक्रांति। प्रत्येक 22 हजार वर्षों में इन स्थितियों में परिवर्तन आता है जिसका सीधा प्रभाव जलवायु पर पड़ता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

(C) पार्थिवेत्तर कारक (Extra Terrestrial Factors) इन कारकों में पृथ्वी पर पहुँचने वाली सौर ऊर्जा की मात्रा में परिवर्तनों को शामिल किया जाता है
1. सौर विकिरण की प्राप्ति में भिन्नता-पृथ्वी पर ऊर्जा का एकमात्र स्रोत सूर्य है। सूर्य में होने वाली उथल-पुथल से पृथ्वी को मिलने वाली ऊर्जा में अन्तर आ जाता है। सूर्यातप की मात्रा में परिवर्तन वायुमण्डल द्वारा सौर विकिरण के अवशोषण की मात्रा में परिवर्तन से भी हो सकता है।

2. सौर कलंक सूर्य के सौर कलंकों (Sun Spots) की संख्या में प्रत्येक 11 वर्षों बाद परिवर्तन आता रहता है। सौर कलंकों की संख्या बढ़ना अधिक उष्ण व तर (Cooler and Wetter) दशाओं से जुड़ा है, जबकि सौर कलंकों की संख्या में कमी, गर्म तथा शुष्क (Warm and Drier) दशाओं से सम्बन्धित होती है। यही नहीं सौर कलंकों की संख्या का प्रभाव सूर्य से निष्कासित होने वाली पराबैंगनी किरणों पर भी पड़ता है। इन्हीं पराबैंगनी किरणों की मात्रा में वायुमण्डल में ओज़ोन गैस की मात्रा निर्धारित होती है। वायुमण्डल में ओज़ोन गैस की मात्रा भू-मण्डल पर ताप सन्तुलन को प्रभावित करती है।

पृथ्वी एक जीवन्त जीव (Living Organism) की भाँति है। इसकी प्रक्रियाएँ (Processes) स्व-नियन्त्रित हैं। पृथ्वी बृहद् स्तर पर जलवायुवी सन्तुलन बनाए रखने में सक्षम है। लेकिन ये प्रक्रियाएँ अत्यन्त जटिल और सूक्ष्म भी हैं। तापमान वृद्धि के रूप में प्रकृति से की गई अनावश्यक छेड़छाड़ दुष्परिणाम ला सकती है।

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 11 वायुमंडल में जल

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 11 वायुमंडल में जल Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 11 वायुमंडल में जल

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. वायुमंडल में जलवाष्प का अनुपात कितना होता है?
(A) 0 – 4%
(B) 4 – 8%
(C) 8 – 12%
(D) 12 – 16%
उत्तर:
(A) 0 – 4%

2. कोहरे में अधिकतम दृश्यता कितनी होती है?
(A) एक कि०मी० से कम
(B) 2 कि०मी० से अधिक
(C) 3 कि०मी० से अधिक
(D) 4 कि०मी० से अधिक
उत्तर:
(A) एक कि०मी० से कम

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3. ओसांक पर वायु की सापेक्ष आर्द्रता कितनी होती है?
(A) 25%
(B) 50%
(C) 75%
(D) 100%
उत्तर:
(D) 100%

4. सापेक्ष आर्द्रता को किस इकाई में मापा जाता है?
(A) मीटर में
(B) कि०मी० में
(C) प्रतिशत में
(D) सें०मी० में
उत्तर:
(C) प्रतिशत में

5. मौसमी घटनाओं के लिए वायुमंडल का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक कौन-सा है?
(A) ऑक्सीजन
(B) धूलकण
(C) नाइट्रोजन
(D) जलवाष्प
उत्तर:
(D) जलवाष्प

6. शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में सामान्यतः किस प्रकार की वर्षा होती है?
(A) संवहनीय
(B) चक्रवातीय
(C) पर्वतीय
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) चक्रवातीय

7. निम्नलिखित में से कौन-से बादल अधिक वर्षा करते हैं?
(A) कपासी
(B) कपासी वर्षा
(C) वर्षा-स्तरी
(D) पक्षाभ-स्तरी
उत्तर:
(C) वर्षा-स्तरी

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8. प्रायः समुद्री किनारों और झीलों के तटों पर पाया जाने वाला कोहरा होता है
(A) वाताग्री कोहरा
(B) अभिवहन कोहरा
(C) विकिरण कोहरा
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) अभिवहन कोहरा

9. ‘4 बजे वाली वर्षा’ किसे कहा जाता है?
(A) यूरोप में सायंकाल में होने वाली स्थानीय वर्षा को
(B) पवनाभिमुखी ढालों पर होने वाली पर्वतकृत वर्षा को
(C) वाताग्री वर्षा को
(D) भूमध्य रेखीय प्रदेशों में होने वाली संवहनीय वर्षा को
उत्तर:
(D) भूमध्य रेखीय प्रदेशों में होने वाली संवहनीय वर्षा को

10. जलवृष्टि व हिमवृष्टि के मिले-जुले रूप को कहते हैं-
(A) ओलावृष्टि
(B) हिमवृष्टि
(C) सहिम वृष्टि
(D) वर्षा
उत्तर:
(C) सहिम वृष्टि

11. बिना तरल अवस्था में आए वाष्प का हिम में बदलना कहलाता है-
(A) ऊर्ध्वपातन
(B) द्रवण
(C) संघनन
(D) परिवर्तन
उत्तर:
(A) ऊर्ध्वपातन

12. सांध्यकालीन सर्वाधिक रंगीन मेघ है-
(A) कपासी
(B) पक्षाभ
(C) स्तरी
(D) बर्फीले
उत्तर:
(A) कपासी

13. एलनीनो, के दौरान असामान्य रूप से बाढ़ की स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं
(A) इक्वेडोर में
(B) उत्तरी पीरू में
(C) मध्य चिली में
(D) उपर्युक्त सभी में
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी में

14. एलनीनो के दौरान असामान्य रूप से सूखे की स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं-
(A) इंडोनेशिया में
(B) ऑस्ट्रेलिया में
(C) उत्तर:पूर्वी दक्षिण अमेरिका में
(D) उपर्युक्त सभी में
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी में

15. निम्नलिखित में से किसे उच्च बादलों में शामिल नहीं किया जाता?
(A) पक्षाभ
(B) पक्षाभ स्तरी
(C) स्तरी कपासी
(D) पक्षाभ कपासी
उत्तर:
(C) स्तरी कपासी

16. किसी स्थान की वर्षा निर्भर करती है-
(A) पर्वतों की दिशा पर
(B) समुद्री जल के वाष्पीकरण पर
(C) ग्रीष्मकाल की अवधि पर
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) पर्वतों की दिशा पर

17. वायुमंडल की कौन-सी प्रक्रिया ठोस पदार्थों के अभाव में नहीं हो सकती है?
(A) संतृप्तीकरण
(B) संघनन
(C) वाष्पीकरण
(D) उपर्युक्त सभी में
उत्तर:
(B) संघनन

18. यदि किसी स्थान के तापमान में अचानक वृद्धि हो जाए तो वहाँ की सापेक्षिक आर्द्रता-
(A) बढ़ेगी
(B) घटेगी
(C) समान रहेगी
(D) घटती-बढ़ती रहेगी
उत्तर:
(B) घटेगी

19. जलवाष्प की मात्रा समान रहने पर वायु के ताप में कमी होने पर सापेक्षिक आर्द्रता-
(A) बढ़ेगी
(B) घटेगी
(C) समान रहेगी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) बढ़ेगी

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20. ओस किस प्राकृतिक घटना का उदाहरण है?
(A) वाष्पीकरण
(B) सूर्य की तिरछी किरणें
(C) संघनन
(D) वाष्पोत्सर्जन
उत्तर:
(C) संघनन

21. भारत में अधिकतर वर्षा कौन-सी होती है?
(A) पर्वतकृत वर्षा
(B) चक्रवातीय वर्षा
(C) संवहनीय वर्षा
(D) वाताग्री वर्षा
उत्तर:
(A) पर्वतकृत वर्षा

22. सर्दियों में उत्तर:पश्चिमी भारत में होने वाली वर्षा किस प्रकार की होती है?
(A) पर्वतकृत
(B) चक्रवातीय
(C) संवहनीय
(D) वाताग्री
उत्तर:
(B) चक्रवातीय

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
जलवाष्प का प्रमुख स्रोत कौन-सा है?
उत्तर:
महासागर।

प्रश्न 2.
जलीय चक्र को ऊर्जा कहाँ से मिलती है?
उत्तर:
सूर्य से।

प्रश्न 3.
सापेक्ष आर्द्रता को किस इकाई में मापा जाता है?
उत्तर:
प्रतिशत में।

प्रश्न 4.
ओसांक पर वायु की सापेक्ष आर्द्रता कितनी होती है?
उत्तर:
100 प्रतिशत।

प्रश्न 5.
वायुमण्डलीय आर्द्रता को किस यन्त्र से मापते हैं?
उत्तर:
हाइग्रोमीटर से।

प्रश्न 6.
भारत में अधिकतर वर्षा कौन-सी होती है?
उत्तर:
पर्वतकृत वर्षा।

प्रश्न 7.
पवनविमुखी पर्वतीय ढाल पर स्थित शुष्क प्रदेश को क्या कहते हैं?
उत्तर:
वृष्टिछाया प्रदेश।

प्रश्न 8.
कोहरे में अधिकतम दृश्यता कितनी होती है?
उत्तर:
एक किलोमीटर से कम।

प्रश्न 9.
वायुमण्डल में जलवाष्प का अनुपात कितना होता है?
उत्तर:
शून्य से 4 प्रतिशत तक।

प्रश्न 10.
महासागर के अतिरिक्त जलवाष्प के अन्य स्रोत कौन-कौन-से हैं?
उत्तर:
सागर, झीलें, नदियाँ।

प्रश्न 11.
विकिरण कोहरा प्रायः कहाँ पाया जाता है?
उत्तर:
विस्तृत मैदानी भागों में।

प्रश्न 12.
वर्षा को मापने वाले यन्त्र का नाम बताएँ।
उत्तर:
रेन गेज या वर्षा-मापी यन्त्र।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आर्द्रता को व्यक्त करने की तीन विधियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. निरपेक्ष आर्द्रता
  2. विशिष्ट आर्द्रता और
  3. सापेक्ष आर्द्रता।

प्रश्न 2.
सापेक्ष आर्द्रता ज्ञात करने का सूत्र बताइए।
उत्तर:
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प्रश्न 3.
कोहरे के प्रकार कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. विकिरण
  2. अभिवहन तथा
  3. वाताग्री।

प्रश्न 4.
संघनन के कौन-कौन-से रूप होते हैं?
उत्तर:
ओस, पाला, कोहरा, कुहासा और बादल।

प्रश्न 5.
वाष्पीकरण को नियन्त्रित करने वाले कारकों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. तापमान
  2. स्वच्छ आकाश
  3. वायु की शुष्कता
  4. पवनों की गति
  5. जल के तल का विस्तार।

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प्रश्न 6.
वाष्पीकरण में क्या होता है?
उत्तर:
जल द्रव अवस्था से गैस (जलवाष्प) में बदल जाता है।

प्रश्न 7.
संघनन या द्रवीकरण क्या है?
उत्तर:
जल की गैसीय अवस्था से तरलावस्था या ठोसावस्था में बदलने की प्रक्रिया द्रवीकरण कहलाती है।

प्रश्न 8.
ओसांक क्या होता है?
उत्तर:
वह तापमान जिस पर वायु अपने में विद्यमान जलवाष्प से संतृप्त हो जाती है।

प्रश्न 9.
संघनन कितने तापमान पर होता है?
उत्तर:
संघनन तब होता है जब वायु का ताप ओसांक या ओसांक से नीचे गिर जाता है।

प्रश्न 10.
आर्द्रताग्राही कण या संघनन केन्द्र क्या होते हैं?
उत्तर:
वायु में विद्यमान ठोस कण जिनके चारों ओर संघनन की प्रक्रिया आरम्भ होती है।

प्रश्न 11.
आर्द्रताग्राही कण कौन-कौन से होते हैं?
उत्तर:
समुद्री नमक के कण, धूएँ की कालिख के कण व धूलकण इत्यादि।

प्रश्न 12.
तापमान ओसांक से नीचे किन दो कारणों से गिरता है?
उत्तर:

  1. वायु के ठण्डा होने से
  2. वायु की सापेक्ष आर्द्रता बढ़ने पर।

प्रश्न 13.
अभिवहन कोहरा कहाँ पाया जाता है?
उत्तर:
सागरीय किनारों व झीलों के तटों पर।

प्रश्न 14.
वाताग्री कोहरा कहाँ पाया जाता है?
उत्तर:
वायुराशियों को अलग करने वाले वातानों पर।

प्रश्न 15.
4 बजे वाली वर्षा कौन-सी होती है और कहाँ होती है?
उत्तर:
संवहनीय वर्षा; यह भूमध्य रेखीय प्रदेशों में होती है।

प्रश्न 16.
भारत में स्थित किसी एक वृष्टिछाया प्रदेश का नाम बताएँ।
उत्तर:
दक्कन पठार जो पश्चिमी घाट का वृष्टिछाया प्रदेश है।

प्रश्न 17.
सर्दियों में उत्तर-पश्चिमी भारत में होने वाली वर्षा किस प्रकार की वर्षा होती है?
उत्तर:
सर्दियों में उत्तर-पश्चिमी भारत में होने वाली चक्रवातीय वर्षा होती है।

प्रश्न 18.
कौन-सा प्राकृतिक प्रदेश अधिकतर सर्दियों में वर्षा प्राप्त करता है?
उत्तर:
भूमध्य सागरीय प्रदेश अधिकतर सर्दियों में वर्षा प्राप्त करता है।

प्रश्न 19.
ऊर्ध्वपातन क्या होता है?
उत्तर:
बिना तरलावस्था में आए वाष्प का हिम में बदलना या हिम का वाष्प में बदलना ऊर्ध्वपातन कहलाता है।

प्रश्न 20.
गुप्त ऊष्मा क्या होती है?
उत्तर:
वस्तु की अवस्था (State) बदलने पर ऊष्मा का खर्च होना या मुक्त होना गुप्त ऊष्मा कहलाता है, क्योंकि इस प्रक्रिया में वस्तु के तापमान में कोई अन्तर नहीं होता।

प्रश्न 21.
वाष्पोत्सर्जन क्या होता है?
उत्तर:
भूमि तथा वनस्पति से होने वाला वाष्पन। इसमें जलाशयों (नदी, झील, तालाब), मिट्टियों, शैलों के पृष्ठों और पौधों से वाष्प के रूप में नमी की क्षति भी सम्मिलित है।

प्रश्न 22.
ऊँचे बादलों के कोई दो उदाहरण दें।
उत्तर:

  1. पक्षाभ
  2. पक्षाभ कपासी।

प्रश्न 23.
मध्य बादलों के कोई दो उदाहरण दें।
उत्तर:

  1. स्तरी मध्य
  2. कपासी मध्य।

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प्रश्न 24.
कम ऊँचाई वाले बादलों के कोई दो उदाहरण दें।
उत्तर:

  1. स्तरी वर्षा मेघ
  2. कपासी वर्षा मेघ

प्रश्न 25.
वर्षण के कौन-कौन-से रूप होते हैं?
उत्तर:
हिमपात, सहिम वर्षा, ओला वृष्टि और वर्षा।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आर्द्रता किसे कहते हैं?
अथवा
वायुमण्डलीय आर्द्रता क्या होती है? यह कितने प्रकार की होती है?
उत्तर:
आर्द्रता का अर्थ-वायुमण्डल में गैस रूप में उपस्थित अदृश्य जलवाष्प की मात्रा को वायुमण्डल की आर्द्रता कहा जाता है। वायुमण्डल में जलवाष्प बहुत ही कम अनुपात में (शून्य से 4 प्रतिशत तक) होता है। जलवाष्प वाष्पीकरण क्रिया द्वारा महासागरों, सागरों, नदियों तथा झीलों आदि से प्राप्त होता है। स्थान और समय की दृष्टि से जलवाष्प की मात्रा सदा एक-जैसी नहीं रहती बल्कि बदलती रहती है।

वायुमण्डलीय आर्द्रता के प्रकार-वायुमण्डलीय आर्द्रता तीन प्रकार की होती है-

  • निरपेक्ष आर्द्रता
  • विशिष्ट आर्द्रता तथा
  • सापेक्ष आर्द्रता।

प्रश्न 2.
आर्द्रता अथवा जलवाष्प का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
1. वायुमण्डल में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा द्रवण और वर्षण के सभी रूपों का स्रोत है। वर्षा, हिमपात, कोहरा व बादल जैसी मौसमी घटनाएँ जलवाष्प के कारण ही सम्भव होती हैं।

2. जलवाष्प सूर्य से आने वाली ऊष्मा (Incoming Solar Radiation) व पृथ्वी के विकिरण द्वारा निकलने वाली ऊष्मा का कुछ अंश अवशोषित करके पृथ्वी पर ताप की दशाओं को नियन्त्रित करता है।

3. जलवाष्प का वायुमण्डल में लम्बवत् वितरण एवं मात्रा गुप्त ऊष्मा की मात्रा को निर्धारित करते हैं जो तूफानों और विक्षोभों के विकास में मदद करती है।

4. वायुमण्डल में विद्यमान जलवाष्प की मात्रा मौसम के अनुसार मानव शरीर के ठण्डा होने की दर को प्रभावित करती है। जल का वाष्पन प्राकृतिक जलीय चक्र (Hydrologic Cycle) का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।

प्रश्न 3.
प्राकृतिक जलीय चक्र में जलवाष्प की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी पर जल का प्राथमिक स्रोत महासागर हैं। वायुमण्डल को अपने जलवाष्प का अधिकांश भाग पृथ्वी के तीन-चौथाई भाग पर व्याप्त महासागरों, झीलों, नदियों, हिम क्षेत्रों व हिमनदों से प्राप्त होता है। इन स्रोतों के अतिरिक्त गिरती हुई वर्षा की बूंदों तथा नम भूमियों (Swamps and Wet Lands) से वाष्पीकरण द्वारा, पेड़-पौधों की पत्तियों से बाष्पोत्सर्जन द्वारा तथा जीव-जन्तुओं द्वारा साँस लेने की क्रिया से उत्पन्न जलवाष्प वायुमण्डल में जा मिलता है। जलवाष्प संघनित होकर बादलों का रूप धारण करते हैं। पवनों द्वारा बादलों के रूप में यह आर्द्रता एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानान्तरित होती है।

अनुकूल परिस्थितियाँ होने पर संघनित जलवाष्प वर्षा और हिम के रूप में भू-पृष्ठ पर गिरता है जो वृष्टि संयोग से महासागरों पर होती है उसका तो एक चक्र तभी पूरा हो जाता है और दूसरा आरम्भ भी हो जाता है। जो वर्षा स्थलखण्डों पर होती है उसका चक्र कुछ देर से पूरा होता है। ऐसे जल का कुछ भाग मिट्टी सोख लेती है व कुछ भाग पौधे अवशोषित कर लेते हैं जिसे वे बाद में वाष्पोत्सर्जन क्रिया द्वारा वायुमण्डल में छोड़ देते हैं।

शेष जल भूमिगत जल और धरातलीय प्रवाह के रूप में अन्ततः महासागरों में पुनः पहुँच जाता है और जलीय चक्र का फिर से हिस्सा बन जाता है। इस प्रकार भूमण्डलीय ताप सन्तुलन की तरह जलीय चक्र के माध्यम से प्रकृति में भूमण्डलीय जल सन्तुलन बना रहता है।

प्रश्न 4.
वाष्पीकरण क्या है? वाष्पीकरण की मात्रा और दर किन कारकों पर निर्भर करती है?
उत्तर:
वाष्पीकरण-जल के तरलावस्था अथवा ठोसावस्था से गैसीय अवस्था में परिवर्तन होने की प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहते हैं। वाष्पीकरण की दर तथा मात्रा निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करती है

  • तापमान भूतल पर तापमान (Temperature) के बढ़ने से वाष्पीकरण की क्रिया तेजी से होती है तथा तापमान के घटने से इस क्रिया की दर में कमी आ जाती है।
  • शुष्कता-शुष्क (Aridity) वायु में जलवाष्प अधिक मात्रा में समा सकते हैं, परन्तु आर्द्र वायु की जलवाष्प ग्रहण करने की क्षमता कम होती है।
  • वायु परिसंचरण-चलती वायु में वाष्पीकरण अधिक मात्रा में होता है।
  • जल के स्रोत-महासागरों तथा सागरों पर महाद्वीपों की तुलना में बहुत अधिक वाष्पीकरण होता है।

प्रश्न 5.
संघनन क्या है और यह कब और कैसे होता है? अथवा संघनन का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा संघनन की प्रक्रिया को नियन्त्रित करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संघनन-जल के गैसीय अवस्था से तरलावस्था या ठोसावस्था में बदलने की प्रक्रिया को संघनन या द्रवीकरण कहते हैं। जैसे-जैसे आर्द्र हवा ठण्डी होने लगती है, वैसे-वैसे उसकी जलवाष्प धारण करने की क्षमता भी घटती जाती है। एक समय ऐसा आता है जिसमें एक विशेष ताप पर वह वायु संतृप्त हो जाती है, जिस तापमान पर वायु अपने में विद्यमान जलवाष्प से संतृप्त हो जाती है, उस तापमान को ओसांक (Dew Point) कहा जाता है। ओसांक पर वायु की सापेक्ष आर्द्रता 100 प्रतिशत होती है। संघनन तब होता है जब वायु का ताप ओसांक से भी नीचे गिर जाता है।

ऐसा दो कारणों से हो सकता है-

  • वायु के ठण्डा होने से
  • वायु की सापेक्ष आर्द्रता बढ़ने पर।

उपर्युक्त दोनों घटनाएँ नीचे दी गई चार परिस्थितियों में से किसी-न-किसी एक के साथ जुड़कर सम्भव होती हैं-

  • जब वायु का तापमान घटकर ओसांक तक पहुँच जाए किन्तु उसका आयतन वही रहे।
  • जब वायु का आयतन ऊष्मा की मात्रा बढ़ाए बिना ही बढ़ जाए।
  • जब वायु की आर्द्रता धारण करने की क्षमता, तापमान और वायु के आयतन के संयुक्त रूप से घटने के कारण घट जाए और वायु में उपस्थित आर्द्रता की मात्रा से भी कम हो जाए।
  • जब वाष्पीकरण द्वारा वायु में आर्द्रता की अतिरिक्त मात्रा मिल जाए। जलवाष्प के संघनन की सबसे अनुकूल स्थिति तापमान के घटने से उत्पन्न होती है।

प्रश्न 6.
ओस किसे कहते हैं?
अथवा
ओस कैसे बनती है?
उत्तर:
ओस-जाड़े की रातों में जब आकाश स्वच्छ होता है तो तीव्र भौमिक विकिरण से धरातल ठण्डा हो जाता है। ठण्डे धरातल पर ठहरी वायुमण्डल की आर्द्र निचली परतें भी ठण्डी होने लगती हैं। धीरे-धीरे यह वायु ओसांक तक ठण्डी हो जाती है। इससे वायु में विद्यमान जलवाष्प संघनित हो जाता है और नन्हीं-नन्हीं बूंदों के रूप में घास व पौधों की पत्तियों पर जमा हो जाता है। वाष्प से बनी जल की इन बूंदों को ओस कहते हैं।

प्रश्न 7.
ओस पड़ने के लिए किन-किन दशाओं का होना आवश्यक है?
उत्तर:
ओस पड़ने के लिए निम्नलिखित दशाओं का होना आवश्यक है-

  1. रातें ठण्डी और लम्बी हों, ताकि भूतल से देर तक विकिरण हो और भूतल पर ठहरी वायु ठण्डी होकर ओसांक तक पहुँचे।
  2. आकाश मेघ-विहीन हो, ताकि भू-तल से होने वाली ऊष्मा का विकिरण निर्बाध गति से सम्पन्न हो सके। तभी भूतल और उसके सम्पर्क में आई हवा ठण्डी हो पाएगी।
  3. वायु शान्त हो, ताकि वह ठण्डे भूतल पर अधिक देर तक ठहरकर स्वयं भी ठण्डी हो जाए। इससे ओसांक जल्दी प्राप्त होगा।
  4. वायु में सापेक्ष आर्द्रता का प्रतिशत ऊँचा हो, ताकि थोड़ा-सा तापमान गिरते ही वायु संतृप्त (Saturate) हो जाए।
  5. ओसांक हिमांक से ऊपर हो, ताकि जलवाष्प जल के बिन्दुओं में परिवर्तित हो जाएँ। यदि ओसांक हिमांक (0°C) से नीचे गिर जाएगा तो वाष्प के जम जाने से पाला पड़ेगा, ओस नहीं।

प्रश्न 8.
कोहरा और कुहासा (धुंध) कैसे बनते हैं?
उत्तर:
कोहरा और कुहासा (Fog and Mist) वास्तव में बादल होते हैं जो पृथ्वी के धरातल के पास बनते हैं। जब भू-तल के निकट वायु के ठण्डा होने से वायु की सापेक्ष आर्द्रता 100 प्रतिशत से बढ़ जाए तो वाष्प-कण संघनित होकर जल के अति सूक्ष्म कणों या हिमकणों में परिवर्तित होकर हवा की निचली परतों में लटके हुए ठोस कणों के चारों ओर एकत्रित हो जाते हैं। इससे जाता है और दृश्यता कम हो जाती है। कोहरे और कुहासे में केवल दृश्यता के विस्तार का अन्तर है। कोहरा घना होता है जिसमें एक किलोमीटर से परे दिखाई नहीं पड़ता। सघन कोहरे (Thick Fog) में तो 200 मीटर तक देख पाना कठिन होता है। कुहासा (धुन्ध) कुछ हल्का होता है जिसमें एक से दो किलोमीटर तक की चीजें दिखाई देती हैं।

प्रश्न 9.
मेघ कैसे बनते हैं? औसत ऊँचाई के आधार पर मेघों के तीन प्रकार बताइए।
उत्तर:
मेघों का बनना-मेघ काफ़ी ऊँचाई पर वायु में लटके हुए ठोस कणों पर संघनित हुए जल बिन्दुकों या हिमकणों के विशाल समूह होते हैं। मेघ ऊपर उठती हुई गर्म व आर्द्र वायुराशियों के रुद्धोष्म प्रक्रिया द्वारा ठण्डे होने पर उसके तापमान के ओसांक से नीचे गिरने से बनते हैं। इस दृष्टि से मेघ वायुमण्डल की ऊँचाइयों पर बनने वाला कोहरा माना जा सकता है। अतः मेघों का निर्माण वायु में उपस्थित महीन धूलकणों के केन्द्रकों के चारों ओर जलवाष्प के संघनित होने से होता है।

औसत ऊँचाई के आधार पर मेघों के प्रकार-औसत ऊँचाई के आधार पर मेघों के तीन प्रकार निम्नलिखित हैं-
1. निचले मेघ इनकी ऊँचाई भूतल से 2,000 मीटर होती है। निचले मेघ निम्नलिखित तरह के होते हैं-

  • स्तरीय कपासी मेघ
  • स्तरी मेघ
  • कपासी मेघ
  • वर्षा स्तरी मेघ
  • वर्षा कपासी मेघ आदि।

2. मध्यम ऊँचाई वाले मेघ-इनकी ऊँचाई भू-तल से 2,000 मीटर से 6,000 मीटर तक होती है। मध्यम ऊँचाई वाले मेघ निम्नलिखित तरह के होते हैं-

  • मध्य स्तरी मेघ
  • मध्यम कपासी मेघ आदि।

3. ऊँचे मेघ–इनकी ऊँचाई भू-तल से 6,000 मीटर से 12,000 मीटर तक होती है। ऊँचे मेघ निम्नलिखित तरह के होते हैं-

  • पक्षाभ मेघ
  • पक्षाभ स्तरी मेघ
  • पक्षाभ कपासी मेघ आदि।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 11 वायुमंडल में जल

प्रश्न 10.
संवहनीय वर्षा कैसे होती है?
उत्तर:
भूतल के गर्म हो जाने पर उसके सम्पर्क में आने वाली वायु भी गर्म हो जाती है। वायु गर्म होकर फैलती है और हल्की हो जाती है। हल्की होकर वायु ऊपर की ओर उठती है। इससे संवहनी धाराएँ उत्पन्न हो जाती हैं। ऊपर जाकर वायु ठण्डी हो जाती है और उसमें अधिक जलवाष्प का संघनन होने लगता है। बादलों की गर्जन व बिजली की चमक के साथ मूसलाधार वर्षा होती है। भूमध्य रेखीय प्रदेशों में होने वाली वर्षा इसी प्रकार की संवहनीय वर्षा होती है।

प्रश्न 11.
पर्वत-कृत वर्षा कैसे होती है?
उत्तर:
आर्द्रता से भरी हुई गर्म पवनें जब किसी पर्वत या पठार के सहारे ऊपर उठती हैं तो वे ठण्डी हो जाती हैं। वायु के संतृप्त होने पर जलवाष्प का संघनन व बाद में वर्षा होने लगती है। इस प्रकार की वर्षा को पर्वतकृत वर्षा कहते हैं। भारत में अधिकतर वर्षा इसी प्रकार की होती है।

प्रश्न 12.
चक्रवाती अथवा वाताग्री वर्षा कैसे होती है?
उत्तर:
ऐसी वर्षा चक्रवातों के कारण होती है। शीतोष्ण कटिबन्धों में जब भिन्न-भिन्न तापों व आर्द्रता वाली वायुराशियाँ टकराती हैं तो ठण्डी वायुराशि गर्म वायुराशि को ऊपर की ओर धकेल देती है। इसके परिणामस्वरूप वायु में भीषण उथल-पुथल और तूफानी दशाएँ उत्पन्न हो जाती हैं और वातानों पर वर्षा होने लगती है। इस प्रकार की वर्षा को वाताग्री अथवा चक्रवाती वर्षा कहते हैं।

प्रश्न 13.
विशिष्ट आर्द्रता (Specific Humidity) क्या होती है? इसका प्रयोग कब किया जाता है?
उत्तर:
विशिष्ट आर्द्रता वायु के प्रति इकाई भार में जलवाष्प के भार को विशिष्ट आर्द्रता कहते हैं। इसे ग्राम प्रति किलोग्राम द्वारा व्यक्त किया जाता है। आता को व्यक्त करने का यह कुछ बेहतर तरीका है क्योंकि इस पर तापमान और वायुदाब के परिवर्तन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। विशिष्ट आर्द्रता का प्रयोग किसी विशाल वायुराशि के आर्द्रता सम्बन्धी लक्षणों का वर्णन करने के लिए किया जाता है; जैसे

  • सर्दियों में आर्कटिक प्रदेशों में अत्यधिक ठण्डी, शुष्क वायु की विशिष्ट आर्द्रता 0.2 ग्राम प्रति किलोग्राम होती है।
  • भूमध्यरेखीय खण्ड में अत्यधिक उष्ण एवं आर्द्र वायु की विशिष्ट आर्द्रता 18 ग्राम प्रति किलोग्राम होती है।

प्रश्न 14.
विश्व में वर्षा के वार्षिक वितरण के बारे में संक्षेप में लिखें।
उत्तर:
सम्पूर्ण विश्व में वर्षा समान रूप से नहीं होती। विश्व के कई मरुस्थली क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ वर्षा बहुत कम होती है। दूसरी ओर भारत में मौसिनराम (चेरापूंजी के निकट), मेघालय में लगभग 1140 सें०मी० औसत वार्षिक वर्षा होती है। वर्षा की दृष्टि से विश्व को निम्नलिखित भागों में बाँट सकते हैं-
1. विषुवतीय अत्यधिक वर्षा वाली पेटियाँ यहाँ औसत वर्षा 200 सें०मी० से अधिक है। यह क्षेत्र भूमध्य रेखा से 1° अक्षांश उत्तर और दक्षिण के मध्य स्थित है। यहाँ प्रतिदिन दोपहर के बाद वर्षा होती है।

2. उष्ण कटिबन्धीय प्रदेश-इन प्रदेशों में महाद्वीपों के पूर्वी क्षेत्रों में पर्याप्त वर्षा होती है, परन्त पश्चिमी क्षेत्रों में वर्षा 25 सें०मी० से कम होती है। इसलिए उष्ण कटिबन्ध के पश्चिम में मरुस्थल पाए जाते हैं।

3. शीतोष्ण कटिबन्धीय प्रदेश इन क्षेत्रों में चक्रवाती वर्षा होती है। यहाँ औसत वर्षा 100 सें०मी० से 125 सें०मी० तक होती है।

4. शीत कटिबन्धीय प्रदेश-यहाँ वर्षा हिमपात के रूप में होती है। यहाँ वर्षा 25 सें०मी० से कम होती है।

प्रश्न 15.
हिमपात तथा सहिम वृष्टि किसे कहते हैं?
उत्तर:
हिमपात-जब वायुमण्डल में जलवाष्प संघनन की प्रक्रिया द्वारा वायु का तापक्रम हिमांक बिन्दु से नीचे चला जाता है तो ऐसी स्थिति में वृष्टि ठोस रूप में होती है, जिसे हिमपात (Snowfall) कहते हैं। षट्कोण के आकार के बर्फ के टुकड़े रुई के समान धरातल पर गिरते हैं तो इन्हें हिमलव या हिमतूल (Snow Flakes) कहते हैं। इनका निर्माण हिम क्रिस्टलों के जुड़ने से होता है।

सहिम वृष्टि या कारकापात-जमाव बिन्दु के तापमान के साथ जब वायु की एक परत सतह के नजदीक आधी जमी हुई परत पर गिरती है तब सहिम वृष्टि (Sleet) होती है। दूसरे शब्दों में इस प्रकार की वर्षा में जल की बूंदें और हिमकण साथ-साथ बरसती हैं।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वायु की आर्द्रता से क्या अभिप्राय है? निरपेक्ष और सापेक्ष आर्द्रता की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वायु की आर्द्रता (Humidity of Wind) वायु में उपस्थित जलवाष्प को वायु की आर्द्रता कहते हैं। वायु में आर्द्रता वाष्पीकरण द्वारा प्राप्त होती है। समुद्रों, झीलों, नदियों, तालाबों तथा अन्य जलाशयों से सदा जल का वाष्पीकरण होता रहता है। वाष्पीकरण द्वारा जितना भी जल वाष्पीय अवस्था में वायुमण्डल में प्रवेश करता है वह वायुमण्डल में आर्द्रता उत्पन्न करता है। वायुमण्डल में औसत आर्द्रता 2% होती है यद्यपि यह लगभग शून्य से 4% तक पायी जा सकती है।

वायु की जलवाष्प को शोषित करने की एक निश्चित सीमा होती है। यह सीमा तापमान के बढ़ने पर बढ़ जाती है। किसी निश्चित तापमान पर एक घन मीटर वायु कितने जलवाष्प की मात्रा का शोषण कर सकती है उसे वायु की वाष्प शोषण करने की क्षमता कहते हैं। जब वायु अपनी पूरी क्षमता जितना जलवाष्प अपने अन्दर शोषित कर ले तो वह संतृप्त वायु (Saturated Air) कहलाती है। इससे अधिक जलवाष्प की उपस्थिति में संघनन (Condensation) होना आरम्भ हो जाता है। एक घन मीटर वायु द्वारा विभिन्न तापमानों पर अधिकतम जलवाष्प को सम्भालने की क्षमता को निम्नलिखित तालिका से ज्ञात किया जा सकता है-

निरपेक्ष आर्द्रतातापमानसापेक्ष आर्द्रता
10 ग्रा० प्रति घन मीटर15°15%
10 ग्रा० प्रति घन मीटर10°62.5%
16. ग्रा० प्रति घन मीटर15°80%

1. निरपेक्ष आर्द्रता (Absolute Humidity)-वायु के किसी आयतन में निश्चित समय पर उपस्थित जलवाष्प की मात्रा को निरपेक्ष आर्द्रता कहते हैं। इसे प्रायः ग्रेन प्रति घन फुट अथवा ग्राम प्रति घन मीटर में प्रकट किया जाता है। उदाहरणतः यदि किसी समय एक घन मीटर में 15 ग्राम जलवाष्प है तो निरपेक्ष आर्द्रता 15 ग्राम प्रति घन मीटर होगी। यह वाष्पीकरण की मात्रा पर निर्भर टर होगी। यह वाष्पीकरण की मात्रा पर निर्भर करती है। भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर निरपेक्ष आर्द्रता घटती जाती है। इसी प्रकार समुद्र से दूरी बढ़ने पर भी निरपेक्ष आर्द्रता घटती है।

2. सापेक्ष आर्द्रता (Relative Humidity)-किसी निश्चित तापमान पर वायु के किसी आयतन में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा तथा उसी तापमान पर उसी वायु को संतृप्त करने के लिए आवश्यक जलवाष्प की मात्रा के अनुपात को सापेक्ष (आपेक्षिक) आर्द्रता (Relative Humidity) कहते हैं। इसको प्रतिशत में प्रकट किया जाता है।

प्रश्न 2.
संघनन किसे कहते हैं? संघनन के विभिन्न रूपों के नाम बताते हुए किसी एक का वर्णन करें। अथवा बादल के विभिन्न रूपों का वर्णन करें।
उत्तर:
संघनन का अर्थ (Meaning of Condensation)-जिस क्रिया द्वारा वायु में उपस्थित जलवाष्प गैस अवस्था से द्रव अवस्था में परिवर्तित होता है, उसे संघनन कहते हैं। (Change of water vapour into water is called condensation)। वाय होने से जलवाष्प की शोषण करने की क्षमता कम हो जाती है। अतः तापमान कम हो जाने पर वायु में पहले से ही उपस्थित जलवाष्प की मात्रा से वायु संतृप्त हो जाती है। जिस तापमान पर वायु संतृप्त हो जाती है उसे ओसांक (Dew Point) कहते हैं। वायुमण्डल में सूक्ष्म धूल के कण, धुआँ तथा समुद्री नमक के महीन कण संघनन के केन्द्र होते हैं इन्हें संघनन केन्द्रक कहा जाता है। इन्हीं के द्वारा संघनन की प्रक्रिया होती है। संघनन की प्रक्रिया के लिए निम्नलिखित तत्त्व उत्तरदायी हैं

  • जब तापमान में कमी आ जाती है तो वह ओसांक बिन्दु तक पहुँच जाता है।
  • जब वायु की आर्द्रता धारण करने की क्षमता घटकर विद्यमान आर्द्रता की मात्रा से कम हो जाए।
  • जब वाष्पीकरण द्वारा वायु में आता की मात्रा में अतिरिक्त वृद्धि हो जाए।

संघनन के रूप (Forms of Condensation)-संघनन द्वारा निम्नलिखित स्वरूप विकसित होते हैं-

  • ओस
  • तुषार या पाला
  • कुहासा एवं कोहरा
  • बादल या मेघ

बादल या मेघ (Clouds)-वायुमण्डल में ऊँचाई पर जलकणों या हिमकणों के जमाव एवं संघनन को बादल कहते हैं। मेघों का निर्माण वायु के ऊपर उठने वाली वायु के ठण्डा होने से होता है। मेघ कोहरे का बड़ा रूप है जो वायुमण्डल में वायु के रुद्धोष्म प्रक्रिया द्वारा उसका तापमान ओसांक बिन्दु से नीचे आने से बनते हैं। बादलों की आकृति उनकी निर्माण प्रक्रिया पर आधारित है, लेकिन उनकी ऊँचाई, आकृति, रंग, घनत्व तथा प्रकाश के परावर्तन के आधार पर बादलों को निम्नलिखित चार रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है
1. पक्षाभ बादल (Cirrus Clouds) इस प्रकार के बादल आकाश में सबसे अधिक ऊँचाई पर रेशों की भाँति दिखाई देते हैं। ये सफेद रुई के समान बिखरे होते हैं। इनमें से सूर्य की किरणें आसानी से पार हो जाती हैं। जब ये बादल आकाश में झुण्ड के रूप में एकत्रित हो जाते हैं तो चक्रवात के आने की सम्भावना होती है।

2. कपासी बादल (Cumulus Clouds) कपास के ढेर के समान फैले हुए बादलों को कपासी बादल कहते हैं। कभी-कभी ये बादल लहरदार आकृति में भी देखने को मिलते हैं। इनकी ऊँचाई भी पक्षाभ बादलों के समान अधिक होती है। ये चपटे आधार वाले होते हैं।

3. स्तरी बादल (Startus Clouds)-दो विपरीत स्वभाव वाली पवनों के आपस में मिलने से इस प्रकार के बादलों का निर्माण होता है। ये आकाश में चादर की भाँति 2 कि०मी० की ऊँचाई तक फैले होते हैं। इनका निर्माण शीतोष्ण कटिबन्ध में शीत ऋतु में होता है।

4. वर्षा बादल (Nimbus Clouds) ये काले तथा घने रूप में कम ऊँचाई पर फैले होते हैं। इनसे पर्याप्त वर्षा होती है और वर्षा से पूर्व घने रूप में ये काली छटा के रूप में आकाश में फैल जाते हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 11 वायुमंडल में जल

प्रश्न 3.
वर्षा के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वर्षा के तीन प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं-

  • संवहनीय वर्षा
  • पर्वतीय वर्षा
  • चक्रवातीय वर्षा।

1. संवहनीय वर्षा (Convectional Rainfall) धरातल पर सूर्यातप के कारण वायु गर्म एवं हल्की होकर वायुमण्डल में उठती है और ऊपर जाकर फैलती है। फैलने से वायु के ठण्डी होने से उसका संघनन आरम्भ हो जाता है जिसके फलस्वरूप वर्षा होती है, इसे संवहनीय वर्षा कहते हैं। वायु के गर्म होकर ऊपर उठने से वायुमण्डल में संवहनीय धाराएँ चलने लगती हैं, इसलिए इसे संवहनीय वर्षा कहते हैं। विषुवतीय प्रदेशों में प्रतिदिन सुबह के समय धरातल गर्म होने से हवाएँ गर्म एवं हल्की होकर ऊपर उठती हैं, जिससे संवहनिक धाराएँ चला करती हैं और प्रतिदिन दोपहर बाद वर्षा होती है। भूमध्य रेखीय प्रदेशों में तापक्रम एवं आर्द्रता की अधिकता के कारण प्रत्येक दिन इस प्रकार की वर्षा होती है।

2 पर्वत-कृत वर्षा अथवा पर्वतीय वर्षा (Orographic Rainfall) जब गर्म वायु किसी समुद्री भाग के ऊपर से गुजरती है तो उसकी आर्द्रता ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती है और वह पर्याप्त आर्द्रता के साथ आगे बढ़ती है। जब उसके मार्ग में कोई पर्वत श्रेणी अथवा पर्वत चोटी आ जाती है, तो वह गर्म तथा आर्द्र हवा पर्वत के सहारे ऊपर चढ़ती है और ऊँचाई पर संघनन के कारण पर्वताभिमुखी ढाल पर (Windward Slope) पर्याप्त वर्षा करती है, लेकिन जैसे-जैसे ये हवाएँ पर्वत शिखर को पार करके पवनविमुखी ढाल की ओर उतरती हैं तो उनकी आर्द्रता समाप्त हो जाती है और ये शुष्क हो जाती हैं, इसलिए वर्षा नहीं करतीं। अतः दूसरी ओर का ढाल (पवनविमुखी) (Leeward Slope) वृष्टि छाया प्रदेश में आ जाता है। अरब सागर से वाष्प भरी हवाएँ मुम्बई में अधिक वर्षा करती हैं, लेकिन महाबलेश्वर पर्वत को पार करने के बाद उनकी आर्द्रता कम हो जाती है, इसलिए पुणे में मुम्बई की अपेक्षा बहुत कम वर्षा होती है।

3. चक्रवातीय वर्षा (Cyclonic Rainfall)-दो विपरीत स्वभाव वाली वायुराशियों के अभिसरण (Convergence) के कारण चक्रवाती वर्षा होती है। मध्य अक्षांशों (शीतोष्ण कटिबन्धों) में जब उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों से गर्म एवं आर्द्र हवाएँ और ध्रुवीय क्षेत्रों की ठण्डी एवं भारी हवाएँ आती हैं तो गर्म तथा उष्ण हवाएँ हल्की होने के कारण शीतल एवं भारी हवाओं के ऊपर चली जाती हैं तथा वायुमण्डल में ऊँचाई पर जाने से संघनन द्वारा वर्षा करती हैं, उसे चक्रवातीय वर्षा कहते हैं। शीत ऋतु में उत्तरी-पश्चिमी भारत में इस प्रकार की वर्षा होती है।

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. समुद्रतल पर वायुदाब कितना होता है?
(A) 1011 मिलीबार
(B) 34 मिलीबार/300 मीटर
(C) 1013 मिलीबार
(D) 36 मिलीबार/300 मीटर
उत्तर:
(B) 34 मिलीबार/300 मीटर

2. ऊँचाई के साथ वायुदाब किस दर से घटता है?
(A) 33 मिलीबार/300 मीटर
(B) 1012 मिलीबार मीटर
(C) 35 मिलीबार/300 मीटर
(D) 1014 मिलीबार मीटर
उत्तर:
(C) 35 मिलीबार/300 मीटर

3. भूमध्य रेखीय निम्न वायुदाब कटिबंध भूमध्य रेखा के उत्तर में कब खिसकता है?
(A) 21 जून
(B) 22 सितंबर
(C) 25 दिसम्बर
(D) 23 मार्च
उत्तर:
(A) 21 जून

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

4. समुद्रतल पर एक वर्ग इंच क्षेत्रफल पर वायु का कितना भार होता है?
(A) 5.68 कि०ग्रा०
(B) 6.68 किग्रा०
(C) 6.75 कि०ग्रा०
(D) 6.80 कि०ग्रा०
उत्तर:
(D) 6.80 कि०ग्रा०

5. वायुदाब मापने के स्वचालित यंत्र को कहते हैं-
(A) बैरोमीटर
(B) थर्मामीटर
(C) थर्मोग्राफ
(D) बैरोग्राफ
उत्तर:
(D) बैरोग्राफ

6. समुद्रतल के अनुसार समानीत समान वायुदाब वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा कहलाती है-
(A) समदाब रेखा
(B) समताप रेखा
(C) समोच्च रेखा
(D) समवर्षा रेखा
उत्तर:
(A) समदाब रेखा

7. कौन-सा बल वायुमंडल को भू-पृष्ठ से परे धकेलता है?
(A) अपकेंद्री बल
(B) अभिकेंद्री बल
(C) उत्पलावकता बल
(D) गुरुत्वाकर्षण बल
उत्तर:
(A) अपकेंद्री बल

8. किस वायुदाब पेटी को डोलड्रम या शांतपेटी कहते हैं?
(A) उपध्रुवीय निम्न-दाब कटिबंध
(B) उपोष्ण उच्च-दाब कटिबंध
(C) भूमध्य-रेखीय निम्न-दाब कटिबंध
(D) ध्रुवीय उच्च-दाब कटिबंध
उत्तर:
(C) भूमध्य-रेखीय निम्न-दाब कटिबंध

9. भूमध्य रेखीय निम्न दाब कटिबंध तथा ध्रुवीय उच्च-दाब कटिबंध हैं-
(A) दाब प्रेरित
(B) ताप प्रेरित
(C) गति प्रेरित
(D) दिशा प्रेरित
उत्तर:
(B) ताप प्रेरित

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

10. तापमान के बढ़ने पर वायुदाब-
(A) घटता है
(B) बढ़ता है
(C) वही रहता है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) घटता है

11. लगभग ऊर्ध्वाधर दिशा में गतिमान वायु को कहा जाता है-
(A) जेट प्रवाह
(B) लंबवत् पवन
(C) चक्रवात
(D) वायु धारा
उत्तर:
(B) लंबवत् पवन

12. निम्नलिखित में से कौन-सी पवनें भूमंडलीय पवनें नहीं हैं?
(A) मानसून पवनें
(B) स्थायी पवनें
(C) पछुवा पवनें
(D) ध्रुवीय पवनें
उत्तर:
(A) मानसून पवनें

13. पृथ्वी के घूर्णन के कारण पवनों का अपनी मूल दिशा से विक्षेपित हो जाना कहलाता है-
(A) आभासी प्रभाव
(B) फैरल का नियम
(C) कॉरिआलिस प्रभाव
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

14. पछुवा (बहादुर) पवनें बहती हैं-
(A) उत्तरी अंध महासागर में
(B) उत्तरी प्रशांत महासागर में
(C) उत्तरी गोलार्द्ध में
(D) दक्षिणी गोलार्द्ध में
उत्तर:
(D) दक्षिणी गोलार्द्ध में

15. पश्चिमी यूरोप, पश्चिमी कनाडा व दक्षिणी-पश्चिमी चिली में कौन-सी पवनें वर्ष-भर वर्षा नहीं करती?
(A) पछुवा पवनें
(B) ध्रुवीय पवनें
(C) सन्मार्गी पवनें
(D) जल-समीरें
उत्तर:
(A) पछुवा पवनें

16. अपेक्षाकृत ठडे अक्षांशों से भूमध्य रेखा की ओर जाने वाली सन्मार्गी पवनें कहाँ वर्षा नहीं करती?
(A) पर्वतों पर
(B) महाद्वीपों के पूर्वी तटों पर
(C) महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर
(D) महासागरों पर
उत्तर:
(C) महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर

17. गर्म व शुष्क शिनूक पवनें किस पर्वत के पूर्वी ढलानों से उतरती हैं?
(A) हिमालय
(B) रॉकीज
(C) एंडीज
(D) आल्प्स
उत्तर:
(B) रॉकीज

18. आल्प्स पर्वत को पार करके स्विट्ज़रलैंड की घाटियों में बहने वाली शुष्क, गर्म और तूफानी पवनों को कहते हैं-
(A) मिस्ट्रल
(B) फोएन
(C) बोरा
(D) खमसिन
उत्तर:
(B) फोएन

19. फ्राँस व स्पेन के तटों पर बहने वाली प्रचंड, शुष्क व ठंडी पवन कहलाती है
(A) हरमाट्टन
(B) बोरा
(C) मिस्ट्रल
(D) सिरोको
उत्तर:
(C) मिस्ट्रल

20. निम्नलिखित में से कौन-सी ठंडी स्थानीय पवन नहीं है?
(A) मिस्ट्रल
(B) बोरा
(C) खमसिन
(D) ब्लिजार्ड
उत्तर:
(C) खमसिन

21. भूमध्यरेखीय उष्ण एवं आर्द्र जलवायु की उमस से त्रस्त गिनी प्रदेश के निवासियों को कौन-सी सुखद और स्वास्थ्यप्रद पवन राहत पहुँचाती है?
(A) हरमाट्टन
(B) हिमहरिणी
(C) ब्रिकफील्डर
(D) लेवीची
उत्तर:
(A) हरमाट्टन

22. ब्यूफोर्ट स्केल पर ब्यूफोर्ट कोड-12 अधिसूचित करता है-
(A) शांत पवन को
(B) झंझावात को
(C) हरीकेन को
(D) तूफान को
उत्तर:
(C) हरीकेन को

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23. निम्नलिखित युग्मों में से कौन-सा सुमेलित नहीं है?
(A) हरीकेन : यू०एस०ए०
(B) टाइफून : चीन
(C) सिरोक्को : ऑस्ट्रेलिया
(D) मिस्ट्रल : स्पेन
उत्तर:
(C) सिरोक्को : ऑस्ट्रेलिया

24. सन्मार्गी पवनें किन अक्षांशों के बीच चलती हैं?
(A) 23° उत्तरी-दक्षिणी अक्षांश के बीच
(B) 25° उत्तरी-दक्षिणी अक्षांश के बीच
(C) 30° से 5° उत्तरी-दक्षिणी अक्षांश के बीच
(D) 40° उत्तरी-दक्षिणी अक्षांश के बीच
उत्तर:
(C) 30° से 5° उत्तरी-दक्षिणी अक्षांश के बीच

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
वर्तमान में वायुमंडलीय दाब मापने के लिए किस इकाई का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
हैक्टोपास्कल इकाई का।

प्रश्न 2.
समुद्र-तल पर वायुदाब कितना होता है?
उत्तर:
1013 मिलीबार।

प्रश्न 3.
ऊँचाई के साथ वायदाब किस दर से घटता है?
अथवा
क्षोभमंडल में ऊँचाई के साथ वायुमंडलीय दबाव कम होने की क्या दर है?
उत्तर:
34 मिलीबार प्रति 300 मीटर।

प्रश्न 4.
किस बल के प्रभाव से पवन अपनी दिशा बदल देती है?
उत्तर:
कॉरिआलिस प्रभाव।

प्रश्न 5.
पवनों के विक्षेपण सम्बंधी नियम का सूत्रधार कौन था?
उत्तर:
अमेरिकी विद्वान फैरल।

प्रश्न 6.
भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब कटिबंध भूमध्य रेखा के उत्तर में कब खिसकता है?
उत्तर:
21 जून को।

प्रश्न 7.
शिनूक (Chinook) का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर:
हिमभक्षी।

प्रश्न 8.
मिस्ट्रल पवन कौन-सी घाटी में बहती है?
उत्तर:
रोन घाटी में।

प्रश्न 9.
समुद्र-तल पर एक वर्ग सें०मी० क्षेत्रफल पर वायु का कितना भार होता है?
उत्तर:
1.03 किलोग्राम।

प्रश्न 10.
समुद्र-तल पर एक वर्ग इंच क्षेत्रफल पर वायु का कितना भार होता है?
उत्तर:
6.68 किलोग्राम।

प्रश्न 11.
हमारे शरीर पर कितना वायुमंडलीय दबाव पड़ता है?
उत्तर:
लगभग एक टन।

प्रश्न 12.
वायुदाब कटिबंध कितने हैं?
उत्तर:
सात।

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प्रश्न 13.
लगभग ऊर्ध्वाधर दिशा में गतिमान वायु को क्या कहते हैं?
उत्तर:
वायुधारा।

प्रश्न 14.
आल्पस से उतरकर स्विट्ज़रलैण्ड में चलने वाली हवाएँ क्या कहलाती हैं?
उत्तर:
फोएन हवाएँ।

प्रश्न 15.
दिन के समय समुद्र से तट की ओर चलने वाली आर्द्र व ठण्डी पवनों को क्या कहते हैं?
उत्तर:
जल-समीर।

प्रश्न 16.
रात के समय समुद्र से तट की ओर चलने वाली शुष्क पवन को क्या कहते हैं?
उत्तर:
स्थल समीर।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
शान्त कटिबंध या डोलड्रम्स किसे कहा जाता है?
उत्तर:
भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब कटिबंध को।

प्रश्न 2.
कॉरिआलिस प्रभाव कौन-से नियम द्वारा जाना जाता है?
उत्तर:
बाइज़ बैलेट अथवा फैरल का नियम।

प्रश्न 3.
कॉरिआलिस प्रभाव के अधीन विक्षेप बल कहाँ अधिकतम व कहाँ न्यूनतम होता है?
उत्तर:
ध्रुवों पर अधिकतम व भूमध्य रेखा पर न्यूनतम।

प्रश्न 4.
तीन प्रकार की स्थायी पंवनों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. सन्मार्गी
  2. पछुवा
  3. ध्रुवीय।

प्रश्न 5.
सन्मार्गी पवनें किन अक्षांशों के बीच चलती हैं?
उत्तर:
30° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों के बीच।

प्रश्न 6.
पछुवा पवनें किन अक्षांशों के बीच चलती हैं?
उत्तर:
30°-40° से 50°-60° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों के बीच।

प्रश्न 7.
पवनें क्यों चलती हैं?
उत्तर:
वायुदाब में अन्तर आ जाने से।

प्रश्न 8.
‘डॉक्टर’ नामक पवन कहाँ चलती है? उसका असली नाम क्या है?
उत्तर:
‘डॉक्टर’ नामक पवन अफ्रीका के गिनी तट पर चलती है। इसका असली नाम हरमट्टन है।

प्रश्न 9.
गरजता चालीसा व प्रचण्ड पचासा कहाँ स्थित हैं?
उत्तर:
40° और 50° दक्षिणी अक्षांशों पर।

प्रश्न 10.
वायु में भार कैसे पैदा होता है?
उत्तर:
पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण।

प्रश्न 11.
वायुदाब और तापमान में क्या सम्बंध है?
उत्तर:
तापमान बढ़ने पर वायुदाब घटता है।

प्रश्न 12.
किसी स्थान का वायुदाब किन कारकों पर निर्भर करता है?
उत्तर:

  1. तापमान
  2. समुद्र-तल से ऊँचाई
  3. जलवाष्प
  4. दैनिक गति।

प्रश्न 13.
वायुमंडल के दबाव को मापने वाले यन्त्र का नाम बताएँ।
उत्तर:
बैरोमीटर तथा बैरोग्राफ़।

प्रश्न 14.
वायुमंडलीय दाब को मापने की कौन-सी तीन इकाइयाँ हैं?
उत्तर:

  1. इंच
  2. सेंटीमीटर
  3. मिलीबार।

प्रश्न 15.
समुद्र-तल पर सामान्य वायुदाब को तीन इकाइयों में व्यक्त कीजिए।
उत्तर:

  1. 29.92 इंच
  2. 76 सेंटीमीटर या 760 मिलीमीटर
  3. 1013.2 मिलीबार।

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प्रश्न 16.
मिलीबार क्या होता है?
उत्तर:
1000 डाइन प्रति वर्ग से०मी० के बराबर शक्ति।

प्रश्न 17.
उच्च वायुदाब की दशा में आकाश स्वच्छ कैसे रहता है?
उत्तर:
उच्च वायुदाब में वायु नीचे बैठती है जिससे वाष्पों का संघनन नहीं हो पाता।

प्रश्न 18.
तेजी से गिरता हुआ वायुदाब किस मौसम की सूचना देता है?
उत्तर:
चक्रवात, वर्षा तथा आँधी का पूर्वानुमान बताता है।

प्रश्न 19.
ताप-प्रेरित वायुदाब कटिबंध कौन-से हैं?
उत्तर:
भूमध्य रेखा पर निम्न दाब कटिबंध और ध्रवों पर उच्च दाब कटिबंध।

प्रश्न 20.
गति-प्रेरित वायुदाब कटिबंध कौन-से हैं?
उत्तर:
दोनों गोलार्डों में उपोष्ण उच्च-दाब कटिबंध तथा उप-ध्रुवीय निम्न-वायुदाब कटिबंध।

प्रश्न 21.
वायुदाब के सात कटिबंधों का निर्माण क्यों हुआ है?
उत्तर:
विभिन्न अक्षांशों पर सूर्यातप के अन्तर और पृथ्वी की दैनिक गति के प्रभाव के कारण।

प्रश्न 22.
भूमध्य रेखीय कटिबंध को शान्तमंडल या डोलड्रम क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
क्योंकि इस पेटी में वायु का क्षैतिज संचलन न होने के कारण पवनें नहीं चलतीं।

प्रश्न 23.
भूमध्य रेखीय निम्न-दाब कटिबंध का विस्तार लिखिए।
उत्तर:
भूमध्य रेखा से 10° उत्तरी व 10° दक्षिणी अक्षांशों के बीच।

प्रश्न 24.
उपोष्ण उच्च-दाब कटिबंध का विस्तार बताएँ।
उत्तर:
उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्डों में कर्क और मकर रेखाओं से 35° अक्षांश के बीच।

प्रश्न 25.
उप-ध्रुवीय निम्न-दाब कटिबंध का विस्तार बताइए।
उत्तर:
45° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों के आर्कटिक व अंटार्कटिक (66/2° उ० व द० वृत्तों) के बीच।

प्रश्न 26.
दो अलग-अलग ‘शान्त’ वायुदाब पेटियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. भूमध्य रेखीय निम्न-दाब कटिबंध शान्तमंडल अथवा डोलड्रम कहलाता है।
  2. उपोष्ण उच्च-दाब कटिबंध शान्त कटिबंध (Belt of Calm) या अश्व अक्षांश कहलाता है।

प्रश्न 27.
स्थायी पवनें किन्हें कहा जाता है?
उत्तर:
वे पवनें जो सारा वर्ष एक ही दिशा में चलती हैं, स्थायी पवनें कहलाती हैं।

प्रश्न 28.
पूर्वी पवनें कौन-सी होती हैं?
उत्तर:
सन्मार्गी या व्यापारिक पवनें।

प्रश्न 29.
सन्मार्गी पवनों को उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में क्या कहते हैं?
उत्तर:
क्रमशः उत्तर-पूर्वी सन्मार्गी पवनें तथा दक्षिण-पूर्वी सन्मार्गी पवनें।

प्रश्न 30.
व्यापारिक (सन्मार्गी) पवनों के क्षेत्र में शुष्क प्रदेश अथवा मरुस्थल कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर:
महाद्वीपों के पश्चिमी भागों पर।

प्रश्न 31.
उत्तरी गोलार्द्ध में पछुवा पवनों की क्या दिशा होती है?
उत्तर:
दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व।

प्रश्न 32.
पछुवा पवनें कहाँ वर्षा करती हैं?
उत्तर:
शीतोष्ण कटिबंधों में स्थित महाद्वीपों के पश्चिमी भागों में।

प्रश्न 33.
शीतोष्ण चक्रवात किन पवनों के साथ चलते हैं?
उत्तर:
पछुवा पवनों के साथ।

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प्रश्न 34.
ध्रुवीय पवनें शुष्क क्यों होती हैं?
उत्तर:
क्योंकि इन ठण्डी पवनों में जलवाष्प ग्रहण करने की क्षमता नहीं होती।

प्रश्न 35.
आवर्ती पवनों की क्या विशेषता होती है?
उत्तर:
समय के एक निश्चित अन्तराल के बाद इन पवनों की प्रवाह-दिशा उलट जाती है।

प्रश्न 36.
मानसून पवनें क्या होती हैं?
उत्तर:
वे पवनें जिनकी मौसम के अनुसार प्रवाह दिशा बदल जाती है।

प्रश्न 37.
चक्रवाती परिसंचरण क्या है?
उत्तर:
निम्न दाब क्षेत्र के चारों ओर पवनों का परिक्रमण चक्रवाती परिसंचरण कहलाता है।

प्रश्न 38.
‘मानसून’ शब्द की उत्पत्ति कहाँ से हुई है?
उत्तर:
‘मानसन’ शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के शब्द ‘मौसिम’ से हुई है।

प्रश्न 39.
चार ठण्डी स्थानीय पवनों के नाम बताएँ।
उत्तर:
यूरोप में मिस्ट्रल व बोरा, साइबोरिया में बुरान तथा अर्जेन्टाइना में पम्पेरो।

प्रश्न 40.
घाटी समीर क्या होती है?
उत्तर:
दिन के समय घाटी की गर्म वायु का पर्वतीय ढाल के साथ ऊपर उठना।

प्रश्न 41.
पर्वत समीर किसे कहते हैं?
उत्तर:
रात के समय पर्वतीय ढाल से घाटी की ओर बैठती वायु।

प्रश्न 42.
वातान किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब दो भिन्न प्रकार की वायुराशियाँ मिलती हैं तो उनके मध्य सीमा क्षेत्र को वाताग्र कहते हैं।

प्रश्न 43.
वाताग्र-जनन क्या है?
उत्तर:
वाताग्र-जनन (Frontogenesis) वातारों के बनने की प्रक्रिया को कहते हैं।

प्रश्न 44.
वाताग्र कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
वाताग्र चार प्रकार के होते हैं-

  1. उष्ण वाताग्र
  2. अचर वाताग्र
  3. शीत वाताग्र
  4. अधिविष्ट वाताग्र।

प्रश्न 45.
समदाब रेखाएँ किसे कहते हैं?
उत्तर:
समदाब रेखाएँ संमदाब रेखाओं को अंग्रेजी में ‘Isobar’ कहते हैं। “Iso’ का अभिप्राय समान तथा ‘bars’ का अभिप्राय दाब होता है अर्थात् समान दाब वाली रेखाएँ।

प्रश्न 46.
समुद्र-तल पर सामान्य औसत वायुदाब कितने मिलीबार होता है?
उत्तर:
समुद्र-तल पर वायु का दबाव 1.03 किग्रा० प्रति वर्ग सें०मी० होता है। वायुमंडल का सामान्य दाब 45° अक्षांश पर तथा समुद्र-तल पर 29.92 इंच अथवा 76 सें०मी० होता है। यह 1,013.25 मिलीबार के बराबर होता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वायुमंडलीय दाब किसे कहते हैं?
उत्तर:
भू-पृष्ठ के ऊपर कई किलोमीटर की ऊँचाई में वायुमंडल पृथ्वी तल पर दबाव उत्पन्न करता है। वायुमंडल गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण पृथ्वी पर टिका हुआ है। वायुदाब साधारण रूप से कई गैसों का मिश्रण है जो भार-युक्त है। अन्य वस्तुओं की भाँति वायु का भी भार अथवा दबाव होता है। वायु का जब पृथ्वी के ऊपर भार पड़ता है तो उसे वायुमंडलीय दाब कहते हैं। भूमि के ऊपर लगभग एक किलोग्राम वायुदाब होता है। समुद्र-तल पर सामान्य दशाओं में 76 सें०मी० वायुमंडलीय भार 1,013.25 मिलीबार के बराबर होता है।

प्रश्न 2.
दाब प्रवणता किसे कहते हैं?
उत्तर:
मानचित्र पर वायुदाब समदाब रेखाओं द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। समदाब रेखाएँ वे कल्पित रेखाएँ हैं जो समुद्र-तल से समान वायुदाब वाले स्थानों को मिलाती हैं। समदाब रेखाओं के बीच की दूरी वायुदाब के परिवर्तन की स्थिति दिखाती है। वायुदाब में परिवर्तन की दर को दाब प्रवणता कहते हैं। यदि समदाब रेखाएँ पास-पास हैं तो इसका तात्पर्य है कि धरातल पर थोड़ी दूर जाने पर दबाव अधिक बढ़ रहा है। इसलिए पास-पास वाली रेखाएँ तीव्र दाब को प्रदर्शित करती हैं, जबकि दूर वाली दाब रेखाएँ मन्द-दाब प्रवणता को दर्शाती हैं। तीव्र-दाब प्रवणता में पवनें तेज गति से चलती हैं तथा मन्द-दाब प्रवणता में पवनें धीमी गति से चलती हैं।

प्रश्न 3.
एक मिलीबार किसे कहते हैं? वायुदाब की माप इकाइयों में क्या संबंध है?
उत्तर:
एक मिलीबार-एक वर्ग सें०मी० पर एक ग्राम के बल अथवा एक हजार डाइन प्रति वर्ग सें०मी० के वायुभार को एक मिलीबार कहते हैं।
विभिन्न माप इकाइयों में संबंध-
30 इंच वायुदाब = 76 सें०मी० = 1,013.25 मिलीबार
1 इंच वायुदाब = 34 मिलीबार।
1 सें०मी० वायुदाब = 13.3 मिलीबार।

प्रश्न 4.
वायुराशियाँ (Air Masses) क्या है?
उत्तर:
वायुमंडल में एक विस्तृत भाग पर तापक्रम, आर्द्रता आदि भौतिक गुणों की समानता रखने वाली पवनों को वायुराशियाँ कहते हैं। वायुराशियों की मुख्य रूप से दो विशेषताएँ होती हैं, जिनमें तापमान का लम्बवत् वितरण और आर्द्रता की उपस्थिति शामिल हैं। इन्हीं विशेषताओं के कारण तापमान के लम्बवत् वितरण पर ही उनकी ऊष्मा तथा शीतलता निर्भर करती है। जो वायुराशियाँ स्थिर होती हैं, वे प्रायः ठण्डी तथा शुष्क होती हैं। ये वर्षा नहीं करतीं, परन्तु गतिशील तथा गर्म वायुराशियाँ वर्षा करती हैं। वायुराशि वायु से भिन्न है। वायुराशि में वायु-धाराएँ ऊपर उठती हैं तथा एक विस्तृत क्षेत्र में तापमान तथा आर्द्रता में समानता होती है, परन्तु वायु भूतल के समानान्तर चलती है तथा इसकी विभिन्न परतों में तापमान तथा आर्द्रता में भिन्नता पाई जाती है।

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प्रश्न 5.
कॉरिआलिस बल की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यदि पृथ्वी स्थिर होती और उसका धरातल एक-समान होता तो पवनें सीधी उच्च वायुदाब की ओर चलतीं। किन्तु न ही उसका धरातल एक-समान है, इसलिए वायु सीधी न चलकर वक्राकार मार्ग पर चलती है। वायु की दिशा में परिवर्तन लाने में पृथ्वी की दैनिक गति का सबसे बड़ा हाथ है। पृथ्वी की दैनिक गति के कारण एक प्रभाव उत्पन्न होता है जिसे ‘कॉरिआलिस बल’ अथवा कॉरिआलिस प्रभाव (Coriolis Force or Coriolis Effect) कहते हैं। इसके कारण पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दाईं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बाईं ओर मुड़ जाती हैं। इस तथ्य को सबसे पहले 1844 ई० में फैरल महोदय ने बताया था इसलिए इसे फैरल का नियम कहते हैं। फैरल के नियम (Ferrel’s Law) के अनुसार, भूमध्य रेखा पर कोई विक्षेप नहीं होता। 30° अक्षांशों पर 50%, 60° अक्षांशों पर 86.7% तथा ध्रुवों पर 100% विक्षेप हो जाता है।

प्रश्न 6.
पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले कारक बताइए।
उत्तर:
पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-

  1. भूतल पर धरातलीय विषमताओं के कारण घर्षण पैदा होता है जो पवनों की गति को प्रभावित करता है।
  2. पृथ्वी के घूर्णन से भी पवनों का वेग प्रभावित होता है।
  3. कॉरिआलिस बल के कारण भी पवनों की दिशा प्रभावित होती है।

प्रश्न 7.
अश्व अक्षांश क्या हैं?
उत्तर:
231/2° से 35° के मध्य अक्षांशों को ‘अश्व अक्षांश’ कहते हैं, क्योंकि मध्य युग में पश्चिमी द्वीप समूहों से यूरोप को पालदार जलयानों के द्वारा घोड़े भेजे जाते थे। इन अक्षांशों पर आने पर अधिक वायुदाब के कारण ये जहाज आगे नहीं बढ़ पाते थे। इन जहाजों का भार कम करने के लिए कुछ घोड़े समुद्र में फेंक दिए जाते थे। कर्क रेखा तथा मकर रेखा के निकट का यह क्षेत्र शान्तमंडल कहलाता है। यहाँ पवनें भू-तल के समानान्तर नहीं चलतीं। यहाँ पवनें ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर की ओर चलती हैं। यहाँ वायुमंडल शान्त रहता है तथा मौसम साफ होता है। निरन्तर नीचे उतरती हुई वायु के कारण यहाँ अधिक वायुदाब होता है तथा इन अक्षांशों से पवनें ध्रुवों की ओर पछुवा पवनों के रूप में तथा विषुवत् रेखा की ओर व्यापारिक पवनों के रूप में चलती हैं।

प्रश्न 8.
बहिरूपण कटिबंधीय चक्रवात और उष्ण कटिबंधीय चक्रवात में क्या अन्तर है?
उत्तर:
बहिरूपण कटिबंधीय चक्रवात और उष्ण कटिबंधीय चक्रवात में निम्नलिखित अन्तर हैं-

बहिरूपण कंटिबंधीय चक्रवातउष्ण कटिबंधीय चक्रवात
1. बहिरूपण चक्रवात स्थल व सागर दोनों प्रदेशों पर ही उत्पन्न व विकसित होते हैं।1. उष्ण चक्रवात प्रायः महासागरों पर ही उत्पन्न व विकसित होते हैं और स्थल-खण्ड में प्रवेश करते ही इनका लोप होने लगता है।
2. ये प्रायः शीत ऋतु में उत्पन्न होते हैं।2. ये ग्रीष्म ऋतु में अधिक उत्पन्न होते हैं।
3. इनकी समदाब रेखाएँ प्रायः दीर्धवृत्ताकार होती हैं।3. इनकी समदाब रेखाएँ प्रायः वृत्ताकार होती हैं।
4. ये चक्रवात हजारों वर्ग किलोमीटर में फैले हुए होते हैं। इनका व्यास प्राय: 800 से 1600 किलोमीटर तक होता है।4. इन चक्रवातों का विस्तार बहुत कम होता है। इनका व्यास प्रायः 300 से 1000 किलोमीटर तक होता है।
5. अधिक विस्तार होने के कारण इन चक्रवातों में वायुदाब प्रवणता मन्द होती है।5. कम विस्तार होने के कारण इनमें वायुदाब प्रवणता तीव्र होती है।

प्रश्न 9.
डोलड्रम किसे कहते हैं?
उत्तर:
डोलड्रम एक शान्त क्षेत्र है जो भूमध्य रेखा के दोनों ओर 5°N तथा 5°S के मध्य स्थित है। यह भूमध्य रेखा शान्त-खण्ड भी कहलाता है। यहाँ भू-तल पर चलने वाली पवनें नहीं होतीं। यहाँ धीमी तथा शान्त वायु बहती है। इसका प्रमुख कारण सूर्य का यहाँ लगभग लम्बवत् रूप से चमकना है। यहाँ तापमान अधिक होता है। वायु गर्म तथा हल्की होकर संवाहिक धाराओं के रूप में ऊपर उठती है जिससे इस क्षेत्र में वायुदाब कम हो जाता है।

प्रश्न 10.
पर्वत-समीर तथा घाटी-समीर क्या होती हैं?
उत्तर:
ये समीरें मुख्य रूप से दैनिक पवनें हैं जो दैनिक तापान्तर के प्रभाव से वायुदाब की भिन्नता के कारण चलती हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में रात्रि के समय पर्वत शिखर से घाटी की ओर ठण्डी तथा भारी चलने वाली वायु को पर्वत-समीर कहते हैं। इन पवनों के कारण घाटियाँ ठण्डी वायु से भर जाती हैं जिससे घाटी के निचले क्षेत्र में पाला पड़ता है। दिन के समय घाटी की गर्म वायु पर्वतीय ढाल के साथ-साथ पर्वतीय शिखर की ओर चलती है जिसे घाटी-समीर कहते हैं। ज्यों-ज्यों ये पवनें ऊपर की ओर जाती हैं, त्यों-त्यों ये ठण्डी होकर भारी वर्षा करती हैं।

प्रश्न 11.
व्यापारिक या सन्मार्गी पवनें क्या हैं?
उत्तर:
व्यापारिक पवनें स्थायी पवनें हैं। ये पवनें उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबंधों से (लगभग 30° उत्तरी तथा दक्षिणी अक्षांश) विषुवतीय निम्न-वायुदाब कटिबंध की ओर दोनों गोलार्डों में चलती हैं। ये पवनें महाद्वीपों के पूर्वी भागों में वर्षा करती हैं। पश्चिमी क्षेत्रों में पहुँचते-पहुँचते ये पवनें शुष्क हो जाती हैं, इसलिए महाद्वीपों के पश्चिम में मरुस्थल पाए जाते हैं। जब व्यापारिक पवनें दोनों गोलार्डों से विषुवत रेखा के निकट आपस में टकराती हैं तो ऊपर उठकर घनघोर वर्षा करती हैं। हिन्द महासागर में ये पवनें मानसून पवनों का रूप धारण करके दक्षिण-पूर्वी एशिया में मानसूनी वर्षा करती हैं।

प्रश्न 12.
फैरल का नियम क्या है?
उत्तर:
भू-तल पर पवनें कभी सीधे रूप से उत्तर से दक्षिण या दक्षिण से उत्तर की ओर नहीं चलतीं। सभी पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दाईं ओर तथा दक्षिण गोलार्द्ध में अपनी बाईं ओर मुड़ जाती हैं। इसे फैरल का नियम कहते हैं। वायु की दिशा में यह परिवर्तन पृथ्वी की दैनिक गति के कारण होता है। जब पवनें कम गति वाले क्षेत्रों से अधिक गति वाले क्षेत्रों की तरफ आती हैं तो पीछे रह जाती हैं। इस विक्षेप शक्ति को कॉरिआलिस बल कहते हैं।

प्रश्न 13.
“मानसूनी पवन सामान्य भूमंडलीय पवन तन्त्र का ही रूपान्तरण है।” इस कथन की व्याख्या करें।
उत्तर:
मानूसन पवनें मौसम में परिवर्तन के अनुसार अपनी दिशा में परिवर्तन कर लेती हैं। वैज्ञानिक इन्हें बड़े पैमाने की मानते हैं, क्योंकि मानसन पवनों की उत्पत्ति का प्रमुख कारण जल तथा स्थल में तापक्रम की भिन्नता है। मानसून की उत्पत्ति के विषय में उपलब्ध वर्तमान सिद्धान्तों में फ्लोन का सिद्धान्त सर्वमान्य है। इस सिद्धान्त के अनुसार, मानसूनी तन्त्र भू-मंडलीय पवन तन्त्र का ही रूपान्तरित रूप है। ग्रीष्मकाल में जब सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध में चमकता है तो उपोष्ण उच्च वायुदाब तथा तापीय भूमध्य रेखा उत्तर की ओर खिसक जाते हैं।

एशिया में भू-खण्ड के प्रभाव के कारण यह प्रक्रिया बड़े पैमाने पर होती है जिससे उष्ण कटिबंधीय व्यापारिक पवन और विषुवतीय पछुवा पवन भी उत्तर की ओर खिसक जाती है। पवनें महासागर से महाद्वीपों की ओर चलने लगती हैं जिन्हें दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पवनें कहते हैं। शीत ऋतु में उपोष्ण उच्च-वायुदाब कटिबंध तथा तापीय भूमध्य रेखा दक्षिण की ओर वापस अपनी पुरानी स्थिति पर लौट आते हैं जिससे सामान्य व्यापारिक चक्र स्थापित हो जाता है जिसे उत्तरी-पूर्वी मानसून पवन कहते हैं। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि भू-मंडलीय पवन तन्त्र में चलने वाली व्यापारिक पवनों के स्थान पर मानूसन पवनें चलने लगती हैं।

प्रश्न 14.
पृथ्वी के धरातल पर कुछ वायुदाब कटिबंध तापीय कारणों से नहीं, बल्कि गतिक कारणों से उत्पन्न हुए हैं। ये कटिबंध कौन से हैं? इनकी उत्पत्ति की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी के धरातल पर विषुवत् रेखा तथा ध्रुवों के मध्य उपोष्ण उच्च-वायुदाब तथा उप-ध्रुवीय निम्न-वायुदाब की उत्पत्ति गतिक-कारणों से होती है। विषुवत् रेखा से सूर्य की गर्मी के कारण वायु गर्म होकर ऊपर उठती है तथा ठण्डी तथा भारी होकर 30° अक्षांशों के निकट नीचे उतरती है तथा पृथ्वी की दैनिक गति के कारण ध्रुवों से आने वाली वायु भी इन्हीं अक्षांशों में नीचे उतरती है जिसके कारण इन अक्षांशों पर उच्च-वायुदाब की पेटी बन जाती है। उपध्रुवीय निम्न-वायुदाब की उत्पत्ति का मुख्य कारण भी यही है। पृथ्वी की दैनिक गति के कारण ही 60° अक्षांशों के निकट की वायु के विषुवत् रेखा तथा ध्रुवों की ओर खिसकने के कारण ही यहाँ निम्न वायुदाब का क्षेत्र बनता है।

प्रश्न 15.
“मानसून पवनें एक बड़े पैमाने पर जल-समीर तथा स्थल-समीर हैं।” व्याख्या करें।
उत्तर:
‘मानूसन’ शब्द अरबी भाषा के शब्द ‘मौसिम’ से बना है, जिसका अर्थ है-मौसम। अतः मानसूनी पवनें वे पवनें हैं जो मौसमानुसार दिशा में चलती हैं। ये पवनें 6 मास तक ग्रीष्मकाल में दक्षिण दिशा से तथा 6 मास तक शीतकाल में उत्तर दिशा से चलती हैं। ग्रीष्मकाल में ये पवनें सागरों से स्थल की ओर तथा शीतकाल में स्थल से सागरों की ओर चलती हैं। इनकी उत्पत्ति जल तथा स्थल के गर्म तथा ठण्डा होने में पाई जाने वाली भिन्नता है। स्थलीय भाग जल की अपेक्षा शीघ्र गर्म होता है तथा शीघ्र ही ठण्डा होता है।

इसलिए दिन के समय सागर के निकट स्थल भाग पर कम वायुदाब होता है तथा सागर में कम तापमान के कारण वायुदाब अधिक होता है जिसके कारण सागर से स्थल की ओर जल-समीर चलने लगती है, परन्तु रात्रि के समय वह स्थिति विपरीत हो जाती है, जिससे स्थल से सागर की ओर स्थल-समीर चलने लगती है। इस प्रकार प्रतिदिन वायु की दिशा में परिवर्तन आता रहता है, परन्तु मानूसन पवनों की दिशा में परिवर्तन, मौसम में परिवर्तन के कारण होता है तथा पवनें सागरीय तट के निकट चलने के स्थान पर पूरे महाद्वीप पर चलती हैं। इसलिए मानूसन पवनों को विस्तृत स्तर पर जल-समीर तथा स्थल-समीर का रूप मानते हैं।

प्रश्न 16.
पवन की परिभाषा देते हुए स्पष्ट कीजिए कि पवनों की उत्पत्ति किस प्रकार की होती है?
उत्तर:
पवन (Wind) भू-पृष्ठ के सहारे क्षैतिज बहती हुई हवा (Air) को पवन (Wind) कहते हैं। पवनें पृथ्वी पर वायुदाब में क्षैतिज अन्तर के कारण चलती हैं। जिस प्रकार जल अपना तल बराबर रखने के लिए ऊँचे स्थानों से निचले स्थानों की ओर बहता है उसी प्रकार वायु भी अपने दबाव में सन्तुलन बनाए रखने के लिए उच्च-वायुदाब वाले क्षेत्रों से निम्न-वायुदाब वाले क्षेत्रों की ओर चलती है। यह प्रकृति का नियम है। पवनों के नाम उस दिशा के अनुसार रखे जाते हैं जिनसे वे बहकर आती हैं।

लगभग ऊर्ध्वाधर (Vertical) दिशा में गतिमान वायु को वायुधारा (Air Current) कहा जाता है। पवनें और वायुधाराएँ दोनों मिलकर वायुमंडल में एक संचार तन्त्र (Circulation System) स्थापित करती हैं। पवनों की उत्पत्ति (Origin of Winds)-पवन की उत्पत्ति अत्यन्त जटिल होती है। पवन की उत्पत्ति का प्रत्यक्ष कारण वायुदाब का अन्तर होता है लेकिन पवन का मूल प्रेरक बल सौर विकिरण होता है।

यदि पृथ्वी की दैनिक गति न होती अर्थात् पृथ्वी स्थिर होती और उसका धरातल भी एकदम समतल होता तब पवन उच्च-वायुदाब क्षेत्र से निम्न-वायुदाब क्षेत्र की ओर समदाब रेखाओं पर समकोण बनाते हुए बहती। इसका तात्पर्य यह है कि पवन या तो उत्तर से दक्षिण की ओर बहती है या दक्षिण से उत्तर की ओर। वायुदाब समान होते ही पवनें भी चलना बन्द कर देतीं। परन्तु वास्तविकता यह है कि पृथ्वी न तो स्थिर है और न ही समतल। इस कारण पवन की गति और दिशा को अनेक कारक सम्मिलित रूप से प्रभावित करते हैं।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात क्या है? उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उष्ण-कटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclones)-उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के महासागरों पर उत्पन्न व विकसित होने वाले चक्रवातों को उष्ण कटिबंधीय चक्रवात कहते हैं। इनका विस्तृत वर्णन निम्नलिखित प्रकार से हैं-
1. उत्पत्ति (Origin)-ये चक्रवात उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्डों में लगभग 5° से 25° अक्षांशों के बीच उत्पन्न होते हैं। भूमध्य रेखा के निकट दोनों गोलार्डों की व्यापारिक पवनें आकर मिलती हैं। जिस तल पर ये पवनें आकर मिलती हैं उसे अन्तरा-उष्ण कटिबंधीय वाताग्र अथवा अन्तरा-उष्ण कटिबंधीय मिलन तल (Inter-tropical Front or Inter-tropical Convergence Zone) कहते हैं। ग्रीष्म ऋतु के उत्तरार्द्ध में अन्तरा-उष्ण कटिबंधीय वाताग्र भूमध्य रेखा से काफी दूर चला जाता है।

इस वाताग्र के किसी भाग में जलवायु काफी गरम होकर बड़े पैमाने पर ऊपर को उठती है तो कॉरिआलिस बल के कारण इस निम्न-वायुदाब क्षेत्र की ओर सभी दिशाओं में पवनें चलने लगती हैं और एक चक्रवात का जन्म होता है। इसके चारों ओर वायु-भार अधिक तथा बीच में वायु-भार कम होता है। कम वायु-भार वाले इस केन्द्र को चक्रवात की आँख (Eye of the Cyclone) कहते हैं। चक्रवात में पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की विपरीत दिशा में तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के अनुकूल चलती हैं।

2. आकार तथा विस्तार (Shape and Size)-उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की समभार रेखाएँ लगभग वृत्ताकार अथवा दीर्घवृत्ताकार (Elliptical) होती हैं। भीतरी न्यून तथा बाहरी अधिक वायु-भार में लगभग 55-60 मिलीबार का अन्तर होता है। इनका विस्तार शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के विस्तार में बहुत ही कम होता है, इनका व्यास साधारणतया 150 से 750 किलोमीटर तक होता है, परन्तु कुछ छोटे चक्रवातों का व्यास 40 से 50 किलोमीटर तक ही होता है।

3. मौसम (Weather)-शीतोष्ण चक्रवातों की भाँति उष्ण चक्रवातों के आने पर सबसे पहले आकाश में पक्षाभ-स्तरीय मेघ दृष्टिगोचर होते हैं और सूर्य तथा चन्द्रमा के चारों ओर प्रभा-मंडल का विकास होता है। वायु उमस वाली हो जाती है और शान्त वातावरण उत्पन्न हो जाता है। वायुदाब एकदम से बढ़ जाता है। इसके पश्चात् मन्द समीर चलने लगती है, मेघ नीचे होने लगते हैं और वायुदाब धीरे-धीरे कम होने लगता है।

तत्पश्चात् वर्षादायनी मेघों (Nimbus Clouds) का विकास होता है जो सबसे पहले क्षैतिज पर दिखाई देते हैं और फिर धीरे-धीरे समस्त आकाश पर छा जाते हैं। वायुदाब तापमान की तीव्रता से कम होने लगता है और पवन का वेग बहुत बढ़ जाता है। दाहिने अग्र चतुर्थांश (Right Front Quadrant) में प्रायः तेज बौछारों के साथ वर्षा होती है। यदि गतियुक्त चक्रवात कुछ समय के लिए स्थिर हो जाएँ तो दाएँ पृष्ठ चतुर्थांश में भी काफी वर्षा होती है। चक्रवात के अन्तिम भाग में फिर से पक्षाभ तथा पक्षाभ-स्तरीय मेघ दृष्टिगोचर होते हैं, पवन का वेग मन्द पड़ जाता है और वायुदाब सामान्य हो जाता है।

4. मार्ग तथा प्रभाव क्षेत्र (Path and Affected Areas)-उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की दिशा विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न होती है। भूमध्य रेखा से 15° तक ये सन्मार्गी (व्यापारिक) पवनों से प्रभावित होकर पूर्व से पश्चिम की ओर चलते हैं। 15° से 30° अक्षांशों के बीच इनकी दिशा अनिश्चित रहती है, परन्त 30° को पार करने के बाद ये पछ्वा पवनों के प्रभावाधीन पश्चिम से पूर्व दिशा में मुड़ जाते हैं। स्थल पर पहुँचकर ये समाप्त हो जाते हैं क्योंकि वहाँ पर जलवाष्प की कमी तथा भू-घर्षण में वृद्धि हो जाती है। इनके प्रभाव-क्षेत्र निम्नलिखित हैं-
(i) कैरीबियन सागर (Caribbean Sea) यहाँ इन्हें हरीकेन (Hurricane) कहते हैं। ये मुख्यतः जून से अक्तूबर तक कैरीबियन सागर से उठते हैं और पश्चिमी द्वीप समूह, फ्लोरिडा तथा दक्षिणी-पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका के अन्य भागों को प्रभावित करते हैं।

(ii) चीन सागर (China Sea)-यहाँ इन्हें टाइफून (Typhoon) कहते हैं। यहाँ ये जुलाई से अक्तूबर तक चलते हैं और फिलीपींस, चीन तथा जापान को प्रभावित करते हैं।

(iii) हिन्द महासागर (Indian Ocean)-यहाँ इन्हें चक्रवात के नाम से पुकारा जाता है। ये भारत, बांग्लादेश, बर्मा, मेडागास्कर तथा ऑस्ट्रेलिया से उत्तरी तट के अतिरिक्त बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर को भी प्रभावित करते हैं। उत्तरी ऑस्ट्रेलिया के तट पर इन्हें विली-विलीज (Willy Wilies) कहते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका तथा मैक्सिको में इन्हें टोरनेडो (Tormado) कहते हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

प्रश्न 2.
‘वायुराशियाँ’ क्या हैं? ‘वातान’ कैसे बनते हैं?
उत्तर:
वायुराशियाँ-वायुमंडल में एक विस्तृत भाग पर तापक्रम, आर्द्रता आदि भौतिक गुणों की समानता रखने वाली पवनों को वायुराशियाँ कहते हैं। वायुराशियों की मुख्य रूप से दो विशेषताएँ होती हैं, जिनमें तापमान का लम्बवत वितरण और आर्द्रता की उपस्थिति शामिल हैं। इन्हीं विशेषताओं के कारण तापमान के लम्बवत् वितरण पर ही उनकी ऊष्मा तथा शीतलता निर्भर करती है। जो वायुराशियाँ स्थिर होती हैं, वे प्रायः ठण्डी तथा शुष्क होती हैं। ये वर्षा नहीं करतीं, परन्तु गतिशील तथा गर्म वायराशियाँ वर्षा करती हैं। वायराशि वाय से भिन्न है।वायराशि में वाय-धाराएँ ऊपर उठती हैं तथा मान तथा आर्द्रता में समानता होती है, परन्तु वायु भूतल के समानान्तर चलती है तथा इसकी विभिन्न परतों में तापमान तथा आर्द्रता में भिन्नता पाई जाती है।

‘वातान’ कैसे बनते हैं-दो विपरीत स्वभाव वाली वायुराशियों के मिलन-स्थल को वाताग्र (Front) कहते हैं। यह न तो धरातलीय सतह के समानान्तर होता है और न ही उस पर लम्बवत् होता है बल्कि कुछ कोण पर झुका हुआ होता है।

टी० पीटरसन के अनुसार, “वाताग्री सतह एवं धरातलीय सतह को अलग करने वाली रेखा को वाताग्र कहते हैं तथा जिस प्रक्रिया द्वारा वाताग्र बनता है, उसे वाताग्र उत्पत्ति (Frontogenesis) कहते हैं”।

वातानों की उत्पत्ति निम्नलिखित दो बातों पर आधारित है-
1. भौगोलिक कारक-जब दो विभिन्न प्रकार की वायुराशियाँ एक-दूसरे के समीप आती हैं तो वाताग्र की उत्पत्ति होती है अर्थात् वाताग्र की उत्पत्ति के लिए दो विभिन्न वायुराशियों का तापमान तथा उनकी आर्द्रता का भिन्न होना अनिवार्य है।

2. गतिज कारक-वाताग्र की उत्पत्ति के लिए वायुराशियों में प्रवाह अर्थात् गति होना अत्यन्त आवश्यक है। पीटरसन तथा बर्गरॉन ने यह सिद्ध किया है कि वायुराशियों की गति वातारों को तीव्रता प्रदान करती है।

प्रश्न 3.
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात तथा शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात में अंतर बताइए।
उत्तर:
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात तथा शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात में अंतर निम्नलिखित हैं-

उष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclones)शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Temperate Cyclones)
1. ये चक्रवात उष्ण कटिबंध में 5° से 30° अक्षांशों के मध्य दोनों गोलार्द्धों में चलते हैं।1. ये चक्रवात शीतोष्ण कटिबंध में 35° से 65° अंक्षाशों के मध्य दोनों गोलार्द्धों में चलते हैं।
2. इन चक्रवातों का आकार छोटा होने के कारण दाब प्रवणता अधिक होती है।2. इन चक्रवातों का आकार बड़ा होने के क्रारण दाब प्रवणता कम होती है।
3. इन चक्रवातों का व्यास सामान्यतः 100 से 700 कि०मी० तक होता है। कुछ चक्रवात छोटे भी होते हैं।3. इन चक्रवातों का व्यास सामान्यतः 500 से 700 कि०मी० तक होता है। कुछ चक्रवात कई हजार कि०मी० व्यास के भी होते हैं।
4. इनमें अधिक दाब-प्रवणता के कारण पवनें तेजी से चलती हैं।4. इनमें कम दाब-प्रवणता के कारण पवनें मन्द गति से चलती हैं।
5. इनका जन्म संवहनीय धाराओं के कारण अंतर-उष्ण कटिबंधीय अभिसरण (ITCZ) तल पर होता है।5. इनका जन्म शीतल तथा उण्ण वायु-राशियों के मिलने पर होता है।
6. ये चक्रवात प्रायः उष्ण समुद्री भागों में उत्पन्न व विकसित होते हैं।6. ये चक्रवात समुद्री तथा स्थलीय दोनों ही भागों में समान रूप सं विकसित उ उत्पन्न होते हैं।
7. ये चक्रवात ग्रीष्मकाल में उत्पन्न होते हैं।7. ये चक्रवात शीतकाल में उत्पन्न होते हैं।
8. इन चक्रवातों में वाताग्र नहीं होते ।8. इन चक्रवातों में वाताग्र होते हैं।
9. इन चक्रवातों में समदाब रेखाएँ पास-पास होती हैं।9. इन चक्रवातों में समदाब रेखाएँ दूर-दूर होती हैं।
10. पवनें चक्राकार मार्ग में चलती हैं।10. पवनों की गति व दिशा वाताग्रों पर निर्भर करती है।
11. इनमें वर्षा तेजी से होती है।11. इनमें वर्षा धीरे-धीरे होती है।
12. इनमें वर्षा के साथ ओले नहीं गिरते।12. इनमें वर्षा के साथ ओले गिरते हैं।

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. सूर्य द्वारा ऊष्मा की प्रसारण क्रिया को कहा जाता है
(A) ऊष्मा प्रसार
(B) सौर विकिरण
(C) सूर्यातप
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) सौर विकिरण

2. पृथ्वी तक पहुँचने वाली सूर्य की ऊष्मा को क्या कहा जाता है?
(A) सौर विकिरण
(B) पार्थिव विकिरण
(C) सूर्यातप
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) सूर्यातप

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

3. सूर्य से पृथ्वी की दूरी है
(A) 5 करोड़ कि०मी०
(B) 8 करोड़ कि०मी०
(C) 12 करोड़ कि०मी०
(D) 15 करोड़ कि०मी०
उत्तर:
(D) 15 करोड़ कि०मी०

4. पृथ्वी पर सौर विकिरण का कितना भाग पहुँचता है?
(A) 1 अरबवाँ भाग
(B) 2 अरबवाँ भाग
(C) 3 अरबवाँ भाग
(D) 4 अरबवाँ भाग
उत्तर:
(B) 2 अरबवाँ भाग

5. वायुमंडल की सबसे ऊपरी सतह पर प्राप्त ऊष्मा में से वायुमंडल और पृथ्वी द्वारा अवशोषित इकाइयों को क्या कहते हैं?
(A) भौमिक विकिरण
(B) पृथ्वी का एल्बिडो
(C) प्रभावी सौर विकिरण
(D) प्रवेशी सौर विकिरण
उत्तर:
(C) प्रभावी सौर विकिरण

6. सूर्य की किरणों की गति क्या है?
(A) 1 लाख कि०मी० प्रति सैकिंड
(B) 2 लाख कि०मी० प्रति सैकिंड
(C) 3 लाख कि०मी० प्रति सैकिंड
(D) 4 लाख कि०मी० प्रति सैकिंड
उत्तर:
(C) 3 लाख कि०मी० प्रति सैकिंड

7. निम्नलिखित में से सर्वाधिक तापमान कब अंकित किया जाता है?
(A) दोपहर 12 बजे
(B) दोपहर बाद 1 बजे
(C) दोपहर बाद 2 बजे
(D) दोपहर बाद 3 बजे
उत्तर:
(C) दोपहर बाद 2 बजे

8. वायुमंडल की ऊपरी सतह पर पहुँचने वाले सूर्यातप का कितना भाग भूतल पर पहुँचता है?
(A) 21%
(B) 31%
(C) 41%
(D) 51%
उत्तर:
(D) 51%

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

9. किसी स्थान विशेष के औसत तापमान और उसके अक्षांशीय तापमान के औसत के बीच के अंतर को कहा जाता है-
(A) तापीय व्युत्क्रमण
(B) तापक्रमीय विसंगति
(C) अक्षांशीय विसंगति
(D) तापीय अनुकूलता
उत्तर:
(B) तापक्रमीय विसंगति

10. वह काल्पनिक रेखा जो समुद्रतल के समानीत समान तापमान वाले स्थानों को मिलाती है, उसे कहते हैं
(A) समताप रेखा
(B) समदाब रेखा
(C) समानीत रेखा
(D) सम समुद्रतल रेखा
उत्तर:
(A) समताप रेखा

11. किसी स्थान के मध्यमान या सामान्य तापमान का अर्थ है-
(A) दिन का औसत तापमान
(B) महीने का औसत तापमान
(C) वर्ष का औसत तापमान
(D) 35 वर्षों के वार्षिक औसत तापमानों का औसत
उत्तर:
(D) 35 वर्षों के वार्षिक औसत तापमानों का औसत

12. एल्बिडो है-
(A) संयुक्त राज्य अमेरिका एवं कनाडा की सीमा पर स्थित झील
(B) उच्च कपासी बादलों का उपनाम
(C) किसी सतह को प्राप्त होने वाली एवं उससे परावर्तित विकिरण ऊर्जा की मात्रा का अनुपात
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) किसी सतह को प्राप्त होने वाली एवं उससे परावर्तित विकिरण ऊर्जा की मात्रा का अनुपात

13. सुबह और शाम की तुलना में दोपहर में गर्मी अधिक क्यों होती है?
(A) क्योंकि सर्य की किरणें दोपहर में सीधी पडती हैं।
(B) क्योंकि पृथ्वी गर्मी को सोखकर उसे दोपहर को छोड़ती है
(C) दोपहर के वक्त समुद्र से गर्म पवनें चलती हैं
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) क्योंकि सर्य की किरणें दोपहर में सीधी पडती हैं।

14. विश्व में सर्वाधिक ठंडा स्थान कौन-सा है जिसका तापमान सर्दियों में -50°C तक गिर जाता है?
(A) कारगिल
(B) वोयान्सक
(C) द्रास
(D) बर्जन
उत्तर:
(B) वोयान्सक

15. हिमालय तथा आल्प्स की किन ढलानों पर अधिक तापमान के कारण मानव बस्तियाँ और कृषि कार्य केंद्रित हैं?
(A) उत्तरी ढाल
(B) दक्षिणी ढाल
(C) पूर्वी ढाल
(D) पश्चिमी ढाल
उत्तर:
(B) दक्षिणी ढाल

16. समुद्रतल से 900 मीटर की ऊँचाई पर स्थित एक शहर का जुलाई का औसत मासिक तापमान 22°C है। समुद्रतल पर इस शहर का समानीत तापमान कितना होगा?
(A) 27.5°C
(B) 16.5°C
(C) 22°C
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) 27.5°C

17. कौन-सी मिट्टी जल्दी गरम और जल्दी ठण्डी हो जाती है?
(A) जलोढ़ मिट्टी
(B) काली मिट्टी
(C) रेतीली मिट्टी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) रेतीली मिट्टी

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
पृथ्वी पर सौर विकिरण का कितना भाग पहुँचता है?
उत्तर:
दो अरबवाँ भाग।

प्रश्न 2.
सूर्यातप को किस इकाई में मापते हैं?
उत्तर:
कैलोरी में।

प्रश्न 3.
मानचित्र पर तापमान का क्षैतिज वितरण किन रेखाओं द्वारा दर्शाया जाता है?
उत्तर:
समताप रेखाओं द्वारा।

प्रश्न 4.
पृथ्वी पर ऊष्मा का सबसे बड़ा स्रोत कौन-सा है?
उत्तर:
सूर्य।

प्रश्न 5.
उत्तरी गोलार्द्ध में पर्वतों के कौन-से ढाल सूर्य के सामने पड़ते हैं?
उत्तर:
दक्षिणी ढाल।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

प्रश्न 6.
दक्षिणी गोलार्द्ध में पर्वतों के कौन-से ढाल सूर्य के सामने पड़ते हैं?
उत्तर:
उत्तरी ढाल।

प्रश्न 7.
ऊँचाई के साथ तापमान घटने की जगह यदि बढ़ने लग जाए तो उसे क्या कहा जाता है?
उत्तर:
तापमान की विलोमता।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर पहुँचने वाले सूर्यातप का कितना भाग भूतल तक पहुँचता हैं?
उत्तर:
51 प्रतिशत भाग अथवा 100 में से 51 इकाइयाँ।

प्रश्न 2.
वायुमण्डल के गरम होने की प्रक्रियाएँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
विकिरण, संचालन तथा संवहन।

प्रश्न 3.
सूर्य क्या है?
उत्तर:
धधकती हुई गैसों का गोला जो ऊष्मा को अन्तरिक्ष में चारों ओर प्रसारित करता रहता है।

प्रश्न 4.
सूर्य से पृथ्वी की दूरी कितनी है?
उत्तर:
लगभग 15 करोड़ कि०मी०।

प्रश्न 5.
सूर्य की किरणों की गति क्या है?
उत्तर:
3 लाख कि०मी० प्रति सैकिण्ड।

प्रश्न 6.
तापमान मापने की दो प्रमुख इकाइयाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
डिग्री सेल्सियस व डिग्री फारेनहाइट।

प्रश्न 7.
दैनिक अधिकतम तापमान कब रिकॉर्ड किया जाता है?
उत्तर:
दोपहर में 2.00 बजे के लगभग।

प्रश्न 8.
जब सूर्य की क्षैतिज से ऊँचाई केवल 4° होती है तो सूर्य की किरणों को कितने मोटे वायुमण्डल से गुजरना पड़ता है?
उत्तर:
12 गुणा मोटे वायुमण्डल से।

प्रश्न 9.
तापमान की सामान्य हास दर क्या है?
उत्तर:
1°C प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर।

प्रश्न 10.
सूर्यातप आधिक्य वाले क्षेत्र कौन-से होते हैं?
उत्तर:
जहाँ धूप की लम्बी अवधि और रातें छोटी होती हैं, सूर्यातप आधिक्य वाले क्षेत्र कहलाते हैं।

प्रश्न 11.
ऊष्मा-हानि वाले क्षेत्र कौन-से होते हैं?
उत्तर:
जहां दिन छोटे और रातें लम्बी हों अर्थात् सूर्यातप की मात्रा कम और विकिरित हुई ऊष्मा अधिक हो उन्हें ऊष्मा-हानि वाले क्षेत्र कहते हैं।

प्रश्न 12.
ऊँचा दैनिक तापान्तर किन क्षेत्रों में पाया जाता है?
उत्तर:
मरुस्थलों तथा महाद्वीपों के आन्तरिक भागों में।

प्रश्न 13.
कम दैनिक तापान्तर किन क्षेत्रों में पाया जाता है?
उत्तर:

  1. तटों के पास
  2. मेघाच्छादित क्षेत्रों में।

प्रश्न 14.
कैलोरी क्या होती है?
उत्तर:
समुद्रतल पर उपस्थित वायुदाब की दशा में एक ग्राम जल का तापमान 1°C बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊर्जा को कैलोरी कहा जाता है।

प्रश्न 15.
दिन छोटे-बड़े क्यों होते रहते हैं? कारण बताओ।
उत्तर:

  1. पृथ्वी का 66/2° पर झुका अक्ष।
  2. पृथ्वी की दैनिक व वार्षिक गति।

प्रश्न 16.
सौर कलंक क्या होते हैं?
उत्तर:
सूर्य के तल पर काले रंग के गहरे व उथले बनते-बिगड़ते धब्बों को सौर कलंक कहा जाता है।

प्रश्न 17.
सौर कलंकों की संख्या व सौर विकिरण में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
इन कलंकों की संख्या बढ़ने और घटने पर सूर्यातप की मात्रा बढ़ती और घटती है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

प्रश्न 18.
उपसौरिका (Perihelion) की स्थिति क्या होती है?
उत्तर:
3 जनवरी को जब पृथ्वी सूर्य से 14.70 करोड़ किलोमीटर की निकटतम दूरी पर होती है।

प्रश्न 19.
अपसौरिका (Aphelion) की स्थिति क्या होती है?
उत्तर:
4 जुलाई को जब पृथ्वी सूर्य से 15.20 करोड़ कि०मी० की अधिकतम दूरी पर होती है।

प्रश्न 20.
उष्ण कटिबन्ध का विस्तार बताइए।
उत्तर:
231/2° उत्तर से 231/2° दक्षिण अक्षांश।

प्रश्न 21.
शीतोष्ण कटिबन्ध का क्या विस्तार है?
उत्तर:
23/2° से 66/2° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांश।

प्रश्न 22.
शीत कटिबन्ध कहाँ से कहाँ तक विस्तृत है?
उत्तर:
661/2° से ध्रुवों तक दोनों गोलार्डों में।

प्रश्न 23.
पृथ्वी पर सूर्यातप के वितरण को कौन-से दो प्रमुख कारक नियन्त्रित करते हैं?
उत्तर:

  1. सूर्य की किरणों का सापेक्षिक झुकाव
  2. दिन की अवधि।

प्रश्न 24.
विश्व में औसत तापमान क्यों बढ़ रहे हैं?
उत्तर:
जैव-ईंधन के बढ़ते उपयोग तथा वनों की कटाई के कारण।

प्रश्न 25.
सूर्य के सामने पड़ी ढालों पर सूर्यातप व तापमान अधिक क्यों प्राप्त होता है?
उत्तर:
सूर्य की सीधी किरणों के कारण।

प्रश्न 26.
सूर्य से विपरीत दिशा में स्थित ढालों पर सूर्यातप व तापमान कम क्यों रहते हैं?
उत्तर:
सूर्य की तिरछी किरणों के कारण।

प्रश्न 27.
कौन-सी मिट्टियाँ सूर्यातप का अवशोषण करके अपने क्षेत्र के तापमान को बढ़ा देती हैं?
उत्तर:
काली अथवा गहरी मिट्टियाँ तथा रेत से ढके भू-पृष्ठ।

प्रश्न 28.
समताप रेखाएँ क्या होती हैं?
उत्तर:
जिन स्थानों पर सूर्यातप की मात्रा समान होती है, उन स्थानों का तापमान भी समान होता है। समुद्र तल से समान तापमान वाले स्थानों को आपस में मिलाने वाली रेखा को समताप रेखा कहते हैं।

प्रश्न 29.
भौमिक विकिरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सौर ऊर्जा भूतल से टकराकर दीर्घ तरंगों के रूप में वापस लौट जाती है जिसे भौमिक विकिरण कहते हैं। यही कारण है कि वायुमण्डल नीचे से ऊपर की ओर गरम होता है। वायुमण्डल के गरम होने का प्रमुख स्रोत भौमिक विकिरण है।

प्रश्न 30.
सौर स्थिरांक किसे कहते हैं?
उत्तर:
भू-वैज्ञानिकों के मतानुसार पृथ्वी प्रति मिनट 2 कैलोरी ऊर्जा प्रति वर्ग सें०मी० प्राप्त करती है जिसे सौर स्थिरांक कहते हैं। ऊर्जा की यह मात्रा बदलती नहीं है बल्कि स्थिर रहती है।

प्रश्न 31.
ऊष्मा तथा तापमान में क्या अन्तर होता है?
उत्तर:
ऊष्मा ऊर्जा का वह रूप है जो वस्तुओं को गरम करती है। तापमान ऊष्मा की मात्रा का माप है। ऊष्मा की मात्रा घटने या बढ़ने से तापमान घटता और बढ़ता है।

प्रश्न 32.
किसी स्थान के तापमान से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
किसी स्थान पर मानक अवस्था में मापी गई भूतल से लगभग चार फुट ऊँची वायु की गर्मी को उस स्थान का तापमान कहते हैं। प्रायः तापमान और सूर्यातप को पर्यायवाची के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। वास्तव में ये दो शब्द दो भिन्न अवधारणाएँ हैं।

प्रश्न 33.
तापीय भूमध्य रेखा क्या होती है?
उत्तर:
ग्लोब के निम्न आक्षांशों के चारों ओर प्रत्येक देशान्तर के मध्यमान उच्चतम तापमान वाले बिन्दुओं को मिलाने वाली कल्पित रेखा को तापीय भूमध्य रेखा कहते हैं। यह रेखा वास्तविक भूमध्य रेखा के उत्तर में रहती है क्योंकि उत्तरी गोलार्द्ध में स्थलखण्ड अधिक हैं जो समुद्रों की अपेक्षा अधिक ऊष्मा का अवशोषण करते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सौर विकिरण से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पृथ्वी पर ऊष्मा का सबसे बड़ा स्रोत सूर्य है। यह धधकती हुई गैसों का एक विशाल गोला है जो ऊष्मा को अन्तरिक्ष में चारों ओर निरन्तर प्रसारित करता रहता है। सूर्य द्वारा ऊष्मा की प्रसारण क्रिया को सौर विकिरण कहा जाता है।

प्रश्न 2.
सूर्यातप क्या है?
उत्तर:
प्रवेशी सौर विकिरण को सूर्यातप कहते हैं अर्थात् पृथ्वी पर पहुंचने वाली सूर्य की ऊष्मा को सूर्यातप कहा जाता है। सूर्य से लगभग 15 करोड़ कि०मी० दूर स्थित पृथ्वी सूर्य से विकिरित होने वाली समस्त ऊष्मा का केवल 2 अरबवाँ भाग ही प्राप्त कर पाती है। सौर ऊर्जा सूर्य से लघु तरंगों के रूप में 3 लाख कि०मी० प्रति सैकिण्ड की गति से पृथ्वी पर पहुँचती है।

प्रश्न 3.
तापमान के ऊर्ध्वाधर वितरण (Vertical Distribution) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
समुद्र तल से ऊँचाई की ओर वितरण को तापमान का ऊर्ध्वाधर वितरण कहा जाता है। वायुमण्डल में ऊँचाई की ओर जाने पर तापमान कम होता है। यह तापमान 165 मीटर की ऊँचाई पर 1° सेल्सियस की दर से कम होता है। इसे तापमान की सामान्य पतन दर कहते हैं। यह ह्रास (पतन) दर क्षोभमण्डल तक ही रहती है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

प्रश्न 4.
तापमान के क्षैतिज वितरण का क्या अर्थ है?
उत्तर:
तापमान के क्षैतिज वितरण से अभिप्राय तापमान के अक्षांशीय वितरण से है। भूमध्य रेखा से दोनों गोलार्डों में ध्रुवों की ओर जाने पर तापमान में क्रमशः कमी होती जाती है जिसे तापमान का क्षैतिज वितरण कहते हैं। इसे समताप रेखाओं द्वारा ही प्रकट किया जाता है। तापमान के क्षैतिज वितरण के आधार पर ही पृथ्वी को उष्ण कटिबन्ध, शीतोष्ण कटिबन्ध तथा शीत कटिबन्ध नामक तीन ताप कटिबन्धों में बाँटा जाता है।

प्रश्न 5.
दैनिक तापान्तर किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी स्थान के 24 घण्टे या एक दिन के अधिकतम तापमान तथा न्यूनतम तापमान के अन्तर को दैनिक तापान्तर या दैनिक ताप परिसर कहते हैं। उदाहरणार्थ, किसी स्थान A पर किसी दिन विशेष का अधिकतम तापमान 35° सेल्सियस तथा न्यूनतम तापमान 22° सेल्सियस रहा हो तो स्थान A का दैनिक तापान्तर 35°-22° = 13° सेल्सियस होगा। दैनिक तापान्तर तटीय क्षेत्रों में कम होता है तथा आन्तरिक स्थलीय भागों और मरुस्थलीय क्षेत्रों में अधिक होता है।

प्रश्न 6.
वार्षिक तापान्तर किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी स्थान के सबसे ठण्डे मास के औसत तापमान और सबसे गरम मास के औसत तापमान के अन्तर को वार्षिक तापान्तर कहते हैं। दैनिक तापान्तर की भाँति वार्षिक तापान्तर भी स्थलीय भागों में अधिक तथा सागरीय भागों में कम रहता है। उत्तरी भारत के जिन भागों में शीतकाल में सबसे ठण्डे मास का तापमान 10° सेल्सियस रहता है, वहीं ग्रीष्मकाल में तापमान 40° सेल्सियस रहता है, परन्तु सागरीय तटीय भागों में तापमान कम रहता है। सबसे अधिक वार्षिक तापान्तर साइबेरिया में वोयान्सक में 38° सेल्सियस रहता है।

प्रश्न 7.
पृथ्वी के ऊष्मा बजट से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी सूर्य से जितनी ऊष्मा प्राप्त करती है, उतनी ऊष्मा का वह त्याग भी कर देती है। इसलिए पृथ्वी पर औसत तापमान सदा एक-जैसा बना रहता है। पृथ्वी द्वारा प्राप्त सूर्यातप और उस द्वारा छोड़े जाने वाले भौमिक विकिरण के खाते को पृथ्वी का ऊष्मा बजट कहा जाता है। पृथ्वी के इसी बजट को पृथ्वी का ऊष्मा सन्तुलन भी कहा जाता है।

प्रश्न 8.
अक्षांशीय ऊष्मा सन्तुलन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
हमारी पृथ्वी का आकार गोलाकार है जिसके कारण पृथ्वी पर सूर्य की किरणों का झुकाव अलग-अलग है इसलिए प्रत्येक अक्षांश पर सूर्यातप तथा भौमिक विकिरण में विभिन्नता दिखाई देती है। भूमध्य रेखीय क्षेत्रों के आस-पास ऊष्मा अधिक तथा ध्रुवीय प्रदेशों में ऊष्मा कम होती है । वायुमण्डल तथा महासागरों में ऊष्मा का आदान-प्रदान होता रहता है। इसी प्रकार ऊष्मा निम्न अक्षांशों से उच्च अक्षांशों की ओर स्थानान्तरित होती रहती है, जिसे अक्षांशीय ऊष्मा संतुलन कहते हैं।

प्रश्न 9.
सूर्यातप की मात्रा सूर्य की किरणों के आपतन कोण से किस प्रकार सम्बन्धित है?
उत्तर:
भूतल पर पहुँचने वाले सौर विकिरण को सूर्यातप कहते हैं। इसकी मात्रा सूर्य की किरणों के आपतन कोण पर निर्भर करती है। आपतन किरणें दो प्रकार की होती हैं

  • लम्बवत् किरणें।
  • तिरछी अथवा आड़ी किरणें।

लम्बवत् किरणें तिरछी किरणों की तुलन में भूतल का कम क्षेत्र घेरती हैं जिससे प्रति इकाई क्षेत्र को अधिक ताप प्राप्त होता है तथा तापमान अधिक हो जाता है। इसी प्रकार लम्बवत् किरणों को तिरछी किरणों की अपेक्षा कम वायुमण्डल पार करना पड़ता है जिससे वायुमण्डल की गैसें तथा जलवाष्प द्वारा अवशोषण, परावर्तन और बिखराव द्वारा सूर्यातप की बहुत कम मात्रा नष्ट होती है जिससे उस स्थान का तापमान तिरछी किरणों की तुलना में अधिक होता है।

प्रश्न 10.
सूर्यातप को जलवायु का प्रमुख नियन्त्रक कारक क्यों कहते हैं?
उत्तर:
सूर्यातप जलवायु का प्रमुख नियन्त्रक है। इसके निम्नलिखित कारण हैं-

  1. सूर्यातप पर बहुत-सी भौतिक क्रियाएँ आधारित हैं।
  2. इसी के कारण पवनें तथा समुद्री धाराएँ चलती हैं।
  3. सूर्यातप की मात्रा के कारण ही ऋतु-परिवर्तन होता है।
  4. सूर्यातप पर वायुमण्डलीय गतियाँ और वायुराशियाँ आधारित हैं। इस प्रकार सूर्य जलवायु के सभी तत्त्वों एवं पक्षों पर नियन्त्रण करता है।

प्रश्न 11.
विभिन्न अक्षांशों पर प्राप्त सूर्यातप की मात्रा भिन्न क्यों होती है?
उत्तर:
सूर्यातप की मात्रा मुख्य रूप से सूर्य की किरणों के आपतन कोण तथा दिन की अवधि पर निर्भर करती है। विभिन्न अक्षांशों पर पृथ्वी की वार्षिक गति तथा पृथ्वी के अक्ष के 22/5° पर झुकाव के कारण सूर्य की किरणों का आपतन कोण तथा दिन की अवधि भिन्न-भिन्न होती है। भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणें लगभग लम्बवत् रूप से चमकती हैं, परन्तु भूमध्य रेखा से ध्रुवों करणें तिरछी होती जाती हैं तथा दिन की अवधि भी अधिक हो जाती है इसलिए विभिन्न अक्षांशों पर सूर्यातप की मात्रा भिन्न-भिन्न होती है, परन्तु एक ही अक्षांश के सभी स्थानों पर सूर्यातप की मात्रा समान होती है।

प्रश्न 12.
वायुमण्डल सूर्यातप की अपेक्षा भौमिक विकिरण से अधिक गरम क्यों होता है?
उत्तर:
सूर्य की किरणें प्रत्यक्ष रूप से वायुमण्डल को गरम नहीं करतीं। ये किरणे लघु तरंगों के रूप में वायुमण्डल में से गुज़रती हैं। वायुमण्डल इन तरंगों को अपने अंदर समाने में अर्थात् अवशोषित करने में असमर्थ होता है। पहले सौर ऊर्जा से पृथ्वी गरम होती है, इसे पार्थिव या भौमिक विकिरण कहते हैं। भूतल को उष्णता लम्बी तरंगों के रूप में प्राप्त होती है जिसका 90% भाग १ रातल अवशोषित कर लेता है। इससे वायुमण्डल गरम होता रहता है। पार्थिव विकिरण द्वारा वायुमण्डल की निचली परतें ही गरम होती हैं। अधिक ऊँचाई पर इसका प्रभाव बहुत कम होता है इसलिए वायुमण्डल नीचे से ऊपर गरम होता है।

प्रश्न 13.
समताप रेखाओं की दिशा अधिकतर पूर्व-पश्चिम क्यों रहती है?
उत्तर:
प्रत्येक अक्षांश रेखा पर स्थित सभी स्थानों पर सूर्य की किरणों का आपतन कोण तथा दिन की अवधि समान होती है इसलिए ये सभी स्थान समान मात्रा में सूर्यातप की मात्रा प्राप्त करते हैं जिससे इन सभी स्थानों का तापमान समान होता है। समान तापमान वाले स्थानों को एक रेखा से मिलाते हैं जिसे समताप रेखा कहते हैं। अक्षांश पूर्व-पश्चिम दिशा में फैले हुए हैं, इसलिए समताप रेखाओं तथा अक्षांश रेखाओं में अनुरूपता दिखाई पड़ती है। इसलिए ये रेखाएँ अक्षांश रेखाओं का अनुकरण करते हुए पूर्व-पश्चिम दिशा में फैली हुई हैं।

प्रश्न 14.
समताप रेखाएँ मौसम के अनुसार उत्तर और दक्षिण की ओर क्यों खिसकती हैं?
उत्तर:
समताप रेखाओं की स्थिति मख्य रूप से सर्यातप की अधिकतम मात्रा पर आधारित होती है। मौसम के अनुसार इन किरणों में परिवर्तन होता रहता है। उदाहरण के लिए, जून मास में सूर्य कर्क रेखा पर लम्बवत् रूप से चमकता है जिससे ग्रीष्मकाल में सूर्यातप की अधिकतम मात्रा उत्तरी गोलार्द्ध में होती है, परन्तु दिसम्बर मास में सूर्य मकर रेखा पर लम्बवत् रूप से चमकता है। जिससे शीतकाल में सूर्यातप की अधिकतम मात्रा दक्षिणी गोलार्द्ध में होती है, इसलिए ग्रीष्मकाल में समताप रेखाएँ उत्तर दिशा की ओर तथा शीतकाल में दक्षिण दिशा की ओर खिसक जाती हैं।

प्रश्न 15.
समताप रेखाएँ सबसे अधिक कहाँ खिसकती हैं? स्थल पर या जल पर? इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
समताप रेखाएँ जल की अपेक्षा स्थल पर अधिक खिसकती हैं, क्योंकि स्थल तथा जल में गरम होने की क्षमता में विभिन्नता पाई जाती है। स्थल शीघ्र गरम हो जाते हैं तथा शीघ्र ही ठण्डे हो जाते हैं, परन्तु जल देर से गरम होता है और देर से ही ठण्डा होता है। इसलिए मौसम के अनुसार जलीय क्षेत्रों की तुलना में स्थलीय क्षेत्रों के तापमान में अधिक अन्तर पाया जाता है, परन्तु तापमान का यह अन्तर सागरों तथा महासागरों पर कम होता है। इसलिए स्थलीय क्षेत्रों पर मौसम के अनुसार समताप रेखाएँ अधिक खिसकती हैं।

प्रश्न 16.
दक्षिणी गोलार्द्ध की अपेक्षा उत्तरी गोलार्द्ध में समताप रेखाएँ अधिक अनियमित क्यों होती हैं?
उत्तर:
स्थलीय क्षेत्रों तथा जलीय क्षेत्रों में गरम होने की क्षमता में विभिन्नता पाई जाती है इसलिए समताप रेखाएँ महासागरों से महाद्वीपों अथवा महाद्वीपों से महासागरों की ओर आते समय मुड़ जाती हैं। ये समताप रेखाएँ जुलाई मास में उत्तरी गोलार्द्ध में महाद्वीपों से गुजरते समय भूमध्य रेखा की ओर मुड़ जाती हैं। दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थिति इसके विपरीत होती है। मुख्य रूप से इसके दो निम्नलिखित कारण हैं

  • जल तथा स्थल क्षेत्रों का असमान वितरण।
  • स्थल तथा जल के गरम होने की क्षमता में विभिन्नता।

उत्तरी गोलार्द्ध में स्थलीय क्षेत्रों का विस्तार अधिक है, परन्तु दक्षिणी गोलार्द्ध में जलीय क्षेत्रों का विस्तार अधिक है। इसलिए उत्तरी गोलार्द्ध में समताप रेखाएँ अनियमित हैं, परन्तु दक्षिणी गोलार्द्ध में नियमित तथा सीधी हैं।

प्रश्न 17.
यद्यपि न्यूयार्क 40°N तथा बर्लिन 52°N पर स्थित है, परन्तु जनवरी मास का औसत तापमान लगभग समान क्यों रहता है?
उत्तर:
यद्यपि बर्लिन तथा न्यूयार्क में 52°- 40° = 12° अक्षांश का अन्तर है। बलिन न्यूयार्क से 12° उत्तर में स्थित है। उत्तर की ओर जाते समय तापमान में कमी आती है, परन्तु बर्लिन के निकट उत्तरी अन्ध-महासागर की गरम धारा बहती है जो इस स्थान के तापमान को बढ़ा देती है। इसलिए बर्लिन उच्च अक्षांशों में स्थित होते हा भी इसका तापमान जनवरी में न्यूयार्क के समान होता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

प्रश्न 18.
मनुष्य एवं प्रकृति के लिए सौर्मिक ऊर्जा के महत्त्व का उल्लेख करें।
उत्तर:
इस पथ्वी पर सभी प्रकार के जीवन और हर प्रकार की गति और संचरण के पीछे एक ही शक्ति है- सौर्यिक ऊर्जा।

  1. पाला रहित दिनों की संख्या ही फसलों के पकने की अवधि तय करती है। फसलों के पकने की अवधि भूमध्य रेखा से दूर जाने पर घटती जाती है।
  2. सूर्यातप की मात्रा निर्धारित करती है कि उस क्षेत्र में किस प्रकार की फसलें, वनस्पति और जीव-जगत होगा।
  3. वायुमण्डल के सामान्य संचरण के लिए सूर्यातप ही जिम्मेदार है। आँधी, तूफान, चक्रवात, पवनें सभी सौर्यिक ऊर्जा के कारण होते हैं।
  4. समुद्री जल की गति भी सूर्यातप से जुड़ी हुई है। नदियों का होना भी सूर्य के कारण है।
  5. सूर्यातप चट्टानों के भौतिक अपक्षय में सहयोग देता है।
  6. पृथ्वी पर नित्य बदलता भू-दृश्य प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सौर्यिक ऊर्जा की ही उपज है।

प्रश्न 19.
विभिन्न अक्षांश सूर्यातप की भिन्न-भिन्न मात्रा क्यों प्राप्त करते हैं?
उत्तर:
किसी स्थान पर सूर्यातप की मात्रा सूर्य की किरणों के आपतन कोण तथा दिन की अवधि पर निर्भर करती है। पृथ्वी के अक्ष के झुकाव तथा पृथ्वी की वार्षिक गति के कारण भिन्न-भिन्न अक्षांशों पर सूर्य की किरणों का आपतन कोण भिन्न-भिन्न होता है तथा दिन की अवधि भी एक-समान नहीं होती। भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर सूर्य की किरणों का सापेक्ष्य तिरछापन बढ़ता सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान जाता है और साथ ही दिन की अवधि भी बढ़ती जाती है। लेकिन किरणों के तिरछेपन के कारण सूर्यातप की मात्रा घटती जाती है। इसलिए भिन्न-भिन्न अक्षांशों पर सूर्यातप की मात्रा अलग-अलग पाई जाती है। हाँ, एक ही अक्षांश पर सूर्यातप की मात्रा सभी स्थानों पर एक-समान होती है।

प्रश्न 20.
दैनिक उच्चतम तापमान क्या होता है और यह कब होता है?
उत्तर:
किसी विशेष दिन के अधिकतम तापमान को उस दिन का उच्चतम तापमान कहा जाता है। दिन में दोपहर के समय सूर्य आकाश में सबसे ऊँचा होता है तथा सूर्य की किरणें लगभग सीधी पड़ती हैं। इससे धरातल गरम होने लगता है। भूतल के सम्पर्क में आने वाला वायुमण्डल पार्थिव विकिरण अर्थात् पृथ्वी द्वारा छोड़ी गई ऊष्मा से गरम हो जाता है। इसलिए वायुमण्डल का उच्चतम तापमान दोपहर बाद दिन के 2.00 बजे होता है। यह सत्य भी है कि दोपहर की अपेक्षा ‘दोपहर बाद’ तापमान अधिक होता है।

प्रश्न 21.
दैनिक न्यूनतम तापमान क्या होता है? यह कब होता है?
उत्तर:
दिन भर में सबसे कम तापमान को दैनिक न्यूनतम तापमान कहते हैं। न्यूनतम तापमान रात के 12 बजे नहीं होता अपितु प्रातः 4 बजे होता है। धरातल द्वारा गर्मी छोड़ने की क्रिया ‘विकिरण’ (Radiation) सुबह तक होती रहती है। जब पृथ्वी पूर्ण रूप से ठण्डी हो जाती है तो वायुमण्डल में न्यूनतम ताप होता है।

प्रश्न 22.
मध्यमान दैनिक तापमान क्या होता है और यह कैसे निकलता है?
उत्तर:
किसी भी दिन के उच्चतम तथा न्यूनतम तापमान की औसत को मध्यमान दैनिक तापमान कहते हैं।
Mean, Daily Tempt. = \(\frac { Max. Temp. + Min. Temp. }{ 2 }\)
यदि किसी स्थान का किसी विशेष दिन का अधिकतम तापमान 38°C तथा न्यूनतम तापमान 28°C है तो उस स्थान का मध्यमान दैनिक तापमान = \(\frac{38^{\circ} \mathrm{C}+28^{\circ} \mathrm{C}}{2}\) = 33°C

प्रश्न 23.
किसी स्थान के मध्यमान तापमान से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
एक लम्बे समय (पिछले 35 वर्षों) के मध्यमान वार्षिक तापमान को जोड़कर 35 से भाग देने पर किसी स्थान का औसत तापमान निकल आता है। इसे किसी स्थान का सामान्य तापमान भी कहते हैं। इससे अनुमान लगाया जाता है कि किसी स्थान की जलवायु गरम है या ठण्डी।

प्रश्न 24.
सूर्यातप और तापमान में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सूर्यातप और तापमान में निम्नलिखित अन्तर हैं-

सूर्यातपतापमान
1. सूर्यातप ऊर्जा का एक रूप है जो वस्तुओं को गरम करती है।1. तापमान किसी पदार्थ की गरमी या ठंडक की माप है।
2. सूर्यातप को जूल और कैलोरी में प्रकट किया जाता है।2. तापमान आवश्यकतानुसार कई पैमानों पर मापा जाता है लेकिन इसमें सेल्सियस और फारेनहाइट प्रमुख हैं।
3. सूर्यातप का संचार/स्थानांतरण चालन, संवहन और विकिरण द्वारा होता है।3. तापमान का संचरण नहीं होता।
4. सूर्यातप या ऊष्मा पदार्थों को गरम करती है। इससे ठोस पदार्थ तरल और गैस अवस्था में बदल जाते हैं।4. पदार्थों को ऊष्मा मिलने से उनका तापमान बढ़ता है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सूर्यातप क्या है? भूतल पर सूर्यातप के वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
सूर्यातप का अर्थ पृथ्वी पर पहुँचने वाली सूर्य की ऊष्मा को सूर्यातप कहा जाता है। यह ऊर्जा सूर्य से लघु तरंगों के रूप में 3 लाख कि०मी० प्रति सैकिण्ड की गति से पृथ्वी पर पहुँचती है।

सूर्यातप को प्रभावित करने वाले कारक:
भू-तल पर सभी जगह सूर्यातप की मात्रा एक समान नहीं होती। सूर्यातप के वितरण को अनेक कारक नियन्त्रित करते हैं जिनका वर्णन अग्रलिखित प्रकार से है-
1. सूर्य की किरणों का सापेक्ष्य झुकाव-सूर्य की किरणें भूमध्य रेखा पर सीधी पड़ती हैं। भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर इन किरणों का तिरछापन बढ़ता जाता है। सूर्य की किरणों का तिरछापन धरातल पर पहुँचने वाली सूर्यातप की मात्रा को दो प्रकार से प्रभावित करता है
(क) क्षेत्रफल-जब सूर्य लगभग मध्याह्न में होता है तो उसकी किरणें धरातल पर लम्बवत् पड़ती हैं। लम्बवत् किरणें भू-पृष्ठ की अपेक्षाकृत कम क्षेत्रफल पर फैलती हैं जिसके कारण उस स्थान का प्रति इकाई ताप भी अधिक हो जाता है। तिरछी किरणों का उतना ही समूह भू-पृष्ठ के अधिक क्षेत्रफल को घेरता है। अधिक क्षेत्रफल को गर्म करने के कारण वहाँ प्रति इकाई सूर्यातप की तीव्रता भी कम हो जाती है।

(ख) वायुमण्डल की मोटाई-सीधी किरणों की अपेक्षा तिरछी किरणों को वायुमण्डल की मोटी परत पार करनी पड़ती है। उदाहरणतः जब सूर्य की क्षैतिज से ऊँचाई केवल 4° होती है तो सूर्य की किरणों को 12 गुना मोटे वायुमण्डल से गुजरना पड़ता है। वायुमण्डल में सूर्य की किरणें जितनी अधिक दूरी तय करेंगी उनका बिखराव, परावर्तन और अवशोषण भी उतना ही अधिक होगा। परिणामस्वरूप पृथ्वी पर कम सूर्यातप पहुँचेगा।

2. दिन की अवधि-जिन स्थानों पर दिन लम्बे और रातें छोटी होती हैं वहाँ प्राप्त होने वाला सूर्यातप अधिक और रात को भू-पृष्ठ से विकरित होकर अन्तरिक्ष में जाने वाली ऊष्मा अपेक्षाकृत कम होती है। ऐसे क्षेत्र सूर्यातप-आधिक्य वाले क्षेत्र कहलाते हैं। इसके विपरीत जिन स्थानों पर दिन छोटे और रातें लम्बी होती हैं वहाँ सूर्यातप की मात्रा कम और विकरित होकर नष्ट हुई ऊष्मा। की मात्रा अधिक होती है। ऐसे क्षेत्रों को ऊष्मा-हानि वाले क्षेत्र कहा जाता है। दिन की अवधि ऋतु और अक्षांश द्वारा निर्धारित होती है। वास्तव में सूर्य की किरणों का सापेक्ष्य झुकाव और दिन की अवधि दोनों मिलकर पृथ्वी पर सूर्यातप के वितरण को नियन्त्रित करते हैं। अकेले दिन की अवधि से बात नहीं बनती। उदाहरणतः उत्तरी गोलार्द्ध के उच्च अक्षांशों में दिन की अवधि 6 मास की होने के बावजूद सूर्यातप की मात्रा न्यूनतम होती है और वहाँ बर्फ जमी रहती है। इसके लिए सूर्य की किरणों का तिरछापन उत्तरदायी है।

3. वायमण्डल की पारगम्यता-जिन क्षेत्रों में वायमण्डल में आर्द्रता. बादल और धलकण जैसी परिवर्तनशील दशाएँ अधिक पाई जाती हैं वहाँ परावर्तन, अवशोषण व प्रकीर्णन द्वारा सूर्यातप का हास होता रहता है। इसके विपरीत जहाँ वायुमण्डल निर्मल होता है वहाँ अपेक्षाकृत अधिक सूर्यातप प्राप्त होता है। यही कारण है कि अफ्रीका के सहारा मरुस्थल में मेघ-रहित आकाश होने के कारण अधिक सूर्यातप प्राप्त होता है जबकि भूमध्य रेखा पर स्थित ज़ायरे बेसिन (अफ्रीका) में मेघाच्छन्न आकाश के कारण बहुत मात्रा में सूर्यातप परावर्तित हो जाता है।

सूर्यातप को प्रभावित करने वाले गौण कारक-
4. भूमि का ढाल-पर्वतों के जो ढाल सूर्य के सामने पड़ते हैं उन पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं और वहाँ अधिक सूर्यातप प्राप्त होता है। जो ढाल सूर्य से विमुख होते हैं, वहाँ पड़ने वाली सूर्य की तिरछी किरणें कम सूर्यातप दे पाती हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में, पर्वतों के दक्षिणी ढाल सूर्य के सामने और उत्तरी ढाल से विमुख पड़ते हैं।

5. सौर कलंकों की संख्या-सूर्य के तल पर काले रंग के गहरे व उथले अनेक धब्बे बनते और बिगड़ते रहते हैं, उन्हें सौर कलंक हते हैं। सौर विकिरण और सौर कलंकों की संख्या में गहरा सम्बन्ध होता है। इन कलंकों की संख्या के बढ़ने और घटने पर पृथ्वी पर सूर्यातप की मात्रा बढ़ती और घटती है।

6. पृथ्वी की सूर्य से दूरी-सूर्य के चारों ओर अण्डाकार पथ पर परिक्रमण करती हुई पृथ्वी कभी सूर्य से दूर व कभी सूर्य के पास आ जाती है। 4 जुलाई को अपसौरिका की स्थिति में पृथ्वी सूर्य से 15.20 करोड़ किलोमीटर की अधिकतम दूरी पर होती है। 3 जनवरी को उपसौरिका की स्थिति में पृथ्वी सूर्य से 14.70 करोड़ किलोमीटर की निकटतम दूरी पर होती है। इस प्रकार 3 जनवरी को 4 जुलाई की अपेक्षा पृथ्वी को लगभग 7% अधिक सूर्यातप प्राप्त होता है।

7. जल-स्थल का वितरण-धरातल का तीन-चौथाई भाग जल से तथा एक-चौथाई भाग स्थल से ढका हुआ है। जल और स्थल भिन्न-भिन्न तापमान पर गरम और ठण्डे होते हैं। जल की विशिष्ट ऊष्मा अधिक होने के कारण वह देर से गरम और देर से ठण्डा होता है। इस प्रकार जल और स्थल का वितरण भी सूर्यातप की मात्रा को प्रभावित करता है।

8. धरातल की प्रकृति धरातल पर कुछ वस्तुएँ सूर्यातप का अधिक अवशोषण करती हैं व अन्य कुछ कम। जहाँ सूर्यातप का अवशोषण अधिक होता है वहाँ सूर्यातप की मात्रा अधिक पाई जाती है; जैसे काली व गहरे रंग की मिट्टियों के क्षेत्र । बर्फीले व पथरीले प्रदेश सूर्यातप की अधिकांश मात्रा का प्रतिबिम्बन कर देते हैं। अतः ऐसे क्षेत्रों में कम सूर्यातप प्राप्त होता है।

प्रश्न 2.
पृथ्वी के ऊष्मा बजट का विस्तृत सचित्र विवरण दीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी सूर्य से जितनी ऊष्मा प्राप्त करती है, उतनी ऊष्मा का वह त्याग भी कर देती है। इसलिए पृथ्वी पर औसत तापमान सदा एक जैसा बना रहता है। पृथ्वी द्वारा प्राप्त सूर्यातप और उसके द्वारा छोड़े जाने वाले भौमिक विकिरण (Terrestrial Radiation) के खाते को पृथ्वी का ऊष्मा बजट कहा जाता है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान 1
मान लीजिए वायुमण्डल की सबसे ऊपरी सतह पर प्राप्त होने वाली ऊष्मा 100 इकाई है। इनमें से 35 इकाइयाँ धरातल पर पहुँचने से पहले ही अन्तरिक्ष में परावर्तित हो जाती हैं। इन 35 इकाइयों में से 6 इकाइयाँ धूलकणों से प्रकीर्णन (Scatterring) द्वारा, 27 इकाइयाँ मेघों द्वारा और शेष 2 इकाइयाँ बर्फ से ढके क्षेत्रों द्वारा परावर्तित होकर अन्तरिक्ष में लौट जाती हैं (6+27 + 2 = 35)। सौर विकिरण की यह परावर्तित मात्रा पृथ्वी की एल्बिडो (Albedo of the earth) कहलाती है।

बची हुई ऊष्मा की 65 इकाइयों में से 14 इकाइयाँ वायुमण्डल द्वारा और 51 इकाइयाँ पृथ्वी द्वारा अवशोषित कर ली जाती हैं (14+ 51 = 65)। ऊष्मा की इस मात्रा को प्रभावी सौर विकिरण कहा जाता है। इस प्रकार सूर्य से प्राप्त ऊष्मा के छोटे-से अंश का भी लगभग आधा भाग ही पृथ्वी पहुँच पाता है।

पृथ्वी द्वारा अवशोषित 51 इकाइयाँ पुनः भौमिक विकिरण के रूप में वापस शून्य में लौट जाती हैं। इन 51 इकाइयों में से 17 इकाइयाँ सीधे अन्तरिक्ष में चली जाती हैं और 34 इकाइयाँ वायुमण्डल द्वारा अवशोषित कर ली जाती हैं- (17+ 34 = 51)। इन 34 इकाइयों में से 6 इकाइयाँ स्वयं वायुमण्डल द्वारा, 9 इकाइयाँ संवहन द्वारा व 19 इकाइयाँ गुप्त ऊष्मा द्वारा अवशोषित हो जाती हैं।

इस प्रकार वायुमण्डल 48 इकाइयों का अवशोषण करके (34 भौमिक विकिरण की व 14 सौर विकिरण की) उन्हें अन्तरिक्ष में लौटा देता है। पृथ्वी और वायुमण्डल दोनों मिलकर 17 + 48 = 65 इकाइयों को अन्तरिक्ष में भेजते हैं। इससे पृथ्वी और वायुमण्डल द्वारा अवशोषित 51 + 14 = 65 इकाइयों का हिसाब बराबर हो जाता है। इसी को पृथ्वी का ऊष्मा बजट अथवा ऊष्मा सन्तुलन कहा जाता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान

प्रश्न 3.
तापमान को प्रभावित करने वाले तत्त्वों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर:
किसी स्थान के तापमान को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं-
1. अक्षांश अथवा भूमध्य रेखा से दूरी पृथ्वी के गोलाकार होने के कारण सूर्य की किरणें सारा वर्ष भूमध्य रेखा पर सीधी पड़ती हैं। भूमध्य रेखा से दूर ध्रुवों की ओर जाने पर सूर्य की किरणें अधिकाधिक तिरछी होती जाती हैं। लाम्बिक या सीधी किरणें तिरछी किरणों की अपेक्षा अधिक ऊष्मा प्रदान करती हैं, क्योंकि वे तिरछी किरणों की अपेक्षा कम क्षेत्रफल को गरम करती हैं और अपेक्षाकृत परतें वायुमण्डल से गुजरती हैं। अतः भूमध्य रेखा के निकट स्थित स्थानों का तापमान ऊँचा होता है जबकि भूमध्य रेखा से दूर स्थित स्थानों का तापमान कम होता है, यहाँ तक कि ध्रुवों पर तापमान हिमांक से नीचे गिर जाता है।

2. समुद्र तल से ऊँचाई-वायुमण्डल धूलकणों, गैस व अशुद्धियों द्वारा अवशोषित ऊष्मा से गरम होता है। ऊँचाई के साथ वायु विरल होती जाती है और उसका घनत्व भी घटता जाता है। परिणामस्वरूप ऊँचाई के साथ वायु में अवशोषित होने वाली ऊष्मा की मात्रा भी घटती जाती है। सामान्यतः वायु की निचली परतों में 165 मीटर की ऊँचाई पर 1° सेल्सियस अथवा 1 किलोमीटर की ऊँचाई पर 6.4° सेल्सियस तापमान गिर जाता है। ऊँचाई के साथ तापमान का यह ह्रास विभिन्न स्थानों और विभिन्न ऋतुओं में अलग-अलग होता है। इसी कारण पर्वतीय प्रदेश मैदानों की अपेक्षा अधिक ठण्डे होते हैं।

3. समुद्र तट से दूरी-उच्चतर विशिष्ट ऊष्मा के कारण जल देर से गरम और देर से ठण्डा होता है जबकि स्थलीय भाग शीघ्र गरम और शीघ्र ठण्डे हो जाते हैं। इसी कारण समुद्र तटीय प्रदेशों का तापमान भीतरी प्रदेशों की अपेक्षा अधिक समान रहता है। तटीय स्थानों पर सर्दियों में कम सर्दी, गर्मियों में कम गर्मी और वार्षिक तापान्तर कम होता है जबकि समुद्र से दूर स्थित भीतरी प्रदेशों में सर्दियों में अधिक सर्दी, गर्मियों में अधिक गर्मी और वार्षिक तापान्तर भी अधिक रहता है।

4. समुद्री धाराएँ-समुद्री धाराएँ भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर ऊष्मा का और ध्रुवों से भूमध्य रेखा की ओर ठण्ड का स्थानान्तरण करती रहती हैं। गरम या ठण्डी धाराएँ जिन तटीय क्षेत्रों के पास से गुजरती हैं वे वहाँ का तापमान उसी के अनुरूप अधिक या कम कर देती हैं। इसका कारण यह है कि इन धाराओं के ऊपर से बहने वाली पवनें अपने साथ गर्म या ठण्डी धाराएँ तटीय क्षेत्रों में ले आती हैं। उदाहरणतः उत्तर:पश्चिमी यूरोप के तट के साथ बहने वाली गरम गल्फ स्ट्रीम या उत्तर अटलाण्टिक ड्रिफ्ट वहाँ के तटीय भागों का तापमान ऊँचा रखती है जिससे वहाँ के बन्दरगाह साल भर खुले रहते हैं। इसके विपरीत उन्हीं अक्षांशों पर स्थित उत्तर:पूर्वी कनाडा के लैब्रेडोर तट पर लैब्रेडोर की ठण्डी धारा बहती है जिससे वहाँ का तापमान हिमांक से भी नीचे हो जाता है और वर्ष के 8-9 महीने बन्दरगाहें बर्फ से जमी रहने के कारण बन्द रहती हैं।

5. प्रचलित पवनें हवाओं की दिशा भी किसी स्थान के तापमान को प्रभावित करती है। उष्ण कटिबन्धों से आने वाली तप्त पवनें तापमान को बढ़ा देती हैं जबकि ध्रुवीय प्रदेशों से आने वाली ठण्डी पवनें तापमान को कम कर देती हैं। समुद्र से आने वाली पवनें आर्द्र होती हैं और वर्षा लाती हैं और तापमान की विषमता को कम करती हैं जबकि महाद्वीपों के आंतरिक भागों से आने वाली
शुष्क पवनें तापमान की विषमता को बढ़ा देती हैं।

6. भूमि का ढाल-उत्तरी गोलार्द्ध में पर्वतों के दक्षिणी ढाल और दक्षिणी गोलार्द्ध में पर्वतों के उत्तरी ढाल सूर्य के सामने पड़ते हैं। सूर्य के सामने पड़ी ढालों पर किरणें सीधी पड़ती हैं जो अधिक सूर्यातप प्रदान करती हैं जिससे तापमान बढ़ता है। सूर्य से विपरीत दिशा में स्थित ढालों पर किरणें तिरछी पड़ती हैं जिससे वहाँ कम सूर्यातप व कम तापमान रहता है। यही कारण है कि हिमालय और आल्पस की दक्षिणी ढलानों पर अधिक तापमान के कारण मानव बस्तियाँ व कृषि कार्य केन्द्रित हैं जबकि उत्तरी ठण्डे ढालों पर केवल सघन वन पाए जाते हैं।

7. भू-तल का स्वभाव-किसी स्थान का तापमान वहाँ प्राप्त सूर्यातप के अवशोषण और प्रतिबिम्बन की मात्रा पर निर्भर करता है। हिम तथा वनस्पति से ढके प्रदेश सूर्यातप की अधिकांश मात्रा को प्रतिबिम्बित करके वापस वायुमण्डल में लौटा देते हैं जिस कारण इन प्रदेशों का तापमान कम रहता है। इसके विपरीत काली अथवा गहरी मिट्टियों और रेत से ढके भू-पृष्ठ के भाग सूर्यातप की अधिकांश मात्रा को अवशोषित करके वहाँ के तापमान को ऊँचा कर देते हैं।

8. मेघ तथा वर्षा-जिन प्रदेशों में आकाश अधिकतर बादलों से ढका रहता है और वहाँ वर्षा भी अधिक होती है। वहाँ तापमान बहुत अधिक नहीं हो पाता क्योंकि बादल सूर्य की किरणों को पृथ्वी तल तक नहीं पहुँचने देते और उन्हें वापिस प्रतिबिम्बित कर देते हैं। यही कारण है कि भूमध्यरेखीय प्रदेश में सूर्य की किरणें सारा वर्ष सीधी पड़ने के बावजूद वहाँ तापमान इतना अधिक नहीं हो पाता जितना कि मेघ-रहित उष्ण मरुस्थलों में।

9. पर्वतों का अवरोध-पर्वत ठण्डी हवाओं को रोककर दूसरी ओर स्थित क्षेत्र को ठण्ड से बचाते हैं जिससे तापमान नीचे नहीं गिर पाता। उदाहरणतः कोलकाता और चीन का कैण्टन दोनों तटीय नगर हैं और एक ही अक्षांश पर स्थित हैं। कैण्टन कोलकाता की अपेक्षा ठण्डा है। इसका कारण यह है कि हिमालय कोलकाता को मध्य एशिया से आने वाली ठण्डी पवनों से बचा लेता है जबकि कैण्टन के पास पर्वतीय अवरोध न होने के कारण वहाँ भयंकर ठण्ड होती है। इसी प्रकार यूरोप में आल्पस पर्वत इटली को ध्रुवीय ठण्डी पवनों से बचाते हैं।

प्रश्न 4.
समताप रेखाएँ क्या हैं? इनकी प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
समताप रेखाएँ-समताप रेखाएँ वे काल्पनिक रेखाएँ हैं जो मानचित्र पर समान तापक्रम वाले स्थानों को मिलाती हैं। समताप रेखाओं की विशेषताएँ-समताप रेखाओं में निम्नलिखित विशेषताएँ पाई जाती हैं-
(1) धरातल पर एक अक्षांश पर सूर्यातप की मात्रा लगभग समान पाई जाती है, इसलिए तापक्रम भी एक अक्षांश पर बराबर रहता है। यही वजह है कि समताप रेखाएँ पूर्व-पश्चिम दिशा में एक-दूसरे के लगभग समानान्तर तथा अक्षांशों के समानान्तर खींची जाती हैं।

(2) समताप रेखाओं के बीच की दूरी से ताप प्रवणता ज्ञात की जाती है। यदि समताप रेखाओं के बीच की दूरी कम है तो इसका तात्पर्य है कि दो स्थानों के तापक्रम में तीव्र वृद्धि हो रही है अर्थात् ताप प्रवणता अधिक है और यदि उनके बीच की दूरी अधिक है तो ताप प्रवणता कम होगी।

(3) जल तथा स्थल का तापक्रम भिन्न-भिन्न होता है, इसलिए जब समताप रेखाएँ तटीय भागों पर आती हैं तो एकदम मुड़ जाती हैं। इसका तात्पर्य है कि तापक्रम में अचानक परिवर्तन आ जाता है।

(4) दक्षिणी गोलार्द्ध जलीय गोलार्द्ध है जिसमें जल की प्रधानता है इसलिए समताप रेखाएँ कम मुड़ती हैं, जबकि उत्तरी गोलार्द्ध में स्थल की अधिकता के कारण ये अधिक टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं।

(5) भूमध्य रेखीय एवं उष्ण कटिबन्धीय भागों में समताप रेखाओं का मान अधिक होता है, जबकि ध्रुवों की ओर जाने पर इनका मान क्रमशः घटता जाता है।

(6) स्थलीय भाग से समुद्र की ओर जाते समय समताप रेखाएँ शीतकाल में भूमध्य रेखा की ओर तथा ग्रीष्मकाल में ध्रुवों की ओर मुड़ जाती हैं, क्योंकि शीतकाल में स्थलीय भाग समुद्रों से अधिक ठण्डे (कम तापक्रम) होते हैं।

प्रश्न 5.
जनवरी तथा जुलाई के तापमान के वितरण के मुख्य लक्षण क्या हैं?
उत्तर:
संसार में जनवरी तथा जुलाई के महीने प्रायः न्यूनतम तथा अधिकतम तापक्रम वाले महीने होते हैं इसलिए इन दो महीनों के तापक्रम का विश्लेषण आवश्यक है।
1. जनवरी के तापमान का क्षैतिज वितरण (Horizontal Distribution of Temperature of January) जनवरी के महीने में सूर्य की स्थिति दक्षिणायन होती है अर्थात् मकर रेखा पर सूर्य की किरणें लम्बवत् पड़ती हैं इसलिए दक्षिणी गोलार्द्ध में इस समय ग्रीष्म ऋतु होती है। इस समय ऑस्ट्रेलिया, पूर्वी मध्य अफ्रीका तथा उत्तरी-पश्चिमी अर्जेन्टीना में तापमान लगभग 30° सेल्सियस के आस-पास रहता है, जबकि उत्तरी गोलार्द्ध में तापमान की स्थिति इसके विपरीत होती है। उत्तरी गोलार्द्ध में शीत ऋतु होती है, रातें बड़ी होती हैं और तापक्रम कम होता है। साइबेरिया में वोयान्सक विश्व का सबसे ठण्डा क्षेत्र है जहाँ पर जनवरी महीने का तापमान -50° सेल्सियस तक गिर जाता है।

उत्तरी गोलार्द्ध में स्थल की अधिकता है और तापमान स्थलीय भागों में कम रहता है, इसलिए समताप रेखाएँ जैसे ही स्थलों से महासागरों में पहुँचती हैं तो भूमध्य रेखा की ओर मुड़ जाती हैं क्योंकि सागरीय भागों में तापक्रम अपेक्षाकृत अधिक रहता है। अतः उत्तरी गोलार्द्ध में ताप प्रवणता अधिक रहती है। (क्योंकि समताप रेखाओं के बीच की दूरी कम रहती है।) दक्षिणी गोलार्द्ध में समताप रेखाएँ महासागरीय प्रभाव के कारण दूर-दूर रहती हैं और महाद्वीपों से गुजरते समय दक्षिणी ध्रुव की ओर मुड़ जाती हैं। समताप रेखाएँ उत्तरी गोलार्द्ध की तुलना में अधिक नियमित होती हैं।

2. जुलाई के तापमान का क्षैतिज वितरण (Horizontal Distribution of Temperature of July)-जुलाई के माह में उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर लम्बवत होती हैं, इसलिए उत्तरी गोलार्द्ध में दिन की अवधि लम्बी तथा ग्रीष्म ऋतु होती है, जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में शीत ऋतु होती है। उत्तरी गोलार्द्ध में 10° से 40° अक्षांशों के मध्य अधिकतम तापक्रम रहता है। तापक्रम का औसत 30° सेल्सियस से अधिक रहता है। समताप रेखाएँ एक-दूसरे से दूर-दूर स्थित होती हैं।

जब ये रेखाएँ स्थलीय भागों से महासागरों की ओर जाती हैं तो महासागर की सीमा से दक्षिण की ओर भूमध्य रेखा की ओर स्थल की ओर गुजरते समय ध्रुवों की ओर मुड़ जाती हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी स्थिति अत्यधिक अनियमित होती है। उत्तरी गोलार्द्ध में दक्षिणी-पश्चिमी एशिया, उत्तरी-पश्चिमी भारत, अमेरिका का दक्षिणी-पूर्वी भाग तथा अफ्रीका में सहारा मरुस्थल का तापमान अत्यधिक अर्थात् 35° सेल्सियस से अधिक रहता है। न्यूनतम तापमान ध्रुवीय क्षेत्रों में पाया जाता है। पाकिस्तान तथा उत्तरी-पश्चिमी भारत ग्रीष्म ऋतु में ‘लू’ की चपेट में आ जाते हैं, लेकिन जुलाई के प्रथम सप्ताह में वर्षा के कारण तापक्रम में कुछ कमी आ जाती है।

प्रश्न 6.
तापमान के क्षैतिज वितरण का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
तापमान के क्षैतिज वितरण का आशय अंक्षाशीय वितरण से है। भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर (दोनों गोलार्डों में) जाने पर तापमान में क्रमशः कमी होती जाती है। इस क्षैतिज वितरण के आधार पर पृथ्वी को तीन कटिबन्धों या मण्डलों में विभक्त किया जाता है
1. उष्ण-कटिबन्ध (Torrid Zone) यह कटिबन्ध दोनों गोलार्डों में 237° उत्तरी तथा 237° दक्षिणी अक्षांशों के बीच का क्षेत्र है अर्थात् कर्क और मकर रेखा के बीच के क्षेत्र को उष्ण कटिबन्ध कहा जाता है। यहाँ साल भर सूर्य की किरणें लम्बवत् पड़ती हैं जिससे तापक्रम ऊँचा रहता है। भूमध्य रेखा के आस-पास तो शीत ऋतु होती ही नहीं, वहाँ औसत तापक्रम ऊँचा रहता है।

2. शीतोष्ण कटिबन्ध (Temperature Zone)-यह कटिबन्ध दोनों गोलार्डों में 23/2° से 66/2° अक्षांशों के मध्य स्थित है। इस प्रदेश में दिन-रात की अवधि मौसम के अनुसार घटती-बढ़ती रहती है। जब सूर्य की स्थिति उत्तरायण होती है तो उस समय उत्तरी गोलार्द्ध में दिन बड़े तथा रातें छोटी हैं और ग्रीष्म ऋतु होती है, लेकिन जब सूर्य की स्थिति दक्षिणायन होती है तो दक्षिणी . गोलार्द्ध में दिन बड़े तथा रातें छोटी होती हैं और उत्तरी गोलार्द्ध में इसके विपरीत स्थिति होती है।

3. शीत कटिबन्ध (Frigid Zone)-इस कटिबन्ध का विस्तार दोनों गोलार्डों में 66%° से ध्रुवों (90°) तक है। यहाँ सूर्य की किरणे अत्यधिक तिरछी पड़ती हैं जिसके कारण दिन की अवधि छोटी होती है। जब सूर्य की किरणें दक्षिणायन होती हैं तो उत्तरी गोलार्द्ध के ध्रुवों पर 6 महीने की रात तथा जब सूर्य की स्थिति उत्तरायण होती है तो ऐसी दशा में दक्षिणी ध्रुव पर 6 महीने की रात होती है। 6 महीने की रात के कारण सूर्यातप बहुत कम प्राप्त होता है जिससे तापक्रम साल भर नीचा तथा हिमांक से कम रहता है अर्थात् तापक्रम दोनों ध्रुवों पर कम पाया जाता है।

प्रश्न 7.
वायुमंडल के तापन और शीतलन की विधियों का वर्णन कीजिए। अथवा वायुमंडल उष्मा संचरण की कौन-सी विधियों से गरम और ठण्डा होता है? इनका संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वायुमंडल के गर्म तथा ठण्डा होने में पार्थिव या भौमिक शक्ति (Terrestrial Force) महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस पार्थिव शक्ति के कारण कुछ भौतिक क्रियाएं होती हैं जिनके कारण वायुमण्डल गर्म तथा ठण्डा होता रहता है। ये भौतिक विधियाँ निम्नलिखित हैं
1. विकिरण (Radiation) सूर्य से आने वाली तरंगों के द्वारा वायुमण्डल का गर्म होना विकिरण (Radiation) कहलाता है। सूर्य से प्राप्त सौर ऊर्जा द्वारा वायुमण्डल तथा पृथ्वी दोनों ही गर्म होते हैं। पृथ्वी पर प्राप्त सौर ऊर्जा से पृथ्वी गर्म होती है। इसे पार्थिव या भौमिक विकिरण (Terrestrial Radiation) कहते हैं। भू-तल को उष्णता लम्बी तरंगों के रूप में प्राप्त होती है जिसका 90% धरातल अवशोषित कर लेता है और वायुमण्डल गर्म होता रहता है। पार्थिव विकिरण द्वारा वायुमण्डल की निचली परतें ही गर्म होती हैं। अधिक ऊँचाई पर इसका प्रभाव बहुत कम होता है।

2. परिचालन (Conduction) जब दो असमान प्रकृति वाली वस्तुएँ एक-दूसरे के सम्पर्क में आती हैं तो जो अधिक तापमान वाली वस्तु है, वह कम तापमान वाली वस्तु की ओर प्रवाहित होती है अर्थात् अधिक तापमान वाली वस्तु से तापमान का संचालन कम तापमान वाली वस्तु की ओर होता है और यह क्रम तब तक चलता रहता है, जब तक दोनों वस्तुओं का तापमान एक-जैसा या समान न हो जाए। इसे संचालन भी कहते हैं। वायु ऊष्मा की कुचालक है, अतः वायुमण्डल में ऊष्मा का संचालन आसानी से नहीं होता। केवल वायुमण्डल की निचली परत पर ही ऊष्मा का संचालन होता है अथवा वायुमण्डल की निम्न परत ही गर्म होती है। ऊपरी परतों पर इसका प्रभाव नगण्य होता है। प्रकृति का यह नियम है कि वह प्रत्येक वस्तु में समानता चाहती है, इसलिए गर्म एवं तप्त सूर्य पृथ्वी को लगातार अपनी किरणों द्वारा ताप प्रदान करता रहता है। यह ताप वायुमण्डल की विभिन्न परतों से धरातल पर आने का प्रयास करता है जिससे सूर्यातप में धरातल पर समानता बनी रहे।

3. संवहन (Convection) सूर्यातप के विकिरण द्वारा धरातल की वायु गर्म होती है। गर्म वायु हल्की होकर ऊपर उठती है तथा फैलती है लेकिन वायुमण्डल में ऊँचाई पर जाने पर तापमान की कमी के कारण यही वायु ठण्डी हो जाती है। ठण्डी होने के कारण यह भारी होकर पुनः धरातल पर नीचे उतर जाती है और पुनः धरातल से गर्म होकर ऊपर उठती है। इसी प्रक्रिया के कारण वायुमण्डल में संवहन (Convection) शुरू हो जाता है तथा लम्बवत् रूप में संवहनिक तरंगें चलने लगती हैं। इस प्रकार की क्रियाएँ उत्तरी तथा दक्षिणी अक्षांशों में अधिक होती हैं। इस प्रकार वायुमण्डल में या तरल पदार्थ में जो ऊष्मा का एक भाग से दूसरे भाग में स्थानान्तरण होता है, उसे संवहन कहा जाता है।

4. अभिवहन (Advection)अभिवहन वह क्रिया है जिसमें ऊष्मा का स्थानान्तरण क्षैतिज रूप में होता है। जब भूमध्य रेखीय या उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों की गर्म वायुराशियाँ मध्य महाद्वीपों या उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में पहुँचती हैं तो वहाँ की ठण्डी वायुराशियों को कम कर देती हैं। इसी प्रकार गर्म समुद्री धाराएँ, जो उष्ण प्रदेशों से उत्पन्न होती हैं और ठण्डे प्रदेशों में प्रवेश करती हैं तो वहाँ के तापमान में वृद्धि कर देती हैं। इस क्रिया को ही अभिवहन कहते हैं।

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 8 वायुमंडल का संघटन तथा संरचना

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 8 वायुमंडल का संघटन तथा संरचना Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 8 वायुमंडल का संघटन तथा संरचना

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. दहन के लिए आवश्यक वह कौन-सी गैस है जिसे औद्योगिक सभ्यता का आधार कहा जाता है?
(A) ओज़ोन
(B) नाइट्रोजन
(C) ऑक्सीजन
(D) आर्गन
उत्तर:
(C) ऑक्सीजन

2. रंगहीन, गंधहीन और स्वादहीन ऐसी कौन-सी गैस है जिसके अभाव में मनुष्य व जीव-जंतुओं के ऊतक जलकर नष्ट हो जाते हैं?
(A) हीलियम
(B) क्रिप्टान
(C) हाइड्रोजन
(D) नाइट्रोजन
उत्तर:
(D) नाइट्रोजन

3. वह कौन-सी गैस है जिससे मिलकर पौधे स्टार्च व शर्कराओं का निर्माण करते हैं?
(A) जीनोन
(B) नियोन
(C) कार्बन-डाईऑक्साइड
(D) ओज़ोन
उत्तर:
(C) कार्बन-डाईऑक्साइड

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4. उस गैस का नाम बताइए जो चूने की चट्टानों पर कार्ट स्थलाकृति की रचना करती है और ग्रीन हाऊस प्रभाव उत्पन्न करती है।
(A) ऑक्सीजन
(B) कार्बन-डाईऑक्साइड
(C) नाइट्रोजन
(D) हाइड्रोजन
उत्तर:
(B) कार्बन-डाईऑक्साइड

5. पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर लेने वाली ओजोन गैस वायुमंडल में किस ऊंचाई पर मिलती है?
(A) 80 कि०मी० पर
(B) 50 से 100 कि०मी० तक
(C) 10 से 50 कि०मी० तक
(D) 8 से 16 कि०मी० तक
उत्तर:
(C) 10 से 50 कि०मी० तक

6. वायुमंडल में कार्बन-डाईऑक्साइड किस ऊंचाई तक पाई जाती है?
(A) 50 कि०मी०
(B) 90 कि०मी०
(C) 120 कि०मी०
(D) 30 कि०मी०
उत्तर:
(B) 90 कि०मी०

7. वायुमंडल का कौन-सा घटक इंद्रधनुष और प्रभामण्डल जैसे मनभावन दृश्य विकसित करने में भूमिका निभाता है?
(A) कण
(B) गैस
(C) उल्कापात
(D) जलवाष्प
उत्तर:
(D) जलवाष्प

8. अधिकांश मौसमी घटनाएँ किस मण्डल में घटित होती हैं?
(A) क्षोभमण्डल
(B) समतापमण्डल
(C) आयनमण्डल
(D) ओज़ोन मण्डल
उत्तर:
(A) क्षोभमण्डल

9. वायुमंडल की किस परत को “मौसमी परिवर्तनों की छत” कहा जाता है?
(A) समतापमण्डल
(B) समताप सीमा
(C) मध्यमण्डल सीमा
(D) क्षोभसीमा
उत्तर:
(D) क्षोभसीमा

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10. वायुमंडल की कौन-सी परत पृथ्वी की ओर से भेजी गई रेडियो तरंगों को परावर्तित करके पुनः पृथ्वी पर भेज देती है?
(A) तापमण्डल
(B) समतापमण्डल
(C) मध्यमण्डल
(D) क्षोभमण्डल
उत्तर:
(A) तापमण्डल

11. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन असत्य है?
(A) पृथ्वी की ओर आ रहे उल्कापिंड समतापमण्डल में जलकर नष्ट हो जाते हैं।
(B) मध्यमण्डल सीमा को ‘मुक्त मेघों की जननी’ कहा जाता है।
(C) समतापमण्डल में उड़ते जेट विमान से छूटती सफेद पूंछ वास्तव में इंजन से निकली नमी होती है।
(D) वायुमंडल गतिशील, लचीला, संपीड्य और प्रसारणीय है।
उत्तर:
(B) मध्यमण्डल सीमा को ‘मुक्त मेघों की जननी’ कहा जाता है।

12. निम्नलिखित में से कौन-सी गैस वायुमण्डल में सबसे कम मात्रा में मौजूद है?
(A) ऑक्सीजन
(B) कार्बन-डाइऑक्साइड
(C) नाइट्रोजन
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) कार्बन-डाइऑक्साइड

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
वायुमंडल की सबसे निचली परत में कौन सी गैस पाई जाती है?
उत्तर:
कार्बन-डाइऑक्साइड।

प्रश्न 2.
वह कौन-सी गैस है जिसके बिना आग नहीं जलाई जा सकती?
उत्तर:
ऑक्सीजन।

प्रश्न 3.
कौन-सी गैस पौधों व वनस्पति का भोजन बनाने में काम आती है?
उत्तर:
नाइट्रोजन।

प्रश्न 4.
वायुमंडल की कौन-सी गैस पराबैंगनी विकिरण को सोख लेती है?
उत्तर:
ओज़ोन।

प्रश्न 5.
मानव तथा धरातलीय जीवों के लिए कौन-सी परत सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
क्षोभमण्डल।

प्रश्न 6.
क्षोभमण्डल की ध्रुवों तथा भूमध्यरेखा पर ऊँचाई क्रमशः कितनी है?
उत्तर:
8 कि०मी० व 18 कि०मी०।

प्रश्न 7.
वायुमंडल की कौन-सी परत द्वारा रेडियो तरंगों का पृथ्वी की ओर परावर्तन होता है?
उत्तर:
आयनमण्डल द्वारा।

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प्रश्न 8.
जेट विमानों के उड़ान की आदर्श स्थिति किस मण्डल में है?
उत्तर:
समतापमण्डल में।

प्रश्न 9.
ऊँचाई के साथ तापमान किस मण्डल में बढ़ता है?
उत्तर:
समतापमण्डल में।

प्रश्न 10.
क्षोभमण्डल को समतापमण्डल से अलग करने वाली पतली परत का नाम बताइए।
उत्तर:
क्षोभ सीमा।

प्रश्न 11.
ध्रुवीय प्रकाश के दर्शन वायुमंडल की किस परत में होते हैं?
उत्तर:
आयनमण्डल में।

प्रश्न 12.
वायुमंडल की सबसे निचली परत का नाम बताएँ।
उत्तर:
क्षोभमण्डल।

प्रश्न 13.
वायुमंडल की किस परत में मौसमी दशाएँ अथवा वायुमंडलीय विघ्न पाए जाते हैं?
उत्तर:
क्षोभमण्डल में।

प्रश्न 14.
वायुमंडल की किस परत में तापमान स्थिर रहता है?
उत्तर:
समतापमण्डल में।

प्रश्न 15.
कौन-सी गैस ‘काँच घर का प्रभाव’ उत्पन्न करती है?
उत्तर:
कार्बन-डाइऑक्साइड।

प्रश्न 16.
वायुमंडल पृथ्वी के साथ किस शक्ति के कारण से टिका हुआ है?
उत्तर:
पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण।

प्रश्न 17.
आधुनिक खोजों के अनुसार वायुमंडल की ऊँचाई कितनी है?
उत्तर:
32,000 कि०मी० से अधिक।

प्रश्न 18.
निम्नलिखित में से प्रत्येक के लिए पारिभाषिक शब्द लिखिए-

  1. समतापमण्डल को क्षोभमण्डल से अलग करने वाली परत।
  2. वायुमंडल का वह संस्तर जिसमें वायुयानों को उड़ाने के लिए आदर्श दशाएँ मौजूद हैं।
  3. वायुमंडल का वह संस्तर जो पृथ्वी से प्रेषित रेडियो तरंगों को परावर्तित करके पुनः पृथ्वी के धरातल पर वापस भेज देता है।
  4. हवा का वह विस्तृत आवरण जो पृथ्वी को चारों ओर से पूर्णतः ढके हुए हैं।
  5. वायुमंडल का वह संस्तर जो समतापमण्डल और आयनमण्डल के बीच स्थित है।
  6. वायुमंडल का सबसे ऊपरी संस्तर।

उत्तर:

  1. क्षोभ सीमा
  2. समतापमण्डल
  3. आयनमण्डल
  4. वायुमंडल
  5. मध्यमण्डल
  6. बाह्यमण्डल।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वायुमंडल किन तत्त्वों से बना हुआ है?
उत्तर:
अनेक गैसों, जलवाष्प तथा कुछ सूक्ष्म ठोस कणों से।

प्रश्न 2.
जीवन के लिए कौन-सी गैसें महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
मनुष्य और जानवरों के लिए ऑक्सीजन तथा पेड़-पौधों के लिए कार्बन-डाइऑक्साइड।

प्रश्न 3.
वायुमंडल की प्रमुख परतों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. क्षोभमण्डल
  2. समतापमण्डल
  3. मध्यमण्डल
  4. आयनमण्डल तथा
  5. बाह्यमण्डल।

प्रश्न 4.
क्षोभमण्डल में तापमान की सामान्य ह्रास दर कितनी है?
उत्तर:
165 मीटर के लिए 1° सेल्सियस या 1 कि०मी० के लिए 6.4° सेल्सियस।

प्रश्न 5.
वायुमंडल में नाइट्रोजन व ऑक्सीजन गैसों का कितना-कितना प्रतिशत है?
उत्तर:
क्रमशः 78 प्रतिशत व 21 प्रतिशत।

प्रश्न 6.
वायुमंडल का हमारे लिए क्या महत्त्व है?
उत्तर:
वायुमंडल के कारण ही पृथ्वी पर जीवन सम्भव हुआ है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 8 वायुमंडल का संघटन तथा संरचना

प्रश्न 7.
ओज़ोन गैस का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
यह गैस सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों के कुछ अंश को अवशोषित कर लेती है।

प्रश्न 8.
ओजोन परत के छिलने या कम होने के दो कारण बताओ।
उत्तर:

  1. कार्बन-डाइऑक्साइड गैस का अधिक औद्योगिक उपयोग।
  2. वनों की अत्यधिक कटाई।

प्रश्न 9.
ओज़ोन परत धरातल से कितनी ऊँचाई पर स्थित है?
उत्तर:
10 से 50 कि०मी० की ऊँचाई पर।

प्रश्न 10.
आयतन के हिसाब से वायुमंडल में वाष्प की कितनी मात्रा पाई जाती है?
उत्तर:
अति ठण्डे व अति शुष्क क्षेत्रों में हवा के आयतन के एक प्रतिशत तक तथा भूमध्य रेखा के पास उष्ण व आर्द्र क्षेत्रों में हवा के आयतन के 4 प्रतिशत तक।

प्रश्न 11.
मौसम के प्रमुख तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
तापमान, वर्षा, पवनों की दिशा, पवनों की गति, आर्द्रता व मेघ इत्यादि।

प्रश्न 12.
जलवाष्प के मुख्य स्रोत कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
वाष्पीकरण तथा पेड़-पौधों व मिट्टी से वाष्पोत्सर्जन।

प्रश्न 13.
जलवाष्पों के मुख्य कार्य कौन-से होते हैं?
उत्तर:
वाष्प ही संघनित होकर ओस, कुहासा, कोहरा तथा बादल बनाते हैं।

प्रश्न 14.
धूलकणों का वायुमंडल में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
ये ताप का अवशोषण करते हैं तथा धुंध, धूम कोहरा व बादल बनाते हैं।

प्रश्न 15.
ऐरोसोल क्या होता है?
उत्तर:
वायुमंडल में धूल, पराग व नमक आदि के ठोस कणों को ऐरोसोल कहा जाता है।

प्रश्न 16.
क्षोभमण्डल की ऊँचाई भूमध्य रेखा पर अधिक क्यों होती है?
उत्तर:
ध्रुवों पर क्षोभमण्डल की ऊँचाई 8 किलोमीटर और भूमध्य रेखा पर 18 किलोमीटर है। भूमध्य रेखा पर क्षोभमण्डल की अधिक ऊँचाई का कारण यह है कि वहाँ पर चलने वाली तेज़ संवहन धाराएँ ऊष्मा को धरातल से अधिक ऊँचाई पर ले जाती हैं। यही कारण है कि जाड़े की अपेक्षा गर्मी में क्षोभमण्डल की ऊँचाई बढ़ जाती है।

प्रश्न 17.
विषममण्डल (Heterosphere) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
विषममण्डल एक परतदार उष्ण मण्डल है जो मध्यमण्डल से ऊपर स्थित है। इस मण्डल में तापमान तेज़ी से बढ़ता है। यहाँ 350 कि०मी० की ऊँचाई पर तापमान 900° सेल्सियस तक पहुँच जाता है।

प्रश्न 18.
पृथ्वी का अंग न होते हुए भी वायुमंडल पृथ्वी से क्यों जुड़ा हुआ है?
उत्तर:
वायुमंडल का अधिकतर भाग भू-पृष्ठ से केवल 32 कि०मी० की ऊँचाई तक सीमित है। पृथ्वी का अंग न होते हुए भी वायुमंडल- पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण पृथ्वी से जुड़ा हुआ है।

प्रश्न 19.
वायुमंडल की सक्रिय व निष्क्रिय गैसें कौन-सी हैं?
उत्तर:
वायुमंडल में ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन-डाइऑक्साइड तथा ओज़ोन गैसें सक्रिय गैसें हैं, परन्तु कुछ गैसें अत्यन्त कम मात्रा में मिलती हैं और रासायनिक प्रतिक्रियाओं में शामिल नहीं होतीं। ऐसी निष्क्रिय गैसों में जेलोन, क्रिप्टॉन, नियॉन तथा आर्गन इत्यादि आती हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वायुमंडल की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वायुमंडल की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. वायुमंडल की वायु एक रंगहीन, गंधहीन तथा स्वादहीन पदार्थ है।
  2. वायुमंडल को हम देख नहीं सकते। वर्षा, ओले, तूफ़ान, बादल, तड़ित व धुंध जैसी घटनाओं से हम इसकी उपस्थिति का अनुभव कर सकते हैं।
  3. नवीनतम खोजों के अनुसार वायुमंडल 32,000 कि०मी० से भी अधिक ऊँचाई तक फैला हुआ है। कभी इसकी ऊँचाई केवल 800 कि०मी० मानी जाती थी।
  4. वास्तव में वायुमंडल की कोई ऐसी ऊपरी सीमा तय नहीं हो सकी जो इसे अन्तरिक्ष (Universe) से अलग करती हो।
  5. भू-तल के निकट वायु सघन (Dense) होती है जो ऊँचाई बढ़ने के साथ उत्तरोत्तर विरल (Rare) और हल्की होती जाती है।
  6. यह पता ही नहीं चल पाता कि कहाँ वायुमंडल समाप्त होकर अन्तरिक्ष में विलीन हो गया।

प्रश्न 2.
वायुमंडल किन-किन तत्त्वों से मिलकर बना है? उन तत्त्वों की प्रतिशत मात्रा लिखिए।
उत्तर:
वायुमंडल विभिन्न गैसों का एक मिश्रण है जिसमें ठोस तथा तरल पदार्थों के कण असमान मात्रा में तैरते रहते हैं। शुद्ध शुष्क वायु में नाइट्रोजन 78.08%, ऑक्सीजन 20.95%, कार्बन-डाइऑक्साइड 0.036% और हाइड्रोजन 0.01% तथा ओज़ोन इत्यादि गैसें होती हैं। वायुमंडल में गैसों के अतिरिक्त जलकण तथा धूलकण होते हैं। वायु का संघटन विभिन्न स्थानों तथा विभिन्न समयों में भिन्न होता है। विश्व की जलवायु तथा मौसमी दशाएँ इसी पर आधारित होती हैं।

शुद्ध शुष्क वायु निम्नलिखित तत्त्वों से बनी होती है:

वायु में विभिन्न गैसों की प्रतिशत मात्रा (आयतन)
नाइट्रोजन (N2)78%
ऑक्सीजन (O2)21%
आर्गन (Ar)0.93%
कार्बन-डाइऑक्साइड (CO2)0.03%
अन्य0.04%

प्रश्न 3.
वायुमंडल में ऑक्सीजन व कार्बन-डाइऑक्साइड के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ऑक्सीजन का महत्त्व-

  • यह एक जीवनदायिनी गैस है। मनुष्य और जानवर श्वसन में ऑक्सीजन को ही ग्रहण करते हैं।
  • ऑक्सीजन दहन के लिए आवश्यक है। इसके बिना आग नहीं जलाई जा सकती। इस प्रकार ऑक्सीजन ऊर्जा का प्रमुख साधन व औद्योगिक सभ्यता का आधार है।
  • शैलों के रासायनिक अपक्षय में सहयोग देकर ऑक्सीजन अनेक भू-आकारों की उत्पत्ति का कारण बनती है।

कार्बन-डाइऑक्साइड का महत्त्व-

  • जीवित रहने के लिए पौधे कार्बन-डाइऑक्साइड पर निर्भर करते हैं।
  • हरे पौधे वायुमंडल की कार्बन-डाइऑक्साइड से मिलकर स्टार्च व शर्कराओं का निर्माण करते हैं।
  • यह गैस प्रवेशी सौर विकिरण को तो पथ्वी तल तक आने देती है किन्त पथ्वी से विकिरित होने वाली लम्बी तरंगों को बाहर जाने से रोकती है। इससे पृथ्वी के निकट वायुमंडल का निचला भाग गर्म रहता है। इस प्रकार कार्बन-डाइऑक्साइड ‘काँच घर का प्रभाव’ उत्पन्न करती है।
  • औद्योगिक क्रान्ति के बाद जैव ईंधन (लकड़ी, कोयला, पेट्रोल व गैस) के अधिक जलने से वायुमंडल में कार्बन-डाइऑक्साइड की मात्रा 10 प्रतिशत बढ़ी है जिससे भू-मण्डलीय ऊष्मा में वृद्धि हुई है।
  • वर्षा जल में घुलकर कार्बन-डाइऑक्साइड तनु अम्ल बनाती है और चूने की चट्टानों पर ‘कार्ट स्थलाकृति’ की रचना करती है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 8 वायुमंडल का संघटन तथा संरचना

प्रश्न 4.
वायुमंडल में धूलकणों का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
वायुमंडल में उपस्थित धूल के कण निम्नलिखित रूप से महत्त्वपूर्ण हैं-

  1. धूलकण सौर ताप के कुछ भाग को सोख लेते हैं तथा कुछ भाग को परावर्तित कर देते हैं जिससे वायुमंडल का तापमान अधिक नहीं बढ़ता।
  2. वायुमंडल में उपस्थित धूलकण आर्द्रताग्राही केन्द्र का कार्य करते हैं। इनके चारों ओर ही जलवाष्प केन्द्रित होते हैं जिससे कोहरा तथा बादल आदि का निर्माण होता है और वर्षा होती है।
  3. धूलकणों के कारण वायुमंडल की दर्शन क्षमता कम होती है।
  4. धूलकणों के कारण ही सूर्योदय, सूर्यास्त तथा इन्द्रधनुष आदि रंग-बिरंगे दृश्यों का निर्माण होता है।

प्रश्न 5.
वायुमंडल में नाइट्रोजन व ओज़ोन गैस का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
नाइट्रोजन का महत्त्व-

  • नाइट्रोजन वायु में उपस्थित ऑक्सीजन के प्रभाव को कम करती है। यदि वायुमंडल में नाइट्रोजन न होती तो वस्तुएँ इतनी तेज़ी से जलती कि उस पर नियन्त्रण करना कठिन होता।
  • नाइट्रोजन के अभाव में मनुष्य तथा जीव-जन्तुओं के शरीर के ऊतक भी जलकर नष्ट हो जाते हैं।
  • मिट्टी में नाइट्रोजन की उपस्थिति प्रोटीनों का निर्माण करती है जो पौधों और वनस्पति का भोजन बनते हैं।
  • नाइट्रोजन की उपस्थिति के कारण ही वायुदाब, पवनों की गति तथा प्रकाश के परावर्तन का आभास होता है।

ओज़ोन गैस का महत्त्व ओजोन गैस सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों के कुछ अंश को अवशोषित कर लेती है जिससे स्थलमण्डल एक उपयुक्त सीमा से अधिक गर्म नहीं हो पाता। इस प्रकार यह गैस एक छलनी (Filter) का कार्य करती है जिसकी अनुपस्थिति में सब कुछ जलकर समाप्त हो जाता है।

प्रश्न 6.
वायुमंडल में जलवाष्प के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वाष्प ही संघनित होकर ओस, कुहासा, कोहरा तथा बादलों का सृजन करते हैं। धरती पर वर्षा और हिमपात भी इन्हीं के कारण होता है। वायुमंडल में जलवाष्प की उपस्थिति के कारण ही इन्द्रधनुष तथा प्रभा-मण्डल जैसे मनभावन दृश्य विकसित होते हैं।

वाष्प की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण क्रिया उसकी पारदर्शिता पर आधारित होती है। इसी पारदर्शिता के कारण लघु तरंगों के रूप में सूर्य की ऊष्मा धरती पर पहुँच सकती है किन्तु लम्बी तरंगों के रूप में विकिरित ऊष्मा वायुमंडल को चीरकर बाहर नहीं जा पाती। अतः वायुमंडल में वाष्पों की उपस्थिति के कारण पृथ्वी गर्म रह पाती है। इस प्रकार वाष्प विशाल कम्बल की भाँति कार्य करते हैं। वाष्प या जल के अन्य रूपों द्वारा छोड़ी गई गुप्त ऊष्मा (Latent Heat) अनेक मौसमी दशाओं को जन्म देती है।

प्रश्न 7.
वायुमंडल में पाए जाने वाले ठोस कण और आकस्मिक रचक कौन-कौन से होते हैं?
उत्तर:
गैस तथा वाष्प के अतिरिक्त वायु में कुछ सूक्ष्म ठोस कण भी पाए जाते हैं जिनमें धूलकण सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं। ये कण सौर विकिरण का कुछ अंश अवशोषित कर लेते हैं साथ ही सूर्य की किरणों का परावर्तन (Reflection) और प्रकीर्णन (Scattering) भी करते हैं। इसी के परिणामस्वरूप हमें आकाश नीला दिखाई पड़ता है। किरणों के प्रकीर्णन के कारण ही सूर्योदय और सूर्यास्त के समय आकाश में लाल और नारंगी रंग की छटाएँ बनती हैं। इन्हीं धूल कणों के कारण ही धुंध (Haze) व धूमकोहरा (Smog = Smoke + Fog) बनता है।

वायुमंडल में कुछ आकस्मिक रचक (Accidental Component) और अपद्रव्य (Impurities) भी शामिल होती हैं। इनमें धुएँ की कालिख (soot), ज्वालामुखी राख, उल्कापात के कण, समुद्री झाग के बुलबुलों के टूटने से मुक्त हुए ठोस लवण, जीवाणु, बीजाणु तथा पशुशालाओं के पास की वायु में अमोनिया के अंश इत्यादि पदार्थ आते हैं।

प्रश्न 8.
गुप्त ऊष्मा क्या होती है तथा मौसम पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है?
अथवा
“गुप्त ऊष्मा प्रचण्ड मौसमी दशाओं का इंजन कहलाती है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
केवल जल में निराली विशेषता होती है कि वह तापमान के अनुसार गैस, तरल व ठोस अवस्था में बदल सकता है। जल जब एक अवस्था से दूसरी अवस्था में बदलता है तो यह या तो ऊष्मा छोड़ता है या ग्रहण करता है। इसके बिना जल की अवस्था बदल नहीं सकती। इस ऊष्मा को गुप्त ऊष्मा (Latent Heat) कहते हैं। वाष्पन (Evaporation) की प्रक्रिया में जलवाष्प ऊष्मा को ग्रहण करते हैं जबकि संघनन की प्रक्रिया में ऊष्मा का त्याग होता है। प्रायः त्यागी गई ऊष्मा, ग्रहण की गई ऊष्मा के लगभग समान होती है। पवनें गुप्त ऊष्मा का स्थानान्तरण करती हैं। जब गुप्त ऊष्मा अत्यधिक मात्रा में निकलती है तो वायु में असन्तुलन की दशाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। फलस्वरूप बिजली की कड़क, बादलों का गरजना, उष्ण-कटिबन्धीय चक्रवात और तड़ित-झंझावात जैसी प्रचण्ड घटनाएँ घटित होती हैं।

प्रश्न 9.
मनुष्य के लिए वायुमंडल का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
वायुमंडल मनुष्य के लिए निम्नलिखित प्रकार से महत्त्वपूर्ण है-

  1. वायुमंडल में उपस्थित ऑक्सीजन गैस मानव-जीवन का आधार है।
  2. पेड़-पौधों का जीवन वायुमंडल की कार्बन-डाइऑक्साइड पर निर्भर करता है।
  3. वायुमंडल सूर्यातप को अवशोषित करके एक काँच घर (Glass House) का कार्य करता है।
  4. वायुमंडल में उपस्थित धूलकण वर्षा का आधार बनते हैं।
  5. वायुमंडल का विभिन्न खाद्यान्नों, मौसम, जलवायु तथा वायुमार्गों पर भी प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 10.
क्षोभमण्डल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भू-तल के सम्पर्क में क्षोभमण्डल वायुमंडल की सबसे निचली परत है जिसका घनत्व सर्वाधिक है। ध्रुवों पर इस परत की ऊँचाई 8 किलोमीटर और भूमध्य रेखा पर 18 किलोमीटर है। भूमध्य रेखा पर क्षोभमण्डल की अधिक ऊँचाई का कारण यह है कि वहाँ पर चलने वाली तेज़ संवहन धाराएँ ऊष्मा को धरातल से अधिक ऊँचाई पर ले जाती हैं। यही कारण है कि जाड़े की अपेक्षा गर्मी में क्षोभमण्डल की ऊँचाई बढ़ जाती है। संवहन धाराओं की अधिक सक्रियता के कारण इस परत को प्रायः संवहन क्षेत्र भी कहते हैं। इस मण्डल में प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर 1° सेल्सियस तापमान गिर जाता है। ऊँचाई बढ़ने पर तापमान गिरने की इस दर को सामान्य हास दर कहा जाता है। मानव व अन्य धरातलीय जीवों के लिए यह परत सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। ऋतु व मौसम सम्बन्धी लगभग सभी घटनाएँ; जैसे बादल, वर्षा, भूकम्प आदि जो मानव-जीवन को प्रभावित करती हैं, इसी परत में घटित होती हैं। क्षोभमण्डल में ही भारी गैसों, जलवाष्प, धूलकणों, अशुद्धियों व आकस्मिक रचकों की अधिकतम मात्रा पाई जाती है।

क्षोभमण्डल की ऊपरी सीमा को क्षोभ सीमा (Tropopause) कहते हैं। यह क्षोभमण्डल व समतापमण्डल को अलग करती है। लगभग 11/2 से 2 किलोमीटर मोटी इस परत में ऊँचाई के साथ तापमान गिरना बन्द हो जाता है। इस भाग में हवाएँ व संवहनी धाराएँ भी चलना बन्द हो जाती हैं।

प्रश्न 11.
क्षोभ सीमा क्या है?
उत्तर:
भू-तल से ऊपर की ओर जाते हुए तापमान असमान दर से परिवर्तित होता है। 15 कि०मी० की ऊँचाई तक तापमान के घटने की दर धीमी होती है। 80 कि०मी० तक तापमान में परिवर्तन नहीं होता, परन्तु 80 कि०मी० के पश्चात् तापमान में तेज़ी से वृद्धि होती है। क्षोभमण्डल से ऊपर समतापमण्डल आरम्भ हो जाता है। समतापमण्डल तथा क्षोभमण्डल को अलग करने वाला संक्रमण क्षेत्र क्षोभ सीमा कहलाता है।

प्रश्न 12.
क्षोभ सीमा पर ध्रुवों की अपेक्षा विषुवत् रेखा के ऊपर न्यूनतम तापमान क्यों पाया जाता है?
उत्तर:
पृथ्वी पर न्यूनतम तापमान ध्रुवीय क्षेत्रों में मिलता है, परन्तु वायुमंडल में क्षोभ सीमा पर न्यूनतम तापमान विषुवत् रेखा पर मिलता है। विषुवत् रेखा पर क्षोभ सीमा में न्यूनतम तापमान -80° सेल्सियस तथा ध्रुवों पर -45° सेल्सियस पाया जाता है। इसका प्रमुख कारण क्षोभ सीमा की ऊँचाई है। विषुवत रेखा पर इसकी ऊँचाई 18 कि०मी० तथा ध्रुवों पर केवल 8 कि०मी० होती है। वायुमंडल में भू-तल से ऊपर की ओर जाते हुए प्रति 165 मी० पर तापमान 1° सेल्सियस कम होता है। भूमध्य रेखा से क्षोभ सीमा की ऊँचाई अधिक होने के कारण वहाँ तापमान न्यूनतम होता है।

प्रश्न 13.
वायुमंडलीय प्रक्रम क्या होते हैं तथा उनका जलवायु के तत्त्वों से क्या सम्बन्ध होता है?
उत्तर:
वायुमंडलीय प्रक्रमों का अर्थ वायुमंडल में होने वाली उन घटनाओं से है जो दीर्घकाल तक वायुमंडल और पृथ्वी के बीच ताप और आर्द्रता के विनिमय होने के फलस्वरूप घटित होती हैं। भूमण्डलीय पवन-प्रवाह, वाष्पन, द्रवण, ऊष्मा का संचरण एवं विकिरण, जलीय चक्र इत्यादि वायुमंडलीय प्रक्रम हैं जो जैवमण्डल को सर्वाधिक प्रभावित करते हैं। वायुमंडल के सभी प्रक्रम कुछ जलवायवीय तत्त्वों पर निर्भर करते हैं; जैसे तापमान, वायुदाब, आर्द्रता, वायु की दिशा एवं गति तथा जलवायु परिवर्तन आदि।

प्रश्न 14.
आयनमण्डल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
आयनमण्डल-मध्यमण्डल सीमा से परे स्थित आयनमण्डल 80 से 400 किलोमीटर की ऊँचाई तक विस्तृत है। इस परत में विद्यमान गैस के कण विद्युत् आवेशित होते हैं। इन विद्युत् आवेशित कणों को आयन कहा जाता है। ये आयन विस्मयकारी विद्युतीय और चुम्बकीय घटनाओं का कारण बनते हैं। इसी परत में ब्रह्माण्ड किरणों का परिलक्षण होता है। आयनमण्डल पृथ्वी की ओर से भेजी गई रेडियो-तरंगों को परावर्तित करके पुनः पृथ्वी पर भेज देता है। इसी मण्डल से उत्तरी ध्रुवीय प्रकाश (Aurora Borealis) तथा दक्षिणी ध्रुवीय प्रकाश (Aurora Australis) के दर्शन होते हैं।

प्रश्न 15.
जलवायु के मुख्य नियन्त्रक कौन-कौन से हैं?
अथवा
किसी स्थान की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
किसी स्थान की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक हैं-

  1. अक्षांश
  2. समुद्र तल से ऊँचाई
  3. जल व स्थल का वितरण
  4. वायुदाब
  5. प्रचलित पवनें
  6. सागरीय धाराएँ
  7. स्थलीय अवरोध।

प्रश्न 16.
ओज़ोन पर टिप्पणी लिखिए। यह परत क्यों छिज रही है? परत के पतला होने के सम्भावित नुकसान बताइए।
उत्तर:
ओजोन परत-ओज़ोन गैस ऑक्सीजन का ही एक विशिष्ट रूप है जो समतापमण्डल में 20 से 50 कि०मी० की ऊँचाई , में पाई जाती है। ओज़ोन गैस सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों (Ultra-Violet Rays) के कुछ अंश को अवशोषित कर लेती है जिससे स्थलमण्डल एक उपयुक्त सीमा से अधिक गर्म नहीं हो पाता। इस प्रकार यह गैस एक छलनी (Filter) का कार्य करती है जिसकी अनुपस्थिति में सब कुछ जलकर समाप्त हो जाता है। कार्बन-डाइऑक्साइड, अन्य रसायनों तथा अणु शक्ति के परीक्षणों से ओज़ोन की मात्रा घट रही है। सन् 1980 में अंटार्कटिका महाद्वीप के ऊपर ओजोन परत में एक सुराख देखा गया था। इस सुराख से पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर पहुँच सकती हैं जिससे त्वचा का कैंसर व अन्धापन बढ़ सकता है।

प्रश्न 17.
कौन-सी गैस अल्प मात्रा में होते हुए भी वायुमंडलीय प्रतिक्रियाओं के लिए महत्त्वपूर्ण मानी जाती है?
उत्तर:
वायुमंडल में 0.03 प्रतिशत होते हुए भी कार्बन-डाइऑक्साइड अनेक वायुमंडलीय प्रतिक्रियाओं में शामिल होती है। यह गैस ऊष्मा का अवशोषण करती है जिससे निचला वायुमंडल प्रवेशी सौर विकिरण तथा पार्थिव विकिरण द्वारा गर्म हो पाता है। प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया के दौरान हरे पौधे वायुमंडल से कार्बन-डाइऑक्साइड का प्रयोग करते हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 8 वायुमंडल का संघटन तथा संरचना

प्रश्न 18.
निम्नलिखित शब्दों के अर्थ स्पष्ट कीजिए-
(1) संघनन
(2) इन्द्रधनुष
(3) प्रभामण्डल
(4) धूम कोहरा
(5) प्रकीर्णन
(6) उल्काएँ
(7) मौसम और जलवायु में अंतर
(8) ध्रुवीय प्रकाश
(9) इंटरनेट।
उत्तर:
(1) संघनन-उस ताप को जिस पर वायु अपने में विद्यमान जलवाष्प से संतृप्त हो जाती है, ओसांक (dew point) कहते हैं। वायु का ताप ओसांक से नीचे गिरने पर उसमें विद्यमान जल-वाष्प द्रव जल में बदल जाता है जो ओस या कुहासे के रूप में प्रकट होता है। जलवाष्प के द्रव जल में परिणित होने की घटना संघनन कहलाती है।

(2) इन्द्रधनुष बहुरंजित प्रकाश की एक चाप, जो वर्षा की बूंदों द्वारा सूर्य की किरणों के आन्तरिक अपवर्तन तथा परावर्तन द्वारा निर्मित होती है।

(3) प्रभामण्डल-सूर्य अथवा चन्द्रमा के चारों ओर एक प्रकाश-वलय जो उस समय बनता है जब आकाश में पक्षाभ-स्तरी मेघ की एक महीन परत छायी रहती है। जब सौर प्रभामण्डल बन जाता है, तब वह सूर्य को चमक के कारण दिखाई नहीं देता, परन्तु गहरे रंग के शीशे से आसानी से देखा जा सकता है।

(4) धूम कोहरा अत्यधिक धुएँ से भरा कोहरा धूम कोहरा (Smog) कहलाता है, जो सामान्य रूप से औद्योगिक तथा घने बसे नगरीय क्षेत्रों में पाया जाता है। अंग्रेजी भाषा के इस शब्द की रचना दो शब्दों स्मोक व फॉग (Smoke + Fog) को मिलाकर की गई है।

(5) प्रकीर्णन-लघु तरंगी सौर विकिरण का वायुमंडल के धूलकण व जलवाष्पों से टकराकर टूटना।

(6) उल्काएँ उल्काएँ पत्थर व लोहे के पिण्ड हैं जो अन्तरिक्ष में तेज गति से घमते रहते हैं। कभी-कभी उल्काएँ वायमंडल में खिंच आती हैं और वायु के साथ घर्षण से उत्पन्न ऊष्मा से जल उठती हैं। ऐसी अवस्था में आकाश में प्रकाश की रेखा भी खिंचकर लुप्त हो उठती है। ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे एक तारा टूटकर गिर रहा हो। इस घटना को उल्कापात कहते हैं। उल्काओं की उत्पत्ति का कुछ नहीं पता।

(7) मौसम और जलवायु में अन्तर-मौसम किसी स्थान की दिए हुए समय में वायुमंडलीय दशाओं; जैसे तापमान, आर्द्रता, वायु इत्यादि का वर्णन है। उदाहरण, आज सुबह ठण्ड थी, दोपहर को बादल छाए थे व शाम का मौसम सुहावना था इत्यादि। लेकिन 35 वर्षों तक पाई जाने वाली मौसमी दशाओं की औसत होती है। उदाहरणतः, राजस्थान की जलवायु शुष्क व पश्चिम बंगाल की आई है या इण्डोनेशिया की जलवायु उष्ण एवं आर्द्र है।

(8) ध्रुवीय प्रकाश-आयनमण्डल में विद्युत्-चुम्बकीय घटना (Electromagnetic Phenomenon) का एक प्रकाशमय प्रभाव, जो उच्च अक्षांशों में रात के समय पृथ्वी से 100 किलोमीटर की ऊँचाई पर लाल, हरे व सफेद चापो के रूप में दिखाई पड़ता है, ध्रुवीय प्रकाश कहलाता है। दक्षिणी गोलार्द्ध में यह प्रकाश दक्षिण ध्रुवीय प्रकाश (Aurora Australis) व उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर ध्रुवीय प्रकाश (Aurora Borealis) के नाम से जाना जाता है।

(9) इंटरनेट (Internet)-एक ऐसी विद्युतीय व्यवस्था जिसमें सूचना के महामार्ग (Information Superhighway) पर बैठे लाखों, करोड़ों लोगों द्वारा आपस में जुड़े हुए कम्प्यूटरों द्वारा सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वी पर जीवन के लिए वायुमंडल के महत्त्व को स्पष्ट करें।
अथवा
“वायुमंडल की उपस्थिति ने ही पृथ्वी को सौरमण्डल में विलक्षणता प्रदान की है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पर्यावरण रूपी समग्र इकाई के चार प्रमुख अंगों यथा वायुमंडल, स्थलमण्डल, जलमण्डल और जैवमण्डल में वायुमंडल सबसे महत्त्वपूर्ण और गतिशील अंग है। सच तो यह है कि वायुमंडल की उपस्थिति ने ही पृथ्वी को सौरमण्डल में विलक्षणता प्रदान की है।

पृथ्वी पर जीवन के लिए वायुमंडल का महत्त्व-
1. जीवन का अनिवार्य तत्त्व-जल, थल और नभ में रहने वाला कोई भी प्राणी वायु के बिना जीवित नहीं रह सकता। वायु जीवन का मूलाधार है। मनुष्य और जानवरों के लिए ऑक्सीजन तथा पौधों के लिए कार्बन-डाइऑक्साइड वायुमंडल से ही प्राप्त होती है। पृथ्वी पर वायुमंडल की उपस्थिति ही इसे अन्य ग्रहों की अपेक्षा श्रेष्ठता प्रदान करती है।

2. ताप-सन्तुलन-गैसों का आवरण एक विशाल चंदोवे या कम्बल की भाँति कार्य करता हुआ सूर्य से आने वाली सम्पूर्ण ऊष्मा को पृथ्वी पर आने से रोकता है और रात्रि के समय पृथ्वी से विकिरित होने वाली ऊष्मा को अन्तरिक्ष में जाने से रोकता है। इस प्रकार वायुमंडल पृथ्वी पर 35° सेल्सियस का औसत तापमान बनाए रखता है। यदि वायुमंडल न होता तो पृथ्वी पर दिन का तापमान 100° सेल्सियस व रात का तापमान -200° सेल्सियस तक पहुँच जाता। ऐसी असहनीय दशाओं में जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

3. मौसम तथा जलवायु-वायुमंडल के असमान गर्म होने की विशेषता के कारण ही वायु का क्षैतिज प्रवाह उच्च दाब से न्यून दाब की ओर होता है। इसी से वायुमंडल में मौसम सम्बन्धी सभी घटनाएँ घटती हैं; जैसे वाष्पीकरण, धुंध, कोहरा, बादल, वर्षा, हिमपात व आंधियाँ इत्यादि। इस प्रकार जल का ठोस, द्रव और गैस तीनों रूपों में, तीनों ही मण्डलों का संचरण होता है।

4. हानिकारक विकिरण से बचाव-वायुमंडल में उपस्थित ओज़ोन गैस सूर्य से आने वाली खतरनाक पराबैंगनी किरणों का अवशोषण करके जीव-जगत को अनेक बीमारियों से बचाती है।

5. उल्काओं से रक्षा-अन्तरिक्ष से पृथ्वी पर गिरती हुई उल्काएँ वायु के सम्पर्क में आकर घर्षण (Friction) पैदा करती हैं और इससे उत्पन्न हुई ऊष्मा में पूरी तरह से या कुछ भाग में जलकर राख बन जाती हैं। इससे उनकी पृथ्वी पर ‘मारक शक्ति’ कम हो जाती है।

6. रेडियो-तरंगें-रेडियो तरंगें आयनमण्डल से टकराकर वापस धरती पर लौट आती हैं। इससे दूर-संचार सम्भव हो पाता है। . आज दूरदर्शन, रेडियो, इंटरनेट, ई० मेल व ई० कॉमर्स जैसी सुविधाएँ इसी से सम्भव हो पाई हैं।

7. वायमार्ग-वायमंडल तीव्र वेग से चलने वाले वायुयानों व जेट विमानों को उड़ान सम्भव बनाता है।

8. जैविक विविधता-पृथ्वी पर जलवायु की क्षेत्रीय विभिन्नताओं को जन्म देने में वायुमंडलीय कारक ही प्रमुख हैं, जिनके कारण धरातल पर जैविक विविधता पाई जाती है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 8 वायुमंडल का संघटन तथा संरचना

प्रश्न 2.
“वैज्ञानिक व तकनीकी विकास के साथ-साथ मानव की वायुमंडलीय प्रक्रमों के प्रेक्षण की क्षमता बढ़ती जाती है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जैसे-जैसे आधुनिक और विकसित यन्त्रों और विधियों द्वारा वायुमंडलीय घटनाओं का प्रेक्षण तथा अभिलेखन तीव्र और आसान होने लगा वैसे-वैसे प्राप्त आँकड़ों की सहायता से मौसम सूचक मानचित्र बनाए जाने लगे। इन मौसम सूचक मानचित्रों की सहायता से विभिन्न समय और स्थानों के मौसम की तुलना सम्भव होने लगी। विश्व का पहला अधिकृत मौसम सम्बन्धी मानचित्र सन् 1686 में बना जिसे ब्रिटेन के नक्षत्र-विज्ञानी एडमण्ड हैले ने बनाया था। इससे उत्साहित होकर अनेक विकसित देशों ने मौसम-सूचक मानचित्रों और मौसम का पूर्वानुमान प्रकाशित करना आरम्भ किया। भारत में मौसम विज्ञान सम्बन्धी सेवा सन् 1864 में आरम्भ हुई। वर्तमान में हमारे देश में 350 से अधिक मौसम-प्रेक्षणशालाएँ हैं जो मौसम सम्बन्धी तत्त्वों की जानकारी व आँकड़े पुणे स्थित मौसम विभाग के मुख्यालय को भेजती हैं। सन् 1951 में स्विट्ज़रलैण्ड के जेनेवा नगर में विश्व मौसम विज्ञान सस्थान की स्थापना की गई। यह संस्थान संयुक्त राष्ट्र संघ का एक विशिष्ट अभिकरण है जिसके माध्यम से विश्व के लगभग सभी देश मौसम-सम्बन्धी सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं।

ऊपरी वायुमंडल की छानबीन-17वीं शताब्दी तक वायुमंडल के बारे में वैज्ञानिकों का ज्ञान केवल पृथ्वी के निकट स्थित वायु की परतों तक सीमित था। 18वीं शताब्दी के आरम्भ में वायुमंडल की ऊपरी परतों का तापमान ज्ञात करने के लिए अनेक उपकरणों से सुसज्जित मानव-सहित गुब्बारों को उड़ाया गया। सन् 1804 में फ्रांसीसी वैज्ञानिक लुज़ाक एक गुब्बारे के माध्यम से आकाश में 7 किलोमीटर की ऊँचाई तक उड़ा और पाया कि ऊँचाई पर वायु का रासायनिक संघटन एक जैसा ही रहता है। सन् 1904 में मारकोनी द्वारा रेडियो के आविष्कार से वायुमंडल का और अधिक ऊँचाई पर अध्ययन सम्भव हुआ। इसके बाद क्षोभमण्डल और समतापमण्डल की निचली परतों की जानकारी के लिए मानव-रहित गुब्बारों की सहायता ली जाने लगी।

रेडियो संचरण का प्रयोग करने वाले गुब्बारों का प्रयोग 30 किलोमीटर से अधिक ऊँचाई पर नहीं किया जा सकता था। परिणामस्वरूप 1940 के दशक में वैज्ञानिकों ने वायुमंडल की और अधिक ऊपरी परतों का अध्ययन करने के लिए वायुयानों, जेट विमानों, रॉकेटों व राडारों का प्रयोग आरम्भ कर दिया। सन् 1950 के बाद स्वचालित मौसम केन्द्रों की संख्या में काफ़ी वृद्धि हुई।

1960 के दशक में वायुमंडलीय प्रक्रमों के प्रेक्षण हेतु कृत्रिम उपग्रहों व इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों का सहारा लिया गया। अनेक देशों ने अन्तरिक्ष में विशेष मौसम उपग्रह छोड़े। सन् 1960 में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा छोड़े गए मौसम उपग्रह ने 700 किलोमीटर की ऊँचाई से बादलों और वायुमंडलीय दशाओं के चित्र भेजे। आजकल मौसम उपग्रहों का उपयोग सभी देशों के लिए आसान हो गया है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने मुम्बई में अपना एक केन्द्र स्थापित किया है जो रोज़ाना INSAT 2E के माध्यम से बादलों के चित्र व प्रक्रमित आँकड़े प्राप्त करता है। मौसम सम्बन्धी इन्हीं सूचनाओं और पूर्वानुमानों को हम दूरदर्शन और समाचार पत्रों में देखते हैं।

आधुनिक युग में सुपर कम्प्यूटर और संवेदनशील उपग्रहों के प्रयोग ने हमारी वायुमंडलीय प्रक्रमों के प्रेक्षण की क्षमता को पहल से बेहतर किया है। आज हम पर्याप्त शुद्धता तक मौसम का पूर्वानुमान लगा सकते हैं किन्तु फिर भी इस दिशा में काफी कुछ करना शेष है।

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

1. नदी द्वारा बहाकर लाए गए असंगठित पदार्थों के आपस में टकराने व टूटने की क्रिया को क्या कहते हैं?
(A) अपघर्षण
(B) सन्निघर्षण
(C) जलयोजन
(D) रासायनिक अपरदन
उत्तर:
(B) सन्निघर्षण

2. निम्नलिखित में से कौन-सा कारक नदी अपरदन की क्षमता को निर्धारित नहीं करता?
(A) जल की मात्रा
(B) नद-भार की मात्रा
(C) चट्टान का भार
(D) जल का वेग
उत्तर:
(C) चट्टान का भार

3. निम्नलिखित में से कौन-सा स्थलरूप नदी की प्रौढ़ावस्था की विशेषता नहीं है?
(A) मृत झील
(B) नदी विसर्प
(C) जलोढ़ पंख
(D) अंतर्ग्रथित पर्वत प्रक्षेप
उत्तर:
(D) अंतर्ग्रथित पर्वत प्रक्षेप

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4. अधःकर्तित विसर्प निम्नलिखित में से किसके परिणाम होते हैं?
(A) निक्षेपण
(B) भ्रंशन
(C) पुनर्योवन
(D) अधोगमन
उत्तर:
(C) पुनर्योवन

5. तटीय भागों में जान-माल के लिए सबसे खतरनाक समुद्री तरंग कौन-सी है?
(A) अधःप्रवाह
(B) सुनामी
(C) स्थानांतरणी तरंग
(D) भग्नोर्मि
उत्तर:
(B) सुनामी

6. अवसादों का तटों के साथ-साथ उनके समानांतर एक पतले, लंबे बांध के रूप में निक्षेपण क्या कहलाता है?
(A) तटबंध
(B) समुद्री कटक
(C) भू-जिह्वा
(D) रोधिका और रोध
उत्तर:
(D) रोधिका और रोध

7. स्टैक स्थलरूप का निर्माण निम्नलिखित में से कौन-सा अभिकर्ता करता है?
(A) प्रवाहित जल
(B) पवन
(C) सागरीय लहरें
(D) भूमिगत जल
उत्तर:
(C) सागरीय लहरें

8. कार्ट प्रदेश में भूमिगत कंदराओं की छत से नीचे फर्श की ओर लटकता हुआ भू-आकार क्या कहलाता है?
(A) कंदरा स्तंभ
(B) स्टैलेक्टाइट
(C) स्टैलेग्माइट
(D) चूर्णकूट
उत्तर:
(B) स्टैलेक्टाइट

9. बालू से बना अर्धचंद्राकार टीला क्या कहलाता है?
(A) बालुका स्तूप
(B) बारखन
(C) सीफ़
(D) लोएस
उत्तर:
(B) बारखन

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

10. मशरुम चट्टान निम्नलिखित में से किससे संबंधित है?
(A) कार्ट स्थलाकृति
(B) मरुस्थलीय स्थलाकृति
(C) हिमानी स्थलाकृति
(D) समुद्री लहर स्थलाकृति
उत्तर:
(B) मरुस्थलीय स्थलाकृति

11. निम्नलिखित में से कौन-सी भू-आकृति हिमनदी के कार्य से संबंधित?
(A) जल-प्रपात
(B) सर्क
(C) रोधिका
(D) टिब्बा
उत्तर:
(B) सर्क

12. निम्नलिखित में से अपरदन के लिए कौन-सा तरीका हिमनदी द्वारा अपनाया जाता है?
(A) सन्निघर्षण
(B) जल की दाब क्रिया
(C) उत्पाटन
(D) विलयन
उत्तर:
(C) उत्पाटन

13. हिमनद की निक्षेप क्रिया से बनी ‘अंडों की टोकरी जैसी स्थलाकृति’ का अन्य नाम कौन-सा है?
(A) एस्कर
(B) ड्रमलिन
(C) रॉश मूटोने
(D) बॅग एंड टेल
उत्तर:
(B) ड्रमलिन

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
तल सन्तुलन के कारकों में सर्वाधिक शक्तिशाली कारक कौन-सा है?
उत्तर:
नदी।

प्रश्न 2.
नदी अपरदन को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं?
उत्तर:
जल प्रवाह का वेग, जल की मात्रा, चट्टानों की प्रकृति, नद-भार आदि।

प्रश्न 3.
विश्व के सबसे बड़े कैनियन का नाम क्या है?
उत्तर:
ग्रैण्ड कैनियन (कोलोरेडो)।

प्रश्न 4.
भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे बड़े डेल्टा का नाम बताइए।
उत्तर:
सुन्दरवन डेल्टा।

प्रश्न 5.
‘अपरदन चक्र’ की संकल्पना किस भूगोलवेत्ता ने प्रस्तुत की?
उत्तर:
विलियम मौरिस डेविस ने।

प्रश्न 6.
नदी अपहरण (River Capture) की घटना नदी की कौन-सी अवस्था में घटती है?
उत्तर:
युवावस्था में।

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प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से प्रत्येक के लिए उपयुक्त पारिभाषिक शब्द लिखिए-

  1. वे प्रक्रियाएँ जो स्थलीय धरातल को एक-समान स्तर पर लाने की चेष्टा करती हैं।
  2. एक नदी जो शाखाओं में विभक्त होकर परस्पर जुड़े जलमार्गों की एक जाल-सी आकृति बनाती है।
  3. दी के किनारे मोटे अवसादों के निक्षेपण से बने प्राकृतिक तटबन्ध।
  4. नदी का घुमावदार मार्ग तथा उससे बने फंदे।
  5. आसपास के दो भिन्न अपवाह क्षेत्रों को अलग करने वाली उच्च भूमि।
  6. पेड़ के तने और डालियों के समान दिखने वाला अपवाह तन्त्र।
  7. किसी खनिज पर होने वाली जल की रासायनिक क्रिया।
  8. वे चट्टानी पदार्थ जिनकी मदद से नदी, हिमानी और पवन अपरदन कार्य करते हैं।

उत्तर:

  1. प्रवणता सन्तुलन की प्रक्रियाएँ
  2. जालीनुमा अपवाह तन्त्र
  3. प्राकृतिक तटबन्ध
  4. गुंफित नदी
  5. जल विभाजक
  6. द्रुमाकृतिक प्रवाह प्रणाली
  7. जलयोजन
  8. शैल-मलबा।

प्रश्न 8.
भूमध्यरेखीय क्षेत्रों में हिमरेखा की ऊँचाई कितनी होती है?
उत्तर:
लगभग 5000 मीटर।

प्रश्न 9.
किस महाद्वीप पर हिमानियाँ नहीं पाई जाती?
उत्तर:
ऑस्ट्रेलिया में।

प्रश्न 10.
हिमालय पर्वत में कितनी हिमानियाँ हैं?
उत्तर:
15,000 हिमानियाँ।

प्रश्न 11.
पवन अपरदन को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक कौन-से हैं?
उत्तर:
पवन की गति, धूलकणों का आकार और ऊँचाई, चट्टानों की संरचना तथा जलवायु।

प्रश्न 12.
केरल तट पर स्थित सबसे बड़ी लैगून का नाम बताएँ।
उत्तर:
वेंबनाद।

प्रश्न 13.
विश्व में सबसे अधिक उत्सुत कूप (Artesian Wells) कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर:
ऑस्ट्रेलिया के आर्टीज़ियन बेसिन में।

प्रश्न 14.
शैलों के गुण तथा रचना के आधार पर बनने वाले दो प्रकार के झरनों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. भ्रंश झरना तथा
  2. डाइक झरना।

प्रश्न 15.
घोल रंध्र सबसे ज्यादा कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका के केन्टुकी राज्य में।

प्रश्न 16.
गुफ़ाओं में भूमिगत जल की निक्षेपण क्रिया द्वारा बनने वाले स्तम्भों को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
कन्दरा स्तम्भ।

प्रश्न 17.
नदी रासायनिक अपरदन किन क्रियाओं द्वारा होता है?
उत्तर:

  1. संक्षारण द्वारा
  2. घोलीकरण द्वारा।

प्रश्न 18.
निम्नलिखित के लिए उपयुक्त पारिभाषिक शब्द लिखिए

  1. दो अपवाह बेसिनों के बीच ऊपर उठा हुआ भू-भाग।
  2. वह समस्त क्षेत्र जहाँ से एक बड़ी नदी जल-ग्रहण करती है।
  3. वह सम्पूर्ण क्षेत्र जिस पर पृष्ठीय जल के निकास मार्ग एक ही दिशा में हों।
  4. जिस स्थान पर कोई नदी किसी खाड़ी, झील या समुद्र में गिरती है।
  5. नदी का जन्म स्थान।
  6. पत्थरों और शिलाखण्डों का भार के कारण नदी तल पर घिसटते चलना।
  7. संकरी तथा अत्यधिक गहरी V-आकार की घाटी।
  8. गॉर्ज की अपेक्षा संकरी, गहरी और बड़ी V-आकार की घाटी।
  9. पुरानी नदी का पुनः युवावस्था में आ जाना।
  10. अधिक गहरी जलज गर्तिका।
  11. चट्टानों की असमान प्रतिरोधिता के कारण बहते जल का थोड़ी-थोड़ी दूरी पर कूदना।
  12. वह स्थान जहाँ पुराना और नया बाढ़ का मैदान मिलता है।

उत्तर:

  1. जल-विभाजक
  2. अपवाह क्षेत्र
  3. अपवाह बेसिन
  4. नदमुख
  5. उद्गम क्षेत्र
  6. कर्षण
  7. गॉर्ज
  8. केनियन
  9. पुनर्योवन
  10. अवनमन कुण्ड
  11. क्षिप्रिका
  12. निकप्वाइंट।

प्रश्न 19.
V-आकार की घाटी किन क्षेत्रों में विकसित होती है?
उत्तर:
जहाँ वर्षा सामान्य से अधिक होती है तथा चट्टानें अति कठोर नहीं होती।

प्रश्न 20.
गॉर्ज या महाखण्ड बनाने वाली भारत की कुछ नदियों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सिन्धु, सतलुज, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा, कोसी व गण्डक इत्यादि।

प्रश्न 21.
केनियन सामान्यतः किन दशाओं में बनते हैं?
उत्तर:
शुष्क व अर्ध-शुष्क जलवायु वाले ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में।

प्रश्न 22.
विश्व की सबसे बड़ी केनियन कौन-सी और कहाँ है?
उत्तर:
ग्रैण्ड केनियन, कोलोरेडो नदी पर, संयुक्त राज्य अमेरिका में।

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प्रश्न 23.
सामान्यतः जलज गर्तिकाएँ कहाँ पर स्थित पाई जाती हैं?
उत्तर:
क्षिप्रिकाओं के ऊपर और जल-प्रपात के नीचे।

प्रश्न 24.
भारत में सबसे ऊँचा जल-प्रपात कौन-सा है?
उत्तर:
कर्नाटक में शरबती नदी द्वारा बनाया गया 260 मीटर ऊँचा जोग प्रपात या गरसोप्पा प्रपात।

प्रश्न 25.
आकार की दृष्टि से जलोढ़ पंख और जलोढ़ शंकु में क्या अन्तर होता है?
उत्तर:
जलोढ़ पंख जलोढ़ शंकु की अपेक्षा अधिक चौड़े किन्तु कम ऊँचे होते हैं।

प्रश्न 26.
नदी की प्रौढ़ावस्था में बनने वाले भू-आकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
जलोढ़ पखं, विसर्प, गोखुर झीलें इत्यादि।

प्रश्न 27.
संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रसिद्ध प्रपात का नाम और विशेषता बताएँ।
उत्तर:
नियाग्रा जल-प्रपात; 120 मीटर ऊँचा व अस्थायी प्रकृति का है।

प्रश्न 28.
जलोढ़ शंकुओं की रचना प्रायः किस प्रकार के जलवायु प्रदेशों में होती है?
उत्तर:
अर्ध-शुष्क प्रदेशों में।

प्रश्न 29.
गोखुर झील को मृत झील (Mort Lake) क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
क्योंकि समय के अनुसार गोखुर झील अवसादों से भरकर सूख जाती है।

प्रश्न 30.
वृद्धावस्था में नदी कौन से भू-आकारों की रचना करती है?
उत्तर:
नदी गुंफ, प्राकृतिक तटबन्ध, बाढ़ के मैदान व डेल्टा इत्यादि।

प्रश्न 31.
उन असामान्य कारकों के नाम लिखें जिनसे जल-प्रपातों की रचना होती है?
उत्तर:

  1. भूकम्प
  2. ज्वालामुखी व
  3. भूसंचरण।

प्रश्न 32.
कोई नदी प्रवणित अवस्था में कब मानी जाती है?
उत्तर:
जब वह आधार तल पर बह रही होती है।

प्रश्न 33.
किस विद्वान् ने कब सिद्ध किया था कि हिमनदियाँ गतिशील होती हैं?
उत्तर:
लुई अगासिस ने सन् 1834 में।

प्रश्न 34.
महाद्वीपीय हिमनदियों के दो क्षेत्र बताएँ।
उत्तर:

  1. अंटार्कटिका महाद्वीप
  2. ग्रीनलैण्ड।

प्रश्न 35.
भारत में सबसे बड़ी हिमनदी कौन-सी है?
उत्तर:
सियाचिन हिमनदी, 72 कि०मी० लम्बी।

प्रश्न 36.
शृंग के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. आल्पस पर्वत श्रेणी में मैटर्नहार्न
  2. हिमालय में त्रिशूल पर्वत।

प्रश्न 37.
लोएस प्रदेश कहाँ स्थित है?
उत्तर:
उत्तर:पश्चिमी चीन में।

प्रश्न 38.
भारत के पूर्वी तट पर लैगून झीलों के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. चिल्का झील
  2. पुलिकट झील।

प्रश्न 39.
हिमनदी से बनने वाले प्रमुख भू-आकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
सर्क, शृंग, लटकती घाटी, U-आकार की घाटी, टार्न, कॉल ड्रमलिन, हिमोढ़ इत्यादि।

प्रश्न 40.
वायु अपरदन से बनने वाले प्रमुख भू-आकारों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. छत्रक
  2. ज्यूज़न
  3. यारडांग
  4. इन्सेलबर्ग।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नदी अपरदित पदार्थों का परिवहन किन तीन रूपों में करती है?
उत्तर:

  1. घुलाकर
  2. निलम्बित अवस्था में तथा
  3. लुढ़काकर।

प्रश्न 2.
अपरदन चक्र की तीन अवस्थाओं के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. युवावस्था
  2. प्रौढ़ावस्था तथा
  3. वृद्धावस्था।

प्रश्न 3.
कर्णहिम (Neve) की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
यह-

  1. वायुरहित
  2. ठोस तथा
  3. संगठित होती है।

प्रश्न 4.
माल्सपाइना क्या है और यह कहाँ है?
उत्तर:
माल्सपाइना एक पर्वतपादीय हिमानी है जो अलास्का में है।

प्रश्न 5.
पवन किन तीन तरीकों से अपरदन करती है?
उत्तर:

  1. अपवहन द्वारा
  2. अपघर्षण द्वारा तथा
  3. सन्निघर्षण द्वारा।

प्रश्न 6.
भारत के चार प्रमुख लैगून कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. वेंबनाद
  2. अष्टमुदी (केरल)
  3. पुलिकट (तमिलनाडु-आन्ध्र प्रदेश सीमा) तथा
  4. चिल्का (ओडिशा तट)।

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प्रश्न 7.
निमग्न उच्च भूमि तट के तीन प्रसिद्ध प्रकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. रिया तट
  2. फियोर्ड तट
  3. डालमेशियन तट।

प्रश्न 8.
प्रवणता संतुलन के कारकों के तीन प्रमुख कार्य बताएँ।
अथवा
भू-आकृतिक कारकों के प्रमुख कार्य कौन-कौन से होते हैं?
उत्तर:

  1. अपरदन
  2. परिवहन
  3. निक्षेपण।

प्रश्न 9.
प्रमुख प्रवाह प्रणालियों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. द्रुमाकृतिक अपवाह तन्त्र
  2. समानान्तर अपवाह तन्त्र
  3. जालीनुमा अपवाह तन्त्र
  4. अरीय अपवाह तन्त्र
  5. पूर्ववर्ती अपवाह तन्त्र
  6. आन्तरिक अपवाह।

प्रश्न 10.
नदी अपनी युवावस्था में किन-किन भू-आकारों की रचना करती है?
उत्तर:
इस अवस्था में नदी V-आकार घाटी, गॉर्ज, केनियन, जलज गर्तिका, जल-प्रपात, क्षिप्रिका व अवनमनकुण्ड इत्यादि भू-आकार बनाती है।

प्रश्न 11.
नदी द्वारा भौतिक अपरदन किन तीन रूपों में सम्पन्न होता है?
उत्तर:

  1. अपघर्षण
  2. सन्निघर्षण
  3. जल की दाब क्रिया।

प्रश्न 12.
भू-आकृतिक परिवर्तन के पाँच कारक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. नदी
  2. हिमनदी
  3. पवन
  4. समुद्री तरंगें तथा
  5. भूमिगत जल।

प्रश्न 13.
जल-प्रपात क्या होता है?
उत्तर:
चट्टानी कगार के ऊपरी भाग से नदी का सीधे नीचे गिरना जल-प्रपात कहलाता है।

प्रश्न 14.
भारत के उल्लेखनीय जल-प्रपातों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. जोग प्रपात
  2. शिवसमुद्रय प्रपात
  3. येना प्रपात तथा
  4. धुआँधार प्रपात।

प्रश्न 15.
आधार तल किसे कहते हैं?
उत्तर:
झील या समुद्र के तल को, जिसमें नदी गिरती है, नदी अपरदन का आधार तल कहते हैं।

प्रश्न 16.
अपरदन चक्र किन तीन कारकों का प्रतिफल है?
उत्तर:

  1. संरचना (Structure)
  2. प्रक्रिया (Process)
  3. अवस्था (Stage)।

प्रश्न 17.
किन्हीं तीन विश्व प्रसिद्ध डेल्टाओं के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. नील डेल्टा
  2. गंगा डेल्टा
  3. मिसीसिपी डेल्टा।

प्रश्न 18.
हिमविदर क्या होते हैं?
उत्तर:
विभंजन के कारण हिमनदी में पड़ी दरारों को हिमविदर कहा जाता है।

प्रश्न 19.
ग्रेट आर्टिज़ियन बेसिन कहाँ स्थित है?
उत्तर:
ग्रेट आर्टिज़ियन बेसिन ऑस्ट्रेलिया के मध्य-पूर्वी भाग में क्वींसलैण्ड में स्थित है। इस क्षेत्र का क्षेत्रफल लगभग पन्द्रह लाख वर्ग कि०मी० है। यह उत्सुत कुओं वाला विश्व का सबसे बड़ा क्षेत्र है। यह क्षेत्र ग्रेट आर्टिज़ियन बेसिन कहलाता है।

प्रश्न 20.
‘मियाण्डर’ (विसप) शब्द कहाँ से और किस कारण लिया गया है?
उत्तर:
यह शब्द टर्की की नदी ‘मियाण्डर’ से लिया गया है क्योंकि समुद्र में गिरने से पहले यह नदी बहुत ज्यादा बल खाती और इठलाती चलती है।

प्रश्न 21.
चट्टानों की पारगम्यता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
चट्टानों के अन्दर से होकर भूमि-जल का बहाव पारगम्यता कहलाता है। ये चट्टानें दरारों द्वारा एक-दूसरे से मिली होती हैं। ये चट्टानें पारगम्य चट्टानें कहलाती हैं।

प्रश्न 22.
हिमनदी की गति किन कारणों पर निर्भर करती है?
उत्तर:

  1. धरातल का ढाल
  2. हिमनदी की मोटाई
  3. तापमान
  4. ऋतु।

प्रश्न 23.
प्रवणता संतुलन की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
बाह्य शक्तियाँ; जैसे नदी, हिमनदी, वायु तथा समुद्री लहरें ऊँची-नीची भूमि को अपरदन तथा निक्षेपण क्रिया द्वारा समतल करने का प्रयास करती हैं। ये शक्तियाँ ऊँचे भागों का अपरदन कर उन्हें निम्न भागों में जमा करती रहती हैं और समतल भूमि का निर्माण करती हैं। इस प्रक्रिया को प्रवणता सन्तुलन कहते हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

प्रश्न 24.
स्टैलेक्टाइट का निर्माण किस भू-आकृतिक कारक द्वारा होता है?
उत्तर:
गुफा की छत से चूना पत्थर की चट्टान से टपके हुए कैल्शियम बाइकार्बोनेट युक्त पानी से स्टैलेक्टाइट का निर्माण होता है।

प्रश्न 25.
जल-चक्र से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जल हमेशा गतिशील होता है। सागरों तथा महासागरों का जल सूर्यातप के कारण जलवाष्प बनकर वायुमण्डल में चला जाता है, जिससे वर्षा होती है। वर्षा के जल का कुछ अंश बहकर नदियों द्वारा सागरों तथा महासागरों में मिल जाता है तथा कुछ अंश वाष्पीकरण द्वारा वायुमण्डल में मिल जाता है तथा शेष भाग भूमिगत हो जाता है। इस प्रकार जल वायुमण्डल, स्थलमण्डल तथा जलमण्डल पर स्थानान्तरित होता रहता है, जिसे जल-चक्र कहते हैं। इस चक्र द्वारा तीनों मण्डलों में जल का सम्बन्ध जुड़ा रहता है।

प्रश्न 26.
भूमिगत जल किसे कहते हैं?
उत्तर:
वर्षा के जल का कुछ अंश पारगम्य चट्टानों द्वारा भूमि के नीचे चला जाता है, जिसे ‘भूमिगत जल’ कहते हैं। यही भूमिगत जल हमें कुओं, नलकूपों आदि द्वारा प्राप्त होता है। ऐसा अनुमान है कि यदि समस्त भूमिगत जल को धरातल की सतह पर लाया जाए तो सतह पर 170 मीटर की ऊँचाई तक जल का विस्तार हो जाएगा।

प्रश्न 27.
नदी को अपने उद्गम क्षेत्र से मुहाने तक कितने भागों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर:
उद्गम क्षेत्र से मुहाने तक नदी को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-

  1. पर्वतीय या ऊपरी भाग (युवावस्था)
  2. मध्य भाग (प्रौढ़ावस्था)
  3. डेल्टा या निचला भाग (वृद्धावस्था)।

प्रश्न 28.
नदी V-आकार की घाटी की रचना कैसे करती है?
उत्तर:
उद्गम स्थान से निकलते ही नदी अपने मार्ग के ढाल और गति के कारण अपनी तली को काटकर गहरा करने का कार्य करती है। इससे घाटी का आकार V-अक्षर जैसा हो जाता है। घाटी का निरन्तर विकास होता रहता है जिसमें क्षैतिज अपरदन (Lateral Erosion) कम तथा लम्बवत् अपरदन (Vertical Erosion) अधिक होता है।

प्रश्न 29.
स्थायी हिमक्षेत्र कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर:
स्थायी हिमक्षेत्र ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों जैसे हिमालय तथा आल्पस इत्यादि तथा ध्रुवीय प्रदेशों में मिलते हैं। ग्रीनलैण्ड तथा अंटार्कटिका विशाल हिमक्षेत्र हैं। इन प्रदेशों में हिमांक से नीचे तापमान व लगातार भारी तुषार के कारण हिमतूल जमते रहते हैं। कम वाष्पीकरण व भयंकर ठण्ड के कारण हिम ग्रीष्मकाल में भी नहीं पिघलती।

प्रश्न 30.
हिमनदी U-आकार की घाटी क्यों बनाती है?
उत्तर:
हिमनदियों में अपने लिए स्वयं घाटी बनाने की शक्ति नहीं होती, बल्कि वे हिमावरण से पहले नदियों द्वारा निर्मित घाटियों में होकर बहती हैं। नदी घाटी में बहती हिम घाटी की तली व पावों का अपरदन करके उसे अधिक गहरा और चौड़ा कर देती है। इससे नदी की घाटी की मूल V-आकृति के स्थान पर U-आकार की घाटी विकसित होती है।

प्रश्न 31.
हिमनदी के विभिन्न भाग विभिन्न गति से क्यों बहते हैं? अथवा हिमनदी का मध्य भाग किनारों की अपेक्षा अधिक तेज़ी से क्यों चलता है?
उत्तर:
हिमनदी के विभिन्न भाग विभिन्न दर से बहते हैं। हिम की गति किनारों की अपेक्षा मध्य भाग में तथा तलहटी की अपेक्षा सतह पर अधिक होती है। इसका कारण यह है कि तली और किनारों पर आधारी चट्टान (Base rock) के घर्षण के फलस्वरूप हिम के प्रवाह की गति कम हो जाती है। मध्य भाग में ऐसी कोई रुकावट न होने के कारण हिमनदी की गति अधिक हो जाती है।

प्रश्न 32.
चूना पत्थर के क्षेत्रों में नदियों के अचानक लुप्त हो जाने की घटना की व्याख्या आप किस प्रकार करेंगे?
उत्तर:
भूमिगत जल की घुलन क्रिया द्वारा बड़े-बड़े घोल रन्ध्रों का निर्माण होता है। इन घोल रन्ध्रों में भूतल का जल-प्रवाह लुप्त हो जाता है तथा भूतल पर बहने वाली नदियाँ भूमिगत बहने लगती हैं। परिणामस्वरूप भूतल पर शुष्क घाटियों का निर्माण होता है तथा भूमिगत क्षेत्र में अन्धी घाटियाँ बन जाती हैं। निचले ढलानों वाले क्षेत्रों में ये घाटियाँ नदियों द्वारा भूतल पर प्रगट हो जाती हैं तथा नदियाँ भूतल पर बहने लगती हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नदियाँ भूतल पर समतल स्थापना का कार्य किन-किन रूपों में करती हैं? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नदियाँ भूतल पर समतल स्थापना का कार्य तीन रूपों में करती हैं-

  1. अपरदन-नदी के द्वारा अपने तटों और तलहटी की चट्टानों को काटने, खुरचने, तराशने या घुलाने की क्रिया को अपरदन (Erosion) कहते हैं।
  2. परिवहन-नदी के द्वारा अपरदित शैल चूर्ण को अपने जल के वेग के साथ बहाकर या घुलाकर ले जाने की क्रिया को परिवहन (Transportation) कहते हैं।
  3. निक्षेपण-नदी के द्वारा बहाकर लाए गए तलछट को किसी निम्न प्रदेश, घाटी, झील अथवा समुद्र की तली में जमा कर देने की क्रिया को निक्षेपण (Deposition) कहा जाता है।

प्रश्न 2.
नदी किन-किन रूपों में भौतिक अपरदन करती है?
उत्तर:
नदी द्वारा भौतिक अपरदन तीन रूपों में सम्पन्न होता है-
1. अपघर्षण नदी अपने प्रवाह वेग से शैल मलबे को तलहटी के साथ घसीटते हुए या स्वतन्त्र रूप से बहा ले जाती है। ये चट्टानी टुकड़े औज़ार (Tools) का कार्य करते हैं और अपने मार्ग में आने वाली धरातलीय चट्टानों को खुरचते हुए चलते हैं। इससे अपरदन और बढ़ता है। अपरदन का यह रूप अपघर्षण (Abrasion or Corrasion) कहलाता है।

2. सन्निघर्षण नदी द्वारा बहाकर लाए गए असंगठित पदार्थ आपस में टकराते व रगड़ खाते चलते हैं जिससे उनका और घाटी दोनों का अपरदन होता है। बड़े-बड़े शिलाखण्ड घिसकर गोल व नुकीली गुटिकाओं में बदल जाते हैं और अन्ततः ये टुकड़े बजरी और फिर बालू (रत) में बदल जाते हैं। अपरदन का यह रूप सन्निघर्षण (Attrition) कहलाता है।

3. जल की दाब क्रिया-चट्टानों के अपरदन की इस विधि में नदी अपने वेग और दबाव के कारण मार्ग में पड़ने वाली चट्टानों के कणों को ढीला करके बहा ले जाती है।

प्रश्न 3.
नदी की अपरदन क्षमता को निर्धारित करने वाले कारक कौन से हैं?
अथवा
“नदी द्वारा अपरदन पानी की मात्रा और भूमि के ढलान पर निर्भर करता है।” व्याख्या करें।
उत्तर:
नदी की अपरदन क्षमता को मुख्यतः निम्नलिखित चार कारक निर्धारित करते हैं-
1. जल का वेग तेज़ गति से बहता जल अपने साथ अधिक नद-भार को बहा ले जाता है। यही शैल चूर्ण चट्टानों की तली और किनारों पर प्रहार करके उनका तेज़ी से अपरदन करता है।

2. जल की मात्रा-जल की अधिक मात्रा होने पर नदी मार्ग की चट्टानों का अधिक बलपूर्वक अपरदन कर सकती है। अधिक जल से रासायनिक अपरदन की मात्रा भी बढ़ जाती है।

3. चट्टानों की प्रकृति ग्रेनाइट अथवा बेसाल्ट जैसी कठोर चट्टानों के क्षेत्र से गुज़रते हुए नदी की अपरदन क्रिया सीमित हो जाती है जबकि बलुआ पत्थर या चूने के प्रदेशों में जल की अपरदन क्रिया सर्वाधिक होती है। इसका कारण यह है कि कोमल चट्टानें कठोर चट्टानों की अपेक्षा शीघ्र अपरदित होती हैं।

4. नद-भार की मात्रा और प्रकृति-बहते हुए जल में महीन पदार्थ प्रभावी अपरदन नहीं कर पाते जबकि नदी की तली के साथ रगड़ खाते हुए बड़े शैल-खण्ड अत्यन्त कारगर ढंग से घाटी की तली और किनारों को तोड़ते-फोड़ते चलते हैं। यदि नदी में जल की मात्रा और गति बढ़ जाए तो नद-भार की अपरदन क्षमता बहुत अधिक बढ़ जाती है।

प्रश्न 4.
नद-बोझ क्या होता है? नदी परिवहन को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नद-बोझ का अर्थ नदी द्वारा ढोए जाने वाले अवसाद को नद-भार या नद-बोझ (River Load) कहा जाता है। नद-भार में बड़े-बड़े शिलाखण्डों से लेकर महीन चीका तक सम्मिलित होते हैं।

नदी परिवहन को प्रभावित करने वाले कारक-नदी परिवहन को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-
1. जल का वेग-जल का वेग (Velocity of Water) घाटी के ढाल तथा जल के आयतन पर निर्भर करता है। जब कभी नदी में बहते हुए जल की गति किन्हीं कारणों से बढ़ जाती है तो जल की परिवहन क्षमता भी कई गुना बढ़ जाती है।

2. नद-भार का आकार महीन शैल-कणों को नदी काफ़ी दूर तक बहा ले जाती है। कुछ खनिज जल में घुलकर और अधिक दूरी तक पहुँच जाते हैं, लेकिन बड़े और भारी शिलाखण्ड कुछ ही दूरी तक बहाए जा सकते हैं।

3. जल की मात्रा यदि अन्य हालात सामान्य रहें तो नदी में जल की मात्रा (Volume of Water) दुगुनी होने पर उसके परिवहन की शक्ति भी दुगुनी से ज्यादा हो जाती है।

प्रश्न 5.
नदी अपना बोझ किन विधियों से ढोती है?
उत्तर:
नद-बोझ का परिवहन तीन प्रकार से होता है-

  • घुलकर-जैसे थोड़ी-बहुत मात्रा में चूने की चट्टानों के अंश घुलकर चलते हैं।
  • निलम्बन अवस्था में जैसे चीका और गाद के कण पानी में चढ़ते-उतरते, लटककर झूले खाते हुए चलते हैं।
  • लुढ़ककर-जैसे भारी शैल पदार्थ लुढ़कते और घिसटते हुए आगे बढ़ते हैं।

इसके भी दो तरीके हैं-

  • वल्गन (Saltation) में बजरी और रोड़ी जैसे कण कभी थोड़ा ऊपर उठते हैं और कभी तली पर आ टिकते हैं।
  • कर्षण (Traction) में पत्थर और शिलाखण्ड भार के कारण तल पर घिसटते चलते हैं।

प्रश्न 6.
पुनर्योवन (Rejuvination ) क्या होता है? इसके प्रभावों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पुनर्योवन का अर्थ-यदि नदी के अपरदन-चक्र के पूरा हुए बिना ही किसी भूगर्भिक हलचल के कारण प्रौढ़ावस्था वाला क्षेत्र युवावस्था को प्राप्त हो जाता है, तो उसे पुनर्योवन कहते हैं।

पुनर्योवन के प्रभाव-पुनर्योवन के प्रभाव निम्नलिखित हैं-

  • नदी की अपरदन शक्ति में वृद्धि होती है।
  • गहरे विसों का निर्माण होता है।
  • पुरानी घाटियों में नई घाटियों का निर्माण आरम्भ हो जाता है।
  • नदी-वेदिकाओं का जन्म होता है।

प्रश्न 7.
जल-प्रपात क्या है? महाखड्ड जल-प्रपात के नीचे क्यों स्थित रहता है?
उत्तर:
जल प्रभाव का अर्थ-जब नदी ऊँचे स्थान से नीचे की ओर गिरती है तो उससे जल-प्रपात का निर्माण होता है। जब नदी के मार्ग में कठोर तथा कोमल चट्टानें क्रमबद्ध रूप से स्थित होती हैं तो नदी कोमल चट्टान को आसानी से काट देती है तथा कठोर चट्टान का कटाव कम होता है जिससे नदी की तलहटी निरन्तर नीची हो जाती है तथा नदी का जल ऊपर से नीचे गिरने लगता है जिसे जल-प्रपात कहते हैं।

जल के तीव्र वेग से नीचे गिरने के कारण नीचे कोमल चट्टानों का अपरदन होता है जिससे वहाँ एक कुण्ड का निर्माण होता है। धीरे-धीरे जल-प्रपात पीछे हटता रहता है जिससे वह कुण्ड, महाकुण्ड या महाखड्ड में बदल जाता है।

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प्रश्न 8.
नदी घाटी का विकास किन-किन रूपों में होता है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नदी घाटी का विकास तीन भिन्न रूपों में होता है-
1. घाटी का गहरा होना घाटी का प्रारम्भिक विकास तीव्र ढाल वाले पर्वतीय प्रदेशों में होता है। लाम्बिक अपरदन (Lateral Erosion) अधिक होने के कारण घाटी गहरी व संकीर्ण बनती है। यह नदी की युवावस्था होती है।

2. घाटी का चौड़ा होना-मैदानी भाग में कम ढाल के कारण नदी लाम्बिक अपरदन कम और पार्श्विक अपरदन (Horizontal Erosion) अधिक करने लगती है। इस भाग में नदी चौड़ाई में विकसित होती है।

3. घाटी का लम्बा होना-नदी घाटी की लम्बाई (Lengthening) कई प्रकार से बढ़ती है। प्रमुख रूप से नदी अपने शीर्ष का अपरदन करके अपने उद्गम स्थल की ओर बढ़ती है। इसमें घाटी लम्बी होती है। शीर्ष अपरदन करते-करते नदी अपनी सहायक नदियों को भी खा जाती है, जिसे सरिता-अपहरण कहते हैं। इससे भी घाटी की लम्बाई बढ़ती है। विसों का आकार बढ़ने से भी घाटी लम्बी होती है। डेल्टा सदा समुद्र की ओर बढ़कर नदी घाटी की लम्बाई में वृद्धि करता रहता है।

प्रश्न 9.
डेल्टा बनने की आवश्यक भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
डेल्टा बनने की आवश्यक भौगोलिक दशाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) नदी के ऊपरी भाग में जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होना चाहिए ताकि अधिक अपरदन द्वारा नद-भार की अधिक मात्रा प्राप्त हो सके।

(2) मुख्य नदी में अनेक सहायक नदियाँ (Tributaries) मिलनी चाहिएँ ताकि तलछट की अतिरिक्त राशि उपलब्ध हो सके। महीन तलछट जितना अधिक होगा, डेल्टा निर्माण की प्रक्रिया उतनी ही सरल होगी।

(3) नदी का प्रवाह मार्ग लम्बा हो ताकि समुद्र तक पहुँचते-पहुँचते घाटी प्रवणित (Graded) हो सके और नदी की गति मन्द हो जाए। नदी का कम वेग निक्षेपण में सहायता करता है। समुद्र तट के निकट स्थित पर्वतों से निकलने वाली नदियाँ डेल्टा की अपेक्षा ज्वार-नदमुख (Estuaries) बनाती हैं।

(4) नदी के मार्ग में कोई झील न हो ताकि नदी द्वारा ढोया गया अवसाद उसमें निक्षेपित न होने लगे।

(5) नदी के मुहाने पर शक्तिशाली समुद्री तरंगें, धाराएँ तथा ज्वार-भाटा न आते हों, अन्यथा निक्षेप इनके साथ बहकर समुद्र में चला जाएगा और डेल्टा की रचना कभी नहीं हो पाएगी।

भारत के पश्चिमी तट पर इन दशाओं के न होने के कारण नदियाँ डेल्टा की अपेक्षा ज्वार-नदमुख (Estuaries) बनाती हैं, जबकि पूर्वी तट पर अनेक नदियाँ बड़े-बड़े डेल्टाओं की रचना करती हैं।

प्रश्न 10.
अपवाह तन्त्र किसे कहते हैं? अपवाह तन्त्रों के मुख्य प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
अपवाह तन्त्र-किसी क्षेत्र में बहने वाली नदियों तथा उनकी सहायक नदियों के क्रम को अपवाह तन्त्र कहते हैं। अपवाह तन्त्र के प्रकार-अपवाह तन्त्र के मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं-
1. समानान्तर प्रारूप इसमें नदियाँ लगभग एक-दूसरे के समानान्तर बहती हैं। लघु हिमालय क्षेत्र में बहने वाली नदियाँ इस प्रकार का तन्त्र बनाती हैं।

2. जालीनुमा अपवाह तन्त्र-इस प्रणाली में जलधाराएँ पूर्ण रूप से ढाल का अनुसरण करती हैं तथा प्रवाह मार्ग में परिवर्तन ढाल के अनुसार होता है। सहायक नदियाँ मुख्य नदियों के समकोण पर मिलती हैं। उदाहरण के लिए, पेरिस बेसिन में इस प्रकार का अपवाह तन्त्र देखने को मिलता है।

3. द्रुमाकृतिक अपवाह तन्त्र इसमें मुख्य नदी वृक्ष के तने के समान होती है तथा उसकी सहायक नदियाँ वृक्ष की शाखाओं की भाँति फैली होती हैं। भारत में गंगा तथा गोदावरी नदियाँ इस प्रकार का तन्त्र बनाती हैं।

4. अरीय अपवाह तन्त्र-इसमें धरातल के मध्यवर्ती भाग में कोई ऊँची पर्वत श्रेणी या पठारी भाग स्थित होता है तथा चारों ओर निम्न भू-भाग होता है। नदियाँ चारों ओर से बहना आरम्भ करती हैं। भारत में पारसनाथ से निकलने वाली नदियाँ इस प्रकार का तन्त्र बनाती हैं।

5. पूर्ववर्ती अपवाह तन्त्र-इसमें नदियों की धारा का जन्म स्थलखण्ड के उत्थान से पूर्व हो जाता है। सिन्धु तथा सतलुज नदियाँ इसी प्रकार के तन्त्र का निर्माण करती हैं।

6. आन्तरिक अपवाह तन्त्र-यह तन्त्र अर्द्ध शुष्क तथा मरुस्थलीय भागों में मिलता है। इसमें नदियाँ कुछ दूर बहने के पश्चात् मरुस्थल में लुप्त हो जाती हैं। ये नदियाँ झील या समुद्र तक नहीं पहुँचतीं।।

प्रश्न 11.
भौम-जलस्तर को निर्धारित करने वाले कारक कौन-से हैं? उनकी संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
उत्तर:
ऊपरी तल के रन्ध्रों से जल रिसकर भू-गर्भ की चट्टानों में एकत्रित होता रहता है और कुछ गहराई के पश्चात चट्टानें जल से संतृप्त होती हैं, इन्हें जल-संतृप्त चट्टानें कहते हैं। जल संतृप्त चट्टान पर जल की ऊपरी सतह को भूमिगत जल का तल (Underground.Water Level) कहते हैं। इसे भौम-जलस्तर भी कहते हैं। अन्य शब्दों में, किसी क्षेत्र में भूतल के नीचे का वह तल जिसके नीचे शैलें जल से भरपूर होती हैं, तो उसे भौम-जलस्तर कहते हैं।

भौम-जलस्तर परिवर्तनशील है। कुछ क्षेत्रों में यह केवल 2-3 मीटर की गहराई पर मिलता है तथा कई क्षेत्रों में सैकड़ों मीटर गहरा होता है। इसी प्रकार वर्षा ऋतु में जलस्तर ऊँचा तथा शुष्क ऋतु में जलस्तर नीचा होता है। भौम-जलस्तर को निम्नलिखित घटक नियन्त्रित करते हैं-

  • शैलों की पारगम्यता
  • वर्षा की मात्रा
  • शैलों की सरंध्रता
  • शैलों की संरचना।

प्रश्न 12.
भूमिगत जल के प्रमुख स्रोत कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
वर्षा और बर्फ के पिघलने से प्राप्त जल, जिसे उल्कापात जल (Meteoric Water) कहते हैं, के अतिरिक्त भूमिगत जल में वृद्धि करने वाले और भी स्रोत हैं। समुद्रों और झीलों की तली में स्थित परतदार चट्टानों के छिद्रों और सुराखों में इकट्ठा हुआ जल सहजात जल या तलछट जल (Connate Water) कहलाता है। जब कभी भू-गर्भिक उत्थान के कारण-समुद्र का कोई भाग ऊपर उठता है तो उस भाग से संचित जल भूमिगत जल बन जाता है।

जलज चट्टानों के नीचे दब जाने से मुक्त हुआ जल भी भूमिगत जल में वृद्धि करता है। इसके अतिरिक्त जब कभी तप्त मैग्मा चट्टानों में प्रवेश कर जाता है तो चट्टानों में स्थित वाष्पीय पदार्थ घनीभूत होकर भूमिगत जल में मिल जाते हैं। ऐसा जल मैग्मज जल (Magmatic Water) या तरुण जल (Juvenile Water) कहलाता है। पृष्ठीय जल (Surface water) का कितना हिस्सा भूमिगत जल बनेगा यह वहाँ की जलवायु पर निर्भर करता है।

प्रश्न 13.
गुफाओं का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर:
चूने के प्रदेश में धरातल की ऊपरी सतह पर कठोर चट्टानें होती हैं तथा भू-पृष्ठ के नीचे चूने की चट्टानें। ऐसी स्थिति में यहाँ नदियों या भूमिगत जल द्वारा अन्दर की चूने की चट्टानों का घुलना आरम्भ हो जाता है जिससे धरातल के नीचे खोखला भाग बन जाता है तथा ऊपर कठोर चट्टान छत की तरह स्थित रहती है। इस प्रकार गुफा का निर्माण होता है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका में केंटुकी राज्य में 50 कि०मी० लम्बी गुफा है। देहरादून के निकट ‘रोबर्स’ कन्दरा, बिहार में सासाराम के निकट ‘गुप्तेश्वर’ गुफा प्रसिद्ध गुफाएँ हैं। विश्व की सबसे बड़ी कन्दरा स्विट्ज़रलैण्ड में ‘हलौच’ कन्दरा है। यह 85 कि०मी० लम्बी है।

प्रश्न 14.
झरनों का निर्माण किस प्रकार होता है?
उत्तर:
भूमिगत जल प्राकृतिक रूप से स्वयं एक धारा के रूप में बाहर निकलने लगता है, जिसे झरना कहते हैं। मोकहाउस के शब्दों में, “झरना धरातल पर जल का प्राकृतिक प्रवाह है। यह बहुत तेजी से पर्याप्त शक्ति से बाहर आता है और धीरे-धीरे कम दबाव से बहता है।” झरने जल से भरे हुए धरातल के उन स्थानों पर मिलते हैं जहाँ पारगम्य चट्टानें स्थित होती हैं। भूमिगत जल-भूतल की ढलान के साथ बहता हुआ प्राकृतिक छिद्र या सन्धि स्थल से बाहर आ जाता है जिससे झरने का निर्माण होता है। ये झरने पर्वतीय गिरीपद के निकट पाए जाते हैं।

प्रश्न 15.
झरने कितने प्रकार के होते हैं? संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
झरनों से विभिन्न प्रकार का जल निकलता है। विभिन्न भू-गर्भिक और स्थल रूपों के आधार पर झरने निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

  1. दुःस्थित झरना-इस प्रकार के झरनों में पारगम्य चट्टानें भूतल पर जलस्तर के ऊपर स्थित होती हैं।
  2. परिरुद्ध झरना इसमें जल से संतृप्त धरातल के ऊपर या नीचे मित् जल भृत की परतें होती हैं।
  3. भ्रंश झरना-ये झरने भू-तल पर विभ्रंश रेखा के निकट से निकलते हैं। इनका निर्माण भ्रंशन के कारण जल से भरपूर चट्टानों का अपारगम्य चट्टानों के सामने आने से होता है।
  4. विभेदित झरना-ग्रेनाइट की चट्टानें सभेदित होती हैं तथा इनमें सन्धियाँ पाई जाती हैं। इन झरनों का निर्माण इन सन्धियों में से झुके हुए भू-तल पर बाहर निकलने से होता है।
  5. डाइक झरना-जब पारगम्य चट्टानों के मध्य डाइक स्थित होती है तथा उनके सन्धि स्थल से जल बाहर निकलने लगता है तो डाइक झरने का निर्माण होता है।
  6. कार्ट झरना-कार्ट क्षेत्रों में घुलन क्रिया द्वारा जल नीचे चला जाता है। जब यह जल स्तर धरातल से मिलता है तो झरने के रूप में बाहर आ जाता है।
  7. अन्य झरने कई क्षेत्रों में भू-स्खलन अथवा मलबा शंकु के साथ-साथ झरनों का जन्म होता है।

प्रश्न 16.
उत्सुत कूप की रचना किन दशाओं में होती है? ये किन प्रदेशों में मिलते हैं?
उत्तर:
उत्सुत कूप-ये वे प्राकृतिक कुएँ हैं जो आन्तरिक भाग से धरातल पर स्वतः ही जल का निष्कासन करते रहते हैं। उत्स्रुत कूप अथवा पाताल तोड़ कुएँ सर्वप्रथम फ्राँस प्रान्त के अर्टवायज़ (Artois) क्षेत्र में खोदे गए, इसलिए इन्हें आर्टीजियन कुँओं के नाम से पुकारा जाता है।

उत्स्त्रुत कूप रचना की दशाएँ-उत्स्त्रुत कूप रचना की दशाएँ निम्नलिखित हैं-

  • दो अपारगम्य शैलों के मध्य एक पारगम्य शैल होती है।
  • पारगम्य चट्टान जल से भरपूर होती है तथा उसके दोनों सिरे ऊँचे तथा खुले होते हैं। इस क्षेत्र में वर्षा अधिक होती है।
  • इन शैलों की आकृति प्लेट के आकार की होती है तथा अभिनति का वलन होता है।
  • ढलान वाले क्षेत्र के ऊपरी सिरों से जल निचले क्षेत्र में इकट्ठा होता रहता है।
  • अपारगम्य शैल में छिद्र करके कूप खोदा जाता है।
  • जल दबाव शक्ति-क्रिया द्वारा जल स्वतः तेज़ गति से बाहर आता है।

उत्त कूप सबसे अधिक ऑस्ट्रेलिया में पाए जाते हैं जो यहाँ 15 लाख वर्ग कि०मी० क्षेत्र में फैले हुए हैं। यहाँ नौ हजार से भी अधिक ऐसे कुएँ हैं। भारत में तराई क्षेत्र, गुजरात में जलोढ़ क्षेत्र तथा तमिलनाडु के अर्काट जिले में ऐसे कूप पाए जाते हैं।

प्रश्न 17.
गीजर क्या है? गीज़र की रचना कैसे होती है?
उत्तर:
गीजर का अर्थ भू-गर्भ से गरम (तप्त) जल रुक-रुक कर झटकों के साथ कई मीटर की ऊँचाई तक धरातल पर निकलता है तो उसे गीज़र कहते हैं। यह जल धरातल पर 50 से 60 मीटर की ऊँचाई तक जाता है। ‘गीजर’ शब्द आईसलैण्ड के ‘गेसिर’ शब्द से बना है। गेसिर इस द्वीप का महान् गीज़र है। इसमें गरम जल लगभग 60 मीटर की ऊँचाई तक ऊपर उठता है।

गीजर की रचना के आधार-गीजर ‘गशर’ का पर्यायवाची लगता है। इसकी रचना निम्नलिखित आधार पर होती है-

  • भू-तल के नीचे पृथ्वी के आन्तरिक भाग में अधिक तापमान के कारण गरम जल के भण्डार स्थित हैं।
  • अधिक तापमान के कारण आन्तरिक जल भाप में बदल जाता है।
  • भूमिगत गरम जल तथा भाप संकरी तथा टेढ़ी-मेढ़ी नली द्वारा फुहारे के रूप में बाहर निकलते हैं।
  • भूमि के नीचे जल को उबलने में कुछ समय लगता है इसलिए संकरी नली से जल रुक-रुक कर बाहर आता है।
  • ये मुख्य रूप से सक्रिय ज्वालामुखी क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
  • गीजर के जल के साथ कई खनिज पदार्थ तथा सिलिक मिश्रित होती हैं, जो गीजर के मुख के आसपास जमा हो जाते हैं।

प्रश्न 18.
हिमनदी किन दो प्रकारों से अपरदन क्रिया करती है? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हिमोढ़ की सहायता से हिमनदी निम्नलिखित दो प्रकारों से अपरदन क्रिया करती है-
1. अपघर्षण-इस प्रक्रिया में हिमनद अपने मलबे की सहायता से यांत्रिक विधि द्वारा अपनी घाटी और किनारों को रेगमार की तरह घिसता, खरोंचता और चिकनाता हुआ आगे बढ़ता है। इससे घाटी की तली में बारीक धारियों के रूप में खरोंच के निशान भी पड़ जाते हैं।

2. उत्पाटन-इस क्रिया में हिमनदी अपने मार्ग में पड़ने वाली अनावृत्त शैलों के अदृढ़खण्डों को अपनी ताकत से उखाड़ कर अलग कर देती है।

प्रश्न 19.
हिमनदी क्या होती है? यह कैसे बनती है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
हिमनदी का अर्थ कर्णहिम (Neve) के पुनस्र्फटन (Recrystallisation) से बनी हिमकी विशाल संहत राशि जो धरातल पर गुरुत्वाकर्षण के प्रभावाधीन बहती है, हिमनदी या हिमानी कहलाती है।

कैसे बनती है हिमनदी?-ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों और ध्रुवीय प्रदेशों में जहाँ तापमान हिमांक बिन्दु (Freezing Point) से कम होता है, वर्षण (Precipitation) जल की बूँदों के रूप में न होकर हिमतूलों (Snow flakes) के रूप में होता है।

लगातार अनेक वर्षों तक हिमपात होते रहने से हिम की परतें एक-दूसरे के ऊपर बिछती रहती हैं। ऊपरी परतों के दबाव के कारण हिम की निचली परतों से वायु निकल जाती है और हिम ठोस व संहत रूप धारण करने लगती है। ऐसी हिम को कर्णहिम या नेवे (Neve) कहा जाता है। जब हिमराशि की ऊँचाई 70-80 मीटर तक पहुँच जाती है तो वह अपने भार तथा पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से ढाल पर नीचे की ओर खिसकने लगती है। इस धीमी गति से बहती हुई बर्फ को हिमनदी कहा जाता है।

प्रश्न 20.
हिमनदियाँ क्यों बहती हैं? अथवा हिमनदियों के संचलन का कारण बताइए।
उत्तर:
स्विट्ज़रलैण्ड के प्रकृति-विज्ञानी (Naturalist) लुई अगासिज़ (Louis Aggasiz) ने सर्वप्रथम सन् 1834 में इस सत्य को उजागर किया था कि हिमनदियाँ गतिशील होती हैं। ये 2.5 सेण्टीमीटर प्रतिदिन से 30 मीटर प्रतिदिन की दर से बहती हैं। हिमनदी के विभिन्न भाग विभिन्न दर से बहते हैं। हिम की गति किनारों की अपेक्षा मध्य भाग में तथा तलहटी की अपेक्षा सतह पर अधिक होती है। इसका कारण यह है कि तली और किनारों पर आधारी चट्टान (Base Rock) के घर्षण के फलस्वरूप हिम के प्रवाह की गति कम हो जाती है।

प्रश्न 21.
हिमक्षेत्र और हिमरेखा के अन्तर को आप कैसे स्पष्ट करेंगे?
उत्तर:
हिमनदी अपने अस्तित्व और पोषण (Nourishment) के लिए अप्रत्यक्ष रूप से समुद्रों पर निर्भर करते हैं। जिन ठण्डे प्रदेशों में वार्षिक हिमपात की दर उसके पिघलने और वाष्पित होने की दर से अधिक होती है, वे सदा बर्फ से ढके रहते हैं, ऐसे क्षेत्र जहाँ बर्फ पड़ी रहती है, हिमक्षेत्र कहलाते हैं। हिमक्षेत्र की निचली सीमा को हिमरेखा कहा जाता है। हिमरेखा वह सीमा होती है जहाँ से ऊपर बर्फ कभी नहीं पिघलती। हिमरेखा कभी भी स्पष्ट और निश्चित नहीं होती। भूमध्य-रेखीय प्रदेशों में अधिक गर्मी के कारण हिमरेखा 6,000 मीटर की ऊँचाई पर मिलती है जबकि ध्रुवीय प्रदेशों में हिमरेखा समुद्र तल तक पहुँची हुई होती है। विश्व में सबसे ऊँची हिम रेखाएँ 20° से 30° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों (Latitudes) के शुष्क क्षेत्रों में पाई जाती हैं। हिमालय में हिमरेखा 4,250 मीटर की ऊँचाई पर पाई जाती है।

प्रश्न 22.
हिमरेखा क्या होता है? हिमरेखा की ऊँचाई को निर्धारित करने वाले प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
हिमरेखा का अर्थ-हिमरेखा हिमक्षेत्र की निचली सीमा को हिमरेखा कहते हैं। यह वह ऊँचाई होती है जिससे ऊपर बर्फ कभी भी नहीं पिघलती तथा बर्फ पूरे वर्ष जमी रहती है। हिमरेखा की ऊँचाई ध्रुवीय क्षेत्रों में समुद्र तल के पास भी हो सकती है, परन्तु भूमध्य रेखीय क्षेत्रों में इसकी ऊँचाई 6,000 मी० तक होती है।

हिमरेखा की ऊँचाई को निर्धारित करने वाले कारक-हिमरेखा की ऊँचाई को निर्धारित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं-

  • अक्षांश ध्रुवीय प्रदेशों में कम तापमान के कारण हिमरेखा की ऊँचाई कम होती है तथा भूमध्य-रेखीय प्रदेशों में अधिक तापमान के कारण इसकी ऊँचाई अधिक होती है।
  • हिम की मात्रा-जिन क्षेत्रों में हिमपात अधिक होता है, वहाँ यह नीची तथा कम हिमपात वाले क्षेत्रों में ऊँची होती है।
  • ढलान तथा आर्द्रता तीव्र ढलान तथा शुष्क प्रदेशों में हिमरेखा ऊँची व सरल ढलान तथा आर्द्र क्षेत्रों में इसकी ऊँचाई कम होती है।
  • ऋतु का प्रभाव-शीत ऋतु में हिमरेखा नीची तथा ग्रीष्म ऋतु में हिमरेखा ऊँची होती है।

प्रश्न 23.
पवन चट्टानों का अपरदन कितने प्रकार से करती है? पवन अपरदन को प्रभावित करने वाले कारकों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पवन जिन ढीले चट्टानी कणों को ढोती है, उन्हीं को औज़ार (Tool) बनाकर अपने मार्ग में पड़ने वाली चट्टानों का यान्त्रिक अपरदन करती है। पवन चट्टानों का अपरदन तीन प्रकार से करती है-

  • अपवहन (Deflation)-इस क्रिया द्वारा भौतिक अपक्षय से टूटी हुई चट्टानों के कणों को अपने साथ उड़ा ले जाती है।
  • सन्निघर्षण (Attrition)-इस क्रिया में पवनों के साथ उड़ते हुए कण आपस में टकराकर सूक्ष्म होते रहते हैं।
  • अपघर्षण (Abrasion) इसमें रेत के कण चट्टान पर प्रहार करके रेगमार की भांति उसे खुरच देते हैं।

पवन अपरदन को प्रभावित करने वाले कारक-पवन अपरदन को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं

  • पवन बालू के कणों को अधिक ऊँचाई तक नहीं उठा पाती, इसलिए पवन का अपरदन कार्य धरातल से थोड़ी-सी ऊँचाई तक ही प्रभावी होता है।
  • पवन का अपरदन उन कणों के आकार पर भी निर्भर करता है जिन्हें वह उड़ाकर या घसीटकर अपने साथ ढोती है।
  • पवन की गति और उसके बहने की अवधि भी पवन के अपरदन कार्य को प्रभावित करते हैं।
  • वातीय अपरदन की मात्रा चट्टानों की प्रकृति (कोमल या कठोर), सन्धियों (Joints) और उनके कणों के संघटन से भी प्रभावित होती है।

प्रश्न 24.
समुद्री अपरदन (Marine Erosion) किस प्रकार होता है? यह किन-किन कारकों पर निर्भर करता है?
उत्तर:
समुद्री अपरदन की प्रक्रिया-जब समुद्री तरंगें तटों पर जाकर टूटती हैं तो वे वहाँ स्थित चट्टानों पर तेज़ प्रहार करती हैं। ऐसा अनुमान है कि फेनिल तरंगें तट के प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र पर 3,000 से 30,000 किलोग्राम जितना दबाव डाल सकती हैं। तूफ़ानी तरंगों का दबाव और अधिक होता है। जब समुद्री तरंगें तटों से टकराती हैं तो चट्टानों के छिद्रों और दरारों में छिपी वायु भिंच (Compress) जाती है।

तरंग के वापस लौटते ही यह दबी हुई वायु झटके से बाहर निकलती है। हवा के इस आकस्मिक फैलाव का विस्फोटक प्रभाव पड़ता है और चट्टानी कण ढीले पड़ने लगते हैं। इस क्रिया की लम्बी अवधि तक पुनरावृत्ति तटीय चट्टानों को तोड़ देती है। यदि तरंगें बजरी और बालू रूपी यन्त्रों से लैस हों तो सागरीय अपरदन और तेज़ हो जाता है। समुद्री तरंगें अपरदन क्रिया द्रव-प्रेरित बल, अपघर्षण, विलयन तथा सन्निघर्षण द्वारा करती हैं।

समुद्री अपरदन के कारक-समुद्र का अपरदन कार्य अनेक कारकों पर निर्भर करता है; जैसे-

  • समुद्री तरंगों के आकार और उनकी शक्ति
  • तट की ऊँचाई
  • तट का ढाल
  • तटीय चट्टानों की बनावट और संगठन
  • समुद्री तल की गहराई
  • तरंग के टूटने का बिन्दु इत्यादि।

प्रश्न 25.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए-
1. अपशल्कन अथवा पल्लवीकरण
2. ‘I’ आकार की घाटी
3. ‘V’ आकार की घाटी
4. ‘U’ आकार की घाटी
5. जैव अपक्षय
6. कार्बोनेटीकरण
7. लटकती घाटी
8. गॉर्ज
9. जल-प्रपात
10. गुंफित नदी
11. डेल्टा
12. प्राकृतिक तटबन्ध तथा बाढ़ का मैदान
13. पुनर्योवन
14. पूर्ववर्ती अपवाह तन्त्र
15. सर्क
16. हिमोढ़
17. ड्रमलिन
18. छत्रक
19. इन्सेलबर्ग
20. बारखन
21. बालुका स्तूपों का खिसकना
22. समुद्री भृगु
23. तरंग-यर्षित वेदी
24. अपक्षेप मैदान
25. रिया तट
26. भौम-जलस्तर
27. झरना।
उत्तर:
1. अपशल्कन अथवा पल्लवीकरण-कुछ चट्टानें ताप की उत्तम चालक नहीं होतीं। सूर्य के प्रचण्ड ताप द्वारा उनकी ऊपरी पपड़ी तो गरम हो जाती है, जबकि पपड़ी के नीचे का भीतरी भाग ठण्डा ही रहता है। यह ताप विभेदन चट्टानों की समकंकता (Cohesion) भंग कर देता है, जिससे चट्टानों की ऊपरी पपड़ी मूल चट्टानों से ऐसे अलग हो जाती है; जैसे प्याज़ का छिलका। चट्टान से अलग होने पर छिलकों जैसी ये परतें टूटकर चूर-चूर हो जाती हैं। चट्टानों के टूटने का यह रूप पल्लवीकरण या अपशल्कन (Exfoliation) कहलाता है।
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2. I’ आकार की घाटी-इसे केनियन भी कहते हैं। केनियन की रचना ऐसे क्षेत्रों में होती है जहाँ नदी, ऊँचे पहाड़ी, पठारी भाग तथा कठोर चट्टानों से निर्मित भू-भाग से होकर गुजरती है। नदी की घाटी कम चौड़ी, अधिक गहरी एवं सँकरी होती है। इसकी आकृति ‘आई’ (I) के आकार की होती है। संयुक्त राज्य अमेरिका में कोलोरेडो नदी पर विश्व-प्रसिद्ध केनियन की लम्बाई 480 कि०मी० तथा गहराई 1,828 मीटर है।

3. ‘V’ आकार की घाटी-पर्वतीय क्षेत्रों में नदी लम्बवत् कटाव के साथ-साथ पाश्विक कटाव भी करती है जिसके कारण ‘V’ आकार की घाटी का निर्माण होता है। हिमालय से निकलने वाली अधिकांश नदियाँ V-आकार की घाटी में प्रवाहित होती हैं।

4. ‘U’ आकार की घाटी-ये घाटियाँ हिमानियों द्वारा निर्मित हैं। इनके ढाल खड़े तथा तली चौरस और सपाट होती है। इन घाटियों का निर्माण नदियों की V-आकार की घाटी के विकास में हिमनद के अपघर्षण तथा उत्पादन क्रिया के द्वारा इन घाटियों को पूर्णतया चौरस तथा सपाट बनाती है। मुख्य हिमानी की घाटी गहरी तथा विस्तृत होती है।

5.जैव अपक्षय-चट्टानों की वह टूट-फूट जिसमें जीव-जन्तु, वनस्पति और मनुष्य उत्तरदायी हों जैविक अपक्षय कहलाता है। जैविक अपक्षय में भी यान्त्रिक और रासायनिक दोनों प्रकार के अपक्षय शामिल होते हैं। जैविक अपक्षय के मुख्य कारक बिलकारी जीव-जन्तु, वनस्पति की जड़ें तथा मनुष्य द्वारा खनन हैं।

6. कार्बोनेटीकरण-जल में घुली कार्बन-डाइऑक्साइड गैस की मात्रा अपने सम्पर्क में आने वाली चट्टानों के खनिजों को कार्बोनेट में बदल देती है, इसे कार्बोनेटीकरण कहते हैं। कार्बन-युक्त जल एक हल्का अम्ल (Carbonic Acid) होता है, जो चूनायुक्त चट्टानों को तेज़ी से घुला देता है। सभी चूना-युक्त प्रदेशों में भूमिगत जल कार्बोनेटीकरण के द्वारा अपक्षय का प्रमुख कारक बनता है।

7. लटकती घाटी-नदियों की तरह हिमनदियों की भी सहायक लटकती हिमनदियाँ होती हैं। पर्वतीय ढालों पर बहती हुई अधिकांश हिम की मुख्य घाटी में बहने की प्रवृत्ति होती है। बर्फ की मोटाई और उसके द्वारा तली पर डाले गए दबाव में अन्तर के कारण सहायक हिमनदी अपनी घाटी को उस गहराई और चौड़ाई में नहीं काट पाती, जिस गहराई तक मुख्य हिमनदी काट पाती है। इससे सहायक और मुख्य हिमनदी के संगम-स्थल पर तीव्र ढाल विकसित हो जाता है। जब बर्फ घाटी की ओर पिघल जाती है तो सहायक हिमनदी का जल मुख्य घाटी में जल-प्रपात वाले जलप्रपात अथवा क्षिप्रिका बनाते हुए गिरने लगता है। सहायक हिमनदी का मुख और घाटी मुख्य हिमनदी की घाटी से काफी ऊपर अधर में लटकते दिखाई पड़ते हैं। लटकती घाटियों के सर्वोत्तम उदाहरण कैलिफोर्निया के सियरा नेवादा पर्वत की योसेमाइट घाटी (Yosemite Valley) में देखे जा सकते हैं।
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8. गॉर्ज-सँकरी और अत्यधिक गहरी V-आकार घाटी को गॉर्ज कहा जाता है। ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में जब नदी प्रतिरोधी चट्टानों के ऊपर बहती है तो वह तीव्र वेग के कारण तली को काटकर अपनी घाटी को गहरा करती रहती है जबकि पाश्विक अपरदन का कार्य कम होता है। चट्टानों की कठोरता के कारण घाटी के किनारों के ऊपरी भाग ऋतु-अपक्षय के कारण कट-कट कर नीचे घाटी में गिरते रहते हैं, किन्तु निचले भाग अपक्षय के प्रभाव से मुक्त रहते हैं। इसलिए गॉर्ज ऊपर से अपेक्षाकृत चौड़े होते हैं।

9. जल-प्रपात जब नदी चट्टानी कगार के ऊपरी भाग से सीधे नीचे गिरती है तो उसे जल-प्रपात कहते हैं। नदी की घाटी में कहीं कोमल तो कहीं कठोर चट्टानें बिछी हुई होती हैं। नदी की अपरदन क्रिया से कोमल चट्टानें तो शीघ्र कट जाती हैं जबकि कठोर चट्टानें कम गति से घिसती हैं। अतः नदी द्वारा चट्टानों की भिन्न अपरदन दर ही सामान्य जल प्रपातों के निर्माण का मुख्य कारण है। भूकम्प, ज्वालामुखी तथा भू-संचरण के कारण भी जल-प्रपातों की रचना होती है। सामान्यतः जल-प्रपात निम्नलिखित दो दशाओं में बनते हैं

  • जब चट्टानों की परतें क्षैतिज अवस्था में हों।
  • जब चट्टानों की परतें लम्बवत् अवस्था में हों।

10. गुंफित नदी-निचले भाग में नदी नद-भार को ढो पाने में असमर्थ होती है अतः वह अपने ही तल पर साथ बह रहे अवसाद का निक्षेपण करने लगती है। इससे नदी की धारा अवरुद्ध होने लगती है। परिणामस्वरूप नदी अनेक धाराओं में बँटकर बहने लगती है। ये धाराएँ बालू से बनी अवरोधिकाओं द्वारा एक-दूसरे से अलग हुई होती हैं। अनेक जलधाराओं से फंदे बनाती हुई ऐसी नदी को गुंफित नदी कहते हैं।

11. डेल्टा-किसी समुद्र या झील में गिरने से पहले नदी अपने आधार तल (Base Level) को प्राप्त कर चुकी होती है। इस समय उसकी शक्ति अत्यन्त क्षीण और वेग अत्यन्त मन्द होता है। नदी अपना बचा हुआ समस्त नद-भार मुहाने पर जमा कर देती है। इस अवसाद के अवरोध के कारण नदी एक मुख्य धारा के रूप में नहीं बह पाती, बल्कि छोटी-छोटी अनेक शाखाओं (Distributaries) में बँटकर बहने लगती है।

ये शाखाएँ भी अपने-अपने मुहाने पर नद-भार का निक्षेप करने लगती हैं। इस प्रकार मुहाने के पास विशाल क्षेत्र में एक त्रिभुजाकार स्थलाकृति का निर्माण हो जाता है, जिसे डेल्टा कहते हैं। इस त्रिभुजाकार स्थलरूप को डेल्टा इसलिए कहते हैं क्योंकि नील नदी के डेल्टा की आकृति यूनानी भाषा के डेल्टा (∆) अक्षर से मिलती है। विश्व में गंगा-ब्रह्मपुत्र का डेल्टा (1,25,000 वर्ग कि०मी०) सबसे बड़ा डेल्टा है। विश्व की सभी नदियाँ डेल्टा नहीं बनातीं।
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12. प्राकृतिक तटबन्ध तथा बाढ़ का मैदान वर्षा ऋतु में बाढ़ आने पर नदी का जल उसके किनारों से बाहर निकलकर बहने लगता है। बाढ़ के समय नदी में जल की मात्रा और नद-भार ढोने की शक्ति दोनों ही बढ़ जाते हैं। बाढ़ उतरने पर नदी इतने अधिक जलोढ़ का परिवहन करने में असमर्थ हो जाती है और नद-भार का निक्षेप करना आरम्भ कर देती है। अवसाद की एक मोटी परत नदी के किनारों पर जमने लगती है क्योंकि तटों के पास घर्षण (Friction) के कारण जल की गति सबसे कम होती है।

अनेक वर्षों तक इस क्रम के बार-बार दोहराए जाने पर नदी के तटों पर लम्बे ऊँचे टीले बने दिखाई देते हैं जिन्हें प्राकृतिक तटबन्ध कहा जाता है। प्रायः ये तटबन्ध नदी के जल-तल से एक या दो मीटर ऊँचे होते हैं, लेकिन कई बार इनकी ऊँचाई आस-पास के मकानों की छतों से भी ऊँची होती है। प्राकृतिक तटबन्धों को कई बार कृत्रिम रूप से ऊँचा और पक्का भी कर दिया जाता है।

कई बार तटबन्धों के टूट जाने पर नदी का जल आस-पास के क्षेत्रों में फैल जाता है। बाढ़ की समाप्ति पर जल अपने साथ बहाकर लाए गए महीन नद-भार की एक परत वहाँ बिछा देता है, जिसे बाढ़ का मैदान कहते हैं।

13. पुनर्योवन-प्रवणित अवस्था में बहती नदी यदि आधार तल को प्राप्त कर भी ले तो यह स्थिति अस्थाई होती है। इसका कारण यह है कि कभी नदी घाटी का तल ऊपर उठ जाता है या स्थाई माना जाने वाला समुद्र का तल ही किन्हीं कारणों से नीचा हो सकता है। ऐसे में प्रवणित घाटी के तल में व्यवधान पैदा हो सकता है। व्यवधान की अवस्था में नदी अपने तल का अधिकतर ऊपर की ओर अपरदन करके सुधार करती है। प्रवणित घाटी में नदी द्वारा पुनः अपरदन की क्रिया पुनर्योवन कहलाती है। पुनर्योवन . की अवस्था में पुरानी घाटी के नीचे नई घाटी का निर्माण होने लगता है।

14. पूर्ववर्ती अपवाह तन्त्र-पूर्ववर्ती अपवाह तन्त्र उसे कहते हैं जिसका आविर्भाव स्थलखण्ड में उत्थान से पहले हो चुका होता है। मार्ग में स्थलखण्ड का उत्थान हो जाने के बाद भी ये नदियाँ अपने पहले वाले मार्ग को अपनाए रहती हैं। अपरदन के द्वारा ये अपने मार्ग के अवरोध को लगातार काटती रहती हैं। ज्यों-ज्यों भूखण्ड का उत्थान होता है, त्यों-त्यों ये नदियाँ अपनी उसी घाटी को गहरा करती रहती हैं। ये धाराएँ स्थानीय ढाल का अनुसरण नहीं करती, इसलिए उन्हें अक्रमवर्ती जलधारा (Insequent Streams) भी कहा जाता है। सिन्धु और सतलुज नदियाँ पूर्ववर्ती अपवाह का सर्वोत्तम उदाहरण हैं। तिब्बत के पठार से निकलने वाली ये नदियाँ हिमालय पर्वत से भी पुरानी हैं। इनके मार्ग में हिमालय के उत्थान के बावजूद इन नदियों ने अपने मार्ग को अक्षुण बनाए रखा है।

15. सर्क-जब ऊँचे पर्वतीय भागों से फिसलकर हिम नीचे आती है, तो वह ढाल पर गड्ढे बना देती है। इसमें तुषार अपक्षय (FrostAction) का भी हाथ होता है। समय के साथ ये गड्ढे हिमखोदाव (Nivation) की क्रिया से चौड़े और गहरे होते रहते हैं। पर्वतीय ढालों पर बने ऐसे विशाल गर्त हिम गह्वर कहलाते हैं। दूर से यह भू-आकृति अर्ध-गोलीय रंगमंच (Amphi-Theatre) अथवा गहरी सीट वाली आराम कुर्सी जैसी प्रतीत होती है।

16. हिमोद-जब हिमनदी पिघलती है तो हिम की विभिन्न परतों में जकड़कर साथ-साथ चल रहे शैल मलबे का घाटी में यथास्थान निक्षेपण होने लगता है। प्रत्यक्ष रूप से बिछाए गए रेत के महीन कणों से लेकर बड़े-बड़े शिलाखण्डों के अस्तरित (Unstratified) मिश्रण को टिल (Till) कहा जाता है। टिल से निर्मित स्थलाकृतियों को हिमोढ़ कहा जाता है। हिमोढ़ निम्नलिखित चार प्रकार के होते हैं-

  • पाश्विक हिमोढ़
  • मध्यवर्ती हिमोढ़
  • अन्तिम हिमोढ़
  • तलस्थ अथवा भूमि हिमोढ़।

17. ड्रमलिन-हिमनदी की घाटी में हिम के प्रवाह की दिशा में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर उल्टी नौका जैसी आकृति के महीन मृत्तिका (Till) से बने अनेक टिब्बे पाए जाते हैं, जिन्हें ड्रमलिन कहा जाता है। ये 30 मीटर तक ऊँचे और एक किलोमीटर तक लम्बे होते हैं। इन टिब्बों के विस्तृत क्षेत्र को दूर से देखने पर ऐसा लगता है जैसे एक विशाल टोकरी में आधे कटे अण्डे उल्टे रखे हुए हों। इसलिए इसे अण्डों की टोकरी जैसी स्थलाकृति (Basket of Eggs Topography) भी कहा जाता है। ड्रमलिन हिमनदों के पीछे हटने और फिर आगे बढ़ने की पुनरावृत्ति से बनते हैं। ड्रमलिन हिमनद की निक्षेप क्रिया का परिणाम हैं। ये सैकड़ों की तादाद में इकडे पाए जाते हैं।

18. छत्रक-मरुस्थलों में पवन के मार्ग में पड़ने वाली चट्टानों के आधार तल पर अपरदन सबसे अधिक होता है, क्योंकि पवन में बड़े व भारी कण धरातल के समीप बह रहे होते हैं। बड़े कण ऊपर के सूक्ष्म कणों की अपेक्षा चट्टान के निचले भाग में तेजी से अपरदन करते हैं। इस अघोरदन (Undercutting) के कारण चट्टान का निचला भाग सँकरा और ऊपरी भाग चौड़ा बना रहता है। ऐसा भू-आकार दूर से छतरी जैसा दिखाई पड़ता है।

19. इन्सेलबर्ग-शुष्क मरुस्थलों में यदि कहीं कठोर चट्टान बिछी होती है तो पवन द्वारा उस चट्टान के आस-पास तो अपरदन होता रहता है, किन्तु उसके नीचे की भूमि अपरदन से बची रह जाती है। काफ़ी मात्रा में अपरदन हो चुकने के बाद यह भूमि एक ऊँचे स्तम्भ के रूप में उभरी रह जाती है, जिसे भू-स्तम्भ या डिमोइसल कहते हैं।

20. बारखन-बारखन तुर्की भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है-खिरघिज़ स्टेपी में बालू की पहाड़ी। बारखन विशेष आकृति वाले बालू के टीले या पहाड़ियाँ होती हैं जो वायु की दिशा में आड़ी बनती हैं। इनका अग्रभाग चन्द्राकार होता है और इनके दोनों छोरों पर पवन की दिशा में एक-एक सींग जैसी आकृति निकली रहती है। बारखन का पवनाभिमुख ढाल उत्तम और मन्द होता है, जबकि पवनविमुख ढाल तीव्र और अवतल होता है। इस तीव्र ढाल से उतरती हुई पवन भूमि पर घिसटती हुई बहती है जिससे उसमें भँवर गति (Eddies) पैदा हो जाती है। इससे टिब्बे के किनारे भीतर की ओर दबते हैं और बारखन अर्ध-चन्द्राकार जैसा विचित्र भू-आकार बन जाता है। बारखन सामान्यतः समूहों में पाए जाते हैं। बालू के सामान्य टिब्बों की भाँति बारखन भी आगे खिसकते हैं। इनकी औसत ऊँचाई 30 मीटर तक होती है।

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21. बालुका स्तूपों का खिसकना-यदि लम्बे समय तक पवन एक ही दिशा में बहती रहे और विस्तृत क्षेत्र में वनस्पति आवरण का अभाव हो तो बालू के टीले पवन की प्रवाह दिशा में खिसकते रहते हैं। पवनमुखी मंद ढाल (Windward Slope) से पवन बालू को उड़ाकर पवनविमुखी तीव्र ढाल (Leeward Slope) पर जमा करती रहती है। इस प्रकार रेत टिब्बे के पिछले भाग से अगले भाग में पहुँचती रहती है और बालू का टिब्बा आगे की ओर सरकता रहता है। इनके खिसकाव की सामान्य गति 5 से 20 मीटर प्रति वर्ष होती है।

22. समुद्री भृगु-एकदम खड़े समुद्री तट को भृगु कहा जाता है। जिन तटों पर तीव्र ढाल वाली चट्टानें तट से समुद्र के नीचे चली जाती हैं, वहाँ शुरू में फेनिल तरंगें समुद्र के जल-स्तर पर अपरदन के द्वारा एक खाँच (Notch) का निर्माण करती हैं। यह खाँच अपरदन के द्वारा अन्दर-ही-अन्दर बढ़ती जाती है और आधार को तब तक खोखला करती रहती है, जब तक चट्टान का खाँचे के ऊपर लटकता हुआ भाग समुद्र में गिर नहीं जाता। इस प्रकार बची हुई चट्टान का दीवार की तरह खड़ा सीधा भाग भूगु कहलाता है।

23. तरंग-घर्षित वेदी-भृगु के बार-बार पीछे हटने से उत्पन्न शैल मलबे को ज्वारीय तरंगें भृगु के सामने ज़मा करती रहती हैं। इससे जल के अन्दर एक अपेक्षाकृत समतल मैदान का निर्माण हो जाता है, जिसे तरंग-घर्षित वेदी कहते हैं।

24. अपक्षेप मैदान-हिमनदी के पिघलने से उत्पन्न जल अपने शैल मलबे के साथ अन्तिम हिमोढ़ के पीछे इकट्ठा होना शुरू हो जाता है। जब जल की मात्रा बढ़ जाती है तो वह अन्तिम हिमोढ़ के ऊपर से होकर बहने लगता है। इससे अन्तिम हिमोढ़ का भी थोड़ा-बहुत अपरदन हो जाता है। यह सामग्री अन्तिम हिमोढ़ से आगे एक विस्तृत क्षेत्र में अपने भारीपन के क्रम में बिछ जाती है। इसे हिमप्रवाह मैदान या अपक्षेप मैदान कहा जाता है।

25. रिया तट-हिम युग के बाद समुद्र का जल-स्तर बढ़ने से समुद्र के साथ समकोण बनाती हुई उच्च भूमियों की नदी घाटियों और नद-मुख (River Mouths) जल में डूब गए। इस प्रकार बना तट रिया तट कहलाता है। ये तट फियोर्ड तट से इस कारण भिन्न होते हैं कि ये हिमनदित नहीं होते और समुद्र की ओर इनकी गहराई बढ़ती जाती है। एड्रियाटिक सागर व जापान की तट-रेखा रिया तट के उदाहरण हैं।

26. भौम-जलस्तर-गुरुत्व बल के प्रभाव से जल रिस-रिस कर चट्टान की किसी अपारगम्य परत तक जा पहुँचता है। यदि इस जल को झरना बनकर बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिलता तो यह चट्टान के छिद्रों और दरारों में एकत्रित होकर उसे जल से परिपूर्ण या संतृप्त (Saturated) कर देता है। इस जलयुक्त चट्टान को जलभृत (Acquifer) या संतृप्त चट्टान कहा जाता है। जल-संतृप्त शैलों का ऊपरी तल भौम-जलस्तर कहलाता है।

भौम-जलस्तर एक सरल रेखा की भाँति सदा समतल नहीं पाया जाता। सामान्यतः भौम-जलस्तर धरातलीय बनावट (Relief) और चट्टान की प्रकृति (Rock Type) का अनुसरण करता है। पहाड़ियों के धरातल से यह काफी नीचे किन्तु मेहराबनुमा होती है, किन्तु घाटियों के नीचे यह V-आकार की तथा निम्न मैदानों के नीचे समतल होती है।

27. झरना-जलीय दबाव के कारण जब भूमिगत जल चट्टानी दरारों व जोड़ों (Joints) से अपने आप धरातल पर निकल आता है, तो उसे झरना कहते हैं।

प्रश्न 26.
निम्नलिखित में अन्तर स्पष्ट कीजिए-
(1) जलोढ़ पंख तथा डेल्टा
(2) जल-प्रपात तथा क्षिप्रिकाएँ
(3) स्टैलेक्टाइट तथा स्टैलेग्माइट
(4) U आकार की घाटी तथा V आकार की घाटी।
उत्तर:
(1) जलोढ़ तथा डेल्टा में अंतर निम्नलिखित है-

जलोढ़ पंख (Alluvial Fan)डेल्टा (Delta)
1. जलोढ़ पंख मध्यवर्ती भाग में बनी स्थलाकृति होती है।1. डेल्टा नदी के निचले भाग में बनी स्थलाकृति होती है।
2. ऊपर से देखने पर यह एक पंख के समान विस्तृत होता है।2. ऊपर से देखने पर यह यूनानी भाषा के डेल्टा (∆) अक्षर के समान प्रतीत होता है।
3. यह पर्वतीय कंदरा के बाहर मैदान की तरफ फैला होता है।3. यह नदी के समुद्र में गिरने से पहले बनता है।

(2) जल प्रपात तथा क्षिप्रिकाओं में अंतर निम्नलिखित हैं-

जल-प्रपात (Water Falls)क्षिप्रिकाएँ (Rapids)
1. जल-प्रपात में जल काफी ऊँचाई से गिरता है।1. क्षिप्रिका में जल छोटी-छोटी ऊँचाइयों से गिरता है।
2. यह चट्टानों की क्षैतिज व अनुप्रस्थ दोनों अवस्थाओं में बन सकता है।2. यह तब बनती है, जब चट्टानें अनुप्रस्थ दिशा में स्थित हों।
3. इसमें ढाल खड़ा होता है।3. इसमें ढाल खड़ा नहीं होता, लेकिन ढाल प्रवणता अधिक होती है।
4. इसका आर्थिक महत्त्व अधिक है।4. इसका आर्थिक महत्त्व कम है।

(3) स्टैलेक्टाइट तथा स्टैलेग्माइट में अंतर निम्नलिखित है-

स्टैलेक्टाइट (Stalactite)स्टैलेगमाइट (Stalagmite)
1. ये कार्स्ट प्रदेशों में गुफाओं की छत से नीचे की ओर लटके हुए स्तंभ होते हैं।1. ये कार्स्ट प्रदेशों में गुफाओं के फर्श पर ऊपर की और उठे हुए स्तंभ होते हैं।
2. ये पतले और नुकीले होते हैं।2. ये अपेक्षाकृत मोटे किन्तु छोटे होते हैं।
3. ये चूनायुक्त जल की गुफा की छत पर लटकी बूँदों के वाष्पीकृत हो जाने से बनते हैं।3. ये चूनायुक्त जल की गुफा के धरातल पर गिरी बूँदों के सूखने से बनते हैं।

(4) U आकार की घाटी तथा V आकार की घाटी में अंतर निम्नलिखित हैं-

U आकार की घाटी (U-Shaped Valley)V आकार की घटी (V-Shaped Valley)
1. यह घाटी हिमनदी के अपरदन से बनती है।1. यह घाटी नदी के अपरदन से बनती है।
2. इस घाटी के किनारे एकदम खड़े होते हैं।2. इस घाटी के किनारे ढालू होते हैं।
3. यह घाटी अधिक गहरी होने पर भी U-आकार की ही रहती है।3. यह घाटी अधिक गहरी होने पर ‘I’ आकार की कैनियन बन जाती है।
4. U-आकार की घाटी ऊँचे पर्वतों और उच्च अक्षांशों में पाई जाती है।4. V-आकार की घाटी मध्य व निम्न अक्षांशों में पाई जाती है।

प्रश्न 27.
नदी के मध्य भाग में मोड़ या घुमाव (विसप) क्यों बनते हैं?
उत्तर:
मन्द गति के कारण मैदानी भाग में नदी की परिवहन शक्ति इतनी क्षीण हो जाती है कि वह अपने मार्ग में आने वाली रुकावटों को अपरदन द्वारा दूर करने की अपेक्षा अपनी धारा का रुख मोड़ लेती है। नदी का अपना अवसाद ही उसके मार्ग की रुकावट बनने लगता है। यदि एक बार नदी के मार्ग में मोड़ आ जाए तो फिर यह प्रक्रिया रुक नहीं पाती। इसका कारण यह है कि घुमाव में बहता हुआ जल अपने बाहरी या अवतल (Concave) किनारों पर अपरदन और घुमाव के अन्दर वाले या उत्तल (Convex) किनारों पर निक्षेपण अधिक करता है। इससे अवतल किनारों पर जल गहरा तथा धारा तेज़ और उत्तल किनारों पर जल कम गहरा तथा धारा मन्द होती है। परिणामस्वरूप अपरदित किनारा पीछे हटता जाता है और निक्षेप वाला किनारा घाटी तल पर आगे बढ़ता जाता है। इस क्रिया से नदी के घुमाव बढ़ते जाते हैं, जिन्हें नदी विसर्प कहा जाता है।

प्रश्न 28.
भारत के पश्चिमी तट पर नर्मदा और ताप्ती नदियाँ डेल्टा क्यों नहीं बनाती?
उत्तर:
भारत के पश्चिमी तट पर नर्मदा व ताप्ती नदियाँ डेल्टा नहीं बना पातीं। इसके निम्नलिखित कारण हैं-

  • पश्चिमी तट पर बहने वाली नदियों के निचले भाग तीव्र ढाल वाले होते हैं।
  • नदियाँ तीव्र गति से अरब सागर में गिरती हैं जिसमें मिट्टी का निक्षेप नहीं हो पाता।
  • पश्चिमी तटीय मैदान कम चौड़ा होने के कारण वहाँ समतल भूमि की कमी होती है।

प्रश्न 29.
छत्रक या गारा कैसे बनता है? ऐसे भू-आकार कहाँ मिलते हैं?
उत्तर:
मरुस्थलों में पवन के मार्ग में पड़ने वाली चट्टानों के आधार तल पर अपरदन सबसे अधिक होता है, क्योंकि पवन में बड़े व भारी कण धरातल के समीप उड़ रहे होते हैं। बड़े कण ऊपर के सूक्ष्म कणों की अपेक्षा चट्टान के निचले भाग में तेजी से अपरदन करते हैं। इस अधोरदन (Undercutting) के कारण चट्टान का निचला भाग सँकरा और ऊपरी भाग चौड़ा बना रहता है। ऐसा भू-आकार दूर से छतरी जैसा दिखाई पड़ता है। सहारा मरुस्थल में ऐसी स्थलाकृतियों को ‘गारा’ कहा जाता है। राजस्थान में जोधपुर के निकट ग्रेनाइट की चट्टानों से बने ऐसे अनेक छत्रक देखने को मिलते हैं।

प्रश्न 30.
मरुस्थलों में पवन अनाच्छादन का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन क्यों माना जाता है?
उत्तर:
अनाच्छादन के साधन के रूप में पवन का कार्य केवल शुष्क व अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में ही सीमित रहता है। इन मरुस्थलीय क्षेत्रों में वर्षा की कमी के कारण मिट्टी के कण परस्पर बँधे हुए नहीं होते, बल्कि ढीले होते हैं। वनस्पति के आवरण के न होने से ऐसे क्षेत्रों में पवन रेत के इन असंगठित कणों को बड़ी आसानी से उड़ा ले जाती है। जहाँ कहीं भी पवन की गति में कमी आती है, वह इन रेत के कणों को निक्षेपित करने लगती है।

प्रश्न 31.
लैगून क्या होती है? यह कैसे बनती है? भारत में लैगूनों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
कई बार एक बालू-भित्ति (Sand bar) समुद्र के एक छोटे से भाग को मुख्य समुद्र से अलग कर देती है। ऐसी आंशिक रूप से रोधिका द्वारा घिरी हुई खारे पानी की झील को लैगून कहा जाता है। लैगून का सम्बन्ध एक संकीर्ण मार्ग द्वारा समुद्र से बना रहता है। भारत के पूर्व में ओडिशा तट पर चिल्का (Chilka) झील तथा दक्षिण में तमिलनाडू तट पर पुलिकट (Pulicut) झील तथा केरल तट पर वेंबानाद (Vembanad) झील लैगून झीलों के ही उदाहरण हैं।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नदी की अपरदन अथवा निक्षेपण क्रिया से बनने वाली स्थलाकृतियों (भू-आकृतियों) का वर्णन कीजिए।
अथवा
नदी घाटी के तीन मुख्य भागों में प्रवणता सन्तुलन के कारक के रूप में, नदी के कार्यों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
प्रवाहित जल द्वारा निर्मित अपरदित स्थलरूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अपरदन, परिवहन और निक्षेपण क्रियाओं के माध्यम से नदी अपने मार्ग के विभिन्न भागों में अनेक प्रकार के स्थलरूपों की रचना करती है।
(क) नदी घाटी के ऊपरी भाग में बनी स्थलाकृतियाँ-नदी घाटी का ऊपरी भाग पर्वतीय क्षेत्र में स्थित उसके उद्गम स्थान (Source) से आरम्भ होता है। इस भाग में नदी तीव्र ढाल पर बहती है जिस कारण उसका वेग और अवसाद ढोने की शक्ति अधिक होती है। इस अवस्था में नदी का प्रमुख कार्य अपरदन होता है जिसके द्वारा नदी निम्नलिखित आकृतियों का निर्माण करती है
1. V-आकार घाटी (V-shaped Valley)-उद्गम स्थान से निकलते ही नदी अपने मार्ग के ढाल और गति के कारण अपनी तली को काटकर गहरा करने का कार्य करती है। इससे घाटी का आकार V-अक्षर जैसा हो जाता है। घाटी का निरन्तर विकास होता रहता है जिसमें क्षैतिज अपरदन (Lateral Erosion) कम तथा लम्बवत् अपरदन (Vertical Erosion) अधिक होता है। प्रायः V-आकार की घाटी उन क्षेत्रों में विकसित होती है, जहाँ वर्षा सामान्य से अधिक होती है तथा चट्टानें अति कठोर नहीं होती।

2. महाखड्ड अथवा गॉर्ज (Gorge)-संकरी और अत्यधिक गहरी V-आकार घाटी को गॉर्ज कहा जाता है। ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में जब नदी प्रतिरोधी चट्टानों के ऊपर बहती है तो वह तीव्र वेग के कारण तली को काटकर अपनी घाटी को गहरा करती रहती है जबकि पाश्विक अपरदन का कार्य कम होता है। चट्टानों की कठोरता के कारण घाटी के किनारों के ऊपरी भाग ऋतु-अपक्षय के कारण कट-कट कर नीचे घाटी में गिरते रहते हैं, किन्तु निचले भाग अपक्षय के प्रभाव से मुक्त रहते हैं। इसलिए गॉर्ज ऊपर से अपेक्षाकृत चौड़े होते हैं। हिमालय में सिन्धु, सतलुज तथा ब्रह्मपुत्र दर्शनीय और भयावह महाखड्डों का निर्माण करती हैं।

3. कैनियन (Canyon) कैनियन गॉर्ज की अपेक्षा बड़ी, गहरी और संकरी होती है। यह घाटी अंग्रेज़ी के I (आई) अक्षर जैसी होती है जिसके दोनों किनारे एकदम तीक्ष्ण ढाल वाले होते हैं। कैनियन सामान्यतः शुष्क व अर्ध-शुष्क जलवायु वाले ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं क्योंकि ऐसे क्षेत्रों में कम वर्षा के कारण घाटी तो चौड़ी नहीं हो पाती, किन्तु बारहमासी नदी अपने तल को लम्बवत् काटकर गहरा अवश्य बनाती रहती है। अमेरिका में कोलोरेडो नदी द्वारा निर्मित ग्रैण्ड कैनियन (Grand Canyon) 483 कि०मी० लम्बा, 2088 मीटर गहरा तथा 6 से 16 कि०मी० चौड़ा है।

4. जलज गर्तिका (Pot Holes) नदी के मार्ग में पड़ने वाले ठोस चट्टानी तल पर लुढ़कते हुए शिलाखण्ड गड्ढे बना देते हैं। इन गड्ढों में नदी का जल जब भँवर के रूप में घूमता है तो गड्ढों में पड़े कंकड़-पत्थर जल के साथ तेज़ी से घूमते हुए छेदक (Drill) का काम करते हैं। नदी तल में बने ऐसे गर्मों को जलज गर्तिका कहते हैं। अधिक गहरी जलज गर्तिका को अवनमन कुण्ड (Plung Pool) कहा जाता है।
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5. जल-प्रपात (Waterfall)-जब नदी चट्टानी कगार के ऊपरी भाग से सीधे नीचे गिरती है तो उसे जल-प्रपात कहते हैं। नदी की घाटी में कहीं कोमल तो कहीं कठोर चट्टानें बिछी हुई होती हैं। नदी की अपरदन क्रिया से कोमल चट्टानें तो शीघ्र कट जाती हैं जबकि कठोर चट्टानें कम गति से घिसती हैं। अतः नदी द्वारा चट्टानों की भिन्न अपरदन दर ही सामान्य जल प्रपातों के निर्माण का मुख्य कारण है। भूकम्प, ज्वालामुखी तथा भू-संचरण के कारण भी जल-प्रपातों की रचना होती है।
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6. क्षिप्रिकाएँ (Rapids)-जब नदी के मार्ग में कठोर तथा कोमल चट्टानें अनुप्रस्थ (Transverse) दिशा में स्थित होती हैं तो असमान प्रतिरोधिता के कारण नदी का मार्ग ऊबड़-खाबड़ हो जाता है। परिणामस्वरूप ऊपर से बहता हुआ जल थोड़ी-थोड़ी दूरी पर ‘कूदता’ हुआ प्रतीत होता है, इसे क्षिप्रिका कहते हैं। क्षिप्रिकाओं के कोमल समूह को सोपानी जल-प्रपात (Cascade) कहते हैं। अफ्रीका में आसवान तथा खारतूम के बीच नील नदी कई क्षिप्रिकाएँ और सोपानी जल-प्रपात बनाती है।
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(ख) नदी घाटी के मध्यवर्ती भाग में निर्मित स्थलाकृतियाँ-
पर्वतीय क्षेत्र से नीचे उतरकर नदी जब मैदानी भाग में प्रवेश करती है तो उसमें जल की मात्रा बढ़ चुकी होती है। नदी घाटी का ढाल एकाएक कम होने से नदी का वेग भी कम हो जाता है। ऐसी दशा में नदी तल की अपेक्षा किनारों का अपरदन अधिक करने लगती है। अपरदन की अपेक्षा अधिक निक्षेपण नदी के मध्यवर्ती भाग में पाई जाने वाली प्रमुख विशेषता है। नदी के इस भाग में अनलिखित भू-आकृतियों की रचना होती है-
1. जलोढ़ पंख एवं जलोढ़ शंकु (Alluvial Fan and Alluvial Cone)-जब कोई पर्वतीय नदी मैदान में प्रवेश करती है तो ढाल के एकदम कम होते ही नदी अवसाद को बहा ले जाने में असमर्थ होने लगती है। परिणामस्वरूप नदी अपने नद-भार को पर्वतीय कन्दरा के बाहर एक अर्धवृत्ताकार रूप में फैला देती है जिसे जलोढ़ पंख कहते हैं। रॉकीज़ तथा इण्डीज़ पर्वतों से निकलने वाली
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लगभग सभी नदियों ने जलोढ़ पंखों की रचना की है। हिमालय की तलहटी में अनेक जलोढ़ पंखों ने मिलकर गंगा के मैदान के उत्तरी भाग में भाबर क्षेत्र का निर्माण किया है। कई बार अधिक नद-भार के जमा हो जाने के कारण जलोढ़ पंख काफी ऊँचे और तीव्र ढाल वाले हो जाते हैं, जिन्हें जलोढ़ शंकु कहा जाता है। जलोढ़ शंकुओं की रचना प्रायः अर्ध-शुष्क प्रदेशों में होती है। अमेरिका के सेन जुआन (San Juan) पर्वत की तलहटी में अनेक उन्नत जलोढ़ शंकु देखे जा सकते हैं।

2. नदी विसर्प (River Meanders)-प्रौढ़ावस्था में नदी सीधी न बहकर साँप की तरह बल खाती बहती है जिसे विसर्पण (Meandering) कहा जाता है। मन्द गति के कारण मैदानी भाग में नदी की परिवहन शक्ति इतनी क्षीण हो जाती है कि वह अपने मार्ग में आने वाली रुकावटों को अपरदन द्वारा दूर करने की अपेक्षा अपनी धारा का रुख मोड़ लेती है। नदी का अपना अवसाद ही उसके मार्ग की रुकावट बनने लगता है। यदि एक बार नदी के मार्ग में मोड़ आ जाए तो फिर यह प्रक्रिया रुक नहीं पाती।

इसका कारण यह है कि घुमाव में बहता हुआ जल अपने बाहरी या अवतल (Concave) किनारों पर अपरदन और घुमाव के अन्दर वाले या उत्तल (Convex) किनारों पर निक्षेपण अधिक करता है। इससे अवतल किनारों पर जल गहरा तथा धारा तेज़ और उत्तल किनारों पर जल कम गहरा तथा धारा मन्द होती है। परिणामस्वरूप अपरदित किनारा पीछे हटता जाता है और निक्षेप वाला किनारा घाटी तल पर आगे बढ़ता जाता है। इस क्रिया से नदी के घुमाव बढ़ते जाते हैं, जिन्हें नदी विसर्प कहा जाता है।

3. गोखुर झील (Oxbow Lake)-नदी के विसर्प ज्यों-ज्यों बड़े होते जाते हैं, त्यो-त्यों विसरों के स्कन्ध ढाल एक-दूसरे के निकट आने लगते हैं। नदी थोड़ी-सी दूरी तय करने के लिए कई गुना लम्बा मार्ग तय करती है। बाढ़ आने पर नदी अपनी संकीर्ण निक्षेपण ग्रीवा को काटकर सीधी हो लेती है। विसर्पाकार मोड़ अलग छूट जाता है। कटे हुए विसर्प के सिरे बालू, मिट्टी और गाद से भर जाते हैं जिन्हें गोखुर झील या छाड़न झील कहा जाता है। इस गोखुर झील झील की आकृति गाय के खुर जैसी होती है। इसे मृत झील विसों की ग्रीवा का तंग होना (Mort Lake) भी कहते हैं, क्योंकि समय के साथ वह अवसादों से भरकर सूख जाती है।
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(ग) नदी घाटी के निचले भाग में निर्मित स्थलाकृतियाँ-नगण्य ढाल और कम गति के कारण इस अन्तिम भाग में नदी की भार वहन करने की क्षमता अत्यन्त कम हो जाती है। इस भाग में नदी सर्वाधिक निक्षेपण करती है तथा अपरदन न के बराबर होता है। घाटी के निचले भाग में बनने वाली भू-आकृतियाँ निम्नलिखित हैं-
1. गुंफित नदी (Braided River) निचले भाग में नदी नद-भार को ढो पाने में असमर्थ होती है अतः वह अपने ही तल पर साथ बह रहे अवसाद का निक्षेपण करने लगती है। इससे नदी की धारा अवरुद्ध होने लगती है। परिणामस्वरूप नदी अनेक धाराओं में बँटकर बहने लगती है। ये धाराएँ बालू से बनी अवरोधिकाओं द्वारा एक-दूसरे से अलग हुई होती हैं। अनेक जलधाराओं से फंदे बनाती हुई ऐसी नदी को गुंफित नदी कहते हैं।
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2. प्राकृतिक तटबन्ध और बाढ़ का मैदान (Natural Levees and Flood Plains)-वर्षा ऋतु में बाढ़ आने पर नदी का जल उसके किनारों कसे बाहर निकलकर बहने लगता है। बाढ़ के समय नदी में जल की मात्रा और नद-भार ढोने की शक्ति दोनों ही बढ़ जाते हैं। बाढ़ उतरने पर नदी इतने अधिक जलोढ़ का परिवहन करने में असमर्थ हो जाती है और नद-भार का निक्षेप करना आरम्भ कर देती है। अवसाद की एक मोटी परत नदी के किनारों पर जमने लगती है क्योंकि तटों के पास घर्षण (Friction) के कारण जल की गति सबसे कम होती है। अनेक वर्षों तक इस क्रम के बार-बार दोहराए जाने पर नदी के तटों पर लम्बे ऊँचे टीले बने दिखाई देते हैं जिन्हें प्राकृतिक तटबन्ध कहा जाता है। प्रायः ये तटबन्ध नदी के जल-तल से एक या दो मीटर ऊँचे होते हैं, लेकिन कई बार इनकी ऊँचाई आस-पास के मकानों की छतों से भी ऊँची होती है। प्राकृतिक तटबन्धों को कई बार कृत्रिम रूप से ऊँचा और पक्का भी कर दिया जाता है।
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कई बार तटबन्धों के टूट जाने पर नदी का जल आस-पास के क्षेत्रों में फैल जाता है। बाढ़ की समाप्ति पर जल अपने साथ बहाकर लाए गए महीन नद-भार की एक परत वहाँ बिछा देता है, जिसे बाढ़ का मैदान कहते हैं। प्रतिवर्ष बाढ़ का जल इन मैदानों में नई उपजाऊ मिट्टी का निक्षेप कर देता है। गंगा, सिन्धु, ह्वांग्हो व मिसीसिपी इत्यादि नदियों ने ऐसे ही विशाल मैदानों की रचना की है।

3. डेल्टा (Delta) किसी समुद्र या झील में गिरने से पहले। नदी अपने आधार तल (Base Level) को प्राप्त कर चुकी होती है। इस समय उसकी शक्ति अत्यन्त क्षीण और वेग अत्यन्त मन्द होता है। नदी अपना बचा हुआ समस्त नद-भार मुहाने पर जमा कर देती है। इस अवसाद के अवरोध के कारण नदी एक मुख्य धारा के रूप में नहीं बह पाती, बल्कि छोटी-छोटी अनेक शाखाओं (Distributaries) में बँटकर बहने लगती है। ये शाखाएँ भी अपने-अपने मुहाने पर नद-भार का निक्षेप करने लगती हैं। इस प्रकार मुहाने के पास विशाल क्षेत्र में एक त्रिभुजाकार स्थलाकृति का निर्माण हो जाता है, जिसे डेल्टा कहते हैं। इस त्रिभुजाकार स्थलरूप को डेल्टा इसलिए कहते हैं क्योंकि नील नदी के डेल्टा की आकृति यूनानी भाषा के डेल्टा (A) अक्षर से मिलती है। विश्व में गंगा-ब्रह्मपुत्र का डेल्टा (1,25,000 वर्ग कि०मी०) सबसे बड़ा डेल्टा है। विश्व की सभी नदियाँ डेल्टा नहीं बनातीं।

प्रश्न 2.
डेविस का भौगोलिक चक्र क्या है? इसकी प्रमुख अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
अपरदन चक्र का अर्थ समझाते हुए इसे नियन्त्रित करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए तथा यह भी बताइए कि नदी घाटी के विकास के साथ अपरदन चक्र का क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
अपरदन चक्र का अर्थ (Meaning of Erosion Cycle)-अपरदन चक्र की संकल्पना को सबसे पहले व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करने का श्रेय अमेरिकी विद्वान् विलियम मॉरिस डेविस को जाता है। उन्होंने सन् 1889 में विचार प्रस्तुत किया कि किसी भी भूदृश्य (Landscape) का निर्माण और विकास इतिहास के एक लम्बे दौर में होता है, जिसके अन्तर्गत उस भूखण्ड को कई क्रमिक अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है। स्थलाकृतियों के इसी क्रमिक विकास को ही डेविस ने अपरदन चक्र या भौगोलिक चक्र कहा है। उनके अनुसार, “भौगोलिक चक्र समय की वह अवधि है जिसके अन्तर्गत एक उत्थित भूखण्ड अपरदन के प्रक्रम द्वारा प्रभावित होकर एक आकृतिविहीन समतल मैदान में बदल जाता है।”

अपरदन चक्र को नियन्त्रित करने वाले कारक (Controlling Factors of Erosion Cycle) भूदृश्य का विकास कुछ कारकों द्वारा निर्धारित होता है; जैसे-

  • स्थलरूप की संरचना (Structure) तथा चट्टानों के गुण व स्वभाव
  • उस स्थलमण्डल पर परिवर्तन लाने वाली प्रक्रियाएँ (Processes) तथा
  • अपरदन की अवस्था (Stage)। इसी आधार पर डेविस ने कहा था कि, “भूदृश्य संरचना, प्रक्रिया एवं अवस्था का परिणाम होता है।”

यद्यपि स्थलाकृतियों के विकास में नदी, हिमनदी, समुद्री लहरों और पवन व भूमिगत जल की भागीदारी होती है किन्तु बहते हुए जल का कार्य अपरदन के अन्य कारकों से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण एवं व्यापक होता है। इसलिए नदी के अपरदन-चक्र को डेविस ने सामान्य अपरदन-चक्र (Normal Cycle of Erosion) की संज्ञा दी है।

अपरदन-चक्र की विभिन्न अवस्थाएँ (Different Stages of Erosion Cycle)-अपरदन-चक्र को तीन अवस्थाओं में विभाजित किया जाता है जिनके निर्धारण में कोई समय-सीमा तय नहीं है।
1. युवावस्था (Youthful Stage)-ऐसी कल्पना की जाती है कि समुद्र तल से जैसे ही किसी समतलीय भूखण्ड का उत्थान होता है, उस पर ढाल के अनुरूप अनुवर्ती (Consequent steams) का उदय हो जाता है। इस अवस्था में नदियाँ क्षैतिज कटाव (Lateral Cutting) कम और लम्बवत् कटाव (Down Cutting) ज्यादा करती हैं, जिससे घाटी गहरी होती जाती है। इस अवस्था में नदी अपने आधार तल को प्राप्त करने की भरसक कोशिश करती है। सरिताएँ अपनी घाटी का विस्तार शीर्ष अपरदन द्वारा करती हैं।

शीर्ष अपरदन (Headward Erosion) द्वारा ही एक नदी दूसरी नदी के जल का अपहरण करती है, जिसे सरिता-हरण (River Capture or River Piracy) कहा जाता है। सहायक नदियों का विकास होने पर वृक्षाकार जलप्रवाह प्रणाली (Dendritic Drainage Pattern) का विकास हो जाता है। युवावस्था के अन्तिम चरण में नदियों के मध्य के जल-विभाजक संकुचित होने लगते हैं और अनेक उप-खण्डों में विभाजित हो जाते हैं। इस अवस्था की महत्त्वपूर्ण आकृतियाँ गॉर्ज, कैनियन, V-आकार घाटी, जल-प्रपात व क्षिप्रिका इत्यादि हैं।

2. प्रौढ़ावस्था (Mature Stage)-प्रौढ़ावस्था में नदी का मुख्य कार्य पार्श्ववर्ती अपरदन (Lateral Erosion) हो जाता है जिससे नदी अपनी घाटी को निरन्तर चौड़ा करती रहती है। इस अवस्था में नदी की अपरदन तथा निक्षेपण क्रियाओं में सन्तुलन स्थापित हो जाता है। नदियों के बीच के जल-विभाजक और भी संकीर्ण होने लगते हैं। इस अवस्था से जुड़ी महत्त्वपूर्ण स्थलाकृतियाँ नदी विसर्प, गोखुर झील, प्राकृतिक तटबन्ध, बाढ़ का मैदान व गुंफित नदी इत्यादि हैं।

3. वृद्धावस्था (Old Stage)-प्रौढ़ावस्था में नदियों का लम्बवत् अपरदन एकदम बन्द हो जाता है तथा निक्षेप ही नदी का मुख्य कार्य रह जाता है। सहायक नदियों की संख्या कम या समाप्त हो जाती है। नदी की घाटी सर्वाधिक चौड़ी होती है। क्षैतिज अपरदन और अपक्षय मिलकर स्थलखण्ड को निरन्तर नीचा करने में जुटे रहते हैं। सम्पूर्ण नदी आधार तल को प्राप्त हो जाती है व केवल कहीं-कहीं प्रतिरोधी चट्टानों के कुछ भाग उठे हुए दिखाई पड़ते हैं। सारा प्रदेश एक समप्रायः मैदान (Peneplain) के रूप में दिखाई पड़ता है। डेल्टा अपरदन-चक्र की अन्तिम अवस्था में बनने वाली सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण आकृति है।

अपरदन-चक्र एक सिद्धान्त तो है मगर सच्चाई नहीं अपरदन-चक्र कभी भी अपनी अन्तिम परिणति समप्रायः मैदान तक नहीं पहुँच पाता, क्योंकि इस चक्र के पूरा होने में बहुत लम्बा समय चाहिए। इतने लम्बे समय तक पृथ्वी कभी शान्त नहीं रह पाती। इस दौरान ज्वालामुखी उद्भेदन, भू-संचलन व जलवायु में परिवर्तन के कारण अपरदन-चक्र के मार्ग में अनेक बाधाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। बाधित होने पर अपरदन-चक्र नए सिरे से आरम्भ होता है। प्रौढ़ावस्था वाले अपरदन-चक्र का इस प्रकार पुनः युवावस्था को प्राप्त करना पुनर्योवन (Rejuvination) कहलाता है।

प्रश्न 3.
हिमानी निर्मित स्थलाकृतियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
हिमानी के अपरदन, परिवहन व निक्षेपण कार्यों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
हिमनदी अपरदन, परिवहन, निक्षेपण व जलोढ़ निक्षेप से निर्मित स्थलाकृतियों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
हिमनदी अपरदन व निक्षेपण कार्यों से निर्मित स्थलाकृतियों का वर्णन करें।
अथवा
हिमानी के अपरदन व निक्षेपित स्थलाकृतियों का वर्णन करें।
उत्तर:
अनाच्छादन के अन्य साधनों की भाँति हिमनदी भी शैलों का अपरदन तथा अपरदित सामग्री का परिवहन और निक्षेपण करती है। इस प्रक्रिया में अनेक प्रकार की स्थलाकृतियों का जन्म होता है।
(क) हिमनदी के अपरदन कार्यों से निर्मित स्थलाकृतियाँ (Landforms Produced by Erosional Work of Glacier)जिस आधारी चट्टान पर हिम की विशाल राशि पड़ी होती है, वहाँ हिम के भारी दबाव के कारण हिम पिघलती है तथा बर्फ और तली के बीच जल की पतली परत उत्पन्न हो जाती है। जल की यह परत (Film of Water) हिम को खिसकाने में ग्रीस का काम करती है।

बहती हिमनदी की खालिस बर्फ प्रभावी ढंग से अपरदन नहीं कर पाती। वे चट्टानी टुकड़े जो हिमनदी में ऊपर से नीचे भरे रहते हैं, हिम द्वारा अपरदन कार्य में मदद करते हैं। इनमें अपोढ़ (Drift), गोलाश्म (Boulder), गोलाश्म मृत्तिका (Boulder Clay) इत्यादि होते हैं जिन्हें संयुक्त रूप से हिमोढ़ सामग्री (Morainic Material) कहा जाता है। हिमोढ़ की सहायता से हिमनदी निम्नलिखित दो प्रकार से अपरदन कार्य करती है

1. अपघर्षण (Abrasion) इस प्रक्रिया में हिमनद अपने मलबे की सहायता से यांत्रिक विधि द्वारा अपनी घाटी और किनारों को रेगमार की तरह घिसता, खरोंचता और चिकनाता हुआ आगे बढ़ता है। इससे घाटी की तली में बारीक धारियों के रूप में खरोंच के निशान भी पड़ जाते हैं।

2. उत्पाटन (Plucking) इस क्रिया में हिमनदी अपने मार्ग में पड़ने वाली अनावृत्त शैलों के अदृढ़खण्डों को अपनी ताकत से उखाड़कर अलग कर देती है।

हिमनदी के अपरदन से बने भू-आकार (Features of Glacial Erosion)-हिमनदी के अपरदन से बने भू-आकार नीचे दिए गए हैं-
1. हिम गहर या सर्क (Cirque)-जब ऊँचे पर्वतीय भागों से फिसलकर हिम नीचे आती है, तो वह ढाल पर गड्ढे बना देती है। इसमें तुषार अपक्षय (FrostAction) का भी हाथ होता है। समय के साथ ये गड्ढे हिमखोदाव (Nivation) की क्रिया से चौड़े और गहरे होते रहते हैं। पर्वतीय ढालों पर बने ऐसे विशाल गर्त हिम गह्वर कहलाते हैं। दूर से यह भू-आकृति अर्ध-गोलीय रंगमंच (Amphi Theatre) अथवा गहरी सीट वाली आराम कुर्सी जैसी प्रतीत होती है। सर्क का तल सपाट होता है। यह एक ओर से खुला तथा तीन ओर से अति तीव्र चट्टानी ढालों से घिरा होता है। इन्हीं तीव्र ढालों से ही बर्फ गिर-गिरकर इस कटोरे नुमा आकृति में जमा होती रहती है। फ्रांस में पिरेनीज़ पर्वत पर बना गेवर्नी का सर्क विश्व का सबसे प्रसिद्ध सर्क है जिसके नाम पर ऐसी सभी स्थलाकृतियों को सर्क कहा जाता है।
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2. टार्न (Tarn) सर्क में हिम के पूर्णतः पिघल जाने के बाद जल एकत्रित होकर एक झील का निर्माण करता है, जिसे टार्न या गिरिताल कहा जाता है।

3. शृंग (Horn) जब किसी पर्वत की विभिन्न ढालों पर समान ऊँचाई पर अनेक सर्क बन जाते हैं, तो वे अपने शीर्ष की दीवार को तेजी से काटने लगते हैं। इसके फलस्वरूप सर्कों के बीच में पिरामिड के आकार की एक नुकीली चोटी बन जाती है, जिसे शृंग कहते हैं। स्विट्ज़रलैण्ड में आलप्स पर्वत श्रेणी का मैटरहॉर्न (Matterhorn) शृंग का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। हिमालय
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4. कॉल (Col)-जब किसी पर्वत की विपरीत ढालों पर एक ही ऊँचाई पर स्थित दो विशाल सर्क अभिशीर्ष अपरदन (Headward Erosion) करते हैं तो उनके पिछले भाग आपस में मिल जाते हैं। इससे पर्वत के आर-पार एक दर्रा बन जाता है, जिसे कॉल कहते हैं। इन दरों के प्रयोग से पर्वतीय मार्गों की दूरियाँ कम हो जाती हैं। कनाडियन पैसेफिक रेलमार्ग ऐसे ही एक कॉल से गुज़रता है।

5. कंघीनुमा कटक (Comb Ridge)-जब किसी पर्वत श्रेणी पर पास-पास अनेक सर्क बन जाते हैं और तीव्र अपरदन के फलस्वरूप पहाड़ी कटक पर अनेक शृंगों का निर्माण हो जाता है तो उसकी आकृति कंघी के दाँतों के समान नुकीली किन्तु असमान हो जाती है। इन्हें अरेत (Arete) भी कहते हैं।
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6. U-आकार की घाटी (U-Shaped Valley)-हिमनदियों में | अपने लिए स्वयं घाटी बनाने की शक्ति नहीं होती, बल्कि वे हिमावरण से पहले नदियों द्वारा निर्मित घाटियों में होकर बहती हैं। नदी घाटी में बहती हिम घाटी की तली व पाश्र्थों का अपरदन करके उसे अधिक गहरा और चौड़ा कर देती है। इससे नदी की घाटी की मूल V-आकृति के स्थान पर Uआकार की घाटी विकसित होती है।
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7. लटकती घाटी (Hanging Valley)-नदियों की तरह हिमनदियों की भी सहायक हिमनदियाँ होती हैं। पर्वतीय ढालों पर बहती हुई अधिकांश हिम की मुख्य घाटी में बहने की प्रवृत्ति होती है। बर्फ की मोटाई और उसके द्वारा तली पर डाले गए दबाव में अन्तर के कारण सहायक हिमनदी अपनी घाटी को उस गहराई और चौड़ाई में नहीं काट पाती, जिस गहराई तक मुख्य हिमनदी काट पाती है। इससे सहायक और मुख्य हिमनदी के संगम-स्थल पर तीव्र ढाल विकसित हो जाता है। जब बर्फ पिघल जाती है तो सहायक हिमनदी का जल मुख्य घाटी में जल-प्रपात अथवा क्षिप्रिका बनाते हुए गिरने लगता है। सहायक हिमनदी का मुख और घाटी मुख्य हिमनदी की घाटी से काफ़ी ऊपर अधर में लटकते दिखाई पड़ते हैं। लटकती घाटियों के सर्वोत्तम उदाहरण कैलिफोर्निया के सियरा नेवादा पर्वत की योसेमाइट घाटी (Yosemite Valley) में देखे जा सकते हैं।

8. भेड़ पीठ शैल अथवा रॉश मूटोने (Sheep Rock or Roche Mountonnee) हिमनदित क्षेत्र में पाया जाने वाला ऐसा भू-आकार जिसके एक ओर ढाल मन्द व चिकना तथा दूसरी ओर ढाल तीव्र व ऊबड़-खाबड़ हो, भेड़ शिला या रॉश मूटोने कहलाता है। दूर से ऐसी आकृति बैठी हुई भेड़ की पीठ जैसी दिखाई पड़ती है।
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हिमनदी के मार्ग में जब कभी ऊबड़-खाबड़ घाटी कड़ी, ऊँची चट्टान का अवरोध पैदा करती है, तो हिमनदी इन अवरोधों खरोंचें के ऊपर से बहना शुरू कर देती है। जिस ढाल पर हिमानी चढ़ती है, उसे वह अपने मलबे के घर्षण (Abrasion) द्वारा घिस-घिसकर भेड़ शिला मन्द और चिकना कर देती है किन्तु इन अवरोधों का प्रवाह विमुख ढाल जिस पर हिमानी उतरती है, उत्पाटन (Plucking) क्रिया द्वारा टूटा-फूटा और ऊबड़-खाबड़ बना रहता है। इसका कारण यह है कि विमुख ढाल पर हिमनदी का घाटी की तली से पूर्ण सम्पर्क नहीं रह पाता।

9. शृंग एवं पूँछ स्थलाकृति (Creg and Tail Topography)-कई बार हिमनदी के मार्ग में बेसाल्ट या ज्वालामुखी प्लग (Volcanic Plug) जैसी दृढ़ और कठोर चट्टान आ जाती है, इससे हिमनदी के प्रवाह की दिशा की ओर कठोर चट्टान पर फैली मिट्टी का अपरदन हो जाता है। प्लग की तीव्र ढाल पर चढ़ने के बाद हिमनदी जब दूसरी ओर नीचे उतरती है, तो दूसरी ओर की मिट्टी का ग्रीवा (Crag) अपेक्षाकृत कम अपरदन होता है क्योंकि यहाँ पर शैल को हिमनद का | हिमनदी की दिशा पंछ (Tail) संरक्षण प्राप्त होता है। इस कारण दूसरी ओर चट्टान का ढाल मन्द व | हल्का हो जाता है। ऐसा लगता है जैसे कठोर चट्टानी प्लग को पीछे से असंगठित अपोढ़ की एक लम्बी पूँछ लग गई हो।
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इंग्लैण्ड की एडिनबर्ग (Edinburgh) की केसिल रॉक (Castle Rock) शृंग एवं पूँछ स्थलाकृति का उत्कृष्ट उदाहरण है।

10. फियॉर्ड (Fiord) ऊँचे अक्षांशों में हिमनदियाँ न केवल समुद्र तटों तक पहुँच जाती हैं, बल्कि समुद्र में पहुँचकर अपनी घाटी को समुद्र तल से भी गहरा काट देती हैं। समुद्र में घुसी इन लम्बी, चौड़ी और गहरी U-आकार घाटियों को फियॉर्ड कहा जाता है। कहीं-कहीं फियॉर्ड 1800 मीटर तक गहरी पाई जाती है। नार्वे, ग्रीनलैण्ड, अलास्का व न्यूज़ीलैण्ड के समुद्री तटों पर अनेक फियॉर्ड पाए जाते हैं।

11. हिमज झीलें (Glaciated Lakes)-ठण्डे प्रदेशों में हिमनदियों की विस्तृत अपरदन क्रिया के फलस्वरूप चट्टानी धरातल पर हाथ की उंगलियों के समान पतली व लम्बी झीलों की एक श्रृंखला-सी बन जाती है। इन्हें हिमज झीलें कहते हैं। उत्तरी अमेरिका की महान् झीलों (Great Lakes) का निर्माण भी हिमानियों के अपरदन व अपरदित सामग्री से जल के अवरुद्ध होने से हुआ है।

(ख) हिमनदी का परिवहन कार्य (Glacial Transportation)-हिमनदियाँ शैल मलबे के एक ऐसे बेमेल मिश्रण का परिवहन करती हैं जिसमें सूक्ष्मता और स्थूलता के सभी क्रमों के पदार्थ शामिल होते हैं। प्रायः गतिहीन-सी लगने वाली ये हिमनदियाँ 15 मीटर व्यास तथा सैकड़ों टन भारी शिलाखण्डों को अपने मूल स्थान से कई सौ किलोमीटर दूर ढकेलकर ले जाती हैं। शैल मलबे का कुछ अंश हिम की ऊपरी परतों में, कुछ अंश निचली परतों में और कुछ अंश पार्यों पर हिमीभूत होकर हिमनदी के साथ-साथ खिसकता है। भारी शिलाखण्डों को हिमनदी अपने अगले भाग द्वारा ठेल-ठेल कर ले जाती है।

(ग) हिमनदी के निक्षेपण कार्यों से निर्मित स्थलाकृतियाँ (Landforms Produced by Glacial Deposition)-हिमनदियों के निक्षेपण कार्य से बनने वाली प्रमुख स्थलाकृतियाँ नीचे दी गई हैं
1. हिमोढ़ (Moraines)-जब हिमनदी पिघलती है, तो हिम की विभिन्न परतों में जकड़कर साथ-साथ चल रहे शैल मलबे का घाटी में यथा-स्थान निक्षेपण होने लगता है। प्रत्यक्ष रूप से बिछाए मध्यवर्ती हिमोढ़ गए रेत के महीन कणों से लेकर बड़े-बड़े शिलाखण्डों के अस्तरित (Unstratified) मिश्रण को टिल (Till) कहा जाता है। टिल से निर्मित स्थलाकृतियों को हिमोढ़ कहा जाता है। हिमोढ़ निम्नलिखित पाश्विक हिमोढ़ चार प्रकार के होते हैं
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(1) पाश्विक हिमोढ़ (Lateral Moraines)-हिमानी घाटी के किनारों पर लम्बी-लम्बी कटकों के रूप में निक्षेपित हुआ हिमोढ़ों के प्रकार शैल-मलबा पाश्विक हिमोढ़ कहलाता है। इन हिमोढ़ों की सामान्य ऊँचाई 100 फुट
से अधिक होती है।

(2) मध्यवर्ती हिमोढ़ (Medial Moraines)-दो हिमनदियों के मिलने पर उनके पाश्विक हिमोढ़ भी मिल जाते हैं। हिमनदी के पिघलने पर घाटी के बीचों-बीच शैल सामग्री का एक कटक अथवा टीलों के रूप में निक्षेपण हो जाता है। इसे मध्यवर्ती हिमोढ़ कहते हैं।

(3) अन्तिम हिमोढ़ (Terminal Moraines)-अन्तिम हिमोढ़ टिल से बनी हुई एक ऐसी कटक होती है जो हिमनदी के प्रवाह (Advance) की अन्तिम सीमा तय करती है। अन्तिम पड़ाव पर हिमनदी के पिघलने या पीछे हटने पर हर बार एक नया हिमोढ़ बनता है जो पहले से बने हिमोढ़ से पीछे की ओर होता है। घाटी हिमनदियों के अन्तिम हिमोढ़ प्रायः अर्ध-चन्द्राकार श्रेणियों के रूप में मिलते हैं।

(4) तलस्थ अथवा भूमि हिमोढ़ (Grained Moraines)-हिमनदी के तेज़ी से पीछे हटने पर उसके मलबे का घाटी तल पर ऊबड़-खाबड़ ढंग से निक्षेपण हो जाता है। इसे तलस्थ हिमोढ़ कहते हैं। तलस्थ हिमोढ़ के यत्र-तत्र फैले टीलों के बीच छोटे-छोटे अवनमन व गड्ढे (Knolls and Depressions) बन जाते हैं जो बाद में झीलों और दलदलों में बदल जाते हैं।

2. हिमनदोढ़ टीले अथवा ड्रमलिन (Drumlin) हिमनदी की घाटी में हिम के प्रवाह की दिशा में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर उल्टी नौका जैसी आकृति के महीन मृत्तिका (Till) से बने अनेक टिब्बे पाए जाते हैं, जिन्हें ड्रमलिन कहा जाता है। ये 30 मीटर तक ऊँचे, और एक किलोमीटर तक लम्बे होते हैं। इन टिब्बों के विस्तृत क्षेत्र | को दूर से देखने पर ऐसा लगता है जैसे एक विशाल टोकरी में आधे कटे अण्डे उल्टे रखे हुए हों। इसलिए इसे अण्डों की टोकरी जैसी स्थलाकृति (Basket of Eggs Topography) भी कहा जाता है। ड्रमलिन हिमनदों के पीछे हटने और फिर आगे बढ़ने की पुनरावृत्ति से बनते हैं। ड्रमलिन हिमनद की निक्षेप क्रिया का परिणाम हैं। ये सैकड़ों की तादाद में इकट्ठे पाए जाते हैं।
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(घ) हिमानी-जलोढ़ निक्षेप से निर्मित स्थलाकृतियाँ (Landform Produced by Glacio-Fluvial Deposits)-हिमानी-जलोढ़ निक्षेप से बनने वाली स्थलाकृतियाँ नीचे दी गई हैं
1. केटिल या केतली (Kettles)-हिम विनाश के दौरान पीछे हटती हिमानी से हिम का एक विशाल खण्ड अलग-थलग (Isolated) होकर घाटी में कहीं आंशिक या पूर्ण रूप से धंसा रह जाता है। इस हिमखण्ड के पूरी तरह पिघल जाने के बाद हिमोढ़ में एक गर्त बचा रह जाता है। इसे केटिल या केतली कहते हैं।

2. एस्कर या हिमनदीय कटक (Esker)-घाटी हिमनदों के क्षेत्र में रेत-बजरी से बने लम्बे, कम ऊँचे, टेढ़े-मेढ़े या कुण्डलाकार कुछ कटक मिलते हैं, जिन्हें एस्कर कहते हैं। अन्वेषकों का मत है कि एस्कर का निर्माण स्थिर हिमनद के नीचे बहने वाली जलधाराओं की निक्षेप क्रिया से होता है, इन्हें अधो-हिमानी सरिताएँ (Sub-glacial Streams) कहा जाता है। ये सरिताएँ घाटी की तली में लम्बी-खोखली सुरंगें बना देती हैं। जब हिमनद के मार्ग में कोई टीला आ जाता है, तो इन अधो-हिमानी सरिताओं को निकास (Exit) नहीं मिल पाता। इससे उनके द्वारा अपरदित मलबे का उन्हीं सुरंगों में निक्षेप हो जाता है। यद्यपि एस्कर 160 किलोमीटर लम्बे भी पाए गए हैं, किन्तु इनकी चौड़ाई कुछ मीटर ही होती है।

3. केम (Kame) हिमानी के अग्रभाग से निकलने वाली जलधाराएँ बजरी और बालू को ऊँचे-नीचे टीलों के रूप में जमा कर देती हैं। महीन सामग्री से बने इन टीलों को केम कहा जाता है। कई बार घाटी और उसके पार्यों के बीच रेत-बजरी की चौड़ी पट्टी बन जाती है, जिसे केम चबूतरा (Kame Terrace) कहा जाता है।
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4. हिम प्रवाह मैदान (Outwash Plain)-हिमनदी के पिघलने से उत्पन्न जल अपने शैल मलबे के साथ अन्तिम हिमोढ़ के पीछे इकट्ठा होना शुरू हो जाता है। जब जल की मात्रा बढ़ जाती है तो वह अन्तिम हिमोढ़ के ऊपर से होकर बहने लगता है। इससे अन्तिम हिमोढ़ का भी थोड़ा-बहुत अपरदन हो जाता है। यह सामग्री अन्तिम हिमोढ़ से आगे एक विस्तृत क्षेत्र में अपने भारीपन के क्रम में बिछ जाती है। इसे हिम प्रवाह मैदान कहा जाता है।

प्रश्न 4.
समुद्री तरंगों के अपरदन व निक्षेपण कार्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा
समुद्री तरंगों के अपरदन द्वारा निर्मित स्थलाकृतियों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
समुद्री तरंगों के अपरदन व निक्षेपण कार्यों से निर्मित स्थलाकृतियों की विवेचना कीजिए।
अथवा
सागरीय तरंगों द्वारा सागरीय तट पर लाए गए परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
अथवा
अनाच्छादन के साधन के रूप में सागरीय तरंगों के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तटीय भागों में समुद्र अनाच्छादन का एक अत्यन्त शक्तिशाली कारक है। भारत के पश्चिमी तट को देखकर विश्वास ही नहीं होता कि समुद्री लहरों की चट्टानों पर मारक शक्ति इतनी प्रचण्ड भी हो सकती है। वायुजनित लहरों (Waves), धाराओं (Currents) और ज्वार-भाटा (Tides) के माध्यम से समुद्री जल अपने तटों को निरन्तर काटता और बनाता रहता है। समुद्री तटों के इस कटाव और जमाव के परिणामस्वरूप अनेक प्रकार की स्थलाकृतियों का जन्म होता है।
(क) समुद्री तरंगों के अपरदन कार्यों से निर्मित स्थलाकृतियाँ (Landforms Produced by Erosional Work of Marine Waves) समुद्री अपरदन का सामान्य रूप फेनिल तरंगों (Surf) द्वारा घटित होता है। तूफानी तरंगें (Stormy Waves) तटों का सबसे भीषण अपरदन करती हैं, यद्यपि ये हमेशा उत्पन्न नहीं होतीं। तूफानी तरंगें थोड़े समय में ही तटों का इतना अधिक अपरदन कर देती हैं जितना सामान्य तरंगें लम्बे समय तक भी नहीं कर पातीं। धाराएँ और ज्वार-भाटा तट-रेखा पर बहुत थोड़ी मात्रा में प्रत्यक्ष प्रहार कर पाते हैं। धाराएँ अपरदित शैल मलबे का परिवहन करके उसे तटों के साथ निक्षेपित कर देती हैं जबकि ज्वार-भाटा समुद्र के निम्न व उच्च जल-स्तरों के बीच अपरदन की सीमा रेखा तय करता है।

समुद्री अपरदन के कारक (Factors of Marine Erosion)-समुद्र का अपरदन कार्य अनेक कारकों पर निर्भर करता है-

  • समुद्री तरंगों के आकार और उनकी शक्ति
  • तट की ऊँचाई
  • तट का ढाल
  • तटीय चट्टानों की बनावट और संगठन
  • समुद्री तल की गहराई
  • तरंग के टूटने का बिन्दु इत्यादि।

समुद्री अपरदन की प्रक्रिया (Process of Marine Erosion)-जब समुद्री तरंगें तटों पर जाकर टूटती हैं, तो वे वहाँ स्थित चट्टानों पर तेज़ प्रहार करती हैं। ऐसा अनुमान है कि फेनिल तरंगें तट के प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र पर 3,000 से 30,000 किलोग्राम जितना दबाव डाल सकती हैं। तूफानी तरंगों का दबाव और अधिक होता है। जब समुद्री तरंगें तटों से टकराती हैं तो चट्टानों के छिद्रों और दरारों में छिपी वायु भिंच (Compress) जाती है। तरंग के वापस लौटते ही यह दबी हुई वायु झटके से बाहर निकलती है। हवा के इस आकस्मिक फैलाव का विस्फोटक प्रभाव पड़ता है और चट्टानी कण ढीले पड़ने लगते हैं। इस क्रिया की लम्बी अवधि तक पुनरावृत्ति तटीय चट्टानों को तोड़ देती है। यदि तरंगें बजरी और बालू रूपी यन्त्रों से लैस हों तो सागरीय अपरदन और तेज हो जाता है। समुद्री तरंगें अपरदन क्रिया द्रव-प्रेरित बल, अपघर्षण, विलयन तथा सन्निघर्षण द्वारा करती हैं।

समुद्री तरंगों के अपरदन द्वारा निर्मित स्थलाकृतियाँ (Coastal Features of Marine Erosion)-समुद्री तरंगों की अपरदन क्रिया द्वारा निम्नलिखित भू-आकारों का निर्माण होता है-
1. समुद्री भृगु (Sea Cliff) एकदम खड़े समुद्री तट को भृगु कहा जाता है। जिन तटों पर तीव्र ढाल वाली चट्टानें तट से समुद्र के नीचे चली जाती हैं, वहाँ शुरू में फेनिल तरंगें समुद्र के जल-स्तर पर अपरदन के द्वारा एक खाँच (Notch) का निर्माण करती हैं। यह खाँच अपरदन के द्वारा अन्दर-ही-अन्दर बढ़ती जाती है और आधार को तब तक खोखला करती रहती है, जब तक चट्टान का खाँचे के ऊपर लटकता हुआ भाग समुद्र में गिर नहीं जाता। इस प्रकार बची हुई चट्टान का दीवार की तरह खड़ा सीधा भाग भृगु कहलाता है। समुद्री तरंगों के लगातार प्रहार से भृगु स्थल की ओर पीछे हटते रहते हैं। भारत के पश्चिमी तट पर अरब सागर की ओर मुँह किए खड़े अनेक विशालकाय भृगु देखने को मिलते हैं।
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2. तरंग-घर्षित वेदी (Wave-cut Platform) भृगु के बार-बार पीछे हटने से उत्पन्न शैल मलबे को ज्वारीय तरंगें भृगु के सामने जमा करती रहती हैं। इससे जल के अन्दर एक अपेक्षाकृत समतल मैदान का निर्माण हो जाता है, जिसे तरंग-घर्षित वेदी कहते हैं।।
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3. समुद्री गुफ़ाएँ (Sea Caves)-जिन तटीय चट्टानों में जोड़, दरारें और कोमल चट्टानों के संस्तर मौजूद रहते हैं, वहाँ तरंगों द्वारा विभेदी अपरदन (Differential Erosion) के कारण समुद्री गुफ़ाओं का निर्माण होता है।

4. समुद्री मेहराब या प्राकृतिक पुल (Sea Arch or Natural Bridge)-तट से समुद्र की ओर काफी आगे तक बढ़ी हुई चट्टान पर जब दो विपरीत दिशाओं से गुफ़ाएँ बनने लगती हैं तो एक समय पर ये गुफ़ाएँ पीछे से आपस में मिल जाती हैं। इससे चट्टान के आर-पार एक विशाल छिद्र बनता है, जिसे समुद्री मेहराब या प्राकृतिक पुल कहा जाता है।
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5. स्टैक या स्तम्भ (Stack or Pillar) जब समुद्री मेहराब की छत गिर पड़ती है, तो चट्टान का अगला भाग समुद्र में एक स्तम्भ के रूप में खड़ा दिखाई पड़ता है। इसे स्टैक कहते हैं।

6. वात छिद्र (Blow Holes)-तरंगों द्वारा गुफ़ाओं पर प्रहार करने से उनका मुँह जल द्वारा बन्द हो जाता है। इन द्वारों के बन्द होने से कन्दराओं के अन्दर भरी हुई वायु बाहर निकलने के लिए कन्दराओं की छतों पर छिद्र कर देती है। इस तरह से बने छिद्र को वात छिद्र या प्राकृतिक चिमनी या ग्लाउप कहा जाता है। इन्हें उगलने वाले छिद्र भी कहा जाता है। लहरों द्वारा धकेली हुई हवा इस छिद्र से फुहार को बाहर फेंकती हुई सीटी की-सी आवाज़ के साथ बाहर निकलती है।
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(ख) समुद्री तरंगों के निक्षेपण कार्यों से निर्मित स्थलाकृतियाँ (Landforms Produced by Marine Deposition) समुद्री तरंगों की निक्षेपण क्रिया द्वारा निम्नलिखित भू-आकारों का निर्माण होता है
1. पुलिन (Beach)-निम्न ज्वार और तट रेखा के बीच बालू, बजरी तथा गोलाश्म के अस्थायी निक्षेप को पुलिन कहा जाता है। कमज़ोर समुद्री तरंगें तट पर निक्षेपण करती हैं जिससे पुलिन का आकार बढ़ने लगता है लेकिन तूफ़ानी तरंगें पुलिन का अपरदन करके उसे नष्ट कर देती हैं।

2. भू-जिह्वा (Spit)-तट के सहारे मलबे का निक्षेप एक ऐसी कटक के रूप में होता है जिसका एक सिरा तट से जुड़ा होता है व दूसरा सिरा रोधिका के रूप में समुद्र की ओर निकला रहता है।
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3. लैगून (Lagoon) कई बार एक बालू-भित्ति (Sand bar) समुद्र के एक छोटे-से भाग को मुख्य समुद्र से अलग कर देती है। ऐसी आंशिक रूप से रोधिका द्वारा घिरी हुई खारे पानी की झील को लैगून कहा जाता है। लैगून का सम्बन्ध एक संकीर्ण मार्ग द्वारा समुद्र से बना रहता है। भारत के पूर्व में ओडिशा तट पर चिल्का झील तथा तमिलनाडु तट पर पुलिकट झील तथा पश्चिम में केरल तट पर वेंबानद झील लैगून झीलों के ही उदाहरण हैं। जर्मनी भाषा में खाड़ी के आर-पार भू-जिह्वा के विकास से बनी उथली तटीय लैगूनों को हैफ़ कहा जाता है।

4. रोधिका (Bar)-जब समुद्री तरंगें अवसादों को तट के समानान्तर कुछ दूरी पर समुद्री तली पर निक्षेप कर देती हैं, तो इस प्रकार बने पतले व लम्बे बाँधों को रोधिका कहते हैं। जब ये रोधिकाएँ जल से ऊपर दिखने लगती हैं, तो इन्हें समुद्री रोधिका कहा जाता है। रोधिका के दोनों छोरों का स्थल भाग से जुड़ा होना जरूरी नहीं है।

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प्रश्न 5.
भौम जल क्या है? इसके स्थल-स्वरूपों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भौम जल-जहाँ चट्टानें पारगम्य, पतली परतों, अत्याधिक संधियों या दरारों वाली होती हैं तो वहाँ धरातलीय जल का कुछ भाग रिसकर और टपककर भूमिगत हो जाता है, इसे भौम जल कहते हैं। यह अपरदनात्मक और निक्षेपणात्मक दोनों प्रकार के स्थल-रूप बनाता है।

भौम जल के स्थल-स्वरूप भौम जल के स्थल-स्वरूप इस प्रकार हैं-

  • अपरदनात्मक स्थल-स्वरूप
  • निक्षेपणात्मक स्थल-स्वरूप

I. अपरदनात्मक भौम जल के प्रमुख अपरदनात्मक स्थल-स्वरूप निम्नलिखित हैं-
1. विलय रंध्र-ये चूना-पत्थर या डोलोमाइट चट्टानों के तल पर जल की घुलन-क्रिया द्वारा बने छोटे व मध्यम आकार के लगभग गोल व उथले गर्त होते हैं जिन्हें विलय रंध्र कहते हैं।

2. घोल रंध्र-डोलोमाइट, जिप्सम और चूने की चट्टानों में खड़ी संधियाँ होती हैं। इनमें CO2 से युक्त जल अपनी घुलन- शक्ति द्वारा अनेक छोटे-छोटे छिद्र बना देता है जिन्हें घोल रंध्र कहते हैं।

3. डोलाइन घोल व विलय रंध्रों के आपस में मिल जाने से छिद्र बड़े बन जाते हैं, इन्हें डोलाइन कहा जाता है।
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II. निक्षेपणात्मक भौम जल के प्रमुख निक्षेपणात्मक स्थल-स्वरूप निम्नलिखित हैं
1. स्टैलेक्टाइट-चूने के प्रदेशों में भूमिगत कंदराओं में जल छत से बूंद-बूंद टपकता है। कई बार बूंदें टपकने से पहले ही वाष्पीकरण द्वारा सूख जाती हैं। इस प्रकार चूने के अंश पृथ्वी पर चिपके रह जाते हैं। लंबे समय तक इस क्रिया की पुनरावृत्ति होने पर चूने के निक्षेप से बना एक स्तम्भ छत से लटका हुआ दिखाई देने लगता है। यह छत की ओर मोटा व नीचे की ओर पतला व नुकीला होता है, जिसे स्टैलेक्टाइट कहते हैं।
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2. स्टैलेग्माइट-कंदराओं की तली पर छत से गिरने वाली चूना-युक्त जल की बूंदों का भी वाष्पीकरण होता है। इससे चूने का कंदरा की तली पर जमाव होने लगता है। समय बीतने के साथ तल पर मोटे बेलनाकार स्तम्भ ऊपर की ओर बढ़ने लगते हैं, इन्हें स्टैलेग्माइट कहते हैं।

प्रश्न 6.
उष्ण मरुस्थली प्रदेशों में पवन द्वारा निर्मित स्थलाकृतियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
पवन किस प्रकार अपघर्षण तथा अपवहन कार्य करती है? इन कार्यों के परिणामों का अलग-अलग उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नदी तथा हिमानी की तरह पवन भी अपरदन एवं निक्षेपण का कार्य करके विभिन्न प्रकार के भू-दृश्यों का निर्माण करती है। पवन का कार्य मरुस्थली तथा अर्द्ध-मरुस्थली क्षेत्रों में सक्रिय होता है। वर्षा के अभाव में वनस्पति की कमी तथा मिट्टी के असंगठित कणों के कारण पवन द्वारा रेत को एक स्थान से दूसरे स्थान तक उड़ाने में आसानी रहती है। पवन तीन प्रकार से अपरदन का कार्य करती है
1. अपघर्षण (Abrasion)-पवन में धूलकण, कंकड़-पत्थर के बारीक टुकड़े तथा रेत अपरदन के रूप में कार्य करते हैं। चट्टानों से टकराकर ये कण एक रेगमार की भाँति कटाव करते हैं, जिससे विभिन्न प्रकार की भू-आकृतियों का निर्माण होता है।

2. सन्निघर्षण (Attrition)-पवन के साथ प्रवाहित होने वाले रेत एवं धूलकण एक-दूसरे से टकराकर चूर-चूर हो जाते हैं, जिसे सन्निघर्षण कहते हैं।

3. अपवाहन (Deflation) धरातल पर असंगठित रूप से बिखरे धूलकण एवं रेत को हवा एक स्थान से उड़ाकर दूसरे स्थान पर ले जाती है जिससे असंगठित चट्टानों का अपरदन हो जाता है, इसे अपवाहन कहते हैं।

अपरदन क्रिया से निर्मित स्थलाकृतियाँ (Landforms Produced by Wind Erosion Process)-पवन अपरदन क्रिया द्वारा निम्नलिखित भू-आकृतियों का निर्माण करती है-
1. छत्रक शैल या गारा (Mushroom or Gara)इनकी आकृति कुकुरमुत्ता के पौधे के समान या छतरी के समान होती है, इसलिए इन्हें छत्रक कहते हैं। हवा के साथ उड़ने वाले दिशा रेत के कण चट्टानों पर बार-बार प्रहार करते रहते हैं जिससे चट्टानों के निचले असंगठित एवं ढीले भाग कट जाते हैं जबकि रेत का घातक प्रहार चट्टान के ऊपरी भाग, जहाँ चट्टानें कठोर हों, अपेक्षाकृत कम अपरदित आधार पर होता है क्योंकि इस होते हैं जिनके फलस्वरूप ऊपरी छतरीनुमा चट्टानी भाग अप्रभावित ऊंचाई पर पवन में सर्वाधिक भार रहता है, जिसे छत्रक शैल कहते हैं।
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2. ज्यूजन (Zeugen) मरुस्थली भागों में परतदार चट्टानों में इस प्रकार की आकृति देखने को मिलती है। जब कोमल चट्टानों के ऊपर कठोर चट्टानी भाग क्षैतिज दिशा में बिछा होता है तो ऐसी दशा में नीचे की कोमल चट्टान कट जाती है तथा ऊपरी कठोर चट्टान मेज की भाँति अप्रभावित रहती है, जिसे ज्यूजन कहते हैं।

3. इन्सेलबर्ग (Inselberg)-मरुस्थलीय क्षेत्रों में एक द्वीप के आकार की उठी हुई आकृति को इन्सेलबर्ग कहते हैं। जब कठोर एवं कोमल चट्टानें लम्बवत् रूप में खड़ी होती हैं और कोमल चट्टानें हवा द्वारा अपरदित हो जाती हैं तब ऐसी स्थिति में दो लम्बवत् कठोर चट्टानों के मध्य निम्न भूमि या अपरदित भाग होता है। दूर से देखने पर ये खड़ी चट्टानें द्वीप की तरह लगती हैं। ऐसी आकृतियाँ कालाहारी मरुस्थल में दिखाई देती हैं।

4. यारडांग (Yardang) मरुस्थलीय क्षेत्रों में जब कोमल तथा कठोर चट्टानें एक-दूसरे के समानान्तर खड़ी होती हैं तो कोमल तथा असंगठित चट्टानें शीघ्र कट जाती हैं तथा कठोर चट्टानें नुकीली एवं खड़ी रहती हैं। दोनों नुकीली मापक) चट्टानों के मध्य में नालियाँ-सी बन जाती हैं, जिन्हें यारडंग कहते हैं।
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5. वातगर्त (Deflation Basin)-भू-तल पर कोमल चट्टानों के असंगठित रेत के कणों को हवा उड़ाकर ले जाती है। बार-बार हवा के प्रहार से रेत वहाँ से खाली होती रहती है तथा एक गर्त-सा बन जाता है, जिसे वातगर्त या वातबेसिन कहते हैं।

6. भू-स्तम्भ (Demoisella)-कोमल या असंगठित चट्टान के ऊपर कठोर चट्टान होती है। कोमल चट्टानी भाग अपरदित हो जाता है जबकि कठोर चट्टान का अपरदन नहीं होता। कठोर चट्टान कोमल चट्टान के ऊपर एक दुकान की तरह खड़ी रहती है, जिन्हें भू-स्तम्भ कहते हैं।
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पवन का निक्षेप कार्य तथा निर्मित स्थलाकृतियाँ (Wind Deposition Work and Produced Land Forms)मरुस्थलीय क्षेत्रों में पवन की गति जब मन्द हो जाती है या उसके मार्ग में कोई बाधा उत्पन्न हो जाती है तो उसमें सम्मिलित रेत तथा मिट्टी के कणों का जमाव आरम्भ हो जाता है तथा निम्नलिखित भू-आकृतियों का निर्माण होता है
1. बालू के टीले (Sand Dunes)-पवन की गति कम होने से रेत तथा मिट्टी के मोटे कणों के जमाव से बालू के स्तूपों का निर्माण होता है। ये तीन प्रकार के होते हैं-
(1) लम्बे बालू का स्तूप (Longitudinal Sand Dunes) इनका निर्माण प्रचलित पवन की दिशा के समानान्तर होता है। ये लम्बी पहाड़ी की आकृति में बनते हैं।

(2) आड़े बालू का स्तूप (Transverse Sand Dunes) इनका निर्माण प्रचलित पवन की दिशा के समकोण पर होता है। इनकी आकृति अर्द्ध-चन्द्राकार होती है।

(3) बारखन (Barkhan) इनका आकार अर्द्ध-चन्द्राकार होता है। इनकी पवनमुखी ढाल उत्तल तथा पवनविमुखी ढाल अवतल होती है। इनका आकार दूज के चाँद की तरह होता है। इनके शिखर नुकीले सींग की तरह होते हैं। इनकी लम्बाई 150 कि०मी० तक तथा ऊँचाई 30 मीटर तक होती है।
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2. लोएस (Loess)-पवन द्वारा लाई गई बारीक मिट्टी के निक्षेप को लोएस कहते हैं। लोएस के कणों को पवन बहुत दूर तक मरुस्थलीय क्षेत्रों में उड़ा ले जाती है। लोएस की मिट्टी अधिक उपजाऊ होती है। उदाहरण के लिए, चीन के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में पीली मिट्टी का लोएस प्रदेश है। यह लगभग तीन लाख वर्ग मील बारखन क्षेत्र में फैला हुआ है।

प्रश्न 7.
विभिन्न प्रकार की सागरीय तट-रेखाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
समुद्र तट और समुद्री किनारे के बीच स्थित सीमा रेखा को तट-रेखा कहते हैं। समुद्र तट दो प्रकार के होते हैं-

  • निमग्न समुद्र तट (Coastline of Submergence)
  • निर्गत समुद्र तट (Coastline of Emergence)

(क) निमग्न समुद्र तट (Coastline of Submergence)- निमग्न समुद्र तट के भी दो प्रकार होते हैं-

  • निमग्न उच्च भूमि का समुद्र तट (Submerged Upland Coast)
  • निमग्न निम्न भूमि का समुद्र तट (Submerged Lowland Coast)

1. निमग्न उच्च भूमि का समुद्र तट (Submerged Upland Coast)-ऐसे तटों का निर्माण स्थलखण्ड के नीचे धंसने या समुद्र के जलस्तर के ऊपर उठने से होता है। ये तट निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-
(a) फियोर्ड तट (Fiord Coast) इन तटों का निर्माण हिमनदी द्वारा अपरदित U-आकार घाटियों के आंशिक रूप से समुद्र में डूबने से होता है। हिम युग के बाद हिम के पिघलने से समुद्र का जल-स्तर बढ़ा और तटों पर स्थित लम्बी, सँकरी और गहरी घाटियों में समुद्र का जल घुस गया। इन घाटियों के तीव्र ढाल वाले पार्श्व समुद्र से नीचे बाहर निकले हुए होते हैं। फियोर्ड स्थल पर बहुत लम्बी दूरी तक गहरे होते हैं, किन्तु समुद्र में ये घाटियाँ उथली पाई जाती हैं। नार्वे का सोग्ने फियोर्ड (Sogne Fiord) 175 कि०मी० लम्बा, 6 कि०मी० चौड़ा व मध्य घाटी में 4000 फुट गहरा है। नार्वे के अतिरिक्त फियोर्ड तट के अच्छे उदाहरण दक्षिणी-चिली, ग्रीनलैण्ड, अलास्का तथा न्यूजीलैण्ड में मिलते हैं। फियोर्ड गहरे व संरक्षित बन्दरगाहों के लिए आदर्श माने जाते हैं। कई गहरे फियो? से होकर जलयान देश के भीतर तक पहुँच सकते हैं।

(b) रिया तट (Ria Coast)-हिम युग के बाद समुद्र का जल-स्तर बढ़ने से समुद्र के साथ समकोण बनाती हुई उच्च भूमियों की नदी घाटियों और नद-मुख (River Mouths) जल में डूब गए। इस प्रकार बना तट रिया तट कहलाता है। ये तट फियोर्ड तट से इस कारण भिन्न होते हैं कि ये हिमनदित नहीं होते और समुद्र की ओर इनकी गहराई बढ़ती जाती है। एड्रियाटिक सागर व जापान की तट-रेखा रिया तट के उदाहरण हैं।

(c) डाल्मेशियन तट (Dalmatian Coast) तट के समानान्तर स्थित लम्बी पर्वतीय कटकों के समुद्र में डूबने से डाल्मेशियन तट की रचना होती है। इन जलमग्न कटकों के ऊपरी भाग लम्बे द्वीपों के रूप में दिखाई पड़ते हैं। युगोस्लाविया के डाल्मेशियन तट के नाम पर ही ऐसे तटों को डाल्मेशियन तट कहा जाता है।

2. निमग्न भूमि का समुद्र तट (Submerged Lowland Coastline)-इस प्रकार के तट किसी मैदानी भाग के जलमग्न होने से बनते हैं। ये तट कटे-फटे नहीं होते। इन तटों पर रोधिकाएँ और लैगून पाए जाते हैं। यूरोप का बाल्टिक तट इस प्रकार के तटों का श्रेष्ठ उदाहरण है।

(ख) निर्गत समुद्र तट (Coastline of Emergence) इस प्रकार के तटों का निर्माण स्थलखण्ड के ऊपर उठने या समुद्र के जल-स्तर के नीचे होने से होता है। इन तटों पर पुलिन, भू-जिह्वा, रोधिकाएँ, लैगून, भृगु व मेहराबें पाई जाती हैं। भारत का दक्षिण-पूर्वी तट निर्गत समुद्र तट का उदाहरण है।

धीरे-धीरे ज़मीन के अन्दर रिसकर (Seepage) व टपक-टपक कर (Percolation) भूमिगत हो जाता है। अतः पृथ्वी की ऊपरी सतह के नीचे भूमिगत चट्टानों के छिद्रों एवं दरारों में एकत्रित हुए जल को भूमिगत जल कहा जाता है। झरनों (Springs) के माध्यम से भूमिगत जल धरातल पर निकलकर जलीय चक्र (Hydrological Cycle) का हिस्सा बन जाता है।

प्रश्न 8.
भूमिगत जल किस प्रकार प्रवणता सन्तुलन का कारक बनता है? इसके अपरदन और निक्षेपण कार्यों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
कार्ट स्थलाकृतियों के विकास के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ कौन-सी हैं? इस तरह के भू-दृश्यों की निर्माण विधियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रवणता सन्तुलन के अन्य साधनों की भाँति भूमिगत जल भी अपरदन, परिवहन और निक्षेपण कार्य करता है। लेकिन भूमिगत जल का कार्य चूने की चट्टानों से बने प्रदेशों में अधिक प्रभावी होता है। ऐसे प्रदेशों को कार्ट प्रदेश (Karst Region) कहते हैं। ‘कार्ट’ शब्द युगोस्लाविया के एड्रियाटिक तट (Adriatic Coast) पर स्थित इसी नाम के एक क्षेत्र से लिया गया है जहाँ चूनायुक्त चट्टानों पर वर्षा के जल का भारी प्रभाव देखा जा सकता है।
(क) भूमिगत जल का अपरदन कार्य (Erosional Work of Underground Water) -चूने के प्रदेशों में भूमिगत जल की घोलक क्रिया द्वारा निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण भू-आकारों की रचना होती है-
1. अवकूट (Lapies)-जब हल्की ढाल वाली चूनायुक्त चट्टानों की सन्धियों में कार्बनयुक्त भूमिगत जल भर जाता है, तो वह सन्धियों में स्थित कैल्शियम कार्बोनेट के कणों को घोल देता है। परिणामस्वरूप चूने की चट्टानों की सन्धियाँ चौड़ी हो जाती हैं और कालान्तर में सीधी दीवारों में गहरे गड्ढों वाला भू-रूप उत्पन्न होता है जिसे फ्रांसीसी भाषा में लेपीज़ कहते हैं। ऐसी स्थलाकृति को जर्मनी में कारेन (Karren) तथा अंग्रेज़ी में क्लिण्ट (Clint) कहते हैं।

2. घोल रंध्र (Sink Holes) डोलोमाइट, जिप्सम और चूने की चट्टानों में खड़ी सन्धियाँ (Vertical Joints) होती हैं। इन संधियों में कार्बन-डाइऑक्साइड जल अपनी घुलन शक्ति द्वारा अनेक छोटे-बड़े छिद्र बना देता है, जिन्हें घोल रंध्र कहते हैं। ये कीपाकार (Funnel shaped) अथवा बेलनाकार (Cylindrical) होते हैं। सामान्यतः ये 3 से 9 मीटर गहरे गड्ढे होते हैं तथा इनके मुख का क्षेत्रफल 1 मीटर से अधिक होता है। संयुक्त राज्य अमेरिका के केन्टुकी राज्य में चूने से बने पठारी क्षेत्र पर 60,000 से अधिक घोल रंध्र पाए जाते हैं। भारत में ऐसे घोल रंध्र मेघालय की चूना संस्तरों के दक्षिणी हिस्से में पाए जाते हैं।

3. विलय रंध्र (Swallow Holes) भूमिगत जल की घोल क्रिया द्वारा घोल रंध्रों का आकार उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है और वे बेलनाकार नलिकाओं के रूप में विकसित होने लगते हैं, इन्हें विलय रंध्र कहते हैं। धरातलीय नदियाँ घोल रंध्रों में घुसकर इन विलय रंध्रों के रास्ते से ही लुप्त हो जाती हैं। ये रंध्र भूमिगत मार्गों द्वारा कन्दराओं से जुड़े होते हैं।

4. शुष्क व अन्धी घाटियाँ (Dry and Blind Valleys) धरातलीय नदियाँ जब घोल रंध्रों और विलय रंध्रों के रास्ते भूमिगत हो जाती हैं, तो धरातल पर स्थित मूल घाटियों में जल बहना बन्द हो जाता है। इन सूखी तली वाली घाटियों को अन्धी घाटियाँ कहा जाता है।

5. कुण्ड या डोलाइन (Dolines)-अनेक घोल रंध्रों और विलय रंध्रों के परस्पर मिल जाने से बने विशाल गर्तों को डोलाइन कहते हैं। ये धरातल पर कीप जैसे व नीचे खोखले बेलन जैसे होते हैं। यूरोप के पिरेनीज़ क्षेत्र में अनेक डोलाइन देखने को मिलते हैं।

6. सकुण्ड या युवाला (Uvalas) भूमिगत जल के पाश्विक अपरदन (Lateral Erosion) द्वारा अनेक डोलाइनों के बीच की दीवारें घुलकर गिर जाती हैं जिससे वे आपस में मिल जाते हैं। इससे एक विशाल गर्त का निर्माण होता है, जिसे युवाला कहते हैं। युवाला डोलाइन से बड़ा होता है।

7. पोनोर (Ponors)-जब युवालाओं में पर्याप्त भूमिगत जल इकट्ठा हो जाता है, तो उसके अपरदन कार्य में तेजी आ जाती है। फलस्वरूप अनेक युवाला परस्पर मिलकर सुरंगनुमा भू-आकार का निर्माण करते हैं, जिसे पोनोर कहते हैं।

8. कन्दरा (Cavern) कई बार धरातल पर कठोर चट्टानों के नीचे चूनायुक्त चट्टानें बिछी होती हैं। इन चूने की चट्टानों को भूमिगत जल घुलाकर खोखला करता रहता है। किन्तु ऊपर की कठोर चट्टान छत की तरह टिकी रहती है। इस प्रकार चूने के प्रदेश में भीतर-ही-भीतर मीलों लम्बी-चौड़ी गुफाएँ बन जाती हैं, जिन्हें कन्दरा कहा जाता है। मूल रूप से कन्दरा का निर्माण चूने की चट्टानों के संस्तर तल (Bedding Plane) और विभंजन द्वारा नियंत्रित होता है।

9. प्राकृतिक पुल (Natural Bridge) भूमिगत जल द्वारा होने वाले लगातार अपरदन से कई बार कन्दराओं की छत का कुछ भाग नीचे गिर जाता है और कुछ भाग पहले की तरह अटका रहता है। यह बचा हुआ भाग आने-जाने का मार्ग प्रदान करता है, इसलिए इसे प्राकृतिक पुल कहा जाता है।

(ख) भूमिगत जल का निक्षेपण कार्य (Depositional Work of Underground Water)-जब भूमिगत जल में घुली हुई कार्बन-डाइऑक्साइड निकल जाती है तो उसमें घुला हुआ चूने का अंश (कैल्शियम बाइकार्बोनेट) पुनः जमने लगता है और कन्दराओं में विविध प्रकार के भू-आकारों की रचना होने लगती है-
1. स्टैलेक्टाइट (Stalactite) चूने के प्रदेशों में भूमिगत कन्दराओं में जल छत से बूंद-बूंद करके टपकता रहता है। इन बूंदों में घुला हुआ चूना होता है। कई बार छत से चिपकी बूंद जब तक इतनी बड़ी होती है कि वह नीचे गिरे, उससे पहले वाष्पीकरण द्वारा उसका कुछ अंश सूख जाता है। फलस्वरूप चूने का अंश छत से चिपका रह जाता है। लम्बे समय तक इस क्रिया की पुनरावृत्ति होने पर चूने के निक्षेप से बना एक स्तम्भ छत से लटका दिखाई पड़ने लगता है। यह स्तम्भ छत की ओर मोटा व नीचे की ओर पतला व नुकीला होता है। इसे स्टैलेक्टाइट कहते हैं।

2. स्टैलेग्माइट (Stalagmite) कन्दराओं की तली पर छत से गिरने वाली चूना-युक्त जल की बूंदों का भी वाष्पीकरण होता है। इससे चूने का कन्दरा की तली पर जमाव होने लगता है। कालान्तर में कन्दरा के तल पर मोटे, बेलनाकार स्तम्भ ऊपर की ओर बढ़ने लगते हैं। इन्हें स्टैलेग्माइट कहते हैं। स्टैलेग्माइट स्टैलेक्टाइट की अपेक्षा मोटे किन्तु छोटे होते हैं।

3. कन्दरा स्तम्भ (Cave Pillars) कई बार ऊपर से नीचे की ओर लटकते हुए स्टैलेक्टाइट और नीचे से ऊपर की ओर बढ़ते हुए स्टैलेग्माइट आपस में मिल जाते हैं और कन्दरा स्तम्भ का निर्माण करते हैं। ऐसे कन्दरा-स्तम्भ उत्तर प्रदेश के देहरादून जिले व आन्ध्र प्रदेश के कुर्नूल जिले में देखने को मिलते हैं।

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. निम्नलिखित में से कौन-सा ग्रेडेशनल प्रक्रिया का उदाहरण है?
(A) अपरदन
(B) निक्षेप
(C) ज्वालामुखीयता
(D) संतुलन
उत्तर:
(A) अपरदन

2. जलयोजन प्रक्रिया निम्नलिखित में से किसे प्रभावित करती है?
(A) क्ले (चीका मिट्टी)
(B) लवण
(C) क्वार्टज़
(D) ग्रेनाइट
उत्तर:
(A) क्ले (चीका मिट्टी)

3. मलबा अवधाव को किस श्रेणी में सम्मिलित किया जा सकता है?
(A) भू-स्ख लन
(B) मंद संचलन
(C) द्रुत संचलन
(D) अवतलन
उत्तर:
(C) द्रुत संचलन

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4. अधिवद्धि अथवा तलोच्चयन की प्रक्रिया में निम्नलिखित में से कौन-सा कार्य शामिल नहीं होता?
(A) अपरदन
(B) अपक्षय
(C) अपरदित पदार्थों का परिवहन
(D) निक्षेपण
उत्तर:
(B) अपक्षय

5. चट्टानों का पिंड विच्छेदन किन प्रदेशों में होता है?
(A) आर्द्र प्रदेशों में
(B) हिमाच्छादित प्रदेशों में
(C) ठंडे मरुस्थलों में
(D) शुष्क एवं उष्ण मरुस्थलों में
उत्तर:
(D) शुष्क एवं उष्ण मरुस्थलों में

6. चट्टानों के अपशल्कन के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा कारक प्रमुख रूप से उत्तरदायी है?
(A) चट्टानों का परतों में होना
(B) हिमांक से नीचे तापमान
(C) अत्यधिक उच्च ताप
(D) ताप-विभेदन
उत्तर:
(D) ताप-विभेदन

7. चट्टानों का अपने ही स्थान पर टूटकर या क्षयित होकर पड़े रहने को कहा जाता है-
(A) अपक्षय
(B) अपरदन
(C) अनाच्छादन
(D) अनावृतिकरण
उत्तर:
(A) अपक्षय

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8. लौह-युक्त चट्टानों के भुरभुरी होकर गलने को कहा जाता है-
(A) कार्बोनेटीकरण
(B) ऑक्सीकरण
(C) जलयोजन
(D) वियोजन
उत्तर:
(B) ऑक्सीकरण

9. ग्रेनाइट चट्टानों में होने वाली अपशल्कन क्रिया के पीछे किस कारक का योगदान होता है?
(A) ऑक्सीकरण
(B) कार्बोनेटीकरण
(C) जलयोजन
(D) विलयन
उत्तर:
(C) जलयोजन

10. निम्नलिखित में से कौन-सा एक कारक बृहत क्षरण को प्रभावित नहीं करता?
(A) गुरुत्वाकर्षण
(B) चट्टानों का प्रकार
(C) विवर्तन
(D) जलवायु
उत्तर:
(B) चट्टानों का प्रकार

11. बृहत क्षरण का निम्नलिखित में से कौन-सा प्रकार मंद संचलन का उदाहरण नहीं है?
(A) मृदा विसर्पण
(B) मृदा प्रवाह
(C) मृदा सर्पण
(D) शैल विसर्पण
उत्तर:
(B) मृदा प्रवाह

12. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन भूस्खलन को परिभाषित करता है?
(A) विखंडित शैल पदार्थ का गुरुत्वाकर्षण के प्रभावाधीन ढाल के अनुसार नीचे सरकना।
(B) स्थायी हिम के ऊपर जल से लबालब मलबे का ढाल के अनुरूप खिसकना
(C) चट्टानी भागों का बड़े पैमाने पर तीव्र गति से सर्पण
(D) वर्षा के जल से सराबोर ऊपर की मिट्टी के बहुत बड़े क्षेत्र का स्थानांतरित होना
उत्तर:
(C) चट्टानी भागों का बड़े पैमाने पर तीव्र गति से सर्पण

13. वक्राकार तल पर घूर्णी गति के फलस्वरूप ढाल के सहारे चट्टान का रुक-रुक कर स्खलन होना कहलाता है-
(A) भूमि सर्पण
(B) मलबा स्खलन
(C) शैल पात
(D) अवसर्पण
उत्तर:
(D) अवसर्पण

14. मृदा परिच्छेदिका का वह कौन-सा संस्तर है जिसके ऊपरी भाग में ह्यूमस तथा निचले भाग में खनिज व जैव पदार्थों की अधिकता होती है?
(A) क संस्तर
(B) ख संस्तर
(C) ग संस्तर
(D) घ संस्तर
उत्तर:
(A) क संस्तर

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
चट्टानों का पिंड विच्छेदन किन प्रदेशों में होता है?
उत्तर:
शुष्क एवं उष्ण मरुस्थलों में।

प्रश्न 2.
चट्टानों का अपने ही स्थान पर टूटकर या क्षयित होकर पड़े रहने को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
अपक्षय।

प्रश्न 3.
लौह-युक्त चट्टानों के भुरभुरी होकर गलने को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
ऑक्सीकरण।

प्रश्न 4.
तल सन्तुलन लाने वाले दो कारकों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. नदी
  2. हिमनदी।

प्रश्न 5.
रासायनिक अपक्षय किन दो क्रियाओं द्वारा होता है?
उत्तर:

  1. ऑक्सीकरण
  2. कार्बोनेटीकरण।

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प्रश्न 6.
सूर्यातप अपक्षय में प्याज के छिलके की तरह चट्टानी परतों के उतरने को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
अपशल्कन।

प्रश्न 7.
तुषार अथवा पाला द्वारा चट्टानें किस प्रकार की जलवायु में टूटती हैं?
उत्तर:
शीत जलवायु में।

प्रश्न 8.
कार्बनीकरण का प्रमाण किस प्रकार की चट्टानों पर पड़ता है?
उत्तर:
चूना-युक्त चट्टानों पर।

प्रश्न 9.
लवण क्रिस्टलन अपक्षय किन क्षेत्रों में होता है?
उत्तर:
मरुस्थलीय और तटीय क्षेत्रों में।

प्रश्न 10.
बृहत् संचलन का अन्य नाम क्या है?
उत्तर:
अनुढाल संचलन।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बहिर्जात प्रक्रियाएँ क्या होती हैं?
उत्तर:
वे प्रक्रियाएँ जो धरातल के ऊपर उठे भागों को काट-छाँटकर एवं घिसकर उन्हें समतल बनाती हैं, बहिर्जात प्रक्रियाएँ कहलाती हैं।

प्रश्न 2.
पिण्ड-विच्छेदन क्यों होता है?
उत्तर:
पिण्ड-विच्छेदन लम्बे समय तक तापमान के घटने-बढ़ने से चट्टानों के बार-बार फैलने-सिकुड़ने के कारण चट्टानों के तल पर पैदा हुए तनाव के कारण होता है।

प्रश्न 3.
बृहत् क्षरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से स्थलमण्डल के आवरण की ऊपरी असंगठित परत का ढाल के अनुरूप नीचे खिसकना बृहत् . क्षरण कहलाता है।

प्रश्न 4.
अपक्षय से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मौसम के स्थैतिक तत्त्वों के प्रभाव तथा प्राणियों के द्वारा चट्टानों के अपने ही स्थान पर टूटने-फूटने की क्रिया अपक्षय कहलाती है।

प्रश्न 5.
अपघटन (Decomposition) का अर्थ बताइए।
उत्तर:
रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप चट्टानों का कमज़ोर पड़कर टूट जाना अपघटन कहलाता है।

प्रश्न 6.
विघटन (Disintegration) से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भौतिक अपक्षय और अपरदन के फलस्वरूप चट्टानों का छोटे-छोटे टुकड़ों, खण्डों या कणों में टूटकर बिखरना विघटन कहलाता है।

प्रश्न 7.
मृदा विसर्पण के कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  1. शीत जलवायु क्षेत्रों में तुषार तथा हिम का पिघलना।
  2. भूकम्पों द्वारा शैल आवरण में कम्पन का पैदा करना।

प्रश्न 8.
प्रवणता सन्तुलन की प्रक्रियाओं से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भू-तल पर कार्यरत वे सभी प्रक्रियाएँ अथवा शक्तियाँ जो धरातल की ऊँची-नीची भूमि को एक सामान्य तल पर लाने की कोशिश करती हैं, प्रवणता सन्तुलन की प्रक्रियाएँ कहलाती हैं।

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प्रश्न 9.
रासायनिक अपक्षय क्या है?
उत्तर:
भौतिक बलों द्वारा टूटने की बजाय जब रासायनिक प्रतिक्रिया से चट्टानों के अवयव ढीले पड़ जाएँ तो इस प्रकार चट्टानों में हुए अपघटन को रासायनिक अपक्षय कहते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भू-पटल पर परिवर्तन लाने वाली बहिर्जात प्रक्रियाओं से आपका क्या तात्पर्य है? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
अंतर्जात प्रक्रियाएँ पर्वत, पठार, घाटी और मैदान जैसे भू-आकारों का निर्माण कर अनेक विषमताओं को उत्पन्न करती हैं। इनके विपरीत भू-तल पर कुछ ताकतें ऐसी भी होती हैं, जो इन विषमताओं को निरन्तर दूर करने में लगी रहती हैं, इन्हें बहिर्जात प्रक्रियाएँ कहते हैं। बहिर्जात प्रक्रियाएँ वे प्रक्रियाएँ हैं जो धरातल के ऊपर उठे भागों को काट-छाँटकर एवं घिसकर उन्हें समतल बनाने का कार्य करती हैं।

प्रश्न 2.
प्रवणता सन्तुलन अथवा तल सन्तुलन की व्याख्या करते हुए यह स्पष्ट कीजिए कि निम्नीकरण और अधिवृद्धि का तल सन्तुलन से क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
धरातल के ऊपर उठे भागों के कट-छटकर समतल हो जाने की प्रक्रिया को प्रवणता सन्तुलन कहते हैं। वास्तव में, सन्तुलित धरातल एक ऐसी अवस्था है जिसमें बहिर्जात प्रक्रियाएँ न तो तल को ऊपर उठा रही होती हैं और न ही उसे नीचे कर रही होती हैं। इसमें अपरदन और निक्षेप का हिसाब बराबर बना रहता है। प्रवणता सन्तुलन कभी भी स्थाई नहीं रह पाता, क्योंकि पृथ्वी की आन्तरिक शक्तियाँ कभी भी भू-तल को चैन से नहीं बैठने देतीं।

प्रवणता सन्तुलन निम्नलिखित दो प्रक्रियाओं के एक-साथ कार्यरत रहने से प्राप्त होता है-

  • निम्नीकरण अथवा तलावचन (Degradation)
  • अधिवृद्धि अथवा तल्लोचन (Aggradation)

बाहरी कारकों द्वारा धरातल के ऊँचे उठे हुए भागों को अपक्षय, अपरदन तथा परिवहन द्वारा नीचे करने की प्रक्रिया को निम्नीकरण कहते हैं। भूगोल में इस प्रक्रिया को अनाच्छादन भी कहा जाता है। निम्नीकरण की प्रक्रिया द्वारा ऊँचे भू-भागों से प्राप्त अपरदित पदार्थों का जब गर्मों व निचले प्रदेशों में निक्षेपण हो जाता है, तो इसे अधिवृद्धि कहते हैं।

प्रश्न 3.
बहिर्जनिक बल तथा अंतर्जनित बल में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भ-पर्पटी सदैव परिवर्तित होती रहती है। ये सभी परिवर्तन कछ बलों के प्रभाव से होते हैं। भ-तल के ऊपर कार्य करने वाले बलों को बहिर्जनिक बल तथा पृथ्वी के आंतरिक भाग में कार्य करने वाले बलों को अंतर्जनित बल कहते हैं। बहिर्जनिक बलों के प्रभाव से भू-आकृतियों का निम्नीकरण/तलावचन तथा बेसिन/निम्न क्षेत्रों का भराव होता है। अंतर्जनित बलों से भू-तल के उच्चावच में विषमताएँ आती हैं अर्थात् अंतर्जनित बल पर्वत, पठार, मैदान और घाटी जैसे आकारों की रचना कर अनेक विषमताओं को उत्पन्न करते हैं। बहिर्जनिक बल इन विषमताओं को दूर करने में लगा रहता है।

प्रश्न 4.
भौतिक अपक्षय के विभिन्न कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
चट्टानों का विघटन या भौतिक अपक्षय निम्नलिखित कारकों के माध्यम से होता है-
1. सूर्यातप (Insolation)-शुष्क एवं उष्ण मरुस्थली प्रदेशों में दिन के भीषण ताप से चट्टानें फैलती हैं और रात को तापमान के गिर जाने से चट्टानें सिकुड़ती है। बार-बार चट्टानों के इस प्रकार फैलने और सिकुड़ने से चट्टानों में तनाव पैदा होता है और वे टूट जाती हैं। चट्टानों के टूटने के इस ढंग को पिण्ड विच्छेदन (Block Disintegration) कहते हैं।

अनेक प्रकार के खनिजों और रंगों से मिलकर बनी चट्टानों के खनिज भिन्न-भिन्न दर से फैलते और सिकुड़ते हैं। ऐसी चट्टानें खण्डों में न टूटकर छोटे-छोटे कणों और गुटिकाओं के रूप में चूरा-चूरा होती हैं। इस चूर्ण को शैल मलबा कहा जाता है। चट्टानों के टूटने की यह विधि कणिकामय विखण्डन कहलाती है। जब प्रचण्ड ताप के कारण चट्टानों की ऊपरी पपड़ी प्याज के छिलकों के रूप में उतरने लगती है तो इस विघटन को पल्लवीकरण या अपशल्कन कहा जाता है।

2. पाला (Frost)-ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में तथा उच्च अक्षांशों वाले प्रदेशों में दिन के समय चट्टानी दरारों में वर्षा या हिम से पिघला जल भर जाता है। रात्रि को तापमान के हिमांक से नीचे गिरने पर यह जल दरारों में ही जम जाता है। जमने पर पानी का आयतन (Volume) बढ़ता है। बार-बार जल के जमने और पिघलने (Altermate Freeze and Thaw) की क्रिया से चट्टानों का विखण्डन होता है, जिसे तुषारी अपक्षय (Frost Shattering) कहा जाता है।

3. दाब-मुक्ति (Pressure Release) कई आग्नेय व रूपान्तरित चट्टानें भारी दबाव व ताप की दशाओं में बनती हैं, जिससे उनके कण भी संकुचित और दबे हुए रहते हैं। समय के साथ ऊपर की चट्टानों का जब अपरदन हो जाता है तो युगों से नीचे दबी चट्टाने दाब-मुक्ति के कारण थोड़ा-बहुत फैलती हैं। इससे चट्टानों में दरारें पड़ती हैं, जिससे उनका विघटन और अपशल्कन होता है। यह क्रिया सामान्य रूप से ग्रेनाइट और संगमरमर जैसी चट्टानों में अधिक पाई जाती है।

4. लवण क्रिस्टलन अपक्षय (Salt Crystallisation Weathering) चट्टानों के रन्ध्रों में जमा हुए खारे पानी के वाष्पीकरण से नमक के रवे (Crystals) बन जाते हैं। जैसे-जैसे इन रवों का आकार बढ़ता है, वैसे ही चट्टानों पर दबाव भी बढ़ता है। इससे चट्टानें टूट जाती हैं। यह अपक्षय मरुस्थलों में बलुआ पत्थर में खारे पानी के रिसने से अधिक होता है। समुद्र तट की चट्टानों में भी इसी प्रकार का अपक्षय होता है।

प्रश्न 5.
रासायनिक अपक्षय के कारकों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भौतिक बलों द्वारा टूटने की बजाय जब रासायनिक प्रतिक्रिया से चट्टानों के अवयव ढीले पड़ जाएँ तो इस प्रकार चट्टानों में हुए अपघटन को रासायनिक अपक्षय कहते हैं। रासायनिक अपक्षय के कारक निम्नलिखित हैं
1. ऑक्सीकरण (Oxidation) -जल तथा आई वाय में मिली हई ऑक्सीजन का. जब लौहयक्त चट्टानों से संयोजन होता है. तो चट्टान में स्थित लौह अंश ऑक्साइडों में बदल जाते हैं अर्थात् लोहे में जंग (Rust) लग जाता है। इससे चट्टानों का रंग लाल, पीला या बादामी हो जाता है। इस क्रिया को ऑक्सीकरण कहते हैं। ऑक्सीकरण में लौहयुक्त चट्टानें भुरभुरी होकर गलने लगती हैं।

2. कार्बोनेटीकरण (Carbonation)-जल में घुली कार्बन-डाइऑक्साइड गैस की मात्रा अपने सम्पर्क में आने वाली चट्टानों के खनिजों को कार्बोनेट में बदल देती है, इसे कार्बोनेटीकरण कहते हैं। कार्बन-युक्त जल एक हल्का अम्ल (Carbonic Acid) होता है, जो चूनायुक्त चट्टानों को तेज़ी से घुला देता है। सभी चूना-युक्त प्रदेशों में भूमिगत जल कार्बोनेटीकरण के द्वारा अपक्षय का प्रमुख कारक बनता है।

3. जलयोजन (Hydration) चट्टानों में कुछ खनिज ऐसे भी होते हैं, जो हाइड्रोजन युक्त जल को रासायनिक विधि द्वारा अवशोषित (Absorb) कर लेते हैं, जिससे उनका आयतन लगभग दुगुना हो जाता है। खनिजों का बढ़ा हुआ आयतन चट्टानों के कणों और खनिजों में तनाव, खिंचाव तथा दबाव पैदा करता है। इसके परिणामस्वरूप चट्टानें फूलकर यान्त्रिक विधि द्वारा मूल चट्टान से उखड़ जाती हैं।

4. विलयन (Solution) वर्षा के जल के सम्पर्क में आने पर सभी चट्टानें भिन्न-भिन्न दर से घुलती हैं, लेकिन कुछ खनिज जल में शीघ्र ही घुल जाते हैं, जैसे सेंधा नमक (Rock Salt) और चूना-पत्थर आदि। चट्टानों का यह रासायनिक अपक्षय विलयन कहलाता है।

प्रश्न 6.
बृहत् क्षरण (बृहत् संचलन) की परिभाषा देते हुए मृदा विसर्पण की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
परिभाषा (Definition)-स्थलमण्डल के आवरण की ऊपरी असंगठित परत (Regolith) तथा चट्टानी मलबे की विशाल मात्रा का गुरुत्वाकर्षण के कारण ढाल से नीचे की ओर फिसलना या सरकना बृहत् क्षरण कहलाता है। इसे बृहत् संचलन (Mass Movement) तथा अनुढाल संचलन (Downslope Movement) भी कहते हैं।

मृदा विसर्पण (Soil Creep)-शीतोष्ण और उष्ण कटिबन्धीय जलवायु के क्षेत्रों में मन्द ढालों पर भी गुरुत्वाकर्षण के कारण चट्टानों का ऊपरी आवरण नीचे की ओर फिसलने लगता है। वर्षा के जल से सराबोर ऊपर की मिट्टी का बहुत बड़ा क्षेत्र घास के मैट व वृक्षों समेत इस प्रकार स्थानान्तरित होने लगता है कि उस जमीन पर खड़े आदमी को एहसास भी नहीं होता। इस प्रकार स्थानान्तरित पदार्थ ढाल के आधार तल पर एकत्रित होने लगता है। मृदा विसर्पण को हम मृदा परिच्छेदिका व प्रतिरोधी चट्टानों के बड़े खण्डों के अनावरण तथा वृक्षों की जड़ों के व्यवहार, बाड़ (Fence) तथा टेलीफोन के झुके हुए खम्बों द्वारा प्रमाणित किया जा सकता है।

प्रश्न 7.
भू-स्खलन क्या है? भू-स्खलन कितने प्रकार का होता है? किसी एक प्रकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. भू-स्खलन (Land Slide)-चट्टानी भागों का बड़े पैमाने पर तीव्र गति से सर्पण भू-स्खलन कहलाता है। इसमें जल या हिम की स्नेहक के रूप में जरूरत नहीं पड़ती। भू-स्खलन में भारी मात्रा में मलबे के नीचे आने से जान-माल की हानि होती है।

2. शैल-स्खलन (Rock Slide)-भू-स्खलन के सभी प्रकारों में शैल-स्खलन का सबसे अधिक महत्त्व है। पहाड़ों से बड़े-बड़े शिलाखण्ड अपनी जगह से खिसककर भ्रंश तल (Fault Plane) या संस्तरण तल (Bedding Plane) के सहारे लुढ़कते-फिसलते नीचे आते हैं।

प्रश्न 8.
अपक्षय तथा अपरदन में अन्तर बताइए।
उत्तर:
अपक्षय तथा अपरदन में निम्नलिखित अन्तर हैं-

अपक्षय (Weathering)अपरदन (Erosion)
1. अपक्षय की प्रक्रिया स्थैतिक साधनों द्वारा सम्पन्न होती है।1. अपरदन की प्रक्रिया धरातल पर कार्यरत गतिशील साधनों द्वारा सम्पन्न होती है।
2. अपक्षय में चट्टानें टूटकर अपने मूल स्थान या उसके आस-पास पड़ी रहती हैं।2. अपरदन में अपक्षयित पदार्थों का अपने मूल स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण होता है।
3. अपक्षय में चट्टानों की केवल टूट-फूट होती है।3. अपरदन में चट्टानों की टूट-फूट व स्थानान्तरण दोनों होते हैं।
4. सूर्यातप, पाला, दाबमुक्ति, ऑक्सीकरण, कार्बोनेटीकरण, जलयोजन, विलयन, जीव, वनस्पति तथा मनुष्य अपक्षय के प्रमुख कारक हैं।4. अपरदन के मुख्य कारक हिमनदी, नदी, पवन, समुद्री तरंगें इत्यादि हैं।
5. अपक्षय मृदा-निर्माण का आधार है।5. अपरदन विभिन्न स्थलाकृतियों के विकास के लिए उत्तरदायी है।

प्रश्न 9.
भौतिक अपक्षय तथा रासायनिक अपक्षय में अन्तर बताइए।
उत्तर:
भौतिक अपक्षय तथा रासायनिक अपक्षय में निम्नलिखित अन्तर हैं-

भौतिक अपक्षय (Physical Weathering)रासायनिक अपक्षय (Chemical Weathering)
1. भौतिक अपक्षय में चट्टानें भौतिक बलों के प्रभाव से टूटती हैं।1. इसमें चट्टानें रासायनिक अपघटन द्वारा सड़-गलकर चूर्ण बनती रहती हैं।
2. भौतिक अपक्षय में विधटित चट्टानों के खनिज मूल चट्टानों जैसे ही रहते हैं।2. रासायनिक अपक्षय में अपघटित चट्टानों के रासायनिक तत्त्वों में परिवर्तन हो जाता है।
3. चट्टानों का भौतिक अपक्षय शीत एवं शुष्क प्रदेशों में अधिक होता है।3. रासायनिक अपक्षय उष्ण एवं आर्द्र प्रदेशों में अधिक कारगर होता है।
4. भौतिक अपक्षय के मुख्य कारक ताप, पाला तथा दाब-मुक्ति हैं।4. रासायनिक अपक्षय के मुख्य कारक ऑक्सीकरण, कार्बोनेटीकरण, जलयोजन तथा विलयन हैं।
5. बलकृत अपक्षय में चट्टानें पर्याप्त गहराई तक प्रभावित होती हैं।5. रासायनिक अपक्षय में चट्टानों का केवल तल ही प्रभावित होता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

प्रश्न 10.
ढाल मलबा तथा पाद मलबा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
पर्वतीय ढलानों पर छोटे-बड़े अनेक आकार के शैल खण्डों के ढेर जमा हो जाते हैं, जिन्हें ढाल मलबा अथवा पाद मलबा कहा जाता है। ये मलबे के कोणीय ढेर होते हैं जिनका. आकार ढाल जितना होता है। इन ढेरों की ढाल क्षैतिज आधार से 350 से 37° तक रहती है। इन भू-आकृतियों की रचना तुषार अपक्षय (Frost Weathering) वाले इलाके में होती है। । कुछ विद्वान् ढाल मलबे को पाद मलबे का समानार्थक मानते हैं, जबकि अन्य कुछ इन दोनों में फर्क मानते हैं। उनके अनुसार, ढाल मलबा (स्क्री) वह पदार्थ होता है जो पर्वतीय ढाल पर बिखरा हुआ पड़ा होता है, जबकि पाद मलबा (टैलस) भृगु तल पर निश्चित रूप से एकत्र तलछट को कहते हैं। भृगुओं (Cliffs) के ऊपरी सिरों पर अपक्षय द्वारा कीपाकार संकरे खड्डों (Ravines) का निर्माण हो जाता है। अपक्षयित पदार्थ इन संकरे खड्डों में जमा होता-होता भृगु के तल से ऊपर की ओर बढ़ने लगता है, इसे टैलस शंकु कहते हैं। इन टैलस शंकुओं में बड़े आकार की भारी शैलें आधार तल पर पाई जाती हैं, जबकि अपेक्षाकृत हल्के कण ऊपर के स्तरों में पाए जाते हैं।

प्रश्न 11.
जैविक अपक्षय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
ऐसा अपक्षय जिसमें चट्टानों की टूट-फूट के लिए मुख्य रूप से जीव-जन्तु, मनुष्य और वनस्पति उत्तरदायी हों, ‘जैविक अपक्षय’ कहलाता है। कीड़े-मकौड़े और जन्तुओं की सैकड़ों प्रजातियाँ ऐसी हैं जो चट्टानों में बिल बनाकर रहती हैं। बिल बनाने से असंगठित मलबा बाहर आता है और चट्टानें कमज़ोर होकर टूटती हैं। वनस्पति की जड़ें चट्टानों की दरारों में प्रवेश करके उन्हें चौड़ा करती हैं। जड़ों की माध्यम से हवा और पानी का भी चट्टानों में घुसने का राह बन जाता है। इसमें रासायनिक अपक्षय को बल मिलता है। मनुष्य भी कुएँ, झील, नहरें, बाँध, भटे, सुरंगें, तालाब, खाने, नगर, कारखाने व सड़के इत्यादि बनाकर चट्टानों को तोड़ने का काम करता रहता है। ये सभी जैविक अपक्षय के रूप हैं।

प्रश्न 12.
मृदा विसर्पण के कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर:
मृदा विसर्पण निम्नलिखित कारणों से होता है-

  1. शीत जलवायु क्षेत्रों में तुषार तथा हिम का पिघलना
  2. हिम के कणों के सकार से भार के कारण चट्टानी टुकड़ों का ढाल के नीचे की ओर धकेला जाना
  3. शैलों का एकान्तर क्रम से गरम व ठण्डा होना
  4. मृदा का जल में भीगना व सूखना
  5. भूकम्पों द्वारा शैल आवरण में कम्पन का पैदा होना
  6. बिलकारी जीवों द्वारा भूमि का अपक्षय तथा मनुष्य द्वारा ढाल की ‘रोक’ (Barrier) को हटाना इत्यादि।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अपक्षय की परिभाषा दीजिए। यह कितने प्रकार का होता है? किसी एक का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अपक्षय की परिभाषा-मौसम के स्थैतिक तत्त्वों के प्रभाव तथा प्राणियों के कार्यों द्वारा चट्टानों के अपने स्थान पर टूटने-फूटने की क्रिया को अपक्षय कहा जाता है। चट्टानों में टूट-फूट विघटन (Disintegration) तथा अपघटन (Decomposition) क्रियाओं से होती है। विघटन में चट्टानें भौतिक बलों द्वारा चटक कर टूटती हैं, जबकि अपघटन में चट्टानें रासायनिक क्रियाओं द्वारा सड़-गलकर चूर्ण बनती रहती हैं। स्पार्क्स के शब्दों में, “प्राकृतिक कारकों द्वारा चट्टानों के अपने ही स्थान पर भौतिक और रासायनिक क्रियाओं द्वारा होने वाले विघटन और अपघटन को अपक्षय कहते हैं।”

अपक्षय के प्रकार- मौसमी तत्त्वों के अतिरिक्त जीव-जन्तु, वनस्पति और मनुष्य भी चट्टानों की टूट-फूट के लिए उत्तरदायी होते हैं, ऐसा अपक्षय जैविक अपक्षय कहलाता है। जैविक अपक्षय में भी यान्त्रिक और रासायनिक दोनों प्रकार के अपक्षय शामिल होते हैं। इस प्रकार अपक्षय तीन प्रकार के होते हैं

  • भौतिक अथवा यान्त्रिक अपक्षय (Physical or Mechanical Weathering)
  • रासायनिक अपक्षय (Chemical Weathering)
  • जैविक अपक्षय (Biological Weathering)।

यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि भौतिक, रासायनिक तथा जैविक तीनों प्रकार के.अपक्षय कम या अधिक मात्रा में एक साथ घटित हो रहे होते हैं। अपक्षय में उत्पन्न चट्टान चूर्ण का बड़े पैमाने पर परिवहन नहीं होता। यह तल सन्तुलन के कारकों के रंगमंच जरूर तैयार कर देता है।

भौतिक अथवा यान्त्रिक अपक्षय – [Physical or Mechanical Weathering]:
चट्टानों का विघटन निम्नलिखित कारकों के माध्यम से होता है-
(1) सूर्यातप (Insolation)-शुष्क एवं उष्ण मरुस्थली प्रदेशों में जहाँ दैनिक तापान्तर अधिक होता है, सूर्यातप चट्टानों के विघटन का सबसे कारगर साधन सिद्ध होता है। ऐसे प्रदेशों में दिन के भीषण ताप से चट्टानें फैलती हैं और रात को तापमान के असाधारण रूप से गिर जाने से चट्टानें सिकुड़ती हैं। चट्टानों के इस प्रकार लम्बे समय तक बार-बार फैलते और सिकुड़ते रहने से उनके तल पर तनाव उत्पन्न हो जाता है। तनाव चट्टानों में दरारें पैदा करता है जिसके फलस्वरूप चट्टानें बड़े-बड़े टुकड़ों में विघटित होने लगती हैं। चट्टानों की इस प्रकार टूट पिंड विच्छेदन (Block Disintegration) कहलाती है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 1
कई चट्टानें जो अनेक प्रकार के खनिजों और रंगों से मिलकर बनी होती हैं, उनके खनिज ताप के प्रभाव से भिन्न-भिन्न दरों से फैलते और सिकुड़ते हैं, ऐसी चट्टानें खण्डों में न टूटकर छोटे-छोटे कणों और गुटिकाओं के रूप में चूरा-चूरा होती रहती हैं। इस चूर्ण को शैल मलबा (Scree or Talus) कहा जाता है। चट्टानों के टूटने की यह विधि कणिकामय विखण्डन (Granular Disintegration) कहलाती है। मरुस्थलों में सूर्यास्त के बाद चट्टानों के इस प्रकार टूटने से बन्दूक से गोली छूटने जैसी आवाजें सुनाई पड़ती हैं।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 2
कुछ चट्टानें ताप की उत्तम चालक नहीं होतीं। सूर्य के प्रचण्ड ताप द्वारा उनकी ऊपरी पपड़ी तो गरम हो जाती है, जबकि पपड़ी के नीचे का भीतरी भाग ठण्डा ही रहता है। यह ताप विभेदन चट्टानों की समकंकता (Cohesion) भंग कर देता है, जिससे चट्टानों की ऊपरी पपड़ी मूल चट्टानों से ऐसे अलग हो जाती है; जैसे अपशल्कन या पल्लवीकरण प्याज़ का छिलका। चट्टान से अलग होने पर छिलकों जैसी ये परतें टूटकर चूर-चूर हो जाती हैं। चट्टानों के टूटने का यह रूप पल्लवीकरण या अपशल्कन (Exfoliation) कहलाता है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 2a

(2) पाला (Frost)-ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में तथा उच्च अक्षांशों वाले प्रदेशों में दिन के समय चट्टानी दरारों में वर्षा या हिम से पिघला जल भर जाता है। रात्रि को तापमान के हिमांक से नीचे गिरने पर यह जल दरारों में ही जम जाता है। जमने पर पानी का आयतन (Volume) बढ़ता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, 9 घन सेंटीमीटर जल जमने के बाद 10 घन सेंटीमीटर जगह घेरता है, जिससे चट्टानों पर प्रति वर्ग सेंटीमीटर 15 किलोग्राम का प्रतिबल पड़ता है। बार-बार जल के जमने और पिघलने (Alternate Freeze and Thaw) की क्रिया से चट्टानों का विखण्डन होता है, जिसे तुषारी अपक्षय (Frost Shattering) कहा जाता है।

(3) दाब-मुक्ति (Pressure Release)कई आग्नेय व रूपान्तरित चट्टानें भारी दबाव व ताप की दशाओं में बनती हैं, जिससे उनके कण भी संकुचित और दबे हुए रहते हैं। समय के साथ ऊपर की चट्टानों का जब अपरदन हो जाता है तो युगों से नीचे दबी चट्टानें दाब-मुक्ति के कारण थोड़ा-बहुत फैलती हैं। इससे चट्टानों में दरारें पड़ती हैं, जिससे उनका विघटन और अपशल्कन होता है। यह क्रिया सामान्य रूप से ग्रेनाइट और संगमरमर जैसी चट्टानों में अधिक पाई जाती है।

(4) लवण क्रिस्टलन अपक्षय (Salt Crystallisation Weathering)-चट्टानों के रन्ध्रों में जमा हुए खारे पानी के वाष्पीकरण से नमक के रवे (Crystals) बन जाते हैं। जैसे-जैसे इन रवों का आकार बढ़ता है, वैसे ही चट्टानों पर दबाव भी बढ़ता है। इससे चट्टानें टूट जाती हैं। यह अपक्षय मरुस्थलों में बलुआ पत्थर में खारे पानी के रिसने से अधिक होता है। समुद्र तट की चट्टानों में भी इसी प्रकार का अपक्षय होता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

प्रश्न 2.
बृहत् क्षरण से आप क्या समझते हैं? मंद संचलन के अन्तर्गत होने वाले बृहत् क्षरण के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बृहत् क्षरण का अर्थ-स्थलमण्डल के आवरण की ऊपरी असंगठित परत (Regolith) तथा चट्टानी मलबे की विशाल मात्रा का गुरुत्वाकर्षण के कारण ढाल से नीचे की ओर फिसलना या सरकना बृहत् क्षरण कहलाता है। इसे बृहत् संचलन (Mass Movement) तथा अनुढाल संचलन (Downslope Movement) भी कहते हैं।

बृहत् क्षरण के प्रकार – बृहत् क्षरण की गति में बड़ी भारी भिन्नता पाई जाती है। यह गति एक वर्ष में कुछ मिलीमीटर (जो दिखाई भी न दे) से लेकर 100 कि०मी० प्रति घण्टा तक हो सकती है। गति के आधार पर बृहत क्षरण के विभिन्न रूपों को दो मोटे वर्गों में बाँटा जा सकता है-
मन्द संचलन (Slow Movement)-

  1. मृदा विसर्पण (Soil Creep)
  2. शैल विसर्पण (Rock Creep)
  3. ढाल मलबा व पाद मलबा (Scree or Talus)
  4. मृदा सर्पण (Solifluction)।

द्रुत संचलन (Rapid Movement)-

  1. मृदा प्रवाह (Soil Flow)
  2. भू-स्खलन (Land Slide)
    • शैल स्खलन (Rock Slide)
    • अवसर्पण (Slumping)
    • शैल पात (Rock Fall)
    • मलबा स्खलन (Debris Slide)
  3. भूमि सर्पण (Earth Slide)
  4. पंक प्रवाह (Mud Flow)।

1. मन्द संचलन (Slow Movement)-अदृश्य होने के बावजूद मन्द संचलन धरातल को तराशने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भू-गर्भवेताओं के अनुसार, लम्बे समय तक जारी रहने वाले मन्द संचलन विस्फोटक और द्रुत संचलन की अपेक्षा मलबे की अधिक मात्रा को लुढ़का ले जाते हैं।

(i) मृदा विसर्पण (Soil Creep)-शीतोष्ण और उष्ण कटिबन्धीय जलवायु के क्षेत्रों में मन्द ढालों पर भी गुरुत्वाकर्षण के कारण चट्टानों का ऊपरी आवरण नीचे की ओर फिसलने लगता है। वर्षा के जल से सराबोर ऊपर की मिट्टी का बहत बड़ा क्षेत्र घास के मैट व वृक्षों समेत इस प्रकार स्थानान्तरित होने लगता है कि उस जमीन पर खड़े आदमी को एहसास भी नहीं होता। इस प्रकार स्थानान्तरित पदार्थ ढाल के आधार तल पर एकत्रित होने लगता है। मृदा विसर्पण को मृदा परिच्छेदिका व प्रतिरोधी चट्टानों के बड़े खण्डों के अनावरण तथा वृक्षों की जड़ों के व्यवहार, बाड़ तथा टेलीफोन के झुके हुए खम्बों द्वारा प्रमाणित किया जा सकता है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 3
मृदा विसर्पण के कारण (Causes of Soil Creep)-

  • शीत जलवायु वाले क्षेत्रों में तुषार (Frost) तथा हिम का पिघलना
  • हिम के कणों के सकार से भार के कारण चट्टानी टुकड़ों का ढाल के नीचे की ओर धकेला जाना
  • शैलों का एकान्तर क्रम से गरम व ठण्डा होना
  • मृदा का जल में भीगना व सूखना
  • भूकम्पों द्वारा शैल आवरण में कम्पन का पैदा होना

(2) शैल विसर्पण (Rock Creep)-वर्षा ऋतु में चट्टानों के ऊपर स्थित शैल चूर्ण और मिट्टी की कमज़ोर परत का आवरण हट जाने के बाद मौसम के कारक आधार शैल (Bed Rock) का विखण्डन करना आरम्भ कर देते है। विखण्डित शैल पदार्थ गुरुत्वाकर्षण के प्रभावाधीन ढाल के अनुसार नीचे की ओर सरकते है, जिसे शैल विसर्पण कहा जाता है।

(3) ढाल मलबा व पाद मलबा (Scree or Talus) पर्वतीय ढलानों पर छोटे-बड़े अनेक आकार के शैल खण्डों के ढेर जमा हो जाते हैं, जिन्हें ढाल मलबा अथवा पाद मलबा कहा जाता है। ये मलबे के कोणीय ढेर होते हैं जिनका आकार ढाल जितना होता है। इन ढेरों की ढाल क्षैतिज आधार से 35° से 37° तक रहती है। इन भू-आकृतियों की रचना तुषार अपक्षय (Frost Weathering) वाले इलाके में होती है।

कुछ विद्वान ढाल मलबे को पाद मलबे का समानार्थक मानते हैं, जबकि अन्य कुछ इन दोनों में फर्क मानते हैं। उनके अनुसार, ढाल मलबा (स्क्री) वह पदार्थ होता है जो पर्वतीय ढाल पर बिखरा हुआ पड़ा होता है, जबकि पाद मलबा (टैलस) भृगु तल पर निश्चित रूप से एकत्र तलछट को कहते हैं। भृगुओं (Cliffs) के ऊपरी सिरों पर अपक्षय द्वारा कीपाकार संकरे खड्डों (Ravines) का निर्माण हो जाता है।

अपक्षयित पदार्थ इन संकरे खड्डों में जमा होता-होता भृगु के तल से ऊपर की ओर बढ़ने लगता है, इसे टैलस शंकु कहते हैं। इन टैलस शंकुओं में बड़े आकार की भारी शैलें आधार तल पर पाई जाती हैं, जबकि अपेक्षाकृत हल्के कण ऊपर के स्तरों में पाए जाते हैं।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 4
(4) मृदा सर्पण (Solifluction)-Solifluction लातीनी भाषा के दो पदों ‘Solum Soil’ (मृदा) तथा ‘Fluere flow’ (बहना) से मिलकर बना है जिसका अर्थ जल से संतृप्त मिट्टी का ढाल के नीचे की ओर प्रवाह है। मृदा सर्पण ऊँचे अंक्षाशों तथा निम्न अंक्षाशों के उच्च पर्वतीय भागों में घटित होता है। आर्कटिक वृत के टुण्ड्रा प्रदेशों में स्थाई हिम (Permafrost) (जहाँ सारा वर्ष तापमान 0° सेल्सियस व उससे भी कम रहता है) के क्षेत्रों में ग्रीष्म ऋतु के आरम्भ में ऊपर की हिम पिघलने लगती है, जबकि नीचे की भूमि अभी हिम से जमी हुई (Frozen) होती है। स्थाई हिम पिघले हुए जल के अन्तःस्राव अर्थात् रिसाव में बाधा डालती है। परिणामस्वरूप पर्माफ्रॉस्ट के ऊपर जल से लबालब मलबा ढाल के अनुरूप खिसकने लगता है। मृदा सर्पण की गति इतनी मन्द होती है कि वह दिखाई ही नहीं देती। पर्वतीय ढालों पर मृदा सर्पण से सोपानों एवं वेदिकाओं का निर्माण होता है।

प्रश्न 3.
भू-स्खलन का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसके विभिन्न प्रकारों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भू-स्खलन का अर्थ-चट्टानी भागों का बड़े पैमाने पर तीव्र गति से सर्पण भू-स्खलन कहलाता है। इसमें जल या हिम की स्नेहक के रूप में जरूरत नहीं पड़ती। भू-स्खलन में भारी मात्रा में मलबे के नीचे आने से जान-माल की हानि होती है।

भू-स्खलन के प्रकार भू-स्खलन चार प्रकार का होता है। इनकी संक्षिप्त व्याख्या इस प्रकार है-
(1) शैल-स्खलन (Rock Slide)-भू-स्खलन के सभी प्रकारों में शैल-स्खलन का सबसे अधिक महत्त्व है। पहाड़ों से बड़े-बड़े शिलाखण्ड अपनी जगह से खिसककर भ्रंश तल (Fault Plane) या संस्तरण तल (Bedding Plane) के सहारे लुढ़कते-फिसलते नीचे आते हैं।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 5

(2) अवसर्पण (Slumping)-अवसर्पण की क्रिया वक्राकार तल पर घूर्णन गति (Rotating) के फलस्वरूप घटित होती है। इसमें चट्टान का स्खलन ढाल के सहारे रुक-रुक कर होता है और कम दूरी तक होता है। जिस ढाल पर चट्टान का अवसर्पण होता है उस पर सीढ़ीनुमा छोटी-छोटी वेदिकाएँ बन जाती हैं। भारत में अवसर्पण के उदाहरण, पश्चिमी तट पर चेन्नई और विशाखापट्टनम के बीच तथा पूर्वी तट पर केरल में कौनिक के निकट मिलते है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 6

(3) शैल पात (Rock Fall)-शैल पात की क्रिया शैल स्खलन से मिलती-जुलती अवसर्पण है। अन्तर केवल यह है कि शैल पात में किसी खड़े ढाल वाले क्लिफ से विशाल शैल खण्ड अकेले ब्लॉक के रूप में गिरता है। गिरने वाले खण्ड का आकार एक गोलाश्म (Boulder) जितना छोटा भी हो सकता है और गाँव के आकार जितना विशाल भी। गिरने वाले खण्ड का आकार क्लिफ की भौमकीय रचना पर निर्भर करता है। गिरने के बाद वह विशाल खण्ड अनेक प्रकार के बड़े-बड़े और छोटे-छोटे टुकड़ों में बँट सकता है। हिमालय तथा आल्पस पर्वत क्षेत्रों में शैल पात की घटनाएँ प्रायः होती रहती है।

(4) मलबा स्खलन (Debris Slide) मलबा स्खलन वह शैल चूर्ण होता है जो अपने मूल स्थान से हट कर ढाल के नीचे की ओर खिसकता हुआ किसी अन्य स्थान पर दोबारा एकत्र हो जाता है। यदि मलबा समूह तीव्र ढाल पर नीचे की ओर तेजी से विसर्पण करता है तो इस क्रिया को मलबा स्खलन कहते हैं और यदि मलबे का समूह तीव्र गति के साथ ऊंचाई से नीचे की ओर गिरता है तो उसे मलबा पात (Debris Fall) कहते हैं। हिमालय की घाटियों में मलबा स्खलन और मलबा पात की अनेकों घटनाएँ देखने को मिलती हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

प्रश्न 4.
बृहत संचलन के प्रकार बताते हुए किसी एक का संक्षेप में वर्णन करें। द्रूत संचलन के प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बृहत संचलन मुख्यतः तीन प्रकार का होता है-

  • मंद संचलन (Slow Movement)
  • दूत संचलन (Rapid Movement)
  • भू-स्खलन (Land Slide)

गुरुत्वाकर्षण के कारण मृदा अथवा चट्टान का अचानक एवं तीव्र गति से संचलन बहुत हानिकारक होता है। मलबे के द्रुत संचलन के लिए वर्षा के जल या हिम के पिघले जल की भारी मात्रा में आवश्यकता होती है। इसमें से द्रुत संचलन का वर्णन निम्नलिखित है
1. भूमि सर्पण (Earth Slide) इसमें भूमि का एक पूरा-का-पूरा विशाल ब्लॉक पर्वत या पहाड़ी के नीचे की ओर खिसकता है। यह टूटकर खण्डित नहीं होता, बल्कि पूरा ब्लॉक ही ज्यों-का-त्यों रहता है। यह खिसकी हुई भूमि मार्ग में कितने ही लम्बे अथवा थोड़े समय तक रुकी रह सकती है।

2. मृदा प्रवाह (Soil Flow)-आर्द्र जलवायु के क्षेत्रों में जल के संतृप्त मिट्टी, ऊपरी भाग का चट्टान चूर्ण, चिकनी मिट्टी तथा शैल मृत्तिका आदि गुरुत्वाकर्षण की शक्ति द्वारा तीव्र गति से कुछ ही घंटों में ढाल के नीचे की ओर खिसक आते हैं, इसे मृदा प्रवाह कहते हैं। मृदा प्रवाह में जल अथवा हिमजल स्नेहक (Lubricant) का काम करते हैं।

3. पंक प्रवाह (Mud Flow)-अधिक वर्षा वाले प्रदेशों में जल से संतृप्त होकर शैल पदार्थ अपने मूल स्थान की ढाल से अलग होकर प्लास्टिक पदार्थ की भाँति नीचे की ओर निकली हुई जिह्वाओं की आवृति में बहने लगते हैं।

ज्वालामुखी उद्गार के बाद होने वाली वर्षा में ज्वालामुखी राख और धूलकण गीले होकर पंक का रूप धारण कर लेते है आर ढाल के साथ नीचे की ओर खिसकते हैं।

4. मलबा अवधाव (Debris Avalanche) मलबा अवधाव द्रुत संचलन आर्द्र प्रदेशों में, जिनमें वनस्पति का आवरण हो या न हो, पाया जाता है। यह मलबा तीव्र ढालों पर संकरे मार्गों से बहता है। मलबा अवधाव हिम अवधाव जैसा होता है और पंक प्रवाह की अपेक्षा बहुत तेज बहता है।

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. निम्नलिखित में से कौन-सा प्राकृतिक पदार्थ शैल की रचना करता है?
(A) बालू और चीका
(B) बजरी और रोड़ी
(C) ग्रेनाइट
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

2. आग्नेय शैलों को प्राथमिक शैलें इसलिए कहा जाता है क्योंकि
(A) ये भू-पृष्ठ पर सबसे ऊपर पाई जाती हैं।
(B) इनका भू-पृष्ठ पर सबसे अधिक विस्तार है
(C) इन शैलों का पृथ्वी पर सबसे पहले निर्माण हुआ था
(D) ये आर्थिक दृष्टि से सबसे महत्त्वपूर्ण शैलें हैं
उत्तर:
(C) इन शैलों का पृथ्वी पर सबसे पहले निर्माण हुआ था

3. ‘प्लूटो’ का अर्थ है-
(A) ग्रहों का देवता
(B) जल देवता
(C) अग्नि देवता
(D) पाताल देवता
उत्तर:
(D) पाताल देवता

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4. अंतर्वेधी आग्नेय शैलों के संबंध में कौन-सा कथन असत्य है?
(A) पातालीय शैलें केवल उत्थापन अथवा पृथ्वी के ऊपरी भाग के अनाच्छादन के बाद ही नजर आती हैं
(B) पाताल के अन्दर शीघ्र ठण्डी होने के कारण इन शैलों के रवे अत्यन्त छोटे होते हैं
(C) पातालीय आग्नेय शैलों के उदाहरण गेब्रो व ग्रेनाइट हैं
(D) पातालीय शैलें अपने मूल स्थान पर मैग्मा के जम जाने से बनती हैं
उत्तर:
(B) पाताल के अन्दर शीघ्र ठण्डी होने के कारण इन शैलों के रवे अत्यन्त छोटे होते हैं

5. स्थलमण्डल के लगभग तीन-चौथाई भाग में कौन-सी शैलें पाई जाती हैं?
(A) अवसादी
(B) आग्नेय
(C) कायांतरित
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) अवसादी

6. भूगर्भ में मैग्मा का सबसे बड़ा व सबसे गहरा भण्डार क्या कहलाता है?
(A) लैकोलिथ
(B) फैकोलिथ
(C) बैथोलिथ
(D) स्टॉक
उत्तर:
(C) बैथोलिथ

7. मोड़दार पर्वतों की अपनति व अभिनति में हुए मैग्मा के लहरदार जमाव को क्या कहते हैं?
(A) सिल
(B) डाइक
(C) फैकोलिथ
(D) लैकोलिथ
उत्तर:
(C) फैकोलिथ

8. गन्ना व कपास के लिए उपजाऊ काली मिट्टी किस शैल के क्षरण से बनती है?
(A) बेसाल्ट शैलें
(B) बालू-प्रधान अवसादी शैलें
(C) ग्रेनाइट शैलें
(D) आब्सीडियन
उत्तर:
(A) बेसाल्ट शैलें

9. निम्नलिखित में से कौन-सी अवसादी शैल है?
(A) बलुआ-पत्थर
(B) अभ्रक
(C) ग्रेनाइट
(D) नाईस
उत्तर:
(A) बलुआ-पत्थर

10. ग्रेनाइट शैल को आप किस वर्ग में रखेंगे?
(A) पैठिक आग्नेय शैल
(B) मध्यवर्ती आग्नेय शैल
(C) पातालीय आग्नेय शैल
(D) बहिर्वेधी आग्नेय शैल
उत्तर:
(C) पातालीय आग्नेय शैल

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11. रासायनिक क्रिया से बनी परतदार शैल का उत्तम उदाहरण है-
(A) जिप्सम
(B) बालू पत्थर
(C) शैल
(D) खड़िया
उत्तर:
(A) जिप्सम

12. निम्नलिखित में से कौन-सी आग्नेय शैल अंतर्वेधी है?
(A) लावा पठार
(B) गौण शंकु
(C) ज्वालामुखी शंकु
(D) डाइक
उत्तर:
(D) डाइक

13. किस मूल शैल से कायांतरित होकर हीरा बना?
(A) नीस
(B) बलुआ पत्थर
(C) कोयला
(D) ग्रेनाइट
उत्तर:
(C) कोयला

14. पैंसिल का सिक्का बनाने के लिए किस शैल का प्रयोग किया जाता है?
(A) स्लेट
(B) एस्बेस्टस
(C) कोयला
(D) ग्रेफाइट
उत्तर:
(D) ग्रेफाइट

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
पृथ्वी के आंतरिक भाग में खनिजों का मूल स्रोत क्या है?
उत्तर:
मैग्मा।

प्रश्न 2.
खनिजों का निर्माण करने वाले तत्त्वों की संख्या बताइए।
उत्तर:
खनिजों का निर्माण करने वाले तत्त्वों की संख्या 8 है।

प्रश्न 3.
चट्टान बनाने वाले सामान्य खनिज कितने हैं?
उत्तर:
चट्टान बनाने वाले सामान्य खनिज 12 हैं।

प्रश्न 4.
भू-पर्पटी पर पाए जाने वाले खनिजों में सिलीकेट की प्रतिशत मात्रा कितनी है?
उत्तर:
भू-पर्पटी पर पाए जाने वाले खनिजों में सिलीकेट की प्रतिशत मात्रा लगभग 87 प्रतिशत है।

प्रश्न 5.
अधिसिलिक आग्नेय चट्टानों में सिलिका का प्रतिशत कितना होता है?
उत्तर:
अधिसिलिक आग्नेय चट्टानों में सिलिका का प्रतिशत लगभग 55 प्रतिशत होता है।

प्रश्न 6.
अल्पसिलिक आग्नेय चट्टान का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
बेसाल्ट/गेब्रो।

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प्रश्न 7.
बेसाल्ट के अपक्षय से दक्षिणी भारत में पाई जाने वाली उपजाऊ काली मिट्टी का नाम क्या है?
उत्तर:
बेसाल्ट के अपक्षय से दक्षिणी भारत में पाई जाने वाली उपजाऊ काली मिट्टी का नाम रेगड़ है।

प्रश्न 8.
स्थिति के आधार पर आग्नेय चट्टानों के कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर:
स्थिति के आधार पर आग्नेय चट्टानें दो प्रकार की होती हैं-

  1. बहिर्वेधी और
  2. अंतर्वेधी।

प्रश्न 9.
शैलें (चट्टानें) कितने प्रकार की होती हैं?
उत्तर:
तीन।

  1. याग्नेय शैलें
  2. अवसादी शैलें
  3. कायांतरित शैलें।

प्रश्न 10.
लाल रंग के बलुआ पत्थर से बनी किन्हीं दो प्रसिद्ध इमारतों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. दिल्ली का लाल किला
  2. फतेहपुर सीकरी का महल।

प्रश्न 11.
हिमानी द्वारा जमा किए गए अवसादों से बनी चट्टान का क्या नाम है?
उत्तर:
गोलाश्म मृत्तिका (Till)।

प्रश्न 12.
अवसादी चट्टानों में कौन-से दो खनिज ईंधन पाए जाते हैं?
उत्तर:

  1. कोयला और
  2. खनिज तेल।

प्रश्न 13.
पेन्सिल बनाने, धातु गलाने, परमाणु ऊर्जा संयन्त्रों के निर्माण तथा बिलियर्डस की मेज़ बनाने के लिए कौन-सी चट्टान का उपयोग किया जाता है?
उत्तर:
पेन्सिल बनाने, धातु गलाने, परमाणु ऊर्जा संयन्त्रों के निर्माण तथा बिलियर्ड्स की मेज़ बनाने के लिए ग्रेफाइट का उपयोग किया जाता है।।

प्रश्न 14.
अवसादी चट्टानें स्थलमण्डल के कितने प्रतिशत भाग पर विस्तृत हैं?
उत्तर:
अवसादी चट्टानें स्थलमण्डल के 75 प्रतिशत भाग पर विस्तृत हैं।

प्रश्न 15.
भारत में स्लेट किन-किन राज्यों में मिलती है?
उत्तर:
झारखण्ड, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा में।

प्रश्न 16.
जिप्सम किस प्रकार की उत्पत्ति वाली चट्टान है?
उत्तर:
जिप्सम रासायनिक उत्पत्ति वाली चट्टान है।

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प्रश्न 17.
जैविक उत्पत्ति वाली दो अवसादी चट्टानों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. चूने का पत्थर और
  2. कोयला।

प्रश्न 18.
रूपान्तरण कितनी गहराई पर और कितने तापमान पर होता है?
उत्तर:
धरातल से 12 से 16 कि०मी० की गहराई पर और 150°C से 800°C तापमान तक।

प्रश्न 19.
ग्रेफाइट का गलनांक कितना होता है?
उत्तर:
ग्रेफाइट का गलनांक 3500°C सेल्सियस होता है।

प्रश्न 20.
आग्नेय चट्टानों/शैलों की उत्पत्ति का स्रोत क्या है?
उत्तर:
आग्नेय चट्टानों की उत्पत्ति का स्रोत ज्वालामुखी उदभेदन है।

प्रश्न 21.
धरातल पर आते ही लावा तेजी से ठण्डा क्यों हो जाता है?
उत्तर:
क्योंकि वह वायुमण्डल के सम्पर्क में आ जाता है।

प्रश्न 22.
अधिसिलिक या अम्लीय आग्नेय चट्टानों में सिलिका की मात्रा कितनी होती है?
उत्तर:
65 से 85 प्रतिशत तक।

प्रश्न 23.
अल्पसिलिक या क्षारीय या पैठिक आग्नेय चट्टानों में सिलिका की मात्रा कितनी होती है?
उत्तर:
45 से 55 प्रतिशत तक।

प्रश्न 24.
पश्चिमी भारत में बेसाल्ट से घिरे विस्तृत प्रदेश का क्या नाम है?
उत्तर:
दक्कन ट्रैप।

प्रश्न 25.
तलछट को कठोरता से जोड़ने का काम कौन-से तत्त्व करते हैं?
उत्तर:
सिलिका और कैल्साइट।

प्रश्न 26.
यांत्रिक क्रिया द्वारा बनी अवसादी चट्टानों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
काँग्लोमरेट, ब्रेसिया, शेल (Shale) तथा चीका मिट्टी।

प्रश्न 27.
वह कौन-सा मापक है जो खनिज कणों के आकार का कोटि-निर्धारण करता है?
उत्तर:
वेंटवर्थ (Wentworth) मापक।

प्रश्न 28.
स्थलजात पदार्थ (Terrigenous Material) क्या होते हैं?
उत्तर:
स्थल से प्राप्त होने वाला अवसाद जो समुद्रों में निक्षेपित होता है।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उत्पत्ति के आधार पर अवसादी चट्टानें कितने प्रकार की होती हैं?
उत्तर:
उत्पत्ति के आधार पर अवसादी चट्टानें तीन प्रकार की होती हैं-

  1.  यांत्रिक
  2. जैविक और
  3. रासायनिक।

प्रश्न 2.
चट्टानों का रूपान्तरण कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
चट्टानों का रूपांतरण तीन प्रकार का होता है-

  1. गतिक
  2. तापीय और
  3. क्षेत्रीय।

प्रश्न 3.
उत्पत्ति के आधार पर चट्टानों के कितने प्रकार हैं?
उत्तर:
उत्पत्ति के आधार पर चट्टानें तीन प्रकार की होती हैं-

  1. आग्नेय चट्टानें
  2. परतदार अथवा तलछटी चट्टानें
  3. कायान्तरित चट्टानें।

प्रश्न 4.
IGNEOUS’ शब्द कहाँ से आया है? इसका अर्थ भी बताइए।
उत्तर:
इग्नियस शब्द लातीनी (Latin) भाषा के ‘Ignis’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है-आग (Fire)।

प्रश्न 5.
‘Plutonic’ शब्द कहाँ से आया है? इसका अर्थ भी बताइए।
उत्तर:
प्लूटोनिक शब्द ‘Pluto’ से बना है जिसका अर्थ है ‘पाताल देवता’।

प्रश्न 6.
गेब्रो तथा ग्रेनाइट की चट्टानों से रवे (Crystals) बड़े-बड़े क्यों बनते हैं?
उत्तर:
इन चट्टानों को पाताल के अन्दर ठण्डा होने में बहुत समय लग जाता है जिससे इन चट्टानों की रचना करने वाले रवे बड़े बनते हैं।

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प्रश्न 7.
बेसाल्ट में रखे नहीं के बराबर होते हैं, क्यों?
उत्तर:
शान्त उद्गार से बनी इस चट्टान में लावा शीघ्र जम जाता है जिसमें इन चट्टानों के खनिजों के रवे लगभग नहीं बनते।

प्रश्न 8.
ज्वालामुखी काँच क्या होता है?
उत्तर:
यदि लावा बहुत शीघ्र ठण्डा हो जाए तो काँच जैसी चट्टानों का निर्माण होता है जिसे ज्वालामुखी काँच (Volcanic Glass) या आब्सीडियन कहा जाता है।

प्रश्न 9.
पातालीय, अधिवितलीय तथा बहिर्वेधी चट्टानों के दो-दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. पातालीय – ग्रेबो तथा ग्रेनाइट।
  2. अधिवितलीय या मध्यवर्ती – डोलेराइट तथा माइका पैग्मेटाइट।
  3. बहिर्वेधी – बेसाल्ट तथा आब्सीडियन।

प्रश्न 10.
बैथोलिथ क्या होता है?
उत्तर:
यह मैग्मा का सबसे बड़ा गुम्बदाकार जमाव होता है जो अत्यधिक गहराई में पाया जाता है।

प्रश्न 11.
लैकोलिथ क्या होता है?
उत्तर:
भू-गर्भ से धरातल की ओर बढ़ता हुआ विस्फोटक मैग्मा जब किन्हीं कारणों से धरातल पर नहीं पहुंच पाता तो वह परतदार चट्टानों में छतरीनुमा रूप ले लेता है जिसे लैकोलिथ कहते हैं।

प्रश्न 12.
स्टॉक किसे कहते हैं?
उत्तर:
छोटे आकार के बैथोलिथ को स्टॉक कहते हैं।

प्रश्न 13.
निर्माणकारी साधनों के आधार पर अवसादी चट्टानें कितने प्रकार की हैं?
उत्तर:
निर्माणकारी साधनों के आधार पर अवसादी चट्टानें तीन प्रकार की होती हैं-

  1. जलीय चट्टानें
  2. हिमनद निर्मित
  3. वायु निर्मित।

प्रश्न 14.
जलीय अवसादी चट्टानें कितने प्रकार की होती हैं?
उत्तर:
जलीय अवसादी चट्टानें तीन प्रकार की होती हैं-

  1. नदीकृत
  2. सरोवरी
  3. समुद्री।

प्रश्न 15.
काँग्लोमरेट क्या होता है?
उत्तर:
जब बालू के कणों के साथ गोल व चिकने रोड़े गारे के साथ आपस में जुड़ जाते हैं तो उसे काँग्लोमरेट कहते हैं।

प्रश्न 16.
चूना-प्रधान तथा कार्बन-प्रधान जैव अवसादी चट्टानों के दो-दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
चूना-प्रधान अवसादी चट्टानें सेलखड़ी और खड़िया कार्बन-प्रधान अवसादी चट्टानें कोयला, पीट।

प्रश्न 17.
कार्बन की मात्रा के आधार पर कोयले की श्रेष्ठता का क्रम निर्धारित कीजिए।
उत्तर:

  1. पीट
  2. लिग्नाइट
  3. बिटुमिनस
  4. एन्थ्रेसाइट।

प्रश्न 18.
रासायनिक क्रिया से बनी निर्जेव अवसादी चट्टानों के तीन उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. सेंधा नमक (Salt Rock)
  2. जिप्सम व
  3. शोरा।

प्रश्न 19.
रूपान्तरण से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
रूपान्तरण से अभिप्राय चट्टानों के रंग, रूप तथा रचना में बदलाव से है।

प्रश्न 20.
रूपान्तरण किन कारणों से होता है?
उत्तर:
चट्टानों का रूपान्तरण ताप और दबाव के कारण होता है।

प्रश्न 21.
रूपान्तरित होकर बलुआ पत्थर तथा चूने का पत्थर किन चट्टानों में बदल जाता है?
उत्तर:
बलुआ पत्थर क्वार्टज़ाइट में तथा चूने का पत्थर संगमरमर में।

प्रश्न 22.
शैल गठन से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
चट्टानों में खनिजों के क्रिस्टलों का आकार तथा उनका प्रतिरूप (Pattern) शैल गठन कहलाता है।

प्रश्न 23.
शिलीभवन (Solidification) क्या होता है?
उत्तर:
महासागरों के नितलों पर दबाव के कारण अवसादी परतों का सघन और कठोर हो जाना शिलीभवन कहलाता है।

प्रश्न 24.
जीवांश (Humus) का अर्थ बताइए।
उत्तर:
मिट्टी में पाए जाने वाले जन्तु एवं वनस्पति के विघटित एवं अंशतः विघटित जैव पदार्थ जो मिट्टी के उपजाऊपन को बढ़ाते हैं, जीवांश कहलाते हैं।

प्रश्न 25.
जीवाश्म (Fosil) क्या होता है?
उत्तर:
परतदार चट्टानों के बीच जीव-जन्तुओं और वनस्पति के अवशेष या उनके छापों का मिलना, जीवाश्म होता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

प्रश्न 26.
चट्टानों के गठन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
चट्टानों की रचना करने वाले कणों का आकार, आकृति और एक-दूसरे से जुड़ने की व्यवस्था अर्थात् कणों का ज्यामितीय स्वरूप चट्टानों का गठन कहलाता है।

प्रश्न 27.
क्वाटर्ज क्या है और इसकी क्या विशेषता है?
उत्तर:
यह प्राकृतिक रवेदार सिलिका (बालू) है। यह कभी-कभी शुद्ध, स्वच्छ और रंगहीन कणों में मिलता है। इसके ऊँचे गलनांक के कारण उद्योगों में इसका बहुत उपयोग होता है।

प्रश्न 28.
रासायनिक संरचना के आधार पर आग्नेय चट्टानों के कितने भेद हैं?
उत्तर:
रासायनिक संरचना के आधार पर आग्नेय चट्टानों (अन्तर्वेधी और बहिर्वेधी दोनों) के दो वर्ग हैं-]

  1. अधिसिलिक या अम्लीय चट्टानें।
  2. अल्पसिलिक या क्षारीय या पैठिक चट्टानें।

प्रश्न 29.
खनिज की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
‘खनिज’ वे प्राकृतिक पदार्थ होते हैं जिनकी अपनी भौतिक विशेषताएँ तथा एक निश्चित रासायनिक बनावट होती है। अधिकांश खनिज ठोस, जड़ व अकार्बनिक अथवा अजैव पदार्थ होते हैं। चट्टानों की रचना विभिन्न खनिजों के संयोग से होती है। वॉरसेस्टर के अनुसार, “लगभग सभी चट्टानों में दो या दो से अधिक खनिज होते हैं।” कई बार चट्टान केवल एक खनिज से भी बनती है; जैसे चूना, पहाड़ी नमक, बालू-पत्थर इत्यादि। इसी आधार पर फिन्च व ट्रिवार्था ने कहा है, “एक या एक से अधिक खनिजों के मिश्रण से चट्टानों का निर्माण होता है।”

प्रश्न 30.
बहिर्वेधी आग्नेय चट्टानें क्या होती हैं?
उत्तर:
वे चट्टानें जो ज्वालामुखी क्रिया द्वारा धरातल के ऊपर आए लावा के ठण्डा होकर ठोस होने से बनती हैं बहिर्वेधी आग्नेय चट्टानें कहलाती हैं। इन्हें ज्वालामुखी चट्टानें भी कहा जाता है। काले या लाल रंग के गाढ़े द्रव्य के बहते हुए चादर के रूप में जमने के कारण इन चट्टानों को लावा स्तर (Lava flows) भी कहा जाता है।

प्रश्न 31.
आग्नेय चट्टानी पिण्ड क्या होते हैं?
उत्तर:
मैग्मा के ठोसावस्था में आने पर अनेक तरह के आग्नेय चट्टानी पिण्डों की रचना होती है। इनका नामकरण इनके रूप, आकार, स्थिति तथा आस-पास पाई जाने वाली चट्टानों के आधार पर किया जाता है। अधिकांश चट्टानी पिण्ड अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानों से बने हुए हैं।

प्रश्न 32.
गतिक रूपान्तरण क्या होता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी की आन्तरिक हलचलों के कारण चट्टानों में नमन (Bending) और वलन (Folding) आ जाते हैं। इससे चट्टानों पर भारी दबाव पड़ता है और परिणामस्वरूप चट्टानों के रूप व संघटन में परिवर्तन आ जाता है। इसे गतिक रूपान्तरण कहते हैं। इस प्रकार के रूपान्तरण से ग्रेनाइट का नीस तथा चिकनी मिट्टी व शैल का शिस्ट व स्लेट में कायान्तरण हो जाता है।

प्रश्न 33.
अधिसिलिक या अम्लीय आग्नेय चट्टानें क्या होती हैं?
उत्तर:
अधिसिलिक चट्टानों में सिलिका की मात्रा 65 से 85 प्रतिशत होती है। इन चट्टानों के शेष तत्त्वों में सोडियम, पोटाशियम व कैल्शियम के फेल्सपार नामक खनिजों की प्रधानता होती है। लोहे की कम मात्रा के कारण इन चट्टानों का घनत्व कम (लगभग 2.75) होता है तथा रंग भी हल्का होता है। ग्रेनाइट (अन्तर्वेधी) और आब्सीडियन (बहिर्वेधी) अधिसिलिक आग्नेय चट्टानों के प्रमुख उदाहरण हैं। .

प्रश्न 34.
अल्पसिलिक या क्षारीय या पैठिक आग्नेय चट्टानें क्या होती हैं?
उत्तर:
अल्पसिलिक आग्नेय चट्टानों में सिलिका की मात्रा 45 से 55 प्रतिशत तक होती है। इन चट्टानों के अन्य रचक तत्त्वों में लोहा व मैग्नीशियम के खनिजों की प्रधानता होती है, इसी कारण इन चट्टानों का रंग गहरा व घनत्व अधिक (लगभग 3) होता है। बेसाल्ट (बहिर्वेधी) और गेब्रो (अन्तर्वेधी) इसी वर्ग की चट्टानें हैं।

प्रश्न 35.
भारत में कायान्तरित चट्टानें कहाँ-कहाँ पाई जाती हैं?
उत्तर:

  1. शिस्ट व नीस दक्षिणी भारत, बिहार व राजस्थान के कुछ भागों में पाई जाती है।
  2. क्वार्टज़ाइट राजस्थान, झारखण्ड, मध्य प्रदेश व तमिलनाडु में पाया जाता है।
  3. संगमरमर राजस्थान के अलवर, अजमेर, जयपुर व जोधपुर में व मध्य प्रदेश में जबलपुर के निकट नर्मदा घाटी में पाया जाता है।
  4. स्लेट हरियाणा (रेवाड़ी, कुण्ड, अटेली, नारनौल), हिमाचल प्रदेश (काँगड़ा) तथा झारखण्ड में पाई जाती है।

प्रश्न 36.
चट्टानी चक्र से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
आग्नेय और अवसादी चट्टानें ताप, दबाव, भू-संचलन व रासायनिक क्रियाओं के प्रभावाधीन रूपान्तरित चट्टानों में बदलती रहती हैं। जब चट्टानें अपने किसी वर्ग में स्थिर न रहकर परिस्थितियों के कारण अपना वर्ग बदलती रहती हैं, इसे चट्टानी चक्र कहते हैं। इसमें कोई भी चट्टान कोई भी रूप धारण कर सकती है।

प्रश्न 37.
ब्रेसिआ तथा काँग्लोमरेट का निर्माण किस प्रकार होता है?
उत्तर:
ब्रेसिआ तथा काँग्लोमरेट का निर्माण तलछटी चट्टानों से यान्त्रिक क्रिया द्वारा होता है। अपरदन क्रिया द्वारा पत्थरों तथा कंकड़ों का आकार गोल हो जाता है। जब ये पत्थर आपस में जुड़ जाते हैं तो उनसे काँग्लोमरेट का निर्माण होता है। ये पत्थर क्वार्ट्ज के कारण आपस में जुड़ते हैं। ब्रेसिआ का निर्माण पत्थरों के बीच गारा भर जाने के कारण जुड़ने से होता है। ब्रेसिआ में पत्थरों की आकृति नुकीली होती है।

प्रश्न 38.
निम्नलिखित चट्टानों का आग्नेय, अवसादी तथा रूपान्तरित चट्टानों में वर्गीकरण कीजिए-
(1) ट्रैप
(2) बेसाल्ट
(3) डोलेराइट
(4) क्वार्ट्ज़ाइट
(5) कोयला
(6) एन्थ्रासाइट
(7) चूनाश्म
(8) खड़िया
(9) संगमरमर
(10) चीका
(11) शैल
(12) नाइस
(13) शिस्ट
(14) बलुआ पत्थर
(15) ग्रेनाइट
(16) सेंधा नमक
(17) ब्रेसिआ
(18) फाइलाइट
(19) प्रवाल
(20) काँग्लोमरेट।
उत्तर:

आग्नेय चट्टानेंअवसादी चट्टानेंरूपान्तरित चट्टानें
ट्रैप, बेसाल्ट, डोलेराइट ग्रेनाइट।कोयला, चीका, एन्थ्रासाइट, शैल, चूना पत्थर, खड़िया, बलुआ पत्थर, सेंधा नमक, ब्रेसिआ, प्रवाल, काँग्लोमरेट।क्वार्ट्रज़ाइट, संगमरमर, नाइस, शिस्ट, फाइलाइट।

प्रश्न 39.
अवसादी चट्टानों के गुणों को नियन्त्रित करने वाले कारकों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. उत्पत्ति क्षेत्र में उपस्थित शैलों के प्रकार
  2. उत्पत्ति क्षेत्र का वातावरण
  3. उत्पत्ति क्षेत्र एवं निक्षेपण क्षेत्र में भू-संचरण (Earth Movements)
  4. निक्षेपण क्षेत्र में वातावरण
  5. निक्षेपण के बाद तलछटों में हुए परिवर्तन।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आग्नेय चट्टान क्या है?
उत्तर:
आग्नेय शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के इग्निस (Ignis) शब्द से हुई है, जिसका तात्पर्य है कि अग्नि के समान गरम तप्त लावा के ठण्डे होने से इन चट्टानों का निर्माण हुआ। पृथ्वी अपनी उत्पत्ति के समय गरम, तरल एवं गैसीय पुंज थी, जो धीरे-धीरे ठण्डी हुई। ठण्डी एवं ठोस अवस्था में आने से इन चट्टानों का निर्माण हुआ। पृथ्वी पर सर्वप्रथम इन्हीं चट्टानों का निर्माण हुआ इसलिए इन्हें प्राथमिक चट्टानें भी कहते हैं। आग्नेय चट्टानें पृथ्वी के पिघले हुए पदार्थ (मैग्मा) के ठण्डा एवं ठोस हो जाने के कारण बनी हैं।

प्रश्न 2.
चट्टान बनाने वाले खनिज कौन-से होते हैं? इनकी रचना किन तत्त्वों से होती है?
उत्तर:
चट्टानों की रचना 2,000 विभिन्न खनिजों से हुई है। इनमें से केवल 12 खनिज ऐसे हैं जो पृथ्वी तल पर हर जगह पाए जाते हैं। प्रायः प्रत्येक खनिज में दो या दो से अधिक रासायनिक तत्त्व होते हैं। उदाहरणतः क्वार्टज़ दो तत्त्वों सीलिकॉन व ऑक्सीजन से मिलकर बना है। इसी प्रकार कैल्शियम कार्बोनेट कैल्शियम (चूना), कार्बन और ऑक्सीजन से बना रासायनिक यौगिक है। कुछ खनिज एक ही तत्त्व से बने हुए पाए जाते हैं; जैसे सोना, ताँबा, सीसा (Lead) व गन्धक इत्यादि। अधिकांश खनिजों की रचना आठ मुख्य रासायनिक तत्त्वों से हुई है। भू-पर्पटी के कुलं भार का 97.3% इन्हीं 8 तत्त्वों के कारण है। स्थलमण्डल के लगभग 87% खनिज सिलिकेट हैं।

प्रश्न 3.
धात्विक तथा अधात्विक खनिजों में आप कैसे अन्तर करेंगे?
उत्तर:
धात्विक खनिज (Metallic Minerals) वे होते हैं जिन्हें परिष्कृत किया जा सकता है। परिष्कृत करने पर उनका ‘धरातल चिकना (Smooth) व चमकीला हो जाता है। इनसे हमें धातुएँ प्राप्त होती हैं जिन्हें पीटकर चादर, तार इत्यादि विभिन्न आकारों में ढाला जा सकता है। लोहा, चाँदी, सोना, ताँबा, टीन, एल्यूमीनियम, जस्ता, मैंगनीज़ इत्यादि महत्त्वपूर्ण धात्विक खनिज हैं। अधात्विक खनिज (Non-metallic Minerals) वे होते हैं जिन्हें परिष्कृत नहीं किया जा सकता। इनमें धातु का अंश नहीं होता। इन्हें केवल खुरचकर या काटकर विभिन्न आकारों में परिवर्तित किया जा सकता है। कोयला, चूना-पत्थर, गन्धक, जिप्सम, नमक व खनिज तेल इत्यादि अधात्विक खनिजों के उदाहरण हैं।

प्रश्न 4.
“शैलें पृथ्वी के इतिहास के पन्ने हैं और जीवावशेष उसके अक्षर” स्पष्ट कीजिए।
अथवा
“शैलें पृथ्वी के इतिहास की जानकारी प्रदान करती हैं।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भू-पृष्ठ का निर्माण शैलों से हुआ है। भू-वैज्ञानिक इतिहास के बारे में शैलें महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती हैं। शैलों में खनिज पदार्थ पाए जाते हैं तथा इनसे मिट्टी का निर्माण होता है, जो प्राकृतिक पर्यावरण का एक महत्त्वपूर्ण तथा आवश्यक भाग है। शैलों की परतों में जीव-जन्तु तथा प्राकृतिक वनस्पतियों के अवशेष पाए जाते हैं। इन जीवावशेषों से पृथ्वी की उत्पत्ति तथा समय की जानकारी प्राप्त होती है। इसलिए यह कहना सत्य है कि शैलें पृथ्वी के इतिहास के पन्ने हैं और जीवावशेष उसके अक्षर हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

प्रश्न 5.
आग्नेय चट्टानों को प्राथमिक चट्टानें क्यों कहा जाता है? स्थिति के आधार पर आग्नेय चट्टानों को कितने भागों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर:
स्थलमण्डल करोड़ों वर्ष पहले तरल पृथ्वी के ऊपरी भाग के कठोर हो जाने से बना है। इसलिए पृथ्वी पर सबसे पहले आग्नेय चट्टानों का निर्माण हुआ था। इसी आधार पर इन्हें प्राथमिक चट्टानें (Primary Rocks) भी कहा जाता है। अवसादी और रूपान्तरित चट्टानों की अन्य दो किस्में, आग्नेय चट्टानों पर पड़ने वाले प्राकृतिक कारकों के प्रभावों से बनती हैं।
स्थिति के आधार पर आग्नेय चट्टानों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है-

  • अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानें
  • बहिर्वेधी आग्नेय चट्टानें।

प्रश्न 6.
अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टान से क्या अभिप्राय है? इसे कितने वर्गों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर:
जब मैग्मा धरातल के ऊपर न पहुँचकर उसके नीचे ही अलग-अलग गहराइयों पर ठण्डा होकर ठोस रूप धारण कर लेता है तो इससे अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानों का निर्माण होता है। भू-पटल के नीचे गहराई के आधार पर अन्तर्वेधी चट्टानें दो प्रकार की होती हैं

  • पातालीय चट्टानें
  • अधिवितलीय चट्टानें।

प्रश्न 7.
पातालीय चट्टानें क्या होती हैं और इनकी क्या विशेषताएँ होती हैं?
उत्तर:
पातालीय चट्टानों का नामकरण ‘प्लूटो’ (Pluto) के नाम पर किया गया है, जिसका अर्थ होता है ‘पाताल देवता’। अतः ऐसी आग्नेय चट्टानें जो स्थलमण्डल में काफ़ी गहराई पर अपने मूल स्थान पर ही मैग्मा के जम जाने से बनती हैं, पातालीय चट्टानें कहलाती हैं। मैग्मा की विशाल राशि को पाताल के अन्दर ठण्डा होकर जमने में बहुत समय लग जाता है। फलस्वरूप इन चट्टानों की रचना करने वाले खनिजों के रवे (Crystals) बड़े-बड़े बनते हैं। पृथ्वी के ऊपरी भाग के अत्यधिक अनाच्छादन या उत्थापन (Uplifting) के बाद ही ये चट्टानें भू-तल पर प्रकट होती हैं। पातालीय आग्नेय चट्टानों का सबसे महत्त्वपूर्ण उदाहरण गेब्रो तथा ग्रेनाइट हैं। सामान्यतः ग्रेनाइट का रंग भूरा, लाल, गुलाबी व सफेद होता है।

प्रश्न 8.
आग्नेय चट्टानों की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
आग्नेय चट्टानों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. आग्नेय चट्टानें कठोर, ठोस व संहत (Compact) होती हैं, इसलिए ये टिकाऊ भी होती हैं।
  2. इन चट्टानों में परतें नहीं होती, बल्कि ये स्थूल होती हैं।
  3. इन चट्टानों में रन्ध्र (Pores) नहीं होते, अतः जल इनमें प्रवेश नहीं कर पाता।
  4. आग्नेय चट्टानें रवेदार होती हैं किन्तु रवों का आकार मैग्मा के ठण्डा होने की गति पर निर्भर करता है। अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानों के रवे बड़े और बहिर्वेधी चट्टानों के रवे छोटे होते हैं।
  5. तप्त और तरल द्रव्य से बनने के कारण इन प्राथमिक चट्टानों में जीवावशेष (Fossils) नहीं पाए जाते।
  6. इन चट्टानों का अपक्षय कम होता है। इनमें यान्त्रिक अपक्षय (Mechanical Weathering) की प्रक्रिया इनके सन्धि-तलों व भ्रंशों से आरम्भ होती है।
  7. इन चट्टानों में अनेक प्रकार के खनिज बहुतायत में पाए जाते हैं।
  8. सिलिका की मात्रा अधिक होने पर इन चट्टानों का रंग हल्का व सिलिका कम होने पर रंग गहरा हो जाता है।

प्रश्न 9.
आग्नेय चट्टानों का आर्थिक महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  1. इन चट्टानों में आर्थिक महत्त्व के बहुमूल्य खनिज पदार्थों; जैसे सोना, चाँदी, हीरा, निकिल, प्लैटिनम, मैंगनीज़, लोहा, टीन, जस्ता, ग्रेफाइट, ताँबा, सीसा आदि के विशाल भण्डार पाए जाते हैं।
  2. ग्रेनाइट व बेसाल्ट चट्टानों का प्रयोग सड़क और भवन निर्माण में प्राचीनकाल से होता रहा है। भारत में अनेक भव्य किले, महल और मन्दिर आदि इन चट्टानों से बने हुए हैं।
  3. बेसाल्ट चट्टानों के क्षरण से उपजाऊ काली मिट्टी बनती है जो गन्ना और कपास जैसी फसलों के लिए श्रेष्ठ है।
  4. आग्नेय चट्टानों के क्षेत्र में खनिज मिश्रित गरम जल के स्रोत पाए जाते हैं।

प्रश्न 10.
अवसादी चट्टानें किस प्रकार बनती हैं?
अथवा
अवसादी चट्टानों की निर्माण प्रक्रिया समझाइए।
अथवा
“अवसादी चट्टानें अन्य चट्टानों से बनती हैं।” इस कथन को सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
अपक्षय तथा अपरदन क्रिया द्वारा चट्टानें ट-फट कर छोटे-बड़े कणों में परिवर्तित होती रहती हैं जिसे अवसाद कहते हैं। बालू, मिट्टी, बज़री, रोड़ी इत्यादि अवसाद के विभिन्न रूप हैं। अनाच्छादन के साधन लाखों वर्षों तक इस अवसाद को परतों में जमा करते रहते हैं। कालान्तर में ये परतें ठोस होकर अवसादी चट्टानें बनती हैं। स्तरों में मिलने के कारण इन्हें स्तरित चट्टानें (Stratified Rocks) भी कहा जाता है। अवसाद के अतिरिक्त इन चट्टानों के निर्माण में पौधों और जानवरों के अवशेषों से उत्पन्न जीवांश (Humus) तथा घुलनशील तत्त्व भी योगदान देते हैं।

प्रश्न 11.
आग्नेय शैलों/चट्टानों का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल 1

प्रश्न 12.
अवसादी शैलों का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल 2

प्रश्न 13.
आग्नेय तथा रूपान्तरित चट्टानों में खनिज रवों की व्यवस्था लगभग एक-समान क्यों होती है?
उत्तर:
आग्नेय चट्टानों और रूपान्तरित चट्टानों का निर्माण लगभग एक समान परिस्थितियों में होता है। इन चट्टानों का निर्माण भू-तल के आन्तरिक भाग में होता है तथा इनके निर्माण में प्रमुख कारक मैग्मा है। आन्तरिक भाग में चट्टानें पिघली हुई अवस्था में होती हैं। जब इनसे आग्नेय चट्टानों का निर्माण होता है, तो इनके रवे ढेरों के रूप में बनते हैं, परन्तु जब दबाव तथा तापक्रम के कारण रूपान्तरित चट्टानों का निर्माण होता है, तो इनके रवे तहों में समानान्तर रूप में स्थिर रहते हैं।

प्रश्न 14.
जीवाश्म केवल अवसादी चट्टानों में ही सुरक्षित रहते हैं, न कि आग्नेय चट्टानों में। ऐसा क्यों होता है?
उत्तर:
प्राकृतिक वनस्पति तथा विभिन्न जीव-जन्तुओं के अवशेषों अथवा अस्थि-पिंजरों को जीवाश्म कहते हैं। जीवाश्म केवल अवसादी चट्टानों में ही सुरक्षित रहते हैं क्योंकि अवसादी चट्टानें परतदार होती हैं। इन परतों में जीवाश्म सुरक्षित रहते हैं तथा इनसे चट्टानों की उत्पत्ति के समय का ज्ञान होता है। जीवाश्म आग्नेय चट्टानों में सुरक्षित नहीं रह सकते, क्योंकि ये चट्टानें परतरहित होती हैं तथा इनके मूल पदार्थ मैग्मा की गर्मी के कारण ये जीवाश्म झुलस जाते हैं।

प्रश्न 15.
भू-पर्पटी में किन परिस्थितियों में खनिज तेल के भण्डार पाए जा सकते हैं? समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
खनिज तेल सूक्ष्म सागरीय जीव-जन्तुओं और प्राकृतिक वनस्पति के गलने-सड़ने से अवसादी चट्टानों में पाया जाता है। इन चट्टानों की संरचना परतदार तथा विशेष प्रकार की होती है। खनिज तेल भू-पर्पटी में निम्नलिखित परिस्थितियों में पाया जाता है

  1. खनिज तेल तलछट के जमाव के कारण तलछटी चट्टानों में मिलता है।
  2. जब दो अप्रवेशीय चट्टानों के मध्य एक प्रवेशीय परत होती है।
  3. दो परतों के मध्य बलुआ पत्थर की परत से खनिज तेल का निर्माण होता है, क्योंकि गर्मी और दबाव के कारण बलुआ पत्थर में उपस्थित प्राकृतिक वनस्पति तथा जीव-जन्तुओं के अवशेष खनिज तेल में परिवर्तित हो जाते हैं।
  4. अवसादी चट्टानों में वलन होते हैं। खनिज तेल इन वलनों के शिखर से प्राप्त होता है।
  5. नदियों, घाटियों एवं डेल्टाई क्षेत्रों की अवसादी चट्टानों में खनिज तेल के विस्तृत भण्डार संचित हैं। उदाहरण के लिए, सम्पूर्ण उत्तरी भारत की चट्टानों में खनिज तेल मिलने की सम्भावनाएँ हैं।

प्रश्न 16.
अवसादी चट्टानों की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
अवसादी चट्टानों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. अवसादी चट्टानें परतों में पाई जाती हैं।
  2. इन चट्टानों में रवे नहीं पाए जाते।
  3. इन चट्टानों में प्राणिज अवशेष (Fossils) पाए जाते हैं जो जीवन के विकास काल को प्रदर्शित करते हैं।
  4. ये चट्टानें अपेक्षाकृत नरम होती हैं। इन्हें चाकू से खुरचने पर इनमें से महीन कण झड़ते हैं।
  5. आग्नेय व कायान्तरित शैलों की तुलना में इनका अपक्षय व अपरदन आसानी से होता है।
  6. अवसादी चट्टानें सरन्ध्र होती हैं। इनमें जल सुगमता से प्रवेश कर सकता है।

प्रश्न 17.
“रूपान्तरित चट्टानें आग्नेय चट्टानों और अवसादी चट्टानों का ही परिवर्तित रूप है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ऐसी चट्टानें जो अन्य चट्टानों के रूप परिवर्तन द्वारा बनती हैं, रूपान्तरित चट्टानें कहलाती हैं। पी०जी० वॉरसेस्टर के घटन हए बिना गर्मी. दबाव तथा रासायनिक क्रियाओं के फलस्वरूप उनके रूप, बनावट व खनिजों का पूर्ण कायान्तरण हो जाता है, वे कायान्तरित चट्टानें कहलाती हैं। रूपान्तरण केवल आग्नेय व अवसादी शैलों का नहीं होता, बल्कि प्राचीन कायान्तरित शैलों का भी होता है जिसे पुनः रूपान्तरण या अति-रूपान्तरण कहा जाता है।

प्रश्न 18.
कायान्तरित चट्टानों का आर्थिक महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  1. कायान्तरित चट्टानों में अनेक महत्त्वपूर्ण खनिज पाए जाते हैं; जैसे नीस, क्वार्टज़ाइट, ग्रेफाइट, एन्थ्रासाइट, स्लेट व संगमरमर इत्यादि।
  2. क्वार्टज़ाइट का प्रयोग काँच उद्योग में होता है क्योंकि यह एक कठोरतम खनिज है।
  3. स्लेट का प्रयोग छप्पर व फर्श बनाने के लिए तथा स्कूली बच्चों के लिखने के लिए होता है। बिलियर्ड्स की मेज़ मोटी स्लेट से बनाई जाती है।
  4. नीस व संगमरमर का प्रयोग इमारती पत्थर के रूप में किया जाता है। विश्व प्रसिद्ध ताजमहल संगमरमर का बना हुआ है।
  5. ग्रेफाइट का प्रयोग पेन्सिल का सिक्का बनाने तथा धातु गलाने की घड़िया (Crucible) बनाने के काम आता है। ग्रेफाइट का गलनांक $3500^{\circ}$ सेल्सियस होतां है। परमाणु बिजली-घरों के लिए ग्रेफाइट अनिवार्य है।
  6. रूपान्तरित चट्टानों में ही बहुमूल्य जवाहरात; जैसे रत, माणिक, नीलम इत्यादि उत्पन्न होते हैं।
  7. सेलखड़ी और टेल्क का प्रयोग टेलकम पाउडर जैसे सौन्दर्य प्रसाधन बनाने में किया जाता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

प्रश्न 19.
तापीय अथ्वा स्पर्श रूपान्तरण क्या होता है?
उत्तर:
ऊँचे ताप के प्रभाव से चट्टानों में होने वाला रूपान्तरण तापीय रूपान्तरण कहलाता है। भू-गर्भ से ऊपर की ओर बढ़ता हुआ गरम मैग्मा अपने सम्पर्क में आने वाली स्थानीय शैलों को पिघलाकर या भूनकर उनके रूप, रंग, संरचना और गुणों में परिवर्तन ला देता है। इस तापीय रूपान्तरण से बलुआ पत्थर बदलकर क्वार्टज़ाइट, चूने का पत्थर बदलकर संगमसमर, चीका मिट्टी और शैल बदलकर स्लेट और बिटुमिनस कोयला बदलकर एंग्रासाइट और ग्रेफाइट बन जाते हैं। ये सभी परिवर्तन लगभग 50 से 80 डिग्री सेल्सियस तक होते हैं। 150 से 200 सेल्सियस में स्लेट पुनः कायान्तरित होकर फाइलाइट (Philite) में बदल जाती है।

प्रश्न 20.
खनिज संसाधरों का वर्गीकरण कीजिए-
उत्तर:
खनिज संसाधन निम्नलिखित वर्गों में बाँटे जाते हैं-

  1. आवश्यक संसाधन-आधारभूत संसाधनों के इस वर्ग से हमें जल तथा मृदा उपलब्ध होते हैं।
  2. ऊर्जा संसाधन-इनमें हमें जीवाशुमी ईंधन; जैसे कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, कोयला, तारकोल, बालू तथा परमाणु ईंधन; जैसे यूरेनियम, थोरियम तथा भूतापीय ऊर्जा उपलब्ध होती है।
  3. धात्विक संसाधन-इनमें हमें संरचनात्मक धातुएँ; जैसे लोहा, एल्यूमीनियम, टिटैनियम, सोना, प्लैटिनम तथा सैलियम इत्यादि प्राप्त होते हैं।
  4. औधोगिक संसाधन-औद्योगिक खनिजों से हमें 30 से अधिक पदार्थ प्राप्त होते हैं; जैसे बालू, नमक व एस्बेस्टस इत्यादि।

प्रश्न 21.
निम्नलिखित में अन्तर स्पष्ट कीजिए-
(क) खनिज तथा चट्टान
(ख) डाइक तथा सिल
(ग) आग्नेय तथा अवसादी चट्टारें।
उत्तर:
(क) खनिज तया चट्टान-

खनिज (Mineral)चट्टान (Rock)
1. खनिज एक या अधिक तत्त्वों के योग से बनते हैं। प्रायः ये यौगिक रूप में मिलते हैं।1. चट्टान एक या अधिक खनिजों के मिश्रण से बनती हैं।
2. खनिज प्राकृतिक अवस्था में पाया जाने वाला एक अजैविक पदार्थ है।2. चट्टान भू-पृष्ठ पर पाया जाने वाला जैविक और अजैविक, कठोर और नरम पदार्थ है।
3. खनिजों की एक निश्चित रासायनिक संरचना होती है।3. चट्टानों की निश्चित रासायनिक संरचना नहीं होती।
4. खनिजों से चट्टान बनती है।4. चट्टानों से भू-पर्पटी बनती है।
5. लोहा, तांबा, सोना, अभ्रक, फेल्सपार आदि खनिजों के उदाहरण हैं।5. चूना पत्थर, बलुआ पत्थर, स्लेट, ग्रेनाइट आदि चट्टानों के उदाहरण हैं।

(ख) डाइक तथा सिल

डाइकसिल
1. इनका निर्माण भूतल के आन्तरिक भाग में मैग्मा के लम्बवत् रूप में दरारों में जम जाने के कारण होता है।1. इनका निर्माण भूतल के आन्तरिक भाग में मैग्मा के क्षैतिज परतों के मध्य दरारों में जम जाने के कारण होता है।
2. यह अन्तर्वेधी आग्नेय शैल है।2. यह भी अन्तर्वेधी आग्नेय शैल है।
3. ये भूतल के लम्बवत् बनते हैं।3. ये भूतल के समानान्तर क्षैतिज अवस्था में बनते हैं।

(ग) आग्नेय तथा अवसादी चट्टानें

आग्नेय चट्टानेंअवसादी चट्टानें
1. आग्नेय शैलों का निर्माण लावा के ठण्डा तथा ठोस होने से होता है।1. अवसादी शैलों का निर्माण तलछट की परतों के निरन्तर जमने से होता है।
2. ये शैलें ढेरों में मिलती हैं।2. ये शैलें परतदार होती हैं।
3. इन शैलों में रवे मिलते हैं।3. इन शैलों में विभिन्न प्रकार के गोल कण मिलते हैं।
4. इनमें जीवावशेष नहीं मिलते।4. इनमें प्राकृतिक वनस्पति तथा जीव-जन्तुओं के अवशेष मिलते हैं।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आग्नेय चट्टानें किसे कहते हैं? इनका वर्गीकरण कीजिए।
अथवा
विभिन्न आधारों पर आग्नेय चट्टानों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
आग्नेय चट्टानों का अर्थ (Meaning of Igneous Rocks)-आग्नेय शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के इग्निस (Ignis) शब्द से हुई है, जिसका तात्पर्य है कि अग्नि के समान गरम तप्त लावा के ठण्डे होने से इन चट्टानों का निर्माण हुआ। पृथ्वी अपनी उत्पत्ति के समय गरम, तरल एवं गैसीय पुंज थी, जो धीरे-धीरे ठण्डी हुई। ठण्डी एवं ठोस अवस्था में आने से इन चट्टानों का निर्माण हुआ। पृथ्वी पर सर्वप्रथम इन्हीं चट्टानों का निर्माण हुआ इसलिए इन्हें प्राथमिक चट्टानें भी कहते हैं। आग्नेय चट्टानें पृथ्वी के पिघले हुए पदार्थ (मैग्मा) के ठण्डा एवं ठोस हो जाने के कारण बनी हैं।

आग्नेय चट्टानों का वर्गीकरण (Classification of Igneous Rocks)-आग्नेय चट्टानों का वर्गीकरण निम्नलिखित आधार पर किया जाता है

  • स्थिति के आधार पर
  • रासायनिक संरचना के आधार पर

I. स्थिति के आधार पर-स्थिति के आधार पर आग्नेय चट्टानों का वर्गीकरण इस प्रकार है-
1. बाह्य या बहिर्वेधी आग्नेय चट्टानें (Extrusive Ieneous Rocks) जब भू-गर्भ का तप्त एवं गरम मैग्मा धरातल पर आकर ठण्डा होता है तो बाह्य आग्नेय चट्टानों का निर्माण होता है। इन चट्टानों का प्रमुख उदाहरण बेसाल्ट है। प्रायद्वीपीय भारत के उत्तर:पश्चिमी क्षेत्र में इस प्रकार की चट्टानें पाई जाती हैं।

2. आन्तरिक या अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानें (Intrusive Igneous Rocks)-ज्वालामुखी उद्गार के समय जब भू-गर्भ का मैग्मा पृथ्वी के तल के नीचे दरारों में जम जाता है तो आन्तरिक आग्नेय चट्टानों का निर्माण होता है। भू-गर्भ में मैग्मा का जमाव दो विभिन्न स्थितियों में होता है, इसलिए इन्हें निम्नलिखित दो उपवर्गों में बाँटा जा सकता है
(i) पातालीय चट्टानें (Plutonic Rocks)-भू-गर्भ में अत्यधिक गहराई पर मैग्मा के जमाव द्वारा बनी चट्टानों को पातालीय चट्टानें कहते हैं। यहाँ मैग्मा के ठण्डा होने में पर्याप्त समय लगता है, इसलिए इनके रवे बड़े होते हैं। ग्रेनाइट तथा गेब्रो (Gabro) इनके प्रमुख उदाहरण हैं। ये आन्तरिक आग्नेय चट्टानों के बड़े-बड़े पिण्ड होते हैं, इन्हें बैथोलिथ कहते हैं। भारत में छोटा नागपुर के पठार, मध्य प्रदेश तथा राजस्थान में इसी प्रकार की चट्टानें पाई जाती हैं।

(ii) मध्यवर्ती चट्टानें (Hypabyssal Rocks)-जब भू-गर्भ का मैग्मा धरातल के ऊपर नहीं आ पाता और भू-गर्भ की चट्टानों हो जाता है तो उन्हें मध्यवर्ती आग्नेय चट्टानें कहते हैं। यदि लावे का जमाव लम्बवत् रूप में होता है तो उन्हें डाइक कहते हैं और यदि क्षैतिज रूप में हो तो उन्हें सिल कहते हैं।

II. रासायनिक संरचना के आधार पर रासायनिक संरचना के आधार पर आग्नेय चट्टानों को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है
1. अम्लीय आग्नेय चट्टानें (Acid Igneous Rocks)-इनमें सिलिका की मात्रा 65% से अधिक होती है। इसके अतिरिक्त इन चट्टानों में सोडियम, पोटाशियम तथा एल्यूमीनियम आदि महत्त्वपूर्ण रासायनिक तत्त्व होते हैं। ग्रेनाइट, क्वार्ट्ज़ाइट, पेग्मैटाइट तथा राओलाइट इस प्रकार की चट्टानों के प्रमुख उदाहरण हैं।

2. क्षारीय आग्नेय चट्टानें (Basic Igneous Rocks) इनमें सिलिका की मात्रा 40% से 55% तक होती है। बेसाल्ट, गेब्रो तथा डोलेराइट इस प्रकार की चट्टानों के प्रमुख उदाहरण हैं।

प्रश्न 2.
आग्नेय चट्टानी पिण्डों से आपका क्या तात्पर्य है? विभिन्न आग्नेय चट्टानी पिण्डों का वर्णन करें।
उत्तर:
आग्नेय चट्टानी पिण्ड का अर्थ (Meaning of Masses of Igneous Rocks)-मैग्मा के ठोसावस्था में आने पर अनेक तरह के चट्टानी पिण्डों की रचना होती है। इनका नामकरण इनके रूप, आकार, स्थिति तथा आस-पास पाई जाने वाली चट्टानों के आधार पर किया जाता है। अधिकांश चट्टानी पिण्ड अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानों से बने हुए हैं।

आग्नेय चट्टानी पिण्डों के प्रकार (Types of Masses of lgneous Rocks)-आग्नेय चट्टानी पिण्डों के प्रकार निम्नलिखित हैं-
1. बैथोलिथ (Batholith) यह मैग्मा का सबसे बड़ा गुम्बदाकार जमाव है जो अत्यधिक गहराई में पाया जाता है। हज़ारों वर्ग कि०मी० क्षेत्र में विस्तृत इस पिण्ड का ऊपरी तल ऊबड़-खाबड़ तथा ढाल खड़ा होता है। इसकी मोटाई इतनी अधिक होती है कि इसके आधार पर पहुँच पाना कठिन होता है। अनाच्छादन के बाद इसका केवल ऊपरी भाग ही देखा जा सकता है। बैथोलिथ की जड में होते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के इडाहो (Idaho) राज्य में 40 हजार वर्ग कि०मी० से भी ज्यादा क्षेत्र में फैला बैथोलिथ तथा पश्चिमी कनाडा में कोस्ट रेन्ज बैथोलिथ इसके प्रमुख उदाहरण हैं। बैथोलिथ मूलतः ग्रेनाइट चट्टानों के जमाव होते हैं।

2. स्टॉक (Stock)-छोटे आकार के बैथोलिथ को स्टॉक कहते हैं। स्टॉक की ऊपरी सतह का विस्तार 100 वर्ग कि०मी० से कम क्षेत्र में होता है। यह खड़ी अवस्था में होता है जिसका ऊपरी भाग अधिक विषम किन्तु गोलाकार होता है। इसकी अन्य विशेषताएँ बैथोलिथ जैसी होती हैं।

3. लैकोलिथ (Lacolith) भू-गर्भ से धरातल की ओर बढ़ता हुआ विस्फोटक मैग्मा जब किन्हीं कारणों से धरातल पर नहीं पहुँच पाता तो वह परतदार चट्टानों में छतरीनुमा रूप धारण कर लेता है। लैकोलिथ की निचली परत सीधी होती है जो नली के द्वारा मैग्मा भण्डार से जुड़ी होती है। लैकोलिथ बहिर्वेधी ज्वालामुखी पर्वत का अन्तर्वेधी प्रतिरूप है। उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी भाग में अनेक लैकोलिथ देखने को मिलते हैं।

4. लैपोलिथ (Lapolith)-जब मैग्मा का जमाव धरातल के नीचे किसी अवतल आकार वाले उथले बेसिन में हो जाता है तब एक तश्तरीनुमा चट्टानी पिण्ड का निर्माण होता है, जिसे लैपोलिथ कहते हैं। इसका उदाहरण दक्षिण अफ्रीका के ट्रांसवाल क्षेत्र में मिलता है।

5. फैकोलिथ (Phacolith) मोड़दार पर्वतों की अपनति (Anticline) व अभिनति (Syncline) में मैग्मा के जमाव को फैकोलिथ कहते हैं। यह लहरदार आकृति का होता है।

6. सिल (Sill)-परतदार चट्टानों के बीच भू-पृष्ठ के समानान्तर मैग्मा से बनी अधिवितलीय चट्टान को सिल कहते हैं। इसकी मोटाई सैकड़ों मीटर तक होती है किन्तु एक मीटर से पतली सिल को शीट (Sheet) कहा जाता है।

7. डाइक (Dike or Dyke)-जब भू-तल के नीचे मैग्मा लम्बवत् जोड़ों या दरारों में जमता है तो डाइक कहलाता है। कठोर होने के कारण इस पर अपरदन का कम प्रभाव पड़ता है। आस-पास की चट्टानों के अपरदन द्वारा नष्ट होने पर डाइक एक खड़ी या झुकी विशाल दीवार की भान्ति दिखाई पड़ते हैं। डाइक कुछ मीटर से कई कि०मी० तक लम्बे व कुछ सेंटीमीटर से कई मीटर तक चौड़े होते हैं। झारखण्ड के सिंहभूम जिले में डोलेराइट के अनेक डाइक देखने को मिलते हैं।

उपर्युक्त अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानी पिण्डों के अतिरिक्त अनेक बहिर्वेधी आग्नेय चट्टानी पिण्ड भी पाए जाते हैं। इनसे महाद्वीपों और महासागरों की तली पर ज्वालामुखी पर्वतों और ज्वालामुखी पठारों का निर्माण होता है।

प्रश्न 3.
परतदार अथवा अवसादी चट्टानें किसे कहते हैं? इनका वर्गीकरण कीजिए।
अथवा
तलछटी चट्टानों या शैलों का वर्गीकरण करते हुए इसकी मुख्य किस्मों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अवसादी (परतदार) चट्टानों का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Sedimentary Rocks) अपक्षय तथा अपरदन के विभिन्न साधनों द्वारा प्राप्त बड़ी मात्रा में अवसाद के जमने से बनी हुई चट्टानों को परतदार अथवा अवसादी चट्टानें अवसाद के परतों में जमने के कारण होता है। भूतल पर लगभग 75% चट्टानें अवसादी चट्टानें हैं। पी०जी० वॉरसेस्टर के अनुसार, “अवसादी शैल, धरातलीय चट्टानों के टूटे मलबे तथा खनिज एक स्थान से दूसरे स्थान पर एकत्रित होते रहते हैं जो धीरे-धीरे एक परत का रूप धारण कर लेते हैं।”

अवसादी चट्टानों का वर्गीकरण (Classification of Sedimentary Rocks)-अवसादी चट्टानों की निर्माण-विधि तथा संरचना के आधार पर इन्हें अग्रलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है

  • जैव अवसादी चट्टानें (Organic Sedimentary Rocks)
  • अजैव अवसादी चट्टानें (Inorganic Sedimentary Rocks)

I. जैव अवसादी चट्टानें (Crganic Sedimentary Racks)-जिन चट्टानों का निर्माण विभिन्न जीव-जन्तुओं या वनस्पति के जमाव द्वारा होता है, उन्हें जैव अवसादी चट्टानें कहते हैं। ये चट्टानें निम्नलिखित प्रकार की होती हैं-
(1) चूना प्रधान अवसादी चट्टानें (Calcareous Sedimentary Rocks) महासागरीय तथा सागरीय जल में विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तु रहते हैं। इन जीव-जन्तुओं की मृत्यु के पश्चात् इनके अवशेष समुद्र की तलहटी में जमा होते रहते हैं जिनसे चूना प्रधान अवसादी चट्टानों का निर्माण होता है। चूना पत्थर, खड़िया, डालोमाइट तथा सेलखड़ी इनके प्रमुख उदाहरण हैं। प्रवाल भित्तियों या प्रवाल द्वीपों का निर्माण चूना-युक्त चट्टानों से होता है।

(2) कार्बनयुक्त अवसादी चट्टानें (Carbonaceous Sedimentary Rocks) इस प्रकार की चट्टानों का निर्माण जीव-जन्तुओं तथा प्राकृतिक वनस्पति द्वारा होता है। पृथ्वी में उथल-पुथल के कारण जीव-जन्तु तथा प्राकृतिक वनस्पति भू-तल के नीचे दब जाती है। भू-गर्भ के तापमान तथा ऊपरी चट्टानों के दबाव के कारण इन जीव-जन्तुओं और वनस्पतियों के अंश कालान्तर में कोयले के रूप में बदल जाते हैं जिसमें कार्बन की प्रधानता होती है। कार्बन की मात्रा के अनुसार पीट, लिग्नाइट, बिटुमिनस तथा एन्थ्रासाइट कोयले का निर्माण होता है।

(3) रासायनिक प्रक्रिया द्वारा बनी अवसादी चट्टानें (Chemically formed Sedimentory Rocks)-खारी झीलों या समुद्रों का पानी जलवाष्प बनकर उड़ जाता है तथा अवसाद नीचे रह जाते हैं जिससं अवसादी चट्टानें बनती हैं। रासायनिक प्रक्रिया द्वारा बनी चट्टानों के प्रमुख उदाहरण सेंधा नमक, जिप्सम तथा शोरा हैं।

II. अजैव अवसादी चट्टानें (Inorganic Sedimentary Rocks)-अपक्षय तथा अपरदन की क्रियाओं द्वारा चट्टानें टूटती-फूटती रहती हैं तथा उनका मलबा जमा होता रहता है। अजैव अवसादी चट्टानों को निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है

  • प्रधान अवसादी चट्टानें (Arenaceous Sedimentary Rocks)-इन चट्टानों का निर्माण बालू के कणों के संगठन से होता है। बलुआ पत्थर इनका प्रमुख उदाहरण है।
  • चीका प्रधान अवसादी चट्टानें (Argillaceous Sedimentary Rocks)-इनका निर्माण चिकनी मिट्टी तथा दलदल के कठोर होने के कारण होता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

प्रश्न 4.
अवसादी या परतदार चट्टानों की विशेषताओं तथा आर्थिक महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अवसादी चट्टानों की विशेषताएँ (Characterstics of Sedimentary Rocks) अवसादी चट्टानों की विशेषताएँ। निम्नलिखित हैं

  • आग्नेय चट्टानों की तुलना में ये चट्टानें कोमल अथवा नरम होतो हैं।
  • ये चट्टानें परतों के रूप में पाई जाती हैं।
  • ये चट्टानें छिद्रमय होती हैं। बलुई चट्टानें अधिक छिद्रमय तथा चीका-युक्त चट्टानें कम छिद्रमय होती हैं।
  • इन चट्टानों में जीव-जन्तुओं एवं वनस्पति के अवशेष पाए जाते हैं।
  • ये चट्टानें रवे-रहित होती हैं।
  • ये चट्टानें प्रवेश्य चट्टानें हैं।

अवसादी चट्टानों का आर्थिक महत्त्व (Economical Significance of Sedimentary Rocks)-अवसादी चट्टानों का महत्त्व निम्नलिखित कारकों पर आधारित है

  • अवसादी चट्टानें उपजाऊ मिट्टी का अभूतपूर्व भण्डार हैं। उदाहरण के लिए, सतलुज, गंगा एवं ब्रह्मपुत्र के मैदान की उपजाऊ मिट्टी अवसादी चट्टानों की ही देन हैं।
  • इन चट्टानों में शक्ति के प्रमुख स्रोत; जैसे कोयला तथा पेट्रोलियम मिलते हैं। उदाहरण के लिए, महानदी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के डेल्टाई क्षेत्रों में कोयले के भण्डार हैं तथा सम्पूर्ण उत्तरी भारत की अवसादी चट्टानों में खनिज तेल के भण्डार मिलने की सम्भावनाएँ हैं।
  • उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में अवसादी चट्टानों के अपक्षय से बॉक्साइट, मैंगनीज, टिन आदि खनिजों के गौण अयस्क मिलते हैं।
  • अवसादी चट्टानों में लौह-अयस्क, फास्फेट, इमारती पत्थर, कोयला तथा सीमेण्ट बनाने वाले पदार्थों के स्रोत मिलते हैं।
  • इन चट्टानों में विभिन्न प्रकार के खनिज पदार्थ पाए जाते हैं।

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. महाद्वीपों की स्थिरता की विचारधारा को खारिज कर प्रतिस्थापना परिकल्पना प्रस्तुत करने वाले विद्वान् का क्या नाम था?
(A) फ्रांसिस बेकन
(B) एफ०बी० टेलर
(C) अल्फ्रेड वेगनर
(D) ओंटानियो पैलीग्रिनी
उत्तर:
(C) अल्फ्रेड वेगनर

2. पेंजिया का अर्थ है-
(A) संपूर्ण जल
(B) संपूर्ण भूमि
(C) संपूर्ण वायुमण्डल
(D) संपूर्ण जैवमण्डल
उत्तर:
(B) संपूर्ण भूमि

3. टेथिस से अभिप्राय है-
(A) पैंथालसा से बाहर निकली कटक
(B) पेंजिया के मध्य स्थित उथली भू-सन्नति
(C) अटलांटिक महासागर में स्थित अंतःसमुद्री कटक
(D) कार्बोनिफेरस युग की खारे पानी की झील
उत्तर:
(B) पेंजिया के मध्य स्थित उथली भू-सन्नति

4. किस बल के प्रभावाधीन उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका यूरोप और अफ्रीका से अलग हो गए?
(A) द्रव के उछाल से
(B) ज्वारीय बल से
(C) अपकेंद्री बल से
(D) अभिकेंद्री बल से
उत्तर:
(B) ज्वारीय बल से

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

5. निम्नलिखित में से कौन-सी मुख्य प्लेट नहीं है?
(A) अफ्रीकी
(B) अंटार्कटिक
(C) यूरेशियाई
(D) अरेबियन
उत्तर:
(D) अरेबियन

6. टेथिस के उत्तर में स्थित लारेशिया भू-खंड में निम्नलिखित में से कौन-सा प्रदेश शामिल नहीं था?
(A) यूरेशिया
(B) ऑस्ट्रेलिया
(C) ग्रीनलैंड
(D) उत्तरी अमेरिका
उत्तर:
(B) ऑस्ट्रेलिया

7. वेगनर के अनुसार कार्बोनिफेरस युग में दक्षिणी ध्रुव कहां स्थित था?
(A) टेरा डेल फ्यूगो में
(B) सान साल्वेडोर में
(C) नेटाल (डरबन) में
(D) मेलबोर्न में
उत्तर:
(C) नेटाल (डरबन) में

8. पर्वतों और महाद्वीपीय चापों की उत्पत्ति के संबंध में निम्नलिखित में कौन-सा कथन वेगनर का नहीं है?
(A) पश्चिमी द्वीप समूह की उत्पत्ति उत्तरी अमेरिका व दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी प्रवाह के कारण हुई
(B) रॉकीज व एंडीज पर्वतों का जन्म प्रशांत महासागर की तली के उत्थान से हुआ
(C) एशिया महाद्वीप के पश्चिम की ओर प्रवाह के कारण क्यूराइल, जापान व फिलीपींस द्वीपों की उत्पत्ति हुई
(D) हिमालय पर्वत टेथिस भू-सन्नति में जमा जलोढ़ से बना है।
उत्तर:
(B) रॉकीज व एंडीज पर्वतों का जन्म प्रशांत महासागर की तली के उत्थान से हुआ

9. वेगनर ने अपनी प्रतिस्थापना परिकल्पना में ब्राजील के उभार को किस भू-खंड के साथ मिलाने की बात की है?
(A) बंगाल की खाड़ी से
(B) अफ्रीका में गिनी की खाड़ी से
(C) अरब प्रायद्वीप से
(D) उपर्युक्त में से कोई भी नहीं
उत्तर:
(B) अफ्रीका में गिनी की खाड़ी से

10. वेगनर ने अंटार्कटिका में कोयले के भंडारों की उपस्थिति के लिए कौन-सा साक्ष्य प्रस्तुत किया है?
(A) प्राचीनकाल में कोयले का निर्माण ठंडे प्रदेशों में भी संभव था
(B) कभी सूर्य अंटार्कटिका पर सीधा चमकता था, इसलिए वह उष्ण कटिबंध था
(C) अंटार्कटिका कभी निम्न अक्षांशों में स्थित था, बाद में ध्रुव की ओर चला गया
(D) कोयला विस्थापित होकर उष्ण कटिबंध से कटिबंध से अंटार्कटिका की ओर चला गया
उत्तर:
(C) अंटार्कटिका कभी निम्न अक्षांशों में स्थित था, बाद में ध्रुव की ओर चला गया

11. वेगनर के अनुसार महाद्वीपीय विस्थापन जिस दिशा में हुआ, वह है
(A) भूमध्य रेखा व उत्तरी ध्रुव
(B) भूमध्य रेखा व पश्चिमी ध्रुव
(C) भूमध्य रेखा व दक्षिणी ध्रुव
(D) भूमध्य रेखा व पूर्व ध्रुव
उत्तर:
(B) भूमध्य रेखा व पश्चिमी ध्रुव

12. यूनानी भाषा के शब्द ‘टेक्टोनिकोज़’ का क्या अर्थ है?
(A) भू-आकार
(B) दरार का बनना
(C) निर्माण या रचना
(D) विनाश या विध्वंस
उत्तर:
(C) निर्माण या रचना

13. निम्नलिखित में से किस विषय का अध्ययन प्लेट विवर्तनिकी में नहीं किया जाता?
(A) बाढ़ का मैदान
(B) ज्वालामुखी क्रिया
(C) वलन
(D) विभंजन
उत्तर:
(A) बाढ़ का मैदान

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14. पुराचुंबकत्व के बारे में कौन-सा कथन सत्य नहीं है?
(A) पृथ्वी एक छड़ चुंबक की तरह व्यवहार करती है; यह बात विलियम गिलबर्ट ने बताई थी
(B) उत्तर-दक्षिण रेखा तथा चुंबकीय उत्तर-दक्षिण रेखा के बीच विद्यमान दिशाकोणीय अंतर चुंबकीय दिकपात कहलाता है
(C) चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता या बल स्थायी रहता है
(D) वर्तमान में भू-चुंबकीय अक्ष पृथ्वी के परिभ्रमण अक्ष के साथ 11/2° का कोण बनाता है
उत्तर:
(C) चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता या बल स्थायी रहता है

15. महाद्वीपीय नितल के प्रसरण की संकल्पना का प्रतिपादन किसने किया था?
(A) वाहन एव मैथ्यूज़ ने
(B) हैरी एच० हैस व रॉबर्ट एस० डीज़ ने
(C) कॉक्स व डोयल ने
(D) मैसन ने
उत्तर:
(B) हैरी एच० हैस व रॉबर्ट एस० डीज़ ने

16. ‘प्लेट’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किस वैज्ञानिक ने किया?
(A) पी० मककैनी
(B) आर०एल० पार्कर
(C) जे० टूजो विल्सन
(D) डीज़
उत्तर:
(C) जे० टूजो विल्सन

17. निम्नलिखित में से कौन-सा एक स्थलमण्डल का भाग नहीं है?
(A) सियाल
(B) साइमा
(C) निचला मेंटल स्तर
(D) ऊपरी मेंटल स्तर
उत्तर:
(C) निचला मेंटल स्तर

18. प्लास्टिक दुर्बलतामण्डल किसे कहा जाता है?
(A) महाद्वीपीय पटल को
(B) महासागरीय बेसाल्ट पटल को
(C) निचले मेंटल को
(D) भू-क्रोड को
उत्तर:
(C) निचले मेंटल को

19. एक-दूसरे से दूर जाने वाली प्लेटों को कहा जाता है-
(A) अभिसारी प्लेटें
(B) अपसारी प्लेटें
(C) संरक्षी प्लेटें
(D) विस्थापित प्लेटें
उत्तर:
(B) अपसारी प्लेटें

20. मृत सागर की निम्न भूमि किन सीमाओं द्वारा बनी दरार घाटी है?
(A) अपसारी सीमाओं द्वारा
(B) पारवर्ती सीमाओं द्वारा
(C) अभिसारी सीमाओं द्वारा
(D) उपर्युक्त में से कोई भी नहीं
उत्तर:
(B) पारवर्ती सीमाओं द्वारा

21. रॉकीज व एंडीज़ पर्वतों का निर्माण किस प्रकार के अभिसरण से हुआ था?
(A) महासागर →← महासागर
(B) महाद्वीप → ← महासागर
(C) महाद्वीप → ← महाद्वीप
(D) उपर्युक्त में से कोई भी नहीं
उत्तर:
(B) महाद्वीप → ← महासागर

22. प्लूम अथवा तप्त स्थल के बारे में कौन-सा कथन असत्य है?
(A) प्लूम संक्रमण क्षेत्र से 670 कि०मी० नीचे उत्पन्न होते हैं
(B) प्लूम के ऊपर प्लेट का जो भाग आता है, गर्म होने लगता है
(C) एक प्लूम 10 करोड़ वर्ष तक सक्रिय रहता है
(D) प्लूम के ऊपर स्थित प्लेट पर ज्वालामुखी उद्भेदन की संभावना समाप्त हो जाती है
उत्तर:
(D) प्लूम के ऊपर स्थित प्लेट पर ज्वालामुखी उद्भेदन की संभावना समाप्त हो जाती है

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
पैंजिया का क्या अर्थ है?
उत्तर:
संपूर्ण भूमि।

प्रश्न 2.
वेगनर के अनुसार सारा विस्थापन किस महाद्वीप के संदर्भ में हुआ?
उत्तर:
अफ्रीका।

प्रश्न 3.
1912 ई० में ‘महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत किसने प्रस्तुत किया?
उत्तर:
जर्मन मौसमविद अल्फ्रेड वेगनर ने।

प्रश्न 4.
‘पैंथालासा’ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जल ही जल या संपूर्ण जल।

प्रश्न 5.
‘रिंग ऑफ फायर’ किस महासागर को कहा जाता है?
उत्तर:
प्रशांत महासागर को।

प्रश्न 6.
वेगनर के अनुसार कार्बोनिफेरस युग में दक्षिणी ध्रुव कहाँ स्थित था?
उत्तर:
नेटाल (डरबन) में।

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प्रश्न 7.
यूनानी भाषा के शब्द ‘टेक्टोनिकोज़’ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
निर्माण या रचना।

प्रश्न 8.
महाद्वीपीय नितल के प्रसरण की संकल्पना का प्रतिपादन किसने किया था?
उत्तर:
हैरी एच० हैस व रॉबर्ट एस० डीज़ ने।

प्रश्न 9.
‘प्लेट’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किस वैज्ञानिक ने किया?
उत्तर:
जे० टूजो विल्सन।

प्रश्न 10.
प्लास्टिक दुर्बलतामण्डल किसे कहा जाता है?
उत्तर:
निचले मेंटल को।

प्रश्न 11.
एक-दूसरे से दूर जाने वाली प्लेटों को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
अपसारी प्लेटें।

प्रश्न 12.
प्लेटों में गति क्यों होती है?
उत्तर:
प्लेटों का संचलन तापीय संवहन क्रिया द्वारा होता है।

प्रश्न 13.
संवहन धारा सिद्धान्त किस पर आधारित था?
उत्तर:
शैलों की रेडियोधर्मिता पर।

प्रश्न 14.
वेगनर ने महाद्वीपीय विस्थापन का सिद्धान्त कब प्रस्तुत किया?
उत्तर:
सन् 1912 में।

प्रश्न 15.
पैंजिया के भू-खण्डों का विस्थापन कब शुरू हुआ?
उत्तर:
15 करोड़ वर्ष पूर्व इयोसिन युग में।

प्रश्न 16.
प्लेट विवर्तन का सिद्धान्त किस बारे में है?
उत्तर:
महाद्वीपों और महासागरों की उत्पत्ति के बारे में है।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
महाद्वीप किसे कहते हैं?
उत्तर:
समुद्र तल से ऊपर उठे पृथ्वी के विशाल भू-खंड महाद्वीप कहलाते हैं। विश्व में सात महाद्वीप हैं।

प्रश्न 2.
महासागर किसे कहते हैं?
उत्तर:
सीमांत सागरों; जैसे भूमध्य सागर व कैरेबियन सागर, बाल्टिक सागर इत्यादि को छोड़कर महासागरीय द्रोणियों में एकत्रित जल के विस्तार को महासागर कहते हैं।

प्रश्न 3.
अपसारी प्लेटें क्या हैं?
उत्तर:
जब दो प्लेटें एक-दूसरे से विपरीत दिशा में अलग हटती हैं, तो उन्हें अपसारी प्लेटें कहा जाता है।

प्रश्न 4.
अभिसरण क्या है?
उत्तर:
जब कुछ प्लेटें एक-दूसरे की तरफ बढ़कर निकट आती हैं और आपस में टकराती हैं तो इसे अभिसरण कहा जाता है।

प्रश्न 5.
समुद्री नितल का प्रसरण क्या होता है?
उत्तर:
महासागरीय द्रोणी का फैलना या चौड़ा होना समुद्री नितल का प्रसरण कहलाता है।

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प्रश्न 6.
प्लेट सीमान्त कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
प्लेट सीमान्त तीन प्रकार के होते हैं-

  1. अपसरण सीमान्त
  2. अभिसरण सीमान्त तथा
  3. पारवर्ती सीमान्त।

प्रश्न 7.
पृथ्वी की प्रमुख प्लेटों का नाम बताइए।
उत्तर:

  1. प्रशान्तीय प्लेट
  2. यूरेशियाई प्लेट
  3. इण्डो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट
  4. अफ्रीकन प्लेट
  5. उत्तरी अमेरिकन प्लेट
  6. दक्षिण अमेरिकन प्लेट
  7. अंटार्कटिक प्लेट।

प्रश्न 8.
पैंथालासा क्या था?
उत्तर:
पैंजिया के चारों तरफ एक महासागर फैला हुआ था जिसका नाम थालासा’ था। पैथालासा का अर्थ है-‘सम्पूर्ण जल’।

प्रश्न 9.
अभिसारी (अभिसरण) तथा अपसारी प्लेटों में क्या अन्तर होता है?
उत्तर:
अभिसरण प्लेट-जब कुछ प्लेटें एक-दूसरे की ओर बढ़कर निकट आती हैं और आपस में टकराती हैं, तो इसे अभिसरण कहते हैं। ऐसी प्लेटों को अभिसरण प्लेट (Convergent Plates) और उनके बीच वाले किनारों को अभिसरण किनारे कहा जाता है।

अपसरण प्लेट-प्लेटों के एक-दूसरे से दूर जाने की स्थिति को अपसरण तथा ऐसी प्लेटों को अपसारी प्लेटें (Divergent Plates) कहते हैं। इन प्लेटों के किनारों को अपसारी किनारे कहते हैं।

प्रश्न 10.
पारवर्तन क्या होता है?
उत्तर:
जब दो भू-प्लेटें ट्रांसफार्म भ्रंश के सहारे क्षैतिज दिशा में संचालित होती है, तो ऐसी प्लेटों को पारवर्ती प्लेटें और उनके किनारों को पारवर्ती किनारे कहा जाता है।

प्रश्न 11.
हिमयुग (हिमकाल) किसे कहते हैं?
उत्तर:
लाखों वर्षों तक ग्रीनलैण्ड तथा अण्टार्कटिका की तरह महाद्वीपों के अधिकतर क्षेत्र बर्फ की मोटी चादर से ढके हुए थे। पृथ्वी पर इस अवधि को हिमकाल कहते हैं। बर्फ की ये मोटी-मोटी चादरें कुछ ही हज़ार वर्ष पहले पिघल गईं तथा महासागरों के जल स्तर में वृद्धि हो गई।

प्रश्न 12.
प्लेट गति के तीन कारण कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. संवहन धाराएँ
  2. गुरुत्व बल
  3. चट्टानों का भार।

प्रश्न 13.
प्लेटों की प्रमुख गतियाँ कौन-कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. अभिसरण
  2. अपसरण
  3. परावर्तन।

प्रश्न 14.
मल महाद्वीप का क्या नाम था? यह कब बना?
उत्तर:
मूल महाद्वीप का नाम पैंजिया था। इसका निर्माण कार्बनिक कल्प में आज से 280 मिलियन वर्ष पहले हुआ था।

प्रश्न 15.
पैंजिया से पृथक होने वाले उत्तरी तथा दक्षिणी महाद्वीपों का नाम लिखिए।
उत्तर:
उत्तरी महाद्वीप का नाम लारेशिया तथा दक्षिणी महाद्वीप का नाम गोण्डवानालैण्ड था।

प्रश्न 16.
गोण्डवानालैण्ड में कौन-कौन-से भू-खण्ड शामिल थे?
उत्तर:
गोण्डवानालैण्ड में दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया तथा अंटार्कटिका नामक भू-खण्ड शामिल थे।

प्रश्न 17.
महासागरीय तल का प्रसरण क्या होता है?
उत्तर:
विपरीत दिशा में जाने से प्लेटों के बीच अन्तर आ जाता है। गहरे मैन्टल से तप्त मैग्मा संवाहित होकर ऊपर उठता है और उस अन्तर में भर जाता है। इस प्रकार अपसारी सीमाओं में नवीन रचनात्मक प्लेट का निर्माण होता है और महासागरीय तल (Floor) का प्रसरण (Spreading) होता रहता है।

प्रश्न 18.
महासागरों की उत्पत्ति किस प्रकार हुई?
उत्तर:
जब पृथ्वी अपने निर्माण की आरम्भिक अवस्था में थी तब वायुमण्डल की गरम गैसों के ठण्डा होने पर उनसे घने और विशाल बादल बने। इन बादलों ने हजारों वर्षों तक पृथ्वी पर वर्षा की। वर्षा का यह जल बहकर द्रोणियों में चला गया। इस प्रकार पृथ्वी पर महासागरों की उत्पत्ति हुई।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्लेट विवर्तन सिद्धान्त (Theory of Plate Tectonics) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्लेट विवर्तनिकी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग टूज़ो विल्सन (Tuzo Wilson) ने सन् 1965 में किया था और प्लेट विवर्तन सिद्धान्त का पहली बार प्रतिपादन मोरगन ने सन् 1967 में किया था। महाद्वीपों और महासागरों की उत्पत्ति का यह सिद्धान्त वास्तव में वेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त का संशोधित रूप है। इस सिद्धान्त के अनुसार पृथ्वी सात मुख्य प्लेटों में बँटी हुई है। ये प्लेटें अर्द्ध-तरल (Semi-liquid) अधःस्तर पर तैर रही हैं, जिसके कारण इन प्लेटों में आन्तरिक गतियाँ होती हैं और प्लेटें खिसकती रहती हैं। इन्हीं प्लेटों द्वारा भू-आकृतियों का निर्माण होता है। संवहन क्रिया द्वारा ये भू-प्लेटें खिसकती हैं तथा इनके साथ-साथ महाद्वीप भी गति करते हैं।

प्रश्न 2.
प्लेटों की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्लेटों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. किसी भी प्लेट की पर्पटी महाद्वीपीय, महासागरीय अथवा दोनों प्रकार की मिश्रित भी हो सकती है।
  2. प्लेटें आपस में कभी दूर व कभी पास होती रहती हैं।
  3. प्रत्येक प्लेट का क्षेत्र उसकी मोटाई से ज्यादा होता है।
  4. विवर्तन की सभी घटनाएँ; जैसे भूकम्प, ज्वालामुखी तथा पर्वत निर्माण आदि इन्हीं प्लेटों के किनारों पर घटित होती हैं।

प्रश्न 3.
प्लेटों की गति के मुख्य कारण कौन-से हैं?
उत्तर:
सभी प्लेटें स्वतन्त्र रूप से पृथ्वी के दुर्बलता-मण्डल (Asthenosphere) पर भिन्न-भिन्न दिशाओं में भ्रमण (Wandering) करती रहती हैं। प्लेटों का भ्रमण पृथ्वी के आन्तरिक भागों में ऊष्मा की भिन्नता के कारण उत्पन्न होने वाली संवहन धाराओं के कारण होता है। कई विद्वान् संवहन धाराओं के साथ-साथ गुरुत्व बल (Gravity) तथा चट्टान भार (Weight of Rocks) को भी प्लेटों के संचलन का कारण मानते हैं।

प्रश्न 4.
अभिसरण (Convergence) और अपसरण (Divergence) में क्या अन्तर होता है?
अथवा
अभिसारी तथा अपसारी प्लेटों में क्या अन्तर होता है?
उत्तर:
अभिसरण-जब कुछ प्लेटे एक-दूसरे की ओर बढ़कर निकट आता ह आर आपस मट की ओर बढ़कर निकट आती हैं और आपस में टकराती हैं, तो इसे अभिसरण कहते हैं। ऐसी प्लेटों को अभिसरण प्लेट (Convergent Plates) और उनके बीच वाले किनारों को अभिसरण किनारे कहा जाता है।

अपसरण-प्लेटों के एक-दूसरे से दूर जाने की स्थिति को अपसरण तथा ऐसी प्लेटों को अपसारी प्लेटें (Divergent Plates) कहते हैं। इन प्लेटों के किनारों को अपसारी किनारे कहते हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

प्रश्न 5.
पारवर्तन क्या होता है और इसका क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
जब दो भू-प्लेटें ट्रांसफार्म भ्रंश के सहारे क्षैतिज दिशा में संचालित होती है, तो ऐसी प्लेटों को पारवर्ती प्लेटें और उनके किनारों को पारवर्ती किनारे कहा जाता है। ये संरक्षी अथवा निष्क्रिय (Conservative or Passive) किनारे होते हैं। इसमें नवीन स्थलों का न तो निर्माण होता है और न विनाश। हाँ, परस्पर सरकने से स्थलमण्डल में दरारें भी पड़ती हैं और भूकम्प भी आते हैं।

प्रश्न 6.
“साम्य स्थापना” पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
विश्व में जलवायु, वनस्पति और चट्टानों के वितरण के आधार पर वेगनर ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि महाद्वीप पैंजिया से टूटकर विस्थापित हुए हैं। वर्तमान महाद्वीपों को पुनः जोड़कर पैंजिया का रूप दिया जा सकता है। वेगनर ने इसे साम्य-स्थापना (Jig-saw-fit) का नाम दिया है।
(1) अटलांटिक महासागर के पूर्वी और पश्चिमी तटों के बीच चट्टानों की संरचना में अद्भुत एवं त्रुटि-रहित साम्य दिखाई देता है। दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी तट को अफ्रीका के पश्चिमी तट से मिला दिया जाए, तो वे एकाकार दिखने लगेंगे। इसी प्रकार, उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट को यूरोप के पश्चिमी तट से मिलाया जा सकता है।

(2) इसी प्रकार पूर्वी अफ्रीका में इथिओपिया का उभार (Bulge) पश्चिमी भारत तथा पाकिस्तान की तट रेखा से जोड़ा जा सकता है। ऑस्ट्रेलिया भी बंगाल की खाड़ी में फिट बैठ सकता है।

प्रश्न 7.
भौतिक परिवेश भूमण्डलीय तन्त्र के रूप में संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए
उत्तर:
पृथ्वी पर स्थलमण्डल, जलमण्डल, वायुमण्डल और जैवमण्डल से ही भौतिक परिवेश का निर्माण होता है। पर्यावरण के सभी अंग ऊर्जा (Energy) तथा पदार्थ (Matter) के प्रवाह द्वारा एक-दूसरे से गहरे जुड़े हुए हैं। अतः किसी भी भौतिक तथ्य को अन्य तथ्यों से अलग करके नहीं समझा जा सकता। उदाहरणतया जल एक भौतिक तथ्य है, जो भौतिक परिवेश के सभी अंगों स्थलमण्डल, जलमण्डल, वायुमण्डल और जैवमण्डल में संचरित (Circulate) होता रहता है, अतः जल का अध्ययन सम्पूर्ण प्राकृतिक परिवेश से अलग नहीं किया जा सकता। एक सम्पूर्ण इकाई के रूप में प्रकृति अत्यन्त जटिल है। सुविधा के लिए इसका खण्डों में अध्ययन हो सकता है, परन्तु ऐसा करते समय प्राकृतिक वातावरण के रूप में पृथ्वी की अखण्डता की अनदेखी नहीं करनी चाहिए।

प्रश्न 8.
पैंजिया की उत्पत्ति कब हुई? इसमें कौन-कौन से भू-खण्ड शामिल थे? पैंजिया में ‘टूट’ की क्रिया कैसे आरम्भ हुई?
अथवा
पैंजिया का क्या अर्थ है? इसके विभिन्न भागों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पैंजिया का अर्थ है संपूर्ण पृथ्वी। लगभग 35 करोड़ साल पहले अन्तिम कार्बोनिफ़रस युग में सभी महाद्वीप आपस में जुड़े हुए थे। इस विशाल स्थलखण्ड का नाम वेगनर ने पैंजिया रखा। मध्य जुरैसिक कल्प अर्थात् अब से लगभग 20 करोड़ वर्ष पूर्व पैंजिया दो भागों में बँट गया। इसका उत्तरी भाग लारेशिया तथा दक्षिणी भाग गोण्डवानालैण्ड कहलाया। लगभग 6.5 करोड़ वर्ष पहले अर्थात् क्रिटेशस कल्प के अन्त में गोण्डवानालैण्ड फिर से खण्डित हुआ और इससे कई महाद्वीपों; जैसे दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और अण्टार्कटिका की रचना हुई। भारत इस गोण्डवानालैण्ड से टूटकर स्वतन्त्र रूप से एक अलग पथ पर उत्तर पूर्व की ओर अग्रसर हुआ।

प्रश्न 9.
प्रवालों (Corals) की उपस्थिति किस प्रकार सिद्ध करती है कि भू-खण्ड उत्तर की ओर विस्थापित हुए थे?
उत्तर:
प्रवाल एक चूना-स्रावी समुद्री पॉलिप होता है जो छिछले उष्ण कटिबन्धीय सागरों में पाया जाता है। इस लघु समुद्री जीव का कंकाल कठोर होता है जिसकी रचना समुद्र के पानी से प्राप्त कैल्शियम कार्बोनेट से होती है। उष्ण कटिबन्ध के बाहर प्रवालों का पाया जाना इस बात का सबल प्रमाण है कि प्राचीन भू-वैज्ञानिक काल में ये महाद्वीप भूमध्य रेखा के निकट स्थित थे। महाद्वीप उत्तर की ओर खिसके हैं और वे आज भिन्न जलवायु का अनुभव कर रहे हैं।

प्रश्न 10.
ध्रुवों के घूमने अथवा ‘पोलर वान्डरिंग’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भू-वैज्ञानिक काल में ध्रुवों की बार-बार बदलती हुई स्थिति को ध्रुवों का घूमना (Polar Wandering) कहा जाता है। लगभग 35 करोड़ वर्ष पहले सभी महाद्वीप पैंजिया के रूप में आपस में जुड़े हुए थे। पुरा चुम्बकत्व के प्रमाण बताते हैं कि मैग्मा, लावा तथा असंगठित अवसादों में उपस्थित चुम्बकीय गुणों वाले खनिज; जैसे मैग्नेटाइट, हैमेटाइट, इल्मेनाइट और पाइरोटाइट आदि इसी गुण के कारण उस समय के चुम्बकीय क्षेत्र के समानान्तर एकत्र हो गए। यह गुण शैलों में स्थायी गुण के रूप में रह जाता है। चुम्बकीय ध्रुव की स्थिति में कालिक (Temporal) परिवर्तन होता रहा है, जो शैलों में स्थायी चुम्बकत्व के रूप में अभिलेखित किया जाता है। आज ऐसी अनेक वैज्ञानिक विधियाँ उपलब्ध हैं जो पुरानी शैलों में हुए ऐसे परिवर्तनों को उजागर कर सकती है तथा प्राचीनकाल में ध्रुवों की बदलती हुई स्थिति की जानकारी दे सकती हैं।

प्रश्न 11.
भारतीय प्लेट की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतीय प्लेट की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. हिन्द महासागर के नितल पर ऊँचे पठारों और कटकों सहित नाना प्रकार की स्थलाकृतियाँ पाई जाती हैं।
  2. 90 ईस्ट कटक तथा चैगोस-मालदीव-लक्षद्वीप द्वीपीय कटक ज्वालामुखी क्रिया के केन्द्र हैं।
  3. 90 ईस्ट का उत्तरी विस्तार एक महासागरीय खाई में समाप्त हो जाता है।
  4. चैगोस-लक्षद्वीप कटक 5 करोड़ साल पहले आदि नूतन कल्प में कार्ल्सबर्ग कटक को दक्षिण-पूर्वी इण्डियन कटक से जोड़ती थी।
    मध्य हिन्द महासागर कटक का विस्तार तेजी से अर्थात 14 से 20 सें०मी० प्रतिवर्ष हो रहा है।
  5. कार्ल्सबर्ग तथा दक्षिण-पूर्व हिन्द महासागर कटक के जुड़ने के बाद यूरेशियम प्लेट व भारतीय प्लेट का उत्तर में टकराव हुआ जिससे हिमालय पर्वत श्रेणी का जन्म हुआ।

प्रश्न 12.
पैंजिया, पैन्थालसा और टेथीज़ के बारे में लिखें।
उत्तर:
प्रो० अलफ्रेड वेगनर ने अपने विस्थापन सिद्धान्त में यह स्पष्ट किया है कि पृथ्वी पर महाद्वीपों की जो स्थिति आज है, वह पहले ऐसी नहीं थी। इस सिद्धान्त के अनुसार, आज से लगभग 35 करोड़ वर्ष पहले कार्बोनिफरस युग में सभी महाद्वीप एक स्थल खण्ड के रूप में मिले हुए थे जिसे पैंजिया कहते थे। यह पैंजिया चारों ओर से ‘पैन्थालसा’ नामक सागर से घिरा हुआ था। पैंजिया के उत्तरी भाग में उत्तरी अमेरिका, यूरोप तथा एशिया थे जिन्हें संयुक्त रूप से लारेशिया कहा जाता था। पैंजिया के दक्षिणी भाग में दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, भारतीय प्रायद्वीप, ऑस्ट्रेलिया तथा अंटार्कटिका महाद्वीप थे, जिन्हें गोण्डवानालैण्ड कहा जाता था। इन दोनों विशाल भू-खण्डों के मध्य एक संकरा महासागर था, जिसे टेथीज़ सागर कहा जाता था।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
अथवा
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूमिका महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त का प्रतिपादन जर्मनी के विद्वान् अल्फ्रेड वेगनर ने सर्वप्रथम सन् 1912 में किया था, जिसका अंग्रेज़ी अनुवाद सन् 1924 में विश्व के सामने आया। उनका विचार था कि महाद्वीप एक-दूसरे से दूर खिसक रहे हैं।

सिद्धान्त की रूपरेखा-लगभग 35 करोड़ वर्ष पहले अन्तिम कार्बोनिफरस युग में सभी महाद्वीप आपस में जुड़े हुए थे। इस विशाल स्थलखण्ड का नाम वेगनर ने पैंजिया (Pangaea) रखा। पैंजिया के चारों ओर एक महासागर फैला हुआ था, जिसका नाम पैन्थालासा (Panthalasa) रखा गया। पैंजिया नामक यह विशाल स्थलखण्ड कई छोटे खण्डों में बँट गया, जो एक-दूसरे से अलग हो गए। परिणामस्वरूप महाद्वीपों और महासागरों को वर्तमान स्वरूप प्राप्त हुआ।

लगभग 15 करोड़ वर्ष पूर्व इयोसीन युग में उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका और यूरेशिया से अलग होकर पश्चिम की ओर खिसक गए। इन दोनों महाद्वीपों के पश्चिम की ओर खिसकने के कारण इन महाद्वीपों के पश्चिमी तट पर नीचे की तली से रगड़ के कारण रॉकी व एण्डीज़ पर्वत-श्रेणियों का निर्माण हो गया अर्थात् साइमा (Sima) द्वारा सियाल (Sial) परत पर रुकावट पैदा होने से इन मोड़दार पर्वतों का जन्म हुआ। उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका तथा अफ्रीका एवं यूरेशिया के बीच पैदा हो गए गर्त में अटलांटिक महासागर प्रकट हो गया।

अंटार्कटिका, ऑस्ट्रेलिया, मेडागास्कर तथा प्रायद्वीपीय भारत भी आपस में जुड़े हुए थे और एक खण्ड के रूप में अफ्रीका के दक्षिणी छोर के पास स्थित थे। लगभग 5-6 करोड़ साल पहले पूर्व प्लीस्टोसिन युग में, ये चारों भू-भाग भी आपस में अलग-थलग होकर अपनी वर्तमान स्थिति में पहुंच गए और इनके बीच हिन्द महासागर का अवतरण हुआ। प्रायद्वीपीय भारत के उत्तर की ओर सरकने में टेथीज़ सागर में पड़े अवसाद में वलन पड़ गए। इससे हिमालय और आल्पस पर्वतों का निर्माण हुआ।

सिद्धान्त के पक्ष में प्रमाण-वर्तमान महाद्वीपों को पुनः जोड़कर पैंजिया का रूप दिया जा सकता है। वेगनर ने इसे साम्य स्थापना (Jig-saw-fit) का नाम दिया है।
(1) अटलांटिक महासागर के पूर्वी और पश्चिमी तटों के आकार में आश्चर्यजनक समानता पाई जाती है। दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी तट को अफ्रीका के पश्चिमी तट से मिला दिया जाए, तो वे एकाकार दिखने लगेंगे। इसी प्रकार, उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट को यूरोप के पश्चिमी तट से मिलाया जा सकता है।

(2) इसी प्रकार पूर्वी अफ्रीका में इथिओपिया का उभार (Bulge) पश्चिमी भारत तथा पाकिस्तान की तट रेखा से जोड़ा जा सकता है। ऑस्ट्रेलिया भी बंगाल की खाड़ी में फिट बैठ सकता है।

(3) अटलांटिक महासागर के दोनों तटों पर पाई जाने वाली चट्टानों की संरचना, उनकी आयु तथा चट्टानों के बीच पाए जाने वाले जीवावशेषों (Fossils) में समानता पाई जाती है जो इंगित करती है कि कभी ये दोनों तट मिले हुए थे।

प्रवाहित करने वाले बल-वेगनर के अनुसार, महाद्वीपों का प्रवाह दो बलों द्वारा सम्भव हुआ-

  • भू-खण्डों का भूमध्य रेखा की ओर प्रवाह गुरुत्व बल और प्लवनशीलता के बल (Force of buoyancy) के कारण हुआ।
  • महाद्वीपों का पश्चिम की ओर प्रवाह सूर्य व चन्द्रमा के ज्वारीय बल के कारण हुआ।

सिद्धान्त की पुष्टि आरम्भ में, अनेक वैज्ञानिक वेगनर के इस सिद्धान्त से असहमत थे, क्योंकि भू-भौतिकी के उस समय उपलब्ध ज्ञान के आधार पर उन्हें महाद्वीपों का विस्थापन असम्भव लगता था, लेकिन विगत कुछ वर्षों में पृथ्वी के पुरा-चुम्बकीय अध्ययन तथा महासागरीय नितल की नई खोजों ने वेगनर की इस प्रवाह संकल्पना को बल दिया है।

आलोचना-वेगनर के सिद्धान्त की आलोचना निम्नलिखित आधारों पर की गई है-

  • अफ्रीका तथा गिन्नी तट का पूर्ण रूप से न सटना अर्थात् (Jig-saw-fit) पूर्ण रूप से ठीक न होना।
  • ज्वारीय शक्ति का कम होना।
  • बहाव दिशा का सही न होना।
  • मध्यवर्ती अन्धमहासागर में कटक (Ridge) की उत्पत्ति।

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प्रश्न 2.
प्लेट विवर्तन के सिद्धान्त का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
प्लेट विवर्तन के सिद्धान्त के बारे में आप क्या जानते है? इसके महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर:
विवर्तनिकी का अभिप्राय पृथ्वी के आन्तरिक बलों के फलस्वरूप हुए पटल विरूपण से है, जो स्थलमण्डल पर अनेक प्रकार के भू-आकारों को जन्म देता है। प्लेट विवर्तनिकी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग टूजो विल्सन (Tuzo Wilson) ने सन् 1965 में किया था और प्लेट विवर्तन सिद्धान्त का पहली बार प्रतिपादन डब्ल्यूजे० मोरगन (W.J. Morgan) ने सन् 1967 में किया था।
महाद्वीपों और महासागरों की उत्पत्ति का यह सिद्धान्त वास्तव में महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त का संशोधित रूप है।

सिद्धान्त की रूपरेखा पृथ्वी का बाह्य भाग जो हमें ऊपर से एक दिखाई देता है, वास्तव में कई दृढ़ खण्डों के संयोजन से बना है। इन दृढ़ खण्डों को प्लेट कहते हैं। अन्य शब्दों में, पृथ्वी का स्थलमण्डल अनेक प्लेटों में बँटा हुआ है।

प्लेटों की विशेषताएँ-

  • किसी भी प्लेट की पर्पटी महाद्वीपीय, महासागरीय अथवा दोनों प्रकार की मिश्रित भी हो सकती है।
  • प्लेटें आपस में कभी दूर व कभी पास होती रहती हैं।
  • प्रत्येक प्लेट का क्षेत्र उसकी मोटाई से ज्यादा होता है।
  • विवर्तन की सभी घटनाएँ; जैसे भूकम्प, ज्वालामुखी तथा पर्वत निर्माण आदि, इन्हीं प्लेटों के किनारों पर घटित होती हैं।

स्थलमण्डल की प्लेटे-ला पिचोन (La Pichon) ने सन् 1968 में पृथ्वी को 6 बड़ी और 9 छोटी प्लेटों में बाँटा था बड़ी प्लेटें (Major Plates)-

  • अफ्रीकी प्लेट
  • अमेरिकी प्लेट
  • अंटार्कटिक प्लेट
  • ऑस्ट्रेलियाई प्लेट
  • यूरेशियाई प्लेट
  • प्रशान्तीय प्लेट।

छोटी प्लेटें (Minor Plates)-

  • अरेबियन प्लेट
  • बिस्मार्क प्लेट
  • कैरीबियन प्लेट
  • कैरोलीना प्लेट
  • कोकोस प्लेट
  • जुआन डी प्यूका प्लेट
  • नाज़का या पूर्वी प्रशांत प्लेट
  • फ़िलीपीन्स प्लेट
  • स्कोशिया प्लेट।।

प्लेट गति के कारण-सभी प्लेटें स्वतन्त्र रूप से पृथ्वी के दुर्बलता-मण्डल (Asthenosphere) पर भिन्न-भिन्न दिशाओं में भ्रमण (Wandering) करती रहती हैं। प्लेटों का भ्रमण पृथ्वी के आन्तरिक भागों में ऊष्मा की भिन्नता के कारण उत्पन्न होने वाली संवहन धाराओं के कारण होता है। कई विद्वान् संवहन धाराओं के साथ-साथ गुरुत्व बल (Gravity) तथा चट्टान भार (Weight of Rocks) को भी प्लेटों के संचलन का कारण मानते हैं।

प्लेट गति के प्रकार-प्लेटें तीन प्रकार से गति करती हैं-
(1) अभिसरण-जब कुछ प्लेटें एक-दूसरे की ओर बढ़कर निकट आती हैं और आपस में टकराती हैं, तो इसे अभिसरण कहते हैं। ऐसी प्लेटों को अभिसरण प्लेट (Converging Plates) और उनके बीच वाले किनारों को अभिसरण किनारे कहा जाता है। प्लेटों के टकराने पर दो दशाएँ उत्पन्न होती हैं

  • किसी एक प्लेट का दूसरी प्लेट के नीचे धंसना।
  • किसी भी प्लेट का नीचे न धंसना।

(a) जब एक महासागरीय (Oceanic) प्लेट किसी महाद्वीपीय (Continental) प्लेट से टकराती है, तो महाद्वीपीय प्लेट भारी घनत्व की चट्टानों से बनी होने के कारण हल्की चट्टानों से बनी महाद्वीपीय प्लेट के नीचे धंस जाती है। अधिक गहराई में जाने पर इस धंसती हुई प्लेट का कुछ भाग पिघलकर मैग्मा बन जाता है। ऊपर की चट्टानों का दबाव भी भीतरी ऊष्मा को बढ़ाता है। पिघला हुआ मैग्मा महाद्वीपीय प्लेट के किनारे के निकट ऊपर उमड़कर ज्वालामुखी पर्वतों का निर्माण करता है। अगर ज्वालामुखी पर्वत न बने तो विकल्प के रूप में एक गहरी खाई बन जाती है। पेरू की खाई नाजका महासागरीय प्लेट तथा दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीपीय प्लेट के टकराव का परिणाम है। इसी कारण अभिसरण प्लेटों के सीमान्तों (Margins) को विनाशात्मक सीमान्त (Destructive Margins) कहा जाता है।

(b) जब दो प्लेटें एक-दूसरे के निकट आती हैं और उनके टकराने पर कोई भी प्लेट नीचे नहीं धंसती, तो उनके बीच स्थित अवसाद में वलन की प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है। इससे मोड़दार (Fold) पर्वतों का निर्माण होता है। हिमालय तथा आल्पस जैसे वलित पर्वतों का निर्माण प्लेटों के अभिसरण का परिणाम है।

(2) अपसरण-प्लेटों के एक-दूसरे से दूर जाने की स्थिति को अपसरण तथा ऐसी प्लेटों को अपसारी प्लेटें कहते हैं। इन प्लेटों के किनारों को अपसारी किनारे कहते हैं। विपरीत दिशा में जाने से प्लेटों के बीच गैप आ जाता है। गहरे मैन्टल से तप्त मैग्मा संवाहित होकर ऊपर उठता है और उस गैप में भर जाता है। इस प्रकार अपसारी सीमाओं में नवीन रचनात्मक प्लेट का निर्माण होता है और महासागरीय नितल (Floor) का प्रसरण (Spreading) होता रहता है।

(3) पारवर्तन-जब दो भू-प्लेटें ट्रांसफार्म भ्रंश के सहारे क्षैतिज दिशा में संचलित होती है, तो ऐसी प्लेटों को पारवर्ती प्लेटें और उनके किनारों को पारवर्ती किनारे कहा जाता है। ये संरक्षी अथवा निष्क्रिय (Conservative or Passive) किनारे होते हैं। इसमें नवीन स्थलों का न तो निर्माण होता है और न विनाश। हाँ, परस्पर सरकने से स्थलमण्डल में दरारें भी पड़ती हैं और भूकम्प भी आते हैं।

प्लेट विवर्तन सिद्धान्त का महत्त्व – जो स्थान जीव विज्ञान में उविकास सिद्धान्त (Theory of Evolution) का है, वही स्थान भू-गर्भ विज्ञान में प्लेट विवर्तन के सिद्धान्त का है। इस क्रान्तिकारी सिद्धान्त ने 20वीं सदी के भू-विज्ञानों (Earth Sciences) के उस हर प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास किया है, जो सदियों से आज तक दुनिया के सामने पहेली (Puzzle) बने खड़े थे।

  • महासागरों की चौड़ाई कहीं बढ़ रही है तो कहीं घट रही है। प्लेट विवर्तन के सिद्धान्त का यह तथ्य महाद्वीपीय विस्थापन की पुष्टि करता है।
  • यह सिद्धान्त मोड़दार पर्वतों की रचना की व्याख्या करता है।
  • प्लेट विवर्तन का सिद्धान्त ही अच्छी तरह से स्पष्ट करता है कि विश्व में द्वीपीय पर्वतों (Island Mountains) तथा द्वीप तोरणों (Island Festoons) की रचना कैसे हुई?
  • ज्वालामुखी क्यों फूटते हैं? भूकम्प क्यों आते हैं? कहाँ आते हैं? इन प्रश्नों की वैज्ञानिक और तार्किक व्याख्या प्लेट विवर्तनिकी से ही सम्भव हो पाई है।
  • प्लेट विवर्तन के सिद्धान्त ने ही यह रहस्योदघाटन किया है कि पैंजिया टूटकर बिखरते और बिखरकर फिर जुड़ते रहे हैं। जिस पैंजिया के बिखरे भू-खण्डों पर आज हम बैठे हैं, उससे पहले भी एक पैंजिया था।

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

1. पृथ्वी की आंतरिक परत निफे के निर्माण में किन तत्त्वों की प्रधानता है?
(A) सिलिका व एल्यूमीनियम
(B) सिलिका व मैग्नीशियम
(C) बेसाल्ट व सिलिका
(D) निकिल व फेरस
उत्तर:
(D) निकिल व फेरस

2. पृथ्वी की किस गहराई पर तापमान बढ़ने से ठोस पदार्थ तरलावस्था में आ जाते हैं?
(A) 32 कि०मी०
(B) 50 कि०मी०
(C) 96 कि०मी०
(D) 100 कि०मी०
उत्तर:
(B) 50 कि०मी०

3. पृथ्वी की किस परत में बेसाल्ट चट्टानें पाई जाती हैं?
(A) सियाल
(B) साइमा
(C) निफे
(D) किसी में भी नहीं
उत्तर:
(B) साइमा

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

4. पृथ्वी की संरचना की परत है-
(A) भू-पर्पटी
(B) मैंटल
(C) क्रोड
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

5. सीस्मोग्राफ यंत्र किस चीज का अंकन करता है?
(A) वायुदाब का
(B) तापमान का
(C) भूकंपीय तरंगों का
(D) पवनों की गति का
उत्तर:
(C) भूकंपीय तरंगों का

6. भूकंप मूल या भूकंप केंद्र वह होता है-
(A) जहां भूकंपीय तरंगें सबसे पहले पहुँचती हैं
(B) जहां भूकंपीय तरंगों का उद्गम होता है
(C) जहां भूकंपीय तरंगें धरातल से टकराकर लौटती हैं
(D) जहां भूकंपीय तरंगें समाप्त होती हैं
उत्तर:
(B) जहां भूकंपीय तरंगों का उद्गम होता है

7. P अथवा प्राथमिक तरंगों की कौन-सी विशेषता सही नहीं है?
(A) ये तरंगें किसी भी स्थान पर सबसे पहले पहुँचती हैं।
(B) ये ठोस, तरल तथा गैसीय तीनों माध्यमों से गुजर सकती हैं।
(C) शैलों का घनत्व बदलने पर भी P तरंगों का वेग नहीं बदलता।
(D) ये सबसे तेज चलती हैं।
उत्तर:
(C) शैलों का घनत्व बदलने पर भी P तरंगों का वेग नहीं बदलता।

8. मोहोरोविसिस असंतति किसे कहा जाता है?
(A) धरातल पर बिछी तलछटी चट्टान की परत को
(B) अवसादी चट्टानों के नीचे बिछी ग्रेनाइट की परत को
(C) ग्रेनाइट की परत तथा मिश्रित मंडल के बीच स्थित कम सिलिका वाली परत को
(D) पृथ्वी के केंद्रीय मंडल को
उत्तर:
(C) ग्रेनाइट की परत तथा मिश्रित मंडल के बीच स्थित कम सिलिका वाली परत को

9. ‘मोहो’ के बारे में कौन-सा कथन असत्य है?
(A) जिस कोल्पा घाटी में आए भूकंप के अध्ययन से ‘मोहो’ का पता चला, वह कुल्लू में है
(B) यह परत भू-पर्पटी तथा मैंटल के बीच सीमा रेखा है
(C) महाद्वीपों के नीचे यह 30 से 70 फुट की गहराई में मिलती है
(D) महासागरों के नीचे यह 5 से 7 कि०मी० की गहराई पर मिलती है
उत्तर:
(A) जिस कोल्पा घाटी में आए भूकंप के अध्ययन से ‘मोहो’ का पता चला, वह कुल्लू में है

10. दुर्बलतामण्डल का विस्तार कहाँ तक आँका गया है?
(A) 200 कि०मी० तक
(B) 300 कि०मी० तक
(C) 400 कि०मी० तक
(D) 600 कि०मी० तक
उत्तर:
(C) 400 कि०मी० तक

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

11. पृथ्वी के अंदर वह स्थान जहां भूकंप उत्पन्न होते हैं, क्या कहलाता है?
(A) अपकेंद्र
(B) अधिकेंद्र
(C) उद्गम केंद्र
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) उद्गम केंद्र

12. पृथ्वी के क्रोड से निम्नलिखित में से कौन-सी तरंगें निकल सकती हैं?
(A) लंबी तरंगें
(B) गौण तरंगें
(C) प्राथमिक तरंगें
(D) आड़ी तरंगें
उत्तर:
(C) प्राथमिक तरंगें

13. भूकंप की तीव्रता को मापने के बारे में कौन-सा कथन असत्य है?
(A) रिक्टर पैमाने में कोई न्यनतम व अधिकतम सीमा ही नहीं होती
(B) मरकेली पैमाना लोगों के अनुभवों के आधार पर भूकंप की तीव्रता बताता था
(C) रिक्टर पैमाने पर तीन परिमाण वाले भूकंप का कंपन दो परिमाण वाले भूकंप की अपेक्षा 10 गुना होगा
(D) रिक्टर पैमाने से भूकंप की तीव्रता का तो मापन होता है मगर मुक्त हुई ऊर्जा का नहीं
उत्तर:
(D) रिक्टर पैमाने से भूकंप की तीव्रता का तो मापन होता है मगर मुक्त हुई ऊर्जा का नहीं

14. भूकंप की तीव्रता को मापने का सबसे पहला पैमाना कौन-सा था?
(A) वुड और फ्रैंक न्यूमान का
(B) गाइसेप मरकेली का
(C) रौसी-फोरेल का
(D) चार्ल्स रिक्टर का
उत्तर:
(C) रौसी-फोरेल का

15. निम्नलिखित में से कौन-सा एक भूकंप उत्पन्न करने का कारण नहीं है?
(A) रिसे हुए समुद्री जल के उबलने से बनी
(B) मैग्मा के प्रचंड वेग से धरातल पर आने से गैसों के फैलने से
(C) सूर्य एवं चंद्रमा के ज्वारीय बल में वृद्धि होने से
(D) भू-प्लेटों के आपस में टकराने से
उत्तर:
(C) सूर्य एवं चंद्रमा के ज्वारीय बल में वृद्धि होने से

16. सन 1833 में इंडोनेशिया के क्राकाटोआ में आए भूकंप के पीछे क्या कारण था?
(A) जलीय भार से
(B) सिकुड़ती हुई चट्टानों के समायोजन से
(C) ज्वालामुखी उद्भेदन से
(D) भू-प्लेटों के टकराने से
उत्तर:
(C) ज्वालामुखी उद्भेदन से

17. उन भूकंपों को क्या कहते हैं जो दरार घाटियों, अंशों व ब्लॉक पर्वतों की रचना के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं?
(A) विवर्तनिक भूकंप
(B) ज्वालामुखी भूकंप
(C) वितलीय भूकंप
(D) समस्थितिक भूकंप
उत्तर:
(A) विवर्तनिक भूकंप

18. विनाशकारी सुनामी लहरों की उत्पत्ति का क्या कारण है?
(A) समुद्री तटों पर भूकंप आना
(B) समुद्र में ज्वालामुखी फूटना
(C) समुद्री तली में भूकंप आना
(D) महासागरीय नितल का प्रसारण
उत्तर:
(C) समुद्री तली में भूकंप आना

19. 26 जनवरी, 2001 को गुजरात के भुज में आया भूकंप रिक्टर स्केल पर कितना था?
(A) 8.4
(B) 7.9
(C) 6.8
(D) 7.0
उत्तर:
(B) 7.9

20. विश्व के अधिकतर भूकंप कहाँ आते हैं?
(A) मध्य अटलांटिक पेटी
(B) पामीर की गांठ
(C) प्रशांत महासागरीय पेटी
(D) तिब्बत का पठार
उत्तर:
(C) प्रशांत महासागरीय पेटी

21. भारत में सबसे कम भूकंप किस क्षेत्र में आते हैं?
(A) दक्कन पठार
(B) जलोढ़ मैदान
(C) हिमालय पर्वत
(D) मरुस्थल
उत्तर:
(A) दक्कन पठार

22. भू-तल पर जिस मुंह से मैग्मा, गैसें तथा विखंडित पदार्थ बाहर निकलते हैं, उसे कहा जाता है
(A) ज्वालामुखी शंकु
(B) ज्वालामुखी छिद्र
(C) नली
(D) चिमनी
उत्तर:
(B) ज्वालामुखी छिद्र

23. निम्नलिखित में से कौन-सा सक्रिय ज्वालामुखी है?
(A) स्ट्रॉमबोली
(B) विसूवियस
(C) बैरनआईलैंड
(D) पोपा
उत्तर:
(A) स्ट्रॉमबोली

24. ज्वालामुखी से निकलने वाली गैसों में 80 से 90% अंश किस गैस का होता है?
(A) हाइड्रोजन सल्फाइड
(B) सल्फर डाइऑक्साइड
(C) अमोनिया क्लोराइड
(D) भाप
उत्तर:
(D) भाप

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

25. ज्वालामुखी से निःसत तरल पदार्थों के बारे में कौन-सा कथन असत्य है?
(A) ताजे लावे का तापमान 600° से 1200° सेल्सियस होता है
(B) ज्वालामुखी पर्वत को ऊंचाई, अधिसिलिक लावा प्रदान करता है
(C) पैठिक लावा पतला होता है जो पठारों का
(D) अम्लिक लावा में सिलिका का अंश नगण्य निर्माण करता है होता है
उत्तर:
(D) अम्लिक लावा में सिलिका का अंश नगण्य निर्माण करता है होता है

26. पर्वत निर्माणकारी हलचलों में निम्नलिखित में से कौन सम्मिलित नहीं है?
(A) संवलन
(B) वलन
(C) अवतलन
(D) भ्रंशन
उत्तर:
(C) अवतलन

27. किलिमंजारो नामक मृत ज्वालामुखी किस देश में है?
(A) सिसली
(B) जापान
(C) तंजानिया
(D) मैक्सिको
उत्तर:
(C) तंजानिया

28. विश्व का सबसे ऊंचा सक्रिय ज्वालामुखी कौन-सा है?
(A) एटना
(B) फ़्यूजीयामा
(C) क्राकाटोआ
(D) अंटोफ़ाला
उत्तर:
(D) अंटोफ़ाला

29. अग्निवृत किसे कहा जाता है?
(A) परिप्रशांत महासागरीय पेटी
(B) हिंद महासागरीय पेटी
(C) मध्य महाद्वीपीय पेटी
(D) अटलांटिक महाद्वीपीय पेटी
उत्तर:
(A) परिप्रशांत महासागरीय पेटी

30. वह कौन-सा महाद्वीप है जिसमें एक भी ज्वालामुखी नहीं है?
(A) ऑस्ट्रेलिया
(B) अफ्रीका
(C) यूरोप
(D) उपर्युक्त में से कोई भी नहीं
उत्तर:
(A) ऑस्ट्रेलिया

31. भूकंप किस प्रकार की आपदा है?
(A) वायुमण्डलीय
(B) भौतिकी
(C) जलीय
(D) जीवमण्डलीय
उत्तर:
(B) भौतिकी

32. ज्वालामुखी उद्भेदन से निकले निम्नलिखित ठोस पदार्थों में से कौन-सा एक स्पंज की भांति हल्का है और जल में नहीं डूबता?
(A) लैपिली
(B) स्कोरिया
(C) टफ़
(D) झामक
उत्तर:
(D) झामक

33. वह किस प्रकार का ज्वालामुखी है जिसकी गैसों से प्रकाशमान मेघों को हवाई द्वीप के लोग अग्नि की रेफी की केशराशि समझते हैं?
(A) प्लिनी तुल्य
(B) पीलियन तुल्य
(C) हवाई तुल्य
(D) वलकैनो तुल्य
उत्तर:
(B) पीलियन तुल्य

34. किस ज्वालामुखी को ‘भूमध्य सागर का प्रकाश स्तंभ’ कहा जाता है?
(A) मोनालोआ
(B) क्राकाटोआ
(C) स्ट्रॉम्बोली
(D) विसुवियस
उत्तर:
(C) स्ट्रॉम्बोली

35. निम्नलिखित में से कौन-सा ज्वालामुखी मृत या विलुप्त हो चुका है?
(A) इटली का एटना
(B) ईरान का कोह-सुलतान
(C) लिपारी का स्ट्रॉम्बोली
(D) इटली का विसुवियस
उत्तर:
(B) ईरान का कोह-सुलतान

36. निम्नलिखित में से कौन-सा सक्रिय ज्वालामुखी भारत में है?
(A) बैरन द्वीप
(B) इरेबस
(C) टैरर
(D) एटना
उत्तर:
(A) बैरन द्वीप

37. क्रेटर और काल्डेरा स्थलाकृतियां निम्नलिखित में से किससे संबंधित हैं?
(A) उल्कापात
(B) ज्वालामुखी क्रिया
(C) पवन क्रिया
(D) हिमानी क्रिया
उत्तर:
(B) ज्वालामुखी क्रिया

38. लंबे समय तक शांत रहने के पश्चात् विस्फोट होने वाला ज्वालामुखी क्या कहलाता है?
(A) मृत
(B) प्रसुप्त
(C) सक्रिय
(D) निष्क्रिय
उत्तर:
(B) प्रसुप्त

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
पृथ्वी का व्यास कितना है?
उत्तर:
12,742 कि०मी०।

प्रश्न 2.
भू-गर्भ की जानकारी प्राप्त करने के दो परोक्ष स्रोत बताएँ।
उत्तर:

  1. पृथ्वी के भीतर का तापमान
  2. उल्कापिण्ड।

प्रश्न 3.
भूकंपीय तरंगों द्वारा वक्राकार मार्ग अपनाया जाना क्या इंगित करता है?
उत्तर:
वक्राकार मार्ग यह सिद्ध करता है कि पृथ्वी के भीतर घनत्व परिवर्तित हो रहा है।

प्रश्न 4.
क्रोड किन दो प्रमुख धातुओं से बना है?
उत्तर:
लोहा और निकिल।

प्रश्न 5.
भूकंप से पैदा होने वाली समुद्री तरंगों को जापान में क्या कहा जाता है?
उत्तर:
सुनामी (Tsunami)

प्रश्न 6.
सबसे मन्द गति से चलने वाली भूकंपीय तरंगें कौन-सी हैं?
उत्तर:
धरातलीय तरंगें (L-Waves)

प्रश्न 7.
सियाल व साइमा का घनत्व बताएँ।
उत्तर:
सियाल 2.75 से 2.90 व साइमा 2.90 से 3.4।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

प्रश्न 8.
‘पी’, ‘एस’ व ‘एल’ तरंगों के अन्य नाम बताइए।
उत्तर:
पी = अनुदैर्ध्य तरंगें; एस = अनुप्रस्थ तरंगें तथा एल = धरातलीय या लम्बी तरंगें।

प्रश्न 9.
धरातल पर परिवर्तन लाने वाले बलों के नाम बताएँ।
उत्तर:

  1. आन्तरिक बल
  2. बाह्य बल।

प्रश्न 10.
भारत की किसी एक क्रेटर झील का उदाहरण दें।
उत्तर:
लोनार झील।

प्रश्न 11.
पृथ्वी की आन्तरिक संरचना की जानकारी देने वाले दो प्रत्यक्ष साधन या स्रोत बताएँ।
उत्तर:

  1. खाने
  2. छिद्र।

प्रश्न 12.
पृथ्वी के भीतर तापमान बढ़ने की औसत दर क्या है?
उत्तर:
प्रति 32 मीटर पर 1° सेल्सियस।

प्रश्न 13.
भू-पृष्ठ किन दो प्रमुख पदार्थों से बना हुआ है?
उत्तर:

  1. सिलिका
  2. एल्यूमीनियम।

प्रश्न 14.
भूकंपीय तरंगों का अध्ययन करने वाले यन्त्र का नाम बताइए।
उत्तर:
सीस्मोग्राफ (Seismograph)।

प्रश्न 15.
पृथ्वी के भीतर ‘S’ तरंगें कितनी गहराई के बाद लुप्त हो जाती हैं?
उत्तर:
2900 किलोमीटर की गहराई के बाद।

प्रश्न 16.
वे कौन सी भूकंपीय तरंगें हैं जो केवल ठोस माध्यम से ही गुज़र सकती हैं?
उत्तर:
S-तरंगें अथवा गौण तरंगें अथवा अनुप्रस्थ तरंगें।

प्रश्न 17.
पृथ्वी का औसत अर्धव्यास कितना है?
उत्तर:
6371 किलोमीटर।

प्रश्न 18.
सियाल (Sial) किन दो शब्दों से मिलकर बना है?
उत्तर:
सियाल शब्द सिलिका (Si) तथा एल्यूमीनियम (al) के संयोग (Si + al = Sial) से बना है।

प्रश्न 19.
साइमा (Sima) किन दो शब्दों से मिलकर बना है?
उत्तर:
साइमा शब्द सिलिका (Si) तथा मैग्नीशियम (ma) के संयोग (Si+ma = Sima) से बना है।

प्रश्न 20.
निफे (Nife) किन दो शब्दों से मिलकर बना है?
उत्तर:
निफे शब्द निकिल (Ni) तथा फैरस (Fe) के संयोग (Ni + fe = Nife) से बना है।

प्रश्न 21.
पृथ्वी की केन्द्रीय परत का क्या नाम है?
उत्तर:
अभ्यान्तर या क्रोड (Core)।

प्रश्न 22.
क्रोड का घनत्व इतना अधिक क्यों है?
उत्तर:
पृथ्वी के क्रोड का अधिक घनत्व लोहे तथा निकिल की उपस्थिति के कारण है।

प्रश्न 23.
भूकंपीय तीव्रता की मापनी किस नाम से जानी जाती है?
उत्तर:
रिक्टर स्केल।

प्रश्न 24.
भूकंप की उत्पत्ति के दो कारण बताइए।
उत्तर:

  1. विवर्तनिक हलचल और
  2. ज्वालामुखी विस्फोट।

प्रश्न 25.
माउण्ट फ्यूज़ीयामा किस श्रेणी का ज्वालामुखी है?
उत्तर:
मिश्रित शंकु प्रकार का।।

प्रश्न 26.
माउण्ट विसुवियस किस श्रेणी का ज्वालामुखी है और कहाँ है?
उत्तर:
माउण्ट विसुवियस प्रसुप्त श्रेणी का ज्वालामुखी है जो इटली में है।

प्रश्न 27.
कौन-सा ज्वालामुखी ‘भूमध्य सागर का प्रकाश स्तम्भ’ कहलाता है? यह किस द्वीप पर स्थित है?
उत्तर:
स्ट्रॉम्बोली ज्वालामुखी, लिपारी द्वीप पर।

प्रश्न 28.
ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थ कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
गैस, तरल व ठोस।

प्रश्न 29.
भारत के दो ज्वालामुखियों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. बैरन द्वीप व
  2. नारकोण्डम द्वीप (बंगाल की खाड़ी में)।

प्रश्न 30.
पृथ्वी के धरातल पर अकस्मात् होने वाली दो हलचलों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. भूकंप
  2. ज्वालामुखी।

प्रश्न 31.
ज्वालामुखी विस्फोट से भू-गर्भ से निकले खनिज किस रूप में होते हैं?
उत्तर:
पिघली हुई अवस्था में।

प्रश्न 32.
मैग्मा और लावा में क्या अंतर होता है?
उत्तर:
पिघला हुआ पदार्थ पृथ्वी के अन्दर मैग्मा और बाहर लावा कहलाता है।

प्रश्न 33.
विस्फोटक प्रकार के ज्वालामुखियों के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
इटली का एटना तथा जापान का फ्यूज़ीयामा।

प्रश्न 34.
दरारी उद्भेदन से बने दो प्रदेशों का उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. दक्षिणी भारत का लावा पठार
  2. अमेरिका का स्नेक नदी का पठार।

प्रश्न 35.
शान्त उद्भेदन वाले ज्वालामुखियों के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
स्ट्रॉम्बोली व हवाई।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

प्रश्न 36.
ज्वालामुखी से निकले ठोस पदार्थों को किन-किन नामों से जाना जाता है?
उत्तर:
ज्वालामुखी राख, लैपिली, स्कोरिया, ब्रेसिया या संकोणाश्म ज्वालामुखी बम तथा झामक।

प्रश्न 37.
अधिक गाढ़ा और चिपचिपा लावा, जिसमें सिलिका का अंश ज्यादा होता है, कौन-सा ज्वालामुखी भू-आकार बनाता है?
उत्तर:
अम्लीय लावा शंकु अथवा गुम्बद।

प्रश्न 38.
भूकंप मूल (Seismic Focus) या भूकंप का उद्गम केन्द्र क्या होता है?
उत्तर:
भू-गर्भ में जिस स्थान पर भूकंप उत्पन्न होता है, उसे भूकंप मूल या भूकंप का उद्गम केन्द्र कहा जाता है।

प्रश्न 39.
अधिकेन्द्र (Epicentre) से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उद्गम केन्द्र के ठीक ऊपर धरातल पर स्थित उस बिन्दु को जहाँ भूकंपीय तरंगें सबसे पहले पहुँचती हैं, अधिकेन्द्र कहते हैं।

प्रश्न 40.
अति गरम, तरल, हल्का लावा जिसमें सिलिका का अंश कम होता है, कौन-सा ज्वालामुखी भू-आकार बनाता है?
उत्तर:
पैठिक लावा शंकु अथवा लावा शील्ड।

प्रश्न 41.
दुनिया का सबसे बड़ा सक्रिय ज्वालामुखी कौन-सा है?
उत्तर:
हवाई द्वीप समूह का मोनालोआ (Mouna Loa) ज्वालामुखी।

प्रश्न 42.
विलुप्त या मृत ज्वालामुखियों के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
ईरान का कोह-सुल्तान, म्यांमार का पोपा।

प्रश्न 43.
किन अंकों के माध्यम से भूकंप की ऊर्जा को इंगित किया जाता है?
उत्तर:
1 से 9 अंकों के माध्यम से।

प्रश्न 44.
ज्वालामुखी शंकु की कौन-सी तीन किस्में होती हैं?
उत्तर:

  1. राख शंकु
  2. सिंडर शंकु
  3. मिश्रित शंकु।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘एल’ तरंगों की खोज किसने की? इसका अन्य नाम क्या है?
उत्तर:
इन तरंगों की खोज H.D. Love ने की थी, इसलिए इन्हें Love Waves भी कहा जाता है। इनका एक और नाम R-Waves (Raylight Waves) भी है।

प्रश्न 2.
पृथ्वी के आन्तरिक भाग में ऊँचे ताप के क्या कारण हैं?
उत्तर:

  1. रासायनिक प्रतिक्रियाएँ
  2. आन्तरिक शक्तियाँ
  3. रेडियोधर्मी पदार्थों का स्वतः विखण्डन तथा
  4. उच्च मूल तापमान।

प्रश्न 3.
भू-पर्पटी क्या होती है?
उत्तर:
अवसादी शैलों से बने धरातलीय आवरण के नीचे पृथ्वी की सबसे बाहरी परत जो लगभग 5 से 50 किलोमीटर चौड़ी है, भू-पर्पटी कहलाती है।

प्रश्न 4.
श्यानता (Viscosity) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
श्यानता किसी तरल पदार्थ का वह गुण है जो इसके तत्त्वों के आन्तरिक घर्षण के कारण इसे धीरे बहने देता है। एस्फाल्ट, शहद, लावा तथा लाख ऐसे ही विस्कासी पदार्थ हैं।

प्रश्न 5.
स्थलमण्डल क्या होता है?
उत्तर:
भू-पर्पटी का वह भाग जो सियाल, साइमा तथा ऊपरी मैण्टल के कुछ भाग से मिलकर बना हुआ है, स्थलमण्डल कहलाता है।

प्रश्न 6.
तरंग दैर्ध्य (Wave Length) क्या होती है?
उत्तर:
किसी एकान्तर तरंग के क्रमिक समान बिन्दुओं के बीच की दूरी को तरंग-दैर्ध्य कहते हैं।

प्रश्न 7.
ज्वालामुखी उद्भेदन के समय कौन-कौन-सी गैसें पृथ्वी से बाहर निकलती हैं?
उत्तर:
हाइड्रोजन सल्फाइड, कार्बन-डाइ-सल्फाइड, कार्बन मोनो-ऑक्साइड, सल्फर डाइ-ऑक्साइड, हाइड्रोक्लोरिक एसिड व अमोनियम क्लोराइड इत्यादि।

प्रश्न 8.
प्रशान्त महासागरीय ज्वालावृत्त (Fiery Ring of the Pacific)
उत्तर:
विश्व के सक्रिय ज्वालामुखियों का 88 प्रतिशत प्रशान्त महासागर के पूर्वी और पश्चिमी तटों पर पाए जाने के कारण प्रशान्त महासागरीय परिमेखला को ज्वालावृत्त कहा जाता है।

प्रश्न 9.
ज्वालामुखी से होने वाले तीन लाभ बताइए।
उत्तर:

  1. उपजाऊ मिट्टी का निर्माण
  2. बहुमूल्य खनिजों की प्राप्ति
  3. पृथ्वी की आन्तरिक संरचना का ज्ञान।

प्रश्न 10.
ज्वालामुखी से होने वाली तीन हानियाँ बताइए।
उत्तर:

  1. जन-धन की हानि
  2. वायुमण्डलीय प्रदूषण
  3. जीव-जगत की मृत्यु से पारिस्थितिकी (Ecology) असन्तुलन।

प्रश्न 11.
ज्वालामुखी छिद्र क्या होता है?
उत्तर:
भूतल पर जिस मुँह से मैग्मा, गैसें तथा विखण्डित पदार्थ बाहर निकलते हैं, उसे ज्वालामुखी छिद्र कहते हैं।

प्रश्न 12.
ज्वालामुखी शंकु क्या होता है?
उत्तर:
ज्वालामुखी छिद्र से निकली हुई सामग्री के जमा होने से ज्वालामुखी शंकु बनता है।

प्रश्न 13.
ज्वालामुखी चिमनी क्या होती है?
उत्तर:
ज्वालामुखी छिद्र से जुड़ी जिस प्राकृतिक नली से मैग्मा इत्यादि का निकास होता है, उसे ज्वालामुखी नली या चिमनी कहते हैं।

प्रश्न 14.
काल्डेरा क्या होता है?
उत्तर:
क्रेटर का विस्तृत रूप काल्डेरा कहलाता है।

प्रश्न 15.
ज्वालामुखी क्या होता है?
उत्तर:
भू-पर्पटी के ऐसे निकास द्वार, जिनसे गरम पिघली चट्टानें (लावा), धुआँ, गरम गैसें, गरम वाष्प (Steam) आदि निकलकर धरातल पर और वायुमण्डल में फैल जाते हैं, को ज्वालामुखी कहते हैं।

प्रश्न 16.
पटलविरूपणी बल क्या होते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी के भीतर होने वाली वे धीमी, किन्तु दीर्घकालीन हलचलें जो भू-पटल में विक्षोभ, मुड़ाव, झुकाव व टूटन (Fracture) लाकर धरातल पर विषमताएँ लाती हैं, उन्हें पटलविरूपणी बल कहा जाता है।

प्रश्न 17.
भूकंप के कोई चार प्रभाव लिखें।
उत्तर:

  1. हिमस्खलन
  2. सुनामी
  3. भूमि का हिलना
  4. इमारतों का टूटना व ढाँचों का ध्वस्त होना।

प्रश्न 18.
तरंग दैर्घ्य (Wave Length) क्या होती है?
उत्तर:
किसी एकान्तर तरंग के क्रमिक समान बिन्दुओं के बीच की दूरी को तरंग दैर्ध्य कहते हैं।

प्रश्न 19.
उल्कापिण्ड क्या है?
उत्तर:
उल्का का वह हिस्सा, जो अपने बड़े आकार के कारण या कम वेग के कारण पृथ्वी के वायुमण्डल में आते हुए घर्षण से पूरी तरह जल नहीं पाता और पृथ्वी तल पर आ गिरता है। अन्तरिक्ष से पृथ्वी पर गिरने वाले ऐसे पिण्डों को उल्कापिण्ड कहते हैं। वायुमण्डल में पहुँचने से पहले उल्का को उल्काभ कहते हैं।

प्रश्न 20.
सुनामी से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भूकंप-जनित समुद्री लहरों के लिए सारे संसार में प्रयुक्त किया जाने वाला सुनामी एक जापानी, शब्द है, जिसका अर्थ है-Great Harbour Wave. भूकंप, विशेष रूप से समुद्री तली पर पैदा होने वाले भूकंप, 15 मीटर या इससे ऊँची लहरों को जन्म देते हैं, जिसकी गति 640 से 960 किलोमीटर प्रति घण्टा होती है। सुनामी बहुत दूर तक जा सकती हैं और तटों पर विनाशलीला करती हैं। सुनामी भूकंपों के साथ-साथ विस्फोटक ज्वालामुखी से भी पैदा होती हैं; जैसे क्राकाटोआ (1883) ज्वालामुखी से सुनामी उत्पन्न हुई थी।

प्रश्न 21.
तीन प्रकार की भूकंपीय तरंगों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. प्राथमिक अनुदैर्ध्य तरंगें
  2. गौण या अनुप्रस्थ तरंगें
  3. धरातलीय या लम्बी तरंगें।

प्रश्न 22.
भूकंपीय तरंगों का मार्ग वक्राकार क्यों हो जाता है? इसका महत्त्व भी स्पष्ट करें।
उत्तर:
भूकंपीय तरंगें भूकंप केन्द्र से सीधी दिशा में न चलकर टेढ़े मार्ग को अपनाती हैं। इसका कारण यह है कि घनत्व में आने वाली भिन्नता के कारण तरंगें परावर्तित होकर वक्राकार हो जाती हैं। तरंगों के मार्ग के वक्राकार होने का महत्त्व यह है कि इससे हमें पृथ्वी के अन्दर विभिन्न घनत्व वाली अनेक परतों के होने का प्रमाण मिलता है।

प्रश्न 23.
छायामण्डल से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भूकंप केन्द्र से 11,000 कि०मी० के बाद लगभग 5,000 कि०मी० का क्षेत्र ऐसा है जहाँ कोई भी तरंग नहीं पहुँचती, इस क्षेत्र को छायामण्डल कहते हैं। छायामण्डल का होना साबित करता है कि पृथ्वी का आन्तरिक भाग भारी धातुओं से बना हुआ है. इसे धात्विक क्रोड (Metallic core) भी कहते हैं।

प्रश्न 24.
रिक्टर स्केल क्या होती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अमेरिकी भूकंप वैज्ञानिक चार्ल्स फ्रांसिस रिक्टर (Charles Francis Richter) के नाम से प्रसिद्ध इस माप के द्वारा उद्गम केन्द्र पर भूकंप द्वारा निर्मुक्त ऊर्जा को मापा जाता है। इसमें 1 से 9 अंकों के माध्यम से भूकंप की ऊर्जा को इंगित किया जाता है। उदाहरणतः 7 परिमाण वाला भूकंप, 6 परिमाण वाले भूकंप से 10 गुना, 5 परिमाण वाले भूकंप से 100 गुना तथा 4 परिमाण वाले भूकंप की अपेक्षा 1000 गुना शक्तिशाली होता है। आगे भी इसका माप इसी अनुरूप होता है।

प्रश्न 25.
भूकंप क्या है? अथवा भूकंप को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी की भीतरी हलचलों के कारण जब धरातल का कोई भाग अकस्मात् काँप उठता है तो उसे भूकंप कहते हैं। चट्टानों की तीव्र गति के कारण हुआ यह कम्पन अस्थाई होता है। जे.बी. मेसिलवाने के अनुसार, “भूकंप धरातल के ऊपरी भाग की वह कम्पन विधि है जो धरातल के ऊपर या नीचे चट्टानों के लचीले गुरुत्वाकर्षण की समस्थिति में क्षणिक अव्यवस्था द्वारा पैदा होती है।” सेलिसबरी के अनुसार, “भूकंप वे धरातलीय कम्पन हैं जो मनुष्य से असम्बन्धित क्रियाओं के परिणामस्वरूप होते हैं।”

प्रश्न 26.
ज्वालामुखी उद्गारों को प्रायः पर्वत निर्माण क्रिया से क्यों जोड़ा जाता है?
उत्तर:
ज्वालामुखी आकस्मिक बल है। पृथ्वी के भीतर पैदा होने वाला यह बल भू-तल के ऊपर तथा नीचे अचानक परिवर्तन ला देता है। इस आकस्मिक बल के कारण भू-पटल पर देखते-ही-देखते पर्वत, पठार, मैदान, झील, दरारें आदि बन जाती हैं। इसलिए ज्वालामुखी उद्गारों को पर्वत निर्माण क्रिया से जोड़ा जाता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

प्रश्न 27.
प्रशान्त महासागर के तटीय भागों को अग्नि वलय क्यों कहा जाता है?
अथवा
प्रशान्त महासागरीय परिमेखला को ज्वालावृत क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
प्रशान्त महासागर के तटीय क्षेत्रों के चारों ओर सक्रिय ज्वालामुखी पाए जाते हैं। विश्व में लगभग 522 सक्रिय ज्वालामुखी हैं। इनमें से 403 सक्रिय ज्वालामुखी इसी क्षेत्र में पाए जाते हैं। इन ज्वालामुखियों ने प्रशान्त महासागर को एक वृत्त की तरह घेर रखा है। इन सक्रिय ज्वालामुखियों में से समय-समय पर लावा का उद्गार होता रहता है इसलिए प्रशान्त महासागर को अग्नि वलय कहते हैं।

प्रश्न 28.
भूकंप विज्ञान (Seismology) क्या होता है?
उत्तर:
वह विज्ञान जो भूकंपों की उत्पत्ति, उनकी तीव्रता का अध्ययन करता है, भूकंप विज्ञान कहलाता है। इसमें भूकंपीय तरंगों का अध्ययन भूकंपमापी यन्त्र (Seismograph) की सहायता से किया जाता है।

प्रश्न 29.
पृथ्वी का निर्माण करने वाली तीन परतों के नाम बताइए।
उत्तर:
भू-पर्पटी, मैण्टल तथा क्रोड।

प्रश्न 30.
पृथ्वी की सबसे भारी तथा सबसे हल्की परत का नाम बताइए।
उत्तर:
सबसे भारी परत-क्रोड तथा सबसे हल्की परत-भू-पर्पटी है।

प्रश्न 31.
भू-पर्पटी, मैण्टल तथा क्रोड का आयतन कितना है?
उत्तर:
भू-पर्पटी 1%, मैण्टल 83% तथा क्रोड 16%।

प्रश्न 32.
किन प्रमाणों से ज्ञात होता है कि पृथ्वी के भीतर भारी गर्मी है?
उत्तर:

  1. ज्वालामुखी
  2. गरम जल के झरने
  3. गहरी खानें।

प्रश्न 33.
विवर (Crator) क्या होता है?
उत्तर:
ज्वालामुखी शंकु के शिखर पर स्थित कीपनुमा खड्डे को विवर कहते हैं।

प्रश्न 34.
सक्रियता के आधार पर ज्वालामुखियों के प्रकार बताइए।
उत्तर:

  1. सक्रिय ज्वालामुखी
  2. प्रसुप्त ज्वालामुखी तथा
  3. विलुप्त ज्वालामुखी।

प्रश्न 35.
ज्वालामुखी के प्रमुख अंग कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
ज्वालामुखी छिद्र, ज्वालामुखी नली या चिमनी, क्रेटर, ज्वालामुखी शंकु इत्यादि।

प्रश्न 36.
ज्वालामुखी उद्भेदन कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
तीन प्रकार का-

  1. केन्द्रीय उद्भेदन
  2. शान्त उद्भेदन व
  3. दरारी उद्भेदन।

प्रश्न 37.
ज्वालामुखी विस्फोट किन कारणों से होता है?
उत्तर:

  1. भू-गर्भ का उच्च ताप
  2. भाप तथा गैसें
  3. दुर्बल भू-भाग
  4. भूकंप।

प्रश्न 38.
विश्व की प्रमुख ज्वालामुखी पेटियों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. प्रशान्त महासागरीय परिमेखला
  2. मध्य महाद्वीपीय पेटी
  3. अन्ध महासागरीय पेटी।

प्रश्न 39.
गुरुमण्डल (Barysphere) क्या है?
उत्तर:
पृथ्वी के अभ्यन्तर का वह सारा भाग, जो स्थलमण्डल के नीचे है, गुरुमण्डल कहलाता है। इसमें क्रोड, मैण्टल तथा दुर्बलतामण्डल (Asthenosphere) तीनों शामिल होते हैं। केवल क्रोड या मैण्टल को गुरुमण्डल नहीं कहना चाहिए।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वी की आन्तरिक संरचना का अध्ययन क्यों आवश्यक है?
अथवा
भू-गर्भ की जानकारी हमारे लिए किस प्रकार महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
भू-गर्भ का अध्ययन भू-गर्भ विज्ञान करता है, परन्तु भू-गर्भ का ज्ञान कई भौगोलिक प्रक्रियाओं को समझने के लिए सहायक है, जो निम्नलिखित हैं-

  1. भू-गर्भ के अध्ययन से पर्वतों के उत्थान, निर्माण तथा धंसाव का ज्ञान प्राप्त होता है।
  2. इससे भू-तल पर होने वाले परिवर्तनों की जानकारी प्राप्त होती है।
  3. भू-गर्भ से हमें पथ्वी की आन्तरिक शक्तियों तथा हलचलों के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है।
  4. इसके अध्ययन से हमें विभिन्न क्रियाओं; जैसे तनाव और खिंचाव आदि का ज्ञान प्राप्त होता है।
  5. भू-गर्भ की जानकारी से विभिन्न खनिज-पदार्थों की स्थिति तथा संरचना की जानकारी प्राप्त होती है।
  6. भूकंपों और ज्वालामुखियों के कारणों की व्याख्या पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के ज्ञान से ही हो सकती है।
  7. पृथ्वी की आन्तरिक हलचलों से बने पर्वत, पठार और मैदान मानव बसाव व आर्थिक क्रियाओं का निर्धारण करते हैं।

प्रश्न 2.
पृथ्वी के आन्तरिक भाग की जानकारी परोक्ष प्रमाणों पर आधारित है, क्यों?
उत्तर:
पृथ्वी का आन्तरिक भाग दृश्य (Visible) न होने के कारण भू-गर्भ के बारे में हमारा ज्ञान सीमित है। पृथ्वी के भीतर की अधिकतर जानकारी हमें परोक्ष (Indirect) रूप से प्राप्त हुई है। भू-गर्भ के बारे में प्रत्यक्ष ज्ञान हमें खानों और सछिद्रों (Bore-holes) से मिलता है। विश्व की सबसे गहरी खान दक्षिण अफ्रीका में रॉबिन्सन गर्त है। सोने की यह खान 4 कि०मी० से कुछ कम गहरी है। तेल की खोज में खोदे गए कुओं की गहराई भी 8 कि०मी० से अधिक नहीं हो पाई है। ये दोनों गहराइयाँ पृथ्वी के केन्द्र की दूरी की तुलना में नगण्य हैं। इससे यह साफ हो जाता है कि प्रत्यक्ष रूप से तो केवल भू-पर्पटी के ऊपरी भाग की, जो धरातल के एकदम नीचे स्थित है, जानकारी प्राप्त की जा सकती है। यह ऊपरी भाग तो पृथ्वी पर खरोंच जैसा है। इससे निचले भाग की जानकारी के लिए परोक्ष वैज्ञानिक प्रमाणों का सहारा लेना पड़ता है।

प्रश्न 3.
उल्कापिण्ड पृथ्वी की आन्तरिक बनावट के विषय में जानकारी देने में किस प्रकार सहायता करती हैं?
उत्तर:
उल्कापिण्ड उल्का (Meteor) का वह हिस्सा होता है जो अपने बड़े आकार के कारण या कम वेग के कारण पृथ्वी के वायुमण्डल में आते हुए घर्षण से पूरी तरह नहीं जल पाता और पृथ्वी तल पर आ गिरता है। सौरमण्डल का सदस्य होने के कारण उल्कापिण्डों और पृथ्वी की रचना में समानता पाई जाती है, इनके अध्ययन से दो बातों का अनुमान लगाया जा सकता है-प्रथम, पृथ्वी में भी उल्कापिण्डों के समान प्याज के छिलकों जैसी संकेन्द्रीय (Concentric) परतें पाई जाती हैं। द्वितीय, उल्कापिण्डों के निर्माण में लोहा तथा निकिल की प्रधानता इंगित करती है कि पृथ्वी का केन्द्रीय भाग भी ऐसी भारी धातुओं से बना हुआ होगा।

प्रश्न 4.
पृथ्वी के आन्तरिक भाग में तापमान की क्या दशा होती है?
उत्तर:
पृथ्वी के भीतर जाने पर तापमान बढ़ता जाता है। इस बात की पुष्टि ज्वालामुखी विस्फोटों तथा गरम जल के झरनों से होती है। गहरी खानों और गहरे कुओं से भी यही साबित होता है कि धरती में नीचे जाने पर गर्मी बढ़ती जाती है। सामान्यतः की गहराई पर 1 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ जाता है। इस दर से 50 कि०मी० की गहराई पर तापमान 1,200 डिग्री सेल्सियस से 1800 डिग्री सेल्सियस के बीच तथा पृथ्वी के धात्विक क्रोड पर 2 लाख डिग्री सेल्सियस होना चाहिए परन्तु वास्तव में यह सत्य नहीं है। अब वैज्ञानिकों का विचार है कि गहराई के साथ तापमान की वृद्धि की दर भी कम होती जाती है जो इस प्रकार है

  • धरातल से 100 कि०मी० की गहराई तक 12 डिग्री सेल्सियस प्रति कि०मी०
  • 100 कि०मी० से 300 कि०मी० तक 2 डिग्री सेल्सियस/प्रति कि०मी० और
  • 300 कि०मी० से नीचे 1 डिग्री सेल्सियस प्रति कि०मी०।

इस गणना के अनुसार धात्विक क्रोड का तापमान 2,000 डिग्री सेल्सियस है, परन्तु अनेक विद्वानों का मत है कि पृथ्वी के क्रोड में 6,000 डिग्री सेल्सियस तापमान होना चाहिए।

प्रश्न 5.
सीस्मोग्राफ क्या है? सीस्मोग्राफ के प्रयोग के उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
सीस्मोग्राफ वह यन्त्र है जो भूकंपीय तरंगों तथा उनकी तीव्रता को मापता है। इस यन्त्र में एक सुई लगी होती है जो ग्राफ पेपर पर भूकंपीय तरंगों को रेखांकित करती है। सीस्मोग्राफ द्वारा रेखांकित भूकंपीय तरंगों के अध्ययन द्वारा विभिन्न चट्टानों के प्रकारों तथा संरचना का ज्ञान प्राप्त होता है। सीस्मोग्राफ भूकंप के उद्गम, भूकंपीय तरंगों की गति, मार्ग और तीव्रता का ज्ञान प्रदान करता है। सीस्मोग्राफ का प्रयोग पृथ्वी की आन्तरिक जानकारी, विभिन्न खनिज-पदार्थों तथा उनकी संरचना आदि की जानकारी के लिए किया जाता है। यदि पृथ्वी का आन्तरिक भाग कठोर है तो भूकंपीय तरंगों का व्यवहार तरल भाग की तुलना में भिन्न होगा।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए.
(1) सियाल
(2) साइमा
(3) निफे
(4) मैण्टल
(5) भू-पर्पटी।
उत्तर:
(1) सियाल (Sial) यह भू-पर्पटी का ऊपरी भाग है। इस परत में Silica (SI) और Aluminium (AI) अधिक मात्रा में पाए जाते हैं, जिससे इसका नाम Sial (SI+AL) पड़ गया। इसका औसत घनत्व 2.75 से 2.90 है। इस परत की मोटाई 8 कि०मी० से 100 कि०मी० तक है। इस परत में अम्लीय पदार्थ अधिक मात्रा में मिलते हैं। महाद्वीपों की रचना सियाल से हुई मानी जाती है।

(2) साइमा (Sima) सियाल के नीचे स्थित यह परत अपेक्षाकृत भारी शैलों से बनी है। इस परत में Silica (S1) तथा Magnesium (MA) की प्रधानता है। इसी कारण इसका नाम Sima (SI + MA) पड़ा। इस परत का औसत घनत्व 2.90 से 3.4 है। इस परत की मोटाई 100 कि०मी० से 2,900 कि०मी० तक है। महासागरों की तली भी इसी साइमा से बनी है।

(3) निफे (Nife)-साइमा परत के नीचे अन्तिम परत कठोर धातुओं से बनी है इसे निफे (Nife) परत कहते हैं। इसमें Fe = Ferrus (फेरस) की मात्रा अधिक है। लौह पदार्थों की अधिकता के कारण इसमें चुम्बकीय गुण है जिससे यह प्रत्येक वस्तु को पृथ्वी की ओर आकर्षित करती है। इस परत की मोटाई 2,900 से 4980 कि०मी० है।

(4) मैण्टल (Mantle)-यह परत भू-पर्पटी के नीचे स्थित है। इसकी मोटाई 2,900 कि०मी० है। भारी चट्टानों से बनी इस परत के ऊपरी भाग में तापमान 870° सेल्सियस व निचले भाग में 2,200° सेल्सियस रहता है। ऊपरी मैण्टल अपेक्षाकृत कम तप्त होने के कारण ठोस चट्टानों का बना है। यहाँ निचले मैण्टल की अपेक्षा दबाव भी कम है। अतः यहाँ पृथ्वी के भू-गर्भ से उठती हुई तप्त चट्टानें प्रायः पिघलकर मैग्मा बनाती हैं।

(5) भू-पर्पटी (Crust) यह पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत है, जो एक पतले आवरण की तरह पृथ्वी के आन्तरिक भाग को घेरे हुए है। भू-पर्पटी स्थलमण्डल (Lithosphere) का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। इसकी मोटाई हर जगह एक जैसी नहीं है। भू-पर्पटी की औसत मोटाई 60 कि०मी० है। यद्यपि इस बारे में विद्वानों की राय अलग-अलग है लेकिन यह सत्य है कि यदि पृथ्वी को एक अण्डा मान लिया जाए, तो भू-पर्पटी की तुलना उसके छिलके से की जा सकती है। भू-पर्पटी के दो भाग हैं सियाल तथा साइमा।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में अन्तर स्पष्ट कीजिए-
(1) P-तरंगें तथा S-तरंगें
(2) सियाल तथा निफे
(3) भू-पर्पटी तथा क्रोड
(4) गुटेनबर्ग असंतति तथा मोहोरोविसिक असंतति
(5) मैग्मा तथा लावा
उत्तर:
(1) P-तरंगों तथा S-तरंगों में अंतर निम्नलिखित हैं-

P-तरंगेंS-तारों
1. इन तरंगों के प्रभाव से पदार्थ आगे-पीछे हिलते हैं।1. इन तरंगों के प्रभाव से पदार्थों के कण गति की दिशा के लम्बवत् दाएँ-बाएँ या ऊपर-नीचे दोलन करते हैं।
2. P-तरंगें ध्वनि तरंगों के समान होती हैं। इनके कणों की गति तरंग की रेखा के सीध में होती है।2. S-तरंगें प्रकाश अथवा जल तरंगों के समान होती हैं जिनमें कणों की गति तरंग की दिशा के समकोण पर होती है।
3. ये तरंगें ठोस, तरल और गैसीय तीनों ही माध्यमों से गुज़र सकती हैं।3. ये तरंगें तरल भाग में प्राय: लुप्त हो जाती हैं।
4. इनका वेग 8 से 14 कि०मी० प्रति सैकिण्ड होता है।4. इनका वेग अपेक्षाकृत कम अर्थात् 4 कि०मी० प्रति सैकिण्ड होता है।

(2) सियाल तथा निफे में अंतर निम्नलिखित हैं-

सियालनिफ़े
1. सियाल भू-पर्पटी का ऊपरी भाग है।1. निफे साइमा परत के नीचे अन्तिम परत है।
2. इस परत में सिलिका और एल्यूमीनियम अधिक मात्रा में पाए जाते हैं।2. यह भाग कठोर धातुओं निकिल तथा फेरस (लोहा) आदि से निर्मित है।
3. इस परत की मोटाई 8 से 100 कि०मी० तक है।3. यंह 2,900 कि०मी० से पृथ्वी के केन्द्र तक (6,371 कि०मी०) विस्तृत है।

(3) भू-पर्पटी तथा क्रोड में अंतर निम्नलिखित हैं-

भू-पर्पटीक्रोड
1. यह पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत है जिसकी औसत मोटाई 60 कि०मी० है।1. यह पृथ्वी का केन्द्रीय भाग है जिसका विस्तार पृथ्वी की 2,900 कि०मी० की गहराई से पृथ्वी के केन्द्र $(6,371$ कि०मी०) तक है।
2. भू-पर्पटी के दो भाग हैं-सियाल और साइमा।2. क्रोड के भी दो भाग हैं-बाह्य क्रोड, आन्तरिक क्रोड।
3. भू-पर्पटी सिलिका, एल्यूमीनियम तथा मैग्नीशियम से बनी है।3. क्रोड की रचना निकिल तथा फेरस से हुई है।

(4) गुटेनबर्ग असंतति तथा मोहोरोविसिक असंतति में अंतर निम्नलिखित हैं-

गुट़नबर्ग असंततिमोहोरोविडिक असंतति
1. यह असंतति मैण्टल और क्रोड के बीच सीमा का कार्य करती है।1. यह असंतति भू-पर्पटी और मैण्टल के बीच सीमा का कार्य करती है।
2. इसका पता भूकंप वैज्ञानिक गुटेनबर्ग ने सन् 1926 में लगाया था।2. इसका पता यूगोस्लाविया के भूकंप वैज्ञानिक मोहोरोविसिक ने सन् 1909 में लगाया था।

(5) मैग्मा तथा लावा में निम्नलिखित अन्तर हैं-

मैग्मालावा
1. पृथ्वी के भीतरी भाग में पिघले हुए गर्म घोल को मैग्मा कहा जाता है।1. जब उद्भेदन के कारण मैग्मा धरती के बाहर आकर ठण्डा तथा ठोस रूप धारण कर लेता है, तो उसे लावा कहा जाता है।
2. यह पृथ्वी के भीतरी भागों में ऊपरी मैंटल में उत्पन्न होता है।2. यह पृथ्वी के धरातल पर वायुमण्डल के सम्पर्क से ठण्डा एवं ठोस होता है।
3. इसमें जल एवं अन्य गैसें भी मिली होती हैं।3. इसमें जल एवं गैसों के अंश नहीं होते।

प्रश्न 8.
भूकंप आने के कारणों को संक्षिप्त में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भूकंप निम्नलिखित कारणों से आते हैं-

  1. भू-प्लेटों का खिसकना-स्थलमण्डल भू-प्लेटों से बना है। इन प्लेटों के आपस में टकराने से भूकंप पैदा होते हैं।
  2. ज्वालामुखी क्रिया-पृथ्वी के अन्दर स्थित मैग्मा व गैसें जब प्रचण्ड वेग से भू-पटल पर आने का प्रयास करती हैं या बाहर आ जाती हैं तो चट्टानों में कम्पन आता है।
  3. भू-पटल का संकुचन-पृथ्वी के ऊपर की चट्टानें जब नीचे की ओर सिकुड़ती हुई चट्टानों से समायोजन करती हैं तो शैलों में आई अव्यवस्था के कारण भूकंप आते हैं।
  4. भू-सन्तुलन-ऊँचे उठे भू-भागों के अपरदन से उत्पन्न तलछट धीरे-धीरे समुद्री तली में निक्षेपित होने लगता है। इससे पृथ्वी का सन्तुलन भंग हो जाता है। अतः पुनः सन्तुलन प्राप्त करने की प्रक्रिया भूकंप को जन्म देती है।
  5. जलीय भार-बड़े-बड़े जलाशयों में जल एकत्रित करने से चट्टानों पर दबाव बढ़ता है। इसमें भू-सन्तुलन अस्थिर हो जाता है जिससे भूकंप आते हैं।
  6. गैसों का फैलाव पृथ्वी के भीतर की गर्मी से गैसें गरम होकर फैलती हैं जिससे चट्टानों पर दबाव बढ़ता है और उनमें कम्पन पैदा होता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना

प्रश्न 9.
क्या भूकंपों से किसी प्रकार का लाभ भी होता है? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूकंपों से कुछ लाभ भी हुआ करते हैं-

  1. भूकंपों के माध्यम से हमें पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के बारे में जानकारी प्राप्त करने में मदद मिलती है।
  2. भूकंपीय बल से उत्पन्न भ्रंश और वलन अनेक प्रकार के भू-आकारों को जन्म देते हैं; जैसे पर्वत, पठार, मैदान और घाटियाँ आदि।
    भूकंप के समय भूमि के धंसने से झरनों और झीलों जैसे नए जलीय स्रोतों की रचना होती है।
  3. समुद्र तटीय भागों में आए भूकंपों के कारण कम गहरी खाड़ियों का निर्माण होता है जहाँ सुरक्षित पोताश्रय बनाए जा सकते हैं।
  4. भूकंपों का आर्थिक महत्त्व भी कम नहीं है। वर्तमान में भूकंपीय तरंगें परतदार चट्टानों की अपनतियों (Anticlines) में गैस व तेल
  5. भण्डार (Oil Traps) ज्ञात करने का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन मानी जाती हैं। इसके अतिरिक्त भूकंप से हुई चट्टानों की उथल-पुथल में अनेक प्रकार के अन्य खनिज भी प्राप्त होते हैं।
  6. भूकंप से भू-स्खलन क्रिया होती है। इससे मृदा के निर्माण में सहायता मिलती है और कृषि को प्रोत्साहन मिलता है।

प्रश्न 10.
भूकंपों से बचने के प्रमुख उपाय सुझाइए।
उत्तर:
भूकंप कुदरत का एक ऐसा कहर है जिसे रोकना तो सम्भव नहीं, किन्तु संगठित प्रयासों से उसके विनाश को कम किया जा सकता है। भूकंप सैकड़ों वर्षों के विकास को क्षण भर में मिटा सकता है। अतः भूकंप के विरुद्ध एक नीतिगत रक्षा कवच बनाया जाना जरूरी है। इसके तहत न केवल भूकंपमापी केन्द्रों की संख्या बढ़ाई जाए, बल्कि भूकंप की सूचना को कारगर तरीके से आखिरी आदमी तक फैलाया जाए। संवेदनशील भूकंप क्षेत्रों में लोगों को भूकंप से पहले, उसके दौरान व बाद में उठाए जाने वाले कदमों का अभ्यास करवाते रहना चाहिए। वहाँ तरंगरोधी मकानों की योजना लागू करना जरूरी है। जापान ने इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है। भूकंप के विरुद्ध उपायों द्वारा इच्छारहित जन-धन की अपार हानि को कम किया जा सकता है।

प्रश्न 11.
किसी ज्वालामुखी घटना और भूकंप में आप क्या सम्बन्ध पाते हैं?
उत्तर:
ज्वालामुखी विस्फोटों और भूकंपों में प्रत्यक्ष सम्बन्ध है। भूकंप-क्षेत्र तथा ज्वालामुखी क्षेत्र लगभग एक ही हैं। मुख्यतः भूकंप ज्वालामुखी क्षेत्रों में ही आते हैं। ज्वालामुखी उद्गार के समय भू-पटल पर अस्थिरता उत्पन्न हो जाती है। विस्फोट के समय भू-भाग झटके तथा धमाके के साथ नीचे गिरता है तथा भू-पटल पर झटके लगने लगते हैं। उदाहरण के लिए, सन् 1883 में जावा तथा सुमात्रा के मध्य क्राकाटोआ द्वीप पर भयंकर भूकंप ज्वालामुखी उद्गार के कारण आया जिसका प्रभाव 8,000 कि०मी० की दूरी तक था। इसके झटके दक्षिणी अमेरिका के केपहार्न तक महसूस किए गए।

प्रश्न 12.
ज्वालामुखी की परिभाषा दीजिए तथा चित्र की सहायता से इसके विभिन्न अंगों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
ज्वालामुखी एक आकस्मिक प्रक्रिया है जिसमें भू-गर्भ से मैग्मा, गैसें तथा चट्टानी चूर्ण विस्फोट के रूप में धरातल पर आता है। वारसेस्टर के अनुसार, “ज्वालामुखी वह क्रिया है जिसमें गरम पदार्थ की धरातल की तरफ या धरातल पर आने की सभी क्रियाएँ सम्मिलित की जाती हैं।” ज्वालामुखी के अंग-भू-तल पर जिस मुँह से मैग्मा, गैसें तथा विखण्डित पदार्थ बाहर निकलते हैं, उसे ज्वालामुखी छिद्र राख, गैसें, वाष्प, शिलाखंड (Volcanic Hole) कहते हैं।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना 1
इस छिद्र के चारों ओर निकली हुई ज्वालामुखी विवर सामग्री के जमा होने से ज्वालामुखी शंकु (Volcanic Cone) का निर्माण होता है। इस जमाव के बड़ा और ऊँचा होने पर शंकु पर्वत शिलाखंड गौण ज्वालामुखी लावा प्रवाह सामग्री का रूप धारण कर लेता है जिसे ज्वालामुखी पर्वत (Volcanic की परतें Mountain) कहते हैं। छिद्र से जुड़ी जिस प्राकृतिक नली से मैग्मा इत्यादि का निकास होता है, उसे ज्वालामुखी नली या चिमनी (Volcanic Chimney) कहा जाता है। चिमनी के ऊपर कटोरे मैग्मा चैंबर जैसी आकृति का एक घेरा बनता है जिसे क्रेटर या विवर (Crator) ज्वालामुखी की संरचना कहा जाता है। क्रेटर के अत्यधिक विस्तृत हो जाने पर उसे काल्डेरा (Caldera) कहते हैं। कई बार मैग्मा मुख्य नली के दोनों या एक ओर रन्ध्रों से होकर बाहर निकलता है और छोटे-छोटे शंकुओं का निर्माण करता है, इन्हें गौण शंकु (Secondary Cones) कहा जाता है।

प्रश्न 13.
भूमण्डलीय उष्मन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूमण्डलीय उष्मन (Global Warming) का अर्थ है-पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि होना। जीवाश्म ईंधनों के . चलने (कोयला, तेल, गैस) के कारण, तीव्र शहरीकरण व औद्योगीकरण के कारण, अधिक परिवहन साधनों के प्रयोग, कृषि में अधिक पैदावार हेतु रासायनिक पदार्थों के अधिक प्रयोग तथा वनों की निरंतर कटाई से वायुमंडल के संघटन में एक असंतुलन उत्पन्न हो गया है। इन क्रियाओं के कारण हमारे वातावरण में कार्बन-डाइऑक्साइड गैस की मात्रा निरंतर बढ़ रही है। इससे पृथ्वी का तापमान निरंतर बढ़ रहा है। भूमण्डलीय उष्मन या ग्रीन हाउस प्रभाव से पृथ्वी का औसत तापमान 0.5°C बढ़ गया है। एक अनुमान के अनुसार सन् 2040 तक पृथ्वी के तापमान में 2°C की वृद्धि हो जाएगी। भूमण्डलीय उष्मन/ग्लोबल वार्मिंग के प्रमुख दुष्परिणाम इस प्रकार हैं

  • विश्व में औसत तापमान बढ़ने से हिमाच्छादित क्षेत्रों में हिमानियाँ पिघलेंगी।
  • समुद्र का जल-स्तर ऊँचा उठेगा जिससे तटवर्ती प्रदेश व द्वीप जलमग्न हो जाएँगे। करोड़ों लोग शरणार्थी बन जाएंगे।
  • वाष्पीकरण की प्रक्रिया तेज़ होगी। पृथ्वी का समस्त पारिस्थितिक तन्त्र प्रभावित होगा। शीतोष्ण कटिबन्धों में वर्षा बढ़ेगी और समुद्र से दूर उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में वर्षा की मात्रा घटेगी।
  • आज के ध्रुवीय क्षेत्र पहले की तुलना में अधिक गर्म हो जाएँगे।
  • जलवायु के दो तत्त्वों तापमान और वर्षा में जब परिवर्तन होगा तो निश्चित रूप से धरातल की वनस्पति का प्रारूप बदलेगा।
  • हरित गृह प्रभाव के कारण कृषि क्षेत्रों, फसल प्रारूप तथा कृषि प्राकारिकी (Topology) में परिवर्तन होने की संभावना निश्चित है।

प्रश्न 14.
ज्वालामुखी उद्भेदन के प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
ज्वालामुखी उद्भेदन तीन प्रकार के होते हैं-
1. विस्फोटक अथवा केन्द्रीय उद्भेदन ज्वालामुखी का यह उद्भेदन किसी एक केन्द्रीय मुख से प्रचण्ड विस्फोटक ध्वनि, कम्पन और गड़गड़ाहट के साथ होता है। इसमें नुकीले शैलखण्डों की बारिश के साथ लावा निकलना आरम्भ होता है। इटली का एटना तथा विसुवियस और जापान का फ्यूज़ीयामा केन्द्रीय उद्भेदन वाले ज्वालामुखियों के उदाहरण हैं।

2. शान्त उदभेदन जब मैग्मा भू-पटल की मोटी परत को नहीं तोड़ पाता तो वह अन्य निर्बल एवं दरार वाले क्षेत्रों से बाहर निकलता है। इस प्रकार के उद्भेदन में भीषणता नहीं होती, इसी कारण इसे शान्त उद्भेदन कहते हैं। स्ट्रॉम्बोली, हवाई, आईसलैण्ड व समोआ के ज्वालामुखी शान्त उद्भेदन वाले ज्वालामुखियों के उदाहरण हैं।

3. दरारी उद्भेदन इस प्रकार के उद्भेदन में बेसाल्टी लावा किसी एक मुख से न निकलकर सैंकड़ों लम्बी-लम्बी दरारों से उबल-उबलकर निकल रहा होता है। दरारी उद्भेदन में न तो भीषणता होती है और न ही गैसें और चट्टानी पदार्थ निकलते हैं। इसमें अत्यन्त तरल लावा बाहर आकर एक मोटी परत के रूप में भूमि को ढक लेता है। दक्षिणी भारत का लावा पठार और संयुक्त राज्य अमेरिका का स्नेक नदी (Snake River) का प्रदेश दरारी उद्भेदन से बने हुए हैं।

प्रश्न 15.
ज्वालामुखी विस्फोट के आधार पर इसके प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विश्व में विभिन्न प्रकार के ज्वालामुखी पाए जाते हैं, परन्तु ज्वालामुखी विस्फोट के आधार पर इन्हें निम्नलिखित तीन प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है-
1. सक्रिय ज्वालामुखी-इस प्रकार के ज्वालामुखी से जलवाष्प, गैसें, विखण्डित पदार्थ तथा लावा उद्गार के पश्चात् हमेशा प्रवाहित होता रहता है। विश्व में लगभग 522 सक्रिय ज्वालामुखी हैं। इटली का ‘एटना’ ज्वालामुखी तथा सिसली द्वीप का ‘स्ट्रॉम्बोली’ सक्रिय ज्वालामुखी के उदाहरण हैं।।

2. प्रसुप्त ज्वालामुखी-ऐसे ज्वालामुखी जिनमें एक बार उद्गार के पश्चात् वे कुछ समय या वर्षों के लिए शान्त हो जाते हैं, परन्तु इनसे पुनः विस्फोट होते हैं, प्रसुप्त ज्वालामुखी कहलाते हैं। ये ज्वालामुखी अधिक भयानक तथा हानिकारक होते हैं। इनसे . जन तथा धन की अपार हानि होती है। इसका मुख्य उदाहरण इटली का विसुवियस ज्वालामुखी है।

3. विलुप्त या शान्त ज्वालामुखी विलुप्त ज्वालामुखी वे ज्वालामुखी हैं जो पूर्ण रूप से ठण्डे हो चुके हैं। इनके द्वारा अभी तक विस्फोट नहीं हुआ। जर्मनी का ऐफिल पर्वत तथा म्यांमार (बर्मा) का पोपा ज्वालामुखी इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

प्रश्न 16.
भूकंप क्षेत्रों के विश्व वितरण के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
अधिकांश भूकंप नवीन वलितदार पर्वतों के सहारे एवं समुद्र तटों पर पाए जाते हैं। भूकंपों और ज्वालामुखियों का वितरण मिलता-जुलता है।
1. प्रशान्त महासागरीय परिमेखला-विश्व के लगभग 68 प्रतिशत भूकंप प्रशान्त महासागर के तटीय भागों में आते हैं। इस पेटी को ‘अग्नि वलय’ (Ring of Fire) कहते हैं। यहाँ ज्वालामुखी के उद्भेदन तथा स्तर अंश की संयुक्त प्रक्रिया के फलस्वरूप भीषण भूकंप आते हैं। इस पेटी में चिली, कैलिफोर्निया, अलास्का, जापान, फ़िलीपीन्स तथा मध्य महासागरीय भाग आते हैं।

2. मध्य महाद्वीपीय पेटी विश्व के लगभग 21 प्रतिशत भूकंप इसी पेटी में आते हैं। मैक्सिको से आरम्भ होकर यह पेटी अन्धमहासागर, भूमध्य सागर, आल्पस तथा काकेशस से होती हुई हिमालय क्षेत्र तथा उसके निकटवर्ती भागों में फैली हुई है।

3. अन्य क्षेत्र-शेष 11 प्रतिशत भूकंप उपर्युक्त दो पेटियों से बाहर यहाँ-वहाँ पाए जाते हैं। कुछ भूकंप पूर्वी अफ्रीका की महान् भ्रंश घाटी क्षेत्र, लाल सागर तथा मृत सागर वाली भ्रंश पेटी में आते हैं।

प्रश्न 17.
उद्गम-केन्द्र और अधिकेन्द्र से क्या अभिप्राय है?
अथवा
उद्गम केन्द्र या भूकंप केन्द्र और अधिकेन्द्र के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
भूकंप एक प्राकृतिक घटना है जो भूपटल में हलचल उत्पन्न कर देती है। जिस बिन्दु या केन्द्र पर भूकंप उत्पन्न होता है, उसके चारों ओर भूकंप की लहरें फैलती हैं। अधिकांश भूकंप भू-गर्भ में उत्पन्न होते हैं।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना 3
जिस केन्द्र या बिन्दु से भूकंप की लहरें उत्पन्न होती हैं, उसे उद्गम-केन्द्र या भूकंप-केन्द्र कहते हैं। इसको अवकेंद्र भी कहते हैं। अधिकांश भूकंपों की गहराई 50 कि०मी० से 100 कि०मी० तक होती है तथा पातालीय भूकंप की गहराई लगभग 700 कि०मी० तक उद्गम केंद्र होती है। उद्गम-केन्द्र के ठीक ऊपर धरातल पर जो बिन्दु या स्थान स्थित होता है, उसे अधिकेन्द्र (Epicentre) कहते हैं। धरातल पर भूकंप मूल (उद्गम केंद्र) और अधिकेंद्र सर्वप्रथम इसी केन्द्र पर भूकंप के झटके महसूस किए जाते हैं तथा सबसे अधिक कम्पन इसी केन्द्र पर अनुभव किया जाता है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वी की आन्तरिक परतों या भागों का वर्णन कीजिए।
अथवा
पृथ्वी की संरचना का वर्णन करें।
अथवा
पृथ्वी की भूपर्पटी, मैंटल व क्रोड का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूकंपीय तरंगों का आचरण बताता है कि हमारी पृथ्वी एक गठा हुआ पिण्ड (Solid Mass) नहीं है। इसके आन्तरिक भाग की रचना प्याज जैसी है, जिसमें पहली परत के नीचे दूसरी परत व दूसरी के नीचे तीसरी परत अथवा केन्द्र में धात्विक क्रोड है। भूकंपीय तरंगों की सहायता से इन परतों की सही स्थिति, मोटाई, गहराई तथा भौतिक व रासायनिक संरचना की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। ये परतें हैं
1. भू-पर्पटी (Crust) यह पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत है, जो एक पतले आवरण की तरह पृथ्वी के आन्तरिक भाग को घेरे हुए है। भू-पर्पटी स्थलमण्डल (Lithosphere) का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। इसकी मोटाई हर जगह एक-जैसी नहीं है। भू-पर्पटी की औसत मोटाई 60 कि०मी० है, यद्यपि इस बारे में विद्वानों की राय अलग-अलग है लेकिन यह सत्य है कि यदि पृथ्वी को एक अण्डा मान लिया जाए, तो भू-पर्पटी की तुलना उसके छिलके से की जा सकती है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना 2
भू-पर्पटी के दो भाग हैं
(i) सियाल (Sial)-यह भू-पर्पटी का ऊपरी भाग है। इस परत में Silica (SI) और Aluminium (AL) अधिक मात्रा में पाए जाते हैं, जिससे इसका नाम Sial (SI + AL) पड़ गया। इसका औसत घनत्व 2.75 से 2.90 है। महाद्वीपों की रचना सियाल से हुई मानी जाती है।
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(ii) साइमा (Sima)-सियाल के नीचे स्थित यह परत अपेक्षाकृत भारी शैलों से बनी है। इस परत में Silica (SI) तथा Magnesium (MA) की प्रधानता है। इसी कारण इसका नाम Sima (SI + MA) पड़ा। इस परत का औसत घनत्व 2.90-3.4 है। महासागरों की तली भी इसी साइमा से बनी है। यद्यपि सियाल और साइमा दोनों का आयतन पृथ्वी के कुल आयतन का लगभग 0.5 प्रतिशत है। फिर भी यह हमारे लिए सबसे महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यही प्रकृति और मनुष्य दोनों का कर्मक्षेत्र है।

(2) मैण्टल (Mantle) यह परत भू-पर्पटी के नीचे स्थित है। इसकी मोटाई 2,900 कि०मी० है। भारी चट्टानों से बनी इस परत के ऊपरी भाग में तापमान 870° सेल्सियस व निचले भाग में 2,200° सेल्सियस रहता है। ऊपरी मैण्टल अपेक्षाकृत कम तप्त होने के कारण ठोस चट्टानों का बना है। यहाँ निचले मैण्टल की अपेक्षा दबाव भी कम है। अतः यहाँ पृथ्वी के भू-गर्भ से उठती हुई तप्त चट्टानें प्रायः पिघलकर मैग्मा बनाती हैं।

भू-पर्पटी और मैण्टल के बीच मोहो अथवा मोहोरोविसिक असंतति (Mohorovicic Discontinuity) पाई जाती है। मोहो भू-पर्पटी को मैण्टल से अलग करने वाले स्पष्ट आकार को कहते हैं। भूकंपीय तरंगों के वेग के आधार पर मैण्टल को तीन भागों में बाँटा जाता है-

  • मोहो असंतति से 200 कि०मी० की गहराई तक
  • 200 कि०मी० से 700 कि०मी० की गहराई तक तथा
  • 700 कि०मी० से क्रोड की साइमा तक।

पृथ्वी के आन्तरिक भाग में होने वाली अदृश्य घटनाओं में मैण्टल की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। इसी से संवहन धाराएँ (Convectional Currents) निकलती हैं, जो महाद्वीपीय विस्थापन, भूकंप तथा ज्वालामुखी आदि के लिए ऊर्जा प्रदान करती हैं।

(3) क्रोड (Core) यह पृथ्वी का केन्द्रीय भाग है, जिसका विस्तार 2,900 कि०मी० की गहराई से पृथ्वी के केन्द्र (6,371 कि०मी०) तक है। क्रोड का आरम्भ गुटेनबर्ग असंतति (Gutenberg Discontinuity) से होता है। यह असंतति मैण्टल और क्रोड के बीच का कार्य करती है। क्रोड के दो भाग माने जाते हैं-

  • बाह्य क्रोड
  • आन्तरिक क्रोड।

बाह्य क्रोड सम्भवतः द्रव अथवा अर्ध-द्रव अवस्था में है। यह 2,900 कि०मी० से 5,150 कि०मी० की गहराई तक विस्तृत है। इसका घनत्व 5 है। आन्तरिक क्रोड ठोसावस्था में है। यह 5,150 कि०मी० से केन्द्र तक (6,371 कि०मी०) विस्तृत है।

क्रोड का आयतन पृथ्वी के आयतन का 16 प्रतिशत है। इसकी रचना भारी खनिज पदार्थों Nickel (Ni) तथा Ferrus (Fe) से होने के कारण इसे निफे (Nife) कहा जाता है। इसका कुल द्रव्यमान (Mass) 32 प्रतिशत है।

प्रश्न 2.
पृथ्वी की आन्तरिक बनावट की जानकारी किन-किन स्रोतों से प्राप्त होती है? इस सम्बन्ध में विभिन्न प्रमाणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी की आन्तरिक बनावट की जानकारी देने वाले प्रमुख स्रोत व उनके प्रमाण निम्नलिखित हैं
1. घनत्व पर आधारित प्रमाण-पृथ्वी का औसत घनत्व 5.517 (ग्राम घन सेंटीमीटर) है। इसका तात्पर्य यह है कि पृथ्वी का भार अपने समान आकार वाले जलपिण्ड (Water body) से 5.5 गुना अधिक है। पृथ्वी के ऊपरी भाग में बिछी परतदार चट्टानों का घनत्व केवल 2.7 (ग्राम घन सेंटीमीटर) है जबकि इससे नीचे स्थित आग्नेय शैलों से बनी परत का घनत्व 3.0 से 3.5 (ग्राम घन सेंटीमीटर) तक ही है। इस आधार पर पृथ्वी के भीतरी भागों का घनत्व ऊपरी भागों की अपेक्षा अधिक होना चाहिए। इससे यह प्रमाणित होता है कि पृथ्वी के अंतरतम का घनत्व सर्वाधिक है।

2. दबाव पर आधारित प्रमाण-पृथ्वी में गहराई के साथ बढ़ते घनत्व के सम्बन्ध में वैज्ञानिकों के दो मत हैं। एक मत के अनसार पृथ्वी के आन्तरिक भाग का अधिक घनत्व इसकी बाहरी परतों के भार अथवा दबाव के कारण है। इससे यह प्रमाणित होता है कि पृथ्वी के क्रोड का अत्यधिक घनत्व वहाँ स्थित दबाव के कारण है। किन्तु आधुनिक प्रयोगों ने सिद्ध कर दिया है कि हर शैल में एक साइभा के बाद घनत्व बढ़ना बन्द हो जाता है, दबाव चाहे कितना ही बढ़ जाए। अतः बढ़ा हुआ दबाव चट्टानों को ठोसावस्था में नहीं रख पाता। इस आधार पर दूसरे मत के अनुसार पृथ्वी का क्रोड धातु से बना है, जिसके भार के कारण यहाँ घनत्व अधिक है।

3. तापमान पर आधारित प्रमाण-पृथ्वी के भीतर जाने पर तापमान बढ़ता जाता है। इस बात की पुष्टि ज्वालामुखी विस्फोटों तथा गरम जल के झरनों से होती है। गहरी खानों और गहरे कुओं से भी यही साबित होता है कि धरती में नीचे जाने पर गर्मी बढ़ती जाती है। इस गर्मी व तापमान में वृद्धि के कई कारण हैं; जैसे

  • रासायनिक प्रतिक्रियाएँ (Chemical Reactions)
  • आन्तरिक शक्तियाँ (Internal Forces)
  • रेडियोधर्मी पदार्थों का स्वतः विखण्डन (Self Disintegration of Radioactive Minerals)

सामान्यतः प्रत्येक 32 मीटर की गहराई पर 1 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ जाता है। अब वैज्ञानिकों का विचार है कि गहराई के साथ तापमान की वृद्धि की दर भी कम होती जाती है जो इस प्रकार है

  • धरातल से 100 कि०मी० की गहराई तक 12 डिग्री सेल्सियस प्रति कि०मी०
  • 100 कि०मी० से 300 कि०मी० तक 2 डिग्री सेल्सियस प्रति कि०मी० और
  • 300 कि०मी० से नीचे 1 डिग्री सेल्सियस प्रति कि०मी०।

इस गणना के अनुसार धात्विक क्रोड का तापमान 2,000 डिग्री सेल्सियस है परन्तु अनेक विद्वानों का मत है कि पृथ्वी के क्रोड में 6,000 डिग्री सेल्सियस तापमान होना चाहिए। इतने अधिक तापमान में क्रोड के पदार्थ ठोसावस्था में नहीं रह सकते। अतः वे तरल या गैसीय अवस्था में होंगे।

पृथ्वी के तरल अथवा गैसीय होने की भी सम्भावना प्रतीत नहीं होती क्योंकि इससे अनेक भू-गर्भिक कठिनाइयाँ उत्पन्न हो सकती हैं। उपर्युक्त व्याख्या से स्पष्ट होता है कि घनत्व, दबाव और तापमान के आधार पर पृथ्वी की बनावट के बारे में कोई निश्चित प्रमाण एकत्रित नहीं किए जा सके हैं। वूलरिज़ तथा मॉर्गन ने पृथ्वी की आन्तरिक भौतिक अवस्था के सम्बन्ध में निम्नलिखित तीन निष्कर्ष निकाले हैं

  • अत्यधिक तापमान के बावजूद धात्विक क्रोड की तरल चट्टानें भारी दबाव के कारण ठोस पदार्थों जैसा आचरण करती हैं।
  • ये चट्टानें प्लास्टिक अवस्था में हैं, जिनमें लचीलापन है। अतः दबाव के कारण 2,900 कि०मी० की गहराई तक ठोस प्रतीत होती हैं।
  • आन्तरिक सतह का कुछ भाग दबाव के घटने या तापमान के बढ़ने से तरल हो सकता है, जिससे ज्वालामुखी क्रिया का आविर्भाव हो सकता है।

4. उल्कापिण्डों पर आधारित प्रमाण-अन्तरिक्ष से भू-तल पर गिरने वाले उल्कापिण्डों से भी हमें भू-गर्भ को जानने में सहायता मिलती है। सौरमण्डल का सदस्य होने के कारण उल्कापिण्डों और पृथ्वी की रचना में समानता पाई जाती है। इनके अध्ययन से दो बातों का अनुमान लगाया जा सकता है-प्रथम, पृथ्वी में भी उल्कापिण्डों के समान प्याज की परतों जैसी संकेन्द्रीय (Concentric) परतें पाई जाती हैं। द्वितीय, उल्कापिण्डों के निर्माण में लोहा तथा निकिल की प्रधानता इंगित करती है कि पृथ्वी का केन्द्रीय भाग भी ऐसी भारी धातुओं से बना हुआ होगा।

5. भूकंपीय तरंगों पर आधारित प्रमाण-
(1) ये तरंगें भूकंप केन्द्र से सीधी दिशा में न चलकर टेढ़े मार्ग को अपनाती हैं। इसका कारण यह है कि घनत्व में आने वाली भिन्नता के कारण तरंगें परावर्तित होकर वक्राकार हो जाती हैं। इससे प्रमाणित होता है कि पृथ्वी के भीतर घनत्व में भिन्नता है।

(2) पृथ्वी के क्रोड में S-तरंगों का पूर्णतया अभाव है। इससे यह प्रमाणित होता है कि भू-गर्भ का आन्तरिक भाग तरलावस्था में है क्योंकि S-तरंगें तरल भाग में लुप्त हो जाती हैं, यह क्रोड 2,900 कि०मी० की गहराई में केन्द्र के चारों ओर विस्तृत है। ऐसा माना जाता है कि पृथ्वी के क्रोड का लोहा तथा अन्य धातु तरलावस्था में तो हैं किन्तु उनका व्यवहार ठोस जैसा है।

(3) भूकंप केन्द्र से 11,000 कि०मी० के बाद लगभग 5,000 कि०मी० का क्षेत्र ऐसा है जहाँ कोई भी तरंग नहीं पहुँचती, इस क्षेत्र को छायामण्डल कहते हैं। छायामण्डल का होना साबित करता है कि पृथ्वी का आन्तरिक भाग भारी धातुओं से बना हुआ है, इसे धात्विक क्रोड (Metallic core) भी कहते हैं।

प्रश्न 3.
विभिन्न प्रकार की भूकंपीय तरंगें पृथ्वी की आन्तरिक परतों के स्वभाव की भिन्नता की जानकारी किस प्रकार देती हैं?
अथवा
भूकंपीय तरंगों के बारे में संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
भूकंपीय तरंगों को सीस्मोग्राफ यन्त्र द्वारा रेखांकित किया जाता है। इन तरंगों से पृथ्वी की आन्तरिक बनावट के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है। भूकंप के दौरान अग्रलिखित तीन प्रकार की भूकंपीय तरंगें पैदा होती हैं
(1) P-तरंगें इन्हें प्राथमिक (Primary) अथवा अनुदैर्ध्य तरंगें भी कहते हैं। विशेषताएँ-

  • इन तरंगों के प्रभाव से पदार्थ आगे-पीछे हिलते हैं।
  • P-तरंगें ध्वनि तरंगों के समान होती हैं। इनके कणों की गति तरंग की रेखा की सीध में होती है।
  • ये तरंगें किसी भी स्थान पर सबसे पहले पहुँचती हैं।
  • ये ठोस, तरल और गैसीय तीनों ही माध्यमों से गजर सकती हैं।
  • पृथ्वी के क्रोड से केवल यही तरंगें ही निकल सकती हैं, बाकी नहीं। इनका वेग 8 से 14 कि०मी० प्रति सैकिण्ड होता है। ये सबसे तेज चलती हैं।
  • शैलों का घनत्व बदलने पर P-तरंगों का वेग भी बदल जाता है।
    HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना 5

(2) S-तरंगें इन्हें गौण (Secondary) अथवा अनुप्रस्थ तरंगें भी कहते हैं। विशेषताएँ-

  • इन तरंगों के प्रभाव से पदार्थों के कण गति की दिशा के लम्बवत् दाएँ-बाएँ या ऊपर-नीचे दोलन करते हैं।
  • S-तरंगें-प्रकाश अथवा जल तरंगों के समान होती हैं, जिनमें कणों की गति तरंग की दिशा के समकोण पर होती है, इसलिए इन्हें आड़ी तरंगें भी कहते हैं।
  • ये तरंगें तरल भाग में प्रायः लुप्त हो जाती हैं।
  • इनका वेग प्राथमिक तरंगों के वेग से कम अर्थात् 4 कि०मी० प्रति सैकिण्ड होता है।
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(3) L-तरंगें इन्हें धरातलीय या लम्बी तरंगें (Long waves) भी कहा जाता है। विशेषताएँ-

  • ये अत्यधिक प्रभावशाली तरंगें होती हैं।
  • इनकी गति यद्यपि कम (3.5 कि०मी० प्रति सैकिण्ड) होती है, फिर भी ये सबसे लम्बा मार्ग तय करती हैं।
  • ये तरंगें भयंकर होती हैं जो ठोस, तरल और गैस-तीनों माध्यमों से गुज़र सकती हैं।
  • ये तरंगें मुख्यतः धरातल तक ही सीमित रहती हैं।
  • भूकंपों में होने वाली जन व धन की सबसे ज्यादा बर्बादी इन्हीं तरंगों से होती है।

भूकंपीय तरंगों का स्वभाव/व्यवहार-

  • सभी भूकंपीय तरंगों की गति अधिक घनत्व वाले क्षेत्र में तेज और कम घनत्व वाले क्षेत्र में कम हो जाती है।
  • भ्रमण पथ पर घनत्व में अन्तर आते ही ये तरंगें सीधी रेखा में न चलकर टेढ़े रूप में चलने लगती हैं। इसे तरंगों का परावर्तन (Reflection) और आवर्तन (Refraction) कहते हैं।।
  • केवल प्राथमिक तरंगें (P-Waves) ही पृथ्वी के केन्द्रीय भाग से गुज़र सकती हैं।
  • गौण तरंगें (S-Waves) द्रव (Liquid) पदार्थों में से नहीं गुज़र सकतीं।
  • धरातलीय तरंगें (L-Waves) केवल धरातल के पास ही चलती हैं, यद्यपि वे ठोस, तरल और गैस तीनों माध्यमों से गुज़र सकती हैं।

प्रश्न 4.
भूकंप की परिभाषा देते हुए इसके कारणों पर प्रकाश डालिए।
अथवा
भूकंप किसे कहते हैं? यह कैसे उत्पन्न होता है?
उत्तर:
भूकंप का अर्थ व परिभाषा (Meaning and Definition of Earthquake)-भूकंप का तात्पर्य पृथ्वी का काँपना अथवा हिलना है। जब किसी भू-गर्भिक हलचलों के कारण पृथ्वी अचानक काँप उठती है तो उसे भूकंप कहते हैं। .. सेलिसबरी के अनुसार, “भूकंप वे धरातलीय कम्पन हैं जो व्यक्ति से असम्बन्धित क्रियाओं के परिणामस्वरूप होते हैं।”

भूकंप के कारण (Cause of Earthquake)-भूकंप सम्बन्धी जानकारी के बारे में हमारा ज्ञान अभी तक अपूर्ण है, परन्तु वर्तमान वैज्ञानिकों के अनुसार भूकंप आने के कारण निम्नलिखित हैं
1. ज्वालामुखी क्रिया (Volcanic Process)-ज्वालामुखी उद्गार का भूकंप से गहरा सम्बन्ध है। जब ज्वालामुखी विस्फोट में लावा तथा अन्य पदार्थ बड़ी तीव्र गति से धरातल पर आते हैं तो आस-पास की चट्टानों में कम्पन उत्पन्न हो जाता है। उदाहरण के लिए, जावा तथा सुमात्रा के मध्य क्राकोटोआ द्वीप पर भयंकर भूकंप ज्वालामुखी उद्गार के कारण आया।

2. वलन तथा भ्रंश (Folding and Faulting)-भू-पटल पर दबाव तथा तनाव के कारण चट्टानों में वलन तथा भ्रंश पड़ जाते हैं जिससे आस-पास का क्षेत्र काँप उठता है। उदाहरण के लिए, सन् 1950 में असम राज्य में वलन तथा भ्रंश के कारण ही भूकंप उत्पन्न हुआ जिसमें 1,500 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई। अक्तूबर, 1991 में उत्तरकाशी में आने वाला भूकंप वलन तथा भ्रंशन का ही परिणाम था।

3. पृथ्वी का सिकुड़ना (Contraction of Earth)-पृथ्वी अपनी उत्पत्ति के समय से निरन्तर ठण्डी हो रही है। धरातलीय भागों के सिकुड़ने से धरातल की चट्टानों में अव्यवस्था के कारण कम्पन उत्पन्न हो जाता है तथा भूकंप आते हैं।

4. भू-सन्तुलन में अव्यवस्था (Imbalancing of Earth)-पृथ्वी में कहीं-न-कहीं चट्टानों में अव्यवस्था आती रहती है तथा सन्तुलन बिगड़ जाता है जिससे भूकंप की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। उदाहरण के लिए 4 मार्च, 1949 को हिन्दूकुश पर्वत पर सन्तुलन अव्यवस्था के कारण भूकंप आया।

5. जलीय भार (Water Weight)-भूगोल-वेत्ताओं के अनुसार धरातल पर झीलों तथा तालाबों में पानी के भार के कारण भूकंप की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। उदाहरण के लिए 11 दिसम्बर, 1967 में महाराष्ट्र में कोयना में आने वाला भूकंप कोयना बाँध के निर्माण के कारण आया।

6. अन्य कारण (Other Reasons) भूकंप के कुछ कारण ऐसे भी हैं जो मानव-निर्मित या कृत्रिम हैं और जिनका प्रभाव-क्षेत्र सीमित होता है। इनमें परमाणु परीक्षण, रेलों के चलने तथा पर्वतीय क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण के लिए प्रयुक्त किए जाने वाले विस्फोटकों के कारण भी आस-पास का क्षेत्र काँप उठता है।

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प्रश्न 5.
भूकंप के विनाशकारी एवं लाभकारी प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूकंप के विनाशकारी प्रभाव भूकंप के विनाशकारी प्रभाव निम्नलिखित हैं-
1. भूकंप से अपार जन तथा धन की हानि होती है। 11 दिसम्बर, 1967 में कोयना भूकंप द्वारा सड़कें तथा बाजार वीरान हो गए, हरे-भरे खेत ऊबड़-खाबड़ हो गए तथा हजारों व्यक्तियों की मृत्यु हो गई। अक्तूबर, 1991 में उत्तर काशी तथा सन् 1992 में उस्मानाबाद और लाटूर के भूकंपों में हज़ारों व्यक्तियों की मृत्यु हो गई तथा करोड़ों रुपयों की सम्पत्ति नष्ट हो गई।

2. भूकंप के कारण कई बार नदियाँ अपना मार्ग बदल लेती हैं तथा उनमें बाढ़ आ जाती है। सन् 1950 में असम में ब्रह्मपुत्र में भूकंप के कारण ही बाढ़ आई थी।

3. भूकंप के द्वारा भू-स्खलन (Landslides) के कारण बड़े-बड़े शिलाखण्ड टूटकर नदियों के मार्ग में अवरोधक बन जाते हैं और बाढ़ आने का खतरा उत्पन्न हो जाता है।

4. भूकंप के कारण धरातल पर बड़ी-बड़ी दरारें पड़ जाती हैं। सन् 1966 में कैलिफोर्निया में सैंकड़ों कि०मी० विशाल भ्रंश का निर्माण हुआ।

5. भूकंप के कारण समुद्रों में ऊँची-ऊँची लहरें उठती हैं जिससे जलयानों तथा तटीय क्षेत्रों की अपार हानि होती है।

6. भूकंप के कारण चट्टानों की रगड़ से जंगलों में आग लग जाती है जिससे प्राकृतिक वनस्पति तथा जीव-जन्तुओं की अपार हानि होती है।

भूकंप के लाभकारी प्रभाव-भूकंप के कारण धरातल पर कुछ लाभकारी प्रभाव भी पड़ते हैं, जो निम्नलिखित हैं-

  • भूकंप से भू-स्खलन की प्रक्रिया होती है जिससे कई बार धरातल पर ऊपजाऊ मिट्टी ऊपर आ जाती है।
  • भूकंप से धरातल पर जो वलन तथा भ्रंश होते हैं उनसे कई नए जल-स्रोतों का जन्म होता है।
  • भूकंप के द्वारा कई बार जलमग्न भाग समतल धरातल में परिवर्तित हो जाते हैं जो कृषि के लिए लाभदायक होते हैं।
  • भूकंप से जो दरारें तथा भ्रंश पड़ते हैं, उनसे कई खनिजों को ढूँढने में की जाने वाली खुदाई आसानी से हो जाती है।
  • भूकंपीय तरंगों से भू-गर्भ की आवश्यक जानकारी प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
  • भूकंपों के कारण तटीय क्षेत्रों में गहरी खाड़ियाँ बन जाती हैं जहाँ सुरक्षित प्राकृतिक जलपोत बनते हैं।
  • भूकंप से कई स्रोतों (Springs) की उत्पत्ति होती है जिनमें स्नान करने से चर्म रोग ठीक हो जाते हैं।
  • भूकंप से नए पठारों, द्वीपों तथा झीलों का निर्माण होता है।

प्रश्न 6.
ज्वालामुखी का अर्थ बताते हुए इसके कारणों की व्याख्या कीजिए तथा इनके विश्व-वितरण पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
ज्वालामुखी का अर्थ (Meaning of Volcano)-ज्वालामुखी भू-तल पर घटने वाली आकस्मिक और भयानक घटना है। मोंकहाऊस के शब्दों में, “ज्वालामुखी धरातल के वे छिद्र हैं जिनसे भू-गर्भ का मैग्मा आदि पदार्थ उद्गार के रूप में बाहर निकलता है।” ट्रिवार्था के अनुसार, “वे सभी प्रक्रियाएँ जिनसे द्रवित चट्टानें पृथ्वी की गहराई से भू-पटल के बाहर निकलती हैं, ज्वालामुखी क्रिया (Volcanicity) कहलाती हैं।”

ज्वालामुखी उद्गार के कारण (Causes of Volcano Origin) ज्वालामुखी उद्गार के निम्नलिखित कारण होते हैं
1. भू-गर्भ में तापमान की वृद्धि-पृथ्वी के भू-गर्भ में अत्यधिक तापमान है। पृथ्वी के आन्तरिक भाग में 32 मीटर की गहराई में जाने पर 1 सेल्सियस तापमान बढ़ जाता है तथा भू-गर्भ में रेडियो-एक्टिव खनिजों से तापमान में वृद्धि होती है। धरातल की चट्टानों का बढ़ता हुआ दबाव भी तापक्रम में वृद्धि करता है इसलिए भू-गर्भ अत्यन्त तप्त तथा गरम है। इसलिए भू-गर्भ में चट्टानें पिघल जाती हैं जिससे आयतन में वृद्धि हो जाती है और वह तरल पदार्थ पृथ्वी की कमजोर पपड़ी को तोड़कर धरातल पर विस्फोट के रूप में आता है।

2. गैसों की उत्पत्ति धरातल का पानी छिद्रों तथा प्लेटों के किनारे से रिसकर भू-गर्भ में जाता है जिससे गैसों की उत्पत्ति होती है, क्योंकि भू-गर्भ के अत्यन्त गरम होने के कारण जब उसमें पानी पहुँचता है तो वह जलवाष्प में बदल जाता है जिससे आयतन तथा दबाव में वृद्धि हो जाती है और वह जलवाष्प गैसों के रूप में कमजोर धरातल को तोड़कर विस्फोट उत्पन्न करता है।

3. दुर्बल भू-भागों का होना दुर्बल भू-भागों में किसी आन्तरिक हलचल के कारण शैलें आसानी से टूट जाती हैं और दरारों की रचना होती है जिनसे ज्वालामुखी उद्गार होता है।

4. भूकंप-भूकंप भू-पटल की चट्टानों में उपस्थित सन्तुलन में विकार आने से आते हैं। इससे चट्टानों में भ्रंश या दरारें प हैं। इन दुर्बल क्षेत्रों से गैसें व वाष्प मैग्मा के लिए बाहर आने का रास्ता बनाती हैं। अतः भूकंप और ज्वालामुखी में चोली-दामन का साथ होता है।

ज्वालामुखियों का विश्व वितरण-विश्व में लगभग 522 सक्रिय ज्वालामुखी हैं। अधिकांश ज्वालामुखी तटीय या महासागरीय क्षेत्रों तथा द्वीपों पर स्थित हैं। अधिकतर ज्वालामुखी भूकंप पेटियों के आस-पास मिलते हैं। कुछ ज्वालामुखी नवीन वलित पर्वतों के निकट भी स्थित हैं। ज्वालामुखी अग्रलिखित पेटियों में पाए जाते हैं-
1. परिप्रशान्त महासागरीय पेटी-विश्व के अधिकांश सक्रिय ज्वालामुखी इसी पेटी में स्थित हैं। यह पेटी इण्डोनेशिया के जावा, सुमात्रा से आरम्भ होकर उत्तर:पूर्व में फिलीपाइन, फारमोसा, जापान तथा कमचटका से होती हुई अलास्का से दक्षिणी अमेरिका तक चली जाती है। यहाँ प्रत्येक प्रकार के ज्वालामुखी स्थित हैं। विश्व के दो-तिहाई ज्वालामुखी इसी पेटी में स्थित हैं।

2. मध्य महाद्वीपीय पेटी-यह पेटी यूरोप तथा एशिया के मध्य पश्चिम से पूर्व में फैली हुई है। पश्चिम में यह पेटी कनारी द्वीप से आरम्भ होकर भूमध्य सागर, काकेशस, आरमीनिया, ईरान, इराक, अफ़गानिस्तान, ब्लूचिस्तान, भारत में हिमालय, म्यांमार (बा) में अराकानयोमा से होती हुई दक्षिण में इण्डोनेशिया तक फैली हुई है। इटली तथा सिसली द्वीप समूह के ज्वालामुखी भी इसी पेटी में स्थित हैं।

3. अन्ध महासागरीय पेटी-इस महासागर में मध्य अटलांटिक कटक के साथ-साथ ज्वालामुखियों का विस्तार है। यहाँ सबसे अधिक ज्वालामुखी आयरलैण्ड में हैं। एजोर तथा सेण्ट हेलना द्वीपों के ज्वालामुखी भी इसी पेटी में सम्मिलित हैं।

4. अन्य क्षेत्र-उपरोक्त तीन पेटियों के अतिरिक्त महासागरों, महाद्वीपों तथा द्वीपों में भी छुटपुट ज्वालामुखी पाए जाते हैं जो अण्टार्कटिक महाद्वीप में रास सागर, हिन्द महासागर में मैडागास्कर के आस-पास कमोटो, मॉरीशस तथा रीयूनियन द्वीपों पर स्थित हैं।

प्रश्न 7.
ज्वालामुखी से आप क्या समझते हैं? ज्वालामुखी द्वारा निर्मित स्थलाकृतियों का वर्णन करें।
अथवा
ज्वालामुखी से निर्मित भू-आकारों/स्थलाकृतियों का सचित्र विवरण दीजिए।
उत्तर:
ज्वालामुखी एक आकस्मिक प्रक्रिया है जिसमें भू-गर्भ से मैग्मा, गैसें तथा चट्टानी चूर्ण विस्फोट के रूप में धरातल पर आता है। वारसेस्टर के अनुसार, “ज्वालामुखी वह क्रिया है जिसमें गरम पदार्थ की धरातल की तरफ या धरातल पर आने की सभी क्रियाएँ सम्मिलित की जाती हैं।” ज्वालामुखी से निःसृत पदार्थ निम्नलिखित भू-आकृतियों की रचना करते हैं-
I. ऊँचे उठे भाग (Elevated Landscape)-
1. सिडर अथवा राख शंकु (Cinder or Ash Cone)-सिंडर शंकु का निर्माण प्रायः विस्फोटीय ज्वालामखी से होता है। इन शंकुओं की रचना असंगठित पदार्थों; जैसे धूल, राख तथा हवा में उड़े हुए लावा के छोटे टुकड़ों के ठोस होकर गिरने से होता है। विशेष बात यह है कि सिंडर शंकु के निर्माण में तरल लावे का अवतल ढाल योगदान नहीं होता। आरम्भ में राख शंकु चींटी के ढेर के समान छोटे से बनते हैं, धीरे-धीरे इनका आकार बढ़ता जाता है। ये अपनी रचना में पूर्ण शंकु होते हैं और इनकी ऊँचाई 300 मीटर से अधिक धरातल नहीं होती। इन शंकुओं के किनारे अवतल (Concave) ढाल वाले सिंडर अथवा राख शंकु होते हैं। सिंडर शंकु की ढाल 30 से 40 डिग्री होती है। मैक्सिको तथा हवाई द्वीप समूह में ऐसे अनेक शंकु पाए जाते हैं।
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2. अम्लीय लावा शंकु अथवा गुम्बद (Acid Lava Cone or Dome) ये शंकु अम्ल लावा से बनते हैं जिसका उद्भेदन गाढ़ा, चिपचिपा लावा अत्यधिक विस्फोटक ढंग से होता है। इस लावा में सिलिका का अंश अधिक होता है। अधिक गाढ़ा और चिपचिपा होने के कारण यह लावा अधिक दूर तक नहीं बह पाता। अतः यह लावा भू-गर्भ से निकलते ही ज्वालामुखी के आस-पास जम जाता है। इससे संकीर्ण धरातल और उत्तल ढाल वाले शंकुनुमा गुम्बद की रचना होती है। सिसली का अम्लीय लावा शंकु अथवा गुंबद स्ट्रॉम्बोली ज्वालामुखी गुम्बद शंकु का प्रमुख उदाहरण है।
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3. पैठिक लावा शंकु अथवा लावा शील्ड (Basic Lava Cone or Lava Shield)-पैठिक लावा में सिलिका का अंश कम होता है। यह लावा अति गरम, तरल और हल्का होता है जिस कारण यह अधिक दूरी तक फैल जाता है। शान्त उभेदन (Effusive Eruption) से निकला यह लावा विस्तृत क्षेत्रों पर कम ऊँचे और मन्द ढाल वाले शंकु का निर्माण करता है। इसका आधार शील्ड की तरह होने के कारण इसे शील्ड शंकु भी कहा जाता है। हवाई अति तरल लावा से बनी द्वीप समूह का मोनालोआ (Mauna Loa) ज्वालामुखी पैठिक लावा विवर विस्तृत शीट. शंकु का मुख्य उदाहरण है। भारत का दक्षिणी पठार और संयुक्त राज्य अमेरिका का कोलम्बिया पठार लावा शील्डों के उदाहरण हैं।
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4. मिश्रित शंकु (Composite Cone)-मिश्रित शंकुओं का निर्माण तरल लावा और राख आदि अन्य ज्वालामुखी पदार्थों के बारी-बारी परतों में जमने से होता है। अपनी सुन्दर और स्पष्ट परतों के कारण इन्हें परतदार शंकु (Strato-Cones) भी कहा जाता है। विश्व के सबसे ऊँचे और विशाल ज्वालामुखी पर्वत मिश्रित शंकुओं का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं; जैसे जापान का फ्यूज़ीयामा, संयुक्त राज्य अमेरिका के माऊण्ट शस्ता, रेनियर तथा हुड, फिलीपाइन्स का मेयॉन और सिसली का स्ट्रॉम्बोली आदि। मिश्रित शंकुओं के अत्यधिक विस्तृत हो जाने पर इनकी ढलानों पर कई छोटी उपनलियों द्वारा उपशंकु बन जाते हैं, जिन्हें परजीवी शंकु (Parasite Cones) कहा जाता है।
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5. घोंसलादार शंकु (Nested Cone) कई बार पहले से बने हुए ज्वालामुखी शंकु के अन्दर एक या कई और शंकुओं का निर्माण हो जाता है। इन्हें शंकुस्थ शंकु (Cone in Cone) भी कहते हैं। इटली का विसुवियस ज्वालामुखी घोंसलादार शंकु का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।
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6. ज्वालामुखी डाट या प्लग (Volcanic Plug)-मिश्रित शंकु वाले ज्वालामुखी के शान्त होने पर उनकी नली में रुका हुआ न हो चुका भाग लावा जमकर ठोस रूप धारण कर लेता है। शंकु का निर्माण करने अपरदित भाग वाले अन्य ज्वालामुखी पदार्थों की अपेक्षा यह लावा अधिक कठोर और प्रतिरोधी (Resistant) होता है। अनाच्छादन के द्वारा शंकु के अधिकांश भाग का अपरदन हो जाने के बाद भी नली की ठोस चट्टान ज्वालामुखी डाट बची रहती है, जिसे डाट कहा जाता है। इसे ज्वालामुखी ग्रीवा अपरदन से अब तक बचा हुआ भाग (Volcanic Neck) भी कहते हैं। इसकी औसत ऊँचाई 600 मीटर और व्यास 300 से 600 मीटर तक पाया जाता है। अमेरिका का डेविल टावर (Devil Tower) व ब्लैक हिल्स तथा फ्राँस का पाई द डोम (Puy de Dome) ज्वालामुखी डाट के उत्तम उदाहरण हैं।
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II. नीचे फँसे भाग (Depressed Landscape)-
1. क्रेटर झील (Crater Lake)-ज्वालामुखी छिद्र के चारों ओर बनी कीप जैसी आकृति वाला गर्त क्रेटर कहलाता है। ज्वालामुखी के शान्त होने जल – पर यह क्रेटर वर्षा के जल से भर जाता है। इस प्रकार बनी झील को क्रेटर झील कहा जाता है। भारत में महाराष्ट्र की लोनार झील, उत्तरी सुमात्रा की टोबा झील (Toba Lake) व अमेरिका में ओरेगान (Oregan) की झील क्रेटर झील क्रेटर झीलों के प्रसिद्ध उदाहरण हैं।
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2. काल्डेरा (Caldera) स्पेनिश भाषा में काल्डेरा ‘कड़ाहा’ को कहते हैं। अत्यन्त तीव्र और भयंकर विस्फोट के परिणामस्वरूप ज्वालामुखी की संरचना कमजोर पड़ जाती है जिससे शंकु का ऊपरी भाग धमाके से हवा में उड़ जाता है। उद्भेदन के समाप्त होने पर ज्वालामुखी का बहुत-सा भाग नीचे के मैग्मा कुण्ड में भर-भरा कर गिर जाता है। इस प्रकार बना गर्त काल्डेरा कहलाता है। यह क्रेटर से बहुत बड़ा होता है। काल्डेरा का मुँह कई किलोमीटर चौड़ा होता है। विश्व का सबसे बड़ा काल्डेरा जापान का आसो (Aso) है जिसकी अधिकतम चौड़ाई 27 किलोमीटर व घेरा 112 किलोमीटर है।

प्रश्न 8.
ज्वालामुखियों के लाभ तथा हानियों का वर्णन करें।
अथवा
ज्वालामुखी मानव-जीवन पर अपना प्रभाव कैसे दर्शाते हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भ-गर्भ से उत्पन्न होने वाली इस विस्मयकारी प्रक्रिया ने मानव-जीवन को बहत प्रभावित किया है। ज्वालामुखी के लाभ-ज्वालामुखी से होने वाले लाभ निम्नलिखित हैं-
(1) लावा चट्टानों के अपक्षय से उपजाऊ मिट्टी का निर्माण होता है जो कपास, गन्ना, तम्बाकू, गेहूँ जैसी अनेक फसलों के लिए लाभदायक होती है। दक्षिणी भारत का काली मिट्टी का प्रदेश तथा अमेरिका के वाशिंगटन प्रदेश की मिट्टियाँ लावा से बनी होने के कारण उपजाऊ हैं।

(2) ज्वालामुखी उद्भेदन से निकली उपजाऊ राख का विस्तृत क्षेत्रों पर निक्षेपण खेतों और बगीचों के लिए उपयोगी होता है।

(3) लावा और मैग्मा के जमाव से अनेक भू-आकारों की रचना होती है।

(4) ज्वालामुखी उद्भेदन से बनी आग्नेय चट्टानों में अनेक प्रकार के बहुमूल्य खनिज संचित होते हैं। लावा से बना होने के कारण भारत का दक्षिणी पठार खनिजों का भण्डार कहलाता है। इसी प्रकार स्वीडन के किसना (Kiruna) क्षेत्र में लोहे की खानें पाई जाती हैं। इसके अतिरिक्त ज्वालामुखी से गन्धक, बोरिक एसिड व प्यूमिस (Pumice) जैसे पदार्थ भी यहाँ से प्राप्त होते हैं।

(5) ज्वालामुखी क्षेत्रों में पाए जाने वाले धुआरों (Fumaroles) से अनेक प्रकार की गैसें और वाष्य प्राप्त किए जाते हैं। अलास्का के कटमई ज्वालामुखी क्षेत्र में विशाल मात्रा में निकली गैसों से बने दृश्य को ‘Valley of Ten Thousand Smokes’ कहा जाता है।

(6) ज्वालामुखी पर्वतों के पास गरम जल के चश्मे (Hot Springs) पाए जाते हैं। इन चश्मों के जल में गन्धक का अंश होता है जिसमें नहाने से गठिया और चर्म रोगों का इलाज होता है। आईसलैण्ड में ऐसे सैकड़ों चश्में हैं जिनका प्रयोग खाना पकाने, घर व दफ्तर गरम रखने, वस्त्र धोने आदि में होता है।

(7) ज्वालामुखी प्रदेशों से निकलने वाली ऊँचे तापमान की भाप को संचित करके उससे भूतापीय विद्युत् का निर्माण किया जाता है। न्यूज़ीलैण्ड, इटली व आईसलैण्ड जैसे कई देश इस ऊर्जा का निर्माण और उपयोग कर रहे हैं।

(8) बेसाल्ट और ग्रेनाइट जैसी आग्नेय चट्टानों का भवन निर्माण में प्रयोग बढ़ रहा है।

(9) क्रेटर और काल्डेरा झीलों से खेतों की सिंचाई की जाती है। ये झीलें कई बार नदियों का उद्गम स्रोत बनती हैं। उदाहरणतः, मिस्र की नील नदी ऐसी ही एक झील विक्टोरिया से निकली है।

(10) ज्वालामुखी झीलें, शंकु, गीज़र, गरम जल के चश्मे आदि सुन्दर प्राकृतिक दृश्यों की रचना करते हैं। इन्हें देखने पर्यटक दूर-दूर से आते हैं। इन पर्यटकों को ज्वालामुखी बम व सिंडर आदि अद्भुत पदार्थ बेचे जाते हैं। इससे पर्यटन उद्योग को बढ़ावा मिलता है। एटना, माउण्ट रेनियर, विसुवियस, फ्यूज़ीयामा, माउण्ट लैसेन पर्यटन की महत्त्वपूर्ण मंजिलें मानी जाती हैं।

(11) ज्वालामुखी क्रिया पृथ्वी के इतिहास व उसकी बनावट को समझने में मदद करती है।

(12) ज्वालामुखी प्राकृतिक सुरक्षा वाल्व (Safety Valves) का कार्य करते हैं जिनके माध्यम से खौलता हुआ मैग्मा व भारी दबाव वाली गैसें निकलती रहती हैं।

ज्वालामुखी की हानियाँ-ज्वालामुखी से होने वाली हानियाँ निम्नलिखित हैं-
(1) ज्वालामुखी विस्फोट प्रायः विनाशकारी होते हैं। 600 से 1200 डिग्री सेल्सियस तापमान वाला दहकता हुआ लावा जिस ओर बह निकलता है, सब कुछ भस्म करता चलता है।

(2) ज्वालामुखी पदार्थ न केवल सैकड़ों वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को उजाड़ बना देते हैं, अपितु भारी जन-धन का भी विनाश करते हैं। आज तक लाखों लोग और जीव-जन्तु ज्वालामुखियों की भेंट चढ़ चुके हैं।

(3) विस्फोटक ज्वालामुखी अनेक गाँवों, नगरों व सभ्यताओं को मिटाकर राख कर देते हैं। उदाहरणतः इटली के विसुवियस ज्वालामुखी के उद्भेदन से पोम्पियाई (Pompeii) व हरकुलेनियस नगर देखते-ही-देखते 20 से 50 फुट मोटी लावा परत के नीचे दबकर समाप्त हो गए।

(4) ज्वालामुखी से निकली जहरीली गैसों व विखण्डित पदार्थों से पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता है। सन् 1982 में अलास्का के एल चिचोन (El Chichon) ज्वालामुखी से निकली सल्फरयुक्त गैसों ने सारे विश्व की जलवायु को प्रभावित किया था।

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