Class 10

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 1 माता का अँचल

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 1 माता का अँचल Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kritika Chapter 1 माता का अँचल

HBSE 10th Class Hindi माता का अँचल Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है?
उत्तर-
निश्चय ही पाठ में दिखाया गया है कि बच्चे (लेखक) को अपने पिता से अधिक लगाव था। उसके पिता ने उसके लालन-पालन में ही सहयोग नहीं दिया, अपितु वे उसके अच्छे दोस्त भी थे। उसके खेल में साथ रहते थे। विपदा के समय बच्चे को लाड़-प्यार की अपेक्षा ममता एवं सुरक्षा की भावना की आवश्यकता होती है, वह उसे माँ की गोद में मिल सकती है। बच्चा माँ की गोद में अपने-आपको जितना सुरक्षित महसूस करता है उतना पिता के लाड़-प्यार की छाया में नहीं। इसी कारण संकट में बच्चे को माँ की याद आती है, पिता की नहीं। माँ की ममता बच्चे के घाव भरने में मरहम का काम करती है।

प्रश्न 2.
आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है?
उत्तर–
बच्चा सदैव अपने साथियों में खेलना व रहना पसंद करता है। भोलानाथ भी एक साधारण बालक था। उसे अपने साथियों के साथ खेलने में गहरा आनंद मिलता था। वह अपने साथियों को शोर मचाते, शरारतें करते और खेलते हुए देखकर सब कुछ भूल जाता है। इसी मग्नावस्था में वह सिसकना भी भूल जाता था।

प्रश्न 3.
आपने देखा होगा कि भोलानाथ और उसके साथी जब-तब खेलते-खाते समय किसी न किसी प्रकार की तुकबंदी करते हैं। आपको यदि अपने खेलों आदि से जुड़ी तुकबंदी याद हो तो लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

प्रश्न 4.
भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर-
आज के युग में और भोलानाथ के युग में बहुत अंतर आ गया है। आज माता-पिता बच्चों को भोलानाथ और उसके साथियों की भाँति ऐसे-वैसे गली-मोहल्ले में घूमने की इजाजत नहीं देते। वे बच्चों का बहुत ध्यान रखते हैं। आज के बच्चे घर बनाना, विवाह रचना, चिड़ियाँ पकड़ना, दुकान बनाना, खेती करना आदि खेल नहीं खेलते। आज के बच्चे क्रिकेट, साइकिल चलाना, दौड़ना, कार्टून बनाना, तैरना, लूडो, आदि खेल खेलते हैं। भोलानाथ के समय के बच्चों के खेलों की सामग्री और साधन भी अलग थे; जैसेचबूतरा, सरकंडे, टूटी चूहेदानी, गीली मिट्टी, टूटे हुए घड़े के टुकड़े, पुराने व टूटे हुए कनस्तर आदि। आजकल के बच्चों के खेलों की सामग्री व साधन हैं टी.वी., कंप्यूटर, साइकिल, बैट-बॉल, फुटबॉल आदि।

प्रश्न 5.
पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों?
उत्तर-
पाठ में आए कुछ ऐसे प्रसंग हैं जो पाठक के हृदय को छू जाते हैं-
(1) देखिए, मैं खिलाती हूँ। मरदुए क्या जाने कि बच्चों को कैसे खिलाना चाहिए, और महतारी के हाथ से खाने पर बच्चों का पेट भी भरता है। यह कह वह थाली में दही-भात सानती और अलग-अलग तोता, मैना, कबूतर हंस, मोर आदि के बनावटी नाम से कौर बनाकर यह कहते हुए खिलाती जाती कि जल्दी खा लो, नहीं तो उड़ जाएँगे; पर हम उन्हें इतनी जल्दी उड़ा जाते थे कि उड़ने का मौका ही नहीं मिलता।

(2) एक टीले पर जाकर हम लोग चूहों के बिल में पानी उलीचने लगे। नीचे से ऊपर पानी फेंकना था। हम सब थक गए। तब तक गणेश जी के चूहे की रक्षा के लिए शिव जी का साँप निकल आया। रोते-चिल्लाते हम लोग बेतहाशा भाग चले!

(3) इसी समय बाबू जी दौड़े आए। आकर झट हमें मइयाँ की गोद से अपनी गोद में लेने लगे। पर हमने मइयाँ के आँचल की प्रेम और शांति के चँदोवे की-छाया न छोड़ी………।

प्रश्न 6.
इस उपन्यास के अंश में तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति का चित्रण है। आज की ग्रामीण संस्कृति में आपको किस तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं? ।
उत्तर-
तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति और आज की ग्राम्य संस्कृति में पर्याप्त अंतर दिखाई देता है। आज कुओं से पानी भरना व कुओं से खेतों की सिंचाई का प्रचलन समाप्त हो गया है। गाँवों में पीने के लिए पानी की वाटर सप्लाई हो गई है और खेतों में ट्यूबवैल लग गए हैं। खेतों में बैलों की अपेक्षा ट्रैक्टर से काम लिया जाता है। संपूर्ण ग्राम अंचल के विवाह संबंधी रीति-रिवाज़ बदल गए हैं। भौतिकवाद और उपभोक्तावाद का प्रभाव ग्राम्य संस्कृति में भी दिखाई देने लगा है। आपसी भाईचारा व मेल-मिलाप भी कम होने लगा है। आज मनोरंजन के साधन बदल चुके हैं। चौपालों में हुक्के गुड़गुड़ाने की अपेक्षा हमारे बुजुर्ग भी टी.वी. के आगे बैठकर क्रिकेट के मैच का आनंद लेते हुए देखे जा सकते हैं। ग्रामीण अंचल की मौज-मस्ती भरे जीवन के स्थान पर व्यस्त एवं तेज़ रफ़्तार वाला जीवन देखा जाता है।

प्रश्न 7.
पाठ पढ़ते-पढ़ते आपको भी अपने माता-पिता का लाड़-प्यार याद आ रहा होगा। अपनी इन भावनाओं को डायरी में अंकित कीजिए।
उत्तर-
बचपन में पिता के स्थान पर माता ही हमें जगाया करती थी तथा शीघ्रता से नहाकर खाना खाने के लिए कहती, यदि इस काम में थोड़ी सी देरी हो जाती तो डाँट पड़नी निश्चित थी। पिता जी ने पैरों पर बिठाकर कई बार झूले दिए थे। जब सबसे ऊँचा झूला मिलता था तो हमारी खुशी का ठिकाना न रहता। कभी पिता जी अपने साथ खेत में भी ले जाया करते थे। वहाँ तरह-तरह की फसलों को देखकर हम बहुत खुश होते थे। खेतों में चरते हुए पशु भी मुझे बहुत अच्छे लगते थे। खेत में चल रहे ट्यूबवैल के चबचों में नहाने का तो आनंद ही और था। स्कूल में जाते समय माता-पिता से पैसे लेना हम कभी नहीं भूलते थे। उन पैसों को दोस्तों के साथ मिलकर खर्च करने का आनंद भी कम नहीं था। देर तक घर से बाहर रहने पर कई बार फटकार भी सुननी पड़ती थी।

प्रश्न 8.
यहाँ माता-पिता का बच्चे के प्रति जो वात्सल्य व्यक्त हुआ है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में आदि से अंत तक माता-पिता का बच्चों के प्रति वात्सल्य भाव का ही उद्घाटन हुआ है। यह व्यक्त करना ही पाठ का प्रमुख लक्ष्य है। लेखक का उसके पिता के पास सोना प्रातः समय पर उठकर उनके साथ नहाना-धोना और पिता के द्वारा भोजन कराया जाना, कम भोजन खाने पर चिंता व्यक्त करना। पिता जी द्वारा कंधे पर बैठाकर गंगा के किनारे ले जाना। उसके साथ कुश्ती करना। बच्चों को खुश रखने के लिए खेल में हार जाना। साँप को देखने से डर जाने पर माँ द्वारा आँचल में छुपा लेना आदि में वात्सल्य भाव का ही चित्रण हुआ है।

प्रश्न 9.
‘माता का अँचल’ शीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्य शीर्षक सुझाइए।
उत्तर-
माता का अँचल’ नामक पाठ का शीर्षक उपयुक्त नहीं है क्योंकि यह पाठ के अंतिम भाग पर लागू होता है, संपूर्ण पाठ में पिता और पुत्र के संबंधों का उल्लेख किया गया है। केवल एक घटना में बच्चे सर्प को देखकर डर जाते हैं तथा लेखक (बालक) माँ से अलग होने का नाम नहीं लेता। यह बात पूरी काल्पनिक सी लगती है, क्योंकि बच्चा दिन-रात पिता के साथ घुला-मिला रहता है। उसका अधिकांश समय पिता के साथ बीतता है लेकिन जब पिता डरे हुए बालक के पास जाता है तो वह और भी अधिक माँ के आँचल में छुप जाता है। ऐसा संभव नहीं क्योंकि पिता, पिता ही नहीं बालक का अच्छा मित्र भी है। इस पाठ का शीर्षक हो सकता है ‘मेरा बचपन’ अथवा ‘मेरा शैशवकाल’ ।

प्रश्न 10.
बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं?
उत्तर-
बच्चे अपने माता-पिता के साथ रहते हुए, माता-पिता की बताई हुई अच्छी बातों पर अमल करके, उनके साथ खेलकर, उनकी आज्ञा का पालन करके, उनकी गोद में बैठकर आदि बातों से अपने प्रेम को उनके प्रति व्यक्त करते हैं।

प्रश्न 11.
इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है वह आपके बचपन की दुनिया से किस तरह भिन्न है?
उत्तर-
यह पाठ काफी समय पहले का लिखा हुआ है। उस समय और आज के समय के जीवन में दिन-रात का अंतर हो गया . है। उस समय के बचपन में बच्चों पर पढ़ाई-लिखाई का कोई दबाव नहीं था। सब बच्चे मिल-जुलकर खूब खेलते थे। किंतु अब आपस में स्नेह भाव, विचारों का आदान-प्रदान व विश्वास की कमी हो गई है। आज के युग में बच्चों की पढ़ाई के पाठ्यक्रम इतने मुश्किल हो गए हैं कि उन्हें पूरा करने में इतना समय लगता है कि उनके पास खेलने तक का समय नहीं बचता। इसके अतिरिक्त माता-पिता के पास भी इतना समय नहीं कि वे बच्चों के साथ कुछ समय खेल सकें। आज खेल की सामग्री व साधन भी बदल गए हैं। गिल्ली-डंडे के स्थान पर क्रिकेट है। वीडियो गेम, टी.वी. आदि अनेक आधुनिकतम साधन हैं। गली में नाटक खेलना, गीली मिट्टी के खिलौने बनाना, विवाह रचना, खेती करना आदि खेल अब नहीं रह गए हैं।

प्रश्न 12.
फणीश्वरनाथ रेणु और नागार्जुन की आँचलिक रचनाओं को पढ़िए।
उत्तर-
विद्यार्थी अपने विद्यालय के पुस्तकालय से इन रचनाओं को लेकर स्वयं पढ़ें।

HBSE 10th Class Hindi माता का अँचल Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘माता का अँचल’ पाठ का मूल भाव लिखिए।
उत्तर-‘माता का अँचल’ पाठ में लेखक की बाल्यावस्था का अत्यंत आकर्षक रूप में चित्रण किया गया है। लेखक ने बताया है कि उसे अपने माता-पिता का भरपूर स्नेह मिला है। बचपन में कितनी निश्चिंतता और भोलापन होता है, इसका साक्षात् रूप पाठ में देखने को मिलता है। बच्चे अपने खेल में तल्लीन होकर खेलते हैं। वहाँ किसी प्रकार का भेदभाव, घृणा व जलन का भाव नहीं होता। बच्चों की दुनिया की सजीव तस्वीर अंकित करना लेखक का प्रमुख लक्ष्य रहा है, जिसमें उसे पूर्ण सफलता भी मिली है।

प्रश्न 2.
लेखक का तारकेश्वरनाथ से भोलानाथ नाम कैसे पड़ा?
उत्तर-
लेखक के पिता बहुत सवेरे उठते थे। वे अपने साथ-साथ लेखक और उसके भाई को भी उठा देते थे। अपने साथ ही उन्हें नहला-धुलाकर पूजा में बिठा लेते थे। पूजा के पश्चात् दोनों बेटों के चौड़े मस्तक पर चंदन की अर्धचंद्राकार रेखाएँ बना देते थे। उन दोनों के लंबे-लंबे बाल भी थे। लेखक के मस्तक पर भभूत भी बहुत अच्छी लगती थी। इसलिए प्यार से तारकेश्वरनाथ को उनके पिता भोलानाथ कहकर पुकारते थे। तभी उनका नाम भोलानाथ पड़ा था।

प्रश्न 3.
‘मरदुए क्या जाने कि बच्चों को कैसे खिलाना चाहिए’ इस पंक्ति में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से पुरुष वर्ग पर करारा व्यंग्य किया गया है। यह वाक्य लेखक की माता ने उनके पिता से कहा था। यह पूर्ण सत्य है कि नारी की अपेक्षा पुरुष में ममता का भाव कम होता है। एक बच्चे को जो लाड़-प्यार माता के रूप में एक नारी कर सकती है, वह पिता के रूप में एक पुरुष नहीं कर सकता। पिता की अपेक्षा माँ बच्चों के मनोभाव को शीघ्र भाँप जाती है। माँ भावात्मक रूप से अपने बच्चों से जुड़ी रहती है लेकिन पुरुष ऐसा नहीं कर पाते।

प्रश्न 4.
पाठ में बच्चों के द्वारा बनाए गए घरौंदे का उल्लेख अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर-
लेखक की बचपन की मित्र-मंडली ने एक दिन घर बनाने का खेल खेलने का निश्चय किया। धूल-मिट्टी की दीवारें खड़ी की गईं तथा तिनकों को जोड़कर छप्पर डाला गया, दातुन के खंभे खड़े किए गए दियासलाई की डिब्बी के किवाड़ खड़े किए गए, टूटे हुए घड़े के टुकड़ों से चूल्हा-चक्की बनाई गई, घर में पानी का घी बनाया गया, धूल के पिसान और बालू की चीनी बनाई। भोजन का भी प्रबंध किया गया। सब लोगों ने घर के अंदर पंगत में बैठकर भोजन किया। इस प्रकार लेखक ने बच्चों के अद्भुत व विचित्र घरौंदे का सजीव चित्र अंकित किया है।

प्रश्न 5.
पठित पाठ के आधार पर लेखक के पिता के जीवन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
‘माता का अँचल’ नामक पाठ पढ़ने पर पता चलता है कि लेखक के पिता ईश्वर में विश्वास रखने वाले व्यक्ति थे। वे प्रतिदिन ईश्वर की वंदना करते थे। साथ ही अपने दोनों बेटों को भी वंदना करते समय अपने पास बिठा लेते थे। तत्पश्चात् वे ‘रामनामा बही’ पर हजार बार ‘राम-राम’ लिखते थे। वे राम-नाम की पर्चियाँ बनाकर उनमें आटा लपेटकर गंगा नदी में मछलियों को खिला आते थे। इस प्रकार पता चलता है कि लेखक के पिता ईश्वरभक्त व्यक्ति थे।
वे स्वभाव से सरल एवं भोले थे। उनके मन में संतान के प्रति अथाह स्नेह था। अपने बच्चों को डरे हुए देखकर वे व्याकुल हो उठते थे। वे बच्चों के साथ मित्रता का व्यवहार करते थे।

प्रश्न 6.
‘बचपन में बच्चे सरल, निर्दोष और मस्त होते हैं पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए।
उत्तर-
बचपन में सभी बच्चे सरल होते हैं। उनके मन में जो भाव उठते हैं वे उन्हें सहज एवं सरल वाणी में कह देते हैं। वे मन से भी निर्दोष होते हैं। उन्हें किसी प्रकार की चिंता व भय नहीं सताता। वे बूढ़े दूल्हे को पसंद नहीं करते, इसलिए उसे खसूट कह देते हैं। उन्हें अपनी शरारत के दुष्परिणाम का बोध नहीं था, इसलिए बूढ़ा दूल्हा उनके पीछे पड़ जाता है। बच्चे खेल में इतने मस्त हो जाते हैं, कि उन्हें घर-बार यहाँ तक कि माँ की भी याद नहीं आती।

प्रश्न 7.
खेल खेलते हुए बच्चे पिता को देखकर क्यों भाग खड़े होते हैं?
उत्तर-
गाँव में बच्चे अपनी इच्छा एवं रुचि के अनुकूल खेल खेलते हैं। वे वैसी सामग्री भी जुटाते हैं। वे खेल में पूर्णतः लीन हो जाते हैं। वे अपनी खेल की दुनिया में किसी की दखलअंदाजी नहीं चाहते अर्थात् वे नहीं चाहते कि उनके खेल में बड़े लोग भी सम्मिलित हों। इसलिए जब भी लेखक के पिता ने उन्हें खेलते हुए देखा और उनके करीब चले गए, तो बच्चे अपना खेल अधूरा छोड़कर भाग खड़े होते हैं।

प्रश्न 8.
पठित पाठ से हमें बाल्य जीवन की कौन-सी जानकारी प्राप्त होती है?
उत्तर-
इस पाठ से पता चलता है बाल्य जीवन में बच्चे मन में दूसरों के प्रति कोई भेदभाव की भावना नहीं रखते। वे सब मिलकर खेल रचते हैं। उनके मन में किसी प्रकार की जातिगत भावना भी नहीं होती। सब जाति-धर्मों के बच्चे मिलकर खेलते हैं। बच्चे अपने मन में किसी प्रकार की बात को छुपाकर नहीं रखते। यदि वे दुःखी हैं या भयभीत हैं तो रोकर या चिल्लाकर व्यक्त कर देते हैं। प्रसन्नता के भाव को वे खिलखिलाकर व हँसकर व्यक्त कर देते हैं। इसी प्रकार रोते-रोते खुश हो जाना और तुरंत खेल में लग जाना बच्चों का विचित्र स्वभाव है। वे मन में कभी बदले की भावना नहीं रखते। जो उनके मन में भाव या इच्छा होती है उसे वे कह डालते हैं। उसका परिणाम क्या होगा, उसकी चिंता उन्हें नहीं होती।

सबसे बड़ी बात यह है कि बच्चों के मन पर तनाव या किसी विचार का बोझ नहीं होता। वे बीती बातों को याद करके दुःखी नहीं होते। उनके सामने जो भी उनकी रुचि के अनुकूल खेल या प्रसंग आता है वे उसी में लीन हो जाते हैं।

प्रश्न 9.
बूढ़े दूल्हे पर की गई टिप्पणी के माध्यम से लेखक ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर–
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने बूढ़े दूल्हे पर बच्चों के माध्यम से व्यंग्यात्मक टिप्पणी की है। लेखक ने यहाँ यह बताया है कि बुढ़ापे में विवाह करना उचित कार्य नहीं है। हर कार्य समय पर ही अच्छा लगता है। बुढ़ापे में दूल्हा बनना न केवल सामाजिक दृष्टि से बल्कि नैतिक दृष्टि से भी उचित नहीं है। लेखक का संदेश है कि वृद्ध-विवाह नहीं होना चाहिए।

प्रश्न 10.
लेखक को बचपन में स्कूल के अध्यापक से डाँट क्यों सुननी पड़ी थी?
उत्तर-
लेखक को बचपन में स्कूल के अध्यापक की डाँट-फटकार इसलिए सुननी पड़ी थी क्योंकि उसने अन्य बच्चों के साथ मिलकर मूसन तिवारी नामक बूढ़े व्यक्ति को अपशब्द कहे थे। बैजू नामक लड़के ने मस्ती करते हुए मूसन तिवारी को ‘बुढ़वा बेईमान माँगे करैला का चोखा’ कहकर चिढ़ाया था। अन्य बच्चों ने भी मस्ती में आकर ये शब्द दोहराए थे। नतीजा यह हुआ कि मूसन तिवारी अपने अपमान का बदला लेने के लिए स्कूल में जा पहुँचे और बच्चों को अध्यापक से खूब डाँट पड़वाई।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘माता का अँचल’ नामक कहानी के लेखक कौन हैं?
(A) कमलेश्वर
(B) शिवपूजन सहाय
(C) प्रेमचंद
(D) मधु कांकरिया
उत्तर-
(B) शिवपूजन सहाय

प्रश्न 2.
लेखक के पिता प्रातः उठकर क्या करते थे?
(A) कसरत
(B) सैर
(C) पूजा
(D) समाचार पढ़ना
उत्तर-
(C) पूजा

प्रश्न 3.
लेखक बचपन में किसका तिलक लगाता था?
(A) चंदन का
(B) गोरस का
(C) रोली का
(D) भभूत का
उत्तर-
(D) भभूत का

प्रश्न 4.
भभूत लगाने से लेखक क्या बन जाते थे?
(A) श्रीकृष्ण
(B) श्रीराम
(C) बम-भोला
(D) राजकुमार
उत्तर-
(C) बम-भोला

प्रश्न 5.
लेखक का वास्तविक नाम क्या था?
(A) तारकेश्वरनाथ
(B) महेशनाथ
(C) पृथ्वीराज
(D) भोलानाथ
उत्तर-
(A) तारकेश्वरनाथ

प्रश्न 6.
लेखक के पिता बचपन में उसे क्या कहकर पुकारते थे?
(A) नाथ
(B) भोलानाथ
(C) अमरनाथ
(D) शिव महाराज
उत्तर-
(B) भोलानाथ

प्रश्न 7.
लेखक के पिता कितनी बार ‘राम’ शब्द लिखकर ‘रामनामा बही पोथी बंद करते थे?
(A) पाँच सौ बार
(B). छह सौ. बार
(C) सात सौ बार
(D) एक हज़ार बार
उत्तर-
(D) एक हज़ार बार

प्रश्न 8.
लेखक के पिता कितनी बार कागज़ के छोटे-छोटे टुकड़ों पर राम नाम लिखकर आटे की गोलियों में लपेटकर मछलियों को खिलाने जाते थे?
(A) पाँच सौ बार
(B) चार सौ बार
(C) तीन सौ पाँच बार
(D) दो सौ इक्कावन बार
उत्तर-
(A) पाँच सौ बार

प्रश्न 9.
‘मरदुए’ शब्द कहानी में किसने किसके लिए प्रयोग किया है?
(A) लेखक ने पिता के लिए
(B) लेखक की माता ने उसके पिता के लिए
(C) लेखक की माता ने लेखक के लिए
(D) इनमें से किसी ने नहीं
उत्तर-
(B) लेखक की माता ने उसके पिता के लिए

प्रश्न 10.
‘ठौर’ शब्द का अर्थ है-
(A) ठहरना
(B) दौड़ना
(C) स्थान
(D) आकाश
उत्तर-
(C) स्थान

प्रश्न 11.
लेखक गली में कौन-सा खिलौना लेकर जाते थे?
(A) कार
(B) बैलगाड़ी
(C) हाथी
(D) काठ का घोड़ा
उत्तर-
(D) काठ का घोड़ा

प्रश्न 12.
लेखक को बचपन में कैसे खेल पसंद थे?
(A) तरह-तरह के नाटक करना
(B) गिल्ली-डंडा खेलना
(C) लुका-छिपी खेलना
(D) चोर-सिपाही बनना
उत्तर-
(A) तरह-तरह के नाटक करना

प्रश्न 13.
वर्षा आने पर बच्चों ने कहाँ का आसरा लिया था?
(A) झोंपड़ी में
(B) पेड़ की जड़ों के पास
(C) किसी कमरे में
(D) छतरी के नीचे
उत्तर-
(B) पेड़ की जड़ों के पास

प्रश्न 14.
बच्चों की शिकायत किस व्यक्ति ने की थी?
(A) लेखक के पिता ने
(B) बाग के मालिक ने
(C) मूसन तिवारी ने
(D) लेखक की माता ने
उत्तर-
(C) मूसन तिवारी ने

प्रश्न 15.
‘चिरौरी करना’ का क्या अर्थ है?
(A) चिड़ाना
(B) नकल करना
(C) चोरी करना
(D) विनती करना
उत्तर-
(D) विनती करना

प्रश्न 16.
“चिड़िया की जान जाए, लड़कों का खिलौना।” ये शब्द किसने कहे?
(A) लेखक के पिता जी और उनके मित्रों ने
(B) लेखक की माता ने
(C) लेखक के मित्रों और उनके मित्रों ने
(D) खेत के मालिक ने
उत्तर-
(A) लेखक के पिता जी और उनके मित्रों ने

प्रश्न 17.
बूढ़े दूल्हे पर की गई टिप्पणी के द्वारा क्या संदेश दिया गया है?
(A) बूढ़ा दूल्हा सुंदर नहीं होता
(B) बुढ़ापे में विवाह करना उचित नहीं
(C) हर कार्य समय पर अच्छा होता है
(D) बूढ़ा दूल्हा सम्मानित नहीं होता
उत्तर-
(B) बुढ़ापे में विवाह करना उचित नहीं

प्रश्न 18.
भोलानाथ को सबसे अच्छा क्या लगता है?
(A) भोजन खाना
(B) पढ़ना
(C) खेलना
(D) सोना
उत्तर-
(C) खेलना

माता का अँचल Summary in Hindi

माता का अँचल पाठ का सार

प्रश्न-
‘माता का अँचल’ शीर्षक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ श्री शिवपूजन सहाय के ‘देहाती दुनिया’ नामक उपन्यास का अंश है। ‘देहाती दुनिया’ हिंदी साहित्य का पहला आंचलिक उपन्यास है। इसे शिशु भोलानाथ के चरित्र को मध्य में रखकर रचा गया है। संकलित अंश में ग्रामीण अंचल और उसके चरित्रों का एक अद्भुत चित्र अंकित किया गया है। बालकों के खेल, कौतूहल, माँ की ममता, पिता का प्यार, लोकगीत आदि का एक साथ चित्रण किया गया है। बाल-सुलभ मनोभावों की सुंदर अभिव्यक्ति हुई है। साथ ही तत्कालीन समाज के पारिवारिक परिवेश का भी उल्लेख किया गया है। पाठ का सार इस प्रकार है-

लेखक अभी बच्चा ही था कि वह अपने पिता जी के साथ प्रातः शीघ्र उठकर, स्नान आदि करके पूजा करने बैठ जाता था। वह अपने पिता से जिद्द करके माथे पर त्रिपुंड लगवाया करता था। अपनी लंबी-लंबी जटाओं के कारण वह भोलानाथ अथवा बम-भोला ही लगता था। लेखक अपने पिता जी को बाबू जी और माताजी को मइयाँ कहकर पुकारता था। जब उसके पिता जी रामायण का पाठ करते तो वह भी वहाँ बैठ जाता था। वह वहाँ बैठा-बैठा दर्पण देखा करता था, जब उसके पिता जी उसकी तरफ देखते तो वह हँस पड़ता था। लेखक के पिता पूजा-पाठ करने के पश्चात् रामनामा बही पर हज़ार बार राम-नाम लिखते थे। फिर कागज़ के टुकड़ों पर पाँच सौ बार राम-नाम लिखकर तथा उन्हें आटे की गोलियों में लपेटकर गंगा जी में मछलियों को खिलाने के लिए जाते थे। भोलानाथ भी पिता के साथ गंगा तट पर जाता था। उस समय वह पिता के कंधों पर बैठकर मुस्कराता रहता था।

लेखक बचपन में पिता के.साथ अनेक खेल खेलता था। कभी-कभी कुश्ती भी लड़ता था और उनकी छाती पर बैठकर उनकी मूंछे उखाड़ने लगता था। तब उसके पिता उससे पूँछे छुड़वाकर उसका हाथ चूम लेते थे। पिता जी उसके दोनों गाल चूमते व उन पर अपनी दाढ़ी रगड़ देते। लेखक फिर उनकी मूंछे उखाड़ने लगता और वे झूठ-मूठ का रोने लगते। लेखक पिता जी के साथ भोजन करता। पिता उसे अपने हाथों से भोजन खिलाते थे। जब उसका पेट भर जाता था तो उसे माँ और भोजन खिलाने की जिद्द करती और कहती-

‘जब खाएगा बड़े-बड़े कौर, तब पाएगा दुनिया में ठौर’ वह अपने पति को ताना देती हुई कहती है कि आप मर्द लोग बच्चों को खाना खिलाना क्या जानो। तब माँ उसे तोता, मैना, चिड़िया, मोर आदि पक्षियों के नाम ले-लेकर भोजन कराती। कभी-कभी माँ उसके बालों में चुल्लू भर कड़वा तेल लगा देती, उसके माथे पर बिंदी लगा देती, उसकी चोटी गूंथ देती तथा उसमें फूलदार लट्ट भी बाँध देती। उसे रंगीन कुर्ता और टोपी पहना देती। तब वह गली में खेलने के लिए चल देता।

लेखक बच्चों के साथ मिलकर तरह-तरह के खेल खेलता था। वह मिठाइयों की दुकान सजाता तो कभी नाटक किया करता। दुकान में पत्तों की पूरियाँ, गीली मिट्टी की जलेबियाँ भी बनाई जातीं। जब पिता उन्हें ऐसे खेलता देख लेता तो वह सबको तोड़-फोड़ देता और पिता हँसने लगते। इसी प्रकार लेखक घर बनाने का खेल व विवाह रचाने, बारात को भोजन कराने के खेल भी खेला करता था। वह बच्चों के साथ मिलकर बारात का जुलूस निकालने का खेल भी खेलता था जिसमें कनस्तर का तंबूरा बजता, आम के पौधे की शहनाई बजती, टूटी हुई चूहेदानी की पालकी सजाई जाती, समधी बनकर बकरे पर चढ़ जाते। यह जुलूस चबूतरे के एक कोने से दूसरे कोने तक जाता। कभी-कभी खेती करने का खेल भी खेला जाता। इस प्रकार के खेल और नाटक करना प्रतिदिन का काम था।

कभी किसी दूल्हे के आगे चलती पालकी देखते तो ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगते। एक बार एक बूढ़े वर ने लेखक मंडली को खदेड़कर ढेलों से मारा। एक बार रास्ते में आते हुए मूसन तिवारी को बुढ़वा बेईमान कहकर चिढ़ा दिया। मूसन तिवारी ने भी उनको खूब डाँटा। उसके बाद मूसन तिवारी स्कूल पहुंच गए। वहाँ चारों लड़कों में से बैजू तो भाग निकला, किंतु लेखक और उसका भाई पकड़े गए। यह सुनकर बाबू जी दौड़ते हुए पाठशाला गए। गुरु जी से विनती कर बाबू जी उन्हें घर ले गए। लेखक और उसके मित्र एक बार मकई के खेत में चिड़ियाँ पकड़ने घुस गए। चिड़ियाँ तो पकड़ी नहीं गईं और खेत से अलग होकर वे सब मिलकर ‘राम जी की चिरई, राम जी का खेत, खा लो चिरई, भर-भर पेट’ गीत गाने लगे। कुछ ही दूरी पर खड़े बाबूजी व अन्य लोग उनका यह तमाशा देखकर प्रसन्न हो रहे थे।

टीले पर जाकर लेखक और उसका भाई अपने मित्रों के साथ चूहों के बिलों में पानी डालने लगे। कुछ देर बाद उसमें से श्रीगणेश जी के चूहे की अपेक्षा सर्प निकल आया। उससे वे इतने डर गए कि वहाँ से रोते-चिल्लाते भागते हुए घर आ गए। गिरने, फिसलने व काँटे लग जाने के कारण सब लहूलुहान हो गए। सब अपने-अपने घरों में घुस गए। उस समय बाबू जी बरामदे में बैठकर हुक्का पी रहे थे। वे दोनों अपनी माँ की गोद में जाकर छिप गए। उन्हें डर से काँपते हुए देखकर माँ भी रोने लगी। वह व्याकुल होकर कारण पूछने लगी। वह उन्हें कभी अपने आँचल में छिपाती तो कभी गले से लगाती। माँ ने तुरंत हल्दी पीसकर लेखक और उसके भाई के घावों पर लगाई। उनके शरीर अभी भी काँप रहे थे। आँखें चाहकर भी नहीं खुलती थीं। बाबू जी भी उन्हें अपनी गोद में लेने लगे। किंतु वे माँ के आँचल में ही छिपे रहे।

कठिन शब्दों के अर्थ

(पृष्ठ-1) अँचल = गोद, आँचल। संग = साथ। मृदंग = वाद्य यंत्र। तड़के = प्रातःकाल। नाता = संबंध। भभूत = राख। दिक करना = तंग करना। लिलार = ललाट। त्रिपुंड करना = माथे पर तीन आड़ी या अर्धचंद्राकार रेखाएँ बनाना। जटाएँ = बालों का जुड़कर रस्सी के समान बन जाना। रमाने = लगाना। बम-भोला = शिव का ही एक नाम। आइना = दर्पण। निहारना = देखना। पोथी = ग्रंथ, पुस्तक।

(पृष्ठ-3) विराजमान = उपस्थित। शिथिल = ढीला, सुस्त। पछाड़ना = हराना। उतान पड़ना = पीठ के बल लेटना। नोचना = जोर से खींचना। चौका = भोजन बनाने का स्थान । गोरस = दूध । भात = चावल । सानकर = मिलाकर। फूल का कटोरा = काँच का कटोरा। अफरना = भरपेट से अधिक खा लेना। कौर = रोटी का टुकड़ा। ठौर = स्थानं । मरदए = मर्द, पुरुष । महतारी = माता।

(पृष्ठ-4) काठ = लकड़ी। कड़वा तेल = सरसों का तेल। बिगड़ना = क्रोध में आना, गुस्सा करना। बोथना = लगाना। नाभी = पेट का मध्य भाग। बाट जोहना = प्रतीक्षा करना। हमजोली = साथी। रंगमंच = नाटक खेलने का स्थान। तमाशे करना = खेल खेलना। सरकंडा = एक प्रकार का नुकीला पौधा। चँदोआ = छोटा शामियाना। खोंचा = ढाँचा। बताशे = चीनी की मिठाई। ठीकरा = मिट्टी का टुकड़ा। घरौंदा = घर, रहने का स्थान। आचमनी = पानी पीने के काम आने वाला बर्तन। कलछी = दाल या भात डालने वाला बर्तन। पिसान = पिसी हुई वस्तु। बालू = रेत। ज्योनार = दावत, भोजन। पाँत = पंक्ति। जीमना = भोजन खाना। लोट-पोट हो जाना = खूब ज़ोर से हँसना।

(पृष्ठ-5) कनस्तर = टिन का खाली पीपा। तंबूरा = एक प्रकार का बर्तन। कलसा = कलश। खटोली = छोटी-सी चारपाई। ओहार = परदे के लिए डाला हुआ कपड़ा। कुल्हिए = मिट्टी का बर्तन। गराड़ी = गरारी। कसोरा = मिट्टी का बना बर्तन। जुआठा = बैल को हल में जोतना। ओसाना = अनाज को भूसे से अलग करना। पटाना = सींचना । बटोही = राही, पथिक। ठिठककर = चौंककर।

(पृष्ठ-6) रहरी = अरहर। खसूट-खब्बीस = लूटने वाला पापी व्यक्ति। जमाई = दामाद। घोड़ मुँहा = घोड़े के मुख जैसा। पट पड़ना = औंधे पड़ना। मेघ = बादल। कौंधना = चमकना। छितराई = फैली हुई। बिलाई = धुल गई। अँठई = कुत्ते या शेर के शरीर में चिपके रहने वाले छोटे कीड़े। चोखा = भरथा। सुर = स्वर। बेतहाशा = बहुत ज़ोर-शोर से, आवेग के साथ। आँधी होना = तेज़ भागना। नौ-दो ग्यारह होना = गायब होना। खबर लेना = कठोरता से व्यवहार करना। चिरौरी = दीनतापूर्वक की गई प्रार्थना।

(पृष्ठ-7-8) हाथ न आना = पकड़ में न आना। चिरई = चिड़िया। पराई पीर = दूसरों का दुःख। उलीचना = हाथों से पानी डालना। अंटाचिट = पूरी तरह से चित करना। छलनी होना = बिंध जाना। ओसारा = बरामदा। अमनिया = साफ। कुहराम मचाना = शोर मचाना। रोंगटे खड़े होना = हैरान होना।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति

HBSE 10th Class Hindi संस्कृति Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक की दृष्टि में ‘सभ्यता’ और ‘संस्कृति’ की सही समझ अब तक क्यों नहीं बन पाई है?
उत्तर-
लेखक का मत है कि रूढ़िवादी अपनी रूढ़ियों से इस प्रकार बँधे हुए हैं कि हर पल, हर क्षण बदलते इस संसार से पिछड़ जाते हैं। वे अपनी बँधी हुई सीमाओं तक ही सीमित रह जाते हैं। ऐसे लोग अपनी संकीर्ण सोच और संकुचित दृष्टिकोण के कारण सभ्यता एवं संस्कृति के लोककल्याणकारी पक्ष नहीं देख पाते तथा अपने व्यक्तिगत, जातिगत व वर्गगत हितों की रक्षा में लगे रहते हैं। वे इसे अपनी सभ्यता और संस्कृति मान बैठते हैं। यद्यपि सच्चाई यह है कि सभ्यता और संस्कृति में बिना किसी वर्गगत, जातिगत यहाँ तक कि धर्मगत भावना का कोई स्थान नहीं होता, उसमें पूरी मानवता के कल्याण की भावना रहती है। यही कारण है कि अब तक लोगों की सभ्यता और संस्कृति के प्रति सही सोच नहीं बन पाई है।

प्रश्न 2.
आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज क्यों मानी जाती है? इस खोज के पीछे रही प्रेरणा के मुख्य स्रोत क्या रहे होंगे?
उत्तर-
आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज है क्योंकि वह मनुष्य की सबसे बड़ी आवश्यकता को पूरी करती है। वह भोजन पकाने में काम आती है और भोजन से मनुष्य की भूख समाप्त हो जाती है। आज भी इस खोज का महत्त्व सर्वोप्रिय है। आज भी हम हर सांस्कृतिक कार्य के आरंभ में दीप जलाते हैं। सर्दियों में तो आग का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। ठंडी रात में जहाँ आग से तपन मिलती है वहीं अँधेरा भी दूर भाग जाता है। आदिम युग में केवल पेट की भूख को दूर करने के लिए आग की खोज की भावना रही होगी। तत्पश्चात् आग के अन्य लाभ सामने आने पर इसे देवता तुल्य पूजा जाने लगा था। आज भी आग का मानव जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है।

प्रश्न 3.
वास्तविक अर्थों में ‘संस्कृत व्यक्ति’ किसे कहा जा सकता है?
उत्तर-
जो व्यक्ति अपनी बुद्धि और विवेक से मानवता को किसी नए तथ्य के दर्शन कराता है, अर्थात् निःस्वार्थ भाव से मानव-कल्याण के लिए कार्य करता है, उसे ही वास्तविक अर्थों में ‘संस्कृत व्यक्ति’ कहते हैं। ऐसा व्यक्ति आंतरिक प्रेरणा से नए-नए आविष्कार करता रहता है।

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प्रश्न 4.
न्यूटन को संस्कृत मानव कहने के पीछे कौन से तर्क दिए गए हैं? न्यूटन द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों एवं ज्ञान की कई दूसरी बारीकियों को जानने वाले लोग भी न्यूटन की तरह संस्कृत नहीं कहला सकते, क्यों?
उत्तर-
न्यूटन एक महान् वैज्ञानिक थे। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का आविष्कार किया था, जो उनसे पहले किसी ने नहीं किया था, संस्कृत मानव वह कहलवाएगा जो बिना किसी भेदभाव के सबके लिए नया काम करेगा। किसी पूर्व खोजी हुई वस्तु या सिद्धांत में परिमार्जन करने वाले व्यक्ति को संस्कृत मानव नहीं कहा जाता क्योंकि वह पहले आविष्कृत काम को ही आगे बढ़ा रहा है। न्यूटन के सिद्धांत की कोई कितनी ही बारीकियाँ क्यों न जान ले परंतु संस्कृत कहलवाने का अधिकारी तो उस सिद्धांत को प्रतिपादित करने वाला व्यक्ति ही रहेगा। अन्य व्यक्ति सभ्य हो सकते हैं, किंतु संस्कृत नहीं।।

प्रश्न 5.
किन महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सुई-धागे का आविष्कार हुआ होगा?
उत्तर-
आदिम युग में मनुष्य जंगलों में नंगा घूमता था। उसे सर्दी-गर्मी के कष्टों को सहना पड़ता था। इन्हीं कष्टों से बचने के कारण ही मनुष्य ने सुई-धागे का आविष्कार किया होगा। इसके अतिरिक्त अपने शरीर को ढकने व सजाने के भाव के कारण भी उसे ऐसी वस्तु की तलाश होगी जो दो वस्तुओं को जोड़ सके। किंतु दूसरा विचार गौण प्रतीत होता है और पहला प्रथम।

प्रश्न 6.
मानव संस्कृति एक अविभाज्य वस्तु है।” किन्हीं दो प्रसंगों का उल्लेख करें जब-
(क) मानव संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ की गईं।
(ख) जब मानव संस्कृति ने अपने एक होने का प्रमाण दिया।
उत्तर-
(क) मानव संस्कृति अविभाज्य है परंतु कभी-कभी मानव ने अज्ञानतावश संस्कृति को भी धर्म व सामाजिक विश्वासों के आधार पर विभाजित करने का दुस्साहस किया है। हिंदू-मुस्लिम भावनाओं को भड़काकर लड़ाई-झगड़े करवाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करना आज के नेताओं का आम कार्य हो गया है। आजकल आरक्षण के नाम पर संस्कृति को विभाजित किया जाता है।

(ख) जब-जब भी कुछ स्वार्थी लोगों ने संस्कृति को विभाजित करने का प्रयास किया तब-तब संस्कृति के वे तत्त्व उभरकर सामने आते हैं, जो उसे एक बनाए रखते हैं। यथा ‘त्याग’ संस्कृति का प्रमुख तत्त्व है। इसे सब मानते हैं। त्यागशील व्यक्ति किसी भी धर्म व संस्कृति का हो वह सबके लिए काम करता है। हिंसा के सभी विरोधी हैं। जापान पर परमाणु बम के आक्रमण का संपूर्ण विश्व ने एक स्वर में विरोध किया था। रसखान ने मुसलमान होकर कृष्ण की आराधना की। बिस्मिल्ला खाँ भी मुसलमान था किंतु बालाजी से आशीर्वाद लेकर संगीत का सम्राट बन गया। सभी हिंदू लोग गुरुद्वारों में जाकर माथा टेकते हैं। पीर-पैगंबरों के सामने जाकर मन्नतें माँगते हैं। अतः संस्कृति मानवीय गुण है। इसे विभाजित नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 7.
आशय स्पष्ट कीजिए
(क) मानव की जो योग्यता उससे आत्म-विनाश के साधनों का आविष्कार कराती है, हम उसे उसकी संस्कृति कहें या असंस्कृति? ,
उत्तर-
लेखक प्रश्न करता है मानव की जो योग्यता, भावना, प्रेरणा और प्रवृत्ति उससे विनाशकारी हथियारों का निर्माण करवाती है, उसे हम संस्कृति कैसे कहें? वह तो आत्म-विनाश कराती है। लेखक कहता है ऐसी भावना और योग्यता को असंस्कृति कहना चाहिए।

रचना और अभिव्यक्ति-

प्रश्न 8.
लेखक ने अपने दृष्टिकोण से सभ्यता और संस्कृति की एक परिभाषा दी है। आप सभ्यता और संस्कृति के बारे में क्या सोचते हैं? लिखिए।
उत्तर-
मेरे विचार से संस्कृति वह है जो मानवता के हित के लिए किया गया कार्य हो। कर्म हमारे विचारों के अनुसार ही घटित होते हैं। जो ज्ञान या विचार हमारे कर्मों को श्रेष्ठ व महान् बनाएँ वे ही संस्कृति की संज्ञा प्राप्त कर सकते हैं। संस्कृति के सामने संपूर्ण मानवता एक है। उसमें किसी धर्म व जातिगत भेदभाव नहीं होते। संस्कृति ही हमारी सभ्यता को श्रेष्ठ बनाती है। कहा भी गया है कि सभ्यता संस्कृति का परिणाम होता है। जो समाज जितना सुसंस्कृत होगा वह उतना ही सुसभ्य भी होगा।

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भाषा-अध्ययन-

प्रश्न 9.
निम्नलिखित सामासिक पदों का विग्रह करके समास का भेद भी लिखिए-
गलत-सलत
आत्म-विनाश
महामानव
पददलित
हिंदू- मुसलिम
यथोचित
सुलोचना
उत्तर-
HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति 1

पाठेतर सक्रियता

“स्थूल भौतिक कारण ही आविष्कारों का आधार नहीं है।” इस विषय पर वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन कीजिए।
उन खोजों और आविष्कारों की सूची तैयार कीजिए जो आपकी नज़र में बहुत महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर-
ये प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं हैं। इन्हें विद्यार्थी स्वयं करें।

HBSE 10th Class Hindi संस्कृति Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
लेखक ने किस वस्तु को रक्षणीय और वांछित नहीं कहा है?
उत्तर-
लेखक ने कहा है कि संस्कृति के नाम से जिस कूड़े-करकट के ढेर का बोध होता है, वह न संस्कृति है और न रक्षणीय वस्तु है। ऐसी वस्तुएँ वांछनीय भी नहीं हैं। ऐसी वस्तु की रक्षा के लिए किसी प्रकार की दलबंदी करने की आवश्यकता भी नहीं है।

प्रश्न 2.
संस्कृत व्यक्ति के वंशज संस्कृत होंगे या सभ्य? सिद्ध कीजिए।
उत्तर-
लेखक के अनुसार संस्कृत व्यक्ति के वंशज सभ्य तो होंगे, किंतु संस्कृत नहीं। संस्कृत होने के लिए नई-नई वस्तुओं की खोज करने की योग्यता, प्रेरणा और प्रवृत्ति का होना आवश्यक है। लेखक का यह विचार संकीर्ण एवं एकपक्षीय है।

प्रश्न 3.
संस्कृति अविभाज्य कैसे है? सिद्ध कीजिए।
उत्तर-
संस्कृति एक विचार है, उसे जातिगत व धर्मगत आधारों पर नहीं बाँटा जा सकता। जिस व्यक्ति ने आग या सुई-धागे का आविष्कार किया, वह किसी एक जाति या धर्म का न होकर मानव मात्र के लिए है। इसलिए संस्कृति को बाँटा नहीं जा सकता। वह अविभाज्य है।

प्रश्न 4.
सभ्यता या संस्कृति के विनाश का खतरा कब और कैसे होता है?
उत्तर-
सभ्यता या संस्कृति खतरे में तब पड़ जाती है जब किसी जाति अथवा देश पर अन्य लोगों की ओर से विनाशकारी आक्रमण होते हैं। हिटलर के आक्रमण से मानव संस्कृति खतरे में पड़ गई थी। धर्म, जाति, संप्रदाय व वर्ग भावना से प्रेरित होकर किए जाने वाले दंगों से भी सभ्यता एवं संस्कृति के खतरे बढ़ जाते हैं।

प्रश्न 5.
पेट की भूख शांत होने और तन ढकने के पश्चात् मानव की क्या स्थिति होती है?
उत्तर-
जब मानव का पेट भर जाता है और उसका तन भी ढका होता है, तो वह खुले आकाश के नीचे लेटा हुआ आकाश में जगमगाते हुए तारों को देखकर यह जानने के लिए बेचैन हो उठता है कि यह तारों से भरा हुआ औंधा थाल कैसे लटका हुआ है। इसका मूल कारण क्या है। मानव कभी भी निट्ठला नहीं बैठ सकता। मानव मन की आंतरिक प्रेरणा ही उसे कुछ नया करने या वर्तमान वस्तुओं के रहस्य या सत्य को जानने के लिए प्रेरित करती रहती है। आंतरिक प्रेरणा ही वह प्रेरणा है जो मानव को जन-कल्याण के कार्य करने के लिए व्याकुल बना देती है।

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विचार/संदेश संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 6.
‘संस्कृति’ नामक निबंध के संदेश पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
प्रस्तुत निबंध में लेखक ने संस्कृति और असंस्कृति के अंतर को स्पष्ट करते हुए बताया है कि महान् कार्य करना, जिनसे मानवता मात्र का कल्याण संभव है, वह संस्कृति है। इसके विपरीत लूट-पाट, भ्रष्टाचार, रिश्वत, धोखा-धड़ी, हर प्रकार की अहिंसा, अविश्वास आदि सभी कार्य संस्कृति नहीं हो सकते, वे असंस्कृति के कार्य हैं। इससे स्पष्ट है कि लेखक ने बताया है कि हमें सदा संस्कृत बनने का प्रयास करना चाहिए। इसी प्रकार सभ्यता और असभ्यता के अंतर को स्पष्ट करते हुए हमें सदा सभ्य बनने की प्रेरणा दी है। लेखक का मत है कि हम जितने अधिक सुसंस्कृत होंगे, उतने ही सभ्य होंगे। इससे पता चलता है कि इस पाठ में सुसंस्कृत एवं सुसभ्य बनने पर बल दिया गया है।

प्रश्न 7.
प्रस्तुत निबंध में लेखक ने किस-किस विचारधारा का पक्ष लिया है और किसका विरोध किया है? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत निबंध में लेखक ने लेनिन व कार्लमार्क्स की साम्यवादी विचारधारा का पक्ष लिया है। कहा गया है कि लेनिन ने दूसरों की भूख को दूर करने के लिए डबलरोटी के सूखे टुकड़े बचाकर रखे और कार्लमार्क्स ने मजदूरों को सुखी देखने के लिए सारा जीवन दुखों में बिताया। इसी प्रकार संसार के दुखों से मनुष्य को निजात दिलाने के लिए सिद्धार्थ ने संसार को त्यागकर तपस्या की। इसके साथ-साथ उन्होंने हिंदी-संस्कृति या विचारधारा को परंपरावादी या पुरानी रूढ़ियाँ कहकर उसका विरोध किया है।

इसी प्रकार संस्कृति या संस्कृत व्यक्ति तथा सभ्य व्यक्ति का पक्ष लिया है तथा असंस्कृत और असभ्य व्यक्ति का विरोध किया है। लेखक ने विरोध के कारण नहीं बताए।

प्रश्न 8.
पठित पाठ के आधार पर सभ्यता और संस्कृति में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
किसी जाति अथवा राष्ट्र की वे सब बातें जो उसके शिक्षित सहभावनायुक्त एवं उन्नत होने के सूचक ही उसकी सभ्यता कहलाती है अर्थात् मानव-जीवन के बाहरी चाल-चलन व्यवहार को सभ्यता का नाम दिया गया है। किन्तु संस्कृति का सम्बन्ध किसी जाति व राष्ट्र की उन सब बातों से होता है जो उसकी मन, रुचि, आचार-विचार, कला-कौशल और सभ्यता के क्षेत्र में बौद्धिक विकास होता है। सभ्यता का विकास संस्कृति पर ही निर्भर करता है।

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘संस्कृति’ पाठ के लेखक का क्या नाम है?
उत्तर-
‘संस्कृति’ पाठ के लेखक भदंत आनंद कौसल्यायन हैं।

प्रश्न 2.
भदंत आनंद कौसल्यायन का जन्म कब हुआ था?
उत्तर-
भदंत आनंद कौसल्यायन का जन्म सन् 1905 में हुआ था।

प्रश्न 3.
भदंत आनंद कौसल्यायन ने किस धर्म को अपनाया था?
उत्तर-
भदंत आनंद कौसल्यायन ने बौद्ध धर्म को अपनाया था।

प्रश्न 4.
लेखक के अनुसार कौन संस्कृत व्यक्ति कहलाता है?
उत्तर-
लेखक के अनुसार आविष्कार करने वाला व्यक्ति संस्कृत व्यक्ति कहलाता है।

प्रश्न 5.
‘शीतोष्ण’ से बचने के लिए मानव ने किसकी खोज की थी?
उत्तर-
शीतोष्ण’ से बचने के लिए मानव ने सुई-धागे की खोज की थी।

प्रश्न 6.
संस्कृत व्यक्ति के कार्यों के पीछे कौन-सी भावना रहती है?
उत्तर-
संस्कृत व्यक्ति के कार्यों के पीछे जन-कल्याण की भावना रहती है।

प्रश्न 7.
लेखक ने मनीषी किसे कहा है?
उत्तर-
जो मन की जिज्ञासा की तृप्ति के लिए प्राकृतिक रहस्यों को जानना चाहते हों, लेखक ने उसे मनीषी कहा है।

प्रश्न 8.
सिद्धार्थ ने बड़े होकर किस धर्म की स्थापना की थी?
उत्तर-
सिद्धार्थ ने बड़े होकर बौद्ध धर्म की स्थापना की थी।

प्रश्न 9.
लेखक ने असंस्कृत व्यक्ति किसे कहा है?
उत्तर-
मानव-कल्याण की भावना से हीन व्यक्ति को असंस्कृत व्यक्ति कहा है।

प्रश्न 10.
मानव संस्कृति कैसी वस्तु है?
उत्तर-
मानव संस्कृति अविभाज्य वस्तु है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भदंत आनंद कौसल्यायन किस राज्य के रहने वाले थे?
(A) हरियाणा
(B) उत्तर प्रदेश
(C) मध्य प्रदेश
(D) राजस्थान
उत्तर-
(A) हरियाणा

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प्रश्न 2.
भदंत आनंद कौसल्यायन ने कहाँ से बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की थी?
(A) बनारस से
(B) लखनऊ से
(C) लाहौर से
(D) चंडीगढ़ से
उत्तर-
(C) लाहौर से

प्रश्न 3.
श्री भदंत आनंद कौसल्यायन जी का निधन कब हुआ?
(A) सन् 1980 में
(B) सन् 1985 में
(C) सन् 1988 में
(D) सन् 1990 में
उत्तर-
(C) सन् 1988 में

प्रश्न 4.
श्री भदंत आनंद कौसल्यायन का बचपन का क्या नाम था?
(A) हरिराम
(B) हरनाम दास
(C) हरदेव सिंह
(D) हरिप्रसाद
उत्तर-
(B) हरनाम दास

प्रश्न 5.
भदंत आनंद कौसल्यायन किस महान कांग्रेसी नेता से प्रभावित थे और उन्होंने अपने जीवन का लंबा समय उनके साथ बिताया?
(A) जवाहर लाल नेहरू
(B) लाल बहादुर शास्त्री
(C) सरदार वल्लभ भाई पटेल
(D) महात्मा गांधी
उत्तर-
(D) महात्मा गांधी

प्रश्न 6.
अपने पूर्वजों की खोज की गई वस्तु को अनायास प्राप्त करने वाला व्यक्ति क्या कहलाता है?
(A) बुद्धिमान
(B) ज्ञानवान
(C) सभ्य
(D) संस्कृत
उत्तर-
(C) सभ्य

प्रश्न 7.
संसार के मज़दूरों को सुखी देखने का सपना किसने देखा था?
(A) लेनिन ने
(B) रूसो ने
(C) कार्ल मार्क्स ने
(D) गाँधी ने
उत्तर-
(C) कार्ल मार्क्स ने

प्रश्न 8.
तृष्णा के वशीभूत लड़ती-कटती मानवता को सुख से रखने के लिए घर का त्याग किसने किया?
(A) सिद्धार्थ ने
(B) अशोक ने
(C) लेनिन ने
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-
(A) सिद्धार्थ ने

प्रश्न 9.
रूस का भाग्य-विधाता माना गया है
(A) लेनिन
(B) मार्क्स
(C) सिद्धार्थ
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-
(A) लेनिन

प्रश्न 10.
जो योग्यता किसी महामानव से सर्वस्व त्याग कराती है वह क्या कहलाती है?
(A) विश्वास
(B) सभ्यता
(C) धर्म
(D) संस्कृति
उत्तर-
(D) संस्कृति

प्रश्न 11.
नई चीज़ की खोज कौन करता है?
(A) सभ्य व्यक्ति
(B) संस्कृत व्यक्ति
(C) जंगली व्यक्ति
(D) प्रवीण व्यक्ति
उत्तर-
(A) सभ्य व्यक्ति

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प्रश्न 12.
‘मोती भरा थाल’ किसे कहा गया है?
(A) मोतियों से भरी थाली को
(B) चाँद-तारों को
(C) तारों से भरे आकाश को
(D) घास पर चमकती हुई ओस की बूंदों को
उत्तर-
(C) तारों से भरे आकाश को

प्रश्न 13.
लेखक के अनुसार मनुष्य किस प्रकार का प्राणी है?
(A) चिन्तनशील
(B) आलसी
(C) लालची
(D) निठल्ला
उत्तर-
(A) चिन्तनशील

प्रश्न 14.
संस्कृति का संबंध मानव के किस जीवन से होता है?
(A) भौतिक जीवन से
(B) बाहरी जीवन से
(C) सामाजिक जीवन से
(D) आंतरिक जीवन से
उत्तर-
(D) आंतरिक जीवन से

प्रश्न 15.
कौन डबल रोटी के सूखे टुकड़े स्वयं न खाकर दूसरों को खिला देता था?
(A) कार्ल मार्क्स
(B) महात्मा गांधी
(C) लेनिन
(D) सिद्धार्थ
उत्तर-
(C) लेनिन

प्रश्न 16.
संसार के मजदूरों को सुखी देखने का स्वप्न देखते हुए कार्ल मार्क्स ने अपना सारा जीवन किसमें बिता दिया?
(A) दुख
(B) सुख
(C) गरीबी
(D) कल्पना
उत्तर-
(A) दुख

प्रश्न 17.
प्रस्तुत पाठ के अनुसार सिद्धार्थ ने कितने वर्ष पूर्व घर का त्याग किया?
(A) 4500
(B) 3500
(C) 1500
(D) 2500
उत्तर-
(D) 2500

प्रश्न 18.
लेखक ने सभ्यता को किसका परिणाम बताया है?
(A) राजनीति का
(B) धर्म का
(C) संस्कृति का
(D) शिक्षा का
उत्तर-
(C) संस्कृति का

प्रश्न 19.
लेखक ने मानव सभ्यता किसे कहा है?
(A) मानव के बाह्य व्यवहार को
(B) मानव की जन-कल्याण की भावना को
(C) मानव की हिंसात्मक प्रवृत्ति को
(D) मानव की नई खोज को
उत्तर-
(A) मानव के बाह्य व्यवहार को

प्रश्न 20.
लेखक ने असभ्यता की जननी किसे कहा है?
(A) सभ्यता को
(B) संस्कृति को
(C) असंस्कृति को
(D) लालची प्रवृत्ति को
उत्तर-
(C) असंस्कृति को

प्रश्न 21.
मानव संस्कृति कैसी वस्तु है?
(A) अविभाज्य
(B) विभाज्य
(C) स्थूल
(D) अस्थायी
उत्तर-
(A) अविभाज्य

प्रश्न 22.
यह संसार परिवर्तित होता है
(A) शताब्दियों में
(B) प्रतिवर्ष
(C) क्षण-क्षण
(D) कभी-कभी
उत्तर-
(C) क्षण-क्षण

प्रश्न 23.
आग के आविष्कार की पृष्ठभूमि में मूल तत्त्व का नाम है
(A) बारूद
(B) पेट की ज्वाला
(C) सौर ऊर्जा
(D) बड़वानल
उत्तर-
(B) पेट की ज्वाला

प्रश्न 24.
सिद्धार्थ के गृह-त्याग का सर्वोच्च लक्ष्य था-
(A) निर्वाण
(B) मानव-सुख
(C) निर्जरा
(D) विपश्यना
उत्तर-
(B) मानव-सुख

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प्रश्न 25.
संस्कृति के दायरे में न्यूटन थे-
(A) राजनीतिज्ञ
(B) संगीतज्ञ
(C) योगाचार्य
(D) संस्कृत
उत्तर-
(D) संस्कृत

संस्कृति गद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) एक संस्कृत व्यक्ति किसी नयी चीज़ की खोज करता है; किंतु उसकी संतान को वह अपने पूर्वज से अनायास ही प्राप्त हो जाती है। जिस व्यक्ति की बुद्धि ने अथवा उसके विवेक ने किसी भी नए तथ्य का दर्शन किया, वह व्यक्ति ही वास्तविक संस्कृत व्यक्ति है और उसकी संतान जिसे अपने पूर्वज से वह वस्तु अनायास ही प्राप्त हो गई है, वह अपने पूर्वज की भाँति सभ्य भले ही बन जाए, संस्कृत नहीं कहला सकता। एक आधुनिक उदाहरण लें। न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का आविष्कार किया। वह संस्कृत मानव था। आज के युग का भौतिक विज्ञान का विद्यार्थी न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण से तो परिचित है ही, लेकिन उसके साथ उसे और भी अनेक बातों का ज्ञान प्राप्त है, जिनसे शायद न्यूटन अपरिचित ही रहा। ऐसा होने पर भी हम आज के भौतिक विज्ञान के विद्यार्थी को न्यूटन की अपेक्षा अधिक सभ्य भले ही कह सके; पर न्यूटन जितना संस्कृत नहीं कह सकते। [पृष्ठ 129]

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) ‘संस्कृत व्यक्ति’ किसे कहा गया है?
(ग) संस्कृत व्यक्ति की संतान के संस्कृत न होने का क्या कारण बताया गया है?
(घ) संस्कृत व्यक्ति की संतान लेखक की दृष्टि में क्या और क्यों है?
(ङ) लेखक ने संस्कृत व्यक्ति के कौन-से गुण बताए हैं?
(च) न्यूटन कौन था? उसने क्या आविष्कार किया था?
(छ) सभ्य विद्यार्थी किसे कहा जा सकता है?
(ज) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-संस्कृति। लेखक का नाम-भदंत आनंद कौसल्यायन।

(ख) संस्कृत व्यक्ति उसे कहा गया है, जो अपनी प्रवृत्ति, योग्यता और प्रेरणा के आधार पर कोई नई खोज कर सकता है। उदाहरणार्थ न्यूटन एक संस्कृत व्यक्ति था। उसने अपनी प्रवृत्ति एवं योग्यता के बल पर गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत की खोज की थी।

(ग) संस्कृत व्यक्ति की संतान को संस्कृत व्यक्ति इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि संस्कृत व्यक्ति जिस नई वस्तु का आविष्कार करता है, उसकी संतान को वह वस्तु बिना प्रयास के ही उत्तराधिकार में मिल जाती है। उसे उस वस्तु की खोज के लिए अथवा प्राप्त करने के लिए कोई पुरुषार्थ नहीं करना पड़ता। इसलिए वह संस्कृत व्यक्ति नहीं हो सकता।

(घ) लेखक की दृष्टि में संस्कृत व्यक्ति की संतान सभ्य है, क्योंकि उसने न तो किसी सभ्य के दर्शन किए और न ही अपनी बुद्धि व विवेक के बल पर किसी नई वस्तु की खोज की है। उसने तो पूर्वजों द्वारा की गई आविष्कृत वस्तु को उत्तराधिकारी के रूप में प्राप्त करके उसका प्रयोग या उपयोग किया है।

(ङ) लेखक ने संस्कृत व्यक्ति होने के लिए बताया है कि वह प्रखर बुद्धि वाला हो, विचारवान हो, परिश्रमी, त्यागशील और मानवतावादी हो। उसमें कुछ नया करने की इच्छा शक्ति का होना भी नितांत आवश्यक है। उसके सभी कार्यों के पीछे जनकल्याण की भावना निहित रहती है। वह अपना स्वार्थ सिद्ध करने की अपेक्षा दूसरों की सहायता करने में अधिक विश्वास रखता है।

(च) न्यूटन एक वैज्ञानिक था। उसने गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत की खोज की थी। उसके सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी गुरुत्वाकर्षण के बल पर अपने परिवेश की सारी वस्तुओं को अपनी ओर खींचती है।

(छ) सभ्य विद्यार्थी कहलवाने के लिए आवश्यक है कि वह संस्कृत लोगों द्वारा दिए गए ज्ञान का प्रयोग करने वाला हो। संस्कृत लोगों के द्वारा की गई खोजों का सदुपयोगकर्ता होना चाहिए। जो विद्यार्थी इतना भी नहीं करते, वे न तो सभ्य कहलवाएँगे और न संस्कृत।

(ज) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने बताया है कि वही व्यक्ति संस्कृत व्यक्ति है जो समाज के हित के लिए कुछ नया करता है। उसकी यह उपलब्धि उसकी संतान को अनायास ही प्राप्त हो जाती है। जिस व्यक्ति के विवेक में किसी भी नए तथ्य की खोज हो, वही संस्कृत व्यक्ति कहलाता है। उसकी इस खोज को उसकी संतान अनायास ही प्राप्त कर लेती है। वे अपने पूर्वजों की भाँति सभ्य भले ही हो, किंतु संस्कृत नहीं कहला सकती। इस विषय में गुरुत्वाकर्षण की खोज का उदाहरण लिया जा सकता है। न्यूटन ने इस सिद्धांत की खोज की थी। इसके अतिरिक्त भी उन्हें और भी बातों का ज्ञान था, जिनसे केवल वही परिचित थे। आज के विद्यार्थी भले ही सभ्य हों, किंतु न्यूटन जितने संस्कृत नहीं कहला सकते। कहने का भाव है कि जो समाज के लिए कुछ नया करते हैं, वे संस्कृत हैं तथा जो उसे प्राप्त कर समाज-हित में उसका प्रयोग करते हैं, वे सभ्य हैं।

(2) आग के आविष्कार में कदाचित पेट की ज्वाला की प्रेरणा एक कारण रही। सुई-धागे के आविष्कार में शायद शीतोष्ण से बचने तथा शरीर को सजाने की प्रवृत्ति का विशेष हाथ रहा। अब कल्पना कीजिए उस आदमी की जिसका पेट भरा है, जिसका तन ढंका है, लेकिन जब वह खुले आकाश के नीचे सोया हुआ रात के जगमगाते तारों को देखता है, तो उसको केवल इसलिए नींद नहीं आती क्योंकि वह यह जानने के लिए परेशान है कि आखिर यह मोती भरा थाल क्या है? पेट भरने और तन ढंकने की इच्छा मनुष्य की संस्कृति की जननी नहीं है। पेट भरा और तन ढंका होने पर भी ऐसा मानव जो वास्तव में संस्कृत है, निठल्ला नहीं बैठ सकता। हमारी सभ्यता का एक बड़ा अंश हमें ऐसे संस्कृत आदमियों से ही मिला है, जिनकी चेतना पर स्थूल भौतिक कारणों का प्रभाव प्रधान रहा है, किंतु उसका कुछ हिस्सा हमें मनीषियों से भी मिला है जिन्होंने तथ्य-विशेष को किसी भौतिक प्रेरणा के वशीभूत होकर नहीं, बल्कि उनके अपने अंदर की सहज संस्कृति के ही कारण प्राप्त किया है। रात के तारों को देखकर न सो सकने वाला मनीषी हमारे आज के ज्ञान का ऐसा ही प्रथम पुरस्कर्ता था। [पृष्ठ 129]

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) लेखक की दृष्टि में मनुष्य ने आग का आविष्कार क्यों किया होगा?
(ग) सुई-धागे के आविष्कार के पीछे मनुष्य की कौन-सी भावना काम कर रही होगी?
(घ) ‘मोती भरे थाल’ से क्या तात्पर्य है और उसके रहस्य को जानने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को क्या कहा गया है?
(ङ) मनुष्य किस प्रकार का प्राणी है?
(च) हमारी सभ्यता का अधिकांश भाग किन संस्कृत आदमियों ने निर्मित किया है?
(छ) मनीषी किसे कहा गया है? वे किस प्रेरणा के बल पर ज्ञान की प्राप्ति करते हैं?
(ज) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-संस्कृति। लेखक का नाम-भदंत आनंद कौसल्यायन।

(ख) आदि मानव जंगलों में रहता हुआ कंद-मूल, फल आदि खाकर अपना पेट भरता था। किंतु इससे उसकी भूख शांत नहीं होती थी। पेट की भूख को शांत करने के लिए उसने आग का आविष्कार किया होगा।

(ग) सर्दी-गर्मी के कष्ट से बचने के लिए मनुष्य ने अपने को ढंकना चाहा होगा। उसने अपनी इसी इच्छापूर्ति के लिए सुई-धागे का आविष्कार किया होगा।

(घ) ‘मोती भरे थाल’ से तात्पर्य’ आकाश में खिले तारों से है। जो लोग पेट भरा और तन ढका होने पर भी जागकर तारों के रहस्य को जानने की इच्छा रखते हैं, उन्हें लेखक ने मनीषी कहा है। उन्हें वास्तविक संस्कृत मनुष्य की संज्ञा दी गई है।

(ङ) मनुष्य एक चिंतनशील प्राणी है। उसके मन में सदा कुछ-न-कुछ जानने की इच्छा बनी रहती है। वह अपनी इसी इच्छा की पूर्ति हेतु कुछ-न-कुछ नया करता रहता है। वह कभी विचारहीन होकर नहीं बैठ सकता। वह सदा नए-नए कार्य करता रहता है।

(च) आज हम जिस सभ्यता में जी रहे हैं, उसके अधिकांश भाग का निर्माण ऐसे संस्कृत व्यक्तियों ने किया है, जो इस भौतिक संसार को सुखी और सुविधापूर्ण बनाना चाहते थे। उन्होंने ही आग, सुई-धागा, परिवहन के साधन, बिजली व बिजली से चलित मशीनों का आविष्कार किया है।

(छ) मनीषी ऐसे संस्कृत व्यक्तियों को कहा गया है, जो भौतिक आवश्यकता की अपेक्षा मन की जिज्ञासा की तप्ति हेतु प्रकृति के रहस्यों को जानना चाहते हैं। सूक्ष्म और अज्ञात तथ्यों को जानना उनका स्वाभाविक गुण होता है। वे अपने मन की सहज सांस्कृतिक प्रेरणा के बल पर ज्ञान की खोज करते हैं। वे भौतिक उपकरणों को बनाने में अपनी शक्ति व्यर्थ नहीं करते।

(ज) आशय/व्याख्या-इस गद्यांश में लेखक ने उन कारणों पर प्रकाश डाला है जिनकी वजह से व्यक्ति ने नए-नए आविष्कार किए हैं। लेखक का मानना है कि पेट की भूख को शांत करने के लिए ही आग का आविष्कार किया गया होगा। इसी प्रकार शरीर को गर्मी-सर्दी से बचाने हेतु ही सुई-धागे का आविष्कार हुआ होगा। किंतु सभी नई खोजों पर यह बात लागू नहीं होती। एक व्यक्ति का पेट भरा हुआ है, वस्त्र भी उसने पहने हुए हैं और वह रात को लेट कर आसमान में जगमगाते हुए तारों को देखता है तो केवल इसलिए नहीं कि उसे नींद नहीं आती, अपितु वह यह सोचता है कि वास्तव में यह तारों से भरा हुआ आकाश है क्या चीज? पेट भरने और शरीर को ढंकने की इच्छा को संस्कृति नहीं कह सकते। हमें हमारी सभ्यता का बड़ा भाग ऐसे ही लोगों से प्राप्त हुआ है, जिनकी चेतना पर स्थूल भौतिक कारणों का प्रभाव प्रमुख रहा है। किंतु समाज में कुछ ऐसे मनीषी भी रहे हैं जिन्होंने तथ्य विशेष की खोज भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति से प्रेरित होकर नहीं की, अपितु उनको अंदर की सहज संस्कृति के ही कारण प्राप्त किया है। रात को तारों को देखकर न सो सकने वाला मनीषी हमारे आज के ज्ञान को प्रस्तुत करता है। कहने का भाव है कि मनीषी भौतिक आवश्यकताओं की अपेक्षा मन की जिज्ञासा की तृप्ति हेतु प्रकृति के रहस्यों को जानना चाहते हैं। प्रकृति के अज्ञात तथ्यों को जानना चाहते हैं। प्रकृति के अज्ञात तथ्यों को जानना उनका स्वाभाविक गुण होता है। वे अपने इसी गुण के कारण नई-नई खोज करते हैं, तभी लेखक ने उन्हें संस्कृत व्यक्ति कहा है।

(3) भौतिक प्रेरणा, ज्ञानेप्सा-क्या ये दो ही मानव संस्कृति के माता-पिता हैं? दूसरे के मुँह में कौर डालने के लिए जो अपने मुँह का कौर छोड़ देता है, उसको यह बात क्यों और कैसे सूझती है? रोगी बच्चे को सारी रात गोद में लिए जो माता बैठी रहती है, वह आखिर ऐसा क्यों करती है? सुनते हैं कि रूस का भाग्यविधाता लेनिन अपनी डैस्क में रखे हुए डबल रोटी के सूखे टुकड़े स्वयं न खाकर दूसरों को खिला दिया करता था। वह आखिर ऐसा क्यों करता था? संसार के मजदूरों को सूखी देखने का स्वप्न देखते हुए कार्ल मार्क्स ने अपना सारा जीवन दुख में बिता दिया। और इन सबसे बढ़कर आज नहीं, आज से ढाई हज़ार वर्ष पूर्व सिद्धार्थ ने अपना घर केवल इसलिए त्याग दिया कि किसी तरह तृष्णा के वशीभूत लड़ती-कटती मानवता सुख से रह सके। [पृष्ठ 129-130]

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) मानव संस्कृति का जन्म किन-किन भावों के कारण होता है?
(ग) दूसरों के लिए सर्वस्व त्याग करने वाले व्यक्तियों में लेखक ने किन-किन महापुरुषों का नामोल्लेख किया है?
(घ) संस्कृति के कौन-से तीन रूप गिनाए गए हैं?
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
(च) सिद्धार्थ का प्रमुख गुण क्या था?
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-संस्कृति।
लेखक का नाम-भदंत आनंद कौसल्यायन।

(ख) मानव संस्कृति का जन्म भौतिक प्रेरणा, आग व सुई-धागे के आविष्कार, ज्ञानेप्सा-तारों आदि के रहस्य जानने की इच्छा, अन्य लोगों के लिए त्याग की भावना आदि कारणों से हुआ है। इनके अतिरिक्त मानव की बौद्धिक इच्छा एवं शक्ति भी मानव संस्कृति को जन्म देने में सहयोगी सिद्ध हुई है।

(ग) सर्वस्व त्यागने वालों में कवि ने निम्नलिखित महानुभावों के नामों का उल्लेख किया है-

  • लेनिन-जो अपने डेस्क में रखे डबल रोटी के सूखे टुकड़े भी दूसरों को खिला देता था।
  • कार्ल मार्क्स-जिसने मजदूरों के हक के लिए सारा जीवन दुःख में बिता दिया।
  • सिद्धार्थ-जिसने तृष्णा के वशीभूत लड़ती-कटती मानवता के सुख के लिए अपना घर-बार त्याग दिया।

(घ) संस्कृति के निम्नलिखित तीन रूप गिनाए गए हैं-

  • भौतिक प्रेरणा (पेट की भूख व तन को ढकने अर्थात् आग व सुई-धागा) के आविष्कार वाली संस्कृति।
  • ज्ञानेप्सा–तारों के संसार को जानने की इच्छा से उत्पन्न संस्कृति।
  • सर्वस्व त्याग कराने वाली संस्कृति।

(ङ) प्रस्तुत गद्यांश में मानव संस्कृति की उपलब्धि के प्रमुख कारणों पर प्रकाश डाला गया है।
लेखक ने संस्कृति निर्माण में सक्रिय प्रमुख तत्त्वों का भी उद्घाटन किया है। संस्कृति के प्रकार पर अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने उन महान् पुरुषों का उल्लेख किया, जिन्होंने संस्कृति निर्माण में महान् योगदान दिया है। लेखक का मूल उद्देश्य मानव को संस्कृत मानव बनने की प्रेरणा देना है।

(च) सिद्धार्थ एक राजकुमार था। वह चाहता तो अपना सारा जीवन ऐशो-आराम में व्यतीत कर सकता था, किंतु उसने इस संसार के दुःखी लोगों के लिए अपना आराम का जीवन त्यागकर घोर तपस्या की और उसके फलस्वरूप चिंतन-मनन को उपदेश के रूप में संसार के लोगों तक पहुँचाया जिससे उनका जीवन सुखी बन सके।

(छ) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने मानव संस्कृति के जन्म के कारणों पर प्रकाश डाला है। उन्होंने बताया है कि मानव संस्कृति का जन्म भौतिक प्रेरणा, आग या सूई-धागे के आविष्कार अथवा ज्ञानेप्सा तारों आदि के रहस्य जानने की इच्छा तथा अन्य लोगों के लिए त्याग भावना आदि कारणों से होता है। इनके अतिरिक्त मानव की बौद्धिक इच्छा-शक्ति की भावना संस्कृति को जन्म देने में सहायक सिद्ध हुई है। लेखक ने संस्कृति के निर्माण में सक्रिय प्रमुख तत्त्वों का भी उद्घाटन किया है। संस्कृति के प्रकार पर अपना मत व्यक्त करते हुए उन्होंने उन महापुरुषों का उदाहरण दिया है, जिन्होंने मानव-संस्कृति के निर्माण के लिए अपना सर्वस्व त्याग करके महान् सहयोग दिया है। उनमें लेनिन, कार्ल मार्क्स, सिद्धार्थ आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। लेखक का मूल उद्देश्य मानव-संस्कृति द्वारा मानव बनाने की प्रेरणा देना है। दूसरों के दुख को समझना और उसे दूर करने के लिए किए गए त्याग की भावना ही मानव संस्कृति की सच्ची रचयिता है। भले ही वह माँ का त्याग हो या फिर सिद्धार्थ का।

(4) और सभ्यता? सभ्यता है संस्कृति का परिणाम । हमारे खाने-पीने के तरीके, हमारे ओढ़ने पहनने के तरीके, हमारे गमनागमन के साधन, हमारे परस्पर कट मरने के तरीके; सब हमारी सभ्यता हैं। मानव की जो योग्यता उससे आत्म-विनाश के साधनों का आविष्कार कराती है, हम उसे उसकी संस्कृति कहें या असंस्कृति? और जिन साधनों के बल पर वह दिन-रात आत्म-विनाश में जुटा हुआ है, उन्हें हम उसकी सभ्यता समझें या असभ्यता? संस्कृति का यदि कल्याण की भावना से नाता टूट जाएगा तो वह असंस्कृति होकर ही रहेगी और ऐसी संस्कृति का अवश्यंभावी परिणाम असभ्यता के अतिरिक्त दूसरा क्या होगा?[पृष्ठ 130]

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) लेखक के अनुसार सभ्यता क्या है?
(ग) सभ्यता और संस्कृति में क्या अंतर है?
(घ) लेखक ने असंस्कृति किसे कहा है?
(ङ) असभ्यता क्या है?
(च) संस्कृति में कौन-सी भावना प्रधान रहती है?
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-संस्कृति। लेखक का नाम-भदंत आनंद कौसल्यायन।

(ख) लेखक ने बताया है कि सभ्यता हमारी संस्कृति का ही परिणाम होता है। हमारे जीवनयापन के तौर-तरीके, रहन-सहन, खान-पान, हमारे ओढ़ने-पहनने के तरीके हमारे गमना-गमन के साधन, परस्पर मेल-जोल, लड़ाई-झगड़े सबके-सब हमारी सभ्यता को दर्शाते हैं। हमारे कार्य जितने सुसंस्कृत ढंग से होंगे हमारी सभ्यता भी वैसी ही अच्छी होगी।

(ग) कहा गया है कि सभ्यता संस्कृति की ही उपज है। यदि कोई व्यक्ति अपनी प्रेरणा और योग्यता के बल पर सर्वकल्याण हेतु कोई आविष्कार करता है तो वह हमारी संस्कृति कहलाती है। तत्पश्चात् जब उस आविष्कारित वस्तु का प्रयोग किया जाता है तो उसे सभ्यता कहते हैं। संस्कृति का संबंध विचार से है और सभ्यता बाहरी जीवन से संबंध रखती है। एक यदि विचार है या सूक्ष्म है तो दूसरा विचार के अपनाने का ढंग है और स्थूल है।

(घ) लेखक ने मनुष्य के उन कार्यों को असंस्कृति का जनक कहा है, जिनके कारण वह ऐसे उपकरणों का उत्पादन करता है, जिनसे मानवता का विनाश होता है। मानव-कल्याण की भावना-विहीन व्यक्ति असंस्कृत व्यक्ति होता है। इसी प्रकार लूट-मार, हिंसा, चोरी आदि सभी कार्य असंस्कृति की पहचान हैं।

(ङ) जैसे संस्कृति सभ्यता की जननी होती है, वैसे ही असंस्कृति असभ्यता की जननी है। जैसे संस्कृत व्यक्ति सभ्यता को जन्म देता है वैसे ही असंस्कृत व्यक्ति अपने बुरे कर्मों से असभ्यता का निर्माण करता है। मानवता और मानव कल्याण के विरुद्ध किए गए सभी कार्य असभ्यता के अंतर्गत आते हैं। चोरी-डकैती, भ्रष्टाचार, झूठ, युद्ध आदि सब कार्य असभ्यता के सूचक हैं।

(च) संस्कृति में सदैव कल्याण की भावना ही प्रधान रहती है। इसी भावना से प्रेरित होकर व्यक्ति मानवता के उत्थान या कल्याण के कार्य करता है। ऐसी प्रेरणा मनुष्य की आंतरिक प्रेरणा होती है। जन-कल्याण की भावना किसी बाहरी या भौतिक आकर्षण का कारण नहीं हुआ करती। अतः संस्कृति सदैव मानव कल्याण की भावना से ही विकसित होती है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति

(छ) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने संस्कृति-असंस्कृति तथा सभ्यता और असभ्यता का अंतर स्पष्ट किया है। लेखक का मत है कि सभ्यता संस्कृति का परिणाम होती है। हमारे जीवन-यापन के सभी साधन-खान-पान, रहन-सहन, गमनागमन के साधन, आपस में मेल-जोल यहाँ तक कि लड़ने का ढंग भी हमारी सभ्यता को दर्शाता है। हमारे ये कार्य जितने सुसंस्कृत ढंग से होंगे, हमारी सभ्यता भी उतनी ही श्रेष्ठ होगी। संस्कृति का संबंध हमारे विचारों से है तथा सभ्यता हमारे बाहरी जीवन से संबंध रखती है। विचार सूक्ष्म होता है और उसे कार्यान्वित करने का ढंग सभ्यता है जो स्थूल है। मानवता का विनाश करने वाले सभी कार्य असंस्कृति होते हैं। असंस्कृत व्यक्ति अपने बुरे कार्यों से असभ्यता का निर्माण करता है। चोरी, डकैती, हिंसा, झूठ, रिश्वत, भ्रष्टाचार आदि सभी असभ्यता के अंतर्गत आते हैं। संस्कृति सदैव कल्याण की भावना को प्रेरित करती है। वह बाहरी नहीं, अपितु आंतरिक तत्त्व होता है।

संस्कृति Summary in Hindi

संस्कृति लेखक-परिचय

प्रश्न-
भदंत आनंद कौसल्यायन का जीवन-परिचय एवं उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-भदंत आनंद कौसल्यायन एक सुप्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु एवं हिंदी के महान् प्रचारक-प्रसारक थे। उनका जन्म सन् 1905 में अंबाला जिले के सोहाना नामक गाँव में हुआ था। बौद्ध भिक्षु होने के कारण उन्होंने देश-विदेश का बहुत भ्रमण किया है। वे गाँधी जी के साथ भी एक लंबे समय तक रहे। उनकी रचनाओं में गाँधी जी के जीवन-दर्शन का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। बौद्ध धर्म के कार्यों के साथ-साथ उन्होंने हिंदी भाषा और साहित्य की निरंतर सेवा की है। वे हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से संबद्ध रहे तथा बाद में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के सचिव पद पर रहकर हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार का कार्य करते रहे। सन् 1988 में उनका निधन हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ-भदंत आनंद कौसल्यायन की 20 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं जिनमें ‘भिक्षु के पत्र’, ‘जो भूल ना सका’, ‘आह! ऐसी दरिद्रता’, ‘बहानेबाजी’, ‘यदि बाबा ना होते’, ‘रेल का टिकट’, ‘कहाँ क्या देखा’ आदि प्रमुख हैं। बौद्धधर्म-दर्शन से संबंधित उनके मौलिक और अनूदित अनेक ग्रंथ हैं जिनमें जातक कथाओं का अनुवाद विशेष उल्लेखनीय है।

3. साहित्यिक विशेषताएँ भदंत कौसल्यायन की पर्यटन में रुचि होने के कारण वे देश-विदेश की यात्राएँ करते रहे। उनको जीवन का महान् अनुभव था, जो उनकी रचनाओं में स्पष्ट रूप से झलकता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में तत्कालीन अनेकानेक विषयों का अत्यंत सहज एवं सरल रूप में वर्णन किया है। उनका संपूर्ण जीवनदर्शन गाँधी जी के आदर्शों से प्रभावित है। उनके साहित्य में मानवीय आचार-व्यवहार, यात्रा- संस्मरण, गाँधी जी के महत्त्वपूर्ण संस्मरण रहे हैं। उनके साहित्य में विषय-वर्णन की ताज़गी देखते ही बनती है। उनके संपूर्ण साहित्य में मानवतावाद का स्वर मुखरित हुआ है।

4. भाषा-शैली-कौसल्यायन जी के साहित्य की भाषा सरल, सहज एवं व्यावहारिक है। उन्होंने अपनी रचनाओं में खड़ी-बोली हिंदी का सफल एवं सार्थक प्रयोग किया है। भाषा की आडंबरहीनता उनके साहित्य की सबसे बड़ी कलात्मक विशेषता है। उनकी भाषा को जन-भाषा कहना भी उचित होगा। उनके प्रस्तुत निबंध में कहीं-कहीं भाषा की शिथिलता खटकती है।

संस्कृति पाठ का सार

प्रश्न-
‘संस्कृति’ शीर्षक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने संस्कृति और सभ्यता से जुड़े अनेक प्रश्नों पर प्रकाश डाला है। लेखक ने अनेक उदाहरण देकर सभ्यता और संस्कृति के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए उनके अंतर पर भी प्रकाश डाला है। लेखक ने बताया है कि सभ्यता और संस्कृति दो अलग-अलग वस्तुएँ हैं। सभ्यता संस्कृति का परिणाम है किंतु संस्कृति अविभाज्य वस्तु है। वे संस्कृति का विभाजन नहीं करना चाहते। लेखक की दृष्टि में जो मानव के लिए कल्याणकारी नहीं है, वह संस्कृति या सभ्यता हो ही नहीं सकती। पाठ का सार इस प्रकार है

लेखक ने सभ्यता और संस्कृति के स्वरूप को समझने के लिए उदाहरण देते हुए कहा है कि आग का आविष्कार और सुई-धागे का आविष्कार मनुष्य की खोजने की शक्ति या प्रवृत्ति का परिणाम है। इसे ही लेखक ने संस्कृति बताया है। इस आविष्कार के परिणामस्वरूप आग और सुई-धागे को सभ्यता कहते हैं। दूसरे शब्दों में प्रवृत्ति या प्रेरणा को संस्कृति और आविष्कृत वस्तु को सभ्यता कहते हैं। जिस मनुष्य में प्रवृत्ति जितनी अधिक होगी वह उतना ही अच्छा आविष्कारक होगा और उतना ही अधिक संस्कृत भी।

लेखक ने अपनी अवधारणा को और अधिक स्पष्ट करते हुए कहा है कि एक आविष्कारक व्यक्ति सुसंस्कृत होता है, किंतु उसकी संतान जिसने यह आविष्कृत वस्तु-एकाएक या अनायास ही प्राप्त कर ली है वह सभ्य हो सकता है, सुसंस्कृत नहीं। इस दृष्टि से न्यूटन एक संस्कृत था किंतु आज उसके सिद्धांत व अन्य ज्ञान रखने वाले संस्कृत नहीं अपितु सभ्य कहलाएँगे।

जब भी कोई आविष्कार भौतिक आवश्यकता की पूर्ति के लिए होगा तो उसमें संस्कृति कम और सभ्यता अधिक कही जा सकती है। किंतु जब पेट भरा होने पर भी कुछ लोग रात को जगमगाते तारों का रहस्य जानने का प्रयास करते हैं, वे संस्कृति के जनक हैं। पेट भरने और तन ढकने के भौतिक कारणों की प्रेरणा वाला व्यक्ति संस्कृति का जनक नहीं है। भौतिक कारणों की अपेक्षा अंदर की भावना से प्रभावित होकर जो ज्ञान पैदा करता है, वह सच्चा संस्कृति का आविष्कारक कहलाएगा।

भौतिक प्रेरणा और ज्ञान-प्राप्ति की इच्छा-ये दोनों ही मानव संस्कृति के जनक हैं। दूसरों के मुख में रोटी का टुकड़ा डालने के लिए जो अपने मुँह का कौर छोड़ देता है या फिर रोगी बच्चे को सारी रात गोद में लिए जो माँ बैठी रहती है, वह ऐसा क्यों करती है। इसी प्रकार कार्लमार्क्स मज़दूरों का जीवन सुखी देखने के लिए अपना सारा जीवन दुःखों में गला देता है। इसी प्रकार सिद्धार्थ ने अपना घर-बार इसलिए त्याग दिया था, ताकि तृष्णा के वशीभूत लड़ती-कटती मानवता सुख से रह सके। अतः हम समझ सकते हैं कि संस्कृति ही आग और सुई-धागे का आविष्कार कराती है, तो वह तारों की दुनिया के रहस्य का ज्ञान कराती है और वह योग्यता जो किसी महामानव से सर्वस्व त्याग कराती है, भी संस्कृति ही है।

सभ्यता क्या है? वह संस्कृतियों का परिणाम है। खान-पान, रहन-सहन, ओढ़ने-पहनने और कटने-मरने के तरीके भी सभ्यता के अंतर्गत आते हैं। मानव की जो योग्यता मानव-विनाश का कारण बनती है, वही असंस्कृति है। उससे पैदा हुए हथियार आदि भी असभ्यता के सूचक हैं।

संस्कृति के नाम पर जिस कूड़े-करकट के ढेर का ज्ञान होता है, वह संस्कृति नहीं हो सकता। हर क्षण बदलने वाली इस दुनिया की किसी भी चीज़ को पकड़कर नहीं बैठा जा सकता। लेखक का मत है कि मानव संस्कृति या नए तथ्यों की रक्षा के लिए दलबंदियों की आवश्यकता नहीं है। मानव संस्कृति अविभाज्य है। उसमें कल्याणकारी अंश श्रेष्ठ ही नहीं, स्थायी भी है।

कठिन शब्दों के अर्थ

(पृष्ठ-128) सभ्यता = रहन-सहन के ढंग। संस्कृति = विचार-चिंतन की विधि। भौतिक = ठोस संसार संबंधी वस्तु। आध्यात्मिक = आत्मा-परमात्मा संबंधी। साक्षात् = सम्मुख मिलन। आविष्कार = खोज। आविष्कर्ता = खोज करने वाला। प्रवृत्ति = स्वभाव, रुझान। प्रेरणा = गतिशील बनाने की शक्ति या भावना।

(पृष्ठ-129) संस्कृत व्यक्ति = अच्छे संस्कार या गुणों वाला व्यक्ति। पूर्वज = बाप-दादा आदि। अनायास = अचानक। परिष्कृत = शुद्ध । तथ्य = सत्य, सार। सिद्धांत = नियम। अपरिचित = अनजान। ज्वाला = आग। शीतोष्ण = ठंड तथा गर्मी। हाथ होना = सहयोग होना। मोती भरा थाल = आकाश । जननी = पैदा करने वाली, माँ। चेतना = बुद्धि। निठल्ला = बेकार। पुरस्कर्ता = बढ़ाने वाला। ज्ञानेप्सा = ज्ञान पाने की इच्छा। कौर = रोटी का टुकड़ा।

(पृष्ठ-130) भाग्यविधाता = भाग्य का निर्माण करने वाला। तृष्णा = इच्छा। सिद्धार्थ = महात्मा बुद्ध का वास्तविक नाम । सर्वस्व = सब कुछ। मानवता = मनुष्य जाति। गमनागमन = आना-जाना, यातायात। असंस्कृति = जो संस्कृति न हो। प्रज्ञा = बुद्धि। कल्याण = मंगल। नाता = संबंध। अविभाज्य = जो विभाजित न हो। अंश = भाग। अकल्याणकर = जो कल्याणकारी न हो। स्थायी = टिकाऊ।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत

HBSE 10th Class Hindi नौबतखाने में इबादत Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है?
उत्तर-
अमीरुद्दीन अर्थात् उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ, जो शहनाईवादन के क्षेत्र में विश्व प्रसिद्ध हैं, का जन्म डुमराँव गाँव में हुआ था। इस कारण शहनाई की दुनिया में डुमराँव गाँव को याद किया जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य कारण यह भी है कि शहनाई बजाने के लिए जिस ‘रीड’ का प्रयोग किया जाता है, वह नरकट (एक विशेष प्रकार की घास) से बनती है, जो डुमराँव गाँव के समीप सोन नदी के किनारे पाई जाती है। इन दोनों कारणों से शहनाई की दुनिया में डुमराँव गाँव को याद किया जाता है।

प्रश्न 2.
बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?
उत्तर-
जहाँ भी कोई संगीत का आयोजन हो या अन्य कोई मांगलिक कार्य का आयोजन हो वहाँ सर्वप्रथम उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई की ध्वनि सुनाई देगी। समारोहों में शहनाई की गूंज का अभिप्राय उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ से है। उनकी शहनाई की आवाज़ लोगों के सिर चढ़कर बोलती है। गंगा के किनारे स्थित बालाजी का मंदिर हो या विश्वनाथ का मंदिर अथवा संकटमोचन मंदिर सब जगह संगीत के समारोहों में भी बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई की चर्चा रहती थी। इन सब मंदिरों में प्रभाती मंगलस्वर बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई के रूप में सुनाई पड़ता है। वे अपनी मधुर शहनाईवादन कला के द्वारा हर व्यक्ति के मन को प्रभावित करने में सफल रहते हैं। इसलिए उन्हें शहनाई की मंगलध्वनि का नायक कहते हैं।

प्रश्न 3.
‘सुषिर-वाद्यों’ से क्या तात्पर्य है? शहनाई को ‘सुषिर-वाद्यों में शाह’ की उपाधि क्यों दी गई होगी?
उत्तर-
‘सुषिर’ बाँस अथवा मुँह से फूंककर बजाए जाने वाले वाद्यों से निकलने वाली ध्वनि को कहा जाता है। इसी कारण ‘सुषिर-वाद्यों’ से अभिप्राय उन वाद्ययंत्रों से है जो फूंककर बजाए जाने पर ध्वनि उत्पन्न करते हैं। फूंककर बजाए जाने वाले वाद्य जिनमें नाड़ी (नरकट या रीड) होती है, को ‘नय’ कहा जाता है। इसी कारण शहनाई को ‘शाहेनय’ अर्थात् ‘सुषिर-वाद्यों में शाह’ कहते हैं। अतः स्पष्ट है कि शहनाई को ‘सुषिर-वाद्यों में शाह’ की उपाधि दी गई होगी।

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प्रश्न 4.
आशय स्पष्ट कीजिए
(क) ‘फटा सुर न बख्शे। लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।
उत्तर-
दिन-रात सुरों की इबादत में लगे रहने वाले बिस्मिल्ला खाँ से जब उनकी एक शिष्या ने कहा कि वे फटी लुंगी न पहना करें तो उन्होंने कहा कि लुंगी यदि आज फटी है तो कल सिल जाएगी, किंतु यदि एक बार सुर बिगड़ गया तो उसका सँवरना मुश्किल है। अतः अपने पहनावे से कहीं अधिक ध्यान उनका सुरों पर रहता था।

(ख) ‘मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ।’
उत्तर-
इस पंक्ति के माध्यम से बताया गया है कि बिस्मिल्ला खाँ अस्सी वर्षों से शहनाई बजा रहे हैं। वे शहनाईवादन में बेजोड़ हैं। फिर भी नमाज़ पढ़ते समय वे परमात्मा से यही प्रार्थना करते हैं कि हे ईश्वर! मुझे मधुर स्वर प्रदान कर। मेरे सुरों में ऐसा प्रभाव उत्पन्न कर दे जिसे सुनकर लोग प्रभावित हो उठे। उनकी आँखों से भावावेश में सच्चे मोतियों के समान अनायास आँसुओं की झड़ी लग जाए।

प्रश्न 5.
काशी में हो रहे कौन-से परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे?
उत्तर-
काशी के पक्का महाल से मलाई-बरफ बेचने वाले जा चुके थे। न ही वहाँ अब देसी घी की कचौड़ी-जलेबी थी और न ही संगीत के लिए गायकों के मन में आदर भाव रह गया था। इस प्रकार वहाँ से संगीत, साहित्य और संस्कृति संबंधी अनेक परंपराएँ लुप्त होती जा रही थीं, जिनके कारण बिस्मिल्ला खाँ को बहुत दुःख था और वे उनके विषय में सोचकर अत्यंत व्याकुल हो उठते थे।

प्रश्न 6.
पाठ में आए किन प्रसंगों के आधार पर आप कह सकते हैं कि-
(क) बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे। अथवा शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ के धर्मनिरपेक्ष व्यक्तित्व का वर्णन कीजिए।
(ख) वे वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इंसान थे।
उत्तर-
(क) निम्नलिखित कथनों के आधार पर कह सकते हैं कि बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे
1. वह एक शिया मुसलमान का बेटा था जो सुबह उठकर बाबा विश्वनाथ के मंदिर में शहनाई बजाता। फिर गंगा स्नान करता और बालाजी के सामने रियाज़ करता। फिर भी वह हिंदू नहीं हो गया था। पाँच बार नमाज़ पढ़ने वाला मुसलमान ही था जो मानता था कि उसे बालाजी ने शहनाई में सिद्धि दे दी है।
2. वे अल्लाह की इबादत भैरवी में करते थे। नाम अल्लाह का है, राग तो भैरव है। वे इन दोनों को एक मानकर ही साधते थे।
(ख) पाठ में उद्धृत निम्नलिखित प्रसंगों व कथनों के आधार पर कहा जा सकता है कि बिस्मिल्ला खाँ एक सच्चे इंसान थे. वे अपनी शहनाई बजाने की कला को सदैव ईश्वर की देन मानते थे। इतने बड़े शहनाईवादक होने पर भी वे अत्यंत सरल एवं साधारण जीवन जीते थे। उन्होंने अपनी कला को कभी बाजारू वस्तु नहीं बनाया। वे हवाईजहाज़ की यात्रा को बहुत महँगी समझते थे। इसलिए उन्होंने कभी हवाईजहाज़ से यात्रा नहीं की। कभी पाँच सितारा होटल में नहीं ठहरे। शहनाई बजाने की फीस भी उतनी ही माँगते थे जितनी उन्हें आवश्यकता होती थी। वे सदा सच्चे और खरे इंसान रहे थे। जैसा उनकी शहनाई बजाना मधुर था, वैसा ही उनका जीवन भी अत्यंत मधुर एवं सरल व सच्चा था।

प्रश्न 7.
बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख करें जिन्होंने उनकी संगीत साधना को समृद्ध किया?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ के जीवन में अनेक ऐसे लोगों का संबंध रहा है जिन्होंने उनकी संगीत-साधना को समृद्ध किया है, यथा बालाजी के मंदिर के मार्ग में रसूलनबाई व बतूलनबाई दो बहनें थीं जो ठुमरी, टप्पे आदि का गायन किया करती थीं। बिस्मिल्ला खाँ उनका संगीत सुनने के लिए उनके घर के सामने से गुज़रा करते थे। उन्होंने बाल्यावस्था में ही उनके जीवन में संगीत के प्रेम की भावना भर दी थी।

अमीरुद्दीन (बिस्मिल्ला खाँ) के नाना भी एक महान् शहनाईवादक थे। वह नाना के शहनाईवादन को छुप-छुपकर सुनता था और चोरी से नाना की शहनाई उठाकर उसे बजा-बजाकर देखता था। इससे उन्हें शहनाई बजाने की प्रेरणा मिली थी। इसी प्रकार बिस्मिल्ला खाँ के मामा अलीबख्श खाँ एक अच्छे शहनाईवादक थे। वे बिस्मिल्ला खाँ के उस्ताद भी थे। उन्होंने उसे शहनाई बजाने की कला सिखाई थी। उनका सहयोग अत्यंत सराहनीय रहा है।

रचना और अभिव्यक्ति-

प्रश्न 8.
बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताओं ने मुझे प्रभावित किया है

  • बिस्मिल्ला खाँ अपनी कला के प्रति समर्पित हैं। वे सच्ची लगन से शहनाईवादन का काम करते हैं। उसके विकास हेतु नए-नए प्रयोग करते हैं। इसीलिए उन्हें पद्मभूषण व भारतरत्न जैसे महान् पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं।
  • सादगीपूर्ण जीवन जीना तो मानो उनका स्वभाव बन चुका है। इतने बड़े-बड़े पुरस्कार और उपाधियाँ प्राप्त करके भी उनके मन में कहीं अहंकार की भावना नहीं आई। वे पूर्ववत् सरल एवं साधारण जीवन व्यतीत करते रहे। उन्होंने इतनी शोहरत प्राप्त करके भी कभी बनाव-श्रृंगार नहीं किया।
  • ईश्वर के प्रति आस्थावान बने रहना उनके व्यक्तित्व की अन्य प्रमुख विशेषता है जिसने मुझे प्रभावित किया। वे सदा प्रभु से प्रार्थना करते कि वे उन्हें सुरों की नियामत प्रदान करें। उन्होंने जो कुछ जीवन में प्राप्त किया, उसे वे प्रभु की कृपा समझते थे।
  • धार्मिक उदारता उनके जीवन की अन्य विशेषता है। वे मुसलमान होते हुए भी दूसरे धर्मों का सम्मान करते थे। • बिस्मिल्ला खाँ बचपन से ही विनोद प्रिय थे। वे सदा विनोद से भरे रहते थे। वे खाने-पीने एवं संगीत सुनने के भी शौकीन थे।

प्रश्न 9.
मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ मुस्लिम धर्म में मनाए जाने वाले त्योहारों में अत्यंत उत्साहपूर्वक भाग लेते थे। मुहर्रम से तो उनका विशेष लगाव था। मुहर्रम के दस दिनों में वे किसी प्रकार का मंगल वाद्य नहीं बजाते थे तथा न ही कोई राग-रागनी गाते थे। इन दिनों में वे शहनाई भी नहीं बजाते थे। आठवें दिन दालमंडी से चलने वाले मुहर्रम के जुलूस में पूरे उत्साह के साथ आठ किलोमीटर रोते हुए नौहा बजाते हुए चलते थे।

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प्रश्न 10.
बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे, तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर-
निश्चय ही उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ कला के उपासक थे। उन्होंने अस्सी वर्षों तक लगातार शहनाई बजाकर इस बात को सिद्ध कर दिया है। वे प्रतिदिन ईश्वर से अच्छे सुर की प्राप्ति हेतु प्रार्थना किया करते थे। उन्हें सदा ऐसा लगता था कि खुदा उन्हें कोई ऐसा सुर देगा जिसे सुनकर श्रोता भाव-विभोर हो उठेंगे और उनकी आँखों से आनंद के आँसू बह निकलेंगे। वे अपने आपको कभी पूर्ण नहीं मानते थे। वे सदा कुछ-न-कुछ सीखने का प्रयास करते रहते थे। उन्हें कभी अपनी शहनाईवादन कला पर घमंड नहीं हुआ। वे उसमें सुधार लाने के लिए प्रयत्नरत रहते थे। इससे सिद्ध होता है कि बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे।

भाषा-अध्ययन-

प्रश्न 11.
निम्नलिखित मिश्र वाक्यों के उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए-
(क) यह ज़रूर है कि शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं।
(ख) रीड अंदर से पोली होती है, जिसके सहारे शहनाई को फूंका जाता है।
(ग) रीड नरकट से बनाई जाती है, जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है।
(घ) उनको यकीन है, कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा।
(ङ) हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है जिसकी गमक उसी में समाई है।
(च) खाँ साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही है कि पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा।
उत्तर-
(क) 1. यह ज़रूर है। – (प्रधान उपवाक्य)
2. शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। – (संज्ञा उपवाक्य)

(ख) 1. रीड अंदर से पोली होती है। – (प्रधान उपवाक्य)
2. जिसके सहारे शहनाई को फूंका जाता है। – (विशेषण उपवाक्य)

(ग) 1. रीड नरकट से बनाई जाती है। – (प्रधान उपवाक्य)
2. जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। – (विशेषण उपवाक्य)

(घ) 1. उनको यकीन है। – (प्रधान उपवाक्य)
2. कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा। – (संज्ञा उपवाक्य)

(ङ) 1. हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है। – (प्रधान उपवाक्य)
2. जिसकी गमक उसी में समाई है। – (विशेषण उपवाक्य)

(च) 1. खाँ साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही है। – (प्रधान उपवाक्य)
2. पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा।- (संज्ञा उपवाक्य)

प्रश्न 12.
निम्नलिखित वाक्यों को मिश्रित वाक्यों में बदलिए-
(क) इसी बालसुलभ हँसी में कई यादें बंद हैं।
(ख) काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।
(ग) धत्! पगली ई भारतरत्न हमको शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं।
(घ) काशी का नायाब हीरा हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।
उत्तर-
(क) यही वह बालसुलभ हँसी है जिसमें कई यादें बंद हैं।
(ख) काशी की यह प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है कि यहाँ संगीत आयोजन होते हैं।
(ग) धत्! पगली ई भारतरत्न जो हमको मिला है, ऊ शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं।
(घ) यह काशी का नायाब हीरा है जो हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।

पाठेतर सक्रियता

कल्पना कीजिए कि आपके विद्यालय में किसी प्रसिद्ध संगीतकार के शहनाईवादन का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम की सूचना देते हुए बुलेटिन बोर्ड के लिए नोटिस बनाइए।
उत्तर-
शहनाईवादन-यह जानकर सभी विद्यार्थियों को प्रसन्नता होगी कि दिनांक 15 अप्रैल, 2008 को विद्यालय के विशाल कक्ष में सुप्रसिद्ध शहनाईवादक उस्ताद हुसैन अली का शहनाईवादन कार्यक्रम होगा। हुसैन अली देश के जाने-माने शहनाईवादक हैं। यह कार्यक्रम प्रातः 11 बजे से दोपहर 1 बजे तक चलेगा। सभी विद्यार्थी एवं अध्यापक आमंत्रित हैं।

आप अपने मनपसंद संगीतकार के बारे में एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

हमारे साहित्य, कला, संगीत और नृत्य को समृद्ध करने में काशी (आज के वाराणसी) के योगदान पर चर्चा कीजिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

काशी का नाम आते ही हमारी आँखों के सामने काशी की बहुत-सी चीजें उभरने लगती हैं, वे कौन-कौन सी हैं?
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

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यह भी जानें

सम – ताल का एक अंग, संगीत में वह स्थान जहाँ लय की समाप्ति और ताल का आरंभ होता है।
श्रुति – एक स्वर से दूसरे स्वर पर जाते समय का अत्यंत सूक्ष्म स्वरांश
वाद्ययंत्र – हमारे देश में वाद्य यंत्रों की मुख्य चार श्रेणियाँ मानी जाती हैं
ताल-वितत- तार वाले वाद्य-वीणा, सितार, सारंगी, सरोद
सुषिर – फूंक कर बजाए जाने वाले वाद्य-बाँसुरी, शहनाई, नागस्वरम्, बीन
घनवाद्य – आघात से बजाए जाने वाले धातु वाद्य-झाँझ, मंजीरा, घुघरू
अवनद्ध – चमड़े से मढ़े वाद्य-तबला, ढोलक, मृदंग आदि।

चैती – एक तरह का चलता गाना
चैती
चढ़ल चइत चित लागे ना रामा
बाबा के भवनवा
बीर बमनवा सगुन बिचारो
कब होइहैं पिया से मिलनवा हो रामा
चढ़ल चइत चित लागे ना रामा

ठुमरी – एक प्रकार का गीत जो केवल एक स्थायी और एक ही अंतरे में समाप्त होता है।

ठुमरी-
बाजुबंद खुल-खुल जाए
जादु की पुड़िया भर-भर मारी
हे! बाजुबंद खुल-खुल जाए

टप्पा – यह भी एक प्रकार का चलता गाना ही कहा जाता है। ध्रुपद एवं ख्याल की अपेक्षा जो गायन संक्षिप्त है, वही टप्पा है।

टप्पा –
बागाँ विच आया करो
बागाँ विच आया करो मक्खियाँ तों डर लगदा
गुड़ ज़रा कम खाया करो।

दादरा – एक प्रकार का चलता गाना। दो अर्द्धमात्राओं के ताल को भी दादरा कहा जाता है।
दादरा-
तड़प तड़प जिया जाए
साँवरिया बिना
गोकुल छाड़े मथुरा में छाए
किन संग प्रीत लगाए
तड़प तड़प जिया जाए

HBSE 10th Class Hindi नौबतखाने में इबादत Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बिस्मिल्ला खाँ को संगीत की आरंभिक शिक्षा किससे और कैसे मिली?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ महान संगीत प्रेमी थे। उन्हें संगीत सीखने की प्रारंभिक प्रेरणा काशी की रसूलनबाई और बतलनबाई नाम की दो गायिका बहनों के ठुमरी, टप्पे आदि गीत सुनकर मिली थी। जब बालक अमीरुद्दीन (बिस्मिल्ला खाँ) शहनाई का रियाज़ करने बालाजी के मंदिर जाया करते तो मार्ग में उन्हें इन दोनों बहनों के गीत सुनने को मिलते थे। वहीं से उनके मन में संगीत सीखने की प्रेरणा जागृत हुई थी।

प्रश्न 2.
‘बिस्मिल्ला खाँ और शहनाई एक-दूसरे के पूरक हैं’-इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
भारतवर्ष के किसी भी कोने में संगीत का आयोजन होता था तो वहाँ सर्वप्रथम बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई के मांगलिक स्वर अवश्य सुने जाते थे। संगीत आयोजन बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई के अभाव में अधूरे एवं फीके लगते थे। बिस्मिल्ला खाँ का मतलब उनकी शहनाई, शहनाई का मतलब उनका हाथ और हाथ से आशय उनकी शहनाई से सुरों का निकलना। फिर देखते-ही-देखते संपूर्ण वातावरण सुरीला हो उठता था। अतः यह कहना उचित ही है कि बिस्मिल्ला खाँ और शहनाई एक-दूसरे के पूरक हैं।

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प्रश्न 3.
बिस्मिल्ला खाँ को किन-किन पुरस्कारों से सम्मानित किया गया और उनकी सबसे बड़ी देन क्या है?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ को उनकी शहनाईवादन कला के क्षेत्र में महान् उपलब्धियों के कारण अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा अनेक मानद उपाधियों से अलंकृत किया गया।
भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण व भारतरत्न जैसे महान् पुरस्कारों से पुरस्कृत किया। बिस्मिल्ला खाँ की सबसे बड़ी देन यही है कि अस्सी वर्षों तक उन्होंने संगीत को संपूर्णता और एकाधिकार से सीखने की इच्छा को अपने भीतर जीवित रखा।

प्रश्न 4.
बिस्मिल्ला खाँ की ऐतिहासिक उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
आज तक किसी भी संगीतकार को वह गौरव प्राप्त करने का सौभाग्य नहीं मिला जो बिस्मिल्ला खाँ को प्राप्त हुआ। उन्हें भारत की आज़ादी की पहली सुबह 15 अगस्त, 1947 को लाल किले पर शहनाई बजाने का अवसर मिला था। दूसरा अवसर उन्हें 26 जनवरी, 1950 को लोकतांत्रिक गणराज्य के मंगल प्रभात के रथ की अगुवाई पर बिस्मिल्ला खाँ को लालकिले पर शहनाई बजाने पर मिला।

प्रश्न 5.
ऐसे कौन-से कारण थे जिनसे बिस्मिल्ला खाँ को लगता था कि बालाजी ने उन्हें शहनाईवादन में सिद्धि दी है?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ चार वर्ष की आयु में ही अपने मामा के घर बनारस में आ गए थे। उनके नाना व मामा बाबा विश्वनाथ के मंदिर के नौबतखाने में शहनाई बजाया करते थे। बालक बिस्मिल्ला खाँ भी उनके साथ बाबा विश्वनाथ को जगाने के बाद बालाजी के घाट पर गंगा में गोते लगाते थे। तत्पश्चात् बालाजी के सामने बैठकर रियाज़ करते थे। उन्हें सुरों की साधना में घंटों लग जाते थे। एक दिन सुरों की साधना की इबादत करते-करते उन्हें बालाजी ने प्रकट होकर साक्षात् रूप में दर्शन दिए। उनके सिर पर हाथ रखकर उन्हें आजीवन आनंद करने का आशीर्वाद दिया। इसलिए बिस्मिल्ला खाँ को लगता था कि बालाजी ने उन्हें शहनाईवादन की सिद्धि प्रदान की है।

प्रश्न 6.
‘बिस्मिल्ला खाँ ने संगीत के क्षेत्र में उन्नति के साथ-साथ जीवन को अत्यंत सरलता और सादगी से व्यतीत किया है’-पाठ से उदाहरण देकर इस कथन को सिद्ध कीजिए।
उत्तर-
निश्चय ही बिस्मिल्ला खाँ महान् संगीतकार थे। उन्होंने शहनाईवादन कला को जिन बुलंदियों तक पहुँचाया है, वह एक असाधारण उपलब्धि कही जा सकती है। वे चाहते तो अपने भौतिक सुख के लिए धन-दौलत बटोर सकते थे, किंतु उन्होंने ऐसा न करके संगीत की साधना के साथ-साथ सरल ढंग से जीवन व्यतीत किया। उदाहरणार्थ एक बार अमेरिका का राकफलेर फाउंडेशन उन्हें और उनके संगतकार साथियों को परिवार सहित अमेरिका में उनकी जीवन-शैली के अनुसार रखना चाहता था। किंत बिस्मिल्ला खाँ ने अमेरिका के ऐश्वर्य की चाह न रखते हुए उनसे पूछा कि वहाँ गंगा नदी कहाँ से लाएँगे। इससे उनकी उपलब्धि अन्य से अधिक दिखाई देती है। वे चाहते तो अपने लिए सभी प्रकार के सुख और आराम एकत्रित कर सकते थे, किंतु उन्होंने अपना जीवन अपनी इच्छा और सादगी के साथ जीना ही पसंद किया।

प्रश्न 7.
उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ के जीवन में गंगा नदी का क्या महत्त्व है? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर-
पाठ में बताया गया है कि बालक बिस्मिल्ला खाँ बचपन से ही गंगा नदी में स्नान करता और तत्पश्चात् बालाजी के मंदिर में घंटों रियाज़ करता है। उनका यह क्रम आजीवन बना रहा। गंगा का उनके जीवन में इतना सहचर्य रहा है कि परिवार के सदस्यों व संगतकारों की भाँति वह उनके जीवन का अभिन्न अंग थी। गंगा के सहचर्य को वे कभी भी छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए। बड़े-से-बड़ा लालच भी उनके इस सहचर्य की भावना को हिला न सका। अमेरिका के राकफलेर फांउडेशन ने उन्हें और उनके संगतकारों को अमेरिका में उनके ढंग से रहने के लिए निमंत्रित किया था। किंतु उन्होंने कहा था कि वहाँ गंगा नदी कहाँ से लाएँगे। गंगा नदी उन्हें सदा सुख व आनंद देने वाली लगती थी। उनके लिए संसार के सभी सुख-ऐश्वर्य गंगा के सामने व्यर्थ थे। उन्हें जीवन का जो आनंद गंगा नदी के सहचर्य से मिलता था, वह कहीं और नहीं। इसलिए उनके जीवन में गंगा नदी का अत्यधिक महत्त्व रहा है।

प्रश्न 8.
बिस्मिल्ला खाँ साहब की मृत्यु कब हुई थी?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ को ईश्वर ने जैसे शहनाई के क्षेत्र में अत्यधिक सफलता प्रदान की थी, वैसे ही उन्हें लंबी आयु का वरदान भी दिया था। वे नब्बे वर्ष तक जीवित रहे। दिनांक 21 अगस्त, 2006 को यह महान् संगीतकार इस नश्वर संसार को अलविदा कह गया था। उनकी मृत्यु के इस दुखद समाचार से संगीत प्रेमियों को गहरा सदमा लगा था। सबकी आँखें नम हो गई थीं। ऐसे महान् संगीतकार कभी-कभी ही धरती पर आते हैं।

विचार/संदेश संबंधी प्रश्नोत्तर-

प्रश्न 9.
‘नौबतखाने में इबादत’ पाठ का प्रमुख संदेश क्या है?
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने महान् शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ के जीवन पर प्रकाश डाला है। जहाँ एक ओर खाँ साहब के व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों व विशेषताओं को उजागर किया गया है, वहीं कला के प्रति प्रेम, सरल एवं सादगीयुक्त जीवन जीने तथा धार्मिक उदारता की प्रेरणा भी दी गई है। इस पाठ में बताया गया है कि कला कोई भी हो, जब तक हम उसमें तल्लीनता व सच्चे मन से कार्य नहीं करेंगे, तब तक हमें सफलता नहीं मिल सकती। इसी प्रकार हमें अपने धर्म के साथ-साथ दूसरे धर्मों का सम्मान भी करना चाहिए। हमें सफलता प्राप्ति पर कभी अहंकार व घमंड नहीं करना चाहिए। हमें सदा ईश्वर के सम्मुख मन में समर्पण की भावना रखनी चाहिए।

प्रश्न 10.
बिस्मिल्ला खाँ की जीवन पद्धति कैसी थी तथा उससे हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ की जीवन पद्धति अत्यंत सरल एवं सहज थी। वे इतने महान् शहनाईवादक होकर भी एक साधारण व्यक्ति की भाँति जीवन व्यतीत करते थे। वे मुसलमान होते हुए भी अन्य धर्मों का आदर करते थे। दिखावा व अहंकार तो उनके पास फटकता तक न था। उनके जीवन-जीने की इस पद्धति से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें सहज एवं स्वाभाविक जीवन जीना चाहिए। विनम्रता और अहंकार-रहित जीवन महानता का गुण है, जिसे हमें अपने जीवन में अपनाना चाहिए। हमें भी दूसरों के धर्म का सम्मान करना चाहिए और अपने काम में ही अपना ध्यान लगाना चाहिए।

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प्रश्न 11.
काशी का भारतीय संस्कृति में क्या महत्त्व है?
उत्तर-
काशी भारतवर्ष का एक धार्मिक स्थल है। यह नगर साहित्य, संगीत आदि कलाओं का केंद्र रहा है। यहाँ बड़े-बड़े साहित्यकार एवं संगीतकार हुए हैं जिन्होंने अपनी कला के माध्यम से भारतीय साहित्य एवं संस्कृति को न केवल जीवित रखा, अपितु उसे विकास की ओर अग्रसर किया। उदाहरणार्थ शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ की शहनाईवादन कला को लिया जा सकता है। उन्होंने अपने जीवन के अस्सी वर्षों तक शहनाईवादन कला में नए-नए सुरों का प्रयोग करके उसे बुलंदियों तक पहुँचा दिया। इसी प्रकार काशी शिक्षा का केंद्र रहा है। यहाँ देश-विदेश से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते रहे हैं। वे यहाँ की संस्कृति से प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। वे अपने जीवन में यहाँ की संस्कृति और संस्कार ग्रहण कर उनके अनुसार जीवनयापन करते। अतः स्पष्ट है कि काशी का भारतीय संस्कृति में महत्त्वपूर्ण स्थान है।

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अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘नौबतखाने में इबादत’ पाठ के लेखक कौन हैं?
उत्तर-
नौबतखाने में इबादत’ पाठ के लेखक श्री यतींद्र मिश्र हैं।

प्रश्न 2.
‘नौबतखाना’ किसे कहते हैं?
उत्तर-
प्रवेश द्वार के ऊपर मंगल ध्वनि बजाने के स्थान को नौबतखाना कहते हैं।

प्रश्न 3.
बिस्मिल्ला खाँ के बचपन का क्या नाम था?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ के बचपन का नाम अमीरुद्दीन था।

प्रश्न 4.
अमीरुद्दीन के परदादा का क्या नाम था?
उत्तर-
अमीरुद्दीन के परदादा का नाम सलार हुसैन खाँ था।

प्रश्न 5.
बालक अमीरुद्दीन बालाजी के मंदिर में क्यों जाता था?
उत्तर-
बालक अमीरुद्दीन बालाजी के मंदिर में शहनाई वादन का अभ्यास करने के लिए जाता था।

प्रश्न 6.
बिस्मिल्ला खाँ को खुदा की किस चीज़ पर विश्वास है?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ को खुदा की वरदान शक्ति पर विश्वास है।

प्रश्न 7.
पुराणकार का संबंध किस रचना से है?
उत्तर-
पुराणकार का संबंध भागवत से है।

प्रश्न 8.
लेखक ने काशी का नायाब हीरा किसे कहा है?
उत्तर-
लेखक ने बिस्मिल्ला खाँ को काशी का नायाब हीरा कहा है।

प्रश्न 9.
शहनाई को बजाने के लिए किसका प्रयोग किया जाता है?
उत्तर-
शहनाई को बजाने के लिए रीड का प्रयोग किया जाता है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘नौबतखाने में इबादत’ पाठ के लेखक कौन हैं?
(A) यतींद्र मिश्र
(B) महावीरप्रसाद द्विवेदी
(C) मंगलेश डबराल
(D) मन्नू भंडारी
उत्तर-
(A) यतींद्र मिश्र

प्रश्न 2.
यतींद्र मिश्र जी का जन्म कब हुआ था?
(A) सन् 1967 में
(B) सन् 1970 में
(C) सन् 1977 में
(D) सन् 1987 में
उत्तर-
(C) सन् 1977 में

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत

प्रश्न 3.
यतींद्र मिश्र किस राज्य के रहने वाले थे?
(A) पंजाब
(B) उत्तर प्रदेश
(C) हिमाचल प्रदेश
(D) मध्य प्रदेश
उत्तर-
(B) उत्तर प्रदेश

प्रश्न 4.
यतींद्र मिश्र ने किस भाषा में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की थी?
(A) संस्कृत में
(B) पंजाबी में
(C) अंग्रेज़ी में
(D) हिंदी में
उत्तर-
(D) हिंदी में

प्रश्न 5.
‘लाखों सजदे, इसी एक सच्चे सुर की इबादत में खुदा के आगे झुकते हैं। यहाँ ‘सजदे’ का अर्थ है-
(A) भक्त
(B) सिर
(C) शिष्य
(D) लोग
उत्तर-
(B) सिर

प्रश्न 6.
‘नौबतखाने में इबादत’ किस प्रकार की साहित्यिक विधा से संबंधित है?
(A) जीवनी
(B) भाव चित्र
(C) रेखा चित्र
(D) व्यक्ति चित्र
उत्तर-
(D) व्यक्ति चित्र

प्रश्न 7.
अरब देश में बजाए जाने वाले वाद्य, जिसमें नाड़ी (नरकट या रीड) होती है, उसे क्या कहते हैं?
(A) शहनाई
(B) शृंगी
(C) नय
(D) सुषिर वाद्य
उत्तर-
(C) नय

प्रश्न 8.
पंचगंगा घाट किस शहर में है?
(A) कानपुर में
(B) इलाहाबाद में
(C) पटना में
(D) बनारस में
उत्तर-
(D) बनारस में

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत

प्रश्न 9.
अमीरुद्दीन का जन्म किस राज्य में हुआ था?
(A) पंजाब
(B) बिहार (डुमराँव)
(C) राजस्थान
(D) महाराष्ट्र
उत्तर-
(B) बिहार (डुमराँव)

प्रश्न 10.
अमीरुद्दीन का ननिहाल कहाँ है?
(A) रामपुर
(B) डुमरखाँ
(C) काशी
(D) बीजागढ़
उत्तर-
(C) काशी

प्रश्न 11.
बिस्मिल्ला खाँ की एक रीड कितने मिनट में अंदर से गीली हो जाया करती थी?
(A) 15 से 20 मिनट में
(B) 1 से 10 मिनट में
(C) 5 से 10 मिनट में
(D) 10 से 15 मिनट में
उत्तर-
(A) 15 से 20 मिनट में

प्रश्न 12.
बिस्मिल्ला खाँ का देहांत कितने वर्ष की आयु में हुआ था?
(A) 70 वर्ष
(B) 80 वर्ष
(C) 90 वर्ष
(D) 100 वर्ष
उत्तर-
(C) 90 वर्ष

प्रश्न 13.
खाँ साहब कितने वर्ष तक खुदा के आगे सच्चे सुर की इबादत में झुकते रहे थे?
(A) 60 वर्ष
(B) 80 वर्ष
(C) 70 वर्ष
(D) 90 वर्ष
उत्तर-
(B) 80 वर्ष

प्रश्न 14.
अमीरुद्दीन के बड़े भाई का क्या नाम था?
(A) सादिक हुसैन
(B) मुहम्मद अली
(C) शम्सुद्दीन
(D) नूर मुहम्मद
उत्तर-
(C) शम्सुद्दीन

प्रश्न 15.
शहनाई की मंगल ध्वनि के नायक कौन थे?
(A) तानसेन
(B) बैजू
(C) चित्ररथ
(D) बिस्मिल्ला खाँ
उत्तर-
(D) बिस्मिल्ला खाँ

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत

प्रश्न 16.
शहनाई को बजाने के लिए किसका प्रयोग किया जाता है?
(A) रीड
(B) पाइप
(C) पानी
(D) बिजली
उत्तर-
(A) रीड

प्रश्न 17.
शहनाई बजाने के प्रयोग में आने वाली ‘रीड’ किससे बनाई जाती है?
(A) स्टील से
(B) नरकट से
(C) बाँस से
(D) तूंबी से
उत्तर-
(B) नरकट से

प्रश्न 18.
उस मन्दिर का नाम लिखें जिससे बिस्मिल्ला खाँ को रोज एक अठन्नी मेहनताना मिलता था-
(A) अक्षरधाम
(B) सोमनाथ
(C) विश्वनाथ
(D) बाला जी
उत्तर-
(D) बाला जी

प्रश्न 19.
संकटमोचन मंदिर काशी की किस दिशा में है?
(A) पूर्व
(B) दक्षिण
(C) पश्चिम
(D) उत्तर
उत्तर-
(B) दक्षिण

प्रश्न 20.
‘नरकट’ नामक घास डुमराँव में किस नदी के पास पाई जाती है?
(A) गंगा
(B) यमुना
(C) नर्मदा
(D) सोन
उत्तर-
(D) सोन

प्रश्न 21.
मुहर्रम के गमजदा माहौल से अलंग कभी-कभी सुकून के क्षणों में बिस्मिल्ला खाँ अपने किन दिनों को याद करते थे?
(A) बचपन
(B) बुढ़ापा
(C) यौवन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-
(C) यौवन

प्रश्न 22.
‘फटा सुर न बख्शें! लुंगिया का क्या है, आज फटी तो कल सी जाएगी’-मालिक से यह दुआ कौन माँगता है?
(A) बिस्मिल्ला खाँ
(B) शिष्या
(C) शम्सुद्दीन
(D) डुमराँव गाँव के लोग
उत्तर-
(A) बिस्मिल्ला खाँ

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प्रश्न 23.
प्रवेश द्वार के ऊपर मंगलध्वनि बजाने का स्थान क्या कहलाता है?
(A) अटारी
(B) चौबारा
(C) नौबतखाना
(D) दरवाजा
उत्तर-
(C) नौबतखाना

नौबतखाने में इबादत गद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) अमीरुद्दीन अभी सिर्फ छः साल का है और बड़ा भाई शम्सुद्दीन नौ साल का। अमीरुद्दीन को पता नहीं है कि राग किस चिड़िया को कहते हैं। और ये लोग हैं मामूजान वगैरह जो बात-बात पर भीमपलासी और मुलतानी कहते रहते हैं। क्या वाज़िब मतलब हो सकता है इन शब्दों का, इस लिहाज से अभी उम्र नहीं है अमीरुद्दीन की, जान सके इन भारी शब्दों का वज़न कितना होगा। गोया, इतना ज़रूर है कि अमीरुद्दीन व शम्सुद्दीन के मामाद्वय सादिक हुसैन तथा अलीबख्श देश के जाने-माने शहनाईवादक हैं। विभिन्न रियासतों के दरबार में बजाने जाते रहते हैं। रोज़नामचे में बालाजी का मंदिर सबसे ऊपर आता है। हर दिन की शुरुआत वहीं ड्योढ़ी पर होती है। मंदिर के विग्रहों को पता नहीं कितनी समझ है, जो रोज़ बदल-बदलकर मुलतानी, कल्याण, ललित और कभी भैरव रागों को सुनते रहते हैं। ये खानदानी पेशा है अलीबख्श के घर का। उनके अब्बाजान भी यहीं ड्योढ़ी पर शहनाई बजाते रहते हैं। [पृष्ठ 116]

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) अमीरुद्दीन कौन है और उसकी आयु कितनी है?
(ग) अमीरुद्दीन के बड़े भाई का क्या नाम था और उसकी उम्र क्या थी?
(घ) भीमपलासी और मुलतानी क्या हैं? अमीरुद्दीन को इनका पता क्यों नहीं था?
(ङ) अमीरुद्दीन के मामूजानों के क्या नाम थे और वे किस काम के लिए प्रसिद्ध थे?
(च) सादिक हुसैन तथा अलीबख्श प्रतिदिन प्रातः के समय कहाँ शहनाई बजाते थे?
(छ) अलीबख्श के अब्बाजान क्या काम करते थे?
(ज) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) लेखक का नाम-श्री यतींद्र मिश्र। पाठ का नाम-नौबतखाने में इबादत।

(ख) अमीरुद्दीन उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का बचपन का नाम है। वह उस समय केवल छः वर्ष के थे।

(ग) अमीरुद्दीन के बड़े भाई का नाम शम्सुद्दीन था। उस समय उसकी आयु केवल नौ वर्ष की थी।

(घ) भीमपलासी और मुलतानी संगीत के रागों के नाम हैं। उस समय अमीरुद्दीन केवल छः वर्ष का बालक था, इसलिए उसे रागों का बोध नहीं था।

(ङ) अमीरुद्दीन के मामूजानों के नाम सादिक हुसैन तथा अलीबख्श थे। वे शहनाईवादक के रूप में प्रसिद्ध थे।

(च) सादिक हुसैन तथा अलीबख्श प्रतिदिन प्रातः के समय बालाजी के मंदिर की ड्योढ़ी में शहनाई बजाते थे। वहीं से वे अपना दैनिक कार्य आरंभ करते थे।

(छ) अलीबख्श के अब्बाजान भी शहनाईवादन का कार्य करते थे। इस क्षेत्र में उन्होंने भी खूब नाम कमाया था।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत

(ज) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने अमीरुद्दीन के बचपन और उनके परिवार की जानकारी दी है। अमीरुद्दीन अभी छः वर्ष का है और उसका बड़ा भाई शम्सुद्दीन नौ वर्ष का है। अमीरुद्दीन अपने मामा के घर में रहता है। उसे अभी रागों का ज्ञान नहीं है। किंतु उसके मामा आदि बात-बात में विभिन्न रागों के नाम लेकर उनका वर्णन करते रहते हैं। इन शब्दों का वास्तिक अर्थ क्या है, . यह जानने के लिए अमीरुद्दीन की आयु अभी बहुत कम है। इतना अवश्य है कि उसके मामा सादिक हुसैन और अलीबख्श देश के सुप्रसिद्ध शहनाई वादक हैं। वे भिन्न-भिन्न रियासतों के दरबारों में शहनाई बजाने जाते हैं। वे प्रतिदिन प्रातः बाला जी के मंदिर की ड्योढ़ी पर भी शहनाई बजाते हैं। वे हर रोज़ विभिन्न रागों में शहनाई वादन करते हैं। शहनाई वादन उनका खानदानी पेशा है। उनके अब्बाजान भी यहीं ड्योढ़ी पर शहनाई बजाते रहते थे।

(2) मसलन बिस्मिल्ला खाँ की उम्र अभी 14 साल है। वही काशी है। वही पुराना बालाजी का मंदिर जहाँ बिस्मिल्ला खाँ को नौबतखाने रियाज़ के लिए जाना पड़ता है। मगर एक रास्ता है बालाजी मंदिर तक जाने का। यह रास्ता रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से होकर जाता है। इस रास्ते से अमीरुद्दीन को जाना अच्छा लगता है। इस रास्ते न जाने कितने तरह के बोल-बनाव कभी ठुमरी, कभी टप्पे, कभी दादरा के मार्फत ड्योढ़ी तक पहुँचते रहते हैं। रसूलन और बतूलन जब गाती हैं तब अमीरुद्दीन को खुशी मिलती है। अपने ढेरों साक्षात्कारों में बिस्मिल्ला खाँ साहब ने स्वीकार किया है कि उन्हें अपने जीवन के आरंभिक दिनों में संगीत के प्रति आसक्ति इन्हीं गायिका बहिनों को सुनकर मिली है। एक प्रकार से उनकी अबोध उम्र में अनुभव की स्लेट पर संगीत प्रेरणा की वर्णमाला रसूलनबाई और बतूलनबाई ने उकेरी है। [पृष्ठ 117]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) 14 वर्षीय बिस्मिल्ला खाँ को बालाजी के मंदिर में जाने के लिए कौन-सा रास्ता अच्छा लगता था?
(ग) अमीरुद्दीन को रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से जाना क्यों अच्छा लगता था?
(घ) रसूलनबाई और बतूलनबाई कौन-कौन से रागों में गाती थीं?
(ङ) अमीरुद्दीन बालाजी के मंदिर में क्यों जाते थे?
(च) अमीरुद्दीन अपने जीवन में संगीत का प्रथम प्रेरक किसे मानते हैं और क्यों?
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) लेखक का नाम-श्री यतींद्र मिश्र।
पाठ का नाम-नौबतखाने में इबादत।

(ख) 14 वर्षीय बिस्मिल्ला खाँ को बालाजी के मंदिर में जाने के लिए वह रास्ता अच्छा लगता जिसमें रसूलनबाई और बतूलनबाई का घर था।

(ग) अमीरुद्दीन (बिस्मिल्ला खाँ) को रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से जाना इसलिए अच्छा लगता था क्योंकि वह उनकी गायकी को सुनकर बहुत प्रसन्न होता था। उसे हर प्रातः वहाँ से गुज़रते हुए तरह-तरह के मधुर रागों से युक्त उनकी ध्वनि सुनाई पड़ती थी। इसी कारण वह इस रास्ते से जाता था।

(घ) रसूलनबाई तथा बतूलनबाई ठुमरी, टप्पे व दादरा आदि रागों में गाती थीं जो मधुर ध्वनियुक्त राग हैं।

(ङ) अमीरुद्दीन बालाजी के मंदिर में शहनाईवादन का रियाज़ करने जाते थे।

(च) अमीरुद्दीन अपने जीवन में संगीत का प्रथम प्रेरक रसूलनबाई व बतूलनबाई नामक दो गायिका-बहनों को मानते हैं, क्योंकि वे प्रतिदिन बालाजी के मंदिर में जाते समय उनके संगीत को सुनते थे। उनके संगीत से आकृष्ट होकर उन्होंने संगीत में रुचि लेनी आरंभ की थी।

(छ) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में बताया गया है कि अमीरुद्दीन ही बड़ा होकर बिस्मिल्ला खाँ के नाम से प्रसिद्ध होता है। वह अभी 14 वर्ष का है, उसे प्रतिदिन बालाजी के मंदिर में नौबतखाने में शहनाई वादन के अभ्यास के लिए जाना पड़ता है। आम रास्ते के अतिरिक्त एक दूसरा रास्ता भी है जो बालाजी के मंदिर को जाता है। अमीरुद्दीन उसी रास्ते से जाता है। वह रास्ता रसूलनबाई और बतूलनबाई के घर के आगे से होकर जाता है। ये दोनों बहनें गायिकाएँ थीं और इनके गाए गए ठुमरी, टप्पे, दादरा आदि के बोल बालक अमीरुद्दीन को बहुत अच्छे लगते थे। उसे उनका संगीत सुनकर बहुत अच्छा लगता था। बाद में बिस्मिल्ला खाँ ने स्वीकार भी किया है कि उन्हें अपने जीवन के आरंभिक दिनों में गीत-संगीत की प्रेरणा इन दोनों गायिका बहनों को सुनकर मिली है। उनके मन की स्लेट पर संगीत प्रेरणा की वर्णमाला इन दोनों बहनों ने ही लिखी है। कहने का भाव है कि महान् शहनाई वादक बिस्मिल्ला खाँ के गीत-संगीत की प्रेरणा ये दोनों बहनें ही रही हैं।

(3) शहनाई के इसी मंगलध्वनि के नायक बिस्मिल्ला खाँ साहब अस्सी बरस से सुर माँग रहे हैं। सच्चे सुर की नेमत। अस्सी बरस की पाँचों वक्त वाली नमाज़ इसी सुर को पाने की प्रार्थना में खर्च हो जाती है। लाखों सज़दे, इसी एक सच्चे सुर की इबादत में खुदा के आगे झुकते हैं। वे नमाज़ के बाद सज़दे में गिड़गिड़ाते हैं-‘मेरे मालिक एक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ। उनको यकीन है, कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा और अपनी झोली से सुर का फल निकालकर उनकी ओर उछालेगा, फिर कहेगा, ले जा अमीरुद्दीन इसको खा ले और कर ले अपनी मुराद पूरी। [पृष्ठ 117]

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) बिस्मिल्ला खाँ को किसका नायक कहा गया है?
(ग) उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ अस्सी वर्ष से क्या माँग रहे हैं?
(घ) शहनाई की ध्वनि को क्या कहा जाता है?
(ङ) ‘सच्चे सुर की नेमत’ का अभिप्राय स्पष्ट कीजिए।
(च) नमाज़ के पश्चात् उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ सज़दे में क्या कहते हैं और क्यों?
(छ) बिस्मिल्ला खाँ को खुदा की किस चीज़ पर विश्वास है?
(ज) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) लेखक का नाम-श्री यतींद्र मिश्र। पाठ का नाम-नौबतखाने में इबादत ।

(ख) बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मांगलिक ध्वनि का नायक कहा गया है, क्योंकि उन्होंने शहनाईवादन में नए-नए सुरों को ढाला है।

(ग) उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ अस्सी वर्ष से खुदा से सच्चे सुर का वरदान माँग रहे हैं, जो श्रोताओं के मन में आनंदानुभूति उत्पन्न कर दे।

(घ) शहनाई की ध्वनि को मंगल ध्वनि कहा जाता है, क्योंकि बिस्मिल्ला खाँ इस ध्वनि से अपनी दिनचर्या आरंभ करते थे। वे सबसे पहले बालाजी के मंदिर की ड्योढ़ी में इसे बजाते थे।

(ङ) इस वाक्य के द्वारा लेखक ने बताया है कि बिस्मिल्ला खाँ शहनाईवादन में सर्वश्रेष्ठ हैं। वे निरंतर शहनाई बजाते रहते हैं तथा अपने वादन से सबको मंत्र-मुग्ध कर देते हैं, फिर भी वे खुदा से विनती करते रहते हैं कि उनकी शहनाई से सच्चे सुर ही निकलें।

(च) नमाज़ के पश्चात् सज़दे में बिस्मिल्ला खाँ यही कहते हैं कि हे प्रभु! मुझे सच्चा सुर प्रदान करो। मेरे सुरों में ऐसा प्रभाव उत्पन्न कर दो कि भावविभोर होकर मेरी आँखों से अनायास ही अश्रुधारा बह निकले। वे ऐसा इसलिए कहते हैं क्योंकि वे सदा अच्छी से-अच्छी शहनाई बजाना चाहते हैं।

(छ) बिस्मिल्ला खाँ को खुदा की वरदान-शक्ति पर पूरा विश्वास है। उसे यह भी विश्वास है कि उसे शहनाईवादन की जो कला मिली है, वह भी ईश्वर का ही वरदान है। आगे भी उसे सुरों की जो कला प्राप्त होगी, वह भी प्रभु की ही देन होगी।

(ज) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में शहनाई वादन के महान् कलाकार बिस्मिल्ला खाँ के विनम्र एवं उदार स्वभाव तथा शहनाई वादन की कला के प्रति उनकी समर्पण की भावना को अभिव्यक्त किया गया है। शहनाई की मंगल ध्वनि के नायक बिस्मिल्ला खाँ साहब अस्सी वर्ष से ईश्वर से सच्चे सुर के वरदान की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते आ रहे हैं। वे अपनी प्रतिदिन की पाँच बार की नमाज़ (प्रार्थना) को भी सच्चे सुर के लिए खर्च करते हैं। वे लाखों बार प्रभु के सामने इसी सुर के लिए माथा टेक चुके हैं। वे हर बार यही माँगते हैं कि सुर में ऐसी विशेषता उत्पन्न कर दे कि भावविभोर होकर उसकी आँखों से अनायास ही अश्रु-धारा बह निकलें। उन्हें पूर्ण विश्वास है कि ईश्वर उन पर एक-न-एक दिन अवश्य ही मेहरबान होकर सुर रूपी फल दे देंगे। कहने का तात्पर्य है कि बिस्मिल्ला खाँ अस्सी वर्ष तक शहनाई वादन के क्षेत्र में नए-नए सुरों का अभ्यास करते रहे और परमात्मा से अच्छे से अच्छे सुर की प्रार्थना भी करते रहे।

(4) इसी बालसुलभ हँसी में कई यादें बंद हैं। वे जब उनका ज़िक्र करते हैं तब फिर उसी नैसर्गिक आनंद में आँखें चमक उठती हैं। अमीरुद्दीन तब सिर्फ चार साल का रहा होगा। छुपकर नाना को शहनाई बजाते हुए सुनता था, रियाज़ के बाद जब अपनी जगह से उठकर चले जाएँ तब जाकर ढेरों छोटी-बड़ी शहनाइयों की भीड़ से अपने नाना वाली शहनाई ढूँढता और एक-एक शहनाई को फेंक कर खारिज़ करता जाता, सोचता-‘लगता है मीठी वाली शहनाई दादा कहीं और रखते हैं।’ जब मामू अलीबख्श खाँ (जो उस्ताद भी थे) शहनाई बजाते हुए सम पर आएँ, तब धड़ से एक पत्थर ज़मीन पर मारता था। सम पर आने की तमीज़ उन्हें बचपन में ही आ गई थी, मगर बच्चे को यह नहीं मालूम था कि दाद वाह करके दी जाती है, सिर हिलाकर दी जाती है, पत्थर पटक कर नहीं। [पृष्ठ 119]

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) इस गद्यांश में अमीरुद्दीन की किस अवस्था का वर्णन किया गया है?
(ग) चार वर्षीय बालक अमीरुद्दीन शहनाइयों में से किसकी शहनाई खोजता था और क्यों?
(घ) अमीरुद्दीन के नाना के विषय में कैसे विचार थे?
(ङ) अमीरुद्दीन के उस्ताद का क्या नाम था?
(च) अमीरुद्दीन दाद कैसे देता था?
(छ) शहनाईवादन में दाद देने का सही ढंग क्या है?
(ज) सम पर आने से क्या अभिप्राय है?
(झ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) लेखक का नाम-श्री यतींद्र मिश्र। पाठ का नाम-नौबतखाने में इबादत।

(ख) इस गद्यांश में अमीरुद्दीन की बाल्यावस्था का वर्णन किया गया है जिसमें उनकी बालसुलभ क्रियाएँ अत्यंत आकर्षक हैं।

(ग) चार वर्षीय अमीरुद्दीन नाना के चले जाने के बाद नौबतखाने में रखी हुई शहनाइयों में से अपने नाना की शहनाई को खोजता था। उसके नाना बहुत मीठी शहनाई बजाते थे। इसलिए वह उन्हीं की शहनाई को खोजता था।

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(घ) अमीरुद्दीन का अपने नाना के प्रति अत्यंत स्नेह था। वह उन्हें अपना आदर्श मानता था। वह उन्हीं की शहनाई खोजकर बजाना चाहता था। किंतु शहनाई न मिलने पर सोचता था कि नाना ने अपनी शहनाई कहीं छुपाकर रख दी है।

(ङ) अमीरुद्दीन के उस्ताद का नाम अलीबख्श खाँ था जो उसके मामा भी थे।

(च) अमीरुद्दीन शहनाई के सम पर पत्थर को ज़मीन पर पटककर दाद देता था।

(छ) शहनाईवादन में सही दाद सिर हिलाकर दी जाती है अथवा ‘वाह’ शब्द बोलकर भी दाद दी जाती है।

(ज) शहनाईवादन क्रिया में जब लय समाप्त होती है और ताल आरंभ होती है, तो उसे सम की स्थिति कहा जाता है।

(झ) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने शहनाई वादन के क्षेत्र के शहंशाह बिस्मिल्ला खाँ (अमीरुद्दीन) के बचपन की कुछ यादों का भावपूर्ण वर्णन किया है। जब बिस्मिल्ला खाँ अपने बचपन की यादों का वर्णन करते हैं तो एक सात्विक आनंद से उनकी आँखें चमक उठती हैं। वे बताते हैं कि जब वे चार वर्ष के थे तो छुपकर नाना जी को शहनाई बजाते हुए देखते थे। अभ्यास के पश्चात् जब वे उठकर चले जाते थे तो वहाँ रखी बहुत-सी शहनाइयों में से वह शहनाई ढूँढ़ते थे जिससे उनके नाना जी अभ्यास करते थे। उसके लिए वे एक-एक शहनाई को उठाकर खारिज कर देते थे और सोचते थे कि नाना जी ने मीठी वाली शहनाई कहीं और रख दी है। एक घटना को याद करते हुए वे कहते हैं कि जब उनके मामा अलीबख्श खाँ शहनाई बजाते समय सम पर आते तो वे एक पत्थर ज़मीन पर मारते थे। उनकी इस हरकत को देखकर उनके मामा ने कहा था कि दाद वाह करके या सिर हिलाकर दी जाती है, न कि ज़मीन पर पत्थर मार कर। निश्चय ही बालक अमीरुद्दीन की ये दोनों यादें बहुत ही मीठी यादें हैं।

(5) काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है। यह आयोजन पिछले कई बरसों से संकटमोचन मंदिर में होता आया है। यह मंदिर शहर के दक्षिण में लंका पर स्थित है व हनुमान जयंती के अवसर पर यहाँ पाँच दिनों तक शास्त्रीय एवं उपशास्त्रीय गायन-वादन की उत्कृष्ट सभा होती है। इसमें बिस्मिल्ला खाँ अवश्य रहते हैं। अपने मजहब के प्रति अत्यधिक समर्पित उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की श्रद्धा काशी विश्वनाथ जी के प्रति भी अपार है। वे जब भी काशी से बाहर रहते हैं तब विश्वनाथ व बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके बैठते हैं, थोड़ी देर ही सही, मगर उसी ओर शहनाई का प्याला घुमा दिया जाता है और भीतर की आस्था रीड के माध्यम से बजती है। [पृष्ठ 119]

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) काशी में कौन-सी प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा रही है?
(ग) हनुमान जयंती के अवसर पर आयोजित संगीत सभा का परिचय दीजिए।
(घ) बिस्मिल्ला खाँ की काशी विश्वनाथ के प्रति कैसी भावनाएँ थीं?
(ङ) काशी के संकटमोचन मंदिर के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
(च) इस गद्यांश का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) लेखक का नाम श्री यतींद्र मिश्र। . पाठ का नाम-नौबतखाने में इबादत।

(ख) काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा रही है। इस परंपरा के कारण काशी का नाम सर्वत्र आदर से लिया जाता है। ।

(ग) हनुमान जयंती के अवसर पर काशी के सुप्रसिद्ध संकटमोचन मंदिर में पाँच दिनों तक शास्त्रीय व उपशास्त्रीय संगीत की श्रेष्ठ । सभा का आयोजन किया जाता है। इस सभा में उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का शहनाईवादन अवश्य होता है।

(घ) बिस्मिल्ला खाँ संगीत के साथ-साथ धार्मिक प्रवृत्ति वाले व्यक्ति थे। वे अपने धर्म के प्रति पूर्णतः समर्पित थे। वे पाँचों वक्त नमाज़ पढ़ते थे। इसके साथ वे बालाजी के मंदिर में शहनाईवादन भी करते थे। वे काशी के विश्वनाथ मंदिर में भी शहनाई बजाते थे। उनकी काशी विश्वनाथ जी के प्रति अपार श्रद्धा थी। वे सदा ही उन्हें स्मरण करते थे।

(ङ) काशी में नगर के दक्षिण में लंका पर संकटमोचन मंदिर विद्यमान है। यहाँ प्रतिवर्ष धार्मिक एवं संगीत के विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। हनुमान जयंती के अवसर पर तो संगीत के विशाल कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर लोग उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की मधुर शहनाई का आनंद भी उठाते हैं।

(च) इस गद्यांश के माध्यम से लेखक ने काशी नगर की सांस्कृतिक भूमि को उजागर किया है। काशी जी में संगीत सम्मेलनों का आयोजन किया जाता है। ऐसे अवसरों पर बिस्मिल्ला खाँ जैसे महान् संगीतकार भाग लेते थे। इसलिए काशी नगरी के सांस्कृतिक जीवन को उद्घाटित करना प्रस्तुत गद्यांश का मूल भाव है।

(छ) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने काशी नगरी की शास्त्रीय एवं उपशास्त्रीय गायन वादन की श्रेष्ठ परंपरा और बिस्मिल्ला खाँ की बालाजी के प्रति अटूट श्रद्धा का वर्णन किया है। काशी में संगीत आयोजन की प्राचीन परंपरा रही है। इसी परंपरा के कारण काशी का आदर भी किया जाता है। बालाजी के मंदिर में हनुमान जयंती के शुभ अवसर पर शास्त्रीय संगीत का समायोजन किया जाता है। इस सभा में बिस्मिल्ला खाँ का शहनाई वादन अवश्य होता है। यद्यपि बिस्मिल्ला खाँ में अपने धर्म के प्रति अत्यधिक समर्पण की भावना है फिर भी उनकी अपार श्रद्धा काशी विश्वनाथ के प्रति भी है। वे जब भी काशी से बाहर रहते हैं तब भी वे विश्वनाथ व बालाजी के मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके शहनाई वादन अवश्य करते हैं। उनकी यह हार्दिक आस्था ही उनकी शहनाई के रूप में प्रकट होती है। कहने का भाव है कि बिस्मिल्ला खाँ का धार्मिक दृष्टिकोण अत्यंत उदार है और शहनाई वादन कला के प्रति भी पूर्णतः समर्पित है।

(6) काशी आज भी संगीत के स्वर पर जगती और उसी की थापों पर सोती है। काशी में मरण भी मंगल माना गया है। काशी .. आनंदकानन है। सबसे बड़ी बात है कि काशी के पास उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ जैसा लय और सुर की तमीज़ सिखाने वाला नायाब हीरा रहा है जो हमेशा से दो कौमों को एक होने व आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा। [पृष्ठ 121]

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) आज की काशी की स्थिति कैसी है?
(ग) काशी में मरना मंगलमय क्यों माना जाता है?
(घ) नायाब हीरा किसे और क्यों कहा गया है?
(ङ) उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ ने किन दो कौमों को कैसी प्रेरणा दी है?
(च) लेखक ने काशी को आनंदकानन क्यों कहा है?
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) लेखक का नाम श्री यतींद्र मिश्र। पाठ का नाम-नौबतखाने में इबादत।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत

(ख) आज काशी की स्थिति अत्यंत अच्छी है। यहाँ संगीत कला का आदर किया जाता है। काशी आज भी संगीत के स्वरों से जागती है और संगीत की थपकी से ही सोती है। कहने का भाव है कि काशी में प्रातः बिस्मिल्ला खाँ जैसे महान् संगीतज्ञ द्वारा शहनाईवादन किया जाता है।

(ग) काशी में मरना इसलिए मंगलमय माना जाता है, क्योंकि यह शिव की नगरी है। यहाँ मरने से मनुष्य को शिव लोक प्राप्त होता है। वह सांसारिक आवागमन से मुक्त हो जाता है।

(घ) नायाब हीरा उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ को कहा गया है, क्योंकि सुर एवं लय से वह काशी में आनंद की धारा प्रवाहित करता है। उसने सदा सबको मिल-जुलकर रहने की प्रेरणा दी है।

(ङ) उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ ने हिंदुओं एवं मुसलमानों को मिल-जुलकर रहने की प्रेरणा दी है। उनके अनुसार अपनी मेल-जोल की भावना से समाज में एकता एवं प्रेमभाव का विकास होता है।

(च) लेखक ने काशी को आनंदकानन इसलिए कहा है क्योंकि यहाँ विश्वनाथ विराजमान हैं। उनकी कृपा से यहाँ सर्वत्र मंगल वर्षा होती रहती है। उनकी दया से ही जीवात्माएँ मोक्ष को प्राप्त होती हैं। काशी जी में सदा संगीत सभाओं का आयोजन किया जाता है। इसलिए वहाँ संगीतमय वातावरण बना रहता है। अतः काशी को आनंदकानन कहना उचित है।

(छ) आशय/व्याख्या प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने काशी नगरी के संगीत-प्रेम का उल्लेख किया है। साथ ही उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ के चरित्र के उदात्त गुणों का उल्लेख किया है। लेखक का मत है कि काशी में सुबह-शाम संगीत के स्वर थिरकते हैं। काशी जी में मरण भी शुभ माना जाता है। काशी नगरी आनंद देने वाला उपवन है। इससे भी अच्छी बात यह है कि काशी के पास बिस्मिल्ला खाँ जैसा सुर और लय का ज्ञान देने वाला अनोखा हीरा है। वह सदा ही दो जातियों (हिंदू और मुसलमान) के लोगों को आपस के मतभेद को भूलकर भाईचारे के साथ अर्थात् मिलजुल कर रहने की प्रेरणा देता रहा है।

नौबतखाने में इबादत Summary in Hindi

नौबतखाने में इबादत लेखक-परिचय

प्रश्न-
श्री यतींद्र मिश्र का जीवन-परिचय एवं उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय श्री यतींद्र मिश्र का जन्म सन् 1977 में राम-जन्मभूमि अयोध्या में हुआ। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ से हिंदी विषय में एम.ए. की परीक्षा पास की। वे आजकल स्वतंत्र लेखन के साथ अर्द्धवार्षिक ‘सहित’ पत्रिका का संपादन कर रहे हैं। सन् 1999 से अब तक वे ‘विमला देवी फाउंडेशन’ नामक एक सांस्कृतिक न्यास का संचालन कर रहे हैं। इस न्यास का संबंध साहित्य और कलाओं के संवर्द्धन से है।

2. प्रमुख रचनाएँ-(क) काव्य-संग्रह ‘यदा-कदा’, ‘अयोध्या तथा अन्य कविताएँ’, ‘ड्योढ़ी पर आलाप’।
(ख) अन्य रचनाएँ–’गिरिजा’ (शास्त्रीय संगीत गायिका गिरिजा देवी की जीवनी), ‘कवि द्विजदेव की ग्रंथावली का सह-संपादन’, ‘थाती’ (स्पिक मैके के लिए विरासत-2001 के कार्यक्रम के लिए रूपंकर कलाओं पर केंद्रित)।

3. सम्मान-उन्हें ‘भारत भूषण अग्रवाल कविता सम्मान’, ‘हेमंत स्मृति कविता पुरस्कार’, ‘ऋतुराज सम्मान’ आदि कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।

4. भाषा-शैली-श्री यतींद्र मिश्र की भाषा-शैली सरल, सहज एवं व्यावहारिक है। ‘नौबतखाने में इबादत’ नामक पाठ में सुप्रसिद्ध शहनाईवादक उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ के जीवन के विभिन्न पक्षों का विस्तृत वर्णन किया गया है। यह एक सफल व्यक्ति-चित्र है। इसमें शास्त्रीय संगीत परंपरा के विभिन्न पहलुओं को सफलतापूर्वक उजागर किया गया है। इस पाठ की भाषा में लेखक ने संगीत से संबंधित प्रचलित शब्दों का सार्थक प्रयोग किया है, यथा-सम, सर, ताल, ठुमरी, टप्पा, दादरी, रीड, कल्याण, मुलतानी, भीमपलासी आदि। उर्दू-फारसी के शब्दों का भी भरपूर प्रयोग किया गया है, यथा दरबार, पेशा, साहबजादे, खानदानी मुराद, गमजदा, बदस्तूर आदि। कहीं संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग भी किया गया है। वाक्य रचना सुगठित एवं व्याकरण सम्मत है। कहीं-कहीं संवादों का भी सफल प्रयोग किया गया है, जिससे विषय में रोचकता का समावेश हुआ है। भावात्मक, वर्णनात्मक एवं चित्रात्मक शैलियों का सफल प्रयोग किया गया है।

नौबतखाने में इबादत पाठ का सार

प्रश्न-
‘नौबतखाने में इबादत’ शीर्षक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने सुप्रसिद्ध शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ के जीवन एवं उनकी शहनाईवादन कला के विभिन्न पक्षों का सजीव उल्लेख किया है। सन् 1916 से 1922 के आस-पास का समय था, जब छः वर्ष का अमीरुद्दीन अपने बड़े भाई शम्सुद्दीन के साथ काशी में अपने मामूजान सादिक हुसैन और अलीबख्श के पास रहने के लिए आया था। इनके दोनों मामा सुप्रसिद्ध शहनाईवादक थे। वे दिन की शुरुआत पंचगंगा घाट स्थित बालाजी मंदिर की ड्योढ़ी पर शहनाई बजाकर किया करते थे। उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का बचपन का नाम अमीरुद्दीन था। इनका जन्म बिहार के डुमराँव नामक गाँव में हुआ। वैसे तो डुमराँव और शहनाई में कोई संबंध नहीं है लेकिन डुमराँव गाँव में सोन नदी के किनारे पाई जाने वाली नरकट नामक घास से शहनाई की रीड बनाई जाती है, जिससे शहनाई बजती है। इनके पिता का नाम उस्ताद पैगंबर बख्श खाँ और माता का नाम मिट्ठन था।

अमीरुद्दीन चौदह वर्ष की आयु में बालाजी के मंदिर में जाते समय रसूलनबाई और बतूलनबाई के घर के रास्ते से होकर जाते थे। इन दोनों बहनों द्वारा गाए हुए टप्पे, दादरा, ठुमरी आदि के बोल उन्हें बहुत अच्छे लगते थे। उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है कि उन्हें अपने जीवन के आरंभिक दिनों में इन्हीं गायिका बहनों से संगीत की प्रेरणा मिली है।

वैदिक इतिहास में शहनाई का कोई वर्णन प्राप्त नहीं होता। अरब देशों में फूंककर बजाए जाने वाले वाद्यों को ‘नय’ कहते हैं। शहनाई को ‘शाहेनय’ कहकर ‘सुषिर वाद्यों में शाह’ माना जाता है। सोलहवीं शती के अंत में तानसेन द्वारा रचित राग कल्पद्रुम की बंदिश में शहनाई, मुरली, वंशी शृंगी और मुरछंग का वर्णन मिलता है। अवधी के लोकगीतों में शहनाई का भी वर्णन देखा जा सकता है। मंगल कार्य के समय ही शहनाई का वादन किया जाता है। दक्षिण भारत में शहनाई प्रभाती की मंगलध्वनि मानी जाती है।

उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ अस्सी वर्ष की आयु में भी परमात्मा से सदा ‘सुर में तासीर’ पैदा करने की दुआ माँगते थे। वे ऐसा अनुभव करते थे कि वे अभी तक सुरों का सही प्रयोग करना नहीं सीख पाए हैं। वे अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति के थे। मुहर्रम के दिनों की आठवीं तारीख को खड़े होकर शहनाईवादन किया करते थे और उनकी आँखें इमाम हुसैन और उनके परिवार वालों के बलिदान की याद में भीग जाती थीं।

लेखक ने बिस्मिल्ला खाँ के यौवन के दिनों के विषय में बताया है कि उन्हें कुलसुम हलवाइन की दुकान की कचौड़ियाँ खाने व गीताबाली और सुलोचना की फ़िल्में देखने का जुनून सवार रहता था। वे बचपन में माम, मौसी और नाना से पैसे लेकर घंटों लाइन में खड़े होकर टिकट हासिल कर फिल्म देखने जाते थे। जब बालाजी के मंदिर पर शहनाई बजाने के बदले उन्हें अठन्नी मिलती थी तो वे कचौड़ी खाने और फिल्म देखने अवश्य जाते थे। . लेखक ने पुनः लिखा है कि कई वर्षों से काशी में संगीत का आयोजन संकटमोचन मंदिर में होता है। हनुमान जयंती पर तो पाँच दिनों तक शास्त्रीय व उपशास्त्रीय संगीत का सम्मेलन होता है। इस अवसर पर उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ विशेष रूप में उपस्थित रहते थे। उन्हें काशी के विश्वनाथ के प्रति भी अपार श्रद्धा थी। वे जब भी काशी से बाहर होते तो विश्वनाथ एवं बालाजी के मंदिर की ओर मुख करके अवश्य ही शहनाईवादन करते। उन्हें काशी और गंगा से बहुत लगाव था। उन्हें काशी और शहनाई से बढ़कर कहीं स्वर्ग दिखाई नहीं देता था। काशी की अपनी एक संस्कृति है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत

उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का पर्याय शहनाई है। इनकी फंक से शहनाई में जादुई ध्वनि उत्पन्न होती थी। एक बार उनकी एक शिष्या ने उन्हें कहा कि आपको भारतरत्न मिल चुका है, आप फटी हुई तहमद न पहना करें। इस पर उन्होंने कहा कि भारतरत्न शहनाई पर मिला है, न कि तहमद पर। हम तो मालिक से यही दुआ करते हैं कि फटा हुआ सुर न दे, तहमद भले फटा रहे। उन्हें इस बात की कमी खलती थी कि पक्का महाल क्षेत्र से मलाई बरफ बेचने वाले चले गए। देसी घी की कचौड़ी-जलेबी भी पहले जैसी नहीं बनती। संगीत, साहित्य और अदब की प्राचीन परंपराएँ भी लुप्त होती जा रही हैं।

काशी में आज भी संगीत की गुंजार सुनाई पड़ती है। यहाँ मरना भी मंगलमय माना जाता है। यहाँ बिस्मिल्ला खाँ और विश्वनाथ एक-दूसरे के पूरक रहे हैं। यहाँ की गंगा-जमुनी संस्कृति का विशेष महत्त्व है। भारतरत्न और अनेकानेक पुरस्कारों से सम्मानित उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ सदा संगीत के अजेय नायक बने रहेंगे। नब्बे वर्ष की आयु में 21 अगस्त, 2006 को यह संगीत की दुनिया का महान् साधक संगीत प्रेमियों की दुनिया से विदा हो गया।

कठिन शब्दों के अर्थ

(पृष्ठ-116) ड्योढ़ी = दहलीज़। नौबतखाना = प्रवेशद्वार के ऊपर मंगलध्वनि बजाने का स्थान। इबादत = पूजा। घाट = नदी का किनारा। मंगलध्वनि = आनंददायक आवाज़ । मामूजान = प्रिय मामाजी। भीमपलासी, मुलतानी = संगीत के रागों के नाम। वाजिब = ठीक। लिहाज = शर्म। गोया = फिर भी। वादक = बजाने वाला। रियासत = शासन-क्षेत्र। रोज़नामचा = दैनिक जमा-खर्च का खाता। पेशा = व्यवसाय । खानदान = परिवार । ननिहाल = नाना का घर। उपयोगी = काम में आने वाला। साहबजादा = पुत्र।

(पृष्ठ-117) रियाज़ = अभ्यास। बोल-बनाव = गीत के सुरों की रचना। ठुमरी = एक चलता गीत। टप्पा = गाने की एक शैली। दादरा = गायन-शैली। साक्षात्कार = भेंट। आसक्ति = लगाव, मोह। अनुभव = तजुरबा। अबोध = अनजान। वर्णमाला = आरंभिक ज्ञान। सुषिर-वाद्य = खोखले यंत्र, जिन्हें फूंककर बजाया जाता है। नाड़ी = तने का खोखला डंठल। शास्त्रांतर्गत = शास्त्र के अंदर। उत्तरार्द्ध = अंतिम भाग। बंदिश = सुरों की रचना। श्रृंगी = सींग से बना वाद्ययंत्र। मुरछंग = वाद्ययंत्र का नाम। चैती = गीत की शैली। परिवेश = वातावरण। मांगलिक विधि-विधान = कल्याणकारी आयोजन। प्रभाती = प्रातःकाल में की जाने वाली आनंदमय ध्वनि। नेमत = वरदान। सज़दा = माथा टेकना। मुराद = इच्छा। ऊहापोह = उलझन। दुश्चिता = बुरी चिंता। तिलिस्म गढ़ना = नई योजना बनाना। महक = सुगंध।

(पृष्ठ-118) गमक = खुशबू, सुगंध। तमीज़ = तरीका, ढंग। सलीका = ढंग। वंशज = परिवार के सदस्य। अज़ादारी = शोक मनाना। शिरकत करना = सम्मिलित होना। नौहा बजाना = करबला के शहीदों पर लिखे हुए शोक-गीत की धुन में वाद्य बजाना। अदायगी = प्रस्तुति। निषेध = रोक। शहादत = कुर्बानी, बलिदान। नम = गीली। पुनर्जीवित = फिर से जीवित होना। संपन्न = पूरा होना। मानवीय रूप = मानवीय भावनाओं से युक्त रूप। गमजदा = दुख से भरपूर। माहौल = वातावरण। सुकून = चैन। जुनून = नशा, सनक। अब्बाजान = पिता जी। उस्ताद = गुरु। बदस्तूर = तरीके से। कायम = बनी हुई।

(पृष्ठ-119) बालसुलभ = बच्चों जैसी। नैसर्गिक = प्राकृतिक, स्वाभाविक। आँखें चमकना = आँखों में आनंद प्रकट होना। खारिज़ करना = छोड़ना। सम = लय की समाप्ति और ताल के आरंभ के बीच की स्थिति। दाद = प्रशंसा करना। बुखार = नशा। मेहनताना = मेहनत से पाया हुआ पैसा। कलकलाता = पूरी तरह गरम। आरोह-अवरोह = उतार-चढ़ाव । स्वादी = स्वाद लेने वाले, आनंद लेने वाले। शक = संदेह। हाथ लगना = प्राप्त होना। अद्भुत परंपरा = अनोखा रिवाज़ । शास्त्रीय = शास्त्र की परंपरा के अनुसार। गायन-वादन = गाना और बजाना। उत्कृष्ट = श्रेष्ठ। मजहब = धर्म। समर्पित = लगे हुए, अर्पित। श्रद्धा = आदर। आस्था = विश्वास।

(पृष्ठ-120) पुश्त = पीढ़ी। शहनाईवाज़ = शहनाई बजाने वाले। अदब = लोक-व्यवहार का उचित ढंग। जन्नत = स्वर्ग। आनंदकानन = आनंदमय वन। रसिक = आनंद लेने वाला। उपकृत = जिस पर उपकार किया गया हो। तहज़ीब = तौर-तरीका। गम = दुख। सेहरा बन्ना = दूल्हे की सेहराबंदी पर गाए जाने वाले गीत। सिर पर चढ़कर बोलना = जादू का-सा प्रभाव रखना। परवरदिगार = परमात्मा। नसीहत = शिक्षा। सुबहान अल्लाह = बहुत अच्छा। अलहमदुलिल्लाह = तमाम तारीफ़ ईश्वर के लिए। करतब = जादू, कला। अजान = बाँग, नमाज के समय की सूचना ऊँचे स्वर में देना। कतार = पंक्ति। सरताज होना = सबसे ऊँचा होना। दुआ लगना = शुभकामना का असर होना। लुंगिया = लुंगी। खाक = बेकार, व्यर्थ।

(पृष्ठ-121) शिद्दत = तीव्रता, प्रबलता। संगती = संगतकार, गायक के साथ वाद्य-यंत्र बजाने वाले कलाकार। अफसोस = दुख। लुप्त होना = छुप जाना। सुर साधक = सुर की साधना करने वाला। सामाजिक = समाज का उदार हृदय मनुष्य। पूरक = पूरा करने वाला। ताजिया = मुहर्रम के अवसर पर चमकीली पन्नियों से बना शव के आकार का ताबूत। अबीर = चमकीला पाउडर। गंगा-जमुनी संस्कृति = मिली-जुली संस्कृति। थाप = ताल। तमीज = सलीका, तरीका। नायाब हीरा = अनमोल रत्न। कौम = जाति। मानद उपाधि = मान के रूप में दी जाने वाली उपाधि। अजेय = जिसे जीता न जा सके। नायक = अगुआ। एकाधिकार = पूरी तरह अधिकार रखना। जिजीविषा = जीने की इच्छा।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन

HBSE 10th Class Hindi स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने क्या-क्या तर्क देकर स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया?
उत्तर-
कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने निम्नलिखित तर्क देकर स्त्रियों की शिक्षा का समर्थन किया है

(i) नाटकों में स्त्रियों का प्राकृत बोलना उनके अनपढ़ होने का प्रमाण नहीं है। वाल्मीकि रामायण में बंदर भी संस्कृत बोलते थे तो क्या स्त्रियाँ संस्कृत नहीं बोल सकती थीं।
(ii) बौद्ध धर्म का त्रिपिटक ग्रंथ, जो महाभारत से भी बड़ा ग्रंथ है, वह प्राकृत भाषा में रचित है। इसका प्रमुख कारण है कि प्राकृत उस समय जनभाषा थी। अतः प्राकृत बोलना अशिक्षित होने का चिह्न नहीं है। प्राकृत उस समय समाज की भाषा थी।
(iii) उस समय कुछ चुने हुए लोग ही संस्कृत बोल सकते थे। इसलिए दूसरे लोगों के साथ-साथ स्त्रियों की भाषा प्राकृत रखने का नियम बना दिया गया था।

प्रश्न 2.
‘स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं। कुतर्कवादियों की इस दलील का खंडन द्विवेदी जी ने कैसे किया है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं।’-कुतर्कवादियों की इस दलील का खंडन करते हुए द्विवेदी जी ने लिखा है कि पढ़ने-लिखने से ऐसी कोई बात नहीं होती। अनर्थ तो पढ़े-लिखे व अनपढ़ दोनों से हो सकता है। स्त्रियों के पढ़ने से यदि अनर्थ होता है तो पुरुष भी पढ़-लिखकर कितने गलत कार्य करते हैं तो उनके लिए शिक्षित होने की मनाही क्यों नहीं की जाती। यदि पढ़ने-लिखने से स्त्रियाँ अनर्थकारी होती हैं तो इसमें स्त्रियों का दोष नहीं है, अपितु यह शिक्षा-प्रणाली का दोष है। अतः स्त्रियों को अवश्य शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। हमें दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली में ही संशोधन कर देना चाहिए।

प्रश्न 3.
द्विवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा विरोधी कुतों का खंडन करने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया है जैसे ‘यह सब पापी पढ़ने का अपराध है। न वे पढ़तीं, न वे पूजनीय पुरुषों का मुकाबला करतीं।’ आप ऐसे अन्य अंशों को निबंध में से छाँटकर समझिए और लिखिए।
उत्तर-
im

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प्रश्न 4.
पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना क्या उनके अपढ़ होने का सबूत है-पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
प्राचीनकाल में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा बोलने के अनेकानेक प्रमाण मिलते हैं। किंतु इसका अर्थ यह नहीं कि प्राकृत बोलना उनके अनपढ़ होने का प्रमाण है, या फिर प्राकृत भाषा अनपढ़ों की भाषा है। सच्चाई यह है कि प्राकृत उस समय की जन-साधारण की भाषा थी। वैसे ही जैसे आज हिंदी, बाँग्ला, गुजराती आदि प्राकृत भाषाएँ हैं। अतः प्राकृत भाषा में बोलने के कारण महिलाओं को अनपढ़ कहना अनुचित है।

प्रश्न 5.
परंपरा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ाते हों तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर-
स्त्री-शिक्षा के विरोधियों का कुतर्क है कि यदि स्त्रियों को शिक्षा दी जाएगी तो अनर्थ हो जाएगा। यह बात तब तक सही थी कि पढ़-लिखकर कोई पुरुष अनर्थ न करता हो। पुरुष स्त्रियों की अपेक्षा अधिक अनर्थ करते हैं। एम.ए., बी.ए., शास्त्री और आचार्य होने के बावजूद भी पुरुष स्त्रियों को हंटर से पीटते हैं। अतः स्पष्ट है कि अनर्थ के पीछे पढ़ना-लिखना कोई कारण नहीं है। पढ़-लिखकर स्त्रियाँ किसी से कम नहीं रहीं। स्त्रियों ने पुरुषों के समान वेद-रचना तक की है और उन्हें अक्षर ज्ञान देना तक पाप समझें। यह बात तर्क सम्मत नहीं है। अतः स्त्री-पुरुष दोनों को पढ़ने का समान रूप से अधिकार है। स्त्रियों को शिक्षा नहीं दी जानी चाहिए। यह समानता की बात नहीं है। अतः इसे बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए।

प्रश्न 6.
तब की शिक्षा प्रणाली और अब की शिक्षा प्रणाली में क्या अंतर है? स्पष्ट करें।
उत्तर-
तब स्त्रियों की शिक्षा की समुचित व्यवस्था नहीं थी। उनके लिए कोई विद्यालय या विश्वविद्यालय तक नहीं थे। आज स्त्रियों को शिक्षित करने के लिए स्कूल, कॉलेज व विश्वविद्यालय हैं। स्त्रियाँ पुरुषों के साथ भी शिक्षा ग्रहण करती हैं। पहले ऐसा संभव नहीं था।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 7.
महावीरप्रसाद द्विवेदी का निबंध उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है, कैसे?
उत्तर-
महावीरप्रसाद द्विवेदी महान् चिंतक एवं साहित्यकार थे। वे इस बात को भली-भाँति समझते थे कि स्त्रियों को शिक्षा दिए बिना समाज के पिछड़ेपन को दूर नहीं किया जा सकता। वे चाहते थे कि स्त्रियों को शिक्षित करके उनकी प्रतिभा का प्रयोग समाज के विकास के लिए किया जाए। वे स्त्री-पुरुष में समानता के अधिकार के पक्ष में थे। जो बात उन्होंने सौ वर्ष पूर्व सोची थी, वह आज पूर्णतः सत्य घटित होती जा रही है। गाँवों में स्त्रियों की शिक्षा की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है। वहाँ अनपढ़ स्त्रियों की संख्या अधिक है। स्त्री के शिक्षित होने से पूरा परिवार शिक्षित हो सकता है। स्त्रियों की शिक्षा की ओर विशेष ध्यान देना होगा। जिस घर में स्त्री शिक्षित होगी तो उस परिवार के बच्चे अच्छी शिक्षा ग्रहण करेंगे। अतः यह कथन पूर्णतः सत्य है कि यह निबंध महावीरप्रसाद द्विवेदी की खुली एवं दूरगामी सोच का परिचायक है।

प्रश्न 8.
द्विवेदी जी की भाषा-शैली पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर-
द्विवेदी जी आधुनिक हिंदी गद्य की भाषा के जनक कहे जाते हैं। उन्होंने भाषा के संबंध में अत्यंत उदार दृष्टिकोण अपनाया है। उन्होंने अपनी भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ विषय की माँग के अनुकूल उर्दू-फारसी के शब्दों का भी प्रयोग किया है। उन्होंने छोटे व सुगठित वाक्यों का प्रयोग किया है। उनकी भाषा में निरंतर प्रवाह बना रहता है। उनकी भाषा तो ऐसी है मानो कोई अध्यापक अपने छात्रों को समझा रहा हो। इस निबंध में द्विवेदी जी ने वर्णनात्मक एवं विचारात्मक शैलियों का प्रयोग किया है। कहीं-कहीं व्यंग्यात्मक भाषा का भी सफल एवं सुंदर प्रयोग किया गया है। शब्द विधान सरल एवं लघु वाक्य रचना है। भाषा आदि से अंत तक सजीवता एवं प्रवाहमयता लिए हुए है। द्विवेदी जी ने भाषा की शुद्धता पर विशेष ध्यान दिया है।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 9.
निम्नलिखित अनेकार्थी शब्दों को ऐसे वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए जिनमें उनके एकाधिक अर्थ स्पष्ट होंचाल, दल, पत्र, हरा, पर, फल, कुल।.
उत्तर-
चाल- मैं तुम्हारी चाल भली-भाँति समझता हूँ।
उसकी चाल हाथी की भाँति मस्त है।

दल – टिड्डी दल ने फसल नष्ट कर दी।
मोहन काँग्रेस दल का नेता नहीं है।

पत्र – मैंने अपने पिताजी को पत्र लिखा था।
पूजा के लिए बेल-पत्र लाओ।

हरा – हमारा देश हरा-भरा है।
भारत ने क्रिकेट में पाकिस्तान को हरा दिया।

पर – मैं मोहन के घर गया पर वह तब जा चुका था।
मोर के पर सुंदर हैं।

फल- मेहनत का फल अच्छा है।
फल खाना स्वास्थ्य के लिए अच्छा है।

कुल – उसे परीक्षा में कुल 500 अंक प्राप्त हुए हैं।
वह उच्च कुल से संबंधित है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन

पाठेतर सक्रियता

अपनी दादी, नानी और माँ से बातचीत कीजिए और (स्त्री-शिक्षा संबंधी) उस समय की स्थितियों का पता लगाइए और अपनी स्थितियों से तुलना करते हुए निबंध लिखिए। चाहें तो उसके साथ तसवीरें भी चिपकाइए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

लड़कियों की शिक्षा के प्रति परिवार और समाज में जागरूकता आए-इसके लिए आप क्या-क्या करेंगे?
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

स्त्री-शिक्षा पर एक पोस्टर तैयार कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

स्त्री-शिक्षा पर एक नुक्कड़ नाटक तैयार कर उसे प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

यह भी जानें

भवभूति- संस्कृत के प्रधान नाटककार हैं। इनके तीन प्रसिद्ध ग्रंथ-वीररचित, उत्तररामचरित और मालतीमाधव हैं। भवभूति करुणरस के प्रमुख लेखक थे।
विश्ववरा-अत्रिगोत्र की स्त्री। ये ऋग्वेद के पाँचवें मंडल 28वें सूक्त की एक में से छठी ऋक् की ऋषि थीं। शीला-कौरिडन्य मुनि की पत्नी का नाम । थेरीगाथा-बौद्ध भिक्षुणियों की पद्य रचना इसमें संकलित है।
अनुसूया-अक्रि मुनि की पत्नी और दक्ष प्रजापति की कन्या।
गार्गी–वैदिक समय की एक पंडिता ऋषिपुत्री। इनके पिता का नाम गर्ग मुनि था। मिथिला के जनकराज की सभा में इन्होंने पंडितों के सामने याज्ञवल्क्य के साथ वेदांत शास्त्र विषय पर शास्त्रार्थ किया था।
गाथा सप्तशती-प्राकृत भाषा का ग्रंथ जिसे हाल द्वारा रचित माना जाता है।
कुमारपाल चरित्र-एक ऐतिहासिक ग्रंथ है, जिसे 12वीं शताब्दी के अंत में अज्ञातनामा कवि ने अनहल के राजा कुमारपाल के लिए लिखा था। इसमें ब्रह्मा से लेकर राजा कुमारपाल तक बौद्ध राजाओं की वंशावली का वर्णन है।
त्रिपिटक ग्रंथ – गौतम बुद्ध ने भिक्षु-भिक्षुणियों को अपने सारे उपदेश मौखिक दिए थे। उन उपदेशों को उनके शिष्यों ने कंठस्थ कर लिया था और बाद में उन्हें त्रिपिटक के रूप में लेखबद्ध किया गया। वे तीन त्रिपिटक हैं-सुत या सूत्र पिटक, विनय पिटकं और ‘ अभिधर्म पिटक।
शाक्य मुनि- शक्यवंशीय होने के कारण गौतम बुद्ध को शाक्य मुनि भी कहा जाता है।
नाट्यशास्त्र-भरतमुनि रचित काव्यशास्त्र संबंधी संस्कृत के इस ग्रंथ में मुख्यतः रूपक (नाटक) का शास्त्रीय विवेचन किया गया है। इसकी रचना 300 ईसा पूर्व मानी जाती है।
कालिदास-संस्कृत के महान् कवियों में कालिदास की गणना की जाती है। उन्होंने कुमारसंभव, रघुवंश (महाकाव्य), ऋतु संहार, मेघदूत (खंडकाव्य), विक्रमोर्वशीय, मालविकाग्निमित्र और अभिज्ञान शाकुंतलम् (नाटक) की रचना की।
आजादी के आंदोलन से सक्रिय रूप से जुड़ी पंडिता रमाबाई ने स्त्रियों की शिक्षा एवं उनके शोषण के विरुद्ध जो आवाज़ उठाई उसकी एक झलक यहाँ प्रस्तुत है। आप ऐसे अन्य लोगों के योगदान के बारे में पढ़िए और मित्रों से चर्चा कीजिए

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन

पंडिता रमाबाई

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पाँचवाँ अधिवेशन 1889 में मुंबई में आयोजित हुआ था। खचाखच भरे हॉल में देश भर के नेता एकत्र हुए थे।
एक सुंदर युवती अधिवेशन को संबोधित करने के लिए उठी। उसकी आँखों में तेज और उसके कांतिमय चेहरे पर प्रतिभा झलक रही थी। इससे पहले कांग्रेस अधिवेशनों में ऐसा दृश्य देखने में नहीं आया था। हॉल में लाउडस्पीकर न थे। पीछे बैठे हुए लोग उस युवती की आवाज़ नहीं सुन पा रहे थे। वे आगे की ओर बढ़ने लगे। यह देखकर युवती ने कहा, “भाइयो, मुझे क्षमा कीजिए। मेरी आवाज़ आप तक नहीं पहुंच पा रही है। लेकिन इस पर मुझे आश्चर्य नहीं है। क्या आपने शताब्दियों तक कभी किसी महिला की आवाज़ सुनने की कोशिश की? क्या आपने उसे इतनी शक्ति प्रदान की कि वह अपनी आवाज़ को आप तक पहुँचने योग्य बना सके?”
प्रतिनिधियों के पास इन प्रश्नों के उत्तर न थे।

इस साहसी युवती को अभी और बहुत कुछ कहना था। उसका नाम पंडिता रमाबाई था। उस दिन तक स्त्रियों ने कांग्रेस के अधिवेशनों में शायद ही कभी भाग लिया हो। पंडिता रमाबाई के प्रयास से 1889 के उस अधिवेशन में 9 महिला प्रतिनिधि सम्मिलित हुई थीं।

वे एक मूक प्रतिनिधि नहीं बन सकती थीं। विधवाओं को सिर मुंडवाए जाने की प्रथा के विरोध में रखे गए प्रस्ताव पर उन्होंने एक ज़ोरदार भाषण दिया। “आप पुरुष लोग ब्रिटिश संसद में प्रतिनिधित्व की माँग कर रहे हैं जिससे कि आप भारतीय जनता की राय वहाँ पर अभिव्यक्त कर सकें। इस पंडाल में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए चीख-चिल्ला रहे हैं तब आप अपने परिवारों में वैसी ही स्वतंत्रता महिलाओं को क्यों नहीं देते? आप किसी महिला को उसके विधवा होते ही कुरूप और दूसरों पर निर्भर होने के लिए क्यों विवश करते हैं? क्या कोई विधुर भी वैसा करता है? उसे अपनी इच्छा के अनुसार जीने की स्वतंत्रता है। तब स्त्रियों को वैसी स्वतंत्रता क्यों नहीं मिलती?”

निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि पंडिता रमाबाई ने भारत में नारी-मुक्ति आंदोलन की नींव डाली।
वे बचपन से ही अन्याय सहन नहीं कर पाती थीं। एक दिन उन्होंने नौ वर्ष की एक छोटी-सी लड़की को उसके पति के शव के साथ भस्म किए जाने से बचाने की चेष्टा की। “यदि स्त्री के लिए सम्म होकर सती बनना अनिवार्य है तो क्या पुरुष भी पत्नी की मृत्यु के बाद सता होते हैं?” रौबपूर्वक पूछे गए इस प्रश्न का उस लड़की की माँ के पास कोई उत्तर न था। उसने केवल इतना कहा कि “यह पुरुषों की दुनिया है। कानून वे ही बनाते हैं, स्त्रियों को तो उनका पालन भर करना होता है।” रमाबाई ने पलटकर पूछा, “स्त्रियाँ ऐसे कानूनों को सहन क्यों करती हैं? मैं जब बड़ी हो जाऊँगी तो ऐसे कानूनों के विरुद्ध संघर्ष करूँगी।” सचमुच उन्होंने पुरुषों द्वारा महिलाओं के प्रत्येक प्रकार के शोषण के विरुद्ध संघर्ष किया।

HBSE 10th Class Hindi स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
स्त्री-शिक्षा के विरोधी लोगों के क्या तर्क हैं? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में स्त्री-शिक्षा विरोधी लोगों ने स्त्री-शिक्षा के विरोध में निम्नलिखित तर्क दिए हैं
स्त्री-शिक्षा की आवश्यकता प्राचीनकाल में नहीं थी, इसलिए प्राचीनकाल के पुराणों व इतिहास में स्त्री-शिक्षा की किसी भी प्रणाली के प्रमाण नहीं मिलते। इसलिए स्त्री-शिक्षा की आज भी आवश्यकता नहीं है।
स्त्री-शिक्षा के विरोधियों का यह भी तर्क है कि स्त्री-शिक्षा से अनर्थ होते हैं। शकुंतला ने दुष्यंत को जो कुवाक्य कहे, वे स्त्री-शिक्षा के अनर्थ का परिणाम है।
संस्कृत नाटकों में स्त्री-पात्रों के मुख से प्राकृत भाषा बुलवाई गई है। उस समय प्राकृत को गँवार भाषा समझा जाता था। इससे पता चलता है कि उन्हें संस्कृत का ज्ञान नहीं था, वे गँवार व अनपढ़ थीं। उनकी दृष्टि में तो गँवार भाषा के ज्ञान से भी अनर्थ हुआ।

प्रश्न 2.
पुरातन पंथी लोगों ने शकुंतला पर जो आरोप लगाया क्या आप उससे सहमत हैं?
उत्तर-
पुरातन पंथी लोगों ने शकुंतला पर आरोप लगाया है कि उसने अशिक्षा के कारण ही राजा दुष्यंत को कुवाक्य कहे। यदि वह शिक्षित होती तो ऐसा अनर्थ न करती। हम पुरातन पंथियों के इस आरोप से सहमत नहीं हैं। यहाँ प्रश्न शिक्षा व अशिक्षा का नहीं है। यहाँ प्रश्न है कि दुष्यंत ने शकुंतला से गांधर्व विवाह किया और जब वह उससे मिलने आई तो उसने उसे पहचानने से ही इंकार कर दिया। ऐसी स्थिति में तो कोई भी कुवाक्य ही कहता। यहाँ शकुंतला की शिक्षा को दोष देना उचित नहीं है।

प्रश्न 3.
संस्कृत और प्राकृत के संबंध पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
संस्कृत प्राचीन एवं शुद्ध साहित्यिक भाषा है। इस भाषा को जानने वाले बहुत कम लोग थे। उस समय संस्कृत के साथ-साथ कुछ प्राकृत भाषाएँ भी प्रचलित थीं। ये सभी भाषाएँ संस्कृत से ही निकली हुई जनभाषाएँ थीं। मागधी, महाराष्ट्री, पाली, शौरसेनी आदि अपने समय की लोक-भाषाएँ थीं। इन्हें प्राकृत भाषाएँ भी कहा जाता है। बौद्ध और जैन साहित्य इन्हीं भाषाओं में रचित साहित्य हैं। अतः प्राकृत भाषाएँ गँवार या अनपढ़ों की भाषा नहीं है।

प्रश्न 4.
संस्कृत नाटकों में स्त्री पात्रों द्वारा संस्कृत न बोल पाना क्या उनकी अनपढ़ता का प्रमाण है? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर-
स्त्री-शिक्षा के विरोधियों ने प्राचीनकाल में भी स्त्रियों को अनपढ़ व गँवार सिद्ध करने के लिए नाटकों का उदाहरण देते हुए कहा है कि नाटकों में नारी पात्रों द्वारा संस्कृत की अपेक्षा प्राकृत भाषा बुलवाई जाती थी क्योंकि संस्कृत सुशिक्षितों की भाषा थी और प्राकृत लोक भाषा या जनभाषा थी। किंतु लेखक इन पुरातन पंथियों व स्त्री-शिक्षा विरोधियों के तर्क को उचित नहीं समझता। उनके अनुसार प्राकृत बोलना अनपढ़ता का सबूत नहीं है। उस समय आम बोलचाल में प्राकृत भाषा का ही प्रयोग किया जाता था। संस्कृत भाषा का प्रचलन तो कुछ ही लोगों तक सीमित था। अतः यही कारण रहा होगा कि नाट्यशास्त्रियों ने नाट्यशास्त्र संबंधी नियम बनाते समय इस बात का ध्यान रखा होगा क्योंकि संस्कृत को कुछ ही लोग बोल सकते थे। इसलिए कुछ पात्रों को छोड़कर अन्य पात्रों से प्राकृत बुलवाने का नियम बनाया जाए। इस प्रकार स्त्री पात्रों द्वारा संस्कृत न बोलने के कारण उन्हें अनपढ़ नहीं समझना चाहिए। फिर प्राकृत में भी तो महान् रचनाओं का निर्माण हुआ है।

प्रश्न 5.
‘प्राचीनकाल में प्राकृत भाषा का चलन था’-पाठ के आधार पर इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
स्त्री-शिक्षा विरोधियों ने प्राकृत भाषा को अनपढ़ एवं गँवार लोगों की भाषा बताया है। किंतु लेखक ने प्राकृत भाषा को जन-साधारण की भाषा बताया है। उस समय की पढ़ाई-लिखाई भी प्राकृत भाषा में होती थी। उस समय प्राकृत भाषा के प्रचलन का प्रमाण बौद्ध-ग्रंथों एवं जैन-ग्रंथों में मिलता है। दोनों धर्मों के हजारों ग्रंथ प्राकृत भाषा में रचित हैं। महात्मा बुद्ध ने अपने उपदेश भी प्राकृत भाषा में ही दिए हैं। बौद्ध धर्म का महान् ग्रंथ त्रिपिटक भी प्राकृत भाषा में रचित है। ऐसे महान् ग्रंथों का प्राकृत में रचे जाने का कारण यही था कि उस समय जन-भाषा प्राकृत ही थी। अतः प्राकृत अनपढ़ों की भाषा नहीं थी।

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प्रश्न 6.
लेखक के मतानुसार आज के युग में स्त्रियों के शिक्षित होने की आवश्यकता प्राचीनकाल की अपेक्षा अधिक क्यों है? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
उत्तर-
यदि स्त्री-शिक्षा विरोधियों की बात मान भी ली जाए कि प्राचीनकाल में स्त्रियों को पढ़ाने या शिक्षित करने का प्रचलन नहीं था तो उस समय स्त्रियों को शिक्षा की अधिक आवश्यकता नहीं होगी। किंतु आज के युग में स्त्री-शिक्षा कि आवश्यकता एवं महत्त्व दोनों ही अधिक हैं। आज का युग भौतिकवादी एवं प्रतियोगिता का युग है। इस युग में अनपढ़ता देश व समाज के विकास में बाधा ही नहीं, अपितु देश व समाज के लिए कलंक भी है। नारी का शिक्षित होना तो इसलिए अति आवश्यक है कि जिस परिवार में नारी शिक्षित होगी उस परिवार के बच्चों की शिक्षा-व्यवस्था अच्छी हो सकेगी। शिक्षित नारी ही बच्चों को अच्छे-बुरे की पहचान करने का ज्ञान देकर उन्हें अच्छे नागरिक बना सकेगी। शिक्षित नारी नौकरी करके या अन्य कार्य करके धन कमाकर परिवार के आर्थिक विकास में सहायता कर सकती है। इसीलिए लेखक ने प्राचीनकाल की अपेक्षा आधुनिक युग में स्त्री-शिक्षा को अति आवश्यक बताया है।

प्रश्न 7.
प्राचीन ग्रंथों में स्त्रियों के लिए किस-किस शिक्षा का विधान किया गया था?
उत्तर-
प्राचीन ग्रंथों में कुछ ऐसे भी प्रमाण मिलते हैं जिनसे पता चलता है कि कुमारियों के लिए विभिन्न प्रकार की शिक्षा का प्रबंध था; जैसे चित्र बनाना, नाचने, गाने, बजाने, फूल चुनने, हार गूंथने आदि। लेखक का मानना है कि उन्हें पढ़ने-लिखने की शिक्षा भी निश्चित रूप से दी जाती होगी।

विचार/संदेश संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 8.
लेखक ने किन लोगों को स्त्री-शिक्षा के विरोधी बताया है ?
उत्तर-
लेखक ने बताया है कि जो लोग स्वयं शिक्षित हैं और जिन्होंने बड़े-बड़े स्कूल-कॉलेजों से शिक्षा ग्रहण की है, जो धर्मशास्त्र व संस्कृत साहित्य से परिचित हैं, जिनका काम कुशिक्षितों को सुशिक्षित करना है, जो कुमार्गियों को सुमार्गी बनाते हैं और अधार्मिकों को धर्मतत्त्व समझाते हैं, वही लोग स्त्री-शिक्षा का विरोध करते हैं।

प्रश्न 9.
‘स्त्री शिक्षा की पुराने समय में कोई नियमबद्ध प्रणाली थी, जो शायद नष्ट हो गई थी’ इस बात को सिद्ध करने के लिए लेखक ने कौन-कौन से प्रमाण प्रस्तुत किए हैं ?
उत्तर-
स्त्री-शिक्षा की पुराने समय में कोई नियमबद्ध प्रणाली रही होगी किंतु वह शायद नष्ट हो गई होगी। इस बात को सिद्ध करने के लिए लेखक ने सर्वप्रथम प्रमाण दिया है कि पुराने समय में विमान भी उड़ाए जाते थे तथा बड़े-बड़े जहाज़ों पर सवार होकर लोग एक द्वीप से दूसरे द्वीप पर जाते थे। ऐसी बातें अत्यंत आश्चर्यजनक हैं। इनके बनाने व चलाने के कोई नियमबद्ध प्रमाण नहीं मिलते क्योंकि शायद नष्ट हो गए होंगे। यदि विमानों व जहाज़ों के विषय में विश्वास किया जा सकता है तो स्त्री-शिक्षा की नियमबद्ध प्रणाली होने में विश्वास क्यों नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 10.
‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन’ नामक पाठ का उद्देश्य अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
इस पाठ का प्रमुख उद्देश्य स्त्री-शिक्षा के विरोधी लोगों के कुतर्कों का जोरदार शब्दों में खंडन करना है। लेखक ने अनेक प्रमाण प्रस्तुत करके सिद्ध करने का सफल प्रयास किया है कि प्राचीनकाल में भी स्त्री-शिक्षा की व्यवस्था थी और अनेक शिक्षित स्त्रियों के नामोल्लेख भी किए गए हैं यथा-गार्गी, अत्रि-पत्नी, विश्ववरा, मंडन मिश्र की पत्नी आदि अनेक विदुषियाँ हुई हैं। आज के युग में स्त्री- शिक्षा नितांत आवश्यक है। शिक्षा कभी किसी का अनर्थ नहीं करती। यदि स्त्री-शिक्षा में कुछ संशोधनों की आवश्यकता पड़े तो कर लेने चाहिएँ। किंतु स्त्री-शिक्षा का विरोध करना कदाचित उचित नहीं है।

प्रश्न 11.
आपकी दृष्टि में क्या स्त्री-शिक्षा अनर्थकारी हो सकती है?
उत्तर-
स्त्री-शिक्षा किसी भी प्रकार से अनर्थ नहीं हो सकती। किसी भी प्रकार की शिक्षा पापाचार नहीं सिखाती। यदि कोई व्यक्ति अर्थात् पुरुष या स्त्री कोई पाप या अपराध करता है तो उसका संबंध शिक्षा से नहीं होता। उनके पापाचार का कारण कुछ और हो सकता है, शिक्षा नहीं क्योंकि शिक्षा तो सबको सद्मार्ग की ओर ले जाती है।

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अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन’ नामक पाठ के लेखक कौन हैं?
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ के लेखक महावीरप्रसाद द्विवेदी हैं।

प्रश्न 2.
महावीरप्रसाद द्विवेदी का जन्म कब हुआ था?
उत्तर–
महावीरप्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1864 में हुआ था।

प्रश्न 3.
महावीरप्रसाद द्विवेदी जी का निधन कब हुआ?
उत्तर-
महावीरप्रसाद द्विवेदी का निधन सन् 1938 में हुआ।

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प्रश्न 4.
सर्वप्रथम पठित निबंध किस शीर्षक से प्रकाशित हुआ था?
उत्तर-
सर्वप्रथम पठित निबंध ‘पढ़े-लिखों का पांडित्य’ से प्रकाशित हुआ था।

प्रश्न 5.
शकुंतला ने किस भाषा में श्लोक रचा है?
उत्तर-
शकुंतला ने अनपढ़ गँवारों की भाषा में श्लोक रचा है।

प्रश्न 6.
शंकराचार्य के छक्के किसने छुड़ा दिए? .
उत्तर-
मंडन मिश्र की धर्मपत्नी ने।

प्रश्न 7.
बौद्धों के त्रिपिटिक ग्रंथ की रचना किस भाषा में हुई है?
उत्तर-
बौद्धों के त्रिपिटिक ग्रंथ की रचना प्राकृत ग्रंथ में हुई है।

प्रश्न 8.
‘नाट्यशास्त्र’ संबंधी नियम किस भाषा में लिखित हैं?
उत्तर-
‘नाट्यशास्त्र’ संबंधी नियम संस्कृत भाषा में लिखित हैं।

प्रश्न 9.
गार्गी ने पांडित्यपूर्ण वाद-विवाद में किसे हराया था?
उत्तर-
गार्गी ने पांडित्यपूर्ण वाद-विवाद में ब्रह्मवादियों को हराया था।

प्रश्न 10.
मुमानियत का क्या अर्थ है?
उत्तर-
मुमानियत का अर्थ मनाही है।

प्रश्न 11.
मण्डन मिश्र की सहधर्मचारिणी ने किसके छक्के छुड़ा दिए?
उत्तर-
शंकराचार्य के।

प्रश्न 12.
कालिदास के युग में जन-साधारण के बोलचाल की कौन-सी भाषा बताई गई है?
उत्तर–
कालिदास के युग में जन-साधारण के बोलचाल की प्राकृत भाषा बताई गई है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सीता ने राम को क्या संबोधित करके अपना क्रोध प्रकट किया था?
(A) स्वामी
(B) आर्य पुत्र
(C) भगवन्
(D) राजा
उत्तर-
(D) राजा

प्रश्न 2.
त्रिपिटक ग्रंथों की रचना किसने की थी?
(A) बौद्धों ने
(B) नाथों ने
(C) सिद्धों ने
(D) जैनों ने
उत्तर-
(A) बौद्धों ने

प्रश्न 3.
प्रस्तुत लेख पहली बार प्रकाशित हुआ था-
(A) धर्मयुग में
(B) कल्याण में
(C) हिंदुस्तान में
(D) सरस्वती में
उत्तर-
(D) सरस्वती में

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प्रश्न 4.
महावीरप्रसाद द्विवेदी द्वारा संपादित पत्रिका का नाम था-
(A) हंस
(B) सरस्वती
(C) आलोचना
(D) कादम्बिनी
उत्तर-
(B) सरस्वती

प्रश्न 5.
महावीरप्रसाद द्विवेदी ने साहित्य के क्षेत्र में कौन-सा महान कार्य किया था?
(A) निबंध लेखन का
(B) पत्रिका संपादन का
(C) भाषा सुधार का
(D) आलोचना का
उत्तर-
(C) भाषा सुधार का

प्रश्न 6.
‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन’ शीर्षक निबंध प्रथम बार कब प्रकाशित हुआ था?
(A) सन् 1910 में
(B) सन् 1914 में
(C) सन् 1916 में
(D) सन् 1918 में
उत्तर-
(B) सन् 1914 में

प्रश्न 7.
लेखक के अनुसार आजकल कैसे शिक्षित लोग विद्यमान हैं?
(A) स्त्री-शिक्षा के पक्षधर
(B) स्त्री-शिक्षा के विरोधी
(C) स्त्री-शिक्षा को अनर्थ कहने वाले
(D) स्त्री-शिक्षा को फालतू की वस्तु बताने वाले
उत्तर-
(B) स्त्री-शिक्षा के विरोधी

प्रश्न 8.
पुराने संस्कृत कवियों के नाटकों में कुलीन स्त्रियों से किस भाषा में बातें कराई गई हैं?
(A) संस्कृत में
(B) पढ़े-लिखों की भाषा में
(C) विद्वत्तापूर्ण
(D) अपढ़ों की भाषा में
उत्तर-
(D) अपढ़ों की भाषा में

प्रश्न 9.
शकुंतला ने किसे कटु वाक्य कहे थे?
(A) दुष्यंत को
(B) ऋषि कण्व को ।
(C) ऋषि दुर्वासा को
(D) अपने पिता को
उत्तर-
(A) दुष्यंत को

प्रश्न 10.
शकुंतला ने दुष्यन्त से कैसा विवाह किया था?
(A) आसुरी
(B) आर्यसमाजी
(C) गांधर्व
(D) वैदिक
उत्तर-
(C) गांधर्व

प्रश्न 11.
‘शिक्षा’ शब्द कैसा है?
(A) व्यापक
(B) सीमित
(C) संकुचित
(D) महत्त्वपूर्ण
उत्तर-
(A) व्यापक

प्रश्न 12.
किसकी धर्मपत्नी ने शंकराचार्य के छक्के छुड़ा दिए थे?
(A) अत्रि की
(B) महावीर प्रसाद की
(C) मंडन मिश्र की
(D) भरत मुनि की
उत्तर-
(C) मंडन मिश्र की

प्रश्न 13.
श्रीमद्भागवत के कौन-से स्कंध में रुक्मिणी हरण की कथा है?
(A) पंचम
(B) सप्तम
(C) दशम
(D) द्वादश
उत्तर-
(C) दशम

प्रश्न 14.
हिंदू लोग वेदों को किसके द्वारा रचित मानते हैं? .
(A) पंडितों द्वारा
(B) ईश्वर द्वारा
(C) ऋषियों द्वारा
(D) विद्यार्थियों द्वारा
उत्तर-
(B) ईश्वर द्वारा

प्रश्न 15.
जिस समय आचार्यों ने नाट्यशास्त्र संबंधी नियम बनाए थे उस समय सर्वसाधारण की भाषा क्या थी?
(A) हिन्दी
(B) अंग्रेजी
(C) प्राकृत
(D) संस्कृत
उत्तर-
(C) प्राकृत

प्रश्न 16.
किस ऋषि की पत्नी ने पत्नी-धर्म पर व्याख्यान दिया था?
(A) कण्व ऋषि की
(B) गौतम ऋषि की
(C) दुर्वासा ऋषि की
(D) अत्रि ऋषि की
उत्तर-
(D) अत्रि ऋषि की

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प्रश्न 17.
बड़े-बड़े ब्रह्मवादियों को किसने हराया था?
(A) मंडन मिश्र की पत्नी
(B) गार्गी
(C) सत्यभामा
(D) अनुसूया
उत्तर-
(B) गार्गी

प्रश्न 18.
मंडन मिश्र की सहधर्मचारिणी (पत्नी) ने ज्ञान के क्षेत्र में किससे शास्त्रार्थ किया था?
(A) ब्रह्मवादियों से
(B) जैन मुनियों से
(C) शंकराचार्य से
(D) बौद्ध महात्माओं से
उत्तर-
(C) शंकराचार्य से

प्रश्न 19.
किसने श्रीकृष्ण को लंबा-चौड़ा पत्र लिखा था?
(A) राधा ने
(B) सत्यभामा ने
(C) कुब्जा ने
(D) रुक्मिणी ने
उत्तर-
(D) रुक्मिणी ने

प्रश्न 20.
त्रिपिटक ग्रंथों की रचना किस भाषा में हुई?
(A) हिन्दी
(B) प्राकृत
(C) संस्कृत
(D) अंग्रेजी
उत्तर-
(B) प्राकृत

प्रश्न 21.
श्रीमद्भागवत के दशम् स्कंध के उत्तरार्द्ध के कौन-से अध्याय में रुक्मिणी हरण की कथा है?
(A) 53वें
(B) 31वें
(C) 48वें
(D) 57वें
उत्तर-
(A) 53वें

प्रश्न 22.
थेरीगाथा निम्नलिखित में से किस ग्रंथ का एक भाग है?
(A) वेद
(B) भागवत
(C) त्रिपिटक
(D) कुमारसंभव
उत्तर-
(C) त्रिपिटक

स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन गद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) बड़े शोक की बात है, आजकल भी ऐसे लोग विद्यमान हैं जो स्त्रियों को पढ़ाना उनके और गृह-सुख के नाश का कारण समझते हैं। और, लोग भी ऐसे-वैसे नहीं, सुशिक्षित लोग-ऐसे लोग जिन्होंने बड़े-बड़े स्कूलों और शायद कॉलिजों में भी शिक्षा पाई है, जो धर्म-शास्त्र और संस्कृत के ग्रंथ साहित्य से परिचय रखते हैं, और जिनका पेशा कुशिक्षितों को सुशिक्षित करना, कुमार्गगामियों को सुमार्गगामी बनाना और अधार्मिकों को धर्मतत्त्व समझाना है। [पृष्ठ 105]

(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) लेखक के विचार में शोक की बात क्या है?
(ग) ‘गृह-सुख के नाश’ से क्या अभिप्राय है?
(घ) ‘ऐसे-वैसे’ किन लोगों को और क्यों कहा गया है?
(ङ) इस गद्यांश में लेखक ने किन-किन के पेशों की ओर संकेत किया है और क्यों?
(च) इस गद्यांश का मूल भाव स्पष्ट करें।
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन। लेखक का नाम आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी।

(ख) लेखक के विचार में शोक की बात यह है कि आज के युग में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो स्वयं तो शिक्षा प्राप्त करते हैं और स्त्रियों का पढ़ना या पढ़ाना उचित नहीं समझते। ऐसे लोगों का विचार है कि स्त्रियाँ पढ़-लिखकर बिगड़ जाती हैं तथा परिवार के सुख का नाश हो जाता है।

(ग) ‘गृह-सुख के नाश’ से अभिप्राय है कि घर के काम-काज में रुचि न लेना तथा परिवार की देखभाल न करना। घर में आए मेहमान का आदर न करना। किसी को अपने बराबर न समझना तथा सदैव अहंकार की बातें करना। ऐसा करने से घर की सुख-शांति नष्ट हो जाती है।

(घ) लेखक ने ‘ऐसे-वैसे’ उन लोगों को कहा है जो स्वयं खूब पढ़े-लिखे हैं। वे अच्छे-अच्छे स्कूल-कॉलेजों में पढ़े हुए हैं, किंतु नारी-शिक्षा के पक्ष में नहीं हैं। वे स्वयं शिक्षित होने का लाभ उठाकर स्त्रियों पर प्रभाव डालने के लिए उन्हें अशिक्षित रखना चाहते हैं।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन

(ङ) इस गद्यांश में लेखक ने अध्यापकों, समाज-सुधारकों, धर्माचार्यों, उपदेशकों आदि के पेशों की ओर संकेत किया है। अध्यापक स्वयं शिक्षित होकर दूसरों को शिक्षित करने का कार्य करता है। समाज-सुधारक समाज में फैली बुराइयों को दूर करके समाज को अच्छा बनाता है तथा लोगों को सद्मार्ग पर चलने का उपदेश देता है। धर्माचार्य भी धर्म के मार्ग पर चलने का उपदेश देता है। ऐसे लोग सुयोग्य होते हुए भी स्त्री-शिक्षा के पक्ष में नहीं हैं। वे स्त्रियों को अनपढ़ बनाए रखने के पक्ष में हैं। लेखक ने इन्हीं लोगों को ‘ऐसे-वैसे’ की संज्ञा दी है तथा इन पर करारा व्यंग्य किया है।

(च) इस गद्यांश का मूल भाव स्त्री-शिक्षा के विरोधियों पर व्यंग्य करना है तथा स्त्री-शिक्षा को बढ़ावा देने की प्रेरणा देना है। क्योंकि स्त्री-शिक्षा से समाज का समुचित विकास हो सकता है।

(छ) आशय/व्याख्या प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने उन लोगों की स्त्री-शिक्षा संबंधी सोच का उल्लेख किया है जो न केवल स्वयं शिक्षित हैं, अपितु वे दूसरों को भी शिक्षा देते हैं। ऐसे लोग स्त्री-शिक्षा को उसके गृह-सुख का नाश बताते हैं। उनका विचार है कि शिक्षा प्राप्त करने से स्त्री के सुख नष्ट हो जाएँगे। यह विचार उन लोगों का है जो स्वयं उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं। वे धर्मशास्त्र, संस्कृत के ग्रंथों एवं साहित्य को भी पढ़ चुके हैं तथा अनपढ़ों को पढ़ाते हैं। वे बुरे मार्ग पर चलने वालों को सद्मार्ग पर चलाते हैं। अधर्मियों को धर्म की शिक्षा देते हैं। ऐसे लोगों पर लेखक ने व्यंग्य किया है तथा स्त्री-शिक्षा का पक्ष लिया है।

(2) पुराने जमाने में स्त्रियों के लिए कोई विश्वविद्यालय न था। फिर नियमबद्ध प्रणाली का उल्लेख आदि पुराणों में न मिले तो क्या आश्चर्य। और, उल्लेख उसका कहीं रहा हो, पर नष्ट हो गया हो तो? पुराने ज़माने में विमान उड़ते थे। बताइए उनके बनाने की विद्या सिखाने वाला कोई शास्त्र! बड़े-बड़े जहाज़ों पर सवार होकर लोग द्वीपांतरों को जाते थे। दिखाइए, जहाज़ बनाने की नियमबद्ध प्रणाली के दर्शक ग्रंथ! पुराणादि में विमानों और जहाजों द्वारा की गई यात्राओं के हवाले देखकर उनका अस्तित्व तो हम बड़े गर्व से स्वीकार करते हैं, परंतु पुराने ग्रंथों में अनेक प्रगल्भ पंडिताओं के नामोल्लेख देखकर भी कुछ लोग भारत की तत्कालीन स्त्रियों को मूर्ख, अपढ़ और गँवार बताते हैं! इस तर्कशास्त्रज्ञता और इस न्यायशीलता की बलिहारी!
[पृष्ठ 106-107]

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) पुराने जमाने में क्या उड़ते थे?
(ग) लोग द्वीपांतरों को कैसे जाते थे?
(घ) भारत की प्राचीन स्त्रियों को अनपढ़ व गँवार कौन बताते हैं?
(ङ) वेदों में स्त्री-शिक्षा के प्रमाण किस रूप में प्राप्त होते हैं?
(च) स्त्री-शिक्षा को कौन पाप समझता है और क्यों?
(छ) लेखक किस तर्कशास्त्रज्ञता और न्यायशीलता पर न्योछावर हो जाता है और क्यों?
(ज) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन। लेखक का नाम-आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी।

(ख) पुराने जमाने में विमान उड़ाते थे।

(ग) बड़े-बड़े जहाज़ों पर सवार होकर लोग दीपांतरों पर जाते थे।

(घ) कुछ लोग भारत की प्राचीन स्त्रियों को अनपढ़ व गँवार बताते हैं।

(ङ) वेदों में स्त्री-शिक्षा का सबसे बड़ा प्रमाण उपलब्ध है कि कितने ही वेदों की रचना स्त्रियों ने की है। इनमें एक देवी हैं विश्ववरा जिसने वेदों की रचना की है। इससे प्रमाणित होता है कि वेदों में स्त्री-शिक्षा के प्रमाण विद्यमान हैं।

(च) जो लोग स्त्री-शिक्षा का विरोध करते हुए कहते हैं कि स्त्रियों को शिक्षा देना उचित नहीं है, स्त्रियों को शिक्षित करने से घर का सुख-चैन चला जाता है। ऐसे लोग ही स्त्री-शिक्षा को पाप समझते हैं क्योंकि इन लोगों के विचार संकीर्ण एवं स्त्री विरोधी होते हैं।

(छ) लेखक तर्क देने वाले और न्याय करने वालों पर व्यंग्य करता हुआ ये शब्द कहता है। ये लोग बिना प्रमाण के विमान का होना तो स्वीकार कर सकते हैं, किंतु स्त्री-शिक्षा के होने को स्वीकार नहीं कर सकते। लेखक ऐसे लोगों पर व्यंग्य करते हुए कहता . है कि इनके तर्क एवं न्याय दोनों ही व्यर्थ हैं।

(ज) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने पुराने समय के स्त्री-शिक्षा के विषय में अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा है कि उस समय ऐसा कोई विश्वविद्यालय नहीं था, जिसमें स्त्रियों को शिक्षा दी जाती हो। इसलिए प्राचीन ग्रंथों में स्त्रियों की नियमबद्ध शिक्षा प्रणाली के प्रमाण नहीं मिलते। इस संबंध में लेखक ने सुंदर तर्क प्रस्तुत किया है कि हो सकता है कि शिक्षा प्रणाली के नियम तो हों किंतु नष्ट हो गए हों। जिस प्रकार विमान उड़ने का वर्णन तो मिलता है किंतु विमान बनाने या विमान विद्या के कोई शास्त्र उपलब्ध नहीं है। पुराणादि ग्रंथों में जहाज़ों द्वारा की गई यात्रा का वर्णन तो बड़े गर्व से किया जाता है, किंतु जहाज़-निर्माण के नियम कहीं नहीं मिलते। पुराने ग्रंथों में कुछ महान् पंडितों के नामोल्लेख मात्र को देखकर भी लोग उस समय की स्त्रियों को मूर्ख, अनपढ़, गँवार बताते हैं। लेखक ने ऐसे तर्कों पर करारा व्यंग्य किया है। ये सब स्त्री-शिक्षा के विरोधी लोगों के कुतर्क हैं।

(3) अत्रि की पत्नी पत्नी-धर्म पर व्याख्यान देते समय घंटों पांडित्य प्रकट करे, गार्गी बड़े-बड़े ब्रह्मवादियों को हरा दे, मंडन मिश्र की सहधर्मचारिणी शंकराचार्य के छक्के छुड़ा दे! गज़ब! इससे अधिक भयंकर बात और क्या हो सकेगी! यह सब पापी पढ़ने का अपराध है। न वे पढ़ती, न वे पूजनीय पुरुषों का मुकाबला करती। यह सारा दुराचार स्त्रियों को पढ़ाने ही का कुफल है। समझे। स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट और पुरुषों के लिए पीयूष का घुट ! ऐसी ही दलीलों और दृष्टांतों के आधार पर कुछ लोग स्त्रियों को अपढ़ रखकर भारतवर्ष का गौरव बढ़ाना चाहते हैं। [पृष्ठ 107]

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) प्राचीनकाल में स्त्रियों ने किस प्रकार अपने ज्ञान का प्रभाव जमाया था?
(ग) लेखक ने ‘भयंकर बात’ और ‘पापी पढ़ने का अपराध’ किसे और क्यों कहा है?
(घ) “यह सारा दुराचार स्त्रियों को पढ़ाने ही का कुफल है”-इस पंक्ति में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
(ङ) किस बात को लेकर हम स्त्रियों एवं पुरुषों के साथ अलग-अलग व्यवहार करते हैं?
(च) इस गद्यांश का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन। लेखक का नाम आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी।

(ख) प्राचीनकाल में स्त्रियों ने अपने ज्ञान, तर्क एवं उपदेश की क्षमता-शक्ति के बल पर समाज में प्रभाव बढ़ाया था। अत्रि ऋषि की पत्नी ने पत्नी-धर्म पर घंटों व्याख्यान दिया था। गार्गी ने बड़े-बड़े ब्रह्मवादी चिंतकों को शास्त्रार्थ में चित्त कर दिया था। मंडन मिश्र की पत्नी ने शंकराचार्य को शास्त्रार्थ में निरुत्तर कर दिया था।

(ग) लेखक ने व्यंग्य में स्त्रियों द्वारा महान् एवं आदरणीय पुरुषों को हराने को ‘भयंकर बात’ कही है। भयंकर बात इसलिए भी है कि पुरुषों को अपने ज्ञान एवं विद्या पर अत्यधिक घमंड था और वे अपने-आपको अजेय समझते थे। ‘पापी पढ़ने का अपराध’ कहकर उन पुरुषों पर चोट की गई है जो स्त्रियों की शिक्षा का विरोध करते हैं। वे स्त्रियों के बढ़ते प्रभाव को सहन नहीं कर सकते।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन

(घ) लेखक ने उन पुरुषों को दोषी ठहराया है जो स्त्रियों के पढ़ने-लिखने का विरोध करते हैं। यदि स्त्रियाँ तर्क के क्षेत्र में पुरुषों को हरा देती हैं तो ऐसे लोग इसे स्त्री-शिक्षा का ही दुराचार मानते हैं अर्थात् न स्त्री-शिक्षा होती न पुरुषों को नारियों के सामने हारना पड़ता। वास्तव में यह पंक्ति अहंकारी पुरुषों की अहंकार की मनोवृत्ति पर करारा व्यंग्य है।

(ङ) हम स्त्रियों एवं पुरुषों में शिक्षा को लेकर अलग-अलग व्यवहार करते हैं। हम पुरुषों के लिए शिक्षा को अनिवार्य समझते हैं, जबकि स्त्रियों के लिए नहीं। हम चाहते हैं कि कोई भी स्त्री पुरुष को शिक्षा के क्षेत्र में परास्त न करे। इससे पुरुषों के खोखले अहं को ठेस पहुँचती है।

(च) इस गद्यांश का मूल भाव है कि हमें स्त्री-शिक्षा का विरोध नहीं करना चाहिए। हमें स्त्री-शिक्षा का भी वैसा ही पक्ष लेना चाहिए जैसा कि हम पुरुषों का लेते हैं। यदि स्त्रियों को शिक्षा प्राप्त करने के अवसर दिए जाएँगे तो वे भी समाज के विकास में सहयोगी सिद्ध हो सकती हैं।

(छ) आशय-कुछ लोगों का मत है कि प्राचीनकाल में भारतीय स्त्रियाँ अनपढ़ और मूर्ख थीं। लेखक ने उन लोगों के इस मत का खंडन करते हुए कहा है कि अत्रि ऋषि की पत्नी ने पत्नी-धर्म पर पांडित्यपूर्ण व्याख्यान दिया। गार्गी ने भी बड़े-बड़े ब्रह्मवादी पंडितों को ज्ञान के क्षेत्र में पछाड़ दिया। मंडन मिश्र की पत्नी भी बहुत विदुषी थी। उसने ज्ञान के क्षेत्र में शंकराचार्य को हरा दिया था। इससे बढ़कर भारतीय स्त्रियों के ज्ञानवान होने के क्या प्रमाण हो सकते हैं। स्त्री-शिक्षा विरोधी इस बात को भी शिक्षा का कुफल कहते हैं। स्त्री-शिक्षा के विरोधियों का कथन है कि स्त्रियों के लिए पढ़ना ज़हर के समान है और पुरुषों के लिए अमृत। ऐसे उदाहरण देकर कुछ लोग स्त्रियों को अनपढ़ रखना चाहते हैं। इससे देश का गौरव नहीं बढ़ सकता। देश एवं समाज की उन्नति के लिए स्त्रियों का शिक्षित होना अति अनिवार्य है।

(4) स्त्रियों का किया हुआ अनर्थ यदि पढ़ाने ही का परिणाम है तो पुरुषों का किया हुआ अनर्थ भी उनकी विद्या और शिक्षा ही का परिणाम समझना चाहिए। बम के गोले फेंकना, नरहत्या करना, डाके डालना, चोरियाँ करना, घूस लेना ये सब यदि पढ़ने-लिखने ही का परिणाम हो तो सारे कॉलिज, स्कूल और पाठशालाएँ बंद हो जानी चाहिए। परंतु विक्षिप्तों, बातव्यथितों और ग्रहास्तों के सिवा ऐसी दलीलें पेश करने वाले बहुत ही कम मिलेंगे। शकुंतला ने दुष्यंत को कटु वाक्य कहकर कौन-सी अस्वाभाविकता दिखाई? क्या वह यह कहती कि-“आर्य पुत्र, शाबाश! बड़ा अच्छा काम किया जो मेरे साथ गांधर्व-विवाह करके मुकर गए। नीति, न्याय, सदाचार और धर्म की आप प्रत्यक्ष मूर्ति हैं!” पत्नी पर घोर से घोर अत्याचार करके जो उससे ऐसी आशा रखते हैं वे मनुष्य-स्वभाव का किंचित् भी ज्ञान नहीं रखते। [पृष्ठ 108]

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) लेखक ने स्त्रियों द्वारा किए गए किस अनर्थ की चर्चा की है? क्या यह वास्तव में अनर्थ है?
(ग) पुरुष पढ़-लिखकर भी क्या कुकर्म करता है? क्या यह उसकी शिक्षा का दोष है?
(घ) मनुष्य को शिक्षा किस मार्ग पर चलने की शिक्षा देती है?
(ङ) लेखक स्कूल-कॉलेज बंद करने की बात क्यों कहता है?
(च) लेखक ने स्त्रियों को पढ़ा-लिखा होने को अनर्थ का कारण मानने वालों को क्या और क्यों कहा है?
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन। लेखक का नाम आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी

(ख) लेखक ने पढ़ी-लिखी स्त्रियों द्वारा अपनी विद्वता से शास्त्रार्थ में बड़े-बड़े विद्वानों को पराजित करने तथा अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष करने की चर्चा की है, जिसे पुरुष प्रधान समाज स्त्रियों द्वारा किया गया अनर्थ मानता है और उन्हें अनपढ़ बनाए रखना चाहता है। वास्तव में यह अनर्थ नहीं है। यह पुरुष समाज द्वारा स्त्रियों पर बलात किया जाने वाला अनर्थ है।

(ग) पुरुष पढ़-लिखकर भी चोरी, डकैती, व्यभिचार आदि कुकर्म करता है जो उसकी पढ़ाई-लिखाई का दोष नहीं होता है। वह यह सब बुरे कार्य अपनी संगति अथवा संस्कारों के कारण करता है। इसलिए पढ़ाई-लिखाई को कुकर्मों को प्रेरित करने वाली नहीं मानना चाहिए।

(घ) शिक्षा सदा ही मनुष्य को सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। वह मनुष्य को बुरे रास्ते से हटाकर अच्छे मार्ग पर चलाती है। शिक्षा मनुष्य में अच्छे-बुरे की पहचान करने की शक्ति भी उत्पन्न करती है। मनुष्य शिक्षा प्राप्त करके जीवन में विकास करने के सद्प्रयास करता है। शिक्षा मनुष्य में मानवीय गुणों का विकास भी करती है। इसलिए शिक्षा को अनर्थ कारक कहना अनुचित है।

(ङ) लेखक का तर्क है कि जब बम के गोले फेंकना, नर हत्या करना, डाके डालना, घूस लेना, व्यभिचार करना सब पढ़ने-लिखने का परिणाम है तो फिर ये स्कूल-कॉलेज किसलिए खोल रखे हैं। यदि शिक्षा से व्यक्ति दुष्कर्म ही करेगा तो फिर इन स्कूल-कॉलेजों को बंद करना ही उचित होगा।

(च) लेखक ने पढ़ी-लिखी स्त्रियों को अनर्थ करने वाली स्त्रियाँ कहने वाले पुरुषों को पागल, पूर्वाग्रहों से ग्रस्त, अंधविश्वासी आदि कहा है। ये लोग अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए स्त्रियों को अनपढ़ ही बनाए रखना चाहते हैं। ये लोग यह नहीं चाहते कि स्त्रियाँ अपना भला-बुरा सोचने तथा अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बन सकें।

(छ) आशय/व्याख्या-इन पंक्तियों में लेखक ने बताया है कि स्त्रियों ने अपनी विद्वत्ता से शास्त्रार्थ में बड़े-बड़े विद्वानों को हरा दिया और अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष किया। किंतु पुरुष-प्रधान इस समाज के कुछ लोग उनके इस प्रयास को अनर्थ कहते हैं तथा वे उन्हें मूर्ख बनाए रखना चाहते हैं। यदि इन सभी बातों को विद्या-प्राप्ति या शिक्षा का परिणाम समझते हैं तो फिर पुरुष भी शिक्षा से बम बनाना, नर-हत्या करना, डाके डालना, चोरी करना, रिश्वत लेना आदि सीखता है तो उसे भी अनपढ़ ही रहना चाहिए। शिक्षा-प्राप्ति के सभी साधन समाप्त कर देने चाहिएँ। किंतु ऐसी बुरी दलीलें देने वाले कम ही लोग मिलेंगे। लेखक शकुंतला का उदाहरण देते हुए स्त्री-शिक्षा और स्त्री-अस्तित्व के संघर्ष का पक्ष लेते हुए कहता है कि शकुंतला ने दुष्यंत से यह पूछकर कोई बुराई नहीं की कि उसने उससे गांधर्व-विवाह किया था और वह उस विवाह से मुकर गया है। पत्नी पर घोर अत्याचार करने वाले पुरुष का पक्ष लेना अमानवीय है। ऐसे लोग नहीं चाहते कि स्त्रियाँ शिक्षित हों और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनें।

(5) जो लोग यह कहते हैं कि पुराने जमाने में यहाँ स्त्रियाँ न पढ़ती थीं अथवा उन्हें पढ़ने की मुमानियत थी वे या तो इतिहास से अभिज्ञता नहीं रखते या जान-बूझकर लोगों को धोखा देते हैं। समाज की दृष्टि में ऐसे लोग दंडनीय हैं। क्योंकि स्त्रियों को निरक्षर रखने का उपदेश देना समाज का अपकार और अपराध करना है-समाज की उन्नति में बाधा डालना है।
‘शिक्षा’ बहुत व्यापक शब्द है। उसमें सीखने योग्य अनेक विषयों का समावेश हो सकता है। पढ़ना-लिखना भी उसी के अंतर्गत है। इस देश की वर्तमान शिक्षा-प्रणाली अच्छी नहीं। इस कारण यदि कोई स्त्रियों को पढ़ाना अनर्थकारी समझे तो उसे उस प्रणाली का संशोधन करना या कराना चाहिए, खुद पढ़ने-लिखने को दोष न देना चाहिए। [पृष्ठ 109]

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) स्त्री-शिक्षा को लेकर लेखक के क्या विचार थे?
(ग) ‘निरक्षर स्त्री समाज की उन्नति में बाधा है’ इस विषय पर अपना मत प्रकट कीजिए।
(घ) वर्तमान शिक्षा प्रणाली में संशोधन करने का अवसर आपको मिले तो क्या करना चाहेंगे?
(ङ) शिक्षा का क्या अर्थ है?
(च) लेखक स्त्री-शिक्षा के विरोधियों से क्या कहना चाहता है?
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन। लेखक का नाम आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी।

(ख) लेखक कहता है कि यदि कुछ लोग यह सोचते हैं कि पुराने ज़माने में स्त्रियाँ नहीं पढ़ती थीं तो वे सच्चाई से दूर हैं। स्त्री-शिक्षा की आवश्यकता को नकारा नहीं जा सकता। यह विचार गलत है कि स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होता है, बल्कि स्त्री को पढ़ाने से समाज शिक्षित होता है। लेखक इस विषय पर लोगों के कुतर्कों को महत्त्व नहीं देता।

(ग) यदि समाज में निरक्षर स्त्री होगी तो अवश्य ही समाज का विकास बाधित होगा। कोई भी स्त्री यदि पढ़ी-लिखी है तो वह अपने बच्चों तथा परिवार को अच्छी शिक्षा तथा अच्छे संस्कार देगी। यदि एक परिवार का सर्वांगीण विकास चाहिए तो स्त्री को अवश्य पढ़ाएँ।

(घ) संशोधित शिक्षा प्रणाली ऐसी हो जिसमें रटने पर नहीं, बल्कि समझने पर जोर दिया गया हो। शिक्षा ऐसी हो जिसे व्यवहार में लाया जा सके। बच्चों के लिए शिक्षा भार न बनकर सीखने का माध्यम बने और वह अपने पैरों पर खड़ा हो सके।

(ङ) शिक्षा का अर्थ केवल अक्षर ज्ञान प्राप्त करना ही नहीं, अपितु शिक्षा का बहुत व्यापक अर्थ है। हम जो कुछ भी सीखते हैं, वह शिक्षा कहलाती है। सीखने योग्य अनेक विषय हो सकते हैं जिनमें पढ़ना-लिखना भी एक विषय है।

(च) लेखक स्त्री-शिक्षा के विरोधियों से कहना चाहता है कि यदि आवश्यक है तो शिक्षा प्रणाली में संशोधन कर दीजिए। उनकी शिक्षा किस प्रकार की होनी चाहिए, इस पर बैठकर विचार किया जा सकता है, किंतु यह मत कहिए कि स्त्रियों का पढ़ना-लिखना अनर्थकारी है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन

(छ) आशय/व्याख्या-उपर्युक्त गद्यांश में लेखक ने स्पष्ट शब्दों में बताया है कि जो लोग यह कहते हैं कि पुराने समय में स्त्रियाँ पढ़ती नहीं थीं अथवा उनको पढ़ने की मनाही थी तो ऐसे लोग इतिहास से अनभिज्ञ हैं या फिर जान-बूझकर लोगों को धोखा देना चाहते हैं। ऐसे लोगों को सजा मिलनी चाहिए, क्योंकि वे समाज में स्त्रियों के प्रति भ्रांति फैलाते हैं। स्त्रियों को अनपढ़ रखना समाज के विकास में बाधा डालना है। फिर ‘शिक्षा’ शब्द का अर्थ ही बहुत विस्तृत है। उसमें सीखने के अनेक विषय हैं। पढ़ना-लिखना भी उसी में आता है। लेखक के अनुसार इस देश की शिक्षा-प्रणाली अच्छी नहीं है। इसमें सुधार करना चाहिए। किंतु यह नहीं कहना चाहिए कि स्त्रियों का पढ़ना-लिखना अनर्थकारी है। स्त्रियाँ भी समाज का अभिन्न अंग हैं। यदि स्त्रियाँ शिक्षित नहीं होंगी तो समाज का एक भाग अशिक्षित रह जाएगा और समाज का विकास समुचित रूप से नहीं हो सकेगा।

स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन Summary in Hindi

स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन लेखक-परिचय

प्रश्न-
आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी जी का जीवन परिचय एवं उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी का आधुनिक साहित्य के साहित्यकारों में प्रमुख स्थान है। इनका जन्म सन् 1864 में रायबरेली के दौलतपुर गाँव में हुआ था। आपकी आरंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई। आपने स्कूली शिक्षा मैट्रिक तक ही प्राप्त की थी, किंतु आपने अध्यवसाय, विपुल जिज्ञासा, प्रेरित अनवरत अध्ययन और चिंतन-मनन की अपनी प्रवृत्ति के कारण हिंदी, संस्कृत, अंग्रेज़ी, उर्दू, बाँग्ला, गुजराती आदि अनेक भाषाओं का गहन अध्ययन किया। अपने इसी गुण के कारण आप अपने युग के अग्रणी साहित्यकार रहे। आप भाषा के महापंडित थे। आपने कई वर्षों तक रेलवे विभाग में नौकरी की। आपने 1903 ई० में ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादन का कार्यभार संभाला। हिंदी जगत् के लिए यह एक महान् घटना थी। सन् 1920 तक इस पत्रिका का संपादन करते हुए आपने हिंदी में खड़ी बोली गद्य को व्यवस्थित एवं परिष्कृत करके उसे व्याकरण-सम्मत बनाया। आप जीवन-पर्यंत साहित्य-साधना में लगे रहे। सन् 1938 में आपका देहांत हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ-आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने लगभग 80 रचनाएँ लिखीं, जिनमें से 14 अनूदित और 66 मौलिक रचनाएँ हैं। केवल गद्य पर इनकी अनूदित और मौलिक रचनाओं की संख्या 64 है। इनके प्रमुख निबंध-संग्रह निम्नलिखित हैं
‘संकलन’, ‘रसज्ञ रंजन’, ‘लेखांजलि’, ‘संचयन’, ‘विचार-विमर्श’, ‘साहित्य-सीकर’, ‘साहित्य-संदर्भ’, ‘समालोचना समुच्चय’ आदि।

3. साहित्यिक विशेषताएँ-आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी युग- प्रवर्तक एवं युग-निर्माता पहले हैं, साहित्यकार बाद में इसलिए उनके निबंधों में भारतेंदु अथवा बाद के निबंधकारों की भाँति वैयक्तिकता, रोचकता एवं सजीवता उपलब्ध नहीं होती। वस्तुतः द्विवेदी जी ने ‘सरस्वती’ के माध्यम से धर्म, साहित्य, समाज, विज्ञान, राजनीति आदि विषयों पर जमकर निबंध लिखे। उन्होंने भाषा संस्कार और पुनरुत्थान का महान् कार्य किया। बेकन उनके आदर्श निबंधकार थे। इसलिए उन्होंने उनके अनेक निबंधों का हिंदी में अनुवाद भी किया। बेकन की भाँति ही महावीरप्रसाद द्विवेदी जी के निबंधों में विचारों की अधिकता सर्वत्र देखी जा सकती है।

4. भाषा-शैली-आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी ने भाषा सुधार का महान् कार्य किया। उनके निबंधों में शुद्ध साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है। वे विषयानुकूल, व्याकरण सम्मत एवं सरल भाषा के प्रयोग के पक्ष में थे। उनके निबंधों में विभिन्न शैलियों का प्रयोग हुआ है। उनके साहित्य की भाषा में लोक प्रचलित मुहावरों और लोकोक्तियों का भी प्रयोग किया गया है।

स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन पाठ का सार

प्रश्न-
‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कृतों का खंडन’ शीर्षक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत निबंध में महावीरप्रसाद द्विवेदी ने उन लोगों को मुँह तोड़ जवाब दिया है जो स्त्री-शिक्षा को व्यर्थ एवं समाज के विघटन का कारण मानते थे। इसके साथ ही लेखक ने सड़ी-गली परंपराओं को त्याग देने की प्रेरणा भी दी है। निबंध का सार इस प्रकार है-
लेखक को इस बात का बेहद दुःख है कि पढ़े-लिखे लोग भी स्त्री-शिक्षा का विरोध करते थे। बड़े-बड़े धर्मगुरु व अध्यापक भी स्त्री-शिक्षा के विपक्ष में तर्क देते थे। उनका तर्क है कि पुराने संस्कृत नाटकों में स्त्री-पात्र अनपढ़ों की भाषा में बात करते थे। इससे पता चलता है कि पुराने समय में स्त्री-शिक्षा की व्यवस्था नहीं थी। स्त्री-शिक्षा से समाज में अनर्थ होते हैं। वे शकुंतला का उदाहरण भी देते हैं कि शकुंतला ने गँवारों की भाषा में श्लोक रचा था। इससे पता चलता है कि स्त्रियों के लिए कुछ भी पढ़ना उचित नहीं था।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन

लेखक ने तर्क देते हुए कहा है कि नाटकों में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना उनकी अनपढ़ता का प्रमाण नहीं है। संस्कृत न बोल पाना भी अनपढ़, गँवार होने का प्रतीक नहीं है। बौद्ध-धर्म और जैन-धर्म के ग्रंथों की रचना प्राकृत भाषा में हुई है। इन धर्मों के उपदेश भी प्राकृत भाषा में ही दिए जाते थे। अतः स्पष्ट है कि प्राकृत बोलना या प्रयोग करना अनपढ़ता का प्रतीक नहीं हो सकता। जैसे हिंदी, बाँग्ला आदि भाषाएँ आज की प्राकृत हैं, वैसे ही शौरसेनी, मागधी, पाली आदि उस समय की प्राकृत भाषाएँ थीं। नाटकों में कुछ ही लोगों द्वारा संस्कृत बोलने का प्रावधान किया गया था क्योंकि सब संस्कृत नहीं बोल सकते थे।

लेखक का कथन है कि प्राचीनकाल में महिलाओं के लिए विश्वविद्यालय नहीं थे, किंतु वे प्रमाण आज नष्ट हो चुके हैं। किंतु इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। पुराने समय में जहाज़ और विमान थे किंतु उनको बनाने की विद्या सिखाने के प्रमाण नहीं मिलते। फिर भी हम उनके होने की बात को बड़े गर्व से स्वीकार करते हैं। लेकिन न जाने इसी तर्क पर हम स्त्रियों का शिक्षित होना क्यों नहीं मानते? ईश्वर ने अनेक वेद मंत्र उनके मुख से कहलवाए हैं। बौद्ध ग्रंथों में स्त्रियों की अनेक पद्य-रचनाएँ उपलब्ध हैं। इतना कुछ होने पर भी हम उन्हें अनपढ़ कहने पर तुले हुए हैं। . लेखक ने अनेक ज्ञानवान स्त्रियों के प्रमाण प्रस्तुत करके यह सिद्ध किया है कि स्त्रियाँ भी शिक्षित थीं। अत्रि की पत्नी गार्गी और मंडन मिश्र की पत्नी का तर्क ज्ञान पूजनीय पुरुषों को भी परास्त करता है। क्या यह दुराचार है। उधर एम.ए., बी.ए. करके पत्नियों को मारना व पीटना पुरुषों का सदाचार है। पुरुषों के लिए शिक्षा अमृत और स्त्रियों के लिए जहर, क्या इस बात को संगत कह सकते हैं।

यदि यह भी मान लिया जाए कि पुराने ज़माने में स्त्रियाँ अशिक्षित थीं किंतु वर्तमान युग में स्त्रियों का शिक्षित होना अति अनिवार्य है। अतः हमें स्त्रियों को अनपढ़ रखने की चाल को छोड़ देना चाहिए। श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध में पुराने समय में स्त्रियों के शिक्षित होने के प्रमाण उपलब्ध हैं। रुक्मिणी की हरण कथा इस बात का प्रमाण है। रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को प्रेम-पत्र लिखा था। वह प्राकृत में नहीं हो सकता।

लेखक ने तर्क देते हुए कहा है कि यदि नारी-शिक्षा से अनर्थ होता है तो पुरुषों की हिंसा और पापाचार भी पढ़ाई या शिक्षा का परिणाम है। इस प्रकार तो सभी स्कूल-कॉलेज बंद हो जाने चाहिएँ। शकुंतला ने ऐसी कौन-सी दलील दे दी थी, जिससे दुष्यंत का अपमान हुआ हो। यदि वह उससे विवाह करके उसे भुला देता है तो क्या वह उसका सम्मान करती? इसी प्रकार राम ने भी सीता की अग्नि-परीक्षा भी ले ली थी और फिर किसी के बहकावे में आकर उसे पुनः त्याग दिया था। यहाँ सीता का राम के प्रति क्रोध करना उसके गँवार होने की निशानी नहीं, उसका ऐसा करना स्वाभाविक है।

लेखक के अनुसार शिक्षा कभी-भी अनर्थकारी नहीं हो सकती। अनर्थ तो पुरुष भी करते हैं। अनपढ़ों और अशिक्षितों से भी अनर्थ होते हैं। जो लोग स्त्री-शिक्षा का विरोध करते हैं, वे अपनी अज्ञानता दिखाते हैं। ऐसे लोग तो दंडनीय हैं तथा समाज की उन्नति में बाधा डालने के लिए अपराधी भी। वस्तुतः शिक्षा बहुत व्यापक हैं उसमें सीखने योग्य विविध विषय हो सकते हैं। यदि आज की शिक्षा दोषपूर्ण है और स्त्रियों को सिखाने योग्य कुछ नहीं है तो उसमें सुधार होना चाहिए। पुरुषों की शिक्षा में भी दोष हैं, किंतु इस कारण स्कूल-कॉलेज बंद नहीं किए जा सकते। इस संदर्भ में लेखक का निवेदन है कि यदि शिक्षा में दोष है तो उस पर बहस होनी चाहिए, संशोधन होना चाहिए। किंतु इसे हमें अनर्थकारी, विनाशकारी या फिर मिथ्या नहीं कहना चाहिए।

कठिन शब्दों के अर्थ

(पृष्ठ-105) कुतर्क = गलत तर्क। शोक = दुःख। गृह-सुख = घर के सुख या घर की शांति। सुशिक्षित = अच्छे पढ़े-लिखे लोग। परिचय = जानकारी। पेशा = व्यवसाय। कुशिक्षित = गलत सीख वाले। कुमार्गगामी = गलत या बुरे मार्ग पर चलने वाले। सुमार्गगामी = अच्छे रास्ते पर चलने वाले। अधार्मिक = जिसका धर्म से संबंध न हो। दलील = तर्क। धर्मत्व = धर्म का सार। प्रमाणित = सिद्ध। चाल = रीति। अनर्थ = बुरा। गँवार = मूर्ख, अनपढ़। कटु = कड़वा। दुष्परिणाम = बुरा नतीजा।

(पृष्ठ-106) प्राकृत = प्राचीन भाषा का नाम। उत्तररामचरित = संस्कृत के कवि भवभूति द्वारा रचित नाटक। वेदांतवादिनी = वेदांत पर बोलने वाली। प्रचलित = प्रसिद्ध, व्यवहार में लाई जाने वाली। धर्मोपदेश = धर्म की बातें बताना। पंडित = विद्वान्। एकमात्र = केवल एक। सर्वसाधारण = जनसामान्य। नाट्यशास्त्र = नाटक कला से संबंधित ग्रंथ। विमान = हवाई जहाज़। द्वीपांतर = एक द्वीप से दूसरे द्वीप तक। हवाला = संदर्भ। अस्तित्व = जीवन होना।

(पृष्ठ-107) तर्कशास्त्रज्ञता = तर्कशास्त्र की जानकारी। तत्कालीन = उसी समय का। न्यायशीलता = न्याय के अनुकूल व्यवहार करना । ईश्वर-कृत = ईश्वर के द्वारा किया हुआ। ककहरा = क.ख.ग. आदि का ज्ञान। पुरुष-कवि = कविता लिखने वाले पुरुष। आदृत ‘= आदर-प्राप्त, सम्मानित। शाङ्गधर-पद्धति = छंद शास्त्र लिखने वाले शाङ्गधर नामक कवि के अनुसार। पद्यरचना = कविता लिखना। उद्धृत = ली गई, संकलित। कुमारिका = कुमारी, बालिका। विज्ञ = ज्ञानी, जानकार। पत्नी-धर्म = पत्नी का कर्तव्य । ब्रह्मवादी = वेद पढ़ने-पढ़ाने वाला। सहधर्मचारिणी = पत्नी। छक्के छुड़ाना = बुरी तरह हराना।

भयंकर = भयानक। दुराचार = निंदनीय व्यवहार। कालकूट = ज़हर । पीयूष = अमृत। दृष्टांत = उदाहरण। विपक्षी = विरोधी। उत्तरार्द्ध = पीछे वाला आधा भाग। हरण = चुराना। एकांत = अकेला। पांडित्य = विद्वता, ज्ञान। अल्पज्ञ = कम जानने वाला। सनातन-धर्मावलंबी = सनातन धर्म को मानने वाला। अपेक्षा = तुलना में। दशा = हालत।

(पृष्ठ-108) प्राक्कालीन = पुराने समय की। घूस = रिश्वत । विक्षिप्त = पागल। बात व्यथित = बातों से दुःखी होने वाला। ग्रहग्रस्त = पाप ग्रह से प्रभावित । अस्वाभाविक = जो स्वाभाविक न हो। गांधर्व-विवाह = प्रेम-विवाह। प्रत्यक्ष मूर्ति = साक्षात् रूप। घोर = भयंकर। किंचित् = ज़रा। साध्वी = सीधी, पतिव्रता। दुर्वाक्य = निंदा करने वाला वचन। परित्यक्त = पूरी तरह छोड़ दिया गया। मिथ्यावाद = झूठी बात। अनुरूप = अनुसार। विद्वता = पंडित होना, बुद्धिमानी। महत्ता = महत्त्व। महाब्रह्मज्ञानी = ब्रह्म का ज्ञान रखने वाले महान् पुरुष। मन्वादि = मनु आदि। महर्षि = महान् ऋषि। धर्मशास्त्रज्ञता = धर्म-शास्त्र को जानना। नीतिज्ञ = नीति को जानने वाला। क्षमाशील = क्षमा करने वाला।

(पृष्ठ-109) अकुलीनता = बुरे कुल से होना। हरगिज़ = किसी भी स्थिति में। पापाचार = पापपूर्ण व्यवहार। चाल-चलन = व्यवहार, चरित्र। मुमानियत = मनाही, पाबंदी। अभिज्ञता = जानकारी, ज्ञान। दंडनीय = दंड देने योग्य। निरक्षर = अनपढ़। अपकार = बुरा। बाधा = रुकावट। व्यापक = विस्तार वाला। संशोधन = सुधार। राय = मत, विचार। अनर्थकर = बुरा करने वाला। उत्पादक = बनाने वाला। मिथ्या = झूठ। सोलहों आने = पूर्ण रूप से।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 एक कहानी यह भी

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 एक कहानी यह भी Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 एक कहानी यह भी

HBSE 10th Class Hindi एक कहानी यह भी Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखिका के व्यक्तित्व पर किन-किन व्यक्तियों का किस रूप में प्रभाव पड़ा?
उत्तर-लेखिका की इस रचना को पढ़कर पता चलता है कि उनके व्यक्तित्व पर उनके पिता जी और प्राध्यापिका शीला अग्रवाल का प्रभाव पड़ा था। लेखिका के व्यक्तित्व में अच्छी-बुरी आदतें उनके पिता जी के जीवन से आई हैं। उन्होंने लेखिका की तुलना उनकी बड़ी बहिन के साथ करके हीन भावना पैदा की जिसकी शिकार वह आज तक है। उन्होंने उन्हें शक्की व विद्रोही बनाया। लेखिका को देश-प्रेमी और समाज के प्रति जागरूक बनाने में भी उनके पिता का सहयोग रहा है। उन्होंने उसे रसोई के कार्यों से दूर रखकर एक प्रबुद्ध एवं निडर व्यक्ति बनाया। अतः लेखिका के व्यक्तित्व पर उनके पिता का प्रभाव स्पष्ट रूप में देखा जा सकता है।

लेखिका अपनी प्राध्यापिका शीला अग्रवाल के जीवन से भी अत्यधिक प्रभावित रही है। लेखिका को अध्ययनशील, क्रांतिकारी व आंदोलनकारी बनाने में शीला अग्रवाल का भी योगदान रहा है। शीला अग्रवाल ने लेखिका को महान साहित्यकारों की रचनाएँ पढ़ने के लिए उपलब्ध करवाईं, जिससे उसके मन में साहित्य के प्रति आकर्षण उत्पन्न हुआ। आगे चलकर वे स्वयं एक महान् लेखिका बनीं। उन्होंने अपनी जोशीली बातों से लेखिका के व्यक्तित्व में जोश और क्रांति के शोले भड़का दिए।

प्रश्न 2.
इस आत्मकथ्य में लेखिका के पिता ने रसोई को ‘भटियारखाना’ कहकर क्यों संबोधित किया है?
उत्तर-
भटियारखाना’ का शाब्दिक अर्थ है वह स्थान जहाँ सदा भट्टी जलती रहती है अथवा जहाँ चूल्हा जलता रहता है। दूसरा अर्थ है भटियारे का घर, जहाँ पर लोग भट्टी पर आकर जमा हो जाते हैं और खूब शोरगुल मचाते हैं। पाठ के संदर्भ में पहला अर्थ अधिक उचित प्रतीत होता है। रसोई घर में हर समय कुछ-न-कुछ पकाया जाता है। लेखिका के पिता स्वयं एक विद्वान, लेखक, समाज-सुधारक और देश-भक्त थे। वे अपने बच्चों को घर-गृहस्थी तक सीमित नहीं रखना चाहते थे, विशेषकर लड़कियों को। वे उन्हें उदार हृदय, विचारवान, जागरूक नागरिक व देश-भक्त बनाना चाहते थे। इसलिए वह रसोईघर के कामों को उपेक्षा व हीनभाव से देखते थे और इसी संदर्भ में उन्होंने रसोई को भटियारखाने की संज्ञा दी है।

प्रश्न 3.
वह कौन-सी घटना थी जिसके बारे में सुनने पर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हो पाया और न अपने कानों पर?
उत्तर-
लेखिका के कॉलेज के प्रिंसिपल ने उनके पिता के नाम पत्र लिखा था कि उन्हें उसके (लेखिका के) विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई करनी होगी। इस संबंध में उनके पिता जी को कॉलेज बुलाया गया था। पिता जी पत्र देखकर आग-बबूला हो उठे। उन्हें लगा कि पाँच बच्चों में से लेखिका उनका नाम मिट्टी में मिला देगी। उसी भावना से वे कॉलेज पहुँचे। पिता जी के जाने के बाद लगा कि पाँच बच्चों में से लेखिका उनका नाम मिट्टी में मिला देगी। उसी भावना से वे कॉलेज पहुँचे। पिता जी के जाने के बाद लेखिका पड़ोस में जाकर बैठ गई ताकि पिता जी के लौटने पर उनके क्रोध से बचा जा सके। किंतु जब वे कॉलेज से घर लौटे तो बहुत प्रसन्न थे। उनका चेहरा गर्व से चमक रहा था। वे घर आकर बोले कि उसका (लेखिका का) कॉलेज की लड़कियों पर पूरा रोब है। पूरा कॉलेज उसके इशारे पर खाली हो गया था। पिता जी को उस पर गर्व था कि वह समय के अनुसार देश के साथ कदम मिलाकर चल रही है। इसलिए उसे रोकना असंभव है। यह सुनकर लेखिका को न अपने कानों पर विश्वास हुआ न आँखों पर, किंतु यह सच्चाई थी।

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प्रश्न 4.
लेखिका की अपने पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
लेखिका के पिता के व्यक्तित्व और विचारधारा में विरोधाभास स्पष्ट रूप में देखा जा सकता था। एक ओर वे आधुनिकता के समर्थक थे। वे औरतों को रसोई तक या घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं देखना चाहते थे। उनके अनुसार औरतों को अपनी प्रतिभा और क्षमता का प्रयोग घर के बाहर के कार्यों में भी करना चाहिए। इससे उन्हें यश व सम्मान मिलेगा। किंतु साथ ही वे यह भी सहन नहीं करते थे कि लड़कियाँ लड़कों के साथ मिलकर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लें। वे नारी की स्वतंत्रता को घर की चारदीवारी से दूर नहीं देखना चाहते थे। किंतु लेखिका के लिए पिता जी की सीमाओं में बँधना बहुत कठिन था। इसलिए लेखिका की अपने पिता जी से वैचारिक टकराहट रहती थी।

प्रश्न 5.
इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आंदोलन के परिदृश्य का चित्रण करते हुए उसमें मन्नू जी की भूमिका को रेखांकित कीजिए।
उत्तर-
लेखिका के विद्यार्थी जीवन का समय देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के आंदोलनों की प्रगति का समय था। सन् 1946-47 के दिन थे। उस समय किसी के लिए भी घर में चुप बैठना असंभव था। चारों ओर प्रभात – फेरियाँ, हड़तालें, जुलूस, भाषणबाजी हो रही थी। हर युवा, बच्चा और बूढ़ा अपनी क्षमता के अनुसार स्वाधीनता प्राप्ति के आंदोलनों में भाग ले रहा था। लेखिका देश की राजनीति और समाज के प्रति जागरूक थी। कॉलेज की हिंदी प्राध्यापिका शीला अग्रवाल के जोश भरे विचारों से लेखिका के मन में जोश के साथ कार्य करने का उन्माद भर गया था। लेखिका ने राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले आंदोलनों व हड़तालों में बढ़-चढ़कर भाग लिया। प्रभात फेरियाँ निकालीं, कॉलेज में हड़ताल करवाई, छात्र/छात्राओं को इकट्ठा करके जुलूस के रूप में सड़कों पर निकलना, भाषणों से भीड़ में जोश भर देना आदि कार्य किए। उस समय उनकी रगों में आज़ादी प्राप्ति का जोश रूपी लावा बह रहा था। इस जोश ने उसके अंदर के डर को समाप्त कर दिया था। अतः स्पष्ट है कि लेखिका ने यथाशक्ति एवं योग्यता के अनुसार स्वाधीनता आंदोलन में अपना योगदान दिया था।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 6.
लेखिका ने बचपन में अपने भाइयों के साथ गिल्ली डंडा तथा पतंग उड़ाने जैसे खेल भी खेले, किंतु लड़की होने के कारण उनका दायरा घर की चारदीवारी तक सीमित था। क्या आज भी लड़कियों के लिए स्थितियाँ ऐसी ही हैं या बदल गई हैं, अपने परिवेश के आधार पर लिखिए।
उत्तर-
लेखिका ने भले ही अपने भाइयों के साथ लड़कों जैसे खेल-खेले हों। किंतु लड़की होने के कारण उसकी सीमाएँ घर की चारदीवारी तक ही थीं। वह लड़कों की भाँति घर के बाहर खेलने नहीं जा सकती थी। किंतु समय के अनुसार लड़कियों की स्थिति भी बदली है। लड़कियों को जीवन में विकास करने के समान अवसर प्रदान किए जाने लगे हैं। लड़कियाँ हर क्षेत्र में लड़कों के समान आगे बढ़ रही हैं। अब उनके कार्य की सीमाएँ घर की चारदीवारी तक ही सीमित नहीं रहीं। अब वे आत्म-निर्भर बन गई हैं और अपनी रक्षा और दूसरों की सहायता करने में भी सक्षम हैं। लड़कियों को जीवन में विकास करने हेतु माता-पिता से भी भरपूर सहयोग दिया जा रहा है। आज के युग में लड़कियाँ हर क्षेत्र में लड़कों से आगे निकल रही हैं। वे समाज व राष्ट्र के प्रति भी जागरूक हैं। अब लड़के व लड़कियों के कार्य क्षेत्र व कार्य क्षेत्र की सीमाओं में भेद नहीं रह गया है।

प्रश्न 7.
मनुष्य के जीवन में आस-पड़ोस का बहुत महत्त्व होता है। परंतु महानगरों में रहने वाले लोग प्रायः ‘पड़ोस-कल्चर’ से वंचित रह जाते हैं। इस बारे में अपने विचार लिखिए। .
उत्तर-
निश्चय ही मनुष्य के जीवन में आस-पड़ोस का अत्यधिक महत्त्व होता है। आस-पड़ोस का मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास में सहयोग रहता है। आस-पड़ोस से बच्चों में निर्भयता, आत्मीयता और अपनेपन के भाव का विकास होता है। किंतु बड़े शहरों में रहने वाले लोग प्रायः ‘पड़ोस-कल्चर’ के इस सुख से वंचित रह जाते हैं। वहाँ यह कल्वर उत्पन्न नहीं हो सकता क्योंकि वहाँ सब लोग अपने तक सीमित रहते हैं। यही कारण है कि वहाँ लोग पड़ोस-कल्चर से अनभिज्ञ रहते हैं। आस-पड़ोस के सहयोग से बच्चों का पालन-पोषण भी समुचित रूप से होता है। बच्चे का समाज से परिचय आस-पड़ोस के माध्यम से ही होता है।

आस-पड़ोस के लोगों से मिलजुल कर रहने की भावना का विकास होता है। आगे चलकर ऐसे बच्चों का समाज में भी समायोजन अच्छी प्रकार हो सकता है। आस-पड़ोस के लोग आपस में सुख – दुःख बाँटते हैं। अच्छे-बुरे की पहचान भी बच्चे आस-पड़ोस से ही करते हैं। आस-पड़ोस के कारण ही व्यक्ति दुःख के समय अपने आपको अकेला अनुभव नहीं करता। किंतु बड़े शहरों में व्यक्ति घर में तो अकेला होता ही है किंतु आस-पड़ोस में भी परिचय न होने के कारण वह बाहर भी अकेला ही अनुभव करता है। सभी लोग अपने जीवन को अपने ढंग से जीना पसंद करते हैं। इसलिए वहाँ के लोग एकाकीपन के कारण असुरक्षा, असहाय और मानसिक तनाव के शिकार हो जाते हैं इसलिए मानव जीवन में आस-पड़ोस का होना अति अनिवार्य है। परंतु महानगरों में रहने वाले लोग प्रायः इस सुख से वंचित रह जाते हैं।

प्रश्न 8.
लेखिका द्वारा पढ़े गए उपन्यासों की सूची बनाइए और उन उपन्यासों को अपने पुस्तकालय में खोजिए।
उत्तर-
लेखिका ने ‘सुनीता’, ‘शेखरः एक जीवनी’, ‘नदी के द्वीप’, ‘त्यागपत्र’ एवं ‘चित्रलेखा’ उपन्यासों के अतिरिक्त शरत्, प्रेमचंद, जैनेंद्र, अज्ञेय, यशपाल, भगवतीचरण वर्मा के अनेक उपन्यास पढ़े थे। विद्यार्थी इन उपन्यासों को अपने पुस्तकालय में देखें।

प्रश्न 9.
आप भी अपने दैनिक अनुभवों को डायरी में लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। छात्र स्वयं करें।

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भाषा-अध्ययन-

प्रश्न 10.
इस आत्मकथ्य में मुहावरों का प्रयोग करके लेखिका ने रचना को रोचक बनाया है। रेखांकित मुहावरों को ध्यान में रखकर कुछ और वाक्य बनाएँ
उत्तर-
(क) इस बीच पिता जी के एक निहायत दकियानूसी मित्र ने घर आकर अच्छी तरह पिता जी की लू उतारी।
(ख) वे तो आग लगाकर चले गए और पिता जी सारे दिन भभकते रहे।
(ग) बस अब यही रह गया है कि लोग घर आकर थू-थू करके चले जाएँ।
(घ) पत्र पढ़ते ही पिता जी आग-बबूला।
उत्तर-
लू उतारी-अवसर मिलते ही मैंने अपने घमंडी पड़ोसी की खूब लू उतारी। आग लगाना मेरे स्वार्थी मित्रों ने प्राचार्य के कार्यालय में मेरे विरुद्ध खूब आग लगाई और अपना स्वार्थ सिद्ध किया। थू-थू करना-जब एक चोर अंधी बुढ़िया के पैसे छीनता हुआ पकड़ा गया तो लोगों ने उस पर थू-थू की। आग-बबूला होना-विद्यालय के प्रांगण में शोर मचाते हुए लड़कों को देखकर प्रिंसिपल साहब आग-बबूला हो उठे।

पाठेतर सक्रियता

इस आत्मकथ्य से हमें यह जानकारी मिलती है कि कैसे लेखिका का परिचय साहित्य की अच्छी पुस्तकों से हुआ। आप इस जानकारी का लाभ उठाते हुए अच्छी साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने का सिलसिला शुरू कर सकते हैं। कौन जानता है कि आप में से ही कोई अच्छा पाठक बनने के साथ-साथ अच्छा रचनाकार भी बन जाए।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

लेखिका के बचपन के खेलों में लँगड़ी टाँग, पकड़म-पकड़ाई और काली-टीलो आदि शामिल थे। क्या आप भी यह खेल खेलते हैं। आपके परिवेश में इन खेलों के लिए कौन-से शब्द प्रचलन में हैं। इनके अतिरिक्त आप जो खेल खेलते हैं, उन पर चर्चा कीजिए।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं की भी सक्रिय भागीदारी रही है। उनके बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए और उनमें से किसी एक पर प्रोजेक्ट तैयार कीजिए। उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

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विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
लेखिका के कुंठित होने तथा हीन भावना से ग्रसित होने के क्या कारण थे?
उत्तर-
लेखिका बचपन से ही शारीरिक दृष्टि से कमज़ोर और काले रंग की थी। जबकि लेखिका की बड़ी बहिन, जो उससे दो वर्ष बड़ी थी, स्वस्थ व गोरे रंग की थी। लेखिका के पिता दोनों बहिनों की तुलना करते और उनकी बड़ी बहिन की तारीफ करते। इसका लेखिका के व्यक्तित्व पर बुरा असर पड़ा।
इसी कारण उसके जीवन में हीन भावना की ग्रंथि अथवा कुंठा का समावेश हो गया था जिससे लेखिका आजीवन उभर नहीं सकी थी।

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प्रश्न 2.
लेखिका किन साहित्यकारों के साहित्य को पढ़कर उनसे प्रभावित हुई थी?
उत्तर-
लेखिका के कॉलेज की हिंदी प्राध्यापिका शीला अग्रवाल से जब उनका परिचय हुआ और उनके संपर्क में आई तो उन्होंने लेखिका को प्रेमचंद, जैनेंद्र, अज्ञेय, भगवतीचरण वर्मा, यशपाल आदि साहित्यकारों की प्रमुख रचनाएँ पढ़ने को दी। लेखिका इन सब का साहित्य पढ़कर इनसे प्रभावित हुए बिना न रह सकी। किंतु लेखिका जैनेंद्र की लेखन शैली से विशेष रूप से प्रभावित हुई। उनकी छोटे-छोटे वाक्यों से युक्त भाषा-शैली लेखिका को बहुत पंसद आई थी। उनका ‘सुनीता’ उपन्यास भी उन्हें बहुत अच्छा लगा था। अज्ञेय जी का ‘शेखर : एक जीवनी’ और ‘नदी के द्वीप’ उपन्यासों को पढ़कर लेखिका उनकी मनोवैज्ञानिक शैली पर मुग्ध हुई थी। जब लेखिका स्वयं साहित्यकार बनी तो इन सबकी शैलियों का प्रभाव उनकी कथात्मक रचनाओं में किसी-न-किसी रूप में देखा जा सकता है।

प्रश्न 3.
अजमेर में आने से पहले लेखिका का परिवार कहाँ रहता था? उनकी आर्थिक दशा कैसी थी?
उत्तर-
अजमेर में आने से पहले लेखिका का परिवार इंदौर में रहता था। उस समय उनके परिवार की आर्थिक दशा ठीक थी। नगर में उनके परिवार का पूरा सम्मान एवं प्रतिष्ठा थी। लेखिका के पिता समाज-सुधारक थे और कांग्रेस पार्टी के साथ भी जुड़े हुए थे। धन-धान्य से संपन्न होने के कारण इनके पिता जी अत्यंत उदार स्वभाव के व्यक्ति थे। गरीब बच्चों की सहायता करने में वे सबसे आगे रहते थे।

प्रश्न 4.
किस कारण लेखिका के पिता उसे अपने साथ रखने के इच्छुक थे?
उत्तर-
लेखिका की बड़ी बहिन सुशीला का विवाह हो गया था और उसके दोनों बड़े भाई पढ़ने के लिए बाहर चले गए थे। उसके अकेले रह जाने के कारण पिता जी का ध्यान उन पर गया। वे उन्हें घर के कामों में लगाने की अपेक्षा देश व समाज के कार्यों में लगाना चाहते थे। वे औरतों की प्रतिभा को रसोईघर में नष्ट करने के पक्ष में नहीं थे। इसलिए उनके पिता घर में होने वाली राजनैतिक बैठकों व सभाओं में लेखिका को अपने साथ रखते थे ताकि वह देश व समाज की वस्तुस्थिति से अवगत हो सके। यद्यपि उस समय लेखिका बहुत छोटी थी फिर भी उसे देश पर कुर्बान होने वाले लोगों की कहानियाँ और उनके विचार बहुत अच्छे लगते थे।

प्रश्न 5.
लेखिका बचपन में कौन-कौन से खेल खेलती थी?
उत्तर-
लेखिका बचपन में अपनी बड़ी बहिन सुशीला के साथ मिलकर सतेलिया, लंगड़ी-टाँग, पकड़म-पकड़ाई, काली-टीलो आदि खेल-खेलती थी। उसने अपनी अन्य सहेलियों के साथ गुड्डे-गुड़ियों के विवाह रचाने के खेल भी खेले थे। इसके अतिरिक्त भाइयों के साथ मिलकर पतंग भी उड़ाई थी।

प्रश्न 6.
लेखिका के पिताजी की सबसे बड़ी कमजोरी क्या थी?
उत्तर-
यश-लिप्सा लेखिका के पिता जी की सबसे बड़ी कमजोरी थी। वह चाहते थे कि सब लोग उनकी प्रशंसा करें। वह विशिष्ट बनकर जीना चाहते थे। उनका मत था कि मनुष्य को ऐसे काम करने चाहिए कि समाज में उसका नाम हो। उसकी प्रतिष्ठा बढ़े। उसकी एक विशेष पहचान बन जाए।

प्रश्नन 7.
लेखिका के दूसरे बहिन-भाई अपनी माँ के प्रति कैसा व्यवहार करते थे?
उत्तर-
लेखिका और उसके दूसरे बहिन-भाई माँ को अत्यंत सरल एवं भोली मानते थे। वे उसके प्रति सहानुभूति रखते थे, किंतु उससे अपनी उचित-अनुचित हर प्रकार की माँग पूरी करवा लेते थे। वह भी सबकी इच्छाएँ यथाशक्ति पूरी कर देती थी। इसलिए सबका माँ के प्रति गहरा लगाव था। जब माँ पिता के क्रोध का शिकार बनती थी तो सबकी सहानुभूति माँ के प्रति ही रहती थी।

प्रश्न 8.
‘पड़ोस-कल्चर’ समाप्त होने के कारण मनुष्य को क्या-क्या हानियाँ उठानी पड़ रही हैं?
उत्तर-
लेखिका का मत है कि ‘पड़ोस-कल्चर’ से समाज व व्यक्ति दोनों को बहुत लाभ होते हैं। इससे हमें अधिक सुरक्षा, अपनेपन का भाव अथवा आत्मीयता का भाव मिलता है। ‘पड़ोस-कल्चर’ के कारण ही हम पूरे पड़ोस व मोहल्ले को अपना घर समझते हैं तथा बिना हिचक के एक-दूसरे के घर आते-जाते हैं। किंतु आज के भौतिकवादी व प्रतियोगिता के युग में फ्लैट-कल्चर के विकास के कारण ‘पड़ोस-कल्चर’ समाप्त हो गया। इससे हम अकेलेपन, असुरक्षा, असहायता की भावना से ग्रस्त हो गए हैं। ‘पड़ोस-कल्चर’ के अभाव का बच्चों के मन पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।

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प्रश्न 9.
परंपराओं को लेकर लेखिका ने क्या कहा है?
उत्तर-
परंपराओं के विषय में लेखिका ने कहा है कि हमारी परंपराएँ हमारा आसन्न भूतकाल बनकर हमारा पीछा नहीं छोड़तीं। वे हमारे जीवन के साथ-साथ चली आती हैं। उनकी अभिव्यक्ति भी भिन्न रूपों में होती है। समय के बदलने पर परंपरा के प्रति विद्रोह की भावना भी व्यक्त होती है। परंपराएँ समय के अनुकूल घटती व जुड़ती रहती हैं। लेखिका अच्छी परंपराओं का पालन करने के पक्ष में और जीवन के विकास में बाधा बनने वाली परंपरा को छोड़ देने में ही लाभ देखती हैं।

प्रश्न 10.
लेखिका के जीवन में बनी हीन भावना की ग्रंथि का क्या कुप्रभाव पड़ा?
उत्तर-
लेखिका के जीवन में बहिन की अपेक्षा कम सुंदर एवं कमज़ोर होने के कारण हीन-भावना की ग्रंथि ने घर कर लिया था। वे इस भावना से कभी मुक्त नहीं हो सकी। उनका व्यक्तित्व इस भावना से दबकर रह गया था। वह स्वयं को हीन-समझती थी। इसका सबसे बड़ा कुप्रभाव यह पड़ा कि यदि उसने जीवन में कोई उपलब्धि प्राप्त भी की तो वह इसे तुक्का या बाइचांस ही समझती थी। उसे अपनी योग्यता का परिणाम नहीं मानती थी।

प्रश्न 11.
लेखिका के व्यक्तित्व का विकास कब और कैसे हुआ?
उत्तर-
लेखिका की बहिन सुशीला विवाहोपरांत ससुराल चली गई और भाई पढ़ने हेतु बाहर चले गए। तब इनके पिता ने इनकी ओर विशेष ध्यान दिया। इनके व्यक्तित्व के विकास का यही सही अवसर था। इनके पिता इन्हें घर में होने वाली बैठकों में अपने साथ रखते। इससे उन्हें देश और समाज की दशा को समझने का अवसर मिला। इसके कारण ही इनके मन में देश व समाज के प्रति जागरूकता का विकास हुआ। आगे चलकर इनका संपर्क हिंदी की प्राध्यापिका शीला अग्रवाल से हुआ। उन्होंने इन्हें विभिन्न साहित्यकारों की रचनाएँ पढ़ने को दी। इससे उनके मन में साहित्य को समझने व लिखने का उत्साह हुआ। शीला अग्रवाल की जोशीली बातों ने इनके जीवन को क्रांतिकारी बना दिया। अतः स्पष्ट है कि पिता के संपर्क और सहयोग तथा शीला अग्रवाल की संगति और जोशीली बातों से लेखिका के व्यक्तित्व का विकास हुआ।

प्रश्न 12.
डॉ. अंबालाल ने लेखिका की किस रूप में सहायता की थी?
उत्तर-
डॉ. अंबालाल लेखिका के पिता के गहरे मित्र थे। उन्होंने नगर के चौराहे पर लेखिका का भाषण सुना। उससे वे अत्यधिक प्रभावित हुए। उन्होंने लेखिका को ऐसे भाषण के लिए न केवल शाबाशी ही दी अपितु उनके पिता के सामने उसकी खूब जमकर प्रशंसा भी की। बेटी की तारीफ सुनकर पिता का हृदय गर्व से फूला नहीं समाया था। इससे लेखिका पिता की डाँट खाने से बची और पिता ने उन्हें ऐसे कार्यों में भाग लेने के लिए कभी मना नहीं किया।

प्रश्न 13.
कॉलेज की प्रिंसिपल मन्नू से क्यों दुःखी थी?
उत्तर-
उस समय देश में स्वाधीनता आंदोलन पूरे जोरों पर चल रहे थे। संपूर्ण देश जोश और उत्साह से भरा हुआ था। मन्नू भी इन आंदोलनों में पूरे जोश और उत्साहपूर्वक भाग लेती थी। वह प्रभात-फेरियाँ निकालती। जुलूसों व हड़तालों में भी भाग लेती। उसके भाषण बड़े जोशीले होते थे। उसकी एक आवाज़ पर कॉलेज की छात्राएँ कॉलेज से बाहर आकर एकत्रित हो जाती थीं। वह स्वाधीनता के प्रश्न को लेकर कई बार कॉलेज में हड़ताल भी करवा चुकी थी। प्रिंसिपल के लिए कॉलेज चलाना कठिन हो गया था। मन्नू की इन हरकतों के कारण प्रिंसिपल महोदया परेशान थीं। उन्होंने मन्नू के पिता को कॉलेज बुलाया था ताकि उसके विरुद्ध अनुशासनहीनता फैलाने के लिए कार्रवाई की जा सके।

प्रश्न 14.
शीला अग्रवाल और लेखिका के विरुद्ध कॉलेज प्रशासन ने क्या कार्रवाई की और उसका परिणाम क्या निकला?
उत्तर-
शीला अग्रवाल और लेखिका को कॉलेज में अनुशासन-हीनता फैलाने के अपराध हेतु और लड़कियों को भड़काने के अपराध में कॉलेज से निकालने का नोटिस दे दिया था। यह प्रिंसिपल की आंदोलन को दबाने की चाल थी। किंतु लेखिका व अन्य छात्र नेत्रियों ने कॉलेज से बाहर ऐसा आंदोलन चलाया कि कॉलेज में थर्ड इयर की कक्षा चलानी पड़ी और शीला अग्रवाल तथा लेखिका को भी कॉलेज में ले लिया गया।

विचार/संदेश संबंधी प्रश्नोत्तर-

प्रश्न 15.
‘एक कहानी यह भी’ नामक पाठ का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर-
“एक कहानी यह भी’ नामक आत्मकथ्य में लेखिका ने बताया है कि स्वतंत्रता प्राप्त करने का अधिकार केवल पुरुषों का नहीं, अपितु स्त्रियों का भी है और स्त्रियों को अपने इस अधिकार का उपयोग करना चाहिए। इस पाठ को पढ़कर लड़कियों को देश के विकास के कार्य करने की प्रेरणा मिलती है।
इस पाठ से हमें यह संदेश मिलता है कि हमें अपनी यथाशक्ति देश के कार्यों में भाग लेकर देश को उन्नति की डगर पर ले जाना चाहिए। हमें अपने पूर्वजों का आदर करना चाहिए, यदि वे हमारे कार्यों में किसी प्रकार की बाधा बनते हैं तो हमें सीधी टक्कर लेने की अपेक्षा उन्हें समझा-बुझाकर अपना काम करते रहना चाहिए। इस पाठ का यह भी संदेश है कि हमें अच्छी परंपराओं का पालन करना चाहिए और अतीत की भूलों को ध्यान में रखकर वर्तमान व भविष्य को उज्ज्वल बनाना चाहिए।

प्रश्न 16.
लेखिका की माँ कैसी महिला थी? वह लेखिका का आदर्श क्यों नहीं बन सकी?
उत्तर-
लेखिका की माँ एक शांत स्वभाव वाली नारी थी। वह अनपढ़ और घरेलू नारी थी। वह धैर्यशील और सहनशील भी थी। उसका सारा जीवन और सोच अपने पति व बच्चों के इर्द-गिर्द घूमता था। वह हर समय बच्चों और पति की सेवा के लिए तत्पर रहती थी और बिना बात के पति के क्रोध का भाजन बनती थी। उसने कभी किसी के प्रति कोई शिकायत या मन-मुटाव नहीं किया। उनका जीवन घर-रसोई तक सीमित था। उन्होंने आजीवन किसी से कुछ नहीं माँगा और पति के क्रोध के आगे थर-थर काँपती रहती थी। उसने सदा दूसरों को दिया ही है, माँगा कुछ नहीं। इतने उच्च विचार होने पर भी वह लेखिका का आदर्श इसलिए नहीं बन सकी क्योंकि लेखिका का स्वभाव क्रांतिकारी था। वह आंदोलन करके सब कुछ प्राप्त करना चाहती थी। संघर्ष में उसका विश्वास था।

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प्रश्न 17.
गरीबी का जीवन पर कुप्रभाव पड़ता है। कैसे?
उत्तर-
गरीबी का मानव-जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। गरीबी से मनुष्य के जीवन की खुशियाँ छिन जाती हैं। वह निराशा में डूब जाता है। उसे सदा अपने परिवार के पालन-पोषण की चिंता सताती रहती है। उसकी उदारता, सदाशयता आदि भावनाएँ भी नष्ट हो जाती हैं। वह कंजूस एवं शक्की भी बन जाता है। वह क्षुब्ध एवं कुंठित हो जाता है। उसमें काम करने का साहस भी धीमा पड़ जाता है। कभी-कभी उसका जीवन क्रोध और भय जैसे नकारात्मक भावों से भर जाता है। पठित पाठ में लेखिका के पिता को अमीरी से गरीबी के दिन देखने पड़े थे। वह अपनों के द्वारा धोखा दिए जाने पर गरीब हो गया। उसके जीवन में गरीबी ने नकारात्मक भाव भर दिए थे।

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अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘एक कहानी यह भी’ पाठ की लेखिका का क्या नाम है?
उत्तर-
‘एक कहानी यह भी’ पाठ की लेखिका मन्नू भंडारी हैं।

प्रश्न 2.
मन्नू भंडारी ने किस वर्ष अपनी दसवीं कक्षा उत्तीर्ण की थी?
उत्तर-
मन्नू भंडारी ने सन् 1945 में अपनी दसवीं कक्षा उत्तीर्ण की थी।

प्रश्न 3.
मन्नू भंडारी को किस रूप में प्रसिद्धि प्राप्त हुई?
उत्तर-
मन्नू भंडारी को उपन्यासकार के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त हुई।

प्रश्न 4.
मन्नू भण्डारी को जैनेन्द्र कुमार का कौन-सा उपन्यास बहुत अच्छा लगा?
उत्तर-
सुनीता’।

प्रश्न 5.
मन्नू भण्डारी की यादों का सिलसिला किस शहर से शुरू होता है?
उत्तर-
मन्नू भण्डारी की यादों का सिलसिला अजमेर शहर से शुरू होता है।

प्रश्न 6.
मन्नू भण्डारी की माताजी किस कक्षा तक पढ़ी थीं?
उत्तर-
मन्नू भण्डारी की माता जी अनपढ़ थीं।

प्रश्न 7.
लेखिका ने अपने पिता के शक्की स्वभाव का क्या कारण बताया?
उत्तर-
लेखिका ने अपने पिता के शक्की स्वभाव का कारण अपनों द्वारा विश्वासघात बताया।

प्रश्न 8.
अज्ञेय का कौन-सा उपन्यास मन्नू भण्डारी की समझ के सीमित दायरे में समा नहीं पाया?
उत्तर-
‘नदी के द्वीप’।

प्रश्न 9.
जैनेन्द्र का कौन-सा उपन्यास लेखिका को पसंद आया था?
उत्तर-
जैनेन्द्र का ‘सुनीता’ उपन्यास लेखिका को पसंद आया था।

प्रश्न 10.
लेखिका और उनके पिता के बीच टकराव का क्या कारण था?
उत्तर-
लेखिका और उनके पिता के बीच विचारों की भिन्नता के कारण टकराव था।

प्रश्न 11.
मन्नू भण्डारी का जन्म कहाँ हुआ?
उत्तर-
मन्नू भण्डारी का जन्म जिला मंदसौर (मध्य प्रदेश) के गाँव भानपुरा में हुआ था।

प्रश्न 12.
लेखिका की हिन्दी प्राध्यापिका का क्या नाम था?
उत्तर-
लेखिका की हिन्दी प्राध्यापिका का नाम श्रीमती शीला अग्रवाल था।

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बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मन्नू भंडारी ने किसके जीवन को वर्णित किया है?
(A) पिता
(B) चाचा
(C) चाची
(D) बुआ
उत्तर-
(A) पिता

प्रश्न 2.
मन्नू भंडारी ने किस विषय में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की थी?
(A) हिंदी
(B) संस्कृत
(C) अंग्रेज़ी
(D) इतिहास
उत्तर-
(A) हिंदी

प्रश्न 3.
मन्नू भंडारी की माध्यमिक शिक्षा राजस्थान के किस शहर में संपन्न हुई?
(A) जोधपुर
(B) बीकानेर
(C) अजमेर
(D) जयपुर
उत्तर-
(C) अजमेर

प्रश्न 4.
मन्नू भंडारी की रचना ‘आपका बंटी’ किस विधा के अन्तर्गत आती है?
(A) एकांकी
(B) उपन्यास
(C) कहानी.
(D) निबन्ध
उत्तर-
(B) उपन्यास

प्रश्न 5.
मन्नू भंडारी की सम्माननीय/पसंदीदा प्राध्यापिका का क्या नाम था?
(A) शीला अग्रवाल
(B) मनीषा यादव
(C) शालिनी गुप्ता
(D) ज्योति गोयल
उत्तर-
(A) शीला अग्रवाल

प्रश्न 6.
लेखिका के पति कौन थे?
(A) हरेन्द्र
(B) धर्मेन्द्र
(C) राजेन्द्र
(D) सुरेन्द्र
उत्तर-
(C) राजेन्द्र

प्रश्न 7.
लेखिका ने दसवीं कक्षा कब पास की?
(A) सन् 1940 में
(B) सन् 1945 में
(C) सन् 1942 में
(D) सन् 1947 में
उत्तर-
(B) सन् 1945 में

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प्रश्न 8.
अजमेर से पहले लेखिका के पिता जी कहाँ रहते थे?
(A) दिल्ली
(B) आगरा
(C) पटना
(D) इन्दौर
उत्तर-
(D) इन्दौर

प्रश्न 9.
लेखिका के पिता जी इन्दौर से अजमेर क्यों आ गए थे?
(A) आर्थिक झटका
(B) ट्रांसफर
(C) व्यापार
(D) पारिवारिक कलह
उत्तर-
(A) आर्थिक झटका

प्रश्न 10.
लेखिका के पिता का शब्दकोश था-
(A) शब्दवार
(B) घटनावार
(C) विषयवार
(D) मुहावरावार
उत्तर-
(C) विषयवार

प्रश्न 11.
उस मनोवैज्ञानिक तत्त्व का नाम लिखें जिसके बीच मन्नू भण्डारी के पिता जीते थे-
(A) अन्तर्विरोध
(B) स्थैर्य
(C) शीलता
(D) अनुशासन
उत्तर-
(A) अन्तर्विरोध

प्रश्न 12.
लेखिका महानगरों में किसकी कमी को महसूस करती है-
(A) पड़ोस संस्कृति
(B) परिवार
(C) पानी
(D) बिजली
उत्तर-
(A) पड़ोस संस्कृति

प्रश्न 13.
लेखिका मन्नू भंडारी के मन में कौन-सी हीन भावना ग्रंथि बन गई थी?
(A) काले रंग की होना
(B) आँखों पर चश्मा लगा होना
(C) छोटे कद की होना
(D) पढ़ाई में कमजोर होना
उत्तर-
(A) काले रंग की होना

प्रश्न 14.
लेखिका के पिता जी अजमेर के कौन-से मोहल्ले में रहते थे?
(A) भानपुरा
(B) माडल टाऊन
(C) कैम्प
(D) ब्रह्मपुरी
उत्तर-
(D) ब्रह्मपुरी

प्रश्न 15.
लेखिका के पिता जी की सबसे बड़ी दुर्बलता थी-
(A) धन-लिप्सा
(B) क्रोध
(C) यश-लिप्सा
(D) अहंकार
उत्तर-
(C) यश-लिप्सा ।

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प्रश्न 16.
लेखिका के पिता जी की पुस्तकों का साम्राज्य रहता था-
(A) व्यवस्थित
(B) अव्यवस्थित
(C) संवरा हुआ
(D) कटा-फटा सा
उत्तर-
(B) अव्यवस्थित

प्रश्न 17.
लेखिका के पिता ने रसोईघर को नाम दिया-
(A) भटियार खाना
(B) भंडारशाला
(C) पाठशाला
(D) गऊशाला
उत्तर-
(A) भटियार खाना

प्रश्न 18.
अजमेर का पूरा विद्यार्थी-वर्ग भाषणबाज़ी के लिए कहाँ इकट्ठा हुआ था?
(A) मुख्य बाज़ार
(B) चौपड़
(C) रेलवे स्टेशन
(D) कॉलेज के बाहर
उत्तर-
(B) चौपड़

प्रश्न 19.
लेखिका का उसी के घर किस सम्मानित व्यक्ति ने बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया था?
(A) अंबा लाल
(B) अंबिका लाल
(C) अंबा देव
(D) श्री कृष्णलाल
उत्तर-
(A) अंबा लाल

प्रश्न 20.
मन्नू भण्डारी की माता का सबसे बड़ा गुण था-
(A) शिक्षा-दीक्षा
(B) लेखन
(C) अमीरी
(D) सहनशक्ति
उत्तर-
(D) सहनशक्ति

एक कहानी यह भी गद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) पर यह सब तो मैंने केवल सुना। देखा, तब तो इन गुणों के भग्नावशेषों को ढोते पिता थे। एक बहुत बड़े आर्थिक झटके के कारण वे इंदौर से अजमेर आ गए थे, जहाँ उन्होंने अपने अकेले के बल-बूते और हौसले से अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोश (विषयवार) के अधूरे काम को आगे बढ़ाना शुरू किया जो अपनी तरह का पहला और अकेला शब्दकोश था। इसने उन्हें यश और प्रतिष्ठा तो बहुत दी, पर अर्थ नहीं और शायद गिरती आर्थिक स्थिति ने ही उनके व्यक्तित्व के सारे सकारात्मक पहलुओं को निचोड़ना शुरू कर दिया। सिकुड़ती आर्थिक स्थिति के कारण और अधिक विस्फारित उनका अहं उन्हें इस बात तक की अनुमति नहीं देता था कि वे कम-से-कम अपने बच्चों को तो अपनी आर्थिक विवशताओं का भागीदार बनाएँ। नवाबी आदतें, अधूरी महत्वाकांक्षाएँ, हमेशा शीर्ष पर रहने के बाद हाशिए पर सरकते चले जाने की यातना क्रोध बनकर हमेशा माँ को कँपाती-थरथराती रहती थीं। अपनों के हाथों विश्वासघात की जाने कैसी गहरी चोटें होंगी वे जिन्होंने आँख मूंदकर सबका विश्वास करने वाले पिता को बाद के दिनों में इतना शक्की बना दिया था कि जब-तब हम लोग भी उसकी चपेट में आते ही रहते। [पृष्ठ 93-94]

प्रश्न (क) पाठ एवं लेखिका का नाम लिखिए।
(ख) लेखिका के पिता का इंदौर से अजमेर आने का क्या कारण था ?
(ग) ‘भग्नावशेषों को ढोते पिता’ का अभिप्राय स्पष्ट कीजिए।
(घ) लेखिका की माँ के डरी रहने का क्या कारण था?
(ङ) लेखिका के पिता को शब्दकोश लिखने का क्या लाभ हुआ ?
(च) लेखिका के पिता के शक्की स्वभाव का क्या कारण था?
(छ) ‘हाशिए पर सरकना’ के अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
(ज) लेखिका के पिता के क्रोध का क्या कारण था ?
(झ) प्रस्तुत गद्यांश के आधार पर लेखिका के पिता के व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ञ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-एक कहानी यह भी। लेखिका का नाम मन्नू भंडारी।

(ख) लेखिका के पिता मूलतः इंदौर के रहने वाले थे, किंतु वहाँ उनकी आर्थिक स्थिति इतनी अस्त-व्यस्त हो गई थी कि उन्हें इंदौर छोड़कर अजमेर आना पड़ा था।

(ग) ‘भग्नावशेषों को ढोते पिता’ का अर्थ है कि उनके पिता की पहले आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी थी। उनका परिवार धन-वैभव से परिपूर्ण था। उनके पिता को इसका अहंकार था। किंतु अब उनकी आर्थिक दशा अस्थिर हो गई थी। अब वे अपने पुराने वैभव की यादों के सहारे जीते थे अर्थात् वे अपनी जिंदगी जैसे-तैसे काट रहे थे।

(घ) वस्तुतः लेखिका की माँ बहुत साधारण एवं सहज स्वभाव वाली नारी थी। वह उनके पिता की आज्ञाकारी सेविका थी।
हो गए थे, उन्हें बात-बात पर गुस्सा आता था। उनका यह गुस्सा अपनी पत्नी पर ही उतरता था। इसलिए वह सदा डरी-डरी रहती थी कि न जाने कब वह पति के क्रोध का भाजन बन जाए।

(ङ) लेखिका के पिता ने हिंदी-अंग्रेज़ी के अत्यंत सफल शब्दकोश की रचना की। इस शब्दकोश से उन्हें खूब यश प्राप्त हुआ। किंतु धन प्राप्त नहीं हुआ। धन के बिना उनके परिवार की स्थिति में कोई विशेष अंतर नहीं आया।

(च) लेखिका के पिता घमंडी व अहंकारी स्वभाव के थे, किंतु अपनों के द्वारा धोखा दिए जाने पर उनकी आर्थिक स्थिति डाँवाडोल हो गई थी। इसलिए अपनों से धोखा खाने पर उनका स्वभाव शक्की हो गया था।

(छ) ‘हाशिए पर सरकना’ का अभिप्राय है कि पहले की अपेक्षा महत्त्वहीन होना। मुख्यधारा या प्रधान स्थान से हटकर किनारे पर आ जाना। लेखिका के पिता की आर्थिक स्थिति अस्त-व्यस्त होने के कारण उनकी पारिवारिक स्थिति ठीक नहीं रही। इसलिए वे मुख्य स्थान से हट गए और उन्हें इंदौर छोड़कर अजमेर आना पड़ा।

(ज) लेखिका के पिता के क्रोधी होने का कारण था, उनकी बिगड़ती आर्थिक दशा। पुरानी नघाबी आदतें और अधूरी महत्वाकांक्षाएँ, चोटी पर या शिखर पर होने पर भी उनके महत्त्व का घटना आदि उनके क्रोधी होने के कारण थे।

(झ) इस गद्यांश को पढ़ने से पता चलता है कि लेखिका के पिता अत्यंत महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति थे। उनकी आदतें भी नवाबी थीं अर्थात् वे खुले दिल से खर्च करने वाले थे। वे दूसरों पर आँख मूंद कर विश्वास करते थे, इसी कारण उन्हें अपने ही लोगों से धोखा खाना पड़ा। विपरीत परिस्थितियों में पड़ने के कारण उनका स्वभाव भी क्रोधी हो गया था। इतना कुछ होने पर भी वे अहंकार नहीं छोड़ सके। इसलिए परिवार वालों को कदम-कदम पर उनका विरोध व तनाव भी सहन करना पड़ता था।

(ञ) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में लेखिका ने अपने पिता की गिरती आर्थिक दशा से उत्पन्न मनोदशा का सजीव चित्रण किया है। लेखिका ने अपने जीवन में जो कुछ अपने परिवार व पिता के विषय में देखा, उसके विषय में यहाँ बताया है। लेखिका का कथन है कि आर्थिक हानि के कारण पिता जी इंदौर से अजमेर आ गए थे। वहाँ उन्होंने अंग्रेज़ी-हिंदी शब्दकोश लिखा। इससे उन्हें प्रसिद्धि तो बहुत प्राप्त हुई, किंतु आर्थिक लाभ नहीं। गिरती हुई आर्थिक दशा ने उनके पिता के व्यक्तित्व के सभी सकारात्मक पहलुओं को कुंठित कर दिया। यहाँ तक कि वे अपने बच्चों को भी अपनी आर्थिक विवशताओं का भागीदार बनाए बिना न रह सके। अपनी अधूरी महत्वाकांक्षाओं तथा हमेशा महत्त्वपूर्ण स्थान पर रहने के कारण अब हाशिए पर आने के कारण उनका क्रोध बढ़ गया। उनका यह क्रोध लेखिका की माता पर ही प्रकट होता था। अपनों के द्वारा विश्वासघात होने के कारण वे अब सब पर यहाँ तक कि अपने बच्चों पर भी शक करने लगे थे। कहने का भाव है कि लेखिका के परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ने के कारण उनके पिता की मनोदशा कुंठित हो गई थी।

(2) पर यह पित-गाथा मैं इसलिए नहीं गा रही कि मुझे उनका गौरव-गान करना है, बल्कि मैं तो यह देखना चाहती हूँ कि उनके व्यक्तित्व की कौन-सी खूबी और खामियाँ मेरे व्यक्तित्व के ताने-बाने में गुंथी हुई हैं या कि अनजाने-अनचाहे किए उनके व्यवहार ने मेरे भीतर किन ग्रंथियों को जन्म दे दिया। मैं काली हूँ। बचपन में दुबली और मरियल भी थी। गोरा रंग पिता जी की कमजोरी थी सो बचपन में मुझसे दो साल बड़ी, खूब गोरी, स्वस्थ और हँसमुख बहिन सुशीला से हर बात में तुलना और फिर उसकी प्रशंसा ने ही, क्या मेरे भीतर ऐसे गहरे हीन-भाव की ग्रंथि पैदा नहीं कर दी कि नाम, सम्मान और प्रतिष्ठा पाने के बावजूद आज तक मैं उससे उबर नहीं पाई? [पृष्ठ 94]

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प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखिका का नाम लिखिए।
(ख) लेखिका अपने पिता के विषय में क्यों बताना चाहती है?
(ग) लेखिका ने अपने पिता के व्यक्तित्व की किन खुबियों का वर्णन किया है?
(घ) लेखिका के पिता के जीवन में क्या-क्या कमियाँ र्थी?
(ङ) लेखिका के व्यक्तित्व पर पिता के जीवन का क्या प्रभाव पड़ा?
(च) लेखिका के व्यक्तित्व में हीन-भावना की ग्रंथि क्यों उत्पन्न हो गई थी?
(छ) लेखिका के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
(ज) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-एक कहानी यह भी। लेखिका का नाम-मन्नू भंडारी।

(ख) लेखिका ने अपने पिता के विषय में इसलिए चर्चा की है ताकि यह अनुमान लगाया जा सके कि उनके व्यक्तित्व के किन-किन गुणों-अवगुणों की झलक उसके व्यक्तित्व में भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में आ गई है। उसके व्यक्तित्व को पिता के व्यक्तित्व ने किन-किन रूपों में प्रभावित किया है।

(ग) लेखिका ने अपने पिता के विषय में बताया है कि उनके पिता एक प्रतिष्ठित विद्वान थे। वे सदा पढ़ने-लिखने में लगे रहते थे। वे एक अच्छे समाज-सुधारक भी थे। वे कांग्रेस के द्वारा चलाए गए राष्ट्रीय आंदोलनों से भी जुड़े रहते थे। वे शिक्षा के प्रचार-प्रसार में भी पूर्ण सहयोग देते थे। उन्होंने अनेक गरीब विद्यार्थियों की सहायता भी की थी।

(घ) उनके पिता की नवाबी आदतें और अहंकारी स्वभाव था। आर्थिक स्थिति के डगमगा जाने के कारण उनके मन में गुस्सा एवं झुंझलाहट रहती थी।

(ङ) लेखिका के पिता के व्यक्तित्व का उनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा था। उनके पिता के अनजाने व अनचाहे व्यवहार ने उनके व्यक्तित्व में हीन भाव की ग्रंथियाँ उत्पन्न कर दी थीं। .

(च) लेखिका काली और पतली-दुबली थी। जबकि उसकी बड़ी बहिन सुशीला गोरी, स्वस्थ और हंसमुख थी। उसके पिता सदा ही उसकी प्रशंसा किया करते। हर बात में तुलना करने के कारण उसके भीतर हीन भावना की ग्रंथि उत्पन्न हो गई थी। वह ग्रंथि आजीवन बनी रही।

(छ) इन पक्तियों में बताया गया है कि लेखिका एक साधारण बालिका थी। वह अन्य लड़कियों की अपेक्षा कमज़ोर थी। उसका रंग भी काला था। पिता के भेद-भावपूर्ण व्यवहार ने उसके व्यक्तित्व में हीन-भावना की ग्रंथि उत्पन्न कर दी थी। इसलिए वह नाम और सम्मान पाने के पश्चात् भी उस हीन भावना से उभर नहीं सकी थी। उसे लगता था कि वह अपनी बहिन के मुकाबले में हीन है।।

(ज) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में लेखिका ने अपने व्यक्तित्व के गुण-दोषों का आकलन करते हुए देखना चाहा है कि उनके पिता के व्यक्तित्व की कौन-कौन-सी कमियाँ उनके व्यक्तित्व में अनायास ही आ गई हैं। लेखिका ने यहाँ स्पष्ट किया है कि उनके पिता के व्यक्तित्व के गुण-दोषों में से कौन-कौन-सी खूबियाँ या खामियाँ उसके अपने व्यक्तित्व में आई हैं और उनके किस व्यवहार ने लेखिका के जीवन में हीन-भावना की ग्रंथियों को जन्म दिया है। उसके पिता को गोरा रंग बहुत पसंद था। जबकि वह बचपन से काले रंग की एवं कमजोर थी। उसकी बड़ी बहन गोरी और स्वस्थ थी। बात-बात में उसके पिता उसे उसकी इस कमी को अनुभव करवा देते थे। उसके जीवन में काले रंग की होने की हीन-भाव की ग्रंथि बन गई थी। अब इतनी प्रसिद्धि प्राप्त होने पर भी वह अपनी इस हीन-भाव की ग्रंथि से उबर नहीं सकी।

(3) पिता जी के जिस शक्की स्वभाव पर मैं कभी भन्ना-भन्ना जाती थी, आज एकाएक अपने खंडित विश्वासों की व्यथा के नीचे मुझे उनके शक्की स्वभाव की झलक ही दिखाई देती है…बहुत ‘अपनों के हाथों विश्वासघात की गहरी व्यथा से उपजा शक। होश सँभालने के बाद से ही जिन पिता जी से किसी-न-किसी बात पर हमेशा मेरी टक्कर ही चलती रही, वे तो न जाने कितने रूपों में मुझमें हैं… कहीं कुंठाओं के रूप में, कहीं प्रतिक्रिया के रूप में तो कहीं प्रतिच्छाया के रूप में। केवल बाहरी भिन्नता के आधार पर अपनी परंपरा और पीढ़ियों को नकारने वालों को क्या सचमुच इस बात का बिल्कुल अहसास नहीं होता कि उनका आसन्न अतीत किस कदर उनके भीतर जड़ जमाए बैठा रहता है! समय का प्रवाह भले ही हमें दूसरी दिशाओं में बहाकर ले जाए. ..स्थितियों का दबाव भले ही हमारा रूप बदल दे, हमें पूरी तरह उससे मुक्त तो नहीं ही कर सकता! . [पृष्ठ 94]

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखिका का नाम लिखिए।
(ख) लेखिका के शक्की स्वभाव होने का क्या कारण है?
(ग) लेखिका द्वारा किए गए पिता के साथ संघर्ष उसके जीवन को कैसे प्रभावित करते रहे?
(घ) क्या परंपरा और पुरानी पीढ़ियों के प्रभाव को अनदेखा किया जा सकता है?
(ङ) हमारा अतीत किस-किस रूप में प्रकट हो सकता है?
(च) लेखिका के विश्वासों को कैसे आघात पहुँचा?
(छ) ‘आसन्न अतीत’ का प्रयोग किस संदर्भ में हुआ है?
(ज) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-एक कहानी यह भी। लेखिका का नाम मन्नू भंडारी।

(ख) लेखिका के पिता को उनके अपने भाई-बंधुओं ने धोखा दिया था। इसलिए उनका स्वभाव शक्की बन गया था। अब वे अपने परिवार के सभी सदस्यों पर शक करने लगे थे। लेखिका पिता के शक्की स्वभाव का विरोध करती थी, किंतु हुआ इसके विपरीत अर्थात् समय के बीतने के साथ पिता के व्यक्तित्व का यह अवगुण उनके व्यक्तित्व में आ गया।

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(ग) लेखिका और उनके पिता जी के विचार भिन्न थे। इसलिए दोनों में विचारों को लेकर टक्कर होती थी। उनके वे संघर्ष अर्थात् संघर्ष करने का स्वभाव आज भी उनके जीवन में विविध रूपों में विद्यमान है।

(घ) हम अपनी परंपरा और पुरानी पीढ़ी के प्रभाव को चाहते हुए भी अनदेखा नहीं कर सकते। इसका प्रभाव हमारे जीवन में गहराई से व्याप्त रहता है। हम ऊपरी तौर पर या किसी के बहकावे में आकर भले ही विरोध करते रहें किंतु वे परंपराएँ और उनका प्रभाव हमारे स्वभाव का अभिन्न अंग बन चुकी होती हैं इसलिए उनको नकारना या उन्हें अनदेखा करना संभव नहीं है। जैसे लेखिका ने अपने पिता के शक्की स्वभाव का विरोध किया, किंतु वह उनके स्वभाव में समाता ही चला गया।

(ङ) लेखिका ने अतीत के विषय में लिखा है कि वह कभी प्रतिक्रिया के रूप में व्यक्त होता है। कभी वह कुंठाओं के रूप में और कभी-कभी वह प्रतिबिंब के रूप में व्यक्त होता है। कहने का अभिप्राय है कि पिछले संस्कारों के कारण हम वर्तमान को झुंझलाहट के रूप में अपनाते हैं तो कभी उस पर अपना असंतोष व्यक्त करते हैं। इस प्रकार अतीत भिन्न-भिन्न रूपों में प्रकट होता है।

(च) लेखिका को भी उनके अपनों ने ही चोट पहुंचाई। वह जिन पर पूर्ण विश्वास करती थी उन्होंने ही उसे धोखा दिया, उसके साथ विश्वासघात किया। इसी कारण उसके विश्वास खंडित हो गए थे।

(छ) आसन्न अतीत’ का अर्थ है-वह अतीत जो अभी-अभी बीता है। लेखिका ने इसका प्रयोग अपने अभी-अभी बीते अतीत को व्यक्त करने के लिए किया है। वह अतीत हमारी आदतों में ढला हुआ होता है। हम वैसे ही बन जाते हैं जैसा कि हम अपने साथ घटित होते देखते हैं। यथा लेखिका के साथ विश्वासघात हुआ तो वह शक्की स्वभाव की बन गई।

(ज) आशय/व्याख्या इस गद्यांश में लेखिका ने अपने शक्की स्वभाव होने के कारणों और बदलती हुई परिस्थितियों में अपने स्वभाव के निर्माण के विषय में बताया है। साथ ही यह भी स्पष्ट किया है कि समय का बहाव हमें भले ही विपरीत या दूसरी दिशाओं में ले जाए, किंतु हम अपने मूल स्वभाव से पूर्ण रूप से कभी मुक्त नहीं हो सकते।

लेखिका अपने पिता के शक्की स्वभाव पर क्रोधित हो जाती थी। किंतु अब उसकी समझ में आ गया है कि मूलतः उनका शक्की स्वभाव नहीं था बल्कि अपनों के विश्वासघात ने ही उन्हें शक्की स्वभाव वाला बना दिया था। पिता और लेखिका के बीच किसी-न-किसी बात को लेकर तकरारबाजी होती रहती थी। इसलिए लेखिका के व्यक्तित्व में भी पिता के जीवन के गुण-दोष दोनों कुंठाओं के रूप में, प्रतिक्रिया व्यक्त करने के रूप में व प्रतिछाया के रूप में विद्यमान हैं। लेखिका मानती है कि अपनी परंपरा और पुरानी पीढ़ी के प्रभाव को चाहते हुए भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। समय का परिवर्तन भले ही उन्हें दूसरी दिशा में ले जाए, परिस्थितियों का दबाव भले ही उनका रूप भी बदल दे, किंतु उन्हें अपने मूल स्वभाव से पूर्ण रूप से मुक्त नहीं कर सकता। कहने का भाव है कि व्यक्ति के मूल स्वभाव का अंश कहीं-न-कहीं अवश्य दिखाई पड़ जाता है।

(4) पिता के ठीक विपरीत थीं हमारी बेपढ़ी-लिखी माँ। धरती से कुछ ज़्यादा ही धैर्य और सहनशक्ति थी शायद उनमें। पिता जी की हर ज़्यादती को अपना प्राप्य और बच्चों की हर उचित-अनुचित फरमाइश और ज़िद को अपना फर्ज समझकर बड़े सहज भाव से स्वीकार करती थीं वे। उन्होंने जिंदगी भर अपने लिए कुछ माँगा नहीं, चाहा नहीं… केवल दिया ही दिया। हम भाई-बहिनों का सारा लगाव (शायद सहानुभूति से उपजा) माँ के साथ था लेकिन निहायत असहाय मजबूरी में लिपटा उनका यह त्याग कभी मेरा आदर्श नहीं बन सका…न उनका त्याग, न उनकी सहिष्णुता। खैर, जो भी हो, अब यह पैतृक-पुराण यहीं समाप्त कर अपने पर लौटती हूँ। [पृष्ठ 94]

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखिका का नाम लिखिए।
(ख) लेखिका की माँ का स्वभाव कैसा था?
(ग) लेखिका ने माँ को धरती से भी अधिक धैर्यवान क्यों कहा?
(घ) लेखिका ने अपनी माँ की क्या विशेषताएँ बताईं?
(ङ) लेखिका अपने व अपने भाई-बहिनों का माँ के प्रति लगाव का क्या कारण बताती है?
(च) लेखिका के लिए माँ का त्याग आदर्श क्यों नहीं बन सका?
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-एक कहानी यह भी। लेखिका का नाम-मन्नू भंडारी।

(ख) लेखिका की माँ एक साधारण गृहिणी थी। उसका स्वभाव अत्यंत सहनशील एवं शांत था। वह अत्यंत त्यागशील नारी थी।

(ग) लेखिका की माँ अपने साथ होने वाली हर प्रकार की ज़्यादती को सहन करती थी। लेखिका का पिता अहंकारी एवं गुस्से में रहने वाला व्यक्ति था। वह बात-बात पर उसे प्रताड़ित करता रहता था। वह उनकी हर बात सहन करती थी। बच्चों की भी उचित-अनुचित फरमाइश को अपना कर्त्तव्य समझ बड़े सहज भाव से स्वीकार कर लेती थी। इसीलिए लेखिका ने उन्हें धरती से भी अधिक धैर्यवान बताया है।

(घ) लेखिका ने अपनी माँ के व्यक्तित्व की अनेक विशेषताओं की ओर संकेत किया है। वह त्यागशील नारी थी। वह सदा अपने परिवार के लिए काम करती थी। परिवार के सुख के लिए अपना सुख-चैन सब कुछ त्याग दिया था। सहनशीलता उसके जीवन की प्रमुख विशेषता थी। पिता के क्रोध के कारण तो वह सदा डरी-डरी सी रहती थी।

(ङ) माँ के प्रति उनके लगाव का कारण शायद उनके प्रति सहानुभूति अथवा उनकी विवशता थी।

(च) लेखिका एक सजग नारी थी। वह बात को सोच-समझकर और तर्क की तुला पर तोलकर स्वीकार करने के पक्ष में थी। जबकि उनकी माता निहायत असहाय और मजबूरी की स्थिति में जीवन व्यतीत करती थी। उनका त्याग भी मजबूरी और उनकी असहाय अवस्था के कारण था। इसलिए माँ का यह त्याग लेखिका का आदर्श नहीं बन सका था।

(छ) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में लेखिका ने अपनी माँ के स्वभाव एवं गुणों का उल्लेख किया है। लेखिका की माता अनपढ़ स्त्री थी। वह अत्यंत सहनशील थी। वह अपने पति की हर गलत बात को भी मान लेती थी और अपने बच्चों की फरमाइश को तथा उनकी जिद्द को अपना कर्त्तव्य समझकर उन्हें पूरा करती थी। उसने आजीवन अपने लिए कुछ नहीं माँगा। उसके परिवार के लिए उसका त्याग महान् था। लेखिका का सहानुभूति से युक्त लगाव माँ के प्रति था। लेखिका को माँ का यह त्याग कभी पसंद नहीं था। इसलिए माँ के इस रूप को वह कभी अपना आदर्श न बना सकी। शायद इसीलिए लेखिका पढ़ी-लिखी आधुनिक नारी थी।

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(5) हाँ, इतना ज़रूर था कि उस ज़माने में घर की दीवारें घर तक ही समाप्त नहीं हो जाती थीं बल्कि पूरे मोहल्ले तक फैली रहती थीं इसलिए मोहल्ले के किसी भी घर में जाने पर कोई पाबंदी नहीं थी, बल्कि कुछ घर तो परिवार का हिस्सा ही थे। आज तो मुझे बड़ी शिद्दत के साथ यह महसूस होता है कि अपनी जिंदगी खुद जीने के इस आधुनिक दबाव ने महानगरों के फ्लैट में रहने वालों को हमारे इस परंपरागत ‘पड़ोस-कल्चर’ से विच्छिन्न करके हमें कितना संकुचित, असहाय और असुरक्षित बना दिया है। मेरी कम-से-कम एक दर्जन आरंभिक कहानियों के पात्र इसी मोहल्ले के हैं जहाँ मैंने अपनी किशोरावस्था गुज़ार अपनी युवावस्था का आरंभ किया था। एक-दो को छोड़कर उनमें से कोई भी पात्र मेरे परिवार का नहीं है। बस इनको देखते-सुनते, इनके बीच ही मैं बड़ी हुई थी लेकिन इनकी छाप मेरे मन पर कितनी गहरी थी, इस बात का अहसास तो मुझे कहानियाँ लिखते समय हुआ। [पृष्ठ 95]

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखिका का नाम लिखिए।
(ख) घर की दीवारों का ‘पूरे मोहल्ले तक फैलने’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ग) आज का महानगरीय जीवन कैसा है?
(घ) वर्तमान फ्लैट-कल्वर में हम कैसे असुरक्षित हैं?
(ङ) ‘परंपरागत पड़ोस-कल्चर’ से क्या तात्पर्य है?
(च) लेखिका को पड़ोस के वातावरण ने कैसे प्रभावित किया?
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-एक कहानी यह भी। लेखिका का नाम-मन्नू भंडारी।

(ख) लेखिका के इस कथन का आशय है कि लेखिका के बचपन के दिनों में घर केवल घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं होता था अपितु सारा मोहल्ला ही घर होता था। सारे मोहल्ले के लोगों में आत्मीयता का भाव होता था। कोई बच्चा किसी के भी घर आ-जा सकता था। सब लोग एक-दूसरे से स्नेह के साथ मिलते थे।

(ग) आज का महानगरीय जीवन वैसा आत्मीयतापूर्ण नहीं रह गया जैसाकि लेखिका के बचपन में था। आज हर व्यक्ति अपने-अपने काम में व्यस्त है। उसे इतनी भी फुर्सत नहीं मिलती कि वह अपने आस-पड़ोस के विषय में जाने और दूसरों के सुख-दुःख में सम्मिलित हो। अतः आज का महानगरीय जीवन अत्यंत संकीर्ण एवं आत्मकेंद्रित हो गया है।

(घ) वर्तमान फ्लैट-कल्चर में हम अपने तक सीमित होकर रह गए हैं। हम आस-पड़ोस के कल्चर से कल्चर की भाँति हम एक-दूसरे से परिचित नहीं हैं और हममें अपनेपन की भावना नहीं है। मन में अजनबीपन की भावना घर करती जा रही है। इसलिए हम फ्लैट-कल्चर में सकुंचित, असहाय एवं असुरक्षित अनुभव करने लगे हैं।

(ङ) ‘परंपरागत पड़ोस-कल्चर’ से अभिप्राय है कि हम अपने पड़ोस को अपना आत्मीय समझकर उसके साथ समरस होकर जीएँ। हम अपने आस-पड़ोस के लोगों के सुख-दुःख में भागीदार हों। अपने पड़ोसियों को अपनापन अनुभव कराना व अपनेपन की भावना अनुभव करना। पड़ोस-कल्चर से मनुष्य स्वयं को अधिक प्रसन्न, उदार, विस्तृत, खुला और सुरक्षित अनुभव करता है।

(च) लेखिका पड़ोस के वातावरण से बहुत प्रभावित हुई थी। इसका प्रभाव इतना गहरा था कि वहाँ के लोगों का जीवन उनके मन में छाया रहता। उन्होंने जब कहानियाँ व उपन्यास लिखे तो उनमें बहुत-से पात्र वे ही बने जो पड़ोस में रहते थे। इस प्रकार लेखिका के मन पर पड़ोस के वातावरण का गहन प्रभाव था।

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(छ) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में लेखिका ने अपने बचपन की मोहल्ले की संस्कृति तथा महानगरों के फ्लैट में रहने वाले लोगों की संकुचित एवं संकीर्ण संस्कृति के अंतर को स्पष्ट किया है लेखिका का मत है कि उसके बचपन के समय में घर केवल चारदीवारी तक ही सीमित नहीं होता था, अपितु पूरा मोहल्ला ही घर होता था। मोहल्ले के लोगों में आपस में आत्मीयता की भावना होती थी। सभी लोग व बच्चे एक-दूसरे के घर आते-जाते थे तथा एक-दूसरे से स्नेह से मिलते थे। दूसरी ओर लेखिका ने आज के महानगरीय जीवन के विषय में बताते हुए कहा है कि उसमें आत्मीयता की भावना नहीं रह गई है। आज के महानगरों में लोग फ़्लैटों में रहते हैं। अत्यधिक व्यस्तता के कारण लोग आत्मकेंद्रित हो गए हैं। आज का महानगरीय जीवन अत्यंत संकीर्ण हो गया है। प्रत्येक व्यक्ति में अजनबीपन की भावना घर कर गई है तथा अब व्यक्ति अपने आप को असुरक्षित अनुभव करता है। लेखिका ने अपनी आरंभिक कहानियों के पात्र अपने मोहल्ले से ही चुने हैं। लेखिका के मन पर उस वातावरण की गहरी छाप पड़ी हुई है जिसमें उसने बचपन बिताया था। इस बात को उसने अपनी कहानियाँ लिखते समय अनुभव किया।

एक कहानी यह भी Summary in Hindi

एक कहानी यह भी लेखिका-परिचय

प्रश्न-
मन्नू भंडारी का जीवन-परिचय एवं उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-श्रीमती मन्नू भंडारी का नाम आधुनिक कथाकारों, उपन्यासकारों एवं नाटककारों में बड़े आदर के साथ लिया जाता है। इन्होंने अनेक कहानी-संग्रह लिखकर कहानी विधा को समृद्ध किया है। श्रीमती मन्नू भंडारी का जन्म 3 अप्रैल, 1931 को जिला मंदसौर (मध्य प्रदेश) के भानपुरा नामक गाँव में हुआ। इनका बचपन अजमेर में व्यतीत हुआ। इनके घर का वातावरण पूर्णतः साहित्यिक था। इनके पिता श्री सुख संपत राय भंडारी साहित्य और कला-प्रेमी थे। पिता के जीवन का प्रभाव इनके व्यक्तित्व पर पड़ना स्वाभाविक था। शिक्षा के विकास के साथ-साथ इनकी साहित्यिक अभिरुचियों का भी विकास होता गया। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त करते समय इनका संपर्क महान साहित्यकारों से हुआ। काशी हिंदू विश्वविद्यालय से इन्होंने एम०ए० (हिंदी) की परीक्षा पास की। तत्पश्चात् इन्होंने अध्यापन को अपनी आजीविका का साधन बना लिया तथा प्राध्यापिका बनकर कलकत्ता विश्वविद्यालय में चली गईं। उन्हीं दिनों मन्नू भंडारी की कहानियाँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगी थीं। इनकी कहानियों को पाठक वर्ग ने काफी सम्मान दिया। कलकत्ता रहते हुए ही इनका विवाह सन् 1959 में गद्यकार श्री राजेंद्र यादव से हुआ, किंतु इन्होंने अपने जिस नाम से (मन्नू भंडारी) साहित्य जगत् में प्रसिद्धि प्राप्त की थी, वही नाम बनाए रखा। कलकत्ता से मन्नू भंडारी दिल्ली के ‘मिरांडा हाऊस’ नामक कॉलेज में आकर अध्यापन कार्य करने लगीं तथा सेवा निवृत्ति तक वहीं रहीं। एक सच्ची साधिका की भाँति वे निरंतर साहित्य निर्माण में लगी रहीं। इन्होंने कहानियों के साथ-साथ उपन्यास, नाटक और बाल-साहित्य की भी रचना की। इनके उपन्यास तथा कहानियों पर फिल्में भी बनी हैं और उनका नाट्य रूपांतर भी हुआ है।

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2. प्रमुख रचनाएँ श्रीमती मन्नू भंडारी ने विविध विधाओं की रचना पर अपनी लेखनी सफलतापूर्वक चलाई है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
(i) कहानी संग्रह ‘तीन निगाहों की तस्वीर’, ‘एक प्लेट सैलाब’, ‘त्रिशंकु’, ‘यही सच है’, ‘मैं हार गई’, ‘आँखों देखा झूठ’ आदि।
(ii) उपन्यास ‘महाभोज’, ‘आपका बंटी’, ‘एक इंच मुस्कान’, ‘स्वामी’ आदि।
(iii) नाटक-‘बिना दीवारों के घर’ ।
(iv) बाल-साहित्य-‘आसमाता’ और ‘कलवा’ आदि।

3. साहित्यिक विशेषताएँ श्रीमती मन्नू भंडारी मूलतः कथाकार हैं। वे सर्वप्रथम कहानी-लेखिका के रूप में प्रसिद्ध हुई थीं। कहानी के क्षेत्र में इन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई थी। आज भी इन्हें अधिकतर मान्यता कहानी-लेखिका के रूप में प्राप्त है। मन्नू भंडारी आज भी हिंदी कहानी में एक ऐसा विशिष्ट नाम है जिन्होंने हिंदी कहानी को नई दिशा दी है। इन्होंने जीवन से जुड़ी समस्याओं को अपने अनुभव के रंग में रंगकर कहानियों में स्थान दिया है।
इनकी कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे जिंदगी को सीधे समझने और जाँचने वाली, बेबाक और प्रेरणादायी हैं। श्रीमती मन्नू भंडारी की कहानियों के कथानक रोचक, जिज्ञासा से युक्त, सरल एवं मौलिक हैं। कथानक अत्यंत गतिशील बने रहते हुए अपने लक्ष्य तक पहुंचते हैं।

श्रीमती मन्नू भंडारी की कहानियों में पात्रों की संख्या कम है जिससे पाठक शीघ्र ही उनसे परिचित हो जाता है और उनसे तादात्म्य स्थापित कर लेता है। सभी पात्र सजीव एवं जीवन की विभिन्न समस्याओं से जूझते हुए पाए जाते हैं। वातावरण निर्माण की कला में भी उनका कोई मुकाबला नहीं है। वातावरण की सजीवता ही इनकी कहानियों की मौलिकता एवं विश्वसनीयता बनाए रखती है।

विषय-निरूपण अर्थात् उद्देश्य की दृष्टि से भी श्रीमती मन्नू भंडारी की कहानियाँ सफल सिद्ध हुई हैं। इनकी कहानियों में जीवन की विविध समस्याओं को उद्घाटित किया गया है। कहानी को बदलती हुई परिस्थितियों के साथ जोड़कर कहानी को नया रूप प्रदान किया गया है। स्वतंत्रता के पश्चात् भारतीय जीवन-शैली में आए परिवर्तन से हमारे संस्कारों पर प्रभाव पड़ा है। पुरानी पीढ़ी के लोग पुराने संस्कारों से चिपके हुए हैं और वे उनमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं चाहते, जबकि नई पीढ़ी के लोग उन संस्कारों को सहन नहीं करते। इसलिए नए-पुराने संस्कारों की जो टकराहट की स्थिति बनी हुई है, उसका यथार्थ चित्रण श्रीमती भंडारी की कहानियों में देखा जा सकता है।

4. भाषा-संवादों की सफल योजना से श्रीमती मन्नू भंडारी ने पात्रों के चरित्रों के रहस्य उद्घाटन के साथ-साथ, वातावरण निर्माण और कथानक को गतिशील बनाया है। इन्होंने अपनी कहानियों में पात्रानुकूल एवं प्रसंगानुकूल सरल एवं सार्थक भाषा का प्रयोग किया है।
अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि श्रीमती मन्नू भंडारी की कहानियाँ भाव एवं कला दोनों ही दृष्टियों से सफल सिद्ध हुई हैं। उन्होंने अपनी कहानियों के लेखन द्वारा हिंदी कहानी विधा के विकास में जो योगदान दिया है, वह सदा स्मरणीय रहेगा।

एक कहानी यह भी पाठ का सार

प्रश्न-
“एक कहानी यह भी’ शीर्षक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
यह पाठ सुप्रसिद्ध कहानी लेखिका मन्नू भंडारी द्वारा रचित है। इसमें उन्होंने उन व्यक्तियों और घटनाओं का ओजस्वी भाषा में वर्णन किया है, जिनका संबंध लेखकीय जीवन से रहा है। संकलित अंश में मन्नू भंडारी के किशोर जीवन से जुड़ी घटनाओं के साथ उनके पिता जी और उनकी प्राध्यापिका शीला अग्रवाल का व्यक्तित्व विशेष रूप में उभरकर सामने आया है, जिन्होंने आगे चलकर उनके लेखकीय जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं। यहाँ लेखिका ने अपनी किशोरावस्था में घटित घटनाओं का सजीव चित्रण किया है। साथ ही तत्कालीन वातावरण का भी सजीव चित्रण किया है। सन् 1946-47 के आंदोलनों की गरमाहट इस पाठ में पूर्ण रूप से अनुभव की जा सकती है। पाठ का सार इस प्रकार है

लेखिका का जन्म मध्य प्रदेश के भानपुरा गाँव में हुआ था। किंतु उनका बचपन राजस्थान के अजमेर नगर के एक मुहल्ले में बीता। उनका घर दो-मंजिला था। नीचे पूरा परिवार रहता था, किंतु ऊपर की मंजिल पर उनके पिता का साम्राज्य था। अजमेर आने से पहले वे इंदौर में रहते थे। वहाँ उनके परिवार की गिनती प्रतिष्ठित परिवारों में होती थी। उनके पिता जी शिक्षा में गहन रुचि रखते थे। कमज़ोर छात्रों को तो घर बुलाकर पढ़ाते थे। उनके पढ़ाए हुए छात्र आज बड़े-बड़े पदों पर काम कर रहे हैं। उनके पिता उदार हृदय, कोमल स्वभाव, संवेदनशील होने के साथ-साथ क्रोधी और अहंकारी स्वभाव वाले भी थे। एक बहुत बड़े आर्थिक झटके ने उन्हें अंदर तक हिलाकर रख दिया। इसीलिए वे इंदौर से अजमेर आए थे। यहाँ आकर उन्होंने हिंदी-अंग्रेजी कोश तैयार किया। वह अपनी तरह का पहला शब्द-कोश था। उससे उन्हें ख्याति तो खूब मिली, किंतु धन नहीं। कमजोर आर्थिक स्थितियों के कारण उनका सकारात्मक स्वभाव दबकर रह गया। वे अपनी गिरती आर्थिक स्थिति में अपने बच्चों को भागीदार नहीं बनाना चाहते थे। आरंभ से अच्छा-ही-अच्छा देखने वाले उनके पिता जी के लिए ये दिन देखने बड़े ही कष्टदायक लगते थे। इससे उनका स्वभाव संदेहशील बन गया था। ऐसी मनोदशा में हर किसी को संदेह की दृष्टि से देखते थे।

लेखिका ने अपने पिता की अच्छी और बुरी आर्थिक दशा का उल्लेख करने के साथ-साथ उनके व्यक्तित्व के गुणों और अवगुणों की ओर भी संकेत किया है। नवाबी आदतों, अधूरी महत्त्वाकांक्षाओं और सदा शीर्ष पर रहने के बाद नीचे उतरने की पीड़ा सदा क्रोध के रूप में उनकी पत्नी पर बरसती रहती थी। अपने बहुत निकट के लोगों से विश्वासघात मिलने के कारण वे बड़े शक्की स्वभाव के हो गए थे। उनके उस शक के लपेटे में अकसर लेखिका और उसके भाई-बहिन भी आ जाते थे।

लेखिका ने अपने विषय में कहा है कि वह काली और दुबली-पतली थी। लेखिका की उससे दो वर्ष बड़ी बहिन खूब गोरी, हँसमुख और स्वस्थ थी। पिता की कमज़ोरी गोरा रंग था। अतः हर बात में उसकी प्रशंसा और उससे तुलना ने लेखिका में एक ऐसी हीन-भावना भर दी कि वे आजीवन उससे उभर न सकीं। किंतु माँ का स्वभाव पिता के ठीक विपरीत था। लेखिका ने उनमें धरती से भी कहीं अधिक धैर्य और सहनशक्ति को देखा था। किंतु असहाय और विवशता में लिपटा उनका यह त्याग कभी उनके बच्चों के लिए आदर्श नहीं बन सका।

लेखिका ने अपने से दो वर्ष बड़ी बहिन सुशीला के साथ बचपन में हर प्रकार का खेल खेला था। लेखिका के दो बड़े भाई पढ़ने हेतु बाहर चले गए थे। किंतु बचपन में वह उनके साथ भी खेलती थी। पतंग उड़ाना, मांजा सूतना, यहाँ तक कि गुल्ली डंडा खेलना भी उसके खेलों में सम्मिलित था। किंतु उसकी सीमा अपने घर या फिर मोहल्ले-पड़ोस तक ही होती थी। उन दिनों पड़ोस को तो घर का ही हिस्सा माना जाता था। उन दिनों की तुलना में आज महानगरों के फ्लैटों का जीवन अत्यधिक संकुचित हो गया है। लेखिका की कहानियों के अधिकांश पात्र उनके मुहल्ले से हैं। यहाँ तक कि ‘दा’ साहब भी मौका मिलते ही ‘महाभोज’ नामक उपन्यास में प्रकट हो गए। तब लेखिका को पता चला कि बचपन की याद कितनी गहरी होती है।

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सन् 1944 में बड़ी बहिन सुशीला का विवाह हो गया, बड़े भाई पढ़ने के लिए बाहर चले गए। तब उनके पिता जी ने मन्नू की पढ़ाई की ओर ध्यान दिया। पिता जी को यह पसंद नहीं था कि उसे पढ़ाई के साथ-साथ रसोई में भी कुशल बनाया जाए। उनके अनुसार रसोई का काम लड़कियों की प्रतिभा व क्षमता को नष्ट करता है। रसोई का काम उनकी दृष्टि में भटियारखाना था। वे चाहते थे कि लेखिका उनके साथ राजनीतिक बहसों में शामिल हो। उनके घर में आए दिन किसी-न-किसी राजनीतिक पार्टी की मीटिंग होती रहती थी। कभी कांग्रेस, कभी सोशलिस्ट तो कभी कम्युनिस्ट पार्टी और कभी आर.एस.एस. के लोग आते थे। पिता जी चाहते .थे कि वह देश की गतिविधियों के विषय में भी जानकारी रखें। किंतु लेखिका का बालक मन पचड़ों को नहीं समझता था। वह क्रांतिकारियों और उनके महान् बलिदानों से जरूर रोमांचित हो उठती थी।

लेखिका ने दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् कॉलेज में प्रवेश लिया। तभी उनका परिचय कॉलेज की हिंदी विषय की प्राध्यापिका श्रीमती शीला अग्रवाल से हुआ। शीला अग्रवाल ने उन्हें कुछ महान् साहित्यकारों की रचनाएँ पढ़ने के लिए प्रेरित किया। आगे चलकर लेखिका ने शरत्चंद्र, प्रेमचंद, जैनेंद्र, अज्ञेय, यशपाल, भगवतीचरण वर्मा आदि के उपन्यास पढ़े और अपनी प्राध्यापिका से उन पर चर्चा परिचर्चा भी की। लेखिका जैनेंद्र की लेखन-शैली से बहुत प्रभावित हुई। ‘सुनीता’, ‘शेखर : एक जीवन’, ‘नदी के द्वीप’ जैसे उपन्यासों के पढ़ने से लेखिका के दृष्टिकोण में परिवर्तन हुआ। जीवन मूल्य भी बड़ी तेज़ गति से बदल रहे थे। पुरानी मान्यताएँ टूट रही थीं और नई धारणाओं का निर्माण हो रहा था।

उन दिनों स्वतंत्रता आंदोलन अपने पूरे जोरों पर था। सब ओर जलसे जुलूस, प्रभात – फेरी, हड़ताल, भाषण आदि का बोलबाला था। हर युवक इस ओजस्वी माहौल में शामिल था। भला ऐसे में लेखिका कैसे चैन से बैठ सकती थी। शीला अग्रवाल की जोशीली बातों ने लेखिका की रग-रग में लावा भर दिया था। लेखिका सड़कों पर घूम-घूम कर हड़ताल करवाती, भाषण देती। उसने अब सारी वर्जनाओं को तोड़कर खुलेआम भाषण देने आरंभ कर दिए थे। लेखिका और उनके पिता के विचारों में टकराहट उत्पन्न हो गई थी। विवाह के विषय में भी विरोध चलता रहा। एक बार तो कॉलेज की प्राचार्या ने भी उनकी गतिविधियों के सिलसिले में उनके पिता जी को बुला भेजा था।

प्राचार्या ने उनसे कहा, क्यों न आपकी बेटी की गतिविधियों को लेकर उसके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। यह सुनकर वे आग – बबूला हो उठे। बोले, न जाने यह लड़की मुझे कैसे-कैसे दिन दिखलाएगी। गुस्से में भरकर कॉलेज पहुँचे। वापिस आए तो लेखिका डर गई और पड़ोस के घर में छुपकर बैठ गई। सोचा कि जब पिता जी का गुस्सा ठंडा पड़ जाएगा तो घर चली आएगी। किंतु कॉलेज से वे बहुत खुश लौटे। पता चला कि पिता जी उन पर बहुत गर्व कर रहे थे। उन्हें पता चला कि सारा कॉलेज उनकी बेटी के इशारों पर चलता है। प्रिंसिपल के लिए कॉलेज चलाना कठिन हो रहा था। पिता जी ने कहा कि यह आंदोलन तो पूरे देश में चल रहा है। यह समय की पुकार है। भला इसे कौन रोक सकता है?
लेखिका के पिता जी अपनी प्रतिष्ठा के प्रति बहुत ही सावधान रहते थे।

उन दिनों आज़ाद हिंद फौज के मुकद्दमे को लेकर देश भर में हड़तालें चल रही थीं। दिनभर विद्यार्थियों के साथ घूम-घूमकर लेखिका भी हड़ताल करवाती रही और संध्या के समय बाज़ार के चौराहे पर एकत्रित विद्यार्थियों ने भाषण बाज़ी की। लेखिका ने भी जोशीला भाषण दिया जिसे सुनकर लोग बहुत प्रभावित हुए। पिता जी के किसी दकियानूसी मित्र ने लेखिका के प्रति उनके कान भर दिए और फिर क्या था कि उनका क्रोध भड़क उठा। उन्होंने लेखिका को घर से बाहर न निकलने की चेतावनी दे डाली। किंतु तभी नगर के प्रतिष्ठित डॉक्टर श्री अंबालाल ने लेखिका को देखते ही उसके जोशीले भाषण की खूब तारीफ की, जिससे पिता जी की छाती गर्व से फूल उठी। इस प्रकार लेखिका पिता जी के क्रोध से बच गई।

बात यह थी, लेखिका के पिता जी अंतर्विरोधमय जीवन जी रहे थे। वे नगर में विशिष्ट भी बनना चाहते थे और सामाजिक छवि के बारे में भी जागरूक रहते थे। वे दोनों चीजें एक साथ प्राप्त करना चाहते थे।

सन् 1947 में मई मास में कॉलेज प्रबंधक समिति ने प्राध्यापिका अग्रवाल को लड़कियों को भड़काने के आरोप में कॉलेज से नोटिस भेज दिया। उधर थर्ड इयर की कक्षाएँ बंद कर दी गईं। लेखिका और उसकी दो सहेलियों को भी कॉलेज से निकाल दिया गया। किंतु लेखिका ने कॉलेज से बाहर रहकर भी आंदोलन जारी रखा और अंततः कॉलेज को थर्ड इयर खोलना पड़ा। लेखिका को खुशी मिली। किंतु 15 अगस्त, 1947 में इससे भी बड़ी खुशी पूरे देश को मिली जब भारत आज़ाद हुआ।

कठिन शब्दों के अर्थ

(पृष्ठ-93) साम्राज्य = राज्य चलाने का अधिकार, शासन। अव्यवस्थित = व्यवस्था रहित। डिक्टेशन = मुँह से बोलकर लिखवाना। सदैव = सदा के लिए। चर्चे = बातें। प्रतिष्ठा = सम्मान, आदर। बेहद = सीमा रहित, अत्यधिक। संवेदनशील = भावुक। अहंवादी = घमंडी। भग्नावशेष = टूटे हुए अंश। आर्थिक झटका = धन की हानि होना। बल-बूते = शक्ति। यश = प्रसिद्धि। अर्थ = धन। सकारात्मक पहलू = अच्छे गुणों वाला भाग। विस्फारित = फैला हुआ। अहं = घमंड। अनुमति = स्वीकृति। विवशता = मज़बूरी। नवाबी आदतें = फिजूलखर्च करने की आदत । महत्त्वाकांक्षाएँ = महत्त्व प्राप्ति की इच्छा। यातना = पीड़ा। शीर्ष = सबसे ऊपर। हाशिए पर = महत्त्वहीन स्थान पर। विश्वासघात = धोखा देना। आँख मूंदकर = बिना सोचे-समझे।

(पृष्ठ-94) चपेट में आना = प्रभावित होना। पितृ-गाथा = पिताजी की कहानी। गौरव-गान = यश संबंधी वर्णन। खूबी = अच्छाई। खामियाँ = कमियाँ। गुंथी होना. = रची हुई व बँधी हुई होना। ग्रंथि = मन की उलझन, गाँठ। दुबली = कमज़ोर । हीन-भाव = छोटा होने का भाव। उबर पाना = मुक्त होना। लेखकीय उपलब्धि = लेखक के रूप में सफलता पाना। गड़ने-गड़ने को हो आना = शर्म में बहुत अधिक संकोच करना। अचेतन = मन की सुप्त अवस्था। तुक्का = भाग्य से प्राप्त। भन्ना जाना = क्रोध करना। खंडित विश्वास = टूटे हुए विश्वास। व्यथा = दुःख। झलक = प्रकाश। उपजा = पैदा हुआ। होश संभालना = समझदार होना। टक्कर चलना = संघर्ष होना। कुंठा = मन में दबी और रुकी भावना। प्रतिच्छाया = किसी चीज की छाया पड़ना। भिन्नता = अलगाव। परंपरा = पीछे से चली आती हुई आदतें। नकारना = मना करना, इंकार करना। अहसास = अनुभव। अतीत = बीता हुआ समय। जड़ जमाना = अंदर तक पैठना। प्रवाह = बहाव। विपरीत = उलटी। ज़्यादती = अत्याचार । प्राप्य = भाग्य, मिलने योग्य वस्तु । फरमाइश = इच्छा। फर्ज = कर्तव्य । सहानुभूति = दया, किसी के दुःख में दुःखी होना। असहाय = जिसकी सहायता करने वाला कोई न हो, मजबूर। सहिष्णुता = सहनशीलता। पैतृक-पुराण = पिता से संबंधित कहानियाँ।

(पृष्ठ-95) धुंधली = हल्की। माँजा सूतना = पतंग की डोर तैयार करना। दायरा = सीमा, घेरा। पाबंदी = मनाही। शिद्दत = कष्ट। आधुनिक दबाव = नए युग की कामनाएँ। फ्लैट = ऊपर-नीचे बने मकान। पड़ोस-कल्वर = पड़ोस में रहने के रीति-रिवाज़। विच्छिन्न = अलग-अलग होना। असुरक्षित = जो सुरक्षित नहीं है। किशोरावस्था = जवानी और बचपन के बीच की अवस्था। युवावस्था = जवानी। छाप = प्रभाव । अंतराल = फासला, दूरी। अभिव्यक्ति = प्रकट करना। वजूद = सत्ता, जीवन। सुखद = सुख देने वाला। आश्चर्य = हैरानी। सुघड़ गृहिणी = कुशल स्त्री। पाक – शास्त्री = भोजन बनाने की कला को जानने वाला विद्वान। नुस्खे = ढंग। आग्रह = अनुरोध । भटियारखाना = भटियार के रहने का स्थान। प्रतिभा = बुद्धि, गुण। क्षमता = शक्ति। भट्टी में झोंकना = नष्ट कर देना। जमाव होना = देर-देर तक बैठकें करना।

(पृष्ठ-96) नीतियाँ = नियम। मतभेद = मतों में अंतर, विचारों की भिन्नता। रोमानी आकर्षण = रोमांचित करने वाला खिंचाव। कुर्बानी = बलिदान । परिचित = जानकार। आक्रांत = जिस पर हमला किया गया हो। बाकायदा = नियमानुसार/सीमित। दायरा = छोटी-सी दुनिया। मूल्य = नियम/सिद्धांत। मंथन करना = सोच-विचार करना। ध्वस्त = टूटा-फूटा हुआ। संदर्भ = प्रसंग। भागीदारी = भाग लेना। प्रभात फेरी = सुबह के समय गीत गाकर लोगों को जगाना। दमखम = शक्ति। जोश-खरोश = उत्साह। उन्माद = नशा। लावा = ज्वालामुखी पर्वत से निकलने वाली पिघली हुई आग।

(पृष्ठ-97) सड़कें नापना = सड़कों पर इधर-उधर घूमना। बर्दाश्त = सहन करना। वर्जना = मनाही। कामना = इच्छा। यश-लिप्सा = यश पाने का लाभ। दुर्बलता = कमज़ोरी। धुरी = केंद्र। सिद्धांत = नियम। विशिष्ट = खास। वर्चस्व = अधिकार। अनुशासनात्मक कार्रवाई = अनुशासन भंग करने के विरुद्ध उठाया गया कदम। आग-बबूला = अत्यधिक गुस्सा आना। कहर बरपना = मुसीबत आना। गुबार निकालना = गुस्सा निकालना।गर्व = अभिमान । अवाक् = मौन। हकीकत= सच्चाई। आहान = बुलावा।

(पृष्ठ-98) दकियानूसी = पुराने विचारों वाला। मत मारी जाना = बुद्धि नष्ट होना। आबरू = इज्जत। आग लगाना = भड़काना। भभकना = गुस्सा होना। थू-थू करना = अपमान करना। बेखबर = अनजान बने रहना। अंतरंग = अत्यंत समीपता, आत्मीयता। प्रतिष्ठित = सम्मानित । गर्मजोशी = उत्साह सहित। यू हैव मिस्ड समथिंग = तुमने कुछ खो दिया है।

(पृष्ठ-99) राहत की साँस लेना = सुख अनुभव करना। झिझक = डर, संकोच। मूल = असली। अंतर्विरोध = परस्पर विरोध। प्रबल = तेज़। लालसा = इच्छा। सजगता = जागरूकता।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 एक कहानी यह भी

(पृष्ठ-100) नोटिस थमा देना = नौकरी से निकालने की सूचना देना। थर्ड इयर = तीसरा वर्ष। निषिद्ध = मनाही। चिर प्रतीक्षित = जिसकी लंबे समय से प्रतीक्षा थी। बिला जाना = गायब हो जाना। शताब्दी = सौ वर्ष।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्य चमक

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्य चमक Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्य चमक

HBSE 10th Class Hindi मानवीय करुणा की दिव्य चमक Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
फादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी क्यों लगती थी?
उत्तर-
फादर ‘परिमल’ की गोष्ठियों में सबसे बड़े माने जाते थे। वे सबके साथ पारिवारिक संबंध अथवा मेलजोल बनाकर रखते थे। इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि वे सबके घरों में होने वाले विभिन्न उत्सवों के अवसर पर उपस्थित रहते थे। सबको ऐसे शुभ अवसर पर आशीर्वाद देकर कृतार्थ करते थे। हर व्यक्ति के प्रति उनके हृदय में स्नेह था। वात्सल्य का भाव तो उनकी नीली आँखों में सदैव तैरता रहता था। इसलिए सबको उनकी उपस्थिति देवदार वृक्ष की छाया के समान अनुभव होती थी।

प्रश्न 2.
फादर बुल्के भारतीय संस्कृति के एक अभिन्न अंग हैं, किस आधार पर ऐसा कहा गया है?
उत्तर-
लेखक ने फादर बुल्के को भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग स्वीकार किया है। फादर बुल्के बेल्जियम के रहने वाले थे। उन्होंने संन्यासी बनकर भारत में आकर रहने का निर्णय लिया था। भारत आकर उन्होंने भारतीय संस्कृति को गहराई से समझा। ईसाई धर्म से संबंधित होते हुए भी उन्होंने हिंदी भाषा को सीखा और पढ़ा। इतना ही नहीं, उन्होंने ‘रामायण’ विषय को लेकर शोध प्रबंध लिखा। इससे उनके भारतीय संस्कृति के प्रति अधिक लगाव का पता चलता है। जब तक राम-कथा रहेगी तब तक उस विदेशी संन्यासी को राम-कथा के लिए आदर के साथ याद किया जाएगा। इस आधार पर ही लेखक ने उसे भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग कहा है।

प्रश्न 3.
पाठ में आए उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जिनसे फादर बुल्के का हिंदी प्रेम प्रकट होता है।
उत्तर-
फादर बुल्के बेल्जियम के रहने वाले थे। वे एक संन्यासी के रूप में भारत में आए। यहाँ आकर उन्होंने हिंदी का अच्छा-खासा ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने हिंदी में प्रयाग विश्वविद्यालय से शोध प्रबंध प्रस्तुत किया। फादर ने मातरलिंक द्वारा रचित सुप्रसिद्ध नाटक ‘ब्लू बर्ड’ का ‘नीलपंछी’ के नाम से हिंदी अनुवाद किया। उन्होंने अंग्रेजी-हिंदी कोश का निर्माण भी किया। उनका शोध प्रबंध हिंदी में था जिसके कुछ अध्याय ‘परिमल’ में पढ़े गए थे। उन्होंने धार्मिक ग्रंथ ‘बाइबिल’ का अनुवाद हिंदी में किया। वे सदा हिंदी भाषा को राष्ट्र भाषा का दर्जा दिलाने की चिंता में रहते थे। इसके लिए उन्होंने अनेक प्रयास किए और अकाट्य तर्क भी प्रस्तुत किए। उन्हें उन हिंदी भाषी लोगों पर झुंझलाहट होती थी जो हिंदी जानते हुए भी हिंदी का प्रयोग नहीं करते थे। इन सब बातों को देखते हुए कहा जा सकता है कि फादर कामिल बुल्के को हिंदी के प्रति प्रेम था।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्य चमक

प्रश्न 4.
इस पाठ के आधार पर फादर कामिल बुल्के की जो छवि उभरती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
फादर कामिल बुल्के विदेशी होते हुए भी मन से भारतीय हैं। उन्होंने अपना सारा जीवन भारतीय आदर्शों के अनुकूल व्यतीत किया। वे भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग बनकर रहे। वे लगभग 47 वर्षों तक भारतीय बनकर रहे। उन्होंने हिंदी के उत्थान के लिए अनेक कार्य किए। वे हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करना चाहते थे। उनका व्यक्तित्व दूसरों को सहारा देने वाला था। वे सदैव सबके लिए बड़े भाई की भूमिका निभाने का काम करते थे। वे दूसरों के प्रति दया, सहानुभूति, करुणा आदि मानवीय गुणों से सदा भरे रहते थे। वे सच्चे अर्थों में संत थे। उन्हें कभी क्रोध में नहीं देखा गया।

प्रश्न 5.
लेखक ने फादर बुल्के को ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ क्यों कहा?
उत्तर-
फादर कामिल बुल्के अपने हृदय में हर दीन-दुःखी के प्रति करुणा का भाव रखते थे। वे एक बार जिससे रिश्ता बना लेते थे, उनसे जीवन भर निभाते थे। उनके हृदय में एक अनोखी दिव्य शक्ति थी जो बड़े-से-बड़े दुःख के समय भी शांति की वर्षा करती रहती थी। उनके संपर्क में जो भी आता उसका हृदय असीम शांति की अनुभूति करता था। क्रोध तो मानो उन्हें कभी छू भी नहीं सका था। इसी कारण लेखक ने उन्हें ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ कहा है जो उचित प्रतीत होता है।

प्रश्न 6.
फादर बुल्के ने संन्यासी की परंपरागत छवि से अलग एक नई छवि प्रस्तुत की है, कैसे?
उत्तर-
परंपरागत संन्यासी समाज से अपना नाता तोड़ लेते हैं। वे किसी के सुख-दुःख में सम्मिलित नहीं होते। वे सदैव अपनी भक्ति में लीन रहते हैं और ईश्वर प्राप्ति के सुख की अनुभूति करते रहते हैं। किंतु फादर बुल्के की छवि इनसे बिल्कुल अलग थी। वे सदा समाज में रहते थे। एक बार जिससे रिश्ता बना लेते थे उसका निर्वाह सदैव करते थे। उन्हें भारत में रहते हुए भी अपने परिवार वालों की चिंता रहती थी। वे उन्हें पत्र लिखते थे। वे यहाँ भी अपने जान-पहचान के लोगों के हर प्रकार के सुख-दुःख में सम्मिलित होते थे। जब वे दिल्ली आते तो लेखक से अवश्य मिलते। इसके लिए उन्हें कितने ही कष्ट क्यों न उठाने पड़ते। ऐसा करने के बावजूद भी वे मन से संन्यासी थे। इस प्रकार फादर बुल्के ने परंपरागत संन्यासी परंपरा से हटकर एक नई छवि प्रस्तुत की है।

प्रश्न 7.
आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है।
(ख) फादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है।
उत्तर-
(क) किसी के दुःख को अनुभव करने या जान लेने का कोई पैमाना नहीं हो सकता। जिस प्रकार बिखरी स्याही को इकट्ठा करते समय वह और अधिक फैल जाती है, उसी प्रकार कौन कितना दुःखी है, यह नहीं जाना जा सकता।

(ख) जिस प्रकार उदास शाँत संगीत को सुनकर व्यक्ति तन्हाइयों में डूब जाता है, उसी प्रकार फादर को याद करके, उनके साथ बिताए गए सुखद क्षण और उनके वात्सल्य भाव को याद करके मन में एक शांति का भाव अभिव्यंजित होता था। अतः यह कहना उचित है कि फादर बुल्के को याद करना एक उदास शाँत संगीत को सुनने जैसा है।

रचना और अभिव्यक्ति-

प्रश्न 8.
आपके विचार से बुल्के ने भारत आने का मन क्यों बनाया होगा?
उत्तर-
फादर बुल्के बेल्जियम के रहने वाले थे। जब वे इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष के छात्र थे तब उन्होंने संन्यास लेने का निर्णय लिया था। उन्होंने संन्यासी बनकर भारत में जीवन व्यतीत करने का निर्णय इसलिए लिया होगा क्योंकि उन्होंने भारत के विषय में सुन रखा था कि वह साधुओं, संतों व ऋषि-मुनियों की भूमि है। भारत आध्यात्मिकता का केंद्र है। अतः वहाँ सच्चा ज्ञान मिल सकता है। इसीलिए उन्होंने बेल्जियम से भारत आने का निर्णय लिया होगा।

प्रश्न 9.
‘बहुत सुंदर है मेरी जन्मभूमि-रेम्सचैपल’। इस पंक्ति में फादर बुल्के की अपनी जन्मभूमि के प्रति कौन-सी भावनाएँ अभिव्यक्त होती हैं? आप अपनी जन्मभूमि के बारे में क्या सोचते हैं?
उत्तर-
फादर कामिल बुल्के की इस पंक्ति से उनके मन में जन्म भूमि के लिए जो प्यार था, वह अभिव्यंजित हुआ था। किंतु उन्होंने अपने कर्म के लिए भारतवर्ष को चुना था तथा अपना अधिकांश समय भारत में ही बिताया था। किंतु वे अपनी जन्मभूमि को कभी नहीं भुला पाए थे। वे निरंतर अपने परिवार वालों के सुख-दुःख को जानने के लिए पत्र भी लिखते थे। रेम्सचैपल नगर की याद सदैव उनके हृदय में बसी रहती थी। वे उसे कभी नहीं भूले थे। जिस मिट्टी में वे पलकर बड़े हुए थे, उसकी महक सदैव उनके हृदय में अनुभव की जा सकती है। वे अपने देश व वतन की याद से सदा जुड़े रहते हैं। इसलिए लेखक ने जब उनसे पूछा था कि उनकी जन्मभूमि कैसी है तब उन्होंने तपाक से कहा था उनकी जन्मभूमि बहुत सुंदर है। यह उत्तर उनके हृदय की आवाज़ थी।

हमें भी अपनी जन्मभूमि अपने प्राणों से भी अधिक प्यारी है। हमारी जन्मभूमि संसार में सबसे सुंदर है। यह ऋषि-मुनियों की तप-स्थली है। हमारे जीवन में हमारी जन्मभूमि की मिट्टी की महक बसी हुई है। हमारी जन्मभूमि ही हमारी संस्कृति व संस्कारों की पहचान करवाती है। हम अपनी जन्मभूमि का हृदय से सत्कार व आदर करते हैं। हमें उसके सम्मान को कभी किसी प्रकार की आँच नहीं आने देनी चाहिए।

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भाषा-अध्ययन-

प्रश्न 10.
‘मेरा देश भारत’ विषय पर 200 शब्दों में निबंध लिखिए।
उत्तर-
भारत एक महान देश है। इसकी संस्कृति सबसे प्राचीन है। राजा दुष्यन्त और शकुंतला के पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा। संसार में मेरे देश का बड़ा गौरव है। भारत एक विशाल देश है। जनसंख्या की दृष्टि से यह विश्व भर में दूसरे स्थान पर है। इसकी वर्तमान जनसंख्या सवा सौ करोड़ से भी अधिक है। भारत के उत्तर में हिमालय, दक्षिण में लंका और हिंद महासागर हैं। इसमें अनेक प्रकार के पर्वत, नदियाँ और मरुस्थल हैं। भौगोलिक दृष्टि से यहाँ अनेक विविधताएँ हैं।

भारत में विभिन्न धर्मों, जातियों और संप्रदायों के लोग रहते हैं, किंतु फिर भी यहाँ सांस्कृतिक एकता विद्यमान् है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक हमारा देश एक है। यहाँ अनेक महत्त्वपूर्ण स्थान हैं। हरिद्वार, काशी, कुरुक्षेत्र, मथुरा, गया, जगन्नाथपुरी, द्वारिका आदि यहाँ के प्रसिद्ध तीर्थ हैं। शिमला, मसूरी, नैनीताल, मनाली, दार्जिलिंग आदि सुंदर पर्वतीय स्थान हैं। मुंबई, कोलकाता, चेन्नई आदि यहाँ के प्रमुख औद्योगिक केंद्र हैं। नई दिल्ली हमारे देश की राजधानी है।

भारत कृषि प्रधान देश है। भारत में लगभग छह लाख गाँव बसते हैं। इसकी लगभग अस्सी प्रतिशत जनता गाँवों में रहती है। यहाँ गेहूँ, मक्का, बाजरा, ज्वार, चना, धान, गन्ना आदि की फसलें होती हैं। अन्न की दृष्टि से अब हम आत्म-निर्भर हैं।
भारतवर्ष कई सदियों की गुलामी झेलने के बाद सन् 1947 में स्वतंत्र हुआ। स्वतंत्रता मिलने के तुरंत पश्चात् ही यहाँ बहुमुखी उन्नति के लिए प्रयत्न आरम्भ हो गए थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद यहाँ अनेक प्रकार के कारखाने लगाए जिनमें आशातीत उन्नति हुई है। यहाँ अनेक प्रकार की योजनाएँ आरम्भ हुईं। पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत हर क्षेत्र में भरपूर उन्नति हुई। जिन वस्तुओं को हम विदेशों से मँगवाते थे, आज उन्हीं देशों को अनेक वस्तुएँ बनाकर भेजी जा रही हैं। विज्ञान के क्षेत्र में यहाँ बहुत उन्नति हुई है। परमाणु और उपग्रह के क्षेत्र में भी हम किसी से पीछे नहीं हैं।

भारत महापुरुषों की जन्म-स्थली है। राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, नानक आदि महापुरुष इसी देश में हुए हैं। महाराणा प्रताप, शिवाजी और गुरु गोबिंद सिंह जी इसी देश की शोभा थे। दयानंद, विवेकानंद, रामतीर्थ, तिलक, गांधी, सुभाष, चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह आदि इसी धरती का श्रृंगार थे। वाल्मीकि, व्यास, कालिदास, तुलसीदास, सूरदास, कबीर आदि की वाणी यहीं गूंजती रही। भारत ने ही वेदों के ज्ञान से संसार को मानवता का रास्ता दिखाया।

आज भारत में प्रजातंत्र है। यह एक धर्म-निरपेक्ष देश है। भारत संसार का सबसे बड़ा प्रजातंत्र गणराज्य है। हमारा अपना संविधान है। संविधान में प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार दिए गए हैं। भारतवासी सदा से शांतिप्रिय रहे हैं, किंतु यदि कोई हमें डराने या धमकाने का प्रयत्न करे तो यहाँ के रणबांकुरे उसके दाँत खट्टे कर डालते हैं।

तिरंगा हमारे देश का राष्ट्रीय ध्वज है। यहाँ प्रकृति की विशेष छटा देखने को मिलती है। यहाँ हर दो मास बाद ऋतु बदलती रहती है। कविवर जयशंकर प्रसाद ने ठीक ही लिखा है-“अरुण यह मधुमय देश हमारा।”

प्रश्न 11.
आपका मित्र हडसन एंड्री ऑस्ट्रेलिया में रहता है। उसे इस बार की गर्मी की छुट्टियों के दौरान भारत के पर्वतीय प्रदेशों के भ्रमण हेतु निमंत्रित करते हुए पत्र लिखिए।
उत्तर-
1149, माल रोड,
करनाल।
10 अप्रैल, 20…..
प्रिय मित्र हडसन एंड्री,
सप्रेम नमस्कार।

आशा है कि आप सब वहाँ कुशलतापूर्वक होंगे। कुछ दिन पूर्व आपका पत्र प्राप्त हुआ था। उससे ज्ञात हुआ कि आपका विद्यालय गर्मी की छुट्टियों के लिए बंद हो चुका है। यहाँ हमारी परीक्षाएँ भी समाप्त हो चुकी हैं। मेरा परीक्षा परिणाम अभी कुछ दिन बाद घोषित किया जाएगा। मुझे पूर्ण विश्वास है कि मैं अच्छे अंक लेकर पास हो जाऊँगा। इस बार गर्मी की छुट्टियों में हम पिताजी के साथ शिमला व कुल्लू, मनाली जा रहे हैं। पंद्रह दिन तक हम शिमला में मामाजी के पास ठहरेंगे और फिर कुछ दिनों के लिए कुल्लू, मनाली भी जाएँगे। शिमला व कुल्लू, मनाली यहाँ के दर्शनीय स्थल हैं।

प्रिय मित्र, यदि आप भी हमारे साथ चलें तो और भी आनंद आएगा। आप किसी प्रकार का संकोच न करें। अपने माता-पिता से आज्ञा लेकर भारत आ जाओ। मेरे पिताजी आपसे मिलकर बहुत खुश होंगे। आप अपना यहाँ आने का कार्यक्रम बनाकर हमें सूचित कर देना। हम 15 मई को शिमला जाएँगे। शिमला व कुल्लू, मनाली से लौटकर कुछ दिनों के लिए जम्मू-कश्मीर जाने का विचार भी है। जम्मू-कश्मीर तो प्राकृतिक दृश्यों की खान है। वहाँ अनेक दर्शनीय स्थान हैं। वैष्णो देवी का मंदिर तो वहाँ मुख्य आकर्षण का केंद्र है। मैंने भी अभी तक यह मंदिर नहीं देखा है। आशा है कि इस बार अवश्य इसे देलूँगा। आप अपना यहाँ आने का कार्यक्रम बनाकरं हमें अवश्य सूचित कर देना।

अपने माता-पिता को मेरा सादर नमस्कार कहना।
आपका मित्र,
राकेश शर्मा

प्रश्न 12.
निम्नलिखित वाक्यों में समुच्चयबोधक छाँटकर अलग लिखिए-
(क) तब भी जब वह इलाहाबाद में थे और तब भी जब वह दिल्ली आते थे।
(ख) माँ ने बचपन में ही घोषित कर दिया था कि लड़का हाथ से गया।
(ग) वे रिश्ता बनाते थे तो तोड़ते नहीं थे।
(घ) उनके मुख से सांत्वना के जादू भरे दो शब्द सुनना एक ऐसी रोशनी से भर देता था जो किसी गहरी तपस्या से जनमती है।
(ङ) पिता और भाइयों के लिए बहुत लगाव मन में नहीं था लेकिन वो स्मृति में अकसर डूब जाते।
उत्तर-
(क) और
(ख) कि
(ग) तो
(घ) जो
(ङ) लेकिन।

पाठेतर सक्रियता

फादर बुल्के का अंग्रेजी-हिंदी कोश’ उनकी एक महत्त्वपूर्ण देन है। इस कोश को देखिए-समझिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

फादर बुल्के की तरह ऐसी अनेक विभूतियाँ हुई हैं जिनकी जन्मभूमि अन्यत्र थी लेकिन कर्मभूमि के रूप में उन्होंने भारत को चुना। ऐसे अन्य व्यक्तियों के बारे में जानकारी एकत्र कीजिए।
उत्तर-
मदर टेरेसा, ऐनी बेसेंट, भगिनी निवेदिता आदि ऐसी ही विभूतियाँ थीं जिनकी जन्मभूमि तो कोई और स्थल था किंतु उन्होंने अपनी कर्मस्थली भारतवर्ष को ही बनाया।

कुछ ऐसे व्यक्ति भी हुए हैं जिनकी जन्मभूमि भारत है लेकिन उन्होंने अपनी कर्मभूमि किसी और देश को बनाया है, उनके बारे में भी पता लगाइए।
उत्तर-
हरगोबिंद खुराना, हिंदूजा भाई, लक्ष्मी मित्तल आदि ऐसे ही लोग हैं।

एक अन्य पहलू यह भी है कि पश्चिम की चकाचौंध से आकर्षित होकर अनेक भारतीय विदेशों की ओर उन्मुख हो रहे हैं इस पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर-
आज के भौतिकवादी युग में हर व्यक्ति अधिक-से-अधिक धन कमा लेना चाहता है। इसलिए लोग भारत में रहकर अपनी बुद्धि या प्रतिभा के बल पर कम धन कमाने की अपेक्षा दूसरे देशों में जाकर अधिक-से-अधिक धन कमा लेना चाहते हैं।

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इसलिए अनेक भारतीय पाश्चात्य चकाचौंध की ओर आकृष्ट हैं। इसके दो पहलू हैं एक तो यह कि ऐसा करने से भारत में विदेशों से अधिक पैसा लाया जा सकेगा। दूसरा पक्ष है कि अपनों से दूर रहने का दुःख सदा बना रहता है। पश्चिमी चकाचौंध से आकृष्ट व्यक्ति दोहरी जिंदगी जीते हैं। वे वहाँ रहते हुए पाश्चात्य जीवन के अनुसार अपने-आपको ढालने का प्रयास करते हैं, किंतु भारतीय जीवन पद्धति को भी पूर्ण रूप से वे त्याग नहीं सकते। आज आवश्यकता है कि हम अपने देश में अपनी प्रतिभा के बल पर नए-नए कार्य करें, देश के विकास में योगदान दें। हम यहाँ रहकर भी धन कमा सकते हैं। विदेशों में जाकर दूसरों की सेवा करना एवं अपनों को भुला देना कोई अच्छी बात नहीं है।

यह भी जानें

परिमल-निराला के प्रसिद्ध काव्य संकलन से प्रेरणा लेते हुए 10 दिसंबर, 1944 को प्रयाग विश्वविद्यालय के साहित्यिक अभिरुचि रखने वाले कुछ उत्साही युवक मित्रों द्वारा परिमल समूह की स्थापना की गई। ‘परिमल’ द्वारा अखिल भारतीय स्तर की गोष्ठियाँ आयोजित की जाती थीं जिनमें कहानी, कविता, उपन्यास, नाटक आदि पर खुली आलोचना और उन्मुक्त बहस की जाती। परिमल का कार्यक्षेत्र इलाहाबाद था, जौनपुर, मुंबई, मथुरा, पटना, कटनी में भी इसकी शाखाएँ रहीं। परिमल ने इलाहाबाद में साहित्य-चिंतन के प्रति नए दृष्टिकोण का न केवल निर्माण किया बल्कि शहर के वातावरण को एक साहित्यिक संस्कार देने का प्रयास भी किया।

फादर कामिल बुल्के (1909-1982)
शिक्षा-एम.ए., पीएच.डी. (हिंदी)
प्रमुख कृतियाँ-रामकथा : उत्पत्ति और विकास,
रामकथा और तुलसीदास, मानस-कौमुदी,
ईसा-जीवन और दर्शन, अंग्रेज़ी-हिंदी कोश
1974 में पद्मभूषण से सम्मानित

HBSE 10th Class Hindi मानवीय करुणा की दिव्य चमक Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
लेखक को ‘परिमल’ के दिनों की स्मृति क्यों आती थी?
उत्तर-
लेखक ने बताया है कि ‘परिमल’ में काम करने वाले सभी लोग एक-दूसरे को बहुत अच्छी प्रकार समझते व जानते थे। वहाँ का वातावरण पूर्णतः पारिवारिक था। वहाँ फादर बुल्के भी सदा आते रहते थे। वे उस परिवार के बड़े सदस्य थे तथा सभी गतिविधियों में भाग लेते थे। वहाँ साहित्यिक विधाओं पर खूब चर्चा होती थी। फादर बुल्के वहाँ खुले दिल से अपनी राय देते थे। लेखक को तो सदैव बड़े भाई की भूमिका में दिखाई देते थे। यही कारण है कि लेखक को ‘परिमल’ की याद आती है।

प्रश्न 2.
फादर बुल्के ने भारत में आकर किस प्रकार की और कहाँ-कहाँ से शिक्षा ग्रहण की थी?
उत्तर-
फादर बुल्के बेल्जियम के रेम्सचैपल स्थान के रहने वाले थे। इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष की पढ़ाई में ही उन्होंने संन्यास ले लिया था और पादरी बनकर भारत आ गए थे। सर्वप्रथम उन्होंने ‘जिसेट संघ’ में रहकर दो वर्ष तक पादरियों के धर्माचार की शिक्षा ग्रहण की। इसके पश्चात् 9 -10 साल तक दार्जिलिंग में पढ़ते रहे। उन्होंने कलकत्ता में रहकर बी.ए. की परीक्षा पास की। तत्पश्चात् इलाहाबाद से एम.ए. हिंदी की परीक्षा पास की। प्रयाग विश्वविद्यालय में डॉ. धीरेंद्रवर्मा हिंदी के विभागाध्यक्ष थे। वहीं पर फादर बुल्के ने ‘राम कथा : उत्पत्ति और विकास’, विषय पर शोध कार्य किया और पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। अतः स्पष्ट है कि भारत में रहते हुए फादर बुल्के निरंतर अध्ययनशील रहे।

प्रश्न 3.
फादर कामिल बुल्के की झुंझलाहट और दुःख का कारण क्या था?
उत्तर-
फादर कामिल बुल्के की झुंझलाहट और दुःख का कारण हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखना था। वे हर मंच से इसकी तकलीफ बयान करते और उसके लिए अकाट्य तर्क देते। हिंदी वालों द्वारा हिंदी की उपेक्षा ही उन्हें बहुत अधिक दुःख पहुँचाती रही है।

प्रश्न 4.
पठित पाठ के आधार पर फादर बुल्के के परिवार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर-
फादर कामिल बुल्के बेल्जियम के रेम्सचैपल स्थान के रहने वाले थे। यह स्थान संतों व पादरियों का स्थान माना जाता है। इनके पिता एक व्यापारी थे। इनके दो भाई थे जिनमें से एक पादरी बन गया था और दूसरा काम करता था। उसका अपना परिवार था। इनकी एक बहन भी थी जो बहुत जिद्दी स्वभाव की थी। उसने बहुत देर बाद विवाह किया था। भारत आने पर फादर बुल्के को अपनी माँ की बहुत याद आती थी। वह एक साधारण नारी थी। वे अकसर माँ की याद में डूब जाते थे। माँ के पत्र भी उनके पास आते थे।

प्रश्न 5.
फादर कामिल बुल्के के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ नामक संस्मरण को पढ़ने से पता चलता है कि फादर बुल्के इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में पढ़ते थे तभी इनके मन में संन्यास लेने की इच्छा उत्पन्न हुई थी। वे संन्यासी बनकर भारत आ गए और भारत की संस्कृति में रच-बस गए।
फादर बुल्के लंबे व गोरे शरीर वाले थे। उनके बाल भूरे रंग के थे, आँखें नीली थीं जिनमें करुणा की छाया बनी रहती थी। उनके चेहरे पर एक तेज़ था। उनका व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली था।

उन्होंने भारत आकर बी.ए., एम.ए., पी.एच.डी. की उपाधियाँ प्राप्त की। उन्होंने संस्कृत भाषा का भी गहन अध्ययन किया। वे रांची के सेंट जेवियर्स कॉलेज में हिंदी-संस्कृत के विभागाध्यक्ष थे। उन्होंने अंग्रेज़ी-हिंदी शब्दकोश भी तैयार किया। उन्होंने बाइबिल का हिंदी अनुवाद भी लिखा।
फादर बुल्के एकदम शांत स्वभाव के व्यक्ति थे। क्रोध तो मानो उन्हें छू भी नहीं गया था। उनकी वाणी ओजपूर्ण थी। उनका हृदय सदैव उदात्त मानवीय गुणों से परिपूर्ण रहता था। वे दूसरों के दुःख को देखकर दुःखी हो उठते थे। सुख में सबको आशीर्वाद देते थे।
फादर बुल्के मिलनसार व्यक्ति थे। वे एक बार जिससे नाता जोड़ लेते थे, उसे अंत तक निभाते थे।

विचार/संदेश संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 6.
‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ नामक संस्मरण का प्रमुख संदेश क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत संस्मरण में लेखक ने फादर कामिल बुल्के के जीवन की प्रमुख घटनाओं और उनके व्यक्तित्व के उदात्त गुणों का अत्यंत भावपूर्ण शैली में उल्लेख किया है। लेखक ने बताया कि फादर बुल्के बेल्जियम से भारत आए और यहाँ के होकर रह गए। लेखक को उनके जीवन की शैली को देखकर लगा कि मानो वे यहाँ के पुरोहित बन गए। उन्होंने भारतीय संस्कृति के आदर्शों को पूर्ण रूप से अपने जीवन में उतार लिया था। इसलिए उन्हें भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग कहा गया। उनके हिंदी के प्रति अथाह प्रेम को देखकर तो कहना पड़ेगा कि हिंदी भाषियों को अपनी मातृ भाषा का प्रेम फादर बुल्के से सीखना चाहिए। वे हिंदी को राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित करना चाहते थे। उन्होंने यहाँ के लोगों के जीवन में मनाए जाने वाले उत्सवों में हृदय से भाग लिया। वे लोगों के जीवन के सुख-दुःखों में भी सम्मिलित होते थे। वे सुख के समय आशीर्वाद देते और दुःख के समय सहानुभूति एवं करुणा व्यक्त करते। उन्हें साहस और धैर्य देते। वे सच्चे भारतीय थे। उन्होंने कभी महसूस नहीं होने दिया कि वे विदेशी हैं। उन्होंने कभी किसी को ईसाई धर्म अपनाने के लिए नहीं कहा अपितु उन्होंने बाइबिल का हिंदी में अनुवाद किया ताकि भारत के लोग बाइबिल को भली-भाँति समझ सकें। उन्होंने रामकथा के उद्भव एवं विकास पर शोधप्रबंध प्रस्तुत किया जिससे रामकथा के प्रति उनकी रुचि का पता चलता है। मानवीय करुणा की दिव्य चमक सदा उनके चेहरे पर चमकती रहती थी।

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प्रश्न 7.
फादर बुल्के भारतीय जन-जीवन का अभिन्न अंग बनकर भारत में रहे, कैसे?
उत्तर-
फादर बुल्के भारत में आकर भारतीय जन-जीवन में पूर्ण रूप से रम गए थे। उन्होंने कभी ईसाई पादरी की भाँति ईसाई धर्म का प्रचार नहीं किया, अपितु उन्होंने यहाँ के लोगों के साथ अपने संबंध जोड़े और उनका खूबसूरती के साथ निर्वाह भी किया। उदाहरणार्थ वे जब भी दिल्ली आते थे तो लेखक से अवश्य मिलते थे। उन्होंने भारतीय जीवन-शैली एवं भारतीय संस्कृति को गहराई से समझा और जाना। वे उस पर मुग्ध हुए बिना न रह सके। उन्होंने भारतीय जीवन-शैली को और अधिक समझने व जानने के लिए हिंदी, संस्कृत आदि भाषाओं का अध्ययन किया। उन्होंने हिंदी के विकास के लिए अथक प्रयास भी किए। वे भारत में अपने परिचितों के सुख-दुःख में हृदय से सम्मिलित होते थे। लेखक के लिए वे बड़े भाई के समान थे। वे अपना आशीर्वाद देकर उन्हें कृतार्थ करते थे। दुःख की घड़ियों में सबके प्रति सहानुभूति व करुणा के भाव व्यक्त करते, उनके दुःख को गहराई से समझकर उनका सहारा बनते। इन सब तथ्यों को देखते हुए कहा जा सकता है कि फादर बुल्के भारतीय जन-जीवन में पूर्ण रूप से रच-बस गए थे।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्य चमक

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ शीर्षक पाठ के लेखक का नाम क्या है?
उत्तर-
‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ शीर्षक पाठ के लेखक श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना हैं।

प्रश्न 2.
लेखक ने फादर कामिल बुल्के को याद करने को किसके समान बताया था?
उत्तर-
लेखक ने फ़ादर कामिल बुल्के को याद करने को उदास शांत संगीत सुनने के समान बताया था।

प्रश्न 3.
फ़ादर बुल्के के पिताजी का पेशा क्या था?
उत्तर-
फ़ादर बुल्के के पिता जी एक व्यवसायी थे।

प्रश्न 4.
फादर कामिल बुल्के को देखना किसके समान बताया गया है?
उत्तर-
फादर कामिल बुल्के को देखना निर्मल जल में स्नान करने के समान बताया गया है।

प्रश्न 5.
फ़ादर बुल्के माँ की चिट्टियाँ किसको दिखाया करते थे?
उत्तर-
फ़ादर बुल्के माँ की चिट्ठियाँ डॉ० रघुवंश को दिखाया करते थे।

प्रश्न 6.
लेखक ने फादर बुल्के की तुलना किस वृक्ष से की है?
उत्तर-
लेखक ने फादर बुल्के की तुलना देवदारु वृक्ष से की है।

प्रश्न 7.
फादर कामिल बुल्के ने कहाँ से एम०ए० हिंदी की परीक्षा पास की थी?
उत्तर-
फ़ादर कामिल बुल्के ने इलाहाबाद से हिंदी की परीक्षा पास की थी।

प्रश्न 8.
हिन्दी को लेकर फ़ादर बुल्के की क्या चिंता थी?
उत्तर-
वे हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहते थे। यही उनकी मुख्य चिंता थी।

प्रश्न 9.
‘हर मौत दिखाती है जीवन को नयी राह’ ये शब्द किसने कहे थे?
उत्तर-
‘हर मौत दिखाती है जीवन को नयी राह’ ये शब्द फादर कामिल बल्के ने कहे थे।

प्रश्न 10.
संन्यास लेते समय धर्मगुरु के सामने फ़ादर बुल्के ने क्या शर्त रखी है?
उत्तर-
संन्यास लेते समय धर्मगुरु के सामने फ़ादर बुल्के ने यह शर्त रखी कि मैं भारत जाऊँगा।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ शीर्षक पाठ साहित्य की किस विधा के अंतर्गत आता है?
(A) कहानी
(B) संस्मरण
(C) जीवनी
(D) निबंध
उत्तर-
(B) संस्मरण

प्रश्न 2.
फादर कामिल बुल्के की मृत्यु कैसे हुई थी?
(A) बुखार से
(B) कैंसर से
(C) तपेदिक से
(D) ज़हरबाद से
उत्तर-
(D) ज़हरबाद से

प्रश्न 3.
लेखक और फादर कामिल बुल्के के बीच कैसे संबंध थे?
(A) पारिवारिक
(B) राजनीतिक
(C) सामाजिक
(D) व्यापारिक
उत्तर-
(A) पारिवारिक

प्रश्न 4.
लेखक ने ‘देवदारु’ किसे कहा है?
(A) पेड़ को
(B) पर्वत को
(C) फादर कामिल बल्के को
(D) रामकाव्य को
उत्तर-
(C) फादर कामिल बुल्के को

प्रश्न 5.
‘परिमल’ कैसी संस्था थी?
(A) सामाजिक
(B) साहित्यिक
(C) आर्थिक
(D) राजनीतिक
उत्तर-
(B) साहित्यिक

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प्रश्न 6.
लेखक ने फादर कामिल बुल्के की साइकिल कहाँ की सड़कों पर चलती दिखाई देने की बात कही है?
(A) लखनऊ
(B) बनारस
(C) इलाहाबाद
(D) कलकत्ता
उत्तर-
(C) इलाहाबाद

प्रश्न 7.
फादर कामिल बुल्के कहाँ के रहने वाले थे?
(A) अमेरिका
(B) इंग्लैंड
(C) लीबिया
(D) बेल्जियम
उत्तर-
(D) बेल्जियम

प्रश्न 8.
फादर कामिल बुल्के ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई किस वर्ष में छोड़ दी?
(A) द्वितीय
(B) प्रथम
(C) अंतिम
(D) तृतीय
उत्तर-
(C) अंतिम

प्रश्न 9.
लेखक ने फादर कामिल बुल्के को कैसा संन्यासी बताया है?
(A) विवशतामयी संन्यासी
(B) संकल्प से संन्यासी
(C) दिखावे के संन्यासी
(D) ढोंगी संन्यासी
उत्तर-
(B) संकल्प से संन्यासी

प्रश्न 10.
फादर कामिल बुल्के हिंदी को किस रूप में देखना चाहते थे?
(A) एक बोली के रूप में
(B) सामान्य भाषा के रूप में
(C) राष्ट्रभाषा के रूप में
(D) अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में
उत्तर-
(C) राष्ट्रभाषा के रूप में

प्रश्न 11.
फादर कामिल बुल्के ने अपना शोधप्रबंध किस विश्वविद्यालय में प्रस्तुत किया था?
(A) लखनऊ विश्वविद्यालय
(B) आगरा विश्वविद्यालय
(C) दिल्ली विश्वविद्यालय
(D) प्रयाग विश्वविद्यालय
उत्तर-
(D) प्रयाग विश्वविद्यालय

प्रश्न 12.
फादर कामिल बुल्के के शोध का विषय क्या था?
(A) रामकथा : उत्पत्ति और विकास
(B) कृष्णलीला
(C) सूर की भक्ति-भावना
(D) निर्गुण संत काव्य
उत्तर-
(A) रामकथा : उत्पत्ति और विकास

प्रश्न 13.
फादर कामिल बुल्के की मृत्यु कब हुई थी?
(A) सन् 1980 में
(B) सन् 1981 में
(C) सन् 1982 में
(D) सन् 1984 में
उत्तर-
(C) सन् 1982 में

प्रश्न 14.
फादर कामिल बुल्के कितने वर्ष जीवित रहे थे?
(A) 47
(B) 57
(C) 73
(D) 83
उत्तर-
(C) 73

प्रश्न 15.
लेखक, फादर कामिल बुल्के के किन गुणों के कारण श्रद्धानत थे?
(A) विद्वता के कारण
(B) मित्रता के कारण
(C) व्यवहार कुशल होने के कारण
(D) मानवीय गुणों के कारण
उत्तर-
(D) मानवीय गुणों के कारण

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प्रश्न 16.
फादर कामिल बुल्के अपनी माँ की चिट्ठियाँ किस मित्र को दिखाते थे?
(A) डॉ० रघुवंश
(B) जैनेन्द्र कुमार
(C) डॉ० सत्य प्रकाश
(D) डॉ० निर्मला जैन
उत्तर-
(A) डॉ० रघुवंश

मानवीय करुणा की दिव्य चमक पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) फादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है। उनको देखना करुणा के निर्मल जल में स्नान करने जैसा था और उनसे बात करना कर्म के संकल्प से भरना था। मुझे ‘परिमल’ के वे दिन याद आते हैं जब हम सब एक पारिवारिक रिश्ते में बँधे जैसे थे जिसके बड़े फादर बुल्के थे। हमारे हँसी-मज़ाक में वह निर्लिप्त शामिल रहते, हमारी गोष्ठियों में वह गंभीर बहस करते, हमारी रचनाओं पर बेबाक राय और सुझाव देते और हमारे घरों के किसी भी उत्सव और संस्कार में वह बड़े भाई और पुरोहित जैसे खड़े हो हमें अपने आशीषों से भर देते। मुझे अपना बच्चा और फादर का उसके मुख में पहली बार अन्न डालना याद आता है और नीली आँखों की चमक में तैरता वात्सल्य भी-जैसे किसी ऊँचाई पर देवदारु की छाया में खड़े हों। [पृष्ठ 85]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) लेखक ने फादर को याद करना किसके समान और ऐसा क्यों कहा है?
(ग) फादर को मिलने पर लेखक को कैसा अनुभव होता था?
(घ) लेखक के साथ फादर के संबंध कैसे थे?
(ङ) देवदारु की छाया में खड़े होने से लेखक का क्या तात्पर्य था?
(च) ‘परिमल’ क्या था? वहाँ किन विषयों पर चर्चा होती थी?
(छ) लेखक के घर के उत्सवों में फादर का क्या योगदान रहता था?
(ज) उपर्युक्त गद्यांश के प्रसंग को बताकर उसका आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-मानवीय करुणा की दिव्य चमक।
लेखक का नाम श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना।

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(ख) जिस प्रकार उदासी के समय व्यक्ति शांत संगीत को सुनकर कल्पना लोक में विचरने लगता है; उसी प्रकार फादर से मिलकर व्यक्ति शांति और सुकून अनुभव करने लगता है। वस्तुतः फादर सदा ही वात्सल्य भाव से भरे रहते थे। वे जब भी मिलते थे स्नेह से पूर्ण रहते थे। ऐसे फादर को याद करते ही उदास शाँत संगीत सुनने जैसा अनुभव होता था।

(ग) लेखक जब भी फादर से मिलते थे तो उनके व्यवहार से उन्हें लगता था कि मानो वे करुणा के निर्मल से जल से स्नान कर रहे हैं तथा उनसे बात करने पर अपने कर्म के प्रति संकल्प से भर जाते थे।

(घ) लेखक के साथ फादर के पारिवारिक संबंध थे। उनके संबंधों में घनिष्ठता थी। वे परिवार में मनाए जाने वाले हर उत्सव में लेखक के साथ रहते थे। ऐसे अवसर पर लेखक उनको बड़े भाई के समान अनुभव करते थे। फादर बड़े भाई व पुरोहित की भाँति अनेक आशीष दिया करते थे। लेखक के पुत्र के मुख में फादर ने ही पहली बार अन्न डाला था।

(ङ) लेखक फादर को देवदारु की छाया-सा कहता है। कारण यह है कि फादर ने सभी को स्नेह एवं आशीर्वाद दिया है। उन्होंने सबके सुख-दुःख में साथ दिया। फादर का जीवन दया, करुणा, स्नेह व ममता से सदा भरा रहता था। इसी कारण लेखक की दृष्टि में फादर का जीवन देवदारु की छाया के समान था।

(च) परिमल एक साहित्यिक संस्था थी। इस संस्था में समय-समय पर साहित्यिक विचार गोष्ठियों का आयोजन किया जाता था। यहाँ तत्कालीन साहित्य की विभिन्न विधाओं पर चर्चा की जाती थी। इन गोष्ठियों में नए-पुराने सभी साहित्यकार अपने-अपने विचार व्यक्त करते थे।

(छ) लेखक के घर के उत्सवों में फादर बुल्के सबके साथ मिल-जुलकर प्रसन्नतापूर्वक भाग लेते थे। वे बड़े भाई अथवा एक पारिवारिक पुरोहित के समान सबको आशीर्वाद देते थे। उनके इस व्यवहार से घर के सभी लोग प्रसन्न हो उठते थे।

(ज) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ नामक पाठ से उद्धृत है। इस पाठ के लेखक श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना हैं। इस पाठ में उन्होंने फादर कामिल बुल्के के जीवन से जुड़ी यादों का अत्यंत भावपूर्ण शैली में उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में लेखक ने फादर के अत्यंत स्नेहपूर्ण, वात्सल्यमय एवं अपनेपन के व्यवहार का उल्लेख किया है।

आशय/व्याख्या-लेखक ने फादर कामिल बुल्के को स्मरण करते हुए कहा है कि फादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने के समान है। जिस प्रकार व्यक्ति शांत संगीत को सुनकर कल्पनालोक में विचरने लगता है, उसी प्रकार फादर से मिलने पर व्यक्ति को शांति और सुकून मिलता था। फादर सदा ही वात्सल्य एवं करुणा भाव से परिपूर्ण रहते थे। उन्हें देखना करुणा के जल में स्नान करने के समान था। उनसे बातें करने से व्यक्ति को कर्म करने की प्रेरणा मिलती थी। वे सदा ही एक कर्मठ व्यक्ति की भाँति कर्म में लीन रहते थे। लेखक ‘परिमल’ के दिनों को याद करता हुआ बताता है कि जब वे सब एक पारिवारिक संबंध में बंधे हुए जैसे थे। उन सब में फादर सबसे बड़े थे। वे उम्र में बड़े होते हुए भी हमारी हँसी-मजाक में भी पूर्ण भाग लेते थे। हमारी संगोष्ठियों में वे बहुत गंभीरतापूर्वक बहस करते थे अर्थात् वाद-विवाद करते थे। वे लेखक व उनके अन्य साथियों द्वारा लिखी गई रचनाओं के विषय में बिना किसी पक्षपात के अपनी सलाह देते थे। इतना ही नहीं, लेखक व उनके साथियों के पारिवारिक उत्सवों व संस्कारों में भी बड़े भाई की भाँति और पुरोहित की भाँति ही अपने शुभ आशीर्वाद से उनके जीवन को भर देते थे। कहने का तात्पर्य है कि पारिवारिक उत्सवों में पुरोहित की भूमिका निभाते हुए आशीर्वाद देते थे। लेखक अपने बच्चे को याद करता हुआ कहता है कि फादर कामिल बुल्के ने ही उनके बच्चे के मुख में प्रथम बार अन्न डाला था। उस समय उनकी नीली-नीली आँखों में बच्चों के प्रति अथाह वात्सल्य भाव दिखलाई पड़ा था। लेखक ने फादर के स्नेह को देवदारू वृक्ष की छाया की भाँति बताया है अर्थात् फादर के साथ रहने से सदा ही उनका स्नेह और आशीर्वाद मिलता रहता था।

(2) फादर बुल्के संकल्प से संन्यासी थे। कभी-कभी लगता है वह मन से संन्यासी नहीं थे। रिश्ता बनाते थे तो तोड़ते नहीं थे। दसियों साल बाद मिलने के बाद भी उसकी गंध महसूस होती थी। वह जब भी दिल्ली आते ज़रूर मिलते-खोजकर, समय निकालकर, गर्मी, सर्दी, बरसात झेलकर मिलते, चाहे दो मिनट के लिए ही सही। यह कौन संन्यासी करता है? उनकी चिंता हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखने की थी। हर मंच से इसकी तकलीफ बयान करते, इसके लिए अकाट्य तर्क देते। बस इसी एक सवाल पर उन्हें झुंझलाते देखा है और हिंदी वालों द्वारा ही हिंदी की उपेक्षा पर दुख करते उन्हें पाया है। घर-परिवार के बारे में, निजी दुख-तकलीफ के बारे में पूछना उनका स्वभाव था और बड़े-से-बड़े दुख में उनके मुख से सांत्वना के जादू भरे दो शब्द सुनना एक ऐसी रोशनी से भर देता था जो किसी गहरी तपस्या से जनमती है। ‘हर मौत दिखाती है जीवन को नयी राह।’ मुझे अपनी पत्नी और पुत्र की मृत्यु याद आ रही है और फादर के शब्दों से झरती विरल शांति भी।
[पृष्ठ 87]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) फादर बुल्के को संकल्प से संन्यासी क्यों कहा गया है?
(ग) रिश्तों के संबंध में फादर बुल्के के क्या विचार थे?
(घ) फादर सचमुच के मसीहा थे, कैसे?
(ङ) हिंदी के प्रति फादर बुल्के का क्या योगदान था?
(च) लेखक ने किस गंध के महसूस होने की बात कही है?
(छ) इस गद्यांश के आधार पर फादर के जीवन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
(ज) इस गद्यांश का प्रसंग लिखकर इसके आशय को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-मानवीय करुणा की दिव्य चमक। लेखक का नाम श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना।

(ख) फादर बुल्के ने दृढ़ निश्चयपूर्वक संन्यास लिया था। उन्होंने किसी के कहने अथवा दबाव में आकर संन्यास नहीं लिया था। किसी लालच में आकर अथवा कर्म-क्षेत्र से पलायन करने के लिए भी उन्होंने संन्यास नहीं लिया था। उन्होंने स्वेच्छा से संन्यास लिया था। इसीलिए लेखक ने उन्हें संकल्प से संन्यासी कहा है।

(ग) एक संन्यासी होते हुए भी फादर बुल्के रिश्तों की गरिमा अथवा महत्त्व को बहुत अच्छी तरह से समझते थे। वे रिश्तों को निभाना भी भली-भाँति जानते थे। जिसके साथ भी उनका कोई संबंध बन जाता था, उसे वे अंत तक निभाते थे। वे रिश्तों को जोड़कर कभी तोड़ते नहीं थे। अतः स्पष्ट है कि फादर बुल्के रिश्तों के संबंध में गंभीर विचारधारा रखते थे।

(घ) निश्चय ही फादर एक महान् मसीहा थे। वे लोगों के दुःख-दर्द को महसूस ही नहीं करते थे, अपितु उनमें सम्मिलित भी होते थे। उनकी करुणामयी बातों को सुनकर हृदय को शांति मिलती थी क्योंकि वे बड़े-से-बड़े दुःख को भी कम करने की समर्थता रखते थे। अतः कह सकते हैं कि फादर बुल्के किसी मसीहा से कम नहीं थे।

(ङ) फादर बुल्के विदेशी थे। उनकी मातृभाषा हिंदी नहीं थी। किंतु हिंदी के प्रति उनके हृदय में अत्यधिक प्रेम था। वे हिंदी को राष्ट्र भाषा के रूप में प्रतिष्ठित देखना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने अनेक अकाट्य तर्क भी दिए। वे हिंदी भाषियों के द्वारा ही हिंदी की उपेक्षा देखकर आक्रोश व्यक्त करते थे। उन्होंने हिंदी का केवल अक्षर-ज्ञान ही प्राप्त नहीं किया, अपितु शोधकार्य भी किया।

(च) लेखक कहता है कि यदि फादर बुल्के से कई वर्ष बाद मुलाकात होती थी, तो भी वे इतने प्रेम से मिलते थे कि उनके साथ उसके जो रिश्ते थे, उसकी गहराई की सुगंध उस मिलन में महसूस होती थी। उनका यह अपनापन रिश्तों को और भी अधिक मज़बूत आधार प्रदान करता था।

(छ) इस गद्यांश को पढ़ने से पता चलता है कि फादर बुल्के का व्यक्तित्व संन्यासी जैसा था। किंतु वे बहुत ही आत्मीय, स्नेही और अपनेपन के भाव से भरे रहते थे। इस गद्यांश को पढ़कर हम यह भी जान जाते हैं कि फादर राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रबल समर्थक थे और हिंदी के विकास के लिए हर संभव कार्य करने के लिए तत्पर रहते थे। वे करुणावान व्यक्ति थे। उनके हृदय में दूसरों के लिए दया, स्नेह आदि भाव विद्यमान रहते थे।

(ज) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ नामक पाठ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना हैं। इस पाठ में उन्होंने फादर कामिल बुल्के के जीवन के महान गुणों का उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में बताया गया है कि फादर बुल्के का जीवन संन्यासी का जीवन था। वे स्वेच्छाचारी संन्यासी थे।

आशय/व्याख्या-लेखक का कथन है कि फादर कामिल बुल्के ने दृढ़ निश्चयपूर्वक संन्यास लिया था। उन्होंने किसी मज़बूरी या दबाव में आकर संन्यास ग्रहण नहीं किया था। लेखक को तो प्रतीत होता है कि फादर बुल्के संकल्प से संन्यासी थे, मन से संन्यासी नहीं थे। वे रिश्तों को बनाते थे तो उन्हें कभी तोड़ते नहीं थे। यदि कोई उन्हें दस वर्ष के बाद भी मिलता था तो उन्हें उनकी पहले जैसी भावना का अनुभव होता था। वे जब भी दिल्ली आते लेखक से अवश्य मिलते। भले ही उन्हें लेखक को खोजना ही क्यों न पड़ता था। वे गर्मी, सर्दी व बरसात के कष्टों को झेलकर भी मिलते थे। ऐसा भला कौन संन्यासी करता है। उनकी सबसे बड़ी चिंता थी हिंदी को राष्ट्र भाषा के रूप देखने की। वे चाहते थे कि हिंदी को राष्ट्र भाषा का पद अवश्य मिले। वे हर मंच पर इस पीड़ा का उल्लेख करते थे और हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने के लिए अकाट्य तर्क भी प्रस्तुत करते थे। लेखक ने उन्हें एक इसी बात पर दुःखी होते देखा है कि हिंदी वाले ही हिंदी की उपेक्षा करते हैं। वे जब भी अपने मित्रों से मिलते थे, सदा उनके घर-परिवार की कुशलता के विषय में अवश्य पूछते थे। बड़े-से-बड़े दुख में उनके सांत्वना व सहानुभूति के दो शब्द जीवन में जादू की तरह प्रभाव डालते थे। उनके सहानुभूतिमय शब्द सुनने वाले के जीवन में ऐसी गहन रोशनी भर देते थे कि जो गहरी तपस्या से उत्पन्न होती है। वे कहते थे कि हर मौत जीवन को नया मार्ग दिखाती है। लेखक को जब अपनी पत्नी और पुत्र की मृत्यु याद आई, उस समय फादर बुल्के के शब्दों से लेखक को एक अनोखी शांति अनुभव हुई थी।

(3) मैं नहीं जानता इस संन्यासी ने कभी सोचा था या नहीं कि उसकी मृत्यु पर कोई रोएगा। लेकिन उस क्षण रोने वालों की कमी नहीं थी। (नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है।)
इस तरह हमारे बीच से वह चला गया जो हममें से सबसे अधिक छायादार फल-फूल गंध से भरा और सबसे अलग, सबका होकर, सबसे ऊँचाई पर, मानवीय करुणा की दिव्य चमक में लहलहाता खड़ा था। जिसकी स्मृति हम सबके मन में जो उनके निकट थे किसी यज्ञ की पवित्र आग की आँच की तरह आजीवन बनी रहेगी। मैं उस पवित्र ज्योति की याद में श्रद्धानत हूँ। [पृष्ठ 88]

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्य चमक

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) ‘फादर बुल्के की मृत्यु पर रोने वालों की कमी नहीं थी।’ -लेखक के इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ग) फादर बुल्के को सबसे अधिक छायादार, फल-फूल से भरा हुआ क्यों कहा गया?
(घ) लेखक के लिए फादर बुल्के की स्मृति कैसी और क्यों है?
(ङ) लेखक ने फादर बुल्के को कैसी श्रद्धांजलि दी है?
(च) लेखक के लिए फादर कामिल बुल्के क्या थे?
(छ) लेखक किसकी याद में श्रद्धानत है?
(ज) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग लिखकर आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-मानवीय करुणा की दिव्य चमक। लेखक का नाम-श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना।

(ख) फादर बुल्के एक संन्यासी थे। संन्यासी सबका मोह त्याग देता है और सांसारिक जीवन से उसका मोह नहीं रह जाता। किंतु वे ऐसे संन्यासी नहीं थे। वे सबके साथ मिलकर रहते थे। सबके सुख-दुःख में बराबर सम्मिलित होते थे। सबके प्रति उनके मन में सहानुभूति, दया व करुणा की भावना थी। इसलिए फादर बुल्के की मृत्यु पर बहुत सारे लोगों को दुःख हुआ था। उन्होंने उसके न रहने पर आँसू बहाए थे।

(ग) लेखक ने फादर बुल्के के जीवन में दया, सहानुभूति, करुणा आदि मानवीय गुणों की अधिकता को देखकर उन्हें ऐसे विशाल वृक्ष की संज्ञा दी है जिसकी छाया में अनेक लोग बैठते हैं और जिसके फल-फूल दूसरों के लिए होते हैं। किंतु वह स्वयं कुछ भी ग्रहण नहीं करता।

(घ) लेखक के लिए फादर बुल्के की स्मृति अत्यंत पवित्र भावनाओं से युक्त थी जैसी किसी यज्ञ की पवित्र अग्नि की तपन सदा अनुभव की जा सकती है, ठीक उसी प्रकार फादर की पवित्र स्मृति लेखक के मन में आजीवन बनी रहेगी। उनके जीवन की महानता ने ही लेखक के मन में यह भावना उत्पन्न की थी।

(ङ) लेखक ने प्रस्तुत पाठ के माध्यम से उनके जीवन की कुछ घटनाओं का वर्णन करते हुए उनके प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की है।

(च) लेखक की दृष्टि में फादर कामिल बुल्के मानवीय करुणा की दिव्य चमक के समान थे। वे उनके लिए बड़े भाई के समान स्नेहशील, मार्गदर्शक, आशीर्वाद देने वाले और शुभचिंतक थे। लेखक के लिए वे महान हिंदी प्रेमी, संन्यासी होते हुए भी संबंधों की गरिमा बनाए रखने वाले और संबंधों का भली-भाँति निर्वाह करने वाले थे।

(छ) लेखक फादर कामिल बुल्के के पवित्र जीवन और महान् मानवीय गुणों के प्रति श्रद्धानत है।

(ज) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ नामक पाठ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना हैं। इस पाठ में लेखक ने फादर बुल्के के जीवन से जुड़ी स्मृतियों का भावपूर्ण भाषा में उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में लेखक ने फादर बुल्के की मृत्यु की घटना से जुड़ी यादों का उल्लेख किया है।

आशय/व्याख्या-लेखक का कथन है कि वह नहीं जानता कि इस संन्यासी ने कभी सोचा था या नहीं कि उसकी मृत्यु पर कोई रोएगा या नहीं, किंतु उसकी मृत्यु पर रोने वालों की कमी नहीं थी। उनके नाम गिनना व्यर्थ होगा। इस प्रकार फादर बुल्के हमारे बीच से चले गए अर्थात् उनकी मृत्यु हो गई। वे हमसे अधिक छायादार अर्थात् दूसरों को सहारा देने वाले और सद्गुणों रूपी फल-फूल सद्भावना रूपी गंध से भरे हुए थे। वह सबसे अलग होते हुए भी सबके थे। सबसे महान थे। उनके जीवन में मानवीय करुणा की चमक लहलहाती थी। जो भी उनके समीप थे, उनके जीवन में उसकी यादें यज्ञ की अग्नि की पवित्र आँच की भाँति जीवन भर बनी रहेंगी। लेखक उस पवित्र ज्योति की स्मृति में श्रद्धानत बना रहा। कहने का भाव है कि फादर कामिल बुल्के की मृत्यु पर अनेक लोगों को दुख हुआ और उनकी यादें लोगों के जीवन में सदा बनी रहेंगी। यही उनकी महानता की पहचान है।

मानवीय करुणा की दिव्य चमक Summary in Hindi

मानवीय करुणा की दिव्य चमक लेखक-परिचय

प्रश्न-
श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जीवन परिचय एवं उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का नई कविता में महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में सन् 1927 में हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। इसके पश्चात् उन्होंने अध्यापन कार्य किया। किंतु कुछ ही दिनों पश्चात् वहाँ से त्याग-पत्र देकर आकाशवाणी में सहायक प्रोड्यूसर के रूप में काम करने लगे। उन्होंने ‘दिनमान’ में उपसंपादक तथा बच्चों की पत्रिका ‘पराग’ में संपादक के रूप में कार्य किया था। उन्हें ‘खूटियों पर टँगे लोग’ काव्य-संग्रह पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ था। सन् 1983 में उनका निधन हो गया था।

2. प्रमुख रचनाएँ-सर्वेश्वर दयाल सक्सेना बहुमुखी प्रतिभा वाले साहित्यकार थे। उन्होंने कविता के अतिरिक्त अन्य हिंदी विधाओं पर भी सफलतापूर्वक कलम चलाई है। उनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं-

(क) कविता-संग्रह ‘काठ की घंटियाँ’, ‘खूटियों पर टँगे लोग’, ‘जंगल का दर्द’, ‘कुआनो नदी’ ।
(ख) उपन्यास-‘पागल कुत्तों का मसीहा’, ‘सोया हुआ जल’।
(ग) बाल साहित्य-‘लाख की नाक’, ‘बतूता का जूता’, ‘भौं भौं खौं खौं’।
(घ) कहानी संग्रह ‘लड़ाई’।
(ङ) नाटक-‘बकरी’।

3. साहित्यिक विशेषताएँ-सर्वेश्वर दयाल की पहचान मध्यवर्गीय आकांक्षाओं के लेखक के रूप में की जाती है। उन्होंने मध्यवर्ग के जीवन के विविध पक्षों का मार्मिकता से चित्रण किया है। मध्यवर्गीय जीवन की महत्त्वाकांक्षाओं, सपनों, संघर्ष, हताशा
और कुंठा का चित्रण उनके साहित्य में सजीव रूप में मिलता है। सक्सेना जी के लेखन में बेबाक सच सर्वत्र, देखा जा सकता है। उनकी अभिव्यक्ति में सहजता और स्वाभाविकता है।

4. भाषा-शैली-सर्वेश्वर दयाल के गद्य साहित्य की भाषा-शैली अत्यंत सरल, सहज, व्यावहारिक, भावपूर्ण तथा प्रवाहमयी है। ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ इनका फादर कामिल बुल्के से संबंधित संस्मरण है। इसमें लेखक ने उनके जीवन से संबंधित कुछ अंतरंग प्रसंगों को उजागर किया है। सक्सेना जी ने अपनी रचना में वात्सल्य, आकृति, साक्षी, वृत्त, यातना आदि तत्सम शब्दों के साथ-साथ महसूस, ज़हर, कब्र आदि उर्दू के शब्दों का भी सफल प्रयोग किया है। प्रस्तुत संस्मरण में तो उन्होंने विवरणात्मक शैली के साथ-साथ भावात्मक शैली का भी सफल प्रयोग किया है। इस पाठ में उन्होंने फादर कामिल बुल्के के जीवन से संबंधित अपनी यादों को अत्यंत सजीवता से प्रस्तुत किया है।

मानवीय करुणा की दिव्य चमक पाठ का सार

प्रश्न-
‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ शीर्षक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ एक महत्त्वपूर्ण संस्मरण है। संस्मरण स्मृतियों से बनता है तथा स्मृतियों की विश्वसनीयता उसे महत्ता प्रदान करती है। प्रस्तुत संस्मरण में श्री सर्वेश्वर दयाल के द्वारा फादर कामिल बुल्के के जीवन से जुड़ी यादों को अत्यंत भावपूर्ण शैली में उकेरा गया है। फादर बुल्के अपने आपको भारतीय कहते थे। यद्यपि उनका जन्म बेल्जियम (यूरोप) के रैम्सचैपल शहर में हुआ था जो गिरजों, पादरियों, संतों और धर्मगुरुओं की भूमि मानी जाती है, किंतु फादर बुल्के ने भारत को अपनी कर्मभूमि बताया। वे संन्यासी थे, किंतु पारंपरिक अर्थ में नहीं। उन्हें हिंदी भाषा से बहुत प्रेम था। रामकथा से तो उनका लगाव देखते ही बनता था। पाठ का सार इस प्रकार है-

फादर कामिल बुल्के के हृदय में सदा दूसरों के प्रति प्रेम रहा है। ईश्वर में उनकी अगाध श्रद्धा व आस्था थी। बीमारी के कारण उनकी मृत्यु से लेखक को गहरा शोक हुआ। लेखक का बुल्के साहब के साथ पैंतीस वर्षों का साथ रहा है। वे उनसे इतने प्रभावित थे कि उनकी याद आते ही निराश हो जाते थे। उनकी बातों में पवित्रता के दर्शन होते थे। वे अपने समीप के लोगों के जीवन के हर अच्छे-बुरे अवसर पर समान भाव से सम्मिलित होते थे। उनकी आँखों में एक बड़े भाई का स्नेह नज़र आता था।

निश्चय ही फादर कामिल बुल्के अध्ययनशील व्यक्ति थे। जब वे इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में थे तो उन्होंने संन्यासी बनने की ठान ली थी। उनका एक भरा – पूरा परिवार था जिसमें माता-पिता, दो भाई व एक बहन थी। भारत आने पर भी परिवार के साथ उनका पत्र-व्यवहार चलता रहता था। अपने अभिन्न मित्र रघुवंश को वे उन सब चिट्ठियों को दिखाते थे। उनके पिता एक व्यवसायी थे। एक भाई पादरी बन गया था और दूसरा पिता के व्यवसाय में लग गया था। बहन जिद्दी स्वभाव वाली थी। माता के प्रति उनका प्रगाढ़ स्नेह था।

भारत आने पर फादर बुल्के ने ‘जिसेट संघ’ में दो साल पादरियों के बीच धर्माचार की शिक्षा ग्रहण की। 9 से 10 वर्ष तक दार्जिलिंग में पढ़ाई की। उन्होंने कलकत्ता से बी०ए० की परीक्षा पास की तथा इलाहाबाद से एम.ए. ‘रामकथा : उत्पत्ति और विकास’ पर उन्होंने सन् 1950 में इलाहाबाद से ही शोध प्रबंध पूरा किया। ‘परिमल’ में उनके अध्याय पढ़े गए। फादर बुल्के ने मातरलिंक के प्रसिद्ध नाटक ‘ब्लू बर्ड’ का ‘नीलपंछी’ के नाम से अनुवाद भी किया। बाद में वे सेंट जेवियर्स कॉलेज, राँची में हिंदी तथा संस्कृत के विभागाध्यक्ष हो गए थे। वहीं रहते हुए उन्होंने अंग्रेज़ी-हिंदी शब्दकोश की रचना की। उन्होंने ‘बाइबल’ का भी हिंदी रूपांतर किया। वे 47 वर्ष तक इस देश में रहे और 73 वर्ष की आयु तक जीवित रहे।

फादर बुल्के संकल्प से संन्यासी थे। जिसके साथ वे रिश्ता बनाते थे, उसे अंत तक भली-भाँति निभाते थे। उन्होंने हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा दिलवाने में अपना अनथक प्रयास किया। इसके लिए उन्होंने अपने अकाट्य तर्क भी दिए। हिंदी वालों द्वारा हिंदी की उपेक्षा ही उन्हें बहुत अधिक दुःख पहुँचाती रही है।

दूसरों के घर-परिवार की कुशलता पूछना तो मानो उनका स्वभाव था। लेखक की पत्नी व पुत्र की मृत्यु के समय पर जो उन्होंने शब्द कहे थे, उनसे प्राप्त शांति सदा याद रही। फादर बुल्के दिल्ली में रहते हुए बीमार पड़े और 18 अगस्त, 1982 की सुबह उन्होंने दम तोड़ दिया। उनके शव को कश्मीरी गेट के निकलसन कब्रगाह में ले जाया गया। उनके साथ कुछ पादरी व रघुवंश जी का बेटा और उनके परिजन राजेश्वर सिंह, जैनेंद्र कुमार, विजयेंद्र स्नातक, अजित कुमार, डॉ० निर्मला जैन और मसीही समुदाय के लोग, पादरीगण, डॉ० सत्यप्रकाश आदि सभी कब्र के समीप खड़े थे। फादर की देह कब्र में लिटाई गई। मसीही विधि से अंतिम संस्कार किया गया। तत्पश्चात् जेवियर्स के रेक्टर फादर पास्कल ने उनके जीवन और कर्म पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए बताया, “फादर बुल्के धरती में जा रहे हैं। इस धरती से ऐसे रत्न और पैदा हों।” वहाँ उपस्थित सभी लोगों ने फादर को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की और फादर के शव को कब्र में उतार दिया गया। उस समय सबकी आँखें नम थीं। इस प्रकार सबके बीच से फादर हमेशा के लिए चले गए थे। फादर छायादार, फलदार, सुगंध से भरा, सबसे अलग, सबका होकर, सबसे ऊँचाई पर मानवीय करुणा की दिव्य चमक में लहराता खड़ा है। उसकी यादें लेखक के मन में सदा बनी रहेंगी।

कठिन शब्दों के अर्थ

(पृष्ठ-85) मानवीय करुणा = मनुष्य के मन में उत्पन्न होने वाली दया। दिव्य = महान्। ज़हरबाद = जहरीला फोड़ा। विधान = रचना की नीति। आस्था = विश्वास। अस्तित्व = जीवन। यातना = दुःख, पीड़ा। उम्र = आयु। परीक्षा = इम्तिहान। आकृति = आकार। संकल्प = दृढ़ निश्चय। आतुर = अधीर, व्याकुल। ममता = अपनेपन की भावना। साक्षी = गवाह। बेबाक राय = खुलकर राय देना। संस्कार = विवाह आदि। अशीष = आशीर्वाद। वात्सल्य = छोटों के प्रति स्नेह । गोष्ठी = किसी विषय पर विचार करने के लिए बुलाई गई सभा। देवदारु = पहाड़ों पर उगने वाले पेड़ का नाम। आवेश = उत्साह, जोश। लबालब = पूर्ण रूप से भरा हुआ।

(पृष्ठ-86) जन्मभूमि = जहाँ जन्म हुआ हो। स्मृति = याद। अभिन्न मित्र = गहरा दोस्त। व्यवसायी = व्यापारी। व्यक्त = प्रकट। घोषित करना = सबके सामने कहना। हाथ से जाना = वश में न रहना। धर्माचार = धर्म का पालन करना।

(पृष्ठ-87) शोध प्रबंध = खोज करने के पश्चात् लिखी गई पुस्तक। परिमल = एक साहित्यिक संस्था जिसमें विभिन्न साहित्यकार साहित्य पर चर्चा करते थे। रूपांतर = बदला हुआ रूप। कोश = शब्दों का खजाना, शब्दकोश। राष्ट्रभाषा = जो भाषा पूरे राष्ट्र के द्वारा बोली जाए। बयान करना = वर्णन करना, कहना। अकाट्य = जो बात काटी न जा सके। तर्क = विचार। उपेक्षा = तिरस्कार करना। निजी = व्यक्ति का अपना। सांत्वना = तसल्ली। तपस्या = साधना। राह = मार्ग। झरती = बहती हुई। विरल = कम मिलने वाली। जादू भरे = प्रभावशाली। ताबूत = शव डालने का संदूक। जिस्म = शरीर। थिर = ठहरी हुई, स्थिर। शांति बरसना = शांति प्रकट होना। परिजन = रिश्तेदार। सँकरी = तंग। घनी = गहरी। छोर = किनारा। कब्रगाह = जहाँ मुर्दो को दफनाया जाता है। अवाक् = मौन। ठंडी उदासी = उत्साहहीन कर देने वाली निराशा।

(पृष्ठ-88) आहट = हल्की आवाज़। मसीही विधि = ईसाई धर्म के अनुकूल। अंतिम संस्कार = मृत्यु के पश्चात् निभाई जाने वाली रस्में। अनुकरणीय = जो अनुकरण करने योग्य हो। नमन = नमस्कार। स्याही फैलाना = लिखने का व्यर्थ प्रयास करना। आजीवन = जीवन भर। श्रद्धानत = प्रेम और आदर से झुकना।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़ Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

HBSE 10th Class Hindi लखनवी अंदाज़ Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं?
उत्तर-
लेखक ने जब रेल के डिब्बे में प्रवेश किया तो उन्होंने देखा कि वहाँ पहले से एक सज्जन विराजमान हैं। वे सीट पर पालथी मारे बैठे हुए थे। उनके सामने एक तौलिए पर खीरे रखे हुए थे। उन्होंने लेखक की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया। उसको देखते ही उनके चेहरे पर ऐसे भाव व्यक्त हुए कि जैसे लेखक का वहाँ आना उन्हें अच्छा नहीं लगा। उन्हें ऐसा लग रहा था कि जैसे लेखक ने वहाँ आकर उनके चिंतन में बाधा डाल दी हो। वे कुछ परेशान-से दिखाई दिए। अपनी इसी दशा में वे कभी खिड़की के बाहर देखते तो कभी सामने रखे खीरों की ओर। उनकी असुविधा और असंतोष वाली स्थिति से ही लेखक ने अनुभव कर लिया था, कि वे उससे बातचीत करने को उत्सुक नहीं थे।

प्रश्न 2.
नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, ‘नमक-मिर्च बुरका, अंततः सूंघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है?
उत्तर-
नवाबों की दूसरों पर अपना प्रभाव डालने की प्रवृत्ति होती है। उसके लिए उन्हें कुछ भी करना पड़े, वे करते हैं। इसलिए वे सामान्य समाज के तौर-तरीकों को नकारते हैं तथा नए-नए तरीके ढूँढते हैं जिनसे अपनी अमीरी को दर्शाया जा सके। नवाब साहब अकेले में बैठकर खीरे जैसी साधारण वस्तु को खाने की तैयारी में थे। किंतु उसी वक्त लेखक वहाँ आ टपका। उसे देखकर उनके मन में नवाबी स्वभाव उभर आया और उन्हें अपनी नवाबगिरी दिखाने का अवसर मिल गया। उन्होंने दुनिया के तौर-तरीकों से हटकर खीरे काटे, नमक-मिर्च लगाया, उन्हें सूंघा और खिड़की में से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा केवल सामने वाले पर अपने नवाबी स्वभाव का रौब जमाने के लिए किया।

प्रश्न 3.
बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है। यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर-
यशपाल का यह विचार अपने-आप में अधूरा-सा प्रतीत होता है। इसलिए हम इससे पूर्णतः सहमत नहीं हैं कि बिना विचारों, घटनाओं या पात्रों के कहानी लिखना संभव है। कहानी में कोई-न-कोई विचार, घटना अथवा पात्र अवश्य ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में विद्यमान रहता है। उदाहरणार्थ पठित कहानी ‘लखनवी अंदाज़’ को लिया जा सकता है। इस कहानी के लिखने के पीछे लेखक का प्रमुख उद्देश्य लखनऊ के पतनशील नवाबी वर्ग पर करारा व्यंग्य करना है। इसी विचार पर कहानी का पूरा ताना-बाना बुना गया है। इस कहानी में घटनाओं की अपेक्षा विचारों की प्रधानता है। घटना के रूप में रेलयात्रा, यात्री के रूप लखनवी नवाबों जैसा दिखने वाला सज्जन और उनके पतन को दिखाना है। अतः यह कहना उचित नहीं कि बिना विचार, घटना व पात्रों के कहानी बन सकती है।

प्रश्न 4.
आप इस निबंध को और क्या नाम देना चाहेंगे?
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में आदि से अंत तक नवाब की अकड़ या नवाब होने के अहंकार का ही उल्लेख किया गया है। वह अपने सामने की सीट पर बैठे हुए सहयात्री से बोलना भी पसंद नहीं करता। उसके सामने खीरा खाना अपनी तौहीन समझता है। वह खीरे खाने की अपेक्षा उन्हें सूंघकर चलती हुई गाड़ी की खिड़की से बाहर फेंक देता है। वह खीरों की सुगंध से ही स्वयं के संतुष्ट होने का नाटक करता है, क्योंकि खाने की वस्तु को खाकर ही संतुष्टि प्राप्त हो सकती है, सूंघकर नहीं। अतः इस पाठ का शीर्षक ‘नवाबी तहज़ीब’ हो सकता है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

रचना और अभिव्यक्ति-

प्रश्न 5.
(क) नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है। इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
उत्तर-
नवाब साहब ने अचानक घूमकर लेखक को आदाब-अर्ज़ किया। फिर उन्होंने तौलिए पर रखे दो ताज़े खीरे उठाए। उनको धोया, पोंछा। फिर उन्होंने लेखक से कहा, क्या आप खीरा खाना पसंद करेंगे। लेखक के मना करने पर वे खीरे को छीलकर और काटकर तौलिए पर रखने लगे। बड़े इत्मीनान से खीरे को काट चुकने के बाद उन्होंने उन कटे हुए खीरों पर नमक और मिर्च का पाउडर छिड़का। फिर बड़े इत्मीनान से एक-फाँक को उठाकर सूंघा एवं उसके स्वाद के आनंद को अनुभव किया। फिर एक-एक फाँक को वे सूंघते जाते और उसे खिड़की से बाहर फेंकते जाते।
(ख) किन-किन चीज़ों का रसास्वादन करने के लिए आप किस प्रकार की तैयारी करते हैं? उत्तर-यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

प्रश्न 6.
खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। आपने नवाबों की और भी सनकों और शौक के बारे में पढ़ा-सुना होगा। किसी एक के बारे में लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

प्रश्न 7.
क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है? यदि हाँ तो ऐसी सनकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
निश्चित रूप से सनक का सकारात्मक रूप हो सकता है। जितने भी बड़े-बड़े कार्य या अनुसंधान हुए हैं, वे सनकी व्यक्तियों द्वारा ही किए गए हैं। हम कुछ वैज्ञानिकों के उदाहरण ले सकते हैं। वे सनक के कारण ही रात-दिन अपने कार्य में इतने डूबे रहते हैं कि उन्हें अपने आस-पास की गतिविधियों का भी बोध नहीं रहता है। ऐसे लोग बड़े-से-बड़े जोखिम को उठाने से भी नहीं डरते। विश्व में जितनी भी बड़ी-बड़ी खोजें हुई हैं, वे सनकी वैज्ञानिकों की देन हैं। अतः स्पष्ट है कि सनक का सकारात्मक रूप भी होता है।

भाषा-अध्ययन-

प्रश्न 8.
निम्नलिखित वाक्यों में से क्रियापद छाँटकर क्रिया-भेद भी लिखिए-
(क) एक सफेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे।
(ख) नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया।
(ग) ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है।
(घ) अकेले सफर का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे।
(ङ) दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाला।
(च) नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा।
(छ) नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए।
(ज) जेब से चाकू निकाला।
उत्तर-
(क) बैठे थे – अकर्मक।
(ख) दिखाया – सकर्मक।
(ग) बैठे- अकर्मक।
कल्पना करना – अकर्मक।
है – अकर्मक।
(घ) काटना – सकर्मक।
खरीदे होंगे – सकर्मक।
(ङ) काटा – सकर्मक।
गोदकर – सकर्मक।
निकाला – सकर्मक।
(च) देखा – अकर्मक (प्रयोग)।
(छ) लेट गए – अकर्मक।
थककर – अकर्मक।
(ज) निकाला – सकर्मक।

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पाठेतर सक्रियता

‘किबला शौक फरमाएँ,’ ‘आदाब-अर्ज…शौक फरमाएँगे’ जैसे कथन शिष्टाचार से जुड़े हैं। अपनी मातृभाषा के शिष्टाचार सूचक कथनों की एक सूची तैयार कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

‘खीरा… मेदे पर बोझ डाल देता है। क्या वास्तव में खीरा अपच करता है? किसी भी खाद्य पदार्थ का पच-अपच होना कई कारणों पर निर्भर करता है। बड़ों से बातचीत कर कारणों का पता लगाइए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

खाद्य पदार्थों के संबंध में बहुत-सी मान्यताएँ हैं जो आपके क्षेत्र में प्रचलित होंगी, उनके बारे में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

पतनशील सामंती वर्ग का चित्रण प्रेमचंद ने अपनी एक प्रसिद्ध कहानी’ ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में किया था और फिर बाद में सत्यजीत राय ने इस पर इसी नाम से एक फिल्म भी बनाई थी। यह कहानी ढूँढकर पढ़िए और संभव हो तो फिल्म भी देखिए।
उत्तर-
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

HBSE 10th Class Hindi लखनवी अंदाज़ Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
नवाब साहब ने लेखक के गाड़ी में चढ़ने पर कोई उत्साह क्यों नहीं दिखाया?
उत्तर-
नवाब साहब पर अभी तक सामंती प्रभाव था। वे अपने आपको विशिष्ट व्यक्ति समझते थे। यदि वे लेखक के गाड़ी में चढ़ने पर उत्साह दिखाते तो उनका सम्मान कम हो जाता, उनकी शान-ए-शौकत में बट्टा लग सकता था। उनको यह सहन नहीं था कि शहर का कोई सफेदपोश उनको मँझले दर्जे में सफर करते देखे।

प्रश्न 2.
लेखक को नवाब साहब का अचानक भाव परिवर्तन कैसा लगा?
उत्तर-
लेखक को नवाब साहब का अचानक भाव परिवर्तन अच्छा नहीं लगा। वह शराफत का भ्रम बनाए रखने के लिए ही लेखक को खीरा खाने के लिए कह रहे थे। उनके इस व्यवहार में दिखावा ही झलक रहा था।

प्रश्न 3.
लेखक और नवाब दोनों ने सेकंड क्लास में यात्रा क्यों की? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
उत्तर-
पाठ में इस विषय में स्पष्ट रूप में कुछ नहीं कहा गया कि नवाब ने ऐसा क्यों किया। अनुमान लगाया जा सकता है कि नवाबों की आर्थिक दशा अच्छी नहीं रह गई थी। अब नवाब कहने मात्र के रह गए थे। इसलिए पैसे बचाने के लिए उसने सेकंड क्लास के डिब्बे में यात्रा की होगी।
लेखक ने स्वयं स्वीकार किया है कि उसने नई कहानी के संबंध में कुछ चिंतन-मनन करने या सोचने के लिए तथा खिड़की में से कुछ प्राकृतिक दृश्य देखने के लिए सेकंड क्लास की यात्रा थी। दोनों का विश्वास था कि डिब्बा खाली होगा।

प्रश्न 4.
नवाब ने अपनी नवाबी का परिचय किस प्रकार दिया?
उत्तर-
नवाब ने खीरों को पहले पानी से धोया फिर उन्हें तौलिए से पोंछा फिर जेब से चाकू निकालकर उनके सिरे काटे और छीलकर उनकी फाँकें काट-काटकर तौलिए पर रखीं और उन पर नमक-मिर्च का मिश्रण छिड़का। फिर लेखक को भी खीरे खाने का निमंत्रण दिया। अन्त में एक-एक फाँक को खाने की अपेक्षा सूंघ-सूंघ कर खिड़की से बाहर फेंकने लगा। उसने ऐसा दिखावा किया कि उसे सुगंध से ही बहुत तृप्ति मिली थी।

प्रश्न 5.
लेखक को नवाब साहब का न बोलना और बोलना दोनों ही बुरे लगे, क्यों?
उत्तर-
लेखक ने जब रेल के डिब्बे में प्रवेश किया तो नवाब अपनी सीट पर बैठा रहा। उसने लेखक की ओर देखना भी गवारा न किया। लेखक को नवाब साहब की यह अकड़ बुरी लगी। इसी प्रकार नवाब ने जब लेखक को खीरे खाने का निमंत्रण दिया तो लेखक को बुरा लगा क्योंकि उसे ऐसा अनुभव हुआ कि वह ऐसा करके अपना प्रभाव उस पर जमा रहा है। वह नहीं चाहता कि नवाब उस पर अपनी झूठी शान-ए-शौकत का प्रभाव छोड़े। लेखक को ऐसा नवाबों के प्रति अपनी पूर्व-धारणा के कारण भी लगा होगा।

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विचार/संदेश संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 6.
‘लखनवी अंदाज़’ पाठ का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
यह पाठ एक महत्त्वपूर्ण संदेश की अभिव्यक्ति करता है। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने बताया है कि हर रचना के पीछे कोई-न-कोई विचार या चिंतन अवश्य रहता है। उस विचार या चिंतन को रचना में प्रस्तुत करने के लिए लेखक को एक निश्चित प्रक्रिया में से गुज़रना पड़ता है। इस रचना का प्रमुख संदेश दिखावा पसंद लोगों की जीवन शैली को दिखाना है। लेखक को रेल के डिब्बे में एक नवाब मिलता है। वह खीरे खाने की तैयारी में था, किंतु डिब्बे में लेखक के आ जाने से लेखक के सामने खीरे खाने में उसे संकोच होता है। इसलिए वह खीरे खाने की तैयारी विशेष ढंग से करता है किंतु उन्हें खाने की अपेक्षा सँघकर खिड़की के बाहर फेंक देता है तथा तृप्ति अनुभव करने का दिखावा करता है। अतः नवाब के इस व्यवहार से पता चलता है कि जो लोग जिस कार्य को एकांत में छुपकर करते हैं, उसे दूसरों के सामने करने में अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। यहाँ उनके चोरी आहार की तुष्टि होती है। इसमें वास्तविकता कुछ भी नहीं है, मात्र दिखावा है।

प्रश्न 7.
लेखक ने नवाब की असुविधा व संकोच को कैसे अनुभव किया?
उत्तर-
लेखक रेल के जिस डिब्बे में चढ़ा, वहाँ पहले से ही एक सज्जन पालथी मारे बैठा था। उनके डिब्बे में प्रवेश करने पर पहले से ही उपस्थित व्यक्ति ने लेखक को दुआ-सलाम कुछ भी नहीं कहा, अपितु वह उससे नज़रें बचाने का प्रयास करता रहा। लेखक ने उसकी इसी असुविधा और संकोच से अनुमान लगाया कि वह नहीं चाहता था कि कोई उसे वहाँ बैठे हुए देखे कि नवाब होते हुए सेकंड क्लास में यात्रा कर रहा है। उसके सामने रखे हुए खीरों से तो उनका संकोच और भी बढ़ गया था जिसे सही देखा जा सकता था। उन खीरों को लेखक के सामने खाने में भी उसे संकोच हो रहा था। सेकंड क्लास में यात्रा करना और खीरे खाना उसकी असुविधा और संकोच का कारण बन रहे थे जिसे लेखक ने सहज ही अनुभव कर लिया था।

प्रश्न 8.
‘लखनवी अंदाज’ पाठ में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
लखनवी अंदाज’ पाठ में लेखक ने उन लोगों पर व्यंग्य किया है जो जीवन की शान-बान का दिखावा करते हैं। वे जीवन की सहजता व स्वाभाविकता को स्वीकार करने से इन्कार करते हैं। लेखक ने दिखाया है कि खीरा एक साधारण वस्तु है तथा आम लोग उसका सेवन करते हैं किन्तु वह लखनवी नवाब उसे खाने में अपनी तौहीन समझता है। उसे सूंघकर चलती गाड़ी से नीचे फैंक देता है। वे इसी में अपनी महानता समझते हैं। ऐसे लोग सेकंड क्लास में यात्रा करना भी अपना बड़प्पन समझते हैं। इस प्रकार लेखक ने तथाकथित नवाबों के दिखावटी जीवन पर करारा व्यंग्य किया है।

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अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘लखनवी अंदाज़’ शीर्षक पाठ के लेखक का क्या नाम है?
उत्तर-
‘लखनवी अंदाज़’ शीर्षक पाठ के लेखक का नाम यशपाल है।

प्रश्न 2.
‘नवाबी नस्ल के एक सफेदपोश पालथी मारे बैठे थे’-‘सफेदपोश’ का अर्थ क्या है?
उत्तर-
“सफेदपोश’ का अर्थ भद्रपुरुष है।

प्रश्न 3.
लेखक ने खीरा खाने से क्यों इंकार कर दिया था?
उत्तर-
आत्म-सम्मान की रक्षा हेतु लेखक ने खीरा खाने से इंकार कर दिया था।

प्रश्न 4.
नवाब साहब ने खीरे की फाँकों को खिड़की के बाहर क्यों फेंक दिया था?
उत्तर-
खानदानी रईसों का अंदाज दिखाने के लिए नवाब साहब ने खीरे की फाँकों को खिड़की से बाहर फेंक दिया था।

प्रश्न 5.
लेखक की पुरानी आदत क्या थी?
उत्तर-
अकेले में तरह-तरह की कल्पनाएँ करना लेखक की पुरानी आदत थी।

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प्रश्न 6.
लेखक के अनुसार नवाबों की प्रमुख विशेषता क्या है?
उत्तर-
लेखक के अनुसार अपने को दूसरों से श्रेष्ठ समझना नवाबों की प्रमुख विशेषता है।

प्रश्न 7.
‘खीरे की पनियाती फाँके देखकर पानी मुँह में जरूर आ रहा था’ यहाँ ‘पनियाती’ शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर-
यहाँ ‘पनियाती’ शब्द का अर्थ है रसीली।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
लेखक ने ‘लखनवी अंदाज़’ शीर्षक पाठ में किस पर कटाक्ष/व्यंग्य किया है?
(A) कृषक वर्ग पर
(B) पतनशील सामंती वर्ग पर
(C) मध्य वर्ग पर
(D) निम्न मध्य वर्ग पर
उत्तर-
(B) पतनशील सामंती वर्ग पर

प्रश्न 2.
ट्रेन के सेकंड क्लास डिब्बे में एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल के कैसे सज्जन पालथी मारे बैठे थे?
(A) सफेदपोश
(B) नवाब
(C) लम्बी दाड़ी वाले
(D) पठानी पोशाक वाले
उत्तर-
(A) सफेदपोश

प्रश्न 3.
‘नवाबी नस्ल के एक सफेदपोश पालथी मारे बैठे थे’-‘सफेदपोश’ का अर्थ है-
(A) सफेद कपड़े पहने व्यक्ति
(B) सफेद दाढ़ी वाला व्यक्ति
(C) नवाब
(D) भद्रपुरुष
उत्तर-
(D) भद्रपुरुष

प्रश्न 4.
सफेदपोश सज्जन ने तौलिए पर कौन-सी वस्तु रखी हुई थी?
(A) आम
(B) तरबूज
(C) खीरे
(D) नींबू
उत्तर-
(C) खीरे

प्रश्न 5.
‘आँखें चुराना’ मुहावरे का अर्थ है-
(A) आँखों की चोरी करना
(B) आँखें न रहना
(C) नज़रें बचाना
(D) आँखों को छुपा देना
उत्तर-
(C) नज़रें बचाना

प्रश्न 6.
लेखक की दृष्टि में ‘खीरा’ किस वर्ग का प्रतीक है?
(A) मामूली लोगों के वर्ग का
(B) उच्च वर्ग का
(C) सामंती वर्ग का
(D) मध्यवर्ग का
उत्तर-
(A) मामूली लोगों के वर्ग का

प्रश्न 7.
नवाब साहब ने खीरे की फाँकों को किस प्रकार देखा था?
(A) नवाबी
(B) खोई-खोई
(C) लालची
(D) सतृष्ण
उत्तर-
(D) सतृष्ण

प्रश्न 8.
नवाब साहब ने खीरे की फाँकों को खिड़की के बाहर क्यों फेंक दिया था?
(A) कड़वी होने के कारण
(B) खराब होने के कारण
(C) खानदानी रईसों का अंदाज दिखाने के लिए
(D) मूर्खता के कारण
उत्तर-
(C) खानदानी रईसों का अंदाज दिखाने के लिए

प्रश्न 9.
“खीरा लज़ीज़ होता है लेकिन होता है सकील, नामुराद मेदे पर बोझ डाल देता है।” ये शब्द किसने कहे हैं?
(A) डॉक्टर ने
(B) कथानायक ने
(C) तीसरे मुसाफिर ने
(D) नवाब साहब ने
उत्तर-
(D) नवाब साहब ने

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

प्रश्न 10.
‘ज्ञान-चक्षु खुलना’ का अर्थ है-
(A) आँखें खुलना
(B) ज्ञान के द्वार खुलना
(C) ज्ञान होना
(D) ज्ञान की नदी बहना
उत्तर-
(C) ज्ञान होना

प्रश्न 11.
गाड़ी के डिब्बे में कौन बैठा था?
(A) टिकट निरीक्षक
(B) जेबकतरा
(C) नवाबी नस्ल का व्यक्ति
(D) स्वयं लेखक
उत्तर-
(C) नवाबी नस्ल का व्यक्ति

प्रश्न 12.
लेखक के अनुमान के प्रतिकूल क्या था?
(A) डिब्बा खाली नहीं था
(B) डिब्बा भरा हुआ था
(C) डिब्बा साफ नहीं था
(D) डिब्बा छोटा था
उत्तर-
(A) डिब्बा खाली नहीं था

प्रश्न 13.
नवाब साहब ने पलकें क्यों मूंद ली थीं?
(A) आनंदित होने के दिखावे के कारण
(B) अपने-आपको श्रेष्ठ दिखाने के लिए
(C) लेखक को हीन समझने के कारण
(D) अपनी संतुष्टि प्रकट करने के कारण
उत्तर-
(A) आनंदित होने के दिखावे के कारण।

प्रश्न 14.
नवाब साहब ने खीरे का स्वाद कैसे प्राप्त किया?
(A) खाकर
(B) सूंघकर
(C) देखकर
(D) दूसरों से सुनकर
उत्तर-
(B) सूंघकर

प्रश्न 15.
‘खीरा लज़ीज़ होता है लेकिन होता है सकील’ यहाँ ‘सकील’ शब्द का अर्थ है-
(A) आसानी से न पचने वाला
(B) सुपाच्य
(C) रसीला
(D) कोमल
उत्तर-
(A) आसानी से न पचने वाला

प्रश्न 16.
‘मुफस्सिल की पैसेंजर ट्रेन चल पड़ने की उतावली से फूंकार रही थी’-यहाँ ‘मुफस्सिल’ का अर्थ है-
(A) यात्रियों
(B) केन्द्रस्थ नगर के इर्द-गिर्द के स्थान
(C) वातानुकूलित
(D) लम्बी दूरी
उत्तर-
(B) केन्द्रस्थ नगर के इर्द-गिर्द के स्थान

प्रश्न 17.
यशपाल ने खीरे को क्या माना है?
(A) अपदार्थ वस्तु
(B) बहुमूल्य फल
(C) दुर्लभ फल
(D) अमर फल
उत्तर-
(A) अपदार्थ वस्तु

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प्रश्न 18.
लखनऊ के खीरे की विशेषता थी
(A) आलम
(B) लज़ीज़
(C) बालम
(D) देसी
उत्तर-
(B) लज़ीज़

प्रश्न 19.
नवाब साहब रेलगाड़ी में किस श्रेणी में सफर कर रहे थे?
(A) प्रथम श्रेणी
(B) वातानुकूलित
(C) तृतीय श्रेणी
(D) द्वितीय श्रेणी
उत्तर-
(D) द्वितीय श्रेणी

लखनवी अंदाज़ पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) गाड़ी छूट रही थी। सेकंड क्लास के एक छोटे डिब्बे को खाली समझकर, ज़रा दौड़कर उसमें चढ़ गए। अनुमान के प्रतिकूल डिब्बा निर्जन नहीं था। एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल के एक सफेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे। सामने दो ताजे-चिकने खीरे तौलिए पर रखे थे। डिब्बे में हमारे सहसा कद जाने से सज्जन की आँखों में एकांत चिंतन में विघ्न का असंतोष दिखाई दिया। सोचा, हो सकता है, यह भी कहानी के लिए सूझ की चिंता में हों या खीरे-जैसी अपदार्थ वस्तु का शौक करते देखे जाने के संकोच में हों।
नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया। हमने भी उनके सामने की बर्थ पर बैठकर आत्मसम्मान में आँखें चुरा ली।
[पृष्ठ 78]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) लेखक क्या सोचकर सेकंड क्लास के डिब्बे में चढ़ा था?
(ग) लेखक के अनुमान के प्रतिकूल क्या था?
(घ) गाड़ी के डिब्बे में कौन और कैसे बैठा था?
(ङ) लेखक ने पहले से बैठे सज्जन के विषय में क्या कल्पना की?
(च) लेखक और पहले से बैठे सज्जन ने एक-दूसरे से कैसा व्यवहार किया?
(छ) ‘लखनऊ की नवाबी नस्ल के सफेदपोश सज्जन’ में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
(ज) पहले बैठे सज्जन के सामने क्या रखा हुआ था?
(झ) उपर्युक्त गद्यांश का प्रसंग लिखते हुए आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-लखनवी अंदाज़। लेखक का नाम यशपाल।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

(ख) लेखक यह सोचकर सेकंड क्लास के डिब्बे में चढ़ा था कि यह डिब्बा बिल्कुल खाली होगा। उसमें कोई यात्री नहीं होगा। वह वहाँ बैठकर अपनी इच्छानुसार बाहर के दृश्य देख सकेगा और चिंतन-मनन कर सकेगा।

(ग) लेखक के अनुमान के प्रतिकूल डिब्बा बिल्कुल खाली नहीं था. अथवा डिब्बे का वातावरण बिल्कुल निर्जन नहीं था क्योंकि उसमें पहले से ही एक नवाबी स्वभाव वाला व्यक्ति बैठा हुआ था। इसलिए लेखक के लिए वहाँ बैठकर नई कहानी के विषय में सोचना संभव न हो सका।

(घ) गाड़ी के डिब्बे की बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल का एक सफेदपोश सज्ज़न बड़ी सुविधा से पालथी मारकर बैठा हुआ था।

(ङ) लेखक जब गाड़ी में आया तो उसने वहाँ एक लखनवी नवाबी किस्म के व्यक्ति को अकेले बैठे देखा। उसे देखकर लेखक ने कल्पना की कि हो सकता है कि यह भी कहानी के लिए सूझ की चिंता में हो या फिर खीरे जैसी अपदार्थ वस्तु का शौक करते देखे जाने के संकोच में हो।

(च) लेखक और पहले से बैठे व्यक्ति ने एक-दूसरे के प्रति अनजान, बेगानेपन और अवांछितों जैसा व्यवहार किया। मानो दोनों एक-दूसरे को अपने रास्ते में बाधा समझ रहे हों। पहले नवाबी स्वभाव वाले व्यक्ति ने लेखक की ओर से मुँह फेरा तो फिर उसने भी आत्म-सम्मान की रक्षा हेतु उसकी ओर से ध्यान हटा लिया। इस प्रकार दोनों का एक-दूसरे के प्रति सम्मानजनक व्यवहार नहीं रहा।

(छ) प्रस्तुत वाक्य के माध्यम को लेखक ने नवाबी स्वभाव वाले की विचित्रता को अभिव्यक्त किया है। वे स्वयं को बहुत ही नाजुक-मिज़ाज एवं सलीकेदार मनुष्य समझते हैं और दूसरों को हीन भाव से देखते हैं। उनकी ये विशेषताएँ कुछ अधिक बढ़ी-चढ़ी हुई होती हैं। वे अपने-आपको वास्तविकता से अधिक दिखाने का प्रयास करते हैं। ऐसे लोगों की इस विचित्रता को दिखाने के लिए ‘नस्ल’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। मानो ये इंसान की नस्ल के न होकर अन्य किसी प्रजाति के लोग हों।

(ज) पहले बैठे हुए सज्जन के सामने तौलिए पर दो खीरे रखे हुए थे।

(झ) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित पाठ ‘लखनवी अंदाज’ में से लिया गया है। इसके रचयिता श्री यशपाल हैं। इस पाठ में लेखक ने पतनशील सामंती वर्ग के दिखावे की प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है। यह वर्ग दिखावटी शैली का आदी है तथा वास्तविकता से बेखबर रहता है।

आशय/व्याख्या-लेखक को पास के स्टेशन तक की यात्रा करनी थी। इसलिए वह टिकट खरीदकर सेंकड क्लास के एक छोटे से डिब्बे में दौड़कर चढ़ गया। लेखक का अनुमान था कि डिब्बा खाली होगा, किंतु ऐसा नहीं था। एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल का व्यक्ति बड़े आराम से बैठा हुआ था। उसने अपने सामने दो कच्चे खीरे तौलिए पर रखे हुए थे। लेखक के एकाएक डिब्बे में आ जाने से उस भद्रपुरुष की आँखों में एकांत चिंतन में बाधा का असंतोष स्पष्ट देखा जा सकता था। लेखक का अनुमान था कि शायद यह व्यक्ति भी कहानी लिखने की सूझ की चिंता में हो अथवा खीरे जैसी सस्ती वस्तु का शौक करते हुए देखे जाने के संकोच में हो। नवाब साहब ने लेखक की संगति करने की इच्छा व्यक्त नहीं की। लेखक ने भी आत्मसम्मान की रक्षा हेतु उनकी ओर ध्यान नहीं दिया। कहने का भाव है कि दोनों ने एक-दूसरे के प्रति सम्मानजनक व्यवहार नहीं किया।

(2) ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है। नवाब साहब की असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान करने लगे। संभव है, नवाब साहब ने बिल्कुल अकेले यात्रा कर सकने के अनुमान में किफायत के विचार से सेकंड क्लास का टिकट खरीद लिया हो और अब गवारा न हो कि शहर का कोई सफेदपोश उन्हें मँझले दर्जे में सफर करता देखे।… अकेले सफर का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे और अब किसी सफेदपोश के सामने खीरा कैसे खाएँ? । – [पृष्ठ 78]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) लेखक की पुरानी आदत क्या और क्यों है?
(ग) लेखक ने नवाब के बारे में क्या सोचा?
(घ) लेखक नवाबों के विषय में किस धारणा से ग्रस्त है?
(ङ) यद्यपि लेखक ने भी सेकंड क्लास में यात्रा की फिर भी उसने नवाबों के चरित्र में कमियाँ निकाली, ऐसा क्यों?
(च) नवाब साहब खीरे क्यों नहीं खा रहे थे?
(छ) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग लिखकर आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-लखनवी अंदाज़। लेखक का नाम यशपाल।

(ख) लेखक की पुरानी आदत थी कि जब वह अकेला होता तो तरह-तरह की कल्पनाएँ करने लगता था। लेखक होने के कारण वह कल्पना के आधार पर अपनी रचनाओं का निर्माण करता था। खाली समय में वह यही सोचता रहता था कि कौन-सी रचना लिखी जाए और उसका रूप-आकार कैसा होगा।

(ग) लेखक ने जब गाड़ी के डिब्बे में प्रवेश किया तो वहाँ नवाब साहब को देखकर सोचा होगा कि शायद ये इस डिब्बे में अकेले यात्रा करना चाहते होंगे। उन्होंने अंदाज़ा लगाया होगा कि सेकंड क्लास का डिब्बा खाली होगा। इसलिए उन्होंने किराया बचाने के लिए भी सेकंड क्लास का टिकट खरीदा होगा। किंतु अब वे नहीं चाहते कि कोई सफेदपोश उन्हें मँझले दर्जे में यात्रा करते हुए देखे। वे इसे अपनी तौहीन समझते होंगे।

(घ) लेखक के मन में नवाबों के विषय में धारणा बन चुकी थीं कि ये नवाब अपने आप को दूसरों से श्रेष्ठ समझते हैं और सदा अपनी आन-शान के विषय में बढ़ा-चढ़ाकर बातें करने में लगे रहते हैं। वे स्वयं को ऊँचे दर्जे के प्राणी मानते हैं और ऊँचे दर्जे में यात्रा करके अपने आप को ऊँचे सिद्ध करने का प्रयास करते रहते हैं। यदि कभी सेकंड क्लास के डिब्बे में यात्रा करते देख लिए जाएँ तो अपनी तौहीन समझने लगते हैं। इसलिए ऐसे अवसर पर वे नज़रें चुराते फिरते हैं।

(ङ) निश्चय ही लेखक स्वयं सेकंड क्लास के दर्जे में यात्रा करता है और इसी दर्जे में नवाब को बैठे देखकर उसमें कमियाँ निकालता है। वह अपने विषय में कहता है कि उसने एकांत में बैठकर नई कहानी के विषय में चिंतन करने हेतु ही ऐसा किया। यद्यपि नवाब ने भी किसी ऐसे ही कारण से मँझोले दर्जे में यात्रा करने का निश्चय किया होगा। किंतु लेखक की धारणा बन चुकी है कि नवाब हमेशा ही अपनी शान बघारते रहते हैं। अतः लेखक पूर्व धारणा से ग्रस्त होने के कारण ऐसा कहता है।

(च) लेखक के अनुसार नवाब साहब ने अकेले में सफर करने के लिए, खीरे खाने के लिए खरीदे होंगे। किंतु अब खीरे इसलिए नहीं खा रहे होंगे कि कोई सफेदपोश व्यक्ति उन्हें खीरे जैसी सामान्य वस्तु खाते देख रहा है। इससे उनकी तौहीन होगी।

(छ) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘लखनवी अंदाज़’ नामक पाठ से अवतरित है। इस पाठ के रचयिता श्री यशपाल हैं। इस पाठ में उन्होंने जहाँ एक ओर सामंती वर्ग के दिखावे की प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है वहीं दूसरी ओर लेखकों की कल्पनाशीलता को भी उजागर किया है।

आशय/व्याख्या इन पंक्तियों में लेखक ने बताया है कि लेखक कल्पनाशील एवं एकांतप्रिय होते हैं। वे आसपास के जीवन को गहराई से देखते हैं तथा मानव-मनोविज्ञान में भी रुचि रखते हैं। लेखक सामने बैठे नवाब साहब की असुविधा एवं संकोच के कारण का अनुमान लगाने लगे। संभव है, नवाब साहब ने बिल्कुल अकेले में यात्रा करने के विचार से ही सेकंड क्लास की टिकट खरीदी हो क्योंकि आम लोग सेकंड क्लास में सफर नहीं करते। अब उन्हें यह बात भी अच्छी नहीं लगी होगी कि नगर का शिक्षित व्यक्ति उन्हें मध्य श्रेणी के दर्जे में सफर करते देखे। लेखक का अनुमान है कि उसने समय काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे, किंतु अब उन्हें किसी शिक्षित व्यक्ति के सामने खीरे खाने में संकोच हो रहा हो। कहने का भाव है कि नवाब साहब अपने-आपको अमीर व्यक्ति दिखाने का प्रयास कर रहे थे, जबकि वास्तव में वे थे नहीं। खीरा एक अति साधारण फल है। लेखक के सामने खीरा खाने से नवाब साहब की हेठी होती थी। इसलिए वह खीरे को कैसे खा सकता था।

(3) नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा। खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ निश्वास लिया। खीरे की एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गए। फाँक को सँघा। स्वाद के आनंद में पलकें मुंद गईं। मुँह में भर आए पानी का बूट गले से उतर गया। तब नवाब साहब ने फाँक को खिड़की से बाहर छोड़ दिया। नवाब साहब खीरे की फाँकों को नाक के पास ले जाकर, वासना से रसास्वादन कर खिड़की के बाहर फेंकते गए। [पृष्ठ 79-80]

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) नवाब साहब ने खीरे की फाँकों की ओर किस प्रकार देखा?
(ग) नवाब साहब ने खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ साँस क्यों लिया?
(घ) नवाब साहब ने अपनी पलकें क्यों मूंद लीं?
(ङ) नवाब साहब खीरे की फाँकों को खिड़की के बाहर क्यों फेंकने लगे?
(च) नवाब साहब ने खीरे की फाँकों का स्वाद कैसे प्राप्त किया?
(छ) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग लिखकर आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-लखनवी अंदाज़। लेखक का नाम यशपाल।

(ख) नवाब साहब ने खीरे की फाँकों की ओर सतृष्ण नज़रों से देखा मानो वह खीरा खाने के लिए बहुत ही उतावले हों।

(ग) नवाब साहब ने खिड़की से बाहर देखकर दीर्घ साँस इसलिए भरी थी क्योंकि वे चाहकर भी खीरा नहीं खा पा रहे थे। यही कारण था कि उन्हें खीरे की फाँकों को खिड़की से बाहर फेंकना पड़ा था। उनकी लंबी साँस ही उनकी खीरे को खाने की चाह को भी व्यक्त कर रही थी।

(घ) नवाब साहब खीरे के स्वाद के आनंद में डूबे हुए थे, उनकी खुशबू से आनंदित होकर उन्होंने अपनी आँखें मूंद ली थीं।

(ङ) नवाब साहब खीरे की फाँकों को खिड़की के बाहर फेंककर यह दर्शाना चाहते थे कि वे अब भी वही पुराने नवाब हैं। उनके शौक शाही हैं। उनमें किसी प्रकार का अंतर नहीं आया है।

(च) नवाब साहब ने खीरे की कटी हुई फाँक को उठाया, अपनी ललचाई हुई दृष्टि से उन्हें अपने होंठों तक ले आए। इसके बाद फाँक को भली-भाँति सूंघा। उन्हें ऐसा करने से बहुत आनंद प्राप्त हुआ। सूंघने के पश्चात् उन्हें खिड़की के बाहर फेंक दिया।

(छ) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित एवं श्री यशपाल द्वारा रचित व्यंग्य पाठ ‘लखनवी अंदाज’ से लिया गया है। इस पाठ में लेखक ने सामंती वर्ग की दिखावा करने की आदत का व्यंग्यपूर्ण उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में लेखक ने बताया है कि नवाब साहब किस प्रकार अपनी नवाबी शान, खानदानी तहज़ीब, लखनवी अंदाज और नज़ाकत प्रकट करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने आम व्यक्ति की तरह खीरा नहीं खाया, अपितु उसे सूंघ कर ही पेट भर लिया।

आशय/व्याख्या-लेखक कहता है कि नवाब साहब ने बहुत ललचाई हुई आँखों से नमक-मिर्च लगी हुई खीरे की चमकती हुई फाँकों को देखा। उन्होंने खिड़की की ओर देखकर एक लंबी साँस ली। इस प्रकार खीरे को देखकर लंबी साँस भरना नवाब साहब की विवशता को दर्शाता है। उन्होंने फाँक को हाथ में उठाया और सूंघा। स्वाद के आनंद का दिखावा करने के लिए पलकें बंद कर ली, किंतु मुँह में भर आए पानी का यूंट उनके गले से उतर गया। कहने का भाव है कि भले ही नवाब साहब खीरा न खाने का ढोंग कर रहे थे, किंतु वास्तविकता तो यह थी कि खीरे को देखकर उसे खाने के लिए उनका मन ललचा रहा था। तब नवाब साहब ने खीरे की फाँक को खिड़की से बाहर फेंक दिया। इस प्रकार नवाब साहब ने सभी फाँकों को नाक के पास ले जाकर केवल सूंघकर उसका रसास्वादन करके उन्हें खिड़की से बाहर फेंक दिया। कहने का भाव है कि नवाब साहब को फाँकों को इसलिए फैंकना पड़ा था क्योंकि वे चाहकर भी दूसरे व्यक्ति के सामने खीरे जैसी साधारण वस्तु नहीं खाना चाहते थे। उनके द्वारा ली गई लंबी साँस ही उनकी खीरा खाने की चाह को व्यक्त कर रही थी।

(4) नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए। हमें तसलीम में सिर खम कर लेना पड़ा-यह है खानदानी तहज़ीब, नफासत और नज़ाकत!
हम गौर कर रहे थे, खीरा इस्तेमाल करने के इस तरीके को खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से संतुष्ट होने का सूक्ष्म, नफीस या एब्स्ट्रैक्ट तरीका ज़रूर कहा जा सकता है परंतु क्या ऐसे तरीके से उदर की तृप्ति भी हो सकती है?
नवाब साहब की ओर से भरे पेट के ऊँचे डकार का शब्द सुनाई दिया और नवाब साहब ने हमारी ओर देखकर कह दिया, ‘खीरा लज़ीज़ होता है लेकिन होता है सकील, नामुराद मेदे पर बोझ डाल देता है।’ । [पृष्ठ 80]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) नवाब साहब क्यों थककर लेट गए थे?
(ग) नवाब साहब ने खीरा खाने की तैयारी कैसे की?
(घ) नवाब साहब की जीवन शैली देखकर लेखक ने क्या सोचा?
(ङ) लेखक को नवाब साहब की किस बात पर सिर खम करना पड़ा?
(च) नवाब साहब डकार लेकर क्या दिखाना चाहते थे?
(छ) नवाब साहब ने खीरा न खाने का क्या कारण बताया?
(ज) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग बताकर उसके आशय को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-लखनवी अंदाज़।
लेखक का नाम-यशपाल।

(ख) नवाब साहब को खीरे खाने की तैयारी में खीरे को धोने, साफ करने, सिरे काटकर मलने, छीलने, फाँके काटने, नमकमिर्च छिड़कने आदि कार्य करने और चाहकर भी उन्हें खा नहीं पाने के कारण थक गए थे।

(ग) नवाब साहब ने खीरों के नीचे रखा तौलिया झाड़कर अपने सामने बिछा लिया। सीट के नीचे से पानी का लोटा निकालकर खीरों को खिड़की के बाहर धोया और तौलिए से साफ किया। जेब से चाकू निकालकर दोनों खीरों के सिरों को काटा
और उन्हें गोदकर झाग निकाला। खीरों को सावधानी से छीला और फिर उनकी एक-एक फाँक काटते गए और तौलिए पर सजाते गए। तत्पश्चात् उन पर नमक-मिर्च छिड़का। अब खीरे खाने हेतु तैयार थे।

(घ) नवाब साहब की जीवन-शैली देखकर लेखक ने मन-ही-मन सोचा कि केवल स्वाद और सुगंध की कल्पना से उनका पेट कैसे भरता होगा? जब खीरा सूंघकर फेंक दिया तो पेट की तीव्र भूख कैसे शांत होगी। ऐसा करने से भूख का शांत होना तो असंभव ही है।

(ङ) लेखक को नवाब साहब द्वारा खीरे के प्रयोग की विधि पर अपना सिर झुकाना पड़ा था। वे किस प्रकार अपनी खानदानी शिष्टता, स्वच्छता तथा कोमलता का दिखावा करते हुए खीरे का रसास्वादन मात्र सूंघकर करते हैं। केवल अपनी शान-बान बघारने के लिए वे ऐसा क्यों करते हैं? वे सहज जीवन में शर्म अनुभव क्यों करते हैं।

(च) नवाब साहब ने डकार लेकर यह बताना चाहा है कि उनका पेट सुगंध और कल्पना से ही भर गया है। साथ ही यह भी दिखाना चाहते हैं कि वे ऊँचे, श्रेष्ठ और सूक्ष्म स्वादप्रिय व्यक्ति हैं।

(छ) नवाब साहब ने खीरा न खाने का कारण बताते हुए कहा कि खीरा होता तो बहुत ही स्वादिष्ट है, किंतु वह आसानी से पचता नहीं। इससे मेदे पर बोझा पड़ता है। इसलिए वे खीरा नहीं खाते।

(ज) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित पाठ ‘लखनवी अंदाज’ से उद्धृत है। इस पाठ के रचयिता श्री यशपाल हैं। इस गद्यांश में लेखक ने नवाबों के खीरा खाने की शैली अथवा केवल सूंघकर या कल्पना से पेट भरने के दिखावे पर कटाक्ष किया है। यहाँ लेखक ने नवाब द्वारा खीरा न खाने के बहाने को भी उजागर किया है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

आशय/व्याख्या-लेखक का कथन है कि नवाब साहब खीरे खाने की तैयारी और उसके प्रयोग से थककर लेट गए। लेखक को सम्मान में सिर झुकाना पड़ा कि यह है उनकी पारिवारिक शिष्टता, स्वच्छता और नाजुक मिज़ाजी अर्थात् कोमलता। कहने का भाव है कि नवाब साहब ने खीरा काटने व खाने में अपनी नवाबी शान-शौकतं को बड़ी सफाई से दिखाया। लेखक बताता है कि वह भली-भाँति देख रहा था कि खीरे को प्रयोग करने के इस ढंग को खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से संतुष्ट होने का सूक्ष्म, बढ़िया अथवा अमूर्त ढंग अवश्य कहा जा सकता है, किंतु क्या खीरा खाने के ऐसे ढंग से पेट की तृप्ति भी हो सकती है अर्थात् क्या खीरा सूंघने मात्र से पेट भर सकता है। लेखक को नवाब साहब द्वारा ली गई डकार का शब्द सुनाई दिया। इससे अनुमान लगाया जा सकता था कि वास्तव में ही नवाब साहब का पेट भर गया होगा। नवाब साहब ने डकार लेने के बाद लेखक की ओर देखकर कहा कि यह खीरा भी स्वादिष्ट होता है, किंतु होता बहुत भारी है। अभागा मेदे पर बोझ डाल देता है, अर्थात् जल्दी से हज़्म नहीं होता। कहने का भाव है कि नवाब साहब ने डकार मारने से यह सिद्ध करना चाहा है कि बड़े लोग साधारण तरीके से नहीं खाते। उनके अपने ही अंदाज होते हैं।

लखनवी अंदाज़ Summary in Hindi

लखनवी अंदाज़ लेखक-परिचय

प्रश्न-
यशपाल का जीवन परिचय एवं उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-यशपाल हिंदी के प्रमुख कहानीकारों में से एक हैं। इनका जन्म 3 दिसंबर, सन् 1903 को पंजाब के फीरोज़पुर छावनी में हुआ था। सन् 1921 में फीरोज़पुर जिले से मैट्रिक परीक्षा में प्रथम आकर उन्होंने अपनी कुशाग्र प्रतिभा का परिचय दिया। सन् 1921 में ही इन्होंने स्वदेशी आंदोलन में सहपाठी लाजपतराय के साथ जमकर भाग लिया। इन्हें सरकार की ओर से प्रथम आने पर छात्रवृत्ति भी मिली। परंतु न केवल इन्होंने उस छात्रवृत्ति को ठुकरा दिया, बल्कि सरकारी कॉलेज में नाम लिखवाना भी मंजूर नहीं किया। शीघ्र ही यशपाल काँग्रेस से उदासीन हो गए। इन्होंने पंजाब के राष्ट्रीय नेता लाला लाजपतराय द्वारा स्थापित लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला ले लिया। यहाँ से प्रसिद्ध क्रांतिकारी भगतसिंह, सुखदेव तथा राजगुरु के संपर्क में आए।

कॉलेज के विद्यार्थी जीवन में ही ये क्रांतिकारी बन गए। भगतसिंह द्वारा सार्जेंट सांडर्स को गोली मारना, दिल्ली असेम्बली पर बम फेंकना तथा लाहौर में बम फैक्टरी पकड़े जाना आदि इन सभी षड्यंत्रों में उनका भी हाथ था। बाद में समाजवादी प्रजातंत्र सेना के अध्यक्ष चंद्रशेखर आज़ाद के इलाहाबाद में, अंग्रेजों की गोली का शिकार हो जाने पर ये इस सेना के कमांडर नियुक्त हुए। 23 फरवरी, 1932 को अंग्रेजों से लड़ते हुए ये गिरफ्तार हो गए। इन्हें चौदह वर्ष की सज़ा हो गई। जेल में ही इन्होंने विश्व की अनेक भाषाओं; जैसे फ्रेंच, इटालियन, बांग्ला आदि का अध्ययन किया। जेल में ही इन्होंने अपनी प्रारंभिक कहानियाँ लिखीं। सन 1936 में जेल में ही इनका विवाह प्रकाशवती कपूर से हुआ। इनकी तरह वे भी क्रांतिकारी दल की सदस्या थीं। उनका झुकाव मार्क्सवादी चिंतन की ओर अधिक हुआ। उनकी कहानी ‘मक्रील’ के द्वारा उन्हें बहुत यश मिला। उनकी यह कहानी ‘भ्रमर’ नामक पत्रिका में भी प्रकाशित हुई थी। उन्होंने हिंदी साहित्य की सेवा साहित्यकार और प्रकाशक दोनों रूपों में की। 26 दिसंबर, 1976 को उनकी मृत्यु हो गई।

2. प्रमुख रचनाएँ-यशपाल ने अनेक रचनाओं का निर्माण किया, उनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं- ..

  • कहानी संग्रह-‘पिंजरे की उड़ान’, ‘वो दुनिया’, ‘तर्क का तूफान’, ‘ज्ञानदान’, ‘अभिशप्त’, ‘फूलों का कुर्ता’, ‘धर्म-युद्ध’, ‘उत्तराधिकारी’, ‘चित्र का शीर्षक’, ‘तुमने क्यों कहा था कि मैं सुंदर हूँ’, ‘उत्तमी की माँ’, ‘ओ भैरवी’, ‘सच बोलने की भूल’, ‘खच्चर और आदमी’, ‘भूख के तीन दिन’, ‘लैंप शेड’ ।
  • उपन्यास ‘दादा कॉमरेड’, ‘देशद्रोही’, ‘दिव्या’, ‘पार्टी कॉमरेड’, ‘मनुष्य के रूप’, ‘अमिता’, ‘झूठा सच’, ‘बारह घंटे’, ‘अप्सरा का श्राप’, ‘क्यों फँसे’, ‘मेरी तेरी उसकी बात’।
  • व्यंग्य लेख-चक्कर क्लब’ ।
  • संस्मरण-‘सिंहावलोकन’।
  • विचारात्मक निबंध ‘मार्क्सवाद’, ‘न्याय का संघर्ष’, ‘गाँधीवाद की शव परीक्षा’, ‘बात-बात में बात’, ‘चीनी कम्युनिस्ट पार्टी’, ‘रामराज्य की कथा’, ‘लोहे की दीवार के दोनों ओर’।

3. भाषा-शैली-भाषा के बारे में यशपाल जी का बड़ा ही उदार दृष्टिकोण रहा है। उन्होंने उर्दू, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं के शब्दों से कभी परहेज़ नहीं किया। ‘लखनवी अंदाज’ कहानी में जहाँ एक ओर संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है, वहाँ दूसरी ओर उर्दू एवं सामान्य बोलचाल के शब्दों का भी प्रयोग है। इस कहानी की भाषा स्थान, काल तथा चरित्र की प्रकृति के अनुसार गठित हुई है। इसका कारण यह है कि उन्हें न तो संस्कृत के शब्दों से अधिक प्रेम था और न ही अंग्रेज़ी, उर्दू शब्दों से परहेज़। वे भाषा को अभिव्यक्ति का साधन मानते थे। अतः उन्होंने इस कहानी में भाषा का सरल, सहज एवं स्वाभाविक रूप में प्रयोग किया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने वर्णनात्मक शैली के साथ-साथ संवादात्मक शैली का भी सफल प्रयोग किया है।

कुल मिलाकर लेखक ने सीधी-सादी और सामान्य हिंदी भाषा का ही प्रयोग किया है। प्रस्तुत कहानी में उर्दू मिश्रित हिंदी का प्रयोग किया गया है।

लखनवी अंदाज़ कहानी का सार

प्रश्न-
लखनवी अंदाज़’ शीर्षक कहानी का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘लखनवी अंदाज़’ शीर्षक कहानी एक व्यंग्य रचना है। इसमें लेखक ने पतनशील सामंती वर्ग पर व्यंग्य किया है। जो. वास्तविकता से बेखबर एक बनावटी जीवन-शैली का आदी है। आज के युग में भी समाज पर पलने वाली संस्कृति के लोगों को देखा जा सकता है। कहानी का सार इस प्रकार है-

लेखक को पास के स्टेशन तक ही यात्रा करनी थी। यद्यपि सेकंड क्लास में पैसे अधिक लगते थे। फिर भी सोचा कि नई कहानी के बारे में सोचने का और खिड़की से बाहर दृश्य देखने का अवसर भी मिल जाएगा। लेखक यही सोचकर सेकंड क्लास का टिकट लेकर रेल के डिब्बे में जा बैठा। वहाँ पहले से ही एक सज्जन बैठे थे। उनका पहनावा लखनवी नवाबों जैसा था। वे सीट पर पालथी मारकर बैठे हुए थे। उनके सामने तौलिए पर दो ताज़ा-चिकने खीरे रखे हुए थे। लेखक के आने से उन्हें कुछ विघ्न अनुभव हुआ, किंतु लेखक ने इसकी ओर विशेष ध्यान नहीं दिया।

लेखक नवाब के विषय में अनुमान लगाने लगा कि उसे लेखक का आना अच्छा क्यों नहीं लगा होगा। अचानक नवाब ने लेखक से खीरे खाने के लिए पूछा। किंतु लेखक ने इंकार कर दिया। नवाब ने दो खीरों को धोया, तौलिए से साफ किया। खीरों को चाकू से सिरों से काटकर उनके झाग निकाले और बहुत सलीके के साथ छीलकर काटा और उन पर नमक-मिर्च छिड़का। नवाब साहब का मुख देखकर ऐसा लगता था कि खीरे की फाँकें देखकर उनके मुँह में पानी आ रहा है। खीरे की सजावट को देखकर लेखक की खीरे खाने की इच्छा हो रही थी, किंतु लेखक एक बार इंकार कर चुका था, इसलिए अब नवाब द्वारा पुनः पूछे जाने पर आत्म-सम्मान की रक्षा हेतु इंकार करना पड़ा।

नवाब साहब भी खीरे की फाँकों को बड़े ध्यान से देख रहे थे। उन्होंने खीरे की एक-एक फाँक उठाई, उन्हें सूंघा और खिड़की के बाहर फेंक दिया। बाद में नवाब ने लेखक की ओर देखा ऐसा लग रहा था जैसे कह रहे हों कि खानदानी रईसों का यह भी खाने का एक अनोखा ढंग है।

लेखक मन-ही-मन सोच रहा था कि खाने के इस ढंग ने क्या पेट की भूख को शांत किया होगा? इतने में नवाब साहब जोर से डकार लेते हैं। अंत में नवाब साहब बोले कि खीरा खाने में बहुत अच्छा लगता है, किंतु अपच होने के कारण मेदे पर भारी पड़ता है। लेखक ने सोचा कि यदि नवाब बिना खीरा खाए डकार ले सकता है तो बिना घटना, पात्र और विचार के नई कहानी क्यों नहीं लिखी जा सकती।

कठिन शब्दों के अर्थ

(पृष्ठ-78) मुफस्सिल = केंद्रीय स्थान। पैसेंजर ट्रेन = यात्री गाड़ी। उतावली = जल्दी में। फूंकार करना = तेज़ आवाज़ करना। दाम = कीमत। अनुमान = अंदाज़ा। प्रतिकूल = उल्टा। निर्जन = एकांत, खाली। बर्थ = रेल के डिब्बे में बैठने की सीट। सफेदपोश = भला व्यक्ति। नवाबी नस्ल = नवाबों के स्वभाव वाला। सुविधा = आराम। सहसा = अचानक। चिंतन = विचार करना। विघ्न = बाधा। असंतोष = संतोष न होना। अपदार्थ वस्तु = तुच्छ वस्तु। आँखें चुराना = नज़रें बचाना। असुविधा = जहाँ सुविधा न हो। किफायत = बचत। संगति = साथ। संकोच = शर्म। गवारा न होना = सहन न होना। वक्त काटना = समय व्यतीत करना। गौर करना = ध्यान देना। आदाब-अर्जु = स्वागत या अभिवादन की एक विधि। शौक फरमाना = आनंद लेना। भाँप लेना = जान लेना, समझ लेना। गुमान = भ्रम। हरकत = गति, कार्य। लथेड़ लेना = सम्मिलित करना। किबला = सम्मानपूर्ण संबोधन।

(पृष्ठ-79) गोदकर = चुभाकर। एहतियात = सावधानी। हाज़िर = उपस्थित। करीने से = अच्छे ढंग से। सुर्जी = लाली। बुरकना = छिड़कना। स्फुरण = हिलना। भाव-भंगिमा = चेहरे पर उभरे हुए भाव। रईस = अमीर। असलियत = वास्तविकता। प्लावित होना = भर आना। पनियाती = रस से युक्त। मुँह में पानी आना = ललचाना। महसूस होना = अनुभव होना। मेदा = पाचन शक्ति। सतृष्ण = प्यास। दीर्घ निश्वास = लंबी साँस । पलकें मूंदना = आँखें बंद करना।

(पृष्ठ-80) रसास्वादन = रस का स्वाद लेना। गर्व = अभिमान। गुलाबी आँखें = अभिमान से भरी नज़रें। तसलीम = सम्मान। सूक्ष्म = बारीक। नफीस = बढ़िया। एब्स्ट्रैक्ट = अमूर्त, जिसका स्थूल आकार न हो। नज़ाकत = कोमलता। उदर = पेट। नामुराद = अभागा। ज्ञान चक्षु = ज्ञान रूपी नेत्र। सकील = भारी।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

HBSE 10th Class Hindi बालगोबिन भगत Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे? .
उत्तर-
बालगोबिन भगत खेतीबाड़ी करने वाले गृहस्थ थे, किंतु उनका संपूर्ण व्यवहार साधुओं जैसा था। सर्वप्रथम तो हम कह सकते हैं कि उनका जीवन उनके ईश्वर (साहब) के प्रति अर्पित था। उनमें किसी प्रकार का अहम् भाव नहीं था। वे अपने-आपको ईश्वर का बंदा मानते थे। वे अपनी कमाई पर सर्वप्रथम ईश्वर का अधिकार मानते थे। इसलिए वे अपने खेत में उत्पन्न होने वाली फसल को सर्वप्रथम कबीरपंथी मठ में ले जाते थे। वहाँ से उन्हें जो कुछ प्रसाद के रूप में मिलता था, उससे वे अपना गुजारा करते थे। वे तो अपने जीवन को ही प्रभु की देन मानते थे। वे सदैव सुख-दुःख में समभाव रहते थे। वे कभी झूठ नहीं बोलते थे और न ही किसी से धोखे का व्यवहार करते थे। वे तन-मन से प्रभु के गुणों का गान करते रहते थे। इन सब बातों को देखते हुए कहा जा सकता है कि बालगोबिन भगत गृहस्थ होते हुए भी साधु कहलाते थे।

प्रश्न 2.
भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी?
उत्तर-
भगत की पुत्रवधू बहुत समझदार युवती थी। पुत्र की मृत्यु के बाद भगत के घर में एकमात्र उनकी पुत्रवधू ही थी जो उनकी देखभाल कर सकती थी। वह सोचती थी कि यदि मैं भी यहाँ से चली गई तो कौन इनकी देखभाल करेगा? बुढ़ापे में कौन इनकी सेवा करेगा? बीमार होने पर कौन इनकी दवा-पानी करेगा? कौन इनको भोजन देगा? इन सब बातों के कारण ही वह भगत को अकेले नहीं छोड़ना चाहती थी।

प्रश्न 3.
भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस प्रकार व्यक्त की?
उत्तर-
बालगोबिन भगत का पुत्र उनकी एकमात्र संतान थी। वह कुछ सुस्त और बोदा-सा था। भगत उसे बहुत प्यार करते थे। किंतु अब वह बीमार रहने लगा और भगत द्वारा बचाने के प्रयास करने पर भी वह मर गया। भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर दूसरों की भाँति शोक नहीं मनाया। उनका मत था कि उनके बेटे की आत्मा परमात्मा के पास चली गई है। आज एक विरहिणी अपने प्रियतम के पास चली गई है। उसके मिलन का दुःख कैसा, उसके मिलन की तो खुशी मनाई जानी चाहिए। उन्होंने अपने बेटे के शव को फूलों से सजाया और उसके सामने आसन जमाकर प्रभु भजन गाने लगे। उसके सिराहने दीप जलाकर रख दिया था। जब उनकी पुत्रवधू रोने लगी तो उन्होंने उसे भी खुशी मनाने के लिए कहा था।

प्रश्न 4.
भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-
बालगोबिन भगत की आयु लगभग साठ वर्ष की रही होगी। वे मँझोले कद वाले गोरे-चिट्टे व्यक्ति थे। उनके बाल सफेद थे। उनके चेहरे पर उनके सफेद बाल चमचमाते रहते थे। माथे पर चंदन का लेप रहता था। कपड़ों के नाम पर कमर पर एक लंगोटी
और एक कबीरपंथी टोपी रहती थी। सर्द ऋतु आने पर वे काले रंग की कमली धारण करते थे। उनके गले में तुलसी की जड़ों से बनी एक बेडौल माला पड़ी रहती थी। वे कबीर को ‘साहब’ मानते थे। उनमें एक सच्चे साधु-संन्यासियों के सभी गुण थे। वे कबीर के पदों को अपनी मधुर आवाज़ में गाते रहते थे। वे सदा कबीर के द्वारा बताए गए आदर्शों पर चलते थे। वे कभी झूठ नहीं बोलते थे। अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए कभी किसी से धोखा नहीं करते थे। वे सबसे सदा खरा-खरा व्यवहार करते थे। वे सदा सत्य बोलते थे तथा कभी किसी से व्यर्थ का झगड़ा नहीं करते थे। दूसरों की वस्तुओं को कभी लेते या छूते तक नहीं थे। ईश्वर में पूर्ण रूप से उनकी आस्था थी। वे सदैव समभाव रहते थे।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी?
उत्तर-
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण इसलिए थी क्योंकि वे अपने दैनिक जीवन में भी नियमों का दृढ़ता से पालन करते थे। वे प्रातः बहुत जल्दी उठते और गाँव से लगभग दो मील दूर नदी पर जाकर स्नान करते थे। वापसी पर पोखर के ऊँचे स्थान पर बैठकर बँजड़ी बजाते हुए कबीर के पदों का गान करते थे। वे गर्मी-सर्दी की चिंता किए बिना प्रतिदिन ऐसा करते थे। वे बिना पूछे किसी की वस्तु को छूते नहीं थे, यहाँ तक कि किसी के खेत में कभी शौच भी न करते थे। इस प्रकार अपने दैनिक जीवन के व्यवहार में नियमों का ऐसा दृढ़ता से पालन करना लोगों के अचरज का कारण था।

प्रश्न 6.
पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
बालगोबिन भगत कबीरदास से अत्यधिक प्रभावित थे। यहाँ तक कि उन्हें ‘साहब’ कहते थे। इसलिए वे कबीर के प्रभु भक्ति संबंधी पदों का तल्लीनतापूर्ण गायन करते थे। उनके स्वर प्रभु की सच्ची पुकार थी। उनके गीतों का स्वर हृदय से निकला हुआ स्वर था। उनके गीतों को सुनने वाला हर व्यक्ति मंत्रमुग्ध हो जाता था। औरतें और बच्चे तो उनके गीतों को गुनगुनाने लग जाते थे। खेतों में काम करने वाले किसानों व मजदूरों के हाथ और पाँव एक विशेष लय में चलने लगते थे। उनके संगीत का हर दिल पर एक विशेष प्रभाव पड़ता था। जब भगत भजन गाता था तो चारों ओर एक मधुर वातावरण छा जाता था। गर्मी-सर्दी आदि हर मौसम में उनकी मधुर ध्वनि की लहरियाँ सुनी जा सकती थीं।।

प्रश्न 7.
कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर–
पाठ के आधार पर कहा जा सकता है कि निश्चित रूप से बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। इस बात को प्रमाणित करने के लिए पाठ के कुछ मार्मिक प्रसंग इस प्रकार हैं
पुत्र की मृत्यु पर विलाप न करके उसके शव के सामने आसन जमाकर तल्लीनता से गीत गाना। पुत्र की चिता को अग्नि स्वयं या किसी अन्य पुरुष से दिलवाने की अपेक्षा अपनी पुत्रवधू से दिलवाना। इसके साथ-साथ पुत्रवधू को उसके भाई के साथ वापस भेज देना ताकि वह पुनः विवाह करके सुखी जीवन व्यतीत कर सके। एक गृहस्थ होते हुए भी वे सच्चे साधु का जीवन व्यतीत करते थे।

प्रश्न 8.
धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थीं? उस माहौल का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए। .
उत्तर-
आषाढ़ के महीने में वर्षा होने पर चारों ओर खेतों में धान की फसल की ज्यों ही रोपाई आरंभ होती तो बालगोबिन भगत के भगवद् भक्ति के गीतों की स्वर लहरियाँ भी चारों ओर के वातावरण को संगीतमय बना देती थीं। ऐसा लगता था कि उनका कंठ एक-एक शब्द को संगीत की सीढ़ियों पर चढ़ाकर मानो स्वर्ग की ओर भेज रहा हो। खेलते हुए बच्चे झूम उठते थे, मेंड़ पर खड़ी औरतें गुनगुनाने लगती थीं, हलवाहों के पैर ताल के साथ उठने लगते थे और रोपनी करने वालों की अंगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगती थीं। चाहे मूसलाधार वर्षा हो, चाहे तेज़ गर्मी या जाड़ों की कड़कती सुबह, उनके संगीत को कोई भी मौसम प्रभावित नहीं कर पाता था। गर्मियों की उमस भरी संध्या में उनके घर में आँगन में खंजड़ी-करताल की भरमार हो जाती थी। एक निश्चित ताल और निश्चित गति से जब उनका स्वर ऊपर उठता था तो उनकी प्रेमी-मंडली के मन भी ऊपर उठते जाते थे और फिर धीरे-धीरे सभी बालगोबिन के साथ नृत्यशील हो उठते थे।

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रचना और अभिव्यक्ति-

प्रश्न 9.
पाठ के आधार पर बताएँ कि बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हुई है?
उत्तर-
बालगोबिन भगत कबीरदास के अनन्य उपासक एवं श्रद्धालु थे। उनकी यह श्रद्धा व उपासना विभिन्न रूपों में व्यक्त हुई है-
कबीरदास ईश्वर में आस्था रखते थे। इसलिए बालगोबिन भगत कबीरदास की इस भावना से अत्यंत प्रभावित हुए और उनके बताए हुए जीवन आदर्शों पर चलने लगे थे। जैसे कबीरदास ने गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए प्रभु भक्ति की, वैसे ही बालगोबिन भगत भी गृहस्थ जीवन में रहते हुए सदा प्रभु-भजन में लीन रहते थे। कबीर जीवन में दिखावे व पाखंड से दूर रहे, सामाजिक परंपराओं और अंधविश्वास का खंडन किया। बालगोबिन भगत ने पुत्रवधू के हाथ से पति की चिता को आग दिलवाकर और उसे स्वयं पुनर्विवाह के लिए प्रेरित करके कबीरदास के प्रति श्रद्धा व्यक्त की है। वे कबीर की भाँति सदा सत्य आचरण का पालन करते रहते थे।
कबीर की भाँति उन्होंने भी नर-नारी को समान माना और संसार व शरीर को नश्वर और आत्मा को अमर माना। वे कबीर की भाँति मन को ईश्वर भक्ति में लगाने की प्रेरणा देते थे।

प्रश्न 10.
आपकी दृष्टि में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के क्या कारण रहे होंगे?
उत्तर-
भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के अनेक कारण थे, यथा-कबीर समाज में प्रचलित रूढ़िवादी सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। वे भगवान् के निराकार रूप को मानते थे जिसमें मनुष्य के अंत समय में आत्मा से परमात्मा का मिलन होता . है। वे गृहस्थी होते हुए भी व्यवहार से साधु थे। इसी प्रकार कबीर जीवन और जीवन की वस्तुओं में ईश्वर की कृपा मानते थे। बालगोबिन भगत कबीर के जीवन की इन विशेषताओं के कारण ही उनके प्रति अगाध श्रद्धा रखते होंगे।

प्रश्न 11.
गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से क्यों भर जाता है?
उत्तर-
गाँव में किसानों की संख्या अधिक होती है। उनका मुख्य धंधा खेती होता है। ज्येष्ठ की तपती गर्मी के पश्चात् आषाढ़ मास में बादल उमड़कर वर्षा करने के लिए आ जाते हैं। इससे किसानों के हृदयों में प्रसन्नता का भाव भर जाता है। वर्षा की रिमझिम आरंभ हो जाती है। किसान धान की रोपाई का काम आरंभ कर देते हैं। गाँव के लोग खेतों में काम पर लग जाते हैं। बच्चे भी गीली मिट्टी में लिथड़कर भरपूर आनंद उठाते हैं। औरतें भी खेतों के काम करने के लिए निकल पड़ती हैं। अतः आषाढ़ के आते ही गाँव के सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवेश में उल्लास भर जाता है।

प्रश्न 12.
“ऊपर की तसवीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे।” क्या ‘साधु’ की पहचान पहनावे के आधार पर की जानी चाहिए? आप किन आधारों पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति ‘साधु’ है?
उत्तर-
साधु की पहचान उसके पहनावे से नहीं की जा सकती। आज के युग में लाखों की संख्या में साधु का पहनावा पहनकर लोग पेट-पूजा करने में जुटे हुए हैं। क्या उन सबको साधु मान लिया जाए, वास्तव में साधु की पहचान तो उसके व्यवहार एवं विचारों से ही की जानी चाहिए। साधु व्यक्ति की पहचान हम निम्नलिखित आधारों पर कर सकते हैं

(क) ईश्वर में आस्था होनी चाहिए और उसका जीवन प्रभु के प्रति समर्पित होना चाहिए।
(ख) सच्चे साधु का सरल स्वभाव होना नितांत आवश्यक है। यदि वह चंचल स्वभाव वाला है तो उसका व्यवहार भी वैसा ही होगा।
(ग) मधुर वाणी सच्चे साधु की अन्य प्रमुख पहचान है। कबीरदास ने भी मीठी वाणी की प्रशंसा की है। जो व्यक्ति सामाजिक बुराइयों का खंडन करता है और उनसे बचकर रहता है तथा उनके प्रति समाज के लोगों को सचेत करता है, वही सच्चा साधु कहलाता है।
ये सभी विशेषताएँ जिस व्यक्ति के जीवन में हों वह भले ही गृहस्थी क्यों न हो, फिर भी सच्चा साधु कहलाता है।

प्रश्न 13.
मोह और प्रेम में अंतर होता है। भगत के जीवन की किस घटना के आधार पर इस कथन का सच सिद्ध करेंगे ?
उत्तर-
मोह और प्रेम दो भिन्न भाव हैं। बालगोबिन भगत का एक ही बेटा था जो दिमाग से सुस्त था। भगत जी ने उसका पालनपोषण बहुत प्यार एवं ध्यानपूर्वक किया। भगत का मत है कि ऐसे बच्चों को सामान्य बच्चों की अपेक्षा अधिक प्यार की आवश्यकता होती है। भगत ने उसका विवाह भी बड़े चाव से किया। जब उसके बेटे की मृत्यु हो गई तब भगत ने बेटे के मोह में पड़कर उसकी मृत्यु का शोक नहीं किया। यहाँ तक कि उसकी पत्नी को भी शोक नहीं मनाने दिया। उसने जान लिया था कि शरीर नश्वर है और आत्मा अमर है जो शरीर के नष्ट हो जाने पर परमात्मा में विलीन हो जाती है। इस प्रकार उसे अपने बेटे से प्रेम तो था, किंतु मोह नहीं।

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भाषा-अध्ययन-

प्रश्न 14.
इस पाठ में आए कोई दस क्रियाविशेषण छाँटकर लिखिए और उनके भेद भी बताइए।
उत्तर-
(1) जब जब वह सामने आता
जब जब-कालवाची क्रियाविशेषण
सामने स्थानवाचक क्रियाविशेषण

(2) कपड़े बिल्कुल कम पहनते
बिल्कुल कम परिमाणवाची क्रियाविशेषण

(3) थोड़ी देर पहले मूसलाधार वर्षा हुई।
मूसलाधार–परिमाणवाची क्रियाविशेषण।

(4) न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते।
खामखाह रीतिवाचक क्रियाविशेषण।

(5) वे दिन-दिन. छीजने लगे।
दिन-दिन-कालवाची क्रियाविशेषण।

(6) जो सदा-सर्वदा सुनने को मिलते।
सदा-सर्वदा कालवाची क्रियाविशेषण।

(7) धीरे-धीरे स्वर ऊँचा होने लगा।
धीरे-धीरे-रीतिवाचक क्रियाविशेषण।

(8) मैं कभी-कभी सोचता हूँ।
कभी-कभी-कालवाचक क्रियाविशेषण।

(9) इधर पतोहू रो-रोकर कहती।।
रो-रोकर-रीतिवाचक क्रियाविशेषण।

(10) उस दिन संध्या में गीत गाए।
संध्या में कालवाचक क्रियाविशेषण

पाठेतर सक्रियता

पाठ में ऋतुओं के बहुत ही सुंदर शब्द-चित्र उकेरे गए हैं। बदलते हुए मौसम को दर्शाते हुए चित्र/फोटो का संग्रह कर एक अलबम तैयार कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

पाठ में आषाढ़, भादो, माघ आदि में विक्रम संवत कलैंडर के मासों के नाम आए हैं। यह कलैंडर किस माह से आरंभ होता है? महीनों की सूची तैयार कीजिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

कार्तिक के आते ही भगत ‘प्रभाती’ गाया करते थे। प्रभाती प्रातःकाल गाए जाने वाले गीतों को कहते हैं। प्रभाती गायन का संकलन कीजिए और उसकी संगीतमय प्रस्तुति कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

इस पाठ में जो ग्राम्य संस्कृति की झलक मिलती है वह आपके आसपास के वातावरण से कैसे भिन्न है?
उत्तर-
मैं रामपुर नगर का रहने वाला छात्र हूँ। यहाँ का वातावरण पाठ में दिखाए सांस्कृतिक वातावरण से नितांत भिन्न है। नगर में पक्की, चौड़ी सड़कें हैं। बड़े-बड़े कारखाने हैं जिनकी चिमनियों से धुआँ निकलता रहता है। वाहनों की ध्वनियाँ होती रहती हैं। सब लोग अपने कार्यों में व्यस्त रहते हैं। गाड़ियों की भरमार है। वर्षा आने न आने से कोई विशेष अंतर नहीं पड़ता। गर्मी से बचने के लिए वर्षा की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती क्योंकि यहाँ कूलर व ए०सी० जैसे आधुनिक साधन उपलब्ध हैं। यहाँ लोग रात को देर तक जागते हैं और प्रातःकाल में देर से उठने के आदी हो चुके हैं। यहाँ गाँवों की अपेक्षा प्रदूषण अत्यधिक है।

यह भी जानें-

प्रभातियाँ मुख्य रूप से बच्चों को जगाने के लिए गाई जाती हैं। प्रभाती में सूर्योदय से कुछ समय पूर्व से लेकर कुछ समय बाद तक का वर्णन होता है। प्रभातियों का भावक्षेत्र व्यापक और यथार्थ के अधिक निकट होता है। प्रभातियों या जागरण गीतों में केवल सुकोमल भावनाएँ ही नहीं वरन् वीरता, साहस और उत्साह की बातें भी कही जाती हैं। कुछ कवियों ने प्रभातियों में राष्ट्रीय चेतना और विकास की भावना पिरोने का प्रयास किया है।

श्री शंभूदयाल सक्सेना द्वारा रचित एक प्रभाती
पलकें, खोलो, रैन सिरानी।
बाबा चले खेत को हल ले सखियाँ भरती पानी ॥
बहुएँ घर-घर छाछ बिलोतीं गातीं गीत मथानी।
चरखे के संग गुन-गुन करती सूत कातती नानी ॥
मंगल गाती चील चिरैया आस्मान फहरानी।
रोम-रोम में रमी लाडली जीवन ज्योत सुहानी ॥
रोम-रोम में रमी लाडली जीवन ज्योत सुहानी।।
आलस छोड़ो, उठो न सुखदे! मैं तब मोल बिकानी।।
पलकें खोलो हे कल्याणी।।

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HBSE 10th Class Hindi बालगोबिन भगत Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बालगोबिन भगत किस संत को ‘साहब’ कहते थे और उन पर उसका कितना प्रभाव था?
उत्तर-
बालगोबिन भगत संत कबीर को ‘साहब’ कहते थे अर्थात् उन्हें अपना स्वामी या ईश्वर समझते थे। उनके जीवन पर कबीरदास का गहरा प्रभाव था। कबीरदास अत्यंत निर्भीक तथा दो टूक बात कहने वाले संत थे। कबीरदास की भाँति बालगोबिन भगत भी सदा सत्य बोलने का पालन करते रहे और सबके साथ खरी-खरी बातें करते थे। वे अपने खेत की फसल को सबसे पहले कबीर पंथी मठ में ले जाकर उनके प्रति अर्पित करते थे। वे वहाँ से मिले शेष अनाज को प्रसाद समझकर स्वीकार करते थे। अतः स्पष्ट है कि बालगोबिन भगत कबीरदास के प्रति गहन आस्था रखते थे।

प्रश्न 2.
लेखक बालगोबिन भगत की किन बातों से प्रभावित था?
उत्तर-
लेखक बालगोबिन भगत की ईश्वरं भक्ति से अत्यधिक प्रभावित था। उनकी ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना से तो लेखक अत्यधिक प्रभावित था। इसके अतिरिक्त उनके मधुर गायन का प्रभाव भी लेखक पर देखा जा सकता है। जब वे अपनी मधुर ध्वनि में गाते थे तो अन्य लोग भी अपना काम छोड़कर उनकी मधुर संगीत लहरी को सुनने में तल्लीन हो जाते थे।

प्रश्न 3.
बालगोबिन भगत की दिनचर्या पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
बालगोबिन भगत बहुत सवेरे जाग जाते थे। वे गंगा-स्नान करने के पश्चात् किसी स्थान पर बैठकर बँजड़ी बजाकर प्रभु-भजन गाते थे। उसके पश्चात् वे अपने पशुओं का काम करते और स्वयं भोजन करके खेत में काम करने निकल पड़ते। संध्या होने पर वे घर लौट आते थे।

प्रश्न 4.
आपकी दृष्टि में बालगोबिन भगत की संगीत साधना का चरमोत्कर्ष कब होता है? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर-
निश्चय ही बालगोबिन भगत एक अच्छे संगीतकार व गायक थे। किंतु उनकी संगीत साधना का चरमोत्कर्ष तब देखने को मिलता है जब अपने पुत्र की मृत्यु होने पर भी वे पहले की भाँति तल्लीनता से गाते रहे थे। उनका विश्वास था कि मृत्यु के पश्चात् आत्मा परमात्मा के पास चली जाती है। इससे बढ़कर खुशी का अवसर और क्या हो सकता है। यह समय रोने या शोक मनाने का नहीं, अपितु उत्सव मनाने का है।

प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत अपनी पुत्रवधू का पुनः विवाह क्यों करना चाहते थे? इसके पीछे उनकी कौन-सी भावना के दर्शन होते हैं?
उत्तर-
बालगोबिन भगत की पुत्रवधू अभी जवान थी। उसका सारा जीवन उसके सामने पड़ा था। वे नहीं चाहते थे कि वह अपना सारा जीवन विधवा बनकर काटे। उनका यह भी मानना था कि वह अभी जवान है और उसकी आयु अभी वासनाओं पर नियंत्रण करने की नहीं है, वह पुनः विवाह करके लोगों द्वारा दिए जाने वाले तानों में भी बच सकती है। बालगोबिन भगत समाज की रूढ़िवादिता में विश्वास नहीं रखते थे और समाज की वस्तु-स्थिति को भी भली-भाँति समझते थे। इसलिए यह निर्णय उनकी दूरदर्शिता को व्यक्त करता है।

प्रश्न 6.
कार्तिक मास से फाल्गुन मास तक बालगोबिन भगत का प्रमुख कार्य क्या होता था? ।
उत्तर-
कार्तिक मास के आरंभ होते ही बालगोबिन भगत का प्रभाती गायन आरंभ हो जाता था। उनकी प्रभाती फाल्गुन मास तक निरंतर चलती थी। वे बहुत सवेरे उठते दो मील दूर गंगा-स्नान करते और वापसी में गाँव के पोखर पर बैठकर अपनी बँजड़ी बजाते हुए प्रभु-भजन गाते रहते थे। वे इतनी तल्लीनता से गाते थे कि अपने आस-पास के वातावरण को भी भूल जाते थे। वे माघ की सर्दी में इतनी उत्तेजना से गाते थे कि उन्हें पसीना आ जाता था जबकि सुनने वाले ठंड से काँप रहे होते थे।

प्रश्न 7.
बालगोबिन भगत की मृत्यु पर लघु टिप्पणी लिखिए।
उत्तर–
बालगोबिन भगत हर वर्ष गंगा-स्नान के लिए जाते थे, किंतु अब वे अत्यधिक बूढ़े हो गए थे। उनका शरीर भी कमज़ोर पड़ चुका था। किंतु वे अपने नियम पर अङिग रहे और गंगा स्नान के लिए पहले की भाँति ही गए। वे मार्ग मे कुछ नहीं खाते थे। इस वर्ष जब वे गंगा-स्नान से लौटे तो उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था। धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य गिरने लगा किंतु वे अपने जीवन के नेम-व्रत पालन पर अङिग रहे। वे दोनों समय स्नान ध्यान व गायन करते तथा खेतीबाड़ी की देखभाल भी करते। लोग उन्हें आराम करने की सलाह देते तो हँसकर टाल देते। एक दिन वे गीत गाकर सोए तो उनके प्राण पखेरू उड़ गए। उनके साँसों की माला टूटकर बिखर गई। लोगों को पता चला कि बालगोबिन भगत नहीं रहे। अतः उनकी मृत्यु स्वाभाविक मृत्यु थी।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

प्रश्न 8.
बालगोबिन भगत का चरित्र-चित्रण अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
बालगोबिन ईश्वर के भगत हैं। वे पाठ के मुख्य पात्र हैं। उनके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं
वे गृहस्थ होते हुए भी एक साधु जैसा जीवन व्यतीत करते थे। उनकी आयु साठ वर्ष के लगभग थी। वे एक धोती ही पहनते थे और सिर पर कबीर कनफटी टोपी धारण करते थे। सर्दी आने पर काला कंबल ओढ़ लेते थे। उनके माथे पर चंदन का टीका लगा रहता था।
बालगोबिन भगत अन्य ग्रामीण लोगों की भाँति खेतीबाड़ी का काम करते थे। वे खेत में काम करते हुए भी प्रभु-भजन में लीन रहते थे। बालगोबिन भगत मधुर स्वर में प्रभु-भजन गाया करते थे। वे कबीर के पद गाते थे। उनके संगीत का जादू ऐसा था कि जो भी उसे सुनता, उसमें लीन हो जाता था।

बालगोबिन भगत अत्यंत संतोषी व्यक्ति थे। उनकी इच्छाएँ अत्यंत सीमित थीं। वे सबके साथ खरा एवं सच्चा व्यवहार करते थे। उनके मन में ईश्वर के प्रति अगाध आस्था थी। सांसारिक मोह उन्हें छू भी नहीं सकता था। वे शरीर को नश्वर और आत्मा को परमात्मा का अंश मानते थे। मृत्यु उनके लिए मोक्ष प्राप्ति का साधन थी। वे उसे एक उत्सव के रूप में मानते थे।
सामाजिक रूढ़ियों में उनका विश्वास नहीं था। उसकी दृष्टि में नर-नारी सब समान थे। वे विधवा-विवाह के पक्ष में थे।
अतः स्पष्ट है कि बालगोबिन भगत एक सच्चे साधु थे।

विचार/संदेश संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 9.
‘बालगोबिन भगत’ पाठ के माध्यम से लेखक ने क्या संदेश/मूलभाव दिया है।
उत्तर-
‘बालगोबिन भगत’ शीर्षक पाठ के माध्यम से लेखक ने संदेश दिया है कि ईश्वर की भक्त करने के लिए मनुष्य को समाज छोड़कर जंगलों में आने की आवश्यकता नहीं है। गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी प्रभु-भक्ति की जा सकती है। बालगोबिन भगत का जीवन इसका प्रमाण है। वह साधारण गृहस्थी है। वह खेतीबाड़ी का काम करता है, और सदा सच बोलता है। वह दूसरों से कभी कपटपूर्ण व्यवहार नहीं करता। जो कुछ भी वह कमाता है, उसे ईश्वर का प्रसाद समझकर ग्रहण करता है। सांसारिक मोह के बंधन से मुक्त है। वह सामाजिक रूढ़ियों में विश्वास नहीं करता। सुख-दुःख में सदैव प्रभु गुणगान करता रहता है। अतः स्पष्ट है कि लेखक ने बालगोबिन भगत के जीवन के माध्यम से महान संदेश दिया है कि प्रभु-भक्ति गृहस्थ जीवन में भी संभव है।

प्रश्न 10.
लेखक ने मनुष्य की श्रेष्ठता के कौन-से प्रमुख आधार बताए हैं? पठित पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर-
पठित पाठ में लेखक ने स्पष्ट किया है कि मनुष्य की श्रेष्ठतां उसके बाह्य दिखावे व पहनावे पर नहीं, अपितु उसके गुणों पर आधारित होती है। पाठ में बालगोबिन तेली जाति से संबंधित था। तेली जात को समाज नीची जाति समझता है। स्वयं लेखक भी ऐसा ही समझता था और बालगोबिन के सामने सिर झुकाना अपना अपमान समझता था किंतु बालगोबिन की प्रभु-भक्ति की भावना ने लेखक का हृदय जीत लिया और लेखक उसका सम्मान करने लगा था। न केवल लेखक ही, बल्कि सारा गाँव उसका सम्मान करता था।

प्रश्न 11.
“पाठ में जाति-प्रथा पर करारा व्यंग्य किया गया है-” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर–
प्रस्तुत पाठ में जाति-प्रथा पर करारा व्यंग्य किया गया है। लेखक ने बताया है कि मनुष्य जन्म या जाति के आधार पर बड़ा नहीं होता, मनुष्य तो अपने शुभ कर्मों व गुणों के आधार पर बड़ा होता है। लेखक स्वयं ब्राह्मण जाति से संबंधित था और ब्राह्मणत्व के नशे में चूर रहता था। वह छोटी जाति के लोगों का आदर नहीं करता था। वह तेली जाति के लोगों को हीन समझता था। किंतु लेखक को बड़े होने पर यह बात समझ आई कि व्यक्ति की महानता जाति या जन्म के आधार पर नहीं होती, अपितु व्यक्ति के कर्मों और गुणों के आधार पर होती है। इसलिए लेखक ने जाति-प्रथा को समाज विरोधी समझकर उस पर करारा व्यंग्य किया है।

प्रश्न 12.
‘बालगोबिन भगत’ पाठ में लेखक के मृत्यु संबंधी विचारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में मृत्यु को दुःख या शोक का कारण न बताकर उत्सव व प्रसन्नता का कारण बताया गया है। बालगोबिन भगत अपने बेटे की मृत्यु पर जरा भी दुःखी नहीं हुए और न अपनी पुत्रवधू को रोने दिया। वे मृत्यु को आत्मा का परमात्मा से मिलन का साधन मानते हैं। इसलिए मृत्यु को उत्सव की भाँति समझना चाहिए।

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘बालगोबिन भगत’ शीर्षक पाठ साहित्य की किस विधा के अंतर्गत आता है?
उत्तर-
‘बालगोबिन भगत’ शीर्षक पाठ साहित्य रेखाचित्र विधा के अंतर्गत आता है।

प्रश्न 2.
बालगोबिन की टोपी कैसी थी?
उत्तर-
बालगोबिन की टोपी कबीरपंथियों जैसी थी।

प्रश्न 3.
लेखक बालगोबिन भगत की किस विशेषता पर अत्यधिक मुग्ध था?
उत्तर-
लेखक बालगोबिन भगत के मधुर के गान पर अत्यधिक मुग्ध था।

प्रश्न 4.
बालगोबिन भगत के कितने बेटे थे?
उत्तर-
एक बेटा था।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत आत्मा और परमात्मा के बीच कौन-सा संबंध मानते थे?
उत्तर-
बालगोबिन भगत आत्मा और परमात्मा के बीच प्रेमी-प्रेमिका का संबंध मानते थे।

प्रश्न 6.
बेटे की मृत्यु के पश्चात् बालगोबिन भगत की आखिरी दलील क्या थी?
उत्तर-
बेटे की मृत्यु के पश्चात् बालगोबिन भगत की आखिरी दलील पतोहू का पुनर्विवाह करवाना था।

प्रश्न 7.
लेखक ने बालगोबिन भगत की आयु कितनी बताई है?
उत्तर-
साठ वर्ष से अधिक।

प्रश्न 8.
बालगोबिन भगत ने पुत्र की मृत्यु के उपरांत पतोहू को रोने के बदले क्या करने को कहा?
उत्तर-
बालगोबिन भगत ने पुत्र की मृत्यु के उपरांत पतोहू को रोने के बदले उत्सव मनाने को कहा।

प्रश्न 9.
घर की पूरी प्रबंधिका बनकर बालगोबिन भगत को किसने दुनियादारी से मुक्त कर दिया था?
उत्तर-
बालगोबिन भगत की पुत्रवधू ने।

प्रश्न 10.
बालगोबिन भगत के पुत्र की मृत्यु का क्या कारण था?
उत्तर-
बालगोबिन भगत के पुत्र की मृत्यु का कारण बीमारी था।

प्रश्न 11.
बालगोबिन भगत की संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष किस दिन देखा गया?
उत्तर-
बालगोबिन भगत की संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष उस दिन देखा गया जब अपने पुत्र की मृत्यु होने पर भी वे तल्लीनता से गाते रहे।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘बालगोबिन भगत’ शीर्षक पाठ के लेखक का क्या नाम है?
(A) यशपाल
(B) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
(C) रामवृक्ष बेनीपुरी
(D) स्वयं प्रकाश
उत्तर-
(C) रामवृक्ष बेनीपुरी

प्रश्न 2.
बालगोबिन भगत की आयु कितनी थी?
(A) 50 वर्ष
(B) 60 वर्ष से अधिक
(C) 70 वर्ष
(D) 80 वर्ष
उत्तर-
(B) 60 वर्ष से अधिक

प्रश्न 3.
बालगोबिन भगत किसके आदर्शों पर चलते थे?
(A) तुलसीदास के
(B) कबीर के
(C) सूरदास के
(D) नानक के
उत्तर-
(B) कबीर के

प्रश्न 4.
बालगोबिन भगत कैसे कद के व्यक्ति थे
(A) लम्बे
(B) छोटे
(C) मंझोले
(D) सामान्य
उत्तर-
(C) मंझोले

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प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत अपनी फसल को पहले कहाँ ले जाते थे?
(A) मंदिर में
(B) गुरुद्वारे में
(C) मस्जिद में
(D) कबीरपंथी मठ में
उत्तर-
(D) कबीरपंथी मठ में

प्रश्न 6.
लेखक ने “रोपनी’ किसे कहा है?
(A) रोपण को
(B) धान की रोपाई को
(C) धान की कटाई को
(D) धान की खेती को
उत्तर-
(B) धान की रोपाई को

प्रश्न 7.
बालगोबिन भगत खेत में क्या करते हैं?
(A) केवल गीत गाते हैं .
(B) खेत की मेंड़ पर बैठते हैं
(C) धान के पौधे लगाते हैं
(D) उपदेश देते हैं
उत्तर-
(C) धान के पौधे लगाते हैं

प्रश्न 8.
बालगोबिन भगत का रंग कैसा था
(A) साँवला
(B) काला
(C) गेहुंआ
(D) गोरा चिट्टा
उत्तर-
(D) गोरा चिट्टा

प्रश्न 9.
बालगोबिन भगत के गीतों में कौन-सा भाव व्यक्त होता था?
(A) शृंगार का भाव
(B) विरह का भाव
(C) ईश्वर भक्ति का भाव
(D) वैराग्य का भाव
उत्तर-
(C) ईश्वर भक्ति का भाव ।

प्रश्न 10.
‘तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग ज़रा!’ इस पंक्ति में मुसाफिर किसे कहा गया है?
(A) यात्री को
(B) मनुष्य को
(C) पथिक को
(D) बालक को
उत्तर-
(B) मनुष्य को

प्रश्न 11.
कार्तिक मास आने पर बालगोबिन भगत क्या करने लगते थे?
(A) प्रभातफेरी शुरू करने लगते
(B) गंगा-स्नान करने लगते
(C) भजन करने लगते
(D) सत्संग करने लगते
उत्तर-
(A) प्रभातफेरी शुरू करने लगते

प्रश्न 12.
बालगोबिन भगत के संगीत को लेखक ने क्या कहा है?
(A) उपदेश
(B) लहर
(C) जादू
(D) शहनाई
उत्तर-
(C) जादू

प्रश्न 13.
बेटे की मृत्यु के पश्चात् बालगोबिन भगत की आखिरी दलील क्या थी?
(A) पतोहू का पुनर्विवाह करवाना
(B) पतोहू को शिक्षा दिलवाना
(C) पतोहू को घर से निकालना
(D) पतोहू से घृणा करना
उत्तर-
(A) पतोहू का पुनर्विवाह करवाना

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प्रश्न 14.
बालगोबिन भगत की मृत्यु का क्या कारण था?
(A) दुर्घटना
(B) बीमारी
(C) भूख
(D) बेटे की मृत्यु की चिंता
उत्तर-
(B) बीमारी

प्रश्न 15.
बाल गोबिन भगत की प्रभातियाँ कब तक चलती थीं-
(A) फागुन तक
(B) कार्तिक तक
(C) बैशाख तक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(A) फागुन तक

प्रश्न 16.
बालगोबिन भगत गंगा स्नान करने किस साधन से जाते थे?
(A) मोटरगाड़ी से
(B) रेलगाड़ी से
(C) बैलगाड़ी से
(D) पैदल
उत्तर-
(D) पैदल

प्रश्न 17.
बालगोबिन भगत के पुत्र की मृत्यु पर अंतिम संस्कार में आग किससे दिलाई गई?
(A) स्वयं बालगोबिन भगत से
(B) पतोहू से
(C) रिश्तेदार से
(D) पतोहू के भाई से
उत्तर-
(B) पतोहू से

प्रश्न 18.
बालगोबिन भगत के घर से गंगा नदी कितनी कोस दूर थी?
(A) 10
(B) 30
(C) 50
(D) 80
उत्तर-
(B) 30

प्रश्न 19.
बालगोबिन भगत के कितने बेटे थे?
(A) तीन
(B) चार
(C) दो ।
(D) एक
उत्तर-
(D) एक

प्रश्न 20.
बालगोबिन भगत कौन-सा वाद्य यंत्र बजाते थे?
(A) बाँसुरी
(B) तानपूरा
(C) सितार
(D) बँजड़ी
उत्तर-
(D) बँजड़ी

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बालगोबिन भगत पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) ऊपर की तसवीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे। नहीं, बिलकुल गृहस्थ! उनकी गृहिणी की तो मुझे याद नहीं, उनके बेटे और पतोहू को तो मैंने देखा था। थोड़ी खेतीबारी भी थी, एक अच्छा साफ-सुथरा मकान भी था।
किंतु, खेतीबारी करते, परिवार रखते भी, बालगोबिन भगत साधु थे-साधु की सब परिभाषाओं में खरे उतरनेवाले। कबीर को ‘साहब’ मानते थे, उन्हीं के गीतों को गाते, उन्हीं के आदेशों पर चलते। कभी झूठ नहीं बोलते, खरा व्यवहार रखते। किसी से भी दो-टूक बात करने में संकोच नहीं करते, न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते। किसी की चीज़ नहीं छूते, न बिना पूछे व्यवहार में लाते। इस नियम को कभी-कभी इतनी बारीकी तक ले जाते कि लोगों को कुतूहल होता!-कभी वह दूसरे के खेत में शौच के लिए भी नहीं बैठते! वह गृहस्थ थे; लेकिन उनकी सब चीज़ ‘साहब’ की थी। जो कुछ खेत में पैदा होता, सिर पर लादकर पहले उसे साहब के दरबार में ले जाते जो उनके घर से चार कोस दूर पर था-एक कबीरपंथी मठ से मतलब! वह दरबार में ‘भेंट’ रूप रख लिया जाकर ‘प्रसाद’ रूप में जो उन्हें मिलता, उसे घर लाते और उसी से गुज़र चलाते! [पृष्ठ 70]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) ऊपर की तस्वीर के अनुसार बालगोबिन कैसे लगते थे?
(ग) क्या बालगोबिन एक गृहस्थ थे? स्पष्ट कीजिए।
(घ) बालगोबिन किसको साहब मानते थे?
(ङ) बालगोबिन गृहस्थ होते हुए भी साधु थे-कैसे?
(च) बालगोबिन का दूसरों के प्रति व्यवहार कैसा था?
(छ) मठ बालगोबिन की फसलों का क्या करता था?
(ज) इस गद्यांश का मूलभाव क्या है?
(झ) उपर्युक्त गद्यांश का प्रसंग लिखते हुए आशय स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-बालगोबिन भगत।
लेखक का नाम-रामवृक्ष बेनीपुरी।

(ख) ऊपर की तस्वीर के अनुसार बालगोबिन एक साधु लगते थे। उनकी आयु साठ वर्ष के लगभग होगी। वे रंग-रूप में अत्यधिक गोरे थे। उनके सिर और दाढ़ी के बाल सफेद हो चुके थे। उनका कद मँझोला था। वे प्रायः एक लंगोटी में रहते थे। सिर पर कबीरपंथियों के समान कनफटी टोपी धारण करते थे। सर्दी आने पर काला कंबल ओढ़ते थे। उनके माथे पर चंदन का लेप रहता था और गले में तुलसी की माला रहती थी।

(ग) बालगोबिन भगत वास्तव में ही गृहस्थ थे। वे देखने में भले ही संन्यासी लगते हों, किंतु एक सच्चे गृहस्थी के सारे कर्तव्यों का पालन करते थे। उनकी पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी किंतु उनका बेटा और बहू उनके साथ रहते थे। वे दूसरों से सदा ही सद्व्यवहार करते थे। वे दूसरों से कोई भी वस्तु माँगने से या उधार लेने से बचते थे। यहाँ तक कि वे किसी दूसरे के खेत में शौच तक न जाते थे।

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(घ) बालगोबिन संत कबीर को अपना ‘साहब’ अर्थात् स्वामी मानते थे।

(ङ) बालगोबिन भगत गृहस्थी थे और एक सच्चे गृहस्थी की भाँति व्यवहार करते थे। किंतु उनका व्यवहार साधु-संन्यासियों जैसा था। उन्हें ईश्वर (साहब) में पूर्ण विश्वास था। उन्हें संसार की किसी भी वस्तु से मोह नहीं था। वे सबसे सच्चा और खरा व्यवहार करते थे। उनकी बातों में जरा भी संदेह नहीं होता था। अहंकार तो उन्हें छू तक नहीं गया था।

(च) बालगोबिन का दूसरों के प्रति अत्यंत उचित व्यवहार था। वे कभी किसी से झूठ नहीं बोलते थे और न ही किसी प्रकार का धोखा करते थे। किसी से उधार माँगकर कभी किसी को तंग नहीं करते थे। कभी किसी बात पर दूसरों से झगड़ा नहीं करते थे।

(छ) कबीरपंथी मठ का सेवक बालगोबिन की फसल में से कुछ अंश अपने पास रख लेता था और शेष उन्हें प्रसाद के रूप में लौटा देता था। इस अनाज को लेकर बालगोबिन घर आ जाता था और उसी से घर का गुजारा चलाता था।

(ज) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने बालगोबिन भगत के जीवन की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख किया है। वे कभी किसी से झूठ, लोभ व क्रोधयुक्त व्यवहार नहीं करते थे। वे पूर्णरूप से ईश्वर में विश्वास रखते थे। वे अपनी नेक कमाई को पहले भगवान के प्रति अर्पित करते थे और फिर भोग करते थे। उनके भोग में त्याग की भावना सदैव बनी रहती थी। कहने का भाव है कि यदि हम भी बालगोबिन के इन गुणों को अपना लें तो हमारा भी कल्याण हो जाएगा।

(झ) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित एवं रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा रचित ‘बालगोबिन भगत’ नामक पाठ से लिया गया है। इस पाठ में लेखक ने बालगोबिन भगत के जीवन और आदर्शों पर प्रकाश डाला है।

आशय/व्याख्या-बालगोबिन भगत की बनाई गई तस्वीर से वे एक साधु लगते थे, किंतु वास्तव में वे एक गृहस्थी थे। उनकी पत्नी की तो लेखक को याद नहीं है, किंतु उनके बेटे और बेटे की पत्नी को अवश्य देखा था। वे थोड़ा-बहुत खेतीबाड़ी (कृषि) का काम भी करते थे। उनका एक साफ-सुथरा मकान भी था। बालगोबिन भगत खेतीबाड़ी के साथ-साथ पारिवारिक काम भी करते थे। इन सबके होते हुए भी वे भगत एवं साधु-संन्यासी थे। उनमें साधु-संन्यासियों वाले सभी गुण थे। वे कबीर को ‘साहब’ मानते थे। उन्हीं के आदर्शों पर चलते थे और कभी झूठ नहीं बोलते थे। वे दूसरों के साथ सच्चा एवं खरा व्यवहार करते थे। किसी के साथ बिना बात के झगड़ा भी नहीं करते थे। दूसरों की वस्तुओं को स्पर्श तक नहीं करते थे। बिना पूछे कभी किसी की वस्तु का प्रयोग भी नहीं करते थे। उनके ऐसे व्यवहार को देखकर लोग हैरान रह जाते थे। वे दूसरों के खेत में शौच भी नहीं जाते थे। वे अपनी हर वस्तु को ईश्वर की वस्तु मानते थे। उनके खेत में जो अनाज उत्पन्न होता, उसे अपने सिर पर उठाकर साहब के दरबार में ले जाते थे। दरबार कबीरपंथी मठ था। वहाँ से जो अनाज उन्हें प्रसाद रूप में मिलता था, उसे घर लाते और उसी में गुजारा करते थे।

(2) आसमान बादल से घिरा; धूप का नाम नहीं। ठंडी पुरवाई चल रही। ऐसे ही समय आपके कानों में एक स्वर-तरंग झंकार-सी कर उठी। यह क्या है यह कौन है! यह पूछना न पड़ेगा। बालगोबिन भगत समूचा शरीर कीचड़ में लिथड़े अपने खेत में रोपनी कर रहे हैं। उनकी अँगुली एक-एक धान के पौधे को, पंक्तिबद्ध, खेत में बिठा रही है। उनका कंठ एक-एक शब्द को संगीत के जीने पर चढ़ाकर कुछ को ऊपर, स्वर्ग की ओर भेज रहा है और कुछ को इस पृथ्वी की मिट्टी पर खड़े लोगों के कानों की ओर! बच्चे खेलते हुए झूम उठते हैं; मेंड़ पर खड़ी औरतों के होंठ काँप उठते हैं, वे गुनगुनाने लगती हैं; हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते हैं; रोपनी करने वालों की अँगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगती हैं! बालगोबिन भगत का यह संगीत है या जादू! [पृष्ठ 71]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) लेखक ने किस अवसर का वर्णन किया है?
(ग) बालगोबिन भगत क्या कर रहे थे?
(घ) बालगोबिन भगत के संगीत का लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा?
(ङ) बालगोबिन भगत के संगीत को जादू क्यों कहा गया?
(च) बच्चे और महिलाएँ क्या कर रहे थे?
(छ) प्रस्तुत गद्यांश का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
(ज) उपर्युक्त गद्यांश का प्रसंग लिखकर आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम बालगोबिन भगत।
लेखक का नाम-रामवृक्ष बेनीपुरी।

(ख) लेखक ने आषाढ़ के महीने में होने वाली रिमझिम वर्षा का वर्णन किया है। इस अवसर पर गाँव में किसान धान की फसल रोपने का काम करते हैं। आकाश बादलों से घिरा हुआ था तथा पुरवाई हवाएँ चल रही थीं।

(ग) बालगोबिन भगत अपने खेत में धान के रोपने का काम कर रहे थे। वे हर पौधे को पंक्ति में लगा रहे थे।

(घ) बालगोबिन भगत धान के रोपन के साथ-साथ मधुर कंठ से गीत गा रहे थे। उनके गीत का वहाँ उपस्थित लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ा। वे मंत्रमुग्ध हो गए तथा गीत की ताल पर क्रम से काम करने लगे।

(ङ) भगत जी के संगीत को जादू इसलिए कहा गया है क्योंकि उसका सभी के हृदय पर गहरा प्रभाव पड़ रहा था। उसे सुनकर बच्चे मस्त हो जाते तथा स्त्रियाँ उसके साथ-साथ गुनगुनाने लगती थीं। किसानों के पैरों में तो मानो लय-सी आ जाती थी। धान रोपते हुए किसानों की अँगुलियाँ क्रम से चलने लगती थीं।

(च) बच्चे उछल-उछलकर मौसम का आनंद उठा रहे थे और गीली मिट्टी में लिथड़कर खुश हो रहे थे। औरतें किसानों के लिए नाश्ता भोजन लेकर खेतों की मेंड़ों पर बैठी थीं।

(छ) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने वर्षा ऋतु के प्राकृतिक वातावरण का सजीव चित्रण किया है। आषाढ़ के महीने में सभी किसान अपने-अपने खेतों में धान रोपने के काम में जुट जाते हैं। लेखक बालगोबिन भगत की मस्ती, तल्लीनता और उसकी संगीत-कला की जादुई मिठास का वर्णन करना चाहता है। वह किसान भी है और संगीतकार भी।

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(ज) प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘बालगोबिन भगत’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक श्री रामवृक्ष बेनीपुरी हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने आषाढ़ के महीने में होने वाली वर्षा और बालगोबिन भगत द्वारा धान रोपने का वर्णन किया है।

आशय/व्याख्या-लेखक कहता है कि आसमान पर बादल छाए हुए थे, धूप कहीं भी दिखाई नहीं देती थी। ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। ऐसे मनभावन समय में एक मधुर स्वर की झंकार कानों में सुनाई पड़ रही थी। वहाँ के लोगों को इस मधुर स्वर व उसके गाने वाले के विषय में पूछना नहीं पड़ता। बालगोबिन भगत जिनका समूचा शरीर कीचड़ से लथपथ है, अपने खेत में धान की फसल का आरोपण कर रहे हैं। उनके हाथों की अगुलियाँ जहाँ धान के एक-एक पौधे को पंक्ति में बैठा रही हैं, वहीं उनके कंठ से निकला एक-एक शब्द संगीत की सीढ़ियों से चढ़कर स्वर्ग की ओर जा रहा है। उनके मधुर स्वर को सुनकर बच्चे खेलते हुए झूम उठते हैं। स्त्रियाँ उन शब्दों को अपने स्वर में गुनगुनाने लगती हैं। हल चलाने वालों के पैर उसके शब्दों की ताल के अनुसार ही उठने लगते हैं। खेत में धान के पौधों को रोपने वाले लोगों की अंगुलियाँ भी उनके संगीतमय स्वर के अनुकूल ही काम करने लगती हैं। बालगोबिन भगत के संगीत का प्रभाव आस-पास के लोगों पर जादू-सा काम करता है।

(3) भादो की वह अँधेरी अधरतिया। अभी, थोड़ी ही देर पहले मुसलधार वर्षा खत्म हुई है। बादलों की गरज, बिजली की तड़प .. में आपने कुछ नहीं सुना हो, किंतु अब झिल्ली की झंकार या दादुरों की टर्र-टर्र बालगोबिन भगत के संगीत को अपने कोलाहल में डुबो नहीं सकती। उनकी बँजड़ी डिमक-डिमक बज रही है और वे गा रहे हैं-“गोदी में पियवा, चमक उठे सखिया, चिहुँक उठे ना!” हाँ, पिया तो गोद में ही है, किंतु वह समझती है, वह अकेली है, चमक उठती है, चिहक उठती है। उसी भरे-बादलों वाले भादो की आधी रात में उनका यह गाना अँधेरे में अकस्मात कौंध उठने वाली बिजली की तरह किसे न चौंका देता? अरे, अब सारा संसार निस्तब्धता में सोया है, बालगोबिन भगत का संगीत जाग रहा है, जगा रहा है! तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग जरा! [पृष्ठ 71]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) भादो की रात का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
(ग) भगत जी के गीतों में कौन-सा भाव व्यक्त होता था?
(घ) ‘तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग ज़रा’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
(ङ) जब सारा संसार सो रहा था तब कौन जाग रहा था?
(च) प्रस्तुत गद्यांश में बालगोबिन भगत के व्यक्तित्व की कौन-सी विशेषता उभरकर सामने आती है?
(छ) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग एवं आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-बालगोबिन भगत।
लेखक का नाम-रामवृक्ष बेनीपुरी।

(ख) लेखक ने भादो की रात का वर्णन करते हुए कहा है कि भादो की रात अत्यधिक अँधेरी थी। आकाश में घने काले बादल छाए हुए थे। वर्षा होने वाली थी। बादल गरज रहे थे और बिजली कड़क रही थी। झाड़ियों से झिल्ली की झंकार सुनाई दे रही थी। मेंढकों के टर्राने की ध्वनि भी सुनाई पड़ रही थी। ऐसे वातावरण को बालगोबिन का गीत और भी मधुर बना रहा था।

(ग) बालगोबिन भगत के गीत ईश्वर-भक्ति की भावना से भरे होते थे। उनमें परमात्मा से बिछुड़ने की पीड़ा और भूले हुओं को जगाने के भाव भरे होते थे।

(घ) इस पंक्ति में कवि ने मनुष्य को विषय-वासनाओं से सावधान रहते हुए जीवन व्यतीत करने की चेतावनी दी है। कवि कहता है, हे मानव! तेरे जीवन का हर क्षण नष्ट हो रहा है। जीवन रूपी गठरी को पंच विकार रूपी चोर चुराने में लगे हुए हैं। अतः समय रहते तू सावधान हो जा और प्रभु का भजन कर जिससे तुझे मोक्ष प्राप्त हो सकेगा।

(ङ) जब सारा संसार खामोशी में सो रहा था तब बालगोबिन भगत का संगीत जाग रहा था अर्थात् उस समय बालगोबिन जागकर प्रभु-भजन कर रहे थे।

(च) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने बालगोबिन भगत के व्यक्तित्व के विषय में बताया है कि वे एक सच्चे भगत थे। उनका जीवन साधु-संन्यासियों जैसा त्यागशील एवं मोह रहित था। वे गृहस्थी होते हुए भी सच्चे साधु थे। उनकी ईश्वर में गहन आस्था थी। वे रात को जाग-जागकर प्रभु-भक्ति के गीत गाते थे। उसे प्रभु को भूले हुए लोगों को प्रभु की याद दिलाना बहुत अच्छा लगता था।

(छ) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में से संकलित एवं श्री रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा रचित ‘बालगोबिन भगत’ नामक पाठ से अवतरित है। इस पाठ में लेखक ने बालगोबिन भगत के जीवन के गुणों का उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में बताया गया है कि भादो की अंधेरी रातों में बालगोबिन भगत जाग-जाग कर ईश्वर-भक्ति के गीत गाते थे। वे अपने गीतों के माध्यम से लोगों को ईश्वर-भक्ति की याद दिलाते थे।

आशय/व्याख्या-लेखक ने भादो की रात का वर्णन करते हुए कहा है कि भादो की अंधेरी रात थी। आकाश में घने काले बादल छाए हुए थे। अभी-अभी वर्षा समाप्त हुई थी। बादल गरज रहे थे। बिजली कड़क रही थी। झिल्ली की झंकार और मेंढकों के टर्राने की ध्वनि सुनाई दे रही थी, किंतु ये सब मिलकर भी बालगोबिन भगत के संगीत को अपने कोलाहल में डुबो नहीं सके। उनकी बँजड़ी धीरे-धीरे, डिमक-डिमक कर बज रही थी और वे मधुर ध्वनि में गा रहे थे ‘गोदी में पियवा, चमक उठे सखिया चिहुँक उठे ना” हाँ, पिया तो गोद में ही है, किंतु वह समझती है कि वह अकेली है। वह चमक उठती है। कहने का भाव है कि आत्मा और परमात्मा सदा साथ-साथ रहते हैं। उस बादलों से भरी हुई भादो की आधी रात को उनका यह मधुर गीत अँधेरे में एकाएक ऐसे कौंध जाता है जैसे अँधेरी रात में बादलों में बिजली चमक उठती है। जब सारा संसार एकांत में सोया होता है, तब बालगोबिन भगत का संगीत निरंतर जाग रहा होता है
और लोगों को भी जगा रहा होता है। वे कहते हैं, “तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग जरा।” अर्थात् हे मनुष्य! तेरा जीवन प्रतिक्षण नष्ट हो रहा है। जीवन रूपी गठरी को पंच विकार रूपी चोर चुराने में लगे हुए हैं। इसलिए तुझे सावधान रहना चाहिए।

(4) बालगोबिन भगत की संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष उस दिन देखा गया जिस दिन उनका बेटा मरा। इकलौता बेटा था वह! कुछ सुस्त और बोदा-सा था, किंतु इसी कारण बालगोबिन भगत उसे और भी मानते। उनकी समझ में ऐसे आदमियों पर ही ज़्यादा नज़र रखनी चाहिए या प्यार करना चाहिए, क्योंकि ये निगरानी और मुहब्बत के ज्यादा हकदार होते हैं। बड़ी साध से उसकी शादी कराई थी, पतोहू बड़ी ही सुभग और सुशील मिली थी। घर की पूरी प्रबंधिका बनकर भगत को बहुत कुछ दुनियादारी से निवृत्त कर दिया था उसने। उनका बेटा बीमार है, इसकी खबर रखने की लोगों को कहाँ फुरसत! किंतु मौत तो अपनी ओर सबका ध्यान खींचकर ही रहती है। हमने सुना, बालगोबिन भगत का बेटा मर गया। कुतूहलवश उनके घर गया। देखकर दंग रह गया। बेटे को आँगन में एक चटाई पर लिटाकर एक सफेद कपड़े से ढाँक रखा है। वह कुछ फूल तो हमेशा ही रोपते रहते, उन फूलों में से कुछ तोड़कर उस पर बिखरा दिए हैं; फूल और तुलसीदल भी। सिरहाने एक चिराग जला रखा है। और, उसके सामने ज़मीन पर ही आसन जमाए गीत गाए चले जा रहे हैं! वही पुराना स्वर, वही पुरानी तल्लीनता। [पृष्ठ 72-73]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) जिस दिन बालगोबिन का बेटा मरा, उस दिन क्या देखा गया? ।
(ग) लेखक ने बेटे की मृत्यु पर गायन को संगीत-साधना का चरमोत्कर्ष क्यों कहा है?
(घ) बालगोबिन भगत अपने बेटे को किस कारण अधिक प्यार करते थे?
(ङ) बालगोबिन भगत की पुत्रवधू कैसी थी?
(च) लेखक में किस बात का कुतूहल था?
(छ) प्रस्तुत गद्यांश के अनुसार आपको बालगोबिन के जीवन की कौन-सी विशेषता प्रभावित करती है?
(ज) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग एवं आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-बालगोबिन भगत।
लेखक का नाम-रामवृक्ष बेनीपुरी।

(ख) जिस दिन बालगोबिन का बेटा मरा, उस दिन उनके संगीत का चरमोत्कर्ष देखा गया। उस दिन एक सच्चे संगीतकार की साधना की सफलता भी देखी गई थी।

(ग) लेखक के अनुसार साधना वही है जब व्यक्ति अपनी सुध-बुध खोकर परमात्मा की भक्ति में लीन हो जाए और उसको किसी प्रकार का दुःख प्रभावित न कर सके। इकलौते बेटे की मृत्यु से बढ़कर और कोई दुःख नहीं हो सकता। जो व्यक्ति अपने बेटे की मृत्यु पर भी भजन गा सकता है, उसके लिए उससे बढ़कर संगीत साधना और क्या हो सकती है।

(घ) बालगोबिन भगत अपने पुत्र से बहुत प्यार करते थे। उनका वह पुत्र बहुत ही कमज़ोर और सुस्त था। उनका मानना था कि ऐसे बच्चों को प्यार की अधिक ज़रूरत होती है। इसलिए वे अपने पुत्र को अधिक प्यार करते थे।

(ङ) बालगोबिन भगत की पुत्रवधू बहुत ही सुंदर एवं सुशील युवती थी। वह घर के काम-काज में निपुण थी तथा एक अच्छी प्रबंधिका भी थी। उसके इस प्रबंधन के गुण के कारण ही बालगोबिन जी गृहस्थ जीवन से मुक्त हो पाए थे।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

(च) लेखक को इस बात को लेकर कुतूहल था कि उसका इकलौता बेटा मर गया है तथा उसका शव अभी घर में ही पड़ा हुआ है। ऐसे में वह कैसे गा सकता है? उसे तो शोक मनाना चाहिए था किंतु लेखक ने देखा कि वह पुत्र की लाश के पास ही आसन जमाकर गाए जा रहा था।

(छ) प्रस्तुत गद्यांश के अनुसार, बालगोबिन भगत की सच्ची भक्ति, तल्लीनता, धैर्य और संगीत की मस्ती हमें अत्यधिक प्रभावित करती है। उनके हृदय में प्रभु के प्रति अडिग विश्वास था जो सबके हृदय को प्रभावित किए बिना नहीं रहता।

(ज) प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘बालगोबिन भगत’ नामक पाठ से उद्धृत है। इस पाठ के लेखक श्री रामवृक्ष बेनीपुरी हैं। इन पंक्तियों में उन्होंने बालगोबिन भगत के बेटे की मृत्यु की घटना का वर्णन किया है।

आशय/व्याख्या-लेखक का कथन है कि जिस दिन बालगोबिन भगत का बेटा मरा था, उस दिन उनकी संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष अर्थात् चरम सीमा देखी गई थी। एक सफल एवं सच्चे संगीतकार की सफलता देखी गई थी। बालगोबिन का इकलौता बेटा कुछ सुस्त एवं कमजोर था। इसी कारण बालगोबिन उसका अधिक ध्यान रखते थे। बालगोबिन का मत था कि ऐसे व्यक्तियों पर हमें अधिक ध्यान देना चाहिए और दूसरों की अपेक्षा उन्हें प्यार भी अधिक करना चाहिए। वे देखभाल और प्यार के ज्यादा हकदार होते हैं। उन्होंने बहुत-ही सीधे ढंग से अपने बेटे का विवाह करवाया था। उसकी पत्नी बहुत सुशील एवं विनम्र स्वभाव वाली थी। उसने घर का सारा काम-काज संभाल लिया था, जिससे बालगोबिन भगत ने दुनियादारी से छुटकारा पा लिया था। बालगोबिन का बेटा बीमार पड़ गया, परंतु काम-काज की व्यस्तता से किसको फुर्सत जो बीमार का हाल जानें, किंतु मृत्यु तो सबका ध्यान अपनी ओर दिला देती है और एक दिन उसकी मौत हो गई। उसकी मौत का समाचार सारे गाँव को मिल गया। लेखक भी उसके घर गया। यह देखकर हैरान था कि बालगोबिन ने अपने बेटे के शव को आंगन में एक चटाई पर लिटाकर सफेद कपड़े से ढक रखा था। उस पर कुछ फूल और तुलसी के पत्ते बिखेर दिए थे। उसके सिराहने एक दीप जलाया हुआ था। वे उसके सामने बैठकर गीत गा रहे थे। उनके गीत का स्वर पहले जैसा ही था और उतनी ही तल्लीनता भी थी। कहने का भाव है कि बालगोबिन भगत की ईश्वर-भक्ति और गीत की तल्लीनता को बेटे की मौत जैसा आघात भी नहीं डिगा सका था।

(5) बेटे के क्रिया-कर्म में तूल नहीं किया; पतोहू से ही आग दिलाई उसकी। किंतु ज्योंही श्राद्ध की अवधि पूरी हो गई, पतोहू
के भाई को बुलाकर उसके साथ कर दिया, यह आदेश देते हुए कि इसकी दूसरी शादी कर देना। इधर पतोहू रो-रोकर कहतीमैं चली जाऊँगी तो बुढ़ापे में कौन आपके लिए भोजन बनाएगा, बीमार पड़े, तो कौन एक चुल्लू पानी भी देगा? मैं पैर पड़ती हूँ, मुझे अपने चरणों से अलग नहीं कीजिए। लेकिन भगत का निर्णय अटल था। तू जा, नहीं तो मैं ही इस घर को छोड़कर चल दूंगा-यह थी उनकी आखिरी दलील और इस दलील के आगे बेचारी की क्या चलती? [पृष्ठ 73]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) बालगोबिन की दृष्टि में स्त्री-पुरुष में कोई भेद नहीं है-स्पष्ट कीजिए।
(ग) बालगोबिन भगत सामाजिक रूढ़ियों में विश्वास नहीं रखते, पठित गद्यांश के आधार पर सिद्ध कीजिए।
(घ) बालगोबिन भगत की पुत्रवधू उनके पास क्यों रहना चाहती थी?
(ङ) बालगोबिन भगत ने अपनी पुत्रवधू को वापस भेजने के लिए किस युक्ति से काम लिया?
(च) भगत जी की पुत्रवधू की क्या इच्छा थी?
(छ) प्रस्तुत गद्यांश में बालगोबिन भगत के चरित्र की किन विशेषताओं का उल्लेख किया गया है?
(ज) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग बताते हुए आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-बालगोबिन भगत।
लेखक का नाम-रामवृक्ष बेनीपुरी।

(ख) बालगोबिन भगत उदार एवं प्रगतिशील विचारों वाले व्यक्ति हैं। उनकी दृष्टि में स्त्री-पुरुष बराबर हैं। हमारे समाज में प्राचीनकाल से माना जाता है कि मृतक को आग लगाने का अधिकार पुत्र या किसी पुरुष को है। स्त्री इस कार्य को नहीं कर सकती। नारी को तो श्मशान भूमि में जाने तक की अनुमति नहीं है। किंतु बालगोबिन भगत ने इन मान्यताओं को नहीं माना और अपने बेटे की चिता को अपनी पुत्रवधू से आग दिलवाई थी। इससे पता चलता है कि बालगोबिन भगत की दृष्टि में नर-नारी सब एक समान हैं।

(ग) निश्चय ही बालगोबिन भगत सामाजिक रूढ़ियों को नहीं मानते। उन्होंने अपनी पुत्रवधू से अपने बेटे की चिता को आग दिलवाकर सदियों से चली आ रही परंपरा को सहज ही तोड़ डाला। ऐसी हिम्मत किसी-किसी व्यक्ति में ही होती है। इससे पता चलता है कि भगत जी सामाजिक रूढ़ियों में विश्वास नहीं रखते थे।

(घ) बालगोबिन भगत की पुत्रवधू पति की मृत्यु के पश्चात् बालगोबिन भगत के पास रहकर उनकी सेवा करना चाहती थी। वह उनके लिए भोजन बनाने व गृहस्थी के अन्य कार्य करने के लिए ही उनके पास रहना चाहती थी।

(ङ) जब बालगोबिन भगत ने अपनी पुत्रवधू को उसके भाई के साथ जाने के लिए कहा तो वह जिद्द करने लगी कि वह उन्हें छोड़कर कहीं नहीं जाएगी। आजीवन उनकी सेवा करती रहेगी। किंतु बालगोबिन भी अपने इरादे के पक्के थे। उन्होंने कहा यदि
यहाँ रहना चाहती है तो रह, किंतु मैं यह घर छोड़कर अन्यत्र चला जाऊँगा। भगत जी की यह धमकी सुनकर उनकी पुत्रवधू अपने मायके जाने के लिए तैयार हो गई थी।

(च) भगत जी की पुत्रवधू उनके पास रहकर उनके बुढ़ापे का सहारा बनना चाहती थी। वह उनके लिए भोजन बनाना चाहती थी और उनकी सेवा करना चाहती थी।

(छ) प्रस्तुत गद्यांश के आधार पर हम कह सकते हैं कि बालगोबिन भगत एक उदार हृदय और सुलझे हुए व्यक्ति थे। वे अपने निजी स्वार्थ के लिए दूसरों के जीवन में किसी प्रकार की बाधा नहीं बनना चाहते थे। यही कारण है कि वह अपनी चिंता किए बिना अपनी पुत्रवधू को उसके भाई के साथ भेज देते हैं ताकि वह पुनः विवाह करके सुखी जीवन व्यतीत कर सके। बालगोबिन भगत दृढ़ विचारों वाले व्यक्ति थे। वे जिस काम को करने का निश्चय कर लेते, उसे पूर्ण करके छोड़ते थे।

(ज) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘बालगोबिन भगत’ नामक पाठ से उद्धृत है। इस पाठ में लेखक श्री रामवृक्ष बेनीपुरी ने बालगोबिन भगत के जीवन का उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में बालगोबिन भगत के विषय में बताया गया है कि वे स्त्री-पुरुष में कोई अन्तर नहीं समझते थे और न ही सामाजिक रूढ़ियों में विश्वास करते थे।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

आशय/व्याख्या-लेखक ने बताया है कि बालगोबिन भगत ने अपने बेटे की चिता को आग स्वयं न देकर उसकी पत्नी से ही दिलवाई थी। समाज में ऐसा नहीं होता था। चिता को आग हमेशा से पुरुष ही देते आए थे। ज्यों ही श्राद्ध का समय पूरा हुआ पतोहू के भाई को बुलाकर उसे उसके साथ भेज दिया तथा यह आदेश भी दे दिया कि इसका दूसरा विवाह अवश्य कर देना। कहने का भाव है कि बालगोबिन भगत विधवा विवाह के पक्ष में थे, किंतु बालगोबिन की पतोहू जिद्द करने लगी कि वह उनके साथ रहकर उनकी सेवा करेगी। यदि मैं चली जाऊँगी तो इस बुढ़ापे में कौन आपके लिए भोजन बनाएगा। यदि बीमार पड़ गए तो कौन आपको पानी देगा। मैं आपके पैर पड़ती हूँ आप मुझे अपने से अलग मत कीजिए, किंतु बालगोबिन भगत का निर्णय अटल था। उन्होंने कहा कि यदि तू इस घर से नहीं जाएगी तो मैं यह घर छोड़कर चला जाऊँगा। यह उनका आखिरी तर्क था। इस तर्क के सामने पतोहू की एक न चली। उसे अपने भाई के साथ जाना पड़ा। कहने का भाव है कि बालगोबिन भगत दृढ़ निश्चयी और उदार दृष्टिकोण वाले व्यक्ति थे।

बालगोबिन भगत Summary in Hindi

बालगोबिन भगत लेखक-परिचय

प्रश्न-
श्री रामवृक्ष बेनीपुरी का जीवन परिचय एवं उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय श्री रामवृक्ष बेनीपुरी हिंदी के सुप्रसिद्ध निबंधकार हैं। इनका जन्म सन् 1899 को बिहार प्रदेश के मुजफ्फरपुर जिले के छोटे से गाँव बेनीपुर में हुआ था। बचपन में ही इनके माता-पिता का देहांत हो गया था। इनका पालन-पोषण इनके ननिहाल में हुआ। इन्होंने बड़ी कठिनाई से मैट्रिक तक शिक्षा ग्रहण की थी। श्री बेनीपुरी जी सन् 1920 में महात्मा गाँधी जी के नेतृत्व में चलाए जा रहे असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। उन्होंने स्वाध्याय के बल पर हिंदी ज्ञान में निपुणता प्राप्त की तथा अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत आदि भाषाओं का भी गंभीर अध्ययन किया। स्वतंत्रता आंदोलन के समय श्री बेनीपुरी जी दस बार जेल गए। स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् सन् 1957 में आप बिहार विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। बेनीपुरी जी ने लगभग 15 वर्ष की आयु में पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखना शुरू किया तथा पत्रकारिता को जीवनयापन के साधन के रूप में अपना लिया। इन्होंने समय-समय पर ‘किसान मित्र’, ‘तरुण भारत’, ‘बालक’, ‘युवक’, ‘योगी’, ‘जनता’, ‘जनवाणी’, ‘नई धारा’, ‘कर्मवीर’ आदि अनेक पत्र-पत्रिकाओं का कुशल संपादन किया है। इनका निधन सन् 1968 में हुआ था।

2. प्रमुख रचनाएँ श्री बेनीपुरी जी की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं-

  • उपन्यास-‘कैदी की पत्नी’ और ‘पतितों के देश में’।
  • कहानी-संग्रह ‘चिता के फूल’।
  • नाटक तथा एकांकी-‘अंबपाली’, ‘संघमित्रा’, ‘सीता की माँ’, ‘नेत्रदान’, ‘तथागत’, ‘विजेता’, ‘राम- राज्य’ तथा ‘गाँव का देवता’।
  • रेखाचित्र-‘माटी की मूरतें’, ‘गेहूँ और गुलाब’, ‘मन और विजेता’।
  • निबंध तथा संस्मरण-‘जंजीरें और दीवारें’, ‘मुझे याद है’, ‘मेरी डायरी’, ‘नयी नारी’, ‘मशाल’।
  • यात्रा-वृत्तांत-‘मेरे तीर्थ’, ‘उड़ते चलो उड़ते चलो’, ‘पैरों में पंख बाँधकर’।
  • जीवनी-‘कार्ल मार्क्स’, ‘जयप्रकाश नारायण’।

3. साहित्यिक विशेषताएँ श्री रामवृक्ष बेनीपुरी की रचनाओं में प्रमुख रूप से स्वाधीनता की चेतना, मनुष्यता की चिंता और इतिहास की युगानुरूप व्याख्या है। वे निष्ठावान भारतीय संस्कृति के पुजारी भी हैं। इनकी रचनाओं में भारतीय संस्कृति के दर्शन होते हैं। इनके साहित्य में गहन अनुभूतियों और उच्च कल्पनाओं का सुंदर मिश्रण है। इनकी रचनाओं में जहाँ जीवन से संबंधित ज्वलंत समस्याओं को उठाया गया है, वहाँ उनके समाधानों की ओर संकेत भी किए गए हैं। सार रूप में कहा जा सकता है कि रामवृक्ष बेनीपुरी जी का साहित्य उच्चकोटि का साहित्य है, जिससे मानवता के विकास की प्रेरणा मिलती है।

4. भाषा-शैली-श्री रामवृक्ष बेनीपुरी के साहित्य की भाषा सरल, सहज, रोचक एवं ओजस्वी है। अलंकृत एवं भावनापूर्ण शैली के कारण हिंदी गद्य-साहित्य में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन्होंने अपनी रचनाओं में संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ तद्भव, देशज, उर्दू-फारसी व अंग्रेज़ी के शब्दों का अत्यंत सटीक एवं सार्थक प्रयोग किया है। इन्होंने लोक प्रचलित मुहावरों व लोकोक्तियों का भी सफल प्रयोग किया है।

बालगोबिन भगत पाठ का सार

प्रश्न-
‘बालगोबिन भगत’ शीर्षक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘बालगोबिन भगत’ एक रेखाचित्र है। लेखक ने इसमें एक ऐसे विलक्षण चरित्र का वर्णन किया है जो मानवता, संस्कृति और सामूहिक चेतना का प्रतीक है। लेखक की मान्यता है कि वेशभूषा व बाह्य दिखावे से कोई संन्यासी नहीं होता। संन्यास का आधार तो जीवन के मानवीय सरोकार होते हैं। पाठ का सार इस प्रकार है

बालगोबिन भगत मँझोले कद के गोरे वर्ण के व्यक्ति थे। उनकी आयु साठ से ऊपर की थी। उनके सिर के बाल और दाढ़ी सफेद थे। वे शरीर पर कपड़ों के नाम पर केवल एक लंगोटी बाँधते थे और सिर पर कबीर टोपी पहनते थे और सर्दी के मौसम में काली कमली ओढ़ लेते थे। वे माथे पर चंदन और गले में तुलसी की जड़ों की माला पहनते थे। वे संन्यासी नहीं, गृहस्थ थे और थोड़ी बहुत खेतीबाड़ी भी करते थे। वे गृहस्थ होते हुए भी साधु की परिभाषा में खरे उतरते थे। वे कबीर के विचारों से बहुत प्रभावित थे। वे सदा सत्य बोलते और सद्व्यवहार करते थे। वे किसी से व्यर्थ में झगड़ा मोल नहीं लेते थे। वे बिना पूछे किसी वस्तु को नहीं छूते थे। उनके लिए कबीर ‘साहब’ थे और उनका सब कुछ ‘साहब’ का था। उनके खेत में जो फसल उत्पन्न होती थी, उसे वे सबसे पहले साहब के दरबार में ले जाते थे। वह उनके घर से चार कोस दूर था।

बालगोबिन भगत एक अच्छे गायक भी थे। उनका मधुर गान सदा सुनाई पड़ता था। वे कबीर के पदों को गाते रहते थे। आषाढ़ आते ही खेतों में धान की रोपाई शुरू हो जाती थी। पूरा गाँव, अर्थात् आदमी, औरतें और बच्चे खेतों में दिखाई देते थे। खेतों में रोपाई करते समय हर किसी के कानों में गाने का स्वर गूंजता रहता था। उनके संगीत से सारा वातावरण संगीतमय हो जाता था। सभी लोग एक ताल में एक क्रम में काम करने लगते थे। वे भादों की अंधेरी रातों में पिया के प्यार के गीत गाते थे। उनके अनुसार पिया के साथ होते हुए भी प्रियतमा अपने-आपको अकेली समझती है और बिजली की चमक से चौंक उठती है। जब सारा संसार सो रहा होता था, उस समय बालगोबिन का संगीत जाग रहा होता था। बालगोबिन कार्तिक से फागुन तक प्रभाती गाया करते थे। वे सुबह अंधेरे में उठकर, दो मील चलकर नदी स्नान करते थे। वापसी में गाँव के बाहर पोखरे पर वे अपनी खजड़ी लेकर बैठ जाते और गीत गाने लगते थे। लेखक को देर तक सोने की आदत थी, परंतु एक दिन उसकी आँख जल्दी खुल गई। वे माघ के दिन थे। लेखक को बालगोबिन का संगीत गाँव के बाहर पोखर पर ले गया। वे अपने संगीत में बहुत मस्त थे। उनके माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं लेकिन लेखक ठंड के मारे काँप रहा था। गर्मियों में उमसभरी शाम को वे अपने गीतों से शीतल कर देते थे। उनके गीत लोगों के मन से होते हुए तन पर हावी हो जाते थे। वे भी बालगोबिन की तरह मस्ती में नाचने लगते थे। उनके घर का आँगन संगीत-भक्ति से ओत-प्रोत हो जाता था।

बालगोबिन की संगीत साधना का चरमोत्कर्ष उस दिन देखने को मिला जिस दिन उनके बेटे की मृत्यु हुई थी। उनका एक ही बेटा था जो कुछ सुस्त रहता था। वे उसे अत्यधिक प्रेम करते थे और उसका ध्यान भी रखते थे। वह उनका इकलौता बेटा था। उसकी शादी भी उन्होंने बड़ी साध से करवाई थी। उनकी पुत्रवधू गृह प्रबंध में अत्यंत कुशल थी। उसने आते ही घर का सारा काम-काज संभाल लिया था। लेखक बालगोबिन भगत के उस कार्य से हैरान रह गया था। उन्होंने अपने पुत्र के शव को सफेद वस्त्र से ढक रखा था। उसके सिर की ओर चिराग जला रखा था। वे अपनी पुत्रवधू को भी उत्सव मनाने के लिए कहते हैं, क्योंकि उनका मानना था कि उसकी आत्मा परमात्मा के पास चली गई है। भला इससे बढ़कर आनंद की क्या बात हो सकती है? यह उनका विश्वास बोल रहा था। वह विश्वास जो मृत्यु पर विजयी होता आया है। उन्होंने अपनी पतोहू से ही बेटे की चिता में अग्नि दिलवाई थी। बालगोबिन ने अपनी पुत्रवधू के भाई को बुलाकर कहा था कि इसे यहाँ से ले जाओ और इसका विवाह कर दो। किंतु वह वहाँ रहकर बालगोबिन भगत की सेवा करना चाहती थी। लेकिन बालगोबिन का कहना था कि वह अभी जवान है और उसका अपनी इंद्रियों पर काबू रखना मुश्किल है। किंतु वह आग्रह कर रही थी कि मुझे अपने चरणों में ही रहने दो। भगत भी अपने निर्णय पर अटल थे। उन्होंने कहा कि यदि तू यहाँ रहेगी तो मुझे घर छोड़कर जाना पड़ेगा।

बालगोबिन भगत की मौत वैसे ही हुई जैसी वह चाहते थे। वे हर वर्ष गंगा-स्नान तथा संत-समागम के लिए जाते थे। वे घर से खाकर चलते थे और घर पर ही आकर खाते थे। उन्हें गंगा-स्नान के लिए आने-जाने में चार-पाँच दिन लग जाते थे। वे गृहस्थी थे, इसलिए किसी से भीख भी नहीं माँग सकते थे। इस बार जब गंगा-स्नान करके लौटे तो खाने-पीने के बाद भी उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं हुआ। तेज़ बुखार में भी उनके नेम-व्रत वैसे ही चलते रहे। लोगों ने नहाने-धोने व काम करने से मना किया और आराम करने के लिए कहा। उस संध्या को भी गीत गाए। ऐसा लगता था कि उसके जीवन का धागा टूट गया हो। मानो माला का एक-एक मनका बिखर गया हो। भोर में लोगों ने उनका गीत नहीं सुना, जाकर देखा तो पता चला कि बालगोबिन नहीं रहे। वहाँ सिर्फ उनका पिंजर ही पड़ा था।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

कठिन शब्दों के अर्थ-

(पृष्ठ-70) मँझोले = न अधिक लंबे न छोटे। गोरे-चिट्टे = बहुत गोरे। जटाजूट = लंबे बाल। कबीरपंथी = कबीर के पंथ को मानने वाले। कनफटी. = ऐसी टोपी जिस पर कान के स्थान पर जगह कटी रहती थी। कमली = कंबल। मस्तक = माथा।
रामानंदी = रामानंद द्वारा प्रचलित। चंदन = माथे पर किया जाने वाला लेप। बेडौल = अनगढ़। गृहस्थ = विवाहित आदमी। गृहिणी = पत्नी। पतोहू = बेटे की पत्नी। खरा उतरना = सही सिद्ध होना। खरा व्यवहार रखना = सच्चा व्यवहार करना। दो-टूक बात करना = साफ-साफ बात कहना। संकोच करना = शरमाना, बचना। झगड़ा मोल लेना = जान-बूझकर लड़ाई करना। व्यवहार में लाना = प्रयोग करना। कुतूहल = जिज्ञासा, जानने की उत्सुकता। साहब = भगवान। दरबार = मंदिर, घर। प्रसाद = बाँट में मिलने वाला पदार्थ। मुग्ध = प्रसन्न, खुश। सर्वदा = हमेशा। सजीव = जीवित। रिमझिम = हल्की-हल्की बारिश। समूचा = सारा। रोपनी = धान के पौधे को खेत में रोपना। कलेवा = नाश्ता। मेंड़ = खेत का ऊँचा किनारा।

(पृष्ठ-71) पुरवाई = पूर्व दिशा से बहने वाली हवा। स्वर-तरंग = स्वर की लहर। झंकार = बजती हुई आवाज़। पंक्तिबद्ध = पंक्ति में बाँधे हुए। जीने = सीढ़ी। हलवाहों = किसान। ताल = संगीत। क्रम = सिलसिला। अधरतिया = आधी रात। मुसलधार वर्षा = तेज वर्षा। झिल्ली की झंकार = गहरी काली रातों में झाड़ियों से उठने वाला झींगुरों का स्वर। दादुर = मेंढक। खैजड़ी = डपली के आकार का उससे कुछ छोटा वाद्य-यंत्र। सखिया = सखी। चिहुँक = खुशी से चिल्ला पड़ना। कौंध उठना = चमक उठना। निस्तब्धता = सन्नाटा। प्रभाती = प्रातःकाल गाया जाने वाला गीत।

(पृष्ठ-72) पोखरे = छोटा तालाब। भिंडे = ऊँची उठी जगह। टेरना = ऊँची आवाज़ में बोलना। दाँत किटकिटानेवाली = ठंड के कारण दाँतों को कैंपाने वाली। लोही लगना = सुबह की लाली। कुहासा = कोहरा। रहस्य = छिपी हुई बात। आवृत = ढका हुआ। कुश = एक प्रकार की लंबी घास। ताँता लगना = लगातार निकलना। सुरूर = नशा। उत्तेजित = जोश से भड़का हुआ। श्रमबिंदु = पसीने की बूंदें। उमस = घुटन। करताल = तालियाँ। भरमार = अधिकता। तिहराती = तीसरी बार कहती। हावी होना = भारी पड़ना। नृत्यशील = नाचने को होना। ओतप्रोत = भरा हुआ। चरम उत्कर्ष = सबसे अधिक ऊँचाई। बोदा = कमज़ोर। निगरानी = देखभाल। साध = इच्छा, कामना। सुभग = सुंदर। सुशील = भले व्यवहार वाली। प्रबंधिका = प्रबंध करने वाली। निवृत्त = आज़ाद, मुक्त, अलग। कुतूहलवश = जानने की इच्छा के कारण। दंग = हैरान। चिराग = दीपक।

(पृष्ठ-73) तल्लीनता = पूरे मन से। उत्सव मनाना = त्योहार के समान खुशी मनाना। क्रिया-कर्म = मृत्यु के बाद निभाई जाने वाली रस्में। तूल करना = महत्त्व देना। आग दिलाना = मुर्दे को आग लगाना। श्राद्ध = मृत्यु के बाद पितरों की शांति के लिए किया गया क्रिया-कर्म। निर्णय = फैसला। अटल = जिसे टाला न जा सके। दलील = तर्क। आस्था = विश्वास। संत-समागम = संतों के साथ संगति करना। लोक-दर्शन = संतों के दर्शन। संबल = सहारा। भिक्षा = भीख। उपवास = भूखे रहना, व्रत रखना। टेक = आदत, नियम। तबीयत = स्वास्थ्य। नेम-व्रत = नियम-व्रत आदि। जून = समय। छीजन = कमज़ोर होना। तागा टूटना = जीवन की साँसें पूरी होना। पंजर = शरीर।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा

HBSE 10th Class Hindi नेताजी का चश्मा Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे?
उत्तर-
निश्चय ही चश्मे वाला कभी सेनानी नहीं रहा। वह भले ही गरीब एवं अपाहिज था, किंतु उसके मन में देशभक्ति की असीम भावना थी। वह देशभक्त सुभाषचंद्र बोस का सम्मान करता था। वह सुभाष की बिना चश्मे की मूर्ति को देखकर दुःखी हो उठा था। इसलिए उसने सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति पर अपने पास से चश्मा लगा दिया था। उसकी इस देशभक्ति की भावना को देखकर ही उसे सुभाषचंद्र बोस का साथी होने का तथा उनकी सेना का कैप्टन होने का सम्मान दिया था। भले ही उसका यह नाम लोगों ने व्यंग्य में रखा हो। किंतु वास्तविकता यह थी कि वह इस नाम के योग्य भी था।

प्रश्न 2.
हालदार साहब ने ड्राइवर को पहले चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना किया था लेकिन बाद में तुरंत रोकने को कहा
(क) हालदार साहब पहले मायूस क्यों हो गए थे?
(ख) मूर्ति पर सरकडे का चश्मा क्या उम्मीद जगाता है?
(ग) हालदार साहब इतनी-सी बात पर भावुक क्यों हो उठे?
उत्तर-
(क) हालदार साहब पहले मायूस हो गए थे क्योंकि वे चौराहे पर लगी नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति को बिना चश्मे के देख नहीं सकते थे। जब से कैप्टन की मृत्यु हुई थी, तब से किसी ने भी नेताजी की मूर्ति पर चश्मा नहीं लगाया था। इसीलिए जब हालदार साहब कस्बे से गुज़रने लगे तो उन्होंने ड्राइवर से चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना कर दिया था।

(ख) हालदार साहब जब चौराहे से गुज़रे तो नेताजी की मूर्ति देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ क्योंकि मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा लगा हुआ था। सरकंडे का चश्मा देखकर हालदार साहब के मन में यह आशा जगी कि आज के बच्चे ही कल को देश के निर्माण में सहायक होंगे और अब उन्हें कभी भी चौराहे पर नेताजी की बिना चश्मे की मूर्ति नहीं देखनी पड़ेगी।

(ग) कैप्टन की मृत्यु के पश्चात् उन्हें ऐसा लगा था कि अब नेताजी की आँखों पर चश्मा लगाने वाला कोई नहीं बचा। किंतु जब उन्होंने नेताजी की मूर्ति की आँखों पर सरकंडे का बना हुआ चश्मा देखा तो वे भावुक हो उठे कि देश में अभी भी देशभक्ति जीवित है, मरी नहीं। सुभाषचंद्र बोस जैसे नेताओं का आदर करने वाले लोग देश में अभी भी हैं।

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प्रश्न 3.
आशय स्पष्ट कीजिए-
“बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी-जवानी-जिंदगी सब कुछ होम देनेवालों पर भी हँसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है।”
उत्तर-
इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक ने देश के भविष्य के प्रति चिंता व्यक्त की है। लेखक ने स्पष्ट किया है कि जिस कौम व देश के लोग अपने महान देशभक्तों के त्याग का आदर करने की अपेक्षा उसकी हँसी उड़ाते हों तथा अपना स्वार्थ पूरा करने के अवसर की ताक में रहते हों, उस देश का क्या होगा। ऐसे देश की स्वतंत्रता ही खतरे में पड़ जाएगी।

प्रश्न 4.
पानवाले का एक रेखाचित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-
पानवाला सदा पान चबाता रहता था। वह स्वयं भी चलती-फिरती पान की दुकान-सा प्रतीत होता था क्योंकि उसके मुँह में सदा ही पान ह्सा रहता था। वह पान के कारण कुछ बोल नहीं सकता था। यदि कोई उससे बात करता तो बोलने से पहले उसे दो-बार तो थूकना पड़ता था। उसकी बढ़ी हुई तोंद घड़े के समान लगती थी। वह जब हँसता था तो उसकी तोंद बराबर हिलती रहती थी। वह रसिक स्वभाव वाला व्यक्ति था। उसकी बातों में व्यंग्य रहता था। दूसरों की हँसी उड़ाने में उसे खूब मज़ा आता था। वह सदा अपने स्वार्थ पर निगाह रखता था। वह बातों का धनी था।

प्रश्न 5.
“वो लँगड़ा क्या जाएगा फौज में। पागल है पागल!” कैप्टन के प्रति पानवाले की इस टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया लिखिए।
उत्तर-
कैप्टन के प्रति पानवाले की यह टिप्पणी उसकी संकीर्ण मानसिकता को व्यक्त करती है। इस टिप्पणी से पता चलता है कि उसके मन में देशभक्तों व उनका आदर करने वालों के प्रति जरा भी सम्मान की भावना नहीं है। उसे कैप्टन पर व्यंग्य करने की अपेक्षा उसके प्रति आदर भाव व्यक्त करना चाहिए था और सहानुभूतिपूर्ण उसका परिचय देना चाहिए था। जो व्यक्ति नेताजी जैसे महान् देश-भक्तों की प्रतिमा में कोई कमी नहीं देख सकता ऐसे व्यक्ति की शारीरिक कमियों की तरफ ध्यान न देकर उसकी भावनाओं की कद्र करनी चाहिए। अतः पानवाले की यह टिप्पणी दुर्भाग्यपूर्ण है। उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 6.
निम्नलिखित वाक्य पात्रों की कौन-सी विशेषता की ओर सकेत करते हैं-
(क) हालदार साहब हमेशा चौराहे पर रुकते और नेताजी को निहारते।
(ख) पानवाला उदास हो गया। उसने पीछे मुड़कर मुँह का पान नीचे थूका और सिर झुकाकर अपनी धोती के सिरे से आँखें पोंछता हुआ बोला-साहब! कैप्टन मर गया।
(ग) कैप्टन बार-बार मूर्ति पर चश्मा लगा देता था।
उत्तर-
(क) यह वाक्य हालदार साहब की देश-भक्ति की भावना को व्यक्त करता है। हालदार साहब जब चौराहे से गुज़रते तो वहाँ कुछ क्षणों के लिए रुककर सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति की ओर आदर भाव से देखते थे। उनके मन में नेताजी के प्रति आदरभाव था। वे बार-बार मूर्ति को चश्मा पहनाने वाले के बारे में पूछते थे। इस बात से पता चलता है कि हालदार साहब एक देशभक्त थे।

(ख) इस वाक्य से पता चलता है कि पानवाला एक संवेदनशील व्यक्ति था। भले ही वह कैप्टन पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी करता हो किंतु उसकी मृत्यु का उसे बेहद दुःख था। उसे कैप्टन की मृत्यु के पश्चात् ही उसके जीवन के महत्त्व का पता चला था। उसे ऐसा अनुभव हुआ कि वह महान् देश-प्रेमी था। इसलिए वह अब उस पर कोई व्यंग्यात्मक टिप्पणी भी नहीं करता था।

(ग) कैप्टन को नेताजी की बिना चश्मे वाली प्रतिमा बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी। इसलिए वह उसे बार-बार चश्मा पहनाता था। इससे उसकी देश-भक्ति की भावना उजागर होती है।

प्रश्न 7.
जब तक हालदार साहब ने कैप्टन को साक्षात् देखा नहीं था तब तक उनके मानस पटल पर उसका कौन-सा चित्र रहा होगा, अपनी कल्पना से लिखिए।
उत्तर-
जब तक हालदार साहब ने कैप्टन को साक्षात् देखा नहीं था तब तक वे सोचते थे कि कैप्टन प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला इंसान है। उनके मन में एक गठीले बदन के पुरुष की छवि अंकित थी, जिसकी बड़ी-बड़ी मूंछे थीं। उसकी चाल में फौजियों जैसी मज़बूती और ठहराव था। चेहरे पर तेज़ था। उसका पूरा व्यक्तित्व ऐसा था जिसे देखकर दूसरा व्यक्ति प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। इस तरह हालदार साहब के दिल और दिमाग पर एक फौजी की तस्वीर अंकित थी।

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प्रश्न 8.
कस्बों, शहरों, महानगरों के चौराहों पर किसी न किसी क्षेत्र के प्रसिद्ध व्यक्ति की मूर्ति लगाने का प्रचलन-सा हो गया है
(क) इस तरह की मूर्ति लगाने के क्या उद्देश्य हो सकते हैं?
(ख) आप अपने इलाके के चौराहे पर किस व्यक्ति की मूर्ति स्थापित करवाना चाहेंगे और क्यों?
(ग) उस मूर्ति के प्रति आपके एवं दूसरे लोगों के क्या उत्तरदायित्व होने चाहिएँ?
उत्तर-
(क) इस तरह की मूर्ति लगाने का उद्देश्य यह रहता है कि लोग महान् देशभक्तों के त्याग और देश-भक्ति की भावना को हमेशा याद रखें तथा उनके जीवन से देश-भक्ति की प्रेरणा लें। साथ ही आने वाली पीढ़ियों को भी महान् देशभक्तों का परिचय मिल सके।

(ख) हम अपने इलाके के चौराहे पर उस महान् देशभक्त की मूर्ति स्थापित करवाना चाहेंगे जिन्होंने अपना जीवन देश के प्रति अर्पित कर दिया है।

(ग) देशभक्तों की मूर्ति के प्रति हमारा पावन कर्त्तव्य है कि हम उसके रख-रखाव का पूरा ध्यान रखें। उसके आस-पास सफाई रखें। उसकी सुरक्षा करें तथा उसके प्रति सम्मान का भाव भी रखें।

प्रश्न 9.
सीमा पर तैनात फौजी ही देश-प्रेम का परिचय नहीं देते। हम सभी अपने दैनिक कार्यों में किसी न किसी रूप में देश-प्रेम प्रकट करते हैं; जैसे-सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान न पहुँचाना, पर्यावरण संरक्षण आदि। अपने जीवन-जगत से जुड़े ऐसे और कार्यों का उल्लेख कीजिए और उन पर अमल भी कीजिए।
उत्तर-
हमारे जीवन-जगत से जुड़े हुए अनेक ऐसे कार्य हैं, जिनसे किसी-न-किसी रूप में देश-प्रेम प्रकट होता है। बिजली का उचित ढंग से प्रयोग ही बिजली की बचत है। इस बची हुई बिजली का प्रयोग कल-कारखानों में हो सकता है, जिससे देश का विकास होगा। इसी प्रकार पीने के पानी का सदुपयोग करने से पानी की बचत होती है। पानी की एक-एक बूंद कीमती है। पानी का दूसरा अर्थ है-जीवन। पानी के नल को खुला नहीं छोड़ना चाहिए। पानी के प्रयोग के बाद नल बंद कर देना चाहिए। ऐसे कार्यों से हमारा देश-प्रेम प्रकट होता है। इसी प्रकार पेट्रोल का उचित प्रयोग करने के लिए हमें निजी वाहनों के प्रयोग की अपेक्षा सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करना चाहिए। इससे जहाँ धन की बचत होगी, वहीं ईंधन की बचत भी होगी, यही ईंधन राष्ट्रीय विकास के कार्यों के लिए प्रयोग किया जा सकता है। अतः स्पष्ट है कि हमारे जीवन में अनेक ऐसे कार्य हैं जिनको अमल में लाकर हम देश-प्रेम का परिचय दे सकते हैं।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित पंक्तियों में स्थानीय बोली का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है, आप इन पंक्तियों को मानक हिंदी में लिखिए
कोई गिराक आ गया समझो। उसको चौड़े चौखट चाहिए। तो कैप्टन किदर से लाएगा? तो उसको मूर्तिवाला दे दिया। उदर दूसरा बिठा दिया।
उत्तर–
मान लीजिए, कोई ग्राहक आ गया। उसे चौड़े फ्रेम वाला चश्मा चाहिए। कैप्टन कहाँ से लाता। इसलिए ग्राहक को मूर्ति वाला चश्मा दे दिया। मूर्ति पर दूसरा लगा दिया।

प्रश्न 11.
‘भई खूब! क्या आइडिया है।’ इस वाक्य को ध्यान में रखते हुए बताइए कि एक भाषा में दूसरी भाषा के शब्दों के आने से क्या लाभ होते हैं?
उत्तर-
एक भाषा में दूसरी भाषा के शब्दों का प्रयोग किए जाने से भाषा रोचक, व्यावहारिक एवं प्रभावशाली बनती है। जब दूसरी भाषा के शब्द बहुत प्रचलित हो जाते हैं तो उनका प्रयोग अपनी भाषा में किया जाता है। उपरोक्त वाक्य में उर्दू एवं अंग्रेजी के शब्दों के एक साथ प्रयोग से भाषा का रूप ही नया बन गया है। यहाँ ‘खूब’, ‘आइडिया’ ऐसे शब्द हैं जिनके प्रयोग से भाषा का रूप ही नया नहीं बना, अपितु उसमें लचीलापन भी देखने को मिलता है।

भाषा-अध्ययन-

प्रश्न 12.
निम्नलिखित वाक्यों में से निपात छाँटिए और उनसे नए वाक्य बनाइए-
(क) नगरपालिका थी तो कुछ न कुछ करती भी रहती थी।
(ख) किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर देने का निर्णय किया गया होगा।
(ग) यानी चश्मा तो था लेकिन संगमरमर का नहीं था।
(घ) हालदार साहब अब भी नहीं समझ पाए।
(ङ) दो साल तक हालदार साहब अपने काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुज़रते रहे।
उत्तर-
(क) भी = बाज़ार जा रहे हो तो मेरे लिए भी पुस्तक लेते आना।
(ख) ही = ज्ञान ही मानव को मोक्ष दिलाता है।
(ग) यानी = यानी खाना तो था परंतु स्वादिष्ट नहीं था।
(घ) भी = क्या कहा! तुम भी फेल हो गए हो।
(ङ) तक = पिछले दो सालों से उसने मुझे चिट्ठी तक नहीं लिखी।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित वाक्यों को कर्मवाच्य में बदलिए-
(क) वह अपनी छोटी-सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से नेताजी की मूर्ति पर फिट कर देता है।
(ख) पानवाला नया पान खा रहा था।
(ग) पानवाले ने साफ बता दिया था।
(घ) ड्राइवर ने ज़ोर से ब्रेक मारे।
(ङ) नेताजी ने देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया।
(च) हालदार साहब ने चश्मेवाले की देश-भक्ति का सम्मान किया।
उत्तर-
(क) उसके द्वारा अपनी छोटी-सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से नेताजी की मूर्ति पर फिट कर दिया जाता है।
(ख) पानवाले द्वारा नया पान खाया जा रहा था।
(ग) पानवाले द्वारा साफ बता दिया गया था।
(घ) ड्राइवर द्वारा ज़ोर से ब्रेक मारे गए।
(ङ) नेताजी द्वारा देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया गया।
(च) हालदार साहब द्वारा चश्मेवाले की देश-भक्ति का सम्मान किया गया।

प्रश्न 14.
नीचे लिखे वाक्यों को भाववाच्य में बदलिएजैसे-अब चलते हैं। -अब चला जाए।
(क) माँ बैठ नहीं सकती।
(ख) मैं देख नहीं सकती।
(ग) चलो, अब सोते हैं।
(घ) माँ रो भी नहीं सकती।
उत्तर-
(क) माँ से बैठा नहीं जाता।
(ख) मुझसे देखा नहीं जाता।
(ग) चलो, अब सोया जाए।
(घ) माँ से रोया भी नहीं जाता।

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पाठेतर सक्रियता

लेखक का अनुमान है कि नेताजी की मूर्ति बनाने का काम मजबूरी में ही स्थानीय कलाकार को दिया गया।
(क) मूर्ति बनाने का काम मिलने पर कलाकार के क्या भाव रहे होंगे?
(ख) हम अपने इलाके के शिल्पकार, संगीतकार, चित्रकार एवं दूसरे कलाकारों के काम को कैसे महत्त्व और प्रोत्साहन दे सकते हैं, लिखिए।
उत्तर-
(क) मूर्ति बनाने का काम मिलने पर कलाकार के मन में उत्साह का भाव आया होगा। वह मूर्ति बनाने के सामान को एकत्रित करने में जुट गया होगा। उसे लगा होगा कि नगर के सभी लोग उसकी बनाई हुई मूर्ति को देखेंगे। उसे लोगों से अपनी प्रशंसा सुनने को मिलेगी।

(ख) हमें अपने क्षेत्र के शिल्पकार, संगीतकार, चित्रकार व अन्य कलाकारों के कार्य की सराहना करके उनके काम को प्रोत्साहन दे सकते हैं। हम शिल्पकारों की बनाई हुई वस्तुओं को खरीद सकते हैं। विभिन्न अवसरों पर संगीत का आयोजन किया जा सकता है। उनका गीत-संगीत सुनकर उनकी तारीफ करनी चाहिए ताकि उनका उत्साह बढ़े। उन्हें समय-समय पर सम्मानित भी करना चाहिए।

आपके विद्यालय में शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण विद्यार्थी हैं। उनके लिए विद्यालय परिसर और कक्षा-कक्ष में किस तरह के प्रावधान किए जाएँ, प्रशासन को इस संदर्भ में पत्र द्वारा सुझाव दीजिए।

सेवा में,
प्रधानाचार्य महोदय,
क.ख.ग. विद्यालय,
नई दिल्ली।
विषय : चुनौतीपूर्ण विद्यार्थियों के लिए प्रबंध।
श्री मानजी,

मैं आपका ध्यान अपने विद्यालय के कुछ चुनौतीपूर्ण विद्यार्थियों की समस्याओं की ओर दिलाना चाहता हूँ। हमारे कुछ विद्यार्थी साथी विकलांग हैं। वे भली-भाँति चल नहीं सकते। उनसे सीढ़ियों पर नहीं चढ़ा जा सकता। सीढ़ियों के साथ-साथ रैम्प बना दिया जाए तो वे आसानी से कक्षा में आ जा सकेंगे। कुछ विद्यार्थी अंधे हैं। उनके लिए पुस्तकें उपलब्ध नहीं हैं। उनके लिए ब्रेल लिपि की पुस्तकें मँगवाई जाएँ तो बहुत अच्छा होगा। ऐसे लोगों की सहायता करना हमारा नैतिक कर्त्तव्य भी है। आशा है कि आप चुनौतीपूर्ण छात्रों की समस्याओं की ओर अवश्य ध्यान देंगे।

सधन्यवाद।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
मदनलाल
कक्षा दशम ‘ख’
अनुक्रमांक 05
दिनांक 15.05.20…..

कैप्टन फेरी लगाता था।
फेरीवाले हमारे दिन-प्रतिदिन की बहुत-सी ज़रूरतों को आसान बना देते हैं। फेरीवालों के योगदान व समस्याओं पर एक संपादकीय लेख तैयार कीजिए।
उत्तर-
फेरीवाले समाज के जीवन का अभिन्न अंग हैं। फेरीवाले प्राचीनकाल से हमारे समाज के परंपरागत व्यापार में योगदान देते आए हैं। हमारी जिंदगी को सरल एवं आसान बनाने में भी इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है। किंतु व्यापार वर्ग में इन्हें नीचा दर्जा दिया जाता है और रेहड़ी वाला कहकर संबोधित किया जाता है। फेरीवालों की वजह से हमारा बहुत समय बच जाता है। हम इस समय को अपने अन्य उपयोगी कार्यों में लगा लेते हैं। फेरीवाले जहाँ समाज के जीवन को सुखद बनाते हैं, वहीं उनको अपने जीवन की समस्याओं से भी जूझना पड़ता है। उनके पास अधिक धन नहीं होता, इसलिए वे अपनी फेरी के लिए उपयुक्त साधन नहीं अपना सकते। सब्जी मंडी कई कॉलोनियों से बहुत दूर होती हैं। उन्हें अपनी रेहड़ी पर सब्जी लादकर प्रतिदिन कई मील पैदल चलना पड़ता है। इसी प्रकार कई फेरीवाले अपने सामान की गठरी को सिर पर उठाए घूमते हैं। सरकार को चाहिए कि इनके लिए सस्ते दामों पर वाहन उपलब्ध करवाए ताकि उनकी पैदल घूमने की समस्या दूर हो सके। गाँवों व नगरों सभी के लिए फेरीवाले माल पहुँचाते हैं। अतः हमें इनके प्रति सहानुभूति व आदर का भाव रखना चाहिए।

नेताजी सुभाषचंद्र बोस के व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक प्रोजेक्ट बनाइए। उत्तर-विद्यार्थी स्वयं करें।।
अपने घर के आस-पास देखिए और पता लगाइए कि नगरपालिका ने क्या-क्या काम करवाए हैं? हमारी भूमिका उसमें क्या हो सकती है?
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

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नीचे दिए गए निबंध का अंश पढ़िए और समझिए कि गद्य की विविध विधाओं में एक ही भाव को अलग-अलग प्रकार से कैसे व्यक्त किया जा सकता है-
उत्तर-
देश-प्रेम

देश-प्रेम है क्या? प्रेम ही तो है। इस प्रेम का आलंबन क्या है? सारा देश अर्थात् मनुष्य, पशु, पक्षी, नदी, नाले, वन, पर्वत सहित सारी भूमि। यह प्रेम किस प्रकार का है? यह साहचर्यगत प्रेम है। जिनके बीच हम रहते हैं, जिन्हें बराबर आँखों से देखते हैं, जिनकी बातें बराबर सुनते रहते हैं, जिनका हमारा हर घड़ी का साथ रहता है, सारांश यह है कि जिनके सान्निध्य का हमें अभ्यास पड़ जाता है, उनके प्रति लोभ या राग हो सकता है। देश-प्रेम यदि वास्तव में अंतःकरण का कोई भाव है तो यही हो सकता है। यदि यह नहीं है तो वह कोरी बकवास या किसी और भाव के संकेत के लिए गढ़ा हुआ शब्द है।

यदि किसी को अपने देश से सचमुच प्रेम है तो उसे अपने देश के मनुष्य, पशु, पक्षी, लता, गुल्म, पेड़, वन, पर्वत, नदी, निर्झर आदि सबसे प्रेम होगा, वह सबको चाहभरी दृष्टि से देखेगा; वह सबकी सुध करके विदेश में आँसू बहाएगा। जो यह भी नहीं जानते कि कोयल किस चिड़िया का नाम है, जो यह भी नहीं सुनते कि चातक कहाँ चिल्लाता है, जो यह भी आँख भर नहीं देखते कि आम प्रणय-सौरभपूर्ण मंजरियों से कैसे लदे हुए हैं, जो यह भी नहीं झाँकते कि किसानों के झोंपड़ों के भीतर क्या हो रहा है, वे यदि बस बने-ठने मित्रों के बीच प्रत्येक भारतवासी की औसत आमदनी का परता बताकर देश-प्रेम का दावा करें तो उनसे पूछना चाहिए कि भाइयो! बिना रूप परिचय का यह प्रेम कैसा? जिनके दुख-सुख के तुम कभी साथी नहीं हुए उन्हें तुम सुखी देखना चाहते हो, यह कैसे समझे? उनसे कोसों दूर बैठे-बैठे, पड़े-पड़े या खड़े-खड़े तुम विलायती बोली में ‘अर्थशास्त्र’ की दुहाई दिया करो, पर प्रेम का नाम उसके साथ न घसीटो। प्रेम हिसाब-किताब नहीं है। हिसाब-किताब करने वाले भाड़े पर भी मिल सकते हैं, पर प्रेम करने वाले नहीं।

हिसाब-किताब से देश की दशा का ज्ञान-मात्र हो सकता है। हित-चिंतन और हित-साधन की प्रवृत्ति कोरे ज्ञान से भिन्न है। वह मन के वेग या भाव पर अवलंबित है, उसका संबंध लोभ या प्रेम से है, जिसके बिना अन्य पक्ष में आवश्यक त्याग का उत्साह हो नहीं सकता।

HBSE 10th Class Hindi नेताजी का चश्मा Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1:
पठित कहानी के आधार पर कस्बे की स्थिति का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
पठित कहानी में बताया गया है कि वह कस्बा अधिक बड़ा नहीं था। इसलिए उसे नगर नहीं कहा जा सकता। वहाँ कुछ ही मकान पक्के हैं। एक छोटा-सा बाज़ार है, जिसमें दैनिक जीवन की आवश्यकता की लगभग सभी वस्तुएँ मिल जाती हैं।
यहाँ दो विद्यालय हैं-एक लड़कों के लिए, दूसरा लड़कियों के लिए। दो खुले सिनेमाघर हैं। थोड़ा हटकर एक सीमेंट का कारखाना भी है। एक छोटी-सी नगरपालिका है। कस्बे के बाज़ार के मुख्य चौराहे पर नेताजी की मूर्ति स्थापित की गई है।

प्रश्न 2.
हालदार साहब की कैप्टन के प्रति कैसी भावना थी? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
कहानी में दिखाया गया है कि हालदार साहब के मन में कैप्टन के प्रति अत्यंत आदर की भावना थी। नगरपालिका द्वारा लगाई गई सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति पर चश्मा नहीं बनाया गया था। चश्मे के बिना नेताजी की मूर्ति अधूरी थी। कैप्टन उस कमी को अपने पास से चश्मा लगाकर पूरी करता है। हालदार साहब कैप्टन की इस देश-भक्ति की भावना के प्रति नतमस्तक थे।

प्रश्न 3.
हालदार साहब और कैप्टन की भावनाओं के अंतर को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
हालदार साहब जब नेताजी की मूर्ति पर असली का चश्मा लगा हुआ देखते हैं तो वे हैरान रह जाते हैं कि ऐसा किसी ने क्यों किया होगा। पूछने पर पता चला कि ऐसा किसी कैप्टन ने किया और तब उसकी कल्पना किसी तगड़े फौजी अफसर के रूप में करने लगे, किंतु जब उसे देखा तो हैरान रह गए कि वह लँगड़ा और गरीब होते हुए भी देशभक्त है। हालदार साहब का देश-प्रेम शब्दों तक सीमित है, जबकि कैप्टन की देश-भक्ति की भावना में व्यावहारिकता अधिक है। वह बार-बार नेताजी का चश्मा बदल देता है। क्योंकि चश्मे के बिना उसे नेताजी की मूर्ति अधूरी लगती है। जबकि हालदार साहब यह सोचकर कि कैप्टन के मरने के पश्चात् नेताजी की मूर्ति बिना चश्मे के होगी वे उधर न देखने का निर्णय कर लेते हैं। परंतु उन्होंने कोई चश्मा खरीदकर नेताजी की मूर्ति को नहीं लगाया।

प्रश्न 4.
नेताजी का चश्मा क्यों नहीं बन पाया?
उत्तर-
संगमरमर की मूर्ति में टाँक कर चश्मा बनाना मुश्किल कार्य था। स्कूल का ड्राइंग मास्टर कोई पेशेवर मूर्ति बनाने वाला __ नहीं था, इसलिए उससे चश्मा नहीं बन पाया।

प्रश्न 5.
चश्मे वाले का नेताजी की आँखों पर चश्मे का फ्रेम लगाना किस बात को दर्शाता है?
उत्तर-
चश्मे वाला भले ही गरीब व्यक्ति था, परंतु उसके हृदय में देश-प्रेम की भावना थी। बिना चश्मे के मूर्ति अधूरी लगती थी। अतः उसने मूर्ति की आँखों पर चश्मा लगा दिया।

प्रश्न 6.
हालदार साहब के कौतूहल का क्या कारण था?
उत्तर-
हालदार साहब जब भी वहाँ से गुज़रते थे, नेताजी का चश्मा बदला होता था। वे जानना चाहते थे कि आखिर नेताजी का चश्मा क्यों बदल जाता है।

प्रश्न 7.
नेताजी की मूर्ति के चश्मे के बदलने का क्या कारण था?
उत्तर-
वास्तव में नेताजी की संगमरमर की मूर्ति पर चश्मा नहीं बनाया गया था। इसलिए कैप्टन को यह बात बुरी लगी और उसने उस पर असली चश्मा लगा दिया था। किंतु किसी ग्राहक को यदि वह चश्मा पसंद आ जाता तो चश्मा लगाने वाला कैप्टन उस चश्मे को ग्राहक को दे देता था और मूर्ति पर दूसरा चश्मा लगा देता था। इस प्रकार नेताजी की मूर्ति पर चश्मे बदले जाते थे।

प्रश्न 8.
कहानी के आधार पर पानवाले के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
कहानी में दिखाया गया है कि पानवाला एक बातूनी व्यक्ति है। वह अत्यधिक मोटा है। बात करते समय व हँसते समय उसकी तोंद हिलती रहती है। उसकी बातों में व्यंग्य व हँसी के साथ यथार्थ भी रहता है। कहीं-कहीं देशभक्तों के प्रति अनादर भाव की बात भी कह देता है। किंतु इतना कुछ होते हुए भी वह संवेदनशील व्यक्ति है। कैप्टन की मृत्यु का उसे गहरा दुःख है। कैप्टन के मरने पर उसकी देश-भक्ति का अहसास होता है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा

विचार/संदेश संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 9.
‘नेताजी का चश्मा’ नामक पाठ में लेखक ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर-
‘नेताजी का चश्मा’ श्री स्वयं प्रकाश की सुप्रसिद्ध कहानी है। इसमें उन्होंने देश-भक्ति की भावना पर प्रकाश डाला है। उनका मत है कि देश-भक्ति व्यक्त करने के लिए फौजी होना अनिवार्य नहीं है। इसी प्रकार यह भी आवश्यक नहीं है कि देशभक्त शारीरिक व आर्थिक दृष्टि से मजबूत हो। कहानी में कैप्टन एक विकलांग एवं गरीब व्यक्ति है। उसके मन में देश-भक्ति की भावना है। वह नेताजी की अधूरी मूर्ति को देखकर बेचैन हो जाता है और गरीब होते हुए भी उसको चश्मा लगा देता है। अपने देश के महापुरुषों व देशभक्तों के सम्मान के लिए यदि कोई थोड़ा-सा त्याग भी करता है तो वह देशभक्त है। इस प्रकार प्रस्तुत कहानी का यही संदेश है कि हमें अपने देशभक्तों के प्रति सम्मान की भावना रखनी चाहिए। यह कार्य हम अपने गाँव या कस्बे में रहकर भी कर सकते हैं।

प्रश्न 10.
नेताजी की मूर्ति को देखकर क्या याद आने लगता है और क्यों?
उत्तर-
नेताजी की मूर्ति कस्बे के बाज़ार के मुख्य चौराहे पर स्थापित की गई थी। लोग जब भी नेताजी की मूर्ति को देखते तो उन्हें नेताजी का आजादी प्राप्ति के दिनों वाला जोश और उत्साह याद आ जाता है। लोगों को नेताजी के नारे याद आ जाते हैं जिससे लोगों के मन में देश-प्रेम की भावना जागृत हो जाती है, ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ तथा ‘दिल्ली चलो’ । नेताजी की मूर्ति को देखकर देश-निर्माण की भावना उत्पन्न हो जाती है।

प्रश्न 11.
देश-प्रेम किसे कहते हैं और देश-प्रेम किस तरह से व्यक्त होता है- प्रस्तुत कहानी के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर-
देश-प्रेम एक मानसिक भावना है। यह साथ रहने से उत्पन्न होने वाला प्रेम है। जहाँ हम पैदा हुए, बड़े हुए, वर्षों से रहते आए, उस स्थान, वहाँ की चीजों, लोगों, गली-मुहल्ले के प्रति जो लगाव होता है, वैसा ही देश के प्रति लगाव होना, देश-प्रेम कहलाता है। कहानी में दिखाया गया है कि देश-प्रेम को व्यक्त करने के लिए बड़े-बड़े नारे लगाने की आवश्यकता नहीं तथा न ही फौजी बनने की जरूरत है। देश-प्रेम तो छोटी-छोटी बातों से प्रकट हो सकता है। हम अपने देश की हर कमी को पूरा करके तथा देशभक्तों के प्रति आदर-भाव दिखाकर देश-प्रेम व्यक्त कर सकते हैं। कहानी के पात्र कैप्टन ने नेताजी की मूर्ति पर चश्मा लगाकर ही देश-प्रेम व्यक्त किया है।

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अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘नेताजी का चश्मा’ पाठ के लेखक का क्या नाम है?
उत्तर-
‘नेताजी का चश्मा’ पाठ के लेखक का नाम स्वयं प्रकाश है।

प्रश्न 2.
नेताजी सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा किसने बनाई थी?
उत्तर-
नेताजी सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा स्कूल के ड्राइंग मास्टर ने बनाई थी।

प्रश्न 3.
हालदार साहब कस्बे में क्यों रुकते थे?
उत्तर-
हालदार साहब कस्बे में पान खाने के लिए रुकते थे।

प्रश्न 4.
‘मूर्ति बनाकर पटक देने का क्या भाव है?
उत्तर-
‘मूर्ति बनाकर पटक देने’ का भाव मूर्ति समय पर बनाना है।

प्रश्न 5.
‘तुम मुझे खून दो’ नेताजी का यह नारा हमें क्या प्रेरणा देता है?
उत्तर-
‘तुम मुझे खून दो’ नेताजी का यह नारा हमें देश के लिए बलिदान देने की प्रेरणा देता है।

प्रश्न 6.
हालदार साहब पहले मायूस क्यों हुए थे?
उत्तर-
मूर्ति पर चश्मा न होने के कारण हालदार साहब पहले मायूस हुए थे।

प्रश्न 7.
चश्मेवाले (कैप्टन) के मन में देशभक्तों के प्रति कैसी भावना थी?
उत्तर-
चश्मेवाले (कैप्टन) के मन में देशभक्तों के प्रति आदर की भावना थी।

प्रश्न 8.
नेताजी की मूर्ति पर बार-बार चश्मा कौन बदल रहा था?
उत्तर-
कैप्टन चश्मे वाला।

प्रश्न 9.
हालदार साहब क्या देखकर दुखी हुए थे?
उत्तर-
हालदार साहब देश भक्तों के प्रति अनादर भाव रखने वालों को देखकर दुखी हुए थे।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
हालदार साहब कस्बे में क्यों रुकते थे?
(A) आराम करने के लिए
(B) पान खाने के लिए
(C) किसी से मिलने के लिए
(D) कंपनी के काम के लिए
उत्तर-
(B) पान खाने के लिए

प्रश्न 2.
नेताजी की प्रतिमा किसने बनाई थी?
(A) ड्राइवर ने
(B) पान वाले ने
(C) थानेदार ने
(D) ड्राइंग मास्टर ने
उत्तर-
(D) ड्राइंग मास्टर ने

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प्रश्न 3.
नेता जी की प्रतिमा बनाने वाले मास्टर का क्या नाम था?
(A) मोतीलाल
(B) किशनलाल
(C) प्रेमपाल
(D) सोहनलाल
उत्तर-
(A) मोतीलाल

प्रश्न 4.
नेता जी की मूर्ति वाले कस्बे से हालदार साहब कब गुजरते थे-
(A) हर सप्ताह
(B) हर पन्द्रहवें दिन
(C) हर माह
(D) हर रोज
उत्तर-
(B) हर पन्द्रहवें दिन

प्रश्न 5.
सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा किस वस्तु की बनी थी?
(A) लोहे की
(B) संगमरमर की
(C) मिट्टी की
(D) काँसे की
उत्तर-
(B) संगमरमर की

प्रश्न 6.
नेता जी की मूर्ति के नीचे लिखा हुआ मूर्तिकार का नाम क्या था?
(A) ड्राइंग मास्टर
(B) मोतीलाल
(C) हालदार
(D) स्वयं प्रकाश
उत्तर-
(B) मोतीलाल

प्रश्न 7.
मूर्ति की ऊँचाई कितनी थी?
(A) दो फुट
(B) चार फुट
(C) छह फुट
(D) आठ फुट
उत्तर-
(A) दो फुट

प्रश्न 8.
सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा में क्या कमी रह गई थी? .
(A) टोपी नहीं थी
(B) चश्मा नहीं था
(C) प्रतिमा की ऊँचाई कम थी
(D) रंग उचित नहीं था
उत्तर-
(B) चश्मा नहीं था

प्रश्न 9.
सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा पर चश्मा किसने लगाया था?
(A) मोतीलाल ने
(B) हालदार साहब ने
(C) कैप्टन चश्मेवाले ने
(D) पानवाले ने
उत्तर-
(C) कैप्टन चश्मेवाले ने

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प्रश्न 10.
कहानी के अंत में नेता जी की मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा देखकर हालदार साहब की हालत क्या हुई?
(A) आँखें भर आईं
(B) उछल पड़े
(C) हैरान रह गए
(D) होठ फड़कने लगे
उत्तर-
(A) आँखें भर आईं

प्रश्न 11.
पानवाले के उदास होने का क्या कारण था?
(A) मूर्ति पर चश्मा न होना
(B) कैप्टन चश्मेवाले की मृत्यु
(C) सच्चे देशभक्तों की कमी
(D) बिक्री न होना
उत्तर-
(B) कैप्टन चश्मेवाले की मृत्यु

प्रश्न 12.
हालदार साहब किसे देखकर आवाक रह गए थे?
(A) मूर्ति को
(B) चश्मे को
(C) कस्बे को
(D) चश्मेवाले कैप्टन को
उत्तर-
(D) चश्मेवाले कैप्टन को

प्रश्न 13.
मूर्ति पर सरकडे का चश्मा देखकर हालदार साहब कैसे खड़े हो गए?
(A) झुककर
(B) अटेंशन हो गए
(C) हतप्रभ
(D) हाथ जोड़कर
उत्तर-
(B) अटेंशन हो गए

प्रश्न 14.
हालदार साहब ने नेता जी की प्रतिमा के चश्मे के बदलते रहने के बारे में किससे पूछा?
(A) ड्राइवर से
(B) चाय वाले से
(C) पानवाले से
(D) सब्जी वाले से
उत्तर-
(C) पानवाले से

प्रश्न 15.
प्रस्तुत पाठ में कैप्टन कौन है?
(A) हालदार साहब
(B) चाय वाला
(C) पानवाला
(D) चश्मे वाला
उत्तर-
(D) चश्मे वाला

प्रश्न 16.
‘नेताजी का चश्मा’ नामक कहानी में देशभक्तों का अनादर करने वाले पात्र कौन हैं?
(A) हालदार
(B) चाय वाला
(C) कैप्टन
(D) पानवाला
उत्तर-
(D) पानवाला

प्रश्न 17.
‘नेताजी का चश्मा’ शीर्षक पाठ का मूल भाव क्या है?
(A) देश भक्ति
(B) सामाजिक भाव
(C) राजनीतिक जागृति
(D) मूर्ति कला की प्रशंसा
उत्तर-
(A) देश भक्ति

प्रश्न 18.
‘नेताजी का चश्मा’ पाठ में पानवाला कैसा आदमी था?
(A) मोटा
(B) काला
(C) खुशमिज़ाज
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 19.
हालदार साहब को हर बार कस्बे से गुज़रते समय किस बात की आदत पड़ गई थी?
(A) चौराहे पर रुकना
(B) पान खाना
(C) मूर्ति को ध्यान से देखना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी

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प्रश्न 20.
‘वो लँगड़ा क्या जाएगा फौज में। पागल है पागल!’ ये शब्द किसने कहे हैं?
(A) पानवाले ने
(B) हालदार ने
(C) ड्राइवर ने
(D) नगरपालिका के अध्यक्ष ने
उत्तर-
(A) पानवाले ने

प्रश्न 21.
नेता जी की मूर्ति टोपी की नोक से कोट के दूसरे बटन तक कितनी ऊँची बताई गई है?
(A) चार फुट
(B) दो फुट
(C) पाँच फुट
(D) तीन फुट
उत्तर-
(B) दो फुट

प्रश्न 22.
देशभक्ति की भावना किस पर निर्भर करती है?
(A) धन पर
(B) बल पर
(C) शान पर
(D) मन पर
उत्तर-
(D) मन पर

नेताजी का चश्मा पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) पूरी बात तो अब पता नहीं, लेकिन लगता है कि देश के अच्छे मूर्तिकारों की जानकारी नहीं होने और अच्छी मूर्ति की लागत अनुमान और उपलब्ध बजट से कहीं बहुत ज़्यादा होने के कारण काफी समय ऊहापोह और चिट्ठी-पत्री में बरबाद हुआ होगा और बोर्ड की शासनावधि समाप्त होने की घड़ियों में किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर देने का निर्णय किया गया होगा, और अंत में कस्बे के इकलौते हाई स्कूल के इकलौते ड्राइंग मास्टर मान लीजिए मोतीलाल जी-को ही यह काम सौंप दिया गया होगा, जो महीने भर में मूर्ति बनाकर ‘पटक देने’ का विश्वास दिला रहे थे। [पृष्ठ 60]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) वह पूरी बात कौन-सी है जिसका पता नहीं है?
(ग) मूर्ति-निर्माण में नगरपालिका को देर क्यों लगी होगी?
(घ) स्थानीय कलाकार से मूर्ति बनवाने का क्या कारण रहा होगा?
(ङ) मोतीलाल कौन था और उसे क्या काम दिया गया था?
(च) ‘मूर्ति बनाकर पटक देने से क्या तात्पर्य है?
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का प्रसंग एवं आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-नेताजी का चश्मा।
लेखक का नाम-स्वयं प्रकाश।

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(ख) कस्बे के मुख्य बाजार के प्रमुख चौराहे पर नगरपालिका द्वारा नेताजी की प्रतिमा बनवाई जानी थी। इसे कैसे और कहाँ से बनवाया जाए, इस बात का पूरा पता नहीं था।

(ग) लेखक का अनुमान है कि नगरपालिका को मूर्ति-निर्माण के कार्य में देर इसलिए लगी होगी कि उन्हें मूर्ति-निर्माण करने वाले अच्छे कलाकारों का पता नहीं होगा। जानकारी मिलने पर धन की कमी बाधा बन गई होगी। काफी समय सोच-विचार और कार्यालय की कार्रवाई में नष्ट हो गया होगा।

(घ) स्थानीय कलाकार से मूर्ति बनवाने के मुख्य दो ही कारण रहे होंगे-प्रथम धन की कमी और कार्यालयी कार्रवाई में देर लगने का कारण-समय का अभाव। इन्हीं कारणों से नेताजी की प्रतिमा स्थानीय कलाकार से बनवाई होगी।

(ङ) मोतीलाल स्थानीय हाई स्कूल में ड्राइंग टीचर थे। उन्हें नेताजी सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा बनाने का कार्य दिया गया था। .. (च) ‘मूर्ति बनाकर पटक देने’ से तात्पर्य है कि नगरपालिका द्वारा कस्बे के मुख्य बाजार के चौराहे पर सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति की स्थापना करनी थी। इसलिए यह कार्य स्थानीय स्कूल के ड्राइंग मास्टर को दिया गया था। उसने उन्हें विश्वास दिलवाया होगा कि वे एक मास में ही मूर्ति को तैयार कर देंगे।

(छ) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘नेताजी का चश्मा’ नामक पाठ से उद्धृत है। इस पाठ के लेखक श्री स्वयं प्रकाश हैं। इस पाठ में लेखक ने देश के करोड़ों नागरिकों द्वारा देश के निर्माण में दिए गए योगदान का उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में कस्बे में सुभाषचंद्र बोस (नेता जी) की बनाई गई संगमरमर की प्रतिमा के विषय में बताया गया है।

आशय/व्याख्या-लेखक का कथन है कि नगरपालिका के किसी उत्साही प्रशासनिक अधिकारी द्वारा नेताजी की प्रतिमा बनवाई गई होगी। वह कैसे लगी या कैसे बनवाई गई, इसके विषय में पूरी जानकारी तो नहीं है। किंतु ऐसा प्रतीत होता है कि देश के सफल मूर्तिकारों की जानकारी न होने से अच्छी मूर्ति की लागत अनुमान और उपलब्ध बजट से कहीं ज्यादा होने के कारण काफी समय तक विचार-विमर्श होता रहा होगा अर्थात् जितना धन प्राप्त था मूर्ति पर उससे अधिक धन खर्च होने के कारण बहुत-समय सोच-विचार और चिट्ठी-पत्री लिखने में ही बहुत नष्ट हो गया था। बोर्ड के शासन का समय भी समाप्त होने वाला होगा। इसलिए समय और धन दोनों को ध्यान में रखकर किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर देने का निर्णय लिया गया होगा अर्थात् किसी स्थानीय मूर्तिकार से नेताजी की मूर्ति बनवाने का निश्चय किया गया होगा। अंत में कस्बे के हाई स्कूल के इकलौते ड्राइंग मास्टर, जिनका नाम मोतीलाल जी होगा, को ही नेताजी की संगमरमर की बनाने का काम दिया गया होगा, जिसने एक मास तक मूर्ति बनाने का विश्वास दिलाया होगा। इस प्रकार नेता जी की मूर्ति बनाने की घटना का यह छोटा-सा अंश ही आपको बताया गया है।

(2) जैसाकि कहा जा चुका है, मूर्ति संगमरमर की थी। टोपी की नोक से कोट के दूसरे बटन तक कोई दो फुट ऊँची। जिसे कहते हैं बस्ट। और सुंदर थी। नेताजी सुंदर लग रहे थे। कुछ-कुछ मासूम और कमसिन । फौजी वर्दी में। मूर्ति को देखते ही ‘दिल्ली चलो’ और ‘तुम मुझे खून दो…’ वगैरह याद आने लगते थे। इस दृष्टि से यह सफल और सराहनीय प्रयास था। [पृष्ठ 60]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) मूर्ति किसकी थी और कैसी थी?
(ग) मूर्ति को देखते क्या याद आने लगता है?
(घ) मूर्ति में नेताजी की वर्दी कैसी थी?
(ङ) ‘कमसिन और मासूम’ से क्या तात्पर्य है?
(च) उपर्युक्त गद्यांश का प्रसंग लिखकर आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-नेताजी का चश्मा।
लेखक का नाम-स्वयं प्रकाश।

(ख) मूर्ति नेताजी सुभाषचंद्र बोस की थी। संगमरमर की बनी यह मूर्ति सुंदर थी। यह कमसिन और मासूम लगती थी।

(ग) मूर्ति को देखते ही नेताजी के ‘दिल्ली चलो’ और ‘तुम मुझे खून दो’ आदि नारे याद आने लगते थे।

(घ) मूर्ति में नेताजी की फौजी वर्दी थी।।

(ङ) कमसिन का अर्थ है-सुंदर तथा मासूम का अर्थ है-भोलापन।

(च) प्रसंग-प्रस्तुत गद्य-पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित एवं श्री स्वयं प्रकाश द्वारा रचित ‘नेताजी का चश्मा’ नामक पाठ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने नेता जी की संगमरमर से बनी मूर्ति की सुंदरता और उनके जीवन के विषय में बताया है। .

आशय/व्याख्या-लेखक ने नेता जी की मूर्ति और उसके प्रभाव का उल्लेख करते हुए कहा कि मूर्ति संगमरमर की बनी हुई थी। यह मूर्ति टोपी की नोक से कोट के दूसरे बटन तक लगभग दो फुट ऊँची थी। ऐसी मूर्ति को बस्ट कहते हैं। नेता जी की संगमरमर से बनी यह मूर्ति अत्यंत सुंदर थी। नेता जी मूर्ति के रूप में बहुत अच्छे लग रहे थे। नेता जी कुछ भोले, साधारण स्वभाव वाले तथा सुंदर दिखाई दे रहे थे। नेता जी का चित्र फौजी वर्दी में बनाया गया था। उनकी मूर्ति को देखते ही उनके प्रसिद्ध नारे ‘दिल्ली चलो’, ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ आदि याद आने लगते थे। इस दृष्टि से नेता जी की मूर्ति बनाने का यह प्रयास प्रशंसा के योग्य था। कहने का भाव है कि नेता जी की मूर्ति अत्यंत सुंदर एवं प्रभावशाली थी।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा

(3) केवल एक चीज़ की कसर थी जो देखते ही खटकती थी। नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं था। यानी चश्मा तो था, लेकिन संगमरमर का नहीं था। एक सामान्य और सचमुच के चश्मे का चौड़ा काला फ्रेम मूर्ति को पहना दिया गया था। हालदार साहब जब पहली बार इस कस्बे से गुज़रे और चौराहे पर पान खाने रुके तभी उन्होंने इसे लक्षित किया और उनके चेहरे पर एक कौतुकभरी मुसकान फैल गई। [पृष्ठ 60-61]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) कौन-सा प्रयास सफल एवं सराहनीय रहा?
(ग) मूर्ति में कौन-सी कमी थी और वह क्यों खटकती थी?
(घ) मूर्ति को कैसा चश्मा पहना दिया गया था?
(ङ) हालदार साहब के चेहरे पर कौतुकभरी मुस्कान क्यों फैल गई?
(च) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग लिखकर आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-नेताजी का चश्मा।।
लेखक का नाम-स्वयं प्रकाश।

(ख) नगर के मुख्य बाज़ार के चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति की स्थापना का प्रयास अत्यंत सफल एवं सराहनीय था क्योंकि मूर्ति संगमरमर की बनी हुई थी और सुंदर भी थी।

(ग) नेताजी की मूर्ति में उनकी आँखों पर संगमरमर का चश्मा नहीं बना हुआ था। मूर्ति में यही सबसे बड़ी कमी थी। उसके स्थान पर साधारण फ्रेम का चश्मा पहना दिया गया था। वह संगमरमर की मूर्ति से अलग लगता था। इसलिए यह बात देखने वालों को खटकती थी।

(घ) मूर्ति को काले रंग का चौड़े फ्रेम वाला चश्मा पहना दिया गया था।

(ङ) हालदार साहब ने जब पहली बार चौराहे पर स्थापित नेताजी की मूर्ति को देखा तो लक्षित किया कि इनकी मूर्ति पर । संगमरमर का चश्मा न होकर असली का चश्मा था। यही बात उनकी कौतुकभरी मुस्कान का कारण थी।

(च) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 ‘नेताजी का चश्मा’ नामक पाठ से उद्धृत है। इसके लेखक श्री स्वयं प्रकाश हैं। इस पाठ में उन्होंने देश की स्वतंत्रता और विकास में योगदान देने वाले लोगों को देशभक्त कहकर उनका सम्मान किया है।

आशय/व्याख्या-इन पंक्तियों में बताया गया है कि हालदार साहब को नेता जी की संगमरमर से बनी मूर्ति बहुत ही पसंद आई, किंतु उन्हें इस मूर्ति में एक चीज की कमी भी दिखाई दी जो देखने में अच्छी नहीं लगती थी। वह कमी थी कि नेता जी की आँखों पर चश्मा नहीं था। चश्मा तो था, किंतु मूर्ति के साथ के संगमरमर का नहीं था। मूर्ति को एक सामान्य और वास्तविक चश्मे का चौड़ा और काला फ्रेम पहना दिया गया था। हालदार साहब जब पहली बार इस कस्बे में आए और चौराहे पर पान खाने के लिए रुके तब उन्होंने मूर्ति को वास्तविक चश्मा पहनाए जाने की ओर संकेत किया था। इस चश्मे के फ्रेम को देखकर वे आश्चर्यभरी हँसी हँसे थे। कहने का भाव है कि हालदार साहब को मूर्ति तो बहुत पसंद थी, किंतु उन्हें मूर्ति पर संगमरमर के चश्मे की अपेक्षा वास्तविक चश्मे का फ्रेम देखकर हैरानी हुई थी।

(4) हालदार साहब को पानवाले द्वारा एक देशभक्त का इस तरह मज़ाक उड़ाया जाना अच्छा नहीं लगा। मुड़कर देखा तो अवाक रह गए। एक बेहद बूढा मरियल-सा लँगड़ा आदमी सिर पर गाँधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगाए एक हाथ में एक छोटी-सी संदूकची और दूसरे हाथ में एक बाँस पर टंगे बहुत-से चश्मे लिए अभी-अभी एक गली से निकला था और अब एक बंद दुकान के सहारे अपना बाँस टिका रहा था। तो इस बेचारे की दुकान भी नहीं! फेरी लगाता है! हालदार साहब चक्कर में पड़ गए। पूछना चाहते थे, इसे कैप्टन क्यों कहते हैं? क्या यही इसका वास्तविक नाम है? लेकिन पानवाले ने साफ बता दिया था कि अब वह इस बारे में और बात करने को तैयार नहीं। ड्राइवर भी बेचैन हो रहा था। काम भी था। हालदार साहब जीप में बैठकर चले गए। [पृष्ठ 62-63]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) हालदार साहब को क्या अच्छा नहीं लगा?
(ग) हालदार साहब किस बात से हैरान रह गए थे?
(घ) चश्मेवाला कौन था? उसके जीवन की दो विशेषताएँ लिखिए।
(ङ) हालदार साहब किसे देखकर और क्यों चक्कर में पड़ गए?
(च) हालदार साहब को चश्मे वाले के विषय में अधिक जानकारी क्यों नहीं मिल सकी?
(छ) इस गद्यांश का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
(ज) प्रस्तुत गद्यांश का प्रसंग एवं आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-नेताजी का चश्मा।
लेखक का नाम-स्वयं प्रकाश।

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(ख) हालदार साहब को पानवाले द्वारा देशभक्तों का मज़ाक उड़ाना अच्छा नहीं लगा था। पानवाला चश्मे वाले की देशभक्ति का सम्मान करने की अपेक्षा उसको पागल व लँगड़ा कहता है। हालदार को यही बात चुभ गई थी।

(ग) हालदार साहब को बताया गया था कि नेताजी की मूर्ति पर चश्मा किसी कैप्टन ने लगाया था। उन्होंने कल्पना की होगी कि वह कोई स्वस्थ एवं लंबा फौजी जवान होगा। उसका चश्मों का अच्छा बड़ा कारोबार होगा। किंतु उसने देखा कि जिसका नाम कैप्टन बताया गया था वह एक मरियल और लँगड़ा व्यक्ति था। उसके सिर पर गाँधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगा हुआ था। उसके एक हाथ में छोटी-सी संदूकची और दूसरे हाथ में लंबा बाँस था जिस पर चश्मे लटके हुए थे। वह घूम-घूमकर चश्मे बेचता था। यह देखकर हालदार साहब हैरान रह गए थे।

(घ) चश्मे वाला साधारण व्यक्तित्व वाला गरीब व्यक्ति था। उसके मन में देशभक्तों के प्रति आदर की भावना थी। वह गली-गली में घूमकर चश्मे बेचकर गुजारा करता था।

(ङ) हालदार साहब चश्मे वाले (कैप्टन) को देखकर चक्कर में पड़ गए क्योंकि उन्होंने सोचा था कि कैप्टन कोई बहुत तगड़ा या मज़बूत व्यक्ति होगा। किंतु वह एक मरियल-सा बूढ़ा और लँगड़ा व्यक्ति था। वे सोचने लगे कि उसे कैप्टन क्यों कहते हैं, यह उनकी समझ से बाहर था।

(च) हालदार साहब चश्मे वाले को देख चुके थे। वे ऐसे देशभक्त व्यक्ति के विषय में अधिक जानकारी चाहते थे। पानवाले ने उसकी अधिक जानकारी नहीं दी और दूसरा उनके ड्राइवर को भी जल्दी थी। इसलिए हालदार साहब वहाँ अधिक देर तक न रुक सके और न ही किसी अन्य व्यक्ति से कैप्टन के विषय में जानकारी हासिल कर सके।

(छ) इस गद्यांश में लेखक ने बताया है कि देशभक्ति की भावना का होना या न होना मन की स्थिति व भावना पर निर्भर है। कैप्टन गरीब एवं अपाहिज है, किंतु वह देशभक्त है। पानवाला स्वस्थ एवं अच्छा कमाता है, पर उसके मन में देशभक्ति की भावना नहीं है। अपितु वह देशभक्तों का मज़ाक उड़ाता है।

(ज) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘नेताजी का चश्मा’ नामक पाठ से उद्धृत है। इसके लेखक श्री स्वयं प्रकाश हैं। इस गद्यांश में बताया गया है कि देशभक्ति की भावना का होना या न होना मनुष्य की मनोदशा पर निर्भर करता है।

आशय/व्याख्या-कैप्टन गरीब एवं अपाहिज है, किंतु देशभक्त है। यद्यपि पानवाला स्वस्थ है, तथापि देशभक्त नहीं है। हालदार साहब जब पान खाने के लिए कस्बे के चौराहे पर रूके तो उन्होंने पानवाले से कैप्टन के विषय में पूछा तो उसने कैप्टन के लिए बूढ़ा, कमज़ोर, मरियल लंगड़ा, पागल आदि शब्दों का प्रयोग किया और उसका मज़ाक उड़ाया। किंतु हालदार साहब को किसी देशभक्त का इस प्रकार मज़ाक उड़ाना अच्छा नहीं लगा। उन्होंने मुड़कर देखा तो हैरान रह गए कि एक बहुत ही कमज़ोर बूढ़ा, लंगड़ा आदमी सिर पर गाँधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगाए एक हाथ में छोटी-सी संदूकची और दूसरे हाथ में एक बाँस पर टँगे हुए बहुत-से चश्मे लिए अभी-अभी एक गली से निकला था तथा अब एक बंद दुकान के सहारे अपना बाँस टिका रहा था। उसके पास अपनी दुकान भी नहीं है। वह तो चश्मे बेचने के लिए फेरी लगाता है। हालदार साहब यह सब देखकर हैरान थे। वे जानना चाहते थे कि फिर इस व्यक्ति को कैप्टन क्यों कहते हैं? क्या यह इसका वास्तविक नाम है, किंतु पानवाले ने उसके विषय में और अधिक बात करना मना कर दिया। उधर ड्राइवर भी बेचैन था और हालदार साहब को काम भी था। अतः वे जीप में बैठकर चले गए। इस प्रकार हालदार साहब को कैप्टन के विषय में अधिक जानकारी नहीं मिल सकी, किंतु यह निश्चित है कि हालदार साहब को देशभक्तों का मज़ाक उड़ाने वाले लोग पसंद नहीं हैं।

(5) बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी-जवानी जिंदगी सब कुछ होम देनेवालों पर भी हँसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है। दुखी हो गए। पंद्रह दिन बाद फिर उसी कस्बे से गुजरे। कस्बे में घुसने से पहले ही खयाल आया कि कस्बे की हृदयस्थली में सुभाष की प्रतिमा अवश्य ही प्रतिष्ठापित होगी, लेकिन सुभाष की आँखों . पर चश्मा नहीं होगा।…….. क्योंकि मास्टर बनाना भूल गया।….. और कैप्टन मर गया। सोचा, आज वहाँ रुकेंगे नहीं, पान भी नहीं खाएँगे, मूर्ति की तरफ देखेंगे भी नहीं, सीधे निकल जाएँगे। ड्राइवर से कह दिया, चौराहे पर रुकना नहीं, आज बहुत काम है, पान आगे कहीं खा लेंगे।

लेकिन आदत से मजबूर आँखें चौराहा आते ही मूर्ति की तरफ उठ गईं। कुछ ऐसा देखा कि चीखे, रोको! जीप स्पीड में थी, ड्राइवर ने ज़ोर से ब्रेक मारे। रास्ता चलते लोग देखने लगे। जीप रुकते-न-रुकते हालदार साहब जीप से कूदकर तेज़-तेज़ कदमों से मूर्ति की तरफ लपके और उसके ठीक सामने जाकर अटेंशन में खड़े हो गए।

मूर्ति की आँखों पर सरकडे से बना छोटा-सा चश्मा रखा हुआ था, जैसा बच्चे बना लेते हैं।
हालदार साहब भावुक हैं। इतनी-सी बात पर उनकी आँखें भर आईं। [पृष्ठ 63-64]

प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) हालदार साहब क्या सोचकर दुःखी हो गए?
(ग) कैप्टन की मृत्यु का हालदार साहब पर क्या प्रभाव पड़ा?
(घ) हालदार साहब ने ऐसा क्यों सोचा कि सुभाष की प्रतिमा पर चश्मा नहीं होगा?
(ङ) हालदार साहब ने ड्राइवर को क्या आदेश दिया और क्यों?
(च) हालदार साहब ने जीप से उतरकर क्या और क्यों किया?
(छ) हालदार साहब भावक क्यों हो गए थे?
(ज) इस गद्यांश का संदेश क्या है?
(झ) उपर्युक्त गद्यांश का प्रसंग लिखते हुए आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-नेताजी का चश्मा।
लेखक का नाम-स्वयं प्रकाश।

(ख) हालदार साहब के मन में देश के प्रति अथाह प्रेम है। देश पर जीवन बलिदान करने वाले देशभक्तों के प्रति भी उनके मन में आदर भाव है। जो लोग देशभक्तों को आदर देने की अपेक्षा उन पर हँसते हैं और अपना स्वार्थ पूरा करने के अवसर की ताक में रहते हैं, उनके व्यवहार को देखकर वह दुःखी होते हैं।

(ग) कैप्टन की मृत्यु का हालदार साहब को बहुत दुःख हुआ। वे अब चौराहे पर पान खाने के लिए भी नहीं रुकना चाहते थे ।

(घ) मास्टर साहब चश्मा बनाना भूल गए थे और जो सज्जन सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति को चश्मा पहनाता था, वह मर चुका था। इसीलिए हालदार साहब इस नतीजे पर पहुंचे थे कि सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति की आँखों पर चश्मा नहीं होगा।

(ङ) हालदार साहब ने ड्राइवर को आदेश दिया था कि वह बाजार के चौराहे पर जीप न रोके। क्योंकि वे सुभाष की मूर्ति को बिना चश्मे के देखना नहीं चाहते थे। इसलिए अधिक काम होने का बहाना बना दिया था।

(च) हालदार साहब ने एकाएक जीप रोकने का आदेश दिया और शीघ्रता से जीप से उतरकर तेज गति से चलकर नेताजी की मूर्ति के सामने गए और वहाँ सावधान की स्थिति में खड़े हो गए। उन्होंने नेताजी के प्रति आदर व सम्मान व्यक्त किया।

(छ) हालदार साहब ने देखा कि सुभाष की मूर्ति की आँखों पर सरकंडे का चश्मा लगा हुआ था। यह देखकर उनका मन भावुक हो उठा कि अभी भी देशभक्ति जीवित है। सुभाषचंद्र बोस जैसे महान् देशभक्तों का आदर करने वाले लोग अभी भी शेष हैं।

(ज) इस गद्यांश के माध्यम से लेखक ने जहाँ मानव मनोविज्ञान का सूक्ष्म विश्लेषण किया है, वहाँ यह सिद्ध किया है कि संसार में अधिकांश लोग पानवाले जैसे स्वार्थी हैं। किंतु कुछ थोड़े-से लोग कैप्टन व हालदार जैसे भी हैं जिनके मन में देशभक्ति का जज्बा है और देशभक्तों के प्रति सम्मान की भावना है। हमें दूसरी प्रकार के लोगों की भाँति व्यक्तिगत स्वार्थ त्यागकर देशभक्त बनना चाहिए।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा

(झ) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘नेताजी का चश्मा’ नामक पाठ से उद्धृत है। इस पाठ के लेखक श्री स्वयं प्रकाश जी हैं। इस गद्यांश में लेखक ने स्पष्ट किया है कि देश में पान बेचने वाले जैसे लोग भी हैं तो कैप्टन और हालदार जैसे देशभक्तों की भी कमी नहीं है।

आशय/व्याख्या-लेखक ने बताया कि हालदार साहब बार-बार इस बात पर सोचते हैं कि उस कौम का क्या होगा जो अपने देश के लिए अपना जीवन, घर-गृहस्थी, पूरी जवानी आदि सब कुछ न्यौछावर करने वालों का मज़ाक उड़ाती है। इतना ही नहीं, अपने आप को चंद पैसों के लिए बेचने के अवसर ढूँढती है। हालदार साहब ऐसा सोचकर बहुत दुखी हो गए थे। हालदार साहब पंद्रह दिन बाद फिर उसी कस्बे में से गुजरे। कस्बे में प्रवेश करने से पहले उन्हें ख्याल आया कि कस्बे के बीच में सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति तो निश्चित रूप से लगी हुई होगी, किंतु मूर्ति की आँखों पर चश्मा नहीं होगा। क्योंकि मूर्तिकार (मास्टर) चश्मा बनाना भूल गया था और मूर्ति को चश्मा पहनाने वाला कैप्टन मर चुका था। हालदार साहब ने मन-ही-मन निश्चय किया कि आज वह मूर्ति के पास वाली पान की दुकान पर पान खाने नहीं रुकेंगे। यहाँ तक कि मूर्ति की तरफ आँख उठाकर देखेंगे भी नहीं। इसलिए ड्राइवर को कह दिया कि आज वे चौराहे पर नहीं रुकेंगे।

पान कहीं आगे जाकर खा लेंगे। वैसे भी आज काम अधिक है। किंतु ज्यों ही हालदार साहब की जीप चौराहे पर पहुँची, उनकी आँखें चौराहे पर लगी मूर्ति की ओर अपने-आप उठ गईं। उन्होंने कुछ ऐसा देखा कि तुंरत ही ड्राइवर को उन्होंने जीप रोकने के लिए कहा। जीप तेज गति से जा रही थी। ड्राइवर ने जोर से ब्रेक मारे। आसपास के सभी लोग जीप को देखने लगे। इससे पहले कि जीप रुकती हालदार साहब जीप से कूदे और तेज गति से मूर्ति की ओर चल दिए। नेता जी की मूर्ति के सामने जाकर सावधान की स्थिति में खड़े हो गए। उन्होंने देखा कि मूर्ति की आँखों पर सरकंडे का बना चश्मा लगा हुआ था जिस प्रकार बच्चे चश्मा बना लेते हैं। हालदार साहब भावुक हो उठे। उनकी आँखों से आँसू बहने लगे। कहने का भाव है कि हालदार साहब सोचने लगे कि लोगों में अभी देश भक्ति का भाव बचा हुआ है।

नेताजी का चश्मा Summary in Hindi

नेताजी का चश्मा लेखक-परिचय

प्रश्न-
श्री स्वयं प्रकाश का जीवन परिचय एवं उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-स्वयं प्रकाश जी हिंदी के प्रमुख कहानीकार हैं। उन्हें कहानी लेखन में अत्यधिक प्रसिद्धि प्राप्त हुई है। उनका जन्म सन् 1947 में इंदौर में हुआ। उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त की। उनका बचपन राजस्थान में बीता था और नौकरी भी उन्हें राजस्थान में स्थित एक औद्योगिक प्रतिष्ठान में ही मिली। उनके जीवन का अधिकांश समय राजस्थान में ही व्यतीत हुआ। अब वे स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के पश्चात् भोपाल में स्थायी रूप से रह रहे हैं। आजकल वे ‘वसुधा’ नामक पत्रिका के संपादन मंडल से जुड़े हुए हैं।

2. प्रमुख रचनाएँ-कहा जा चुका है कि स्वयं प्रकाश का नाम कहानी के क्षेत्र में बड़े आदर के साथ लिया जाता है। उनके तेरह कहानी-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनमें से प्रमुख कहानी-संग्रह इस प्रकार हैं___’सूरज कब निकलेगा’, ‘आएँगे अच्छे दिन भी’, ‘आदमी जात का आदमी’ तथा ‘संधान’।
उपन्यास-बीच में विनय’ तथा ‘ईंधन’।
प्रमुख पुरस्कार-उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए उन्हें पहल सम्मान, बनमाली पुरस्कार, राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार आदि पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।

3. साहित्यिक विशेषताएँ श्री स्वयं प्रकाश की कहानियों एवं उपन्यासों में मध्यवर्ग के जीवन के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला गया है। इसलिए विद्वान् उन्हें मध्यवर्गीय जीवन-शैली के महान् चितेरे कहते हैं। उनकी कहानियों में कस्बों की जीवन-शैली का बोध बड़ी कुशलता एवं कलात्मकता से अभिव्यक्त हुआ है। वे देशभक्ति की नारेबाजी के विरुद्ध हैं। वे मनुष्य के आचरण में ही देशभक्ति देखना चाहते हैं। उन्होंने अपनी कहानियों में जातिगत भेदभाव का जोरदार शब्दों में खंडन किया है। उनकी दृष्टि में सब मनुष्य समान हैं। वे सामाजिक विकास के मार्ग में आने वाली हर बुराई, रूढ़ि व अंधविश्वास को जड़ से उखाड़कर फेंक देना चाहते हैं।

4. भाषा-शैली-स्वयं प्रकाश की कहानियों की भाषा सरल, सहज एवं पात्रानुकूल है। उन्होंने लोक-प्रचलित तत्सम शब्दों का प्रयोग भी किया है। उन्होंने विषय को गहराई से समझने का प्रयास किया है। उन्होंने वर्णनात्मक एवं संवादात्मक शैलियों का सफल प्रयोग किया है। रोचक किस्सागोई शैली में रचित उनकी कहानियाँ हिंदी की वाचक परंपरा को समृद्ध करती हैं।

नेताजी का चश्मा पाठ का सार

प्रश्न-
‘नेताजी का चश्मा’ शीर्षक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
लेखक कहता है कि हालदार साहब कंपनी के काम से उस कस्बे में से गुज़रा करते थे। कस्बा छोटा ही था। पक्के मकान बहुत कम थे। वहाँ एक छोटा-सा बाजार भी था। कस्बे में एक नगरपालिका भी थी। नगरपालिका ने नगर के मुख्य बाज़ार के चौराहे पर सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा लगवा दी होगी। मूर्ति को देखकर लगता है कि यह किसी स्थानीय मूर्तिकार से बनवाई गई होगी। शायद कस्बे के स्कूल के ड्राइंग मास्टर मोतीलाल ने इस मूर्ति को बहुत कम समय में बना दिया होगा। नेताजी की यह मूर्ति टोपी से लेकर कोट के दूसरे बटन तक थी। दो फुट ऊँची यह मूर्ति बहुत सुंदर लग रही थी। मूर्ति को देखते ही ‘दिल्ली चलो’ और ‘तुम मुझे खून दो’ का नारा याद आने लगता था।

हालदार साहब को यह बात बहुत खटकती थी कि नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं था अर्थात् संगमरमर का नहीं था। उसके स्थान पर किसी ने एक सचमुच का चौड़ा काला फ्रेम मूर्ति को पहना दिया था।

हालदार साहब को वहाँ से गुज़रते समय लोगों का यह प्रयास बहुत अच्छा लगा था। दूसरी बार जब हालदार साहब वहाँ से गुज़रें तो उन्हें मूर्ति का चश्मा बदला हुआ लगा। पहले मोटे फ्रेम वाले चकोर चश्मे के स्थान पर अब तार के फ्रेम वाला गोल चश्मा था। तीसरी बार हालदार साहब वहाँ से गुज़रे तो प्रतिमा के चश्मे को देखकर हैरान रह गए। उन्होंने सोचा कि यह विचार तो बहुत ही अच्छा है कि यदि मूर्ति के कपड़े नहीं बदले जा सकते तो चश्मा तो आसानी से बदला जा सकता है।

हालदार साहब के मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि चश्मा बदलने का रहस्य क्या हो सकता है? चश्मे को बार-बार कौन बदलता है? उन्होंने अपनी जीप रुकवाकर चौराहे पर बैठे पानवाले से पूछा कि नेताजी की मूर्ति का चश्मा कौन बदलता है? पानवाले ने बताया कि यह फ्रेम कैप्टन चश्मेवाला बदलता है। यदि मूर्ति पर लगा चश्मा किसी ग्राहक को पसंद आ जाए तो वह चश्मा ग्राहक को देकर उसके स्थान पर दूसरा फ्रेम लगा देता है। किंतु वह नेताजी की मूर्ति को बिना चश्मे के नहीं देख सकता। जब पानवाले से पूछा कि मूर्ति का ओरिजिनल चश्मा कहाँ गया तो उसने बताया। क्योंकि मूर्ति बनाने वाला ड्राइंग मास्टर चश्मा बनाना भूल गया था। उनका अनुमान सही निकला। क्योंकि यह मूर्ति किसी स्थानीय कलाकार द्वारा बनवाई गई होगी और वह चश्मा बनाना भूल गया होगा अथवा चश्मा बनाने में असफल रहा होगा।

हालदार साहब के मन की जिज्ञासा पूर्णतः शांत नहीं हुई थी। उसने पानवाले से फिर पूछा कि यह चश्मे वाला नेताजी का साथी था या आज़ाद हिंद फौज का भूतपूर्व सिपाही था? पान वाला हँसता हुआ बोला-वह तो लँगड़ा है, वह फौज में क्या जाएगा? वो देखो, वो आ रहा है। उसका कहीं फोटो-वोटो छपवा दो। पानवाले की यह मजाक भरी बात हालदार साहब को अच्छी नहीं लगी। किसी देशभक्त की हँसी उड़ाना अच्छी बात नहीं है। हालदार साहब ने देखा कि एक बेहद बूढ़ा मरियल-सा लँगड़ा आदमी सिर पर गाँधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगाए हुआ आ रहा था। उसके एक हाथ में एक छोटी-सी संदूकची और दूसरे हाथ में एक बाँस पर टँगे बहुत-से चश्मे थे। वह फेरी लगाकर चश्मे बेचता था। हालदार साहब पूछना चाहते थे कि उसका नाम कैप्टन कैसे पड़ा? किंतु यह जानने की किसी को फुर्सत नहीं थी। उस दिन के बाद कई वर्षों तक हालदार साहब आते-जाते नेताजी की मूर्ति पर विभिन्न प्रकार के चश्मे देखते रहे। बिना चश्मे के मूर्ति उन्होंने नहीं देखी।

कुछ समय पश्चात् हालदार साहब वहाँ से गुज़रे तो देखा कि मूर्ति के चेहरे पर चश्मा नहीं था। पूछने पर पता चला कि कैप्टन की मृत्यु हो चुकी थी। यह सुनकर हालदार साहब निराश हो गए और जीप में बैठकर चले गए। वे जीप में बैठकर सोचने लगे कि इस देश का क्या होगा जहाँ के लोग देशभक्तों की बलिदानियों का मज़ाक करते हैं और स्वयं बिकने को तैयार रहते हैं।

कुछ समय पश्चात् हालदार साहब जब बाजार से गुजरे तो उन्होंने निश्चय किया था कि वे नेताजी की बिना चश्मे वाली प्रतिमा की ओर नहीं देखेंगे। किंतु चौराहा आने पर वे रुके बिना न रह सके। उन्होंने देखा कि नेताजी की प्रतिमा पर सरकंडे का चश्मा रखा हुआ था। हालदार साहब की आँखें नम हो गईं। वे भावुक हो उठे।

कठिन शब्दों के अर्थ

(पृष्ठ-60) हालदार = हवलदार। कस्वा = छोटा-सा नगर। ओपन एयर सिनेमाघर = बिना छत का सिनेमाघर। प्रतिमा = मूर्ति। प्रशासनिक = प्रशासन संबंधी। लागत अनुमान = किसी वस्तु के बनाने में खर्च का अंदाजा। उपलब्ध बजट = खर्च करने के लिए जितना धन पास में हो। ऊहापोह = दुविधा। शासनावधि = शासन करने का समय। निर्णय = फैसला। मासूम = भोलापन। संगमरमर = सफेद पत्थर। सराहनीय = प्रशंसा करने योग्य। प्रयास = कोशिश। कसर होना = कमी होना। खटकना = बुरा लगना।

(पृष्ठ-61) लक्षित किया = ध्यान दिया। कौतुकभरी = हैरान कर देने वाली। आइडिया = विचार। निष्कर्ष = परिणाम। चौकोर = चार किनारों वाला। खुशमिज़ाज़ = प्रसन्न स्वभाव वाला। तोंद = पेट। थिरकी = हिली। बत्तीसी = खुले दाँत । दुर्दमनीय = जिसे दबाना कठिन हो। चेंज = बदलना। गिराक = ग्राहक। फ्रेम = चौखट। बिठा दिया = लगा दिया। आहत = दुःखी। असुविधा = परेशानी। फिट करना = लगा देना। दरकार होना = इच्छा होना।

(पृष्ठ-62) ओरिजिनल = मूल, असली। चकित = हैरान। पीक = पान की थूक। द्रवित = पिघलना। वाकई = सचमुच। विचित्र = अद्भुत। ख्याल = विचार। नतमस्तक = सिर झुकाना। भूतपूर्व = पुराना। अवाक् = हैरान। फेरी लगाना = घूम-घूमकर सामान बेचना। चक्कर में पड़ना = हैरान होना।

(पृष्ठ-63) उदास = निराश, दुखी। चुकाकर = देकर। प्रफुल्लता = खुशी। होम = बलिदान करना। बिकने के मौके = अपना स्वार्थ पूरा करने का अवसर।

(पृष्ठ-64) हृदयस्थली = बीच का मुख्य स्थान। प्रतिष्ठापित = स्थापित करना। अटेंशन = सावधान की अवस्था में। आँख भर आना = आँसू बहना। भावुक होना = कोमल भावनाओं से हृदय भर जाना।

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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 संगतकार

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 संगतकार Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 संगतकार

HBSE 10th Class Hindi संगतकार Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
संगतकार के माध्यम से कवि किस प्रकार के व्यक्तियों की ओर संकेत करना चाह रहा है?
उत्तर-
संगतकार के माध्यम से कवि ऐसे लोगों की ओर संकेत करना चाह रहा है जिनका किसी कार्य के करने में योगदान तो पूरा रहता है किंतु उनका नाम कोई नहीं जानता। सारा श्रेय मुखिया को ही जाता है। कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि समाज में हर व्यक्ति का अपना-अपना महत्त्व है। जिस प्रकार कोई टीम केवल कैप्टन के प्रयास से नहीं जीतती, अपितु हर खिलाड़ी के प्रयास से जीतती है। अतः जीत का श्रेय हर खिलाड़ी को मिलना चाहिए।

प्रश्न 2.
संगतकार जैसे व्यक्ति संगीत के अलावा और किन-किन क्षेत्रों में दिखाई देते हैं?
उत्तर-
संगतकार जैसे व्यक्ति संगीत के अलावा नाटक, फिल्म, विभिन्न खेलों की टीम, राजनीति आदि अनेक क्षेत्रों में दिखलाई पड़ते हैं। वैज्ञानिक क्षेत्र में प्रमुख वैज्ञानिक के साथ अनेक दूसरे वैज्ञानिक भी काम करते हैं। किंतु किसी महत्त्वपूर्ण खोज का श्रेय मुख्य वैज्ञानिक को दिया जाता है। कहने का अभिप्राय है कि काम तो अनेक लोग करते हैं, किंतु सफलता का श्रेय मुख्य व्यक्ति को ही दिया जाता है।

प्रश्न 3.
संगतकार किन-किन रूपों में मुख्य गायक-गायिकाओं की मदद करते हैं?
उत्तर-
संगतकार अनेक प्रकार से मुख्य गायक-गायिकाओं की सहायता करते हैं, जैसे वे अपनी आवाज़ और गूंज को मुख्य गायक की आवाज़ और गूंज से मिलाकर उसे बल प्रदान करते हैं। वे मुख्य गायक द्वारा कहीं गहरे में चले जाने पर या आवाज़ को लंबी खींचने पर उनकी स्थायी पंक्ति अर्थात् गीत की टेक को पकड़े रखते हैं और गीत को बेसुरा नहीं होने देते। वे मुख्य गायक को मूल स्वर पर लौटा लाने का काम भी करते हैं। जब मुख्य गायक की आवाज़ थककर बिखरने व टूटने लगती है तो उस समय भी संगतकार उसे शक्ति प्रदान करते हैं। उसे अकेला नहीं पड़ने देते।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 संगतकार

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ सुनाई देती है या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है उसे विफलता नहीं उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।
उत्तर-
देखिए काव्यांश ‘3’ का अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न ‘ग’ भाग।

प्रश्न 5.
किसी भी क्षेत्र में प्रसिद्धि पाने वाले लोगों को अनेक लोग तरह-तरह से अपना योगदान देते हैं। कोई एक उदाहरण देकर इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर-
समाज में ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाते हैं। हम किसी भी विद्यालय के प्रधानाध्यापक या मुख्याध्यापकों का उदाहरण ले सकते हैं। विद्यालय को विकास के पथ पर ले जाने की सफलता का श्रेय प्रधानाचार्य को मिलता है जबकि उसमें अध्यापकों एवं अन्य कर्मचारियों का सहयोग भी रहता है। अकेला प्रधानाचार्य कुछ नहीं कर सकता। इसी प्रकार संसार के बड़े-बड़े सफल लोगों के उदाहरण भी दिए जा सकते हैं, जैसे-बिल गेट्स, अंबानी, लक्ष्मी मित्तल को देख लीजिए। इसकी सफलता के पीछे मैनेजमैंट से जुड़े लोगों की पूरी टीम है। ये लोग दिन-रात परिश्रम करते हैं। अकेले व्यक्ति के प्रयास से इतनी सफलता नहीं मिलती। अतः स्पष्ट है कि किसी भी महान् व्यक्ति की सफलता में अनेक लोगों का योगदान रहता है। कहा भी गया है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।

प्रश्न 6.
कभी-कभी तारसप्तक की ऊँचाई पर पहुँचकर मुख्य गायक का स्वर बिखरता नज़र आता है उस समय संगतकार उसे बिखरने से बचा लेता है। इस कथन के आलोक में संगतकार की विशेष भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
संगतकार की प्रमुख भूमिका यही है कि वह मुख्य गायक का पूरा सहयोग करता है। जब भी उसका स्वर टूटने लगता है तो संगतकार उनकी आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाकर उन्हें बल देता है, श्रोताओं को इसका पता ही नहीं चलता। यदि मुख्य गायक बिना संगतकार के गीत गा रहा है तो उसका स्वर बीच-बीच में बिखरता रहेगा। संगतकार ही उसके स्वर को बिखरने से बचाता है। यही संगतकार की विशिष्ट भूमिका है।

प्रश्न 7.
सफलता के चरम शिखर पर पहुँचने के दौरान यदि व्यक्ति लड़खड़ाते हैं तब उसे सहयोगी किस तरह सँभालते हैं? ‘
उत्तर-
सफलता के चरम शिखर पर पहुँचने के दौरान यदि व्यक्ति लड़खड़ाते हैं, तब उसके सहयोगी उसे अपना पूर्ण योगदान या सहयोग देकर सँभालते हैं। उसे मानसिक तौर पर सहारा देने हेतु अपनी सहानुभूति भी देते हैं। उसके साथ रहते हुए बार-बार उसकी योग्यताओं का अहसास करवाते रहते हैं ताकि वह पहले से अधिक परिश्रम कर सके। . वे अपनी सारी शक्ति उसके लिए लगा देते हैं।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 8.
कल्पना कीजिए कि आपको किसी संगीत या नृत्य समारोह का कार्यक्रम प्रस्तुत करना है लेकिन आपके सहयोगी कलाकार किसी कारणवश नहीं पहुंच पाए
(क) ऐसे में अपनी स्थिति का वर्णन कीजिए।
(ख) ऐसी परिस्थिति का आप कैसे सामना करेंगे?
उत्तर-
(क) ऐसी स्थिति में आरंभ में तो थोड़ी चिंता होगी कि सहयोगी कलाकार के बिना काम करना कठिन होगा। किंतु समारोह का कार्यक्रम प्रस्तुत करना अति आवश्यक है तो मन में यह निश्चित करके अपना गीत व नृत्य अवश्य करूँगा।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 संगतकार

(ख) ऐसी स्थिति को सँभालने के लिए सहयोगी कलाकारों से संपर्क करके उन्हें बुलाने का प्रयास करूंगा। उनसे संपर्क न होने की स्थिति में किसी नये संगतकार को बुलाने की कोशिश करूँगा। कुछ क्षणों के लिए नये सहयोगी कलाकारों के साथ अभ्यास करूँगा ताकि हमारी उनसे ताल-मेल ठीक बैठ जाए। यदि ऐसा न हो सका तो कार्यक्रम को स्थगित कर दूंगा तथा कार्यक्रम कि अन्य तिथि की घोषणा कर दूंगा।

प्रश्न 9.
आपके विद्यालय में मनाए जाने वाले सांस्कृतिक समारोह में मंच के पीछे काम करने वाले सहयोगियों की भूमिका पर एक अनुच्छेद लिखिए। .
उत्तर-
विद्यालय में मनाए जाने वाले सांस्कृतिक समारोह में जितना महत्त्व मंच पर कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले का है, उतना ही महत्त्व मंच के पीछे काम करने वाले सहयोगियों का भी है। मंच पर उद्घोषणा करने वाले सहयोगी के समान ही अन्य सहयोगी कलाकारों का भी महत्त्व है। जिस प्रकार अच्छी नींव पर मजबूत भवन खड़ा हो सकता है। वैसे ही अच्छे एवं कुशल सहयोगी कलाकारों के बल पर ही कोई भी सांस्कृतिक कार्यक्रम सफल होता है। संगीत व नृत्य के कार्यक्रम तो मंच के पीछे के सहयोगी कलाकारों के बिना होना संभव ही नहीं है। संगतकार नृत्य एवं संगीत के कार्यक्रमों की जान होते हैं। वे कार्यक्रम को जीवंतता प्रदान करते हैं। प्रकाश की अनुकूल व्यवस्था मंच के पीछे काम करने वाले ही करते हैं। प्रकाश की व्यवस्था का नाटक की प्रस्तुति में तो अत्यधिक महत्त्व रहता है। इसी प्रकार मंच की साज-सज्जा का दर्शक के मन पर सर्वप्रथम प्रभाव पड़ता है। साज-सज्जा का प्रभाव सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति पर पड़ता है। इसलिए मंच साज-सज्जा करने वाले सहायकों का महत्त्व भी उल्लेखनीय है। ध्वनि व्यवस्था का भी अपना ही महत्त्व है। ध्वनि की उचित व्यवस्था के अभाव में कार्यक्रम संभव नहीं है। किसी नृत्य की प्रस्तुति में मंच के पीछे गायन या वाद्य ध्वनि प्रस्तुत करने वाले कलाकारों की भूमिका का अत्यधिक महत्त्व है। अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि सांस्कृतिक समारोह की प्रस्तुति में मंच के पीछे काम करने वाले सहयोगियों की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 10.
किसी भी क्षेत्र में संगतकार की पंक्ति वाले लोग प्रतिभावान होते हुए भी मुख्य या शीर्ष स्थान पर नहीं पहुँच पाते होंगे?
उत्तर-
किसी भी क्षेत्र में संगतकार की पंक्ति वाले प्रतिभावान लोग मुख्य कलाकार नहीं बन पाते। इसका मुख्य कारण है कि वे मुख्य गायक या कलाकार के सहायक के रूप में आते हैं। यदि वे आजीवन तबला, हारमोनियम आदि वाद्ययंत्र ही बजाते रहें तो मुख्य गायक या कलाकार नहीं बन सकते। यदि वे स्वतंत्र रूप से अपनी प्रतिभा दिखाएँ तो वे मुख्य कलाकार बन सकते हैं। भले ही वे अपना तबला या हारमोनियम के बजाने की कला का प्रदर्शन करें। हाँ, यदि दूसरों के सहायक बनकर काम करेंगे तो उन्हें मुख्य कलाकार बनने का अवसर नहीं मिलेगा।

यदि संगतकार प्रतिभावान है तो वह शीघ्र ही अपनी कला में इतनी प्रसिद्धि प्राप्त कर लेगा कि उसे मुख्य कलाकार के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है। प्रायः देखने में आया है कि संगतकार द्वितीय श्रेणी की प्रतिभा वाले होते हैं। इसलिए वे सदा मुख्य कलाकार के सहायक के रूप में बने रहते हैं। इसमें संदेह नहीं कि संगतकार हमेशा ही मंच के पीछे रहते हैं, इसलिए वे प्रतिभा संपन्न होकर भी श्रेष्ठ स्थान प्राप्त नहीं कर सकते।

पाठेतर सक्रियता

आप फिल्में तो देखते ही होंगे। अपनी पसंद की किसी एक फिल्म के आधार पर लिखिए कि उस फिल्म की सफलता में अभिनय करने वाले कलाकारों के अतिरिक्त और किन-किन लोगों का योगदान रहा?
उत्तर-
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

आपके विद्यालय में किसी प्रसिद्ध गायिका की गीत प्रस्तुति का आयोजन है।
(क) इस संबंध पर सूचना पट के लिए एक नोटिस तैयार कीजिए।
(ख) गायिका व उसके संगतकारों का परिचय देने के लिए आलेख (स्क्रिप्ट) तैयार कीजिए।
उत्तर-
(क) नोटिस
विद्यालय के सांस्कृतिक क्लब द्वारा एक गीतों भरी संध्या का आयोजन विद्यालय के सांस्कृतिक भवन में दिनांक 5.5.20….. को सायं पाँच बजे किया जा रहा है। देशभर में ही नहीं अपितु संसार भर में सुप्रसिद्ध गायिका मुनिश्वरी देवी और मनोज देव अपने-अपने मधुर स्वरों में गंगा बहाने आ रहे हैं। आप अपने माता-पिता के साथ इस आयोजन में सादर आमंत्रित हैं। आप समय पर पहुँचकर अपना-अपना स्थान ग्रहण करें।

रामपाल
अध्यक्ष
विद्यालय सांस्कृतिक क्लब

(ख) स्वरों की मल्लिका मुनिश्वरी देवी देशभर में अपनी मधुर आवाज़ के लिए प्रसिद्ध हैं। इनका नाम गीत-संगीत की दुनिया में बड़े आदर से लिया जाता है। इन्होंने अनेक फिल्मों के लिए गीत गाए हैं। बाल गीतों और भजनों के क्षेत्र में भी इन्होंने अपनी मधुर ध्वनि का सिक्का जमाया हुआ है। इनके साथ संगतकारों की पूरी टीम है। इस सभा में हारमोनियम पर पवन कुमार, तबला पर मुनीश, सारंगी पर उदय शर्मा, बाँसुरी पर अजीज तथा मृदंग पर गुरविन्द्र पाल साथ देंगे।

यह भी जानें

सरगम संगीत के लिए सात स्वर तय किए गए हैं। वे हैं-षडज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद। इन्हीं नामों के पहले अक्षर लेकर इन्हें सा, रे, ग, म, प, ध और नि कहा गया है।
सप्तक-सप्तक का अर्थ है सात का समूह। सात शुद्ध स्वर हैं इसीलिए यह नाम पड़ा। लेकिन ध्वनि की ऊँचाई और निचाई के आधार पर संगीत में तीन तरह के सप्तक माने गए हैं। यदि साधारण ध्वनि है तो उसे ‘मध्य सप्तक’ कहेंगे और ध्वनि मध्य सप्तक से ऊपर है तो उसे ‘तार सप्तक’ कहेंगे तथा यदि ध्वनि मध्य सप्तक से नीचे है तो उसे ‘मंद्र सप्तक’ कहते हैं।

HBSE 10th Class Hindi संगतकार Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मुख्य गायक एवं संगतकार के संबंधों पर सार रूप में प्रकाश डालिए।
उत्तर-
मुख्य गायक और संगतकार का संबंध प्राचीनकाल से चला आ रहा है। मुख्य गायक और संगतकार का संबंध चोलीदामन का संबंध है। मुख्य गायक को संगतकारों के सहयोग के बिना प्रसिद्धि नहीं मिल सकती तथा मुख्य गायक के बिना संगतकारों की कला महत्त्वहीन ही रहती है। संगतकार मुख्य गायक की आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाकर सदा से उसे बल प्रदान करता आया है। वह मुख्य कलाकार या गायक की आवाज़ के मुकाबले में अपनी आवाज़ को कमज़ोर व धीमा रखता आया है।

प्रश्न 2.
गायन के क्षेत्र में प्रयोग होने वाले ‘स्थायी’ एवं ‘अंतरा’ शब्दों का अर्थ समझाइए।
उत्तर-
स्थायी-गायन के क्षेत्र में ‘स्थायी’ का अर्थ गीत की मुख्य पंक्ति या टेक है जिसे बार-बार दोहराया जाता है।।
अंतरा-‘अंतरा’ गीत की टेक की पंक्ति के अतिरिक्त दूसरी पंक्तियों को कहते हैं। गीत में एक से अधिक चरण या अंतरे होते हैं। हर अंतरे के पश्चात् स्थायी अर्थात् टेक की पंक्तियाँ होती हैं।

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प्रश्न 3.
सरगम किसे कहते हैं?
उत्तर-
‘सरगम’ संगीत के क्षेत्र में सात स्वरों के समूह को सरगम कहते हैं। संगीत के सात स्वर हैं-षडज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम्, धैवत और निषाद। इन्हीं नामों के पहले अक्षर लेकर इन्हें सा, रे, ग, म, प, ध और नि कहा गया है।

प्रश्न 4.
सप्तक किसे कहते हैं? उसके कितने भेद होते हैं?
उत्तर-
संगीत के क्षेत्र में सप्तक का अत्यधिक महत्त्व है। सप्तक का अर्थ है-सात का समूह । सात शुद्ध स्वर हैं इसीलिए यह नाम पड़ा। लेकिन ध्वनि की ऊँचाई और निचाई के आधार पर संगीत में तीन तरह के सप्तक माने गए हैं। यदि साधारण ध्वनि से है तो उसे ‘मध्य सप्तक’ कहेंगे और ध्वनि मध्य सप्तक से ऊपर है तो उसे ‘तार सप्तक’ कहेंगे तथा ध्वनि मध्य सप्तक से नीचे है तो उसे ‘मंद्र सप्तक’ कहते हैं।

संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 5.
‘संगतकार’ कविता का उद्देश्य/मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
‘संगतकार’ शीर्षक कविता में कवि का लक्ष्य मुख्य कलाकार के सहयोगी कलाकारों की भूमिका के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए उन्हें सम्मान प्रदान करना है। ठीक इसी प्रकार समाज के विभिन्न क्षेत्रों में भूमिका रूप में रहते हुए समाज के विकास में योगदान देने वाले लोगों को भी सम्मान देने की भावना को बढ़ावा देना है। संगतकार भले ही मुख्य कलाकार के सहायक हैं तथा उसके पीछे-पीछे चलते हैं। उसकी आवाज़ और गूंज में अपनी आवाज़ और गूंज मिलाकर उसे शक्ति व बल प्रदान करते हैं। उसे गीत के मुख्य स्वर से विचलित नहीं होने देते। उनके बिना मुख्य गायक सफल नहीं हो सकता। इसी प्रकार समाज में सामान्य लोगों के सहयोग के बिना शासक भी सफल नहीं हो सकता। अतः कविता का परम लक्ष्य संगतकारों के महत्त्व को उजागर करना है।

प्रश्न 6.
‘संगतकार’ शब्द यहाँ प्रतीक के रूप में प्रयुक्त हुआ है। इस शब्द के माध्यम से लेखक ने क्या स्पष्ट किया?
उत्तर-
‘संगतकार’ मुख्य कलाकार के सहायक को कहा जाता है। वह अपनी शक्ति को मुख्य कलाकार का बल बना देता है। वह अपनी संपूर्ण शक्ति का प्रयोग मुख्य कलाकार को आगे बढ़ाने में करता है। वह स्वयं पीछे रहकर उसे आगे बढ़ाता है। इस प्रतीक के माध्यम से कवि यह बताना चाहता है कि जीवन के हर क्षेत्र में सहायकों का कार्य महत्त्वपूर्ण होता है। वे कभी स्वयं ऊपर नहीं आ पाते। उनका समाज में उतना ही योगदान है जितना कि मुख्य कलाकारों का। यह सब कुछ जानते हुए भी वे अपने नेता को ही आगे बढ़ाते हैं। अतः उनके इस निःस्वार्थ भाव से किए गए त्याग को उजागर करना ही कविता का परम लक्ष्य है।

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अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
श्री मंगलेश डबराल का जन्म कब हुआ था?
उत्तर-
श्री मंगलेश डबराल का जन्म सन् 1948 में हुआ था।

प्रश्न 2.
कवि ने अपने काव्य में किसका पक्ष लिया है?
उत्तर-
कवि ने अपने काव्य में उपेक्षितों का पक्ष लिया है।

प्रश्न 3.
अंतरा किसे कहते हैं?
उत्तर-
स्थायी टेक को छोड़कर गीत के शेष भाग को अंतरा कहते हैं।

प्रश्न 4.
‘संगतकार’ कविता में स्थायी किसे कहा गया है?
उत्तर-
‘संगतकार’ कविता में गीत की मुख्य टेक को स्थायी कहा गया है।

प्रश्न 5.
संगतकार मुख्य गायक को ढाँढस कब बँधाता है?
उत्तर-
जब उसका राग गिरने लगता है, तब संगतकार मुख्य गायक को ढाँढस बँधाता है।

प्रश्न 6.
संगतकार की मुख्य भूमिका क्या होती है?
उत्तर-
मुख्य गायक के स्वर को शक्ति देना संगतकार की मुख्य भूमिका होती है।

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प्रश्न 7.
‘संगतकार’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
मुख्य गायक के सहायक गायक को संगतकार कहा है।

प्रश्न 8.
‘मनुष्यता’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
‘मनुष्यता’ का अर्थ है-भलाई की भावना।

प्रश्न 9.
कवि ने संगतकार की कौन-सी महानता की ओर संकेत किया है?
उत्तर-
कवि ने संगतकार की मुख्य गायक के स्वर को उठाने के लिए अपने स्वर को नीचे रखने वाली महानता की ओर संकेत किया है।

प्रश्न 10.
‘संगतकार’ कविता के रचयिता कौन हैं?
उत्तर-
श्री मंगलेश डबराल।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
श्री मंगलेश डबराल किस प्रदेश के रहने वाले हैं?
(A) उत्तर प्रदेश
(B) उत्तराखंड
(C) हरियाणा
(D) पंजाब
उत्तर-
(B) उत्तराखंड

प्रश्न 2.
संगतकार की आवाज कैसी कही गई है?
(A) भारी
(B) ऊँची
(C) अति मधुर
(D) कमजोर
उत्तर-
(A) भारी

प्रश्न 3.
मुख्य गायक का गला किसमें बैठता है?
(A) शीत में
(B) तारसप्तक में
(C) रोग में
(D) प्रीतिभोज में
उत्तर-
(B) तारसप्तक में

प्रश्न 4.
‘संगतकार’ शीर्षक कविता के कवि का क्या नाम है?
(A) मंगलेश डबराल
(B) ऋतुराज
(C) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
(D) जयशंकर प्रसाद
उत्तर-
(A) मंगलेश डबराल

प्रश्न 5.
संगतकार शब्द का प्रतीकार्थ है-
(A) सहयोगी
(B) संग चलने वाला
(C) भजन सुनने वाला
(D) उपदेश-श्रोता
उत्तर-
(A) सहयोगी

प्रश्न 6.
‘संगतकार’ कौन-सी रचना है-
(A) उपन्यास
(B) नाटक
(C) कविता
(D) निबन्ध
उत्तर-
(C) कविता

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प्रश्न 7.
किसकी आवाज़ को कमजोर एवं काँपती हुई बताया गया है?
(A) मुख्य गायक की
(B) संगतकार की
(C) श्रोता की
(D) गीत-लेखक की
उत्तर-
(B) संगतकार की

प्रश्न 8.
संगतकार का क्या काम है?
(A) मुख्य गायक की आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाना
(B) मुख्य गायक की प्रशंसा करना।
(C) मुख्य गायक का गीत सुनना
(D) मुख्य गायक की कमियाँ निकालना
उत्तर-
(A) मुख्य गायक की आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाना

प्रश्न 9.
प्रस्तुत कविता में स्थायी या टेक को छोड़कर गीत के चरण को क्या कहा है?
(A) तान
(B) तार सप्तक
(C) अंतरा
(D) सरगम
उत्तर-
(C) अंतरा

प्रश्न 10.
नौसिखिया किसे कहते हैं?
(A) जिसने अभी सीखना आरंभ किया हो
(B) नौ बातें जानने वाला
(C) नई शिक्षा
(D) नया काम सिखाने वाला
उत्तर-
(A) जिसने अभी सीखना आरंभ किया हो

प्रश्न 11.
‘मुख्य गायक की गरज में’ यहाँ गरज का अर्थ है
(A) गर्जन
(B) गड़गड़ाहट
(C) ऊँची गंभीर आवाज़
(D) ऊंची गंभीर आवाज़
उत्तर-
(D) ऊँची गंभीर आवाज़

प्रश्न 12.
‘स्थायी’ किसे कहा गया है?
(A) स्थान को
(B) स्थिर को
(C) गीत की मुख्य टेक को
(D) गीत के शेष भाग को
उत्तर-
(C) गीत की मुख्य टेक को

प्रश्न 13.
‘अनहद’ का कविता के संदर्भ में क्या अर्थ है?
(A) सीमाहीन
(B) असीम
(C) अनंत
(D) असीम मस्ती
उत्तर-
(D) असीम मस्ती

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प्रश्न 14.
‘तारसप्तक’ किसे कहा गया है?
(A) सरगम के ऊँचे स्वर को
(B) पक्के राग को
(C) मध्य स्वर में गाए गए राग को
(D) अति धीमे स्वर को
उत्तर-
(A) सरगम के ऊँचे स्वर को

प्रश्न 15.
किस कारण से मुख्य गायक की आवाज़ साथ नहीं देती?
(A) थक जाने के कारण
(B) स्वर ताल उखड़ने के कारण
(C) गला बैठ जाने के कारण
(D) सांस फूल जाने के कारण
उत्तर-
(C) गला बैठ जाने के कारण

प्रश्न 16.
मुख्य गायक को यह अहसास कौन दिलाता है कि वह अकेला नहीं है?
(A) श्रोतागण
(B) वाद्यतंत्र को बजाने वाले
(C) गीत लेखक
(D) संगतकार
उत्तर-
(D) संगतकार

प्रश्न 17.
मुख्य गायक का स्वर किसमें खो जाता है?
(A) मध्यम अंतरे की तान में
(B) अंतरे की जटिल तान में
(C) अंतरे की तान में
(D) अंतरे की सरल तान में
उत्तर-
(B) अंतरे की जटिल तान में

प्रश्न 18.
संगतकार के धीमे स्वर में क्या निहित रहती है?
(A) प्रेरणा
(B) मनुष्यता
(C) विफलता
(D) पीड़ा
उत्तर-
(B) मनुष्यता

प्रश्न 19.
मुख्य गायक के साथ स्वर साधने वाला है
(A) सितारवादक
(B) तबलावादक
(C) सह-गायिका
(D) संगतकार
उत्तर-
(D) संगतकार

प्रश्न 20.
‘सरगम’ का अर्थ है
(A) ज्ञान
(B) सरककर चलना
(C) स्वर-बोध
(D) सरोवर
उत्तर-
(C) स्वर-बोध

प्रश्न 21.
मुख्य गायक के भारी स्वर का उपमान क्या है?
(A) चट्टान
(B) समुद्र
(C) स्वर-बोध
(D) झील
उत्तर-
(A) चट्टान

संगतकार पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती
वह आवाज़ सुंदर कमज़ोर काँपती हुई थी
वह मुख्य गायक का छोटा भाई है
या उसका शिष्य
या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदार
मुख्य गायक की गरज़ में
वह अपनी गूंज मिलाता आया है प्राचीन काल से [पृष्ठ 54]

शब्दार्थ-संगतकार = मुख्य गायक के साथ गायन करने वाला या कोई वाद्य बजाने वाला। मुख्य गायक = प्रधान गायक। शिष्य = चेला। गरज़ = ऊँची गंभीर आवाज़। गूंज = स्वर। प्राचीन काल = पुराना समय।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) मुख्य गायक की आवाज़ का साथ कौन देती है?
(ङ) संगतकार का स्वर कैसा है?
(च) संगतकार का काम क्या है?
(छ) मुख्य गायक की आवाज़ की प्रमुख विशेषता क्या है?
(ज) इस काव्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(झ) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में निहित शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ञ) प्रस्तुत काव्यांश की भाषागत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-मंगलेश डबराल। कविता का नाम-संगतकार।

(ख) प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘संगतकार’ नामक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता श्री मंगलेश डबराल हैं। कवि ने इस कविता में मुख्य गायक के साथ गाने वाले संगतकार की भूमिका का वर्णन करते हुए उसके महत्त्व को प्रतिपादित किया है। संगतकार के बिना मुख्य गायक अधूरा-सा लगता है।

(ग) कवि का कथन है कि जब गायक मंडली का मुख्य गायक अपनी चट्टान जैसी भारी-भरकम आवाज़ में गाता था तो उसका संगतकार सदा उसका साथ देता था। संगतकार की आवाज़ बहुत सुंदर, कमज़ोर और काँपती हुई सी थी। वह संगतकार ऐसा लगता था मानो मुख्य गायक का छोटा भाई हो या उसका कोई शिष्य हो या फिर कोई दूर का संबंधी हो जो पैदल चलकर उसके पास संगीत सीखने आता है। कहने का भाव है कि संगतकार मुख्य गायक से छोटा एवं महत्त्वहीन-सा लगता था। ऐसा उसके व्यवहार से जान पड़ता था। यह संगतकार आज से नहीं प्राचीन काल से मुख्य गायक की गरज में अपना स्वर मिलाता आया है।

(घ) मुख्य गायक की भारी-भरकम आवाज़ का साथ संगतकार की आवाज़ देती है।

(ङ) संगतकार का स्वर सुंदर, कमज़ोर और काँपता हुआ था।

(च) संगतकार का काम है-मुख्य गायक की गरजदार आवाज में अपनी मधुर-सी गूंज मिलाना। इस प्रकार मुख्य गायक की आवाज को और अधिक बल देकर उसे ऊपर उठाना। .

(छ) मुख्य गायक की आवाज भारी-भरकम होती हुई भी कड़क और गरजदार है। उसमें चट्टान जैसा भारीपन है।

(ज) मुख्य गायक गाकर अपनी गायन कला का प्रदर्शन करता है। किंतु संगतकार उसकी आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाता ही नहीं, अपितु वह मुख्य गायक के स्वर और दिशा को भी संभालता है। उसे स्वरों से दूर भटकने से रोकता है। इस प्रकार कवि ने इस पद्यांश में संगतकार के महत्त्व को प्रतिपादित किया है।

(झ)

  • कवि ने संगीतकार व गायक के साथ-साथ संगतकार के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।
  • खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
  • सामान्य बोलचाल के शब्दों का सार्थक एवं सटीक प्रयोग किया गया है।
  • भाषा प्रसाद गुण संपन्न है।
  • उपमा एवं अनुप्रास अलंकारों का प्रयोग हुआ है।

(ञ) कविवर डबराल शब्दों को नए अर्थ देने के लिए माहिर हैं। भाषा सरल एवं सहज है। उनकी भाषा की अन्य प्रमुख विशेषता पारदर्शिता है। सम्पूर्ण पद्यांश में प्रयुक्त भाषा प्रसादगुण सम्पन्न है।

[2] गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में
खो चुका होता है
या अपने ही सरगम को लाँधकर चला जाता
है भटकता हुआ एक अनहद में
तब संगतकार ही स्थायी को सँभाले रहता है
जैसे समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान
जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन
जब वह नौसिखिया था। [पृष्ठ 54]

शब्दार्थ-अंतरा = स्थायी टेक को छोड़कर गीत का शेष चरण। जटिल तान = कठिन आलाप। सरगम = संगीत के सात स्वरों को उठाना। लाँघकर = पार करके। अनहद = असीम, बहुत दूर, बहुत ऊँचा। स्थायी = गीत की मुख्य टेक, लय। समेटना = इकट्ठा करना। नौसिखिया = जिसने अभी सीखना आरंभ किया हो।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) ‘अंतरे की जटिल तानों के जंगल’ से क्या तात्पर्य है?
(ङ) ‘सरगम को लाँघने’ का अर्थ स्पष्ट करें।
(च) ‘अनहद’ का कविता के संदर्भ में क्या अर्थ है?
(छ) संगतकार मुख्य गायक को नौसिखिया की स्थिति कैसे याद दिलाता है?
(ज) स्थायी को संभालने का क्या अभिप्राय है?
(झ) इस पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ञ) प्रस्तुत पद्यांश के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ट) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-मंगलेश डबराल।
कविता का नाम-संगतकार।

(ख) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्यपुस्तक :क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘संगतकार’ नामक कविता से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता श्री मंगलेश डबराल हैं। इसमें मुख्य गायक के साथ-साथ सम्मान से वंचित सहायकों की भूमिका के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। भले ही लोग उनका नाम तक लेते हों, किंतु सच्चाई यह है कि मुख्य गायक की सफलता इनके सहयोग पर ही निर्भर करती है।

(ग) कवि कहता है कि मुख्य गायक जब स्वर को लंबा खींचकर अंतरे की कठिन तानों के जंगल में खो जाता है अर्थात् मुख्य गायक जब गीत की मुख्य पंक्ति को गाने के पश्चात् गीत की अन्य पंक्तियों को गाने लगता है तो वह टेढ़े-मेढ़े स्वरों में उलझ जाता है और मुख्य स्वर से भटक जाता है। वह अपने निश्चित स्वरों की सीमा को लाँघकर गहरी संगीत-साधना में लीन हो जाता है, असीम-सी मस्ती में डूब जाता है। तब संगतकार ही गीत की मुख्य टेक के स्वर को अलापता रहता है तथा उसे सँभाले रखता है। इस प्रकार वह मुख्य गायक को मूल स्वर में लौटा लाता है। ऐसा लगता है कि मानो वह मुख्य गायक के पीछे छूटे हुए सामान को सँभालने में लगा हो। मानो वह मुख्य गायक को उसके बचपन की याद दिला रहा हो। जब वह नया-नया संगीत सीख रहा था तथा अकसर मूल स्वर को भूल जाता था, तब उसने संगीत में निपुणता प्राप्त नहीं की थी।

(घ) अंतरे की जटिल तानों के जंगल से तात्पर्य है कि गीत की मुख्य टेक के अतिरिक्त गीत के चरण की अन्य पंक्तियाँ, जिनके स्वर बहुत कठिन एवं अधिक होते हैं।

(ङ) सरगम को लाँघने का अर्थ है-गीत की मुख्य लय या स्वर की सीमा को भूलकर और अधिक कठिन आलापों में खो जाना और मुख्य स्वर से अधिक ऊँचा स्वर उठाना।

(च) ‘अनहद’ का शाब्दिक अर्थ है-असीम, सीमाहीन, अनंत। ‘अनहद’ का आध्यात्मिक अर्थ है-आध्यात्मिक मस्ती। कविता के संदर्भ में इसका अर्थ है- असीम मस्ती।

(छ) कभी-कभी मुख्य गायक गीत गाने में इतना डूब जाता है कि गीत के लय व स्वर को भूल जाता है अथवा जटिल तानों में खो जाता है। इससे गीत की मुख्य तान में आघात पहुँचता है। संगतकार उसे वापस मूल स्वर में लौटा लाता है। यही स्थिति किसी नए-नए गीत सीखने वाले की होती है, जो गीत गाते-गाते मुख्य स्वर को भूल जाता है, उस्ताद उसे फिर मुख्य स्वर में लाता है। संगतकार मुख्य गायक को गीत के स्वर में लौटा लाता है। ऐसी स्थिति बचपन में मुख्य गायक की होती थी। इस प्रकार संगतकार मुख्य गायक को उसके बचपन में ले जाता है।

(ज) स्थायी को संभालने का तात्पर्य है किसी गीत की मुख्य पंक्ति या टेक के मुख्य स्वर को गाते रहना। उसकी टेक को बिखरने न देना। उसकी गति, लय आदि को कम या अधिक न होने देना।

(झ) कवि ने मुख्य गायक के सहायक की भूमिका को अत्यंत मनोरम शब्दों में व्यक्त किया है। मुख्य गायक जब कोई गीत गाता है तो संगतकार उसमें केवल अपनी आवाज़ को ही नहीं मिलाता, अपितु गीत के स्वर को सँभालता भी है। वह उसे स्वरों से दूर भटकने से भी रोकता है तथा उसे सही दिशा में ले जाता है।

(ञ)

  • कवि ने संगतकार की भूमिका के महत्त्व को अत्यंत कलात्मकतापूर्ण अभिव्यक्ति प्रदान की है।
  • अभिधा शब्द-शक्ति के कारण कवि का कथन अत्यंत सरल एवं सहज बन पड़ा है।
  • भाषा में बोलचाल के शब्दों का प्रयोग किया गया है।
  • अतुकांत छंद का प्रयोग किया गया है।
  • रूपक, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।

(ट) प्रस्तुत पद्यांश में सहज एवं सरल भाषा का प्रयोग किया गया है। कवि ने लययुक्त भाषा का सफल प्रयोग किया है। कविता का प्रमुख विषय गायक व संगतकार से सम्बन्धित है इसलिए विषय से सम्बन्धित शब्दों का सफल प्रयोग किया गया है। सजगता भाषा की अन्य प्रमुख विशेषता है।

[3] तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला
प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ
आवाज़ से राख जैसा कुछ गिरता हुआ
तभी मुख्य गायक को ढाँढस बँधाता
कहीं से चला आता है संगतकार का स्वर
कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ
यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है
और यह कि फिर से गाया जा सकता है।
गाया जा चुका राग
और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ सुनाई देती है
या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है
उसे विफलता नहीं
उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए। [पृष्ठ 54-55]

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 संगतकार

शब्दार्थ-तारसप्तक = सरगम के ऊँचे स्वर। प्रेरणा = आगे बढ़ने की इच्छा-शक्ति। उत्साह अस्त होता हुआ = हौंसला कम होता हुआ। राख जैसा = बुझता हुआ, कम होता हुआ। ढाढ़स बंधाना = सांत्वना देना, तसल्ली देना। राग = ताल, लय-स्वर। हिचक = संकोच। विफलता = असफलता। मनुष्यता = मानवता, भलाई की भावना।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) तारसप्तक से क्या तात्पर्य है?
(ङ) किस कारण से गायक की आवाज़ साथ नहीं देती?
(च) मुख्य गायक को कौन धीरज बँधाता है और कैसे?
(छ) किसकी आवाज़ में हिचक सुनाई पड़ती है और क्यों?
(ज) संगतकार अपने स्वर को ऊँचा क्यों नहीं उठने देता?
(झ) कवि ने किसे मानवता माना है?
(ञ) इस पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ट) प्रस्तुत काव्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ठ) उपर्युक्त काव्यांश की भाषागत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-मंगलेश डबराल। कविता का नाम-संगतकार।

(ख) प्रस्तुत काव्यांश श्री मंगलेश डबराल द्वारा रचित सुप्रसिद्ध कविता ‘संगतकार’ से उद्धृत है। इसमें कवि ने मुख्य गायक के साथ-साथ उसके सहायक के कार्य के महत्त्व को भी उजागर किया है। संगतकार मुख्य गायक के महत्त्व को बढ़ाने में अपनी योग्यता एवं शक्ति को लगा देता है। कवि ने उसकी इसी मनुष्यता को उजागर किया है।

(ग) कवि कहता है कि तारसप्तक को गाते हुए जब उतार-चढ़ाव के कारण मुख्य गायक का गला बैठने लगता है, तो उसकी आवाज़ भी उसका साथ नहीं देती। गाते-गाते उसकी साँस भी उखड़ने लगती है। उसके मंद पड़ते उत्साह को संगतकार ही अपनी आवाज़ का सहारा देकर उसे उबारता है। वह उसे सांत्वना देता है और उसका धैर्य बँधाता है वह कहता है कि तुम अकेले नहीं हो अपितु में भी तुम्हारे साथ हूँ। जिस राग को वह गा रहा है, उसे कोई और भी फिर से गा सकता है अर्थात् संगतकार मुख्य गायक के गाए हुए राग को उसके पीछे-पीछे दोहराकर बता देना चाहता है कि कोई भी उसे गा सकता है। इससे मुख्य गायक का हौसला बढ़ता है।
कवि कहता है कि संगति करने वाले गायक की आवाज़ में एक संकोच स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है कि वह अपने स्वर को उस्ताद के स्वर से नीचे ही रखता है। इसको उसकी कमज़ोरी न समझकर उसकी मनुष्यता या मानवता ही समझना चाहिए।

(घ) ऊँचे स्वर में गाए गए सरगम को तार सप्तक कहते हैं।

(ङ) ऊँचे स्वर में गाते रहने के कारण मुख्य गायक का गला बैठने लगता है, आवाज़ डूबने लगती है। गाने की इच्छा भी नहीं होती। इससे गायक की आवाज़ उसका साथ छोड़ देती है।

(च) मुख्य गायक को संगतकार धीरज बँधाता है। वह उसके पीछे-पीछे लगातार गाता रहता है। वह उसके डूबते स्वर को सँभाले रहता है।

(छ) मुख्य गायक संगतकार की आवाज़ में हिचक साफ सुनाई देती है क्योंकि वह जान-बूझकर मुख्य गायक की आवाज़ की भाँति खुलकर नहीं गाना चाहता ताकि मुख्य गायक का स्वर उभरकर आ सके।

(ज) संगतकार अपने स्वर को मुख्य गायक के स्वर से ऊँचा इसलिए नहीं उठाता क्योंकि यह उसका धर्म है। वह मुख्य गायक के स्वर को ऊँचाई और शक्ति देने की भूमिका निभाता है। मुख्य गायक के स्वर से ऊँचे स्वर में गाना उसके लक्ष्य के विरुद्ध है।

(झ) कवि संगतकार द्वारा अपने स्वर को मुख्य गायक के स्वर से कम रखना ही उसकी मनुष्यता मानता है। अपने-आपको पीछे या भूमिका में रखते हुए दूसरों के महत्त्व को बढ़ावा देना ही सच्ची मानवता है।

(ञ) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने संगतकार के माध्यम से बताया है कि मुख्य गायक के सहायक गायक भी महानता में सम्मिलित हैं। वे मुख्य गायक को ऊँचा उठाने की कोशिश में अपने स्वर को और अपने-आपको कुछ नीचा रखते हैं। कवि के अनुसार उनका यह त्याग ही उनकी महानता का संकेत है।

(ट)

  • भाषा गद्यात्मक किंतु लययुक्त है।
  • भाषा सुगम, सरल एवं सुव्यवस्थित है।
  • उत्साह अस्त होना, राख जैसा कुछ गिरना आदि प्रतीकात्मक प्रयोग दृष्टव्य हैं।
  • अनुप्रास अलंकार की छटा है।
  • छंद युक्त कविता है।

(ठ) कविवर डबराल ने प्रस्तुत काव्यांश में सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया है। कवि ने मुख्य गायक व संगतकार के अन्तः सम्बन्धों को व्यक्त करने हेतु विषयानुकूल भाषा का प्रयोग किया है। भाषा पारदर्शी और व्यावहारिक है। प्रवाहमयता एवं लयबद्धता भाषा प्रयोग की मुख्य विशेषता है।

संगतकार Summary in Hindi

संगतकार कवि-परिचय

प्रश्न-
मंगलेश डबराल का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-मंगलेश डबराल आधुनिक हिंदी कवि एवं पत्रकार के रूप में जाने जाते हैं। इनका जन्म सन् 1948 में टिहरी गढ़वाल (उत्तराखंड) के काफलपानी नामक गाँव में हुआ था। इनकी शिक्षा-दीक्षा देहरादून में हुई थी। दिल्ली आकर ये पत्रकारिता से जुड़ गए थे। श्री डबराल जी ने हिंदी पेट्रियट, प्रतिपक्ष और आसपास आदि पत्र-पत्रिकाओं में काम किया। तत्पश्चात् ये भारत भवन, भोपाल से प्रकाशित होने वाले पत्र पूर्वग्रह में सहायक संपादक के पद पर नियुक्त हुए। इन्होंने इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित होने वाले अमृत प्रभात में भी काम किया। सन् 1983 में जनसत्ता में साहित्यिक संपादक के पद को सँभाला था। श्री डबराल ने कुछ समय के लिए सहारा समय का भी संपादन किया है। आजकल डबराल जी नेशनल बुक ट्रस्ट से जुड़कर ‘काम कर रहे हैं।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 9 संगतकार

2. प्रमुख रचनाएँ-अब तक डबराल जी के चार काव्य-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं-‘पहाड़ पर लालटेन’, ‘घर का रास्ता’, ‘हम जो देखते हैं’, ‘आवाज़ भी एक जगह है’ । इनकी रचनाओं के भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मन, पोल्स्की, बल्गारी आदि भाषाओं में भी अनुवाद हो चुके हैं। काव्य के अतिरिक्त साहित्य सिनेमा, संचार माध्यम और संस्कृति से संबंधित विषयों पर भी इनकी गद्य रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। इनकी साहित्यिक उपलब्धियों के कारण इन्हें विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। श्री डबराल कवि के रूप में ही अधिक प्रतिष्ठित हुए हैं तथा अच्छे अनुवादक के रूप में भी इन्होंने नाम कमाया है।

3. काव्यगत विशेषताएँ-श्री मंगलेश डबराल के काव्य में सामंती बोध एवं पूँजीवादी छल-छद्म दोनों का विरोध किया गया है। वे यह विरोध अथवा प्रतिकार किसी शोर-शराबे के साथ नहीं, अपितु प्रतिपक्ष में सुंदर सपना रचकर करते हैं। वे वंचितों का पक्ष लेकर काव्य रचना करते हैं। इनकी कविताओं में अनुभूति एवं रागात्मकता विद्यमान है। श्री डबराल जहाँ पुरानी परंपराओं का विरोध करते हैं, वहाँ नए जीवन-मूल्यों का पक्षधर बनकर सामने आते हैं। इनका सौंदर्य बोध अत्यंत सूक्ष्म है। सजग भाषा की सृष्टि इनकी कविताओं के कलापक्ष की प्रमुख विशेषता है।।

4. भाषा-शैली-इन्होंने शब्दों का प्रयोग नए अर्थों में किया है। छंद विधान को भी इन्होंने परंपरागत रूप में स्वीकार नहीं किया, किंतु कविता में लय के बंधन का निर्वाह सफलतापूर्वक किया है। इन्होंने काव्य में नई-नई कल्पनाओं का सृजन किया है। बिंब-विधान भी नवीनता लिए हुए हैं। नए-नए प्रतीकों के प्रति इनका मोह छुपा हुआ नहीं है। भाषा पारदर्शी और सुंदर है।

संगतकार कविता का सार

प्रश्न-
‘संगतकार’ शीर्षक कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘संगतकार’ कविता में कवि ने मुख्य गायक का साथ देने वाले संगतकार की भूमिका पर प्रकाश डाला है। कवि ने बताया है कि दृश्य माध्यम की प्रस्तुतियाँ; यथा-नाटक, फिल्म, संगीत नृत्य के बारे में तो यह बिल्कुल सही है। किंतु समाज और इतिहास में भी हम ऐसे अनेक उदाहरण देख सकते हैं। नायक की सफलता में अनेक लोगों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्रस्तुत कविता में कवि ने यही संदेश दिया है कि हर व्यक्ति की अपनी-अपनी भूमिका होती है, अपना-अपना महत्त्व होता है। उनका सामने न आना उनकी कमज़ोरी नहीं, अपितु मानवीयता है। युगों से संगतकार अपनी आवाज़ को मुख्य गायक से मिलाते आए हैं। जब मुख्य गायक अंतरे की जटिल तान में खो जाता है या अपने सरगम को लाँघ जाता है, तब संगतकार ही स्थायी पंक्ति को संभालकर आगे बढ़ाता है। ऐसा करके वह मुख्य गायक के गिरते हुए स्वर को ढाँढस बँधाता है। कभी-कभी उसे यह भी अहसास दिलाता है कि वह अकेला नहीं है, उसका साथ देने वाला है। जो राग पहले गाया जा चुका है, उसे फिर से गाया जा सकता है। वह सक्षम होते हुए भी मुख्य गायक के समान अपने स्वर को ऊँचा उठाने का प्रयास नहीं करता। इसे उसकी असफलता नहीं समझनी चाहिए। यह उसकी मानवीयता है, वह ऐसा करके मुख्य गायक के प्रति अपना सम्मान प्रकट करता है।

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