Author name: Bhagya

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 7 भारतजनताऽहम्

Haryana State Board HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 7 भारतजनताऽहम् Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 7 भारतजनताऽहम्

अभ्यासः

प्रश्न 1.
पाठे दत्तानां पद्यानां सस्वरवाचनं कुरुत-
नोट- विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 2.
प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत-
(क) अहं वसुंधराम् किम मन्ये?
उत्तरम्:
कुटुम्बम्।

(ख) मम सहजा प्रकृति का अस्ति?
उत्तरम्:
मैत्री।

(ग) अहं कस्मात् कठिना भारतजनताऽस्मि?
उत्तरम्:
कुलिशात्।

(घ) अहं मित्रस्य चक्षुषां किं पश्यन्ती भारतजनताऽस्मि?
उत्तरम्:
संसारम्।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 7 भारतजनताऽहम्

प्रश्न 3.
प्रश्नानाम् उत्तराणि पूर्णवाक्येन लिखत-
(क) भारतजनताऽहम् कैः परिपूता अस्मि?
उत्तरम्:
भारतजनताऽहम् अध्यात्मसुधातटिनी-स्नानैः परिपूता अस्मि।

(ख) समं जगत् कथं मुग्धमस्ति?
उत्तरम्:
समं जगत् मम गीतैः, नृत्यैः काव्यैः च मुग्धमस्ति।

(ग) अहं किं किं चिनोमि?
उत्तरम्:
अहं प्रेयः श्रेय च चिनोमि।

(घ) अहं कुत्र सदा दृश्ये?
उत्तरम्:
अहं विश्वस्मिन् जगति सदा दृश्ये।

(ङ) समं जगत् कैः कै: मुग्धम् अस्ति?
उत्तरम्:
समं जगत् गीतैः नृत्यै काव्यैः च मुग्धम् अस्ति।

प्रश्न 4.
सन्धिविच्छेवं पूरयत-
(क) विनयोपेता = विनय + उपेता
(ख) कुसुमादपि = ________ + _________
(ग) चिनोम्युभयम् = चिनोमि + _________
(घ) नृत्यैर्मुग्धम् = _________ + मुग्धम्
(ङ) प्रकृतिरस्ति = प्रकृतिः + _________
(च) लोकक्रीडासक्ता = लोकक्रीडा + _________
उत्तरम्:
(क) विनयोपेता = विनय + उपेता
(ख) कुसुमादपि = कुसुमात् + अपि
(ग) चिनोम्युभयम् = चिनोमि + उभयम्
(घ) नृत्यैर्मुग्धम् = नृत्यैः + मुग्धम्
(ङ) प्रकृतिरस्ति = प्रकृतिः + अस्ति
(च) लोकक्रीडासक्ता = लोकक्रीडा + आसक्ता

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 7 भारतजनताऽहम्

प्रश्न 5.
विशेषण-विशेष्य पदानि मेलयत-

उत्तरम्:

प्रश्न 6.
समानार्थकानि पदानि मेलयत-

उत्तरम्:
जगति – संसारे
प्रकृति – स्वभावः
तटिनी – नदी
कुलिशात् – व्रजात्
चक्षुषा – नेत्रेण
वसुंधराम् – पृथ्वीम्

प्रश्न 7.
उचितकथानां समक्षम् (आम्) अनुचितकथनानां समक्षं च (न) इति लिखत-
(क) अहं परिवारस्य चक्षुषा संसारं पश्यामि।
(ख) समं जगत् मम काव्यैः मुग्धमस्ति।
(ग) अहम् अविवेका भारतजनता अस्मि।
(घ) अहं वसुंधराम् कुटुम्ब न मन्ये।
(ङ) अहं विज्ञानधना ज्ञानधना चास्मि।
उत्तरम्:
(क) अहं परिवारस्य चक्षुषा संसारं पश्यामि। (न)
(ख) समं जगत् मम काव्यैः मुग्धमस्ति। (आम्)
(ग) अहम् अविवेका भारतजनता अस्मि। (न)
(घ) अहं वसुंधराम् कुटुम्ब न मन्ये। (न)
(ङ) अहं विज्ञानधना ज्ञानधना चास्मि। (आम्)

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 7 भारतजनताऽहम्

योग्यता-विस्तारः

भावविस्तारः
कवि-परिचयः प्रस्तुत कविता पाठ आजकल के कवि डॉ. रमाकान्त शुक्ल के काव्यंग्रह से संकलित की गई है। डॉ. शुक्ल अद्यतनीय संस्कृत-साहित्य की दुनिया में राष्ट्रपति सम्मान और पश्री सम्मान से सम्मानित शीर्ष कवि हैं। इनका काव्यपाठ आकाशवाणी (रेडियो), टी.वी. अन्यान्य कवि-सम्मेलनों में तो प्रशंसित है ही, लेकिन मौरिशस, अमेरिका, इटली, ब्रिटेन आदि पाश्चात्य देशों में भी प्रशासित है। भाति में भारतम्, जयभारतभूमे, भाति मौरिशसम्, भारतजनताऽहम्, सर्वशुक्ला, सर्वशुक्लोत्तरा, आशद्विशती, मम जननी और राजधानी-रचनाः इनकी श्रेष्ठ काव्य-रचनाएं हैं। इनके अलावा पण्डितराजीयम् अभिशापम् पुरश्चरण-कमलम्, नाट्यसप्तकम् इत्यादि नाटक पुरस्कृत एवं अभिमञ्चित हैं। अना अनेक संपादित पुस्तकें इनकी कलम सजीव हुए हैं, कवि की कुछ दूसरी रचनाएँ भी पढ़िए:

1. परिमितशब्दैरमितगुणान्, गायाम कथं ते वद पुण्ये।
चुलुके जलधि तुगतरङ्ग करवाणि कथं वद धन्ये।
जय सुजले सुफले वरदे, विमले कमला-वाणी वन्थे।
जय जय जय हे भारत भूमे जय-जय-जय भारत भूमे।

2. यत्र सत्यं शिवं सुन्दरं राजते,
रामराज्यं च यत्राभवत्पावनम्।
यस्य ताटस्थ्यनीतिः प्रसिद्धि गत
भूतले भाति तन्मामकं भारतम्।।

3. मोदे प्रगति दर्श दर्श
वैज्ञानिकी च भोतिकी, परम्।
दूयेऽद्यत्वे लोकं लोकं
शठचरितं भारत जनताऽहम्॥

4. जयन्त्येतेऽस्मदीया गौरवाकाः कारगिलवीराः
समा आसतेऽस्माकं प्रणम्याः कारगिलवीराः।
मई-षड़विंशदिवसादैषयो मासद्वयं यावत्,
अधोषित-पाक-रण-जयिनोऽभिनन्द्याः कारगिलवीराः॥

चुलुके – चुल्लू में
जलधिम् – सागर को
कमला – वाणी – सरस्वती वाणी
रामराज्य – राम का राज्य
ताटस्थ्यनीति – पक्षरहित नीति
मामकम् – मेरा
कारगिलवीराः – करगिल के वीर
समा – पूजनीय

इस प्रकार हम देखते हैं कि कवि की अनेक विषयों पर आधारित विविध प्रकार की काव्य-रचनाएँ समुपलब्ध हैं। इसका वाचन करते हुए पाठक आनंदित होते हैं।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 7 भारतजनताऽहम्

मूलपाठः

अभिमानधना विनयोपेता, शालीना भारतजनताऽहम्।
कुलिशादपि कठिना कुसुमादपि, सुकुमारा भारतजनताऽहम् ।1।

निवसामि समस्ते संसारे, मन्ये च कुटुम्ब वसुन्धराम्।
प्रेयः श्रेयः च चिनोम्युभयं, सुविवेका भारतजनताऽहम् ।2।

विज्ञानधनाऽहं जानधना, साहित्यकला-सङ्गीतपरा।
अध्यात्मसुधातटिनी-स्नानैः, परिपूता भारतजनताऽहम् ।3।

मम गीतैर्मुग्धं समं जगत्, मम नृत्यैर्मुग्ध समं जगत्।
मम काव्यैर्मुग्धं समं जगत्, रसभरिता भारतजनताऽहम्म ।4।

उत्सवप्रियाऽहं श्रमप्रिया, पदयात्रा-देशाटन-प्रिया।
लोकक्रीडासक्ता वर्धेऽतिथिदेवा, भारतजनताऽहम् ।5।

मैत्री मे सहजा प्रकृतिरस्ति, नो दुर्बलतायाः पर्यायः।
मित्रस्य चक्षुषा संसार, पश्यन्ती भारतजनताऽहम् ।6।

विश्वस्मिन् जगति गताहमस्मि, विश्वस्मिन् जगति सदा दृश्ये।
विश्वस्मिन् जगति करोमि कर्म, कर्मण्या भारतजनताऽहम् ।7।

अन्वयः
1. अहम् भारतजनता, अभिमानधना शालीना (च अस्मि) अहम् भारतजनता कुलिशादत् अपि कठोरा, कुसुमात् अपि सुकुमारा (अस्मि)।
2. अहम् भारतजनतास समस्ते संसारे निवसामि, वसुन्धराम् च कुटुम्बम् मन्ये, (अहम्) सुविवेका, श्रेयः प्रेयः च उभयम् चिनोमि।
3. अहम् विज्ञानधना ज्ञानधना (च अस्मि), साहित्यकला-सङ्गीतपरा (च अस्मि), अहम् भारतजनता अध्यात्मासुधातटिनी-स्नानैः परिपूता (अस्मि)।
4. समम् जगत् मम गीतैः मुग्धम् (अस्ति), समम् जगत् मम नृत्यैः मुग्धम् (अस्ति)। समम् जगत् मम काव्यैः मुग्धम् (अस्ति), (अतएव) अहम् भारतजनता रसभरिता (अस्मि)।
5. अहम् उत्सवप्रिया (अस्मि). श्रमप्रिया, पदयात्रा-देशाटन-प्रिया (च अस्मि)। अहम् भारतजनता लोकक्रीडासक्ता (अस्मि)..(अहम्) अतिथि देवा वर्धे।
6. में (मम) मैत्री सहजा प्रकृति अस्ति दुर्बलतायाः पर्यायः नो (अस्ति)। अहम भारतजनता संसारम् मित्रस्य चक्षुषा पश्यन्ती (अस्मि)।
7. अहम् विश्वस्मिन् जगति गता अस्मि, सदा विश्वस्मिन् जगति दृश्ये। अहम् भारतजनता कर्मव्या विश्वस्मिन् जगति कर्म करोमि।

सन्धिविच्छेदः
विनयोपेता – विनय+उपेता। भारतजनताऽहम् = भारतजनता + अहम्। कुलशिादपि = कुलिशात् + अपि। कुसमुमादपि = कुसुमात् + अपि। कुटुम्ब वसुन्धराम् = कुटुम्बम् + वसुन्धराम्। चिनोम्युभयम् = चिनोमि + उभयम्। विज्ञानधनाऽहम् = विज्ञानधना+ अहम्। गीतैर्मुग्धम् = गीतै: + मुग्धम्। सम जगत् = समम् + जगत्। नृत्यैर्मुग्धम् = नृत्यैः + मुग्धम्। काव्यैर्मुग्धम् = काव्यैः+मुग्धम्। उत्सवप्रियाऽहम् = उत्सवप्रिया + अहम्। लोकक्रीडासक्ता = लोकक्रीडा + आसक्ता। वर्धेऽतिथिदेवा = वर्ध + अतिथिदेवा। प्रकृतिरस्ति = प्रकृतिः + अस्ति। गताहमस्मि = गता + अहम् अस्मि।

पदार्थबोध:
भारतजनता = भारत की जनता (भारतवासिनः)। शालीना = शिष्ट, अच्छे व्यवहार वाली (सदाचारी)। अभिमानधना = अभिमान रूपी धन वाली (अभिमानम् धनम् यस्याः)। कुलिशादापि = वज्र से भी। विनयोपेता = विनम्रता पूर्ण (नम्रतापूर्णा)। कुसुमादपि = फूल से भी (पुष्पात् अपि)। सुकुमारा = अत्यंत कोमल (सुकोमला)। निवसामि = रहती हूँ (निवासं करोमि)। कुटुम्बम् = परिवार (संबंधी)। मन्ये = मानती हूँ। (स्वीकरोमि)। प्रेयः = प्रेमपूर्ण (स्नेहः)। श्रेयः = कल्याणकारी (कल्याणप्रदा)। वसुन्धराम् = धरती को (पृथ्वीम्)। चिनोमि = चुनती हूँ (वृणोमि)। विज्ञानधना = विज्ञानरूपी धन वाली (विज्ञानधनिका)। ज्ञानधना = ज्ञान से धनी (ज्ञानधनिका)। अध्यात्मसुधातटिनी-स्नानैः = अध्यात्मरूपी अमृतपूर्ण नदी में नहाने से (अध्यात्मसुधारूपिण्यां नद्यां स्नानेन)। परिपूता = पवित्र, निर्मला (स्वच्छा, निर्मला, मलरहिता)। गीतैः = गीतों से (गायनैः)। मुग्धम् = मुग्ध (आश्चर्यचकितम्)। समम् = पूरा (सम्पूर्णम्)। रसभरिता = आनंदपूर्ण (आनन्दपूर्णा)। वेशाटनप्रिया = विदेशघ्रमणप्रिया (भ्रमणप्रिया)। लोकक्रीडासक्ता = सांसारिक खेल में अनुराग रखने वाली (विश्वक्रीडायाम् संलग्ना)। वर्धे = बढ़ाने वाली (वधिका)। मैत्री = मित्रता, दोस्ती (बन्धुता)। प्रकृतिः = स्वभाव, आदत (स्वभाव)। विश्वस्मिन् जगति = इस दुनिया में (अस्मिन् संसारे)। गता = गई हुई (प्रविष्टा)। कर्मण्या = कर्मशील (कर्मरता)।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 7 भारतजनताऽहम्

सरलार्थ-
1. मैं भारत की जनता स्वाभिमानी रूपी धन से धनी विनयशील, शालीन हूँ। मैं भारत की जनता वज़ से भी कठोर फूल-सी सुकोमल हूँ।
2. मैं भारत की जनता पूरी दुनिया में रहती हूँ और उसे अपना परिवार मानती हूँ। मैं भारत की जनता समझदार हूँ और प्रिय व कल्याण करने वाली हूँ।
3. मैं भारत की जनता ज्ञानविज्ञान से संपन्न हूँ, साहित्य, कला, संगति आदि से परिपूर्ण हूँ। मैं भारत की जनता अध्याल्मरूपी अमृतपूर्ण सरिता में नहाने से पवित्र हूँ।
4. पूरा विश्व मेरे गीतों से मुग्ध है, पूरा संसार मेरे नाच पर फिदा है, मैरे काव्यों को पढ़कर आश्चर्यचकित है, (अतएव) मैं भारत की जनता आनंद से भरी हुई है।
5. मैं भारत की जनता उत्सवप्रिय, परिश्रमी, पैदल यात्रा और देश-विदेश घूमने में रुचि रखती हूँ। सांसारिक खेल में अनुराग रखती हूँ। अतिथि (मेहमान) को देवता के समान बढ़ाती हूँ, मानती हूँ।
6. मित्रता मेरा सहज स्वभाव है न कि कमजोरी का पर्याय। मैं भारत की जनता दुनिया को दोस्त की नजरों से देखती हूँ।
7. मैं इस पूरी दुनिया में गई हुई हूँ, इसका सब कुछ देखती हूँ। मैं भारत की जनता कर्मशील हूँ और संसार में अपना कर्तव्य निभाती हूँ।

भावार्थ-
पाठ का केंद्रीय भाव भारतीय जनता की खूबियों का वर्णन करना है। विनयशीलता, शालीनता, कठोरता, सुकोमलता, मित्रता, विश्वबन्धुता, साहित्य-कला-संगीत-नृत्यप्रियता आदि इसके विशिष्ट गुण हैं।

भारतजनताऽहम् Summary

भारतजनताऽहम् पाठ-परिचयः

यह कविता-पाठ आधुनिक काल के कविकुल शिरोमणि (कवियों के सरताज)डॉ. रमाकान्त शुक्ल लिखित काव्य ‘भारतजनताऽहम्’ से कृतज्ञतापूर्वक लिया गया है। इस कविता में कवि न भारत के लोगों के हितों, अनेक प्रकार के कौशलों, रुचियों इत्यादि का जिक्र करते हुए भारतीय जनता की विशिष्टताओं का भी उल्लेख करते हैं।

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HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 6 गृहं शून्यं सुतां विना

Haryana State Board HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 6 गृहं शून्यं सुतां विना Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 6 गृहं शून्यं सुतां विना

अभ्यासः

प्रश्न 1.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्ताराणि संस्कृत भाषया लिखत-
(क) दिष्ट्या का समागता?
(ख) राकेशस्य कार्यालये का निश्चिता?
(ग) राकेशः शालिनी कुत्र गन्तुं कथयति?
(घ) सायंकाले भ्राता कार्यालयात् आगत्य किम् करोति?
(ङ) राकेशः कस्याः तिरस्कारं करोति?
(च) शालिनी भ्रातरम् का प्रतिज्ञा कर्तुं कथयति?
(छ) यत्र नार्यः न पूज्यन्ते तत्र किम् भवति?
उत्तरम्:
(क) दिष्ट्या शालिनी समागता।
(ख) राकेशस्य कार्यालये सहसैव एका गोष्ठी निश्चिता।
(ग) राकेशः शालिनी चिकित्सिकां प्रति गन्तुं कथयति।
(घ) सायंकाले भ्राता कार्यालयात् आगत्य, हस्तपादादिक प्रक्षाल्य वस्त्राणि य परिवर्त्य पूजागृहं गत्वा दीप प्रज्वालयति भवानीस्तुतिं चापि करोति।
(ङ) राकेशः सृष्टे: उत्पादिन्याः शक्त्याः तिरस्कारं करोति।
(च) शालिनी भ्रातरम् इमाम् प्रतिज्ञां कर्तुं कथयति-कन्यायाः रक्षणे तस्याः पाठने दत्तचित्तः स्थास्यति।
(छ) यत्र नार्यः न पूज्यन्ते तत्र सर्वाः क्रियाः अफलाः भवन्ति।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 6 गृहं शून्यं सुतां विना

प्रश्न 2.
अधोलिखितपदानां संस्कृतरूपं (तत्सम रूप) लिखत-
(क) कोख –
(ख) साथ –
(ग) गोद –
(घ) भाई –
(ङ) कुआँ –
(च) दूध –
उत्तरम्:
(क) कोख – कुक्ष
(ख) साथ – सह
(ग) गोद – क्रोड
(घ) भाई – भ्रातृ
(ङ) कुआँ – कूपः
(च) दूध – दुग्धं

प्रश्न 3.
उदाहरणमनुसृत्य कोष्ठकप्रदत्तेषु पदेषु तृतीयाविभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत-
(क) मात्रा सह पुत्री गच्छति (मातृ)
(ख) ________ विना विद्या न लभ्यते (परिश्रम)
(ग) छात्रः ________ लिखति (लेखनी)
(घ) सूरदासः _________ अन्धः आसीत् (नेत्र)
(ङ) सः _________ साकम् समयं यापयति। (मित्र)
उत्तरम्:
(क) मात्रा सह पुत्री गच्छति (मातृ)
(ख) परिश्रमण विना विद्या न लभ्यते (परिश्रम)
(ग) छात्रः लेखन्या लिखति (लेखनी)
(घ) सूरदासः नत्रेण अन्धः आसीत् (नेत्र)
(ङ) सः मित्रं साकम् समयं यापयति। (मित्र)

प्रश्न 4.
‘क’ स्तम्भे विशेषणपदं दत्तम् ‘ख’ स्तम्भे च विशेष्यपदम्। तयोर्मेलनम् कुरुत-
‘क’ स्तम्भः – ‘ख’ स्तम्भः
(1) स्वस्था – (क) कृत्यम्
(2) महत्त्वपूर्णा – (ख) पुत्री
(3) जघन्यम् – (ग) वृत्तिः
(4) क्रीडन्ती – (घ) मनोदशा
(5) कुत्सिता – (ङ) गोष्ठी
उत्तरम्:
‘क’ स्तम्भः – ‘ख’ स्तम्भः
(1) स्वस्था – (घ) मनोदशा
(2) महत्त्वपूर्णा – (ङ) गोष्ठी
(3) जघन्यम् – (क) कृत्यम्
(4) क्रीडन्ती – (ख) पुत्री
(5) कुत्सिता – (ग) वृत्तिः

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 6 गृहं शून्यं सुतां विना

प्रश्न 5.
अधोलिखितानां पदानां विलोमपदं पाठात चित्वा लिखत-
(क) श्वः
(ख) प्रसन्ना
(ग) वरिष्ठा
(घ) प्रशंसितम्
(ङ) प्रकाशः
(च) सफलाः
(छ) निरर्थकः
उत्तरम्:
(क) श्वः – परः
(ख) प्रसन्ना – अप्रसन्ना
(ग) वरिष्ठा – कनिष्ठा
(घ) प्रशंसितम् – निन्दितम्
(ङ) प्रकाशः – तमः
(च) सफलाः – असफल:
(छ) निरर्थकः – सार्थकः

प्रश्न 6.
रेखांकितपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
(क) प्रसन्नतायाः विषयोऽयम्।
(ख) सर्वकारस्य घोषणा अस्ति।
(ग) अहम् स्वापराधं स्वीकरोमि।
(घ) समयात् पूर्वम् आया सं करोषि।
(ङ) अम्बिका क्रोडे उपविशति।
उतरम्:
(क) कस्याः विषयोऽयम्?
(ख) कस्य घोषणा अस्ति?
(ग) अहम् काम स्वीकरोमि?
(घ) कस्मात् पूर्वम् आया सं करोषि?
(ङ) अम्बिका कत्र उपविशति?

प्रश्न 7.
अधोलिखिते सन्धिविच्छेदे रिक्त स्थानानि पुरयत-
यथा-
नोक्तवती न उक्तवती
सहसैव = सहसा + …………..
परामर्शानुसारम् =……………. + अनुसारम्
वधार्हा = …………….. + अर्हा
अधुनैव = अधुना + ……………..
प्रवृत्तोऽपि = प्रवृत्तः + …………….
उत्तरम्:
सहसैव = सहसा + एव
परामर्शानुसारम् = परामर्श + अनुसारम्
वधार्हा = वध + अहाँ
अधुनैव = अधुना + एव
प्रवृत्तोऽपि = प्रवृत्तः + अपि

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 6 गृहं शून्यं सुतां विना

योग्यता-विस्तारः

विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की हालत-
पुराने समय में महिलाओं की हालत बहुत विकसित एवं मजबूत थी। वेद तथा उपनिषद् के समय तक पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी सुशिक्षित बनाया जाता था। लवकुश के साथ आत्रेयी के पढ़ने की बात एक ओर सह-शिक्षा को दर्शाती है, दूसरी ओर ब्रह्मवादिनी वेद’ को जानने वाली तपस्विनी गार्गी, मैत्रयी, अरुन्धती आदि महिलाओं की प्रसिद्धि इस तथ्य को भी प्रमाणित करती है कि पुरुषों व महिलाओं के बीच कोई फर्क नहीं था।

लेकिन कुछ समय बाद महिलाओं की हालत खराब होती गई, जिसमें थोड़ा सुधार तो हुआ है, परंतु अभी भी महिला-शिक्षा को अग्रसर करने और लड़की के जन्म को निर्बाध बनाने हेतु सामूहिक कोशिश करने की जरूरत है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर मोदी का “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” अभियान इसी की ओर एक सशक्त कदम है।

मूलपाठः

(“शालिनी ग्रीष्मावकाशे पितगृहम् आगच्छति। सर्वे प्रसन्नमनसा तस्याः स्वागतं कुर्वन्ति परं तस्याः भ्रातृजाया उदासीना इव दृश्यते”)

शालिनी – प्रातृजाय! चिन्तिता इव प्रतीयसे, सर्व कुशलं खलु?

माला – आम् शालिनि। कुशलिनी अहम्। त्वदर्थम् किं आनयानि, शीतलपेयं चायं वा?

(भोजनकालेऽपि मालायाः मनोदशा स्वस्था न प्रतीयते स्म, परं सा मुखेन किमपि नोक्तक्ती)

शालिनी – अधुना तु किमपि न वाञ्छामि। रात्रौ सर्वैः सह भोजनमेव करिष्यामि।

राकेशः – भगिनी शालिनि! दिष्ट्या त्वम् समागता। अद्य मम कार्यालये एका महत्त्वपूर्णा गोष्ठी सहसैव निश्चिता। अबैव मालायाः चिकित्सिकया सह मेलनस्य समयः निर्धारितः त्वम् मालया सह चिकित्सकां प्रति गच्छ, तस्याः परमर्शानुसारं यद्विधेयम् तद् सम्पादय।

शालिनी – किमभवत्? प्रातृजायाया: स्वास्थ्यं समीचीनं नास्ति? अहम् तु ह्यः प्रभृति पश्यामि सा स्वस्था न प्रतिभाति इति प्रतीयते स्म।

राकेशः – चिन्तायाः विषयः नास्ति। त्वम् मालया सह गच्छ। मार्गे सा सर्व ज्ञापयिष्यति।

(माला शालिनी च चिकित्सिका प्रति गच्छन्त्यौ वार्ता कुरुतः)

शालिनी – किमभवत्? भ्रातृजाये? का समस्याऽस्ति?

माला – शलिनि! अहम् मासत्रयस्य गर्भ स्वकुक्षौ धारयामि। तव प्रातुः आग्रहः अस्ति यत् अहं लिडम्परीक्षणं कारयेयम् कुक्षी कन्याऽस्ति चेत् गर्भ पातयेयम्। अहम् अतीव उद्विग्नाऽस्मि परं तव प्राता वार्तामेव न शृणोति।

शालिनी – प्राता एवम् चिन्तयितुमपि कथं प्रभवति? शिशुः कन्याऽस्ति चेत् वधाही? जघन्यं कृत्यमिदम्। त्वम् विरोध न कृतवती? सः तव शरीरे स्थितस्य शिशो: वधार्थ चिन्तयति त्वम् तूष्णीम् तिष्ठसि? अधुनैव गृहं चल, नास्ति आवश्यकता लिंगपरीक्षणस्य। भ्राता यदा गृहम् आगमिष्यति अहम् वार्ता करिष्ये।

(संध्याकाले प्राता आगच्छति हस्तपादादिकं प्रक्षाल्य वस्त्राणि च परिवर्त्य पूजागृहं गत्वा दीपं प्रत्वालयति भवानीस्तुतिं चापि करोति। तदनन्तरं चायपानार्थम् सर्वेऽपि एकत्रिताः।)

राकेशः – माले। त्वम् चिकित्सिका प्रति गतवती आसीः, किम् अकथयत् सा?

(माला मौनमेवाश्रयति। तदैव क्रीडन्ती त्रिवर्षीया पुत्री अम्बिका पितुः क्रोडे उपविशति तस्मात् चाकलेहं च याचते। राकेशः अम्बिका लालयति, चाकलेह प्रदाय ताम् क्रोडात् अवतारयति। पुनः माला प्रति प्रश्नवाचिका दृष्टिं क्षिपति। शालिनी एतत् सर्व दृष्ट्वा उत्तरं ददाति)

शालिनी – भ्रात:! त्वम् किम् ज्ञातुमिच्छसि? तस्यः कुक्षि पुत्री: अस्ति पुत्र वा? किमर्थम्? षण्मासानन्तरं सर्व स्पष्टं भविष्यति, समयात् पूर्व किमर्थम् अयम् आयासः?

राकेशः – भगिनि, त्वं तु जानासि एव अस्माकं गृहे अम्बिका पुत्रीरूपेण अस्त्येव अधुना एकस्य पुत्रस्य आवश्यकताऽस्ति तर्हि…

शलिनी – तर्हि कुक्षि पुत्री अस्ति चेत् हन्तव्या? (तीव्रस्वरेण) हत्यायाः पापं कर्तुं प्रवृत्तोऽसि त्वम्।

राकेशः – न, हत्या तु न……

शालिनी – तर्हि किमस्ति निर्धणं कृत्यमिदम्? सर्वथा विस्मृतवान् अस्माकं जनकः कदापि पुत्रीपुत्रमयः विभेदं न कृतवान्? सः सर्वदैव मनुस्मृतेः पक्तिमिमाम् उद्धरति स्म “आत्मा वै जायते पुत्रः पुत्रेण दुहिता समा”। त्वमपि सायं प्रात: देवीस्तुतिं करोषि? किमर्थं सृष्टेः उत्पादिन्याः शक्त्याः तिरस्कारं करोषि? तव मनसि इयती कुत्सिता वृत्तिः आगता, इदम् चिन्तयित्वैव अहम् कुण्ठिताऽस्मि! तव शिक्षा वृथा….

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 6 गृहं शून्यं सुतां विना

राकेशः – भगिनि! विरम विरमा अहम् स्वापराध स्वीकरोमि लज्जितश्चास्मिा अद्यप्रभृति कदापि गर्हितमिद कार्यम् स्वप्नेऽपि न चिन्तयिष्यामि। यथैव अम्बिका मम हृदयस्य संपूर्ण स्नेहस्य अधिकारिणी अस्ति, तथैव आगन्ता शिशुः अपि स्नेहाधिकारी भविष्यति पुत्रः भवतु पुत्री वा। अहम् स्वगाहितचिन्तनं प्रति पश्चात्तापमग्नः अस्मि, अहम् कथं विस्मृतवान्
“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रता: न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।”
अथवा “पितुर्दशगुणा मातेति।” त्वया सन्मार्गः प्रदर्शित भगिनि। कनिष्ठाऽपि त्वम् मम गुरुरसि।

शालिनी – अलम् पश्चात्तापेन। तव मनसः अन्धकारः अपगतः प्रसन्नताया: विषयोऽयम्। भ्रातृजाये! आगच्छ। सर्वा चिन्तां त्यज आगन्तुः शिशोः स्वागताय च सन्नद्धा भव। भ्रातः त्वमपि प्रतिज्ञां कुरु- कन्यायाः रक्षणे, तस्याः पाठने दत्तचित्तः स्थास्यसि “पुत्री रक्ष, पुत्रीं पाठय” इतिसर्वकारस्य घोषयं तदैव सार्थिका भविष्यति यदा वयं सर्वे मिलित्वा चिन्तनमिदं यथार्थरूपं करिष्याम:-

या गार्गी श्रुतचिन्तने नृपनये पाञ्चालिका विक्रमे।
लक्ष्मीः शत्रुविदारणे गगनं विज्ञानाङ्गणे कल्पना।
इन्द्रोद्योगपथे च खेलजगति ख्याताभित: साइना
सेयं स्त्री सकलासु दिक्षु सबला सर्वेः सदोत्साह्यताम्।

अन्वयाः
1. यत्र तु नार्यः पूज्यन्ते तत्र देवताः रमन्ते यत्र एताः न पूज्यन्ते तत्र सर्वाः क्रियाः अफलाः (भवन्ति)।
2. या गार्गी श्रुतचिन्तने नृपनये पाञ्चालिका विक्रमे शत्रविदारणे लक्ष्मी: विज्ञान आङ्गणे गगनम् कल्पना इन्द्रोद्योगपथे च खेलजगति साइना ख्याताभितः सा इयम् स्त्री सकलासु दिक्षु सबला (अस्ति, अतः) सदा सर्वैः उत्साह्यताम्।

सन्धिविच्छेदः
ग्रीष्मावकाशे = ग्रीष्म + अवकाशे। भोजनकालेऽपि = भोजनकाले + अपि। नोक्तवती = न + उक्तवती। सहसैव = सहसा + एव। अद्यैव = अद्य + एवा। परामर्शानुसारम = परामर्श + अनुसारम्। यद्विविधेयम् = यत् + विधेयम्। नास्ति = न + अस्ति। समस्याऽस्ति = समस्या + अस्ति। कन्याऽस्ति = कन्या + अस्ति। उद्विग्नाऽस्मि = उत् + विग्ना + अस्मि। वधार्हा = वध + अर्हा। वधार्थम् = वध + अर्थम्। चापि = च + अपि। तदनन्तरम् = तत् अनन्तरम्। चायपानार्थम् = चायपान + अर्थम्। सर्वेऽपि = सर्वे + अपि। मौनमेवाश्रयति = मौनम् + एव + आश्रयति। तदैव = तदा + एव। षण्मासानन्तरम् = षट् + मास + अनन्तरम्। अस्त्येव = अस्ति + एव। आवश्यकताऽस्ति = आवश्यकता + अस्ति। प्रवृत्तोऽसि = प्रवृत्तः + असि। सर्वदैव = सर्वदा + एव। चिन्तायित्वैव = चिन्तयित्वा + एव। स्वापराधम् = स्व + अपराधम्। लज्जितश्चास्मि = लज्जित + च + अस्मिा कदापि = कदा + अपि। स्नेहाधिकारी = स्नेह + अधिकारी। नार्यस्तु = नार्यः + तु। यत्रैताः = यत्र + एताः। सर्वास्तवाफलाः = सर्वा: + तत्र + अफलाः। मातेति = माता + इति। घोषणेयम् = घोषणा + इवम्। विज्ञानाङ्गणे = विज्ञान + आङ्गणे। सेयम् = सा + इयम्। सदोत्साह्यताम् = सदा + उत्साह्यताम्।

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संयोग:
किमपि = किम् + अपि। भोजनमेव = भोजनम् + एव। किमभवत् = किम् + अभवत्। वार्तामेव = वार्ताम् + एव। चिन्तयितमपि = चिन्तयितुम् + अपि। कृत्यमिदम् = कृत्यम् + इदम्। मौनमेव = मौनम् + एव। ज्ञातुमिच्छसि = ज्ञातुम् + इच्छसि। त्वमपि = त्वम् + अपि। किमर्थम् = किम् + अर्थम्। चिन्तनमिदम् = चिन्तनम् + इदम्।

पदार्थबोध:
पितृगृहम् = पिता के घर (पितुः गेहम्)। प्रातृजाया = भाभी (म्रातुः पत्नी)। दिष्ट्या = भाग्य से (भाग्येन, देवेन)। गोष्ठी = सभा, बैठक (सभा, सम्मेलनम्)। समीचीनम् = अच्छा (शोभनम्, स्वस्थम्)। स्वकुक्षौ = अपने गर्भ में (स्व उदरे, गर्भ)। उद्विग्ना = बैचेन, परेशान (व्याकुला)। तूष्णीम् = चुप (मौनम्)। क्रोडे = गोद में (अङ्के)। चाकलेहम् = चॉकलेट (मिष्टगुटिका)। अद्यप्रभृति = आज से (अद्यतः)। गर्हितचिन्तनम् = निंदनीय विचार (कुत्सित विचार)। नार्यः = महिलाएँ (महिलाः)। पूज्यन्ते = पूजी जाती है (सम्मान्यन्ते)। कनिष्ठा = छोटी (अनुजा)। अपगतः = ऊँट गया। (निर्गत:)। पाठय = पढ़ाओ। (अध्यापय)। श्रुतचिन्तमे = ज्ञान की सोच में (ज्ञानविचारे)। शत्रुविदारणे = शत्रुओं का नाश करने में (शत्रोः विनाशे)। उत्साह्यताम् = उत्साहित करें (प्रोत्साहनं कुर्युः)।

सरलार्थ-
“शालिनी गर्मी की छुट्टियों में पिता के घर (मायका) आती है। सभी खुशी से आपका स्वागत करते हैं लेकिन उसकी भाभी उदास दिखाई देती है।”

शालिनी – भाभी! चिंतित-सी दिखाई पड़ती हो, सब ठीक-ठाक है?

माला – हाँ शालिनी। मैं ठीक हूँ। तुम्हारे लिए क्या लाऊँ ठंडा या चाय!

शालिनी – अभी तो कुछ नहीं चाहती हूँ। रात में सबके साथ भोजन ही करूंगी।

(भोजन के समय भी माला की मनः स्थिति ठीक नहीं दिख रही थी, लेकिन उसने मुँह से कुछ नहीं कहा।)

राकेश – शालिनी बहन! सौभाग्य से तुम आ गई हो। आज मेरे ऑफिस में अचानक ही एक महत्त्वपूर्ण गोष्ठी करने का निश्चय किया गया। आज ही डॉक्टर के साथ माला के मिलने का समय निश्चित है। तुम माला के साथ डॉक्टर के पास चली जाओ, उसकी सलाह से जो करना हो, करो।

शालिनी – क्या हुआ? भाभी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है? मैं तो कल से देख रही है। वह स्वस्थ नहीं दिख रही थी।

राकेश – चिंता की बात नहीं है। तुम माला के साथ जाओ। रास्ते में वह सब कुछ बता देगी।

(माला और शालिनी डॉक्टर के पास जाती हुई बातचीत करती हैं।)

शालिनी – क्या हुआ भाभी? क्या दिक्कत है?

माला – शालिनी! मेरे पेट में तीन महीने का गर्भ है। तुम्हारे भाई की चाहत है कि मैं लिंग-परीक्षण कराऊँ और यदि गर्भ में लड़की हो तो उसे गिरा दूं। मैं बहुत परेशान हूँ, लेकिन तुम्हारा भाई कोई बात नहीं सुनता।

शालिनी – भाई ऐसा सोच भी कैसे सकता है। बच्चा अगर लड़की को तो क्या वह मारने योग्य है? यह जघन्य अपराध है। तुमने विरोध नहीं किया? वह तुम्हारे शरीर में स्थित शिशु को मारने की सोचता है और तुम चुप हो। अभी घर चलो, लिंगपरीक्षण की कोई जरूरत नहीं है। भाई जब आएगा।, मैं उससे बात करूंगी।

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(शाम के समय भाई आता है। हाथ-पैर आदि धोकर, कपड़े बदलकर पूजा-घर जाकर दीप जलाता है और भवानी की स्तुति भी करता है। उसके साथ सब चाय पीने के लिए इकट्ठे होते हैं।)

राकेश – तुम डॉक्टर के पास गई थी, क्या कहा उसने?

(माला चुप ही रहती है। तभी तीन साल की बेटी अबिका खेलती हुई पिता की गोद में बैठ जाती है और चॉकलेट माँगती है। राकेश बिका को प्यार करता है। चॉकलेट देकर उसे गोद से उतार देता है। फिर माला की ओर प्रश्न सूचक नज़रों से देखता है। यह सब देखकर शालिनी जवाब देती है।)

शालिनी – भाई! तुम क्या जानना चाहते हो? उसके गर्भ में बेटा है या बेटी? क्यों? छ: महीने बाद सब स्पष्ट हो जाएगा, समय से पहले यह कोशिश क्यों?

राकेश – बहन! तुम तो जानती ही हो हमारे घर में अंबिका बेटी के रूप में है ही। अब एब बेटे की जरूरत है तो……..

शालिनी – तो अगर गर्भ में बेटी है तो उसे मार देना चाहिए? (जोर से) हत्या का पाप करने में लगे हो तुम।

राकेश – नहीं, हत्या तो नहीं………..

शालिनी – तो यह घिनौना काम क्या है? तुम तो भूल ही गए, पिताजी ने बेटे-बेटी में कभी अंतर नहीं किया। वे मनुस्मृति की यह पंक्ति हमेशा कहते थे “आत्मा से पुत्र उत्पन्न होता है, पुत्र पुत्री समान हैं।” तुम भी सुबह-शाम देवी की स्तुती करते हो? सृष्टि का उत्पादन करने वाली शक्ति (दुर्गा) का अनादर करते हो। तुम्हारे मन में ऐसा बुरा विचार आया, यह सोचकर ही मैं कुंठित हूँ। तुम्हारी शिक्षा बेकार………..

राकेश – बहन! रुको, रुको! मैं अपना अपराध स्वीकार करता हूँ और लज्जित भी हूँ। आज से मैं सपने में भी ऐसे घिनौने काम के बारे में नहीं सोचूंगा। जिस प्रकार अंबिका मेरे दिल के प्यार की अधिकारी है, आने वाला बच्चा भी स्नेह का अधिकारी होगा, चाहे बेटा हो या बेटी। मैं अपने घृणित विचारों के लिए पछतावे में हूँ, मैं कैसे भूल गयाः

1. जहाँ महिलाएं पूजी जाती हैं, वहीं देवी-देवताओं का वास होता है। जहाँ इनकी पूजा (सम्मान) नहीं होती, वहाँ के सारे कार्यकलाप निष्फल होते हैं। अथवा ” पिता से दसगुणा माता”। बहन! तुमने मुझे अच्छा रास्ता दिखाया है। छोटी होती हुई भी तुम मेरी गुरु हो।

शालिनी – पछतावा मत करो। तुम्हारे मन का अंधेरा छैट गया, यह खुशी की बात है। आओ भाभी! सारी चिंता त्याग दो और आने वाले बच्चे के स्वागत के लिए तैयार हो जाओ। भाई! तुम भी प्रतिज्ञा करो- बेटी की रक्षा करने में, पढ़ाई में ध्यान लगाओगे।” बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” सरकार की यह घोषणा तभी सार्थक होगी, जब सब मिलकर इस सोच को आगे बढ़ाएंगे:

2. जो गार्गी ज्ञान के चिन्तन में राजनीति में, पराक्रम में पाञ्चालिका, शत्रु का नाश करने में महारानी लक्ष्मीबाई, विज्ञान में कल्पना चावला, उद्योग व खेल जगत में साइना नेहवाल आदि विश्व ख्याति अर्जित की है। ऐसी स्त्री सब दिशाओं में मजबूत है। सब उसका उत्साह बडाएं।

भावार्थ-
सारांश रूप में पाठ का भाव महिला सशक्तिकरण के लिए है। मुख्य बात है- “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” भारत सरकार की इस उद्घोषणा को साकार एव सार्थक बनाना।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 6 गृहं शून्यं सुतां विना

गृहं शून्यं सुतां विना Summary

गृहं शून्यं सुतां विना पाठ-परिचयः

इस पाठ का निर्माण लड़कियों की हत्या पर रोक लगाने तथा उनकी पढ़ाई-लिखई सुनिश्चित करने के लिए किया गया है। समाज में बालक-बालिकाओं में अंतर का भाव आज भी जहाँ कहीं देखा जाता है जिसे दूर करने की जरूरत है। बातचीत की शैली में इस बात को सरल संस्कृत भाषा में पेश किया गया है।

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HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 5 कण्टकेनैव कण्टकम्

Haryana State Board HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 5 कण्टकेनैव कण्टकम् Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 5 कण्टकेनैव कण्टकम्

अभ्यासः

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत-
(क) व्याधस्य नाम किम् आसीत?
(ख) चञ्चलः व्याघ्रं कुत्र दृष्टवान्?
(ग) कस्मै किमपि अकार्य न भवति।
(घ) बदरी-गुल्मानां पृष्ठे का निलीना आसीत्?
(ङ) सर्वः किं समीहते?
(च) निःसहायो व्याधः किमयाचत?
उत्तरम्:
(क) चञ्चलः।
(ख) जाले।
(ग) क्षुधार्ताय।
(घ) लोमशिका।
(ङ) स्वार्थम्।
(च) प्राणाभिक्षाम्।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 5 कण्टकेनैव कण्टकम्

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत-
(क) चञ्चलेन वने किं कृतम्?
(ख) व्याघ्रस्य पिपासा कथं शान्ता अभवत्?
(ग) जलं पीत्वा व्याघ्रः किम् अवदत्?
(घ) चञ्चलः ‘मातृस्वस:!’ इति का सम्बोधितवान्?
(ङ) जाले पुनः बद्धं व्यानं दृष्ट्वा व्याधः किम् अकरोत्?
उत्तरम्:
(क) चञ्चलेन वने जाल विस्तृतम्।
(ख) व्याघ्रस्य पिपासा नदी जलेन शान्ता अभवत्।
(ग) जल पीत्वा व्याघ्रः अवदत्-“शमय मे पिपासा। साम्प्रतं बुभुक्षितोऽस्मिा इदानीम् अहं त्वां खादिष्यामि।”
(घ) चञ्चल: ‘मातृस्वस:!’ इति लोमशिकां सम्बोधितवान्।
(ङ) जाले पुनः बद्ध व्यानं दृष्ट्वा व्याधः प्रसन्नो भूत्वा गृहं प्रत्यावर्तत।

प्रश्न 4.
रेखांकित पदमाधृत्य प्रश्नानिर्माण-
(क) व्याधः व्याघ्र जालात् बहिः निरसारयत्।
उत्तरम्:
व्याधः व्याघ्नं कस्मात् बहिः निरसारयत्?

(ख) चञ्चल: वृक्षम् उपगम्य अपृच्छत्।
उत्तरम्:
चञ्चलः कम् उपगम्य अपृच्छत्?

(ग) व्याघ्रः लोमशिकायै निखिला कथां न्यवेदयत्।
उत्तरम्:
व्याघ्रः कस्यै निखिला कथां न्यवेदयत्?

(घ) मानवाः वृक्षाणां छायायां विरमन्ति।
उत्तरम्:
मानवाः केषां छायायां विरमन्ति?

(ङ) व्याघ्रः नद्याः जलेन व्याधस्य पिपासामशमयत्।
उत्तरम्:
व्याघ्रः कस्याः जलेन व्याधस्य पिपासामशमयत्?

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 5 कण्टकेनैव कण्टकम्

प्रश्न 5.
मञ्जूषातः पदानि चित्वा कथां पूरयत-
एकस्मिन् वने एकः _________ व्याघ्रः आसीत्। सः एकदा व्याधेन विस्तारित जाले बद्धः अभवत्। सः बहुप्रयासं _________ किन्तु जालात् मुक्तः नाभवत्। _________ तत्र एक: मूषक: समागच्छत्। बद्धं व्याघ्र _________ सः तम् अवदत्-अहो। भवान् जाले बद्धः। अहं त्वां _________ इच्छामि। तच्छ्रुत्वा व्याघ्रः _________ अवदत्-अरे! त्वं _________ जीवः मम साहाय्यं करिष्यसि। यदि त्वं मां मोचयिष्यसि _________ अहं त्वां न हनिष्यामि। मूषक: _________ लघुदन्तैः तज्जालस्य _________ कृत्वा तं व्याघ्र बहिः कृतवान्।
उत्तरम्:
एकस्मिन् वने एकः वृद्धः व्याघ्रः आसीत्। सः एकदा व्याधेन विस्तारिते जाले बद्धः अभवत्। सः बहुप्रयासं कृतवान् किन्तु जालात् मुक्तः नाभवत्। अकस्मात् तत्र एकः मूषकः समागच्छत्। बद्धं व्याघ्रं दृष्ट्वा सः तम् अवदत्-अहो। भवान् जाले बद्धः। अहं त्वां मोचयितुम् इच्छामि। तच्छ्रुत्वा व्याघ्रः साट्टहासम् अवदत्-अरे! त्वं क्षद्रः जीवः मम साहाय्यं करिष्यसि। यदि त्वं मां मोचयिष्यसि तर्हि अहं त्वां न हनिष्यामि। मूषक: स्वकीयैः लघुदन्तैः तज्जालं कर्तनम् कृत्वा तं व्याघ्र बहिः कृतवान्।

प्रश्न 6.
यथानिर्देशमुत्तरत-
(क) सः लोमशिकायै सर्वा कथां न्यवेदयत्-अस्मिन् वाक्ये विशेषणपदं किम्।
उत्तरम्:
सर्वाम्।

(ख) अहं त्वत्कृते धर्मम् आचरितवान्-अत्र अहम् इति सर्वनामपदं कस्मै प्रयुक्तम्।
उत्तरम्:
व्याधाय।

(ग) ‘सर्वः स्वार्थ समीहते’, अस्मिन् वाक्ये कर्तृपदं किम्।
उत्तरम्:
समीहते।

(घ) सा सहसा चञ्चलमुपसृत्य कथयति-वाक्यात् एकम् अव्ययपदं चित्वा लिखत।
उत्तरम्:
सहसा।

(ङ) ‘का वार्ता? माम् अपि विज्ञापय’-अस्मिन् वाक्ये क्रियापदं किम्? क्रियापदस्य पदपरिचयमपि लिखतः।
उत्तरम्:
विज्ञापय-पदपरिचय:- विज्ञा, लोट्लकारः मध्यमपुरुषः एकवचनम्।

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मूलपाठः

आसीत् कश्चित् चञ्चलो नाम व्याधः। पक्षिमृगादौनां ग्रहणेन सः स्वीयाँ जीविका निर्वाहयति स्म। एकदा सः वने जाल विस्तीर्य गृहम् आगतवान्। अन्यस्मिन् दिवसे प्रात:काले यदा चञ्चल: वनं गतवान् तदा सः दृष्टवान् यत् तेन विस्तारित जाले दौभाग्याद् एकः व्याघ्रः बद्ध: आसीत्। सोऽचिन्तयत्, ‘व्याघ्रः मां खादिष्यति। अतएव पलायनं करणीयम्।’ व्याघ्रः न्यवेदयत्-‘भो मानव! कल्याणं भवतु ते।

यदि त्वं मां मोचयिष्यसि तर्हि अहं त्वां न हनिष्यामि।’ तदा सः व्याधः व्याघ्र जालात् बहिः निरसारयत्। व्याघ्रः क्लान्तः आसीत्। सोऽवदत्, ‘भो मानव! पिपासुः अहम्। नद्याः जलमानीय मम पिपासां शमय। व्याघ्रः जलं पीत्वा पुनः व्याधमवदत्, ‘शमय मे पिपासा। साम्प्रतं बुभुक्षितोऽस्मि। इदानीम् अहं त्वां खादिष्यामि।’ चञ्चलः उक्तवान्, ‘अहं त्वत्कृते धर्मम् आचरितवान्। त्वया मिथ्या भणितम्। त्वं मां खादितुम् इच्छसि?

व्याघ्रः अवदत, ‘अरे मूर्ख! क्षुधार्ताय किमपि अकार्यम् न भवति। सर्वः स्वार्थ समीहते।’ चञ्चल: नदीजलम् अपृच्छत्। नदीजलम् अवदत्, एवमेव भवति, जनाः मयि स्नानं कुर्वन्ति, वस्त्राणि प्रक्षालयन्ति तथा च मूल-मूत्रादिकं विसृज्य निवर्तन्ते, वस्तुतः सर्वः स्वार्थ समीहते।

चञ्चल: वृक्षम् उपगम्य अपृच्छत्। वृक्षः अवदत, ‘मानवाः अस्माकं छायायां विरमन्ति। अस्माकं फलानि खादन्ति, पुनः कुठारैः प्रहत्य अस्मभ्यं सर्वदा कष्टं ददति। यत्र कुत्रापि छेदनं कुर्वन्ति। सर्वः स्वार्थ समीहते।’

समीपे एका लोमशिका बदरी-गुल्मानां पृष्ठे निलीना एतां वाता शृणोति स्मः। सा सहसा चञ्चलमुपसृत्य कथयति- “का वार्ता? माम् अपि विज्ञापया” सः अवदत्- “अहह मातृस्वस:! अवसरे त्वं समागतवती। मया अस्य व्याघ्रस्य प्राणाः रक्षिताः, परम् एषः मामेव खादितुम् इच्छति।” तदनन्तरं सः लोमशिकायै निखिला कथां न्यवेदयत्।

लोमशिका चञ्चलम् अकथयत्-बाढम्, त्वं जालं प्रसारय। पुनः सा व्याघ्रम् अवदत्-केन प्रकारेण त्वम् एतस्मिन् जाले बद्धः इति अहं प्रत्यक्ष द्रष्टुमिच्छामि। व्याघ्रः तद् वृत्तान्तं प्रदर्शयितुं तस्मिन् जाले प्राविशत्। लोमशिका पुनः अकथयत्-सम्प्रति पुनः पुनः कूर्दनं कृत्वा दर्शय। सः तथैव समाचरत्। अनारतं कूर्दनेन सः श्रान्तः अभवत्। जाले बद्धः सः व्याघ्रः क्लान्तः सन् निःसहायो भूत्वा तत्र अपतत् प्राणभिक्षामिव च अयाचत। लोमशिका व्याघ्रम् अवदत् ‘सत्यं त्वया भणितम्’ सर्व: स्वार्थ समीहते।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 5 कण्टकेनैव कण्टकम्

सन्धिविच्छेदः
चञ्चलो नाम = चञ्चल: + नाम। सोऽचिन्तयत् = स: + अचिन्तयत्। न्यवेदयत् = नि + अवेदयत्। निरसारयत् = नि: + असारयत। सोऽवदत् = स: + अवदत्। बुभुक्षितोऽस्मि = बुभुक्षित + अस्मि। क्षुधार्ताय = क्षुधा + आर्ताय। मूत्राविकम् = मूत्र + आदिकम्। तदनन्तरम् = तत् + अनन्तरम्। प्राविशत् = प्र + अविशत्। तथैव = तथा + एव।

संयोगः
जलमानीय = जलम् + आनीय। व्याधमवदत् = व्याधः + अवदत्। किमपि = किम् + अपि। एवमेव = एवम् + एवा। चञ्चलमुपस्त्य = चञ्चलम् + उपसृत्या। मामेव = माम् + एवा। द्रष्टुमिच्छामि = द्रष्टुम् + इच्छामि। समाचरत् = सम् + आचरत्। भिक्षामिव = भिक्षाम् + इव।

पदार्थबोधः
व्याधः = शिकारी, बहेलिया (निहता)। विस्तीर्य = फैलाकर (विस्तृतं कृत्वा)। दौर्भाग्यात् = दुर्भाग्य से (कुसंयोगेन)। व्याघ्रः = बाघ (सिंहस्य, सदृशः)। बद्ध = बैंध हुआ (बन्धने)। न्यवेदयत् = आग्रह किया (निवेदनं कृतम्)। मोचयिष्यसि = मुक्त करोगे (त्यक्ष्यसि)। निरसारयत् = निकाला (निष्कासिता)। क्लान्तः = थक गया (परिश्रान्तः)। भणितम् = कहा (उक्तम्)। क्षुधार्ताय = भूखे के लिए (बुभुक्षिताय)। समीहते = चाहते हैं (वाञ्छति)। उपगम्य = पास जाकर (पाय गत्वा)। विरमन्ति = विराम लेते हैं, रुकते हैं (विनाम, कुर्वन्ति)। मातृस्वस: = मौसी (मातृः भगिनी)। क्लान्तः = थका हुआ (थकित:)। लोमशिका = लोमड़ी (चतुरः पशुः)।

सरलार्थ –
चंचल नाम का कोई शिकारी था। पक्षियों एवं हिरणों के शिकार से वह अपनी रोजी-रोटी कमाता था। एक बार वह जंगल में जाल बिछाकर घर आ गया। दूसरे दिन सुबह जब वह जंगल में गया तो देखा कि उसके द्वारा फैलाए गए जाल में दुर्भाग्य से एक बाघ फंस गया है। उसने सोचा कि ‘बाघ मुझे खा जाएगा इसलिए यहाँ से भाग जाना चाहिए।’ बाघ ने उससे निवेदन किया-‘अरे मनुष्य! तुम्हारा कल्याण हो। अगर तुम मुझे मुक्त कर दोगे तो मैं तुम्हें नहीं मारूंगा।’ तब उस शिकारी ने बाघ को जाल से बाहर निकाल दिया। बाघ थका हुआ था। वह बोला-‘अरे मानव! मैं प्यासा हूँ। नदी से पानी लाकर मेरी प्यास बुझाओ।

बाघ पानी पीकर फिर शिकारी से बोला ‘मेरी भूख मिटाओ। अभी मैं भूखा हूँ। अब मैं तुम्हें खाऊँगा।’ चंचल ने कहा- “मैंने तुम्हारे लिए अपने धर्म (कर्तव्य) का आचरण किया। तुमने झूठ बोला। तुम मुझे खाना चाहते हो।”

बाघ बोला, ‘अरे बेवकूफ! भूखे (प्राणी) के लिए कुछ अकार्य नहीं होता। सभी स्वार्थ पूरा करना चाहते हैं।’

चंचल ने नदी के पानी से पूछा। नदी का पानी बोला, ‘ऐसा ही होता है, लोग मुझमे नहाते हैं, कपड़े धोते हैं और मल मूत्र विसर्जित करते हैं, चले जाते हैं। दरअसल सभी स्वार्थ पूरा करना चाहते हैं।’

चंचल ने पेड़ के पास जाकर पूछा। पेड़ बोला, ‘मानव मेरी छाया में विश्राम करते हैं। हमारे फल खाते हैं, फिर कुल्हाड़ी से प्रहार करके हमें हमेशा कष्ट देते हैं। जहाँ कहीं भी छेद कर देते हैं। सब अपना उल्लू सीधा करते हैं।

पास में ही एक लोमड़ी बदरी-साड़ियों के पीछे सारी बात सुन रही थी। वह अचानक चंचल के पास आकर कहती हैं-“क्या बात है? मुझे भी बताओ।” वह बोला-“ओह मौसी जी! तुम सही वक्त पर आई हो। मैंने इस बाघ के प्राण बचाए, लेकिन यह मुझे ही खाना चाहता है। उसके बाद उसने लोमड़ी को सारी बात बता दी।

लोमड़ी ने चंचल से कहा-ठीक है, तुम जाल पसारो। फिर वह बाघ से बोली- तुम कैसे इस जाल में बंध गए, यह सब सामने देखना चाहती हूँ। बाघ उस वृत्तांत को दिखाने के लिए उस जाल में चला गया।

फिर लोमड़ी ने कहा-अब फिर से कूदकर दिखाओ। उसने वैसा ही किया। लगातार कूदने से थका हुआ वह बेसहारा होकर वहीं गिर पड़ा और प्राणों की भीख माँगने लगा।

लोमड़ी शिकारी से बोली ‘तुमने सच कहा, सब स्वार्थ पूरा करना चाहते हैं।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 5 कण्टकेनैव कण्टकम्

भावार्थ –
इस पाठ में यह वर्णित है कि संकट के समय जो सर्वाधिक सहायक है, वह है चालाकी या बुद्धिमानी। बड़े-से बड़ा संकट धैर्यपूर्ण चतुरता से दूर हो जाता है।

कण्टकेनैव कण्टकम् Summary

कण्टकेनैव कण्टकम् पाठ-परिचयः

पंचतंत्र की तरह लिखित यह पाठ मध्य प्रदेश के डिण्डोरी जनपद में परधानों में प्रचलित एक लोककथा पर आधारित है। इसमें बताया गया है कि मुसीबत में चालाकी और त्वरित बुद्धि के बल से बाहर निकला जा सकता है।

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HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 4 सदैव पुरतो निधेहि चरणम्

Haryana State Board HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 4 सदैव पुरतो निधेहि चरणम् Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 4 सदैव पुरतो निधेहि चरणम्

अभ्यासः

प्रश्न 1.
पाठे दत्तं सस्वरं गायत।
उत्तरम्:
शिक्षकसहायतया छात्रा: स्वयमेव कुर्वन्तुि।

प्रश्न 2.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत-
(क) स्वकीयं साधनं किं भवति?
(ख) पथि के विषमाः प्रखरा:?
(ग) सततं किं करणीयम्?
(घ) एतस्य गीतस्य रचयिता कः?
(ङ) सः कीदृशः कविः मन्यते?
उत्तरम्:
(क) स्वकीयबलम्/बलम्
(ख) पाषाणाः
(ग) ध्येय-स्मरणम्
(घ) श्रीधर-भास्कर-वर्णेकरः
(ङ) राष्ट्रवादी।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 4 सदैव पुरतो निधेहि चरणम्

प्रश्न 3.
मञ्जूषातः क्रियापदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत-
(निधेहि, विधेहि, जहीहि, देहि, भज, चल, कुरु)
यथा- त्वं पुरतः, चरणं निधेहि
(क) त्वं विद्यालयं _________।
(ख) राष्ट्रे अनुरक्तिं _________।
(ग) मह्यं जलं ________।
(घ) मूढ़ ! __________ धनागमतृष्णाम्।
(ङ) ________ गोविन्दम्।
(च) सततं ध्येयस्मरणं _________।
उत्तरम्:
(क) त्वं विद्यालयं चल
(ख) राष्ट्रे अनुरक्तिं विधेहि
(ग) मह्यं जलं देहि
(घ) मूढ़ ! जहीति धनागमतृष्णाम्।
(ङ) भज गोविन्दम्।
(च) सततं ध्येयस्मरणं कुरु

प्रश्न 4.
मञ्जूषातः अव्ययपदानि चित्वार रिक्स्थानानि पूरयत-
(एव, खलु, तथा, परितः, पुरतः, सदा, विना)
(क) विद्यालयस्य _________ एकम् उद्यानम् अस्ति।
(ख) सत्यम् __________ जयते।
(ग) किं भवान् स्नानं कृतवान् _________?
(घ) सः यथा चिन्तयति ___________ आचरति।
(ङ) ग्रामं __________ वृक्षाः सन्ति।
(च) विद्यां ________ जीवन वृथा।
(छ) __________ भगवन्तं भज।
उत्तरम्:
(क) विद्यालयस्य पुरतः एकम् उद्यानम् अस्ति।
(ख) सत्यम् एव जयते।
(ग) किं भवान् स्नानं कृतवान् खलु।
(घ) सः यथा चिन्तयति तथा आचरति।
(ङ) ग्रामं परितः वृक्षाः सन्ति।
(च) विद्यां विना जीवन वृथा।
(छ) सदा भगवन्तं भज।

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प्रश्न 5.
विलोमपदानि योजयत-
पुरतः – विरक्तिः
स्वकीयम् – आगमनम्
भीतिः – पृष्ठतः
अनुरक्तिः – परकीयम्
गमनम् – साहसः
उत्तरम्:
पुरतः – पृष्ठतः
स्वकीयम् – परकीयम्
भीतिः – साहसः
अनुरक्तिः – विरक्तिः
गमनम् – आगमनम्

प्रश्न 6.
लट्लकारपदेभ्यः लोट-विधिलिङ्लकारपदानां निर्माणं कुरुत-
लट्लकारे – लोट्लकारे – विधिलिङ्लकारे
यथा- पठति – पठतु – पठेत्
खेलसि – ……….. – …………
खादन्ति – ……….. – …………
पिबामि – ……….. – …………
हसतः – ……….. – …………
नयामः
उत्तरम्:
खेलसि – खेल – खेले:
खादन्ति – खादन्तु – खादेयुः
पिबामि – पिबानि – पिबेयम्
हसता – हसताम् – हसेताम्
नयामः – नयाम – नयेम

प्रश्न 7.
अधोलिखितानि पदानि निर्देशानुसार परिवर्तयत-
यथा- गिरिशिखर (सप्तमी-एकवचने) – गिरिशिखरे
पथिन् (सप्तमी-एकवचने) – …………………..
राष्ट्र (चतुर्थी-एकवचने) – …………………..
पाषाण (सप्तमी-एकवचने) – …………………..
यान (द्वितीया-बहुवचने) – …………………..
शक्ति (प्रथमा-एकवचने) – …………………..
पशु (सप्तमी-बहुवचने) – …………………..
उत्तरम्:
पथिन् (सप्तमी-एकवचने) – पथि
राष्ट्र (चतुर्थी-एकवचने) – राष्ट्राय
पाषाण (सप्तमी-एकवचने) – पाषाणे
यान (द्वितीया-बहुवचने) – यानानि
शक्ति (प्रथमा-एकवचने) – शक्तिः
पशु (सप्तमी-बहुवचने) – पशूनाम्

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 4 सदैव पुरतो निधेहि चरणम्

प्रश्न 8.
उचितकथनानां समक्षम् ‘आम्’, अनुचितकथनानां समक्षं ‘न’ इति लिखत-
यथा- पुरतः चरणं निधेहि। आम्
(क) निजनिकेतनं गिरिशिखरे अस्ति। …………
(ख) स्वकीयं बलं बाधकं भवति। …………
(ग) पथि हिंसाः पशवः न सन्ति। …………
(घ) गमनं सुकरम् अस्ति। …………
(ङ) सदैव अग्रे एव चलनीयम्। …………
उत्तरम्:
(क) निजनिकेतनं गिरिशखरे अस्ति। – आम्
(ख) स्वकीय बलं बाधकं भवति। – न
(ग) पथि हिंसाः पशवः न सन्ति। – न
(घ) गमनं सुकरम् अस्ति। – न
(छ) सदैव अग्रे एव चलनीयम्। – आम्

प्रश्न 9.
वाक्यरचनया अर्थभेदं स्पष्टीकुरुत-
(क) परितः – पुरतः
(ख) नगः – नाग:
(ग) आरोहणम् – अवरोहणम्
(घ) विषमाः – समाः
उत्तरम्:
(क) परितः (सब तरफ) – गृहं परितः वृक्षाः सन्ति।
पुरतः (सामने) – विद्यालयस्य पुरतः शिवालयः शोभते।

(ख) नगः (पर्वत) – ‘नगः’ इत्यस्य पर्यायः अस्ति-पर्वतः।
नागः (नाग, सर्प) – शिवस्य कण्ठे नागः राजते।

(ग) आरोहणम् (चढ़ना) – पर्वते रात्रौ आरोहण न करणीयम्।
अवरोहणम् (उतरना) – सः शय्यातः अवरोहणं करोति।

(घ) विषमाः (टेढ़े-मेढ़े, असमान) – पर्वतीय-मार्गाः विषमाः भवन्ति।
समाः (समान, समतल) – समाः मार्गाः शोभन्ते।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 4 सदैव पुरतो निधेहि चरणम्

योग्यता-विस्तारः

न गच्छति इति नगः।
पतन् गच्छतीति पन्नगः।
उरसा गच्छतीति उरगः।
वसु धारयतीति वसुधा।
खे (आकाशे) गच्छति इति खगः। सरतीति सर्पः।

डॉ. श्रीधरभास्कर वर्णेकर (1918-2005 ई.) नागपुर विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग के अध्यक्ष थे। उन्होंने संस्कृत भाषा में काव्य, नाटक, गीत इत्यादि विधाओं की अनेक रचनाएँ की। तीन खण्डों में संस्कृत-वाङ्मय-कोश का भी उन्होंने सम्पादन किया। उनकी रचनाओं में ‘शिवराज्योदयम्’ महाकाव्य एवं ‘विश्कानन्दविजयम्’ नाटक सुप्रसिद्ध हैं।

प्रस्तुत गीत में पज्झटिका छन्द का प्रयोग है। इस छन्द के प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। हिन्दी में इसे चौपाई कहा जाता है।

मूलपाठः

1. चल चल पुरतो निधेहि चरणम्।
सदैव पुरतो निधेहि चरणम्।।

2. गिरिशिखरे ननु निजनिकेतनम्।
विनैव यानं नगारोहणम्॥
बलं स्वकीयं भवति साधनम्।
सदैव पुरतो ………………….. ||

3. पथि- पाषाणा विषमाः प्रखराः।
हिंसाः पशवः परितो घोराः।।
सुदुष्करं खलु यद्यपि गमनम्।
सदैव पुरतो ………………….. ||

4. जहीहि भीतिं भज भज शक्तिम्।
विधेहि राष्ट्र तथाऽनुरक्तिम्।।
कुरु कुरु सततं ध्येय-स्मरणम्।
सदैव पुरतो ………………….. ||

अन्वयः
1. चल चल, पुरतः चरणं निधेहि। सदैव (सदा एव) पुरतः चरणं निधेहि।
2. निज-निकेतनं ननु गिरिशिखरे (विद्यते)। यानं विना एव नग-आरोहणम् (करोमि)। स्वकीयं बलं साधनं भवति। सदैव पुरतः …………………।
3. पथि विषमाः, प्रखरा: (च) पाषाणा: (वर्तन्ते।)। परितः हिंसाः, घोरा: (च) पशवः (विद्यन्ते)। यद्यपि गमनं खलु सुदुष्करम्। सदैव पुरतः ………………….।
4. भीतिम् इति जहि, शक्ति भज भज। तथा राष्ट्रे अनुरक्तिं विधेहि।

सतत ध्यये-स्मरणं कुरु कुरु। सदैव पुरतः चरणं विधेहि।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 4 सदैव पुरतो निधेहि चरणम्

सन्धिविच्छेदः
पुरतो निधेहि = पुरतः + निधेहि। विनैव = विना एव। नगारोहणम् = नग + आरोहणम्। सदैव – सदा एव। पाषाणा विषमा: = पाषाणा: विषमाः। परितो घोराः = परितः + घोराः। यद्यपि = यदि + अपि। जहीति = जहि + इति। तथानुरक्तिम् = तथा + अनुरक्तिम्।

पदार्थबोध:
सदैव = हमेशा (सर्वदैव, सदा)। पुरतः = आगे (अग्रे, अग्रत:)। निधेहि = रखो (वर्धस्व, कुरु)। गिरिशिखरे = पर्वत की चोटी पर (पर्वतशिखरे)। निजनिकेतनम् = अपना घर (वासः, स्वग्रहम्, स्वनिवासः)। विनैव (विना + एव) = बिना ही (ऋते एव)। नगः = पर्वत (गिरिः, पर्वतः)। स्वकीयम् = अपना (आत्मीयम्, निजम्, स्वम्)। पथि = मार्ग में (मार्गे)। पाषाणा: = पत्थर (प्रस्तराः)। विषमाः = टेढ़े-मेढ़े (कुटिलाः, असामान्याः)। प्रखराः = तीखे, तेज (तीक्ष्णा:)। हिंसाः = हिंसक (हिंसका:)। परितः = चारों ओर (अभितः, सर्वतः)। घोराः = भयंकर (भयंकराः, भयावहाः)। सुदुष्करम् = अत्यधिक कठिन (अतिकठिनम्)। जहि = छोड़ दो (त्यज्)। भज = भजो, जपो (जप)। विधेहि = करो (कुरु)। अनुरक्तिम् = स्नेह, प्रेम (स्नेहम्)। सततम् = लगातार (निरन्तरम्)। ध्येयस्मरणम् = उद्देश्य का स्मरण (लक्ष्यस्मरणम्)। कुरु = करो (कुरुष्व, सम्पादय)।

सरलार्थ:
1. चलो, चलो, आगे कदम बढाओ। सदैव आगे कदम बढ़ाओ।
2. मेरा निवास पर्वत की चोटी पर है। यान के बिना ही मैं पर्वतारोहण करता हूँ। अपना बल ही (मुख्य) साधन होता है। सदैव आगे कदम बढ़ाओ।
3. मार्ग में टेढ़े-मेढ़े और नुकीले पत्थर हैं। चारों तरफ भयंकर व हिंसक पशु हैं जबकि गमन बहुत कठिन है। (फिर भी) सदैव आगे कदम बढ़ाओ।
4. भय को त्याग दो। शक्ति को भजो (सेवन करो)। स्वदेश से अनुराग (प्रेम) करो। अपने लक्ष्य का निरन्तर ध्यान रखो। सदैव आगे कदम बढ़ाओ।

सदैव पुरतो निधेहि चरणम् Summary

सदैव पुरतो निधेहि चरणम् पाठ परिचयः

श्रीधरभास्कर वर्णेकर ओजस्विता के कवि हैं। प्रस्तुत गीत में चुनौतियों को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ने का आह्वान किया है। वर्णकर एक राष्ट्रवादी कवि हैं। इस गीत के माध्यम से उन्होंने जन-जागरण तथा कर्मठता का सन्देश दिया है। सदैव सजग रहते हुए बढ़ते रहो।

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HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 3 डिजीभारतम्

Haryana State Board HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 3 डिजीभारतम् Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 3 डिजीभारतम्

अभ्यासः

प्रश्न: 1.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत-
(क) कुत्र “डिजिटल इण्डिया” इत्यस्य चर्चा भवति?
(ख) केन सह मानवस्य आवश्यकता परिवर्तते?
(ग) आपणे वस्तूनां क्रयसमये केषाम् अनिवार्यता न भविष्यति?
(घ) कस्मिन् उद्योगे वृक्षाः उपयूज्यन्ते?
(ङ) अद्य सर्वाणि कार्याणि केन साधितानि भवन्ति?
उत्तरम्:
(क) संपूर्णविश्वे,
(ख) कालपरिवर्तनेन,
(ग) रूप्यकाणाम्,
(घ) कर्गदोद्योगे,
(ङ) चलदूरभाषयन्त्रेण।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 3 डिजीभारतम्

प्रश्नः 2.
अधोलिखितान् प्रश्नान् पूर्णवाक्येन उत्तरत-
(क) प्राचीनकाले विद्या कथं गृह्यते स्म?
(ख) वृक्षाणां कर्तनं कथं न्यूनतां यास्यति?
(ग) चिकित्सालये कस्य आवश्यकता अद्य नानुभूयते?
(घ) वयम् कस्यां दिशि अग्रेसरामः?
(ङ) वस्त्रपुटके केषाम् आवश्यकता न भविष्यति?
उत्तरम्:
(क) प्राचीनकाले विद्या श्रुतिपरम्परया गृह्यते स्म।
(ख) वृक्षाणां कर्तनं संगणकस्य अधिकाधिक-प्रयोगेण न्यूनता यास्यति।
(ग) चिकित्सालये रूप्यकाणाम्/रूप्यकस्य आवश्यकता अद्य नानुभूयते।
(घ) वयम् डिजीभारतम् इति दिशि अग्रसराम:।।
(ङ) वस्त्रपुटके रूप्यकाणाम् आवश्यकता न भविष्यति।

प्रश्नः 3.
रेखांकितपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
(क) भोजपत्रोपरि लेखनम् आरब्धम्?
(ख) लेखनार्थम् कर्गदस्य आवश्यकतायाः अनुभूतिः न भविष्यति।
(ग) विश्रामगृहेषु कक्षं सुनिश्चितं भवेत्।
(घ) सर्वाणि पत्राणि चलदूरभाषयन्त्रे सुरक्षितानि भवन्ति
(ङ) वयम् उपचारार्थम् चिकित्सालयं गच्छामः?
उत्तरम्:
(क) भोजपत्रोपरि किम् आरब्धम्?
(ख) लेखनार्थम् कस्य आवश्यकतायाः अनुभूतिः न भविष्यति।
(ग) केषु कक्षं सुनिश्चितं भवेत्।
(घ) सर्वाणि पत्राणि के सुरक्षितानि भवन्ति?
(ङ) वयम् किमर्थम् चिकित्सालयं गच्छामः?

प्रश्नः 4.
उदाहरणमनुसृत्य विशेषण विशेष्यमेलनं कुरुत-
यथा-
विशेषण – विशेष्य
संपूर्ण – भारते
(क) मौखिकम् – (1) ज्ञानम्
(ख) मनोगताः – (2) उपकारः
(ग) दक्षिणहस्तः – (3) काले
(घ) महान् – (4) विनिमयः
(ङ) मुद्राविहीनः – (5) भावाः
उत्तरम्:
विशेषण – विशेष्य
(क) मौखिकम् – (1) ज्ञानम्
(ख) मनोगताः – (5) भावाः
(ग) टंकिता – (3) काले
(घ) महान् – (2) उपकारः
(ङ) मुद्राविहीनः – (4) विनिमयः

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 3 डिजीभारतम्

प्रश्नः 5.
अधोलिखितपदयोः संन्धिं कृत्वा लिखत-(निम्नलिखित पदों की संधि करके लिखिए-)
(क) पदस्य + अस्य = …………………
(ख) तालपत्र + उपरि = …………………
(ग) च + अतिष्ठत = …………………
(घ) कर्गद + उद्योगे = …………………
(ङ) क्रय + अर्थम् = …………………
(च) इति + अनयोः = …………………
(छ) उपचार + अर्थम् = …………………
उत्तरम्:
(क) पदस्यास्य,
(ख) तालपत्रोपरि,
(ग) चातिष्ठत,
(घ) कर्गदोद्योगे,
(ङ) क्रयार्थम्,
(च) इत्यनयोः,
(छ) उपचारार्थम्।।

प्रश्नः 6.
उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितेन पदेन लघु वाक्य निर्माणं कुरुत-(उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित पदों से लघु वाक्यों का निर्माण कीजिए-)
यथा- जिज्ञासा – मम मनसि वैज्ञानिकानां विषये जिज्ञासा अस्ति।
(क) आवश्यकता – ………………………………………………
(ख) सामग्री – ………………………………………………
(ग) पर्यावरण सुरक्षा – ………………………………………………
(घ) विश्रामगृहम् – ………………………………………………
उत्तरम्:
(क) अद्य तु लेखनार्थं कर्गदस्य आवश्यकता नास्ति।
(ख) टंकिता सामग्री अधुना न्यूना एवं प्राप्यते।
(ग) वृक्षेभ्यः पर्यावरण सुरक्षा भवति।
(घ) जनाः तीर्थेषु विश्रामगृहम् अन्वेषयन्ति।

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प्रश्नः 7.
उदाहरणानुसारम् कोष्ठकप्रदत्तेषु पदेषु चतुर्थी प्रयुज्य रिक्तस्थानपूर्ति कुरुत-(उदाहरण के अनुसार कोष्ठक में दिए गए पदों के चतुर्थी रूप का प्रयोग करके रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए-)
यथा- भिक्षुकाय धनं ददातु।। (भिक्षुक)
(क) ………………… पुस्तकं देहि। (छात्र)
(ख) अहम् ………………… वस्त्राणि ददामि। (निर्धन)
(ग) ………………… पठनं रोचते। (लता)
(घ) रमेशः ………………… अलम्। (अध्यापक)
उत्तरम्:
(क) छात्रेभ्य:/छात्राय,
(ख) निर्धनाय,
(ग) लतायै,
(घ) सुरेशीय,
(ङ) अध्यापकाय।

योग्यता-विस्तारः

इन्टरनेट – ज्ञान का महत्त्वपूर्ण स्रोत है-
इन्टरनेट के माध्यम से किसी भी विषय की जानकारी सरलतापूर्वक मिल सकती है। सिर्फ एक “क्लिक” द्वारा ज्ञान के विभिन्न आयामों को छुआ जा सकता है। यह ज्ञान का सागर है जिसमें एक बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्म जीवाणु से लेकर ब्लैकहोल तक, राजनीति से लेकर व्यापार तक, अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों से लेकर वैज्ञानिक चरमोत्कर्ष तक की सूचना प्राप्त हो जाती है। सामान्यतः हमें किसी भी जानकारी के लिए पुस्तकालय तक जाने की आवश्यकता होती है, पर अब हम घर बैठे उसे प्राप्त कर सकते हैं। यह एक सामाजिक प्लेटफार्म है जहाँ हम दुनिया के किसी भी कोने में बैठे लोगों से किसी भी विषय पर विचार विमर्श कर सकते हैं। इस पर ईमेल सुविधा, वीडियो कॉलिंग आदि आसानी से उपलब्ध है। ऑनलाइन दूरस्थ शिक्षा (Online Distance Education) के माध्यम से लोग घर बैठे अपना पाठ्यक्रम पूरा कर सकते हैं। यह मनोरंजन का मुफ्त साधन है। इसकी Navigation facility हमें एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाने में सक्षम है। इसकी कभी छुट्टी नहीं होती। यह हमें 24 x 7 उपलब्ध है।

1. अनेक शब्दों के लिए एक शब्द-
ज्ञातुम् इच्छा – जिज्ञासा – जानने की इच्छा
कर्तुम् इच्छा – चिकीर्षा – करने की इच्छा
पातुम् इच्छा – पिपासा – पीने की इच्छा
भोक्तुम् इच्छा – बुभुक्षा – खाने की इच्छा
जीवितुम् इच्छा – जिजीविषा – जीने की इच्छा
गन्तुम् इच्छा – जिगमिषा – जाने की इच्छा

2. “तुम न्” प्रत्यय में ‘तुम्’ शेष बचता है। यह प्रत्यय के लिए अर्थ में प्रयुक्त होता है। जैसे-
कृ + तुमुन् – कर्तुम् – करने के लिए
दा + तुमुन् – दातुम् – देने के लिए
खाद् + तुमुन् – खादितुम् – खाने के लिए
पठ् + तुमुन् – पठितुम् – पढ़ने के लिए
लिख् + तुमुन् – लिखितुम्- लिखने के लिए
गम् + तुमुन् – गन्तुम् – जाने के लिए

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 3 डिजीभारतम्

मूलपाठः

अद्य संपूर्णविश्वे “डिजिटलइण्डिया” इत्यस्य चर्चा श्रूयते। अस्य पदस्य कः भावः इति मनसि जिज्ञासा उत्पद्यते। कालपरिवर्तने सह मानवस्य आवश्यकताऽपि परिवर्तते। प्राचीनकाले ज्ञानस्य आदान-प्रदान मौखिकम् आसीत्, विद्या च श्रुतिपरम्परया गृह्यते स्म। अनन्तरं तालपत्रोपरि भोजपत्रोपरि च लेखनकार्यम् आरब्धम्। परवर्तिनि काले कर्गवस्य लेखन्याः च आविष्कारेण सर्वेषामेव मनोगतानां भावानां कर्गदोपरि लेखनं प्रारब्धम्।

टकणयंत्रस्य आविष्कारेण तु लिखिता सामग्री टंकिता सती बहुकालाय सुरक्षिता अतिष्ठत्। वैज्ञानिकप्रविधेः प्रगतियात्रा पुनरपि अग्रे गता। अद्य सर्वाणि कार्याणि संगणकनामकेन यंत्रेण साधितानि भवन्तिः समाचार-पत्राणि, पुस्तकानि च कम्प्यूटमाध्यमेन पठ्यन्ते लिख्यन्ते च। कर्गदोद्योगे वृक्षाणाम् उपयोगेन वृक्षाः कर्त्यन्ते स्म, परम् संगणकस्य अधिकाधिक-प्रयोगेण वृक्षाणां कर्तने न्यूनता भविष्यति इति विश्वासः। अनेन पर्यावरणसुरक्षायाः विशि महान् उपकारो भविष्यति।

अधुना आपणे वस्तुक्रयार्थम् रूप्यकाणाम् अनिवार्यता नास्ति। “डेबिट कार्ड”,”क्रेडिट कार्ड” इत्यादि सर्वत्र रूप्यकाणां स्थानं गृहीतवन्तौ। वित्तकोशस्य (बैंकस्य) चापि सर्वाणि कार्याणि संगणकयंत्रेण सम्पाद्यन्ते। बहुविद्याः अनुप्रयोगाः (APP) मुद्राहीनाय विनिमयाय (Cashless Transaction) सहायकाः सन्ति।

कुत्रापि यात्रा करणीया भवेत् रेलयानयात्रापत्रस्य, वायुयानयात्रापत्रस्य अनिवार्यता अध नास्ति। सर्वाणि पत्राणि अस्माकं चलदूरभाषयन्ने ‘ई-मेल’ इति स्थाने सुरक्षितानि भवन्ति यानि सन्दर्य वयं सौकर्येण यात्रायाः आनन्द ग्रहीमः। चिकित्सालयेऽपि उपचारार्थ रूप्यकाणाम् आवश्यकताद्य नानुभूयते। सर्वत्र कार्डमाध्यमेन, ई-बैंकमाध्यमेन शुल्कम् प्रदातुं शक्यते।

तदिन नातिदूरम् यदा वयम् हस्ते एकमात्रं चलदूरभाषयन्त्रमादाय सर्वाणि कार्याणि साधयितुं समर्थाः भविष्यामः। वस्त्रपुटके रूप्यकाणाम् आवश्यकता न भविष्यति। ‘पासबुक’ चैक्बुक’ इत्यनयोः आवश्यकता न भविष्यति। पठनार्थ पुस्तकानां समाचारपत्राणाम् अनिवार्यता समाप्तप्राया भविष्यति। लेखनार्थम् अभ्यासपुस्तिकायाः कर्गदस्य वा, नूतनज्ञानान्वेषणार्थम् शब्दकोशस्यावाऽपि आवश्यकतापि न भविष्यति। अपरिचित-मार्गस्य ज्ञानार्थम् मार्गदर्शकस्य मानचित्रस्य आवश्यकतायाः अनुभूतिः अपि न भविष्यति। एतत् सर्व एकेनेव यन्त्रेण कर्तुम, श्क्यते।

शाकाविक्रयार्थम्, फलक्रयार्थम्, विश्रामगृहेषु कक्षं सुनिश्चितं कर्तुम् चिकित्सालये शुल्क प्रदातुम्, विद्यालये महाविद्यालये चापि शुल्क प्रदातुम्, किं बहुना दानमपि दातुम् चलदूरभाषयन्त्रमेव अलम्। डिजीभारतम् इति अस्यां दिशि वयं भारतीयाः द्रुतगत्या अग्रेसरामः।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 3 डिजीभारतम्

सन्धिविच्छेन:
आवश्यकताऽपि = आवश्यकता + अपि। प्रदानं मौखिकम् – प्रदानम् + मौखिकम्। अनन्तरं तालपत्रोपरि = अनन्तरम् + तालपत्र + उपरि। मनोगता नां भावानां कर्गदोपरि – मनः + गतानाम् + भावानाम् + कर्गद + उपरि। लेखन प्रारब्धम् – लेखनम् + प्रारब्धम्। कर्गदोद्योग = कर्गद + उद्योगे। अधिकाधिक – अधिक + अधिक। वृक्षाणां कर्तने – वृक्षाणाम् + कर्तने। पर्यावरण – परि + आवरण। उपकारो भविष्यति – उपकारः + भविष्यति। रुप्याकाणां स्थानं गृहीतवन्तौ = रुप्यकाणाम् + स्थानम् + गृहीतवन्तौ। चापि – च + अपि। कुत्रापि = कुत्र + अपि। वयं सौकर्येण – वयम् + सौकोण। आनन्वं गृहणीमः = आनन्दम् + गृह्णीमः। चिकित्सालयेऽपि – चिकित्साल्ये + अपि। नानुभूयते – न + अनुभूयते। प्रदातुं शक्यते – प्रदातुम् + शक्यते। तद्दिनं नातिदूरम् = तत् + दिनम् + न • अतिदूरम्। साधयितुं समर्थाः – साधयितुम् + समर्थाः। इत्यनयोः = इति + अनयोः। नूतनज्ञानान्वेषणार्थम् – नूतनज्ञान + अन्वेषण + अर्धम्। आवश्यक तापि – आवश्यकता + अपि। ज्ञानार्थम् = ज्ञान + अर्थम्। एकेनैव – एकेन + एव। शाकादिक्रयार्थम् = शाक + आदि + क्रय + अर्थम्। कक्षं सुनिश्चितं कर्तुम् = कक्षम् + सुनिश्चितम् + कर्तुम्। विद्यालये – विद्या + आलये। चापि – च + अपि। किं बहुना = किम् + बहुना। दानमपि = दानम् + अपि। अस्यां दिशि = अस्याम् + दिशि। वयं भारतीयाः – वयम् + भारतीयाः।

संयोग: – सर्वेषामेव = सर्वेषाम् + एव। चलदूरभाषयन्त्रमादाय – चलदूरभाषयन्त्रम् + आदाय। दानमपि – दानम् + अपि। यन्त्रमेव – यन्त्रम् + एव।

पवार्थबोध: –
अद्य = आज (अद्यतनीयं दिनम्)। चर्चा = जिक्र (वार्ता)। जिज्ञासा – जानने की इच्छा (ज्ञातुम् इच्छा)। प्राचीनकाले – पुराने समय में (प्राचीने/पूर्वस्मिन् काले)। श्रुतिपरम्परया – सुनने की परंपरा से (श्रवणस्य परम्परया)। टंकणयंत्रस्य = कंप्यूटर का (कंप्यूटरस्य)। आपणे = दुकान में (वस्तुक्रयस्थले)। सङ्गणकयन्त्रेण = कंप्यूटर से (टंकनयंत्रेण)। यात्रापत्रस्य – टिकट की (चिटिकाया)। अनिवार्यता = ज़रूरत (आवश्यकता)। दूरभाषयन्त्र – मोबाइल फोन (दूरध्वनियन्त्रम्)। वस्त्रपुरके = बटुए में (पॉकेटे)। अग्रेसरामः = आगे बढ़ रहे हैं (अग्रेगच्छामः, चलामः)।

सरलार्थ –
आज पूरी दुनिया में “डिजिटल इण्डिया” की चर्चा सुनाई देती है। इस शब्द का क्या मतलब है। मन में यह जानने की इच्छा उत्पन्न होती है। समय बदलने के साथ मनुष्य को आवश्यकता भी बदलती रहती है। पुराने समय में ज्ञान का आदान-प्रदान मौखिक रूप से होता था और सुनने की परंपरा से विद्या प्राप्त की जाती थी। बाद में ताल और भोजपात्र पर लेखन कार्य शुरू हुआ। समय बदलता गया और कागज़ एवं पैन के आविष्कार से सभी मनोभावों का लेखन कागज पर होने लगा।

टाईपराइटर के आविष्कार से तो हस्तलिखित सामग्री टाईप करके बहुत समय के लिए सुरक्षित हो जाती है। वैज्ञानिक तकनीकी की विकास यात्रा फिर आगे बढ़ी। आज सारे कार्य कम्प्यूटर से कर लिए जाते हैं। अखबार एवं किताबें कम्प्यूटर से पढ़ी व लिखी जा रही हैं। कागज़ के उद्योग में पेड़ों की कटाई की जाती थी, लेकिन कम्प्यूटर के ज्यादा-से-ज्यादा प्रयोग से पेड़ों की कटाई में कमी आएगी, ऐसा विश्वास है। इससे पर्यावरण सुरक्षा की दिशा में बड़ा उपकार होगा।

अब दुकान से वस्तुएँ खरीदने के लिए रुपयों की जरूरत नहीं है। “डेबिट कार्ड”, “क्रेडिट कार्ड” आदि उपकरणों ने रुपयों की जगह ले ली है। बैंक के भी सा कामकाज कम्प्यूटर से हो रहे हैं। अनेक अनुप्रयोग (APP) मुद्राहीन विनिमय के लिए (Cashless Transaction) सहायक हैं।

कहीं भी यात्रा करनी हो, रेल टिकट हवाई टिकट को आज अनिवार्यता समाप्त हो गई। सारे टिकट हमारे स्मार्ट फोन में ‘ई-मेल’ बॉक्स में सुरक्षित होते हैं, न दिखाकर हम आसानी से यात्रा का आनंद लेते हैं। अस्पताल में भी इलाज के लिए रुपयों की आवश्यकता महसूस नहीं की जाती। सब जगह कार्ड से या ई-बैंकिंग से फीस दी जा सकती है।

वह दिन दूर नहीं, जब हम हाथ में एक स्मार्टफोन लेकर सारे कार्य करने में सक्षम होंगे। पर्स में रुपये रखने की ज़रूरत नहीं होगी। पासबुक व चैकबुक की भी जरूरत नहीं रहेगी। पढ़ने के लिए पुस्तकों या अखबारों की अनिवार्यता लगभग समाप्त हो जाएगी। लिखने के लिए कॉपी या कामा नये ज्ञान की खोज के शब्दकोश की भी ज़रूरत नहीं रह जाएगी। अनजान रास्ते की जानकारी के लिए मार्गदर्शक मानचिन की आवश्यकता का अनुभव भी नहीं होगा। ये सारे कार्य एक यंत्र के द्वारा किए जा सकते हैं। शाक-सब्जी-फल रनों के लिए. होटलों में कमरा बुक कराने के लिए अस्पतालों में फीस जमा कराने के लिए, स्कूल-कॉलेजों में फीस देने हेतु और अधिक क्या दान के लिए भी मोबाइल फोन ही पर्याप्त है। डिजिटल भारत की ओर हम भारतवासी बड़ी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।

भावार्थ – निश्चित रूप से डिजिटल इण्डिया की धूम आज देश में ही नहीं वरन् दुनिया भर में है। इससे अनेक सुविधाएँ हमारी मुट्ठी में हैं।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 3 डिजीभारतम्

डिजीभारतम् Summary

डिजीभारतम् पाठ-परिचय:

यह पाठ “डिजिटल इण्डिया” की मूल भावना पर आधारित निबंधात्मक पाठ है। इस पाठ में विज्ञान की उन्नति के उन पहलुओं को उभारा गया है, जिनमें हम (मानव) एक “क्लिक” के माध्यम से काफी कुछ कर सकते हैं। आज के समय में इंटरनेट ने मानव-जीवन को कितना आसान बना दिया है। भौगोलिक दृष्टिकोण से आज का मानव एक-दूसरे के काफी नज़दीक आ गया है। इससे जीवन के अधिकांश कार्य सुविधापूर्ण हो गए हैं। ऐसे ही विचारों को यहाँ आसान संस्कृत भाषा में प्रकट किया गया है।

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HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 2 बिलस्य वाणी न कदापि में श्रुता

Haryana State Board HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 2 बिलस्य वाणी न कदापि में श्रुता Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 2 बिलस्य वाणी न कदापि में श्रुता

प्रश्न 1.
‘उच्चारणं कुरुत-
कसि्ंमश्चित् विचिन्त्य साध्विदम्
क्षुधार्तः एतच्छुवा भयसन्त्रस्तमनसाम्
सिंहपदपद्धति: समाह्वानम् प्रतिध्वनिः
उत्तरम्:
शिक्षक सहायता स्वयमेव च शुद्धम् उच्चारणं कुरुत|

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 2 बिलस्य वाणी न कदापि में श्रुता

प्रश्न 2.
एकपदेन उत्तरं लिखत-
(क) सिंहस्य नाम किम्‌?
(ख) गुहाया: स्वामी क: आसीत्‌?
(ग) सिंह: कस्मिन्‌ समये गुहाया: समीपे आगत:?
(घ) हस्तपादादिका: क्रिया: केषां न प्रवर्तन्ते?
(ङ) गुहा केन प्रतिध्वनिता?
उत्तरम्:
(क) खरनखर:।
(ख) दधिपुच्छ: शृगाल:।
(ग) सूर्यास्तसमये।
(घ) भयसन्त्रस्तमनसाम्
(ङ) सिंहस्य गर्जनेनप्रतिध्वनिना।

प्रश्न 3.
मञ्जूषातः अव्ययपदं चित्वा वाक्यानि पूरयतसदा बहिः दूरं तावत् तर्हि तदा |
(क) यदा दशवादनं भवति …………….. छात्राः विद्यालयं गच्छन्ति।
(ख) सूर्यः पूर्वदिशायां …………….. उदेति।
(ग) शृगालः गुहायाः …………….. आसीत्।
(घ) स च यावत् पश्यति, …………….. सिंहपदपद्धतिः गुहायां प्रविष्टा दृश्यते।
(ङ) शृगालोऽपि ततः …………….. पलायमानः अपठत्।
(च) यदि सफलताम् इच्छसि …………….. आलस्यं त्यज।
उत्तरम्:
(क) यदा दशवादनं भवति तदा छात्राः विद्यालय गच्छन्ति।
(ख) सूर्यः पूर्वदिशायां सदा उदेति।
(ग) शृगालः गुहायाः बहिः आसीन्।
(घ) स च यावत् पश्यति, तावन् सिंहपदपद्धतिः गुहायां प्रविष्टा दृश्यते।
(ङ) शृगालोऽपि ततः दूर पला मानः अपठत्।
(च) यदि सफलताम् इच्छसि तहि आलस्यं त्यज।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 2 बिलस्य वाणी न कदापि में श्रुता

मूलपाठः

कस्मिंश्चित् वने खरनखरः नाम सिंहः प्रतिवसति स्म। सः कदाचित् इतस्ततः परिभ्रमन् क्षुधातः न किञ्चिदपि आहार प्राप्तवान्। ततः सूर्यास्तसमये एका महतीं गुहां दृष्ट्वा सः आगच्छति। अतः अत्रैव निगूढो भूत्वा तिष्ठामि” इति।

एतस्मिन् अन्तरे गुहायाः स्वामी दधिपुच्छः नाम शृगालः समागच्छत्। स च यावत् पश्यति तावत् सिंहपदपद्धतिः गुहायां प्रविष्टा दृश्यते, न च बहिरागता। शृगालः अचिन्तयत्-“अहो विनष्टोऽस्मि। नूनम् अस्मिन् बिले सिंहः अस्तीति तर्कयामि।

बिल! भो बिल! किं न स्मरसि, यन्मया त्वया सह समयः कृतोऽस्ति यत् यदाहं बाह्यतः प्रत्यागमिष्यामि तदा त्वं माम् आकारयिष्यसि? यदि त्वं मां न आह्वयसि तर्हि अहं द्वितीय बिलं यास्यामि इति।”
अथ एतच्छ्रुत्वा सिंहः अचिन्तयत्-“नूनमेषा गुहा स्वामिनः सवा समाह्वानं करोति। परन्तु मद्भयात् न किञ्चित् वदति।”

अथवा साध्विदम् उच्यते-
(1) भयसन्त्रस्तमनसा हस्तपादाविकाः क्रियाः।
प्रवर्तन्ते न वाणी च वेपथुश्चाधिको भवेत्।।
तवहम् अस्य आह्वानं करोमि। एवं सः बिले प्रविश्य मे भोज्यं भविष्यति। इत्थं विचार्य सिंहः सहसा शृगालस्य आह्वानमकरोत्। सिंहस्य उच्चगर्जन-प्रतिध्वनिना सा गुहा उच्चैः शृगालम् आह्वयत्। अनेन अन्येऽपि पशवः भयभीताः अभवन्। शृगालोऽपि ततः दूरं पलायमानः इममपठत-

(2) अनागतं यः कुरुते स शोभते
स शोच्यते यो न करोत्यनागतम्।
वनेऽत्र संस्थस्य समागता जरा
बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता।

अन्वयः –
(1) भय-सन्त्रस्तमनसां हस्त-पादाधिकाः न प्रवर्तन्ते। वाणी च अधिक : वेपथुः भवेत्।
(2) यः अनागतं कुरुते सः शोभते। यः अनागतं न करोति सः शोच्यते। अत्र वने संस्थस्य (मे) जरा समागता। मे बिलस्य वाणी कदापि न श्रुता।

सन्धिविच्छेद: –
कस्मिंश्चित् = कस्मिन् + चित्। इतस्ततः – इतः + ततः। क्षुधार्तः = क्षुधा + भार्तः। किञ्चिदपि – किम् + चित् + अपि। सूर्यास्त = सूर्य + अस्त। कोऽपि = कः + अपि। अत्रैव – अत्र + एव। निगूढो भूत्वा – निगूढः + भूत्वा। स च – सः + च। बहिरागता = बहिः + आगता। विनष्टोऽस्मि = विनष्टः + अस्मि। अस्तीति = अस्ति + इति। यन्मया = यत् + मया। कृतोऽस्ति = कृतः + अस्ति। यदाहम् – यदा + अहम्। प्रत्यागमिष्यामि = प्रति + आगमिष्यामि। एतच्छ्रुत्वा – एतत् + श्रुत्वा। परन्तु = परम् + तु। मद्भयात् = मत् + भयात्। किञ्चित् – किम् + चित्। साध्विदम् = साधु + इदम्। वेपथुश्चाधिको भवेत् = वेपथुः + च + अधिकः + भवेत्। तदहम् – तत् + अहम्। अन्येऽपि – अन्ये + अपि। शृगालोऽपि – शृगालः + अपि। करोत्यनागतम् = करोति + अनागतम्। वनेऽत्र – वने + अत्र। कदापि = कदा + अपि।

संयोगः –
कर्तुमारब्धः = कर्तुम् + आरब्धः। नूनमेषा – नूनम् + एषा। समाह्वानम् = सम् + आह्वानम्। आह्वानमकरोत् = आह्वानम् + अकरोत्। अनागतम् – अन् + आगतम्।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 2 बिलस्य वाणी न कदापि में श्रुता

पदार्थबोध: –
किस्मिंश्चित् – किसी (कस्मिश्चन)। कदाचित् – किसी समय (एकदा, कदाचन)। परिभ्रमन् । घूमता हुआ (पर्यटन्)। क्षुधार्तः – भूख से व्याकुल (बभुक्षुः, क्षुधापीडित:)। आहारम् = भोजन (भोजनम्, अशनम्)। महती गुहाम् – बड़ी गुफा को (विशाल गुहाम्, बृहद्गुहाम्)। दृष्ट्वा – देखकर (विलोक्य, आलोक्य, अवलोक्य)। नूनम् – अवश्य ही (अवश्यमेव, खलु)। निगूढो भूत्वा = छिपकर (तिरोभूय)। अन्तरे – बीच में (मध्ये, अन्तराले)। सिंहपदपद्धतिः – शेर के पैरों के चिह्न (सिंहचरण पद्धतिः)। तर्कयामि – सोचता हूँ (चिन्तयामि)। विचिन्त्य – सोचकर (विचार्य, तर्कयित्वा)। रवम् = आवाज़ को (शब्दम्, ध्वनिम्)। समयः = शर्त, समझौता (नियमः, पण:)। बाह्यतः = बाहर से (बाह्यपक्षात्)। आकारयिष्यसि – तुम पुकारोगे (शब्दापयिष्यसि)। यास्यामि = जाऊँगा (गमिष्यामि)। एतच्छ्रुत्वा – यह सुनकर (एतदाकर्ण्य)। उच्यते – कहा जाता है (कथ्यते)। भयसन्वस्तमनसाम् – डरे हुए मन वालों का (भयभीतचेतसाम्)। वेपथुः = कम्पन (कम्पनम्)। विचार्य – सोचकर (विचिन्त्य)। सहसा – एकाएक (अकस्मात्)। अनागतम् – आने वाले (दु:ख) को (न आगतम्)। श्रुता – सुनी (आकर्णिता)।

सरलार्थ: –
किसी वन में खरनखर नाम का शेर रहता था। किसी समय भूख से पीड़ित होते हुए. इधर-उधर घूमते हुए उसे कोई भी भोजन नहीं मिला। इसके बाद सन्ध्या के समय एक विशाल गुफा को देखकर उसने सोचा-“निश्चय ही इस गुफा में रात में कोई जीव आता है। इसलिए यहीं छिपकर बैठता हूँ” ऐसा।

इसी बीच गुफ़ा का स्वामी दधिच्छ नाम वाला गीदड़ (वहाँ) आ गया तथा उसने जब (ध्यान से) देखा तो शेर के पैरों के चिह्न गुफा में प्रवेश करते हुए दिखे, बाहर की ओर आते हुए नहीं दिखे। गीदड़ ने सोचा-“अरे मैं तो मारा गया। निश्चय ही इस गुफा में शेर है, ऐसा सोचता हूँ। तो क्या करूँ?”. ऐसा सोचकर (उसने) दूर से ही बोलना शुरू कर दिया-“हे गुफा! हे गुफा! क्या तुम्हें स्मरण है? कि मेरा तुम्हारे साथ समझौता किया हुआ है-कि जब मैं बाहर से लौटूंगा तो तुम मुझे बुलाओगी? यदि तुम मुझे नहीं बुलाती हो तो मैं दूसरी गुफा में चला जाऊँगा, ऐसा।”

इसके बाद यह सुनकर शेर ने सोचा- “निश्चय ही यह गुफा (अपने) स्वामी को पुकारा करती है। परन्तु (यह गुफा) मेरे भय से कुछ नहीं बोल रही है।”

अथवा यह उचित कहा गया है-
(1) भय से डरे हुए मन वाले लोगों के हाथ-पैर आदि क्रियाशील नहीं हो पाते हैं (उनकी) वाणी भी अधिक काँपने लगती है। तो मैं इसे पुकारता हूँ। इस तरह वह बिल (गुफा) में प्रवेश करके मेरा भोजन बन जाएगा। ऐसा विचार करके शेर अचानक गीदड़ को पुकारता है। शेर की ऊँची गर्जना की प्रतिध्वनि द्वारा उस गुफा ने जोर-से गीदड़ को पुकारा। इससे दूनरे भी पशु भयभीत हो गए। गीदड़ ने भी वहाँ से दूर भागते हुए यह पढ़ा (कहा)-

(2) जो भावी दु:ख को सोच लेता है, वह शोभा पाता है। जो भावी दु:ख को नहीं सोचता है, उसे शोक करना पड़ता है। इस वन में रहते हुए मेरा बुढ़ापा आ गया। मैंने बिन (गुफा) की वाणी कभी नहीं सुनी।

बिलस्य वाणी न कदापि में श्रुता Summary

बिलस्य वाणी न कदापि में श्रुता पाठ-परिचयः

संस्कृत के प्रसिद्ध कथाग्रन्थ ‘पञ्चतन्त्रम्’ को कौन नहीं जानता है? इसकी कथाएँ न केवल भारत अपितु विश्व के भी जनमानस में रची-बसी हुई हैं। प्रस्तुत पाठ ‘पञ्चतन्त्र’ के तृतीय तन्त्र ‘काकोलूकीयम्’ से संकलित है। पञ्चतन्त्र के मूल लेखक विष्णुशर्मा हैं। इसमें पाँच खण्ड हैं जिन्हें ‘तन्त्र’ कहा गया है। इनमें गद्य-पद्य रूप में कथाएँ दी गयी हैं जिनके पात्र मुख्यतः पशु-पक्षी हैं। अत्यधिक रोचक कथाओं के माध्यम से नीतिकार ने बहुमूल्य शिक्षाओं को मनोहारी हार के रूप में गूंथकर विश्व पर उपकार किया है।

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HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 1 सुभाषितानि

Haryana State Board HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 1 सुभाषितानि Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 1 सुभाषितानि

अभ्यासः

प्रश्न 1.
पाठे दत्तानां पद्यानां सस्वरवाचनं कुरुत।
उत्तरम्:
छात्रा: शिक्षक सहायता कुरुत।

प्रश्न 2.
श्लोकांशेषु रिक्तस्थानानि पूरयत-
(क) समुद्रमासाद्य ________।
(ख) _________ वचः मधुरसूक्तरसं सृजन्ति।
(ग) तद्भागधेयं __________ पशूनाम्।
(घ) ‘विद्याफलं ___________ कृपणस्य सौख्यम्।
(ङ) स्त्रियां _________ सर्व तद् __________ कुलम्।
उत्तरम्:
(क) समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः।
(ख) श्रुत्वा वचः मधुरसूक्तरसं सृजन्ति।
(ग) तद्भागधेयं परमं पशूनाम्।
(घ) ‘विद्याफलं व्यसनिनः कृपणस्यसौख्यम्।
(ङ) स्त्रियां रोचमानायां सर्व तद् रोचते कुलम्।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 1 सुभाषितानि

प्रश्न 3.
प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत-
(क) व्यसनिनः किं नश्यति?
(ख) कस्यां रोचमानायां सर्वं कुलं रोचते?
(ग) कस्य यशः नश्यति?
(घ) कस्मिन् श्लोके सत्सङ्गतेः प्रभावो वर्णितः?
(ङ) मधुरसूक्तरसं के सृजन्ति?
उत्तरम्:
(क) व्यसनिनः।
(ख) स्त्रियां
(ग) लुब्धस्य
(घ) चतुर्थे पीत्वा…..सृजन्ति इति।
(ङ) सन्तः।

प्रश्नः 4.
अधोलिखित-तद्भव-शब्दानां कृते पाठात् चित्वा संस्कृतपदानि लिखत-(नीचे लिखे तद्भव शब्दों के लिए पाठ में से संस्कृत शब्द चुनकर लिखिए-)
यथा- कंजूस कृपणः
कड़वा …………….
पूँछ …………..
सन्तः …………….
लोभी ……………….
मधुमक्खी ………………….
तिनका ………………
उत्तरम्:
यथा-
कर्जूस – कृपणः
कड़वा – कटुकम्
पूँछ – पुच्छः / पुच्छम्
लोभी – लुब्धाः
मधमक्खी – मधुमक्षिका
तिनका – तृणम्

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 1 सुभाषितानि

प्रश्न 5.
अधोलिखितेषु वाक्येषु कर्तृपदं क्रियापदं च चित्वा लिखत-
HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 1 सुभाषितानि -1
उत्तरम्:
HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 1 सुभाषितानि -2

प्रश्नः 6.
रेखाङ्कितानि पदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-(रेखांकित पदों के आधार पर प्रश्न-निर्माण कीजिए-)
(क) गुणा: गुणज्ञेषु गुणाः भवन्ति।
(ख) नद्यः सुस्वादुतोयाः भवन्ति।
(ग) लुब्धस्य यशः नश्यति।
(घ) मधुमक्षिका माधुर्यमेव जनयति।
(ङ) तस्य मूर्ध्नि तिष्ठन्ति वायसाः।
उत्तरम्:
(क) के गुणज्ञेषु गुणाः भवन्ति?
(ख) काः सुस्वादुतोयाः भवन्ति?
(ग) कस्य यशः नश्यति?
(घ) का माधुर्यमेव जनयति?
(ङ) तस्य कस्मिन् / कुत्र तिष्ठान्ति वायसाः।

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प्रश्नः 7.
उदाहरणानुसारं पदानि पृथक् कुरुत-(उदाहरण अनुसार पदों को पृथक्-पृथक् कीजिए)
यथा- समुद्रमासाद्य – समुद्रम् + आसाद्य
1. माधुर्यमेव – ……………. + ……………….
2. अल्पमेव – ……………. + ……………….
3. सर्वमेव – ……………. + ……………….
4. दैवमेव – ……………. + ……………….
5. महात्मनामुक्ति: – ……………. + ……………….
6. विपदामादावेव – ……………. + ……………….
उत्तरम्:
1. माधुर्यम् + एव
2. अल्पम् + एव
3. सर्वम् + एव
4. दैवम् + एव
5. महात्मनाम् + उक्तिः
6. विपदाम् + आदौ + एव

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 1 सुभाषितानि

योग्यता-विस्तारः

प्रस्तुत पाठ में महापुरुषों की प्रकृति, गुणियों की प्रशंसा,सज्जनों की वाणी, साहित्य-संगीत कला की महत्ता चुगलखोरों की दोस्ती से होने वाली हानि, स्त्रियों के प्रसन्न रहने में सबकी खुशहाली को आलङकारिक भाषा में प्रस्तुत किया गया है।

पाठ के श्लोकों के समान अन्य सुभाषितों को भी स्मरण रखें तथा जीवन में उनकी। उपादेयता/संगीत पर विचार करें।

(क) येषां न विद्या न तपो न दानम्
ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः।
ते मर्त्यलोके भुवि भारभूताः
मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्तिड़
(ख) गुणाः पूजास्थानं गुणिषु न च लिङ्गं न च वयः।
(ग) प्रारभ्य चोत्तमजना:न परित्यजन्ति।
(घ) दुर्जनः परिहर्तव्यो विद्ययाडलडकतोऽपि सन्।
(ङ) न प्राणान्ते प्रकृतिविकृतिर्जायते चोत्तमानाम्।
(च) उदये सविता रक्तो रक्ताश्चास्तङ्गते तथा।
सम्पत्तौ य विपत्तौ च महतामेकरूपताड़ सरलार्थ:

सरलार्थः
(क) जिनके पास न विद्या है, न तप है, न दान है, न ज्ञान है, न शील है, न गुण है और न धर्म है; वे मृत्यु लोक में धरती पर (केवल) भार बने हुए हैं। वे मनुष्य के रूप में पशु ही बने हुए चरते (विचरते) फिरते हैं।

(ख) गुणवानों में गुण ही पूजे जाते हैं-लिङ्ग और आयु नहीं।

(ग) कोई भी कार्य प्रारम्भ करके उत्तम लोग (उसे पूरा होने से पहले) नहीं छोड़ते हैं।

(घ) विद्या से युक्त होने पर भी दुष्ट व्यक्ति को त्याग देना चाहिए।

(ङ) उत्तम लोगों का स्वभाव प्राणान्त होने पर भी विकृत (दूषित) नहीं होता है।

(च) सूर्य उदय और अस्त दोनों ही दशाओं में लाल रहता है। महान लोग सम्पत्ति और विपत्ति में समान ही रहते हैं।

उपर्युक्त सुभाषितों के अंशों को पढ़कर स्वयं समझने का प्रयत्न करें तथा संस्कृत एवं अन्य भारतीय भाषाओं के सुभाषितों का संग्रह करें।

‘गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति’ – इस पंक्ति में विसर्ग सन्धि के नियम में ‘गुणाः के विसर्ग का दोनों बार लोप हुआ है। सन्धि के बिना पंक्ति ‘गुणा: गुणज्ञेषु गुणाः भवन्ति’ होगी।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 1 सुभाषितानि

मूलपाठः

गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति
ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः ।
सुस्वादुतोयाः प्रभवन्ति नद्यः
समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः ॥1॥

अन्वयः – गुणाः गुणज्ञेषु गुणाः भवन्ति। ते निर्गुणं प्राप्य दोषाः भवन्ति। नद्यः सुस्वादुतोयाः भवन्ति। (ताः एव) समुद्रम् आसाद्य अपेयाः भवन्ति।

सन्धिविच्छेदः – गुणा गुणज्ञेषु – गुणाः + गुणज्ञेषु। गुणा भवन्ति = गुणाः + भवन्ति। भवन्त्यपेयाः = भवन्ति + अपेयाः।

संयोगः – समुद्रमासाद्य = समुद्रम् + आसाद्य।

पदार्थबोध: – गुणाः = अच्छे लक्षण (सुलक्षणानि)। गुणज्ञेषु = गुणी जनों में (गुणिषु)। प्राप्य = पाकर (लब्या)। दोषाः – दोष, कुलक्षण (कुलक्षणानि)। सुस्वादुतोयाः – स्वादिष्ट जल (सुस्वादुजलीयाः)। प्रभवन्ति – निकलती हैं/उत्पन्न होती हैं (समुद्भवन्ति)। नद्यः – नदियाँ (तटिन्यः, सरित:)1 आसाद्य – मिलकर/पहुँचकर (उपेत्य, प्राप्य, मिलित्वा)। अपेयाः – न पीने – योग्याः (अपानीयाः)।

सरलार्थः – गुणीजनों में गुण, गुण ही बने रहते हैं। वे (गुण) निर्गुण (दुर्जन) व्यक्ति के पास जाकर दोष बन जाते हैं। नदियाँ स्वादिष्ट जल वाली होती हैं। वे (नदियाँ) ही समुद्र में मिलकर अपेय (न पीने योग्य) बन जाती हैं।

साहित्यसङ्गीतकलाविहीनः
साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः ।।
तृणं न खादन्नपि जीवमानः
तद्भागधेयं परमं पशूनाम् ॥ 2 ॥

अन्वयः – साहित्य-सङ्गीत-कला-विहीनः (जन:) पुच्छविषाणहीनः साक्षात् पशुः (भवति)। सः तृणं न खादन् अपि जीवमानः, तत् पशूनां परमं भागधेयम्।

सन्धिविच्छेद: – खादन् + अपि। तभागधेयम् – तत् + भागधेयम्।

पदार्थबोध: – पशुः = पशु. जानवर, मूर्ख (चतुष्पदः, जन्तुः, मूर्ख:)। तृणम् – घास (घासम्, शादः)। खावन्नपि (खादन् + अपि) = खाते हुए भी (भक्षयन्नपि)। जीवमानः = जीवित रहता हुआ (प्राणान् धारयन्)। भागधेयम् – सौभाष्य (सौभाग्यम्)।

सरलार्थ : – साहित्य, संगीत और कला से रहित व्यक्ति सींग तथा पूँछ से रहित साक्षात् पशु है। वह घास न खाते हुए भी जीवित है, यह तो पशुओं के लिए परम सौभाग्य की बात है।

लुब्धस्य नश्यति यशः पिशुनस्य मैत्री
नष्टक्रियस्य कुलमर्थपरस्य धर्मः ।।
विद्याफलं व्यसनिनः कृपणस्य सौख्यं
राज्यं प्रमत्तसचिवस्य नराधिपस्य ॥ 3 ॥

अन्वयः – लुब्धस्य यशः, पिशुनस्य मैत्री, नष्टक्रियस्य कुलम्, अर्थपरस्य धर्मः, व्यसिनः विद्याफलम्, कृपणस्य सौख्यम्, प्रमत्तसचिवस्य नराधिपस्य (च) राज्यं नश्यति।

सन्धिविच्छेदः – नराधिपस्य – नर + अधिपस्य। संयोग:- कुलमर्थपरस्य – कुलम् + अर्थपरस्य।

पदार्थबोध: – लुब्धस्य = लोभी का (लोभिन:)। यशः = कीर्ति (कीर्तिः)। पिशुनस्य = चुगलखोर की (परिवादपरस्य)। नष्टक्रियस्य = निष्क्रिय/निकम्मे का (निष्क्रियस्य)। व्यसिनः = बुरी आदत (लत) वालों, की (दुर्वृत्तस्य)। कृपणस्य – कंजूस की (कदर्यस्य)। प्रमवत्तः = उन्मत्त (उन्मत्तः)। नराधिपस्य = राजा का (नृपस्य)।

सरलार्थ: – लोभी का यश, चुगलखोर की मित्रता, निष्कर्मण्य (निकम्मे) का कुल, अर्थपरक (स्वार्थी) का धर्म, व्यसनी की विद्या का फल, कृपण (कंजूस) का सुख और प्रमत्त मन्त्री वाले राजा का राज्य नष्ट हो जाता है।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 1 सुभाषितानि

पीत्वा रसं तु कटुकं मधुरं समानं
माधुर्यमेव जनयेन्मधुमक्षिकासौ ।
सन्तस्तथैव समसज्जनदुर्जनानां
श्रुत्वा वचः मधुरसूक्तरसं सृजन्ति ॥4॥

अन्वयः – असौ मधुमक्षिका तु कटुकं रसं पीत्वा मधुरं समान माधुर्यम् एव जनयेत् तथा एव सन्तः समसज्जन-दुर्जनानां वचः श्रुत्वा मधुरसूक्तरसं सृजन्तिा ।

सन्धिविच्छेदः – जनयेन्मधुमक्षिकासौ जनयेत् + मधुमक्षिका + असौ। सन्तस्तथैव = सन्तः + तथा + एव। सज्जन – सत् + जना

संयोग: – माधुर्यमेव – माधुर्यम् + एव।

पदार्थबोध: – कटुकम् – कड़वा (कटु)। जनयेत् – पैदा करती हैं (उत्पादयेत्)। असी = वह (सः)। सन्तः = सज्जन (सज्जनाः)। तथैव = वैसे ही (तथाविधैव)। श्रुत्वा = सुनकर (आकर्ण्य)। सृजन्ति – निर्माण करते हैं (उत्पादयन्ति)।

सरलार्थः – वह मधुमक्खी तो कड़वे रस को पीकर (भी) मधुर के समान मधुरता (शहद) ही उत्पन्न करती है। उसी प्रकार सज्जन (लोग) दुष्टों के कटु वचन सुनकर (भी) सज्जनों के समान मधुर सूक्तों (सुवचनों) के रस वाली वाणी बोलते हैं।

महतां प्रकृतिः सैव वर्धितानां परैरपि
न जहाति निजं भावं संख्यासु लाकृतिर्यथा ॥5॥

अन्वयः – परैः वर्धितानाम् अपि महतां प्रकृतिः सा (तादृशी) एव (तिष्ठति)। यथा संख्यासु लाकृतिः निजं भावं न जहाति।

सन्धिविच्छेदः – सैव = सा + एव। परैरपि – परैः + अपि। लाकृतियथा = लाकृतिः + यथा।

पदार्थबोध: – प्रकृतिः = आदत, स्वभाव (स्वभावः)। वर्धितानाम् = बढ़ाए गयों का/प्रशसिततों का (प्रशंसितानाम्)। परैः = दूसरों से (परजनैः)। जहाति – छोड़ देता है (त्यजति)। लाकृतिः – नौ की संख्या (नवसंख्या)।

सरलार्थ: – दूसरे के द्वारा प्रसित होने या बढ़ाए जाने पर भी महापुरुषों का स्वभाव उसी तरह नहीं बदलता है जैसे संख्याओं में नौ का अंक अपना स्वभाव (आकार) नहीं छोड़ता है।

स्त्रियां रोचमानायां सर्वं तद् रोचते कुलम्।
तस्यां त्वरोचमानायां सर्वमेव न रोचते ||6॥

अन्वयः – नियां रोचमानायां तत् सर्व कुलं रोचते। तस्यां (मियां) तु अरोचमानायां सर्वम् एव न रोचते।

सन्धिविच्छेद: – तद्ोचते = तत् + रोचते। त्वरोचमानायाम् – तु + अरोचमानायाम्।

संयोगः – सर्वमेव = सर्वम् + एव।

पदार्थबोध: – स्रियाम् – लक्ष्मी में (लक्ष्म्याम्)। रोचमानायाम् = अच्छी लगने पर (कामयमानायाम्)।

सरलार्थ: – लक्ष्मी के अच्छा लगने (सम्पन्नता होने) पर सारा कुल अच्छा लगता है तथा लक्ष्मी के अच्छा न लगने (अभाव होने) पर कुछ भी अच्छा नहीं लगता है।

HBSE 8th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 1 सुभाषितानि

सुभाषितानि Summary

सुभाषितानि पाठ-परिचय
‘सुभाषित’ शब्द सु + भाषित दो शब्दों के मेल से बना है। सु का अर्थ है- सुन्दर, मधुर और भाषित का अर्थ है- वचन। इस सुभाषित का अर्थ है- सुन्दर/मधुर वचन। इस पाठ में सूक्तिमञ्जरी, नीतिशतकम्, मनुस्मृतिः, शिशुपालवधम्, पञ्चतन्त्रम् से रोचक और उदात्त विचारों को उभारने वाले श्लोकों का संग्रह किया गया है।

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HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 15 लालनगीतम्

Haryana State Board HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 15 लालनगीतम् Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 15 लालनगीतम्

प्रश्न 1.
गीतम् सस्वरं गायत।
उत्तर:
स्वयं गायन करें।

प्रश्न 2.
एकपदेन उत्तरत-
(क) का विहसति ?
(ख) किम् विकसति ?
(ग) व्याघ्रः कुत्र गर्जति ?
(घ) हरिणः किं खादति ?
(ङ) मन्दं कः गच्छति ?
उत्तर:
(क) धरणी
(ख) कमलम्
(ग) गहने विपिने
(घ) नवधासम्
(ङ) तुङ्गः उष्ट्रः।

HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 15 लालनगीतम्

प्रश्न 3.
रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) सलिले नौका सेलति।
(ख) पुष्पेषु चित्रपतङ्गाः डयन्ते।
(ग) उष्ट्रः पृष्ठे भार वहति।
(घ) धावनसमये अश्वः किमपि न खादति।
(ङ) उदिते सूयें धरणी विहसति।
उत्तर
(प्रश्ननिर्माणम्)
(क) सलिले का सेलति ?
(ख) कुत्र चित्रपतङ्गा: डयन्ते ?
(ग) कः पृष्ठे भारं वहति ?
(घ) कदा अश्वः किमपि न खादति ?
(ङ) उदिते कस्मिन् धरणी विहसति ?

प्रश्न 4.
मञ्जूषातः समानार्थकपदानि चित्वा लिखत-
मञ्जूषा
पृथिवी, देवालये, जले, वने, मृग:, भयद्करम्

धरणी – ……………..
करालम् – ……………..
सलिले – ……………..
विपिने – ……………..
हरिणः – ……………..
मन्दिरे – ……………..
उत्तर
धरणी – पृथिवी
करालम् – ‘भयद्करम्
सलिले – जले
विपिने – वने
हरिणः – मृग:
मन्दिरे – देवालये

HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 15 लालनगीतम्

प्रश्न 5.
उचितकथनानां समक्षम् ‘आम्’ अनुचितकथनानां समक्षं ‘न’ इति लिखत

(क) धावनसमये अश्वः खादति।
(ख) उष्ट्रः पृष्ठे भारं न वहति।
(ग) सिंहः नीचैः क्रोशति।
(घ) पुष्पेषु चित्रपतङ्गाः डयन्ते।
(ङ) वने व्याघ्रः गर्जति।
(च) हरिण: नवधासम् न खादति।
उत्तर:
(क) न
(ख) न
(ग) न
(घ) आम्
(ङ) आम्
(च) न।

प्रश्न 6.
अधोलिखितानि पदानि निर्देशानुसारं परिवर्तयत-
HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 15 लालनगीतम् -1
उत्तर:
HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 15 लालनगीतम् -2

HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 15 लालनगीतम्

प्रश्न 8.
चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषात: पदानि च प्रयुज्य वाक्यानि रचयत –
HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 15 लालनगीतम् -3
खगा: विकसन्ति कमलानि उदेति क्रीडन्ति
डगन्ते सूर्य: चित्रपतड्नः कूर्जन्ति बालाः
उत्तर:
खगा: कूर्जन्ति।
सूर्य: उदेति।
कमलानि विकसन्ति।
बालाः क्रीडन्ति।
चित्रपतड्नः डगन्ते।

मूलपाठः

उदिते सूर्ये धरणी विहसति ।
पक्षी कूजती कमलं विकसति ॥ 1 ॥

नदति मन्दिरे उच्चैढक्का ।
सरितः सलिले सेलति नौका ॥ 2 ॥

पुष्पे पुष्ये नानारङ्गाः ।
तेषु डयन्ते चित्रपतङ्गाः ॥ 3 ॥

वृक्षे वृक्षे नूतनपत्रम् ।
विविधैर्वर्णैर्विभाति चित्रम् ॥ 4 ॥

धेनुः प्रातर्यच्छति दुग्धम् ।
शुद्ध स्वच्छं मधुरं स्निग्धम् ॥ 5 ॥

गहने विपिने व्याघ्रो गर्जति ।
उच्चस्तत्र च सिंहः नर्वति ॥ 6 ॥

हरिणोऽयं खादति नवधासम् ।
सर्वत्र च पश्यति सविलासम् ॥ 7 ॥

उष्ट्रः तुङ्गः मन्दं गच्छति ।
पृष्ठे प्रचुरं भारं निवहति ॥ 8 ॥

घोटकराजः क्षिप्रं धावति ।
धावनसमये किमपि न खादति ॥ 9 ॥

पश्यत भल्लुकमिम, करालम् ।
नृत्यति थथथै कुरु करतालम् ॥ 10 ॥

HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 15 लालनगीतम्

शब्दार्थाः
HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 15 लालनगीतम् -4

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HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 अमृतं संस्कृतम्

Haryana State Board HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 अमृतं संस्कृतम् Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 अमृतं संस्कृतम्

प्रश्न 1.
उच्चारणं कुरुत
बहवीनाम – सङ्गणकस्य
चिकित्साशास्त्रम् – वैशिष्ट्यम्
भूगोलशास्त्रम् – वाङ्मये
विद्यमानाः – अर्थशास्त्रम्
उत्तरम्:
छात्रा: एतेषां शब्दानाम् उच्चारणं स्वयमेव कुर्वन्तु

प्रश्न 2.
प्रश्नानाम् एकपदेन उत्तराणि लिखत –
(क) का भाषा प्राचीनतमा ?
(ख) भारतीयसंस्कृतेः रक्षणं केन सम्भवति ?
(ग) चाणक्येन रचितं शास्त्रं किम् ?
(घ) कस्याः भाषायाः काव्यसौन्दर्यम् अनुपमम् ?
(ङ) शून्यस्य प्रतिपादनं कः अकरोत् ?
उत्तरम्:
(क) संस्कृतभाषा
(ख) संस्कृतेन
(ग) अर्थशास्त्रम्
(घ) संस्कृतभाषायाः
(ङ) भास्कराचार्यः।

HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 अमृतं संस्कृतम्

प्रश्न 3.
प्रश्नानाम् उत्तराणि एकवाक्येन लिखत –
(क) भारतसर्वकारस्य राजचिह्ने किं लिखितम् अस्ति ?
(ख) संस्कृतस्य वाङ्मयं कैः समृद्धमस्ति ?
(ग) संस्कृतस्य सूक्तयः केन रूपेण स्वीकृताः सन्ति ?
(घ) अस्माभिः संस्कृतं किमर्थ पठनीयम् ?
उत्तरम्:
(क), ‘सत्यमेव जयते’ इति भारतसर्वकारस्य राजचिह्न लिखितम् अस्ति।
(ख) संस्कृतस्य वाङ्मयं वेदैः, पुराणैः, नीतिशास्त्रैः, चिकित्साशास्त्रादिभिः समृद्धमस्ति।
(ग) संस्कृतस्य सूक्तयः ध्येयवाक्यरूपेण स्वीकृताः सन्ति।
(घ) अस्माभिः संस्कृतं पठनीयम् येन मनुष्यस्य समाजस्य च परिष्कारः भवेत्।

प्रश्न 4.
इकारान्त-स्त्रीलिङ्गशब्दरूपम् अधिकृत्य रिक्तस्थानानि पूरयत-
HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 अमृतं संस्कृतम् -1
उत्तरम्:
HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 अमृतं संस्कृतम् -2

प्रश्न 5.
रेखाङ्कितानि पदानि अधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुतः
(क) संस्कृते ज्ञानविज्ञानयोः निधिः सुरक्षितोऽस्ति।
(ख) संस्कृतमेव सङ्गणकस्य कृते सर्वोत्तमा भाषा।
(ग) शल्यक्रियायाः वर्णनं संस्कृतसाहित्ये अस्ति।
(घ) वरिष्ठान् प्रति अस्माभिः प्रियं व्यवहर्तव्यम्।
उत्तरम्:
(क) संस्कृते ज्ञानविज्ञानयोः कः सुरक्षितोऽस्ति?
(ख) संस्कृतमेव कस्य कृते सर्वोत्तमा भाषा ?
(ग) शल्यक्रियायाः वर्णनं कस्मिन् अस्ति ?
(घ) कान् प्रति अस्माभिः प्रियं व्यवहर्तव्यम् ?

HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 अमृतं संस्कृतम्

प्रश्न 6.
उदाहरणानुसारं पदानां विभक्तिं वचनञ्च लिखत
HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 अमृतं संस्कृतम् -3
उत्तरम्:
HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 अमृतं संस्कृतम् -4

प्रश्न 7.
यथायोग्य संयोज्य लिखत-

दूरदर्शनस्य आदर्शवाक्यम्नभः स्पृशं दीप्तम्।
चाणक्येनयोगक्षेमं वहाम्यहम्।
जीवनबीमानिगमस्य आदर्शवाक्यम्भास्कराचार्यः।
शून्यस्य आविष्कर्तासत्यं शिवं सुन्दरम्।
वायुसेनायाः आदर्शवाक्यम्अर्थशास्त्रं रचितम्।

उत्तरम्:

दूरदर्शनस्य आदर्शवाक्यम्सत्यं शिवं सुन्दरम्।
चाणक्येनअर्थशास्त्रं रचितम्।
जीवनबीमानिगमस्य आदर्शवाक्यम्योगक्षेमं वहाम्यहम्।
शून्यस्य आविष्कर्ताभास्कराचार्यः।
वायुसेनायाः आदर्शवाक्यम्नभः स्पृशं दीप्तम्।

HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 अमृतं संस्कृतम्

ध्यातव्यम्

अस्मिन् पाठे संस्कृति-स्मृति-नीति-सूक्ति-परिस्थिति-दृष्टि-धृति-शान्ति-प्रीति-इत्यादयः शब्दाः प्रयुक्ताः सन्ति। एते शब्दाः गति-मति शब्दवत् स्त्रीलिङ्गे प्रयुक्ताः भवन्ति।
एतेषां शब्दानां चतुर्थी-पञ्चमी-षष्ठी-सप्तमीविभक्तिीनामेकवचने द्वे द्वे रूपे भवतः।
यथा- गतये, गत्याः-गतेः, गत्याम्-गतौ।

ध्यातव्य

इस पाठ में संस्कृति, स्मृति, नीति, सूक्ति, परिस्थिति, पद्धति, दृष्टि, धृति, शान्ति, प्रीति इत्यादि शब्द प्रयुक्त हैं। ये शब्द गति, मति इत्यादि शब्द के समान स्त्रीलिङ्ग में प्रयुक्त होते हैं।
इन शब्दों की चतुर्थी पञ्चमी, षष्ठी तथा सप्तमी विभक्तियों के एकवचन में दो-दो रूप होते हैं। जैसे- गत्यै-गतये, गत्या:-गतेः, गत्याम्-गतौ।

HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 अमृतं संस्कृतम्

मूलपाठः

1. विश्वस्य सर्वासु भाषासु संस्कृतभाषा प्राचीनतमा भाषास्ति। भाषेयं बहीनां भाषाणां जननी मता। अस्यामेव भाणाया ज्ञानविज्ञानयोः निधिः सुरक्षितोऽस्ति। यथोक्तम्-“भारतस्य प्रतिष्ठे द्वे संस्कृतं संस्कृतिस्तथा।”

अस्याः भाषायाः वैज्ञानिकता विचार्य एव सङ्गणकविशेषज्ञाः कथयन्ति यत् संस्कृतमेव सङ्गणकस्य कृते सर्वोत्तम भाषा विद्यते। अस्याः वाङ्मयं वेदैः, पुराणः, नीतिशास्त्रैः चिकित्साशास्त्रादिभिश्च समृद्धमस्ति। कालिदाससदृशानां विश्वकवीनां काव्यसौन्दर्यम् अनुपमम्। चाणक्यरचितम् अर्थशास्वं जगति प्रसिद्धमस्ति। गणितशास्त्रे शून्यस्य प्रतिपादनं सर्वप्रथमं भास्कराचार्यः सिद्धान्तशिरोमणी अकरोत्। चिकित्साशास्त्रे चरकसु श्रुतयोः योगदान विश्वप्रसिद्धम्। संस्कृते यानि अन्यानि शास्वाणि विद्यन्ते तेषु खगोलविज्ञानं, वास्तुशास्त्र, रसायनशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र, विमानशास्त्रं च उल्लेखनीयम्।

शब्दार्थाः
HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 अमृतं संस्कृतम् -5
हिन्दी-अनुवाद :
विश्व की सभी भाषाओं में संस्कृत भाषा सबसे पुरानी है। यह अनेक भाषाओं की जननी मानी गई है। इसी भाषा में ज्ञान तथा विज्ञान का खजाना सुरक्षित है। जैसा कि कहा भी गया है-“भारत की प्रतिष्ठा ‘दो’ हैं-संस्कृत (भाषा) तथा संस्कृति।”

इस भाषा की वैज्ञानिकता का विचार करके ही कम्प्यूटर के विशेषज्ञ कहते हैं कि कंप्यूटर के लिए संस्कृत भाषा ही सबसे अधिक श्रेष्ठ है। इसका साहित्य वेदों, पुराणों, नीतिशास्त्रों तथा चिकित्साशास्त्र इत्यादि से भरा-पूरा (समृद्ध) है। कालिदास के समान संसारप्रसिद्ध कवियों का काव्य-सौन्दर्य अतुलनीय है। चाणक्य द्वारा बनाया हुआ अर्थशास्त्र संसार में प्रसिद्ध है। गणितशास्त्र में शून्य (जीरो) का प्रतिपादन सबसे पहले भास्कराचार्य ने ‘सिद्धान्त-शिरोमणि’ नामक ग्रंथ में किया था। चिकित्साशास्त्र में चरक तथा सुश्रुत का योगदान संसार में प्रसिद्ध है। संस्कृत में जो दूसरे शास्त्र हैं, उनमें खगोलविज्ञान, वास्तुशास्त्र, रसायनशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र तथा विमानशास्त्र उल्लेख के योग्य हैं।

सन्धिच्छेदः
भाषास्ति = भाषा + अस्ति। भाषेयम् – भाषा+ इयम्। सुरक्षितोऽस्ति – सुरक्षितः + अस्ति। यथोक्तम् = यथा+ उक्तम्। संस्कृतिस्तथा – संस्कृतिः + तथा। सर्वोत्तमा – सर्व उत्तमा। चिकित्साशास्त्रादिभिश्च-चिकित्साशास्त्र आदिभिः +चा अनुपमम्-अन् उपमम्। भास्कराचार्यः = भास्कर + आचार्यः।

संयोग:
अस्यामेव-अस्याम्-एव। संस्कृतमेव-संस्कृतम् । एव। समृद्धमस्ति-समृद्धम् अस्ति। प्रसिद्धमस्ति-प्रसिद्धम् + अस्ति।

HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 अमृतं संस्कृतम्

2. संस्कृतस्य इदं वैशिष्ट्यं वर्तते यत् अस्याः वाङ्मये विद्यमानाः सूक्तयः अभ्युदयाय प्रेरयन्ति। वरिष्ठान् कनिष्ठान् च प्रति अस्माभिः कथं व्यवहर्तव्यम् इत्यस्य व्यावहारिक ज्ञान संस्कृतमेव ददाति। भारतसर्वकारस्य विभिन्नेषु विभागेषु संस्कृतस्य सूक्तयः ध्येयवाक्यरूपेण स्वीकृताः सन्ति। भारतसर्वकारस्य राजचिह्ने प्रयुक्तां सूक्तिं ‘सत्यमेव जयते’ सर्वे जानन्ति। एवमेव राष्ट्रियशैक्षिकानुसन्धानप्रशिक्षणपरिषदः ध्येयवाक्यं ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ वर्तते।

केचन कथयन्ति यत् संस्कृतभाषायां केवलं धार्मिक साहित्यम् वर्तते-एषा धारणा समीचीना नास्ति। संस्कृतग्रन्थेषु मानवजीवनाय विविधाः विषयाः समाविष्टाः सन्ति। महापुरुषाणां मतिः, उत्तमजनानां धृति सामान्यजनाना जीवनपद्धतिः च वर्णिताः सन्ति। अतः अस्माभिः संस्कृतम् अवश्यमेव पठनीय येन मनुष्यस्य समाजस्य च परिष्कार: भवेत्। उक्तञ्च-
अमृतं संस्कृतं मित्र!
सरसं सरलं वचः।
एकतामूलकं राष्ट्र
ज्ञानविज्ञानपोषकम्॥

शब्दार्थाः
HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 अमृतं संस्कृतम् -6

HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 13 अमृतं संस्कृतम्
हिन्दी-अनुवाद :
संस्कृत की यह विशेषता है कि इसके साहित्य में विद्यमान सूक्तियाँ (मनुष्यों को) उन्नति के लिए प्रेरणा देती हैं। अपने से बड़ों तथा अपने से छोटों के प्रति हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए इस विषय का व्यावहारिक ज्ञान हमें संस्कृत (भाषा) ही देती है। भारत सरकार के अनेक विभागों में संस्कृत की सूक्तियाँ आदर्शवाक्य (महत्त्वपूर्ण वाक्य) के रूप में स्वीकार की गई हैं। भारत सरकार के राजचिह्न में प्रयुक्त सूक्ति “सत्यमेव जयते” को सभी जानते हैं। इसी प्रकार “राष्ट्रीय-शैक्षिक-अनुसन्धानप्रशिक्षण-परिषद् ” का ध्येयवाक्य (आर्दश वाक्य) “विद्ययाऽमृतमश्नुते” (विद्या से व्यक्ति अमृत पीता है) यह है।

कुछ लोग कहते हैं कि संस्कृत भाषा में केवल धार्मिक साहित्य है-यह विचारधारा ठीक नहीं है। संस्कृत के ग्रन्थों में मानवजीवन के अनेक विषय समाए हुए हैं। महान् व्यक्तियों की बुद्धि, उत्तम मनुष्यों का धैर्य तथा सामान्य मानवों की जीवनशैली का वर्णन किया गया है। अतः हमें संस्कृत भाषा अवश्य पढ़नी चाहिए जिससे मनुष्य और समाज का सुधार हो सके। कहा भी गया है कि हे मित्र! संस्कृत अमृत है यह रसपूर्ण तथा सरल है देश में एकता का मूल है तथा ज्ञान और विज्ञान की पोषक है।

सन्धिच्छेदाः
इत्यस्य = इति + अस्य। सूक्तयः = सु + उक्तयः। विद्ययाऽमृतम् – विद्यया अमृतम्। नास्ति – न . अस्ति। उक्तञ्च = उक्तम् + च।

संयोगा: – संस्कृतमेव – संस्कृतम् + एव। सत्यमेव = सत्यम् + एव। एवमेव – एवम् + एव। अवश्यमेव – अवश्यम् + एव।

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HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 अनारिकायाः जिज्ञासा

Haryana State Board HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 अनारिकायाः जिज्ञासा Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 अनारिकायाः जिज्ञासा

प्रश्न 1.
उच्चारणं कुरुत –
मन्त्री – कर्मकरा: – निर्माणम्
जिज्ञासा – भ्रात्रा – पित्रे .
भ्रातृणाम् – उद्घाटनार्थम् – पितृभ्याम्
नेतरि – अपृच्छत् – चिन्तयन्ती
उत्तरम्:
स्वयं उच्चारण कीजिए।

HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 अनारिकायाः जिज्ञासा

प्रश्न 2.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत –
(क) कस्याः महती जिज्ञासा वर्तते ?
(ख) मन्त्री किमर्थम् आगच्छति ?
(ग) सेतोः निर्माण के अकुर्वन् ?
(घ) सेतोः निर्माणाय कर्मकराः प्रस्तराणि कुतः आनयन्ति ?
(ङ) के सर्वकाराय धनं प्रयच्छन्ति ?
उत्तरम्:
(क) अनारिकायाः
(ख) सेतोः उद्घाटनार्थम्
(ग) कर्मकराः
(घ) पर्वतेभ्यः
(छ) प्रजाः ।

प्रश्न 3.
रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –
(क) अनारिकायाः प्रश्नः सर्वेषां बुद्धिः चक्रवत् भ्रमति।
(ख) मन्त्री सेतो: उद्घाटनार्थम् आगच्छति।
(ग) कर्मकराः सेतोः निर्माणम् कुर्वन्ति।
(घ) पर्वतेभ्यः प्रस्तराणि आनीय सेतोः निर्माणं भवति।
(ङ) जनाः सर्वकाराय देशस्य विकासार्थं धनं ददति।
उत्तरम्:
(क) कस्याः प्रश्नः सर्वेषां बुद्धिः चक्रवत् भ्रमति?
(ख) मन्त्री किमर्थम् आगच्छति ?
(ग) के सेतो: निर्माणम् कुर्वन्ति ?
(घ) केभ्यः प्रस्तराणि आनीय सेतो: निर्माण भवति?
(ङ) जनाः कस्मै देशस्य विकासार्थं धनं ददति ?

HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 अनारिकायाः जिज्ञासा

प्रश्न 4.
उदाहरणानुसारं रूपाणि लिखत-
HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 अनारिकायाः जिज्ञासा -1
उत्तरम्:
HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 अनारिकायाः जिज्ञासा -2

प्रश्न 5.
कोष्ठ के भ्यः समुचितपदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) अहं प्रातः ………. सह भ्रमणाय गच्छामि। (पित्रा/पितुः)
(ख) बाला आपणात् ………… फलानि आनयति। (भ्रातुः भ्रात्रे)
(ग) कर्मकराः सेतोः निर्माणस्य ………… भवन्ति। (कर्तारम्/कर्तारः)
(घ) मम …… तु एतेषां प्रश्नानाम् उत्तराणि अददात्। (पिता/पितरः)
(ङ) तव …….. कुत्र जीविकोपार्जनं कुरुतः ? (भ्रातरः/भ्रातरौ)
उत्तरम्:
(क) अहं प्रातः पित्रा सह भ्रमणाय गच्छामि।
(ख) बाला आपणात् भ्रात्रे फलानि आनयति ।
(ग) कर्मकरा: सेतोः निर्माणस्य कर्तारः भवन्ति।
(घ) मम पिता तु एतेषां प्रश्नानाम् उत्तराणि अददात् ।
(ङ) तव भ्रातरौ कुत्र जीविकोपार्जनं कुरुतः ?

HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 अनारिकायाः जिज्ञासा

प्रश्न 6.
चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषात: पदानि च प्रयुज्य वाक्यानि रचयत-
HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 अनारिकायाः जिज्ञासा -3
मञ्जूषा
धारयन्ति, बाला:, बसयानम्, छत्रम्, ते, आरोहन्ति, वर्षायाम्।
…………………………………………………………………………………
…………………………………………………………………………………
…………………………………………………………………………………
उत्तरम्:
बाला: बसयानम् आरोहन्ति। ते वर्षायाम् छत्रम् धारयन्ति।
बाला: छत्रम् धारयन्ति। ते बसयानम् छत्रम् आरोहन्ति।

प्रश्न 7.
अधोलिखितानि पदानि आधृत्य वाक्यानि रचयत
प्रश्नाः = ……………..
नवीनः = …………….
प्रातः = ……………….
आगच्छति = …………..
ङ्केप्रसन्ना = ………….
उत्तरम्-(वाक्यनिर्माणम्)
प्रश्नाः = मम मनसि बहवः प्रश्नाः सन्ति।
नवीनः = एषः नवीनः सेतुः अस्ति।
प्रातः = प्रात: उत्थाय अहं भ्रमणाय उद्यानं गच्छामि।
आगच्छति= मम मित्रम् आगच्छति।
प्रसन्नः = अहं प्रसन्नः अस्मि।

HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 अनारिकायाः जिज्ञासा

मूलपाठः

1. बालिकायाः अनारिकायाः मनसि सर्वदा महती जिज्ञासा भवति। अतः सा बहून् प्रश्नान् पृच्छति। तस्याः प्रश्न सर्वेषां बुद्धिः चक्रवात् भ्रमति।
HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 अनारिकायाः जिज्ञासा -4
प्रातः उत्थाय सा अन्वभवत् यत् तस्याः मनः प्रसन्नं नास्ति। मनोविनोदाय सा भ्रमित गृहात् बहिः अगच्छत् चिरं च अभ्रमत्। भ्रमणकाले सा अपश्यत् यत् मार्गाः सुसज्जिताः सन्ति। किं कारणम् अत्र इति चिन्तयन्ती सा अस्मरत् यत् अद्य तु मन्त्री आगमिष्यति।

सः किमर्थम् आगमिष्याति इति विषये तस्याः जिज्ञासाः प्रारब्धाः। ताः जिज्ञासाः शमयितुम् सा गृहं प्रत्यागच्छत् पितरं च अपृच्छत्-“पितः। मन्त्री किमर्थम् आगच्छति ?” पिता अवदत्-“पुत्रि! नद्याः उपरि यः नवीनः सेतुः निर्मितः तस्य उद्घाटनार्थ मन्त्री आगच्छति।” अनारिका पुनः अपृच्छत्-“पितः।

किं मन्त्री सेतोः निर्माणम् अकरोत् ?” पिता अकथयत्-“न हि पुत्रि, सेतोः निर्माण कर्मकाराः अकुर्वन्।” पुनः अनारिकायाः प्रश्नः आसीत्-“यदि कर्मकरा: सेतोः निर्माणम् अकुर्वन, तदा मन्त्री किमर्थम आगच्छति ?” पिता अवदत्-“यतोहि सः अस्माकं देशस्य मन्त्री।” “पितः, सेतोः निर्माणाय प्रस्तराणि कुतः आयान्ति ? कि तानि मन्त्री ददाति ?”

शब्दार्थाः
HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 अनारिकायाः जिज्ञासा -5
हिन्दी-अनुवाद :
बालिका अनारिका के मन में हर समय अत्यधिक जानने की इच्छा होती थी। अतएव वह बहुत से प्रश्न पूछती थी। उसके प्रश्नों से बुद्धि चक्र की तरह घूमती थी।

सुबह उठकर उसने अनुभव किया कि उसका मन प्रसन्न नहीं है। मन को प्रसन्न करने के लिए वह घूमने के लिए घर से बाहर गई और काफी देर तक घूमी। घूमते समय उसने देखा कि रास्ते सजे हुए हैं। क्या कारण है यहाँ ऐसा सोचते हुए उसे याद आया कि आज तो मन्त्री जी आएँगे। वह किसलिए आयेंगे. इस विषय पर उसकी जानने की इच्छा शुरू हो गई। उन जिज्ञासाओं को शान्त करने के लिए वह घर लौट आई और पिता से पूछने लगी-“पिताजी! मन्त्री जी किसलिए आ रहे हैं ?” पिता ने कहा-“बेटी! नदी के ऊपर जो पुल बना है उसका उद्घाटन करने के लिए मन्त्री महोदय आ रहे हैं।”

अनारिका ने फिर पूछा-“पिताजी! क्या मन्त्री जी ने पुल बनाया था ?” पिता ने कहा-“नहीं बेटी! पुल का निर्माण तो श्रमिकों ने किया था।” फिर अनारिका का प्रश्न था-“यदि मजदूरों ने पुल बनाया था तो मन्त्री जी किसलिए आ रहे हैं।” पिता ने कहा-“क्योंकि वह हमारे देश के मन्त्री हैं।” “पिताजी पुल बनाने के लिए पत्थर कहाँ से आते हैं ? क्या उन्हें मन्त्री जी देते हैं ?”

सन्धिच्छेदाः
अन्वतभत् = अनु + अभवत्। नास्ति = न + अस्ति। प्रत्यागच्छत् = प्रति + आगच्छत्। उद्घाटनार्थम् = उद्घाटन + अर्थम्। यतोहि = यतः + हि। मनोविनोदाय – मन + विनोदाय।

संयोगः – किमर्थम् = किम् + अर्थम्।

HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 अनारिकायाः जिज्ञासा

2. विरक्तभावेन पिता उदतरत्-“अनारिके! प्रस्तारणि जनाः पर्वतेभ्यः आनयन्ति।” “पितः! तर्हि किम् ? एतदर्थ मन्त्री धनं ददाति ? तस्य पार्वे धनानि कुतः आगच्छन्ति ?” एतान् प्रश्नान् श्रुत्वा पिताऽवदत्-“अरे! प्रजाः सर्वकाराय धनं प्रयच्छति।” विस्मिता अनारिका पुनरपृच्छत्-“पितः! यदि कर्मकाराः पर्वतेभ्यः प्रस्तराणि आनीय सेतुं निर्मान्ति, प्रजाः सर्वकाराय धनं ददति, तर्हि मन्त्री सेतोः उद्घाटनार्थ किमर्थम् आगच्छति ?”

बहून् प्रश्नान् उत्तरन् पिता अवदत्-“प्रथममेव अहम् अकथयम् यत् सः एव देशस्य मन्त्री अस्ति। बहुप्रश्नान् करोषि। चल, सुसज्जिता भूत्वा विद्यालयं गच्छ।” इदानीम् अपि -अनारिकायाः मनसि बहवः प्रश्नाः सन्ति।

शब्दार्थाः
HBSE 7th Class Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 14 अनारिकायाः जिज्ञासा -6

हिन्दी-अनुवाद :
विरक्तभाव से पिता ने उत्तर दिया-“हे अनारिका! पत्थरों को मनुष्य पहाड़ों से लाते हैं।” “पिताजी! तो क्या? इसलिए मन्त्रीजी धन देते हैं ? उनके पास धन (पैसे) कहाँ से आते हैं ?” इन प्रश्नों को सुनकर पिता ने कहा-“अरे! प्रजा सरकार को धन देती है।” हैरान होकर अनारिका ने फिर पूछा”पिताजी! यदि मजदूर पहाड़ों से पत्थर लाकर पुल बनाते हैं, प्रजा सरकार को धन देती है, तो मन्त्री जी पुल के उद्घाटन के लिए क्यों आ रहे हैं ?”

बहुत से प्रश्नों के उत्तर देते हुए पिता ने कहा-“मैंने पहले ही कहा था कि वे देश के मन्त्री हैं। बहुत प्रश्न करती हो। चलो. तैयार होकर विद्यालय जाओ।” अब भी अनारिका के मन में बहुत से प्रश्न हैं।

सन्धिच्छेदाः – उदतरत् उत् + अतरत्। एतदर्शम् = एतत् + अर्थम्। पिताऽवदत् = पिता + अवदत्। पुनरपृच्छत् – पुनः + अपृच्छत्। निर्मान्ति – निः + मान्ति।

संयोगाः – किमर्थम् = किम् + अर्थम्। प्रथममेव – प्रथमम् + एव।

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