HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. निम्नलिखित में से कौन-सा ग्रेडेशनल प्रक्रिया का उदाहरण है?
(A) अपरदन
(B) निक्षेप
(C) ज्वालामुखीयता
(D) संतुलन
उत्तर:
(A) अपरदन

2. जलयोजन प्रक्रिया निम्नलिखित में से किसे प्रभावित करती है?
(A) क्ले (चीका मिट्टी)
(B) लवण
(C) क्वार्टज़
(D) ग्रेनाइट
उत्तर:
(A) क्ले (चीका मिट्टी)

3. मलबा अवधाव को किस श्रेणी में सम्मिलित किया जा सकता है?
(A) भू-स्ख लन
(B) मंद संचलन
(C) द्रुत संचलन
(D) अवतलन
उत्तर:
(C) द्रुत संचलन

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4. अधिवद्धि अथवा तलोच्चयन की प्रक्रिया में निम्नलिखित में से कौन-सा कार्य शामिल नहीं होता?
(A) अपरदन
(B) अपक्षय
(C) अपरदित पदार्थों का परिवहन
(D) निक्षेपण
उत्तर:
(B) अपक्षय

5. चट्टानों का पिंड विच्छेदन किन प्रदेशों में होता है?
(A) आर्द्र प्रदेशों में
(B) हिमाच्छादित प्रदेशों में
(C) ठंडे मरुस्थलों में
(D) शुष्क एवं उष्ण मरुस्थलों में
उत्तर:
(D) शुष्क एवं उष्ण मरुस्थलों में

6. चट्टानों के अपशल्कन के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा कारक प्रमुख रूप से उत्तरदायी है?
(A) चट्टानों का परतों में होना
(B) हिमांक से नीचे तापमान
(C) अत्यधिक उच्च ताप
(D) ताप-विभेदन
उत्तर:
(D) ताप-विभेदन

7. चट्टानों का अपने ही स्थान पर टूटकर या क्षयित होकर पड़े रहने को कहा जाता है-
(A) अपक्षय
(B) अपरदन
(C) अनाच्छादन
(D) अनावृतिकरण
उत्तर:
(A) अपक्षय

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8. लौह-युक्त चट्टानों के भुरभुरी होकर गलने को कहा जाता है-
(A) कार्बोनेटीकरण
(B) ऑक्सीकरण
(C) जलयोजन
(D) वियोजन
उत्तर:
(B) ऑक्सीकरण

9. ग्रेनाइट चट्टानों में होने वाली अपशल्कन क्रिया के पीछे किस कारक का योगदान होता है?
(A) ऑक्सीकरण
(B) कार्बोनेटीकरण
(C) जलयोजन
(D) विलयन
उत्तर:
(C) जलयोजन

10. निम्नलिखित में से कौन-सा एक कारक बृहत क्षरण को प्रभावित नहीं करता?
(A) गुरुत्वाकर्षण
(B) चट्टानों का प्रकार
(C) विवर्तन
(D) जलवायु
उत्तर:
(B) चट्टानों का प्रकार

11. बृहत क्षरण का निम्नलिखित में से कौन-सा प्रकार मंद संचलन का उदाहरण नहीं है?
(A) मृदा विसर्पण
(B) मृदा प्रवाह
(C) मृदा सर्पण
(D) शैल विसर्पण
उत्तर:
(B) मृदा प्रवाह

12. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन भूस्खलन को परिभाषित करता है?
(A) विखंडित शैल पदार्थ का गुरुत्वाकर्षण के प्रभावाधीन ढाल के अनुसार नीचे सरकना।
(B) स्थायी हिम के ऊपर जल से लबालब मलबे का ढाल के अनुरूप खिसकना
(C) चट्टानी भागों का बड़े पैमाने पर तीव्र गति से सर्पण
(D) वर्षा के जल से सराबोर ऊपर की मिट्टी के बहुत बड़े क्षेत्र का स्थानांतरित होना
उत्तर:
(C) चट्टानी भागों का बड़े पैमाने पर तीव्र गति से सर्पण

13. वक्राकार तल पर घूर्णी गति के फलस्वरूप ढाल के सहारे चट्टान का रुक-रुक कर स्खलन होना कहलाता है-
(A) भूमि सर्पण
(B) मलबा स्खलन
(C) शैल पात
(D) अवसर्पण
उत्तर:
(D) अवसर्पण

14. मृदा परिच्छेदिका का वह कौन-सा संस्तर है जिसके ऊपरी भाग में ह्यूमस तथा निचले भाग में खनिज व जैव पदार्थों की अधिकता होती है?
(A) क संस्तर
(B) ख संस्तर
(C) ग संस्तर
(D) घ संस्तर
उत्तर:
(A) क संस्तर

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
चट्टानों का पिंड विच्छेदन किन प्रदेशों में होता है?
उत्तर:
शुष्क एवं उष्ण मरुस्थलों में।

प्रश्न 2.
चट्टानों का अपने ही स्थान पर टूटकर या क्षयित होकर पड़े रहने को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
अपक्षय।

प्रश्न 3.
लौह-युक्त चट्टानों के भुरभुरी होकर गलने को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
ऑक्सीकरण।

प्रश्न 4.
तल सन्तुलन लाने वाले दो कारकों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. नदी
  2. हिमनदी।

प्रश्न 5.
रासायनिक अपक्षय किन दो क्रियाओं द्वारा होता है?
उत्तर:

  1. ऑक्सीकरण
  2. कार्बोनेटीकरण।

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प्रश्न 6.
सूर्यातप अपक्षय में प्याज के छिलके की तरह चट्टानी परतों के उतरने को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
अपशल्कन।

प्रश्न 7.
तुषार अथवा पाला द्वारा चट्टानें किस प्रकार की जलवायु में टूटती हैं?
उत्तर:
शीत जलवायु में।

प्रश्न 8.
कार्बनीकरण का प्रमाण किस प्रकार की चट्टानों पर पड़ता है?
उत्तर:
चूना-युक्त चट्टानों पर।

प्रश्न 9.
लवण क्रिस्टलन अपक्षय किन क्षेत्रों में होता है?
उत्तर:
मरुस्थलीय और तटीय क्षेत्रों में।

प्रश्न 10.
बृहत् संचलन का अन्य नाम क्या है?
उत्तर:
अनुढाल संचलन।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बहिर्जात प्रक्रियाएँ क्या होती हैं?
उत्तर:
वे प्रक्रियाएँ जो धरातल के ऊपर उठे भागों को काट-छाँटकर एवं घिसकर उन्हें समतल बनाती हैं, बहिर्जात प्रक्रियाएँ कहलाती हैं।

प्रश्न 2.
पिण्ड-विच्छेदन क्यों होता है?
उत्तर:
पिण्ड-विच्छेदन लम्बे समय तक तापमान के घटने-बढ़ने से चट्टानों के बार-बार फैलने-सिकुड़ने के कारण चट्टानों के तल पर पैदा हुए तनाव के कारण होता है।

प्रश्न 3.
बृहत् क्षरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से स्थलमण्डल के आवरण की ऊपरी असंगठित परत का ढाल के अनुरूप नीचे खिसकना बृहत् . क्षरण कहलाता है।

प्रश्न 4.
अपक्षय से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मौसम के स्थैतिक तत्त्वों के प्रभाव तथा प्राणियों के द्वारा चट्टानों के अपने ही स्थान पर टूटने-फूटने की क्रिया अपक्षय कहलाती है।

प्रश्न 5.
अपघटन (Decomposition) का अर्थ बताइए।
उत्तर:
रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप चट्टानों का कमज़ोर पड़कर टूट जाना अपघटन कहलाता है।

प्रश्न 6.
विघटन (Disintegration) से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भौतिक अपक्षय और अपरदन के फलस्वरूप चट्टानों का छोटे-छोटे टुकड़ों, खण्डों या कणों में टूटकर बिखरना विघटन कहलाता है।

प्रश्न 7.
मृदा विसर्पण के कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  1. शीत जलवायु क्षेत्रों में तुषार तथा हिम का पिघलना।
  2. भूकम्पों द्वारा शैल आवरण में कम्पन का पैदा करना।

प्रश्न 8.
प्रवणता सन्तुलन की प्रक्रियाओं से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भू-तल पर कार्यरत वे सभी प्रक्रियाएँ अथवा शक्तियाँ जो धरातल की ऊँची-नीची भूमि को एक सामान्य तल पर लाने की कोशिश करती हैं, प्रवणता सन्तुलन की प्रक्रियाएँ कहलाती हैं।

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प्रश्न 9.
रासायनिक अपक्षय क्या है?
उत्तर:
भौतिक बलों द्वारा टूटने की बजाय जब रासायनिक प्रतिक्रिया से चट्टानों के अवयव ढीले पड़ जाएँ तो इस प्रकार चट्टानों में हुए अपघटन को रासायनिक अपक्षय कहते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भू-पटल पर परिवर्तन लाने वाली बहिर्जात प्रक्रियाओं से आपका क्या तात्पर्य है? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
अंतर्जात प्रक्रियाएँ पर्वत, पठार, घाटी और मैदान जैसे भू-आकारों का निर्माण कर अनेक विषमताओं को उत्पन्न करती हैं। इनके विपरीत भू-तल पर कुछ ताकतें ऐसी भी होती हैं, जो इन विषमताओं को निरन्तर दूर करने में लगी रहती हैं, इन्हें बहिर्जात प्रक्रियाएँ कहते हैं। बहिर्जात प्रक्रियाएँ वे प्रक्रियाएँ हैं जो धरातल के ऊपर उठे भागों को काट-छाँटकर एवं घिसकर उन्हें समतल बनाने का कार्य करती हैं।

प्रश्न 2.
प्रवणता सन्तुलन अथवा तल सन्तुलन की व्याख्या करते हुए यह स्पष्ट कीजिए कि निम्नीकरण और अधिवृद्धि का तल सन्तुलन से क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
धरातल के ऊपर उठे भागों के कट-छटकर समतल हो जाने की प्रक्रिया को प्रवणता सन्तुलन कहते हैं। वास्तव में, सन्तुलित धरातल एक ऐसी अवस्था है जिसमें बहिर्जात प्रक्रियाएँ न तो तल को ऊपर उठा रही होती हैं और न ही उसे नीचे कर रही होती हैं। इसमें अपरदन और निक्षेप का हिसाब बराबर बना रहता है। प्रवणता सन्तुलन कभी भी स्थाई नहीं रह पाता, क्योंकि पृथ्वी की आन्तरिक शक्तियाँ कभी भी भू-तल को चैन से नहीं बैठने देतीं।

प्रवणता सन्तुलन निम्नलिखित दो प्रक्रियाओं के एक-साथ कार्यरत रहने से प्राप्त होता है-

  • निम्नीकरण अथवा तलावचन (Degradation)
  • अधिवृद्धि अथवा तल्लोचन (Aggradation)

बाहरी कारकों द्वारा धरातल के ऊँचे उठे हुए भागों को अपक्षय, अपरदन तथा परिवहन द्वारा नीचे करने की प्रक्रिया को निम्नीकरण कहते हैं। भूगोल में इस प्रक्रिया को अनाच्छादन भी कहा जाता है। निम्नीकरण की प्रक्रिया द्वारा ऊँचे भू-भागों से प्राप्त अपरदित पदार्थों का जब गर्मों व निचले प्रदेशों में निक्षेपण हो जाता है, तो इसे अधिवृद्धि कहते हैं।

प्रश्न 3.
बहिर्जनिक बल तथा अंतर्जनित बल में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भ-पर्पटी सदैव परिवर्तित होती रहती है। ये सभी परिवर्तन कछ बलों के प्रभाव से होते हैं। भ-तल के ऊपर कार्य करने वाले बलों को बहिर्जनिक बल तथा पृथ्वी के आंतरिक भाग में कार्य करने वाले बलों को अंतर्जनित बल कहते हैं। बहिर्जनिक बलों के प्रभाव से भू-आकृतियों का निम्नीकरण/तलावचन तथा बेसिन/निम्न क्षेत्रों का भराव होता है। अंतर्जनित बलों से भू-तल के उच्चावच में विषमताएँ आती हैं अर्थात् अंतर्जनित बल पर्वत, पठार, मैदान और घाटी जैसे आकारों की रचना कर अनेक विषमताओं को उत्पन्न करते हैं। बहिर्जनिक बल इन विषमताओं को दूर करने में लगा रहता है।

प्रश्न 4.
भौतिक अपक्षय के विभिन्न कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
चट्टानों का विघटन या भौतिक अपक्षय निम्नलिखित कारकों के माध्यम से होता है-
1. सूर्यातप (Insolation)-शुष्क एवं उष्ण मरुस्थली प्रदेशों में दिन के भीषण ताप से चट्टानें फैलती हैं और रात को तापमान के गिर जाने से चट्टानें सिकुड़ती है। बार-बार चट्टानों के इस प्रकार फैलने और सिकुड़ने से चट्टानों में तनाव पैदा होता है और वे टूट जाती हैं। चट्टानों के टूटने के इस ढंग को पिण्ड विच्छेदन (Block Disintegration) कहते हैं।

अनेक प्रकार के खनिजों और रंगों से मिलकर बनी चट्टानों के खनिज भिन्न-भिन्न दर से फैलते और सिकुड़ते हैं। ऐसी चट्टानें खण्डों में न टूटकर छोटे-छोटे कणों और गुटिकाओं के रूप में चूरा-चूरा होती हैं। इस चूर्ण को शैल मलबा कहा जाता है। चट्टानों के टूटने की यह विधि कणिकामय विखण्डन कहलाती है। जब प्रचण्ड ताप के कारण चट्टानों की ऊपरी पपड़ी प्याज के छिलकों के रूप में उतरने लगती है तो इस विघटन को पल्लवीकरण या अपशल्कन कहा जाता है।

2. पाला (Frost)-ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में तथा उच्च अक्षांशों वाले प्रदेशों में दिन के समय चट्टानी दरारों में वर्षा या हिम से पिघला जल भर जाता है। रात्रि को तापमान के हिमांक से नीचे गिरने पर यह जल दरारों में ही जम जाता है। जमने पर पानी का आयतन (Volume) बढ़ता है। बार-बार जल के जमने और पिघलने (Altermate Freeze and Thaw) की क्रिया से चट्टानों का विखण्डन होता है, जिसे तुषारी अपक्षय (Frost Shattering) कहा जाता है।

3. दाब-मुक्ति (Pressure Release) कई आग्नेय व रूपान्तरित चट्टानें भारी दबाव व ताप की दशाओं में बनती हैं, जिससे उनके कण भी संकुचित और दबे हुए रहते हैं। समय के साथ ऊपर की चट्टानों का जब अपरदन हो जाता है तो युगों से नीचे दबी चट्टाने दाब-मुक्ति के कारण थोड़ा-बहुत फैलती हैं। इससे चट्टानों में दरारें पड़ती हैं, जिससे उनका विघटन और अपशल्कन होता है। यह क्रिया सामान्य रूप से ग्रेनाइट और संगमरमर जैसी चट्टानों में अधिक पाई जाती है।

4. लवण क्रिस्टलन अपक्षय (Salt Crystallisation Weathering) चट्टानों के रन्ध्रों में जमा हुए खारे पानी के वाष्पीकरण से नमक के रवे (Crystals) बन जाते हैं। जैसे-जैसे इन रवों का आकार बढ़ता है, वैसे ही चट्टानों पर दबाव भी बढ़ता है। इससे चट्टानें टूट जाती हैं। यह अपक्षय मरुस्थलों में बलुआ पत्थर में खारे पानी के रिसने से अधिक होता है। समुद्र तट की चट्टानों में भी इसी प्रकार का अपक्षय होता है।

प्रश्न 5.
रासायनिक अपक्षय के कारकों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भौतिक बलों द्वारा टूटने की बजाय जब रासायनिक प्रतिक्रिया से चट्टानों के अवयव ढीले पड़ जाएँ तो इस प्रकार चट्टानों में हुए अपघटन को रासायनिक अपक्षय कहते हैं। रासायनिक अपक्षय के कारक निम्नलिखित हैं
1. ऑक्सीकरण (Oxidation) -जल तथा आई वाय में मिली हई ऑक्सीजन का. जब लौहयक्त चट्टानों से संयोजन होता है. तो चट्टान में स्थित लौह अंश ऑक्साइडों में बदल जाते हैं अर्थात् लोहे में जंग (Rust) लग जाता है। इससे चट्टानों का रंग लाल, पीला या बादामी हो जाता है। इस क्रिया को ऑक्सीकरण कहते हैं। ऑक्सीकरण में लौहयुक्त चट्टानें भुरभुरी होकर गलने लगती हैं।

2. कार्बोनेटीकरण (Carbonation)-जल में घुली कार्बन-डाइऑक्साइड गैस की मात्रा अपने सम्पर्क में आने वाली चट्टानों के खनिजों को कार्बोनेट में बदल देती है, इसे कार्बोनेटीकरण कहते हैं। कार्बन-युक्त जल एक हल्का अम्ल (Carbonic Acid) होता है, जो चूनायुक्त चट्टानों को तेज़ी से घुला देता है। सभी चूना-युक्त प्रदेशों में भूमिगत जल कार्बोनेटीकरण के द्वारा अपक्षय का प्रमुख कारक बनता है।

3. जलयोजन (Hydration) चट्टानों में कुछ खनिज ऐसे भी होते हैं, जो हाइड्रोजन युक्त जल को रासायनिक विधि द्वारा अवशोषित (Absorb) कर लेते हैं, जिससे उनका आयतन लगभग दुगुना हो जाता है। खनिजों का बढ़ा हुआ आयतन चट्टानों के कणों और खनिजों में तनाव, खिंचाव तथा दबाव पैदा करता है। इसके परिणामस्वरूप चट्टानें फूलकर यान्त्रिक विधि द्वारा मूल चट्टान से उखड़ जाती हैं।

4. विलयन (Solution) वर्षा के जल के सम्पर्क में आने पर सभी चट्टानें भिन्न-भिन्न दर से घुलती हैं, लेकिन कुछ खनिज जल में शीघ्र ही घुल जाते हैं, जैसे सेंधा नमक (Rock Salt) और चूना-पत्थर आदि। चट्टानों का यह रासायनिक अपक्षय विलयन कहलाता है।

प्रश्न 6.
बृहत् क्षरण (बृहत् संचलन) की परिभाषा देते हुए मृदा विसर्पण की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
परिभाषा (Definition)-स्थलमण्डल के आवरण की ऊपरी असंगठित परत (Regolith) तथा चट्टानी मलबे की विशाल मात्रा का गुरुत्वाकर्षण के कारण ढाल से नीचे की ओर फिसलना या सरकना बृहत् क्षरण कहलाता है। इसे बृहत् संचलन (Mass Movement) तथा अनुढाल संचलन (Downslope Movement) भी कहते हैं।

मृदा विसर्पण (Soil Creep)-शीतोष्ण और उष्ण कटिबन्धीय जलवायु के क्षेत्रों में मन्द ढालों पर भी गुरुत्वाकर्षण के कारण चट्टानों का ऊपरी आवरण नीचे की ओर फिसलने लगता है। वर्षा के जल से सराबोर ऊपर की मिट्टी का बहुत बड़ा क्षेत्र घास के मैट व वृक्षों समेत इस प्रकार स्थानान्तरित होने लगता है कि उस जमीन पर खड़े आदमी को एहसास भी नहीं होता। इस प्रकार स्थानान्तरित पदार्थ ढाल के आधार तल पर एकत्रित होने लगता है। मृदा विसर्पण को हम मृदा परिच्छेदिका व प्रतिरोधी चट्टानों के बड़े खण्डों के अनावरण तथा वृक्षों की जड़ों के व्यवहार, बाड़ (Fence) तथा टेलीफोन के झुके हुए खम्बों द्वारा प्रमाणित किया जा सकता है।

प्रश्न 7.
भू-स्खलन क्या है? भू-स्खलन कितने प्रकार का होता है? किसी एक प्रकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. भू-स्खलन (Land Slide)-चट्टानी भागों का बड़े पैमाने पर तीव्र गति से सर्पण भू-स्खलन कहलाता है। इसमें जल या हिम की स्नेहक के रूप में जरूरत नहीं पड़ती। भू-स्खलन में भारी मात्रा में मलबे के नीचे आने से जान-माल की हानि होती है।

2. शैल-स्खलन (Rock Slide)-भू-स्खलन के सभी प्रकारों में शैल-स्खलन का सबसे अधिक महत्त्व है। पहाड़ों से बड़े-बड़े शिलाखण्ड अपनी जगह से खिसककर भ्रंश तल (Fault Plane) या संस्तरण तल (Bedding Plane) के सहारे लुढ़कते-फिसलते नीचे आते हैं।

प्रश्न 8.
अपक्षय तथा अपरदन में अन्तर बताइए।
उत्तर:
अपक्षय तथा अपरदन में निम्नलिखित अन्तर हैं-

अपक्षय (Weathering) अपरदन (Erosion)
1. अपक्षय की प्रक्रिया स्थैतिक साधनों द्वारा सम्पन्न होती है। 1. अपरदन की प्रक्रिया धरातल पर कार्यरत गतिशील साधनों द्वारा सम्पन्न होती है।
2. अपक्षय में चट्टानें टूटकर अपने मूल स्थान या उसके आस-पास पड़ी रहती हैं। 2. अपरदन में अपक्षयित पदार्थों का अपने मूल स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण होता है।
3. अपक्षय में चट्टानों की केवल टूट-फूट होती है। 3. अपरदन में चट्टानों की टूट-फूट व स्थानान्तरण दोनों होते हैं।
4. सूर्यातप, पाला, दाबमुक्ति, ऑक्सीकरण, कार्बोनेटीकरण, जलयोजन, विलयन, जीव, वनस्पति तथा मनुष्य अपक्षय के प्रमुख कारक हैं। 4. अपरदन के मुख्य कारक हिमनदी, नदी, पवन, समुद्री तरंगें इत्यादि हैं।
5. अपक्षय मृदा-निर्माण का आधार है। 5. अपरदन विभिन्न स्थलाकृतियों के विकास के लिए उत्तरदायी है।

प्रश्न 9.
भौतिक अपक्षय तथा रासायनिक अपक्षय में अन्तर बताइए।
उत्तर:
भौतिक अपक्षय तथा रासायनिक अपक्षय में निम्नलिखित अन्तर हैं-

भौतिक अपक्षय (Physical Weathering) रासायनिक अपक्षय (Chemical Weathering)
1. भौतिक अपक्षय में चट्टानें भौतिक बलों के प्रभाव से टूटती हैं। 1. इसमें चट्टानें रासायनिक अपघटन द्वारा सड़-गलकर चूर्ण बनती रहती हैं।
2. भौतिक अपक्षय में विधटित चट्टानों के खनिज मूल चट्टानों जैसे ही रहते हैं। 2. रासायनिक अपक्षय में अपघटित चट्टानों के रासायनिक तत्त्वों में परिवर्तन हो जाता है।
3. चट्टानों का भौतिक अपक्षय शीत एवं शुष्क प्रदेशों में अधिक होता है। 3. रासायनिक अपक्षय उष्ण एवं आर्द्र प्रदेशों में अधिक कारगर होता है।
4. भौतिक अपक्षय के मुख्य कारक ताप, पाला तथा दाब-मुक्ति हैं। 4. रासायनिक अपक्षय के मुख्य कारक ऑक्सीकरण, कार्बोनेटीकरण, जलयोजन तथा विलयन हैं।
5. बलकृत अपक्षय में चट्टानें पर्याप्त गहराई तक प्रभावित होती हैं। 5. रासायनिक अपक्षय में चट्टानों का केवल तल ही प्रभावित होता है।

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प्रश्न 10.
ढाल मलबा तथा पाद मलबा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
पर्वतीय ढलानों पर छोटे-बड़े अनेक आकार के शैल खण्डों के ढेर जमा हो जाते हैं, जिन्हें ढाल मलबा अथवा पाद मलबा कहा जाता है। ये मलबे के कोणीय ढेर होते हैं जिनका. आकार ढाल जितना होता है। इन ढेरों की ढाल क्षैतिज आधार से 350 से 37° तक रहती है। इन भू-आकृतियों की रचना तुषार अपक्षय (Frost Weathering) वाले इलाके में होती है। । कुछ विद्वान् ढाल मलबे को पाद मलबे का समानार्थक मानते हैं, जबकि अन्य कुछ इन दोनों में फर्क मानते हैं। उनके अनुसार, ढाल मलबा (स्क्री) वह पदार्थ होता है जो पर्वतीय ढाल पर बिखरा हुआ पड़ा होता है, जबकि पाद मलबा (टैलस) भृगु तल पर निश्चित रूप से एकत्र तलछट को कहते हैं। भृगुओं (Cliffs) के ऊपरी सिरों पर अपक्षय द्वारा कीपाकार संकरे खड्डों (Ravines) का निर्माण हो जाता है। अपक्षयित पदार्थ इन संकरे खड्डों में जमा होता-होता भृगु के तल से ऊपर की ओर बढ़ने लगता है, इसे टैलस शंकु कहते हैं। इन टैलस शंकुओं में बड़े आकार की भारी शैलें आधार तल पर पाई जाती हैं, जबकि अपेक्षाकृत हल्के कण ऊपर के स्तरों में पाए जाते हैं।

प्रश्न 11.
जैविक अपक्षय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
ऐसा अपक्षय जिसमें चट्टानों की टूट-फूट के लिए मुख्य रूप से जीव-जन्तु, मनुष्य और वनस्पति उत्तरदायी हों, ‘जैविक अपक्षय’ कहलाता है। कीड़े-मकौड़े और जन्तुओं की सैकड़ों प्रजातियाँ ऐसी हैं जो चट्टानों में बिल बनाकर रहती हैं। बिल बनाने से असंगठित मलबा बाहर आता है और चट्टानें कमज़ोर होकर टूटती हैं। वनस्पति की जड़ें चट्टानों की दरारों में प्रवेश करके उन्हें चौड़ा करती हैं। जड़ों की माध्यम से हवा और पानी का भी चट्टानों में घुसने का राह बन जाता है। इसमें रासायनिक अपक्षय को बल मिलता है। मनुष्य भी कुएँ, झील, नहरें, बाँध, भटे, सुरंगें, तालाब, खाने, नगर, कारखाने व सड़के इत्यादि बनाकर चट्टानों को तोड़ने का काम करता रहता है। ये सभी जैविक अपक्षय के रूप हैं।

प्रश्न 12.
मृदा विसर्पण के कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर:
मृदा विसर्पण निम्नलिखित कारणों से होता है-

  1. शीत जलवायु क्षेत्रों में तुषार तथा हिम का पिघलना
  2. हिम के कणों के सकार से भार के कारण चट्टानी टुकड़ों का ढाल के नीचे की ओर धकेला जाना
  3. शैलों का एकान्तर क्रम से गरम व ठण्डा होना
  4. मृदा का जल में भीगना व सूखना
  5. भूकम्पों द्वारा शैल आवरण में कम्पन का पैदा होना
  6. बिलकारी जीवों द्वारा भूमि का अपक्षय तथा मनुष्य द्वारा ढाल की ‘रोक’ (Barrier) को हटाना इत्यादि।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अपक्षय की परिभाषा दीजिए। यह कितने प्रकार का होता है? किसी एक का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अपक्षय की परिभाषा-मौसम के स्थैतिक तत्त्वों के प्रभाव तथा प्राणियों के कार्यों द्वारा चट्टानों के अपने स्थान पर टूटने-फूटने की क्रिया को अपक्षय कहा जाता है। चट्टानों में टूट-फूट विघटन (Disintegration) तथा अपघटन (Decomposition) क्रियाओं से होती है। विघटन में चट्टानें भौतिक बलों द्वारा चटक कर टूटती हैं, जबकि अपघटन में चट्टानें रासायनिक क्रियाओं द्वारा सड़-गलकर चूर्ण बनती रहती हैं। स्पार्क्स के शब्दों में, “प्राकृतिक कारकों द्वारा चट्टानों के अपने ही स्थान पर भौतिक और रासायनिक क्रियाओं द्वारा होने वाले विघटन और अपघटन को अपक्षय कहते हैं।”

अपक्षय के प्रकार- मौसमी तत्त्वों के अतिरिक्त जीव-जन्तु, वनस्पति और मनुष्य भी चट्टानों की टूट-फूट के लिए उत्तरदायी होते हैं, ऐसा अपक्षय जैविक अपक्षय कहलाता है। जैविक अपक्षय में भी यान्त्रिक और रासायनिक दोनों प्रकार के अपक्षय शामिल होते हैं। इस प्रकार अपक्षय तीन प्रकार के होते हैं

  • भौतिक अथवा यान्त्रिक अपक्षय (Physical or Mechanical Weathering)
  • रासायनिक अपक्षय (Chemical Weathering)
  • जैविक अपक्षय (Biological Weathering)।

यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि भौतिक, रासायनिक तथा जैविक तीनों प्रकार के.अपक्षय कम या अधिक मात्रा में एक साथ घटित हो रहे होते हैं। अपक्षय में उत्पन्न चट्टान चूर्ण का बड़े पैमाने पर परिवहन नहीं होता। यह तल सन्तुलन के कारकों के रंगमंच जरूर तैयार कर देता है।

भौतिक अथवा यान्त्रिक अपक्षय – [Physical or Mechanical Weathering]:
चट्टानों का विघटन निम्नलिखित कारकों के माध्यम से होता है-
(1) सूर्यातप (Insolation)-शुष्क एवं उष्ण मरुस्थली प्रदेशों में जहाँ दैनिक तापान्तर अधिक होता है, सूर्यातप चट्टानों के विघटन का सबसे कारगर साधन सिद्ध होता है। ऐसे प्रदेशों में दिन के भीषण ताप से चट्टानें फैलती हैं और रात को तापमान के असाधारण रूप से गिर जाने से चट्टानें सिकुड़ती हैं। चट्टानों के इस प्रकार लम्बे समय तक बार-बार फैलते और सिकुड़ते रहने से उनके तल पर तनाव उत्पन्न हो जाता है। तनाव चट्टानों में दरारें पैदा करता है जिसके फलस्वरूप चट्टानें बड़े-बड़े टुकड़ों में विघटित होने लगती हैं। चट्टानों की इस प्रकार टूट पिंड विच्छेदन (Block Disintegration) कहलाती है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 1
कई चट्टानें जो अनेक प्रकार के खनिजों और रंगों से मिलकर बनी होती हैं, उनके खनिज ताप के प्रभाव से भिन्न-भिन्न दरों से फैलते और सिकुड़ते हैं, ऐसी चट्टानें खण्डों में न टूटकर छोटे-छोटे कणों और गुटिकाओं के रूप में चूरा-चूरा होती रहती हैं। इस चूर्ण को शैल मलबा (Scree or Talus) कहा जाता है। चट्टानों के टूटने की यह विधि कणिकामय विखण्डन (Granular Disintegration) कहलाती है। मरुस्थलों में सूर्यास्त के बाद चट्टानों के इस प्रकार टूटने से बन्दूक से गोली छूटने जैसी आवाजें सुनाई पड़ती हैं।
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कुछ चट्टानें ताप की उत्तम चालक नहीं होतीं। सूर्य के प्रचण्ड ताप द्वारा उनकी ऊपरी पपड़ी तो गरम हो जाती है, जबकि पपड़ी के नीचे का भीतरी भाग ठण्डा ही रहता है। यह ताप विभेदन चट्टानों की समकंकता (Cohesion) भंग कर देता है, जिससे चट्टानों की ऊपरी पपड़ी मूल चट्टानों से ऐसे अलग हो जाती है; जैसे अपशल्कन या पल्लवीकरण प्याज़ का छिलका। चट्टान से अलग होने पर छिलकों जैसी ये परतें टूटकर चूर-चूर हो जाती हैं। चट्टानों के टूटने का यह रूप पल्लवीकरण या अपशल्कन (Exfoliation) कहलाता है।
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(2) पाला (Frost)-ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में तथा उच्च अक्षांशों वाले प्रदेशों में दिन के समय चट्टानी दरारों में वर्षा या हिम से पिघला जल भर जाता है। रात्रि को तापमान के हिमांक से नीचे गिरने पर यह जल दरारों में ही जम जाता है। जमने पर पानी का आयतन (Volume) बढ़ता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, 9 घन सेंटीमीटर जल जमने के बाद 10 घन सेंटीमीटर जगह घेरता है, जिससे चट्टानों पर प्रति वर्ग सेंटीमीटर 15 किलोग्राम का प्रतिबल पड़ता है। बार-बार जल के जमने और पिघलने (Alternate Freeze and Thaw) की क्रिया से चट्टानों का विखण्डन होता है, जिसे तुषारी अपक्षय (Frost Shattering) कहा जाता है।

(3) दाब-मुक्ति (Pressure Release)कई आग्नेय व रूपान्तरित चट्टानें भारी दबाव व ताप की दशाओं में बनती हैं, जिससे उनके कण भी संकुचित और दबे हुए रहते हैं। समय के साथ ऊपर की चट्टानों का जब अपरदन हो जाता है तो युगों से नीचे दबी चट्टानें दाब-मुक्ति के कारण थोड़ा-बहुत फैलती हैं। इससे चट्टानों में दरारें पड़ती हैं, जिससे उनका विघटन और अपशल्कन होता है। यह क्रिया सामान्य रूप से ग्रेनाइट और संगमरमर जैसी चट्टानों में अधिक पाई जाती है।

(4) लवण क्रिस्टलन अपक्षय (Salt Crystallisation Weathering)-चट्टानों के रन्ध्रों में जमा हुए खारे पानी के वाष्पीकरण से नमक के रवे (Crystals) बन जाते हैं। जैसे-जैसे इन रवों का आकार बढ़ता है, वैसे ही चट्टानों पर दबाव भी बढ़ता है। इससे चट्टानें टूट जाती हैं। यह अपक्षय मरुस्थलों में बलुआ पत्थर में खारे पानी के रिसने से अधिक होता है। समुद्र तट की चट्टानों में भी इसी प्रकार का अपक्षय होता है।

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प्रश्न 2.
बृहत् क्षरण से आप क्या समझते हैं? मंद संचलन के अन्तर्गत होने वाले बृहत् क्षरण के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बृहत् क्षरण का अर्थ-स्थलमण्डल के आवरण की ऊपरी असंगठित परत (Regolith) तथा चट्टानी मलबे की विशाल मात्रा का गुरुत्वाकर्षण के कारण ढाल से नीचे की ओर फिसलना या सरकना बृहत् क्षरण कहलाता है। इसे बृहत् संचलन (Mass Movement) तथा अनुढाल संचलन (Downslope Movement) भी कहते हैं।

बृहत् क्षरण के प्रकार – बृहत् क्षरण की गति में बड़ी भारी भिन्नता पाई जाती है। यह गति एक वर्ष में कुछ मिलीमीटर (जो दिखाई भी न दे) से लेकर 100 कि०मी० प्रति घण्टा तक हो सकती है। गति के आधार पर बृहत क्षरण के विभिन्न रूपों को दो मोटे वर्गों में बाँटा जा सकता है-
मन्द संचलन (Slow Movement)-

  1. मृदा विसर्पण (Soil Creep)
  2. शैल विसर्पण (Rock Creep)
  3. ढाल मलबा व पाद मलबा (Scree or Talus)
  4. मृदा सर्पण (Solifluction)।

द्रुत संचलन (Rapid Movement)-

  1. मृदा प्रवाह (Soil Flow)
  2. भू-स्खलन (Land Slide)
    • शैल स्खलन (Rock Slide)
    • अवसर्पण (Slumping)
    • शैल पात (Rock Fall)
    • मलबा स्खलन (Debris Slide)
  3. भूमि सर्पण (Earth Slide)
  4. पंक प्रवाह (Mud Flow)।

1. मन्द संचलन (Slow Movement)-अदृश्य होने के बावजूद मन्द संचलन धरातल को तराशने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भू-गर्भवेताओं के अनुसार, लम्बे समय तक जारी रहने वाले मन्द संचलन विस्फोटक और द्रुत संचलन की अपेक्षा मलबे की अधिक मात्रा को लुढ़का ले जाते हैं।

(i) मृदा विसर्पण (Soil Creep)-शीतोष्ण और उष्ण कटिबन्धीय जलवायु के क्षेत्रों में मन्द ढालों पर भी गुरुत्वाकर्षण के कारण चट्टानों का ऊपरी आवरण नीचे की ओर फिसलने लगता है। वर्षा के जल से सराबोर ऊपर की मिट्टी का बहत बड़ा क्षेत्र घास के मैट व वृक्षों समेत इस प्रकार स्थानान्तरित होने लगता है कि उस जमीन पर खड़े आदमी को एहसास भी नहीं होता। इस प्रकार स्थानान्तरित पदार्थ ढाल के आधार तल पर एकत्रित होने लगता है। मृदा विसर्पण को मृदा परिच्छेदिका व प्रतिरोधी चट्टानों के बड़े खण्डों के अनावरण तथा वृक्षों की जड़ों के व्यवहार, बाड़ तथा टेलीफोन के झुके हुए खम्बों द्वारा प्रमाणित किया जा सकता है।
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मृदा विसर्पण के कारण (Causes of Soil Creep)-

  • शीत जलवायु वाले क्षेत्रों में तुषार (Frost) तथा हिम का पिघलना
  • हिम के कणों के सकार से भार के कारण चट्टानी टुकड़ों का ढाल के नीचे की ओर धकेला जाना
  • शैलों का एकान्तर क्रम से गरम व ठण्डा होना
  • मृदा का जल में भीगना व सूखना
  • भूकम्पों द्वारा शैल आवरण में कम्पन का पैदा होना

(2) शैल विसर्पण (Rock Creep)-वर्षा ऋतु में चट्टानों के ऊपर स्थित शैल चूर्ण और मिट्टी की कमज़ोर परत का आवरण हट जाने के बाद मौसम के कारक आधार शैल (Bed Rock) का विखण्डन करना आरम्भ कर देते है। विखण्डित शैल पदार्थ गुरुत्वाकर्षण के प्रभावाधीन ढाल के अनुसार नीचे की ओर सरकते है, जिसे शैल विसर्पण कहा जाता है।

(3) ढाल मलबा व पाद मलबा (Scree or Talus) पर्वतीय ढलानों पर छोटे-बड़े अनेक आकार के शैल खण्डों के ढेर जमा हो जाते हैं, जिन्हें ढाल मलबा अथवा पाद मलबा कहा जाता है। ये मलबे के कोणीय ढेर होते हैं जिनका आकार ढाल जितना होता है। इन ढेरों की ढाल क्षैतिज आधार से 35° से 37° तक रहती है। इन भू-आकृतियों की रचना तुषार अपक्षय (Frost Weathering) वाले इलाके में होती है।

कुछ विद्वान ढाल मलबे को पाद मलबे का समानार्थक मानते हैं, जबकि अन्य कुछ इन दोनों में फर्क मानते हैं। उनके अनुसार, ढाल मलबा (स्क्री) वह पदार्थ होता है जो पर्वतीय ढाल पर बिखरा हुआ पड़ा होता है, जबकि पाद मलबा (टैलस) भृगु तल पर निश्चित रूप से एकत्र तलछट को कहते हैं। भृगुओं (Cliffs) के ऊपरी सिरों पर अपक्षय द्वारा कीपाकार संकरे खड्डों (Ravines) का निर्माण हो जाता है।

अपक्षयित पदार्थ इन संकरे खड्डों में जमा होता-होता भृगु के तल से ऊपर की ओर बढ़ने लगता है, इसे टैलस शंकु कहते हैं। इन टैलस शंकुओं में बड़े आकार की भारी शैलें आधार तल पर पाई जाती हैं, जबकि अपेक्षाकृत हल्के कण ऊपर के स्तरों में पाए जाते हैं।
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(4) मृदा सर्पण (Solifluction)-Solifluction लातीनी भाषा के दो पदों ‘Solum Soil’ (मृदा) तथा ‘Fluere flow’ (बहना) से मिलकर बना है जिसका अर्थ जल से संतृप्त मिट्टी का ढाल के नीचे की ओर प्रवाह है। मृदा सर्पण ऊँचे अंक्षाशों तथा निम्न अंक्षाशों के उच्च पर्वतीय भागों में घटित होता है। आर्कटिक वृत के टुण्ड्रा प्रदेशों में स्थाई हिम (Permafrost) (जहाँ सारा वर्ष तापमान 0° सेल्सियस व उससे भी कम रहता है) के क्षेत्रों में ग्रीष्म ऋतु के आरम्भ में ऊपर की हिम पिघलने लगती है, जबकि नीचे की भूमि अभी हिम से जमी हुई (Frozen) होती है। स्थाई हिम पिघले हुए जल के अन्तःस्राव अर्थात् रिसाव में बाधा डालती है। परिणामस्वरूप पर्माफ्रॉस्ट के ऊपर जल से लबालब मलबा ढाल के अनुरूप खिसकने लगता है। मृदा सर्पण की गति इतनी मन्द होती है कि वह दिखाई ही नहीं देती। पर्वतीय ढालों पर मृदा सर्पण से सोपानों एवं वेदिकाओं का निर्माण होता है।

प्रश्न 3.
भू-स्खलन का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसके विभिन्न प्रकारों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भू-स्खलन का अर्थ-चट्टानी भागों का बड़े पैमाने पर तीव्र गति से सर्पण भू-स्खलन कहलाता है। इसमें जल या हिम की स्नेहक के रूप में जरूरत नहीं पड़ती। भू-स्खलन में भारी मात्रा में मलबे के नीचे आने से जान-माल की हानि होती है।

भू-स्खलन के प्रकार भू-स्खलन चार प्रकार का होता है। इनकी संक्षिप्त व्याख्या इस प्रकार है-
(1) शैल-स्खलन (Rock Slide)-भू-स्खलन के सभी प्रकारों में शैल-स्खलन का सबसे अधिक महत्त्व है। पहाड़ों से बड़े-बड़े शिलाखण्ड अपनी जगह से खिसककर भ्रंश तल (Fault Plane) या संस्तरण तल (Bedding Plane) के सहारे लुढ़कते-फिसलते नीचे आते हैं।
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(2) अवसर्पण (Slumping)-अवसर्पण की क्रिया वक्राकार तल पर घूर्णन गति (Rotating) के फलस्वरूप घटित होती है। इसमें चट्टान का स्खलन ढाल के सहारे रुक-रुक कर होता है और कम दूरी तक होता है। जिस ढाल पर चट्टान का अवसर्पण होता है उस पर सीढ़ीनुमा छोटी-छोटी वेदिकाएँ बन जाती हैं। भारत में अवसर्पण के उदाहरण, पश्चिमी तट पर चेन्नई और विशाखापट्टनम के बीच तथा पूर्वी तट पर केरल में कौनिक के निकट मिलते है।
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(3) शैल पात (Rock Fall)-शैल पात की क्रिया शैल स्खलन से मिलती-जुलती अवसर्पण है। अन्तर केवल यह है कि शैल पात में किसी खड़े ढाल वाले क्लिफ से विशाल शैल खण्ड अकेले ब्लॉक के रूप में गिरता है। गिरने वाले खण्ड का आकार एक गोलाश्म (Boulder) जितना छोटा भी हो सकता है और गाँव के आकार जितना विशाल भी। गिरने वाले खण्ड का आकार क्लिफ की भौमकीय रचना पर निर्भर करता है। गिरने के बाद वह विशाल खण्ड अनेक प्रकार के बड़े-बड़े और छोटे-छोटे टुकड़ों में बँट सकता है। हिमालय तथा आल्पस पर्वत क्षेत्रों में शैल पात की घटनाएँ प्रायः होती रहती है।

(4) मलबा स्खलन (Debris Slide) मलबा स्खलन वह शैल चूर्ण होता है जो अपने मूल स्थान से हट कर ढाल के नीचे की ओर खिसकता हुआ किसी अन्य स्थान पर दोबारा एकत्र हो जाता है। यदि मलबा समूह तीव्र ढाल पर नीचे की ओर तेजी से विसर्पण करता है तो इस क्रिया को मलबा स्खलन कहते हैं और यदि मलबे का समूह तीव्र गति के साथ ऊंचाई से नीचे की ओर गिरता है तो उसे मलबा पात (Debris Fall) कहते हैं। हिमालय की घाटियों में मलबा स्खलन और मलबा पात की अनेकों घटनाएँ देखने को मिलती हैं।

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प्रश्न 4.
बृहत संचलन के प्रकार बताते हुए किसी एक का संक्षेप में वर्णन करें। द्रूत संचलन के प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बृहत संचलन मुख्यतः तीन प्रकार का होता है-

  • मंद संचलन (Slow Movement)
  • दूत संचलन (Rapid Movement)
  • भू-स्खलन (Land Slide)

गुरुत्वाकर्षण के कारण मृदा अथवा चट्टान का अचानक एवं तीव्र गति से संचलन बहुत हानिकारक होता है। मलबे के द्रुत संचलन के लिए वर्षा के जल या हिम के पिघले जल की भारी मात्रा में आवश्यकता होती है। इसमें से द्रुत संचलन का वर्णन निम्नलिखित है
1. भूमि सर्पण (Earth Slide) इसमें भूमि का एक पूरा-का-पूरा विशाल ब्लॉक पर्वत या पहाड़ी के नीचे की ओर खिसकता है। यह टूटकर खण्डित नहीं होता, बल्कि पूरा ब्लॉक ही ज्यों-का-त्यों रहता है। यह खिसकी हुई भूमि मार्ग में कितने ही लम्बे अथवा थोड़े समय तक रुकी रह सकती है।

2. मृदा प्रवाह (Soil Flow)-आर्द्र जलवायु के क्षेत्रों में जल के संतृप्त मिट्टी, ऊपरी भाग का चट्टान चूर्ण, चिकनी मिट्टी तथा शैल मृत्तिका आदि गुरुत्वाकर्षण की शक्ति द्वारा तीव्र गति से कुछ ही घंटों में ढाल के नीचे की ओर खिसक आते हैं, इसे मृदा प्रवाह कहते हैं। मृदा प्रवाह में जल अथवा हिमजल स्नेहक (Lubricant) का काम करते हैं।

3. पंक प्रवाह (Mud Flow)-अधिक वर्षा वाले प्रदेशों में जल से संतृप्त होकर शैल पदार्थ अपने मूल स्थान की ढाल से अलग होकर प्लास्टिक पदार्थ की भाँति नीचे की ओर निकली हुई जिह्वाओं की आवृति में बहने लगते हैं।

ज्वालामुखी उद्गार के बाद होने वाली वर्षा में ज्वालामुखी राख और धूलकण गीले होकर पंक का रूप धारण कर लेते है आर ढाल के साथ नीचे की ओर खिसकते हैं।

4. मलबा अवधाव (Debris Avalanche) मलबा अवधाव द्रुत संचलन आर्द्र प्रदेशों में, जिनमें वनस्पति का आवरण हो या न हो, पाया जाता है। यह मलबा तीव्र ढालों पर संकरे मार्गों से बहता है। मलबा अवधाव हिम अवधाव जैसा होता है और पंक प्रवाह की अपेक्षा बहुत तेज बहता है।

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